________________ द्वितीय स्थानपद] [161 (गाथाओं का अर्थ-) भवनावास-१-(असुरकुमारों के) चौसठ लाख हैं, २-(नागकुमारों के) चौरासी लाख हैं, ३-(सुपर्णकुमारों के) बहत्तर लाख हैं, ४-(वायुकुमारों के) छियानवे लाख हैं / / 138 / / 5 से 10 तक अर्थात् (द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युत्कुमारों, स्तनिलकुमारों और अग्निकुमारों,) इन छहों के युगलों के प्रत्येक के छहत्तर-छहत्तर लाख (भवनावास) हैं / / 139 // ___ दक्षिणदिशा के (असुरकुमारों आदि के) भवनों की संख्या (इस प्रकार है)-१-(असुरकुमारों के) चौंतीस लाख, २--(नागकुमारों के) चवालीस लाख, ३-(सुपर्णकुमारों के) अड़तीस लाख, ४-(वायुकुमारों के) पचास लाख, 5 से 10 तक-(द्वीपकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युत्कुमारों, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के) प्रत्येक के चालीस-चालीस लाख भवन (भवनावास) हैं // 140 / / ___ उत्तरदिशा के (असुरकुमारों आदि के) भवनों की संख्या (इस प्रकार है-) 1- (असुरकुमारों के) तीस लाख, २-(नागकुमारों के) चालीस लाख, ३-(सुपर्णकुमारों के) चौंतीस लाख, ४-(वायुकुमारों के) छयालीस लाख, 5 से १०तक-अर्थात् द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युत्कुमारों, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के प्रत्येक के छत्तीस-छत्तीस लाख भवन हैं // 141 / / सामानिकों और प्रात्मरक्षकों की संख्या- इस प्रकार है-१--(दक्षिण दिशा के) असुरेन्द्र के 64 हजार और (उत्तरदिशा के असुरेन्द्र के) 60 हजार हैं; असुरेन्द्र को छोड़ कर (शेष सब 2 से १०–दक्षिण-उत्तर के इन्द्रों के प्रत्येक) के छह-छह हजार सामानिकदेव हैं। आत्मरक्षकदेव (प्रत्येक इन्द्र के सामानिकों की अपेक्षा) चौगुने-चौगुने होते हैं / / 142 / / दाक्षिणत्य इन्द्रों के नाम- १-(असुरकुमारों का) चमरेन्द्र, २-(नागकुमारों का) धरणेन्द्र, ३--(सुपर्णकुमारों का) वेणुदेवेन्द्र, ४-(विद्युत्कुमारों का) हरिकान्त, ५-(अग्निकुमारों का) अग्निसिंह (या अग्निशिख), ६-(द्वीपकुमारों का) पूर्णेन्द्र, ७–(उदधिकुमारों का) जलकान्त, ८-(दिशाकुमारों का) अमित, ६–(वायुकुमारों का) वैलम्ब और १०-(स्तनितकुमारों का) इन्द्र घोष है / / 143 // उत्तरदिशा के इन्द्रों के नाम- 1- (असुरकुमारों का) बलीन्द्र, २-(नागकुमारों का) भूतानन्द, 3-- (सुपर्णकुमारों का) वेणुदालि, ४-(विद्युत्कुमारों का) हरिस्सह, 5- (अग्निकुमारों वा) अग्निमाणव, ६-द्वीपकुमारों का वशिष्ठ, ७--(उदधिकुमारों का) जलप्रभ, ८--(दिशाकुमारों का) अमितवाहन, ६-(वायुकुमारों का) प्रभंजन और १०-(स्तनितकुमारों का) महाघोष इन्द्र है / / 144 / / (ये दसों) उत्तरदिशा के इन्द्र..."यावत् विचरण करते हैं। वर्णों का कथन-सभी असुरकुमार काले वर्ण के होते हैं, नागकुमारों और उदधिकुमारों का वर्ण पाण्डुर अर्थात्-- शुक्ल होता है, सुपर्णकुमार, दिशाकुमार और स्तनितकुमार कसौटी (निकषपाषाण) पर बनी हुई श्रेष्ठ स्वर्ण रेखा के समान गौर वर्ण के होते हैं / / 145 / / विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमार तपे हुए सोने के समान (किञ्चित् रक्त) वर्ण के होते हैं और वायुकुमार श्याम प्रियंगु के वर्ण के समझने चाहिए / / 146 / / इनके वस्त्रों के वर्ण-असुरकुमारों के वस्त्र लाल होते हैं, नागकुमारों और उदधिकुमारों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org