Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. আজ C For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वामन शिवराम आप्टे संस्कृत-हिन्दी कोश (छात्र-संस्करण) (लेखक द्वारा संकलित छन्द एवं साहित्यिक तथा भारत के प्राचीन साहित्य में प्राप्त भौगोलिक नामों के परिशिष्टों सहित) NAG PUBLISHERS नाग प्रकाशक ११ ए/ यू. ए., जवाहर नगर, दिल्ली-७ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागकाशक (१) ११ ए/यू. ए. (पोस्ट आफिस बिल्डिंग) जवाहर नगर, दिल्ली-७ (२) संस्कृत भवन, १२, १५, संस्कृत नगर, सेक्टर-१४ रोहिणी, नई दिल्ली-११००८५ (३) जलालपुर माफी, (चुनार-मिर्जापुर) उ. प्र. । पुनः मुद्रित पाँचवाँ संस्करण १९९५ मूल्य : १४०-०० (रुपये एक सौ चालीस मात्र) श्री सुरेन्द्र प्रताप द्वारा नाग प्रकाशक, ११ए. यू. ए., जवाहर नगर, दिल्ली-११०००७ से प्रकाशित तथा जी. प्रिंट प्रोसेस ३०८/२, शहजादा बाग, दयाबस्ती, दिल्ली-११००३५ द्वारा मुद्रित। For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका [कोशकार का प्रथम प्राक्कथन] यह संस्कृत-हिन्दी कोश जो मैं आज जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ, न केवल विद्यार्थी की चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता को पूरा करता है, अपितु उसके लिए यह सुलभ भी है। जैसा कि इसके नाम से प्रकट है यह हाई स्कूल अथवा कालिज के विद्यार्थियों को सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तैयार किया गया है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने वैदिक शब्दों को इसमें सम्मिलित करना आवश्यक नहीं समझा। फलतः मैं इस विषय में वेद के पश्चवर्ती साहित्य तक ही सीमित रहा। परन्तु इसमें भी रामायण, महाभारत पुराण, स्मृति, दर्शनशास्त्र, गणित, आयुर्वेद, न्याय, वेदांत, मीमांसा, व्याकरण, अलंकार, काव्य, बनस्पति विज्ञान, ज्योतिष, संगीत आदि अनेक विषयों का समावेश हो गया है। वर्तमान कोशों में से बहुत कम कोशकारों ने ज्ञान की विविध शाखाओं के तकनीकी शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हाँ, वाचस्पत्य में इस प्रकार के शब्द पाये जाते हैं, परन्तु वह भी कुछ अंशों में दोषपूर्ण हैं । विशेष रूप से उस कोश से जो मुख्यतः विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए ही तैयार किया गया हो, ऐसी आशा नहीं की जा सकती। यह कोश तो मुख्य रूप से गद्यकथा, काव्य, नाटक आदि के शब्दों तक ही सीमित है, यह बात दूसरी है कि व्याकरण, न्याय, विधि, गणित आदि के अनेक शब्द भी इसमें सम्मिलित कर लिये गये हैं। वैदिक शब्दों का अभाव इस कोश की उपादेयता को किसी प्रकार कम नहीं करता, क्योंकि स्कूल या कालिज के अध्ययन काल में विद्यार्थी की जो सामान्य आवश्यकता है उसको यह कोश भलीभांति-बल्कि कई अवस्थाओं में कुछ अधिक ही पूरा करता है ।। कोश के सीमित क्षेत्र के पश्चात् इसमें निहित शब्द योजना के विषय में यह बताना सर्वथा उपयुक्त है कि कोश के अन्तर्गत, शब्दों के विशिष्ट अर्यों पर प्रकाश डालने वाले उद्धरण, संदर्भ उन्हीं पुस्तकों से लिये गये हैं जिन्हें विद्यार्थी प्राय: पढ़ते हैं । हो सकता है कुछ अवस्थाओं में ये उद्धरण आवश्यक प्रतीत न हों, फिर भी संस्कृत के विद्यार्थी को, विशेषत: आरंभकर्ता को, उपयुक्त पर्यायवाची या समानार्थक शब्द ढूढ़ने में ये निश्चय ही उपयोगी प्रमाणित होंगे। दुसरी ध्यान देने योग्य इस कोश की विशेषता यह है कि अत्यन्त आवश्यक तकनीकी शब्दों की, विशेषतः न्याय, अलंकार. और नाट्यशास्त्र के शब्दों : लिए देखो-अप्रस्तुत प्रशंसा, उपनिषद्, सांख्य, मीमांसा, स्थायिभाव, प्रवेशक, रस, वार्तिक आदि । जहाँ तक अलंकारों का सम्बन्ध है, मैने मुख्य रूप से काव्य प्रकाश का ही आश्रय लिया है-यद्यपि कहीं-कहीं चन्द्रालोक, कुवलयानन्द और रसगंगाधर का भी उपयोग किया है। नाट्यशास्त्र के लिए साहित्य दर्पण को ही मुख्य समझा है। इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण शब्दचय, वाग्बारा, लोकोक्ति अथवा विशिष्ट अभिव्यंजनाओं को भी यथा स्थान रक्खा है, उदाहरण के लिए देखो-गम्, सेतु, हस्त, मयूर, दा, कृ आदि । आवश्यक शब्दों से सम्बद्ध पौराणिक उपास्यान भी यथा स्थान दिये हैं उदाहरणत: देखो-इंद, कार्तिकेय, प्रह्लाद आदि । व्युत्पत्ति प्रायः नहीं दी गई हो अत्यन्त विशिष्ट यथा अतिथि, पुत्र, जाया, हृषीकेश आदि शब्दों में इसका उल्लेख किया गया है। तकनीकी शब्दों के अतिरिक्त अन्य आवश्यक शब्दों के विषय में दिया गया विवरण विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगाउदा० मंडल, मानस, वेद, हंस । कुछ आवश्यक लोकोक्तियाँ 'न्याय' शब्द के अन्तर्गत दी गई हैं। प्रस्तुत कोश को और भी अधिक उपादेय बनाने की दृष्टि से अन्त में तीन परिशिष्ट भी दिये गये हैं। पहला परिशिष्ट For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छन्दों के विषय में है—- इसमें गण, मात्रा, तथा परिभाषा आदि सभी आवश्यक सामग्री रख दी गई है। इसके तैयार करने में मुख्यतः वृत्तरत्नाकर और छन्दोमंजरी का ही आश्रय लिया है । परन्तु उन छंदों को भी जो माघ, भारवि, दण्डी, अथवा भट्टि ने अतिरिक्त रूप से प्रयुक्त किया है, इसमें रख दिया गया है। दूसरे परिशिष्ट में कालिदास, भवभूति और बाण आदि संस्कृत के महाकवियों की कृति तथा जन्म विवरण आदि दिया गया है । इस विषय में मैंने मैक्समूलर की 'इंडिया' तथा वल्लभदेव की सुभाषितावली की भूमिका से जो कुछ ग्रहण किया है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। तीसरा परिशिष्ट भौगोलिक शब्दों का संग्रह है, इसमें मैंने निगम के 'एन्सेंट ज्याग्राफी' से तथा इंग्लिश संस्कृत डिक्शनरी में उपसृष्ट श्री बोरूह के निबंध से बड़ी सहायता प्राप्त की है तदर्थ में हृदय से उनका आभार मानता हूँ । कोश के क्रम का ज्ञान आगे दिये गये "कोश के देखने के लिए आवश्यक निर्देश" से भली-भाँति हो सकेगा। मैं केवल एक बात पर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि मैंने इस कोश में सर्वत्र 'अनुस्वार' का प्रयोग किया है । व्याकरण की दृष्टि से चाहे यह प्रयोग सर्वथा सही न हो, तो भी छपाई की दृष्टि से सुविधाजनक है । और मुझे विश्वास है कि कोश की उपयोगिता पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है । समाप्त करने से पूर्व मैं उन सब विविध कृतियों का कृतज्ञ हूँ जिनसे इसको तैयार करने में मुझे सहायता मिली। इसके लिए सबसे पहली रचना प्रोफ़ेसर तारानाथ तर्कवाचस्पति की 'वाचस्पत्य' । इस कोश में दी गई सामग्री का अधिकांश उसी से लिया गया है, यद्यपि कई स्थानों पर संशोधन भी करना पड़ा है। वर्तमान संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरियों में जो शब्द, अर्थ और उद्धरण उपलब्ध नहीं हैं वे इसी कोश से लिये गये हैं। दूसरा कोश “दी संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी” प्रो० मोनियर विलियम्स का है जिनका मैं बहुत ऋणी हूँ । इस कोष का मैंने पर्याप्त उपयोग किया है। अतः मैं इस सहायता का आभारी हूँ। अन्त में मैं 'जर्मन वर्टरबुश' के कर्ता डा० रॉय और बॉलिक को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। इनके कोश में अनेक उद्धरण और संदर्भ हैं-परन्तु अधिकांश वैदिक साहित्य से लिये गये हैं ! इसके विपरीत मैंने अधिकांश उद्धरण अपने उस संग्रह से लिये हैं जो भवभूति, जगन्नाथ पंडित, राजशेखर, बाण, काव्य प्रकाश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय, नैषवचरित, शंकरभाष्य और वेणीसंहार आदि की सहायता से तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त उन ग्रन्थकर्ताओं और सम्पादकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ जिनकी सहायता यदा-कदा प्राप्त करता रहा हूँ । अन्त में मुझे विश्वास है कि 'स्टुडेंट्स संस्कृत - हिन्दी कोश' केवल उन विद्यार्थियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध नहीं होगी जिनके लिए यह तैयार की गई है बल्कि सस्कृत के सभी पाठक इससे लाभ उठा सकेंगे। कोई भी कृति चाहे वह कितनी ही सावधानी से क्यों न तैयार की गई हो - सर्वथा निर्दोष नहीं होती । मेरा यह कोश भी कोई अपवाद नहीं है । और विशेष रूप से उस अवस्था में जबकि इसे छापने की शीघ्रता की गई हो । अतः मैं उन व्यक्तियों से, जो इस कोश को अपनाकर मेरा सम्मान करें, यह निवेदन करता हूँ कि जहाँ कहीं इसमें वे कोई अशुद्धि देखें, अथवा इसके सुधारने के लिए कोई उत्तम सुझाव देना चाहें, तो मैं दूसरे संस्करण में उनको समावेश करने में प्रसन्नता अनुभव करूँगा । पूना, १५ फरवरी, १८९० । For Private and Personal Use Only वी० एस० आप्टे Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकेत सूचि अ० अक० अलु० स० अव्य० स० आ० उदा० उप० स० उभ० कर्म० स० त० स० पर० ज्या० कर्म० वा० कर्त० वा. ब० व० म० अ० अ० पु० म० पु० उ० पु० ब० स० भवि० इच्छा० भू० क. कृ. तृ० त० सं० कृ० वर्त० कृ० द्वि० क० द्वि० स० द्वि० त० प० त० न० स० तुल० ना० धा० सम्प्र० सम० तु० प्रर० ज्यो उ० अ० ए० व० सा०वि० अव्यय अकर्मक अलुक समास अव्ययीभाव समास आत्मने पद उदाहरणतः उपपद समास उभयपदी कर्मधारय समास तत्पुरुष समास तृतीया तत्पुरुष समास देखो द्वन्द्व समास द्विकर्मक द्विगु समास द्वितीया तत्पुरुष समास षष्ठी तत्पुरुष समास ना समास तुलनात्मक नामधातु सम्प्रदान कारक समस्त पद तुलना करो प्रेरणार्थक ज्योतिष उत्तमावस्था एक वचन सार्वनामिक (निर्देशक) विशेषण विशेषण बीजगणित क्रिया विशेषण वर्तमानकाल भूत काल प्रादि समास ना बहुव्रीहि समास ना तत्पुरुष समास पुल्लिग नपुंसक लिंग स्त्री लिंग सकर्मक पृषोदरादित्वात् विप० करण० कर्तृ० कम० आलं. वाति व० अने० पा० संबो परस्मैपद ज्यामिति कर्म वाच्य कर्तृवाच्य बहु वचन मध्यमावस्था अन्यपुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष बहुव्रीहि समास भविष्यत्काल इच्छार्थक, सन्नन्त भूतकालिक कर्मणि कृदन्त (क्त) संभाव्य कृदन्त (तव्यत्) वर्तमानकालिक कृदन्त (शत्रन्त या शानजन्त) विपरीतार्थक करणकारक कर्तृकारक कर्मकारक आलंकारिक वार्तिक वैदिक नाना पाठान्तर संबोधन यङलुङन्त संबंध तदेव शब्दशः अधिकरण कारक उपसर्ग भ्वादिगण अदादिगण जहोत्यादिगण स्वादिगण दिवादिगण तुदादिगण क्रयादिगण चरादिगण रुधादिगण तनादिगण संबं. त० वि० श० अधिक उप० बी० ग. क्रि० वि० वर्त० भूत प्रा० स० न० ब० न० त० स्वा० अदा० ज० स्वा० दि. कया० च० रु० तना० सक० पृषो० For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ० पु० अ० श० अ० सं० अथर्व ० अनर्घ ० अन० अमर० अमरु० अवि० आनन्द० आर्या आश्व० ईश० उ० उ० दू० सं० उणादि ० उत्त० ऋक ० एकार्थ० ऐत० उ० एत० ब्रा० कठ० कथा० कनक ० कर्पूर ० कलि कवि ० का० काव्या० काम० काव्य ० काव्या० काशि० कि० कीर्ति ० कुमा० कुव० कृष्ण ० केन ० कौ० अ० कोश० अग्नि पुराण अन्यापदेश शतक अगस्त्य संहिता अथर्व वेद अनर्घराघव अन्नपूर्णाष्टक अमरकोश अमरुशतक अविमारक आनन्द लहरी आर्या सप्तशती आश्वलायनसूत्र ईशोपनिषद् उद्भव दूत उद्धव संदेश उणादि सूत्र उत्तर रामचरित ऋग्वेद एकार्थनाममाला ऐतरेय उपनिषद् ऐतरेय ब्राह्मण कठोपनिषद कथासरित्सागर कनकधारास्तव कर्पूर मंजरी कात्यायन कामन्दकी नीति कलिविडंबन नीलकंठ दीक्षित कृत कविरहस्य कादम्बरी काव्यप्रकाश काव्यादर्श www.kobatirth.org काशिकावृत्ति किरातार्जुनीय कीर्तिकौमुदी कुमार संभव संकेताक्षर -सूचि कौशि० कौषी० कुवलयानन्द कृष्णकर्णामृत केनोपनिषद् कौटिल्य अर्थशास्त्र कोदाकल्पतरु ग० ल० घोषाल ० चण्ड ० गण ० चन्द्रा० चाण ० चात ० चोल० चौर० छं० छा० जानकी ० जं० जं० न्या० ज्यो० त० कौ० तारा० तं० आ० त० उ० त्रिका० तै० सं० त० वा० दाय ० दु० स० दूत ० दे० म० नवरल० ना० भा० नागा० नाना० नाभ० नारा० निघ० नी० नीति० नील० नं प० पंच० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only कौशिकसूत्र कौषीतकी उपनिषद् गंगा लहरी Ghosal's System of Revenue चण्ड कौशिक गणरत्नमहोदधि---वर्धमान कृत चन्द्रालोक चाणक्य शतक चातकाष्टक चोल चम्पू चौरपंचाशिका छन्दोमंजरी छान्दोग्योपनिषद जानकीहरण जैमिनी सूत्र जैमिनीय न्यायमाला विस्तर ज्योतिष तर्क कौमुदी तारानाथ वाचस्पत्यम् तंत्तिरीय आरण्यक तैत्तिरीय उपनिषद त्रिकांड शेष तैत्तिरीय संहिता तंत्रवार्तिक दायभाग दुर्गासप्तशती दूतवाक्यम् देवी महात्म्य नवरत्नमाला नारायण भाष्य नागानन्द नानार्थ मञ्जरी नारायण भट्ट नारायणीय निघण्टु नीतिसार नीति प्रदीप नीलकण्ठ नेपथ पंचतन्त्र Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्च० पञ्च० पा० पा० यो० पुष्प० प्रताप प्रति प्रबोध प्रस० वं. शि० बाल. बाल० रा० मछ० याज्ञ० याद. योग रत्ना० रघ० रस० रसम० रा० रति० राज राजत० राम ललित० वन० वराह वाज वा०प० वास बु० ब० च० वृ० उ० (बृहदा०) बृ० सं० भ० पु० भग० वि० वि. पु. विक्रम पञ्चदशी पञ्चरात्रम् पाणिनि की अष्टाध्यायी पातंजल योगशास्त्र पुष्पदन्त प्रतापरुद्रीय प्रतिमा प्रबोधचन्द्रोदय प्रसन्नराघव बंगाल शिलालेख बालचरित बालरामायण बुद्ध साहित्य (बुद्धिस्ट लेख) बुद्धचरितम् बृहदारण्यक उपनिषद् वृहत् कथा बहत्संहिता-वराहमिहिर कृत भविष्योत्तर पुराण भगवद्गीता भट्टिकाव्य भत हरिशतकत्रयम् १. शृंगार, २. नीति ३. वैराग्य भारत मञ्जरी भावप्रकाश भागवत भामिनी विलास भाषा परिच्छेद भोज चरित महानारायण उपनिषद् मत्स्य पुराण मनुस्मृति महाभाष्य महाभारत महावीर चरित मातंगलीला मानसार मार्कण्डेय पुराण मालतीमाधव मालविकाग्निमित्र मीमांसा सूत्र मुंडकोपनिषद मुखपञ्चशती मुग्धबोध मेघदूत विश्व० वे० दे० वे० सा० वेणी वेदपा० मच्छकटिक याज्ञवल्क्य स्मृति यादवाभ्युदय योगसूत्र रत्नावली रघुवंश रसगंगाधर रसमंजरी रामायण रतिमंजरी राजप्रशस्ति राजतरंगिणी रामचरितम् ललित सहस्रनाम वनस्पतिशास्त्र वराहमिहिर की बृहत्संहिता वाजसनेयि संहिता वाकपदीय वासवदत्ता विक्रमोर्वशीयम् विष्णु पुराण विक्रमांकदेवचरित विश्व गुणादर्श चम्पू वेदान्त देशिका वेदान्त सार वेणीसंहार वेदपादस्तव वंजयन्ती शकुन्तला नाटक शंकर दिग्विजय शब्दार्थ चिन्तामणि शतपथ ब्राह्मण शत श्लोकी शार्ङ्गधर शब्दकल्पद्रुम शारीर भाष्य शालिहोत्र शिशुपालवध शिवपुराण शिवमहिम्न स्तोत्र शिव भारत शिवानन्द लहरी शिशुपालवध शुक्रनीति शुल्बसूत्र श्रृंगार तिलक वैज० भा. भा०प्र० भाग० भामि० भाषा भोज० म० ना० म० पु० मनु० मभा० (महाभा०) महा० महावीर० मा० मान मार्क० माल० मालवि० मी० सू० श० शंकर श० चि० शत० शत श्लो. शाङ्गं० शब्द० शाभा० शालि. शि० शि० पू० शि० म० शिव. शिवानन्द शिश मुंड. मुख० मुग्ध० शुक्र० श० शृंगार मेष. For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्याम० श्रुत श्वेत० (श्वेता० ) सर० क० सुधा० स्वप्न ० सर्व ० सा० द० सां० का० सा० प्र० सि० सि० मु० सां० सू० सि० सं० www.kobatirth.org श्यामलादण्डक श्रुतबोध श्वेताश्वतरोपनिषद सरस्वती कण्ठाभरण सुधालहरी स्वप्नवासवदत्तम् सर्वदर्शन संग्रह साहित्य दर्पण सांख्य कारिका सांख्यप्रवचन भाष्य सिद्धान्तकौमुदी सिद्धान्तमुक्तावली सांख्य सूत्र सिद्धान्तलेश संग्रह सु० ( सुश्रु० ) सुभा० सुवासव ० सुभाषित० सू० सि० सौ० हंस० हनु० हर० हरि० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हला० हर्ष ० हि० हेम० For Private and Personal Use Only सुश्रुत सुभाषित रत्नाकर सुबन्धु की वासवदत्ता सुभाषितरत्नभाण्डागार सूर्य सिद्धान्त सौन्दर्य लहरी हंसत हनुमन्नाटक हर विजय हरिवंशपुराण हलायव हर्षचरित हितोपदेश हेमचन्द्र Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप्टे संस्कृत-हिन्दी-कोश 2 विस्मयादि द्योतक अव्यय-यथा (क) 'अ अवम नागरी वर्णमाला का प्रथम अक्षर । द्यम्' यहाँ दया ( आह, अरे) (ख) 'अ पचसि त्वं अः[अव्+ड] 1 विष्णु, पवित्र 'ओम' को प्रकट करने जाल्म' यहाँ भर्त्सना, निंदा (धिक्, छि:) अर्थ को वाली तीन (अ+उ+म्) ध्वनियों में से पहली ध्वनि प्रकट करता है। दे० 'अकरणि' 'अजीवनि' भी। -अकारो विष्णुरुद्दिष्ट उकारस्तु महेश्वरः। मकारस्तु (ग) संबोधन में भी प्रयुक्त होता है यथा 'अ अनन्त' स्मृतो ब्रह्मा प्रणवस्तु-त्रयात्मकः ।। 2 शिव, ब्रह्मा, वायु, (घ) इसका प्रयोग निषेधात्मक अव्यय के रूप में भी या वैश्वानर। होता है। 3 भूतकाल के लकारों (लङ्ग, लह और (अव्य०) 1 लैटिन के इन (in) अंग्रेजी के इन (in) लङ) की रूपरचना के समय धातु के पूर्व आगम या अन ( un ) तथा यूनानी के अ (a) या (un) के रूप में जोड़ा जाता है यथा अगच्छत, अगमत, के समान नकारात्मक अर्थ देने वाला उपसर्ग जो कि अगमिष्यत् में। निषेधात्मक अव्यय न के स्थान पर संज्ञाओं, | अऋणिन (वि.) [नास्ति ऋणं यस्य न० ब०] (यहाँ विशेषणों एवं अव्ययों के (क्रियाओं के भी) पूर्व लगाया 'ऋ' को व्यंजन ध्वनि माना गया) जो कर्जदार न जाता है। यह 'अ' ही 'अऋणिन्' शब्द को छोड़कर हो, ऋणमुक्त ('अनृणिन्' शब्द भी इसी अर्थम शेष स्वरादि शब्दों से पूर्व 'अन्' बन जाता है। प्रयुक्त होता है।) नके सामान्यतया छः अर्थ गिनाये गये है :---. अंश (चुरा० उभ० अशंयति-ते) बांटना, वितरण करना, (क) सादृश्य-समानता या सरूपता यथा 'अब्राह्मणः' आपस में हिस्सा बांटना, 'अंशापयति' भी इसी अर्थ ब्राह्मण के समान (जनेऊ आदि पहने हुए) परन्तु में प्रयुक्त होता है। वि-1 बांटना 2 धोखा ब्राह्मण न होकर, क्षत्रिय वैश्य आदि। (ख) अभाव देना। अनुपस्थिति, निषेध, अभाव, अविद्यमानता यथा "अज्ञा- | अंशः [ अंश् +अच् ] 1 हिस्सा, भाग, टुकड़ा; सकृदंशो नम्" ज्ञान का न होना, इसी प्रकार, अक्रोधः, अनंगः, निपतति-मनु० ९/४७ रघु०८।१६:-अंशेन दर्शितानअकंटकः, अघट:' आदि। (ग) भिन्नता अन्तर कुलता-का० १५९ अंशतः; 2 संपत्ति में हिस्सा, या भेद यथा 'अपट:' कपड़ा नहीं, कपड़े से भिन्न या दाय स्वतोंशत:-मनु० ८।४०८, ९।२०१; याज्ञ० अन्य कोई वस्तु । (घ) अल्पता-लघुता, न्यूनता, २१११५, 3भिन्न की संख्या, कभी-कभी भिन्न के लिए अल्पार्थवाची अव्यय के रूप में प्रयुक्त होता है-यथा भी प्रयुक्त 4 अक्षांश या रेखांश की कोटि ५ कंधा 'अनुदरा' पतली कमर वाली (कृशोदरी या तनुम- । (सामान्यतः 'कंधे' के अर्थ में, 'अंस' का प्रयोग होता ध्यमा)। (च) अप्राशस्त्य-बुराई, अयोग्यता तथा है-दे०)। सम०-अंशः अंशावतार, हिस्से का लघुकरण का अर्थ प्रकट करना यथा 'अकाल: गलत हिस्सा; -अंशि (क्रि० वि०) हिस्सेदार;-अवतरणम या अनुपयुक्त समय ; 'अकार्यम्' न करने योग्य, अनु- --अवतार:-पृथ्वी पर देवताओं के अंश को लेकर चित, अयोग्य या बुरा काम । (छ) विरोष- जन्म लेना, आंशिक अवतार, तार इव धर्मस्य-दश० विरोधी प्रतिक्रिया, वैपरीत्य यथा 'अनीतिः' नीति- १५३; महाभारत के आदिपर्व के ६४-६७ तक विरुद्धता, अनैतिकता, 'असित' जो श्वेत न हो, काला । अध्याय ; भाज, -हर, हारिन् (वि०) उत्तरा उपर्युक्त छः अर्थ निम्नांकित श्लोक में एकत्र संकलित धिकारी, सहदायभागी--पिण्डदोशहरश्चैषां पूर्वाभावे है- तत्सादृश्यमभावश्च तदन्यत्वं तदल्पता। अप्राशस्त्यं परः परः--याज्ञ० २।१३२-१३३-सवर्णनम्-भिन्नों विरोधश्च नार्थाः षट् प्रकीर्तिताः ।। दे० 'न' भी। को एक समान हर में लाना; --स्वरः मुख्य स्वर, कृदन्त शब्दों के साथ इसका अर्थ सामान्यतः मूलस्वर। "नहीं" होता है यथा 'अदग्ध्वा' न जलाकर, 'अपश्यन्' | अंशकः [ अंश्+ण्वुल, स्त्रियां--अंशिका ] 1 हिस्सेदार, न देखते हुए । इसी प्रकार 'असकृत्' एक बार नहीं। । सहदायभागी, संबंधी 2 हिस्सा, खण्ड, भाग,-कम् कभी-कभी 'अ' उत्तरपद के अर्थ को प्रभावित | सौर दिवस । नहीं करता यथा 'अमूल्य', 'अनुत्तम', यथास्थान । । अंशनम् [ अंश+ल्युट ] बांटने की क्रिया। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्ध । मंशयित (पुं०) [अंश्+णिच् + तृच ] विभाजक, | जाना, प्रयाण करना, आरम्भ करना, प्रेर० 1 भेजना बांटने वाला। 2 चमकना 3 बोलना। अंशल (वि.) [अंशं लाति--ला+क] साझीदार, | अंहतिः ती (स्त्री०) [हन+अति-अंहादेशश्च 1 भेंट, हिस्सा पाने का अधिकारी। 2=अंसल दे० उपहार 2 व्याकुलता, कष्ट, चिंता, दुःख, बीमारी अंशिन (वि.) (अंश् + इनि) 1 हिस्सेदार, सहदायभागी, | (वेद०)।। -(पुनर्विभागकरणे) सर्व वा स्यु: समांशिनः,- याज्ञ० अंहस् (नपुं०)-(अंहः-हसी आदि) [अम्+असुन हुक च २।११४, 2 भागों वाला, साझीदार । 1 पाप-सहसा संहतिमहसां विहन्तुं...अलम् - कि० अंशुः [ अंश+कु] 1 किरण, प्रकाशकिरण, पंड, धर्म° ५।१७ 2 व्याकुलता, कष्ट, चिन्ता । गरम किरणों वाला, सूर्य,-सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम् | अंहितिः - ती (स्त्री०) [अंह ---क्तिन् ग्रहादित्वात् इट्] --कु. ११३२, चमक, दमक 2 बिन्दु या किनारा 3 उपहार, दान । एक छोटा या सूक्ष्म कण 4 धागे का छोर 5 पोशाक, अंहिः (अंह+क्रिन्-अंहति गच्छत्यनेन) 1 पैर 2 पेड़ की सजावट, परिधान 6 गति। सम-उदकम् ओस का जड़ तु० अंघ्रि, 3 चार की संख्या । सम० --पः जड़ पानी, जालम् रश्मिपुंज या प्रभामण्डल,- घरः, (पर) से पीने वाला, वृक्ष,-स्कन्धः पैर के तलवे का -पतिः,-भूत, बाणः,-भर्त-स्वामिन --हस्त:-सूर्य ऊपरी हिस्सा । (किरणों को धारण करने वाला या उनका स्वामी), अक् (भ्वा० पर० अकति, अकित) जाना, सांप की तरह --पट्टम् एक प्रकार का रेशमी कपड़ा, --माला | टेढ़ा-मेढ़ा चलना। प्रकाश की माला, प्रभामण्डल, - मालिन् (पुं०) सूर्य । | अकम [न कम--सूखम सुख का अभाव, पीड़ा, विपत्ति, पाप । अंशकम् [अंशु+क-अंशवः सूत्राणि विषया यस्य ] 1 अकच (वि.) [न. ब.] गंजा-छः केतु (अवपतनशील कपड़ा, सामान्यत: पोशाक। सितांशका-विक्रम०३।१२ शिरोबिंदु)। यत्रांशुकाक्षेपविलज्जितानाम्-कु०२१४, श० १२३२; अकनिष्ठ (वि.)न कनिष्टः-न. त०] जो सबसे छोटा न 2 महीन या सफ़ेद कपड़ा-मेघ० ६४, प्रायः रेशमी हो (जैसे सबसे बदा मंझला) बड़ा, श्रेष्ठ -- एठः गौतम कपड़ा या मलमल । 3 ऊपर ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, लबादा, अधोवस्त्र भी, 4 पत्ता 5 प्रकाश की मंद लो। अकन्या [ न. त.] , कुमारी न हो, जो अब कुमारी न अंशुमत् (वि.) [अंशु+मतुप्] 1 प्रभायुक्त, चमकदार, रही हो। -ज्योतिषां रविरंशुमान्---भग०१०।२१ 2 नोकदार । अकर (वि.) (न. ब.) 1 लला, अपाहिज 2 कर या चुंगी -----मान् (पुं०) 1 सूर्य, बालखिल्यैरिवांशुमान्-रघु० से मुक्त 3 अक्रिय, निकम्मा, अकर्मण्य । १५।१०; 2 सगर का पौत्र, दिलीप का पिता और अकरणम् [ कृ भावे ल्यट् न. त.] अक्रिया, कार्य का अभाव असमंजस का पुत्र । अकरणात् मन्दकरणं श्रेयः -तु. अंग्रेजी की कहावतें अंशुमत्फला-केले का पौधा । 'सम थिंग इज बैटर दन नथिंग'-( Something is अंशुल (वि.) [अंशुं प्रभां प्रतिभा वा लाति-ला+क] | better than nothing%3) बैटर लेट दैन नैवर, चमकदार, प्रभायुक्त -ल: चाणक्य मुनि ।। ( Better late than never) न होने से कुछ होना अस् (चु० पर० अंसयति-अंसापयति) दे० अंश । भला है ; कभी न होने से देर में होना अच्छा है। अंसः [अंस-अच्] 1 भाग, खंड दे० अंश, 2 कंधा, अंसफलक, अकरणिः (स्त्री०) [नत्र ++अनिः] असफलता, कंधे की हड्डी। सम० -कूटः बैल या सांड का डिल्ल निराशा, अप्राप्ति, अधिकांशत: कोसने या शाप देने में अथवा कुब्ब, कंघों के बीच का उभार,---त्रम् 1 कंधों प्रयुक्त, -तस्याकरणिरेवास्तु --सिद्धा० भगवान् करे की रक्षा के लिए कवच 2 धनुष, फलकः रीढ़ का उसकी आशा पूरी न हो, उसे असफलता मिले । ऊपरी भाग –भार: कंधे पर रखा गया भार या जूआ,- | अकर्ण (वि.) [न. ब.] 1 जिसके कान न हों, बहरा 2 भारिक, --भारिन् (वि.) ( अंसे ) कंधे पर जुआ कर्णरहित --र्णः सांप । या भार ढोने वाला विवतिन् ( वि० ) कंधों की अकर्तन (वि.) [न +कृत् + ल्युट न. ब.] ठिंगना। ओर मुड़ा हुआ,-मुखमंसविवति पक्ष्मलाक्ष्याः,-श० अकर्मन् (वि.) (न. ब.) 1 निष्क्रिय, आलसी, निकम्मा 2 ३।२४। दुष्ट, पतित 3 (व्या०) अकर्मक ---म(नपुं०) 1 कार्य अंसल (वि.) [अंस+लच्] बलवान, हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली का अभाव 2 अन्चित कार्य, दोष,पाप । सम०... -अन्वित मज़बूत कंधों बाला,-युवा युगध्यायतबाहुरंसल: -- (वि.)1 जिसके पास काम न हो, खाली, निठल्ला 2 रघु० ३।३४। अपराधी,--कृत् (वि०) कर्म से मुक्त या अनुचित कार्य बहू (म्वा० आ० अंहते, अंहितुं, अंहित) जाना, समीप | करनेवाला,-भोगः कर्मफल भोगने से मुक्ति का अनुभव । For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकर्मक (वि.) [ नास्ति कर्म यस्य, ब० कप् ] वह क्रिया | असमय पर खिलने वाला फूल, कूष्माणः बिना ऋतु जिसका कर्म न हो (स्त्री०--अकमिका)। के उपजा हुबा कुम्हा (आलं.) व्यर्थ जन्म,-ज, अकल (वि.)[नास्ति कला अवयवो यस्य, न.ब.] अखंड, -उत्पन्न,-जोत (वि.) बिना ऋतु के उपजा हुमा, भागरहित, परब्रह्म की उपाधि। प्राक्कालिक; --बलबोदयः,-मेघोदयः 1 असमय में अकल्क (वि.) [न.ब.] 1 तलछट रहित, शुद्ध 2 निष्पाप बादलों का उठना या इकट्ठा होना; 2 कुहरा, धुंध, (स्त्री०-अकल्का) चांदनी, चन्द्रमा का प्रकाश । -बेला ऋतु के विपरीत या अनुपयुक्त समय, सह मकल्प (वि०) [न० ब०] 1 अनियंत्रित, जिस पर कोई (वि०) 1 समय की हानि या देरी को सहन न करने नियंत्रण न हो, 2 दुर्बल, अयोग्य 3 अतुलनीय । वाला, अधीर, 2 गढ़ की भांति दृढ़ता के साथ अधिक अकस्मात् (अव्य०) [न कस्मात्-न० त०] अचानक, समय तक न टिकने वाला। एकाएक, सहसा आकस्मिक रूप से अकस्मादागंतुना अकिंचन (वि०) [नास्ति किंचन यस्य न० ब०] जिसके सह विश्वासो न युक्त:-हि. १२२; अकारण, बिना पास कुछ भी न हो, बिल्कुल गरीब, नितांत निर्धनकिसी कारण के, व्यर्थ ही--नाकस्मात् शांडिली- अकिंचनः सन् प्रभव: स सम्पदाम् कु० ५७७ । माता विक्रीणाति तिलैस्तिलान्-पं० १६५-कथं त्वां । अकिंचित (वि.) [ अकिंचित्+ज्ञा+क] कुछ न जानने त्यजेदकस्मात्पतिरार्यवृत्तः-रषु० १४१ ५५, ७३ । । वाला, निपट अज्ञानी; भर्तृ० २।८।। अकाय (वि.) [न० ब०] 1 आकस्मिक, अप्रत्याशित, | अकिंचिकर (वि०) [ उप० स०] 1 अर्थहीन,-परतंत्र -सहसा पुनरकांडविवर्तनदारुणः--उत्तर० ४।१५, मा० मिदमकिञ्चित्करं च-वेणी०३ 1 2 भोला, सीधा। ५।३१, 2 जिसमें तना या डाली न हो। सम.- अकुण्ठ (वि.) [न० त०] 1 जो ठुठा न हो, जिसकी जात (वि.) सहसा उत्पन्न या उत्पादित;-माण- गति अबाघ हो-आशस्त्रग्रहणादकुंठपरशो:---वेणी० बम् क्रोध पांडित्यादि का अप्रासंगिक प्रदर्शन --पात: २:२; 2 प्रबल, काम करने योग्य 3स्थिर 4 अत्यधिक । आकस्मिक घटना . पातजात (वि.) जन्म होते ही अकुतः ( क्रि० वि०) कहीं से नहीं (इसका प्रयोग केवल मर जाने वाला,-शूलम् अचानक गुर्दे का दर्द।। समस्तपदों में होता है)। सम०-चल: शिव का अकारे (क्रि.वि.) अप्रत्याशित रूप से, एकाएक, सहसा, नाम.....-भय (वि.) सुरक्षित, जिसे कहीं से भी भय -दर्भाकुरेण चरणः क्षत इत्यकांडे तन्वीस्थिता कतिचि- न हो-मादशानामपि अकुतोभयः संचारो जातः-- देव पदानि गत्वा-श०२।१२।। उत्त०२,यानित्रीण्यकुतोभयानि च पदान्यासन्खरायोधने अकाम (वि.) [न.ब.] 1 इच्छा , राग, या प्रेम से मक्त (पाठान्तर) अपराङमुखाणि -उत्त० ५।३५ । 2 अनिच्छुक, अनभिलाषी, 3 प्रेम से अप्रभावित, प्रेम | अकृप्यम (न) [न० त०] 1 बिना खोट की धातु, सोना की अधीनता से मुक्त, शं० २२३ 4 अचेतन,अनभिप्रेत । | चाँदी, 2 कोई भी खोट की धातु।। मकामतः (क्रि० वि०) [अकाम-तसिल ] अनिच्छापूर्वक, | अकुशल (वि.) [न० त०] 1 अशुभ, दुर्भाग्यग्रस्त, 2 जो बेमन से, बिना इरादे के, अनजानपने में ---इतरे | चतुर या होशियार न हो,-लम् अमंगल, दुर्भाग्य । कृतवंतस्तु पापान्येतान्यकामतः-मनु० ९।२४२।। अकुपारः [नग+कृप+ऋ+अण् ] 1 समुद्र 2 सूर्य 3 अकाय (वि.) [न० ब०] 1 शरीररहित, अशरीरी 2 | "कछुआ 4 कछुओं का राजा जिस पर पृथ्वी का भार राह की एक उपाधि 3 परब्रह्म की उपाधि । है 5 पत्थर या चट्टान। अकारन (वि.) [न० ब०] कारणरहित, निराधार, स्वतः- | अकृच्छ (वि.) [न० ब० ] कठिनाई से मुक्त,-च्छम् स्फूर्त, जम् कारण प्रयोजन या आधार का अभाव- कठिनाई का अभाव, सरलता, सुविधा। किमकारणमेव दर्शनं विलपन्त्य रतये न दीयते-कु० मकृत (वि.) [न +-+-क्त ] 1 जो किया न गया ४१७ अकारणम्, अकारणात्, अकारणे-(कृ० वि०) हो, 2 गलत या भिन्न तरीके से किया गया 3 अपरा, बिना कारण के, संयोगवश, व्यर्थ । जो तैयार न हो (जैसे रसोई), 4 अनिर्मित 5 जिसने अकार्य (वि.) [न० ब० ] अनुपयुक्त -यम् अनुचित या कोई काम न किया हो 6 अपक्व, कच्चा; --साजी बुरा काम, अपराधपूर्ण कार्य । सम० कारिन बेटी होने पर भी बेटी न मानी जाकर पुत्रों के समकक्ष बुरा काम करने वाला, जो बुरा काम करे, कर्तव्य समझी जाय; -सं(नपुं०) कार्य जो किया न गया हो, विमुख। काम का न किया जाना, जो काम कभी सुना न गया बकाल (वि.) [न० ब०] असामयिक, प्राक्कालिक --ल: हो। सम०- अर्थ (वि०) असफल,-अस्त्र (वि.) गलत समय, अशुभ या कुसमय, (किसी बात के लिए) जिसे हथियार चलाने का अभ्यास न हो,---आत्मन अनुपयुक्त समय--अत्यारूढो हि नारीणामकालज्ञो (वि.) 1 अज्ञानी, मूर्ख, असंतुलित मस्तिष्क का 2 मनोभवः-- रघु. १२।३३। सम० --कुसुमम् -पुष्पम् । परब्रह्म या ब्रह्मा के स्वरूप से भिन्न,-उद्वाह (वि.) पत्थरना सुविधा किया न Jan For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविवाहित, एनस् (वि०) अनपराधी,-- (वि०) । धूतं चौसर का खेल, जुआ;-धूर्तः जुएबाज, जुआरी; कृतघ्न-बी, बुद्धि (वि.) अज्ञानी । -तिलः गाड़ी में जुता हुआ बैल या सांड-पटलं मकुष्ठ (वि०)[न +कृष्+क्त ] जो जोता न गया हो। 1न्यायालय 2 कानूनी दस्तावेजों के रखने का स्थान सम-पच्च,-रोहिन् (वि.) बिना जुते खेत में पाटक: कानून का पंडित, न्यायाधीश; -पातः पासा बढ़ने वाला या पकने वाला, बहुतायत से बढ़ने वाला फेंकना; --पावः गौतम ऋषि, न्यायदर्शन के प्रवर्तक -अकृष्टपच्या इव सस्पसंपदः-कि० १२१७, रघु. या उसके अनुयायी; -भाग:--अंशः अक्षरेखा, १४१७७ । अक्षांश ।-भारः गाडीभर बोझ; -माला--सूत्रं मक्का (स्त्री०) [बक्+कन्+टाप् ] माता, मौ । रुद्राक्षमाला, हार कृतोऽक्षसूत्रप्रणयी तया करःअक्त (वि.) [अक्+क्त ] सना हुआ, अभिषिक्त, (इसका कु० ५।१२-राजः जुए का व्यसनी, पासों में प्रयोग सामान्यतः समस्त पदों में होता है जैसे 'धृताक्त') प्रधान, कलि नामक पासा; -वाटः जुआ-खाना, जुए --पता रात। की मेज; ---हृदयं जुए में पूर्ण दक्षता या निपुणता । अक्तम् [ अध्+क्च] कवच ( वर्मन)। अक्षणिक (वि० [न० त०] स्थिर, दृढ़, जो चंचल न मनन (वि.) [नास्ति क्रमो यस्य-न० ब०] अव्यवस्थित हो, जो थोड़ी देर रहने वाला न हो, दृढ़तापूर्वक जमा --मः [न क्रमः-न० त०]1 क्रम या व्यवस्था का हुआ; (ताक लगाने या टकटकी के समान)। अभाव, गड़बड़ी, अनियमितता 2 औचित्य का उल्लंघन । अक्षत (वि०) [न +क्षण+क्त-न० त०] (क) अश्यि (वि०) [नास्ति क्रिया यस्य-न० ब०] क्रिया शून्य, जिसे चोट न लगी हो त्वमनंगः कथमक्षता रतिःसुस्त-या न० त०] क्रियाशून्यता, कर्तव्य की उपेक्षा । कु. ४१९ (ख) जो टूटा न हो, सम्पूर्ण, अविभक्त-तः अङ्कर (वि.) [ न० त०] जो निर्वय न हो.-: एक 1शिव 2 कूट-फटक कर धूप में सुखाए गए चावल । यादव जो कृष्ण का मित्र और चाचा था। -ताः (बहु०) बानटूटा अनाज, सब प्रकार के मकोष (वि०) नास्ति क्रोधो यस्य-न० ब०] कोष रहित पार्मिक उत्सवों पर काम आने वाले पिछोड़े, कटे तथा -[नत०] कोष का अभाव या उसका दमत। जल से धोये हुये चावल-साक्षतपात्रहस्ता -रघु० भक्लिष्ट (वि.) [ना+क्लिश+क्त ] 1 न पका हवा, २।२१3 जी, यव-तं1 धान्य, किसी भी प्रकार का क्लेश रहित, अनथक 2. जो बिगड़ा न हो, अविकल अनाज 2 हिजड़ा (पुं०भी), ता कुमारी, ०५।१९। कन्या। सम०-योनिः (स्त्री०) वह कन्या जिसके अश् [म्वा० स्वा० पर० अक० सेट् ] (अक्षति-अक्ष्णोति, साथ संभोग न किया गया हो-मनु० ९।१७६ । अक्षित) 1 पहुँचना, 2 व्याप्त होना,पैठना 3संचित होना। असम (वि.) [न० त०] अयोग्य, असमर्थ, असहिष्णु, मक्षाः [अक्ष+अच्-अश्+स: वा]1 धुरी, पुरा 2 गाड़ी अधीर, रघु० १३।१६ मा 1 अधैर्य, ईर्ष्या, 2 क्रोध, के बीच में लगा लकड़ी का वह भाग जिसमें लोहे आवेश। या लकड़ी की वह छड़ फंसाई हुई होती है जिस अक्षय (वि.) [न.ब.] जिसका नाश न हो, अनश्वर, पर पहिया चलता है 3 गाड़ी, छकड़ा, पहिया 4 तराजू अचक-विसापनाशक्तिरिवार्थमक्षयम्-रघु०४॥१३॥ की डंडी भौमिक अक्षांश 6 चौसर, चौसर का पासा सम-तृतीया (स्त्री) वैशाखमास के शुक्लपक्ष की 7 रुद्राक्ष 8 कर्ष नामक १६ माशे की एक तोल १ बहेड़े तीज। (विभीतक) का पौधा 10 साप 11 गरुड़ 12 आत्मा ] अक्षय (विनि० त०] जो क्षय न हो सके, अविनाशा 13 ज्ञान 14 कानूनी कार्य विधि, मुकदमा 15 जन्मांध; –तपःषड्भागमक्षय्यं ददत्यारण्यका हि नः--श. -- 1 इन्द्रिय, इन्द्रिय-विषय 2 सामुद्रिक लवण 3 २।१३। नीला थोथा। सम-अप्रकोल (-कः) पुरे की कील | अक्षर (वि०) [न० त०] । अविनाशी, अनश्वर-कु. -आवपनं चौसर का तक्ता,-आवापः जुआरी ३१५०, भग० १५३१६ 2 स्थिर, दृढ़ ।- -कर्मः सम त्रिकोण में सामने की रेखा, शिव 2 विष्णु। -। (क) वर्णमाला का एक फुकाल (वि.)-ौर (वि.) जुआ खेलने में अक्षर-अक्षराणामकारोऽस्मि-भग० १०॥३३ त्र्यक्षर निपुण,-टः बांख की पुतली कोषिद (वि०) मादि । (ख) कोई एक ध्वनि, एकाक्षरं परं ब्रह्म (वि०) चौसर खेलने में कुशल-लहः जुआ मनु० २।८३ (ग) एक या अनेक वर्ण, समष्टिरूप से खेलना, चौसर खेलना--1 प्रत्यक्षज्ञान, संज्ञान, 2 भाषा-प्रतिषेधाक्षरविक्लवाभिरामम्-श० ३।२५ 2 बज हीरा-विष्णु-तत्त्वं-विचा जुना खेलने दस्तावेज, लिखावट (बहुव), 3 अविनाशी आत्मा, की कला या विद्या;पर्शक:- 1 न्यायाधीश ब्रह्म 4 पानी 5 आकाश 6 परमानन्द, मोक्ष । सम०2 जुए का अधीक्षक; विन् जुआरी, जुएबाज ;- -जर्व शब्दों का अर्थ ;-4() - (म) TANHAHR For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) हुआ, 2 विघ्नरहित, बाधारहित । सम० त्व (बि०) सदा आमोदप्रिय; - ऋतुः वह समय या ऋतु जिसमें सदा की भांति पुष्पादि उत्पन्न हों; (वि० ) फलदायी । लिपिक, लेखक, नकुलनवीस। इसी प्रकार जीवकः । अखंडित (वि० ) [ न खंडित: न० त०] 1 न टूटा 'जीवी, 'जीविकः पेशेवर लेखक । च्युतकं किसी अक्षर के लुप्त होने के कारण दूसरा ही अर्थ निकलना । --छंबस् (नपुं० ) - वृत्तं वर्णों की संख्या से बद्ध छंद या वृत्त - जननी - तूलिका सरकंडा या कलम । -- (वि) म्यास 1 लिखना, वर्णक्रम 2 वर्णमाला 3 वेद - भूमिका तख्ती - रघु० १८/४६ - मुखः विद्वान्, विद्यार्थी । - वर्जित (वि०) अशिक्षित, बिना पढ़ा-लिखा । - शिक्षा (स्त्री) गुह्य अक्षरों की विद्या । - संस्थानं वर्णविन्यास लिखना, वर्णमाला | अक्षरकं [ स्वार्थे कन् ] स्वर, अक्षर । अक्षरश: ( क्रि० वि० ) [ अक्षर + शस् वीप्सार्थे ) ] एक एक अक्षर करके 2 शब्दशः, शब्द शब्द करके । अक्षयती (स्त्री० ) [ अक्ष + मतुप् + ङीप् ] खेल, पासे द्वारा खेल, जुए का खेल | अक्षांति: ( स्त्री० ) [ न० त० ] असहिष्णुता, स्पर्धा, ईर्ष्या । अक्षर (वि० ) ( न० ब० ] कृत्रिम लवणरहित । –ः प्राकृतिक लवण | अक्षि ( नपुं० ) [ अश्नुते विषयान् अश् + क्सि ] ( अक्षिणी, अक्षीणि, अक्ष्णा, अक्ष्ण: आदि) 1 आँख 2, दो की संख्या । सम० - कंपः झपकी- रघु० १४।६७ | ---कूटः -- कूटकः -- गोल: -- तारा आँख का डेला, आँख की पुतली । गत ( वि० ) 1 दृश्यमान, उपस्थित - शि० ९।८१, २ आँख में रड़कने वाला, आँख का काँटा, घृणित - 'तोऽहमस्य हास्यो जातः - दश० १५९।पक्ष्मन्, – लोमन् ( न० ) पलक - पटलं 1 आंख की झिल्ली 2 झिल्ली से संबद्ध आंख का रोग - विकूणितं, - विशितं तिरछी नजर, अधखुली आँखों से देखना । अक्षुण्ण (वि० ) [ न० त०] ] न टूटा हुआ, अखण्ड 2 अविजित, सफल - अक्षुण्णोऽनुनयः वेणी० ११२, 3 जो कूटा पीटा न गया हो, असाधारण शि० १।३२ । अक्षेत्र ( वि० ) [ न० ब० ] खेतों से रहित, बिना जुता । -- 1 खराब खेत 2 (आलं) बुरा विद्यार्थी, कुपात्र । सम० - बाबू (वि०) आत्मज्ञान से विरहित । meric: [ अ + ओट ] अखरोट, (मरा० डोंगरी अक्रोड ) । अक्षोभ्य (वि० ) [ न० त०] स्थिर, घीर-रघु १७७४ । अक्षौहिणी (स्त्री) [ अक्षाणां रथानां सर्वेषामिन्द्रियाणां वा ऊहिनी - ष० त०] [ अक्ष् + ऊह् + णिनि + ङीप् ] पूरी चतुरंगिणी सेना जिसमें २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़ तथा १०९३५० पदाति हों । अखंड ( वि० ) [ न० ब० ] जो टूटा न हो, संपूर्ण, समस्त -अखंड पुण्यानां फलमिव - श० २।१० डम् ( क्रि० वि०) निरन्तर, अविराम । अखंडन (वि० ) [ न० ब० ] जो टूटा न हो, टूट न सके, पूरा, संपूर्ण न टूटना, निराकरण न करना; -मः समय । अथर्व ( वि० ) [ न० त० ] 1 जो बौना या छोटे कद का न हो, जिसकी शारीरिक वृद्धि न रुकी हो 2 मनल्प, बड़ा, -अखर्वेण गर्वेण विराजमानः - दश० 31 अखात ( वि० ) [ न० त०] न खुदा हुआ, न दफनाया हुआ -तः, तं 1 प्राकृतिक झील 2 मंदिर के सामने का पोखर । अखिल (वि० ) [ नास्ति खिलम् अवशिष्टम् यस्य न० ब० ]1 सम्पूर्ण, समस्त, पूरा इसका प्रयोग प्रायः 'सर्व' के साथ पाया जाता है: -- एतद्धि मत्तोऽभिजगे सर्वमेषोऽखिलं मुनिः मनु० ११५९ लेन ( क्रि० वि०) पूर्ण रूप से 2 भूमि जो परत की न हो, जुती हुई हो। अखेटिक (पुं० ) [ नञ + खिट् + षिकन् न० त० ] 1 वृक्षमात्र 2 शिकारी कुत्ता | अस्पाति [ न० त०] अपकीर्ति, अपयश | सम० - कर (वि०) अपकीर्तिकर, लज्जाजनक | अग् ( म्वा० पर० अक० सेट् अगति, आगीत्, अगिष्यति, अगित ) 1. सर्पिल गति से जाना, टेढे मेढ़े चलना, 2. जाना ( अंगति आंगीत -आदि ) । अग (वि० ) [ न गच्छतीति गम् + ड, न० त०] 1. चलने में असमर्थ, अगम्य; - 1. वृक्ष 2. पहाड़, पत्थर 3. साँप 4. सूर्य 5. सात की संख्या । सम० आत्मजा पर्वत की पुत्री, पार्वती । - ओकस् (पुं० ) 1. पहाड़ी 2. पक्षी ( वृक्षवासी) 3. 'शरभ' नामक जन्तु जिसकी आठ टांगे मानी जाती हैं 4. सिंह; ज (वि०) पहाड़ों में घूमने वाला, जंगली, –जम् शिलाजीत । अगच्छ ( वि० ) [ गम्- बाहुलकात् श न० त०] न जाने वाला । छः (पु० ) वृक्ष । अगतिः (स्त्री० ) [ न० त०] 1. आश्रय या उपाय का अभाव, आवश्यकता 2. प्रवेश न होना ( शा० और आलं ० ) । अगति (तो) क ( वि० ) [ न० ब०] निस्सहाय, निपान, निराश्रय, - बालमेनामगतिमादाय - दश ९ वडस्स्वगतिका गतिः - या० १।३४६ । अगव ( वि० ) [ न० ब० ] नीरोग, स्वस्थ, रोगरहित । -ः 1. औषधि, दवाई 2, स्वास्थ्य 3. विषहरण विज्ञान | अगवंकारः ( पु० ) [ अगदं करोति - अगद +कृ+अणु मुमागमश्च] वैद्य, चिकित्सक । अगम्य ( वि० ) [ न गन्तुमर्हति - गम् + यत् न० त०] 1. दुर्गम, न जाने योग्य, पहुँच के बाहर ( शा० बीर For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलं.) योगिनामप्यगम्यः आदि 2. अकल्पनीय,।। अबोध्य-याः संपवस्ता मनसोऽप्यगम्या:-शि० । ३१५९। 'गभ्य' के अन्तर्गत भी देखिए। सम०रूप (वि०) अकल्पनीय तथा अनतिकांत रूप या स्वभाव वाला--- रूपां पदवी प्रपित्सुना-कि. १२९ । अगम्या (स्त्री०) वह स्त्री जिसके पास मैथुन के लिए जाना उचित नही, एक नीची जाति-गमनं चैव जातिभ्रंशकराणि वा इत्यादि । सम-गमनं अनुचित मैथुन, व्यभिचार-गामिन् (वि.) अनुचित मैथुन करने वाला, व्यभिचारी। अगरु (न०) [न गिरति; ग+उ, न० त०] अगर-एक प्रकार का चंदन । अगस्तिः, अगस्त्यः [बिन्ध्याख्यम् अगम् अस्यति; अस्+ क्तिच-शक.][अगं विन्ध्याचलं स्त्यायति स्तम्नातिस्त्यै+क, वा अग: कुंभः तत्र स्त्यानः संहतः इत्यगस्त्यः] 1. 'कुम्भज' एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम 2. एक नक्षत्र | का नाम। अमात्यः=अगस्ति, दे० ऊपर। अगाष (वि.) [न० ब०] अथाह, बहुत गहरा, अतल-अगाध सलिलारसमुद्रात् -हि. १५२, (आलं.) गंभीर, सविवेक, बहुत गहरा-सत्त्व-रघु० ६।२१-यस्य शानं दयासिधोरगाधस्यानधा गुणाः-अमर०; अथाह, बबोध्य; -प:- गहरा छेद या दरार; सम० जल: गहरा तालाब, गहरी झील । समारं [अगं न गच्छन्तम् ऋच्छति प्राप्नोति-अग्-ऋ+ मण्] घर; शून्यानि चाप्यगाराणि-मनु० ९।२६५; दाहिन् घरफूक आदमी। ममिरः [न गीर्यते दुःखेना बा० क-न० त०] स्वर्ग । सम०-ओकस् (वि.) स्वर्ग में रहने वाला (जैसे देवता)। अगुण (वि.) [न.ब.] 1. निर्गुण (परमात्मा के संबंध में); 2. जिसमें अच्छे गुण न हों गुणहीन–अगुणो ऽयमशोक:-मालवि०३;-मः दोष, अवगुण । मगुरु (वि०) न० त०] 1 जो भारी न हो, हल्का, 2. | (मंद में) लघु 3. जिसका कोई शिक्षक न हो;---ह: (नपुं० भी) अगर की सुगन्धित लकड़ी और पेड़।। १०] बिना घर बार का घुमक्कड़, 1. कोप', चिता' आदि, 2. आग का देवता 3. तीन प्रकार की यज्ञीय अग्नि-गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण 4. जठराग्नि, पाचनशक्ति 5. पित्त 6. सोना 7. तीन की संख्या द्वन्द्व समास में जब कि प्रथम पद में देवताओं के नाम या विशिष्ट शब्द हों तो 'अग्नि' के स्थान पर 'अग्ना' हो जाता है जैसे विष्ण, मस्ती; 'अग्नि' के स्थान पर 'अग्नी' भी हो जाता है जैसे ----पर्जन्यौ, वरुणौ, षोमौ। सम०-अ (आ) गारं-:,-आलयः-गृहं अग्नि का मन्दिर-- रघु ५।२५/-अस्त्रं आग बरसाने वाला अस्त्र, रॉकेट, इसी प्रकार बाण:-आधानं अग्नि की प्रतिष्ठा करना, इसी प्रकार आहितिः,-आधेयः वह ब्राह्मण जो अग्नि को प्रतिष्ठित रखता है, दे० आहिताग्नि,-उत्पातः अग्निसंबंधी उत्पात, उल्का या धूमकेतु आदि;उपस्थानं अग्नि की पूजा, अग्निपूजा का सूक्त या मंत्र---- कणः,-स्तोकः चिनगारी;--कर्मन् (नपुं०) 1. अग्नि क्रिया 2. अग्नि में आहुति, अग्नि की पूजा, इसी प्रकार कार्य; -नितिताग्निकार्य:--का० १६;---कारिका 1 पवित्र अग्नि को प्रतिष्ठित करने का साधन, 'अग्नीध्र' नामक ऋचा, 2. अग्नि कार्य;--काष्ठं अगरु;-कुक्कुट: अग्नि-शलाका; कुंड अग्नि को स्थापित रखने के लिए स्थान, अग्नि पात्र;-कुमारः-तनयः-सुतः कार्तिकेय जो अग्नि से उत्पन्न हुए कहे जाते है, दे० कातिकेय;-केतुः धूओं-कोण:-विक दक्षिण-पूर्वो कोना जिसका देवता अग्नि है;-क्रिया अन्त्येष्टिक्रिया, और्वदैहिक संस्कार 2. दाह क्रिया-क्रीड़ा आतिशबाजी, रोशनी; गर्भ (वि०) आभ्यन्तर में आग रखते हुए, भी शमीमिवश. ४।३. (-भः) सूर्यकान्त मणि जिसे सूर्य की किरणों के स्पर्श से आग उगलने वाला माना जाता है; तु०-श० २१७ (-र्भा) 1. शमीवृक्ष 2. पृथ्वी;चित् (पुं०) अग्नि को प्रज्वलित रखने वाला-यतिभिः सार्धमनग्निमग्निचित्-रघु ०८।२५-चय:-चयनं -चित्या अग्नि को प्रतिष्ठित रखना, अग्न्याधान;-ज (वि.) अग्नि से उत्पन्न होने वाला;-जः जातः 1. कार्तिकेय 2. विष्णु;-जं-जातंसोना,, इसी प्रकार जन्मन्-जिह्वा आग की लपट, अग्नि, की सात जिह्वाओं (कराली धूमिनी श्वेता लोहिता नीललोहिता। सुवर्णा पद्मरागा च जिह्वाः सप्त विभावसोः ।। में से एक; --तपस् (वि.) बढ़ता आहु आग के समान चमकने या चलने वाला;--अयं त्रेता (स्त्री०) तीन अग्नियां (अग्नि के अन्तर्गत देखिए); --- (वि.) 1 पौष्टिक, क्षुधावर्द्धक 2 दाहक; -दातु (पुं०) मनुष्य का दाहकर्म करने वाला; -दीपन (वि.) क्षुधावर्द्धक, पौष्टिक; -दीप्तिः, --विः बढ़ी हुई पाचन शक्ति, अच्छी भूख ;-वेवा वि०) [नमें अच्छे गुण न दोष, अवगुण का, 2. भगोचर (वि.) [नास्ति गोचरो यस्य-न० ब०] जो इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष न हो, अस्पष्ट ;-वाचामगोचरां हर्षावस्थामस्पृशत्-दश० १६९;-रं 1. अतीन्द्रिय, 2. अदृश्य, अज्ञेय 3. ब्रह्म। अग्नायी (स्त्री०) [अग्नि + ऐडहीष 1 अग्नि की पत्नी, अग्निदेवी' स्वाहा 2 बेतायुग। मग्निःसिंगति ऊवं गच्छति-अग+नि नलोपश्च] आग For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ७ ) कृतिका नक्षत्र; बानं पवित्र अग्नि को रखने का पात्र या स्थान, अग्निहोत्री का घर; धारणं अग्नि को सदा प्रतिष्ठित रखना; -- परिक्रि (ठिक्र) या अग्नि- पूजा ; -- परिच्छदः यज्ञ के सारे उपकरण - मनु० ६॥४, - - परीक्षा ( स्त्री० ) अग्नि द्वारा परीक्षा; पर्वतः ज्वालामुखी पहाड़ पुराणं व्यास प्रणीत १८ पुराणों में से एक; -- प्रतिष्ठा ( स्त्री०) अग्नि की स्थापना, विशेष कर विवाह संस्कार की ; प्रवेशः -- प्रवेशनं अग्नि में उतरना, अपने पति की चिता पर किसी विधवा का सती होना, प्रस्तरः फलीता, चकमक पत्थर; -बाहुः धुआँ भं 1 कृत्तिका 2 सोना; -भु ( नपु० ) 1 जल 2 सोना; भूः अग्नि से उत्पन्न कार्तिकेय; मणिः सूर्यकान्त मणि, फलीता; -- मंथ: -- मंथनं घर्षण या रगड़ द्वारा आग पैदा करना; -मांद्यं पाचनशक्ति का मंद होना, भूख न लगना; मुखः 1 देवता 2 ब्राह्मणमात्र 3 मुंह में आग रखने वाला, जोर से काटने वाला, खटमल का विशेषण - पंच० १ मुखी रसोई घर; रक्षणं पवित्र गार्हपत्य या अग्निहोत्र की अग्नि को प्रतिष्टित रखना; रजः - रजस् ( पु० ) 1 इंद्रगोप नामक एक सिदूरी कीड़ा 2 अग्नि की शक्ति 3 लोक; --लोकः अग्नि का वह संसार जो मेरु शिखर के नीचे स्थित है, --वधू (स्त्री०) स्वाहा, दक्ष की पुत्री और अग्नि की पत्नी, वर्धक (वि०) पौष्टिक वाहः 1 धूआं 2 बकरी; -- वीयं 1 अग्नि की शक्ति 2 सोना - शरणं - शाला - शालं अग्नि का मन्दिर, वह स्थान या घर जहाँ पवित्र अग्नि रक्खी जायरक्षणाय स्थापितts हम् वि० 3; - शिखः 1 दीपक राकेट, 2 अग्निमय बाण, 3 वाणमात्र 4 कुसुम या केसर का पौधा, 5 केसर ; शिख 1 केसर 2 सोना; ष्टुत्, ष्टुभ्, ष्टोम आदि दे० - स्तुत् - स्तुभ् आदि-संस्कारः 1 अग्नि की प्रतिष्ठा 2 चिता पर शव की दाह क्रिया-नाऽस्य कार्योऽग्निसंस्कार:-- मनु० ५।६९, रघु० १२/५६ --सखः -सहायः 1 हवा 2 जंगली कबूतर 3 धुआं; साक्षिक (वि० या क्रि०वि०) अग्नि को साक्षी बनाना अग्नि के सामने पंचबाण मालवि० ४।१२ स्तुत् (पु० ) एक दिन से अधिक चलने वाले यज्ञ का एक भाग स्तोमं (ष्टोमः ) बसन्त में कई दिन तक चलने वाला यज्ञीय अनुष्ठान या दीर्घकालिक संस्कार जो ज्योतिष्टोम का एक आवश्यक अंग है, -होत्रं 1 अग्नि में आहुति देना, 2 होम की अग्नि Art स्थापित रखना और उसमें आहुति देना, होत्रिन् ( वि० ) अग्निहोत्र करने वाला, या वह व्यक्ति जो अग्निहोत्र द्वारा होमाग्नि को सुरक्षित रखता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्निसात् ( अव्य० ) अग्नि की दशा तक, इसका प्रयोग समस्तपद में 'कृ' धातु ( जलाना, भस्म करना) के साथ किया जाता है- 'न चकार शरीरमग्निसात्रघु० ८ ७२ भूजलाया जाना । अग्र ( वि० ) [ अङ्ग + रत् नलोपश्च ] 1 प्रथम, सर्वोपरि, मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख महिषी मुख्य रानी; 2 अत्यधिक; - 1 ( क ) सर्वोपरि स्थल या उच्चतम बिन्दु (विपo - मूलम्, मध्यम्); (आल ं) तीक्ष्णता, प्रखरता, नासिका - नाक का अग्रभाग, समस्ता एव विद्या जिह्वाग्रेऽभवन् - का० ३४६ -- जिह्वा के अन भाग पर थी, (ख) चोटी, शिखर, सतह – फैलार्स, पर्वत आदि 2 सामने 3 किसी भी प्रकार में सर्वोत्तम 4 लक्ष्य, उद्देश्य 5 आरम्भ 6 आधिक्य, अतिरेक. समस्त पदों में जब यह प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ होता है- 'पूर्वभाग' 'सामने ' 'नोक' आदि; उदा० पादः चरणः । सम० - बनी (णी) कः (कम् ) सैन्यमुख मनु० ७११९३ - आसनं प्रमुख आसन, मान आसन मुद्रा० १।१२ - कर: = अग्रहस्तः -- गः नेता, मार्गदर्शक, सबसे आगे चलने वाला - गण्य ( वि० ) श्रेष्ठ, प्रथम श्रेणीमें रक्खे जाने योग्य; - ज पहले पैदा या उत्पन्न हुआ; – जः अग्रजन्मा, बड़ा भाई - अस्त्येव मन्युर्भरताग्रजे मे - रघु० १४।७३ 2 ब्राह्मण – जा बड़ी बहन, इसी प्रकार 'जात, जातक, जाति । -जन्मन् ( पु० ) 1. पहले जन्मा हुआ, बड़ा भाई 2 ब्राह्मण - दश०१३, जिह्वा जिल्ह्ना की नोक -दानिन् (वि०) पतित ब्राह्मण जो मृतक श्राद्ध में दान लेता है; - दूतः आगे-आगे जाने वाला दूत -- कृष्णाक्रोधाग्रदूतः - वेणी० ११२२, रघु० ६।१२, - नी: ( णीः) प्रमुख नेता - अप्यग्रणी मंन्त्रकृतामृषीणाम् - रघु० ५।४; - पादः पैर का अगला हिस्सा, पैर का अगला पंजा, पूजा आदर या सम्मान का सर्वोच्च या प्रथम चिह्न, पेयं पीने में प्राथमिकता - भागः 1. प्रथम या सर्वोत्तम भाग 2 शेष, शेष भाग 3. नोक, सिरा; - भागिन् ( वि० ) ( शेषभाग ) को पहले प्राप्त करने का अधिकार प्रकट करने वाला; - भू: ज, भूमिः (स्त्री०) महत्त्वाकांक्षा का लक्ष्य या उद्दिष्ट पदार्थ मांसं हृदय का मांस, हृदय-० स चानीतम् - वेणी ० ३ - यायिन् ( वि० ) नेतृत्व करना, सेना के आगे चलना, पुत्रस्य ते रणशिरस्ययमग्रयायी - श० ७/२६, योधिन् ( पु० ) मुख्य वीर, मुख्य योद्धा, संधानी यम द्वारा मनुष्यों के कार्यों का लेखा-जोखा रखने की बहीं; - संध्या ( स्त्री०) प्रभात काल; कर्कन्धूनामुपरि तुहिनं रंजयत्यग्रसंध्या श० ४ ( पाठ० ), — सर = यायिन् नेतृत्व करने वाला - रघु० ९।२३: ५/७१ - हस्तः (पु० ) ( - करः पाणिः ) For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाथ या भुजा का अगला भाग, हाथी की सुंड का [ पापनाशक;-मर्षण (वि०) विशोधक, पाप को सिरा; कभी २ उंगली या उंगलियों के अर्थ में भी हटाने वाला, ऋग्वेद के मन्त्र जिनका सन्ध्या-प्रार्थना प्रयुक्त होता है। दाहिना हाथ-अथाग्रहस्ते मुकुलीकृता- के समय प्रायः ब्राह्मणों द्वारा पाठ होता है (ऋगगुली कुमा० ५।६३हायन (गः) वर्षका आरम्भ, मं०१० सू० १९०) सर्वेनसामपध्वंसि जप्यं त्रिष्वषममार्गशीर्ष (मंगसिर) महीने का नाम:हारः राजाओं र्षणम्-अमर०,-विषः साँप; --शंसः दुष्ट आदमी द्वारा बाह्मणों को जीवननिर्वाहार्थ दान में दी गई भूमि जैसे चोर;--शंसिन् (वि.) किसी के पाप या अपराध -कस्मिंश्चिदप्रहारे-दश० ८१९ । को बतलाने वाला। अग्रतः (क्रि. वि., [अग्रे अग्राद्वा-तसिल] (संबन्धकारक | अधर्म (वि०) [न० ब०] जो गरम न हो, ठंडा, °अंश, के साथ) 1. सामने, के आगे, के ऊपर; आगे 2. की __ घामन-चन्द्रमा जिसकी किरणें ठण्डी होती है। उपस्थिति में, 3. प्रथम । सम-सरः नेता। अघोर (वि.) [न० त०] जो भयानक न हो, भीषण न अतिम (वि.) असे भव:--अग्र+डिमच्] 1. प्रथम (क्रम, हो,-र: शिव या शिव का कोई रूप जिसमें अघोर श्रेणी आदि में); प्रमुख, मुख्य 2. बड़ा, ज्येष्ठ-मः -घोर हो। सम-पथ:-मार्गः शिव का अनुबड़ा भाई। यायी,-प्रमाणं भीषण शपथ या अग्नि परीक्षा। मणिय (वि.) [अग्रे भव:--अन+घ] प्रमुख आदि,-यः | अघोष (वि.) [नास्ति घोषो यस्य यत्र वा-न० ब० बड़ा भाई। ध्वनिहीन, निःशब्द,-पःप्रत्येक वर्ग के प्रथम दो अक्षर, अपीय (वि.) [अग्रेभव:-अन+छ] प्रमुख, सर्वोत्तम श, ष, तथा स। आदि । दे० अग्रिम । अक् (भ्वा० आ०) टेढा-मेढा चलना, (चु०उभ०-अङ्कयतियो (कि० वि०) 1. के सामने, पहले (काल और देश ते, अङ्कयितुं, अङ्कित) 1. चिह्नित करना, छाप लगाना वाचक) 2. की उपस्थिति में, 3. के ऊपर 4. बाद में स्वनामधेयाङ्कित-श० ४ नामांकित --नयनोदबिंदुभिः फलतः एवमग्रे वक्ष्यते, एवमत्रेऽपि द्रष्टव्यम् आदि 5. अङ्कितं स्तनांशुकम्—विक्रम०४७, 2. गिनना, 3. सबसे पहले, पहले 6. औरों से पहले। समाः घब्बा लगाना, कलङ्कित करना-तत्को नाम गुणो भवेनेता,----विषिषुः-प: पहले तीन वर्गों में से कोई एक त्सुगुणिनां यो दुर्जनै कृित:---मत० नी० ५४ 4. पुरुष जो विवाहित स्त्री से विवाह करता है, (पुनर्भू- चलना, इठलाना, जाना। विवाहकारी);-दिधिषः (स्त्री०) एक विवाहित स्त्री अङ्कः (पुं०)[अङ्क-+अच्] 1. गोद (नपुं० भी), अङ्काद्यजिसकी बड़ी बहन अभी अविवाहित है-(ज्येष्ठायां यावङ्कमुदीरिताशी:-कु०७५; 2.चिह्न, संकेत-अलक्तयद्यनढायां कन्यायामूह्यतेऽनुजा, सा चादिधिषज्ञेया काकी पदवी ततान-रघु०७/०घब्बा, लांछन, कलङ्क, पूर्वा च दिविषः स्मृता); पतिः अग्रेदिधिष स्त्री का दाग-इन्दो: किरणेष्विवाङ्क:-कु० ११३,-कट्यां कृताको पति;-वनं-जंगल की सीमा या अन्तिम सिरा; निर्वास्य:-मनु० ८।२८१; 3. अङ्क, संख्या, ९ की सर (वि०) आगे २ चलने वाला, नेता--मानमहता संख्या 4. पार्श्व, पक्ष, सान्निध्य, पहुँच,-समुत्सुकेवाङ्कमप्रेसरः केसरी-भर्तृ० २।२९। मुपैति सिद्धिः-कि० ३।४०-सिंहो जम्बुकमङ्कमागतमपि बम (वि० [अग्रे जात:-अग्र+यत] 1. प्रमुख, सर्वोत्तम, त्यक्त्वा निहन्ति द्विपम् -भर्तृ० नी० ३०; 5. नाटक का उत्कृष्ट, सर्वोच्च, प्रथम-तदङ्गमयं मघवन् महाकतोः एक खंड 6. कंटिया या मुड़ा हुआ उपकरण 7. नाट्य -रषु० ३।४६, महिषी १०१६६, अधिकरण के रचना का एक प्रकार, रूपक के दस भेदों में से एक, साथ भी; मनु० ३।१८४, पयः बड़ा भाई। दे० सा० द०५१९ 8. पंक्ति, मुड़ी हुई पंक्ति, सामाअष्=अंघ-दे० (चु० उभ०) बुरा करना, पाप करना। न्यतः एक मोड़, भुजा में मोड़। सम०-अवतारः मर्ष [अध्+अच्] 1 पाप-अघौधविध्वंसविधौ पटी- जब नाटक के आगामी अङ्क से सातत्य प्रकट करता यसी:--शि०१८, २६. मर्षण आदि 2. कुकृत्य, हुआ, पूर्वांङ्क के अन्त में-अङ्कसकेतं-किया जाता है अपराध, दोष शि० ४१३७ 3. अपकृत्य, दुर्घटना, उसे अङ्कावतार कहते हैं जैसे कि शकुन्तला का छठा विपत्ति-क्रियादधानां मघवा विधातम्-कि० ३३५२; अङ्क अथवा मालविकाग्निमित्र का दूसरा अङ्क:वे. अनघ 4. अपवित्रता, (अशौच) 5. व्यथा, कष्ट तंत्र संख्या-विज्ञान (अंकगणित या बीजगणित), -चः एक राक्षस का नाम, बक और पूतना का भाई -धारणं-णा (नपुं० स्त्री०) 1. चिह्न लगाना या संकेत जो कंस के यहां मुख्य सेनापति था। सम-असुरः करना 2. आकृति या मनुष्य को आंकने की रीति दे० ऊपर 'अघ', अहः (अहन) अपवित्रता का ---परिवर्तः 1. दूसरी ओर मुड़ना 2. किसी की गोद दिन, अशौच दिन-आयुस् (वि०) गर्हित जीवन में लुढ़कना या प्रेम के हाव-भाव दिखाना (आलिंबिताने वाला;-नाश-नाशन (वि.) परिमार्जक, गन के अवसर पर)-पालि:-पाली (स्त्री०) 1. विषिष विवाह करता से कोई एक जिसको बस For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलिंगन-तावद्गाढं वितरसकृदयङपाली प्रसीद-माल। अक्य (वि०) [अक+ण्यत् दागने योग्य, चिह्नित या ८१२; 2. दाई, नर्स; -पाशः अंकगणित में एक | अंकित करने योग्य;-यः एक प्रकार का ढोल या मृदंग। प्रकार की प्रक्रिया जिसमें १-२ आदि संख्याओं के | अल (चु० पर० अक० सेट) [अकयति-अहित] 1. पेट के अदल-बदल से एक विचित्र श्रृंखला सी बन जाती है। बल सरंकना 2. चिपटना 3. रोकना। --भाज् (वि.) 1. गोद में बैठा हुआ या लिया हुआ अङ्ग (म्वा० पर० अक० सेट्) [अङ्गति, आनङ्ग, अङ्गितुम्, जैसे कि एक बच्चा 2. सुगम, निकटस्थ, सुलभ-कि० अङ्गित] जाना, चलना; (चु० पर०)1. चलना, चक्कर ५।५२; ----मुखं (या-आस्यम्) अङ्क का वह काटना 2. चिह्न लगाना। भाग जहाँ सब अङ्कों का विषय सूचित किया गया हो (अव्य.) [अङग+अच संबोधक अव्यय, जिसका अङ्कमुख कहलाता है, इसी से बीज और फल का संकेत 'अर्थ है "अच्छा" 'अच्छा, श्रीमान्' 'निस्सन्देह' 'सच' होता है-उदा० माल. १ में कामंदकी और अवलोकिता उस अंश का संकेत करती है जिसका अभिनय 'हाँ (जैसा कि 'अङ्गीकृ'में);-अङ्ग कच्चित्कुशलो तात: -का० २२१; 'किम्' जोड़ कर इसका अर्थ होता है भृरिवसु और अन्य पात्रों को करना है। इसमें कथावस्तु को कम भी संक्षेप में बतला दिया जाता है;-विद्या 'कितना कम' 'किर्तना अधिक'-तणेन कार्य भवती श्वराणां किमङ्ग वाहस्तवता नरेण-पंच० ११७१ । संख्या-विज्ञान, अंकगणित । कोशकारों ने इसके निम्नांकित अर्थ बताये हैंअवनं [अङक - ल्युट]1. चिह्न, प्रतीक 2. चिह्नित करने की क्रिया 3. चिह्न लगाने के साधन, मुहर लगाना आदि । 'क्षिप्रे च पुनरर्थे च सङ्गमासूययोस्तथा। हर्षे संबोधने अतिः [अञ्च+अति, कुत्वम्-अञ्चे: को वा-अञ्चतिः चैव ह्यङ्गशब्दः प्रयुज्यते।' "संस्कृत-रचना-छात्र निदेशिका' का 8 २४३ भी देखें। गं-1. शरीर अतिर्वा] 1. हवा, 2. अग्नि 3. ब्रह्मा 4. वह ब्राह्मण 2. अंग या शरीर का अवयव-शेषाङ्गनिर्माणजो अग्निहोत्र करता है। विधौ विधातु:-कुमा० ११३३; 3. (क) किसी संपूर्ण अकुटः [अन+उटच्] ताली, कुंजी। वस्तु का प्रभाग या विभाग, एक खण्ड या अंश, जैसे अङ्कुरः [अक् + उरच्] 1 अंखुवा, किसलय, कोंपल सप्ताङ्ग राज्यम्-चतुरङ्ग बलम्, अतः (ख) संपूरक या -दर्भाडकुरेण चरणः क्षतः ---श० २११०; समस्तपद के सहायक खण्ड, पूरक (ग) अवयव, सारभूत घटक रूप में प्रायः इसका नुकीला' या 'तीक्ष्ण' अर्थ होता -तदङ्गमयं मघवन् महाऋतोः-रघु० ३।४६; (घ) है-मकरवक्तदंष्ट्राजकुरात्-भ० २।४ नुकीली दाढ़; विशेषणात्मक या गौणभाग, गौण, सहायक या आश्रित (आलं०) कलम, संतान, प्रजा-अनेन कस्यापि कुला. अंग (जो मुख्य वस्तु का सहायक है), (इसका विप० डाकुरेण-श०७:१९; 2. पानी 3. रुधिर 4. बाल 5. है 'प्रधान' यो 'अङ्गिन्')-अङ्गी रौद्ररसस्तत्र सर्वेऽङ्गानि रसौली, सूजन । रसाः पुनः-सा० द० ५१७ (च) सहायक साधन अकुरित (वि.) [अङकुर-+-इतच्] नवपल्लवित, उत्पन्न, या युक्ति 4. (व्याक०) शब्द का मूल रूप 5. (क) तं मनसिजेनेव-विक्रम० १११२ मानों काम ने किस नाटकों में पांचों सन्धियों के उपभाग (ख) गौण लय पैदा कर दिये हैं। लक्षणों से युक्त समस्त शरीर 6. छ: की संख्या के अकुशः [अङ्क+उशच) (लोहे का) काँटा या हांकने लिए आलंकारिक कथन 7. मन -गाः(पुं० ब०व०) की छड़ी, (आलं.) नियंत्रक, संशोधक, प्रशासक, एक देश का नाम, उस देश के वासी--यह प्रदेश निदेशक, दबाव या रोक-निरङ्कुशाः कवयः; कवि नियं- बंगाल के वर्तमान भागलपुर के आस पास स्थित है। श्रण से मुक्त होते हैं या उन पर कोई बन्धन नहीं सम०-अजित-अङ्गीभावः शरीर के अंगों का होता। सम०-प्रहः पीलवान, अन्वेतुकामोऽवमताकुश- संबंध, गौण अंगों का मुख्य अंग से संबंध या पोष्य ग्रहः --शि० १२।१६ ; ----दुर्धरः दुर्दान्त; -धारिन् अंग का पोषक अंग से संबंध (गौणमुख्यभावः, उप(पु०) हाथीवान। कार्योपकारकभावश्च); अविश्रान्तजुषामात्मन्यनाङ्गित्वं अकुशित (वि.) [अड्कुश+इतच् अकुश से हांका तु संकरः--का० प्र० १०; (अनुग्राह्यानुग्राहकत्वम्) -अधीप:--अधीशः अंगों का स्वामी, कर्ण (तु. अङकुशिन् (वि.) [अकुश-+-णिनि] अकुश रखने वाला। राजः, पतिः, °ईश्वरः, अधीश्वरः), -ग्रहः अङ्करः अंखुवा-दे० 'अङ्कुर' । ऐंठन;-ज,-जात (वि.) 1 शरीर पर उपजा अडकपः-दे० अङ्कुश । हआ, या शरीर में जन्मा हआ, शारीरिक 2 सुन्दर, अकोट:-:-लः [अङ्क + ओट-ठ-ल] पिस्ते का वृक्ष । अलंकृत; -(जः)-जनुस 1 पुत्र 2 शरीर के बाल अश्कोलिका [अङ्क-उल+क+टाप या अङ्क-पालिका (नपुं० भी), 3 प्रेम, काम, प्रेमावेश 4 शराबखोरी, का अपभ्रंश आलिंगन । मस्ती 5 एक रोग; - (जा) पुत्री; -(4) गया। For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अ प्रियः अशोकवन प्रिय (वि.) al रुधिर; -द्वीप : छोटे छ: द्वीपों में से एक;-न्यासः ।। किष्किधा के बानरराज बालि का पूत्र; 2 ऊमिला से उपयक्त मंत्रों के साथ हाथ से शरीर के अंगों उत्पन्न लक्ष्मण का पूत्र-रघु० १५१९०, इसकी को स्पर्श करना; -पालि: (स्त्री०) आलिंगन, राजधानी का नाम अंगदीया था। -पालिका=दे०, अंकपालि-प्रत्यङ्ग छोटे बड़े सब | अङ्गन-णं [अङ्ग् + ल्युट्] 1 टहलने का स्थान, आंगन, अंग; -भूः 1 पुत्र 2 कामदेव; -भङ्गः 1 गात्रो- चौक, सहन, बगड़; गह, गगन व्यापक अन्तरिक्ष पघात, लकवा-'विकल इव भूत्वा स्थास्यामि-श० भुवः केसरवृक्षस्य--माल० १; 2 सवारी 3 जाना, २; 2 अंगड़ाई लेना (जैसा कि सोकर उठते ही मनुष्य चलना आदि। करता है) -मंत्र: एक मंत्र का नाम,-मर्दः 1 जो अङ्गना [प्रशस्तम् अङ्गम् अस्ति यस्याः-अङ्ग+न+टाप् ] अपने स्वामी के शरीर पर मालिश करता है, 2 मालिश 1 स्त्रीमात्र, नप, गज, हरिण° इत्यादि; 2 सुन्दर करने की क्रिया, इसी प्रकार मर्दक: या मदिन, स्त्री 3 (ज्यो०) कन्या राशि। सम-जनः 1 स्त्री -मर्षः गठिया रोग; -यज्ञः,-यागः यज्ञ से संबद्ध जाति 2 स्त्रियां; -प्रिय (वि०) स्त्रियों का प्रिय, गौण क्रिया,-रक्षकः शरीर रक्षक, व्यक्तिगत सेवक, पंच०,३-रक्षणं किसी व्यक्ति की रक्षा, -रक्षणी अङ्गस (पुं०) [अञ्ज+असुन कुत्वम्] पक्षी । कवच, पोशाक - रागः 1 सुगन्धित लेप, शरीर पर | अङ्गार:-रं [अड्ग- आरन् 1 कोयला (जलता हुआ या बुझा सुगंधित उबटन का लेप, सुगन्धित उबटन, -रघु० । हुआ, ठंडा);-उष्णो दहति चाङ्गारःशीतः कृष्णायते १२।२७, ६६० कुमा० ५।११, 2 लेपन क्रिया,- करम् --हि० ११८०;-त्वया स्वहस्तेनाङ्गारा: कर्षिता: विकल (वि.) 1 अपाहज, लकवा मारा हुआ, 2 | -पंच० १ तुमने स्वयं अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी, मूछित; -विकृतिः (स्त्री०) 1 शरीर में कोई तु० 'अपने लिए स्वयं खाई खोदना' 2 मंगल ग्रह,-रं विकार होना, अवसाद 2 मिरगी का दौरा, मिरगी लाल रंग। सम० -धानिका अंगीठी, कांगड़ी, -विकारः शारीरिक दोष,-विक्षेपः अंगों का हिलाना, ---पात्री, -शकटी अंगीठी, कांगड़ी; -वल्लरी शारीरिक चेष्टा;-विद्या 1 ज्ञान के साधनभत -वल्ली नाना प्रकार के पौधों का नाम विशेषतः व्याकरण आदि शास्त्र 2 अंगों की चेष्टा या चिन्हों 'गुजा' धुंधची। को देखकर शुभाशुभ कहने की विद्या; बहत्संहिता | अङ्गारकः-कं [अनार+स्वार्थे कन] 1 कोयला 2 मंगल ग्रह का ५१वां अध्याय जिसमें इस विद्या का पूर्ण विवरण -विरुद्धस्य प्रक्षीणस्य बृहस्पते:-मृच्छ० ९।३३; निहित है -विधि: गौण या सहायक अधिनियम जो --°चारः मंगल ग्रह का मार्ग 3 मंगलवार (दिनं, कि मुख्य नियम का सहकारी है; -वीरः मुख्य या वासरः),-कं एक छोटी चिनगारी। सम०----मणिः । प्रधान नायक,--वैकृतं 1 संकेत, इंगित या इशारा 2 मूंगा। सिर हिलाना, आँख झपकना, 3 परिवर्तित शारीरिक अङ्गारकित (वि०) [ अङ्गारक | इतच् ] झुलसा. हुआ, रूप;-संस्कारः, -संस्क्रिया शरीर को आभूषणों से भुना हुआ। सुशोभित करना, शारीरिक अलंकरण,--संहतिः | अङ्गारिः (स्त्री०) [ अंगार-मत्वर्थे ठन्-पृषो० कलोपः ] (स्त्री०) अंगसमष्टि, अंगों का सामंजस्य, शरीर, कांगड़ी, अंगीठी। देहशक्ति,--संगः शारीरिक संपर्क, मैथन, संभोग; -सेवकः निजी नौकर,-हारः हाव भाव, नृत्य, अङ्गारिका [अंगार-मत्वर्थे ठन्-कप् च] 1 कांगड़ी 2 गन्ने की -हारिः 1 हावभाव 2 रंग-भूमि; रंग-शाला;-हीन पोरी 3 किंशुक वृक्ष की कली। (वि०) 1 अपाहिज, विकलांग, 2 विकृत अंगवाला। अङ्गारिणी | अंगार-इन् । डीप ] 1 छोटी अंगीठी, 2 लता। अङ्गारित (वि.) [ अङ्गार --इतन् ] झुलसा हुआ, भुना अङ्गकं [अङग-अच्, स्वार्थे कन्] 1. अङ्ग-अकृतमधुरै हुआ, अधजला -तः-तं पलाश वृक्ष की कली,-ता रम्बाना मे कुतूहलमङ्गकः--उत्त० २।२०, २४. 2.! 1-दे० अङ्कारधानी 2 कली 3 लता। शरीर-शि० ४।६६ । अङ्गारीय (वि.) [अङ्गार+छ | कोयला तैयार करने की अङ्गणं-दे० अङ्गनम् । सामग्री। अङ्गतिः [ अङ्ग+अति] 1. सवारी, यान (स्त्री० भी), ' अङ्गिका [ अङ्ग+क+टाप् ] चोली, अंगिया। 2 अग्नि 3. ब्रह्मा 4. अग्निहोत्री ब्राह्मण। अङ्गिन् (वि०) [अङ्ग+इन् ] 1 शारीरिक, देहधारी,अनन्द [ अंगं दायति द्यति वा, दै-दो+क] आभूषण, धर्मार्थकाममोक्षाणामवतार इवाङ्गवान्-रघु० १०१८४, कंकण जो कोहनी के ऊपर भुजा में पहना जाता है, ३८; 2 गौण अंगों वाला, मुख्य, प्रधान-ये रसस्याबाजबन्द,-तप्तचामीकराङ्गद:-विक्रम० १११४; गिनो धर्माः, एक एव भवेदङ्गी शृङ्गारो वीर एव वासंघट्टयनङ्गदमङ्गदेन-रघु० ६७३;-वः 11 सा०द० । For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अङ्गिरः, अङ्गिरस् (पुं०) [अङ्ग+अस्+इस्ट्] ऋग्वेद के की भांति अपने पैर का अंगूठा चूसने वाला-स्कन्धः ___ अनेक सूक्तों का द्रष्टा एक प्रसिद्ध ऋषि;-(ब० व.) टखना । अंगिरा ऋषि की सन्तान । | अच् (भ्वा० उभ० इदित् अक० वेट्) [ अचति-ते, अङ्गीकरणम्, अङ्गीकारः, अङ्गीकृतिः (स्त्री०) [अङ्ग+ अञ्चति, आनञ्च, अञ्चित,-अक्त] 1 जाना, हिलना; वि++ल्युट्,-कृ+घञ, कृ+क्तिन्] 1. स्वी- 2 सम्मान करना, प्रार्थना करना आदि; दे० 'अञ्च' कृति 2. सहमति, प्रतिज्ञा, जिम्मेदारी आदि। से संबद्ध --च् (पुं०) [व्या०] स्वरों के लिए प्रयुक्त अङ्गीय (वि.) [अङ्ग+छ] शरीर संबन्धी। शब्द । अङ्गः [अङ्ग-+-उन्] हाथ । अचक्षुस् (वि०) [ न० ब० ] नेत्रहीन, अंधा; विषय अगरिः-री-दे० अंगुलि। (वि०) अदृश्य, (नपुं०) [न० त०] खराब आँख, अङाल: [अङ्ग + उलच्] 1. अंगली 2. अंगठा (नपं० । रोगी आँख । भी), 3. अंगुल भर की नाप (नपुं० भी) जो ८ जौ अचण्ड (वि.) [न० त०] जो क्रोधी स्वभाव का न हो, के बराबर होती है, १२ अंगलियों की एक 'वितस्ति' शान्त, सौम्य। या बालिस्त और २४ अंगुलियों का एक 'हाथ' का नाप | अचतुर (वि०) [न० ब०] 1 'चार' की संख्या से रहित होता है। 2 [न० त०] अनाड़ी। अङगलि:-ली, अगुरिः-री(स्त्री०) [अंग+उलि] 1. अंगुली अचर (वि.) [न० त०] स्थिर-चराचरं विश्वं-कुमा० (पांचों अंगलियों के नाम--अंगुष्ठ, तर्जनी, मध्यमा, २।५ -चराणामन्नमचरा:-मनु० ५।२९।। अनामिका और कनिष्ठा या कनिष्ठका है)-पैरका| अचल (वि.) [न० त०] दढ़, स्थिर, निश्चित, स्थायीपंजा-पांव की अंगुली कहलाती हैं 2. अंगठा, पैर का चित्रन्यस्तमिवाचलं चामरम-विक्रम. ११४,-ल: 1 अंगूठा 3. हाथी की सुंड की नोक 4. 'अंगुल नाप विशेष । पहाड़, (कहीं २) चट्टान 2 काबला या कील 3 सात सम० तोरणं मस्तक पर चन्दन का अर्ध चन्द्राकार की संख्या,-ला पृथ्वी,-लं ब्रह्म। सम-कन्यका, तिलक;---त्राणं अंगठे की रक्षा के निमित्त बना एक ----तनया, ---दुहिता, -सुता हिमालय पर्वत प्रकार का दस्ताना जिसे धनुर्धर पहनते हैं; - मुद्रा, की पुत्री पार्वती" -कीला पृथ्वी;-ज, ----जात -मुद्रिका मोहर लगाने की अंगूठी,-मोटनं,-स्फोटनं (वि.) पहाड़ पर उत्पन्न, -जा, -जाता पार्वती; चुटकी बजाना, अंगुली चटकाना;-संज्ञा अंगुलियों -त्विष् (पुं०) कोयल,-विष् (पुं०) पर्वतों का शत्र, से संकेत-मुखापितकाङगुलिसंज्ञयैव-कुमा० ३१४१; इन्द्र का विशेषण जिसने पहाड़ों के पंख काट दिये थे। -संदेशः अंगुलियों के इशारे से संकेत करना;-संभूतः अचापल-ल्य (वि.) [न.ब.] चंचलतारहित, स्थिर, नाखुन । लं-ल्यं [न० त०] स्थिरता।। अङ्गुलिका-अंगुलि: । अचित् (वि०) वै० [न+चित्+क्विप्न० त०] अङगली-(री) यं,-क-यकं अंगरि (लि)+छ-स्वार्थे कन] म गर 1ि -स्वार्थ कत| 1 समझदारी से रहित, 2 धर्मशून्य 3 जड़। अंगठी-तव सुचरितमङगुलीयं नूनं प्रतनु ममेव-श. | अचित (वि.) वै० [न चित-इति न० त०] 1 गया ६।१०;-(पुं०भी)-काकुत्स्थस्याङगुलीयक: भट्टि० __ हुआ 2 अविचारित 3 एकत्र न किया हुआ। ८१११८ । अचित्त (वि.) [न० ब०] 1. अकल्पनीय 2. बुद्धिरहित, अङ्गुष्ठः [अंगु+स्था+क] 1. अंगठा, पैर का अंगठा 2. | अज्ञान, मूर्ख 3. न सोचा हुआ। 'अंगूठा भर' नाप विशेष जो अंगुल के समान होती है। अचिन्तनीय-अचिन्त्य (वि०) [नत्र +चिन्त+अनीयर्, सम०-मात्र (वि.) अंगूठे की लम्बाई के बराबर चित् + यत् जो सोचा भी न जा सके, समझ से परे, पुरुषं निश्चकर्ष बलाद्यम:-महा० ।। -यस्तु तव प्रभाव:-रघु० ५।३३, -स्यः शिव। अगष्ठयः [अङ्गुष्ठे भव:-यत्] अंगठे का नाखून । अचिन्तित (वि.) [न० त०] अप्रत्याशित, आकस्मिक, अङ्गुषः [अङ्ग् ! ऊपन्] 1. नेवला 2. तीर । पंच०२।३। अङ्घ (भ्वा० आ० अक० सेट् )[अङ्घते-अधित] 1. जाना. | अचिर (वि.) [न० त०] 1. संक्षिप्त, क्षणिक, क्षणस्थायी, 2. आरंभ करना 3. शीघ्रता करना 4. धमकाना। दे० °द्युति, भास्, प्रभा आदि 2. नया-रघु०८।२०% अङ्घस् (न०) [अध्+असुन] पाप-वेणी० १११२, समस्त पदों में 'अचिर' का अर्थ है-हाल में, अभी, (पाठांतर) कुछ ही पहले-प्रवृत्तं ग्रीष्मसमयमधिकृत्य-श० १ अंघ्रिः-अंहिः-[अधु+क्रिन्] 1. पैर 2. वृक्ष की जड़ अभी अभी, प्रसूता-श० ४-अभी २ जिसने बच्चे को 3. श्लोक का चौथा चरण । सम०-पः वृक्ष-दिक्षु पैदा किया है (यह एक हरिणी के विषय में कहा गया व्यूढाध्रिपाङ्गः-वेणी० २११८,-पान (वि.) बच्चे । है जो प्रसवोपरान्त चल बसी है)-अथवा गाय जिसने For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बछड़े को जन्म दिया है -रं [क्रि० वि०] [अचिरेण, | अन (वि०) [न० त०-न जायते नत्र -जन्+ड] अजन्मा, अचिराय, अचिरात् और अचिरस्य भी इसी अर्थ के अनादि,-अजस्य गृहृतो जन्म-रघु० १०१२४;-जः द्योतक है] 1. बहुत देर नहीं हुई, अभी कुछ पहले 2. 1. 'अज' सर्वशक्तिमान् प्रभु का विशेषण, विष्णु, हाल ही में, अभी, 3. शीघ्र, जल्दी, बहुत देर न करके। शिव,ब्रह्मा 2. आत्मा, जीव 3. मेंढा, बकरा 4. मेषराशि सम०- अंशु,- आभा,- धुति,- प्रभा,- भास,- 5. अन्न का एक प्रकार 6. चन्द्रमा, कामदेव । सम० रोचिस (स्त्री०) बिजली-शुविलासचंचला लक्ष्मीः- -अवनी (स्त्री) कटीली काकमाची, घमासा,-अविकं कि०२।१९, भासां तेजसा चानलिप्त:-श० ७७ । छोटा पश,-अश्वं बकरे और घोड़े, एकं बकरे और अचेतन (वि०)[न० ब०] 1 निर्जीव, अबोध,-चेतन नेषु- मेंढे,-गरः अजगर नामक भारी सांग जो, कहते हैं मेष०५; 2. बोधरहित, अज्ञानी। बकरियों को निगल जाता है;-(री) एक पौधे का अच्छ (वि०)[ना +छो+क] स्वच्छ, निर्मल, पारदर्शक, नाम-ाल दे. नी. 'अजागल';-जीवः,-जीविकः विशुद्ध-पुक्ताच्छदन्तच्छविदन्तुरेयम्-उत्त० ६।२७, गडरिया, इसी प्रकार-°पः,-पाल:;-°मार: 1. कसाई, मेष० ५१;-कि रत्नमच्छा मति:-भामि० १११६; 2. एकप्रदेश का नाम (वर्तमान अजमेर),-मीठ: 1. -छ: 1. स्फटिक 2. भाल-तु० भल्ल भी। सम०- अजमेर नामक स्थान का नाम, 2. युधिष्ठिर की उदन् [अच्छोद] (वि०) स्वच्छ जल बाला-दं कादम्बरी उपाधि,-मोदा,-मोविका अजमोद-एक औषध का में वर्णित हिमालय पर्वत पर स्थित एक झील,-भल्लः नाम जिसे मराठी में 'ओंवा' कहते हैं,-शृंगी 'मेंढार्सिगी' रीछ । पौधे का नाम। अच्छ-छा (अव्य०) वै०-की ओर, (कर्म कारक के साथ) अजकव:- [अजं विष्णुं कं ब्रह्माणं वातीति-वा+क] शिव की तरफ। का धनष । अच्छन्दस् (वि.) [न० ब.] 1. उपनीत न होने के कारण अजका-अजिका [स्वार्थे कन् +टाप्] छोटी बकरी, बकरी या शूद्र होने के कारण वेद को न पढ़ने वाला, 2. का बच्चा । छंदरहित रचना। अजकाव:- [अजं विष्णुं कं ब्रह्माणम् अवति इति अब्+ अच्छावाक: [अच्छ+व+घञ्] सोमयाग का ऋत्विक अण्] शिव का धनुष, पिनाक । जो होता का सहायक होता है । अजगवं [अजगो विष्णुस्तं वातीति-वा-+क] शिव का अच्छिद्र (वि.) [न.ब.] छिद्ररहित, अक्षत, निर्दोष, धनुष, पिनाक । दोषरहित-जपच्छिद्रं तपच्छिद्रं यच्छिद्रं श्राद्धकर्मणि, अजगावः [अजगो विष्णुस्तमवतीति-अव+अण] शिव का सर्व भवतु मेऽच्छिद्रं ब्राह्मणानां प्रसादतः;-न० त०] धनुष, पिनाक। निर्दोष कार्य या दशा, दोष का अभाव, ण, बिना अजड (वि.) [न० ब०] जो जड न हो, समझदार। रुके, आदि से अन्त तक। अजन (वि०) [न० ब०] जनशून्य, बियाबान । अच्छिन्न (वि.) [न० त०] 1. अटूट, लगातार चलने | अजनिः (स्त्री०) [अज्+अनि) पथ, मार्ग । वाला, अनवरत 2. जो कटा न हो, अविभक्त, अक्षत, | अजन्मन् (वि०) अनुत्पन्न, 'अजन्मा' प्रभु का विशेषण, अखंडय। (पुं०) परमानन्द, छुटकारा, अपमुक्ति । अच्छोटनम् [न-छुट्+णिच् + ल्युट्] आखेट, शिकार। अजन्य (वि०) [न० त०] उत्पन्न होने के अयोग्य, मानवअच्युत (वि०) [न० त०] 1 अपने स्वरूप से न गिरा हुआ, जाति के प्रतिकूल,-न्यं अपशकुनसूचक अशुभ घटना दृढ़, स्थिर, निर्विकार, अचल 2. अनश्वर, स्थायी, | जैसे कि भूचाल । तः विष्णु, सर्वशक्तिमान प्रभु,--गच्छाम्यच्युतदर्श- | अजपः [न० ब०] वह ब्राह्मण जो सन्ध्योपासना उचित नेन-काव्य०५ (यहां अका भी अर्थ है-दृढ़, जो रूप से नहीं करता है। वासनाओं का शिकार न हो)। सम० अग्रजः अजंभ (वि.) [न० ब०] दांत रहित,-भः 1. मेंढक, बलराम या इन्द्र,-अंगजः,-आत्मजः,-पुत्रः कामदेव, 2. सूर्य 3. बच्चे की वह अवस्था जब उसके दांत नहीं कृष्ण और रुक्मिणी का पुत्र,-आवासः, बासः पीपल निकले हैं। का वृक्ष। अजय (वि०) [न० ब०] जो जीता न जा सके, जो अजू (भ्वा० पर. अक० सेट०-आर्धधातुक लकारों में | हराया न जा सके, नाय;-यः हार, पराजय;-या विकल्प से 'वी' आदेश होता है) [अजति, आजीत, भांग। अजितुम्, अजित-वीत] 1. जाना 2. हांकना, नेतृत्व अजय्य (वि०) [न +जि+यत् न० त०] जो जीता न करना 3. फेंकना (उपसर्गों के साथ इस धातु का | जा सके, श० ६।२९, रघु० १८८। प्रयोग केवल वेद में ही पाया जाता है)। | अजर वि० [न० त०] 1. जिसे कभी बुढ़ापा न आवे, सदा नेननाओं का शिजआस्मजः, यासः पीपल For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) जवान 2. जो कभी न मुझवे, अनश्वर;-पुराणभजरं ] अजानेय (वि.) [अजेऽपि आनेयः--यथास्थान प्रापणीयःविदुः-रघु० १०.१९-- देवता,-रं परमात्मा। | इति अज-अप-आ+नी+यत्] उत्तम कुल का, अजयं [नत्र ++ यत् न० त०] (अभिहित या अध्याहृत | निर्भय (जैसे घोड़ा)। 'संगतं' के साथ) मित्रता-मगैरजयं जरसोपदिष्टम्- | अजित (वि.) [नन+जि+क्त] 1. जो जीता न जा सके, रघु० १८७। अजेय, दुर्धर तं पुण्यं""""महः-उत्त० ५।२७ 2. न अजस्त्र (वि०) [ना+जस्+र न० त०] अविछिन्न, अन- जीता हुआ (देश आदि) अनियन्त्रित, अनिरुद्ध; वरत, लगातार रहने वाला;-दीक्षाप्रयतस्य--रघु० आत्मन, इन्द्रियम्-जिसने अपने मन या इन्द्रियों का ३।४४;-लं (अव्य.) सदा, अनवरत, लगातार- दमन नहीं किया है।-तः विष्णु, शिव, या बुद्ध । तच्च धूनोत्यजस्रम्-उत्त० ४।२६ । अजिनं [अज+इनच्] बाघ, सिंह या हाथी आदि, विशेषकर अजहत्स्वार्था [न जहत् स्वार्थोऽत्र-हा+-शत् न० ब०] काले हिरन की रोएँदार खाल जिसके आसन बनते है लक्षणा शक्ति का एक भेद जिसमें मुख्यार्थ पद-शन्यता या जो पहनने के काम आती है-अथाजिनाषाढघर:के कारण नष्ट नहीं होता; जैसे कुंताः प्रविशंति=कुंत कुमा०५।३०, ६७, कि० ११११५. 2. चमड़े का थैला धारिणः पुरुषाः, इसे उपादान लक्षणा भी कहते हैं। या धौंकनी। सम०-पत्रा,-पत्री,-पत्रिका चमगादड़, अजहल्लिगं [न जहत लिङ्गं यत्, हा+शत न० ब०] -योनिः हरिण, कृष्णसार मृग-वासिन् (वि.) मृगसंज्ञा शब्द जिसका लिंग नहीं बदलता चाहे वह चर्म पहनने वाला,-संधः मृगचर्म का व्यवसाय करने विशेषण की भांति ही क्यों न प्रयुक्त किया जाय वाला। उदा०-वेदः (अथवा) श्रुतिः प्रमाणम् (प्रमाणः अथवा अजिर (वि०) [अज्+किरन्] शीघ्रगामी, स्फूर्तिवान्; प्रमाणा नहीं)। -₹ 1. आंगन, अहाता, अखाड़ा; उटजाजिरप्रकीर्णअजा (स्त्री०) [ ना+जन्+ड+टाप् ] 1 (सांख्य | का० ३९; 2. शरीर 3. इन्द्रियगम्य पदार्थ 4. वाय, दर्शन के मतानुसार) प्रकृति या माया; 2 बकरी । हवा 5. मेंढक,-रा 1. एक नदी का नाम 2. दुर्गा का समालस्तनः बकरियों के गल में लटकने नाम । वाला थन; (आलं०) किसी वस्तु की निरर्थकता अजिह्म (वि.) [न० त०] 1. सीधा 2. सच्चा, खरा, सूचित करने में इसका उपयोग होता है। धर्मार्थ- ईमानदार;-गामिभिः-शि० ११६३, बेलाग और काममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते । स्तनस्येव तस्य खरा;-हम मेंढक । सम०-ग (वि०) सीधा चलने जन्म निरर्थकम् ।। -जीवः-पालक: गडरिया, दे० वाला,-व्रजेद्दिशमजिह्मग:-मनु० ६.३१-17ः तीर। अजजीव आदि। अजिह्वः न० ब०] मेंढक । अजाजि:--जी (स्त्री०) [अजेन आजः त्यागः यस्याम - | अजीकवं [अज्या शरक्षेपणेन कं ब्रह्माणं वाति प्रीणाति अज+आज+इन् ] सफेद या काला जीरा। वा---कशिव का धनुष । अजात (वि०) [न० त०] अनुत्पन्न--अजातमतमखेभ्यो अजीगतः [अज्यै गमनाय गतं यस्य-ब० स०] सांप। मृताजातौ सुतो वरम् --पंच० ९, जो अभी उत्पन्न अजीर्ण (वि.) [न० त०] न पचा हुआ, न सड़ा हुआ, न हुआ हो, पैदा न किया गया हो, अविकसित हो; | -णं अपच । ककुद्, पक्ष इत्यादि । सम० -अरि, ---शत्र अजीणिः (स्त्री०) नत्र +ज+क्तिन] 1 मन्दाग्नि(वि.) जिसका कोई शत्रु न हो, जो किसी का शत्र कैर-जीर्णभयाद् भ्रातर्भोजन परिहीयते-हि० २०५७ 2. न हो; (-रि:-9:) 'युधिष्ठिर' की उपाधियाँ-हंत __ बल, शक्ति, क्षय का अभाव । जातमजातारेः प्रथमेन त्वयारिणा --शिशु० २।१९२; | अजीव (वि.) [न.ब.] निर्जीव, जीव रहित;- [न. न द्वेक्षि यज्जनमतस्त्वमजातशत्रुः -वेणी. ३३१३, त०] सत्ता का अभाव, मृत्यु । शिव तथा दूसरे अनेक देवताओं की उपाधि | अजीवनिः (स्त्री०) [न+जी+अनि] मृत्यु, सत्ता का -ककुत् - (पुं०) थोड़ी उम्र का बैल जिसका कुब्ब अभाव (अभिशाप के रूप में प्रयुक्त)-अजीवनिस्ते अभी न निकला हो; -व्यंजन (वि०) जिसके दाढ़ी शठ भूयात्-सिद्धा०-अरे दुष्ट ! भगवान् तुम्हें मृत्यु दे, आदि अभिज्ञान चिह्न न हों; -व्यवहारः अवयस्क, भगवान् करे, तुम मर जाओ। नाबालिग जिसको अभी तक वयस्कता न मिली हो।। अज्मलं 1. ढाल 2. जलता हुआ कोयला। अजानिः (नास्ति जाया पस्य-जायाया निदेश:-न० ब०] / अझ (वि०) [न+जा+कन० त०] 1. न जानने वाला, जिसके स्त्रीन हो, पत्नीहीन, विषुर । ज्ञान रहित, अनुभवहीन-अझो भवति वै बाल:-मन अजानिकः [अजेन आनो जीवनं यस्य-ठन] गडरिया, बकरियों २।१५२ 2. अज्ञानी, अनसमझ, मूर्ख, मूढ, जड़ (मनुष्यों का व्यापारी। और पशुओं के विषय में भी कहा जाता है) अज्ञः For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखमाराध्यः-भर्तृ० २० 3. अजान, समझ की शक्ति । ञ्चिता सत्वरमुत्थितायाः ( रशना )-रघु० ७।१०, से हीन । अर्धगुंफित या पिरोया हुआ। सम०-भ्रूः धनुषाअज्ञात (वि.) [न० त०] न जाना हुआ,- अप्रत्याशित, कार या सुन्दर भौओं वाली स्त्री। अनजान-पातं सलिले ममज्ज-रघु० १६७२। सम० | अज (रुधा० पर० सक० अनिद) [कहीं कहीं-आत्मनेपद] -चर्या, बासः छिप कर रहना (पाण्डवों के विषय में- अनक्ति-अंक्ते, अक्त) 1. लेपना, सानना, रंग पोतना 'अज्ञातवास' प्रसिद्ध है)। 2. स्पष्ट करना, प्रस्तुत करना, चित्रण करना 3. अज्ञान (वि०) [न० ब०] अनजान, बेसमझ,-नं नि० जाना 4. चमकना 5. सम्मानित करना, समारंभ त०] 1. अनजानपना, 2. विशेष करके आध्यात्मिक करना 6. सजाना; प्रेर०-1 सानना, 2 बोलना, चमकना अज्ञान-अर्थात् अविद्या जिसके वशीभत हो कर मनुष्य उपसर्गों के साय, अधि--उपकरण जुटाना, सुसअपने आप को ब्रह्म से पथक समझता है तथा ज्जित करना; अभि-1. लीपना, सानना 2. कलषित भौतिक संसार की वास्तविकता को मानता है। सम- करना, मलिन करना, अभिवि-प्रकट करना, व्यक्त स्तपदों में 'अज्ञान' का अनुवाद 'अनजाने में' 'अनव- करना; आ- 1. लेप करना 2. सरल बनाना, तैयार धानता में' 'बेखबरी में किया जा सकता है। आच- करना, 3. सम्मानित करना, वि-प्रकट करना, व्यक्त रित, उच्चारित इत्यादि। करना, जाहिर करना-अकिञ्चनत्वं मखजं व्यक्तिअञ्च (म्वा० उभ० सक० वेट) [अञ्चति-ते, आनञ्च, रघु० ५।१६, शि० २६। अञ्चितं, अञ्च्यात-अंच्यात, अक्त-अञ्चित] 1. अञ्जनः [अज+ ल्युट (पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा झुकाना; शिरोऽञ्चित्वा--भट्टि० ९।४० 2. जाना, के) रक्षक हाथी,-नं 1 लीपना पोतना, मिलाना हिलना, झुकाव होना--स्वतन्त्रा कथमञ्चसि-भटि० 2. प्रकट करना, व्यक्त करना 3. काजल या सुरमा जो ४१२२, त्वं चेदञ्चसि लोभम-भामि० ११४६ लालायित आंखों में लगाया जाता है;-विलोचन दक्षिणमञ्जनेन होना 3. पूजा करना, सम्मान करना, आदर, करना, सम्भाव्य--रघु० ७८, असत° उत्त० ४।१९, मच्छ० सुशोभित करना, सम्मानित करना दे० आगे 'अञ्चित' १४३४; (आलं. भी) अज्ञानान्धस्य लोकस्य ज्ञानाञ्जन 4. प्रार्थना-करना, इच्छा करना, 5. बुड़बुड़ाना, अस्पष्ट शलाकया। चक्षरुन्मीलितं येन तस्मै पाणिनये नमः ।। बोलना । प्रेर० या चु० उम०-प्रकट करना, प्रकाशित शिक्षा० ४५, तु०)दारिद्रयं परमांजनम् 4. लेप सौंदर्यकरना,-मुदमञ्चय-गीत०१०। उपसर्गों के साथ वर्धक उबटन 5. मसी 6. आग 7. रात्रि 8. (-नं, -ना) प्रयोग, अप-दूर करना, हटाना, हटजाना; आ- (सा० शा०) व्यंग्यार्थ, व्यंग्यार्थ के प्रकट होने की झुकाना; उत्-1. ऊपर उठना 2. उन्नत होना, प्रकट प्रक्रिया, अनेकार्थक शब्द का प्रयोग जिसका प्रसंगतः होना; उदञ्चनमात्सर्य-० ल०६, उप्-खींचना, विशेष अर्थ होता है-अनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे (जल) ऊपर निकालना; नि-1. झुकाना, इच्छा करना नियन्त्रिते। संयोगाद्यैरवाच्यार्थधीकद्व्यापतिरञ्जनम् ।। 2. कम करना, अपेक्षा करना-न्यञ्चति वयसि प्रथमे- काव्य २, दे० 'व्यंजना' भी। सम-अंभस् ( नपुं० ) भामि० २।४७ परा-मोड़ना, मड़ना--याताश्चेन्न परा- आँख का पानी, शलाका सुरमा लगाने की सलाई। उचन्ति द्विरदानां रदा इव-भामि० १६५; परि-घुमाना, अञ्जना (अज+ल्युट-+-टाप् ) 1. उत्तर भारत की भंवर में डालना, मरोड़ना; वि-खींचना, नीचे को | हथिनी 2. हनुमान् या मारुति की माता । झुकना, फैलना, फैलाना; सम्-भीड़ करना, इकठे | अञ्जलि: [ अञ्ज + अलि 1 1 दोनों खले हाथों को हांकना, इकट्ठे झुकना। मिलाकर बनाया हुआ कटोरा, करसंपुट, अंजलिभर अञ्चल:-लं [ अञ्च+अलच् ] 1 वस्त्र का छोर या वस्तु-सुपूरो मषिकाञ्जलि:- पंच० ०२५, प्रकीर्णः किनारा, गोट या झालर---क्षीणाञ्चलमिव पीनस्तन पुष्पाणां हरिचरणयोरञ्जलिरयम-वेणी० १११, अंजलिजघनायाः-उद्भट, 2. कोना या आँख का बाहरी भर फल; इसी प्रकार-जलस्यांजलयो दश---या० कोण-दगञ्चल: पश्यति केवलं मनाक-उद्भट । ३।१०५, दस अंजलियां अर्थात जल से तर्पण ;-श्रवणाअञ्चित (भू० क० कृ०) [अंच्+क्त) 1 (क) मुड़ा हुआ, जलिपुटपेयम्-वेणी०११४; अंजलि रच,-बंध,-कृया झुका हुआ, रघु० १८१५८; (ख) धनुषाकार, सुन्दर -आषां, हाथ जोड़कर नमस्कार करना 2. अत एव (जैसे कि भौह); ०अक्षिपक्ष्मन् रघु० ५।७६; छल्ले- सम्मान या नमस्कार का चिह्न, रघु० १११७८; 3 दार, घंघराले (जैसे कि बाल); 2. सम्मानित, अलंकृत, अनाज की माप- कुडव । सम-कर्मन् ( नपुं०) सुशोभित, शोभायमान, सुन्दर; गतेषु लीलाञ्चित- हाथ जोड़ना, आदरयुत नमस्कार;-कारिका मिट्टी विक्रमेषु-कु० १।३४, ताभ्यां गताम्याम्-रघु २।१८, की गुडिया, पुट:-दं दोनों खुले हाथों को जोड़ने से बने ९।२४, 3. सिला हुला, बुना हुआ, व्यवस्थित-अर्धा | कटोरे के आकार का गर्त, हाथ की खुली हथेलियाँ। For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जलिका [अञ्जलिरिव कायते प्रकाशते के+क+टाप्] ] अट्टकः [अट्ट+अच् स्वार्थे कन्+टाप्] चौबारा, महल । एक छोटा चूहा। अट्टाल:-अट्टालकः [अट्ट इव अलति-अल-|-अच् स्वार्थ कन्] अञ्जस ( वि०) [स्त्रियाम्-अञ्जसी, अञ्ज+असच् ] अ- | अटारी, बालाखाना, चौबारा, महल । कुटिल, सीधा, ईमानदार, खरा । अट्टालिका [अट्टाल+स्वार्थ कन्] महल, उत्तुंग भवन । अञ्जसा ( अव्य० ) 1. सीधी तरह से 2, यथावत्, उचित सम-कारः राज, चिनाई करने वाला, (राजमहलों रूप से, ठीक तरह से-विद्महे शठ पलायनच्छलान्य- का निर्माता)। जसा-रघु० १९॥३१ 3. शीघ्र, जल्दी, तुरन्त । अड्डनं [अड्ड+ ल्युट्] ढाल । अजिष्ठ:-हणुः [अंज् + इष्ठ्च, इष्णुच् वा ] सूर्य। अण (भ्वा० पर०) 1. शब्द करना 2. (दिवा० आ०) सांस अजीरः-रं [अङ्ग्+ईरन् ] अंजीर वृक्ष की जातियाँ लेना, जीना ('अन्' के स्थान पर)। ओर उसके फल ।। अण (न) क (वि.) [अण्-अच् कुत्सायां कप् च] बहुत अट् ( म्वा० पर० अक० सेट्, आ. विरल) [ अटति, छोटा, तुच्छ, नगण्य, अधम इत्यादि, समास में-'ह्रास' अटित | इधर उधर घूमना ( अधि० के साथ ); और 'हीनावस्था' अर्थ को प्रकट करता है, कुलाल:-- (कई बार कर्म के साथ), भो बटो भिक्षामट- सिद्धा० हेय कुम्हार । सिद्धा० "भिक्षा मांगने आओ'- आट नैकटिकाश्रमान्- अणिः (स्त्री०-अणी) [अण्+इन ङीष बा] 1. सूई की भटि० ४।१२; (यङन्त ) अटाट्यते, स्वभावत: नोक 2. धुरे की कील, कील या काबला जो गाड़ी के इधर उधर घूमना जैसे कि कोई साधु संत घूमता बांक को रोकने के लिए लगाया जाय 3. सीमा। अणिमन् (पुं०) अणुता, अणुत्वं [अणु+इमनिन्, अट ( वि० ) [ अट्+अङ् ] धूमने वाला; ( समास अणु+ता, अणु+त्व] 1. सूक्ष्मता, 2. आणव प्रयोग)। प्रकृति 3. आठ सिद्धियों में से एक दैवीशक्ति जिसके अटनं [ अट् + ल्युट् ] घूमना, भ्रमण करना-भिक्षा", | बल से मनुष्य 'अणु' जैसा छोटा बन सकता है। रात्रि आदि । | अणु (वि.) (स्त्री०-णु-बी) [अण्+उन्] सूक्ष्म, बारीक, अटनि:-नी ( स्त्री०) [ अट्+अनि, डीप वा ] धनुष का नन्हा, लघु, परमाणु-संबंधी-अणोरणीयान्-भग० खांचेदार सिरा, निन्यतुः स्थलनिवेशिताटनी लीलयैव ८९;-णुः 1. अणु-अणुं पर्वतीकृत-भर्त० 2. ७८, धनुषी अधिज्यताम्-रघु० ११।१४।। बढ़ा देना-तु० "तिल का ताड़" से 2. समय का अंश अटा [ अट् | अड+टाप ] साधु संतों की भांति इधर 3. शिव का नाम। सम०-भा बिजली,-रेणु आणव उधर घूमने की आदत, इसी प्रकार अट्या, घल, वादः अणु-सिद्धान्त, अणुवाद । अटाट्या। अणुक (वि.) [स्वार्थे कन्] 1. अतितुच्छ, अत्यन्त ह्रस्व, अटर (1) षः [अट रुष्+क] अडूसा, वासक का पौधा । | 2. सूक्ष्म, अत्यंत बारीक 3. तीक्षण । अटविः-वी ( स्त्री० ) [अट्+अवि ङीष् वा बन, जंगल | अणीयस, अणिष्ठ (वि०) (अण+ईयसून, अण+ इष्ठन] -आहिंडयते अटव्या अटवीम् -श०२ । तुच्छतर, तुच्छतम, अत्यंत तुच्छ; अणोरणीयांसम्अटविकः [ भटवि-ठन् ] बन में काम करने वाला, दे० भग०८।९। 'आटविकः' । अण्ड:-डं: [अम् +ड] 1. अण्डकोष 2. फोता, 3. अंडा-ब्रह्मा अट्ट (म्वा० आ०) 1. वध करना 2. अतिक्रमण करना, के बीजभूत अंडे से उत्पन्न होने के कारण संसार' परे जाना (आलं० रूप से भी)-प्रेर०-1. घटाना, भी बहुधा 'ब्रह्मांड' कहलाता है 4. मगनाभि कम करना 2. घृणा करना, तिरस्कृत करना। या कस्तूरीकोष 5. वीर्य, 6. शिव । सम०-आकर्षणं अट्ट (वि०) [अट्ट +अच्] 1. ऊंचा, उच्चस्वरयुक्त 2. बार- बधिया करना, -आकार, --आकृति (वि०) अंडे के बार होनेवाला, लगातार आने वाला 3. शुष्क, सूखा आकार का, अंडाकार, अंडवृत्ताकार, (-र:-तिः) -ट्टः [अट्ट +घञ्] 1. अटारी 2. कंगूरा, मीनार, अंडवृत्त-कोश(ष):-कोषक: फोते, ज (वि.) अंडे से बुर्ज-नरेन्द्रमार्गाट्ट इव-रघु० ६।६७ 3. हाट, मंडी उत्पन्न, (-जः) 1. पक्षी, पंखदार जन्तु कु. ३१४२ 4. महल, विशाल भवन,-टें भोजन, भात, अट्ट- 2. मछली 3. सांप 4. छिपकली 5. ब्रह्मा, (-जा) शूला जनपदा:-महा० (अट्टम् अन्नम् शूलं विक्रेयं येषां कस्तूरी,-घरः शिव का नाम,-वर्धन, वृद्धिः (स्त्री०) ते-नीलकंठ)। सम०-अट्टहासः ठहाका,-हास:-हसितं, फोतों का बढ़ जाना,-सू (वि.) पंखदार जन्तु । -हास्यं जोर की हंसी या ठहाका, शिव का अट्टहास अण्डक: [अण्ड-स्वार्थे कन्] फोता,-कं छोटा अंडा-जगदंड-त्र्यंबकस्य--मेघ० ५८;-हासिन् (पुं०) 1.शिव, 2. । कैकतरखंडमिव-शि० ९।९। ठहाका लगाकर हंसने वाला। | अण्डालः [अण्ड+आलुच्] मछली। For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्बीरः [अण्ड+ईरच्] पूर्ण विकसित पुरुष, बलवान् । निमित्तं इस कारण, फलतः, इस कारण से; एव हृष्टपुष्ट पुरुष। ( अव्य० ) इस ही लिए-ऊर्य अब से लेकर, इसके अत् (म्बा० पर० अक० वेट्) [अतति, अत्त-अतित] 1. बाद; परं ( क ) इसके आगे, और फिर, (अपा० के जाना, चलना, घूमना, लगातार चलते रहना 2. प्राप्त- साथ) इसके पश्चात् ( ख ) इसके परे, इससे आगे; करना (बहुधा वै०) 3. बांधना। भाग्यायत्तमतः परम्-श० ४।१६। । अतट (वि०)[न० ब०] तटरहित, खड़ी ढाल वाला,-ट: अतसः [ अत+अस] 1. हवा, वायु 2. आत्मा 3. अतसी चट्टान, ढलवा चट्टान। के रेशों से बना हुआ कपड़ा ( यह शब्द बहुधा नपुं० अतथा (अव्य०) [न +तत्+था] ऐसा नहीं, उचित होता है)। (वि०) अनधिकारी, अनभ्यस्त। अतसी [अत्+असिच् डीप्] 1. सन 2. पटसन 3. अलसी । अतबर्हम् (अव्य०) [ना+तदहम् न० त०] अनुचित रूप अति ( अव्य) अत+इ] 1. विशेषण और क्रियासे, अनधिकृत रूप से। विशेषणों से पूर्व प्रयुक्त होने वाला उपसर्ग-बहुत, अतद्गुणः (सा. शा०) 'अतग्राही', एक अलंकार का अधिक, अतिशय, अत्यधिक उत्कर्ष को भी यह शब्द नाम जिसमें कि प्रतिपाद्य पदार्थ-कारण के विद्यमान प्रकट करता है, मातिदरे अत्यविक दूर नहीं; क्रिया रहते हुए भी दूसरे के गुण को ग्रहण नहीं करता- और कृदन्त रूपों से पूर्व भी प्रयुक्त होता है-स्वभावो काव्य०१०। ह्यतिरिच्यते आदि 2. (क्रियाओं के साथ ) ऊपर, अतन्त्र (वि.) [स्त्री० -त्री] [न० ब०] 1. बिना डोरी परे; अति-इ-परे जाना, इसी प्रकार क्रम, °चर का, या बिना संगीत के तार का 2. बिना लगाम का और वह आदि, ऐसे अवसरों पर 'अति' उपसर्ग समझा 3. विचारणीय नियम की कोटि से बाहर की वस्तु जो जाता है। 3. ( क) ( संज्ञा व सर्वनामों के साथ ) अनिवार्य रूप से बंधन की कोटि में न हो-ह्रस्व- परे, पार करते हुए, श्रेष्ठतर, प्रमुख, पूज्य, उच्चतर, ग्रहणमतंत्रम्-सिद्धा. 4. सूत्ररहित या अनुभव सिद्ध ऊपर, कर्मप्रवचनीय के रूप में द्वितीया विभक्ति के क्रिया। साथ; या बहुब्रीहि के प्रथम पद के रूप में, अथवा अतन्त्र-अतन्द्रित-अतन्द्रिन्-अतनिल-(वि.) [नास्ति तन्द्रा तत्पुरुष समास में सामान्यतः उच्चता और प्रमुखता के यस्य-न० ब०, न तन्द्रितः न० त०,न० त०] सावधान, अर्थ को प्रकट करता है; अतिगो, गार्यः-प्रशस्ता अम्लान, सतर्क, जागरूक; अतंद्विता सा स्वयमेव वृक्ष- गौः, शोभनो गार्यः, राजन् -बढ़िया राजा; अथवा कान्-कु० ५।१४, रघु० १७१३९ । द्वितीय पद के साथ लग कर इसका अर्थ-'अतिक्रांत' अतपस-अतपस्क वि० [न० ब० ] धार्मिक तपश्चर्या की होता है, परन्तु इस अवस्था में द्वितीय पद में दूसरी अवहेलना करने वाला। विभक्ति होती है, अतिमर्यः मर्त्यमतिक्रान्तः, °माल: अतर्क (वि.) [न० ब०] तर्कहीन, युक्तिरहित,-कः [न. -अतिक्रान्तो मालाम्, इसी प्रकार अतिकाय, दे० त०] 1. युक्ति या तर्क का अभाव, बुरा तर्क °केशर अति देवान् कृष्ण:-सिद्धा० ( ख ) ( कृदन्त 2. तर्कहीन बहस करने वाला। शब्दों से पूर्व ) अतिरंजित, अत्यधिक, अतिमात्र, उदा० अकित (वि.)[न० त०] न सोचा हुआ, अप्रत्या आवरः-अत्यधिक आदर, आशा=अतिरंजित आशा, शित,-तं (कि० वि०) अप्रत्याशित रूप से । सम० इसी प्रकार भयम्, तृष्णा, आनन्दः इत्यादि (ग) -आगत,-उपनत ( वि०) अप्रत्याशित रूप से होने अयोग्य, अनुचित, असंप्रति ( अयुक्तता ) तथा क्षेप वाला, अकस्मात् होने वाला-°उपपन्न दर्शनम- (निन्दा ) के अर्थ में, यथा-अतिनिद्रम =निद्रा संप्रति कु०६।५४ । न युज्यते- सिद्धा। अतल (वि.) [नः ब.] तल रहित,लं [न० त०] अतिकया 1. अतिरंजित कहानी 2. निरर्थक भाषण। पाताल,-लः शिव। सम०-स्पृश्,-स्पर्श (वि०) तल अतिकर्षणं [ अति+कृष् + ल्युट् ] बहुत अधिक परिश्रम, रहित, बहुत गहरा, अथाह । अत्यधिक मेहनत । अतस् ( अव्य०) [ इदम्+तसिल ] 1. इसकी अपेक्षा, अतिकश (वि०)[ अतिक्रान्तः कशाम्-अ०स०] कोड़े को न इससे ( बहुधा तुलनात्मक अर्थ वाला ) किमु परमतो मानने वाला, घोड़े की भांति वश में न आने वाला। नर्तयसि माम्-भर्तृ० ३, ६. 2. इस या उस कारण | अतिकाय ( वि०) [ अत्युत्कट: कायो यस्य-ब० स०] से, फलतः, सो, इस लिए ( 'यत्' 'यस्मात्' और 'हि' भारी डील डौल वाला, विशालकाय । का सहसंबंधी-अभिहित या अध्याहृत ) रघु० २।४३, | अतिकच्छ ( वि० ) [ अत्युत्कट: कृच्छ:-प्रा० स० ] अति ३।५०; कु० २१५. 3. यहाँ से, अब से या इस स्थान कठिन, -सछ बहुत बड़ा कष्ट; १२ रात्रियों तक से; (-परम्,-ऊर्ध्वम् ) इसके पश्चात् । सम०-अर्थ,- कठिन तपस्या करने का व्रत; मनु० १११२१३-४ । For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिक्रमः [ अति+ऋम्+घा ] 1. सीमा या मर्यादा | अतिचारः अति+चर+घा] 1. मर्यादा का उल्लंघन, का उल्लंघन, हद से आगे बढ़ना 2. कर्तव्य या 2. आगे बढ़ जाना 3. अतिक्रमण 4. ग्रहों की त्वरित औचित्य का भंग, उल्लंघन, मर्यादा का अतिक्रमण, अवैध गति, ग्रहों का एक राशि पर भोगफल समाप्त हुए प्रवेश, अवज्ञा, चोट, विरोध, ब्राह्मण त्यागो भवता- | बिना दूसरी राशि पर चले जाना। मेव भूतये-महावीर० २।१०, 3. बीतना (समय का)। अतिच्छत्रः, अतिच्छत्रा, अतिच्छत्रका [अतिक्रान्तः छत्रम् गुजरना-अनेकसंवत्सरातिक्रमऽपि--उत्त० ४, 4. प्रा० स०] कुकुरमुत्ता, खुंब; सोया, सौंफ का पौधा । जीत लेना, बढ़ जाता (बहुधा 'दुर' के साथ)- | अतिजन (वि०) [अतिक्रान्तो जनम्] अनुषित, जो आबाद स्वजातिkरतिक्रमा 5. उपेक्षा, भूल, अप्रतिष्ठा 6. भारी न हो। आक्रमण 7. आधिक्य 8. दुरुपयोग 9. दुर्व्यवहार । अतिजात (वि.) [अतिक्रान्तः जातं-जाति जनकं वा] पिता अतिक्रमणं अति | कम् + ल्युट] आगे बढ़ जाना, समय का से बढ़ा हुआ। बीतना, आधिक्य, दोष, अपराध । अतिडीनं [अति+डीङ्+क्त] (पक्षियों की) असाधारण अतिक्रमणीय ( वि०) [ अति क्रम्-+अनीयर | मर्यादा उड़ान । भंग करने के योग्य, उपेक्षा करने के योग्य अथवा | अतितराम्-अतितमाम् (अव्य०) [अति + तरप् (तमप)+ उल्लंघन करने के योग्य यं मे सुहृद्वाक्यम्-श० २, आम्] अधिक, उच्चतर (अपा० के साथ) 2. अत्य धिक, अत्यंत, बहुत अधिक, बहुत । अतिक्रान्त (वि०) [ अति+क्रम्-|-क्त ] आगे बढ़ा हुआ, अतितृष्णा [तृष्णामतिक्रम्य-प्रा० सं०] गृध्नुता, अत्यधिक आगं गया हुआ, परे पहुंचा हुआ आदि-सोऽतिक्रान्तःलालच या लालसा, "ष्णा न कर्तव्या-पंच०५-अत्यश्रवणविषयं-मेघ० १०३, बीता हुआ, गया हुआ, धिक लालच नहीं करना चाहिए। पहला, (--) अतीत विषय, अतीत की बात, अतीत । अतिथिः [अतति गच्छति, न तिष्ठति-अत्+इथिन मनु अतिखट्व (वि० ) [ अतिक्रान्तः खट्वाम्-प्रा० स०] के अनुसार 'यात्री' का शब्दार्थ-एकरात्रं तु निवसन्न चारपाई रहित, चारपाई के बिना काम चलाने वाला।। तिथिाह्मणः स्मृतः । अनित्यं हि स्थितो यस्मात्तस्मादअतिग ( वि० ) [ अति+गम् । ड] (समास में ) बढ़ने तिथिरुच्यते । मनु० ३।१०२, अभ्यागत (आलं. भी) वाला, बढ़चढ़कर काम करने वाला, सर्वोत्कृष्ट रहने अतिथिनेव निवेदितम्-श० ४, कुसुमलताप्रियातिथेवाला सर्वलोक मुद्रा० ११२, किमौषधपथातिगैरुपहतो श० ६-प्रिय अथवा स्वागत के योग्य अभ्यागत । महाव्याधिभिः-मुद्रा० ६, औषधियों के प्रभाव को। समः-क्रिया,-पूजा,-सत्कारः,-सत्क्रिया,-सेवा अभ्याअनादृत करने वाले रोगों के द्वारा। गतों का सत्कारयुक्त स्वागत, आतिथ्यक्रिया, अभ्यागतों अतिगन्ध (वि.) [ अतिशयितो गन्धो यस्य-ब. स.] की सेवा,-धर्मः आतिथ्य करने का अधिकार, अत्यन्त तीक्ष्ण गंध वाला, -ध: गंधक। अभ्यागतों का सत्कार। अतिगव (वि०) [गामतिक्रान्तः प्रा० स०] 1. अत्यंत मुर्ख, अतिदानं अति+दा + ल्युट बहत अधिक दान, अत्यधिक बिल्कुल जड 2. वर्णनातीत । उदारता,-अतिदाने बलिर्बद्धः-चाण० ५०। अतिगुण (वि०) [गुणमतिक्रान्त: प्रा० स०] 1. बढ़े चढ़े अतिदेशः अति+दिश् +घञ्] 1. हस्तान्तरण, समगुणों वाला, 2. गुणरहित, निकम्मा, -णः अत्यंत अच्छे पण, सुपुर्द करना 2. (व्या०) अन्यत्र लागू होने वाली गण। प्रक्रिया, सादृश्य के कारण प्रक्रिया, एक वस्तु के धर्म अतिगो (स्त्री०) [गामतिक्रम्य तिष्ठति अत्यंत बढ़िया गाय । का दूसरी वस्तु पर आरोपण-अतिदेशो नाम इतरअतिग्रह (वि.) [ग्रहम् अतिक्रान्त:-प्रा०स०] दुर्बोध,-हः, धर्मस्य इतरस्मिन् प्रयोगाय आदेशः (मीमांसा), या, -प्राहः 1 ज्ञानेन्द्रियों के विषय-जैसे त्वचा का स्पर्श अन्यत्रैव प्रणीतायाः कृत्स्नाया धर्मसंहतेः । अन्यत्र कार्यतः जिह्वा का रस आदि, 2. सत्य ज्ञान 3. आगे बढ़ जाना, प्राप्तिरतिदेशः स उच्यते। “गोसदशो गवयः" यह दूसरों को पीछे छोड़ देना-आदि। रूपातिदेश या सादृश्य का निदर्शन है। अतिचमू (वि.) [चम्मतिक्रान्तः-प्रा० स०] सेनाओं के | अतिद्वय (वि.) [द्वयमतिक्रान्त:-प्रा० स०] दोनों से बढ़ा ऊपर विजय प्राप्त करने वाला। हुआ, अद्वितीय, अनुपम, अतुलनीय, बेजोड़-धिया अतिचर (वि०) [अति- चर अच] बहुत परिवर्तनशील, निबद्धेयमतिद्वयी कथा-का० ५-दोनों (वृहत्कथा और क्षणभंगुर, -रा कमलिनी का पौधा, पद्मिनी, स्थल- __ वासवदत्ता) से बढ़ी हुई। पद्मिनी, पद्मचारिणी लता।। अतिधन्वन् (पु०) [अत्युत्कृष्टं धनुर्यस्य] अप्रतिद्वन्द्वी धनुर्धर अतिचरणं [अति+चर+ ल्युट अत्यधिक अभ्यास, शक्ति । या योद्धा। से अधिक करना। | अतिनिद्र (वि.) [निद्रामतिक्रान्त:-प्रा० स०] 1. बहुत सोने For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १८ वाला, 2. निद्रा से वंचित, निद्रारहित, - निद्रा के समय से परे -प्रा बहुत अधिक सोना । अति-अतिनौ (वि० ) [ अतिक्रान्तः नावम् - प्रा० स०] नाव से उतरा हुआ, नाव से भूमि पर आया हुआ । अतिपचा [पञ्चवर्षमतिक्रान्ता प्रा० स०] पांच वर्ष से अधिक अवस्था की लड़की । अतिपतनं [अति + त् + ल्युट् ] उड़कर आगे निकल जाना, भूल, उपेक्षा, अतिक्रमण, अत्यधिक सीमा से बाहर जाना । अतिपत्तिः [ अति + पत् + क्तिन्] 1 सीमा से परे जाना, समय का बीतना, 2. कार्य का पूरा न होना, असफलता । अतिपत्रः [ अतिरिक्तं बृहत् पत्रं यस्य - ब० स०] सागौन का वृक्ष । अतिथिन् (पुं० ) [ पन्थानमतिक्रान्तः प्रा० स०] सामान्य सड़कों की अपेक्षा अच्छा मार्ग, सन्मार्ग । अतिपर ( वि० ) [ अतिक्रान्तः परान् प्रा० स०] जिसने अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया है, -रः वह शत्रु जो शक्ति में बढ़ा चढ़ा हो। अतिपरिचयः [ प्रा० स०] अत्यधिक जान पहचान या घनिष्टता किंवo - अतिपरिचयादवज्ञा - ( अतिपरिचय से होत है अरुचि अनादर भाय ) । अतिपात: [ अति + पत्+घञ्ञ] 1. ( समय का ) बीत जाना 2. उपेक्षा, भूल, अतिक्रमण न चेदन्यकार्यातिपातः श० १: (यदि इस प्रकार दूसरे कर्तव्य की उपेक्षा न की गई), सर्वसम्मत नियम या प्रथाओं का उल्लंघन, 3. आ पड़ना, घटना 4. दुर्व्यवहार या दुष्प्रयोग 5. विरोध, वैपरीत्य । अतिपातकः [ अतिपात - स्वार्थे कन् ] बड़ा जघन्य पाप, व्यभिचार । मतिपातिन् (वि० ) [ अति + पत् + णिच् + णिनि ] गति में आगे बढ़ जाने वाला, क्षिप्रतर ( समास में ) रघु० ३ । ३० । अतिपात्य ( वि० ) [ अति + पत् + णिच् + यत् ] विलंबित या स्थगित करने योग्य काममनतिपात्यं धर्मकार्य देवस्य - श ५ अतिप्रबंध: [ अतिशयितः प्रबन्धः - प्रा० स०] अत्यंत सातत्य, बिरुकुल लगा होना; प्रहितास्त्र वृष्टिभिः- रघु० ३।८। अतिप्रगे ( अव्य० ) [ अति + प्र + + के ] प्रभात में बहुत तड़के, प्रभात काल में - मनु० ४।६२ । अतिप्रश्नः [ अति प्रच्छु + नऊ ] इन्द्रियातीत सत्यता के विषय में प्रश्न, तंग करने वाला तर्कहीन प्रश्न - उदा० बृहदारण्यक उपनिषद् में वालाकि का याज्ञवल्क्य के प्रति ब्रह्म विषयक प्रश्न । अतिप्रसङ्गः, अतिप्रसक्तिः (स्त्री० ) [ अति + प्र+संज्+ वा क्तिन् वा ] 1. अत्यधिक लगाव, 2. घृष्टता ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3. किसी ( व्या० ) नियम का व्यर्थं अधिक विस्तार अर्थात् अतिव्याप्ति 4. बहुत घना संपर्क 5. प्रपञ्च, अलमतिप्रसंगेन - मुद्रा ० १ । अतिबल ( वि० ) [ ब० स०] बहुत बलवान् या शक्ति शाली, -ल: अग्रगण्य या बेजोड़ योद्धा) – लं बड़ा बल, भारी शक्ति - ला एक शक्ति शाली मंत्र या विद्या जिसे विश्वामित्र ने राम को सिखाया । अतिबाला [ अतिक्रान्ता वालां बाल्यावस्थाम् - प्रा० स०] दो वर्ष की अवस्था की गाय । अतिभ (भा) रः [ प्रा० स०] अत्यधिक बोझ, भारी वजन; सा मुक्त कंठं व्यसनातिभारात् चक्रन्द - रघु० १४।६८ अत्यधिक रंज के कारण। सम०-गः खच्चर । अतिभवः [ अति + भू० + णिच् + अच् ] उत्कृष्टता । अतिभीः (स्त्री० ) [ अति + भी + क्विप् ] बिजली, इन्द्र के वज्र की कौंध । अतिभूमिः (स्त्री० ) [ प्रा० स०] 1 आधिक्य, पराकाष्ठा, उच्चतम स्वर, मि गम्, या, आधिक्य या पराकाष्ठा तक पहुंचना --तत्र सर्वलोकस्य मिंगतः प्रवाद:-- माल०७, दूर तक प्रसिद्ध - शि० ९७८, १०/८० 2 साहसिकता, अनौचित्य, औचित्य की सीमाओं का उल्लंघन करना - शि० ८ २०, 3 प्रमुखता, उत्कृष्टता । अतिमतिः ( स्त्री० ) -- मानः [ प्रा० स०] अहंकार, बहुत अधिक घमंड, अतिमाने च कौरवाः -- चाण० ५० । अतिमर्त्य मानुष (वि०) अतिमानव । अतिमात्र ( वि० ) [ अतिक्रान्तो मात्राम् - प्रा० स० ] मात्रा से अधिक, अत्यधिक, अतिशय - सुदुःसहानि - श० ४१३, जिसका बिल्कुल समर्थन न किया जा सके, - मुनिवतैस्त्वामतिमात्रकशिताम् - कु० ५।४८, -- मात्रश: ( अव्य०) मात्रा से अधिक, अतिशय, अत्यधिक । अतिमाय (वि० ) [ अतिक्रान्तो मायाम् प्रा० स०] पूर्णतः मुक्त, सांसारिक माया से मुक्त । अतिमुक्त (वि० ) [ अतिशयेन मुक्तः -- प्रा० स०] 1 पूर्ण रूप से मुक्त 2 बंजर 3 मोतियों (की माला ) से बढ़ कर, क्तः, -- तक: एक प्रकार की लता ( माधवी ) जो आम की प्रिया के रूप में आम के वृक्ष पर लिपटी रहती है। अतिमुक्तिः (स्त्री० ) अतिमोक्षः [ प्रा० स० ] ( मृत्यु से ) बिल्कुल छुटकारा । अतिरंहस् (वि० ) [ अतिशयितं रंहो यस्मिन् - ब० स० ] बहुत फुर्तीला या क्षिप्रतर- सारंगेणातिरंहसा श० १।५ । अतिरथः [ अतिक्रान्तोरथम् प्रा० स०] एक अद्वितीय योद्धा जो अपने रथ में बैठा हुआ ही युद्ध करता है ( अमितान्योधयेद्यस्तु संप्रोक्तोऽतिरथस्तु सः) । For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिरभसः [प्रा० स०] बड़ी चाल, द्रुत गमन, हड़बड़ी।। अतिवेल (वि.) [अतिक्रान्तो वेलां मर्यादा कुलं वा-प्रा. अतिराजन् (पुं०) [प्रा० स०] 1 असाधारण या उत्कृष्ट । स०] अत्यधिक, फालतु, सीमारहित,-सं (क्रि० वि०) राजा 2 राजा से बढ़-चढ़ कर । 1 अत्यधिकता से, 2 बिना ऋतु के, बिना मौसम के। अतिरात्रः[प्रा० स०] 1ज्योतिष्टोम यज्ञ का एक ऐच्छिक | अतिव्याप्तिः (स्त्री०) [ अति-वि+आप+क्तिन् ] 1 किसी भाग 2 रात्रि का मध्य भाग। नियम या सिद्धात का अनुचित विस्तार 2 प्रतिज्ञा में अतिरिक्त (वि०) [अति+रिच+क्त ] 1 आगे बढ़ा हुआ अनभिप्रेत वस्तु का मिला लेना, 3 लक्षण में लक्ष्य के __2 फालतू 3 अत्यधिक 4 अद्वितीय, उत्तुंग। अतिरिक्त अन्य अनभिप्रत वस्तु का भी आ जाना, अति (ती) रेकः [अति+रिच+घञ्] 1 आधिक्य, अति- (न्याय में) जिसके फलस्वरूप वह वस्तुएँ भी सम्मि शयता, महत्ता, गौरव 2 समधिकता, अधिशेष, लित हो जायें जो लक्षण के अनुसार नहीं आनी चाहिए, बाहुल्य 3 अन्तर। लक्षण के तीन दोषों में से एक। अतिरुच् (पुं०)[अति +रुच् + विवप्] 1 घुटना, (स्त्री०-क) | अतिशयः [ अति+शी+अच् ] 1 आधिक्य, प्रमुखता, एक अत्यन्त सुन्दरी स्त्री। उत्कृष्टता; वीर्य रघु० ३१६२, तस्मिन् विषानाअतिरो (लो) मश (वि०) [ अति+रो (लो) मन्+श ] तिशये विधातुः-रघु०६।११; 2 श्रेष्ठता (गुण, पद बहुत बालों वाला, बहुत रोम वाला,-शः 1 एक और परिमाण आदि की दृष्टि से); समास में प्रायः जंगली बकरा 2 बड़ा बन्दर। विशेषणों के साथ प्रयुक्त होने पर "अधिकता के अतिलंघनं [अति+लंघ+ ल्युट्] 1. अत्यधिक उपवास साथ" अर्थ होता है-आसीदतिशयप्रेक्ष्य:---रघु०१७॥ रखना 2. अतिक्रमण । २५, (वि०) श्रेष्ठ, प्रमुख, अत्यधिक, बहुत बड़ा, अतिलंधिन् (वि.) [अति+लंघ+णिनि गलतियां या बहुल। सम-उक्तिः (स्त्री०) 1 बढ़ाकर या अतिभूलें करने वाला। शयोक्तिपूर्ण ढंग से कहे हुए वचन, अतिरंजना 2 अतिवयस् (वि०) [अतिशयितं वयः यस्य-व० स०] बहुत अलंकार जिसके सा० द. कार ने ५ भेद तथा काव्य बूढा, वृद्ध, अधिक आयु का। प्रकाशकार ने ४ भेद माने हैं। अतिवर्णाश्रमिन् (पुं०) [प्रा० स०] जो वर्ण और आश्रमों | अतिशयन (वि.) [ अति+शी+ल्युट् ] आगे बढ़ने वाला की मर्यादा से परे हो। (समास में), बड़ा, प्रमुख, बहुल-नं आधिक्य, बहुतायत, अतिवर्तन [अति+वृत्+ल्युट] क्षम्य अपराध, सामान्य बहुलता। ___ अपराध, दण्ड से मुक्ति-इस प्रकार के दस अपराधों | अतिशयाल (वि.) [अति +शी+आलुच ] आगे बढ़ जाने का वर्णन मन ने किया है-मनु० ८।२९० । या बढ़-चढ़ कर रहने की प्रवृत्ति वाला। अतिवतिन् (वि०) पार करने वाला, दूसरों से आगे निकलने अतिशयिन् (वि.) [ अति+शी+णिनि ] 1 श्रेष्ठ, बढ़िया, वाला, आगे बढ़ने वाला, अतिक्रमण करने वाला, प्रमुख-इदमुत्तममतिशयिनि व्यंग्ये वाच्याद ध्वनिर्बधैः उल्लंघन करने वाला। कथितः--काव्य० १, विक्रम० ५।२१, 2 अत्यषिक, अतिवादः [अति+व+घा] अतिकठोर, गाली और | सीलपट 1 उत्कृष्टता, श्रेष्ठता । स्तितिक्षेत-मनु० ६।४७ ।। अतिशायिन (वि.) [अति+शी+णिनि ] आगे रहने वाला, अतिवादिन् [अति+व+णिनि] बहुत बोलनेवाला, आगे बढ़ जाने वाला 2 अत्यधिक । वाग्मी। अतिशेषः [अति+शिष् +अच् ] अवशिष्ट भाग, बचा अतिवाहनं [अति+-वह +णिच+ ल्युट] 1. बिताना, यापन हुआ भाग (जैसे कि समय का), कुछ अवशेष । 2. बहुत अधिक परिश्रम करना या बहुत बोझा उठाना | अतिश्रेयसिः [ श्रेयसीमतिकान्त:--प्रा. स.] सर्वोत्तम 3. प्रेषण, भेजना, छुटकारा पाना। स्त्री से श्रेष्ठ पुरुष । अतिविकट (वि.) [प्रा० स०] भीषण–ट: दुष्ट हाथी। अतिश्व (वि.) [ श्वानमतिक्रान्त:-प्रा० स०] 1 बल में अतिविषा [प्रा० स०] अतीस नामक विषली औषधि का कुत्ते से बढ़ा हुआ (जैसे कि सूबर) 2 कुत्ते से भी गया पौधा। बीता; ---श्वा सेवा। अतिविस्तरः [प्रा० स०]बहुत अधिक फैलाव, व्यापकता। अतिसक्तिः (स्त्री०) [ अति+ष+क्तिन् । घनिष्ठ संपर्क अतिवृत्तिः (स्त्री०) [अति+वृत् + क्तिन्] आगे बढ़ जाना, या सान्निध्य, भारी आसक्ति । अतिक्रमण, अतिरंजना। अतिसंघानं [ अति+सं+था+ल्युट ] छल करना, अतिवृष्टिः (स्त्री०) [अति+वृष् +क्तिन्] अत्यधिक या भारी घोखा देना,-परातिसंघान श० ५।२५, चालाकी, वर्षा, ऋतु विषयक ६ विपत्तियों में से एक; दे० ईति ।। जालसाजी। For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २० मतिसरः [ अति + सृ+अच्] 1 आगे बढ़ने वाला 2 नेता अतिसर्गः [ अति + सृज् + ञ ] 1 स्वीकार करना, | देना - रघु० १०/४२, 2 अनुमति देना (जो इच्छा हो) 3 (नौकरी से ) पृथक् करना, कार्यभार से मुक्त करना। मतिसमं [ अति + सृज् + ल्युट् [ 1 देना, स्वीकार करना, सौंपना कु० ३।३२, 2 उदारता, दानशीलता 3 वघ करना 4 वियोग । अतिसर्व (वि० ) [ प्रा० स० ] सर्वोत्तम या सर्वश्रेष्ठ, र्वः परब्रह्म - अतिसर्वाय शर्वाय मुग्ध० । अति- (तो) - सारः [ अतिसृ + णिच् +अच् ] पेचिश, मरोड़ों के साथ दस्तों का आना । अति (सी) सारिन् (पुं० ) [ अत्यंत सारयति मलं] अतिसार नाम का रोग जिसमें बारबार शौच जाना पड़ता है; (वि०) -अति (ती) सारकिन् (वि० ) [ अतिसारो यस्यास्ति इनि, कुक् च ] अतिसार रोग से पीड़ित, पेचिश रोग से ग्रस्त । अतिस्नेव प्रा० स०] अत्यधिक अनुराग; हः पापसंकीश; बुराई की आशंका में प्रवण होता है । अतिस्पर्श: [ प्रा० स० ] अर्धस्वर तथा स्वरों के लिए पारिभाषिक शब्द । अतीत (वि० ) [ अंति + इ + क्त ] 1 पार गया हुआ 2. आगे बढ़ने वाला, गत, बीता हुआ आदि; मृत संख्यातीत अगण्य | अतीन्द्रिय (वि० ) [ प्रा०स०] ज्ञानेन्द्रियों की पहुंच के बाहर, -य: आत्मा या पुरुष (सांख्य दर्शन ) ; परमात्मा; -यं 1. प्रधान या प्रकृति (सा० द० ) 2. मन ( वेदान्त) | अतीव (अव्य० ) [ अति + इव] खूब, अधिकता के साथ, बहुत अधिक, बिल्कुल, बहुत हो, पीडित, हृष्ट आदि । अतुल (वि० ) [ न० त०] अनुपम, बेजोड़, अद्वितीय, अतुलनीय, लः 'तिल' का पौधा, तिल । परे गया हुआ, परे जाने वाला, संख्यामतीत या अतुल्य (वि० ) [ न० त० ] अनुपम, बेजोड़ । अतुवार (वि०) [न० त०] जो ठंडा न हो । सम० -करः सूर्य; इसी प्रकार अतुहिनकर: रश्मि, धामन् रुचि आदि । अतुष्या [ न० त०] थोड़ा सा घास । तेजस (वि० ) ( न० ब० ] 1. जो चमकीला न हो, धुंधला 2. दुर्बल, निर्बल 3. निरर्थक, इसी प्रकार अतेजस्क, मतेजस्विन्; -स् (पुं०) [न० त०] धुंधलापन, छाया, अंधकार । अत्ता [ अत् + तक् + टाप् ]1. माता 2 बड़ी बहन 3. सास । अति: (स्त्री० ) अत्तिका [ अत् + क्तिन्, स्वार्थे कन् च ] बड़ी बहन आदि । अम:, अस्तु: [ अतति सततं गच्छति - अत् + न, नु वा ] 1. हवा 2. सूर्य । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) अत्यग्निः [ प्रा० स० ] पाचन शक्ति की बहुत अधिकता । अत्यग्निष्टोमः [ प्रा० स० ] ज्योतिष्टोम यज्ञ का दूसरा ऐच्छिक भाग । अत्यंकुश ( वि० ) [ प्रा० स०] निरंकुश, नियन्त्रण में रहने के अयोग्य, उच्छृंखल जैसे हाथी । अत्यन्त ( वि० ) [ अतिक्रान्तः अन्तम् सीमाम्-- प्रा० स० ] 1. अत्यधिक, अधिक, बहुत बड़ा, बहुत बलवान् "वैरम् - बड़ी शत्रुता, इसी प्रकार मंत्री 2. संपूर्ण, पूरा, नितांत 3. अनन्त, नित्य, चिरस्थायी; किवा तवात्यन्तवियोगमोघे हतजीविते रघु० १४/६५ ; कस्यात्यन्तं सुखमर्पिनतम् -- मेघ० १०९ -तं ( अव्य ० ) 1. अत्यधिक बहुत अधिक, 2. हमेशा के लिए, आजीवन, जीवनभर । सम० - अभाव: नितान्त या पूर्ण सत्ताहीनता, नितान्त अनस्तित्व, गत ( वि० ) सदा के लिए गया हुआ, जो फिर कभी न आवेगा, कथमत्यन्तगता न मां दहे: - रघु० ८/५६, गामिन् ( वि० ) 1 बहुत अधिक चलने वाला, बहुत तेज या शीघ्र चलने वाला, 2. अत्यधिक, अधिक; - वासिन् (पुं०) जो विद्यार्थी की भांति लगातार अपने गुरु के साथ रहता है; संयोगः 1. घनिष्ट सामीप्य, अबाध नैरन्तर्य; कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे - ; 2. अवियोज्य सहअस्तित्व । अत्यन्तिक ( वि० ) [ अत्यन्त + ठन् ] 1. बहुत अधिक या बहुत तेज चलने वाला 2. बहुत निकट 3. जो समीप न हो, दूर, -कं घनिष्ट सामीप्य, अव्यवहित पड़ोस या अत्यंत समीप होना । अत्यन्तीन ( वि० ) [ अत्यंत + ख ] 1. बहुत अधिक चलने वाला, बहुत तेज चलने वाला - लक्ष्मी परंपरीणां त्वमत्यन्ती नत्वमुन्नय-- भट्टि० । अत्ययः [ अति + इ + अच्] 1 चला जाना, बीत जाना, काल 2. समाप्ति, उपसंहार, अवसान, अनुपस्थिति, अन्तर्धान 3. मृत्यु नाश 4, भय, चोट, बुराईप्राणात्यये च संप्राप्ते - या० १1१७९ 5. दुःख 6. दोष, अपराध, अतिक्रमण 7. आक्रमण, अभियान । अत्ययिक = दे० आत्ययिक | अत्ययित ( वि० ) [ अत्यय + इतच् ] 1. बढ़ा हुआ, आगे निकला हुआ, 2. उल्लंघन किया हुआ, जिस पर अत्याचार किया गया है । अत्ययिन् ( वि० ) [ अति + इ + णिनि ] बढ़ने वाला, आगे निकलने वाला । अत्पर्य (वि० ) [ प्रा० स०] अत्यधिक बहुत बड़ा, बेहद, चं ( क्रि० वि०) बहुत अधिक निहायत, अत्यन्त । अत्मह्न (वि० ) [ प्रा० स० ] अवधि में एक दिन से अधिक रहने वाला । For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २१ अस्याकारः [ प्रा० स०] 1. घृणा, कलंक, निन्दा, श्लाघात्याकारतदेवेतेषु पा० ५।१।१३४; 2. बड़ा डील डील, विशाल शरीर । अत्याचार ( वि० ) [ आचार मति क्रान्तः ] मानी हुई थाओं और आचारों के विपरीत चलने वाला, उपेक्षक; -र: आचारानुमोदित कार्यों का न करना, धर्म के विपरीत आचरण | अस्यादित्य ( वि० ) [ प्रा० स० ] सूर्य की ज्योति से अधिक चमकने वाला; - अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धि तेज:- मेघ० ४३ । अत्यानन्दा [ प्रा० स०] मैथुन के प्रति उदासीनता । अत्याय: [ प्रा० स०] ] 1. अतिक्रमण, उल्लंघन 2. आधिक्य । अत्यारूढ (वि० ) [ प्रा० स०] बहुत बढ़ा हुआ, छं, --डि: (स्त्री०) बहुत ऊँची पदवी अभ्युदय । अत्याश्रमः [प्रा० स०] 1. जीवन का सबसे बड़ा आश्रम - संन्यास 2. इस आश्रम में स्थित संन्यासिन् । अत्याहितं [ अति + आ + घा+क्त] 1. बड़ी विपत्ति भय, दुर्भाग्य, अनर्थ, दुर्घटना न किमप्यत्याहितम् श० १. प्रायः विस्मयादिद्योतक के रूप में प्रयोग हाय दई, हाय रे 2. उद्दंड तथा साहसिक कार्य - - पांडुपुत्रैर्न किमप्यत्याहितमाचेष्टितं भवेत् - वेणी० २ । अत्युक्तिः (स्त्री० ) [ अति + वच् + क्तिन्] बढ़ा चढ़ा कर कहना, अतिशयोक्ति, अधिकृष्ट रंगीन चित्रण -- अत्युक्तौ यदि न प्रकुप्यसि मृषावादं च नो मन्यसे - उद्भट० दे० अतिशयोक्ति भी । अत्युपध (वि० ) [ उपधामतिक्रान्तः - प्रा० स०] परीक्षित, विश्वस्त । अत्यूहः [प्रा० स०] 1. गहन चिन्तन या मनन गंभीर तर्कना, 2. जलकुकुट । अत्र ( अव्य० ) [ इदम् + त्रल् प्रकृतेः अश्भावश्च] 1. इस स्थान पर, यहाँ अपि सन्निहितोऽत्र कुलपतिः - श० १; 2. इस विषय में, बात में, मामले में, इस संबंध में सम० - अन्तरे ( क्रि० वि०) इसी बीच में, भवत् (पुं० - भवान् ) सम्मानसूचक विशेषण जो 'आदरणीय' 'सम्माननीय' 'मान्यवर श्रीमान्' अर्थ को प्रकट करता है तथा उस व्यक्ति की ओर संकेत करता है जो वक्ता के पास उपस्थित या निकट विद्यमान हो; दूरवर्ती या परोक्ष के लिए तत्रभवत् शब्द है; भवती = आदरणीय श्रीमती; (पूज्यं तत्रभवानत्रभवांश्च भगवानपि ), अत्र भवान् प्रकृतिमापन्नः - श० २; वृक्षसेचनादेव परिश्रांतामत्रभवती लक्षये - श० १ । अत्रत्य ( वि० ) [ अत्रभवः - अत्र + त्यप् ] 1. इस स्थान का, या यहां से संबंध रखने वाला 2. यहां उत्पन्न, यहां पाया गया, या इस स्थान का, स्थानीय । अत्र ( वि० ) [ न० ब० ] निर्लज्ज, अविनीत, अशिष्ट । ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्रिः (स० अत्रि ) [ अद् + त्रिन्] एक प्रसिद्ध ऋषि जो वेद के कई सूक्तों के द्रष्टा हैं । सम० - जः, -जातः, -ग्ज:, - नेत्रप्रसूतः - प्रभवः - भवः चन्द्रमा, तु०, अथ नयनसमुत्थं ज्योतिरत्रेरिव द्यौः - रघु० २।७५ । aa (अव्य० ) [ अर्थ + ड पृषो० रलोपः ] 1. मंगलसूचक शब्द जो किसी रचना के आरंभ में प्रयुक्त होता है-- और जिसका अनुवाद 'यहां' 'अब' – मंगल, आरंभ, अधिकार, किया जाता है । परन्तु यदि सही रूप से देखा जाय तो 'अथ' का अर्थ 'मंगल' नहीं है, तो भी इस शब्द का उच्चारण या श्रवणमात्र 'मंगल' का सूचक समझा जाता है, क्योंकि यह शब्द ब्रह्मा के कण्ठ से निकला हुआ माना जाता है - ओंकारश्चाथशब्दश्च द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा । कंठं भित्त्वा विनिर्यातौ तेन मांगलिकावुभौ । और इसी लिए हम शांकरभाष्य में देखते हैंअर्थान्तरप्रयुक्तः अथशब्दः श्रुत्या मंगलमारचयति, अथ निर्वचनम्, अथ योगानुशासनम् (बहुधा अंत में 'इति' शब्द का प्रयोग पाया जाता है-इति प्रथमोऽङ्कः समाप्तः - आदि) 2. तब उसके पश्चात् - अथ प्रजानामधिपः प्रभाते बनाय धेनुं मुमोच – रघु० २१ प्रायः 'यदि' या 'चेत्' का सहसंबन्धी 3. यदि, कल्पना करते हुए, अच्छा तो, ऐसी स्थिति में, परंतु यदि - अथ कौतुकमावेदयामि का० १४४; अथ मरणमवइयमेव जन्तोः किमिति मुधा मलिनं यशः कुरुध्वम् - वेणी० ४, 4. और, इसी से तो और भी, इसी भांति-भीमोऽ थार्जुन: - गण० 5. प्रश्न आरंभ करते समय या पूछते समय, बहुधा प्रश्नवाचक शब्द के साथ -- अथ सा तत्रभवती किमाख्यस्य राजर्षेः पत्नी- श० ७, 6. समष्टि, सम्पूर्णता, अथ धर्मं व्याख्यास्यामः -- गण ०, अब हम 'धर्म' की (विवरण सहित) पूरी व्याख्या करेंगें 7. संदेह, अनिश्चितता - शब्दो नित्योऽथानित्यःगण० । सम० अपि (अव्य० ) और भी, और फिर आदि ( = 'अथ' अधिकांश स्थानों पर ), किम् ( अव्य० ) और क्या, हाँ, ठीक ऐसा ही, बिल्कुल ऐसा ही, अवश्य ही, च ( अव्य० ) और भी, इसी प्रकार, - बा ( अव्य० ) 1. या ; 2. अधिकतर क्यों, कदाचित्, पिछली बात को संशुद्ध करते हुए - गमिष्याम्युपहास्यताम्······ अथवा कृतवाग्द्वारे वंशेऽस्मिन् रघु० १।३-४; अथवा मृदु वस्तु हिंसितुम् - ८१४५, दीयें किं न सहस्रघाहमथवा रामेण कि दुष्करम् - उत्त० ६।४० । अथर्वन् (पुं० ) [ अथ + ऋ + वनिप् ] 1. अग्नि और सोम का उपासक पुरोहित 2. अथर्वा ऋषि की सन्तान - ब्राह्मण, ( ब० व०), अथर्वा ऋषि की सन्तान, अथर्ववेद के सूक्त, (पुं० – अथर्वा तथा नपुं० – अथवं), 'वेदः अथर्ववेद जो चौथा वेद माना जाता है, तथा जिसमें For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) शत्रु-नाश के लिए अनेक अमंगलप्रार्थनाएँ और अपनी | अवशेनं [न० त०] 1. न दिखना, अनवलोकन, सुरक्षा के लिए तथा विपत्ति, पाप, बराई, एवं | अनुपस्थिति, दिखाई न देना 2. (व्या०) अन्तर्धान, दुर्भाग्य से बचाव के लिए असंख्य प्रार्थनाएं पाई। लोप, लुप्ति --अदर्शनं लोपः पा० १२११६० । जाती है, इसके अतिरिक्त दूसरे वेदों की भांति अवस् (सर्व०) [ पुं०-स्त्री०-असो, नपुं०-अवः] वह इसमें भी धार्मिक एवं औपचारिक संस्कारों में प्रयुक्त (किसी ऐसे व्यक्ति या वस्तु की ओर संकेत करना होने वाले अनेक सूक्त हैं जिनमें प्रार्थनाओं के साथ जो अनुपस्थित हो या वक्ता के समीप न हो)-इदमस्तु साथ देवताओं का अभिनन्दन किया गया है। सम० सन्निकृष्टं समीपतरवति चैतदो रूपम । अदसस्तू विप्र-निषिः,-विद (0) अथर्ववेद के ज्ञान का भंडार, कृष्टं तदिति परोक्षे विजानीयात् । 'यह' 'यहां' 'सामने' अथवा अथर्व-ज्ञान से संपत्र-गुरुणा अथवंविदा कृत अर्थ को भी प्रकट करता है। 'यत्' के सहसंबंधी क्रिय:-रघु. ८४, ११५९ ।। 'तत्' के अर्थ में भी प्रायः प्रयुक्त होता है। परन्तु जब अपर्वणिः [अथर्वन् +इस्, न टिलोपः] अथर्ववेद में निष्णात कभी यह 'संबंध वाचक सर्वनाम' के तुरन्त बाद प्रयुक्त अथवा इसमें निर्दिष्ट संस्कारों के अनुष्ठान में कुशल होता है (योऽसौ, ये अमी आदि) तो इस का अर्थ होता ब्राह्मण। है 'प्रसिद्ध 'सुख्यात' 'पूज्य'; दे० तद् भी । अथर्वानं [अथर्वन् +अच्-पृषो० दीर्घः] अथर्ववेद की अनु- अदात (वि०) [न० त०]1 न देने वाला, कृपण 2 लड़की ष्ठान पद्धति। का विवाह न करने वाला। अपवा=दे० 'अथ' के अन्तर्गत । अदादि (वि०) [न० ब०] दूसरे गण की धातुओं का बद (अदा० पर० सक० अनिट) [ अत्ति, अन्न-जग्ध ] 1. समूह, जो 'अदृ' से आरम्भ होता है। साना, निगलना, 2. नष्ट करना 3. दे० 'अंद', प्रेर) | अदाय (वि.) [नास्ति दायो यस्य-न० ब०] जो खिलवाना, सन्नन्त० जियत्सति–खाने की इच्छा (संपत्ति में) हिस्से का अधिकारी न हो। करना। अवायाद (वि.) [न० त०11. जो उत्तराधिकारी न बन मद, अब (वि.) [ मद्+विप्, अच् वा ] (समास के । सके, 2. [२० ब०] जिसके कोई उत्तराधिकारी न हो। अंव में). खाने वाला, निगलने वाला। | अदायिक (वि.) [स्त्री०-अदायिकी ] [ न दायमर्हतिअबष्ट (वि०) [न.ब.] दन्तहीन,--ष्ट्रः वह सॉप ना+दाय+ठक न० ब०] 1 जिसका कोई उत्तराजिसके जहरीले दांत तोड़ दिये गये हैं। धिकारी दावेदार न हो, जिसके कोई उत्तराधिकारी अवक्षिण (वि.) [२० त०] 1. जो दायां न हो अर्थात् न हों,--अदायिकं धनं राज्यगामि-कात्य2 [न० बायां 2. जिसमें पुरोहितों को दक्षिणा न दी जाय, त०] उत्तराधिकार से संबंध न रखने वाला। बिना दक्षिणा का (जैसे यज्ञ ) 3. सरल, दुर्बलमना, | अदितिः (स्त्री०) [दातुं छेत्तुम् अयोग्या-दो+क्तिन् ] 1 मूर्ख 4. अनुपस्थित, अदक्ष या अपटु, गवार, 5. पृथ्वी 2 अदिति देवता, आदित्यों की माता, पुराणों में प्रतिकूल। इसका वर्णन देवों की माता के रूप में किया गया है, अवश्य (वि.)[न० त०] 1. दण्ड का अनधिकारी, 2. 3 वाणी 4 गाय । सम० --जः, -नंदनः देवता, दण्ड से मुक्त या बरी। दिव्य प्राणी। अबत् ( वि.) [ न० ब.] दन्तरहित, बिना दांतों का। अवर्ग (वि.) [न० त०] 1 जो दुर्गम न हो, जहाँ पहुँचना मदत्त (वि.) [न० त०] 1. न दिया हुआ 2. अनुचित | कठिन न हो 2 [न० ब०] वह स्थान जहाँ किले न तरीके से दिया हुआ 3. जो विवाह में न दिया गया | हों-विषय:-एक दुर्गरहित देश । हो,-सा अविवाहित कन्या-तं वह दान जो रद्द कर | बदूर (वि.) [न० त०] 1 जो दूर न हो, समीप (काल दिया गया हो। सम०-आदायिन् (वि०) जो न दी और देश की स्थिति से),-रं सामीप्य, पड़ोस हुई वस्तुओं को उठा कर ले जाता है जैसे कि चोर, –बसन्नदूरे किल चन्द्रमौले:-रघु०६।३४; त्रिंशतो -पूर्वा वह कन्या जिसकी सगाई न हुई हो-अदत्त दूरे वर्तते इति अदूरत्रिंशा:--सिद्धा०; अदूरे-म्-त:/पूर्वेत्याशंक्यते-माल०४।। रात,-रे,-रेण (सम्प्रदान या संबंध के साथ), अधिक भवन्त (वि.) [न.ब.] 1. दन्त रहित 2. वह शब्द दूर नहीं, बहुत दूर नहीं। जिसके अन्त में 'अत् या 'अ' हो,-सः जोंक। | अवृश् (वि.) [ नास्ति दृग् अक्षि यस्य न० ब० ] दृष्टिअवन्त्य (वि०) [न० त०] 1 जो दांतों से संबंध न रखता हीन, अंधा। हो 2 दांतों के लिए अनुपयुक्त, दांतों के लिए हानि- | अदृष्ट (वि०) [ना-दृश्+क्त ] अदृश्य, अनदेखा, कारक। पूर्व जो पहले न देखा गया हो; 2 अननुभूत 3 मात्र (वि.) [न० ब०] अनल्प, प्रचुर, पुष्कल। अदृष्टपूर्व, बनवलोकित, बिना सोचा हुआ, अज्ञात 4 For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अननुमत, अस्वीकृत, अवैध,-ठं 1 अदृश्य 2 नियति | अपर (वि०) [ अद्+क्मरच् ] बहुत अधिक खाने वाला, भाग्य, प्रारब्ध (शुभ या अशुभ) 3 गुण तथा पेटू । अवगुण जो कि सुख तथा दुःख के अनुवर्ती कारण हैं; | अब (वि.) [अद्+यत् ] खाने के योग्य-यम् भोजन, 4 दैवी विपत्ति या भय (जैसा कि आग या पानी खाने के योग्य पदार्थ, (अव्य.) आज, इस दिनआदि से)। सम०-अर्थ (वि.) आध्यात्मिक या गढ अद्य त्वां त्वरयति दारुणः कृतान्तः-माल. ५।२५, अर्थ वाला, आध्यात्मिक,---कर्मन् (वि.) अव्यावहा रात्री-आज की रात, यह रात । सम०-अपि अभी, रिक, अनुभवहीन -फल (वि.) जिसके परिणाम अब तक, आज तक, अभी नहीं, -गुरुः खेदं खिन्ने अदृश्य हों,-फलं शुभाशुभ कर्मों का आगे आने मयि भजति नाद्यापि कुरुषु-वेणी .१२११; वाला फल । (चौरपंचाशिका के ५० श्लोक 'अद्यापि' से आरंभ अदृष्टिः (स्त्री०) [न० त०] बुरी या द्वेषपूर्ण दृष्टि, कुदृष्टि होते हैं),-अवधि (अव्य०) 1 आज से लेकर, 2 आज -ष्टि (वि.) [न.ब. अंधा। तक–पूर्वम् पहले, अब, प्रभूति (अव्य.) आज से, अदेय (वि०) [न० त०] जो देने के लिए न हो, जो दिया इस दिन से लेकर, अद्य प्रभूत्यवनतांगि तवास्मि दासः न जा सके या दिया न जाना चाहिए,-यम जिसका ---कु. ५।८६,-श्वोना (वि.) आसन्नप्रसवा, बह देना न उचित है और न आवश्यक है, इस श्रेणी स्त्री जिसका प्रसव काल निकट है-अद्यश्वीनामवष्टम्ये में पत्नी, पुत्र, धरोहर और कुछ अन्य वस्तुएँ -~-पा० ५।२॥१३॥ आती है। अद्यतन (वि.) (स्त्री० -नी) [अद्य+ष्टघु, तुट् च] अदेव (वि.) [न० त०] 1. जो देवताओं की भांति न हो, आज से संबंध रखते हुए, संकेत करते हुए या विस्तृत या दिव्य न हो 2. देवविहीन, अपवित्र, अधार्मिक-वः होते हए; 2 आधुनिक;-नः चाल दिन, यह दिन, चाल जो देवता न हो। सम-भातक (वि०) जहाँ वर्षा दिन की अवधि, दे०'अनद्यतन' भी,-नी (अर्थात बत्तिः) न हुई हो; माता की भांति दूध पिलाने या पानी देने लुङ लकार का नाम (=भूतः)। के लिए जहाँ वर्षा का देवता काम न करता हो,- अद्यतनीय अद्यतन 1 आज का 2 आधुनिक । वितन्वति क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन्कुरवश्चका- अदम्यम्-[न० त०] तुच्छ वस्तु, निकम्मा पदार्थ; नातव्ये सते-कि० १।१७। विहिता काचित्क्रिया फलवती भवेत्-हि०प्र० ४३; अवेशः [न० त०] 1. अनुपयुक्त स्थान 2 बुरा देश । सम० निकम्मा या अकर्मण्य छात्र या विद्यार्थी। -काल: अनुपयुक्त स्थान और अनुपयुक्त समय, स्थ | अनिः--[अद्+क्रिन् ] 1 पहाड़ 2 पत्थर 3 बज 4 वृक्ष (वि.) अनुपयुक्त स्थान पर ठहरा हुआ, उपयुक्त सूर्य 6 मेघ-राशि, बादल 7 एक प्रकार का माप 8 स्थान से विरहित। सात की संख्या। सम-शिः,-नाषः,-पतिः, अवोष (वि०) [न० ब०] 1 दोष, बराई और टि आदियों -राजः आदि, 1 पर्वतों का स्वामी, हिमालय 2 शिव से मुक्त 2 अश्लीलता, ग्राम्यता आदि साहित्य के (कैलाशपति) --कीला पृथ्वी-कन्या, सनया,दोषों से मुक्त, दे० दोष,-अदोषौ शब्दार्थो-काव्य नंदिनी, सुता आदि पार्वती,-जम् लाल खड़िया, १, अदोषं गुणवत्काव्यम्-सर० क.१। -द्विष,-भिद् (पुं०) पहाड़ों का शत्रु या उन्हें तोड़ने अदोहः [न० ब०] 1 वह समय जो दोहने के लिये व्यावहा- वाला, इन्द्र का विशेषण;-व्रोणि-णी (स्त्री०) 1 पहाड़ रिक न हो 2 [न० त०] न दुहा जाना। की घाटी 2 पर्वत से निकलने वाली नदी-पतिः,-राजः अढा (अव्य.) 1 सचमुच, बिल्कुल, अवश्य, निस्सन्देह आदि, देखिये °ईश, –शय्यः शिव, -श्रृंगम्, रघ० १३१६५; 2 प्रकटतः, स्पष्टरूप से च्यालाधिप -सानु पहाड़ की चोटी, सारः पहाड़ों का सत्त्व, च यतते परिरब्धुमद्धा---भामि० ११९५ । लोहा। अदभुत (वि.) [अद+भ+इतच-न भूतम् इति वा] | अबोह:---[न० त०] द्वेषराहित्य, बुराई का न होना परि आश्चर्यजनक, विचित्र, कर्मन, गंध, दर्शन, रूप; | मितता, मृदुता--मनु० ४।२। गूढ, अलौकिक; - 1 आश्चर्य, आश्चर्यजनक बात | अन्य (वि.) [ नास्ति द्वयं यस्य न० ब०] 1 दो नहीं, 2 या घटना, विलक्षण घटना, चमत्कार 2 अचम्भा, अद्वितीय, अनुपम, एकमात्र,-यः बुद्ध का नाम, अचरज, आश्चर्य (०) भी;--त: आठ या नौ ---यम् [न० त०] द्वैत का अभाव, एकता, तादात्म्य, रसों में से एक, अद्भुत (अनोखा) रस । सम-सारः विशेषतया ब्रह्म और विश्व का तादात्म्य या प्रकृति और -खदिर या खैर की आश्चर्यजनक राल,-स्वनः आत्मा का तादात्म्य, परम सत्य । सम०-वाबिन (= शिवका नाम । अद्वैत) 1 विश्व और ब्रह्म तथा प्रकृति एवं आत्मा के मधनिः-[अद्+मनिन् ] अग्नि । तादात्म्य का प्रतिपादक 2 बुद्ध। For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २४ | अद्वारम् - [ न० त०] जो दरवाजा न हो, मार्ग या रास्ता जो नियमित रूप से द्वार न हो; अद्वारेण न चातीयाद् ग्रामं वा वेश्म वा पुरम् - मनु० ४। ७३ । अद्वितीय ( वि० ) [ न० ब० ] 1 जिसके समान कोई दूसरा न हो, बेजोड़, लासानी, न केवलं रूपे शिल्पेऽप्यद्वितीया मालविका - मालवि० २ 2 बिना साथी के, अकेला, यम् ब्रह्मा । अद्वैत ( वि० ) [ न० ब० 11 द्वैत हीन, एकस्वरूप, एकस्वभाव, समभाव, अपरिवर्तनशील, 'तं सुखदुःखयो:-- उत्त० ११३९, 2 बेजोड़ लासानी, एकमात्र, अनन्य, -तम् 1 द्वैत का अभाव, तादात्म्य, विशेषतया ब्रह्म का विश्व या आत्मा के साथ, या प्रकृति का आत्मा के साथ दे० 'अद्वय' भी 2 परमसत्य या स्वयं ब्रह्म । सम ० -- वादिन् - अद्वयवादिन् दे० ऊपर, वेदान्त का अनुयायी । अम (वि) [ अव् + अम, वस्य स्थाने धादेशः ] निम्नतम, जघन्यतम, अत्यंत कमीना, बहुत बुरा, नीच या निकृष्ट ( गुण, योग्यता और पदादिक की दृष्टि से ) ( विप० उत्तम ), - - मः निर्लज्ज लम्पट – वापी स्नातुमितो गतासि न पुनस्तस्याधमस्यान्तिकम् - काव्य ० १ : --मा निकम्मी गृहस्वामिनी । सम० -- अङ्गम् पैर, - अर्धम् नाभि से नीचे का शरीर ऋणः, - ऋणिकः कर्जदार ( विप० उत्तमर्णः ), भृतः, - भृतकः कुली, साइस । अघर ( वि० ) [ नत्र + धृ + अच् ] 1 नीचे का, अवर, निचला 2 नीच, कमीना, जघन्य, गुणों में नीचे दर्जे का, घटिया, 3 निरुत्तर, दलित; रः नीचे का ( कभी ऊपर का) ओष्ठ, ओष्ठमात्र; - पक्वबिंबाधरोष्ठी- मे० ८२; पिबसि रतिसर्वस्वमधरम् श० ११२४; -- रम् 1 शरीर का निम्नतर भाग 2 अभिभाषण, व्याख्यान ( विप० -उत्तर), कभी ? उत्तर के लिए भी प्रयुक्त होता है | सम० उत्तर (वि०) 1 उच्चतर और निम्नतर अच्छा और बुरा - राज्ञः समक्षमेवावयोः 'व्यक्तिर्भविष्यति - मालवि० १ 2 शीघ्र या विलम्ब से, 3 उलटे ढंग से, उलट-पलट 4 निकटतर और दूरतर, - ओष्ठः नीचे का ओष्ठ, कंठः ग्रीवा का निचला भाग, --- पानम् चुम्बन, शाब्द० अवरोष्ठ को पीना, - मधु, अमृतम् ओष्ठों का अमृत, स्वस्तिकम् अधोबिन्दु । अधरस्मात्, रतः, स्तात्, रात्, तात्, रेण ( अव्य० ) नीचे, तले, निचले प्रदेश में । अधरीकृ ( तना० उभ० ) [ अधर + च्चि + कृ ] आगे बढ़ जाना, पटक देना, पराजित करना । अधरीण ( वि० ) [ अधर +ख ] 1 नीचे का 2 निंदित, कलंकित, तिरस्कृत । ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधरेद्युः (अव्य० ) [ अघर + एद्युस् ] 1 पहले दिन 2 परसों ( जो बीत गया ) । अधर्मः - [ न० त० 1 बेईमानी, दुष्टता, अन्याय; अधर्मेण अन्यायपूर्वक 2 अन्याय्य कर्म, अपराध या दुष्कृत्य, पाप । धर्म और अधर्म, न्यायशास्त्र में वर्णित २४ गुणों में दो गुण हैं और यह आत्मा से संबंध रखते हैं, ये दोनों क्रमश: सुख और दुःख के विशिष्ट कारण हैं, यह इन इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु इनका अनुमान पुनर्जन्म तथा तर्कना के द्वारा लगाया जाता है 3 प्रजापति या सूर्य के एक अनुचर का नाम, र्मा साकार बेईमानी, मम् विशेषणों से रहित, ब्रह्मा की उपाघि । सम० - आत्मन् - चारिन् (वि०) दुष्ट, पापी । अधवा ( न० ब० ) विधवा स्त्री । अघसू, अध: ( अव्य० ) [ अधर - असि, अधरशब्दस्य स्थाने अधादेशः ] 1 तले, नीचे - पतत्यधो धाम विसारि सर्वतः - शि० ११२, निम्नप्रदेश में, नारकीय प्रदेशों में या नरक में (प्रकरण के अनुसार 'अध:' शब्द का अर्थ कर्तृकारक का होता है - अंशुकं आदि; अपादान के साथ - अधो वृक्षात् पतति या अधिकरण के साथ -- अघ गृहे शेते), 2 संबंधकारक के साथ 'संबंधबोधक अव्ययों' की भांति प्रयुक्त 'के नीचे' 'के तले' अर्थ को प्रकट करते हैं - तरूणाम् श० १११४, ( जब द्विरु की जाती है तो अर्थ होता है ) -नीचे-नीचे, तलेतले - अधोऽधो गंगेयं पदमुपगता स्तोकम् भर्तृ० २० १०, ( कर्मकारक के साथ) नीचे से नीचे ही नीचे-नवान घोऽधो वृहतः पयोधरान् शि० ११४ । सम० - अंशुकम् अधोवस्त्र, -- अक्षजः, विष्णु - अधस् दे० ऊपर, उपासनम् मैथुन, करः हाथ का नि चला भाग ( करभ ), करणम् आगे बढ़ जाना, हरा देना, अपमानित करना, - - खननम् अंदर-अंदर सुरंग खोदना, गतिः (स्त्री०), गमनम्, -पातः 1 नीचे की ओर गिरना या जाना, उतरना 2 अधःपतन, हार, -- ग (१०) चूहा, चरः चोर, जिह्निका उपजिह्वा ( मराठी में 'पडजीभ' कहते हैं ) — दिश (स्त्री० ) अधोबिन्दु, दक्षिण की दिशा, दृष्टि: (स्त्री ० ) नीचे की ओर देखना, पातः ' - गतिः दे० ऊपर, -- प्रस्तरः घास का बना आसन विलाप करने वाले व्यक्तियों के बैठने के लिए, भागः 1 शरीर का निचला भाग 2 किसी चीज का निचला हिस्सा-भुवनम्, लोकः - पाताल लोक, निम्नतर प्रदेश -मुख, वदन ( वि० ) नीचे को मुख किये हुए, लंब: 1 पंसाल, साहुल 2 खड़ी सरल रेखा, वायुः अपानवायु, अफारा, स्वस्तिकम् अधोबिन्दु | अधस्तन ( वि० ) [स्त्री० नी ] [ अवस् + ट्यु, तुट् च ] निचला, निम्न स्थान पर स्थित । For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २५ अधस्तात् ( क्रि० वि० या सं० बो० अव्य० ) नीचे, तले, ! अवर, के नीचे, के तले आदि (संबंधकारक के साथ ) दे० अधः, धर्मेण गमनमूर्ध्वं गमनमधस्ताद्भवत्यधर्मेण - सां० का० । अधामार्गवः - अपामार्गः । अधारक (वि० ) [ स्वार्थे कन् न० ब० ] जो लाभदायक न हो -- ° कं ममेतत्स्थानम् - पंच० २ । अधि ( अव्य० ) [ आ + घा+कि पृषो० ह्रस्वः ] 1 ( धातु | के साथ उपसर्ग के रूप में) ऊर्ध्व, ऊपर, रुह अति उगना या ऊपर उगना; अधिकता के साथ भी 2 ( पृथक् क्रि० वि० के रूप में ) आगे बढ़ कर, ऊपर 3 (सं० बो० अव्य० के रूप में ) ( कर्म० के साथ) (क) ऊपर, आगे, पर, में (ख) संकेत करते हुए, के संबंध में, के विषय में (ग) (अधि० के साथ) आगे, ऊपर ( किसी वस्तु पर प्रभुता या स्वामित्व प्रकट करते हुए) अधिभुवि रामः 4 (त० स० के प्रथम पद के रूप में) (क) मुख्य, प्रमुख, प्रधान देवता प्रमुख देवता (ख) व्यतिरिक्त, फालतू, – 'दन्तः = अध्यारूढः दंतः, अधिक; 'अधिक्षेप; अत्यधिक परिनिन्दन । अधिक (fo) [ अधि + ] 1 बहुत अतिरिक्त, बृहत्तर (समास में संख्याओं के साथ) धन, से अधिक अष्टाधिकं शतम् - १०० +८ = १०८२ (क) परिमाण में बढ़कर, अधिक संख्यावाला, यथेष्ट, अधिक, बहुलसमास में या करण कारक के साथ ( ख ) अतिमात्र, बढ़ा हुआ, से भरा हुआ, पूर्ण, कुशल - शिशुरधिकवया: - वेणी० ३।३०, बड़ा, अधिक आयु का भवनेषु रसाधिकेषु पूर्वम् श० ७ २०, 3 बहुत अधिकतर, बलवत्तर - ऊनं न सत्त्वेष्वधिको बबाधे - रघु० २।१४, बलवत्तर जन्तु ने अपने से दुर्बल जन्तु का शिकार नहीं किया 4 प्रमुख, असाधारण, विशेष, विशिष्ट - इज्याध्ययनदानानि वैश्यस्य क्षत्रियस्य च, प्रतिग्रहोऽधिको विप्रे याजनाध्यापने तथा । १।११८, श० ७ 5 व्यतिरिक्त, फालतू - अंग व्यतिरिक्त अंग वाला - नोद्वहेत्कपिलां कन्यां नाधिकांङ्गी न रोगिणीम् मनु०३१८, कम् 1 अधिशेष, अधिक बहुत - लाभो धिकं फलम् - अमर०, 2 व्यतिरिक्तता, फालतू होना 3 अतिशयोक्ति के समान अलंकार ( क्रि० वि० ) 1 अधिकतर, अधिक मात्रा में रघु० ४।१, समास में इयमधिकमनोज्ञा --श० ११२०, ° सुरभि - मेघ० २१, 2 अत्यन्त, बहुत अधिक । सम० - अंग (वि० ) [ स्त्री०-गी ] व्यतिरिक्त अंग रखने वाला; अर्थ ( वि०) बढ़ा कर कहा हुआ, ● वचनं - अतिशय कथन, अतिशयोक्त वक्तव्य या वचन ( चाहे प्रशंसा के हों या निन्दा के ), - ऋद्धि (वि० ) प्रचुर पुष्कल - रघु० १९/५, तिथि: ( स्त्री०), - दिनम्, या० ४ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दिवसः बढ़ा हुआ चांद्र दिवस, वाक्योक्तिः ( स्त्री०) बढ़ा चढ़ाकर कहना, अतिशयोक्ति अलंकार । अधिकरणम् - [ अधि + कृ + ल्युट् ] 1 प्रघान स्थान पर रखना, नियुक्ति 2 संबंध, उल्लेख, संपर्क 3 ( व्या० ) अनुरूपता, लिंग, वचन, कारक और पुरुष की समानता, अन्वय, कारक चिह्नों का इतर शब्दों से संबंध 4 आशय, विषय, उपस्तर 5 अधिष्ठान, स्थान, अघिकरण कारक का अर्थ - आधारोऽधिकरणम् - पा० १। ४४५, प्रस्ताव, विषय, किसी विषय पर पूर्ण तर्क, ( मीमांसकों के अनुसार पूर्ण अधिकरण के ५ अंग होते हैं-विषयो विशयश्चैव पूर्वपक्षस्तथोत्तरम्, निर्णयश्चेति सिद्धान्तः शास्त्रेऽधिकरणं स्मृतम् । ) 7 न्यायालय, कचहरी, न्यायाधिकरण, – स्वान्दोषान् कथयंति नाधिकरणे - मृच्छ० ९1३, 8 दावा 9 प्रभुता । सम० -- भोजक : 'न्यायाधीश, मंडपः कचहरी या न्यायभवन, - सिद्धान्तः ऐसा उपसंहार जिसका प्रभाव औरों पर भी पड़े । अधिकरणिकः [ अधिकरण + ठन् ] 1 न्यायाधीश, दण्डा धिकारी मृच्छ० ९, 2 राजकीय अधिकारी । अधिकर्मन् ( न० ) [ प्रा० स०] 1 उच्चतर या बढ़िया कार्य 2 अधीक्षण, - ( पु० ) जिसके ऊपर अधीक्षण का कार्य भार हो । सम० - करः, -कृत् एक प्रकार का सेवक, कर्मचारियों का अध्यवेक्षक । अधिकमकः [ अधिकर्मन् +-ठ ] किसी मंडी का अध्यवे क्षक जिसका कार्य व्यापारियों से कर उगाहने का हो । अधिकाम ( वि० ) [ अधिक: कामो यस्य ] 1 उत्कट अभि च लाषी, आवेशपूर्ण, कामातुर, -मः उत्कट अभिलाषा । अधिकारः [ अधि + कृ + घञ ] 1 अधीक्षण, देखभाल करना 2 कर्तव्य, कार्यभार, सत्ताधिकार का पद, प्रभुत्व - द्वीपिनस्तां बूलाधिकारो दत्तः पंच० १, स्वाधिकारात् प्रमत्तः - मेघ० १, अधिकारे मम पुत्रको नियुक्त:- मालवि० ५, 3 प्रभुसत्ता, सरकार या प्रशासन, न्यायक्षेत्र, शासन 4 हक, प्राधिकार, दावा, स्वत्व ( धन, संपत्ति आदि का ), स्वामित्व या कब्जे का अधिकार -- अधिकारः फले स्वाम्यमधिकारी तत्प्रभुः -- सा० द० २९६ 5 विशेषाधिकार ( राजा के) 6 प्रकरण, अनुच्छेद या अनुभाग, प्रायश्चित्त'-- मिता०, दे० 'अधिकरण' 7 ( व्या० ) प्रधान या शासनात्मक नियम । सम० - विधिः किसी विशेष कार्य को करने के लिए पात्रता का कथन -स्थ, आढच (वि०) पद पर विराजमान । अधिकारिन्, अधिकारवत् (वि० ) [ अधिकार + णिनि, अधिकार + मतुप् ] 1 अधिकार सम्पन्न, शक्तिसम्पन्न 2 स्वत्व सम्पन्न, हकदार, सर्वे स्युरधिकारिणः 3 स्वामी, For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ ( २६ ) मालिक 4 उपयुक्त (पुं०-री,-बान्) 1 राज | देवता वा ] इष्टदेव प्रधान देव, अभिरक्षक देवता, पुरुष, पदाधिकारी कार्यकर्ता, अधीक्षक, प्रधान, निर्दे- ययाचे पादुके पश्चात्कर्तुं राज्याधिदेवते-रघु०१२। शक, शासक 2 सही दावेदार, मालिक, स्वामी । १७, १६१९, भामि० ३३ अधिकृत (वि.) [अधि++क्त अधिकार प्राप्त, नियुक्त | अधिदेवम, अधिदैवतम् [ अधिष्ठात देवं दैवतं वा ] किसी आदि, तः राजपुरुष, पदाधिकारी, किसी पद के वस्तु की अधिष्ठात्री देवता। कार्यभार को संभालने वाला। अधिनाथः [प्रा० स०] परमेश्वर। अधिकृतिः (स्त्री०) [ अधि++क्तिन् ] हक़, प्राधिकार, | अधिनायः [अधि+नी+घञ] गन्ध, महक । स्वामित्व, दे० अधिकार । अधिपः, अधिपतिः [ अधि+पा+क, डति वा ] स्वामी, अधिकृत्य (अव्य.) [ अधि+कृ+ (क्त्वा) ल्यप् ] उल्लेख शासक, राजा, प्रभु, प्रधान-अथ प्रजानामधिप: करके, के विषय में, के संबंध में-ग्रीष्मसमयमधिकृत्य प्रभाते-रघु० २१ (अधिकतर समास में प्रयुक्त)। गीयताम्-श० १; शंकुतलामधिकृत्य ब्रवीति-श. | अधिपत्नी [प्रा० स०] वै०-शासिका, स्वामिनी । अषिपु (पू) एषः [प्रा० स०] पुरुषोत्तम, परमेश्वर । अधिक्रमः ।[अधि+क्रम्+घञ, ल्युट च] हमला, अषिप्रजा (वि.) [ अधिका प्रजा यस्य ब० स०] बहुत अधिक्रमणम् । चढ़ाई। ___ संतान वाला (स्त्री या पुरुष)। अषिक्षेपः-[अधि+क्षिप्+घा 11 गाली, दोषारोपण, | अधिभः [ अधि+भू+क्विप] स्वामी, श्रेष्ठ, प्रमुख । अपमान, भवत्यधिक्षेप इवानुशासनम्-कि० ११२८ 2 | अधिभूतम् [ अधि+भू+क्त प्रा० स०--भूतं प्राणिमात्रपदच्युत करना। मधिकृत्य वर्तमानम् ] परमेश्वर, परमात्मा या तत्सं. अधिगत (वि.) [ अधि+ गम् +क्त ] 1 अजित, प्राप्त | बंधी समस्त व्यापक प्रभाव । आदि-भर्तृ० २।१७, 2 अधीत, ज्ञात, सीखा हुआ, | अधिमात्र (वि.) [ अधिका मात्रा यस्य ब० स०] मान किमित्येवं पृच्छस्यनषिगतरामायण इव-उत्त०६।३०।। से अधिक, बहुत अधिक, अपरिमित । अधिगमः ।[अधि+गम्+घञ, ल्युट् च ] 1 अर्जन, अधिमासः [प्रा० स०] लौंदं का महीना, मलमास । अधिगमनम्। प्रापण 2 पारंगति, अध्ययन, ज्ञान 3 व्यापा अधियज्ञः प्रा० स०] 1 प्रधान यज्ञ 2 ऐसे यज्ञ का अभिरिक लाभ, लाभ, संपत्ति प्राप्त करना, कर्ता। निध्यादेः प्राप्ति:-मिता. या धनप्राप्ति, | अधिरय (वि०) [ अध्यारूढो रथं रथिनं वा ] रथारूढ,4 स्वीकृति 5 मैथुन । था--1 सूत, सारथि 2 सूत का नाम जो अंगदेश का अषिगुण (वि.) [ अधिका गुणा यस्य ] 1 श्रेष्ठ गुण रखने राजा तथा कर्ण का पालक पिता था। वाला, योग्य, गुणी-याच्या मोघा वरमधिगणे नाधमे | अधिराज, (पुं०) अधिराजः [ अधि+राज्+क्विप् राजन् लब्धकामा-मेघ. ६, 2 जिसकी डोरी कसकर खिची +टच् वा ] प्रभुसत्ता प्राप्त या परमशासक, सम्राट्, हो (जैसे धनुष)। -अद्यास्तमेतु भुवनेष्वधिराजशब्द:--उत्त० ६।१६, अधिचरणम् -[ अधि+च+ल्युट ] किसी के ऊपर चलना। राजा, प्रधान, स्वामी (मनुष्य और पश्वादिकों का), अधिजननम् -[ अधि+जन्+ल्युट ] जन्म । हिमालयो नाम नगाधिरज:-कु० १११, इसी प्रकार अधिजिहः-ब० स०] सांप--द्वा-जिहिका 1 ताल मृग, नाग आदि। जिह्वा 2 जिह्वा की सूजन (रोग)। अधिराज्यम्, अधिराष्ट्रम् [अधिकृतं राज्यं राष्ट्रम् अत्र ] अधिज्य (वि.) [ अध्यारूढा ज्या यत्र, अधिगतं ज्यां वा]] 1 शाही हकमत या सम्राट् का शासन, सर्वोच्चता, धनुष की डोरी को कस कर खींचे हुए, या कस कर | शाही मर्यादा 2 साम्राज्य 3 देश का नाम । खिंची हुई डोरी वाला (जैसा कि धनुष)। सम० | अधिरूढ (वि.) [अधि+रुह.+क्त ] 1 सवार, चढ़ा हुआ -धन्वन्,-कार्मुक (वि०) धनुष की डोरी को ताने । 2 बढ़ा हुआ। हए-त्वयि चाधिज्यकामुके-श०१६ । अधिरोहः [अधि+रुह - घन ] 1 गजारोही 2 सवार होना, अधिस्यका [ अघि+त्यकन्+टाप् ] गिरिप्रस्थ (पहाड़ के ____ चढ़ना। ऊपर की समतल भूमि ) उच्चसमभूमि--स्थाणु | अधिरोहणम् [अधि-कह+ल्युट ] चढ़ना, सवार होना, तपस्यन्तमधित्यकायाम्-कु०३।१७, अधित्यकायामिव चिता-रघ० ८1५७-णी सीढ़ी, सीढ़ी का झंडा घातुमय्याम्-रघु० २।२९ ।। (लकड़ी आदि का)। अधिवन्तः[ अध्यारूढो दन्त:-प्रा० स०] दांत के ऊपर | अधिरोहिन (वि.) [ अधि+रह+णिनि ] चढ़ने वाला, निकलने वाला दांत। सवार होने वाला, ऊपर उठने वाला,—णी सीढ़ी, मषिदेवः, अधिदेवता [प्रा. स. अधिष्ठाता-त्री देवः । जीने की पौड़ी या डंडा। प को डोरी काका (जैसा कि भाडोरी को ताने रोहः [अधि For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७ ) अघिलोकम् (अव्य०) [प्रा० स० ] 1 विश्व से संबंध रखने । निष्णात-अघीती चतुर्वाम्नायेषु-दश० १२०, (वेद वाला 2 विश्व में। व्याकरण आदि में)। अधिवचनम् [ अधि-वच्+ल्युट्] 1 पक्षसमर्थन, पक्ष में | अषीतिः (स्त्री) [अधि++क्तिन्] 1 अध्ययन, अनुबोलना, 2 नाम, उपनाम, अभिधान । शीलन बोधाचरणप्रचारण:-नैष. ११३, 2 स्मरण, अधिवासः [अधि+वस् + णिच्+घञ ] 1 आवास, निवास, प्रत्यास्मरण । वास, तस्यापि च स एव गिरिरधिवास:----का० ११३७, | अधीन (वि.) [अधिगतम् इनम् प्रभुम्-प्रा० स०] वसति, बसना 2 धरना देना 3 यज्ञारंभ के पूर्व देवता आश्रित, मातहत, निर्भर (बहुधा समस्त पदों में) का आवाहन पूजन आदि 4 पोशाक, परावरण, लबादा स्थाने प्राणा: कामिनां दूत्यधीना:-मालवि. ३३१४, 5 सवासित और सुगंधित उबटन लगाना, सुगंधयुक्त त्वदधीनं खलु देहिनां सुखम्-कु० ४।१०, इक्ष्वाकणां तथा महकदार पदार्थों का सेवन अधिवासस्पहयेव दुरापेऽर्थे खदधीना हि सिद्धयः--रघु०११७२। मारुत:-रघु० ८।३४ शि० २।२० । अधीयानः (व. कृ०) [अधि+5+शान] विद्यार्थी, अषिवासनम् [ अधि+वस्+णिच् + ल्युट् ] सुगंध से बसाना, वेदपाठी। भूति की प्रारंभिक प्रतिष्ठा, मूर्ति में देवता की प्राण- | अघोर (वि.) [न० त०] 1 साहसहीन, भीर 2 उद्विग्न, प्रतिष्ठा करना। उत्तेजित, उतावला 3 अस्थिर 4 धैयरहित, चंचल, अधिविना [अधि+विद्+क्त वह स्त्री जिसके रहते हए -~-रा 1. विजली 2 सनकी या झगड़ाल स्त्री। पति दूसरा विवाह कर ले, या० ११७३-४, मनु । अधीवासः [ अधि+वस्+घश-उपसर्गस्य दीर्घत्वम् ] ९८०-८३ । एक लंबा कोट जिससे सारा शरीर ढक जाय, लबादा, अधिवेत (पु.) [अधि+विद्+तृच्] एक स्त्री के रहते दे० अधिवास भी। हुए दूसरा विबाह करने वाला। अधीशः [प्रा० स०] स्वामी, सर्वोच्च स्वामी या मालिक, अधिवेवः, अषिवेदनम् [अधि+विद्+घञ, ल्युट् वा एक प्रभुसत्तासंपन्न राजा---अंग', मग', मनुज आदि । स्त्री के रहते अतिरिक्त स्त्री से विवाह करना। अधीश्वरः [प्रा० स०] सर्वोच्च स्वामी या नियोक्ता । अधिश्रयः [अधि+श्रि+अच्] 1 आधार 2 उबालना, | अधीष्ट (वि.) [अधि+इष+क्त] अवैतनिक, प्रार्थित (आग पर रखकर) गर्म करना । ---ष्टः अवैतनिक पद या कर्तव्य, ऐसा कार्य जिसमें अधिक्षयणम्, अधिश्रपणम् [अधि+श्रि(श्री)+ल्युट्] गरम सामर्थ्य का उपयोग हो सके, (अधीष्ट:-सत्कार करना, उबालना,--णी [अधिश्रीयते पच्यतेऽत्र- पूर्वको व्यापारः-सिद्धा०)। आधारे ल्युट+डीप्] चूल्हा, अंगीठी। अधुना (अव्य०) [इदमोऽधुनादेश:-पा० ५।३।१७] अब, अधिधी (वि.) [अधिका श्रीर्यस्य] ऊँची प्रतिष्ठा वाला, इस समय--प्रमदानामधुना विडंबना–कु. ४।११ । सर्वश्रेष्ठ, बड़ा धनाढय, प्रभुसत्तासम्पन्न स्वामी-इयं | अधुनातन (वि.) [स्त्री०-नी] [अधुना ट्युल-तुट्च] वर्तमहेन्द्र प्रभतीनधिश्रियश्चदिगीशानवमत्य मानिनी-- मान काल से संबंध रखने वाला, आधुनिक । कु. ५।५३ । अधूमकः [न० त०] जलती हुई आग । अधिष्ठानम् [अधि+स्था+ल्युट्] 1 निकट होना, पास में | | अधृतिः (स्त्री०) [न++क्तिन्] 1 दृढ़ता या संयम स्थित होना, पहुँच 2 पद, स्थान, आधार, आसन, | का अभाव शिथिलता 2 असंयम 3 दुःख। जगह, नगर 3 निवास स्थान, आवास, 4 अधिकार, | अघृष्य (वि.) [न० त०] 1 अजेय, दुर्घर्ष, अनभिगम्य शक्ति, नियंत्रणशक्ति 5 सरकार, उपनिवेश 6 चक्र, (विप० अभिगम्य) अधृष्यश्चाभिगम्यश्च यादोरत्न(गाड़ी आदि का) पहिया 7 दृष्टांत, निर्दिष्ट नियम रिवार्णव:- रघु० १११६, 2 लजीला, शर्मीला 8 आशीर्वाद । 3 घमंडी। अधिष्ठित (वि.) [अधि+स्था+क्त] 1 (कर्तवाच्य के | अषोक्ष, अधोक्षज, अषोंऽशक-दे० "अघस" के नीचे । रूप में) (क) स्थित, विद्यमान (ख) अधिकृत (ग) | अध्यक्ष (वि०) [अधिगतम् अक्षम् इन्द्रियम्-प्रा० स०, निदेशन, प्रधानता करना 2 (कर्मवाच्य के रूप में) अध्यक्ष्णोति व्याप्नोति इति-अधि+अक्ष+अचा (क) व्यस्त, अधिकृत (ख) भरा हुआ, प्रस्त, अधि- | गोचर, दृश्य,—यरध्यक्षरथ निजसखं नीरदं स्मारभूत (ग) परिरक्षित, सुरक्षा प्राप्त, अधीक्षित (घ) । यद्भिः-भामि० ४।१७, २ निरीक्षक, अधिष्ठाता, नीत, संचालित, आदिष्ट, प्रधानता किया गया। --क्षः अधीक्षक, प्रधान, मुख्य-मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः अषोकार:=दे० अधिकार; स्वागतं स्वानधीकारानवलंव्य- सूयते सचराचरम्-भग० ९/१०, प्रायः समस्त पदों कु०-२।१८। में; गज', सेना, ग्राम, द्वार। अधीतिन् ( वि० ) [अधीत+इनि] खूब पढ़ा लिखा, | अध्यक्षरम् [प्रा० स०] रहस्यमय अक्षर 'ओम्' । For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८ ) अध्यग्नि (अव्य०) विवाह संस्कार की अग्नि के निकट या । शिक्षक-विशेषतया वेदों का, व्याकरण; न्याय; भूतक ऊपर, (नपुं०-ग्नि) विवाह के अवसर पर अग्नि को अर्थार्थी अध्यापक । विष्णस्मृति के अनुसार अध्यापक साक्षी करके स्त्री को दिया जाने वाला उपहार, धन-- दो प्रकार के है-एक तो 'आचार्य' जो कि बालक को विवाहकाले यत्स्त्रीभ्यो दीयते ह्यग्निसन्निधौ, तदध्य- यज्ञोपवीत पहनाकर वेद-पाठ में दीक्षित करते हैं, दूसरे ग्निकृतं सद्धिः स्त्रीधनं परिकीर्तितम । 'उपाध्याय जो अपनी जीविका कमाने के लिए अध्याअध्यधि (अव्य०) [अधि+अधि] ऊपर, ऊँचे (कर्म० के | पन कार्य करते हैं, दे० मनु० २११४०-४१ । साथ) लोकम्-सिद्धा० । अध्यापनम् [अधि+इ+णि+ल्यट] पढ़ाना, सिखाना, अध्यधिक्षेपः [प्रा० स०] अत्यन्त अपशब्द या दुर्ववचन, व्याख्यान देना, ब्राह्मण के षटकर्मों में से एक, भारतीय कुत्सित गालियां। स्मृतिकारों के अनुसार 'अध्यापन' तीन प्रकार का है अध्यधीन (वि.) [प्रा० स०] नितान्त अधीन, विल्कुल धर्मार्थ किया जाने वाला 2 मजदूरी प्राप्त करने के वशीभूत, जैसे कि दास सेवक-या० ३।२२८ । लिए 3 की गई सेवा के बदले। अध्ययः [अधि+इ+अच्] 1 ज्ञान, अध्ययन, स्मरण 2= | अध्यापयित (पुं०) [अधि+इ+णि+तृ] अध्यापक, दे० अध्याय । शिक्षक। अध्ययनम् [अधि+इ+ ल्युट्] सीखना, जानना, पढ़ना | अध्यायः [अधि+इ+घञ्]1 पढ़ना, अध्ययन, विशेषतः (विशेषतया वेदों का), ब्राह्मण के षट्कर्मों में से एक । वेदों का, 2 पाठ या पढ़ने के लिए उचित समय 3 पाठ, वेदाध्ययन केवल प्रथम तीन वर्गों के लिए विहित है, व्याख्यान 4 खण्ड, किसी रचना के भाग, निम्नांकित शूद्र के लिए नहीं--मनु० १।८८-५१ । कुछ ऐसे नाम हैं जो संस्कृत लेखकों ने 'खण्ड' या अध्यर्ष (वि.) [अधिकमध यस्य] जिसके पास अतिरिक्त 'भाग' को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किये हैं—सर्गों आधा हो-शतमध्यर्धमायता-महा० अर्थात् १५०, बर्ग: परिच्छेदोद्धाताध्यायाङ्कसंग्रह, उच्छ्वासः परिवर्तयोजनशतात्-पंच० २।१८। श्च पटल: कांडमाननम्, स्थानं प्रकरणं चैव पर्वोल्लाअध्यवसानम् [अधि+अव+सो+ल्युट्] 1 प्रयत्न, दृढ़- साह्निकानि च, स्कंधांशी तू पुराणादौ प्रायशः परिनिश्चय आदि, दे० अध्यवसाय 2 (सा. शा० में) | कीर्तितो। प्रकृत और अप्रकृत दोनों वस्तुओं का इस ढंग से | अध्यायिन् (वि.) [अध्याय+णिनि अध्ययन करने वाला, एक रूप करना जिससे कि एक वस्तु दूसरी में विलीन अध्ययनशील। हो जाय; निगीर्याध्यवसानं तु प्रकृतस्य परेण यत्--- अध्यारूढ़ (वि.) [अधि+आ+रह+क्त]1 सवार, चढ़ा काव्य० १०, इसी प्रकार की एकरूपता पर अतिश- हुआ, 2 ऊपर उठा हुआ, उन्नत 3 ऊँचा, श्रेष्ठ, योक्ति अलंकार और साध्यवसाना लक्षणा आश्रित है। नीचा, निम्नतर। अध्यवसायः [अधि--अव+सोधि ] 1 प्रयास, प्रयत्न, | अध्यारोपः [ अधि+आ+रह+णिच-पुक+धा ] 1 परिश्रम 2 दृढ़निश्चय, संकल्प, मानस प्रयत्न या उठना, उन्नत होना आदि 2 (दे० द० में) भ्रमवश विचारों का ग्रहण, 3 धैर्य, उद्यम, लगातार कोशिश । एक वस्तु को अन्यवस्तु समझना, भ्रम के कारण एक अध्यवसायिन् (वि.) [अधि+अव+सो+णिनि] प्रयत्न- वस्तु के गुण दूसरी वस्तु में जोड़ना, भ्रमवश रस्सी को शील, दृढ़संकल्प वाला, धैर्यशाली, उत्साही। सांप समझना-असर्पभूतरज्जो सारोपवत्, अजगद्रूपे अध्यशनम [अधि-अश्+ल्युट] अधिक खाना, एक बार ब्रह्मणि जगद्पारोपवत्, वस्तुनि अवस्त्वारोपोऽध्यारोपः का खाना पचे बिना फिर खा लेना। वे० साल, 3 भ्रान्तिपूर्ण ज्ञान । अध्यात्म (वि.) [आत्मनः संबद्धम्] आत्मा या व्यक्ति से अध्यारोपणम् [ अधि+आ+रह+णि+पु+ ल्युट् ] संबंध रखने वाला,-त्मम् (अव्य०) आत्मा से संबद्ध 1 उठना आदि 2 (बीज) बोना। -रमम् परब्रह्म (व्यक्ति के रूप में प्रकट) या आत्मा अध्यावापः [ अधि+आ+व+घञ ] 1 बीजादिक और परमात्मा का संबंध । सम-ज्ञानम्,-विद्या बखेरना या बोना 2 वह खेत जिसमें बीजादिक बो आत्मा या परमात्मा संबंधी ज्ञान अर्थात् ब्रह्म एवं दिया गया हो। आत्म-विषयक जानकारी (उपनिषदों द्वारा बताये गये अध्यावाहनिकम् [ अध्यावाहनं (पितृगृहात्पतिगृहगमनम्) सिद्धांत)-रति (वि०) जो परमात्मचिन्तन में सुख लब्धार्थे ठन] छ: प्रकार के स्त्रीधनों (वह सम्पत्ति जो का अनुभव करे। एक स्त्री अपने पिता के घर से पति के घर को बिदा अध्यात्मिक (वि.) [स्त्री०-को ] अध्यात्म से सम्बन्ध होते समय प्राप्त करती है) में से एक-यत्पुनर्लभते रखने वाला। नारी नीयमाना तु पैतृकात् (गहात्) अध्यावाहनिक अध्यापकः [ अधि+इ-णिच् +ण्वुल ] पढ़ाने वाला, गुरु, । नाम स्त्रीधनं परिकीर्तितम् । For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९ ) अध्यासः, अध्यासनम् [ अधि+आस+घञ, ल्युट् वा]। प्रायश्चित्तिः–प्रायश्चित्त, पापनिष्कृति, -मीमांसा 1 ऊपर बैठना, अधिकार में करना, प्रधानता करना 2 जैमिनि की पूर्वमीमांसा । आसन, स्थान। अध्वर्यः [अध्वर+क्यच्+यच] 1 ऋत्विक, पुरोहित, पारिअध्यासः [अधि+आस्+घञ] 1 मिथ्या आरोपण, मिथ्या भाषिक रूप से 'होतृ' 'उद्गातृ तथा 'ब्रह्मन्' से अति ज्ञान, दे० 'अध्यारोप' को भी 2 'परिशिष्ट 3 कुचलना रिक्त ऋत्विक, 2 यजुर्वेद। सम० -वेवः यजर्वेद । -पादाध्यासे शतं दम:-या०२।२१७। अध्याति अध्वग। अध्याहारः । [अधि |-आ+ह+घञ, ल्युट् वा] 1 अध्वान्तम् [न० त०] संध्या, अन्धकार | अध्याहरणम् न्यूनपदता को पूरा करना 2 तर्क करना, | का पूरा करना 4 तक करना, | अन् (अदा० पर० सेट्) [ अनिति, अनित 11 सांस लेना, अनुमान करना, नई कल्पना, अन्दाजा या 2 हिलना, जीना, प्रेर० आनयति, सन्नन्त० अनिनिअनुमान । षति । (दिवा. आ०) जीना, 'प्र' उपसर्ग के साथ---- अध्युष्ट्रः [ अधिगतः उष्ट्र वाहनत्वेन ] ऊंटगाड़ी। जीवित रहना-यदहं पुनरेव प्राणिमि—का० ३५, अध्यूढः [ अधि। वह+क्त ] उठा हुआ, उन्नत,-हः । प्राणिमस्तव मानार्थ भामि० ४।३८ । शिव-ढा वह स्त्री जिसके पति ने उसके रहते हुए | अनः [ अन+अच1 साँस, प्रश्वास । दूसरा विवाह कर लिया हो दे० अघिविन्ना। अनंश (वि.) [न० ब० ] जिसका पैतृक सम्पत्ति पर कोई अध्येवणम् [ अधि+इष् + ल्युट् ] किसी कार्य को करने की अधिकार न हो। प्रेरणा देना, विशेषतः आचार्य के द्वारा, अर्थात् आदर अनकदंदुभिः =दे० आनकदुंदुभिः । पूर्वक किसी कार्य में प्रवृत्त करना, –णा निवेदन, | अनक्षः (वि०) [न० ब०] दृष्टिहीन, अंधा । याचना। अनक्षरः (वि.) [न० ब०] 1 बोलने में असमर्थ, मुक, अध्रुव (वि०) [न० त०] 1 अनिश्चित, सन्दिग्ध 2 | गंगा 2 अशिक्षित 3 बोलने के अयोग्य, रम् दुर्दचन अस्थिर, चंचल, पृथक्करणीय, ----बम अनिश्चितता, गाली, निन्दा या अपशब्द, (क्रि० वि०) बिना शब्दों यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रवाणि निषेवते, धूवाणि के~ °व्यंजित दौह देन रघु० १४।२६।। तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव च । अनग्निः [न० त०] 1 अग्नि का न होना, अग्नि के बजाय अध्वन् (पु.) [अद् + क्वनिप् दकारस्य धकारः ] 1 रास्ता, कोई दूसरी वस्तु--यदधीतमविज्ञातं निगदेनैव शब्द्यते, सड़क, मार्ग, नक्षत्र मार्ग २(क) दूरी, स्थान (चलकर अनग्नाविव शुष्कंधो न तज्ज्वलति कहिचित । नि० पार किया गया और पार करने के निमित्त)-अपि 2 अग्नि का अभाव, (वि.) [न० ब०] 1 जिसे लंधितमध्वानं बुबुधे न बुधोपमः-रघु० ११४७, उल्लं. अग्नि की आवश्यकता न हो—विदधे विधिमस्य नैष्ठिघिताध्वा-- मेघ० ४५ (ख) यात्रा, भ्रमण, प्रसरण, के यतिभिः सार्धमनग्निमग्निचित् --रघु० ८।२५, 2 प्रस्थान-नैकः प्रपद्येताध्वानम् मनु०४।६०, 3 समय अग्निहोत्र न करने वाला, 3 श्रौतस्मात कर्म से विर(काल), मूर्तकाल 4 आकारा, अन्तरिक्ष 5 उपाय हित, अधामिक 4 अग्निमांद्य रोग से ग्रस्त 5 अविसाधन, प्रणाली 6 आक्रमण । सम० -ग: 1 मार्ग वाहित । चलने वाला, यात्री, बटोही---सन्तानकतरुच्छाया अनघ (वि.) [न० ब०] 1 निष्पाप, निरपराध-अवमि सुप्तविद्याघराध्वगम्-कु० ६।४६ (गामिन्), 2 चनामनति-रघु० १४१४०, 2 निर्दोष, सुन्दर, ऊँट 3 खच्चर 4 सूर्य, -गा गंगा, --पतिः सूर्य, --रूपमनघम्-श० २।१३, यस्य ज्ञानदयासिंघोरगा-रयः 1 यात्रा करने के लिए गाड़ी 2 हरकारा जो घस्यानघा गुणा:-अमर० 3 सकुशल, घातरहित, चलने में चतुर हो। अक्षत, सुरक्षित--कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूति:-रघु. अध्वनीन (वि.) [अध्वन+ख, यत् वा यात्रा पर जाने ५।७, मृगवघूर्यदा अनघप्रसवा भवति–श०४, जिसका मध्वन्य । के योग्य, तेज चलने वाला—क्षिप्रं ततोऽध्वन्य- प्रसव सकुशल हो चुका हो या जो प्रसव के पश्चात् तुरंगयात्री-भट्टि० २।४४,--नः, -न्यः तेज सकुशल शय्या पर लेटी हो 4 पवित्र, निष्कलंक,-- चलने वाला यात्री, बटोही। 1 सफेद सरसों, 2 विष्णु या शिव का नाम । अध्वरः [अध्वानं सत्पथं राति–इति अध्वन+रा+क | अनसकुश (वि.) [ न० ब०] 1 उदंड, उच्छृखल 2 अथवा न वरति कुटिलो न भवति नच +व+अच, (कवि की भांति) स्वच्छन्द । ध्वरतिहिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधो निपातः अहिंस्र-निरु०1/ अनङ्ग (वि.) [न० ब०] देहरहित, अशरीरी, आकृतिहीन यश, धार्मिक संस्कार, सोमयाग, तमध्वरे विश्वजिति त्वमनंगः कथमक्षता रतिः-कु. ४१९, -गः (देहर -रघु० ५।१, ---२ः, -रम् आकाश या वायु ।। हित), कामदेव -गम 1 आकाश, वायु, अन्तरिक्ष, सम० -दीक्षणीया अध्वर संबंधी संस्कार, इसी प्रकार । 2 मन । सम० -क्रीडा कामक्रीडा, -लेख-मदन For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेख, प्रेमपत्र, लेखक्रिययोपयोगं (बजन्ति) कु. २७, सोता है,—पार (वि.) असीम विस्तारयुक्त, निस्सीम, °शत्रुः, °असुहृत् आदि-शिव जी के नाम । -रं किल शब्दशास्त्रम्-पंच० १,-रूप (वि०) अनञ्जन (वि.)[न.ब.] बिना अंजन, वर्णक या काजल अगणित रूपवाला, विष्णु,-विजयः युधिष्ठिर का के--नेत्रे दूर मनञ्जने-सा० द०,-नम् 1 आकाश, शंख-भग० श२६ । वातावरण 2 परब्रह्म विष्णु या नारायण (पं. भी)। | अनन्तर (वि०) नास्ति अंतरं यस्य-न० ब०] 1 अन्तरअनडह, (पुं०) [ अनः शकटं वहति–नि० ] [ अनड्वान्, रहित, सीमारहित 2 जिसके बीच देश काल का ड्वाही, डुद्भवाम् आदि० ] 1 बैल, सांड 2 वृष कोई अन्तर न हो, सटा हुआ, लगा हुआ 3 संसक्त, राशि, ही (अनड्वाही) गाय । पड़ोस का, बिल्कुल मिला हुआ, निकटवर्ती (अपादान अनति (अव्य०) [न० त०] बहुत अधिक नहीं, 'अनति' के साथ) ब्रह्मावर्तादनन्तरः-मन० २।१९, 4 अनुसे आरम्भ होने वाले समस्त पदों का विश्लेषण 'अति' वर्ती, सन्निहित होना (समास में) 5 अपने से ठीक से आरम्भ होने वाले शब्दों की भांति किया जा नीचे के वर्ण का,---रम् 1 संसक्तता, सन्निकटता 2 सकता है। ब्रह्म, परमात्मा, रम् (अव्य०) तुरन्त बाद, पश्चात् अनतिविलंबिता--विलम्ब का अभाव, व्याख्यानदाता का 2 (संबंधवाचकता की दृष्टि से) बाद में, (अपादान एक गुण धाराप्रवाहिता, ३५ वाग्गुणों में से एक।। के साथ )-पुराणपत्यापगमानन्तरम्-रघु० ३७, अनद्यतन वि० [स्त्री०--नी] [न० त०] आज या चालू गोदानविधेरनन्तरम्-३।३३ ३६,२,७१। सम-ज दिन से संबंध न रखने वाला, पाणिनि का एक पारि या-जा 1 क्षत्रिय या वैश्य माता में, अपने से ठीक भाषिक शब्द जो लङ और लट् लकार के अर्थ को ऊपर के वर्ण के पिता के द्वारा उत्पन्न सन्तान-मनु० प्रकट करता है, --नः जो चाल दिन न हो, अतीताया १०।४ 2 'तरपरिया' भाई बहन, (-जा) छोटी या बड़ी रात्रः पश्चार्थेन आगामिन्या रात्रे पूर्वार्धन सहितो बहन-अनुष्ठितानंतरजाविवाहः-रघु० ७।३२ इसी दिवसोऽनद्यतन:-सिद्धा०, तद्भिन्नः कालः । प्रकार °जात। अनधिक (वि.) [न० त०]1जो अधिक न हो, 2 असीम | अनन्तरीय (वि.) [अनंतर+छ] वंशक्रम में ठीक बाद का। पूर्ण। अनन्य (वि.) [न० त०] 1 अभिन्न, समरूप, वही, अद्विअनधीनः [न० त०] अपनी इच्छा से कार्य करने वाला तीय 2 एकमात्र, अनुपम, जिसके साथ और दूसरा न स्वाधीन बढ़ई, कौटतक्ष । हो 3 अविभक्त, एकाग्र, अन्य की ओर न जाने वाला, अनध्यक्ष (वि०) [न० त०] 1 अप्रत्यक्ष, अदृश्य 2 शासक -अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते-भग. हीन। ९।