Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद [ 205 ... 218. दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया पच्चत्थिमेणं, पुरथिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया / [218} दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव पश्चिम में हैं / पूर्व में (इनसे) विशेषाधिक हैं, दक्षिण में (इनसे) विशेषाधिक हैं और उत्तर में (इनसे भी) विशेषाधिक हैं। 216. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा मणुस्सा दाहिणउत्तरेणं, पुरथिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चस्थिमेणं विसेसाहिया। {216] दिशात्रों की अपेक्षा सबसे कम मनुष्य दक्षिण एवं उत्तर में हैं, पूर्व में (उनसे) संख्यातगुणे अधिक हैं और पश्चिमदिशा में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं। 220. दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा भवणवासी देवा पुरथिम-पच्चस्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [220] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े भवनवासी देव पूर्व और पश्चिम में हैं / (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक उत्तर में हैं और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं / 221. दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा वाणमंतरा देवा पुरस्थिमेणं, पच्चस्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया। [221] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प वाणव्यन्तर देव पूर्व में हैं, उनसे विशेषाधिक पश्चिम में हैं, उनसे विशेषाधिक उत्तर में है और उनसे भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं। 222. दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा जोइसिया देवा पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं,दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया / [222] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े ज्योतिष्क देव पूर्व एवं पश्चिम में हैं, दक्षिण में उनसे विशेषाधिक हैं और उत्तर में उनसे भी विशेषाधिक हैं। 223. [1] दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा देवा सोहम्मे कप्पे पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं विसेसाहिया। [223-1] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प देव सौधर्मकल्प में पूर्व तथा पश्चिम दिशा में है, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं / [2] दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा देवा ईसाणे कप्पे पुरथिम-पच्चस्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया। [223-2] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव ईशान-कल्प में पूर्व एवं पश्चिम में हैं / उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only , www.jainelibrary.org