________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] - 6. जिसने कुदर्शन (मिथ्यादर्शन) का ग्रहण नहीं किया है, तथा शेष अन्य दर्शनों का भी अभिग्रहण (परिज्ञान) नहीं किया है, और जो अर्हत्प्रणीत प्रवचन में विशारद (पटु) नहीं है, उसे संक्षेपरुचि (सराग दर्शनार्य) समझना चाहिए / / 126 / / 10. जो व्यक्ति जिनोक्त अस्तिकायधर्म (धर्मास्तिकाय आदि पांचों अस्तिकायों के धर्म) पर तथा श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म पर श्रद्धा करता है, उसे धर्मरुचि (सरागदर्शनार्य) समझना चाहिए / / 130 // परमार्थ (जीवादि तात्त्विक पदार्थों) का संस्तव करना (परिचय प्राप्त करना, अर्थात्-उन्हें समझने के लिए बहुमानपूर्वक प्रयत्न करना या संस्तुति-प्रशंसा, आदर करना); जिन्होंने परमार्थ (जीवादि तत्त्वार्थ) को सम्यक् प्रकार से श्रद्धापूर्वक जान लिया है, उनकी सेवा-उपासना करना (या उनका सेवन-सत्संग करना); और जिन्होंने सम्यक्त्व का वमन कर दिया है, उन (निह्नवों) से तथा कुदृष्टियों से दूर रहना, यही सम्यक्त्व-श्रद्धान (सम्यग्दर्शन) है / (जो इनका पालन करता है, वही सरागदर्शनार्य होता है / ) / / 131 / / (सरागदर्शन के) ये पाठ प्राचार हैं ---(1) निःशंकित, (2) निष्कांक्षित, (3) निविचिकित्स और (4) अमूढदृष्टि, (5) उपवृहण, (6) स्थिरीकरण, (7) वात्सल्य और (8) प्रभावना / (ये पाठ दर्शनाचार जिस में हो, वह सरागदर्शनार्य होता है / ) / / 132 / / यह हुई उक्त सरागदर्शनार्यों की प्ररूपणा। 111. से कि तं वीयरागदसणारिया ? वीयरागदसणारिया दुविहा पण्णता / तं जहा-उवसंतकसायवीयरायदंसणारिया खीणकसायवोयरायदंसणारिया। [111 प्र.] वीतरागदर्शनार्य कैसे होते हैं ? [111 उ ] वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-उपशान्तकषायवीतरागदर्शनार्य और क्षीणकषाय-वीतरागदर्शनार्य / 112. से कि तं उवसंतकसायवीयरायदंसणारिया ? उवसंतकसायवीयरायदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा--पढमसमयउवसंतकसायवीयरायदसणारिया प्रपढमसमय उवसंतकसायवीयरायदंसणारिया, महवा चरिमसमयउवसंतकसायवीयरायदसणारिया य प्रचरिभसमय उवसंतकसायवीयरायदंसणारिया य / [112 प्र.] उपशान्तकषायवीतरागदर्शनार्य कैसे होते हैं ? [112 उ.] उपशान्त कषायवीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-प्रथमसमय उपशान्तकषाय-वीतरागदर्शनार्य और अप्रथमसमय-उपशान्तकषाय-वीतरागदर्शनार्य अथवा चरमसमय-उपशान्तकषाय-वीतरागदर्शनार्य और अचरमसमय-उपशान्तकषाय-वीतरागदर्शनार्य / 113. से कि तं खीणकसायवीयरायदसणारिया ? खोणकसायवीयरायदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-छउमत्थखीणकसायवीयरागदसणारियाय केवलिखीणकसायवीयरागदंसणारिया य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org