२२, समास में 'अनन्य' शब्द का, अनुवाद किया जा अनध्यायः [न० त०] न पढ़ना, पढ़ाई में विराम, बह सकता है- 'दूसरे के द्वारा नहीं और किसी ओर लग्न अनध्ययनम् समय जब कि इस प्रकार का विराम होता या निदेशित नहीं' 'एकाश्रयी'। सम-गतिः (स्त्री०) है या होना चाहिए, एक अवकाश का दिन (°दिवसः) एकमात्र सहारे वाला-अनन्यगतिके जने विगतपातके अद्य शिष्टानध्यायः--उत्तर० ४-किसी पूज्य अतिथि | चातके-उद्भट;-चित्त,-चित,-चेतस्, --मनस, के सम्मान में दिया गया अवकाश । -मानस,-हृदय (वि.) एकाग्रचित्त, जिसका मन अननम् [अन्+ल्युट्] सांस लेना, जीना। और कहीं न हो;-जः,-जन्मन् (पुं०) कामदेव, अननुभावुक (वि.) जो समझने के अयोग्य हो। प्रेम का देवता—मा मूमुहन्खलु भवंतमनन्यजन्मा-मा० अनन्त (वि.) [नास्ति अन्तो यस्य न० ब०] अन्तरहित, २३२,--पूर्वः वह पुरुष जिसके और कोई स्त्री न हो; अपरिमित, निस्सीम, अक्षय,-रत्नप्रभवस्य यस्य (--) कुमारी,, बिनब्याही स्त्री-रघु० ४१७; कु० ११३,--तः 1 विष्णु की शय्या शेषनाग, कृष्ण, --भाज् (वि.) किसी और व्यक्ति की ओर लगाव न बलराम, शिव, नागों का पति वासुकि 2 बादल 3 रखने वाला;-अनन्यभाजपतिमाप्नुहि-कु० ३।६३; कहानी, 4 चौदह ग्रन्थियों से युक्त रेशमी डोरा जो -विषय (वि.) किसी और से संबंध न रखने वाला, अनंत चतुर्दशी के दिन दक्षिण भुजा पर बांधा जाता -वृत्ति (वि.) 1 वैसे ही स्वभाव का 2 जिसकी है;-ता 1 पृथ्वी (अन्तहीन) 2 एक की संख्या 3 दूसरी जीविका न हो 3 एकनिष्ठ मनोवृत्ति वाला; पार्वती 4 शारिवा, अनंतमूल, दूर्वा आदि पौधे; -सामान्य, साधारण (वि०) दूसरे से न मिलने -तम् 1 आकाश, वातावरण 2 असीमता 3 मोक्ष 4 वाला, असाधारण, ऐकान्तिक रूप से लगा हुआ, बेलपरब्रह्म। सम०--तृतीया वैशाख, भाद्रपद और गाव, अनन्यनारी सामान्यो दासस्त्वस्याः पुरूरवाःमार्गशीर्ष मास की शुक्लपक्ष की तीज-वृष्टिः शिव, विक्रम० ३।१८ राजशब्द:--रघु० ६।३८;-सदृश इन्द्र, देवः 1 शेषनाग 2 नारायण जो शेषनाग के ऊपर | (वि.) [स्त्री०-शी] बेजोड़, अनुपम । For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्वयः [न० त०] 1. बंध का अभाव 2 (सा० शा०) । अनम्याश-स (वि.) [ न० ब० ] जो निकटस्थ न हो, एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु की तुलना उसी से दूरस्थ आदि °समित्य (वि०) दूर से ही विदकने वाला की जाय-और उसको ऐसा बेजोड़ सिद्ध किया जाय सिद्धा। जिसका कोई और उपमान ही न हो। जैसे | अनभ्र (वि.) [ न० ब०] बिना बादलों के, इयमनभ्रा गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः, रामरावणयोर्यद्धं वृष्टि:--यह तो बिना ही बादलों के आकाश से वृष्टि रामरावणयोरिव ।। होने लगी-अर्थात् अप्रत्याशित या आकस्मिक घटना । अनप (वि.) [न० ब०] जलहीन (जैसे क्षुद्रजलाशय)। | अनमः [न० त०] वह ब्राह्मण जो दूसरों को न तो नमस्कार अनपकारणम्) [न० त०] 1 चोट न पहुंचाना 2 सुपुर्दगी करता है और न उनके नमस्कार का उत्तर देता है। अनपकर्मन् का अभाव 3 (कानून में) ऋण न | अनमितम्पच (=मितंपच) (वि.) [ न० त०] कंजस, अनपक्रिया ) चुकाना। मक्खीचूस । अनपकारः (न० त०) अहित का अभाव-कारिन् (वि.) । अनम्बर (वि०) [ न० ब० ] वस्त्र न पहने हुए, नंगा-- __ अहित न करने वाला, निर्दोष । बौद्ध भिक्षु । अनपत्य (वि.) [न० ब०] सन्तानहीन, निस्सन्तान, | अनयः [ न० त०] 1 दुर्व्यवस्था, दुराचरण, अन्याय, जिमका कोई उत्तराधिकारी न हो। अनीति 2 दुर्नीति, दुराचार, कुमार्ग 3 विपत्ति, दुःख, अनपत्रप (वि०) [ न० ब० ] घृष्ट, निर्लज्ज। मनु० १०।९५, 4 दुर्भाग्य, बुरी किस्मत 5 जूआ अनपभ्रंशः [ न० त०] वह शब्द जो भ्रष्ट न हो, व्याकरण | खेलना। की दृष्टि से शुद्ध शब्द। अनर्गल (वि.)न० ब० स्वेच्छाचारी, अनियंत्रित-तुरंगअनपसर (वि०) [ न० ब०] जिसमें से निकलने का कोई मुत्सृष्टमनर्गलम्-रघु० ३।३९ 2 जिसमें ताला न मार्ग न हो, अन्यायोचित, अक्षम्य,-रः बल पूर्वक लगा हो। अधिकार करने वाला। अनर्घ (वि.) [न० ब०] अनमोल, अमूल्य, जिसके मूल्य अनपाय (वि.) [ न० ब० ] 1 हानि या क्षय से रहित, का अनुमान न लगाया जा सके,-घः गलत या अनु 2 अनश्वर, अक्षीण, अक्षयी-प्रणमन्त्यनपायमुत्थितम् चित मूल्य । (चन्द्रम्) कि० २।११,-यः [ न० त०] 1 अन- अनर्घ्य (वि०) [न० त०] अमूल्य, सर्वाधिक सम्मान्य । श्वरता, स्थायिता 2 शिव । अनर्थ (वि०) [न० ब०] 1 अनुपयुक्त, निकम्मा 2 भाग्यअनपायिन् (वि.) [अनपाय+णिनि] अनश्वर, दृढ़, स्थिर, हीन, सुखरहित 3 हानिकारक 4 अर्थहीन, निरर्थक, अचुक, सतत टिकाऊ, अचल-प्रसादाभिमुखे तस्मिन् -र्थः [न० त०] 1 उपयोग या मूल्य का न होना 2 श्रीरासीदनपायिनी-रघु० १७१४६, ८1१७, अनपा- निकम्मी या अनुपयुक्त वस्तु 3 विपत्ति, दुर्भाग्य--- यिनि संशयमे गजभग्ने पतनाय वल्लरी-कु० ४।३१ । रंध्रोपनिपातिनोऽर्थाः-श० ६, छिद्रेष्वना बहलीअनपेक्ष-क्षिन् (वि०) [ न० ब०, न० त०] 1 असाव- भवन्ति 4 अर्थ का न होना, अर्थ का अभाव। सम० घान 2 लापरवाह, परवाह न करने वाला, उदासीन -कर (वि.) [स्त्री०-री अनिष्टकर, हानिकर। 3 स्वतंत्र, दूसरे की अपेक्षा न रखने वाला, 4 निष्पक्ष | अनर्थ्य, अनर्थक (वि०) [न० त०] 1 अनुपयुक्त, निरर्थक 5 असंबद्ध;-क्षा [ न० त०] असावधानी, उदा- 2सारहीन 3 अर्थ हीन 4 लाभ रहित 5 दुर्भाग्यपूर्ण, सीनता-क्षम् (क्रि० वि०)विना ध्यान के, स्वतंत्र रूप --कम् अर्थहीन या असंगत बात । से, परवाह न करते हुए, बेपरवाही से। अनर्ह (वि.) [न० त०] 1 अनधिकारी, अयोग्य 2 अनअनपेत (वि.) [न० त०] 1 जो दूर न गया हो, बीता प युक्त (संब० के साथ या समास में)। न हो 2 विचलित न हुआ हो (अपा के साथ) अर्था- अनलः नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य-न० ब०] 1 आग 2 अग्नि दनपेतम् अर्थ्यम्-सिद्धा० 3 अविरहित, सम्पन्न- या अग्निदेवता 3 पाचनशक्ति 4 पित्त । सम० ऐश्वर्यादनपेतमीश्वरमयं लोकोऽर्थत: सेवते-मद्रा० – (वि.) [अनलं द्यति] 1 गर्मी या आग को नष्ट करने वाला, 2=दे० अग्निद –दीपन (वि.) जठअनभिज्ञ (वि.) [ न० त०] अनजान, अपरिचित, राग्नि या पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला,--प्रिया अग्नि अनभ्यस्त (प्रायः संब० के साथ) ज्ञः कैतवस्य-श. की पत्नी स्वाहा,--सादः क्षुधा का नाश, अग्निमांद्य । ५, ज्ञः परमेश्वरगृहाचारस्य—महा० २। अनलस (वि.) [न० त०] 1 आलस्यरहित, चुस्त, परिश्रमी अनम्यावृत्ति (स्त्री०) [न० त० ] पुनरुक्ति का अभाव- 2 अयोग्य, असमर्थ ।। मनागनभ्यावृत्त्या वा कामं क्षाम्यतु यः क्षमी-शि० अनरुप (वि.) [न० त०] 1 बहुसंख्यक 2 जो थोडा न २०४३ | हो, उदाराशय, उदार (जैसा कि मनु आदि) अधिक, For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) जल्पंत्यनल्पाक्षरम् --पंच० १।१३६ विकसितवदनाम- | अनवेक्षक (वि०) [ न० त० ] असावधान, बेपरवाह, नल्पजल्पेपि-भामि० १११००, २११३८ । उदासीन। अनवकाश (वि.) [न० ब०] 1 अनाहत, 3 अप्रयोज्य 2 | अनवेक्ष-क्षा-दे० अनपेक्ष-क्षा। जिसके लिए कोई गुंजायश या मौका न हो,-शः अनवेक्षणम् [न +अ+ईक्ष+ ल्युट् लापरवाही, अन[न० त०] स्थान या कार्यक्षेत्र का अभाव । वधानता। अनवग्रह (वि.) [न० ब०] जो रोका न जा सके-सुकुमार अनशनम् [ ना +अश् + ल्युट् ] उपवास, आमरण कायमनवग्रहः स्मरः (अभिहंति) मा० ११३९ । उपवास। अनवच्छिन्न (वि.) [न० त०] 1 सीमांकन रहित, अपृथ अनश्वर (वि.) [स्त्री०-री] [न० त०] अविनाशी। कृत 2 सीमारहित, अधिक 3 अनिर्दिष्ट, अविविक्त, अनस् (पुं०) [अन् । असुन] 1 गाड़ी 2 भोजन, भात 3 अविकृत 4 अबाधित। जन्म, 4 प्राणी 5 रसोईघर। अनवद्य (वि.) [न० त०] निर्दोष, कलंकरहित, अनिंद्य -... | - | अनसूय-यक (वि०) [न० ब०] द्वेष रहित, ईर्ष्यारहित, रघु० ७१७०। सम०–अंग,- रूप (वि०) निर्दोष -या न० त०] 1 ईर्ष्या का अभाव, 2 अत्रि की पत्नी, या नितान्त सुन्दर अंगों वाला ( -गी) रूपवती । स्त्रियोचित पतिभक्ति और सतीत्व का ऊँचा नमना। स्त्री। अनहन् (नपुं०) [न० त०] बुरादिन, दुर्दिन । अनवधान (वि.) [न० ब०] निरपेक्ष, ध्यान न देने वाला, अनाकालः [न० न० नि.] 1 कुसमय 2 दुभिक्ष (संभ-नम् [न० त०] प्रमाद, असावधानता, ता- वतः "अन्नाकाल" शब्द का अनियमित रूप)। सम० लापरवाही । -भतः--जो व्यक्ति दुर्भिक्ष में भूख से अपने आपको अनवधि (वि.) [न० ब०] असीमित, अपरिमित । बचाने के लिए स्वयं दूसरे का दास बन जाता है । अनवम (वि०) [न० त०] जो नीच या तुच्छ न हो, बड़ा, | अनाकुल (वि.) [ न० त० 11 शान्त, प्रकृतिस्थ, स्वस्थ श्रेष्ठ, सुधर्मानबमां सभाम्-रघु० १६।२७, ९।१४। 2 अटल। अनवरत (वि०) [न० त०] अविराम, निरंतर-धनुर्ध्या- | अनागत (वि०) [ न० त०] 1 न आया हुआ, न पहुंचा स्फालनक्रूरपूर्वम् श० २।४,-तम् (क्रि० वि०) बिना हुआ तावद्भयस्य भेतव्यं यावद्भयमनागतम्-हि० रुके, लगातार । ११५७, 2 अप्राप्त, जो न मिला हो 3 भविष्यत्, आने अनवराय (वि०) [अवरस्मिन् अर्धे भवः---इत्यर्थे नत्र + वाला, दे० नीचे सम० को 4 अज्ञात,-तम् भविष्य___ अवराध+ यत् न० त०] मुख्य, सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ । काल, भविष्य । सम-अवेक्षणम् भविष्य की ओर अनवलंब–बन (वि.) [न० त०] अवलंबहीन, निराश्रित- देखना, आगे की ओर दृष्टि रखना,-अबाधः आन —बः,-बनम् स्वतंत्रता।। वाला भौतिक कष्ट या विपत्ति,-आर्तवा वह कन्या अनवलोभनम् नि० त०] गर्भ के तीसरे मास किया जाने जिसका मासिक स्राव अभी आरम्भ न हुआ हो, अरवाला एक संस्कार। जस्का,-विधातु (पुं०) आने वाले अनिष्ट का पहले अनवसर (वि.) [न० ब०] 1 व्यस्त 2 निरवकाश,-रः। ही से निराकरण करने वाला, भविष्य के विषय में [न० त०]। अवकाश का अभाव, कुसमय होना, सावधान, दूरदर्शी (पंच० ११३१८ तथा हि० ४।५ में असामयिकता, कं याचे यत्र यत्र ध्रुवमनवसरग्रस्त इस नाम की एक मछली)। एवाथिभाव:----मा० ९/३० । अनागमः [न० त०] 1 न आना 2 अप्राप्ति। अनवस्कर (वि०) [न० ब०] मलरहित, स्वच्छ, साफ । अनागस् (वि.) [ न० ब०] निरपराध, निर्दोष--आर्तअनवस्थ (वि०)[न० त०] अस्थिर,—स्था [न० त०] 1 त्राणाय व: शस्त्रं नः प्रहर्तुमनागसि-श० ११११ । अस्थिरता 2 अनिश्चित अवस्था 2 चरित्रभ्रष्टता, अनाचारः [न० त०] अनुचित आचरण, दुराचरण, कुरीति । लम्पटता 3 (दर्शन में) किसी अन्तिम निर्णय पर न अनातप (वि०) [ न० ब०] धूप या गर्मी से युक्त, पहुँचना, कार्य-कारण की ऐसी परंपरा जिसका अन्त ताप रहित, ठंडा। न हो, तर्क का एक दोष-एवमप्यनवस्था स्याद्या मूल- | अनातुर (वि.) [ ब० त०] 1 अनुत्सुक, उदासीन 2 न क्षतिकारिणी-काव्य० २ एवं च प्रसंगः-शा। थका हुआ, अक्लांत--भेजे धर्ममनातुर:-रघु ११२१ अनवस्थान (वि०) [न० ब०] अस्थायी, अस्थिर, चंचल, ३ अच्छा, स्वस्थ । -नः वायु-नम् [न० त०] 1 अस्थिरता, 2 आचा- | अनात्मन् (वि.) [ न० ब० ] 1 आत्मा या मन से रहित रभ्रष्टता, लम्पटता। 2 अनात्मिक 3 जिसने अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रक्खा अनवस्थित (वि.) [न० त०] 1 अस्थिर, अस्थिरचित्त 2 है,--(पुं०) जो आत्मिक न हो, आत्मा से भिन्न परिवर्तित 3 आवारा। अर्थात् नश्वर शरीर। सम-ज,--वेदिन् (वि.) For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) अपने आपको न जानने वाला, मुर्ख, जड-मा तावद- गणनाप्रसंगे कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासा, अद्यापि नात्मज्ञे-श०६,-संपन्न (वि.) मुर्ख। तत्तल्यकवेरभावादनामिका सार्थवती बभूव । सुभा०। अनात्मनोन (वि०) [नञ+आत्मन् +ख जो अपने ही | अनायत्त (वि.) [न० त०] जो दूसरे के वशीभूत न हो, लाभ के लिए कार्य करने का अभ्यस्त न हो, निः | तो रोषस्य का० ४५ जो क्रोध के वशीभूत न हो, स्वस्वार्थ, स्वार्थ रहित। तंत्र--एतावज्जन्मसाफल्यं यदनायत्तवत्तिता-हिं० अनात्मवत् (वि०) [आत्मा वश्यत्वेन नास्ति इत्यर्थे- २।२२, स्वतंत्र जीविका। • ना +आत्मन् मत्प् न० त०] असंयमी, इन्द्रिय | अनायास (वि.) [न० त०] जो कष्टप्रद या कठिन न हो, परायण। आसान,-ममाप्येकस्मिन् °से कर्मणि त्वया सहायेन अनाथ (वि.) [ न० ब०] असहाय, निर्धन, त्यक्त, मात- भवितव्यम्-श०२,-स: 1 सरलता, कठिनाई का पितहीन, बिना मां-बाप का बच्चा, विधवा स्त्री, अभाव,---°सेन आसानी से, बिना किसी कठिनाई के । सामान्यतः जिसका कोई रक्षक न हो-नाथवन्तस्त्वया । अनारत (वि.) [न० त०] 1. अनवरत, निरन्तर, अबाध लोकास्त्वमनाथा विपत्स्यसे उत्तर० ११४३ । सम० 2 नित्य, ----तम् (अव्य०) लगातार, नित्यरूप से - -सभा अनाथालय। अनारतं तेन पदेष लंभिता: --कि० ११५, ४०। अनादर (वि०) [ न० ब०] उदासीन, उपेक्षावान्, अनारम्भः [न० त०] आरम्भ न होना-विकारं खलु ..--रः [न० त०] अवहेलना, तिरस्कार, अवज्ञा-षष्ठी- परमार्थतोऽज्ञात्वा ° भः प्रतीकारस्य-श० ३। चानादरे--पा० २१३, ३८ । अनार्जव (वि०) [न० त०] कुटिल, बेईमान-वम् 1 अनादि (वि.) [न० ब०] आदि रहित, नित्य, अनादि- कुटिलता, कपट 2 रोग। काल से चला आता हुआ,--जगदादिरनादित्व-कु० | अनार्तव (वि.) [स्त्री०-वी] [न०त०] असामयिक-वा वह २१६ । सम०.-अनन्त,-अन्त (वि.) आदि और | कन्या जो अभी तक रजस्वला न हुई हो। अन्त रहित, नित्य (–तः) शिव,--निधन (वि.) अनार्य (वि.) [न० त०] अप्रतिष्ठित, नीच, अधम जिसका आरंभ और समाप्ति न हो, शाश्वत, मध्यान्त ---य: 1 जो आर्य न हो, 2 वह देश जहाँ आर्य न हों, (वि०) जिसका आदि, मध्य और अन्त कुछ भी न हो, 3 शूद्र 4 म्लेच्छ 5 कमीना। नित्य । अनार्यकम् [ अनार्य देशे भवम् --अनार्य+क] अगर की अनादीनव (वि०) [न०1० 1 निर्दोष,-यदासदेवेनादी- | लकडी। नमनादीनवमीरितम्-शि० २।२२ । अनार्ष (वि.) [न० त०] 1 जो ऋषियों से सम्बन्ध न अनाद्य (वि.) [ न० त०] 1 =दे० अनादि, 2 अभक्ष्य, | रखता हो, अवैदिक-संबुद्धौ शाकल्यस्येतो अनार्षेखाने के अयोग्य । पा० १११११६, (=-अवैदिके-सिद्धा०) 2 जो ऋषिअनानुपूर्व्यम् | न० त०] 1 दूसरे पदों के बीच में आ जाने प्रोक्त न हो। के कारण समास के विभिन्न पदों का पृथक्करण 2 | अनालंब (वि.) [न० ब०] असहाय, अवलंबहीन -ब: नियत क्रम में न आना। ___ अवलंब का अभाव, नैराश्य, –ी शिव की वीणा। अनाप्त (वि.) [ न० त०] 1 अप्राप्त 2 अयोग्य, अकु- | अनालंबु (भु) का [ न० त०] रजस्वला स्त्री। शल -प्तः अजनवी। अनावतिन् (वि.) [न० त०] फिर न होने वाला, फिर अनामक 1 (वि० )[ न० ब० स्वार्थ कन्] बिना नाम का, न लौटने वाला। अनामन् । अप्रसिद्ध,-(पुं०) 1 मलमास 2 कनिष्ठिका | अनाविद्ध (वि०) [ न० त०] न बिधा हुआ, जिसमें छिद्र तथा मध्यमा के बीच की अंगली दे० नीचे 'अना- न किया गया हो। मिका'।-(नपुं० ) बवासीर । अनावृत्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1 फिर न लौटना 2 फिर अनामय (वि) [ नास्ति आमयः रोगो यस्य न० ब० ] स्व- जन्म न होना, मोक्ष।। स्थ, तंदुरुस्त,-यः,-यम् स्वास्थ्य अच्छा होना- | अनावृष्टिः (स्त्री०) [न० त०] सूखा पड़ना, 'ईति' का महाश्वेता कादम्बरीमनामयं पप्रच्छ-का० १९२, एक भेद । उसके स्वास्थ्य के विषय में पूछताछ की,—यः विष्णु | अनाश्रमिन् (पु.) [न० त०] जो जीवन के चार आश्रमों (कइयों के मत में 'शिव')। में से किसी को न मानता हो, न किसी से सम्बन्ध रखता मनामा, अनामिका [ नास्ति नाम अन्यांगुलिवत् यस्याः- हो। अनाश्रमी न तिष्ठेत्तु क्षणमेकमपि द्विजः-स्म। स्वार्थे कन् ] कानी तथा बिचलो अंगुली के बीच की | अनाश्रव (वि.) [ नश्+आ+श्रु+अच् ] जो किसी की अंगुली-इसका यह नाम इस लिए पड़ा कि दूसरी अंगु- न सुने, ढीठ, किसी की बात पर कान न दे-भिषजालियों की भांति इसका कोई नाम नहीं; पुरा कवीनां । मनावः रघु० १९:४९ । For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४ ) अनावस् (वि.) [ना + अश् + क्वसु नि०] जिसने | अनिभृत (वि०) [ न० त०] 1 सार्वजनिक, प्रकाशित, जो भोजन न किया हो, उपवास रखने वाला ! छिपा न हो, 2 धृष्ट, साहसी 3 अस्थिर, अदृढ़। दे० अनास्था [न० त०] उदासीनता, तटस्थता, आस्था का | 'निभूत' भी। अभाव–अनास्था बास्यवस्तुषु-कु. ६।६३, पिडेष्व- | अनिमकः [अन्+इमन्-अनिमः-जीवनं तेन कायते प्रकानास्था खलु भौतिकेषु-रघु० २०५७, स्त्री पुमानित्य- शते के+क] 1 मेंढक 2 कोयला 3 मधुमक्खी। नास्यैषा वृत्तं हि महितं सताम् --कु० ६।१२, 2 श्रद्धा अनिमित्त (वि.) [न० ब०] निष्कारण, निराधार, आकया विश्वास का अभाव, अनादर। स्मिक,--आलक्ष्यदंत मकुलाननिमित्तहासैः-श०७।१७, अनाहत (वि.) [न० त०] 1 आषातरहित, 2 कोरा -तम् 1 पर्याप्त कारण का अभाव 2 अपशकुन, बुरा या नया। शकुन-ममानिमित्तानि हि खेदयंति-मच्छ० १०,अनाहार (वि.) [न० ब० ] बिना भोजन के रहने वाला, (क्रि०वि०) तः-अकारण, बिना हेतु के। सम० उपवास करने वाला -र: [न० त०] भोजन न --निराक्रिया अपशकुनों का निराकरण। करना, उपवास रखना। अनिमि (मे) ष (वि.) [न० ब०] टकटकी लगाये एक अनाहतिः (स्त्री०) [न० त०11 होम का न होना, कोई स्थान पर जमा रहने वाला, बिना आँख झपके-शतहोम जो होम कहलाने के भी योग्य न हो 2 एक अनु- स्तमक्षणामनिमेषवृत्तिभि:-रघु० ३।४३,-ब: 1 देवता चित आहुति । 2 मछली 3 विष्णु । सम०-दृष्टि,-लोचन (वि.) अनाहत (वि.) [न० त०] न बुलाया हुआ, अनिमन्त्रित,। टकटकी लगा कर या स्थिर दृष्टि से देखने वाला। सम-उपजल्पिन बिना बुलाया वक्ता, -उपविष्ट | अनियत (वि.) [न० त०] 1 अनियंत्रित 2 अनिश्चित, (वि०) अनिमंत्रित अभ्यागत के रूप में बैठा हुआ। । संदिग्ध, अनियमित (रूप भी) 'वेलम् आहारोऽश्यते अनिकेत (वि.) [ न० ब० ] गृहहीन, आवारागर्द, जिसका --श० २, 3 कारणरहित, आकस्मिक 4 नश्वर । कोई नियत वासस्थान न हो (जैसे संन्यासी)। सम-अंकः अनिश्चित अंक (गणित में),-आस्मन् अनिमीर्ण (वि.) [न० त०] 1 न निगला हुआ 2 (सा. (वि.) जिसका मन अपने वश में न हो,-पुंस्का शा० में) जो गुप्त या छिपा हुआ न हो, प्रस्तुत, दुश्चरणशील स्त्री, व्यभिचारिणी,-वृत्ति (वि.) 1 व्यक्त। बंधा काम करने वाला, (शब्द) जिसका प्रयोग निश्चित अमिच्छ-ग्छक ) (वि.) [नास्ति इच्छा यस्य न० ब०, | न हो, जिसकी आय नियत न हो। मनि-छुक नश् + इच्छुक, न +इष् + शतृ न० | अनियंत्रण (वि.) [न.ब.] असंयत, अनियंत्रित, स्वतंत्र अनिच्छत् )त०] न चाहता हुआ, इच्छारहित, बिना °अनुयोगो नाम तपस्विजन:-श० १। इच्छा के। अनियमः [न० त०] 1 नियम का अभाव ; नियंत्रण; अनित्य (वि.) [न० त०] 1 जो नित्य न हो, सदा रहने अधिनियम या निश्चित क्रम का अभाव, निदेश या व्य वाला न हो, क्षणभंगुर, अशाश्वत, नश्वर 2 क्षणस्थायी वस्थित नियम का अभाव-पंचमं लघु सर्वत्र सप्तमं आकस्मिक, जो नियमत: अनिवार्य न हो, विशेष, 3 द्विचतुर्थयोः, षष्ठे पादे गुरुज्ञेयं शेषेष्वनियमो मतः । छं. असाधारण, अनियमित, 4 अस्थिर, चंचल, ५ अनि- मं० 2 अनिश्चितता, निश्चयाभाव, संदेह 3 अनुचित श्चित, संदिग्ध-विजयस्य नित्यत्वात—पंच.३॥ आचरण। २२, -त्यम् (क्रि० वि०) कदाचित, अकस्मात । | अनिवक्त (वि.) [न० त०] 1 स्पष्ट रूप से न कहा हुआ सम० कर्मन, -क्रिया आकस्मिक कार्य जैसा कि 2 स्पष्ट रूप से व्याख्या न किया हुआ, जिसकी परिकिसी विशेष निमित्त से किया जाने वाला यज्ञ, ऐच्छिक भाषा स्पष्ट न दी गई हो, अस्पष्ट निर्वचन सहित । या सामयिक अनुष्ठान, दत्तः, ---वत्तकः, -दत्रिमः, अनिवड (वि.) [न० त०] बिना रोकटोक वाला, स्वमाता पिता के द्वारा अस्थायी रूप से किसी को दिया तंत्र, अनियंत्रित, स्वच्छंद, उच्छृखल, उद्दाम,-स: 1 गया पुत्र,-भावः क्षणभंगुरता, क्षणभंगुर स्थिति गुप्तचर 2 प्रद्युम्न के एक पुत्र का नाम । सम-पथम् -समासः वह समास जो प्रत्येक स्थिति में अनिवार्य 1 ऐसा मार्ग जहाँ कोई रोक न हो, 2 आकाश, अन्तन हो (जिसका भाव अलग-अलग विश्लिष्ट पदों द्वारा रिक्ष,-भाविनी अनिरूद्ध की पत्नी उषा। भी समान रूप से प्रकट किया जाय) । अनिर्णयः [न० त०] अनिश्चितता, निर्णय का अभाव । अनिद्र (वि.) [न.ब.] निद्रारहित, जागने वाला, अनिर्दश । (वि.) [न निर्गतानि दशाहानि यस्य ] बच्चे (आलं०) जागरूक। अनिर्वशाह के जन्म या मरण के फलस्वरूप अशौच के दस भनिन्त्रियम् [न० त०] 1 तर्क 2 जो इन्द्रिय का विषय न दिन जिसके न बीते हों। हो, मन। । अनिर्देशः [न० त०] निश्चित नियम या निदेश का अभाव। १०] 1 तर जागने वाला / अनिल-भावित For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनिर्देश्य (वि.) [न० त०] अपरिभाषणीय, अवर्णनीय । हो, जिसका निराकरण न किया गया हो (दोषारोपण -श्यं परब्रह्म की उपाधि । की भांति)। अनिर्धारित (वि.) [न० त०] जिसका कोई निर्णय या | अनीक:-कम् [ अन् + ईकन ] 1 सेना, संन्यपंक्ति, सैनिक निश्चय न हुआ हो। दस्ता, दल, दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकम्--भग०-११२2 अनिर्वचनीय (वि०) [न० त०] 1 कहने के अयोग्य, समुह, वर्ग 3 संग्राम, लड़ाई, युद्ध 4 पंक्ति, श्रेणी, अवर्णनीय 2 वर्णन करने के अयोग्य-यम् (वेदान्त में) चलती हुई सेना की टुकड़ी 5 अग्रभाग, प्रधान, मुख्य । 1 माया, भ्रम, अज्ञान, 2 संसार । सम-स्थ: 1 योद्धा 2 सिपाही (सुसज्जित), पहरेअनिर्वाण (वि.) [न० ब०] अनधुला, जिसने अभी स्नान | दार 3 महावत या हाथी का प्रशिक्षक 4 युद्धभेरी नहीं किया। या बिगुल 5 संकेतक, चिह्न, संकेत । अनिवः [ न० त०] अनवसाद, विषाद या नैराश्य का अनीकिनी [अनीकानां संघ:-अनीक+इनि+हीप] 1 अभाव, स्वावलंबन, उत्साह । | सेना, सैन्यदल, सैन्यश्रणी 2 तीन सेनाएं या पूर्ण सेना अनिवृत्त (वि०) न० त०] खिन्न, अशान्त, दुःखी। (अक्षौहिणी) का दशम भाग । अमितिः । (स्त्री) [न० त०] 1बेचैनी, विकलता 2 [ अनील (वि.) [न० त०] जो नीला न हो, श्वेत, बाजिन् वि .न. जो नीला न हो त - अनिवृत्तिः निर्धनता अनिर्वृतिनिशाचरी मम गृहांतरालं (पुं०) श्वेत घोड़े वाला, अर्जुन । गता-उद्भट । अनीश (वि०) [न० त०] 1 प्रमुख, सर्वोच्च 2 स्वामी या अनिल: [अन् + इलच् ] 1 वायु 2 वायदेवता 3 उपदेवता, । नियंता न होना (संबं के साथ) गात्राणामनीशोऽस्मि जो संख्या में ४९ है तथा वायु की श्रेणी में आते हैं 4 संवृत्तः-श० २,-वाः विष्णु । शारीर में रहने वालो वायु-त्रिदोषों में से एक-वात अनीश्वर (वि.) [न० त०] 1 जिसके ऊपर कोई न हो, 5 गठिया या और कोई रोग जो वातप्रकोप के कारण अनियंत्रित 2 असमर्थ-शयिता सविधेप्यनीश्वरा सफली उत्पन्न माना जाता है। सम०-अयनम् वायु का कर्तुमहो मनोरथान-भामि० २।१८२३ जो ईश्वर से मार्ग,-अशन,-आशिन् (वि.) वायुभक्षी, उपवास करने वाला (पुं०-न) साँप-आत्मजः वायु संबंध न रक्खे 4 नास्तिक । सम०-वादः नास्तिक वाद, ईश्वर को सर्वोच्च शासक न मानने वाला, नास्तिक । का पुत्र, हनुमान् और भीम की उपाधि,-आमयः 1 अनीह (वि०) [न० त०] उदासीन, इच्छारहित, हा वातरोग 2 गठिया,-सखः अग्नि (वायु का मित्र), अवहेलना, उदासीनता। इसी प्रकार बंधुः। अनु (अव्य०) [अव्ययीभाव समास बनाने के लिए संज्ञा मनिलोडित (वि.) [न० त०] जो सुविचारित न हो, शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है, या क्रिया अथवा कृदन्त सुनिर्णीत न हो-°कार्यस्य वाग्जाल वाग्मिनो वृथा--- शब्दों से पूर्व जोड़ा जाता है, अथवा स्वतंत्र संबंधबोधक शि० २।२७। अव्यय के रूप में कर्मकारक के साथ प्रयुक्त होता है अनिशम् (अव्य०) [न.ब.] लगातार, निरन्तर-- और कर्म प्रवचनीय माना जाता है ] 1 पश्चात्, पीछे; अनिशमपि मकरकेतुर्मनसो रुजमावहन्नभिमतो मे- सर्वे नारदमन उपविशति—विक्रम०५; क्रमेण सुप्ताश० ३।४, भामि०२।११२। मनु संविवेश सुप्तोत्थितां प्रातरनुदतिष्ठत्-रघु० अनिष्ट (वि०) [न० त०] 1 न चाहा हुआ, जिसकी २।२४; अनुविष्णु-विष्णोः पश्चात् सिद्धा० 2 साथइच्छा न हो, अननुकूल 2 अनर्थ 3 बुरा, दुर्भाग्यपूर्ण, साथ, पास-पास ; जलानि सा तीरनिखातयुपा वहत्ययोअमंगलसूचक 4 यज्ञ द्वारा असम्मानित, --ष्टम् 1 ध्यामनुराजधानीम्-रघु० १३।६१; अनुगंग वाराबुराई, दुर्भाग्य, विपत्ति, 2 असुविधा, अहित । सम० णसी-गंगा के साथ-साथ स्थित या बसी हुई; 3 के -आपत्तिः (स्त्री०)-आपावनम् अवांछित पदार्थ का बाद, फलस्वरूप, संकेत किया जाता हुआ-जपमन प्राप्त करना, जवांछित घटना-प्रहःबुराया हानिकारक प्रावर्षत् 4 के साथ, साथ ही, संबद्ध-नदीमनु अवसिता ग्रह, -प्रसंग: 1 अनीप्सित घटना 2 सदोष पदार्थ, सेना-सिद्धा० 5 घटिया या निम्न दर्जे का; अनुहरि तर्क या नियम से संबंध, –फलम् बुरा परिणाम सुराः-हरेहींनाः; 6 किसी विशेष स्थिति या संबंध---शंका बुराई की आशंका, -हेतुः अपशकुन । भक्तो विष्णुमनु सिद्धा० 7 भाग, हिस्सा, या साझा मनिष्पत्रम् ( अव्य० ) [न० त०] इस प्रकार जिससे कि रखने वाला-लक्ष्मीहरिमनु, पुनरावृत्ति; अनुविव तीर का पंखयुक्त पक्ष दूसरी ओर न निकले अर्थात सम-दिन-ब-दिन, प्रति दिन १ की ओर, दिशा में, के बहुत बलपूर्वक नहीं। निकट, पर,-अनुवनमशनिर्गतः-सिद्धा-नवि-नदि अनिस्तीर्ण (वि.) 1 जो पार न किया गया हो, जिससे शि० ७२४; नदी के निकट 10 क्रमानुसार, के अनु. छुटकारा न मिला हो 2 जिसका उत्तर न दिया गया । सार, अनुक्रमम्, नियमित क्रम में, अनुज्येष्ठम् For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६ ) | ( छोटे बड़े की दृष्टि से ) 11 की भांति के अनुकरण मैं – सर्वं मामनु ते प्रियाविरहजां त्वं तु व्यथां मानुभूःविक्रम ० ४१२५; इसी प्रकार अनुगर्ज = - बाद में गरजना, गर्जने की नकल करना, 12 अनुरूप – तथैव सोऽभूदन्वर्थी राजा प्रकृतिरञ्जनात् – रघु० ४।१२, ( अनुगतोऽस्य ) । age (fro) [ अनु + कन्] 1 लालची, लोलुप 2 कामुक, विलासी । अनुकथनम् [अनु+ कथ् + ल्युट्] 1 बाद का कथन 2 संबंध, प्रवचन, वार्तालाप | अनुकनीयस् ( वि० ) [ अनु + अल्प ( युवन्) + ईयसुन् कनादेशः ] छोटे से बाद का, सबसे छोटा । अनुकंपक (वि० ) [ अनु + कंप् + ण्वुल् ] दयालु, करुणा करने वाला । अनुकंपनम् [ अनु + कंप + ल्युट् ] करुणा, तरस, दयालुता, सहानुभूति । अनुकंपा (स्त्री) [ अनु + कंप् + अच्+टाप् ] करुणा, दया । मध्य (वि० ) [ अनुकंप + यत् ] दयनीय, सहानुभूति का पात्र किं तन्न येनासि ममानुकंप्या - रघु० १४।७४; कु० ३।७६-प्यः हरकारा द्रुतगामी दूत । अनुकरणम् – कृतिः (स्त्री० ) [ अनुकृ + ल्युट् क्तिन् वा ] 1 नकल करना, प्रतिलिपि, अनुरूपता, समानता; शब्दानुकरणम् = एक अलंकार । अनुकर्ष: कर्षणम् [ अनु + कृष् + अच्, ल्युट् वा ] 1 संचाव, आकर्षण, 2 ( व्या० ) पूर्व नियम में आगे वाले नियम का प्रयोग 3 गाड़ी का तला या धुरे का लट्ठा 4 कर्तव्य का विलंब से पालन, अनुकर्षन् भी । अनुकल्पः [ अनु+ कल्प् + अच् ] गुरु का गौण अनुदेश जो आश्यकता होने पर उस समय प्रयुक्त किया जाता है । जब कि मुख्य निदेश का प्रयोग संभव नहीं- प्रभुः प्रथम कल्पस्य योऽनुकल्पेन वर्तते - मनु० ११०३०, ३११४७ । मनुकामीन (वि० ) [ अनुकाम +ख ] अपनी इच्छा के अनुसार काम करने वाला; अनुकामीनतां त्यज-भट्टि० । अनुकारः दे० अनुकरणम् । अकाल (वि०) समयोचित, सामयिक | अनुकीर्तनम् [अनु + त् + ल्युट् ] कथन, प्रकाशन । मकूरु (fro) [ अनु + कूल + अच्] 1 मनोवांछित, अभिमत, जैसे कि वायु, भाग्य आदि 2 मित्रता पूर्ण कृपापूर्ण 3 अनुरूप, निष्ठावान तथा कृपालु पति, ( एक रतिः सा० द० या एकनिरतः एकस्यामेव नायिकायाम् आसक्तः) नायक का एक भेद-लम् अनुग्रह, कृपा- नारीणामनुकूलतामाचरसि चेत्-काव्य० ९ । अनुकूलयति (ना० वा० ) अनुकूल या मुआफिक होना, प्रसन्न होना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रकच ( वि० ) [ प्रा० स० ] दंतुरित, 'दांतेदार जैसा कि आरा । अनुक्रमः [ अनु + क्रम् + अच्] 1 उत्तराधिकार, क्रम, तांता, क्रमस्थापन, क्रमबद्धता, उचितक्रम - प्रचक्रमे वक्तुमनुक्रमज्ञा - रत्रु० ६।७० श्वश्रूजनं सर्वमनुक्रमेण - १४।६० 2 विषय सूची, विषयतालिका । अनुक्रमणम् [ अनु + क्रम + ल्युट् ] 1. क्रम पूर्वक आगे बढ़ना, 2 अनुगमन णी, णिका ( स्त्री०) विषय सूची विषयतालिका जो किसी ग्रन्थ के क्रमबद्ध विषयों का दिग्दर्शन कराय । अनुक्रिया दे० अनुकरणम् । अनुक्रोशः [ अनु + क्रुश् + घञ्ञ ] दया, करुणा, दयालुता ( अधि० के साथ ) - भगवन्कामदेव न ते मय्यनुक्रोशः - श० ३, मेघ० ११५ । अनुक्षणम् ( अव्य० ) प्रतिक्षण, लगातार, बारबार । अनुक्षतू (पुं० ता) [प्रा० स०] द्वारपाल या सारथि का टहलुआ । अनुक्षेत्रम् [ प्रा० स०] उड़ीसा के कुछ मन्दिरों में पुजारियों को दी जाने वाली वृत्ति । अनुयातिः (स्त्री० ) [ अनु + ख्या + क्तिन्) 1 पता लगाना; 2 विवरण देना, प्रकट करना । अनुग ( वि० ) [ अनु + गम् + ड] ( सम० ) पीछे चलने वाला, मिलान करने वाला, – गः - अनुचर, आज्ञाकारी सेवक, साथी तद्भुतनाथानुग-रघु० २१५८, ९।१२ । अनुगतिः (स्त्री० ) [ अनु + गम् + क्तिन् ] पीछे चलनागतानुगतिको लोकः- पीछे चलने वाला, अनुकरण करने वाला - दे० 'गत' के अन्तर्गत । अनुगमः, मनम् [ अनु + गम् + अप ल्युट् वा ] 1 अनुसरण 2 सहमरण, अपने स्वर्गीय पति की चिता पर विधवा स्त्री का सती होना 3 नकल करना, समीपतर आना 4 समरूपता, अनुरूपता । अनुगजित ( वि० ) [ अनु + गर्ज + क्त ] दहाड़ा हुआ, —तम दहाड़ । अनुगवीनः [ अनु + गु+ख ] गोपाल, ग्वाला । अनुगामिन् (पुं० ) [ अनु + गम् + णिच् + णिनि ] अनुयायी, सहचर । अनुगुण (वि० ) [ ब०स०] समान गुण रखने वाला, उसी स्वभाव का, अनुकूल या रुचिकर, उपयुक्त, अनुरूप, समानशील; - (वीणा) उत्कंण्ठितस्य हृदयानुगुणा वयस्या -- मृन्छ० ३१३ मन को सुखकर, अभिमत, मनोनुकूल / ता० वा० के अनुसार यहाँ 'णा से अभिप्राय ' तंत्रीयुक्त वीणा' से 2) -जम् ( क्रि० वि०) 1. अनुकूल, इच्छा के समरूप 2 अभि मतिपूर्वक या समरूपता के साथ ( सम० में) 3 स्वभावतः । For Private and Personal Use Only ---| Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) अनुग्रहः-हणम् [अनु-+ग्रह +अप, ल्युट वा] 1 प्रसाद, । अनुतिलम् (अव्य० स०) दाना दाना करके अर्थात कण कृपा, उपकार, आभार-निग्रहानुग्रहकर्ता-पंच० । कण करके, अत्यन्त सूक्ष्मता से। १ पादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठम्-रघु० २।३५; 2 स्वीकृति | अनुत्क (वि.) [न० त०] जो अधिक उत्सुक न हो, जो 3 सेना के पृष्ठभाग की रक्षा करने वाला दल । पश्चात्तापकारी या खेदयुक्त न हो। अनुप्रासकः [प्रा० स०] कौर, निवाला। अनुसम (वि.) [न० त०] 1 जिससे अच्छा कोई और न अनुचरः [अनु+च+ट] 1 सहचर, अनुयायी, नौकर, हो, जिससे बढ़िया कोई और न हो, सबसे अच्छा, सेवक-तेनानुचरेण घेनोः-रघु० २१४, २६।५२; सबसे बढ़िया, प्रमुख रूप से सर्वोपरि-सर्वद्रव्येषु -रा-रो (स्त्री)दारी, सेविका । विद्येव द्रव्यमाहुरनुत्तमम्-हि.प्र.४;-कांक्षन् गतिअनुचारकः [अनु+चर्ण्वु ल्] अनुचर, सेवक,–रिका मुत्तमाम्--मनु० २।२४२; 2 (व्या० में) जो उत्तम दासी सेविका। पुरुष में प्रयुक्त न किया जाय। अनुचित (वि०) [न० त०] 1 गलत, अनुपयुक्त 2 निराला, | अनुत्तर (वि०) [न० त०] 1 प्रधान, मुख्य 2 बढ़िया, अयोग्य। सर्वोत्तम 3 बिना उत्तर का, मूक, उत्तर देने में असमर्थ अनुचिन्ता, चिन्तनम् [अनु+चित्+अ+टाप, ल्युट वा] -भवत्यवज्ञा च भवत्यनुत्तरात्-० 4 निश्चित, 1 याद करना, सोचना, मनन करना 2 प्रत्यास्मरण, स्थिर 5 निम्न, घटिया, खोटा, कमीना 6 दक्षिणी, फिर से ध्यान में लाना, 2 अनवरत सोच, चिन्ता। -रम् उत्तर का अभाव, (टालमटूल या बानाकानी अनुच्छादः [अनु+छ+णिच्+घन] साड़ी या धोती का उत्तर अनुत्तर समझा जाता है) -रा दक्षिण का वह छोर जो कंधे के ऊपर होकर छाती पर लट- दिशा। कता रहता है। अनुत्तरंग (वि.) [न० ब० ] स्थिर, अनुद्वेलित, मविक्षुब्ध अनुच्छित्तिः, (स्त्री०)-च्छेदः[अनु+छिद्+क्तिन, घा वा] ____-अपामिवाधारमनुत्तरंगम्-कु० ३।४८ । कट कर अलग न होना, नाश न होना, अनश्वरता। | अनुत्थानम् [न० त०] प्रयत्न या सरगर्मी का अभाव । अनुज-जात (वि.) [अनु+जन्+ड, क्त वा] बाद में | अनुत्सूत्र (वि०) [न० त०] पाणिनि या नैतिकता के उत्पन्न, पीछे जन्मा हुआ, छोटा भाई-असौ कुमार सूत्रों से अविरुद्ध, अविश्रृखल, नियमित- पदन्यासास्तमजोऽनुजातः रघु० ६७८;-जः,-जातः छोटा भाई, सद्वतिः सन्निबंधना --शि० २।११२ । -जा,-जाता छोटी बहन । अनुत्सेकः [न० त०] घमंड या अहंकार का अभाव अनुजन्मन् (पुं०) [ब० स०] छोटा भाई-जननाथ तवा- कोलक्ष्म्यां-भग० २।६३, शालीनता। नुजन्मनाम्-कि० २।१७ । | अनुत्सेकिन् (वि.) [अनुत्सेक+णिनि ] जो घमंड के अनजीविन (वि.) [अनुजीव+णिनि] आश्रित, परोप- कारण फूला हुआ न हो-भाग्येषु °नी भव-२०४। 'जीवी-(पुं०-बी) परावलंबी, सेवक, अनुचर-अवंचनीयाः प्रभवोऽनुजीविभि:-कि० ११४, १० । अनुदर (वि०) [न० ब०] पतली कमर वाला, पतला, मनुमा-शानम् [अनु+ज्ञा+अङ, ल्युट् वा] 1 अनुमति, कृश, क्षीण (दे० 'अ') सहमति, स्वीकृति 2 जाने की अनुमति अनुदर्शनम् [ अनु + दृश्+ल्युट् ] निरीक्षण । 4 आशा, आदेश। अनुदात्त (वि.) [न० त०] गुरुस्वर, जो उदात्तस्वर की .अनुमापकः [अनु+जा+णिच्+ण्वुल्] आज्ञा देने वाला, भाँति उच्च स्वर से उच्चरित न होता हो, स्वरापात हुक्म देनेवाला। हीन-तः गुरुस्वर। अनुज्ञापनम्-गाप्तिः (स्त्री०) [अनु+ज्ञा+णिच् + ल्युट्, । अनुवार (वि.) अनु [न० त०] 1 जो उदार (दानशील)न "क्तिन् वा] 1 अधिकृत बनाना 2 आज्ञा या आदेश हो, कंजूस, अनुत्तम,अभद्र 2 जो अपनी पत्नी के अनुकूल जारी करना। चलने वाला हो या वह जिसकी पत्नी पति के अनुकूल अनुज्येष्ठम् (अव्य०) ज्येष्ठता की दृष्टि के अनुसार। चलने वाली हो-यस्मिन्प्रसीदसि पुनः स भवत्युदारोऽ मनुतर्षः [अनु+तृष्+घञ] 1 प्यास--सोपचारमुपशांत- नुदारश्च-काव्य० ४; ('अदाता' के अर्थ में भी प्रयुक्त विचारं सानुतर्षमनुतर्षपदेन--शि० १०२ ( प्यास होता है) 3 उपयुक्त और योग्य पत्नी वाला। और सुरा), 2 कामना, इच्छा 3 जल पीने का पात्र अनुदिनम्-दिवसम् (अव्य० स०) प्रतिदिन, दिन-ब-दिन । 4 मद्य। अनुदेशः [अनु+दिश्+घा 1 पीछे संकेत करना, नियम अनुतापः [अनु+तप्+घञ] पश्चात्ताप, संताप-- या निदेश जो पीछे किसी पूर्व नियम की ओर संकेत जातानुतापेव सा-विक्रम० ४।३८ संताप से पीडित । करे—यथासंख्यमनुदेशः समानाम-पा० ११३।१०; 2 अनुतर्षणम् अनुतर्ष: 3 और 4 । निदेश, आदेश । For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८ ) अनुरत (वि.) [न० त०] जो अहंकारी या गर्वयुक्त न । करना, अनुसरण 3 भाग 4 राशिक-तम् (अव्य०) हो-ताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः-श० ५।१२।। [ पत्+णमुल ] ऋमिक अनुसरण, अनुगमन;-लताअनुङ्कट (वि.) [न० त०] 1 जो साहसी न हो, विनीत, नुपातं कुसुमान्यगृह्णात्-भटि० २०११; (लतामनुसौम्य 2 जो उन्नत या बहुत ऊँचा न हो। पात्य--एक लता से दूसरी लता पर जाकर, या अमुवत (वि०) [अनु++क्त 11 अनुगत, पीछा किया । लताओं को झुका कर)। गया (कई बार कर्तृ० में प्रयुक्त) 2 भेजा हुआ या | अनुपथ (वि.) [प्रा. स०] मार्ग का अनुसरण करने लौटाया हुआ (जैसे कि ध्वनि) सम् संगीत में काल वाला,-थम् (क्रि०वि०) सड़क के साथ साथ ।। की माप आधा द्रुत ।। अनुपद (वि.)[प्रा० स०] नितान्त कदम कदम अनुसरण अनुहाहः [न० त०] विवाह न होना, ब्रह्मचर्य पालन । करता हुआ,-बम् सम्मिलित गायन, गीत का टेक, अनुषावनम् [अनु+बा+ल्युट्] 1 पीछे जाना या भागना, (अव्य.) 1 कदम के साथ-साथ, पैरों के निकट; 2 पीछा करना, अनुसरण करना-तुरग कंडितसंघे: कदम कदम करके, प्रति पद; 3 शब्दशः 4 एड़ियों पर, पा०२; 2 किसी पदार्थ का अत्यंत पीछा करना, अनु बिल्कुल पीछे, तुरन्त बाद-गच्छतां पुरो भवन्तौ,' अहसंघान, गवेषणा 3 किसी स्त्री को पाने का असफल मप्यनुपदमागत एव-श०३ (प्रायः संब०के साथ, या प्रयत्न करना 4 सफाई, पवित्रीकरण । समास में इसी अर्थ में); (तो) आशिषामनुपदं समअनुध्यानम् अनु+ध्या+ल्यूट ] 1 विचार, मनन, धार्मिक स्पृशत् पाणिना-रषु० ११॥३१-अमोधाः प्रतिगई चिंतन 2 सोचविचार, याद,-या न: प्रीतिविरूपाक्ष तावानुपदमाशिषः-१०४४। त्वदनुध्यानसंभवा-कु०६२१; 3 हितचिन्तन, स्नि- अनुपदवी [प्रा० स०] मार्ग, सड़क । ग्धचिन्तन । अनुपदिन् (वि०) [ अनुपद+णिनि ] अनुसरण करनेवाला अमुनयः [ अनु+नी+अच्] 1 मनावन, प्रार्थना प्रकृ- इंढने वाला अर्थात् अन्वेषक, या पृच्छक-अनुपदमन्वेष्टा तिवक्रः स कस्यानुनयं प्रतिगृह्माति-श०४; 2 शाली- गवामनुपदी सिद्धा। नता, शिष्टता, सान्त्वनायुक्त आचरण, 3 नम्रनिवेदन, | अनुपदीना [ अनुपद+ख+टाप् ] जूता, बूट, ऊँची एड़ियों मिन्नत, प्रार्थना, आमंत्रणम-विनीत संबोधन 4 अनु- का जूता, या चप्पल ।। शासन, प्रशिक्षण, आचरण के अधिनियम । अनुपषः [न० ब०] उपधा रहित, ऐसा अक्षर जिसके पूर्व अनुनावः [ अनु+न+घञ्] शब्द, कोलाहल, गूंज कोई दूसरा अक्षर न हो। प्रतिध्वनि। अनुपषि (वि.) [न.ब.] छल रहित, कपट रहितअनुनायक (वि०) [अनु+नी+ण्वुल् ] सुशील, विनम्र, रं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते--उत्त० २।२ । विनीत । अनुपन्यासः [न० त०]1 वर्णन न करना, बयान न देना 2 अनुनायिक (वि.) [ अनु+नय+ठक् ] मैत्रीपूर्ण,-का अनिश्चितता, सन्देह, प्रमाणाभाव । नाटक की मुख्य पात्र नायिका की अनुचरी जैसे | अनुपपत्तिः (स्त्री०) [ न० अ०] 1 असफलता, असिद्धि,कि सखी, घात्री या दासी आदि;-सखी प्रवजिता लक्षणा शक्यसंबंधस्तात्पर्यानुपपत्तित:-भाषा० ८२, दासी प्रेष्या घात्रेयिका तथा । अन्याश्च शिल्पकारिण्यो तात्पर्य उद्दिष्ट या किसी संबद्ध अर्थ को प्राप्त करने विज्ञेया ह्यनुनायिकाः। में असफलता; 2 अव्यावहारिकता, ध्यावहारिक न होना बनुनासिक (वि.) [अनु+नासा+ठ] 1 नासिक्य, 3 अधूरीयुक्ति, तर्कयुक्त कारण का अभाव । नासिका से उच्चरित,-कम् गुनगुनाना। सम० अनुपम (वि.) [न० ब०] अतुलनीय, बेजोड़, सर्वोत्तम, --आदिः अनुनासिक वर्ण (अणन म्) से आरंभ अत्यंत श्रेष्ठ-मा दक्षिण पश्चिम प्रदेश की हथिनी होने वाला संयुक्त व्यंजन। (कुमुद की सखी)। अनुनिर्देशः [अनु+निर्+दिश+घञ् ] पूर्ववर्ती अनुक्रम अनुपमित (वि.) [न +उप+मा+क्त, अनुपमा के अनुसार वर्णन,-भूयसामुपदिष्टानां क्रियाणामथ | अनुपमेय +य ] बेजोड़, अतुलनीय । कर्मणाम् । क्रमशो योऽनुनिर्देशो यथासंख्यं तदुच्यते । | अनुपलब्धिः (स्त्री०) [ न० त०] पहचान न होना, प्रत्यक्ष सा०६०। न होना, मीमांसकों की दृष्टि में ज्ञान का एक साधन, अनुनीतिः=तु० अनुनयः परन्तु नैयायिकों की दृष्टि में नहीं।। अनुपपातः[ न० त०] उपधात या क्षति का अभाव, | अनुपलभः [ना+उप+लभ+णि+घ ] बोध का -अर्जित बिना किसी क्षति के प्राप्त किया। अनुपातनम्-पातः [ अनु+पत्+ल्युट, घा वा] 1] अनुपवीतिन् [न० त०] अपने वर्ण के अनुसार यज्ञोपवीत ऊपर पड़ना, एक के बाद दूसरे का गिरना 2 पीछा । धारण न करने वाला। या क्षति का अभाव, | अनुभाव, अप्रत्यक्ष होना । के अनुसार यज्ञोपवीत For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुपशयः [ न० त० ] रोग को उभाड़ने या भड़काने | अनुप्रवेशः [ अनु+प्र+विश्+पश्] 1 दाखला-रष. वाली परिस्थिति। ३३२२, १०५१, 2 अनुकरण-अपने को दूसरे की अनुपसंहारिन न० त०] न्यायशास्त्र में हेत्वाभास का | इच्छा के अनुकूल ढालना। एक भेद जिसके अन्तर्गत पक्षसंबंधी सभी ज्ञात बातें अनुप्रयनः [प्रा० स०] बाद में किया जाने वाला प्रश्न । आ जाती है, और दृष्टान्त द्वारा, चाहे वह विषेयात्मक (अध्यापक के पूर्व कपन से संबंड)। हो या निषेधात्मक, कार्यकारण-सिद्धांत के सामान्य अनुप्रसक्तिः (स्त्री०) [अनु++सं+क्तिन्] 1 प्रगाढ़ नियम का समर्थन नहीं हो पाता-यथा सवं नित्यं प्रमे- संबंध 2 शब्दों का अत्यधिक तर्क संगत सम्बन्ध । यत्वात् । अनुप्रसादनम् [ अनु+प्र+सद्+णिच् + ल्युट ] आराषन, अनुपसर्गः [न० त०] 1 उपसर्ग की शक्ति से विरहित संराषन । शब्द [ निपात आदि ] 2 (न० ब०) जिसमें कोई अनुप्राप्तिः (स्त्री०) [अनु+प्र+आप+क्तिन् ] प्राप्त उपसर्ग न हो। ___ करना, पहुँचना। कनुपस्थानम् [अनुप+स्था+ ल्युट्] अभाव, निकट न होना। | अनुप्लवः [अनु+प्लु+अच् ] अनुयायी, सेवक-सानुप्लवः गनुपस्थित [न+उप-+स्था+क्त ] जो उपस्थित नहीं, | प्रभुरपि क्षणदाचराणाम्र पु. १३७५ ।। अप्रस्तुत। अनुप्रासः [ अनु+:+अस्+घश ] एक समान ध्वनियों आनुपस्थितिः (स्त्री०) [ अनुप+स्था+क्तिन् ] 1 गैर- अक्षरों या वर्णों की पुनरावृत्ति-वर्णसाम्यमनप्रासः हाजरी 2 याद करने की अयोग्यता। -काव्य०; परिभाषा और उदाहरणों के लिए दे. अनुपहत (वि०) [न० त०] 1 जिसे चोट नहीं लगी2 सा०६० ६३३-३८, और काव्य० ९वां उल्लास । अप्रयुक्त, कोरा, नया (कपड़ा)। अनुबद्ध (वि.) [अनु+बं+क्त ] 1 बंधा हुमा, जकड़ा अनुपाख्य (वि.) [न० ब.] जो स्पष्ट रूप से दिखलाई हुआ; 2 यथा क्रम अनुसरण करने वाला, फल स्वरूप न दे या पहचाना न जा सके। आने वाला 3 संबद्ध 4 अनवरत चिपका हुआ, लगातार। अनुपातः=तु० अनपतनम् । अनुबंधः [अनु+बंध+घञ ] 1 बंधन, कसना, संबंध, अनुपातकम् [ अनु+पत्+णिच् ।- वुल ] जघन्य पातक आसक्ति, बंधान (शब्द० आलं) 2 अबाध परम्परा, जैसे चोरी, हत्या, व्यभिचार आदि, विष्णुस्मृति में ऐसे सातत्य, श्रेणी, शृंखला-बाष्पं कुरु स्थिरतया विर ३५ तथा मनुस्मृति में ३० पातक गिनाये गये हैं। तानुबंधम-श०४।१४; वैर', मत्सर; सानुबंधा: अनुपानम् [ अनु+पा+ल्युट ] दवा के साथ या पीछे पी कथं न स्युः संपदो मे निरापद:- रघु० १०६४; 3 अनुजाने वाली वस्तु; औषधि लेने की मात्रा। क्रम, फल (शुभ या अशुभ) 4इरादा, योजना, प्रयोजन, अनुपालनम् [ अनु+पाल् + ल्युट् ] प्ररक्षण, सुरक्षण, आज्ञा- कारण-अनुबंध परिज्ञाय देश-कालौ च तस्वतः । सारापालन । पराधी चालोक्य दण्डं दंडघेषु पातयेत-मनु०८।१२६, अनुपुरुषः [ प्रा० स० ] अनुयायी। 5 संबंध जोड़ने वाला, गौण 6 आरंभिक तर्क (वेदान्त अनुपूर्व (वि.) [प्रा० स०] 1 नियमित, उपयुक्त मान के आवश्यक तत्त्व)7 (व्या०) एक संकेतक अक्षर रखने वाला, क्रमबद्ध-वृत्तानपूर्वेचन चातिदी जो कि इस शब्द के स्वर या विभक्ति में कुछ विशेकु० ११३५ °केश जिसके बाल यथाक्रम है, गात्र जिस षता का द्योतक हो जिसके साथ वह जुड़ा हो-जैसे के अंग सुगठित हैं, इसी प्रकार दंष्ट्र, नाभि, "पाणि कि 'गम्ल' में ल 8 बाघा, रुकावट 9 आरंभ, उपक्रम 2 क्रमबद्ध सिलसिलेवार 1 सम-ज(वि.)नियमित 10 मार्ग, अनुगमन। परम्परा में उत्पन्न,-वत्सा नियमित रूप से बच्छे | अनुबंधनम् [ अनु+बंध् + ल्युट् ] संबंध, परम्परा, सिलदेने वाली गाय । सिला आदि । अनपूर्वशः) (कि० वि०) नियमित क्रम में, क्रमागत रीति | अनुबंधिन् (वि.) [अनुबंध+णिनि ] [प्रायः समस्त पद मनपूर्वेण | से। के अन्त में] 1 संबद्ध, संसक्त, संयुक्त 2 क्रम, परिअनुपेत (वि०) [न० त०] 1 विरहित २ यज्ञोपवीत धारण णामी, फलस्वरूप-दुःखं दुःखानुबंधि-विक्रम० ४ एक न किये हुए। दुःख के बाद दूसरा दुःख या दुःख कभी अकेला नहीं अनुप्रज्ञानम् [ अनु++ज्ञा+ ल्युट् ] पदचिह्नों का अनु- आता 3 फलता फूलता हुआ, सम्पन्न, अबाध-ऊध्वं सरण, टोह लगाना। गतं यस्य न चानुबंधि-रघु० ६।६७, अबाघ या सर्व अनुप्रपातम्, प्रपावम्-- [अव्य० स०] क्रमागत रीतिपूर्वक- व्यापक। गेह तम्-दम् आस्ते, गेहम् अनुप्रपातम्-दम् सिद्धा०।। अनुबंध्य (वि.) [अनु+बंध् + ण्यन् ] 1 प्रधान, मुख्य; अनुप्रयोगः [प्रा० स० ] अतिरिक्त उपयोग, आवृत्ति । mmar.1 अतिरिक्त उपयोग. आवत्ति। 2 मारे जाने के लिए (जैसे बैल। For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सा सखि लुम्पसियत है);2 तजीलाब्ध ( ४० ) अनुबलम् [प्रा० स०] पीछे स्थित सैन्यदल, मुख्य सेना की | अनुमंत्रणम् [ अनु+मन्त्र+णिच् + ल्युट् ] मंत्रों द्वारा रक्षा के लिए पीछे आती हुई सहायक सेना। | आवाहन या प्रतिष्ठा । अनुबोधः [ अनु+बुध+णि+घ ] 1 बाद का विचार, अनुमरणम् [ अनु+म+ल्युट् ] पीछे मरना-तन्मरणे प्रत्यास्मरण, 2 कम पड़ी हुई सुगंध को पुनर्जीवित | चानुमरणं करिष्यामीति मे निश्चयः-हि० ३; विधवा करना। का सती होना। अनुबोधनम् [अनु + बुध् + ल्युट्] प्रत्यास्मरण, पुनःस्मरण। अनुमा [ मा+अझ ] अनुमिति, दिये हुए कारणों से अनुअनुभवः [अनु++अप्] 1 साक्षात् प्रत्यक्ष ज्ञान, मान, दे० अनुमिति । व्यक्तिगत निरीक्षण और प्रयोग से प्राप्त ज्ञान, मन के | अनुमानम् [ अनु+मा+ल्युट्] 1 अनुमिति के साधन द्वारा संस्कार जो स्मृतिजन्य न हों ज्ञान का एक भेद, दे० किसी निर्णय पर पहुँचना, दिये हुए कारणों से अनुतर्क० ३४, (नैयायिक ज्ञान प्राप्ति के प्रत्यक्ष, अनुमान, मान लगाना, अनुमान, उपसंहार, न्याय शास्त्र के अनुउपमान और शब्द नामक चार साधन मानते हैं; सार ज्ञान प्राप्ति के चार साधनों में से एक 2 अटकल, वेदान्ती और मीमांसक इनमें अर्थापत्ति और अनुपलब्धि अन्दाजा 3 सादृश्य 4 (सा. शा.) एक अलंकार नामक दो साधन और जोड़ देते है);2 तजुर्बा-अनुभवं जिसमें प्रमाण निर्धारित वस्तु का भाव अनोखे ढंग से वचसा सखि लुम्पसि----३० ४११०५; 3 समझ 4 फल, प्रकट किया जाता है- सा० ८० ७११--यत्र पतत्य परिणाम । सम०-सिख (वि.) अनुभव द्वारा ज्ञात । बलानां दृष्टिनिशिता पतन्ति तत्र शराः; तच्चापरोअनुभावः [अनु--भू+णिच् +घञ्] 1 मर्यादा, पितशरो धावत्यासां पुरः स्मरो मन्ये । दे० काव्य. व्यक्ति की मर्यादा या गौरव राजसी चमक दमक, १०। सम.--उक्तिः (स्त्री०) तर्कना, तर्क संगत वैभवशक्ति, बल, अधिकार,--(परिमेयपुरः सरो)। अनुमान । अनुभाव, विशेषात्तु सेनापरिवृताविव-रघु० ११३७;- | अनुमापक (वि.) [स्त्री० --पिका ] अनुमान कराने संभावनीयानभावा अस्याकृतिः -श० ७;२, (सा. वाला, जो अनुमान करने का आधार बन सके। शा० में) दृष्टि, संकेत आदि उपयुक्त लक्षणों द्वारा अनुमासः [प्रा० स०] आगामी महीना;--सम् (अव्य०) भावना का प्रकट करना,-भावं मनोगतं साक्षात् प्रतिमास । स्वगतं व्यंजयति येतेऽनुभावा इति ख्याताः, यथा भ्रूभंगः । अनुमितिः (स्त्री०) [ अनु+मा+क्तिन् ] दिये हुए कारणों कोपस्य व्यंजक:-दे० सा० द. १६२; 3 दृढ़ संकल्प से किसी निर्णय पर पहुंचना, वह ज्ञान जो निगमन विश्वास । द्वारा या न्यायसंगत तर्क द्वारा प्राप्त हो। अनुभावक (वि०) [ अनु + भू+णिच्+ण्वुल् ] अनुभव | अनुमेय (बि०) [ अनु+मा+यत् ] अनुमान के योग्य, कराने वाला, द्योतक। __ अनुमान किया जाने वाला--फलानुमेयाः प्रारम्भा:---- अनुभावनम् [ अनु + भू +णिच् + ल्युट् ] संकेत और इंगितों रघु० ॥२०॥ द्वारा भावनाओं का द्योतक । अनुमोदनम् [ अनु + मुद् + ल्युट् ] सहमति, समर्थन, अनुभाषणम [ अनु+भाष + ल्युट् ] 1 कही हई बात को स्वीकृति, सम्मति। खंडन के लिए फिर से कहना; 2 कही हुई बात की | अनुयाजः [ अनु+-यज्+घञ्] यज्ञीय अनुष्ठान का एक पुनरावृत्ति। ___ अंग, गौण या पूरक यज्ञानुष्ठान, [प्रायः 'अनूयाजः' अनुभूतिः (स्त्री०)-तु० अनुभव ।। लिखा जाता है 'अनुयाग' भी] । अनुभोगः--[ अनु+भुज+घा ] 1 उपभोग 2 की हुई | अनुयात (पु) [ अनु+या+तच ] अनुगामी। सेवा के बदले मिलने वाली माफी जमीन । अनुयात्रम्--त्रा [ अनु+यात+अण् स्त्रियां टाप् ] परिअनुभ्रातृ (पु०) । प्रा० स० ] छोटा भाई। जन, अनुचरवर्ग, सेवा करना, अनुसरण । अनुमत (वि०) [अनु+ मन्+क्त ] 1 सम्मत, अनुज्ञात, अनुयात्रिक: [अनुयात्रा+ठन् ] अनुचर, सेवक; इजाजत दिया हुआ, स्वीकृत, गमना-श० ४१९, श० श२। जाने के लिए अनुज्ञप्त 2 चाहा हुआ, प्रिय, ---तः प्रेमी | अनुयानम् [ अनु+या+ ल्युट् ] अनुसरण । -तम स्वीकृति, अनुमोदन, अनुज्ञप्ति । अनुयायिन् (वि.) [अनु+या+णिनि ] अनुगामी, सेवक, अनुमतिः (स्त्री०) [ अनु+मन+क्तिन् ] 1 अनुज्ञा, अनुवर्ती,-(पु.) पीछे चलने वाला (श आलं.) स्वीकृति, अनुमोदन 2 चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा। सम० --रामानुजानुयायिनः--परावलंबी या सेवक,-न्यषेधि -पत्रम् स्वीकृति सूचक पत्र या लेख । शेषोऽप्यनुयायिवर्ग:--रघु० २।४, १९।। अनुमननम् [ अनु+मन+ ल्युट् ] 1 स्वीकृति, रजामंदी 2 | अनुयोक्त (पुं०) [ अनु + युज्+तृच् ] परीक्षक, जिज्ञासु, स्वतंत्रता। अध्यापक। For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगः [ अनु+ युज्+घञ्] 1 प्रश्न, पृच्छा, परीक्षा | १९२; 3 आग्रहपूर्वक प्रार्थना, याचना, निवेदन 4 2 निंदा, झिड़की 3 याचना 4 प्रयास 5 धार्मिक चिन्तन | नियम का पालन । टीका-टिप्पण । सम०-कृत् (पु०) 1 प्रश्नकर्ता 2 | अनुरोधिन्-धक (वि.) [अनुरोध+णिनि, अनिरुध+ अध्यापक, अध्यात्म गुरु।। पबुलविनयी। अनुयोजनम् [ अनु+युज+ल्युट् ] प्रश्न, पच्छा। . अनुलापः [अनु+लप्+घञ्] आवृत्ति, पूनरुक्ति । अनुयोज्यः [ अनु+युज् + ण्यत् ] सेवक ।। अनुलासः,–स्यः [अनुलस्+घञ यत् वा] मोर। अनुरक्त (वि.) [अनु+रंज्+क्त ] 1 लाल किया हुआ, | अनुलेपः लेपनम् [अनु+लिप्+घञ, ल्युट वा] 1 अभिरंगीन 2 प्रसन्न, संतुष्ट, निष्ठावान् । षेक, तेलमर्दन 2 सुगंधित लेप, उबटन-सुरभिकुसुमअनुरक्तिः (स्त्री०) [ अनु+रं+क्तिन् ] प्रेम, आसक्ति, धूपानुलेपनानि-का० ३२४ । अनुराग, स्नेह । अनुलोम (वि०) [प्रा० स०] 1 'बालों से-ऊपर से नीचे अनुरंजक (वि.) [ अनु+रंज्+ण्वुल् ] प्रसन्न करने की ओर आने वाला-नियमित, स्वाभाविक क्रमावाला, सन्तुष्ट करने वाला। नुसार (विप० प्रतिलोम), (अट:) अनुकूल-कृष्टं अनुरंजनम् [ अनु+रं+ल्युट् ] संराधन, सन्तुष्ट करना, क्षेत्र प्रतिलोमं कर्षति-सिद्धा०, नियमित दिशा में सुख देना, प्रसन्न करना, सन्तुष्ट रखना। हल चलाया हुआ; 2 मिश्रित (जैसे कि जाति)-मम् अनुरणनम् [ अनु+रण+ल्युट ] 1 अनुरूप लगना, नूपुर (क्रि० वि०)स्वाभाविक या नियमित क्रम में -मा. या घूघरुओं की आवाज से उत्पन्न अनवरत प्रति (ब० व०) मिश्रित जातियां। सम–अर्थ (वि०) ध्वनि, 2 'व्यंजना' नामक शब्द शक्ति, तु०, वास्त- पक्ष में बोलने वाला,-जडानप्यनुलोमार्थान् प्रवाच: विक कथन से व्यंजित होने वाला अर्थ व्यंग्य-क्रम कृतिनां गिरः-शि० २।२५,--ज,-जन्मन् (वि.) लक्ष्यत्वादेवानुरणनरूपो यो व्यंग्य:-सा० द०४। ठीक क्रम में उत्पन्न, उच्चवर्ण के पिता तथा नीचवर्ण अनुरतिः (स्त्री०) [ अनु+रम् + क्तिन् ] प्रेम, आसक्ति । की माता से उत्पन्न सन्तान, मिश्रित जाति का । अनुरथ्या [ प्रा० स० ] पगडंडी, उपमार्ग । अनुल्वण (वि.) [न० त०] 1 अधिक नहीं, न कम न अनुरसः,-सितम् [ प्रा० स०] गूंज, प्रतिध्वनि। अधिक 2 स्पष्ट या साफ नहीं। अनुरहस (वि.) [प्रा० स० ] गुप्त, एकान्तप्रिय, निजी, अनुवंशः [प्रा० स० वंशतालिका।। -सं (क्रि० वि०) एकान्त में। अनुवक्र (वि०) [प्रा० स०] अत्यंत टेढ़ा, कुछ टेढ़ा या अनुरागः [ अनु+रंज्+घञ ] 1 लालिमा 2 भक्ति, तिरछा। आसक्ति, निष्ठा, (विप० अपरागः)प्रेम, स्नेह (अधि० अनुवचनम् [ अनु+वच् + ल्युट् ] आवृत्ति, सस्वर पाठ, के साथ या समास में) कंटकितेन प्रथयति मय्यनुरागं अध्यापन। कपोलेन---श० ३।१५, रघु० ३।१०, इंगित संकेत अनुवत्सरः [प्रा० स०] वर्ष । या प्रेम को प्रकट करने वाला एक बाह्यसंकेत । अनुवर्तनम् [ अनु+वृत्+ ल्युट् ] 1 अनुगमन (आलं. अनुरागिन् । (वि.)[अनुराग+णिनि, मतूप वा] आसक्त, भी), अनुवर्तिता, आज्ञाकारिता, अनुरूपता 2 प्रसन्न अनुरागवत् । प्रेम से उत्तेजित ।। करना, अनुग्रह करना 3 स्वीकृति 4 फल, परिणाम अनुरात्रम् [क्रि० वि०] [अव्य० स०] रात में, हर रात, 5 पूर्वसूत्र से पूर्तिकरना। प्रति रात्रि। अनुवतिन् (वि०) [ अनु+वृत्+णिनि] 1 अनुगामी, अनुराधा [प्रा० स०] २७ नक्षत्रों में से सतरहवा नक्षत्र, आज्ञाकारी 2 अनुरूप (कर्म के साथ या समास में)। यह चार नक्षत्रों का समूह है। अनुवश (वि०) [प्रा० स०] दूसरे की इच्छा के अधीन, अनुरूप (वि.) [प्रा० स०] 1 सदृश, मिलता-जुलता, आज्ञाकारी-शः अधीनता, आज्ञाकारिता। तदनुरूप, योग्य, अनुरूपं वरम्-श०१, 2 उपयुक्त | अनुवाकः [अनु+वच्+घा] 1 आवृत्ति करना 2 वेद या योग्य, अनुकूल, ( संब० के साथ या समास के उपभाग, अनुभाग, अध्याय । में) -भव पितुरनुरूपस्त्वं गुणैर्लोककांत:-विक्रम० अनुवाचनम् [अनु+व+णिच् + ल्युट्] 1 सस्वर पाठ ५।२१। कराना, अध्यापन, शिक्षण 2 स्वयं पाठ करना, दे. अनुरूपम्,-पतः) (क्रि० वि०) समनुरूपता या अभिमति- 'बच्' अनु के साथ। -पेण,-पशः पूर्वक । अनुवातः[प्रा० स०] वह दिशा जिस ओर की हवा हो। अनुरोधः-धनम् [अनु + रुध्न-घज , ल्युट् वा] 1 विनय, अनुवावः [ अनु+व+घञ ] 1 सामान्य रूप से आराधना, इच्छापूर्ति करना 2 समरूपता, आज्ञापालन, आवृत्ति 2 व्याख्या, उदाहरण, या समर्थन की दृष्टि से लिहाज, विचार-धर्मानुरोधात्-का० १६०, १८०, । आवत्ति 3 व्याख्यात्मक आवृत्ति या पूर्वकथित बात का For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिन्ह । उल्लेख, विशेष रूप से ब्राह्मण ग्रन्थों का वह भाग जिसमें मपि शिक्षितं वत्सेन---उत्त० ३, मा०९, 4 (व्या०) पूर्वोक्त निदेश या विधि की व्याख्या, चित्रण या उसके आगामी नियम में पिछले नियम की पुनरुक्ति या पूर्ति, टीका-टिप्पण निहित हैं और जो स्वयं कोई विधि या पिछले नियम का आगामी नियम पर निरन्तर प्रभाव निदेश नहीं है 4 समर्थन 5 विवरण, अफवाह। ____5 पुनरुक्ति-वर्णानामनुवृत्तिरनुप्रासः । अनुवादक, वादिन् (वि.) [अनु+वद्+ण्वुल-णिनि वा] | अनुवेधः =तु० अनुव्याधः । 1 व्याख्यापरक 2 समरूप, समस्वर । अनुवेलम् [अव्य०] [प्रा० स०] कभी-कभी, बारंबार, अनुवाद्य (वि.) [अनु+व+णिच् + यत् 1 व्याख्येय, | इति स्म पृच्छत्यनुवेलमादृतः --रघु० ३।५ । उदाहरणसापेक्ष 2 ( व्या० ) वाक्य में किसी उक्ति अनुवेशः-शनम् [अनु+विश्+घञ, ल्युट् वा ] 1 अनुका कर्ता, 'विधेय' का विपरीतार्थक जो कि कर्ता के गमन, बाद में दाखिल होना; 2 बड़े भाई के विवाह विषय में कुछ विधि या निषेध करता है, वाक्य में से पहले छोटे भाई का विवाह ।। पहले से ज्ञात अनुवाद्य या कर्ता की पुनरुक्ति विधेय अनुव्यंजनम् [ अनु+वि+अं+ल्युट् ] गौण लक्षण या के साथ संबंध जतलाने के लिए की जाती है, अतः उसे वाक्य में पहले रक्खा जाता है-अनुवाद्य-| अनुव्यवसायः [ अनु+वि+अव+से+घञ्] (न्या० में) मनुक्त्वैव विघयमुदीरयेत् । प्रत्यक्ष का बोध या चेतना; (वेदा० में) मनोभाव अनुवारम् (अव्य०), समय समय पर, बार बार, फिर या निर्णय का प्रत्यक्षीकरण । दोबारा। अनुव्याधः-वेधः [ अनु+व्यध--घा , विध+घा वा] अनुवासः-सनम् [अनु+वास्+घा ल्युट वा] 1 सामा- 1 चोट पहुँचाना, छेदना, सूराख करना—न हि कीटानु न्यतः धूप आदि सुगंधित द्रव्यों से सुवासित करना 2 वेधादयो रत्नस्य रत्नत्वं व्याहन्तुमीशाः –सा० द० कपड़ों के किनारे डुबोकर सुगंधित बनाना 3 (°न: १, 2 संपर्क, मेल—मुखामोदं मदिरया कृतानुव्याधभी) पिचकारी, तेल का एनिमा करना, या स्निग्ध मुद्वमन्-शि० २।२०, 3 मिश्रण 4 बाधा डालना। बनाना। अनुव्याहरणम्,-व्याहारः [अनुव्या+ह+ल्युट, घा वा] अनुवासित (वि०) [अनु+वास्+क्त] धूपित, धूनी दिया ___1 पुनरुक्ति, बारंबार कथन 2 अभिशाप, कोसना। हुआ, सुगंधित किया हुआ। अनुवजनम्-व्रज्या [ अनु-+-व्रज् । ल्युट्, क्यप् वा ] अनुसरण, अनुवित्तिः (वि.) [अनु+विद्+क्तिन् ] निष्कर्ष, प्राप्ति। अनुगमन, विशेषतया बिदा होता हुआ अभ्यागत। अनुविद्ध (वि.) [ अनु+व्यध्+क्त] 1 छिदा हुआ, अनुव्रत (वि०) [प्रा० स०] भक्त, निष्ठावान्, संलग्न सूराख किया हुआ, कीटानुविद्धरत्नादिसाधारण्येन (कर्म० या संब० के साथ) । काव्यता-सा० द. 2 ऊपर फैला हुआ, अन्तर्जटित, अनुशतिक (वि०) [अनु+शत +ठन् ] सौ के साथ या पूर्ण, व्याप्त, मिश्रित, मिलावट वाला, अन्तमिश्रित-- | सौ में मोल लिया हुआ। सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यम-श० श२०, 3 अनुशयः [ अनु+शी+अच् ] 1 पश्चात्ताप, मनस्ताप, खेद, संयुक्त, संबद्ध 4 स्थापित, जड़ा हुआ, चित्रित-रत्ना- रंज, नन्वनुशयस्थानमेतत्-मा० ८,-इतो गतस्यानुनुविद्धार्णवमेखलाया दिश: सपत्नी भव दक्षिणस्या:--- शयो मा भूदिति-विक्रम० ४, शि० २।१४; 2 अति रघ० ६।६३। वैर या क्रोध-शिशुपालोऽनुशयं परं गतः-शि० १६। अनुविधानम् [ अनु+वि+धा + ल्युट् ] 1 आज्ञाकारिता 2 २-यस्मिन्नमुक्तानुशया सदैव जागति भुजंगी-मा० आदेशादि के अनुरूप कार्य करना। ६।१; 3 घृणा 4 गहरा संबन्ध, जैसा कि क्रमागत, अनविधायिन् (वि.)[अन--वि+घा+णिनि आज्ञाकारी, (किसी पदार्थ से) गहन आसक्ति 5 (वेदा० में) विनीत । दुष्कर्मों का परिणाम या फल जो कि उनके साथ अनुविनाशः [अनु+वि+न+घञ ] बाद में नष्ट होना। संयुक्त रहता है और पुनर्जन्म से अस्थायी मुक्ति का अनुविष्टंभः [ अनु+वि+ स्तंभ+घञ] फलस्वरूप बाधा उपभोग कराके फिर जीव को शरीरों में प्रविष्ट करता का होना। है; 6 क्रय के मामलों में खेद जिसे पारिभाषिक रूप अनुवृत्त (वि०) [अनु+वृत्+क्त ] 1 आज्ञाकारी, में 'उत्सादन' कहते हैं दे० क्रीतानुशय । अनुगामी 2 अबाध, निरन्तर। अनुशयान (वि.) [ अनु+शी+शानच् ] खेद प्रकट अनुवृत्तिः (स्त्री०) [ अनु+वृत्+क्तिन् ] 1 स्वीकृति 2 करता हुआ, -ना नायिका का एक भेद, यह नायिका आज्ञाकारिता, अनुरूपता, अनुगामिता, नैरन्तर्य 3 अपने प्रेमी के वियोग का खयाल करके उदास और अनुकूल या उपयुक्त कार्य करना, आज्ञापालन, मौन खिन्न रहती है। सहमति, सन्तुष्ट करना, प्रसन्न करना-कांता चातुर्य- | अनुशयिन् (वि.) [ अनुशय+णिनि ] 1 अनुरक्त, भक्त, मान । For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रद्धालु 2 पश्चात्ताप करने वाला, पछताने वाला 3 | अनुष्ठातू,--ष्ठायिन् (वि०)[ अनु--स्था+तृच्, णिनि वा] अत्यधिक घृणा करने वाला 4 मानों किसी फल के | कार्य करने वाला, अनुष्ठान करने वाला। कारण संबद्ध। अनुष्ठानम् [ अनु+स्था+ल्युट् ] 1 कार्य करना, धर्मकृत्य अनुशरः [ अनु+श+अच् ] भूत प्रेत, राक्षस । करना, कार्य में परिणत करना, कार्य निष्पादन, आज्ञाअनुशासक,शासिन् । (वि.) [अनु+शास्+ण्वुल, णिनि पालन, उपरुध्यते तपोऽनुष्ठानम्-श०४; धार्मिक तपशास्त,-शासितृ तृच् वा ] निदेशक, शिक्षक, शासन श्चर्याओं का प्रयोग 2 आरंभ, उत्तरदायित्व, कार्य में करने वाला, दंड देने वाला-कवि व्यस्तता 3 आचरणपद्धति, कार्यपद्धति, 4 धार्मिक पुराणमनुशासितारम्-भग० ८९, संस्कारों या कृत्यों का प्रयोग । शासन कर्ता,-एष चोरानुशासी राजेति | अनुष्ठापनम् [ अनु+स्था+णि+ल्युट् ] कार्य कराना। भयादुत्पतित:-विक्रम० ४। अनुष्ण (वि.) [न० त०] 1 जो गर्म न हो, ठंडा 2 वीतअनुशासनम् [अनु+शास्+ल्युट्] आदेश, प्रोत्साहन, शिक्षण राग, सुस्त, शिथिल-ष्णः शीतस्पर्श,—णम् कुमुद, नियमों विधियों का बनाना-भवत्यधिक्षेप इवानु नील कमल । शासनम्-कि० १।२८; आदेश या शिक्षा के शब्दः । अनुष्यंदः [अनु+स्यन्द्+घा पिछला पहिया। -तन्मनोरनुशासनम्-मनु० ८।१३९; नामलिंग अनुसंधानम् [अनुसम् + घा+ल्युट्] 1 पृच्छा, गवेषण, संज्ञाओं के लिंग संबंधी नियमों का निर्धारण तथा गहन निरीक्षण या परीक्षण, जांच 2 उद्देश्य 3 योजना, व्याख्या--शब्दानुशासनम-सिद्धा०। क्रमबद्ध करना, तत्पर होना 4 उपयुक्त संयोग । अनुशिक्षिन [अनुशिक्ष+णिनि क्रियाशील, सीखने वाला ।। अनुसंहित (वि.)[ अनु+सम्+घा+क्त ] पूछताछ किया अनुशिष्टिः (स्त्री०) [अनुशास्+क्तिन्] शिक्षण, अध्यापन, गया, जांच पड़ताल किया गया,-तम् (क्रि० वि०) आदेश, आज्ञा संहिता-पाठ में, संहिता-पाठ के अनुसार । अनुशीलनम् [अनु+शील+ल्यूट] अभिप्रेत तथा श्रमपूर्ण | अनुसमयः [प्रा० स०] नियमित और उचित संयोग जैसे प्रयोग, सतत प्रयत्न या अभ्यास, सतत या बारंबार कि शब्दों का। अभ्यास या अध्ययन । अनुसमापनम् [ अनु+सम् +आप+ल्युट् ] नियमितरूप से अनुशोकः,-शोचनम् [ अनु+शुच्+घञ, ल्युट् वा] रंज, किसी कार्य की समाप्ति । पश्चात्ताप, खेद, इसी अर्थ में अनुश (शो) चितम् । अनुसंबद्ध (वि.) [ अनु+सम् +बंध+क्त ] संयुक्त । अनुश्रवः [ अनु+श्रु+अच् ] वैदिक परंपरा। अनुसरः [ अनु+सृ+अच् ] अनुगामी, साथी, अनुचर । अनुषक्त (वि०) [अनु+ष+क्त ] 1 संबद्ध 2 संलग्न अनुसरणम् [ अनु+सृ+ल्युट् ] 1 अनुगमन, पीछा करना, या संसक्त । पीछे जाना 2 समनुरूपता। अनुषंगः [ अनु+पंज+घञ ] 1 गहन लगाव, संबंध, सं- अनुसर्पः [अनु+सप्- अच् ] सर्पसदृश जन्तु, सरीसृप । योग, साहचर्य, 2 मेल 3 शब्दों का पारस्परिक संबंध अनुसवनम् (अव्य०) [प्रा० स०] 1 यज्ञ के पश्चात् 2 4 आवश्यक परिणाम 5 दया, तरस, करुणा । प्रत्येक यज्ञ में 3 प्रतिक्षण । अनुषंगिक (वि.) [अनुषंग-1] अनिवार्य फलस्वरूप, | अनुसाम (वि०) [प्रा० स०] मनाया हुआ, मित्र सदृश, सहवर्ती। अनुकूल। अनुषंगिन् (वि.) अनु+पंज+णिनि ] 1 संबद्ध, अनुरक्त, | अनुसायम् (अव्य०) [प्रा० स०] प्रति सांयकाल । संसक्त 2 अनिवार्य परिणाम के रूप में आने वाला, 3 | अनुसूचनम् [अनु+सूच-+ ल्युट् ] संकेत करना, इशारा व्यावहारिक, सामान्य, छा जाने वाला-विभुतानुषंगि | करना। भयमेति जनः-कि०६।३५ । अनुसारः [ अनु+स+घञ्] 1 पीछे जाना, अनुगमन अनुषंजनोय (वि०) [ अनु+पंज्+अनीय ] (शब्द की (आलं. भी), पीछा करना-शब्दानुसारेण अवभांति) पूर्ववाक्य से ग्राह्य । लोक्य-श०७; जिधर से आवाज आ रही थी उस अनुषेकः, सेचनम् [ अनु+सिच्+घञ युट् वा] दोबारा ओर देखते हुए 2 समनुरूपता, के अनुसार, प्रयोग के पानी देना, फिर से जल छिड़कना । अनुरूप, 3 प्रथा, रिवाज, रस्म 4 माना हुआ अनुष्टुतिः (स्त्री०) [अनु- स्तु+क्तिन् ] प्रशंसा, सिफा- अधिकार। रिश (क्रमानुसार)। अनुसारक, सारिन (वि०) [ अनु+सृ+-वुल् णिनि वा] अनुष्टुभ् (स्त्री०) [ अनु+स्तुभ् +क्विप् ] 1 प्रशंसा में 1 अनुगामी, पीछा करने वाला, पीछे जाने वाला, सेवा अनुगमन, वाणी 2 सरस्वती 3 बत्तीस अक्षरों का एक करने वाला ---मगानुसारिणं पिनाकिनम-श० श६; छंद जिसमें आठ २ अक्षरों के चार २ पाद होते हैं। -कृपणानुसारि च घनम्-पंच० श२७८; 2 के For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनकल या समनुरूप, बाद में आने वाला-यथाशास्त्र शः [ अनु+उत्+दिश्+घञ्] 'सापेक्ष क्रम एक मनु० ७।३१; 3 तलाश करना, ढूंढना, खोजना, जाँच | अलंकार का नाम जिसमें कि यथा क्रम पूर्ववर्ती शब्दोंका करना। उल्लेख होता है;--ययासंख्यमनदेश उद्दिष्टानां क्रमेण अनुसारणा [अनु+स+णिच्+य+टाप् पीछे जाना, यत्-सा० द० ७३२। पीछा करना-तस्मात्पलायमानानां कुर्यान्नात्यनुसार- | अनून (वि.) [न० त०] 1जो घटिया न हो, कम न हो, णाम् - महा० । अभाव वाला न हो-वृन्दावने चैत्ररथानने-रषु० अनुसूचक (वि.) [ अनु+सूच्+ण्वुल ] संकेत करने वाला, ६५०-गुणरनूना-रघु० ६।३७; 2 पूर्ण, समस्त, इशारा करने वाला। सकल, बड़ा, महान् शि०४।११। अनुसतिः (स्त्री०) [ अनु+सृ+क्तिन् ] पीछे जाना, अनु- ] अनूप (वि.) [ अनुगता: आप: यस्मिन्--अनु+अप्+ गमन, अनुरूप होना, अनुसार होना। अच्---ऊदनोर्देशे इति ऊ ] जलीय, जलबहुल अथवा अनुसन्यम् [प्रा० स०] सेना का पिछला भाग, अनुरक्षक दलदल वाला प्रदेश–पः, पम् 1 जलबद्दल स्थान या सेना। देश 2 एक देश का नाम (-पाः ब०व०)-रघु० अनुस्कंदम् (अव्य०) [अव्य० स०] क्रमशः प्रविष्ट होकर ६३७; 3 दलदल, कीचड़ 4पानी का तालाब 5 नदी क्रमानुसार अन्दर जाकर-गेहं गेहमनुस्कंदम्-सिद्धा। का किनारा, पर्वत का पहल 6 भैस 7 मेंढक 8 एक अनुस्तरणम् [ अनु+स्तु+ ल्युट ] चारों ओर बखेरना या प्रकार का तीतर १ हाथी। सम-जम् आई, अदरक, फैलाना, –णो गाय, विशेषतया वह गाय जिसका -प्राय (वि.) दलदल वाला, कीचड़ से भरा हुआ। बलिदान अंत्येष्टि संस्कार के समय किया जाय। अनूयाज, अनूराषा-अनुयाज, अनुराधा । अनुस्मरणम् [अनु+स्म+ल्युट 1 फिर से ध्यान में लाना, अनूह (वि.) [न.ब.] जिसके जंघा न हो,-हः सूर्य का स्मरण करना, 2. बारंबार स्मरण करना । "सारथि अरुण (जिसका जंधारहित होने का वर्णन अनुस्मृतिः (स्त्री०) [अनु+स्मृ-क्तिन् ] 1 वह स्मृति या पाया जाता है) उषा, दे० अरुण । सम-सारथि स्मरण जो प्रिय हो 2. अन्य विषयों को छोड़कर केबल अनूरु जिसका सारथि है);-गतं तिरश्चीनएक ही बात का चिन्तन करना। मनूरुसारथैः-शि० १।२। अनुस्यूत (वि.) [ अनु+सिव्+क्त-ऊठ ] 1 नियमित | अजित (वि०) [न ऊजित:-न० त०] 1 अशक्त, तथा निर्बाध रूप से मिला कर बुना हुआ 2 सिला "दुर्बल, शक्तिहीन 2 दर्परहित । हुआ, बंधा हुआ, 3 सुषक्त और सुशृंखलित । | अनूषर (वि.) [न ऊषरः-न. त०] 1. रेहीला, बंजर जैसी अनुस्वानः [ अनु+स्वन्+घञ्] 1 अनुरूप शब्द करना (भूमि) दे० उत्तम और अनुत्तम 2 जिसमें रेह न हो। 2 बाद में शब्द करना, गूंज, दे० 'अनुरणन'। अनुच-च (वि.) [न० ब०] 1 बिना ऋचा का 2 जो अनुस्वारः [अनु+स्वृ+घञ्] नासिक्य ध्वनि जो पंक्ति के ऋग्वेद का ज्ञाता न हो, या ऋग्वेद का अध्येता न हो, ऊपर एक बिन्दु लगा कर प्रकट की जाती है और जो यज्ञोपवीत न होने के कारण जिसे वेदाध्ययन का अधिसदैव पूर्ववर्ती स्वर से संबद्ध होती है। कार न हो-अनुचो माणवकः-मुग्धः । अनुहरणम्, हारः [ अनु+ह+ ल्युट्, घा वा ] नकल, | अन्जु (वि.) [ न० त०] जो सरल न हो, कुटिल मिलना-जुलना, समानता। (आलं), अयोग्य, दुष्ट, बेईमान । अनुकः,-कम् [ अनु+उच्+क, कुत्वम् नि०] 1 कुल, वंश | अनणं (वि.) [नव.] जो कर्जदार न हो-एनामनृणां 2 मनोवृत्ति, स्वभाव, चरित्र, वंश की विशेषता। करोमि-श०१-प्राणर्दशरथप्रीतेरनृणं (गधं)अनूचान (वि.)या -नः [ अनु+व+कान नि० ] 1 रघु० १२१५४; प्रत्येक द्विज को तीन ऋणों से उऋण अध्ययनशील, विद्वान् विशेषतया वेद, बेदांगों में ऐसा होना पड़ता है ऋषि ऋण, देवऋण और पितृऋण । पारंगत विद्वान् जो उन्हें सुना सके और पढ़ा सके,- | जो व्यक्ति वेदाध्ययन करके यज्ञ में देवताओं का आवाइदमूचुरनूचाना:-कु० ६.१५; 2 सुशील। हन करता है, और फिर गृहस्थाश्रम में रह कर पुत्र प्राप्त अनून (वि.) [ न० त०] 1 न ले जाया गया, 2 अवि- | करता है वही 'अनण' कहलाता है दे० रघु०८।२० । वाहित,-ढा अविवाहित स्त्री। सम० --मान (वि०) | अनुणिन् (वि०) [ न० त०]-अनृण । लज्जालु,-गमनम् (°ढा) कुमारी कन्या से संभोग, | अनत (वि.) [न० त०] 1 जो सत्य न हो, मिथ्या -भ्राता (पुं०) (°ढा) 1 अविवाहित स्त्री का भाई (शब्द) प्रियं च नानृतं ब्रूयात्---मनु० ४११३८, 2 राजा की उपपत्नी का भाई।। ---तम् असत्यता, झूठ बोलना, घोखा, जालसाजी 2 अनुदकम् [ उदकस्य अभाव: न० त०] जल का अभाव, कृषि (विप० 'सत्य') मनु० ४।५, । सम०-वदनम्, सूखा पड़ना। --भावणम्,-आल्यानम् झूठ कहना, मिथ्या भाषण, For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वादिन्,--वाच् (वि०)झूठ बोलने वाला,-व्रत (वि०) | अनेकशः (अव्य०) 1 कई बार, बारंबार-अनेकशो अपने वचन या प्रतिज्ञा का पालन न करने वाला। निजितराजकस्त्वम्-भट्टि २।५२; 2 विविध रीति अन्तुः [ न० त०] अनुपयुक्त ऋतु, अनुचित समय, अस- से, 3 बड़ी संख्या में या बड़े परिमाण में-पुत्रा अनेक मय । सम-कन्या वह कन्या जो अभी रजस्वला न शो मृता दाराश्च हि०१। हुई हो। | अनेकः [ ने एड:-न० त०] मूर्ख पुरुष, अज्ञानी व्यक्ति, अनेक (वि.) नि० त०] 1 जो एक न हो, एक से अधिक, नूढ़ । सम० --मूक (वि.) गूंगा और बहरामकता बहुत से,--अनेकपितृकाणां तु पितृतो भागकल्पना- __ श्च द्यतु दोषरसम्मतान्-का०७ 2 अंधा 3 बेईमान या० २११२०; कि० १११६; कई, कई एक 2 अलग- दुष्ट, दुःशील । अलग, भिन्न भिन्न । सम०-अक्षर, अच् (वि.) | अनेनस् (वि.) [न० ब०] निष्पाप, कलङ्करहित । एक से अधिक अक्षर या स्वर वाला, नाना अक्षर | अनेहस (पु.) [न हन्यते-हन्+असि धातोःएहादेशःसहित,--अंत (वि.) 1 अनिश्चित, संदिग्ध---अस्थिर- ना+रह+ अस् ] (हा-हसो आदि) समय, काल । स्यादित्यव्ययमनेकांतयाचकम् 2=तु० अनेकांतिक अनेकांत (वि.) [न० त०] परिवर्त्य, अनिश्चित, अस्थिर, (-तः) 1 अनिश्चित अवस्था, स्थायित्व का अभाव सामयिक । 2 अनिश्चितता, अनावश्यक अंश, जैसे कि कई 'अनुबंध' | अनकांतिक (वि.) [न +एकांत+ठक्-न० त०] 'बादः संशयवाद, स्याद्वाद, वादिन् (पु०) स्याद्वादी, (स्त्री० --की) 1 अस्थिर, जो बहुत आवश्यक न हो जैनियों के स्याद्वाद को मानने वाला, अर्थ (वि०) 2 (तर्क० में) हेत्वाभास के मुख्य पाँच भागों में से 1 एक से अधिक अर्थ वाला, समनाम जैसे कि गो, एक, अन्यथा यह 'सव्यभिचार' कहलाता है, और तीन अमत, अक्ष आदि .. अनेकार्थस्य शब्दस्य-काव्य. २; प्रकार का है:-(क) 'साधारण' जहाँ कि हेतु दोनों 2 'अनेक' शब्द के अर्थ वाला 2 बहुत से प्रयोजन ओर-स्वपक्ष, तथा विपक्ष में पाया जाय, फलतः तर्क या उद्देश्य रखने वाला (-र्थः) पदार्थों का अतिसामान्य हो जाय, (ख) 'असाधारण' जहाँ हेतु केवल बाहल्य, विषयों की विविधता,-आश्रय,-आश्रित पक्ष में ही पाये जायें फलतः तर्क अतिसामान्य न हो, (वि.) (वैशे०) एक से अधिक स्थानों (जैसा कि (ग) 'अनुपसंहारी' जहाँ पक्ष में प्रत्येक ज्ञात बात तो 'संयोग' या 'सामान्य') पर रहने वाला,-गुण (वि०) सम्मिलित है, परन्तु तों की अभी समाप्ति नहीं बहुत प्रकार का, विविध प्रकार का, विभिन्न भेदों का,गोत्र (वि०) दो कुलों से संबंध रखने वाला, एक | अनक्यम् [न० त०] 1 एकता का अभाव, बहुवचनता 2 तो अपने कुल से (जब तक कि गोद न लिया गया | एकत्व की कमी, अव्यवस्था 3 अशान्ति, अराजकता। हो), तथा गोद लिये जाने पर गोद लेने वाले पिता के | अनंतिम् [ न० त०] परंपरागत प्रामाणिकता का अभाव, कुल से,--चित्त (वि.) चंचलमना,-ज (वि) एक से या जहां इस प्रकार की स्वीकृति अपेक्षित है। अषिकवार उत्पन्न, -जः पक्षी, -प: हाथी तु० अनो (अव्य०) [न० त०] नहीं, न । 'द्विप' से, वन्येतरानेकपदर्शनेन-रघु० ५।४७; शि० अनोकशायिन् (पुं०-यो) [न० त०] घर में न सोने ५।३५, १२।७५; – मुख (वि.) [स्त्री०-खो] वाला, भिक्षुक । (वि.) 1 बहुत मुंह वाला 2 तितर बितर, बहुत सी अनोकहः [अनसः शकटस्य अकं गति हन्ति-हन्+3] वृक्ष, दिशाओं में फैलने वाला-(बलानि) जगाहिरेऽनेक. ---अनोकहा कम्पितपुष्पगंधी-रघु० २।१३, ५।६९। मुखानि मार्गान-भट्टि. २१५४; -युविजयिन, - | अनौचित्यम् [ना+उचित+ध्या ] अनुपयुक्तता, विजयिन् (वि.) बहुत से युद्धों का विजेता, --रूप __अनुचितता-अनौचित्यादृते नान्यद्रसभंगस्य कारणम्(वि.) 1 नाना रूपों का, बहुत रूपों वाला, 2 नाना का०७। प्रकार का 3 चंचल, परिवर्तनीय विविध स्वभाव वाला | अनौजस्यम् [नश् +ओजस्+ज्य ] शक्ति सामर्थ्य या –वेश्यांगनेव नपनीतिरनेकरूपा पंच० १४२५, बल को अभाव; सा०६०-दोगत्यारितौजस्य दैन्यं -लोचनः शिवजी, इन्द्र,-वचनम् बहुवचन, द्विवचन, मलिनतादिकृत् । -वर्ण (वि.) एक से अधिक राशियों वाला-विष अनौडत्यम् निश+उद्धत+ध्या] 1 अहंकार से मुक्ति, (वि.) विविध, विभिन्न,-शफ (वि.) फटे हुए खुरों शालीनता, विनय; 2 शान्ति, -नदीरनौद्धत्यमपड़ता वाला, साधारण (वि.) बहुतों के लिए सामान्य । महीं-कि० ४१२२। भनेकपा (अव्य.) [नश+एक+धा] विविष रीति से, | अनौरस (वि.) [न० त०] जो औरस-अर्थात विवाहिता नाना प्रकार से;-जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकषा-भगः । पत्नी से उत्पन्न न हो, अपना भी न हो, (पूत्र के रूप में) गोद लिया हुआ। For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंत (वि.) [अम्+तन् ] 1 निकट 2 अन्तिम 3 सुन्दर, ---क: 1 मृत्यु 2 साकार मृत्यु, संहारक, यम, मृत्यु का मनोहर,--मेघ० २३, शि० ४।४० (इसका सामान्य देवता,--ऋषिप्रभावान्मयि नान्तकोऽपि प्रभः प्रहर्तुम् अर्थ--'सीमा' या 'छोर' है, यद्यपि 'शब्दार्णव' का रघु० २०६२ । उद्धरण देते हुए मल्लिनाथ इसका अर्थ 'रम्य' करते अंततः (अव्य) [अन्त तसिल ] 1 किनारे से 2 आखिर है) 4 नीचतम, निकृष्टतम 5 सबसे छोटा, तः कार, अन्त में, अंततोगत्वा, निदान 3 अंशतः, कुछ 4 (कुछ अर्थों में नपुं.) 1 (वि.) छोर, मर्यादा, (देश- भीतर, अन्दर 5 अधम रीति से ('अंत' के सभी अर्थ काल की दृष्टि से) सीमा, चरम सीमा, अन्तिम बिन्दु 'अंततः' में समा जाते हैं) या पराकाष्ठा,--स सागरांतां पृथिवीं प्रशास्ति-हि० | अन्ते (अव्य०) [ 'अन्त' का अधि०, क्रि० वि० में प्रयोग ] ४।५०,-दिगते श्रूयते --भामि०१२; 2 छोर, सरहद, 1 अन्त में, आखिरकार 2 भीतर 3 (की) उपस्थिति किनारा. परिसर, सामान्य रूप से स्थान या भूमि,- में, निकट, पास ही। सम० --वास: 1 पड़ोसी, साथी, यत्र रम्यो वनांतः, उत्त० १२५,-ओदकांतात् स्निग्धो 2 छात्र --शि० ३०५५, वेणी० ३१६ –वासिन जनोऽनुगंतव्यः-श० ४, रघु० २।५८; 3 बुनी हुई किनारी तु० अंतवासिन् । का पल्ला-वस्त्र', पट'; 4 सामीप्य, सन्निकटता, | अंतर (अध्य०)[ अम् अरन् तुडागमश्च ] 1 [क्रियाओं पड़ीस, विद्यमानता--गंगा प्रपातांतविरूढशष्पं (गह के साथ उपसर्ग की भांति प्रयुक्त होता है तथा संबंध रम्) रघु० २०३६, पुंसो यमांतं बजतः--पंच०२।११५; बोधक अव्यय समझा जाता है । (क) बीच में, के 5 समाप्ति, उपसंहार, अवसान,-सेकांते--रघु० १।५१, मध्य, में, के अन्दर हन, धा, गम्, भू, 'इ, ली दिनांते निहितम् -रघु० ४११, 6 मृत्यु, नाश, जीवन आदि (ख) के नीचे 2 (क्रि० वि० प्रयोग) (क) का अन्त, ... राका भवेत्स्वस्तिमती त्वदंते--रघु० २।४८, के मध्य, के बीच, के दरम्यान, के अन्दर, मध्य में या अद्य कांतः कृतांतो वा दुःखस्यान्तं करिष्यति-उद्भट अंदर, भीतर (विप० बहिः)—अदह्यतांतः रघु० २।३२, 7 (व्या० में) शब्द का अन्तिम अक्षर 8 समास में अन्तर्यश्च मग्यते-विक्रम० १११, आंतरिक रूप से, अंतिम शब्द 9 (प्रश्न का) निश्चय, निर्णीत या अंतिम मन में (ख) ग्रहण करके या पकड़कर--अंतर्हत्वा निश्चय-उभयोरपि दृष्टोऽतस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः भग० गतः (हतं परिगृह्य) 3 (वियुक्त होने योग्य सम्बन्ध२।१६; 10 अंतिम अंश, अवशेष-यथा निशांत, वेदांत बोधक के रूप में) (क) में, के मध्य, बीच में, के 11 प्रकृति, दशा, प्रकार, जाति 12 वृत्ति, तत्त्व शुद्धांतः । अन्दर (अधि० के साथ)-निवसन्नंतरुणि लंध्यो सम-अवशायिन् (पु०) चांडाल, -अवसायिन वह्निः--पंच० ११३१अप्स्वंतरमृतमप्सु-ऋग् १।२३ (पुं०) 1 नाई 2 चांडाल, नीच जाति का, कर, (ख) के मध्य (कर्म के साथ) वेद०-हिरण्मय्योह ---करण, --कारिन् (वि०) घातक, मारक, संहारक, कुश्योरंतरवहित आस-शत० (ग) में, के अन्दर, -कर्मन् (नपुं०) मृत्यु, ---कालः, -वेला मृत्यु का भीतर, बीच में (संबं० के साथ) प्रतिबल जलधेरंतसमय,--कृत् (पुं०) मृत्यु,-ग (वि०) किनारे तक जाने रौर्वायमाणे वेणी० ३।५, अंतः कंचुकिचकस्य --- वाला, पूरी तरह से जानकार या परिचित, (समास में) रत्न० २।३;-लघुवृत्तितया भिदां गतं बहिरंतश्च नपस्य .—गति, -गामिन् (वि०) नाश होने वाला, गम मंडलम् ---कि० २।५३; 4 समस्त शब्दों में यदि प्रथम नम् 1 समाप्त करना, पूरा करना 2 मृत्यु, --दीपकम पद के रूप में प्रयुक्त किया जाय तो बहधा निम्नांकित सा० शा० में एक अलंकार, ---पाल: 1 सीमा की अर्थ होते हैं:-आंतरिक रूप से, के अन्दर, भीतर, रक्षा करने वाला, 2 द्वारपाल --लीन (वि.) गुप्त, भीतर रह कर, भरा हुआ, अन्दर की ओर, आंतरिक, छिपा हुआ, -लोपः शब्द के अंतिम अक्षर को निकाल गुप्त, तत्पुरुष तथा बहुव्रीहि समास के क्रियाविशेषदेना,-वासिन् ('ते') (वि.) सीमान्त प्रदेश के निकट णात्मक रूप बनाने वाला(नोट-समस्त पदों में 'अन्तर' रहने वाला, निकट ही रहने वाला, (-पं०) विद्यार्थी का र वर्ग के प्रथम द्वितीय वर्ण तथा श, ष, स् से (जो शिक्षा ग्रहण करने के निमित्त सदैव गरु के निकट पूर्व विसर्ग का रूप धारण कर लेता है जैसे अन्तःकरण, रहता है), चांडाल (जो गांव के किनारे रहता है) अन्तःस्थ आदि) । सम० --अग्निः आन्तरिक आग, -वेला-तु. काल:-शय्या 1 भूमिशय्या 2 अंतिम वह अग्नि जो पाचन शक्ति को उत्तेजित करे, -अंग शय्या, मृत्युशय्या 3 कब्रिस्तान या श्मशान भूमि, (वि.) 1 अंदर की ओर, आन्तरिक, अन्तर्गत (अपा० .-सत्क्रिया अन्त्येष्टि संस्कार,--सद् (पुं०) विद्यार्थी, के साथ), त्रयमंतरंग पूर्वेभ्य:-पातंजल० 2 शब्द के तमुपासते गुरुमिवांतसद:-कि० ६।३४ । मलरूप या अंग के आवश्यक भाग से संबद्ध, या अंग अन्तक (वि.) [अन्तयति - अन्तं करोति .....Vवल ] मारने के आवश्यक भाग से संबद्ध, या उसका उल्लेख करने वाला, नाश करने वाला, घातक-रघु० १११२१, । वाला, 3 प्रिय, प्रियतम (-गम्) 1 अंतस्तम अंग, For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७ हृदय, मन 2 घनिष्ठ मित्र, या विश्वस्त व्यक्ति; आकाशः तेजोवह तत्त्व या ब्रह्म जो मनुष्य के हृदय में रहता है (उपनिषदों में प्रायः यह शब्द पाया जाता है ) - आकूतम् गुप्त और छिपा हुआ प्रयोजन, -आत्मन् (पुं०-त्मा ) 1 अंतस्तम प्राण या आत्मा, मन या आत्मा आन्तरिक भावना, हृदय, जीवसंज्ञोंतरात्मान्यः -- मनु० १२/१३, भग० ६ ४७, 2 (दर्श ० में) अन्तहित सर्वोपरि प्राण या आत्मा ( मानव के भीतर रहने वाला) अंतरात्मासि देहिनाम् – कु० ६ | २१ ; -- आराम ( वि० ) अपने आप में मस्त, अपने आत्मा या हृदय में ही सुख ढूंढ़ने वाला; योंत: सुखोंतरारामस्तथांतर्ज्योतिरेव सः - भग० ५१२४, - इन्द्रियम् आन्तरिक अंग या ज्ञानेन्द्रिय, करणम् हृदय, आत्मा, विचार और भावना का स्थान, विचार शक्ति, मन, चेतना--प्रमाणं० प्रवृत्तयः श० १।२२, - कुटिल ( वि० ) अन्दर से कपटी ( आलं ० ) ( लः) सीप, — कोणः अन्दर का कोण, कोपः गुप्त क्रोध, अन्दरूनी गुस्सा, गड्डु (वि०) व्यर्थ, अनावश्यक, निष्फल -- किमनेनांतर्गडुना सर्व० गम्, - गत दे० 'अन्तर्गम्' के नीचे, गर्भ (वि० ) पेट वाली, गर्भवती, गिरम्, -- गिरि ( अव्य० ) पहाड़ों में, गूढ़ ( वि० ) अन्दर से छिपा हुआ, 'विषः हृदय में जहर छिपाए हुए गृहम्, गेहम्, भवनम् घर का भीतरी भाग, घणः, -घणम घर के अन्दर की खुली जगह, -चर (वि०) शरीर में व्याप्त, - जठरम् पेट, - ज्वलनम् जलन या सूजन, ताप ( वि० ) अन्तर्दाह से युक्त ( -पः ) अन्दरूनी ज्वर या गर्मी, - श० ३।१३, दहनम्, दाहः 1 अन्दरूनी जलन 2 सूजन देश: परिधि के बीच का प्रदेश, द्वारम् घर के अंदर निजी या गुप्त दरवाजा, धि - हित आदि दे० शब्द के नीचे पटः, पटम् दो व्यक्तियों के बीच में कपड़े का परदा - पवम् ( अव्य० ) पद ( विभक्तियुक्त शब्द) के भीतर, परिधानम् सबसे नीचे पहना जाने वाला कपड़ा, पातः, पात्यः 1 ( व्या० ) बीच में अक्षर रखना 2 यज्ञभूमि के मध्य में जमाया हुआ स्तंभ (संस्कार विधियों में प्रयुक्त), -- पातित, पातिन् ( वि० ) 1 बीच में समाविष्ट 2 सम्मिलित या समाविष्ट अन्तर्गत होने वाला, - पुरम् 1 महल का अन्दरूनी भाग जो महिलाओं के उपयोग के लिए नियत किया गया हो, स्त्रियों के रहने का कमरा, रनवास, कन्यांतःपुरे कश्चित् प्रविशति --- पंच० १; 2 रनवास में रहने वाली स्त्रियां, रानी या रानियाँ, स्त्रियों का समुदाय - विरहपर्युत्सुकस्य राजर्षेः श०३, अध्यक्षः, रक्षकः, 'वर्ती अन्तःपुर का अधीक्षक या संरक्षक, चर: कञ्चुकी, 'जन: महल की Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) स्त्रियां रनवास की महिलाएँ, प्रचारः अन्तःपुर की गप्पें कदाचिदस्मत्प्रार्थनामतः पुरेभ्यः कथयेत् श० २ सहायः अन्तःपुर से संबंध रखने वाला, पुरिकः कंचुकीचर:, प्रकृतिः (स्त्री० ) 1 मनुष्य का शरीर या उसका आंतरिक स्वभाव 2 राजा का मंत्रालय या मंत्रिमंडल 3 हृदय या आत्मा, प्रकोपनम् आंतरिक विरोध जमाना, प्रतिष्ठानम् - भीतरी आवास, - बाष्प ( वि० ) 1 जिसने आंसुओं को रोका हुआ हो- अन्तर्बापश्चिरमनुचरो राजराजस्य दध्यौमेघ० ३; 2 जिसके आंसू अन्दर ही अन्दर निकल रहे हों, --- भावः, -भावना दे० 'अंतर्भू' के अन्तर्गत, - भूमिः (स्त्री०) भूमि का भीतरी भाग, भेवः वैमनस्य, आन्तरिक विरोध, भौम (वि०) भूमि के नीचे रहने वाला - मनस् ( वि० ) उदास, व्याकुल, मृत (वि०) गर्भ में ही मर जाने वाला - यामः वाणी और श्वास को रोकना, लीन ( वि० ) 1 निहित, गुप्त, अन्दर छिपा हुआ, 'नस्य दुःखाग्नेः उत्तर० ३।९ 2. अन्तर्निहित - वंशः पुरम्, तु०, वंशिक:, --- वासिकः अन्तःपुर का अधीक्षक, वत्नी गर्भवती स्त्री वस्त्रम्, वासस् ( नपुं. ) अधोवस्त्र – वाणि ( वि०) बड़ा विद्वान्, - वेगः आन्तरिक बेचैनी या चिन्ता, आन्तरिक ज्वर, वेदिः - दी गंगा और यमुना के बीच का भूभाग - वेश्मन् ( न० ) घर के अन्दर का कमरा, भीतरी कोठा, - वैश्मिकः कंचुकी, - शरीरम् मनुष्य का आन्तरिक या आत्मिक भाग, शरीर का भीतरी भाग, शिला विन्ध्य पहाड़ से निकलने वाली नदी, संज्ञ ( वि० ) अन्तश्चेतन, सस्वा गर्भवती स्त्री, संतापः आन्तरिक पीडा, शोक, खेद, सलिल ( वि० ) जिसका पानी भूमि के अन्दर बहता हो,नदीमिवान्तः सलिलां सरस्वतीम् -- रघु० ३।९, सार ( वि० ) अन्दर से भरा हुआ, या शक्तिशाली, बलवान् भारी और जटिल - र घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति - त्वाम् - मेघ ० २० ( रः) आन्तरिक कोष या भंडार, आन्तरिक निधि या तत्त्व, सेनम् (अव्यय) सेनाओं के बीच में, स्थः ('अंतस्थ' भी ) अर्धस्वर, क्योंकि वे स्वर और व्यंजनों के बीच में स्थित हैं और वागिन्द्रिय के ज़रा से संपर्क से बोले जाते हैं, स्वेदः मस्त हाथी, हासः गुप्त या दबाई हुई हँसी-हृदयम् हृदय का भीतरी भाग । अन्तर (वि० ) [ अन्तरातिददाति रा क] 1 अंदर होने वाला, भीतर का ( विप० बाह्य) 2. निकट, समीप 3. संबद्ध, घनिष्ठ, प्रिय-अयमत्यन्तरो मम भारत 4. समान ( ' अन्तरतम भी ) ( ध्वनि और शब्दों के विषय में ) - स्थानेऽन्तरतमः पा० १।१।५० 5. से भिन्न, अन्य ( अपा० के साथ) 6. बाहर का, बाह्यस्थित, बाहर रहने वाला For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८ ) (इस अर्थ में इसके रूप विकल्प से कर्ता० ब० ब०,। वाला, प्राज्ञ, दूरदर्शी,-नान्तरज्ञाः श्रियो जातु प्रियरासां अपा० और अधि० एक व० में 'सर्व' की भांति होते है) । न भूयते-कि. ११२४,-दिशा (अन्तरा दिक) इसलिए-अन्तरायां पुरि, अन्तरायै नगर्य,-रम् 1.(क.) परिधि का मध्यवर्ती प्रदेश या दिशा,-पु (पू) रुषः भीतर का, अन्दर का-लीयन्ते मुकुलान्तरेषु--रत्न० आन्तरिक मानब, आत्मा (मानव के अन्दर निवास १।२६, (ख.) छिद्र, सूराख 2. आत्मा, हृदय, मन- करने वाला देवता जो कि उसके सब कार्यों को देखता सदशं पुरुषान्तरविदो महेन्द्रस्य-विक्रम०३, 3. परमा- है)-प्रभवः मिश्रित जाति में जन्म लेने वाला,--स्थ त्मा, 4. अन्तराल, मध्यवर्ती काल या देश-अल्प- -स्थायिन,-स्थित (वि०) 1. आभ्यन्तरिक, आंतरिक, कुचान्तरा--विक्रम ४१२६, बृहद्भुजान्तरम्-रघु० अन्तहित 2. अन्तःक्षिप्तः, अन्तर्वर्ती। ३१५४, 'अन्तरे' का बहुधा अनुवाद किया जाता है-- अन्तरतः (अव्य०) [अन्तर+तसिल 1. भीतर, आंतरिक मध्य में, बीच में न मृणालसूत्रं रचितं स्तनान्तरे श० रूप में, मध्य, 2. के अन्दर (संब० के साथ)। ६।१७, 5. स्थान, जगह, देश-मृणालसूत्रान्तरमप्य- | अन्तरतम (वि०) [अन्तर+तमा अत्यन्त निकट, आंतलम्यम् कु. ११४०, पौरुषं श्रय शोकस्य नान्तरं दातु- रिक, निकटतम, घनिष्ठतम, सदशतम-मः उसी श्रेणी मर्हसि-रा० शोक मत करो,--अन्तरम्-अन्तरम्- का अक्षर। मृच्छ. रास्ता छोड़ो, 6. पहुंच, अन्दर जाना, प्रवेश, | अन्तरयः-रायः [ अन्तर+अय्+ अच् ] अवरोध, बाधा, कदम रखना-लेभेन्तरं चेतसि नोपदेश:-रघु०६।६६ रुकावट,-स चेत् त्वमन्तरायो भवसि च्युतो विधिः --- लब्धान्तरा सावरणेऽपि गेहे-१६।७, 7. अवधि (काल रघु० ३१४५, १४१६५, अस्य ते बाणपथवर्तिनः कृष्णकी), निदिष्ट अवधि,--मासान्तरे देयम्-अमर०, सारस्य अन्तरायौ तपस्विनौ संवत्ती-श० (पाठ०) इति तो विरहान्तरक्षमौ-रघु० ८५६, 8. अवसर, | अन्तरयति [ना० धा०-पर०] 1. बोच में डालना, हटाना, संयोग, समय-यावत्त्वामिन्द्रगुरवे निवे; तुमन्तरा-| स्थगित करना, भवतु तावदन्तरयामि-उत्तर०६, 2. न्वेषी भवामि-श०, ७,१. भेद (दो वस्तुओं के बीच). विरोध करना, 3. दूर हटाना, पीछे से धकेलना। (सबं० के साथ या समास में )-तव मम च समुद्र- अन्तरयण =अन्तरय पल्वलयोरिवान्तरम-मालवि० १, यदन्तरं सर्षप- अन्तरा (अव्य.) [अन्तरेति- इण---डा] 1. (क्रि० वि० के शैलराजयोर्यदन्तरं वायसवैनतेययो:-रा०, द्रुम सानुमता रूप में) (क) भीतर, अन्दर, भीतर की ओर (ख) किमन्तरम्-रघु० ८९०, 10. (गणित) भिन्नता, मध्य में, बीच में, त्रिशकुरिवान्तरा तिष्ठ-श० २, शेष, 11. (क०) भेद, अन्य, दूसरा, परिवर्तित, बदला रघु०१५।२०, (ग) मार्ग में, बीच में विलंबेथां च हुआ (रीति, प्रकार, ढंग आदि) (ध्यान रखिये इस भांतरा~महावीर० ७।२८ (घ) पड़ोस में, निकट ही, अर्थ में 'अंतर' सदैव समस्तपद का उत्तर पद रहता लगभग (ङ) इसी बीच में (च) समय समय पर, है तथा इसका लिंग वही बना रहता है—अर्थात् नपुं० यहाँ वहाँ, कभी कभी, कुछ समय तक, अब, अभी चाहे पूर्वपद का कुछ भी लिंग हो-कन्यान्तरम् -अन्तरा पितृसक्तमन्तरा मातृसंबद्धमन्तरा शुकनासमयं (अन्याकन्या), राजान्तरं (अन्यो राजा), गृहान्तरम् कुर्वन्नालापं----का० ११८, 2. (कर्म के साथ सं० अव्य. (अन्यद् गृहम्), इसका अनुवाद बहुधा 'अन्य' शब्द ! की भांति) (क) अन्तरा त्वां मां च कमण्डलु:-~-महा० से किया जाता है)-इदमवस्थान्तरमारोपिता- (ख) के बिना, सिवाय-नच प्रयोजनमन्तरा चाणक्यः श०३, परिवर्तित दशा, (ख) विविध, विभिन्न (ब. स्वप्नेपि चेष्टते-मुद्रा० ३। सम०-अंसः छाती,व० में प्रयुक्त)-लोको नियम्यत इवात्मदशान्तरेषु-श० भवदेहः,-भवसत्वम्-आत्मा या जीवात्मा, जो जन्म ४१२, 12. विशेषता, (विशिष्ट) प्रकार, विभेद, या और मरण की अवस्थाओं के बीच में रहता है,-दिश किस्म-ग्रीह्यन्तरेऽप्यणु:-त्रि०, मीनो राश्यन्तरे तद० दे०-अन्तर्दिश-वेदि:-दी (स्त्री) 1.स्तंभाश्रित वरांडा, 13. दुर्बलता, आलोच्य स्थल, असफलता, दोष, सदोष दहलीज, ड्योढ़ी 2. एक प्रकार की दीवार---रघु० स्थल,-प्रहरेदन्तरे रिपुं-शब्द०,सुजयः खलु तादगन्तरे- १२।९३,-शृंगम् (अव्य) सींगों के बीच में। कि. २५२, 14. जमानत, प्रत्याभूति, प्रतिभूति, 15. | अन्तरायः=अंतरयः तु. सर्व श्रेष्ठता,-गुणान्तरं वजति शिल्पमाघातुः-मालवि० | अन्तरालम् । [अन्तरं व्यवधानसीमाम् आराति गृह्मा.. ११६ (यह अर्थ ११ संख्यान्तर्गत से भी जाना जा अन्तरालकम् । अन्तर-+आ+रा+क रस्य लत्वम्] 1. सकता है), 16. वस्त्र (परिधान) 17. प्रयोजन, मध्यवर्ती प्रदेश, स्थान, या काल, अवकाश-दक्षिआशय (मल्लि-रघु. १६३८२) 18. प्रतिनिधि, णस्याः पूर्वस्याश्च दिशोरन्तरालं दक्षिणपूर्वा-सिद्धा, स्थानापत्ति, 19. हीन होना। सम-अपत्या अंतराले बीच में, के मध्य, के बीच, अवकाश के गर्भवती स्त्री, (वि.) अन्दर का रहस्य जानने समय, बाष्पांमः परिपतनोदगमान्तराले-उत्तर० ११३१, For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. भीतर, अन्दर, भीतरी या मध्यभाग 3. मिश्रित । हुआ, ओझल, 6. अदृष्ट । सम०-उपमा गुप्त जाति या समुदाय । उपमा,-मनस्=अंतर्मनस् तु०।। अन्तरि(री)क्षम् [अन्त: स्वर्गपृथिव्योमध्ये ईक्ष्यते-इति- | अन्तर्धा [अन्तर |धा अड] आच्छादन, गोपन,-अन्तर्धा अन्तर--- ईक्षघञ , पृषो० ह्रस्वः वा] आकाश और मुपययुरुत्पलावलीषु-शि० ८।१२।। पृथ्वी के बीच का मध्यवर्ती प्रदेश, वायु, वातावरण | अन्तर्धानम् [अन्तर्-+-घा-+ ल्युट्] अदृश्य होना, ओझलपना, आकाश । सम०-उदरम् वातावरण का मध्य,--गः, दृष्टि से चूक जाना-व्यसनरसिका रात्रिका पालि- चरः पक्षी, जलम् ओस,-लोकः मध्यवर्ती प्रदेश कीयम् --काव्य० १०; गम् या इ--अदृश्य होना, जो कि एक स्वतंत्र लोक समझा जाता है। ओझल होना। अन्तरित (वि.) [अन्तः--इ-+क्त 1. बीच में गया हआ, अन्तधिः (स्त्री०) [अन्तर्धा +कि ] ओझल होना, अन्तवंती, 2. अन्दर गया हुआ, गुप्त, ढका हुआ, पथक | गोपन। किया हुआ, अदृश्य, पादपान्तरित एव विश्वस्तामेनां | अन्तर्भवः (वि०) [अन्तर् भवतीति-भू+अच्] अन्दर की पश्यामि-श०१, लता के पीछे छिपा हुआ, सारसेन । ओर, आन्तरिक। स्वदेहान्तरितो राजा-हि० ३, पर्दे के पीछे छिपा हुआ | अन्तर्भावः [अन्तर्+भू+घञ्]1 अन्तर्भूत या अन्तमिलित 3. अंदर गया हुआ. प्रतिबिंबित स्फटिकभित्त्यन्तरि- होना, अन्तर्गत होना,-तेषां गुणानामोजस्यन्तर्भाव:तान् मृगशावकान् (क) अवरुद्ध, बाधित, रोका गया- काव्य०८, 2. अन्तहित भाव । त्वद्वांच्छान्तरितानि साध्यानि मुद्रा० ४।१५, नोपालभ्यः | अन्तर्भावना [अन्तर+भू-णिच् + ल्युट्] 1. सम्मिलित देवान्तरितपौरुषः-पंच० २।१३, (ख) पृथक्कृत, | करना, 2. अन्तश्चिन्तन या चिन्ता । अदृश्य, रुद्धदृष्टि, महूर्तान्तरितमाधवा दुर्मनायमाना | अन्तर्य (वि.) [अन्तर+यत्] आन्तरिक, बीच में। माल०८, मेघेरन्तरितः प्रिये तव मुखच्छायानकारी अन्तहित (वि.) [अन्तर+धा। क्त] 1. बीच में रक्खा शशी-सा० द० (ग) डबा हुआ, तिरोहित 4. | हुआ, पृथक्कृत, दृष्टिरुद्ध, गुप्त, छिपा हआ–अन्तहिता ओझल, नष्ट, वियुक्त, संहृत-अन्तरिते तस्मिन् शबर- शकुंतला बनराज्या–श० ४, 2. ओझल हुआ, नष्ट, सेनापतौ का० ३३, 5. अतिक्रांत, भूला हुआ। अदृश्य-अन्तहिते शशिनि-श० ४।२। सम० अन्तरोपः [अन्तर्मध्ये गता आपो यस्य–ब० स०, आत -आत्मन् (पुं०) शिव।। ईत्वम्] भूमि का टुकड़ा जो समद्र के भीतर चला | अन्ति (अव्य०) [अन्त+इ] पास में (संब० के साथ), गया हो, भूनासिका, द्वीप। (स्त्री०-तिः) बड़ी बहन (नाटकों में)। अन्तरीयम् [अन्तर+छ] अधोवस्त्र ।। अन्तिका [अन्त+इ स्वार्थे कन् टापु] 1. बड़ी बहन 2. अन्तरेण (अव्य०) [अन्तर+इण+ण] 1. [कर्म० के साथ चुल्हा, अंगीठी, 3. एक पौधे का नाम (सातलाख्य या सं० अव्य० के रूप में] (क) सिवाय, के बिना, क्रिया- शातलाख्य औषधि)। न्तरान्त रायमन्तरेण आर्य द्रष्टुमिच्छामि-मुद्रा०३, न | अन्तिक (वि.) [अन्त: सामीप्यमस्यातीति---अन्त+ठन्] राजापराधमन्तरेण प्रजास्वकालमृत्युश्चरति --उत्तर० 1. निकट, समीप (संब० या अपा० के साथ), 2 २, मार्मिकः को मरन्दानामन्तरेण मधुव्रतम्-भामि० पहुंचने वाला, 3. टिकाऊ, तक,---कम् निकटता, १।११७, (ख) के विषय में, संकेत करते हुए, के संबंध सामीप्य, पड़ोस, उपस्थिति, न त्यजन्ति ममान्तिकम्में--अथ भवन्तमन्तरेण कीदशोऽस्या दृष्टिरागः -- श. हि०११४६, न्यस्त-रघु० २।२४ कर्ण-चर-श. २, तदस्या देवी वसुमतीमन्तरेण महदुपालम्भनं गतोऽस्मि श२४, (क्रि.वि.) [संब. और अपा० के साथ अथवा -श० ५, (ग) के बीच में, त्वां मां चान्तरेण समास के अन्त में निकट, पड़ोस में,-अन्तिक ग्रामात् कमण्डलु:-महा० 2. (क्रि० वि०) (क) के बीच में, ग्रामस्य वा--सिद्धा०, सामीप्य या सन्निधि में, अन्तिके मध्य (ख) हृदय में। केन-निकट (संब० के साथ) अन्तिकात–निकट, पास अन्तर्गत (वि.)[अन्तः+गम+क्त, णिनिर्वा] 1. बीच से, से (अपा० या संब०) °कादागत,-अंतिके निकट, अन्तर्गामिन् में मध्य में, गया हआ, (बरे शब्द की भांति) -दमयन्त्यास्तदान्तिके निपेतुः नल. १।२२। सम. बीच में आया हुआ, 2. अन्तःस्थित, अन्तःसम्मिलित, -आश्रयः पास की वस्तु का सहारा लेने वाला, लगातार विद्यमान, संबद्ध 3. गुप्त, आन्तरिक, अन्दर की ओर, सहारा (जैसा कि वृक्ष के द्वारा लता को दिया रहस्य, गढ़,--अन्तर्गतमपास्तं मे रजसोऽपि परं तमः- जाता है)। कु०६।६०, सौमित्रिरन्तर्गतबाष्पकंठ:-रघु० १४१५३ | अन्तिम (वि.) [अन्त+ डिमच्] 1. तुरन्त बाद आनेवाला, नेत्रवक्त्रविकारश्च लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः—पंच० ११४४, | 2. आखरी, अन्त का, चरम----अजातमतमूर्खाणां बरमा4. स्मृतिपथ से गया हुआ, भूला हुआ, 5. नष्ट हुआ । द्यौ न चान्तिम:-हि० १, सम-अंकः आखरी For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५० ) अंक, नौ की संख्या,-अगुलि:--छोटी (कनिष्ठिका) । अन्दोलनम् [अन्दोल+ ल्युट्] झूलना, घुमाऊ, कंपनशील अंगुली। ------द्राक् चामरान्दोलनात्-उद्भट। मन्ती [अन्त-+इ+डीप्] चूल्हा, अंगीठी। अन्ध (चु० उभ०) 1. अंधा बनाना, अंधा करना--अंघयन् अम्ते-दे० "अन्ततः" के नीचे । भंगमाला: शि० ११११९, 2. अंधा होना।। अन्त्य (वि.) [अन्त+यत्] 1. अन्तिम, चरम (अक्षर या | अन्ध (वि.) [अन्ध् । अच 1. अंघा (शब्द और आलं. शब्द आदि) अन्त में (समय, क्रम या स्थान की दृष्टि प्रयोग] दृष्टिहीन, देखने में असमर्थ (किसी विशिष्ट से) जैसे कि अक्षरों में 'ह', नक्षत्रों में 'रेवती', अन्त्ये समय पर), अंधा किया हुआ, सजमपि शिरस्यन्धः वयसि-बूढ़ी अवस्था में-रघु० ९।७९, अन्त्यम् ऋणम्- क्षिप्तां धुनोत्यहिशङ्कया-श०७।२४, मदान्धः- नशे में रघु० १५७१ अन्तिम ऋण, मंडनं-८७१, कृ० अंधा, इसी प्रकार दन्धिः , कोधान्धः, 2. अंधा बनाने ४१२२, 2. तुरन्त बाद में, (समा०) 3. निम्नतम, वाला, दृष्टि को रोकने वाला, नितांत पूर्ण अंधकार; अधम, घटिया, नीच, --न्त्यः 1. अधम जाति का मनुष्य, सोदन्नन्धे तमसि - उत्तर० ३।३८-धम् 1. अंधकार 2. शब्द का अंतिम अक्षर 3. अंतिम चांद्र मास अर्थात् 2. जल, पंकिल जल। सम०-कारः अंधेरा (शब्द. फाल्गुन 4. म्लेच्छ,-त्या अधम जाति की स्त्री,-त्यम् और आलं०), काम, मदन,—अन्धकारतामपयाति 1. सौ नील की संख्या (१०००००००००००००००) चक्षुः-का० ३६, धूमिल हो जाती है,-कूपः 1. कुआँ 2. मीन राशि 3. प्रगति का अंतिम अंग। सम० जिसका मुंह ढेंका हुआ होता है, ऐसा कुआँ जिसके --अवसायिन् (पुं०-यी, स्त्री-यिनी) अधम जाति की ऊपर घास उगा हुआ हो 2. एक नरक का नाम, स्त्री या पुरुष, निम्नांकित सात इसी श्रेणी से संबंध रखने -तमसम्,-तामसम्, अन्धातमसम्--गह्न अंधकार, पूरा वाले समझे जाते है,-चांडाल: श्वपचः क्षत्ता सूतो अंधेरा--रघु०१।२४,-तामिस्रः-श्रः (तामित्रम्) वैदेहकस्तथा, मागधायोगवी चैव सप्ततेऽन्त्यावसायिनः । नितांत गहन अंधकार,-धी (वि०) मानसिक रूप से -आहुतिः, इष्टिः (स्त्री०)-कर्मन,-क्रिया अन्त्येष्टि अंधा,-पूतना राक्षसी जो बच्चों में रोग फैलाने वाली संस्कार की आहुतियाँ या औवंदैहिक संस्कार, मानी जाती है। -ऋणम तीन ऋणों में अंतिम जिससे कि प्रत्येक | अन्धकरण (वि.) [अन्धक-ल्यट] अंधा करने वाला। व्यक्ति को उऋण होना है अर्थात सन्तानोत्पत्ति करना, | अग्धंभविष्णु,--भावुक (वि०) [अन्धंभू+इष्णु च्, उका विष्ण.भाव (वि.) अन्धभ-हष्णच दे० अनृण,-जः,-जन्मन् (पुं०) 1. शूद्र 2. सात नीच | वा] अंधा होने वाला। जातियों (चांडाल आदि) में से एक;--जन्मन्,- अन्धक (वि.) [अन्ध-कन् ] अंधा,--कः कश्यप और जाति,-जातीय (वि०) 1. नीच जाति में उत्पन्न दिति का पुत्र जो राक्षस था और शिव के हाथों मारा होने वाला, 2. शुद्र 3. चांडाल –भम् अंतिम चान्द्र गया था। सम-अरिः,-रिपुः,--शत्रुः,---घाती, नक्षत्र-रेवती,-युगम् अन्तिम अर्थात् कलियुग,-योनि ---असुहृद अंधक को मारने वाला, शिव की उपाधि, (वि०) नीच वंश का मनु० ८।६८,-लोपः शब्द के --वर्तः पहाड़ का नाम,-वृष्णि (पुं० ब० व०) अंधक अन्तिम अक्षर का लोप करना,-वर्णः,--वर्णा नीच और वृष्णि के वंशज । जाति का पुरुष या स्त्री, शूद्र, या शूद्रा। | अन्धस् (न)[ अद्+असुन् नुम् धश्च ] भोजन,-द्विजातिअस्यकः [अन्त्य एवेति स्वार्थे कन्] नीच जाति का पुरुष । शेषेण यदेतदन्धसा--कि० ११३९.।। मन्त्रम् [अन्त्+ष्ट्रन्-अम्+क्त वा] आंत, अंतड़ी-अन्त्र- अन्धिका [अन्ध-+-0वुल इत्वम् टाप् च] 1 रात्रि, 2. एक भेदनं कियते प्रश्रयश्च-महावीर० ३ । सम० -कुजः, प्रकार का खेल, आंखमिचौनी, जूआ 3. आँख का रोग। -कूजनम्,-विकूजनम्-आंतों में होने वाली गड़- | अन्धुः [अन्ध+कु] कुआँ । गड़ाहट की आवाज,--वृद्धिः (स्त्री०) आंत उतरने अन्ध्राः [अन्ध-र, ब० व.] 1 एकदेश तथा उसके की बीमारी, हरणिया, अंडकोश बढ़ने का रोग, निवासी 2. एक राजवंश का नाम 3. संकर वर्ण का -शिला विन्ध्य पहाड़ से निकलने वाली एक नदी, पुरुष। -~-अज् (स्त्री०) अंतड़ियों की माला (जिसको नृसिंह ने अन्नम् [अद्+क्त, अन्+नन् वा ] 1. सामान्यतः भोजन, धारण किया)। 2. अन्नमयकोश 3. भात-नः सूर्य । सम० -अयम् मन्त्रंथमिः (स्त्री०) अजीर्ण, अफारा। उपयुक्त आहार, सामान्य भोजन -आच्छावनम्, मन्युः-(स्त्री.) [अन्द् + कु पक्षे ऊङ, स्वार्थे कन् च] | ---वस्त्रम् भोजन वस्त्र, -कालः भोजन करने का मन्दु (१)क: 51. श्रृंखला, या हथकड़ी बड़ी, समय, --किट्टः = मल तु०, -कटः भात का 2. हाथी के पैरों को बांधने के लिए जंजीर, 3. बड़ा ढेर, कोष्ठक: 1. डोली, अनाज की कोठी 2. नूपुर। विष्णु 3. सूर्य, --गंधिः पेचिश दस्तों की बीमारी, For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -जलम् अन्न और जल, दासः भोजन मात्र पाकर सौतेली माता का पुत्र, अर्घभ्राता (-) अर्ध-भगिनी, सेवा करन वाला दास या नोकर, --देवता आहार ---ऊडा (वि०) दूसरे से विवाहित, दूसरे की पत्नी, की सामग्री की अधिष्ठात्री देवी, -दोषः निपिद्ध ---क्षेत्रम् 1. दूसरा खेत 2. दूसरा देश या विदेश 3. भोजन के खाने से उत्पन्न पाप, - द्वेषः भोजन में दूसरे की पत्नी, --1, ---गामिन् (वि०) 1. और अरुचि, भूख का अभाव,—पूर्णा दुर्गा देवी का एक रूप के पास जाने वाला, 2. व्यभिचारी, लम्पट, गोत्र (अर्थात् सम्पन्नता की देवी) -प्राशः, -प्राशनम् (वि०) दूसरे कुल या वंश का, ---चित्त (वि.) किसी १६ संस्कारों में से एक संस्कार जवकि नवजात बालक और पदार्थ पर ध्यान लगाने वाला, दे० 'मनस, -ज, को पहली बार विधिवत् भोजन देने की क्रिया सम्पा- ---जात (वि.)भिन्न कुल में उत्पन्न,-जन्मन् (नपुं०) दित की जाती है, यह संस्कार ५ से ८ महीने के मध्य दूसरा जीवन, पुनर्जन्म, आवागमन, ---दुर्वह (वि.) (प्रायः छठे मास में—मनु० ॥३४) किया जाता है, जो दूसरे को सहन न कर सके-देवत,-देवत्य (वि०) --- ब्रह्मन, ---आत्मन् (पुं०) आहार का प्रतिनिधित्व दूसरे किसी देवता को संबोधित करने वाला या मंत्र द्वारा करने वाला ब्रह्मा,-भुज (वि०) भोजन करने वाला, उल्लेख करने वाला,--नाभि (वि०) किसी दूसरे कुल से शिव की उपाधि, ---मय (वि०) दे० नीचे, —मलम् संबंध रखने वाला, --- पदार्थः 1. दूसरी वस्तु 2. दूसरे 1.विष्ठा, 2. मदिरा,- रक्षा भोजन करने में सावधानी, शब्द का भाव, प्रधानो बहुव्रीहिः---बहुव्रीहि समास - रसः आहार का सत्, पक जाने पर अन्न के भीतरी निश्चित रूप से अन्यपुरुषप्रधान होता है, पर (वि०) गूदे से बना रस, ---वस्त्रम् = आच्छादनम् तु० 1. दूसरों का भक्त 2. किसी दूसरे का उल्लेख करने व्यवहारः खानपान संबंधी प्रथा या विधि अर्थात् दूसरों वाला--पुष्ट:-ष्टा,-भूतः–ता दूसरे से पाला हुआ के साथ मिलकर खाना या न खाना, ----शेषः जूठन, या पाली हुई, कोयल की उपाधि, जो कि कौवे के द्वारा उच्छिष्ट--संस्कारः देवताओं के निमित्त अन्न का पाली हुई समझी जाती है अत एव 'अन्यभूत' कहलाती समर्पण। है- अप्यन्यपुष्टा प्रतिकूल शब्दा कु० ११४५, कलमन्यअन्नमय (वि.) (स्त्री०-यी) [अन्न+मयट] अन्न वाला भृतासु भाषितम्-रघु० ८1५९, -पूर्वा 1. वह स्त्री या अन्न से बना पदार्थ; कोशः-ब: भौतिक शरीर, जिसका वाग्दान किसी और के साथ हो चुका है 2. पुनस्थूलशरीर, जो अन्न पर ही आधारित है तथा जो कि विवाहित विधवा, --बीजः,-बोजसमुद्भवः, समुत्पन्नः आत्मा का पाचवा वस्त्र या परिधान है, भौतिक संसार, गोद लिया हुआ पुत्र (दूसरे माता पिताओं से उत्पन्न), स्थूलतम तथा निम्नतम रूप जिसके द्वारा ब्रह्म अपने वह जो कि औरस पुत्र के अभाव में गोद लिया जा आपको सांसारिक सत्ता के रूप में प्रकट करने वाला सके, - भत् (पुं०) कौवा (दूसरों को पालने वाला), माना जाता है,-यम् अन्न की बहुतायत । ...मनस्,-मनस्क, मानस (वि०) 1. अवधानहीन 2. चंचल, अस्थिर,-मातृजः अर्धभ्राता (दूसरी मां से अन्य (वि.) [नपुं० --अन्यत् ] 1. दूसरा, भिन्न, और; उत्पन्न), –रूप (वि०) परिवर्तित था बदले हुए रूप सामान्यत: दूसरा, और स एव त्वन्यःक्षणेन भवतीति वाला,-लिंग,-गक (वि.) दूसरे शब्द के लिंग वाला विचित्रमेतत्----भर्त० नी० ४०, 2. अपेक्षाकृत दूसरा, अर्थात नामशब्द, विशेषण, . वापः कोयल,-विवधित से भिन्न, की अपेक्षा और (अपा० के साथ अथवा समास में अन्तिम पद) नास्ति जीवितादन्यदभिमततर (वि०)=पुष्ट कोयल,--संगमः दूसरी स्त्री से रति क्रिया, अवैध मैथुन, साधारण (दि.) बहुतों के लिए मिह सर्वजन्तूनाम् --का० ३५, उत्थितं ददशेऽन्यच्च सामान्य,-स्त्री दूसरे की पत्नी, जो अपनी पत्नी न हो कबंधेभ्यो न किंचन-रघु १२।४९ 3. अनोखा, (साहित्य शास्त्र में यह तीन मुख्य नायिकाओं-स्वीया, असाधारण, विशेष --अन्या जगद्धितमयी मनसः अन्या, साधारणी-में से एक है, 'अन्या' या तो किसी प्रवृत्तिः–भामि० १२६९, धन्या मृदन्यैव सा—सा. दूसरे की पत्नी होती है अथवा अविवाहित कन्या जो ६०, 4. तुच्छ, कोई 5 अतिरिक्त, नया, अधिक, अन्यच्च -इसके अतिरिक्त, इसके साथ ही, तो फिर (वाक्यों युवती तथा लज्जाशील होती है, दूसरे की पत्नी आमोदका संयुक्त करने वाला); एक-अन्य एक-दूसरा-मेघ० प्रमोद तथा उत्सवों के लिए उत्सुक रहती है तथा अपने कुल के लिए कलंक एवं नितान्त निर्लज्ज होती है७८, दे०, एक के नीचे भी अन्य-अन्य और और, अन्यन्मुखे अन्यनिर्वहणे-मुद्रा० ५, अगदुच्छंखलं सत्त्व सा.द.१०८-११०) गः व्यभिचारी। मन्यच्छास्त्रनियन्त्रितम्---शि० २।६२, अग्य-अग्य-अन्य अन्यक = अन्य। आदि, पहला, दूसरा, तीसरा चौथा आदि। सम- अन्यतम (वि.) [अन्य+इतम] (संज्ञा शब्द की भांति कारक --असाधारण (वि.) जो दूसरों के प्रति सामान्य न के रूप) बहुतों में से एक, बड़ी संख्या में से कोई एक. हो, विशेष, --उदर्य (वि०) दूसरे से उत्पन्न (-2) | अन्यतर (वि.) [अन्य+तरप्](सर्वनाम की भांति रूप), For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) वो में से (पुरुष या पदार्थ) एक, दोनों में से कोई सा [ अवसर पर, किसी दूसरे मामले में अन्यदा भूषणं एक (संब० के साथ), संतः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते- पुंसां क्षमा लज्जव योषिताम् शि० २।४४, रघु० मालवि० १२, अन्यतरस्याम् (°रा का अधि० ए० ।। १११७३, 2. एक बार, एक समय पर, एक अवसर पर, 4.) किसी तरह, दोनों तरह, इच्छानुरूप। 3. किसी समय। मन्यतरतः (क्रि० वि०) [अन्यतर+तसिल्] दो में से एक | अम्यदीय (वि.) [अन्यदा+छ] 1. किसी दूसरे से संबंध और। रखने वाला 2. दूसरे में रहने वाला। मन्यतरेषः (अव्य०) [अन्यतरस्मिन्नहनि-अन्यतर+एद्युः | अन्यहि (अव्य०) [अन्य +हिल्] किसी दूसरे समय (= नि०] दो में से किसी एक दिन, एक दिन, दूसरे दिन। अन्यदा)। भन्यतः (अध्य.) [अन्य+तसिल्] 1. दूसरे से 2. एक | अन्यावृक्ष-श् --श (वि०) [अन्य इव पश्यति--अन्यदृश् ओर, मन्यतः अन्यतः, एकतः-अन्यतः—एक ओर | +क्स, क्विन्, कञ वा आत्वम् च] परिवर्तित, असा दूसरी ओर, तपनमण्डलदीपितमेकतः सततनैश- धारण, अनोखा। तमोवृतमन्यतः-कि० ५/२, 3. किसी दूसरे कारण या अन्याय (वि.) [न० ब०] न्यायरहित, अनुपयुक्त,-यः प्रयोजन से। 1. कोई न्याय रहित या अवैधकृत्य--दे० 'न्याय', मन्यत्र (अध्य०) [अन्य+त्रल् (प्रायः = अन्यस्मिन्- अन्यायन अन्याय के साथ, अनुचित ढंग से 2. न्याय संज्ञा या विशेषण के बल से) 1, और जगह, दूसरे स्थान का अभाव, औचित्य का अभाव 3. अनियमितता । पर 2. किसी दूसरे अवसर पर 3. सिवाय, के बिना | अन्यायिन् (वि.) [3. साय+-णिनि] न्यायरहित, अनुचित । 4. अन्यथा, दूसरी अवस्था में । अन्याम्य (वि.) [न० त०] 1. न्याय रहित, अवैध 2. अनुअन्यथा (अब्ध०) [अन्य+थाल्] 1. वरना, दूसरी रीति चित, अशोभनीय 3. अप्रामाणिक। से, भिन्न तरीके से यदभावि न तद्भावि भावि चेन्न | अन्यून (वि.) [न० त०] दोषरहित, त्रुटिहीन, पूर्ण, समस्त तदन्यथा-हि० १, अन्यथा-अन्यथा एक प्रकार से सकल,- अधिक न त्रुटिपूर्ण न आवश्यकता से अधिक । दूसरे ढंग से, अन्यथा दूसरी तरह करना, परिवर्तन सम०–अंग (वि०) निर्दोष अंगों वाला। करना, बदलना, बिगाड़ना, मिथ्या करना त्वया अन्येयुः (अव्य०) [अन्य+एद्युः नि०] 1. दूसरे दिन, अगले कदाचिदपि मम वचनं नान्यथाकृतम् पंच०४, 2. नहीं दिन, अन्येधुरात्मानुचरस्य भावं जिज्ञासमाना-रघु० तो, बरना, इसके विपरीत-व्यक्तं नास्ति कथमन्यथा २०२६, 2. एक दिन, एक बार । वासंत्यपि तां न पश्येत-उत्तर० ३, 3. इसके विपरीत अन्योन्य (वि.) [अन्य-कर्मव्यतिहारे द्वित्वम्, पूर्वपदे 4. मिथ्यापन से, मूठपने से--किमन्यथा भट्टिनी मया सुश्च एक दूसरे को, परस्पर (सर्वनाम की भांति) विज्ञापितपूर्वा-विक्रम० २, 5. गलती से, भूल से, प्रायः समस्त पदों में, कलहः पारस्परिक झगड़ा, इसी बरे ढंग से जैसा कि अन्यथा सिद्ध दे० नीचे। सम० प्रकार °घातः;--क्यम् (अव्य.) आपस में। सम० -अनुपपत्तिः (स्त्री०)दे० अर्थापत्ति,--कारः परिवर्तन, -अभावः पारस्परिक सत्ता का न होना, अभाव के दो अदल बदल,(-कारम्) [क्रि.वि.] भिन्न तरीके से, प्रकारों में से एक, ('भेद' का समानार्थक),---आभय भिन्न ढंग से-पा० ३।४।२७,-यातिः (स्त्री) (वि.) आपस में एक दूसरे पर निर्भर,(-यः) आपस शक्ति को गलत अवधारणा, सामान्य रूप से (दर्शन- में या बदले की निर्भरता, कार्यकारण का (न्याय में) शास्त्र में) मिथ्या अवधारणा,-भावः अदलबदल, इतरेतर संबंध,-उक्तिः (स्त्री०) वार्तालाप,-भेवः परिवर्तन, भिन्नता,-वादिन् (वि.) भिन्न रूप से पारस्परिक द्वेष या शत्रुता,-विभागः साझीदारों द्वारा या मिथ्या बोलने वाला, (विधि में) अपलापी साक्षी रिकथ का.पारस्परिक विभाजन (बिना किसी और पति (वि०) 1. परिवर्तित 2. बदला हुआ 3. भावा. पक्ष के सम्मिलित हुए),-वृत्तिः (स्त्री०) किसी विष्ट, सबल संवेगों से विक्षुब्ध,-मेष०३,-सिस वस्तु का एक दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव,-व्यतिकरः, (वि.) जो मिथ्या ढंग से प्रदर्शित या प्रमाणित किया - संश्रयः इतरेतर क्रिया या प्रभाव, कार्य कारण का गया हो, (न्याय में) उस कारण को कहते हैं जो सत्य पारस्परिक संबंध। न हो, तथा जो केवल मात्र आकस्मिक एवं दूरगामी अन्वक्ष (वि.) [अनुगतः अक्षम् इन्द्रियम्--ग. स.] परिस्थितियों का उल्लेख करे,-सिबम,-सिद्धिः 1. दृश्य 2. तुरन्त बाद में आने वाला,-सम् (अव्य.) (स्त्री०) मिथ्या प्रदर्शन, अनावश्यक कारण, आक- __ 1. बाद में, पश्चात् 2. तुरंत बाद में, सामने, सीधे-- स्मिक या केवल मात्र सहवर्ती परिस्थिति-भाषा. या० ३१२१ । प०१६, स्तोत्रम्-व्यंग्योक्ति, ताना, व्यंग्य। अन्वर (अव्य.) [अनु+अञ्च+क्विप् नपुं० ए.व.] 1. अन्यदा (अव्य.) [अन्य+वा] 1. किसी दूसरे समय, दूसरे । बाद में, 2. पीछे से 3. मैत्रीभाव से व्यवहृत, अनुकूल For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूप में, अन्वग्भूत्वा,-भावम्,--आस्ते मित्रतापूर्वक | की पूर्णिमा के पश्चात् आने वाले पोष, माष और व्यवहृत होना 4. (कर्म के साथ) पश्चात् ताम् । फाल्गुन के कृष्णपक्ष की नवमी । अन्वग्ययो मध्यमलोकपाल:-रघु० २।१६। अन्वष्टक्यम् [अन्वष्टका+यत्] अन्वष्टका के दिन होने अनन्छ (वि) [अनु + अञ्च-क्विप्] पीछे जाने वाला, वाला श्राद्ध या ऐसा ही कोई दूसरा अनुष्ठान । पीछा करने वाला, अनूचि पीछे की ओर, पीछे से।। अम्बष्टमविशम् (अव्य०)[प्रा० स०] उत्तर पश्चिम दिशा अन्वयः [अनु++अच्] 1. पीछे जाना, अनुगमन, अनु- की ओर। गामी, परिजन, सेवकवर्ग--का त्वमेकाकिनी भीरु अन्वहम् (अव्य०) [अनु + अहन्-प्रा० स०] दिन-ब-दिन, निरन्वयजने वने-भट्टि० ५।६६, 2. साहचर्य, मेलजोल, प्रति दिन। संबंध, 3. वाक्य में शब्दों का स्वाभाविक क्रम या | अन्वाल्यानम् अनु+आ+ख्या+ल्युट्]बाद में उल्लेख करना, संबंध, व्याकरण विषयक क्रम या संबंध, तात्पर्याख्या या गिनना, पूर्वोक्त का उल्लेख करते हुए व्याख्या करना। यत्तिमाहः पदार्यान्वयबोधने-सा० द० शब्दों का अन्बाचयः [अनु+आ+चि+अच] 1. प्रधान कार्य का युक्तियुक्त संबंध 4. तात्पर्य, अभिप्राय, प्रयोजन 5. कथन करके गौण कार्य की उक्ति, मुस्य पदार्थ के साप जाति, कुल, वंश-रधूणामन्वयं वक्ष्ये---रघु. ११९, गौण पदार्थ का जोड़ना, 'च' निपात का एक अर्ष१२।६, 6. वंशज, सन्तति, बाद में आने वाली सन्तान- भो भिक्षामट गां चानय-यहां पर भिक्षक के प्रधान ताम्य ऋते अन्वयः-या० ११११७, 7. कार्यकारण का कार्य-(भिक्षार्थ बाहर जाने) के साथ एक गौणकार्य तर्कसंगत संबंध, तर्कसंगत नैरन्तर्य,-जन्माद्यस्य यतोऽ- (गाय का ले आना) भी जोड़ दिया गया है 2. इस न्वयादितरत:--भाग०८, (न्या० में) [हेतुसाध्ययो- प्रकार का स्वयं एक पदार्थ। याप्तिरन्वयः]-भारतीय अनुमितिवाद में साध्य और अन्दाजे (अव्य.) [अन+आजि+] ('उपजेकी भांति हेतु की सतत तथा अपरिवर्त्य सहवर्तिता का वर्णन । इसका प्रयोग 'कृ' के साथ होता है) दुर्बल की सहायता सम.--आगत (वि.) आनुवंशिक,-ज्ञः वंशावली करना, (यह विकल्प से उपसर्ग समझा जाता है) प्रणेता, रघ०६८,-व्यतिरेकः (°को या कम) 1. कृत्य, या कृत्वा। विधायक और निषेधात्मक प्रतिज्ञा, सहमति और | अन्याविष्ट (वि०) [अन+आ+दिश+क्त] 1. बाद में वैपरीत्य अर्थात् भिन्नता 2. नियम और अपवाद, या के अनुसार, कहा हुआ, पुनः काम पर लगाया हुआ -व्याप्तिः (स्त्री)स्वीकारात्मक प्रतिज्ञा या सहमति, 2. घटिया, गौण महत्त्व का। अंगीकारसूचक सामान्यपद । अन्वादेशः [अनु+आ+दिश् + घश] एक कथन के पश्चात् मन्बर्ष (वि.) [अनुगतः अर्थम् —प्रा० स०] शब्द की दूसरा कथन, पूर्वोक्त की पुनरुक्ति । व्युत्पत्ति के द्वारा ही जिसका अर्थ आसानी से जाना | अन्वाधानम् [अनु+आ+घा+ल्युट] अग्निहोत्र की अग्नि जा सके, भाव के अनुकल, सार्थक-तथैव सोऽभदन्वर्थो में समिघाएँ रखना। राजा प्रकृतिरञ्जनात्-रघु० ४।१२, अन्वर्था तैर्वसुन्धरा अन्वाधिः [अनु+आ+धा+कि] (व्यवहारविधि में) 1. -कि० १६६४ । सम०--प्रहणम् शब्द के अर्थ जमानत, किसी तीसरे व्यक्ति के पास धरोहर या प्रतिको शब्दशः स्वीकार करना, (विप० रूढ़),-संज्ञा भूति जमा करना जिससे कि समय पर वह यथार्थ 1. उपयुक्त नाम, एक पारिभाषिक नाम जो अपना स्वामी को सौंपी जा सके 2. दूसरी धरोहर 3. अनवरत अर्थ स्वयं प्रकट करता है, 2. यथार्थ नाम जिसका चिन्ता, खेद, पश्चात्ताप । अर्थ स्पष्ट है। अन्वाधेयम्-यकम् [अनु+आ+धा+यत् स्वार्थे कन्च ] सम्वकिरणम् [अनु + अव+क+ल्युट्] क्रमपूर्वक चारों एक प्रकार का स्त्री-धन जो विवाह के पश्चात् पितओर बखेरना । कुल या पतिकुल की ओर से या उसके अपने संबंधियों मालपसर्गः [अनु + अव+-सृज्+घञ] 1. शिथिल करना | की ओर से उपहार स्वरूप दिया जाय--विवाहात्परतो 2. इच्छानुसार व्यवहार करने देना, कामचागनुज्ञा, 3. ! यच्च लब्धं भर्तृकुलात्स्त्रिया, अन्वाधेयं तु तद्रव्यं स्वेच्छाचारिता। लब्ध पितृ (बंधु) कुलात्तथा। भन्दवसित [अनु-+-अव+सो+क्त (वि.) संयुक्त, संबद्ध, । अन्वारम्भः-भणम् [अनु+आ+र+घा, ल्युट् वा बंधा हुआ। मुम् च स्पर्श, संपर्क, विशेषतया यजमान (यज्ञका मन्बबायः [अनु+अव+अय्+घञ] जाति, कुल, बंश । अनुष्ठाता) को पुनीत संस्कार के सुफल का अधिकारी मान्यवेक्षा [ अनु +अव+ ईक्ष् +अड+टाप् ] लिहाज बनाने के लिए स्पर्श करना । विचार। | अग्वारोहणम् [अनु+आ+रुह.--ल्युट] स्त्री का अपने पनि अत्यन्टका अनुगता अष्टकाम-प्रा० स०] मार्गशीर्ष मास । के शव के साथ चिता पर बैठना । For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपकरण 2. अनुपयुक्ताट पहुँचाना हानिकारक, कष्ट अन्वासनम् [अनु+आस् + ल्युट] 1. सेवा, परिचर्या, पूजा । हास,-अपकरोति-बुरी तरह से या गलत ढंग से 2. दूसरे के पीछे आसनग्रहण करना 3. खेद, शोक। करता है (ग) विरोध, निषेध, प्रत्याख्यान-अपकर्षति अम्बाहार्यः (र्यम्), -र्यकम् [ अनु+आ+ह+ण्यत् अपचिनोति (घ) वर्जन-अपवह, अपस (प्रेर०), स्वार्थे कन्] पितरों के सम्मान में अमावस्या के दिन 2. त० और ब. स. का प्रथम पद होने पर इसके किया जाने वाला मासिक श्राद्ध। उपर्युक्त सभी अर्थ होते हैं-अपयानम्, अपशव्यः-एक अन्वाहिक (वि.) [स्त्री०-की] दैनिक, प्रतिदिन का। बुरा या भ्रष्ट शब्द,-भी निडर, अपरागः असन्तुष्ट अन्याहित-तु० अन्वाधेय । (विप० अनुराग), अधिकांश स्थानों पर 'अप' को अन्वित (वि.)[अनु++क्त] 1. अनुगत, अनुष्ठित, सहित, निम्न प्रकार से अनूदित कर सकते हैं-'बुरा' घटिया' युक्त, 2. अधिकार प्राप्त, रखने वाला, आहत, प्रभा 'भ्रष्ट' 'अशुद्ध' 'अयोग्य' आदि 3. पृथक्करणीय अव्यय वित (करण के साथ या समास में) 3. संयुक्त, जोड़ा (अपा० के साथ) के रूप में--(क) से दूर-यत्संहुआ, क्रमागत 4. व्याकरण की दृष्टि से संयुक्त। प्रत्यपलोकेभ्यो लंकायां वसतिर्भवेत--भट्रि. ८1८७ सम-अर्थ (वि०)प्रकरण से ही जिसके अर्थ आसानी (ख) के बिना, के बाहर-- अपहरे: संसार:-सिखा० से समझ में आ सकें,-अर्थवादः,-अभिधामवावः (ग) के अपवाद के साथ, सिवाय--अप त्रिगर्तेभ्यो मीमांसकों का एक सिद्धांत जिसके अनुसार वाक्य में वृष्टो देवः-सिद्धा०,---के बाहर, को छोड़कर, इन शब्दों का अर्थ सामान्य या स्वतंत्र रूप से नहीं होता, वाक्यों में 'अप' के साथ कि० वि० (अध्ययीभाव बल्कि किसी विशेष वाक्य में एक दूसरे से संबद्ध होकर समास) भी बनते हैं-'विष्णु संसार:-बिना विष्णु शब्द का जो अर्थ निकलता है, वही होता है। दे० के, त्रिगर्तवृष्टो देवः-अर्थात् त्रिगत को छोड़कर अप काव्य० २, अभिहितान्वयवाद भी यही सिद्धान्त है। निषेध और प्रत्याख्यान को भी जतलाता है.- काम, अम्बीयाणम्-क्षा [अनु+ईक्ष् + ल्युट, अच् वा] 1. खोज, शंकम्। ढूंढना, गवेषणा 2. प्रतिबिंब । अपकरणम् [ अप+ +ल्युट ] 1. अनुचित रीति से कार्य अन्वीत तु० अन्वित । करना 2. अनुपयुक्त काम करना, चोट पहुंचाना, अम्बचम् (अव्य०) [प्रा० स०] एक ऋचा के पश्चात् दूसरी दुर्व्यवहार करना, कष्ट पहुँचाना। ऋचा। अपकर्तृ (वि.) [अप+कृ+तच ] हानिकारक, कष्टअन्वेषः-षणम्-णा [अनु+इष+घा, ल्युट वा, स्त्रियां दायक, (पुं०--र्ता) शत्रु । टाप्] दृढना, खोजना, देखभाल करना-वयं तत्त्वा- अपकर्मन् [प्रा० स०] 1. ऋण से निस्तार 2. ऋणपरिशोध, न्वेषान्मधुकर हताः--श० ११२४, रंधान्वेषणदक्षाणां -----दत्तस्यानपकर्म च-मनु० ८।४, 2. अनुचित, द्विषां रघु० १२।११।। अनुपयुक्त कार्य, दुष्कर्म, दुष्कृत्य 3. दुष्टता, हिंसा, अन्वेषक, अन्वेषिन्, अन्वेष्ट (वि०) [अनु+इष् -- ण्वुल्, उत्पीडन । णिनि, तृच् वा] ढूंढने वाला, खोजने वाला, पूछ ताछ | अपकर्षः [ अप+-कृष्-घा ] 1. (क) नीचे की ओर करने वाला। खींचना, कम करना, घटाना, हानि, नाश-तेजोपकर्षः अप (स्त्री०) [आप् --क्विप-- हस्ता ] (परितिष्ठित -वेणी० १, ह्रास (ख) अनादर, अपमान (सभी अर्थों भाषा में केवल ब. व० में ही रूप होते हैं.--यथा में विप० उत्कर्ष) 2. बास में आने वाले शब्दों का पूर्वआपः, अपः, अद्भिः, अद्भधः २, अपाम, अप्स, परन्तु विचार (व्या० काय और मीमांसा आदि में)। वेद में एक वचन और द्विवचन भी होते है) पानी, खानि अपकर्षक (वि.) [ अप-। कृष् वल | कम करने वाला लैव स्पशेदद्भिः ...मन्० २१६०, पानी बहुधा सष्टि । घटाने वाला, से निकालने वाला-दोषास्तस्य (काव्यके पांच तत्वों में सब से पहला तत्व समझा जाता है स्य) अपकर्षकाः-सा० द० १.। यथा--अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत् --मनु० | अपकर्षणम् [ अप+कृष+ल्युट ] 1. दूर करना, खींचकर १२८, श०१११ परन्तु मनु० ११७८ में बतलाया गया दूर करना या नीचे ले जाना, वञ्चित करना, निकाल है...कि मन, आकाश, वायु और ज्योति अथवा अग्नि देना 2. कम करना, घटाना 3. दूसरे का स्थान ले के पश्चात् तेजस् या ज्योतिस से जलों की उत्पत्ति हई। लेना। सम-चरः जलचर, जलीय जन्तु, --पति: 1. जल अपकारः [अप- कृ--धन ] 1. हानि, चोट, आघात, का स्वामी वरुण 2. समुद्र, दूसरे समस्त पदों को शब्दों कष्ट (विप० उपकार) उपकारिणा संधिर्न मित्रेणाके अन्तर्गत देखो। पकारिणा, उपकारापकारी हि लक्ष्यं लक्षणमेतयो:-- अप (अन्य)1.(धातु के साथ जड़कर इसका निम्नांकित अर्थ । शि०२१३७, अपकारोऽप्यपकारायैव संवृत्तः 2. दूसरे होता है)---(क) से दूर, अपयाति अपनर्यात (ख) का बुरा चिन्तन, दूसरे को चोट पहुंचाना 3. दुष्टता, For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिंसा, उत्पीडन 4.गिरा हआ, नीच कर्म। सम.-- {अपचरितम् [अप-चर-+क्त] दोष, दुष्कृत्य, दुष्कर्म-. अथिन् (वि.) वषी, दुरात्मा,-गिर् (स्त्री०-गीत) आहोस्वित् प्रसवो ममापचरितविष्टभितो बीरुषाम्---शब्दः गालियाँ, भर्त्सना दायक तथा अपमानजनक श० ५।९। शब्द। अपचारः [अप+च+घञ] 1. प्रस्थान, मृत्यु-सिंहषोअपकारक,-कारिन (वि.) [ अप+कृ-- एल णिनिर्वा ] . षश्च कांतकापचारं निर्भिद्य-दश० ७२, 2. कमी, क्षति पहुँचाने वाला, अनिष्टकारी, कष्टप्रद, अहितकारी, अभाव 3. दोष, अपराध, दुष्कर्म, दुराचरण, जुर्म पंच. १२९५, शि० २।३७-कः,-री बरा करनेवाला। -राजन्प्रजासु ते कश्चिदपचारः प्रवर्तते-रषु० १५।४७ अपकृति-तु. अपकार, इसी प्रकार अपक्रिया-आघात, 4. हानिकर या कष्टप्रद आचरण, क्षदि दोष चोट, अनिष्ट, कुकृत्य, ऋणपरिशोध। या कमी-नापचारमगमन् क्वचित्क्रिया:-शि०१४॥३२, अपकृष्ट (वि.) [अप+कृष्+क्त] 1. खींच कर बाहर 6. अस्वास्थ्यकर या अपथ्य-कृतापचारोऽगि परैरना किया गया, दूर हटाया गया 2. नीच, कमीना, अधम विष्कृतविक्रियः, असाध्यः कुरुते कोपं प्राप्ते काले गयो (विप० उत्कृष्ट) न कश्चिद्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि यथा। शि० २।८४, (यहाँ अ° भी आषात या क्षति भजते--श० ५।१०,-टः कौवा । का अर्थ रखता है)। अपकौशली- समाचार, सूचना अपचारिन् (वि.) [अप+घर+णिनि] कष्ट पहुंचाने अपक्तिः (स्त्री०) [न+पच्-क्तिन् ] 1. कच्चापन, वाला, दुष्कर्म करने वाला, दुष्ट, बुरा। परिपक्वता का अभाव 2. अपच, अजीर्ण । अपचितिः (स्त्री०) [अप+चि+क्तिन् 1. हानि, छीजन, अपकमः[ अप+क्रम्+घ ] 1. दूर चले जाना, पलायन, नाश 2. व्यय 3. प्रायश्चित्त, सम्पूर्ति, पाप का प्राय पीठ दिखाना, 2. (समय का) बीतना,--(वि०) श्चित्त 4. सम्मानन, पूजन, आदर प्रदर्शन, पूजा-विहि' 1. क्रमरहित 2. अनियमित, गलत क्रम वाला। तापचितिमहीभूता-शि० १६८९ (इसका अर्थ 'हानि' अपक्रमणम्-कामः [ अप+क्रम् + ल्युट, घा वा] पीछे और 'नाश' भी है)। मुड़ना, हटना, उड़ान, भागना। अपच्छत्र (वि०) [ब० स०] बिना छाते के, छतरी अपक्रोशः [ अप+क्रुश्+घञ ] गाली, भर्त्सना । ' के बिना। अपक्ष (व.) [न० ब० 1. पखा स या उड़ान का शाक्त । अपसछाय (वि०) [ब० स०] 1. छायाहित 2. चमकसे रहित, 2. किसी पक्ष या दल से संबंध न रखने वाला रहित, धुंधला ---पः जिसकी छाया न होती हो, 3. जिनके मित्र समर्थक न हों 4. निष्पक्ष, पक्षरहित । अर्थात् परमात्मा; तु.न. १४२१, श्रियं भजन्ता सम--पातः निष्पक्षता,-पातिन वि० पक्षपात रहित । कियदस्य देवाश्छाया नलस्यास्ति तथापि नैषाम, अपक्षयः [ अप+क्षि-|-अच ] छोजना, ह्रास, नाश। इतीरयन्तीव तया निरक्षि सा (छाया) नैषधेन त्रिदमपक्षेपः-क्षेपणम् [ अप+क्षिप्+घञ ल्युट वा ] 1. दूर शेषु तेषु । करता या नीचे फेंकना 2. फेंक देना, नीचे रखना, अपच्छेदः–छेवनम् [अप+छिद्+घञ, ल्युट् वा] 1 वैशेषिक दर्शन में निदिष्ट पांच कर्मों में से एक कर्म, काट कर दूर कर देना, 2. हानि 3. बाधा। दे० कर्मन् । | अपजयः [ अप+जि+अच् ] हार, पराजय । अपगंड: [ अपसि (वैध) कर्मणि गंड:त्याज्यः ] जिसने वय- अपजातः । अप+जन + क्त ] कुपुत्र, जो गुणों की दृष्टि स्कता प्राप्त कर ली है, दे० अपोगंड । से माता पिता से हीन हो-माततुल्यगुणी जातस्त्वनुअपगमः-मनम् । अप+ गम् + अप्, ल्युट् वा 1. दूर जातः पितुः समः, अतिजातोऽधिकस्तस्मादपजातोड जाना, हट जाना, वियोग, समागमा: सापगमा:-हि० धमाधमः-सुभा० ४।६५, 2. गिरना, हटना, ओझल होना-पुराणपत्रा- अपज्ञानम् [ अप+जा+ल्युट् ] मुकरना, गुप्त रखना। पगमादन्तर- रघु० ३।७, 3. मृत्यु, मरण । अपञ्चीकृतम् [न० त०] जिसका पंचीकरण न हुआ हो, अपगतिः (स्त्री०) [अप+ गम् +-क्तिन् ] दुर्भाग्य । पंचमहाभूतों का सूक्ष्म रूप।। सपगरः [ अप-ग---अप] 1. निंदा, भर्त्सना 2. निन्दक, | अपटी [ अल्पः पटः पटी-न० त०] 1. कपड़े का पर्दा भर्त्सक । या दीवार विशेष रूप से 'कनात' जो तम्बू को चारों अपगजित (वि.) [ अप गर्ज+क्त ] (बादल की भांति) ओर से घेर लेती है 2. पर्दा। सम० --क्षेपः गर्जनाशून्य। (अपटक्षेपः) पर्दे के एक ओर गायन, मेषेण (= अपचयः [अप+चि+अच्] 1. न्यूनता, कमी, ह्रास, छोजन, अकस्मात्) जल्दी से पर्दे को एक ओर करके, (यह गिरावट (आलं. भी)-कफापचयः-दश० १६०, 2. शब्द बहधा रंगमंच के निदेशार्थ प्रयुक्त होता है तथा नाश, असफलता, दोष । भय, उतावली या घबराहट के कारण हड़बड़ाहट के For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साथ पात्र के प्रवेश को प्रकट करता है जैसा कि बिना | अपथ्य (वि०) [न० त०] 1 अयोग्य, अनुचित, असंगत, किसी भूमिका (ततः प्रविशति आदि) के, पात्र / घृणित-अकार्य कार्यसंकाशमपथ्यं पथ्यसंमितम्-रा० अकस्मात् पर्दे को उठा कर प्रविष्ट होता है)। 2. (आयु. में) अस्वास्थ्यकर, रोगजनक (जैसा कि अपद (वि.) [न० त०] 1. अनिपुण, अदक्ष, मंदबुद्धि, भोजन, पथ्यापथ्य) सन्तापयति कमपथ्यभुजं न रोगाः भोंदू, 2. जो बोलने में चतुर न हो 3. रोगी। ----हि० ३।११७, 3.बुरा दुर्भाग्यपूर्ण । सम० - अपठ (वि.) [न० त० ना + पठ-|-अच् ] पढ़ने में कारिन् (वि.) कष्टप्रद । असमर्थ, न पढ़ने वाला, दुष्पाठक तु०, 'अपच्'। अपदः [न० ब०] बिना पैर का, --दम् [न० त० अपणित (वि.) [न० त०] 1. जो विद्वान या बुद्धिमान् । 1. आवास या स्थान का अभाव, 2. सदोष स्थान या न हो, मूर्ख, अनाड़ी-विभूषणं मौनमपण्डितानाम- अनुपयुक्त आवास 3. ऐसा शब्द जिसके साथ अभी भर्तृ० नो०७, 2. जिसमें कुशलता, रुचि तथा गुणों। विभक्ति-चिह्न न जुड़ा हो 4. अन्तरिक्ष । सम-अंतर की सराहना करने का अभाव हो। (वि०) संलग्न, संसक्त, समीपस्थ (-रम्) सामीप्य, अपण्य (वि.) [न० त०] जो बिक्री के लिए न हो, संसक्तता। -जीविकार्थे चापण्ये-पा० ५।३।९१ । अपदक्षिणम् (अव्य०) [अव्य० स०] बाई ओर । अपतर्पणम् [ अप+ तृप्+ ल्युट् ] 1. उपवास रखना (रुग्णा- अपदम (वि.) [व० स०] आत्मसंयम से हीन । वस्था में) 2. तृप्ति का अभाव । अपदश (वि.) [ब० स० ] दस की संख्या से दूर । अपतानक: [ अप+तन् ।-प्रवल ] एक प्रकार का रोग अपदानम् -दानकम् [ अप दा+ल्युट् स्वार्थे कन् च ] 1 जिसमें अकस्मात् मर्छा आती है, दौरे पड़ते हैं तथा पवित्राचरण, मान्य जीवनचर्या 2. उत्तम कार्य, सर्वोत्तम पेशियों में सिकुड़न होती है। कार्य (कदाचित् 'अवदानम्' के स्थान पर) 3. भलीअपति,-तिक (वि०) [न० ब० ] जिसका स्वामी न हो, । भांति पूर्ण रूप से किया गया कार्य, निष्पन्न कार्य । जिसका पति न हो, अविवाहित । | अपवार्थः [न० त०] 1. कुछ नहीं, सत्ता का अभाव 2. वाक्य अपत्नीक (वि.) [न. ब. जिसकी पत्नी न हो। में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ न होना-अपदार्थोऽपि वाक्यार्थः अपतीर्थम् [प्रा० स०-अप्रकृष्टं तीर्थम् ) बुरा तीर्थस्थान । समुल्लसति-काव्य 2. 1. अपत्यम् [न पतन्ति पितरोऽनेन-नापत+यत] 1. अपदिशम् (अव्य०) [अव्य० स०] मध्यवर्ती प्रदेश में, सन्तान, बच्चे, प्रजा, संतति (मनुष्यों की और पशुओं । परिधि के दोनों प्रदेशों के बीच ।। की), बेटा या बेटी; एक ही कुल में उत्पन्न पुत्र, पौत्र अपदेवता [प्रा० स०] पिशाच, भूत प्रेत।। तथा प्रपौत्र आदि--अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम् ---पा०४। अपदेशः [ अप+दिश् +घञ.] 1. वक्तव्य, उपदेश, नाम २।६२,---अपत्यैरिव नीवारभागधयोचितमगैः-रघु० का उल्लेख करते हुए संकेत करना----नैष न्यायो १२५०, 2. अपत्यवाचक प्रत्यय । सम०--काम (वि०) यदातुरपदेश:-दश०६०, हेत्वपदेशात् प्रतिज्ञाया: सन्तान का इच्छुक,–पथः योनि, --प्रत्ययः अपत्य- पुनर्वचनं निगमनम्-ज्या० शा० 2. बहाना, छल, वाची प्रत्यय, --विकयिन् (वि०) सन्तान का विक्रेता, कारण, व्याज-केतापदेशन पूनराश्रमं गच्छाम:वह पिता जो धन के लालच से अपनी कन्या को भावी श० २, रक्षापदेशान्मुनिहोमधेनो:---रघु० २।८, 3. जामाता के हाथ बेच देता है; -शत्रुः 1. केंकड़ा कारणों का वर्णन, तर्क प्रस्तुत करना, भारतीय न्याय2. सांप। वाद के पाँच अंगों में से दूसरा--हेतु-(वैशे० के अपत्रप (वि.) [ब० स०] निर्लज्ज, बेहया, ~~-पा, अनुसार) 4. निशाना, चिह्न 5. स्थान, दिशा 6. -~-~पणम् लज्जा , ह्या। अस्वीकृति 7. प्रसिद्धि, यश 8 छल । अपत्रपिष्णु (वि०)[अप-अप-- इष्णुच् शर्मीला, लजीला। अपद्रव्यम् [प्रा० स०] बुरा द्रव्य, बुरी वस्तु । अपत्रस्त (वि०) [अप+स्+क्त ] डरा हुआ, अपभीत, अपद्वारम् [ प्रा० स०] बगल का दरवाजा, असली द्वार के तरंगापत्रस्त:--तरंगों से किचित् भीत। अतिरिक्त कोई दूसरा प्रवेश द्वार। अपय (वि.) [न० ब०] मार्गरहित, बिना सड़क के, अपधूम (वि०) [ब० स०] जिसमें धुआं न हो, घूमरहित। --यम् (अपन्याः) [ न० त०] जो मार्ग न हो, मार्ग अपध्यानम् [प्रा० स०] बुरे विचार, अनिष्ट चिन्तन, मन का अभाव, कुमार्ग (शाब्द०), (आलं.) नैतिक हो मन कोसना। अनियमितता या स्खलन, दुष्पथ या कुमार्ग- अपथे | अपध्वंसः [प्रा० स०] अधःपतन, गिरावट, लांछन । पदमर्पयन्ति हि श्रुतवन्तोऽपि रजोनिमीलिता:---रघु० सम० ---जः, ---जा मिश्रित पतित तथा निन्द्य जाति १।७४, । सम० ---गामिन् (वि.) कुमार्ग पर चलने ___ में उत्पन्न-मनु० १०॥४१, ४६ । बाला, विधर्मगामी। | अपध्वस्त (वि.) [अप+ध्वंस्+क्त] 1. झिड़का गया, For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिशप्त, घृणित 2. अपूर्ण रूप से या बुरी तरह पीसा | वनुमा में सुई का उत्तर से ठीक पूर्व या पश्चिम की हुआ, 3. त्यक्त, -स्तः दुष्ट, पाजी, जिसमें बुरे भले । ओर घुमाव, क्रान्तिवलय। . की समझ न हो। | अपमर्दः [अप+मृद्+धा] जो बुहारा जाता है, धूल, अपनपः [अप-+नी+अच् ] 1. ले जाना, हटाना, निरा- | गर्दा।। करण करना 2. दुर्नीति या दुराचरण 3. क्षति, अप- | अपमर्शः [अप+मश+घञ्] छूना, चरना । कार-ततः सपत्नापनयनस्मरणानुशयस्फुरा-शि० | अपमानः [अप+मन+घञ] अनादर, सम्मान का न होना २।१४। लांछन-लम्यते बुद्धचवज्ञानमपमानं च पुष्कलम्अपनयनम् [अप+नी+ल्युट] 1. ले जाना, हटाना---नाति पंच० श६३ । श्रमापनयनाय---श० ५।६, 2. आरोग्य देना, इलाज अपमार्गः [अप+मग+धन] छोटा रास्ता, बगल का मार्ग करना 3. ऋण परिशोध, कर्तव्य का निर्वाह । बुरा रास्ता। अपनस (वि०)[ब० स०] बिना नाक का, असिकौक्षेय- | अपमार्जनम् [अप-+मा +ल्युट्] 1. धोकर साफ करना, मुद्यम्य चकारापनसं मुखम्-भटि० ४।३१ । मांजना, साफ करना, 2. हजामत बनवाना, नाखून अपत्तिः (स्त्री०)[अप+नु+क्तिन्, घा, ल्युट् कटाना। अपनोवः नोदनम् वा] हटाना, ले जाना, नष्ट करना, | अपमुख (वि०) [बं० स०] 1. औंधे मुंह वाला 2. विरूप, प्रायश्चित्त, (पाप का) परिशोधन-पापानामपनुत्तये कुरूप । -मनु० ११।२१५ । अपमूर्धन् (वि०) [ब० स०] जिसके सिर न हो, कलेवरअपपाठः [प्रा० स०] अशुद्ध पठन, बुरी तरह पढ़ना, पढ़ने । अमर० । ___ में अशुद्धि, द्वादशापपाठा अस्य जाताः । अपमृत्यः [प्रा० स०] 1. आकस्मिक या असामयिक मरण, अपपात्र (वि.) [ब० स० सामान्य पात्रों के उपयोग से दुर्घटना के कारण मृत्यु, 2. कोई भारी भय या रोग बंचित, नीची जाति का । जिससे कि रोगी (जिसके जीने की आशा न रही हो) अपपात्रितः [ पात्रभोजनाद् बहिष्कृतः ---अपपात्र-इतच् ]| आशा के विपरीत स्वस्थ हो जाता है। किसी बड़े पाप या अपराध के कारण जाति से बहि- अपमषित (वि.) [अप+म+क्त 1. जो समझ में न ष्कृत होकर जो अपने संबंधियों के साथ सामान्य आ सके, अस्पष्ट जैसे कि कोई वाक्य या वक्तता 2. पात्रों में खान-पान के योग्य नहीं है। जो सह्य न हो, जिसे कोई पसन्द न करे-विहितं अपपानम् [अप-+पा+ल्युट्] अपेय, बुरा पेय । मयाद्य सदसीदमपमृषितमच्युतार्चनम्, यस्य-शि० अपपूत (वि.) [ब० स०] जिसके नितंबों या कूल्हों की १५।४६। बनावट सुडौल न हो-तो बेढंगे कुल्हे । अपयशस (न०-शः) [प्रा० स०] बदनामी, कलंक, अपअपप्रजाता [अपगतः प्रजातो यस्याः ब०स०] वह स्त्री जिसका कीर्ति-अपयशो यद्यस्ति किं मृत्युना--भर्तनी०५५। गर्भपात हो गया हो। अपयानम् [अप.+या+ल्युट्] दूर जाना, वापिस मुड़ना, अपप्रदानम् [अप+प्रदा + ल्युट] घूस, रिश्वत ।। भागना । अपभय-भी (वि०) निडर, निर्भय, निश्शंक-रघु० अपर (वि.) [न.ब.] (कूछ अर्थों में 'सर्वनाम' की भांति ३१५१। प्रयुक्त होता है) 1, अप्रतिद्वन्द्वी, बेजोड़, तु. अनुत्तम, अपभरणी [अप+4+ ल्युट+डीप] अन्तिम नक्षत्रपुंज । अनुत्तर 2. [न० त०] (क) दूसरा, अन्य (वि० व अपभाषणम् [अप+भाष् + ल्युट्] भर्त्सना, अपयश । नाम की भांति प्रयुक्त) (ख) और, अतिरिक्त (ग) अपभ्रंशः [अपभ्रंश्+घञ] 1. नीचे गिरना, पतन,---- दुसरा, और (घ) भिन्न, अन्य-मनु० १९८५, (ङ) अत्यारूढिर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा--श० ४ 2. तुच्छ, मध्यम 3. किसी और से संबंध रखने वाला, भ्रष्ट शब्द, भ्रष्टाचार (अत:) अशुद्ध शब्द चाहे वह जो अपना निजी न हो (विप० स्व) 4. पिछला, बाद व्याकरण के नियमों के विपरीत हो और चाहे वह का, दूसरा, बाद में (काल और देश की दृष्टि से) ऐसे अर्थ में प्रयुक्त हुआ हो जो संस्कृत न हो 3. भ्रष्ट (विप० पूर्व), अन्तिम-रात्रेरपरः काल: निरु०, भाषा, (काव्य में) गड़रियों आदि के द्वारा प्रयुक्त जब षष्ठीतत्पुरुष समास के प्रथम पद के रूप में प्राकृत बोली का निम्नतम रूप, (शास्त्र में) संस्कृत से प्रयुक्त होता है तब 'पिछला भाग' 'उत्तरार्ध' अर्थ होता भिन्न कोई भी भाषा–आभीरादिगिरः काव्येष्वपभ्रंश है;-पक्षः मास का उत्तरार्ध, हेमंतः सर्दियों का इति स्मृता, शास्त्रेषु संस्कृतादन्यदपभ्रंशतयोदितम- उत्तरार्ध, "कायः शरीर का पिछला भाग, आदि, वर्षा, काव्यादर्श १। शरद् बरसात या पतझड़ का उत्तरार्ध, 5. आगामी, अपमः (ज्यो० में) [अपकृष्ट मीयते--मा-क बा०] कुतु- । अगला 6. पश्चिमी-शि० ९१, कु०१११, 7. घटिया For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५८ ) निम्नतर, 8. (न्या० में) अविस्तृत, अधिक न ढकने क्षितिज में पश्चिमी बिन्दु,--हमन (वि०) सर्दी के वाला; जब 'अपर' शब्द एक वचन में 'एक' (एक, उत्तरार्ध से संबंध रखने वाला। पहला) के सह संबंधी के रूप में प्रयुक्त होता है तब | अपरक्त (वि.) अप+ रज + क्त] 1. रंगहीन, रुधिरइसका अर्थ होता है 'दूसरा, बाद का'--एको ययौ। रहित, पीला,-श्वासापरक्ताधर:- श०६।५, 2. असचैत्ररथप्रदेशान् सौराज्यरम्यानपरो विदर्भान्-रघु० न्तुष्ट, सन्तोषरहित। ५१६०, जब यह ब० व० में प्रयुक्त होता है तो इसका अपरता-स्वम (अपर+तल, त्वलबा] दूसरा या भिन्न अर्थ होता है 'दूसरे और इसके सहसंबंधी शब्द प्रायः होना, (२४ गुणों में से एक), भिन्नता, विपर्यय, 'एके' 'केचित्' 'काश्चित्' 'अपरे' 'अन्य' आदि हैं--- आपेक्षिकता। एके समूहर्बलरेणुसंहति शिरोभिराज्ञामपरे महीभूतः- अपरातः (स्त्री०) [अप+रम्+क्तिन्] 1. विच्छेद (%3 शि०१२।४५, कुछ और,-शाखिनः केचिदध्यष्ठय- अवरति तु.) 2. असन्तोष । माइक्षुरपरेऽम्बुधो, अन्ये त्वलंधिषुः शैलान् गुहास्त्वन्ये अपरत्र (क्रि.वि.) [अपर+त्रल] दूसरे स्थान पर, और व्यलेषत, केचिदासिषत स्तब्धा भयाकेचिदपूर्णिषुः । कहीं, एकत्र या क्वचित्-अपरत्र एक स्थान पर-- उदतारिषुरम्बोधिं वानरा: सेतुनापरे-भट्टि दूसरे स्थान पर। १५।३१-३३,-र: 1. हाथी का पिछला पर 2. शत्रु,-रा अपरव: प्रा० स०] 1. झगड़ा, विवाद (संपत्ति के भोग के 1. पश्चिमी दिशा 2. हाथी का पिछला भाग 3. गर्भाशय, ___ विषय में) उमित बिना झगड़े के, बिना विवाद के गर्भ की झिल्ली 4. गर्भावस्था में रुका हुआ रजोधर्म, (किसी वस्तु को अधिकार में करते समय), 2. .-रम् 1. भविष्य 2. हाथी का पिछला हिस्सा,-रम बदनामी। (क्रि.वि.) पुनः, भविष्य में, अपरंच इसके अतिरिक्त, । रक्त, । अपरस्पर (वि.) ० स०-अपरंच परं च, पूर्वपदे सुश्च] अपरेण पीछे, पश्चिम में, के पश्चिम में (कर्म० या संब० एक के बाद दूसरा, निर्बाध, अनवरत, राः सार्थाः के साथ)। सम-अग्नि (अग्नि-द्वि० व०) दक्षिण गच्छन्ति सततमविच्छेदेन गच्छन्तीत्यर्थ:-सिद्धा। और पश्चिमी अग्नियां (दक्षिण और गार्हपत्य), अपराग (वि०) [ब० स०] रंगहीन,-गः [न० त०] 1. ---अंगम काव्य के द्वितीय प्रकार गुणीभूतव्यंग्य के आठ असंतोष, संतोष का अभाव, अनुराग का अभाव--- भेदों में से एक भेद, काव्य. ५, इसमें व्यंग्यार्थ किसी अपरागसमीरणे रतः-कि० २१५०, 2. विराग, शत्रुता। और का गौण अर्थ है,उदा०-अयं स रसनोत्कर्षी पीनस्त अपराञ्च (वि.) [अपर+अञ्च+क्विप्] (राङ, राची, नविमर्दनः, नाभ्यूरुजघनस्पर्शी नीवीविलंसनः करः । यहाँ राक) दूर न किया गया, मुंह न फेरा हुआ, संमुख श्रृंगाररस करुण का अंग है;-अंत (वि०) पश्चिमी होने वाला सामने होनेवाला, (अव्य०) (--राक) के सीमा पर रहने वाला, (न्तः) 1. पश्चिमी सीमा या सामने । सम-मुख (वि.) (स्त्री०--स्त्री) 1. मुंह किनारा, अन्तिम छोर, पश्चिमी तट 2. (ब. व०) न मोड़े हुए, मह सामने किये हुए, 2. साहसपूर्ण पग सह्य पर्वत का निकटवर्ती पश्चिमी सीमा प्रदेश या रखते हुए। वहां के निवासी-अपरान्तजयोद्यतैः (अनीकैः) रघु० अपराजित (वि.) [न० त०] जो जीता न गया हो, अजेय ४१५३, पश्चिमी लोग 3. इस देश के राजा 4. मृत्यु --स: 1. विषेला जन्तु 2. विष्णु, शिव-ता दुर्गादेवी --अन्तक:- अन्तः(ब०व०)-अपरा:,-रे,-राणि । जिसकी पूजा विजया दशमी के दिन की जाती है, एक दूसरे और दूसरे, कई, बहुत-अर्धम् उत्तरार्ध, प्रकार की औषधि जो कि ताबीज के रूप में भुजा में —अलः दोपहर बाद, दिन का अन्तिम या समापक बांधी जाती है, 3. उत्तर-पूर्व दिशा । पहर, इतरा पूर्वदिशा,--काल: बाद का समय,-जनः : अपराव (भ०० कृ०)[अप-+-राध् + क्त] 1. जिसने पाप पश्चिम देश का बासी, पश्चिमी लोग,-दक्षिणम् किया है, किसी को कष्ट दिया है, अपराध का करने (अव्य०) दक्षिण पश्चिम में,---पक्ष: 1. मास का वाला, कष्ट देने वाला, (कर्षर्थ में भी प्रयुक्त)-कस्मिदूसरा या कृष्णपक्ष, 2. दूसरी या विपरीत दिशा, न्नपि पूजाहेऽपराद्धा शकुन्तला-श०४, 2. जो चूक प्रतिवादी (विधि में),-पर (वि.) कई एक, बहुत गया हो, निशाने पर न लगने वाला (तीर की भांति) से, विविध,-अपरपराः सार्थाः गच्छन्ति-पा०६।१।१४४ । --निमित्तादपराद्धेषोर्धानुष्कस्येव बल्गितम्-शि० सिद्धा-कई समुदाय जा रहे हैं,-पाणिनीयाः पश्चिम । २।२६ 3. जिसने उल्लंघन किया है, अतिक्रान्त,--खम् के निवासी पाणिनि के शिष्य,-प्रणेय (वि०) जो अपराध, कष्ट । दूसरों के द्वारा आसानी से प्रभावित हो सके, विधेय, | अपरादिः (स्त्री) [अप+राध्+क्तिन्] 1. दोष, अपराध, --रात्रः रात्रि का उत्तरार्ध या रात का अन्तिम पहर, 2. पाप। -लोकः दूसरी दुनिया, अगला लोक, स्वर्ग, स्वस्तिकम् । अपराषः [अप+राध+घञ्] अपराध, दोष, जुर्म, पाप For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -कमपराधलवं मयि पश्यसि-विक्र० ४।२९,- 2. जो पर्व का दिन न हो अर्थात् अनुपयुक्त समय यथापराध-दंडानाम्-रघु०११६ । या ऋतु। अपराधिन् (वि०) [अप+राष्+णिनि] कष्टकर, | अपल (वि०) [न० ब०] बिना मांस का, -लम् कील दोषी। या कुंडी। अपरिग्रहः नि.ब] जिसके पास न कोई सामान हो, न | अपलपनम् अपलापः [ अप+लप+ल्युट, घा वा1 1. नौकर चाकर; जो सब प्रकार से हीन हो—निराशीर- छिपाना, गोपन 2. छिपाव या जानकारी से मुकर परिग्रहः,-हः 1. अस्वीकृति, इंकारी 2. दरिद्रता, जाना, टालमटोल, न हि प्रत्यक्षसिद्धस्यापलापः कत गरीबी। शक्यते--शारी0 3. सत्यता, विचार व भावनाओं को अपरिच्छर (वि.) न० ब०] गरीब, दरिद्र । छिपाना, घटाकर बतलाना । सम० -पण्डः (विधि अपरिच्छिन्न (वि०) नि० त०] 1. जिसका अंतर न पह- में) उस व्यक्ति पर किया जाने वाला जुर्माना जो चाना गया हो, 2. सीमा रहित । कि दोष सिद्ध होने पर भी अपने दोष को स्वीकार अपरिणयः [न० त०] चिरकौमार्य, ब्रह्मचर्य । नहीं करता। अपरिणीता [न० त०] अविवाहित कन्या । अपलापिन् (वि०) [ अप+लप+णिनि ] मुकरने वाला, अपरिसंख्यानम् नि० त०] असीमता, असंख्यता। दोष को स्वीकार न करने वाला, छिपाने वाला। अपरीक्षित (वि.)/न. त०] 1. बिना परीक्षा लिया हुआ अपलाषिका [ अप+लष्+ण्वुल स्त्रियां टाप् ] अत्यधिक बिना जांचा हआ, अप्रमाणित 2. अविचारित, मूर्खता- प्यास या इच्छा, या सामान्य तृषा (कई बार इसी पूर्ण, विचारहीन (पुरुष या वस्तु) कारकं नाम पंचम अर्थ में 'अपलासिका' शब्द भी प्रयुक्त होता है, परन्तु तन्त्रम्--पंच ५, जो कर्ता विचारशील न हो, 3. जो उसे अशुद्ध समझा जाता है)। स्पष्ट रूप से स्थापित या सिद्ध न हुआ हो। अपलाषिन्-लाषुक (वि.) [अप+लष+णिनि, उका अपरषु (वि.) [न० त०] क्रोधशून्य--अपरुषापरुषाक्षर वा ] 1. प्यासा 2. प्यास या इच्छा से रहित--प्रलामीरिता रघु०९।८। पिनो भविष्यन्ति कदा स्वेतेऽपलाषका:-महाभा०। अपरूप (वि.) स्त्री०-पा,-पी] [ब. स.] कुरूप, | अपवन (वि.) [न० ब०] बिना वायु या हवा के, हवा से विरूप, बेढंगी शक्ल वाला--पम् [प्रा० स०] विरूपता। सुरक्षित-नम् [प्रा० स०] मगर के निकट लगाया अपरेछुः (अव्य०) [अपर+एद्युस्] अगले दिन। हुआ बाग वाटिका या उपवन । अपरोक्ष (वि.) न० त०] 1. दृश्य 2. प्रत्यक्ष 3. जो दूर | अपवरकः-का [अप+व+बुन् स्त्रियां टाप्] 1. भीतर का न हो--क्षम् (क्रि० वि०) की उपस्थिति में (संब० कमरा, शयनागार 2. वातायन, मोघा--ततश्चैकस्मा के साथ), अपरोक्षात् प्रत्यक्ष रूप से, दृश्यतापूर्वक । दपवरकात्-मुद्रा०। अपरोषः [अप+रुघ्+घञ] वर्जन, निषेध ।। अपवरणम् [अप++ल्युट्] 1. आच्छादन, पर्दा 2. अपर्ण (वि.) [न० ब०] बिना पत्तों का,- पार्वती या पोशाक, वस्त्र । दुर्गादेवी, कालिदास इस नाम का कारण बतलाते हुए। अपवर्गः [अप+ वृज्+घञ्] 1. पूर्ति, समाप्ति, किसी कहते हैं :-स्वयं विशीर्णद्रमपर्णवत्तिता परा हि काष्ठा कार्य की पूर्णता या निष्पन्नता–अपवर्गे तृतीया-पा० तपसस्तया पुनः, तदप्यपाकीर्णमिति प्रियंवदां वदन्त्य २॥३॥६, क्रियापवर्गेष्वनुजीविसात्कृता:-कि० १२१४, पणेति च तां पुराविदः--कु० ५।२८ । अपवर्गे तृतीयेति भणतः पाणिनेरपि नै० १७१६८, कि० अपर्याप्त (वि०) [न० त०] 1. जो यथेष्ट या काफी न १६।४९, 2. अपवाद, विशिष्ट नियम-अभिव्याप्या हो, अपूर्ण, जो पर्याप्त न हो 2. असीमित 3. अयोग्य, पकर्षणमपवर्ग:-सुश्रु० 3. मोक्ष, परमगति, अपवर्गअसमर्थ,-अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् महोदयार्थयोर्भुवमंशाविव धर्मयोर्गती---रघु० ८१६, -भग०१॥३०॥ 4. उपहार, दान 5. त्याग 6 छोड़ना (जसे बाण का)। अपर्याप्तिः (स्त्री०) [नज+परि+आप+क्तिन् ] | अपवर्जनम् [अप+व+ल्युट् ] 1. त्याग, (प्रतिज्ञा) यथेष्टता का अभाव। पालन, (ऋणादि) परिशोध, 2. उपहार या दान 3. अपर्याय (वि०) [न० ब०] क्रमरहित, -- यः क्रम या | परमगति। प्रणाली का अभाव । | अपवर्तः [ अप- वृत्+घञ.] 1. निकाल लेना, दूर अपर्युषित (वि०) [ना+परि+वस्+क्त ] जो रात करना 2. (गण) सामान्यविभाजक जो दोनों साम्यका रक्खा हुआ न हो, ताजा, नुतन । राशियों में व्यवहृत होता है। अपर्वन (वि.) [न.ब.] जिसमें जोड़ न लगा हो, | अपवर्तनम् [अप-वृत्+ल्युट] 1. दूर करना, स्थान (नपुं०) न० त०] 1. जोड़ या संयोग बिन्दु का अभाव । स्थानान्तरण 2. निकाल लेना, वञ्चित करना, न For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्यागोऽ स्ति द्विषन्त्याश्च न च दायापवर्तनम् --मनु० | अपवीण (वि०) [ब० स० ] जिसके पास वीणा न हो, या ९१७९ खराब वीणा हो--णा [प्रा० स०] खराब वीणा। अपवादः [ अप-व-घञ ] 1. निन्दा, भर्त्सना, कलंक अपवृक्तिः (स्त्री०) [अप+व+क्तिन् ] पूर्णता, -लोकापवादो बलवान्मतो मे-घु० १४४०, आक्षेप निष्पन्नता, पूर्ति । लोकनिन्दा,-देव्यामपि हि वैदेह्यां सापवादो यतो जनः । अपवतिः (स्त्री०) [अप++क्तिन् ] सूराख, छिद्र, -उत्तर० १२६, 2. सामान्य नियम को बाधित करने रंध्र। वाला विशेष नियम (विप० उत्सर्ग)---अपवादैरिवो- अपवृत्तिः (स्त्री०) [अप-+ वृत्+क्तिन् ] अन्त, समाप्ति । त्सर्गाः कृतव्यावृत्तयः परः--कु० २।२७, रघु०१५७, । अपवेधः [प्रा० स०] गलत जगह या बुरे ढंग से (मोती 3. आदेश, आज्ञा-ततोपवादेन पताकिनीपतेश्चचाल आदि में) छेद करना। निदिवती महाचमू:-कि० १४.२७, 4. निराकरण, | | अपव्ययः [प्रा० स०] अत्यधिक खर्च, अपव्यय । (वेदान्त०) मिथ्यारोपण या मिथ्याविश्वास का निरा- अपशकुनम् [प्रा० स०] असगुन, बुरा सगुन । करण,-रज्जुविवर्तस्य सर्पस्य रज्जुमात्रत्ववत्, वस्तुभूत- | अपशक (वि.) [ब० स०] निर्भय, निश्शंक, कम् ब्रह्मणो विवर्तस्य प्रपञ्चादेः वस्तुभूतरूपतोऽपदेशः (कि० वि०) निडरता के साथ। अपवाद-तारा. 5. भरोसा 6. प्रेम, घनिष्ठता।। अपशदः-तु० अपसद ।। अपवावक) (वि.) [अप+वद्+ण्वुल, णिनि वा] 1. अपशब्दः [प्रा० स०] 1. अशुद्ध शब्द (व्या० की दृष्टि अपवादिन। कलंक लगाने वाला, निन्दक, बदनाम करने से), भ्रष्ट शब्द (रूप और अर्थ की दृष्टि से),त वाला-मगयापवादिना माढव्येन श०२, 2. विरोध एव शक्तिवैकल्यप्रमादालसतादिभिः, अन्यथोच्चारिताः करने वाला, एक ओर रखने वाला, निकाल देने शब्दाः अपशब्दा इतीरिताः । अपशब्दशतं माधेवाला। सुभा० 2. ग्राम्य शब्द 3. व्या० की दृष्टि से अशुद्ध अपवारणम् ] अप+व+णिच् + ल्युट् ] 1. आच्छादन, भाषा 4. झिड़की वाला शब्द, गाली, दुर्वचन, निंदा । छिपाय, 2. ओझल होना। अपशिरस् (वि.) [अपगतं शिरः शीर्ष वा यस्यअपवारित (भू० क० कृ०) [ अप+वृ+णिच्+क्त] | अपशीर्ष-र्थन् ।ब० स०] सिर रहित, बे सिर का। ढका हुआ, छिपा हुआ, –तम्, अपवारितकम् छिपा | अपशुच (वि.) [ब० स०] शोकरहित, (पुं) आत्मा। हुआ या गुप्त ढंग, --तम्, अपवारितकेन,, अपवार्य अपशोक (वि.) [ब० स०] शोकरहित,--क: अशोकवृक्ष । (अव्य०) (नाटकों में बहुधा प्रयुक्त) 'पृथक्' 'एक अपश्चिम (वि.) [न० त०] 1. जिसके पीछे कोई न हो, ओर' अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय (विप० प्रकाशम) अंतिम (अधिकतर 'पश्चिम' शब्द के अर्थ में ही प्रयुक्त यह इस ढंग से बोलने को कहते हैं कि केवल वही होता है---तु० उत्तम और अनुत्तम, उत्तर और अनुसूने जिसे कहा गया है--तद्भवेदपवारितं रहस्यं तु त्तर),-अयमपश्चिमस्ते रामस्य शिरसि पादपङ्कजयदन्यस्य परावृत्य प्रकाश्यते, त्रिपताककरेणान्यमपवार्या स्पर्श:--उत्तर० १. प्रसीदतु महाराजो मयानेनापश्चिन्तरां कथाम्-सा०द०६। मेन प्रणयेन-वेणी० ६, 2. अनन्तिम, प्रथम, सर्वप्रथम अपवाहः-हनम् [अप-वह+णिच-+घञ, ल्युट् वा ] 1. | 3. चरम,-अपश्चिमामिमां कष्टामापदं प्राप्तवत्यहम् दूर ले जाना, हटाना 2. घटाना, एक राशि में से रामा०। दूसरी राशि को निकालना। अपश्रयः [अप+श्रि+अच] गद्दी, तकिया । अपविघ्न (वि०) [ब० स०] निर्बाध, बाधारहित-रघु० | अपश्री (वि०) [ब० स०] सौन्दर्य से वञ्चित-शि० २०३८ १११५४ । अपविद्ध (भू० क. कृ.) [अप+ व्यध्+क्त] 1. दूर | अपश्वासः-दे० अपान ।। फेंका हुआ, त्यक्त, अस्वीकृत, उपेक्षित, दूरीकृत, मुक्त, अपष्ठम् [अप-स्था-- हाथी के अंकूश की नोक । विरहित 2. नीच, कमीना --दः, पुत्रः माता या अपष्टु (वि०) [अप+स्था+कु] 1. विरुद्ध, विपरीत, 2. पिता या दोनों से त्यागा हुआ पुत्र जिमे किसी अपरि- अननुकूल, प्रतिकुल 3. बायाँ,-छु (क्रि० वि०) 1. चित व्यक्ति ने गोद ले लिया हो, हिन्दुओं में १२ विरुद्ध, 2. असत्यतापूर्वक, 3. निर्दोषता के साथ भलीप्रकार के पुत्रों में से एक--मनु० ९।१७१, याज्ञ० भांति, ठीक तरह से। २।१३२। अपष्ठुर-ल (वि.) [ अप+स्था+कुरच्, कुलच् वा ] अपविद्या [प्रा० स०] अज्ञान, आध्यात्मिक अज्ञान, भाया विरुद्ध, विपरीत। या भ्रम (अविद्या), तत्त्वस्य संवित्तिरिवापविद्याम् | अपसदः [अप+स+अच्] 1. जाति से बहिष्कृत, नीच कि० १६०३२। पुरुष, प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त होकर अर्थ होता For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है-दुष्ट, पाजी, अभिशप्त,-कापालिक मा० ५, रे रे | अपस्मारिन् (वि.) [अप+स्म +णिनि] मिरगी रोग से क्षत्रियापसदाः-वेणी० ३, 2. छ: प्रकार की अनुलोम | ग्रस्त । सन्तान-अर्थात् पहले तीन वर्षों के मनुष्यों द्वारा अपने अपस्मृति (वि.) [ब० स०] विस्मरणशील । से नीच वर्ण की स्त्री में उत्पन्न सन्तान—विप्रस्य विष | अपह (वि.) [अप-नहा+ड] (समास के अन्त में) दूर वर्णेषु नृपतेर्वर्णयोः वयोः, वैश्यस्य वर्णे चैकस्मिन् हटाना, दूर करना, नष्ट करना,--स्रगियं यदि जीविताषडेतेऽपसदाः स्मृताः । मनु०१०।१०। पहा--रघु० ८।४६ । अपसरः [अप++अच्] 1. प्रस्थान, पलायन 2. उचित | अपहतिः (स्त्री०) [अप+हन् +-क्तिन् ] दूर करना, नष्ट कारण। करना। अपसरणम् [ अप+सृ+ल्युट् ] जाना, वापिस मुड़ना, अपहननम् [अप + हन् + ल्युट्] दूर हटाना, निवारण करना। पलायन । अपहरणम् [अप+ह+ल्युट्] 1. दूर ले जाना, उड़ा ले अपसर्जनम् [ अप+सृज्+ल्युट्] 1 त्याग, उत्सर्ग, 2. उप- जाना, दूर करना 2. चुराना। हार या दान 3. मोक्ष । अपहसितम्-हासः [अप+हस्+क्त, घन वा] अकारण अपसर्पः-पंक: [अप+सप्+ण्वुल, स्वार्थे कन् च] गुप्तचर, | हँसी, मूर्खता पूर्ण हँसी, ऐसी हँसी जिससे आंखों में जासूस, भेदिया,-सोपसर्जजागार यथाकालं स्वपन्नपि | आंसू आ जायें (नीचानामपहसितम्) । रघु० १७.५४; १४॥३१ । अपहस्तित (वि.) [अपहस्त-+इतच्] दूर फेंका हुआ, रद्दी अपसर्पणम् [ अप+सप+ ल्युट 1 पीछे हटना, लौटना, किया हुआ, परित्यक्त। जासूसी करना। अपहानिः (स्त्री०) [अप-महा+क्तिन्] 1. त्याग, छोड़ देना अपसव्य, सव्यक [ब० स०] 1. जो बायां न हो, दायां 2. रुक जाना, ओझल होना 3. अपवाद, निकाल देना। -अपसव्येन हस्तेन,--मनु० ३।२१४, 2. विरुद्ध, विप अपहारः [ अप+ह+घञ ] 1. उड़ा ले जाना, दूर ले रीत,-व्यम् (अव्य०) दाईं ओर, दाहिने कंधे के जाना, चुरा लेना, नष्ट कर देना,-निद्रापहार, विष ऊपर से जनेऊ को शरीर के वाम भाग पर लटकाना 2. छिपाना, मालूम न पड़ने देना, कथमात्मापहार (विप० सव्यम्-जब कि वह बायें कंधे के ऊपर से करोमि-शं०१, अपने आप को, अपने नाम को लटकता है) व्यं कृ दाहिनी ओर रखते हुए किसी की और अपने चरित्र को मैं किस प्रकार छिपाऊँ ? परिक्रमा करना, जनेऊ को दायें कंधे से लटकाना।। अपह्नवः [अप+ नु-अप्] 1, छिपाव, गोहन, अपनी अपसव्यवत् (वि.) [अपसव्य+मतुप] दाहिने कंधे पर से भावना ज्ञान आदि को छिपाना, 2. सचाई से मुकर यज्ञोपवीत पहनने वाला। जाना, दुराव-वे ज्ञः-पा० १३.४४, 3. प्रेम, स्नेह । अपसारः [अप+स+घञ] 1. बाहर जाना, लौटना 2. अपहनुतिः (स्त्री०) [ अप+तु+क्तिन् ] 1. सत्य को निर्गमस्थान निकास। छिपाना, मुकरना 2. एक अलंकार जिसमें प्रस्तुत वस्तु अपसारणम्-णा [अप--स+ ल्युट, स्त्रियां टाप्] हटाकर दूर के वास्तविक चरित्र को छिपा कर कोई और काल्पकरना, हांकना, बाहर निकालना-किमर्थमपसारणा निक या असत्य स्थापना की जाय-नेदं नभोमण्डलमक्रियते-मुद्रा०, स्थान देना। म्बुराशिः, नेताश्च तारा: नवफेनभङगाः । काव्य०, १० अपसिद्धान्तः प्रा० स०] गलत या भ्रमयुक्त निर्णय । व समुल्लास तथा दे० सा० द० ६८३।८४ पृष्ठ । अपमृप्तिः (स्त्री०) [अप+सृप्+क्तिन्] दूर चले जाना। अपह्रासः [अप+ह्रस्+घञ] घटाना, कमी करना। अपस्करः [अप++अप् सुडागमः] 1. पहिये को छोड़कर अपाक् (अव्य०) दे० अपाच ।। गाड़ी का कोई भाग (-रम् भी) 2. विष्ठा, मल 3. अपाकः [न० त०] 1. अपच, अजीर्णता 2. अपरिपक्वता। योनि 4. गुदा। अपाकरणम् [अप+आ+ +ल्युट्] 1. दूर कर देना, अपस्नानम् [अप+स्ना+ल्युट्] 1. किसी संबंधी की मृत्यु हटाना 2. अस्वीकृति, निराकरण 3. अदायगी, कार के उपरांत किया जाने वाला स्नान 2. मृतक स्नान, बार का समेट लेना। स्नान किये हुए पानी में स्नान करना। अपाकर्मन् (न०-म) [ अप+आ+मनिन् ] चुकता अपस्पश (वि.) [ब. स.] जिसके पास भेदिय न हों, कर देना, कारबार उठा देना। -शब्दविद्येव नो भाति राजनीतिरपस्पशा-शि० अपाकृतिः (स्त्री०) [अप+आ++क्तिन्]1. अस्वीकृति, २१११२। दूर करना, 2. क्रोध से उत्पन्न संवेग, भय आदि-वि० अपस्पर्श (वि.) [ब० स०] संज्ञाहीन । १॥२७॥ मपस्मार:-स्मृतिः (स्त्री०) [अपस्म+घञ, क्तिन् वा] | अपाक्ष (वि.) [अपनतः अक्षमिन्द्रियम्] 1. विद्यमान, प्रत्यक्ष 1. स्मरण शक्ति का अभाव 2. मिरगी रोग, मुर्छा रोग। 2. [ब० स०] नेत्रहीन, खराव आंखों वाला। For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपाङक्त, ) (वि.)[नत०] जो समान पंक्ति में न हो, एक जो कि नीचे की ओर जाता है तथा गदा के मार्ग अपाडवतेय विशेषतः वह व्यक्ति जो बिरादरी में अपने से बाहर निकलता है। -नः, --मम् गुदा । सम. अपाअवस्य बन्धु-बांधवों के साथ एक पंक्ति में बैठने का -द्वारम् गुदा, पवनः, -बायः प्राणवायु-जिसे अधिकारी न हो, जाति बहिष्कृत। अपान कहते है। अपाङगः--गक: [अपाङग तिर्यक् चलति नेत्रं यत्र अप+ | अपानत (वि.) [ब० स०] मिथ्यात्व से रहित, सत्य । अङ्गघा , कन् च] 1. आँख की बाहरी कोर, या आंख | अपाप-पिन् (वि.) [ब० स०, णिनि वा ] निष्पाप, पवित्र की कोण ---चलापाङगां दृष्टि-श० ११२४, 2. सम्प्रदाय पुण्यात्मा। सूचक माथे का तिलक 3. कामदेव, प्रेम का देवता। अपाम (अप-जल-का संबं० ब०व०)[समास में प्रथम पद के सम-दर्शनम्,-दृष्टिः (स्त्री०)-विलोकितम,- रूप में प्रयुक्त ]-ज्योतिस (न०) बिजली, पात् वीक्षणम् तिरछी चितवन, कनखियों से देखना, पलक अग्नि और सावित्री की उपाधि, नाथः, -पतिः 1. झपकना, --देश: आंख की कोर, नेत्र (वि.) समुद्र 2. वरुण, -निषिः 1. समुद्र 2. विष्णु, -पाथस् सुन्दर कनखियों से युक्त आंखों वाला (यह प्रायः (नपुं०) भोजन, -पित्तम् अग्नि-योनिः समुद्र । स्त्रियों का विशषण है) यदियं पुनरप्यपाङगनेत्रा परि- | अपामार्गः [अप+ मज+घञ कुत्वदी| ] चिचड़ा, एक वृत्ताधमुखी मयाद्य दृष्टा ---विक्रम० १११७ । बूटी। अपाच) [ अपाञ्चति-अञ्च+क्विप् ] 1. पीछे की ओर | अपामार्जनम् [ अप-+म+ ल्युट्] सफाई करना, शुद्धि अपांच जाने वाला, या पीछे स्थित, 2. अमुक्त, अस्पष्ट करना, (रोग पापादिक) को दूर करना । 3. पश्चिमी 4. दक्षिणी--क (अव्य०) 1. पीछे, पीछे | अपायः [ अप++अच] 1. चले जाना, बिदाई 2. की ओर 2. पश्चिम की ओर या दक्षिण की ओर । वियोग-ध्रुवमपायेऽपादानम् ---पा० १।४।२४, येन जातं अपाची [अप-अञ्च+क्विन् स्त्रियाँ डीप् ] दक्षिण या प्रियापाये कादं हंसकोकिलम् ---भट्टि० ६१७५, 3. पश्चिम दिशा, इतरा-उत्तर दिशा। ओझल होना, लोप, अभाव 4. नाश, हानि, संहार -- अपाचीन (वि.) [अपाची+ख ] 1. पीछे की ओर स्थित, करणापायविभिन्नवर्णया-रघु० ८५४२, 5. अनिष्ट, पीछे की ओर मुड़ा हुआ 2. अदृश्य, अप्रत्यक्ष-ऋक् दुर्भाग्य, विपत्ति, भय (विप० उपाय) कायः संनिहिता७।६।४ 3. दक्षिणी 4. पश्चिमी 5. विरोधी । पायः-हि० ४१६५, 6. हानि, क्षति । अपाच्य (वि.) [ अपाची+यत् ] पश्चिमी और दक्षिणी। अपार (वि.) [न० त०] 1. जिसका पार न हो 2. अपाणिनीय (वि.) [न० त०] 1. जो पाणिनि के नियमों असीम, सीमारहित 3. जो समाप्त न हो, अत्यधिक के अनुकूल न हो 2. जिसने पाणिनि-व्याकरण को 4. पहूंच के बाहर 5. जिसे पार करना कठिन हो, भली भाँति नहीं पढ़ा हो, पल्लवग्राही विद्वान्, संस्कृत जिस पर विजय न पाई जा सके, -रम् नदी का का अल्पज्ञान रखने वाला। दूसरा तट। अपात्रम् [न० त०] 1. निकम्मा बर्तन 2. (आलं.) अपार्ण (वि० [अप+अ+क्त ] 1. दूरस्थ, दूरवर्ती, 2. अयोग्य या अनधिकारी पुरुष, दान लेने के लिए | निकटस्थ । अयोग्य 3. कुपात्र, जो उपहार दान आदि का अधिः | अपार्य । (वि.) [अपगतः अर्थः यस्मात्-ब० स०] कारी न हो। सम० -कृत्या, अपात्रीकरणम् अपार्षक 1. व्यर्थ, अलाभकर, निकम्मा, 2. निरर्थक, अनुचित तथा निर्मर्याद कर्म करना, अपात्रता, दे० अर्थहीन, ---र्थम् अर्थहीन, या असंगत बात या तर्क मनु० १११७०, -दायिन अयोग्य पुरुषों को देने (सा० शा० की दृष्टि से रचना संबंधी दोष तु० काय. वाला, -भत् (वि.) अयोग्य और निकम्मे व्यक्तियों ३३२८, समुदायार्थशून्यं यत्तदपार्थमितीष्यते) । का भरणपोषण करने वाला-प्रायेणापात्रभृद्भवति अपावरणम् [अप+आ+ + ल्युट्, क्तिन् वा ] राजा-पंच०१। अपावृतिः (स्त्री०) 1. उद्घाटन 2. ढकना, लपेटना, अपादानम् [ अप+आ+दा+ल्युट्] 1. ले जाना, दूर घेरना 3. छिपाना, गोपन करना। करना, अपसरण 2. (व्या० में) अपा० का अर्थ- अपावर्तनम् । [अप+आ+वृत्+ल्युट्, क्तिन् ध्रुवमपायेऽपादानम्--पा० १।४।२४ । अपावृत्तिः (स्त्री०) वा] 1. लौटना, पीछे हटना, अपकअपाध्वन् (पुं०) [अपकृष्टः अध्वा प्रा० स०] कुमार्ग, र्षण 2. घुमना । बुरामार्ग । अपाश्रय (वि.) [ब० स०] आश्रयहीन, निरवलंब, अपानः [अप+अन्+अच, अपानयति मूत्रादिकम्-अप | असहाय, -यः शरण, सहारा, जिसका सहारा लिया +आ+नी+ड वा ] श्वास बाहर निकालना, श्वास | जाय 2. चंदोवा, शामियाना, 3. सिरहाना। लेने की क्रिया, शरीर में रहने वाले पाँच पवनों में से 'अपासंग: [अप+आ+संज+पण तरकस। जाय । For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपासनम् [अप-+अस्+ल्युट् ] 1. फेंक देना, रद्दी कर । उत्तर० ६.१२, 8. (संख्या वाचक शब्दों के पश्चात् देना 2. छोड़ देना 3. वध करना। प्रयुक्त होने पर 'कात्यं' और 'समस्तता' का अर्थ होता अपासरणम् [अप-+-आ-सु-+-ल्युट] बिदाई, लौटना, है) चतुर्णामपि वर्णानाम्--चारों वर्गों का, 9. (यह दूर हटना-दे० 'अपसरण'। शब्द कभी २ 'संवेह 'अनिश्चितता' और 'शंका' भी अपासु (वि.) [ब० स०] निर्जीव, मृत । प्रकट करता है)--अपि चौरो भवेत् --गण. शायद वहाँ चोर है 10. (विधिलिड के साथ संभावना' अर्थ होता अपि (अव्य०) [ कई बार भागुरि के मतानुसार 'अ' का लोप-वष्टि भागरिरल्लोपमवाप्योरुपसर्गयोः पिधा, है)-अपि स्तुयाद्विष्णुम्, 11. घृणा, निन्दा-अपि जायां त्यजसि जातु गणिकामाधत्से गहितमेतत् -- पिधानम् आदि ] 1. (संज्ञा और धातुओं के साथ सिद्धा०, लज्जा की बात है, धिक्कार है-धिग्जाल्म देवप्रयुक्त होकर) निकट या ऊपर रखना, की ओर ले दत्तमपि सिंचेत्पलांडुम, 12. लोट् लकार के साथ जाना, तक पहुँचाना, सामीप्य सन्निकटता आदि 2. प्रयुक्त होकर 'वक्ता की उदासीनता' प्रकट करता है (पृथक् क्रि० वि० या संयो० अव्य के रूप में) और, और दूसरे को यथारुचि कार्य करने देता है-अपि भी, एवम्, पुनश्च, इसके अलावा, इसके अतिरिक्त स्तुहि-सिद्धा. (आप चाहें तो) स्तुति करें,-अपि अस्ति मे सोदरस्नेहोप्येतेषु-श० १, अपनी ओर से स्तुह्यपि सेधास्गांस्तथ्यमुक्तं नराशन-भट्टि० ८1८२ तो, अपनी बारी आने पर-विष्णुशर्मणापि राज 13. कभी विस्मयादि द्योतक अव्यय के रूप में भी पुत्राः पाठिता:-पंच० १; अपि अपि, आप च, भी, प्रयुक्त होता है 14. 'इसलिए' 'फलतः' (अत एव) के और भी,-अपि स्तुहि, अपि सिंच-सिद्धा० न नापि अर्थ में कभी ही प्रयुक्त होता है 15. संबं के साथ न चैव, न वापि, नापि वा, न चापि न-न, 3. 'भी' 'अति' 'बहुत' शब्दों के अर्थ पर बल देने के लिए भी प्रयुक्त होकर 'अध्याहार' के भाव को प्रकट करता है उदा० .. सपिषोऽपि स्यात्,-यहाँ (बिन्दूरपि-जग बहधा इसका प्रयोग होता है, अद्यापि ....-आज भी, सा, एक बंद) जैसा कोई शब्द अध्याहृत किया जाता इदानीमपि-अब भी, यद्यपि-अगचें, चाहे, तथापि - तो भी, कई बार केवल 'तथापि' शब्द के प्रयोग से ही है, संभवतः 'एक बूंद घी' अभिप्रेत है। 