________________ 158] [प्रज्ञापनासून [2] भूयाणंदे यऽत्थ गागकुमारिदे नागकुमारराया परिवसति महिड्ढोए जाव (सु. 177) पभासेमाणे / से णं तत्थ चत्तालीसाए भवणावाससतसहस्साणं प्राहेवच्चं जाव' (सु. 177) विहरंति / [183-2] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में (प्रौदीच्य) नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द निवास करता है, जो कि महद्धिक है, (शेष वर्णन) यावत् प्रभासित करता हुआ ('पभासमाणे') तक (सू. 177 के अनुसार समझ लेना चाहिए।) वहाँ वह (भूतानन्देन्द्र) चालीस लाख भवनावासों का यावत् प्राधिपत्य एवं अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है, तक (सारा वर्णन सू. 177 के अनुसार समझ लेना चाहिए / ) 184. [1] कहि णं भंते ! सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णता ? कहि णं भंते ! सुवग्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव एत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं बावरि भवणावाससतसहस्सा भयंतीति मक्खातं / ते णं भवणा बाहि वट्टा जाव पडिरूवा। तत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे / तत्थ णं बहवे सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति महिड्ढीया, सेसं जहा प्रोहियाणं (सु. 177) जाव विहरति / (184-1 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! सुपर्णकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? [184-1 उ. गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक-एक हजार ऊपर और नीचे के भाग को छोड़ कर शेष भाग में यावत् सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख भवनावास हैं, ऐसा कहा गया है / वे भवन (भवनावास) बाहर से गोल यावत् प्रतिरूप तक (समग्र वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए / ) वहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहे गए हैं। (वे स्थान) (पूर्वोक्त) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं / वहाँ बहुत-से सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं, जो कि महद्धिक हैं; (इत्यादि समग्र वर्णन) यावत् 'विचरण करते हैं' (तक) औधिक (सामान्य असुरकुमारों) की तरह (सू. 177 के अनुसार समझना चाहिए।) [2] वेणुदेव-वेणुदाली यऽत्थ सुवण्णकुमारिदा सुवण्णकुमाररायाणो परिवसंति महड्ढीया जाव (सु. 177) विहरंति। [184-2] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में दो सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज-वेणुदेव और वेणुदाली निवास करते हैं, जो महद्धिक हैं; (शेष समग्र वर्णन सू. 177 के अनुसार) यावत् 'विचरण करते हैं'; तक समझ लेना चाहिए। 185. [1] कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमोसे जाव माझे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं प्रत्तीसं भवणावाससतसहस्सा भवतीति मक्खातं / ते णं भवणा बाहिं बट्टा जाव पडिरूवा / 1. 'जाव' एवं 'जहा' शब्द से तत्स्थानीय समग्र वर्णन संकेतित सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org