________________ 92 | प्रज्ञापनासूत्र खड़ाऊँ बनाने वाले), मुजपादुकाकार (मूज की खड़ाऊँ बनाने वाले), छत्रकार (छाते बनाने वाले), वज्झार-वाह्यकार (वाहन बनाने वाले), (अथवा बहकार = मोरपिच्छी बनाने वाले), पुच्छकार या पुस्तकार (पूछ के बालों से झाडू आदि बनाने वाले), या पुस्तककार--जिल्दसाज अथवा बनाने वाले, लेप्यकार (लिपाई-पुताई करने वाले, अथवा मिट्टी के खिलौने आदि बनाने वाले), चित्रकार, शंखकार, दन्तकार (दांत बनाने वाले, या दांती), भाण्डकार (विविध बर्तन बनाने वाले), जिज्झकार(जिह्वाकार = नकली जीभ बनाने वाले), सेल्लकार (शैल्यकार-शिला तथा पाषाण आदि घड़कर वस्तु बनाने वाले अथवा सैलकार = भाला बनाने वाले) और कोडिकार (कोडियों की माला आदि बनाने वाले), इसी प्रकार के अन्य जितने भी आर्य शिल्पकार हैं, उन सबको शिल्पार्य समझना चाहिए / यह हुई उन शिल्पार्यों की प्ररूपणा / 107. से कि तं भासारिया ? भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासिति, जत्थ वि य णं बंभी लिवी पवत्तइ / बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्खविहाणे पण्णत्ते / तं जहा–बंभी 1 जवणाणिया 2 दोसापुरिया' 3 खरोट्ठी 4 पुक्खरसारिया 5 भोगवईया 6 पहराईयायो य 7 अंतक्खरिया 8 अक्खरपुट्ठिया 6 वेणइया 10 णिण्हइया 11 अंकलिवी 12 गणितलिवी 13 गंधवलिवी 14 प्रायंसलिवी 15 माहेसरी 16 दामिली२ 17 पोलिदी 18 / से तं भासारिया / [107 प्र.] भाषार्य कौन-कौन-से हैं ? [107 उ.] भाषार्य वे हैं, जो अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं, और जहाँ भी ब्राह्मी लिपि प्रचलित है / (अर्थात्-जिनमें ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया जाता है।) ब्राह्मी लिपि में अठारह प्रकार का लेखविधान (लेखन-प्रकार) बताया गया है / जैसे कि-१. ब्राह्मी, 2. यवनानी, 3. दोषापरिका, 4. खरोष्ट्री, 5. पुष्करशारिका, 6. भोगवतिका, 7. प्रहरादिका, 8. अन्ताक्षरिका, 6. अक्षरपुष्टिका, 10. बैनयिका, 11. निलविका, 12. अंकलिपि, 13. गणितलिपि, 14. गन्धर्वलिपि, 25. आदर्श लिपि, 16. माहेश्वरी, 17. तामिली-द्राविड़ी, 18. पौलिन्दी / यह हुआ उक्त भाषार्य का वर्णन / 108. से कि तं जाणारिया ? णाणारिया पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा-प्रामिणिबोहियणाणारिया 1 सुयणाणारिया 2 प्रोहिणाणारिया 3 मणपज्जवणाणारिया 4 केवलणाणारिया 2 / से तं णाणारिया। [108 प्र.] ज्ञानार्य कौन-कौन-से हैं। [108 उ.) ज्ञानार्य पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-१. आभिनिबोधिकज्ञानार्य, 2. श्रुतज्ञानार्य, 3. अवधिज्ञानार्य, 4. मनःपर्यवज्ञानार्य और 5. केवलज्ञानार्य / यह है उक्त ज्ञानार्यों की प्ररूपणा। पाठान्तर--१. दासापुरिया / 2. दोमिली, दोमिलिवी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org