'यद्यपि' का अध्याहार कर लिया जाता है-उदा० । अपिगोणं (वि.) [ अपि+-+क्त ] 1. स्तुति किया गया, कि० ११२८, 4. अगर्चे (भी, चाहे)-सरसिजमनविद्ध यशस्वी 2. कथित, वणित । शैवलेनापि रम्यम् -शश२०, चाहे ऊपर से ढका | अपिच्छिल (वि.) [न० त०] 1. जो गदला न हो, स्वच्छ हुआ; इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी --श० चाहे | अपंकिल 2. गहरा।। वल्कल वस्त्र में 5. (वाक्य के आरम्भ में प्रयुक्त होकर अपितृक (वि०) नि० ब०] 1. जिसका पिता जीवित न हो, 'प्रश्न सूचक') अपि सन्निहितोऽत्र कुलपतिः-श०१, 2. अपैतृक। अपि क्रियार्थसुलभं समित्कुशम्......अपि स्वशक्त्या अपित्र्य (वि.) [न० त०] अपैतृक । तपसि प्रवर्तसे-कु० ५।३३, ३४, ३५, 6. आशा, अपिधानम्, पिधानम् [अपि+धा -- ल्युट, भागुरि के मत प्रत्याशा (प्रायः विधिलिङ के साथ) कृतं रामसदशं में विकल्प से 'अलोप] 1. ढकना, छिपाना 2. चादर, कर्म, अपिजीवेत्स ब्राह्मणशिशुः-उत्तर० २ मुझे आशा | ___ ढक्कन, आच्छादन (आलं. भी)। है कि ब्राह्मण बालक जी उठेगा। विशे० इस अर्थ | अपिधिः (स्त्री०( [अपि + धा+कि] छिपाव । में 'अपि' बहुधा 'नाम' के साथ जुड़ कर निम्नांकित | अपिवत (वि.) [ब० स०-अपि संसृष्टं व्रतं भोजनं नियमो भाव प्रकट करता है (क) संभावना 'शक्यता' (ख)। __ वा यस्य धार्मिक कृत्य का सहभागी, रक्त द्वारा संबद्ध। शायद, संभवतः (ग) 'क्या ही अच्छा हो यदि', 'मेरी | अपिहित, पिहित [अपि+घा+क्त-भागुरिमतेन अकार आंतरिक इच्छा या आशा है कि-अपि नाम कुलपते- लोप:] 1. बंद, बंद किया हुआ, ढका हुआ, छिपाया रियमसवर्णक्षेत्र-संभवा स्यात्, श०१, श०७, तदपि हुआ (आलं. भी) बाण्यापिहित--आँसुओं से ढका नाम मनागवतीर्णोसि रतिरमणवाणगोचरम् - मा० १, हुआ 2. जो छिपा न हो, सरल, स्पष्ट, अर्थो गिरामशायद, सम्भवत:-अपि नामाहं पुरूरवा भवेयम् । पिहितः पिहितश्च किचित् सत्यं चकास्ति मरहट्टवघूस्तविक्रम०-क्या ही अच्छा होता यदि मैं पुरूरवा होता नाभः -सुभा०। 7. (प्रश्नवाचक शब्दों के साथ जुड़ कर 'अनिश्चितता' | अपीतिः (स्त्री.) [अपि+इ+क्तिन्] 1. प्रवेश, उपागम के अर्थ को बतलाता है) कोई, कुछ, कोपि-कोई, 2. विघटन, नाश, हानि 3. प्रलय--अपीती तद्वत् किमपि-कुछ, कुत्रापि-कहीं; इस शब्द को 'अज्ञात' प्रसंगादसमञ्जसम् ब्रह्म।। 'अवर्णनीय 'अनभिधेय' अर्थ में भी प्रयुक्त किया | अपीनसः [अपीनाय, अपीनत्वाय सीयते कल्पते कर्मकर्तरि जाता है-व्यतिषजति पदार्थानान्तर: कोपि हेतु:-। क-तारा०] नाक की शुष्कता, जुकाम । For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६४ ) | अपृथक् ( अव्य० ) [न० त०] अलग से नहीं, साथ-साथ, समष्टि रूप से । अपुंस्का ( स्त्री० ) [ नास्ति पुमान् यस्याः न० ब०] बिना पति की स्त्री-नापुंस्कासीति मे मतिः भट्टि० ५/७० 1 अपुत्रः [न० त०] जो पुत्र न हो, (वि० ) - पुत्रक (वि०) (स्त्री० - त्रिका) जिसके कोई पुत्र या उत्तराधिकारी न हो । अपुत्रिका ( स्त्री० ) [ न० ब० कप्, टाप् इत्वं च ] पुत्रहीन पिता की ऐसी कन्या जिसके कोई पुत्र न हो; जो पुत्राभाव की स्थिति में पिता द्वारा पुत्रोत्पत्ति के लिए नियत न की गई हो, तु० 'अकृता' । अपुनर् (अव्य० ) [ न० त०] फिर नहीं, एक ही बार, सदा के लिए । सम० अन्वय ( वि० ) न लौटने वाला, मृत, आदानम् फिर न लेना, वापिस न लेना -- आवृत्तिः (स्त्री० ) फिर न लौटना, परम गति, प्राप्य ( वि० ) जो फिर प्राप्त न हो सके, भवः 1. जो फिर उत्पन्न न हो ( रोगादिक भी ), 2. मोक्ष या परमगति । अपुष्ट ( वि० ) [ न० त०] 1. जिसका पोषण ठीक तरह से न हुआ हो, दुबला पतला, जो स्थूल न हो 2. (स्वर) जो ऊँचा या भीषण न हो, मृदु, मन्द 3. (सा०शा० ) जो ( अर्थ का ) पोषक या सहायक न हो असंबद्ध अर्थदोषों में से एक उदा० सा० द० ५७५--- विलोक्य वितते व्योम्नि विधुं मंच रुषं प्रिये - यहाँ आकाश का विशेषण 'वितत' शब्द कोष की शान्ति में कोई सहायता नहीं करता इसलिए असंबद्ध है । अपूपः [न पूयते विशीर्यते - पू+प, न० त० तारा०] मालपुआ, शर्करादिक डाल कर बनाया गया रोटी से मोटा पदार्थ, इसे 'पूड़ा' कहते हैं । अपूपीय, अप्रूप्य ( वि० ) [ अपूपाय हितम् छ, यत् च ] अपूप संबन्धी, प्यम् - आटा, भोजन । अपूरणी (स्त्री० ) [ न० त०] सेमल का पेड़ । अपूर्ण (वि० ) [ न० त०] जो पूरा या भरा न हो, अधूरा असम्पन्न - अपूर्णमेकेन शतं ऋतूनाम् - रघु० ३।८८; अपूर्ण एवं पंचरात्रे दोहदस्य – मालवि० ३ । अपूर्व (वि० ) [ न० ब०] 1. जैसा पहले न हुआ हो, जो पहले विद्यमान न था, बिल्कुल नया, अपूर्वमिदं नाटकम् - श० ११२, 2. अनोखा, असाधारण, अद्भुत ; -- अपूर्वो दृश्यते वह्निः कामिन्याः स्तनमंडले, दूरतो दहतीवांगं हृदि लग्नस्तु शीतलः - श्रृंगार० १७, निराला, अनुद्यम, अभूतपूर्व - अपूर्व कर्मचाण्डालमपि मुग्धे विमुंचमाम् -- उत्तर० १।४६, अप्रतिम नृशंसता करने वाली 3. अज्ञात 4. अप्रथम, वंम् 1. किसी कार्य का दूरवर्ती फल जैसा कि सत्कार्यों के फलस्वरूप स्वर्गप्राप्ति 2. इष्ट और अनिष्ट जो भावी सुख दुःख के अन्तिम कारण है; —र्वः परब्रह्म । सम० पति: ( स्त्री ० ) जिसे अभी तक पति प्राप्त नहीं हुआ, कुमारी कन्या, विषिः नया आधिकारिक निदेश या आज्ञा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपेक्षा अपेक्षणम् [ अप् + ईश् + ल्युट् अप + ईक्ष् + अ ] 1. प्रत्याशा, आशा, चाह, 2. आवश्यकता, जरूरत, कारण प्रायः समास में स्फुलिंगावस्थया वरेिघापेक्ष इव स्थितः - श० ७ १५, जलने की प्रतीक्षा में 3. विचार उल्लेख, लिहाज कर्म के साथ अधि० में, प्रायः समास में; करण० या कभी-कभी अधि० में, ( अपेक्षया, अपेक्षायां ) समास में बहुधा प्रयुक्त का अर्थ - का उल्लेख करते हुए' 'लिहाज करके ' 'के निमित्त' नियमापेक्षया - रघु०/४९, प्रथमसुकृतापेक्षया - मेघ० १७; अत्र व्यंग्यं गुणीभूतं तदपेक्षया वाच्यस्यैव चमत्कारिकत्वात् काव्य० १, इसकी तुलना में 4. मेलजोल, संबंध 5 देखभाल, ध्यान, सावधानी -- देशापेक्षास्तथा यूयं याता दायांगुलीयकम् - भट्टि० ७१४९, 6. सम्मान, समादर 7. ( व्या० में) = आकांक्षा । अपेक्षणीय, ( वि० ) [ अप + ईक्ष + अनीयर् तव्यत्, अपेक्षितव्य, ण्यद् वा ] अपेक्षा करने के योग्य, जिसकी अपेक्ष्य आवश्यकता या आशा हो, जिसकी प्रत्याशा या विचार किया जा सके; वाञ्छनीय | अपेक्षित (भू० क० कृ० ) [ अप + ईश् + क्त ] जिसकी तलाश की गई हो, जिसकी आशा की गई हो, जिसकी आवश्यकता हो, जिसका विचार किया गया हो, ---तम् चाह, इच्छा, लिहाज, उल्लेख । अपेत (भू० क० कृ० ) [ अप + इ + क्त ] 1. गया हुआ, ओझल हुआ, अपेतयुद्धाभिनिवेशसौम्या शि० ३।१, 2. वियुक्त या विचलित, विरुद्ध ( अपा० के साथ ) अर्थादनपेतम् अर्थ्यम् -- सिद्धा०, 3 मुक्त, वंचित ( अपा० के साथ या समास में ) सुखादपेतः - सिद्धा०, उदवदनवद्या तामवद्यादपेतः - रघु० ७११०, निर्दोष । अपेहि (लोट् म० पु० ए० व० ) ( मयूरव्यंसकादि श्रेणी से संबद्ध समासों के प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त ) करा, द्वितीया, स्वागता आदि जहाँ इस शब्द का अर्थ होता है " के बिना" "निकाल कर " "सम्मिलित न करके" उदा० वाणिजा - इस प्रकार का समारोह जहाँ व्यापारियों को संमिलित न किया जाय, — इसी प्रकार द्वितीया आदि । अपोगंड: [ अपसि ( वैधकर्मणि) गंड: त्याज्यः तारा० 1. अधिक अंगों वाला, या कम अंगों वाला 2. जो सोलह बरस से कम आयु का न हो, मनु० २।१४८ 3. शिशु 4. अतिभीरु 5. झुर्रीदार । (वि० ) [ अप + वह + क्त ] अपोढ दूर हटाया गया ( अपा० के साथ ) ; कल्पनापोढः = कल्पनायाः अपोढः ; ० अपपूर्वक 'वह' । For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपोहः [ अप !-वह । ध] 1. हटाना, दूर करना, विरो-1 (विप० धृष्ट)---घृष्टः पार्वे वसति नियतं दूरतश्चा पण 2. तर्क शक्ति के प्रयोग द्वारा शङ्कानिवारण 3. प्रगल्भ:-हि०२।२६ । तर्क देना, युक्ति देना 4. निषेधात्मक तर्कना (विप० अप्रगुण (वि०) [न० ब०] विस्मित, व्याकुल । ऊहः अगरतर्कनिरासाय कृतो विपरीतस्तर्कः), स्वय- | अप्रज (वि.) [न० ब०] 1. निस्संतान, संतान रहित 2. महापोहासमर्थ:-महाभा०, ऊहापोहमिमं सरोजनयना । | अजात 3. जहाँ बस्ती न हो, बिना बसा।। यावद्विधत्तेतराम्-भामि० २०७४, अतः ऊहापोह = | अप्रजस् ) (वि.) [न० ब०] संतान रहित, जिसके कोई किसी प्रश्न से संबद्ध पूर्ण चर्चा 5. प्रसंगानुकूल वर्ग के | अप्रजात बच्चा या संतान न हो-अतीतायामप्रजसि अन्दर न आने वाली बातों को विचार-कोटि से निकाल बांधवास्तदवाप्नुयुः-याज्ञ० २११४४,-ता निस्संतान देना; --तद्वानपोहो वा शब्दार्थः (यहाँ माहेश्वर 'अपोह' स्त्री, बांझ स्त्री। का अर्थ 'अतद्वयावृत्तिः' अर्थात् 'तद्भिग्नत्यागः' करते हैं)। | अप्रतिकर्मन् (वि.) [न० ब०] 1. अनुपम कार्य करने अपोहनम् [अप+बह --ल्युट ] 1. हटाना=अपोह, 2. | वाला, 2. अनिवार्य । तर्कशक्ति-मतः स्मृतिनिमपोहनं च-भग०१५।१५। । अप्रति (ती) कार (वि०) [न०ब०] लाइलाज, असहाय । अपोहनीय) (वि०) [अप+वह+अनीयर, ण्यत् वा] अप्रतिघ (वि.) [नव.] 1. जिसे हराया न जा सके, अपोह्य दूर हटाने या ले जाने के योग्य, प्रायश्चित्त | अजेय 2. जिसे रोका न जा सके 3. अक्रुद्ध । (पाप का) करने के योग्य; तर्क द्वारा स्थापित करने अप्रतिद्वन्द्व (वि.) नब०] 1. युद्ध में जिसका कोई प्रतिके योग्य। द्वंद्वी न हो, अप्रतिरोध्य 2. अनूठा, लाजवाब । अपौरुष-अपौरुषेय (वि.) [ नास्ति पौरुषं यस्मिन् न० ब० | अप्रतिपक्ष (वि.) [न० ब०] 1. अप्रतियोगी, विपक्षशून्य न पौरुषेयः-न० त०] 1. पुरुषार्थहीन, कायर, भीरु 2. अनुपम । 2. अलौकिक, अपुरुषोचित, ईश्वरकृत-...अपौरुषेया अप्रतिपत्तिः (स्त्री०) [न० ब०] 1. कार्य का सम्पन्न न वेदाः अपौरुषेयप्रतिष्ठः सुवर्णबिन्दुरित्याख्याते-मा० होना, अस्वीकृति, 2. उपेक्षा, अवहेलना 3. समझदारी ९, जो मनुष्य द्वारा न स्थापित किया गया हो। -षम्, का अभाव 4. निश्चय का अभाव, अव्यवस्था, विह्वषेयम् 1. कायरता 2. ईश्वरीय शक्ति । लता-विह्वल आदि का० १५९ (अप्रतिपत्तिर्जडता अप्तोर्यामः,-मन [ अप्तोः शरीरस्य पावकत्वात् याम इव स्यादिष्टानिष्टदर्शनश्रुतिभिः) °त्तिसाध्वसजडा-का० अलक समासः | एक यज्ञ का नाम, सामवेद के एक २४० 5. (अतः) स्फूर्ति का अभाव,-उत्तरस्याप्रतिमंत्र का नाम जो उक्त यज्ञ की समाप्ति पर बोला पत्तिरप्रतिभा—गौतमः। जाता है। ज्योतिष्टोम यज्ञ का अंतिम या सातवाँ भाग। अप्रतिबन्ध (वि.) [न० ब०] 1. निर्बाघ, बेरोकटोक 2. मप्ययः [ अपि+इ ।-अच् ] 1. उपागमन, सम्मिलन 2. बिना झगड़े के जन्म से प्राप्त, जिसमें किसी दूसरे का (नदियों का) उमड़ना, 3. प्रवेश, नष्ट होना, अन्तर्धान, भाग न हो (उत्तराधिकार की भाँति)। लय, किसी एक में लीन हो जाना 4. नाश। अप्रतिबल (वि.) [न० ब०] अप्रतिरोध्य शक्ति वाला, अप्रकरणम् [न० त०] जो मुख्य या प्रधान विषय न हो, अनुपम बलशाली। अप्रासंगिक या असंबद्ध विषय । अप्रतिभ (वि.) [न० ब०] 1. विनीत, सलज्ज 2. अप्रत्युअप्रकाश (वि.) [न० ब०] 1. न चमकने वाला, अंध- त्पन्नमति, मंदबुद्धि । कारपूर्ण, प्रकाशरहित (आलं. भी)-प्रकाशश्चाप्रका- | अप्रतिभट (वि०) [न० ब.] अप्रतिद्वन्द्वी-द: बेजोड़ शश्च लोकालोक इवाचल:-रघु० ११६८, 2. स्वतः | योद्धा । प्रकाशित 3. गुप्त, रहस्य, शम्,-शे(अव्य०) गुप्त- | अप्रतिम (वि.) [न० ब०] अतुलनीय, बेजोड़, अप्रतिद्वन्द्वी | इसी प्रकार अप्रतिमान । अप्रकृत (वि०) [न० त०] 1. जो मुख्य या प्रधान न हो, अप्रतिरथ (वि.) [नम्ब०] ऐसा वीर पुरुष जिसके मुका आनुषंगिक 2. अप्रस्तुत, विषय से असंबद्ध, दे० प्रकृत, बले का योद्धा और कोई न हो, बेजोड़, अप्रतिद्वन्द्वी प्रस्तुत, अप्रकृतमनुसंधा-इधर-उधरकी ( विषय से योद्धा-दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य-श०४१२०, बाहर की) बातें बनाना, विषयानुकूल बात न करना, ७,७।३३। –तम (सा० शा० में) उपमान अर्थात् तुलना का | अप्रतिरव (वि.)[न० ब०) निर्विरोष, निर्विवाद-वर्षमानक (विप० उपमेय)। शताधिकभोगः सन्ततोऽप्रतिरवः स्वत्वं गमयतिअप्रगम (वि.) [न० ब०] इतनी तेजी से जाने वाला कि मिता० । दूसरे जिसका अनुसरण न कर सके। अप्रतिरूप (वि०) [ न० ब०] 1. अननुरूप, अयोग्य 2. मप्रगल्भ (वि.) [न० त०] साहसहीन, शर्मीला, विनीत, अनुपम रूप वाला 3. अनूठा। पास, अप्रकट । | 1. जो मुख्य या प्रधान प्रकृत, । बले का For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रतिवीर्य (वि०) न० ब०] अतुलशक्तिशाली। अप्रमद (वि.) न० ब०] आमोद-प्रमोद से विरत, उदास, अप्रतिशासन (वि.) [न० ब०] जिसका प्रतिद्वन्द्वी शासक | अप्रसन्न । न हो, जहाँ एक ही व्यक्ति का राज्य हो- रघ० अप्रमा [न० त०] भ्रांत ज्ञान (विप० प्रमा)। ८२७ । अप्रमाण (वि.) [नव.] 1. असीमित, अपरिमित 2. अप्रतिष्ठ (वि.) [न.ब.] 1. अस्थिर, अदद, अस्थायी अनधिकृत 3. अप्रामाणिक, अविश्वस्त-श० ५।२५ 2. अलाभकर, व्यर्थ 3. बदनाम । –णन [न० त०] जो किसी कार्य में प्रमाण रूप से अप्रतिष्ठानम् [न० त०] अस्थिरता, दृढ़ता का अभाव प्रस्तुत न किया जा सके; अर्थात् वह कार्य जो अप ( आलं. भी )-तर्काप्रतिष्ठानादप्यन्यथानुगेयम् रिहार्य न समझा जाय 2. असंवद्धता। -शारी। अप्रमाद (वि.) [ न० ब० ] खबरदार, जागरूक-दः अप्रतिहत (वि०) [न० त०] 1. निर्बाध, बाधा रहित, | [न० त०] खबरदारी, अवधान, जागरूकता । अप्रतिरोध्य-अस्मदगहे गति:-पंच०१; जम्भता- | अप्रमेय (वि.) [न० त०] 1. अपरिमित. असीमित. मप्रतिहतप्रसरमार्यस्य क्रोधज्योति:-वेणी०१ शक्ति सीमारहित, 2. जिसका भलीभाँति निश्चय न किया बेजोड़ शक्तिसम्पन्न 2. अक्षुण्ण, अक्षत, अप्रभाक्ति; जा सके, न समझा जा सके; अज्ञेय-अचित्यस्या-सा बुद्धिरप्रतिहता-भर्तृ० २।४० पंच० ४।२६, प्रमेयस्य कार्यतत्त्वार्थवित्प्रभुः -- मनु० ११३ -यम् इसी प्रकार चिस, मनस् 3. जो निराश न हो । सम० ब्रह्म। -नेत्र (वि०) स्वस्थ आँखों वाला। अप्रयाणिः (स्त्री०) [ ना++या+अनि ] न जाना, अप्रतीत (वि.) [न० त०] 1. अप्रसन्न, अप्रहृष्ट 2. (सा० । प्रगति न करना, (केवल कोसने के लिए ही प्रयुक्त शा० में) जो स्पष्ट रूप से न समझा जा सके, एक होता है)-अप्रयाणिस्ते शठ भूयात-सिद्धा० (भगवान् प्रकार का शब्ददोष (उस शब्द को 'अप्रतीत' कहते हैं करे, तुम प्रगति न कर सको) दे० अजीवनि, जो किसी विशिष्ट स्थान पर ही प्रयुक्त होता हो, अप्रयुक्त (वि०) [न० त०]1. जो इस्तेमाल न किया सामान्य प्रयोग का शब्द न हो) । दे० काव्य०७ । गया हो, जो काम में न लाया गया हो, अव्यवहुत, अप्रतानि० त०] कुमारी कन्या, जिसका दान न किया 2. गलत तरीके से काम में लाया गया शब्द 3. गया हो। बिरल, असामान्य (सा० शा० में), (शब्द के रूप में अप्रत्यक्ष (वि.) [न० ब०] 1. अदृश्य, अगोचर 2. अज्ञात | किसी विशेष अर्थ या लिंग में प्रयुक्त चाहे वह कोशअनुपस्थित । कारों से सम्मत ही क्यों न हो,-तथा मन्ये दैवतोऽस्य अप्रत्यय (वि० [न० ब०] 1. आत्मविश्वास रहित, अवि- पिशाचो राक्षसोऽथवा काव्य०७, यहाँ 'देवत' शब्द श्वासी-(अधि के साथ) बलवदपि शिक्षितानामात्म- "अमरकोश" द्वारा सम्मत होने पर भी कवियों के न्यप्रत्ययं चेत:-श० ११२ 2. अनभिज्ञ 3. (व्या० में) द्वारा पुलिंग में प्रयुक्त नहीं किया जाता--अतः प्रत्यय रहित,-यः 1 आशंका, अविश्वास, विश्वास का यह 'अप्रयुक्त है)। अभाव क्षेत्रमप्रत्ययानाम्-पंच० १११९१ 2. समझ | अप्रवृत्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. कार्य में न लगना, में न आने वाला 3. जो प्रत्यय न हो---अर्थवदधातुर प्रगति न करना, किसी बात का न होना 2. आलस्य, प्रत्ययः प्रातिपदिकम्-पा० १२२।४५।। क्रियाशून्यता, उत्तेजन या प्रोत्साहन का अभाव । अप्रदक्षिणम् (अन्य) [न० त०] बाएँ से दाहिनी ओर। | अप्रसंङ्गः [न० त०] 1. आसक्ति का अभाव 2. संबंध का अप्रधान (वि.) [न० त०] अधीन, गौण, घटिया -आवां अभाव 3. अनुपयुक्त समय या अवसर,-अप्रसङ्गा तावदप्रधानो--हि० २,-नम् (°ता त्वम्) 1, भिधाने च श्रोतुः श्रद्धा न जायते । अधीनता, गौणस्थिति, घटियापन 2. गौण या अमुख्य अप्रसिद्ध (वि०) [न० त०] 1. अज्ञात, तुच्छ,-कु० कार्य ('अप्रधान' शब्द प्रायः नपुं० में प्रयुक्त होता है ३।१९, 2. असाधारण, असामान्य । चाहे वह अकेला प्रयुक्त हो या समास में)। अप्रस्ताविक (वि.) [स्त्री०-की० [न० त०] विषय अप्रधुष्य (वि.) [न० त०] जो जीता न जा सके, अजेय से संबंध न रखने वाला, असंगत (अप्रास्ताविक --पदाश्रीष भीष्ममत्यन्तशूरं हतं पार्थेनाहवेष्वप्रधृष्यम् -महा०, मालवि० ५।१७ । अप्रस्तुत (वि.) [न० त०] 1. जो समय या विषय के उपअप्रभु (वि.) [न० त०] 1. शक्तिहीन, अशक्त 2. अस- युक्त न हो, जो प्रसंगानुकूल न हो, असंगत 2. बेहूदा, मर्थ, अयोग्य, अक्षमः (संब० या अधिक के साथ)। मुर्खतापूर्ण 3. आकस्मिक, असंबद्ध । सम ० ----प्रशंसाअप्रमस (वि.) [न० त०] जो प्रमादी न हो, खबरदार, एक अलंकार जिसमें विषय से भिन्न अर्थात् अप्रस्तुत सावधान, जागरूक। का वर्णन करने से प्रस्तुत अर्थात् विषय का संकेत हो fo For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है--अप्रस्तुतप्रशंसा सा या सैव प्रस्तुताश्रया- | अप्रिय (वि.) [न० त०] 1. नापसंद, अनभिमत, अरुचिकाव्य. १०, इसके ५ भेद है:-कार्ये निमित्ते कर,---अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:सामान्ये विशेष प्रस्तुते सति, तदन्यस्य वचस्तुल्ये रामा०, मनु०४।१३८, 2. निष्ठुर, अमित्र,-यः शत्रु, तुल्यस्येति च पंचधा--अर्थात् जबकि प्रस्तुत विषय दुश्मन,---यम् शत्रुतापूर्ण या अनिष्टकर कर्म,-पाणिपर (क) कार्य के रूप में दुष्टिपात किया जाय- ग्राहस्य साध्वी स्त्री नाचरेत्किचिदप्रियम्--मनु०५। जिसकी सूचना कारण वतलाकर दी जाती है, (ख) १५६, । सम०-कर, ---कारिन् -कारक, (वि.) जब कार्य को बतलाकर कारण पर दृष्टिपात किया अनिष्टकर, अरुचिकर -बद (°°), --वादिन जाय । (ग) जब कोई विशेष निदर्शन देकर सामान्य (वि०) निष्ठुर और कठोर शब्द बोलने वाला, बात पर दृष्टि डाली जाय (घ) जब किसी सामान्य -वन्ध्यार्थध्न्यप्रियंवदा-या० ११७३, माता यस्य गृहे बात का कथन करके विशेष निदर्शन पर दृष्टिपात नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी-चाण. ४४। किया जाय, अथवा (ङ)जब कि समान बात का कथन | अमोतिः (स्त्री०) [न० त०] 1. नापसंदगी, अरुचि 2. करके समान बात पर दृष्टिपात किया जाय, उदा० । शत्रुता। के लिए का० १० और सा० द०७०६। अप्रौढ (वि.)[न० त०11. जो ढीठ न हो 2. भीरु, अप्रहत (वि०) [न० त०] 1. जिसे चोट न लगी हो 2. ! नम्र, असाहसी 3. जो वयस्क न हो, ---डा 1. अवि परत की भूमि, अनजुती 2. नया या कोरा कपड़ा। वाहित कन्या 2. वह कन्या जिसका विवाह तो हो अप्राकरणिक (वि.) [स्त्री-की] [न० त०] 1. जो गया हो, परन्तु अभी तक वयस्क न हुई हो। प्रकरण से संबंध न रखता हो, अप्राकरणिकस्याभि अप्लत (वि.)[न० त०] वह स्वर जो आवाज की दृष्टि घानेन प्राकरणिकस्याक्षेपोऽप्रस्तुत प्रशंसा-काव्य०१० से लंबा न किया गया हो। अप्राकृत (वि०) [न० त०] 1. जो गंवारू न हो 2. जो | अप्सरस (स्त्री०) (-राः, रा) [अद्भचः सरन्ति उद्गमौलिक न हो 3. जो साधारण न हो, असाधारण ! च्छन्ति-अप्+सृ+असुन् ] [ तु. रामा० अप्सु 4. विशेष। निर्मथनादेव रसात्तस्माद्वरस्त्रियः, उत्पेतुर्मनुजश्रष्ठ अप्राग्य (वि०) [न० त०] गौण, अधीन, घटिया । तस्मादप्सरसोऽभवन् । आकाश में रहने वाली अप्राप्त (वि.) [न० त०] 1. जो प्राप्त न किया गया देवांगनाएँ जो गन्धर्वो की पत्नियाँ समझी जाती हैं, हो, -अप्राप्तयोस्तु या राशि: सैव संयोग ईरित:--- उन्हें जलक्रीड़ा बड़ी रुचिकर है, वह अपना रूप बदल भाषा० 2. जो न पहुँचा हो या जो न आया हो, 3. सकती हैं तथा दिव्य प्रभाव से युक्त है, वह प्रायः नियमत: अनधिकृत, अननुगामी 4. न आया हुआ, इन्द्र की.नर्तकियाँ है और 'स्वर्वेश्याः ' कहलाती हैं। न पहुँचा हुआ। सम० ----अवसर, ----काल (वि.) वाण ने इस प्रकार की परियों के १४ कूलों का वर्णन बुरे समय का, असामयिक, जो ऋतु के अनुकूल न , किया है-दे० का० १३६; यह शब्द बहुधा बहुवचन हो,–'कालं वचनं बृहस्पतिरपि ब्रुवन्, लभते बुद्धच- में (स्त्रियां वहष्वपसरसः) प्रयुक्त होता है, परन्तु बज्ञानमपमानं च पुष्कलम् --पंच० २६३, -यौवन एक वचन में प्रयोग तथा 'अप्सरा' रूप कई बार (वि.) अवयस्क, नावालिग, ----व्यवहार, -वयस देखने में आता है—नियमविघ्नकारिणी मेनका नाम (वि०) (विधि में) अल्पवयस्क, सार्वजनिक कार्यों में अप्सराः प्रेपिता--श. १, एकाप्सरः आदि०-रघु. अपने उत्तरदायित्व के भरोसे भाग लेने के लिए जिस ७।५३,। सम० -तीर्थम् अप्सराओं के नहाने के की आयु न हो, अवयस्क (१६ वर्ष से कम आयु का) लिए पवित्र तालाब, यह संभवतः किसी स्थान का --अप्राप्तव्यवहारो ऽसौ यावत् पांडशवापिक:-दक्ष। नाम है-दे० १०६, -पतिः अप्सराओं का स्वामी आलप्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. न मिलना,-तदप्राप्ति इन्द्र की उपाधि। महादुःखविलीनाशेषपातका काव्य० ४, 2. जो अफल (वि०) [न० ब०11 निष्फल, फलरहित, बंजर किसी नियम से सिद्ध या स्थापित न हुआ हो; (श और आलं.) °ला ओषधयः, °लकार्य आदि -विधिरत्यन्तमप्राप्तौ नियमः पाक्षिके मति-मीमां० 2. अनुरा, निरर्थक, व्यर्थ,-यथा पंढोऽफल: स्त्रीष 3. किसी बात का न होना, किसी घटना का घटित यथा गौर्गवि चाफला, यथा यज्ञेऽफलं दान तथा विप्रो न होना। ऽनूचोऽफलः । मनु० २।१८। पुरुषत्व से हीन, बधिया अप्रामाणिक (वि.) [स्त्री० की][न० त०] 1. जो किया हुआ,-अफलोज्हं कृतस्तेन क्रोधारसा च मिराकृता प्रामाणिक न हो, अयुक्तियुक्त,—इदं वचनमप्रामा- --..रामा०। सम--.-आकांक्षिम, -प्रेप्सु (वि०) जो णिकम-2. अविश्वसनीय, जिस पर भरोसा न किया पारिश्रमिक पाने की इच्छा नहीं रखता, स्वार्थरहित, जा सके। -अफलाकांक्षिभिर्यज्ञः क्रियते ब्रह्मवादिभिः-महा। For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भत् १६० बलाबलम् भा. अनियन्त्रित बाधाहीनता | ' अफेन (वि०) [न० ब०] बिना झाग का, झाग रहित । -पोनिः ब्रह्मा के विशेषण,-बांधव कमलों का मित्र -नम् अफ़ीम । सूर्य,--वाहमः शिव की उपाधि । अबब-बक (वि.) [न० त०] 1. स्वच्छन्द, न बंधा , अन्जा | स्त्रियां टापू] सीपी। हुआ, बेरोक 2. अर्थहीन, बेमतलब, बेहूदा, विरोधी- अब्जिनी [अब्ज+इनि, स्त्रियां डीप] 1. कमलों का उदा. यावज्जीवमहं मौनी ब्रह्मचारी च मे पिता, समूह 2. कमलों से पूर्ण स्थान 3. कमल का पौधा । माता तु मम बंध्यासीदपुत्रश्च पितामहः । (विरोधी)- सम.--पतिः सूर्य । जरद्गवः कंबलपादुकाभ्यां द्वारि स्थितो गायति मङ्ग- | अम्बः [ अपो ददाति-दा-+क] 1. बादल 2. वर्ष (इस लानि-अमर० रायमुकुट । सम०-मुख (वि.) अर्थ में नपं० भी) 3. एक पर्वत का नाम। सम. दुर्मख, गाली से युक्त, बदजबान। - अर्धम् आधा वर्ष, वाहनः शिव,-शतम् शताब्दी, अबन्धु-बान्धव (वि.) [न० ब०] मित्रहीन, एकाकी। -सारः एक प्रकार का कपूर । अबल (वि.) [न० ब] 1. दुर्बल, बलहीन, 2. अर- | अब्धिः [ आपः धीयन्ते अत्र-अप-धा+कि] 1. समुद्र, क्षित, ला स्त्री (अपेक्षाकृत बलहीन होने के जलाशय, (आलं. भी) दुःख, कार्य, ज्ञान आदि कारण);-ननं हि ते कविवरा विपरीतबोधा ये नित्य- किसी चीज का भंडार या संग्रह 2. ताल, झील, 3. माहरबला इति कामिनीनाम, याभिविलोलतरतारक- (गण० में) सात की संख्या, कई बार चार की दृष्टिपातः शक्रादयोऽपि विजितास्त्वबलाः कथं ताः - संख्या। सम-अग्निः वाडवाग्नि,-कफः,-फेनः भेत ११११, जनः स्त्री, बलम् निर्बलता, बल की। समुद्रझाग,--ज: 1. चन्द्रमा, 2. शंख, (-जा) 1. वारुणी (समुद्र से उत्पन्न), 2. लक्ष्मीदेवी,-द्वीपा अबाध (वि.) [न० ब०] 1. अनियन्त्रित, बाधारहित, पृथ्वी,--नगरी कृष्ण की राजधानी द्वारका, नव2. पीड़ा से मुक्त, घः [न० त०] 1. बाघाहीनता नीतक: चन्द्रमा,--मंडूको मोती की सीप,-शयनः 2. निराकरण का अभाव। विष्णु,-सारः रत्न । अवाल (वि.) न० त०] 1. जो बालक न हो, जवान, | अब्रह्मचर्य (वि०) [न० ब०] जो ब्रह्मचारी न हो, यम, 2. छोटा नहीं, पूर्ण (जैसा कि चन्द्रमा)। र्यकम् [न० त०] लम्पटता, कामुकता, 2. मैथुन । अबाह्य (वि०) [न० त०] 1. जो बाहरी न हो, भीतरी | अब्रह्मण्य (वि.) [न० त०-नन+ब्रह्मन् यत् ] 1. 2. (आलं०) परिचित, जानकार। जो ब्राह्मण के लिए उपयुक्त न हो,--अब्राह्मण्यमअबिम्धनः [ आपः इन्धनं यस्य-ब० स०] वडवाग्नि, वर्ण स्यात् ब्रह्मण्यं ब्रह्मणो हितम्-हला. 2. (जो समुद्री पानी पर पलती है)-अबिन्धनं वह्निमसौ ब्राह्मणों के लिए शत्रवत्,--ण्यम अब्राह्मणोचित कार्य, बित्ति रघु० १३।४। या जो ब्राह्मण के लिये योग्य न हो। नाटकों में अबुद्ध (वि०) [न० त०] मूर्ख, नासमझ---अपवादमात्रम- प्रायः यह शब्द 'दुहाई देने के अर्थ में प्रयक्त होता हैबुद्धानाम् सां० सू०। अर्थात् 'रक्षाकरो' 'सहायता करो' 'एक अत्यन्त भीषण अवधि: (स्त्री०) [न० त०] 1. समझ की कमी, 2. और जघन्य कर्म हो गया है' --अर्थत्य योगनन्दस्य अज्ञान, मूर्खता । सम० --पूर्व, -पूर्वक (वि०) | व्याडिनाक्रन्दितं पुरा, अब्रह्मण्यमनुत्क्रान्तजीवो योगअनभिप्रेत ( -वं,कम् ) ( क्रि० वि० ) अनजान- स्थितो द्विजः-बृह० क०। पने में, अज्ञात रूप से। | अब्रह्मन् (वि.) [न० ब०] ब्राह्मणों से वियक्त या अवष-गध (वि.) [न० त०] मूर्ख, मूढ, (पुं०) जड़, विरहित-नाब्रह्मक्षत्रमध्नोति-मनु० ९।३२२ । (स्त्री०-अभुत्) अज्ञान, बुद्धि का अभाव । अभक्तिः स्त्री अभक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. भक्ति या आसक्ति का अबोध (वि.) [न० ब० ] अनजान, मूर्ख, मूढ, ---- धः । अभाव 2. अविश्वास, सन्दिग्धता। [न० त०] 1. अज्ञान, जडता, समझ का अभाव-- अभक्ष्य (वि०) [न० त०] 1. जो खाने योग्य न हो। घोपहताश्चान्ये-भर्तृ ० ३१२, निसर्गदुर्बोधमबोध- 2. खाने के लिये निषिद्ध,-क्यम् खाने का निषिद्ध विक्लवा: क्व भूपतीनां चरितं क्व जन्तवः-कि०१६, पदार्थ। 2. न जानना, जानकारी न होना। सम० - गम्य अभग (वि.) [न० ब०] अभागा, बदकिस्मत । (वि.) जो समझ में न आ सके, अकल्पनीय। अभद्र (वि.) [न० त०] अंशुभ, कुत्सित, दुष्ट,-द्रम् 1. अब्ज (वि.) [अप्सु जायते-अप+जन्+ड] जल में दुष्कर्म, पाप, दुष्टता 2. शोक । पैदा हआ या जल से उत्पन्न,---जम् 1. कमल २. | अभय (वि०) [न० ब०] निर्भय, सुरक्षित, भयमुक्त, एक अरब की संख्या (१०००००००००)। सम० --वैराग्यमेवाभयम्--भर्तृ० ३।३५,--यम् 1. भय का -कणिका कमल का छत्ता,-जः,-भवः,-भः, अभाव, भय से दूर रहना, 2 सुरक्षा, बचाव, भय या बाह्मण्य ( विके लिए उपभाणो हितम् चित कार्य, For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डर से रक्षा,---मया तस्याभयं दत्तम्--पंच० १,।। °कंप 2. (विशेषण तथा स्वतन्त्र संज्ञा शब्दों से पूर्व सम-कृत (वि.) 1. जो भयानक न हो, मदु, 2. लगने वाला उपसर्ग)-अर्थ-(क) तीव्रता और सुरक्षा देने वाला,-डिडिमः 1. सुरक्षा या विश्वसनी- प्राधान्य, धर्म:-प्रधान कर्तव्य, ताम्र---अत्यंत लाल यता का ढिंढोरा, 2. युद्धभेरी,---,-दायिन,-प्रद नव-बिलकुल नया (ख) 'की ओर' की दिशा में', (वि) सुरक्षा का वचन देने वाला,-दक्षिणा,--दानम्, अव्ययीभाव समास बनाना चैद्यम, मुखम, द्रति --प्रदानम् भय से मुक्ति का वचन या सुरक्षा की गारंटी | आदि 3. (कर्म० के साथ संबं० अव्य के रूप में) ---सर्वप्रदानेष्वभयप्रदान (प्रधानम्)--पंच० ११२९०, (क) 'की ओर' की दिशा में' के विरुद्ध' (कर्म के --पत्रम् सुरक्षा का विश्वास दिलाने वाला लिखित साथ या इसी अर्थ में समास के साथ) अम्यग्नि या पत्र, तु० आधुनिक 'सुरक्षा आचरण'-याचना रक्षा के अग्निमभि शलभाः पतंति, वृक्षमभिद्योतते विद्युतलिए प्रार्थना,-वचनम्-वाच (स्त्री) सुरक्षा का सिद्धा० (ख) 'निकट' 'पहले' 'सामने' 'उपस्थिति में वचन या भय से मुक्त कर देने की प्रतिज्ञा । (ग) पर ऊपर, संकेत करते हुए, के विषय में साधु अभयंकर --कृत (वि.) [न० त०] 1. जो भयानक न हो देवदत्तो मातरमभि-- सिद्धा० (घ) पृथक् पृथक, एक2. सुरक्षा करने वाला एक करके (विभाग द्वारा)-वृक्ष वृक्षमभिषिंचति अभवः [न० त०] 1. अविद्यमानता,—मत्त एव भवाभवौ ---सिद्धा। महा०, 2. छुटकारा मोक्ष,—प्राप्तुमभवमभिवाञ्छति अभि (भी) क (वि.) [ अभि+कन् ] कामी, लंपट, वा-कि० १२१३०, १८।२७. 3. समाप्ति या प्रलय | विलासी,-सोऽधिकारमभिक: कुलोचितं काश्चन स्वय--भवाय सर्वभूतानामभवाय च रक्षसाम्-रामा० । मवर्तयत्समाः– रघु १९१४, अपि सिंचेः कृशानो त्वं दपं अभव्य (वि.) [न० त०] 1. जो न होना हो 2. अनु- मय्यपि योऽभिकः-भट्रि०८।९२। पयुक्त, अशुभ 3. दुर्भाग्यपूर्ण, अभागा,... उपनतमवघी-| अभिकांक्षा [ अभि+कांक्ष + अङ-+टाप् ] कामना, इच्छा, रयन्त्यभव्याः -कि० १०.५१ । लालसा । अभाग (वि.) न० ब०] 1. जिसका संपत्ति में कोई | अभिकांक्षिन् (वि.) [ अभि+कांक्ष+णिनि ] लालसा हिस्सा न हो, 2. अविभक्त । रखने वाला, कामना करने वाला। अभावः [न० त०] 1. न होना, अनस्तित्व,-गतो भावोऽ- | अभिकाम (वि०) [अभिवृद्धः कामो यस्य-अभि+ भावम्-मृच्छ०१ (अन्तर्धान हो गया) 2. अनुपस्थिति, कम् + अच् ब० स० ] स्नेही, प्रेमी, इच्छुक, कामनाकमी, असफलता,-सर्वेषामप्यभावे तू ब्राह्मणा रिकथ- युक्त, कामुक (कर्म में या समास में)—याचे त्वामभिभागिनः-मनु० ९।१८८, अधिकतर समास में, कामाहम्---महा०,--मः (प्रा० स०) 1. स्नेह, प्रेम -सर्वाभावे हरेन्नपः-१८९, सब कुछ विफल हो जाने | 2. कामना, इच्छा। पर 3. सर्वनाश, मत्य, विनाश, सत्ताशून्यता, नाभाव | अभिक्रमः [अभि-+क्रम-घा, अवृद्धि: ] 1. आरम्भ, उपलब्धेः- शारी० 4. (दर्शन में) लोप, असत्ता, प्रयत्न, व्यवसाय, नेहाभिकमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न अविद्यमानता या निषेध, कणाद के मतानुसार सातवा विद्यते-भग० २।४, 2. निश्चित आक्रमण या धावा, पदार्थ या वर्ग, (इसके दो भेद है -संसर्गाभाव और अभियान, हमला 3. आरोहण, सवार होना। अन्योन्याभाव, पहले के फिर तीन उपभद है प्रागभाव । अभिक्रमणम-क्रांतिः (स्त्री) [ अभि+क्रम- ल्युट, क्तिन प्रध्वंसाभाव, और अत्यंताभाव) । वा उपागमन, आक्रमण करना=देऊ०अभिक्रम । अभावना [नत०] 1. सत्यविवेचन या निर्णय का अभाव 2 अभिक्रोशः | अभि-क्रुश् + घन ] 1. पुकारना, चिल्लाना धार्मिक ध्यान का अभाव । 2. अपशब्द कहना, निदा करना । अभाषित (वि०) | न० त०] न कहा हुआ। सम० | अभिकोशकः | अभि-+ क्रश---प्रवल | पूकारने वाला, गाली --स्कः बह शब्द जो कभी पुं० या स्त्रो० में प्रयुक्त देने वाला, कलंक लगाने वाला। न होता हो अर्थात् नित्यस्त्रीलिंग। अभिख्या[अभि +ख्या+अ+टाप् ]1, चमक-दमक, शोभा अभि (अव्य०) [न +भा+कि ] (धातु और शब्दों से कालि, काप्यभिख्या तयोरासीद् ब्रजतोः शुद्धबेषयोः पूर्व लगाया जाने वाला उपसर्ग) अर्थ-(क) 'की रघु० १।४६, सूर्यापाये न खलु कमलं पुष्यति स्वामभिओर', 'की दिशा में', अभिगम की और जाना, ख्याम्- - मेघ०, ८० कु० ११४३, ७।१८, 2. कहना, अभिया, गमनम्, प्यानम् आदि (ख) 'के लिए' 'के घोषणा करना, 3. पुकारना, संबोधित करना 4. नाम, विरुद्ध' 'लप्, 'पत् आदि (ग) 'पर' 'ऊपर' °सिंच् अभिधान 5. शब्द, पर्याय 6. प्रसिद्धि, यश, कुख्याति, पर छिड़कना आदि (घ) 'ऊपर से' 'ऊपर' 'परे' भू माहात्म्य । हावी हो जाना, तन (ङ) 'अधिकता से' 'बहुत' । अभिख्यानम् [ अभि+ख्या+ल्युट् ] ख्याति, यश । For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिगमः-गमनम् [अभिगम्+अप, ल्युट् वा ] 1. (क)। करना । सम--स्बर: जादू के मंत्रों द्वारा किया गय। उपागमन, पास जाना या आना, दर्शनार्थ गमन, पहुँ- बुखार,-मंत्रः जादू का गुर, जादू करने के लिए मंत्रचना, तवाहतो नाभिगमेन तृप्तम्-रघु० ५।११, फेंकना,-शि० ७५८,--यज्ञः,-होमः जादू टोन के १७७२, ज्येष्ठाभिगमनात्पूर्व तेनाप्यनभिनन्दिता- लिए किया जाने वाला यज्ञ, होम। १२१३५,2. संभोग (स्त्री या पुरुष के साथ)-परदा- अभिचारक) (वि.) (स्त्रियाम–रिकी,—रिणी) [अभि राभिगमनम्-का० १४७, प्रसह्य दास्यभिगमे-या० | अभिचारिन् । +चर+ण्वुल, णिनि वा] अभिचार २२२९१। करने वाला, जादू टोना करने वाला,-कः,-री ऐन्द्रअभिगम्य (सं० कृ०) [अभिगम्+य] 1. उपागम्य, दर्शनीय जालिक, जादूगर। अन्विष्य, कु०६।५६, 2. प्राप्य, आमन्त्रक,-भीमकान्त पगुणैः... अधृष्यश्चाभिगम्यश्च-रघु०१।१६,। अभिजन: [अभि+जन+घञ अवृद्धिः ] 1. (क) कुटुम्ब, अभिगर्जनम्-1 [अभिगर्ज +त्युद, क्त वा ] जंगली तथा वंश, अन्वय (ख) जन्म,उत्पत्ति, कुल 2. उत्तम कुल अभिजितम् । भीषण दहाड़, चीत्कार। में जन्म, उत्तम कुटुम्ब में उत्पत्ति;-स्तुत्यं तन्महात्म्य अभिगामिन (वि.) [अभि+गम्+णिनि ] निकट जाने यदभिजनतो यच्च गुणत:--मा० २।१३, शीलं शैलवाला, संभोग करने वाला, । तटात्पतत्वभिजन: संदह्यतां वह्निना-भर्तृ० २, ३९, अभिगुप्तिः (स्त्री०)[अभि+गुप+क्तिन] संरक्षण, बचाव । 3. जन्मभूमि, मातृभूमि, बापदादाओं की जन्मभूमि अभिगोप्त (पुं०) [ अभि+गुप्-+तृच् ] बचाने वाला, (विप० निवास), यत्र पूर्वैरुषितं सोऽभिजन:-सिद्धा. 4. ख्याति, प्रतिष्ठा 5. घर का मुखिया या कुलभूषण संरक्षक। अभिप्रहः [अभि+ग्रह +अच् ] 1. छीन लेना, ठगना, (श्रेष्ठव्यक्ति), 6. अनुचर, परिजन ।। लूटना 2. धावा, हमला 3. ललकार 4. शिकायत 5. अभिजनवत् (वि०) [ अभिजन+मतुप् ] उच्च कुल का, अधिकार, प्रभाव। उत्तम वंश में उत्पन्न,-°वतोभर्तुः इलाध्ये स्थिता गृहिणी अभिग्रहणम् [ अभि+ ग्रह, ल्युट ] लूटना, छीन लेना। पदे-श० ४।१८।। अभिघर्षणम [ अभि+ +ल्युट ] 1. रगड़ना, झगड़ना, | अभिजयः [अभि---जि+अच्] जीत, पूर्ण विजय । 2. बुरी भावना से अधिकार करना। अभिजात (भू.क. कृ.) [अभि+जन्+क्त] 1. (क) अभिधातः [ अभि+हन+घञ्] 1. आघात करना,मारना उत्पन्न, भग० १६।३।५, (ख) सर्वथा विकसित (ग) चोट पहुँचाना, प्रहार, तटाभिधातादिव लग्नपड़े योग्य 2. जन्मा हुआ, पैदा हुआ 3. कुलीन, उच्चकुल -कु. ७४४९, 2. विध्वंस, पूर्ण नाश, समलोच्छेदन में उत्पन्न, उच्च वंश में जन्म लेने वाला,-जात्यस्तेना--दुःखत्रयाभिघाताज्जिज्ञासा तदभिघातके हेती-सां० भिजातेन शूरः शौर्यवता कुश:--रघु० १७१४, शिष्ट, का० १, -तम् कठोर उच्चारण (सन्धि नियमों की नम्र-अभिजातं खल्बस्य वचनम-विक्रम० १, 4. उपेक्षा के कारण)। योग्य, उचित उपयुक्त 5. मधुर, रुचिकर,--प्रजल्पिताअभिघातक (वि.) [स्त्री० -तिका] (मारकर) पीछे यामभिजातवाचि-कु. ११४५, 6. मनोहर, सुन्दर हटाने वाला, दूर कर देने वाला। 7. विद्वान, बुद्धिमान, विवेकशील,-संकीर्ण नाभिजातेषु अभिघातिन् (पुं०) [ अभि-+हन्+णिनि ] शत्रु । नाप्रबुद्धेषु संस्कृतम् (वदेत्)। अभिधारः [ अभि-++णिच्+घञ्] 1. घी 2. यज्ञ में अभिजाति: (स्त्री०) [अभि+जन्+क्तिन्] उत्तम कुल में घी की आहुति, प्रणीतपृषदाज्याभिधारघोरस्तनूनपात् ___ जन्म । -महावी० ३ । अभिजिघ्रणम् [ अभि-+घ्रा+ल्यूट जिघ्रादेश: ] नाक से अभिधारणम् [ अभि++णिच+ल्युट् ] षी छिड़कना । सिर का स्पर्श करना (स्नेहसूचक चिह्न)। अभिप्राणम् [ अभि+प्रा-ल्युट् ] सिर सूंघना (स्नेह- अभिजित् (पुं) [अभि + जि+क्विप्] 1. विष्णु 2. एक सूचक चिह्न)। नक्षत्र का नाम । अभिचरः [अभि+चर+अच ] अनुचर, सेवक । अभिज्ञ (वि.) [अभि+जा+क] 1. जानने वाला, जानअभिचरणम् [अभि+चर+ल्युट्] 1. झाड़ना-फूंकना, जादू कार, अनुभवशील, कुशल (संब० या अधिक के साथ टोना, बुरे कामों के लिए मंत्र पढ़ कर जादू करना, अथवा समास में)-यद्वा कौशलमिन्द्रसूनुदमने तत्राप्यइन्द्रजाल 2. मारना । भिज्ञो जन: --उत्तर० ५।३४, अभिज्ञाच्छेदपातानां अविचारः [ अभि+च+घञ्] 1. (मंत्रादि द्वारा) क्रियन्ते नन्दनद्रुमाः–कु० २०४१, मेघ० १६, रघु० झाड़ फुक करना, मंत्रमुग्ध करना, जादू के मंत्रों का ७।६४, अनभिज्ञो भवान्सेवाधर्मस्य-१,2. कुशल, दक्ष, बुरे कामों के लिए प्रयोग करना, जादू, करना 2. हत्या । चतुर,--शा 1. पहचान 2. याद, स्मृति चिह्न। For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७१ ) अभिज्ञानम् [अभिज्ञा +ल्युट] 1. पहचान, तदभिज्ञान- | अभिधानम् [अभि+धा+ल्युट्] 1. कहना, बोलना, नाम हेतोहि दतं तेन महात्मना-रामा० 2. स्मरण, प्रत्या- रखना, संकेत करना,--एतावतामर्थानामिदमभिधानम् स्मरण 3. (क) पहचान का चिह्न (पुरुष या वस्तु), जिरु. 2. प्रकथन, वचन दे० पा० २।३।२ सिद्धा. 3. -वत्स योगिन्यस्मि मालत्यभिज्ञानं च धारयामि नाम, संज्ञा, पद,-अभिधानं तु पश्चात्तस्याहम-मा० ९, भट्टि०८1११८, १२४ इसी प्रकार शाकु- श्रीषम्-का० ३२, तवाभिधानास व्यथते नताननः न्तलं 4. चन्द्रमंडल में काला चिह्न। सम०-आभ- कि० १। ऋणाभिधानात् २४, (समस्तपद के अन्त रणम् पहचान का भूषण, अंगूठी श० ४ । में) पुकारा गया, नाम लिया गया--ऋणाभिधानात् अभितः (अव्य.) [ अभि+तसिल ] (क्रि. वि. के रूप । बंधनात्-रघु० ३।२०, 4. भाषण, व्याख्यान 5. कोश, में अथवा कर्म के साथ संब० अव्य के रूप में प्रयुक्त) | शब्दावली, लुगत (अंतिम दो अर्थों में पुं० में भी) 1. निकट, की ओर, सब ओर से,—अभितस्तं पृथा- __ 1. सम-कोशः,--माला शब्दकोश । सूनुस्नेहेन परितस्तरे-कि० ११३८, 2. (क) निकट अभिधायक(स्त्री० --यिका,--पिनी)) (वि.)[अभि+धा मिला हआ, समीप में,...ततो राजाब्रवीद्वाक्यं सुमंत्रम- | अभिधायिन +बुल, णिनि वा] भितः स्थितम्-रामा० (ख) के सामने, की उप- 1. नाम रखने वाला, वाचक,-कर्षः कूल्याभिधायिनी स्थिति में,-तन्वन्तमिद्धमभितो गुरुमंशुजालम-कि० --अमर०,-संकेत करता है, अर्थ बतलाता है, भाव २१५९, 3. सम्मुख, मुंह के आगे, सामने कि० ६१, रखता है, 2. कहने वाला, बोलने वाला, बतलाने५, १४, 4. दोनों ओर, --चूडाचुंबितककपत्रमभितस्तू- वाला,----लक्ष्मीमित्यभिधायिनि प्रियतमे-अमरु० २३, णीद्वयं पृष्ठत:-उत्तर० ४।२०, भट्टि० ९।१३७, 5. वाच्याभिधायी पुरुषः पृष्ठमांसाद उच्यते--त्रिका० । पहले और पीछे 6. सब ओर से, चारों ओर से, | अभिधावनम् अवि-धाव् + ल्यट] आक्रमण, पीछा करना। (कर्म० या संब० के साथ)-परिजनो यथाव्यापारं । यथाव्यापार अभिधेय (सं० कृ०) [अभि+या+यत्] 1. नाम दिये गमक राजानमभितः स्थितः--मालवि० ११७, 7. पूर्ण रूप से, जाने योग्य, कथनीय, वाच्य 2. नाम के योग्य (तर्क० पूरी तरह से, सर्वत्र 8. शीघ्र ही। में) अभिधेयाः पदार्थाः,-यम् 1. सार्थकता, अर्थ, भभितापः [अभिप्- घा] अत्यंत गर्मी-चाहे शरीर की भाव, तात्पर्य-कि० १४५, 2. भावाशप 3. विषय, हो या मन की, भावावेश, कष्ट, अधिक दुःख या पीड़ा -इहाभिधेयं सप्रयोजनम--काव्य० १, इति प्रयो-शि० ९।१, कि०९।४, बलवान्युनमें मनसोऽभितापः जनाभिधेयसंबंधा:-मग्य 4. मख्यार्थ (=अभिधा.) -विक्रमः ३ । ---अभिवेयाविनाभतप्रतीतिर्लक्षणोच्यते-- काव्य०२। अभिताम्र (वि.) [प्रा० स०] बहुत लाल, लालसुर्ख | अभिध्या [अभि+ध्ये+अ+टाप्] 1. दूसरे की संपत्ति -रघु० १५१४९। के लिए ललचाना, 2. प्रवल कामना, चाह, सामान्य अभिवक्षिणम् (अव्य०) [ अव्य० स० ] दक्षिण की ओर इच्छा,--अभिध्योपदेशात्--ब्रह्म० 3. ग्रहण करने की (=तु. प्रदक्षिणम् ) । अभिनवः --द्रवणम् [अभिद्रु+अ+ल्युट वा] आक्रमण, | अभिध्यानम् अभि+ध्य-+ ल्युट्] 1. चाहना, प्रबल इच्छा हमला। करना, ललचाना, कामना करना 2. मनन करना, अभिवोहः [अभि-दूह+घञ ] 1. चोट पहुंचाना, षड्यंत्र | प्रचितन । रचना, हानि, क्रूरता 2. गाली, निन्दा। अभिनन्दः [ अभि+नन्द्+घञ्] 1. प्रहर्ष, प्रफुल्लता, अभिधर्षणम् [ अभि+ -+ ल्युट् ] 1. भूत प्रेतादि से । प्रसन्नता 2. प्रशंसा, सराहना, अभिनन्दन, बधाई देना, आविष्ट होना 2. अत्याचार । 3. कामना, इच्छा, 4. प्रोत्साहन, कार्य में प्रेरणा । अभिधा [अभि+धा+अङ-+-टाप्] 1. नाम, संज्ञा (प्रायः अभिनन्दनम् [अभि+नन्+ल्युट्] 1. प्रहर्षण, अभिवादन, समास में). कुसुम वसन्ताद्यभिधः-सा० द० २ स्वागत करना, 2. प्रशंसा करना, अनुमोदन करना 2. शब्द, ध्वनि 3. शाब्दिक शक्ति या शब्दार्थ, संके- 3. कामना, इच्छा। तन, शब्द की तीन शक्तियों में से एक,---वाच्यार्थो अभिनन्दनीय) (सं० कृ०) [अभि+नन्द+अनोय, ण्यत् भिषया बोव्यः - सा० द० २ (अभिधा--शब्द के अभिनन्ध वा ] प्रहृष्ट होना, प्रशंसित होना, सराहा संकेतित अर्थ को बतलाती है) स मुख्योर्थस्तत्र मुख्यो । जाना,-काममेतदभिनन्दनीयम्-०५, रघु० ५।३१। यो व्यापारोऽस्याभियोच्यते--काव्य. २ । सम० अभिनन (वि०)[प्रा० स०] झुका हुआ, विनीत,-स्तना---ध्वंसिन (वि०) अपने नाम को नष्ट करने वाला भिरामस्तकाभिनम्राम् रघु० १३।३२। -मूल (वि०) शब्द के संकेतित या मुख्यार्थ पर अभिनयः [अभि+नी+अच् 1 नाटक खेलना, अंग आधारित। विक्षेप, नाटकीय प्रदर्शन (किसी मनोभाव या आवेश को For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७२ ) दृष्टि, संकेत या मुद्रादि से प्रकट करने वाला)-नृत्या- न्खलमेऽभिनिवेश:--श०३, असत्यभते वस्तून्यभिनिवेशः भिनयक्रियाच्युतम्-कु० ५।७९, अभिनयान् परिचेतु- ----मिता० २. 2. उत्कट अभिलाष, दृढ़ प्रत्याशा 3. मिवोद्यता-रघु० ९।३३, नर्तकीरभिनयातिलंजिनीः, दृढ़संकल्प, दृढ़ निश्चय, धैर्य,--जनकात्मजायां नितां१९।१४ 2. नाटकीय प्रदर्शनी, स्वांग, मंच पर प्रदर्शन तरुक्षाभिनिवेशमोशम्-रघु० १४।४३, अनुरूप करना, ललिताभिनयं तमद्य भर्ता मरुतां द्रष्टुमना: शतोषिणा कु०५।७, 4. (योगदर्शन में)एक प्रकार का सलोकपाल:-विक्रम० २।१८, सा० द. अभिनय का | अज्ञान जो मृत्यु के भय का कारण हो, सांसारिक निरूपण इस प्रकार करता है:-भवेदभिनयोऽवस्थानु- विषय-वासनाओं तथा शारीरिक आमोदप्रमोद में व्यस्त कारः स चतुर्विधः,आङ्गिको वाचिकश्चैवमाहार्यः सात्वि- रहना साथ ही यह भय भी लगा रहे कि मृत्यु के द्वारा कस्तथा। १७४ । अभिनय—किसी दशा का अनुकरण इन सब से वियोग हो जाना है। करना है, यह चार प्रकार का है:-(१) आंगिक-| अभिनिवेशिन् (वि०) [अभि-नि---विश्+णिनि] 1. शारीरिक चेष्टाओं द्वारा व्यक्त होने वाला (२) आसक्त, संसक्त 2. जमा रहने वाला, अनन्यचित्त, 3. वाचिक शब्दों द्वारा प्रकट होने बाला (३) आहार्य- दृढ़ निश्चयी, कृतसकल्प । वेशभूषा, अलंकार, सजावट आदि से व्यक्त होने अभिनिष्क्रमणम् [अभि+निस्+क्रम ल्युट] बाहर निकवाला (४) सात्विक-स्वेद, रोमांच आदि के द्वारा लना। आन्तरिक भावनाओं को प्रकट करने वाला। अभिनिष्टानः [अभि+नि+स्तन्+घञ--सस्य षत्वम्] अभिनव (वि.) [प्रा० स०] 1. बिल्कुल नया या ताजा | वर्णमाला का अक्षर । (सर्वथा) पदपङक्तिर्दश्यतेऽभिनवा-श० ३१८, ५।१, | अभिनिष्पतनम् [अभि--निस्+-पत् + ल्युट्] टूट पड़ना, °वा वधूः का० २, नवोढ़ा 2. बहुत छोटा, अनुभवहीन। निकल पड़ना। सम०-यौवन-वयस्क, नौ जवान, बहुत छोटा। अभिनिष्पत्तिः (स्त्री०) [ अभि-न-निस् --पद्+क्तिन् ] अभिनहनम् [अभि-+नह ल्युट्] आँख पर बाँधने की पूति, समाप्ति, निष्पन्नता, पूर्णता । पट्टी, अंधा। अभिनिह्नवः [अभि+नि+न+अप्] मुकरना, छिपाना । अभिनियुक्त (वि०) [अभि+नि+युज+क्त] काम में अभिनीत (भू० क. कृ.) (अभि-+नी+क्त] 1. निकट लगा हुआ, व्यस्त । लाया गया, पहुंचाया गया 2. किया गया, नाटक के अभिनिर्मुक्त (वि.)[अभि+निर+म+क्त] 1 सूर्यास्त रूप में खेला गया 3. सुसज्जित, अलंकृत, अत्यन्त श्रेष्ठ होने के कारण छुटा हुआ कार्य या छोड़ा हुआ कार्य 2 4. उपयुक्त, उचित, योग्य, -अभिनीततरं वाक्यमित्युसूर्यास्त के समय सोया हुआ। वाच युधिष्ठिरः-महा० 5. सहनशील, दयालु, समअभिनिर्याणम् [अभि+निर+या+ल्युट] । 1. प्रयाण 2. चित्त 6. क्रुद्ध 7. कृपाल, मित्र सदृश । आक्रमण, किसी शत्रु के सामने अभिप्रस्थान। अभिनीतिः (स्त्री०) [ अभि+नी+क्तिन् ] 1. इंगित, अभिनिविष्ट [भू० क. कृ०] [अभि+नि+विश्+क्त] 1. भावपूर्ण अंग विक्षेप, 2. कृपालुता, मित्रता, सहिष्णुता, तुला हुआ, लीन, जुटा हुआ 2. दृढ़ता पूर्वक जमा हुआ | --सान्वपूर्वमभिनीतिहेतुकम कि० १३१३६। सावधान, लगा हुआ 3. सम्पन्न, अधिकार युक्त,--गुरु- अभिनेत (पं.) नाटक का पात्र,-त्री नाटक की पात्री। भिरभिनिविष्टं (गर्भ) लोकपालानुभाव:-रघु० | अभिनेतन्य) (सं० कृ०) [अभि-नी+यत्, तव्यत् वा २७५, 4. दृढनिश्चयी, कृतसंकल्प 5. (कदर्थ) | अभिनेय नाटक के रूप में खेले जाने योग्य,-दृश्यं हठी, दुराग्रही। तत्राभिनेयं तद्रोपारोपात्त रूपकम-सा०द० २७३, तस्य अभिनिविष्टता [अभिनिविष्ट+तल+टाप्] दृढ़संकल्पता, | (प्रबन्धस्य) एकदेश: अभिनेयार्थः कृतः--उत्तर०४, दढनिश्चय, निदाक्षेपापमानादेरमर्षोऽभिनिविष्टता- इसका एक अंश रंग मंच के उपयुक्त बना दिया गया। सा० ८०–अर्थात निंदा, बदनामी या अपमान की | अभिन्न (वि.) [न० त०] 1. न टूटा हुआ, अनकटा 2. परवाह न करते हुए अपने उद्देश्य पर दृढ़ता से आगे अविकृत 3. अपरिवर्तित, 4. जो अलग न हो, वही, बढ़ते जाना। एकरूप (अपा० के साथ),--जगन्मिथोभिन्नमभिन्नमीअभिनिवतिः (स्त्री०) [अभि+निवृत्+क्तिन्] निष्प- श्वरात्-प्रबोध० । प्रता, पूर्ति । अभिपतनन् [ अभि+पत्+ल्युट् ] 1. उपागमन 2. टूट अभिनिवेशः [अभि+नि+विश्+घन]1 लगन, आसक्ति पड़ना, आक्रमण करना, चढ़ाई करना 3. कूच करना, एकनिष्ठता, दढ़ विनियोग (अधि० के साथ या समास रवानगी। में), कतमस्मिस्ते भावाभिनिवेशः---विक्रम० ३, अहो | अभिपत्तिः (स्त्री०) अभि-पद्+क्तिन] 1. उपागमन, निरर्थकव्यापारेष्वभिनिवेश: का० १२०, बलीया- निकट जाना 2. पूर्ति । For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिपन्न (भू० क० कृ.) [अभि-+पद्+क्त] 1. समीप | अभिबुद्धिः (स्त्री०) [प्रा० स०] बुद्धीन्द्रिय या ज्ञानेन्द्रिय गया हुआ या आया हुआ, उपागत, की ओर दौड़ा (विप० कर्मेंद्रिय), आंख, जिह्वा,कान, नाक और त्वचा। हुआ या गया हुआ 2. भागा हुआ, भगोड़ा शरणार्थी, अभिभवः [अभि+भू+-अप] 1. हार, पराभव, दमन; 3. पराभूत, पराजित, पीडित, गिरफ्तार किया हुआ, --स्पर्शानुकूला इव सूर्यकान्तास्तदन्यतेजोभिभवाद्वमन्ति पकड़ा हुआ,-कालाभिपन्नाः सीदन्ति सिकतासेतवो ---श०२।७, (जब दूसरी शक्ति के द्वारा आक्रान्त,अवरुद्ध यथा-रामा०, दोष, कश्मल', व्याघ्र आदि 4. या पराभूत हो)-अभिभव: कुत एव सपत्नजः-रघु० भाग्यहीन, संकटग्रस्त, 5. स्वीकृत 6. दोषी। ९।४, 2. पराभूत होना,-जराभिभवविच्छायंअभिपरिप्लुत (वि.) [अभि+परि+प्लु+क्त ] डूबा का० ३४६, आक्रान्त या प्रभावित होना, (ज्वरादिक हुआ, भरा हुआ, बाढ़ग्रस्त, उखड़ा हुआ,-शोक, से) मूर्छित होना 3. तिरस्कार, अपमान,-निरभिक्रोध आदि से। भवसाराः परकथा:-भर्त० २०६४, 4. निरादर, अभिपूरणम् [अभि+प+ ल्युट्] भरना, काबू में लाना। मानभंग,-अलभ्यशोकाभिभवेयमाकृति:-कु० ५।४९, अभिपूर्वम् (अव्य०) [अव्य० स०] क्रमशः । 5. प्रबलता, उद्धब, विस्तार,-अधर्माभिभवात्कृष्ण अभिप्रणयनम् [अभि-प्र-+नी+ल्यट] वेदमंत्रों के द्वारा प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः-भग० ११४१, कि० २।३७ । संस्कार करना। अभिभवनम् [अभि+भू+ल्युट्] हावी होना, पराजित अभिप्रणयः [ अभि+प्र+-नी+अच् ] प्रेम, कृपादृष्टि, करना, जीतना, पराभूत होना।। अरंजन । अभिभावनम् [अभि-भू+णिच+ल्युट] विजयी कराना, अभिप्रणीत (भू०क० कृ०)[अभि+प्र+नी+क्त]I. संस्कार पराजित करने वाला बनाना। किया हुआ,-जज्वाल लोकस्थितय स राजा यथाध्वरे अभिभाविन्-भाव (५) क (वि.) [अभि+भूणिनि, वह्निरभिप्रणीतः-भटि० २४, 2. लायाहुआ। उका वा] 1. पराजित करने वाला, हराने वाला, अभिप्रथनम् [अभि+प्रथ् + ल्युट्] फैलाना,विस्तार करना, जीतने वाला 2. दूसरों से आगे बढ़ने वाला, परमोऊपर से डालना। त्कृष्ट, श्रेष्ठ होने वाला,-सर्वतेजोऽभिभाविना-रघु० अभिप्रदक्षिणम् (अव्य.] [अव्य. स०] दाहिनी ओर । १३१४, कि० १२६ । अभिप्रवर्तनम् [अभि+प्र+वृत्+ ल्युट्] 1. आगे बढ़ना 2. | अभिभाषणम् [अभि+भाष+ल्युट] सम्बोधित करते हुए प्रगमन, आचरण 3. बहना, बाहर आना जैसे पसीने ____ बोलना, भाषण देना। का निकलना। अभिभूतिः (स्त्री०) [अभि+भू+क्तिन्] 1. प्रधानता, अभिप्राप्तिः = दे० प्राप्तिः । प्रभुत्व 2. जीतना, हराना, पराभव,-अभिभूतिभयादअभिप्रायः [अभि-प्र++अच्] 1. लक्ष्य, प्रयोजन, सूनतः सुखमुज्झन्ति न धाम मानिन:-कि० २२०, 3. उद्देश्य, आशय, कामना, इच्छा, अभिप्राया न सिध्यन्ति अनादर, अपमान । तेनेदं वर्तते जगत्--पंच० १११५८, साभिप्रायाणि | अभिमत (भू० क० कृ०) (अभि+मन्+क्त]. इष्ट, वचांसि-पंच २, गम्भीर शब्द, भावः कवेरभिप्रायः 2. अभीष्ट, प्रिय, प्यारा, रुचिकर, वाञ्छनीय-नास्ति अर्थ, भाव, तात्पर्य, या शब्द अथवा किसी परिच्छेद जीवितादन्यदभिमततरमिह जगति सर्वजन्तूनां--३५, का उपलक्षितभाव, तेषामयमभिप्रायः-इस प्रकार का ५८, अभिमतफलशंसी चारु पुस्फोर बाहुः---भट्टि. उनका आशय है, तात्पर्य (परिच्छेद का) 3. सम्मति, १२२७, 2. सम्मत, स्वीकृत, माना हुआ,-न किल विश्वास, 4. संबंध, उल्लेख । भवतां स्थानं देव्या गृहेऽभिमतं ततः- उत्तर० ३१३२, अभिप्रेत (भू० क० कृ०) [अभि+प्र--इ+क्त 1. अर्थ- प्रसिद्धमाहात्म्याभिमतानामपि कपिलकगभुप्रभृतीनां पूर्ण, उद्दिष्ट, साशय, आकल्पित,-अत्रायमर्थोऽभिप्रेतः; -शारी०, सम्मानित, आदृत,---तम् कामना, इच्छा. निवेदयाभिप्रेतम् ---पंच. १, 2. इष्ट, अभिलषित, -तः प्रियव्यक्ति, प्रेमी।। --यथाभिप्रेतमनुष्ठीयताम् -हि०१3. सम्मत, स्वीकृत अभिमनस् (वि.) [प्रा० स०] 1. तुला हुआ, इच्छुक, 4. प्रिय, रुचिकर। आतुर, उत्कंठित,-भवतोऽभिमना: समीहते सरुषः कर्तअभिप्रोक्षणम् [ अभि+प्र+उ+ल्युट् ] छिड़कना, मुपेत्य माननाम्-शि०१६।२,(यहाँ अभी “निश्शंक" छिड़काव। अर्थ को प्रकट करता है)। अभिप्लवः [अभि । प्ल-|-अप] 1. कष्ट, बाधा 2. बाढ़, | अभिमन्त्रणम अभि+मन्त्र+ल्यूट]1 विशेष मंत्रों को पढ़कर उतरा कर बहना। संस्कारयुक्त करना, या पवित्र करना,--याज्ञ० अभिप्लुत (भू० क. कृ०) [अभि-प्लु क्त] पराभूत, ११२३७, 2. सुहावना, मनोहर 3. संबोधित करता, व्याकुल (शा० तथा आलं.)। आमंत्रित करना, परामर्श देना। १० For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७४ ) मभिमरः [अभि+म+अच] 1. हत्या, नाश, वध करना 2. | -आसीताभिमुखं गुरो:-मनु० २।१९३, तिष्ठन्मुनेर युद्ध, संघर्ष 3. अपने ही पक्ष द्वारा विश्वासघात, अपने ही भिमुखं स विकीर्णधाम्न:--कि० २।५९, नेपथ्याभि पक्ष वालों से भय 4. बंधन, कैद, बेड़ी या हथकड़ी। मुखमवलोक्य,---श०१, कणं ददात्यभिमुखं मयि भाषअभिमवः [अभि+मृद्+घञ.] 1. मलना, रगड़, 2. कुच- माणे---०१३१। लना, लूटखसोट, (शत्रु द्वारा) देश का उच्छेद, उजा- | अभियाचनम-याचना अभि-याच्यु च, नङ वा, स्त्रियां डना 3. युद्ध, संग्राम 4. मदिरा, शराब । टाप च] मांगना, प्रार्थना, अनरोध, नम्र निवेदन । अभिमन (वि०) [अभि+म+ल्युद] कुचलने वाला, | अभियातिः, यातिन ----(पं0-ती) शत्रता की भावना के दमन करने वाला, नम कुचलना, दमन करना। साथ पहुंचने वाला- शत्रु, दुश्मन, रधु० १२०४३। अभिमर्श:-र्शनम् [अभि+मश् (प)+घञ, ल्युट् वा] अभियात-पायिन् (वि.) अभि+या+तच, णिनि वा] अभिमर्ष:-र्षण 1. स्पर्श, संपर्क 2. अभ्याघात, हिंसा, निकट जानेवाला, आक्रमण करने वाला। बलात्कार, संभोग,--कृताभिमर्शामनुमन्यमान:--. अभिगानम् अभि+मा+ल्पद] 1. उपागमन 2. चढ़ाई ५।२०, इन्द्रियासक्ति के कारण किया गया आलिंगन करना, धावा बोलना,आक्रमण करना,----रणाभियानेन अथवा सतीत्व भ्रष्ट करना या बलात्कार,-पराभिमझे ---दश० १०, युद्ध के लिए प्रस्थान । न तवास्ति कु० ५।४३ (मल्लि. परधर्षणम्) मनु० | अभियक्त (भः क० कृ०) (वि.) [अभि+ यजक्त ८।३५२, याज्ञ० २।२८४ । i.(क) व्यस्त, लगा हुआ, लीन, जुटा हुआ (ख) परिअभिमर्शक-धक (वि.) [अभिमश्()+-वल, णिनि श्रमी, धैर्यवान्, दुहराकल्प वाला, तुला हुआ, दत्तचित्त, अभिमशिन-बिन वा] 1. स्पर्श करने वाला, संपर्क में आने सावधान, .. इदं विश्वं पाल्यं विधिवदभियुकतेन मनसा वाला, 2. बलात्कार करने वाला, त्वत्कलवाभिमर्षी --उत्तर० ३.३०, 2. सुविज्ञ, दक्ष,---यात्रार्थेवभिवैरास्पदं धनमित्रः-दश० ६३ । युक्तानां पुरुपाणां-त्रुमारिल 3. (अतः) विद्वान्, अभिमादः [अभि+म+घा] नशा, मादकता। सुप्रतिष्ठित, सुयोग्य न्यायाधीग, पण्डित (पं० ---इसी अभिमानः [अभि+मन+घञ] 1. गौरव, स्वाभिमान, | अर्थ में) न हि शक्यते दैवमन्यथाकर्तुमभियतेनापि सम्माननीय या योग्य भावना, -सदाभिमानकधना: -~~-का०६२, 4. आक्रान्त, लिस पर हमला कर दिया हि मानिन:-शि० ११६७, 2. अहंकार, घमंड, दर्प, गया हो,-अभियुक्तं त्वयनं ते गन्त रस्त्यामतः परे.अहंमन्यता, बत् घमंडी, गर्वीला 3. सभी पदार्थों को शि० २।१०१, मुद्रा० ३।२५, 5. जिस पर अभियोग आत्मा से संकेतित करना, अहंकार की क्रिया, व्यक्तित्व, लगाया गया हो, जिस पर दोषों का आरोपण किया 4. कल्पना, अवधारणा, अटकल, विश्वास, सम्मति गया हो, अभ्गारोपित, - मृच्छ० ९।९, अभियोजित, 5. स्नेह, प्रेम 6. इच्छा, कामना 7. चोट पहुँचाना, प्रतिबादी,-अभियक्तोऽभियोगस्य यदि कुर्यादपलवमहत्या करना, चोट पहुँचाने का प्रयत्न करना। सम० नारद०6. नियुक्त । -शालिन् (वि.) घमंडी---शम्य (वि०) गर्न या घमंड | अभियोक्म (वि०) अभि-|-युज+तच्] आक्रमण करन से रहित, विनीत । वाला, हमला करने वाला, दोपारोपण करने वाला, अभिमानिन् (वि.) [अभि+मन+णिनि] 1. आत्मानि (पुं०-क्ता) 1. शत्रु, आक्रमणकारी, आशान्ता मानी 2. अहंमन्य, घमंडी, गर्वीला, दम्भी 3. सभी 2. (विधि में) आरोगक, वादी, मुद्दई, अभियोजक, पदार्थों को आत्मा से संकेतित मानने याला । मनु०८1५२, ५८, याज्ञ० २१९५, 3. पिथ्याभियोगी। अभिमुख (वि०)[स्त्री०-खी] 1. जो किसी की ओर मुख । अभियोगः [अभि+ यूज् +घञ] 1. लगात, लगन, मेल किये हुए हो, की ओर, किसी की ओर मड़ा हुआ, सामने, जोल,-गुरुचर्या-तपस्तन्यमन्त्रयोगाभियोगजाम-मा०९। -अभिमुखे मयि संहृतमोक्षितम् कार २।११, 2. पास ५१, चौर० ११, 2. घना लगाव, धीरज, प्रबल, आने वाला, समीप जाने वाला, निकट पहुँचने वाला, प्रयास,...संत: स्वयं परहितेय कृताभियोगाः ---भत० --विक्रम० २।९ 3. विचार करते हुए, प्रवृत्त, उद्यत २२७३, 2. (क) किसी चीज को सीखने की लगन, (कुछ करने के लिए)-अस्ताभिमुखे सूर्य-मद्रा० - कस्यां कलायाभियोगो भात्यो: ---मालवि० ५,(ख) २११९, प्रसादाभिमुखो वेधाः प्रत्युताच दिवौकसः कु० सीखना, विद्वत्ता,--अभियोगश्च शब्दादेरशिष्टानाम् १।१६, ५६०; उत्तर० ७१४, मा० १०११३. 4. अभियोगश्चेतरेषाम् भवरस्वामी 4. सामाभण हमला, अनुकुल, अनुकूलतापूर्वक सम्पन्न 5. मुंह ऊपर को चढ़ाई (किसी देश या नगर गर),--शुभितं उठाये हुए,-खं-खे (अव्य०) को ओर, दिशा में वनगोचराभियोगात् कि० १३।१०, २।४६, 5. सामना करते हुए, के सामने, की उपस्थिति में, के (विधि में) आरोप, दोषारोपण, पूर्वपक्ष-अभियोगनिकट (कर्म० या संव० के साथ अथवा समास में) | मनिस्तीर्य नैनं प्रत्यभियोजयेत्---यात. १५ । For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( अभियोग (वि० ) [ अभि + युज् + णिनि ] मनोयोग पूर्वक 3. दोषारोपण करने वाला (पुं०) वादी, मुद्दई । अभिरक्षणम् ) [ अभि + र + ल्युट्, अङ वा ] सब ओर अभिरक्षा से बचाव, पूरा २ बचाव, - प्रशान्तबाधं दिशतोऽभिरक्षया कि० १११८ । ७५) अभिरत: ( स्त्री० ) [ अभि + म् + क्तिन्] आनन्द, हर्ष, संतोष, आसक्ति, लगन, मृगयाभिरतिनं दुरोदरम् ( तमपाहरत् ) रघु० ९७, कि० ६ ४४ । अभिराम ( fro ) [ अभि० + रम् + ञ] 1. आनन्दकर, हर्षपूर्ण, मधुर, रुचिकर - मनोभिरामाः (केकाः ) रघु ० १।३०, २०७२, 2. सुन्दर, सुहावना, मनोहर, मनोरम, - स्यादस्थानोपगतयमुनासङ्गमेवाभिरामा - मेघ ०५३, राम इत्यभिरामेण वपुषा तस्य चोदितः -- रघु० १०।६७, – मन् ( अव्य० ) सुन्दर रीति से ग्रीवा - भङ्गाभिरामं श० १७ अभिरुचिः (स्त्री) [ अभि + रुच् + इन्] 1 इच्छा, शौक, पसंदगी, रस, हर्ष, आनन्द, - यशसि चाभिरुचिः - भर्तृ० २/६३, परस्पराभिरुचिनिष्पन्नो विवाहः - का० २६७, 2. यश की इच्छा, महत्त्वाकांक्षा । अभिरचितः [ अभि + रुच् +क्त] प्रेमी, शि० १०१६८ । अभिचतम् [अभि+रु+क्त] ध्वनि, चिल्लाहट, कोलाहल । अभिरूप ( वि० ) [ अभि + रूप + अच् ] 1. अनुरूप, समनु रूप, उपयुक्त -- अभिरूपमस्या वयसो वल्कलम् - श० १. पाठ०, 2. सुखद, हर्षपूर्ण, उत्कृष्टायाभिरूपाय वराय सदृशाय च (कन्यां दद्यात्) मनु० ९१८८, 3. प्रिय, प्यारा, इष्ट, कृपापात्र 4. विद्वान्, वुद्धिमान्, समझदार, - अभिरूपभूयिष्ठा परिषदियम् - श० १,पः 1 चन्द्रमा, 2 शिव 3 विष्णु 4 कामदेव | सम० - पतिः 'रूचि के अनुकुल सुन्दर पति प्राप्त करना', नाम का एक संस्कार जो परलोक में अच्छा पति पाने की इच्छा से किया जाता है— मृच्छ ० १ । अभिलङ्घनम् [ अभि + लंघ् + ल्युट् ] कूद कर पार करना, छलांग लगाना । अभिलषणम् [अभि + प् + ल्युट् ] इच्छा करना, चाहना । अभिलषित (भू० क० कृ० ) [ अभि + लष् + क्त ] इच्छित चाहा हुआ, उत्कंठित, तम् इच्छा, कामना, संकल्प । अभिलापः | अभि + लप्+घञ ] 1. कथन, शब्द, भाषण 2. घोषणा, वर्णन, विशेष विवरण 3. किसी धार्मिक कर्तव्य या किसी उद्देश्य की प्रतिज्ञा की उद्घोषणा । अभिलावः [अभि + लू+घञ ] काटना, कटाई, लवन । अभिलाषः [ कई बार सः] [अभि + लब् + घञ ] इच्छा, कामना, उत्कंठा, अनुराग, प्रियतम से मिलने की उत्कंठा, प्रेम ( प्राय: अधि० के साथ) - अतोऽभिलाषे प्रथमं तथाविधे मनो बबंध - रघु० ३१४, न खलु सत्यमेव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच० ५। ६७ । शकुन्तलायां ममाभिलाषः -- श० २, ( वि० ) [ अभि + लब् + va, f, उकवा ] कामना या इच्छा करने वाला, (कर्म० अधि० के साथ या समास में) चाहने वाला, लालायित, लालची, - यदार्यमस्याभिलाषि मे मनः-- श० १।२२, जयमत्रभवान् नूनमरातिष्वभिलाषुकः -- कि० ११।१८, शि० १५/५९ । अभिलिखित ( वि० ) [ अभि + लिखु +क्त] लिखा हुआ, खुदा हुआ --तम, अभिलेखनम् 1. लिखना, खोदना 2. लेख । अभिलाषक, लाथि (सि) न् } - लाघुक अभिलीन ( वि० ) [ अभि + ली+क्त] 1. चिपटा हुआ, सटा हुआ, आसक्त, रघु० ३।८ 2. आलिंगन किये हुए, ढकते हुए --- मेघ० ३६ । अभिललित ( वि० ) [ अभि + लुड् + क्त डस्य ल: ] 1. क्षुब्ध, बाधायुक्त 2. क्रीडा युक्त, अस्थिर । अभिलूता ( प्रा० स० ) एक प्रकार की लकड़ी । अभिवदनम् [ अभि + वद् + ल्युट् ] 1. संबोधन 2. नमस्क्रिया । अभिवन्दनम् [अभि + बन्द् + ल्युट् ] सादर नमस्कार, पाद श्रद्धा और भक्ति के साथ दूसरों के चरण स्पर्श करना, नीचे दे० 'अभिवादन' । अभिवर्षणम् [अभि + वृष् + ल्युट् ] बारिस होना, बरसना, पानी पड़ना । अभिवाद: -- वादनम् [अभि + बद् + घा, युट् वा ] सस म्मान नमस्कार, छोटों के द्वारा बड़ों को प्रणाम, शिष्य के द्वारा गुरु को प्रणाम इसमें तीन बातें निहित हैं(१) प्रत्युत्थान -- अपने स्थान से उठना ( २ ) पादोपसंग्रह: -- पैर पकड़ना या छूना ( ३ ) अभिवाद - 'प्रणाम' शब्द मुंह से कहना - जिसमें अभिवाद्य व्यक्ति की उपाधि तथा अभिवादक का नाम - ब है । अभिवावक ( वि० ) [ स्त्री -- विका] 1. नमस्कार करने वाला, 2. नम्र, सम्मान पूर्ण, विनीत । अभिविधि [ अभि + वि + धा+कि] 1. पूरा सम्मिलन या संबोध, 'आ' का एक अर्थ -- आज मर्यादाभिविध्योः -- पा० २।१।१३ आरंभिक सीमा ( 'अन्तिम सीमा' का विरोधी), इसका अनुवाद 'से' 'के साथ' 'मिलाते हुए' शब्दों से किया जाता है उदा० -- आबालम्= आबालेभ्यः हरिभक्तिः, 2. पूर्ण प्रसार । अभिविश्रुत (वि० ) [ अभि + वि + श्रु+क्त] सुविख्यात, सुप्रसिद्ध । अभिवृद्धि: (स्त्री० ) [ अभि + वृध् + क्तिन्] बढ़ना, विकास, योग, सफलता, सम्पन्नता । अभिव्यक्तः (भू० क० कृ० ) [ अभि० + वि + अंजू +क्त] 1. प्रकट किया हुआ, प्रकाशित, उद्घोषित 2. विविक्त, स्पष्ट, साफ 1 For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाद अभिव्यक्तिः (स्त्री०)[अभि+वि+अंज+क्तिन्] (कारण | अभिशोधनम् [अभि+शुच् + ल्युट्] अत्यंत शोक या का कार्य रूप में) प्रकट होना, वैशिष्ट्य, दिखावा, पीडा, कष्ट । प्रदर्शन, सर्वांगसौष्ठवाभिव्यक्तये--मालवि. १, अभिश्रवणम् अभि+श्रु+ ल्युट श्राद्धके अवसर पर बैठे हुए तीसंप्रेषणार्या भावाभिव्यक्तिरिष्यते--सा.द.६। ब्राह्मणों द्वारा वेदमंत्रों का पाठ । अभिव्यञ्जनम् [अभि+वि+अज-+ ल्युट] प्रकट करना, | अभिषङ्गः-सङ्गः [अभि+पंज्+घञ्] 1. पूरा संपर्क या प्रकाशन करना। मेल, आसक्ति, संयोग 2. हार, वैराग्य, पराजय,-- अभिव्यापक, व्यापिन (वि.) [अभि+वि.+आप+ जाताभिषङ्गो नपति:-रघु० २।३०, 3. अचानक आया ण्वुल, णिनि वा] सम्मिलित करने वाला, समझने हुआ आघात, शोक, दुःख, संकट या दुर्भाग्य-ततोऽ वाला, प्रसार करने वाला। भिषङ्गानिलविप्रविद्धा-रघु० १४१५४, ७७, जडं अभिव्याप्तिः (स्त्री०)अभि+वि+आप+क्तिन् सम्मि विजज्ञिवान् – रघु० ८१७५, 4. भूत प्रेतादिक से लित करना, संबोध, सर्वत्र फैलाव । आविष्ट होना,-अभिधाताभिषनाभ्यामभिचाराभिशाअभिव्याहरणम्,-व्याहारः [अभि+वि+आ+-+ पतः- माघ 5. शपथ 6. आलिंगन, संभोग 7. अभिल्युट्, घञ् वा] 1. बोलना, उच्चारण करना, कसना शाफ, कोसना, दुर्वचन कहना 8. मिथ्या दोषारोपण, 2. प्रांजल तथा सार्थक शब्द, संज्ञा, नाम । बदनामी या लांछन 9. घृणा, अनादर । अभिशंसक, शंसिन (वि०)[अभि+शंस-+ण्वुल, णिनि वा] | अभिषजनम -तु० अभिषंगः । दोषारोपक, कलंक लगाने वाला, अपमान करने वाला। अभिषवः अभि++अप] 1. सोमरस निचोड़ना, 2. अभिशंसनम् [अभि-+शंस् + ल्युट] दोषारोपण, दोष लगाना शराब खींचना 3. धार्मिक कृत्यों या संस्कारों से पूर्व किया जाने वाला स्नान या, आचमन 4. स्नान या (चाहे सत्य हो या मिथ्या) मिथ्या--याज्ञ० २८९, आचमन 5. यश,-वम् कांजी। गाली, अपमान, निरादर,-पंचाशद् ब्राह्मणो दण्ड्य: क्षत्रियस्याभिशंसने-मनु०८।२६८। अभिषवणम् अभि++ ल्युट स्नान । अभिशङ्का [अभि-+-शक्+अ+टाप्] संदेह, आशंका, अभिषिक्त (भू०००) [अभि-+-सिच् + क्त] 1. छिड़का भय, चिन्ता। हुआ, आर्द्र किया हुआ, सङ्गे पुनर्वहुतराममृताभिषिअभिशपनम,---शापः [अभि+शप+ल्युट, घा वा] 1. क्ताम् --चौर० २९, 2. जिसका अभिषेक हो चुका हो, प्रतिष्ठापित, पदारूढ़। शाप, किसी का बुरा मनाना 2. गंभीर आरोप, दोषा अभिषेकः [अभि-सिच- घन] 1. छिड़कना, पानी के रोपण-याज्ञ० २।९९, अभिशापः पातकाभियोग:-मि० छींटे देना 2. राज्यतिलक करना, राजा या मूति 3. लांछन, मिथ्या आरोप। सम.---ज्वरः शाप के आदि का जलसिंचन द्वारा प्रतिष्ठापन, 3. (विशेषतः) उच्चारण से उत्पन्न होने वाला बुखार । राजाओं का सिंहासनारोहण, प्रतिष्ठापन, पदारोहण, अभिशम्बित (वि.) [ अभि+शब्द+क्त ] उद्घोषित, राज्यतिलक संस्कार, अथाभिषेक रघुवंशकेतोःप्रकाशित, कथित, नाम लिया हुआ । रघु० १४१७, 4. प्रतिष्ठापन के अवसर पर काम अभिशस्त (भू० क० कृ०)अभि-+शंस+क्त]1. कलंकित, आने वाला पवित्र जल,-- रघु० १७.१४, 5. स्नान, अभिशप्त, अपमानित-मनु०८।११६, ३७३, याज्ञः आचमन, पवित्र या धर्मस्नान,-अभिषेकोत्तीर्णाय १११६१, 2. चोट पहुंचाया हुआ, क्षतिग्रस्त, आक्रान्त काश्यपाय-श०४, अत्राभिषेकाय तपोधनानाम् - ('अभिशस्' से बना समझा गया), देवि ! केनाभिश रघु०१३।५१ 6. उस देवता पर जल छिड़कना जिसकी स्तासि केन बासि विमानिता--रामा० 3. अभिशप्त पूजा की जा रही है। सम० -- अहः राजतिलक का 4. दुष्ट, पापी। दिवस, --- शाला राज्याभिषेक का मंडप । अभिशस्तक (वि०)[अभिशस्त+कन्] मिथ्या दोषारोपित, अभिषेचनम् [अभि+सिच् + ल्युट 1. जल छिड़कना 2. बदनाम। राजतिलक, राज्यप्रतिष्ठापन ।। अभिशस्तिः (स्त्री०) [अभि+शंस+क्तिन्] 1. अभि अभिषेणनम् [सेनया सह शत्रोः अभिमुखं यानम्-इतिशाप, 2. दुर्भाग्य, अनिष्ट, संकट 3. निदा, लांछन, अभि+सेना+णिच्+ल्युट्] शत्रु पर चढ़ाई करने बदनामी, अपमान 4. पूछना, मांगना । के लिए कूच करना, शत्रु का मुकाबला करना । अभिशापनम् [अभिशप+णि+ल्यूट] शाप देना, अभिषेणयति (ना० घा०) (सेना के साथ) कूच करना, कोसना। आक्रमण करना, सेना द्वारा शत्रु का मुकाबला अभिशीत (वि.) [अभि+श्य+क्त शीतल, ठंडा जैसा करना,---क: सिंधुराजमभिषेणयितुं समर्थः---वेणी० कि वायु । २।२५, शि० ६.६४ । For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिष्टवः [अभि+स्तु+अप्] प्रशंसा, स्तुति । । अभिसम्बन्धः [अभि+सम्+बन्ध+घा] संबंध, रिश्ता, अभिष्यं (स्य) दः [अभि+स्यन्द्+घञ] 1. स्राव, बहाव, । संयोजन, संपर्क, मैथुन-मनु० ५/६३ । टपकना 2. आंख आना 3. अतिवृद्धि, अतिरेक, | 'अभिसम्मुख (वि.) [प्रा० ब०J संमुख होने वाला, सामने आधिक्य, अतिरिक्त भाग, स्वर्गाभिष्यन्दवमनं कृत्वे- ___खड़ा हुआ, सम्मान की दृष्टि से देखने वाला। वोपनिवेशितम् (ओषधिप्रस्थम्) कु. ६।३७, अति- | अभिसरः [अभि+सृ+-अच्] 1. अनुगामी,अनुचर,2. साथी। रिक्त जनसंख्या को दूर करके, अर्थात् उत्प्रवासन | अभिसरणम् [अभि+स+ल्युट्] 1. उपागमन, मुकाबला द्वारा-तु०-रघु० १५।२९।। करने के लिए जाना, 2. सम्मिलन, संकेतस्थान, नायक अभिष्वङ्गः [अभि+स्व+घञ्] 1. संपर्क 2, अत्यधिक या नायिका द्वारा मिलने का स्थान नियत करना आसक्ति, प्रेम, स्नेह, -विद्यास्वभिष्वंगः-दश०१५५, त्वदभिसरणरभसेन वलन्ती पतति पदानि कियन्ति अहो अभिष्वङ्गः-मा० १। चलन्ती-गीत०६। अभिसंधयः [अभि+सम्+श्रि+अच] शरण, आश्रय । | अभिसर्गः [अभि+सृज+घञ] सृष्टि, रचना । अभिसंस्तवः [अभि-सम्+स्तु+अप्] महती प्रशंसा ।। अभिसर्जनम् [अभि+सृज+ल्युट्] 1. उपहार, दान 2. अभिसंतापः [अभि-+सम्+तप्+घञ] युद्ध, संग्राम, हत्या । __ संघर्ष-जन्यं स्यादभिसन्ताप: -हला। अभिसर्पणम् [अभि+सुप+ल्युट] उपागमन, मुकाबला अभिसन्देहः [अभि+सम्+दिह+घा] 1. विनिमय, 2. ____ करने के लिए शत्रु के निकट जाना। जननेन्द्रिय । अभिसा (शा)त्वः,-त्वनम् [अभि+सान्त्व+घञ, ल्युट् अभिसन्धः-धकः [अभि-+सम्+धा+क, स्वार्थे कन् च] वा] सुलह, समझौता, ढाढस, तसल्ली। 1. धोखा देने वाला, वंचक, 2. निन्दक, लांछन | अभिसायम् (अव्य०) [अव्य०स०] सूर्यास्त के समय, संध्यालगाने वाला। समय-श्रितोदयारभिसायमुच्चकैः-शि० १११६ । अभिसन्धा [अभि+सम्+घा+अ+टाप] 1. भाषण, । अभिसारः [अभि+सृ+घा] प्रिय से मिलने के लिए उद्घोषणा, शब्द, कथन, प्रतिज्ञा,-तेन सत्याभिसन्धेन जाना, (मिलन स्थान) नियत करना या स्थिरकरना, त्रिवर्गमनुतिष्ठता-रामा०, वचन का पालन करने -रतिसूखसारे गतमभिसारे मदनमनोहरवेशम-गीत०५, वाला, 2. धोखा। २. वह स्थान जहाँ नायक नायिका नियत समय पर अभिसन्धानम् अभि+सम्+घा+ल्युट] 1. भाषण, शब्द, मिलते हैं, संकेतस्थल,-त्वरितमपैति म कथमभिसारम सोद्देश्य उद्घोषणा, प्रतिज्ञा, · सा हि सत्याभिसन्धाना- गीत० ६, 3. हमला, आक्रमण, --श्वोऽभिसारः पुरस्य रामा०, 2. ठगना, धोखा देना - पराभिसन्धानपरं न:--रामा०। सम-स्थानम् मिलने के लिए उपयद्यप्यस्य विचेष्टितम्-रघु० १७७६ 3. उद्देश्य, युक्त स्थान, दे० 'अभिसारिका' के नीचे। इरादा, प्रयोजन-अन्याभिसन्धानेनान्यवादित्वमन्यक- अभिसारिका [अभि+स+ण्वल+टाप] वह स्त्री जो अपने र्तृत्वं च-मिता० 4. सन्धि करना। प्रिय से मिलने जाती है, या उसके द्वारा नियत संकेत अभिसन्धायः =अभिसंधि । का पालन करती है कु० ६।४३, रघु० १६।१२, अभिसन्धिः अभि+सम्+धा+कि] 1. भाषण, सोद्देश्य -कान्तार्थिनी तु या याति सङ्कतं साभिसारिका-अमर० उद्घोषणा, प्रतिज्ञा 2. इरादा, लक्ष्य, प्रयोजन, उद्देश्य सा० द. निम्नांकित ८ स्थान नायक नायिकाओं के 3. निहितार्थ, अभिप्रेत अर्थ, जैसा कि-अयमभिसंधिः मिलने के लिए निर्धारित करता है (१) खेत (२) (व्याख्यात्मक सूचियों में बहुधा प्रयुक्त) 4. सम्मति, बाग (३) भग्न मंदिर (४) दूती का घर (५) विश्वास 5. विशेष अनुबंध, अनुबंध की शर्ते, प्रति- जंगल (६) तीर्थ स्थान (७) श्मशानभूमि (८) बंध, करार। नदीतट, क्षेत्र वाटी भग्नदेवालयो दूतीगृहं बनम्, अभिसमवायः [अभि+सम्+अव+इ+अच्] एकता। मालयं च श्मशानं च नद्यादीनां तटी तथा । अभिसम्पत्तिः (स्त्री०) अभि+सम्+पद्-क्तिन] पूर्ण | अभिसारिन् (वि.) [अभि+स-णिनि मिलने, दर्शन रूप से प्रभावित होना, अपने मत को बदल देना, करने, आक्रमण करने, जाने वाला; जल्दी से बाहर परिवर्तन, बदल जाना। जाने वाला-युद्धाभिसारिणः-उत्तर० ५,-णी अभिसम्परायः [अभि+सम्+परा+:+अच्] भविष्यत् | =दे० ऊपर अभिसारिका। काल। अभिस्नेहः [अभि:+स्निह +घा] आसक्ति, अनुराग, अभिसम्पातः अभि+सम्+पत+पा]1. इकट्ठे मिलना, प्रेम, इच्छा, यः सर्वत्रानभिस्नेहः-भग० २।५७ । समागम, संगम 2. युद्ध, संग्राम, संघर्ष, 3. अभि- अभिस्फुरित (वि.) [अभि+स्फुर+क्त] पूर्ण रूप से शाप । फैला हुआ, पूर्ण विकसित (जैसे कि फूल)। For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( अभिहत ( वि० ) [ अभि + न् +क्त] प्रहृत ( आलं से भी) पीटा गया, आहत, घायल किया गया --- घाराभिरात इवाभिहतं सरोजं मालवि० ५ 2. जिस पर प्रहार किया गया है, अभिभूत शोक, काम, दुःख 3 बाधामय 4. गुणित | अमरु० २, पराभूत, ( गण ० ) अभिहतः (स्त्री० ) [ अभि + न् + क्तिन् ] 1. प्रहार करना, पीटना, चोट पहुँचाना 2. ( गण० ) गुणन, गुणा । अभिहरणम् [अभि + हृ + ल्युट् ] 1. निकट लाना, जाकर ७८ | लाना -- रघु० ११/४३, 2. लूटना । अभिवः | अभि + + अ ] 1. आवाहन आमंत्रण 2. पूर्ण रूप से यज्ञानुष्ठान 3. यज्ञ, बलिदान । अभिहारः [ अभि + ह् + घन्] 1 ले जाना, लूट लेना, चुरा लेना 2. हमला, आक्रमण 3. शस्त्रास्त्र से सुसज्जित करना, वस्त्र ग्रहण करता । अभिहास: [ अभि + स् +घञ् । दिल्लगी, मजाक, विनोद | अभिहित (भू० क० कृ० ) [ अभि + धा+क्त] 1. कहा गया, बोला गया, घोषित किया गया, 2. संबोधित किया गया, पुकारा गया । सन० - अन्ययवादः, -- वादिन् (पुं०) नैयायिकों का एक विशेष प्रकार का सिद्धान्त ( या उस सिद्धांत के अनुयायी) । इस सिद्धान्त के अनुसार नैयायिकलोग मानते हैं कि शब्द स्वतंत्र रूप से अपना अर्थ रखते हैं, जो बाद में वाक्य में प्रयुक्त होने पर एक संयुक्त विचार को अभिव्यक्त करते हैं, दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह वाक्य के शब्दों का तर्कसंगत संबंध ही है जो वाक्य के अभीष्ट अर्थ को प्रकट करता है न कि शब्दों का केवल अपना भाव । अतः वे 'तात्पर्यार्थ' में विश्वास रखते हैं जो कि वाच्यार्थ से भिन्न है- काव्य. २ । अभिहोम: [ प्रा० स०] घी की आहुति देना । अभी (वि० ) [ न० ब० ] निर्भय, निडर, रघु०९/६३, १५/८/ अभीक ( दि० ) [ अभि + कन् दीर्घः] 1. प्रबल इच्छा रखने वाला, आतुर 2. कामुक विषयासक्त, विलासी - मेदस्विनः सरभसोपगतानभीकान् - शि० ५१६४, 3. निर्मय, निडर । अभीक्षण (वि० ) [ अभि + गुड, दीर्घः] 1. दुहराया हुआ, बार २ होने वाला 2. सतत निरन्तर 3. अत्यधिक, - क्षणम् (अव्य० ) 1. बारंबार, पुनः पुनः 2. लगातार 3. अत्यंत बहुत अधिक । अभीघात = तु० अभिघात । अभीप्सित (वि० ) [ अभि + आप् +त्+] चाहा हुआ अभीष्ट, तम् कामना, इच्छा । | | अ ) (वि० ) [ अभि + आ + न् + नि, उवा ] अभीप्सु इच्छुक, प्राप्त करने की इच्छा वाला । अभी: [ अभिमुखीकृत्य ईश्यति गाः, अभि + ईर् +अच्] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. अहीर, गोपाल, गड़रिया 2. ग्वाला, (दे० आभीर) । सम० - पल्ली ग्वालों का गाँव । अशाप: [ अभि + प् + घञ ] कोसना, दे० अभिशाप । अभीशुः - बु: [ अभि + अश् + उन् पृषो० अत इत्वम्-अभि + इष् + कुवा] 1. वागडोर, लगाम- तेन हि मुच्यन्तामभीराव:- श० १, 2. प्रकाशकिरण - प्रफुल्लतापिच्छनिभैरभीषुभि: शि० ११२२, 'नन् अत्युज्वल, अत्युत्तम 3. इच्छा 4. आसक्ति । अभीषङ्गतु० अभिषंग । अभीष्ट (भू० क० कृ० ) [ अभि + इ + क्त ] 1. चाहा हुआ, इच्छित 2. प्रिय, कृपापात्र, प्रियतम -ष्टः प्रियतम, ष्टा गृहस्वामिनी, प्रेमिका-ष्टम् 1. अभीष्ट पदार्थ 2. रुचिकर पदार्थ - अन्यस्मै हृदयं देहि नानभीष्टे घटामहे - भट्टि० २०/२४ । अभुग्न ( वि० ) [ न० त०] 1. जो झुका हुआ या टेढ़ा मेढ़ा न हो, सीधा 2. स्वस्थ, रोगमुक्त । अभुज ( वि० ) [ न० ब० ] बाहुरहित, लूला । भुजिष्या [न० त०] जो दासी या सेविका न हो, स्वतन्त्र स्त्री | अभूः [न० त०] विष्णु, जो पैदा न हुआ हो । अभूत ( जि० ) [ न० त०] सत्ताहीन, जो हुआ न हो, अविद्यमान, अवास्तविक, मिथ्या । सम० - आहरणम् अवस्तु कथन, कपटपूर्ण वा व्यंगमय बात कहना, --तद्भावः जो पहले विद्यमान न हो उसका होना, या बनना, या बदलना अभूततद्भावे च्विः, अकृष्णः कृष्णः संपद्यते तं करोति कृष्णीकरोति - सिद्धा० तु० पयोघरीभूतचनुः समुद्राम् - रघु० २०३, पूर्व ( वि० ) जो पहले न हुआ हो, जिससे आगे कोई न बढ़ा होअभूत 'व राजा चिंतामणिर्नाम, वासव० १, देणी ० ३२, प्रादुर्भावः जो पहले न हुआ हो उसका प्रकट होना, शत्रु (वि०) शत्रुहीन, जिसका कोई शत्रु न हो । अभूति: ( स्त्री० ) [ न०त०] 1. सता हीनता, अविद्यमा जनता 2. निर्धनता । अभूमिः (स्त्री० ) [ न० त०] 1. भूमि का न होना, भूमि को छोड़कर अन्य कोई पदार्थ, 2. अनुपयुक्त स्थान या पदार्थ, अनुचित स्थान - अभूमिरियमविनयस्य श० ७, स खलु मनोरथानामप्यभूमिविसर्जनावसरसंस्कार: त०] मेरी आशाओं से बहुत अधिक आगे बढ़ा हुआ -- ० ११४२ । अभृत, अभूत्रिम (fro ) [ न० त०] 1. जिसका भाड़ा न दिया गया हो 2. जिसको समर्थन प्राप्त न हो । अछेद ( वि० ) [ न० ०] 1. अविभक्त 2. समरूप, वही --द: [न० त०] 1. भिन्नता का अभाव, समरूपता या समानता का होना, तद्रूपकमभेदो व उपमानोपमे For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ' ७९ ययो: -- काव्य० १०, 2. धनिष्ट एकता- इच्छताँ सह वधूभिरभेदम् - कि० ९।१३, हि० ३।७९, आशास्महे विग्रयोरभेदम् - भर्तृ० १२४ ॥ अभेद्य ) ( वि० ) [ न० त०] 1. जो वेधा न जा सके 2. अभेदिक) अविभाज्य -- यन् हीरा । अभोज्य ( वि० ) [ न० त०] 1. खाने के अयोग्य, भोजन के लिए निषिद्ध, अपवित्र - 'अन्न (वि०) जिसका भोजन दूसरों के लिये खाने के अनुपयुक्त हो । अभ्यग्र ( वि० ) ( ब० स० । 1. निकट, समीप 2. ताजा, नया इदं शोणितमभ्यत्रे संप्रहारेऽच्युतत् तयो:महा०, सन सामीप्य, सान्निध्य । अभ्यङ्क (वि० ) [ प्रा० रा० ] हाल ही का चिह्नित । अभ्यङ्गः [अभि + अ + 1. किसी तेल या चिकने पदार्थ को शरीर पर मलना, तेल की मालिश-अभ्यङ्गनेपथ्यमलञ्चकार - कु० ७1७, 2. मालिश, लेप, 3. उबटन । अन्यञ्जनम् [अभि + अ + ल्युट् ] 1. चिकने पदार्थों को शरीर पर मलना, 2. मालिश करना 3. आंखों में काजल डालना 4. चिकना पदार्थ, तेल, उबटन | अभ्यधिक ( वि० ) [प्रा० स०] 1. अपेक्षाकृत अधिक 2. बढ़ चढ़ कर, गुण या परिमाण में अपेक्षाकृत अधिक, अधिक ऊँचा, अधिक बड़ा- नत्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्य:- भग० १११४३, (कई बार अपा० और करण० के साथ ) -धान्यं दशभ्यः कुम्भेम्यो हरतोऽभ्यधिक पध: - मनु० ८०३२०, 3. सामान्य से अधिक, असाधारण, प्रमुख भव पंचाभ्यविकः श० ६।२ । अभ्यनुज्ञा - ज्ञानम् (अभि + अनू+ज्ञा + अ + टाप्, ल्युट् वा] 1. स्वीकृति, 2. सहमति, अनुमति कृताभ्यनुज्ञा गुरुणा गरीयसा कु० ५७, रघु० २।६९ 2. आज्ञा, आदेश 3. छुट्टी स्वीकार करना, बर्खास्त करना 4. तर्क को स्वीकार करना । अभ्यन्तर ( वि० ) [ प्रा० स०] 1. भीतरी भाग, आन्तरिक, अन्दरूनी ( विप० बाह्य) रघु० १७१४५, का० ६६, याज्ञ० ३।२९३, 2. अन्तर्गत होना, किसी समूह या शरीर का एक अंग - देवी परिजनाभ्यन्तरः मालवि० ५, 3. दीक्षित, परिचित, कुशल (अधि० के साथ या समास में ) - सङ्गीतकेऽभ्यन्तरे स्वः- मालवि० ५, अहो प्रयोगाभ्यन्तरः प्रानिकः --- मालषि० २, 4. निकटतम, घनिष्ट, अत्यन्त संबद्ध -- त्यक्ताश्चाभ्यन्तरा येन पंच० १२५९ - रम् 1. भीतर का, भीतरी, अन्दर का, ( किसी वस्तु का ) अन्दरूनी भाग, भीतरी स्थान शममिवाभ्यन्तरलीन पावकाम् रघु० ३1९, भग० ५।२७, 2. सम्मिलित किया हुआ स्थल, समय या स्थान का अवकाश - षण्मासाभ्यन्तरे पंच० ४, 3. मन । सम० - करण ( वि० ) अन्दर ही अन्दर गुप्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगों वाला, प्रत्यक्षज्ञान की शक्ति को अन्दर रखने वाला, विक्रम० ४, कला गुप्त कला, प्रेम लीला या हावभाव प्रदर्शित करने को कला । अभ्यन्तरः [ अभ्यन्तर + कन् ] घनिष्ट मित्र । अभ्यन्तरीक [ अभ्यन्तर+च्चि + कृ ) ( तना० उभ० ) 1. दीक्षित करना, परिचित करना--- प्रागल्भ्याद्वक्तुमिच्छन्ति मन्त्रेष्वभ्यन्तरीकृता :- रामा० 2. परिचय कराना सर्वविभेषु अभ्यन्तरीकरणीया - का० १०१, दश० १५९, १६२, 3. किसी को निकटमित्र बनानावाह्याश्वाभ्यन्तरीकृताः - पंच० ९१२५९ । अभ्यन्तरीकरणम् | अभ्यंतर + चित्र + कृ + ल्युट् ] दीक्षित करता, परिचय कराना-सजोवनिर्जीवानु च द्यूतकलास्वम्प तरीकरणम् - ० ३९ । अभ्यमानम् [ अभि + अम् + ल्युट् ] 1. प्रहार, क्षति २. रोग । अभ्यमित अभ्यान्त (भू० क० कु० ) [ अभि + अम् + क्त ] 1. रोगी, बीमार 2. चोट खाया हुआ, घायल | अभ्यमित्रम् [ अव्य० स० ] शत्रु के ऊपर आक्रमण ( क्रि० वि०) शत्रु को ओर या शत्रु के विरुद्ध चढ़ाई करना ! अभ्यमित्रीणः -प: । [ अभि + अमिश्र + ख, छ, यत् वा ] - वह योद्धा जो वीरतापूर्वक शत्रु का अभ्यनिभ्यः का सामना करता है— उद्योगमभ्यमिश्रणो यथेष्टं त्वं च संतनु - भट्टि० ५४७, मारीचोऽनुनयस्त्रासादभ्यमित्रयो भवामि ते ४६ । अभ्यः [ अभि + इ + अच् ] 1. आना, पहुचना 2. (सूर्य का) अस्त होना । अभ्यर्चनम्राभ्यर्चा [ अभि + अ + ल्युट् अ +टाप् या ] पूजा, सजावट, समादर । अम्य ( वि० ) [ अभि + अर्द + क्त] निकट, समीप, स्थान के निकट या समीप होने वाला:समीप आने वाला - अभ्यर्ण भागरकृतमस्पृशद्भिः - रघु०२१३२ - र्णम् सामीप्य, सान्निध्य - अन्धकारिणि वनाभ्यर्ण किमुद्भ्राम्यति गीत० ७, अभ्यर्णे परिरभ्य निर्भरभरः प्रेमांन्या राधया - गीत० १, शि० ३।२१ । अभ्यर्थनम्-ना [ अभि +अर्थ+ ल्युट् स्त्रियां टापू ] प्रार्थना, अनुरोध, दरख्वास्त, नालिश "नाभङ्गभयेन – कु० १।५२ । अर्ध्याथन ( वि० ) [ अभि - अर्थ + णिनि । याचना या प्रार्थना करने वाला | अभ्यर्हणा [ अभि + अ + युच्, स्त्रियां टाप् ] 1. पूजा, 2. आदर, सम्मान, समादर । अभ्यहित (नि० ) [ अभि + अर्ह + क्त ] 1. सम्मानित, प्रतिष्ठित, अत्यादरणीय 2. योग्य, सुहावना, उपयुक्त, ---अभ्यहिता बन्धुषु तुल्यरूपा वृत्तिर्विशेषेण तपोवनानाम - कि० ३।११ । For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HAH अम्यवकर्षणम् [अभि-+अव+कृष --ल्युट् ] निकालना, । जाना, पहुँच, दर्शनार्थ गमन-तपोधनाभ्यागमसंभवा खींचकर बाहर करना। मुदः-शि० १२३, कि वा मदभ्यागमकारणं ते-रघु० अभ्यवकाशः [ अभि+अव+का+घ ] खुली जगह ।। १६१८, महावी० २१२२, 2. सामीप्य, पड़ौस, 3. मुकाअम्यवस्कन्दः-वनम् [ अभिनअव+स्कद्+घञ, ल्युट् बला, हमला 4. युद्ध, संग्राम 5. शत्रुता, विद्वेष । वा ] 1. डट कर शत्रु का मुकाबला करना, शत्रु पर। अभ्यागमनम् [ अभि+आ+गम् + ल्युट् | उपागमन, पहुँच, चढ़ाई करना 2. शत्रु को निश्शस्त्र करने के लिए प्रहार | दर्शनार्थ गमन, हेतुं तदभ्यागमने परीप्सुः--कि० ३।४ । करना 3. आघात। अभ्यागारिकः [अभि+आगार+ठन् ] परिवार के पालन अभ्यबहरणम् [ अभि+अव+ह+ल्युट ] 1. नीचे फेंक में यलशील । देना 2. भोजन ग्रहण करना, गले के नीचे उतारना अभ्याघातः [ अभि+आ+हन +घञ ] हमला, आक्रमण। (कण्ठादधोनयनम्-मिता०)। अभ्यादानम् [ अभिनआ-+-दा+ ल्युट् ] उपक्रम, प्रारम्भ, अम्यवहारः [ अभि+अव+ह+घञ ] 1. भोजन ग्रहण सूत्रपात करना। करना, आहार लेना, खाना पीना आदि 2. आहार | अभ्याधानम् [ अभि-+आ+घा+ल्युत् ] रखना, डालना - जम्भशब्दोऽभ्यवहारार्थवाची-काशी०, संवादापेक्षी (जैसा कि ईंधन)। ----मालवि०४। अभ्यान्त (वि.)[ अभि +आ+ अम् + क्त ] बीमार रुग्ण, अभ्यवहार्य (वि०) [अभि+अव+ह+ ण्यत् ] खाने के रोगी। योग्य, भोज्य,-र्यम् आहार,-सर्वत्रौदरिकस्य अभ्यव अभ्यापातः [ अभि+आ+पत्+घञ ] संकट, दुर्भाग्य । हार्यमेव विषय:-विक्रम०३। अभ्यामर्दः-मर्दनम् [ अभि-+आ+मृद्+घन, ल्युट् वा] अभ्यसनम् [ अभि+अस् + ल्युट् ] 1. बार-बार करना, युद्ध, संग्राम, संघर्ष, आक्रमण । बार-बार किया गया अभ्यास 2. निरन्तर अध्ययन, अभ्यारोहः-रोहणम् [ अभि+आ+रुह --घन, ल्युट् वा] अनुशीलन-(ताम) विद्याभ्यसनेनेव प्रसादयितुमर्हसि चढ़ना, सवार होना, ऊपर तक जाना। रघु० ११८८। अभ्यावृत्तिः (स्त्री०) [ अभि-+आ+वत-क्तिन् ] दोहअम्यसूयक (वि.) [स्त्री-यिका][ अभि+असु-|-वुल ] राना, बार-बार होना, दे० 'अनभ्यावृत्ति' भी। ईष्याल, डाहभरा, निन्दक, कलंक लगाने वाला, -मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषतोऽभ्यसूयका:-भग० १६।१८। अम्याश (वि.) [ अभि+अश+घञ 1 निकट, समीप -श: 1. पहुँचना, व्याप्त होना 2. समीपस्थ पड़ौस,आस •अभ्यसूया [अभि+ असु+यक+अ+टाप् ] डाह, ईर्ष्या, पास का (दे० 'अभ्यास'),-वायसाभ्याशे समपविष्टः द्वेष, क्रोध,-शकाभ्यसूयाविनिवृत्तये य:-रघु० ६७४, -पंच. २, सहसाभ्यागतां भैमीमभ्याशपरिवर्तिनीमरूपेषु वेशेषु च साभ्यसूयाः-७।२, ९।६४। महा०, दश० ६२, 3. परिणाम, फल 4. अभ्युदय, अभ्यस्त (भू० क० कृ०) [ अधि+ अस+क्त ] 1. बार प्रत्याशंसा, अतः 'शीघ्रता' के अर्थ में प्रायः प्रयुक्त । बार दोहराया गया, बार बार अभ्यास किया गया, अभ्यासः [ अभि+आ-+अस्+घञ ] आवृत्ति,--व्या-नयनयोरभ्यस्तमाभीलनम्--अमरु. ९२, प्रयोग में ख्याता-व्याख्याता इति पदाभ्यासोऽध्यायपरिसमाप्ति लाया गया, आदत डालो हुई,--अनभ्यस्तरथचर्या - द्योतयति-शारी०, नाभ्यासक्रममीक्षते-पंच १।१५१, उत्तर० ५, 2. सीखा हुआ, पढ़ा हुआ,-शैशवेऽभ्यस्त 2. बार-बार किसी कार्य को करना, लगातार किसी विद्यानां----रघु० १२८, भत०३३८९, 3. (गण) गुणा । कार्य में लगे रहना,-अविरतश्रमाभ्यासात्-का० ३०, किया गया 4. (व्या० में) द्वित्व किया गया। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते--भग०६।३५, अभ्याकर्षः [ अभि+आ+कृष+घञ हाथ से छाती ठोक ४४ अनवरत अभ्यास के द्वारा, (पवित्र और अविकृत कर ललकारना (जैसे पहलवान कुश्ती के लिए)।। रहना) १२॥१२, निगृहीतेन मनसा-रघु० १०।२३, अभ्याकाअक्षितम् [ अभिं+आ+कार+क्त ] 1. मिथ्या इसी प्रकार शर, अस्त्र आदि 3. आदत, प्रथा, चलन, आरोप, निराधार शिकायत 2. इच्छा। —अमङ्गलाभ्यासरतिम्-कु० ५।६५, या० ३।६८,4. अभ्याख्यानम् [ अभि+आ+ख्या-+ल्यूट ] मिथ्या आरोप, शस्त्रास्त्र विषयक अनुशासन, कवायद, सैनिक कवायद लाञ्छन, निन्दा, बदनामी । 5. पाठ करना,अध्ययन करना,--काव्यज्ञ-शिक्षयाभ्यास: अभ्यागत (भू० क० कृ०) [अभि+आगम-+क्त ] 1. काध्य०१6. आसपास का, सामीप्य, पड़ोस ('अभ्याश' निकट आया हुआ, पहुँचा हुआ 2. अतिथि के रूप में केलिए)-चूतयष्टिरिवाभ्यासे (शे) मधौ परभृतोन्मुखी आया हुआ,-सर्वत्राभ्यागतो गुरु:--हि० १११०८,-तः -कु०६।२, ('अभ्यासे-शे मधौ का यहाँ अर्थ 'मधु' अतिथि, दर्शक । को संबोधित करना है जो कि उसके निकट है-अर्थात् अभ्यागमः [अभि+आ+गम्+घ] 1.निकट आना या | अपने आपको पूर्ण रूप से उसके सामने प्रकट करके । For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८१ ) यहाँ पावती की उपमा पूर्णतः सुरक्षित है अर्थात् बात के द्वारा उदाहरण या निदर्शन देना। स्वयं चुप रहते हुए अपनी सखी को संबोधित करने के | अभ्युदित (भू० क० कृ०)[अभि+उद्++त] 1. निकला बहाने अपने प्रियतम से बात करना); अपितेयं तवा- हुआ 2. उन्नत 2. सूर्योदय के अवसर पर सोया हआ। भ्यासे सीता पुण्यव्रता वधूः---उत्तर०७:१७, आपको अभ्युद्गमः-गमनम् ।[अभि+उद्+गम्+घञ, ल्युट्, सौंपी हुई; अभ्यासा (शा) वागत:--सिद्धा. (अलुक अभ्युद्गतिः (स्त्री०) क्तिन् वा] 1. किसी प्रतिष्ठित समास के रूप में)7. (व्या० में) द्वित्व होना 8. द्वित्व व्यक्ति या अतिथि के सम्मानार्थ उठकर चलना 2. हुए मूलशब्द का प्रथम अक्षर, द्वित्व अक्षर 9. (गण० निकलना, होना, उत्पन्न होना। में) गुणा 10. सम्मिलित गान, गीत की टेक । सम० अभ्युद्यत [भु० क. कृ०] [अभि+उ+यम्+क्त] 1. -गत (वि०) उपागत, निकट गया हुआ,-योगः उठा हुआ, ऊपर उठाया हुआ, जैसा कि आयुध, शस्त्र अनवरत गहन चिंतन से उत्पन्न मनोयोग, अभ्यास- 2. तत्पर, तैयार, प्रयत्नशील ('तुमुन्नन्त' सम्प्र० योगेन ततो मामिच्छाप्तं धनंजय-भग० १२।९,-लोपः अधि के अथवा समास में) 3. आगे गया हुआ, द्वित्व किये हुए अक्षर को हटा देना,-व्यवायः द्वित्व निकला हुआ, सामने दिखाई देने वाला, निकट आने अक्षर से उत्पन्न अन्तराल । वाला, कुलमभ्युद्यतनूतनेश्वरम्-रघु० ८।१५, 4. अभ्यासादनम् [अभि+आ+सद्+णिच् + ल्युट् ] शत्रु का अयाचित दिया हुआ या लाया हुआ। सामना करना या उस पर हमला करना । अभ्युनत (वि.) [अभि+उ+नम्+क्त] 1. उठा हुआ, अभ्याहननम् [अभि+आ+हन् + ल्युट्] 1. प्रहार करना, ऊँचा किया हुआ,श० ३, 2. ऊपर को उभरा हुआ, चोट पहुँचाना, हत्या करना 2. रोक लगाना, बाधा बहुत ऊँचा-कु० ११३३ ।। डालना। अभ्युन्नतिः (स्त्री०) [अभि+उ+नम्+क्तिन्] बड़ी अभ्याहारः [अभि+आ+ह+घञ] 1. निकट लाना, ले उन्नति या समृद्धि। जाना 2. लूटना। अभ्युपगमः [अभि+उप+गम्+घा] 1. उपागमन, पहुंच अभ्युक्षणम [अभि+उ+ ल्युट] 1. (जल) छिड़कना, तर 2. स्वीकार करना, मानना, सत्य समझना, (दोष) करना,-परस्पराभ्युक्षणतत्पराणाम् (तासाम्) रघु० मान लेना 3. जिम्मेदारी, प्रतिज्ञा करना, निर्णय १६५७, 2. अभिषेक द्वारा संस्कार । मालवि०१, संविदा, करार, प्रतिज्ञा। सम-सिद्धांत: अम्युचित (वि०) [प्रा० स०] प्रचलित, प्रथा के अनुकूल । मानी हई प्रस्तावित योजना या सूक्ति। अम्युच्चयः [अभि+उत्+चि- अच] 1. वृद्धि, आगम 2. अभ्युपपत्तिः (स्त्री०) [ अभि+उप-पद्+क्तिन् ] 1. सम्पन्नता। सहायतार्थ निकट जाना, दया करना, कृपा करना, अम्युत्कोशनम् [अभि । उत्+क्रुश्-+ ल्युट्] ऊँचे स्वर से | अनुग्रह, कृपा,-अनयाभ्युपपत्त्या-श०४, 2. ढाढ़स, चिल्लाना। तसल्ली 3. रक्षा, बचाव, ब्राह्मणाभ्युपपत्तौ च शपथे अभ्युत्थानम् [अभि-+उद्+स्थानल्युट] 1. (अपने आसन नास्ति पातकम्-मनु० ८१११२,4. इकरार नामा, से) सत्कारार्थ उठना, किसी के सम्मान में खड़े होना स्वीकृति, प्रतिज्ञा 5. स्त्री का गर्भवती होना (विशेषत: 2. रवाना होना, प्रस्थान करना, कैच करना 3. उठना भाई की विधवा पत्नी का नियोग द्वारा)। (शा० आलं०), उन्नति, सम्पन्नता, मर्यादा,--(तस्य) | अभ्युपायः [अभि-उप---इ। अच्] 1. प्रतिज्ञा, वादा, नवाभ्युत्थानशिन्यो ननन्दुः सप्रजाः प्रजा:-रधु० ४१३, इकरार 2. साधन, युक्ति, उपचार,—अस्मिन्सुराणां यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम- | विजयाभ्युपाये-कु० ३।१९ । धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्---भग० ४१७ । अभ्युपायनम् [अभि+उप-+ अय्+ ल्युट्] सम्मानसूचक अभ्युत्पतनम [अभि+-उत्+पत्+त्युद] किसी पर उछलना, उपहार, प्रलोभन, रिश्वत । कूदना; अकस्मात् झपटना, हमला करना--अलक्षिता- | अम्युपेत (भू. क. कृ०) [अभि+उप++क्त] 1. भ्युत्पतनो नृपेण--रघु० २।२७ ।। निकट आया हुआ, उपागत 2. प्रतिज्ञात, स्वीकृत, अभ्युदयः । अभि-उद्+इ+घञ ] 1. सूर्य चन्द्रादि का | अंगीकृत-मेघ० ३८॥ निकलना, सूर्योदय 2. उन्नति, सम्पन्नता, सौभाग्य, अभ्युपेत्य (अव्य०)अभि+उप+इ--ल्यप् (क्त्वा)] पहुँच ऊंचा उठना, सफलता-स्पृशंति नः स्वामिनमभ्युदया:- कर, स्वीकार करके, प्रतिज्ञा करके । सम०-अशुरत्न. १, भवो हि लोकाभ्युदयाय तादृशाम्-रघु० ३। श्रुषा-हिन्दूधर्मशास्त्र के १८ अधिकारों में से एक, १४, 3. उत्सव, उत्सव का अवसर 4. उपक्रम, स्वामी और सेबक के मध्य की हुई संविदा का भंग। आरम्भ। अभ्युषः, अभ्यूषः) अभितः उ-ऊष्यते अग्निना दह्यते---उअम्युबाहरणम् [अभि+उद्+आ+ह-ल्युट] विपरीत । अभ्योषः बाहु क] एक प्रकार की रोटी, For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८२ ) बाटी। ] अम् (अव्य०) [अम्+क्विप्] 1. जल्दी, शीघ्र 2. अभ्यहः [अभि-जह +घञ] 1. तर्क करना, दलील देना, जरा, थोड़ा। विचार विमर्श करना 2. आगमन (घटाना), अनुमान, | अम् (भ्वा०प०) [अमति, अमितम, अमित ] 1. जाना, अटकल,-पराभ्य हस्थानान्यपि तनुतराणि स्थगयति की ओर जाना 2. सेवा करना, सम्मान करना 3. -मा० ११४, 3. अध्याहार करना, 4. समझना । शब्द करना 4. खाना, (चु०प० या प्रेर०) [ आमअभ् (भ्वा० पर०) [अभ्रति, आनभ्र, अभ्रित] जाना, यति ] 1. टूट पड़ना, आक्रमण करना, रोग से कष्ट इधर उधर घूमना-बनेष्वान्भ्र निर्भयः----भट्टि० होना, किसी व्याधि से पीडित होना 2. रोगी होना, ४१११, १४।११०। कष्टग्रस्त या रोगग्रस्त होना। अभ्रम् [अभ्र-+अच् या अप् +9 अपो बित्ति-भ+क] अम (वि०) [अम+धन अवृद्धिः] कच्चा (जैसा कि 1. बादल 2. वायुमंडल, आकाश-परितो विपाण्डु फल),-मः 1. जाना, 2. रुग्णता, रोग 3. सेवक, अनुदधदभ्रशिर:--शि० ९।३, दे० अभ्रंलिह आदि 3. | चर 4. यह, स्वयम् । चिल-चिल, अबरक 4. ( गण० ) शून्य। सम० अमङ्गल-स्य (वि.) [ब० स०, न० त०] 1. अशुभ, ------अवकाशः बचाव के लिए केवलमात्र बादल, बारिश बुरा, अकल्याणकर-रघु०१२।४३,-. अभ्यासरतिम् होना, अवकाशिक,-अवकाशिन ( वि ) बारिश में कु० ५।६५, अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलम् रहकर (तपस्या करन वाला),बारिश से बचाव का कोई -पुष्प० 2. भाग्यहीन, दुर्भाग्य पूर्ण, --ल: एरण्ड उपाय न करने वाला, उत्थः आकाश में उत्पन्न इन्द्र का वृक्ष,---लम् अशोभनीयता, दुर्भाग्य, अकल्याण, का वज,--नागः ऐरावत नाम का हाथी जो धरती प्राय: नाट्य-शास्त्र में प्रयुक्त,-शांतं पापं प्रतिहतको धारण किये हुए हैं--पथः 1. वायुमंडल 2. ममङ्गलम्-तु० भगवान कल्याण करे ! गुब्बारा,-पिशाचः,-पिशाचकः राहु की उपाधि, मेघा- अमण्ड (वि०) [न० ब०] 1. बिना सजावट का, अलंकार सुर,-पुष्पः एक प्रकार की बेंत,--पुष्पम् 1. पानी 2. रहित 2. विना झाग का, या बिना मांड का (उबला असंभव बात, हवाई किला,--मातंगः इन्द्र का हाथी हुआ चावल),-दुः एरण्ड का वक्ष । ऐरावत,-माला,-वृन्दम् बादलों की पंक्ति या समूह। | अमत (वि०) [ न० त०] 1. अननुभूत, मन के लिए अभ्रंलिह (वि०) [अभ्र-+-लिह.--खश् मुमागमः] 'बादलों असंलक्ष्य, अज्ञात 2. नापसन्द, अमान्य,-तः 1. को चूमन वाला स्पर्श करने वाला अर्थात् बहुत ऊँचा; समय 2. रुग्णता, रोग, 3. मृत्यु। --अभ्रंलिहानाः प्रासादा:-मेघ०६६, प्रासादमभ्रंलिह- | अमति (वि०) [न० ब०] दुर्मना, दुष्ट, दुश्चरित्र, मारुरोह-रघु० १४१२९; --हः वायु, हवा । --तिः 1. धूर्त, कपटी 2. चाँद 3. समय,-तिः अभ्रकम् [अभ्र कन्] चिलचिल, अबरक । सम०-भस्मन् (स्त्री०) [न० त०] अज्ञान, संज्ञाहीनता, ज्ञान का (नपुं०) अबरक का कुश्ता, अबरक की भस्म अभाव, अदूरदर्शिता..-आत्यैतानि षड् जग्ध्वा -----सत्त्वम् इस्पात । ---मनु० ५।२०, ४।२८२,। सम० पूर्व (वि.) अभ्रडूष (वि०) [अभ्र+कष्--खच् ममागमः] बादलों ! संज्ञाहीन, विचारहीन । को छने वाला, बहत ऊँचा,-आदायाभ्रषं प्राया- अमत्त (वि०) [न० त०] जो नशे में न हो, सही न्मलयं फलशालिनम्-भट्टि०,----ष: 1. वायु, हवा 2. दिमाग का। पहाड़। अमत्रम् [अमति भुक्ते अन्नमत्र---अम् + आधारे अनन् ] अभ्रमः (स्त्री०) [अभ्र+मा+उ] इन्द्र के हाथी ऐरावत ____ 1. वर्तन, बासन, पात्र 2. सामर्थ्य, शक्ति । की सहचरी, पूर्वदिशा के दिग्गज की हथिनी। सम० अमत्सर (वि०) [न० ब०] जो ईर्ष्याल या डाहयुक्त न --प्रियः,-वल्लभः ऐरावत । हो, उदार। अभ्रिः-भ्री (स्त्री०) [अभ्र+इन् ङीष् वा] 1. लकड़ी की अमनस् । (वि.) [न० ब०, कप च] 1. बिना मन या बनी हुई नोकदार फरही जिससे नाव की सफाई की। अमनस्क ध्यान के 2. बुद्धिहीन (जैसे कि बालक) 3. जाती है, 2. कुदाल, खुरपी। ध्यान न देने वाला, 4. जिसका अपने मन के ऊपर अभ्रित (वि.) [अभ्र+इतच्] बादलों से आच्छादित, कोई नियंत्रण न हो 5. स्नेहहीन -- (नपुं० ---नः) 1. बादलों से घिरा हुआ-रघु० ३।१२। जो इच्छा का अंग न हों, प्रत्यक्षज्ञान का अभाव 2. अभ्रिय (वि.) [अभ्र+घ बादलों से संबंध रखने वाला, ध्यानशून्य (पुं०-नाः) परमेश्वर । सम०-- गत (वि०) आकाश या मुस्ता अथवा बादलों से उत्पन्न,--यः अज्ञात, अविचारित,-ज्ञ,-नीत, नापसंद, रद्द बिजली, -यम गरजने वाले बादलों का समूह । किया गया, धिक्कृत,—योगः ध्यान न देना,--हर अभ्रेषः [ न० त०] अव्यत्यय, योग्यता, उपयुक्तता। (वि०) जो सुखकर न हो, जो रुचिकर न हो । For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है कि नवरत्नों में तात्यम् [अमर कि अमनाक (अव्य०) [न० त०] थोड़ा नहीं, बहुत, | कुसुमसौरभसेवनसंपूर्णसकलकामस्य-भामि० १२८ अत्यधिक । 2. =देव दारु 3. कल्पवृक्ष, -द्विजः देवल अमनुष्य (वि०) [ न० ब० ] 1. अमानुषिक, जो मनुष्यो- ब्राह्मण जो मंदिर या मूर्ति संबंधी कार्य करता हो, चित न हो 2. जहाँ मनुष्य का आना जाना बहुत कम मन्दिर का अधीक्षक,--पुरम्, देवताओं का आवा हो, -व्यः | न० त०] 1 जो मनुष्य न हो, 2. राक्षस । सस्थान, दिव्य स्वर्ग,-पुष्पः,-पुष्पकः कल्पवृक्ष, अमन्त्र,-त्रक (वि०) [न० ब० कप च] 1. वैदिक मंत्रों -----प्रख्य,-प्रभ (वि.) देवताओं जैसा,--रत्नम से रहित, वह संस्कार जिसमें वेदमंत्रों के पाठ की स्फटिक,---लोकः देवताओं की दुनियाँ, स्वर्ग, ता आवश्यकता न हो 2. जिसे वेद के पढ़ने का अधिकार स्वर्गीय सुख, ---तेषु सम्यग्वर्तमानो गच्छत्यमरलोकन हो जैसे शुद्र या स्त्री 3. जो वेदपाठ से अनभिज्ञ ताम्-मनु० २।५,-सिंहः अमरकोश के रचयिता हो,-अवतानाममन्त्राणाम् –मन्०१२।११४, 4. रोग का नाम, वह जैन धर्मावलम्बी थे, कहा जाता है कि की वह चिकित्सा जिसमें जादुमंत्र की क्रिया न की विक्रमादित्य महाराज के नवरत्नों में एक रत्न थे। जाती हो, ... अनया कथमन्यथावलीढा न हि जीवन्ति अमरता-स्वम् [अमर+तल, त्वल वा] देवत्व। जना मनागमन्त्राः -भामि० १११११। अमरावती [अमर + मतुप, दीर्घः] देवताओं का आवासस्थान, अमन्द (वि.) [न० त० | 1. जो सुस्त या मंद न हो, इन्द्र का घर,-ससंभ्रमेन्द्रद्रुतपातितार्गला निमीलिताफुर्तीला, बुद्धिमान् 2. तेज, प्रबल, प्रचण्ड (वायु क्षीव भियाऽमरावती । शिशु०।। आदि ) 3. अनल्प, अति, अधिक, बहुत, तीव, --अमन्द अमर्त्य (वि०) [न० त०] जो मरणधर्मा न हो, दिव्य, मददिन-उत्तर० ५।५, अमन्दमिलदिन्दिरे निखिल अविनाशी, भावेऽपि रघु० ७।५३, भुवनम्-स्वर्ग, भावरीमन्दिरे भामि०४।१। °ता अविनश्वरता, --यः देवता, । सम-आपगा अमम (वि०) [न० ब० बिना अहंकार के, स्वार्थ या देवनदी, गंगा की उपाधि--विक्रमांक० १८१०४। सांसारिक आसक्ति से शून्य, ममतारहित,-शरणेष्व- | अमर्मन् (नपुं०) [न० त०] शरीर का वह अंग जो मर्मममश्चैव वृक्षमलनिकेतन:-मनु० ६.२६ । स्थल न हो। सम-वेधिन मर्मस्थल को न बींधन अममता-त्वम् [न० त०] उदासीनता, स्वार्थराहित्य ।। वाला, मदु, कोमल। अमर (वि०) [न० त० म.---पचाद्यच् ] जो कभी मृत्यु अमर्याद (वि.) [ न० ब० ] 1. उचित सीमाओं को पार को प्राप्त न हो, न मरने वाला, अविनाशी,---अजरा करने वाला, सीमा को उल्लंघन करने वाला, अनादर मरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थं च गाधयेत् हि, पंच०३, करन वाला, अनुचित,-मर्यादायाममर्यादाः स्त्रियस्तिमनु० २१४८, र: 1. देव, देवता 2. पारा 3. प्ठन्ति सर्वदा-पंच० १११४२, तादशं त्वममर्यादं कर्म सोना 4. नंतीस की संख्या (क्योंकि गिनती में इतने कर्तुं चिकीर्षसि -रामा०, 2. सीमारहित, असीम-दा ही देवता है) 5. अमरसिंह 6. हड्डियों का ढेर-रा | न० त०] उचित सीमा का उल्लंघन करना, 1. इन्द्र का आवासस्थान (तु० अमरावती) 2. नाल आचरणहीनता, अप्रतिष्ठा, उचित सम्मान की 3. योनि 4. गृहस्तम्भ,--री 1. देवपत्नी, देवकन्या अवहेलना । 2. इन्द्र की राजधानी। सम०-अङ्गना, स्त्री अमर्ष (वि०) [ न० ब०] असहनशील,-र्षः [ न० त०] दिव्य अमरा, देवकन्या-मपाण रत्नानि हरामराङ्गनाः 1. असहिष्णुता, असहनशीलता, धैर्यशून्यता,--अमर्ष.शि. ११५१, अद्रिः देव-पर्वत अर्थात् मुमेरु पहाड़ शन्येन जनस्य जंतूना न जातहान न विद्विषादर:-- ----अधिपः, --इन्द्रः, --- ईशः, -ईश्वरः, -पतिः, कि० ११३३, ईर्ष्या, ईर्ष्यायुक्त क्रोध,—किनु भवतस्तात--- भर्ता,-राजः देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, प्रतापोत्कऽप्यमर्प:---उत्तर० ५, सा. शा० में ३३ कई वार विष्ण और शिव की भी उपाधि --आचार्यः, व्यभिचारी भावों में से एक..--अमर्ष दे० सा० द०; -गुरुः, ....पूज्य: देवताओं के गुरु, बृहस्पति की रस० निम्नपरिभाषा बताता है:-परकृतावज्ञानादिउपाधि, आपगा, -- तटिनी, – सरित (स्त्री) नानापराधजन्यो मौनवापारुष्यादिकारणभूतश्चित्तस्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ,--- तटिनीरोधसि वत्तिविशेषोऽमर्ष: 2. क्रोध, आवेश, कोप,--पुत्रवधामवसन्---- भत० ३।१२३, .. आलयः देवताओं का ददीपितेन गांडीविना-वेणी० २, सामर्ष ऋद्ध, आवासस्थान, स्वर्ग, ---कंटकम विध्यपर्वतश्रेणी के उस कुपित, सामर्षम् क्रोधपूर्वक 3. तीव्रता, प्रचण्डता । भाग का नाम जो नर्मदा नदी के उदगम स्थान के सम० - ज (वि०) क्रोध या असहनशीलता से निकट है ... कोशः, कोषः अमरसिंह द्वारा रचित उत्पन्न, -हासः क्रोधपूर्ण हंसी, खिल्ली उड़ाना । संस्कृत भाषा का एक सुप्रसिद्ध कोश --तरुः, --दारुः ! अमर्षण,-षित, (वि०) न० ब०, न० त० धैर्यहीन, 1. दिव्य वृक्ष, इन्द्र के स्वर्ग का एक वृक्ष, अमरतरु- । अमषिन,-प्रवत् असहनशील, क्षमा न करने वाला--पंच. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८४ ) ११३२६, २. क्रुद्ध, कुपित, प्रचण्ड स्वभाव का हृदि । शुन्यता, ईमानदारी, निष्कपटता 2. (वेदा० में) भ्रम क्षतो गोत्रभिदप्यमर्षणः-- रघु० ३।५३ -अभिमन्युव- का अभाव, परमात्मा का ज्ञान-यम् परब्रह्म । घामर्षितैः पाण्डुपुत्रः-वेणी०४, 3. प्रचण्ड, दृढ़- | अमायिक,--मायिन् (वि.) [न० त०] मायारहित, संकल्प। निश्छल, ईमानदार। अमल (वि.) [न.ब.] 1. मलरहित, मलमुक्त, पवित्र, अमावस्या,-वास्या) [अमा+वस+यत, पयत् वा; अमा निष्कलंक, विमल,-अमलाः सुहृदः-पंच० २।१७१, | अमावसी,-वासी +वस्+अप, धन वा ] नूतन विशुद्ध, निष्कपट 2. श्वेत उज्ज्वल,-कर्णावसक्तामल- | (अमामसी,-मासी), चन्द्रमा का दिन, वह समय जब कि दन्तपत्रम्-कु० ७।२३, रघु०६।८०,--ला 1. लक्ष्मी सूर्य और चन्द्रमा दोनों संयुक्त रहते हैं, प्रत्येक चान्द्र देवी 2. नाल 3. आँवले का वृक्ष,-लम् 1. पवित्रता मास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवां दिन--सूर्याचन्द्रमसो: 2. अबरक, 3. परब्रह्म। सम०-पतत्रिन् [पुं०-त्री] यः परः संन्निकर्षः साऽमावस्या-गोभिल। जंगली हंस,-रत्नम्,-मणिः स्फटिक पत्थर। अमित (वि.) [नत०11. जो मापा न गया हो; असीम, अमलिन (वि.) [न० त०] स्वच्छ, बेदाग, पवित्र, ! सीमारहित, विशाल-मितं ददाति हि पिता मितं भ्राता (नैतिक रूप से भी)-कुलममलिनं नत्वेवाय जनो न मितं सुतः, अमितस्य हि दातारं भर्तार का न पूजयेत्च जीवितम्-मा० २।२। रामा० 2. उपेक्षित, अनादृत 3. अज्ञात 4. असंस्कृत । अमसः [ अम् +असच् ] 1. रोग 2. मूर्खता 3. मूर्ख 4. ! सम.---अक्षर (वि०) गद्यात्मक,--आभ (वि.) समय । अतिकांतियुक्त, असीम प्रभायुक्त,-ओजस् (वि.) अमा (वि.) [न० त०] अपरिमित--(अव्य०) 1. से, असीम तेजोयुक्त, अखिल शक्तिसंपन्न, सर्वशक्तिमाम् निकट, पास 2. के साथ, से मिलकर, जैसा कि अमात्य, -तेजस,-द्युति (वि०) असीम तेज या कांतियुक्त अमावस्या (स्त्री) नूतन चन्द्रमा का दिन, सूर्य और --विक्रमः 1. असीम बल शाली, 2. विष्णु । चन्द्र के संयोग का दिन, अमायां तु सदा सोम । अमित्रः | अम । इत्र] जो मित्र न हो, शत्र, विरोधी, वैरी, ओषधी: प्रतिपद्यते-व्यास 2. चन्द्रमा की सोलहवीं प्रतिद्वंद्वी, विपक्षी,-स्याताममित्री मित्रे च सहजप्राकृता, कला, पुं०-आत्मा । सम०--अन्तः नूतन चन्द्रमा के वपि-शि० २१३६, तस्य मित्राण्यमित्रास्ते---१०१, दिन की समाप्ति,-पर्वन् (नपुं०) अमा का पवित्र प्रकृत्यमित्रा हि सतामसाधवः--कि० १४१२१, । सम० काल, नूतन चन्द्रमा का दिवस। -घात,-घातिन्,–न,—हन शत्रुओं को मारने अमांस (वि०) [न० ब०] 1. बिना मांस का, मांस रहित, वाला, -जित् (वि०) अपने शत्रुओं को जीतने वाला, 2. दुबला-पतला, बलहीन, सम् [न० त०] जो अमित्रजिन्मित्रजिदोजसा च यत्-नै० १११३ । मांस न हो, मांस को छोड़ कर और कोई वस्तु । अमिथ्या (क्रि. वि.) [न० त०] जो मिथ्या न हो, सम-ओवनिक (वि०)[स्त्री०- की मांसयुक्त बने सचमुच, तामचतुस्ते प्रियमप्यमिथ्या-रघु०१४।६। हए चावलों से संबंध न रखने वाला। अमिन् (वि०) [अम्+णिनि ] बीमार, रोगी। अमात्यः [ अमा--त्यक] राजा का सहचर, या अनुयायी, | अमिषम् [अम्+इषन] 1. सांसारिक सुख के पदार्थ, विलास मंत्री, अमात्यपूत्रः सवयोभिरन्वित:-रघु० ३।२८ । की सामग्री 2. ईमानदारी, निश्छलता, निष्कपटता, अमात्र (वि.) [न० ब०] 1. सीमारहित, अपरिमित 3. मांस। अपूर्ण, असमस्त 3. जो आरम्भिक न हो,-त्रः | अमीवा [ अम्व न् ईडागमः ] 1. कष्ट, बीमारी, रोग 2. परब्रह्म,। दुःख, त्रास-वम् कष्ट, दुःख, पीड़ा, चोट । अमाननम्-ना नि० त०] अनादर, अपमान, अवज्ञा । अमुक (नि० वि०) [अदस्-टेरकच् उत्वमत्त्वे-तारा०] अमानस्यम् [न० त०] पीड़ा। कोई व्यक्ति या पदार्थ, फलां २,ऐसा-ऐसा (जब व्यक्ति अमानिन् (वि०) [न० त०] विनम्र, विनीत । को नाम से संबोधित न किया जाय), मतं मेऽमुकपुत्रअमानुष (वि.) [स्त्री०--षो] [न० त०] अमानवी, स्य यदत्रोपरि लेखितम-याज्ञ० २१८६, ८७, उभयाभ्य मनुष्य से संबंध न रखने वाला, अलौकिक, अपार्थिव, थितेनैतन्मया ह्यमुकसूनना, लिखितं हमकेनेति लेखको अपौरुषेय, -आकृतिरेवानुमापयत्यमानुषताम् -का. ऽन्ते ततो लिखेत्-८८। १३२। अमुक्त (वि०) [न० त०] 1. जिसके बंधन खोले न गये अमानुष्य (वि०)[न० त०] अमनुष्योचित, अपौरुषेय आदि । हों, जो जाने में स्वतंत्र नहीं 2. जन्ममरण के बंधन से अमाम (मा) सी-अमावसी या अमावस्या। जिसे छुटकारा न मिला हो, जिसे मोक्ष प्राप्त न हआ अमाय (वि.) [न.ब.] 1.अकुटिल, पारखी, मायारहित, हो,-कतम एक हथियार (चाक या तलवार आदि) निष्कपट 2, जो मापा न जा सके;-या 1. कपट- जो सदैव पकड़ा जाता है, फेंका नहीं जाता। सम० For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -हस्त (वि.) मितव्ययी, कंजूस (कदर्थना के लिए) अल्पव्ययी, परिमितव्ययी,--सदा प्रहृष्टया भाव्यं व्यये चामुक्तहस्तया-मनु० ५।१५० । अमुक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. स्वातंत्र्यशून्यता 2. स्वतंत्रता या मोक्ष का भाव ।। अमुतः (अव्य०) [ अदस+तसिल उत्व-मत्व ] 1. वहां से, वहां 2. उस स्थान से, ऊपर से अर्थात् परलोक से या स्वर्ग से 3. इस पर, ऐसा होने पर, अब से आगे। अमुत्र (अव्य०) [ अदस्+अल उत्व-मत्व] (विप० इह) 1. वहां, उस स्थान पर, वहां पर, अमुत्रासन् यवनाः -~~दश०१२७ 2. वहां, (जो कुछ पहले हो चुका है या कहा गया हैं) उस अवस्था में 3. वहां, ऊपर, परलोक में, आगामी जन्म में-यावज्जीवं च तत्कुर्याद्यनामुत्र सुखं बसेत् 4. वहां-अनेनैवार्भका सर्वे नगरेऽमुत्र भक्षिताः --कथा। अमुथा ( अव्य०) [अदस्-+-थाल उत्व-मत्व ] इस प्रकार, इस रीति से। अमुष्य ( अदस्-संब०) ऐसे का (केवल समास में) । सम० -कुल [ अलुक स०] (वि.) ऐसे कुल से संबंध रखने वाला (---लम्) प्रसिद्ध घराना,--पुत्रः,-पुत्री ऐसे प्रसिद्ध कुल का पुत्र या पुत्री, दे० आमुष्यायण । अमूदृश,-श, क्ष (वि.) [स्त्री०-शी,-क्षी ] [ अदस् +देश+-क्विन, का, क्स वा स्त्रियां डीप् ] ऐसा, इस प्रकार का, इस रूप या ढंग का। अमूर्त (वि०) [न० त०] आकारहीन, अशरीरी, शरीर रहित (विप०--मूर्त-मूर्तत्वम् =अवच्छिन्नपरिमाणवत्वम्-मुक्ता०), तःशिव । सम-गुणः (वैशे में) धर्म, अधर्म जैसे गुणों को अमूर्त या अशरीरी समझा जाता है। अमूर्ति (वि.) [न० ब०] आकार हीन, रूपरहित,—तिः ___ विष्णु, तिः (स्त्री०)[ न० त० ] रूप या आकार का न होना। अमूल-लक (वि.) [न० ब०] 1. निर्मल (शा.), (आलं.) बिना किसी आधार के, निराधार, आधार रहित 2. बिना किसी प्रमाण के, जो मूल में न हो --नामूलं लिख्यते किंचित-मल्लि०, 3. बिना किसी भौतिक कारण के जैसा कि सांख्य का 'प्रधान' । अमूल्य (वि.) [न० ब०] अनमोल, बहुमूल्य । अमृणालम् [ सादृश्ये न० त०] एक सुगन्धित घास की जड़, (खस या उशीर) जिस के परदे या टट्टियां बनती है। अमृत (वि.) [न० त०] 1. जो मरा न हो 2. अमर 3. अविनाशी, अनश्वर, तः 1. देव, अमर, देवता, 2. देवों के वैद्य धन्वन्तरि, ता 1. मादक शराब 2. नाना प्रकार के पौधों के नाम, तम् 1. (क) अमरता (ख) परममुक्ति, मोक्ष-मनु० १२।१०४, स श्रिये । चामृताय च-अमर०, 2 देवों का सामूहिक शरीर 3 अमरता की दुनिया, स्वर्गलोक 4. सूधा, पीयष, अमृत (विप० विष) जो समुद्र मंथन के फल स्वरूप प्राप्त समझा जाता है-देवासुरैरमतमम्बनिधिर्ममन्थे -कि० ५।३०, विषादप्यमृतं ग्राह्यम्-मनु० २।२३९, विषमप्यमृतं क्वचिद्भवेदमुतं वा विषमीश्वरेच्छयारघु०८।४६, (प्रायः वाच, वचनम्, वाणी आदि शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है) कुमारजन्मामृतसंमिताक्षरम्रघु० ३।१६ 5. सोमरस 6. विष नाशक औषध 7 यज्ञशेष--मनु० ३।२८५, 8 अयाचितभिक्षा (दान), बिना मांगे दान मिलना-मृतं स्याद्याचितं भैक्ष्यममतं स्यादयाचितम्-मनु० ४१४, ५, 9 जल--अमृताध्मात जीमूत-उत्तर० ६।२१, तु० भोजन के पूर्व या अन्त में आचमन करते हुए ब्राह्मणों के द्वारा पढ़े जानवाले मंत्र (अमतोपस्तरणमसि स्वाहा, अमतापिधानमसि स्वाहा) 10 औषधि 11 घी, अमृतं नाम यत्सन्तो मन्त्र जिह्वेषु जुह्वति-शि० २०१०७, 12 दूध 13 आहार 14 उबले हुए चावल, भात 15 मिष्ट पदार्थ, कोई भी मधुर वस्तु 16 सोना 17 पारा 18 विष 19 परब्रह्म । सम०-अंशुः,-करः,-दीषितिः,-द्युतिः,- रश्मिः चन्द्रमा के विशेषण,---अमृतदीधितिरेष विदर्भजे-न०.४।१०४, -अन्धस्,-अशनः,-आशिन् (पुं०) वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर,-आहरणः गरुड़ जिसने एक बार अमृत चुराया था,-उत्पन्ना--मक्खी (-प्रम), --उद्धदम् एक प्रकार का सुर्मा,-कुंडम् वह बर्तन जिसमें अमृत रक्खा हो,-क्षारम् नौसादर,-गर्भ (वि.) अमृत या जल से भरा हुआ, अमृतमय (-भः) 1. आत्मा 2. परमात्मा,-तरंगिणी ज्योत्स्ना, चांदनी, --द्रव (वि.) 'चन्द्रकिरण जो अमृत छिड़कती हैं (-वः) अमृत प्रवाह,-धारा 1. एक छन्द का नाम 2. अमृत का प्रवाह,-प: 1 अमृत पान करने वाला, देव या देवता 2. विष्ण 3 शराब पीने वाला,-ध्रुवममतपनामवाञ्छयासावधरममुं मघपस्तवाजिहीते-शि. ७१४२, (यहां अ° का 'अमृत पीनेवाला' भी अर्थ है) --फला अंगूरों का गुच्छा, अंगूरों की बेल, दाख, द्राक्षा,-बंधुः 1 देव, देवता 2 घोड़ा, चन्द्रमा,-भुज (पुं०) अमर, देव, देवता जो यज्ञशेष का स्वाद लेता है,-भू (वि०) जन्ममरण से मुक्त,-मंथनम् अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन,-रसः 1 अमृत, पीयूष,-काव्यामृतरसास्वाद:-हि०, विविधकाव्यामृतरसान् पिबामः-भर्तृ० ३।४०, 2 परब्रह्म,--लता, -लतिका अमृत देने वाली बेल,-वाक् अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला,-सार (वि.) अमृतमय (-रः)धी,--सू:-सूतिः 1 चन्द्रमा(अमृत चुवाने वाला) 2 देवताओं की माता, सोदरः अमृत का भाई, "उच्च: For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८६ ) श्रवाः” नामक घोड़ा, - स्रवः अमृत का प्रवाह, स्रुत् । (वि० ) अमृत चुवाने वाला - कु० ११४५ । अमृतकम् [ अमृत + कन् ] अमृत, अमरतत्व प्रदायक रस । अमृतता - स्वम [ अमृत + तल्, त्वल् वा ] अमरत्व, अमरता । अमृतेशयः [ अलुक् स०] विष्णु (क्षीर सागर में सोने वाला) अमृषा ( अव्य० ) [ न० त०] झूठपने से नहीं, सचमुच । अमुष्ट (वि० ) [ न० त०] न मसला हुआ, न रगड़ा हुआ । सम० - मूज ( वि० ) अक्षुष्ण पवित्रता वाला । अमेदस्क ( वि० ) [ न० ब० कप् च ) जिसमें चर्बी न हो, दुबला-पतला । अमेधस् (वि० ) [ न० ब० ] बुद्धिहीन, मूर्ख, जड़ । अमेध्य (वि०) [न० त०] 1. जो यज्ञ के योग्य, या अनुमत न हो 2. यज्ञ के अयोग्य - नामेध्यं प्रक्षिपेदग्नौ - मनु० ४/५३, ५६, ५/५, १३२, 3. अपवित्र, मलयुक्त, मैला, गंदा, अस्वच्छ - भग० १७११०, भर्तृ० ३।१०६, ध्यम् 1. विष्ठा, लीद - समुत्सृजेद्राजमार्गे | वस्त्वमेध्यमनापदि मनु० ९।२८२, ५/१२६ 2. अपशकुन, अशुभशकुन -- अमेध्यं दृष्ट्वा सूर्यमुपतिष्ठेत -- कात्या० । सम० - कुणपाशिन् (वि०) मुर्दा खाने वाला - युक्त, लिप्त (वि०) मलयुक्त, मैला, मलिन, गंदा । अमेय ( वि० ) [ न० त०] 1. अपरिमेय, सीमारहित - अमेयो मितलोकस्त्वम् - रघु० १०।१८ 2. अज्ञेय । सम० -- आत्मन् अपरिमेय आत्मा को धारण करने वाला, महात्मा, महामना, (पुं० ) विष्णु 1 अमोघ (वि० ) [ न० त०] 1. अचूक, ठीक निशाने पर लगने वाला --- धनुष्य मोघं समधत्त बाणम् - कु० ३/६६, रघु० ३५३, १२/९७, कामिलक्ष्येष्वमोघः - मेघ ० ७३, 2. निर्भ्रान्त, अचूक ( शब्द, वरदान आदि ) -अमोघाः प्रतिगृह्णन्तावर्ध्यानुपदमाशिषः- रघु० १/४४, 3. अव्यर्थ, सफल, उपजाऊ यदमोघमपामन्तरुप्तं बीजमज त्वया कु० २५, इसी प्रकार 'बलम्, 'शक्ति, वीर्य, क्रोध आदि, घः 1. अचूक 2. विष्णु 1 सम० - दण्डः दंड देने में अटल, शिव, - वशिन् - दृष्टि (वि० ) निर्भ्रान्त मन वाला, अचूक नज़र वाला, बल ( वि० ) अटूट शक्ति सम्पन्न, - वाच् (स्त्री०) वाणी जो व्यर्थ न जाय, वाणी जो अवश्य पूरी हो, (वि०) जिसके शब्द कभी व्यर्थं न हों - वांछित (वि० ) जो कभी निराश न हो, -- विक्रमः अटूट शक्तिशाली, शिव । अम्ब ( वा० पर ० ) 1. जाना 2. ( आ०) शब्द करना । अम्ब: [ अम्ब् + ञ, अच् वा ] पिता, बम् 1 आँख, 2. जल, -ब ( अव्य स्वीकृति बोधक 'हाँ' 'बहुत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्छा' अव्यय | क अम्बकम् [अम्ब् + ण्वुल] 1. आँख ( त्र्यम्बक' में) 2. पिता । अम्बरम् [ अम्बः शब्दः तं राति घत्ते इति -- अम्ब+रा+ 1. आकाश, वायुमंडल, अन्तरिक्ष-- तावतर्जयदम्बरे -- रघु० १२।४१, 2. कपड़ा, वस्त्र, परिधान, पोशाक - दिव्यमाल्यांबरधरम् - भग० १११११, रघु ० ३।९, दिगंबर, सागराम्बरा मही-समुद्र की परिधि से युक्त पृथ्वी 3. केसर 4. अबरक 5. एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य । सम० अन्त: 1. वस्त्र की किनारी 2. क्षितिज, ओकस् (पुं०) स्वर्ग में रहने वाला, देवता - ( भस्मरजः ) विलिप्यते मौलिभिरंबरौकसाम् -- कु० ५/७९, बम् कपास, मणिः सूर्य, लेखिन् (वि०) गगनचुंबी रघु० १३।२६ । अम्बरीषम् | अम्ब + अरिष् नि० दीर्घ० ] (कुछ अर्थों में 'अम्बरीपम् ' भी ) 1. भाड़, कड़ाही 2. खेद, दुःख 3. युद्ध, संग्राम 4. नरक का एक भेद 5. छोटा जानवर, बछड़ा 6. सूर्य 7. विष्णु 8. शिव । अम्बष्ठः [ अम्ब + स्था + क]1. ब्राह्मण पिता तथा वैश्यमाता से उत्पन्न सन्तान ब्राह्मणाद्वैश्यकन्यायामम्बष्ठो नाम जायते - मनु० १०१८, याज्ञ० ११९१, २. महावत 3. ( ब० व०) एक देश तथा उसके निवासियों का नाम, --ष्ठा कुछ पौधों के नाम-- ( क ) गणिका, यूथिका ( जूही ), (ख) पाठा (ग) चुत्रिका (घ) अंबाड़ा, ---ष्ठा, ष्ठी अम्बष्ठ जाति की स्त्री । अम्बा [ अम्ब् + घञ् +टाप् ] (वैदिक संबोधन - अंबे; बाद की संस्कृत में अम्ब) 1. माता, (स्नेह अथवा आदर पूर्ण संबोधन में भी इसका प्रयोग होता है) भद्र महिला, भद्र माता - किमम्बाभिः प्रेषितः, अम्बानां कार्य निर्वर्तय श०२, कृताञ्जलिस्तत्र यदम्ब सत्यात् - रघु० १४/१६, 2. दुर्गा, भवानी 3. पांडु की माता, काशिराज की कन्या [ यह और इसकी दो बहनें भीष्म के द्वारा सन्तानहीन विचित्रवीर्य के लिए अपहृत की गई थीं। क्योंकि अम्बा की सगाई पहले ही शाल्व के राजा से हो चुकी थी, अतः इसे उन्हीं के पास भेज दिया गया। परन्तु दूसरे के घर में रही होने के कारण शाल्व के राजा न उसे ग्रहण नहीं किया, अतः वह वापिस आई और उसने भीष्म से प्रार्थना की कि वह अब उसे स्वीकार करें, परन्तु उन्होंने अपना आजन्म ब्रह्मचय भंग करना उचित नहीं समझा, फलतः वह जंगल में जाकर भीष्म से प्रतिशोध लेने की तपश्चर्या करने लगी । शिव उस पर प्रसन्न हुए और उन्होंने उसके दूसरे जन्म में अभीष्ट प्रतिशोध दिलाने की प्रतिज्ञा की। बाद में वह द्रपद के घर शिखण्डिनी के रूप में पैदा हुई, और शिखंडी कहलाने लगी, और अंत में वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनी || For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८७ ) अम्बाडा-ला [अम्बा+ला+क+टाप-डलयोरभेदात् । स्वामी,-पातः जलधारा, जलप्रवाह, नदी या झरना अम्बाडा अपि ] माता। गङ्गाम्बुपातप्रतिमा गृहेभ्यः-भट्टि० ११८, -प्रसादः, अम्बालिका [ अम्बाला-+-क+टाप् इत्वम् ] 1. माता, ----प्रसादनम् कतक, निर्मली का पेड़-फलं कतकवृक्षस्य भद्र महिला, (सम्मान तथा स्नेहसचक शब्द) 2. यद्यम्बुप्रसादकम्, न नामग्रहणादेव तस्य वारि प्रसीदति अंबाडा नामक पौधा 3. काशिराज की सबसे छोटी 1. ---भवम् कमल,-भूत् (पु.) 1. जलवाहक, बादल पुत्री-विचित्रवीर्य की पत्नी, (जब, सत्यवती ने 2. समुद्र 3. अबरक,-मात्रज (वि.) जो केवल जल निस्सन्तान विचित्रवीर्य के लिए एक पूत्र पैदा करने के में ही उत्पन्न हो (--जः) शंख-मुच (पुं०) बादल, लिए व्यास का आवाहन किया -तब व्यास के द्वारा -ध्वनितमूचितमम्बुमचा चयम-कि० ५।१२,--राजः उत्पन्न 'पांडु' की यह माता बनी)। 1. समुद्र 2. वरुण,-राशिः जलाशय या पानी का अम्बिका [अम्बा+कन्+टाप् इत्वम् ] 1. माता, भद्र भंडार, समुद्र -त्वयि ज्वलत्यौर्वमिवाम्बुराशी-श. महिला, ('अम्बा' की भाँति स्नेह और आदर सूचक ३।३, चन्द्रोदयारम्भ इवाम्बुराशि:- कु० ३।६७, शब्द),—अतिके अम्बिके शृण मम विज्ञप्तिम---मच्छ० रघु० ६।५७, ९४८२, रुह (नपुं०) 1. कमल 2. १. 2. शिव की पत्नी पार्वती,...आशीभिरेधयामासुः सारस, ---रुहः, -रुहम् कमल-विपुलिनाम्बुरहा न सरिपुरःपाकाभिरम्बिकाम---कु०६।९०, 3. काशिराज द्वधू:--कि०५।१०,-रोहिणी कमल,--वाहः 1. बादल की मझली पुत्री, तथा विचित्रवीर्य की ज्येष्ठ पत्नी, -तडित्वन्तमिवाम्बुवाहम-कि० ३११, भर्मित्रं प्रियमअपनी छोटी बहन की भाँति इसके भी कोई संतान विधवे विद्धि मामम्बुवाहम् –मेघ० १०१, 2. झील नहीं हुई, फिर व्यास के द्वाग इसमें उत्पन्न पुत्र 3. जलवाहक,-वाहिन ( वि०) पानी ले जाने वाला 'धृतराष्ट्र' कहलाये ऊपर दे० 'अम्बा' । सम० ---पतिः, (-५०) बादल,-वाहिनी काठ का डोल, एक -भर्ता शिव, -पुत्रः, -सुतः धृतराष्ट्र । प्रकार का पानी उलीचने का बर्तन-विहारः जल क्रीड़ा, अम्बिकेषः,-यकः [ अम्बिका+] [ अधिक शुद्ध रूप वेतसः एक प्रकार का वेत, नरकूल जो जल में पैदा ___'आंबिकेय' है गणेश या कार्तिकेय, या धृतराष्ट्र । होता है,- सरणम् जलप्रवाह, जलधारा,सपिणी अम्बु (नपं०) अम्ब्+उण] 1. जल---गांगमम्बु सितमम्त्र जोक -..-सेचनी जल छिड़कने का पात्र । यामुन . काव्य०१०, 2. रुधिर के अन्तर्गत जलीय | अम्बुमत् (वि०) [अम्बु+मतुप्] पनीला, जिसमें जल हो, तत्व। सम० . ...कणः पानी की बंद, -- कण्टकः -ती एक नदी का नाम । (छोटी नाक वाला) घड़ियाल, - -किरातः घड़ियाल, अम्बूकृत (वि.) [अम्बु+च्चि +-कृ :-क्त] वड़ बड़ाया हुआ, ---कोशः, --कर्मः कछवा, ---केशरः नींबू का पेड़, होठों को बन्द करके अस्पष्ट रूप से कहा हुआ, मुंह --क्रिया पितृ तर्पण, पितरों को जलदान, -ग,-चर, में ही कहा हुआ, मुंह से थूक उछालते हुए कहा हुआ। -चारिन (बि०) जल में रहने वाला, जलचर, -तम् बड़बड़ाने का शब्द, भाल के गुर्राने का -धनः ओला,-चत्वरम् झील,—ज जल में उत्पन्न, शब्द-दधति कुहरभाजामत्र भल्लकयूनामनुरसितजलज (विप० स्थलज)--सुगंधीनि च माल्यानि स्थल- गुरुणि स्त्यानम्बुकृतानि-उतर० २।२१, मा० ९।६, जान्यम्बजानि च-रामा० (जः) 1. चन्द्रमा, 2. कपूर महावी० ५।४१। 3. सारस पक्षी 4. शंख, (जम्) 1. कमल, -इंदीवरेण अम्भ (भ्वा० आ०)[अम्भते, अम्भित] शब्द करना, आवाज नयन मुखमम्बुजेन - शृंगार० ३, 2. इन्द्र का वज्र, करना। "भः, °आसनः कमल से उत्पन्न देवता, ब्रह्मा, आसना अम्भस् (नपुं० )[आप (अम्भ)+अमन] 1 जल-कथमप्यलक्ष्मीदेवी,-जन्मन् (नपुं० ) कमल, (पुं०) 1. म्भसामन्तरानिष्पत्तेः प्रतीक्षते-कू० २।२७, स्वेद्यमाचन्द्रमा 2. शंख 3. सारस पक्षी,---तस्करः जलचोर, मज्वरं प्राज्ञः कोऽम्भसा परिषिञ्चति -शि० २।४५, सूर्य, - -द (वि०) जल देने वाला (-वः) बादल- अम्भसाकृतम्-जल द्वारा किया हुआ, पा० ६।३।३, नवाम्बुदानीकमुहुर्तलांछने-रघु० ३।५३,-धरः । 1. 2. आकाश 3. जन्मकुंडली में लग्न से चौथा स्थान । बादल --वशिनश्चाम्बुधराश्च योनयः --कु० ४।४३, सम०, -- ज (वि०) जल में उत्पन्न (-जः) 1. चन्द्रमा शरत्प्रमष्टाम्बुधरोपरोधः रघु० ६४४, 2. अबरक, 2. सारस पक्षी, (-जम्) कमल-बाले तब मुखा----धि: 1. पानी का आशय, जलपात्र, -अम्बुधिर्घट:--- म्भोजे कथमिन्दीवरद्वयम्-शृंगार० १७, इसी प्रकार सिद्धा०, 2. समुद्र, क्षार' भर्तृ० २।६, 3. चार की पादः, नेत्र, खंड:-डम कमलों का समह-कुमुदव संख्या,-निधिः पानी का खजाना, समुद्र, देवासुरैर- नमपथि श्रीमदम्भोजवण्डम-शि० ११६४, °जन्मन मतमम्बुनिधिर्ममन्थ-कि० ५।३०, ------ (वि०) पानी (40),-जनिः,-योनिः कमलोत्पन्न देवता, ब्रह्मा की पीने वाला (---पः) 1. समुद्र 2. वरुण-जल का । उपाधि,-जन्मन् (नपुं०) कमल,-दः,-धरः बादल, For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८८ ) -धिः,-निधिः,-राशिः जल का भंडार, समुद्र-संभू- (जैसा कि चन्द्रमा, सूरज) 2. फलना-फूलना, समृद्ध याम्भोधिमम्येति महानद्या नगापगा-शि० २१००, होना, उद्° 1. निकलना, उगना(जैसा कि सूर्य)-उदयति यादवाम्भोनिधीन्रुन्धे वेलेव भवतः क्षमा-५८, इसी हि शशाङ्कः कामिनीगण्डपाण्डु:--मृच्छ० ११५७, 2. प्रकार- अम्भसां निधि:, शिखाभिराश्लिष्ट इवाम्भसां प्रकट होना, बिखलाई देना-महूर्तो यज्ञियः प्राप्तश्चोनिधिः-शि० ११२०, °वल्लभः मूंगा,---रह, (नपुं०-८) दयन्तीह याजका:-महा0 3. फूटना, उदय होना, जन्म -यहम् कमल-- हेमाम्भोरुहसस्यानां तद्वाप्यो धाम लेना, उत्पन्न होना-तदोदयेदन्यवधूनिषेधः---नै० सांप्रतम्-कु० २।४४, (पुं०) सारस पक्षी,-सारम् ३॥९२, यथाग्नेधूम उदयते-शत०, परा° (रा को ला मोती,-सः धूआं, अंधकार । हो जाने पर) भागना, वापिस होना, भाग जाना। अम्भोजिनी अम्भोज+इनि+ डीप्]1.कमलका पौधा, कमलों अयः [इ । अच्] 1. जाना, चलना, फिरना (अधिकतर का समूह,-°वननिवासविलासम्-भर्त० २।१८, 2. समास में-अस्तमय), 2. पूर्वजन्म के अच्छे कृत्य कमलों का समूह 3. वह स्थान जहाँ कमल बहुतायत 3. अच्छा भाग्य, अच्छी किस्मत-शुद्धपाष्णिरयान्वितः से हों। -रघु०४।२६, 4. खेलने का पासा । सम०–अम्वित, अम्मय (वि.) [स्त्री०-यी] [अप-+-मयट्] जलीय, या | अयवत् (वि.) सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मत वाला, जल से बना हुआ। -सुलभैः सदा नयवताऽयवता-कि० ५।२०। अन=तु० आम्र। अयक्मम् स्वास्थ्य का होना, नीरोगता। अम्ल (वि.)[अम्+क्ल + अच्]1.खट्टा, तीखा,-कट्वम्ल- अयज्ञ (वि.) [न० ब०] यज्ञ न करने वाला--शः [न. लवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः (आहाराः) भग० त०] यज्ञ का न होना, बुरा यज्ञ । १७।९,--- म्लः खटास, तीखापन, ६ प्रकार के रसों में अयज्ञिय (वि.) [न० त०] 1. जो यज्ञ के योग्य न हो से एक, 2. सिरका 3. नोनिया साग, इमली, 4. नीब (जैसा कि उड़द) 2. जो यज्ञ करने का अधिकारी न का वृक्ष 5. उद्वमन । सम०-अक्त (वि.) खट्टा हो (जैसा कि यज्ञोपवीत से हीन बालक) 3. लौकिक, किया हुआ,—उद्गारः खट्टी डकार, केशरः चको गंवारू। तरे का वृक्ष,-गंधि(वि०) खट्टी गंध वाला,—गोरसः । अयत्न (वि.) [न० ब.] बिना ही यत्न किये होनेवाला खट्टी छाछ,-जंबीरः,-निबकः नींबू का वृक्ष,---पित्तम् -पटवासतां-रघु० ४।५५--लः (न० त०) श्रम एक रोग जिसमें आहार आमाशय में पहुंच कर अम्ल या उद्योग का अभाव, अयस्नेन,-लतः स्नात, अनाहो जाता है, खट्टा पित्त,-फल: इमली का वृक्ष, यास, बिना परिश्रम के, आसानी से, तत्परता के साथ। (-लम्) इमली,---रस (बि०) खट्टे स्वाद वाला अयथा (अव्य०)[ न० त०] जिस प्रकार होना चाहिए वैसे (-सः) खटास, तेजाबी अंश,-वृक्षः इमली का वृक्ष, न होना, अनुपयुक्त रूप से, अनुचित ढंग से, गलत --सारः नींबू का पौधा, हरिखा आंवाहल्दीका पौधा। तरीके से । सम०---अर्थ (वि०) 1. जो नितांत भाव अम्लकः [अम्ल+कन् (अल्पार्थे)] लकुच, बडहर । के अनुकूल न हो, अर्थहीन, भावरहित 2. असंगत, अम्लान (वि०)[न० त०] 1. जो माया न हो (पुष्पादिक) अयोग्य, मिथ्या श० ३१२, अशुद्ध, गलत-अनुभवो 2. स्वच्छ, साफ उज्ज्वल (चेहरा), निर्मल, बिना द्विविधो यथार्थोऽयथार्थश्च तर्क सं०, अनुभवः अशुद्ध बादलों का,-पदार्थन्यायवादेषु कणोऽप्यम्लानदर्शन:, या असत्य ज्ञान, गलत भाव,-इष्ट (वि०) 1. जो -नः बाणपुष्पवृक्ष, दुपहरिया। इच्छानुकूल न हो, नापसंद 2. अपर्याप्त, नाकाफी अम्लानि (वि०) [न० ब०] सशक्त, न मुझाने वाला,—निः -उचित (वि०)अयुक्त, अनुपयुक्त, तथ (वि०)1. जो (स्त्री०) [न० त०] 1. शक्ति 2. ताजगी, हरियाली। जैसा होना चाहिए वैसा न हो, अयुक्त, अनुपयुक्त, अम्लानिन् (वि.)[न० त०] स्वच्छ, साफ,-नी बाणपुष्प- अयोग्य,-- इदमयथातथं स्वामिनश्चेष्टितम-वेणी०२, वृक्षों का समूह। 2. अर्थहीन, व्यर्थ, लाभरहित (-थम्) (अव्य०) 1. अम्लि (म्ली) का [अम्ला+कन् टाप् इत्वम्, अम्ल+ अयुक्तता के साथ, अनुपयुक्तता के साथ, 2. व्यर्थ, डी+क-टाप् वा] 1. मुंह का खट्टा स्वाद, खट्टी अकारथ, बेकार, तद्गच्छति अ...---मनु० ३।२४० डकार 2. इमली का वृक्ष । ---तथ्यम् अनुपयुक्तता, असंगतता, व्यर्थता,-चोतनम् अम्लिमन् (पुं०) [अम्ल-1 इमनिच्] खटास, खट्टापन । आशातीत घटना का होना,---पुर,-पूर्व (वि०) जो अय (म्वा.आ.)[कई बार भी, प०, विशेषतः उद उपसर्ग पहले कभी न हुआ हो,अभूतपूर्व, अनुपम,-वृत (वि.) के साथ] [अयते, अयांचके, अयितुम, अयित जाना। गलत तरीके से कार्य करने वाला,--शास्त्रकारिन् अन्तर् अन्तःप्रवेश करना, हस्तक्षेप करना,-दर्दुरक (वि.) शास्त्रानुकूल कार्य न करने वाला, अधार्मिक, उपसूत्यान्तरयति---मृच्छ० २, अम्युद? 1. निकलना ] -अयथाशास्त्रकारी च न विभागे पिता प्रभुः-नारद। For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयथावत् (अव्य०) गलती से, अनुचितरीति से। -- मलम लोहे का जंग, इसी प्रकार रजः, रसः, अयनम् [ अय् + ल्युट् ] 1. जाना, हिलना, चलना, जैसा कि | -मुखः लोहे की नोक लगा हुआ बाण-भेत्स्यत्यजः कुम्भ र'मायणम्' में 2. राह, पथ, मार्ग, सड़क—अगस्त्य- मयोमुखेन रघु० ५।५५,—कु: 1. लोहे की बी 2. चिह्लादयनात्-रघु० १६६४४, 3. स्थान, जगह, घर, लोहे की कील, नोकदार लोहे की छड़-रघु०१२।९५, 4. प्रवेशद्वार, व्यूह में प्रवेश करने का मार्ग अयनेषु च -शूलम् 1. लोहे का भाला 2. प्रबल साधन, तीक्ष्ण सर्वेषु यथाभागमवस्थिता:-भग० ११११ 5. सूर्य का उपाय-सिद्धा०, (तु० आयःलिक: काव्य० १०, अय:मार्ग, सूर्य की विषुवत् रेखा से उत्तर या दक्षिण की शूलेन अन्विच्छतीत्यायःशूलिकः), हृदय (वि.) ओर गति, 6. (अत एव) इस मार्ग का अवधि-काल, लौह-हृदय, कठोर, निष्ठुर, सुहृदयो हृदयः प्रतिगर्जछ: मास, एक अयनबिंदु से दूसरे अयनबिंदु तक जाने ताम् रघु०९।९। का समय---दे० उत्तरायण, दक्षिणायन, 7. विषुव और | अयस्मय (अयोमय) (नपुं० [स्त्री०-यी] [अयस्+ अयनसंबंधी बिन्दु,—दक्षिणम् अयनम-शिशिरऋतु का मयट ] लोहे या और किसी धातु का बना हुआ। अयन; उत्तरम् अयनम्-ग्रीष्म अयन 8. अन्तिममुक्ति । अयाचित (वि०) [न० त०] न मांगा हुआ, अप्रार्थित ..-नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय-श्वेता० । सम०-काल: (भिक्षा, आहार आदि)-अमतं स्याद याचितम्-मनु० दोनों अयनों के मध्य की अवधि (दोनों अयनों का ४५.---तम् अप्रार्थित भिक्षा । सम०-उपनत, उपसंधिकाल),-वृत्तम् ग्रहणरेखा। स्थित बिना निमंत्रण या प्रार्थना के पहुंचा हुआ,अयन्त्रित (वि०) [न० त०] अनियंत्रित, जिसको रोका न अयाचितोपस्थितमंबु केवलम्---कु० ५।२२,-वृत्तिः जा सके, स्वेच्छाचारी, मनमानी करने वाला। बिना मांगी या अप्रार्थित भिक्षा पर जीवित रहना। अयमित (वि.) [न० त०] 1. अनियंत्रित, 2. जिस पर अयाज्य (वि.) [न० त०] 1. ( व्यक्ति) जिसके लिए प्रतिबंध न लगा हो 3. जिसकी काट-छांट न की गई यज्ञ नहीं करना चाहिए, या जो यज्ञ करने का हो, असज्जित (जैसा कि नाखून आदि),-मेघ० ९२।। अधिकारी न हो (शुद्रादिक ), 2. (अत एव ) जातिअयशस् (वि.) [न० ब० ] यशोहीन, बदनाम, अकीर्तिकर बहिष्कृत, पतित 3. यज्ञ करने का अनधिकारी। ('अयशस्क') भी इसी अर्थ में, (नपुं०-शः) सम-याजनम्,---संयाज्यम् उस व्यक्ति के लिए बदनामी, अपकीति, कुख्याति, अवमान, निन्दा-अयशो यज्ञ करना जिसके लिए किसी को यज्ञ नहीं करना महदाप्नोति—मनु० ८।१२८, किमयशो ननु घोरमतः चाहिए-मनु० ३।६५, १११६० । परम् -उत्तर० ३।२७, स्वभावलोलेत्ययशः प्रमृष्टम्-- अयात (वि०)[न० त०] न गया हुआ, । सम०-याम रघु०६।४१, । सम-कर (वि.) (स्त्री०-री) (वि०) जो बासी न हो, ताजा, जो उपयोग में आने बदनाम, कलंकी। के कारण जीर्ण-शीर्ण न हआ हो,-मं च यौवनम् अयशस्य (वि०) [न० त०] बदनाम, कलंकी। - दश० १२३, ताजा, खिला हुआ। अयस् (नपुं०) [इ+असुन] 1. लोहा,-अभितप्तमयोऽपि | अयायाथिक (वि.) [स्त्री०-की][न त०] 1. जो मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिष--रघु०८।४३, 2. सत्य न हो, न्याय विरुद्ध, अनुचित 2. अवास्तविक, इस्पात, 3. सोना, 4. धातु, 5. अगर नामक लकड़ी। असंगत, वेतुका । (पुं०) अग्नि । सम०--अग्रस,---अग्रकम् हथौड़ा, | अयाथार्थ्यम् [ न० त०] 1. अयोग्यता, अशुद्धता 2. बेतुकामूसल,-कांड: 1. लोहे का बाण 2. बढ़िया लोहा 3. लोहे पन, असंगतता। का बड़ा परिमाण,-कान्तः (अयस्कान्त:) 1. चुंबक, | अयानम् [न० त०] 1. न जाना, न हिलना-डुलना, ठहरना, चंबक पत्थर,-शम्भोर्यतध्वमाक्रष्टुमयस्कान्तेन लोह- टिकना 2. स्वभाव । वत,-कु० ११५९ स चकर्ष पररमात्तदयस्कान्त इवायसम् | अयि ( अव्य०) [इ+इनि ] 1. मित्रादिकों के प्रति नम्र -रघु० १७१६३, उत्तर० ४।२१, 2. मूल्यवान् पत्थर, संवोधन, ओह, ए, अरे आदि सामान्य संबोधन बोधक मणिः चुंबक पत्थर-अयस्कान्तमणिशलाकेव लोहधातु- अवाय, -अयि विवेकविश्रांतमभिहितम् --मालवि० मन्तःकरणमाकृष्टवती-मा० १,-कारः लहार, लोहे का १, अयि भो महर्षिपुत्र-श० ७, अयि विद्युत्प्रमदानां काम करने वाला, कीटम् लोहे का जंग या मुर्चा-कुंभः त्वमपि च दुःखं न जानासि-मृच्छ० ५।३२,दे० लोहे का बर्तन, इंजिन का वायलर आदि, इसी प्रकार भामि० ११५, ११,४४ । 2. प्रार्थना या अनु-.-पात्रम्,-घनः लोहे का हथौड़ा--अयोधनेनाय रोध बोधक अव्यय --- अयि संप्रति देहि दर्शनम्-कू० इवाभितप्तम् --रधु०१४।३३, चूर्णम् लोहे का चूरा, ४।२८, प्रोत्साहन तथा अनुनय के अर्थ में भी-अयि ---जालम लोहे की जाली,-दंडः लोहे की मद्गर,-धातुः मन्दस्मितमधुरं वदनं तन्वंगि यदि मनाक्कूरुष-भामिक लोहधातु-उत्तर० ४।२१, प्रतिमा लोहे की मूर्ति, । २११५०, 3. सामान्य सानुग्रह-पृच्छा द्योक अव्ययत १२ For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -अयि जीवितनाथ जीवसि--कु० ४।३,---अयीदमेवं । मातलि:----श० ६ (ख) उदासी, खिन्नता-अये देवपरिहासः--५।६२ । पादपद्मोपजीविनोऽवस्थेयम्-मुद्रा० २, शोक (ग) अयुक्त (वि.) [न० त०] 1. जो जुता न हो, या जिस क्रोध (घ) खलबली, क्षोभ (ङ) प्रत्यास्मरण (च) पर जीन न कसा गया हो, 2. जो मिला हुआ न हो, भय (छ) थकाबट । संबद्ध या संयुक्त न हो 3. जो भक्त या धार्मिक न हो. अयोगः [न० त०] 1. अलगाव, वियोग, अन्तराल 2 ध्यान रहित, उपेक्षाशील 4. अभ्याससापेक्ष, अनभ्यस्त, अयोग्यता, अनौचित्य, असंगति 3. अनचित संबंध 4. जो नियुक्त न हुआ हो, बुद्धि, चार 5. अयोग्य, विधुर, अनुपस्थित प्रेमी या पति 5. हथौड़ा (अयोय अनुचित, अनुपयुक्त---अयुक्तोऽयं निर्देश:--पा० ४१२। तथा अयोधन) 6. अरुचि । ६४, महा० 6. झूठ, गलत । सम-कृत् अनुचित | अयोगवः (स्त्री०- वा,--वी) [अय इव कठिना गौर्वाणी या गलत काम करने वाला,-पवार्थः शब्द का वह यस्य--ब० स० नि० अच् | शूद्र पिता और वैश्य अर्थ जो दिया न गया हो, जैसे कि 'अपि' शब्द,--रूप माता की सन्तान दे० आयोगव ! (वि०) असंगत, अनुपयुक्त,-अयुक्तरूप किमतः परं अयोग्य (वि.) [ न० त०] जो योग्य न हो, अनु. वद-कु० ५।५९। पयुक्त, निरर्थवः । अयुग-गल (वि.) [न० त०] 1. पृथक्, अकेला 2. ऊबड़- | अयोध्य ( वि०) [ न० त०] जिस पर आक्रमण न खाबड़, विषम । सम-अचिस् (पुं०)आग,-नेत्रः- किया जा सके, जिसका मुकाबला न किया जा सके, नयनः,- शरः दे० अयुग्म के अन्तर्गत, सप्तिः सात ---अद्यायोध्या महाबाहो अयोध्या प्रतिभाति नः घोड़ों वाला, सूर्य । -रामा०,---ध्या सरयू नदी के तट पर स्थित वर्तमान अयुगपद् (अव्य०) [न० त०] 1. सब एक साथ नहीं, अयोध्या नगरी, रघुवंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं क्रमश: यथाक्रम, । सम०-ग्रहणम् क्रमपूर्वक सम-| की राजधानी। झना,-भावः अनुक्रम, आनुक्रमिकता । अयोनि (वि.)[न०ब०] 1. अजन्मा, नित्य,—जगद्योनिरयोअयुग्म ( वि०) [ न० त०] 1. अकेला, न्यारा 2. निराला, निस्त्वम्- कु० २१९ 2. जो कोख से उत्पन्न न हो, विषम, (संख्या),। सम०-छदः,—-पत्रः सप्तपर्ण अधर्म अथवा अवैध रूप से उत्पन्न,--नि: (स्त्री०) नामक पौधा, -नयनः, नेत्रः,-लोचनः विषम (३) (न० त०] जो योनि न हो,--निः ब्रह्मा, शिव, । आँखों वाला, शिव-कु० ३।५११६९, बाणः,-शरः । सम०,--ज,-जन्मन् (वि०) जो जरायु से न जन्म। विषम (५) बाणों वाला, कामदेव,-वाहः, सप्तिः हो, सामान्य जन्मपद्धति के अनुसार जिसने जन्म न सात घोड़ों वाला सूर्य । लिया हो-तनयाम् अयोनिजाम्-- रघु० ४८, कन्याअयुज् (वि.) [ न० त०] निराला, विषम (विप० युज् रत्नमयोनिजन्म भवतामास्ते—महावी० ११३०, ईशः --सम)। सम०-- इषुः,-बाणः,-शरः पांच बाणों ईश्वरः शिव, (--जा)--संभवा जनक की पुत्री सीता वाला, कामदेव,-छदः=सप्तपर्णः-बबुरयुक्छद- जो कि खेत के खूड से उत्पन्न हुई थी। गुच्छसुगन्धयः----शि०६।५०,-पलाशः सप्तपलाशः, अयोगपद्यम् [ न० त०] समकालीनता का अभाव।। -पाद,--यमकम् पहले और तीसरे पाद में भिन्न अयौगिक (वि.) [स्त्री०—की ] [न० त०] व्याकरण के अर्थों वाले एक से अक्षर रखने वाला अनुप्रास का एक नियमानसार जो शब्द व्यत्पन्न न हो। भेद, नेत्र,-लोचन,-"-अक्ष,---शक्ति शिव। अरः [ ऋ+अच् ] पहिये के अरे या पहिये का अर्धव्यास अयुत ( वि०) [न० त०] न मिला हुआ, पृथक्कृत, (रं भी)-अरैः संधार्यते नाभिः नाभौ चाराः प्रति असंबद्ध,--तम् दस हजार, दस सहस्र की संख्या । ष्ठिताः--पंच० ११८१, । सम... अंतर (ब० व०) सम---अध्यापकः अच्छा अध्यापक, सिद्ध (वि०) अरों का अन्तराल-विक्रम० ११४,--घट्टः, ---घट्टक: (वैशे० में) अपथक्करणीय, अन्तनिहित,---सिद्धिः 1. रहट जिसके द्वारा कुएँ से पानी निकाला जाता है, ( स्त्री० ) ऐसा प्रमाण जिससे निश्चय हो कि घटी रहट में प्रयुक्त किया जाने वाला डोल,---कृपकुछ वस्तुएं तथा मान्यताएं अपथक्करणीय, तथा मासाद्य 'टीमार्गेण सर्पस्तेनानीत:-पंच०४, 2. गहरा अन्तहित है। कुआँ । अये (अव्यय) [+एच ] 1. संबोधनात्मक अव्यय या । अरजस्, अरज, अरजस्क (वि०) [न० ब०] 1. धूल या संबोधन का नम्र प्रकार ( =अयि)- अये गौरीनाथ गर्द से रहित, साफ स्वच्छ (आल० भी) 2, रज या त्रिपुरहर शंभो त्रिनयन---भर्त० ६।१२३ 2. विस्मयादि वासना से मक्त 3. जिसे मासिक धर्म न होता हो, द्योतक अव्यय--(क) ओह, अये आदि अब्दों में (स्त्री०-जाः) वह कन्या जिसे अभी रजोधर्म आरंभ अनूदित आश्चर्य तथा विस्मय की भावना,-अये | नहीं हुआ। For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरज्ज (वि.) न० ब०] जिसमें रस्सियां न लगी हों, जंगल में आवास, वासिन् (वि.) जंगल में रहने रस्सियों से विरहित; (नपुं०) कारागार । वाला (पुं०) अरण्यवासी, वानप्रस्थी,-विलपितम, अरणिः (पु०स्त्री०) [स्त्री०-णी ] शमी की लकड़ी ----विलापः (°ण्ये ) = रुदितम्-श्वन (पुं०) जंगली का टुकड़ा, जिसके घर्षण से यज्ञ के अवसर पर अग्नि कुत्ता, भेड़िया,-सभा जंगल की कचहरी । जलाई जाती है, आग उत्पन्न करने वाली लकडी-- अरण्यकम् [ अरण्य+कन् ] जंगल, बन । तु०, पंच० १।२१६,--णी (द्वि० व०) यज्ञाग्नि प्रज्व- अरण्यानिः-नी (स्त्री०) [अरण्य-+आनुक डीप च] एक लित करने के लिए लकड़ी की दो समिधाएँ,-णि: 1. बड़ा जंगल, या बोहड़ मरुभूमि, विस्तृत उजाड़ । सूर्य, २ आग 3. फलीता, चकमक पत्थर । अरत (वि.) [न० त०] 1. मन्द, विरक्त, अनासक्त 2. अरण्यम् (कई बार पुं० भी) [ अर्यते गम्यते शेषे वयसि असंतुष्ट, तुष्टिरहित, पराङमुख, तम् अमैथुन । ऋ-|-अन्य ] जंगल, बन, उजाड़, ---प्रियानाशे कृत्स्नं सम०-अप (वि.) मैथुन करने में न लजाने वाला किल जगदरण्यं हि भवति उत्तर०६।३०, माता यस्य (--पः) कुत्ता (गलियों में बिना किसी प्रकार की गहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी, अरण्यं तेन गन्तव्यं लज्जा के मैथुन करने वाला)। यथारण्यं तथा गहन्- --चाण० ४४, जंगली, जंगल में । चा ४४ जंगली जंगल में अरति (वि०) [न० ब०] 1. असन्तुष्ट 2. सुस्त, निढाल, उत्पन्न (यदि समस्त पद का प्रथम खण्ड हो), -तिः (स्त्री०) [ न० त०] 1. आमोद-प्रमोद का 'बीजम् जंगली बीज, इसी प्रकार मार्जार, मषकः । अभाव (प्रेम की प्रबल उत्कण्ठा से पैदा होने वाला), सम०---अध्यक्षः बन की देख रेख करने वाला, -स्वाभीष्टवस्त्वलोभेन चेतसो या जवस्थिति: अरतिः राजिक,---अयनम्,--यानम् जंगल में चले जाना, सा--सा0द0 2. पीड़ा, कष्ट 3. चिन्ता, खेद, बेचैनी, वानप्रस्थ लेना,-ओकस,-सद् (वि.) 1. अरण्यवासी, क्षोभ, -संधत्ते भृशमरति हि सद्वियोग:-कि० ५।५१, जंगल में रहने वाला----वैक्लव्यं मम ताबदीदशमपि 4. असन्तोष, संतोषाभाव, 5. निढालपना, सुस्ती 6. स्नेहादरण्यौकसः-श० ४।५, 2. विशेषतः वह जिसने एक पैत्तिक रोग। अपना परिवार छोड़ दिया हो और वानप्रस्थी हो गया। अरनिः (पुं० स्त्री०) [ऋ+कत्नि-रनिः, स नास्ति यत्र] हो, जंगल में रहने वाला,-कदली जंगली केला,--- गजः 1. कुहनी, कई बार मुक्का, 2. एक हाथ की माप, कहनी जंगली हाथी (जो पालतू न हो),-चटकः जंगली चिड़िया से कानी उंगली के छोर तक की माप, लंबाई नापने -चंद्रिका (शा०) जंगल में चन्द्रमा का प्रकाश का पैमाना-अरनिस्तु निष्कनिष्ठेन मष्टिना-अमर', (आलं०) निरर्थक शृंगार या आभूषण, ऐसा बनाव- मध्यांगुलिकर्परयोर्मध्ये प्रामाणिक: करः, बद्धमुष्टिकरो सिंगार जिसे कोई देखने-सराहने वाला न हो, इसी रनिररत्निः सकनिष्ठिक: । हला०, कि० १८०६, । लिए मल्लिनाथ- स्त्रीणां प्रियालोकफलो हि वेष:- | अरनिकः [ अरनि-+-कन् ] कुहनी। कु० ७१२२, पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं--अन्यथा- | अरम् (अव्य०) [ ऋ+अम् ] 1. तेजी से, निकट, पास ही, ऽरण्यचन्द्रिका स्यादिति भावः:--चर (°ण्येचर भी). उपस्थित 2. तत्परता के साथ। - -जीव (वि.) जंगली,—ज (वि.) बन्य,-धर्मः | अरमण, अरममाण (वि०) [न० त०] 1. जो सुखकर न जंगली अवस्था या प्रथा, जंगली स्वभाव,-तथारण्य- | हो, असन्तोषजनक, अरुचिकर 2. अविराम, अनवरत । धर्माद्वियोज्य ग्राम्यधर्म नियोजितः -पंच० १,- अररम् [ ऋ+अरन् ] किवाड़ का दिला-सरभसमरराणि नपति:---राज (द)- राजः जंगल का स्वामी, सिंह द्रागपावृत्य महावी०६।२७.(-र:-री, भी)-चञ्चपो ब्याध का विशेषण, इसी प्रकार---अरण्यानां कोटिविपाटिताररपुटो यास्याम्यहं पञ्जरात्-भामि० पतिः,-पंडितः 'वन में विद्वान्' (आलं.) मूर्ख पुरुष ११५८, 2. ढक्कन, म्यान,-रः आरी। जो वन में ही (जहाँ कोई सुनने-टोकने वाला नहीं अररे (अव्य०) [अर-रा+के] (क) बड़े उतावलेपन होता) अपना पांडित्य प्रकट कर सके;-भव (वि.) (ख) तथा घृणा और अवज्ञा को प्रकट करने वाला जंगल में उत्पन्न, जंगली, -मक्षिका डांस,-यानम् संबोधन बोधक अव्यय-अररे महाराजं प्रति कुतः जंगल में चले जाना, --रक्षकः अरण्यपाल,-रुदितम् क्षत्रियाः--गण। (ण्ये ) जंगल में रोना, अरण्यरोदन, (आलं०) अरविन्दम् [ अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते--अर+ ऐसा रोना जिसे कोई सुनने वाला न हो, निष्फल । विन्द+श] 1. कमल (कामदेव के पांच बाणों में से कथन ---अरण्ये मया रुदितम्–श. २, प्रोक्तं श्रद्धावि- एक ---दे० 'पंचबाण' के नीचे)-शक्यमरविन्दसुरभि:--- हीनस्य अरण्यरुदितोपमम्---पंच० ११३९३, तदलमधु- श०३।६, यह सूर्य-कमल है.-तु०सूर्यांशुभिभिन्नमिवारनारण्यरुदितै: -अमरु० ७६,-वायसः जंगली कौवा, विन्दम्-कु० ११३२; स्थल, चरण , मुख' आदि पहाड़ी कौवा,-वासः,-समाश्रयः जंगल में चले जाना, । 2. लाल या नील कमल,-द: 1. सारस पक्षी, 2. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तांबा। सम० अक्ष (वि.) कमल जैसी आंखों । लिए बनाई हुयी योजनाएँ, विदेश विभाग का प्रशासन, बाला, विष्णु की उपाधि, बलप्रभम् तांबा, नाभिः, ----नन्दन (वि.) शत्रु को प्रसन्न करने वाला, शत्रु को -भः विष्णु, हृदयो मदीये देवश्चकास्तु भगवानर- विजय दिलाने वाला,-भद्रः बड़ा शक्तिशाली शत्रु-रघु० विन्दनाभ:--भामि० ४१८, सद् (पुं०) ब्रह्मा। १४।३१,-सूचनः, हन्,-हिंसकः शत्रुओं का नाश करने अरविन्दिनी [ अरविन्द+इनि+डीप्] 1. कमल का पौधा वाला--रघु०९।१८। ----प्रपीतमधुका भंङ्गः सुदिवेवारविन्दिनी-भट्टि० अरिक्थभाज, अरिकथीय (वि.) [न० त०] जो पैतृक ५१७०, 2. कमल फूलों का समूह 3. वह स्थान जहाँ | संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकारी न हो (जैसे कमल बहुतायत से होते हों। कि कोई नपुंसकता आदि अवगुणों के कारण अनधिकृत अरस (वि.) [न० ब०] 1. रसहीन, नीरस, फीका कर दिया गया हो)। 2. मंद, बुद्धिहीन 3. निर्बल, बलहीन, अयोग्य । अरित्रम् [ऋ+इत्र] 1. डांड,-लोलेररित्रैश्चरणरिवाभितः अरसिक (वि०) [न० त०] 1. रूखा, रसहीन, फीका, --शि० १२१७१, 2. पतवार, लंगर । बिना स्वाद का, 2. भावना या स्वाद से विरहित, मन्द, | अरिन्दम (वि०) [अरि+दम् +खच्, मुमागमः] शत्रुओं का काव्यादि का रस लेने में असमर्थ, कविता के मर्म को | दमन करने वाला, शत्रु-विजयो, शत्रु को जीतने वाला। न जानने बाला, अरसिकेषु कवित्वनिवेदनं शिरसि | अरिषम् [न० त०] लगातार वर्षा होना,--षः एक प्रकार मा लिख, मा लिख, मा लिख-उद्भट० । का गुदारोग। अराग, अरागिन् (वि.) [न० ब०, न० त०] शान्त, | अरिष्ट (वि०) [न० त०] अक्षत, पूर्ण, अविनाशी, निरापद वासना रहित,--तमहमरागमकृष्णं कृष्णद्वैपायनं वन्दे- ---ष्ट: 1. बगुलां, 2. जंगली कौवा 3. शत्रु 4. नाना वेणी० १।४। प्रकार के पौधों के नाम (क) रीठे का वृक्ष (ख) अराजक (वि.) [न० ब०] बिना राजा का, जहाँ राजा नीम का वृक्ष 5 लहसुन,-ष्टम् 1. दुर्भाग्य, अनिष्ट, न हो-नाराजके जनपदे रामा०, मनु० ७.३, अराज- बदकिस्मती 2. दुर्भाग्यमिश्रित अनिष्टसूचक घटना, के जीवलोके दुर्बला बलवत्तरः, पीड्यंते न हि वित्तेषु अपशकुन 3. प्रतिकूल लक्षण-विशेषतः मृत्युसूचक प्रभुत्वं कस्यचित्तदा। महा०, शोच्यं राज्यमराज- ...रोगिणो मरणं यस्मादवश्य भावि लक्ष्यते, तल्लक्षणकम्-चाण० ५७ । मरिष्ट स्याद्रिष्टमप्यभिधीयते 4. सौभाग्य, अच्छी अराजन् (पुं०) [न० त०] जो राजा न हो। सम० किस्मत, सुख 5. सौरी 6. छाछ 7. मादक शराब --भोगीन (वि०)राजा के काम के अनुपयुक्त, स्था- शि० १८१७७, । सम०--गृहम् सूतिकागृह,ताति पित (वि.) जो किसी राजा द्वारा प्रतिष्ठित न किया (वि.) सौभाग्यशाली या सुखी बनाने वाला, शुभ, गया हो, अवैध, गैरकानूनी। -तिः (स्त्री०) सुरक्षा, सौभाग्य का उत्तराधिअरातिः[न० त०] 1. शत्रु, दुश्मन,-देशः सोऽयमराति कार, अनवरत सुख,---तदत्रभवता निष्पन्नाशिषां शोणितजलयस्मिन् ह्रदाः पूरिताः-वेणी० ३।३१, काममरिष्टतातिमाशास्महे -महावी० १, -मथन: 2. छ: की संख्या। सम०-भंगः शत्रुओं का नाश । शिव, विष्ण,... शय्या प्रसूता का पलंग—अरिष्ट शय्यां अराल (वि.) [ऋ-विच् अरम् आलाति, ला+क] मुड़ा परितो बिसारिणा--रघु० ३.१५,-सूदनः,हन् हुआ, टेढ़ा,-पादावरालांङ्गली-मालवि० २।३, ल: (पुं०) अरिष्टनाशक, विष्णु की उपाधि ।। 1. वक्र भुजा 2. मतवाला हैंथी,-ला पुंश्चली, वेश्या, | अनि चीन ग, वश्या, अरुचिः (स्त्री०) [न० त०] 1. अनिच्छा, किसी वस्तु वारांगना। सम०- केशी धुंघराले बालों वाली स्त्री, का अच्छा न लगना,-क्व सा भोगानामपर्यरुचिः-का० -भिस्वा निराकामदरालकेश्या:--रघु०६।८१,- पक्ष्मन् १४६ 2. भूख न लगना, स्वादु न लगना, उक्तः (वि.) मुड़ी हुई पलकों वाला-कु० ५।४९ । जाना-सन्निपातक्षयश्वासकासहिक्कारुचिप्रणुत्-सुथु० अरिः [ ऋ+इन ] 1. शत्रु, दुश्मन,-विजितारिपुरःसरः- 3. संतोषजनक व्याख्या का अभाव । रघु० ११५९, ६१, ४।४ 2. मनुष्य जाति का शत्रु | अरुचिर, अरुच्य (वि.) [ न० त०] भला न लगने वाला (मनुष्य के मन को व्याकुल करने वाले ६ शत्रु बताये | अरुचिकर, उकताहट पैदा करने वाला। गये हैं--कामः क्रोधस्तथा लोभो मदमोहौ च मत्सरः; अरुज् (वि.) [न० त०] रोगमुक्त, स्वस्थ, नीरोग। --कृतारिषव्डर्गजयेन-कि० ११९ 3. छ: की संख्या अरुज (वि०) न० त०] स्वस्थ, नीरोग। 4. गाड़ी का भाग 5. पहिया। सम-कर्षण (वि०) | अरुण (वि.) (स्त्री-णा,-णी) [ऋ+उनन्] 1. अर्धरक्त शत्रुओं को पीडित या पराभूत करने वाला, कुलम् या कुछ २ लाल, भूरा, पिंगल, लाल, गुलाबी (सांध्य. 1. शत्रुओं का समूह, 2. शत्रु,—घ्नः शत्रुओं का नाश लालिमा के विपरीत प्रभातकालीन मूर्य का रंग) करने वाला,-चिंतनम्,-चिता शत्रुओं के नाश के । -नयनान्यरुणानि धूर्णयन्–कु० ४। १२, 2. विस्मित, For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याकुल 3. मूक-णः 1. लाल रंग, उषा का रंग या प्रातः । अरुष-ष्ट (वि.) [न० त०] अक्रुद्ध, शान्त । कालीन संध्यालोक, 2. सूर्य का सारथि-मूर्त ऊषा, | अरुष (वि.)[न० त०] 1. अक्रुद्ध, 2. चमकोला, उज्ज्वल । ----आविष्कृतारुण पुरःसरःएकतोऽर्क:-श०४११, ७४ | अरुन् (वि.) [ऋ+उसि] घायल, चोट खाया हुआ,विभावरी यद्यरुणाय कल्पते -कु० ५।४४, रघु० (पु-ह:) 1. आक का पौधा, मदार 2. लाल ५।७१, 3. सूर्य-रागेण बालारुणकोमलेन कु० ३।३०, खदिर,--(नपुं०) 1. मर्मस्थल, घाव, ब्रण (पुं० भी)। संसृज्यते सरसिजैररुणांशुभिन्नः ---रघु० ५।६९,-णम् 1 सम० --कर (वि.) क्षतविक्षत करने वाला, घायल लाल रंग, 2. सोना 3. केसर। सम०-अग्रजः करने वाला। गरुड,--अनुजः,-अबरजः अरुण का छोटा भाई, गरुड़, अरूप (वि०) [न००] 1. रूप रहित, आकार शुन्य ---अचिस् (पुं०) सूर्य,- आत्मजः 1. अरुण का पुत्र 2. कुरूप, विरूप 3. विषम, असम,-पम् 1. एक बुरी या जटायु, 2. शनि, सार्वाण मनु, कर्ण, सुग्रीव, यम और भद्दी आकृति 2. सांख्यों का प्रधान तथा वेदान्तियों अश्विनीकुमार (-जा) यमुना, ताप्ती,-क्षिण (वि.) का ब्रह्म। सम०-हार्य (वि.) जो सौन्दर्य से लाल आँखों वाला-उदयः दिन निकलना, उषा, आकृष्ट या वशीभूत न किया जा सके, अरूपहार्य ..-चतस्रो घटिका प्रातररुणोदय उच्यते,-उपल: लाल, मदनस्य निग्रहात्-कु० ५।५३ ।। कमलम् लाल कमल,-ज्योतिस् (पुं०) शिव,-प्रियः अरूपक (वि.) [न० ब०] बिना किसी आकृति या रूपक लाल फूल या कमलों का प्यारा, सूर्य (-या) 1. सूर्य के, जो आलंकारिक न हो, शाब्दिक । पत्नी 2. छाया,-लोचन (वि.) लाल आंखों वाला(-नः) अरे (अव्य०) [ऋ+ए] एक संबोधनात्मक अव्यय-(क) कबूतर, सारथिः जिसका सारथि अरुण है, सूर्य।। छोटों को बुलाने के लिए--आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः गणित, अरुणीकृत (वि०) [अरुण+क्विप् (ना० धा०)+ श्रोतव्यः, न वा अरे पत्युः कामायास्याः पति: प्रियो क्त, अरुण+च्चि++त ईत्वम्] लाल किया हुआ, भवति - शत. (याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी लालरंग में रंगा हुआ, पिंगल रंग का किया हुआ से कहा) (ख) क्रोधावेश में--अरे महाराज प्रति कुत: स्तनाङ्गरागारुणिताच्च कन्दुकात्-कु० ५।११ । क्षत्रिया:--उत्तर. ४ (ग) ईर्ष्या प्रकट करने के लिए। न्तुव (वि०)[अरुषि मर्माणि तुदति-इति-अरुस्+-तुदन | अरेपस (वि. न.ब.] 1. निष्पाप, निष्कलंक 2. निमल ग्वश मम च ममस्थानों को छेदने वाला, घायल करने । पवित्र लोपोडाजातीक्ष्ण, मर्मबंधी-अरुन्तुदमिवालान- | अरेरे (अव्य०) [अरे-अरे इति वीप्सायां द्वित्वमा विस्ममनिर्वाणस्य दन्तिनः---रघु० ११७९, कि० १४१५५, यादि बोधक अव्यय (क) क्रोध पूर्वक बुलाना 2. तीक्ष्ण, उग्र कटुस्वभाव । --अरे रे दुर्योधनप्रमुखाः कुरुबलसेनाप्रभवः--वेणी. रन्धती [ न रुन्धती प्रतिरोधकारिणी] 1. वशिष्ट की ३, अरेरेवांचाट-त० (ख) अपने से छोटों को संबोधित पत्नी-अन्वासितमरुन्धत्या स्वाहयेव हविर्भुजम् - करना या घृणापूर्वक बुलामा-अरे रे राधागर्भभारभूत रघु० ११५६, 2. प्रभात कालीन तारा, वशिष्ठ की सूतापसद-त.। पत्नी, सप्तषिमंडल का एक तारा (पुराणों के अनुसार | अरोक (वि.) [न० ब०] कान्तिहीन, मलिन,धुंधला । वशिष्ठ सप्तर्षियों में एक है तथा अरुन्धती उनकी | अरोग (वि.) [ न० ब०] रोगमुक्त, नीरोग, स्वस्थ पत्नी। अरुन्धती, कर्दम प्रजापति की (बेषहति से अच्छा, अरोगा: सर्वसिद्धार्थाश्चतुर्वर्षशतायुष:उत्पन्न) ९ पुत्रियों में से एक थी। वह दाम्पत्य-महत्ता सुश्रु०,—गः अच्छा स्वास्थ्य -न नाममात्रेण करोत्यका सर्वश्रेष्ठ नमूना है, भार्योंचित भक्ति के कारण रोगम् --हि. ११६७। विवाह संस्कारों में वर के द्वारा उसका आवाहन किया अरोगिन, अरोग्य (वि.) [न.ब.नीरोग, स्वस्थ । जाता है। स्त्री होते हुए भी उसको वही सम्मान | अरोचक (वि.) [स्त्रो०--चिका] [न० त०] 1. जो दिया गया है, जो सप्तर्षियों को तु० कि० ६।१२, चमकीला न हो 2. भूख मंद करने वाला,--क: भूख अपने पति की भांति वह भी रघुवंश के अपने निजी | का कम लगना, अरुचिकर, जुगुप्सा । विभाग की निर्देशिका और नियंत्रिका रही, राम से अर्क (चु. ५०) 1. गर्म करना 2. स्तुति करना। परित्यक्त सीता का निर्देशन देवदूत के रूप में उसो ने अक: अर्क+घन-कुत्वम्] 1. प्रकाशकिरण, विजली की किया। कहते हैं कि जिनका मरण-काल निकट हो, चमक 2. सूर्य,--आविष्कृतारुणपुरःसर: एकतोऽर्क:उन्हें अरुंधती तारा दिखलाई नहीं देता--हि. श०४।१, 3. अग्नि 4. स्फटिक 5. तांबा 6. रविवार ११७६)। सम०-जानिः,-नाथः-पतिः वशिष्ठ, सप्त- 7. आक का पौधा, मदार---अर्कस्योपरि शिथिलं च्यतपिमंडल का एक तारा,-वर्शनन्यायः दे० 'न्याय' के मिव नवमल्लिकाकुसुमम्-श०२९ यमाश्रित्य न नीचे। विश्राम क्षुधार्ता यान्ति सेवकाः, सोऽर्कवन्नृपतिस्त्याज्य: For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदापुष्पफलोऽपि सन्-पंच० ११५१, 8. इन्द्र, 9. .-अर्ह (वि०) सामान्य उपहार के योग्य, --बलाबलम् आहार 10 बारह की संख्या। सम.--अश्मन् (पुं०) मूल्य की दर, उचित मूल्य, मूल्यों में घटत बढ़त, -उपलः सूर्यकान्तमणि,-आह्वः मदार, आक, इन्दुस सङख्यानम्,-संस्थापनम् मूल्यांकन, वस्तुओं का ङ्गमः सूर्य और चन्द्रमा का संयोग,(दर्श, या अमावस्या), मूल्यनिर्धारण करना, कुर्वीत चैषां (वणिजाम् ) प्रत्यक्ष ~-कान्ता सूर्यपत्नी,चन्दनः एक प्रकार का रक्त- धर्मसंस्थापनं नृप:--मनु० ८।४०२ । चन्दन,-जः कर्ण की उपाधि, यम, सुग्रीव (----जी) । अर्घाशः ( पुं०) शिव । । स्वर्ग के वैद्य अश्विनीकुमार, तनयः 'सूर्य पुत्र' कर्ण अर्घ्य (वि०) [अर्घ+ यत् अर्घमर्हति) 1. मूल्यवान्, अनर्थ्यका विशेषण, यम और शनि दे० 'अरुणात्मज' (-या) अनमोल दे० ० के नी० 2. सम्माननीय-तानायमना और ताप्ती नदियाँ,--त्विष (स्त्री०) सूर्य नयमादाय दूरात्प्रत्य द्ययौ गिरि..... कु० ६.५७, शि० की ज्योति,---दिनम्,-वासरः रविवार,-नन्दनः, १।१४,--य॑म् किसी देवता या सम्मान्य व्यक्ति को --पुत्रः, -सूतः,—सुनुः शनि, कर्ण और यम के नाम, सादर आहति या उपहार, --अर्घ्यमस्मै--विक्रम० ५, ----बन्धुः, बान्धवः कमल ( सूर्य-कमल ), -मण्डलम ददतु तरवः पूष्परध्य फलेश्च मधुश्चुतः उत्तरः सर्यमंडल,--विवाहः मदार से विवाह (तीसरा विवाह ३।२४, अय॑मध्य मिति वादिनं नृपम् ... रघु० १११६९, करने वाले पुरुष के लिए पहले मदार से विवाह करने कु० १-५८, ६।५०। का विधान किया गया है, ताकि तीसरी पत्नी चौथी अर्च (भ्वा० उभ० ) [ अर्चति-ते, चित | 1. (4) पुजा हो जाय);-- चतुर्थादिविवाहार्थ तृतीयेऽक समुहहेत् --- करना, अभिवादन करना, सत्कार करना -- -रघु० काश्यप। .) [अर्ज +कलच् न्यङक्त्वादि' कुत्वं श६, ९०; रा२१, ४१८४, १२६८९, मनु० ३.१३ अर्गल:-लम् तारा०] अगड़ी, किल्ली या मसल - आर्चीद् द्विजातीन् परमार्थविन्दान् । भट्टि० १३१५, अर्गला-ली J (यह दरवाजे को बन्द करके रोकने के १४।६३, १७५ (ख ) सम्मान करना अर्थात् अलंकृत लिए लकड़ी के बने यन्त्र है) व्योंडा, सिटकिनी, आगल, करना, सजाना-उत्तर० २।९, 2. स्तुति करना. (वेद०), (चु० पर० या प्रेर०) सम्मान करना, अलं--पुरार्गलादीर्घभुजो बुभोज-- रघु० १८।४, १६१६, अनायतार्गलम् - मृच्छ० २, ससंभ्रमेन्द्र द्रुतपातितार्गला कृत करना, पूजा करना स्वगी कसाचितगर्नयित्वा निमीलिताक्षीव भियाऽमरावती--शि० १, आलं. -कु० ११५९, अभि... ,समधि - . पूजा करना, अलंसे यह शब्द वाधा, रोक या अवरोध के अर्थ में बहुधा कृत करना, सम्मान करना, ..आशीभिरभ्यर्च ततः क्षितीन्दं भट्टि० ११२४, भग० १८१४६ प्र -1. स्तुति प्रयक्त होता है.--ईप्सितं तदवज्ञानाद्विद्धि सार्गल करना, स्तुतिगान करना 2. मम्मान करना, पूजा मात्मनः --रघ० ११७९, वाधित--वार्यलाभङ्ग इव करना, -प्रानचुरा जगदर्चनीयम्-भट्टि० २२० । प्रवत्तः-५।४५, कंठे केवलमर्गलेव निहिता जोवस्थ अर्चक (वि.) | अर्च +ण्वल ] पूजा करने वाला, आरानिर्गच्छतः-काव्य०८, दे० 'अनर्गल' भी, 2. तरंग धना करने वाला, - ...कः पूजक ---गुरुदेवतिजाक: ...वा झाल। मनु० ११।२२५ । अगंलिका | अर्गला-कन्+टाप इत्वम् ] छोटी आगल, अर्चन (वि.) [अर्च+ल्युट | पूजा करने वाला, स्तुति छोटी चटखनी। करने वाला, नम्, -ना पूजा, अपने से बड़ों का अर्घ (भ्वा० पर०) [ अर्वति, अषित | मल्यवान होना, और देवों का आदर व सम्मान । मल्य रखना, मल्य लगना, पराक्षका यत्र न सन्ति । अर्चनीय, अच्र्य (म० [अर्च-अनीय, प्यत वा | देशे नार्धन्ति रत्नानि समुद्रजानि --मुभापि० । पूजा या आराधना करने के योग्य, सम्माननीय, आदर मनाया अर्घः । अर्घ +पज । 1. मूल्य, कीमत--कुर्यरघं यथा- णीय-रघ० २।१०, भटि ० ६१७० । पण्यं --मनु० ८।३९८ याज्ञ० २१२५१, कुत्स्याः स्युः अर्चा | अर्च-अह-टाप् ] 1. पूजा, आराधना 2. वह कुपरीक्षका हि मणयो यरर्घतः पानिता:-भत० २।१५, प्रतिमा या मनि जिसकी पूजा की जाय-मोहिरण्यावास्तविक मूल्य से घटी हुई,अवमन्यिन, इसी प्रकार अनर्घ थिभिरनीः प्रकल्पिता:--महा० । अमूल्य, महार्घ मूल्यवान् 2. पूजा की सामगो, देवताओं | अचिः (स्त्री०) [ अ +इन् ] किरण, (आग की) या सम्मान्य व्यक्तियों को मादर आहनि या उपहार, ज्वाला या (प्रातः कालीन या सांध्य) ज्योति, आसीदा---कुटजकुममः कल्पिताय तस्मै--मेव० ४ (इस सन्न निर्वाणप्रदोपाचिरिवोपसि--रघु०१२।१, नैशस्याआहुति का सामान निम्नांकित है :..-आप क्षीर चिईतभूज इव छिन्नभूयिष्ठधूमा-विक्रम । कुशाग्रं च दधिमपिः सतण्डलम् । यवः गिद्धार्थकरनेव अचिभमत (वि.) [ अचिस् --मनुप लपटवाला, उज्ज्वल अष्टाङ्गोऽर्घः प्रकीर्तितः । दे० 'अर्य' नीचे। समः । चमकदार-विक्रम० ३।२, (पं.) 1. अग्नि, 2. मूर्य । नज्योतिः शस्या For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ९५ अचि ( न० ) ( --चिः ) [ अर्च+ इसि ] 1. प्रकाशकिरण, लौ प्रदक्षिणाचिर्हवि राददे रघु० ३११४, 2. प्रकाश, चमक, —–प्रशमादचिषाम् - कु० २ २०, रत्न० ४ १६, ( स्त्री० भी ), ( पुं० ) 1. प्रकाशकिरण 2. अग्नि । अर्ज ( वा० पर ० ) [ अर्जति अर्जित ] 1. उपार्जन करना, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, कमाना प्रायः प्रेर०, इस अर्थ में – पितृद्रव्याविरोधेन यदन्यत्स्वयमर्जितम् -- या० २।११८, 2. ग्रहण करना - आनर्जुर्नृभुजोऽस्त्राणि भट्टि० १४०७४, ( चु० पर० - या प्रेर०) उपार्जन करना, अधिकार में करना, प्राप्त करना -स्वयमजित, स्वाजित, अपने आप कमाया हुआ । उप प्राप्त करना या उपार्जन करना । अर्जक ( वि० ) [स्त्री० र्जन करने वाला, करने वाला । अर्जनम् [ अर्ज + ल्युट् ] प्राप्त करना, अधिग्रहण करना अर्थानामर्जने दुःखम् - पंच० १११६३, अर्जयितृव्यापारोऽर्जनम् - दाय० । जिंका ] [ अर्ज + ण्वुल् ] उपाअधिकार में करने वाला, प्राप्त -- अर्जुन (वि०) [स्त्री० -ना, -- नी] [ अजें + उनन्, णिलुक् च ] 1. सफेद, चमकीला, उज्ज्वल, दिन जैसा रंगीन, - पिशङ्ग मोजीयुज मर्जुनच्छविम् शि० १३६, 2. रुपहला, नः 1. श्वेतरंग 2. मोर 3. गुणकारी छाल वाला अर्जन नामक वृक्ष 4. इन्द्र द्वारा कुन्ती से उत्पन्न तृतीय पांडव ( इसीलिए इसे 'ऐन्द्रि' भी कहते हैं ) [ अपने कार्यों में पवित्र और विशुद्ध होने के कारण वह अर्जुन कहलाया । द्रोणाचार्य से उसने शस्त्रास्त्र की शिक्षा ली, अर्जुन द्रोण का प्रिय शिष्य था। अपने शस्त्र - कौशल के द्वारा ही उसने स्वयंवर में द्रौपदी को जीता। अनिच्छापूर्वक किसी नियम का उल्लंघन हो जाने के कारण उसने अल्पकालिक निर्वासन ग्रहण किया तथा इसी बीच परशुराम से शस्त्रविज्ञान का अध्ययन किया। उसने नागराजकुमारी उलूपी से विवाह किया जिससे इरावत् नामक पुत्र पैदा हुआ । उसके पश्चात् उसने मणिपुर के महाराज की कन्या चित्रांगदा से विवाह किया – इससे बभ्रुवाहन का जन्म हुआ । इसी निर्वासन काल में वह द्वारका गया और वहाँ कृष्ण के परामर्शानुसार सुभद्रा से विवाह करने में सफलता प्राप्त की । सुभद्रा से अभिमन्यु का जन्म हुआ । उसके पश्चात् उसने खांडव वन को जलाने में अग्नि की सहायता की जिससे कि उसने 'गांडीव धनुष प्राप्त किया । जब उसके ज्येष्ठ भ्राता धर्मराज ने जुए में राज्य खो दिया और पांचों भाई निर्वासित कर दिए गए तो वह देवताओं का अनुरंजन करने के लिए हिमालय पर्वत पर गया जिससे कि कौरवों के साथ होने वाले 'युद्ध में ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपयोग करने के लिए उनसे दिव्य शस्त्रास्त्र प्राप्त कर सके । वहाँ उसने किरातवेषधारी शिव से युद्ध किया, परन्तु जब उसे अपने विपक्षी के वास्तविक चरित्र का ज्ञान हुआ तो उसने उनकी पूजा की, शिव ने भी प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपतास्त्र दिये । इन्द्र, वरुण, यम और कुबेर ने भी अपने-अपने अस्त्र उसे उपहारस्वरूप दिए। अपने निर्वासनकाल के तेरहवें वर्ष में पांडव राजा विराट् की नौकरी करने लगे--अर्जुन कंम्बुकी के रूप में नृत्यगान का शिक्षक बना | कौरवों के साथ महायुद्ध में अर्जुन ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। उसने कृष्ण की सहायता प्राप्त की, उसे अपना सारथि बनाया । जिस समय युद्ध के पहले ही दिन अर्जुन ने अपने बंधु-बांधवों के विरुद्ध धनुष उठाने में संकोच किया— उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को 'भगवद्गीता' का उपदेश दिया । उस महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने कौरव सेना के जयद्रथ, भीष्म तथा कर्ण आदि अनेक दुर्दान्त योद्धाओं को मौत के घाट उतारा । जिस समय युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राज्यसिंहासन पर आसीन हुआ तो उसने अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प किया -- फलतः अर्जुन की संरक्षकता में एक घोड़ा छोड़ा गया। अर्जुन ने अनेक राजाओं से किया युद्ध तथा अमेक नगर और देशों में घोड़े का अनुसरण किया। मणिपुर पहुँचने पर उसे अपने ही पुत्र बभ्रुवाहन से युद्ध करना पड़ा । फलत: अर्जुन, जब इस प्रकार बभ्रुवाहन से लड़ता हुआ युद्ध में मारा गया तो अपनी पत्नी उरूपी द्वारा दिये गए जादू-तन्त्र से वह पुनर्जीवित किया गया। उसने इस प्रकार सारे भारतवर्ष में भ्रमण किया । जब नाना प्रकार की भेंट उपहार तथा अपहृत संपत्तियों के साथ वह हस्तिनापुर वापिस आया तो उस समय अश्वमेध यज्ञ किया गया। उसके पश्चात् कृष्ण ने उसे द्वारका में बुलाया - और जब पारस्परिक गृह-युद्ध में यादवों का अंत हो गया तो अर्जुन ने वसुदेव और कृष्ण की अन्त्येष्टि-क्रिया की। इसके बाद शीघ्र ही पांडवों अभिमन्यु के एक मात्र पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर को राजगद्दी पर बिठा दिया तथा स्वयं स्वर्ग की यात्रा को चल दिये। पाँचों पांडवों में अर्जन सबसे अधिक पराक्रमी, उदार, गंभीर, सुंदर और उच्च विचारों का मनुष्य था - अपने सब भाइयों में वही प्रमुख व्यक्ति था ] 5. कार्तवीर्य — जिसे परशुराम ने मौत के घाट उतारा था - दे० कार्तवीर्य, 6. अपनी माता का एक मात्र पुत्र, नी 1. दूती, कुटनी 2. गौ 3. एक नदी जिसे 'करतोया' कहते हैं, नम घास । सम० -उपमः सागवान का वृक्ष - छवि ( वि०) For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उज्ज्वल, उज्ज्वल रंग वाला, -ध्वजः श्वेत-ध्वजा । मिवात्मानं समर्थये--श० ७, 2. समर्थन करना, सहाबाला, हनुमान् । गता करना, प्रमाणद्वारा सिद्ध करना-उक्तमेबार्थमुअर्णः [ऋ+न] 1. सागवान का वृक्ष 2. (वर्णमाला का) दाहरणेन समर्थयति, समप्रि-संप्र—याचना करना, एक अक्षर। प्रार्थना करना आदि। अर्णवः [अर्णासि सन्ति यस्मिन् --अर्णस् + व, सलोपः। अर्थः [ +थन् ] 1. आशय, प्रयोजन, लक्ष्य, उद्देश्य, (फेनयुक्त) समुद्र, सागर (आलं. भी) शोक' शोक अभिलाष, इच्छा--जाताओं ज्ञानसंबन्धः श्रोतुं श्रोता का समुद्र, इसी प्रकार चिंता, जन जनसमुद्र, संसारा प्रवर्तते, सिद्ध परिपंथी-मद्रा० ५, समास के उत्तर गंवलंघन-भर्तृ० ३.