Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 112 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [136 उ.] देव चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) भवनवासी, (2) वाणव्यन्तर, (3) ज्योतिष्क और (4) वैमानिक / 140. [1] से कितं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पन्नत्ता / तं जहा-असुरकुमारा 1 नागकुमारा 2 सुवण्णकुमारा 3 विज्जुकुमारा 4 अग्गिकुमारा 5 दीवकुमारा 6 उदहिकुमारा 7 दिसाकुमारा 8 वाउकुमारा 6 थणियकुमारा 10 // [140-1 प्र.] भवनवासी देव किस प्रकार के हैं ? [140-1 उ.] भवनवासी देव दस प्रकार के हैं—(१) असुरकुमार, (2) नागकुमार, (3) सुपर्णकुमार, (4) विद्युत्कुमार, (5) अग्निकुमार, (6) द्वीपकुमार, (7) उदधिकुमार, (8) दिशाकुमार, (6) पवन (वायु) कुमार और (10) स्तनितकुमार / [2] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से तं मवणवासी। [140-2] ये (दस प्रकार के भवनवासी देव) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। यथापर्याप्तक और अपर्याप्तक / यह भवनवासी देवों की प्ररूपणा हुई। 141. [1] से कि तं वाणमंतरा ? वाणमंतरा अट्टविहा पण्णता। तं जहा–किन्नरा 1 किंपुरिसा 2 महोरगा 3 गंधव्या 4 जक्खा 5 रक्खसा 6 मूया 7 पिसाया / [141-1 प्र.] वाणव्यन्तर देव कितने प्रकार के हैं ? _ [141-1 उ.] वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के कहे गए हैं / जैसे—(१) किन्नर, (2) किम्पुरुष, (3) महोरग, (4) गन्धर्व, (5) यक्ष, (6) राक्षस, (7) भूत और (8) पिशाच / / [2] से समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से तं वाणमंतरा। [141-2] वे (उपर्युक्त किन्नर आदि आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। पर्याप्तक और अपर्याप्तक / यह हुआ उक्त वाण व्यन्तरों का वर्णन / 142. [1] से कि तं जोइसिया? जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता / तं जहा—चंदा 1 सूरा 2 गहा 3 नक्खत्ता 4 तारा 5 / [142-1 प्र.] ज्योतिष्क देव कितने प्रकार के हैं ? [142-1 उ.] ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के हैं / यथा-(१) चन्द्र, (2) सूर्य, (3) ग्रह, (4) नक्षत्र और (5) तारे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org