________________ द्वितीय स्थानपद [ 159 एस्थ णं दाहिणिलाणं सुवण्णकुमाराणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता / तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे / एत्थ णं बहवे सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति / [185-1 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! दाक्षिणात्य सुपर्णकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? 185-1 उ ] गौतम ! इसी रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् मध्य में एक लाख अठहत्तर हजार योजन (प्रदेश) में, दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के अड़तीस लाख भवनावास हैं; ऐसा कहा गया है। वे भवन (भवनावास) बाहर से गोल यावत् प्रतिरूप हैं; (यहाँ तक का शेष वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए), यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान कहे गए हैं। (वे स्थान) तीनों (पूर्वोक्त) अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। यहाँ बहुत-से सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं। [2] वेणुदेवे यऽत्य सुण्णिदे सुवण्णकुमारराया परिवसइ / सेसं जहा गागकुमाराणं (सु 182 [2]) / [185-2] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में (दाक्षिणात्य) सुपर्णेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदेव निवास करता है; शेष सारा वर्णन नागकुमारों के वर्णन की तरह (सू. 182-2 के अनुसार) समझ लेना चाहिए। 186. [1] कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं सवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णता ? कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला सुवष्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमोसे रयणपभाए जाव एत्थ णं उत्तरिल्लाणं सुवष्णकुमाराणं चोत्तीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मश्वातं। तेणं भवणा जाय एस्थ णं बहवे उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति महिड्ढिया जाव (सु. 177) विहरंति / [186-1 प्र.] भगवन् ! उत्तरदिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? [186-1 उ. गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभापथ्वी के एक लाख अठहत्तर योजन में, आदि (समग्र वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए।) यावत् 'यहाँ उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे भवन (भवनावास) (जिनका समग्र वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए) यावत् यहाँ (इन्हीं भवनावासों में) बहुत-से उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं, जो कि महद्धिक हैं; यावत् विचरण करते हैं (तक का शेष समग्र वर्णन सू. 177 के अनुसार) समझ लेना चाहिए। [2] वेणुदाली यऽत्थ सुवण्णकुमारिदे सुवणकुमारराया परिवसति महिड्ढोए, सेसं जहा णागकुमाराणं (स. 183[2]) / [186-2] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में यहाँ सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदाली निवास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org