१० । सम०--अन्तः सागर की पद के रूप में प्रायः इसी अर्थ में प्रयुक्त होता तथा सीमा,-उद्धवः चन्द्रमा (-वा) लक्ष्मी, (-वम) निम्नांकित अर्थों में अनुदित किया जाता है :---'के अमृत,-पोतः, ----यानम् किश्ती या जहाज,-मंदिर: लिए' के निमित्त' 'की खातिर' के कारण' 'के बदले 1. सागर वासी वरुण, जलों का स्वामी 2. विष्णु । में'; संज्ञाओं को विशेषित करने के लिए विशेषण के अर्णस् (नपुं०) [ऋ+असुन नुट् च] जल । सम०-दः । रूप में भी प्रयुक्त होता है.---सन्तानार्थाय विधये --- - बादल,--भवः शंख । रघु० ११३४ तां देवतापित्रतिथिक्रियार्था (धेनम ) अर्णस्वत् (वि.) [अर्णस्+मतुप] बहुत अधिक पानी २।१६, द्विजार्था यवाग: सिद्धा, यज्ञार्थात्कर्मणोरखने वाला, (पुं०) सागर । ऽन्यत्र..-भग०३।९; क्रिया विशेषण के रूप में भी यह अर्तनम् [ऋत्+ ल्युट] निन्दा, फटकार, अपशब्द या गाली। इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है यथा---अर्थम्, अर्थ या अतिः (स्त्री०) अर्द--क्तिन] 1. पीड़ा शोक, दुःख - अर्थाय; किमर्थम-किस प्रयोजन के लिए, वेलोपशिरोऽतिः सिर-दर्द 2. धनुष का किनारा । लक्षणार्थम् --श० ४, तद्दर्शनादभूच्छम्भोभूयान्दारार्थअतिका [ऋत्=ण्बुल्] बड़ी बहन (नाट्य साहित्य में) । मादर:-कू० ६।१३, गवार्थे ब्राह्मणार्थे च---पंच. अर्थ (चु० आ०) [अर्थयते, अथित] 1. प्रार्थना करना, ११४२०, मदर्थे त्यक्तजीविता:-भग० १२९, प्रत्या याचना करना, गिड़गिड़ाना, मांगना, अनुरोध करना, ख्याता मया तत्र नलस्यार्थाय देवता:--नल० १३।१९, दीन भाव से मांगना (द्विकर्मक)-त्वामिममर्थमर्थयते-- ऋतुपर्णस्य चार्थाय-२३।९; 2. कारण, प्रयोजन, दश० ७१, तमभिक्रम्य सर्वेऽद्य वयं चार्थामहे वसु - हेत, साधन अलुप्तश्च मनेः क्रियार्थ:---रघु० २।५५, महा०, प्रहस्तमर्थयांचके योद्धम् भट्टि० १४।९९, 2. साधन या हेतु 3. अभिप्राय, तात्पर्य, सार्थकता, प्राप्त करने का प्रयत्न करना, चाहना, इच्छा करना, आशय -अर्थ तीन प्रकार का है :-वाच्य ( अभिअभि--मांगना, गिड़गिड़ाना, प्रार्थना करना-इम व्यक्त), लक्ष्य (संकेतित या गौण ) और व्यंग्य सारङ्ग प्रियाप्रवृत्तिनिमित्तमभ्यर्थये---विक्रम० ४, (ध्वनित)-तददोषौ शब्दाथों-काव्य० १, अर्थो अवकाश किलोदवान् रामायाभ्यथितो ददौ--रघु० वाच्यश्च लक्ष्यश्च व्यङग्यश्चेति त्रिधामतः—सा० द. ४।३८, अभिप्र--1. मांगना, प्रार्थना करना 2. चाहना, २, 4. वस्तु या विषय, पदार्थ, सारांश.अर्थों हि प्र---1. मांगना, प्रार्थना करना, याचना, प्रार्थना कन्या परकीय एव-श० ४।२१, जो ज्ञानेन्द्रियों के -तेन भवन्तं प्रार्थयते-१० २, 2. चाहना, आवश्यकता द्वारा जाना जा सके, ज्ञानेन्द्रिय की वस्तु; इंद्रिय - होना, इच्छा करना, प्रबल अभिलाष रखना,--अहो हि० १११४६, कु० ७७१ इन्द्रियेभ्यः पराह्यर्था अर्थेविघ्नवत्यः प्राथितार्थसिद्धयः--श० ३, स्वर्गति प्रार्थ- भ्यश्च परं मन:-कठ. (ज्ञानेन्द्रियों के विषय पाँच यन्ते -भग. ९।२०, भट्टि० ७१४८, रघु० ७५०, हैं-रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द) 5. (क) ६४, 3. ढूंढ़ना, तलाश करना, खोज करना-प्रार्थ- मामला, व्यापार, बात, कार्य,-प्राक् प्रतिपन्नोऽयमोंयध्वं तथा सीताम्-भट्टि० ७१४८, 4. आक्रमण ऽङ्गराजाय-वेणी० ३, अर्थोऽयमर्थान्तरभाव्य एवकरना, टूट पड़ना-असौ अश्वानीकेन यवनानां प्रार्थितः कु० ३११८, अर्थोऽर्थानबन्धी --दश, ६७, सङगीतार्थ: -मालवि०५, दुर्जयो लवणः शली विशल: प्रार्थ्यता- मेघ० ५६, गायन-व्यापार अर्थात् समवेत गान (गायमिति-रघु० १५।५, ९१५६, प्रति -1. (युद्ध के नोपकरण), सन्देशार्थाः ---मेघ० ५, संदेश की बातें लिए) ललकारना, मुकाबला करना, शत्रुवत् व्यवहार अर्थात संदेश (ख) हित, इच्छा (स्वार्थसाधनतत्पर:करना --एते सीताहः संख्ये प्रत्यर्थयत राघवम् – मनु० ४।१९६; द्वयमेवार्थसाधनम् --रघु० १११९, भट्टि० ६।२५, 2. किसी को शत्रु बनाना, सम् - दुरापेऽर्थे ११७२, सर्वार्थचिन्तकः-मनु० ७।१२१, माल1. विश्वास करना, सोचना, खयाल रखना, चिंतन विकायां न मे कश्चिदर्थः--मालवि० (ग) विषयकरना-समर्थये यत्प्रथम प्रियां प्रति-विक्रम०४१३९, सामग्री, विषय-सूची-त्वामवगतार्थ करिष्यति-मुद्रा० मया न साघु सथितम्--विक्रम० २, अनुपयुक्त- । (मैं आपको विषय-सामग्री से परिचित कराऊँगा), For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९७ तेन हि अस्य गहीतार्था भवामि-विक्रम० २, (यदि ऐसी बात है तो मुझे इस विषय की जानकारी होनी चाहिए), 6. दौलत, धन, सम्पत्ति, रुपया त्यागाय संभृतार्थानाम्-रघु० ११७, धिगर्थाः कष्टसंश्रया:पंच० १११६३, 7. धन या सांसारिक ऐश्वर्य का | प्राप्त करना, जीवन के चार पुरुषार्थों में से एकअन्य तीन है :-धर्म, काम और मोक्ष; अर्थ, काम और धर्म मिलकर प्रसिद्ध त्रिक बनता है, तु० कु. ५।३८,-अप्यर्थकामौ तस्यास्तां धर्म एव मनीषिणःरघु० १।२५, 8. (क) उपयोग, हित, लाभ, भलाई; -तथा हि सर्वे तस्यासन परार्थंकफला गुणा:---रघु० १२२९, याबानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लतोदके-भग० २१४६, दे० व्यर्थ और निरर्थक भी (ख) उपयोग, आवश्यकता, जरूरत, प्रयोजन—करण के साथ, -कोऽर्थः पूत्रेण जातेन-पंच०१ (उस पुत्र के पैदा होने से क्या लाभ?) कश्च तेनार्थः---दश० ५९, कोऽर्थस्तिरश्चां गुणः-पंच० २१३३, क्रूर व्यक्ति गुणों की क्या परवाह करते हैं? भर्त०२।४८;-योग्येनार्थः कस्य न स्याज्जनेन--शि० १८१६६, नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन – भग० ३.१८, 9. मांगना, याचना, प्रार्थना, दावा, याचिका 10. कार्यवाही, अभियोग (विधि) 11 वस्तुस्थिति, याथार्थ्य, जैसा कि यथार्थ, और अर्थतः में-तत्त्वविद् 12. रीति, प्रकार, तरीका 13. रोक, दूर रखना--मशकार्थो धूमः, प्रतिषेध, उन्मूलन 14. विष्णु। सम० -अधिकारः रुपये-पैसे का कार्यभार, कोषाध्यक्ष का पद०, रे न नियोक्तव्यो-हि. २,--अधिकारिन (पुं०) कोषाध्यक्ष,---अन्तरम् 1. अन्य अभिप्राय या | भिन्न अर्थ 2. दूसरा कारण या प्रयोजन-अर्थोऽयमर्थान्तरभाव्य एव-कु० ३.१८ 3. एक नई बात या परिस्थिति, नया मामला 4. विरोधी या विपरीत अर्थ, अर्थ में भेद, न्यासः एक अलंकार जिसमें सामान्य से विशेष या विशेष से सामान्य का समर्थन होता है, यह एक प्रकार का विशेष से सामान्य अनुमान है अथवा इसके विपरीत-उक्तिरर्थान्तरन्यास: स्यात सामान्यविशेषयोः । (१) हनमानब्धिमतरद दुष्कर किं महात्मनाम् । (२) गुणवद्वस्तुसंसर्गाद्याति नीचोऽपि गौरवम्, पुष्पमालानुषङ्गेण सूत्रं शिरसि धार्यते ।। कुवल०, तु० काव्य० १० और सा० द० ७०९, -अन्वित (वि.) 1. धनवान, दौलतमंद 2. सार्थक, -अर्थिन् (वि०) जो अपना अभीष्ट सिद्ध करने के लिए या धन प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है, —अलंकारः साहित्यशास्त्र में वह अलंकार जो या तो अर्थ पर निर्भर हो, या जिसका निर्णय अर्थ से किया जाय, शब्द से नहीं (विप० शब्दालंकार),I ) --आगमः 1 धन की प्राप्ति, आय 2. किसी शब्द के अभिप्राय को बतलाना,-आपत्तिः (स्त्री०) 1. परिस्थितियों के आधार पर अनुमान लगाना, अनुमानित वस्तु, फलितार्थ, ज्ञान के पाँच साधनों में से एक अथवा (मीमांसकों के अनुसार) पाँच प्रमाणों में से एक, प्रतीयमान असंगति का समाधान करने के लिए यह एक प्रकार का अनुमान है, इसका प्रसिद्ध उदाहरण है :-पीनो देवदत्तः दिवा न भङक्ते, यहाँ देवदत्त के 'मोटेपन' और 'दिन में न खाने की असंगति का समाधान 'वह रात्रि को अवश्य खाता होगा' अनुमान से किया जाता है; 2. एक अलंकार (कुछ साहित्यशास्त्रियों के अनुसार) जिसमें एक संबद्ध उक्ति से ऐसे अनुमान का सुझाव मिलता है जो प्रस्तुत विषय से कोई संबंध नहीं रखता-या इसके ठीक विपरीत है; यह कैमुतिकन्याय या दण्डापूपन्याय से मिलता जुलता है; उदा०-हारोऽयं हरिणाक्षीणां लुठति स्तनमण्डले, मुक्तानामप्यवस्थेयं के वयं स्मरकिङ्कराः । अमरु० १००, अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिषु--रघु० ८।४३,-उत्पत्तिः (स्त्री०) धन प्राप्ति, इसी प्रकार उपार्जनम् ;-उपक्षेपकः (नाटकों में) एक परिचयात्मक दृश्य-अर्थोपक्षेपकाः पंच-सा० द. ३०८,-उपमा जो उपमा अर्थ पर निर्भर रहे, शब्द पर नहीं दे० 'उपमा' के नीचे-उष्मन् (पुं०) धन की चमक या गर्मी --अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव भर्त० २।४०,-ओघः-राशिः कोष, धन का भंडार,—कर (स्त्री०-री),-कृत (वि.) 1. धनी बनाने वाला 2. उपयोगी, लाभदायक,-काम (वि.) धन का इच्छुक, (-मौ-द्वि०व०) धन और चाह या सुख, रघु० ११२५,-कृच्छम् 1. कठिन बात 2. आर्थिक कठिनाई-न मुह्येदर्थकृच्छषु-नीति-कृत्यम् किसी कार्य का सम्पन्न करना-अभ्युपेतार्थकृत्याः =मेघ० ३८,-गौरवम् अर्थ की गहराई--भारवेरर्थगौरवम्-उद्भट०, कि० २।२७,—उन (वि.) (स्त्री० घ्नी) अतिव्ययी, अपव्ययी, फिजूलखर्च,-जात (वि.) अर्थ से परिपूर्ण (–तम्) 1. वस्तुओं का संग्रह 2. धन की बड़ी रकम, बड़ी सम्पत्ति, तत्त्वम् 1. वास्तविक सचाई, यथार्थता, 2. किसी वस्तु की वास्तविक प्रकृति या कारण,-द (वि.) 1. धन देने वाला, 2. लाभदायक, उपयोगी 3. उदार,दूषणम् 1. अतिव्यय, अपव्यय 2. अन्यायपूर्वक किसी की संपत्ति ले लेना, या किसी का उचित पावना न देना, -दोषः (अर्थ की दृष्टि से) साहित्यिक त्रुटि या दोष, साहित्य-रचना के चार दोषों में से एक-दूसरे तीन हैं:-पद दोष, पदांशदोष और वाक्य दोष, इनकी परिभाषाओं के लिए दे० काव्य०७,-निबंधन (वि.) For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( धन के ऊपर आश्रित, निश्चयः निर्धारण, निर्णय, पति: 1 'धन का स्वामी', राजा, किचिद्विहस्यार्थपति बभाषे - रघु० १/५९, २/४६, ९१३, १८ १, पंच० १। ७४, 2. कुबेर की उपाधि, – पर, लुब्ध ( वि० ) 1 धन प्राप्त करने पर जुटा हुआ, लालची 2. कंजूस, - - प्रकृतिः (स्त्री०) नाटक के महान् उद्देश्य का प्रमुख साधन या अवसर, ( इन साधनों की संख्या पाँच हैं, ari fबन्दुः पताका च प्रकरी कार्यमेव च, अर्थप्रकृतयः पञ्च ज्ञात्वा योज्या यथाविधि - सा० द० ३१७ ), - प्रयोगः ब्याजखोरी, बंध: शब्दों का यथाक्रम रखना, रचना, पाठ, श्लोक, चरण श० ७१५ ललितार्थं बंधम् विक्रम० २११४, बुद्धि (वि०) स्वार्थी, बोध: वास्तविक आशय का संकेत, भेदः अर्थों में भेद -- अर्थभेदेन शब्दभेद:, - मात्रम्, त्रा सम्पत्ति, धन-दौलत, - युक्त (वि०) सार्थक, लाभः घन की प्राप्ति, -लोभ: लालच, - बाद: 1. किसी उद्देश्य की घोषणा, 2. निश्चयात्मक घोषणा, घोषणाविषयक प्रकथन, व्याख्यापरक टिप्पणी, किसी आशय की उक्ति या कथन, वाक्य ( इसमें उचित अनुष्ठान के करने से उत्पन्न फलों का वर्णन करते हुए किसी विधि की अनुशंसा की जाती हैं, साथ ही अपने पक्ष के समर्थन में ऐतिहासिक निदर्शन देकर यह बतलाया जाता है कि इसका उचित अनुष्ठान न करने से अनिष्ट फल मिलता है) 3. प्रशंसा, स्तुति, अर्थवाद एषः, दोषं तु मे कंचित्कथयउत्तर० १, - - विकल्प: 1 सचाई से इधर-उधर होना, तथ्यों का तोड़-मरोड़, 2. अपलाप, वैकल्प्यम् भी, - वृद्धि: ( स्त्री०) धन संचय, व्ययः धन का खर्च करना, ज्ञ (वि०) रुपये-पैसे की बातों का जानकार - शास्त्रम् 1 धन-विज्ञान (सार्वजनिक अर्थशास्त्र ) २. राजनीति विज्ञान, राजनीतिविषयक शास्त्र, राजनय - ४० १२०, इह खलु अर्थशास्त्रकारास्त्रिविधां सिद्धिमुपवर्णयति मुद्रा० ३. व्यवहारिन् राजनीतिज्ञ, 3. व्यावहारिक जीवन का शास्त्र, शौचम् रुपये-पैसे के मामले में ईमानदारी या खरापन - सर्वेषां चैव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम् - मनु० ५१०६, - संस्थानम् 1. धन का संचय 2. कोष, संबन्ध: वाक्य या शब्द से अर्थ का संबंध, सारः बहुत घन- पंच० २०४२ – सिद्धि: ( स्त्री० ) अभीष्ट सिद्धि, सफलता । अर्थतः ( अव्य० ) [ अर्थ + तसिल् ] 1. अर्थ या किसी विशेष उद्देश्य का उल्लेख करते हुए, यच्चार्थतो गौरवम् - मा० १७ अर्थ की गहराई, 2. वस्तुतः, वास्तव में, सचमुच, न नामतः केवलमर्थतोऽपि - शि० ३।५६, 3. धन के लिए, लाभ या प्राप्ति के लिए ऐश्वर्यादनपेतमीश्वरभयं लोकोर्थतः सेवते - मुद्रा० १ । १४. 4. के कारण । ९८ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थना [अर्थ + युच्+टाप्] प्रार्थना, अनुरोध, नालिश, याचिका - ० ५।११२ । अर्थवत् (वि० ) [ अर्थ + मतुप् ] 1. धनवान् 2. सार्थक, अभिप्रायः या अर्ध से परिपूर्ण - अर्धवान् खलु मे राजशब्दः --- श० ५, 3. अर्थ रखने वाला - अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् - पा० ११२१४५ 4. किसी प्रयोजन को सिद्ध करने वाला, सफल, उपयोगी । अर्थवत्ता [ अर्थ + मतुप् + तल्+टाप्] धन-दौलत, सम्पत्ति । अर्थात् ( अन्य ० ) [ 'अर्थ' का अपा० का रूप ] 1. सच बात तो यह है कि, निस्सन्देह, वस्तुतः - मूषिकेण दण्डो भक्षित इत्यनेन तत्सहचरितमपूपभक्षण मर्यादायातं भवति - सा० द० १०, 2. परिस्थिति के अनुसार, तथ्यानुसार 3. कहने का भाव यह है कि, नामों के अनुसार | afre: [ अर्थयते इत्यर्थी + कन् ] 1. चिल्लाने वाला, चौकीदार, 2. विशेषत: भाट जिसका कर्तव्य दिन के विभिन्न निश्चित समयों की (जैसा कि जागने का, सोने का, या भोजन करने का ) घोषणा करना है । अर्थित ( भू० क० कृ० ) [ अर्थ +क्त] प्रार्थित, याचित, इच्छित - तम् चाह, इच्छा, नालिश । अति-त्वम् [अर्थिन् + तल् टाप्, त्वल् वा ] 1. मांगना, प्रार्थना करना, 2. चाह, इच्छा । afra ( वि० ) [ अर्थ + इनि] 1. प्राप्त करने की चेष्टा करने वाला, अभिलाषी, इच्छुक - करण० के साथ अथवा समास में— कोषदण्डाभ्याम् — मुद्रा० ५, को वधेन ममार्थी स्यात् -- महा०, अर्थार्थी - पंच० ११४/९ 2. अनुरोध करने वाला, या किसी से कुछ मांगनेवाला (संब० के साथ) - अर्थी वररुचिर्मेऽस्तु कथा० 3. मनोरथ रखने वाला, (पुं०) 1. याचक, प्रार्थयिता, भिक्षुक, दीन याचक, निवेदक, विवाहार्थी - यथाकामाचितार्थिनां -- रघु० ११६, २१६४, ५/३१, ९/२७, कोऽर्थी गतो गौरवम्-पंच० १।१४६, कन्यारत्नमयोनिजन्म भवतामास्ते वयं चार्थिन:- महावी० ११३०, 2. (विधि में) वादी, अभियोक्ता, प्राभियोजक, स धर्मस्थसखः taarप्रत्यर्थिनां स्वयं ददर्श संशयच्छेद्यान् व्यवहारानतन्द्रितः- रघु० १७/३९, 3. सेवक अनुचर । सम० - भावः याचना, माँगना, प्रार्थना मा० ९१३०, --सात् ( क्रि० वि०) भिखारियों के अधिकार में करके - विभज्य मेरुर्न यदर्थिसात्कृत: - नै० १।१६ । अर्थी (वि० ) [ अर्थ + छ] 1. पूर्वनिदिष्ट, अभिप्रेत, कष्ट उठाना भाग्य में बदा था - शरीरं यातनार्थीयं - मनु० १२।१६, 2. संबंध रखने वाला - कर्म चैव तदर्थीय भग० १७।२७ । अयं (वि० ) [ अर्थ + ण्यत् ] 1. जिससे सर्वप्रथम याचना की जाय, 2. योग्य, उचित 3. उपयुक्त, आशय से For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इधर उधर न होने वाला, सार्थक - स्तुत्यं स्तुतिभिर र्थ्याभिरुपतस्थे सरस्वती--रघु० ४।६, कु० २।३, 4. धनी, दौलतमंद 5. समझदार, बुद्धिमान्,-यम् गेरु । अर्दू (भ्वा० पर०) [अर्दति, अदित] 1. दुःख देना, व्यथित करना, प्रहार करना, चोट पहुँचाना, मारना-रक्षः सहस्राणि चतुर्दशार्दीत्-भट्टि० १२।५६ दे० नीचे प्रेर०, 2. मांगना, प्रार्थना करना, निवेदन करना --निलितांबुगर्भ शरद्घनं नार्दति चातकोऽपि-रघु० ५।१७, (प्रेर० या चु० पर०) 1. (क) सताना, पीड़ित करना, दुःखाना-कामादित, कोप', भय आदि (ख) प्रहार करना, चोट पहुँचाना, घायल करना, बध करना -येनादिदत् दैत्यपुर पिनाकी-- भट्टि० २।४६, अति---अधिक सताना, आक्रमण करना, टूट पड़ना-अत्यार्दीत् वालिनः पुत्रम्-भट्टि० १५।११५, अभि-दुःखाना, सताना, पीड़ित करना। अर्दन (वि०) [अर्द + ल्युट् ] दुःखाने वाला, सतानेवाला, -नम् पीड़ा, कष्ट, चिन्ता, उत्तेजना, क्षोभ, नम्, ना 1. जाना, हिलना 2. पूछना, माँगना 3. वध करना, चोट पहुंचाना, पीड़ा देना। अर्ष (वि.) [ ऋथ् ।-णिच् + अच् ] आधा, आधा भाग बनाने वाला,--धम्, र्धः 1. आधा, आधा भाग | --सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पण्डितः; गतमधू दिवसस्य -विक्रम ० २, यदर्थे विच्छिन्नं --श० ११९, आधा-आधा बँटा हुआ (अर्ध शब्द को लगभग सब संज्ञा व विशेषण शब्दों के साथ जोड़ा जा सकता हैसंज्ञा के साथ समास में प्रथमपद के रूप में इसका अर्थ है:-'आधा' 'काय: ---अर्धकायस्प, विशेषणों के साथ इसका अर्थ क्रियाविशेषणात्मक है; श्याम== आधा काला, क्रमसूचक संख्याओं के साथ "संख्या का आधा" अर्थ होता है, तृतीयम् --दो और आधा तीसरा अर्थात् अढ़ाई। सम-अक्षि (नपुं०) अपांगदृष्टि, आँख का झपकना--मच्छ० ८।४२, ---अङ्गम् आधा शरीर.-अंशः, आधा भाग, आधा हिस्सा, -अंशिन (वि०) आधे का हिस्सेदार, --अर्घः,-अर्धम् 1. आवे का आधा, चौथाई-चरोरधर्विभागाभ्यां तामयोजयतामभे-रघु० १०५६, 2. आवा और आधा,--अवर्भेदकः आधासीसी, आधे सिर की पीड़ा,-अवशेष (वि.) जिसके पास केवल आषा ही शेष बचे,—-आसनम् 1. आधा आसन --अर्धासनं गोत्रभिदोऽधितष्ठी-रघु० ६१७३, मम हि दिवौकसां समक्षमर्यासनोपवेशितस्य-श० ७ (आगंतुक अतिथि को अपने ही आसन पर अर्धासन देना अत्यधिक सम्मान का चिह्न समझा जाता था) 2. सम्मानपूर्वक अभिवादन करना 3. निन्दा से मुक्ति - इन्दुः 1. आधा चाँद, दूज का चाँद, 2. अंगुली के नाखून की अर्धवर्तुलाकार छाप, बालेन्दु के आकार की नख-छाप-नै० ६२५, 3. बालचन्द्र के आकार के समान सिर वाला बाण (= अर्धचन्द्र नी०), 'मौलि शिव, ...-मेघ० ५६,---उक्त (वि.) आधा कहा हुआ,रामभद्र इति अर्धोक्ते महाराज-उत्तर० १, उक्तिः (स्त्री०) भग्नवाणी, अन्तर्बाधित वाणी, .-उदयः 1. अर्व चन्द्रमा का निकलना 2. आंशिक उदय, आसनम् समाधि में बैठने का एक प्रकार का आसन,-ऊरुकम् स्त्रियों के पहनने का अन्तर्वस्त्र, पेटोकोट, -कृत (वि०) आधा किया हुआ, अपूर्ण, ---खारम्, -री एक प्रकार का माप, आधी खारी ---गंगा कावेरी नदी, इसी प्रकार जाह्नवी, गच्छ: २४ लड़ियों का हार,--गोल: गोलार्द्ध,-चंद्र (वि०) बालेन्दु के आकार वाला, (--द्रः) 1. आधा चन्द्रमा, बालेन्दु --सार्धचन्द्र बिति यः--कू० ६।७५, 2. मोर की पूंछ पर अर्धवर्तुलाकार चिह्न, 3. बालचन्द्र के आकार के सिरे वाला बाण --अर्धचन्द्रमणिश्चिच्छेद कदलीमुखम्-रघु० १२।९६, 4. बालचन्द्र के आकार की नख-छाप 5. अर्धवृत्त के रूप में झुका हुआ हाथ, जो कि किसी वस्तु को पकड़ने के लिए मोड़ा गया हो. "दं वा-गर्दनिया देकर बाहर निकालना--दीयतामेतस्यामर्धचन्द्रः-पंच०१, -चन्द्राकार,-चन्द्राकृति (वि.) आधे चन्द्रमा के आकार वाला,-चोलक: अंगिया,-दिनम् —दिवस: 1. आधा दिन, दिन का मध्यभाग, 2. १२ घण्टे का दिन,-नाराचः वालचन्द्र के आकार का लोहे की नोक वाला बाण,-नारीशः,-नारीश्वरः शिव का एक रूप (आधा पुरुष तथा आधी स्त्री), ---नावम् आधी किस्ती,-निशा मध्यरात्रि, आधी रात –पञ्चाशत् (स्त्री०) पच्चीस,–पणः आधे पण की माप, - पथम् आधा मार्ग (--थे) मार्ग के मध्य में, ---प्रहरः आधा पहरा, डेढ़ घण्टे का समय,-भाग: आधा, आधा भाग या हिस्सा, तदर्धभागेन लभस्व काक्षितम्-कु० ५।५०, रघु० ७।४५,-भागिक (वि०) आधे भाग का साझीदार,-भाज (वि.) 1. आधे भाग का हिस्सेदार, आधे भाग का अधिकारी, 2. साथी, साझीदार, ---भास्करः दिन का मध्यभाग, दोपहर,-माणवकः,-माणवः १२ लड़ियों का हार, (माणवक २४ लड़ियों का होता है), --मात्रा 1. आधी मात्रा, 2. व्यंजन वर्ण,-मार्गे (अव्य०) मार्ग के बीच में-विक्रम० ११३,--मासः आधा महीना, एक पक्ष,-मासिक (वि०) 1. प्रत्येक पक्ष में होने वाला 2. एक पक्ष तक रहने वाला, .-.-मुष्टिः (स्त्री०) आधा भिंचा हुआ हाथ,-यामः आधा पहर,—रथः किसी दूसरे के साथ रथ पर बैठ For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर युद्ध करने वाला योद्धा (जो कि स्वयं. रथी' के ] अर्य (वि.) [ ऋ+यत् ] 1. श्रेष्ठ, बढ़िया 2. आदरसमान कुशल नहीं होता)-रणे रणेऽभिमानी च विमुख- णीय,--यः 1. स्वामी, प्रभु 2. तीसरे वर्ण का व्यक्ति, श्चापि दृश्यते, घणी कर्णः प्रमादी च तेन मेऽर्धरथो मतः वैश्य, ..यी वैश्य की स्त्री। सम०--वर्यः सम्माम्य महा०, --रात्र: आधीरात-अथार्धरात्रे स्तिमितप्रदीपे वैश्य । -रघु० १६१४,-विसर्गः,--विसर्जनीयः क ख | अर्यमन (0) [ अयं श्रेष्ठं मिमीते-मा-कनिन नि.] तथा प फ से पूर्व विसर्गध्वनि,--वीक्षणम् तिरछी | 1. सूर्य 2. पितरों के प्रधान—पितृणामर्यमा चास्मि चितवन, कनखी,-वृद्ध (वि.) अधेड़ उम्र का, - भग० १०।२९, 3. मदार का पौधा ।। --नाशिकः कणाद का अनुयायी (अर्धविनाश का | अर्याणी [ अर्य+डीष, आनुक] वैश्य जाति की स्त्री। तार्किक)--वंशसम् आधा या अपूर्णवध-कु० ४।३१, | अर्वन (पं०) ऋ+वनिप 11. घोडा,-इलथीकृतप्रग्रह-मासः वृत्त में केन्द्र से परिधि तक की दूरी, मर्वतां व्रजा:-शि०१२।३१, 2. चन्द्रमा के दस घोड़ों -बातम् पचास,-शेष (वि०) जिसके पास केवल में से एक 3. इन्द्र 4. गोकर्णपरिमाण-ती 1. घोड़ी भाषा ही शेष रहा है,-इलोकः आधाश्लोक या 2. कुटनी, दूती। श्लोक के दो चरण,-सीरिन (पुं० 1. बटाईदार, अर्वाच (वि.) [ अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+ अपने परिश्रम के बदले आधी फसल लेने वाला किसान क्विन् पृषो० अर्वादेश: ] 1. इस ओर आते हुए -याज्ञ. १३१६६, 2. =दे० अधिक,-हारः ६४ (विप० परञ्च) 2. की ओर मुड़ा हुआ, किसी से कड़ियों का हार,-हस्वः लघु स्वर का आधा। मिलने के लिए आता हुआ 3. इस ओर होने वाला 4. मक (वि.) [अर्ध+कन् ] आधा, दे० 'अर्घ' । नीचे या पीछे होने वाला 5. बाद में होने वाला, बाद का अधिक (वि.) (स्त्री--की) [अर्धमर्हति-अर्ध+ठन् ] -क (अव्य) 1. इस ओर, इधर की तरफ 2. किसी 1. आधी नाप रखने वाला 2. आधे भाग का अधि- एक स्थान से 3. पहले (समय या स्थान की दृष्टि से ) कारी,—कः वर्णसंकर, वैश्यकन्यासमुत्पन्नो ब्राह्मणेन --यत्सृष्टेरर्वाक सलिलमयं ब्रह्माण्डमभूत्-का० १२५ तु संस्कृतः, अधिकः स तु विज्ञेयो भोज्यो विर्न अर्वाक संवत्सरात्स्वामी हरेत परतो नृपः -याज्ञ० संशयः--पराशर। २।१७३, ११३, ११२५४, 4. नीचे की ओर, पीछे, मणिम् (वि०) [अर्ध-इनि ] आधे भाग का साझीदार। नीचे (विप० ऊर्ध्व) 5. बाद में, पश्चात् 6. (अधि० मर्पणम् [ऋ+णिच् + ल्युट् पुकागमः ] 1. रखना, स्थिर के साथ) के अन्दर, निकट---एते चार्वागुपवनभुवि करना, जमाना,-पादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठस्---रघु० छिन्नदर्भाङ्कुरायाम्-श० १६१५ । सम-काल: २१३५, 2. बीच में डालना, रखना, 3. देना, भेट बाद में आने वाला समय,--कालिक (वि०) आसन्तकरना, त्यागना, स्वदेहापंणनिष्क्रयण-रघु०२।५५, काल से संबंध रखने वाला, आधुनिक, °ता आधुनिकता, मुखार्पणेषु प्रकृतिप्रगल्भाः -१३।९, तत्कुरुष्व मदर्प उत्तरकालीनता,--कलम नदी का निकटस्थ तट । णम्-भग० ९।२७, 4. वापस करना, देना, लौटा | अर्वाचीन (वि.) [ अर्वाच+ख ] 1. आधुनिक, हाल का देना यास अमर० 5. छेदना, गोदना-तीक्ष्णतुण्डा- 2. उलटा, विरोधी,-नम् (अव्य०) (अपा० के पणीवां नखैः सर्वा व्यदारयत्-रामा० । साथ) 1. इस ओर 2. के बाद का---यदूर्व पृथिव्या अपिसः [ +णि+इसुन् पुकागमः ] हृदय, हृदय का अर्वाचीनमन्तरिक्षात्-शत० । मांस। अर्शस् (नपुं०) [ऋ+असुन व्याधौ शुट च ] बवासीर । भर्व (म्वा० पर०) [ अर्बति, आनर्ब, अबितुम् ] 1. सम-न (वि.) बवासीर को नष्ट करने वाला की ओर जाना, 2. वध करना, चोट मारना। (-इनः) सूरण, भिलावा (क्योंकि कहते हैं कि यह (d):-दम् [ अर्ब (व.)+विच्-उद्-इ+ बवासीर नाशक है)। 11. सूजन, (नाना प्रकार की) रसौली 2. दस | अर्शस (वि.) [अर्शस्+अच् ] बवासीर से पीड़ित। करोड की संख्या 3. भारत के पश्चिम में स्थित आबू / अई, (म्बा० पर०) [अर्हति, अहिंतुम, आनई, अहित] पहार, 4. सांप, 5. बादल 6. मांस पिंड 7. सांप जैसा (भार्ष प्रयोग-आ०, रावणो नाईते पूजाम्-रामा०) राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था। 1. अधिकारी होना, योग्य होना (कर्म० तथा तुमु. नर्मक (वि.) [अर्भ+कन् ] 1. छोटा, सूक्ष्म, थोड़ा 2. नन्त के साथ)-किमिव नायुष्मानमरेश्वरान्नाहति दुबला, पतला 3. मूर्ख 4. बच्चा, छौना,-क: 1. -श०७, 2. अधिकार रखना, अधिकारी बनना-ननु बालक, बच्चा-श्रुतस्य यायादयमन्तमभक:-रषु० गर्भः पित्र्यं रिक्थमईति-श०६, न स्त्री स्वातन्त्र्य३३२१, २५, ७६७, 2. किसी जानवर का बच्चा महति-मनु. ९।३ 3. योग्य होना, पात्र बनना 3. मुखं बड़। -अर्थना मयि भवद्भिः कर्तुमर्हति नै०५।११३, दश. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०१ ) १३७, 4. समान होना, योग्य होना-न ते गावाण्य- सजाना, 2. योग्य या सक्षम होना 3. रोकना, दर पचारमर्हन्ति-श० ३।१८, सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां रखना, दे० अलम् । नार्हन्ति षोडशीम्-मनु० २१८६, 5. योग्य होना, | अलम् [अल+अच्] 1. बिच्छू का डंक जो उसकी पूछ अनुवाद 'सकता'-न मे वचनमन्यथा भवितुमर्हति- में होता है 2. पीली हरताल । श० ४ 6. पूजा करना, सम्मान करना नोचे प्रेर० दे० अलक: [अल+क्युन्] 1. धुंघराले बाल, जुल्फें, बाल-- 7. (मध्यम पुरुष के साथ-कभी-कभी अन्यपुरुष के ललाटिका चन्दनघूसरांलका-~कु० ५।५५,अलके बालसाथ भी-तुमुन्नन्त का प्रयोग होता है), 'अर्ह" धातु कुन्दानुविद्धम्-मेघ०६७, (यह शब्द नपुं. भी है मृदु आदेश, शिष्ट प्रार्थना तथा परामर्श के लिए | जैसा कि मल्लिनाथ केउद्धरण-स्वभाववक्राण्यलकानि प्रयुक्त होता है इसका अनुवाद होता है :--कृपा तासाम्- से प्रकट होता है) 2. मस्तक के घूघर 3. करना, अनुग्रह करना, प्रसन्न होना-द्विवाण्यहा- शरीर पर मला हुआ केसर,-का 1. आठ से दस वर्ष न्यर्हसि सोढुमर्हन्-रघु० ५।२५, कृपया प्रतीक्षा तक की आयु की कन्या 2. यक्षों के स्वामी कुबेर कीजिए; नार्हसि मे प्रणय विहन्तुम् - २।५८, की राजधानी-विभाति यस्यां ललितालकायो [प्रेर० या चु० पर०] सम्मान करना, पूजा करना, मनोहरा वैश्रवणस्य लक्ष्मी:-भामि० २०१०, गन्तम्या ---राजाजिहत्तं मधुपर्कपाणिः-भट्टि० १।१७, मनु० ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणाम्-मेष.७। सम. ३।११९। --अधिपः, ईश्वरः,---पतिः अलका का स्वामी; मह (वि.) [अर्ह + अच्] 1. आदरणीय, आदर योग्य, कुबेर-अत्यजीवदमरालकेश्वरो-रघु० १९।१५, पात्र, अधिकारी-अविभोजयन् विप्रो दण्डमर्हति माष- ----अन्तः शृंघर का किनारा या लट,-सदा 1. गंगा, कम्-मनु० ८।३९२, 2. योग्य, दावेदार, अधिकारी, गंगा में गिरने वाली नदी, 2. आठ से दस वर्ष के बीच (कर्म०, तुमुन्नन्त, तथा समास में)-नैवाहः पैतृकं की आय की लड़की,-प्रभा कुबेर की राजधानी, रिक्थं पतितोत्पादितो हि सः-मनु० ९।१४४, संस्कार- -संहतिः घुघरों की पंक्तियां-शि०६।३।। महंस्त्वं न च लप्स्यसे-रामा०, तस्मानाहीं वयं हन्तुं अलक्तः-क्तकः[न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वम्--स्वार्षे कन धार्तराष्ट्रान् स्वबान्धवान्-भग० ११३७, इसी प्रकार –तारा०] कुछ वृक्षों से निकलने वाली राल, लाल मान वध दंड आदि 3. सुहावना, उचित, उपयुक्त रंग की लाख महावर (प्राचीन काल में स्त्रियों द्वारा —केवलं यानमहं स्यात् –पंच. ३, (संबं के साथ शरीर के कुछ अंग इसके द्वारा रंगे जाते थे-विशेषरूप भी)-स भृत्योर्हो महीभुजाम् पंच० १९८७-९२, से पैरों के तल और ओष्ठ)-(दन्तवाससा) पिरो4. उचित मूल्य का, कीमत का, दे० नीचे,-ह: 1. ज्झितालक्तकपाटलेन-कु० ५।३४, मालवि. ३१५, इन्द्र 2. विष्णु 3. मूल्य (जैसा कि 'महार्ह में)- महार्ह- अलक्तकाङ्कां पदवी ततान-रघु० ७७, स्त्रियो शय्यापरिवर्तनच्युतः-कु० ५।१२, (महान) यस्याः हतार्थं पुरुषं निरर्थं निष्पीडितालक्तकवत्त्यजन्ति-मच्छ. -मल्लिनाथ) हा पूजा, आराधना। ४।१५ । सम०--रसः महावर, लाक्षारस-अलक्तरअहंणम्-णा [अर्ह +भावे ल्युट्] पूजा, आराधना, सम्मान, सरक्ताभावलक्तरसजितो, अद्यापि चरणौ तस्याः पय आदर तथा सम्मान के साथ व्यवहार करना-अर्हणा- कोशसमप्रभौ-रामा०,-रागः महावर का लाल रंग। महंते चक्रुर्मुनयो नयचक्षुषे-रधु० १५५, शि० अलक्षण (वि०) [न० व.] 1. चिह्नरहित 2. परिचायक १५।२२। चिह्न से हीन, परिभाषारहित, 3. जिसमें कोई अच्छा त (वि.) [अर्ह +शत] योग्य, अधिकारी, पूजनीय- चिह्न न हो, अशुभ, अपशकुन-क्लेशावहा भर्तुरल(पुं०) 1. बुद्ध 2. बौद्धधर्म की पुरोहिताई में उच्चतम क्षणाहम्-रघु० १४१५,----णम् 1. बुरा या अशुभ पद 3. जैनियों के पूज्य देवता, तीर्थकर--सर्वज्ञो जित- चिह्न 2. जो परिभाषा न हो, बुरी परिभाषा। रागादिदोषस्त्रलोक्यपूजितः, यथास्थितार्थवादी च देवोऽ | अलक्षित (वि.) [न० त०] अदृष्ट, अनवलोकित-अलईन् परमेश्वरः । क्षिताभ्युत्पतनो नृपेण---रघु० २।२७ । महन्त (वि.) [अर्ह +झ बा०] योग्य, अधिकारी,-त: अलक्ष्मीः (स्त्री०) [न० त०] दुर्भाग्य,बुरी किस्मत, निर्धनता । 1.बुद्ध 2. बौद्धभिक्षु । अलक्ष्य (वि.) [न० त०] 1. अदृश्य, अज्ञात, अनवमहंन्ती (स्त्री०) पूजा के योग्य होने का गुण, सम्मान, लोकित 2. चिह्नरहित, 3. जिस पर कोई विशिष्ट पूजा,-श्रोत्रार्हन्तीचणगुण्यैः-सिद्धा० । चिह्न न हो 4. देखने में नगण्य 5. जिसमें कोई बहाना मह्यं (स० कृ०) [अर्ह +ण्यत्] 1. योग्य, आदरणीय, 2. न हो, छल-कपट से रहित 6. अर्थों को दृष्टि से प्रशंसा के योग्य । गौण। सम० ---गति (वि.) अदृश्य रूप से अल (भ्वा० उभ०) [अलति-ते, अलितुम्, अलित] 1.. घमने वाला, जन्मता अज्ञात जन्म, अप्रकटक जन्म For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --यविरूपाक्षमलक्ष्यजन्मता-कु० ५/७०,-लिंग ) यथेष्ट, काफी (संप्र० या तुमुन्नन्त के साथ)-तस्याल(वि.) जो वेश बदले हुए हो, जिसका नाम पता छिपा | मेषा क्षुधितस्य तृप्त्य-रघु० २।३९, अन्यथा प्रातहो,-वाच (वि.) किसी अदृश्य बस्तु को संबोधित राशाय कुर्याम त्वामलं वयम्-भटि०८१९८, (ख) करके बोलने वाला--कु० ५।५७ । समकक्ष, तुल्य (संप्र० के साथ) दैत्येभ्यो हरिरलम् अलगदः [लगति स्पशति इति लग+क्विप, लग अर्दयति सिद्धा, अलं मल्लो मल्लाय--महाभा० 2. योग्य, इति अर्द + अच्, स्पृशन् सन्, अर्दो न भवति ] पानी सक्षम (तुमुन्नन्त के साथ)-अलं भोक्तुम-सिद्धा०, का साँप। वरेण शमितं लोकानलं दग्धं हि तत्तपः--कु०२५६, अलघु (वि.) [स्त्री० घु-ध्वी ] [न० त०] 1. जो (अधि के साथ भी)----त्रयाणामपि लोकानामलमस्मि हल्का न हो, भारी, बड़ा 2. जो छोटा न हो, लम्बा निवारणे--रामा० 3. बस, बहुत हो चुका, कोई (छंदः शास्त्र में) 3. संगीन, गंभीर 4. गहन, प्रचण्ड, आवश्यकता नहीं, कोई लाभ नहीं (निषेधात्मक बल बहुत बड़ा । सम०-उपलः चट्टान,-प्रतिज्ञ (वि.) रखना), करण० या क्त्वान्त के साथ, ----अलमन्यथा गंभीर प्रतिज्ञा करने वाला। गृहीत्वा--मालवि० ११२०, आलप्यालमिदं बभ्रोर्यत्स अलखकरणम् [अलम्++ ल्युट् ] 1. सजावट, सजाना दारानपाहरत्-शिव० २।४०, अलं महीपाल तव 2. आभूषण (शा० तथा आलं.)--सृजति तावदशेष- श्रमेण---रघु० २।३४, कु० ५।८२, अलमिद्भिः गुणाकरं पुरुषरत्नमलङ्करणं भुव:-भत० ११९२।। कुसुमैः-श०४, इतने फूल पर्याप्त है, 4. (क) पूर्णअलङ्करिष्णु (दि०) [अलम++इष्णु च ] 1. आभूषणों रूप से, पूरी तरह से--अर्हस्येनं शमयितुमल वारि का शौक़ीन, 2. सजाने वाला, सजाने की क्रिया धारा सहस्रः--मेघ० ५३, त्वमपि विततमज्ञः स्वगिणः में कुशल । प्रीणयाऽलम्-श० ७।३४, (ख) बहुत, अत्यधिक, अलङ्कारः [ अलम्++घन ] 1. सजावट, सजाने या बहुत ही अधिक,---तुदन्ति अलम का०२, यो गच्छत्यलं अलंकृत करने की क्रिया 2. आभूषण (आलं० से भी) विद्विषतः प्रति-अमर० । सम-कर्मोण (वि०) -अलङकारः स्वर्गस्य-विक्रम०१,3. अलंकार जिसके कार्य करने में सक्षम, दक्ष, कुशल, -- कृ दे० 'कृ' के शब्द, अर्थ तथा शब्दार्थ के अनुसार तीन भेद हैं नीचे,—जीविक (वि०)जीविका के लिए यथेष्ट,-धन 4. काव्य के गुण दोष बताने वाला शास्त्र। सम० (वि.) यथेष्ट धन रखने वाला, धनवान,—निरा-शास्त्रम् काव्य कला तथा साहित्य शास्त्र,—सुवर्णम् दिष्टधनश्चेत्तु प्रतिभूः स्यादलंधनः-मनु० ८।१६२, आभूषण घड़ने के लिए सोना। -धूमः अधिक धूआँ, धूम्रपुज, धुएँ का अंबार,-पुरुषीण अलकारकः [ अलम्++घञ, स्वार्थे कन् ] आभूषण, (वि०) 1. जो मनुष्य के योग्य हो, मनुष्य के लिए सजावट मनु० ७।२२०, [अलम् + +ण्वुल ] पर्याप्त हो,-बल (वि.) पर्याप्त बल शाली, यथेष्ट सजाने वाला। शक्तिशाली, बुद्धिः पर्याप्त समझ,--भूष्ण (वि.) अलडकृतिः (स्त्री०) [अलम+-+क्तिन् ] 1. सजावट योग्य, सक्षम--विनाप्यस्मदलंभूष्णुरिज्याय तपसः 2. आभूषण, कर्णालङकृति:--अमरु०१३, 3. साहित्यिक सुतः-शि० २१९ । आभूषण, अलंकार-तददोषौ शब्दार्थों सगुणाबन- | अलम्पट (वि.) [न० त०] जो लंपट या विषयी न हो, लडाकृती पुनः क्वापि-काव्य०१; यो विद्वान्मन्यते शुद्ध चरित्र वाला,-टः अन्तः पुर । काव्यं शब्दार्थावनलडकृती, असौ न मन्यते कस्मादनुष्ण- अलम्बुषः [ अलं पुष्णाति इति—पुष ।-क पृषो० पस्य बः ] मनलं कृती--चन्द्रा० सालङकृतिः श्रवणकोमलवर्ण- 1. वमन, दि, 2. खुले हुए हाथ की हथेली। राजि:--भामि० ३१६, (यहाँ अद्वितीय तथा तृतीय अलय (वि.) [ न० ब०] 1. गहहीन, आवारा 2. नाश अर्थ प्रकट करता है) ___ न होने वाला, अविनश्वर,--यः [ न० त०] 1. अनअलजक्रिया [अलम् ++श+टाप् ] अलंकृत करना, नश्वरता, स्थायित्व 2. जन्म, उत्पत्ति । आभूषित- करना, सजाना। (आल ० भी)। अलर्कः [अलम् अयंते अय॑ते वा अर्क+अच, अर्च+घन अलाघनीय (वि.) [न० त०] जो लांघा न जा सके, पार वा शक० पररूपम् ] 1. पागल कुत्ता या मदोन्मत न किया जा सके, जहाँ पहुँचा न जा सके, पहुँच के | व्यक्ति 2. सफेद मदार। बाहर। अलले (अव्य०) [अर+रा+के रस्य ल:] बहधा नाटकों अलजः [अल-+जन्+ड] एक प्रकार का पक्षी। में प्रयुक्त होने वाला पैशाची बोली का शब्द जिसका अलञ्जरः, ---जुरः अलं सामर्थ्य जणाति-ज+अच् पुषो० कोई अपना तात्पर्य नहीं। उत् तारा ] मिट्टी का बर्तन, मर्तबान, घड़ा। | अलवालम् [न० त०] वृक्ष में पानी देने के लिए जड़ में अलम् (अव्य०) [अल+अम् बा०] 1. (क) पर्याप्त, । बना हुआ स्थान दे० 'आलवाल'। LEELETELETEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलाबः-बः (बालाघवम् कु० २१ अधजली लकड़ी अलस (वि०) न० त० लस+क्विप ] न चमकने वाला। | अलिपकः [ न० त०11. कोयल 2. भौंरा 3. कुत्ता। अलस (वि.) [ न लसति व्याप्रियते-लस्+अच् ] 1. | अलिमकः= दे० अनिमक। अक्रिप, स्फूतिहीन, सुस्त, आलसी 2. थका हुआ, अलिम्पक-वक-दे० अनिमक। श्रान्त, क्लान्त, मार्गश्रमादलसशरीरे दारिके--माल- अलीक (वि.) [अल+वीकन 11. अप्रिय, अरुचिकर 2. वि०, ५, अमरु० ४।९०, विक्रम० ३२, गगन- असत्य, मिथ्या, मनगढन्त. -अलीककोपकान्तेन-का. मलसम्-मा० १।१७, 3. मृदु, कोमल 4. ढीला, १४७, °वचन-अमरु० २३, ३८, ४३,-कम् 1. मन्द (गति में)-...श्रोणीभारादलसगमना -- मेघ०८२,। मस्तक 2. मिथ्यात्व, असत्यता। सम-ईक्षणा वह स्त्री जिसकी मदभरी दृष्टि हो। अलोकिन् (वि.) [ अलीक+इनि] 1. अरुचिकर, अप्रिय अलसक (वि०) [ अलस-+कन् ] अकर्मण्य, सुस्त,-कः | 2. मिथ्या, छलने वाला। अफारा, पेट का एक रोग। अलुः [ अल्-+उन् ] छोटा जल-पात्र । अलातः--तम् [न० त०] अंगार, अधजली लकड़ी! अलक, समासः [ नास्ति बिभक्तेः लुक् लोपो यत्र] एक | समास जिसमें पूर्व पद की विभक्ति का लोप नहीं अलाबुः-बः (स्त्री) [न-लम्बते; न+लम्ब-|-उ.-...- होता, उदा०--सरसिजम्, आत्मनेपदम । णित नलोपश्च वद्धि:-तारा०] लंबी लोकी-ब। अले, अलेले (अव्य०) [ अरे, अरेरे इत्येव रस्य ल: ] (नपुं०) 1. तुमड़ी का बना पान-पात्र 2. तुमड़ी का बहुधा नाटकों में प्रयुक्त निरर्थक शब्द जो पिशाची हलका फल जो पानी पर तैरता है--कि हि नामैतत बोली में पाये जाते हैं। अम्बुनि मज्जन्त्यलाबूनि ग्रावाणः प्लवन्त इति-महा- | अलेपक (वि०) [न० ब० कप् ] बेदाग-क: परब्रह्म। वी० १, मनु० ६।५४ । सम०--कटम् लौकी का अलोक (वि०) [न.ब.] 1. जो दिखाई न दे-जैसा कसा हुआ चूरा,-पात्रम् तुमड़ी का बना बर्तन । कि-लोकालोक इवाचल:-रघ० १०६८[न लोक्यत अलारम् [ ऋ---यड्, लुक् +अच् रस्य लः ] दरवाजा।। इति अलोक:-मल्लि.] 2. जिसमें लोग न हों 3. अलिः [अल+इन् ] 1. भौंरा 2. बिच्छु 3. कौवा 4. ( अच्छे कर्म न होने के कारण) जो मृत्यु के उपरांत कोयल 5. मदिरा। सम०----कुलम् भौंरों का झंड, किसी दूसरे लोक में नहीं जाता,-क:-कम् °संकुल मक्खियों के झुंड से भरा हुआ--अलिकुल [ न० त०] 1. जो लोक न हो, 2. संसार की समाप्ति सङ्कुलकुसुमनिराकुलनवदलमालतमाले-पी० "सकुल या नाश, लोगों का अभाव--रक्ष सर्वानिमाल्लोकान कुब्ज नामक पौधा,-जिह्वा,-जिह्वका गले के भीतर नालोकं कर्तुमर्हसि--रामा० । सम-सामान्य असाका कौवा, घांटी, कोमल ताल-प्रिय जो भौंरों को धारण, असामान्य । अच्छा लगे (-यः) लाल कमल, (-या) बिगुल अलोकनम् [न० त०] अदृश्यता, दिखाई न देना, अंतजैसा फूल,--माला भौंरों का समूह,-विरावः, ान होना। –रुतम भौंरों का गुंजार,-वल्लभः= प्रियः तु०। अलोल (वि.) [ न० त०] 1. शान्त, क्षोभरहित 2. दृढ़, अलिकम् [अल्यते भूष्यते---अल+कर्मणि इकन ] मस्तक, स्थिर, 3. अचंचल 4. जो प्यासा न हो, इच्छा रहित । ..---अलिकेन च हेमकान्तिना--भामि० ११७१, | अलोलप (वि.) [न० त०] 1. इच्छाओं से मुक्त 2. जो विद्धशा० ३।६। । लालची न हो, बिषयों से उदासीन। अलिन् (पुं०) [ अल-इनि ] 1. बिच्छु 2. भौंरा,- मलि- | अलौकिक (वि.) [स्त्री०-की][न० त०] 1. जो लोक निमालिनि माधवयोषिताम्-शि०६।४, -नी भौंरों में प्रचलित न हो, असाधारण, लोकोत्तर 2. जो का झुंड,-अरमतालिनी शिलीन्ध्र-शि० ६१७२, सामान्य भाषा में प्रचलित न हो, धर्म-लेखों के लिए अलिनीजिष्णुः कचानां चय:- भर्त० ११५ । विशिष्ट, श्रेण्य साहित्य में अप्रयुक्त, वैदिक 4. प्राक्काअलिगर्दः । दे० 'अलगर्द' ] एक प्रकार का साँप । ल्पनिक, त्वम किसी शब्द का विरल प्रयोग–अलौअलिङ्ग (वि०) [ न० ब०] 1. जिसका कोई विशिष्ट किकत्वादमरः स्वकोषे न यानि नामानि समुल्लिलेख, चिह्न न हो, चिह्न रहित 2. बुरे चिह्नों वाला 3. विलोक्य तैरप्यधुना प्रचारमयं प्रयत्नः पुरुषोत्तमस्य(व्या० में) जिसका कोई लिंग न हो। त्रिका० । अलिञ्जरः । अलनम् --अलि: अल =इन् तं जरयति इति अल्प (वि०) [अल+प] 1. तुच्छ, महत्त्वहीन, नगण्य ___+अच पृषो० मुम् ] जलपात्र, दे० 'अलंजर' । (विप० महत् या गुरु) मनु० १११३६, 2. छोटा, अलिन्दः [ अल्यते भृष्यते, अल-कर्मणि किंदच | 1. घर थोड़ा, सूक्ष्म, जरा सा (विप० बहु)-अल्पस्य हेतोके दरवाजे के सामने का चबूतरा----मखालिदतोरणम् बहु हातुमिच्छन्-रघु० २१४७, १, २, 3. मरणशील -मालवि० ५, 2. दरवाजे पर बनी चौकोर जगह। । जो थोड़ी देर जीवे 4. कभी-कभी होने वाला, विरल, For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १०४ ) सम० - अल्प - रूपम्, - ल्पेन, रूपात् ( क्रि० वि० ) 1. जरा 2. जरा से कारण से, - प्रीति रल्पेन भिद्यते - रामा० 3. अनायास, बिना किसी कष्ट या कठिनाई के । (वि०) बहुत ही जरा सा सूक्ष्म, थोड़ा-थोड़ा करके, - असु प्राण दे०, आकांक्षिन् ( वि० ) थोड़ा चाहने वाला, संतुष्ट, थोड़े से ही संतुष्ट, आयुस् (वि०) थोड़ी देर जीने वाला - मेघ० ४।१५७, (-यु: पुं० ) 1. छोटी आयु का, बच्चा, 2. बकरी, आहार, - आहारिन् (वि०) मिताहारी, खाने में औसतदर्जे | का (-र: ) परिमितता, भोजन में संयम - इतर (वि०) 1. जो छोटा न हो, बड़ा 2. जो कम न हो, बहुत, जैसे 'राः कल्पनाः, नाना प्रकार के विचार, ऊन ( वि० ) ईषद्दोषी, अधूरा, – उपायः छोटे साधन, गंध ( वि०) थोड़ी गंध वाला (-धम्) लाल कमल, - चेष्टित ( वि० ) क्रियाशून्य, छव, छाद ( वि० ) थोड़े वस्त्र धारण किये हुए मृच्छ० ११३७, ( वि० ) थोड़ा जानने वाला, उथले ज्ञान वाला, मोटी जानकारी रखने वाला - तनु ( वि० ) 1. ठिंगना, छोटे कद का 2. दुर्बल, पतला, दृष्टि (वि० ) जिसका मन उदार न हो, अदूरदर्शी, धन (वि०) जो धनवान् न हो, घनहीन मनु० ३।६६, १११४०, धी (वि०) दुर्बलमना, मूर्ख, प्रजस् (वि० ) थोड़ी संतान वाला, - प्रमाण, प्रमाणक (वि०) 1. थोड़े वजन का, थोड़ी माप का, 2. थोड़े प्रमाणों वाला, थोड़े से साक्ष्य पर निर्भर रहने वाला - प्रयोग (वि०) विरलता से प्रयुक्त, कभी-कभी प्रयुक्त, प्राण, असु ( वि० ) थोड़ा श्वास रखने वाला, दमे का रोगी ( ---णः ) 1. थोड़ा श्वास लेना, दुर्बल श्वास 2. ( व्या० में) वर्णमाला के महा प्राणताहीन अक्षर - उदा० स्वर, अर्धस्वर, अनुनासिक तथा क् च् ट् त् प् ग् ज् ड् द् व् अक्षर; (वि०) दुर्बल, बलहीन, कम शक्ति रखने वाला, - बुद्धि, मति (वि०) दुर्बलबुद्धि, मूर्ख, अज्ञानी - मनु० १२०७४, भाषिन् (वि०) वाक् - कृपण, थोड़ा बोलने वाला, - मध्यम (वि०) पतली कमर वाला, - - मात्रम् (वि० ) थोड़ा सा जरा सा, मूर्ति ( वि० ) छोटे कद का, ठिगना (-तिः - स्त्री० ) छोटी आकृति या वस्तु - मूल्य ( वि० ) थोड़ी कीमत का सस्ता, - मेधस् ( वि० ) थोड़ी समझ का अज्ञानी, मूर्ख, --- वयस् (वि० ) थोड़ी आयु का, कमसिन, - वादिन् ( वि० ) अल्पभाषी, -विद्य ( वि० ) अज्ञानी, अशिक्षित, विषय ( वि० ) सीमित परास या घारिता से युक्त, क्वचाल्पविषया मतिः -- रघु० १२, शक्ति ( वि०) कमजोर, दुर्बल, सरस् ( नपुं०) पोखर, छोटा जोहड़ (जो गर्मियों में सूख जाता है) । - बल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ अल्प + कन् ] 1. अल्पक ( वि० ) [स्त्री० - ल्पिका ] छोटा, थोड़ा 2. क्षुद्र, नीच । अल्पम्पच ( वि० ) [ अल्प + पच् + खश् मुम् ] ( थोड़ा पकाने वाला) लालची, कंजूस, मक्खीचूस; चः www कृपण । अल्पश: ( अव्य० ) [ अल्प + शस् ] 1. थोड़े अंश में, ज़रा, थोड़ा-बहुशो ददाति आभ्युदयिकेषु, अल्पशः श्राद्धेषु - पा० ५/४१४२, टीका, 2. कभी-कभी, यदा कदा । अल्पित ( वि० ) [ अल्प कृतार्थे णित्रु कर्मणि -क्त ] 1. घटाया हुआ, 2. सम्मान की दृष्टि से नीचा, तिरस्कृत --मृषा न चक्रेऽल्पितकल्पपादपः - नै० १।१५ अल्पिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन अल्पः -- इष्ठन् ] न्यूनातिन्यून, छोटे से छोटा, अत्यन्त छोटा । अल्पीक ( तना० उभ० ) छोटा बनाना, घटाना, संख्या में कमी करना । अल्पीयस् (वि० ) [ अतिशयेन अल्पः -- - ईयसुन् ] अपेक्षाकृत छोटा, दूसरे से कम, बहुत थोड़ा । अल्ला [ अल्यते इति अल् + क्विप्, अले भूषार्थे लाति गृह्णाति -ला + क] माता ( संबोधन - अल्ल) । अव (स्वा० पर० ) [ अवति, अवित या ऊत ] 1. रक्षा करना, बचाना, - यमवतामवतां च धुरि स्थितः- रघु० ९।१, प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभि रीश:- श० १1१, 2. प्रसन्न करना, संतुष्ट करना, सुख देना, विक्रमस्ते न मामवति नाजिते त्वयि - रघु० ११।७५, न मामवति सद्वीपा रत्नसूरपि मेदिनी११६५, 3. पसन्द करना, कामना करना, इच्छा करना 4. कृपा करना, उन्नत करना ( धातुपाठ में इस धातु के और अनेक अर्थ दिये गये हैं, परन्तु श्रेण्य साहित्य में उनका प्रयोग विरल होता है ) । अव ( अन्य ० ) [ कई बार आरंभिक 'अ' को लुप्त कर दिया जाता है जैसा कि "पूर्वापरी तोयनिधी वगाह्य" कु० १।१ में ] [ अव् + अच् ] 1. (सं० बो० अव्य० के रूप में) दूर, परे, फासले पर नीचे, 2. (क्रिया से पूर्व उपसर्ग के रूप में) यह प्रकट करता है (क) संकल्प, दृढ़ निश्चय — अवघृ ( ख ) विसरण, परिव्याप्ति - अवकू ( ग ) अनादर – अवज्ञा (घ) थोड़ा पन, व्रीहीनवहन्ति (ङ) आश्रय लेना, सहारा लेना अवलम्ब (च) पवित्रीकरण - अवदात (छ) अवमूल्यन्, पराजय -- अवहन्ति शत्रून् ( पराभवति ) (ज) आदेश देना - अवक्लप (झ) अवसाद, नीचे झुकनाअवतु, अवगाह (ञ) ज्ञान – अवगम् अवइ, 3. तत्पुरुष समास के प्रथम खण्ड के रूप में इसका अर्थ होता है :- अवष्ट, उदा० अवकोकिलः अवक्रुष्टः कोकिलया सिद्धा० । अवकट ( वि० ) [ अव — स्वार्थे— कटच् 1. नीचे की For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओर, पीछे की ओर 2. विपरीत, विरोधी, -टम् । अवकृष्ट ( भू० क० कृ०) [अव+कृष्+क्त] 1. खींचकर विरोध, वैपरीत्य। नीचे किया हुआ, 2. दूर हटाया हुआ 3. निष्कासित, अबकरः [ अव+क+अप् ] धूल, बुहारन । बाहर निकाला हुआ 4. घटिया, नीच, पतित, बहिष्कृत अवकतः [अव+कृत्+घञ ] टुकड़ा, धज्जी। (विप० उत्कृष्ट या प्रकृष्ट)--ष्टः वह नौकर जो अवकर्तनम् [अव+कृत्+ ल्युट ] काटना, धज्जियां करना। झाडू-बुहारु आदि का काम करता है (संमार्जनशोधनअवकर्षणम् [अव+कृष् + ल्युट्] 1. बाहर निकालना, विनियुक्त);--पणो देयोऽवकृष्टस्य, षडुत्कृष्टस्य वेतखींचना 2. निष्कासन।। नम्-मनु० ७.१२६ । अवकलित (वि.)[अव- कलक्त ] 1. दृष्ट, अवलो अवक्लप्तिः (स्त्री०) [ अव+क्लप+क्तिन् ] 1. संभव कित 2. ज्ञात 3. लिया हुआ, गृहीत । समझना, संभावना, संभाव्यता- क्वेव भोक्ष्यसे अनवअवकाशः[अव+काश+घा ] 1. अवसर, मोका,-ताते क्लप्तावेव-सिद्धा० (अनवक्लप्तिरसम्भावना) 2. चापद्वितीये वहति रणधुरां को भयस्यावकाशः-वेणी० . उपयुक्तता। ३७, लभ के साथ प्रयुक्त होकर इसका अर्थ होता | अवकेशिन (वि.) [अवच्युतं कं सुखं यस्मात्-अवकम् है—कार्य के लिए क्षेत्र या अवसर प्राप्त करना, (फलशन्यता) तदोशितुं शीलमस्य इति अवक+ईश -लब्धावकाशोऽविध्यन्मां तत्र दग्धो मनोभव:---कथा० +णिनि ] फलहीन, बंजर (जैसा कि वृक्ष)। श४१ 2. (क) स्थान, जगह, ठौर-अवकाशं किलो- | अवकोकिल (वि.) [ अवक्रुष्ट: कोकिलया] कोयल द्वारा दन्वान्रामायाभ्यथितो ददौ --रघु० ४।५८ इसी प्रकार | तिरस्कृत। -अन्यमवकाशमवगाहे-विक्रम ४, यथावकाशं नी । अवक्र (वि.) [न० त०] जो टेढ़ा न हो, (आलं.) ईमाउचित स्थान पर ले जाना-रघु०६।१४,-अस्माकम- नदार, सच्चा। स्ति न कथंचिदिहावकाशः—पंच० ४८, अवकाशो अवकन्द (वि.) [अव+ऋन्द्+घञ्] शनैः २ रुदन करने विविक्तोऽयं महानद्योः समागमे-..-रामा० (ख) वाला, दहाड़ने वाला, हिनहिनाने वाला,पदार्पण, प्रवेश, पहुँच, अन्तर्गमन (छाया) शुद्धे तु | चिल्लाना, चीख, चीत्कार। दर्पणतले सुलभावकाशा-श०७३२, लम् के साथ । अब कन्दनम् [ अव---ऋन्द + ल्युट | जोर से चिल्लाना, ऊँचे बहधा इन्हीं अर्थों में प्रयोग-लब्धावकाशो मे मनोरथः स्वर से रोना। श०१, शोकावेगदूषिते मे मनसि विवेक एव । अवक्रमः [ अव+क्रम+घा 1 नीचे उतरना, उतार । नावकाशं लभते—प्रबो०, कृ या दा से पूर्व लगकर भी अवक्रयः [अव+की+अच्] 1. मूल्य 2. मजदूरी, अर्थ होता है.---'स्थान देना' 'प्रवेश कराना' 'मार्ग किराया, खेत का भाडा 3. किराये पर देना, पट्टे पर देना'- असो हि दत्त्वा तिमिरावकाशम्-मृच्छ० देना 4. (राजा को दिया जाने वाला) कर या राजस्व, ३।६, तस्माद्देयो विपूलमतिभिनदिकाशोऽधमानाम- शुल्क (राजग्राह्य द्रव्यम् सिद्धा०)। पंच० ११३६६; अवकाशं रुध--रोकना, बाधा अवक्रान्तिः (स्त्री०) [अव+कम+क्तिन् ] 1. उतार 2. डालना-नयनसलिलोत्पीडरुद्भावकाशा (निद्रा)- उपागम । मेघ० ९१, 3. अन्तराल, बीच का स्थान या समय 4. अवक्रिया [अव++ +टाप् ] भूल, चूक ।। द्वारक, विवर। अवक्रोशः [अव+-क्रुश्+घश] 1. बेमेल ध्वनि 2. अवकोणिन् (वि०) [अवकीर्ण + इनि] संयम का उल्लंघन कोसना 3. दुर्वचन, निन्दा । करने वाला, ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ देने वाला, (पुं०---- | अवक्लेदः [अव+क्लिद्+घञ्] 1. टपकना, ओस ो) धर्मनिष्ठ विद्यार्थी जिसने (मैथुनादिक करके) पड़ना 2. कचलहूँ, पीप । अपने ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ा और संयमहीनता का | अवक्लेदनम् [ अव-+क्लिद्+ल्युट ] बंद २ टपकदा, ओस परिचय दिया;-अवकीर्णी भवेदगत्वा ब्रह्मचारी तु या कुहरे का गिरना । योषितम्, गर्दभं पशुमालभ्य नैर्ऋतं स विशुध्यति- अवस्वणः [अव+क्वण्+अच् ] अलाप। याज्ञ० ३।२८०, मनु० ३।१५५ ।। अवक्वाथः [ अव+ क्वथ्+घञ् ] अधूरा पचन या अधूरा अवकुञ्चनम् [अव+कुञ्च् + ल्युट् ] झुकाव, मोड़, उबालना। सिकुड़न । अवक्षयः [अब+क्षि+अच् नाश, बरबादी, ध्वंस, तबाही। अवकुण्ठनम् [ अब+कुण्ठ् + ल्युट ] 1. घेरना, घेरा डालना अवक्षयणम् [ अव+क्षि+ल्युट ] (आग आदि को) बुझाने 2. आकृष्ट करना, कस के पकड़ना। के साधन । अवकुण्ठित (वि०) [ अव+कुण्ठ+वत] 1. घेरा हुआ, | अवक्षेपः [ अव-+-क्षिप-घश ] 1. लांछन, निन्दा 2. परिवेष्टित 2. आकृष्ट । आक्षेप। For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवक्षेपणम् [अव+क्षिप+ ल्युट] 1. नीचे की ओर फेंकना, । अवगुण्ठित (भू० क० कृ०) [ अव+गुण्ट+क्त ] पर्दा कम के पाँच प्रकारों में से एक, दे० 'कर्म' 2. घृणा, पड़ा हुआ, ढका हुआ, छिपा हुआ-रजनीतिमिरावनफरत 3. बदनामी, लांछन 4. पराजित करना, दमन गुण्ठिते----कु० ४।११। करना---णी बागडोर, लगाम । | अवगुरणम्,-गोरणम् [ अव-- गुर् + ल्युट् ] घुड़कना, धमअवखण्डनम् [ अव+खण्ड-+ ल्युट ] बांटना, नष्ट करना। काना, मार डालने के इरादे से प्रहार करना, शस्त्रों अवखातम् [प्रा० स०] गहरी खाई। से आक्रमण करना। अवगणनम् [अब+गण+ ल्युट ] 1. अवज्ञा, तिरस्कार, ! अवगहनम् [ अव+गृह + ल्युट ] 1. छिपाना, प्रछन्न अवहेलना 2. निंदा, लांछन 3. अपमान, मानभंग । रखना 2. आलिंगन करना। अवगण्डः [प्रा० स०] 'फोड़ा फुसी जो गाल पर होती है । अवग्रहः [अव--ग्रह-+घञ ] 1. समस्त पद के घटक शब्दों अवगतिः (स्त्री०) [ अव+गम्-+क्तिन् ] 1. ज्ञान, प्रत्य- को अलग अलग करना, सन्धिच्छेद करना 2. इस क्षीकरण, समझ, सत्य और निश्चित ज्ञान-ब्रह्मावग-1 प्रकार की पृथकता को द्योतन करने वाला चिह्न 3. तिहि पुरुषार्थः ब्रह्मावगतिस्लप्रतिज्ञाता--शत० । विराम, सन्धि का न होना (जैसा कि-धिक तां अवगमः--गमनम् [अव+गम्+घा, ल्युट वा ] 1. च तं च मदनं च इमां च मां च-इसमें च+इमां निकट जाना, नीचे उतरना 2. समझना, प्रताक्षीकरण, चेमा सन्धि नहीं हई) 4. ए और ओ से परे 'अ' ज्ञान। का लोप हो जाने पर चिह्न 5. वर्षा का न होना, अवगाढ (भू० क० कृ०) [अव+गाह +क्त ] 1. डुवकी सूखा पड़ना, अनावृष्टि----बष्टिर्भवति शस्यानामवग्रह लगाया हुआ, घुसा हुआ, डुवा हुआ,-अमतलदमि- विशोषिणाम्-रघु० ११६२, १०॥४८, नभोनभस्ययोवावगाढोऽस्मि----श०७, 2. नीचे दवाया गया,--- वंटिमवग्रह इवान्तरे-१२।२९, वषेब सीतां तदवग्रहनीचा, गहरा (शा० आलं०) अभ्युग्नता पुरस्तादव- क्षताम् कु० ५।६१, 6. बाधा, रोक 7. हाथियों का गाढा जघनगौरवात्पश्चात्-श० ३७, 3. घनीभूत, समूह 8. हाथी का मस्तक 9. प्रकृति, मूलस्वभाव जमा हुआ (जैसे रक्त)। 10. दण्ड (विप० अनुग्रह) 11. कोसना गाली देना । अबगाहः गाहमम् [अव+गाह +घन , ल्युट् बा] 1. स्नान, अवग्रहणम् [ अव+ग्रह, ल्युट्] 1. बाधा, रुकावट 2. ..---सुभगसलिलावगाहाः--श० ११३ सदावगाहक्षमवारि- अनादर, अवहेलना संचयः ---ऋतु० ११ 2. डुबकी लगाना, डुबाना, अवग्राहः [अव+ग्रह --धन ] 1. टूटना, वियोजन 2. घुसना---परदेशावगाहनात्-हि० ३९५, जलावगाह- अड़चन 3. शाप दे० 'अवग्रह। क्षणमात्रशान्ता-रघु० ५१४७, दग्धानामवगाहनाय | अवघटटः [ अव+घट+घन 11. बिल, गुहा, मांद विधिना रम्यं सरो निमितम्-शृंगार० १, 3. (आलं०) 2. शिला, चक्की (अनाज पीसने के लिए), 3. जोर से निष्णात होना, सीख लेना 4. स्नानागार । हिलाना। अवगीत (भू० क० कृ०) [ अब+++क्त ] 1. बेमेल अवघर्षणम [ अव+घष् + ल्युट] 1. रगड़ना 2. मलना स्वर से गाया हुआ, बुरी तरह से गाया हुआ 2. धम 3. पीसना। काया हुआ, गाली दिया हुआ, कोसा गया 3. दुष्ट अवघातः [ अव+हन् + घन ] 1. प्रहार करना 2. चोट बदमाश 4. गान द्वारा व्यंग्यात्मक ढंग से चोट किया पहुँचाना, मारना 3. प्रचण्ड आघात, तीव्र आघातगया;--तम् 1. व्यंग्यगान, परिहास 2. धिक्कार, कर्णावपातनिपुणेन च ताड्यमाना दूरीकृताः करिवरेण लांछन । (भंगाः)--नीति०२, 4. धान आदि को ओखल में अवगुणः [प्रा० स०] अपराध, दोष, बराई-अन्यदोष डालकर ममल से कूटना ।। परावगुणम् ---मल्लि० कि० १३१४८ । | अवघूर्णनम् [ अव-घूर्ण+ल्युट् ] घुमेरी आना, चक्कर अवगुण्ठनम् [ अव+गुण्ठ+ल्यूट ] 1. चूंघट निकालना, आना। छिपाना, बुर्का ओढ़ना 2. पर्दा (मुंह के लिए) अवघोषणम् -णा [ अव-!-घुष् + ल्युट ] 1. घोषणा करना ( आलं० भी)---अवगुण्ठनसंवीता कुलजाभिसरे- 2. उद्घोषणा । द्यदि ---सा० द०-कृतशीर्षावगुंठन:- मुद्रा० ६, 3. . अवघ्राणम् [ अव+घ्रा--ल्पुट् ] सूंघने की क्रिया। चूंघट, बुर्का। अाचन (वि०) [न० ब० न बोलने वाला, चुप, वाणी अवगुंठनवत् (वि.) [ अवगुण्टन+ मतुप् ] घूघट से ढका रहित-शकुन्तला साध्वसादववना तिष्ठति-श०१, हुआ, पर्दे से आवृत, तो नारी--०५। ...नम् 1. उक्ति का अभाव, चुप्पी, मौन 2. निन्दा, अवगुण्ठिका [ अब । गुण्ठ --- बुल+टाप् ] 1. चूंघट, फर्श लांछन, भर्त्सना--"कर( वि० ) आज्ञा न मानने 2. आवरण 3, चिक या पर्दा । वाला। For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर विजय, (स्त्री०) [हप्त:--रघु मृच्छ० २, तानसे | A निन्दा से ( १०७ ) अवचनीय (वि०) न० त०] 1. जो कहने के या उच्चारण अवजयः [अव-जि-अच्] पराजय, दूसरों पर विजय, करने के योग्य न हो, अश्लील या अशिष्ट (भाषा) -येनेन्द्रलोकावजयाय दृप्त:---रघु०६।६२ । ---वादेष्ववचनीयेषु तदेव द्विगुणं भवेत्-मनु०८२६९, अवजितिः (स्त्री०) [अव+जि+क्तिन्] विजय, पराजय। 2. जो निन्दा या लांछन के योग्य न हो, निन्दा से अवज्ञा [अव+ज्ञा+क] अनादर, तिरस्कार, अवमति, मुक्त-लोकरवचनीया भवति-मच्छ०२,°ता कहने अवहेलना (कर्म०, करण०, अधि० या संबं० के साथ) में अनौचित्य, निन्दा से मुक्ति--सर्वथा व्यवहर्तव्ये ---आत्मन्यवज्ञां शिथिलीचकार- रघु० २।४१, ये नाम कुतो ह्यवचनीयता- उत्तर० ११५ । केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञाम्-मा० ११६। सम० अवच (चा) यः [अव+चि+अच, घना वा] चयन करना --उपहत तिरस्कारपीडित, नीचा दिखाया गया-दुःखम् (फल फूल आदि का)--ततः प्रविशतः कुसुमावचयम- नीचा दिखाये जाने की वेदना-मा जीवन् यः पराभिनयन्त्यो सख्यौ-श. ४, अविरतकुसुमावचायखे- वज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति---शि० २।४५।। दात् --शि० ७७१। अवज्ञानम् [अव+ज्ञा+त्युट अनादर, तिरस्कार। अवचारणम् [अव+चर+णिच-+ल्यूट] किसी काम पर अवटः [अव+अटन] 1. विवर, गुफा 2. गर्त-अवटे चापि नियुक्त करना, प्रयोग, प्रगमन की पद्धति । मे राम प्रक्षिपेम कलेवर, अवटे ये निधीयते-रामा० अवचूर:-ल: [अवनता चूडा अग्रं यस्य वा डो ल:] रथ के 3. कुआं 4 शरीर का कोई दबा हुआ या नीचा भाग, ऊपर लहराता हुआ कपड़ा, ध्वजा के शिरोभाग में नाडीव्रण,-अवटश्चैवमेतानि स्थानान्यत्र शरीरकेबंधा हुआ (चौरी जैसा) अधोमुख वस्त्रखंड,-पिच्छा- याज्ञ० ३९८ 5. बाजीगर। सम--कच्छपः गढ़े वचूडमनुमाघवघाम जग्मुः-शि० ५.१३, दिवसकर- में घुसा हुआ कछुवा (आलं.) अनुभवशून्य, जिसने वारणस्यावचूलचामरकलापः-का० २६।। संसार का कुछ न देखा हो । अवसूर्णनम् [अव+चूर्ण+ल्युट] 1. चूरा करना, पीसना, | अवटि:-टो (स्त्री०) अव+अटि पक्षे डी] 1. विवर चूर्ण बनाना 2. चूरा बुरकाना विशेषकर कोई सूखी 2. कुआँ। दवा घाव पर बुरकाना। अक्टोट (वि०) [नासिकायाः नतं अवटीटम्, अव-+-टीटन अवचूल-दे० अवचूड़। नासिकाया: संज्ञायाम् नासिकाप्यवटीटा, पुरुषोऽप्यवअवचलक:-कम् [अवनता चूडा यस्य, इस्य लत्वम्--संज्ञायां टीट:] जिसकी नाक चपटी है, चपटी नाक वाला। कन] मक्खियों को उड़ाने के लिए बुश या चंवर । अवटुः [ अव-+-टीक+डु: ] 1. बिल 2. कुआं 3. गरदन अवच्छ (च्छा) दः [अव । छद्-+क] आवरण, ढक्कन----- का पृष्ठभाग, 4 शरीर का दबा हुआ अंग-टुः __--कांचनावच्छदान् (खरान्)-रामा० । (स्त्री०) गरदन का उठा हुआ भाग,-टु (नपुं०) अवच्छिन्न (भू० क० कृ०) [अव+छिद्+क्त] 1. काटा | विवर, दरार। हुआ 2. अलगाया हुआ, बंटा हुआ, पृथक किया हुआ | अवडीनम् [अव+डी+क्त] पक्षी की उड़ान, नीचे की 3. (तर्कशास्त्र में) अपने विहित विशिष्ट गुणों द्वारा ओर उड़ना। दूसरी सब बस्तुओं से पृथक् की गई वस्तु 4. | अवतंसः-सम् [अव+तंस्। घा] 1. हार 2. कर्णाभूषण, सीमित, विकृत, निश्चित-दिक्कालाद्यनवच्छिन्न- अंगूठी के आकार का आभूषण, कान का गहना(आलं. भर्तृ०२।१, 5. किसी विशेषण से युक्त, विशिष्ट, भी)-गणा नमेरुप्रसवावतंसा:--कु० ११५५, स्ववाहनविविक्त तथा उपलक्षित । क्षोभचलावतंसा:-७।३८, रघु० १३१४९, 3. शिरोअवच्छुरित (वि०) [अव-छुर+क्त] मिश्रित-तम् भूषण, मुकुट (आलं०) आभूषण का काम देने वाली अट्टहास। कोई भी वस्तु-तामरसावतंसा: जलसंनिवेशा:अवच्छेदः (अव-।-छिद्+घा] 1, खंड, अंश 2. सीमा, चात० २।३, पुंडरीकावतंसाभिः परिखाभिः-रामा० मर्यादा 3. विच्छेद 4. भेद, विवेचन, (विशेषणों ---पुष्पावतंसं सलिलम्---सुश्रु०।। द्वारा),विशिष्टीकरण 5. दृढ़ निश्चय,निर्णय, फैसला---- | अवतंसकः [अव+तंस्+ण्वल ] कर्णाभूषण, आ शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मतिहेतक:--.-वाक० ६, अवतंसथति (ना० धा० पर०) कर्णाभूषण के रूप में प्रयुक्त 6. पदार्थ का वह गुण जो उसे औरों से अलग कर दे, करना, कानों की बालियाँ नाना--अवतंसयन्ति लक्षणदर्शी गुण 7. सीमा बाँधना, परिभाषा करना। दयमानाः प्रमदाः शिरीषकुसुमानि --- श० ११४ । अवच्छेवक (वि०) [अव-छिद+ बुल] 1. वियोजक 2. | अवततिः (स्त्री०) [अव+तन्-- क्तिन् । फैलाव, प्रसार । निर्धारक, निर्णायक '3. सीमा बाँधने वाला 4. विवे- अवतप्त (भू० क० कृ०) [अव+त+क्त] गरम किया चक, विशिष्टीकारक 5. विशेष लक्षण-क: 1. जो हुआ, चमकाया हुआ-अवतप्ते नकुलस्थितम्-आखेटी विवेचन करे 2. विधेय, लक्षण, गुण । नेवले का गर्म भूमि पर खड़ा होना, (रूपक के For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०८ ) ढंग से इस प्रकार मनुष्य की अस्थिरता के विषय में। 7. (जहाज से) उतरने का स्थान 8. अनुवाद 9. कहा जाता है)-अवतप्ते नकुलस्थितं त एतत --- | जोहड़, तालाब 10 प्रस्तावना, भूमिका । सिद्धा। अवतारक (वि.) (स्त्री०--रिका) [अव+तु+णिच+ अवतमसम् [प्रा० स०] झुटपुटा, अल्पांधकार-क्षीणेऽवत- ण्वुल ] 1. किसी को जन्म देने वाला 2. अवतार मसं तमः-अमर०, अंधकार-अवतमसभिदायै भास्व- लेने वाला। ताभ्यद्गतेन-शि० १११५७, (यहाँ मल्लि० कहता | अवतारणम् [अव+त+णिच् + ल्युट् ] 1. उतारना 2. है:-यद्यपि क्षीणेऽवतमस तम इत्युक्तं तथापि इह | अनुवाद 3. किसी भूत प्रेत का आवेश 4. पूजा, विरोधाद्विशेषतादरेण सामान्यमेव ग्राह्यम्)। आराधना 5. भूमिका या प्रस्तावना । अवतरः [अव+त+अप्] उतार, नै० ३५३, शि० अवतीर्ण (भू० क० कृ०) [अव+तृ+क्त] 1. नीचे आया १२४३ । हुआ, उतरा हुआ 2. स्नात 3. पार गया हुआ, पार अवतरणम् [ अव+त+ल्युट् ] 1. स्नान करने के लिए। किया हआ-अपि नामावतीणोसि वाणगोचरम पानी में नीचे उतरना, उतार, नीचे आना 2. अवतार मा० १। दे० 'अवतार' 3. पार करना 4. स्नान करने का अवतोका [अवपतितं तोकम् अस्याः , प्रा० ब०] स्त्री या पवित्र स्थान 5. एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद गाय जिसका किसी दुर्घटना के कारण गर्भ गिर करना 6. परिचय 7. उद्धृत किया हुआ, उद्धरण। गया हो। अवतरणिका [ अबतरणी+कन् ह्रस्वः टाप] 1. ग्रन्थ के | अवत्तिन (वि.) [अब+दो+इनि] जो विभाजन करता आरम्भ में किया गया मंगलाचरण, जो कि, कहते हैं, है, काटकर पृथक् करता है। पंच पांच भागों में संबोधित किये गये देवताओं को स्वर्ग से नीचे उतार बाँटने वाला। लाता है, 2. प्रस्तावना, भूमिका । अवदंशः [अव+देश+घञा ऐसा चरपरा भोजन जिसके अवतरणी [ अवतरति ग्रन्थोऽनया-अवत+करणे ल्युट ] खाने से प्यास लगे, उत्तेजक । भूमिका। अवदाधः [अव+दह+घा हस्य घः] 1. गर्मी 2. ग्रीष्म अवतर्पणम् [अव+तृप-+ ल्युट्] शान्ति देने वाला ऋतु। उपचार। अवदात (वि.) [अव+दे+क्त] 1. सुन्दर-अवदातअवताडनम् [अव+त+णिच् + ल्युट ] 1. कुचलना, कांतिः- दश० १०७, 2. स्वच्छ, पवित्र, निर्मल, रौंदना, नैसगिकी सुरभिणः कुसुमस्य सिद्धा मनि परिष्कृत-सर्वविद्यावदातचेता:-का० ३६, 3. उज्ज्वल, स्थितिन चरणरवताडनानि-उत्तर० १।१४ 2. श्वेत-- रजनिकरकलावदातं कुलम्--का०२३३, कुंदामारना। वदाताः कलहंसमाला:-भट्टि० २।१८, 4. गुणी, सद्गुणी अवतानः [अव+तन्+घञ.] 1. फैलाव 2. धनुप का | अन्यस्मिन् जन्मनि न कृतमवदातं कर्म---का० ६२, तनाव 3. आवरण, चंदोवा । 5. पीला-तः श्वेत या पीला ग। अवतारः [अव+त+घा ] 1. उतार, उदय, आरंभ | अवदानम् [अव+दो+ल्युट् ] 1: पवित्र एवं मान्यता -वसन्तावतारसमये-श० १, 2. रूप, प्रकट होना प्राप्त वृत्ति 2. सम्पन्न कार्य 3. शौर्य सम्पन्न या —मत्स्यादिभिरवताररवतारवताऽवतावसूधाम्-शंकर० कीर्तिकर कार्य, पराक्रम, शूरवीरता, प्रशस्त सफलता, 3.देवता का भूमि पर पदार्पण, अवतार लेना.-कोऽप्येप संगीयमान त्रिपुरावदान:-कु० ७।४८, प्रापदस्त्रमवसंप्रति नवः पुरुषावतारः उत्तर० ५।३३ धर्मार्थ- दानतोषितात्-रधु० ११।२१, 4. कथावस्तु 5. काट कामामोक्षाणामवतार इवाङ्गवान् --रघु० १०१८४, 4. कर टुकड़े २ करना। विष्णु का अवतार--विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तो अवदारणम् [अव-+-+णिच् + ल्युट् ] 1. फाड़ना, महासंकटे-भर्त० ३.९५, (विष्ण के दस अवतार नीचे बांटना, खोदना, काट कर टुकड़े २ करना 2. कुदाल, लिखे श्लोक में बताये गये हैं :-वेदानुद्धरते जगन्नि- खुर्पा। वहते भगोलमद्विभ्रते, दैत्यं दारयते बलि छलयते क्षत्र- अबदाहः [ अव+दह+घा ] गर्मी, जलन। क्षयं कुर्वते । पौलस्त्यं जयते हलं कलयते कारुण्यमात- अवदीर्ण (भ० क० कृ०) [ अव+द+क्त ] 1. बाँटा न्वते, म्लेच्छान्मर्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं हुआ, टूटा हुआ 2. पिघलाया हुआ, खंडित 3. हड़नमः ।। मत्स्यः कर्मो वराहश्च नरसिंहोऽथ दामनः, | वड़ाया हुआ। रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्ध: कल्की च ते दश ।। गीत०) | अवदोहः [ अब दुह +घञ 11. दुहना, 2. दूध । 5. नया दर्शन, विकास, जन्म-नवावतारं कमलादि- अवद्य (वि.) [न० त०] त्याज्य, निंद्य, प्रशंसा के वोत्पलम्-- रघु० ३।३६, ५।२४, 6. तीर्थ स्थान । अयोग्य-न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्-मालवि० For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२, 2. सदोष, दोष युक्त, निन्दाह, अरुचिकर, । अवधूत (भू० क. कृ.) [ अव+धू+क्त ] 1. हिलाया अप्रिय--उदवहदनवद्यां तामवद्यादपेत:-रघु० ७७०, हुआ, लहराया हुआ 2. त्यागा हुआ, अस्वीकृत, धुणित 'अनवद्य' भी 3. चर्चा के अयोग्य, 4. नीच, अघम, -रघु० १९।४३, 3. अपमानित, तिरस्कृत,-तः वह -द्यम 1. अपराध, दोष, खोट 2. पाप, दुर्व्यसन 3. सन्यासी जिसने सांसारिक बंधनों तथा विषय-वासनाओं लांछन, निन्दा, झिड़की- उदवहदनवद्यां तामवद्या को त्याग दिया है---यो विलंघ्याश्रमान वर्णानात्मन्येव दपेत:-रघु०७७०।। स्थितः पुमान्, अतिवर्णाश्रमी योगी अवधतः स अवद्योतनम् [अवद्युत् + ल्युट ] प्रकाश । उच्यते । या-अक्षरत्वात् वरेण्यत्वात् धूतसंसारअवधानम् [अव+धा+ ल्युट । 1. ध्यान–अवधानपरे बंधनात्, तत्त्वमस्यर्थसिद्धत्वादवधूतोऽभिधीयते। चकार सा प्रलयान्तोन्मिषिते विलोचने -कु० ४२, | अवधूननम् | अवघ+ल्युत् ] 1. हिलाना, लहराना 2. एकाग्रता, सावधानी दत्तावधान: शृणोति-साव- क्षोभ, कंपकंपी 3. अवहेलना । धानतापूर्वक सुनता है 2. लगन, सतर्कता, चौकसी; अवध्य (वि०) [न० त०] मारने के अयोग्य, पवित्र, अवधानात् सतर्कतापूर्वक, ध्यानपूर्वक,---शृणुत जना मत्यु से मुक्त । अवधानात् क्रियामिमां कालिदासस्य --विक्रा० ११२, अवध्वंसः [ प्रा० स०] 1. परित्याग, उन्मोचन 2. चूरा, (पाठ०)। राख 3. अनादर, निदा, लांछन, 4. गिर कर अलग अवधारः [अव++णिच् + घन] सही निश्चय, सीमा । होना 5. बुरकना। अवधारक (वि.) [अव+ +णिच् पवुल्] सही निश्चय | अवनम् [ अन्+ल्युट् ] 1. रक्षा, प्रतिरक्षा--नलो० ११४, करने वाला। 2. तृप्तिकर, प्रसन्नतादायक 3. कामना, इच्छा 4. अवधारण (वि.) [अव-ध+णिच्--ल्युट् ] प्रतिबंधक, हर्ष, संतोष । सीमाबन्धन करने वाला, णम, -णा 1. निश्चय, । अवनत (भू० क० कृ०) [अव---नम्+क्त ] 1. नीचे निर्धारण 2. पूष्टीकरण, बल 3. सीमा नियत करना झका हुआ, खिन्न, विनय, प्रश्रय 2. डूबता हुआ (शब्दों के अर्थों की)-यावदवधारणे, एवावधारणे, झुकता हुआ, नीचे गिरता हुआ। मात्र कात्न्य ऽवधारणे-अमर० 4. किसी एक निद- | अवनतिः (स्त्री०) [अव+ नम्-क्तिन्] 1. झुकना, मस्तक शन तक ---या सबसे पृथक करके --प्रतिबंध झुकाना, झुकाव,--अवनतिमवने:----मुद्रा० ११२, शि० लगाना। ९८, 2. पश्चिम में छिपना, डूबना 3. प्रणाम, दंडवत् अवधिः [ अव-धा--कि] 1. प्रयोग, ध्यान 2. सीमा, 4. झुकाव (जैसे धनुष का)-धनषामवनतिः का० (यहाँ मर्यादा---अन्त तकारी या एकान्तिक-(स्थान और अ° का अर्थ 'अवनमन' भी होता है) 5. शालीनता, समय की दृष्टि से), सिरा, समाप्ति--स्मरशापाव- विनम्रता। धिदां सरस्वती-कु० ४१४३, उपसंहार, प्रायः | अवन (भू० क. कृ.) [ अव+नह+क्त ] 1. निर्मित, समास के अन्त में अर्थ होता है-'के साथ समाप्त बना हुआ 2. स्थिर, बैठाया हुआ, बांधा हुआ, जुड़ा होते हुए' 'यथासंभव' तक' एष ते जीवितावधिः हुआ, एक जगह रक्खा हुआ, -वम् ढोल। प्रवाद:--उत्तर० १, 3. नियतकाल, समय-रघु० अवनम्र (वि.) [प्रा० स०] अवनत, झुका हुआ-पर्याप्त१६।५२, शेषान् मासान् विरहदिवसस्थापितस्यावधेर्वा पुष्पस्तबकावनम्रा--कु० ३१५४, पाद पैरों पर गिरा -मेघ०८९, यदवधि--तववधि जबसे-तबसे, जबतक --तबतक 4. पूर्वनियुक्ति 5. नियुक्ति 6. प्रभाग, अबन (ना) यः [ अव+नी+अच्, घञ् वा] 1. नीचे जिला, विभाग 7. विवर, गर्त । ले जाना 2. नीचे उतारना । अवधीर (चु० पर०) अवहेलना करना, अनादर करना, | अबनाट (वि.) [ मतं नासिकायाः, अव+नाटच्, दे. नीचा दिखाना,—अवधीरितसुहद्वचनस्य-हि. १, अवटीट ] चपटी नाक वाला। घृणा करना, तिरस्कार करना। अवनामः [अव+नम्+घञ्] 1. झुकना, नमस्कार करना, अवधोरणम् [अव+घी+ल्युट ] अनादर पूर्वक बर्ताव पैरों पर गिरना 2. नीचे झुकाना। करना। अवनाहः [अव+नह+घञ ] बांधना, पेटी लगाना, अवधीरणा [अव+धीर-ल्युट+टाप] अनादर, तिर- | कसना। स्कार,-कृतवत्यसि नाववीरणामपराद्धेऽपि यदा चिरं | अवनिः-मी (स्त्री०)[अव+अनि, पक्षे होप ] 1. पृथ्वी मयि-रघु०८४८, मालवि० ३.१९, अयं स ते तिष्ठति 2. आकृति 3. नदी। सम-शि:-विवरः, सङ्गमोत्सुको विश से भीरु यतोऽवधीरणाम -श. -नाथः,--पतिः, पालः भूस्वामी, राजा-पतिरवनि३।१४। पतीनां तैश्चकाशे चतुर्भिः रघु०-१०।८६, ११३९३, हुआ। For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ११० ) -चर (वि०) पृथ्वी पर घूमने वाला, आवारागर्द | घुमक्कड़, धः पहाड़, तलम् पृथ्वीतल, -- मंडलम् भूमंडल, रुहः, -रुट् वृक्ष । अवनेजनम् [ अव +- निज् + ल्युट् ] 1. प्रक्षालन, मार्जन -न कुर्याद्गुरुपुत्रस्य पादयोश्चावनेजनम् मनु० २।२०९, 2. धोने के लिए पानी, पैर बोना 3. श्राद्ध में पिंडदान की वेदी पर विछाये हुए कुशों पर जल छिड़कना । अवन्तिः -- तो ( स्त्री० ) [ अव + झिच् वा० पक्षे ङीप् | नाम, - 1. एक नगर का नाम, वर्तमान उज्जयिनी, हिन्दुओं के सात पवित्र नगरों में से एक, कहा जाता है कि यहाँ मरने से शाश्वत सुख मिलता है- अयोध्या मथुरा माया काश काञ्चिरवन्तिका पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः । अवन्ती की स्त्रियां काम-कला में अत्यन्त कुमल होती हैं, तु० आवंत्य एवं निपुणाः सुदृशो रतकर्मणि - बालग० १० ८२; 2. एक नदी का - ( पुं० व० व०) एक देश का नाम जिसे आजकल मालवा कहते हैं, तथा वहाँ के निवासी, इसकी राजधानी सिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जयिनी नगरी है - इसके नगरांचल में महाकाल का एक मन्दिर भी है; अवन्तिनाथोऽयमुदग्रबाहुः रघु० ६।३२, असौ महाकालनिकेतनस्य वसन्नदूरे किल चन्द्रमौले: - ६१३४, ३५ प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान् मेघ० ३०, अवन्तीपूज्जयिनी नाम नगरी का० ५२ । सम० - पुरम् अवन्ती नामक नगर, उज्जयिनी । अबन्ध्य ( वि० ) [ न० त०] जो बंजर न हो, उर्वर, उपजाऊ । अवपतनम् [अव + पत् + ल्युट् ] उतरना, नीचे आना । अवपाक (fro ) [ अवकृष्टः पाको यस्य ब० स०] बुरी तरह पकाया हुआ, कः बुरी तरह से पकाना । अवपातः [ अव + त् + घञ ] 1. नीचे गिरना - अधश्चरणा वपातम् भर्तृ० २।३१, पैरों पर गिरना, ( आलं ० ) चापलूसी 2. उतरना, नीचे आना 3. विवर, गर्त 4. विशेषकर हाथियों को पकड़ने के लिए बनाया गया बिल या गर्त अवपातस्तु हस्त्यर्थे गर्ते छन्ने तृणादिना - यादव: रोधांसि निघ्नन्नवपातमग्नः करीव वन्यः परुषं ररास रघु० १६ । ७८ । अवपातनम् [अव + पत् + णिच् + ल्युट् ] गिराना, ठुकराना, नीचे फेंकना । अवपात्रित (वि० ) [ अवपात्र ( ना० धा० ) + गिच् + क्त ] जातिबहिष्कृत, ऐसा व्यक्ति जिसको बिरादरी के लोग अपने पात्र में भोजन कराने के लिए अनुमति न देते हों । अवपीड: [ अव + पीड़ + णिच् । ] 1. नीचे दवाना, दबाव 2. एक प्रकार की औषधि जिसके सूंघने से छींके आती हैं, नस्य । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवपीडनम् [ अव + पीड् + णिच् + ल्युट् ] 1. दबाने की क्रिया 2. नस्य, ना क्षति, आघात । अवबोधः (अव + बुध् + घा] 1. जागना, जागरूक होना ( विप० स्वप्न ) यौ तु स्वप्नावबोधी तो भूतानां प्रलयोदयौ कु० २२८, भग० ६ १७, 2. ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण- स्वभर्तृनामग्रहणादृभूव सान्द्रे रजस्यात्मपरावबोध: - रघु० ७१४१, ५/६४, प्रतिकूलेषु तैक्ष्णस्यावबोध: क्रोध इष्यते - सा० द०, 3. विवेचन, निर्णय 4. शिक्षण, संसूचन 1 अवबोधक ( वि० ) [ अव + बुध् + ण्वुल् ] संकेतक, दर्शाने वाला, कः 1. सूर्य, 2. भाट 3 अध्यापक । अवबोधनम् [ अव + बुध् । ल्युट् ] ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण | अवभङ्गः [अव + भञ्ज्+घञ] नीचा दिखाना, जीतना, हराना । अवभासः | अव + भास् + घञ्न् ] 1. चमक-दमक, कान्ति, प्रकाश 2. ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण 3 प्रकट होना, प्रकाशन, अन्त: प्रेरणा 4. स्थान, पहुंच, क्षेत्र 5 मिथ्याज्ञान । अवाक ( fro ) [ अव + भास् + ण्वुल् ] प्रकाशक, कम् परब्रह्म । अवभुग्न (वि० ) [ अव + भुज् + क्त] सिकुड़ा हुआ, झुका हुआ, टेढ़ा किया हुआ । अवभृथः [अव + भू+ कथन ] 1. मुख्य यज्ञ की समाप्ति पर शुद्धि के लिए किया जाने वाला स्नान-१ - भुवं कोन कुण्डोनी मेध्येनावभृथादपि - रघु० १०८४, ९/२२, ११।३१, १३/६१, 2. मार्जन के लिए जल 3. अतिरिक्त यज्ञ जो पूर्वकृत मुख्य यज्ञ की त्रुटियों की शांति के लिए किया जाता है, सामान्य यज्ञानुष्ठान -- स्नातवत्यवभृथे ततस्त्वयि - शि० १४ । १० । सम० --स्नानम् यज्ञानुष्ठान की समाप्ति पर किया जाने वाला स्नान । अवनः अपहरण, उठाकर ले जाना । अवट (वि० ) ( नतं नासिकायाः अव + भ्रटच् ] चपटी नाक वाला । अक्षम (वि० ) [ अत् | अमच्] 1. पापपूर्ण 2. घृणित, कमीना 3. खोटा, नीच, घटिया (विप० परम ) --अनलकानलकानवमां पुरीम् - रघु० ९।१४, दे० 'अनवम' 4. अगला, घनिष्ट 5. पिछला, सबसे छोटा । (भू० क० कृ० ) [ अव + मन् + क्त ] घृणित, कुत्सित । सम० अङकुश: अंकुश को न मानने वाला हाथी, मदमत्त कामवमतांङकुराग्रहः- शि० १२।१६ । अमतिः (स्त्री० ) [ अव + मन् + क्तिन्] 1 अवहेलना, अनादर 2. अरुचि, नापसंदगी । अवमर्दः [ अव + मृद् + घा] 1. कुचलना, 2. वर्बाद करना, अत्याचार करना । अवमर्शः [ अव + मृश् + घञ For Private and Personal Use Only | स्पर्श, संपर्क । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवमर्षः [अव+म+घा] 1. विचारविमर्श, आलोचना, । (विप० प्रथम) सामान्यमेषां प्रथमावरत्वम् ---कु० 2 नाटक की पाँच मुख्य सन्धियों में से एक-यत्र ७१४४, 6. न्यूनातिन्यून, (प्राय: समास के उत्तरपद के मुख्यफलोपाय उद्भिन्नों गर्भतोऽधिकः, शापाद्यैः सान्त- रूप में अंकों के साथ)-व्यवरैः साक्षिभिर्भाव्यः-मनु० रायश्च सोऽवमर्ष इति स्मृतः । सा० द० ३६६; ८१६०, श्यवरा परिषद् ज्ञेया-१२।११२, याज्ञ० 'विमर्प' भी इसी को कहते हैं, 3. आक्रमण करना। २६९, 7. पश्चिमी,... रम हाथी की पिछली जांघ अवमर्षणम् [अव+मृ+ ल्युट्] 1. असहनशीलता, असहि- (-रा भी)। सम०... अर्ध: 1. थोड़े से थोड़ा भाग, ष्णुता 2. मिटा देना, मिटा डालना, स्मृतिपथ से न्यूनातिन्यन 2. उत्तरार्ध 3. शरीर का पिछला भाग, निष्कासन। ... अवर (वि०) नीचतम, सबसे घटिया--न हि प्रकृअवमानः [अव+मन्+घा] अनादर, तिरस्कार, अब- ष्टान् प्रेष्यांस्तु प्रेमपत्यवरावरान् रामा०- उक्त हेलना। (वि०) अन्त में कहा हुआ, --ज (वि०) अपेक्षाकृत अवमाननम्-ना [अव+मन्+णिन् +ल्युट् युच् वा] अना- छोटा, कनीयान् (--जः) छोटा भाई.-विदर्भराजादर, तिरस्कार । वरजा- रघु० ६।५८, ८४, १२॥३२,--वर्ण (वि०) अवमानिन् [अव+मन् । णिच् +गिनि] तिरस्कार करने नीच जाति का (-र्ण:) 1. शूद्र 2. अन्तिम या चौथा वाला, घृणा करने वाला, अपमान करने वाला वर्ण, वर्णक: -वर्णजः शूद्र-व्रतः सूर्य,-शल: पश्चि. धिङमामुपस्थितथेयोऽवमानिनम्-श०६, अयि मी पहाड़ (जिसके पीछे सूर्य डुबता हुआ समझा आत्म-गुणावमानिनि -श० ३। जाता है)। अवमर्धन (वि०) [अवनतो मर्वाऽस्य] सिर झुकाये हुए। | अवरतः (अव्य.) [ अवर तसिल ] पीछे, बाद में, सम० - शय (वि०) सिर को नीचे लटका कर लेटा पिछला, पश्चवर्ती ।। हुआ, जैसे कि मनुष्य (विप० देव) ---- उत्तानशया देवा अवरतिः (स्त्री०) [ अव-- रम्+क्तिन् ] 1. ठहरना, अवमूर्धशया मनुष्याः । ___ रुकना 2. विराम, विश्राम, आराम । अवमोचनम् [अव+मुच् । ल्युट्] स्वतंत्र करना, मुक्त | अबरीण (वि०) [अवर+ख ) 1. पदावनत, खोट मिला करना, ढीला करना। हुआ 2. घृणित । अवयवः [अव+यु+अच्] 1. (शरीर का) अंग --मुखा- अवरुग्ण (वि०) [ अव+रुज-क्त ] 1. टूटा हुआ, फटा वयवलूनां ताम्---रघु० १२।४३ अमरु० ४०, ४६; हुआ 2. रोगी। सदस्य, करिमश्चिदपि जीवति नन्दान्वयावयवे-मद्रा०१ | अवद्धिः (स्त्री०) [ अव- रुध् + क्तिन् ] 1. रुकावट, 2. भाग, अंश 3. तर्कसंगत युक्ति या अनुमान का प्रतिबन्ध 2. घेरा 3. प्राप्ति । घटक या अंग (यह पाँच हैं :- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, अवरूप (वि.) [ब० स० ] कुरूप, विकलांग । उपनय और निगमन) 4. शरीर 5. घटवा, संविधायी, | अबरोचकः | अव---रुच् -|- ] भूख न लगना । उपादान (जैसे किसी संमिश्रण के)। सम०.- अर्थः अपरोघः अब+रुध+घञ | 1. बाधा, रुकावट 2. प्रतिशब्द के संविधायी अंशों का आशय ।। बंर --अन्दः प्राणावरोध:-मच्छ० १११, 3. अन्तःपुर, अवयवशः (अव्य.) [अवयव-शस्] अंश अंश करके, जनानखाना, रनवास --निन्ये विनीतैरवरोधदक्षैः—कू० अलग २, टुकड़े टुकड़े करके । ७।७३, गृहेषु राज्ञः--- श० ५।३, ६।११, 4. राजा की अवयविन् (वि.) [अवयव+इनि] अवयव, अंश या उप- रानियाँ (समष्टि रूप से) (प्राय: व० व०);-अब भागों से बना हुआ, (पुं०-यो) 1. पूर्ण 2. अनुमान- रोधे मइत्यपि . रघु० ११३२, ४।६८, ८७, ६।४८, वाक्य या कोई तर्कसंगत संधि ।। १६५८, 5. घेरा, बन्दीकरण 6. किलाबंदी, नाकेबंदी, अवर (वि.) [न वरः इति अवरः न० त०, व+अप् । 7. ढक्कन 8. बाड़ा, गोठ १. चौकीदार 10. हलकापन, बा०] 1. (क) आयु में छोटा,---मासेनावरः- खोखलापन । मासावरः—सिद्धा० (ख) बाद का, पश्चवर्ती, पिछला अवरोधक (वि०) [अवरुध्-- वुल ] 1. बाधा डालने (समय और स्थान की दृष्टि से)-यदवरं कौशाम्ब्या:, | वाला, 2. घेरा डालने वाला,--कः पहरेदार,-कम् यदवरमाग्रहायण्याः—सिद्धा० 2. अनुवर्ती, उत्तरवर्ती रोक, बाड़ । 3. नीचे, अपेक्षाकृत नीचा, घटिया, कम 4. नीत्र, अवरोधनम् [ अव+रुध् + ल्युट् ] 1. किलाबंदी, नाकेबंदी महत्वहीन, सबसे बुरा, निम्नतम (विप० उत्तम) 2. बाधा, 3. रुकावट, अड़चन 4. राजा का अंत:अव्य डग्यमवरं स्मृतम्--काव्य. १, दूरेण वरं कर्म- पुर राजावरोधनवधरवतारयन्तः---शि० ५।१८। बुद्वियोगाद्धनञ्जय--भग० २।४९, श्रद्दधानः शुभां | अवरोधिक (वि.) [अवरोध-+-ठन् ] 1. बाधाजनक, विद्यामाददतावरादपि-मनु० २।२३८ 5. अन्तिम । अड़चन डालने वाला 2. घेरा डालने वाला ।-क: For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) पहरेदार. अवरोधिन पुस्तुरङ्गाधिरती का अंत:पुर , अवरोष बाधा डावरोष का अंत:पुर का पहरेदार,—का अंतःपुर की पहरेदार- | अवलीला [ अवरा लीला-प्रा० स०] 1. क्रीडा, खेल, स्त्री-ययस्तुरङ्गाधिरहोऽवरोधिका:-शि० १२।२०।। प्रमोद 2. तिरस्कार । अवरोधिन् (वि.) [अवरोध-+ इनि ] 1. रुकावट डालने | अवलुचनम् [ अव+लुञ्च+ ल्युट् ] 1. काटना, फाड़ना, वाला, बाधा डालने वाला, 2. घेरा डालने वाला। | उखाड़ना,---केश 2. उन्मूलन । अवरोपणम् [अव |-रुह -+-णिच् + ल्युट, पुकागमः ] 1. | अवलुण्ठनम् [ अव+लुण्ठ + ल्युट् ] 1. भूमि पर लोटना या उन्मूलन 2. नीचे उतारना 3. ले जाना, वञ्चित | लुढ़कना 2. लटना। करना, घटाना। अवलेखः [ अव+लिख्+घञ्] 1. तोड़ना, खरोंचना, अवरोहः [अव+रह+घञ ] 1. उतार 2. नीचे से चोटी छीलना 2. खुरची हुई कोई वस्तु । तक वृक्ष के ऊपर लिपटने वाली लता 3. आकाश 4. | अवलेखा { अव-+-लिख्+अ+टाप् ] 1. रगड़ना 2. किसी लटकती हुई शाखा (जैसे बड़ की)-अवरोहशता को सुसज्जित करना । कीर्ण वटमासाद्य तस्थत:--रामा० 5. (संगीत में) | अवलेपः [ अवलिप-घन 1 1. अहंकार. घमंड स्वरों का ऊपर से नीचे आना। -प्रियसंगमेष्वनवलेपमदः---शि० ९५१, (यहां अ अवरोहणम् [अव+ रुह + ल्युट् ] 1. उतरना, नीचे आना | का अर्थ 'लेप करना' भी हो सकता है),-व्यक्तमाना2. चढ़ना। वलेपाः - मुद्रा० ३।२२, 2. अत्याचार, आक्रमण, अवर्ण (वि.) [न० ब०] 1. रंगहीन 2. बुरा, नीचा, अपमान, बलात्कार-किं भवतीनामसुरावलेपेनाप -ण: 1. लोकापवाद, अपकीर्ति, कलंक, बट्टा,---सोढुं | राद्धमविक्रम० १, ददृशे पवनावलेपज सृजति वाष्पन तत्पूर्वमवर्णमीशे---रघु० १४१३८, 2. लांछन, निन्दा | मिवाजनाविलम्- रघु० ८।३५ 3. लीपना पोतना, ---न चावदद्धतरवर्णमार्या --५७, कोई दुर्वचन नहीं 4. आभूषण 5. संघ, समाज । कहा। अवलेपनम् | अब+लिए+ल्यट] 1. लीपना पोतना अवलक्ष (वि.) [अव-लक्ष+धन ] [ 'वलक्ष' भी | 2. तेल, कोई चिकना पदार्थ 3. संघ 4. घमंड । लिखा जाता है ] श्वेत,-क्षः श्वेत वर्ण। अवलेहः [ अव+लिह-घा ] 1. चाटना, लपलपाना अवलग्न (वि.) [अव+लग+क्त] चिपका हुआ, लगा लगा। 2. अकं 3. चटनी। हुआ, सटा हुआ,-नः कमर । | अवलेहिका--अवलेहः (3)। अवलम्बः [अव-|-लम्ब--घा] 1. नीचे लटकना | अवलोकः [ अब+लोक-धज ] 1. देखना, दृष्टि डालना, 2. सहारे लटकना, सहारा(आलं. भी)---सन्तुजालाव- 2. दृष्टि । लम्बाः--मेघ० ७०, कुनपति भवनद्वार सेवा भर्तृ० अवलोकनम् [ अवलोक+ल्युटु] 1. अवलोकन करना, १४६७, 3. स्तंभ, आड़, आश्रय (शा० तथा आलं०) । दृष्टि डालना, देखना, नो बभवरवलोकनक्षमाः --रघु० -सावलम्बगमना-रघु० १९।५०, दूसरों के सहारे चलने ११।६०, 2. दृष्टि में रखना पर्यवेक्षण करना-दीघिवाली, सन्ततिविच्छेदनिरवलम्बानाम-श०६, दैवे- कावलोकनगवाक्षगता:-मालवि० १, 3. दृष्टि, आँख नेत्थं दत्तहस्तावलम्बे-रत्न० ११८, 4. अत: बैसाखी 4. नजर, झांकी-योगनिद्रान्त विशदैः पावनरवलोकन या छड़ी जो सहारे के लिए रक्खी जाती है। - रघु० १०।१४, 5. खोज करना, पूछताछ । अवलम्बनम् [अव+लम्ब+ल्युट ] 1. स्तंभ, सहारा, आड़ | अवलोकित (भू० क. कृ०) [अव+ लोक+क्त) देखा --अवलम्बनाय दिनभर्तुरभन्न पतिष्यतः करसहस्रमपि हुआ,-- तम् दृष्टि, झांकी। . शि० ९।६, प्रस्थानविक्लवगतेरवलम्बनार्थ--श० ५।३, अववरकः [ अव+व+अप् ततः संज्ञायां बुन् ] 1. रन्ध्र, मम पुच्छे करावलम्बनं कृत्वोत्तिष्ठ ---हि० १, छिद्र 2. खिड़की, दे० 'अपवरक' । 2. सहायता, मदद। अववादः [अव+वद्+घा ] 1. निन्दा 2. विश्वास, अवलिप्त (भू०क०कृ०) [अव+लिप+क्त ] 1. घमंडी, भरोसा 3. अवहेलना, अनादर 4. सहारा, आश्रय 5. उद्धत, अभिमानी 2. लिपा पुता, सना हुआ। बुरी रिपोर्ट 6. आदेश। अवलोड (भू० क० कृ०) [अव+लिह+क्त ] 1. खाया अवतश्चः [अव+ च+अच ] छिपटी, खपची। हुआ, चबाया हुआ--दर्भरर्धावलीहै:--श० १२७, अवश (वि) [न० त०] 1. स्वतंत्र, मुक्त 2. जो वश्य या 2. चाटा हुआ, लप लप करके पीया हुआ, स्पृक्त आज्ञाकारी न हो, अवज्ञाकारी, स्वेच्छाचारी 3. जो (आलं. भी)---नवयौवनावलीढावयवा--दा० १७, किसी के अधीन न हो-अवशो विषयाणाम्-का० जवानी से व्याप्त,-अस्त्रज्वालावलीढप्रतिबलजलधे- ४५, 4. लाचार, इन्द्रियों का दास कु. ६।९५, 5. रन्तरीयमाणे-वेणी. २५, चारों गोर से घिरा पराश्रित, असहाय, शक्तिहीन-कार्यते ह्यवशःहुबा 3. निगला हुआ, नष्ट किया हुआ । भग० ३१५, कथमवशो यशोविवं पिबामि-मृच्छा For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११३ ) १०।१३ । सम०-इन्द्रियचित्त (वि.) जिसका मन लटका हुआ 3. निकटवर्ती, संसक्त 4. वाघायुक्त, और इन्द्रियां किसी दूसरे के अधीन न हो। . झुका हुआ 5. बांधा हुआ, बंधा हुआ। अवशङ्गमः [न० त०] जो दूसरे की इच्छा के अधीन न हो। अवष्टम्भः [अव+स्तम्भ घिन ] 1. टेक लगाना, अवशातनम् [प्रा० स०] 1. नष्ट करना 2. काटना, काट सहारा लेना 2. आश्रय, आधार-पक्षाभ्यामीषगिराना 3. मुाना, सूख जाना। त्कृतावष्टम्भ:-का०३४, खड्गलतावष्टम्भनिश्चल:अवशेषः [ अव+शिष् । घञ.] बचा हुआ, शेष, बाकी, मा०३, तत्कथमहं धैर्यावष्टंभं करोमि---पंच० १, ---वृत्तांत°—माल वि० ५, कथा का शेष भाग, अर्ध 3. अहंकार, घमंड 4. थूनी, स्तंभ 5. सोना 6. उपक्रम, या नाम जिसका केवल नाम ही जीवित हो या कथा आरम्भ 7. ठहराना, रोक 8. साहस, दृढ़ निश्चय 9. कहानी में ही जिसका वर्णन हो अथवा जिसका पक्षाघात, स्तब्धता। केवल नाम ही शेष रहा हो, आलं० रूप से मत अवष्टम्भनम् [अव+स्तम्भ + ल्युट् ] 1. टिकना, सहारा पुरुष के लिए प्रयुक्त, सावशेषमिब भट्टिन्या लेना 2.थूनी, स्तम्भ । वचनम् मालाव०४, असमाप्त-शृणु म सावशष अवष्टम्भमय (वि.)[स्त्री०-यी][अवष्टम्भ+मयट] वन:-श० २, मेरी बात सुनो, मुझे अपनी बात पूरी सुनहरी, सोने का बना हुआ, अथवा खंभे के बराबर करने दो। लंबा,-रघोरवष्टम्भमयेन पत्रिणा--रघु० ३।५३ अवश्य (वि.) [न० त०] 1. जो वश में न किया जा (अ का अर्थ उपर्यक्त ढंग से किया जाता है, परन्तु सके, जिसको नियन्त्रण में न लाया जा सके 2. अनि- प्रस्तुत प्रसंग में इसका अर्थ होगा 'ओजस्वी, वार्य-अथ मरणमवश्यमेव जन्तोः - वेणी० ४।४, 3. साहसी')। अनुपेक्ष्य, आवश्यक । सम०--पुत्रः ऐसा बेटा जिसको अवसक्त (भू० क० कृ०)[अव--स +क्त ] 1. स्थगित, सिखाना या शासन में रखना असंभव हो। प्रस्तुत 2. संपर्कशील, स्पर्शी। अवश्यम् (अव्य०) [अव+श्य+डमु - तारा०] 1. | अवसक्थिका [अवबद्धे सक्थिनी यस्यां कप्] 1. कपड़े की आवश्यकरूप से, अनिवार्य रूप से त्वामप्यत्रं नव- पट्टी जो घुटनों के नीचे पैरों में लपेटी जाती है, इस जलमयं मोचयिष्यन्त्यवश्यम-मेघ० ९५, 2. निश्चय प्रकार पट्टी या पटके से बांधना या पटुका बांध कर से, चाहे कुछ भी हो, सर्वथा, यकीनन, निस्संदेह विशेष मुद्रा में होना- शयानः प्रौढपादश्च कृत्वा -अवश्यं यातारश्चिरतरमषित्वापि विषयाः-भर्त० ३। चैवावसक्थिकाम्---मनु० ४।११२, 2. अत: वेष्टन, १६, तां चावश्यं दिवसगणनातत्परामेकपत्नीम् (द्रक्ष्य- पटका या पट्टी। सि) मेघ०, १०।६३, अवश्यमेव अत्यन्त निश्चयपूर्वक, | अवसण्डीनम [अव+सम्+डी+क्त] पक्षियों के झुंड की यदि इसे स० कृ० के साथ जोड़ा जाता है तो इसका नीचे की ओर उड़ान। अन्त्य अनुनासिकत्व लुप्त हो जाता है—अवश्यपाच्य | अवसथः [अव+सो--कथन ] 1. आवासस्थान, घर 2. --जो निश्चित रूप से पकाया जाय, अवश्यकार्य--जो गाँव 3. विद्यालय या महाविद्यालय, दे० 'आवसथ' । निश्चित रूप से किया जाता है। अवसथ्यः [ अवसथ-+-यत् ] महाविद्यालय, विद्यालय । अवश्यम्भाविन् (वि.) [अवश्यम् + भू- इनि] अवश्य अवसन्न (भू० कृ० कृ०) [अव+सद्+क्त ] 1. उदास होने वाला, अनिवार्य-अवश्यम्भाविनो भावा भवन्ति (आलं भी) शिथिल 2. समाप्त, अवसित, बीता महतामपि-हि०प्र० २८ । हुआ--अवसन्नाया रात्री-हि० १, 3. खोया हुआ, अवश्यक (वि०) [ अवश्य -कन् ] आवश्यक, अनिवार्य, | वंचित -रघु० ९१७७ । अनपेक्ष्य। अवसरः [अव+स-अच्] 1. मौका, सुयोग, समय अवश्या [ अव+श्य+क] कुहरा, पाला, धुंद । -नास्यावसरं दास्यामि-श० २, भवगिरामवसरअवश्यायः [अब+ये+ण] 1. कुहरा, ओस 2. पाला, प्रदानाय वचांसि नः—शि० २१७, विसर्जन सत्कार: सफेद ओस-अवश्यायावसिक्तस्य पुण्डरीकस्य चारुताम् श० ७. प्राप्तम्—मौके के मुताविक-मालवि०१, २ - उत्तर०६।२९, 3. घमंड। (अतः) उपयुक्त सुयोग—शशंस सेवावसरं सुरेभ्यः अवधयणम् [अव+श्रि+ल्युट ] आग के ऊपर से कोई कु० ७।४०, अवसरोऽयमात्मानं प्रकाशयितुम् - श० वस्तु उतारना (वि० 'अधिश्रयणम्')-अधिश्रयणाव- १, दे० 'अनवसर' भी 3. स्थान, जगह, क्षेत्र 4. अवश्रयणान्तादिपूर्वापरीभूतो व्यापारकलाप: पाकादिशब्द काश, लाभप्रद अवस्था 5. वत्सर 6 वर्षण 7. उतार वाच्य :-....सा० द०२।। 8. गुप्त परामर्श । अवष्टब्ध (भू० क० कृ०) [अव+स्तम्भ-+क्त ] 1. अवसर्गः / अव+सज+घन] 1 मुक्त करना, ढीला सहारा दिया गया, थामा गया, पकड़ा गया 2. से पर करना 2. स्वेच्छानुसार कार्य करने देना 3. स्वतंत्रता। For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोग्धीम् ।।१५, अवसर्पः [ अव+सप्+घा ] भेदिया, गुप्तचर । अवस्तात् (अव्य०) [ अवरस्मिन् अवरस्मात् अवरमित्यर्थे अवसर्पणम् [ अव+सृप्+ ल्युट् ] नीचे उतरना, नीचे —अवर+अस्ताति अवादेशः ] 1. नीचे, नीचे से, जाना। नीचे की ओर 2. अधस्तात् नीचे। अवसादः [ अव+सद्+घञ 1 1 उदासी, मर्छा, सुस्ती | अवस्तारः [अब+ स्तु+घञ ] 1. पर्दा, 2. चादर, कनात 2. बर्बादी, विनाश-विपदेति तावदवसादकरी-कि० । 3. चटाई। १८।२३, ६।३१, 3. अन्त, समाप्ति, 4. स्फति का अवस्तु (नपुं०) [न० त०] 1. निकम्मी वस्तु, तुच्छ बात अभाव, थकान, थकावट 5. (विधि में) अभियोग का —अवस्तुनिबन्धपरे कथं नु ते-कु० ५.६६, 2. अवाखराब होना, पराजय, हार । स्तविकता, सारहीनता-वस्तुन्यवस्त्वारोपोऽज्ञानम । अवसादक (वि.) [अव+सद् +णिच्+ण्वल ] 1. अवस्था [अवस्था +अङ] 1. हालत, दशा, स्थिति उदास करने वाला, मूछित करने वाला, असफल ---स्वामिनो महत्यवस्था वर्तते--पंच०१, विषम दशा, बनाने वाला 2. खिन्नता लाने वाला, थकान पहुंचाने -तुल्यावस्थः स्वसुः कृतः-रघु० १२१८०, तां तामवाला। वस्थां प्रतिपद्यमानम्-१३।५, ईदृशीमवस्थां प्रपन्नोअवसादनम् [अव+सद्+णिच् + ल्युट् ] 1. पतन, नाश, ऽस्मि-श०५, कु० २।६ (प्रायः समास में)--तदवस्थः 2. उत्पीडन 3. समाप्त कर देना । पंच ५. उस दशा को पहुंचा हुआ, 2. हालत, परिस्थिति अवसानम् [अव+सो+ल्युट ] 1. ठहरना 2. उपसंहार, –3. काल, दशाक्रम, यौवन, वयोवस्थां तस्याः समाप्ति, अन्त, दोहावसाने पुनरेव दोग्ध्रीम् --रघु० श्रृणुत--मा० ९।२९, 4. रूप, छवि 5. दर्जा, अनुपात २।२३, तच्छिष्याध्ययननिवेदितावसानाम्-११९५, 6. स्थिरता,-दृढ़ता जैसा कि 'अनवस्थ' में दे० 7. न्याया3. मृत्यु, रोग-वेणी० ५।३८, मूलपुरुषावसाने संपदः लय में उपस्थित होना । सम.----अन्तरम् बदली हुई परमुपतिष्ठन्ति-श०६, 4. सीमा, मर्यादा 5. (व्या० दशा,--चतुष्टय मानवजीवन को चार दशाएँ (बाल्य, में) किसी शब्द या अवधि का अन्तिम अंश (विप० कौमार,यौवन और वार्धक्य),- त्रयम् तीन अवस्थाएँ आदि) 6. विराम 7. स्थान, विश्रामस्थल, आवास- (जाग्रत, स्वप्न, तथा सुषुप्ति),--द्वयम् जीवन के स्थान । दो पहलू-सुख और दुःख । अवसायः [अव+सो+घञ ] 1. उपसंहार, अन्त, समाप्ति अवस्थानम् [अव+स्था+ल्युट] 1. खड़ा होना, रहना, 2. अवशिष्ट, 3. पूर्ति 4. संकल्प, दृढ़निश्चयः, निर्णय । बसना 2. स्थिति, हालत 2. आवासस्थान, घर, ठहरने अवसित (भू० क० कृ०) [अव+सो+क्त) 1. समाप्त, का स्थान 3. ठहरने का समय । अन्त किया गया, पूरा किया गया, यूपवत्यवसिते क्रिया- अवस्थायिन् (वि.) [अव+ स्था+णिनि] ठहरने वाला, विधौ-रघु० ११३७, अवसितश्च पशुरसौ-दश० ९१, रहने वाला । उस पशु का काम तमाम हो चुका है,-वचस्यवसिते अवस्थित (भू० क० कृ०) [अव+स्था+क्त], 1. रहा तस्मिन्ससर्ज गिरमात्मभः-कु० २।५३, 2. ज्ञात, अवगत हुआ, ठहरा हुआ,--एवमवस्थिते-का० १५८, इन 3. प्रस्तावित, निर्धारित, निश्चय किया गया 4. जमा परिस्थितियों में, 2. उद्देश्य में स्थिर, दृढ़ 3. टिका किया हुआ, एकत्र किया हुआ (जैसा कि अन्न), हुआ, सहारा लिये हुए। 5. बंधा हुआ, नत्थी किया हुआ, बांधा हुआ। अवस्थितिः (स्त्री०) [अव+स्था+क्तिन्] 1. निवास अवसेकः [अव+सिच्+घञ्] 1. छिड़काव, भिगोना —देशः को नु जलावसेकशिथिल:-मृच्छ ० ३।१२ । । अवस्यन्दनम् [अव-+स्यन्द्+ल्युट्] बूंद २ टपकना, रिसना। अवसेचनम् [ अवसिच्+ ल्युट् ] 1. छिड़कना 2. छिड़कने अवस्त्रंसनम् [ अव+संस्+ ल्युट् ] नीचे टपकना, नीचे के लिए पानी-पाद-मनु०४।१५१ 3. रुधिर निका- गिरना. अध:पात । लना। अवहतिः (स्त्री०) अव+हन्+क्तिन्] पीटना, कुचलना। अवस्कन्वः-दनम् [ अव-स्कन्द्+घञ, ल्युट् वा ] 1. अवहननम् | अव+न+ल्यूट ] 1. चावल कटना, पीटना आक्रमण करना, आक्रमण, हमला 2. उतार 3. शिविर। -अवहननायोलखलम् --महा० 2. फेफड़े... वपावसाअवस्कन्दिन् (वि.) |अवस्कन्द+णिन] आक्रमणकारी, वहननम् -याज्ञ० ३५९४, (अवहननम् = फुप्फुसः-- हमलावर, बलात्कार करने वाला। मिता०)। अवस्करः [अवकीर्यते इति-अवस्करः, कृ+अप, सुट ] 1. | अवहरणम् [अव+हृ--ल्युट 1. ले जाना, हटाना 2. फेंक विष्ठा, मल 2. गुह्यदेश (योनि, लिंग, गुदा आदि) देना 3. चुराना, लूटना 4. सुपुर्दगी 5. युद्ध का अस्थायी 3. गर्द, बुहारन । स्थगन, सन्धि । अवस्तरणम् [अव-स्तृ+ ल्युट् ] विछौना, विछावन । अवहस्तः [अवरं हस्तस्य इति---ए० त०] हथेली की पीठ । For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ११५ ) अवहानि: [ प्रा० स०] खो जाना, घाटा । अवहारः [ अव + ह् + ण] 1. चोर, 2. शार्क नाम की मछली 3. अस्थायी युद्धविराम, सन्धि, 4. बुलावा, आमंत्रण 5. धर्मत्याग 6. सुपुर्दगी, वापस लेना । अवहारकः | अव + ह् + ण्वुल् ] शार्क मछली । अवहार्य (सं० कृ० ) [ अव + ह् + ण्यत् ] 1. ले जाने के योग्य, हटाने के योग्य 2. दंड के योग्य, सजा दिये जाने के योग्य, 3. पुनः प्राप्त करने योग्य, फिर मोल लेने के योग्य । अवहालिका [ अव + ल् + ण्वुल्+टाप् इत्व ] दीवार । अवहासः ] अव + हस्+घञ्ञ ] 1. मुस्कराना, मुस्कान, 2. दिल्लगी, मजाक, उपहास - यच्च वहासार्थमसत्कृतोऽसि भग० ११।४२ । अव (ब) हत्या-त्थम् [ न बहिः तिष्ठति इति स्था+क पृषो० ]1. पाखंड, 2 आन्तरिक भावगोपन, ३३ व्यभिचारिभावों में से एक भयगौरवलज्जा देर्पाद्याकारगुप्तिरवहित्था सा० द०; रस० के अनुसार ब्रीडादिना निमित्तेन हर्षाद्यनुभावानां गोपनाय जनितो भावविशेषोऽवहित्थम् - उदा० कु० ६१८४, भामि० २३८० । अवहेल: -- ला [ अव + हेल्+क, स्त्रियां टाप् ] अनादर, तिरस्कार, अवहेलना -- अवहेलां कुटज मधुकरे मा गाः- भामि० १६ । अवहेलनम् ना [ अव + हेल् + ल्युट् स्त्रियां टाप् ] अवज्ञा । अवाक् ( अव्य० ) [ अव + अंच् + क्विन् ] 1. नीचे की ओर 2. दक्षिणी, दक्षिण की ओर । सम० - ज्ञानम् अनादर, भव ( वि०) दक्षिणी मुख ( वि० ) ( स्त्री - खी) 1. नीचे की ओर देखने वाला- -अवाङमुखस्योपरि पुष्पवृष्टिः-- रघु० २२६०, १५/७८, 2. सिर के बल -- - शिरस् ( वि०) नीचे को सिर लटकाये हुए स मूढो नरकं याति कालसूत्रमवाक्शिराः - मनु० ३।२४९, ८/९४ । अवाक्ष (वि० ) [ अवनतान्यक्षाणि इन्द्रियाणि यस्य ब० स०] अभिभावक, संरक्षक । अवाप्र ( वि० ) [ अवनतमग्रमस्य - ब० स० ] नीचे को सिर किये हुए, नीचे को झुके हुए । अवाच् (वि० ) [ न० ब० ] वाणीरहित, मूक- ( नपुं० ) — ब्रह्म । अवाच् ) ( वि० ) [ अव + अञ्च् + विवन् ] 1. नीचे की अवाञ्च् ओर झुका हुआ मुड़ा हुआ - कुर्वन्तमित्यतिभरेण नगानवाच:- शि० ६।७९. 2. नीचे की ओर स्थित, अपेक्षाकृत नीचा 3. सिर के बल 4. दक्षिणी (पुं० नपुं० ) ब्रह्म, ची 1. दक्षिणदिशा, 2. निम्नप्रदेश । अवाचीन ( वि० ) [ अवाच् + ख ] 1. नीचे की ओर, सिर के बल 2. दक्षिणी 3. उतरा हुआ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवाच्य (वि० ) [ न० त०] 1. जिसे संबोधित करना उचित न हो, - अवाच्यो दीक्षितो नाम्ना यवीयानपि यो भवेत् मनु० २।१२८, 2. बोले जाने के अयोग्य, निकृष्ट, दुष्ट- अवाच्यं वदतो जिह्वा कथं न पतिता तव - रामा०, भग० २१३६ 3. अस्पष्ट उक्ति, शब्दों द्वारा अकथनीय | सम० - वेश: बोलने के अयोग्य स्थान, योनि । अवांचित (वि०) [ अव + अञ्च् +क्त] झुका हुआ, नीचा । अवान: [ अव + अन् + अच् ] सांस लेना, श्वास अंदर की ओर ले जाना । अवान्तर ( वि० ) [ प्रा० स० ] 1. बीच में स्थित या खड़ा हुआ - दे० समास 2. अंतर्गत, सम्मिलित 3. अधीन, गौण 4. घनिष्ट संबंध से रहित, असंबद्ध, अतिरिक्त । सम० दिश् दिशा मध्यवर्ती दिशा (जैसा कि -आग्नेयी, ऐशानी, नैर्ऋती और वायवी), देशः दो स्थानों का मध्यवर्ती स्थान, अन्तः प्रवेश । अवाप्तिः (स्त्री) [ अव + आप् + क्तिन् ] प्राप्त करना, ग्रहण करना -- तपः किलेदं तदवाप्तिसाधनम् —कु० ५।६४ । अवाप्य (स० कृ० ) [ अव + आप् + ण्यत् ] प्राप्त करने के योग्य । अवारः - रम् [ न वार्यते जलेन - वृ· + कर्मणि घञ ] 1. नदी का निकटस्थ किनारा 2. इस ओर । सम० - पारः समुद्र, - पारीण ( वि० ) 1. समुद्र से संबंध रखने वाला 2. समुद्र को पार करने वाला । अवारीणः [ अवार+ख ] नदी को पार करने वाला । अवावट: प्रथम पति को छोड़कर उसी जाति के किसी दूसरे पुरुष से उत्पन्न हुआ किसी स्त्री का पुत्र - द्वितीयेन तु यः पित्रा सवर्णायां प्रजायते, अवावट इति ख्यातः शूद्रधर्मा स जातितः ॥ अवावन् (पुं० ) [ ओण् (यङ) + वनिप् ] चोर, चुराकर ले जाने वाला । अवासस् ( वि० ) [ न० ब० ] वस्त्र न पहने हुए, नंगा (पुं०) बुद्ध | अवास्तव ( वि० ) [स्त्री० वी ] 1. अवास्तविक 2. निराधार, विवेक शून्य । अवि: [ अव् +इन् ] 1. मेष [ इसी अर्थ में स्त्री० भी ] - जीनकार्मुकवस्तावीन्मनु० ११ १३८, ३६, 2. सूर्य 3. पहाड़ 4. वायु, हवा 5. ऊनी कंबल, 6. शाल 7. दीवार, बाड़ा 8. चूहा, विः (स्त्री० ) 1. भेड़ 2. रजस्वला स्त्री । सम०, कटः रेवड़, कटोरणः एक प्रकार का उपहार (जो भेड़ों के रूप में दिया जाता है ) दुग्धम् सन्, मरीसम्, सोढम् भेड़ का दूध, पटः भेड़ की खाल, ऊनी कपड़ा, पाल: गडरिया, — स्थलम् भेड़ों का स्थान, एक नगर का For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम-अविस्थलं वृकस्थलं माकन्दी वारणावतम् । अविचारिन् (वि.) [न० त०] 1. उचित अनुचित का -~-महाभा०। विचार न करने वाला, विवेकहीन 2. आशुकारी। अविकः [ अवि+कन ] भेड़ा,--का भेड़,-कम हीरा। | अविज्ञात (वि०) [न० त०] अनजान–(पुं०-ता) अविका [ अवि+कन्+टाप् ] भेड़, भेड़ी। परमेश्वर। अधिकत्य (वि०) [न० ब०] जो शेखी न मारता हो, अविडीनम् [न० त० पक्षियों की सीधी उड़ान । अभिमान न करता हो। अवितथ (वि०) [न० त०] 1. जो झूठा न हो, सच्चा अविकत्थन (वि.) [न० ब०] जो शेखी न बघारे, जो | -तदवितथमवादीयन्ममेयं प्रियेति-शि०११॥३३, अवि अभिमान न करे विद्वांसोऽविकत्थना भवन्ति- तथा वितथा सखि मा गिरः--६।१८, 2. पूरा किया मुद्रा०३। हुआ, सकल,-थम् [न० त०] सचाई,- अवितथमाह अविकल (वि.) [न० त०] 1. अक्षत, समस्त, पूरा, प्रियंवदा-श. ३ प्रियंवदा ठीक (सही) कहती है, सम्पूर्ण, सारा-तानीन्द्रियाण्यविकलानि-भर्तृ०२।४०, -थम् (अव्य०) जो मिथ्या न हो, सचाईपूर्वक मनु० °लं फलम् --मेघ० २४१३४, शरच्चन्द्रमधुर:-मा० २।१४४ । २१११, पूर्ण, पूर्णगोलाकार 2. नियमित, सुव्यवस्थित, अवित्यजः-जम् [न० त०] पारा। सुसंगत, शान्त-कलमविकलतालं गायकैर्बोधहेतोः । अविदूर (वि.) [न० त०] जो दूर न हो, निकटस्थ, शि० १११०। समीपस्थ--रम् सामीप्य रम् (अव्य०) निकट, दूर अविकल्प (वि.) न० ब०] अपरिवर्तनीय,-ल्पः 1 संदेह नहीं, इसी प्रकार-अविदूरेण, अविदूरात्,-दूरतः,-दूरे। का अभाव 2. इच्छा या विकल्प का अभाव 3. विधि | अविद्य (वि०).[न० त०] अशिक्षित, मूर्ख, नासमझ, चा या नियम,----ल्पम् (अव्य०) निस्सन्देह, निस्संकोच । [न० त०] 1. अज्ञान, मूर्खता, ज्ञान का अभाव 2. अविकार (वि०) [न० ब०] निर्विकार--रः अविकृति, आध्यात्मिक अज्ञान 3. भ्रम, माया (यह शब्द वेदान्त अपरिवर्तनशीलता। में बहधा प्रयुक्त होता है, इसी माया के द्वारा व्यक्ति अविकृतिः (स्त्री०) [न० त०] 1. परिवर्तन का अभाव 2. विश्व को ( जिसका वस्तुतः कोई अस्तित्व नहीं ) (सांख्य द. में) अचेतन सिद्धान्त जिसे प्रकृति कहते ब्रह्म में अन्तहित कर देता है, यह ब्रह्म ही सत् है)। हैं और जो इस विश्व का भौतिक कारण है,--मूल- अविद्यामय (वि.) [अविद्या मयट] जो अज्ञान या भ्रम प्रकृतिरविकृतिः–सां० का। के द्वारा उत्पन्न हो। अविक्रम ( वि०) [न० ब०] शक्तिहीन, दुर्बल,-मः/ अविधवा [न० त०] जो विधवा न हो, विवाहित स्त्री कायरता। जिसका पति जीवित हो-भतमित्र प्रियमविषधे विद्धिअविक्रियः (वि.) [न० ब० ] अपरिवर्तनशील, निर्विकार, _मामम्बुवाहम् –मेघ० ९९ ।। --यम् ब्रह्म। अविधा (अव्य०) विस्मयादिद्योतक अव्यय जो भय के भविक्षत (वि०) [न० त०] अक्षत, पूर्ण, समस्त-विक्रेतुः अवसर पर सहायतार्थ बुलाने के लिए "सहायता, प्रतिदेयं तत्तस्मिन्नेवाचविक्षतम्-स्मृति । सहायता" बोला जाता है। अविग्रह (वि.) [न० त०] शरीररहित, परब्रह्म का विशे- | अविधेय (दि.) [न० त०] जिसे वश में न किया जा सके, षण,-हः (व्या० में) नित्यसमास--जिसके विधायक विपरीत, - विधेरविधेयतास् - मुद्रा० ४।२। खंडों से पृथक-पृथक् अर्थ की अभिव्यक्ति न हो सके ! अविनय (वि.) न० ब० अविनीत. दुर्विनीत, अशिष्ट-यः अविचात (वि.) [न० ब०] बाधारहित, बिना रुकावट नि० त०] 1. शिष्टता या शालीनता का अभाव 2. दुव्र्यके, गति (वि०) अपने मार्ग में निर्बाध । वहार, उजड्डपन, अशिष्ट या उजड्डुव्यवहार -अयमाअविघ्न (वि०) न० ब०] निर्बाध,--धनम् बाधा या रुका- चरत्यविनयं मुग्धासु तपस्विकन्यासु-श० ११२५, वट से मुक्ति, कल्याण (यह शब्द नपुंसक लिंग है, अभद्रता, आचरण का अनौचित्य, 3. अशिष्टाचार, यद्यपि 'विघ्न' पुं० है)--साधयाम्यहमविघ्नमस्तुते- अनादर 4. अपराध, जुर्म, दोष 5. घमंड, अहंकार, रघु० ११३१९ अविघ्नमस्तु ते स्थेयाः पितेत्र घुरि पुत्रि- धृष्टता -अविनयमपनय विष्णो-शं० । णाम्-१२९१ । अविनाभावः [न०त०] 1. वियोग का अभाव 2 अन्तहित या मविचार (वि०) [न त०] विचारशून्य, विवेकरहित-रः अनिवार्य चरित्र, वियुक्त न होने योग्य संबंध 3. संबंध [न० त०] अविवेक, नासमझी। —अविनाभावोऽत्र सम्बन्धभावं न तु नान्तरीयकत्वम्मविचारित (वि.) [न० त०] बिना विचारा हुआ, जो काव्य०२। भली-भांति विचारा न गया हो। सम-निर्णयः | अविनीत (वि.) [न० त०] 1. विनयशून्य, दुःशील 2. पक्षपात, पक्षपातपूर्ण सम्मति । घृष्ट, उजड्ड । For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११७ ) अविभक्त (वि०)[न० त०] 1. न बंटा हुआ, अविभाजित,। चार-अविवेकः परमापदां पदम्-कि० २।३० 2. संयुक्त (जैसे कि पारिवारिक सम्पत्ति) 2. जो टूटा | 'जल्दबाजी, उतावलापन । न हो, समस्त । अविशङ्क (वि.) [न० ब०] भयरहित, संदेहशून्य, निडर अविभाग (वि.) [न० ब०] जो बांटा न गया हो, अवि- -का संदेह या भय का प्रभाव, भरोसा,-कम्, अविशं भक्त--गः [न० त०] 1. बंटवारा न होना 2 बिना | केन (अव्य.) निस्संदेह, निस्संकोच। बंटा दायभाग। अविशति (वि०नि० त०] 1.निःशंक, निडर 2. निस्संअविभाज्य (वि.) [न० त०] जो बाँटा न जा सके। देह, विश्वासी,-गृध्रवाक्यात्कथं मूढास्त्यजध्वमविशं -ज्यम् 1. न बाँटा जाना, 2. जो बंटवारे के योग्य न किता... काव्य० । हो (कुछ ऐसी वस्तुएँ होती है जो बँटवारे के समय | अविशेष (वि.) [न० ब०] बिना किसी अन्तर या भेद के, भी बाँटी नहीं जाती)-उदा० वस्त्रं पात्रमलंकार बराबर, समान,-षः,-धम् 1. अन्तर का अभाव, समाकृतान्नमुदकं स्त्रियः, योगक्षेमं प्रचारं च म विभाज्यं नता 2. एकता, समता। सम-शचीजों के अन्तर प्रचक्षते- मन० ९।२१९, ता न बाँटा जाना, बँटवारे को न समझने वाला, अविभदक । की अयोग्यता। अविष (वि.) [न० ब०] 1. जो जहरीला न हो,-ब: 1. अविरत (वि०) [न० त०] विरामशून्य, न रुकने वाला, | । समुद्र 2. राजा-बी 1. नदी 2. पृथ्वी 3. आकाश । सतत, निरन्तर अविरतोत्कण्ठमुत्कण्ठितेन-मेघ०। अविषय (वि.) [न० ब०] अगोचर, अदृश्य -यः [न. १०२, लो० मन्दोऽ यविरतोद्योगः सदैव विजयो भवेत् त०] 1. अभाव 2. अविद्यमानता-रवेरविषये कि न 'करत२ अभ्यास के जड़मति होत सुजान'-तम् दीपस्य प्रकाशनम्-हि० २१७९, 3. निविषय, जो पहुंच (अव्य०) नित्यतापूर्वक, लगातार–अविरतं परकार्य के अन्दर न हो, परे, बढ़चढ़कर-न कश्चिद्धीमतामकृतां सताम्-भामि० १।११३। विषयो नाम . श. ४, सकल वचनानामविषय:-मा. अविरति (वि.) [न० ब०] निरन्तर --तिः (स्त्री०) ११३०, शब्दों की शक्ति से बाहर, 3. इन्द्रियार्थों की [न० त० | 1. सातत्य, निरन्तरता 2. कामातुरता। उपेक्षा। अविरल (वि.) [न० त०] 1. घना, सघन,-वारिधारा | अवी [अवत्यात्मानं लज्जया इति-अव+ई] रजस्वला - उत्तर०६, तेज बौछार 2. सटा हुआ 3. स्थूल, | स्त्री। मोटा, ठोस 4. निधि, लगातार, - लम् (अव्य०) | अवीचि (वि०) [न० ब०] तरंगशून्य--चिः नरक-विशेष । 1. घनिष्ठतापूर्वक-- अविरलमालिङ्गितुं पवनः--श० | अवीर (वि.) [न० ब०] 1. जो वीर न हो, कायर 2. ३१७, 2. निर्बाधरूप से; लगातार । जिसके कोई पुत्र न हो,–रा वह स्त्री जिसके न कोई अविरोधः [न० त०] सुसंगतता, अनुकूलता सामान्यास्तु । पुत्र हो, न पति हो (विप० 'वीरा' जिसकी परिभाषा परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये-भर्तृ० २०७४, यह है: पतिपुत्रवती नारी वीरा प्रोक्ता मनीषिभिः) अपने स्वार्थ के अनुकल।। अनचितं वृथा पांसमवीरायाश्च योषितः-मनु०४। अविलम्ब (वि०)[न० ब० ] आशुकारी--बः [न० त०] २१३ । विलंब का अभाव, आशुकारिता--- बम्, अविलम्बेन । अवृत्ति (वि०) [न० ब०] 1. जिसकी सत्ता न हो, जो (अव्य०) बिना देर किये, शीघ्र ही। विद्यमान न हो 2. जिसकी कोई जीविका न हो,--सिः अविलंबित (वि.) न० त०] बिना देर किये, शीघ्रकारी, (स्त्री०) [न० त०] 1. वृत्तिका अभाव, जीविका का क्षिप्र, आशुकारी, तम् (अव्य०) शीघ्रतापूर्वक, विना कोई साधन न होना, अपर्याप्त आश्रय-अवृत्तिदेर किये। कर्षिता हि स्त्री प्रदुष्येत् स्थितिमत्यपि---मनु० ९।७४, अविला [अव्+इलच्] भेड़। १०।१०१, आददीताममेवास्मादवृत्तावेकरात्रिकम्-४। अविवक्षित (वि.) [न० त०] 1. अनभिप्रेत, अनुद्दिष्ट २२३, 2. पारिश्रमिक का अभाव, त्वं अनस्तित्व । -भ्रातरः इत्यत्र एकशेपग्रहणमविवक्षितम् 2, जो | अवथा (अव्य०) [न० त०] व्यर्थ नहीं, सफलता पूर्वक । बोलने या कहने के लिए न हो। सम-अर्थ (वि०) सफल। अविविक्त (वि.) [नत०] 1. जिसकी छानबीन न की | अवृष्टि (वि.) [न० ब०] बारिश न करने वाला,—ष्टिः गई हो, जो भली-भांति विचारा न गया हो 2. | (स्त्री०) न० त०] वृष्टि का अभाव, अनावृष्टि । जो विशेषता या भेद न जानता हो, विस्मित 3. अवेक्षक (वि०) [अत+ ई-- ल] निरीक्षण करने सार्वजनिक । वाला, देखरेख करने वाला, अबोक्षक । अविवेक (वि.) [न० ब०] विचारशून्य, विवेकशून्य---कः | अवेक्षणम् [अव-- ईक्ष् --ल्युट 1. किसी ओर देखना, नजर [न० त०] 1. भेदक ज्ञान या विचार का अभाव, अवि- डालना 2. रखवाली करना, देखरेख रखना, सेवा For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ११८ ) करना, अधीक्षण, निरीक्षण - वर्णाश्रमावेक्षणजागरूकः - रघु० १४।८५, 3. ध्यान, देखरेख, पर्यवेक्षण 4. ख्याल करना, ध्यान रखना- दे० 'अनवेक्षण' । अवेक्षणीय (सं० कृ० ) [ अव + ईश् + अनीयर्] देखने के योग्य, आदर करने के योग्य, ध्यान रखने के योग्य, विचार किये जाने के योग्य - तपस्विसामान्यमवेक्षणीया - रघु० १४।६७ । अवेक्षा [अव + ई + अ + टापू] 1. देखना, दृष्टि डालना 2. ध्यान, देखरेख, खयाल । अवेद्य ( वि० ) [ न० त०] 1. न जानने योग्य, गुप्त 2. प्राप्त करने के योग्य, द्यः बछड़ा । अबेल (वि० ) [ न० ब० ] 1. असीम, सीमारहित, निस्सीम 2. असामयिक – ल: [न० त०] जानकारी का छिपाव, -ला प्रतिकूल समय । अवैध (fro ) [ स्त्रियाम् धी ] [ न० त०] 1. अनिय मित, जो नियम या कानून के अनुसार न हो - अवैधं पञ्चमं कुर्वन् राज्ञो दण्डेन शुध्यति 2. जो शास्त्रविहित न हो । भयम् [० त०] एकता । अवोक्षणम् [अ + उ + ल्युट् ] झुके हुए हाथ से छिड़काव करना- उत्तानेनैव हस्तेन प्रोक्षणं परिकीर्तितम्, यञ्चतायुक्षणं प्रोक्तं तिरश्चावोक्षणं स्मृतम् ॥ अबोदः [ अव + उन्द् + ञ नि० न लोपः] छिड़काव करना, गीला करना । अव्यक्त ( वि० ) [ न० त०] 1. अस्पष्ट, अप्रकट, अदृश्यमान अनुच्चरित - वर्ण अस्पष्ट भाषण श० ७२१७, 2. अदृश्य, अप्रत्यक्ष, 3. अनिश्चित - अव्यक्तोयमचित्योऽयम् - भग० २ २५, ८।२०, 4. अविकसित, अरचित 5 ( बीज० में) अज्ञात, क्त: 1. विष्णु 2. शिव 3. कामदेव 4. मूल प्रकृति 5 मूर्ख - क्तम् ( वेदान्त० में) 1. ब्रह्म, 2. आध्यात्मिक अज्ञान, (सा० द० में) सर्व कारण, प्रजननात्मक नियम का मूलतत्व जिससे भौतिक संसार के सारे तत्त्व विकसित हुए हैं-- बुद्धेरिवाव्यक्तमुदाहरन्ति - रघु० १३६०, महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः- कठ० 3. आत्मा, क्तम् ( अव्य०) अप्रत्यक्षरूप से, अस्पष्ट रूप से । सम० --अनुकरणम् अनुच्चरित तथा निरर्थक ध्वनियों की नकल करना, -आदि (वि०) जिसका आरम्भ अगाध हो, – क्रिया बीजगणित का एक हिसाब, पद (वि०) अनुच्चरित शब्द, मूलप्रभवः सांसारिक अस्तित्व रूपी वृक्ष ( सां० में), -राग (वि०) हलका लाल, गुलाबी (गः) ऊषा का रंग, अव्यक्त रागस्त्वरुणः -अमर०, राशि: (बीजगणित में ) अज्ञात अंक या परिमाण, -लक्षणः, व्यक्तः शिव. वर्त्मन, मार्ग ( वि० ) जिसके मार्ग अगाघ और अभेद्य हैं, वाचू । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( वि० ) अस्पष्ट रूप से बोलने वाला, साम्यम् अज्ञात परिमाणों की समीकरण राशि । अव्यग्र ( वि० ) [ न० त०] 1. अक्षुब्ध, अनाकुल, स्थिर, शान्त 2. किसी काम में न लगा हुआ । अव्यङ्ग (वि०) [न० त०] जो क्षतविक्षत या दोषयुक्त न हो, सुनिर्मित, ठोस, पूरा । अव्यञ्जन ( वि० ) [ न० ब०] 1. चिह्नरहित, लक्षणरहित, (जैसे कि लिंगभेदक ) ना कन्या 2 अस्पष्ट, नः बिना सींग का पशु ( सींग आने की आयु होने पर भी ) । अव्यय ( वि० ) [ न० ब०] पीडा से मुक्त, थः साँप । अव्यथिषः [r or + टिषच् ] 1. सूर्य, 2. समुद्र, षी 1. पृथ्वी 2. आधीरात रात । अव्यभि ( भी ) चारः [ न० त० वियोग का अभाव - अन्योन्यस्यान्यभीचारो भवेदामरणान्तिकः मनु० ९।१०१. एकनिष्ठता, वफादारी । अव्यभिचारिन् (वि० ) [ न० त०] 1. अविरोधी, अप्रतिकूल, अनुकूल कु० ६।८६, 2. अपवादरहित, यदुच्यते पार्वति पापवृत्तये न रूपमित्यव्यभिचारि तद्वचः - कु० ५।३९ रंध्रोपनिपातिनोऽनर्था इति यदुच्यते तदव्यभिचारिवचः श०६, 3. सद्गुणी, सदाचारी, ब्रह्मचारी (सती), 4. स्थिर, स्थायी, श्रद्धालु । अव्यय ( वि० ) [ न० ब०] 1. ( क ) अपरिवर्तनशील, अविनश्वर, अखंडित - वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् - भग० २।२१, विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चिकर्तुमर्हति - १७ ( ख ) नित्य, शाश्वत - अश्वत्थं प्राहुरव्ययम् - भग० १५ १, अकीर्ति कथयिष्यति तेऽव्ययाम् - २।३४, 2. जो खर्च न किया गया हो, जो व्यर्थ नष्ट न किया गया हो 3. मितव्ययी 4. शाश्वत फल देने वाला - यः 1. विष्णु 2. शिव यम् 1. ब्रह्म, 2. ( व्या० में ) वह शब्द जिसके रूप में वचन लिंग आदि के कारण कोई विकार नहीं होता — सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु । वचनेषु च सर्वेषु यत्र व्येति तदव्ययम् । सम० आत्मन् ( वि०) अविनश्वर या नित्य (त्मा) आत्मा या ब्रह्म वर्गः अव्ययों की सूची । अव्ययीभावः [ अनव्ययमव्ययं भवत्यनेन, अव्यय +च्चि -- भू+घञ्ञ] 1. संस्कृतभाषा के चार मुख्य समासों में से एक, क्रियाविशेषण समास (अव्यय से बना हुआ अर्थात् अव्यय अथवा क्रिया विशेषण तथा संज्ञा के मेल से बना हुआ ) अधिहरि, सतृणम् आदि 2. व्यय का अभाव ( दरिद्रता के कारण ) - इन्द्रो द्विगुरपि चाहूं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः, तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः । उद्भट ० ( जो संस्कृत के समासों को आंखों के सामने रख देता है) 3. अनश्वरता । अव्यलीक ( वि० ) [ न० त०] 1. जो झूठा न हो, सच्चा For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ । 2. प्रिय, अरुचिकर भावनाओं से रहित,---इत्थं गिरः । लागू न हो, समस्त विस्तार पर छाया हुआ न हो प्रियतमा इव सोऽव्यलीकाः शुश्राव सूततनयश्च तदा --- वह्निधूमस्याव्याप्यः । सम०-वृत्तिः (स्त्री)[वैशे० व्यलीका:--शि० ५।१। द० में] सीमित प्रयोग की एक श्रेणी, देशकाल की अव्यवधान (वि.) [न० ब०] 1. मिला हुआ, पास का, स्थिति से आंशिक विद्यमानता-जैसे सुख-दुःख अन्तररहित 2. खुला हुआ 3. जो ढका न हो, नंगा 4. ४. अव्याप्यवृत्तिः क्षणिको विशेषगुण इष्यते---भाषा० असावधान, लापरवाह,-नम् लापरवाही। अव्यवस्थ (वि.) नि० ब०] 1. जो नियत न हो, हिलने अव्याहत (वि.) [न० त०] न ट्टा हआ, वाधारहित, डुलने वाला, अस्थिर-स्थलारविंदश्रियमव्यवस्थाम निर्बाध; मानी हुई (आज्ञा)-भर्तुरव्याहताशाकु०१।३३ 2. अनिश्चित, विशृंखल, अनियमित-स्था रघु० १९ । ५७. । 1. अनियमितता, मान्यता प्राप्त नियम से स्खलन अव्युत्पन्न (बि०) [न० त०] 1. अकुशल, अनुभवशून्य, 2. शास्त्रविरुद्ध व्यवस्था । अव्यवहृत, अनाड़ी-अव्युत्पन्नो बालभावः--का० अव्यवस्थित (वि०) [न० त०] 1. जो प्रचलित व्यवस्था १९६, 2. (शब्द) जिसकी व्युत्पत्ति नियमित न हो, या कानून के अनुरूप न हो 2. विनियमरहित, चंचल, ---न्नः भाषा के व्याकरण तथा वाग्धारा आदि के ज्ञान अस्थिर---अव्यवस्थितचित्तस्य प्रसादोऽपि भयङ्करः से शून्य व्यक्ति, पल्लवग्राही भाषाशास्त्री। नीति० ९, 3. जो क्रमबद्ध न हो, विधिपूर्वक न हो। | अब्रत (वि.)/न.ब.] जो धार्मिक संस्कार तथा अन्य अव्यवहार्य (वि०) [न० त०] 1. जो अपने जातिबन्धुओं धर्मानुष्ठान का पालन न करता हो--अवतानाम के साथ खाने पीने का अधिकारी न हो, जातिबहिष्कृत मन्त्राणां जातिमात्रोपजीविनाम्, सहस्रशः समेतानां 2. जो मुकदमे का विषय न बनाया जा सके, व्यवहार परिषत्त्वं न विद्यते । मनु० १२ । ११४, ३ । १७०। के अयोग्य । अश 1. (स्वा० आ०) अश्नुते, अशित-अष्ट] 1. व्याप्त अव्यवहित (वि०) [न० त०] व्यवधानरहित, साथ मिला होना, पूरी तरह से भरना, प्रविष्ट होना-खं प्रावषेहुआ। ण्यैरिव चानशेऽब्दैः- भट्टि० २।३० कि० १२।२१, अव्याकृत (वि.) [न० त०] 1. अविकसित, अस्पष्ट 2. पहुंचना, जाना या आना, उपस्थित होना, प्राप्त -तद्वेदं तमुव्याकृतमासीत् इदं नामरूपाभ्यामव्याकृतम् करना सर्वमानन्त्यमश्नुते-या० ११२६१, 3. प्राप्त शत० 2. प्रारंभिक, तम् (वेदान्त०) 1. प्रारंभिक करना, ग्रहण करना, आनंद लेना, अनुभव प्राप्त तत्व-ब्रह्म के समनुरूप-इससे संसार की सभी करना---अत्युत्कट: पापपुण्यरिदेव फलमश्नुते-हि. वस्तुएँ बनी 2. (सांख्य० में) प्रधान-प्रकृति का १६८०, रघु० ९४९, न वेदफलमश्नुते—मनु० प्राथमिक अणु। ११०९, फल दृशोरानशिरे महिष्यः-० ११४३ । अव्याजः--जम् [न० त०] 1. छल-कपट का अभाव, उप-प्राप्त करना, उपभोग करना, ग्रहण करना-न ईमानदारी 2. सादगी, अकृत्रिमता- बहुधा समास में च लोकानुपाश्नुते--महा०, क्रियाफलमुपाश्नुते 'सुन्दर' और 'मनोहर' के साथ--प्राकृतिकता या —मनु० ६।८२, वि—पूर्ण रूप से भरना, अकृत्रिमता के अर्थ में प्रयुक्त—इदं किलाव्याज व्याप्त होना, स्थान ग्रहण करना--प्रतापस्तस्य मनोहरवपुः-श०१।१८। । भानोश्च युगपद् व्यानशे दिश: – रघु० ४।१५, भट्टि० अव्यापक (वि०) [न० त०] 1. जो बहुत विस्तीर्ण न हो ९।४, १४।९६ । 2. जिसने समस्त को न व्यापा हो, विशेष । अश् 2. (क्या० पर०) [अश्नातिअशित] 1. खाना, उपअव्यापार (वि०) [न० ब०] जिसके पास कोई कार्य न भोग करना--निवेद्य गुरवेऽनीश्यात्--मनु० ११५१, हो, काम में न लगा हुआ,—र: [न० त०] 1. काम अश्नीमहि वयं भिक्षाम् –भर्तृ० ३।११७, 2. स्वाद से विराम 2. ऐसा काम जो न तो किया जा सके, न लेना, रस लेना-यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनो समझ में आवे 3. जो अपना निजी व्यापार न हो, धनम् - हि० १११६४-६५, अश्नन्ति दिव्यान् दिवि --अव्यापारेषु व्यापारम्-दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप देवभोगान्-भग० ९।२०, प्रत्यक्षं फलमश्नन्ति करना। कर्मणाम् ..महा०, (प्रेर०----आशयति) खिलाना, अव्याप्तिः (स्त्री) न० त०] 1. अपर्याप्त विस्तार, या भोजन करान., खिलवाना पिलवाना (कर्म० के प्रतिज्ञा पर अधरी व्याप्ति 2. परिभाषा में दिये गये साथ)--आशयच्चामृतं देवान-सिद्धा०, प्र--1. लक्षण का घटित न होना, परिभाषा के तीन दोषों पीना, न प्राश्नोतोदकमपि—महा०, 2. खाना, में से एक- लक्ष्यक देशे लक्षणस्यावर्तनमव्याप्तिः ।। निगलना प्राश्नन्नथ सुरामिषम् - भट्टि० १७॥३, अव्याप्य (वि.) [न० त०] जो सारी स्थिति के लिए। १३, १५।२९, सम् -1. खाना, नक्तं चान्नं कोष For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२० ) समश्नीयात्--मनु० ६।१९, ११।२१९, 2. स्वाद | अशास्त्र (वि०) [न० ब०] जो धर्मशास्त्र के अनुकूल न लेना, अनुभव लेना, रस लेना-यथा फलं समश्नाति हो, पाखंड। सम-विहित,-सिद्ध जो धर्मशास्त्र –महा। से अनुमोदित न हो। अशकुन:-नम् [न० त०] अशुभ या बुरा शकुन । अशास्त्रीय (वि.) [न० त०] शास्त्रविरुद्ध, विधि-विरुद्ध, अशक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. कमजोरी, शक्तिहीनता | अनैतिक। 2. अयोग्यता, अक्षमता,-श्रमेण तदशक्या वा न गुणा- | अशित (भू० क० कृ०) [अश्+क्त] 1. खाया हुआ, तृप्त नामियत्तया----रघु० १०॥३२ 2. उपभुक्त। अशक्य (वि.) [न० त०] असंभव, अव्यवहार्य। अशितनवीन (वि.) [अशितास्तृप्ताः गावोऽत्र] वह स्थान अशङ्क, अशङ्कित (वि.) [न० ब०, न० त०] 1. निर्भय जहाँ पहले मवेशी चरा करते थे, पशओं के चरने का निश्शंक- प्रविशत्यशङ्कः ---हि० १६८१, 2. सुरक्षित, स्थान । दे० "आशितङ्गवीन"। सन्देह रहित । अशित्रः [अश्+इत्र] 1. चोर 2. चावल की आहुति । अशनम् अश् + ल्युट] 1. व्याप्ति, प्रवेशन 2. खाना, अशिरः [अश्+इरच] 1. आग 2. सूर्य 3. वायु 4 पिशाच, खिलाना 3. स्वाद लेना, रस लेना 4. आहार-अशनं --रम् हीरा। घात्रा मरुत्कल्पितं व्यालानाम् –भर्तृ० ३।१०, | अशिरस् (वि०) [न० ब०] बिना सिर का-(पुं०) बिना (बहुधा विशेषण (बहुव्रीहि) समास के अन्त में 'खाने सिर का शरीर, कबंध, धड़, तना। वाला' 'जिसका भोजन है...') फलमूलाशन, हुताशन. | अशिव (वि.) [न० ब० ] 1. अशुभ, अमंगलकारी पवनाशन आदि । -अशिवा दिशि दीप्तायां शिवास्तत्र भयावहाः (रुरुदुः) अशना—[अशन मिच्छति:—अशन--क्य+क्विप्] खाने | रामा० 2. अभागा, बदकिस्मत,--वम् 1. दुर्भाग्य, की इच्छा, भूख । बदकिस्मती 2. उपद्रव । सम०-आचार: 1. अनुअशनाया [अश नमिच्छति-अशन+क्यच... स्त्रियां भावे चित व्यवहार, आचरण की अशिष्टता 2. दुराचरण । अ] भूख, च्युताशनायः फलवद्विभूत्या-भट्टि० ३।४०. | अशिष्ट (वि.) [न० त०] 1. शिष्टतारहित, उजडू, 2. अन्नाद्वाऽशनाया निवर्तते पानात्पिपासा-शत०। असंस्कृत, असभ्य, अयोग्य 3. नास्तिक, भक्तिशून्य 4. अशनायित, अशनायुक (वि.) [अशन + क्यच् (ना. जो किसी प्रामाणिक ग्रन्थ द्वारा सम्मत न हो 5 जो घा०)+क्त, पक्षे उकन] भूखा । किसी प्रामाणिक शास्त्र द्वारा विहित न हो। अशनिः (पु० स्त्री०) [अश्नुते संहति ---अश् + अनि] 1. | अशीत (वि.) [न० त०] जो ठंडा न हो, गर्म । सम० इन्द्र का वज्र, शक्रस्य महाशनिध्वजम्-- रघु० ३।५६ | - करः,-रश्मिः सूर्य । 2. बिजली की चमक-अनुवनमशनिर्गतः -सिद्धा०, | अशीतिः (स्त्री० [निपातोऽयम् अस्सी (यह शब्द सदैव अशनिः कल्पित एव वेधसा रघु० ८।४७, अशनेर- स्त्रीलिंग एक व० में प्रयुक्त होता है चाहे इसका मतस्य चोभयोर्वशिनश्चांबुधराश्च योनयः--कू० । विशेष्य कुछ ही हो)। ४।४३, 3. फेंक कर मारेजाने वाला अस्त्र 4. अस्त्र को अशीर्षक (वि०)=दे० अशिरस् । नोक–निः (पु०) 1. इन्द, 2. अग्नि 3. बिजली से | अशचि (वि.)नि० ब०] 1. जो साफ न हो, गंदा, मलिन, पैदा हुई आग | अपवित्र, सोऽशुचिः सर्वकर्मसू,-विलाप या मातम के अशब्द (वि.) [न० ब०] जो शब्दों में न कहा गया हो अवसर पर 2. काला,-चिः (स्त्री०) न० त०] -किमर्थमशब्दं रुद्यते-का०६०, जो सुनाई न दे,-उदम् 1. अपवित्रता 2. अधः पतन । 1. अव्यक्त अर्थात् ब्रह्म 2. (सां० द० में) प्रधान या| अशुद्ध (वि० ) [न० त०] 1. अपवित्र 2. अशुद्ध, प्रकृति का आरम्भिक अणु - ईक्षते शब्दम्-शारी० गलत। १।१। अशुद्धि (वि०) [न० ब०] 1. अपवित्र, मलिन 2. दुष्ट, अशरण (वि०) [न० ब०] असहाय, परित्यक्त, शरणरहित -डि: (स्त्री०) [न० त०] अपवित्रता, मलिनता । - बलवदशरणोऽस्मि-श० ६, इसी प्रकार अशरण्य'। | अशुभ (वि.) [न० ब०] 1. अमंगलकारी 2. अपवित्र, अशरीर (वि.) [न ब०] शरीररहित, बिना शरीर का मलिन (विप० शुभ) 3. अभागा, बदकिस्मत,--भम् --र: 1. परमात्मा, ब्रह्म, 2. कामदेव, प्रेम का देवता 1. अमंगलता, 2. पाप 3. दुर्भाग्य, विपत्ति-नाथे 3. संन्यासी जिसने अपने सांसारिक संबंध त्याग कुतस्त्वय्यशुभं प्रजानाम्--रघु० ५।१३, । सम० दिये है। उदयः अशुभ शकुन। अशरीरिन् (वि०) न० त०] शरीररहित, अपार्थिव, | अशन्य (वि.) [न० त०] 1. जो रिक्त या शून्य न हो 2. स्वर्गीय (प्राय: वाणी, वाक आदि शब्दों के साथ)। । “परिचर्या किया गया, पूरा किया गया, निष्पादित For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२१ ) स्वनियोगमशुन्य कुरु (नाटकों में प्रायः प्रयुक्त) | शिलाजीत,--कुद्र, कुट्टक (वि०) पत्थर पर रखकर अपना कार्य सम्पन्न करो। चीज तोड़ने वाला (ट्टः,ट्टकः) भक्तों का समुदाय, अशत (वि.) [न० त०] बिना पकाया हुआ, कच्चा, वानप्रस्थ-याज्ञ० ३।४९, मनु० ६।१७,- गर्भः, अनपका। -गर्भम,-गर्भजः,-जम, योनिः पन्ना,-जः, तम् अशेष (वि.) [न० ब०] जिसमें कुछ बाकी न बचा हो, 1. गेरू, 2. लोहा,-जतु (नपुं०),-जतुकम् - शिला सम्पूर्ण, समस्त, पूरा, समग्र -अशेषशेमुषीमोपं माष- जीत, --जातिः पन्ना, ---वारणः पत्थर तोड़ने के लिए मश्नामि केवलम् ---उद्भट०, तोरशेषेण फलेन हथौड़ा, पुष्पम् शिलाजीत,-भालम् पत्थर की खरल युज्यता-रघु० ३।६५, ४८, ---षः [न० त०] जो या लोहे का इमामदस्ता, सार (वि०) पत्थर या बाक़ी न बचा हो,---षम, अशेषेण, अशेषतः (क्रि. लोहे जैसा (--रः, -रम) 1. लोहा 2. नीलमणि । वि०) पूर्ण रूप से, पूरी तरह से,-तथाविधस्तावदशेष- | अश्मन्तम् [अश्मनोऽन्तोऽत्र शक० पररूपम] 1 अंगीठी, मस्तु स:-कु० ५।८२, येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्म- अलाव 2. खेत, मैदान 3. मृत्यु । न्यथो मयि - भग० ४१३५, १०।१६, मनु० ११५९। | अश्मन्तकः--कम् [ अश्मानमन्तयति इति-अरमन्+अंत्+ अशोक (वि०) न० ब०] जिसे कोई रंज न हो, जो णिच+पवुल | अलाव, अंगीठी,--क: एक पौधे का नाम किसी प्रकार के रंज या शोक का अनुभव न करता जिसके रेशों से ब्राह्मण की तगड़ी बनाई जाती है। हो,-क1. लाल फूलों वाला एक प्रसिद्ध वृक्ष अश्मरी (आयु० में)[ अश्मानं राति इति रा+क+ङीष् ] (कविसमय है कि स्त्रियों के चरणस्पर्श से इसमें फल (मूत्राशय में) एक रोग का नाम जिसे पथरी कहते हैं, खिल जाते हैं) तु० असूत सद्य: कुसुमान्यशोकः .. ! मूत्रकृच्छ। पादेन नापैक्षत सुन्दरीणां संपर्कमाशिजितनपुरेण .... अश्रम् [ अश्नुते नेत्रम् -- अश् + रक् ] 1. आँसू, 2. रुधिर कु० ३।२६, मेघ०७८, रघु० ८।६२. मालवि० ३।१२, (प्राय: 'अस्र' लिखा जाता है),-श्रः किनारा (बहुधा १६, 2. विष्णु 3. मौर्यवंश का एक प्रसिद्ध राजा, --कम् | समास के अन्त में प्रयुक्त होता है)। सम.--पः 1. अशोक वृक्ष का फूलना (कामदेव के पाँच बाणों में रुधिर पीने वाला, राक्षस, नरभक्षक । से एक) 2. पारा । सम० – अरिः कदंबवृक्ष,-अष्टमी | अश्रवण (वि.) [ न० ब०] बहा, जिसके कान न हों, चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी, तरुः,-नगः,-वृक्षः –णः सांप। अशोकवृक्ष,-त्रिरात्रः,—त्रम् एक उत्सव का नाम अश्राद्ध (वि.) [न० त०] श्राद्ध का अनुष्ठान न करने जो तीन रात तक रहता है,-वनिका अशोक वक्षों वाला,-वः श्राद्ध का अनुष्ठान न करना। सम. का उद्यान, न्याय दे० 'न्याय' के नीये । -भोजिन (वि०) जिसने श्राद्ध-अनुष्ठान में भोजन न अशोच्य (वि.)न० त०] जिसके लिए शोक करना उचित करने का व्रत ले लिया है। नहीं.-अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे---. | अधान्त (वि.) [न० त०] 1. न थका हुआ, अथक 2. भग० २।११। अनवरत, लगातार-तम् (अव्य०) निरन्तर, लगातार। अशौचम नि० त०] 1. पवित्रता, मैलापन, मलिनता-पंच० | अधिः-श्री (स्त्री०) [अश+कि पक्षे डी ] 1. (कमरे १।१९५ 2. (किसी बच्चे के जन्म के कारण - जनना- __ का या घर का) किनारा, कोण समास के अन्त में चतुर्, शौच) सूतक, (किसी बंधु की मृत्यु के कारण --- त्रि, षट् तथा और कुछ शब्दों के साथ बदल कर मृताशौच) पातक—अहोरात्रमुपासीरन्नशौचं बान्धवैः 'अन' हो जाता है-दे० चतुरस्त्र) 2. (शस्त्र की) तेज सह---मनु० ११११८३ । धार-वृत्रस्य हन्तुः कुलिशं कुण्ठिताश्रीव लक्ष्यते-कू० अश्नया-भूख। २१३०, 3. किसी वस्तु का तेज किनारा, धार। अश्नोतपिबता [अश्नीत पिबत इत्युच्यते यस्यां निदेशक्रियायां अश्रीक-- ल (वि.) [न० ब० कप, रस्य ल: ] 1. श्रीहीन, -पा०२।११७२] खाने पीने के लिए निमंत्रण, दावत असुन्दर विवर्ण, शि० १५१९६ 2. भाग्यहीन, जो सम्पजिसमें खाने पीने के लिए लोग आमंत्रित किये जाते न्न न हो। हैं - अश्नीतपिबतीयंती प्रसृता स्मरकर्मणि -- भट्टि० | अश्रु (नपुं०)[ अश्नुते व्याप्नोति नेत्रमदर्शनाय-अश+ऋन् ] ५।१२। आँसु. पपात भमौ सह सैनिकाभि :--रघु० ३१६१ । अश्मकः (ब०व०) [अश्मेव स्थिरः, इवार्थे कन] 1. दक्षिण सम० ... उपहत (वि.) आंसुओं से ग्रस्त, आँसुओं में एक देश 2. उस देश के निवासी। से ढका हुआ,-कला आंसू की बंद, अश्रुबिंदू.-परिपूर्ण अश्मन (०) [अश+मनिन] 1. पत्थर--- नाराचक्षेपणी- (वि०) आंसुओं से भरा हुआ, अक्ष आसुओं से भरी याश्मनिष्पेषोत्पतितानलम्-रघु०४१७७ 2. फलीता, हुई आँखों वाला.–परिप्लत (वि०) आँसुओं से भरा चकमक पत्थर 3. बादल 4. वज। सम०-उत्यम् । हुआ. अथुस्नात,-पात: आँसू गिरना, आँसुओं का अपनीतपिबता [अनापीने के लिए निजाते न्न न For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जायका एक और ( १२२ ) गिराना, ----पूर्ण (वि.) आसुओं से भरा हुआ, आकुल को घुमाने का स्थान,-चिकित्सकः,--वैद्यः शालिहोत्री, आँसुओं से भरा हुआ तथा व्याकुल--रघु० २।१, पशुओं का डाक्टर,--चिकित्सा घोड़े की चिकित्सा, -मुख (वि०) आँसुओं से युक्त, अचानक आँसू गिराने पशुचिकित्साविज्ञान,-जघनः नराश्व (जिसका शरीर वाला, लोचन,-नेत्र (वि.) आँसुओं से भरी हुई | घोड़े का, तथा गर्दन मनुष्य की होती है),-दूतः घुड़ आँखों वाला, जिसकी आँखें आंसुओं से भरी हुई हों। सवार दूत, नायः घोड़ों को चराने वाला, घोड़ों का अश्रुत (वि०) [न० त०] 1. न सुना हुआ, जो सुनाई न समूह,निबन्धिकः घोड़ों का साइस, घोड़ों को बांधने दे 2. मूर्ख, अशिक्षित ।। वाला,-पः साइस,-पाल:-पालकः,-रक्षः घोड़ों अश्रौत (वि.) [न० त०] अवैदिक, जो वेदों के द्वारा का साइस,-बंधः साइस,-भा बिजली,-महिषिका अनुमोदित न हो। भैसे और घोड़े के बीच रहने वाली स्वाभाविक शत्रुता, अश्रयस् (वि०) [न० त०] 1. अपेक्षाकृत जो उत्कृष्ट न -मख (वि.) जिसका मंह घोड़े जैसा है (-खः) हो, घटिया (नपुं० ---स्) बुराई, दुःख । घोड़े के मुंह वाला पश. किन्नर, देवदूत (-खी) अश्लील (वि.) [न श्रियं लाति-ला-+-क] 1. भद्दा. किन्नर स्त्री,-भिन्दन्ति मन्दां गतिमश्वमुख्य:-कु० ११११, कुरूप 2. ग्राम्य गन्दा, अक्खड़,--अश्लीलप्रायान् कल --मेधः एक यज्ञ जिसमें घोडे की बलि चढ़ाई जाती कलान्--दश० ४९, परिवाद-याज्ञ० १३३. 3. अप है—यथाश्वमेधः ऋतुराट् सर्वपापापनोदन:--- मनु० भाषित,-लम् 1. देहाती या गंवारू भाषा, गाली 2. १११२६१.---मेधिक, मेघीय (वि०) अश्वमेध के (सा० शा० में) रचना का एक दोष जिसमें ऐसे शब्द उपयुक्त या अश्वमेध से संबंध रखने वाला (-का-यः) प्रयुक्त किये जायें जिनसे श्रोता के मन में शर्म, जुगुप्सा अश्वमेघ के उपयुक्त घोड़ा,--युज् (वि०) जिसमें और अमंगल की भावना पैदा हो-उदा० साधनं सुमह घोड़े जुते हुए हों (जैसे कि घोडागाड़ी), (स्त्री०) 1. द्यस्य, मुग्धा कुडमलिताननेन दघती वायं स्थिता तत्र एक नक्षत्रपुञ्ज,अश्विनी नक्षत्र 2. मेष राशि 3. आश्विसा, तथा-मदुपवनविभिन्नो मत्प्रियाया विनाशात-में नमास,-रक्षः अश्वारोही या घोड़े का रखवाला, साधन, वायु और विनाश शब्द अश्लील है और क्रमशः साइस, रथः घोडागाड़ी (-था) गंधमादन पर्वत शर्म, जगप्सा और अमंगल की भावना पैदा करते हैं के निकट बहने वाली एक नदी,---रत्नम्,- राजः 'साधन' शब्द तो लिंग (पुरुष की जननेन्द्रिय), 'वाय' बढ़िया घोडा, या घोड़ों का स्वामी--अर्थात् उच्च: शब्द अपान (गुदा से निकलने वाली दुर्गधयुत वायु) श्रवाः,- लाला एक प्रकार का साँप,---वक्त्र-अश्वतथा 'विनाश मृत्यु को प्रकट करता है। मुख, दे० किन्नर और गंधर्व,- बडवम् साँड घोड़ों की अश्लेषा [ न श्लिष्यति यत्रोत्पन्नेन शिशना, शिलष्+घञ जोड़ी,-बहः अश्वारोही,-वारः,—वारकः अश्वारोही, तारा०] 1. नवाँ नक्षत्र जिसमें पाँच तारे होते हैं 2. साइस,-वाहः, --वाहक: घुड़सवार, -विद् (वि०) अनैक्य, वियोग । सम.--जः,-भवः,--भूः केतुग्रह 1. घोड़ों को सचाने में कुशल 2. घोड़ों का दलाल अर्थात् उतार का शिरोबिन्दु। (पुं०) 1. पेशेवर घुड़सवार 2. नल का विशेषण, अश्वः [ अंश्+क्वन् ] 1. घोड़ा 2. सात की संख्या का प्रकट -वृषः बीजाश्व, सांडघोड़ा,--वैद्यः घोड़ों का चिकिकरने वाला प्रतीक 3. (घोड़े जैसा बल रखने वाले) त्सक,- शाला अस्तबल,—शावः बछेरा, बछेरी, मनुष्यों की दौड़, काष्ठतुल्यवपुर्धष्टो मिथ्याचारश्च --शास्त्रम् शालिहोत्र, पशु चिकित्सा-विज्ञान की पाठ्यनिर्भयः, द्वादशांगुलमेदश्च दरिद्रस्तु हयो मतः । -श्वौ पुस्तक,-- शृगालिका घोड़े और गीदड़ की स्वाभाविक (द्वि० व०) घोड़ा और घोड़ी। सम०-अजनी हंटर, शत्रुता,-सादः, --सादिन् (पुं०) घुड़सवार, अश्वारोही -अधिक (वि.) जो अश्वारोहियों में प्रबल हो. अश्वसनिक रघु० ७१४७, सारथ्यम् कोचवानी, जिसके पास घोडे अधिक हों,-अध्यक्षः अश्वारोहियों सारथिपना, घोड़ों और रथों का प्रबंध--सूतानामश्वका सेनापति,--अनीकम् अश्वारोहियों की सेना,-अरिः सारथ्यम् -- मनु० १०॥४७,- --स्थान (वि०) अस्तबल भैसा,----आयुर्वेदः अश्वचिकित्सा-विज्ञान--आरोह में उत्पन्न (नम्) घुडसाल, तबेला,-'हारक: (वि०) घोड़े पर चढ़ा हुआ (-हः) 1. घुड़सवार, घुड़चोर, घोड़ों को चुराने वाला,- हृदयम् 1. घोड़े की अश्वारोही 2. घुडसवारी,-उरस् (वि०) घोड़े की इच्छा 2. अश्वारोहिता। भांति चौड़ी छाती वाला,-कर्णः,---कर्णक: 1. एक अश्वक (वि.) [ अश्व-कन् ] घोड़े जैसा-क: 1. छोटा वृक्ष 2. घोड़े का कान,-कुटी घुड़शाल,-कुशल, घोड़ा, 2. भाड़े का टट्टू 3. सामान्य घोड़ा। -कोविद (वि०) घोड़ों को संघाने में चतुर,-खरजः | अश्वकिनी [ अश्वस्य के मुखं तत्सदृशाकारोऽस्त्यस्य इनि खच्चर,-खुरः घोड़े का सुम,--गोष्ठम् घुड़साल, अस्त- डीप -तारा०] अश्विनी नक्षत्र । बल,घासः घोड़े की चरागाह,-चलनशाला घोड़ों । अश्वतरः (स्त्री०-री) [ अश्व+ष्टरच् ] खच्चर । For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) 1 अश्वत्थः [न श्वश्चिरं शाल्मलीवक्षादिवत् तिष्ठति-स्था अनुष्ठान,-कम् 1. आठ अवयवों की बनी कोई +क पुषो. तारा०] पीपल का पेड़, ऊर्ध्वमलोऽ- समची वस्तु 2. पाणिनिसूत्रों के आठ अध्याय 3. वाशाख एषोऽश्वत्थः सनातनः---कठ०, भा० १५॥१॥ ऋग्वेद का एक खंड (ऋग्वेद ८ अष्टक या दस मंडलों अश्वत्थामन् (पु.) [अश्वस्येव स्थाम बलमस्य, पृषो० में विभक्त है) 4. आठ बस्तुओं का समूह-यथा तु० महा...---अश्वस्येवास्य यत्स्थाम नदतः प्रदिशो- वानराष्टकम्, ताराष्टकम्, गंगाष्टकम् आदि 5. आठ गतम्, अश्वत्थामैव बालोऽयं तस्मान्नाम्ना भविष्यति । की संख्या। सम० - अंगः, -गम एक प्रकार का द्रोण और कृपी का पुत्र, कुरुराज दुर्योधन की ओर से फलक या कपड़ा जिस पर आठ खाने बने होते हैं और लड़ने वाला ब्राह्मण योद्धा व सेनापति (यह अत्यन्त जो पाँसा खेलने के काम आता है। शूरवीर, प्रचण्डक्रोधी, युवक योद्धा था, इसका ब्रह्म- | अष्टन् (सं० वि०) [अंश+कनिन्, तुट् च] (कर्तृ०, तेज कणं के साथ वाग्युद्ध में प्रकट हुआ, जब कि कर्म-अष्ट—ष्टौ) आठ, कुछ संज्ञाओं तथा संख्याद्रोणाचार्य के पश्चात् कर्ण को सेनापतित्व दिया गया वाचक शब्दों से मिलकर इसका रूप समास में 'अष्टा' -दे. वेणी० तृतीय अंक, यह सात चिरजीवियों में रह जाता है, उदा० अष्टादशन, अष्टाविंशतिः, अष्टासे एक है)। पद आदि । सम०---अंग वि० जिसके आठ खंड अश्वस्तन, स्तनिक (वि.) [न श्वो भवः इति-..-३वस्--- या अवयव हों -गम् 1. शरीर के आठ अंग जिनसे ट्युल तुट् च, न० त०] [श्वस्तन+ठन् च न० अति नम्र अभिवादन किया जाता है, पातः,--प्रणामः त०] 1, जो आगामी कल का न हों, आज का 2 जो साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने आगामी कल का प्रबंध नहीं रखता है -- मनु० ४७,। वाला नम्र अभिवादन-जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां अश्विक (वि.) [ अश्व+ठन | जो घोड़ों से खींचा जाय । पाणिभ्यामुरसा धिया, शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोअश्विन् (पुं०) [ अश्व+इन् ] 1. अश्वारोही, घोड़ों को ऽष्टाङ्ग ईरितः ।। 2. योगाभ्यास अर्थात मन की एका सधाने वाला-नौ (द्वि०व०) देवताओं के दो वैद्य ग्रता के आठ भाग 3. पूजा की सामग्री, अर्घ्यम आठ जो कि सूर्य के द्वारा घोड़ी के रूप में एक अप्सरा से वस्तुओं का उपहार, धूपः आठ औषधियों से बनी जुड़वें पैदा हुए थे। एक प्रकार की ज्वर उतारने वाली धूप, “मैथुनम् आठ अश्विनी [ अश्व-+ इनि+डी] 1. २७ नक्षत्रों में सबसे प्रकार का संभोग-रस, प्रणय की प्रगति में आठ पहला नक्षत्र (जिसमें तीन तारे होते है), 2. एक अवस्थाएँ–स्मरणं कीर्तनं केलि: प्रेक्षणं गुह्यभाषणम्, अप्सरा जो बाद में अश्विनीकुमारों की माता मानी संकल्पोऽध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च ।,-अध्यायी जाने लगी, सूर्य पत्नी जो कि घोड़ी के रूप में छिपी पाणिनि मुनि का बनाया व्याकरणग्रंथ जिसमें आठ हुई थी। सम०--कुमारी,पुत्रौ--सुतौ सूर्यकी अध्याय है, अत्रम् अष्टकोण,—अस्त्रिय अष्टकोणीय पत्नी अश्विनी के यमज पुत्र ।। —अह (न) (वि.) आठ दिन तक होने वाला, अश्वीय (वि०) [ अश्व+छ ] घोड़ों से संबंध रखनेवाला ----कर्ण (वि.) आठ कानों वाला, (–णः) ब्रह्मा घोड़ों का प्रिय,यम् घोड़ों का समूह, अश्वारोही की उपाधि,-कर्मन (पुं०),---गतिकः राजा जिसने सेना—शि० १८५। अपने आठ कर्तव्य पूरे करने हैं (आठ कर्तव्य--आदाने अषडक्षीण (वि.) [न सन्ति --- षडक्षीणि यत्र-न० ब०, च विसर्गे च तथा प्रेषनिषेधयोः, पंचमे वार्थवचने तत:---ख ] जो छ: आँखों से न देखा जा सके, जो व्यवहारस्य चेक्षणे, दंडशुद्धयोः सदा रक्तस्तेनाष्टगतिको केवल दो व्यक्तियों के द्वारा निश्चित या निर्णीत किया नपः ।-कृत्वस् (अव्य०) आठ बार,—कोण: आठ जाय,—णम् रहस्य । कोण वाला, अठपहल,-गवम् आठ गौओं का लहँडा; अषाढः [ अषाढया युवता पौर्णमासी आषाढी सा अस्ति —गुण (वि.) आठ तह वाला,-दाप्योऽष्टगुणमत्ययम् यत्र मासे अण् वा ह्रस्वः ] अषाढ़ का महीना (प्रायः मनु० ८।४००, (-णम्) वह आठ गुण जो ब्राह्मण 'आषाढ़' लिखा जाता है)। में अवश्य पाये जाने चाहिए- दया सर्वभूतेषु, क्षांतिः, अष्टक वि० [ अष्टन : कन् । आठ भागों वाला, आठ अनसूया, शौचम्, अनायासः, मंगलम्, अकार्पण्यम्, तह वाला,---क: जो पाणिनि निर्मित आठों अध्यायों अस्पृहा चेति... गौ० । आश्रय (वि०) इन आठ गुणों का जानकार है, या उनका अध्ययन करता है,--का से युक्त,-ष्ट (ष्टा) चत्वारिंशत् (वि.) अड़पूर्णिमा के पश्चात् सप्तमी से आरंभ करके आने वाले तालीस, - तय (वि०) आठ तहों वाला,-त्रिशत्, तीन (सप्तमी, अष्टमी और नवमी) दिन 2. उन तीन (.--ष्टा) (वि.) अड़तीस,--त्रिकम् चौबीस, महीनों की अष्टमियां, जबकि पितरों का तर्पण होता दलम् 1. आठपंखड़ियों वाला कमल, 2. अठकोन, है, 3. उपर्युक्त दिनों में किया जाने वाला श्राद्ध- । ----वशन् (°ष्टा) नीचे दे०,—विश् (स्त्री०) आठ For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वजन। ( १२४ ) दिग्बिन्दु–पूर्वाग्नेयी दक्षिणा च नैर्ऋती पश्चिमा तथा, (स्त्री०) (°ष्टा) अठाईस,-श्रवणः,-श्रवस् ब्रह्मा, वायवी चोत्तरैशानी दिशा अष्टाविमाः स्मताः । (आठ कान या चार सिर रखने वाला)। करिण्यः आठ दिग्बिन्दुओं पर स्थित आठ हथिनियाँ, | अष्टतय (वि.) [अष्टन्-+-तयप्] आठ खंड या आठ पाला: आठों दिशाओं के आठ दिशापाल “इन्द्रो अंगों वाला--यम् सब मिलाकर आठ वाला। वह्निः पितृपतिः (यमः) नैर्ऋतो वरुणो मरुत् (वायुः), अष्टधा (अव्य०) (अष्टन् +धा] 1. आठ तह वाला, कुबेर ईश: पतयः पूर्वादीनां दिशां क्रमात्--अमर०, आठ बार 2. आठ भागों या अनुभागों में-भिन्ना गजाः आठों दिशाओं की रक्षा करने वाले आठ प्रकृतिरष्टधा- भ० ७।४, भिन्नोऽष्टधा विप्रससार हाथी-ऐरावतः पुंडरीको वामनः कुमुदोऽञ्जन:, पुष्प- वंश:--रघु० १६१३ । दन्तः सार्वभौम: सुप्रतीकश्च दिग्गजा:--अमर०, | अष्टम (वि०) [स्त्री०- मी] [अष्टन्+डट् मट च -धातुः आठ धातुओं का समुदाय--स्वर्ण रूप्यं च आठवां,--मः आठवाँ भाग,-मी चांद्रमास के दोनों तानं च रङ्ग यशदमेव च, शीसं लौहं रसश्चेति धातवोऽ पक्षों का आठवां दिन। सम-अंशः आठवाँ ष्टौ प्रकीर्तिताः । --पद, द् ('ष्ट' या 'टा) भाग,-कालिक (वि.) जो व्यक्ति सात समय (पूरे वि० 1. आठ पैरों वाला, 2. कथा में वर्णित शरभ तीन दिन तथा चौथे दिन का प्रातः काल) भोजन नाम का जन्तु, 3. सिटकिनी 4. कैलास पर्वत (--दः, न करके आठवें समय पर ही भोजन ग्रहण करता ----वम्) 1. सोना----आवजिताष्टापदभतोयै:-कु० है - मनु०६।१९। ७।१०, शि० ३।२८, 2. पासा खेलने के लिए बिसात | अष्टमक (वि०) [अष्टम+कन] आठवाँ,- योशमष्टकं या एक फलक, फट्टा,-'पत्रम् सोने की पट्टी, हरेत्– याज्ञ० २।२४४ । -मङ्गल: एक घोड़ा जिसका मुंह, पूँछ, अयाल, छाती अष्टमिका [अष्टमी+कन् ह्रस्वः, टाप] चार तोले का तथा सुम सफेद हो (..-लम) आठ सौभाग्यसूचक वस्तुओं का संग्रह, कुछ के मतानुसार वे ये हैं:-मगराजो अष्टादशन् (वि०) [अष्ट च दश च] अठारह। सम० वृषो नागः कलशो व्यजन तथा, वैजयन्ती तथा भेरी --उपपुराणम् गौण या छोटे पुराण, अष्टान्युपपुराणानि दीप इत्यष्टमङ्गलम्। दूसरों के मतानुसार लोकेऽ मुनिभिः कथितानि तु, आद्यं सनत्कुमारोक्तं नारसिंहस्मिन्मङ्गलान्यष्टौ ब्राह्मणो गौर्हताशन:, हिरण्यं सप्ति मतः परम्, तृतीयं नारदं प्रोक्तं कुमारेण तु भाषितम्, रादित्य आपो राजा तथाष्टमः । --मानम् एक 'कुडव' चतुर्थं शिवधर्माख्यं साक्षान्नन्दीशभाषितम, दूर्वाससोनामक माप,-मासिक (वि०) आठ महीनों में एक बार । क्तमाश्चर्य नारदोक्तमत: परम, कापिलं मानवं चैव होने वाला, मूतिः अष्टरूप, शिव का विशेषण-आठ तथैवोशनसेरितम, ब्रह्माण्डं वारुणं चाथ कालिकायरूप है -- पाँच तत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और मेव च, माहेश्वरं तथा साम्ब सौरं सर्वार्थसञ्चयम, आकाश), सूर्य, चन्द्रमा, तथा यज्ञ करने वाला पुरो- पराशरोक्तं प्रबरं तथा भागवतद्वयम् । इदमष्टादश हित-तु०, श० १११, या सृष्टि: स्रष्टुराद्या वहति प्रोक्तं पुराणं कौमसंजितम्, चतुर्धा संस्थितं . पुण्यं विधिहुतं या हविर्या च होत्री, ये द्वे कालं विधत्तः संहितानां प्रभेदतः-हेमाद्रि। --पुराणम अठारह पुराण, श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् । यामाहुः -ब्राह्म पानं वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा, तथान्यम्नासर्वभूतप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः, प्रत्यक्षाभिः रदीयं च मार्कण्डेयं च सप्तमम, आग्नेयमष्टकं प्रोक्तं प्रपन्नस्तन भिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीश: ।। या संस्कृत भविष्यन्नवमं तथा, दशमं ब्रह्मवैवर्त लिङ्गमेकादशं में संक्षेप से कहे गये निम्नांकित क्रमानुसार नामः- तथा, वाराहं द्वादशं प्रोक्तं स्कान्दं चात्र त्रयोदशम्, जलं वह्निस्तथा यष्टा सूर्याचंद्रमसौ तथा, आकाशं चतुर्दशं वामनं च कौमं पंचदशं तथा, मत्स्यं च गारुडं वायरवनी मूर्तयोऽप्टौ पिनाकिनः । धरः आठ रूपों चैव ब्रह्मांडाप्टादशं तथा ।-विवादपदम् मकदमेबाजी वाला, शिव,रत्नम समष्टि रूप से ग्रहण किये गये के अठारह विषय (झगड़े के कारण) दे० मन० आठ रत्न, - रसाः नाटकों में प्रयक्त आठ रस- ८१४-७ । शृंगारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः, वीभत्साद्भुतसंज्ञौ । अष्टिः (स्त्री०) [अस+क्तिन् पषो० पत्वम्] 1. खेल का चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृताः । काव्य०४, (इनमें पासा 2. सोलह की संख्या 3. बीज 4. गुठली। नवा रस 'शान्त' भी जोड़ दिया जाता है : –निर्वेद- अष्ठीला अष्ठिस्तत्तल्यकठिनाश्मानं राति-रा-क रस्य ल: स्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः-त०) आश्रय दीर्घः.... तारा०) 1. गोल मटोल शरीर, 2. गोल कंकरी (वि.) आठ रसों से सम्पन्न, या आठ रसों को प्रद- या पत्थर 3. गिरी, गठली 4. बीज का अनाज । शित करने वाला-विक्रम० २११८,-विधि (वि०) अस् 1. (अदा० पर०) [अस्ति, आसीत्, अस्तु, स्यात्-- आठ तह वाला, या आठ प्रकार का,-विशतिः। आर्धधातुक लकारों में सदोप रूपरचना- अर्थात् भू For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२५ घातु से] 1. होना, रहना, विद्यमान होना (केवल । सत्ता)- नासदासीन्नौ सदासीत् - ऋग्० १०॥१२९, -नत्वेवाहं जातु नासम्-भग० २।१२, आसीदाजा नलो नाम नल० २१, 2. होना (अपूर्ण विधेयक की क्रिया या विधेयक शब्द के रूप में प्रयुक्त, बाद में संज्ञा, विशेषण, क्रियाविशेषण या और कोई समानार्थक शब्द आता है) धार्मिके सति राजनि -मनु० १११११, आचार्य संस्थिते सति ---५।८०, 3. संबंध रखना, अधिकार में करना (अधिकर्ता में संबं०)-यन्ममास्ति हरस्व तत् ..पंच० ४७६, यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा –५।७०, 4. भागी होना--तस्य प्रेत्य फलं नास्ति मनु०३।१३९ 5. उदय होना, घटित होना... आसीच्च मम मनसि-का० १४२, 6. होना 7. नेतृत्व करना, हो जाना, प्रमाणित होना (संप्र० के साथ) स स्थाणः स्थिरभक्तियोगसुलभो निःश्रेयसायास्तु वः —विक्रम० १६१, 8. पर्याप्त होना (संप्र० के साथ) सा तेषां पावनाय स्यात् – मनु० ११२८६, अन्य पाल: परिदीयमानं शाकाय वा स्यात् लवणाय वा स्यात् -जगन्नाथ, 9. ठहरना, बसना, रहना, बसना, आवास करना,-हा पितः क्वासि हे सुभ्र -भटि०६।११, 10. विशेष संबंध रखना, प्रभावित होना (अधि० के साथ)- किं नु खलु यथा वयमस्यामेवमियमप्यस्मान् प्रति स्यात्-श० १, अस्तु --अच्छा, होने दो, एवमस्तु, तथास्तु-ऐसा ही होवे, स्वस्ति, अध्युक्त पूर्ण भूतकालिक क्रिया का रूप बनाने के लिए धातु से पूर्व जोड़ा जाने वाला "आस" कई बार धातु से पृथक करके लिखा जाता है--- तं पातयां प्रथममास पपात पश्चात्-रघु० ९।६१, १६६८६, अति-समाप्त होना, श्रेष्ठ होना, बढ चढ़ कर होना, अभि- संबंध रखना, अपने भाग का हिस्सेदार बनना यन्ममाभिष्यात्-सिद्धा०, आविस्-. निकलना, उभरना, दिखाई देना- आचार्यकं बिजयि मान्मथमाविरासीत्- मा० ११२६, प्रावुस्---प्रकट होना, ऊपर को उभरना,- प्रादुरासीसमोनुदः-- मनु० १।६, रघु० ११११५, व्यति - (आ० व्यतिहे, व्यतिसे, व्यतिस्ते) बढ़ जाना, बढ़ चढ़ कर होना, श्रेष्ठ या बढ़िया होना, मात कर देना--अन्यो व्यति स्ते तु ममापि धर्मः- भटि० २।३५ ।। अस (दिवा० पर०)[ अस्यति, अस्त ] 1. फेंकना, छोड़ना, जोर से फेंकना, (बन्दूक) दागना, निशाना लगाना, ('निशाना' में अधि०) तस्मिन्नास्थदिपीकास्त्रम --रघु० १२।२३, भट्टि १५४९१, 2. फेंकना, ले जाना, जाने देना, छोड़ना, छोड़ देना, जैसा कि 'अस्तमान' 'अस्तशोक' और 'अस्तकोप' में, दे० अस्त; अति--, निशाने से परे (तीर गोली आदि) फेंकना, | ) हावी होना; अत्यस्त दूर परे निशाना लगाकर, बढ़ चढ़ कर, (द्वि० त० स० में जुड़ कर,) अधि-,1. एक के ऊपर दूसरी वस्तु रखना 2. जोड़ना, 3. एक वस्तु की प्रकृति को दूसरी में घटाना, बाह्यधर्मानात्मन्यध्यस्यति-शारी, अप--1. फेंक देना, दूर करना, छोड़ना, त्याग देना, रद्दी में डालना, अस्वीकार करना--किमित्यपास्याभरणानि यौवने-कु. ५।४४, सारं ततो ग्राह्यमपास्थ फल्गु –पंच० १, शि० ११५५, संगरमपास्य- वेणी० ३१४, इत्यादीनां काव्यलक्षणत्वमपास्तम् स० द०, अस्वीकृत, निराकृत 2. हांक कर दूर कर देना, तितर बितर करना, अभि--, 1. अभ्यास करना, मश्क करना-अभ्यस्यतीव व्रतमासिघारम्— रघु० १३॥६७, मा० ९॥३२ 2. किसी कार्य को बार-बार करना, दोहराना- मृगकुलं रोमन्थमभ्यस्यतु---श० २।६, कु० २१५०, 3. अध्ययन करना, सस्वर पढ़ना, पढ़ना-- वेदमेव सदाऽभ्यस्येत् मनु० २।१६६, ४।१४७, उद्-, 1. उठाना, ऊपर करना, सीधा करना---पुच्छमुदस्यति सिद्धा०, 2. मुड़ जाना, 3. निकाल देना, बाहर कर देना, उपनि-1. निकट रखना, धरोहर रखना 2. कहना, संकेत करना सुझाव देना, प्रस्तुत करना-किमिदमपन्यस्तम्-श. ५, सदुपन्यस्यति कृत्यवर्त्म य:-कि० १३, 3. सिद्ध करना, 4. किसी की देख रेख में देना, सुपुर्द करना 5. सविवरण वर्णन करना, नि--1. उपक्रम करना, रखना, नीचे फेंकना-शिखरिष पदं न्यस्य मेघ० १३; दृष्टिपूतं न्यसेत्पाद-मनु० ६।४६, 2. एक ओर रखना, छोड़ना, त्यागना, परित्याग करना, तिलांजलि देना. स न्यस्तचिह्नामपि राजलक्ष्मी-रघु० २१७, न्यस्तशस्त्रस्य- वेणी० ३११८, इसी प्रकार -प्राणान् न्यस्यति 3. अन्दर रखना, किसी वस्तु पर रखना (अधिक के साथ)-शिरस्याशा न्यस्ता- अमरु ८२, चित्रन्यस्त - चित्र में उतारा हुआ--विक्रम० ११४, स्तनन्यस्तोशीरम-श० ३।९, लगाया हआ--अयोग्ये न मद्विधो न्यस्यति भारमण्यम्-भट्टि० १।२२, मेघ. ५९, 4. सौंपना, हवाले करना, देखरेख में रखना --.अहमपि तव सूनो न्यस्तराज्य:-..विक्रम० ५।१७, भ्रातरि न्यस्य मां-- भट्टि० ५।८२, 5. देना, प्रदान करना, वितरण करना-रामे श्रीन्यस्यतामिति–रघ० १२२२, 6. कहना, सामने रखना, प्रस्तुत करना- अर्थान्तरं न्यस्यति–मल्लि०शि० १११७ पर, निस् - 1. निकाल फेंकना, फेंक देना, छोड़ना, छोड़ देना, वापिस मोड़ देना,—निरस्तगाम्भीर्यमपास्तपुष्पकम-शि० १॥ ५५, ९।६३ 2. नष्ट करना, दूर करना, हराना, मारना, मिटाना--अह्नाय तावदरुणेन तमो निरस्तम् -~-रघु० ५।७१, रक्षांसि वेदी परितो निरास्थत For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १२६ -- भट्टि० १।१२, २/३६, 3. निकालना, निष्कासन, निर्वासित करना - गृहात्रिरस्ता न तेन वैदेहमुता मनस्तः- - रघु० १४।८४, 4. बाहर फेंकना, (तीर) छोड़ना 5. अस्वीकार करना, ( सम्मति आदि का ) निराकरण करना 6. ग्रहण लगना, छिप जाना, पृष्ठभूमि में गिर पड़ना - भट्टि० १1३, परा छोड़ना, स्यागना, त्याग देना, छोड़ देना- परास्तवसुधो सुधाधिवसति कि० ५।२७, 2. निकाल देना 3. अस्वीकार करना, निराकरण करना, प्रत्याख्यान करना - इति यदुक्तं तदपि परास्तम्- सा० द० १, परि- 1. चारों ओर फेंकना, सब ओर फैलाना, प्रसार करना 2. फैला देना, घेरना - ताम्रोष्ठपर्यस्तरुचः स्मितस्य कु० १/४४, 3. मोड़ लेना - पर्यस्त विलोचनेन कु० ३२६८, 4. (आँसू ) गिराना, नीचे फेंकना - रघु० १०1७६, मनु०११११८३ 5. उलट देना, पलट देना, 6. बाहर फेंकना - रघु० १३/१३, ५/४९ परिनि, फैलाना, बिछाना, पर्युद- 1. अस्वीकार करना, निकाल देना 2. निषेध करना, आक्षेप करना, प्र, फेंकना, फेंक देना, उछाल देना, वि, उछालना, बखेरना, अलग-अलग फेंकना, फाड़ देना, नष्ट करना 2 -भट्टि० ८।११६, ९/३१, 2. खंडों में विभक्त करना, पृथक करना, क्रम से रखना स्वयं वेदान् व्यस्यन् पंच० ४/५०, विव्यास वेदान् यस्मात्स तस्माद् व्यास इति स्मृतः, महा०, रघु० १० ८५, 3. अलग-अलग लेना, एक-एक करके लेना तदस्ति कि व्यस्तमपि त्रिलोचने- कु०५/७२, देना, पलट देना 5. निकाल देना, हटा देना- विनि 4. उलट 1. रखना, जमा करना, रख देना - विन्यस्यन्ती भुवि गणनया देहलीदत्तपुष्पैः मेघ० ८८, भट्टि० ३1३, 2. जमा देना, किसी की ओर निर्देश करना -रामे विन्यस्तमानसाः- रामा०, 3. सौंपना, दे देना, सुपुर्द कर देना, किसी के जिम्मे कर देना, -सुतविन्यस्तपत्नीकः -- याज्ञ० ३।४५, 4. क्रम में रखना, सँवारना, विपरि-, 1. उलट देना, पलट देना, औंधा कर देना, 2. बदलना, परिवर्तन करना- उत्तर० १, 3. भ्रमग्रस्त होना, गलत समझना, प्रतीकारो व्याधेः सुखमिति विपर्यस्यति जनः भर्तृ० ३९२, 4. परिवर्तित होना ( अक० ) सम्1. मिलना, एकत्र करना, मिलाना, जोड़ देना- मनु० ३।८५, ७1५७, 2. समास में जोड़ देना, समासकरना 3. सामुदायिक रूप से ग्रहण करना - समस्तैरथवा पृथक् मनु० ७ १९८, संयुक्त रूप से या अलग अलग, संनि- 7 1. रखना, सामने लाना, जमा करना, 2. एक ओर रखना, छोड़ना, त्यागना, छोड़ देना- संन्यस्तशस्त्रः रघु० २/५९, संन्यस्ताभरणं गात्रम् - मेघ० ९३, कु० ७१६७, 3. दे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir } देना, सौंपना, सुपुर्द करना, हवाले करना भग० ३1३०, 4. ( अक० के रूप में प्रयुक्त) संसार को त्यागना, सांसारिक बंधन तथा सब प्रकार की आसक्तियों को त्याग कर विरक्त हो जाना संदृश्य क्षणभङगुरं तदखिलं धन्यस्तु संन्यस्यति भर्तृ० ३।१३२, अस् (भ्वा० उभ० ) [ असति ते, असित ] 1. जाना, 2. लेना, ग्रहण करना, पकड़ना 3. चमकना ( इस अर्थ को दर्शाने के लिए प्रायः निम्नांकित उदाहरण दिये जाते हैं - निष्प्रभश्च प्रभुरास भभूताम् रघु० ११ । ८१, तेनास लोकः पितृमान् विनेत्रा - १४१२३, लावण्य उत्पाद्य इवास यत्नः कु० १३५, वामन ने यहाँ 'दिदीपे ' ( चमका) अर्थ को माना है चाहे यह दुरूह ही है; उपर्युक्त उदाहरणों में 'आस' को 'बभूव' का समानार्थक मान लेना अधिक उपयुक्त है चाहे इसे शाकटायन की भांति तिङन्तप्रतिरूपकमव्ययम् -- अव्यय मानें, या वल्लभ की भांति इसे व्याकरणविरुद्ध प्रामादिक प्रयोग दे० मल्लि० कु० १।३५ पर) | असंयत ( वि० ) [ न० त०]1. संयमरहित, अनियंत्रित 2. बंधनहीन, जैसे- असंयतोऽपि मोक्षार्थी में । असंयमः [ न० त०] संयम हीनता, नियन्त्रण का अभाव, विशेषतः ज्ञानेन्द्रियों के ऊपर । असंव्यवहित ( वि० ) [ न० त०] व्यवधान रहित, अवकाश रहित ( समय और काल का ) । असंशय ( वि० ) [ न० ब० ] संदेह से मुक्त, निश्चयवान् यम् (अव्य० ) निस्सन्देह, असन्दिग्धरूप से, निश्चय ही, असंशयं क्षत्रपरिग्रहमा - श० ११२२ । असंभव ( वि० ) [ न० ब० ] जो सुनने से बाहर हो, जो सुनाई न दे, असंभवे-सुनने के क्षेत्र से बाहर - मेघ० २।२०३ । असंसृष्ट ( वि० ) [ न० त०] 1. अमिश्रित, अयुक्त 2. जो सबके साथ मिल कर न रहता हो, संपत्ति का बँटवारा होने के पश्चात् जो फिर न मिला हो ( उत्तराधिकारी के रूप में ) । असंस्कृत (वि० ) [ न० त०]1. संस्कारहीन, अपरिष्कृत, अपरिमार्जित 2. जो संवारा न गया हो, सजाया न गया हो 3. जिसका कोई शोधनात्मक या परिष्कारात्मक संस्कार न हुआ हो- तः व्याकरणविरुद्ध, अपशब्द । असंस्तुत (वि० ) [ न० त०] 1. अज्ञात, अनजाना, अपरिचित-असंस्तुत इव परित्यक्तो बांधवो जनः-- का० १७३, कि० ३।२, 2. असाधारण, विचित्र 3. सामंजस्य रहित - धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः श० १।३४ । असंस्थानम् [ न० त०]1. संसक्ति का अभाव 2. अव्यवस्था, गड़बड़ 3. कमी, दरिद्रता । For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( असंस्थित ( वि० ) [ न० त०] 1. अव्यवस्थित, क्रमरहित 2. असंगृहीत । असंस्थितिः (स्त्री० ) [ न० त०] 1. अव्यवस्था, गड़बड़ । असंहत ( वि० ) [ न० त०] 1. न जुड़ा हुआ, असंयुक्त, बिखरा हुआ, 2. त: पुरुष या आत्मा ( सां०द० में ) । असकृत् ( अव्य० ) [ न० त०] एक बार नहीं, बार-बार, बहुधा -- असकृदेकरथेन तरस्विना - रघु० ९।२३, मेघ० ९२,९३, । सम० समाधिः - बारंबार चितन, मनन, - गर्भवासः बारंबार जन्म । असक्त (वि० ) [ न० त०] 1. अनासक्त, बेलगाव, उदासीन - असक्तः सुखमन्वभूत् रघु० १ २१, 2. न फँसा हुआ श० २११२, 3. सांसारिक भावनाओं तथा संबंधों के प्रति अनासक्त, क्तम् ( अव्य० ) 1. अनासक्तिपूर्वक, 2 अनवरत बिना रुके । असक्य ( वि० ) [ न० ब० ] जंघारहित । असखिः [ न० त०] शत्रु, विरोधी । असगोत्र ( वि० ) [ न०त०]ज एक ही गोत्र या कुलका न हो । असडकुल (वि० ) ( न० त०] जहाँ भीड़-भड़क्का न हो, खुला हुआ, चौड़ा (जैसे कि सड़क ) -ल: चौड़ी सड़क असख्य ( वि० ) [ न० ब० ] गिनती से परे, गणनारहित, अनगिनत मनु० १८०, १२१५, ता-त्वम् अनंतता । असख्यात (वि० ) [ न० त०] गणनारहित, अनगिनत । असल्येय ( वि० ) [ न० त०] अनगिनत - यः शिव की उपाधि । असङ्ग ( वि० ) [ न० ब०] 1. अनासक्त, सांसारिक बंधनों से मुक्त 2. बाधारहित, निर्वाध अकुण्ठित 3. असंयुक्त अकेला, निलिप्त, --गः [ न० त०] 1. अनासक्ति --- मनु० ६।७५, 2. पुरुष या आत्मा ( सां० द०) । असङ्गत ( वि० ) [ न०त०] 1. न जुड़ा हुआ, न मिला हुआ 2. अनुचित, बेमेल 3. उजड्ड, अशिष्ट, अपरिष्कृत | असङ्गति: ( स्त्री० ) [ न०त०] 1. मेल का न होना 2. असं बद्धता, अनौचित्य 3. (सा० शा० ) एक अलंकार जिसमें कार्य और कारण की स्थानीय अनुकूलता न पाई जाय जहाँ कारण और कार्य के प्रतीयमान संबंध का उल्लंघन हो । असङ्गम ( वि० ) [ न० ब० ] न मिला हुआ, मः 1. वियोग, अलगाव 2. असंबद्धता । असङ्गिन् ( वि० ) [ न० त०] 1. न मिला हुआ, असंबद्ध 2. सांसारिक विषयों में अनासक्त । असंज्ञ (वि० ) [ न० ब० ] संज्ञाहीन, - ज्ञा वियोग, असहमति, असामंजस्य । असत् (वि० ) [ न० त०] 1. अविद्यमान, जिसका अस्तित्व न हो - असति त्वयि कु० ४।१२, मनु० ९१५४, 2. सत्ताहीन, अवास्तविक, आत्मनो ब्रह्मणा Sभेदमसन्तं कः करिष्यति 3. बुरा ( विप० सत् ) १२७ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदसद्वयक्तिहेतवः - रघु० १1१०, 4. दुष्ट, पापी, निद्य जैसे विचार 5. अव्यक्त 6 गलत, अनुचित, मिथ्या, असत्य - - इति यदुक्तं तदसत् ( प्रायः विवादास्पद रचनाओं में प्रयुक्त ) – (पुं०-न्) इन्द्र, ( नपुं० त् ) 1. अनस्तित्व असत्ता 2. झूठ, मिथ्यात्व - तो दुश्चरित्रा स्त्री असती भवति सलज्जा - पंच० १।४१८ । सम० - अध्येत (पुं०) वह ब्राह्मण जो पाखंडयुक्त रचनाओं को पढ़ता है, जो अपनी वेदशाखा की उपेक्षा करके दूसरी शाखा का अध्ययन करता है शाखारंड कहलाता है- स्वशाखां यः परित्यज्य अन्यत्र कुरुते श्रमम् शाखारंड: स विज्ञेयो वर्जयेत्तं क्रियासु च । - आगम: 1. धर्मविरुद्ध शास्त्र या सिद्धांत 2. अनुचित साधनों से ( धन की प्राप्ति 3. बुरा साधन - आचार ( बि०) दुराचारी, बुरा आचरण करने वाला, दुष्ट - रः ) अशिष्ट आचरण, - कर्मन्, – क्रिया 1. बुरा काम 2. बुरा व्यवहार, -- कल्पना 1. गलत कार्य, 2. मिथ्या प्रपंच- प्र (ग्रा) हः 1. बुरा दांव 2. बुरी राय, पक्षपात 3 बच्चों जैसी इच्छा, चेष्टितम् क्षति, आघात प्राणिष्वसच्चेष्टितम् - श० ५/६ - दृश् (वि०) बुरी दृष्टि वाला -- पथ: 1. बुरा मार्ग 2. अनिष्ट आचरण या सिद्धांत; - नाशो हन्त सतामसत्पथजुषामायुः समानां शतम्-भा० ४ | ३६, – परिग्रहः बुरे मार्ग को ग्रहण करना, - प्रतिग्रहः 1. बुरी वस्तुओं का उम्हार 2. ( तिल आदि ) अनुपयुक्त उपहार ग्रहण करना या अनुचित व्यक्तियों से लेना, -भाव: 1. अनस्तित्व, अभाव 2. बुरी राय या दुर्गति 3. अहितकर स्वभाव, वृत्ति, व्यवहार ( वि० ) अनिष्टकर आचरण करने वाला, दुष्ट - त्तिः ( स्त्री० ) ) 1. नीच या अपमानजनक पेशा 2. दुष्टता, शास्त्रम् 1. गलत सिद्धांत, 2. धर्मविरुद्ध सिद्धांत - संसर्गः बुरी संगति-हेतुः बुरा या आभासी कारण, दे० 'हेत्वाभास' । असतायी दुष्टता । असता [ न० त०] 1. अनस्तित्व 2. जो सचाई न हो 3. दुष्टता, बराई । -- अव ( वि० ) [ न० ब० ]1. शक्तिहीन, सत्तारहित 2. जिसके पास कोई पशु न हो, त्वम् [ न० त०] 1. अनस्तित्व, 2. अवास्तविकता, असत्यता । असत्य ( वि० ) [ न० त० ] 1. झूठ, मिथ्या 2. काल्पनिक, अवास्तविक - त्यः झूठा, -त्यम् मिध्यात्व, झूठ बोलना, झूठ | सम० – बाविन् ( वि०) झूठ बोलने वाला, - संध (वि०) अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ न रहने वाला, झूठा, कमीना, धोखेबाज ; धे जने सखी पदं कारिता-श० । असदृश (वि० ) [ स्त्री० शी ] [ न० त०] 1. असमान, बेमेल 2. अयोग्य, अनुपयुक्त, असंबद्ध, संयोगकारिन् For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२८ ) --का० १२, अयोग्य--मातः किमप्यसदृशं विकृतं | असमस्त (वि०) [न० त०] 1. अपूर्ण, आंशिक, अधूरा वचस्ते-वेणी० ५।