________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [249 पन्द्रहवाँ भाषकद्वार : भाषा की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व 264. एते सि णं भंते ! जीवाणं भासगाणं प्रभासहाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सम्वत्थोवा जीवाभासगा१. प्रभासगा प्रणंतगणा 2 दारं 15 // [264 प्र.] भगवन् ! इन भाषक और अभाषक जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं ? [264 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प भाषक जीव हैं, 2. (उनसे) अनन्तगुणे अभाषक हैं। पन्द्रहवाँ (भाषक) द्वार // 15 // विवेचन-पन्द्रहवां भाषकद्वार : भाषा की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत सूत्र में भाषक और अभाषक जीवों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है। भाषक और प्रभाषक की व्याख्या-जो जीव भाषालब्धि-सम्पन्न हैं, वे भाषक और जो भाषालब्धि-विहीन हैं, वे अभाषक कहलाते हैं / भाषकों की अपेक्षा प्रभाषक अनन्तगणे क्यों ?–भाषक जीव द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव हैं, जबकि अभाषकों में एकेन्द्रिय जीव हैं, जिनमें अकेले वनस्पतिकायिक जीव ही अनन्त हैं, इसलिए भाषकों से अभाषक अनन्तगुणे कहे गए हैं / ' सोलहवाँ परित्तद्वार : परित्त आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व 265. एतेसि णं भंते ! जीवाणं परित्ताणं अपरित्ताणं नोपरित्तनोअपरित्ताण य कतरे कतरेहितो अध्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जोवा परित्ता 1, नोपरित्तनो अपरित्ता अणंतगुणा 2, अपरित्ता प्रणतगुणा 3 / दारं 16 // [265 प्र.] भगवन् ! इन परीत, अपरीत और नोपरीत-नोअपरीत जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? / [265 उ.] गौतम ! 1. सबसे थोड़े परीत जीव हैं, 2. (उनसे) नोपरीत-नोअपरीत जीव अनन्तगुणे हैं और 3. (उनसे भी) अपरीत जीव अनन्तगुणे हैं। सोलहवाँ (परीत्त) द्वार / / 16 / / विवेचन-सोलहवाँ परीतद्वार : परीत आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत सूत्र (265) में परीत, अपरीत और नोपरीत-नोअपरीत जीवों की न्यूनाधिकता का प्रतिपादन किया गया है। परीत प्रादि की व्याख्या–परोत का सामान्यतया अर्थ होता हैं-परिमित या सीमित / इस दृष्टि से 'परीत' दो प्रकार के बताए गए हैं-भवपरीत और कायपरीत / भवपरीत उन्हें कहते हैं, 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org