Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 206] / प्रज्ञापनासूत्र [3] दिसाणुवातेणं सम्वत्थोवा देवा सणंकुमारे कप्पे पुरस्थिम-पच्चस्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्ज. गुणा, दाहिणणं विसेसाहिया। (223-3] दिशाओं की अपेक्षा सबसे अल्प देव सनत्कुमारकल्प में पूर्व और पश्चिम में हैं, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं। [4] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा माहिदे कप्पे पुरथिम-पच्चस्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया। [223-4] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प देव माहेन्द्रकल्प में पूर्व तथा पश्चिम में हैं, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं। [5] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा देवा बंभलोए कप्पे पुरस्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा। [223-5] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव ब्रह्मलोककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं; दक्षिणदिशा में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं / [6] दिसाणुवातेणं सब्बत्थोवा देवा लंतए कप्पे पुरथिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [223-6] दिशात्रों को लेकर सबसे थोड़े देव लान्तककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं / (उनसे) असंख्यातगुणे दक्षिण में हैं / [7] दिसाणुवाएणं सम्वत्थोवा देवा महासुक्के कप्पे पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा। [223-7] दिशाओं की दृष्टि से सबसे कम देव महाशुक्रकल्प में पूर्व, पश्चिम एवं उत्तर में हैं / दक्षिण में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं / [8] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा सहस्सारे कप्पे पुरस्थिम-पच्चस्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा। {223.8] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव सहस्रारकल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं / दक्षिण में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं / [6] तेण परं बहुसमोववण्णगा समणाउसो ! / [223-6] हे आयुष्मन् श्रमणो ! उससे आगे (के प्रत्येक कल्प में, प्रत्येक ग्रैवेयक में तथा प्रत्येक अनुत्तरविमान में चारों दिशाओं में) बहुत (बिलकुल) सम उत्पन्न होने वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org