३। । 2. (व्या० में०) समास से युक्त न हो, जिसमें समास असद्यस् (अव्य०) [न० त०] तुरन्त नहीं, देरी करके । न हुआ हो 3. पृथक्, वियुक्त, असंबद्ध (विप० व्यस्त) असन् (नपुं०) (केबल ‘असृज' शब्द की रूपरचना में द्वि० | स्तम् बिना समास की रचना (समास के विग्रह वि० ब० के पश्चात् प्रयुक्त) रुघिर। को प्रकट करने वाला वाक्य)। असनम [ अस्+ ल्युट् ] फेंकना, (बन्दूक) दागना, (तीर) | असमाप्त (वि०) [न० त०] 1. जो अभी पूरा न हुआ चलाना, जैसा कि 'इप्वसन' ---धनुष में,-नः पीतसाल हो, अधूरा रहा हुआ, रघु० ८७६, कु०४।१९, 2. नाम का वक्ष-निरसनैरसनैरवथार्थता - शि०६.४७ । जो पूरी तरह ग्रहण न किया गया हो, अपूर्ण। असन्दिग्ध (वि.) [न० त०] 1. जिसमें सन्देह न हो, स्पष्ट, | असमीक्ष्य (अव्य०) बिना भली भांति विचार किये। साफ 2. निश्चित, शंकारहित,-ग्धम् (अव्य०) । सम-कारिन् (वि.) बिना विचारे काम करने निश्चय ही, निस्संदेह । वाला, अविवेकी, असावधान । असन्धि (वि०) [न० ब०] 1. जिनका जोड़ न हुआ हो । (जैसे कि शब्द), 2. बंधनरहित, अबद्ध, स्वतन्त्र, [न० त०] 1. दुर्भाग्य 2. कार्य का पूरा न होना, —धिः संधि का अभाव । असफलता। असन्नड (वि०) [न० त०] 1. जो शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित असम्पूर्ण (वि०) [न० त०] 1. जो पूरा न हो, अधूरा 2. न हो 2. धूर्त, घमंडी, पंडितंमन्य । जो सारा न हो 3. अपूर्ण, आंशिक-जैसा कि चाँद असन्निकर्षः [न० त०] 1. पदार्थों का दृष्टिगोचर न होना, ---- चन्द्रमसम्पूर्णमण्डलमिदानीम् - मुद्रा० १।६।। मन को वस्तुओं का बोध न होना 2. दूरी। असम्बद्ध (वि०) [न० त०] 1. जो जुड़ा हुआ न हो, असन्निवृत्तिः (स्त्री०) [न० त०] वापिस न मुड़ना असंगत 2. निरर्थक, बेतुका, अर्थहीन, °आ(प्र)लापिन् -- असंनिवृत्त्य तदतीतमेव-श० ६।९, बीत गया निरर्थक बातें करने वाला-असम्बद्धः खल्वसि----मृच्छ० सदा के लिए-रघु० ८।४२। ९, बेहदा व्यक्ति 3. अनुचित, गलत-मनु० १२१६, असपिण्ड (वि.) [न० त०] जो पिंडदान से संबद्ध न हो, -द्धम् बेतुका वाक्य, निरर्थक या अर्थहीन भाषण जो रुधिर-संबंध से संयुक्त न हो, जो अपने वंश या जैसे कोई कहे-यावज्जीवमहं मौनी-आदि--दे० कुल का न हो। 'अबद्ध' भी। असभ्य (वि.) [न० त०] सभा में बैठने के अयोग्य, असम्बन्ध (वि.) [न. ब.1 जिसका कोई सम्बन्ध न गॅवार, नीच, अश्लील, अशिष्ट (शब्द)। हो, किसी से संबन्ध न रखने वाला-धः [न० त०] असम (वि०) [न० त०] 1. जो बराबर न हो, विषम संबन्ध का न होना, संबन्ध का अभाव यद्वा साध्यव(जैसा कि संख्या) 2. असमान (स्थान, संख्या और दन्यस्मिन्नसंबन्ध उदाहृतः-भाषा०६८। मर्यादा की दृष्टि से) असमैः समीयमानः---पंच० असम्बाध (वि.) [न० ब०] 1. जो संकीर्ण न हो, विस्तृत १।७४, 3. असदृश, बेजोड़, अनूठा। सम०-इषुः, 2. जहाँ लोगों की भीड़-भाड़ न हो, अकेला, एकान्त --बाणः, --सायकः विषम संख्या के तीरों को धारण 3. खुला हुआ, सुगम । करने वाला, कामदेव जिसके पांच बाण है, नयन, | असम्भव (वि०) [ न० त०] जो संभव न हो, असंभाव्य ---नेत्र,---लोचन (वि.) विषम संख्या की आँखों -व: 1. अनस्तित्व, 2. असंभाव्यता 3. असंभावना। वाला, शिव जिसके तीन आँखें हैं। असम्भव्य, असम्भाविन् (वि०) [ न० त०] 1. अशक्य असमञ्जस (वि.) [ न० त०] 1. अस्पष्ट, जो बोधगम्य 2. अबोध्य । न हो- स्खलदसमञ्जसमुग्धजल्पितं ते-उत्तर०४१४, असम्भावना [न० त०] समझने की कठिनाई या अशक्यता, मा० १०॥२, 2. अयुक्त, अनुचित,—यद्यपि न कापि असंभाव्यता। हानिर्द्राक्षामन्यस्य रासभे चरति, असमंजसमिति | असम्भत (वि०) [न० त०] जो कृत्रिम उपायों से प्रकामत्वा तथापि तरलायते चेतः—उद्भट० 3, बेतुका, शित न किया गया हो, अकृत्रिम, प्राकृतिक,-असम्भृतं निरर्थक, मूर्खतापूर्ण । मण्डनमङ्गयष्टेः-कु० ११३१, 2. जो भलीभांति पाला असमवायिन् (वि.) [न० त०] जो घनिष्ट या अन्तहित पोसा न गया हो। न हो, आनुषंगिक, विच्छेद्य । सम०-कारणम असम्मत (वि०) [न० त०] 1. अननुमोदित, अननुज्ञात, (तर्कशास्त्र में) आनुषंगिक कारण, अन्तहित या अस्वीकृत 2. नापसंद, अरुचिकर 3. असहमत, भिन्न घनिष्ट संबन्ध न होना, गणकर्ममात्रवतिज्ञेयमथाप्यसम- मत रखने वाला,-- तः शत्रु—द्यतु दोषरसम्मतान् वायिहेतुत्वं--भाषा० यथा तंतुयोगः पटस्य । काव्य ७ । सम०-आदायिन् (वि०) स्वामी की For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( स्वीकृति के बिना उसकी चीज उठा ले जाने वाला, चोर | असम्मति: ( स्त्री० ) [ न० त०] 1. विमति, असहमति 2. अस्वीकृति, नापसंदगी | असम्मोहः [ न० त०] 1. मोह का अभाव 2. अचलता, स्थैर्य, शान्तचित्तता 3. वास्तविक ज्ञान, सच्ची अन्तर्दृष्टि | असम्यच् ( वि० ) [स्त्री० मीची ] [ न० त०] 1. बुरा, अनुचित, अशुद्ध 2. अपूर्ण, अधूरा । असलम् [ असु + कलच् ] 1. लोहा 2. अस्त्र छोड़ते समय पढ़ा जाने वाला मंत्र 3. हथियार । असवर्ण ( वि० ) [ न० त०] भिन्न जाति या वर्ण का - अपि नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात् ---- श० १ । असह ( वि० ) [ न० ब० | 1. जो सहा न जाय, असह्य अवीर 2. असहिष्णु ( प्रायः संब० के साथ कर्म ० के रूप में ) - सा स्त्रीस्वभावादसहा भरस्य मुद्रा० ४४१३ । असहन ( दि०) न० ब०] असहिष्णु, असहनशील, ईर्ष्यालु नः शत्रु, नम् [ न० त०] असहिष्णुता, अधीरता, परगुणासनम् असूया । असहनीय, असहितव्य ) (वि० ) [ न० त०] जो सहा न जाय, दुःसह्, अक्षन्तव्य - असह्यपी भगवन्नृणमन्त्यमवेहि मे - रघु० १।७१, १८ २५, कु० ४। १ । असह्य, असहाय ( वि० ) | न० ब० ] 1. मित्रहीन, अकेला, एकाकी 2. बिना संगी साथियों के मनु० ७।३०, ५५, 'ता, त्वम् अकेलापन, एकाकीपन । असाक्षात् ( अव्य० ) [ न० त०] 1. जो आँखों के सामने न हो, अदृश्य रूप से, अप्रत्यक्ष रूप से । असाक्षिक (वि० ) [स्त्री० की ] [ न० ब० ] 1. जिसका कोई गवाह न हो, बिना साक्ष्य के, जिसका कोई साक्षी न हो असाक्षिकेषु त्वर्थेषु मिथों विवदमानयोः मनु ८।१०९ । असाक्षित् (वि० ) [ न० त०] 1. जो चश्मदीद गवाह न हो 2. जिसका साक्ष्य कानूनी दृष्टि से ग्राह्य न हो 3. जो किसी कानूनी दस्तावेज को प्रमाणित करने का अधिकारी न हो । असाधनीय ( वि० ) [ न० त०] 1. जो सम्पन्न न किया असाध्य जा सके, या पूरा न किया जा सके 2. जो प्रमाणित होने के योग्य न हो 3. जिसकी चिकित्सा न हो सके ( रोग या रोगी ) - असाध्यः कुरुते कोपं प्राप्ते काले गदो यया शि० २८४ । असाधारण ( वि० ) [ न० त० ] 1. जो सामान्य न हों, असामान्य, विशेष, विशिष्ट, 2. (तर्क शास्त्र में ) जो सपक्ष या विपक्ष किसी में भी हेतु के रूप में विद्यमान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ ) न हो - यस्तुभयस्माद् व्यावृत्तः स त्वसाधारणो मतः 3. निजी, जिसका कोई और दावेदार न होणः तर्कशास्त्र में हेत्वाभास, अनैकांतिक के तीन भेदों में से एक । असाधु ( वि० ) [ न० त०] 1. जो अच्छा न हो, बुरा, स्वाद रहित, अप्रिय, -- - अतोर्हसि क्षन्तुमसाधु साधु वा - कि० ११४, 2. दुष्ट 3. दुश्चरित्र (अधि० के साथ) असाघुर्मातरि - सिद्धा० 4. भ्रष्ट, अपभ्रंश (शब्द) । असामयिक ( वि० ) [स्त्री० की ] [ न० त०] बिना अवसर का, जो ऋतु के अनुकूल न हो- कि० २।२४० । असामान्य ( वि० ) [ न० त०] 1. जो साधारण न हो, विशेष -- रघु० १५/३९, 2. असाधारण न्यम् विशेष या विशिष्ट संपत्ति । असाम्प्रत ( वि० ) [ न० त०] 1. अनुपयुक्त, अशोभन, अनुचित - तम् ( अन्य ० ) अनुचित रूप से, अयोग्यतापूर्वक [ क्रियाविशेषण के रूप में बहुधा प्रयुक्त ] = असांप्रत - विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेतुमसाम्प्रतम् कु० २।५५, सम्प्रत्यसाम्प्रतं वक्तुमुक्तं मुसलपाणिना - शि० २२७१, रघु० ८।६० । असार ( वि० ) [ न० ० ] 1. नीरस, स्वादहीन 2. ( क ) रसहीन, निरर्थक ( ख ) निकम्मा, अशक्त, सारहीन - असारं संसारं परिमुषितरत्नं त्रिभुनवम् - मा० ५१ ३०, उत्तर० १, असारे खलु संसारे सारमेतच्चतुष्टयम् - धर्म० १२।१३, 3. व्यर्थ, अलाभकर 4. निर्बल, कमजोर, बलहीन, बहूनामप्यसाराणां संहतिः कार्यसाधिका (समवायो हि दुर्जयः ) पंच० १ ३३१, शि० २।५०,- - रः, --- रम् | न० त०] 1. अनावश्यक, या महत्त्वहीन भाग 2. एरंड वृक्ष 3. अगर की लकड़ी । असारता [ असार + तल्+टाप् | 1. नीरसता, 2. निकम्मापन, 3. सारहीन प्रकृति, क्षणभंगुर अवस्था -- धिगिमां देहभृतामसारताम् - रघु० ८1५१ । साहसम् [ न० त०] बलप्रयोग का अभाव, सुशीलता । असि: [ अस्+इन् ] 1. तलवार 2 पशुओं की हत्या करने वाला चाकू सि (अव्य० ) तू, तु० अस्मि । सम० -गंड: गालों के नीचे रखा जाने वाला छोटा तकिया, जीविन् तलवार ही जिसकी जीविका का साधन है, वेतन पाने वाला सैनिक योद्धा, दंष्ट्र:, दंष्ट्रक: मगरमच्छ, घड़ियाल, दंतः घड़ियाल, - धारा तलवार की धार - सुरगज इव दन्तैर्भग्नदैत्यासिधारैः -- रघु० १०।८६ ४१, -- धाराव्रतम् 1. ( किन्हीं के मतानुसार ) तलवार की धार पर खड़े होने की प्रतिज्ञा ( दूसरों के मतानुसार ) युवती पत्नी के साथ रह कर भी उसके साथ मैथुन की इच्छा को दृढ़तापूर्वक रोकना - यत्रैकशयनस्थापि प्रमदा नोप For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुज्यते, असिधाराव्रतं नाम वदन्ति भनिपंगवाः । । असिद्धिः (स्त्री) [ न० त०] 1. अपूर्ण निष्पन्नता, विफअथवा--युवा युवत्या साधं यन्मुग्धभत वदाचरेत्, लता 2. परिपक्वता की कमी 3. निष्पत्ति का अभाव अन्तनिवृत्तसंग: स्यादसिधारावतं हि तत्—यादव (योग० में) 4. (तर्क० में) वह उपसहार जो प्रतिज्ञा 2. (अत: आलं०) कोई भी अत्यन्त कठिन कार्य से सम्मोदित न हो। -सता केनोदिष्टं बिपममसिधाराव्रतमिदम्-भत. असिरः [ अस्+किरच ] 1. शहतीर, किरण 2. तीर, २।२८,६४,-धावः,-धावकः शस्त्रकार, सिकलीगर सिटकिनी। या शस्त्र-परिष्कारक,-धेन:,-धेनुका चाक-विक्रमांक० असुः [ अस्+उन् ] 1. श्वास, प्राण, आध्यात्मिक जीवन ४१६९,---पत्र (वि०) जिसके पत्ते तलवार की आकृति 2. मृतात्माओं का जीवन 3. (ब० ब०) शरीर में के हैं -रघु० १४१४८, (-त्रः) 1. गन्ना, ईख 2. रहने वाले पाँच प्राण -असुभिः स्थास्न यशश्चिचीएक प्रकार का वृक्ष जो कि निचले संसार में उगता षतः-कि० २।१९, (नपुं०--सु) शोक, दुःख । है, (-त्रम्) 1. तलवार का फल 2. म्यान °वनं एक सम० -धारणम् - णा जीवन धारण, जीवन, अस्तित्व, प्रकार का नरक जहाँ वृक्षों के पने ऐसे तीक्ष्ण होते -भंग: 1. जीवन का नाश, जीवहानि–मलिनमसूहैं जैसे कि तलवार,--पत्रकः गन्ना, ईख,—पुच्छः, भङगेप्यसुकरम् -भर्तृ ० २१२८, 2. जीवन का भय -पुच्छकः संस, शिशुमार, सकुची मछली- पुत्रिका, या आशंका, भृत् (पु०) जीवित जन्तु, प्राणी, -पुत्री छुरी,-मेदः विट्खदिर,-हत्यम् तलवार या -सम (वि०) प्राणों के समान प्यारा (-मः) छरियों से लड़ना,-हेतिः खङ्गधारी पुरुष, तलवार पति, प्रेमी। रखने वाला। असुमत (वि.) [असू+मतप] 1. जीवित, प्राणी-(५०) असिकम् [ असि+कन् । ठोडी और निचले ओठ के बीच ___ 1. जीवित प्राणी ४।२९, 2. जीवन। का भाग। असुख (वि०) न० ब०] 1. अप्रसन्न, दुःखी 2. जिसका असिवनी [ सिता केशादौ शुभ्रा जरती तद्भिन्ना अवृद्धा प्राप्त करना आसान न हो, कठिन । खम् न० त०] - असित-तकारस्य क्नादेश: डीप च ] 1. अन्त: पुर दुःख, पीडा। सम० - आवह (वि०) दुःख से की युवती परिचारिका 2. पंजाब देश की एक नदी। पीडित,-आविष्ट (वि०) अत्यन्त पीड़ाकर, उदय असिक्निका [ संज्ञायां कन् ह्रस्वः ] युवती सेविका। (वि०) अप्रसन्नता पैदा करने वाला मनु० ११।१०, असित (वि.) [न० त०] जो सफेद न हो, काला, नीला, | - जीविका विषण्ण जीवन। गहरे रंग का,-असिता मोहरजनी---शा० ३।४, याज्ञ० असुखिन् (वि.) [न० त०] अप्रसन्न, दुःखी। ३।१६६, 'लोचना, नयना आदि,--त: 1. गहरा नीला | असुत (वि०)/न० ब०] निस्सन्तान, पुत्रहीन । रंग 2. चान्द्रमास का कृष्ण पक्ष 3. शनिग्रह, 4. काला असुरः [असु। र, न सुरः इति न० त० वा] 1 दैत्य, राक्षस साँप,-.-ता 1. नील का पौधा, 2. अन्तः पुर की दासी --... रामायण में नामों का कारण बतलाया गया है (जिसके बाल अधिक आयु के कारण सफेद न हुए ...... सुराप्रतिग्रहाद्देवाः सुरा इत्यभिविश्रुता, अप्रतिहों) दे० 'असिवनी' 3. यमुना नदी। सम०-अंबुजम् ग्रहणात्तस्या देतेयाश्चासुरास्तथा। 2. देवताओं का -उत्पलम् नील कमल,-अचिस (0) अग्नि, शत्रु, दैत्य, दानव 3. भूत, प्रेत 4. सूर्य 5. हाथी 6. -अश्मन् (पुं),-- उपल: गहरा नीला पत्थर,—केशा राहु, 7. बादल -रा 1. रात्रि 2. राशिविषयक संकेत काले वालों वाली स्त्री,-केशांत (वि.) काली जल्फों 3. वेश्या-री दानवी, असुर की पत्नी । सम० वाला,-गिरिः, नगः नील गिरि, - ग्रीव (वि०) -अधिपः,-राज-राजः 1. असुरों का स्वामी 2. बलि काली गर्दन वाला(-वः) अग्नि,-नयन (वि.) काली की उपाधि, प्रह्लाद का पौत्र,-आचार्यः,---गुरुः 1. असुरों आँखों वाला-मेघ० ११२,--पक्षः कृष्ण पक्ष,--फलम् के गुरु शुक्राचार्य 2. शुक्रग्रह,---आह्वम् तांबे और टीन मीठा नारियल-मृगः काला हरिण । की मिश्रित धातु,-क्षयण,--क्षिति (वि०) राक्षसों असिद्ध (वि.) [न० त०] 1. जो पूरा या संपन्न न हो 2. का नाश करने वाला,--द्विष (पुं०) राक्षसों का शत्रु अपूर्ण, अधुरा 3. अप्रमाणित 4. अनपका, कच्चा 5. अर्थात् देवता,-माया राक्षसी जादु,-- रिपुः,-सूदनः जो अनुमेय न हो,-बः हेत्वाभास के पाँच मुख्य भागों राक्षसों का हन्ता, विष्णु-हन् (पुं०) 1. राक्षसों का में से एक, यह तीन प्रकार का है (1) आश्रयासिस नाश करने वाला, अग्नि इन्द्र आदि 2. विष्ण । -जहाँ गुण के आश्रय की सत्ता सिद्ध न हो (2) | असुरसा [न० ब०न सुष्ठ रसो यस्याः) एक प्रकार का स्वरूपासिद्ध-जहाँ निदिष्ट स्वरूप पक्ष में न पाया | पौधा, तुलसी का एक भेद । जाय तथा (3) व्याप्यतासिद्ध-जहाँ सहवर्तिता की असुर्य (वि.) [अमुराय हिता: गवा० यत्] राक्षसी, उक्त स्थिरता वास्तविक न हो। आसुरी। For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १३१ ) असुलभ (वि०) नि० त०] जो आसानी से उपलब्ध न हो सके, प्राप्त करने में कठिन -विक्रम० २ । ९ । असुसू: [ असून् प्राणान् सुवति सु + क्विप्] तीर; स सासः सासू सास येयायेयाययाययः -- कि० १५ । ५ । असुहृद् (पुं०) नि० त०] शत्रु - शि० २ । ११७ । असूक्षणम् [सूक्ष आदरे + ल्युट्, न० त०] अपमान, अनादर । असूत असूतिक ( वि० ) [ न० त०, न० ब० कप्] जिसने कुछ पैदा नहीं किया है, बांझ । असूति: ( स्त्री० ) नि० त०] 1. पैदा न करना, बांझपना 2. अड़चन, स्थानान्तरण । असूयति ( ना० वा० पर० ) 1. डाह करना, ईर्ष्याल होना --कथं चित्रगतो भर्ता मया सूयितः मारवि० २. मान घटाना, अप्रसन्न होना, घृणा करना, असन्तुष्ट होना, क्रुद्ध होना (संप्र० के साथ ) – असूयन्ति सचिदोपदेशाय का० १०८, असूयन्ति मह्यं प्रकृतयः विक्रम० ४. भग० ३ । ३१ । डाह असूयक ( वि० ) [ असूय् + ण्वुल् ] 1. ईर्ष्यालु मान घटाने वाला, निंदक 2. असन्तुष्ट, अप्रसन्न, कः अपमान कर्ता, ईर्ष्यालु व्यक्ति, मनु० २ । ११४, शा० ३।६, याज्ञ० १ । २८ । असूयनम् [असूय् | ल्युट् ] 1. अपमान, निन्दा 2. ईर्ष्या, I असूया [असूय् + अ + टापू] 1. ईर्ष्या, असहिष्णुता, डाह - क्रुधदुहेय सूयार्थानां यं प्रति कोपः पा० ११४ | ३६, सासूयम् ईर्ष्या के साथ, 2. निन्दा, अपमान असूया परगुणेषु दोषाविष्करणम् - सिद्धा०, रघु० ४ । २३, ३. क्रोध, रोष वधूर सूयाकुटिलं ददर्श - रघु० ६ । ८२ । असूयुः [ असूय् + उ ] 1. ईर्ष्यालु, डाह करने वाला 2. अप्रसन्न । असूर्य ( वि० ) [ न० ब०] सूर्यरहित । - सूर्य पश्य ( वि० ) [ सूर्यमपि न पश्यति दृश् + खश् मुम् च] सूर्य को भी न देखने वाला - ( अन्त: पुर की रानियों के विषय में कहा जाता है कि उन्हें सूर्य देखना भी दुर्लभ था ) असूर्यम्पश्या राजदाराः सिद्धा० 2. श्या सती पतिव्रता स्त्री । असृज् (नपु० ) ( न सृज्यते इतररागवत् संसृज्यते सहज त्वात् न + सृज् + क्विन्- तारा०] 1. रुधिर 2. मंगल ग्रह 3. केसर । सम० करः लसिका, धरा त्वचा, चमड़ी - धारा 1. रुधिर की धार 2. चमड़ी, प --पा: लोहू पीने वाला राक्षस पातः रुधिर का गिरना, वहा रक्त वाहिका, नाड़ी, विमोक्षणम् रुविर का बहना, श्रा (खा ) वः रुधिर का बहना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असेचन, नक ( वि० ) [ न० त०] जिसे देखते २ जी न भरे, मनोहर, सुन्दर । असौष्ठव ( वि० ) [ न० ०]1. सौन्दर्यविहीन, लावण्यरहित, जो सजीला न हो शरीरमसौष्ठवम् मा० १ । १७, 2. कुरूप, विकलांग - वम् 1. निकम्मापन, गुणों की हीनता 2. विकलांगता, कुरूपता । अस्खलित (वि० ) [ न० त०] 1. अटल, दृढ़, स्थायी 2. अक्षत 3. अविचलित, सावधान - रघु० ५।२० । अस्त (भू० क० कृ० ) [ अस् + क्त ] 1. फेंका हुआ, क्षिप्त, छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ---असमये यत्त्वयास्तोऽभिमानः - वेणी० ६, 2. समाप्त 3. भजा हुआ । सम ०-करुण (वि०) दयारहित - धी (वि०) मूर्ख. व्यस्त (वि०) इधर उधर बिखरा हुआ अव्यवस्थित, क्रमरहित, संख्य (वि०) अनगिनत । अतः [अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र - अस + आधारे क्त ] अस्ताचल या पश्चिमाचल ( जिसके पीछे सूर्य डूबता हुआ माना जाता है) अधिरोदुमस्तगिरमभ्यपतत् शि० ९ | १; विडम्बयत्यस्तनिमग्न सूर्यम् - रघु० १६ ११; श० ४। १ ; 2. सूर्य का डूबना 3. डूबना, ( आलं०) गिरना, पतन- दे० नीचे, अस्तं गम्, या, इ, प्राब् ( क ) डूबना, पश्चिमी क्षितिज में गिरना, गतोऽस्तमर्क:- सूर्य डूब गया ( ख ) रुकना, नष्ट होना, दूर हटना, अंतर्धान होना, समाप्त होना -- विषयिणः कस्यापदोऽस्तं गताः -- पंच० १।१४६ धृतिरस्तमिता रघु० ८/६६ ; (ग) मरना अथ चास्तमिता त्वमात्मना -- रघु० ८५११२/११ | सम० - अचलः, अद्रिः, गिरिः, पर्वतः अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़ - अबलम्बनम् क्षितिज के पश्चिमी भाग पर आकाशस्थित सूर्य चन्द्रादिक का डूबते समय आराम करना उदयौ ( द्वि० ० ) डूबना और निकलना, उदय और पतन, -- अस्तोदयावदिशदप्रविभिन्नकालम् - मुद्रा० ३।१७, -- ग ( वि०) डूबने वाला, तारे की भांति अदृश्य हो जाने वाला, गमनम् 1. डूबना, छिपना 2. मृत्यु, जीवन के सूर्य-प्रदीप का बुझना, मा० ९ । अस्तमनम् [ अन् + अप् ( बा० ) अस्तम् = अदर्शनस्य अनम् = गतिः ] ( सूर्य का ) डूबना । = अस्तमयः [ अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम् + इ + अच् ] 1. ( सूर्य का ) डूबना – करोत्यकालास्तमयं विवस्वतः - कि० ५०३५, ( विप० उदयः) 2. नाश, अन्त, पतन, हानि 3. पात, अभिभव – उदयमस्तमयं च रघूहात् - रघु० ९९4 तिरोधान, अन्धकार ग्रस्त होना, प्रभाप्ररोहास्तमयं रजांसि - रघु० ६।३३, 5. ( किसी ग्रह का ) सूर्य से संयोग । अस्ति ( अव्य० ) [ अस् + तिप् ] 1. होना, सत्, विद्यमान, जैसा कि अस्तिक्षीरा में, काय, 2. प्रायः किसी घटना For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३२ ) या कहानी के आरंभ में या तो केवल "अनपूरक" अर्थ का ढांचा, कंकाल, प्रक्षेपः मतक की हड्डियों को में प्रयुक्त होता है, अथवा 'अतः यह है कि' अर्थ गंगा या किसी अन्य पवित्र जल म प्रवाहित करना, को प्रकट करता है-अस्ति सिंहः प्रतिवसति स्म-पंच० - : भक्षः,-भक हड्डियों को खाने बाला, कुत्ता ४। सम०—कायः वर्ग या अवस्था (जैन मतानुसार) --भंगः हड्डी का टूट जाना,- माला 1. हड्डियों का -नास्ति (अव्य०) सन्दिग्ध, आंशिक रूप से सत्य । हार 2. हड़ियों की पंक्ति,-मालिन् (पुं०) शिव,-शेष अस्तित्वम् अस्तित्व ] सत्ता, विद्यमानता । (वि.) ठठरी मात्र, संचयः 1. शवदाह के पश्चात् अस्तेयम् [ न० त०] चोरी न करना । उसकी हड्डियों और भस्मावशेष को एकत्र करना, अस्त्यानम् [न० त०] झिड़की, कलंक । 2. हड्डियों का ढेर,-संधिः जोड़, जोड़बन्दी,-समअस्त्रम् [ अस्-|-ष्ट्रन् ] 1. फेंक कर चलाया जाने वाला पणम मतक की अस्थियों को गंगा या किसी अन्य पवित्र हथियार, प्रयुक्तमप्यस्त्रमितो वृथा स्यात्-रघु० जल में प्रवाहित करना, स्थूणः हड्डियों को स्तम्भ २।३४, प्रत्याहतास्त्री गिरिशप्रभावात्-१४१, ३।५८, के रूप में धारण करने वाला, शरीर। अशिक्षतास्त्रं पितुरेव-रघु० ३।३१, आयधविज्ञान 2. अस्थितिः (स्त्री०) [ न० त०] 1. दृढ़ता या जमाव का तीर, तलवार 3. धनुष। सम०----अ (आ) गारम् अभाव (आलं. भी) 2. मर्यादा या शिष्ट व्यवहार शस्त्रशाला, तोपखाना, आयुधागार--आधातः व्रण, का अभाव। घाव,—कंटकः तीर,-कारः,-कारकः, -कारिन हथि- | अस्थिर (वि०) [न० त०] जो स्थिर या दढ़ न हो, यार बनाने वाला,-चिकित्सकः चीरफाड़ या शल्य क्रिया डावाँडोल, चंचल । करने वाला, जहि.-चिकित्सा चीरफाड़ या शल्य क्रिया, | अस्पर्शनम [ न० त०] संपर्क का न होना, (किसी चीज जरीही,-जीव:-जीविन (पुं०)-धारिन (पं0) सैनिक, के) स्पर्श को टालना-प्रक्षालनाद्धि पङ्कस्य दूरादयोद्धा,—निवारणम् हथियार के वार को रोकना,-मंत्रः स्पर्शनम् वरम् - तु० 'इलाज से बचाव अच्छा। अस्त्रचालन या प्रत्याहरण के समय पढ़ा जाने वाला | अस्पष्ट (वि.) | न० त०] 1. जो स्पष्ट न हो, स्पष्ट रूप मंत्र, ---मार्जः,-मार्जकः सिकलीगर,- युद्धम हथियारों से दिखाई न देता हो 2. धुंधला, जो साफ समझ में से लड़ना,-लाघवम् अस्त्रधारण या चालन में कुशलता, न आवे,संदिग्ध ---अस्पष्ट ब्रह्मलिङ्गानि वेदान्तवाक्यानि -विद् (वि०) आयुध विज्ञान में दक्ष,-विद्या,-शास्त्रम, --शारी०। --वेदः अस्त्रचालन विज्ञान या कला, आयुधविज्ञान, अस्पृश्य (वि.) न० त०] 1. जो छने के योग्य' न हो ...-वृष्टिः (स्त्री०) अस्त्रों की बौछार, - शिक्षा सैनिक 2. अशुचि, अपावन ।। अभ्यास, अस्त्र चालन व प्रत्याहरण की शिक्षा। अस्फुट (वि०) | न० त०] दुरूह, अस्पष्ट, टम् दुर्बोध अस्त्रिन् (वि०) [ अस्त्र-इन् ] अस्त्र से युद्ध करने वाला, भाषण। सम-फलम् धुंधला या दुरूह परिणाम, धनुर्धारी। --चाच (वि०) तुतला कर बोलने वाला, अस्पष्टअस्त्री [न० त०] 1. जो स्त्री न हो 2. (व्या० में) पुल्लिङ्ग भाषी। और नपुंसक लिंग। अस्मद् (सर्व०) [अस - मदिक ] सर्वनामविषयक प्रातिअस्थान (वि.) [ न० ब० ] बहुत गहरा,-नम् [ न० त०] पदिक जिससे कि उत्तमपुरुषसंबंधी पुरुषवाचक 1. बुरा स्थान, 2. अनुचित स्थान, पदार्थ या अवसर । सर्वनाम के अनेक रूप बनते हैं, यह अपा० का ब० अस्थाने (अव्य०) बिना ऋतु के, उपयुक्त स्थान से व० का रूप भी है,-पुं० प्रत्यगात्मा, जीवात्मा। सम० बाहर, बिना अवसर के, गलत जगह पर, अयोग्य वस्तु -विध, अस्मादृश (वि०) हमारे समान या हम पर-अस्थाने महानर्थोत्सर्गः क्रियते - मुद्रा० ३ । जैसा। अस्थावर (वि.) [न० त०] 1, चर, जंगम, अस्थिर 2. | अस्मदीय (वि०) [ अस्मद्-+-छ ] हमारा, हम सब का, (विधि में) निजी चल वस्तु जैसे कि संपत्ति, पशु, | ----यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम्-पंच० २।१०५, धन आदि (-जंगम)। भग० १२।२६। अस्थि (नपुं०) [अस्यते-अस्+थिन ] 1. हड्डी । अरमार्त (वि.) [न० त०] 1. जो स्मृति के भीतर न (कई समस्त पदों के अंत में बदल कर 'अस्थ' रह | हो, स्मरणातीत 2. अवैध, आर्य-धर्मशास्त्रों के विपरीत जाता है-दे० अनस्थ, पुरुषास्थ) 2. फल की गिरी 3. स्मार्त संप्रदाय से संबंध न रखने वाला। या गुठली—न कापसास्थि न तुषान् —मन० ४१७८। अस्मि (अव्य०) [ अस्+मिन् ] ('अस्'—होना धातु का सम-कृत-- तेजस् (पुं०),---संभवः,-सारः, वर्तमान काल, उत्तम पुरुष, एक वचन) मै---अहम् ; -----स्नेहः चर्बी, वसा,--ज: 1. चर्बी, 2. वज्र,-तुण्डः -आसंसृतेरस्मि जगत्सु जात:-कि० ३१६, अन्यत्र युयं एक पक्षी,-धन्वन् (पुं०) शिव,-पंजरः हड्डियों कुसुमावचायं कुरुध्वमत्रास्मि करोमि सख्य:-काव्य०३। For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्मिता [ अस्मि+तल-टाप् ] अहंकार । के आदि में यह 'अहस्-या अहर' बन जाता है यथा अस्मृतिः (स्त्री०) [न० त०] स्मृति का अभाव, भूलना। - अहःपति या अहपतिः आदि )। सम-आगमः अस्त्रः [ अस्- रन् ] 1. किनारा, कोश 2. सिर के बाल, (अहरा") दिन का आना, -- आदिः उषःकाल,-करः -स्रम् 1. आँसू 2 रुधिर । सम०-कंठः बाण,- जम् सूर्य,- गणः (हर्ग°) 1. यज्ञ के दिनों का सिलमांस,-पः रुधिर पीने वाला राक्षस,-'पा जोक सिला, 2. महीना,-दिवम् (अव्य०) प्रतिदिन, हर - मातृका अन्नरस, आमरस, आँव । रोज, दिन प्रति दिन,—निशम् दिन-रात,—पतिः सूर्य, अस्व (वि०) [न० ब०] 1. अकिंचन, निर्धन 2. जो -बांधवः सूर्य,--मणिः सूर्य,- मुखम् दिन का आरंभ, अपना न हो। प्रभात, उषःकाल—त्रिंशत्कला महर्तः स्यादहोरात्रं तू अस्वतंत्र (वि.) [न० त०] 1. आश्रित, अधीन, पराधीन तावतः-मनु० १। ६४, ६५, -शेषः,-षम् सायंकाल। --अस्वतंत्रा स्त्री पुरुषप्रधाना-वशिष्ठ 2. विनीत। | अहम् (सर्व) [ 'अस्मद् शब्द का कर्तृ कारक ए० व०] अस्वप्न (वि.) [न०व०] निद्रारहित, जागरूक,-प्न: मैं। सम०-अप्रिका श्रेष्ठता के लिए होड़, प्रतिद्वन्द्विता, 1. देवता 2. अनिद्रा । - अहमिका 1. होड़, प्रतियोगिता, अपनी श्रेष्ठता अस्वरः [न० त०] 1. मन्द स्वर 2. व्यंजन,- रम् का दावा--अहमहमिकया प्रणामलालसानाम्-का. (अव्य०) ऊँचे स्वर से नहीं, धीमी आवाज से । १४, 2. अहंकार 3. सैनिक अहंमन्यता,-कार: 1. अस्वयं (वि.) [न० त०] जो स्वर्ग प्राप्त करने के योग्य अभिमान, आत्मश्लाघा, वेदान्त दर्शन में 'आत्मप्रेम' न हो --अस्वयं लोकविद्विष्टं धर्ममप्याचरेन्न तु-या० अविद्या या आध्यात्मिक अज्ञान समझा जाता है,-भग० १११५६ । १ ७१, ७।४, मनु० ११ १४, 2. धमंड, स्वाभिमान, अस्वस्थ (वि.) [ न० त०] 1. जो नीरोग न हो, रोगी गर्व 3. (सां० द० में) सृष्टि के मूलतत्व या आठ - बलवत् अस्वस्था-श० ३, अतिरुग्ण ।। उत्पादकों में से तीसरा अर्थात् आत्माभिमान या अस्वाध्यायः [ न स्वाध्यायो वेदाध्ययनमस्य ---न० व० | 1. अपनी सत्ता का बोध,---कारिन (वि०) घमंडी, जिसने अभी अध्ययन आरंभ नहीं किया. जिसका अभी स्वाभिमानी,-कृतिः (स्त्री०) अहंकार, घमंड,-पूर्व यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ हो 2. अध्ययन में रुकावट (वि०) होड़ में प्रथम रहने का इच्छुक,-पूविका, (जैसे कि अष्टमी, ग्रहण आदि के कारण अनध्याय)। -- प्रथमिका 1. होड़ के साथ सैनिकों की दौड़, होड़, अस्वामिन् (वि.)/न० त०] जो किसी वस्तु का अधिकारी प्रतियोगिता ---जवादहपूर्विकया थियासुभिः- कि०१४॥ न हो, जो स्वामी न हो। सम..-विक्रयः विना ३२, 2. डींग,मारना, आत्मश्लाघा,- भद्रम् स्वाभिस्वामी बने किसी वस्तु का बेंचना । मान, अपनी श्रेष्ठता का दृढ़ विचार,---भावः 1. घमंड, अह (भ्वा० आ० या चुरा० उभ०)=तु० अंह । अहंकार-भामि०४।१०,२:- मति तु०-मतिः (स्त्री०) (अव्य०) [अंह, -घश पो० न लोपः] निम्न 1. आत्मरति या स्वानुराग जो आध्यात्मिक अज्ञान अर्थों को प्रकट करने वाला निपात या अव्यय -... (क) समझा जाता है (वेदा०) 2. दम्भ, घमंड, अहंकार । स्तुति (ख) वियोग (ग) दृढसंकल्प या निश्चय (घ) अहरणीय, अहार्य (वि०) [ न० त०] 1. जो चुराये जाने अस्वीकृति (च) प्रेपण तथा (छ) पद्धति या प्रथा ! के योग्य न हो, या हटाये जाने अथवा दूर ले जाये जाने की अवहेलना। के योग्य न हो-अहार्य ब्राह्मणद्रव्यं राज्ञां नित्यमिति अहंयु (वि.) [ अहम् +यस् ] घमंडी, अहंकारी, स्वार्थी स्थिति:- मनु० ९। १८९, 2. श्रद्धालु, निष्ठावान् -भटि० ११२० । 3. दृढ़, अविचल, अननुनेय-कु० ५। ८,--यः पहाड़ । अहत (वि०) [न० त०] 1. अक्षत, अनाहत 2. बिना । अहल्य (वि०) [न० त०] बिना जोता हुआ, -- ल्या धुला, नया, -- तम् विना धुला (कारा), या नया गौतम की पत्नी (रामायण के अनुसार अहल्या सबसे कपड़ा, तु० 'अप्रहत'। पहली स्त्री थी जिसे ब्रह्मा ने पैदा किया . और गौतम अहन (नपुं०) जहाति त्वजति सर्वथा परिवर्तन, न- को दे दिया, इन्द्र ने उसके पति का रूप धारण करके हाकिनिन् न० त०] (कर्त० अहः, अह्रो-अहनो, उसे सत्पथ से फसलाया इस प्रकार उसे धोखा दिया । अहानि-अह्ना अहोभ्याम् आदि ) 1. दिन (दिन दूसर कथानक के अनुसार वह इन्द्र को जानती थी और रात दोनों को मिलाकर )-अघाहानि मनु० और उसके अनुराग तथा नम्रता के वशीभूत हो वह ५। ८४, 2. दिन का समय -- सव्यापारामहनि न तथा उसकी चापलसी का शिकार बन गई थी। इसके पीडयेन्मद्वियोगः मेध० ९०, ---- यदला कुरुते पापम्- अतिरिक्त एक और कहानी है जिसके अनुसार इन्द्र दिन में, (समस्त पर के अन्त में 'अहन्' बदल कर ने चन्द्रमा की सहायता प्राप्त की। चन्द्रमा ने मर्ग 'अह:--- अहम् या अह्न' रह जाता है परन्तु समस्त पद । बनकर आधी रात को ही बांग दे दी। इस बांग ने For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम को अपने प्रातःकालीन नित्यकृत्य करने के लिए | अहिंस्र (वि.) [न० त०] अनिष्टकर, निर्दोष, अहिंसक अगा दिया। इन्द्र ने अन्दर प्रविष्ट होकर गौतम -मनु० ४।२४६. । का स्थान ग्रहण किया। ' जब गौतम को अहल्या के | अहिकः एक अंधा साँप ।। पथभ्रष्ट होने का ज्ञान हआ तो उसने उसे आश्रम से अहित (वि.) [न० त०] 1. जो रक्खा न गया हो, धरा निर्वासित कर दिया और शाप दिया कि वह पत्थर न गया हो, जमाया न गया हो 2. अयोग्य, अनुचित बन जाय तथा तब तक अदश्य अवस्था में पड़ी रहे -- मनु० ३।२०, 3. क्षतिकर, अनिष्टकर 4. अनपकाजब तक कि दशरथ के पुत्र राम का चरण-स्पर्श न रक 5. अपकारी, विरोधी,-त: शत्रु - अहिताननिहो, जो कि अहल्या को फिर पूर्वरूप प्रदान करेगा। लोद्धस्तर्जयन्निव केतुभिः---- रघु० ४१२८, ९।१७, उसके पश्चात् राम ने उस दीन-दशा से उसका उद्धार ११४६८,-- तम् हानि, क्षति । किया-और तब उसका अपने पति से पुनोमलन | अहिम (वि०) [न० त०] जो ठंडा न हो, गर्म । सम० हआ। अहल्या प्रातःस्मरणीय उन पांच सती तथा --अंशुः,-करः,-तेजस्,- द्युतिः,-रुचिः, सूर्य ।। विशद्ध चरित्र महिलाओं में एक है जिनका प्रातःकाल | अमीन विनत.11. अक्षण. पर्ण. समस्त 2. जो नाम लेना श्रेयस्कर है-अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा छोटा न हो, बड़ा- अहीनबाहुद्रविणः शशास- रघु० मंदोदरी तथा, पंचकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातक-- १८।१४, 3. जो वञ्चित न हो, अधिकार प्राप्त-मनु० नाशिनीः । सम० --- जारः इन्द्र,-नन्दनः शतानन्द २११८३ 4. जातिबहिष्कृत न हो, दुश्चरित्र न हो,-नः मुनि, अहल्या का पुत्र । कई दिनों तक होने वाला यज्ञ, (नम्-भी)। सम० अहह ( अव्य०) [ अहं जहाति इति-हा+क पुषो०] -वादिन (पुं०) गवाही देने में असमर्थ, अयोग्य गवाह । विस्मयादि द्योतक निपात निम्नांकित अर्थों में प्रयुक्त | अहीरः [ आभारी पृषो० साधुः ] ग्वाला, अहीर ।। होता है.----(क) शोक, खेद--अहह कष्टमपण्डितता अहत (वि.) न० त०] जो यज्ञ न किया गया हो, जो विधेः-- भ००।९२, ३१११, अहह ज्ञानराशिविनष्टः (आहुति के रूप में) हवन में प्रस्तुत न किया गया -मुद्रा०२ (ख) आश्चर्य, विस्मय-अहह महतां निस्सी हो--मनु० १२।६८,तः धर्मविषयक चिन्तन, मनन, मानश्चरित्रविभूतयः--भर्तृ ० २।३५, ३६, (ग) दया, प्रार्थना और वेदाध्ययन (पांच महायज्ञों और कर्तव्यों तरस-भामि०४।३९ (घ) बुलाना (ङ) थकावट । में से एक)-----मनु० ३।७३, ७४।। अहिः [ आहन्ति ....आ+हन्+इण स च डित आडो | अहे (अव्य०) [ अह--ए] (क) झिड़की, भर्त्सना (ख) ह्रस्वश्च ] 1. साँप, अजगर...-अहयः सविषाः सर्वे खेद तथा (ग) वियोग को प्रकट करने वाला निपात । निविषा: डुडुमाः स्मृताः -- कथा० १४१८४, 2. अहेतु (वि०) | न० ब० ] निष्कारण, स्वतः स्फूर्त- अहेतुः सूर्य 3. राहुग्रह 4. वासुर 5. धोखेबाज, बदमाश 6. पक्षपातो यः- उत्तर० ५।१७ । बादल। सम०–कांतः वायु, हवा, कोष: साँप | अहे (है) तुक (वि०) [न० ब० कप् ] निराधार, निष्काकी केंचुली- छत्रकम् कुकुरमत्ता,--- जित् (पुं०) 1.! रण, निष्प्रयोजन-भग० १८।२२ । कृष्ण (कालिय नाग को मारने वाला ) 2. इंद्र अहो (अव्य०) [हा-+डो न० त०] निम्नांकित अर्थों को --तुंडिकः सांप पकड़ने वाला, सपेरा, बाजीगर, प्रकट करने वाला अव्यय--(क) आश्चर्य या विस्मय -द्विष,-द्रुह-मार,-रिपु,-विद्विष् (पुं०) 1. -बहुधा रुचिकर -- अहो कामी स्वतां पश्यति---श० गरुड़ 2. नेवला 3. मोर 4. इन्द्र 5. कृष्ण--कि० २६२, अहो मधुरमासां दर्शनम् श० १, अहो बकुला४।२७, शि० ११३१, नकुलम् साँप और नेवले, वलिका-मालवि० १, अहो रूपमहो वीर्यमहो सत्त्व... नकुलिका साँप और नेवले के मध्य स्वाभाविक वैर, महो द्युतिः-रामा० (अहो उसका रूप आश्चर्य जनक --निर्मोक: साँप की केंचुली,-पतिः 1. साँपों का है--आदि) (ख) पीडाजनक आश्चर्य----अहो ते विगत स्वामी, वासुकि 2. कोई बड़ा साँप, अजगर साँप चेतनत्वम्-का० १४६, 2. शोक या खेद-अहो दुष्यन्त---पुत्रक: साँप के आकार की बनी किश्ती,----फेनः, स्य संशयमारूढाः पिंडभाजः - श० ६, विधिरहो बल---नम् अफीम,-भयम् किसी छिपे हुए साँप का भय, वानिति मे मतिः-भर्त० २।९१, 3. प्रशंसा (शाबास, घोखे की शङका, अपने-मित्रों की ओर से भय,- भुज बहुत खूब) -- अहो देवदत्त: पचति शोभनम्-सिद्धा० (पुं०)1. गरुड़ 2. मोर 3. नेवला-भृत (पुं०) शिव । 4. झिड़की (धिक,) 5. बुलाना, संबोधित करना 6. अहिंसा [न० त०] 1. अनिष्टकारिता का अभाव, किसी ईर्ष्या, डाह 7. उपभोग, तृप्ति 8. थकावट 9. कई बार प्राणी को न मारना, मन वचन कर्म से किसी को पीड़ा केवल अनुपूरक के रूप में अहो न खलु (भोः), सामान देना--अहिंसा परमोधर्म: -- भग० १०१५, मनु० न्य रूप से आश्चर्य जो रोचक हो-अही नु खल ईदशी१०१६३, ५१४४, ६७५, 2. सुरक्षा। मवस्थां प्रपन्नोऽस्मि-श० ५, अहो नु खल भोस्तदेत For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३५ ) (काकतालीयं नाम ---मा० ५, 'अहो वत' प्रकट करता। --पुरुषिका-तु० आहोपुरुषिका। है (क) दया, तरस तथा खेद अहो बत महत्पार्प अह्नाय (अव्य०) [ह्न+घञ वृद्धि, पृषो० वस्य यत्वम् ] कर्तुं व्यवसिता वयम्-भग० ११४४, (ख) संतोष-अहो तुरन्त, शीघ्र, फौरन-अह्नाय सा नियम क्लममुत्सवतासि स्पृहणीयवीर्य:-कु० ३।२० (मल्लि• यहाँ 'अहो सर्ज-कु० ५।८६. अह्नाय तावदरुणेन तमो निरस्तम् वत' को संबोधन के रूप में ग्रहण करता है (ग) -रघु० ५७१ कि०.१६।१६ । संबोधित करना, बुलाना (घ) थकावट । सम० । अहोक वि०नि० ब० कप] निर्लज्ज, ढीठ-क: बौद्ध भिक्षुक । आ आ देवनागरी वर्णमाला का द्वितीय अक्षर । आकत्थनम् [आ+कत्थ्+ल्युट ] डींग मारना, शेखी आ 1. विस्मयादिद्योतक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होकर बघारना । निम्नांकित अथ प्रकट करता है (क) स्वीकृति 'हाँ' | आकम्पः [ आ+कम्प---घा ] 1. मदु कंप 2. हिलना, (ख) दया 'आह' (ग) पीडा या खेद (बहुधा--आस् . काँपना। या आ: लिखा जाता है) हा 'हंत' (घ) प्रत्यास्मरण | आकम्पनम् [ आ--कम्प् + ल्युट ] कंपयुक्त गति, हिलना । 'अहो-ओह' आ एवं किलासीत्-उतर०६ (च) कई आकम्पित, आकम्प्र[आ+कम्प-+क्त, र वा] हिलता बार केवल अनुपुरक के रूप में प्रयुक्त होता है --आ हुआ, कांपता हुआ, हिला-डुला, विक्षब्ध । एवं मन्यसे 2. (संज्ञा और क्रियाओं के उपसर्ग के आकरः [ आकुर्वन्त्यस्मिन्-आ+-+घ ] 1. खान-मणिरूप में) (क) 'निकट' 'पाश्व' की ओर' 'सब ओर से'। राकरोद्भवः--रघु ०३।१८, आकरे पद्मरागाणां जन्म'सब ओर' (कुछ क्रियाओं को देखो) (ख) गत्यर्थक काचमणेः कुतः--हि० प्र० ४४ (आलं०) खान या नयनार्थक, तथा स्थानान्तरणार्थक क्रियाओं से पूर्व किसी वस्तु का समृद्ध साधन-- मासो नु पुष्पाकरः लगकर विपरीतार्थ का बोध कराता है ---यथा --विक्रम० २९, अशेषगुणाकरम् --भर्तृ० २।६५ कु. गम् =जाना, आगम आना, दा-देना, आदा-लेना २।२९, 3. सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ। 3. (अपा० के साथ वियुक्त निपात के रूपमें प्रयुक्त | आकरिक (वि.) [ आकर+ठन ] (राजा के द्वारा) होकर) निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है :-(क) नियत व्यक्ति जो खान का अधीक्षण करता है । आरम्भिक सीमा, (अभिविधि), 'से', 'से लेकर' 'से दूर' | आकरिन् (वि.) [ आकर+इनि ] 1. खान में उत्पन्न, 'में से'--आमूलात् श्रोतुमिच्छामि-श० १, आ जन्मनः खनिज 2. अच्छी नसल का दधतमाकरिभिः करिभिः .... श०१५।२५ (ख) पृथक्करणोय या उपसंहारक | क्षत---कि० ५।७, । सीमा (मर्यादा) को प्रकट करता है ---'तक' 'जबतक | आकर्णनम् [आ+कर्ण- ल्युट् सुनना,कान लगा कर सुनना। कि नहीं' 'यथाशक्ति' 'जबतक कि'- आ परितोषा- आकर्षः [आ+कृष्+घा ] 1. खिचाव या (अपनी द्विदुषां श० ११२, कैलासात-मेघ ११, कैलास तक ओर) खींचना, 2. खींच कर दूर ले जाना, पीछे हटाना (ग) इन दोनों अर्थों को प्रकट करने में 'आ' या तो 3. (धनुष) तानना 4. प्रलोभन, सम्मोहन 5. पासे अव्ययीभाव समास में अथवा सामासिक विशेषण का रूप से खेलना 6. पासा या चौसर 7. पासों से खेलने का धारण कर लेता है-आबालम् (आबालेभ्यः)हरिभक्तिः , | फलक, बिसात 8. ज्ञानेन्द्रिय 9. कसौटी। कई बार इस प्रकार का बना हुआ समस्त पद अन्य आकर्षक (वि०) [आ+कृष्+ण्वुल ] खिंचाव करने समासों का प्रथम खण्ड बन जाता है-सोऽहमाजन्म सद्धा- वाला, प्रलोभक -...कः चुंबक, लोहचुंबक ।। नामाफलोदयकर्मणाम्, आ समुद्रक्षितीशानामानाकरथ- आकर्षणम् [आ+-कृष्--ल्युट ] 1. खींचना, खींच लेना, वर्मनाम् -- रघु ०२५, आगण्ड विलम्बि--श० ७।१७. सम्मोहन 2. पथभ्रष्ट करने के लिए फसलाना, 4. विशेषणों के साथ (कई बार संज्ञाओं के साथ) -- णी वृक्षों से फल फूल आदि उतारने के लिए किनारे लग कर 'आ' अल्पार्थवाची हो जाता है-आपांडुर। पर से मुड़ी हुई लंकडी, लग्गी। -ईषत्श्वे त, कुछ सफेद, आलक्ष्य --श० ७।१७, । आकषिक (वि.) [स्त्री०-की] [आकर्ष-ठन् ] चुंब आकम्पः-मदु कम्पन, इसी प्रकार 'आनोलारक्त' कीय, सम्मोहक । आं-तु० आम्। आकर्षिन् (वि.) [आ+ कृष ।-णिनि ] खींचने वाला आः 1.--तु० आम् 2. लक्ष्मी (आ) । (जैसे कि दूर की गंध)। For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( आकलनम् [ आ + कल् + ल्युट् ] 1. हाथ रखना, पकड़ना -मेखलाकलन- का० १८३, बन्दीगृह में रहना 2. गिनना, हिसाब लगाना, 3. चाह इच्छा 4. पूछ ताछ 5. समझ बुझ । आकल्पः [ आ + कृप् + णिच् + घञ ] 1. आभूषण, अलंकार- आकल्पसारो रूपाजीवाजन:- दश० ६३, रघु० १७/२२, १८५२, 2. वेशभूषा 3. रोग, बीमारी । आकल्पकः [ आ + कृप् + णिच् + ण्वुल ] 1. दुःखपूर्ण स्मृति, स्मृति को लोप 2. मूर्छा 3. हर्ष या प्रसन्नता 4. अंधकार गांठ या जोड़ । १३६ आकषः [ आ + कष् + अच् ] कसौटी । आकर्षक (fao ) [ आकर्षण चरति इति आकष + ष्टल् ] परखने वाला, कसौटी पर कसने वाला । आकस्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की) [ अकस्मात् + ष्ठक् टिलोपः ] 1. अचानक होने वाला, अचितित, अप्रत्याशित, सहसा 2. निष्कारण, निराधार - नन्वदृष्टानिष्टी जगद्वैचित्र्यमाकस्मिकं स्यात् शारी० । आकाक्षा [ आ + काङक्ष् + अ +टाप् ] 1. इच्छा, चाहभक्त - सुश्रु०, अमरु ४१, 2. ( व्या० में ) अर्थ को पूरा करने के लिए आवश्यक शब्द की उपस्थिति, किसी विचार या वाक्य के भाव को पूरा करने के लिए तीन आवश्यक तत्वों में से एक ( दूसरे दो हैं- योग्यता और आसति ) आकाङक्षा प्रतीतिपर्यवसानविरहः - सा० द० २. अर्थ की पूर्ति का अभाव 3. किसी की ओर देखना 4. प्रयोजन, इरादा 5. पूछ-ताछ 6. शब्द की यथार्थता । अकाय: [ आ + चि + कर्मणि घश चितौ कृत्वम् ] 1. चिता पर रक्खी हुई अग्नि 2. चिता । आकार: [ आ + कृ + घञ | 1. रूप, शक्ल, आकृति - द्विधा 3 - दो रूपों की या दो प्रकार की 2. पहलू सूरत, मुखा कृति, चेहरा आकारसदृशप्रज्ञः रघु० १।१५, १६ ७, 3. (विशेषतः ) चेहरे का रंग ढंग जिससे मनुष्य के आन्तरिक विचार तथा मनोवृत्ति का पता लग सके तस्य संवृतमन्त्रस्य गूढाकारेङ्गितस्य च रघु० ११२०, भवानपि संवृताकारमास्ता - विक्रम० २, 4 इशारा, संकेत, निशानी । सम० गुप्तिः (स्त्री० ) - गोपनम्, गूहनम् छिपाव, मन के भावों को छिपाना । आका (क) रण, णा [ आ + कृ + णिच् + ल्युट् युच् वा ] 1. आमंत्रण, बलावा-भवदाकारणाय दश० १७५, 2. आह्वान | आकालः [ आ + कु + अल् + अच् कोः कादेशः ] ठीक समय । आकालिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अकाल -- ठञ ] 1. क्षणिक, अल्पकालिक - मन० ४।१०३, 2. बेमौसम, अकालपक्त्र, असामयिक - आकालिकीं वोक्ष्य मधुप्रवृतिम् - कु० ३।३४, मृच्छ० ५।१, की बिजली । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir } 1. आसमान आकाश:- शम् [ आ + काश् + घञ् ] -- आकाशभवा सरस्वती कु० ४१३९, ग, 'चारिन् आदि 2. अन्तरिक्ष ( पाँचवाँ तत्त्व ) 3. सूक्ष्म और वायविक द्रव्य जो समस्त विश्व में व्याप्त है, वैशेषिक द्वारा माने हुए ९ द्रव्यों में से एक, यह 'शब्द' गुण का आधार है शब्दगुणकमाकाशम् - तु० - श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् श० ११ १ अथात्मनः शब्दगुणं गुणज्ञः पदम् (नामत: - आकाश ) विमानेन विगाहमान: रघु० १३० १, 4. मुक्त स्थान 5. स्थान- सपर्वतबनाकाशां पृथिवीम् - महा०, भवनाकाशमजायताम्बुराशि:- भामि० २।१६५, 6. ब्रह्म ( अन्तरिक्ष स्वरूप ) आकाशस्तल्लिंगात् - ब्रह्म० यावानयमाकाशस्तावानयमन्तर्हृ दयाकाश:- - छा० 7. प्रकाश, स्वच्छता, 'वायु में' अर्थ को प्रकट करने वाला आकाशे' शब्द नाटकों में प्रयुक्त होता है जब कि रंगमंच पर स्थित पात्र प्रश्न किसी ऐसे व्यक्ति से पूछता है जो वहाँ उपस्थित न हो, और ऐसे काल्पनिक उत्तर को सुनता है जो 'कि ब्रवीषि' 'कि कथयसि ' आदि शब्दों से आरम्भ होता है दूरस्थाभाषणं यत्स्यादशरीरनिवेदनम्, परोक्षान्तरितं वाक्यं तदाकाशे निगद्यते ॥ भरत तु० निम्नांकित आकाशभाषित की - (आकाशे) प्रियंवदे कस्येदमुशीरानुलेपनं, मृणालवन्ति च नलिनीपत्राणि नीयन्ते । (श्रुतिमभिनीय) किं ब्रवीषि - आदि० श० ३। सम० - ईशः 1. इन्द्र 2. ( विधि में ) असहाय व्यक्ति (जैसे कि बच्चा, स्त्री, दरिद्र ) जिसके पास वायु के अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है - कक्षा क्षितिज, कल्पः बह्म - गः पक्षी - गा ) आकाशस्थित गंगा, गङ्गा दिव्य गंगा --नत्याकाशगङ्गायाः स्रोतस्युद्दानदिग्गजे- रघु० १। ७८, चमसः चन्द्रमा जननिन् (पुं) झरोखा, प्राचीर में वना तोप का झरोखा, बन्दूक या तोप आदि चलाने के लिए भिति में बना छिद्र 1. दीपः - प्रदीपः 1. कार्तिक मास में दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी या विष्णु का स्वागत करने के लिए हठड़ी पर रक्खा हुआ दीपक, 2. बाँस के सिरे पर बाँध कर जलाया जाने वाला दीया या लालटेन, प्रकाशस्तम्भ पर रक्खा हुआ दीया या लैम्प, भाषितम् - 1. रंगमंच पर अनुपस्थित व्यक्ति से भाषण करना, एक काल्पनिक भाषण जिसका उत्तर इस प्रकार दिया जायमानो यह बात वस्तुतः कही और सुनी गई है - किं ब्रवोपीति यन्ताये बिना पात्रं प्रयुज्यते श्रुत्वेवानुक्तमप्यर्थं तत्स्यादाकाशभाषितम्- सा० द० ४२५, 2. आकाश में कही बात या शब्द, मंडलम् खगोल, -- यानम् 1. हवाई जहाज, गुब्बारा 2. आकाश में घूमने वाला, रक्षिन् (पुं०) किले की बाहरी दिवारों For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( की रक्षा करने वाला, वचनम् 'भाषितम् — दे० वर्त्मन् ( नपुं० ) 1. अन्तरिक्ष 2. वायुमंडल, वायु, वाणी आकाश से आई हुई आवाज़, अशरीरिणी वाणी, सलिलम् वर्षा, ओस-- स्फटिक ओला । आकिञ्चनम्, आकिञ्चन्यम् [ अकिञ्चन + अण्, ष्यञ्च वा ] गरीबी, धन का अभाव । १३७ आकीर्ण (भू० क० कृ० ) [ आ + कृ + क्त ] 1. बिखरा हुआ, फैला हुआ भरा हुआ, व्याप्त, संकुल - खचाखच भरा हुआ, परिपूर्ण, भरपूर — जनाकीर्णं मन्ये हुतवहपरीतं गृहमिव - श० ५। १०, आकीर्णमृषिपत्नीनामुटजद्वाररोधिभिः - रघु० १५० । आकुञ्चनम् [आ + कुञ्च् + ल्युट् ] 1. झुकाना, सिकोड़ना, संकोचन 2. पाँच कर्मों में से एक-- सिकुड़न 3. एकत्र करना, ढेर लगाना 4 टेढ़ा होना । आकुल (वि०)_[ आ + कुल्+क] 1. भरपूर, भरा हुआ | - प्रचलदूमिमालाकुलं (समुद्रम्) - भर्तृ० २२४, वाष्पा कुलां वाचं नल० ४ १८, आलापकुतुहला कुलतरे श्रोत्रे अमरु ८१, 2. प्रभावित, प्रभावग्रस्त, पीड़ित, आहत - हर्ष, शोक, विस्मय, स्नेह आदि 3. व्यस्त, लीन 4 घबराया हुआ, विक्षुब्ध, उद्विग्न अभियं प्रतिष्ठासुरासीत्कार्यद्वयाकुल:- शि० २१, विस्मित किंकर्तव्यविमूढ़, अनिर्धारित, "आकुल, अत्यन्त क्षुब्ध 5. बिखरे बाल वाला, अव्यवस्थित 6. असंगत, विरोधी, लम् आबाद जगह। आकुलित (वि० ) [ आ + कुल / क्त ] 1. दुःखो, उद्विग्न, विक्षुब्ध - मार्गाचलव्यतिकराकुलितेव सिंधु: - कु० ५।८५, 2. फँसा हुआ, 3. मलिन, धूमिल, धूमदृष्टः श०४, 4. अभिभूत, पीड़ित, शोक, पिपासा आदि । आकूणित ( वि० ) [ आ + कूण् + क्त ] कुछ संकुचित - मदन शल्य वेदना कूणित त्रिभागेन का० १६६, ८१ । आकूतम् [आ + कू+क्त] 1. अर्थ, इरादा, प्रयोजन -इती"रिताकत मनीलवाजिनम् कि० १४।२६, 2. भावना, हृदय की स्थिति, संवेग, चूडामण्डल बन्धनं तरलयत्याकूतजो वेपथुः -उत्तर० ५।३६, भावाकूत---अमरु ४ मा० ९।११, साकूतम् भावनापूर्वक, साभिप्राय ( प्रायः नाटकों में रंगमंच के निदेश के रूप में ) 3. आश्चर्य या जिज्ञासा 4. चाह, इच्छा । आकृति: ( स्त्री० ) ( आ + कृ + वितन् ] 1. रूप, प्रतिमा, शक्ल-गोवर्धनस्याकृतिरत्वकारि शि० ३।४, 2. शरीर, काया - किमित्र हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् - शि० ११२०, विकृताकृति – मनु० ११:५३ इस प्रकार घोर 3. दर्शन, सुन्दर रूप, भद्ररूप, न ह्याकतिः सुसदृशं विजहाति वृत्तम् मुच्छ० ९।१६, यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति सुभाषित 4. नमूना, लक्षण 5. कबीला, जाति । सम० गणः व्याकरण के किसी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > विशेष नियम से संबंध रखने वाले शब्दों की सूची- जो केवल नमूनों की सूची है (बहुधा गणपाठ में अंकित ) यथा अर्शादिगण, स्वरादिगण, चादिगण आदि, छत्रा घोषातकी नाम की लता । आकृष्टिः (स्त्री० ) [ आ + कृष् + क्तिन् ] 1. आकर्षण 2. खिचाव, गुरुत्वाकर्षण (गणित ज्योतिष) ; - आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत्स्वस्थं गुरु स्वाभिमुखं स्वशक्त्या, आकृष्यते तत्पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे । गोलाघ० । 3. धनुष का खींचना या झुकाना, ज्या अमरु० | आकर (वि० ) [आके अन्तिके कीर्यते इति आ + कृ + अप् + टापू - आकेकरा दृष्टिः सा अस्ति अस्य इति - आकेकरा + अच्] अधमुंदा, अर्धनिमीलित ( आँखें ) - निमीलिदाकेकरलोलचक्षुषा कि० ८1५३, मु० ३।२१, दृष्टि राकेकरा किंचित्स्फुटापांगे प्रसारिता, मीलितार्धटालोके ताराव्यावर्तनोत्तरा । आकोकेर : ( ग्रीक शब्द ) मकर राशि | आक्रन्दः [ आ + न् + घञ]1. रोना, चिल्लाना 2. पुका रना, आह्वान करना, 3. शब्द चिल्लाहट 4. मित्र, रक्षक 5. भाई 6. रोने का स्थान 7. वह राजा जो अपने मित्र राजा को दूसरे की सहायता करने से रोके वह राजा जिसकी राजधानी मिलती हुई किसी दूसरी राजधानी के पास है । मनु० ७।२०७ । आक्रन्दनम् [आ + क्रन्द् + ल्युट् ] 1. स्वर से पुकारना । विलाप, रुदन 2. ऊँचे आक्रन्दिक ( वि० ) [ आक्रन्द्र धावति इति आक्रन्द + ञ] वह व्यक्ति जो किसी दुखिया के रोने को सुनकर दौड़ कर उसके पास आता है । आदित (भू० क० कृ० ) आ + क्रन्द् +क्त] 1 दहाड़ने वाला, या फूट २ कर रोने वाला, 2. आहूत, बुलाया हुआ, तम् चिल्लाना, दहाड़ना । आक्रमः --क्रमणम् आ + कम् + घञ, ल्युट् वा ] 1. निकट आना, उपागमन 2. टूट पड़ना, आक्रमण करना, हमला 3. पकड़ना, ढकना, कब्ज़े में करना, 4. पार करना, प्राप्त करना 5 विस्तार करना, चक्कर लगाना, बढ़ चढ़ कर होना 6. शक्ति से अधिक बोझा लादना । आक्रान्त (भू० क० कृ० ) [ आ + क्रम् + क्त ] 1. पकड़ा हुआ, अधिकार में किया हुआ, पराजित, पराभूत आन्तविमानमार्गम् - रघु० १३०३७, तक पहुँचना, भरपूर, अधिकृत, ढका हुआ शुशुभे तेन चाक्रान्तं मङ्गलायतनं महत्- रघु० १७।२९, वलिभिर्मुखमाकान्तम् - भर्तृ० ३११४, इसी प्रकार मदन भय, शोक आदि, 2. लदा हुआ (मानों बोझ से ) 3. बढ़ा हुआ, ग्रहण लगा हुआ, आगे बढ़ा हुआ - रघु० For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १०।३८, मालवि० ३।५ 4 प्राप्त किया हुआ, अधिकार में किया हुआ । आक्रान्तिः (स्त्री० ) [ आ + क्रम् + क्तिन्] 1 ऊपर रखना अधिकार में करना, पददलित करना - आक्रान्तिसंभावित पादपीठम् - कु० २।११ 2. पराभूत करना, दबाना, लादना 3. आरोहण, आगे बढ़ जाना 4. शक्ति, शौर्य, बल । १३८ ) आक्षिप्तिका [ आ + क्षिप् + क्त + टाप्, क, इत्वम्] रंगमंच पर आते हुए किसी पात्र के द्वारा गान विशेषविक्रम० ४ । आक्रामक: [अ + म् + ण्वुल् ] आक्रमणकर्ता, हमलावर । क्रीड:-डम् [ आ + क्रीड् + घञ] 1. खेल, क्रीडा, आमोद 2. प्रमदवन, क्रीडोद्यान- आक्रीडपर्वतास्तेन कल्पिताः स्वेषु वेश्मसु कु० २१४३, कमप्याक्रीडमासाद्य तत्र विशिश्रमिषुः - दश० १२ । आक्रुष्ट (भू० क० कृ० ) [ आ + कुश् + क्त ] 1. डांट-डपट किया हुआ, निन्दित, तिरस्कृत, कलंकित शि० १२ । २७, 2. ध्वनित, चीत्कारपूर्ण 3. अभिशप्त, ष्टम् 1. जोर की पुकार 2. घोर शब्द या रुदन, गालीगलौजयुक्त भाषण - मार्जारमूषिकास्पर्श आकुष्टे क्रोधसं भव काव्या० । आक्रोशः - शनम् [आ + क्रुश् + घञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. पुका रना या जोर से चिल्लाना, उच्चस्वर से रोना या शब्द 2. निन्दा, कलंक, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना - याज्ञ० २।३०२३. अभिशाप, कोसना 4. शपथ लेना । आक्लेदः [ आ + क्लिद् + वञ ] आर्द्रता, गीलापन, छिड़काव । आक्षद्यूतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अक्षद्यूतेन निर्वृत्तम् इति - ठक्] जूए से प्रभावित या समाप्त किया हुआ । आक्षपणम् [आ+क्षप् + ल्युट् ] 1. उपवास रखना, उपवास द्वारा आत्मशुद्धि, संयम । आक्षपाटिक: [अक्षपट + ठक् ] 1. द्यूतक्रीडा का निर्णायक, द्यूतगृह का अधीक्षक 2. न्यायाधीश । आक्षपाद ( वि० ) ( स्त्री० - दी ) [ अक्षपाद + अण् ] अक्षपाद या गौतम का शिष्य – दः न्यायशास्त्र का अनुयायी, नैयायिक, तार्किक । आक्षारः [ आ + र् + णिच्+घञ] कलंक लगाना, ( व्यभिचारादिकका) दोषारोपण करना । आक्षारणम् णा [ आ + र् + णिच् + ल्युट् ] कलंक, दोषारोपण (विशेषतः व्यभिचार का ) । आक्षारित (भू० क० कृ० ) [ आ + र् + णिच् + क्त ] 1. कलंकित 2. दोषी, अपराधी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आक्षिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अक्षेण दीव्यति जयति जितं वा अक्ष + ठक् ] 1. पासों से जुआ खेलने वाला, 2. जए से जीता हुआ 3. जूए से संबंध रखने वाला - आक्षिक ऋणम् - मनु० ८ । १५९, जुए में किया हुआ कर्जा --- कम् 1. जूए में जीता हुआ धन 2. जूए का ऋण । आक्षी (वि० ) [ आ + क्षी - क्त नि०] 1. जिसने कुछ मद्यपान किया हुआ हो 2. मस्त, नशे में चूर । आक्षेपः [ आ + - क्षिप् + ञ्ञ 1. दूर फेंकना, उछालना, खींचकर दूर करना, छीन लेना- अंशुकाक्षेपविलज्जितानाम् – कु० १।१४, पीछे हटना 2. भर्त्सना, झिड़कना, कलंक लगाना, अपशब्द कहना, अवज्ञापूर्ण निन्दा - ' प्रचंडतया --- उत्तर० ५।२९, विरुद्धमाक्षेपवचस्तितिक्षितम् कि० १४।२५ 3. मन की उचाट, मन का खिंचाव - विषयाक्षेपपर्यस्तबुद्धेः - भर्तृ० ३।४७, २३. 4. प्रयुक्त करना, लगाना, भरना (जैसे कि रंग ) – गोरोचनाक्षेपनितान्तगौरैः कु० ७ १७, 5. संकेत करना, ( किसी दूसरे शब्दार्थ को ) मान लेना, समझ लेना – स्वसिद्धये पराक्षेपः - काव्य ०२, 6. अनुमान 7. धरोहर 8 आपत्ति या संदेह 9. (सा० शा० में) एक अलंकार जिसमें विवक्षित वस्तु को एक विशेष अर्थ जतलाने के लिए प्रकटतः दबा दिया जाय या निषिद्ध कर दिया जाय- काव्य० १०, सा० द० ७१४, और रसगंगाधर का आक्षेपप्रकरण | आक्षेपकः [आ + क्षिप् + ण्वुल् ] 1. फेंकनेवाला, 2 उचाट करने वाला, कलंक लगाने वाला, दोषारोपण करने वाला 3. शिकारी । आक्षेपणम् [आ+क्षिप् + ल्युट्] फेंकना, उछालना । आक्षोट:- ड: [ आ + अक्ष् + ओटू (ड्) + अण् ] अखरोट की लकड़ी । दे० 'अक्षोट' । आक्षोदनम् [आच्छोदनम् ] आखेट, शिकार । आखः, आखनः [ आ + खन्ड, घ वा ] फावड़ा, खुर्पा | आखण्डल: [ आखण्डयति भेदयति पर्वतान् - आ + - खण्ड् + डलच्, डस्य त्वम्---तारा०] इन्द्र - आखण्डल: काममिदं बभाषे कु० ३ | ११, तमीशः कामरूपाणामत्याखण्डलविक्रमम् - रघु० ४।८३, मेघ० १५ । आखनिकः [ आ + न् + इकन् ] 1. खोदने वाला, खनिक 2. चूहा या मूसा 3. सूअर 4. चोर 5. कुदाल | आखरः [ आखन् + डर ] 1. फावड़ा 2. खोदने वाला, खनिक | आखातः तम् [ आ + खन् + क्त ] प्राकृतिक तालाब, या जलाशय, खाड़ी । आखानः [ आ + न् + घञ् ]1. चारों ओर से खोदना 2. फावड़ा 3. कुदाल, बेलदार । आखु: [ आ + न् + कु डिच्च ] 1. मूषिक, चूहा, छछूंदर, - अत्तुं वांछति शांभवो गणपतेराखुं क्षुधार्तः फणी पंच० १।१५९, 2. चोर : 3. सूअर 4. फावड़ा For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5. कंजूस--विभवे सति नैवात्ति न ददाति जुहोति न, सूचना देने काला,-क: 1. दूत, हरकारा--आख्यायतमाहुराखुम—। सम०. उत्करः वल्मीक, बमी,-उत्थ केभ्यः श्रुतसूनवत्तिःभटि० २।४४, 2. अग्रदूत, (वि०) चूहों से उत्पन्न (--स्थम्) चूहों का निकलना, संदेशवाहक। चहो का समूह;-- गः,-पत्रः,—रथः,-वाहनः गणेश | आख्यायिका [ आख्यायक+टाप् इत्वम् ] 'गद्य' रचना का जिसका वाहन चहा है,-घातः शूद्र, नीचजाति का नमूना , सुसंगत कहानी,-आख्यायिका कथावपुरुष, (शा०) चूहों को पकड़ने और मारने वाला, त्स्यात्कवेर्वशादिकीर्तनम्, अस्यामन्यकवीनां च वृतं गद्यं चहड़ा,-पाषाणः चुम्बक पत्थर,-भुज,- भुजः क्वचित् क्वचित्, कथांशानां व्यवच्छेद आश्वास इति बिल्ला,। बध्यते । आर्यावक्त्रापवक्त्राणां छन्दसां येन केनचित् । आखेट: । आखिट्यन्ते त्रास्यन्ते प्राणिनोत्र-आखिट+ अन्यापदेशेनाश्वासमखे भाव्यर्थसूचनम्-----सा० द० धन तारा 1 शिकार करना, पीछा करना। सम० ५६८, (साहित्य शास्त्र के लेखक 'गद्यरचना' को -~-शीर्षकम् 1. चिकना फर्श 2. खान, गफा। प्रायः दो (कथा और आख्यायिका) भागों में बाँटते आखेटक (वि०) [आखेट-कन् | शिकार करने वाला हैं, वह बाण के हर्षचरित को 'आख्यायिका' तथा -क: शिकारी,--कम् शिकार। कादम्बरी को 'कथा' के नाम से पुकारते हैं। आखेटिकः [ आखेटे कुशल;-- ठक् ] 1. शिकारी 2. शिकारी दण्डी इस प्रकार के भेद को स्वीकार नहीं करता कुत्ता। -काव्या० ११२८-तत्कथाख्यायिकेत्येका जातिः आखोटः [ आखः खनित्रमिव उटानि पर्णानि अस्य-ब० संज्ञाद्वयांकिता ॥ स० ) अखरोट का वृक्ष। आख्यायिन् (वि०) [आ+ख्या--णिनि ] जो व्यक्ति आख्या [ आख्यायतेऽनया - आख्या+अड] 1. नाम, कहता है, सूचना या समाचार देता है - रहस्याख्यायीव अभिधान—कि वा शकुन्तलेत्यस्य मातुराख्या-श० । स्वनसि मदुकर्णान्तिकचर:--श० ॥२४॥ ७१७, ३३, पश्चादुमाख्या सुमुखी जगाम- कु० २६, | आख्येय (स० कृ०) [ आ-+-ख्या | यत् ] कहने या समातदाख्यया भुवि पप्रथे- रघु०१५।१०१; बहुधा समास चार देने के योग्य, शब्द शब्दों में कहने के योग्य, के अन्त में जब प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ होता न मौलिक संदेश मेघ० १०३।। है 'नामक' या 'नाम वाला'-अथ किमाख्यस्य राजर्षेः | आगतिः (स्त्री०) [आ+गम-क्तिन् ] 1. पहुंचना, सा धर्मपत्नी श०७. रघवंशाख्यं काव्यम् आदि । आगमन-लोकस्यास्य गतागतिम्-रामा०, इति आख्यात (भू० क० कृ०) [आ+ख्या+क्त ] 1. कहा निश्चित प्रियतमागतय: शि० ९१४३ 2. अधिग्रहण हुआ. बताया हुआ, घोषणा किया हुआ 2. गिना 3. वापसी 4. उद्गम । हुआ, पाठ किया हुआ, जतलाया हुआ 4. नामपद या आगन्तु (वि.) [आ+गम्+तुन् ] 1. आने वाला, क्रियापद,–तम् क्रिया, भावप्रधानमाख्यातम्-नि०, पहुँचनेवाला, 2. भटका हआ, 3. बाहर से आने वाला, धात्वर्थेन विशिष्टस्य विधेयत्वेन बोधने, समर्थः स्वार्थ- बाह्य (कारण आदि) 4. नैमित्तिक, आनुषंगिक, आक यत्नस्य शब्दो वाख्यातमुच्यते ॥ स्मिक,—तुः नवागंतुक, अजनवी, अतिथि। सम० आख्यातिः (स्त्री०) [आ-+-ख्या -क्तिन् ] 1. कहना, | -ज (वि.) आनुषंगिक रूप से या अकस्मात् उत्पन्न समाचार, प्रकाशन 2. यश 3. नाम । होने वाला। आख्यानम् [आ+ख्या+ल्यट] 1. बोलना, घोषणा | आगन्तुक (वि.) (स्त्री०--का,- को) 1. अपनी इच्छा करना, जतलाना, समाचार 2. किसी पुरानी कहानी से आने वाला, बिना बुलाये आने वाला...आगन्तुका की ओर निर्देश करना-आख्यानं पूर्ववत्तोक्तिः - सा० वयम्--धूर्त० 2. भूला-भटका (जैसे कि जानबर) द० (उदा० ...-देशः सोऽयमरातिशोणितजलैयस्मिन् -~-याज्ञ०२।१६३ 3. आनुषंगिक आकस्मिक, नैमिह्रदाः पूरिता:-बेणी० ३।३१) 3. कथा, कहानी त्तिक -..-इत्यागन्तुका विकारा:-आश्व. 4. प्रक्षिप्त, विशेषरूप से काल्पनिक या पौराणिक, उपाख्यान क्षेपक (पाठ)--अत्र गन्धवद्गन्धमादनमित्यागन्तुकः -----अप्सरा: पुरूरवसं चकम इत्याख्यानविद आचक्षते पाठ:- मल्लि० कु०६।४६ पर,-क: 1. अन्तःक्षेपक, -मा० २, मनु०३।२२३, 4. उत्तर-प्रश्नाख्यानयोः हस्तक्षेपक 2. अजनवी, अतिथि, नवागंतुक । पा० ८।२।१०५ 5. भेदक धर्म। आगमः [आ+ गम् । घञ ] 1. आना, पहुंचना, दर्शन आख्यानकम् [आख्यान+कन ] कथा, छोटी पौराणिक देना---लतायां पूर्वलनायां प्रसूनस्यागमः कुतः-उत्तर० कहानी, कथानकः; -आख्यानकाख्यायिकेतिहासपुरा- ५२०, अव्यक्ताद् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे, णाकर्णनेन—का०७। रात्र्यागमे प्रलीयन्ते-भग०८११८, रघु० १४। ८०, आख्यायक (वि०) [आ+ख्या+वुल ] कहने वाला, ' पंच० ३। ४८, 2. अधिग्रहण--एषोऽस्या मुद्राया For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४० ) आगम:--मद्रा० १, श० ६, विद्यागमनिमित्तम् । मिका ज्ञेया बुद्धिस्तत्कालदर्शिनी-हैम० 2. आसन्न, --विक्रम० ५, 3. जन्म, मूल, उत्पत्ति-आगमा- आने वाला। पायिनोऽनित्यास्तास्तितिक्षस्व भारत-भग० २११४, आगामुक (वि०) [ आ+ गम्+उका ] 1. आने वाला, 4. संकलन, संचय ( धनका ) अर्थ, धन आदि 5. | 2. पहुंचने वाला 3. भावी। प्रवाह, जलमार्ग, धारा (पानी की) रक्त, फेन | आगारम् [ आगमृच्छति-ऋ+अण्] घर, आवास । 6. बीजक या प्रमाणक-दे० अनागम 7. ज्ञान सम०-दाहः घर को आग लगा देना, दाहिन -- शिष्यप्रदेयागमाः-भर्तृ० २।१५ प्रज्ञया सदृशागमः, (वि०) घर फूंक व्यक्ति, गृहदाहक (बम आदि), आगमः सदृशारम्भः--रघु० १।१५ 8. आय, राजस्व --धुमः किसी घर से निकलने वाला धूआँ। 9. किसी वस्तु का वैध अधिग्रहण-आगमेऽपि बलं आगर (स्त्री.) [ आ-गुरु-+श्विप् ] स्वीकृति, सहमति, नैव भक्तिः स्तोकापि यत्र नो-याज्ञ० २१ २७ 10. प्रतिज्ञा। संपत्ति की वृद्धि, 11. परंपरागत सिद्धांत या उपदेश, । आगु (गू) रणम् [ आ+गुर् + ल्युट ] गुप्त सुझाव । धार्मिक लेख, धर्मग्रन्थ, शास्त्र अनुमानेन न चागमः ! आगः (स्त्री०) सहमति, प्रतिज्ञा। क्षत:-कि० २१ २८, परिशुद्ध आगमः-३३, 12. | आग्निक (वि.) (स्त्री० -की) [अग्नेरिदं बा०-ठक] शास्त्राध्ययन, वेदाध्ययन 13. विज्ञान, दर्शन,--बहधा- : अग्नि से संबंध रखने वाला, यज्ञाग्नि से संबद्ध। प्यागमैभिन्नाः पन्थानः सिद्धिहेतवः-- रघु० १०॥ २६, | आग्नीध्रम् अग्निमिन्धे अग्नीत्, तस्य शरणम्, रण भत्वान्न 14. वेद, धर्मग्रन्थ - न्यायनिर्णोतसारत्वान्निरपेक्षमिवा- जश् -तारा०, यज्ञाग्नि जलाने का स्थान, हवनकुंड, गमे--कि० ११॥ ३९ 15. चार प्रकार के प्रमाणों में --ध्रः यज्ञाग्नि जलाने वाला पुरोहित । से अन्तिम जिसे नैयायिक 'शब्द' या 'आप्तवाक्य' कहते ब्द या आप्तवाक्य कहत | आग्नेय (वि.) (स्त्री....यो) 1. आग से संबंध रखने है ('वेद' ही ऐसे प्रमाण समझे जाते है) 16. उपसर्ग वाला, प्रचंड 2. अग्नि को अर्पित,--- यः 1. स्कंद या या प्रत्यय 17. (शब्द साधन में) वर्ग की वृद्धि या कार्तिकेय की उपाधि 2. दक्षिण-पूर्वी (आग्नेय कोण) अन्तःक्षेप 18. वद्धिइडागमः 19. सिद्धान्त का ज्ञान दिशा,-यम् 1. कृतिका नक्षत्र 2. सोन। 3. रुधिर (विप० प्रयोग)। समनीत (वि.) अधीत, 4. घी 5. आग्नेयास्त्र । पठित, परीक्षित, वृद्ध (वि०) ज्ञान में बढ़ा हुआ . आग्रभोजनिकः अग्रभोजनं नियतं दीयते अस्मै_टक | भोज बहुत विद्वान् पुरुप --प्रतीप इत्यागमवद्धसेवी-घ० में सर्वप्रथम या सबसे आगे आसन ग्रहण करने का ६।४१,....वेदिन (वि.) 1. वेदों को जानने वाला ! अधिकारो ब्राह्मण। 2. शास्त्रनिष्णात - सापेक्ष (वि०) प्रमाणकतापेक्षी, | आग्नयणः [अग्रे अयनं शस्यादेर्यन कर्मणा पो० हस्व दीर्घ प्रमाणक से सथित। व्यत्ययः | अग्निष्टोम याग में सोम की प्रथम आहति, आगमनम् [आ+गम् --ल्युट ] 1. आना, उपागमन, —णम् वर्षा ऋतु के अन्त में नये अन्न तथा फलादिक पहुँचना-रधु० १२। २४, 2. लौटना 3. अधिग्रहण से युक्त हवि। 4. मैथनेच्छा के लिए किसी स्त्री के पास पहुँचना। | आग्रहः [आ+ग्रह - अच्] 1. पकड़ना, ग्रहण करना 2. आगमिन, आगामिन् (वि०) [आगम् --णिनि, वा ह्रस्वः ] आक्रमण 3. दृढ़ संकल्प, दृढभक्ति, दृढ़ता... चले पि 1. आने वाला, भावी 2. आसन्न, पहुँचने वाला। काकस्य पदार्पणाग्रहः ---नै०, कु० ५।७ पर मल्लि०, आगस् (नपुं०) [इ+असुन्, आगादेशः | 1. दोप, अप- | 4. कृपा, संरक्षण । हिप्प शतमागास सूनास्त शत आग्रहायणः |अग्रहायण-+-अण] मार्गशोपं का महीना, यत्त्वया-शि० २। १०८ द्वौ रिपू मम मतो समागसौ --णी 1 मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 2. मृगशिरस् ----रघु० ११॥ ७४, कृतागा:--मुद्रा० ३। ११ 2. नाम का नक्षत्र-पंज। पाप। सम० –कृत (वि०) अपराध करने वाला, आग्रहायण (णि) कः [आग्रहायणी पौर्णमास्यस्मिन् मासे अपराधो, जुर्म करने वाला-अभ्यर्णमागस्कृतमस्पृशद्भिः --ठक मार्गशीर्ष का महीना । --रघु० २-३२ । आग्रहारिक (वि०) (स्त्री०-को) अग्रहार (याह्मणों को आगस्ती [अगस्त्यस्य इयम्, अण्-- यलोपः] दक्षिण दिशा । दान में दी जाने वाली भूमि) प्राप्त करने का अधिआगस्त्य (वि.) अगस्त्यस्येदम्, यत्र –पलोपः] दक्षिणी।। कारी ब्राह्मण । आगाध (वि०) [ अगाध एव स्वार्थे अण् ] बहुत गहरा, | आघट्टना [आ+घट्ट ---णिच् +---टाप्] 1. हिलनाअथाह, (आलं० भी)। दुलना, काँपना, किसी से रगड़ना... रणद्धिराघट्टनया आगामिक (वि.) (स्त्रो०-को) [ आगाम+ठक् | 1. नमस्वत:--गि० १.१० 2. घर्षण, रगड़। भविष्यकाल से सम्बन्ध रखने वाला -मतिरागा- | आघर्षः,-र्षणम् [आ+धूप-घज, ल्युट वा मालिश For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४१ ) करना, रगड़, किसी से रगड़ना - गंडस्थलाघर्षगलन्मदोदकद्रवमस्कंध निलायिनोऽलय: शि० १२।६४ । आघाट: [ आ | हन् | घञ्ञ, निपातः] हृद, सीमा । आघात: [ आ + न् + घञ] 1. प्रहार करना, मारना, 2. चोट, प्रहार, घाव, तीव्राघातप्रतिहतत रुस्कन्धलग्नेकदन्तः श० १।३३, अभ्यस्यन्ति तदाघातम् — कु० २५०, 3. बदकिस्मती, विपत्ति 4. कसाई खाना - आघातं नीयमानस्य हि० ४।६७ । आधार: [ आ + + घञ ] 1. छिड़काव 2. विशेषकर यज्ञ fat afa में घी डालना 3. घी । आघूर्णनम् आ + घूर्ण + ल्युट् ] 1. लोटना 2. उछालना, घूमना, चक्कर खाना, तैरना । आघोषः [ आ + ष् + घञ्ञ | बुलावा, आवाह्न । घोषणा [ आ + ष् + ल्युट् स्त्रियां टाप्] उद्घोषणा, ढिढोरा, एवमाघोषणायां कृतायाम् पंच० ५ । आघ्राणम् [आघ्रा + ल्युट् ] 1. सूंघना 2. संतोष, तृप्ति । आङ्गारम् | अङ्गाराणां समूहः- अण्] अंगारों का समूह । आङ्गिक ( वि० ) ( स्त्री० - को ) 1. शारीरिक, कायिक 2. हाव-भाव से युक्त, शारीरिक चेष्टाओं से व्यक्त -- अङ्गिकोऽभिनयः, दे० 'अभिनय' - - कः तबलची या ढोलकिया । आङ्गिरसः [ अंगिरस् + अण् ] बृहस्पति, अंगिरा की संतान (पुत्र) 1 आचक्षुस् (पुं० ) [ आ + चक्ष् + उसि बा० ] विद्वान् पुरुष । आचमः [ आ + चम +घञ्ञ ] कुल्ला करना, आचमन करना ( हथेली पर जल लेकर पीना ) । आचमनम् [ आ + चम् + ल्युट् | कुल्ला करना, धार्मिक अनुष्ठानों से पूर्व तथा भोजन के पूर्व और पश्चात् हथेली में जल लेकर घूंट-घूंट करके पीना - दद्यादाचमनं ततः याज्ञ० ११२४२ । आचमनकम् [ स्वार्थे आधारे वा कन् ] पीकदान । आचय: [ आ + चि+अच् ] 1. इकट्ठा करना, बीनना 2. समूह | आचरणम् [ आ + र् + ल्युट् ] 1. अभ्यास करना, अनु. करण करना, अनुष्ठान-धर्म, मंगल आदि 2. चालचलन, व्यवहार, - अधीतिबोधाचरणप्रचारणः- नं० ११४, उदाहरण (विप० उपदेश) 3. प्रथा, परिपाटी 4. संस्था आचान्त (वि) [ आ + चम् + क्त ] 1. जिसने कुल्ला करके मुंह शुद्ध कर लिया है, या जिसने आचमन कर लिया है 2. आचमन के योग्य । आचाम: [ आ + चम् + घञ ] 1. आचमन करना, कुल्ला करके मुंह साफ करना 2. पानी या गर्म पानी के झाग । आचार: [ आ + र् + घञ्ञ ] 1. आचरण, व्यवहार, काम करने की रीति, चालचलन 2 प्रथा, रिवाज, प्रचलन यस्मिन्देशे य आचारः पारम्पर्य क्रमागतः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनु० २।१८, 2. लोकाचार, प्रथा संबंधी कानून ( विप० व्यवहार) समास में प्रथम पद के रूप में यदि प्रयुक्त हो तो अर्थ होता है : 'प्रथासंबंधी', 'पूर्ववत्' 'व्यवहार या प्रचलन के अनुसार दे० 'धूम, 'लाज 4. रूप, उपचार, आचार इत्यवहितेन मया गृहीता - श०५१३, महावी० ३।२६. रिवाजो या रूढ़ उपचार - आचारं प्रतिपद्यस्त्र ० ४ । सम० - दीपः आरती उतारने का दोप, धमग्रहणम् सांस के द्वारा ग्रहण करने का संस्कार- विशेष जो कि यज्ञानुष्ठान के समय किया जाता है। - रघु० ७२७, कु० ७८२, - पूत ( वि० ) शुद्धाचारी - रघु० २।१३, भेदः आचरण संबंधी नियमों का अन्तर, भ्रष्ट, पतित ( fro ) स्वधर्म भ्रष्ट, जिसका आचार-व्यवहार विगड़ गया हो, या जो आचरण से पतित हो गया हो, लाज (पुं०, ब० व०) धान की खीलें जो कि सन्मान प्रदर्शित करने के लिए किसी राजा या प्रतिष्ठित महानुभाव पर फेंकी जाती हैं- रघु० २।१०, बेदी पुण्यभूमि आर्यावर्त । आचारिक (वि० ) [ आचार । ठक् ] प्रचलन या नियम के अनुरूप, अधिकृत | आचार्य: [ आ + र् + ण्यत् ] 1. सामान्यतः अध्यापक या गुरु 2. आध्यात्मिक गुरु (जो उपनयन कराता है तथा वेद की शिक्षा देता है) उपनीय तु यः शिष्यं वेदमध्यापयेद्विजः, सकल्प सरहस्यं च तमाचार्यं प्रचक्षते । - मनु० २।१४० दे० 'अध्यापक' शब्द भी 3. विशिष्ट सिद्धान्त का प्रस्तोता 4. ( जब व्यक्ति वाचक संज्ञाओं से पूर्व लगता है) विद्वान्, पंडित (अंग्रेजी के 'डाक्टर' शब्द का कुछ समानार्थक ) – र्या गुरु (स्त्री), आध्यात्मिक गुरुआती । सम० उपासनम् धार्मिक गुरु की सेवा करना, मिश्र ( वि० ) प्रतिष्ठित सम्मा ननीय । आचार्यकम् [ आ + र् + अ ] 1. शिक्षण, अध्यापन, ( पाठादिक का) पढ़ाना - लङ्कास्त्रीणां पुनश्चक्रे विलापाचार्यकं शरैः -- रघु० १२:७८, - आचार्यकं विजयि मान्मथमाविरासीत् - मा० १।२६, 2. आध्यात्मिक गुरु की कुशलता । आचार्यानी [आचार्य + ङअप् आनुक्] आचार्य या धर्म गुरु की पत्नी, शत्रुमलमनुखाय न पुनर्द्रष्टुमुत्सहे, त्र्यंबकं देवमाचार्यमाचार्यानी च पार्वतीम् महावी० ३।६ | आचित (भू० क० कृ० ) [ आ + चि + क्त ] 1. पूर्ण, भरा हुआ, ढका हुआ - कचाचितो विष्वगिवागजी गजो - कि० १।३६, आचितनक्षत्रा द्यौः- आदि 2. बँधा हुआ, गुथा हुआ, बुना हुआ - अर्धाचिता सत्वरमुत्थि - ताया:- रघु० ७ १० कु० ७/६१, ३. एकत्रित, संचित, ढेर किया हुआ, तः 1 गाड़ी भर बोझ 2. ( नपुं० For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४२ ) भी) दस भार या गाड़ी भर की तोल (८०,००० | आजीविका [ आ+जीव् ।-अनकन्+टाप, अत इत्वम् ] तोला)। पेशा, जीवन निर्वाह का साधन, वृत्ति। आचूषणम् | आ+चूष + ल्युट ] 1. चूसना, चूस लेना 2. | आजुर--आज (स्त्री०) {आ|-ज्वर+क्विप, आ+जू+ चूस कर बाहर निकाल देना, (आयु० में) सिंगी क्विप् च 1. बेगार, बिना पारिश्रमिक प्राप्त किये काम लगाना । करना 2. बेगार में काम करने वाला 3. नरक वास । आच्छादः [ आ-छद् : णिच् +धा ] कपड़ा, पहनने का ! आज्ञप्तिः (स्त्रो०) [आ-+-ज्ञा-|-णिच् +-क्तिन, पुकागमः, वस्त्र। ह्रस्वश्च ] आदेश, हुकुम, आज्ञा । आच्छादनम् [आ+छद्+णिच् + ल्युट्]1. ढकना, छिपाना | आज्ञा [आ+ज्ञा | अङटाप् | 1. आदेश, हुकुम---तथेति 2.ढक्कन, म्यान 3. कपड़ा, वस्त्र - भूषणाच्छादनाशनः शेषामिव भर्तुराज्ञाम्- कु०३१२२ 2. अनुज्ञा, अनुमति । .-याज्ञ० १४८२, 4. छाजन । सम० अनुग,-अनुगामिन, अनुयायिन्,-अनुवतिन् आच्छुरित (वि०) [आ+छुर्+क्त ] 1. मिश्रित, ----अनुसारिन,-संपादक, वह (वि०) आज्ञाकारी, मिलाया हुआ 2. खुरचा हुआ, खुजलाया हुआ,--तम् आज्ञानुवर्ती, कर, कारिन (वि.) आज्ञा मानने 1. नखों को आपस में एक दूसरेसे रगड़ कर एक प्रकार वाला, आदेश का पालन करने वाला, आज्ञाकारी, का शब्द पैदा करना, नखवाद्य 2. ठहाका मार कर (-रः) सेवक, - करणम,—पालनम् आज्ञा मानना, हंसना, अट्टहास । आदेश का पालन करना,-पत्रम् हक्मनामा, लिखित आच्छरितकम् [ आच्छरित+कन् ] 1. नाखून की खरोच आदेश, -प्रतिघातः,--भंगः आज्ञा न मानना, आज्ञा के 2. अट्टहास । विरुद्ध कार्य करना -- नाजाभङ्ग सहन्ते तवर नृपतआच्छेदः ---दनम् [आ+छिद्+घञ -+ल्यूट वा] 1. काट यस्त्वादृशाः सार्वभौमाः-मुद्रा० ३।२२। देना, अपच्छेदन 2. जरा सा काटना । आज्ञापनम् आ-ज्ञा--णिच्--ल्युट्, पुकागमः ] 1. आदेश आच्छोटनम् [ आ+स्फुट् + ल्युट्– पृषो०] अंगुलियाँ देना, हुक्म देना 2. जतलाना । चटकाना। आज्यम् [ आज्यते--आ+अङ्ग्+क्यप् ] 1. पिघलाया आच्छोदनम् | आ| छिद्+ ल्युट् पृषो० इत ओत् ] शिकार हुआ घी, मन्त्रोहमहमेवाज्यम्---श०१ (यह बहुधा करना, पीछा करना। 'घत' से भिन्न समझा जाता है-सपिविलीनमाज्यं आजकम् [ अजानां समूहः अज- वुञ्] रेवड़, बकरों स्वाद घनीभूतं घृतं भवेत्) । सम० पात्रम् - स्याली का झुंड। पिघले हुए घी को रखने का बर्तन,- भुज् (पुं०) 1. आजगवम् [ अजगव+अण् ] शिव का धनुष । अग्नि का विशेषण 2. देवता । आजननम् [ आ-जन्- ल्युट ] ऊंचे कुल में जन्म होना, | आञ्चनम |आ+अञ्चल्यट] सींग, तीर या किसी ऐसे प्रसिद्ध या विख्यात कुल । ही और शस्त्र को थोड़ा खींच कर शरीर से बाहर आजानः [आ+जन् । घा] जन्म, कुल,-नम् जन्मस्थान । निकालना। आजानेय (वि०) (स्त्री०-यो) [आजे विक्षेपेऽपि आनेयः | आञ्छ (भ्वा० पर०)[आञ्छति, आञ्छित 1. लंबा करना, अश्ववाहो यथास्थानमस्य ---ब. स.] 1. अच्छी नस्ल | विस्तार करना, 2. विनियमित करना, (हड्डी या का (जैसे घोड़ा) 2. निर्भय, निश्शंक,–यः · अच्छी टांग आदि को) ठीक बैठाना । नस्ल का घोड़ा-शक्तिभिभिन्नहृदयाः स्खलन्तोऽपि पदे आञ्छनम् [ आञ्छ् + ल्युट ] (हड्डी या टांग का) ठीक पदे, आजानन्ति यतः संज्ञामाजानेयास्ततः स्मृताः बैठाना । -----शब्दक। आजनम् [अञ्जनस्येदम्-अण]1. मरहम, विशेषतः आंखों आजिः [ अजन्त्यस्याम्, अज् + इण् ] 1. युद्ध, लड़ाई, के लिए 2. चर्बी,-नः मारुति या हनुमान्,...दाशरथि संघर्ष ते तु यावन्त एवाजी तावान् स ददशे परैः-रघु० बलैरिवाञ्जननीलनलपरिगतप्रान्तै:--का० ५८ । १२।४५, 2. कुश्ती या दौड़ की प्रतियोगिता 3. रण- आजनी [अञ्जनस्येदम् -- अण, स्त्रियां डीप ] आंखों में क्षेत्र-शस्त्राण्याजो नयनसलिलं चापि तुल्यं मुमोच | डालने का मरहम या अंजन । सम०–कारी लेप या —विक्रम० ३९। उबटन आदि तैयार करने वाली स्त्री। आजीवः,-वनम् [आ+जी+घन, ल्युट वा] 1. | आञ्जनेयः [ अंजना-दक् | हनुमान् । जीविका, जीवननिर्वाह का साधन, भरण-भवत्या- | आटविकः [ अटव्यां चरति भवो वा--ठक् ] 1. वनवासी जीवनं तस्मात् —पंच० ११४८,तु० रूपाजीव, अजाजीव, जंगल में रहने वाला पुरुष 2. मार्गदर्शक, अगुआ । शस्त्राजीव आदि शब्दों की 2. पेशा, वृत्ति,-वः जैन- | आटिः [आ+अट् + इण् ] 1. एक प्रकार का पक्षी भिक्षुक । (शरारि)। For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आटीकनम् [आटोक् + ल्युट ] बछड़े को उछल-कूद। आण्डीर (वि.) [आण्डमस्ति अस्य-ईरन्] 1. बहुत अंडे आटीकरः [आटी-:-कृ+-अय् ] साँड । रखने वाला, 2. वयस्क, पूर्णवयस्क (जैसे कि सांड)। आटोपः [आ+तुप्+घञ पृषो० टत्वम् ] 1. घमंड, आतङ्कः [आतङ्क घा, कुत्वम् 1. रोग, शरीर को स्वाभिमान, हेकड़ी, साटोपम्--घमंड के साथ, राज- बीमारी-दीर्घतीवाभयग्रस्त ब्राह्मणं गामथापि वा, कीय या शाही ढंग से (रंगमंच के निर्देश के रूप में दृष्ट्वा पथि निरातङ्क कृत्वा वा ब्रह्महा शुचिः-याज्ञ० प्रायः प्रयुक्त) 2. सूजन, फैलाव, विस्तार, फुलाना ३.२४५ 2. पोड़ा, आधि, व्यथा, वेदना-किन्नि. -~-लो०--'फटाटोपो भयङ्कर:--शि० ३।७४। मितोऽयमातङ्कः-श० ३, आतङ्क स्फूरितकठोरगर्भआडम्बरः [ आ डम्ब्-अरन् ] 1. घमंड, हेकड़ी 2. गुर्वी-उत्तर० १२४९, विक्रम० ३१३, डर, आशंका दिखावा, संपत्ति, वाहरी ठाट-बाट--विरचितनारसिंह- .. पुरुषायुपजोविन्यो निरातङ्गा निरोतय:--रघ० रूपाइम्बरम्-का०५, निर्गणः शोभते नव विपुलाडम्बरो १।६३, भीति, वास 4. ढोल या तबले की आवाज। ऽपि ना-भामि० १११५, 3. आक्रमण के संकेतस्वरूप आतञ्चनम् [आ--तञ्च+ ल्युट्] 1. जमाना, गाढ़ा करना, बिगुल का बजना 4. आरंभ 5. प्रचण्डता, रोष, आवेश 2. जमा हुआ दूध 3. एक प्रकार को छाछ 4. प्रसन्न 6. हर्ष, प्रसन्नता 7. बादलों की गरज, हाथियों करना, सन्तुष्ट करना 5. भय, संकट 6. गति, वेग । को चिंघाड़ 8. युद्धभेरी 9. युद्ध का कोलाहल या | आतत (वि०) |आ+तन्+क्त 1. फैलाया हुआ, विस्ताशोर-गल। रित 2. ताना हुआ (जैसे कि धनुष की डोरी) । आडम्बरिन् (वि.) [आडम्बर+इनि | हेकड़, घमंडी।। | आततायिन (वि० या-संज्ञा) [आततेन विस्तीर्णन शस्त्राआढकः --कम् [आ। ढोक---घज, पषो०] अनाज की दिना अयितुं शीलमस्य-तारा०] 1. किसी का वध माप, चौथाई द्रोण - अष्टमुष्टिर्भवेत् कुचिः कुंचयोऽप्टो करने के लिए प्रयत्नशील, साहसी गरुं वा बाल वृद्धौ तु पुष्कलम्, पुष्कलानि च चत्वारि आढक: परि- बा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं, आततायिनमायान्तं हन्यादेवाकीतितः । विचारयन् । मन० ८।३५०-१, भग० २३६, 2. आढच (वि०) [आ+ध्य+क, पृषो०-तारा०] 1. धनी, जघन्य पाप करने वाला जैसे कि चोर, अपहरणकर्ता, धनवान् –आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदशो हत्यारा, आग लगाने वाला महापातकी आदि-अग्निदो मया-भग० १६.१५, पंच ५।८, 2. (क) सम्पन्न, गरदश्चैव शस्त्रोन्मत्तो धनापहः, क्षेत्रदारहरश्चैतान् समृद्ध, सम्पन्नतायुक्त, (करण. या समास के अंतिम षड् विद्यादाततायिनः--शुक्र०।। पद के रूप में)-सत्य पंच ३.९, विल्कुल सच्चा | आतपः (आ- तप्- घश] 1. गर्मी (सूर्य, अग्नि आदिकी) -बंशसंपल्लावण्याझ्याय-दश० १८ (ख) मिश्रित, धप, -आतपायोज्झितं धान्यं -महा०, धूप में डाला सिञ्चित, गन्धाढय:, स्रज उत्तमगन्धाढ्या:-- महा0 3. हा: प्रचंड -ऋतु० ११११ 2. प्रकाश । सम०-अत्ययः प्रचुर, पर्याप्त। सम० .. चर (वि.) [स्त्री०- री] सूर्य को गर्मी (धूप) का गुजरना, या बीत जाना, सूर्यास्त जो कभी ऐश्वर्यशाली रहा हो । ----आतपात्ययसंक्षिप्तनीवारासु-रघु० ११५२,-अभाव: आढयङ्करण (वि.) [स्त्री०---णी] समृद्ध करना,--णम् छाया, उदकम् मरीचिका,..त्रम्,-त्रकम् छाता समृद्ध करने का साधन, धन ।। -----तमातपक्लान्तमनातपत्रं-रघु० २।१३, ४७, पद्म आढचम्भविष्णु,-- भावुक (वि.) [आढयं-भू + इष्णुख, ४१५ राज्यं स्वहस्तधृतदण्डमिवातपत्रम् --श० ५।६, उका वा धन सपन्न या प्रतिष्ठित होने वाला। -लङ्घनम् गर्मी या धूप में रहना, लू लग जाना आणक (वि.) [अणक+अण] नीच, ओछा, अधम-कम --आतपलङ्घनादलबदस्वस्थशरीरा शकुन्तला---श० विशेष आसन में होकर मैथुन करना, रतिबंध--आणक ३, ---वारणम् छाता छतरी-नृपतिककुदं दत्वा यूने सुरतं नाम दम्पत्योः पार्श्वसंस्थयोः । सितातपवारणम्-रघु० ३।७०, ९।१५,---शुष्क (वि.) आणव (वि०) (स्त्री०-वी) [अणु+अण्] अत्यन्त धूप में सुखाया हुआ। छोटा,-वम् अत्यंत छोटापन या सूक्ष्मता। आतपनः [आ-त+णिच् + ल्यट] शिव । आणिः (पुं० स्त्री०) [अण्+इण्] 1. गाड़ी के धुरे की | आत (ता) रः [आतरति अनेन आ-+त+अप, घा वा] कील, अक्षकील 2. घुटने के ऊपर का भाग 3. हृद, दरिया की उतराई, मार्गव्यय, भाड़ा। सीमा 4. तलवार की धार । आतर्पणम् [आ+तृप+ल्युट्] 1. सन्तोष 2. प्रसन्न करना, आण्ड (वि.) [अण्डे भवः—अण] अंडे से पैदा होने वाला | सन्तुष्ट करना, 3. दीवार या फर्श पर सफेदी करना (जैसे कि पक्षी),--: हिरण्यगर्भ या ब्रह्मा की उपाधि (उत्सव आदि के अवसर पर)। ---उम् 1. अंडों का ढेर, पशु-पक्षियों का समूह, पक्षि- आतापि (यि) न् [आ+तप् (ताय)+णिनि] एक पक्षी, • शावक 2. अंडकोष, फोता। चील। For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४४ आतिथेय ( वि० ) [स्त्री० - यी ] [ अतिथिषु साधुः ढञ अतिथये इदं ढक् वा ] 1. अतिथियों की सेवा करने वाला, अतिथियों के उपयुक्त - प्रत्युज्जगामातिथिमातिथेय: रघु०५/२, १२/२५ तमातिथेयी बहुमानपूर्वया कु०५/३१, 2. अतिथि के उचित या उपयुक्त - आतिथेयः सत्कारः श० १, यम् अतिथि सत्कार -आतिथेयमनिवारितातिथिः – शि० १४१३८, सज्जातिथेया वयं - मा० २५०, यी सत्कार, मेहमान नवाजी -भामि० ११८५ । - आतिथ्य ( वि० ) [ अतिथि + ष्यञ् ] सत्कारशील, अतिथि के लिए उपयुक्त - थ्यः अतिथि, ध्यम् सत्कारपूर्वक स्वागत, अतिथि सत्कार - तथातिथ्यक्रियाशांत रथक्षोभ परिश्रमम् रघु० १ ५८ । आतिदेशिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अतिदेश + ठक् ] ( व्या० में) अतिदेश से सम्बद्ध-तु० । आतिरे ( 1 ) क्यम् [ अतिरेक + प्यत्र पक्षे उभयपद वृद्धिः ] फालतूपन, अधिकता, बहुतायत । आतिशय्यम् [ अतिशय + ष्यञ] अधिकता, बहुतायत, बृहत् परिमाण । आतुः [ अत् + उण् ] लट्ठों का बना बेड़ा, घन्नई ( घड़ों को बाँध कर बनाई गई नौका) । आतुर (वि० ) [ ईषदर्थे आ + त् + उरच् ] 1. चोटिल, घायल 2. ( रोग से ग्रस्त, प्रभावित, पीड़ित - राव - णावरजा तत्र राघवं मढनातुरा - रघु० १२/३२: काम, भय आदि 3. रुग्ण ( मन या शरीर से ), आकाशेशास्तु विज्ञेया बालवृद्धकृशातुराः मनु० ४।१८३, 4. उत्सुक, उतावला 5. दुर्बल, कमजोर र रोगी । सम० - शाला हस्पताल | आतोयम्,- धकम् [आ + तुद् + ण्यत्, स्वार्थे कन् च | एक प्रकार का वाद्ययंत्र आतोद्यविन्यासादिका विधयः - वेणी० १ स्रजमातोद्यशिरोनिवेशिताम्- रघु० ८ ३४, १५१८८, उत्तर० ७ । आत्त (भू० क० कृ० ) [ आ + दा+क्त] 1. लिया हुआ, प्राप्त किया हुआ, माना हुआ, स्वीकार किया हुआ -- एवमात्तरतिः- रघु० ११।५७, मालवि० ५1१, 2. अंगीकार किया हुआ, उत्तरदायित्व लिया हुआ 3. आकृष्ट 4. खींचा हुआ, निस्सारित-गामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य-- रघु० ५।२६ इसी प्रकार आत्तबलं ११/७६ ले जाया गया । सम० - गन्ध (वि० ) 1 जिसका घमंड निकाल दिया गया हो, आक्रान्त, पराजित केनात्तगन्धो माणवक: शं० ६ 2. संधा हुआ ( जैसे कि फूल ) - आत्तगन्धमवधूय शत्रुभिः शि० १४१८४ ( यहाँ आ° नं० 1 में बताये अर्थ भी रखता है), गर्व (वि०) अवमानित, तिरस्कृत, अनादृत, दण्ड (वि०) राजकीय दण्ड को धारण करने ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, मनस्क (वि०) जिसका मन (हर्प आदि के कारण ) स्थानान्तरित हो गया हो । आत्मक ( वि० ) [ आत्मन् । कन् । ( समास के अन्त में ) से बना हुआ, से रचा हुआ, स्वभाव का लक्षण का, पंच पाँच तहों वाला, संशय = संदिग्ध स्वभाव का, इसी प्रकार दुःखी, दहन" । आत्मकोय, आत्मीय (वि०) [आत्मक (न्) + छ] अपनों से सम्बन्ध रखने वाला, अपना सर्वः कान्तमात्मीयं पश्यति श० २, स्वामिनमात्मीयं करिष्यामि हि० २, जीत लेना, प्रसादमात्मीयमिवात्मदर्शः रघु० ७/६८, कु० २०१९, बन्धु, सम्बन्धो, बान्धव । आत्मन् (पुं० ) [ अत् + मनिण् ] 1. आत्मा, जीव किमात्मना यो न जितेन्द्रियो भवेत् हि० १, आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु - कठ० ३1३, 2. स्व, आत्म- इस अर्थ में प्रायः यह शब्द तीनों पुरुषों में तथा पुल्लिंग के एक वचन में प्रयुक्त होता है चाहे उस संज्ञा शब्द का लिंग, वचन कुछ ही हो जिसका यह उल्लेख करता है --- आश्रमदर्शनेन आत्मानं पुनोमह श० १, गुप्तं ददृशुरात्मानं सर्वाः स्वप्नेषु वामनैः रघु० १०/६०, देवी ...प्राप्तप्रसवमात्मानं गङ्गादेव्यां विमुञ्चति -- उत्तर० ७१२, गोपायन्ति कुलस्त्रिय आत्मानमात्मना - महा०, 3. परमात्मा, ब्रह्म तस्माद्वा एतस्मादात्मनः आकाशः संभूतः उप०, उत्तर० ११, 4. सार, प्रकृति दे० 'आत्मक' ऊपर 5. चरित्र, विशेषता 6. नैसर्गिक प्रकृति या स्वभाव 7. व्यक्ति या समस्त शरीर स्थितः सर्वोन्नतेनोर्वी श्रान्त्वा मेरुरिवात्मना - रघु० १।१४, मनु० १२ १२, ४. मन, बुद्धि मंदात्मन् महात्मन् आदि 9. समझ तु० आत्मसम्पन्न, आत्मवत् आदि 10. विचारणशक्ति, विचार और तर्कशक्ति 11. सप्राणता, जीवट, साहस 12. रूप, प्रतिमा 13. पुत्र आत्मा वै पुत्रनामासि 14. देखभाल, प्रयत्न 15. सूर्य 16. अग्नि 17. वायु' से बना या से युक्त अर्थ को प्रकट करने के लिए 'आत्मन्' शब्द समास के अन्त में प्रयुक्त होता है- दे० आत्मक | सम० -- अधीन (वि० ) अपने ऊपर आश्रित, स्वाश्रित, निराश्रित (नः) 1 पुत्र 2. साला, पत्नी का भाई 3. मसखरा या विदूषक (नाटय साहित्य में ), अनुगमनम् व्यक्तिगत सेवा, अपहारः अपने आप को छिपाना - कथं वा आत्मापहारं करोमि श० १, - अपहारकः छद्मवेषी, कपटी, आराम (वि०) 1 ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील (जैसे कि कोई योगी), आत्मज्ञान का अन्वेषक - आत्मारामा विहितरतयो निविकल्पे समाधी - वेणी० १।२३. 2. अपने आप में प्रसन्न, आशिन् (पुं० ) मछली ( ऐसा समझा जाता है कि मछली अपने बच्चों को या अपनी जाति के For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सबसे कमजोर जीवों को खाकर पलती है) तु०-मत्स्या इव जना नित्यं भक्षयन्ति परस्परम-रामा०,-आश्रयः अपने ऊपर निर्भर करना,-ईश्वर (वि०) आत्मसात्कृत, अपना स्वामी आप-आत्मेश्वराणां न हि जातु विघ्नाः समाधिभेदप्रभवो भवन्ति—कु० ३।४०, -उद्धवः 1. पुत्र 2. कामदेव (-वा) पुत्री,-- उपजीविन् (पुं०) 1. जो अपने परिश्रम पर निर्भर करता है, श्रमिक 2. मजदूर 3. जो अपनी पत्नी के ऊपर आश्रित रहता है (मनु० ८।३६२ पर कुल्लक), 4. पात्र, सार्वजनिक अभिनेता,--काम (वि.) 1. अपने आप को प्रेम करने वाला, अभिमान से युक्त, घमंडी 2. ब्रह्म या परमात्मा को प्रेम करने वाला,--गत (वि०) मन में उपजा हुआ,- तो मनोरथः-श०१, (-तम्) [अव्य.] एक ओर, जो मन में कहा हुआ समझा जाय (विप० प्रकाशम-जोर से) (यह बहुधा रंगमंच के निर्देश के रूप में नाटकों में प्रयुक्त होता है) ---यह 'स्वगत' का ही पर्याय है जिसकी परिभाषा यह है:--अश्राव्यं खलु यद्वस्तु तदिह स्वगत मतम् ....सा. द०६,---गुप्तिः (स्त्री०) गुफा, किसी जानवर के छिपने का स्थान,--ग्राहिन (वि०) स्वार्थी, लालची, -धातः 1. आत्महत्या, 2. नास्तिकता,--घातकः, --घातिन् (पुं०) 1. आत्महत्यारा अपने आप को स्वयं मारनेवाला, ... व्यापादयेत् वृथात्मानं स्वयं योऽन्युदकादिभिः, अवधेनैव मार्गेण आत्मघाती स उच्यते ॥ 2. नास्तिक,..---घोषः 1. मुर्गा 2. कौवा ----जः-जन्मन् (पुं०),-जातः,-प्रभवः,- सम्भवः 1. पुत्र-तमात्मजन्मानमजं चकार-रघु० ५१३६. । तस्यामात्मानुरूपायामात्मजन्मसमुत्सुकः-रघु० ११३३, । मा० १, कु० ६।२८, 2. कामदेव,-जा 1. ! पुत्री-वंद्य युगं चरणयोर्जनकात्मजाया. ---रघु० १३। ७८, तु० नगात्मजा आदि 2. तर्कशक्ति, समझ,-जयः अपने ऊपर विजय प्राप्त करना, आत्मत्याग, आत्मोत्सर्ग,-ज्ञः,-विद् (पुं०) ऋषि, जो अपने आप को जानता है, -- ज्ञानम् 1. आत्मा या परमात्मा की जानकारी, 2. अध्यात्म ज्ञान,-तत्वम् आत्मा या परमात्मा की वास्तविक प्रकृति, त्यागः 1. स्वार्थत्याग 2. दूसरे के भले के लिए अपनी हानि करना, आत्महत्या, त्यागिन् (पं०) 1. आत्महत्या करने वाला-आत्म त्यागिन्यो नाशौचोदकभाजनाः- याज्ञ० ३१६, 2. नास्तिक ---त्राणम् 1. आत्मरक्षा 2. शरीर-रक्षक,--दर्शः आईना –प्रसादमात्मीयमिवात्मदर्श:-- रघु० ७.६९, --दर्शनम् 1. अपने आपको देखना 2. आध्यात्मिक ज्ञान,--द्रोहिन् (वि०) 1. अपने आपको पीडित करने वाला 2. आत्महत्या करने वाला--नित्य (वि०) । . लगातार हृदय में होने वाला, अपने आपको अति प्रिय, । -निन्दा अपनी निंदा,-निवेदनम् अपने आपको प्रस्तुत करना (जैसे किसी प्राणी का किसी देवता के प्रति बलिदान)निष्ठ (वि०) आत्मज्ञान का अनवरत अन्वेषक, प्रभ (वि.) स्वयं प्रकाशवान् -प्रभवः-जः,--प्रशंसा अपने मुंह मियाँ मिळू बनना,-बन्धुः,-बान्धवः अपना निजी संबंधी-आत्ममातुः स्वसुः पुत्रा आत्मपितुः स्वसुः सुताः, आत्ममातुलपुत्राश्च विज्ञेया ह्यात्मबान्धवा:-शब्दक०। अर्थात् मौसी का पुत्र, भुवा का पुत्र, और मामा का पुत्र, बोधः 1. आध्यात्मिक ज्ञान 2. आत्मा का ज्ञान,-भूः, -योनिः 1. ब्रह्मा, वचस्यवसिते तस्मिन् ससर्ज गिरमात्मभूः—कु० २।५३, 2. विष्णु 3. शिव-श०७१ ३५ 4. कामदेव, प्रेम का देवता 5. पुत्र (स्त्री०-भूः) 1. पुत्री 2. बुद्धिवैभव, समझ,–मात्रा परमात्मा का अंश,—मानिन् (वि.) 1. स्वाभिमानी, आदरणीय 2. घमंडी,-याजिन् (वि०) अपने लिए यज्ञ करने वाला, (पुं०) विद्वान् पुरुष जो शाश्वत आनन्द प्राप्त करने के लिए अपने तथा दूसरे व्यक्तियों की आत्मा का अध्ययन करता है, जो सब प्राणियों को अपने समान समझता है-सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि, समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यमधिगच्छति --मनु० १२१९१,---योनिः -भू (पुं०), कु० ३१७० – रक्षा अपना बचाव,-लाभः जन्म, उत्पत्ति, मूल -यैरात्मलाभस्त्वया लब्धः--मुद्रा०३।१,५।२३, कि० ३।२३ १७।१९,--वंचक (वि.) अपने आपको धोखा देने वाला,---वंचना आत्म-भ्रम, अपने को धोखा देना, - वधः,--बध्या, हत्या अपनी हत्या स्वयं करना, ---वश (वि०) अपनी इच्छा पर आश्रित रहने वाला (-शः) 1. आत्मनियन्त्रण, आत्म-प्रशासन 2. अपना नियन्त्रण, अधीनता, शं नी, वशीकृ अधीन करना, विजय प्राप्त करना,-वश्य (वि०)अपने ऊपर नियन्त्रण रखने वाला, आत्मसंयमी, अपने मन व इन्द्रियों को वश में रखने वाला,-विद (०) बुद्धिमान् पुरुष, ऋषि, जैसा कि 'तरति शोकमात्मवित्' में,--विद्या आत्मा का ज्ञान, अध्यात्म-ज्ञान,—बीर: 1. पूत्र 2. पत्नी का भाई 3. विदूषक (नाटकों में),-वृत्ति (वि.) आत्मा में रहने वाला (तिः- स्त्री०) 1. हृदय की अवस्था, अपने से संबंध रखने वाली चेष्टाएँ, अपनी निजी अवस्था या परिस्थिति--विस्माययन् विस्मितमात्मवृत्तौ--रघु० २।३३,--शक्तिः (स्त्री०) अपनी निजी सामर्थ्य या योग्यता, अन्तहित शक्ति या बल —देवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या---पंच०११३६१, अपनी शक्ति के अनुसार, इलाघा, स्तुतिः (स्त्री०) अपनी प्रशंसा स्वयं करना, शखी बधारना, डींग मारना,---संयमः अपनी इन्द्रियों पर काबू रखना, For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -संभवः-समुद्भवः 1. पुत्र-चकार नाम्ना रघु- आत्रेय (वि.) (स्त्री०-यी)[ अत्रि+ठक ] अत्रि से संबंध मात्मसंभवम्-रघु०३।२१,१११५७,१७।८2. प्रेम | रखने वाला, या अत्रि की संतान,--यः अत्रि का का देवता, कामदेव 3. ब्रह्मा की उपाधि, शिव, विष्णु वंशज, यी 1. अत्रि की पुत्री 2. अत्रि की पत्नी (--चा) 1. पुत्री 2. समझ,-संपन्न (वि०) 1. स्वस्थ- 3. रजस्वला स्त्री। चित्त, 2. बुद्धिमान्, प्रतिभाशाली,-हन = घातिन्, | आत्रेयिका [आत्रेयी+कन्+टाप, ह्रस्वः] रजस्वला स्त्री। -हननम्,-हत्या आत्मघात,-हित (वि.) अपने आथर्वण (वि.) (स्त्री०---णी) [अथर्वन्+अण्] अथर्वलिए हितकर,(-तम्) अपना निजी भला या कल्याण । वेद या अथर्वा ऋषि से संबंध रखने वाला,-ण: 1. मात्मना (अध्य०) [ 'आत्मन्' का करण० ए० व.] आत्म अथर्ववेद का अध्येता या ज्ञाता ब्राह्मण 2. यज्ञ का बाची कर्तृकारक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है पुरोहित जिससे संबद्ध यज्ञ कर्म पद्धति का विधान अथ बास्तमिता त्वमात्मना-रघु०८।५१, तुम स्वयम्, अथर्ववेद में निहित है 3. स्वयं अथर्ववेद 4. गृहयह प्रायः क्रमिक संख्यासूचक शब्दों के साथ जोड़ा | पुरोहित । जाता है-उदा०-द्वितीयः आप सहित दूसरा अर्थात् आथर्वणिकः । अथर्वन --ठक अथर्ववेद का अध्येता ब्राह्मण। वह तथा स्वयं । आदंशः [आ+दंश्+घञ ] 1. डंक, डंक मारने से पैदा मात्मनीन (वि.) आत्मन+ख] 1. अपने से संबंध रखने __ हुआ घाव, 2. डंक, दांत । बाला, अपना निजी,—कस्यैष आत्मनीन:----मालदि. आवरः [ आ+द+अप्] 1. आदर, पूज्यभाव, सम्मान, ४, 2. अपने लिए हितकर-आत्मनीनमुपतिष्ठते-कि० -निर्माणमेव हि तदादरलालनीयम-मा० ९।४९, न १३॥६९,-न: 1. पुत्र 2. पत्नी का भाई 3. विदूषक जातहार्देन न विद्विषादरः-कि० ११३३, कु. ६३२० (नाटकों में)। 2. अवधान, सावधानी, सम्मान्य व्यवहार, कु० ६१९१, मात्मनेपदम [ आत्मने आत्मार्थ-फलबोधनाय पदम्-अलुक 3. उत्सुकता, इच्छा, स्नेह-भूयान्दारार्थमादरः कु० स.] 1. आत्मवाची क्रियापद, दो प्रकार के क्रियापदों ६१९३, यत्किञ्चनकारितायामादरः----का० १२२, 4. (परस्मैपद तथा आत्मनेपद) में से एक जिनमें कि संस्कृत प्रयत्न चेप्टा-गृहयंत्रपताकाश्रीरपौरादरनिर्मिता-कु० भाषा की धातु-रूपावली पाई जाती है, 2. आत्मनेपद ६।४१, 5. उपक्रम, आरंभ 6. प्रेम, आसक्ति । के प्रत्यय । आवरणम् [ आ+द+ल्युट् ] सत्कार, इज्जत, सम्मान । मात्मभरि (वि.) [आत्मानं बिभर्ति इति-आत्मन्+भू आदर्शः [ आ-+-दृश्+घञ 11. आईना, मुंह देखने का +खि, मुम् च ] स्वार्थी, लालची, ( जो केवल अपनी शीशा, दर्पण-आत्मानमालोक्य च शोभमानमादर्शबिबे ही उदरपूर्ति करता है)--आत्मम्भरिस्त्वं पिशितैर्न स्तिमितायताक्षी–कु. ६२२. 2. मूल पांडुलिपि राणाम्-भट्टि० २१३३, हि० ३।१२१ । जिससे प्रतिलिपि तैयार की जाय, (आलं०) नमूना, मात्मवत् (वि.) [आत्मन् + मतुप्-मस्य वः ] 1. स्वस्थ- प्रतिकृति, प्रकार, आदर्शः शिक्षितानाम् - मृच्छ० वित्त, 2. शान्त, दूरदर्शी, बुद्धिमान् - किमिवावसाद ११४८; आदर्शः सर्वशास्त्राणाम् - का० ५, इसी करमात्मवताम्--कि० ६।१९ । प्रकार,—गुणानाम् -आदि 3. कार्य की एक प्रति भात्मवत्ता [आत्मवत्+तल-+टाप् स्वस्थचित्तता, स्वनि- | लिपि 4. टीका, भाष्य। यंत्रण, बुद्धिमत्ता-प्रकृतिष्वात्मजमात्मवत्तया-रघ० आवर्शकः [ आदर्श-+-कन् ] दर्पण, आईना । ८1१०, ८४ । आदर्शनम् [ आ+दृश् + ल्युट् ] 1. दिखलावा, प्रदर्शन मात्मसात् (अव्य०) [आत्मन+साति ] अपने अधिकार 2. दर्पण । में, अपना निजी,(प्राय: 'कृ' और 'भू' के साथ]-दुरित- | आदहनम् [आदहल्युट्] 1. जलन 2. चोट पहुँचाना, रपि कर्तुमात्मसात् - रघु० ८।२।। हत्या करना 3. खरी-खोटी सुनाना, घृणा करना भात्यंतिक (वि.) (स्त्री०---की) [ अत्यन्त+ठा ] 1. 4. श्मशान । सतत, अनवरत, अनन्त, स्थायी, नित्यस्थायी —स आवानम् [आ+दा+ल्युट् ] 1. लेना, स्वीकार करना, श्रात्यन्तिको भविष्यति----मुद्रा०४, विष्णुगप्तहतकस्या- पकड़ना-कुशाङकुरादानपरिक्षताङगुलि:-कू० ५।११, त्यन्तिकश्रेयसे–२।१५, भग०६।२१, 2. अत्यधिक, आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव-रघु० प्रचुर, सर्वाधिक 3. सर्वोच्च, पूर्ण-आत्यन्ति की स्वत्व- ४१८६, 2. उपार्जन, प्रापण 3. (रोग का) लक्षण । निवृत्तिः-मिता। आदायिन् (वि.) [ आ+दा+णिनि ] ग्रहण करने वाला, भाल्पपिक (वि.) [स्त्री०--की] [ अत्यय-+ठक ] 1. | प्राप्त करने वाला। नाशकारी, सर्वनाशकर 2. पीडाकर, अमंगलकर, अशुभ- | आदि (वि.) [ +दा+कि] 1. प्रथम, प्राथमिक, . सूचक 3. अत्यावश्यक, अपरिहार्य, आपाती। आदिम-निदानं त्वादिकारणम्-,अमर०, 2. मुख्य, For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४७ ) पहला, प्रधान, प्रमुख ----प्रायः समास के अन्त में-इसी । उत्पन्न हुआ,(-वः,-तः) 'आदिजन्मा' आदिम अर्थ में नी० दे० 3. समय की दृष्टि से प्रथम, दिः प्राणी, ब्रह्मा को उपाधि. 2. विष्णु-रसातलादादि1. आरंभ, उपक्रम (विप० 'अन्त')-अप एव ससर्जादौ । भवेन पुंसा-रघु० १३८, 3. बड़ा भाई,-मूलम् तासु बीजमवासृजत्---मनु० ११८, भग० २१४१, पहली नींव, आदिम कारण,--बराहः 'प्रथमशूकर जगदादिरनादिस्त्वम् -कु० २।९, समास के अन्त में विष्णु की उपाधि-उसके तृतीय अवतार (वराप्रयुक्त होकर बहुधा निम्नांकित अर्थों में अनदित हावतार) की ओर संकेत-शक्तिः ( स्त्री०) किया जाता है-'आरंभ करके' 'बगैरा' २ 'इसी 1. माया की शक्ति 2. दुर्गा की उपाधि, सर्गः प्रकार और भी (उसी प्रकृति और प्रकार के), | प्रथम सृष्टि । 'ऐसे'-- इन्द्रादयो देवा:- इन्द्र तथा अन्य देवता, या आदितः, आदौ (अव्य०) [ आदि+तसिल, अषि. ए. 'भू' आदि से आरंभ होने वाले शब्द धातु कहलाते हैं। व.] आरंभ से लेकर, सबसे पहले-तद्देवेनादितो और पाणिनि के द्वारा वह प्रायः व्याकरण के शब्द- हतम्-उत्तर० ५।२०।। समूह को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किये गये | आदितेयः [ अदिति+ढक् ] 1. अदिति का पुत्र 2. देवता, हैं -- अदादि, दिवादि, स्वादि इत्यादि, 2. पहला भाग । सामान्य देव ।। या खंड, 3. मुख्य कारण। सम०---अन्त (वि.) आदित्यः अदिति+ण्य ] 1. अदिति का पुत्र, देव, देवता जिसका आरंभ और समाप्ति दोनों हों (---तम्) 2. बारह आदित्यों (सूर्य के भाग) का समुदायवाचक आरंभ और अन्त ; °वत्-सान्त, समापिका,--उदात्त नाम- आदित्यानामहं विष्णुः-भग०१०।२१, कु. (वि०) वह शब्द जिसके आरम्भिक अक्षर पर स्वरा- २।२४ (यह बारह आदित्य केवल प्रलयकाल में उदित घात हो, करः,-कर्त,—कृत् (पं०) सृष्टिकर्ता, होते हैं)---तु० वेणी० ३१६, दग्धं विश्वं दहनकिरणब्रह्मा का विशेषण-भग० १११३७ - कविः प्रथम नोंदिता द्वादशार्काः 3. सूर्य 4. विष्णु का पांचवां अवकवि, ब्रह्मा की उपाधि- क्योंकि उसी ने संसार की तार, वामनावतार । सम-मंडलम् सूर्यमंडल,-अनुः सर्वप्रथम रचना की तथा वेदों का ज्ञान दिया, सूर्य का पुत्र, सुग्रीव, यम, शनि, कर्ण। वाल्मीकि की उपाधि - क्योंकि उसी ने सर्वप्रथम ) आदि (दी) नवः-वम् [आ+दी+क्त= आदीनस्य कवियों का पथप्रदर्शन किया-जब कि उसने क्रौंच वानम्--वा+क] 1. दुर्भाग्य, कष्ट, 2. दोष-दे० दम्पती के एक पक्षी को व्याध के द्वारा मारा जाता। ___'अनादीनव' । हुआ देखा, उसने उस दुष्ट व्याध को शाप दिया | आदिम (वि.) [आदौ भव:- आदि+डिमच् ] प्रथम, और उसका वही शोक अपने आप कविता के रूप में पुरातन, मौलिक। प्रकट हुआ (श्लोकत्वमापद्यत यस्य शोकः), | आदीनव-दे० 'आदिनद' । इसके पश्चात् ब्रह्मा ने वाल्मीकि को राम का चरित | आदीपनम् [आ+दीप-ल्युट्] 1. आग लगाना 2. भड़लिखने के लिए कहा, फलस्वरूप संस्कृत साहित्य में काना, संवारना 3. उत्सवादिक अवसर पर दीवार प्रथम काव्य 'रामायण' के रूप में प्रकट हुआ,-कांडम् । फर्श आदि को चमका देना । रामायण का प्रथम खण्ड, - कारणम् (विश्व का) आदत (भू० क० कृ०) [आ-|-दृ+क्त ] 1. सम्मानित, प्रथम या मुख्य कारण, जो कि वेदान्तियों के अनुसार प्रतिष्ठित, 2. (कर्तवाच्य के रूप में) (क) उत्साही, 'ब्रह्म' है, तथा नैयायिकों -... विशेषतः वैशेषिकों के परिश्रमी, दत्तचित्त, सावधान, (ख ) सम्मान अनुसार विश्व का प्रथम या भौतिक कारण 'अणु' है, युक्त। परमात्मा नहीं; - - काव्यम् प्रथम काव्य. अर्थात् | आदेखनम् | आ+दिव्---ल्यट] 1. जआ खेलना 2. जआ वाल्मीकि रामायण ---दे० 'आदि कवि,-देवः 1. खेलने का पासा 3. जूआ खेलने की बिसात, खेलने का प्रथम या सर्वोच्च परमात्मा--पुरुषं शाश्वतं दिव्यं । | स्थान । आदिदेवमजं विभुम् -- भग० १०।१२, १११३८, 2. | आदेशः [ आ+दिश्+घ ] 1. हुक्म, आज्ञा--भ्रातुरादेनारायण या विष्णु 3. शिव 4. सूर्य,-दैव्यः हिरण्य- शमादाय-रामा०, आदेशं देशकालज्ञः प्रतिजग्राह कशिपु की उपाधि, --पर्वन् महाभारत का प्रथम खंड, --रघु० ११९२, राजद्विष्टादेशकृतः--याज्ञ० २।३०४, -पु (पू) रुषः 1. सर्वप्रथम या आदिम प्राणो, सृष्टि राजा के द्वारा निषिद्ध कार्यों को करने वाला 2. सलाह, का स्वामी 2. विष्णु, कृष्ण या नारायण-ते च प्रापुरु- निर्देश, उपदेश, नियम 3. विवरण, सूचना, संकेत 4. दन्वन्तं बुबुधे चादिपूरुषः-रघु० १०॥६७ तमर्य- भविष्यकथन--विप्रश्निकादेशवचनानि का०६४, 5. मादिकयादिपुरुष:--शि० १११४-बलम जननात्मक (व्या०) स्थानापन्न-धातोः स्थान इवादेशं सुग्रीवं शक्ति, प्रथम वीर्य,-भव,-भूत (वि.) 1. सर्वप्रथम ! संन्यवेशयत्-रघु० १२।५८ । For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४८ [+ विश्+ णिनि ]1. आदेश देने वाला, हुक्म देने वाला 2. उत्तेजक, भड़काने वाला - रघु० ६८, - ( पुं० ) 1. सेनापति, आज्ञप्ता 2. ज्योतिषी । (वि० ) [ बादी भवः यत् ] 1. प्रथम, आदि कालीन 2. मुखिया, प्रमुख, अगुआ - आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्छन्दसामिव र५० १।११ 3. ( समास के अन्तमें) आरंभ करके, वगैरा २, दे० आदि - 1. दुर्गा की उपाधि 2. मास का पहला दिन, खम् 1 आरंभ 2. अनाज, आहार । सम० कविः 'आदिकवि ब्रह्मा या काल्मीकि की उपाधि दे० 'आदिकवि' । बीजम् विश्व का मुख्य या भौतिक कारण जो सांख्य मतानुसार 'प्रधान' या जडनियम कहलाता है। आखून (वि० ) [ आ + दिव् + क्त, ऊठ् नत्वं च 'अद्' "खाना से व्युत्पन्न प्रतीत होता है ] बहुभोजी, घाउषप, पेटू, मुक्खड़ कि० ११५ । ': [. आ + त् + घञ्ञ ] प्रकाश, चमक ! [+ + कमनन् ] 1. धरोहर, निक्षेप-एको 'हांनीश: सर्वत्र दानाधमनविक्रये कात्या०; योगाधमनविक्रीतं योगदानप्रतिग्रहम् - मनु० ८ १६५, 2. विक्री के सामान का घूर्तता के साथ मूल्य चढ़ाना । अघमर्थ्यम् [ अधमर्ण + ष्यञ ] कर्जदारी । arette (वि०) [ अधर्म + ठज्ञ ] अन्यायी, बेईमान । आधर्वः [ आ + ष् + घञ्ञ ] 1. घृणा 2. बलात् चोट पहुँचाना आपणम् [ आ + ष् + ल्युट् ] 1. दोष या अपराध का निश्चय, दण्डादेश 2. निराकरण 3. चोट पहुँचाना, सताना । Water (भू० क० कृ० ) [ आ + घृष् + क्त ] 1. चोट पहुंचाया हुआ, 2. तर्क द्वारा निराकृत 3. दण्डादिष्ट, सिद्ध-दोष | [ आ + घा+ ल्युट् ] 1. रखना, ऊपर रख देना 2. केना, मान लेना, प्राप्त करना, वापिस लेना, 3. यज्ञाग्मि को स्थापित करना ( अग्न्याधान ) - पुनर्दार क्रियां कुर्यात् पुनराधानमेव च मनु० ५।१६८, 4. करना, कार्य में परिणत करना, निष्पन्न करना 5. बीच में रखना, रख देना, गुंणो विशेषाधानहेतु: सिद्धो वस्तुधर्मः - सा० द०२, प्रजानां विनयाधानाक्षणाङ्कुरणादपि रघु० १।२४6. वीजारोपण, उत्पादन- कौतुकाधानहेतोः मेघ० ३, गर्भाधानक्षणपरिपयात्-९, 7. निक्षेप, धरोहर - याज्ञ० २२२३८, । २४७ । आधानिकः [ आधान + ठञ् ] सहवास के पश्चात् गर्भाधान के निमित्त किया जाने वाला संस्कार । आधारः [ आ + + षब्न ]1. आश्रय, स्तंभ, टेक 2. ( अतः ) संभाले रखने की शक्ति, सहायता, संरक्षण, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदद - त्वमेव चातकाधारः - भर्तृ० २।५०, 3. भाजन आशय - तिष्ठन्त्वाप इवाधारे पंच० १ ६७, चराचराणां भूतानां कुक्षिराधारतां गतः - कु० ६।६७, कु० ३१४८, श० १११४, 4. आलवाल, - आधारबन्धप्रमुखः प्रयत्नैः - रघु० ५/६, 5. पुलिया, बाँध, पुश्ता, (तटबन्ध ! 6. नहर 7. अधिकरण कारक का भाव, स्थान- आषारोऽधिकरणम् । आषिः [ आ + धा + कि] 1. मानसिक पीड़ा, वेदना, चिन्ता (विप० व्याधि = शारीरिक पीड़ा) - न तेषामापदः सन्ति नाघयो व्याधयस्तथा — महा ०, – मनोगतमाधिहेतुम् -श० ३।११, रघु० ८ २७ ९५४ भर्तृ० ३।१०५, भामि०४।११, 2. विपत्ति, अभिशाप, सन्ताप- यान्त्येवं गृहिणीपदं युवतयो वामाः कुलस्याधयः- श० ४।१७, महावी० ६।२८, 3. निक्षेप, धरोहर, गिरवी, रेहन -याज्ञ० २।२३, मनु० ८।१४३, 4. स्थान, आवास 5. अवस्थान, ठिकाना 6. परिवार के भरण-पोषण के लिए चिन्तातुर । सम० - (वि०) पीडाग्रस्त, भोगः धरोहर की चीज का उपयोग (जैसे घोड़े गाय आदि का), स्तेन: स्वामी से पूछे बिना धरोहर की राशि को खर्च करने वाला व्यक्ति । अधिकरणिक: [अधिकरण + ठक् ] न्यायाधीश – मृच्छ०९ । आधिकारिक (fro ) ( स्त्री० की) 1. सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ 2. अधिकारी । आधिक्यम् [ अधिक + ष्यम् ] अधिकता, बहुतायत, प्राचुर्य । आधिदैविक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधिदेव + ठञ ] 1. अधिदेव या इन्द्रियों के अधिष्ठातृ देव से सम्बन्ध रखने वाला (जैसा कि एक मन्त्र ) मनु० ६ ८३, 2. दैवकृत, भाग्य में लिखी हुई - ( पीड़ा आदि), सुश्रुत के अनुसार पीड़ा तीन प्रकार की है-आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक । आधिपत्यम् [अधिपति + यक् ] 1. सर्वोपरिता, शक्ति, प्रभु सत्ता- राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यं (अवाप्य ) - भाग ० २८, 2. राजा का कर्तव्य पाण्डोः पुत्रं प्रकुरुष्वाधिपत्ये - महा० । आधिभौतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधिभूत + ठञ ] 1. प्राणियों - पशुपक्षियों से उत्पन्न (पीड़ा आदि ) 2. प्राणियों से सम्बन्ध रखने वाला 3. प्रारम्भिक, भौतिक आषिराज्यम् [ अधिराज + ष्यञ् ] अधिराज का पद या अधिकार, प्रभुसत्ता, सर्वोपरि प्रभुत्व - बभौ भूयः कुमारत्वादाधिराज्यमवाप्य सः - रघु० १७/३० । feere [ अधिवेदनाय हितं ठक्, तत्र काले दत्तं - ठञ वा] सम्पत्ति, उपहार आदि जो दूसरा विवाह करने पर पहली पत्नी को सन्तोषार्थं दिया जाय; For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४९ ) यच्च द्वितीयविवाहाथिना पूर्वस्त्रियं पारितोषिकं धनं । आननम् [ आ + अन् + ल्युट् ] 1. मुंह, चेहरा रघु० ११, दत्तं तदाधिवेदनिकम् - विष्णु०, तु० याज्ञ० २।१४३, १४८ - नृपस्य कांतं पिबतः सुतानमं-- १७, 2. किसी प्रत्य या पुस्तक के बड़े २ खण्ड (उदा० रसगंगाधर के को आनन ) । आधुनिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अधुना + ठञ, ] नया, आजकल का, अब का, हाल का । आधोरण: [ आ + वोर् + ल्युट् षो गतिचातुयें] महावत, पीलवान, आघोरणानां गजसन्निपाते - रघु० ७।४६, ५।४८, १८।३९ । आध्मानम् [ आ + घ्मा + ल्युट् ] 1. फूँक मारना, फुलाव ( आलं०) वृद्धि 2. शेखी बघारना 3. धौंकनी 4. पेट का फूलना, शरीर का फुलाव, जलोदर । माध्यात्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अध्यात्म + ठञ ] 1. परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाला 2. आत्मा सम्बन्धी, पवित्र 3. मन से सम्बन्ध रखने वाला 4. मन से उत्पन्न (पीड़ा, दुःख आदि) दे० "आधिदैविक" । आध्यानम् [ आ + घ्यै + ल्युट् ] 1. चिन्ता 2. दुःख पूर्ण प्रत्यास्मरण 3. मनन । आध्यापकः [अध्यापक -+अण्] शिक्षक, धर्मोपदेष्टा, दीक्षा | गुरु । आध्यासिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अध्यास + ठक्] अध्यास द्वारा उत्पन्न अर्थात् ( वेदान्त० में) एक वस्तु के गुण व प्रकृति को दूसरी वस्तु पर आरोप करके । आध्वनिक (वि० ) ( स्त्री०= की) [ अध्वन् + ठक्] यात्रा पर, यात्री - कान्तारेष्वपि विश्रामो जनस्याध्वनिकस्य वे - महा० । आध्वर्यव (वि० ) ( स्त्री० – वी ) [ अध्वर्युं + अ ] अध्वर्युं या यजुर्वेद से सम्बन्ध रखने वाला, 1- बम् 1. यज्ञ में किया जाने वाला कार्य 2. विशेषतः अध्वर्यु नामक पुरोहित का कार्य । भीतर आन: [ आ + न् + क्विप्, ततः अण् ] 1. वायु खींचना 2. श्वास लेना, फूंक मारना । आनकः [आनयति उत्साहह्वतः करोति अण् + णिच् + ण्वुल् तारा०] 1. बड़ा सैनिक ढोल-नगाड़ा-पणवानकगोमुखाः सहसैवाभ्यहन्यन्त-— भग० १०१३, 2. गरजने बाला बादल । सम० - बुंदुभिः कृष्ण के पिता वासुदेव की उपाधि (भिः, -भी (स्त्री०)) बड़ा ढोल, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगाड़ा । आनति: ( स्त्री० ) [ आ + नम्+ क्तिन् ] 1. झुकना, नमस्कार करना, झुकाव ( आलं०० भी ) गुणवन्मित्रमिवानति प्रपेदे - कि० १३।१५, 2. नमस्कार या अभिवादन 3. श्रद्धांजलि, सत्कार, श्रद्धा । आनद ( वि० ) [ आ + नह + क्त ] 1. बांधा हुआ, मढ़ा हुआ 2. बद्धकोष्ठ, अवरुद्धमल (जैसा कि उदर) -: 1. ढोल 2. वस्त्रों का पहनना, बनाव-सिंगार । आनन्तर्यम् [ अनन्तर + ष्यञ् ] 1. भव्यवहित उत्तराधिकार 2. व्यवधान रहित आसन्नता । आनन्स्यम् [ अनन्त + ष्या ] 1. असमापकता, मन (काल, स्थान और संख्या की दृष्टि से ) - त्याद् व्यभिचाराच्च - काव्य० २, 2. असीमता 3. धनश्वरता नित्यता 4. ऊर्ध्वलोक, स्वर्ग, भावी सुख -- यस्तु नित्यं कृतमतिर्धर्ममेवाभिपद्यते, अशङ्कमानः कल्याणि सोऽमुत्रानन्त्यमश्नुते - महा० । आनन्दः [ आ + नन्द्+घञ ] 1. प्रसन्नता, हवं, खुशी, सुख, आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान्न विभेति कदाचन, 2. ईश्वर, परमात्मा ( नपुं० भी इसी अर्थ में) 3. लिब । सम० - काननम्, – वनम् काशी, पटः दुलहिन के वस्त्र, पूर्ण (वि०) आनन्द से ओतप्रोत (*) परमात्मा, प्रभवः वीर्य आनन्दथु ( वि० ) [ आ + नन्द् +अथुच् ] प्रसन्न, हर्षोत्फुल्क, - थः प्रसन्नता, हर्ष, सुख । आनन्दन (वि० ) [ आ + नन्द् + ल्युट् ] सुलकर, प्रसन्न करने वाला, नम् 1. खुश करना, प्रसन्न करना 2. प्रणाम करना 3. मित्र या अतिथियों के साथ, मिलने पर अथवा बिदा होते समय सम्योचित व्यवहार, सौजन्य, शिष्टता । आनन्दमय ( वि० ) [ आनन्द + मयट् ] 1. आनन्द से परि पूर्ण, सुख या हर्ष सहित यः परमात्मा, कोषा मन्त स्तम आवरण या शरीर का परिधान । आनन्दिः [ आ + नन्द्+इन् ] 1. हर्ष, प्रसन्नता 2. जिज्ञासा । आनन्दिन् ( वि० ) [ आ + नन्द् + णिनि ] 1. प्रसम्म, खुश 2. सुखकर । आनर्तः [ आ + नृत् + षञ्ञ ] 1. रंगमंच, नाट्यशाला, नाचघर 2. युद्ध, लड़ाई 3. देश का नाम ('सौराष्ट्र' भी इसी देश का नाम है ) . । आनर्थक्यम् [ अनर्थस्य भावः ष्यञ्ञ] 1. अनुपयुक्तता, निरर्थकता - श्रुत्यानर्थक्यमितिचेत् — कात्या०, बाम्नायस्य क्रियार्थत्वादानर्थक्यमतदर्थानाम् - जै० शा ० 2. अयोग्यता । आना: [ आ + न + ञ ] जाल । आनायिन् (पुं० ) [ आनाय + इनि ] मछुवा, पीवर - आनायिभिस्तामपकृष्टनक्राम् – रघु० १६/५५, ७५ । आनाय्य ( वि० ) [ आ + नी + ण्यतू, आयादेश: ] निकट लाने के योग्य, ---य्यः गार्हपत्याग्नि से ली हुई संस्कृत अग्नि ( 'दक्षिणाग्नि' भी कहलाती है) । For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १५० ) 1. बन्धन 2. मलावरोध | आनुषङ्गिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुषङ्ग + ठक् स्त्रियाँ कपड़े की ) । ] 1. बद्ध, सहवर्ती 2. ध्वनित 3. अनिवार्य, आवश्यक 4. अप्रधान, गौण असुभिः स्थास्नु यशश्चिचीषतः ननु लक्ष्मीः फलमानुषङ्गिकम् कि० २।१९, अन्यतरस्यानुषङ्गिकत्वेऽन्वाचयः - सिद्धा० दे० 'अन्वाचय' 5 संलग्न, शौकीन 6. आपेक्षिक, आनुपातिक 7. ( व्या० ) अध्याहार्य | आनाहः [ आ + न + ञ्ञ ] कब्ज 3. लम्बाई (विशेषतः अनिल ( वि० ) ( स्त्री० - ली ) [ अनिल + अण् ] वायु से उत्पन्न, – लः, आनिलिः हनुमान्, भीम । आनील (वि० ) [ प्रा० स०] हल्का काला या नीला, - लः काला घोड़ा । आनुकूलिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुकूल + ठक्] हितकर, अनुरूप । आनुकूल्यम् [ अनुकूल + ष्या ]1. हितकारिता, उपयुक्तता - यत्रानुकूल्यं दम्पत्योस्त्रिवर्गस्तत्र वर्धते - याज्ञ० १ । ७४, 2. कृपा, अनुग्रह । आनुगत्यम् [ अनुगत + ष्यञ] जान-पहचान, परिचय । आनुगुष्यम् [अनुगुण+ ष्यञ] हितकारिता, उपयुक्तता, अनुरूपता । अनुग्रामिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुग्राम + ठञ, ] देहाती, ग्रामीण, गँवार । अनुनासिक्यम् [ अनुनासिक + ष्यञ] अनुनासिकता । अनुपविक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुपद + ठक् ] अनुसरण करने वाला, पीछा करने वाला, पदचिह्न या लीक के सहारे पीछा करने वाला, अध्ययन करने वाला । आनुपूर्वम्, - - a [ अनुपूर्वस्य भावः ष्यञ, ततो वा डीषि -लोपः ] 1. क्रम, परम्परा, सिलसिला मनु० २०४१ 2. ( विधि में ) वर्णों का नियमित क्रम - षडानुपूर्व्या विप्रस्य क्षत्रस्य चतुरोऽवरान् — मनु० ३।२३ | आनुपूर्वे,—व्ये - ण ( अव्य०) एक के बाद दूसरा, ठीक क्रमानुसार । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुमानिक ( वि० ) ( स्त्री० – की) [ अनुमान + ठक् ] 1. उपसंहार से सम्बन्ध रखने वाला 2. अनुमान प्राप्त, -कम् सांख्यों का 'प्रधान' - आनुमानिकमप्येकेषामिति वेन - ब्रह्म० । अनुयात्रिक: [अनुयात्रा + ठक्] अनुयायी, सेवक, अनुचर । आनुरक्तिः [ आ + अनु + र + क्तिन् ] राग, स्नेह, अनुराग । अनुलोमिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनुलोम + ठक् ] 1. नियमित, क्रमबद्ध 2. अनुकूल । आनुलोम्यम् . [ अनुलोम + ष्यञ ] 1. नैसर्गिक या सीधा क्रम, उपयुक्त व्यवस्था -- आनुलोम्येन संभूता जात्या ज्ञेयास्त एव ते मनु० १०५, १३ 2. नियमित सिलसिला या परंपरा 3. अनुकूलता । आनुवेश्य: [ अनुवेश + ष्यञ ] वह पड़ोसी जिसका घर अपने घर से एक छोड़कर हो प्रातिवेश्यानुवेश्यौ चकल्याणे विशति द्विजे मनु० ८ ३९२ ( इस पर कुल्लूक कहता है : – निरन्तर गृहवासी प्रातिवेश्यः - तदनन्तरगृहवास्यानुवेश्यः ) यह शब्द 'अनुवेश्य' लिखा भी पाया जाता है । आनूप ( वि० ) ( स्त्री० पो ) [ अनूपदेशे भवः - अण् ] 1. जलीय, दलदलीय, आर्द्र 2. दलदल - भूमि उत्पन्न -पः दलदली भूमि में घूमने वाला पशु (जैसे भैंस) 1 आनृण्यम् [ अनृण + ष्यञ ] ऋणपरिशोध दायित्व निभाना, उऋणता, दे० अनृणता । आनृशंस-स्य ( वि० ) [ अनृशंस् | अण् ( स्वार्थे ) ष्यञ, वा ] मृदु, कृपालु, दयालु, सं, स्यम् 1. मृदुता 2. कृपा - मनु० १।१०१, ८।४११, ३. करुणा, दया, अनुकम्पा । आनंपुणम् - ण्यम् [ अनिपुण + अण्, ष्यञ् वा ] भद्दापन, जाड्य । आन्त ( वि० ) ( स्त्री० ती ) [ अन्त + अण् स्त्रियां ङीप् ] अन्तिम अन्त का, तम् ( अव्य० ) पूर्णरूप से, अन्त तक । आन्तर ( वि० ) [ आन्तर+अण्] 1 आंतरिक, गुप्त. छिपा हुआ - उत्तर० ६ १२, मा० १।२४, 2. अन्तस्तम, अन्तर्वर्ती, रम् अन्तस्तम स्वभाव । आन्तरि (री) क्ष (वि० ) ( स्त्री० -क्षी) [ अन्तरिक्ष + अण् -- स्त्रियां ङीप् ] 1. वायव्य, स्वर्गीय, दिव्य 2. वायु में उत्पन्न, क्षम् व्योम, पृथ्वी और आकाश के बीच का प्रदेश । की ) [ अन्तर्गण + ठक् ] सेना में ) । आन्तर्गणिक ( वि० ) ( स्त्री० सम्मिलित (जैसे श्रेणी में, आन्तर्गेहिक ( वि०) (स्त्री० की ) [ अन्तर्गह + ठक् ] घर में रहने वाला, या घर में उत्पन्न । आन्तिका [ अन्तिका + अणु +टाप् ] बड़ी बहन । आन्दोल (भ्वा० पर० ) [ दोलयति, दोलित ] 1. झूलना, इधर से उधर या उधर से इधर स्पन्दन 2. हिलाना, कंपकंपाना । आन्दोलः [ आ + दोल् + घञ ] 1. झूलना, झूला 2. हिलना डुलना । आन्दोलनम् [ आन्दोल + ल्युट् ] 1. झूलना 2. हिलना-डुलना, स्पंदन, कंपित होना; - कित्वासामरविन्द सुन्दरदृशां द्राक् चामरान्दोलनात् उद्भट० 3. कांपना । आन्धसः [ अन्धस् + अण् ] माँड । आन्धसिकः [ अन्धस् + ठक् ] रसोइया । आन्ध्यम् [ अन्ध + ष्यञ् ] अंधापन । For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमेवं गुणोपेत ११२. सेनाप्तम ( १५१ ) आन्ध्र (वि०) [आ+अध् + रन् ] आंध्र देश की (जैसे | (प्रेरणार्थक रूप भी) करना-यावतैषां समाप्येरन् कि भाषा)-ध्रः (ब० व०) तेलुगू देश, वर्तमान यज्ञाः पर्याप्तदक्षिणा:-रघु० १७:१७, २४, समाप्य तेलंगाना; दे० अंध्र। सान्ध्यं च विधि–२।२३ । आन्वयिक (वि.) (स्त्री०-की) [ अन्वय+ठक् ] | आपकर (वि.) (स्त्री-री) [अपकर+अण, अन 1. अच्छे कुल में उत्पन्न, सुजात, अभिजात 2. वा, स्त्रियां डीप् ] अनिष्टकर, अमैत्रीपूर्ण, दुराई क्रमबद्ध । करने वाला। आन्याहिक (वि०) (स्त्री०—की) [अन्वह+ठा] प्रति- आपक्व (वि.)[आ+पच्+क्त] अनपका, अधपका-पचम् दिन होने वाला, प्रतिदिन किया जाने वाला-पक्ति चपाती, रोटी। चान्वाहिकीम् ----मनु० ३।६७।। आपगा [अपां समूहः आपम्, तेन गच्छति-गम्+] परिया, आन्वीक्षिकी [अन्वीक्षा+ठन +डीप् ] 1. तर्क, तर्कशास्त्र नदी ---फेनायमानं पतिमापगानाम्-शि० ३७२। 2. आत्मविद्या-आन्वीक्षिक्यात्मविद्या स्यादीक्षणात्सुख-आपगेयः [आपगा-ढक दरिया का पुत्र, भीष्म या कृष्ण दुखयोः, ईक्षमाणस्तया तत्त्वं हर्षशोको व्युदस्यति; की उपाधि। —काम० २१११, आन्वीक्षिकी श्रवणाय—मा० १, आपणः [आपण+घञ मंडी, दुकान । मनु०७४३ । आपणिक (वि०) (स्त्री० की) [आपण+ठक] 1. आप (स्वा० पर०) [आप्नोति, आप्त ] 1. प्राप्त करना, व्यापार या मंडी से सम्बन्ध रखने वाला, व्यापारिक 2. उपलब्ध करना, हासिल करना-पुत्रमेवं गुणोपेतं मंडी से प्राप्त किया हुआ,-कः दुकानदार, सौदागर, चक्रवर्तिनमाप्नुहि-श० १११२, अनुद्योगेन तैलानि वितरक या विक्रेता। तिलेभ्यो नाप्तुमर्हति-हि० प्र० ३०, शतं ऋतनामप- | आपतनम् |आ+पत्+ल्युट्] 1. निकट आना, टूट पड़ना विघ्नमाप सः--रघु० ३।३८, इसी प्रकार फलं, कीर्ति, 2. घटित होना, घटना 3. प्राप्त करना, 4. शान सुखं आदि के साथ 2. पहुँचना, जाना, पकड़ लेना, --क्वचित्प्राकरणिकादादप्राकरणिकस्यार्थस्यापतनम् मिलना-भटि०६।५९ 3. व्याप्त होना, जगह घेरना। -सा० द. १०, 5. नैसर्गिक क्रम, स्वाभाविक 4. भुगतना, कष्ट भोगना, कठिनाइयों का सामना परिणाम । करना-दिष्टान्तमाप्स्यति भवान्-रघु० ९।६९ । आपतिक (वि०) (स्त्री०-की) [आपत्+इकन्] आकअनुप्र--, 1. हासिल करना, प्राप्त करना, 2. पहुँचना, स्मिक, अदृष्ट, देवी-कः बाज, श्येन । जाना, पकड़ लेना-गंगानदीमनप्राप्ता:- महा०, | आपत्तिः (स्त्री०) [आ+पद्+क्तिन्] 1. बदलना, परि3. आ पहुँचना, आना; अब--, 1. हासिल करना, वर्तित होना 2. प्राप्त करना, उपलब्ध करना, हासिल प्राप्त करना, उपलब्ध करना-पुत्रं त्वमपि सम्राज करता 3. मुसीबत, संकट 4. (दर्शन में) अवांछित सेव पूरुमवाप्नुहि-श० ४।६, रघु० ३।३३, अवाप्तो- उपसंहार या अनिष्ट प्रसंग। रकण्ठानाम्-मा० ११२ 2. पहुँचना, पकड़ लेना, । आपद् (स्त्री०) [आ+पद्+क्विप्] 1. संकट, मुसीबत, परि---, (प्रायः 'क्तान्त' रूप प्रयोग में आता है) खतरा-देवीनां मानुषीणां च प्रतिहर्ता स्वमापदाम् 1. समर्थ होना--पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीष्माभि- ---रघु० १।६०, अविवेकः परमापदां पदम्-कि. रक्षितम्-भग० १११०, मनु० १११७, 2. योग्य होना २॥३०, १४-प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्तत्रय 3. पूरा होना जैसा कि 'पर्याप्तकल:' और 'पर्याप्त- यान्त्यापदः -भर्तृ० २।९०। सम-काल: विपत्ति दक्षिणः' में है 4. बचाना, रक्षा करना, परिरक्षण के दिन, कष्ट का समय,गत,-ग्रस्त, प्राप्त (वि०) करना-इमा परीप्सुर्दुतिः -~-मालवि० ५।११, 5. 1 मुसीबत में पड़ा हुआ 2. दुर्भाग्य-प्रस्त, पीड़ित, काम तमाम करना, समाप्त करना, प्र--, 1. हासिल -धर्मः अत्यन्त कष्ट या संकट के समय अनुमति करना, प्राप्त करना, 2. जाना, पहुँचना—यथा महा- दिय जाने योग्य आचरण या वृत्ति, या कोई कार्य ह्रदं प्राप्य क्षिप्तं लोष्टं विनश्यति---मन० १२२६४, विधि जो प्रायः किसी वर्ण या जाति के लिए उपयुक्त रघु० १४८, भट्टि० १५१०६ इसी प्रकार आश्रम, न हो। नदी, बनम् आदि के साथ 3. मिल जाना, पकड़ लेना | आपदा [आपद् +टाप् मुसीबत, संकट ।। भटि० ५।९६, दे० प्राप्त, वि-, 1. पूरी तरह से भर आपनिकः (आ+पन्--इकन्] 1. पन्ना, नीलम 2. किरात देना, व्याप्त हो जाना-श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य या असभ्य व्यक्ति ।। विश्वम् ---श० १११, इसी प्रकार विक्रम० १५१, भग० | आपन्न (भू० क० कृ०)[आ+-पद्+क्त] 1. लब्ध, प्राप्त १०।१६, रघु० १८१४०, भटि० ७५६, सम-, 1 -जीविकापन्नः 2. गया हुआ, कम हुआ, प्रस्त-कष्टी हासिल करना, प्राप्त करना, 2. समाप्त करना, पूरा | दशामापन्नोऽपि --भर्तृ० २।२९ इसी प्रकार दुःख For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५२ ) पीडित, कष्टप्रस्त, कठिनाई में फंसा हुआ-आपन्नभय- | आपूप्यः [ अपूपाय साधुः बा० य, अपूप-+य वा] आटा। सत्रेषु दीक्षिताः खलु पौरवाः-श० २।१६, मेघ० ५३ । आपूरः [आ++घा ] 1. प्रवाह, धारा, परिमाण सम-सत्त्वा गर्भवती, गर्भगुर्वी, गर्भवती स्त्री---सम- ...... स्वेदापूरो युवतिसरितां व्याप गण्डस्थलानि-शि० मापन्नसत्त्वास्ता रेजुरापाण्डुरत्विष:-रघु० १९।५९। ७।७४, 2. भरना, पूरा भरना । आपमित्यक (वि०) [अपमित्य परिवर्त्य निर्वृत्तम्-कक् | आपूरणम् [ आ++ल्युट ] भरना, भर कर पूरा करदेना, विनियम द्वारा प्राप्त,-कम् विनिमय द्वारा प्राप्त वस्तु गत कृतम्--पंच०१। या समात्ति। आपूषम् [आ+पूष् +घञ ] धातु की एक प्रकार (संभआपरालिक (वि०) (स्त्री०-को) [अपराह्न+ठा वत: 'टीन')। तीसरे पहर होने वाला। आपृच्छा [आ+प्रच्छ- अङ+टाप् ] 1. समालाप 2. बिदा आपस् (नपुं०) [आप+असुन] 1. जल-आपोभिर्जिन करना, 3. जिज्ञासा । . कृत्वा 2 पाप। आपोशानः [ आपसा जलेन अशानम् इति--अश+ आपातः [आ+पत्+घञ्] 1. टूट पड़ना, गिर पड़ना, आनन् ] भोजन से पूर्व और पश्चात् आचमन करने के हमला करना, बा धमकना, उतरना-तदापातभया- मंत्र ( क्रमशः -अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा, और त्पथि-कु० २।४५, गरुड़ापातविश्लिष्टमेघनादास्त्र- अमतापिधानमसि स्वाहा) याज्ञ०११३१, १०६,-नम् बन्धनः-रघु० १२१७६ 2. उतरना, गिरना, नीचे भोजन के लिए स्थान बनाना, तथा भोजन को ढक डालना 3. (क) वर्तमान क्षण या काल-आपातरम्या देना। विषयाः पर्यन्तपरितापिनः कि० १११२, आपातसुरसे आप्त (भू० क० कृ०) [ आप्+क्त ] 1. हासिल किया, मोगे निमग्नाः किं न कुर्वते-सा.द. भामि० १२ प्राप्त किया, उपलब्ध किया-कामः, शापः आदि ११५, मा०५ (ख) प्रथम दर्शन-दे० 'आपाततः' 2. पहुँचा हुआ, जा पकड़ा हुआ, 3. विश्वास योग्य, 4. घटित होना, प्रकट होना। विश्वसनीय, प्रामाणिक (समाचार आदि), 4. विश्वआपाततः (अव्य०) [ आपात-+-तसिल ] पहली निगाह में, स्त, गोपनीय, निष्ठावान (पुरुष)-रघु०३।१२,५।३९, हमला करते ही, तुरंत । 5. घनिष्ट, सुपरिचित 6. तर्कसंगत, समझदारी से आपावः [आ+पद्+घा ] 1. अवाप्ति, प्राप्ति 2. पारि युक्त,-प्तः 1. विश्वासयोग्य, विश्वसनीय, योग्य व्यक्ति, तोषिक, पारिश्रमिक । विश्वस्त पुरुष या साधन,-आप्तः यथार्थवक्ता-तर्क आपादनम् [आ+पद्+णिच् + ल्युट् ] पहुँचाना, प्रका- | सं०, 2. संबंधी, मित्र,-निग्रहात्स्वसुराप्तानां वधाच्च शित करना, झुकाव होना-द्रव्यस्य संख्यान्तरा घनदानुजः--रघु० १२२५२ कथमाप्तवर्गोऽयं भवत्याः पादने--सिद्धा। -मालवि० ५,--प्तम् 1. लब्धि 2. आघातसाम्य । आपानम्-नकम् ( आ---पा- ल्युट् ] 1. मद्यपों की मंडली, सम०- काम (वि.) 1. जिसने अपनी इच्छा पूर्ण पानगोष्ठी -- मच्छ०८, आपाने पानकलिता देवेनाभि- करली है 2. जिसने सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों प्रणोदिताः-महा०, 2. मद्यशाला, मदिरालय-ताम्ब- का त्याग कर दिया है (-मः) परमात्मा,-गर्ग लीनां दलस्तत्र रचितापानभमय:-रघु० ४।४२, कु. गर्भवती स्त्री,-वचनम् किसी विश्वास योग्य या विश्व६४२, आपानकमुत्सवः-का० ३२। स्त व्यक्ति के शब्द-रघु० १११४२, १५।४८,-वाच् आपालिः [आ+पा+क्विप् -आपा, तदर्थमलति-अल विश्वास के योग्य, जिसके शब्द प्रामाणिक और विश्व+इन् ] जूं। सनीय होते है--परातिसन्धानमधीयते यैविद्येति ते सन्तु आपीडः [ आपीड्+घञ , अच् वा ] 1. पीडा देना, किलाप्तवाचः ... श० ५।२५,(-स्त्री०) 1. किसी चोट पहुँचाना 2. निचोड़ना, भींचना 3. कण्ठहार, मित्र या विश्वसनीय पुरुष की सलाह 2. वेद, श्रुति, माला--चूडापोडकपालसङकुलगलन्मन्दाकिनीवारयः-- प्रामाणिक वचन (यह शब्द स्मृति इतिहास और मा० १०२, 4. (अतः) मुकुटमणि तस्मिन्कुलापीडनिभे पुराणों पर भी लाग होता है जो कि प्रामाणिक समझे विपीडम्-रघु० १८।२९ मा० ११६, ७।। जाते हैं)---आप्तवागनुमानाभ्यां साध्यं त्वां प्रति का आपीन (भू० क० कृ०)[आ-प्य+क्त ] बलवान्, मोटा, कथा-रघु०१०।२८, श्रुतिः (स्त्री०) 1. वेद 2. सबल,नः कुआँ,-आपीनोऽन्धु:-सिद्धा०,-नम् ऐन, थन | स्मतियाँ आदि। का अग्रभाग-आपीनभारोहनप्रयत्नात्-रघु०२।१८। | आप्तिः (स्त्री० [आप्+क्तिन् ] 1. हासिल करना, प्राप्त आपूपिक (वि.) (स्त्री०- की) [अपूप+ठक] 1. करना, लाभ, अधिग्रहण 2. जा पहुँचना, (दुर्घटना में) अच्छे पूए बनाने वाला 2. जिसे पूए अधिक पसंद हों, ग्रस्त होना 3. योग्यता, अभिवृत्ति, औचित्य 4. सम्पूर्ति, -क: पूए बनाने वाला, हलवाई,-कम् पूओं का ढेर।। पूरा करना । आपूपिक भाग-आपीनभान्धुः -सिद्धानमा, मोटा, For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १५३ आप्य ( वि० ) [ अपाम् इदम् - अण्, ततः स्वार्थे ष्यञ ] 1. जलमय 2. [ आप् + ण्यत् ] प्राप्त करने के योग्य, • प्राप्य । आप्यान (भू० क० कृ० ) [ आ + प्याय् + क्त ] 1. मोटा, बलवान्, हृष्टपुष्ट, ताकतवर 2. प्रसन्न, संतुष्ट, नम् 1. प्रेम 2. वृद्धि, बढ़ना । आप्यायनम् - ना [ आ + प्याय् + ल्युट्, युच् वा ] 1. पूरा भरना, मोटा करना, 2. संतोष, तृप्ति देवस्याप्यायना भवति - पंच० १, 3. आगे बढ़ना, पदोन्नति करना 4. मोटापा 5. बल-वर्धक औषधि । आप्रच्छनम् [ आ + प्रच्छ् + ल्युट् ] 1. बिदा करना, बिदा माँगना 2. स्वागत करना, सत्कार करना । आप्रपदीन ( वि० ) [ आप्रपदं व्याप्नोति - ख] पैरों तक पहुँचनेवाला (वस्त्र आदि) । आप्लवः, प्लवनम् [आ + प्लु + अप्, ल्युट् वा ] 1. स्नान करना, पानी में डुबा देना 2. चारों ओर पानी का छिड़काव करना । सम०- - व्रतिन् या आप्लुतव्रतिन् (पुं०) दीक्षित गृहस्थ ( जिसने ब्रह्मचर्य अवस्था पार करके गार्हस्थ्य अवस्था में पदापर्ण किया है) तु० 'स्नातक' । आप्लावः [ आ + प्लु + घञ] 1. स्नान 2. छिड़काव 3. बाढ़, जल-प्लावन । आफूकम् [ ईषत्फूत्कार इब फेनोऽत्र पृषो०] अफीम | आय ( भू० क० कृ० ) [ आ + बन्ध् + क्त ] 1. बाँधा हुआ, बँधा हुआ 2. जमाया हुआ - रघु० १।४० 3. निर्मित, बना हुआ - आबद्ध मंडला तापसपरिषद् - का० ४९, मंडलाकार बैठी हुई, 4. प्राप्त 5. बाधित, खम् ('द्ध' भी) 1. बाँधना, जोड़ना 2. जूवा 3. आभूषण 4. स्नेह आबन्धः,—धनम् [आ+बन्ध+घञ, ल्युट् वा ] 1. बन्ध, बन्धन (आलं) - प्रेमाबन्धविवधित- रत्न० ३।१८, अमरु ३८, 2. जूवे की रस्सी 3. आभूषण, सजावट 4. स्नेह | । आबर्हः [ आ + बर्ह, + घञ ] 1. फाड़ डालना, खींचकर बाहर निकालना 2. मारडालना । ५१, आबाधः [ आ + बाघ् + षञ्ञ] 1. कष्ट, चोट, तकलीफ, सताना, हानि-न प्राणाबाधमाचरेत् - मनु ० ४।५४, -धा 1. पीड़ा, दुःख 2. मानसिक वेदना, आधि । आबुत = दे० आवृत्त । आबोधनम् [आ+बुध् + ल्युट् ] 1. ज्ञान, समझदारी 2. शिक्षण, सूचन । आब्द (वि० ) ( स्त्री०ब्दी ) [ अब्द + अण् ] बादल संबंधी या बादल से उत्पन्न | आदिक (वि०) (स्त्री० - की ) [ अब्द + ठज्ञ, स्त्रियां ङीप् ] वार्षिक, सालाना - आब्दिकः करः - मनु० ७११२९, ३१ आभरणम् [ आ + भृ + ल्युट् ] 1 आभूषण, सजावट ( आलं ० ) - किमित्यपास्याभरणानि यौवने घृतं त्वया ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वार्धकशोभि वल्कलम् - कु० ५१४४, प्रशमाभरणं पराक्रमः - कि० २।३२ 2. पालन पोषण करना । आभा [ आ + भा + अ ] 1. प्रकाश, चमक, कान्ति, - दीपाभां शलभा यथा - पंच० ४, 2. वर्ण आभास, रूप - प्रशान्तमिव शुद्धाभम् — मनु० १२।२७३. सादृश्य, मिलना-जुलना -- इन्हीं दो अर्थों को प्रकट करने के लिए यह शब्द प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त होता है---यमदूताभम् - पंच० ११५८, मरुत्सखाभम् - रघु० २।१० 4. प्रतिबिम्बित प्रतिमा, छाया, प्रतिबिम्ब । आभाणक: [ आ + ण् + ण्वुल् ] कहावत, लोकोक्ति । आभाष: [ आ + भाष् + घञ्ञ ] 1. सम्बोधन 2. प्रस्तावना, भूमिका । आभाषणम् [ आ + भाष् + ल्युट् ] 1 सम्बोधित करना, सम्बोधन 2. समालाप – सम्बन्धमाभाषणपूर्वमाहुः - रघु० २५८ | आभास: [ आ + भास् + अच्] 1 चमक, प्रकाश, कान्ति 2. प्रतिबिम्ब - तत्राज्ञानं धिया नश्येदाभासात्तु घटः स्फुरत्-वेदान्त, 3. (क) मिलना-जुलना, समानता ( प्रायः समास के अन्त में ) – नभश्च रुधिराभासम् - रामा० (ख) आकृति, छायापुरुष -- तत्साहसाभासम् - मा० २, सनकीपन की भांति दिखाई देता है, 4. अवास्तिक या आभासी रूप (जैसा कि 'हेत्वाभास' में) 5. हेत्वाभास, तर्क का रूप दे० 'हेत्वाभास' 6. आशय, प्रयोजन । आभासु (स्व) र ( वि० ) 1. शानदार, उज्ज्वल, – : ६४ उपदेवताओं का समुदाय वाचक नाम । आभिचारिक (वि० ) ( स्त्री० -- की ) [ अभिचार + ठक् ] 1. जादू संबन्धी 2. अभिशापात्मक, अभिशापपूर्ण, -कम् अभिचार, इन्द्रजाल, जादू । आभिजन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ अभिजन + अण्, स्त्रियां ङीप् ] जन्म से संबन्ध रखने वाला, कुलसूचक (नाम आदि) - तां पार्वतीत्याभिजनेन नाम्ना - कु० १ २६, -नम् कुलीनता, उच्च कुल में जन्म । आभिजात्यम् [ अभिजात + ष्या ] 1. जन्म की श्रेष्ठता - रत्न० ३।१८ 2. कुलीनता 3. पांडित्य 4. सौंदर्य । अभिधा [ अभिधा + अण् ] 1. ध्वनि, शब्द 2. नाम, वर्णन - दे० 'अभिघा' । अभिधानिक (वि०) (स्त्री० की ) [ अभिधान + ठक् ] जो किसी शब्द कोश में हो, - कः कोशकार । आभिमुख्यम् [ अभिमुख + ष्यञ् ] किसी के संमुख होना - ख्यं याति सामना करने या मिलने के लिए जाता है 2. के सामने होना, आमने सामने --नीताभिमुख्यं पुनः - रत्न० ११२, 3. अनुकूलता । आभिरूपकम् आभिरूप्यम् [ अभिरूप + वुञ, ष्यञ वा ] सौंदर्य, लावण्य । For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५४ ) आभिषेचनिक (वि.) (स्त्री०—की) [ अभिषेचन+ घञ -तारा०] 1. कच्चा, अनपका, अपक्व (विप० ठा ] राजतिलक से संबन्ध रखने वाला- आभिषेच- 'पक्व') आमान्तम् ---मनु० ४।२२३ 2. हरा, अपरि निकं यत्ते रामार्थमुपकल्पितम्-रामा०, महावी. ४। पक्व 3. आवे में न पकाया हआ (बर्तन आदि) 4. आभिहारिक (वि.) (स्त्री०----की) [ अभिहार+ठन। अनपचा,-मः 1. रोग, बीमारी 2. अजीर्ण, कब्ज उपहार के रूप में देय, कम् भेंट, उपहार । 3. भूसी से अलग किया हुआ अनाज । सम०--आशयः "आभीक्ष्ण्यम् [अभीक्ष्णस्य भावः-व्यञ ] अनवरत अनपचे भोजन का (पेट में) स्थान, उदर का ऊपरी आवृत्ति, बहुलमाभीक्ष्ण्य-पा० ३।२।८१ । भाग, पेट,- कुंभः कच्ची मिट्टी का घड़ा-हि० ४) आभीरः [आ समन्तात् भियं राति-रा+क तारा० ] ग्वाला, ६६,—गंधि (नपुं०) कच्चे मांस या शव के जलने -आभीरवामनयनाहृतमानसाय दत्तं मनो यदुपते तदिदं की दुर्गध, ज्वरः एक प्रकार का बुखार-तु०-स्वेद्यगहाण--उद्भट 2. (ब० व.) एक देश तथा उसके मामज्वरं प्राज्ञः कोऽम्भसा परिषिञ्चति-शि०२।५४, निवासी,-री 1. ग्वाले की पत्नी 2. आभीरजाति की -त्वच् (वि०) कोमल त्वचा वाला,--पात्रम् बिना स्त्री। सम-पल्लिः ,-पल्ली (स्त्री०),--पल्लिका तपाया हुआ बर्तन,--विनाशं व्रजति क्षिप्रमामपात्रमि ग्वालों का आवासस्थान, ग्वालों के रहने का गाँव।। वांभसि-मनु० ३.१७९,-रक्तम् पेचिश,-रसः आभील (वि०) [ आभियं लाति ददाति-ला+क]| आमाशय में बनने वाला भोजन का अम्ल,-बातः कब्ज, भयानक, भीषण,-लम् चोट, शारीरिक पीडा। -शल: अजीर्ण की पीड़ा, गुर्दे का दर्द । आभुग्न (वि.) [ आ+भुज्+क्त ] कुछ मुड़ा हुआ या | | आमञ्जु (वि०) [प्रा० स०] प्रिय, मनोहर । झुका हुआ। आमंडः [प्रा० स०] एरंड का पौधा । आभोगः [आ+भुज+घन 11. घेरा, परिधि, विस्तार, आम (मा) नस्यम् [ अमनस्+प्या ] पीडा, शोक । विस्तारण (दीर्धीकरण), परिसर, पर्यावरण-अक आमन्त्रणम-णा [आ+मन्त्र+णिच+ल्युट, युच् वा] 1. थितोऽपि ज्ञायत एव यथायमाभोगस्तपोवनस्येति ....श. संबोधित करना, बलाना, आवाज देना 2. बिदा लेना, १, गगनाभोगः–नभो विस्तार 2. लंबाई-चौड़ाई, बिदा होना 3. अभिवादन 4. निमन्त्रण --- अनिन्द्यामन्त्रपरिमाणांडाभोगात्-मेघ० ९२, विस्तृत गाल से णादते---याज्ञ० ११११२ 5, अनुमति 6. समालाप, 3. प्रयत्न 4. साँप का विस्तृत फण (जिसे वरुण छतरी --अन्योन्यामन्त्रणं यत्स्याज्जनान्ते तज्जनान्तिकम् के रूप में प्रयुक्त करता है) 5. उपभोग, तृप्ति-विष सा० द०६, 7. संबोधन कारक। याभोगेषु नवादरः-शान्ति । आमन्द्र (वि.) [आ+मन्द्र+अच् ] कुछ गम्भीर स्वर आभ्यन्तर (वि०) (स्त्री० -री) [ अभ्यन्तर+अण् ] वाला, गड़गड़ाहट करने वाला-आमंद्राणां फलमभीतरी, आन्तरिक, अंदरूनी।। विकलं लप्स्यसे गजितानां-मेघ० ३४,-नः जरा आम्यवहारिक (वि०) (स्त्री० --की) [अभ्यवहार+ •गंभीर स्वर, गड़गड़ाहट । ठक | भोज्य, खाने के योग्य (आहारादिक)। आमयः [आ+मी+करणे अच-तारा०, आमेन वा आभ्यासिक (वि.) (स्त्री०-को) [अभ्यास---ठक] 1. अय्यते इति आमयः ] 1. रोग, बीमारी, मनोव्यथा अभ्यासजनित 2. अभ्यास करने वाला, दोहराने वाला 3. --दमिय:-- महावी० ४।२२, आमयस्तु रतिरागनिकटस्थ, पड़ोस में रहने वाला, संलग्न (आभ्याशिक)। संभवः-रघु०१९।४८, शि०२११०, 2. हानि, क्षति । आभ्युवयिक (वि.) (स्त्री० ----की) [अभ्युदय+ठक ] / अ आमयाविन (वि०) [आमय+विन् नि० ] बीमार, मंदा1. मङ्गलोन्मुख, समृद्धिजनक-अनाभ्युदयिकं श्रमणक ग्निपीडित, अग्निमांद्य रोग से ग्रस्त,। , दर्शनम्-मच्छ०८,2. उन्नत, गौरवशाली, महत्त्वपूर्ण, आमरणान्त, -तिक (वि.) (स्त्री...की) [प्रा० स० -कम् श्राद्ध या पितरों को भेंट या उपहार. हर्ष ---आमरणे अन्तो यस्य - ब० स०] मत्यु पर्यंत रहने का अवसर। वाला, आजीवन आमरणान्ताः प्रणयाः कोपास्तत्क्षणआम् (अव्य०) [अम्+णिच् बा० ह्रस्वाभावः-ततः भङगुरा:-हि० ११११८, अन्योन्यस्याव्यभीचारी भवे क्विप] निम्नांकित भावनाओं को प्रकट करने वाला दामरणान्तिक:--मनु० ९।१०१, विस्मयादि द्योतक अव्यय-(क) अंगीकरण, स्वीकृति | आमदः [आ+मृद्घा ] 1. कुचलना, मसलना, निचो -'ओह'-'हाँ'-आं कुर्मः---मालवि० १ (ख) ड़ना 2. विषम व्यवहार। प्रत्यास्मरण-आं ज्ञातम्-श०३-ओह-अब पता आमर्शः [आ+मश्+घञ ] 1. स्पर्श करना, रगड़ना 2. लगा (ग) निश्चयेन 'निश्चय ही 'अवश्य ही'-आं सलाह, परामर्श । चिरस्य खलु प्रतिबुद्धोऽस्मि (घ) उत्तर। आमर्षः,-र्षणम् [आ-+-मष-+घञ, स्युट् वा] क्रोध, आम (वि.) [आम्यते ईषत् पच्यते-आ+अम्+कर्मणि कोप, असहनशीलता दे० 'अमर्ष । For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रको गया आना अतः आमलकः,-को [आ+मल+बुन्-स्त्रियां डीप् ] आंवले | आमोदन (वि.) [ आ+मुद्+ल्युट् ] खुश करने वाला का वृक्ष,-कम् आँवला (फल),-बदरामलकाम्रदाडि- प्रसन्न करने वाला-नम् 1. खुशी, प्रसन्नता 2. मानां-भामि० २।८। सुगन्धित करना। आमात्यः [अमात्य+अण् ] मंत्री, परामर्शदाता—दे० आमोदिन् (वि०) [ आ+मुद्+णिनि ] 1. प्रसन्न, 2. 'अमात्य'। ___सुगन्धित - भर्तृ० ११३५ । आमानस्यम् [अमानस+ष्या 1 पीड़ा, शोक । आमोषः [ आ+मुष-घन | चोरी, डाका । आमिक्षा [आमिष्यते सिच्यते-मिष्+सक्-तारा०]| आमोषिन् (पुं०) [आ+मुष्-+णिनि ] चोर । जमा हुआ दूध व छाछ, उबले और फटे दूध का | आम्नात (भू० क० कृ०) [आ+ना+क्त ] 1. विचार मिश्रण, छेना। किया हुआ, सोचा हुआ, कथित-समो हि शिष्टंराम्नाती आमिषम् [अम+टिषच्, दीर्घश्च] 1. मांस-उपानयत् पिंड वय॑न्तावामयः स (शत्रुः) च-शि०२।१०,2. अधीत, मिवामिषस्य-रघु० २०६९ 2. (आलं०) शिकार, आवृत्त 3. प्रत्यास्मृत 4. परम्पराप्राप्त,-तम् अध्ययन । बलि, उपभोग्य वस्तु (राज्यम)..-रन्ध्रान्वेषणदक्षाणां | आम्नानम् [आ+ना+ल्युट) 1. वेद या धर्म ग्रंथों का द्विषामामिषतां ययो-रघु० १२।११ शिकार को गया, सस्वर पाठ या अध्ययन 2. उल्लेख, आवत्ति। दश० १६४, 3. आहार, शिकार के लिए चारा 4. | आम्नायः [आ+म्ना+घञ ] 1. (क) पुण्य-परम्परा रिश्वत, 5. इच्छा, लालसा 6. उपभोग, सुखद और (ख) अतः वेद, सांगोपांग वेद (ब्राह्मण, उपनिषद् प्रिय वस्तु । तथा आरण्यक सहित)-अधीती चतुम्निायेषु–वश० आमीलनम् [ आ+मील+ल्युट् ] आँखों का बन्द करना १२०, आम्नायवचनं सत्यमित्ययं लोकसंग्रहः, आम्नाया मूंदना। येभ्यः पुनर्वेदाः प्रसृताः सर्वतोमुखाः । महा० 2. परआमुक्तिः (स्त्री०) [आ+मुच्+क्तिन् ] पहनना, धारण । म्परा प्राप्त प्रचलन, कुल या राष्ट्रीय प्रथाएँ 3. आदत्त करना (वस्त्र, कवचादिक)। सिद्धान्त, 4. परामर्श या शिक्षण । आमुखम् [प्रा० स०] 1. आरंभ 2. (नाटकों में) प्राक्क- आम्बिकेयः [ अम्बिका-+-ढक्+] धृतराष्ट्र और कार्तिकेय थन, प्रस्तावना (संस्कृत का प्रत्येक नाटक 'आमुख' से | की उपाधि । आरंभ होता है। सा०६० में दी गई परिभाषा-नटो | आम्भसिक (वि.)(स्त्री०-की) जलीय,-क: मछली। विदूषको वाऽपि पारिपार्श्वक एव वा, सूत्रधारेण सहिताः आम्रः [अम्+रन्, दीर्घः ] आम का वृक्ष-म्रम् आम संलापं यत्र कुर्वते। चित्रक्यैिः स्वकार्योत्थैः प्रस्तुता का फल। सम०---कूट: एक पहाड़का नाम-सानुक्षेपिभिमिथः, आमुखं तत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावनाऽपि मानाम्रकूट:-मेघ० १७,-पेशी अमचूर, अमावट, सा ॥ २८७,-खम् (अव्य०) मुंह के सामने। --वणम् आमों का बाग, अमराई- सोहमाम्रवणं आमुष्मिक (वि.) (स्त्री०-की) परलोक से संबंध रखने छित्त्वा-रामा। वाला-आमुष्मिकं श्रेयः--सुश्रुत, नैवालोच्य गरीयसी आम्रातः [आनं आम्ररसं अतति–अत्+अच् तारा०] रपि चिरादामुष्मिकीर्यातनाः-सा० द० । 1. अमरे का पेड़,-तम्-अमरे का फल (अमरा आमुष्यायण (वि०)–णः (स्त्री०--णी) [अमुष्य ख्यात- आम जैसा एक खट्टा फल होता है)। स्यापत्यं नडा फक अलुक ] सत्कुल में उत्पन्न, ऐसे | आम्रातकः [आम्रात+कन् ] 1. अमरे का वृक्ष 2. अमावट । उच्चवंशीय व्यक्ति का पुत्र या सुविख्यात कूल में आडनम् [ आ+म्रिड+णिच् + ल्युट ] पुनरुक्ति, शब्द उत्पन्न,-आमुष्यायणो वै त्वमसि-शत०, तदामुष्या- या ध्वनि की आवृत्ति ।। यणस्य तत्रभवतः सुगृहीतनाम्नो भट्टगोपालस्य पौत्रः | आर्मेडितम् [आ+म्रिड्-णिन्+क्त ] 1. शब्द या ध्वनि -मा० १, महावी०१।। की आवृत्ति 2. (व्या०) द्वित्व होना, (द्वित्व हुए शब्दों आमोचनम् [ आ+मुच् + ल्युट् ] 1. ढोला करना, स्वतंत्र में से) दूसरा शब्द । करना 2. उत्सर्जन, निकालना, सेवामुक्त करना 3. | आम्लः -म्ला [आ सम्यक् अम्लो रसो यस्य-ब. स. धारण करना, सांटना। स्त्रियां टाप् ] इमली का पेड़-म्लम खटास, अम्लता। आमोटनम् [ आ+मुट्+ल्युट ] कुचलना-मा०३। | आम्लि (म्ली)का [आम्ल+कन्+टाप, इत्वम्, पक्षे पुषो. आमोदः [आ+मुद्+घञ ] 1. हर्ष, प्रसन्नता, खुशी 2. दीर्घः] 1. इमली का वृक्ष 2. पेट की अम्लता(खटास)। सुगंध (व्यापी), सौरभ-आमोदमुपजिघ्रन्तौ स्वनि:- आयः [आ+5+अच्, अय्+घञ् वा] 1. पहुँचना, आ श्वासानुकारिणम् ---रघु० ११४३ आमोदं कुसुमभवं जाना 2. धनागम, धनार्जन (विप० 'व्यय') 3. आममृदेव धत्ते मृद्गन्धं न हि कुसुमानि धारयन्ति-सुभाषित, दनी, राजस्व, प्राप्त द्रव्य-ग्रामेषु स्वामिग्राह्यो भाग शि० २।२०, मेघ० ३१ । आयः-सिद्धा०, याज्ञ० ११३२२, ३२६, मृच्छ० २१६, For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनु० ८४१९, आयाधिकं व्ययं करोति-अपनी आम- | 2. स्नेह 3. सामर्थ्य, शक्ति 4. हद, सीमा 5. युक्ति, दनी से अधिक खर्च करता है, 4. नफा, लाभ 5. उपाय 6. महिमा, प्रताप 7. आचरण की स्थिरता। अन्तःपुर का रक्षक । सम०-व्ययौ (द्वि० व०) आय | आयथातथ्यम् [अयथातथ+ष्या] अयोग्यता, अनुपयुक्तता और व्यय । अनौचित्य-शि० २।५६ । आयःशूलिक (वि.) (स्त्री०-की) [ अयःशूल+ठक] आयमनम् [आ+या+ल्युट] 1. लम्बाई, विस्तार 2, सक्रिय, परिश्रमी, अथक,-क: जो अपने उद्देश्य की नियंत्रण, निग्रह 3. (धनुष की भांति) तानना। सिद्धि के लिए सबल 'उपायों का सहारा लेता है आयल्लकः [आयन्निव लीयते अत्र ली+ड (बा.) संज्ञायां (तीक्ष्णोपायेन योऽन्विच्छेत्स आयःशूलिको जनः) तु० कन् धैर्य का अभाव, प्रबल लालसा। काव्य० १०, अयःशूलेन अन्विच्छति इति आयः | आयस (वि.) (स्त्री०-सी) [आयसो विकारः अण्] लोह शूलिकः। निर्मित, लोहा धातुनिमित--आयसं दंडमेव वा-मनु. मायत (भू. क. कृ.) [आ+यम्+क्त] 1. लम्बा ८१३१४, सखि मा जल्प तवायसी रसज्ञा--भामि. -शतमध्यधं (योजनम्) आयता-महा० 2. विकीर्ण, २१५९,-सी कवच, बख्तर,-सम् 1. लोहा, मूढ़ बुद्धअतिविस्तृत 3. बड़ा, विस्तृत, गम्भीर 4. खींचा हुआ, मिवात्मानं हैमीभूतमिवायसम्–कु० ६।५५, स चकर्ष आकृष्ट 5. संयत, नियन्त्रित,-तः आयताकार (रेखा- परस्मात्तदयस्कान्त इवायसम् रघु० १७१६३, 2. लौहगणित में)। सम०-अक्ष (वि.) (स्त्री०-सी) निर्मित वस्तु 3. हथियार ।। -क्षिण,- नेत्र,-लोचन (वि.) बड़ी आंखों | आयस्त (भू० क० कृ०) [आ+यस्+क्त] 1. पीड़ित, वाला,-अपांग (वि.) लम्बी कोर की आँखों वाला, दुःखी 2. चोट खाया हुआ 3. क्रुद्ध, नाराज 4. तीक्ष्ण । -आयतिः (स्त्री०) दीर्ष निरंतरता, बहुत देर बाद | आयानम् [आ+या+ ल्युट्] 1. आना, पहुंचना 2. नैसर्गिक आने वाला भविष्य-शि० १४१५,-च्छदा केले का मनोभाव, स्वभाव। पौधा (पेड़), लेख (वि.) दीर्घवक्राकार-कु० ११ आयामः [आ+यम्+घञ] 1. लम्बाई-तिर्यगायामशोभी ४७,-स्तूः (पुं०) चारण, भाट । –मेघ० ५७, 2. प्रसार, विस्तार-कि० ७१६, 3. आयतनम् [आयतन्तेऽत्र आयत्-+ल्युट्] 1. स्थान, आवास, फैलाना, विस्तार करना 4. निग्रह, नियंत्रण, रोकथाम घर, विश्रामस्थल (आलं. भी)-शूलायतना:-मुद्रा० -प्राणायामपरायणा:--भग०४।२९, प्राणायामः परं ७, जल्लाद, स्नेहस्तदेकायतनं जगाम-कु० ७५, तपः-मनु० २।८३ । उसमें केन्द्रित हो गया, रघु० ३।३६, सर्वाविनयाना आयामवत् (वि.) [ आयाम+मतुप ] विस्तारित, लम्बा मेककमप्येषामायतनम्-का० १०३, (अतः) आश्रय, --विक्रम० ११४, शि० १११६५ । घर 2. यज्ञ अग्नि का स्थान, वेदी 3. पवित्र स्थान, आयासः [आ+यस्+घञ] 1. प्रयत्न, प्रयास, कष्ट, पुण्यभूमि-जैसा कि --देवायतनं, महायतनम् आदि कठिनाई, श्रम-बहुलायास-भग० १८१२४, तु० में 4. मकान बनाने का स्थान ।। 'अनायास' 2. थकावट, थकन, स्नेहमूलानि दुःखानि आयतिः (स्त्री०) [आ+या+डति] 1. लम्बाई, विस्तार देहजानि भयानि च, शोकहर्षों तथायासः सर्वस्नेहात् 2. भावी समय, भविष्यत्, भंगः--का० ४४-भूयसी। प्रवर्तते । महा। तव यदायतायतिः-शि० १४१५, रहयत्यापदुपेतमा- | आयासिन् (वि.) [आ+यस्+णिनि] 1. परिश्रान्त, यतिः-कि० २११४, 3. भावी फल या परिणाम थका हुआ 2. प्रयास करने वाला, प्रबल उपयोग करने -आयति सर्वकार्याणां तदारवं च विचारयेत् --मनु० वाला-मनस्तु तद्भावदर्शनायासि-श० २११, ५।१ । ७.१७८, कि० १११५, २।४३, 4. महिमा, प्रताप 5. आयुक्त (भू० क० कृ०) [आ+युज्+क्त] 1. नियुक्त, हाथ फैलाना, स्वीकार करना, प्राप्त करना 6. कर्म कार्यभार-युक्त (संबं० या अधि०) भट्टि० ८११५, ---यथामित्रं ध्रुवं लब्ध्वा कृशमप्यायतिक्षमम्-मनु० 2. संयुक्त, प्राप्त,-क्तः मंत्री, अभिकर्ता या कमिश्नर । ७२०८ (कर्मक्षमम्-कुल्लूक) 7. नियन्त्रण, (मन आयुधः-धम्-[आ+युध+घञ] हथियार, ढाल, शस्त्र का) निग्रह । (यह तीन प्रकार के है-(क) प्रहरण-खङ्गादिक आयत्त (भू० क० कृ०) [आ+यत्+क्त] 1. अधीन, (ख) हस्तमुक्त-चक्रादिक (ग) यंत्रमुक्त--बाणा आश्रित, सहारा लिए हुए (अधिक के साथ या समास दिक;-न मे त्वदन्येन विसोढमायुधम् --रघु० ३१६३। में)-दैवायत्तं कुले जन्म मदायत्तं तु पौरुषम-वेणी० सम--अ (आ)गारम् शस्त्रागार, हथियार गोदाम ३॥३३, भाग्यायत्तमतः परम्--श० ४।१६, 2. वश्य, -अहमप्यायुधागारं प्रविश्यायुधसहायो भवामि-वेणी. विनीत। १, मनु० ९।२८०,-जीविन् (वि.) शस्त्रास्त्र से आयत्तिः (स्त्री०) [आ+यत्-न-क्तिन्] 1. आश्रय, अधीनता | जीवन-निर्वाह करने वाला, (-पुं०) योद्धा, सिपाही । विचारयेत्-म आयुक्त (भू (संबं० या आ For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) आयुषिक (वि.) [आयुध+ठन] शस्त्रास्त्रों से सम्बन्ध | आरः-रम् [ आ+ऋ+घञ ] 1. पीतल 2. अशोधित रखने वाला-कः सिपाही, सैनिक। लोहा 3. कोण, किनारा,-र: 1. मंगल ग्रह 2. शनिआयुपिन्, आयुधीय (वि.) [आयुध+ इनि. छ वा] हथि- ग्रह,-रा 1. मोची की रांपी, 2. चाकू, क्षत-शलाका । यारों को धारण करने वाला, (पुं०-धी)-घीयः, सम०-कूटः,-टम् पीतल, उत्तर० ५।१४। योद्धा। आरक्ष (वि०) [आ+र+अच् ] परिरक्षित,--क्षः, आयुष्मत् (वि०) [आयुस्+मतुप्] 1. जीवित, जीता -क्षा 1. -प्ररक्षण, परिरक्षण, रक्षक (पहरेदार, हुआ 2. दीर्घायु (नाटकों में प्रायः वृद्ध पुरुष सत्कुलो सन्तरी)-आरक्षे मध्यमे स्थितान्-रामा०, शा० द्भव व्यक्तियों को इसी नाम से सम्बोधित करते हैं; ३१५, मनु० ३।२०४ 2. हाथी को कुंभसंधि, 3. उदा० एक सारथि राजा को 'आयुष्मन्' कह कर सेना। सम्बोधित करता है। ब्राह्मण को भी अभिवादन करने आरक्ष (क्षि) क (वि.) [आ-+रक्ष + वुल, आरक्ष+ के लिए इसी प्रकार सम्बोधित किया जाता है -तु० ठा वा ] 1. पहरेदार, सन्तरी 2. देहाती या पुलिस मनु० ४।१२५, आयुष्मन्, भव सौम्येति वाच्यो विप्रो . का दण्डाधिकारी (मैजिस्ट्रेट)। भिवादने)। आरटः [आ+रट-+अच ] नट, नाटक का पात्र । आयुष्य (वि.) [आयुस्+यत्] लम्बा जीवन करने वाला, आरणिः [आ+ऋ+अनि ] भंवर, जलावर्त । जीवनप्रद, जीवनसंघारक-इदं यशस्यमायुष्यमिदं नि: आरण्य (वि.) (स्त्री०---ण्या,–ण्यी) [अरण्य- अण्, श्रेयसं परम्-मनु० १११०६, ३।१०६,-व्यम् जीवन स्त्रियां टाप, डीप वा] जंगली, जंगल में उत्पन्न । प्रद शक्ति । आरण्यक (वि.) [ अरण्य+वुन ] वन संबंधी, वन में नपुं०) [आ++उस] 1. जीवन, जीवनावधि उत्पन्न, जंगली, जंगल में उत्पन्न,-कः जंगल में रहने -दीर्घायुः-रघु० ९।६२, तक्षकेणापि दष्टस्य वाला, जंगली, वनवासी,-तप: षड्भागमक्षय्यं ददत्याआयमर्माणि रक्षति-हि. २।१६, शतायुर्वं पुरुषः रण्यका हि नः-श० २।१३,--कम् आरण्यक ग्रंथ, -ऐत. 2. जीवन दायक शक्ति 3. आहार (वाक्य (यह ब्राह्मणग्रंथों से संबद्ध धार्मिक तथा दार्शनिक रचना में 'आयुस' का अन्तिम 'स' बदलकर अघोष रचनाओं का एक समुदाय है जो या तो जंगल में रचे व्यंजनों से पूर्व '' तथा घोष व्यंजनों से पूर्व 'र' बन गये हैं या वहाँ उनका अध्ययन किया गया है) जाता है)। सम-कर (वि०) (स्त्री०-री) दीर्घ -अरण्येऽनूच्यमानत्वात् आरण्यकम्-बृहदा०, अरण्येजीवन करने वाला,-काम (वि०) दीर्घायु या स्वा- ऽध्ययनादेव आरण्यकमुदाहृतम् । स्थ्य की कामना करने वाला,-द्रव्यम् 1. औषधि आरतिः (स्त्री०) [आ+रम् +क्तिन् ] 1. विराम, रोक 2. धी, वृद्धिः (स्त्री०) लम्बा जीवन, दीर्घायु, वेदः 2. प्रतिमा के सामने दीप-दान, या कपूर-दीपक घुमाना, स्वास्थ्य या औषधि-विज्ञान-वेदश,-वेदिक, आरती उतारना। ----वेदिन (वि.) औषध से सम्बन्ध रखने वाला, | आरनालम् [आ+ऋ+अच, नल+घा आरो नालो (-पुं०) वैद्य, डाक्टर,-शेषः जीवन का शेष भाग, गंधो यस्य - ब० स०] माँड, चावल का पसाव। °शेषतया-पंच० ११२, जीवन का ह्रास या अवसान, आरब्धिः (स्त्री०) [ आ+रभक्तिन् ] आरम्भ, शुरु । -स्तोमः (आयुष्टोमः) दीर्घायु पाने के लिए किया आरभटः [ आरभ् + अट ] उपक्रमशील या साहसी पुरुष, जाने वाला यज्ञ। ----ट:-टी दिलेरी, विश्वास,--टी 1. नाट्यकला की आये (अव्य०) [प्रा० स०] स्नेहबोधक सम्बोधनात्मक शाखा, दे० सा० द० ४२० तथा आगे 2. साहित्य की अव्यय । एक शैली 3. विशेष नृत्यशैली। आयोगः [आ+युज+घञ्] 1. नियुक्ति 2. क्रिया, कार्य- | आरम्भः [आ+र+घन मुम् च] 1. आरम्भ, शुरू; सम्पादन 3. पुष्पोपहार 4. समुद्रतट या नदी किनारा। "उपायः प्रारंभिक योजना-नृत्यारम्भे हर पशुपतेराभायोगवः [अयोगव+अण् ] शूद्र द्वारा वैश्य स्त्री से नागाजिनेच्छाम् मेघ० ९९, 2. प्रस्तावना 3. कार्य, उत्पन्न पुत्र (इसका व्यवसाय बढ़ईगिरी है-नु० मनु० व्यवसाय, कृत्य, काम--आगमैः सदृशारंभ:-रघु० १०१४८),-वी इस जाति की स्त्री। २१५, ७८१, भग० १२।१६, 4. त्वरा, वेग 5.प्रयास, आयोजनम् [आ+युज् + ल्युट] 1. सम्मिलित होना 2. प्रयत्न-भग०१४।१२, 6. दश्य, कर्म-चित्रापितारम्भ पकड़ना, ग्रहण करना 3. प्रयास, प्रयत्न । इवावतस्थे-रघु० २।३१, 7. मार डालना, हत्या आयोधनम् [ आ+यु+ल्युट] 1. युद्ध, लड़ाई, संग्राम करना । -आयोधने कृष्णगतिं सहायं--रघु० ६।४२, आयोध- आरम्भणम् [आ+रभ् + ल्युट् मुम् च] 1. काबू में करना, नाग्रसरतां त्वयि वीर याते ५।७१, 2. युद्धभूमि । पकड़ना 2. पकड़ने का स्थान, दस्ता, बौंडा । For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १५८ ) मार (रा) व: [ आ + रु+अप्, घञ् वा ] 1. आवाज़ | आरेक: [ आ + रिच् + घञ ] 1. रिक्त करना, 2. संकुचित 2. चिल्लाना, गुर्राना । करना । आरस्यम् [ अरस + ष्यञ ] नीरसता, स्वादहीनता । आरा दे० 'आर' के नीचे । आरात् ( अव्य० ) [ आ + रा बा० आति-तारा० 'आर' को पा० ए० ० ]1. निकट के पास ( अपा० के साथ या स्वतंत्र ) - तमर्च्य मारादभिवर्तमानं रघु० २। १०, ५1३ 2 से दूर, ( कर्म० के साथ इन दोनों अर्थों में) शि० ३।३१ दूर दूरस्थ 3. फासले पर दूरी से उत्तर० २।२४ । भारातिः [ आ +रा+क्तिच् ] शत्रु । आरातीय (वि० ) [ आरात् + छ] 1. निकट आसन्न 2. दूर का । | आरात्रिकम् [ अरात्रावपि निर्वृत्तम्- ठश ] 1. रात के समय भगवान् की मूर्ति के सामने आरती उतारना -- सर्वेषु चाङ्गेषु च सप्तवारान् आरात्रिकं भक्तजनस्तु कुर्यात् 2. आरती उतारने का दीपक -- शिरसि निहितभारं पात्रमारात्रिकस्य भ्रमयति मयि भूयस्ते कृपार्द्रः | कटाक्षः- शंकर | आराधनम् [ आ + राघ् + ल्युट् ]1. प्रसन्नता, सन्तोष, सेवा ( खातिर ) - येषामाराधनाय - उत्तर० १, यदि वा जानकीमपि आराधनाय लोकानां मुञ्चतो नास्ति मे व्यथा - १।१२ 2. सेवा, पूजन उपासना, अर्चना, ( देवता की ), आराधनायास्य सखीसमेताम् - कु० ११५८, भग० ७।२२३. प्रसन्न करने के उपाय - इदं तु ते भक्तिनम्रं सतामाराधनं वपुः - कु० ६।७३ 4. सम्मान करना, आदर करना- उत्तर० ४।१७5. पकाना 6. पूर्ति, दायित्व निभाना, निष्पत्ति, ना सेवा, --नी (देवता की पूजा, उपासना, अर्चना । आराषयित (वि० ) [ आ + राघ् + णिच् + तृच् ] उपासक, विनम्र सेवक, पूजक आरामः [आ+रम्+घञ ] 1. खुशी, प्रसन्नता - इन्द्रिया रामः - भग० ३।१६, आत्मारामाः - वेणी ०१।३१, एकाराम-याज्ञ० ३।५८ 2. बाग, उद्यान - प्रियारामा हि वैदेह्यासीत् उत्तर० २ आरामाधिपतिविवेक विकल: -भामि० ११३१. आरामिक: [ आराम + ठक्] माली । आरालिक: [अराल + ठक् ] रसोइया । आय: [ ऋ + उण् ] 1. सूअर 2. केंकड़ा 1 आरु (वि० ) [ ऋ + ऊ + णित्] भूरे रंग का । आरूढ (भू० क० कृ० ) [ आ + रूह +क्त] सवार, चढ़ा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ, ऊपर बैठा हुआ - आरूढ़ो वृक्षो भवता सिद्धा०, प्रायः कर्तृवाच्य में प्रयुक्त आरूढमद्रीन् - रघु० ६ । ७७ । आरुति: (स्त्री० ) [ आ + रुह + क्तिन्] चढ़ाव, ऊपर उठना, उन्नयन ( आलं० व शा० ) – अत्यारूढिर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा - श० ४, ५११ । आरेचित [आ + रिच् + णिच् + क्त ] भींची हुई या सिकोड़ी हुई ( आँख की भौहें ) । आरोग्यम् [अरोग + ष्यञ ] अच्छा स्वास्थ्य | आरोपः [ आ + रुह, + णिच्+घञ, पुकागमः ] 1. एक वस्तु के गुणों को दूसरी वस्तु में आरोपित करना - वस्तुन्यवस्त्वारोपोऽध्यारोपः वे० सू०, गले मढ़ना - दोषारोपो गुणेष्वपि - अमर० 2. मान लेना (जैसा कि 'सारोपा लक्षणा' में) 3. अध्यारोपण 4. बोझा लादना, दोषारोपण करना, इलज़ाम लगाना । आरोपणम् [ आ + रुह + णिच् + ल्युट् पुकागमः ] 1. ऊपर रखना या जमाना, रखना - आर्द्राक्षितारोपणमन्वभूताम् रघु० ७ २०, कु० ७।२८ (आलं) संस्थापन, जमा देना -- अधिकारारोपणम् ० ३, 2. पौधा लगाना, 3. धनुष पर चिल्ला चढ़ाना । आरोहः [ आ + रुह् + घञ.] 1. चढ़ने वाला, सवार, जैसा कि 'अश्वारोह' तथा 'स्यंदनारोह' 2 चढ़ाव, ऊपर जाना, सवारी करना 3. ऊपर उठी हुई जगह, उभार, ऊँचाई 4 हेकड़ी, घमंड 5 पहाड़, ढेर 6. स्त्री की छाती, नितम्ब, -सा रामा न वरारोहा - उद्भट, आरो निबिड बृहन्नितम्ब : - शि० ८/८, 7. लम्बाई, 8. एक प्रकार की माप 9. खान । आरोहकः [ आ+रुह, + ण्वुल् ] सवार चालक ( हाँकने वाला) । आरोहणम् [आ + रुह् + ल्युट् ] 1. सवार होने, ऊपर चढ़ने या उदय होने की क्रिया - आरोहणार्थं नवयौवनेन कामस्य सोपानमिव प्रयुक्तम् - कु० ११३९, 2. ( घोड़े की) सवारी करना 3. जीना, सीढ़ी। आकि: [अर्कस्यापत्यम् -- इञ] अर्क का पुत्र, यम की उपाधि, शनि ग्रह, कर्ण, सुग्रीव, वैवस्वत मनु । आक्षं (वि० ) ( स्त्री० ) [ ऋक्ष+अण्] तारकीय, तारों द्वारा व्यवस्थित अथवा तारों से सम्बद्ध | आर्घा [ आ + अ + अच्+टाप्] एक प्रकार की पीली मधुमक्खी । आर्यम् [ आर्घा + यत् ] जंगली शहद । आर्च (वि० ) ( स्त्री० च ) [ अर्चा अस्त्यस्य ण] भक्त, पूजा करने वाला, पुण्यात्मा । आचिक (वि०) (स्त्री० की) [ऋच् + ठञ] ऋग्वेद संबंधी, या ऋग्वेद की व्याख्या करने वाला, कम् सामवेद का विशेषण | आर्जवम् [ ऋजु + अण् ] 1. सरलता 2. स्पष्टवादिता, सद्व तवि, खरापन, ईमानदारी, निष्कपटता, उदारहृदय होना- अहिंसा क्षान्तिराजवं- भग० १३७, क्षेत्रमार्जवस्य - का० ४५ – 3. सादगी, विनम्रता । For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५९ ) आर्जुनिः [अर्जुनस्यापत्यम्-इञ] अर्जुन का पुत्र, अभिमन्यु । | आद्रकम् [आर्द्रा-वुन हरा अदरक, गीला अदरक । आर्त (वि.) [आऋक्त] 1. कष्ट प्राप्त, उपहत, आर्द्रयति (ना० धा०-पर०) गीला करना, तर करना पीड़ित, प्रायः समास में कामात, क्षुधात, तृषार्त, । -भर्तृ० २।५१ । आदि 2. बीमार, रोगी-आर्तस्य यथौषधम् - रघु० आर्ध (वि.) [अर्ध+अण] (समास के आरम्भ में ही १२२८, मनु० ४।२३६ 3. दुःखित, कष्टप्राप्त, संकट प्रयुक्त) आघा। सम-धातुक (वि.) (स्त्री०-की) ग्रस्त, अत्याचार-पीड़ित, अप्रसन्न—आर्तत्राणाय वः (व्या० में) आधी धातुओं में लागू होने वाला, शस्त्रं न प्रहर्तमनागसि-श० १।११, रघु० २।२८, - (कम्) आर्धधातुक छ: गणों से सम्बन्ध रखने ८३३१, १२।१०, ३२ । सम०--नादः,--ध्वनिः, वाली विभक्तियाँ व प्रत्यय (विप० 'सार्वधातुक') ---स्वरः दर्दभरी आवाज,-बन्धुः, साधुः दुःखियों -मासिक (वि.) (स्त्री०-की) आधे महीने रहने का मित्र। वाला। आर्तव (वि०) (स्त्री-वा,--वी) [ऋतुरस्य प्राप्त:-अण्] | आधिक (वि०) (स्त्री०- की) [अर्ध-ठक ] आधे का 1. ऋतु के अनुरूप ऋतुसम्बंधी, मौसमी-अभिभूय साझीदार, आधे से संबंध रखने वाला,-क: जो आधी विभूतिमार्तवीम् - रघु० ८।३६, कु० ४।६८, वसन्त- फसल के लिए खेत जोतता है, वैश्य स्त्री से उत्पन्न कालीन-रघु० ९।२८, 2. मासिक स्राव सम्बन्धी, सन्तान जिसका पालन-पोषण ब्राह्मण के द्वारा होता है, -: बर्ष का अनुभाग, वर्ष--बी घोड़ी-वम 1. दे० उद्धरण, 'अधिक' के नीचे । (स्त्रियों का) मासिक स्राव--नोपगच्छेत्प्रमत्तोऽपि ! आर्य (वि०) [ऋ--ण्यत् ] 1. आर्यन, या अर्य के योग्य स्त्रियमार्तवदर्शने—मनु० ४।४०, ३१४८ 2. मासिक 2. योग्य, आदरणीय, सम्माननीय, कुलीन, उच्चपदस्थ स्राव के पश्चात् गर्भाधान के लिए उपयुक्त दिन 3. - यदार्यमस्यामभिलापि मे मनः-श० ११२२, यह शब्द फूल । प्रायः नाटकोपयोगी भाषा में सम्मान सूचक विशेषण आर्तवेयी रजस्वला स्त्री। के रूप में प्रयुक्त होता है, संबोधन को आदरपूर्ण पद्धति आतिः (स्त्री०) [आ+ऋ+क्तिन्] 1. दुःख, कष्ट, व्यथा है, आर्य सम्माननीय या आदरणीय श्रीमान जी । आर्ये पीड़ा, क्षति ( शारीरिक या मानसिक)-आति न पश्यसि आदरणीय या सम्माननीय श्रीमती जी। लोगों को पुरूरवसस्तदर्थे-विक्रम० २।१६, आपन्नातिप्रशमनफला: संबोधित करने के लिए 'आर्य' शब्द के प्रयोग के सम्पदो ह्यतमानाम्-मेघ० ५३ 2. मानसिक वेदना, निम्नांकित नियम हैं--(क) वाच्यौ नटीसूत्रधारावार्यदारुण दुःख-उत्कण्ठाति-अमरु ३९, 3. बीमारी, रोग नाम्ना परस्परम् (ख) वयस्येत्युत्तमैर्वाच्यो मध्यरार्येति 4. धनुष की नोक 5. विनाश, विध्वंस । चाग्रजः (ग) (वक्तव्यो) अमात्य आयेति चेतरैः (घ) आस्विजीन (वि०)(स्त्री०-नी) [ऋत्विज तत्कर्मार्हति खज] स्वेच्छया नामभिविविध आर्येति चेतरः-सा.द. ऋत्विज के पद के उपयुक्त। ४३१, 3. अत्युत्कृष्ट, मनोहर, श्रेष्ठ,--र्यः 1. ईरान के आत्विज्यम् [ऋत्विज्+-ष्यञ्] ऋत्विज का पद, मर्यादा । लोग, हिन्दूजाति जो अनार्य, दस्यु तथा दास से भिन्न आर्य (वि.) (स्त्री०-थों) 1. किसी वस्तु या पदार्थ से है। 2. जो अपने देश के निवग तथा धर्म के प्रति निष्ठा सम्बन्ध रखने वाला 2. अर्थ सम्बन्धी, अर्थाश्रित, वान् है---कर्तव्यमाचरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्, तिष्ठति (विप० शाब्द) आर्थी उपमा आदि । प्रकृताचारे स वा आर्य इति स्मतः । 3. पहले तीन आधिक (वि.) (स्त्री०-की) [अर्थ+ठक] 1. सार्थक 2. वर्ण (विप० शद्र) 4. सम्माननीय या आदरणीय पुरुष बुद्धिमान् 3. धनवान् 4. तथ्यपूर्ण, वास्तविक । प्रतिष्ठित व्यक्ति 5. सत्कुलोत्पन्न पुरुष 6. सच्चरित्र आई (वि.) [अर्द +रक् दीर्घश्च] 1. गीला, नमीदार, पुरुष 7. स्वामी, मालिक 8. गुरु, अध्यापक 9. मित्र सीला --तन्त्रीमा नयनसलिलै:--मेघ० ८०, ४३, 2. 10. वैश्य 11. श्वसुर (जैसा कि “आर्यपुत्र" में) 12. अशुष्क, हरा, रसीला 3. ताजा, नयाकामीवाः- बुद्धभगवान्,..र्या 1. पार्वती 2. श्वश्रु 3. आदरणीय पराध:--अमरु २, कान्तमा पराधम्-मालवि० ३। महिला 4. छन्द, दे० परिशिष्ट । सम-आवर्तः श्रेष्ठ १२, 4. मृदु, कोमल-प्रायः स्नेह, दया, तथा करुणा और उत्तम (आर्य) लोगों का आवास, विशेषतः वह जैसे शब्दों के साथ क्रमशः "खिला हुआ" "पसीजा भूमि जो पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक फैली हुई है हुआ" "पिघला हुआ” अर्थ प्रकट करता है-स्नेहान- तथा जिसके उत्तर में हिमालय एवं दक्षिण में विन्ध्य हवय-- दया से पिघले हुए दिल वाला,---ा छठा | पर्वत है -तु० मनु० २।२२, आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासनक्षत्र । सम०-काष्ठम् हरी लकड़ी,---पृष्ठ (वि.) मुद्राच्च पश्चिमात, तयोरेवान्तरं गिर्योः (हिमबिध्ययोः) सींचा हुआ, विश्रांत किया हुआ---आईपृष्ठाः क्रियन्तां आर्यावर्त विदुर्बधाः । १३४ भी-गद्य (वि.) 1. वाजिनः-श० १,-शाकं ताज़ा अदरक । श्रेष्ठ पुरुषों से सम्मानित, श्रेष्ठ पुरुषों का मित्र, सम्मा For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ननीय व्यक्तियों के पास जिसकी पहुंच अनायास होती है, तमायंगृह्यं निगृहीतधेनु: - रघु० २।३३, 2. आदरणीय, भद्र, बेशः वह देश जहाँ आर्य लोग बसे हुए हैं, पुत्रः 1. सम्माननीय व्यक्ति का बेटा 2. आध्यात्मिक गुरु का पुत्र 3. बड़े भाई के पुत्र का सम्मान सूचक पद, पत्नी का पति के लिए तथा सेनापति का राजा के लिए सम्मानसूचक पद 4. श्वसुर का पुत्र अर्थात् पति ( प्रत्येक नाटक में, बहुधा संबोधन के रूप में, अन्तिम दो अर्थों के लिए प्रयुक्त), प्राय ( वि० ) 1. जहाँ आर्य लोग बसे हों 2. जहाँ प्रतिष्ठित व्यक्ति रहते हों, मिश्र ( वि० ) आदरणीय, योग्य, पूज्य ( -- श्रः ) सज्जनपुरुष, गौरवशाली पुरुष, ( ब० व० ) 1. योग्य और आदरणीय व्यक्ति, सभ्य या सम्माननीय व्यक्ति --- आर्यमिश्रान् विज्ञापयामि – विक्रम ० १, 2. श्रद्धेय, मान्यवर (आदरयुक्त संबोधन ) - नन्वार्यमिश्रः प्रथममेव आज्ञप्तम् -- श० १, लिगिन् (पुं० ) पाखंडी -वृत्त (वि०) सदाचारी, भद्र – रघु० १४/५५ - वेश ( वि०) अच्छी वेशभूषा में, आदरणीय वेश धारण किये हुए, सत्यम् अत्युत्कृष्ट और अलौकिक सत्य - हृद्य ( वि०) जो श्रेष्ठ व्यक्तियों को रुचिकर हो । आर्यकः [ आर्य + स्वार्थे कन् ] 1. सम्माननीय या आदरणीय पुरुष, 2. बाबा, दादा | आर्यका, आर्यिका [आर्या + कन् ह्रस्वः, पक्षे इत्वम् ] आदरणीय महिला | १६० आर्ष (वि० ) ( स्त्री० - र्षी ) [ ऋषेरिदम्- अण् ] 1. केवल ऋषि द्वारा प्रयुक्त, ऋषिसंबंधी, आर्ष, वैदिक ( favo 'लौकिक या श्रेण्य' ) -- आर्षः प्रयोगः, संबुद्धी शाकल्यस्येतावनार्षे- सिद्धा० 2. पवित्र, पावन: अतिमानव, र्षः विवाह का एक प्रकार, आठभेदों में से विवाह का एक भेद जिसमें दुलहिन का पिता वर महोदय से एक या दो जोड़ी गाय प्राप्त करता हैआदायार्षस्तु गोद्वयम् - याज्ञ० ११५९, मनु० ९।