________________ [251 तृतीय बहुव क्तव्यतापद ] [267 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म-नोबादर जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [267 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प नोसूक्ष्म-नोबादर जीव हैं, 2. (उनसे) बादर जीव अनन्तगुणे हैं और (उनसे भी) 3. सूक्ष्म जीव असंख्यातगुणे हैं। अठारहवाँ (सूक्ष्म) द्वार // 18 // विवेचन-अठारहवाँ सक्ष्मद्वार-प्रस्तुत सूत्र (267) में सूक्ष्म, बादर एवं नोसूक्ष्म-नोबादर जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। सूक्ष्मद्वार के माध्यम से अल्पबहुत्व-सबसे अल्प नोसूक्ष्म-नोबादर अर्थात् सिद्धजीव हैं, क्योंकि वे सूक्ष्म जीवराशि और बादर जीवराशि के अनन्तभाग के बराबर हैं। उनसे बादरजीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि बादर निगोदजीव सिद्धों से अनन्तगुणे हैं। उनसे सूक्ष्म जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि बादरनिगोदों की अपेक्षा सूक्ष्मनिगोद असंख्यातगुणे अधिक हैं।' उन्नीसवाँ संज्ञोद्वार : संज्ञो आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व 268. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सण्णोणं असण्णीणं नोसण्णोनोअसण्णोण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? | __ गोयमा! सम्वत्थोवा जीवा सण्णी 1, गोसण्णीणोअसण्णी अणंतगुणा 2, असण्णी अणंतगुणा 3 / दारं 16 / / [268 प्र.] भगवन् ! संज्ञी, असंज्ञी और नोसंजी-नोअसंज्ञी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [268 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प संज्ञी जीव हैं, 2. (उनसे) नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव अनन्तगुणे हैं (और उनसे भी) 3. असंज्ञीजीव अनन्त गुणे हैं। उन्नीसवाँ (संज्ञी) द्वार // 19 // विवेचन--उन्नीसवाँ संज्ञोद्वार : संज्ञी प्रादि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत सूत्र (268) में संज्ञी, असंज्ञी और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है / सबसे कम संज्ञी जीव हैं, क्योंकि विशिष्ट मन वाले जीव ही संज्ञी होते हैं और ऐसे जीव सबसे कम हैं / संज्ञियों की अपेक्षा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी (सिद्ध) जीव अनन्तगुणे हैं, उनकी अपेक्षा असंजीजीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकाय आदि जीव अनन्त हैं, जो सिद्धों से भी अनन्तगुणे हैं। बीसवाँ भवसिद्धिकद्वार : भवसिद्धिकद्वार के माध्यम से अल्पबहत्व 266. एतेसि णं भंते ! जीवाणं भवसिद्धियाणं प्रभवसिद्धियाणं णोभवसिद्धियणोप्रभवसिद्धियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जोवा प्रभवसिद्धिया 1, णोभवसिद्धियणोअभवसिद्धिया अणंतगुणा 2, भवसिद्धिया अणंतगुणा 3 / दारं 20 // 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 139 2. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org