Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [ 203 . 216. [1] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा नेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं, असंखेज्जगुणा। [216-1] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं / [2] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा रयणप्पभापुढविनेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [216-2] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिण दिशा में हैं। [3] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा. सक्करप्पभापुढविनेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [216-3] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। [4] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा वालुयप्पभापुढविनेरइया पुरथिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [216-4] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं (और उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। [5] दिसाणुवाएणं सम्बत्थोवा पंकप्पभापुढविनेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / [216-5] दिशात्रों की अपेक्षा से सबसे अल्प पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं (और उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। [6] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा धूमप्पभापुढविनेरइया पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा / 216-6] दिशात्रों की अपेक्षा से सबसे थोड़े धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं, एवं (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। [7] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा तमप्पभापुढविनेरइया पुरथिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [216-7] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिण दिशा में हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org