१९६, विवाह के आठ प्रकारों के नामों के लिए दे० 'उद्वाह', -म् पावन पाठ, वेद । आर्धम्य: [ ऋषभ + ञ्य ] बछड़ा जो पर्याप्त बड़ा हो गया हो, काम में लाया जा सके या सांड़ बनाकर छोड़ा जा सके । आर्षेय (वि.० ) ( स्त्री० घी) [ ऋषि + ढक् ] 1. ऋषि से संबंध रखने वाला 2. योग्य, महानुभाव, आदरणीय । आहंत ( वि० ) ( स्त्री० - ती ) [ अर्हत् + अण् ] जैनधर्म के सिद्धांतों से संबंध रखने वाला, तः जैन, जैनधर्म का अनुयायी, तम् जैनधर्म के सिद्धान्त । आर्हन्ती - न्त्यम् [ अर्हत् + ष्यञ्ञ, नुम् च ] योग्यता । आल:-लम् [ आ + अल् + अच् ] 1. अंडों का ढेर, मछली आदि के अंडे, 2. पीला संखिया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) आलगर्दः [ अलगर्द + अण् ] पनिया सांप । आलभनम् [ आ + लभ् + ल्युट् ] 1. पकड़ना, कब्जा करना 2. छूना 3. मार डालना । आलम्बः [ आ+लम्बु +घञ्ञ ] 1. आश्रय 2. थूनी, टेक ( जिसके सहारे मनुष्य खड़ा होकर विश्राम करता है) --- इह हि पततां नास्त्यालंबो न चापि निवर्तनम् - शा० ३।२, 3. सहारा, रक्षा -- तवालम्बादम्ब स्फुरदलघुगर्वेण सहसा - जग ० 4. आशय । आलम्बनम् [ आ + लम्ब् + ल्युट् 1. आश्रय, 2. सहारा, थूनी, टेक - कि० २०१३, सहारा देते हुए – मेघ० ४, 3. आशय, आवास 4. कारण, हेतु 5. (सा० शा० में) जिस पर रस आश्रित रहता है, वह पुरुष या वस्तु जिसके उल्लेख से रस की निष्पत्ति होती है, रस को उत्तेजित करने वाले कारण का रस से नैसर्गिक और अनिवार्य संबंध, रस की निष्पत्ति के कारण (विभाव) के दो भेद हैं- आलंबन और उद्दीपन, उदा० बीभत्स में दुर्गंधयुक्त मांस रस का आलंबन है, तथा दूसरी प्रस्तुत परिस्थितियाँ जो मांसगत कीड़े आदि की घिनौनी भावनाओं को उत्तेजित करती हैं इसके उद्दीपन हैं, दूसरे रसों के विषय में दे० सा० द० २१०-२३८ । आलम्बिन् ( वि० ) [ आ + लम्बू + णिनि ] 1. लटकता हुआ, सहारा लेता हुआ, झुकता हुआ 2. सहारा देने वाला, बनाये रखने वाला, थामने वाला 3. पहने हुए । आलम्भः-भनम् [ आ + लभ्+घञ्ञ, मुम् च, पक्षे ल्युट् ]1. पकड़ना, कब्जा करना, स्पर्श करना 2. फाड़ना 3. मार डालना (विशेषतः यज्ञ में पशु - बलि देना) अश्वा लम्भ, गवालम्भ । आलय: - यम् [ आ + ली + अच् ] 1. आवास, घर, निवास गृह- न हि दुष्टात्मनामार्या निवसन्त्यालये चिरम्रामा० -- सर्वाञ्जनस्थानकृतालयान् रामा० जो जनस्थान में रहा 2. आशय, आसन या जगह- हिमालयो नाम नगाधिराजः – कु० १, इसी प्रकार देवालयम्, विद्यालयम् आदि । आलर्क (वि० ) [ अलर्कस्येदम् - अण् ] पागल कुते से सबंध रखने वाला या उससे उत्पन्न आलक विषमिव सर्वतः प्रसृतम् - उत्तर० १ ४० । आलवण्यम् [ अलवणस्य भावः ष्यञ् ] 1. फीकापन, स्वादहीनता 2. कुरूपता । आलवालम् [ आसमन्तात् लवं जललवम् आलाति-आ + ला+क तारा० ] (वृक्ष की जड़ के चारों ओर) पानी भरने का स्थान, खाई, पूरणे नियुक्ता - श० १ - - विश्वासाय विहगानामालवालाम्बुपायिनाम् रघु० १।१५ । आलस (वि० ) ( स्त्री० - सी ) [ आलसति ईषत् व्याप्रियते -अच् ] सुस्त, काहिल, ढीला-ढाला । For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( आलस्य (वि० ) [ अलसस्य भावः ष्यञ ] सुस्त ढीलाढाला, काहिल - स्यम् सुस्ती, शिथिलता, स्फूर्ति का अभाव -- शक्तस्य चाभ्यनुत्साहः कर्मस्वालस्यमुच्यते --- सुश्रुत: आलस्य ( स्फूर्ति का अभाव ) ३३ व्यभिचारिभावों में से एक है- उदा० न तथा भूषयत्यङ्ग न तथा भाषते सखीम्, जृम्भते मुहुरासीना बाला गर्भभरालसा -- सा० द० १८३ । आलातम् [ अलात + अण् ] जलती हुई लकड़ी । आलानम् [ आ + ली + ल्युट् ] 1. वह स्तंभ जिससे हाथी बाँधा जाय, बाँधे जाने वाला खंबा, रस्सा भी जिससे हाथी बाँधा जाता है- अरुन्तुदमिवालानमनिर्वाणस्य दन्तिनः रघु० १।७१, ४।६९, ८१, आलाने गृह्यते हस्तो - मृच्छ० १५०, 2. हथकड़ी, बँध 3. जंजीर, रस्सा 4. बंधना, बाँधना । १६१ आलानिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ आलान + ठञ ] उस यूनी का काम देने वाली वस्तु जिसके सहारे हाथी बाँधा जाता है, आलानिकं स्थाणुमिव द्विपेन्द्रः- रघु० १४।३८ । आलापः [ आ + लप् + घञ ] 1. बातचीत, भाषण, समालाप - अये दक्षिणेन वृक्षवाटिकामालाप इव श्रूयते - श० १, 2. कथन, उल्लेख । आलापनम् [ आ + लप् + णिच् + ल्युट् ] बोलना, बातचीत करना । आलाबु:-बू ( स्त्री०) घीया, पेठा कद्दू, कुम्हड़ा । दे० 'अलाबु' । आलावर्तम् [ आलं पर्याप्तमावर्त्यते इति - आल + आ + वृत् + णिच् + अच् ] कपड़े का बना पंखा । आलि (fro ) [ आ + अल्+इन् ] 1. निकम्मा, सुस्त 2. ईमानदार - लि: 1. विच्छू 2. मधुमक्खी, लि, लो ( स्त्री० ) 1. ( किसी स्त्री की) सहेली -निवार्यतामालि किमप्ययं वटुः - कु० ५१८३, ७।६८, अमरु २३, 2. पंक्ति, परास, अविच्छिन्न रेखा (तु० आवलि) -तोयान्तर्भास्करालीव रेजे मुनिपरम्परा - कु० ६१४९, रथ्यालि ८२, 3. रेखा, लकीर 4. पुल 5 पुलिया, बांध । आलिङ्गनम् [आ+लिङग् + ल्युट् ] परिरंभण, गले लगाना, | गवाही देना - ( स प्राप) आलिङ्गननिर्वृतिम् - रघु० १२।६५ । | आलिङ्गन (वि० ) [ आ + लिङ्ग । इनि | गलबाहीं देने वाला, (पुं०-गी), आलिङ्ग्यः जौ के दाने के आकार जैसा बना छोटा ढोल | आलिञ्जरः [अलिञ्जर एव स्वार्थे अण् ] मिट्टी का बड़ा घड़ा । आलिवः स्वकः [ आलिन्द + अणु, स्वार्थे कन् च] 1. घर के सामने बना चौतरा, चबूतरा 2. सोने के लिए ऊँचा बनाया हुआ स्थान । आलिम्पनम् [ आ + लिप् + ल्युट्, मुम् च ] उत्सवों के अव २१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) सर पर दीवारों पर सफेदी करना, फर्श लीपना आदि; तु० 'आदीपनम्' | आलोढम् [ आ + लिह + क्त ] बन्दूक से निशाना लगाते समय दाहिने घुटने को आगे बढ़ा कर और बायें पैर को मोड़ कर बैठना, अतिष्ठदालीढविशेषशोभिना - रघु० ३।५२, दे० कु० ३।७० पर मल्लि० । आलु: [ आ + लु+डु ] 1. उल्लू 2. आबनूस, काला आबनूस, लु: ( स्त्री०) घड़ा, ल (नपुं०) लट्ठों को बाँध कर बनाया गया बेड़ा, धन्नई ( दो घड़ों को बाँध कर बनाई गई नौका) । आलुञ्चनम् [ आ + लुञ्च् + ल्युट् ] फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना । आलेखनम् [ आ + लिख + ल्युट् ]1. लिखना 2. चित्रण करना 3. खुरचना, नी कूंची, कलम । आलेख्यम् [ आ + लिखु + ण्यत् ] 1. चित्रकारी, चित्र - इति संरम्भिणो वाणीर्बलस्यालेख्यदेवताः - शि० २।६७, रघु० ३ | १५, 2. लिखना । सम० --- लेखा बाहरी रूपरेखा, चित्रण, शेष (वि० ) चित्र को छोड़ कर जिसका और कुछ शेष न रहा हो अर्थात् मृत, मरा हुआ - आलेख्यशेषस्य पितुः – रघु० १४११५, आलेपः- पनम् [ आ + लिप् + घटन, ल्युट् वा ] 1. तेल या उबटन आदि का मलना, लीपना, पोतना 2. लेप । आलोकः-कनम् [ आ+लोक् + घञ्ञ, युट् वा ]1. दर्शन करना, देखना 2. दृष्टि, पहल, दर्शन - यवालोके सूक्ष्मम् श० १1९, कु० ७/२२, ४६, सुख-विक्रम ० ४१२४, 3. दृष्टि परास - आलोके ते निपतति पुरा सा बलिव्याकुला ar - मेघ० ८५, रघु० ७।५ कु० २४५, 4. प्रकाश, प्रभा, कान्ति-निरालोकं लोकं मा० ५ ३० ९ ३७, 5. भाट, विशेषत: भाट द्वारा उच्चरित स्तुति-शब्द (जैसे 'जय, आलोकय ) - ययावुदीरितालोकः - रघु० १७/२७, २९, का० १४ । आलोचक (वि० ) [ आ + लोच् + ण्वुल् ] आलोचना करने वाला, देखने वाला, कम् दर्शन-शक्ति, दृष्टि का कारण । आलोचनम् - ना [ आ + लोच् + ल्युट्, युच् वा ] 1. दर्शन करना, देखना, सर्वेक्षण, समीक्षा 2. विचार करना, विचार-विमर्श | आलोडनम् - ना [ आ + लुड् + णिच् + ल्युट् ]1. बिलोना हिलाना, क्षुब्ध करना 2. मिश्रण करना । आलोल (वि० ) [ प्रा० स० ]1. कुछ कांपता हुआ, (आँखों को) घुमाता हुआ 2. हिलाया हुआ, विक्षुब्ध अमरु ३, मेघ० ६१ । आवनेयः [अवनि + ढक् ] भूमिपुत्र, मंगल ग्रह की उपाधि । आवस्य ( वि० ) [ अवन्ति + ञ्यङ] अवन्ति से आने वाला, या संबन्ध रखने वाला, स्त्यः अवन्ती का राजा, For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६२ ) अवन्ती का निवासी, पतित ब्राह्मण की सन्तान --देन में से एक, दे० 'पंचाग्नि,'-थ्यः-ध्यम् छात्रावास, मनु०१०१२१ । संन्यासाश्रम,-ध्यम् घर। मावपनम् [आ + व+ल्युट ] 1. बोना, फेंकना, बखेरना | आवसित (वि.) [आ--अव- सो+क्त ] 1. समाप्त, 2. बीज बोना 3. हजामत करना 4. बर्तन, मर्तवान, पूर्ण किया गया 2. निर्णीत, निर्धारित, निश्चित,-तम् पात्र। पका हुआ अनाज (खलिहान से लाया हुआ)। मावरकम् [आवृ+ण्वुल ] ढक्कन, पर्दा । | आवह (वि०) [आ+वह +अच् ] (समास का अन्तिम मावरणम् [आ+ ल्युट् ] 1. ढकना, छिपाना, मंदना, पद) उत्पन्न करने वाला, राह दिखाने वाला, देखभाल -सूर्य तपत्यावरणाय दृष्टेः कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्रा करने वाला, लाने वाला,-क्लेशावहा भरलक्षणाऽहम् -रघु० ५।१३, १०१४६, १९।१६,2. बंद करना, --रघु० १४१५, इसी प्रकार दुःख, भय । घेरना 3. ढकना 4. बाधा 5. बाड़ा, अहाता, चहार- आवापः [आ+व+घञ ] 1. बीज बोना 2. बखेरना, दीवारी-रघु० १६१७, कि० ५।२५, 6. कपड़ा, वस्त्र फेंकना 3. आलवाल 4. बर्तन, अनाज रखने का मटका 7. ढाल। सम-शक्तिः मानसिक अज्ञान (जिससे 5. एक प्रकार का पेय 6..कंकण 7. ऊबड़-खाबड़ भूमि । वास्तविकता पर पर्दा पड़ा रहता है)। आवापकः [आवाप+कन् ] कंकण।। आवर्तः [आ+वृत्+घञ्] 1. चारों ओर मुड़ना, चक्कर | आवापनम् [ आ+व+णि+ल्युट ] करघा, खड्डी। काटना 2. जलावर्त, भंवर-नृपं तमावर्तमनोज्ञनाभिः | आवालम् [ आ+वल-+णिच् +अच् ] थांवला, आलवाल । --रघु०६।५२, दर्शितावर्तनाभः---मेघ० १८, आवर्तः आवासः [ आवस्+घञ ] 1. घर, निवास 2. शरणसंशायानाम्-पंच० १११९१, 3. पर्यालोचन, (मनमें) स्थान, मकान -आवासवृक्षोन्मुखबहिणानि---रघु० घूमना 4. बालों के पट्टे, अयाल 5. घनीबस्ती (जहाँ २।१७। बहुत पुरुष इकट्ठे रहते हों) 6. एक प्रकार का रत्न । आवाहनम् [आ+वह --णिच+ल्यूट] 1. बुलवाना, आवर्तकः [आवर्त+कन् ] 1. मर्त बादल का एक प्रकार निमंत्रण, पुकारना 2. देवता का (यज्ञ में उपस्थित ----जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानाम्----मेघ० होने के लिए) आवाहन करना (विप० विसर्जन) ६, कु० २२५० 2. जलावर्त 3. क्रान्ति, घुमाव 4. 3. अग्नि में आहुति डालना-याज्ञ. ११२५१ । धुंधराले बाल। आविक (वि०) (स्त्री०-की) [ अवि +ठक ] 1. भेड़ से आवर्तनम् [आ+वृत्+ल्युट ] 1. चारों ओर मुड़ना, | संबंध रखने वाला,-आविकं क्षीरम् -मनु० ५।८, चक्कर काटना 2. वृत्ताकार गति, घूर्णन 3. (धातुओं २१४१ 2. ऊनी,—कम् ऊनी कपड़ा। का) पिघलाना, गलाना 4. आवृत्ति करना,-नः आविग्न (वि०) [आ-विज्+क्त ] दुःखी, कष्टग्रस्त । विष्णु,नो कुठाली। आविद्ध (भू० क० कृ०) [आ+व्यध्+क्त ] 1. बिधा आवलि:-ली (स्त्री०) [आ+वल+इन् पक्षे डीप ] 1. हुआ, छेदा हुआ 2. मुड़ा हुआ, टेढ़ा 3. बलपूर्वक फेंका रेखा, पंक्ति, परास-अरावलीम्--विक्रम० ११४, इसी हआ, गति दिया हुआ। प्रकार अलक दंत, हार' रत्न आदि 2 सिलसिला, आविर्भावः [ आविस्+भू+घञ] 1. अभिव्यक्ति, उपअविच्छिन्न लकीर। __ स्थिति, प्रकट होना 2. अवतार । आवलित (वि.) [आ-|-वल्+क्त ] जरा सा मुड़ा हुआ। | आविल (वि.) [आविलति दृष्टिं स्तुणाति-विल+क आवश्यक (वि.) (स्त्री०- की) [अवश्य--- ] तारा०] 1. पंकिल, मैला, गदला--पङ्कच्छिदः फलस्येव अनिवार्य, जरूरी-एतेष्वावश्यकस्त्वसौ---भापा० २२, निकषेणाविलं पयः-मालवि० २१८, तस्याविलाम्भः ---कम् 1. जरूरत, अनिवार्यता, कर्तव्य 2. अनिवार्य परिशुद्धिहेतो. रघु० १३१३६ 2. अपवित्र, दूषित फल। (आलं. भी), त्वदीयश्चरितैरनाविलै:---कु० ५/५७, मावसतिः (स्त्री०) [प्रा० स०] रात्रि (विश्राम करने का | 3. काले रंग का, हलके काले रंग का 4. धुंधला, समय), आधीरात । निष्प्रभ-आविलां मृगलेखाम्-रघु० ८।४२। मावसयः [आ+वस्+अथच् ] 1. आवास, आवास-स्थान, आविलयति (ना० धा० पर०) घब्बा लगाना, कलंक घर, निवास-निवसन्नावसथे पुराबहि:-रघु०८।१४ । लगाना। 2. विश्राम करने का स्थान, विधानस्थल 3. छात्रा- आविष्करणम्, आविष्कारः [आविस्++ल्युट+घन वास, संन्यासाश्रम । वा ] अभिव्यक्ति, दर्शन देना, प्रकट करना-असूया आवसभ्य (वि.) [आवसथ+ज्य] गही, घर में विद्यमान, गुणेष दोषाविष्करणम्-अमर० । -थ्यः (अग्निहोत्र की) पावन अग्नि जो घर में आविष्ट (भ० क० कृ०) [आ+-विश्+क्त] 1. प्रविष्ट 2. रक्खी जाती है, यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली पंचाग्नियों ! (भूत प्रेतादिक से) ग्रस्त 3. संपन्न, भरा हुआ, वशीकृत, For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( काबू पाया हुआ, भय क्रोध° 4. निमग्न, लीन अधिकार में किया हुआ, जुटा हुआ । आविस ( अव्य० ) [ आ + अव् - इस् ] निम्नांकित अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय - 'आंखों के सामने' 'खुले रूप में' 'प्रकटतः' ( प्रायः यह अव्यय - अस्, भू और कृ धातु से पूर्व लगता ह) - आचार्यकं विजयि मान्मथमाविरासीत् मा० ११२६, (याति) आविष्कृतारुणपुरस्सर एकतोऽर्क:- श० ४११, तेपामा विरभूद्ब्रह्मा कु० २१२ रघु० ९।५५ । १६३ आवतम् [ आ + व् + क्त ] यज्ञोपवीत (चाहे किसी प्रकार सव्य, अपसव्य पहना हुआ हो ) । आबुक: ( नाटयशालीय भाषा में ) पिता । आत: [ आप क्विप्, आपमुत्तनोति इति उद् । तन् + उ ] बहनोई, जीजा, उत्तर० १ ० ६ । आवृत् (स्त्री० ) [ आ + वृत् + क्विप्] 1 मुड़ती हुई, प्रविष्ट होती हुई 2. क्रम, आनुपूर्व्य, पद्धति, रीति -- अनयंवावृता कार्य पिण्डनिर्वापणं सुतैः मनु० ३।१४८ याज्ञ० ३१२, 3. रास्ते का मोड़, मार्ग, दिशा 4. शुद्धीकरण संबधी संस्कार - मनु० २०६६ । आवृत्त ( भू० क० कृ० ) [ आ + वृत् + क्त ] 1. मुड़ा हुआ, चक्कर खाया हुआ, लौटा हुआ 2. दोहराया हुआ, - द्विरावृत्ता दश दिया: सिद्धा० 3. याद किया हुआ, अध्ययन किया हुआ । आवृत्तिः (स्त्री० ) [ आ + वृत् + क्तिन्] 1 मुड़ना, लौटना, वापिस आना, तपोवनावृत्तिपथम् रघु० २१८, भग० १ २३, 2 प्रत्यावर्तन, प्रतिनिवर्तन 3. चक्कर खाना, चारों ओर जाना 4. ( सूर्य का ) उसी स्थान पर फिर लौटना उदगावृत्तिपथेन नारदः - रघु० ८ ३३, 5. जन्म-मरण का वार २ होना, सांसारिक जीवन, अनावृत्तिभयम् कु० ६।७७6. आवृत्ति, दोहराना, संस्करण ( आधुनिक प्रयोग ), 7. दोहराया हुआ पाठ, अध्ययन - आवृत्तिः सर्वशास्त्राणां वोधादपि गरीयसी उद्भट० । आवृष्टि ( स्त्री० ) [ आ + वृप् + क्तिन् ] वरसना, वारिश की बौछार । आवेगः [ आ + विज्+घञ्न् ] 1. वेचैनी, चिन्ता, उत्तेजना, विक्षोभ, घबड़ाहट - अलमावेगेना० २ अमरु ८३ 2. उतावली, हड़बड़ी 3. क्षोभ - (३३ व्यभिचारि-भावों में से एक समझा जाता है) । आवेदनम् [ आ + विद् + णिच् + ल्युट् ] 1. समाचार देना, सूचना देना 2. अभ्यावेदन 3. अभियोग का वर्णन ( विवि० में ) 4. अभिवाचन, अर्जीदावा । आवेश: [ आ + विश् + घन्] 1 प्रविष्ट होना, प्रवेश 2. अधिकार में करना, प्रभाव, अभ्यास, स्मय' अभिमान का प्रभाव - रघु० ५।१९ 3. एकनिष्ठता, किसी पदार्थ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) के प्रति अनुरक्ति 4. घमंड, हेकड़ी 5. हड़बड़ी, क्षोभ, क्रोध, प्रकोप 6. आसुरी भूतबाधा 7. लकवे की बेहोशी या मिरगी की मूर्छा । आवेशनम् [आ + विश् + ल्युट् ] 1. प्रविष्ट होना, प्रवेश 2. आसुरी प्रेतबाधा 3. प्रकोप, क्रोध, प्रचण्डता 4. निर्माणी, कारखाना - मन० ९।२६५, 5. घर । आवेशिक (वि०) (स्त्री० की) 1. विशिष्ट, निजी 2. अन्तर्हित-कः अतिथि, दर्शक । आवेष्टक: [ आ + वेष्ट् + णिच् + ण्वुल् ] अहाता । दीवार, बाड़, आवेष्टनम् [आ + वेष्ट् + णिच् + ल्युट् ] 1. लपेटना, बँधना, बांधना 2. ढकना, लिफ़ाफ़ा 3. दीवार, बाड़, अहाता । आश (वि० ) [ अश् +अण्] खानेवाला, भोक्ता ( बहुघा समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त होता है) उदा० हुतारा, आश्रयाश, शः [ अश् + घञ्न् ] खाना (जैसा कि 'प्रातराश' में ) । आशंसनम् [आ + शंस् + ल्युट् ] 1. प्रत्याशा, इच्छा - इष्टा शंसनमाशी:- सिद्धा० 2. कहना, घोषणा करना । आशंसा [ आ + शंस् + अ ] 1. इच्छा, अभिलाष, आशा -- निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे – रघु० १२/४४ भट्टि० १९/५, 2. भाषण, घोषणा 3. कल्पना -आशंसापरिकल्पितास्वपि भवत्यानन्दसान्द्रो लयः मा० ५।७ । आशंसु (वि० ) [ आ + शंस् + उ ] इच्छुक, आशावान् । आशङ्का [आ + शङ्क + अ] 1. भय, भय की सम्भावना, - नष्टाशङ्काहरिणशिशवो मन्दमन्दं चरन्ति श० १।१६, आशङ्कया मुक्तम् भर्तृ० ३1५, 2. सन्देह, अनिश्चयात्मकता, इत्याशङ्कायामाह —गदावर अविश्वास, शक | 3. आशङ्कित (भू० क० कृ० ) [ आ + शङक् +क्त] 1. भीत, डरा हुआ, तम् 1 भय, 2 सन्देह 3 अनिश्चयात्मकता । आशय: [ आ + शी + अच्] 1 शयनकक्ष, विश्रामस्थल, शरणागार 2. निवास-स्थान, आवास, आसन, आश्रयस्थान --- वायुर्गन्धानिवाशयात् - भग० १५०८, अपृथक् - उत्तर० ११४५, 3. पात्र, आधार - विषमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसामिवाशय: कि० २१३, तु० जलाशय, आमाशय, रक्ताशय आदि 4. पेट 5. अर्थ, इरादा, प्रयोजन, भावइत्याशयः, एवं कवेराराय: ( टीकाकारों के द्वारा बहुधा प्रयुक्त दे० 'अभिप्राय) 6. भावनाओं का स्थान, मन, हृदय—अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः - भग० १० २०, महावी० २ ३७, 7 सम्पन्नता 8. कोठार 9. मन, इच्छा 10. भाग्य, किस्मत 11. ( जानवरों को पकड़ने के लिए बनाया गया) गर्त - आस्ते परमसंतप्तो नूनं सिंह इवाशये – महा० । सम० - आशः अग्नि । For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाकार [बा+शु+अच्] 1. अग्नि 2. असुर, राक्षस 3. | शब्द की भावना अधिक स्थायी और पूर्णता की वायु। निश्चायक है-तुल०-वरः खल्वेष नाशी:-श०४, मावावमाधाशोर्भाव:- अण] 1. वेग फूर्ती 2. खींची हुई आशिसो गुरुजनवितीर्णा वरतामापद्यन्ते-का० २९१, पाराग, अरिष्ट (अधिकतर 'आसव' लिखा जाता है)। अमोघाः प्रतिगृह्णन्तावानुपदमाशिष:-रघु० ११४४, बामा [बा+अ+अच्] 1. (क) उम्मीद, प्रत्याशा, जयाशी:- कु० ७१४७, 2. प्रार्थना, चाह, इच्छा-कु. भविष्य-तामाशां च सुरद्विषाम् - रघु० १२१९६, ५।७६, भग० ४।२१, 3. सांप का विषेला दांत (तु० माशा हि परमं दुःखं नैराश्यं परमं सुखम् --सुभाष०, 'आशीविष')। सम०-वादः,---वचनम् (आशीर्वादः स्वमाशे मोघाशे 2. मिथ्या आशा या प्रत्याशा 3. स्थान, आदि), आशीर्वाद, मंगलाचरण, किसी प्रार्थना या प्रदेश, दिग्देश, दिशा-अगस्त्याचरितामाशामनाशास्य- सद्भावना की अभिव्यक्ति--आशीर्वचनसंयुक्तां नित्यं जयो पयो-रघु० ४।४४, कि० ७९ । सम० यस्मात् प्रकुर्वते --सा० द० ६, मन० २।३३,-विषः -अस्थित,--जनन (वि.) आशावान्, आशा बढ़ाने (आशीविषः) साँप । बाला,-गज दिग्गज दे० 'अष्टदिग्गज', तन्तुः आशा आशो [आशीर्यते अनया आ+श+क्विप्-पृषो०,] 1. कीर, क्षीण आशा-मा० ४।३, ९।२६ -- पाल: साँप का विषला दांत, 2. एक प्रकार का सर्पविष 3. दिकपाल दे० 'अष्टदिकपाल',-पिशाचिका आशा की आशीर्वाद, मंगलाचरण । सम०--विष: 1. साँप, कल्पना-सृष्टि,-बन्ध: 1. आशा का बन्धन, विश्वास, -गरुत्मदाशीविषभीमदर्शन:-रघु० ३।५७, 2. एक भरोसा, प्रत्याशा- गुर्वपि विरहदुःखमाशाबन्धः साह विशेष प्रकार का साँप-कर्णाशीविषभोगिनि प्रशमिते यनि-श० ४११५, मेघ १०, 2. तसल्ली 3. मकड़ी -वेणी०६।१। का जाला,-भंग; निराशा, नाउम्मीद,-हीन (वि.) | माशु (वि.)[अश्+उण् ] तेज़, फुर्तीला, शुशु (नपुं०) निराश, हताश। चावल (जो बरसात में ही शीघ्रतापूर्वक पक जाते हैं) मामा दे.' (आ)वाढः । -शु (अव्य०) तेजी से, जल्दी से, तुरन्त, सीषा माहास्य (स०१०) [मा+शास्+ण्यत्] 1 वरदान द्वारा -वर्ती भानोस्त्यजाशु-मेघ ० ३९४२२ । सम-कारिन्, प्राप्य 2. अभिलषणीय, वांछनीय--रघु० ४।४४, -कृत् (वि.) जल्दी करने वाला, चुस्त, फुर्तीला -स्यम् वाञ्छनीय पदार्थ, चाह, इच्छा,-मालवि. --कोपिन् (वि.) गुस्सैला, चिड़चिड़ा, - (वि०) ५२०,3. आशीर्वाद, मंगलाचरण-आशास्यमन्यत्पु- फुर्तीला, तेज (गः) 1. वायु 2. सूर्य 3. बाण-पपामरुपराभूतम्-रघु० ५।३४ । बनास्वादितपूर्वमाशुग:-रषु० ३।५४, ११३८२, १२।९१ नाशिमित (वि.) [आ+शिक्+क्त] झनकार (आभू- --तोष (वि०) अनायास प्रसन्न होने वाला (--पः) षणों की) कु. ३।२६।। शिव की उपाधि,प्रीहिः बरसात में ही पक जाने गापित (वि०) [आ+अश्+क्त] 1. भुक्त, खाया हुआ वाले चावल । ___2. खाकर तृप्त,--तम् भोजन करना। आशुशुक्षणिः [आ+शुष+सन +अनि ] 1. वायु, हवा 2. माशितजामीन (वि.) [आशिता अशनेन तृप्ता गावो यत्र, अग्नि - मंत्रपूतानि हवींषि प्रतिगृह्णात्येतत्प्रीत्याशुशु-वन निपातनात् मुम्] पहले पशुओं द्वारा चरा पशुओं द्वारा रा| आग्न - मत्रपूतान क्षणि:---.४४। आशेकुटिन (पं.) [आशेतेऽस्मिन् इति-आ+शी+विच मातिभव (वि.) [आशित+भू+खच्, मुम् ] तृप्त होने | स इव कुटति इति णिनि पहाड़ । बाला, संतप्त होने वाला (भोजन के रूप में)-.-बम् । आशोषणम् [आ+शुष्+णिच् -- ल्युट्] सुखाना। 1. माहार, भोज्य पदार्थ 2. अधाना, तृप्ति (पुं० भी) आशौचम् [अशौच+अण्] अपवित्रता-दे० 'अशौच' दशा-फलैर्येष्वाशितंभवम्-भट्टि०४।११ । हम् शावमाशीचं ब्राह्मणस्य विधीयते--मनु० ५।५९, माभिर (वि०) [आ+अश्+हरच् ] भोजनभट्ट,र: 1. ६१, ६२, याज्ञ० ३११८ अग्नि 2. सूर्य 3. राक्षस। आश्चर्य (वि.) [आ+चर+ण्यत् सुट] चमत्कारपूर्ण, मामिस् (स्त्री०) (°शी:, शीाम्-आदि) [आ+शास् विलक्षण, असाधारण, आश्चर्यजनक, अद्भुत-आश्चर्यो +विवप्, इत्वम् ] 1. आशीर्वाद, मंगलकामना (परि- गवां दोहोऽगोपेन-सिद्धा०, तदनु ववृषुः पुष्पमाश्चर्यभाषा-वात्सल्याचत्र मान्येन कनिष्ठस्याभिधीयते, मेघाः-रघु० १६२८७ आश्चर्यदर्शनो मनुष्यलोक: इष्टावधारकं वाक्यमाशीः सा परिकीर्तिता।) 'आशिस्' -श०७,~-र्यम् 1. अचम्भा, चमत्कार, कौतुक मौर 'वर' भिन्नार्थक शब्द है, आशीर्वाद तो केवलमात्र -किमाश्चर्य क्षारदेशे प्राणदा यमदूतिका--उद्भट, किसी की मंगलकामना या सद्भावना की अभिव्यक्ति कर्माश्चर्याणि -उत्तर०१-आश्चर्यजनक काम-भग० है-यह चाहे पूरी हो या न हो, इसके विपरीत 'वर'। १११६, २२९ 2. अचरज, विस्मय, अचम्भा 3. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १६५ ) ( विस्मयादि द्योतक अव्य० के रूप में प्रयुक्त) आश्चर्य (कितना अचम्भा है, कितनी अजीब बात है ) आश्चर्य परिपीडितोऽभिरमते यच्चातकस्तृष्णया चात ० २१४ | आइचो ( इच्यो ) तनम् [ आ - - - श्चु ( इच्यु ) त् + ल्युट् ] 1. सिंचन, छिड़काव 2. पलकों के घी चुपड़ना । आश्म ( वि० ) ( स्त्री० - श्मी) [ अश्मन् + अण् ] पत्थर का बना हुआ, पथरीला । आश्मन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ अश्मनो विकार:- अण् ] पथरीला, पत्थर का बना हुआ नः 1. पत्थर की बनी कोई वस्तु 2. सूर्य का सारथि अरुण । आश्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अश्मन् + ठण् ] 1. पत्थर का बना हुआ 2. पत्थर ढोने वाला । आश्यान (भू० क० कृ० ) [ आ + श् + क्त ] 1. जमा हुआ, संघनित - कि० १६ १०, 2. कुछ सूखा - पथश्चाश्यानकर्दमान् रघु० ४।२४, कु० ७१९, घूएँ के सहारे सुखाये हुए (जैसे बाल ) - रघु० १७।२२। आपणम् [ आ + श्रा + णिच् + ल्युट् ] पकाना, उबालना । आश्रम् [अश्रमेव-स्वार्थेऽण् ] आँसू । आश्रमः - मम् [ आ + श्रम् + ञ्ञ ] 1. पर्णशाला, कुटिया, कुटी, झोंपड़ी, संन्यासियों का आवास या कक्ष 2. अवस्था, संन्यासियों का धर्मसंघ, ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चार अवस्थाएँ (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ तथा संन्यास), क्षत्रिय और वैश्य ) भी पहले तीन आश्रमों में पदार्पण कर सकते हैं, तु० श० ७ २०, विक्रम० ५, कुछ लोगों के विचारानुसार वह चौथे आश्रम में भी प्रविष्ट हो सकते हैं (तु० स किलाश्रममन्त्यमाश्रित: - रघु० ८/१४) 3. महाविद्यालय, विद्यालय 4. जंगल, झाड़ी (जहाँ संन्यासी लोग तपस्या करते हैं ) । सम० गुरु: धर्मसंघ के प्रधान, प्रशिक्षक, आचार्य - धर्मः 1. जीवन के प्रत्येक आश्रम के विशिष्ट कर्तव्य 2. वानप्रस्थी के कर्तव्य य इभामाश्रमधर्म नियुक्ते १० १, पदम् मण्डलम् स्थानम् संन्यासाश्रम ( आस-पास की भूमि समेत ), तपोवन -- शान्तमिदमाश्रमपदम् श० १११६ भ्रष्ट (वि०) धर्मसंघ से बहिष्कृत, स्वधर्मच्युत, वासिन्, आलय:, -सद् (पुं०) संन्यासी, वानप्रस्थ । आश्रमिक, आश्रमिन् ( वि० ) [ आश्रम + ठन्, इनि वा ] धार्मिक जीवन के चार काल या पदों में किसी एक से संबंध रखने वाला | अभय: [ आ + श्रि + अच् ] 1. विश्रामस्थल, सदन, अधिष्ठान -सौहृदादपृथगाश्रयामिमाम् - उत्तर० १०४५, ५.१, 2. जिसके ऊपर कोई वस्तु आश्रित रहती है 3. ग्रहण करने वाला, भाजन - तमाश्रयं दुष्प्रसहस्य तेजसः - रघु० ३।५८ 4. ( क ) शरणस्थान, गरणगृह भर्ता वै ह्याश्रयः स्त्रीणाम् वेता, तदहमाश्रयोन्मूलनेनैव | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वामकामां करोमि - मुद्रा० २ (ख) आवास, पर 5 सहारा लेने वाला ( प्रायः समास में ) 6. निर्भर करना ( प्राय: समास में) 7. पालक, प्रतिपोषक ---बिनाश्रयं न तिष्ठन्ति पण्डिता वनिताः लता:- उन्नूट 8. यूनी, स्तंभ रघु० ९।६०१ तरकस -बाणमाश्रयमुखात् समुद्धरन् रघु० ११/२६ 10. अधिकार, संमोदन, प्रमाण, अधिकार पत्र 11. मेलजोल, संबन्ध, साहचर्य 12. दूसरे का संश्रय लेने वाला, छः गुणों में से एक । सम० असिद्धः, ब्रिः (स्त्री०) हेत्वाभास का एक प्रकार, असिद्ध के तीन उपभागों में से एक, -आश:, -- भुज् (वि०) संपर्क में आने वाली वस्तुओं ar उपभोग करने वाला ( -शः, – क) अग्नि, -- दुर्वृत्तः क्रियते धूर्तेः श्रीमानात्मविवृद्धये किं नाम खलसंसर्गः कुरुते नाश्रयाशवत् - उद्भट - लिगम् विशेषण ( अपने विशेष्य के अनुरूप अपना लिंग रखने वाला शब्द ) । आश्रयणम् [ आ + श्रि + ल्युट् ]1. दूसरे के संरक्षण में रहना, शरण लेना 2. स्वीकार करना, छांटना 3. शरण, शरणस्थान । आश्रयिन् ( वि० ) [ आश्रय + इनि ] 1. सहारा लेने वाला, निर्भर करने वाला 2. संबद्ध, विषयक –विक्रम० ३।१० । आश्रव (वि० ) [ आ + श्रु+अच् ] आज्ञाकारी, आज्ञापालक भिषजामनाश्रवः रघु० १९०४९, नै० ३१८४, - वः 1. नदी, दरिया 2. प्रतिज्ञा, वादा 3. दोष, अतिक्रमण दे० 'आस्रव' भी । आभिः (स्त्री० ) [ प्रा० स० ] तलवार की धार । आश्रित (भू० क० कृ० ) [ आ + श्रि + क्त ] ( कर्म० के साथ कर्तृवाच्य में प्रयुक्त) 1. सहारा लेते हुए कृष्णाश्रितः कृष्णमाश्रितः सिद्धा० 2. रहने वाला, बास करने वाला, किसी स्थान पर स्थिर रहने वाला 3. काम में लाने वाला, सेवा में रखने वाला 4. अनुसरण करने वाला, अभ्यास करने वाला, पालन करने वाला - कु० ६/६ भट्टि० ७/४२, 5. निर्भर करने वाला 6. ( कर्मवाच्य के रूप में प्रयुक्त) सहारा लिया हुआ, वसा हुआ, तः पराधीन, सेवक, अनुचर; - अस्मदाश्रितानाम् - हि० १, प्रभूणां प्रायश्चलं गौरवमाश्रितेषु कु० ३।१ । आश्रुत ( भू० क० कृ० ) [ आ + श्रु + क्त ] 1. सुना हुआ, 2. प्रतिज्ञात, सहमत, स्वीकृत, तम् पुकार जो दूसरा सुन सके । आश्रुतिः (स्त्री० ) [ आ + श्रु + क्तिन् ] 1. सुनना 2. स्वीकार करना । आश्लेषः [ आ + श्लिष् + घञ ] 1. आलिंगन, परिरम्भण. कोला - कोली- आश्लेषलोलुपवधूस्तन कार्कश्यसाक्षिणी For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १६६ - शि० २।१७, अमरु, १५।७२, ९४, कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने - मेघ० ३।१०६, २. संपर्क, घनिष्ट संबंध, संबंध, पा ९वाँ नक्षत्र । आश्व ( वि० ) ( स्त्री [० श्वी ) [ अश्व + अण् ] घोड़े से सम्बन्ध रखने वाला, घोड़े के पास से आने वाला, —श्वम् घोड़ों का समूह । avare ( वि० ) ( स्त्री० त्यी ) [ अश्वत्थ + अण् ] पीपल के वृक्ष से संबंध रखने वाला, या पीपल से बना हुआ, त्यम् पीपल का फल, बरबटे । आश्वयुज ( वि० ) ( स्त्री० जी ) [ अश्वयुज् + अण् ] आश्विन मास से संबंध रखने वाला, जः आश्विन मास - मनु० ६।१५, जो आश्विन की पूर्णिमा का दिन । आवलक्षणिकः अश्वलक्षण-ठक् ] सलोतरी, अश्वचिकित्सक, साइस, (घोड़े की देखभाल करने वाला) । आश्वासः [ आ + श्वस् + ञ ]1. सांस लेना, मुक्त श्वास लेना, चेतना लाभ 2. तसल्ली, प्रोत्साहन 3. रक्षा और सुरक्षा की गारंटी 4. रोकथाम 5. किसी पुस्तक का पाठ या अनुभाग । आश्वासनम् [ आ + श्वस् + णिच् + ल्युट् ] प्रोत्साहन, दिलासा, तसल्ली - तदिदं द्वितीयं हृदयाश्वासनम् -श० ७। आश्विक: [ अश्व + ठञ ] घुड़सवार । आश्विनः [ अश् + विनि ततः अण् ] मास का नाम ( जिसमें चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र के निकट होता है ) आश्विनेयौ (द्वि० द० ) [ अश्विनी + ढक् ] 1. दो अश्विनी कुमार ( देवताओं के वैद्य) 2. नकुल और सहदेव के नाम, पांच पांडवों में से अन्तिम दो । आश्विन (वि० ) ( स्त्री० - नी ) घोड़े द्वारा व्याप्त (यात्रा आदि) नोऽध्वा --- सिद्धा० । आवादः [ आषाढ़ी पूर्णिमा अस्मिन्मासे अण् ] 1. हिन्दुओं का एक महीना ( जून और जुलाई में आने वाला), - आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघ० २, शेते विष्णुः सदाषाढ़े कार्तिके प्रतिबोध्यते - वि० पु० 2. ढाक की लकड़ी का दण्ड जिसे संन्यासी धारण करते हैं-अथाजिनाषाढ़घर: प्रगल्भवाक् कु० ६१३०, – डा २०वाँ या २१ व नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा तथा उत्तराषाढा, ढी आषाढ़ मास की पूर्णिमा । माष्टमः [ अष्टम + ञ] आठवां भाग । आसू, आ: ( अव्य० ) निम्नांकित अर्थों को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय - (क) प्रत्यास्मरण -आः उपनयतु भवान् भूर्जपत्रम् - विक्रम ० २ (ख) क्रोध -- आः कथमद्यापि राक्षसत्रासः - उत्तर० १- आ पापे तिष्ठ तिष्ठ – मा० ८ (ग) पीड़ा-आः शीतम् - काव्य १० (ष) अपाकरण ( सरोष विरोध ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) - आः क एष मयि स्थिते मुद्रा० १-आः वृथामंगलपाठक वेणी० १ (ङ) शांक, खेद - विद्यामातरमाः प्रदश्यं नृपशून् भिक्षामहे निस्त्रपाः उद्भट | आसू ( अदा० आ० ) ( आस्ते, आसित ) 1. बैठना, लेटना, आराम करना - एतदासनमास्यताम् विक्रम ० ५ - आस्यतामितिचोक्तः सन्नासीताभिमुखं गुरोः मनु० २।१९३ 2. रहना, वास करना तावद्वर्षाण्यासते देवलोके - - महा०, यत्रास्मै रोचते तत्रायमास्ताम् का० १९६ - कुरूनास्ते - सिद्धा० 3. चुपचाप बैठे रहना, शत्रुतापूर्ण व्यवहार न करना, बेकार बैठना आसीनं त्वामुत्थापयति द्वयम् शि० २५७, 4 होना, अस्तित्व या विद्यमानता होना 5. स्थित होना, रक्खा होना -- जगन्ति यस्यां सविकाशमासत- शि० १।२३८. मानना, टिके रहना, किसी अवस्था में ठहरना या निरन्तर रहना ( अनवरत या निर्बाध क्रिया को प्रकट करने के लिए बहुधा वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्ययों के साथ इस धातु का प्रयोग होता है- विदारयन्प्रगर्जश्चास्ते - पंच० १, फाड़ता रहा और गरजता रहा 7. परिणत होना, परिणाम होना ( सम्प्र० के साथ ) - आस्तां मानसतुष्ट्ये सुकृतिनां नीतिर्नवोढेव वः - हि० १०२१२ 8. जाने देना, एक ओर कर देना या रख देना, -आस्तां तावत् रहने दो, जाने दो, प्रेर०- बिठाना, बिठलवाना, स्थिर करना - आसयत्सलिले पृथ्वीम् सिद्धा०, अधि - लेटना, बसना, अधिकार करना, प्रविष्ट होना ( स्थान में कर्म० के साथ ) -- निदिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य - रघु० ११९५, २१७, ४ ७६, ६।१०, भगवत्या प्राश्निकपदमध्यासितव्यम् - मालवि ० १, अनु- 1. निकट बैठाया जाना 2. सेवा करना, सेवा में प्रस्तुत रहना- सखीभ्यामन्वास्यते - श० ३, अन्वासितमरुन्धत्या रघु० ११५६ 3. घरना देना -तामन्वास्य- रघु० २।२४, उद् उदासीन या बेलाग होना, निश्चिन्त या निरपेक्ष होना, निष्क्रिय या अकर्मण्य होना तत्किमित्युदासते भरता: मा० १- विधाय वरं सामर्षे नरोऽरौ य उदासते शि० २१७२, भग० ९९, मुद्रा० १, उप 1. सेवा में प्रस्तुत होना, सेवा करना, पूजा करना - अम्बामुपास्य सदयाम् अस्व ० १३, उद्यानपालसामान्यमृतवस्तमुपासते कु० २/३६ 2. उपागमन करना, की ओर जाना-उपासांचक्रिरे द्रष्टुं देवगन्धर्वकिन्नराः - भट्टि० ५/१०७, ७१८९, 3. भाग लेना, (पुण्य कृत्यों का ) अनुष्ठान करना 4. (समय) बिताना उपास्य रात्रिशेषं तु — रामा० 5. भोगना, झेलना अलं ते पांडुपुत्राणां भक्त्या क्लेशमुपासितुं महा०, मनु० ११।१८४ 6. आश्रय लेना, काम में लगाना, प्रयोग करना - लक्षणोपास्यते यस्य कृते - सा० द० २, 7. धनुर्विद्या का अभ्यास करना 8. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्याशा करना, प्रतीक्षा करना, पर्युप--1. उपासना ) -स वासवेनासनसंनिकृष्टन्–कु० ३।२, आसनं भुच करना, पूजा करना, अर्चना करना-पर्युपास्यन्त लक्ष्म्या | —अपना आसन छोड़ना, उठना-रघु० ३।११, 3. ---रघु० १०१६२, कु० २।३८, मनु०७४३७, 2. (रक्षा एक विशेष अंगविन्यास या बैठने का ढंग-तु. पप के लिए) पहुँचना, शरण लेना, या संरक्षण में आना वीर 4. बैठ जाना या ठहरना 5. रतिक्रिया की -- अशक्ता एव सर्वत्र नरेन्द्रं पर्युपासते-पंच० ११२४१, विशेष विधि 6. शत्र के विरुद्ध किसी स्थान पर डटे 3. घेरना, घेरा डालना 4. भाग लेना, हिस्सा लेना रहना (विप० यानम), विदेशनीति के ६ प्रकारों में से 5. आश्रय लेना, सम्-1. बैठ जाना--प्रत्युवाच एक-संधि विग्रहो यानमासनं द्वधमाश्रय:--अमर० समासीनं वसिष्ठम्-रामा० 2. मिल कर बैठना, मनु० ७।१६०, याज्ञ० ११३४६ 7. हाथी के शरीर का समुप-1. सेवा के लिए प्रस्तुत रहना, पूजा करना, अगला भाग, घोड़े का कन्धा, ना 1. आसन, तिपाई सेवा करना-समुपास्यत पुत्रभोग्यया स्नुषयेवाविकृते- जिस पर बैठा जाय, टेक 2. बैठने का एक छोटा स्थान न्द्रियः श्रिय:--रघु० ८।१४, 2. अनुष्ठान करना-ते स्टूल 3. दुकान, आपणिका। सम० - बंषधीर (वि.) त्रयः संध्यां समुपासत—रामा०।। बैठने के लिए दृढ़ संकल्पवाला, अपने आसन पर दृढ़, आसः [आस्+घ ] 1. आसन 2. धनुष (-सम्, भी) स -निषेदुषीमासनबन्धधीरः-रघु० २१६ । सासिः सा सुसूः सास:-कि० १५।५। आसन्दी [आसद्यतेऽस्याम्-आ+ सद्+ट, नुम् नि० की] आसक्त (भू० क० कृ०)[आ+सञ्+क्त] 1. अत्यनुरक्त, तकियेदार आराम कुर्सी। कृतसंकल्प, जुटा हुआ, लगा हुआ---(प्रायः अधि० के आसन्न (भू० क० कृ०) [आ--सद्+क्त ] 1. उपागत साथ या समास में) 2. स्थिर, टिका हुआ-शिखरा- (काल, स्थान और संख्या की दृष्टि से) निकट, सक्तमेघा:-कु० ६१४०, 3. निरन्तर, अनवरत, -आसन्नविशा:--बीस के लगभग या निकट 2. निकटशाश्वत । सम-चित्त,-चेतस्,---मानस् एकनिष्ठ, वर्ती, सन्निहित-आसन्नपतने कुले-शारी०, । सम. एकाग्र। --कालः 1. मृत्यु का समय 2. जिसकी मृत्यु निकट, आसक्तिः (स्त्री०) [आ। सञ्+क्तिन्] 1. अनुराग, हो,--परिचारक:-चारिका व्यक्तिगत सेवक, शरीर भक्ति, लगाव-बालिशचरितेष्वासक्ति:-का० १२०, रक्षक। 2. उत्सुकता, लगाव । आसम्बाध (वि.) [आसमन्तात् सम्बाधा यत्र ब. स.] 1. आसङ्गः [आ+संज्+घञ] 1. अनुराग, भक्ति-सुखा समवरुद्ध, रोका हुआ, (चारों ओर से) घेरा हा सङ्गलब्ध:-का०१७३, 2. सम्पर्क, अनुरक्ति, चिपकाव -आसम्बाधा भविष्यन्ति पन्थानः शरवृष्टिभिः–(पङ्कज) स शवलासङ्गमपि प्रकाशते-कु० ५।९, रामा०। ३१४६ 3. साहचर्य, संयोग, सम्मिलन,-- त्यक्त्व कर्म- आसवः आ-स-अण 11. अर्क. 2. काढा 3. मद्यनिष्कर्ष फलासङ्ख-भग० ४।२०, इसी प्रकार कान्तासङ्गम्' ---अनासवाख्यं करणं मदस्य-कु० १२३१, द्राक्षा -आदि 4. स्थिरीकरण, बन्धन । आदि । भासङ्गिनी [आसङ्ग+इनिन-डीप्] चक्रवात, बगूला, हूला । | आसावनम् [ आ+सद्+णिच्--ल्युट् ] 1. प्राप्त करना, मासजनम् [आ-+-स +ल्युट्] 1. बाँधना, जमाना, उपलब्ध करना 2. आक्रमण करना। (शरीर पर) धारण करना 2. फंस जाना, चिपकना | आसारः [आ+स+घञ] 1. (किसी वस्तु की) मूसलाधार -व्रततिवलयासञ्जनात्-श० १।३३, ५।१। 3. अनु बौछार--आसारसिक्तक्षितिबाष्पयोगात्-रघु० १३॥ राग, भक्ति 4. सम्पर्क, सामीप्य।। २९, मेघ०१७. पुष्पासारैः---४३, इसी प्रकार तुहिन , मासत्तिः [आ+सद्+क्तिन्] 1. मिलन, संयोग 2. अंतरंग रुधिर' आदि-धारासारर्वष्टिर्बभूव-हि०३, मूसला मेल, घनिष्ठ सम्पर्क,-किमपि किमपि मन्दं मन्दमा- धार बारिश हुई 2. शत्रु का घेरा डालना 3. सत्तियोगात-उत्तर० श२७, 3. उपलब्धि, लाभ, आक्रमण, अचानक हमला 4. अपने किसी मित्र राजा उपार्जन, 4. (तर्क० में) सामीप्य दो या दो से अधिक को सेना 5. रसद, आहार:-पंच० ३।४१ । निकटस्थ राशियों का सम्बन्ध और उनके द्वारा अभि- आसिकः [ असि+ठक् ] खङ्गधारी, तलवार लिए हुए। व्यक्त भाव-कारणं सन्निधानं तु पदस्यासत्तिरुच्यते | आसिधारम [असिधारा इन अस्त्यत्र अण् ] एक प्रकार -भाषा० ८३। का ब्रतविशेष-अभ्यस्तीव व्रतमासिधारम्-रघु० आसन् (नपुं०) मुख (कर्म० द्वि० व० के पश्चात् सभी १३।६७, व्याख्या के लिए दे० असि के नीचे 'असिविभक्तियों में 'आस्थ' के स्थान में विकल्प से आदेश धारा' शब्द । होने वाला शब्द)। आसुतिः (स्त्री०) [आ-सु । क्तिन [ 1. अर्क, 2. काढ़ा। मासनम् [आस् + ल्युट्] 1. बैठना, 2. आसन, स्थान, स्टूल ] आसुर (वि.) (स्त्री०–ी) [ असुर+अण् ] (विप० For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( बैबी ) 1. असुरों से संबन्ध रखने वाला 2. भूतप्रेतों से संबंध रखने वाला, आसुरी माया, आसुरी रात्रिः आदि 3. नारकीय राक्षसी-आसुरं भावमाश्रितः भग० ७११५, (आसुर-आचरण के पूर्ण विवरण के लिए दे० भग० १६ । ७-२४ ) - र: 1. राक्षस, 2. आठ प्रकार के विवाहों में से एक जिसमें कि वर, वधू को उसके पिता या पैतृकबांधवों से खरीद लेता है (दे० उद्वाह) – आसुरो द्रविणादानात् - याज्ञ० ११६१, मनु० ३१३१ - री 1. शल्यचिकित्सा, जर्राही 2. राक्षसी-संभ्रमादासुरीभिः - वेणी ० १ । ३ । आसूत्रित (वि० ) [ आ + सूत्र + क्त ] 1. माला पहने हुए या माला के रूप में, 2. अंतर्ग्रथित । आसेकः [ आ + सिच् + घञ ] गीला करना, खींचना, ऊपर से उड़ेलना । आसेचनम् [ आ + सिच् + ल्युट् ] ऊपर से उँडेलना, गीला करना, छिड़कना । १६८ ) आस्तिकता, त्वम्, आस्तिक्यम् [ आस्तिक + तल त्व ष्यञ वा ] 1. ईश्वर और परलोक में विश्वास 2. पवित्रता, भक्ति, श्रद्धा - भग० १८/४२ आस्तिक्यं श्रद्दधानता परमार्थेष्वागमार्थेषु - शंकर० । आस्तीक : एक प्राचीन मुनि, जरत्कारु का पुत्र ( जरत्कारु के बीच में पड़ने से ही जनमेजय ने तक्षक नाग को छोड़ दिया था, जिसके कारण कि सर्पयज्ञ रचा गया था ) | आस्था [ आ + स्था + अ ] 1. श्रद्धा देखभाल, आदर, विचार, ध्यान रखना ( अधि० के साथ) मर्त्येष्वास्थापराङ्मुखः रघु० १०।४३ मय्यप्यास्था न ते चेत् - भर्तृ० ३।३० दे० 'अनास्था' भी 2. स्वीकृति, वादा 3. थून, सहारा, टेक 4. आशा, भरोसा 5. प्रयत्न 6. दशा, अवस्था 7. सभा । आसेषः [ आ + सिघ् + घञ्ञ ] गिरफ्तारी, हिरासत, कानूनी प्रतिबंध यह चार प्रकार का है: - स्थानासेधः कालकृतः प्रवासात् कर्मणस्तथा नारद । मासेवा-वनम् [ प्रा० स०] 1. सोत्साह अभ्यास, किसी क्रिया का सतत अनुष्ठान, 2. बारंबार होना, आवृत्ति - पा० ८|३|१०२, आसेवनं पौनःपुन्यम् सिद्धा० । आस्कन्दः – वनम् [ आ + स्कन्द् + षञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. आक्रमण, हमला, सतीत्वनाश; परवनिता प्रगल्भस्य -- वेणी० २, 2. चढ़ना, सवारी करना, रौंदना, 3. भर्त्सना, दुर्वचन 4. घोड़े की सरपट चाल 5. लड़ाई, युद्ध । आस्कन्दितम् - - तकम् [ आ + स्कन्द् + क्त, स्वार्थे कन् वा ] घोड़े की चाल, घोड़े की सरपट चाल । आस्कन्दिन् (वि० ) [ आ + स्कन्द् + णिनि] चढ़ बैठने वाला, टूट पड़ने वाला रघु० १७/५२ । आस्तरः [ आ + स्तृ + अप् ] 1. चादर ओढ़ने का वस्त्र 2. दरी, बिस्तरा, चटाई - शा० २।२० 3. विस्तरण, फैलाव (वस्त्रादि ) । आस्तरणम् [ आ + स्तृ + ल्युट् ] 1. विस्तरण, बिछावन 2. बिस्तरा, तह, कुसुम फूलों की क्यारी-कु० ४। ३५, तमालपत्रास्तरणासु रन्तुम् - रघु० ६ । ६४ 3. गद्दा, रजाई, बिस्तर के कपड़े 4 दरी 5. हाथी की जीनपोश, साज-सामान, रंगीन झूल । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आस्तारः [ आ + स्तृ + घञ ] फैलाना, बिछाना, बखेरना । सम० --- पचक्ति: छन्द का नाम, दे० परिशिष्ट । मास्तिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अस्ति + ठक् ] 1. जो ईश्वर और परलोक में विश्वास रखता है 2. अपनी धर्म-परंपरा में विश्वास रखने वाला 3. पवित्रात्मा, भक्त, श्रद्धालु - आस्तिकः श्रद्दधानश्च - याज्ञ ० १ २६८ ।। आस्थानम् [ आ + स्था + ल्युट् ] 1. स्थान, जगह 2. नींव, आधार 3. सभा 4. देखभाल, श्रद्धा, दे० 'आस्था' 5. सभागृह 6. विश्रामस्थान, नी सभा भवन | सम० गृहम्, निकेतनम्, मंडप : सभाभवन । आस्थित ( भू० क० कृ० ) ( कर्तृवाच्य के रूप में प्रयुक्त) रहने वाला, बसने वाला, आश्रय लेने वाला, काम में लगने वाला, अभ्यास करने वाला, अपने आपको ढालने वाला । आस्पदम् [ आ + पद् । घ सुट् च ] 1. स्थान, जगह, आसन, ठौर - तस्यास्पदं श्रीयुवराजसंजितम् - रघु० ३।३६, ध्यानास्पदं भूतपतेर्विवेश कु० ३।४३, ५।१०, ४८, ६९, 2. ( आलं० ) आवास, स्थल, आशय करिण्यः कारुण्यास्पदम् भामि० ११२, 3. श्रेणी, दर्जा, केन्द्रस्थान 4. मर्यादा, प्रामाणिकता, पद 5. व्यवसाय, काम 6. थूनी, भाश्रय । आस्पन्दनम् [ आ + स्पन्द् + ल्युट् ] धड़कना, काँपना । आस्पर्धा [ प्रा० स०] होड़, प्रतिद्वंद्विता । आस्फाल: [ आ + स्फल् + णिच् + अच् ] 1. मारना, रगड़ना, शनैः २ चलाना 2. फडफडाना 3. विशेष रूप से हाथी के कानों की फड़फड़ाहट । आस्फालनम् [आ+स्फल्+ णिच् + ल्युट् ] 1. रगड़ना, दबा कर रगड़ना, (पानी आदि का), हिलना फड़फड़ाना - अनवरतधनुर्ज्यास्फालनक्रूरपूर्वम् - श० २१४, आसां जलास्फालनतत्पर(णाम् - रघु० १६।६२, ३/५५, ६० ७३, अमरु ५४, ऐरावत' कर्कशेन हस्तेन कु० ३।२२ 2. घमंड, हेकड़ी । आस्फोट: [अ + स्फुट् + अच्] 1. आक या मदार का पौधा 2. ताल ठोकना, टा नवमल्लिका का पौधा, जङ्गली चमेली । आस्फोटनम् [ आ + स्फुट् + ल्युट् ] 1. फटकना 2. कांपना 3. फूंक मारना, फुलाना 4. सिकोड़ना, बन्द करना 5. ताल ठोकना । For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६९ ) आस्माक (वि.) (स्त्री०-की), आस्माकीन (वि०) कहा हुआ,--तः ढोल,-तम् 1. नई पोशाक, नया [अस्मद् +अण, खज, अस्माक आदेशः] हमारा, हम वस्त्र 2. भावहीन या निरर्थक भाषण, असम्भावना की सब का--आस्माकदन्तिसान्निध्यात्-शि० २।६३, | दढोक्ति----उदा० एष वंध्यासुतो याति-सुभा० । सम० ८1५० । -लक्षण (वि०) =आहितलक्षण । आस्यम् [अस्यते ग्रासोऽत्र-अस्+ज्यत्] 1. मुंह, जबड़ा | आहतिः (स्त्री०) [आ+हन्+क्तिन्] 1. हत्या करना 2. -~-आस्यकुहरे विवृतास्य: 2. चेहरा, आस्यकमलम् 3. प्रहार, चोट, मारना, पीटना 2. यष्टि, छड़ी। मुख का वह भाग जिससे वर्णोच्चारण में काम लिया आहर (वि.) [आ+ह+अच्] (समास के अन्त में) लाने जाता है, 4. मह, विवर-व्रणास्यम, अङ्कास्यम् आदि । वाला, ले आने वाला, ग्रहण करन वाला, पकड़ने सम-आसवः लार, लुआब,-पत्रम् कमल,-लाङ्गलः __ वाला—समित्कुशफलाहरैः-रघु० १।४९,-रः 1. 1 कुत्ता, 2 सूअर, लोमन् (नपुं०) दाढ़ी। ग्रहण करना, पकड़ना 2. पूरा करना, सम्पन्न करना आस्यन्दनम् [आ+स्यन्द् + ल्युट्] बहना, रिसना । 3. यज्ञ करना। आस्यन्धय (वि०) [आस्य धयति-ध+ख मुम् मुखचुम्बन | आहरणम आ+हल्यट] 1. ले आना, (निकट) लाना करने वाला। -समिदाहरणाय प्रस्थिता वयम्-श०१2. पकड़ना, आस्या-[आस् क्यप्] दे० आसना। ग्रहण करना 3. हटाना, निकालना 4. सम्पन्न करना, आस्त्रम् [अस्र + अण्] रुधिर । सम०-पः खून पीने वाला, (यज्ञादिक) पूरा करना 5. विवाह के समय दुलहिन राक्षस । को उपहार के रूप में दिया जाने वाला धन, दहेज, आस्रवः [आ-+ --अप्] 1. पीडा, कष्ट, दुःख 2. बहाव, -सत्त्वानुरूपाहरणीकृतश्री:--रघु० ७।३२ ।। स्रवण 3. (मवाद आदि का) बहना, निकलना, | आहवः [आ+हे+अप्] 1. युद्ध, संग्राम, लड़ाई-एवं 4. अपराध, अतिक्रमण 5. उबलते हुए चावलों का विधेनावचेष्टितेन-रघु० ७।६७, हत्वा स्वजनमाहवे झाग। ----भग० ११३१ 2. ललकार, चुनौती, आह्वान, काम्या आत्रायः [आ---स+घञ] 1. घाव 2. बहाव, निकास लड़ने की इच्छा 3. यज्ञ-तत्र नाभवदसौ महाहवे 3. लार 4. पीड़ा, कष्ट ----शि० १४।४४ । आस्वादः [आ+स्वद् । घञ ] 1. चखना, खाना-चूताङकु- | आहवनम् [आ+हु+ल्युट्] 1. यज्ञ-द्रष्टुमाहवनमग्रजन्म रास्वादकषायकण्ठ:- कु० ३।३२, हि० १३१५२ 2. नाम् –शि० १४१३८ 2. आहुति । स्वाद लेना- ज्ञातास्वादो विवृतजघना को विहातुं | आहवनीय (स० कृ०) [आ+हु+अनीयर] आहुति देने के समर्थः- मेघ० ४१, सुखास्वादपरः-हि. ४७६ योग्य,-यः गार्हपत्याग्नि से ली हुई अभिमन्त्रित अग्नि, 3. सुखोपभोग करना, अनुभव करना, वत् (वि०) तीन अग्नियों में से एक (पौर्व)जो यज्ञ में प्रज्वलित की स्वादिष्ट, रसीला--आस्वादवद्भिः कवलस्तृणानाम् जाती है। दे० 'अग्नित्रेता' शब्द 'अग्नि' के नीचे । ---रघु० २१५ । आहारः [आह+घञ] 1. लाना, ले आना, या निकट आस्वादनम् [आ स्वद् -1-गिच्-ल्युट्] चखना, खाना। लाना 2. भोजन करना 3. भोजन-वृत्तिभकरोत आह (अव्य.) आ+हन +3] 1. निम्नांकित भावनाओं -पंच. १, भोजन किया। सम-पाकः भोजन का को द्योतन करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय-(क) पचना,-विरहः भोजन की कमी, भूखों मरना,-सम्भवः झिड़की (ख) कठोरता (ग) आज्ञा (घ) फेंकना, -शरीर का रस, लसीका। भेजना 2. 'कहना' 'बोलना' अर्थ को प्रगट करने वाली | आहार्य (स० कृ०) [आ-++ ण्यत्] 1. ग्रहण करने या सदोष क्रिया के वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक पकड़ने के योग्य 2. लाने या ले आने के योग्य 3. वचन का अनियमित रूप (भारतीय वैयाकरणों कृत्रिम, नैमित्तिक, बाह्य-आहार्यशोभारहितैरमायः के मतानुसार यह रूप '' घातु का है तथा पाश्चात्य ----भट्टि० २।१४, न रम्यमाहार्यमपेक्षते गुणम्-कि० विद्वान् इसको 'अह' से बना हुआ मानते हैं, संस्कृत ४।२३, कु० ७।२० पर मल्लि० भी, 4. साभिप्राय, भाषा में इस धातु के वर्तमान रूप—आह, आहतुः, अभिप्रेत,-उदा० रूपक में उपमेय या उपमान का आहुः आत्थ, और आहथुः है)। आरोप जिसके विषय में वक्ता पूर्ण रूप से जानकार आहत (भू० क० कृ०) [आ+हन्+क्त] 1. जिस पर होता है। 5. श्रृंगार या आभषा से संप्रेषित या प्रभाप्रहार या आघात किया गया हो, पीटा गया (ढोल वित, अभिनय के चार प्रकारों में से एक। आदि) 2. रौंदा गया-पादाहतं यदुत्थाय मूर्धानमधि- आहावः [आ+हे.-घा] 1. पशुओं को पानी पिलाने के रोहति-शि०२१४६ 3. घायल, मारा हुआ 4. गुणित | लिए कुएं के पास बनी कुंड 2. संग्राम, युद्ध 3. आह्वान, (गणित में) 5. लुढ़काया हुआ (पासा) 6. मिथ्या | ललकार 4. अग्नि । २२ For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( अहिण्डिक: [आहिंड + ठक्] निषाद पिता और वैदेही माता से उत्पन्न वर्णसंकर, आहिडिको निषादेन वैदेह्यामेव जायते - मनु० १०|३७ । आहित (भू० क० कृ०) [आ + धा + क्त ] 1. स्थापित, जड़ा गया, जमा किया गया ( धरोहर के रूप में रक्खा गया) 2. अनुभूत सत्कृत 3. सम्पन्न किया गया । सम० – अग्निः ब्राह्मण जो यज्ञ की पावन अग्नि को अभिमंत्रित करता है, - अंक (वि०) चिह्नित, चित्तीदार, लक्षण ( वि० ) परिचायक चिह्न वाला, - ककुत्स्थ इत्याहितलक्षणोऽभूत् - रघु० ६।७१ (मल्लि० के अनुसार अच्छे गुणों के कारण प्रख्यात्) । regore: [ अहितुण्डेन दीव्यति ठक् ] बाजीगर, सपेरा, ऐन्द्रजालिक या जादूगर - अहं खल्वाहितुण्डिको जीर्णविषो नाममुद्रा० २ । आहुति: ( स्त्री० ) [ आ + हु + क्तिन् ] 1. किसी देवता को आहुति देना, पुण्यकृत्यों के उपलक्ष्य में किये जाने वाले यज्ञों में हवनसामग्री हवन कुंड में डालना - होतुराहुतिसाधनम् - रघु० ११८२, 2. किसी देवता को उद्दिष्ट करके दी गई आहुति ( हवनसामग्री ) । आहुति: (स्त्री० ) [ आ + ह्वे + क्तिन् ] चुनौती, ललकार, आह्वान | आहे (वि० ) [ अहि + ढक् ] साँपों से संबंध रखने वाला -पंच० १।१११ । १७० आहो ( अव्य० ) निम्नांकित भावनाओं को व्यक्त करने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय, ( क ) सन्देह या विकल्प, प्रायः 'किम्' का सहसंबंधी - कि वैखानसं व्रतं निषेवितव्यम् आहो निवत्स्यति समं हरिणांगनाभिः - ० ११२७, दारत्यागी भवाम्याहो परस्त्रीस्पर्शपांसुलः–श० ५।२६ (ख) प्रश्नवाचकता - 1 सम० - पुरुषिका 1. अत्यधिक अहंमन्यता या घमंड - आहोपुरुषिका दर्पाद्या स्यात्संभावनात्मनि -- अमर०, आहोपुरुषिकां पश्य मम सद्रत्नकान्तिभिः -भट्टि० ५।२७, 2. सैनिक आत्मश्लाघा, शेखी बघारना 3. अपने पराक्रम की डींग मारना - निजभुजबलाहोपुरुषिकाम् - भामि० ११८४, स्वित् ( अव्य० ) 'संदेह' 'संभावना' 'संभाव्यता' आदि भावनाओं को प्रकट करने वाला अव्यय ( 'किम्' का सहसंबंधी ) [ अ + इञ् ] कामदेव (अव्य० ) (क) क्रोध (ख) पुकार (ग) करुणा (च) झिड़की तथा (ङ) आश्चर्य | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > - आहोस्वित्प्रसवो ममापचरितैर्विष्टम्भितो वीरुधाम् - श० ५०९, किं द्विजः पचति आहोस्विद् गच्छति - सिद्धा० । आह्नम् [अह्नां समूहः – अञ] दिनों का समूह, बहुत दिन । आह्निक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अनि भवः, अह्ना निर्वृत्तः साध्यः ठञ ] 1. दैनिक, प्रति दिन का, प्रति दिन किया गया, दिन भर किया गया धार्मिक संस्कार या कर्तव्य जो प्रति दिन नियत समय पर किया जाने वाला है, प्रतिदिन किया जाने वाला कार्य, जैसे कि भोजन करना, स्नान करना आदि - कृताह्निकः संवृत्तः - विक्रम० ४, 2. दैनिक भोजन 3. दैनिक कार्य या व्यवसाय । आह्लादः [ आ + ह्लाद्+घञ ] खुशी, हर्ष - साह्लादं वचनम् - पंच० ४ । आह्लावनम् [ आ + ह्लाद् + ल्युट् ] प्रसन्न करना, खुश करना । इ आ (वि० ) [ आ + ह्वे +ड ] 1. जो पुकारता है, बुलाता है, बुलाने वाला-ह्वा [ आ + ह्वे + अ+ टाप् ] 1. बुलाना, पुकारना 2. नाम, अभिधान ( प्राय: समास के अन्त में ) - अमृताह्नः, शताह्नः, आदि । आह्वयः [ आ + + श- बा०] - 1. नाम, अभिधान ( समास का अन्तिम पद ) काव्यं रामायणाह्वयम् -- रामा० 2. एक कानूनी अभियोग जो मुर्गो की लड़ाई जैसे पशु-खेलों में होने वाले झगड़ों से पैदा हो ( कानून के १८ नामों में से एक) - पणपूर्वक पक्षिमेषादियोधनं आह्वयः -- मनु० ८।७ पर राघवानन्द की व्याख्या । आह्वयनम् [ आ + + णिच् + ल्युट् ] नाम, अभिधान । आह्वानम् [ आ + + ल्युट् ] 1. ललकार, आमन्त्रण 2. बुलावा, निमन्त्रण, आमन्त्रित करना, सुहृदाह्वानं प्रकुर्वीत - पंच० ३०४७, 3. कानूनी आमंत्रण ( कचहरी या सरकार से किसी न्यायाधिकरण के सन्मुख उपस्थित होने के लिये बुलावा ) 4. देवता का संबोधन - मनु० ९।१२६, 5. चुनौती 6. नाम, अभिधान । आह्वाय: [ आ + ह्वे +घञ ] 1. बुलावा 2. नाम । आह्नायकः [ आ + ह्वे + ण्वुल् ] 1. दूत, संदेशवाहक - आह्वायकान् भूमिपतेरयोष्याम् - भट्टि० २।४३ की भावना को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय । For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७१ ) इ (क) (अदा० पर०) (एति, इतः) 1. जाना, की ओर | जाना, निकट आना-शशिनं पुनरेति शर्वरी--रधु० ८।५६ 2. पहुँचना, पाना, प्राप्त करना. चले जाना -निर्बुद्धिः क्षयमेति-मच्छ० १११४, नष्ट हो जाता है, बर्वाद होता है, इसी प्रकार वशं, शत्रुत्वं, शूद्रताम् आदि, (ख) (भ्वा० उभ०)= दे० अय् (ग) (दिवा. आ०) 1. आना, आ धमकना 2. भागना घूमना 3. शीघ्र जाना, बार बार जाना। अति-1. परे चले जाना, पार करना, ऊपर से चले जाना-जवादतीये हिमवानधोमुखैः - कि० १४१५४,--स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु:-मेघ० ३४, दृष्टि से ओझल हो जाता है 2. आगे बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना, पछाड़ देना, सत्यमतीत्य हरितो हरीश्च वर्तन्ते वाजिनः-श०१, त्रिस्रोतसः कान्तिमतीत्य तस्थी-कु० ७.१५, शि० २।२३ 3. पास से निकल जाना, पीछे छोड़ देना, भूल जाना, उपेक्षा करनाश० ६१६, रघु० १५३७ 4. बिताना, बीतना (समय का)--अत्येति रजनी या तु--रामा०, अतीते दशरात्रे, दे० 'अतीत', अधि—1. याद रखना, चिन्तन करना, खेद पूर्वक याद करना (संब० के साथ) ---रामस्य दयमानोसावध्येति तद लक्ष्मणः--भट्टिः० ८।११, १८१३८, कि० १११७४ 2. ('अधीते' इस अर्थ में सदैव 'आत्मनेपद') शिक्षा प्राप्त करना, अध्ययन करना, पढ़ना-उपाध्यायादधीते-सिद्धा०, सोऽध्यष्ट वदान्-भट्टि० २२, (--प्रेर० अध्यापयति, इच्छा०--अधिजिगासते) अनु--, 1. अनुसरणकरना, पीछे चलना-प्रयता प्रातरन्वेतु-रघु. १०९० 2. सफल होना 3. अनुगमन (व्या० या रचना में) 4. आज्ञा मानना, अनुरूप होना, अनुकरण करना, अन्वा-, पीछे जाना, अनुसरण करना, अन्तर्-- 1. बीच में जाना, हस्तक्षेप करना 2. रोकना, बाधा डालना 3. छिपाना, गुप्त रखना, परदा डालना-दे० 'अन्तरित', अप-1 चले जाना, बिदा होना, पीछे हटना, लोट पड़ना, अपेहि -दूर हो जाओ, दूर हटो 2. वंचित होना, मुक्त होना--दे० 'अपेत' 3. मरना, नष्ट होना, अभि-, 1. जाना, पहुँचना, निकट जाना --अस्मानतुमितोऽभ्येति--भट्टि० ७८४ 2. अनुसरण करना, सेवा करना 3. प्राप्त करना, मिलना, भुगतना, ( अच्छी बुरी बातें) भोगना, अभिप्र.-, की ओर जाना, इरादा करना, अर्थ रखना, उद्देश्य बना कर-कर्मणा यमभिप्रेति स संप्रदानम्-पा० ११४१३२ अभ्या --- पहुँचना, अभ्युद्--, 1. उठना, ऊपर जाना 2. (आलं०) फलना-फूलना, समृद्ध होना, अभ्युप1. निकट जाना, पहुंचना आपहुंचना-व्यतीतकालस्त्वहमभ्युपेत:-रघु० ५।१४, १६।२२, 2. विशिष्ट } दशा को पहुँच जाना, प्राप्त करना-सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति-हि० ३।६१, 3. जिम्मेवारी लेना, सहमत होना, स्वीकार करना, (कोई काम करने की) प्रतिज्ञा करना;-मन्दायते न खल सहदामभ्युपेतार्थकृत्या:---मेघ० ३८ 4. मानलेना, अपना लेना, स्वीकार करना, 5. आज्ञा मानना, अघीनता स्वीकार करना, अव-, जानना, ज्ञान प्राप्त करना, जानकार होना-अवेहि मां किङ्करमष्टमूर्तेः- रघु० २।३५, कु. ३३१३, ४।९, आ-, आना, निकट खिसकना, उद्-1. (तारे आदि का) उदय होना, (आलं. भी) आना, ऊपर उठना-उदेति पूर्व कुसुमं ततः फलम्श० ७३०, उदेति सविता ताम्र:-आदि 2. उठना, उछलना, पैदा किया जाना 3. फलना-फूलना, समृद्ध होना, उप-, 1. पहुंचना, निकट खिसकना, पास जाना- योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम-भग०८१२८ 2. निकट जाना, में से निकलना, प्राप्त करना, (किसी दशा को) पहुंच जाना,-उपैति सस्यं परिणामरम्यताम्-कि० ४।२२, 3. आ पड़ना, निर्-, बिदा होना, प्रस्थान करना, परा-, 1. चले जाना, दौड़ जाना, भाग जाना, वापिस मुड़ना,-यः परति स जीवतिपंच० ५।८८ 'भागने वाला अपनी जान बचा लेता है', तु०, 'जान बचाने के लिए भागना, 2. पहुँचना, प्राप्त करना-कि० ११३९ 3. इस संसार से कूच करना, मरना, दे० परेत, परि-,1. परिक्रमा करना, प्रदक्षिणा करना,-चरणन्यास भक्तिनम्रः परीया:-- मेघ० ५५, मनु० २।४८, 2. घेरना, चारों ओर चक्कर लगाना-हुतवहपरीतं गृहमिव-श० ५.१०, विषवल्लिभिः परीताभिर्महौषधि:-रघु० १२१६१, इसी प्रकार 'कोपपरीत' 3. पास जाना, (चीजों का) चिन्तन करना 4. बदलना, रूपान्तरित होना, प्र-1. निकल जाना, विदा होना,-धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमता भवन्ति-- केन० 2. (अतः) जीवन से विदा लेना, मरना, प्रेत्य -मर कर-न च तत्प्रेत्य नो इह-भग० १७।२८ मनु० २१९,२६, प्रति-, 1. वापिस जाना, लोट जाना, -प्रतीयाय गुरोः सकाशम्-रघु०५।३५, भट्टि० ३.१९ 2. विश्वास करना, भरोसा करना-कः प्रत्येति संवेयमिति–उत्तर० ४, 3. ज्ञान प्राप्त करना, समझना, जानना---प्रतीयते घातुरिवेहितं फलै:-कि० २२०, शि० ११६९ 4. विख्यात होना, प्रसिद्ध होना-सोऽयं वटः श्याम इति प्रतीत:-रघु० १३.५३ 5. प्रसन्न होना, संतुष्ट होना-रघु० ३।१२, १६।२१ (प्रेर.प्रत्याययति) विश्वास दिलाना, भरोसा पैदा करना -- बलवत्तु दूयमानं प्रत्याययतीव मे हृदयम् श० ५।२१, ताः स्वचारित्र्यमुद्दिश्य प्रत्याययतु मैथिली-रघु. १५।७३, प्रत्पद् -, स्वागत या सत्कार करने के लिए For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १७२ उठ कर अगवानी करना - सपर्यया प्रत्युदियाय पार्वती - कु० ५1३१, वि-, 1. चले जाना, विदा होना -तस्यामहं त्वयि च संप्रति वीतचिन्तः - श० ५११२, इसी प्रकार वीतभय, वीतक्रोध 2. परिवर्तित होना ---सदृशं त्रिषु लिंगेषु यन्न व्येति तदव्ययम् - सिद्धा ० 3. खर्च करना - दे० व्यय, विपरि-, बदलना ( बुराई के लिये) दे० विपरीत, व्यति--, 1. बाहर जाना, पथविचलित होना, अतिक्रमण करना - रेखामात्रमपि क्षुण्णादा मनोर्वर्त्मनः परम् न व्यतीयुः प्रजास्तस्य नियन्तुमिवृत्तयः । रघु० १ १७, 2. ( समय का) गुजरना, व्यतीत होना सप्तव्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य दिनानि - रघु० २।२५, व्यतीते काले- आदि 3. परे चले जाना, पीछे छोड़ना- रघु० ६।६७, व्यप1. विदा होना. विचलित होना, मुक्त होना व्यपेतमदमत्सरः --- याज्ञ० १।२६७. स्मृत्याचारव्यपेतेन मार्गेण - २/५, 2. चले जाना, जुदा होना, अलग-अलग होना — समेत्य च व्यपेयाताम् - हि० ४।६, मनु०९/१४२, ११।९७, सम्---, इकट्ठे आना, इकट्ठे मिलना, समनु, साथ चलना, अनुसरण करना, समय-, 1. एकत्र होना, इकट्ठे आना - समवेता युयुत्सवः -- भग० १1१, 2. संबद्ध होना, संयुक्त होना दे० समवाय, समा इकट्ठे आना या मिलना-समेत्य च व्यपेयाताम् - हि० ४/६९, समुद्, एकत्र होना, संचित होना - अयं समुदितः सर्वो गुणानां गणः - रत्न० ११६, समुप, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, संप्रति, निर्णय करना, निश्चित करना, निर्धारित करना, अनुमान लगाना - किं तत्कथं वेत्युपलब्धसंज्ञा विकल्पयन्तोऽपि न संप्रतीयुः - भट्टि० ११।१० । इक्षव: ( ब० व०) गन्ना, ईख, ऊख । इक्षु: [ इष्यतेऽसौ माघुर्यात् इष् + क्सु ] गन्ना, ईख । सम० -- काण्डः, -- डम् गन्ने की दो जातियाँ - काश और मुञ्जतृण, कुट्टकः गन्ने इकट्ठे करने वाला -बा एक नदी का नाम, पाकः गुड़, शीरा, राब, -भक्षिका गुड़ और शक्कर से बना भोज्य पदार्थ, -मती, मालिनी, – मालवी एक नदी का नाम, - मेहः मधुमेह, -- यन्त्रम् गन्ना पेलने का कोल्हू, - रसः 1. गन्ने का रस 2. गुड़, राब या शक्कर, -- वणम् गरने का खेत, गन्ने का जंगल, वाटिका, --- वाटी, गन्नों का उद्यान, विकारः शक्कर, गुड़ या राब, सारः गुड़ या राब । इक्षुकः [ स्वार्थे कन् ] गन्ना, ईख, दे० इक्षु | rrator [ इक्षुक + छ स्त्रियां टाप् ] गन्नों की क्यारी । इक्षुरः [ इक्षुम् राति- इति रा + क ] गन्ना, ईख । इक्ष्वाकु: [ इक्षुम् इच्छाम् आकरोति इति इक्षु + आकृ +] अयोध्या में राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) का पूर्व पुरुष, यह वैवस्वत मनु का पुत्र था और सूर्यवंशी राजाओं में सबसे प्रथम पुरुष था । - इक्ष्वाकु वंशोभिमतः प्रजानाम् - उत्तर० १।४४ 2. इक्ष्वाकु की सन्तान – गलितवयसामिक्ष्वाकूणामिदं हि कुलव्रतम् - रघु० ३।७० । इख, इंख ( भ्वा० पर० ) ( एखति, इङ्खति ) जाना, हिलना-डुलना, (प्राय: 'प्र' के साथ ) हिलना-डुलना, काँपना मा० ६ | इग् (भ्वा० उभ० ) ( इङ्गति ते, इङ्गित) 1. हिलना, काँपना, क्षुब्ध होना ---- यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते - भग० ६।१९, १४।२३ 2. जाना, हिलना-डुलना । इङ्ग ( वि० ) [ इङग् + क] 1. हिलने डुलने योग्य 2. आश्चर्य जनक, विस्मयकारी गः 1. इशारा या संकेत 2. इंगित द्वारा मनोभाव का संकेत देना । ज्ञान दे० इंग' । इङ्गनम् [ इङग-1 ल्युट् ] 1. हिलना-डुलना, कांपना 2. इङ्गितम् [ इग् + क्त ] 1. धड़कना, हिलना 2. आन्तरिक विचार, इरादा, प्रयोजन - आकारवेदिभिः का० ७, पंच० ११४३, अगूढसद्भावमितीङ्गितज्ञया— कु० ५/६२, रघु० १२० शि० ९/६९ 3 इशारा, संकेत, अंगविक्षेप- पंच० ११४४. 4. विशेषतः शरीर के विभिन्न अंगों की चेष्टा जो आन्तरिक इरादों का आभास दे देती हैं, अंगविक्षेप आन्तरिक भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ है- आकारैरिङ्गितैर्गत्या ... गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः - मनु० ८२२६, । सम० - कोविद, - ज्ञ (वि०) बाहरी अंगचेष्टाओं के द्वारा आन्तरिक मनोभावों की व्याख्या करने में कुशल संकेतों को जानने वाला । इङ्गुदः, -दी [इङग् + उ = इङ्गुः तं द्यति खंडयति इति-दो + [क] एक औषधि का वृक्ष, हिंगोट का वृक्ष, मालकंगनी – इङगुदीपादपः सोऽयम् — उत्तर० १११४, – बम् काफल -दानम इच्छा [इप् + श+टाप् ] 1. कामना, अभिलाप, रुचि, - इच्छया - रुचि अनुसार 2. (गणित में ) प्रश्न या समस्या 3. ( व्या० में) सन्नन्त का रूप । सम० अभिलाप का पूर्ण होना, निवृत्तिः (स्त्री०) कामनाओं की शान्ति, सांसारिक इच्छाओं के प्रति उदासीनता, - फलम् किसी प्रश्न या समस्या का समाधान - रतम् अभिलपित खेल - मेघ० ८९, वसुः कुवेर -संपद् (स्त्री० ) किसी की कामनाओं का पूर्ण होना । इज्य: [ यज् + क्यप् ] 1. अध्यापक 2. देवों के अध्यापक बृहस्पति की उपाधि | इज्या [ इज्य + टाप् ] 1. यज्ञ - जगत्प्रकाशं तदशेषमिज्यया - रघु० ३।४८ ११६८, १५/२, 2. उपहार, दान 3. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( प्रतिमा 4. कुट्टिनी, दूतिका, गाय । सम० - शीलः सदा यज्ञ करने वाला | १७३ = इटुचरः [ इषा कामेन चरति इष् + क्विप् इट् + चर् + अच् ] बैल या बछड़ा जो स्वच्छन्दता पूर्वक घूमने के लिए छोड़ दिया जाय । की इडा-ला [ इल् + अच्, लस्य डत्वम् ] 1. पृथ्वी 2. भाषण 3. आहार 4. गाय 5. एक देवी का नाम, मनु पुत्री 6. बुध की पत्नी तथा पुरूरवा की माता । [ इडा +, इत्वम् ] पृथ्वी । इतर (सा० वि० ) ( स्त्री० - रा, नपुं० - रत् ) [ इना कामेन तरः - इति + अप् ] 1. अन्य, दूसरा, दो में से अवशिष्ट - इतरो दहने स्वकर्मणाम् रघु० ८ २०, अने० पा० 2. शेष या दूसरे ( ब० व० ) 3. दूसरा, से भिन्न ( मपा० के साथ ) - इतरतापशतानि यथेच्छया वितर तानि सहे चतुरानन उद्भट, इतरो रावणादेव राघवानुचरो यदि भट्टि० ८ १०६ 4. विरोधी, या तो अकेला स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होता है अथवा विशेपण के साथ, या समास के अन्त में - जङ्गमानीतराणि च - रामा०, विजयायेतराय वा - महा० इसी प्रकार दक्षिण (बायां) वाम (दायां) आदि 5. नीच अधम, गंवार, सामान्य -- इतर इव परिभूय ज्ञानं मन्मयेन जडीकृत: का० - १५४ । सम० इतर (सा० वि०) पारस्परिक, स्व-स्व, अन्योन्य - आश्रयः - पारस्परिक निर्भरता, अन्योन्य संबंध योगः 1. पारस्परिक संबंध या मेल, शि० १०१२४, 2. द्वन्द्व समास का एक प्रकार ( विप० समाहार इन्) जहाँ कि प्रत्येक अंग पृथक् रूप से देखा जाता है । इतरतः, इतरत्र ( अव्य० ) [ इतर + तसिल् ल् वा ] अन्यथा, उससे भिन्न, अन्यत्र -- दे० अन्यतः, अन्यत्र | इतरया ( अव्य० ) [ इतर + थाल् ] 1. अन्य रीति से, और ढंग से 2. प्रतिकूल रीति से 3. दूसरी ओर । इतरेयुः ( अव्य० ) [ इतर + एद्युस् ] अन्य दिन, दूसरे दिन । इत् ( अव्य० ) [ इदम् + तसिल् ] 1. अतः, यहाँ से, इधर से, 2. इस व्यक्ति से, मुझ से - इतः स दैत्यः प्राप्तश्रीनेत एवार्हति क्षयम् कु० २।२५ 3. इस दिशा में, मेरी ओर, यहाँ — इतो निषीदेति विसृष्टभूमिः - कु० ३।२, प्रयुक्तमप्यस्त्रमितो वृथा स्यात् - रघु० २।३४, इत इतो देवः - इधर इस ओर महाराज ( नाटकों में ) 4. इस लोक से, 5. इस समय से, इतः इतः - एक ओर दूसरी ओर या एक स्थान में --- दूसरे स्थान पर, यहाँ वहाँ । इति ( अव्य० ) [ इ + क्तिन् ] 1. यह अव्यय प्रायः किसी के द्वारा बोले गये, या बोले समझे गये शब्दों को वैसा का वैसा ही रख देने के लिए प्रयुक्त किया जाता है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) जिसको कि हम अंग्रेजो में अवतरणांश चिन्हों द्वारा प्रकट करते हैं, इस प्रकार कही गई बात हो सकती है। (क) एक अकेला शब्द जो शब्द के स्वरूप को दर्शाने के लिए प्रयुक्त किया गया हो ( शब्दस्वरूपद्योतक ) - राम रामेति रामेति कूजन्तं मधुराक्षरं रामा०, अतएव गवित्याह- भर्तृ०, ( ख ) या कोई प्रातिपदिक जो कि अपने अर्थी को संकेतित करने के लिए कर्तृकारक में प्रयुक्त होता है ( प्रातिपादिकार्थद्योतक ) चयस्त्विषामित्यवधारितं पुरा क्रमादमुं नारद इत्यबोधि सः - शि० १०३, अवैमि चैनामनघेति रघु० १४ ४०, दिलीप इति राजेंदु: - रघु० ११२, (ग) या पूरा वाक्य जब कि 'इति' शब्द वाक्य के केवल अंत में ही प्रयुक्त किया जाता है ( वाक्यार्थद्योतक) -ज्ञास्यसि कियद्भुजो मे रक्षति मौर्वीकिणांक इति - शि० १1१३, 2. इस सामान्य अर्थ के अतिरिक्त 'इति' के निम्नांकित अर्थ हैं (क) 'क्योंकि', 'यतः' 'कारण यह कि' आदि शब्दों से व्यक्तीकरण वंदेशिकोऽस्मीति पृच्छामि - उत्तर० १ पुराणमित्येव न साधु सर्वम् - मालवि० ११२, प्रायः 'किम्' के साथ (ख) अभिप्राय या प्रयोजन- रघु० १।३७ (ग) उपसंहार द्योतक ( विप० 'अर्थ' ), इति प्रथमोऽङ्कः " -यहाँ प्रथम अंक का उपसंहार होता है (घ) अतः इस प्रकार इस रीति से इत्युक्तवन्तं परिरभ्य दोर्भ्याम् – कि० १११८० (ङ) इस स्वभाव या विवरण वाला --- गौरश्वः पुरुषो हस्तीतिजाति: (च) जैसा कि नीचे है, नीचे लिखे परिणामानुसार--- रामाभिधानो हरिरित्युनाच - रघु० १३।१ (छ) जहाँ तक की हैसियत से, के विषय में ( धारिता और संबंध प्रकट करते हुए ) -- पितेति स पूज्यः, अध्यापक इति निन्द्यः, शीघ्रमिति सुकरम्, निभृतमिति चिन्तनीयं भवेत् - श० ३ (ज) निदर्शन ( प्राय: 'आदि' के साथ) इन्दुरिन्दुरिव श्रीमानित्यादौ तदनन्वयः - चन्द्रा० गौ: शुक्ल चलो डित्य इत्यादी - काव्य० २, ( झ ) मानी हुई सम्मति या उद्धरण - इति पाणिनिः, इत्यापिशलिः, इत्यमर: विश्वः आदि (अ) स्पष्टीकरण । सम० -अर्थः भावार्थ, सार, ---: -- अर्थम् ( अव्य० ) इस प्रयोजन के लिए, अतः, कथा अर्थहीन या निरर्थक बात, - कर्तव्य, - करणीय (वि० ) नियमतः उचित या आवश्यक (व्यम् - यम् ) कर्तव्य, दायित्व, 'ता, कार्यता, - कृत्यता कोई भी उचित या आवश्यक कार्य, - कतव्यतामूढः किं कर्तव्य विमूढ, असमंजस में पड़ा हुआ, व्याकुल, हतबुद्धि, मात्र (वि०) इतने विस्तार वाला, या ऐसे गुण का, वृशम् 1. घटना, बात 2. कथा, कहानी । इतिह ( अव्य० ) [ इति एवं ह् किल इ० स०] ठीक इस प्रकार, बिल्कुल परंपरा के अनुरूप । For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७४ ) इतिहास: [ इति-न-ह-|-आस (अस् धातु, लिट् लकार, स्वेदानीम् श० ४, आर्यपुत्र इदानीमसि-उत्तर० ३, अन्य पु०, ए. व.)] 1. इतिहास (परंपरा से प्राप्त | इदानीमेव-अभी, इदानीमपि--अब भी, इस विषय उपाख्यान समूह)--धर्मार्थकाममोक्षाणामपदेशसमन्वि- में भी। तम्, पूर्ववृत्तं कथायुक्तमितिहासं प्रचक्षते । 2. वीर- इदानीन्तन (वि.)(स्त्री...नी) वर्तमान, क्षणिक, वर्तमान गाथा (जैसा कि महाभारत) 3. ऐतिहासिक साक्ष्य, कालिक। परंपरा (जिसको पौराणिक एक प्रमाण मानते हैं)। इद्ध (भू० क० कृ०) [ इन्ध+क्त ] जला हुआ, प्रकाशित सम-निबन्धनम्-उपाख्यानयुक्त या वर्णनात्मक -खम् 1. धूप, गर्मी 2. दीप्ति, चमक 3. आश्चर्य । रचना। इध्मः-ध्मम् [इध्यतेऽग्निरनेन इन्ध+मक | इंधन, इत्यम् (अव्य०) [इदम् + थम् ] इस लिए, अतः, इस विशेषकर वह जो यज्ञाग्नि में काम आता है- रघु० रीति से--इत्थं रतेः किमपि भूतमदृश्यरूपम्-कु० | १४१७०, । सम०-जिह्वः अग्नि,--प्रवश्चनः कुल्हाड़ी, ४१४५, इत्थं गते-इन परिस्थितियों के कारण। कुठार (परशु)। सम०-कारम् (अव्य०) इस प्रकार,- भूत (वि०) | इध्या [ इन्ध-+-क्यप्+टाप् ] प्रज्वलन, प्रकाशन। 1. इस प्रकार परिस्थितियों में फंसा हुआ, ऐसी दशा इन (वि.) [इण-नक्] 1. योग्य, शक्तिशाली, बलवान् में ग्रस्त --कु० ६।२६ कथमित्थंभूता-मालवि० ५, 2. साहसी, न: 1. स्वामी २. सूर्य-शि० श६५ 3. का० १४६, 2. सच्चा, यथातथ्य, सही (जैसे कि राजा न न महीनमहीनपराक्रमम्-- रघु० ९।५ । कहानी),-विध (वि.) 1. इस प्रकार का 2. इस इन्दिन्दिरः [ इन्द्+किरच नि०] बड़ी मधु-मक्खी - लोभाप्रकार के गुणों से युक्त । दिन्दिन्दिरेषु निपतत्सु- भामि० २।१८३ । इत्य (वि.) [इण्+क्यप, तुक ] जिसके पास जाया | इन्दिरा [ इन्द+किरच ] लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी । सम० जाय, जहाँ पहुँचना उपयुक्त हो--इत्यः शिष्येण गरु- | -आलयम् इन्दिरा का आवास, नील कमल, --मन्दिरः वत्,-त्या 1. जाना, मार्ग 2. डोली, पालकी। विष्णु का विशेपण (-रम) नील-कमल । इत्वर (वि.) (स्त्री०-री) [ इण् + वरप्, तुक ] 1. | इंदीवरिणी [ इन्दीवर+इनि+डीप् ] नील-कमलों का जाने वाला, यात्रा करने वाला, यात्री 2. ऋर, कठोर। समूह। 3. नीच, अधम 4. णित, निद्य 5. निर्धन,-रः हिजड़ा, | इन्दीवारः [ इंद्याः वारो वरणम् अत्र--ब० स०] नील ---री 1. व्यभिचारिणी, कुलटा 2. अभिसारिका। । कमल । इवम् (सा० वि०)[पुं०--अयम्, स्त्री०-इयम्, नपु०-इदम् | इन्दुः । उनत्ति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्---उन्द-+-उ [ इन्द्+कमिन् ] 1. यह--जो यहाँ है (वक्ता के आदेरिच्च ] 1. चंद्रमा-दिलीप इति राजेन्दग्न्दिः निकट की वस्तु की ओर संकेत करते हए---इदमस्तु क्षीरनिवाविव-रघु० १११२, 2. (गणित में) 'एक' संनिकृष्टं रूपम्) इदं तत्... इति यदुच्यते .. श० की संख्या 3. कपूर। सम० -- कमलम् सफेद कमल, ५, यह है कथन की सत्यता 2. उपस्थित, वर्तमान ... कला चन्द्रमा की कला या अंश (यह कलाएं गिनती ('यहाँ' की भावना को प्रकट करने के लिए कर्तकारक में १६ है, पौराणिक कथाओं के आधार पर इनमें से के रूप प्रयुक्त किये जाते हैं-इयमस्मि- यह रही प्रत्येक कला क्रमश: १६ देवताओं के द्वारा निगली मैं, इसी प्रकार,-इमे स्मः, अयमागच्छामि-यह मैं जाती है)-कलिका 1. केतकी का पौधा 2. चन्द्रमा आता हूँ) 3. यह शब्द तुरन्त ही बाद में आने वाली की एक कला,- कान्तः चन्द्रकान्तमणि (-ता) वस्तु की ओर संकेत करता है जब कि 'एतद्' शब्द रात,--क्षयः 1. चन्द्रमा का प्रतिदिन घटना 2. नूतनपूर्ववर्ती वस्तु की ओर - अनुकल्पस्त्वयं ज्ञेयः सदा चन्द्र दिवस, प्रतिपदा,- जः,-पुत्रः बुधग्रह (---जा) सद्भिरनुप्ठित:--मनु० ३३१४७. (अयम् = वक्ष्य- रेवा या नर्मदा नदी,---जनक: समुद्र,-दलः चन्द्रमा माण:-कुल्ल.) श्रुत्वंतदिदमुचु:-.-4. किसी वस्तु की कला, अर्धचन्द्रः,-भा कुमुदिनी,- भत,--शेखरः, को अधिक स्पष्टतया या बलपूर्वक बतलाने या कई -मौलिः मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाला बार शब्दाधिक्य प्रकट करने के लिए यह शब्द यत्, देवता, शिव,---मणिः चन्द्रकान्तमणि,-मंडलम चन्द्रमा तत्, एतद, अदस्, किम् अथवा किसी पुरुष वाचक का परिवेश, चन्द्र मण्डल, - रत्नम् - मोती,-ले सर्वनाम के साथ जुड़ कर प्रयुक्त होता है-कोऽयमा- (रे) खा चन्द्रमा की कला,--लोहकम्,-लौहम् चरत्यविनयम् ---श०१२२५, सेयम्, सोऽयम्-यह यहाँ, चाँदी,- बबना छन्द का नाम दे० परिशिष्ट,- वासरः ---यमहं भो..-- श०, ४, अरे यहाँ तो मैं है। सोमवार। इदानीम् (अव्य.) [ इदम् +दानीम्, इश् च ] अब, इस | इन्दुमती [इन्दु+मतुप्+जी ] 1. पूर्णिमा 2. 'अज' की समय, इस विषय में, अभी, अब भी-वत्से प्रतिष्ठ- । पत्नी, 'भोज' की बहन । For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्दूरः [ इन्दु+र पृषो० ऊत्वम् ] चूहा, मूसा। इखः[ इन्द+रन, इन्दतीति इन्द्रः, इदि ऐश्वर्ये-...मल्लिग 1. देवों का स्वामी 2. वर्षा का देवता, वष्टि 3. स्वामी या शासक (मनुष्यादिक का), प्रथम, श्रेष्ठ (पदार्थों के किसी वर्ग में), सदैव समास के अन्तिम पद के रूप में, नरेन्द्रः --मनुष्यों का स्वामी अर्थात् राजा इसी प्रकार मगेन्द्रः-शेर;--गजेन्द्रः, योगीन्द्रः, कपीन्द्रः:-द्रा इन्द्र की पत्नी, इन्द्राणी (अन्तरिक्ष का देवता इन्द्र भारतीय आर्यों का वृष्टि-देवता है, वेदों में प्रथम श्रेणी के देवताओं में इनका वर्णन मिलता है, परन्तु पुराणों की दष्टि से यह द्वितीय श्रेणी के देवता माने जाते हैं। यह कश्यप और अदिति के एक पुत्र हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के त्रिक से यह निम्नतर है, परन्तु यह और दूसरे देवताओं में प्रमख हैं और सामान्यतः इन्हें सुरेश या देवेन्द्र आदि नामों से पुकारा जाता है। जैसा कि वेदों में वर्णित है उसी प्रकार पुराणों में भी यह अन्तरिक्ष तथा पूर्व दिशा के अधिष्ठातृ देवता माने जाते हैं, इनका लोक स्वर्ग कहलाता है। यह वज्र धारण करते हैं, बिजली को भेजते हैं और वर्षा करते है, यह असुरों के साथ प्रायः युद्ध में लगे रहते हैं और उनको भयभीत करते रहते हैं, परन्तु कई बार उनसे परास्त भी हो जाते हैं। पुराणों में वणित इन्द्र कामुकता और व्यभिचार के लिए प्रख्यात है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनके द्वारा गौतम की पत्नी अहल्या का सतीत्वहरण है जिसके कारण इन्द्र अहल्या-जार कहलाता है। गौतम ऋषि के शाप से इन्द्र के शरीर पर स्त्री-योनि जैसे हजार चिह्न बन जाते हैं इसीलिए उसे सयोनि कहते हैं, परन्तु बाद में यह चिह्न 'आँख' के रूप में बदल जाते हैं इस लिए यह सहस्रनेत्र, सहस्रयोनि या सहस्राक्ष कहलाने लगते हैं। रामायण में वर्णन आता है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने इन्द्र को परास्त कर दिया तथा वह उसे उठा कर लंका में ले गया, इसी साहसिक कार्य करने के उपलक्ष में मेघनाद को 'इन्द्रजित्' की उपाधि मिली। ब्रह्मा तथा दूसरे देवताओं के बीच में पड़ने पर कहीं इन्द्र का छुटकारा हुआ। इन्द्र के विषय में बहुधा वर्णन मिलता है कि वह सदैव राजाओं को १०० यज्ञ पूरा करने से रोकता । रहता है, क्योंकि यह विश्वास किया जाता है कि जो कोई १०० यज्ञ पूरा कर लेगा, वही इन्द्र का पद प्राप्त कर लेगा, यही कारण है कि वह सगर और रघु के यज्ञीय घोड़ों को उठा कर ले गया, दे० रघु० तृतीय सर्ग । यह सदैव घोर तपश्चर्या करने वाले ऋषि-मुनियों से भयभीत रहता है और अप्सराएं भेज कर उनके मार्ग में विघ्न डालने का प्रयत्न करता है (दे० अप्सरस्)। कहा जाता है कि उसने पर्वत के पंख काट | डाले जब कि वह कष्ट देने लगे थे। उसी समय उसने बल तथा वत्र की हत्या कर दी। इनकी पत्नी पुलोमा राक्षस की पुत्री है, इनके पुत्र का नाम जयन्त है। यह अर्जुन के पिता भी कहे जाते हैं )। सम० ---अनुजः, --अवरजः विष्णु और नारायण की उपाधि,-- अरिः एक राक्षस,--आयुधम् इन्द्र का शस्त्र, इन्द्रधनुष रघु० ७४,-.-कोल:-1. 'मंदर' पर्वत का नाम 2. चट्टान (-लम्) इन्द्र की ध्वजा,-कुञ्जरः इन्द्र का हाथी, ऐरावत,-कूट: एक पर्वत का नाम -कोशः (षः),--षक: 1. कोच, सोफा 2. प्लैटफार्म या समतल बना चबूतरा 3. खूटी या ब्रैकेट जो दीवार के साथ लगा हो,-गिरिः महेन्द्र पर्वत,-गुरुः, -आचार्यः इन्द्र का अध्यापक, अर्थात् बृहस्पति,-गोपः, -गोपक: एक प्रकार का कीड़ा जो सफेद या लाल रंग का होता है,-चापम्,--धनुस् (नपु०) 1. इन्द्रधनुष 2. इन्द्र की कमान,-जालम् 1. एक शस्त्र जिसे अर्जुन ने प्रयक्त किया था, युद्ध का दांव-पेंच 2. जादूगरी, बाजीगरी-स्वप्नेन्द्रजालसदृशः खलु जीवलोक: -शा० २।२, जालिक (वि०) छद्मपूर्ण, अवास्तविक, भ्रमात्मक (-क:) वाजीगर, जादूगर,--जित् (पु) इन्द्र को जीतने बाला, रावण का पुत्र जो लक्ष्मण के द्वारा मारा गया [रावण के पुत्र मेघनाद का दूसरा नाम 'इन्द्रजित' है। जब रावण ने स्वर्ग में जाकर इन्द्र से युद्ध किया तो मेघनाद उसके साथ था-वह बड़ी बहादुरी के साथ लड़ा। 'शिव' से अदृश्य होने की शक्ति प्राप्त कर लेने के कारण मेघनाद ने अपनी इस जादू की शक्ति का उपयोग किया, फलतः इन्द्र को बांध कर वह उसे लंका में उठा लाया। ब्रह्मा तथा अन्य देवता उसे मुक्त कराने के लिए आये और उन्होंने मेघनाद को 'इन्द्रजित्' की उपाधि दी, परन्तु मेघनाद इन्द्र को मुक्त करने के लिए राजी न हुआ जब तक कि उसे 'अमरता' का वरदान न दिया जाय । ब्रह्मा ने उसकी इस अनुचित माँग को मानने से इंकार कर दिया, परन्तु मेघनाद अपनी मांग का निरन्तर आग्रह करता रहा और अन्त में अपना अभीष्ट प्राप्त कर लिया। रामायण में लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का सिर काटे जाने का वर्णन है जब कि वह यज्ञ कर रहा था] हत-विजयिन् (पु.) लक्ष्मण,-तूलम्, तूलकम् रूई का गद्दा, वायः देवदारु का वृक्ष, नील: नीलकान्तमणि,-नीलकः पन्ना, -पत्नी इन्द्र की पत्नी शची,-पुरोहितः बृहस्पति, ----प्रस्थम् यमुना के किनारे स्थित एक नगर जहाँ पांडव रहते थे (यही नगर आज कल वर्तमान दिल्ली है)।-इन्द्रप्रस्थगमस्तावत्कारि मा सन्तु चेदय:-शि० २१६३,-- प्रहरणम् इन्द्र का शस्त्र, वज,-भवनम् For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६ सोंठ,-महः 1. इन्द्र के सम्मान में किया जाने वाला ज्ञानेन्द्रिय का संपर्क (चाहे वह बाह्य विषयों से हो उत्सव 2. बरसात,-लोकः इन्द्र का संसार, स्वर्गलोक, या मन से)--स्वापः अज्ञेयता, अचेतना, जडिमा । ---वंशा,-बना दो छंदों के नाम दे० परिशिष्ट, इन्ध (रु. आ.) (इंद्धे या इंधे, इद्ध) प्रज्वलित करना, --शत्रुः 1. इन्द्र का शत्रु या इन्द्र को मारने वाला जलाना, आग लगाना, (कर्मवा --इध्यते) जलाया (जब कि स्वराघात अन्तिम स्वर पर है), प्रह्लाद की जाना, प्रदीप्त होना, लपटें उठना, सम्---, प्रज्वलित उपाधि,-- रघु० ७।३५, 2. इन्द्र जिसका शत्रु है, करना। वृत्र का विशेषण (जब कि स्वराघात प्रथम स्वर पर इन्धः [ इन्ध+घा 1 इंधन, (लकड़ी कोयला आदि)। है) [यह घटना शतपथ ब्राह्मण के एक उपाख्यान की इन्धनम् [ इन्ध् + ल्युट्] 1. प्रज्वलित करना, जलाना 2. ओर संकेत करती है, यहाँ बतलाया गया है कि इंधन (लकड़ी आदि)। वृत्र के पिता न अपने पुत्र को इन्द्र के मारने वाला इभः [इ+भन्, किच्च ] हाथी,-भी हथिनी। सम० बनाने का विचार किया और उसे “इन्द्रशत्रर्वधस्व" - अरिः सिंह,—आननः गणेश तु० 'गजानन'--निमीबोलने को कहा, परन्तु भूल से उसने प्रथम स्वर पर लिका चतुराई, बुद्धिमत्ता, सतर्कता,—पालकः महावत, बलाघात किया और इन्द्र के द्वारा मारा गया--तु० -पोटा अल्पवयस्का हथिनी,-पोतः अल्पवयस्क हाथी, शिक्षा-५२-मंत्रो हीनः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो हाथी का बच्चा,-युवति: (स्त्री०) हथिनी। न तमर्थमाह, स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेंद्रशत्रु: इम्य (वि०) [इभ गजमहंति - यत् ] धनाढ्य, धनवान् स्वरतोपराधात् ।]-शलभः एक प्रकार का कीड़ा, -म्यः 1. राजा 2. महावत,–भ्या हथिनी। वीरबहूटी,-सुतः,--सूनुः (क) जयन्त का नाम (ख) इम्यक (वि०) [ स्वार्थ कन् ] धनाढ्य, धनी। अर्जुन का नाम (ग) वानरराज वालि का नाम, इयत् (वि०) [ इदम्+वतुप ] इतना अधिक, इतना बड़ा, --सेनानीः इन्द्र की सेनाओं का नेता, कातिकेय इतने विस्तार का--इयत्तवायुः- दश० ९३, इयन्ति की उपाधि। वर्षाणि तया सहोग्रम् रघु० १३६६७, इतने वर्ष-द्वयं इनकम् [इन्द्रस्य राज्ञः कं सुखं यत्र-तारा०] सभा-भवन, नीतिरितीयती-शि०२३०, इतनी । बड़ा कमरा। इयसा, इयत्वम् [इयत्+तल+टाप्, त्वल वा] 1. इन्द्राणी [इन्द्रस्य पत्नी आनुक् +डीप्] इन्द्र की पत्नी, शची। (क) इतना, निश्चित माप या परिमाण-ईदृक्तया इग्रियम् [इन्द्र+घ-इय] 1. बल, शक्ति (वह गुण जो रूपमियत्तया वा--रघु० १३१५, न....."यशः परिइन्द्र में विद्यमान था) 2. शरीर के वह अवयव जिनके च्छेत्तुमियत्तयालम्-६७७ (ख) सीमित संख्या, सीमा द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है, ऐसे अवयव -न गुणानामियत्तया रषु०१०।३२, 2. सीमा, मानक । (इन्द्रियां) दो प्रकार के हैं (क) ज्ञानेन्द्रियाँ या । इरणम् [ऋ+अण् पृषो०] 1. मरुस्थल 2. रिहाली या बुद्धीन्द्रिया-श्रोत्रं त्वकचक्षुषी जिह्वा नासिका चैव लुनई भूमि, बंजर भूमि, तु० 'इरिण'। पंचमी (कुछ के अनुसार 'मन' भी) (ख) कर्मेन्द्रि- इरम्मदः [ इरया जलेन माद्यति वर्धते इति ---इरा-मद+ याँ-पायूपस्थं हस्तपादं बाक् चैव दशमी स्मृता खश्, ह्रस्वः मम्] 1. बिजली की कौंध, बिजली के मनु० २९९, 3. शारीरिक या पुरुषोचित शक्ति, गिरने से पैदा हुई आग, 2. बाडवानल । ज्ञानशक्ति 4. वीर्य 5. पांच की संख्या के लिए इरा[इ-रन, ई कामं राति---रा-+क वा तारा०] प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति । सम.-अगोचर (वि.) 1. पृथ्वी 2. वक्तृता 3. वाणी की देवता सरस्वती जो दिखलाई न दे सके,-अर्थः 1. इन्द्रियों के विषय 4. जल 5. आहार 6. मदिरा। सम०-ईशः वरुण, (वह विषय ये हैं:-रूपं शब्दो गंधरसस्पर्शाश्च विषया विष्णु, गणेश,-चरम् ओला, इसी प्रकार 'इरांबरम्'। अमी-अमर०), भग० ३१३४, रघु० १४२५,-आय- | इरावत् (पु.) [इरा-मतुप ] समुद्र ।। सनम् इन्द्रियों का आवास अर्थात् शरीर,-गोचर | इरिणम् [ ऋ-इनच्, किदिच्च ] लुनई भूमि, रिहाली (वि.) जो इन्द्रियों द्वारा देखा या जाना जा सके | जमीन। (-र:) शान का विषय,- प्रामः,—वर्गः इन्द्रियों का , इरुि - लु (वि.) [ उर्व+आरु, पृषो०] नाशक, हिंसक समूह, समष्टि रूप से ग्रहण की गई पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ -ह: (पुं० स्त्री०) ककड़ी। -बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति--मनु० इल (तु० पर०) (इलति, इलित) या (चु० उभ०) 1. जाना, २।२१५, निर्ववार मधुनीन्द्रियवर्ग:-शि० १०१३, चलना-फिरना 2. सोना 3. फेंकना, भेजना, डालना। --ज्ञानम् चेतना, प्रत्यक्ष करन की शक्ति,-निग्रहः । [इल-क-टाप् ] 1. पृथ्वी 2. गाय 3. वक्तृता ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण,--वधः अज्ञेयता,-विप्रति- -दे० 'इडा'। सम-गोल:--लम् पृथ्वी, धरती पतिः (स्त्री०) इन्द्रियों का उन्मार्गगमन, सन्निकर्षः। भूमंडल, धरः पहाड़। For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७७ ) इलिका [इला कन्, इत्वम् ] पृथ्वी, धरती। वाला, धर...... भूत् धनुर्धर, ---पथः, - विक्षेपः तीर इल्वका:-लाः (ब० व०) [इल+वल, इल+क्विप् । जाने का स्थान, बाण का परास,--प्रयोग: बाण वलच् वा ] मगशिरा नक्षत्र के ऊपर स्थित पाँच छोड़ना, तीर चलाना। तारे। इषुधिः [इषु+धा+कि तरकस । इव (अव्य०) [इ+क्वन् बा०] 1. की तरह, जैसा कि इष्ट (भू० क० कृ०) [इष् + क्त] 1. कामना किया गया, (उपमा दर्शाते हुए) वागर्थाविव संपृक्ती-रघु० चाहा गया, जो से चाहा हुआ, अभिलषित 2. प्रिय, १११, 2. मानों, (उत्प्रेक्षा को दर्शाते हुए)--पश्या- पसंद किया गया, अनुकल, प्यारा 3. पूज्य, आदरणीय मीव पिनाकिनम--श० ११६, लिम्पतीव तमोङ्गानि 4. प्रतिष्ठित, सम्मानित 5. उत्सृष्ट, यज्ञों से पूजा गया वर्षतीवाञ्जनं नभः—मृच्छ० १।३४ 3. कुछ, थोड़ा —ष्ट: प्रेमी, पति,-ष्टम् 1. चाह, इच्छा 2. संस्कार सा, कदाचित्-कडार इवायम्,-- गण०, 4. (प्रश्न- 3. यज्ञ; (अव्य०) स्वेच्छापूर्वक । सम०--अर्थः वाचक शब्दों से जुड़े हुए) 'संभवतः' 'बतलाइये तो' अभीष्ट पदार्थ, ---आपत्तिः (स्त्री०) चाही हई बात 'निस्सन्देह'-विना सीता देव्या किमिव हि न दुःखं रघु- का होना, वादी का वक्तव्य जो प्रतिवादी के भी पते:-उत्तर०६।३०, क इव---किस प्रकार का, किस अनुकूल हो-इष्टापत्तौ दोषान्तरमाह---जग०, - गन्ध भांति का, मुहर्तमिव-केवल क्षण भर के लिए, किंचि- (वि०) सुगंध युक्त (----धः) सुगंधित पदार्थ (-धम्) दिव-जरा सा, थोड़ा सा; इसी प्रकार ईषदिव, नाचि- रेत,-देवः,-देवता अनुकूल देव, अभिभावक देव । रादिव आदि । इष्टका [इष् + तकन्] ईंट-मृच्छ० ३। सम०-गृहम् ईंटों इशीका-इषीका। का घर,-चित (वि०) ईंटों से बना (इष्टकचित' भी), इष् (क) (तु० पर०) (इच्छति, इष्ट) 1. कामना -न्यासः घर की नींव रखना,-पथः ईंटों से बना मार्ग । करना, चाहना, प्रबल इच्छा होना-इच्छामि संव- इष्टापूर्तम् [समाहार द्व० स० पूर्वपददीर्घः] यज्ञादिक पुण्यधितमाज्ञया ते--कु० ३।३, 2. छाँटना, 3. प्राप्त करने कार्यों का अनुष्ठान, कुएँ खोदना तथा दूसरे धर्मकार्यों का प्रयत्न करना, तलाश करना, ढूंढना, 4. अनुकूल । का सम्पादन-इष्टापूर्तविधेः सपत्नशमनात्---महावो० होना 5. हाँ करना, स्वीकृति देना---(भा० वा०)। ३।११ 1. चाहा जाना 2. नियत किया जाना-हस्तच्छेदन- | इष्टिः (स्त्री०) [इष +-क्तिन] 1. कामना, प्रार्थना, इच्छा मिण्यते --मनु० ८।३२२, अनु.-, ढूंढना, कोशिश 2. इच्छुक होना या कोशिश करना 3. अभीष्ट पदार्थ करना, प्रयत्न करना, अभि --, जी करना, चाहना, 4. अभीष्ट नियम या आवश्यकता की पूर्ति (भाष्यकार परि, ढूंढना, प्रति--, प्राप्त करना, स्वीकार करना द्वारा कात्यायन के वार्तिकों अथवा पंतजलि के भाष्य -~-देवस्य शासनं प्रतीप्य---श० ६, (ख) (दि. में कुछ अतिरिक्त जोड़ना---इष्टयो भाष्यकारस्य) तु० पर०) (इप्यति, इपित) 1. जाना, चलना-फिरना 'उपसंख्यानम्' 5. आवेग, शीघ्रता 6. आमंत्रण, आदेश 2. फैलाना 3. डालना, फेंकना, अनु-ढूंढना, ढुंढने के ! 7. यज्ञ। सम०--पचः कंजूस, इसी प्रकार मुष्, लिए जाना-न रत्नमन्विष्यति मुग्यते हि तत् ---कु० -पशः यज्ञ में बलि दिया जाने वाला जानवर। ५।४५, प्र -(प्रायः 'प्रेर०') 1. भेज देना, डाल देना, इष्टिका [इष्ट-+तिकन्+टाप्] ईट आदि, दे० 'इष्टका' । फेंक देना -भट्टि० १५।७७ 2. भेजना, प्रेषण करना ! इष्मः [इष्+मक्] 1. कामदेव 2. वसन्त ऋतु। -किमर्थमृषयः प्रेषिताः स्युः .... श० ५, (ग) (भ्वा० इष्यः ष्यम् [इष्+क्यप्] वसन्त ऋतु । उभ०) (पवित) जाना, चलना-फिरना, अनु-, अनु- इस् (अव्य०) [ई कामं स्यति-सो+क्विप् नि ओलोपः] सरग करता। क्रोध, पीड़ा और शोक की भावना को अभिव्यक्त इषः [इप -अन1. बलशाली, शक्ति सम्पन्न 2. आश्विन करन वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय। मास, --ध्वनिमिषेऽनिमिषेक्षणमग्रतः --शिव० ६।४९ । इह (अव्य०) [इदम्+ह इशादेशः] 1. यहाँ (काल, स्थान इषि (षो) का [इप् गत्यादी क्वुन अत इत्वम्] 1. सरकंडा, या दिशा की ओर संकेत करते हुए), इस स्थान पर, नरकुल, अस्त्रम् - रघु० १२।२३ 2. बाण । इस दशा में 2. इस लोक में (विप० परत्र या अमत्र)। इषिरः [इ+किरच अग्नि ।। सम.--अमुत्र (अव्य०) इस लोक में और परलोक इषुः [इषु+उ] 1. बाण 2. पाँच की संख्या। सम--- अग्रम में, यहाँ और वहाँ,-लोकः यह संसार या जीवन, --अनीकम् बाण की नोक,...-असनम्,--अस्त्रम् धनष्, -स्थ (वि.) यहाँ विद्यमान । रघु० ११:३७, आसः 1. धनुष 2. धनुर्धर, योद्धा, इहत्य (वि०) [इह+त्यप] यहां रहने वाला, इस स्थान भग० ११४, १७,-कारः,-कृत् (पुं०) बाण बनाने का, इस लोक का। नोक, असनम, सम.-- अग्रम् | रघु० ११३७, For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७८ ) (पु.) [ई+क्विप्] कामदेव (अव्य०) (क) । उत्प्रेक्षमाणा जघनाभिघातम्----मद्रा० २, 2. अनुमान खिन्नता (ख) पीडा (ग) शोक (घ) क्रोध (ङ) . लगाना, अंदाज करना-किमत्प्रेक्षसे कुतस्त्योऽयमिति अनुकंपा (च) प्रत्यक्षज्ञान या चेतना ( छ) तथा - उत्तर०४, 3. विश्वास करना, सोचना-उत्प्रेक्षामो संबोधन की भावना को अभिव्यक्त करने वाला विस्म- वयं तावन्मतिमन्तं विभीषणम--रामा०, उद्वि..--, मुंह यादिद्योतक अव्यय । ताकना, उप-, 1. अवहेलना करना, नजर अंदाज करना, (क) (दिवा० आ० ) (ईयते) जाना (ख) (अदा० परवाह न करना;-उत्प्रेक्षते यः श्लथलम्बिनीजंटा:-कू० पर०) 1. जाना 2. चमकना 3. व्याप्त होना 4. चाहना, ५।४७, रघु० १४१३४, 2. भाग जाने देना, जाने देना, कामना करना 5. फेंकना 6. खाना 7. प्रार्थना करना टालमटोल करना;-नोपेक्षेत क्षणमपि राजा साहसिकं (आ०) 8. गर्भवती होना। नरम्-मनु० ८।३४४, 3. ध्यान से देखना, विचारना, निर्-, 1. टकटकी लगाकर देखना, पूरी तरह से ईल (भ्वा० पर०) (ईक्षते, ईक्षित) 1. देखना, ताकना, देखना, --धेन्वा ...."निरीक्षमाणः सुतरां दयालु: आलोचना करना, अवलोकन करना, टकटकी लगा कर - रघु० २।५२, भग० ११२२, मनु० ४।३८, 2. दंढना, देखना या घूरना 2. खयाल रखना, विचारना, सम खोजना निरीक्षते केलिवनं प्रविश्य क्रमेलकः कंटकशना-सर्वभूतस्थमात्मानं ... ईक्षते योगयुक्तात्मा जालमेव-विक्रमांक०, परि-, 1. जांच करना, ध्यान--भग० ६।२९, 3. हिसाब में लगाना, परवाह करना पूर्वक जांच पड़ताल करना—अत: परीक्ष्य कर्तव्यं -नाभिजनमीक्षते-का. १०४,न कामवृत्तिर्वचनीय- | विशेपात्संगतं रह:- श० ५।२४, मालवि० ११२, मनु० मीक्षते---कु० ५।८२ 4. सोचना, विचार करना ९।१४, 2. परीक्षण करना, जाँच करना, परीक्षा तत्तेज ऐक्षत बहुस्यां प्रजायेय- छा० 5. सावधान लेना--मायां मयोद्भाव्यपरीक्षितोऽसि-रघु० २०६२, रहना या किसी के भले बुरे का ध्यान करना (सम्प्र० के साथ)--कृष्णाय ईक्षते गर्ग:-सिद्धा० ( शुभाशुभं यत्नात्परीक्षितः पुंस्त्वे-याज्ञ० ११५५, पौरुष के विषय में पर्यालोचयति इत्यर्थः) अधि----, आशंका करना ध्यानपूर्वक जाँचा गया, प्र-', देखना, ताकना, प्रत्यक्ष कुहकचकितो लोक: सत्येप्यपायमधीक्षते-हि०४११०२, करना---तमायान्तं प्रेक्ष्य-पंच० १, रघु० १२१४४, अने० पा०, अनु --ध्यान में रखना, खोज करना, कु. ६।४७ मनु०८।१४७ प्रति-, इन्तजार करना -संपत्स्यते वः कामोऽयं काल: कश्चित्प्रतीक्ष्यताम्-कु० हूंढना, पूछ-ताछ करना, अप-, 1. प्रतीक्षा करना, २१५४ मनु० ९।७७, प्रतिवि-प्रत्यवलोकन करना, इंतजार करना-न कालमपेक्षते स्नेहः मच्छ० ७, वि.--, देखना, ताकना,-तं वीक्ष्य वेपथुमती-कु. कु० ३।२६ 2. आवश्यकता होना, जरूरत होना, कमी । ५।८५, व्यप-, ध्यान करना, खयाल रखना, सम्मान होना-शब्दार्थों सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते-शि०। २२८६, विक्रम० ४।१२, कु. ३।१८ 3. सावधान करना (प्रायः 'न' के साथ)-न व्यपक्षत समुत्सुका: रहना, खयाल रखना, ध्यान रखना–किमपेक्ष्य फलम् प्रजा:-रघु० १९।६, सम्-, 1. देखना, ताकना 2. चिन्तन करना, विचार करना, हिसाब में लगाना कि० २।२१, यतः शब्दोऽयं व्यञ्जकत्वेऽर्थान्तरमपेक्षते -तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते-रघु० ११११, कु. -सा० द०४, हिसाब में लगाना, सोचना, विचार करना, आदर करना (प्राय: 'न' के साथ)- तदानपेक्ष्य ५।१६, 3. ध्यानपूर्वक जांचना-असमीक्ष्यकारिन्, स्वशरीरमार्दवम्-कु० ५।१८, अभिवि--, की ओर समव -", 1. देखना, निरीक्षण करना, 2. सोचना देखना, अव-, 1. दृष्टि डालना, प्रेक्षण करना, अव समुप-, अवहेलना करना, निरादर करना-.-दे० 'उप' ऊपर। लोकन करना 2. निशाना लगाना, ध्यान में रखना -यत्स्यिमानानवेक्षऽहम-भग० श२८. सम्मान | ईक्षकः [ ईक्ष+पल ] दर्शक। करना-रघु० ३।२१, त्रिदिवोत्सुकयाप्यवेक्ष्य माम ईक्षणम् [ ईक्ष् + ल्युट् ] 1. देखना, ताकना 2. दृष्टि, दृश्य --८६०, मेरे सम्मान की खातिर 3. रखवाली करना, 3. आँख---इत्यदिशोभाप्रहितेक्षणेन-रघु० २।२७, रक्षा करना-श्लाघ्यां दुहितरमवेक्षस्व-उत्तर० १, इसी प्रकार 'अलसेक्षणा' ! 4. सोचना, विचारना-यदबोचदवेक्ष्य मानिनी-कि० ईक्षणिकः [ ईक्षण+ठन् ] ज्योतिपी, भविष्यवक्ता । २॥३, उद्-, 1. ढूंढ़ना, खोजना, देखना--सप्रणाम- ईक्षतिः [ ईक्ष् + शतिप् ] देखना, दृष्टि--ईक्षतेन शब्दम् मुदीक्षिताः--कु. ६७, ७६७, 2. प्रतीक्षा करना --ब्रह्म० । --त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत कुमार्यतुमती सती--मनु०९। ईक्षा [ ईक्ष्--अ+टाप्] 1. दृश्य 2. नजर डालना, ९०, उत्प्र--, 1. आशा करना, भविष्य में देखना, विचार करना। For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७९ ) इक्षिका ईक्ष --पवल, ईक्षा+कन+टाप वा इत्वम] 1. आँख । दोहराना-इतीरयन्तीव तया निरैक्षि-०१४।२१, 2. झांकना, झलक। शि० ९५६९, कि० ११२६, रघु० ९५८, मा० ११२५ ईक्षित (भू० क० कृ०) ईक्ष् + क्त] देखा हुआ, ताका 3. चलाना, हिलना-डुलना, हिलाना-बातेरितपल्लहुआ, खयाल किया हुआ,-तम् 1. दृष्टि, दृश्य 2. आँख वांगुलिभिः - श० १, 4. नियुक्त करना, काम लेना, -अभिमुखे मयि संहृतमीक्षितम्-श०२।११। उद्-, उठना (प्रेर०) 1. कहना, उच्चारण करना, इंख (भ्वा० पर०) (ईखति, इंखित) 1 जाना, कथन करना, बोलना, - उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हिलना-डुलना, डांवाडोल होना, प्रे०-झूलना, घूमना .- पंच० ११४३, रघु० २९, 2. आगे प्रस्तुत करना 2. हिलना, प्र-हिलाना, डगमगाना -खच्च क्षुभिता . - यदशाको यमुदीरयिष्यति रघु० ८।६२ 3. फेंकना, क्षिति:-भट्टि० १७।१०८, प्रेडद्भरिमयूख मा० (पासा आदि) लुढ़काना रघु० ६।१८, 4. (धूलि ६१५, अमरु १। आदि) उठना 5. प्रदर्शन करना, प्रकाशित करना, ईज, इञ् (भ्वा० आ०) 1. जाना 2. निंदा करना, कलंक प्र.1. डालना, फेंकना-श० २२ 2 प्रेरित करना, लगाना। धकेलना -रघु० ४।२४, 3. उकसाना, भड़काना, ईद (अदा० आ०) (ईडे, ईडित) स्तुति करना--अग्नि- चलाना, सम्-, 1. कहना 2. हिलाना, हिलना-डुलना, मीड पुरोहितम्-ऋक-१।१।१ शालीनतामब्रजदीड्य- समुद्-, कहना, बोलना। मानः-रघु० १८११७, भट्टि० ९५७, १८।१५। ईरणः [ईर् । ल्युट्] वायु, -- णम् 1. क्षुब्ध करने वाला, ईडा [ ईड्-+अ---टाप् ] स्तुति, प्रशंसा । हिलाने वाला, चलाने वाला, 2. जाने वाला 3.=इरण । धि (सं० कृ०) [ईड्- ण्यत् प्रंशसनीय, इलाध्य-भवन्त ईरिण (वि०) [ईर+इनन् । मरुस्थल, बंजर,--णम् ऊसर, मीडयं भवतः पितेव-रघु० ५।३४ बंजर भूमि महतमिव निःशब्दमासीदीरिणसंनिभम् ईतिः (स्त्री०) [ई+क्तिच्] 1. महामारी, दुःख, मौसम । -रामा०। संकट, ईति बहुघा ६ कही जाती है -१. अतिवृष्टि | ईक्ष्य - ईय॑ । २. अनावृष्टि ३. टिड्डीदल ४. चहे ५. तोते और ईमम [ई+मक घाव । ६. बाहर से आक्रमण -अतिवृष्टिरनावृष्टिः शलभाः ईर्या [ईर् + ण्यत् -- टाप्] (धार्मिक भिक्षु के रूप में) इधर मूषका: शकाः, प्रत्यासन्नाश्च राजानः पडेता ईतयः उधर घूमना। स्मृताः। ---निरातका निरीतयः - रघु० १।६३, ईर्वारुः (पुं० स्त्री०) [ईरु ऋ+उण् बा०] ककड़ी। 2. संक्रामक रोग 3. (विदेश में) घूमना. विदेश यात्रा ईर्षा-ईर्ष्या। 4. दंगा। ईष्य , ईक्ष्य (भ्वा० पर०) (ईप्यंति, ईप्यित) डाह करना, ईवृक्ता [ईदृश् +-तल+टाप्] गुण (विप० 'इयत्ता')-विष्णो ईर्ष्याल होना, दूसरों की सफलता को देखकर अस रिवास्यानवधारणीयम् ईदृक्तया रूपमियत्तया वा हिष्णु होना, (संप्र० के साथ)-हरये ईष्र्ण्यति-सिद्धा०, -रघु० १३१५ । शि०८।३६। ईदृक्ष-श (वि०) (स्त्री०-क्षी-शो) ( ईदृश् भी)-ऐसा, इस ईष्य, ईर्म्यु, ईष्यक (वि०) [ईष्य +अच्, उण, ण्वुल वा] प्रकार का, इस पहलू का, ऐसे गुणों से युक्त ।। ___ डाह करने वाला, ईर्ष्यालु । ईप्सा [आप्तुमिच्छा-आप-सन्+अ] 1. प्राप्त करने की | ईर्ष्या, ईर्षा [ईष्र्य + अप, ईZ +धा, यलोप:] डाह, इच्छा 2. कामना, इच्छा। जलन, दूसरों की सफलता को देखकर जलन पैदा ईप्सित (वि०) [आप+सन्+क्त] इच्छिन, अभिलपित, होना। प्रिय--तम् इच्छा, कामना। ईर्ष्या (र्षा) लु, ईष्र्यु (घु) (वि०) [ईर्घ्य +आलुच्, उ वा] ईप्सु (वि०) [आप+सन्+उ] प्राप्त करने का प्रयत्न डाह करने वाला, असहिष्णु । करने वाला, ग्रहण कग्ने की कामना या इच्छा करने ईलिः (ली) (स्त्री०) [ईड्+कि इस्य ल:] एक हथियार, वाला (कर्म और तुमु० के साथ परन्तु प्रायः ममास में) डंडा, छोटी तलवार। - सौरभ्यमीप्सुग्वि ते मुखमारतस्य - रघु० ५।६३ । ईश् (अदा० आ०) (ईप्टे, ईशित) 1. राज्य करना, स्वामी र (अदा० आ०) (ईत, ईर्ण) (भ्वा० पर० भी) होना, शासन करना, आदेश देना (संबं० के साथ) (क्तान ..ईरित) 1. जाना, हिलना-डुलना, हिलाना ...अर्थानामीशिप त्वं वयमपि च गिरामीश्महे याव(सक० भी) 2. उटना, निकलना, उगना; (चरा० दर्थम् -भर्तृ० ३।३० 2. योग्य होना, शक्ति रखना, - उभ०) या प्रेर० (ईग्यति, ईग्ति) 1. फेंकना, ('तुम्' के साथ) माधुर्यमीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम् छोड़ना, (तीर) चलाना, डालना-ऐरिरच्च महादुमम् -रघु० १८।१३, 3. स्वामी होना, अधिकार में -भट्टि १५।५२ 2. कहना, उच्चारण करना, | करना। For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८० ) ईश (वि.) ईश+क] 1. अपनाने वाला, स्वामी, थोड़ा सा ईषत चुम्बितानि-श०११३ । सम-उष्ण मालिक, दे० नीचे 2: शक्तिशाली 3. सर्वोपरि,-शः (वि०) गुनगुना कर (वि०) 1. थोड़ा करने वाला 1. मालिक, स्वामी (संबं० के साथ या समास में); अनायास पूरा हो जाने वाला, -जलम उथला पानी, कथंचिदीशा मनसां बभूवः -कु० ३।३४ इसी प्रकार - पाण्डु (वि०) हल्का पीला, कुछ सफेद, --पुरुषः वागीश और सूरेश आदि 2. पति 3. ग्यारह ४. 'शव, अधम और घृणित व्यक्ति,---रक्त (वि०) पीला -शा 1. दुर्गा 2. ऐश्वर्यशालिनी स्त्री, धनाढ्य लाल, हल्का लाल,-लभ,-प्रलंभ (वि.) थोड़े से महिला। सम० -कोणः उत्तर पूर्वी दिशा,-पूरी, में सुलभ,--हासः थोड़ी हंसी, मुस्कराहट । -- नगरी बनारस, वाराणसी, · सखः कुबेर का ईषा [ ई+क+टाप् ] 1. गाड़ी की फड़, 2. हलस। विशेषण। ईषिका [ ईषा+कन, इत्वम् ] 1. हाथी की आँख की ईशानः [ ईश् ताच्छील्ये चानश् ] 1. शासक, स्वामी, पुतली 2. रंगसाज की कुंची 3. हथियार, तीर, बाण । मालिक 2. शिव-कु० ७१५६ 3. सूर्य (शिव के रूप , ईषिरः [ ई+किरच ] अग्नि, आग। में) 4. विष्णु,-नी दुर्गा । ईषीका [ ईष्+क्वुन्, इत्वम्, दीर्घश्च ] 1. रंगसाज की इशिता-स्वम् [ ईशिनो भाव:-ईशिन्+तल+टाप, वल ! कंची, 2. ईंट 3. इषीका। वा] सर्वोपरिता, महत्त्व, शिव की आठ सिद्धियों में ईष्मः,-व्व:--- इष्मः, इष्वः ।। एक, दे० 'अणिमन्' या 'सिद्धिः' ।। ईह (भ्वा० आ०) (ईहते, ईहित) 1. कामना करना, ईश्वर (वि.) (स्त्री०--रा-री) 1. शक्तिसम्पन्न, चाहना, सोचना (कर्म० या तुमुन् के साथ )-भग० योग्य, समर्थ ('तुमुन्' के साथ) कु०४।११, 2. धनाढ्य, १६।१२, भट्टि. ११११ 2. प्राप्त करने का प्रयत्न दौलतमंद,-र: 1. मालिक, स्वामी-ईश्वरं लोको- करना 3. लक्ष्य बनाना, प्रयत्न करना, प्रयास करना, ऽर्थतः सेवते-मद्रा० १३१४ 2. राजा, राजकुमार, कोशिश करना,--माधुर्य मधबिन्दुना रचयितुं क्षाराशासक 3. धनाढ्य पा बड़ा आदमी--मा प्रयच्छेश्वरे । म्बुधेरीहते-भर्त० २।६, याज्ञ० २।११६, सम् --1. धनम् हि. १२१५, तु० 'उलटे बांस बरेली को' 4.! कामना करना, इच्छा करना, 2. करने का प्रयत्न पति-कि० ९:३९, 5. परमेश्वर 6. शिव-विक्रम करना, कोशिश करना प्रियाणि वाञ्छत्यसभिः समी २१ 7. कामदेव,-रा--री दुर्गा । सम-निषेधः हितूम-कि० १।१९। परमात्मा के अस्तित्व को न मानना, नास्तिकता, [ईह+अ] 1. कामना, इच्छा 2. प्रयत्न, प्रयास, चेष्टा --पूजक (वि०) पुण्यात्मा, भक्त,-सद्मन् (नपुं०) मनु० ९।२०५ । सम० --मुगः 1. भेडिया 2. नाटक मन्दिर,--सभम् राजकीय दरबार या सभा। का एक खंड जिसमें ४ अंक होते है, परिभाषा के लिए ईष (म्वा० उभ०) (ईषति-ते, ईषित) 1. उड़ जाना 2.! दे०, सा० द० ५१८,-वृकः भेड़िया । देखना, नजर डालना 3. देना 4. मार डालना। ईहित (भू० क० कृ०) [ ईह, + क्त ] चाहा हुआ, खोजा विः [ई+क] आश्विन मास, तु० 'ई' । हुआ, प्रयत्न किया हुआ.--तम् 1. कामना, इच्छा 2. बित् (अव्य०) [ईष् +अति ] 1. जरा, कुछ सीमा तक, । प्रयत्न, प्रयास, 3. अध्यवसाय, कार्य, कृत्य-कि० १०२२॥ अत+] शिव का नाम, ओम् के तीन अक्षरों में मुख्य रूप से अथ (अथो),न (नो) और किम (अ--उ+म) में से दूसरा -दे० अ, -(अन्य) 1. (किमु) के साथ प्रयुक्त होता है, दे० शब्दों को। पूरक के रूप में काम में आने वाला अव्यय-उ उमेशः । उक्त (भू० क० कृ.) [वच्+क्त ] 1. कहा हुआ, बोला --सिद्धा. 2. निम्न अर्थों को प्रकट करने वाला विस्म- हुआ 2. कथित, बताया हुआ (विप० अनुमित या यादिद्योतक अव्यय, (क) पुकार,-उ मेति मात्रा तपसो संभावित) 3. बोला हुआ, संबोधित-असावनुक्तोनिषिद्धा पश्चादुमाख्यां सुमुखी बगाम-कु० ११२६(ख) ऽपि सहाय एव-कु. ३।२६ 4. वर्णन किया गया, कोष (ग) अनुकम्पा (घ) आदेश (ङ) स्वीकृति (च) बयान किया हुआ,–क्तम् भाषण, शब्दसमुच्चय, प्रश्न वाचकता या केवल (छ) पूरणार्थक; श्रेण्य साहित्य | वाक्य । सम--अनुक्त कहा और बिना कहा आ, For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १८१ ) --- उपसंहारः संक्षिप्त वर्णन, सारांश, इतिश्री, निर्वाह: कही बात का निर्वाह करना, पुंस्क: ऐसा शब्द ( स्त्री० या नपुं० ) जो पुं० भी हो, और जिसका पुं० से भिन्न अर्थ लिङ्ग की भावना से ही प्रकट होता है, प्रत्युक्त भाषण और उत्तर, व्याख्यान । उक्ति: ( स्त्री० ) [ वच् + वितन् ] 1. भाषण, अभिव्यक्ति, वक्तव्य - उक्तिरर्थान्तरन्यासः स्यात्सामान्य विशेषयोः, चन्द्रा० ५ १२०, मनु० ८।१०४ 2. वाक्य 3. अभिव्यक्त करने की शक्ति, शब्द की अभिव्यञ्जनाशक्ति - जैसा कि एकयोक्त्या पुष्पवंती दिवाकरनिशाकरो अमर० । उक्थम् [ वच्+थक् ] 1. कथन, वाक्य, स्तोत्र 2 स्तुति, प्रशंसा 3. सामवेद । - उक्ष (भ्वा० उभ० ) ( उक्षति, उक्षित) 1. छिड़कना, गीला करना, तर करना, बरसाना औक्षन् शोणितमम्भोदा: -- भट्टि० १७१९, ३५, ०५/३०, रघु० ११०५, २०, कु० ११५४ 2. निकालना, विकीर्ण करना, अभि, पवित्र तथा अभिमंत्रित जल छिड़कना, --- शिरसि शकुन्तलामभ्युक्ष्य श० ४, परि-इधरउधर छिड़कना, प्र, पवित्र जल के छींटे देकर अभिमंत्रित करना, - प्राणात्यये तथा श्राद्धे प्रांक्षितं द्विजकाम्यया - याज्ञ० १।१७९ मनु० ५।२७, संप्र--, जल के छींटों से अभिमंत्रित करना - याज्ञ० १।२४ । उक्षणम् [ उक्ष् + ल्युट् ] 1. छिड़काव 2. छींटे देकर अभिमंत्रित करना - वसिष्ठ मन्त्रोक्षणजात् प्रभावात् - रघु० ५।२७ । उभन् (पुं० ) [ उक्ष + कनिन् । बैल या साँड़ कु० ७।७० ( कुछ समासों में उक्षन् का 'उक्ष' रह जाता है -महोक्षः, वृद्धांक्ष: आदि) । सम० --तरः छोटा बैल तु० वत्सतर । उखु, उङख (भ्वा० पर० ) ( ओखति, उद्धति, ओखित, उखित) जाना, हिलना-डुलना । उखा [ उग्व् + क+टाप् ] पतीली, डेगची । उरूप (वि० ) [ उखायां संस्कृतम् यत् ] 1. पतीली में उबाला हुआ – शूल्यमुख्यं च होमवान् भट्टि० ४।९ । उप्र ( वि० ) [ उच् + रन् गच्चान्तादेशः ] 1. भीषण, क्रूर, हिम्र, जंगली ( दृष्टि आदि से ) दर्शन 2 प्रवल, डरावना, भयानक, भयंकर सिंहनिपातमुग्रम् — रघु० ३।६०, मनु० ६।७५, १२१७५, 3. दशक्तिशाली, मजबूत दारुण, तीव्र उग्र तपो वेलाम्-श० ३, अत्यंत गर्म उग्रशोकाम् - मेघ० ११३, अने० पा० 4. तीक्ष्ण, प्रचण्ड, गर्म 5. ऊंचा, भद्र, ग्रः 1. शिव या रुद्र 2. वर्णसंकर जाति क्षत्रिय पिता और शद्र माता की संतान 3. केरल देश (वर्तमान मलाबार ) 4. रौद्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रस । सम० - गंध (वि०) तीक्ष्ण गंध वाला - धः ) 1. चम्पक वृक्ष 2. लहसुन, – धारिणी, - चंडा दुर्गा देवी, जाति (वि०) नीच वंश में उत्पन्न, जारज, – दर्शनरूप (वि०) घोर दर्शन वाला, भयानक दृष्टि वाला, धन्वन् (वि०) मजबूत धनुष को धारण करने वाला; (पुं०) शिव, इन्द्र, - शेखरा शिव की चोटी, गंगा, सेन: मथुरा का राजा और कंस का पिता (कंस ने अपने पिता को गद्दी से उतार कर कारागार में डाला था, परन्तु कृष्ण ने कंस को मार कर उसके पिता को कारागार से मुक्त कर सिहासनासीन किया) । उग्रपश्य (वि० ) [ उग्र + दृश् + खश्, मुमागमः ] भीषण दृष्टिवाला, डरावना, विकराल । उच्च् (दिवा० पर० ) (उच्यति, उचित या उग्र - अधिकांश में भू० क० कृ० के रूप में प्रयुक्त ) 1. संचय करना, एकत्र करना, 2. शौकीन होना, प्रसन्नता अनुभव करना 3. उचित या योग्य होना, अभ्यस्त होना । उचित (भू० क० कृ० ) [ उच् +क्त]1. योग्य, ठीक, सही उपयुक्त - उचितस्तदुपालम्भ: - उत्तर० ३, प्रायः तुमुन् के साथ - उचितं न ते मङ्गलकाले रोदितुम् ०४ 2. प्रचलित प्रथानुरूप, उचितेषु करणीयेषु - श० ४ 3. अभ्यस्त, प्रचलित (समास में ) नीवारभागधेयोचितः --- रघु० १५० २२५, ३५४, ६०, ११९, कि० १ ३४, 4. प्रशंसनीय । उच्च ( वि० ) [ उद् + चित् + ड] 1. ( सभी बातों में ) ऊँचा, I लम्बा - क्षितिधारणोच्चम् कु० ७/६३, उन्नत, उत्कृष्ट (परिवार आदि ) 2. ऊँचा, ऊँची आवाज वालाउच्चाः पक्षिगणा: - शि० ४।१८ ३. तीव्र, दारुण, घोर सम० - तरुः नारियल का पेड़, तालः ऊंचा संगीत, नृत्य आदि, -नीच (वि०) 1. ऊँचा नीचा 2. विविष, -- ललाटा, – टिका, ऊँचे मस्तक वाली स्त्री, संश्रय ( वि० ) ऊँचा पद ग्रहण करने वाला ( नक्षत्रादिक) रघु० ३।१३, दे० इस पर मल्लि० । उच्चकै : ( अव्य० ) [ उच्चैस् + अकच् ] 1. ऊँचा, ऊँचाई पर, उत्तुंग, ( आलं० भी ) - श्रितोदयाद्रेरभिसायमुच्चकैः - शि० १।१६, १६।४६ २. ऊँचे स्वर वाला । उच्चक्षुस् ( वि० ) [ ब० स० ] 1. ऊपर को आँखें किए हुए, ऊपर की ओर देखते हुए 2. जिसकी आँखें निकाल दी गई हों, अंबा | उच्चण्ड (वि० ) [ प्रा० स०] 1. भीषण, भयानक, उम्र 2. फुर्तीला 3. ऊँची आवाज वाला 4. क्रोधी, चिड़चिड़ा | उच्चन्द्रः ( उच्छिष्ट: चंद्रो यत्र - अत्या० स० ) रात का अन्तिम पहर । उच्चयः [ उद् + चि + अच्] 1 संग्रह, राशि, समुदाय For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८२ ) --रूपोच्चयेन---श० २।९, तु० 'शिलोच्चयः' भी 2. | उच्छ (तुदा० पर०) (उच्छति, उष्ट) 1. बांधना 2. पूरा एकत्र करना, संचय करना (फल आदि)-पूष्पोच्चयं । करना 3. छोड़ देना, त्याग देना। नाटयति-श० ४, कु० ३।६१, 3. स्त्री के ओढ़ने की | उच्छन्न (वि.) [उद्+छद्+क्त] 1. नष्ट किया हुआ, गांठ 4. समृद्धि, अभ्युदय । उखाड़ा हुआ (कदाचित् 'उत्सन्न') दे० उच्छिन्न गाचरणम् [ उद्+च+ ल्युट् ] 1. ऊपर या बाहर जाना | 2. लप्त (रचना आदि)। 2. उच्चारण करना। उच्छलत् (शत्रन्त-वि०) [उद्+शल+शत] 1. चमकता उन्चल (वि०) [उद्+चल्+अच् ] हिलने-डुलने वाला, हुआ, इधर-उधर हिलता-डुलता हुआ 2. हिलता-डुलता, --लम् मन। चलता-फिरता 3. ऊपर को उड़ता हुआ, ऊपर ऊंचाई उज्वलनम् [ उद्+चल्+ल्युट् ] चले जाना, कूच करना। पर जाता हुआ। उच्चलित (भू० क० कृ०) [उद्+चल+क्त ] चलने के उच्छलनम् [उद्+शल+ ल्युट्] ऊपर को जाना, सरकना लिए तत्पर, प्रस्थान करने वाला-रघु० २।६ । या उड़ना। उच्चाहनम् [उद्+च+णि+ल्यूट] 1. हांक कर | उच्छादनम् [उद्+छ+णिच+ल्युट] 1. चादर, ढकना बाहर करना, मिकाल देना 2. वियोग 3. दूर हटाना, 2. तेल मलना, लेप या उबटन से शरीर पोतना । (पौषे का) उन्मूलन 4. एक प्रकार का जादू-टोना 5. | उच्छासन (वि०) [उत्क्रान्तः शासनम्] नियंत्रण में न रहने जादूमंत्र चलाना, शत्रु का नाश करना। वाला, निरंकुश, उदंड। उच्चारः [उ+चर+णिच्+घ ] 1. कथन, उच्चा- | उच्छास्त्र, वतिन् [उद्गतः शास्त्रात्-ग० स०] 1. शास्त्र रण, उद्घोषणा 2. विष्ठा, गोबर-मातुरुच्चार एव । (नागरिक और धार्मिक--विधि-ग्रन्थ) के विरुद्ध स:-हि० प्र० १६, मनु० ४।५० 3. छोड़ना। आचरण करने वाला 2. विधि-ग्रंथों का उल्लंघन करने उच्चारणम् [उद्+च+णिच् + ल्युट्] 1. बोलना, वाला। कथन करना,-वाच:-शिक्षा० २, वेद 2. उद्घोषणा, उच्छिख (वि०) [उद्गता शिखा यस्य] 1. शिखा युक्त उदीरणा। 2. चमकीला, जिसकी ज्वाला ऊपर की ओर जा रही उच्चावच (वि०) [ मयुरव्यंसकादिगण-उदक च अवाक हो-रघु० १६५८७ । च] 1. ऊँचा,-नीचा, अनियमित-मनु० ६७३ 2. उच्छित्तिः (स्त्री०) [उद्+छिद्+क्तिन्] मूलोच्छेदन, विविध, विभिन्न-मनु० ११३८, शि० ४।४६ । विनाश । कोसल-रत्ना०४। उच्चूम-ल. [उद्गता चूडा यस्य-ब० स०] ध्वजा पर उच्छिन्न (भू० क० कृ०) [उद्+छिद्+क्त] 1. मूलोच्छिन्न, फहरान वाला झंडा, ध्वज। विनष्ट, उखाड़ा हुआ--उच्छिन्नाश्रयकातरेव कुलटा उच्चः (अव्य०) [उद्+चि+डैस् ] 1. उत्तुंग, ऊँचा, | गोत्रान्तरं श्रीर्गता-मुद्रा०६५ 2. नीच, अधम । ऊँचाई पर, ऊपर (विप० नीचं-चैः)-विपधुच्चः | उच्छिरस् (वि.) [उन्नतं शिरोऽस्य-ब० स०] 1. ऊँची स्थेयम्..-भर्तृ० २।२८, उच्चरुदात्त:-पा० ११२।२९ गर्दन वाला (शा०) 2. उन्नत 3. (अतः) कुलीन, 2. ऊँची आवाज से, कोलाहलपूर्वक 3. प्रबलता से, श्रेष्ठ, महानुभाव-शैलात्मजापि पितुरुच्छिरसोड अत्यन्त, अत्यधिक-विदधति भयमच्चैर्वीक्ष्यमाणा भिलाषम्-कु० ३१७५, ६७०।। बनान्ता:-रघु० ११२२ 4. (समास में विशेषण के रूप | उच्छिलीन्ध्र (वि.)[ब० स०] कुकुरमुत्ता(साँप की छतरी) में प्रयुक्त) (क) उन्नत, कुलीन-जनोऽयमुच्चैः ।। से भरा स्थान,-कर्तुं यच्च प्रभवति महीमुच्छिलीन्ध्रामपदलनोत्सुक:-कु० ५।६४, श० ४।१५, रत्ना०४।। वन्ध्याम् मेघ० ११,-ध्रम् कुकुरमुता, साँप की छतरी। १९ (ख) पूज्य, प्रमुख, प्रसिद्ध-उच्चरुच्चैःश्रवास्तेन | उच्छिष्ट (भू० क० कृ०) [उत्+शिष् + क्त] 1. शेष, कु० २।४७ । सम०-घुष्टम् 1. हंगामा, हल्लागुल्ला, बचा हुआ, 2. अस्वीकृत, त्यक्त--रघु० १२०१५ गलगपाड़ा 2. ऊँची आवाज में की गई घोषणा,-वादः 3. बासी, कल्पना, पुराने विचार या आविष्कार, बड़ी प्रशंसा, शिरस् (वि.) उदाराशय, महानुभाव -ष्टम् 1. जूठन, खंड, अवशिष्ट (विशेषत: यज्ञ - कु. १०२२,--श्रवस्,-स (वि.) 1. बड़े कानों या आहार का)-नोच्छिष्टं कस्यचिद्दद्यात-मनु० २।५६ । वाला 2. बहरा; (पुं०) इन्द्र का घोड़ा (जो 'समुद्र- सम०-अन्नम् जूठन, भुक्तावशेष--मोवनम् मोम । मन्थन से प्राप्त' कहा जाता है)। उच्छीर्षकम् [उत्थापितं शीर्ष यस्मिन] 1. तकिया 2. सिर । उच्चस्तमाम् (अव्य०) [उच्चस्+तमप्+आम्] 1. अत्यंत उच्छुष्क (वि०) [उद्+शुष्+क्त तस्य कः] सूखा. मुझया हुआ। उच्चस्तरम्---राम् (अव्य०) [उच्चस्+तरप्+आम् च] उच्छून (दि.) [उद्+श्वि+क्त] 1. सूजा हुआ -प्रबल 1. ऊँचे स्वर से 2. अत्यन्त ऊँचा-कु. ७१६८। । रुदितोच्छुननेत्रं प्रियायाः-मेघ० ८६, उत्तानोच्छून ऊंचा 2. बहुत ऊँचे स्वर उच्चस+तरप्+आम् च] | उदिताच्छ्ननेत्रं प्रियायाः मेघ For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मण्डूकपाटितोदरसंनिभम्-काव्य० ७, अनवरतरुदितो- 2. गहरी सांस लेने वाला, आह भरने वाला 3. मिटने च्छ्नताम्रदृष्टम्-दश० ९५ 2. मोटा 3. ऊँचा, उत्तुंग। वाला, मुाने वाला। उच्छृङ्खल (वि.) [उद्गतः शृङ्खलात:--ब० स०] 1. बेल- उज्जय (पि) नी [प्रा० स०] एक नगर का नाम, मालवा गाम, अनियंत्रित, निरंकुश-वाचा-पंच० ३, अन्य- प्रदेश में वर्तमान उज्जैन, हिन्दुओं की सात पुण्यदुच्छङ्कलं सत्त्वमन्यच्छास्त्रनियन्त्रितम्-शि० २१६२ नगरियों में से एक, (तु० अवन्ति)-सौधोत्संङ्गप्रणय2. स्वेच्छाचारी 3. अनियमित, क्रमहीन ।। विमुखो मा स्म भूरुज्जयिन्या:---- मेघ० २७ । उच्छेदः - दनम् [उद्+छिद्-+-घा, ल्युट वा] 1. काट | उज्जासनम् [उद्+जस्+णिच्+ल्युट् ] मारना, हत्या कर फेंक देना 2. मूलोच्छेदन, उखाड़ देना, काम तमाम करना- चौरस्योज्जासनम्--सिद्धा। कर देना- सतां भवोच्छेदकरः पिता ते-रघु० १४१७४ | उज्जिहान (वि.) [ उद्+हा+शानच् ] ऊपर जाता 3. अपच्छेदन। हुआ, (सूर्य की भांति) उदय होता हमा-उज्जिहानस्य उच्छेषः—षणम् [उद्+शिष्+घञ, ल्युट वा] अवशेष । भानो:----मुद्रा० ४।२१ 2. बिदा होता हुमा, बाहर उच्छोषण (वि०) [उद्+शुष+णिच्+ल्युट] 1 सुखाने जाता हुआ, जीवितां वराकीम्-मा० १० । वाला, मी देने वाला यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रि- उज्जम्भ (वि.) [ब. स.] 1. फंक भरा हुआ, फुलाया याणाम्-भग० २६८ 2. जलना,–णम् सुखा देना, हुआ-उज्जम्भवदनाम्भोजा भिनत्त्यङ्गानि सङ्गना-सा० कुम्हलाना, मुझाना। द० 2. दरारदार, खुला हुआ,-भः 1. विवर, फुलाव, उच्छ (च्छा) यः [ उद्+श्रि+अच्+घञ वा ] 1. फूंक मारना 2. तोड़ कर टुकड़े करना, जुदा२ करना (तारों आदि का) उदय होना 2. उठाना, उत्थापन | उज्जम्भा-भणम् [ उद्+जम्भ+अ, ल्युट वा] 1. जम्हाई 3. ऊँचाई, उत्सेध (शारीरिक और नैतिक)-शृङ्गोच्छायः लेना 2. मुंह बाना, 3. फैलाना, वृद्धि । कुमुदविशदैयों वितत्य स्थितः खम्-मेघ० ६०, कि० उज्ज्य (वि.) [ उद्गता ज्या यस्य-ब० स०] वह धनु७।२७, ८।२३, 4. विकास, वद्धि, गहनता, गण -कि. घर जिसके धनुष की डोरी खुली हुई हो। ८।२१ नीतोच्छायम्-५१३१, 5. घमंड । उज्ज्वल (वि.)[उद्+ज्वल+अच] 1. उजला, चमकीला, उच्छयणम् [उद्+श्रि+ल्युट] उन्नयन, उत्थापन । कांतियुक्त-उज्ज्वलकपोल मखम-शि० ९८४८2. उच्छित (भू० क० कृ०)उद्+श्रि+क्त] 1. उठाया हुआ, प्रिय, सुन्दर-सर्गो निसर्गोज्ज्वल:-० ३१३६ 3. उत्थापित 2. ऊपर गया हुआ, उदगत 3. ऊँचा, लंबा, फूंक भरा हुआ, फुलाया हुआ 4. अनियंत्रित,-ल उत्तुंग, उन्नत 4. पैदा किया हआ, जात 5. वर्धमान, प्रेम, राग,-लम् सोना। समृद्ध, बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त 6. अभिमानी। उज्ज्वलनम् [उद्+ज्वल-+ ल्युट्] 1. जलना, चमकना उच्छितिः =उच्छ्रयः 2. कान्ति, दीप्ति । उच्छ्वसनम् [उद् +श्वस्-+ ल्युट] 1. सांस लेना, आह | उज्म (तुदा० पर०) (उज्झति, उज्झित) 1. त्यागना, भरना 2. गहरी साँस लेना। छोड़ना, तिलांजलि देना-सपदि विगतनिद्रस्तल्पमुजमांउच्छ्वसित (भू. क. कृ०) [उद्+श्वस्+क्त ] चकार-रघु० ५१७५, १।४०, ५१ आतपायोजिमतं (कर्तरि प्रयोग) 1. गहरी सांस लेना, सांस लेना 2. धान्यम्-महा०, धूप में डाला हुआ 2. टालना, बचना मह से भाप बाहर निकालना 3. पूरा खिला हुआ, -उदये मदवाच्यमुज्झता- रघु०८1८४ 3. उत्सर्जन विवृत 4. तरोताजा-मेघ० ४२, 5. आश्वसित-उत्क- करना, बाहर निकालना- अविरतोज्झितवारिविपाठोच्छवसितहृदया-मेघ० १००,–तम 1. सांस, प्राण ण्डुभिः-कि० ५।६, शि० ४।६३। -सा कुलपतेरुच्छ्वसितमिव-श० ३, 2. प्रफुल्ल, उज्मकः [ उज्झ्+ण्वुल ] 1. बादल 2. भक्त । फंक मारना 3. सांस बाहर निकालना-रघु०८।३, 4. उसनम् [ उज्झ्+ल्युट ] त्यागना, दूर करना, छोड़ना। गहरी सांस लेना, उभार, धड़कन ५. शरीर में रहने उञ्छ (तुदा० पर०) (उञ्छति, उंञ्छित) बालें इकट्ठी वाले पाँच प्राण। करना, बीनना (एक-एक करके)-शिलानप्युञ्छतः उच्छवासः [ उद्+श्वस्+घञ ] 1. सांस, सांस अन्दर -मनु० ३।१०० खींचना, सांस बाहर निकालना-मखोच्छवासगन्धम् उञ्छः [उञ्छ-घा ] बालें इकट्ठी करना या अनाज के —विक्रम० ४।२२, ऋतु० ११३, मेघ० १०२ 2. प्राणों दाने बीनना, तान्युञ्छषष्ठाङ्कितसकतानि-रघु० ५।८, का आश्रय 3. आह भरना 4. आश्वासन, प्रोत्साहन मनु०१०१११२,---छम् बाले इकट्ठी करना। सम० ----अमरु ११, 5. फंकनी 6. पुस्तक का खंड या भाग -वृत्ति,-शील (वि०) जो शिलोंछन से अपनी (जैसे हर्षचरित का) तु० अध्याय । जीविका चलाता है, खेत में बचे अनाज के कणों कों उच्छवासिन (वि.) [उच्छ्वास-+-इनि] 1. सांस लेने वाला चुन कर पेट भरने वाला। For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८४ ) एछनम् [उञ्छ-+ ल्युट ] खेत में पड़े अनाज के दानों को। बार तो 'आहो' 'आहोस्वित' या 'स्वित्' को 'उत' एकत्र करना। से जोड़ दिया जाता है (ग) साहचर्य, संयोग ('और' उटम् [उ+टक ] 1. पत्ता 2. घास। सम०-जः- जम् । 'भी' शब्दों द्वारा समुच्चयात्मकता का बोध कराने --(उटेभ्यो जायते) झोंपड़ी, कुटिया, आश्रम वाला)-उत्त बलवानुताबल: (घ) प्रश्नवाचकता-- (पर्णशाला)-उटजद्वारविरूढं नीवारबलिं विलोक- -उत दण्ड: पतिष्यति 2. प्रति-इसके विपरीत, दूसरी यतः-श० ४।२०, रघु० ११५०, ५२। ओर, बल्कि- सामवादाः सकोपस्य तस्य प्रत्युत उडुः (स्त्री०) उडु (नपुं०) [ उड्+कु बा०] 1, नक्षत्र, दीपका:- शि० १५५ 3. किम् ...,कितना अधिक, तारा-इन्दुप्रकाशांन्तरितोडुतुल्या:-रकु० १६१६५, 2. कितना कम दे० किम्, उत-उत या-या-एकमेव दरं जल (केवल नपुं० में) । सम०--चक्रम-राशि- पुसामृत राज्यमुताश्रमः -- गण । चक्र,-पः,पम् लट्ठों का बना बेड़ा,-तितीर्पर्दस्तरं | उतथ्यः (?) अंगिरा का पुत्र, तथा बृहस्पति का बड़ा मोहादुडुपेनास्मि सागरम्-रघु० ११२, केनोडुपेन भाई।-अनुजः, -अनुजन्मन् (पुं०) बृहस्पति, देवपरलोकनदी तरिष्ये-मच्छ० ८।२३ (---पः) चंद्रमा ताओं का गुरु,- तथ्यमुतथ्यानुजवज्जगादाग्रे गंदाग्रजम्---मृच्छ० ४१२४-पतिः,-राज् चन्द्रमा--जितमुडु- - शि० २।६९ । पतिना-रत्ना० ११५, रसात्मकस्योडुपतेश्च रश्मयः उत्क (वि.)[उद-स्वार्थे कन्] 1 इच्छुक, लालायित, उत्क-कु० ५२२-पथः आकाश, अन्तरिक्ष । ठित (समास में)-अद्रिसुतासमागमोत्क:-कु० ६।९५ उडम्बरः [उं शम्भुं वृणोति-उ++खच, मुम् उत्कृष्ट: मानसोत्का:-मेघ० ११, कई बार तुमुन् के साथ-शि० उम्बर:--प्रा० स० दस्य डत्वम् ] 1. गूलर का वृक्ष ४।१८, 2. विद्यमान, दुःखी, शोकान्वित 3. उन्मना । (औदुम्बर), 2. घर की देहली या ड्योढ़ी 3. हिजड़ा। उत्कञ्चुक (वि.) [ब० स०] बिना अंगिया पहने या बिना 4. एक प्रकार का कोढ़ (-रम् भी),-रम् 1. गूलर कवच धारण किये हुए। का फल 2. तांबा। उत्कट (वि.) [उद्+कटच्] 1. बड़ा, प्रशस्त-उत्तर० उड़पः-उड़पः । ४।२९ 2. शक्तिशाली, ताकतवर, भीषण 3. अत्यउड्डयनम् [ उद्+ डी+ल्युट | ऊपर उड़ना, उड़ान लेना धिक, ज्यादह-अत्युत्कटः पापपुण्यरिहव फलमश्नुते -गतो विरुत्योड्डयने निराशताम्--नं. १।१२५।। हि० १४८५, 4. भरपूर, समद्ध 5. मदिरासेवी, मदमत्त, उड्डामर (वि०) [प्रा० स०] 1 रुचिकर, श्रेष्ठ 2. उन्मत, मदोत्कट 6. श्रेष्ठ, उत्तम 7. विषम,-ट: 1. प्रबल, भयावह ---उड्डामरव्यस्तविस्तारिदो:खण्डपर्या- हाथी के मस्तक से बहनेवाला मद 2. मदयुक्त हाथी। सितक्ष्माधरम् --मा० २।२३। उत्कण्ठ (वि.) [उन्नतः कण्ठो यस्य] 1. गर्दन ऊपर को उड्डीन (भू० क० कृ०) [ उद्+-डी---क्त ] उड़ा हुआ, उठाये हए, (अतः) तत्पर, तैयार, करने के लिए ऊपर उड़ता हुआ,-नम् 1. ऊपर उड़ना, उड़ान लेना उत्सुक (समास में)- आज्ञापनोत्कण्ठः . श. २, 2. पक्षियों की एक विशेष उड़ान । रथस्वनोत्कण्ठमगे वाल्मीकीये तपोवने-रघु०१५।११ उड्डीयनम् [ उड्ड: स इव आचरति-क्यङ, उड्डीय 2. (अत:) चिन्तातुर, उत्सुक,-ठः,ठा संभोग करने +ल्युट ] उड़ान। की एक रीति । उड्डीशः [ उद्+डी+क्विपु-उड्डी तस्य ईशः ] शिव। उत्कण्ठा [उद+कण्ठ-+अ+टाप्] 1. चिन्तातुरता, बचनीउड़ः [उड+रक] देश का नाम, वर्तमान उड़ीसा, दे० ओड्र। यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया--श० उण्डेरकः ? ] आटे का लडड, गोला, रोटी-तथैवोंडेरक ४।५, 2. प्रिय वस्तु या प्रियतम पाने की लालसा स्रजः--याज्ञ० १११२८। । -दृष्टि रविकं सोत्कण्ठमुदीक्षते--अमरु २४, 3. खेद, उत् (अव्य०) [ उ+क्विपू] (क) सन्देह (ख) प्रश्न शोक, किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का लप्त हो वाचकता (ग) सोचविचार और (घ) तीव्रता। जाना- गाढोत्कण्ठा ..मा० १२१५, मेघ० ८३ ।। उत (अव्य०)[उ-+ क्त] 1. निम्नांकित भावनाओं को अभि- उत्कण्ठित (भू० क० कृ०)[उद्+कण्ठ+क्त] 1. चिन्ता व्यक्त करने वाला अव्यय -(क)सन्देह, अनिश्चितता तुर, व्यथित होनेवाला, शोकान्वित 2. किसी प्रिय अनुमान (या),-तत्किमयमातपदोषः स्यादुत यथा में वस्तु या व्यक्ति के लिए लालायित,–ता अपने अनुमनसि वर्तते----श० ३, स्थाणुरयमत पुरुषः- गण. पस्थित प्रेमी या पति से मिलने की प्रबल लालसा (ख) विकल्प, प्राय: 'कि' का सहवर्ती (या),-किमिदं रखने वाली नायिका, आठ नायिकाओं में से एकगभिरुपदिष्टमुत धर्मशास्त्रेषु पठितमत मोक्षप्राप्ति- सा० द० १२१ में दी गई परिभाषा--आगन्तुं कृतयुक्तिरियम्-का० १५५, कु०६।२३, 'उत' के स्थान चित्तोऽपि देवान्नायाति यत्प्रियः, तदनागमदुःखार्ता विरहोत्कण्ठिता तु सा । ला (या), पम्- काशास्त्रषु For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८५ ) उत्कन्धर (वि.) [उन्नतः कन्धरोऽस्य-ब० स० ] गर्दन । उत्किर (वि.) [उद्+क+श हवा में उड़ता हुआ, ऊपर ऊपर उठाये हुए, उग्रीव-उत्कन्धरं दारुकमित्युवाच- को बिखरता हुआ, धारण करता हुआ-कु० ५।२६, शि० ४।१८। ६५, रघु० ११३८ । उत्कम्प (वि०) [ब० स०] कांपता हुआ, -4:,—पनम् | उत्कीर्तनम् [उद्+क+ल्युट्] 1. प्रशंसा करना, कीर्तिगान कांपना, कंपकंपी, क्षोभ-किमधिकत्रासोत्कम्पं दिशः करना 2. घोषणा करना। समुदीक्षसे --अमरु २८, मालवि० ७२ । उस्कुटम् [उन्नतः कुटो यत्र ब० स०] ऊपर को मुंह करके उत्करः [उद्+कृ-अप] 1. ढेर, समुच्चय 2. अम्बर, लेटना या सोना, चित लेटना । चट्टा 3. मलबा -- मृच्छ ० ३ । उत्कुणः [ उत्+कुण्+क] 1. खटमल 2. जूं। उत्कर्करः [ब० स० एक प्रकार का वाद्य-उपकरण, बाजा। उत्कुल (वि.) [उत्क्रान्तः कुलात् -अत्या० स०] पतित, उत्कर्तनम् [उद्+कृत् + ल्युट्] 1. काट देना, फाड़ देना कुल को अपमानित करने वाला-यदि यथा वदति ____ 2. उखाड़ देना, मूलोच्छेदन। क्षितिपस्तथा, त्वमसि कि पितुरुत्कुलया त्वयाउत्कर्षः [उद्+कृष्-+-घा] 1. ऊपर को खींचना श० ५।२७ । 2. उन्नति, प्रमुखता, उदय, समृद्धि-निनीषुः कुलमुत्क- । उत्कजः [प्रा० स०] (कोयल की) कूक । र्षम् --मनु० ४।२४४,९।२४ 3. वृद्धि, बहुतायत, | उस्कूटः [उन्नतं कूटमस्य-ब० स०] छाता, छतरी। अधिकता-पंचानामपि भूतानामुत्कर्ष पुपुषुर्गुणा:-रघु० उत्कूर्दनम् [उद्-+-कू+ल्युट्] कूदना, ऊपर को उछलना । ४।११ 4. उत्कृष्टता, सर्वोपरि गुण, यश -उत्कर्षः | उत्कल (वि.) [उत्क्रान्तः कूलात्-अत्या० स०] किनारे स च घन्विनां यदिषवः सिध्यन्ति लक्ष्ये चले-श. से बाहर निकल कर बहने वाला। २, 5. अहंमन्यता, शेखी 6. प्रसन्नता। उत्कूलित (वि०) [उद्+कूल+क्त ] किनारे तक पहुँउत्कर्षणम् [उद्-+-कृष्-+ल्युट्] 1. ऊपर खींचना, ऊपर चने वाला-शि० ३७० । लेना, ऊपर करना। उत्कृष्ट (भू. क० कृ०) [उद्+कृष्+क्त ] 1. उखाड़ा उत्कल: [उद--कल-+-अच्] 1. एक देश का नाम, वर्तमान हुआ, उठाया हुआ, उन्नत 2. श्रेष्ठ, प्रमुख, उत्तम, उड़ीसा या उस देश के निवासी (ब०व०), जगन्नाथ- सर्वोच्च -मनु० ५।१६३, ८१२८१ बल-पंच. प्रान्तदेश उत्कल: परिकीर्तितः-दे० 'ओड़ उत्कला- ३।३६, बलवत्तर 3. जोता हुआ, हल चलाया हुआ। दर्शित पथः – रघु० ४।३८ 2. बहेलिया, चिड़ीमार | उत्कोचः [ उत्कुच्+घ ] रिश्वत- उत्कोचमिव ददती 3. कुली। -का० २३२ याज्ञ. १२३३८ । उत्कलाप (वि०) [ब० स०] पूछ फैलाये हुए और सीधी उत्कोचकः [ उत्कोच्+कन् ] 1. घूस, रिश्वत 2. (वि०) उठाये हुए - रघु० १६।६४ । [ उद्+कुच्+ण्वुल् ] रिश्वतखोर, घूस लेने वाला उत्कलिका [ उद् ।-कल --वुन् ] 1. चिन्तातुरता, बेचैनी --मनु० ९।२५८। ---जाता नोत्कलिका-अमरु ७८, 2. लालसा करना, उत्क्रमः [उद्+क्रम्+घञ ] 1. ऊपर जाना, बाहर खेद प्रकाश करना, किसी वस्तु या व्यक्ति का लप्त निकलना, प्रस्थान 2. क्रमोन्नति 3. विचलन, अतिहो जाना 3. काम क्रीडा, हेला, 4. कली 5. तरंग क्रमण, उल्लंघन। --क्षुभितमुत्कलिकातरलं मनः- तरंगों द्वारा क्षुब्ध- उत्क्रमणम् [उद्+क्रम्-+ल्यद ] 1. ऊपर जाना, बाहर मा०३।१०, (यहाँ स्वयं 'उत्कलिका' का अर्थ 'चिन्ता- निकलना, प्रस्थान 2. चढ़ाई 3. पीछे छोड़ देना, आगे तुरता है) शि० ३१७०। सम० -प्रायम् गद्यरचना बढ़ जाना 4. (शरीर में से) आत्मा का पलायन का एक प्रकार जिसमें समास बहत हों तथा अर्थात् मृत्यु-मन्० ६/६३ । कठोर वर्ण हों-भवेदुत्कलिकाप्रायं समासाढ्यं दृढ़ा- | उत्क्रान्तिः (स्त्री०) [उद्+क्रम्+क्तिन् ] 1. बाहर निकक्षरम्-छं। लना, ऊपर जाना, कूच करना 2. आगे बढ़ जाना उत्कषणम् [उद्+क+ल्युट] 1. फाड़ना, ऊपर को 3. उल्लंघन, अतिक्रमण । खींचना 2. जोतना, (हल आदि), खींच कर ले जाना | उत्क्रामः [उत्+क्रम्+घञ] 1. ऊपर या बाहर जाना, --सद्यः सीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रमारुह्य मालम्-मेघ० प्रस्थान करना 2. आगे बढ़ जाना 3. उल्लंघन १७, 3. रगड़ना-भामि० ११७३ । अतिक्रमण। उत्कारः [उद्-+-+घञ] 1. अनाज फटकना 2. अनाज | उत्क्रोशः [उद+श्+अच् ] 1. हल्ला-गुल्ला, गुलगपाड़ा की ढरी लगाना 3. अनाज बोने वाला। 2. घोषणा 3. कुररी। उत्कासः, - सनम, उत्कासिका [उत्क-- अस्+अण्, ल्युट्, | उत्क्लेदः । उद्+क्लिद+घञ ] आर्द्र या तर होना। ण्वुल वा] खखारना, गले को साफ करना। । उत्क्लेशः [उद्+क्लिश्+घा] 1. उत्तेजना, अशान्ति २४ For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८६ ) 2. शरीर का ठीक हालत में न रहना 3. रोग, विशेष- मुकूट के ऊपर धारण किया जाने वाला आभूषण कर सामुद्रिक रोग। - उत्तंसानहरत वारि मूर्वजेभ्यः-शि० ८.५७ -तु० उत्क्षिप्त (भू० क. कृ.) [उद्+ क्षिप्+क्त ] | 'कत्तिंस' 2. कान का आभूषण-मा० ५.१८, 1. ऊपर को फेंका हुआ, उछाला हुआ, उठाया हुआ | भामि० २।५५। 2. पकड़ा हुआ, सहारा दिया हुआ, 3. ग्रस्त, अभिभूत, उत्तसित (वि.) [उत्तंस-+ इतच्] 1. कानों में आभूषण पहने आहत-विस्मय ----रत्ना०, 4. गिराया हुआ, ध्वस्त, हुए 2. शिखा में धारण किया हुआ---भर्त० ३।१२९ । -प्तः धतूरा, धतूरे का पौधा । उत्तट (वि०) [ उत्क्रान्तः तट-अत्या० स० ] किनारे उत्क्षिप्तिका [ उत्क्षिप्त+कन्+टाप् इत्वम् ] चन्द्रकला के बाहर निकल कर बहने वाला--रघु० ११।५८ । के आकार का कान का आभूषण । उत्तप्त (भू० क० कृ०) [ उद्+तप्+क्त ] जलाया उरक्षेपः [ उद्+क्षिप्+घम ] 1. फेंकना, उछालना हुआ, गरम किया हुआ, झुलसाया हुआ-..कनक -पक्ष्मोत्क्षेप-मेघ० ४९, 2. जो ऊपर फेंका या -का० ४३,--प्तम् सूखा माँस । उछाला जाय----बिन्दुत्क्षेपान् पिपासुः-मालवि० २।१३ | उत्तम (वि०) [ उद्+तमप् ] 1. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ (बहुधा 3. भेजना, प्रषित करना 4. वमन करना। समास में) द्विजोत्तम--इसी प्रकार सुर" आदि - प्रायेउत्क्षपक (वि.) [ उद्+क्षिप्+ण्वुल ] ऊपर फेंकने या णाधममध्यमोत्तमगुणः संसर्गतो जायते-भर्त० २।६७, उछालने वाला, उन्नत करने वाला या ऊपर उठाने 2. प्रमुख, सर्वोच्च, उच्चतम, 3. उन्नततम, मुख्य, वाला---याज्ञ० २।२७४,-क: 1. कपड़े आदि चुराने प्रधान 4. सबसे बड़ा, प्रथम, मनु० २०२४९, - मः बाला-वस्त्राद्युत्क्षिपत्यपहरतीत्युत्क्षेपक:-मिता० 2. 1. विष्णु 2. अन्तिम पुरुष (अंग्रेजी में इसी 'उत्तम भेजने वाला या आदेश देने वाला। पुरुष' को प्रथम पुरुष कहते हैं),----मा श्रेष्ठ महिला। उत्क्षेपणम् [ उद्+क्षिप् + ल्युट् ] 1. ऊपर फेंकना, उठाना सम०-- अङ्गम् शरीर का श्रेष्ठ अंग, सिर, या उछालना-अतिमात्रलोहिततलौ बाहू घटोत्क्षेपणात् -कश्चिद् द्विपत्पङ्गहतोलमाङ्ग:-रघु० ७।५१, मनु० -श० ११३० 2. वैशेषिकों के मतानुसार पाँच कर्मों में १२९३, ८।३०० कु० ७१४१, भग०११२७,---अधम से एक कर्म 'उत्क्षेपण' 3. वमन करना 4. भेजना, प्रेषित (वि०) ऊँचा-नीचा 'मध्यम, अच्छा, वीच के दर्जे करना 5. (अनाज साफ करने के लिए) छाज 6. पंखा । का, और बुरा,---अर्धः 1. बढ़िया आधा 2. अन्तिम उत्खचित (वि०) [ उद्---खच--क्त ] मिलाकर गुंथा आधा,—अहः अंतिम या बाद का दिन, अच्छा दिन, हुआ, बुना हुआ या जड़ा हुआ-कुसुमोत्खचितान् भाग्यशाली दिन, ऋणः,--ऋणिकः (उत्तमर्णः) वलीभूतः--रघु० ८।५३, १३।५४।। उधार देने वाला, साहूकार (विप० 'अधमर्ण'),--पदम् उत्खला [उद्-+ खल+अच-+टाप्] एक प्रकार का सुगन्ध । ऊँचा पद,--पु(पू) रष: 1. क्रिया के रूपों में अन्तिम उत्खात (भू० क० कृ०) [उद्+खन्+क्त] 1. खोदा हुआ, पुरुष (अंग्रेजी वाक्यरचना के अनुसार प्रथम पुरुष) 2. खोद कर निकाला हुआ 2. उद्धत, वाहर निकाला परमात्मा 3. घेष्ठ पुरुष,-श्लोक (वि.) उत्तम ख्याति हुआ-उत्तर० ३ 3. जड़ से उखाड़ा हुआ, जड़ समेत का, श्रीमान्, यशस्वी, सुविख्यात,-संग्रहः (स्त्री) तोड़ा हुआ (शा०),-लीला'-.-उत्तर० ३।१६ 4. पर-स्त्री के साथ सांठ-गांठ अर्थात् प्रेम संबंधी बातें (आलं.) (क) उन्मलित, बिल्कुल नष्ट किया हुआ, करना,-साहसः, सम् उच्चतम आर्थिक दण्ड, १००० ध्वस्त-किमुत्खातं नन्दवंशस्य ---मुद्रा० १, लवणो मधु- पण का दण्ड (कुछ औरों के मतानुसार ८००००)। रेश्वरः प्राप्तः-उत्तर० ७, (ख) पदच्युत, अधिकार उत्तमीय (वि.)[ उत्तम छ | सर्वोच्च, उच्चतम, सर्वया शक्ति से वंचित किया हुआ-फल: संवर्धयामासु श्रेष्ठ, प्रधान। रुत्खातप्रतिरोपिता:-रघु० ४१३७ (यहाँ 'उत्खात' उत्तम्भः, भनम् [ उद्+स्तम्भ--घन, ल्युट वा] 1. का अर्थ 'उन्मूलित' भी है),-तम् एक गर्त, रन्ध्र, संभालना, थामे रखना, सहारा देना . भुवनोत्तम्भनस्तऊबड़-खाबड़ भूमि । सम-केलिः (स्त्री० ) खेल म्भान्का०२६०, 2. धूनी, टेक, सहारा 3. रोकना, खेल में सींग या दांत से धरती खोदना-उत्खातोल: गिरफ्तार करना। शृंगाद्यैर्वप्रकीड़ा निगद्यते । उत्तर (वि.) [उद्+तरप्] 1. उत्तर दिशा में पैदा होने उत्खातिन् (वि०) [ उत्खात+इनि ] विषम, ऊँची-नीची, बाला, उत्तरीय (सर्व० की भांति रूप रचना) विषम (विप० 'सम')-उत्खातिनी भूमिरिति मया | 2. उच्चतर, अपेक्षाकृत ऊँचा (विप० 'अधर')-अवनरश्मिसंयमनाथस्य मन्दीकृतो वेग:-श० १ । तोतर कायम---रघु० ९।६० 3. (क) बाद का, उत्त (वि.) [ उन्+क्त ] आर्द्र, गीला । दूसरा, अनुवर्ती, उत्तरवर्ती (विप० पूर्व) पूर्व मेघः उत्तंसः [ उद्+तंस+अच् ] 1. शिखा, मोर का चूड़ा, ! --उत्तर मेघः--°मीमांसा, उत्तरार्धः आदि-राम For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १८७ चरितम् ( ख ) आगामी, उपसंहारात्मक 4. बायां (विप० दक्षिण) 5. बढ़िया, मुख्य, श्रेष्ठ 6. अपेक्षाकृत अधिक से अधिक (बहुधा संख्याओं से युक्त समस्त पदों में अन्तिम खंड के रूप में प्रयुक्त ) - षडुत्तरा विशतिः = २६, अष्टोत्तरं शतम् १०८, 7. से युक्त या सहित, पूर्ण, मुख्यतया से युक्त से अनुगत ( समास के अन्त में ) - राज्ञां तु चरितार्थता दुःखोत्तरेव श०५, अस्त्रोत्तरमीक्षितां कु० ५।६१ 8. पार किया जाना, -- रः 1. आगामी समय, भविष्यत्काल 2. विष्णु 3. शिव 4. विराट राजा का पुत्र, रा 1. उत्तर दिशा-अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा— कु० १1१ 2. एक नक्षत्र 3. विराट राजा की पुत्री और अभिमन्यु की पत्नी, - रम् 1. जवाब - प्रचक्रमे च प्रतिवक्तुमुत्तरम् -- रघु० ८|४७, - उत्तरादुत्तरं वाक्यं वदतां संप्रजायते - पंच० १६० 2. ( विधि में ) प्रतिवाद, प्रत्युक्ति 3. समास का अंतिम पद 4. ( मीमांसा में ) अधिकरण का चौथा अंग- उत्तर 5. उपसंहार 6. अवशेष, अवशिष्ट 7. अधिकता, आवश्यकता से ऊपर, दे० ऊपर उत्तर ( वि० ) 8. अवशेष, अन्तर (गणित में), - रम् ( अव्य० ) 1. ऊपर 2. बाद में - तत उत्तरम्, इत उत्तरम् आदि । सम० - अधर ( वि०) उच्चतर और निम्नतर ( आलं० भी ), – अधिकारः, रिता, --श्वम् सम्पत्ति में अधिकार, वरासत, बपौती - अधिकारिन् (पुं० ) किसी के बाद उसकी संपत्ति पाने का हक़दार अयनम् (यणम् न को ण हो गया) 1. सूर्य की ( भूमध्य रेखा से ) उत्तर की ओर गति भग० ८।२४ 2. मकर से कर्क संक्रान्ति तक का काल, - अर्धम् 1. शरीर का ऊपरी भाग 2. उत्तरी भाग 3. दूसरा आधा - उत्तरार्ध (विप० 'पूर्वार्ध' ), - अहः आगामी दिन, आभासः मिथ्या उत्तर, आशा उत्तर दिशा, " अधिपतिः पतिः कुबेर का विशेषण, आषाढा २१ वाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारों का पुंज है, आसंगः ऊपर पहनने का वस्त्र - कृतोत्तरासँग - का० ४३, शि० २।१९, कु० ५।१६, इतर ( वि० ) उत्तर से भिन्न अर्थात् दक्षिणी, ( रा ) दक्षिण दिशा, उत्तर ( वि० ) 1. अधिक और अधिक, उच्चतर और उच्चतर 2. क्रमागत लगातार वर्धनशील 'स्नेहेन दृष्टिः -- पंच० १, याज्ञ० २ १३६ ( रम् ) प्रत्युत्तर, उत्तर का उत्तर- अलमुत्तरोत्तरेण मुद्रा० ३, ओष्ठः ऊपर का होठ (उत्तरो- रौ-ष्ठः), काण्डम् रामायण का सातवाँ काण्ड, – कायः शरीर का ऊपरी भाग - रघु० ९ ६०, --कालः भविष्यत्काल, – कुरु ( पुं० ब० व० ) संसार ९ भागों में से एक, उत्तरी कुरुओं का देश, कोसला: (पुं० ब० व०) उत्तरी कोशल देश- पितुरनन्तरमुत्तरकोसलान् -- रघु० ९/१, – क्रिया अन्त्येष्टि संस्कार, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और्ध्वदेहिक श्राद्धादिक कर्म, छदः बिस्तर की चादर, बिछावन (सामान्य) - रघु० ५/६५, १७/२१, ज ( वि०) बाद में पैदा होने वाला, ज्योतिषाः (पुं० ब० ० ) उत्तरी ज्योतिष प्रदेश, — दायक (वि० ) जो आज्ञाकारी न हो, जबाब देने वाला, घृष्ट, बिश् (स्त्री०) उत्तर दिशा ° ईशः, -पाल: उत्तर दिशा का पालक या स्वामी कुबेर, पक्ष: 1. उत्तरी कक्ष 2. चांद्रमास का कृष्ण पक्ष 3. किसी विषय का द्वितीय पक्ष-- अर्थात् उत्तर, उत्तर में प्रस्तुत तर्क बहस का जवाब सिद्धान्त पक्ष (विप० 'पूर्वपक्ष' ) - प्रापयन् पवन व्याधेगिरमुत्तरपक्षताम् - शि० २।१५ 4. प्रदर्शन की गई सचाई या उपसंहार 5. अनुमान की प्रक्रिया में गौण उक्ति 6. ( मी० में) अधिकरण का पाँचवाँ अंग ( सदस्य ) - पट: 1. ऊपर पहनने का वस्त्र 2. बिछावन या उत्तरच्छद, पथः उत्तरी मार्ग, उत्तर दिशा को ले जाने वाला मार्ग, -पदम् 1. समास का अन्तिम पद 2. समास में दूसरे शब्द के साथ जोड़ा जाने वाला शब्द, - पश्चिमा उत्तर-पश्चिम दिशा, पादः कानूनी अभियोग का दूसरा भाग, दावे का जवाब, पुरुषः -- उत्तम पुरुषः, -पूर्वा उत्तर-पूर्व दिशा — प्रच्छदः रज़ाई का खोल या उच्छाल, रजाई, - प्रत्युत्तरम् 1. तर्कवितर्क, वाद-विवाद, प्रत्यारोप 2. कानूनी मुक़दमें में पक्ष - समर्थन – फ ( फा ) लानी १२ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारों का पुंज होता है, भाद्रपद्-दा २६ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे रहते हैं, -मीमांसा बाद में प्रणीत मीमांसा - वेदान्त दर्शन ( मीमांसा - जिसे प्रायः पूर्व मीमांसा कहते हैं--से भिन्न ), लक्षणम् वास्तविक उत्तर का संकेत, वयसं -स् ( नपुं०) वृद्धावस्था, जीवन का ह्रासमान काल, वस्त्रं - वासस् (नपुं० ) ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र, दुपट्टा, चोगा या अंगरखा, - वादिन् (पुं० ) प्रतिवादी, मुद्दआलह, साधक सहायक, मददगार । - उत्तरङ्ग (वि० ) [ ब० स०] 1. तरंगित, जलप्लावित, क्षुब्ध - मुद्रा० ६।३, 2. उछलती हुई लहरों वाला -- रघु० ७।३६, कु० ३।४८ । उत्तरतः, -रात (अव्य० ) [ उत्तर + तस्, आति वा ] 1. उत्तर से, उत्तर दिशा तक 2. बाईं ओर को (विप० दक्षिणतः) 3. पीछे 4. बाद में । उत्तरत्र (अव्य० ) [ उत्तर + ल् ] पश्चात्, बाद में, फिर, नीचे (किसी रचना में ), अन्तिम रूप में । उत्तराहि ( अव्य० ) [ उत्तर + आहि ] उत्तर दिशा की ओर, (अपा० के साथ) के उत्तर में, भट्टिο ८।१०७ । उत्तरीयम् – यकम् [ उत्तर + छ, वा कप् ] ऊपर पना जाने वाला वस्त्र | For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १८८ ) उतरेण ( अव्य० ) [ उत्तर + एनप् ] ( संबं०, कर्म० के साथ अथवा समास के अन्त में ) उत्तर की ओर, के उत्तर दिशा की ओर -- तत्रागारं धनपतिगृहानुत्तरेणास्मदीयम् - मेघ्० ७७ अने० पा०, मा० ९।२४ । उत्तरे: ( अव्य० ) [ उत्तर + एद्युस् ] अगले दिन, आगामी दिन, कल । उत्तर्जनम् [ उद् + तर्ज, + ल्युट् ] जबरदस्त झिड़की । उत्तान (वि० ) [ उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् ब० स० ] 1. पसारा हुआ, फैलाया हुआ, विस्तार किया हुआ, प्रसृत किया हुआ - उत्तर० ३1२३, 2. (क) चित लेटा हुआ - मा० ३, उत्तानोच्छून मंडूक पाटितोदर संनिभे - काव्य० ७, (ख) सीधा, खड़ा 3. खुला 4. स्पष्ट, निष्कपट, खरा स्वभावोत्तानहृदयं श० ५, स्पष्टवक्ता 5. नतोदर 6. छिछला । सम० - पादः एक राजा, ध्रुव का पिता, जः ध्रुव (उत्तानपाद का पुत्र), ध्रुव तारा - शय (वि० ) पीठ के बल सोता हुआ, चित लेटा हुआ-कदा उत्तानशयः पुत्रकः जनयिष्यति मे हृदयाह्लादम् - का० ६२, (यः, या) छोटा बच्चा दूध पीता या दुधमुँहा बच्चा, शिशु । उत्तापः [ उद् + तप् + अ ]1. भारी गर्मी, जलन 2. कष्ट, पीडा 3. उत्तेजना, जोश । उतारः [ उद् + तु +घञ्ञ ]1. परिवहन, वहन 2. घाट उतरना 3. तट पर लगना, तट पर उतारना 4. मुक्ति पाना 5. वमन करना । उतारकः [ उद् +तू+ णिच् + ण्वुल् ] 1. उद्धारक, बचाने वाला 2. शिव । उतारणम् [ उद् + तु + णिच् + ल्युट् ] उतारना, उद्धार करना, बचाना, - णः विष्णु । उलाल (वि० ) [ अत्या० स०]1. बड़ा, मजबूत 2. प्रबल, घोर - शि० १२।३१३. दुर्धर्ष, भयानक, भीषण- उत्तालास्त इमे गभीरपयसः पुण्याः सरित्सङ्गमाः – उत्तर० २ ३० शि० २०६८, मा० ५।११, २३, 4. दुष्कर, कठिन 5. उन्नत, उत्तुंग, ऊँचा- शि० ३१८, -ल: लंगूर । उत्तुङ्ग (वि० ) [ प्रा० स०] उच्च, ऊँचा, लंबा - करप्रेचे यामुत्तुङ्गः प्रभुशक्ति प्रथीयसीम् - शि० २२८९, हेमपीठानि २।५ । उत्तुषः [ उद्गतः तुषोऽस्मात् - ब० स०] - भूसी से पृथक् किया हुआ या भुना हुआ (लाजा) अन्न । उसेजक (वि० ) [ उद् + तिज् + णिच् + ण्वुल् ] 1. भड़काने वाला, उकसाने वाला, उद्दीपक-क्षु, काम आदि । उत्तेजनम् - ना [ उद् + तिज् + णिच् + ल्युट्, युज् वा ] 1. जोश दिलाना, भड़काना, उकसाना- समर्थः लोक -मुद्रा० ४, महावी० २, 2. ढकेलना, हाँकना 3. भेजना, प्रेषित करना 4. तेज़ करना, धार लगाना, ( शस्त्रादिक) चमकाना 5. बढ़ावा देना, प्रोत्साहन देना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तोरण (वि० ) [ ब० स०] उठी हुई या खड़ी मेहराबों आदि से सजा हुआ — उत्तोरणं राजपथं प्रपेदे - कु० ७ ६३, रघु० १४।१० । उत्तोलनम् [ उद् + तुल् + णिच् + ल्युट् ] ऊपर उठाना, उभारना । उत्त्यागः [ उद्----त्यज् + घञ्ञ ] 1. तिलांजलि देना, छोड़ देना 2. फेंकना, उछालना 3. सांसारिक वासनाओं से संन्यास | उत्तासः [ उद् + स् + घञ्ञ ] अत्यन्त भय, आतंक | उत्थ (वि० ) [ उद् + स्था + क ] ( केवल समास के अन्त में प्रयुक्त) 1 से पैदा या उत्पन्न, उदय होने वाला, जन्म लेने वाला दरीमुखोत्थेन समीरणेन कु० १२८, ६।५९, रघु० १२८२ 2. ऊपर उठता हुआ, ऊपर आता हुआ । उत्थानम् [ उद्+ स्था + ल्युट् ] 1. उदय होने या ऊपर उठने की क्रिया, उठना -- शनैर्थयुत्थानम् - भर्तृ० ३1९, 2. ( नक्षत्रादिकका ) उदय होना- रघु० ६३१ 3. उद्गम, उत्पत्ति 4. मृतोत्थान 5. प्रयत्न, प्रयास, चेष्टा - मेदश्छेदकृशोदरं लघुभवत्युत्थानयोग्यं वपुः श० २५, यद्युत्थानं भवेत्मह मनु० ९।२१५, (धन के लिए) प्रयत्न, सम्पत्ति-अभिग्रहण 6 पौरुप 7. हर्प, प्रसन्नता 8. युद्ध, लड़ाई 9. सेना 10. आँगन, यज्ञमंडप 11. अवधि, सीमा, हृद 12. जागना, – एकादशी देवउठनी कार्तिक सुदी एकादशी, विष्णुप्रबोधिनी । उत्थापनम् [ उद् + स्था | णिच् + ल्युट् पुक् ] 1. उठाना खड़ा करना, जगाना 2. उभारना, उन्नत करना, 3. उत्तेजित करना, भड़काना 4. जगाना, प्रबुद्ध करना ( आलं ० भी ) 5. वमन करना । उत्थित (भू० क० कृ० ) [ उद् + स्था + क्त ] 1. उदित, या ( अपने आसन से ) उठा हुआ बचो नियम्योस्थितमुत्थितः सन्- रघु० २६१, ७ १०, ३।६१, कु० ७ ६१, 2. उठाया हुआ, ऊपर गया हुआ - शि० ११ ३, ३. जात, उत्पन्न, उद्गत, उदितवचः रघु० २०६१ फूट पड़ा (जैसा कि आग ) 4. बढ़ता हुआ, वर्धनशील (बल में ), प्रगति करता हुआ 5. सीमा-बद्ध 6. विस्तत, प्रसूत - ० ४१४ | सम० -- - अंगुलिः फैलाई हुई हथेली । उत्थितिः (स्त्री० ) [ उद् + स्था + क्तिन्] उन्नति, ऊपर उठना । उत्पक्ष्मन् (वि० ) [ ० स०] उलटी पलकों वाला - उत्पक्ष्मणोर्नयनयोरुपस्वभिम् श० ४।१५, विक्रम ०२ । उत्पतः [ उद् + न् + अच्] पक्षी । उत्पतनम् [ उद् + त् + ल्युट् ] 1. ऊपर उड़ना, उछलना 2. ऊपर उठना या जाना, चढ़ना । उत्पताक ( वि० ) [ उत्नोलिता पताका यत्र - व. स०] झंडा For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८९ ) ऊपर उठाए हुए, जहाँ झंडे फहरा रहे हों-पुरंदरश्री: पाता मनुष्याणाम्--हि०१, अने० पा० 3. अनहोनी, पुरमुत्पताकम् -- रघु० २।७४ । संकटसूचक अशुभ या आकस्मिक घटना,---उत्पातेन उत्पतिष्णु (वि.) [उद्+पत् + इष्णुच्] उड़ता हुआ, ज्ञापिते च-वाति०, वेणी० ११२२, सापि सुकुमारऊपर जाता हुआ। सुभगेत्युत्पातपरंपरा केयम्---काव्य० १० 4. कोई उत्पत्तिः (स्त्री०) [उद्---पद्+क्तिन] 1. जन्म विपदु- सार्वजनिक संकट (ग्रहण, भूचाल आदि), केतु त्पत्तिमतामुपस्थिता-रघु० ८५८३, 2. उत्पादन,-कुसुमे -~-का० ५, धूमलेखाकेतु-मा० ९।४८। सम० कुसुमोत्पत्तिः श्रूयते न तु दृश्यते-शृंगार० १७, 3.. -पवनः,-वातः,-वातालि: अनिष्टसूचक या प्रचण्ड स्रोत, मूल-उत्पत्ति: साघुतायाः-का० ४५, 4.1 वायु, बवंडर या आंधी-रघु० १५।२३। उठना, ऊपर जाना, दिखाई देना 5. लाभ, उपजाऊपन, | उत्पाद (वि.) [ब० स०] जिसके पैर ऊपर उठे हों,-दः पैदावार। सम० ---- व्यंजकः जन्म का एक प्रकार जन्म, उत्पत्ति, प्रादुर्भाव-दुःखे च शोणितोत्पादे (उपनयन संस्कार करके या यज्ञोपवीत पहना कर शाखाङ्गछेदने तथा-याज्ञ०२।२२५, भङगुरम् ...पंच० छात्र को दीक्षित करना), द्विजत्व का चिह्न-मनु० २।१७७ । सम-शयः, यनः 1. बच्चा 2. एक रा६८। प्रकार का तीतर। उत्पथः [उत्क्रान्तः पन्थानम-प्रा० स०] कुमार्ग (आलं० उत्पादक (वि.) (स्त्री०-दिका) [उद्+पद्-+णिच भी)--गरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः, उत्पथ- +ण्वल, स्त्रियां टाप् इत्वं च उपजाऊ, फलोत्पादक, प्रतिपन्नस्य न्याय्यं भवति शासनम् । महा०, (परि- पैदा करने वाला, - कः पैदा करने वाला, जनक पिता, त्यागे विधीयते--पंच० १३०६,) शि० १२२४, --कम् उद्गम, कारण । --थम् (अव्य.) कुमार्ग पर, पथभ्रष्ट (भला-भटका)। उत्पादनम् [उद्+पद्+णिच् + ल्युट] जन्म देना, पैदा उत्पन्न (भू० क० कृ०) [उद्+पद्+क्त] 1. जात, पैदा करना, जनन-उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम् हुआ, उदित 2. उठा हुआ, ऊपर गया हुआ 3. अवाप्त । मनु० ९।२७ । उत्पल (वि०) [उत्क्रान्तः पलं मासम्-उद्-पल+अच्] उत्पादिका [ उद्+पद+णिच् -- वुल-टाप, इत्वम् ] मांसहीन, क्षीण, दुबला-पतला, --लम् 1. नील कमल, 1. एक प्रकार का कीड़ा, दीमक 2. माता। कमल, कुमुद-नवावतारं कमलादिवोत्पलम्-रघु० | उत्पादिन् (वि०) [उद्+पद्-+-णिच् ---णिनि] पैदा हुआ, ३॥३६, १२२८६, मेघ० २६, नीलोत्पलपत्रधारया-श० जात-सर्वमुत्पादि भङगुरम्-हि० २०८। १४१८, इसी प्रकार-रक्त 2. सामान्यत: पौधा। उत्पाली [उद्+पल। घा+डीप्] स्वास्थ्य। सम० --अक्षः,-चक्षुस् (वि०) कमल जैसी आँखों उत्पिजर-ल (वि.) [अबा० स०] 1. मक्त, जो पिंजड़े वाला,-पत्रम 1. कमल का पत्ता 2. किसी स्त्री के में बन्द न हो 2. क्रमहीन, अव्यवहित । नाखन से की गई खरोंच, नखक्षत । उत्पीडः [उद्+पं.ड्-घा] 1. दबाव 2. (क) धाराउत्पलिन (वि.) [उत्पल इनि कमलों से भरपूर,--नी। प्रवाह, धाराप्रवाही बहाव-बाप्पोत्पीड:-का० २९६ 1. कमलों का समूह, 2. कमल का पौधा जिसमें कमल ---उत्पीड इव धूमस्य मोहः प्रागावृणोति माम-उत्तर० लगे हों। ३१९, नयनसलिलोत्पीडरुद्ध वकाशाम-मेघ० ९१ (ख) उत्पवनम् [उद्+-पू+ल्युट्] मार्जन करना, शोधन करना। उत्प्रवाह, आधिक्य, –पूरोत्पीडे तडागस्य परीवाहः -मनु० ५।११५ । प्रतिक्रिया-उत्तर० ३।२९. 3. झाग, फेन । उत्पाटः [ उद्+पट्-+-णिच् + घा ] 1. मूलोच्छेदन, उत्पीडनम् [उद्+पीड्+णिच् + ल्युट्] 1. दबाना, निचोउन्मूलन 2. बाह्य कान में शोथ । इना 2. पेलना, आघात करना-- का० ८२ । उत्पाटनम् [उद् पट् + गि+ ल्युट्] उखाड़ना, मूलो- उत्पुच्छ (वि.) [ब० स० जिसकी पंछ ऊपर उठी हो। च्छेदन, उन्मुलन । उत्पुलक (वि०) [ब० स०] 1. रोमांचित, जिसके रोंगटे उत्पाटिका [ उद्+पट - णिच् + ण्वुल-+टाप्, इत्वम् ] / खड़े हो गये हों 2. हॉन्फुल्ल, प्रसन्न। वक्ष की छाल। उत्प्रभ (वि.) [व० स०] प्रकाश बस्नेरने माला,-प्रभाउत्पार्टिन (वि.) [उद् --पट +-णिच् +णिनि) (बहुधा पूर्ण,-भः दहकती हुई आग। समास के अन्त में प्रयुक्त) मूलोच्छेदन करने वाला, उत्प्रसवः [उद्+प्र+मू-अत्र गर्भपात । फाड़ने वाला-कोलोत्पाटीव वानरः-पंच० १२१ । | उत्प्रास:-सनम् [उद्+प्र-अम् -घा. ल्युट् या] 1. उत्पातः [उद्+ पत्+घञ] 1. उड़ान, छलांग, कूदना | फेंकना, पटकना 2. मजाक, मखील 3. अट्टहास 4. --एकोत्पातेन--एक छलांग में 2. उलट कर आना, खिल्ली उड़ाना, उपहास करना, व्यंग्योक्ति । ऊपर उठना (आलं भी)-करनिहतकन्दुकसमाः पानो- उत्प्रेक्षणम् [उद्+प्र+ईश् । ल्युट] 1. दृष्टिपात करना, उत्पादिन् सर्वमुत्पादि +51. मुक्त, For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९० ) प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना 2. ऊपर की ओर देखना | उत्सर्गः [ उद्+सृज्+घन ] 1. एक ओर रख देना, 3. अनुमान, अटकल 4. तुलना करना। छोड़ देना, तिलांजलि देना, स्थगन-कु० ७१४५, 2. उत्प्रेक्षा [ उद्+प्र+ईक्ष-+अ] 1. अटकल, अनुमान उडेलना, गिरा देना, निकालना-तोयोत्सर्गद्रुततरगतिः 2. उपेक्षा, उदासीनता 3. (अलं० शा० में) एक अलंकार मेघ० १९:३७ 3. उपहार, दान, प्रदान -मनु० जिसमें उपमान और उपमेर को कई बातों में समान १११९४ 4. व्यय करना 5. ढीला करना, खुला छोड़ समझने की कल्पना की जाती है, और उस समानता के देना-जैसा कि 'वृपोत्सर्ग' में 6. आहति, तर्पण 7. आधार पर उनके एकत्व की संभावना की ओर स्पष्ट विष्ठा, मल आदि-पुरीष', मलमूत्र° 8. पूर्ति (अध्यरूप से या किसी तात्पर्यार्थ के द्वारा संकेत किया जाता यन या व्रतादिक की ) तु० ---उत्सृष्टा वै वेदाः 9. है-उदा० लिम्पतीव तमोङ्गानि बर्षतीबाजन नभः सामान्य नियम या विधि (विप० अपवाद-एक —मुद्रा० १।३४ स्थितः पृथिव्या इव मानदण्ड: विशेष नियम ).... अपवादरिवोत्सर्गाः कृतव्यावृत्तयः -कु० १११, तु० सा० द० ६८६-९२, और उत्प्रेक्षा परैः --कु० २।२७. अपवाद इवोत्सर्ग व्यावर्तयितुमीके प्रसंग में रस। श्वर:-रघु० १५१७ 10. गुदा।। उत्प्लवः [उद्-लु+अप्] उछल-कूद, छलांग,-बा किश्ती। उत्सर्जनम् [ उद्-+सृज--ल्युट ] 1. त्याग, तिलांजलि देना, उत्प्लवनम् [उद्+प्लु+ल्युट] कूदना, उछलना, ऊपर से ढीला करना, मक्त करना आदि 2. उपहार, दान 3. छलांग लगाना। वेदाध्ययन का स्थगन 4. इस स्थगन से संबद्ध एक उत्फलम् [प्रा० स०] उत्तम फल । पाण्मासिक संस्कार वेदोत्सर्जनाख्यं कर्म करिष्ये उत्फालः [ उद्+फल्+घा ] 1. कूद, छलांग, द्रुतगति ---श्रावणी मंत्र --मनु० ४।९६। —मृच्छ० ६, 2. कूदने की स्थिति। उत्सर्पः,----सर्पणम् [उद-+-सप्+घञ, ल्युट् वा] 1. ऊपर उत्फुल्ल ( भू० क० कृ० ) [ उद्+फुल् + क्त ] 1. खुला को जाना या सरकना 2. फूलना, हांफना ।। हुआ, (फूल की भांति ) खिला हुआ 2. खूब खुला | उत्सपिन (वि.) [उद्+सप-+-णिनि] 1. ऊपर को जाने या हुआ, प्रसारित, विस्फारित ( आंखें) 3. सूजा हुआ, सरकने वाला, उठने वाला -- रघु० १६१६२, 2. उड़ने शरीर में फूला हुआ 4. पीठ के बल वाला, प्रोन्नत--उत्सर्पिणी खल महतां प्रार्थना-श०७। उत्तान,-लम् योनि, भग। . उत्सवः [ उद्+सू+अप् ] 1. पर्व, हर्ष या आनन्द का उत्सः [उनत्ति जलेन, उन्+स किच्च नलोपः ] अवसर, जयन्ती,रत श० ६.१९, तांडव आनन्द 1. झरना, फौवारा 2. जल का स्थान । या हर्षनृत्य, उत्तर० ३।१८ मनु० ३१५९ 2. हर्ष, उत्सङ्गः [उद्+सङ्ग्+घञ्] 1. गोद,-पुत्रपूर्णोत्सङ्गा प्रमोद, आमोद-स कृत्वा विरतोत्सवान्-रघु० ---उत्तर० १, विक्रम० ५।१० न केवलमुत्सङ्गश्चिरा- ४।१७, १६।१०, पराभवोऽयुत्सव एव मानिनाम् न्मनोरथोऽपि मे पूर्ण:- उत्तर० ४, मेघ० ८७ ---कि० ११४१, 3. ऊँचाई, उन्नति 4. रोष 5. कामना, 2.आलिंगन, संपर्क, संयोग-मा०८।६, 3. भीतर, पड़ोस इच्छा । सम०- संकेताः (पु० ब० व०) एक जाति, -दरीगृहोत्सङ्गनिषक्तभासः --कु०१।१०, शय्योत्सङ्गे हिमालय स्थित एक जंगली जाति-शरैरुत्सवसंकेतान -मेघ० ९३ 4. सतह, पाव, ढाल-दषदो वासितोत्सङ्गाः स कृत्वा विरतोत्सवान-रघु० ४१७८।। -रघु० ४।७४, १४१७६ 5. नितंब के ऊपर का भाग या । उत्सादः [ उद्+सद्+णिच्+घञ्] नाश, अपकल्हा 6. ऊपरी भाग, शिखर 7. पहाड़ की चढ़ाई--- क्षय, बर्बादी, हानि--गीतमुत्सादकारि मृगाणाम् तुङ्ग नगोत्सङ्गमिवारुरोह-रघु० ६।३ 8. घर की छत ।। -का० ३२। उत्सङ्गित (वि.) [ उत्सङ्ग+इतच ] 1. संयुक्त सम्मि- उत्सादनम् [ उद्+सद्+णि+ ल्युट् ] 1. नाश करना, लित, संपर्क में लाया हुआ--शि० ३७९, 2. गोद उथल देना-उत्सादनार्थ लोकानां-महा०, भग० में लिया हुआ। १७।१९ 2. स्थगित करना, बाधा डालना 3. शरीर उत्सजनम् [उद्+सञ्ज+ल्युट्] ऊपर को फेंकना, ऊपर | पर सुगंधित पदार्थ मलना-मनु० २०२०९, २११, 4. उठाना। घाव भरना 5. ऊपर जाना, चढ़ना, उठना 6. उन्नत उत्सन्न (भू० क. कृ.) [उद्+सद्+क्त ] 1. सड़ा होना, उठाना 7. खेत को भली-भाँति जोतना । हुआ 2. नष्ट, बर्बाद, उखाड़ा हुआ, उजाड़ा हुआ | उत्सारकः [उद्+म+णि+पवुल ] 1. आरक्षी 2. पहरे-उत्सन्नोऽस्मि-का० १६४, बदि...- मकरध्वज इबो- दार 3. कुली, डचोढ़ीवान। त्सन्नविग्रहः---का० ५४, भग० १४४ निद्रा-का० उत्सारणम् [उद्+स-+-णिच् + ल्युट् ] 1. हटाना, दूर १७१, 3. अभिशप्त, आफत का मारा 4. व्यवहार में रखना, मार्ग में से हटा देना 2. अतिथि का स्वागत न आने वाला, विलप्त ( पुस्तकादिक)। करना। For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९१ ) उत्साहः [उद-1-सह+घञ्] 1. प्रयत्न, प्रयास-धृत्युत्साह- । उत्सेकिन (वि.) [ उत्सेक, इनि ] 1. उमड़ने वाला, समन्वितः -भग० १८२६ 2. शक्ति, उमंग, इच्छा । अत्यधिक 2. घमंडी अहंकारी, उद्धत--भाग्येष्वनु---- मन्दोत्साहकृतोऽस्मि मगधापवादिना माढव्येन सेकिनी--श० ४।१७ । - . ० २, ममोत्साहभङ्ग मा कृथाः-हि० ३, मेरे | उत्सेचनम् [ उद्+सिच-+ ल्युट् ] फुहार छोड़ना या उत्माह कीमत तोड़ो 3. धैर्य, ऊर्जा या तेज, राजा । बौछार करना। की हीन शक्तियों में से एक ( प्रभाव और मंत्र दो उत्सेधः [ उद्---सिध+घा] 1. ऊँचाई, उन्नतता शक्तियाँ और है) कु०११२२. 4. दढ़ संकल्प, दृढ़ निश्जय (आलं. भी)—पयोघरोत्सेधविशीर्णसंहति (वल्कलम् ) -हसितेन भाविमरणोत्साहस्तया सूनित:-...अमरु १०, कु० ५।८, २४, ऊँची या उभरी हई छाती 2. मोटाई, 5. सामर्थ्य, योग्यता--मनु० ५।८६ 6. दृढ़ता, सहन- मोटापा 3. शरीर,—धम मारना, वध करना । शक्ति, बल 7 (अलं० शा० में ) दढ़ता और सहन- उत्स्मयः [ उद्+स्मि-|-अच् ] मुस्कराहट । शक्ति वह भावना मानी जाती है जिससे वीर रस का । उत्स्वन ( वि०) [ब० स० ] ऊँची आवाज करने वाला, उदय होता है-कार्यारम्भेषु संरम्भ: स्वानुत्माह उच्यते —न: [ प्रा० स०] ऊँची आवाज । -~-सा० द. ३, परपराक्रमदानादिम्मतिजन्मा औन्न- | उत्स्वप्नायते (ना० घा० आ०) [उद+स्वप्न+क्यङ ] त्याख्य उत्साहः रस० 8. प्रसन्नता । सभ० - वर्धन: सुप्तावस्था में बोलना, बड़बड़ाना, उद्विग्नता के कारण वीररस (--- नम) ऊर्जा या तेज की वृद्धि, शौर्य, स्वप्न आना। --शक्तिः ( स्त्री०) दृढ़ता, ज, दे० (३) ऊपर, (उप०) उ+विवप, तुक] नाम और धातुओं से - हेतुकः (वि.) कार्य करने की दिशा में प्रोत्साहन पूर्व लगने वाला उपसर्ग, गण में निम्नांकित अर्थ देने वाला या उत्तेजित करने वाला। उदाहरणसहित बतलाये गये हैं:--1. स्थान, पद, या उत्साहनम् [उद्+मह +-णिच ल्युट ] 1. प्रयत्न, शक्ति की दृष्टि से श्रेष्ठता, उच्च, उद्गत, ऊपर, पर, अध्यवसाय 2. उत्साह बहाना, उत्तेजना देना। अतिशय, ऊँचाई पर ( उद्वल) 2. पार्थक्य, वियोजन, उत्सित ( भू० क० कृ०) [ उद्+सिच्+क्त ] 1. बाहर, से बाहर, से, अलग अलग आदि (उद्गच्छति) छिड़का हुआ 2. घमण्डी, अहंकारी, उद्धत 3. बाढ़ग्रस्त, 3. ऊपर उठना ( उत्तिष्ठति) 4. अभिग्रहण, उपउमड़ता हुआ, अत्यधिक · दे० सिन् ( उद्-पूर्वक ) लब्धि-( उपार्जति ) 5. प्रकाशन (उच्चरति) 6. 4. चंचल, अशान्त–जानीयादस्थिरां बाचमुसिक्त- आश्चर्य, चिन्ता (उत्सुक) 7. मुक्ति--(उद्गत ) 8. मनसां तथा--मनु०८७१। । अनुपस्थिति (उत्पथ) 9. फंक मारना, फुलाना, उत्सुक ( वि०) [ उद्-+-+-क्विप+कन् ह्रस्व: ] 1. खोलना--(उत्फुल्ल ) 10. प्रमुखता--(उद्दिष्ट) 11. अत्यन्त इच्छुक, उत्कण्ठित, प्रयत्नशील ( करण या शक्ति- ( उत्साह )-संज्ञाओं के साथ लगकर इससे अधिकरण के साथ अथवा समाम में) --निद्रया निद्रायां विशेषण और अव्ययीभाव समास बनाये जाते हैं वोत्सुकः सिद्धा०, मनोनियोगक्रिययोत्सूक मे-- रघ .......उचिस्, उच्छिख, उद्वाह, उन्निद्रम्, उत्पथम् और २१४५, मेघ० ९९, मंगम --श० ३.१४ 2. बेचन, उद्दामम् आदि। उद्विग्न, आतुर रघ० १२।२४, 3. बहुत चाहने । उवक ( अव्य)[उद् +अञ्च- क्विन् । उत्तर की ओर, वाला, आसवत .. वत्सोत्सुकापि-रघु० २।२२, 4. के उत्तर में, ऊपर ( अपा० के साथ )। खिद्यमान, कुडबुड़ाने वाला, शोकान्वित । उदकम् [ उन्+ण्वुल नि० नलोप: ] पानी,--- अनीत्वा उत्सूत्र (वि०) [उत्क्रान्तः सूत्रम्--अत्या० स०] 1. डोरी पद्धतां धुलिमुदकं नावतिष्ठते-शि० २।३४, । सम० से न बंधा हुआ, ढीला, (रस्सी के ) बंधन से मुक्त .-- अन्तः पानी का किनारा, तट, तीर-ओदकान्ता-----शि०८६३, 2. अनियमित 3. (पाणिनि के नियम स्निग्धो जनोऽनगन्तव्य इति श्रयते--श०४, अथिन् के) विपरीत-शि० २१११२ ।। (वि.)प्यासा,-आधारः जलाशय, हौज, कुआँ,उन्वउत्सूरः [ उत्क्रान्तः सूरं-सूर्यम्-अत्या० स०] सायंकाल, जनः पानी का बर्तन, सुराही, उदरम् जलोदर संध्या। ( एक रोग जिसमें--पेट में पानी भर जाता है), उत्सेकः [ उद+ सि+घञ] 1. छिड़काव, उड़ेलना ---कर्मन,-कार्यम,-क्रिया,-- दानम् मत पूर्वी या 2. फुहार छोड़ना, बौछार करना 3. उमड़ना, वृद्धि पितरों का जल से तर्पण करना-वृकोदरस्योदकआधिक्य --रुधिरोत्सेका:-महानी० ५।३३ दपं, बल' क्रियां कुरु-वेणी० ६, याज्ञ० ३।४,-कुंभः पानी आदि 4. घमंड, अहंकार, धृष्टता---उपदा विविशुः का घड़ा,- गाहः पानी में घुसना, स्नान करना, शश्वन्नोत्सेकाः कोसलेश्वरम्-- रघु० ४१७०, अनुत्सेको --ग्रहणम पानी पीना, ----वात,---दायिन, वानिक लक्ष्म्याम्-म० २१६४ । जल देने बाला (-1) 1. पितरों को जल-दान करने , कुआँ,उन्न. तन, सुराही ( एक रोग For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १९२ ) वाला 2. उत्तराधिकारी, बन्धु-बांधव, दानम् = कर्मन् -- धरः बादल, भारः, बीवधः पानी ढोने की बहंगी, वज्रः गरज के साथ बौछार, शाकम् कोई भी बनस्पति जो जल में पैदा होती है, शान्तिः ( स्त्री० ) ज्वर दूर करने के लिए रोगी के ऊपर अभिमंत्रित जल छिड़कना तु० शान्त्युदकम् स्पर्शः शरीर के विभिन्न अंगों पर जल के छींटे देना, - हारः पानी ढोने वाला कहार । उबक ( कि ) ल ( वि० ) [ उदक + लच्, इलच् वा ] पनीला, रसेदार जलमय । उदकेचर: [ अलुक् स०] जलचर, जल में रहने वाला जन्तु । उक्त (वि० ) [ उद् + अञ्च् + क्त ] उठाया हुआ, ऊपर को उभारा हुआ, -- उदक्तमुदकं कूपात् — सिद्धा० । उबश्य (वि०) [ उदकमर्हति दण्डा० उदक + यत् ] जल की अपेक्षा करन वाला - क्या ऋतुमती स्त्री, रजस्वला स्त्री । उदग्र ( वि० ) [ उद्गतमयं यस्य - ब० स० ] 1. उन्नत शिखर वाला, उभरा हुआ, ऊपर की ओर संकेत करता हुआ, यथा - दंत 2. लंबा, उत्तुंग, ऊँचा, उन्नत, उच्छ्रित ( आलं० ) - उदग्रदशनांशुभिः -- शि० २१२१, ४) १९. उदग्र क्षत्रस्य शब्द: रघु० २।५३, उदग्रप्लुतत्वात् श० १७ ऊँची छलांगें 3. विपुल विशाल, विस्तृत बड़ा अवन्तिनाथोऽयमुदग्रबाहुः- रघु० ६।३२ 4. वयोवृद्ध 5. उत्कृष्ट, पूज्य, श्रेष्ठ, अभिवृद्ध, वर्धित --स मंगलोदग्रतरप्रभावः -- रघु० २१७१, ९६४, १३।