Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय स्थानपद [ 133 द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय-सामान्य पंचेन्द्रियों के स्थानों की प्ररूपरणा 163. कहि णं भंते ! बेइंदियाणं पज्जत्तगाऽपज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! उड्ढलोए तदेकदेसभागे 1, अहोलोए तदेवकदेसभाए 2, तिरियलोए अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दोहियासु गुजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निझरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देस सम्वेसु चेव जलासएस जलढाणेसु 3, एत्थ णं बेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइमागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जहभागे, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। [163 प्र.] ! भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ (-कहाँ)कहे गए हैं ? [163 उ.] गौतम ! 1. ऊर्ध्वलोक में-उसके एकदेशभाग में (वे) होते हैं, 2. अधोलोक में-- उसके एकदेशभाग में (होते हैं), 3. तिर्यग्लोक में-कुओं में, तालाबों में, नदियों में, ह्रदों में, वापियों (बावड़ियों) में, पुष्करिणियों में, दीपिकाओं में, गुजालिकाओं में, सरोवरों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सर-सर-पंक्तियों में, बिलों में, पंक्तिबद्ध बिलों में, पर्वतीय जल प्रवाहों में, निर्भरों में, तलैयों में, पोखरों में, वनों (खेतों या क्यारियों) में, द्वीपों में, समुद्रों में मौर सभी जलाशयों में तथा समस्त जलस्थानों में द्वीन्द्रिय पर्याप्तक भौर अपर्याप्तक जीवों के स्थान कहे गए हैं। उपपात की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं, समुद्घात की अपेक्षा से (भी वे) लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं और स्वस्थान की अपेक्षा से (भी वे) लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं। 164. कहि णं भंते ! तेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? ___ गोयमा! उड्ढलोए तदेकदेसभाए 1, अहोलोए तदेक्कदेसभाए 2. तिरियलोए अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावोसु पुक्खरिणीसु दोहियासु गुजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निझरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सध्वेसु चेव जलासएसु जलढाणेसु 3, एत्थ णं तेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उबवाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। [164 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं ? [164 उ.] गौतम ! 1. ऊर्ध्वलोक में-उसके एकदेशभाग में (होते हैं), 2. अधोलोक मेंउसके एकदेशभाग में (होते हैं), 3. तिर्यग्लोक में-कुओं में, तालाबों में, नदियों में, ह्रदों में, वापियों में, पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सर-सर-पंक्तियों में, बिलों में, बिलपंक्तियों में, पर्वतीय जलप्रवाहों में, निझरों में, तलैयों (छोटे गड्ढों) में, पोखरों में, वों (खेतों या क्यारियों) में, द्वीपों में, समुद्रों में और सभी जलाशयों में तथा समस्त जलस्थानों में, इन (सभी स्थानों) में पर्याप्तक और अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों के स्थान कहे गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org