Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय स्थानपद ] [129 वायुकायिकों के स्थानों का निरूपण 157. कहि गं भंते ! बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णता? गोयमा ! सट्टाणेणं सत्तसु घणवाएसु सत्तसु घणवायवलएसु सत्तसु तणुवाएसु सत्तसु तणुवायवलएस 1 / अहोलोए पायालेसु भवणेसु भवणपत्थडेसु भवणछिद्देसु भवणिक्खुडेसु निरएसु निरयावलियासु णिरयपस्थडेसु णिरयछिद्देसु णिरयणिखुडे सु 2 / उड्ढलोए कप्पेसु विमाणेस विमाणावलियासु विमाणपत्थडेसु विमाणछिद्देसु बिमाणणिक्खु डेसु 3 / तिरियलोए पाईण-पडीण-दाहिण-उदोण सम्वेसु चेव लोगागासछिद्देसु लोगनिक्खुडेसु य 4 / एत्थ णं बायरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु, समुग्धाएणं लोयस्स प्रसंखेज्जेसु भागेसु, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु। [157 प्र.] भगवन् ! बादर वायुकायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं ? [175 उ.] १-गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनवातों में, सात घनवातवलयों में, सात तनुवातों में और सात तनुवातवलयों में (वे होते हैं / ) 2. अधोलोक में-पातालों में, भवनों में, भवनों के प्रस्तटों (पाथड़ों) में, भवनों के छिद्रों में, भवनों के निष्कुट प्रदेशों में नरकों में, नरकावलियों में, नरकों के प्रस्तटों में, छिद्रों में और नरकों के निष्कुट-प्रदेशों में (वे हैं / ) 3. ऊर्ध्वलोक में-(वे) कल्पों में, विमानों में, पावली (पंक्ति) बद्ध विमानों में, विमानों के प्रस्तटों (पाथड़ों-बीच के भागों) में, विमानों के छिद्रों में, विमानों के निष्कुट-प्रदेशों में (हैं / ) 4. तिर्यग्लोक में-(वे) पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में समस्त लोकाकाश के छिद्रों में, तथा लोक के निष्कुट-प्रदेशों में, इन (पूर्वोक्त सभी स्थलों) में बादर वायुकायिक-पर्याप्तक जीव के स्थान कहे गए हैं। उपपात की अपेक्षा से-लोक के असंख्येयभागों में, समुद्घात की अपेक्षा से---लोक के असंख्येयभागों में, तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्येयभागों में (बादर वायुकायिकपर्याप्तक जीवों के स्थान हैं। 158. कहि णं भंते अपज्जत्तबादरवाउकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा ! जत्थेव बादरवाउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरवाउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं सबलोए, समुग्घाएणं सब्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु / [158 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त-बादर-वायुकायिकों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org