५० 6. प्रखर असह्य ( तापादिक ), 7. भीषण, भयावह - संदधे दृशमुदग्रतारकाम्-- रघु० ११।६९, 8. उत्तेजित प्रचण्ड, उल्लसित - मदोदग्राः ककुद्मन्तः -- रघु० ४।२२। उदङ्क: [ उद् + अञ्च् + घा] (तेल आदि रखने के लिए) चमड़े का बर्तन, कुप्पा | उबच्, उदञ्च् [ उद् + अञ्च् + क्विप् ] ( पुं० - - उदङ नपुं० - उदक्, स्त्री० - उदीची ) 1. ऊपर की ओर मुड़ा हुआ, या जाता हुआ, 2. ऊपर का, उच्चतर 3. उत्तरी, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ 4. वाद का सम० - अद्रि: उत्तरी पहाड़, हिमालय, अयनम् ( उत्तरायण), भूमध्यरेखा से उत्तर की ओर सूर्य की प्रगति - आवृत्तिः (स्त्री० ) उत्तर दिशा से लौटना, उदगावृतिपथेन नारद: रघु० ८1३३, - पथः उत्तरी देश, --- प्रषण | ( वि०) उत्तरोन्मुख, उत्तर की ओर झुका हुआ, मुख (वि० ) उत्तराभिमुख, उत्तर की ओर मुंह किये हुए उत्पतोमुखः खम् - मेघ० १४ । उदचनम् [ उद् +अञ्च् + ल्युट् ] 1. बोका, डोल, - उदञ्चनं सरज्जुं पुरः चिक्षप दश० १३०, 2. उदय होता हुआ, चढ़ता हुआ 3. ढकना, ढक्कन । | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदञ्जलि ( वि० ) [ ब० स० ] दोनों हथेलियों को मिला कर संपुट बनाये हुए । दण्डपाल: [ अत्या० स० ] 1. मछली 2. एक प्रकार का साँप । उदधिः दे० 'उदन्' के नीचे । उवन् (नपुं० ) [ उन्द् - कनिन् उदक इत्यस्य उदन् आदेश; ] जल, (यह शब्द प्रायः समास के आरंभ या अन्त में प्रयुक्त होता है, और कर्म० के द्वि० व० के पश्चात् -'उदक' के स्थान में विकल्प से आदेश होता है, सर्वनामस्थान में इसका कोई रूप नहीं होता, समास में अन्तिम न् का लोप हो जाता है उदा० उदधि, अच्छोद, क्षीरोद आदि) । सम० - कुंभ : जल का घड़ा - मनु० २१८२, ३।६८, - ज ( वि० ) जलीय पनीला - धानः 1. पानी का बर्तन 2. बादल, -धि: 1. पानी का आशय, समुद्र - उदधेरिव निम्नगाशतेष्वभवन्नास्य विमानना क्वचित् - रघु० ८1८, 2. बादल, 3. झील, सरोवर 4 पानी का घड़ा - कन्या, तनया, "सुता समुद्र की पुत्री लक्ष्मी, मेखला पृथ्वी, "राजः जलों का राजा अर्थात् महासागर, सुता लक्ष्मी, द्वारका (कृष्ण की राजधानी), पात्रम्, श्री पानी का घड़ा, बर्तन, पान:- नम कएँ के निकट का जोहड़ या कुआं, "मंडूकः ( शा० ) कुएँ का मेंढक, ( आलं० ) अनुभवहीन, जो केवल अपने आस-पास की वस्तुओं का ही सीमित ज्ञान रखता है तु० कूपमंडुक, पेषम् लेप, लेई, पेस्ट, - विन्दुः जल की बूँद कु० ५।२४, - भारः जल धारण करने वाला अर्थात् बादल, मन्यः जौ का पानी, मानः नम् आढक का पचासवाँ भाग, मेघः पानी बरसाने वाला बादल, - लावणिक ( वि० ) नमकीन या खारी, वज्रः बादल की गरज के साथ बौछार, पानो की फुआर, - वासः जल में रहना या बसति, सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा - कु० ५।२७, - वाह (वि०) पानी लाने वाला ( -हः) बादल, बाहनम् पानी का बर्तन, शरावः पानी से भरा कसोरा, शिवत् [ उदकेन जलेन श्वयति ] छाछ, मट्टा ( जिसमें दो भाग पानी तथा एक भाग मट्ठा हो ) - हरणः पानी निकालने का बर्तन | उवन्तः | उद्गतोऽन्तो यस्य व० म० ] 1. समाचार, गुप्तवार्ता, पूरा विवरण, वर्णन, इतिवृत्त - श्रुत्वा रामः प्रियोदन्तं रघु० १२/६६, कान्तादन्तः सुहृदुपगतः सङ्गमात्किचिदून: मेघ० १०० 2. पवित्रात्मा, साधु । उदन्तकः [ उदन्त -+-कन् ] समाचार, गुप्त वातें । उदन्तिका [ उद् + अन्त् + णिच् + ण्वुल्+टाप् इत्वम् ] संतोष, संतृप्ति । उदन्य ( वि० ) [ उदक : क्यच् नि० उदन् आदेशः - विवत् ] प्यासा न्या प्यास, निर्वर्त्यतामुदन्याप्रतीकारः - श्रेणी० ६ भट्टि० ३।४० । For Private and Personal Use Only = -- Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदन्वत् (पुं० ) [उदक+मतुप, उदन् आदेशः, मस्य वः] | रोग के कारण पेट का फूल जाना-तस्य होदरं जज्ञे समुद्र,-उदन्वच्छन्नाभू:- बालरा० ११८, रघु० ४।५२, .-ऐत० 4. वध करना। सम.---आध्मानः पेट का ५८, १०।६, कु० ७७३ । फूलना,-आमयः पेचिश, अतिसार,—आवर्तः नाभि, उदयः [ उद्++अच् ] 1. निकलना, उगना ( आलं. --आवेष्टः केचुआ, फीताकृमि,-त्राणम् 1. वक्षस्त्राण भी)-चंद्रोदय इवोदधेः-- रधु० १२।३६, २।७३ ऊपर या अँगिया, कवच या जिरहवख्तर जो केवल छाती पर जाना 2. आविर्भाव, उत्पादन—घनोदयः प्राक्---श० पहना जाय 2. पेट को कसने वाली पट्टी,-पिशाचः ७।३०, फलोदय---रघु० ११५, फल का निकलना या (वि०) पेट, खाऊ, (बहुभोजी जिसकी भूख राक्षसों निष्पन्न होना---कु० ३।१८ 3. सृष्टि (विप० प्रलय) जैसी होती है),(-चः) भोजनभट्ट,-पूरम् (अव्य०) कु० २।८ 4. पूर्वाद्रि (उदयाचल जिसके पीछे से सूर्य जब तक पूरा पेट न भर जाय---उदरपूरं भुक्ते का उदय होना माना जाता है)-उदयगढ़शशाङ्कमरी- -सिद्धा०, पेट भर कर खाता है,-पोषणम्,-भरणम् चिभिः --विक्रम० ३।६ 5. प्रगति, समृद्धि, उदय पेट भरना, पालन पोषण करना,--शय (वि.) पेट के (विप० 'व्यसन')-तेजोदयस्य युगपद्वयसनोदयाभ्याम् बल लेट कर सोने वाला (--यः) भ्रूण,-सर्वस्वः ---श० ४।१, रघु०८1८४, ११।७३, 6. उन्नयन, पेट्र, बहुभोजी, स्वादलोलप, (जिसके लिए पेट ही सब उत्कर्ष, उदय, वृद्धि ---उदयमस्तमयं च रघूद्वहात्-- कुछ है)। रघु० ९।८९, 7. फल, परिणाम 8. निष्पन्नता, पूर्णता उदरथिः [ उद्-ऋ+घथिन् ] 1. समुद्र 2. सूर्य । ---उपस्थितोदयम् रघु० ३।१, प्रारम्भसदशोदय: उदरंभरि (वि.) [उदर+म+इन, ममागमः ] 1. केवल १।१५, 9. लाभ, नफा 10. आय, राजस्व 11. ब्याज अपना पेट भरने वाला, स्वार्थी 2. पेट, बहुभोजी। 12. प्रकाश, चमक । सम०-अचलः,—अद्रिः, उबरवत्,--उदरिक-ल (वि.) [ उदर+मतुप् मस्य ... गिरिः,.....पर्वतः,-शैलः पूर्व दिशा में होने वाला वः, उदर+ठन्, इलच् वा ] बड़ी तोंद वाला, स्थूलउदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना काय, मोटा। माना जाता है- उदयगिरिबनालीबालमन्दारपुष्पम् | उवरिन (वि.) [उदर+इनि] बड़ी तोंद वाला, मोटा, -उद्भट, श्रितोदयाद्रे रभिसायमुच्चकैः-शि० १११६, | स्थूलकाय,–णी गर्भवती स्त्री। तत उदयगिरेरिवेक एव. मा० २।१०,-प्रस्थः उदया- | उदर्कः उदअर्क (अर्च)+घन -उद्---ऋच्+यङ चल का पठार जिसके पीछे से सूर्य का उदय होना +घञ्] 1. (क) अन्त, उपसंहार,-सुखोदकम् समझा जाता है। ---का० ३२८, (ख) फल, परिणाम, किसी क्रिया का उदयनम् [उद्++ल्युट ] 1. उगना, चढ़ना, ऊपर जाना भावी फल-किन्तु कल्याणोदकं भविष्यति-उत्तर० 2. परिणाम,-नः 1. अगस्त्य मुनि 2. वत्सदेश का ४, प्रयलः सफलोदर्क एव-मा०८, मनु० ४।१७६, राजा ----प्राप्यावन्तीनदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्-मेघ० १०१०2. भविष्यत्काल, उत्तरकाल। ३०, (उदयन प्रसिद्ध चन्द्रवंशी राजा था, यह वत्सराज उचिस् (वि.) [ऊर्ध्वचिः शिखाऽस्य ब० स०] चमकने के नाम से विख्यात है। उदयन कौशाम्बी में राज्य वाला, ऊपर की ओर ज्वाला विकीर्ण करने वाला, करता था। उज्जयिनी की राजकुमारी वासवदत्ता ज्योतिर्मय, उज्ज्वल---स्फुरन्नुचिः सहसा तृतीयादक्षणः ने उसे स्वप्न में देखा, तथा देखते ही वह उस पर कृशानुः किल निष्पपात --कु०३१७१, ७१७९, रघु० मोहित हो गई। चण्ड महासेन ने उदयन को धोखे ७२४, १५।७६,-(पुं०) 1. अग्नि-- प्रक्षिप्योदचिषं से पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया, परन्तु कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम्-शि० २।४२ २०१५५, बाद में मन्त्री के द्वारा मक्त किये जाने पर वह 2. कामदेव 3. शिव। वासवदत्ता को उसके पिता तथा अपने प्रतिद्वन्द्वी से | उदवसितम् [ उद्+अव+सो+क्त ] घर, आवास । निकाल कर ले भागा। रत्नावली नामक नाटिका का उदश्रु (वि.) [उद्गतान्यश्रुणि यस्य---ब० स०] फूट-फूट नायक भी उदयन है। इसके जीवन की घटनाओं कर रोने वाला, जिसके अविरल आँसू बह रहे हों, के आधार पर और कई रचनाएँ हो चुकी हैं) रोने वाला-रघु० १२।१४, अमरु ११ । दे 'वत्स' भी। उदसनम् [ उद् । अस्+ल्युट् ] 1. फेंकना, उठाना, सीधा बबरम् [ उद्+ऋ+अप] 1. पेट- दुष्पूरोदरपूरणाय खड़ा करना 2. बाहर निकाल देना। -भर्त० २।११९, तु० कृशोदरी, उदरंभरि आदि 2.. उदात्त (वि०) [ उद्+आ+दा+क्त ] 1. उच्च, उन्नत किसी वस्तु का भीतरी भाग, गह्वर, तडाग पंच० __---°अन्वयः-का० ९२, वेणी० १, 2. भद्र, प्रतिष्ठित २।१५० रघु० ५।७०, त्वां कारयामि कमलोदरबन्ध- 3. उदार, वदान्य 4. प्रसिद्ध, विख्यात, महान्-ललितोनस्थम्-श०६।१९, १११९, अमरु ८८,3. जलोदर दातमहिमा-भामि० १७९, 5. प्रिय, प्रियतम घटनाओं (वि०) ने वाला जिसके र ११ । मीधा २५ For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १९४ ) 6. उच्च स्वराघात दे० नी०, तः 1. उच्च स्वर में उच्चरित - उच्चैरुदात्तः- पा० १।२।२९, ताल्वादिषु स्थानेषूर्ध्वभागे निष्पन्नोऽनुदात्तः - सिद्धा०, अनुदात्त के नीचे भी दे०, निहन्त्यरीनेकपदे य उदात्तः स्वरानिव - शि० २।९५, 2 उपहार, दान 3. एक प्रकार का वाद्य — उपकरणं, बड़ा ढोल, तम् ( अलं० शा ० ) एक अलंकार - सा० द० ७५२, तु० काव्य ० १०, उदात्तं वस्तुनः संपन्महतां चोपलक्षणम् । उबामः [उद्+अन्+घञ] 1. ऊपर को सांस लेना 2. सांस लेना, श्वास, 3. पांच प्राणों में से एक जो कण्ठ से आविर्भूत होकर सिर में प्रविष्ट होता है— अन्य चार हैं: -- प्राण, अपान, समान और व्यान; - स्पन्दयत्यघरं वक्त्रं गात्रनेत्रप्रकोपनः, उद्वेजंयति मर्माणि उदानो नाम मारुतः । 4. नाभि । वायुध (वि० ) [ ब०स०] जिसने शस्त्र उठा लिया है, शस्त्र ऊपर उठाये हुए मनुजपशुभिनिर्मर्यादेर्भवद्भिरुदायुधैः, वेणी० ३१२२; उदायुधानापततस्तान्दृप्ताप्रेक्ष्य राघवः -- रघु० १२/४४ । उदार (वि० ) [ उद् + आ+रा+क] 1. दानशील, मुक्तहृदय, दानी 2. ( क ) भद्र, श्रेष्ठस तथेति विनेतुरुदारमते रघु० ८/९१ ५।१२, भग० ७।१८ (ख) उच्च, विख्यात, पूज्य, कीर्ते: कि० १११८, 3. ईमानदार, निष्कपट, खरा 4. अच्छा, बढ़िया, उमदा - उदारः कल्पः -- श० ५ 5. वाग्मी 6. बड़ा, विस्तृत, विशाल, शानदार - रघु० १३७९, उदारनेपथ्यभृताम् - ६, 6. मूल्यवान् वस्त्र पहने हुए 7. सुन्दर, मनोहर, प्यारा - कु० ७।१४, शि० ५।२१, रम् ( अव्य० ) जोर से - शि० ४।३३ । सम० आत्मन् — चेतस्-चरित, मनस् -- तत्त्व ( वि०) विशालहृदय, महामना - उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् - हि० १, घी (वि०) उदात्त प्रतिभाशील, अत्यन्त बुद्धिमान् - रघु० ३३०, दर्शन (वि) जो देखने में सुन्दर है, बड़ी आंखों वाला - कु० ५।३६ । उदारता [उदार+तल्+टाप् ] 1. मुक्तहस्तता, 2. समृद्धि ( अभिव्यक्ति की ) - वचसाम् - मा० १।७ । उदास (वि० ) [ उद् + अस् + घञ्ञ ] तटस्थ, वीतराग, बाग, सः, 1. निःस्पृह, दार्शनिक 2. तटस्थता, अनासक्ति । उदासिन ( वि० ) [ उद् + आस् + गिनि ] 1. निःस्पृह, 2. तत्ववेत्ता । उदासीन (वि०) [उद् + आस् + शानच् ] 1. तटस्थ, बेलाग, निष्क्रिय - तद्दृशिनमुदासीनं त्वामेव पुरुषं विदुः – कु० २०१३, (भौतिक संसार की रचना में कोई भाग न लेते हुए) दे० सांख्य 2. ( विधि में ) अभियोग से असंबद्ध व्यक्ति 3. निष्पक्ष ( जैसा कि राजा या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्र ), -नः 1. अजनवी 2. तटस्थ भग० ६१९ 3. सामान्य परिचय | उदास्थितः [ उद् + आ + स्था + क्त ] 1. अधीक्षक 2. द्वारपाल 3. भेदिया, गुप्तचर 4. तपस्वी जिसका व्रत भङ्ग हो गया है । उदाहरणम् [ उद् + आ + ह् + ल्युट् ] 1. वर्णन, प्रकथन, कहना 2. वर्णन करना, पाठ करना, समालाप आरंभ करना - अथाङ्गिरसमग्रण्यमुदाहरणवस्तुपु - कु० ६।५५, 3. प्रकथनात्मक गीत या कविता, एक प्रकार का स्तुतिगान जो 'जयति' जैसे शब्द से आरंभ हो तथा अनुप्रास से युक्त हो - चरणेभ्यस्त्वदीयं जयोदाहरणं श्रुत्वा - विक्रम ० १ जयोदाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान् रघु० ४।७८, विक्रम० २०१४, ( येन केनापि तालेन गद्यपद्यसमन्वितम्, जयत्युपक्रमं मालिन्यादिप्रासविचित्रितम्, तदुदाहरणं नाम विभक्त्यष्टाङ्गसंयुतम् - प्रतापरुद्र । 4. निदर्शन, मिसाल, दृष्टांत-समूलघातमघ्नन्तः परान्नोद्यन्ति मानिनः, प्रध्वंसितान्धतमसस्तत्रोदाहरणं रविः । शि० २।३३5. ( न्या० में) अनुमानप्रक्रिया के पांच अंगों में से तीसरा 6. ( अलं० शा ० ) ' दृष्टान्त' जो कुछ अलंकारशास्त्रियों द्वारा अलंकार माना जाता है - यह अर्थान्तरन्यास से मिलता जुलता है- उदा० अमितगुणोऽपि पदार्थो दोषेणैकेन निन्दितो भवति, निखिलरसायनराजो गन्धेनोग्रेण लशुन इव । रस०, ( दोनों अलंकारों में भेद स्पष्ट करने के लिए 'उदाहरण' के नी० दे० रस० ) । उदाहारः [ उद् + आ + ह् + घञ् ] 1. मिसाल या दृष्टांत 2. किसी भाषण का आरम्भ । उदित (भू० क० कृ० ) [ उद् + इ + क्त ] 1. उगा हुआ, चढ़ा हुआ - उदितभूयिष्ठ: मा० १, भामि० २८५ 2. ऊँचा, लंबा, उत्तुंग 3. बढ़ा हुआ, आवर्धित 4. उत्पन्न, पैदा हुआ, 5. कथित उच्चरित ( वद् का यन्त रूप ) । सम० -- उदित ( वि० ) शास्त्रों में पूर्ण-शिक्षित । उदीक्षणम् [ उद् + ईक्ष् + ल्युट् ] 1. ऊपर की ओर देखना 2. देखना, दृष्टिपात करना । उदीची [ उद् + अञ्च् + क्विन् + ङीप ] उत्तर दिशा, - तेनोदीचीं दिशमनुसरे: मेघ० ५७ । उदीचीन (वि० ) [ उदीची+ख ]1. उत्तर दिशा की ओर मुड़ा हुआ 2. उत्तर दिशा से संबंध रखने वाला । उदीच्य (वि० ) [ उदीची + यत् ] उत्तर दिशा में होने या रहने वाला, च्यः 1. सरस्वती नदी के पश्मिमोत्तर में स्थित एक देश 2. ( ब० व० ) इस देश के निवासी - रघु० ४।६६, च्यम् एक प्रकार की सुगन्ध । उदीपः [ उद्गता आपो यत्र उद् + अप् (ईप्) ब० स० ] बहुत पानी, जलप्लावन बाढ़ । For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदीरणम् [ उद्+ई---ल्युट ] 1. बोलना, उच्चारण, | वमन करना, कह डालना, उत्सर्जन-खर्जूरीस्कन्ध --अभिव्यंजना उद्घातः प्रणवो यासां न्यायस्त्रिभिरुदी- नद्धानां मदोद्गारसुगन्धिषु-रघु० ४।५७, भर्तृ० २।३६, रणम् कु० २६१२, 2. बोलना, कहना 3. फेंकना, मेघ० ६३,६९, शि० १२१९, (ख) क्षरण, प्रवाह दिल (शस्त्रादिक का) चलाना । में भरी हुई बात का बाहर निकालना-रपु० ६१६०, उदीर्ण (भ० क. कृ०) [उद्+ईर+क्त ] 1. बढ़ा हुआ, महावी० ६१३३, 2. बार बार कहना, वर्णन-मा० उगा हुआ, उत्पन्न 2. फूला हुआ, उन्नत 3. वधित, २।१३, 3. थूक, लार 4. डकार, कंठगर्जन । गहन । उद्गारिन् (वि.) [ उद्+ग+णिनि ] 1 ऊपर जाने उदुम्बरः दे० उडुम्बर। वाला, उगने वाला 2. वमन करने वाला, बाहर भेजने उदूखल-उलूखल। वाला----रघु० १३१४७। उढा [ उद्-वह+क्त--टाप् ] विवाहित स्त्री। उगिरणम् [ उद्+ग+ ल्युट्] 1. वमन करना 2. थक उदेजय (वि.) [ उद्-एज :-णिच् +खश् | हिलाने वाला, या लार गिराना 3. डकारना 4. उन्मूलन । कंपाने वाला, भयंकर --उदेजयान् भूतगणान् न्यपेधीत् । उद्गीतिः (स्त्री०) [उद-|-ग+क्तिन ] 1. ऊँचे स्वर से -भट्टि० १४१५। गान करना 2. सामवेद के मन्त्रों का गान 3. आर्या उद्गतिः (स्त्री०) [ उद्-+ गम् । क्तिन् ] 1. ऊपर जाना. छंद का एक भेद---दे० परिशिष्ट । उठना, चढ़ना 2. आविर्भाव, उदय, जन्मस्थान 3. वमन | उदगीयः [ उद्+7+थक ] 1. सामवेद के मंत्रों का गायन करना। (उद्गाता का पद) 2. सामवेद का उत्तरार्ध-भूयांस उद्गन्धि (वि०) [ उद्गतो गन्धोऽस्य ----ब० स० इत्वम् ] उद्गीथविदो वसन्ति-उत्तर० २३, 3. 'ओम' जो 1. सुगंधयुक्त, खुश्बूदार-विज़म्भणोद्गन्धिषु कुड्मलेपु परमात्मा का तीन अक्षरों का नाम है। - रघु० २६।४७ 2. तीव्र गंध वाला। उद्गीण (वि.) [ उद्---ग+क्त] 1. वमन किया हुआ उद्गमः | उद्+गम्+घन ] 1. ऊपर जाना, (तारों 2. उगला हुआ, बाहर उडेला हुआ। आदि का), उगना चढ़ना----आज्यधूमादगमेन --- श० | उद्गूर्ण (वि.) [ उद्+मूर्+क्त ] ऊँचा किया हुआ, १११५, 2. (बालों का) सीधे ग्वड़े होना-रामोद्गमः ऊपर उठाया हुआ-वेणी० ६।१२। प्रादुरभूदुमायाः --कु० ७१७७, मालवि० ४.१ अमरु उद्ग्रन्थः [ उद्+ग्रन्थ्+घा ] अनुभाग, अध्याय। ३६, 3. बाहर जाना, विदा 4. जन्म, उत्पत्ति, रचना उद्ग्रन्यि (वि.) [ ब० स०] बन्धनमुक्त (आलं. भी)। -- पारिजातस्योद्गम:--मा० २, आविर्भाव–फलेन उद्ग्रहः, हणम् | उद्+ ग्रह +अच् ल्युट् वा] 1. लेना, सहकारस्य पुष्पोद्गम इव प्रजा:-रघु० ४।९, कतिपय- उठाना, 2. ऐसा कार्य जो धार्मिक अनुष्ठान अथवा कुमुमोद्गमः कदम्बः-उत्तर० ३।२०, अमरु ८१, 5. अन्य कृत्यों से सम्पन्न हो सकता है 3. डकार । उभार, उन्नयन 6. (किसी पौधे का) अंकुरण - हरित- | उदग्राहः [उद्+ग्रह+घञ ] 1. उठाना या लेना, 2. तृणोद्गमशङ्कया मगीभिः -कि० ५।३८, 7. वमन | बाद का उत्तर देना, प्रतिवाद । करना, उगलना। उद्ग्राहणिका [उद्-ग्रह+णिच्--यु+टा+क, उद्गमनम् [ उद्+ गम् + ल्युट ] उगना, दिखाई देना।। ___ इत्वम् ] वाद का उत्तर देना। उद्गमनीय (स० कृ०) [ उद्+गम्-1-अनीयर ] ऊपर | उग्राहित (भू० क. कृ.) [ उद्+ग्रह -+-णिच्+क्त ] जाने या चढ़ने के योग्य, .. यम बुले कपड़ों का जोड़ा 1. ऊपर उठाया हुआ या लिया हआ 2. हटाया हुआ (तत्स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्यगम)-धौतोद्गम- 3. श्रेष्ठ, उन्नत 4. न्यस्त, मुक्त किया गया 5. बद्ध, नीयवासिनी-दश० ४२, गृहीतपत्यद्गमनीयवस्था--- नद्ध 6. प्रत्यास्मन, याद किया गया। कु०७१११ (यहाँ मल्लि० 'उ-" का अनवाद 'धौतवस्त्र' उदग्रीव, उग्रीविन (वि.) [उन्नता ग्रीवा यस्य-ब० करते हैं और कहते है कि 'युगग्रहणं तु नायिकाभि- स०, उन्नता ग्रीवा-प्रा० स०-- उग्रीवा+इनि] प्रायम्' दे० वहीं)। गर्दन ऊपर उठाये हुए.--उनीवर्मयूरै--मालवि० उदगाढ (वि.) [ उद्+गाह.+वत ] गहरा, गहन, अत्य- श२१, अमरु ६३। धिक, अत्यंत-उद्गाहरागोदया:---मा० ५७, ६६, उद्धः [ उद+ हन+ड ] 1. श्रेष्ठता, प्रमुखता (समास के ---ढम् आधिक्य, --(अव्य०) अत्यधिक, अत्यन्त । अन्त में) ब्राह्मणोद्घः==एक श्रेष्ठ ब्राह्मण-उद्घाउद्गात (०) [ उद्+गै--तृच ] यज्ञ के मुख्य चार दयश्च नियतलिङ्गा न तु विशेष्यलिङ्गाः-सिद्धा०, ऋत्विजों में से एक जो सामवेद के मंत्रों का गान तु० मतल्लिकामचचिका प्रकाण्डमद्घतल्लजी, प्रशस्तकरता है। वाचकान्यमूनि---अमर० 2. प्रसन्नता 3. अंजलि 4. उद्गारः [ उद्+ग+धन ] 1. (क) निष्कासन, थूकना, ! अग्नि 5. नमूना ६. शरीरस्थित आंगिक वायु । For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र धनः [उद्+हन्+अप् ] लकड़ी का तख्ता जिस पर । दिग्गजे-रघु० ११७८-शि० ११११९ 3. भयावह बढ़ाई लकड़ी रख कर घड़ता है, आगड़ी - लौहोद्घन- 4. स्वेच्छाचारी 5. अतिबहल, विशाल, बड़ा, अत्यधिक घनस्कन्धा ललितापधनां स्त्रियम् --भट्टि० ७।६२ । --मेघ० २५, रत्ना० २१४, मः 1. यम 2. वरुण, उपनम्मा [उद्+घट्ट+ल्युट्, युच् वा ] रगड़, -मम् (अव्य०) प्रचण्डता के साथ, भीषणतापूर्वक, ..से टकराना-मेघ०६१ । बलपूर्वक-अद्योद्दामं ज्वलिष्यतः--उत्तर० ३।९। पर्वणम् [उद्+घृष्+ल्युट ] 1. रगड़ना, घोटना-यस्यो- | उद्दालकम् [ उद्+दल+णिच्+अच्+कन् ] एक प्रकार दुघर्षणलोष्टकैरपि सदा पृष्ठे न जातः किणः-मृच्छ० का शहद, लसोड़े का फल । २।११, 2. सोटा। उहित (वि०) [ उद+दो+क्त ] बंधा हुआ, बद्ध । उधाटः [ उद्+घट्+घञ्] चौकीदार या चौकी इष्ट (भू० क० कृ०) [ उद्+दिश्+क्त ] 1. बताया (जिसमें सैन्य संरक्षक दल ठहरे)। हुआ, विशिष्ट, विशेष रूप से कहा गया 2. इच्छित उषाटकः [उद्+घट+णिच+पवुल ] 1. कुंजी 2. कुएँ 3. चाहा हुआ 4. समझाया गया, सिखाया गया। की रस्सी और डोल, कुएँ की चर्बी (-कम् भी)। | उद्दीपः [ उद्+दीप+घञ ] 1. प्रज्वलित करने वाला, उदघाटन (वि०) (स्त्री०-नी) [उद्+घट+णि+ | जलाने वाला 2. प्रज्वालक । ल्युद] खोलना, ताला खोलना-धर्म यो न करोति | उद्दीपक (वि०) [ उद्+दी+णिच्+ण्वुल ] 1. उत्तेजक निन्दितमतिः स्वर्गिलोद्घाटनम्-हि० १११५३,-नम् | 2. प्रकाशक, प्रज्वालक । 1. प्रकट करना-वेणी०१2. उन्नत करना, ऊपर | उहीपनम् [उद+दी+णिच् + ल्युट् ] 1. जलाने वाला, उठाना 3. कुंजी 4. कुएँ पर की रस्सी व डोल, पानी उत्तेजना देने वाला 2. (अल० शा०) जो रस को निकालने की ची। उत्तेजित करे, दे० 'आलंबन' 3. प्रकाश करना, जलाना उधातः [उद्+हन्+घ ] 1. आरंभ, उपक्रम-उद्- 4. शरीर को भस्म करना। घातः प्रणवो यासाम्-कु० २।१२, आकुमारकथोद्घातं | उद्दीप्र (वि.) [उद्+-दीप्+रन् ] चमकता हुआ, दहकता शालिगोप्यो जगुर्यशः-रघु० ४।२० 2. संकेत, उल्लेख हुआ,—प्रः,-प्रम् गुग्गुल । 3. प्रहार करना, घायल करना 4. प्रहार, थप्पड़, | उदप्त [ उद्+द+क्त ] घमंडी, अभिमानी । आषात 5. हचकोला, झकझोरना, (गाड़ी आदि का) | उद्देशः [उद्+दिश+घा] 1 संकेत करने वाला, निदेश धचका-शि० १२१२, रघु० २।७२, वेणी० २।२८, 6. . करने वाला 2. वर्णन, विशिष्ट वर्णन 3. निदर्शन, उठना, उन्नत होना 7. मुद्गर 8. शस्त्र 9. पुस्तक व्याख्यान, दृष्टान्त 4. निश्चयन, पृच्छा, समन्वेषण, खोज 5. संक्षिप्त वक्तव्य या वर्णन----एष तुद्देशतः उपोषः [उद्+धुष्+घ ] 1. ऊँची आवाज में कहना प्रोक्तो विभुतेविस्तरो मया--भग० १०१४०, 6. दत्त ढिंढोरा पीटना 2. सर्वजन प्रिय बात, सामान्य विवरण । कार्य 7. अनबन्ध 8. अभिप्राय, प्रयोजन 9. स्थान, ईशः [उद्+दंश्+अच ] 1. खटमल 2. जूं 3. मच्छर । प्रदेश, जगह-अहो प्रवातसुभगोऽयमुद्देशः-श. ३, गम (वि.) [अत्या० स०] 1. जिसका तना, डंठल या मालवि०३। ध्वज उठा हुआ हो--उद्दण्डपन गृहदीर्घिकाणाम्-रघु० उद्देशकः [ उद्+दिश --ण्वुल ] 1. निदर्शन, दृष्टांत १६.४६, °धवलातपत्राः मा०६, 2. मजबूत, भयानक । । 2. (गणित में) प्रश्न, समस्या। सम०-पाल: 1. दंड देने वाला 2. एक प्रकार की | उदेश्य (सं००) [उद+दिश+ण्यत] 1. उदाहरण देकर मछली 3. एक प्रकार का साँप । स्पष्ट करने या समझाये जाने के योग्य 2. अभिप्रेत, नहन्तुर (वि.) [प्रा. स.] 1. जिसके दाँत लंबे, या | लक्ष्य,-श्यम 1. लक्ष्यार्थ, प्रोत्साहक 2. किसी उक्ति बाहर निकले हुए हों 2. ऊँचा, लंबा 3. भयानक, (क्रिया)का कर्ता, (विप० विधेय) दे० 'अनुवाद्य' भी। मजबूत। उद्योतः [उद्+द्युत्+घञ्] 1. प्रकाश, प्रभा (शा० और उद्दामम् [ उद्+दो+ल्युट ] 1. बंधन, कैद-उहाने क्रिय- आलं.)-विभिनेत्रः कृतोदयोतम्-महा०, कुलोद्योत माणे तु मत्स्यानां तव रज्जुभिः-महा0 2. पालतू करी तव-रामा० अलंकृत करते हुए 2. किसी पुस्तक बनाना, वश में करना 3. मध्यभाग, कटि 4. चूल्हा, के प्रभाग, अध्याय, अनुभाग या परिच्छेद । अंगीठी, 5. वडवानल। उद्मावः [उद्+दु+घञ्] भागना, पीछे हटना। हान्त (वि.) [उद्+दम्+क्त] 1. ऊर्जस्वी 2. विनीत।। दम् क्त 1. ऊजस्वी 2. विनीत । | उसत (भू० क. कृ.) [उद्+हन्+क्त] 1. ऊँचा किया रहाम (वि.) [ग० सं०] 1. निबंध, अनियंत्रित, निरंकुश, हुआ, उन्नत, ऊपर उठाया हुआ---लागूलमुद्धतं धुन्वन् मुक्त-शि०४।१० 2. (क) सबल, सशक्त-पंच. - भट्रि० ९७ आत्मोद्धतरपि रजोभिः-श० १२८, ३३१४८ (ख) भीषण, नशे में चर-स्रोतस्युद्दाम- । उठाई हुई, रषु० ९/५० हांफा हुआ-कि० ८1५३ उबयामाग, अध्याय, अना7. मुद्गर ४.१णी० २।२८, ४. / उद्देशः (उदर दृष्+क्त प For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९७ ) 2. अतिशय, अत्यन्त, अत्यधिक 3. अभिमानी, निरर्थक, । उदारः [उद्+है+घञ] 1. खींचकर बाहर निकालना, ध्यर्थ फूला हुआ-अक्षवधोद्धत:---रघु० १२१६३ निस्सारण 2. मुक्ति, त्राण, बचाव, अपमोचन, छुट4. कठोर 5. उत्तेजित, भड़काया हुआ, प्रचंड मनोभव- कारा 3. उठाना, ऊपर करना 4. (विधि में) पैतक रागा-कि० ९।६८, ६९, मदोद्धताः प्रत्यनिलं विचेरुः सम्पत्ति में से पृथक किया गया वह भाग जिसका कु० ३१३१ 6. शानदार, राजसी-धीरोद्धता नमयतीव लाभ केवल ज्येष्ठ पुत्र ही उठा सके, छोटे भाइयों को गतिर्धरित्रीम-उत्तर० ६।१९, अक्खड़, अशिष्ट,-तः दिय जाने वाले भाग के अतिरिक्त वह अंश जो राज-मल्ल । सम-मनस्,-मनस्क (वि०) दम्भी, कानूनन बड़े भाई को ही मिले--मनु० ९।११२, 5. अहंकारी, घमंडी। युद्ध की लूट का छठा भाग जिसका स्वामी राजा होता उबतिः (स्त्री०) [उद्+हन्+क्तिन] 1. उन्नयन 2. घमंड, है-मनु० ७।९७, 6. ऋण, 7. सम्पत्ति का फिर से अभिमान,-शि० ३।२८, 3. अक्खड़पना, धृष्टता प्राप्त हो जाना 8. मोक्ष। 4. प्रहार। उद्धारणम् [उद्+ह (ध)+णिच-ल्यूट] 1. उठाना ऊँचा उडमः [उद्+मा+श · घमादेशः] 1. आवाज निकालना, करना 2. बचाना, भय से निकाल लेना, छुटकारा, बजाना 2. घोर सांस लेना, हॉफना। मुक्ति । उखरणम् [उद्-ह+ ल्युट्] 1. निकालना, बाहर करना, | उदर (वि०) [ उद्+-धुर्+क] 1. अनियन्त्रित, निरंकुश, (वस्त्रादिक) उतारना 2. निचोड़ना, निस्सारण, मुक्त 2. दृढ़, निश्शंक 3. भारी, भरपूर-शि० ५।६४ उखाड़ लेना,-कंटक मनु० ९२२५२, चक्षुषोरुद्धर- 4. मोटा, फूला हुआ, स्थूल 5. योग्य, सक्षम-भामि. णम्-मिता०, 3. उद्धार करना, मुक्त करना, अभय ४१४०। करना-दीनोद्धरणोचितस्य-रघु० २।२५, स बन्धुर्यो त (भू० क० कृ०) [उद्+धू+क्त] 1. हिलाया हुआ, विपन्नानामापदुद्धरणक्षम:-हि० १२३, 4. उन्मूलन, गिरा हुआ, उठाया हुआ, ऊपर फेंका हुआ-मारुतध्वंस, पदच्य ति 5. उठाना, ऊपर करना 6. वमन भरोद्धृतोऽपि धूलिवजः--धन० 2. उन्नत, ऊँचा। करना 7. मोक्ष 8. ऋणपरिशोध । उननम् [ उद्+धू+ल्युट्, नुगागमः ] 1. ऊपर फेंकना, ज्जत-उद्धारक (वि०) [उद् + (ह)धृ+तृच, ण्वुल वा] 1. उठाना 2. हिलाना। ऊपर उठाने वाला 2. साझीदार, संपत्ति का हिस्सेदार। उपनम् [ उद्+घूप+ल्युट् ] धूनी देना, धुपाना। उवर्ष (वि०) [उद्+हुप्+घञ्] खुश, प्रसन्न,—र्षः 1. उलनमू [ उद् + धूल+णिच् + ल्युट् ] चूरा करना, बहुत प्रसन्नता 2. किसी कार्य को संपन्न करने के लिए पीसना; धूल या चूरा रकना-भस्मोडलन उत्तरदायित्व लेने का साहस 3. उत्सव (धार्मिक पर्व)। -काव्य०१०। उवर्षणम् [उद्+ हृष् + ल्युट्] 1. प्राण फूंकना 2. रोमांच | उद्धषणम् [ उद्-- धूप+ल्युट ] रोंगटे खड़े होना, पुलकना, ___ होना, पुलक । रोमांचित होना। उद्धवः [उद्+ह+अच] 1. यज्ञाग्नि 2. उत्सव, पर्व 3. उद्धृत (भू० क० कृ०) [ उद्+ह (घ)+क्त ] 1. बाहर इस नाम का यादव जो कृष्ण का चाचा तथा मित्र था । खींचा हुआ, निकाला हुआ, निचोड़ कर निकाला हुआ (जब अक्रूर द्वारा कृष्ण मथुरा ले जाये गये, तो गोकुल 2. उठाया हुआ, उन्नत, ऊँचा किया हुआ 3. उखाड़ा वासियों ने उद्धव से मथुरा जाने और वहां से कृष्ण को । हुआ, उन्मूलित-उद्धतारि:-रघु० २।३०।। वापिस लिवा लाने की प्रार्थना की । यादवों के अवश्य- उद्धृतिः (स्त्री०) [ उद्+ह (धृ)+क्तिन् ] 1. खींच कर भावी विनाश को देख कर उद्धव कृष्ण के पास गये बाहर निकालना, निचोड़ना 2. निचोड़, चुना हुमा और पूछा कि अब क्या करें, कृष्ण ने तब उद्धव को संदर्भ 3. मुक्त करना, बचाना 4. विशेषतः पाप से बतलाया कि वह बदरिकाश्रम जाकर तपस्या करें मुक्ति दिलाना, पवित्र करना, मोक्ष---चयन्ते तीर्थानि तथा स्वर्गलाभ करें। 'उद्धवदूत' और 'उद्धवसंदेश' त्वरितमिह यस्योद्धतिविधी-गंग। ० २८ । की रचना का विषय 'उद्धव' है)। उद्ध्मानम् [ उद्+मा+ल्यूट ] अंगीठी, चूल्हा, स्टोव । उखस्त (वि.) [ब० स०] हाथ आगे पसारे हुए या उद्ययः [ उज्झत्युदकमिति मल्लि०-उद्+ उज्झ्+क्यप, उठाये हुए। नि० उज्झर्घत्वम् ] एक दरिया का नाम तोयदागम उडानम् [उद्+वा+ ल्युट्] 1. चूल्हा, अंगीठी, यज्ञकुण्ड इवोद्धचभिद्ययो:--रघु० १३८ । 2. उगल देना, वमन करना। उद्बन्ध (वि.)[अत्या० स०] ढीला किया गया-धः,-धनम् उदान्त (वि.) [उद+हा--झ बा०] उगला हुआ, वमन 1. बँधना, लटकना 2. स्वयं फांसी लगा लेना। किया हुआ,-तः हाथी जिसके मस्तक से मद चूना | उदबन्धकः [ उद्+बन्ध+ण्वल ] वर्णसंकर जाति जो धोबी बन्द हो गया हो। का काम करती है--तु०--उशना--आयोगवेन For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९८ ) विप्रायां जातास्ताम्रोपजीविनः, तस्यैव नपकन्यायां | सम०--ज (वि०) (उद्भिज्ज) फूटने वाला, (पौधे जातः सूनिक उच्यते। सनिकस्य नपायां तू जाता की भाँति) उगने वाला- (-ज्जः) पौधा,-विद्या उद्बन्धकाः स्मृताः, निर्णजयेयुर्वस्त्राणि अस्पृशाश्च वनस्पति विज्ञान। भवन्स्यतः। | उद्भिद (वि.) [उद्भिद्+क] फटने वाला, उगने वाला। उबल (वि.) [ब० स०] सबल, सशक्त । उद्भुत (भू० क० कृ०) [ उद्+भू+क्त ] 1. जात, उवाष्प (वि.) [ब० स०] अश्रुपरिपूर्ण, अश्रुपरिप्लावित उत्पन्न, प्रसूत 2. (शा० तथा आलं०) उत्तुंग 3. गोचर कि० ३१५९। जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सके (गुणादि)। उदबाट (वि०) [ब० स०] भुजाएँ ऊपर उठाये हुए, | उद्भूतिः (स्त्री०) [ उद्+भू+क्तिन् ] 1. प्रजनन, उत्पा भुजाओं को फैलाये हुए–प्रांशुलभ्ये फले लोभादुबा- दन 2. उन्नयन, उत्कर्षण, समृद्धि-वरः शम्भुरलं ह्येष हुरिव वामनः- रघु० १।३।। त्वत्कुलोद्भूतये विधि:--कु० ६६८२ । उदबा (भू० क. कृ.) [उद्+बुध+क्त] 1. जागा | उद्भवः दनम् | उद्+भिद् +घञ, ल्युट वा] 1. फूट हुआ, जगाया हुआ, उत्तेजित 2. खिला हुआ, फैला पड़ना, बेघना, दिखाई देना, आविर्भाव, प्रकट होना, हुआ, पूर्ण विकसित-मा० ११४०, 3. याद दिलाया उगना-उमास्तनोद्भेदमनुप्रवृद्धः-कु०७२४,तं यौवनोगया 4. प्रत्यास्मृत। द्वेदविशेषकान्तं-रघु० ५।३८ शि० १८१३६ 3. निर्झर, उद्घोषः,-धनम् [उद्+बुध्- णिच्+घञ, ल्युट् वा] | फौवारा 4. रोमांच जैसा कि 'पुलकोद्भेदः' में । 1. जगाना, ध्यान दिलाना 2. प्रत्यास्मरण करना, | उद्भ्रमः [ उद्+भ्रम्+घञ्] 1. आघूर्णन, चक्कर देना, उठाना-ननु कथं रामादिरत्याधुबोधकारणः सीता- (तलवार आदि का) घुमाना 2. घूमना, 3. खेद । दिभिः सामाजिकानां रत्युद्बोधः-सा० द० ३, इसी उभ्रमणम् [उद्+भ्रम् + ल्युट्] 1. इधर-उधर-हिलनाप्रकार-रस । जुलना, घूमना 2. उगना, उठना । उद्घोषक (वि.) [ उद्+बुध+णिच्+ण्वुल ] 1. ध्यान उद्यत (भू० क० कृ०) [ उद्+यम+क्त ] 1. उठाया दिलाने वाला, 2. उत्तेजना देने वाला,-कः सूर्य ।। हुआ, ऊँचा किया हुआ- असिः, पाणिः आदि 2. उबूट (वि.) [उद्+भट्-+-अप ] 1. श्रेष्ठ, प्रमुख पदे संभाल कर रखने वाला, परिश्रमी, चुस्त 3. तुला पदे सन्ति भटा रणोद्भटा:-नै० १११३२ 2. उत्कृष्ट, हुआ, तना हुआ (धनुष आदि)-कि० १२१4. आमादा, महानुभाव,-टः 1. अनाज फटकने के लिए छाज तैयार, तत्पर, उत्सुक, तुला हुआ, लगा हुआ, व्यस्त 2. कछुवा । (संप्र०, अधि० तथा तुमन्नन्त के साथ या बहुधा उद्धवः [ उब्+भू+अप्] 1. उत्पत्ति, रचना, जन्म, प्रसव समास में)-उद्यतः स्वेषु कर्मसु-रघु० १७।६१, हन्तुं (शा० तथा आलं०) इति हेतुस्तदुद्भवे-काव्य० १, स्वजनमुद्यता:--भग० ११४५ जय', वध' आदि। याज्ञ० ३१८०, बहुधा समास के अन्त में "से उत्पन्न" उद्यमः [ उद्+यम् +घञ्] 1. उठाना, उन्नयन 2. सतत अर्थ को प्रकट करता है-ऊरूद्भवा-विक्रम० ११३ प्रयत्न, चेष्टा, परिश्रम, धैर्य-निशम्य चैनां तपसे मणिराकरोद्भवः---रघु० ३।१८ 2. स्रोत, उद्गमस्थान कृतोद्यमाम् कु० ५।३-शशाक मेना न नियन्तुमुद्यमात् 3. विष्णु । --५ दृढ़ संकल्प-उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न उडावः [ उद्+भू+घञ्] 1. उत्पत्ति, सन्तति 2, मनोरथैः-पंच० २।१३१ 3. तैयारी, तत्परता । सम० औदार्य। -भूत् (वि०) घोर परिश्रम करने वाला-भर्तृ० उद्धावनम् [ उद्+भू+णि+ल्युट ] 1. चिन्तन, कल्पना २०७४ । 2. उत्पत्ति, उत्पादन, सृष्टि 3. अनवधान, उपेक्षा, उद्यमनम् [ उद्+यम+ल्यट] उठाना, उन्नयन । अवहेलना। उद्यमिन् (वि.) [ उद्+यम्-+-णिनि] परिश्रमी, सतत उद्भावयितु (वि.) [ उद्+भू+णिच्+तृच् ] ऊपर प्रयत्नशील । उठाने वाला, उत्कृष्ट बनाने वाला। उद्यानम् [ उद्+या+ल्युट् ] 1. भ्रमण करना, टहलना उदासः [उद्+भास्+घञ्] चमक, प्रभा। 2. बाग, बगीचा प्रमोदवन,-बाह्योद्यानस्थितहरशिउद्भासिन्, उद्धासुर (वि.) [उद्भास्+इनि, घुरच् वा ] रश्चन्द्रिकाधौतहा --मेघ ७, २६, ३३ 3. अभि देदीप्यमान, चमकीला, उज्ज्वल;-विभूषणोद्भासि प्राय, प्रयोजन। सम०–पाल:,-पालकः,-रक्षकः पिनभोगि वा-कु०५।७८ मच्छ०८१३८, अमरु ८१। माली, बारा का रखवाला,। उद्विद (वि.) [उद्+भिद्+क्विप् ] उगने वाला, अंकुर | उद्यानकम् [ उद्+या+ल्युट्+कन् ] बास, बगीचा। फटने वाला--(०) 1. पौधे का अंकुर--अडकुरोऽभि- | उद्यापनम् [ उद्+या+णि+ल्युट, पुकागमः ] व्रतादिक नवोदिदि-अमर० 2. पौषा 3. झरना, फौवारा।। का पारण, समाप्ति । For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्योगः [ उद्+युज+घञ ] 1. प्रयत्न, चेष्टा, काम-धंधा । उगला हुआ,-नम् 1 उगलना, वमन करना, --तदैवमिति संचिन्त्य त्यजेन्नोद्योगमात्मनः--पंच० 2. अंगीठी, स्टोव । २।१४० 2. कार्य, कर्तव्य, पद--तुल्योद्योगस्तव दिनकृ- उद्वान्त (वि.) [उद्+वम्+क्त ] 1. वमन किया हुआ तश्चाधिकारो मतो नः---विक्रम० २११, धैर्य, परिश्रम । | 2. मद रहित (हाथी)। उद्योगिन् [ उद्+युज्+घिनुण् ] चुस्त, उद्यमी, उद्योग- उदापः [ उद्+व+घा ] 1. उगलना, बाहर फेंकना शील। 2. हजामत करना 3. (तर्क० में) पूर्व पद के उनः [ उन्द्+रक ] एक प्रकार का जल जन्तु । अभाव में पश्चवर्ती उत्तरांग के अस्तित्व का अभाव उनथः [ उद्गतो रथो यस्मात्-ग० स० ] 1. रथ के धुरे की | (विल्सन)। कील, सकेल 2. मुर्गा। उदासः [ उद्+वस्+घञ ] 1. निर्वासन 2. तिलांजलि उद्रावः [ उद्+रु+घञ ] शोरगुल, कोलाहल। देना 3. वध करना। उद्रिस्त (भु० क० कृ०) [ उद्+रिच+क्त ] 1. बढ़ा | उद्वासनम् [उद्+वस्+णिच+ल्यूट ] 1. बाहर निकालना, हुआ अत्यधिक, अतिशय 2. विशद, स्पष्ट । निर्वासित कर देना 2. तिलांजलि देना 3. (आग से) उबुज (वि.) [ उद्+रुज+क] नष्ट करने वाला, जड़ निकालकर दूर करना 4. वष करना। खोदने वाला (तट--आदि) यथा 'कूलमुदुज' में। उद्वाहः [उद्+वह+घञ ] 1. संभालना, सहारा देना उद्रेकः [उद्+रिच+घञ] वृद्धि, आधिक्य, प्राबल्य, प्राचुर्य 2. विवाह, पाणिग्रहण असवर्णास्वयं ज्ञेयो विधि —ज्ञानोदेकाद्विघटिततमोग्रन्थयः सत्त्वनिष्ठाः—वेणी. रुद्वाहकर्मणि-मनु० ३।४३ (स्मृतियों में आठ प्रकार १।२३, गत्वोद्रेकं जघनपुलिने-शि० ७१७४। के विवाहों का वर्णन है--ब्राह्मो देवस्तथा चार्षः प्राजाउद्वत्सरः [ उद्+वस्+सरन् ] वर्ष । पत्यस्तथासुरः, गांधर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमः उद्वपनम् [उद्+व+ल्युट ] 1. उपहार, दान 2. उडे. स्मतः)। लना, उखाड़ना। उद्वाहनम् [उद्+वह +णिच-+ल्यट] 1. उठाना 2. विवाह, उद्वमनम्,-उद्वान्तिः (स्त्री०) [ उद्+वम् + ल्युटु, क्तिन् --नी 1. बंधनी, रस्सी 2. कौड़ी, वराटिका । वा वमन करना, उगलना । | उद्वाहिक (वि.) [ उद्वाह+ठन् ] विवाह से संबंध रखने उद्वर्तः [उद्+वृत्+घञ] 1. अवशेष, आतिशय्य | वाला, विवाह विषयक (मंत्रादिक) मनु० ९।९५ । 2. आधिक्य, बाहुल्य 3. (तेल, उबटन आदि) सुगंधित | उद्वाहिन् (वि.) [उद्+-वह +णिनि ] 1. उठाने वाला, पदार्थों की मालिश। खींचने वाला 2. विवाह करने वाला,-नी उद्वर्तनम् [उद्+वृत् + ल्युट ] 1. ऊपर जाना, उठना | रस्सी, डोरी। 2. उगना, बाढ़ 3. समृद्धि, उन्नयन 4. करवट बदलना, उद्विग्न (भू० क. कृ.) [उद्+विज्+क्त ] संतप्त, उछाल लेना-चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि-मेघ० ४० पीडित, शोकप्रस्त, चितित । 5. पीसना, चूरा करना 6. सुगंधित उबटन आदि उद्वीक्षणम् | उद्+वि+ईक्ष+ल्यट 11. ऊपर की ओर पदार्थो का शरीर पर लेप करना, या पीडा आदि को देखना 2. दृष्टि, आँख, देखना, नज़र डालना---सखीदूर करने के लिए सुगंधित लेप ।। जनोद्वीक्षणकौमुदीमुखम् -- रघु० ३।१।। उद्वर्धनम् [ उद्+वृध--ल्युट् ] 1. वृद्धि, 2. दबाई हुई। उद्वोजनम् [ उद्+वी+ल्युट् ] पंखा मलना। हँसी। उद्धहणम् [ उद्+वूह + ल्युट् ] वर्धन, वृद्धि। उवह (वि.) [उद+वह +अच] 1. ले जाने वाला, आगे उद्वत्त (भू० क० कृ०) [उद्-वृत्+क्त ] 1. उठाया बढ़ने वाला 2. जारी रहने वाला, निरन्तर रहने वाला हुआ, ऊँचा किया हुआ 2. उमड़कर बहता हुआ, (वंश आदि), कुल-उत्तर० ४, इसी प्रकार रवह उमड़ा हुआ-----उदवृत्तः क इव सुखावहः परेषाम्-शि० ४।२२, रघु० ९।९, १११५४,-ह: 1. पुत्र 2. वायु ८।१८ (यहाँ 'उद्वत्त' का अर्थ 'विचलित, दुर्वत्त' है)। के सात स्तरों में से चौथास्तर, 3. विवाह, हा उद्वेगः [ उद्+विज्+घा ] 1. कांपना, हिलना, लहराना -पुत्री। 2. क्षोभ, उत्तेजना-भग० १२११५ 3. आतंक, भय उवहनम् [ उद्+वह + ल्युट ] 1. विवाह करना –शान्तोद्वेगस्तिमितनयनं दृष्टभक्तिर्भवाम्या-मेष. 2. सहारा देना, संभाले रखना, उठाये रखना--भुवः ३६, रघु० ८७ 4. चिन्ता, खेद, शोक 5. विस्मय, प्रयुक्तोद्वहन क्रियाया: ---रघु० १३।१, १४१२०, रघु० । आश्चर्य,----गम् सुपारी। २११८, कु० ३१३ 3. ले जाया जाना, सवारी करना उद्वेजनम् [ उद्-विज्+ल्युट् ] 1. क्षोभ, चिन्ता 2. पीडा मनु०८१३७०। पहुंचाना, कष्ट देना-उद्वेजनकरर्दण्डश्चिह्नयित्वा प्रवासउद्वान (वि० ) [ उद्-+-वन्+घञ ] वमन किया हुआ, येत-मनु० ८।३५२, 3. खेद । For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०० ) उद्वेवि (वि.) [ उन्नता वेदिर्यत्र ब० स० ] जहाँ आसन । ऊँचा (आलं. भी)-उन्नम्रताम्रपटमण्डपमण्डितम् ___ या गद्दी ऊँची हो—विमानं नवमुद्वेदि-रघु० १७।९। तत्-शि० ५।३१ । उद्वेपः [ उद्+वेप+अच् ] हिलना, कांपना, अत्यधिक उन्नयः, उन्नायः [उद्+नी+अच, घा वा] 1. उठाना, कंपकंपी। ऊँचा करना 2. ऊँचाई उन्नयन 3. सादृश्य, समता उद्वेल (वि०) [ उत्क्रान्तो वेलाम्-अत्या० स०] 1. अपने 4. अटकल। तट से बाहर उमड़ कर बहने वाला (नदी आदि) | उन्नयनम् [उद्+नी+ल्युट ] 1. उठाना, ऊँचा करना, -रघु० १०॥३४, का० ३३३ 2. उचित सीमा का ऊपर उठाना 2. पानी खींचना 3. पर्यालोचन, विचारउल्लंघन । विमर्श 4. अटकल। उद्वेल्लित (भू० क.कृ.) [ उद्-वेल्ल+क्त ] हिलाया | उन्नस (वि.) [उन्नता नासिका यस्य ब० स०] ऊँची नाक हुआ, उछाला हुआ,-तम हिलाना, झझोड़ना। वाला,-उन्नसं दधती वक्त्रम्--भट्टि० ४११८ ! उद्वेष्टन (वि.) [ग० स०] 1. ढीला किया हुआ-- कया- उन्नादः [ उद्+न+घञ्] चिल्लाहट, दहाड़, गुंजन, चिदुद्वेष्टनवान्तमाल्यः-रघु० ७१६, कु. ७५७, । चहचहाना । 2. बन्धनमुक्त, बन्धनरहित,-नम् 1. घेरा डालना, उन्नाभ (वि.) [ उन्नता नाभिर्यस्य-ब० स०] जिसकी 2. बाड़ा, बाड़ 3. पीठ या कूल्हों में पीड़ा। नाभि उभरी हुई हो, तुंदिल, तोंद वाला। उद्वोद (पु.) [उद्+वह +तृच् ] पति। उन्नाहः [ उद्+नह+घन ] 1. उभार, स्फीति 2. उषस् (नपुं० ) [उन्द्+असुन् ] ऐन, औड़ी दे० बाँधना, बंधनयुक्त करना, हम चावलों के माँड़ से 'ऊधस् । बनी काँजी। उन्द् (रुवा० पर०) (उनत्ति, उत्त- उन्न) आर्द्र करना, | उन्निद्र (वि०) [ उद्गता निद्रा यस्य-ब० स०] 1. निद्रा ___ तर करना, स्नान करना—याः पृथिवीं पयसोन्दन्ति । रहित, जागा हुआ-तामुन्निद्रामवनिशयना सौधवातायउन्दनम् [ उन्द+ल्युट ] तर करना, आर्द्र करना। नस्थः-मेघ०८८ विगमयत्यन्निद्र एव क्षपा:-श० उन्दरः, उन्दुरः, उन्दुरुः, उन्दूरुः [ उन्-+-उर---उरु वा] | ६।४, मद्रा० ४ 2. प्रसृत, पूर्णविकसित मुकुलित मूसा, चहा। (कमल आदि)-उन्निद्रपुष्पाक्षिसहस्रभाजा- शि० ४) उन्नत (भू० क० कृ०) [उद्+नम्+क्त ] 1. उठाया , १६, ८।२८।। हुआ, उन्नत किया हुआ, ऊपर उठाया हआ (आलं० उन्नत [उद्+नी+तच ] उठाने वाला-(पु.) यज्ञ के भी)-भर्तृ ० ३।२४, शि० ९।७९, नतोन्नतभूमिभागे १६ ऋत्विजों में से एक । —श० ४।१४ 2. ऊँचा (आलं. भी) लम्बा, उत्तुंग, | उन्मज्जनम् [ उद्+मस्+ ल्युट् ] बाहर निकलना, पानी बड़ा, प्रमुख-रघु० १३१४, विक्रम० ५।२२, कि० ५। से बाहर निकलना। १५, १४।२३, 3. मांसल, भरा-पूरा (स्त्री का वक्षस्थल उन्मत्त (भू० क० कृ०) [ उद् + मद्+क्त ] 1. मद्यप, आदि),----तः अजगर,--तम 1. उन्नयन 2. उत्थान, नशे में चूर 2. विक्षिप्त, उन्मत्त, पागल-द्वावत्रोन्मत्ती ऊँचाई। सम०-आनत (वि०) उन्नत और दलित, -विक्रम०२, मन० ९।७९, 3. फूला हुआ, उच्छित, विषम-बन्धुरं तूत्रतानतम् -अमर०,-चरण (वि०) वहशी-पंच० १११६१, शि०६।३१ 4. भूत या प्रेत दुर्दान्त,--शिरस् (वि०) अहंमन्य, बड़ा घमंडी।। से आविष्ट याज्ञ०२१३२, मनु० ३।१६१, (वातउन्नतिः (स्त्री०) [उद्+न+क्तिन् ] 1. उन्नयन, ऊँचाई पित्तश्लेष्म संनिपातग्रहसंभवेनोपसष्ट:--मिता०),-त्तः (आलं. भी) नीचे दे० 'उन्नतिमत्' 2. उत्कर्ष, मर्यादा, धतूरा। सम-कीतिः,-वेशः शिवांगम् एक देश का अभ्युदय, समृद्धि-स्तोकेनोन्नतिमायाति स्तोकेनायात्य- | नाम (यहाँ गंगा भीषण कल्लोल करती हुई बहती है) घोगतिम् ---पंच० १११५०, शि० १६।२२, भामि० १॥ -दर्शन,-रूप (वि.) देखने में पागल,-प्रलपित (वि.) ४०-–महाजनस्य संपर्कः कस्य नोन्नतिकारकः --हि. पागल की बहक (-तम) पागल के शब्द । ३ 3. उठाना। सम०-ईशः गरुड़, (उन्नति का | उन्मथनम् [ उद्+मथ + ल्युट ] 1. झाड़ना, फेंक देना 2. स्वामी)। बध करना, अन्योन्यसूतोन्मथनात्-रघु० ७.५२। उन्नतिमत् (वि.)[ उन्नति मतुप ] उन्नत, उभरता हुआ, उन्मद (वि०) [उद्गतो मदो यस्य--ब० स०] 1. नशे फूला हुआ (जैसे कि स्त्री का वक्षस्थल)--सा पीनो- में चूर, शराबी, रघु० २।९, १६१५४ 2. पागल, नतिमत्पयोधरयुगं धत्ते--अमरु ३०, शि० ९७२। क्रोधोद्दीप्त, उड़ाऊ-शि०१०१४, १६६९ 3. नशा उन्नमनम् [उद्+नम् + ल्युट ] 1. ऊपर उठाना, ऊँचा करने वाला, मादक-मधुकराङ्गनया मुहुरुन्मदध्वनिभूता करना 2. ऊँचाई। निभृताक्षरमुज्जगे---शि० ६।२०,-द: 1. विक्षिप्ति उन्नन (वि.) [ उद्+नम्+रन् ] खड़ा, सीधा, उत्तुंग, । 2. नशा। For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २०१ ) उन्मदन (वि० ) [ उद्भूतो मदनोऽस्य ब० स०] प्रेम पीडित, प्रेमोद्दीप्त तदाप्रभृत्युन्मदना पितुर्गृहे - कु० | उन्मितिः [ उद् + मा + क्तिन् ] नाप, तोल, मूल्य । उन्मिश्र ( वि० ) [ प्रा० स० ] मिला-जुला, चित्रविचित्र । ५१५५। उन्मदिष्णु ( वि० ) [ उद् + मद् + इष्णुच् ] 1. पागल 2. नशे में चूर, जिसने मदिरा पी हुई हो 3. जिसे मद चूता हो (हाथी) । उन्मनस-नस्क ( वि० ) [ उद्भ्रान्तं मनो यस्य ब० स०, कप च ] 1. उत्तेजित, विक्षुब्ध, संक्षुब्ध, बेचैन रघु० ११।२२, कि० १४।४५ 2. खेद प्रकट करना, किसी मित्र के बिछोह से उदास 3. आतुर, उत्सुक, उतावला | उन्मनायते ( ना० धा० आ० उन्मनीभू) बेचैन होना, मन में क्षुब्ध होना । उन्मन्यः [ उद् + मन्थ्+घञ ] 1. क्षोभ 2 वध करना, हत्या करना । उन्मन्थनम् [ उद् + मन्य् + ल्युट् ] 1. हिलाना, क्षुब्ध करना 2. वध करना, हत्या करना, मारना 3. ( लकड़ी आदि से) पीटना । उन्मयूख (वि० ) [ ० स०] प्रकाशमान, चमकीला - रघु० १६।६९ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलना उन्मर्दनम् [ उद् + मुद् + ल्युट् ] 1. रगड़ना, 2. मालिश करने के लिए सुगंधित (तैलादिक) । उन्माय: [ उद् + मथ् + धन् ] 1. यातना, अतिपीडा 2. हिला देना, क्षुब्ध करना 3. दघ करना, हत्या करना 4. जाल, पाश । उन्माद (वि० ) [ उद् + मद्+घञ्ञ, ]1. पागल, विक्षिप्त 2. असंतुलित, दः 1. पागलपन, विक्षिप्ति- अहो उन्मादः - उत्तर० ३ 2. तीव्र संक्षोभ 3. विक्षिप्तता, सनक ( मानसिक विकार) 4. (अलं० शा० में) ३३ संचारिभावों में से एक चित्तसंमोह उन्मादः कामशोकभयादिभिः सा० ६० ३ या विप्रलम्भमहापत्तिपरमानन्दादिजन्माउयस्मिन्नन्यावभास उन्मादः रस० 5. खिलना - उन्मादं वीक्ष्य पद्मनाम् सा० द०२ । उन्मादन ( वि० ) [ उद् + मद्+मित्र+ ल्युट् ] पागल बना देने वाला, मादक, नः कामदेव के पाँच वाणों में से एक । उन्मानम् [ उद् + मा -- ल्युट् ] 1. तोलना, मापना 2. माप, तोल 3. मूल्य । उन्मार्ग (वि० ) [ उत्क्रान्तः मार्गात् अत्या० स०] कुमार्गगामी, गं: 1. कुमार्ग, शुमार्ग से विचलन (आलं० भी ) 2. अनुचित आचरण बुरो चाल उन्मार्गप्रस्थितानि इंन्द्रियाणि का० १६५, प्रवर्तकः १०३ - गंम् ( अव्य०) मुळा-भटका पंच० १०१६१ । उन्मार्जनम् [ उद् + मृज् + णिच् + ल्युट् | रगड़ना, पोंछना, मिटाना । २६ उन्मिषित (भू० क० कृ० ) [ उद् + मिष् + क्त ] खुला हुआ (आँख आदि), खिला हुआ, फुलाया हुआ, -तम् दृष्टि, झलक - कु० ५।२५ । उन्मील: --- लनम् [ उद् + मील् + घञ ल्युट् वा ] 1. (आखों का) खोलना, जागति 2. प्रकाशित करना, खोलना - उत्तर० ६।३५ 3. फुलाना, फूंक मारना । उन्मुख (वि० ) ( स्त्री० खी) [ उद् - ऊर्ध्वं मुखं यस्य - ब० स०] 1. मुंह ऊपर की ओर उठाये हुए, ऊपर देखते हुए - अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किंस्विदित्युन्मुखीभिः - मेघ० १४,१००, रघु० १३९, ११।२६, आश्रम १५३ 2. तैयार, तुला हुआ, निकटस्थ, उद्यत -- तमरण्यसमाश्रयोन्मुखम् - रघु० ८1१२, बन में चले जाने के लिए तत्पर - १६/९, 3. उत्सुक, प्रतीक्षक, उत्कंठित - तस्मिन् संयमिनामाद्ये जाते परिणयोन्मुखे कु० ६।३४, रघु० १२/२६, ६।२१, ११।२३ 4. शब्दायमान शब्द करता हुआ -कु० ६।२। ३।१२ उन्मुखर ( वि० ) [ प्रा० स० ] ऊँचा शब्द करने वाला, कोलाहलमय । उन्मुद्र (वि० ) [ उद्गता मुद्रा यस्मात् - ब० स०] 1. बिना मुहर का 2. खुला हुआ, खिला हुआ, ( फूल की भाँति ) फूला हुआ । उन्मूलनम् [ उद् + मूल् + ल्युट् ] जड़ से फाड़ लेना, "उखाड़ना, मूलोच्छेदन करना - न पादपोन्मूलनशक्ति रहः – रघु० २।३४ । उन्मेदा [ प्रा० रा० ] स्थूलता, मोटापा । उन्मेष: – षणम् [ उद् + मिष् + घञ, ल्युट् वा ] 1. ( आखों का) खोलना, पलक मारना - मुद्रा० ३।२१, 2. खिलना, खुलना, फूलना - उन्मेषं यो मम न सहते जाति-वैरी निशायाम् - काव्य ० १०. दीर्घिका कमलोन्मेषः कु० २।३३ 3. प्रकाश, कौंध, दीप्ति सतां प्रज्ञोन्मेष:भर्तृ० २।११४ विद्युदुन्मेषदृष्टिम् - मेघ० ८१4. जाग जाना, उठना, दिखलाई देना, प्रकट होना, ज्ञानं - शा० ३।१३ । उन्मोचनम् [ उद् +-मुव् + ल्युट् ] खोलना, ढीला करना । उप ( उप० ) 1. यह उपसर्ग क्रिया या संज्ञाओं से पूर्व लग कर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है - ( क ) निकटता, संसक्ति उपविशति, उपगच्छति (ख) शक्ति, योग्यता - उपकरोति (ग) व्याप्ति-उपकीर्ण (घ ) परामर्श, शिक्षण (जो अध्यापक द्वारा प्राप्त हो) उपस्थिति, उपदेश (ङ) मृत्यु, उपरति-उपरत (च) दोष, अपराध - उपघात (छ) देना उपनयति, उपहरति For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०२ ) (ज) चोटा, प्रयत्न-उपत्वा नेष्य (झ) उपक्रम, | उपकारः [ उप--कृ+घञ्] 1. सेवा, सहायता, मदद, आरम्भ-उपक्रमते, उपक्रमः (ज) अध्ययन-उपा- अनुग्रह, आभार (विप० 'अपकार')--- उपकारापकारी ध्यायः, (ट) आदर, पूजा-उपस्थानम्, उपचरति हि लक्ष्यं लक्षणमेतयो:-शि० २।३७, शाम्येत्प्रत्यपकापितरं पुत्र: 2. जिस समय यह उपसर्ग क्रियाओं से रेण नोपकारेण दुर्जन:---कु० २।४० ३७३, याश० संबद्ध न होकर संज्ञा शब्दों से पूर्व लगता है तो उस ३२८४ 2. तैयारी 3. आभूषण, सजावट,-री समय-सामीप्य, समता, स्थान, संख्या, काल और ___ 1. राजकीय तंबू 2. महल 3. सराय, धर्मशाला।। अवस्था आदि की संसक्ति, तथा अधीनता की भावना उपकार्य (वि.) [ उप---कृ पयत सहायता करने के आदि अर्थों को प्रकट करता है। उपकनिष्ठिका उपयुक्त-र्या राजभवन, महल-रम्यां रघुप्रतिनिधिः --कनिष्ठिका के पास वाली अंगुली, उपपुराणम् स नवोपकार्यां बाल्यात्परामिव दशां मदनोध्यवास -अनुषंगी पुराण, उपगुरु:-सहायक अध्यापक, उपा- -रघु० ५।६३, शाही खेमा–५।४१, १११९३, ध्यक्षः-उपप्रधान, अव्ययीभाव समासों में भी इन्हीं १३३७९, १६।५५, ७३ । अर्थों में इसका उपयोग होता है :--उपगङ्गम्-गंगायाः | उपकञ्चिः ,-चिका उप-- कुञ्च+कि, कन् टाप् च छोटी समीपे, उपकूलम्, °वनम् आदि 3. संख्यावाचक शब्दों इलायची। के साथ लग कर संख्याबहुव्रीहि बन जाता है और उपकुम्भ (वि.) [अत्या० स०] 1. निकटस्थ, संसक्त 'लगभग' 'प्रायः' 'तकरीबन' अर्थ को प्रकट करता 2. अकेला, निवृत्त, एकान्त । है,—उपत्रिंशाः-लगभग तीस 4. पृथक् रहता हुआ भी उपकुर्वाणः [ उप++शानच् । ब्राह्मण ब्रह्मचारी जो यह (क) कर्म के साथ हीनता' को प्रकट करता है | गृहस्थ बनना चाहता है। --उपहरि सुरा:-सिद्धा. देवता हरि के निकट है उपकुल्या [ उप-कुल-+-यत्-+-टाप् ] नहर, खाई। (ख) अधि० के साथ यह 1. 'अधिकता' और 'उत्कृ- | उपकपम्-पे (अव्य०) [ अत्या० स०] कुएँ के निकट, ष्टता' को---उपनिष्के कार्षापणम्, उपपरार्धे हरेर्गणाः जलाशयः कुएँ के पास बना चबच्चा जिसमें गाय भैंस 2. तथा योग या जोड़ को प्रकट करता है। उपकण्ठः---कण्ठम् [ उपगतः कण्ठम्-अत्या० स०] उपकृतिः (स्त्री०)-उपक्रिया [ उप++क्तिन्, श 1. सामीप्य, सान्निध्य, पड़ोस-प्राप तालीवनश्याममुप- वा ] अनुग्रह, आभार । कण्ठं महोदधेः-रघु० ४१३४, १३१४८ कु०७१५१. उपक्रमः [उप+क्रम्+घञ्] 1. आरंभ, शुरू---रामोपकमा० ९।२ 2. ग्राम या उसकी सीमा के पास ममाचख्यौ रक्षःपरिभवं नवम्-रघु० १२१४२ राम के का स्थान - (अव्य०) 1. गर्दन के ऊपर, गले के निकट द्वारा आरम्भ किया गया 2. उपागमन, साहस बल 2. के निकट, नजदीक । पूर्वक आगे बढ़ना--मा० ७, इसी प्रकार-योषितः उपकथा [ प्रा० स०] छोटी कहानी, किस्सा। सुकुमारोपक्रमाः-त० 3. उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवसाय, उपकनिष्ठिका कन्नो अंगुली के पास वाली अंगुली । कार्य, जोखिम का काम 4. योजना, उपाय, तरकीब, उपकरणम् [ उप+ + ल्युट् ] 1. सेवा करना, अनुग्रह युक्ति, उपचार--सामादिभिरुपक्रमः-मनु० ७.१०७, करना, सहायता करना 2. सामग्री, साधन औजार, १५९, रघु०१८।१५, याज्ञ० ११३४५, शि० २०७६, उपाय-उपकरणीभावमायाति-उत्तर० ३।३, परोप- 5. परिचर्या, चिकित्सा 6. ईमानदारी की जांच दे० कारोपकरणं शरीरम-का० २०७, याज्ञ० २।२७६, । 'उपधा'। मनु० ९।२७० 3. जीविका का साधन, जावन का | उपक्रमणम् [ उप+क्रम-+-ल्युट ] 1. उपागमन 2. उत्तरसहारा देने वाली कोई बात 4. राजचिह्न। दायित्वपूर्ण व्यवसाय 3. आरम्भ 4. चिकित्सा, उपकर्णनम् [ उप+कर्ण+ल्युट् ] सुनना । उपचार। उपणिका [ उपकर्ण (अव्य०)+कन्+टाप् इत्वम ] उपक्रमणिका [उपक्रमण+ङीप्, कन्, टाप् ह्रस्व] भूमिका, अफ़वाह, जनश्रुति । प्रस्तावना। उपकर्तृ (वि.) [ उप++तृच ] उपकार करने वाला, उपकीड़ा [ अत्या० स० ] खेल का मैदान, खलने का अनुग्रहकर्ता, उपयोगी, मित्रवत् - हीनान्यनुपकर्तृणि स्थान । प्रवृद्धानि विकुर्वते-रघु० १७.५८--उपकी रसा- उपकोशः-शनम् [ उप-क्रुश्+घञ, ल्युट् ] निन्दा, दीनाम्-साद. ६२४, शि० २।३७ । झिड़की, अपकर्ष--प्राणरुपक्रोशमलीमसैर्वा-रघु० उपकल्पनम्ना [ उप-कृप- णिच् + ल्युट, युच् वा ]| |५३। । 1. तैयारी 2. कपोलकल्पित (तथ्यों का) सृजन करना, | उपक्रोष्ट्र (पुं०) [ उप + क्रुश् +तृच् ] (जोर से रेंगता गढ़ना। हुआ) गधा। पानी पीते हैं। के प्राप तालीवा० स०] For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २०३ ) उपक्व (क्वाणम् [ उप + क्वण् + अप् घञ्ञ वा ] वीणा की झंकार । उपक्षय: [ उप + क्षि + अच् ] 1. रद्द करना, ह्रास, हानि 2. व्यय 1 उपक्षेपः [ उप + क्षिप् + घञ ] 1. फेंकना, उछालना 2. उल्लेख, इंगित, संकेत, सुझाव– कार्योपक्षेपमादौ तनुमपि रचयन् - मुद्रा० ४१३ - दारुणः खलूपक्षेपः पापस्य – वेणी० ५ 3. धमकी, विशेष दोषारोपण | उपक्षेपणम् [ उप + क्षिप् + ल्युट् ] 1. नीचे फेंकना, डाल देना 2. दोषारोपण, दोषी ठहराना । उपग (वि० ) [ उप + गम् + ड] ( केवल समासान्त में ) 1. निकट जाने वाला, पीछे चलने वाला, सम्मिलित होने वाला 2. प्राप्त करने वाला - मनु० ११४६, शि० १६/६८ । उपगण: [ प्रा० स०] अप्रधान श्रेणी । उपगत (भू० क० कृ० ) [ उप + गम् + त ] 1. गया हुआ, निकट पहुँचा हुआ 2. घटित 3. प्राप्त 4. अनुभूत 5. प्रतिज्ञात, सहमत | उपगतिः (स्त्री० ) [ उप + गम् + क्तिन् ] 1. उपागमन, निकट जाना 2. ज्ञान, जानकारी 3. स्वीकृति 4. उपलब्धि, अवाप्ति । उपगमः -मनम् [ उप + गम् + अप्, ल्युट् वा ] 1. जाना, आकृष्ट होना, निकट जाना-सीमन्ते च त्वदुपगमजं यत्र नीपं बधूनाम्-मेघ० ६५, तुम्हारा आना - व्यावर्ततान्योपगमात्कुमारी रघु०६।६९, ९/५० 2. ज्ञान, जानकारी 3. उपलब्धि, अवाप्ति – विश्वासोपगमादभिन्नगतयः – श० १।१४ 4. संभोग ( स्त्री-पुरुष का ) 5. समाज, मण्डली न पुनरघमानामुपगमः हि० १।१३६ 6. झेलना, भुगतना, अनुभव करना 7. स्वीकृति 8. करार, प्रतिज्ञा । उपगिरि-रम् ( अव्य० ) [ अव्य० स० - टच् ( सेनकस्य मन ) ] पहाड़ के निकट, रिः उत्तर दिशा में पहाड़ के समीप स्थित देश । उपगु ( अव्य० ) गौ के समीप, गुः ग्वाला । उपगुरु: [ प्रा० स०] सहायक अध्यापक | उपगूढ (भू० क० कृ० ) [ उप + गूह + क्त ] गुप्त, आलिगित --ढम् आलिंगन - उपगूढानि सर्वेपथूनि च - कु० ४।१७, शि० १०८८, कण्ठाश्लेषोपगूढम् - भर्तृ० ३।८२, मेघ० ९७ । उपगूहनम् | उप + गूह + ल्युट् ] 1. गुप्त रखना, छिपाना 2. आलिंगन 3. आश्चर्य, अचम्भा । उपग्रहः [ उप+ग्रह + अप् ] 1. कंद, पकड़ 2. हार, भग्नाशा - मुद्रा ० ४।२ 3 कैदी 4. सम्मिलित होना, जोड़ना 5. अनुग्रह, प्रोत्साहन 6. लघु ग्रह ( राहु, केतु आदि) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपग्रहणम् [ उप + ग्रह + ल्युट् ] 1. पकड़ना (नींचे से ) संभाले रखना, (जैसा कि 'पादोपग्रहणम्' में) 2. पकड़, गिरफ्तारी 3. सहारा देना, बढ़ावा देना 4. वेदाध्ययन -- वेदोपग्रहणार्थाय तावग्राहयत प्रभुः -- रामा० । उपग्राहः [ उप + ग्रह +घञ ] 1. उपहार देना 2. उपहार । उपग्राह्यः [ उप + ग्रह + ष्यत् ] 1. भेंट या उपहार 2. विशेष रूप से वह भेंट जो किसी राजा या प्रतिष्ठित व्यक्ति को दी जाय, नज़राना । - उपघातः [ उप + न् + घञ् ]1. प्रहार, चोट, अधिक्षेप मनु० २।१७९, याज्ञ० २।२५६ 2. विनाश, बर्बादी 3. स्पर्श, संपर्क 4. संप्रहार, उत्पीडन 5. रोग 6. पाप । उपघोषणम् [ उप + घुष् + ल्युट् ] ढिढोरा पीटना, प्रकाशित करना, विज्ञापन देना । उपघ्नः [ उप + न् + क] 1. अनवरत सहारा-छेदादिवोपघ्नतरोव्रतत्यो— रघु० १४।१ 2. शरण, सहारा, संरक्षा । उपचक्रः [ प्रा० स० ] एक प्रकार का लाल हंस । उपचक्षुस् (नपुं० ) [ प्रा० स० ] चक्षुताल, चश्मा | उपचय: [ उप + चि + अच्]1. इकट्ठा होना, जोड़, अभि वृद्धि 2. वृद्धि, बाढ़, आधिक्य - बल का० १०५, स्वशक्त्युपचये शि० २५७, ९३२3. परिमाण, ढेर 4. समृद्धि, उत्थान, अभ्युदय । उपचरः [ उप + र् + अच् ] 2. निकट जाना । 1. इलाज, चिकित्सा उपचरणम् [ उप + चर् + ल्युट् ] निकट या समीप जाना । उपचाय्य: [ उप + चि + ण्यत् ] एक प्रकार की यज्ञाग्नि । उपचारः [ उप+चर्+घञ्ञ ]1. सेवा, शुश्रूषा, सम्मान, पूजा, सत्कार - अस्खलितोपचाराम् - रघु० ५/२० 2. शिष्टता, नम्रता, सौजन्य, नम्र व्यवहार ( सौजन्य का बाह्य प्रदर्शन) परिभ्रष्टः - हि० १।१३३, 'विधिर्मनस्विनाम् — मालवि० ३।३, पदं न चेदिदं - कु० ४१९ केवल सम्मान सूचक उक्ति, चाटुकारितापूर्ण अभिनन्दन 3. अभिवादन, प्रथानुकूल नमस्कार, श्रद्धांजलि - नोपचारमर्हति - श० ३।१८, यंत्रणया — मालवि० ४ ° अंजलि : - रघु० ३।११, नमस्कार करते समय दोनों हाथ जोड़ना 4. संबोधन या अभिवादन की रीति का एक रूप – रामभद्र इत्येव मां प्रत्युपचारः शोभते तातपरिजनस्य उत्तर० १, यथा गुरुस्तथोपचारेण - ६ 5. बाह्य प्रदर्शन या रूप, संस्कार, - प्रावृषेण्यैरेव लिङ्गैर्मम राजोपचार: - विक्रम ० ४ 6. चिकित्सा, उपचार, इलाज या चिकित्सा का प्रयोग, शिशिर - दश० १५ 7. अभ्यास, अनुष्ठान, संचालन, प्रबंध -- व्रतचर्या - मनु० १।१११, १०/३२, कामोपचारेषु – दश० ८१, प्रेम-वार्ता के संचालन में 8. श्रद्धांजलि अर्पित करने या सम्मान प्रदर्शित करने के For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०४ ) साधन -प्रकीर्णाभिनवोपचारम (राजमार्गम्) रघु 1. जीविका 2. जीवन-निर्वाह का साधन, गुजारा ७।४, ५।४१, १. अतः (पूजा, उत्सव या सजावट आदि या वृत्ति--निन्दितार्थोपजीवनम्-याश० ३।२३६ की) कोई भी आवश्यक वस्तु-सन्मंगलोपंचाराणाम् 3. जीविका का साधन, संपत्ति आदि--किंचिद्दत्वोप-~-रघु० १०।७७, कु. ७।८८, रघु० ६.१, पूजा की । जीवनम्-मनु० ९।२०७। वस्तुओं या उपचारों की संख्या भिन्न-भिन्न (५, १०, | उपजीव्य (वि०) [उप+जी+ ण्यत् ] 1. जीविका प्रदान १६, १८ या ६४) बतलाई गई है 10. व्यवहार, करने वाला-याज्ञ० २२२७ 2. संरक्षक, संरक्षण शील, आचरण –वैश्य-शूद्रोपचारं च-मनु० ११११६ देने वाला 3. (आलं०) लिखने के लिए सामग्री 11. काम में आना, उपयोग 12. धर्मानुष्ठान, संस्कार देने वाला, जिससे कि मनुष्य सामग्री प्राप्त करे ---प्रयक्त पाणिग्रहणोपचारो-कू०७।८६, महावी० -सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति--महा०, ११२४ 13. (क) आलंकारिक या लाक्षणिक प्रयोग, –व्यः 1. संरक्षक 2. स्रोत या प्रामाणिक ग्रंथ (जिससे गौण प्रयोग (विप० 'मुख्य' या 'प्राथमिक भाव') कि मनुष्य सामग्री प्राप्त करे)- इत्यलमुपजीव्यानां -अचेतनेऽपि चेतनवदुपचारदर्शनात्-शारी०, न चास्य मान्यानां व्याख्यानंषु कटाक्षनिक्षेपेण----सा० द० २। करघृतत्व तत्त्वतोऽस्ति इति मुख्यऽपि उपचार एव | उपजोषः, षणम् [उप-+जष+घा, स्यट वा ] 1. स्नेह शरणं स्यात्-काव्य. १० (ख) समता के आधार 2. सुखोपभोग 3. वार-बार करना। पर बना काल्पनिक अभिज्ञान-उभयरूपा चेयं शुद्धा | उपज्ञा [ उप+ज्ञा+अड] 1. अन्तः करण में अपने आप उपचारेणामिश्रितत्वात-काव्य०२ 14. रिश्वत 15. उपजा हुआ ज्ञान, आविष्कार (प्रायः समास में जहाँ बहाना--शि० १०२ 16. प्रार्थना, याचना 17. विसर्गों नपु० समझा जाता है) पाणिनेरुपज्ञा पाणिन्युपक्षं ग्रन्थः के स्थान में स् या प् का होना ..सिद्धा०, प्राचेनसोपज्ञं रामायणम् ---रघु० १५।६३ उपचितिः (स्त्री०) [उप+चि+क्तिन् ] इकट्ठा करना 2. व्यवसाय जो पहले कभी न किया गया हो- लोकेऽ संचय करना, वर्धन, वृद्धि। भूद्यदुपज्ञमेव विदुषां सौजन्यजन्यं यशः -- रघुवंश पर उपचलनम् [उप-चूल+ल्युट ] गरम करना, जलाना । मल्लि० उपच्छदः [ उप-+छ+णिच् -] ढक्कन, चादर । उपढौकनम् [ उप+ढोक् + ल्युट् ] सम्मानपूर्ण भेंट या उपच्छन्दनम् [उप छन्द्-+-णि +ल्युट् ] 1. प्रलोभन | उपहार, नजराना । देकर मनाना या फुसलाना, समझा बुझा कर किसी उपतापः [उप+तप्-घन ] 1. गर्मी, आँच 2. कष्ट, कार्य के लिए उकसाना-उपच्छन्दनरेव स्वं ते दापयितुं दुःख, पीडा, शोक-सर्वथा न कञ्चन न स्पृशन्त्युपतापाः प्रयतिष्यते-दश० ६५ 2. आमंत्रण देना। - का० १३५ 3. संकट, मसीबत 4. बीमारी उपजनः [ उप-+-जन् ! अच् ] 1. जोड़, वृद्धि 2. परिशिष्ट 5. शीघ्रता, हड़बड़ी। 3. उगना, उद्गमस्थान । उपतापनम् [ उप+त+णिच्-ल्युट ] 1. गरम करना उपजल्पनम्-पिल्म् [ उप+जल्प् + ल्युट्, वा ] बात, | 2. कष्ट देना, सताना। बातचीत। उपतापिन् (वि.) [उप-तप-+ णिनि ] 1. तपाने वाला, उपजापः [ उप+जप्+घञ्] 1. चुपचाप कान में फुस- जलाने वाला 2. गर्मी या पीडा को सहन करने वाला, फुसाना या समाचार देना---परकृत्य मुद्रा० २. वीमार रहने वाला। 2. शत्रु के मित्रों के साथ गुप्त बातचीत, फूट के बीज उपतिष्यम् [अत्या० स०] 1. आश्लेपा नक्षत्रपुंज 2. पुनर्वसु बोकर विद्रोह के लिए भड़काना---उपजापः कृतस्तेन नक्षत्र । तानाकोपवतस्त्वयि-शि०२।९९, उपजापसहान् विल उपत्यका [उप+त्यकन-पर्वनस्यासन्नं स्थलमपत्यका घयन् स विधाता नृपतीन्मदोद्धत:-कि०२१४७, १६। - सिद्धा०] पर्वत को नलहटी, निम्नभूभाग-मलया४२ 3. अनक्य, वियोग । दुरुपत्यका: ---- रघु० ४।४६, एते ग्खल हिमवतोगिग्रुपउपजीवक,-विन (वि०) [ उप+जी -- एक्ल, णिनि त्यकारण्यवासिनः सम्प्राप्ताः--०५। वा ] किसी दुसरे के सहारे रहने वाला, से जीविका उपदंशः । उप+देश+घञ ] 1. भूख या प्याम लगाने करने वाला (करण के साथ या समास में)-जाति- वाली वस्तु, चाट, चटनी अचार आदि-- द्विवानपदशामात्रोपजीविनाम्--मनु० १२१११४, ८१२०, नाना- नुपपाद्य-दश० १३३, अग्रमांगोपदंशं पिब नवाणितापण्योपजीविनाम् -९।२५७, धतोपजीयस्मि ....मच्छ ० मवम्-वेणी०३ 2. काटना, इमाग्ना 3. आतशक २,--(पु०) पराश्रित, अनुचर- भीमकान्तनपगुणः रोग। स बभूवोपजीविनाम्--रघु० १११६ । उपदर्शक: [ उप+देश+णिच्+ण्वुल] 1. मार्गदर्शक, उपजीवनम,-जीविका [उप+जी+ल्युटु, क्यु निर्देशक 2. द्वारपाल, साक्षी, गवाह । For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०५ ) उपदश (वि०) [ब०व० --ब० स०] लगभग दस । ) देही, कपट-मनु० ८१९३ 2. ईमानदारी की जाँच उपदा [ उप+दा+अङ] 1. उपहार, किसी राजा या या परीक्षण (-धर्माद्यैर्यत्परीक्षणम्--यह चार प्रकार महापुरुष को दी गई भेंट, नज़राना,-उपदा विविश: | निष्ठा, निलिप्तता, संयम तथा साहस ] का कहा शश्वनोत्सेकाः कोशलेश्वरम् रघु० ४।७०, ५।४१, गया है); (शोधयेत् ) धर्मोपधाभिविप्रांश्च सर्वाभिः ७।३० 2. रिश्वत, घुस ।। सचिवान पुन: --कालिका प्र० 3. उपाय, तरकोब... उपदानम्, नकम् [ उप+दा+ल्युट, कन् च ] 1. आहुति, अयशोभिर्दु रालोके कोपधा मरणादते--शि० १९।५८ उपहार 2. संरक्षा या अनुग्रह प्राप्त करने के लिए दी 4. (व्या० में) अन्याक्षर से पहला, । सम०----भूतः गई भेंट, जैसे कि रिश्वत । बेईमान सेवक,--शुचि (वि०) परीक्षित, निष्ठावान् । उपविश (स्त्री.), उपदिशा [प्रा० स०] मध्यवर्ती उपधातुः [प्रा० स०] 1. घटिया धातु, अर्धधातु-यह गिनती दिशा, जैसे कि ऐशानी, आग्नेयी, नैऋती और में सात हैं :--सप्तोपधातव: स्वर्णमाक्षिक तारमाक्षिवायवी। कम् , तुत्थं कांस्यं च रातिश्च सिन्दूरं च शिलाजतु । उपदेवः,-देवता [प्रा० स०] छोटा देवता, घटिया देवता। सोनामाखी, रूपामाखी, तूतिया, कांसा, मर्दाशंख, उपदेशः [उप+दिश् +घञ ] 1. शिक्षण, अध्ययन, सिंदूर और शिलाजीत । 2. शरीर के अप्रधान स्राव नसीहत, निर्देशन-सूशिक्षितोऽपि सर्व उपदेशेन निपूणो जो गिनती में छः है-स्तन्यं रजो वसा स्वेदो दन्ताः भवति-माल वि०१, स्थिरोपदेशामपदेशकाले प्रपेदिरे केशास्तथैव च, औजस्य सप्तधातूनां कमात्सप्तोपधातवः प्राक्तनजन्मविद्याः-कु० ११३०, मालवि० २।१०, श० -(दूध, रज, चर्बी, पसीना, दांत, बाल और ओज)। २।३ मनु० ८।२७२, अमरु० २६, रघु० १२१५७ उपधानम् [ उप+धा+ ल्युट ] 1. ऊपर रखना या परोपदेशे पाण्डित्यम-हि० १११०३ 2. विशिष्ट निर्देश, आराम करना 2. तकिया, गद्देदार आसन -- उल्लेख 3. व्यपदेश, बहाना 4. दीक्षा, दीक्षा-मन्त्र विपुलमुपधानं भजलता-भर्त० ३१७९ 3. विशे. देना-चन्द्रसूर्यग्रहे तीर्थे सिद्धक्षेत्रे शिवालये, मन्त्रमात्र- षता, व्यक्तित्व 4. स्नेह, कृपा 5. धार्मिक अनुष्ठान प्रकथनमुपदेशः स उच्यते। 6. श्रेष्ठता, श्रेष्ठ गुण-सोपधानां धियं धीराः स्थेयसी उपदेशक (वि०) [उप+दिश+ण्वल ] शिक्षण प्रदान खट्वयन्ति ये--शि० २७७, (यहाँ 'उपधान' का अर्थ करने वाला, अध्यापन करने वाला, कः शिक्षक, निर्द- तकिया भी है)। शक, गुरु या उपदेष्टा । उपधानीयम् [ उप-धा--अनीयर् ] तकिया। उपदेशनम् [ उप+दिश् + ल्युट ] नसीहत करना, शिक्षण । उपधारणम् [ उप ।-धृ+णिच् + ल्युट ] 1. संचिन्तन, देना। विचार-विमर्श 2. खींचना, (अंकुड़ी द्वारा) खिचाव । उपदेशिन् (वि०) [ उप-+दिश् --णिनि ] नसीहत करने | उपधिः [ उप+धा-+कि ] 1. धोखादेही, बेईमानी,-अरिष वाला, शिक्षण देने वाला। हि विजयार्थिनः क्षितीशा विदधति सोपथि सन्धिदूषउपदेष्ट (वि.) [उप-दिश+नच ] नसीहत या शिक्षण णानि कि० ११४५, दे० 'अनुपधि भी 2. (विधि देने वाला, (पुं०-ष्टा) अध्यापक, गुरु, विशेषकर में ) सचाई को दवाना, झूठा सुझाव--- मनु० ८।१६५, अध्यात्म गुरु,-चत्वारो वयमृत्विजः स भगवान्कर्मों 3. त्रास, धमकी, बाध्यता, मिथ्या फुसलाहट ---बलोपदेष्टा हरिः-वेणी० ११२३ । पधिविनिर्वत्तान व्यवहारान्निवर्तयेत--याज्ञ० १३१, उपदेहः [उप+दिह +घञ्] 1. मल्हम 2. चादर, टक्कन । ८९ 4. पहिये का वह भाग जो नाभि . और पुट्ठी के उपदोहः [ उप+दुह, +घञ ] 1. गाय के स्तनों का बीच का स्थान है, पहिया। अग्रभाग 2. दूध दुहने का पात्र । उपधिकः [ उपधि+ठन धोखेबाज, प्रवञ्चक-(दे० उपद्रवः [उ : दु+अप् | 1. दुःखद दुर्घटना, मुसीबत, औपधिक अधिक शुद्ध रूप) । संकट 2. चोट, कष्ट, हानि-पुंसामसमर्थानामुपद्रवा- उपधूपित (वि.) [ उप+धूप-क्त ] 1. धूनी दिया गया यात्मनो भवेत्कोपः-पंच० ११३२४, निरुपद्रवं स्थानम् 2. मरणासन्न, अत्यन्त पीड़ा-ग्रस्त,-तः मृत्यु । -पंच० १ 3. बलात्कार, उत्पीडन 4. राष्ट्र-संकट । उपधुतिः (स्त्री०) [ उप-न-ध+क्तिन् ] प्रकाश की (राजा, दुर्भिक्ष या ऋतु के प्रकोप से) 5. राष्ट्रीय किरण। अशान्ति, विद्रोह 6. लक्षण, अकस्मात् आ टपकने | उपध्मानः [उप+मा+ल्यट] ओष्ठ,-नम् फॅक वाला रोग। मारना, साँस लेना। उपधर्मः [उप+ +मन् ] उपविधि, एक अप्रधान या तुच्छ : उपध्मानीयः [ उप+मा+अनीयर् ] प और फ से पूर्व धर्म-नियम (विप० 'पर')-मनु० २।२३७, ४।१४७ । रहने वाला महाप्राण विसर्ग-उपपध्मानीयानामोष्ठी उपधा [उप+घा+ अ] 1. छल, जालसाजी, धोखा-: -सिद्धा. उप [ उप + दहने का पान दुर्घटना, For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपनक्षत्रम् [प्रा० स० ] गौण नक्षत्र पुंज, अप्रधान तारा [ उपनिधिः [ उप-|-नि+धा+कि ] 1. धरोहर, अमानत (ऐसे तारे गिनती में ७२९ बतलाये जाते हैं)। ___ 2. (विधि में) मुहरबंद अमानत - याज्ञ० २।२५, उपनगरम् [ प्रा० स० ] नगरांचल। ___ मनु० ८।१४५, १४९, तु० मेधातिथि–यत्प्रदर्शितरूपं उपनत (भू० क० कृ०) [ उप+नम्+क्त ] आया हुआ, | सचिह्नवस्त्रादिना पिहितं निक्षिप्यते-तु० याज्ञ० २।६५, पहुँचा हुआ, प्राप्त, आ टपका हुआ आदि । और मिता० में उत्कथित नारद। उपनतिः (स्त्री०) [ उप+नम --क्तिन् ] 1. पास जाना | उपनिपातः [ उप+नि-पत्+घञ्] 1. निकट पहुँचना, 2. झुकना, नति, नमस्कार । निकट आना 2. आकस्मिक तथा अप्रत्याशित आक्रमण उपनयः [ उप+नी+अच् ] 1. निकट लाना, ले जाना या घटना। 2. उपलब्धि, अवाप्ति, खोज लेना 3. काम पर लगाना | उपनिपातिन (वि.) [ उप+नि+पत+णिनि ] अचा4. उपनयन संस्कार---जनेऊ पहनाना, वेदाध्ययन की नक आ टपकने वाला,... रन्ध्रोपनिपातिनोऽनर्थाः दीक्षा देना-गृह्योक्तकर्मणा येन समीपं नीयते गुरोः, __-...श०६। बालो वेदाय तद्योगात् बालस्योपनयं विदुः। 5. तर्क-उपनिबन्धनम् [ उप-+-नि--बन्ध+ल्युट ] 1. किसी कार्य शास्त्र में भारतीय अनुमान प्रक्रिया के पाँच अंगों में से को सम्पादित करने का उपाय 2. बंधन, जिल्द । चौथा-प्रस्तुत विशिष्ट तर्क का प्रयोग-व्याप्तिविशिष्टस्य | उपनिमन्त्रणम् [ उप+नि+-मन्त्र ---णिच् + ल्युट ] आम हेतोः पक्षधर्मता प्रतिपादकं वचनमुपनय:-तक। न्त्रण, बुलाना, प्रतिष्ठापन, उद्घाटन । उपनयनम [ उप-नील्युट] 1. निकट ले जाना | उपनिवेशित (वि.) [उप--नि+विश-णिच्+क्त ] 2. उपहार, भेंट 3. जनेऊ-संस्कार - आसमावर्तनात्कुर्या- रक्खा गया, स्थापित किया गया, बसाया गया...-कु० स्कृतोपनयनो द्विजः-मनु० २।१०८, १७३ ।। ६।३७. रघु० १५।२९। उपनागरिका [प्रा. स. वृत्त्यनुप्रास का एक भेद, उपनिषद् (स्त्री०)[ उप+नि+सद+क्विप ] 1. ब्राह्मण यह माधर्य-व्यंजक वर्गों के योग से बनता है, उदा० ग्रन्थों के साथ संलग्न कुछ रहस्यवादी रचना जिसका तु० काव्य० ९ में दिये गये उदाहरण की-अपसारय मुख्य उद्देश्य वेद के गढ अर्थ का निश्चय करना है घनसारं कुरु हारं दूर एव कि कमलं:, अलमलमालि -भामि० २।४०, मा० ११७ (निम्नांकित व्युत्पत्तियाँ मणालैरिति वदति दिवानिशं बाला। उसके नाम की व्याख्या करने के लिए दी गई है उपनायः,-नायनम् =दे० उपनय । --(क) उपनीय तमात्मानं ब्रह्मापास्तद्वयं यतः, उपनायकः [ उप+नी--प्रवल ] 1. नाट्य-साहित्य या निहन्त्यविद्या तज्जं च तस्मादुपनिषद्भवेत् । या (ख) किसी अन्य रचना में वह पात्र जो नायक का प्रधान निहत्यानर्थमूलं स्वाविद्या प्रत्यक्तया परम्, नयत्यपास्तसहायक हो, उदा० रामायण में लक्ष्मण, मालतीमाधव संभेदमतो वोपनिषद्भवेत् । या (ग) प्रवृत्तिहेतून्नि:में मकरन्द आदि 2. उपपति, प्रेमी। शेषांस्तन्मूलोच्छेदकत्वतः, यतोवसादयेद्विद्यां तस्मादुउपनायिका [प्रा० स० ] नाट्य-साहित्य या किसी अन्य पनिषद्भवेत् । मुक्तकोपनिषद् में १०८ उपनिषदों रचना में बह पात्र जो नायिका की प्रधान सखी या का उल्लेख है, परन्तु इस संख्या में कुछ और वृद्धि सहेली हो जैसे मालतीमाधव में मदयन्तिका। हुई है 2. (क) एक गूढ या रहस्यमय सिद्धान्त (ख) उपनाहः [ उप+नह+घा 11. गठरी 2. किसी घाव रहस्यवादी ज्ञान या शिक्षा--महावी० २।२ 3. पर पर लगाई जाने वाली मल्हम 3. वीणा की खूटी मात्मा के संबंध में सत्य ज्ञान 4. पवित्र एवं धार्मिक जिसको मरोड़ने से सितार के तार कसे जाते हैं। ज्ञान 5. गोपनीयता, एकान्तता 6. समीपस्थ भवन । उपनाहनम् [ उप-+नह.+णिच् + ल्युट् ] 1. उबटन आदि उपनिष्करः [ उप+निस्++घ] गली, मुख्यमार्ग, का लेप 2. मालिश करना, लेप करना । राजमार्ग। उपनिक्षेपः [ उप-नि+क्षिप्+घञ्] 1. धरोहर या उपनिष्क्रमणम् [ उप+निस्+क्रम् + ल्युट] 1. बाहर न्यास के रूप में रखना 2. खुलो धरोहर, कोई वस्तु जाना, निकलना 2. एक धार्मिक अनुष्ठान या संस्कार जिसका रूप, परिमाण आदि बता कर उसे दूसरे को जिसमें बच्चे को सर्वप्रथम बाहर खुली हवा में निकाला संभाल दिया जाता है-याज्ञ० २।२५, (इस पर मिता० जाता है (यह संस्कार प्रायः चार मास की आयु होने कहती है---उपनिक्षेपो नाम रूपसंख्याप्रदर्शनेन रक्षणार्थ पर मनाया जाता है) तु०----मनु० २१३४ 3. मुख्य परस्य हस्ते निहितं द्रव्यम्) । या राजमार्ग। उपनिधानम् [ उप+नि+धा+ल्युट् ] 1. निकट रखना । उपनत्यम् [ब० स०] नाचने का स्थान, नृत्यशाला । 2. जमा करना, किसी की देख-रेख में रखना उपनेत (वि.) [ उप+नीतिच् ] जो नेतृत्व करता है, 3. धरोहर । या निकट लाता है, ले आने वाला-कु० १६६०, For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०७ ) मालत्यभिज्ञानस्योपनेत्री-मा० ९, (पु०-ता) उप- 1 उपपादनम् [उप+पद्+णिच् + ल्युट् ] 1. कार्यान्वित नयन संस्कार को कराने वाला गुरु । करना, अमल में लाना, संपन्न करना 2. देना, सौंपना, उपन्यासः [ उप+नि-अस्+घञ्] 1. निकट रखना, । प्रस्तुत करना 3. प्रमाणित करना, प्रदर्शन, तर्क द्वारा अगल बगल रखना 2. धरोहर, अमानत 3. (क) स्थापना 4. परीक्षा, निश्चयन । वक्तव्य,सुझाव, प्रस्ताव - पावकः खल एष वचनोप- उपपापम् - उपपातकम। न्यासः-२० ५ (ख) भूमिका, प्रस्तावना-निर्यातः उपपावः-शवम अत्या० स० | 1. कंधा 2. पाश्वांग, पार्व शनकैरलीकवचनोपन्यासमालीजनः . अमरु २३ (ग) 3. विरोधी पक्ष। संकेत, उल्लेख-आत्मन उपन्यासपूर्वम् श० ३ उपपीडनम् [ उप-पीड़+णिच् + ल्युट्] 1. पेलना, 4. शिक्षा, विधि। निचोड़ना, बर्बाद करना, उजाड़ना 2. प्रपीडित करना, उपपतिः [प्रा० स०] प्रेमी, जार---उपपतिरिव नीचैः चोट पहुँचाना..... व्याधिभिश्त्रोपपीडनम्-मनु० ६.६२, पश्चिमान्तेन चन्द्र:--शि० १०६५ १५१६३, मनु० १२१८० 3. पीडा, बेदना। ३।१५५, ४।२१६, २१७ । उपपुरम् | प्रा० स०] नगरांचल । उपपत्तिः (स्त्री०) [ उप+पद् -+-क्तिन् ] 1. होना, उपपुराणम् [प्रा० स०] गौण या छोटा पुराण (इनके घटित होना, आविर्भाव, उत्पत्ति, जन्म-शि० ११६९, नामों को जानने के लिए दे० 'अष्टादशन्') भग० १३१९ 2. कारण, हेतू, आधार-कि० ३.५२ | उपपुष्पिका [ अत्या० स०--संज्ञायां कन्, टाप, इत्वम् ] 3. तर्क, यक्ति-- उपपत्तिमजितं वचः---कि० ११, जम्हाई लेना, हाँफना।। यक्तियक्त 4. योग्यता, औचित्य 5. निश्चयन, प्रदर्शन, उपप्रदर्शनम् [प्रा० स०] निर्देश करना, संकेत करना। प्रदशित उपसंहार--- उपपत्तिरुदाहृता बलात्-कि० उपप्रदानम् [प्रा० स०] 1. दे देना, सौंप देना 2. रिश्वत, ।२८ 6. (अंकगणित या ज्यामिति में) प्रमाण प्रद- उपायन-उपप्रदानर्मार्जारो हितकृत्प्रार्थ्यते जनः-पंच. र्शन 7. उपाय, तरकीब 8. करना, अमल में लाना, ११९५ 3. उपहार। प्राप्त करना, सम्पन्न करना--स्वार्थोपपत्ति प्रति | उपप्रलोभनम् [प्रा० स०] 1. बहकाना, फुसलाना दुर्बलाश: . रघ०५।१२, तात्पर्यान पत्तित: भाषा 2. रिश्वत, फुसलाहट, ललचाव----उच्चावचान्युपदे० अनुपपत्ति 9. अवाप्ति, प्राप्ति -- असंशयं प्राक प्रलोभनानि – दश० ४८ । तनयोपपत्तेः- रघ० १४१७८ कि० ३।१। उपप्रेक्षणम् [प्रा० स०] उपेक्षा करना, अवहेलना करना। उपपदम् [प्रा० स०] 1. वह शब्द जो किसी से पूर्व लगाया उपप्रेषः [प्रा० स० ] आमन्त्रण, बुलावा । गया हो या बोला गया हो--धनरुपपदं वेदम् उपप्लवः [ उप-प्ल+अप्] 1. विपत्ति, दुष्कृत्य, संकट, -कि० १८१४४, (धनुर्वेद)-तस्याः स राजोपपदं दुःखः, आपदा-अथ मदनबवरुपप्लवान्तं . परिपालयांनिशान्तम-रघु०१६।४० 2. पदवी, उपाधि, सम्मान- बभूव .कु० ४।४६ जीवन्पुनः शश्वदुपप्लवेभ्यः सूचक विशेषण यथा आर्य, शर्मन---कथं निरुपपदमेव प्रजाः पासि-रघु० २४८ 2. (क)दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना, चाणक्यमिति न आर्य चाणक्य मिति–मद्रा० ३ आघात, कष्ट...-क्वचिन्न वाय्वादिरुपप्लवो वः-रघु० 3. वाक्य का गौणशब्द, किसी क्रिया या क्रिया से बने ५।६ मेघ० १७ (ख) बाधा, रुकावट 3. उत्पीडन, संज्ञा (कृदन्त) शब्दों से पूर्व लगाया गया उपसर्ग, सताना, कष्ट देना -उपप्लवाय लोकानां धूमकेतुरिबोनिपात आदि शब्द । त्थितः- कु० २।३२ 4. डर, भय, दे० नी० 'उपउपपन्न (भू० क० कृ०) [उप+पद्+क्त ] 1. प्राप्त, प्लबिन्' 5. अपशकुन, अनिष्टकर दैवी उपद्रव 6. विशेषसेवित, सहित, युक्त 2. ठीक, योग्य, उचित, उपयुक्त कर सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण 7. राह 8. अराजकता। (संबं० या अधि० के साथ)- उपपन्नमिदं विशेषणं | उपप्लविन् (वि.) [ उपप्लव-इनि ] 1. दुःखी, कष्टग्रस्त वायो:-विक्रम० २, उपपन्नमेतदस्मिन् राजनि 2. अत्याचार से पीडित नृपा इवोपप्लविनः परेभ्यः -श०२। ---- रघु० १३६७। उपपरीक्षा,-क्षणम् [ उप+परि--- ईक्ष् +अङ, ल्युट् वा] उपबन्धः ( उप-बन्ध --घञ ] 1. संबंध 2. उपसर्ग अनुसंधान, जांच पड़ताल। 3. रतिक्रिया का आसन विशेष । उपपातः [उप+पत्+घञ ] 1. अप्रत्याशित घटना उपबहः, बर्हणम् [ बह +घञ, ल्युट वा ] तकिया। 2. संकट, मुसीबत, दुर्घटना। उपबहु (वि.) [प्रा० स०] कुछ, थोड़े बहुत । उपपातकम् [प्रा० स०] तुच्छ पाप, जर्म, महापातक- उपबाहुः [अत्या० स०] कोहनी से नीचे का हाथ का भाग । तुल्यानि पापान्युक्तानि यानि तु, तानि पातकसंज्ञानि उपभङ्गः [उप+भंजनघ ] 1. भाग जाना, पश्चगमन तन्न्यूनमुपपातकम् । याज्ञ० २।२१० । 2. (कविता का) एक भाग। For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०८ ) उपभाषा [प्रा० स०] बोलचाल को गौण भाषा। 3. (न्या० दर्शन में) सादृश्य, समानता को मान्यता, उपभूत् (स्त्री०) [ उप+भ+क्विप्, तुकागमः ] यज्ञों में चार प्रकार के प्रमाणों में से एक जो यथार्थ ज्ञान तक प्रयुक्त होने वाला गोल प्याला। पहुंचाने में सहायक होता है की परिभाषा उपभोगः [ उप+भज्+घञ्] 1. (क) रसास्वादन, । - प्रसिद्धसाधात् साध्यसाधनम्, था, उपमितिकर खाना, चखना-न जातु कामः कामानामुपभोगेन णमुपमानं तच्च सादृश्यज्ञानात्मकम् --तर्क० । शाम्यति—मन० २।९४, याज्ञ० २११७१, काम-भग० ! उपमितिः (स्त्री०) [उ+मा+क्तिन । 1. समरूपता, १६।११ (ख) उपयोग, प्रयोग ---श० ४।४ 2. रति- तुलना, समानता--पल्लवोपमितिसाम्यसपक्षम् - सा० सुख, स्त्रीसहवास- रघु० १४।२४ 3. फलोपभोग द०, . तदाननस्योपमिती दरिद्रता---० ११२४ 4. आनन्द, संतृप्ति। 2. (न्या० द० में) सादृश्य, नियमन, सादव से प्राप्त उपमन्त्रणम् [ उप---मन्त्र+ल्यट्] 1. संबोधित करना, वस्तूज्ञान, उपमान के द्वारा निगमित उपसंहार-प्रत्यआमंत्रण, बुलावा 2. उकसाना, उपच्छंदन । क्षमप्यनुमितिस्तथोपमितिशब्दजे-भाषा० ५२ 3. एक उपमन्थनी [उप+मन्थ्-+ ल्यट- ङीप् | अग्नि को उद्दीप्त अलंकारः उपमा। करने वाली लकड़ी। उपमेय (सं० कृ०) [उप-मा-यत् । समानता या उपमर्दः । उप-+-मद्+घा ] घर्षण, रगड़, दबाव, बोझ तुलना करने के योग्य, तुल्य (करण के साथ या के नीचे कुचल जाना,--अन्यासु तावदुपमर्दसहासु भृङ्गं समास में) भूयिष्ठमासीदुपमेयकान्ति: गहेन-रघ० ६१४, लोल विनोदय मनः सुमनोलतासु --सा० द० (यहाँ १८१३४, ३७, कु० ७२, · यम् तुलना करने का 'उपमर्द' का अर्थ है--उद्धत व्यवहार या संभोगजन्य विषय, तुलनीय (विप० उपमान). उपमानोपमेयत्वं रतिसुख) 2. नाश, आघात, वध करना 3. झिड़कना, यदेकस्यैव वस्तुनः-चन्द्रा० ५।७, ९ । सम० .--उपमा दुर्वचन कहना, अपमानित करना 4. भूसी अलग करना एक अलंकार जिसमें उपमेय और उपमान की तुलना 5. आरोप का निराकरण । इस दृष्टि से की जाती है कि उनके समान कोई और उपमा [ उप+मा+-अङ-टाप] 1. समरूपता, समता वस्तु है हो नहीं,-विपर्यास उपमेयोपमानयोः ---काव्य० साम्य-स्फुटोपमं भूतिसितेन शम्भुना-- शि० ११४, १० । १७।६९, 2. (अलं० शा०) एक दूसरे से भिन्न दो उपयन्त (पुं०) [ उप+यम्+तच ] पति - अयोपयन्तारपदार्थों की तुलना, तुल्यता, तुलना--साधर्म्यमुपमा मलं समाधिना , कु० --५।४५, रघु० ७१, शि० भेदे--काव्य० १०, सादृश्यं संदरं वाक्यार्थोपस्कारक- १०।४५ । मुपमालंकृतिः-रस०, या-उपमा यत्र सादृश्यलक्ष्मी- उपयन्त्रम [ प्रा० स० ] चीरफाड़ का एक छोटा उगकरण । रुल्लमति द्वयोः, हंसीव कृष्ण ते कोतिः स्वर्गङ्गामवगाहते। उपयमः[ उप+यम्+अप् | 1. विवाह, नियाह करना चन्द्रा०, ५।३, उपमा कालिदासस्य---सुभा० 3. तुलना - कन्या त्वजातोषयमा सलज्जा नवयौवना सा० का मापदण्ड-उपमान, यथा वातो निवातस्थो मेंगते द. 2. प्रतिबंध। सोपमा स्मता--भग० ६।१९ दे० 'द्रव्य नी०, बहुधा उपयमनम् [उप-यम् +ल्यट 1 वियाह करना समासान्त में 'की भांति' 'मिलते-जलते'- --बब न 2. प्रतिबंध लगाना 3. अग्नि को स्थापित करना । बधोपमः-रघ. ११४७, इसी प्रकार अमरोपम, अनुपम उपयष्ट्र (पुं०) [ उप+यज+तुच ] यज्ञ के सोलह आदि 4. समानता (चित्र, मूर्ति आदि की)। सम० ऋत्विजों में से 'उपयज' का पाठ करने वाला प्रति--द्रव्यम् तुलना के लिए प्रयक्त किये जाने वाला प्रस्थाता नामक ऋत्विक् । पदार्थ-सर्वोपमाद्रव्यसमुच्चयेन-कु० ११४९। उपयाचक (वि०) [ उप+याच् ।- वुल ] मांगने वाला, उपमातृ (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. दूसरी माता, दूध पिलाने प्रार्थी, विवाहार्थी, भिक्षुक । वालो धाय 2. निकट संबंधिनी स्त्री---मातष्बसा मात्- | उपयाचनम् | उप+याच-+ल्यूट ] निवेदन करना, मांगना, लानी पितृव्यस्त्री पितष्वसा, श्वश्रः पूर्वजपत्नी च प्रार्थना करने के लिए किसी के निकट जाना। मातृतुल्याः प्रकीर्तिताः-शब्द० । उपयाचित (भू० क. कृ०)[ उप-।-याच्+क्त ] जिससे उपमानम् [उप+मा+ल्यट] 1. तुलना, समरूपता-जाता- मांगा गया हो, या प्रार्थना की गई हो,---तम् 1. निवेदन स्तदूर्वोरुपमानवाद्याः-कु० ११३६ 2. तुलना का माप- या प्रार्थना 2. मनौती, अपनी अभीष्टसिद्धि हो जाने दण्ड जिससे किसी की तुलना की जाय (विप० उपमेय) पर देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रतिज्ञात भेंट उपमा के चार अपेक्षित गणों में से एक---उपमानम- (चाहे वह कोई पशु हो या गनुप्य).. निक्षेपी म्रियते भूद्विलासिनाम्----कु०४।५, उपमानस्यापि सखे प्रत्युप- तुभ्यं प्रदास्याम्युपयाचितम् पंच० १२१४. अद्य मया मानं वपुस्तस्या:-विक्रम० २१३, शि २०१४९ । भगवत्याः करालायाः प्रागुपयाचितं स्त्रीरलमपहर्तव्यम् For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०९ ) ----मा० ५ 3. अपनी इष्टसिद्धि के लिए देवता के -उपरागान्ते शशिनः समपगता रोहिणी योगम् प्रति प्रार्थना या निवेदन । -~-श० ७२२, शि० २०१४५ 2. राहु या शिरोबिंदु उपयाचितकम-ऊपर दे०, उपयाचित-सिद्धायतनानि कृत- की ओर चढ़ने वाला 3. लाली, लाल रंग, रंग 4. संकट, विविधदेवतोपयाचितकानि-का०६४ । कष्ट, आघात,-मृणालिनी हैममिवोपरागम्-रघु० उपयाजः | उप-यज्+घञ । यज्ञ के अतिरिक्त यज- १६७ 5. झिड़की, निन्दा, दुर्वचन । र्वेदीय मंत्र। उपराजः [ प्रा० स०] वाइसराय, राजप्रतिनिधि, उपउपयानम् [ उप+या+ ल्युट ] पहुँचना, निकट आना, शासक। ---हरोपयाने त्वरिता बभूव-कु० ७।२२ । उपरि (अव्य०) [ ऊर्ध्व+रिल , उप आदेश: 1 पृथकरूप उपयुक्त (भू० क० कृ०) [ उप--युज्+क्त ] 1. संलग्न से प्रयक्त होने वाला संबंधबोधक अव्यय (बहधा 2. योग्य, सही, उचित 3. सेवा के योग्य, काम का। संबं० के साथ; कर्म० तथा अधि के साथ विरल उपयोगः [उप-+-यज+घन] 1. काभ, लाभ, प्रयोग, सेवन प्रयोग), निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है—(क) ..-ब्रजन्ति .... अनङ्गलेखक्रिययोपयोगम-कू० ११७ ऊपर, अधिक, पर, पै, की ओर (विप० अधः) (संब० 2. औषधि तैयार करना या देना 3. योग्यता, उपय- के साथ-गतमपरि घनानाम्-श० ७७, अवाङमक्तता, औचित्य 4. संपर्क, आसन्नता । खस्योपरि पुष्पवृष्टिः पपात-रघ० १६०, अर्कस्योपरि उपयोगिन् ( वि०) [उप-यज्घिनण् ] 1. काम में -~-श० २०८, बहुधा समास के अंत में, रथ, तरुवर' आने वाला, लाभदायक 2. सेवा के योग्य, काम का (ख) समाप्ति पर,-सिर पर, सर्वानन्दानामपरि वर्त3. योग्य, उचित । माना--का० १५८ (ग) परे, अतिरिक्त,-याज्ञ० उपरक्त (भू० क० कृ०) [ उप-|-र +क्त ] 1. कष्ट- २।२५३ (घ) के संबंध में, के विषय में, की ओर, पर ग्रस्त, संकटग्रस्त, दुःखी 2. ग्रहण-ग्रस्त 3. रंजित, रंगीन -परस्परस्योपरिपर्यचीयत - रघ० ३।२४-शा० ३१२३, ---शि०२।१८, कतः ग्रहण-ग्रस्त सुर्य या चन्द्रमा । तवोपरि प्रायोपवेशनं करिष्यामि-तुम्हारे कारण उपरक्षः उप-रम् |-अच् ) अंग रक्षक । (ङ) के बाद,-महुर्तादुपरि उपाध्यायश्चेदागच्छेत् उपरक्षणम् [उमर ल्युट् ] पोदार, गारद, -पा० ३।३।९ सिद्धा। सम०-उपरि (उपर्युपरि) चौकी। 1. (कर्म और संबं० के साथ अथवा स्वतन्त्र रूप से) उपरत (भू० क० कृ०) [ उप+रम् । क्त ] 1. निवत्त, निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है (क) जरा ऊपर, विरक्त -रजस्यपरते --मनु० ५।६६ 2. मृत –अद्य- -लोकानपर्य पर्यास्ते माधव:-वोप० (ख) उच्च से उच्चदशमो मासस्तातस्योपरतस-मद्रा० ४। सम-कर्मन तर, कहीं ऊँचा, ऊपर, ऊँचाई पर-उपर्यपरि सर्वेषा(वि.) सांसारिक कार्यों पर भरोसा न करने वाला, मादित्य इव तेजसा-मा० 2. (क्रियाविशेषण के रूप ---स्पृह (वि०) इच्छा से शन्य, सांसारिक आसक्ति में) अर्थ है (क), अत्यंत ऊँचाई पर, पर, ऊपर की और सम्पतियों के प्रति उदासीन । ओर(विप अधः)-उपर्यपरि पश्यन्तः सर्व एव दरिद्रति उपरतिः (स्त्री.) उ-रम-।-क्तिन् ] 1. विरक्ति, --हि० २, बहुधा समास में- स्वमद्रोपरिचिह्नितम् निवृत्ति 2. मत्य 3. विषय-भोग से विरक्ति 4. उदा ---याज्ञ०१।३१९ (ख) इसके सिवाय, इसके अतिरिक्त, सीनता 5. यज्ञादि विहित कर्मों से विरक्ति, प्रथापालन अधिक, और---शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च के हेतु किये जाने वाले कर्मकांड में अविश्वास । सप्ततिः ---महा० (ग) बाद में-यदा पूर्वं नासीदुपरि उपरत्नम् [प्रा० स० ] अप्रधान या घटिया रत्न,-उपरत्नानि च तथा नैव भविता--शा० २१७, सर्पिः पौत्वोपरि काचश्च कर्परोऽश्मा तथैव च, मुस्ता शक्तिस्तथा शंख पयः पिबेत्-सुध्रुत,-चर (वि.) ऊपर विचरने इत्यादीनि बहन्यपि । गुणा यथैव रत्नानामुपरत्नेषु वाला (पक्षी आदि)-तन,--स्थ (वि०) अधिक ते तथा, किन्तु किंचित्ततो हीना विशेषोऽयमुदाहृतः । ऊपर का, अपेक्षाकृत ऊँचा, भागः ऊपर का अंश या उपर (रा) मः । उप+र+घञ्] 1. विरक्ति, निवृत्ति पार्व, भावः ऊपर या अपेक्षाकृत ऊंचाई पर होना 2. परिवर्जन, त्याग 3. मत्यु । --भूमिः (स्त्री०) ऊपर वाली धरती । उपरमणम् | उपरम+ल्यः । 1. रति सुरा से विरक्ति उपरिष्टात् (अव्य०) | ऊ++-रिष्टातिल, उप आदेशः ] 2. प्रथानुरूप कर्मकाण्ड से पिरति 3. विरक्ति, 1. क्रियाविशेषण के रूप में इसका अर्थ है:.-.--(क) निवृत्ति। अधिक, ऊपर, ऊँचे-भर्तृ० ३।१३१. याज्ञ० १११०६ उपरसः | प्रा० स० । 1. अप्रधान खनिज धातु 2. गौण । (ख) इसके आगे, बाद में, इसके पश्चात्- कल्याणावतंसा भाव या आवेश.3. अप्रधान रस। हि कल्याणसंपदुपरिष्टाद्भवति-मा० ६, इदमपरिष्टात् अपरागः [ उप+र +घञ्] 1. सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण । व्याख्यातम्, अन्त में (ग) के पीछे (विप० पुरस्तात्) For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१० ) घा मा भू करना, करना, सफ़दा 2. संबंधबोधक अव्यय के रूप में इसका अर्थ है:-(क)। 3. समझ, मति 4. अटकल, अनमान 5. संलक्ष्यता, अधिक, पर (संबं० के साथ, कर्म के साथ बिरल आविर्भाव (मीमांसकों ने 'उपलब्धि' को प्रमाण का प्रयोग,) शि० ११३३ (ख) सिर से पैर तक (ग) के एक भेद माना है) दे० 'अनुपलब्धि' । पीछे (संबं के साथ)। उपलम्भः [उप+लभ+घञ , नुम् ] 1. अभिग्रहण-अस्माउपरीतकः [ उपरि+5+क्त+कन् ] रतिक्रिया का आसन दङगुलीयोपलम्भात्स्मृतिरुपलब्धा-श०७ 2. प्रत्यक्ष विशेष ('विपरीतक' भी कहलाता है)-ऊरावेकपदं ज्ञान, अभिज्ञान, स्मति से भिन्न संबोध (अर्थात अनुभव) कृत्वा द्वितीयं स्कन्धसंस्थितं, नारी कामयते कामी बन्धः —प्राक्तनोपलभ मा० ५ ज्ञातौ सुतस्पर्शसुखोपलम्भात् स्यादुपरीतकः । शब्द० । -रघु०१४।२ 3. निश्चय करना, जानना-अविघ्नउपरूपकम् [उपगतं रूपकं दृश्यकाव्यं सादृश्येन-प्रा० स०] क्रियोपलम्भाय---श०१। घटिया प्रकार का नाटक, इसके निम्नांकित १८ भेद | उपलालनम् [उप+लल-णिच् + ल्युट्] लाड प्यार गिनाये गए हैं:-नाटिका त्रोटक गोष्ठी सट्टकं नाट्य- | करना । रासकम्, प्रस्थानोल्लाप्य काव्यानि खणं रासकं तथा, | उपलालिका [ उप+लल+वल, इत्वम् ] प्यास । संलापकं श्रीगदितं शिल्पक च विलासिका, दुर्मल्लिका उपलिङ्गम् [प्रा० स०] अपशकून, दैवी घटना जो अनिष्ट प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च । सा० द० २७६ । __सूचक हो। उपरोधः [ उप-रुध् +घञ ] 1. अवबाघा, रुकावट, रोक उपलिप्सा [ उप-+ लभ+सन्+अ+टाप् ] प्राप्त करने --रघ० ६१४४ शि० २०७४ 2. बाधा, कष्ट- | की इच्छा। -तपोवननिवासिनामुपरोधो मा भुत्-श० १, अनुग्रहः उपलेपः । उप + लिप्+घञ्] 1. लेप, मालिश 2. सफाई खल्वेष नोपरोध:--विक्रम० ३ 3. आच्छादित करना, करना, सफ़ेदी पोतना 3. अवबाधा, जड होना, घेरा डालना, अवरुद्ध करना 4. संरक्षा, अनुग्रह । (ज्ञानेन्द्रियों का) सुन्न होना। उपरोधक (वि.) [उप+रुध् +वल] 1. अवबाधक | उपलेपनम् [ उप-+-लिप् + ल्यट 11. मालिश, लेप, पोतना 2. आड़ करने वाला, घेरा डालने वाला,-कम्, भीतर 2. मलहम, उबटन । का कमरा, निजी कमरा। उपवनम् [प्रा० स०] बाग, बगीचा, लगाया हुआ जंगल उपरोषनम् [ उप+रुध् + ल्युट ] अवबाधा, रुकावट आदि –पाण्डुच्छायोपवनवृतयः केतकैः सूचिभिन्नैः----मेघ० दे. उपरोध । २३, रघु० ८७३, १३।७९, लता-उद्यान की बल। उपलः [ उप+ला-क] 1. पत्थर, पाषाण—उपलशकल- | उपवर्णः [उप-वर्ण+घञ ] सूक्ष्म या ब्योरेवार वर्णन । मेतदद्रेक गोमयानाम्-मद्रा० ३.१५-कान्ते कथं | उपवर्णनम् [ उप+वर्ण+ल्युट् सूक्ष्म वर्णन, ब्योरे वार घटितवानपलेन चेतः-शृंगार० ३, मेघ०१९, श० चित्रण-अतिशयोपवर्णन व्याख्यानम्-सुश्रुत, याज्ञ० १११४2. मूल्यवान् पत्थर, रत्न, मणि । १।३२० । उपलक: [ उपल+कन् ] पत्थर,--ला 1..रेत, बालुका | उपवर्तनम् [उप+वृत्+ल्य ट्] 1. व्यायामशाला 2. परिष्कृत शर्करा। 2. जिला या परगना 3. राज्य, 4. कीचड़, दलदल । उपलक्षणम् [उप+लक्ष+ल्याट ] 1. देखना, दृष्टि डालना, उपवसथः [ उप+बस+अथ ] गाँव । अंकित करना-वेलोपलक्षणार्थम् --श०४ 2. चिह्न । उपवस्तम् [ उप+वस् (स्तम्भे)+क्त ] उपवास, व्रत। विशिष्ट या भेदक रूप-विक्रम० ४.३३ 3. पद, पदवी उपवासः [ उपवस्+घा ] 1. व्रत-सोपवासस्त्र्यहं वसेत् 4. किसी ऐसी बात का ध्वनित होना जो वस्तुतः कही __--याज्ञ. १।१७५, ३.१९०, मनु० ११११९६ न गई हो, किसी अतिरिक्त वस्तु की ओर या अन्य 2. यज्ञाग्नि का प्रदीप्त करना। किसी समरूप पदार्थ की ओर संकेत जबकि केवल एक | उपवाहनम् [ उप-+ बह+णिच् + ल्युट ] ले जाना, निकट का ही उल्लेख किया गया हो, समस्त वस्तु के लिए लाना। उसके किसी एक भाग का कथन, पूरी जाति को प्रकट उपवाह्यः,-ह्या [ उप-वह --ण्यत्, स्त्रियां टाप् ] 1. राजा करने के लिए व्यक्ति की ओर संकेत आदि (स्वप्रति- की सवारी का हाथी या हथिनी,-- चन्द्रगप्तोपवाह्यां पादकत्वे सति स्वेतरप्रतिपादकत्वम्)-मन्त्रग्रहणं गजवा-- मद्रा २ 2. राजकीय सवारी। ब्राह्मणस्याप्यपलक्षणम् पा० ११।४।८० सिद्धा० । उपविद्या | प्रा० स०] सांसारिक ज्ञान, घटिया ज्ञान । उपलरिषः (स्त्री०) [उप+लभ+क्तिन् ] 1. प्राप्ति, | उपविषः-षम् [प्रा० स० ] 1. कृत्रिम जहर 2. निद्रा अवाप्ति, अभिग्रहण-वृथा हि मे स्यात्स्वपदोपलब्धिः जनक, मूर्खाकारी नशीली औषध--अर्कक्षीरं स्नहीक्षीरं --रघु० ५/५६, ८1१७ 2. पर्यवेक्षण, प्रत्यक्षज्ञान, तथैव कलिहारिका, धतूरः करवीरश्च पंच चोपविषाः ज्ञान -नाभाव उपलब्धेः-तु० न्या० सू० २।२८ । स्मृताः । For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१ ) ना । उपवीणयति (ना० धा० पर०) (किसी देवता के आगे) | उपशालम [ अत्या० स० घर के निकट का स्थान, घर वीणा या सारंगी बजाना-उपवीणयितुं ययौ रवेरुदया- के आगे का सहन,-लम् (अव्य०) घर के निकट । वृत्तिपथेन नारदः--- रघु० ८।३३, नै० ६।६५, कि० | उपशास्त्रम् [प्रा० स०] लघु विज्ञान या ग्रन्थ । १०१३८ । उपशिक्षा-क्षणम् [ उप-शिक्ष् अ, ल्युट् वा ] अधिगम, उपवीतम् [ उप++क्त ] 1. जनेऊ संस्कार, उपनयन सीखना, प्रशिक्षण । संस्कार 2. जनेऊ या यज्ञोपवीत जिसको हिन्दू जाति | उपशिष्यः [ प्रा० स०] शिष्य का शिष्य-शिष्योपशिष्यके प्रथम तीन वर्ण धारण करते हैं---पित्र्यमंशमुपवीत- ____ रुपगीयमानमवेहि तन्मण्डनमिश्रधाम-उद्भट । लक्षणं मातृकं च धनुरूजितं दधत् रघु०११।६४, कु०। उपशोभनम्-शोभा [ उप+शुभ + ल्युट्, अ वा ] सजाना, ६।६, शि० ११७, मनु० २।४४, ६४, ४।३६ । । अलंकृत करना। उपहणम् [ उप+ह + ल्यट ] वृद्धि, सञ्चय । उपशोषणम् [ उप- शुष+णि+ल्युट ) सूखना, उपवेदः [प्रा० स०] घटिया ज्ञान, वेदों से निचले दर्जे का माना। ग्रन्थसमूह। उपवेद गिनती में चार है, और प्रत्येक वेद उपश्रुतिः (स्त्री०) [ उप+शु-| वितन् ] 1. सुनना, कान के साथ एक एक उपवेद संलग्न है-उदा०, ऋग्वेद के साथ देना 2. श्रवण-परास 3. रात को सुनाई देने वाली आयुर्वेद (मुश्रुत आदि विद्वानों के मतानमार आयुर्वेद मूतिमती निगादेवी की भविष्यसूचक देववाणी--नक्तं अथर्ववेद का उपवेद है) यजर्वेद के माथ धनुर्वेद या निर्गत्य यत्किचिच्छुभाशुभकरं वचः, श्रूयते तद्विदु/रा सैनिक शिक्षा, सामवेद के साथ गांधर्ववेद या संगीत और देवप्रश्नमुपथुतिम् । हाग०, परिजनोऽपि चास्याः अथर्ववेद के साथ स्थापत्य-शस्त्रवेद या यान्त्रिकी। सततमुपश्रुत्यै निर्जगाम- का० ६५ 4. प्रतिज्ञा, उपवेशः-शनम् [ उप--विश्+घञ, ल्यट् वा ] 1. बैठना, स्वीकृति। आसन जमाना जैसा कि प्रायोपवेशन में 2. संलग्न उपश्लेषः, षणम् [उप-+श्लिप्+घञ, ल्युट् वा ] होना 3. मलोत्सर्ग। 1. पास पास रखना, संपर्क 2. आलिंगन । उपवैणवम् [उप+वेण+अण] दिन के तीन काल | उपश्लोकयति (ना० धा० पर०) कविता में स्तुति करना, ---अर्थात् प्रातः काल, मध्याह्नकाल और सायंकाल | प्रशंसा करना । --त्रिसंध्या। उपसंयमः [ उप-+-सम्+यम+अप् ] 1. दमन करना, उपव्याख्यानम् [प्रा० स०] वाद में जोड़ी हुई व्याख्या या रोकना, बांधना 2. सृष्टि का अंत, प्रलय । उपसंयोगः [उप+ सम्+युज्+घञ्] गोण संबंध, उपव्याघ्रः [प्रा० स०] एक छोटा शिकारी चीता। सुधार । उपशमः [ उप+शम्+घा ] 1. शान्त होना, उपशान्ति, | उपसंरोहः [ उप+सम्+रह+घञ ] एक साथ उगना, सान्त्वना---कुनोऽस्या उपशमः-वेणी० ३, मन्यदःसह ऊपर उगना, अंगूर आना (जरूम भरना )। एप यात्युपशमं नो सान्त्ववादैः स्फुटम् -अमरु ६, उपसंवादः [ उप+सम्+वद्+घञ्] करार, संविदा। निवृत्ति, रोक, परिममाप्ति 2. विश्राम, छट्टी, विराम | उपसंख्यानम् [ उप---सम्+व्य+ ल्युट् ] अन्तः पट,-अन्तरं 3. शान्ति, स्थैर्य, धैर्य 4. ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण। बहियोंगोपसंन्यानयो:--पा० ११ ११३६ । उपशमनम् [ उप-शम् +णिच+ल्यट] 1. शान्त करना, | उपसंहरणम् [ उप-सम्+ह+ल्यूट ] 1. हटा लेना, शान्ति रखना, चुप करना 2. लघूकरण, 3. बुझाना, वापिस लेना 2. रोक रखना 3. बाहर निकालना 4. आक्रमण करना, हमला करना। उपशयः [ उप+-शी+अच् ] 1. पास लेटना 2. माँद, घात उपसंहारः [ उप+सम्+ +घञ ] 1. एक स्थान पर का स्थान-शि० २१८० । कर देना, सिकोड़ देना 2. वापिस लेना, रोक रखना उपशल्यम् [ अत्या० म० ] ग्राम या नगर के बाहर का 3. संचय, संघात 4. बटोरना, समेटना, समाप्ति खुला स्थान, नगरांचल, उपनगर- अर्थोपशल्ये रिपु- | 5. (किसी भाषण की) इति श्री 6. सारसंग्रह, संक्षिप्त भग्नशल्यः -रघु० १६।३७, १५।५०, शि० ५।८। विवरण 7. संक्षेप, संहति 8. पूर्णता १. विनाश, मृत्यु उपशाखा [प्रा० म० ] गोण शाखा, अप्रधान गाग्वा । 10. आक्रमण करना, हमला करना। उपशान्तिः (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. विराम, गमन, प्रश- उपसंहारिन् (वि.) [ उप+सम्--ह+घिनुण ] 1. समा मन -रघु० ८।३१., अमर ६५ 2. आश्वासन, विष्ट करने वाला 2. एकांतिक, अपवर्जी । अभिशमन । उपसंक्षेपः [ उप+सम्--- क्षिप्+घञ् ] सार, सारांश, उपशायः [ उप+शी---घा ] बारी-बारी से मोना, दूसरे संक्षिप्त विवरण। पहरेदारों के साथ रात को सोने की वारी। । उपसंख्यानम् [ उप+सम्+ख्या+ल्युट ] 1. जोड़ना टीका। विराम । For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१२ ) 2. बाद में जोड़ा हुआ, वृद्धि, अतिरिक्त निर्देशन (यह उपसर्गः [उप-सज्+घञ्] 1. बीमारी, रोग, रोग से शब्द प्रायः कात्यायन के वार्तिकों के लिए प्रयुक्त होता उत्पन्न कृशता आदि विकार-क्षीणं हन्युश्चोपसर्गाः है, जिनका आशय पाणिनि के सूत्रों में रही छूट व प्रभूता:---सुश्रुत 2. मुसीबत, कष्ट, संकट, आघात, भूलों को सुधारना है, अतः ये परिशिष्ट का काम हानि-रत्न० १११० 3. अपशकुन, अनिष्टकर प्राकृदेते हैं) उदा०-जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम् तिक घटना 4. ग्रहण 5. मृत्यु का लक्षण या चिह्न तु० इष्टि 3. (व्या० में) रूप और अर्थ की दृष्टि से 6. धातु के पूर्व लगने वाला उपसर्ग-निपाताश्चादयो प्रत्यादेश। ज्ञेयाः प्रादयस्तूपसर्गकाः, द्योतकत्वात् क्रियायोगे लोकाउपसंपहा, हणम् [ उप+सम् + ग्रह+अप,ल्युट् वा ] दवगता इमे। गिनती में उपसर्ग २० है.---तथाहि 1. प्रसन्न रखना, सहारा देना, निर्वाह करना 2. सादर प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस् या निर, दुस् या अभिवादन (चरण स्पर्श करते हुए) स्फुरति रभसा- दुर, वि, आ (क) नि, अधि, अपि, अति, सु, उद, त्पाणिः पादोपसंग्रहणाय च---महावी० २।३० 3. स्वी- अभि, प्रति, परि, उप; या २२ यदि निस्-निर् और करण, दत्तक लेना 4. विनम्र संबोधन, अभिवादन दुस-दुर् को अलग २ शब्द समझा जाय। इन उपसगों 5. एकत्रीकरण, मिलाना 6. ग्रहण करना, (पत्नी के. की विशेषता के सम्बन्ध में दो सिद्धान्त हैं। एक अंगीकार करना रूप में)-दारोपसंग्रहः-याज्ञ० ११५६ सिद्धान्त के अनुसार तो धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं 7. (बाहरी) परिशिष्ट, कोई ऐसी वस्तु जो या तो (अनेकार्था हि धातवः), जब उपसर्ग उन धातुओं के उपयोगी हो, अथवा सजावट के काम आवे, उपकरण । पूर्व जोड़े जाते हैं तो वह केवल धातुओं में पहले से उपसत्तिः (स्त्री०) [उप+सद् +क्तिन् ] 1. संयोग, मेल विद्यमान-परन्तु गुप्त पड़े हुए-अर्थ को प्रकाशित 2. सेवा, पूजा, परिचर्या 3. भेंट, दान । कर देते हैं, वह स्वयं अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं करते उपसवः [उप+सद्+क] 1. निकट जाना 2. भेंट, दान । क्योंकि वह है ही अर्थहीन । दूसरे सिद्धान्त के अनुउपसवनम् [ उप+सद्-+-ल्यट] 1. निकट जाना, समीप सार उपसर्ग अपना स्वतंत्र अर्थ प्रकट करते हैं, वह पहुंचना 2. गुरु के चरणों में बैठना, शिष्य बनना धातुओं के अर्थों में सुधार करते हैं, बढ़ाते हैं, और -तत्रोपसदनं चके द्रोणस्येष्वस्त्रकर्मणि-महा० कई उनके अर्थों को बिल्कुल बदल देते हैं-तू० सिद्धा० 3. पास-पड़ोस 4. सेवा। --उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते, प्रहाराहारउपसंतान: [ उप+सम्-+-तनु+घञ ] 1. अव्यवहित संहारविहारपरिहारवत् । और तु० धात्वर्थ बाघते संयोग 2. संतति । कश्चित्कश्चित्तमनुवर्तते, तमेव विशिनष्ट्यन्य उपसर्गउपसंधानम् [उप+सम --धा-ल्यट] जोड़ना, मिलाना। गतिस्त्रिधा। उपसंन्यासः [ उप+सम्-+-नि-+अस्+घञ्] डाल देना, उपसर्जनम् [उप + सृज् + ल्युट] 1. उड़ेलना 2. मुसीबत, छोड़ देना, त्याग देना। संकट (ग्रहण आदि), अपशकुन 3. छोड़ना 4. ग्रहण उपसमाधानम् [ उप-सम्+आ+धा+ल्यट] एकत्र लगना 5. अधीनस्थ व्यक्ति या वस्तू, प्रतिनिधि 6. करना, ढेर लगाना-उपसमाधानं राशीकरणम् व्या० में) वह शब्द जिसका अपना मूल स्वतंत्र स्वरूप -सिद्धा०। व्यत्पत्ति के कारण या रचना में प्रयुक्त होने के कारण उपसंपत्तिः (स्त्री) [उप+सम्+पद्+-क्तिन् ] नष्ट हो गया हो और जब कि वह दूसरे शब्द के अर्थ 1. समीप जाना, पहुँचना 2. किसी अवस्था में प्रविष्ट का भी निर्धारण करे (विप० प्रधान)। होना। उपसर्पः [उप+सुप्+घञ] समीप जाना, पहुँच । उपसंपन्न (भू० क. कृ.) [ उप+सम्प द्+क्त ] 1. उपसर्पणम् [उप+सप्+ल्युट] निकट जाना, पहुँचना, उपलब्ध 2. पहुँचा हुआ, 3. उपस्कृत, अन्वित 4. यज्ञ __अग्रसर होना। में बलि दिया गया (पशु), बलि दिया गया....मनु० | उपसर्या [उप---स+यत्+टाप्] गर्मायी हुई या ऋतुमती ५।८१,-नम् मसाला । ___ गाय जो साँड़ के उपयुक्त हो। उपसंभावः,-या [ उप-+सम+भाष+घन, अ वा1 उपसन्दः [प्रा० स०] एक राक्षस, निकुंभ का पुत्र तथा संद 1. वार्तालाप-कि० ३।३ 2. मैत्रीपूर्ण अनुरोध-उप- का भाई। संभाषा उपसांत्वनम्-पा० १॥३॥४७ सिद्धाः । उपसूर्यकम् [उपसूर्य+कन्] सूर्यमण्डल या परिवेश। उपसरः [ उप+सृ+अप्] 1. (सांड़ का गाय की ओर) उपसृष्ट (भू० क० कृ०) [उप | सज्+क्त] 1. मिलाया अभिगमन 2. गाय का प्रथम गर्भ-गवामपसर:-सिद्धा०। हआ, संयुक्त, संलग्न 2. भूत-प्रेताविष्ट, या भूत-प्रेतउपसरणम् [उप+स+ल्युट्] 1. (किसी की ओर) जाना अस्त-उपसृष्टा इव क्षुद्राधिष्ठितभवना:-का०१०७ 2. जिसकी शरण ग्रहण की जाय। 3. कष्टग्रस्त, अभिभूत, क्षतिग्रस्त--रोगोपसष्टतनदुर्व For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २१३ ष्टम् सति मुमुक्षुः - रघु० ८९४ 4. ग्रहण ग्रस्त 5. उपसर्गयुक्त (धातु) - क्रुधद्र होरुपसृष्टयोः कर्म - पा० १/४ ३८. ष्टः ग्रहण से ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा, मैथुन, संभोग । उपसेक:- उपसेचनं [ उप + सिच् + घञ, ल्युट् वा ] 1. उड़ेलना, छिड़कना सींचना 2. भीगना, रस, नी कड़छी या कटोरी जिससे उडेला जाय । उपसेवनम् सेवा [ उप + सेव् + ल्युट् अ + टाप् वा ] 1. पूजा करना, सम्मान करना, आराधना 2. उपासना - राज – मनु० ३/६४३ लिप्त होना विषय 4. काम लेना, (स्त्री का) उपभोग करना -परदार - मनु० ४।१३४ | उपस्करः [ उप+कृ+ अप्, सुट् ] 1. जो किसी दूसरी वस्तु को पूरा करने के काम आवे, संघटक, अवयव 2. (अंतः ) ( सरसों, मिर्च आदि) मसाला जो भोजन को स्वादिष्ट बनाये 3 सामान, उपवन्ध, उपांग, उपकरण - शि० १८।७२ 4. घर-गृहस्थी के काम की वस्तु (जैसे झाड़ू) याज्ञ० १/८३, २।१९३, मन० ३।६८, १२/६६,५१५० 5. आभूषण 6. निन्दा, बदनामी । उपस्करणम् [उप + कृ + ल्युट्, सुट् ] 1. वध करना, क्षत विक्षत करना 2. संचय 3. परिवर्तन, सुधार 4. अध्याहार, 5. बदनामी निन्दा | उपस्कारः [ उप + कृ + घञ सुट्] 1 अतिरिक्तक, परिशिष्ट, 2. अध्याहार - ( न्यून पद की पूर्ति ) साकांक्षमनुपस्कारं विष्वग्गतिनिराकुलम् कि० ११३८ 3. सुन्दर बनाना, सजाना, शोभायुक्त करना - उक्तमे वार्थं सोपस्कारमाह - रघु० ११।४७ पर मल्लि० 4. आभूषण 5. प्रहार 6. संचय । | उपस्कृत (भू० क० कृ० ) [ उप + कृ + + क्त, सुट् ] 1. तैयार किया हुआ 2. संचित 3. सजाया गया, अलंकृत किया गया 4. अध्याहृत 5. सुधारा गया । उपस्कृतिः (स्त्री० ) [ उप + कृ + क्तिन्, सुट् ] परिशिष्ट । उपस्तम्भः-भनम् | उप + स्तम्भ् + घञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. टेक, सहारा 2. प्रोत्साहन, उकसाना, सहायता 3. आवार, नींव, प्रयोजन । उपस्तरणम् ['उप+स्नु--- ल्युट् ] 1. फैलाना, विछाना, बखेरना 2. चादर 3. विस्तरा 4. कोई बिछाई हुई ( चादर आदि ) -- अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । उपस्त्री (स्त्री० ) [ प्रा० स०] रखेल | उपस्थ: [ उप + स्था + क] 1. गोद 2. ( शरीर का ) मध्य भाग, पेडू, स्थः स्थम् 1. ( स्त्री या पुरुष की ) जननेन्द्रिय, विशेषतः योनि स्नानं मोनोपवासेज्या स्वाध्यायोपस्थनिग्रहाः याज्ञ० ३।३१४ ( पुरुष का लिंग) स्थूलोपस्थस्थलीषु — भर्तृ० १।२० ( स्त्री की योनि ); हस्ती पायुरुपस्थश्च - याज्ञ० ३।९२ ( यहाँ यह शब्द दोनों - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थों में प्रयुक्त है) 2. गुदा 3. कूल्हा । सम० निग्रहः इन्द्रियदमन, संयम याज्ञ० ३/३१४, - बल:- पत्रः, पीपल का वृक्ष ( क्योंकि इसके पत्ते स्त्री-योनि के आकार के समरूप होते हैं) । उपस्थानम् [ उप + स्था + ल्युट् ] 1. उपस्थिति, सामीप्य 2. पहुँचना, आना, प्रकट होना, दर्शन देना 3. (क) पूजा करना, प्रार्थना, आराधना, उपासना -- सूर्योपस्थानात्प्रतिनिवृत्तं पुरूरवसं मामुपेत्य - विक्र० १, सूर्यस्योपस्थानं कुर्वः - विक्रम ० ४, याज्ञ० १२२ (ख) अभियादन, नमस्कार 4. आवास 5. देवालय, पुण्यस्थल, मन्दिर 6. स्मरण, प्रत्यास्मरण, स्मृति- - याज्ञ० ३। १६० । उपस्थापनम् [ उप + स्था + णिच् + ल्युट् ] 1. निकट रखना, तैयार होना 2. स्मृति को जगाना 3. परिचर्या, सेवा । उपस्थायकः [ उप + स्था + ण्वुल् ] सेवक । उपस्थितिः (स्त्री० ) [ उप + स्था + क्तिन्] 1 पास जाना 2. सामीप्य, विद्यमानता 3. अवाप्ति, प्राप्ति 4. सम्पन्न करना, कार्यान्वित करना 5. स्मरण, प्रत्यास्मरण 6. सेवा, परिचर्या । उपस्नेहः | उप + स्निह +घञ ] गीला होना । उपस्पर्शः-र्शनम् [ उप + स्पृश् + घञ, ल्युट् वा ] 1. स्पर्श करना, सम्पर्क 2. स्नान करना, संक्षालन, धोना 3. कुल्ला करना, आचमन करना, मार्जन करना, (अंगो पर जल के छींटे देना -- एक धार्मिक कृत्य ) । उपस्मृति: ( स्त्री० ) [ प्रा० स०] लघु धर्मशास्त्र या विधि ग्रन्थ ( यह संख्या में १८ हैं ) । उपस्रवणम् [ उप + स्रु + ल्युट् ] 1. रज का मासिक स्राव होना 2. बहाव । उपस्वत्वम् [ प्रा० स०] राजस्व, लाभ (जो भूमि अथवा पूँजी से प्राप्त हो) । उपस्वेद: [ उप + स्विद् + घञ ] गीलापन, पसीना । उपहत (भू० क० कृ० ) [ उप + न् + क्त ] 1. क्षतविक्षत, जिस पर आघात किया गया हो, क्षीण, पीडित, चोट लगा हुआ कु० ५।७६ 2. अभिभूत आबद्ध, आहत पराभूत दारिद्र्य, लोभ, दर्प, काम, शोक आदि 3. सर्वथा विनष्ट – कथमत्रापि देवेनोपहता वयम् - मुद्रा ० २, देवेनोपहतस्य बुद्धिरथवा पूर्व विपर्यस्यति मुद्रा० ६।८ 4. निदित, भर्त्सना किया गया, उपेक्षित 5. दूषित, कलुपित, अपवित्रीकृत - शारीरं - लैः सुराभिद्यैर्वा यदुपहतं तदत्यन्तोपहृतम् - विष्णु । सम० - आत्मन् क्षुब्धमना, उद्विग्नमना, दृश् (वि० ) चीवियाया हुआ, अंधा किया गया- कि० १२।१८, - घो ( वि०) मूढ़ | उपहतक (वि० ) [ उपहत + कन् । हतभाग्य, अभागा । उपहतिः (स्त्री० ) [ उप + न् + क्तिन् ] 1. प्रहार 2. वध, हत्या | For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१४ ) उपहत्या [ प्रा० स०] आँखों का चौंधियाना। का उपक्रम - तु. उपाकर्मन,-वेदोपाकरणाख्यं कर्म उपहरणम् [ उप++ल्युट ] 1. निकट लाना, जाकर करिष्ये-श्रावणी मंत्र। लाना 2. ग्रहण करना, पकड़ना 3. देवता आदि को | उपाकर्मन् (नपुं०) [ उप+आ+-+मनिन् ] 1. तैयारी, भेंट प्रस्तुत करना 4. बलिपशु देना 5. भोजन आरंभ, उपक्रम 2. वर्षारंभ के पश्चात् वेदपाठ के परोसना या बाँटना। उपक्रम से पूर्व किया जाने वाला अनुष्ठान (तु. उपहसित (भू. क. कृ.) [ उप-+हस्+क्त ] मजाक श्रावणी) याज्ञ०१२१४२, मनु० ४१११९ । उड़ाया गया, भर्त्सना किया गया,-तम् व्यंग्यपूर्ण उपाकृत (भू० क. कृ०) [ उप+आ+ +क्त] अट्टहास, हंसी उड़ाना। __1. निकट लाया हुआ 2. यज्ञ में बलि दिया गया उपहस्तिका [ उपहस्त+क+टाप, इत्वम् ] पान-दान, ___3. आरब्ध, उपक्रांत। -उपहस्तिकायास्ताम्बूलं कर्पूरसहितमुधुत्य-- दश० उपाक्षम् (अव्य०) [अव्य. स०] आंखों के सामने, अपने समक्ष । उपहारः [ उप+ह । घा] 1. आहुति 2. भेंट, उपहार | उपाख्यानम्-नकम् [ उप+आ+ख्या+ल्युट् पक्षे कन् च ] -रघु० ४१८४ 3. वलि-पशु, यज्ञ, देवता का नजराना छोटी कथा, गल्प या आख्यायिका-उपाख्यानविना -रघु० १६॥३९ 4. सम्मान-सुचक भेंट, अपने तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः- महा०। बड़ों को उपहार देना 5. सम्मान 6. शांति के मूल्य उपागमः उप+आ-गम+अप] 1. निकट जाना, पहुंचना स्वरूप क्षति पूरक उपहार-हि० ४।११० 7. अभ्या 2. घटित होना 3. प्रतिज्ञा, करार 4. स्वीकृति । गतों में परोसा गया भोजन । उपागम् [प्रा० स०] 1. चोटी या किनारे के निकट का उपहारिन् (वि०) [ उपहार+णिनि ] देने वाला, उपहार भाग 2. गौण अंग। प्रस्तुत करने वाला, लाने वाला। उपाग्रहणम् [ उप+आ+ग्रह.+ ल्युट ] दीक्षित होकर उपहालकः [? ] कुन्तल देश का नाम । वेदाध्ययन करना। उपहासः [उप+हस्+घा ] 1. मजाक उड़ाना, हंसी- उपाङ्गम [प्रा० स०] 1. उपभाग, उपशीर्षक 2. कोई छोटा दिल्लगी-रघु० १२॥३७ व्यंग्यपूर्ण अट्टहास 3. हंसी अंग या अवयव 3. परिशिष्ट का पूरक 4. घटिया मज़ाक, खेलकूद । सम० - आस्पबम् ... पात्रम् उपहास प्रकार का अतिरिक्त कार्य 5. विज्ञान का गौण भाग की सामग्री, भांड, उपहास्य । -वेदांगों के परिशिष्ट स्वरूप लिखा गया अन्य समूह उपहासक (वि०) [उप+हस्+ण्वुल ] हंसी-मजाक (ये चार हैं -- पुराणन्यायमीमांसाधर्मशास्त्राणि) । उड़ाने वाला,---कः विदूषक, दिल्लगी बाज़। | उपचारः [ उप+आ—चर+घञ्] 1. (वाक्य में शब्द उपहास्य (वि०, सं० कृ०) [उप+हस्+ण्यत्] मजाकिया का) स्थान 2. कार्यविधि । -तां गम् या या-हंसी मजाक की वस्तु बनना, उपाजे (अव्य०) (केवल 'कृ' धातु के साथ प्रयोग) ठिठोलिया-गमिष्याम्युपहास्यताम् रघु० ११३ । --सहारा देना---उपार्जकृत्य या कृत्वा-सहारा देकर उपहित (वि.) [उप+घा+क्त ] रक्खा गया, दे० उप- -पा० ११४१७३ सिद्धा० । पूर्वक 'धा'। | उपाञ्जनम् [उप+अ +ल्यूट]- मलना, लीपना (गोबर उपहूतिः (स्त्री०) [ उप+ह्वे+क्तिन् ] बुलावा, आह्वान, आदि से) पोतना (सफेदी, चूना आदि)-मनु० ५।१०५, निमंत्रण,-शि० १४॥३० । १२२।१२४, मठादेः (सुधागोमयादिना संमार्जनानुउपहारः [ उप+-+ध] एकान्त या अकेला स्थान, लेपनम्-मेधातिथि)। निजी जगह---उपह्वरे पुनरित्यशिक्षयं घनमित्रम् उपात्ययः [ उप+अति+5+अच् ] उल्लंघन करना, --दश० ५४ 2. सामीप्य । (प्रचलित प्रथा से) विचलन । उपहानम् [ उप+हे+ल्युट्] 1. बुलाना, निमंत्रित , उपादानम् [ उप+आ+दा+ल्यट] 1. लेना, प्राप्त करना 2. प्रार्थना मंत्रों के साथ आवाहन करना। करना, अभिग्रहण करना, अवाप्त करना--विश्रब्धं उपांश (अव्य०) [उपगता अंशवो यत्र ] 1. मन्द स्वर ब्राह्मणः शूद्रात् द्रव्योपादानमाचरेत्-मनु० ८।४१७, से, कानाफूसी 2. चुपके से, गप्तरूप से-परिचेतमपांश- विद्या-का० ७५ 2. उल्लेख, वर्णन 3. समावेश, धारणाम-रषु० ८।१८-शुः मन्द स्वर में की गई मिलाना 4. सांसारिक पदार्थों से अपनी ज्ञानेन्द्रियों व प्रार्थना, मंत्रों का जप करना तु०, मनु० २१८५। मन को हटाना 5. कारण, प्रयोजन, प्राकृतिक या उपाकरणम् [ उप+आ+ +ल्युट ] 1. आरंभ करने के तात्कालिक कारण-पाटवोपादानो भ्रमः--उत्तर० लिए निमंत्रण, निकट लाना 2. तैयारी, आरम्भ, उप- ३, अने० पा० 6. सामग्री जिनसे कोई वस्तु बने, क्रम 3. प्रारंभिक अनुष्ठान करने के पश्चात् वेद-पाठ । भौतिक कारण-निमित्तमेव ब्रह्म स्यादुपादानं च For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir EEEEEEEEEEET ( २१५ ) वेक्षणात-अधिकरणमाला 7. अभिव्यंजना की एक । उपायः [ उप-+-+धा ] 1. (क) साधन, तरकीब, रीति जिसमें अपने वास्तविक अर्थ को प्रकट करने के युक्ति--उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत् अतिरिक्त न्यूनपद की पूर्ति भी अध्याहार द्वारा कर - पंच०११४०६, अमरु २१, मनु०७।१७७ ८४८, ली जाती है-स्वसिद्धये पराक्षेपः "उपादानम्-काव्य. (ख) पद्धति, रीति, कूटचाल 2. आरम्भ, उपक्रम २। सम-कारणम् भौतिक कारण-प्रकृति- 3. प्रयत्न, चेष्टा-भग० ६।३६, मनु० ९।२४८, १०१२ श्चोपादानकारणं च ब्रह्माप्युपगन्तव्यम्-शारी०,-लक्षणा 4. शत्रु पर विजय पाने का साधन (यह चार हैं =अजहत्स्वार्था, दे० काव्य० २, सा० द०१४ भी। --सामन, समझौता-वार्ता, दानम्-रिश्वत, भेद-फूट उपाधिः [ उप+आ+घा--कि] 1. जालसाजी, धोखा, डालना और दंड:-सजा देना (सीधा धावा बोलना), दाँव 2. प्रवंचना, (वेदान्त में) छद्मवेष धारण करना कुछ लोग तीन और जोड़ देते हैं माया--धोखा, 3. विवेचक या विभेदक गण, विशेषण, विशेषता उपेक्षा-दांव-पेच, अवहेलना, इंद्रजाल-जादू-टोना करना, -तदुपधावेव सङ्केतः-काव्य०२, यह चार प्रकार इस प्रकार कुल संख्या सात हुई),-चतुर्थोपायसाध्ये तु का है-जाति, गुण क्रिया, तथा संज्ञा 4. पद, उपनाम रिपो सान्त्वमपक्रिया--शि० २।५४, सामादीनामुपा(भट्टाचार्य, महामहोपाध्याय, पंडित आदि) 5. सीमा, यानां चतुर्णामपि पण्डिता:-मन० ७१०९5. सम्मिलित (देश काल आदि की) अवस्था (बहुधा वेदान्तदर्शन में) होना (गायन आदि में) 6. पहुँचना । सम-तुष्ट6. प्रयोजन, संयोग, अभिप्राय 7. (तर्क में) किसी यम, शत्रु के विरुद्ध की जाने वाली चार तरकीबें--३० सामान्य बात का विशेष कारण 8. जो व्यक्ति अपने ऊ०,- (वि०) तरकीब निकालने में चतूर-तुरीयः परिवार का भरण-पोषण करने में सावधान है। चौथी तरकीब अर्थात् दंड,--योगः साधन या युक्ति का उपाधिक (वि.) [ अत्या० स० । अधिक, अधिसंख्य, प्रयोग--मनु० ९।१०।। अतिरिक्त । उपायनम् / उप अय+ल्युट ] 1. निकट जाना पहुंचना उपाध्यायः [ उपेत्याधीयते अस्मात्-उप+अधि++ 2. शिष्य बनना 3. किसी धार्मिक संस्कार में व्यस्त रहना घज | 1. अध्यापक, गुरु 2. विशेषतः अध्यात्मगुरु, 4. उपहार, भेंट-मालविकोपायनं प्रेषिता-मालवि० धर्मशिक्षक (उपशिक्षक---जो वेद के किसी भाग को १, तस्योपायनयोग्यानि वस्तूनि सरितां पतिः–कु. केवल पारिश्रमिक प्राप्त करने के लिए पढ़ाता है- २।३७, रघु० ४१७९। आचार्य से निम्न पदवी का) तु०-मनु० २११४१, उपारम्भः [ उप+आ+र+घा, नुम् ] आरंभ, उपएकदेशं तु वेदस्य वेदाङ्गान्यपि वा पुनः, योऽध्यापयति क्रम, शुरू। वृत्त्यर्थमुपाध्यायः स उच्यते। दे० 'अध्यापक' और | उपार्जनम्ना [ उप+अर्ज + ल्युट्, युच् वा ] कमाना, 'आचार्य' के नीचे भी.-या स्त्री-अध्यापिका, यी लाभ उठाना।। 1. अध्यापिका 2. गरुपत्नी। उपार्थ (वि.) [ब० स०] थोड़े मूल्य का। उपाध्यायानी | उपाध्याय-+डीप, आनुक गुरुपत्नी।। उपालम्भः भनम् [ उप+आ+लभ -घ, नुम्, ल्युट् उपानह (स्त्री०) [ उप+नह+विवप् उपसर्गदीर्घः । बा] 1. दुर्वचन, उलाहना, निन्दा-अस्या महदुपालचप्पल, जूता--उपानद्गूढपादस्य सर्वा चर्मावतेत्र भुः म्भनं गतोऽस्मि- श० ५, तवोपालम्भे पतिताऽस्मि-- हि० १११२२, मनु० ॥२४६, श्वा यदि क्रियते मालवि० १, तुम्हारा उलाहना सिर-माथे पर राजा म कि नाश्नात्युपानहम्-हि० ३१५८ । 2. विलंब करना, स्थगित करना। उपान्तः प्रा० स० ] 1. किनारी, छोर, गोट, पल्ला, सिरा उपावर्तनम् [ उप+आ+-वत् + ल्युट ] 1. वापिस आना - उगान्तयोनिष्कुपितं विहङगैः-रघु० ७.५०, कु. या मड़ना, लौटना-त्वदुपावर्तनशङ्किमे मनः (करोति) ३१६९, ७।३२, अमरु २३, उत्तर० १२६ वल्कल' रघु० ८५३ 2. घूमना, चक्कर काटना --का० १०६ 2. आँख को कोर-रघु० ३।२६ 3. पहुँचना। 3. अव्यवहित सान्निध्य, पड़ोस--नयोरुपान्तस्थित सिद्ध- | उपाश्रयः [ उप+आ+श्रि । अच् ] 1. अवलंब, आथय, सैनिकम् --रघु० ३१५७, ७।२४, १६।२१, मेघ. २४ | सहारा-भर्त० २।४८ 2. पात्र, पाने वाला 3. भरोसा, 4. पार्श्वभाग, नितम्ब---मेघ० १८। निर्भर रहना। उपान्तिक (वि.) [प्रा०स० निकटस्थ, समीपी, पडीसी, | उपासकः [ उप-+-आस-+ण्वल ] 1. सेवा में उपस्थित, - कम पड़ोस, सामीप्य । पूजा करने वाला 2. सेवक, अनुचर 3. शूद्र, निम्नउपान्त्य (वि०) [ उपान्त+यत् | अन्तिम से पूर्व का जाति का व्यक्ति । ~~-उत्तमपदमुपान्त्यस्योपलक्षणार्थम्-सिद्धा०,-स्यः आँख ! उपासनम्ना [ उप+आस् ल्युट, युच् वा ] 1. सेवा, की कोर, त्यम् पड़ोस । हाजरी, सेवा में उपस्थित रहना 2. शीलं खलोपास For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१६ ) नात् (विनश्यति) पंच० १२१६९, उपासनामेत्य पितुः दृष्टान्त 4. सूयोग, माध्यम, साधन–तत्प्रतिच्छन्दकस्म सज्यते-२०१२३४, मनु० ३३१०७, भग० १३१७, मुपोद्घातेन माधवान्तिकामुपेयात-मा० १ 5. विश्लेयाज्ञ० ३३१५६ 2. व्यस्त, तुला हुआ, जुटा हुआ षण, किसी वस्तु के तत्त्वों का निश्चय करना। --संगीत मृच्छ० ६, मनु० २०६९ 3. पूजा, आदर, उपोबलक (वि०) [ उप-उद्+बल् +ण्वुल ] पुष्ट आराधना, शराभ्यास 5. धार्मिक मनन 6. यज्ञाग्नि। करने वाला। उपासा [उप+आस्+अ+टाप्] 1. सेवा, हाजरी उपोबलनम् [उप+उद्-+बल+ल्य प्ट करना, 2. पूजा, आराधना 3. धार्मिक मनन ।। समर्थन करना। उपास्तमनम् [ प्रा० स० ] सूर्य छिपना। उपोषणम्-उपोषितम् [ उप+वस् + ल्युट, क्त वा ] उपास्तिः (स्त्री०)| उप+आस-क्तिन् । 1. सेवा, सेवा उपवास रखना, बत। में उपस्थित रहना (विशेषत: देवता की) 2. पूजा, ! जा, | उप्तिः (स्त्री०) [वप्न-क्तिन् ] बीज बोना। आराधना। उब्ज (तुदा० पर०) (उब्जति, उब्जित) 1. भींचना, उपास्त्रम् [प्रा० स०] गौण या छोटा हथियार। दबाना 2. सीधा करना। उपाहारः [प्रा० स०] हल्का जलपान (फल, मिष्टान्न | उभ्, उम्भ (तुदा० क्या उभ्, उम्भ (तुदा० क्रया० पर०) (उभति या उम्भति, आदि)। उभ्नाति, उम्भित) 1. संसीमित करना 2. संक्षिप्त करना उपाहित (भू० क. कृ०) [ उप+आ+धा+क्त ] 3. भरना-जलकुम्भमम्भितरसं सपदि सरस्याः समान1. रक्खा गया, जमा किया गया, पहना गया आदि यन्त्यास्ते--भामि० २११४४ 4. आच्छादित करना, ऊपर 2. संबद्ध, सम्मिलित,—त: आग से भय, या आग से बिछाना-सर्वमर्मसु काकुत्स्थमौम्भत्तीक्ष्णः शिलीमुखैः होने वाला विनाश। - भट्टि०१७।८८॥ उपेक्षणम-उपेक्षा। उभ (सर्व०वि०) (केवल द्विवचन में प्रयुक्त) उ+भक] उपेक्षा [ उप+ ईक्ष् +अ+टाप् ] 1. नजर-अंदाज करना, दोनों,---उभौ तौ न विजानीत.....भग० २।१९, कु० लापरवाही बरतना, अवहेलना करना 2. उदासीनता, ४।४३ मनु० २।१४, शि० ३।८। घृणा, नफ़रत-कुर्यामपेक्षा हतजीवितेऽस्मिन्—रघ० । उभय (सर्व०, वि०) (स्त्री०-यो) [ १४।६५ 3. छोड़ना, छुटकारा देना 4. अवहेलना, (यद्यपि अर्थ की दृष्टि से यह शब्द द्विवचनांत है, दांव पेंच, मक्कारी (युद्ध में विहित ७ उपायों में परन्तु इसका प्रयोग एक वचन और बहबचन में ही से एक)। होता है, कुछ वैयाकरणों के मतानुसार द्विवचन में भी) उपेत (भू० क० कृ०) [ उप-इ---क्त ] 1. समीप आया दोनों (पुरुष या वस्तुएँ)---उभयमप्यपरितोषं समर्थये हुआ, पहुँचा हुआ 2. उपस्थित 3. युक्त, सहित --श०७, उभयमानशिरे बसुधाधिपाः-रध० ९१९, (करण के साथ या समास में) ...पुत्रमेवं गुणोपेतं उभयीं सिद्धिमुभाववापतुः- -८।२३, १७।३८, अमरु चक्रवर्तिनमाप्नहि-श० १२१२। ६०, कु० ७७८, मनु० २०५५, ४१२२४, ९।३४ । उपेन्द्रः [उपगत इन्द्रम्-अनुजत्वात् ] विष्ण या कृष्ण, (इन्द्र सम०-चर (वि) जल, स्थल या आकाश में विचरण के छोटे भाई के रूप में अपने पांचवें अवतार (वामन) करने वाला, जल स्थल चारी,- विद्या दो प्रकार की के अवसर पर) दे० इन्द्र, उपेन्द्र- वज्रादपि दारुणो- विद्याएँ, परा और अपरा, अर्थात् अध्यात्म विद्या और ऽसि-गीत० ५, यदुपन्द्रस्त्वमतीन्द्र एव सः-शि० लौकिक ज्ञान, -विध (वि०) दोनों प्रकार का, १११७० । -- वेतन (वि०) दोनों स्थानों से वेतन ग्रहण करने उपेयः (सं० कृ०) [उप+इ+यत् ] 1. पहुँचने के योग्य वाला, दो स्वामियों का सेवक, विश्वासघाती,-व्यंजन 2. प्राप्त कर लेने के योग्य 3. किसी भी साधन से (वि.) (स्त्री और पुरुष) दोनों के चिह्न रखने वाला, प्रभावित होने के योग्य ।। --संभवः उभयापत्ति, दुविधा। उपोढ (भ० क. कृ०) [ उन ! वह ---क्त] 1. संचित, | उभयतः (अव्य०) [उभय-तसिल] 1. दोनों ओर से, एकत्र किया हुआ, जमा किया हुआ 2. निकट लाया दोनों ओर, (कर्म के साथ)-उभयत: कृष्ण गोपाः हुआ, निकटस्थ 3. युद्ध के लिए पंक्तिबद्ध 4. आरब्ध --सिद्धा० याज्ञ० ११५८, मन० ८।३१५ 2. दोनों 5. विवाहित । दशाओं में 3. दोनों रीतियों से--मनु० ११४७, । सम० उपोत्तम (वि.) [ अत्या० स०] अन्तिम से पूर्व का, -वत्,--दन्त (वि.) दोनों ओर (नीचे और ऊपर) -मम् (अक्षरम् ) अन्तिम अक्षर से पूर्व का अक्षर । दाँतों की पंक्ति वाला, मनु० ११४३,--मुख (वि०) उपोद्घातः [उप+उद्+हन्+घश ] 1. आरम्भ ____ 1. दोनों ओर देखने वाला 2. दुमहा (मकान आदि) 2. प्रस्तावना, भूमिका, 3. उदाहरण, समुपयुक्त तर्क या | (---खी) ब्याती हई गाय-याज्ञ० श२०६-७ । रामपा । For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७ ) उभयत्र (अव्य०) उभय---बल 1. दोनों स्थानों पर, । उरभ्रः [उरु उत्कट भ्रमति इति- उर+भ्रम्-+-ड पृषो० 2. दोनों ओर 3. दोनों अबस्थाओं में---मन० ३।१२५, | उलोप: भेड़, मेष। उररी (अब्ब०) [उर्+अरीक बा०] 1. सहमति या उभयथा (अव्य०) उभय । थाल 1. दोनों रीतियों से स्वीकृति बोधक अव्यय (इस अर्थ में यह शब्द कृ, भू .. उभपयापि घटते-विक्रम ३ 2. दोनों दशाओं में।। और अस् धातुओं के साथ प्रयुक्त होता है--तथा उभय (ये) युः (अव्य०) उभय-- युस्, एधुस् वा । गतिसंज्ञक या उपसर्ग समझा जाता है, इसी लिए 'उर1. दोनों दिन 2. आगामी दोनों दिन । रीकृत्वा' न बनकर 'उररीकृत्य' बनता है, इस शब्द उम् (अम०) [उम् ' डुम् | (क) क्रोध (व) प्रश्नवाच- के रूपान्तर है-उरी, उरुरी, ऊरी और ऊरुरी) 2. कना (ग) प्रतिज्ञा या स्वीकृति और (घ) सौजन्य या विस्तार (उररीकृ तना० उभ०] सहमति देना, अनु सान्त्वना को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक मति देना, स्वीकार करना-गिरं न कां कामुररीचकार - अव्यय। .भामि०२।१३, शि०१०।१४) उमा ओ: शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उशिवं माति मयते स् (नपुं०. उरः) [ऋ+असुन्, उत्वं रपरश्च] छाती, पतित्लेन मानक वा तारा०1. हिमवान और मेना की वक्षःस्थल -- व्यूढोरस्को वृषस्कन्धः-रघु० १११३, कु० पुत्री, शिव की पनी, कालिदास नाम की व्यत्पत्ति इस ६।५१, उरसि कृ छाती से लगाना। सम० --क्षतम् प्रकार करता है--उगेति (ओह, बस अन तपस्या न छाती की चोट,---ग्रहः-घातः छाती का रोग, फेफड़े करें) मात्रा तपसो निषिद्धा पवादमाख्या सुमन्त्री की लिल्ली की सूजन, प्लरिसी,छदः चोली, अँगिया, जगाम--कू० ११२६, उमावृपाडी--- रघु० ३१२३ -~-त्राणम् कवच, सीनाबन्द --शि० १५।८०,-- जः, 2. प्रकाश, आभा 3. यश, ख्याति 4. शान्ति, प्रशान्तता -----भूः, उरसिजः,, उरसिरुहः स्त्री की छाती, स्तन, 5. रात 6. हल्दी, 7. लन ! सम० गरः जनकः ---- रेजाते रुचिरदृशामरोजकुम्भौ--शि०८५३, २५, हिमालय पर्वत (उना का पिता होने के नाते)..... पति ५९. -भूषणम् छाती का आभूषण,—सूत्रिका मोतियों शिव मुहरनुस्मरवन्तमनुक्ष त्रिपुराहम्मादतिरोधिनः का हार जो छाती के ऊपर लटक रहा हो,--स्थलम् -- कि० ५।१४, इसी प्रकार ईशः, 'वल्लभः, सहाय: छाती, वक्षःस्थल । आदि, · सुतः कार्तिकेय या गोश । डरसिल (दि.) । उरस्+इलच् ] विशाल वक्षःस्थल उम्ब (ब) रः उन-व-अब पधोतरंगा, द्वार वाला। - की चौखट की ऊपर वाली लकही। उस्य (वि०)| उरत्+यत ] 1. औरस सन्तान 2. एक उरः उर्क भेड़। ही वर्ण के विवाहित दम्पती का पुत्र या पुत्री 3. उतम, उरगः (स्त्री० गो) उस्ता गति, उरस । गम्-3, ----रयः पुत्र। सलोपरच. सर्प, साँग गली दोरगक्षता--र० उरस्वत् (वि०) [ उरस्- मनुप्, मस्य वः ] विशाल वक्षः१।२८, ११, ९१ . नाग या पराणों में वर्णित स्थल वाला, चौड़ी छाती वाला। मानव मुख वाला नियमाप-दे गन्धर्वमानपोरग-उरी स्वीकृतिबोधक अव्यय-दे० उररी (उरीक अनुमति राक्षसान-नल ० ११२८, मनु० ३११९६ 3. सीमा, गा देना, अनज्ञा देना, स्वीकृति देना-दक्षेणोरीकृतं त्वया एक नगर का ना -धु० ६९९ । रा ..... अरिः ---- भट्टि ८।११, रघु० १५१७० 2. अनुसरण करना, .... आनः, -शत्रु: 1. गरूड़ (साँपोकादा) 2. मोर, आश्रय लेगा. अयि- रोषमुरीकरोषि नोचेत्--भामि० ....इन्द्रः, -- राजः दामुकि या योधनाग,- प्रतिस(बि) १।४४। विवाह-मुद्रिका के स्थान में साँप रखने वाला, भूषणः उरु (वि.) (स्त्री० ---,-) तु० (वरीयस्, उ० अ० शिव (साँपों से सुपित),--सारचन्दनः, नम एक वरिष्ठ) 1. विस्तृत, प्रशस्त 2. महान्, बड़ा-रघु० प्रकार की चन्दन की लकड़ी,-स्थानन नागों का ७४ 3. अतिशय, अधिक, प्रचुर 4. श्रेष्ठ, मूल्यवान् आवासस्थान अर्थात् पाताल कीमती । सम०, ----कीर्ति (वि.) प्रख्यात, सुविख्यात उरङ्गः गमः । उरम् -।-गम्-'-खच्, सलोपः, गुभागमश्च --रघु० १४।७४,- क्रमः वामनावतार के रूप में साँप . विष्णु भगवान,---गाय (वि०) उत्तम व्यक्तियों द्वारा उरणः (स्त्री० णी) ऋ+क्य, लं, रपव 1. भेडा, जिराका स्तुतिगान किया गया हो-अस्व० ६१,-मार्गः भेड़...वकीवोरणमासांधरत्यरादाय गच्छति -महा० लंबी सड़क, विक्रम (वि०) पराक्रमी, बलशाली, 2. एक राक्षस जिस इन्द्र ने मार शिा था,---णी - स्तन (वि०) ऊँची आवाज वाला, अत्युच्च शब्दभेड़ी। कारी,--हारः मूल्यवान् हार । उरणकः [उरण - कन् 1. भेड़ा, मेव 2. बादल । | उररी-उररी २८ For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१८ ) उरूकः= उलूकः । उलूखलम् [ ऊर्ध्व खम् उलूखम्, पृषो० ला+क ] ओखली उर्णनाभः [ उणेव सूत्रं नाभी गर्भऽस्य–ब० स०] मकड़ी, (जिसमें धान कूटे जाते हैं)-अवहननायोलूखलम् तु० ऊर्णनाभ । -महा०, मनु० ३३८८, ५।११७ । उर्णा [ऊर्ण+ड ह्रस्वः ] 1. ऊन, नमदा या ऊनी कपड़ा | उलखलकम् [ उलूखल+कन् ] खरल । 2. भौवों के बीच केशवृत्त-दे० ऊर्णा । उलूखलिक (वि.) [उलू खल+ठन् ] खरल में पीसा उबंटः [उरु+अट्+अच्] 1. बछड़ा 2. वर्ष । हुआ। उर्वरा [उरु शस्यादिकमृच्छति-ऋ+अच् ] 1. उपजाऊ | उलतः [ उल+ऊतच् ] अजगर, शिकार को दबोच कर भूमि---शि० १५।६६ 2. भूमि । मारने वाला विषहीन सर्प । उर्वशी [ उरून् महतोऽपि अश्नुते वशीकरोति-उरु+अश् | उलूपी [?] नाग कन्या (यह कौरव्य नाग की पुत्री थी, +क गौरा० डी-- तारा०] इन्द्रलोक की एक एक दिन जब वह गंगा में स्नान कर रही थी, उसकी प्रसिद्ध अप्सरा जो पुरूरवा की पत्नी बनी; (उर्वशी दृष्टि अर्जुन पर पड़ी। वह उसके रूप पर मुग्ध हो का ऋग्वेद में बहुत उल्लेख मिलता है। उसकी ओर गई, फलतः उसने अर्जन को अपने घर पाताल लोक दष्टि डालते ही मित्र और वरुण का वीर्य स्खलित हो में लिवा लाने का प्रबन्ध किया। वहां पहुंचने पर गया-जिससे अगस्त्य और वशिष्ठ का जन्म हुआ उसने अर्जुन से अपने आपको पत्नीरूप में स्वीकार [दे० अगस्त्य ] मित्र और वरुण द्वारा शाप दिये जाने करने की प्रार्थना की जिसे अर्जुन ने बड़े संकोच के पर वह इस लोक में आई और पुरूराव की पत्नी बनी, साथ स्वीकार किया। 'इरावान्' नाम का एक पुत्र जिसको कि उसने स्वर्ग से उतरते हए देखा था तथा उलूपी से पैदा हुआ। जव बभ्रुवाहन के तीर से जिसका उसके मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। वह अर्जुन का सिर कट गया था तो उस समय उलूपी की कुछ समय तक पुरूरवा के साथ रही, परन्तु शाप की सहायता से ही उसे पुनर्जीवन मिला)। समाप्ति पर फिर स्वर्गलोक चली गई। पुरूरवा | उल्का | उष-+कक-+-टापु, षस्य ल: ] 1. आकाश में रहने को उसके वियोग से अत्यन्त दुःख हुआ, परन्तु वह वाला दाहक तत्त्व, लक-शि०१५।९१, मन्० ११३८. एक बार फिर उसे प्राप्त करने में सफल हो गया। याज्ञ० १२१४५ 2. जलती हुई लकड़ी, मसाल 3. अग्नि, उर्वशी से 'आयुस्' नाम का पूत्र पैदा हआ और फिर ज्वाला--मेघ०५३ । सम--धारिन (वि.) मशालची वह सदा के लिए पुरूरवा को छोड़ कर चली गई। --पातः उल्कापिंड का टट कर गिरना,-मुखः एक विक्रमोर्वशीय में दिया गया वत्त कई बातों में भिन्न है, राक्षस या प्रेत (अगिया बैताल)-मनु० १२१७१, पुराणों में उसको नारायण मनि की जंघा से उत्पन्न मा० ५।१३। बताया गया है)। सम-रमण वल्लभः-सहायः, | उत्कुषी [ उल+कुष्+क+डीए ] 1. केतु, उल्का पुरूरवा । 2. मशाल। उर्वारः [उह+ऋ| उण् ] एक प्रकार की ककड़ी, दे० उल्बम्,-वम् [ उच+ब (व), चस्य ल वम् ] 1. भ्रूण 'इरि'। 2. योनि 3. गर्भाशय । उर्वो [ ऊर्गु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, डीप् ] 1. 'विस्तृत उल्ब (व) ण (वि०) [उत् +-ब (व) +अच् पृषो०] प्रदेश' भूमि-स्तोकमुव्यां प्रयाति-श० ११७, जुगोप 1. गाढ़ा, जमा हुआ पर्याप्त, प्रचर (रुधिर आदि) गोरूपधरामिवोर्वीम् रघु० २१३, १११४, ३०, ७५, 2. अधिक, अतिशय, तीन--शि० १०॥५४, कु. ७८४ २०६६ 2. पृथ्वी, धरती 3. खुली जगह, मैदान । 3. दृढ़, बलशाली, बड़ा--शि० २०१४१ 4. स्पष्ट, सम-ईशः,—ईश्वरः, धव:,-पतिः राजा,-धरः साफ--तस्यासोदुल्वणो मार्गः - रघु० ४।३३। 1. पहाड़ 2. शेषनाग,-भृत् (पु०) 1. राजा 2. पहाह, । उल्मकः [ उष-+-मक, पस्य ल: ] जलती लकड़ी, मशाल । -रुहः वृक्ष-शि० ४१७। उल्लङघनम् | उद्+लङ+ ल्युट् ] 1. छलांग लगाना, उलपः [वल+कपच, संप्रसारण ] 1. लता, बेल 2. कोमल लांघना 2. अतिक्रमण, तोड़ना। तण--गोगभिणीप्रियनवोलपमालभारिसव्योपकण्ठविपि- उल्लल (वि.) [उद्+लल+अच ] 1. डांवाडोल, नावलयो भवन्ति-मा० ९।२, शि० ४१८ । कंपनशील 2. घने बालों वाला. लोमश। उलूप दे० उलप । उल्लसनम् [उद्+लस्+ ल्युट ] 1. आनन्द, हर्ष उलकः [वल-ऊक संप्रसारण ] 1. उल्ल –नोलकोप्य- | 2. रोमांच। वलोकते यदि दिवा सूर्यस्य कि दूषणम् --भर्त० २।९३, उल्लसित (भू० क० कृ०) उद्+-लस्+क्त 1. चमकीला, त्यजति मदमलकः प्रीतिमांश्चक्रवाक; -शि० ११०६४ उज्ज्वल, आभायुक्त 2. आनन्दित, प्रसन्न । 2. इन्द्र। । उल्लाघ (वि.) [ उद्+लाघ्+क्त ] 1. रोग से मुक्त, For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir T० ए०व० उHD] (कर्तृ०, १० शुक्र ग्रह का ( २१९ ) स्वास्थ्योन्मुख 2. दक्ष, चतुर, कुशल 3. पवित्र । अति चंचल, अत्यन्त कंपनशील-मा० ५।३,-ल: 4. आनन्दित, प्रसन्न । एक बड़ी लहर या तरंग। उल्लाप: [ उद्+लप्+घञ ] 1. भाषण, शब्द, श्रुता | उल्व, उल्वण--दे० उल्ब, उल्बण । मयार्यपुत्रस्योल्लापा:-उत्तर० ३ 2. अपमानजनक- | उशनस् (पुं०) [वश्+कनसि--संप्र० ] (कर्तृ०, ए. शब्द, सोपालंभ भाषण, उपालभ-खलोल्लापाः सोढाः व०-उशना, संबो० ए०व० उशनन्, उशन, उशनः) ----भर्त० ३१६ 3. ऊँची आवाज से पुकारना 4. संवेग शुक्र-ग्रह का अधिष्ठात् देवता, भृगु का पुत्र, राक्षसों या रोग आदि के कारण आवाज में परिवर्तन | का गुरु, वेद में इनका नाम 'काव्य' संभवतः इनकी 6. संकेत, सुझाव। बुद्धिमत्ता की ख्याति के कारण मिलता है-तु० कबीउल्लाप्यम् [ उद्+लप्+णि+यत् ] एक प्रकार का नामशना कविः भग० १०१३७, ये गृह्य व धर्मशास्त्र नाटक-दे० सा० द० ५४५ । के प्रणेता माने जाते हैं-याज्ञ. ११४, नागरिक राज्य उल्लासः [ उद+लस्+घा ] 1. हर्ष, खुशी-सोल्ला व्यवस्था पर भी वह प्रमाणस्वरूप समझे जाते हैंसम् उत्तर० ६, सकौतुकोल्लासम्–उत्तर० २, शास्त्रमुशनसा प्रणीतम्-पंच० ५, अध्यापितस्योशनउल्लास: फुल्लपढेरुहपटलपतन्मत्तपुष्पन्धयानाम्--सा० शनसापि नीतिम्--कु० ३६।। द. 2. प्रकाश, आभा 3. (अलं० शा० में) एक अलं- उशी | वश्+ई, संप्र० ] कामना, इच्छा। कार--परिभाषा-अन्यदीयगुणदोषप्रयुक्तमन्यस्य गुण उशी (षो) रः,-रम्, उशी (षी) रकम् [वश्+ईरन्, दोषयोराधानमुल्लास:-रस०, उदाहरणों के लिए दे०, कित्, सम्प्र०, उष-न-कीरच वा, स्वार्थ कन् च] वीरणरस०, या चन्द्रा० ४।१३१, १३३ 4. पुस्तक के प्रभाग- मूल, खस-स्तनन्यस्तोशीरम्-श० ३९ । अध्याय, अनुभाग, पर्व, कांड आदि, जैसे कि काव्य के | उष् (भ्वा० पर०) (ओषति, ओषित-उषित-उष्ट) 1. जलाना, दस उल्लास। उपभोग करना, खपाना,- ओषांचकार कामाग्निर्दशउल्लासनम् [ उद्+लस् णिच+ल्युट् ] आभा । वक्त्रमहनिशम्-भट्टि०६।१, १४१६२, मनु० ४।१८९ उल्लिङ्गित (वि.) [ उद्+लिंग+क्त ] प्रसिद्ध, 2. दण्ड देना, पीटना-दण्डेनैव तमप्योषेत-मन विख्यात । ९।३७३ 3. मार डालना, चोट पहुँचाना। उल्लीढ (वि.) [ उद्+लिह+क्त ] रगड़ा हुआ, जिला | उषः [उष्-+क 1. प्रभात काल, पौ फटना 2. लम्पट किया गया--मणिः शाणोल्लीढः-~-भर्तृ० २।४४ । 3. रिहाली धरती। उल्लुचनम् [ उद्लु ञ्च् + ल्युट्] 1. तोड़ना, काटना उषणम् (उष्+ल्युट्] 1. काली मिर्च 2. अदरक । --पादकेशांशककरोल्लुञ्चनेषु पणान् दश (दम:) | उषपः [उष्+कपन् 1. अग्नि 2. सूर्य । —याज्ञ० २।२१७ 2. बालों को नोचना, उखाड़ना। उषस् (स्त्री०) [उष्+असि 1. पौ फटना, प्रभात-प्रदीउल्लुण्ठनम- उल्लुण्ठा [ उद्+लुण्ठ + ल्युट्, अ वा] पाचिरिवोषसि-रघु० १२११, उपसि उत्थाय-प्रभात व्यंग्योक्ति--धीरा-धीरा तु सोल्लुण्ठभाषणः खेदयेद- काल में उठकर 2. प्रातः कालीन प्रकाश 3. सांध्यकामम--सा० द. १०५-सोल्लण्ठनम- व्यङग्यपूर्वक; लीन (प्रात: और सायं) अधिष्ठातृदेवी (द्वि० व० में नाटकों में प्राय: मञ्चनिर्देश के रूप में प्रयुक्त। प्रयोग)।-सी दिन का अवसान, सायंकालीन संध्या। उल्लेखः [ उद्+लिख+घञ ] 1. संकेत, जिक्र 2. वर्णन सम०- बुधः अग्नि-उत्तर०६। उक्ति 3. सूराख करना, खुदाई 4. (अलं० शा० में) | उषा [ओषत्यन्धकारम्-उष्+क] 1. प्रभात काल, पो एक अलंकार-बहुभिर्बहुधोल्लेखादेकस्योल्लेख इष्यते, फटना 2. प्रातः कालीन प्रकाश 3. संध्या 4. रिहाली स्त्रीभिः कामोऽथिभिः स्वः काल: शत्रुभिरैक्षि सः घरती 5. डेगची, बटलोही 6. बाण राक्षस की पुत्री -चन्द्रा० ५:१९, तु०, सा० द० ६८२ 5. रगड़ना, तथा अनिरुद्ध की पत्नी [उषा ने अनिरुद्ध को स्वप्न में खुरचना, फाड़ना, खुरमुखोल्लेख-का० १९१, कुट्टिम | देखा, और उस पर मोहित हो गई। उसने अपनी २३२ । सखी चित्रलेखा की सहायता मांगी-चित्रलेखा ने उल्लेखनम् [ उद्+लिख्+ ल्युट्] 1. रगड़ना, खुरचना, उसे परामर्श दिया कि वह आस पास रहने वाले सभी छीलना आदि 2. खोदना-याज्ञ० १६१८८, मनु० राजकुमारों के चित्र अपने साथ ले ले। जब ऐसा ५।१२४ 3. वमन करना 4. जिक्र, संकेत 5. लेख, किया गया, तो उसने अनिरुद्ध को पहचान लिया और चित्रण। उसे अपने नगर में लिवा ले गई, जहाँ कि उसका उल्लोचः [ उद्+लोच्+घञ्] वितान या शामियाना | अनिरुद्ध से विवाह हो गया-दे० 'अनिरुद्ध' भी)। चंदोआ,तिरपाल। सम०---ईशः उषा का स्वामी अनिरुद्ध,-कालः मुर्गा, उल्लोल (वि०) [उद्+लोड्+घञ, डस्य लत्वम् ] | -पतिः,-रमणः अनिरुद्ध, उषा का पति। For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २२० उषित (वि० ) [ वस् ( उ ) + क्त ] 1. बसा हुआ 2. जला हुआ। उषीर दे० उशीर । उष्ट्र: [ उष् + ष्ट्रन, कित्] 1. ऊँट, -- अथोष्ट्रवामीशतवाहितार्थम् - रघु० ५/३२, मनु० ३।१६२, ४१२०, ११। २०२ 2. भैंसा 3. ककुद्मान् साँड, -द्री ऊँटनी । उष्ट्रिका [ उष्ट्र + कन् + टाप् इत्वम् ] 1. ऊँटनी 2. ऊँट की शक्ल की मिट्टी की बनी मदिरा रखने की सुराही -- शि० १२।२६ । उष्ण (वि० ) [ उष् + नक् ] 1. तप्त, गर्म अंशुः करः आदि 2. तीक्ष्ण, स्थिर, फुर्तीला - आददे नातिशीतोष्णो नभस्वानिव दक्षिणः -- रघु० ४१८, ( यहाँ 'उष्ण' का अर्थ 'गर्म' भी है) 3. रिक्त, तीखा, चरपरा 4. चतुर, प्रवीण 5. क्रोधी, ष्णः, ष्णम् 1. ताप, गर्मी 2. ग्रीष्म ऋतु 3. धूप । सम० अंशुः, करः, गुः, दीधितिः, -रश्मिः, रुचिः गर्म किरणों वाला, सूर्य- रघु० ५/४ ८/३०, कु० ३।२५ – अधिगम:, आगमः, - उपगमः गर्मी का निकट आना, ग्रीष्म ऋतु – उदकम् गर्म या तप्त पानी, काल:, गः गर्म ऋतु वाष्पः । 1. आँसू 2 गर्म भाप, वारण:- णम् छाता छतरी, यदर्थ - मम्भोजमिवोष्णवारणम्, - कु० ५५२ । sore (fao) [ उष्ण + कन् ] 1. तेज, फुर्तीला, सक्रिय 2. ज्वरग्रस्त, पीड़ित 3. गर्मी पहुँचाने वाला, गर्म करने वाला, - - कः 1. ज्वर 2. निदाघ, ग्रीष्म ऋतु । उष्णालु (वि० ) [ उष्ण + आलुच् ] गर्मी न सह सकने योग्य, दग्ध, संतप्त, उष्णालुः शिशिरे निषीदति तरोर्मूलालवाले शिखी -- विक्रम ० २।२३ । foot [ अल्प + कन्, नि० उष्ण आदेश:, टाप् + इत्वम् ] माँड । 3 ऊः [ अवतीति- अव् + क्विप् ऊठ् ] 1. शिव 2. चन्द्रमा -- ( अव्यय ० ) 1. आरम्भ-सूचक अव्यय 2. ( क ) बुलावा (ख) करुणा ( ग ) तथा संरक्षा को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय । ऊढ ( वि० ) [ वह + क्त संप्र० ] 1. ढोया गया, ले जाया गया ( वोझा आदि ) 2 लिया गया 3. विवाहित, ढः विवाहित पुरुष, -ढा विवाहिता लड़की । सम० कंकट (वि) कवचधारी, भार्य (वि०) जिसने विवाह कर लिया है, वयसः नवयुवक । ऊढिः (स्त्री० ) [ वह + क्तिन्] विवाह । ऊतिः (स्त्री० ) [ अव् + क्तिन् ] 1. बुनना, सीना 2. संरक्षा 3. उपभोग 4. क्रीड़ा, खेल । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उष्णिमन् (पुं० ) [ उष्ण + इमनिच् ] गर्मी । उष्णीषः, षम् [ उष्णमीपते हिनस्ति - इप् +क तारा०] 1. जो सिर के चारों ओर बाँधी जाय 2. अतः पगड़ी, साफा, शिरोवेष्टन, मुकुट – वलाकापाण्डुरोष्णीषम् - मृच्छ० ५1१९ 3. प्रभेदक चिह्न । उष्णोषिन् (वि० ) [ उष्णीष + इनि] शिरोवेष्टन पहने हुए या राजमुकुट धारण किए हुए का० २२९ - - (पुं०) शिव । उष्मः, -- उष्मकः [उप् + मक्, कन् च] 1. गर्मी 2. ग्रीष्म ऋतु 3. क्रोध 4. सरगरमी, उत्सुकता, उत्कण्ठा । सम० -- अग्वित ( वि०) क्रुद्ध, भास् (पुं०) सूर्य, - स्वेदः बफारा, भाप से स्नान । उष्मन् (पुं० ) [ उष् + मनिन्] 1 ताप, गर्मी - अर्थोष्मन् -भर्तृ० २१४०, मनु० ९।२३१, २२३, कु०५/४६, ७११४ 2. वाष्प, भाप - कु० ५।२३ 3. ग्रीष्म ऋतु 4. सरगरमी, उत्सुकता 5. ( व्या० में ), श् ष् स् और ह, अक्षर दे० 'ऊष्मन्' । उस्रः [वस् | रक्, संप्र०] 1. ( प्रकाश की ) किरण, रश्मि सर्वेरुत्रैः समग्रस्त्वमिव नृपगुणैर्दीप्यते सप्तसप्तिः -- मालवि० २।१३, रघु० ४।६६ कि० ५।३१2. साँड़ 3. देवता,त्रा 1 प्रभात काल, पौ फटना 2. प्रकाश 3. गाय । उह (भ्वा० पर० ) ( ओहति, उहित) 1. चोट मारना, पीड़ित करना 2. मार डालना, नष्ट करना-अप या व्यप के साथ - दे० 'ऊह्' । उह उहह (अव्यय) बुलाने या पुकारने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय । उह्नः [ वह + रक् संप्र०] साँड | ऊधस् ( नपुं० ) [ उन्द् + असुन्, ऊब आदेशः ] ऐन, ऑडी ( बहुव्रीहि समास में बदल कर 'उधन्' हो जाता है) । ऊधन्यम्, ऊधस्यम् [ऊधस् (न्) + यत् ] दूध ( औड़ी से उत्पन्न ) ऊत्रस्यमिच्छामि तवोपभोक्तुम् रघु० २।६६ । ऊन (वि० ) ! ऊन् अच् 1. अभावग्रस्त, अधूरा, कम. किंचिदून मन: शरदामयुतं ययौ - रघु० १०१ अपूर्ण. अपर्याप्त 2. ( संख्या, आकार या अंश में) अपेक्षाकृत कम ऊनवि निवनेत् याज्ञ० ३१, दो वर्ष से कम आयु का 3. अपेक्षाकृत दुर्बल, घटिया - ऊनं न सत्त्वेवधिको बबाधे रघु० २।१४ 4. घटा कर ( संख्याओं के साथ इसी अर्थ में) एकोन एक घटा कर, विंशतिः एक घटाकर बीस = १९ । For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २२१ ) ख) ऊम् (अव्य० ) [ ऊय् + मुक् ] ( क ) प्रश्नवाचकता क्रोध (ग) भर्त्सना, दुर्वचन (घ) धृष्टता और (ङ) ईर्ष्या को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय । ऊम् (स्वा० आ० ) ( ऊयते, ऊत) बुनना, सीना । कररी = दे० उररी । ऊरव्यः (स्त्री० व्या) [ ऊरु + यत् ] वैश्य, तृतीय वर्ण का पुरुष (ब्रह्मा या पुरुष की जंघाओं से पैदा होने के कारण ) तु०, मनु० १।३१, ८७ । ऊरु: (पुं० ) [ ऊर्णु + कु, तुलोपः ] 1. जंघा - ऊरू तदस्य यद्वैश्यः -- ऋक् १०।१०।१२ । सम० - अष्ठीवम् जंघा और घुटना, उद्भव (वि०) जंघा से उत्पन्न - विक्रम ० ११३, ज, जन्मन्, संभव (वि०) जंघा से उत्पन्न - ( पुं०) वैश्य, - वघ्न, -द्वयस्, मात्र ( वि० ) जंघाओं तक पहुंचने वाला, घुटनों तक, - पर्वन् (पुं० ) ( नपुं० ) घुटना, फलकम् जांघ की हड्डी, कूल्हे की हड्डी । ऊदरी दे० उररी । ऊर्ज, (स्त्री० ) [ ऊर्ज, + क्विप् ] 1. सामर्थ्य, बल 2. सत्त्व, भोजन । ऊर्जः [ ऊर्ज, + णिच् +अच् ] 1. कार्तिक का महीना - शि० ६।५० 2. स्फूर्ति 3. शक्ति, सामर्थ्य 4. प्रजननात्मक शक्ति 5. जीवन, प्राण, र्जा 1. भोजन, 2. स्फूर्ति 3. सामर्थ्य, सत्त्व 4 वृद्धि । ऊर्जस् (नपुं० ) [ ऊर्ज, + असुन् ] 1. बल, स्फूर्ति 2. भोजन । ऊर्जस्वत् (वि० ) [ ऊर्जस् + मतुप् ] 1. भोज्य-समृद्ध, रसीला 2. शक्तिशाली । बड़ा । ऊर्जस्वल ( वि० ) [ ऊर्जस् + वलच् ] बड़ा शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर- रघु० २५०, भट्टि० ३।५५ । ऊर्जस्विन् ( वि० ऊर्जस् + विन् ] ताकतवर, दृढ़, ऊर्जित ( वि० ) [ ऊर्ज + क्त 1. शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर मातृकं च धनुरूजितं दधत् रघु० १११६४, बलशाली, दृढ़ (वाणी) - शि० १६ । ३८ 2. पूज्य, , बढ़िया, श्रेष्ठ, सुन्दरश्री:- शि० १६।८५, मकरोजित केतनम् - रघु० ९ ३९ 3. उच्च, भव्य, तेजस्वी - 'आश्रयं वच:- कि० २।१ जोशीला या शानदार, तम् 1. सामर्थ्य, ताकत 2. स्फूर्ति । ऊर्णम् [ ऊर्णु + ड] 1. ऊन 2. ऊनी वस्त्र । सम० - नाभः, नाभिः पटः मकड़ी - ब्रद, दस्― ( वि० ) ऊन की भांति नरम | ऊर्णा [ऊर्ण+टाप् । 1. ऊन- रघु० १६।८७ 2. भौंहों का मध्यवर्ती केशपुंज । सम० - पिंड: ऊन का गोला । ऊर्णायु ( वि० ) [ ऊर्णा + यु | ऊनी, यु: 1. मेंढा 2. मकड़ी - भामि० १।९०3. ऊनी कंबल । ऊर्णु (अदा० उभ० ) (ऊर्णो (ण) ति, उर्णुते ऊणित ) ढकना, घेरना, छिपाना - भट्टि० १४।१०३, शि० २०१४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( प्रेर० ) ऊर्णावयति, ( इच्छा० ) ऊर्णुनूषति, उर्जुन- नु - विषति; प्र ढकना, छिपाना आदि । ऊर्ध्व ( वि० ) [ उद् + हा +ड पृषो० ऊर् आदेशः ] 1. सीधा, खड़ा, ऊपर का, केश आदि, ऊपर की ओर उठता हुआ 2. उठाया हुआ, उन्नत, सीधा खड़ा - हस्तः पादः आदि 3. ऊँचा, बढ़िया, अपेक्षाकृत ऊँचा या ऊपर का 4. खड़ा हुआ (विप० आसीन ) 5. फटा हुआ, टूटा हुआ (बाल आदि ), ध्वम् उन्नतता, ऊँचाई, र्ध्वम् ( अव्य० ) 1. ऊपर की ओर, ऊँचाई पर, ऊपर 2. बाद में ( = उपरिष्टात् ) 3. ऊँचे स्वर से, जोर से 4. बाद में, पश्चात् (अपा० के साथ ) — ते त्र्यहादूर्ध्वमाख्याय - कु० ६।९३, रघु० १४।६६ । सम० कच, केश (वि०) 1. खड़े वालों वाला 2. जिसके बाल टूट गये हों (चः ) केतु, कर्मन् (नपुं०) -क्रिया 1. ऊपर को गति 2. ऊँचा पद प्राप्त करने के लिए चेष्टा ( -- पुं० ) विष्णु, कायः, -- कायम् शरीर का ऊपरी भाग, गः, -- गामिन् ( वि० ) ऊपर जाने वाला, चढ़ा हुआ, उठता हुआ, गति (वि० ) ऊपर की ओर जाने वाला ( स्त्री० तिः) गमः, -गमनम् 1. चढ़ाव, उन्नतता 2. स्वर्ग में जाना, चरण, पाव ( वि० ) ऊपर को पैर किये हुए ( णः ) शरभ नाम का एक काल्पनिक जन्तु, जानु, ज्ञ, जु ( वि० ) 1. घुटने उठाये हुए, पुट्टी के बल बैठा हुआ -- शि० ११।११ 2. उकडं वैटा हुआ, दृष्टि, नेत्र (वि० ) 1. ऊपर हुआ 2. ( आलं०) उच्चाकांक्षी, महत्त्वाकांक्षी (स्त्री० - टिः ) भौंओं के बीच में अपनी दृष्टि को संकेन्द्रित करना (यो० द० ), देहः अन्त्येष्टि संस्कार, पातनम् ऊपर चढ़ाना, परिष्करण ( जैसे पारे का ) - पात्रम् यज्ञीय पात्र याज्ञ० १।१८२, -मुख (वि० ) ऊपर को मुंह किये हुऐ, उन्मुख कु० १११६, रघु० ३।५७, मौहूर्तिक (वि०) थोड़ी देर के पश्चात् होने वाला, रेतस् ( वि० ) अनवरत ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, स्त्री-संभोग से सदैव विरत रहने वाला - ( पुं० ) 1. शिव 2. भीष्म, लोकः ऊपर की दुनिया, स्वर्ग, बर्त्मन् (पुं० ) पर्यावरण, बातः - वायुः शरीर के ऊपरी भाग में रहने वाली वायु - शायिन् (वि० ) ऊपर को मुंह ( बच्चे की भाँति ) करके चित सोया हुआ - - ( पु० ) शिव, शोधनम् वमन करना, श्वासः साँस छोड़ना, प्राण त्यागना, -- स्थितिः (स्त्री० ) 1. अश्व पालन 2. घोड़े की पीठ 3. उन्नतता, श्रेष्ठता । ऊर्मि: (पुं०, स्त्री० ) [ ऋ + मि, अर्तेरुच्च ] 1. लहर, झाल - पयोवेत्रवत्याश्चलोमि मेघ० २४ 2. धारा प्रवाह 3. प्रकाश 4. गति, वेग 5 वस्त्र की शिकन या चुन्नट 6. पंक्ति, रेखा 7. कष्ट, बेचैनी, चिन्ता । For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२२ ) सम० -मालिन् (वि.) तरंग मालाओं से विभूषित | --पः 1. अग्नि 2. पितरों की (ब० व० में) एक -(पुं०) समुद्र। श्रेणी । ऊमिका [ ऊर्मि+कन्+टाप् ] 1. लहर 2. अंगूठी (लहर ऊह (भ्वा० उभ०) (ऊहति–ते, ऊहित) 1. टाँकना, की भांति चमकीली) 3. खेद, खोई वस्तु के लिए। अंकित करना, अवेक्षण करना 2. अटकल लगाना, शोक 4. मक्खी का भिनभिनाना 5. वस्त्र में पड़ी अंदाज करना, अनुमान लगाना-अनुक्तमप्यूहति शिकन या चुन्नट । पण्डितो जनः --पंच० ११४३ 3. समझना, सोचना, ऊर्व (वि.) [ऊरु+अ] विस्तृत, बड़ा,-4: वडवानल । पहचानना, आशा करना-ऊहाञ्चके जयं न च-भट्टि. ऊर्वरा [उरु शस्यादिकमृच्छति-ऋ-अच्+टाप्] उपजाऊ १४।७२ 4. तक करना, विचार करना--(प्रेर०) तर्क भूमि। या चिन्तन करवाना, अनुमान या अटकल लगवाना अलु पिन् [ दे० उलुपिन् ] शिशुक, सूंस । -कि०१६।१९, अप--, 1. हटाना, दूर करना---स ऊलूक दे० उलूक । हि विघ्नानपोहति--श० ३।१ 2. तुरन्त अनुकरण ऊष (भ्वा० पर०) (ऊषति) रुग्ण होना, अस्वस्थ होना, | करना, अपवि-, रोकता, हटाना, अभि , अटकल बीमार होना। लगाना अंदाज लगाना 2. ढकना, उप-, निकट लाना, ऊषः [ ऊ+क | 1. रिहाली धरती 2. अम्ल 3. दरार, निवि--, सम्पन्न करना, प्रकाशित करना (दे० नियूंढ) तरेड़ 4. कर्णविवर 5. मलय पर्वत 6. प्रभात, पौ फटना, परिसम्--, इधर-उधर छिड़कना, प्रति--, 1. विरोध कुछ लोगों के मतानुसार (—षम् ) भी। करना, बाधा डालना, रुकावट डालना 2. मुकरना ऊषकम् [ ऊष+कन् ] प्रभात, पौ फटना। (दे० प्रत्यूह) प्रतिवि---, शत्र के विरुद्ध सैनिक मोर्चा ऊषणम्-णा [ ऊ+ल्युट, स्त्रियां टाप् च] 1. काली मिर्च, लगाना, वि-, युद्ध के अवसर पर सेना की व्यवस्था 2. अदरक । करना ... सूच्या वजेण चवेतान् व्यूहेन व्या योधयेत् ऊपर (वि०) [ऊप+रा+क] नमक या रेहकणों से - मनु०७।१९१, सम् -, एकत्र करना, इकट्ठे होना। युक्त,-रः, रम् वंजर भूमि जो रिहाल हो--शि० ऊहः [ ऊह +धा ] 1. अटकल, अंदाज 2. परीक्षण, १४१४६ । निर्धारण 3. समझ-बूझ 4. तर्कना, युक्ति देना 5. ऊववत् =दे० (वि०) ऊपर । अध्याहार (न्यूनपद की पूर्ति) करना । सम०-अपोहः ऊष्मः [ ऊष्+मक ] 1. ताप 2. ग्रीष्म ऋतु। पूरी चर्चा, अनुकूल व प्रतिकूल स्थितियों पर पूरा ऊष्मण,--ण्य (वि०) [ ऊष्म+न ] [ ऊष्मन् । यत् ] गर्म, सोच-विचार,--भामि० २।७४ दे० 'अपोह' ।। भाप निकालने वाला। कहनम् [ ऊह+ल्युट ] अनुमान लगाना, अटकलवाजी। ऊष्मन् (पुं०) [ ऊप+मनिन् ] 1. ताप, गर्मी 2. ग्रीप्म- ऊहनी [ ऊहन-|-डोप ] झाड़ , वुहारी। ऋतु, निदाघ 3. भाप, वाष्प, उच्छ्वास 4. सरगरमी, हिन (वि.) [ऊह -- इनितर्क करने वाला, अनुमान जोश, प्रचण्डता 5. (व्या० में) श, ष, स् और है की। लगाने वाला,-नो 1. संघात, संचय 2. क्रम, क्रमबद्ध ध्वनियाँ । सम०--उपगमः ग्रीष्म ऋतु का आगमन, । समुदाय (तु. 'अक्षौहिणी') ऋ (अव्य०) (क) बुलाना (ख) परिहास और (ग)। करना, अवाप्त करना, अधिगत करना, भेंट होना, निन्दा या अपशब्दव्यंजक विस्मयादिबोधक अव्यय ।। 4. चलायमान करना, उत्तेजित करना। ऋi (भ्वा० पर०) (ऋच्छति. ऋत-प्रेर० अर्पयति, | iii (स्वा० पर०) (ऋगांति, ऋण) 1. चोट पहुँचाना, इच्छा० अरिरिषति) 1. जाना. हिलना-डलना-अम्भ- घायल करना 2. आक्रमण करना--प्रेर० --(अर्पयति, इछायामच्छामच्छति-शि० ४।४४ 2. उठाना, अपित) 1. फेंकना, दालना, स्थिर करना या जमाना उन्मुख होना। -~-रघु० ८1८७ 2. रखना, स्थापित करना, स्थिर ii (जु० पर०) (इयति, ऋत) (बहुधा वेद में प्रयुक्त) करना, निर्देश देना या (आंख आदि का) फेरना 1. जाना 2. हिलना-डुलना, डगमग होना 3. प्राप्त 3. रखना, सम्मिलित करना, देना, बैठा देना, जमा For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२३ ) देना 4. सौंपना, दे देना, सुपुर्द कर देना, हवाले कर ] ऋजीष-दे० 'चीष' । देना-इति सूतस्याभरणान्यर्पयति श० १।४, १९। ऋज, ऋजक (वि.) [अर्जयति गणान, अर्ज+उ] (स्त्री० ऋण (वि.) [वश्च+क्त पृषो० वलोपः ] घायल, क्षत- -जु-ज्वी) (म० अ०-ऋजीयस्, उ० अ० ऋजिष्ठ) विक्षत, आहत । 1. सीधा (आलं. भी)-उमां स पश्यन् ऋजुनैव चक्षुषा शक्यम् [ऋच-+थक् ] 1. धन-दौलत 2. विशेषकर --कु० ५।३२ 2. खरा, ईमानदार, स्पष्टवादी-पंच० सम्पत्ति, हस्तगत सामग्री या सामान (मृत्यु हो जाने १४१५ 3. अनुकल, अच्छा । सम०-ग: 1. व्यवहार पर छोड़ा हुआ), दे० 'रिकथ' 3. सोना। सम० में ईमानदार 2. तीर, - रोहितम् इन्द्र का सीधा ----ग्रहणम् प्राप्त करना या उत्तराधिकार में (संपत्ति) लाल धनुष । पाना,- ग्राहः उत्तराधिकारी या संपत्ति का प्राप्तकर्ता, ! ऋज्वी [ ऋजु+डोष ] 1. सीधीसाधी सरल स्त्री 2. तारों --भागः 1. संपत्ति का बँटवारा, विभाजन 2. अंश, । को विशेष गति । दाय, --भागिन्,-हर, हारिन् (पुं०) 1. उत्तरा ऋणम् [ऋ+क्त ] 1. कर्जा (तीनों प्रकार का ऋण, धिकारी 2. सह उत्तराधिकारी। दे० अनृण), अंत्यं ऋणं (पितणम्) पितरों को दिया ऋक्षः [ ऋष्+-स किच्च ] 1. रोछ - मनु० १२।६७ 2. जाने वाला अन्तिम ऋण-अर्थात्-पुत्रोत्पादन 2. पर्वत का नाम, क्षः,-क्षम् 1. तारा, तारकपुंज, कर्तव्यता, दायित्व 3. (बीजग. में) नकारात्मक नक्षत्र—मनु० २।१०१ 2. राशिमाला का चिह्न चिह्न या परिमाण, घटा-चिह्न (विप०-धन) 4. राशि,- क्षाः (पु-ब० व.) कृत्तिका-मंडल के सात किला, दुर्ग 5. पानी 6. भूमि । सम०- अन्तक: मंगल तारे, जो बाद में सप्तर्षि कहलाये-रघु० १२।२५, ग्रह,--अपनयनम्,-अपनोदनम्,--अपाकरणम्,-दानम्, -क्षा उत्तर दिशा, -क्षी रीछनी, मादा भालू । सम० --मुक्तिः , --- मोक्षः,---शोधनम् ऋणपरिशोध करना, --चक्रम् तारामंडल,-नाथः,-ईशः 'तारों का स्वामी ऋण चुकाना,.."आदानम् कर्जा वसूल करना, उधार चन्द्रमा,- नेमिः विष्णु,.--राज,--राजः 1. चन्द्रमा दिया हुआ द्रव्य वापिस लेना,- ऋणम् (ऋगार्णम् ) 2. रीछों का स्वामी, जांबवान, हरीश्वरः रीछों और एक कर्ज के लिए दूसरा कर्ज, एक ऋण चुकाने के लंगूरों का स्वामी रघु० १३।७२। लिए दूसरा ऋण ले लेना,--ग्रहः 1. रुपया उधार ऋक्षरः [ ऋष् + सरन् ] 1. ऋत्विज 2. काटा। लेना 2. उधार लेने वाला,--- दात,-दायिन् (वि.) ऋक्षवत् [ ऋक्ष+मतुप-मस्य वः ] नर्मदा के निकट स्थित जो ऋण दे देता है,--दासः वह क्रीत दास जिसका एक पहाड़,-वप्रक्रियामक्षवतस्तटेषु----रघु० ५।४४; ऋण परिशोध करके उसे लिया गया है.---ऋणमोचनेन ऋक्षवन्तं गिरिश्रेष्ठमध्यास्ते नर्मदां पिबन्-रामा० । दास्यत्वमभ्युपगतः ऋणदासः--मिता०, मत्कुणः, ऋच् (तुदा० पर०) (ऋचति) 1. प्रशंसा करना, स्तुति -मार्गणः प्रतिभूति, जमानत,-मुक्त (वि०) ऋण गान करना 2. ढकना, पर्दा डालना 3. चमकना। से मुक्त,-मुक्तिः आदि दे० 'ऋणापनयनम',-लेख्यम ऋच् (स्त्री०) [ ऋच् + स्विप् ] 1. सूक्त 2. ऋग्वेद का 'ऋण-बन्धपत्र' तमस्सुक जिसमें ऋण की स्वीकृति मंत्र, ऋचा (विप० यजुस् और सामन) 3. ऋक्संहिता दर्ज हो (विधि में)। (ब०व०) 4. दीप्ति (रुच' के लिए) 5. प्रशंसा ऋणिकः [ ऋण+पठन् ] कर्जदार याज्ञ० २।५६, ९३ । 6. पूजा। सम०--विधानम् ऋग्वेद के मंत्रों का पाठ ऋणिन् (वि.) [ऋण+इनि] कर्जदार, ऋणग्रस्त, करके कुछ संस्कारों का अनुष्ठान,-वेदः चारों वेदों ___ अनुगृहीत (किसी भी बात से)। में सबसे पुराना वेद, हिन्दुओं का अत्यंत पवित्र और ! ऋत (वि.) [ऋ+क्त ] 1. उचित, सही 2. ईमानदार, प्राचीन ग्रन्थ,-संहिता ऋग्वेद के सूक्तों का क्रमबद्ध सच्चा-भग० १०॥१४ 3. पूजित, प्रतिष्ठाप्राप्त संग्रह। -तम् (अव्य०) सही ढंग से, उचित रीति से,--तम् ऋचीषः [ऋ+ईषन् ] घण्टी,--षम् कड़ाही । (लौकिक साहित्य में इसका प्रयोग प्रायः नहीं मिलता) ऋच्छ (तुदा० पर०) (ऋच्छति) 1. कड़ा, या सख्त 1. स्थिर और निश्चित नियम, विधि (धार्मिक) होना 2. जाना 3. क्षमता का न रहना। 2. पावन प्रथा 3. दिव्य नियम, दिव्य सचाई 4. जल ऋच्छका [ ऋच्छ+कन्+-टाप् ] कामना, इच्छा। 5. सचाई, अधिकार 6. खेतों में उञ्छवृत्ति द्वारा ऋi (भ्वा० आ०) (अर्जते, ऋजित) 1. जाना 2. जीविका (विप० कृषि), ऋतमुञ्छशिल वृत्तम्-मनु० प्राप्त करना, हासिल करना 3. खड़े होना या स्थिर ४।४। सम०-धामन् (वि.) सच्चे या पवित्र होना 4. स्वस्थ या हृष्ट-पुष्ट होना। स्वभाव वाला,-(पुं०) विष्णु ।। ii (भ्वा० पर०) अवाप्त करना, उपार्जन करना, ऋतीया [ ऋत+ईयङ+टाप निन्दा, भर्त्सना । तु० 'अर्ज। | ऋतु [ ऋ तु, कित्] 1. मौसम, वर्ष का एक भाग, ऋतुएँ For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२४ ) गिनता म छ: है-..शाशरश्च वसन्तश्च ग्रीष्मो वर्षा । --: विष्ण -जुम् 1. वृद्धि, विकास 2. प्रदर्शित शरद्धिमः-- कभी कभी ऋतुएँ पाँच समझी जाती है। उपसंहार, म्पाट परिणाम। (शिशिर और हिम या हेमन्त एक गिने जाने पर) ऋद्धिः (स्त्री०) [ऋ--तिन | 1. विकाम, वृद्धि 2. युगारंभ, निश्चित काल 3. आर्तव, ऋतुस्राव, 2. सफलता, गम्पन्नता, बहनापत 3. विस्तार, विस्तति, माहवारी 4. गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल-वर- विभति 4. अतिप्राकृतिक शक्ति, सर्वोपरिता मतषु नैवाभिगमनम् --पंच० १, मनु० ३४६, याज्ञ० 5. सम्पन्नत!। ११११ 5. उपयुक्त मौसम या ठोक समय 6. प्रकाश, ! ऋधु (दिवा० स्वा० परध्य नि, नोनित अद) 1. आभा 7. छ: की संख्या के लिए प्रतीकात्मक अभि- संपन्न होना, समृद्ध होगा, फलना फूलना, सफल होना व्यक्ति । सम०-कालः,-समयः,--वेला 1. गर्भाधान 2. विकसित होना, नहला (आलं. भी) 3. मंतुष्ट के लिए अनुकूल समय अर्थात ऋतुस्राव से लेकर १६ करना, तृप्त करना, जानकारना, मनाना मा० ५। रातें, दे० उ० ऋतु 2. मौसम की अवधि,---कणः २९, सम् -'फलना-मना । ऋतुओं का समुदाय,--गामिन् (गर्भाधान के लिए उप- अभः [ अरि स्व अदिती वा भवति इति ऋ ई ] युक्त समय पर अर्थात् मासिकधर्म के पश्चात् ) स्त्री से देवता, दिव्यता, देव । संभोग करने वाला,-पर्णः अयोध्या के एक राजा का भक्षः [भयो देवा नियन्ति वयन्नि अति ---ऋभु नाम, अयुतायु का पुत्र, इक्ष्वाकु की संतान, (अपना +क्षि-1-5] 1. इन्द 2. (इन्द्र का) स्वर्ग। राज्य छिन जाने पर निषध देश का राजा नल जब आप ऋभुक्षिन् (१०) (10. क्षाः, कर्म य० व० दग्रस्त हआ तो वह राजा ऋतुपर्ण की सेवा में आया। -- ऋगुनः) | मषः वज्र स्वर्गो वास्याग्नि-इनि। द्यतक्रीड़ा में बड़ा कुशल था। अतः उस राजा ने नल से द्यूतक्रीड़ा सीखी तथा बदले में उसे अश्वसंचालन का ऋल्लकः [?] एक प्रकार के वाद्ययंत्र को बजाने वाला। काम सिखाया। फलतः इसी की बदौलत राजा ऋतुपर्ण, ऋश्यः | ऋश्+वाप] सफेद पैरो वाला बारहनिया हरिण, इसके पूर्व कि दमयन्ती अपना दूसरा पति चुनने के -श्यम् हत्या। गण केतुः, केतन: 1. अनिरुद्ध, विचार को कार्य में परिणत करे, नल को कुण्डिनपुर प्रद्युम्न का पुत्र 2. कारदेव । पहुँचाने में सफल हुआ),-पर्यायः,-वृत्तिः ऋतुओं का | ऋष् । (तुदा० पर०- ऋपति, कृष्ट) 1. नाना, पहुंचना आमा-जाना,--मुखम् ऋतु का आरम्भ या पहला दिन 2. मार डालना. चोट पहुँचाना। -राजः बसन्त ऋतु,-लिंगम् 1. रजःस्राव का लक्षण या ii (भ्वा० पर०-अति) 1 यहना 2 किगलना। चिह्न (जैसे की बसन्त ऋतु में आम के बौर आना) । ऋषभः [प अभक ] 1. गाँ। 2. श्रेष्ठ, मश्रेिष्ठ 2. मासिक स्राव का चिह्न, -संधिः दो ऋतुओं का । मिलन,---स्नाता रजोदर्शन के पश्चात् स्नान करके (समास के अंनिग पद के रूप में) यथा पुरुषर्षभः, भरतर्षभः, आदि 3. संगीत के गात स्वरों में से दूभग निवृत्त हुई, और इसोलिए संभोग के लिए उपयुक्त स्त्री-धर्मलोपभवादाजीमत्स्नातामिमां स्मरन् -- रघु० ..-ऋषभोत्र गोयन इति-आय०१०१ 4. मूगर की ११७६, -स्नानम् रजोदर्शन के पश्चात् स्नान करना । पूंछ 5. गगरमच्छ को पूंछ, भी 1. पुल्य के आकार प्रकार की स्त्री (जैसे कि दाढ़ी आदि का होना) ऋतुमती [ऋतु+मतुप्+डीप] रजस्वला स्त्री। 2. गाय विधवा । सम०-- दाटः एक पहाड़ का नाम, ऋते (अव्य०) सिवाय, बिना (अपा० के साथ)--हते ----ध्वजः गिय। क्रौर्यात्समायातः-भट्टि० ८।१०५ अवेहि मां प्रीतमृते ऋषिः [ ऋप-इन्, कित] 1. एक अन्तःस्फूर्त कवि या तुरङ्गमात्-रघु० ३१६३ पापादते-श०६।२२, कु० मुनि, मंत्र दृष्टा 2. पुण्यात्मा मनि, संन्यासी, विरक्त ११५१, २०५७, (कभी-कभी कर्म के साथ) ऋतेऽपि योगी 3. प्रकाश की किरण । सम.. कूल्या पवित्र त्वां न भविष्यन्ति सर्वे-भग० १११३२ (करण. के . नदी,-तर्पणम् ऋषियों की सेवा में प्रस्तुत किया गया साथ विरल प्रयोग)। तर्पण ---(अध्यादिक)..-पंचमी भाद्रपदकृष्णा पंचमी ऋस्विज् (पुं०) [ऋतु+यज--- क्विन्] यज्ञ के पुरोहित के को होने वाला (स्त्रियों का) एक पर्व,-लोक: रूप में कार्य करने वाला, चार मुख्य ऋत्विज होता, ऋषियों का संसार,-स्तोमः 1. ऋषियों का स्तुति-गान, उद्गाता, अध्वर्य और ब्रह्मा है, बड़े २ संस्कारों में 2. एक दिन में समाप्त होने वाला एक विशेष यज्ञ । ऋत्विजों की संख्या १६ तक होती है। ऋष्टिः (पु०-स्त्री०) [ ऋ+-क्तिन ] 1. दुधारी तलऋड (भू० क० कृ०) [ऋ--क्त ] 1. सम्पन्न, फलता- वार 2. (सामान्यतः) तलवार, कृपाण 3. शस्त्र (बर्डी, फूलता, धनवान्---रघु०१४।३०, २१५०, ५।४० 2. भाला आदि)। वृद्धि-प्राप्त, वर्धमान 3. जमा किया हुआ (अनादिक), ऋष्यः [ ऋष्+क्यन् । सफेद पैरों वाला बारहसिंघा For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२५ ) हरिण। सम०-अंकः, केतनः,-केतुः अनिरुद्ध,-मूक:पंपा बुलाया, और अपनी पुत्री शान्ता (यह दत्तक पुत्री सरोवर के निकट स्थित एक पर्वत जहां कुछ दिनों तक थी, इसके वास्तविक पिता राजा दशरथ थे) का राम वानरराज सुग्रीव के साथ रहे थे— ऋष्यमूकस्तु विवाह इनसे कर दिया। ऋष्यशृंग ने इस बात पम्पायाः पुरस्तात्पुष्पितद्रुमः,-शृङ्गः एक मुनि का से प्रसन्न होकर उसके राज्य में पर्याप्त वर्षा नाम (यह विभाण्डक का पुत्र था, इसके पिता ने कराई। यही वह ऋषि था जिसने राजा दशरथ जंगल में ही इसका पालन-पोषण किया, जब तक यह के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसके वयस्क न हुआ तव तक इसने किसी दूसरे मनुष्य को फलस्वरूप राम और उनके तीन भाइयों का जन्म नहीं देखा। जब अनावृष्टि के कारण अंगदेश बर्बाद हुआ)। सा हो गया तो उसके राजा लोमपाद ने, ब्राह्मणों के | ऋष्यक: [ ऋष्य+कन] चित्तीदार सफेद पैरों वाला परामर्शानुसार ऋष्यशृंग को कुछ कन्याओं द्वारा । बारहसिंघा हरिण । ऋ (अव्य०) (क) त्रास (ख) दुरदुराना (ग) भर्त्सना, निन्दा ' द्योतक अव्यय (पुं०-३ः) 1. भैरव 2. एक राक्षस । (घ) करुणा तथा (ङ) स्मृति का व्यंजक विस्मयादि- ऋ (क्या० पर०-ऋणाति, ईर्ण) जाना, हिलना-डुलना। एः (पं.) [इ-विच विष्णु, (अव्य.) (क) स्मरण ! (ख) ईर्ष्या (ग) करुणा (घ) आमन्त्रण और (ङ) घणा तथा निन्दा व्यंजक (विस्मयादि द्योतक) अव्यय ।। एक (सर्व वि०) [+कन्] 1. एक, अकेला, एकाकी, केवल मात्र 2. जिसके साथ कोई और न हो 3. वही, विल्कुल वही, समरूप --मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येक महात्मनाम---हि० १११०१ 4. स्थिर, अपरिवर्तित 5. अपनी प्रकार का अकेला, अद्वितीय, एक वचन 6. मुख्य, सर्वोपरि, प्रमुख, अनन्य-एको रागिषु राजते -भर्तृ० ३.