Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 204 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [8] दिसाणवाएणं सव्वत्थोवा अहेसत्तमापुढविनेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेजगुणा। [216-8] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अधःसप्तमा (तमस्तमःप्रभा) पृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। 217. [1] दाहिणिल्ले हितो आहेसत्तमापुढविनेरइएहितो छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [217-1] दक्षिण दिशा के अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं। [2] दाहिणिल्लेहितो तमापुढविणेरइएहितो पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरस्थिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [217-2] दक्षिणदिशावर्ती तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से पांचवीं धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं। [3] दाहिणिल्लेहितो धूमप्पभापुढविनेर इएहितो चउत्थीए पंकप्पभाए पुढयीए नेरइया पुरथिम पच्चस्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [217-3] दक्षिण दिशावर्ती धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से चौथी पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं; (उनसे) असंख्यातगुणे दक्षिण दिशा में हैं। [4] दाहिणिल्लेहितो पंकप्पभापुढबिनेरइएहितो तइयाए बालुयप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरस्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं प्रसंखिज्जगुणा। 2i17-4] दाक्षिणात्य पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से तीसरी वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और दक्षिणदिशा में (उनसे भी) असंख्यातगुणे हैं। [5] दाहिणिल्लेहितो बालुयप्पभापुढविनेरइएहितो दुइयाए सक्करप्पभाए पुढवीए रइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं असंखिज्जगुणा, दाहिणणं असंखिज्जगुणा / [217-5] दक्षिणदिशा के वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण दिशा में उनसे भी असंख्यातगुणे हैं। [6] दाहिणिल्लेहितो सक्करप्पभापुढविनेरइएहितो इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [217-6] दक्षिणदिशा के शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से इस पहली रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और उनसे भी दक्षिण दिशा में असंख्यातगुणे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org