१२१ 7. अनुपम, बेजोड़ 8. दो या बहुत में से एक--मेघ० ३०१७८ १. वहुधा अंग्रेजो के अनिश्चयवाचक निपात (a या an) को भांति प्रयुक्त --ज्योतिरेक-श० ५.३०, एक, दूसरा; 'कुछ' अर्थ को प्रकट करने के लिए बहुवचनांत प्रयोग; अन्ये, अपरे इसके सहसम्बन्धी शब्द हैं। सम०-- अक्ष (वि०) 1. एक धरी वाला 2, एक आँख वाला (--क्षः) 1. कौवा 2. शिव,----अक्षर (वि.) एक अक्षर वाला (-रम्) 1. एक अक्षर वाला 2. पावन अक्षर 'ओन्' ----अन (वि.) 1. केवल एक पदार्थ या बिन्दु पर स्थिर 2. एक ही ओर ध्यान में मग्न, एकाग्रचित्त, तुला हुआ,-रघु० १५/६६, मनुमेकाग्रमासीनम्-मनु० । २९ ११ 3. अव्यग्र, अचंचल, अध्य= अग्र (-प्रयम्) एकाग्रता,- अंग: 1. शरीर रक्षक 2. मंगलग्रह या बुध ग्रह,-अनुदिष्टम् अन्त्येष्टि संस्कार जो केवल एक ही पूर्वज (सद्यो मत) को उद्देश्य करके किया गया हो, —अंत (वि०) 1. अकेला 2. एक ओर, पाश्र्व में 3. जो केवल एक ही पदार्थ या बिन्दु की ओर निर्दिष्ट हो 4. अत्यधिक, बहुत-कु० ११३६ 5. निरपेक्ष, अचल, सतत-स्वायत्तमेकान्तगुणम्-भर्तृ० २१७, मेघ०१०९, (-तः) एकमात्र आश्रय, निश्चित नियम-तेजः क्षमा वा नैकान्तं कालज्ञस्य महीपतेः-शि० २।८३, (-तम्, तेन, ततः, ते) (अव्य.) 1. केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत 2. अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा-वयमप्येकान्ततो निःस्पृहा:-भर्त० ३।२४, दुःखमेकान्ततो वा-मेघ० १०९,-अन्तर (वि.) अगला, जिसमें केवल एक का ही अन्तर रहे, एक के बाद एक को छोड़ कर-श०७।२७, अंतिक (वि०) अन्तिम निर्णायक,-अयन (वि.) 1. जहां से केवल एक ही जा सके, (जैसे कि पगडंडी या बटिया) 2. नितान्त ध्यानमग्न, तुला हुआ दे० एकाग्र (-नम्) 1. एकान्त स्थल या विश्राम स्थली 2. मिलने का स्थान, संकेत-स्थल 3. अद्वैतवाद 4. केवलमात्र For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२६ ) उद्देश्य-सा स्नेहस्य एकायनीभूता-मालवि० २११५, --अर्थः 1. वही वस्तु, वही पदार्थ या वही आशय 2. वही भाव,-अहन् (हः) 1. एक दिन का समय 2. एक दिन तक चलने वाला यज्ञ,-आतपत्र (वि.) एकच्छत्र से विशिष्टीकृत (विश्वभर को प्रभुता को दर्शाने वाला)-एकातपत्रं जगतः प्रभुत्वम् -रघु० २। ४७, शि० १२।३३ विक्रम० ३।१९,-आदेशः दो या दो से अधिक अक्षरों का एक स्थानापन्न (या तो एक स्वर का लोप करके या दोनों को मिला कर प्राप्त किया गया) जैसे कि 'एकायन' में आ,-आवलिः, -ली (स्त्री०) मोतियों की या अन्य मनकों की एक लड़, -एकावली कण्ठविभूषणं वः---विक्रमांक० ११३०, लताविटपे एकावली लग्ना-विक्रम० ११२, (अलं० शा० में) ऐसी उक्तियों की पंक्ति जिसमें कर्ता का विधेय और विधेय का कता के रूप में नियमित संक्रमण पाया जाय-स्थाप्यतेपोह्यते वापि यथापूर्व परस्परम्, विशेषणतया यत्र वस्तु सैकावली द्विधा -काव्य० १०,-उदकः (संबंधी) जो एक ही मत पूर्वज से जल के तर्पण द्वारा संबद्ध हो। -उबरः,-रा सगा (भाई या बहन),---उहिष्टम श्राद्धकृत्य जो केवल एक ही मत व्यक्ति को (दूसरे पूर्वजों को सम्मिलित न करके) उद्देश्य करके किया गया हो,-ऊन (वि०) एक कम, एक घटाकर, -- एक (वि.) एक एक करके, व्यष्टिरूप से, एक अकेला-रघु० १७:४३, (-कम्)=एकैकशः (अव्य०) एकर करके, व्यक्तिशः, पृथक्-पृथक, -ओघः एक सतत धारा,-कर (वि०) (स्त्री० -री) 1. एक ही कार्य करने वाला 2. (-रा) एक ही हाथ वाली 3. एक किरण वाली,--कार्य (वि०) मिलकर काम करने वाला, सहयोगी, सहकारी (यम्) एक मात्र कार्य, वही कार्य,-कालः 1. एक समय 2. उसी समय,-कालिक,—कालीन (वि०) 1. केवल एक बार होने वाला 2. समवयस्क, समसामयिक,-कुंडल: कुबेर, बलभद्र, शेषनाग,- गुरु, -गुरुक (वि०) एक ही गुरु वाला (-ह:-रुकः) गुरुभाई,-चक्रः (वि.) 1. एक ही पहिये वाला 2. एक ही राजा द्वारा शासित, (-क्रः) सूर्य का रथ, -चत्वारिंशत् (स्त्री०) इकतालीस,-घर (वि०) 1. अकेला घूमने या रहने वाला-कि १३।३, 2. एक ही अनुचर रखने वाला 3. असहाय रहने वाला -चारिन् (वि.) अकेला, (–णी) पतिव्रता स्त्री, -चित्त (वि.) केवल एक ही बात को सोचने वाला (-सम्) 1. एक ही वस्तु पर चित्त की स्थिरता 2. ऐकमत्य-एकचित्तीभूय - हि० १--एक मत से, -चेतस्,-मनस् (वि.) एक मत, दे० °चित्त, I -जन्मन् (पुं०) 1. राजा 2. शूद्र, दे० नी०, जाति ---जात एक ही माता-पिता से उत्पन्न,—जातिः शूद्र (विप० द्विजन्मन्) ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्णा द्विजातयः, चतुर्थ एकजातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पंचमः —मनु० १०१४, ८।२७०,--जातीय (वि.) एक ही प्रकार का या एक ही परिवार का,-ज्योतिस् (पुं०) शिव,-तान (वि.) केवल एक पदार्थ पर स्थिर या केन्द्रित, नितान्त ध्यानमग्न-ब्रीकतानमनसो हि वशिष्ठमिश्रा:-महावी०३।११,-तालः संगति, गीतों का यथार्थ समंजन, नत्य, वाद्य यंत्र (तु० तौर्यत्रिकम्) -तीथिन् (वि.) 1. उसी पावन जल में स्नान करने वाला 2. एक ही धर्मसंघ से संबंध रखने वालायाज्ञ० २११३७,- (पुं०) सहपाठी, गुरुभाई,--त्रिंशत् (स्त्री०) इकतीस,-दंष्ट्रः,-दन्तः 'एक दांत वाला', गणेश का विशेषण,-दंडिन् (पुं०) सन्यासियों या भिक्षुकों का एक समुदाय, (जो 'हंस' कहलाते है) इनके चार संघ हैं:-कुटीचको बहुदको हंसश्चैव तृतीयकः, चतुर्थः परहंसश्च यो यः पश्चात्स उत्तमः । हारीत",-दुश,-दृष्टि (वि०) एक आँख वाला, -(पु.) 1. कौवा 2. शिव 3. दार्शनिक,-देवः परब्रह्म, .--देशः 1. एक स्थान या स्थल 2. (समग्र का) एक भाग या अंश,--- एक पाश्वं-तस्यैकदेशः- उत्तर ०४, विभावितैकदेशेन देयं यदभियज्यते--विक्रम० ४।१७, जिस अंश का दावा किया जाता है, वह उसी व्यक्ति के द्वारा दिया जाना चाहिए जो उसके एक अंश का प्राप्तकर्ता प्रमाणित हो जाय (इसी बात को कभी-कभी 'एकदेशविभावितन्याय' कहते है)-धर्मन्,--धर्मिन् 1. एक ही प्रकार के गुणों को रखने वाला, या एक ही प्रकार की संपत्ति को रखने वाला 2. एक ही धर्म को मानने वाला,--धुर,–धुरावह,-धुरीण (वि०) 1. जो एक ही प्रकार कर सके 2. जो एक ही प्रकार से जुत सके (जैसे कि विशेष बोझ के लिए कोई पश) -पा० ४।४।७९,- नटः नाटक में प्रधान पात्र, सूत्रधार जो नान्दीपाठ करता है,-नवतिः (स्त्री०) इक्यानवे,--पक्षः एक पक्ष या दल--°आश्रय विक्लवत्वात्-रघु० १४।३४,-पत्नी 1. पतिव्रता स्त्री ( पूर्णतः सती साध्वी ) 2. सपत्नी, सोत -सर्वासामेकपत्नीनामेका चेत्पुत्रिणी भवेत्-मनु० ९।१८३,-पदी पगडंडी,—पये (अव्य.) अकस्मात्, एकदम, अचानक–निहन्त्यरीनेकपदे य उदात्तः स्वरानिव-शि० २।९५, रघु०८।४८,-पादः 1. एक या अकेला पैर 2. एक या वही चरण 3. विष्णु, शिव, ---पिंगः, पिंगल: कुबेर,-पिट (वि०) अन्येष्टि पिंडदान के द्वारा संयुक्त,- भार्या एक पतिव्रता और सती स्त्री, (- ) केवल एक पत्नी रखने वाला, For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २२७ --भाव (वि०) सच्चा भक्त, ईमानदार, यष्टिः, after मोतियों की एक लड़ी, योनि (वि० ) 1. सहोदर 2. एक ही कुल या जाति के मनु० ९ | १४८, - रसः 1. उद्देश्य या भावना की एकता 2. केवल मात्र रस या आनन्द, राज्, - - राजः (पुं० ) निरंकुश या स्वेच्छाचारी राजा, रात्रः एक पूरी रात तक रहने वाला पर्व - रिक्थिन् (पुं०) सह - उत्तराधिकारी, - रूप ( वि० ) 1. एक सा, समान 2. समरूप, लिंगः 1. एक ही लिंग रखने वाला शब्द 2. कुबेर – वचनम् एक संख्या को प्रकट करने वाला शब्द, -वर्णः एक जाति, - वर्षिका एक वर्ष की बछिया वाक्यता अर्थ की संगति, ऐकमत्य, विभिन्न उक्तियों का सामंजस्य, ---- वारम्, वारे ( अप० ) 1. केवल एक बार 2. तुरन्त अकस्मात् 3. एक ही समय, विशतिः ( स्त्री० ) इक्कीस, विलोचन (वि०) एक आँख वाला दे० 'एकदृष्टि - विषयिन् (पुं०) प्रतिद्वन्द्वी, वीरः प्रमुख योद्धा या शूरवीर - महावी० ५१४८, - येणिः, ...णी (स्त्री०) वालों की एक मात्र चोटी ( जिसे स्त्री पति वियोग के चिह्न स्वरूप धारण करती है) गण्डाभोगात्कठिनविपगामेकवेणीं करेण - मेघ० ९२, ०७१२९, शफ ( वि० ) अखंड खुर वाला ( - फः ) ऐसा पशु जिसके खुर या सुम फटे हुए न हों जैसे घोड़ा गधा आदि - शरीर (वि०) रक्तसंबद्ध एक खून का " अन्वयः एक ही गोत्र की सन्तान 'अवयवः एक रक्त के वन्धु-बांधव, शाखः एक ही शाखा या विचार का ब्राह्मण - शृङ्ग (वि०) केवल एक सींग धारी ( -गः ) 1. अरण्याश्व, गेंडा 2. विष्णु, शेषः 'एकशेष' द्वन्द्व समास का एक भेद जिसमें केवल एक ही पद अवशिष्ट रहना है- उदा० 'पितरी' माता और पिता ( मातापितरौ ) इसी प्रकार 'श्वमुरौं' 'भ्रातरः,' आदि - - श्रुत (वि०) एक ही बार सुना हुआ 'धर (वि०) एक बार सुनी हुई बात को ध्यान में रखने वाला - श्रुतिः (स्त्री०) एकस्वरता, सप्ततिः ( स्त्री० ) इकहत्तर, संगं (वि०) नितांत ध्यानमग्न, - साक्षिक ( वि० ) एक व्यक्ति द्वारा देखा हुआ, --- हायन (वि०) एक वर्ष की आयु का मा० ४८, उत्तर० ३१२८, ( नी) एक वर्ष की बछिया । एकक ( वि० ) [ एक + कन् ] 1 इकहरा, अकेला, एकाकी, विना किसी सहायक के उत्तर० ५/५ 2. वही, समरूप । एकतम ( वि० ) ( नपुं० तमत्, स्त्री० तमा ) [ एक + मंत्र ] 1. बहुतों में से एक 2. एक (अनिश्चय वाचक रूप में प्रयुक्त ) | एकतर (नपुं० 0 -तरम् ) [ एक + उतरच् ] 1. दो में से एक, कोई मा 2. दूसरा, भिन्न 3. बहुतों में से एक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत: ( अव्य० ) [ एक + तसिल् ] 1. एक ओर से, एक ओर 2. एक एक करके, एक एक, एकत:- अम्यतः एक ओर, दूसरी ओर - रघु० ६।८५, कि० ५।२। एकत्र ( अव्य० ) [ एक + ल् ] 1. एक स्थान पर 2. इकट्ठे, सब इकट्ठे मिल कर । एकar ( अव्य० ) [ एक + दा ] 1. एक बार, एक दफा, एक समय 2. उसी समय, सर्वथा एक बार, साथ ही साथ हि० ४।९३ । एकधा ( अव्य० ) [ एक + धा] 1. एक प्रकार से 2. अकेले 3. तुरन्त उसी समय 4. मिलकर, साथ साथ । एकल (वि० ) [ एक + ला+क] अकेला, एकाकी उत्तर० ४। एकश: ( अव्य० ) [ एक + शस् ] एक एक करके, अकेले । एकाकिन ( वि० ) [ एक + आकिनच् ] अकेला, केवल एक । एकादशन् (सं० वि० ) [ एकेन अधिका दश इति ] ग्यारह | एकादश ( वि० ) ( स्त्री- शी) ग्यारहवाँ, - शी चान्द्रमास के प्रत्येक पक्ष का ग्यारहवाँ दिन, विष्णु संबंधी पुनीतदिवस । सम० - द्वारम् शरीर के ग्यारह छिद्र दे० 'ख', रुद्राः ( ब० व० ) ११ रुद्र - दे० रुद्र । एकीभावः [ एक +च्चि + भू +घञ ]1. संहति, साहचर्य 2. सामान्य स्वभाव या गुण । एकीय (वि० ) [ एक + छ ] तरफ़दार, सहकारी । एज् (म्वा० आ० (म० का० में पर० ) एजते, एजित ) 1. कांपना 2. हिलना-डुलना, 3. चमकना (पर० ), अप, दूर हाँक देना, उ, उठना, ऊपर को होना । एक ( वि० ) [ एज् + ण्वुल् ] कांपता हुआ, हिलता हुआ । एजनम् [ एज् + ल्युट् ] कांपना, हिलना । एक एठित ) छेदना, रोकना, (भ्वा० आ० - एठते, विरोध करना । एक का या एक से- यः एड (वि० ) [ इल् + अच्, डलयोरभेदः ] बहरा एक प्रकार की भेड़, । सम० - मूक ( वि० ) 1. बहरा और गूगा - तु० अनेडमूक 2. दुष्ट, कुटिल । एक: [ एड+कन् ] 1. भेड़ा, 2. जंगली बकरा, का, भेड़ी | एण, एकः [एति द्रुतं गच्छति इति इ +ण, एण+कन् च ] एक प्रकार का काला बारासिंघा हरिण, निम्नां - कित श्लोक में अनेक प्रकार के हरिणों का उल्लेख है: --अनृचो माणवी ज्ञेय एणः कृष्णमृगः स्मृतः, रुरुगौरमुखः प्रोक्तः शंबरः शोण उच्यते । सम० - भजिनम् मृगचर्म, तिलकः भृत् चन्द्रमा, इसी प्रकार अंक:, ● लांछन : आदि, - बृश् (वि०) हरिण जैसी आंखों वाला, - (पुं०) मकर राशि । [ ए + ङीष् ] काली हरिणी । For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) एत (वि.) (स्त्री०--एता, एनी) रंगविरंगा, चमकीला | एषा [एच् +अ+टाप् ] फलना-फूलना, हर्ष । -तः हरिण या बारासिंघा। एधित (भू० क० कृ०) [एध् + क्त ] 1. विकसित, बढ़ा एत (सर्व.वि.) (पुं०--एषः, स्त्री--एषा, नपुं० | हआ 2. पाला पोसा-मृगशावैः सभमेधितो जनः-श. --एतद्) [ +अदि, तुक्] 1. यह, यहाँ, सामने २।१८ । (वक्ता के निकटतम वस्तु का उल्लेख करना-समी- एनस् (नपुं०) [इ+ असुन्, नुडागमः ] 1. पाप, अपराध, पतरवति चैतदो रूपम् ), इस अर्थ में 'एतद' शब्द कई दोष शि० १४।३५ 2. कुचेष्टा, जुर्म 3. खिन्नता बार पुरुषवाचक सर्वनाम पर बल देने के लिए प्रयुक्त 4. निन्दा, कलंक। होता है,--एषोऽहं कार्यवशादायोध्यिकस्तदानीन्तनश्च | एनस्वत्, एनस्विन् (वि०) [एनस् + मतुप्, व आदेशः, संवृत्तः–उत्तर० १2. यह प्रायः अपने पूर्ववर्ती शब्द | विनि वा] दुष्ट, पापी। की ओर संकेत करता है, विशेषकर जबकि यह 'इदम्' एरण्डः [ आ-ईर् + अण्डच् ] अरंडी का पौधा (बहुत थोड़े या किसी और सर्वनाम के साथ संयुक्त किया जाय पत्तों वाला एक छोटा वृक्ष)---अत एव लो०-निरस्त-एष वै प्रथमः कल्प:-मनु० ३।१४७, इति यदुक्तं | पादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते । तदेतच्चिन्त्यम् 3. यह संबंधबोधक वाक्यखंड में भी | एलकः [ इल+अच्+कन् ] मेढ़ा, दे० 'एडक'। प्रायः प्रयुक्त होता है और उस अवस्था में-संबंधबोधक एलवाल (नपुं०), एलवालुकम [एला+वल+उण ह्रस्वः, बाद में आता है--मनु० ९।२५७, (अव्य०) इस रीति कन् च ] 1. कैथ वृक्ष की सुगंधयुक्त छाल 2. एक से, इस प्रकार, अतः, ध्यान दो,-'एतद्' शब्द उन __रवेदार या दानेदार द्रव्य (जो औषधि या सुगंध के समासों में प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है जो रूप में प्रयुक्त होता है)। प्रायः निगदव्याख्यात या स्वतः स्पष्ट हों- उदा० एलविलः [ इलविला:-अण | कुबेर, दे० 'एलविल'। --°अनन्तरम् इसके तुरन्त बाद, अंत----इस प्रकार | एला [ इल+अच---टाप् ] 1. इलायची का पौधा-एलानां समाप्त करते हुए। सम०---द्वितीय (वि.) जो किसी फलरेणवः, रघु० ४।४७, ६।६४ 2. इलायची (इलाकार्य को दोबारा करे,-----प्रथम (वि.) जो किसी को | यची के बीज)। सम.---.पर्णी लाजवन्ती जाति का पहली बार करे। एक पौधा। एतदीय (वि.) [ एतद्+छ ] इसका, के, की। एलोका [ आ + ईल-+ ईकन्+टाप् ] छोटी इलायची । एतनः [आ+इ+तन ] श्वास, सांस छोड़ना। एव (अव्य०) [इ+बन ] किसी शब्द द्वारा कहे गये एतहि (अव्य०) [इदम् +हिल्, एत आदेशः ] अब, इस विचार पर बल देने के लिए बहुधा इस अव्यय का समय, वर्तमान समय में। प्रयोग होता है 1. ठीक, बिल्कूल, सही तौर पर एतादृश-श,-वृक्ष, (वि.) [स्त्री०- शी,—क्षी] 1. -एवमेव-बिल्कुल ऐसा ही, ठीक इसी प्रकार का ऐसा, इस प्रकार का सर्वेपि नैतादृशाः-भर्तृ० २।। 2. वही, सही, समरूप--अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः ५१ 2. इस प्रकार का। स एव भर्त० २।४०3. केवल, अकेला, मात्र (बहिएतावत् (वि.) [एतद्+वतुप् ] इतना अधिक, इतना करण की भावना रखते हुए)-सा तथ्यमेवाभिहिता बड़ा, इतने अधिक, इतना विस्तृत, इतनी दूर, इस भवेन–कु० ३।६३, केवलमात्र सचाई, सचाई के गुण का या ऐसे प्रकार का- एतावदुक्त्वा विरते मृगे अतिरिक्त और कुछ नहीं 4. पहले ही 5. कठिनाई से, न्द्रे-रघु० २।५१, कु० ६१८९ एतावान्मे विभवो उसो क्षण, ज्यूंही (मुख्यतया -कृदन्तों के साथ)-उपभवन्तं सेवितुम्-मालवि० २, (अव्य०) इतनी दूर, स्थितेयं कल्याणी नाम्नि कीर्तित एव यत् ---रघु० १॥ इतना अधिक, इतने अंश में, इस प्रकार । ८७ 6. की भांति, जैसे कि (समानता प्रकट करते हुए) एष (म्वा० आ०-एधते, एधित) 1. उगना, बढ़ना-पंच. –श्रीस्त एव मेऽस्तु-गण. (=तव इव) और 7. २११६४ 2. फलना-फूलना, सुख में जीवन बिताना सामान्यतः किसी उक्ति पर बल देने के लिए--भवितदावतो सुखमेधेते-पंच० ११३१८, प्रेर० उगवाना, बढ़- व्यमेव तेन-उत्तर० ४, यह बात निश्चित रूप से वाना, अभिवादन करना, सम्मान करना -कु०६।९०। होगी, निम्नांकित अर्थ भी इस शब्द द्वारा प्रकट होते एषः [इन्ध्+घन, नि०] इंधन, स्फुलिलावस्थया वह्नि- हैं 8. अपयश 9. न्यूनता 10. आज्ञा 11. नियंत्रण रेषापेक्ष इव स्थितः-श० ७.१५, शि० २१९९। तथा 12. केवल पूर्ति के लिए। एषतुः[एष+चतु] 1. मनुष्य 2. अग्नि । एवम् (अव्य०) [इ+बम (बा.)] 1. अतः, इसलिए, एचस् (मपुं०) [इन्ध+असि ] इंधन-यथैधांसि समिद्धोऽ । इस रीति से-अस्त्येवम्-पंच० १, यह इस प्रकार निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन -भग० ४।३७ अनलायागुरु- है, एवंवादिनि देवर्षों-कु० ६१८४; ब्रूया एवम्-मेघ० चन्दनैषसे -पु. ८७१। १०१ (जो कुछ बाद में आता है) एवमस्तु--ऐसा For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२९ ) ही हो,-स्वस्ति, योवम -यदि ऐसा है 2. बिल्कुल । एष ( भ्वा० उभ०-एषति से, एषित ) 1. जाना, ऐसा ही (स्वीकृति रखते हुए)---एवं यदात्थ भगवान् पहुँचना 2. शीघ्रता से जाना, दौड़ कर जाना, परि-, -कु० २।३१। सम०–अवस्थ (वि.) इस प्रकार | ढूंढ़ना । स्थित, या ऐसी परिस्थितियों में फंसा हुआ,-आदि, | एषणः [ए+ल्युट् ] लोहे का तीर,-णम् 1. ईडना 2. ----आध (वि०) ऐसा और इस प्रकार का,-कारम् कामना करना,-णा कामना, इच्छा। (अव्य०) इस रीति से,—गुण (वि.) ऐसे गुणों वाला एषणिका [ इष् + ल्युट् + कन्, टाप, इत्वम् ] सुनार का ---श० १३१२, प्रकार,--प्राय (वि.) इस प्रकार काँटा तोलने को तराजू । का--उत्तर० ५।२९ श० ७।२४,---भूत (वि.) इस | एषा [इष् +अ+टाप् ] इच्छा , कामना । प्रकार के गुणों का, ऐसा, इस ढंग का,-रूप (वि.) एषिन् (वि.) [ इष् + णिनि ] इच्छा करते हुए, कामना (वि०) इस प्रकार का, ऐसे रूप का,---विध (वि०) करते हुए (समास के अन्त में), -यौवन विषयैषिणाम इस प्रकार का, ऐसा। रघु० १।८। ऐः (पुं०) [ आ-+विच् ] शिव, (अव्य०) (क) / ऐकान्यिक: [ एकान्य+ठक् ] वह शिष्य जो वेद का बुलाने (ख) स्मरण करने, या (ग) आमंत्रण को प्रकट | सस्वर पाठ करने में एक अशुद्धि करे। करने वाला विस्मयादि द्योतक चिह्न। | ऐकार्थ्यम् [ एकार्थ-+-प्य ] 1. उद्देश्य या प्रयोजन की ऐकद्यम् (अव्य०) तुरन्त । समानता 2. अर्थो की संगति । ऐकध्यम् । एकवा+ध्यमुन (धास्थाने) ] समय या घटना ऐकाहिक (वि.) (स्त्री०-की) [एकाह+8 ] 1. की ऐकान्तिकता। आह्निक 2. एक दिन का, उसी दिन का, दैनिक । ऐकपत्यम् [ एकपति+ल्य } परम प्रभुता, सर्वोपरि- ऐक्यम् । एक +ष्य ] 1. एकपना, एकता 2. एकमतता, शक्ति । 3. समरूपता, समता 4. विशेष कर मानव आत्मा ऐकपविक (वि०) (स्त्री०—की) [ एकपद-+ठम् ] एक की समरूपता, या विश्व की परमात्मा से एकरूपता । पद से संबंध रखने वाला। ऐशव (स्त्री०-वी) |इक्षु+अण्] गन्ने से बना या उत्पन्न, ऐकपद्यम् [ एक पद+व्या ] 1. शब्दों की एकता --यम् 1. चीनी 2, मादक शराब ।। 2. एक शब्द बनना। ऐक्षव्य (वि०) [ इक्षु ण्यत् ] गन्ने से बना पदार्थ । ऐकमत्यम् [ एकमत +व्यञ ] एकमतता, सहमति-रघु० ऐक्षक (वि०) [ इक्षु+ठा J1. गन्न के लिए उपयुक्त १८६३६। 2. गन्ने वाला,-क: गन्ने ले जाने वाला। ऐकागारिक: [एकागार+ठक चोर,-केनचित्त हस्तवतै- ऐक्षभारिक (वि०) [ इक्षुभार+ठक गन्न का बोझा कागारिकेण--दश० ६७, शि० १९।१११ 2. एक घर ढोन बाला। का मालिका ऐक्ष्वाक (वि.) [ इक्ष्वाकुन-अ] ३६वाकु से संबंध रखने एकाग्यम् [एकाग्र नव्या । एक ही पदार्थ पर जुट __ वाला,---कः, कुः 1. इक्ष्वाकु को सन्तान,-सत्यमैश्वाक: जाना, एकाग्रता। खल्वसि-उत्तर० ५. २. इक्ष्वाकु वंश के लोगों द्वारा ऐकाङ्गः [एकाङ्ग-अण्] शरीर रक्षक दल का एक शासित देश। सिपाही-राजत० ५।२४९ ।। ऐअगुव (वि०) | स्त्री०--दो ] [ इङगुदी+अण् | इंगुली ऐकात्म्यम् [एकात्मन्-व्यञ | 1. एकता, आत्मा की वृक्ष से उत्पन्न,- दम् इंगुदी वृक्ष का फल । एकता 2. समरूपता, समता 3. परमात्मा के साथ । | ऐच्छिक (वि०) (स्त्री० की) 1. इच्छा पर निर्भर, एकता या तादात्म्य । इच्छापरक 2. मनमाना।। ऐकाधिकरण्यम् [ एकाधिकरण- प्य ] 1. संबंव की ऐडक (वि०) (स्त्री०-को) भेड़ का,-क: भेड़ की एक एकता 2. एकही विषय में व्याप्ति, (तर्क० में)-सह | जाति । विस्तति, साव्येन हेतोरैकाधिकरण्यं व्याप्तिरुच्यते ऐड (ल) विडः (लः) [ इडविडा+अण् पक्षे डलयोर-भाषा०६९। भेदः ] कुबेर । ऐकान्तिक (वि०) (स्त्री०--को) 1. पूर्ण, समग्र, पूरा | ऐण (वि.) (स्त्री---णो) बारहसिंघा हरिण की (त्वचा, 2. विश्वस्त, निश्चित 3. अनन्य । ऊन आदि) याज्ञ० १२५९ । For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जानता है या उनका परम्परा प्राप्त शिक्षा, उपास्या का पुत्र) Z +अण्] एक सुगंध ( २३० ) ऐणेय (वि.) (स्त्री०-पी) [एणी+ठक्] काली हरिणी | ऐरावणः [ इरा आपः ताभिः वनति शब्दायते-इरा+वन् या तत्संबंधी किसी पदार्थ से उत्पन्न,-यः काला हरिण, | +अच् इरावणः--ततः अन् ] इन्द्र का हाथी। -यम् रतिबंध, रतिक्रिया का एक प्रकार । ऐरावतः [ इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः ऐतदात्म्यम् । एतदात्मन्+ज्या । इस प्रकार के अण् ] 1. इन्द्र का हाथी 2. श्रेष्ठ हाथी 3. पाताल गुण या विशिष्टता को रखने की अवस्था। निवासी नागजाति का एक मुखिया 4. पूर्व दिशा का ऐतरेचिन् [ ऐतरेय+इनि ] ऐतरेय ब्राह्मण का अध्येता। दिग्गज 5. एक प्रकार का इन्द्रधनुष,-सी 1. इन्द्र की ऐतिहासिक (वि.) (स्त्री०--की) [ इतिहास+ठक] हथिनी 2. बिजलो 3. पंजाब में बहने वाली नदी, राप्ती 1. परम्परा प्राप्त 2. इतिहास संबंधी,--क: 1. इति- (इरावती)। हासकार 2. वह व्यक्ति जो पौराणिक उपाख्यानों को ऐरेयम् [झायाम् अन्ने भवम्-इरा+क] भोज्य पदार्थ से तैयार की जाय) । ऐतिहम् [इतिह+व्या] परम्परा प्राप्त शिक्षा, उपाख्या- | ऐलः [इलाया अपत्यम्-अण्] 1. पुरुरवा (इला और बुध नारमक वर्णन,-ऐतिह्यमनुमानं च प्रत्यक्षमपि चाग-1 का पुत्र) 2. मंगलग्रह । मम्--रामा०, किलेत्यतिकें (पौराणिक 'ऐतिह्य' को | ऐलबालुकः [एलवालुक+अण्] एक सुगंध-द्रव्य । प्रत्यक्ष, अनुमान आदि के साथ प्रमाण का एक भेद | ऐलविलः [इलविला+अण् ] 1. कुबेर-शि० १३।१८ मानते हैं दे० 'अनुभव')। 2. मंगलग्रह। ऐबम्पर्यम् [इदम्पर+ध्य ] आशय, क्षेत्र, संबंध (शा. ऐलेयः [इला+ढक] 1. एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य 2. मंगल इदंपर होने की अवस्था अर्थात अर्थ, आशय या क्षेत्र रखना)-इदं त्वदम्पर्यम्-मा० २१७ । ऐश (वि.) (स्त्री०-शी) [ईश+अण] 1. शिव से ऐनसम् [ एनस्+अण् ] पाप । सम्बन्ध रखने वाला-रघु० २७५ 2. सर्वोपरि, ऐसद (वि.) (स्त्री०-ची) [ इन्दु+अण् ] चंद्रमा राजकीय । संबंधी, - चांद्रमास । ऐशान (वि.) [ईशान+अण] शिव से सम्बन्ध रखने ऐण (वि०) (स्त्री०-ऐन्त्री) [ इन्द्र-+अण् ! इन्द्र वाला,-नी 1. उत्तरपूर्वी दिशा 2. दुर्गादेवी। संबंधी या इन्द्र के लिए पवित्र, रघु० २।५०,-: | एश्वर (व.) (स्त्रा० | ऐश्वर (वि०) (स्त्री०-री) [ईश्वर+अण] 1. शानदार अर्जुन और बाली, द्री 1. ऋग्वेद का मन्त्र जिसमें इन्द्र 2. शक्तिशाली, ताकतवर 3. शिव से सम्बन्ध रखने को संबोधित किया गया है-इत्यादिका काचिदैन्द्री वाला-रघु० १११७६ 4. सर्वोपरि, राजकीय समाम्नाता-जै० न्या. 2. पूर्व दिशा (इस दिशा का 5. दिव्य,-री दुर्गादेवी। अधिष्ठातृदेवता इन्द्र है) कि० ९.१८ 3. मुसीवत, | ऐश्वर्यम् [ईश्वर+ष्य] 1. सर्वोपरिता, प्रभुता--एकैश्वर्यसंकट 4. दुर्गा की उपाधि 5. छोटी इलायची। स्थितोऽपि-मालवि० १११2. ताकत, शक्ति, आधिपत्य ऐमजालिक (वि.) (स्त्री०-की) [इन्द्रजाल+ठक] 3. उपनिवेश 4, विभव, धन, बड़प्पन 5. सर्वशक्तिमत्ता 1. धोखे में डालने वाला, 2. जादू-टोना विषयक 3. तथा सर्वव्यापकता की दिव्य शक्तियाँ । मायावी, भ्रान्ति जनक 2. जादू-टोने का जानकार. | ऐषमस् (अव्य०) [अस्मिन् वत्सरे इति नि० साधः इस -क: बाजोगर-शि० १५।२५ । वर्ष में, चालू वर्ष में। ऐखालुप्तिक (वि०) (स्त्री०-की) [ इन्द्रलुप्त+ठक् ] | ऐषमस्तन, मस्त्य (वि.) [ऐषमस् + तनप्, त्यप् वा] गंजरोग से पीड़ित, गंजा। चालू वर्ष से सम्बन्ध रखने वाला । ऐन्द्रशिरः [ इन्द्रशिर-+-अण् ] हाथियों की एक जाति। ऐष्टिक (वि.) (स्त्री०--की) [इष्टि+ठक] यज्ञसम्बन्धी, ऐन्त्रिः [ इन्द्रस्यापत्यम्-इन्द्र+इन 11. जयन्त, अर्जुन, ___ संस्कार विषयक । सम-पूर्तिक (वि.) इष्टापूर्त (यज्ञ बानरराज वालि 2. कौवा- ऐन्द्रिः किल नखैस्तस्या अथवा अन्य धार्मिक कृत्य) से सम्बन्ध रखने वाला। विददार स्तनो द्विजः--रघु० १२।२२। ऐहलौकिक (वि०) (स्त्री०-को) [इहलोक+ठा] इस ऐम्झिय,—यक (वि.) [इन्द्रिय+अण, वुझ वा] 1. इन्द्रियों संसार से सम्बन्ध रखने वाला, या इस लोक में घटित से संबंध रखने वाला, विषयो 2. विद्यमान, ज्ञानेन्द्रियों के ___ होने वाला, ऐहिक, दुनियावी (विप० पारलौकिक) । लिए प्रत्यक्ष इन्द्रियगोचर,-यम् ज्ञानेन्द्रियों का विषय। ऐहिक (वि.) (स्त्री०-को) 1. इस लोक या स्थान से ऍषन (वि.) (स्त्री०-नी) [ इन्धन+अण् ] जिसमें सम्बन्ध रखने वाला, सांसारिक, दुनियावी, लौकिक इन्धन विद्यमान हो,-मः सूर्य । 2. स्थानीय,-कम् व्यवसाय (इस संसार का)। ऐयत्पम् [ इयत् +व्या ] परिमाण,संख्या । For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३१ ) चिह्न। ओ (पुं०-औः) [उ+विच्] ब्रह्मा (अव्य०) 1. सम्बोध- | ओदनः---नम् [उन्द-युच् ] 1. भोजन, भात,--उदा. नात्मक (ओ:) अव्यय 2. (क) बुलावा (ख) स्मरण दध्योदन और घृत° 2. दलिया बना कर दूध में पकाया करना और (ग) करुणा बोधक विस्मयादि द्योतक हआ अन्न । ओम् (अव्य०) [अव्+मन्, ऊम्, गुणः] 1. पावन अक्षर ओकः [उच्+क नि० चस्य कः] 1. घर 2. शरण, आश्रय 'ओम्' वेद-पाठ के आरम्भ और समाप्ति पर किया 3. पक्षी 4. शूद्र । गया पावन उच्चारण, या मंत्र के आरम्भ में बोला ओकणः (णिः) [ओ+ कण् + अच्, इन् वा] खटमल, इसी जाने वाला 2. अव्यय के रूप में यह (क) औपचारिक प्रकार 'ओकोदनी। पुष्टीकरण तथा सम्माननीय स्वीकृति (एवमस्तु, मओकस् (नपुं०) [उच्+असुन्] 1. घर, आवास-जैसा तथास्तु) (ख) स्वीकृति, अंगीकरण (हाँ, बहुत कि दिवौकस् या स्वर्गीकस् (देवता) में 2. आश्रय, अच्छा)-ओमित्युच्यताममात्यः-- मा० ६, ओमित्युक्तशरण । वतोथशाङ्गिण इति शि० ११७५, द्वितीयश्चेवोमिति ओल (म्वा० पर०–ओखति, ओखित) 1. सूख जाना 2. ब्रूमः-सा०६०१ (ग) आदेश (घ) मांगलिकता (5) योग्य होना, पर्याप्त होना 3. सजाना, सुशोभित करना दूर करना या रोक लगाना की भावना को प्रकट करने 4. अस्वीकृत करना, 5. रोक लगाना। वाला अव्यय 3. ब्रह्म। सम-कार: 1. पवित्र ओघः [उच्+घञ, पृषो०] 1, जलप्लावन, नदी, धारा ध्वनि 'ओम' 2. पवित्र उदगार 'ओम'। . पुनरोधेन हि युज्यते नदी-कु० ४।४४ 2. जल की | ओरम्फः [ ? ] गहरी खरोंच--मा०७।। बाढ़ 3. राशि, परिमाण, समुदाय 4. समग्र 5. सातत्य ओल (वि०) [आ+उन्+क पुषो०] आर्द्र, गीला। 6. परम्परा, परम्पराप्राप्त उपदेश 7. एक प्रमुख नत्य। ! ओलंड (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-ओलंडति, ओलंडयति, ओंकारः [ओम् +कारः] दे० 'ओम्' के नीचे । ओलंडित) ऊपर की ओर फेंकना, ऊपर उछालना। ओज् (भ्वा० चुरा० उभ०-ओजति, ओजयति-ते, ओजित) ओल्ल (वि०) [ओल-पृषो०] आई, गीला,--ल्लः प्रतिभ, सक्षम या योग्य होना। आगतः प्रतिभू या जामिन के रूप में आया हुआ ओज (वि.) ओज---अच] विषम, असम, ...-अम-, (यह शब्द एक दो बार विद्धशालभजिका में ओजस । आया है)। ओजस् (नपुं०) [उब्ज+असून् बलोपः, गणश्च 1. ओषः [ उष्+घा ] जलन, संवाह। शारीरिक सामर्थ्य, बल, शक्ति 2. वीर्य, जननात्मक ओषणः [ उष्ल्यू ट ] तिक्तता, तीक्ष्णता, तोखा रस । शक्ति 3. आभा, प्रकाश (आलं. शा० में) 4, शैली का | ओषधिः,-धी (स्त्री०) [ओष-धा+कि, स्त्रियां की विस्तृत रूप, समास की बहुलता (दण्डी के अनुसार 1 जड़ीबूटी, वनस्पति 2. औषधि का पौधा, ओषषि यही गद्य की आत्मा है)--- ओजः समासभूयस्त्वमेतद्- 3. फसलो पौधा या जड़ी बूटी जोकि पक कर. सूख गद्यस्य जीवितम् --काव्या० ११८०, रसगंगाधर में इसके | जाती है। सम०--ईश:---:,-मायः चन्द्रमा पाँच भेद बतलाये गये हैं 5. पानी 6. धातु की चमक। (वनस्पतियों का अधिदेवता तथा पोषक)- (वि.) ओजसीम, ओजस्य (वि.) [ओजस्-+-ख, यत् वा] मज- वनस्पति से उत्पन्न,---धरः,--पतिः 1. ओषधि-विक्रेता बत, शक्तिशाली। 2. वैद्य 3. चन्द्रमा,-प्रस्थः हिमालय की राजधानी ओजस्वत्, ओजस्विन् ओजस्-+-मतुप्, विनि वा ] मजबूत, ---तत्प्रयातोषधिप्रस्थं स्थितये हिमवत्पुरम्-कु०६॥ वीर्यवान, तेजस्वी, शक्तिशाली। ओडः (पुं० ब० व०) एक देश का तथा उसके निवासियों ओष्ठः [ उष+थन् ] होठ (ऊपर का या नीचे का)। सम० का नाम, (आधुनिक उड़ीसा)-मनु० १०१४४, -----अधरौ-रम्, ऊपर और नीचे का होठ,-ज (वि.) -ड्रम् जवाकुसुम । ओष्ठस्थानीय, जाहः होठकी जड़,--पल्लव:,--पम् ओत (वि.) [आ++क्त ] बुना हुआ, धागे से एक किसलय जैसा, कोमल ओष्ठ-पुटम् होठों को खोलने सिरे से दूसरे तक सिला हुआ। सम०-प्रोत (वि०) पर बना हुआ गड्ढा । ___ 1. लम्बाई और चौड़ाई के बल आर-पार सिला हुआ | ओष्ठ्य (वि.) [ ओष्ठ--यत् ] 1. होठों पर रहने वाला 2. सब दिशाओं में फैला हुआ। 2. ओष्ठ-स्थानीय (ध्वनि आदि)। मोतुः [अन्+तुन्, ऊ, गुणः ] बिलाव (स्त्री० भी) | ओष्ण (वि.) [ ईषद् उष्ण:-० स०] थोड़ा गरम, बिल्ली-जैसा कि 'स्थूलो (लो) तुः' में। गुनगुना। For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३२ ) श्रौ औ [ आ + अ + क्विप्, ऊठ ] ( क ) आमंत्रण ( ख ) | औत्पातिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उत्पात + ठक् ] अमंगलकारी, अलौकिक, संकटमय- रघु० ४४, ५३, -कम् अपशकुन या अमंगल । संबोधन (ग) विरोध तथा (घ) शपथोक्ति अथवा संकल्पद्योतक अव्यय । औक्थिक्यम् [ उक्थ + ठक् + ष्यञ् ] उक्थ का पाठ; सामवेद | औक्यम् | उक्थ + अणु ] पाठ करने की विशेष (उक्य' अंग से संबंध रखने वाली ) रीति । औत्संगिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) उत्संग + ठक् ] कूल्हे पर रक्खा हुआ, या कूल्हे पर धारण किया हुआ । औत्सर्गिक ( वि० ) ( स्त्री० – की ) [ उत्सर्ग + ठञ 11. सामान्य विधि (जैसे कि व्याकरण का नियम) जो अपवाद रूप में ही त्यागने के योग्य हो 2. सामान्य ( विप० विशेष ), प्रतिबन्धरहित, सहज 3. व्युत्पन्न, यौगिक । ओक्षकम्, अक्षम् [ उणां समूहः इत्यर्थे उक्षन् + अण्, टिलोपः न वा ] बैलों का झुण्ड - शि० ५६२ । औष्यम् [ उय् + ष्यञ ] दृढ़ता, भीषणता, भयंकरता, क्रूरता आदि । Re: [ ओघ + अण् ] बाढ़, जलप्लावन । औचित्यम्, औचिती । उचित + ष्यञ्ञ, स्त्रियां ङीष्, यलोपश्च ] 1. उपयुक्तता, योग्यता, उचितपना 2. संगति या योग्यता, वाक्य में शब्द के यथार्थ अर्थ का निर्धारण करने के लिए कल्पित परिस्थितियों में से एक - सामर्थ्यमौचिती देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः -सा० द० २ । औच्चैःश्रवसः [ उच्चैः श्रवस् + अण् ] इन्द्र का घोड़ा । औजसिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ ओजस् + ठक्] ऊर्जस्वी, बलवान् । - कः नायक शूरवीर । औजस्य (वि० ) [ ओजस् + ष्यञ ] बल और स्फूर्ति का संचारक, स्यम् सामर्थ्य, जीवनशक्ति, ऊर्जा, स्फूर्ति । औज्ज्वल्यम् [ उज्ज्वल + ष्यञ ] उज्ज्वलता, कान्ति । ओपिक (वि० ) ( स्त्री० [ उडुप + ठक् ] किश्ती में बैठ कर पार करने वाला, कः किश्ती या लठठे का यात्री । | डुम्बर [ उडुम्बर + अञ, ] = दे० औदुम्बर | : [ ओड़ + अण् ] ओडू ( वर्तमान उड़ीसा ) देश का निवासी या राजा । औत्कण्ठ्यम् (उत्कण्ठा + ष्यञ् ] 1. इच्छा, लालसा 2. चिन्ता । औत्कर्ष्यम् [ उत्कर्ष + ध्या ] श्रेष्ठता, उत्कृष्टता । औत्तम: [ उत्तम + इञ ] १४ मनुओं में से तीसरा । औतर ( वि० ) ( स्त्री० - री, रा) उत्तरी । सम० -पथिक उत्तर दिशा की ओर जाने वाला । औत्तरेयः ( उत्तरा + ढक् ) अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औत्तानपाद:, पादि: [ उत्तानपाद + अण्, इञ्ञ वा ] 1. ध्रुव 2. उत्तर दिशा में वर्तमान तारा । औत्पत्तिक ( वि० ) ( ( स्त्री - की ) [ उत्पत्ति + ठक् ] 1. अन्तर्जात सहज 2. एक ही समय पर उत्पन्न । औरपात ( वि० ) [ उत्पात + अण् ] अपशकुनों का विश्लेषक । · औत्सुक्यम् [ उत्सुक + ष्यञ] 1. चिन्ता, बेचैनी 2. प्रबल इच्छा, उत्सुकता, उत्साह - औत्सुक्यमात्रमवसाययति प्रतिष्ठा ५/६ औत्सुक्येन कृतत्वरा सहभुवा व्यावर्तमाना ह्रियां - रत्न० १ २ । औवक ( वि० ) ( स्त्री० – की) [ उदक + अण् ] जलीय, पनीला, जल से संबंध रखने वाला । औदञ्चन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) डोल या घड़े में रक्खा हुआ । औदनिकः ( दञ्च ) [ ओदन + ठञ्ञ ] रसोइया । औदरिक (वि०) (स्त्री० की ) [ उदर + ठक् ] बहुभोजी, पेटू, खाऊ सर्वत्रोदरिकस्याभ्यवहार्यमेव विषय:-- -- विक्रम० ३ मालवि० ४ । [ उदञ्चन + अण् ] औदर्य ( वि० ) [ उदरे भवः यत् ] 1. गर्भस्थित, 2. गर्भान्त:- प्रविष्ट । औदश्वितम् [ उदश्वित् + अण् ] आधा पानी मिलाकर तैयार किया हुआ मट्ठा । औदार्यम् [उदार+प्या] 1. उदारता, कुलीनता, महत्ता 2. बड़प्पन, श्रेष्ठता 3. अर्थगांभीर्य (अर्थसंपत्ति ) - स सौष्ठवौदार्य विशेषशालिनीं विनिश्चितार्थामिति वाचमाददे - कि० १३, दे० कि० ११।४० पर मल्लि० और 'उदार' के नी० उदारता । औदासीन्यम्, औदास्यम् [उदासीन + ष्यञ, उदास + व्यन्न ! 1. उपेक्षा, निःस्पृहता - पर्याप्तोसि प्रजाः पातुमोदासीन्येन वर्तितुम् - रघु० १० २५, इदानीमौदास्य यदि भजसि भागीरथ गंगा० ४ 2. एकान्तिकता, अकेलापन 3. पूर्ण विराग (सांसारिक विषयों से ), वैराग्य । औदुंबर ( वि० ) ( स्त्री० - री ) [ उदुम्बर + अ ] गूलर के वृक्ष से बना या उससे प्राप्त रः ऐसा प्रदेश जहाँ गूलर के वृक्ष बहुतायत से हों, - री की शाखा, गूलर - रम् 1. गूलर की लकड़ी 2. गूलर का फल 3. तांबा । For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३३ ( औद्गात्रम् [ उद्गातृ + अ ] उद्गाता ऋत्विज का पद या औद्दालकम् [उद्दाल +-अज्, संज्ञायां कन् ] मधु जैसा एक पदार्थ जो तीखा और कड़वा होता है । औदेशिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ उद्देश + ठक्] प्रकट करने वाला, निर्देशक, संकेतक । - औद्धत्यम् [ उद्धत + ष्यञ] 1. हेकड़ी, ढीठपना 2. साहसिकता, जीवटवाले कार्यों में हिम्मत - औद्धत्यमायोजितकामसूत्रम् - मा० १।४ । औद्धारिक (वि० ) ( स्त्री० - को ) [ उद्धार + ठञ ] पैतृक सम्पत्ति में से घटाया हुआ, विभक्त करने योग्य, दाययोग्य, कम् ( पैतृक सम्पत्ति में से घटाया गया ) एक अंश या दायभाग । औद्भिदम् [उद्भिद् +अण्] 1 झरने का पानी 2. सेंधा नमक औद्वाहिक (वि०) (स्त्री० की) [उद्वाह---ठज्ञ,] 1. विवाह से संबंध रखने वाला 2. विवाह में प्राप्त - याज्ञ० २।११८, मनु० ९२०६ कम् विवाह के अवसर पर वधू को दिये गये उपहार, स्त्रीधन । औधस्यम् [ऊधस् + ष्यञ ] दूध ( औड़ी से प्राप्त ) रघु० २१६६ अने० पा० । औन्नत्यम् [ उन्नत + ष्यञ] ऊँचाई, ऊँचा उठना (नैतिक रूप से भी ) । औकणिक (fro ) ( स्त्री० की ) [ उपकर्ण + ठक् ] कान के निकट रहने वाला । औप कार्यम्, र्या [ उपकार्य + अग्, स्त्रियां टाप् च ] आवास, तम्बू । औप्रस्तिकः, ग्रहिकः ! उपग्रस्त ठज्ञ, उपग्रह | ठञ] 1. ग्रहण 2. ग्रहण -ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा । औपचारिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपचार - + ठक् ] लाक्षfre, आलंकारिक, गौण ( विप० मुख्य ), -कम् आलंकारिक प्रयोग । औपजाक ( वि० ) ( स्त्री० की ) उपजानु + ठक् ] घुटनों के पास होने वाला । | औपदेशिक (वि० ) ( स्त्री० की ) ( उपदेश + ठक् ] 1. अध्यापन या उपदेश द्वारा जीविका कमाने वाला 2. शिक्षण द्वारा प्राप्त (जैसे कि घन ) । औषधर्म्यम् [उपधर्म + ष्यञ् ] 1. मिथ्या सिद्धान्त, धर्मद्रोह 2. घटिया गुण या गुण का अपकृष्ट नियम । औपधिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपाधि + ठञ] धोखेबाज | धूर्त, औषधेयम् | उपाधि + ञ] रथ का पहिया, रथांग । औपनायनिक ( वि० ) ( स्त्री०- की) [ उपनगन + ठक् ] उपनयन सम्बन्धी, या उपनयन (जनेऊ के साथ दीक्षा देने का संस्कार ) के काम का - मनु० २२६८ । ३० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपनिधिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपनिधि + ठक् ] धरोहर से सम्बन्ध रखने वाला, कम् घरोहर या अमानत जो वस्तु घरोहर या अमानत के रूप में रक्खी जाय याज्ञ० - २२६५ । औपनिषद ( वि० ) ( स्त्री० - दी ) [ उपनिषद् + अण् ] 1. उपनिषदों में बताया हुआ या सिखाया हुआ, वेद विहित, आध्यात्मिक 2. उपनिषदों पर आधारित, स्थापित या उपनिषदों से गृहीत औपनिषदं दर्शनम् (वेदा० द० का दूसरा नाम ) -द: 1. परमात्मा, ब्रह्म 2. उपनिषदों के सिद्धान्तों का अनुयायी । औपनीविक ( वि० ) ( स्त्री० की) [ उपनीवि + ठक् ] -- स्त्री या पुरुषों की धोती की गांठ या नाड़ें के निकट रक्खा हुआ, औपनीविकमरुन्द्ध किल स्त्री ( करम् ) - शि० १०/६०, भट्टि० ४।२६ । औपपत्तिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपपत्ति + ठक् ] 1. तैयार, निकट 2. योग्य, समुचित 3. प्राक्काल्पनिक । औपमिक ( वि० ) ( स्त्री० - की) (उपमा | ठक् ] 1. तुलना या उपमान का काम देने वाला 2. उपमा द्वारा प्रदर्शित | औपम्यम् [ उपमा + ष्यञ् ] - आत्मौपम्येन भूतेषु तुलना, समरूपता, सादृश्य दयां कुर्वन्ति साधवः --- हि० १।१२ । औपयिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपाय + ठक् ] 1. समुचित, योग्य, यथार्थ 2. प्रयत्नों द्वारा प्राप्त, कः, कम् उपाय, तरकीब, युक्ति — शिवमौपयिकं गरीयसीम् - कि० २।३५ । औपरिष्ट ( वि० ) ( स्त्री०ष्टी ) ( उपरिष्ट+ अण् ] ऊपर होने वाला, ऊपर का । औपरो (रौ ) धिक (वि०) (स्त्री० – की) (उपरोध + ठक् ] 1. अनुग्रह सम्बन्धी, कृपा सम्बन्धी, अनुग्रह या कृपा के फलस्वरूप 2. विरोध करने वाला, बाधा डालने वाला - कः पीलू वृक्ष की लकड़ी का डंडा । औपल ( वि० ) ( स्त्री० --ली ) [ उपल +अण्] प्रस्तरमय, पत्थर का । औपवस्तम् | उपस्त + अण् ] उपवास रखना, उपवास । औपवस्त्रम् [ उपवस्त्र + अण् ! 1. उपवास के उपयुक्त भोजन, फलाहार 2. उपवास करना । औषवास्यम् [उपवास + ष्यञ] उपवास रखना । औपवाह्य (वि० ) [ उपनाह्य + अण्] 1 सवारी के काम आने वाला – ह्यः 1. राजा का हाथी 2. कोई राजकीय सवारी | औपवेशिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ उपवेश | ठञ पूरी लगन के साथ काम कर के अपनी आजीविका कमाने वाला । औपसख्यानिक ( वि० ) ( स्त्री० -- की ) For Private and Personal Use Only उपसइख्यान + Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३४ ) ठक) 1. जिसका परिशिष्ट में वर्णन किया गया हो। की एक स्त्री ने अपने गर्भ की रक्षा के लिए उसे अपनी 2. परिशिष्ट । जंघा में छिपा लिया-इसीलिए जंघा से जन्म होने के औपसगिक (वि.) (स्त्री०-को) उपसर्ग+ठन ] कारण वह और्व कहलाया । उसको देख कर कार्तवीर्य 1. विपत्ति का सामना करने योग्य 2. अमङ्गल सूचक । के पुत्र अंधे हो गये, उसके क्रोध में उठी ज्वाला ने औपस्थिक (वि.) उपस्थ+ठक] व्यभिचार द्वारा अपनी समस्त संसार को भस्म कर देना चाहा । परन्तु अपने जीविका चलाने वाला। पितरों--भार्गवों-की इच्छा से उसने अपनी क्रोधाग्नि औपस्थ्यम् [उपस्थ व्या ] सहवास. स्त्रीसंभोग। को समुद्र में फेंक दिया जहाँ वह घोड़े के रूप में गुप्त औपहारिक (वि.) (स्त्री०-की) [उपहार+ठक्] उप- | पड़ा रहा-तु० वडवाग्नि । बाद में और्व अयोध्या हार या आहुति के काम आने वाला,-कम् उपहार या के राजा सगर का गरु हुआ) 2. वडवाग्नि,-त्वयि आहुति। ज्वलत्यौर्व इवाम्बराशी श० ३।३, इसी प्रकार अनलः । मोपाधिक (वि.) (स्त्री०-की) [उपाधि+ठा औलकम [उलकानां समूहः-अ] उल्लुओं का झुंड । 1. विशेष परिस्थितियों में होने वाला 2. उपाधि या | औलक्यः[उलकस्यापत्यं---या वैशेषिक दर्शन के निर्माता विशेष गुणों से सम्बन्ध रखने वाला, फलित कार्य ।। | कणाद मुनि (दे० सर्व० में औलूक्यदर्शन)। औपाध्यायक (वि.) (स्त्री०---को) [उपाध्याय+बु । औल्वण्यम् उल्वण+ष्या] आधिक्य, बहुतायत, प्राबल्य । अध्यापक से प्राप्त या आने वाला। औशन, औशनस (वि.) (स्त्री०-नो,-सी) उशना अर्थात औपासन (वि.) (स्त्री०--नी) [उपासन+अण] गह्याग्नि शुक्राचार्य से सम्बन्ध रखने वाला, उशना से उत्पन्न या से सम्बन्ध रखने वाला,-नः गाहस्थ्य पूजा के लिए उशना में पढ़ा हुआ,-सम् उशना का धर्मशास्त्र प्रयुक्त अग्नि, गृह्याग्नि । (नागरिक शास्त्र व्यवस्था पर लिखा गया ग्रन्थ)। औम् (अव्य०) शूद्रों के लिए पावनध्वनि (क्योंकि 'ओम्' | औशीनरः [उशीनरस्यापत्यम्-अङ] ऊशीनर का पुत्र,-री का उच्चारण शूद्रों के लिए वर्जित है)। राजा पुरूरवा की पत्नी। औरभ्र (वि.) (स्त्री०-भ्री) [उरभ्र+अण भेड़ से | औशीरम् [ उशीर---अण् ] 1. पंखे या चॅवर की डंडी सम्बन्ध रखने वाला, या भेड़ से उत्पन्न,---भ्रम् 1. भेड़ 2. बिस्तरा--औशीरे कामचारः कृतोऽभूत् --दश० ७२ या बकरे का मांस 2. ऊनी वस्त्र, मोटा ऊनी कम्बल 3. आसन (कुर्सी, स्टूल आदि) 4. खस का लेप 5. खस (°भ्रः भी)। की जड़ 6. पंखा। औरभ्रकम् [उरभ्राणां समूहः---वुन भेड़ों औषणम् [उषण-+अण्] 1. तीक्ष्णता, तीखापन 2. काली ओरभ्रिकः [उरभ्र+ठ ] गड़रिया। मिर्च। औरस (वि.) (स्त्री०---सी) [उरसा निर्मित:-अण कोख | औषधम् औषधि+अण 1. जड़ी-बूटी, जड़ी बूटियों का से उत्पन्न, विवाहिता पत्नी से उत्पन्न, वैध-रघु०१६। | ___ समुह 2. दवादारू, सामान्य औषधि 3. खनिज । ८. स.-सी वैध पूत्र या पूत्री याज्ञ. २२१२८ । औषधिः...धी (स्त्री) [प्रा० स०] 1. जडी-बटी, बनस्पति औरस्य-औरस। -दे० ओषधि 2. रोगनाशक जड़ी-बटी-अचिन्त्यो हि औणं, और्णक, औणिक (वि०) (स्त्री०-णी,—की) मणिमन्त्रौषधीनां प्रभाव:---रत्न० २3. आग उगलने [ऊर्णा-+अञ, वुन वा ऊनी, ऊन से बना हुआ। वाली जड़ी--विरमन्ति न ज्वलितुमौषधयः-कि० ५। और्वकालिक (वि०) (स्त्री०-को) [ऊर्ध्वकाल+ष्ठा २४, (तणज्योतीषि-मल्लि.) तु० कु. १।१० पिछले समय से संबद्ध या बाद का।। 4. वर्षभर रहने वाला या सालाना पतझड़ वाला पौधा, और्ववेहम् ऊर्ध्वदेह + अण] अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म । अधिपतिः सोम, औषधियों का स्वामी। औज़वे (द) हिक (वि.) (स्त्री०.-की) ऊर्ध्वदेहाय | औषधीय (वि०) [औषध+छ] औषधि संबन्धी रोगनाशक, साधु-ठा मृत व्यक्ति से संबद्ध, अन्त्येष्टि, °क्रिया । जड़ी-बूटियों से युक्त । प्रेतकर्म, अन्त्येष्टि संस्कार,-कम् अन्त्येष्टि संस्कार, | औषरम्,-रकम् [उषरे भवम्-अण्, ततः कन] सेंधा प्रेतकर्म। | नमक, पहाड़ी नमक। और्व (वि.) (स्त्री०-वों) [ऊरु+अण 1. धरती से | औषस (वि०) (स्त्री० --सी) [उषस् - अण] उषा या सम्बन्ध रखने वाला 2 जंघा से उत्पन्न,---ः एक प्रभात से सम्बन्ध रखने वाला,---सी पौ फटना, प्रभात प्रसिद्ध ऋषि का नाम (यह भृगुवंश में उत्पन्न हुआ था। काल। महाभारत में वर्णन मिलता है कि भृगु के वंशजों का | औषसिक, औषिक (वि०) (स्त्री०--की) [उषस् :-ठा नाश करने की इच्छा से कार्तवीर्य के पुत्रों ने गर्भस्थित | उषा+ठञ् वा] जिसने प्रभातकाल में जन्म लिया है, बालकों को भी मौत के घाट उतार दिया। उस वंश । उषः काल में उत्पन्न । । धिपात. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३५ ) ओष्ट्र (वि.) (स्त्री०-ष्ट्री) [उष्ट्र+अण्] 1. ऊँट से ऊ, प् फ् ब् भ म और व्,-स्थान (द्वारा) होठों द्वारा उत्पन्न या ऊँट से सम्बन्ध रखने वाला 2. जहाँ ऊँटों उच्चरित, स्वरः ओष्ठस्थानीय स्वर। . की बहुतायत हो,-ट्रम् ऊँटनी का दूध। औष्णम् [उष्ण+अण्] गर्मी, ताप । औष्ट्रकम् (उष्ट्र+वुअ] ऊँटों का झुंड-शि० ५।६५। । ओष्ण्यम्, औषम्यम् [उष्ण ध्या, उष्म+व्य.] गर्मी औष्ठप (वि०) [ओष्ठ+यत् होठ से सम्बद्ध, ओष्ठ स्था- --रघु० १७३३ । नीय । सम०-वर्णः ओष्ठस्थानीय अक्षर-अर्थात उ । क[क+] 1. ब्रह्मा 2. विष्णु 3. कामदेव 4. अग्नि | अन्त में उसने उन बालकों को मथुरा लिवा लाने के 5. वायु 6. यम 1. सूर्य 8. आत्मा १. राजा या लिए अऋर को भेजा। फिर कंस और कृष्ण में घोर राज कुमार 10. गांठ या जोड़ 11. मोर 12. पक्षियों मल्लयुद्ध हुआ जिसमें कृष्ण के हाथों कंस मारा गया) का राजा 13. पक्षी 14. मन 15. शरीर 16. समय | सम०-अरिः,-अरातिः, जित्, कृष्,-द्विष्,-हन 17. बादल 18. शब्द, ध्वनि 19. बाल,-कम् । (पुं०) कंस का मारने वाला अर्थात् कृष्ण स्वयं 1. प्रसन्नता, हर्ष, आनन्द (जैसा कि स्वर्ग में)। संधिकारिणा कंसारिणा दूतेन-वेणी० १, निषेदिवान् 2. पानी-सत्येन माभिरक्ष त्वं वरुणेत्यभिशाप्य कम् कंसकृषः स विष्टरे-शि० १११६,-अस्थि (नपू०) --याज्ञ० २।१०८ केशवं पतितं दृष्ट्वा पाण्डवा हर्ष- कांसा, कारः (स्त्री०-री) 1. एक वर्णसंकर जाति, निभराः-सुभा० (यहाँ 'केशव' में श्लेष है) 3. सिर । कसेरा---कंसकारशंखकारी ब्राह्मणात्संबभूवतुः-शब्द. -~-जैसा कि 'कंघरा' (=कं शिरो धारयतीति) में । 2. जस्ता या सफ़ेद पीतल के बर्तन बनाने वाला, कांसे कंसः, सम् [ कम् +अ ] 1. जल पीने का पात्र, प्याला, | की ढलाई का काम करने वाला। कटोरा 2. कासा, सफेद तांबा 3. 'आढ़क' नाम की | कंसकम् [ कंस+कन् ] कांसा, कसीस या फल । एक विशेष माप,-सः मथुरा का राजा, उग्रसेन का कक (भ्वा० आ०-ककते, ककित) 1. कामना करना पुत्र, कृष्ण का शत्रु (कंस की कालनेमि नामक राक्षस 2. अभिमान करना 3. अस्थिर हो जाना, दे० कक् । से समता की जाती है, कृष्ण के प्रति शत्रुता का व्यव ककुंजलः कं जलं कूजयति याचते-क+कू-+अलच् हार करते करते यह कृष्ण का घोर शत्र बना। जिन पृषो० नुम् ह्रस्वश्च ] चातक, पपीहा। परिस्थितियों में इसने ऐसा किया वह निम्नांकित हैं, (स्त्री०)[कं सुखं कौति सूचयति-क++क्विप, "देवकी का वसुदेव के साथ विवाह हो जाने के बाद तुकागमः, तस्य दः] 1. चोटी, शिखर 2. मुख्य, जब कि कंस अपना सुखसम्पन्न दाम्पत्यजीवन बिता प्रधान-दे० नी० ककुद 3. भारतीय बैल या सांड़ रहा था, उसे आकाशवाणी सुनाई दी जिसने उसे के कंधे के ऊपर का कूबड़ या उभार 4. सींग 5. सचेत किया कि देवकी का आठवां पूत्र उसका मारने- राजचिह्न (छत्र, चामर आदि) (पाणिनि सूत्र ५। वाला होगा। फलतः उसने दोनों को कारागार में डाल ४।१४६-७ के अनुसार 'ककुद' के स्थान में बहुव्रीहि दिया, मजबूत हथकड़ी और वेड़ियों से जकड़ दिया, समास में 'ककुद्' आदेश होता है- उदा० त्रिककूद)। और उनके ऊपर सख्त पहरा लगा दिया। ज्यूही सम-स्थः इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजा देवकी ने बच्चे को जन्म दिया त्यंही कंस ने उसे छीन शशाद का पुत्र पुरंजय, इक्ष्वाकुवंश्यः ककुदं नुपाणां कर मौत के घाट उतार दिया, इस प्रकार उसने छः ककुत्स्थ इत्याहितलक्षणोऽभूत-रघु० ६७१ (पौराबच्चों का काम तमाम कर दिया। परन्तु सातवाँ और णिक कथा के अनुसार राक्षसों के साथ देवों के युद्ध आठवाँ (बलराम और कृष्ण) बच्चा इतनी सावधानी में जब देवों को मंहकी खानी पड़ी तो वह इन्द्र के रखते हुए भी सकुशल नन्द के घर पहुँचा दिया गया। नेतृत्व में पुरंजय के पास गये और उनसे युद्ध में साथ भविष्यवाणी के अनुसार कसहन्ता कृष्ण नन्द के यहाँ देने के लिये प्रार्थना की। पुरंजय ने इस शर्त पर पलता रहा । जब कंस ने सुना तो वह अत्यन्त क्रुद्ध स्वीकार किया कि इन्द्र उसे अपने कंधे पर उठा कर हुआ, उसने कई राक्षस कृष्ण को मारने के लिए भेजे, चले । फलत: इन्द्र ने बैल का रूप धारण किया और परन्तु कृष्ण ने उन सबको आसानी से मार गिराया ।। पुरंजय उसके कंधे पर बैठा-इस प्रकार पुरंजय ने For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३६ ) राक्षसों का सफाया कर दिया। इसीलिए पुरंजय 'ककुत्स्थ '--- ' कूबड़ पर बैठा हुआ' कहलाता है) । ककुवः — दम् कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति ---- दा + क ] 1. पहाड़ का शिखर या चोटी 2. कूबड़ या डिल्ला ( भारतीय बैल के कंधे का उभार ) 3. मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख --- ककुदं वेदविदां तपोधनश्च -- मृच्छ० ११५, इक्ष्वाकुवंश्यः ककुदं नृपाणाम् रघु० ६।७१ 4. राजचिह्न नृपतिककुदं रघु० ३ ७०, १७।२७ । ककुद्मत् (वि० ) [ ककुद् - मतुप् ] 1. कूबड़ या डिल्ले से युक्त - ( पु० ) पहाड़ ( जिसके श्रृंग हो) 2. भैंसा -महोदग्राः ककुद्यन्तः- रघु० ४।२२, कूबड़ वाला बैल १३।२७, कु० ११५६. ती कूल्हा और नितंब । ककुद्मिन् ( वि० ) [ ककुद् + मिति ] शिखरधारी, कूबड़ युक्त (पुं० ) 1. कूबड़धारी बैल 2. पहाड़ 3. राजा रैवतक का नाम – कन्या - सुता बलराम की पत्नी रेवती - शि० २।२० । ककुद्वत् (पुं०) [ ककुद् + मतुप् वत्वम् ] कूबड़वारी भैंसा । ककुदन्रम् [ कस्य शरीरस्य कुम् अवयवं दृणाति ककु | दृ + खच्, मुम् ] नितंबों का गड्ढा, जघनकूप याज्ञ० ३।९६ | ककुभ् (स्त्री० ) क + स्कुभ् + क्विप् ] 1. दिशा, भूपरिधि का चतुर्थ भाग - वियुक्ताः कान्तेन स्त्रिय इव न राजति ककुभः मृच्छ० ५।२६, शि० ९/२५ 2. आभा, सौन्दर्य 3. चम्पक पुष्पों की माला 4. शास्त्र 5. शिखर, चोटी । ककुभः [ कस्य वायोः कुः स्थानं भाति अस्मात् ककु + भा+क पृषो० वा कं वातं स्कुम्नाति विस्तारयति - क + स्कुभ् + क] 1. वीणा के सिरे पर मुड़ी हुई लकड़ी 2. अर्जुनवृक्ष – ककुभसुरभिः शैलः उत्तर० १।३३, भम् कुटज वृक्ष का फूल - मेघ० २२ । कक्कुलः [ कक्क् + उलच् ] बकुल वृक्ष । ककोल., ली [ कक् + क्विप्, कुल् + ण - कक् च कोलश्चेति कर्म० स० स्त्रियां ङीष् ] फलदार वृक्ष - कक्कोली फलजग्धि मा० ६।१९ अने० पा०, लम्, --- लकम् 1. कक्कोल का फल 2. इसके फलों से तैयार किया गया गन्धद्रव्य । कक्खट ( वि० ) [ कक्ख् + अटन् ] 1. कठोर, ठोस 2. हंसने वाला । कक्खटी [ कक्खट + ङीप् ] खड़िया । कक्षः [ कष् + स ] 1. छिपने का स्थान 2. नीचे पहने जाने वाले वस्त्र का सिरा, कच्छे का सिरा 3. बेल, लता 4. घास, सूखी घास - यतस्तु कक्षस्तत एव वह्निः - रघु० ७५५, ११।७५, मनु० ७३११० 5. सूखे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृक्षों का जंगल, सूखी लकड़ी 6. काख - - प्रक्षिप्योदचिषं कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम् - शि० २१४२ 7. राजा का अन्तःपुर 8. जंगल का भीतरी भाग- आशु निर्गत्य कक्षात् ऋतु० ११२७ कक्षांतरगतो वायुः - रामा० 9. ( किसी वस्तु का ) पार्श्व 10 भैंसा 11. द्वार 12. दलदली भूमि, -क्षा 1. ककराली या कांख का फोड़ा जिसमें पीड़ा होती है 2. हाथी को बांधने की रस्सी, हाथी का तंग 3. स्त्री की तगड़ी, कटिबन्ध, करधनी, कटिसूत्र – शि० १७।२४ 4. चहारदीवारी की दीवार 5. कमर, मध्यभाग 6. आँगन, सहन 7. बाड़ा 8. भीतर का कमरा, निजी कमरा, सामान्य कमरा - कु० ७७०, मनु० ७।२२४, गृहकलहंसकाननुसरन् कक्षांतरप्रधावितः - का० ६३, १८२ 9 रनिवास 10. समानता 11. उत्तरीय वस्त्र 12. आपत्ति, सतर्क उत्तर (तर्क० में) 13. प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वन्द्विता 14. लांग 15. लांग बांधना 16. कलाई, क्षम् 1. तारा 2. पाप । सम० अग्निः जंगली आग, दावाग्नि- रघु० ११।९२, - अन्तरम् भीतर का या निजी कमरा, - अवेक्षकः 1. अन्त: पुर का अधीक्षक 2. राजोद्यानपाल 3. द्वारपाल 4. कवि 5. लम्पट 6. खिलाड़ी, चित्रकार 7. अभिनेता 8. प्रेमी 9. रस या भावना की शक्ति, -धरम् कन्धों का जोड़, पः कछुवा, - (क्षा) पट: लंगोट, पुट: काँख, शायः, -युः कुत्ता । कक्ष्या [कक्ष + यत्+टाप् ] 1. घोड़े या हाथी का तंग 2. स्त्री की तगड़ी या करवनी - शि० १०।६२ 3. उत्तरीय वस्त्र 4 वस्त्र की किनारी 5. महल का भीतरी कमरा 6. दीवार, घेर या बाड़ा 7. समानता । [ख्+ यत्+टाप्] घेर या बाड़ा, विशाल भवन का प्रभाग या खण्ड । कङकः [ कडक् + अच् ] 1. बगला 2. आम का एक प्रकार 3. यभ 4. क्षत्रिय 5. बनावटी ब्राह्मण 6. विराट के महल में युधिष्ठिर द्वारा रक्खा गया अपना नाम । सम० - पत्र बगले के परों से सुसज्जित ( - त्रः ) बगले के पंखों से युक्त बाण - रघु० २/३१, उत्तर० ४।२० महावी० १११८, - पत्रिन ( पुं० ) कंकपत्रः, मुखः . चिमटा वेणी० ५११, शाय, कुत्ता ( बगले की भांति सोता हुआ ) । कङकटः, कडकटक: [+क् + अटन्, कन् वापि ] 1. कवच, रक्षात्मक जिरह बस्तर, सैनिक साज-सामान वेणी० २।२६, ५।१, रघु० ७/५९ 2. अंकुश । कडकणः, -- णम् [ कम् इति कणति, कम् + कण् +अच् ] 1. कड़ा - दानेन पाणिर्न तु कडकणेन विभाति भर्तृ • २०७१, इदं सुवर्णकणं गृह्यताम् हि० १2. विवाहसूत्र, कंगना ( कलाई के चारों ओर बँधा हुआ ) - उत्तर० १११८, मा० ९१९, देव्यः कङ्कणमोक्षाय For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३७ ) मिलिता राजन् वरः प्रेष्यताम्-महावी० २१५० । कि तुम मेरी छोटी बहन हो। इस बात पर देवयानी 3. सामान्य आभूषण 4. कलगी,–णः पानी की फुहार ने युवक को शाप दे दिया कि वह महामंत्र जो उसने -नितंब हाराली नयन युगले कङ्कणभरम्-उद्भट,-णी, सीखा है शक्तिहीन हो जायगा। बदले में कच ने भी कणिका 1. चूंघरु 2. धुंधरु-जड़ा आभूषण । उसे शाप दिया कि उससे कोई ब्राह्मण विवाह नहीं कलकतः, -तम्, कड़कती,--तिका [कङ्क+अतच्] कंघी, करेगा, और उसे क्षत्रिय की पत्नी बनना पडेगा), बाल बाहने की कंघी--शि० १५॥३३ । - चा हथिनी। सम० ---अग्रम् पूंघट, अलके,-आचित कङ्करम् [कं सुखं किरति क्षिपति--- | अच्) मट्ठा (पानी बिखरे बालों वाला ---कि० ११३६, ग्रहः बाल पकड़ना, मिला हुआ)। बालों से पकड़ने वाला-रघु० १०१४७, १९:३१, काल:---लम् [कं शिरः कालयति क्षिपति-कम् +कल् --पक्षः, -पाशः, --हस्तः घिचपिच या अलंकृत +णिच---अच् ] अस्तिपंजर - मा० ५।१४, । सम० बाल (अमर कोश के अनुसार यह तीन शब्द 'समूह' —पालिन् (पुं०) शिव, -- शेष (वि.) कमजोर होकर को व्यक्त करते हैं:-- पाशः पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः जो हड्डियों का ढाँचा रह गया हो-उत्तर० ३१४३ । कचात्परे), --मालः धूआँ । कालयः [ कंकाल+या+-क ] शरीर । कचङ्गानम् [ कचस्य जनरवस्य अङ्गनम् --५० त०, शक० कोल्लः, -ल्लि: [कङक् + एल्लः, एल्लि: वा अशोक वृक्ष । पररूपम् ] वह मंडी जहाँ सामान पर किसी प्रकार का कङ्कोली कंक्+ओलच् +ङीष दे० कक्कोली। कोई शुल्क न देना पड़े। कागुलः [ कंगु-ला+क हाथ । कचङ्गलः कच्यते रुध्यते वेलया- कच्+अङ्गलच् ] कच् (भ्वा० पर० --कचति, कचित) चिल्लाना, समद्र। रोना। कचाकचि (अव्य०) [कचेषु कचेषु गृहीत्वेदं युद्धं प्रवृत्तम् ब० ii (भ्वा० उभ०) 1, बाँधना, जकड़ना (आ-पूर्वक), स० इन्, पूर्वपददीर्घः 'बाल के बदले' एक दूसरे के त्वक्त्र चाचकचे वरम् -भट्टि० १४।९४ 2. चमकना। बाल पकड़ कर (खींच कर, नोच कर) युद्ध करना । कचः [ कच-+अच | 1, बाल (विशेषकर सिरके)-कचेषु कचाटुरः[ कचवत् मेघ इव शून्ये अटन्ति-कच+अ+ च निगीतान्-महा०, दे० नी० ग्रह-अलिनी- उरच् ] जलकुक्कुट ।। जिष्णुः कचानां चयः - भत० ११५ 2. सूखा या भरा [ कुत्सितं चरति कु-चर-+ अच् ] हुआ घाव, क्षतचिह्न या किण 3. बंधन, पट्टी ___1. बुरा, मलिन 2. दुष्ट, नीच, अधम । 4. कपड़े की गोट 5. बादल 6. बृहस्पति का एक पुत्र कच्चित् (अव्य०) [ कम् + विच, चि+क्विप पृषो० मस्य (राक्षसों के साथ लंबे युद्ध में देवता बहुधा हारा करते दत्वम्---कच्च चिच्च द्वयोः समाहारः -- द्व० स०] थे और असहाय हो जाते थे, परन्तु जो राक्षस युद्ध में (क) प्रश्नवाचकता ('मुझे आशा है' प्रायः ऐसा अनमारे जाते थे, उनको फिर उनका गुरु शुक्राचार्य अपने वाद)--कच्चित् अहमिव विस्मतवानसि त्वं-२० ६, गुप्तमंत्र (यह मंत्र केवल शुक्राचार्य के पास ही था) कच्चिन्मगीणामनघा प्रसूतिः-- रघु० ५७, ५, ६, ८ द्वारा पुनर्जीवित कर देता था। देवों ने इस मन्त्र को, व ९ भी (ख) हर्ष तथा (ग) माङ्गलिकता-सूचक यथा शक्ति, प्राप्त करने का संकल्प किया और कच को | अव्यय । शुक्राचार्य के पास उसका शिष्य बन कर मंत्र सीखने के कच्छः --च्छम् । केन जलेन छणाति दीप्यते छाद्यते वा--क लिए फसलाया। फलतः कच शक्राचार्य के पास गया, +छोक] 1. तट, किनारा, गोट, सीमावर्ती प्रदेश परन्तु राक्षसों ने उसकी दो बार इसलिए हत्या की कि (चाहे पानी के निकट होया दूर) यमनाकच्छमवतीर्णः कहीं वह इस ज्ञान में पारंगत न हो जाय परन्तु दोनों --पंच० १, गन्धमादन कच्छोऽध्यासित:-विक्रम० ५, ही बार, शक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानी के (जिसका शि० ३।८०2. दलदल, कीचड़, पंकभूमि 3. अधोवस्त्र कि कच से प्रेम हो गया था) बीच में पड़ने से उसे की गोट या झालर जो लाँग का काम दे-दे० कक्षा फिर जिला दिया। इस प्रकार परास्त हो राक्षसों ने 4. किश्ती का एक भाग 5. कछवे का अंग विशेष (जैसा उसकी तीसरी बार हत्या करके, उसके शव को जला कि 'कच्छप' में),---च्छा झींगुर। सम० अंतः झील दिया और उसकी राख शुक्राचार्य की मदिरा में मिला या नदी का किनारा--पः (स्त्री०-पी) 1. कछुवा, दी। परन्तु देवयानी ने उस युवक को पुनर्जीवित कछुवी, केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे---गीत० करने की अपने पिता से फिर प्रार्थना की। उसके १, मनु० ११४४, १२।४२ 2. मल्लयुद्ध में एक स्थिति पिता ने उसे फिर जिला दिया। तब से लेकर देव- 3. कुबेर की नौ निधियों में से एक (-पी) 1. कछुवी यानी उसको और भी अधिक प्रेम करने लगी, परन्तु 2. एक प्रकार की वीणा सरस्वती की वीणा,-भः कच ने उसके प्रेम-प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा । (स्त्री०) दलदली भूमि, पङ्कभूमि । कच्चर For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २३८ ) कच्छ (च्छा) टिका, कच्छाटो ( कच्छ + अट् + अच् + कन्, इत्वम्, शक० पररूपम्, पररूपाभावे 'कच्छाटिका' ङोषि कृते 'कच्छाटी' ] घोती का छोर जो शरीर पर चारों ओर लपेटने के बाद इकट्ठा करके लाँग की भाँति पीछे टाँग लिया जाता है । कच्छु:, कच्छू (स्त्री० ) [ कष् + ऊं, छ आदेशः, विकल्पेन ह्रस्वश्च ] खुजली, खाज | कच्छुर ( वि० ) ( कच्छू + र ह्रस्वश्च ] 1. खाज वाला, खुजली की बीमारी वाला 2. कामुक, लम्पट | कज्जलम् [कुत्सितं जलमस्मात्प्रभवति - कोः कदादेश: ] दीपक की कालिमा जो औषध के रूप में आँखों में आँजी जाती हैं, काजल - यथा यथा चेयं चपला दीप्यते तथा तथा दीपशिखेव कज्जलमलिनमेव कर्म केवलमुद्रमति – का० १०५, अद्यापि तां विद्युतकज्जललोलनेत्राम् – चौर० १५, कालिमा- अमरु ८८ 2. सुर्मा (जो अंजन की भांति प्रयुक्त किया जाता है ) 3. स्याही, मसी । सम० -- ध्वजः दीपक, लैम्प, - रोचकः, -कम् दीवट, ( लकड़ी का बना दीपक का स्टैण्ड ) 1 कञ्च ( स्वा० आ० ) 1. बांधना 2. चमकना । कञ्चारः [ कम्+चर् + णिच् + अच् ] 1. सूर्य 2. मदार का पौधा । चुकः [ कच् + उकन् ] 1. बख्तर, कवच 2. साँप की त्वचा, केंचुली पंच० १०६६ 3 पोशाक, वस्त्र, कपड़ा - धर्म प्रवेशितः - श० ५ 4 अंगरखा, चोगा - अन्तः कञ्चुकिकञ्चुकस्य विशति श्रासादयं वामनः - रत्न० २१३, पंच० २,६४ 5. चोली, अंगिया - क्वचिदिवेन्द्रराज जिनकञ्चुका:- शि० ६५१, १२/२० अमरु ८१, ( उक्ति - निन्दति कञ्चुककारं प्रायः शुष्कस्तनी नारी तु० 'नाच न जाने आंगन टेढ़ा') । • कञ्चुकालुः [ कञ्चुक + आलुच् ] साँप । कञ्चुकित ( वि० ) [ कञ्चुक + इतच् ] 1. वस्तर से सुसज्जित, कवच धारण किये हुए 2. पोशाक पहने हुए — कथा - भर्तृ० ३|१३० । बुक (वि०) (कञ्चुक + इनि] कवच या जिरहबख्तर से सुसज्जित, (पुं० ) 1. अन्त: पुर का सेवक, जनानी डघोड़ी का द्वारपाल (नाटकों में आवश्यक पात्र -- अन्तःपुरचरो वृद्धो विप्रो गुगगणान्वितः सर्वकार्याकुशलः कञ्चुकीत्यभिधीयते ) 2. लम्पट, व्यभिचारी 3. साँप 4. द्वारपाल 5. जी । कलिका, कञ्चुली कञ्च् + उलच् + ङीप् + कन्, ह्रस्वः ] चोली -- त्वं मुग्धाक्षि विनैव कंचुलिका बरसे मनोहारिणी लक्ष्मीम् - अमरु २७ । कब्ज: [ कम्+जन् + उ ] 1. बाल 2. ब्रह्मा, जम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. कमल 2. अमृत, सुधा । सम० -- जः ब्रह्मा, नाभः विष्णु । कञ्जकः, की कञ्जः केश हव कायति कञ्ज + कं+क ] एक प्रकार का पक्षी । कञ्जनः { कम् +जन् + अच् ] 1. कामदेव 2. एक प्रकार का पक्षी (कोयल) । कजरः, कजारः [कम् + ज् + अक्, अण् वा] 1. सूर्य 2. हाथी 3. पेट 4. ब्रह्मा की उपाधि । कञ्जलः [ कञ्ज्+कल ] एक प्रकार का पक्षी । कट् (भ्वा० पर० कटति, कटित) 1. जाना 2. ढकना । प्र - 1. प्रकट होना 2. चमकना ( प्रेर० - कटयति ) प्रकट करना, प्रदर्शित करना, दिखलाना, स्पष्ट करना - औज्ज्वल्यं परमागतः प्रकटयत्याभोगभीमं तमः - मा० ५।११, सुहृदिव प्रकटय्य सुखप्रदां प्रथममेकरसामनुकूलताम् उत्तर० ४।१५, रत्न० ४ १६, कट: [ कट्+अच् ] 1. चटाई मनु० २।२०४ 2. कूल्हा 3. कूल्हा और कटिदेश, कूल्हे के ऊपर का गर्त 4. हाथी का गंडस्थल -- कण्डूयमानेन कटं कदाचित् - रघु० २।३७, ३३७, ४/४७ 5. एक प्रकार का घास 6. शव 7. शववाहन, अरथी 8. पासे का विशेष प्रकार से फेंकना - निन्दितदर्शितमार्गः कटेन विनिपातितो यामि मृच्छ० २१८ 9 आधिक्य (जैसा कि 'उत्कट' में) 10. वाण 11. प्रथा 12 श्मशानभूमि, करिस्तान | सम० - अक्षः नजर, तिरछी निगाह, विक्षेप - गाढं निखात इव मे हृदये कटाक्ष: मा० १।२९, २५, २८, मेघ० ३५, उबकम् 1. ( मृत पितरों को) तर्पण के लिए जल 2. मद, (हाथी के मस्तक से बहने वाला तरल पदार्थ ) -कार: 1. संकर जाति ( निम्न सामाजिक अवस्था की ) ( शूद्रायां वैश्यतश्चौर्यात् कटकार इति स्मृतः उशना ) 2. चटाई बुनने वाला, कोलः पीकदान, खादक 1. गीदड़ 2. कौवा 3. शीशे का बर्तन, घोषः गोपालपुरी, पूसनः, -- ना एक प्रकार के प्रेतात्मा -- अमेध्यकुणपाशी च क्षत्रिय: कटपूतन: - मनु० १२।७१, उत्ताला: कटपूतनाप्रभृतयः सांराविणं कुर्वते - मा० ५।१२, ('पूतन-अने० पा० ) २३ भी, प्रूः 1. शिव 2. भूत या, पिशाच 3. क्रीड़ा, प्रोथः, थम् नितंब, भंगः 1. हाथों से दाने एकत्र करना (शिलाञ्छन) 2. राजसंकट, - मालिनी शराब कटक:--कम् [कट् + वुन् ] 1. कड़ा आवद्धहेमकटकां रहसि स्मरामि चौर० १५ 2. मेखला, करधनीं 3. रस्सी 4. श्रृंखला की एक कड़ी 5. चटाई 6. खारी नमक 7. पर्वत पार्श्व - प्रफुल्लवृक्षैः कटकरिव स्वः कु० ७:५२, रघु० १६।३१ 8. अधित्यका शि० ४।६५ 9. सेना, शिविर - मुद्रा० ५।१०10. राजधानी For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३९ ) 11. घर या आवास 12. वृत्त, पहिया। कठः [कठ्+अच्] एक मुनि का नाम, वैशम्पायन का शिष्य कटकिन् (पुं०) [ कटक इनि ] पहाड़। यजुर्वेद की कठ शाखा का प्रवर्तक,--21: कठ मुनि कटङ्कटः । कट-केट +खच् बा०, मुम्] 1. के अनुयायी। सम०-धर्तः यजुर्वेद की कठ शाखा में 2. सोना 3. गणेश-याज्ञ० १२८५ ।। निष्णात ब्राह्मण,- श्रोत्रियः यजुर्वेद की कठ शाखा में कटनम् । कट् + ल्युट घर की छत या छप्पर । पारंगत ब्राह्मण । कटाहः | कट+आ+हन्+ड ] 1. कढ़ाई 2. कछुवे की | कठमर्दः कठ+मृद्+अण्] शिव । कड़ी खाल 3. कूआँ 4. पहाड़ी मिट्टी का टीला कठर (वि०) [क+अरन् कड़ा, सख्त । 5. ट्टे बर्तन का खंड-शि० ५।३७, ने० २२०३२।। कठिका कठ् + वुन् बा०] खड़िया। कटिः,-टी (स्त्री०) कट+इन, कटि डीप वा । 1. कठिन (वि.) कठ्+-इनच्] 1. कड़ा, सख्त कटिन कमर 2. नितंब (साहित्य शास्त्री इस बात को 'ग्राम्य' विषमामेकवेणी सारयन्तीम् -मेघ० ९२, अमरु ७२ समझते हैं, इसका उदाहरण सा० द० ५७४ पृष्ठ पर इसी प्रकार स्तनौ 2. कठोर-हृदय, क्रूर, निर्दय --न —कटिस्ते हरते मनः) 3. हाथी का गंडस्थल । सम० विदीयें कठिनाः खल स्त्रिय:- कु० ४।५ पंच० ११६४ -तटम कूल्हा- कटीतटनिवेशितम् --- मृच्छ० १।२७, अमरु० ६, इसी प्रकार हृदय 3. कठोर, अनम्य' 4. ......त्रम 1. धोती 2. मेखला, करधनी, प्रोथः नितंब, तीक्ष्ण, प्रचंड, उग्र (पीड़ा आदि)—नितान्तकठिनां रुजं ...-मालिका स्त्री की तगड़ी या करधनी, रोहकः मम न वेद सा मानसीम्-- विक्रम० २।११ 5. पीड़ा महावत, पीलवान,--शीर्षक: कूल्हा.-शृंखला चूंघरू देने वाला,-नः झुरमुट,–ना 1. साफ की हई शक्कर जड़ी करधनी,- सूत्रम् करधनी या मेखला । से बनी मिठाई 2. खाना बनाने के लिए मिट्टी की हाँड़ी कटिका [ कटि-कन्-+टाप । कूल्हा, कमर । (-इस अर्थ में नपुं० भी)। कटीरः, - रम् [ कट+ईरन् ] 1. गुफा, खोखर 2. कूल्हों | कठिनिका, कठिनी [कठिन-डीष, कन्+टाप, इत्वम् ] का गर्त,-रम् कूल्हा । ___1. खड़िया 2. कन्नो अंगुली। कटीरकम् | कटीर+कन् | नितम्ब, चूतड़ । कठोर (वि०) कठ्+ओरन् 1. कड़ा, ठोस - कठोरास्थिकटु (वि.) (स्त्री०--टु या ट्वी) [ कट-|-उ | 1. तिक्त, ग्रंथि-मा० ५।३४ 2. क्रूर, कठोर-हृदय, निर्दय- अयि कडुवा, चरपरा (रस का एक भेद माना जाता है, रस कठोर यशः किल ते प्रियम्-उत्तर० ३।२७, इसी प्रकार छ: है: --कटु, अम्ल, मधुर, तिक्त, कषाय और लवण) हदय, चित्त 3. तीक्ष्ण, चुभने वाला, °अंकुशः... शा० -भग० १७१९ 2. गंधयुक्त, तीक्ष्ण गंध वाला -- रघु० १।२२ 4. पूर्ण विकसित, पूर्ण, पूरा उगा हुआ,-कठोर५।४३ 3. दुर्गन्धयुत, बदबूवाला 4. (क) कटु, व्यंग्या- गर्भा जानकी विमुच्य --उत्तर० १११, ४९, इसी त्मक (शब्द), याज्ञ० ३।१४२ (ख) अरुचिकर, अप्रिय प्रकार-कठोरताराधिपलाञ्छनच्छवि:- शि० १२० -श्रवणकटु नृपाणामेकवाक्यं विवब्रुः रघु० ६।८५ 5. (आलं.) परिपक्व, परिष्कृत--कलाकलापालोचन5.. ईर्ष्यालु 6. गरम, प्रचण्ड,-टुः तीखापन, तिक्तता, कठोरमतिभि:-का० ७। कडुवापन, (६ रसों में से एक),-टु (नपुं०) 1. अनु- | कड् = दे० कंड़। चित कार्य 2. लोकापवाद, दुर्वचन, निन्दा। सम | | कडे (वि०) [कड्+अच्] 1. गूंगा 2. कर्कश 3. अनजान, - कोट:-कीटकः डांस, मच्छर,-क्वाणः टटिहिरी, छर,-क्वाणः टटिहिरी, | मूर्ख। --पंथि (नपुं०) सोंठ, इसी प्रकार भंगः, भद्रम् । कडङ्ग (क) रः [कड+क( वा)+खच्, मुम्] तिनका। सोंठ या अदरक,-निष्प्लावः अनाज जो जल की बाढ़ कडंग (क)रीय (वि०) [कडंग (क) र+छ] जिसको तिनका में न आया हो,-मोदम् एक सुगन्धित द्रव्य,--रवः खिलाया जाय, यः घास खाने वाला पशु (गाय, भैंस आदि) रघु० ५।९। कटुक (वि.) [कटु+कन् ] 1. तीक्ष्ण, चरपरा 2. प्रचंड, कडत्रम् गडयते सिच्यते जलादिकम् अत्र----गट्+अत्रन्, गरम 3. अप्रिय, अरुचिकर,--क: तीखापन, खटास । गकारस्य ककारः] एक प्रकार का बर्तन। (६ रसों में से एक) दे. ऊ. 'कटु'। कहन्दिका कलंडिका विज्ञान, शास्त्र । कटुकता [ कटुक+ता ] अशिष्ट व्यवहार, अक्खड़पना। कड (लं)म्व: कड्+अम्बच्, डस्य ल: डंठल, (साग भाजी कदरम् [कट-+उरन् पानी मिला हुआ मट्ठा । का)। कटोरम् [कट+ओलच् रलयोरभेदः] मिट्टी का कसोरा। कडार (वि०) [गड्+आरन् कडादेश ] 1. भूरे रंग का कटोलः किट+ओलच 1. चरपरा स्वाद 2. नीच जाति 2. घमंडी, अभिमानी, ढीठ,-र: 1 भूरा रंग 2. सेवक । का पुरुष, जैसा कि चाण्डाल । कब्तुिलः [कट्यां तोलनं ग्रहणं यस्य, पृषो० टस्य ड] तलकठ (भ्वा० पर०) कठिनाई से रहना-दे० 'कण्ठ' । वार, खङ्ग । मेंढक । For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४० ) कण् i (म्वा० पर० ---कणति, कणित) 1. शब्द करना, 7. कष्ट पहुंचाने वाला भाषण,---क: 1. बाँस 2. कार चिल्लाना, ( दुःख में ) कराहना 2. छोटा होना खाना, निर्माणी । सम० अशनः,-भक्षकः --भुज 3. जाना। (पु.) ऊँट,- उद्धरम् 1. (शा०) काँटा निकालना, ii (चुरा० पर० या प्रेर०) आँख झपकना, पलक बन्द नलाई करना 2. (आलं) जनसाधारण को सताने वाले करना। तथा चोर आदि उत्पातकारियों को दूर करना, कण्टकणः (कण |-अच्| 1. अनाज का दाना-तण्डुलकणान् कोद्धरणे नित्यमातिष्ठेद्यनमुत्तमम् - मनु० ९२२५२ --हि० १, मनु० ११९२ 2. अणु या (किसी-वस्तु .... तुमः 1. काँटा, झाड़ी -भवन्ति नितरां स्फीताः सुक्षेत्र का) लव 3. बहुत ही थोड़ा परिणाम द्रविण शा० कण्टकद्रुमाः --मच्छ० ९।७ . सेगल का वृक्ष,-फल: १११९, ३१५ 4. धूल का जर्रा-रधु० १४८५, पराग कटहल, गोखरू, रेंड या धतूरे का पेड़,—मर्दनम् उत्पात —विक्रम १७ 5. (पानी की) बंद या फुहार शान्त करना, विशोधनम् सब प्रकार क्लेशों के स्रोतों – कणवाही मालिनीतरडगाणाम्-श० ३५, अंबु', का उन्मूलन करना,--राज्यकण्टकविशोधनोद्यत:--- अश्रु', मेघ० २६, ४५, ६९, अमरु ५४ 6. अनाज की विक्रमांक ० ५।१। । बाल 7. (आग की) चिंगारी । सम०---अदः,-भक्षः, कण्टकित (वि.) कण्टक+इतच 1. काँटेदार 2. खड़े --भज (पं) वैशेषिक दर्शन के निर्माता का नाम (जिसे हुए रोगटों वाला, पुलकित, रोमांचित--प्रीतिकण्टकिअणुवाद का सिद्धांत कह सकते हैं)---जीरकम् सफेद तत्वचः-कु० ६.१५, रघु०७।२२।। जोरा,-भक्षकः एक प्रकार का पक्षी,-लाभः भंवर, कण्टकिन् (वि.) (स्त्री०-नी) कण्टक- इनि 1. कांटेजलावर्त । दार, कंटीला,—कण्टकिनो बनान्ताः ----विक्रमांक० कणपः [कण+पा+क] लोहे का भाला या छड़,-लोहस्त- ११११६ 2. सताने वाला, कष्टदायक । सम० -फल: म्भस्तु कणपः --वैज० चापश्चक्रकणपकर्षणम् --आदि० कटहल। दश० । कष्टकिल: [ कण्टक+इलच् ] कांटेदार बाँस । कणशः (अध्य०) कण+शस् छोटे २ अंशों में, दाना- कण्ठ (भ्वा०, चुरा० उभ०--कण्ठति-ते, कंटयति-ते, कण्ठित) दाना, थोड़ा-थोड़ा, बूंद-बूंद - तदिदं कणशो विकीर्यते 1. विलाप करना, शोक करना 2. चकना, आतुर होना, (भस्म) कु०-४।२७। । लालायित होना, खेद के साथ स्मरण करना (इस अर्थ कणिकः [कण+कन, इत्वम्] 1. अनाज का दाना 2. एक को प्रकट करने के लिए धातु के पूर्व 'उद्' उपसर्ग लगा छोटा कण 3. अनाज की बाल 4. भुने हुए गेहूँ का कर संब०, अधि० या सम्प्र०की सज्ञा के साथ इस क्रिया भोजन । का प्रयोग करते है)-- परिष्वङ्गस्य वात्सल्यादयमत्कण्ठते कणिका कण--ठन्--टाप् 1. अणु, एक छोटा अथवा | जनः - उत्तर०६।२१, यथा स्वर्गाय नोत्कण्ठते-विक्रम सूक्ष्म जर्रा 2. (पानी की) बूंद-मेघ० ९८ 3. एक ३, सुरतव्यापारलीलाविधौ चेतः समुत्कण्ठते-काव्य०११ प्रकार का अन्न या चावल। कण्ठः, -ठम् कण्ठ-|-अच। 1. गला,--कण्ठे निपीडयन् मारकणिशः -शम् कणिन् +शी+ड अनाज की बाल । यति-मृच्छ०८, कण्ठः स्तम्भितबाप्पत्तिकलष:- श० कणीक (वि.) कण् + ईकन्j छोटा, नन्हा । ४५ कण्ठेय स्खलितं गतेपि शिशिरे पस्कोकिलानां रुतम् कणे (अव्य०) [कण्+ए) इच्छा-संतृप्ति का अभिधायक। ६३ 2. गर्दन ..कण्ठाश्लेष परिग्रहे शिथिलता--पंच. अव्यय (श्रद्धाप्रतीघात).-कणेहत्य पय: पिबति-सिद्धा० ४।६; कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनरसंस्थे मेघ० 'वह मन भर कर दूध पीता है।' ३।९७ ११२, अमरु १९४५७, कु० ५।५७ 3. स्वर कणेरा-हः (स्त्री०) कणेर+टाप, कम्+एरु 1. हथिनी आवाज - सा मुक्तकण्ठं चक्रन्द-रघु०१४।६५, किन्नर2. वेश्या, रंडी। कण्ठि ८१६३, आर्यपुत्रोपि प्रमक्तकण्ठ रोदिति--उत्तर. कण्टकः, ----कम् कण्ट +ण्वुल 1. काँटा,-पादलग्नं करस्थेन | ३ 4 बर्तन की गर्दन या किनारा 5. पड़ोस, अवि कण्टकेनैव कण्टकम् (उद्धरेत्)-चाण० २२ 2. फांस, च्छिन्न सामीप्य (जैसा कि 'उपकण्ठ' में)। सम० डंक—याज्ञ० ३१५३ 3. (आलं.) ऐसा दुःखदायी .. आभरणम् गले का आभूषण---परीक्षितं काव्यसुवर्णव्यक्ति जो राज्य के लिए काँटा तथा अच्छे प्रशासन मेतल्लोकस्य काठाभरणत्वमेतू-विक्रमांक० ११२४ तु० एवं शान्ति का शत्र हो- उत्खातलीकत्रयकण्टकेऽपि सरस्वती कण्ठाभरण जैसे नाम,-कणिका भारतीय वीणा, --- रघु० १४१७३, त्रिदिवमुद्धतदानवकण्टकम्-श० ७। --गत (वि.) गले में रहने वाला, गले में आने वाला ३, मन० ९।२६० 4. (अतः) सताने या क्लेश पहुँ- अर्थात वियक्त होने वाला, ... न वदेद्यावनों भाषां प्राणः चाने का मूल कारण, उत्पात-मनु० ९।२५३ | कण्ठगतैरपि-सुभा०, - तटः,-.-टम्,--टी गले का 5. रोमांच होना, रोंगटे खड़े होना 6. अंगुली का नाखून ! पार्श्व या भाग,-वघ्न (वि०) गर्दन तक पहुँचने वाला, For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का मणि 2. प्रिय वस्तु, में होने वाला | यित सज्जनम् गर्दन कण्ड्यनम् निवारणश्च । ( २४१ ) -नीडकः चील,-नीलकः बड़ा लैंप या मशाल,-पा- यक्+क्विप्, अलोपः यलोपः] 1. खुरचना 2. खुजाना शक: 1. हाथी की ग्रीवा के चारों ओर बंधी हुई रस्सी | -कपोलकण्डू: करिभिविनेतुम् कु. ११९, शा० ४।१७ । 2. रोकने वाला,-भूषा छोटा हार-विदुषां कण्ठ भूषा- | कण्डूतिः (स्त्री०) कण्डू+यक्+क्तिन् 1. खुरचना 2. स्वमेतु-विक्रमांक०१८।१०२, ---मणिः 1. गले में पहनने खुजली, खुजाना। का मणि 2. प्रिय वस्तु,--लता 1. पट्टा 2. घोड़े को | कण्डयति-ते (ना० घा०, उभ०) (भू० क० कृ०-कण्डरोकने वाला,--वतिन (वि.) गले में होने वाला यित) 1. खुरचना, शनैः २ मसलना-कण्डूयमानेन अर्थात् बिदा होने वाला-प्राण:-रघु० १२१५४, कटं कदाचित्-रघु० २१३७, मृगीमकण्डूयत् कृष्णसारः -शोषः (शा०) 1. गले का सूख जाना, खुश्क हो –कु० ३।३६, शृंगे कृष्णमृगस्य वामनयनं कण्डूयजाना 2. (आलं.) निष्फल प्रतिवाद,--सज्जनम् गर्दन मानां मृगीम-श०६।१६, मनु० ४।४२ । के सहारे लटकना,---सूत्रम् एक प्रकार का आलिंगन | कण्डूयनम् कण्डू-+-यक्+ल्युट्] खुरचना, मसलना-कण्डू-यत्कुर्वते वक्षसि वल्लभस्य स्तनाभिघातं निबिडोपगहात, यनैर्दशनिवारणश्च-रघ० २१५,--नी मसलने के लिए परिश्रमार्थं शनविदग्धास्तत्कण्ठसूत्र प्रवदंति संतः,कण्ठ- ब्रुश। सूत्रमपदिश्य योषितः-रघु० १९।२२ ('स्तनालिंगन' कण्डूयनकः [कण्डूयन-+कन्] खुजली पैदा करने वाला, भी कहलाता है),-स्थ (वि०) 1. गले में होने वाला | गुदगुदी करने वाला--पंच० ११७१।। 2. कंठस्थानीय । कण्डूया कण्डू+यक्+अ+-टाप] 1. खुरचना 2. खुजलाना। कण्ठतः (अव्य.) कण्ठ+तसिल] 1. गले से 2. स्पष्ट रूप | कण्डूल (वि०) [कण्डू+लच् ] जिसे खुजली का विकार हो, से, स्फुटरूप से। "जो खुजली अनुभव करता हो, या खुजलाहट पैदा करने कण्ठाल: [ कण्ठ+आलच् ] 1. किश्ती 2. फावड़ा, कुदाली वाला---कण्डूलद्विपगण्डपिण्डकणोत्कपेन संपातिभिः ____3. युद्ध 4. ऊँट,-ला बर्तन जिसमें दूध बिलोया जाय । - उत्तर० २।९। कण्ठिका [ कण्ठ-+ठन्टाप, इत्वम् ] एक लड़का हार या | कण्डोल: [ कण्ड+ओलच् ] 1. (वेत या बाँस की बनी) माला। टोकरी जिसमें अनाज रखा जाय 2. डोली, भण्डार-गृह कण्ठी (स्त्री०) ] कण्ठ+डीए ] 1. गर्दन, गला 2. हार, | ___3. ऊँट,-ली चांडाल की वीणा। पट्टी 3. घोड़े की गर्दन के चारों ओर बंधी रस्सी। | कण्डोषः [ कण्ड्+ओषन् ] झांझा, एक तरह का फुनगा। सम०---रवः 1. सिंह 2. मदमाता हाथी-कंठीरवो महा- कण्वः [ कण्+क्वन् ] एक ऋषि का नाम, शकुन्तला का ग्रहेण न्यपतत्-दश०७ 3. कबूतर 4. स्पष्ट घोषणा धर्मपिता, काण्व ब्राह्मणवंश का प्रवर्तक । सम० या उल्लेख (इति कण्ठीरवेणोक्तम्) । -दुहित,--सुता शकुन्तला, कण्व की पुत्री। कण्ठीलः कण्ठ+ईलच ] ऊँट ।। कतः, कतकः [कं जलं शुद्धं तनोति-तन्+ड-तारा०] कण्ठेकालः [ कण्ठे कालो विषपानजो नीलिमा यस्य --- अल ० निर्मली का पौधा (इसका फल गदले पानी को स्वच्छ स०] शिव । कर देने वाला बतलाया जाता है) रीठा-फलं कतककण्ठप (वि.) [ कण्ठ+यत 11. गले से संबन्ध रखने वाला वृक्षस्य यद्यप्यंबुप्रसादनम्, न नामग्रहणादेव तस्य वारि गले के उपयुक्त, या गले में होने वाला 2. कंठस्था- प्रसीदति । मनु० ६।६७,--तम्-तकम् इस वृक्ष का नीय। सम०-वर्णः कण्ठस्थानीय अक्षर-नामतः, फल, रीठा, दे० 'अंबुप्रसादन' भी। अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ् और ह,-स्वरः कण्ठस्थानीय कतम (सर्व० वि०) (नपुं०--मत्) [किम् +डतमच् ] स्वर (अ और आ)। कोन या कौन सा-अपि ज्ञायते कतमेन दिग्भागेन गतः कह (भ्वा० उभ०) 1. प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना 2. घमंडी स जाल्म इति--विक्रम० १, अथ कतमं पुनर्ऋतुमधि होना 3. कूटकर भूसी अलग करना, (चुरा० उभ० कृत्य गास्यामि - श०१, कतमे ते गुणास्तत्र यानुदाहर-कण्डयति-ते, कण्डित) 1. (अनाज), गाहना दाने न्त्यार्थमिश्रा:-मा० १, (कभी कभी 'किम्' के स्थान अलग करना 2. रक्षा करना, बचाना। में बलप्राप्त प्रत्यादेश के रूप में प्रयक्त होता है)। कण्डनम् [कण्ड-ल्युट ] 1. फटकना, दानों से भूसी अलग | कतर (सर्व०वि०) (नपुं०-रत्) [ किम् +डतरच ] करना --अजानतायं तत्सर्वं (अध्ययनम्)तुषाणां कण्डनं कौन, दो में से कौन सा,-नैतद्विप्रः कतरन्नो गरीयो यथा 2. भूसी,—नी 1. ओखली 2. मूसल । यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:- भग० २।६। कण्डरा कंड। अरन् नस। कतमालः [ कस्य जलस्य तमाय शोषणाय अलति पर्याप्नोति कणिका कंड --वुल+टाप्] छोटा अनुभाग, छोटे से छोटा अल् +अच् ] अग्नि, तु० खतमाल । अनुच्छेद (जैसा कि शुक्ल यजुर्वेद में)। कति (सर्व० वि०) [ किम् डति ] (सदैव ब० व० में कण्डः (पुं० स्त्री०), कण्डूः (स्त्री०) [कण्डू+कु, कण्डू+| प्रयुक्त–कति, कतिभिः) 1. कितने-कत्यग्नयः, कति For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४२ ) सूर्यासः--ऋक० १०१८८०१८ 2. कुछ (जब 'कति' के । कथम् (अव्य.) [ किम-प्रकाराथें थम कादेशश्च ] 1. कैसे साथ चिद्, चन या अपि जोड़ दिया जाता है, तो शब्द किस प्रकार, किस रीति से, कहाँ से-कथं मारात्मके की प्रश्नवाचकता नष्ट हो जाती है, और वह अनिश्च- त्वयि विश्वासः हि. १, सान बन्धाः कथं न स्युः यार्थक बन जाता है-अर्थ होता है-- कुछ, कई, थोड़े संपदो मे निरापद:--रघु० २६४, ३१४४, कथमात्मानं से--तन्वी स्थिता कतिचिदेव पदानि गत्वा-श० २।१२, निवेदयाभि कथं वात्मापहारं करोमि-श० १ (यहाँ कत्यपि वासराणि-अमरु २५, तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबला- बोलने वाले को अपने कथन के औचित्य में सन्देह है) विप्रयुक्तः स कामी नीत्वा मासान्—मेघ०२)। 2. यह बहुधा आश्चर्य प्रकट करता है-(अहो,) कथं कतिकृत्वः (अव्य०) [ कति+कृत्वसुच् ] कितनी बार । मामेवोद्दिशति- श० ६ 3. यह प्रायः 'इब, नाम, नु, कतिषा (अव्य.) [ कति+धा ] 1. कई बार 2. कितने वा, स्विद' के साथ जोड़ दिया जाता है जब कि इसका स्थानों पर, या कितने भागों में। अर्थ होता है:- 'क्या, सचमच,' 'क्या सम्भावना है' कतिपय (वि.) [कति+अयच्, पुक च ] कुछ, कई, कई 'मुझे बतलाइए तो' (यहाँ प्रश्न का सामान्यीकरण कर एक---कतिपयकुसुमोद्गमः कदम्बः-उत्तर० ३।२०, दिया जाता है)- - कथं वा गम्यते -- उत्तर० ३, कथं मेघ० २३,—कतिपयदिवसापगमे - कुछ दिनों के बीत नामैतत्-उत्तर०६ 4. जब यह 'चिद, चन या जाने पर वर्ण: कतिपयरेव ग्रथितस्य स्वररिव—शि० अपि' के साथ जोड़ दिया जाता है तो इसका अर्थ हो २०७२। जाता है हर प्रकार से किसी तरह से हो' 'किसी न कतिविष (वि.) [ब० स०] कितने प्रकार का । किसी प्रकार' 'बड़ी कठिनाई से' या 'बड़े प्रयत्नों से' कतिशः (अव्य०) [कति+शस् ] एक बार में कितना । -तस्य स्थित्वा कथमपि पूर:-मेघ० ३, कथमप्युन्नमितं कत्य् (म्वा० आ०-कत्थते, कत्थित) 1. शेखी बघारना, न चुम्बितं तु-श० ३।२५, न लोकवत्तं वर्तेत वृत्तिइतरा कर चलना-कृत्वा कत्थिष्यते न क:--भट्टि० हेतोः कथंचन-मनु० ४।११, ५।१४३, कथंचिदीशां १६।४, कृत्वैतत्कर्मणा सर्व कत्थेथा:-महा० 2. प्रशंसा मनसां बभवु:.....३।३४, कथं कथमपि उत्थित:--पंच० करना, प्रसिद्ध करना 3. गाली देना, दुर्वचन कहना। १, विसज्य कथमप्युमाम् कु० ६।३, मेघ० २२, वि--, 1. शेखी मारना, -का खल्वनेन प्रार्थ्यमाना अमरु १२, ३९, ५०, ७३ । सम० ---कथिकः जिज्ञासु, विकत्थते-विक्रम०२ 2. दाम घटाना, तुच्छ करना, पूछ-ताछ करने वाला,-कारम (अव्य०) किस रीति उपेक्षित करना--सदा भवान् फाल्गुनस्य गुणरस्मान् से, कैमे ...कथंकारमनालम्बा कीतिमधिरोहति-. विकत्थते-महा। शि० २।५२, कथंकारं भुक्ते--सिद्धा०, नै० १७।१२६, --प्रमाण (वि.) किस माप तोल का,- भूत (वि.) कत्थनम्,--ना [कत्य् + ल्युट. युच् वा ] डींग मारना, किस स्वभाव का, किस प्रकार का (प्राय: टीकाकारों शेखी बघारना। करसवरम् [कत्स+वृ+अप्] कंधा । द्वारा प्रयुक्त), रूप (वि.) किस शक्ल सूरत का। कम् (चुरा० उभ०-कथयति, कथित) 1. कहना, समाचार कथन्ता / कथम् +-तल ] क्या प्रकार, क्या रीति । देना, (प्रायः सम्प्र० के साथ)-राममिष्वसनदर्शनोत्सूक कथा | कथ ---अडान-टाप् ] 1. कथा, कहानी 2. कल्पित मैथिलाय कथयांबभूव सः --रघु० ११।३७ 2. घोषणा या मनगढ़ंत कहानी कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तकरना, उल्लेख करना--भग० २।३४, रघु० ११११५ दिह कथ्यते-हि० ११ 3. वृत्तान्त, संदर्भ, उल्लेख 3. वार्तालाप करना, बातें करना, वातचीत करना -कथापि खलु पापानामलमश्रेयसे यतः ... शि० २१४० 4. .-कथयित्वा सुमन्त्रेण सह-- रामा० 4. संकेत करना, बातचीत, वार्तालाप, वक्तता 5. गद्यमयी रचना का निवेश करना, दिखलाना-विक्रम० ११७, आकारसदशं एक भेद जो आख्यायिका से भिन्न है-(प्रबन्धकल्पनां चेष्टितमेवास्य कथयति----श०७ 5. वर्णन करना, स्तोकसत्यां प्राज्ञाः कथां विदुः, परंपराश्रया या स्यात् बयान करना,-कि कथ्यते श्रीरुभयस्य तस्य- कु. ७। सा मताख्यायिका बुधैः) 'आख्यायिका' के नीचे भी ७८ कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते-हि० देखें। का कथा, या प्रति पूर्वक कथा (क्या कहना) १११, 6. सूचना देना, सूचित करना, शिकायत करना 'क्या कहने की आवश्यकता है' 'कहना नहीं' 'कुछ नहीं -मच्छ०३। कहना' 'और कितना अधिक' 'और कितना कम' कयक (वि०) [ कथ् +ण्वुल ] कहानी कहने वाला, वर्णन आदि अर्थो को प्रकट करते हैं का कथा ताणसन्धाने करने वाला,—क: 1. मुख्य अभिनेता 2. झगड़ालू 3. ज्याशब्देनैव दूरतः, हुंकारेणेव धनुषः स हि विघ्नानकहानी सुनाने वाला। पोहति ----श० ३११, अभितप्तमयोपि मार्दवं भजते कैव कथनम् [कय् + ल्युट ] कहानी कहना, वर्णन करना, बयान कथा शरीरिष ---रघु० ८१४३, आप्तवागनुमानाभ्यां करना। साध्यं त्वां प्रति का कथा--१०।२८, वेणी० २।२५, । For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम---अनुरागः वार्तालाप करने में आनन्द प्राप्त | बुरी आदत, बुरी प्रथा,--अर्थ (वि.) निरर्थक, अर्थकरना, अन्तरम् 1. वार्तालाप के मध्य में-स्मर्त- हीन, -- अर्थनम्, -- ना कष्ट देना, दुःखी करना, सताना, व्योस्मि कथान्तरेषु भवता--- मृच्छ० ७१७ 2. दूसरी - अर्थयति (ना० पा०, पर०) 1. घृणा करना, तिरकहानी,...--आरम्भः कहानी का आरम्भ,-उदयः कहानी स्कार करना 2. कष्ट देना, सताना--भर्त० ३।१००, की शुरुआत,-उद्घातः 1. प्रस्तावना के पांच भेदों में से नै० ८७५,-अथित (वि.) 1. घृणित, उपेक्षित, तिरदूसरा प्रकार जब कि चुपके से सुनने के बाद प्रथम पात्र स्कृत-कथितस्यापि हि धर्यवृत्तर्न शक्यते धैर्यगुणः सूत्रधार के शब्दों या भाव को दोहराता हुआ रंगमंच प्रमाटुंम्- भर्तृ० २।१०६ 2. सताया गया, पीडित पर आता है--दे० सा० द० २६०, उदा० रत्न, किया गया- आः कथितोऽहमेभिर्वारं वारं वीरसंवादवेणी० या मुद्रा० 2. किसी कहानी का आरम्भ - आकु- विघ्नकारिभिः-उत्तर० ५ 3. तुच्छ, नीच 4. बुरा, मारकथोद्घातं शालिगोप्यो जगुर्यश:-रघु० ४१२०, दुष्ट, · अर्यः कंजूस-मदु० ४।२१०, २२४, याज्ञः - उपाख्यानम् वर्णन करना, बयान करना,-छलम् 1. १२१६१, भावः लोलुपता, सूमपन,--अश्वः बुरा घोड़ा कथा के बहाने 2. मिथ्या वृत्तांत बनाते हुए,-नायकः, -आकार (वि०) विकृतरूप, कुरूप, -- आचार (वि.) -पुरुषः (कहानी का) नायक,--पीठम् कथा या दुराचारी, दुष्ट, दुश्चरित्र (- र.) दुराचरण,- उष्ट्र: कहानी का परिचयात्मक भाग,---प्रबन्धः कहानी, बुरा ऊंट,-उष्ण (वि०) गुनगुना, थोड़ा गरम बनावटी कहानी, कपोलकल्पित कहानी,---प्रसङ्ग: 1. (–णम्) गुनगुनापन, रयः बुरा रथ या गाड़ी-युधि वार्तालाप, बातचीत या बातचीत के दौरान में-- नाना कद्रथवीम बभंज ध्वजशालिनम् ---भट्रि० ५।१०३, कथा प्रसंगावस्थितः हि० १,--मिथः कथाप्रसङ्गेन --वद (वि.) 1. दुर्वचन कहने वाला, अयथार्थ या विवादं किल चक्रतुः-कथा०२२, १८१, नै० ११३५, अस्पष्ट वक्ता-येन जातं प्रियापाये कददं हंसकोकिलम् 2. विषचिकित्सक-कथाप्रसङ्गेन जनरुदाहृतात्-कि० भट्रि०६७५, वाग्विदां वरमकद्वदो नप:-शि० १४११ ११२४ (यहाँ शब्द 'प्रथम अर्थ' को भी प्रकट करता 2. दुष्ट, घृणायोग्य। है),-प्राणः अभिनेता,- मुखम् कहानी का परिचया- कवकम् [ कदः मेघ इव कायति प्रकाशते - कद+के+क ] त्मक भाग,---योगः बातचीत के मध्य,---विपर्यासः शामियाना, चंदोआ। कहानी का मार्ग बदलना,--शेष,—अवशेष (वि.) कदनम् [ कद् + ल्युट ] 1. विनाश, हत्या, तबाही 2. युद्ध जिसका केवल 'वृत्तांत' हो बाकी रह गया है अर्थात् 3. पाप। 'मृत' (कथाशेषतां गतः---मृत, मृतक) (-षः) कदम्बः, -. कदम्बकः [ कद् +अम्बच् ] 1. एक प्रकार का कहानी का बचा हुआ भाग। वृक्ष (बादलों की गरज के साथ इसकी कलियों का कथानकम् | कथ् + आनक बा०] छोटी कहानी-उदा० खिलना प्रसिद्ध है)--कतिपयकूसमोदगमः कदम्बः वेतालपञ्चविंशति । ---उत्तर० ३२०, मा० ३१७, उत्तर० ३४१ मेघ. कथित (भ. क. कृ०) कथ+क्त ] 1. कहा हुआ, २५, रघु० १२।९९ 2. एक प्रकार का पास 3. हलदी, वणित, बयान किया हुआ 2. अभिहित, वाच्य । सम० - कम् 1. समुदाय--छायाबद्धकदम्बकं मृगकुलं रोम–पदम् पुनरुक्ति, दोहराना, ('पूनरुक्ति'--वाक्य में न्थमभ्यस्यतु-श० २।६ 2. कदंब वृक्ष का फूलएक प्रकार का रचना विपयक दोष है जब कि एक शब्द पथकदम्बकदम्बकराजितम्-कि० ५।९। सम०-अनिल: का विना किसी विशिष्ट अभिप्राय के दोबारा प्रयोग (कदंब पुष्पों की सुगन्ध से युक्त) सुगन्धित वायु; ते किया जाता है) काव्य० ७, सा० द० ५७५, एत। चोन्मीलितमालतीसुरभयः प्रौढ़ा: कदम्बानिला:-काव्य. क i (दिवा० आ०-कद्यते) हतबुद्धि हो जाना, घबरा १ 2. बसंत,-कोरकन्यायः न्याय के नी० दे०,-वायुः जाना, मन में दु:खी होना, i (म्वा० आ० . कदते, सुगंधित पवन- अनिलः । भ्वा० पर० भी) 1. चिल्लाना, रोना, आँसू बहाना | कवरः [कं जलं दारयति नाशयति----क+६+अच ] 1. 2. शोक करना 3. बुलाना 4. मारना, प्रहार करना । आरा 2. अंकुश, ---रम् जमा हुआ दूध । -दे० कंद। कदलः,-कदलकः [ कद्+कलच, कन् च | केले का पेड़, कद् (अव्य०)। कद् -क्विप् ] (समास में 'कु' के स्थान -ऊरुद्वयं मगदृशः कदलस्य काण्डो-अमरु ९५,-ली में प्रयुक्त होने वाला अव्यय) बुराई, अल्पता, ह्रास, 1. केले का वृक्ष-कि यासि बालकदलीव विकम्पमानानिरर्थकता, तथा दोप आदि को प्रकट करने वाला मृच्छ० ११२०, यास्यत्यूरुः सरसकदलीस्तम्भगौरश्चलअव्य० । सम०- अक्षरम् 1. बुरा अक्षर 2. बुरी त्वम् - मेघ० ९६, ७७, कु० ११३६, रघु० १२।९६, लिखाई, ... अग्निः थोड़ी आग,-- अध्वन् बुरा मार्ग, याज्ञ० ३.८ 2. एक प्रकार का मग 3. हाथी के द्वारा - अन्नम् बुरा भोजन,-अपत्यम् बुरा बच्चा, अभ्यासः । वहन की जा रही ध्वजा 4 ध्वजा या झंडा । For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( eer (अव्य० ) [ किम् + दा] कब, किस समय कदा गमिव्यसि - एष गच्छामि, कदा कथयिष्यसि आदि, अपि जोड़ने पर यह शब्द 'कभी-कभी' 'किसी समय' 'समय निकाल कर' अर्थ प्रकट करता है; न कदापि कभी नहीं, यदि 'चन' आगे जोड़ दिया जाय तो इसका अर्थ हो जाता है 'किसी समय' 'एक दिन' 'एक बार' 'एक दफा - आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान्न बिभेति कदाचनमनु० २५४, १४४, ३२५, १०१; यदि 'चित्' आगे जोड़ दिया जाय तो इसका अर्थ हो जाता है 'एक बार' 'एक दफा' 'किसी समय अथ कदाचित् एक बार -- रघु० २।३७, १२ २१, नाक्षः क्रीडेत्कदाचित्तु मनु० ४।७४, ६५, १६९– कदाचित् कदाचित् 'अब- अब ' कभी-कभी कदाचित् काननं जगाहे कदाचित् कमलवनेषु रेमे - का० ५८, अमु० । कब्रु (वि०) (स्त्री० ब्रु या तू ) [ कद् + रु] भूरे रंग का, - दुः, -ब्रू (स्त्री०) कश्यप की पत्नी तथा नागों की माता । सम० पुत्रः, सुतः साँप | २४४ ) कनिष्ठिका [ कनिष्ठ + कन्+टाप्] सबसे छोटी अंगुली - कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासा - सुभा० । natioका, कनीनी [कनीन + कन्+टाप्, इत्वम्-कन् + ईन् + ङीष् ] 1. छोटी अंगुली - कन्नो 2. आँख की पुतली । कनीयस् ( वि० ) ( स्त्री ० सी ) [ अयमनयोरतिशयेन युवा अल्पो वा कनादेशः, कन् + ईयसुन्, स्त्रियां ङीप] 1. दो में से छोटा, अपेक्षाकृत कम 2. आय में छोटा - कनीयान् भ्राता, कनीयसी भगिनी आदि । कनेरा [कन्+एरन्+टाप् ] 1. वेश्या 2. हथिनी ( तु० कणेरा) । कनकम् [कन्+ वुन् ] सोना - कनकवलयं त्रस्तं स्रस्तं मया प्रतिसार्यते - श० ३५३, मेघ० २,३७, ६७, - कः 1. ढाक का वृक्ष 2. घतूरे का वृक्ष 3. पहाड़ी आबनूस । सम० - अंगवम् सोने का कड़ा, - अञ्चल:, - अद्रि:, -- गिरिः, -- शैल: सुमेरु पहाड़ के विशेषण, अधुना कुचो ते स्पर्धेते किल कनकाचलेन सार्धम् - भा० २९ आलुका सोने का कड़ा या फूलदान, आह्वयः धतूरे का पौधा, टः सोने की कुल्हाड़ी-दण्डम्, दण्डकम् (सोने के डंडे वाला) राजच्छत्र – पत्रम् सोने का बना कान का आभूषण -- जीवेति मंगलवचः परिहृत्य कोपात् कर्णे कृतं कनकपत्रमनालपन्त्या चौर० १०, परागः सुनहरी रज, रस: 1. हड़ताल 2. पिघला हुआ सोना, -सूत्रम् सोने का हार, काक्या कनकसूत्रेण कृष्णसर्पों विनाशित:- पंच० १२०७ - स्थली स्वर्णभूमि, सोने की खान । ereas (fro ) [ naक + मयट् ] सोने का बना हुआ, सुनहरी । कमलम् [?] एक तीर्थस्थान (हरद्वार) का नाम तथा उसके साथ लगी पहाड़ियाँ, (तीर्थं कनखलं नाम गंङ्गाद्वारेऽस्ति पावनम् ) -- तस्माद्गच्छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णां जनोः कन्याम् - मेघ० ५० । कमन ( वि० ) [ कन् + युच्] एक आँख का तु० 'काण' । कनपति (ना० घा० पर०) कम करना, घटाना, छोटा करना, न्यून करना - कीर्ति नः कनयन्ति च - भट्टि० १८।२५ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन युवा अल्पो वा - कनादेशः -कन् + इष्ठन् ] 1. सबसे छोटा, कम से कम 2. आयु में सबसे छोटा । कन्तुः [कन्+तु | 1. कामदेव, 2. हृदय ( विचार और भावना का स्थान ) 3. अनाज की खती । कन्या [ कम् + न् + टाप् ] थेगली लगा वस्त्र, गुदड़ी, झोली (जिसे संन्यासी धारण करते हैं ) - जीर्णा कन्था ततः किम् - भर्तृ० ३०७४, १९८६, शा० ४।५, १९, । सम० -धारणम् थेगली लगे कपड़े पहनना जैसा कि कुछ योगी करते हैं, – धारिन् (पुं०) धर्म- भिक्षु, योगी । कन्दः, वम् [कन्द् + अच्] 1. गांठदार जड़ 2. गाँठ भर्तृ ० ३।६९ ( आलं ० भी ) - ज्ञानकन्द : 3. लहसुन 4. ग्रन्थि, -द: 1. बादल 2. कपूर । सम०-- मूलम् मूली, - सारम् नन्दन - कानन, इन्द्र का उद्यान | कन्वट्टम् [कन्द् + अटन् ] श्वेत कमल- तु० कन्दोट । कम्बरः,—– रम् [कम्+दृ+अच्] गुफा, घाटी - कि कन्दा: कन्दरेभ्यः प्रलयमुपगता:- भर्तृ० ३१६९ वसुधाधरकन्दराभिसर्पी - विक्रम ० १।१६, मेघ० ५६ - र: अंकुश, रा, -री गुफा, घाटी, खोखला स्थान । सम० -आकारः पहाड़ । कन्दर्पः | कं कुत्सितो दर्पो यस्मात् - ब० स०] 1. कामदेव - प्रजनश्चास्मि कंदर्प :- भग० १०।२८, कन्दर्प इव रूपेण - महा० 2. प्रेम । सम० – कूपः योनि, ज्वरः काम ज्वर, आवेश, प्रबल इच्छा, वहनः शिव, -- मुषलः :- मुसल: पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग, श्रृंखल: 1. मेहन 2. रतिक्रिया का विशेष प्रकार, रतिबंध | कम्बलः, -लम् [कन्द् + अलच् ] 1. नया अंकुर या अँखुवा उत्तर० ३।४० 2. झिड़की, निन्दा 3. गाल, गाल और कनपटी 4. अपशकुन 5. मधुर स्वर 6. केले का पेड़ - कन्दलदलोल्लासाः पयोबिन्दवः - अमरु ४८, - ल: 1. सोना 2. युद्ध, लड़ाई 3. ( अतः ) वाग्युद्ध, वादविवाद, - लम् कन्दल का फूल - विदलकन्दलकम्पनलालितः - शि० ६।३०, रघु० १३।२९ । कन्बली [कन्दल + ङीष् | 1. केले का पेड़ - आरक्त राजिभि रियं कुसुमैर्नवकन्दली सलिलगर्भः कोपादन्तर्बाध्येि स्मरयति मां लोचने तस्याः । विक्रम ० ४५, मेघ० २१, ऋतु० २।५ 2. एक प्रकार का मृग 3. झंडा 4. कमलगट्टा या कमल का बीज । सम० - कुसुमम् कुकुरमुता । For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २४५ ) कन्दु: ( पुं० [स्त्री० ) [ स्कन्द् +-उ, सलोपश्च ] पतीली, तंदूर । कन्दुकः, -कम् [कम् + दा+हु+कन् खेलने के लिए गेंद, - पातितोऽपि कराघात रुत्पतत्येव कन्दुकः - भर्तृ० २८५, कु० १ २९, ५११, १९, रघु० १६।९३ । सम० - लीला गेंद का खेल । कवोट : ( : ) [ कन्द + ओटन् ] 1. श्वेत कमल, 2. नील कमल, (नीलोत्पल का प्रान्तीय रूप ) - मोहमुकुलायमाननेत्र कन्दोटयुगल:- मा० ७ । कन्धरः [कं शिरो जलं वा घारयति - कम्+ धृ + अच् ] 1. गर्दन 2. 'जलधर' बादल, -रा-गर्दन - कन्धरां समपहाय के घरां प्राप्य संयति जहास कस्यचित् — याज्ञ० २। २२०, अमरु १६, दे० 'उत्कंधर' भी । कन्धिः [कं शिरो जलं वा घीयतेऽत्र -कम् + वा + कि ] समुद्र; ( स्त्री० ) गर्दन । कम् [ कद् + क्त ] 1. पाप 2. मूर्छा, बेहोशी का दौरा । कन्यका [कन्या -+- कन्, ह्रस्वता] 1. लड़की - संबद्धवैखानस - कन्यकानि - रघु० १४।२८, ११५३ 2. अविवाहित लड़की, कुमारी, कुँआरी या (अपरिणीता) तरुणी -गृहे गृहे पुरुषा कुलकन्यकाः समुद्वहन्ति- मा० ७, याज्ञ० ११०५ 3. दशवर्षीय कन्या ( अष्टवर्षा भवेद्गौरी नववर्षा च रोहिणी, दशमे कन्यका प्रोक्ता अत ऊर्ध्वं रजस्वला शब्द ० ) 4. ( अलं० शा० में) अनेक प्रकार की नायिकाओं में से एक, कुमारी कन्या (जो किसी काव्यकृति में मुख्य पात्र समझी जाती है ) दे० 'अन्य स्त्री' के नी० 5. कन्या राशि । सम० - छलः फुसलानापैशाचः कन्यकाच्छलात् - याज्ञ० ११६१ - जनः कुमारियाँ, - विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजनः मा० ७११, जातः कुमारी कन्या का पुत्र - याज्ञ० २।१२९ ( कानीन) । कम्यः [कन्य+सो + क] सबसे छोटा भाई — सा कानी उँगली, -सी सब से छोटी बहन । कन्या [कन् + यक्+टाप् ] 1. अविवाहित लड़की या पुत्री ... सम ० -... रघु० १।५१, २।१०, ३१३३, मनु० १०१८ 2. दशवर्षीय कन्या 3. अक्षतयोनि, कुमारी मनु० ८।३६७, ३।३३ 4. (सामान्य) स्त्री 5. छठी राशि अर्थात् कन्या राशि 6. दुर्गा 7 बड़ी इलायची । --- अन्तः पुरम् रनवास, सुरक्षितेऽपि कन्यान्तःपुरे कश्चित्प्रविशति - पंच० १, महावी० २।५०, आट (वि०) युवती लड़कियों का पीछा करने वाला (-ट: ) 1. घर का भीतरी कमरा 2. जो तरुणी कन्याओं के पीछे फिरता रहता है, कुब्जः एक देश का नाम ( - जम्) भारत के उत्तर में एक प्राचीन नगर जो कि गंगा की सहायक नदी के किनारे स्थित है, वर्तमान कन्नौज, - - गतम् कन्या राशि में गया हुआ नक्षत्र, --- ग्रहणम् विवाह में कन्या को स्वीकार करना, वानम् कन्या का विवाह करना, दूषणम् कौमार्य भंग करना, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दोषः कन्या में दोष का होना, बदनामी (जैसे कि किसी रोग के कारण ), धनम् दहेज, पतिः पुत्री का पति, दामाद, जामाता, - पुत्रः कुँआरी कन्या का पुत्र ( ' कानीन' कहलाता है), पुरम् जनानखाना, --- 1 भर्त ( पुं०) 1. जामाता 2. कार्तिकेय, – रत्नम् अत्यन्त सुंदरी कन्या - कन्यारत्नमयोनिजन्म भवतामास्ते -- महावी० ११३०, राशि: कन्याराशि --- बेविन् (पुं०) दामाद (जामाता ) - याश० ११२६२, शुरुकम् कन्या के मूल्य के रूप में कन्या के पिता को दिया गया घन, कन्या का क्रयमूल्य, - स्वयंवरः किसी कुमारी कन्या के द्वारा अपना पति चुनना, हरणम् कौमार्यभंग के विचार से किसी तरुणी कन्या को फुसलाना मनु० ३।३३ | कन्याका, कन्यिका [ कन्या + कन्+टाप्, इत्वं वा ] 1. तरुणी लड़की 2. कुमारी (अपरिणीता लड़की) । कन्यामय ( वि० ) [ कन्या - + मयट् ] कन्याओं वाला, कन्यास्वरूप रघु० ६ । ११, १६।८६, यम् अन्तःपुर ( जिसमें अधिकांश लड़कियाँ ही हों ) । कपट:, टम् [ के मूनि पट इव आच्छादकः ] जालसाजी, धोखादेही, चालाकी, प्रवंचना - कपटशतमयं क्षेत्रमप्रत्ययानाम्- - पंच० १।१९१, कपटानुसार कुशला -- मृच्छ० ९।५ । सम० - तापसः पाखण्डी संन्यासी, बनावटी साधु, पटु (वि०) धोखा देने में चतुर, छलपूर्ण - - छलयन् प्रजास्त्वमनृतेन कपटपटुरैन्द्रजालिकः - शि० १५/३५, प्रबन्धः छल से भरी हुई बाल - हि० १, - लेख्यम् जाली दस्तावेज, - वचनम् धोले की बात - वेश (वि० ) बनावटी भेस वाला नकाब - पोश ( - शः ) कपटवेशधारी । कपटिक: [ कपट + ठन् ] बदमाश, छलिया । कपदः, – कपर्दकः [ पर्व + क्विप्, बलोपः पर, कस्य गंगा जलस्य परा पूरणेन दापयति शुध्यति - क +पर+दैप् क, कपर्द + कन् वा ] 1. कौड़ी 2. जटा (विशेषत: शिव का जटाजूट ) - गंगा० २२ । कर्पाका [ कपर्दक+टाप्, इत्वम् ] कौड़ी (जो सिक्के के रूप में प्रयुक्त होती है ) — मित्राण्यमित्रतां यान्ति यस्य न स्युः कर्पाद (र्द ) का:- पंच० २१९८ । कर्पादन (पुं० ) [ कपदं + इनि | शिव की उपाधि । कपाट:, - टम् [ कं वातं पाठयति तद्गति रुणद्धि-तारा०, क + पट् + णिच् +अण्] 1. किवाड़ का फलक या दिला -- कपाटवृक्षाः परिणद्धकन्धरः - रघु० ३१३४, स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपि नोपार्जित:- भर्तृ० ३।११ 2. दरवाजा - शि० १११६० । सम० – उद्घाटनम् दरवाजा खोलना,- ध्मः सेंध लगाने वाला, चोर, - सन्धिः किवाड़ों के दिलों का जोड़ । कपाल:: -- लम् [ कं शिरो जलं वा पालयति-- क + पाल् For Private and Personal Use Only 1 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४६ ) +अण् ] 1. खोपड़ी, खोपड़ी की हड्डी-चूडापीड । कपिश (वि०)[कपि-+श] 1. भूरे रंग का, सुनहरी 2. कपालसडकुलगलन्मन्दाकिनीवारयः मा० ११२, रुद्रो आरक्त-(छायाः) संध्यापयोदकपिशाः पिशिताशनानाम येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः-भर्त० २।९५ ----श० ३।२७, तोये कांचनपद्मरेणुकपिशे- ७।१२, 2. टूटे बर्तन का खंड, ठीकरा, कपालेन भिक्षार्थी विक्रम० २१७, मेघ० २१, रघु० १२।२८,-शः 1. --मनु० ८।९३ 3. समुदाय, संचय 4. भिक्षुक का भूरा रंग 2. शिलाजीत या लोबान,-शा 1. माधवी कटोरा-मनु० ६।४४ 5. प्याला, बर्तन-पंचकपाल: लता 2. एक नदी का नाम । 6. ढक्कन । सम० ---पाणिः, भृत्,-मालिन्, | कपिशित (वि.) [कपिश+इतच भूरे रंग का-शि० ---शिरस (पं०) शिव की उपाधि,--मालिनी | ६५। दुर्गादेवी। कपुच्छलम्, कपुष्टिका [कस्य शिरसः पुच्छमिव लाति--क कपालिका [ कपाल+कन्+टाप्, इत्वम् ] ठीकरा---मनु० +पुच्छ+ला+क-कस्य शिरस: पुष्टये पोषणाय ४७८, ८२५०। कायति-क+पूष्टि+के+क+टाप्] 1. मुण्डनकपालिन् (वि०) कपाल+इनि] 1. खोपड़ी रखने वाला, संस्कार 2. सिर के दोनों ओर रक्खे हुए केशसमूह । --- याज्ञ० ३१२४३ 2. खोपड़ी पहने हुए- कपालि वा कपूय (वि.) [कुत्सितं पूयते----+प्रय+अच, पृषो० स्यादथवेन्दुशेखरम् (वपु:)--- कु० ५१७८; (पुं०) 1. उलोपः] अधम, निकम्मा, कमीना, नीच। शिव का विशेषण,-करं कर्णे कुर्वत्यपि किल कपालि- कपोतः[को वातः पोत इव यस्य-ब० स०] 1. पारावत, प्रभुतयः---गंगा० २८ 2. नीच जाति का पुरुष कबूतर 2. पक्षी। सम० - अघ्रिः एक प्रकार का सुगं(ब्राह्मण माता तथा मछवे पिता की सन्तान)। धित द्रव्य,---अञ्जनम् सुर्मा,-- अरिः बाज, शिकरा, कपिः कम्प+इ, नलोपः ] 1. लंगूर, बन्दर-कपेरत्रासि- ---चरण एक प्रकार का सूगंधित द्रव्य,--पायिका, षुर्नादात्-भट्टि० ९।११ 2. हाथी। सम० - आख्यः -- पाली (स्त्री०) चिडियाघर, कबूतरों का दड़बा, धूप, लोबान आदि,-इज्यः 1. राम का विशेषण, 2. कबूतरों की छतरी,-राजः कबूतरों का राजा,-सारम् सुग्रीव का विशेषण, · इन्द्रः (बन्दरों का मुखिया) 1. सुर्मा,- हस्तः, डर या अनुनय-विनय के अवसर पर हनुमान का विशेषण- नश्यति ददर्श बंदानि कपीन्द्र हाथ जोड़ने का ढंग। -भट्टि. १०।१२ 2. सुग्रीव का विशेषण- व्यर्थ कपोतक कपोत+कन छोटा कबूतर,-कम् सुर्मा । यत्र कपीन्द्रसख्यमपि मे---उत्तर० ३१४५ 3. जांबवान् कपोलः [कपि+ओलच्] गाल-क्षामक्षामकपोलमाननम् का विशेषण,-कच्छुः (स्त्री०) एक प्रकार का पौधा, ---श० ३।१०, ६।४, रघु० ४।६८ । सम० .- काष: केवांच,-केतनः,-ध्वजः अर्जुन का नाम, भग०१॥ जिससे गाल मसले जाये कि० ५।३६,.. फलक: चौड़े २०,-जः-तैलम्,- नामन् (नपुं०) शिलाजीत, गाल, - भित्ति (स्त्री०) कनपटी और गाल, चौड़ा गुग्गुल,-प्रभुः राम का विशेषण, लोहम् पीतल । गण्डस्थल,--तु० गण्डभित्ति,... रागः गालों की लाली । कपिञ्जलः [क+पिंज-+-कलच्] 1. पपीहा 2. टिटिहिरी। कफः केन जलेन फलति-फल+ड तारा०] 1. बलगम, कपित्यः [ कपि+ स्था+क कैथ का वृक्ष,-स्थम् कैथ का कफ या श्लेष्मा (शरीर के तीन रसों में से एक--शेष फल। सम-आस्यः एक प्रकार का बन्दर। दो हैं- वात और पित्त) कफापचयादारोग्यकमूलमाकपिल (वि.) [ कम्प् +-इलच्, पादेशः] 1. भूरे रंग का, शयाग्निदीप्तिः–दश० १६०, प्राणप्रयाणसमये आरक्त-वाताय कपिला विद्युत्-महा० 2. भूरे बालों कफवातपित्तैः कण्ठावरोधनविधौ स्मरण कुतस्ते--उद्भट का-मनु० ३१८ (कुल्ल = कपिलकेशा),-ल: 1. 2. रसीला झाग, फेन । सम०---अरिः सोंठ,-कृचिका एक ऋषि का नाम (सगर के साठ हजार पुत्र थे, लार, थूक,---क्षयः फेफड़े का क्षय रोग,-हन,-नाशन, अपने पिता के यज्ञीय घोड़े को ढूंढते हुए ये कपिलमुनि --हर (वि०) कफ को दूर करने वाला, कफ नाशक, से लड़ पड़े और उन पर घोड़ा चुराने का आरोप .....ज्वरः बलगम अधिक हो जाने से उत्पन्न बुखार । लगाया इससे क्रुद्ध हो कपिल ने इन सब को भस्म कफणिः, कफोणिः (स्त्री० - णी) [केन सुखेन फणति स्फकर दिया--दे० उत्तर० १२३) यह सांख्य दर्शन का रति-क+फण + इन्, क+फण् (स्फुर)+इन् पृषो० प्रवर्तक समझा जाता है 2. कुत्ता 3. लोबान 4. धूप | कफोणि+डीप्] कोहनी। 5. अग्नि का एक रूप 6. भूरा रंग,-ला 1. भूरी गाय कफल (वि.) [कफ+लच] जिसे बलगम अधिक आता हो, 2. एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य 3. एक प्रकार का । कफप्रकृति। शहतीर 4. जोक। सम०-अश्वः इन्द्र की उपाधि, कफिन (वि.) (स्त्री०-नी) [कफ+इनि] कफ की अधि----घतिः सूर्य,-धारा गंगा की उपाधि,....स्मतिः कता से पीड़ित, कफग्रस्त । (स्त्री०) कपिल मुनि का सांख्य-सूत्र । कबन्धः,--धम् [कं मुखं बघ्नाति---क+बन्ध-+अण] सिर For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४७ ) रहित धड़ (विशेषतः जब कि उसमें प्राण बाकी हों) 5. सारस पक्षी 6. मूत्राशय,---ल: 1. सारस पक्षी 2. (स्वं) नृत्यकबन्धं समरे ददर्श-रघु० ७।५१, १२।। एक प्रकार का मग । सम०--अक्षी (स्त्री) कमल जैसी ४९,-ध: 1. पेट 2. बादल 3. धूमकेतु 4. राहु 5. | आँखों वाली स्त्री,—आकर: 1. कमलों का समूह 2. जल (इस अर्थ में यह शब्द नपुं० भी होता है)। कमलों से भरा सरोवर,-आलया लक्ष्मी को उपाधि ----शि०१६।६७ 6. रामायण में वणित बलवान् राक्षस -~-मुद्रा० २, आसनः कमल पर स्थित, ब्रह्मा (जव राम और लक्ष्मण दण्डक वन में रहते थे तो एक ---कान्तानि पूर्व कमलासनेन-कु० ७७०, -क्षिणा बार कबन्ध राक्षस ने इन पर आक्रमण किया परन्तु कमल जैसे नेत्रों वाली स्त्री,-उत्तरम् कुसुंभ का फूल, युद्ध में मारा गया-कहते है कि इन्द्र द्वारा शाप दिये --- खंडम् कमलों का समूह,-ज: 1. ब्रह्मा का विशेषण जाने से उसे राक्षस का रूप धारण करना पड़ा और 2. रोहिणी नाम का नक्षत्र, ---जन्मन् (पुं०)-भवः, जब तक कि राम और लक्ष्मण ने नहीं मारा वह --योनिः,-संभवः कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को उपाधि । राक्षस बना रहा)। कमलकम् कमल-+कन] छोटा कमल । कंबर,-री (प्रायः कवर,-रो लिखे जाते हैं)। कमला [कमल-अच+टाप्] 1. लक्ष्मी का विशेषण 2. कमला. कबिस्थः [कपित्थः -पृषो० साधुः] कैथ का वृक्ष । श्रेष्ठ स्त्री। सम० -पतिः,-सख: विष्णु की उपाधि । कम् (चुरा० आ०-कामयते, कामित, कान्त) 1. प्रेम । कमलिनी [कमल+इनि+डोप 1. कमल का पौषा; करना, अनुरक्त होना, प्रेम करने लगना- कन्ये काम- ----साऽऽऽह्रोव स्थलकमलिनी न प्रबुद्धां न सुप्ताम् यमानं मां न त्वं कामयसे कथम् काव्या०, ११६३, -~-मेघ० ९०, रम्यान्तरः कमलिनीहरितः सरोभिः (ग्राम्यता का एक उदाहरण)-कलहंसको मन्दारिका -श०४।१०, रघु० ९।३०, १९।११ 2. कमलों का कामयते --मा० १ 2. प्रबल लालसा करना, कामना ! समूह 3. कमल-स्थलो (जहाँ कमल बहुतायत से हों)। करना, इच्छा करना--न वीरसू शब्दमकामयेताम् कमा [कम् +-णिङ अ-+टाप्] सौंदर्य, मनोहरता। -रघु० १४१४, निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात् -५।२६, कमित (वि०) (स्त्री०-त्री) [कम्+तुच] विषयी, ४१२८, १०.५३, भट्रि० १४१८२, अभि---1. प्रेम लम्पट। करना 2. चाहना, नि ,प्र-अधिक चाहना, प्रवल । कम्प् (भ्वा० आ०-कम्पते, कम्पित) हिलना-डुलना, इच्छा करना। काँपना, इधर-उधर आना-जाना (आलं. भी)-चाम्पे कमठः किम् -। अठन् ] 1. कछुवा संप्राप्त: कमठः स चापि तीर्णलौहित्ये तस्मिन् प्रागज्योतिषेश्वरः --रघु० ४१८१ नियतं नष्टस्तवादेशतः---पंच० ११८४ 2. बाँस मृच्छ० ४१८, भट्टि० १४।३१, १५१७०,अनु-तरस 3. जल का घड़ा,--ठी कछवी या छोटा कछुवा । खाना, करुणा करना--नीयमाना भुजिष्यात्वं कम्पसे सम० --पतिः कछवों का स्वामो। नानुकम्पसे . मच्छ० ४।८, किं वराकी नानुकम्पसे मा० कमण्डलुः-लु [कस्य जलस्य मण्डं लाति कमण्ड-ला १०, (प्रेर०), तरस खाना--कु० ४१३९, आ-हिलना +कु] (लकड़ो या मिट्टो का) जल पात्र जो संन्यासी डुलना, काँगना; (प्रेर०) हिलाना-डुलाना, कॅपाना रखते है,-कमण्डल पमोऽमात्यस्तनुत्यागो बहुग्रह:--हि. -~-अनोकहाकम्पितपुष्पगन्धो-- रघु० २।१३, ऋतु०६॥ २।९१, कमण्डल नोदकं जिक्ता-मन ०२१६४, याज्ञः । २२, प्र हिलना, काँपना --प्राकम्पत भुजः सव्यः १११३३ । सम० -तरः वह वृक्ष जिसके कमंडल बनते ---रामा०, प्राकम्पत महाशैल:-महा०, (प्रे०) हिलाना, हैं,-धरः शिव का विशेषण । चलाना--भट्रि० १५।२३, वि--हिलना, काँपना,-कि कमन (वि.) [कम् + ल्यट] 1. विषयी, लमट 2. मनोहर यासि बालकदलोव विकम्पमाना---मच्छ० ११२०, सुन्दर, न: 1. कामदेव 2. अशोक वृक्ष 3 ब्रह्मा। स्फुरति नयनं वामो बाहुमहुश्च विकम्पते--९।३० कमनीय (वि.)[कम+अनीयर] 1. जो चाहा जाय, चाहने भग० २।३१; (प्रेर..)हिलाना-डुलाना-रघु० ११३१९, के योग्य,--अनन्यनारीकमनोयमकम् --- कु. ११३७ 2. ऋतु० २।१७, समनु - तरस खाना, करुणा करना मनोहर, सुहावना, सुन्दर-शाखावसक्तकमनीयपरिच्छ- - रघु० ९।१४। दानां-कि० ७।४०, तदपि कमनीयं वपुरिदम्-श० । कम्पः [ कम्प+घञ ] 1. हिल-जुल, थरथराहट-कम्पेन ३१९ अने० पा०। किचित्प्रतिगृह्य मून:-रघु०१३१४४ जरा सा सिर कमर (वि.) कम् +अरच] विषयी, इच्छुक । हिला कर या मोड़ कर, १३।२८, कु०७।४६ भयकम्पः, कमलम के जलमलति भूषयति - कम । अल+अच] 1. विद्युत्कम्प: आदि 2. स्वरित स्वर का रूपान्तर, .- पा कमल ----कमलमनम्भसि कमले न कुवलये तोनि कनक- हिलाना, चलायमान करना, थरथराहट । सम० लतिकायाम् -- काव्य०१०, इसी प्रकार हस्त, नेत्र -अन्वित (वि.) कम्पायमान, क्षुब्ध,- लक्ष्मन् चरण आदि 2. जल 3. ताँबा 4. दवादारु, औषधि (पुं०) वायु । For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४८ कम्पन (वि.) [ कम्प+युच ] कम्पायमान, हिलने वाला, | -न: शिशिर ऋतु (नवम्बर, दिसम्बर)-नम् 1. हिलना, कंपकंपी 2. लड़खड़ाता उच्चारण । कम्पाकः [कम्पया चलनेन कायति- कम्पा+के+क] वायु। कम्पिल्ल-कांपिल्ल । कम्त्र (वि०) [ कम्प्+र] हिलने वाला, कम्पायमान, चलायमान, हलचल पैदा करने वाला-विधाय कम्प्राणि मुखानि के प्रति - नै० १११४२ कम्प्रा शाखा -सिद्धा। कम्बू (म्वा० पर०-कम्बति, कम्बित) जाना, चलना फिरना। कम्बर (वि.) [कम्ब्--अरन् ] रंगबिरंगा,—रः चित्र विचित्र रंग। कम्बलः [कम्+कल्, बुकागमः] 1. (ऊनी) कंबल-कम्बल वन्तं न बाधते शीतम् --सुभा०, कम्बलावृतेन तेन-हि० ३ 2. सास्ना, गाय बैल के गले में नीचे लटकने वाली खाल 3. एक प्रकार का मुग 4. ऊपर से पहनने का ऊनी वस्त्र 5. दीवार,- लम् जल। सम० --वाह्यकम् बहली (चारों ओर मोटे कपड़े से ढकी हुई गाड़ी जिसमें बैल जुते हों)। कम्बलिका [ कम्बल-1-ई-कन्-+-ह्रस्वः, टाप् ] 1. एक छोटा कंबल 2. एक प्रकार की मृगी। कम्बलिन् (वि०) [ कंबल+इनि ] कम्बल से ढका हुआ, --(पुं०) बैल, बलीवर्द। सम०-वाह्यकम् बहली (मोटे कंबल से ढकी गाड़ी जिसमें बैल जुते हों), बैलगाड़ी। कम्बो (वी) (स्त्री०) [ कम्+विन् बा० डीप् ] कड़छी, चम्मच । कम्बु (वि०) (स्त्री० -बु या बू) चितकबरा, रंगविरंगा, -बुः, --बु (पुं०, नपुं०) शंख, सीपी-स्मरस्य कम्बुः किमयं चकास्ति दिवि त्रिलोकी जयवादनीयः नै०२२।२२,–बु: 1. हाथी 2. गर्दन 3. चित्रविचित्र रंग 4. शिरा, शरीर की नस 5. कड़ा 6. नलीनुमा हड्डी। सम- कंठी शंख जैसी गर्दन वाली स्त्री, -प्रीवा 1. शंखनुमा गर्दन (अर्थात् शंख की भांति तीन रेखाओं से युक्त-यह चिह्न सौभाग्यसूचक समझा जाता है) 2. स्त्री जिसकी गर्दन शंख जैसी ) जो करता है या कराता है, दुःख, सुख, भय, --रः 1. हाथ-करं व्याधुन्वयाः पिबसि रतिसर्वस्वमधरम् -श० श२४ 2. प्रकाश-किरण, रश्मिमाला-यमद्धर्तुं पूषा व्यवसित इवालम्बितकर:-विक्रम० ४।३४, प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ विफलत्वमेति बहुसाधनता, अवलम्बनाय दिनभर्तुरभन्न पतिष्यतः करसहस्रमपि - शि० ९१६ (यहाँ शब्द प्रथम अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है) 3. हाथी की संड,-सेक: सीकरिणा करेण विहितः--उत्तर० ३।१६ भर्त० ३।२० 4. लगान, शुल्क, भेंट--युवा कराक्रान्तमहीभदुच्चकरसंशयं संप्रति तेजसा रविः-शि० ११७० (यहाँ 'कर' का अर्थ 'किरण' भी है) (ददी) अपरान्तमहीपालव्याजेन रघवे करम् -- रघु० ४१५८.मनु ७।१२८ 5. ओला 6. २४ अंगूठे की माप 7. हस्त नाम नक्षत्र । सम०-- अग्रम् 1. हाथ का अगला भाग 2. हाथी के संड की नोक,- आघातः हाथ से की गई चोट,-आरोटः अंगठी,आलम्बः हाथ से सहारा देना, सहायक बनना -- आस्फोट: 1. छाती 2. थप्पड़,-कंटकः,-कम् नाखून, - कमलं,-पङ्कजम्, - पद्मम् कमल जैसा हाथ, सुन्दर हाथ-करकमलवितीर्णरम्बुनीवारशष्प:-उत्तर० ३।२५, --- कलशः,--शम् हाथ की अंजलि (पानी लेने के लिए),--किसलयः,-~-यम् 1. कोंपल जैसा हाथ, कोमल हाथ --करकिसलयतालमुग्धया नय॑मानम् -उत्तर० ३।१९, ऋतु० ६।३० 2. अंगुलि, कोषः हथेली का गर्त, हस्तांजलि....पेयमंबु--घट० २२, ग्रहः,-ग्रहणम् 1. लगान या शुल्क लेना 2. विवाह में हाथ पकड़ना 3. विवाह, पाहः 1. पति 2. शुल्क लेने वाला,---जः नाखून-तीक्ष्णकरजक्षुण्णात्-वेणी० ४।१, इसी प्रकार अमरु ८५, (जम्) एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य,--जालम् - प्रकाश की धारा,-तल: हथेलीबनदेवताकरतलै:--श० ४१४, करतलगतमपि नश्यति यस्य तु भवितव्यता नास्ति-पंच० २।१२४, आमलकम् (शा०) हथेली पर रक्खा हुआ आँवला--(आल.) प्रत्यक्षीकरण को सुगमता तथा स्पष्टता जैसा कि हथेली पर रक्खे फल के विषय में स्वाभाविक है-तु० करतलामलकफलवदखिलं जगदालोकयताम्-का० ४३, स्थ (वि०) हथेली पर रक्खा हुआ,-सालः, तालकम् 1. तालियाँ बजाना-स जहास दत्तकरतालमच्चकैः-- शि० १५१३९ 2. एक प्रकार का वाद्य-यंत्र, संभवतः झाँझ,- तालिका, ताली 1. तालियां बजाना -उच्चाटनीयः करतालिकानांदानादिदानीं भवतीभिरेषः -नै० ३७ 2. तालियाँ बजा कर समय विताना, -तोया एक नदी का नाम,-द (वि०) 1. लगान या शुल्क देनेवाला 2. सहायक- करदीकृताखिलनृपा मेदिनीम-वेणी० ६।१८,-पत्रम् आरा,-पत्रिका स्नान PAHARYANA कम्बोजः [कम्ब-+-ओज] 1. शंख 2. एक प्रकार का हाथी 3. (ब०व०) एक देश तथा उसके निवासी कम्बोजाः समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:-रघु० ४।६९ अने० पा० । कम्र (वि०) [कम्+र] मनोहर, सुन्दर । कर (वि.) (स्त्री०---रा,---री) [ प्रायः समास के अंत | में ] [ करोति, कीर्यते अनेन इति, कृ (क)+अप् ] । For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २४९ या जल-क्रीड़ा करते समय जल उछालना, - - -पल्लवः 1. कोमल हाथ 2. अंगुलि - तु० किसलय, पालः, - पालिका, 1. तलवार 2. कुदाली, पीडनम् विवाह तु० पाणिपीडन, पुटः दोनों हाथ मिला कर (दोनों की भांति ) बनाई हुई अंजलि - पृष्ठम् हथेली की पीठ, - बालः, वालः 1. तलवार- अघोरघंटः करवालपाणिर्व्यापादितः - मा० ९, म्लेच्छनिवह्निघने कलयसि करवालम् — गीत ० १ 2. नाखून, भारः लगान या शुल्क की भारी राशि, भूः नाखून, भूषणम् कड़ा या कंकण आदि कलाई में पहनने का गहना, माल: धूआँ, मुक्तम् बड़ा हथियार - दे० आयुध, दहः 1. नाखून - अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहैः - श० २२०, मेघ० ९६ 2. तलवार, वीरः, वीरकः 1. तलवार या खड्ग 2. कब्रिस्तान 3. चोदि देश का एक नगर 4. कनेर, शाखा अंगुलि - शीकर: हाथी की सूंड़ द्वारा फेंका हुआ पानी, शूकः नाखून, सावः किरणों का मंद पड़ जाना, सूत्रम् कंगना या विवाहसूत्र जो कलाई में बांधा जाता है, स्थालिन् (पुं० ) शिव, स्वनः तालियाँ बजाना । करकः, -कम् [ किरति करोति वा जलमंत्र कृ (कृ) + वुन् ] ( संन्यासी का) जलपात्र – का० ४१, कः अनार का वृक्ष, कः, कम्, -का ओला, - तान्कुर्वीथास्तुमुलक रकावृष्टिपातावकीर्णान् मेघ० ५४, भामि० १।३५, । सम० - अम्भस् (पुं०) नारियल का पेड़, - आसार : ओलों की बौछार, जम् पानी, - पात्रिका संन्यासियों का जलपात्र । करङ्ङक: [कस्य रङ्क इव ष० त०] 1. अस्थिपंजर 2. खोपड़ी --प्रेत-रङ्कः करङ्कादङ्कस्थादस्थिसंस्थं स्थपुटगतमपि क्रव्यमव्यग्रमत्ति - मा० ५।१६, ५/१९ 3. ( नारियल का बना ) छोटा पात्र, छोटा बक्स या डिब्बा- जैसा fo 'ताम्बूलकरङ्क बाहिनी' ( कादम्बरी में प्रयुक्त ) । करञ्जः [कं शिरोजलं वा रञ्जयति - तारा०] एक वृक्ष का नाम ( इससे औषधियां तैयार की जाती हैं ) । करट: [ किरति मंदम् - क + अटन् ] 1. हाथी का गंडस्थल 2. कुसुम्भ का फूल 3. कौवा शा० ४।१९ 4. नास्तिक, ईश्वर और वेद में विश्वास न रखने वाला 5. पतित ब्राह्मण । करटक: [ करट -+-कन् ] 1. कौवा मुच्छ० ७ 2. चौर्य कला व विज्ञान का प्रवर्तक कर्णीरथ 3. हि० और पंच० में गीदड़ का नाम । करटिन् (पुं० ) [ करट + इनि ] हाथी -- दिगन्ते श्रूयन्ते मद मलिनगण्डाः करटिन: भामि० ११२ । कर (रे) दु: [ कृ + अटु, के जले वायो वा रेटति क + रेट + कु ] एक प्रकार का पक्षी, सारस । करणम् [ कृ + ल्युट् ] 1. करना, अनुष्ठान करना, सम्पन्न ३२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) करना, कार्यान्वित करना, परहित, संध्या, प्रिय आदि 2. कृत्य, कार्य 3. धार्मिक कृत्य 4. व्यवसाय, धंधा 5. इन्द्रिय-- वपुषा करणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यपातयत् - रघु ० ८।३८, ४२, पटुकरणैः प्राणिभिःमेघ०५, रघु० १४।५० 6. शरीर - उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तव कान्तिमत्तया कु० ४1५ 7. कार्य का साधन या उपाय -- उपमितिकरणमुपमानम् - तर्क सं० 8. ( तर्क में ) साधनविषयक हेतु जिसकी परिभाषा है --- व्यापारवदसाधारणं कारणं करणम् 9. कारण या प्रयोजन 10. ( व्या० में) करण कारक द्वारा अभिव्यक्त अर्थ-साधकतमं करणम् – पा. १।४।४२ या क्रियायाः परिनिष्पत्तिर्यद्वधापारादनन्तरम्, विवक्ष्यते यदा यत्र करणं तत्तदा स्मृतम् 11. ( विधि में) दस्तावेज, तमस्सुक, लिखित प्रमाण - मनु० ८ ५१, ५२, १५४ 12. लयात्मक विरामविशेष, समय काटने के लिए ताली बजाना - कु० ६ |४० 13. ( ज्योतिष में ) दिन का एक भाग ( यह करण गिनती में ११ हैं ) । सम० -अधिपः आत्मा, — ग्रामः इन्द्रियों का समूह - त्राणम् सिर । करण्ड: [ कृ + अण्डन् ] ( बांस की बनी ) छोटी डलिया या टोकरी-करण्डपीडिततनोः भोगिनः - भर्तृ० २२८४, सर्वमायाकरण्डम् १।७७ 2. मधुमक्खियों का छत्ता 3. तलवार 4. एक प्रकार की बत्तख, कारण्डव । करण्डिका, करण्डी (स्त्री० ) [ करण्ड + ङीष्, टापु, ह्रस्व ] बांस का बना छोटा सन्दूक, बांस की पिटारी । कन्धय (वि० ) [ कर + + खश्, मुम् ] हाथ चूमने वाला । करभ: [ कृ + अभच् ] 1. हाथ की पीठ ( कलाई से लेकर नाखूनों तक ) -- मूलहस्त; जैसा कि 'करभोपमोरूः - रघु० ६१८३ में, दे० नी० करभोरु 2. हाथी की सूंड़ 3. हाथी का बच्चा 4. ऊँट का बच्चा 5. ऊँट 6. एक सुगंधित द्रव्य । सम० ऊरू : ( स्त्री० ) वह स्त्री जिसकी अंधाएँ हाथ के अग्रभाग की पीठ से मिलती जुलती हैं - अ निघाय करभोरु यथासुखं ते – श० ३।२१, शि० १०/६९ – अमरु ६९, ( दूसरी व्याख्या के अनुसार) - जिसकी जंघाएँ हाथी के सूंड़ से मिलती जुलती हैं । करभकः [ करभ + कन् ] ऊँट । करभिन् (पुं० ) [ करभ + इनि ] हाथी । करम्ब, करम्बित ( fro ) [ कृ + अम्बच्, करम्ब + इतच् च] 1. मिश्रित, मिला-जुला, चित्रविचित्र, रंगबिरंगा, - प्रकाम - मादित्यमवाप्य कण्टकः करम्बिता मोदभरं विवृण्वतीनै० १।११५, स्फुटतरफेनकदम्बकरम्बितमिव यमुनाजलपूरम् गीत० ११ 2. बैठाया हुआ जड़ा हुआ । करम्भ: (बः ) [ क +रम्भ +घञ ] 1. दही मिला आट या अन्य भोज्यपदार्थ 2. कीचड़ करम्भबालुकाता For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवी। ( २५० ) पान्---मनु० १२१७६, (यहाँ इस शब्द की अनेक ] करीषषा [करीष+क+खच्, मम् ] प्रबल वायु या व्याख्याएँ की गई हैं, परन्तु मेधातिथि इसका अर्थ | आँधी। 'कीचड़ ही मानते हैं)। करीषिणी [ करीष + इनि+ङीप् ] संपत्ति की अधिष्ठात्री करहाटः [कर+हट+णिच+अण् ] 1. एक देश का नाम (संभवतः सतारा जिले का वर्तमान कर्हाद), करहाट- करण (वि०) [ करोति मन: आनुकूल्याय, कृ+ उनन् पतेः पुत्री त्रिजगन्नेत्रकामणम—विक्रमांक ८२ 2. -तारा० ] कोमल, मार्मिक, दयनीय, करुणाजनक, कमल का डंठल या रेशेदार जड़ । शोचनीय--करुणध्वनिः---उत्तर० १, शि० ९।६७, कराल (वि.) [कर+आ+ला+क] 1. भयानक, विफलकरुणरायचरितः-उत्तर० १२८,-णः 1. दया, भीषण, डरावना, भयंकर-उत्तर० ५।५, ६१, मा० ३, अनुकम्पा, दयालुता 2. करुण रस, शोक, रंज (आठ भग० १११२३, २५, २७, रघु० १२।९८, महावी. या नौ रसों में से एक)---पुटपाकप्रतीकाशो रामस्य ३१४८ 2. जंभाई लेता हुआ, पूर्णतया खोलता हुआ करुणो रसः-उत्तर० ३।१, १३, विलपन्....." -उत्तर० ५।६ 3. बड़ा, विस्तृत, ऊँचा, उत्तुंग करुणार्थग्रथितं प्रियां प्रति-रघु० ८७०, । सम० 4. असम, जिसमें झटका या हचकोला लगे, नोकदार ..-मल्ली मल्लिका का पौधा,-विप्रलम्भः (अलं० शा. --वेणी० ११६, मा० ११३८,-ला दुर्गा का प्रचण्ड में) वियुक्तावस्था में प्रेम-भावना । रूप, °आयतनम् ; न करालोपहाराच्च फलमन्यद्विभा- करुणा [ करुण+टाप् ] अनुकंपा, दया, दयालुता–प्रायः व्यते--मा० ४।३३, । सम-दंष्ट्र डरावने दाँतों सर्वो भवति करुणावृत्तिरार्द्रान्तरात्मा - मेघ० ९३, वाला,-बदना दुर्गा की उपाधि । इसीप्रकार 'सकरुण-सदय' तथा 'अकरुण-निर्दय"। करालिकः [ कराणां करसदशशाखानाम् आलि: श्रेणी। सम-आय (वि०) कोमल-हृदय, दया से पसीजा यत्र-ब० स० कप ] 1. वृक्ष 2. तलवार । हआ,संवेदनशील,—निधिः दया का भण्डार,-पर, करिका [ कर+अच्+डी-+कन, टाप् ह्रस्वः ] खरोंच, –मय (वि०) अत्यन्त कृपालु,-विमुख (वि.) नखाघात से हुआ घाव । निर्दय, क्रूर-करुणाविमुखेन मृत्युना-रघु० ८।६७ । कारणी (स्त्री०) [ कर+इनि+डीप ] हथिनी-कथ- | करेटः [ करे-+अट --अच, अलक स०] अंगुली का मेत्य मतिविपर्ययं करिणी पमिवावसीदति--कि० नाखून । २१६, भामि० श२। करेणुः [ +एणु-अथवा के मस्तके रेणुरस्य तारा०] करिन् (पुं०) [ कर+इनि] 1. हाथी 2. (गण०) आठ 1. हाथी,-करेणुरारोहयते निषादिनम्-शि० १२१५, की संख्या। सम-इन्द्रः, ईश्वरः,-वरः बड़ा ५।४८ 2. कणिकार वृक्ष,—णुः (स्त्री०) 1. हथिनी हाथी, विशालकाय हाथी-सदादानः परिक्षीणः शस्त –ददी रसात्पंकजरेणुगन्धि गजाय गण्डूषजलं करेणुः एव करीश्वरः-पंच० २१७०, दूरीकृता: करिवरेण कु० ३।३७, रघु०१६।१६ 2. पालकाप्य की माता। मदान्धबुद्ध्या---नीति० २,-कुंभः हाथी के मस्तक सम०-भः,-सुतः हस्तिविज्ञान का प्रवर्तक पालकाप्य । का अग्रभाग--भामि० २।१७७,--- गजितम् हाथी की। करोटम, करोटिः (स्त्री०) [क---रुट् + अच, इन वा ] चिंघाड़, (बंहितं करिगजितम् -- अमर०),-दंतः हाथी J 1. खोपड़ी--महावी० ५.१९ 2. कटोरा या पात्र । दांत,-पः महावत,-पोतः,शावः, -शावकः हाथी कर्क: +11. केंकडा 2. कर्क राशि, चतुर्थराशि का बच्चा,---बंधः स्तंभ जिससे हाथी बांधा जाय | 3. आग 4. जलकुंभ 5. दर्पण 6. सफ़ेद घोड़ा। -माचलः सिंह,---मखः गणेश का विशेषण,--वरः= कर्कट:, -टक: [ कर्क+अटन, स्वार्थ कन् च] 1. केंकड़ा इन्द्रः, -वैजयन्ती (६०) झंडा जो हाथी के द्वारा ले 2. कर्कराशि, चतुर्थराशि, 3. वृत्त, घेरा। जाया जा रहा हो,-स्कंधः हाधियों का समूह। कर्कटिः,-टी (स्त्री०) [कर+कट+इन्, शक० परकरीरः[ +ईरन ] 1. बांस का अंकूर 2. अंकूर आनि- | रूपम् ; डीप् ] एक प्रकार की ककड़ी। यिरे वंशकरीरनीलै:--शि० ४।१४ 3. कांटेदार वृक्ष कर्कन्धः,-घः कर्क कण्टकं दधाति -धा+क 1. उन्नाव का जो मरुस्थल में पैदा होता है तथा जिसे ऊंट खाते हैं, पेड़-कर्कन्धफलपाकमिश्रपचनामोदः परिस्तीर्यते --पत्रं नैव यदा करीरविपटे दोषो वसन्तस्य किम --उत्तर०४।१, कर्कन्धूनामपरि हिनं रञ्जयत्यग्रसंध्या -भर्तृ० २१९३, तु०-किं पुष्पैः किं फलस्तस्य करी- ---श०४, अने. पा. 2. इस वृक्ष का फल-याज्ञ. रस्य दुरात्मनः, येन वृद्धि समासाद्य न कृतः पत्रसंग्रहः। श२५०। -सुभा०, 4. पानी का घड़ा। कर्कर (वि०) [कर्क+रा+क] 1. कठोर, ठोस 2. दृढ़,-रः करीषः,--षम [ कईषन ] सूखा गोबर । सम-अग्निः | 1. हथौड़ा 2. दर्पण 3. हड्डी, (खोपड़ी का) भग्न सूखे गोबर या कंडों की आग । टुकड़ा, खंड,-मा० ५।१९ 4. फीता या चमड़े की For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५१ ) पेटी । सम-अक्षः हिलती पूंछ वाला (खंजन) ।। कर्ण का जन्म हुआ। (दे० कुंती) बालक उत्पन्न होने पक्षी,- अंगः खंजन -पक्षी, ----अंधुक: अंधा कुआँ, तु०, पर कुन्ती ने अपने बन्धु-बान्धवों की निन्दा तथा लोकअंधकप । लज्जा के कारण उसे नदी में फेंक दिया। धृतराष्ट्र कर्कराटः किक हास रटति प्रकाशयति, कर्क+र+कुञ] के सारथि अधिरथ ने उसे नदी से निकाल कर अपनी तिरछी दृष्टि, कनखी, कटाक्ष । पत्नी राधा को दे दिया। उसने उसे पालपोस कर कर्करालः [कर्कर+अल् +अच्] धुंघराले बाल, चूर्णकुन्तल । बड़ा किया, इसी लिए कर्ण को सूतपुत्र या राधेय कहते कर्करी [कर्कर+डीप्] ऐसा जलपात्र जिसकी तली में हैं। बड़ा होने पर दुर्योधन ने कर्ण को अङ्ग देश का चलनी की भाँति छिद्र हों। राजा बना दिया। अपनी दानशीलता के कारण वह कर्कश (वि.) [कर्क+श] 1. कठोर, कड़ा (विप० कोमल दानवीर कर्ण कहलाया। एक बार इन्द्र (जो अपने या मदु) सुरद्विपास्फालनकर्कशाङ्गुलौ-रघु० ३।५५, पुत्र अर्जुन पर अनुग्रह करने के लिए आतुर रहता था) ऐरावतास्फालनकर्कशेन हस्तेन पस्पर्श तदङ्गमिन्द्रः ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और कर्ण को झांसा --कु० ३।२२, ११३६, शि० १५:१० 2. निष्ठुर, क्रूर, देकर उसके दिव्य कवच व कुंडल हथिया लिये, बदले निर्दय (शब्द, आचरण आदि) 3. प्रचण्ड, प्रबल अत्य- में उसे एक शक्ति या बरछी दे दी। युद्ध की कला धिक तस्य कर्कशविहारसंभवम्--रघु० ९।६८ में अपने आप को दक्ष बनाने की इच्छा से कर्ण ब्राह्मण 4. निराश 5. दुराचारी, दुश्चरित्र, स्वामिभक्ति से हीन बन कर परशुराम के पास गया, वहाँ उसने परशुराम (जैसा कि कोई स्त्री) 6. समझ में न आने योग्य, से अस्त्र-संचालन की शिक्षा प्राप्त की। परन्तु यह भेद दुर्बोध-तर्के वा भृशकर्कशे मम सम लीलायते भारती बहत दिन तक छिपा न रहा। एक बार जब परशुराम -~~-प्रस० ४,-शः तलवार। अपना सिर कर्ण की जंघा पर रख कर सो रहे थे, तो कर्कशिका, कर्कशी [कर्कश+कन्+टाप, इत्वम्, ङीष् वा] एक कीड़ा (कई लोगों के मतानुसार इन्द्र ने कर्ण को जङ्गली बेर, झड़बेर । विफल करने की दृष्टि से 'कीड़े' का रूप धारण किया ककिः कर्क +-इन कर्क राशि, चतुर्थ राशि । था) कर्ण की जंघा को खाने लगा, उसने जंघा में कर्कोटः,-टकः [कर्क +ओट, स्वार्थे कन्] आठ प्रधान साँपों गहरा घाव कर दिया, परन्तु उस पीड़ा से भी कर्ण में से एक (जब राजा नल को कलि के दुष्प्रभाव से टस से मस न हुआ। इस अनुपम सहन शक्ति से नाना प्रकार की यातनाएँ सहन करनी पड़ी तो उस परशुराम को कर्ण की असलियत का पता लग गया, समय कर्कोट ने, जिसे नल ने एक बार आग से बचाया फलतः उसने कर्ण को शाप दे दिया कि आवश्यकता था, ऐसा विकृत कर दिया कि विपत्काल में भी उसे के समय उसकी विद्या-काम नहीं आवेगी। एक कोई पहचान न सके)। दूसरे अवसर पर उसे एक ब्राह्मण ने (जिसकी गोएँ कर्चुरः [कर्ज +ऊर, पृषो० च आदेशः] एक प्रकार का अनजाने में पीछा करते हुए कर्ण द्वारा मारी गई थी) सुगन्धित वृक्ष,--रम् 1. सोना 2. हरताल । शाप दे दिया कि संकट आ पड़ने पर उसके रथ का कर्ण (चुरा० उभ०-कर्णयति-ते, कणित) 1. छेद करना पहिया पृथ्वी खा लेगी। इस प्रकार की कठिनाइयों सूराख करना 2. सुनना (प्रायः 'आ' उपसर्ग के साथ) के होते हुए भी कर्ण ने भीष्म और द्रोण के पतन के आ--,समा-, सुनना, ध्यान से सुनना-सर्वे सवि- पश्चात कौरव सेना के सेनापति के रूप में कौरवस्मयमाकर्णयन्ति---श० १, आकर्णयनुत्सुकहंसनादान् पाण्डवों के युद्ध में अपना युद्ध कौशल खुब दिखाया। —भट्टि० १११७। तीन दिन तक वह पाण्डवों के सामने रणक्षेत्र में डटा कर्णः कर्ण्यते आकर्ण्यते अनेन-कर्ण+अप] 1. कान रहा। परन्तु अन्तिम दिन जब कि उसके रथ का --अहो खलभुजङ्गस्य विपरीतवधक्रमः, कर्णेलगति पहिया पृथ्वी में फँस गया था, वह अर्जुन के द्वारा मारा चान्यस्य प्राणरन्यो वियुज्यते । पंच०११३००, ३०५, गया। कर्ण, दुर्योधन का अत्यन्त घनिष्ठ मित्र था, कर्ण दा ध्यान से सुनना, कर्णमागम् कान तक आना, पाण्डवों का नाश करने के लिए शकुनि से मिल कर ज्ञात होना-रघु० ११९, कर्णे कान में डालना, जो योजनाएँ या षड्यन्त्र दुर्योधन ने किये, उन सब में -. चौर० १०, कर्णे कथयति कान में कहता है, दे० कर्ण उसके साथ था)। सम०-अंजलि: बाहरी कान षट्कर्ण, चतुष्कर्ण 2. गंगाल का कड़ा 3. नाव की पत- का श्रवण-मार्ग,- अनुजः युधिष्ठिर,- अन्तिक (दि०) वार 4. त्रिभुज के समकोण के सामने की रेखा 5. कान के निकट--स्वनसि मृदु कर्णान्तिकचर:-श. महाभारत में वणित कौरव पक्ष का एक महारथी ११२४,-अन्दुः- (स्त्री०) कान का आभूषण, (जब कुन्ती अपने पिता के घर रहती थी, उस समय कान की बाली,- अर्पणम्, कान देना, ध्यान से सुनना सूर्य देव के संयोग से कून्ती की अविवाहितावस्था में । -आस्फाल हाथी के कानों की फड़फड़ाहट,-उत्तंस For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५२ ) कान का आभूषण या (कइयों के मतानुसार) केवल देश की स्त्री-कर्णाटी चिकूराणां ताण्डवकर:-विद्धआभूषण, (मम्मट कहता है कि यहाँ 'कान' का अर्थ शा० ११२९। 'कान में स्थिति है-तु० उसका एत० टिप्पण---कर्णा-कणिक (वि.) [कर्ण+इकन ] 1. कानों वाला 2. पतवार वतंसादिपदे कर्णादिध्वनिनिर्मितः, सन्निधानार्थबोधार्थ धारी,-क: केवट,- का 1. कानों की बाली 2. गांठ, स्थितेष्वेतत्समर्थनम । काव्य०७),-उपकणिका अफ- गोल गिल्टी 3. कमल का फल, कंवलगट्टा 4. एक छोटी वाह (शा. 'एक कान से दूसरे कान तक'),---क्ष्वेड: कूची या कलम 5. मध्यमा अंगुली 6. फल का डंठल (आयु में) कान में लगातार गंज होना,-गोचर 7. हाथी के सूंड की नोक 8. खड़िया। (वि.) जो कानों को सुनाई पड़े, ग्राहः कर्णधार, | कणिकारः [कणि++अण्] 1. कनियार का वृक्ष-निभि-- जप (वि.) (कर्णेजपः भी) रहस्य की बात बत- द्योपरि कर्णिकारमकुलान्यालीयते षट्पदः-विक्रम लाने वाला, पिशन, मुखबिर,-जपः,--जापः झूठी २।२३, ऋतु०६।६, २० 2. कमल का फल, कंवलगद्रा निन्दा करना, चुगली करना, कलंक लगाना,--जाहः --- रम् कनियार का फूल, अमलतास का फूल (यद्यपि कान की जड़-अपि कर्णजाहविनिवेशितानन:-मा० यह फूल बड़े सुन्दर रंग का होता है, परन्तु सुगन्ध न ५५८,-जित् (पुं०) कर्णविजेता, अर्जुन, तृतीय पांडव, होने के कारण इसे कोई पसन्द नहीं करता--तु० कु. ---तालः हाथी के कानों की फड़फड़ाहट, या उससे ३।२८,--वर्णप्रकर्षे सति कर्णिकारं दुनोति निर्गन्धतया उत्पन्न आवाज-विस्तारितः कुंजरकर्णताल:-रघु० स्म चेतः, प्रायेण सामग्रघविधौ गुणानां पराङमुखी ७।३९, ९।७१, शि०१३।३७,-धारः मल्लाह, चालक विश्वसृजः प्रवृत्तिः । --अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव --हि० ३१२, | कणिन (वि.) कर्ण+इनि] 1. कानों वाला 2. लम्बे अविनयनदीकर्णधारकर्ण-वेणी०४-बारिणी हथिनी कानों वाला 3. फल लगा हुआ (जैसे तीर)-(पुं०) --पथः श्रवणपरास,-परम्परा एक कान से दूसरे कान, ____ 1. गधा 2. मल्लाह 3. गाँठों से सम्पन्न बाण । अन्श्रुति-इति कर्णपरम्परया श्रुतम्-रत्न० १, कर्णी (स्त्री०) कर्ण -डीए 1. पुंखदार या विशेष आकार -पालिः (स्त्री०) कान की लौ, पाशः सुन्दर कान, का बाण 2. चौर्य कला व विज्ञान के पिता मूलदेव की .--पूरः 1. (फूलों का बना) कान का आभूषण, कान माता। सम-रयः बन्द डोली, स्त्रियों की सवारी, की बाली-इदं च करतलं किमिति कर्णपूरतामारो- पालकी-कर्णीरथस्थां रघुवीरपत्नीम् --रघु० १४। पितम्-का०६० 2. अशोकवृक्ष,—पूरक: 1. कान की १३, सुतः चौर्यकला व विज्ञान के जन्मदाता मूलबाली 2. कदम्ब वृक्ष 3. अशोक वृक्ष 4. नील कमल, | देव-कर्णीसुतकथेव संनिहितविपुलाचला-का० १९, -प्रान्तः कान की पाली,-भषणम्,-भूषा कान का ! कर्णीसुतप्रहिते च पथि मतिमकरवम्-दश०।। गहना,--मूलम् कान की जड़-रघु० १२।२,-पोटी कर्तनम् [ कृत+ल्युट ] 1. काटना, कतरना-याज्ञ. दुर्गा का एक रूप,-वंशः बाँसों से बना ऊँचा मचान, । २॥ २२९, २८६ 2. रूई कातना ( सधैः कर्तन--जित (वि.) बिना कानों का, (-तः) साँप, J साधनम् )। -विवरम कान का श्रवण-मार्ग,---विष् (स्त्री०) घूध, | कर्तनी (स्त्री०) किर्तन+कीप कैंची। कान का मैल,-वेधः (बालियाँ पहनने के लिए) कानों | कतरिका, कर्तरी (स्त्री०) 1. कची 2. चाक 3. खड्ग, का बींधना,---वेष्टः,-वेष्टनम् कान की बाली, | छोटी तलवार। -शकली (स्त्री०) कान का बाहरी भाग (श्रवण | कर्तव्य (सं० कृ०) [कृ+तव्यत] 1. जो कुछ उचित हो मार्ग पर ले जाने वाला) नै० २।८,-शूल:,-लम् या होना चाहिए,-हीनसेवा न कर्तव्या कर्तव्यो महदाकानों में पीड़ा,-श्रब (वि.) जो सुनाई दे, ऊँची (स्वर) श्रय:-हि० ३।११, मया प्रातर्निःसत्त्वं वनं कर्तव्यम् --कर्णश्रवेऽनिले-मनु० ४११०२,-श्रावः,--संश्रवः --पंच०१ 2. जो काटना या कतरना चाहिए, नष्ट कानों का बहना, कान से मवाद निकलना,--सूः (स्त्री०) करने योग्य-पुत्रः सखा वा भ्राता वा पिता वा यदि कर्ण की माता, कुन्ती,-होन (वि०) कर्णरहित वा गुरुः, रिपुस्थानेषु वर्तन्तः कर्तव्या भूतिमिच्छता (-नः) साँप। ---महा०,-व्यम्, कर्तव्यता, जो होना चाहिए, धर्म, कर्णाकणि (वि.) [कर्णे कर्णे गृहीत्वा प्रवृत्तं कथनम् आभार-कर्तव्यं वो न पश्यामि---कु०६।२१, २०६२, -व्यतिहारे इच्, पूर्वस्य दीर्घश्च] कानों कान, एक याज्ञ० १२३३० । कान से दूसरे कान। (वि.) [कृ+तच] 1. करने वाला, कर्ता, निर्माता, कर्णाटः [कर्ण-अट+अच भारत प्रायोद्वीप के दक्षिण में सम्पादक-व्याकरणस्य कर्ता रचयिता, ऋणस्य कर्ता एक प्रदेश-(काव्यं) कर्णाटेन्दोर्जगति विदुषां कण्ठभूपा- -क़र्ज करने वाला, हितकर्ता=भला करने वाला, त्वमेतु-विक्रमांक० १८५१०२,-टी (स्त्री सुवर्णकर्ता सुनार 2. (व्या० में) अभिकर्ता (करण प For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयोगाया है. उकतानि पर ( २५३ ) कारक का अर्थ) 3. परब्रह्म 4. ब्रह्मा का विशेषण विषवद्यानां कर्म--- मालवि० ४ 4. धार्मिक कृत्य (यह विष्णु या शिव चाहे, नित्य हो, नैमित्तिक हो या काम्य हो) 5. विशिष्ट कत्रों (स्त्री०) कर्त+डीप्] 1. चाकू 2. कैची। कृत्य, नैतिक कर्तव्य 6. धार्मिक कृत्यों का अनुष्ठान कर्दः, कदंटः [कर्द +-अच्, कर्द+-अट् + अच्, पररूपम्] (कर्मकाण्ड) जो ब्रह्मज्ञान या कल्पना प्रवण धर्म का कीचड़। विरोधी है (विप० ज्ञान)--रघु० ८१२० 7. फल, कर्दमः [कर्द +अम] 1. कीचड़, दलदल, पंक-पादौ नूपुर परिणाम 8. नैसर्गिक या सक्रिय सम्पत्ति (धरती के लग्नकर्दमधरी प्रक्षालयन्ती स्थिता --- मच्छ० ५।३५, आश्रय के रूप में) 9. भाग्य, पूर्वजन्म के किये हुए पथश्चाश्यानकर्दमान्-रधु० ४।२४ 2. कूड़ा, मल कर्मों का फल- भर्त० २।४९ 10. (व्या०) कर्म का 3. (आलं०) पाप, मम् मांस । सम०-आटक: उद्देश्य-कर्तरीप्सिततमं कर्म-पा० ११४७९ मलपात्र, मलमार्ग आदि । 11. (वैशे० द० में) गति या कर्म जो सात द्रव्यों में एक कर्पटः,-टम कृ-विच् = कर स च पटश्च कर्म० स०] माना जाता है, (परिभाषा इस प्रकार है:- एकद्रव्य1. पुराना, जीर्ण-शीर्ण या थेगली लगा कपड़ा 2. कपड़े मगणं संयोगविभागेष्वनपेक्षकारणं कर्म- वैशे० स०, का टुकड़ा, धज्जी 3. मटियाला या लाल रंग का कर्म पाँच प्रकार का है-उत्क्षेपणं ततोऽवक्षेपणमाकूञ्चनं कपड़ा। तथा, प्रसारणं च गमनं कर्माण्येतानि पञ्च च-भाषा. कर्पटिक,-न् (वि.) [कर्पट । ठन्, इनि वा जीर्ण शीर्ण ६। सम-अक्षम (वि.) कार्य करने में असमर्थ, कपड़ों (चिथड़ों) से ढका हुआ। -अङ्गम कार्य का अंश, यज्ञीय कृत्य का भाग (जैसा कर्पणः कृप् + ल्युट्] एक प्रकार का हथियार-चापचक्र- कि दर्श यज्ञ का प्रयाज),-अधिकार धर्मकृत्यों को कणपकर्पणप्रासपटिश आदि-दश० ३५। सम्पन्न करने का अधिकार,-अनुरूप (वि.) 1. किसी कर्परः (कृप् +-अरन् बा०] 1. कड़ाह, कड़ाही 2. बर्तन विशेष कार्य या पद के अनुसार 2. पूर्व जन्म में किये 3. ठीकरा, टूटे बर्तन का टुकड़ा-जैसा कि घट कर्पर में हुए कर्मों के अनुसार, --अन्तः 1. किसी कार्य या व्यव- जीयेत येन कविना यमकः परेण तस्मै वहेयमुदकं साय की समाप्ति 2. कार्य, व्यवसाय, कार्य सम्पादन घटकपरेण-घट० २२4. खोपड़ी 5. एक प्रकार का 3. कोष्ठागार, धान्यागार--मनु० ७१६२, (कर्मान्तः हथियार। इक्षुधान्यादिसंग्रहस्थानम्--कुल्लू ०) 4. जुती हुई भूमि, कासः,---सम,—सी कृ-1-पास, स्त्रियां डीष्] कपास का - अन्तरम् 1. कार्य में भिन्नता या विरोध 2. तपस्या, वृक्ष। प्रायश्चित्त 3. किसी धार्मिक कृत्य का स्थगन,-अन्तिक कपूरः, रम् [कृप्+ऊर कपूर । सम..--खंड: 1. कपूर | (वि.) अन्तिम (—क:) सेवक, कार्मिक,--आजीवः का खेत 2. कपूर का टुकड़ा, -तैलम् कपूर का तेल। किसी पेशे से (जैसे शिल्पकार का) अपनी कर्फरः [क+विच्=कर, फल-+ अच्, रस्य ल:, कीर्यमाणः । जीविका चलाने वाला,-आत्मन् (वि.) कार्य के फल:प्रतिबिम्बो यत्र ब० स०] दर्पण । नियमों से युक्त, सक्रिय---मनु० २२,२३; (पु.) कई (वि०) कर्व (4)+उन रंगबिरंगा, चित्तीदार आत्मा,-इन्द्रियम् काम करने वाली इन्द्रियाँ जो ज्ञाने-~-याज्ञ० ३।१६६। न्द्रियों से भिन्न हैं (वे यह है-बाकपाणिपादपायपकर्बुर (वि०) [कर्व ()+उरच्] 1. रंगविरंगा, चित- स्थानि-मनु० ११२९१, 'इन्द्रिय' शब्द के नी० भी कबरा क्वचिल्लसद्घननिकुरम्बकर्बुर:--शि० १७१५६ दे०,- उदारम् साहसिक या उदार कार्य, उच्चाश2. कबूतर के रंग का, सफेद सा, भूरा-पवनर्भस्म- यता, शक्ति, उद्युक्त (वि.) व्यस्त, संलग्न, सक्रिय, कपोतकर्बुरम् कु० ४।२७,-- २: चित्रविचित्र रंग सोत्साह,-करः 1. भाड़े का मजदूर (वह सेवक जो 2. पाप 3. भूत, पिशाच 4. धतूरे का पौधा,-रम् दास न हो)-कर्मकराः स्थपत्यादयः-- पंच १, शि० ___ 1. सोना, 2. जल। १४।१६ 2. यम,-कर्त (पुं०) (व्या० में) कर्ता जो कवुरित (वि०) [कर्बुर+इतच रंगबिरंगा-उत्तर० ६।४। साथ ही साथ कर्म भी है-उदा० पच्यते ओदनः, कर्मठ (वि.) [ कर्मन्+अठच् ] 1. कार्यप्रवीण, चतुर इसकी परिभाषा यह है:--क्रियमाणं तु यत्कर्म स्वयमेव 2. परिश्रमी 3. केवल धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न, प्रसिध्यति, सुकरैः स्वर्गुणैः कर्तुः कर्मकर्तेति तद्विदुः । ___-यज्ञ निदेशक । -काण्डः,—उम् वेद का वह विभाग जो यज्ञीय कृत्यों, कर्मण्य (वि०) [कर्मन् + यत् कुशल, चतुर,—ज्या मजदूरी, संस्कारों तथा उनके उचित अनुष्ठान से उत्पन्न फल __-ण्यम् सक्रियता। से सम्बन्ध रखता है,-कार: 1. जो किसी व्यवसाय कर्मन् (नपुं०) [कृ+ मनिन्] 1. कृत्य, कार्य, कर्म 2. कार्या- को करता है, कारीगर, शिल्पकार (जो भाड़े पर काम न्वयन, सम्पादन 3. व्यवसाय, पद, कर्तव्य-संप्रति करने वाला न हो) 2. कोई भी मजदूर (चाहे भाड़े For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५४ ) का हो या बिना भाड़े का) 3. लहार,-हरिणाक्षि नामक पवित्र घास,-युगम् चौथा (वर्तमान) युग, कटाक्षेण आत्मानमवलोकय, न हि खङ्गो विजानाति अर्थात् कलियुग,-योगः 1. सांसारिक तथा धार्मिक कर्मकारं स्वकारणम् । उद्भट 4. साँड़,-कारिन् (पुं०) अनुष्ठानों का सम्पादन 2. सक्रिय चेष्टा, उद्योग,--मशः मजदूर कारीगर, कार्मुक:-कम् एक मजबूत धनुष, भाग्य जो पूर्व जन्म में किये गये कार्यों का अनिवार्य ---कोलकः धोबी,-क्षम (वि.) कोई कार्य या कर्तव्य परिणाम है,-विपाकः=कर्मपाक,-शाला कारखाना, सम्पादन करने के योग्य,-आत्मकर्मक्षम देहं क्षात्रो धर्म -शील,-शूर (वि०) कर्मवीर, उद्योगी, परिश्रमी, इवाश्रित:---रघु० १११३,-क्षेत्रम् धार्मिक कृत्यों की --संग सांसारिक कर्तव्य तथा उनके फलों म आसक्ति । भूमि अर्थात् भारतवर्ष, तु० कर्मभूमि,—ाहीत (वि०) -सचिवः मंत्री,-संन्यासिकः,-संन्यासिन (पुं०) कार्य करते समय पकड़ा हुआ (जैसे कि चोर),-घात: 1. धर्मात्मा पुरुष जिसने प्रत्येक सांसारिक, कार्य से कार्य को छोड़ बैठना या स्थगित कर देना,-चं (चां) विरक्ति पा ली है 2. वह संन्यासी. जो कर्म फल का डाल: 1. काम करने में नीच, नीच या निकृष्ट कर्म करने ध्यान न करते हुए धर्मानुष्ठानों का सम्पादन करता है, वाला व्यक्ति, वशिष्ट उनके प्रकारों का उल्लेख करता - साक्षिन् (पु०) 1. आँखों देखा गवाह, प्रत्यक्षदर्शी है-असूयकः पिशुनश्च कृतघ्नो दीर्घरोषकः, चत्वारः साक्षी-कु० ७.८३ 2. जो मनुष्य के शुभाशुभ कर्मों कर्मचाण्डाला: जन्मतश्चापि पञ्चमः। 2. जो अत्याचार को प्रत्यक्ष देखता रहता है (इस प्रकार के नौ देवता पूर्ण कार्य करता है-उत्तर० ११४६ 3. राहु,--चोदना हैं जो मनुष्य के समस्त कार्यों को प्रत्यक्ष देखते हैं 1. यज्ञानुष्ठान में प्रेरित करने वाला प्रयोजन –तथाहि--सूर्यः सोमो यम: कालो महाभूतानि पंच 2. धार्मिक कृत्य की विधि,-ज्ञः धार्मिक अनुष्ठानों से च, एते शुभाशुभस्यह कर्मणो नव साक्षिणः ।-सिद्धिः परिचित,-त्यागः सांसारिक कर्तव्य और धर्मानुष्ठान (स्त्री०) अभीष्ट कार्य की सिद्धि, सफलता--कु० को छोड़ देना,--तुष्ट (वि.) कार्य करने में भ्रष्ट, ३।५७,-स्थानम् सार्वजनिक कार्यालय, काम करने दुष्ट, दुराचारी अनादरणीय,-दोषः 1. पाप, दूर्व्यसन का स्थान । -मन० ६१६१, ९५ 2. ऋटि, दोष, (कार्य करने में) | कर्मन्दिन् [ कर्मन्द-इनि ] संन्यासी, धार्मिक भिक्ष । भारी भूल-मनु० १।१०४ 3. मानवी कृत्यों के दुष्परि- कारः [कर्मन्+ +अण् ] लुहार याज्ञ० १११६३, णाम 4. निद्य आचरण, धारयः समास, तत्पुरुष का ___मनु० ४।२१५ । एक भेद (इसमें प्रायः विशेषण व विशेष्य का समास मिन (वि.) [ कर्मन --इनि] 1. कार्य करने वाला, होता है), -- तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः क्रियाशील, कार्यरत 2. किसी कार्य या व्यवसाय में - उद्भट, -- ध्वंस: 1. धर्मानुष्ठानों से उत्पन्न फल का व्याप्त 3. जो फल की इच्छा से धर्मानुष्ठान करता नाश 2. निराशा,नामन् (व्या० में) कृदन्तक संज्ञा, है—कमिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जन -नाशा काशी और विहार के मध्य बहने वाली एक -भग०६।४६; (पुं०) कारीगर, शिल्पकार –याज्ञ. नदी,-निष्ठ (वि०) धर्मानुष्ठान के सम्पादन में | २।२६५ । संलग्न,--पथः 1. कार्य की दिशा या स्रोत 2. धर्मा- कमिष्ठ (वि०) [ कमिन्-+इष्ठन्, इनो लुक ] व्यापारनुष्ठान का (कर्म) मार्ग (विप० ज्ञान मार्ग),–पाकः कुशल, चतुर, परिश्रमी। कार्यों की परिपक्वावस्था, पूर्वजन्म में किये गये कर्मों कर्वटः [ कवं+अटन् ] बाजार, मंडी या किसी जिले का फल,---प्रवचनीय कुछ उपसर्ग तथा अव्यय जो (जिसमें २०० से ४०० तक गांव हों) का मुख्य नगर । क्रियाओं के साथ संबद्ध न होकर केवल संज्ञाओं का | कर्ष: [ कृष-+अच, धन वा ] 1. रेखा खींचना, घसीटना, शासन करते हैं उदा० 'आ मुक्ते संसारः' में 'आ' खींचना-याज्ञ०२।२१७ 2. आकर्षण 3. हल जोतना कर्मप्रवचनीय है, इसी प्रकार 'जपमनु प्रावर्षत में 'अन', 4. हल-रेखा, खाई 5. खरोंच,-र्षः,-बम--चाँदी या तु० उपसर्ग, गति या निपात,-न्यासः धनिष्ठानों के सोने का १६ माशे का वजन । सम-आपण== फलों का परित्याग, फलम् पूर्व जन्म में किये हए कार्षापण। कर्मों का फल या पारितोषिक (दुःख, सुख),बन्धः, | कर्षक (वि०) [ कृष्+ण्वुल ] खींचने बाला,-कः बन्धनम जन्म-मरण का बन्धन, धमानुष्ठानों के फल | किसान, खेतिहर...याज्ञ०२.२६५ चाहे शुभ हों या अशुभ (इनके कारण आत्मा सांसा- ! कर्षणम् [ कृष+ ल्युट] 1. रेखा खींचना, घसीटना, रिक विषय-वासनाओं में लिप्त रहता हैं),---भूः, । खींचना, झुकाना, (धनुप का)---भज्यमानमतिमात्र—भूमिः (स्त्री०) 1. धर्मानुष्ठान की भूमि-अर्थात कर्पणात्– रघु० १११४६ ७६२ 2. आकर्षण भारतवर्ष 2. जुती हुई भूमि, मीमांसा संस्कारादिक 3. हल जोतना, खेती करना 4. क्षति पहुँचाना, कष्ट अनुष्ठानों का विचारविमर्श या मीमांसा,--मूलम् कुश देना, पीडित करना-मनु० ७११२ । For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५५ ) कर्षिणी [ कृष-णिनि+ङीप् ] लगाम का दहाना । भेदः] 1. मधुर, और अस्पष्ट (अस्पष्टमधुर)-कर्णे कलं कर्ष : (स्त्री०) [ कृष्-+ऊ ] 1. हल-रेखा, खूड 2. नदी किमपि रौति-हि. १८१, सारसै: कलनिस्दै:-रघु० 3. नहर (पु.) 1. सूखे कंडों की आग 2. कृषि, १०४१, ८1५९, मालवि० ५।१, 2. मन्द मधुर (स्वर) खेती 3. जीविका। 3. कोलाहल करने वाला, झनझनाता हुआ, टनटन करता कहिचित् (अव्य०) [ किम् +हिल, कादेशः,+चित् । हुआ-भास्वत्कलनुपुराणां-रघु० १६.१२, कलकिंकिणीकिसी समय, (प्राय: 'न' के साथ प्रयोग) मनु० २१४, रवम्-शि० ९१७४, ८२, कलमेखलाकलकल: ६।१४, ४०, ९७, ४।७७, ६५० । ४।५७ 4. दुर्बल 5. अनपका, कच्चा ,---लः मन्द या कल i (भ्वा० आ०-कलते, कलित) 1. गिनना, 2. मृदु और अस्पष्ट स्वर,-लम् वीर्य । सम-अडकुरः शब्द करना। सारस पक्षी,—अनुनादिन् (पुं०) 1. चिड़िया 2. मधुii(चुरा० उभ०-कलयति-ते, कलित) 1. धारण करना, मक्खी 3. चातक पक्षी,- अविकल: चिड़ा,- आलाप: रखना, ले जाना, संभालना, पहनना, करालकरकन्दली- 1. मधुर गुंजार 2. मधुर और रुचिकर प्रवचन-स्फुरकलितशस्त्रजालैर्बलै: -उत्तर० ५।५, म्लेच्छनिवह- कलालापविलासकोमला करोति रागं हृदि कौतुकानिधने कलयसि करवालम्-गीत० १, कलितललित- धिकम् --का० २ 3. मधुमक्खी,-- उत्ताल (वि०) वनमालः; हलं कलयते--त०, कलयवलयश्रेणी पाणी ऊँचा, तीक्ष्ण,--कण्ठ (वि०) मधुर कंठ वाला (--ठः) पदे कुरु नूपुरी-१२, शा० ४।१८ 2. गिनना, (स्त्री०-ठी) 1. कोयल, 2. हंस, राजहंस 3. कबूहिसाब लगाना-कालः कलयतामहम्-भग० १०।३० तर,- कल: 1. भीड़ की मर्मरध्वनि या भनभनाहट 2. 3. धारण करना, लेना, रखना, अधिकार में करना अस्पष्ट या संक्षुब्ध ध्वनि-चलितया विदधे कलमेख----कलयति हि हिमांशोनिष्कलङ्कस्य लक्ष्मीम--मा० लाकलकलोऽलकलोलशान्यया-शि०६।१४, नेपथ्ये १।२२, शि० ४।३६, ९।५९ 4. जानना समझना, कलकल; (नाटकों में), भर्त० १२७. ३७, अमरु २८ पर्यवेक्षण, ध्यान देना, सोचना--कलयन्नपि सन्यथो- 3. शिव, कूजिकाः --कणिका छिनाल स्त्री, घोषः ऽवतस्थे-शि० ९४८३, कोपितं विरहखेदितचित्ता कान्त कोयल, तूलिका लम्पट या छिनाल स्त्री, धौतम मेव कलयन्त्यनुनिन्ये . १०१२९, नै० २।६५, ३११२ 1. चाँदी-शि० १३१५१४१४१ 2. सोना-विमलकलमा०२।९ 5. सोचना, आदर करना, खयाल करना धौतत्सरुणा खङगेन --वेणी० ३ °लिपिः (स्त्री०) -कलयेदमानमनसं सखि माम् ---शि० ९।५८, ६।५४, 1. सुनहरी पांडु लिपि की जगमगाहट 2. स्वर्णाक्षर शा० ४।१५, व्यालनिलयमिलनेन गरलमिव कलयति -मरकतशतकललितकलधौतलिपेरिव रतिजयलेखम मलयसमीरम्-गीत० ४७ 6. सहन करना, प्रभा --गीत०८,—ध्वनि: 1. मन्दमधुर ध्वनि 2. कबूतर वित होना ---मदलीलाकलितकामपाल-मा०८, धन्यः 3. मोर 4. कोयल,--- नादः मन्द मधुर स्वर, भाषणम् कोऽपि न विक्रियां कलयति प्राप्ते नवे यौवने-भर्त. तुतलाना, --बालकलरव=बचपन की चहक,—रयः १९७२ 7. करना, सम्पादन करना 8. जाना 9. 1. मन्द मधुर ध्वनि 2. कबूतरी 3. कोयल,-हंसः आसक्त होना, लेटजाना, सुसज्जित होना, । आ-1. 1. हंस, राजहंस-वधुदुकलं कलहंसलक्षणम् -कु० पकड़ना, ग्रहण करना--शि०७।२१,-कुतूहलाकलित ५।६७ 2. बत्तख, पुकारण्डव, भट्टि० २०१८, रघु० हृदया—का० ४९ 2. खयाल करना, आदर करना, ८।५९ 3. परमात्मा। जानना, ध्यान देना-स्पर्शमपि पावनमाकलयन्ति । कलङ्कः [ कल+क्विप्कल् चासौ अङ्कश्च कर्म० स०] --का० १०८, खिन्नमसूयया हृदयं तवाकलयामि 1. धब्बा, चिह्न, काला धब्बा (शा०) रघु० १३।१५, -----गीत. ३ 3. बांधना, जकड़ना, बंधन युक्त होना, 2. (आलं.) दाग, बट्टा, गहीं, बदनामी -व्यपनयतु रोकना या इकट्ठे पकड़ना--शि० ११६, ९।४५, का. कलंडू स्वस्वभावेन सैव मृच्छ० १०॥३४, रघु० ८४, ९९ 4. प्रसार करना, फेंकना-शि० ३१७३ 5. १४१३७, इसी प्रकार-कुल° 3. अपराध, दोष - भर्त. हिलाना, परि-, 1. जानना, समझना, खयाल करना, ३१४८ 4. लोहे का जंग, मोर्चा । आदर करना 2. जानकार होना, याद करना वि--, | कलछूषः (स्त्री०-षी) [करेण कषति हिनस्ति-कल+ अपांग करना, विकलांग करना. विकृत करना, सम-, कष् +खच, मुम् सिंह, शेर । 1. जोड़ना, एकत्र करना तु० संकलन 2. खयाल | कलङ्कित (वि.) [ कलङ्क इतच् ] 1. धब्बेदार, लांछित, करना, आदर करना। बदनाम। iii (चुरा० उभ० –कालयति-ते, कलित) प्रोत्सा- कलङकुरः कं जलं लङ्कयति भ्रामयति, क+लङ्क+णिच् हित करना, हाँकना, प्रेरणा देना। +उरच ] जलावर्त, भंवर। कल (वि.) [ कल् (कड्)+घञ्, अवृद्धिः, डलयोर- | कलजः [ के लञ्जयति-क-लज्+अण् ] 1. पक्षी For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २५६ ) 2. विषैले शस्त्र से आहत मृग आदि जन्तु – जम् ऐसे जन्तु का मांस । कलत्रम् [ गड्+अत्रन्, गकारस्य ककारः, डलयोरभेदः ] 1. पत्नी, वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिणः - रघु० ८/८३, १।३२, १२।३४, यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम् भर्तृ० २६८ 2. कूल्हा या नितम्ब – इन्दुमूर्तिमिवोद्दामन्मथ विलासगृहीतगुरुकलत्राम् का० १८९ ( यहाँ 'कलत्रम्' के दोनों अर्थ हैं) कि० ८1९, १७ 3. राजकी दुर्ग । कलनम् [ कल् + ल्युट् ] 1. धब्बा, चिह्न 2. विकार, अपराध, दोष 3. ग्रहण करना, पकड़ना, थामना कलनात्सर्वभूतानां स कालः परिकीर्तितः 4. जानना, समझना, बोध पाना 5. ध्वनि करना, ना 1. लेना, पकड़ना, थामना काल कलना आन० २९ 2. करना, क्रियान्वयन 3. वश्यता 4. समझ, समवबोध 5. पह नना, वसन-धारण करना । कलविका ! कल + दा + क + कन्+टाप्, इत्वम्, पुषो० म् ] बुद्धिमत्ता, प्रज्ञा । कलभः (स्त्री० -- भी ) [ कल् + अभच्, करेण शुण्डया भाति भा+क रस्य लत्वम् – तारा०] 1. हाथी का बच्चा, वन पशु- शावक - ननु कलभेन यूथपते रनुकृत्तम् - मालवि० ५, द्विपेन्द्रभावं कलभः श्रयन्निव रघु० ३।३२, ११३९, १८/३७ 2. तीस वर्ष का हाथी 3. ऊँट का बच्चा, जन्तु शावक । कलमः [कल् + अम् ] 1. मई-जून में बोया हुआ चावल जो दिसम्बर-जनवरी में पक जाता है-सुतेन पाण्डोः कलमस्य गोपिकाम् कि० ४१९, ३४, कु० ५।४७, रघु० ४ | ३७ 2. लेखनी, काने की कलम 3. चोर 4. दुष्ट, बदमाश । कलम्बः [कल् + अम्बच् ] 1. तीर 2. कदम्ब वृक्ष । कलम्बुटम् [ क + लम्ब् + उटन् ] (ताजा) मक्खन नवनीत । कलल:,—–लम् [कल् + कलच्] भ्रूण, गर्भाशय । कलविङ्कः, , : [ कल् + वङक् + अच्, पृषो० इत्वम् ] 1. चिड़िया, मनु० ५।९२, याज्ञ० १।१७४ 2. धब्बा, दाग या लांछन । कलशः, --- सः [केन जलेन लश ( स ) ति - - तारा ० ] ( - शम्, -सम् ) घड़ा जलपात्र, करवा, तस्तरी – स्तनौ मांसग्रन्थी कनककलशावित्युपमिती - भर्तृ० ३।२०, १ ९७ स्तनकलस:- अमरु ५४ जन्मन्, 'उद्भवः अगस्त्य मुनि । कलशी (सी) (स्त्री० ) [ कलश ( स ) + ङीष् ] घड़ा, करवा । सम० - सुतः अगस्त्य । कलहः- हम् [ कलं कामं हन्ति - हन् +ड तारा० ] 1. झगड़ा, लड़ाई - भिड़ाई - ईर्ष्याकलहः भर्तृ० १ २, लीला शृंगार० ८, इसी प्रकार शुष्ककलह:, प्रणय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलहः आदि 2. संग्राम, युद्ध, 3. दाँव, धोखा, मिथ्यापन 4. हिंसा, ठोकर मारना पीटना आदि मनु० ४। १२१ ( यहाँ मेघातिथि और कुल्लूक, कलह शब्द की व्याख्या क्रमशः 'दंडांदिनेतरेतरताडनम्' और 'दंडादंडयादि करते हैं) । सम० - अन्तरिता अपने प्रेमी से झगड़ा हो जाने के कारण उससे वियुक्त ( जो क्रुद्ध भी है साथ ही अपने किये पर खिद्यमाना भी), सा० द० इस प्रकार परिभाषा करता है चाटुकारमपि प्राणनाथं रोषादपास्य या, पश्चात्तापमवाप्नोति कलहान्तरिता तु सा । ११७ - अपहृत (वि०) बलपूर्वक अपहरण किया गया, प्रिय (वि०) जो लड़ाई-झगड़ा कराने में प्रसन्न होता है - ननु कलहप्रियोऽसि - मालवि० १, ( --- यः ) नारद की उपाधि । कला [कल्+कच्+टाप् ] 1. किसी वस्तु का छोटा खण्ड, टुकड़ा, लवमात्र, कलामप्यकृतपरिलम्बः का० ३०४ सर्वे ते मित्रगात्रस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् - पंच० २५९, म २८६, ८।३६ 2. चन्द्रमा की एक रेखा ( यह १६ अंश हैं) जगति जयिनस्ते ते भावा नवेन्दुकलादयः - मा० १।३६ कु० ५।७२, मेघ० ८९3. मूलधन पर व्याज ( लिये हुए धन के उपयोग के विचार से) - घनवीथिवीथिमवतीर्णवतो निधिरम्भसामुपचयाय कला : -- शि० ९ ३२, ( यहाँ कला का अर्थ रेखा भी है) 4. विविध प्रकार से आकलित समय का प्रभाग ( एक मिनट, ४८ सैकण्ड या ८ सैकण्ड ) 5 राशि के तीसवें भाग का साठवाँ अंश, किसी कोटि का एक अंश 6. प्रयोगात्मक कला ( शिल्पकला, ललित कला ) इस प्रकार की ६४ कलाएँ हैं, जैसे कि संगीत, नृत्य आदि 7. कुशलता, मेधाविता 8. जालसाजी, धोखादेही 9. (छन्द: शास्त्र में ) मात्रा छंद 10. किश्ती 11. रज:स्राव । सम० - अन्तरम् 1. दूसरी रेखा 2. ब्याज, लाभ - मासे शतस्य यदि पञ्चकलान्तरं स्पात् — लीला०, ---अयनः कलाबाज, नट, तलवार की तीक्ष्ण धार पर नाचने वाला, आकुलम् भयंकर विष – केलि ( वि० ) छबीला, विलासी (-लिः) काम का विशेषण, -क्षयः ( चन्द्रमा का ) क्षीण होना- रघु० ५।१६ - धरः, -निधिः - पूर्णः चन्द्रमा, अहो महत्त्वं महतामपूर्वं विपत्तिकालेऽपि परोपकार:, यथास्यमध्ये पतितोऽपि राहोः कलानिधिः पुण्यचयं ददाति । उद्भट - भूत् (पुं०) चन्द्रमा, इसी प्रकार कलावत् (पुं० ) - कु० ५।७२ | कलाव:, - दकः [ कला + आ + दा+क ] सुनार । कलापः [ कला -- आप् + अण, घञ्ञ ] 1. जत्था, गठरी -- मुक्ताकलापस्य च निस्तलस्य कु० १४३, मोतियों का हार - रशनाकलापः -- घुंघरूदार मेखला 2. वस्तुओं का समूह या संचय - अखिल कलाकलापालोचन - का० ७ 3. मोर की पूँछतं मे जातकलापं प्रेषय मणिकण्ठकं For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५७ ) शिखिनम-विक्रम० ५.१३, पंच०२१८० ऋतु०१।१६, कलिङ्गाः (ब० व०) [कलि+गम् +ड] एक देश और २११४ 4. स्त्री की मेखला या करधनी (प्राय: 'कांची' उसके निवासियों का नाम; उत्कलादर्शितपथः कलिङ्गाऔर 'रशना' आदि के साथ) भर्तृ० ११५७, ६७, ऋतु० भिमुखो ययौ--- रघु०४।३८, (तंत्रों में इसकी स्थिति ३।२०, मच्छ० १२२७ 5. आभूषण 6. हाथी के गले इस प्रकार बताई गई है-जगन्नाथात्समारभ्य कृष्णाका रस्सा 7. तरकस 8. बाण 9. चन्द्रमा 10. चलता- तीरान्तगः प्रिये, कलिङ्गदेशः संप्रोक्तो वाममार्गपरायणः । पुरजा, बुद्धिमान् 11. एक ही छंद में लिखी गई कलिजः [क+ल । अण नि० साधु०] चटाई, परदा । कविता,—पी घास का गट्ठर । कलित (वि.) [कल Fक्त ] थामा हुआ, पकड़ा हुआ, कलापकम् [ कलाप+कन् ] एक ही विषय पर लिखें गये लिया हुआ, दे० कल। चार श्लोकों का समह (जो व्याकरण की दृष्टि से | कलिन्दः [कलि+दा+खच, मम ] 1. वह पर्वत जिससे एक ही वाक्य हो) (चतुर्भिस्तु कलापकम् ) उदाहरण ___ यमुना नदी निकलती है 2. सूर्य । सम०-कन्या, के लिए दे०, कि० ३।४१, ४२, ४३. ४४ 2. वह ऋण -जा, तनया, नन्दिनी यमुना नदी की उपाधियाँ जिसका परिशोध उस समय किया जाय जब मोर। -कलिन्दकन्या मथुरां गतापि-रघु० ६१४८, कलिन्दअपनी पूंछ फैलावे,—क: 1. एक जत्था या गट्ठर जानीर-भामि०२।१२०, गीत० ३,-गिरिः कलिन्द 2. मोतियों की लड़ी 3. हाथी की गर्दन के चारों ओर नाम का पर्वत, जा, तनया, नंदिनी यमना नदी लिपटने वाला रस्सा 4. मेखला या करधनी की उपाधियाँ-भामि० ४।३, ४ । (=कलाप) शि० ९:४५ 5. (संप्रदायद्योतक) | कलिल (वि.) [कल +इलच ] 1. ढका हुआ, भरा हुआ मस्तक पर तिलकविशेष । 2. मिला, घुला-मिला-तत एवाक्रन्दकलिलः कलकल:कलापिन् (पुं०) [कलाप+ इनि ] 1. मोर-कलाविलापि महावी० १3. प्रभावित, बशर्ते कि,—अकल्ककलिल: कलापिकदम्बकम् शि० ६।३१, पंच० २६८०, रघु० शि० १९।९८ 4. अभेद्य, अछेद्य, लम् 1. बड़ा ढेर, ६।९ 2. कोयल 3. अंजीर का वृक्ष (प्लक्ष)। अव्यवस्थित राशि-विशसि हृदय क्लेशकलिलं-भर्तृ० कलापिनी कलापिन् + डीप ] 1. रात 2. चाँद। ३।३४ 2. गड़बड़, अव्यवस्था-यदा ते मोहकलिलं कलायः [ कला+अय---अण ] मटर, शि० १३।२१ । बुद्धिय॑तितरिष्यति-भग० २।५२। कलाविकः [ कलम आविकायति विशेषेण रौति-कल कलुष (वि०) [ कल+उषच् ] मलिन, गन्दा, कीचड़ से +-आ+वि+के+क] मुर्गा। भरा हुआ, मैला-गंगा रोध:पतनकलुषा गृहृतीव कलाहकः [कलम् आहुन्ति-कल+आ+ हन्+3+कन् ] प्रसादम्-विक्रम० ११८, कि० ८।३२, घट० १३ 2. एक प्रकार का बाजा। श्वासावरुद्ध, बेसुरा, भरीया हुआ-कण्ठः स्तम्भितबाकलिः [ कल- इनि ] 1. झगड़ा, लड़ाई-भिड़ाई, असहमति, ष्पवृत्तिकलुषः-श० ४१६ 3. धुंधला, भरा हुआ मतभेद- शि० ७।५५. कलिकामजित्-रघु० ९।३३, ६।४ 4. क्रुद्ध, अप्रसन्न, उत्तेजित-- भावावबोधकलुषां अमरु १९ 2. संग्राम, युद्ध 3. सृष्टि का चौथा यग, दयितेव रात्रौ- रघु० ५।६४ (मल्लि. 'कलुष' का कलियुग (इस यग की आय ४३२००० मानव वर्ष है अर्थ 'अयोग्य' और 'अक्षम' मानता है) 5. दुष्ट, पापी, तथा ईसापूर्व ३१०२ वर्ष की १३ फरवरी को इसका बुरा 6. क्रूर, निन्दनीय रघु० १४१७३ 7. अन्धकार आरंभ हुआ था) मनु० ११८६, ९।३०१,-कलिवानि युक्त, अन्धकारमय 8. निठल्ला, आलसी,—षः भैंसा, इमानि आदि० 4. मूर्तरूप कलियग (इसने नल को -षम् 1. गन्दगी, मैल, कीचड़-विगतकलुषमम्भः यातना दी थी) 5. किसी वर्ग का निकृष्टतम व्यक्ति -ऋतु० ३।२२ 2. पाप 3. क्रोध । सम०-योनिज 6. विभीतक या बहेड़े का वृक्ष 7. पासे का पहल जिस हरामी, वर्णसंकर--- मनु० १०५७, ५८।। पर एक का अंक अंकित है 8. नायक 9. बाण कलेवरः,-रम् [कले शुक्रे वरं श्रेष्ठम्-अलुक स० ] ---(स्त्री०) बिना खिला फूल । सम०--कारः, शरीर,-यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगहम-भर्तृ० ३३८८, -----कारकः,-क्रियः नारद का विशेषण, --द्रमा, हि० ११४७, भग०८१५, भामि० १११०३, २१४३ । -वृक्षः विभीतक या बहेड़े का वृक्ष,-युगम् कलिकाल, कल्कः,-ल्कम [ कलक] 1. चिपचिपी गाद जो तेल लोहयुग-मनु० ११८५ ।। आदि के नीचे जम जाती है, कीट 2. एक प्रकार की कलिका, कलि: (स्त्री०) कलि+कन +टाप् ] 1. अन- लेई या पेस्ट याज्ञः श२७७ 3. (अतः) गंदगी, खिला फूल कली,-चूतानां चिरनिर्गतापि कलिका मैल 4. लीद, विष्ठा 5. नीचता, कपट, दंभ शि० बध्नाति न स्वं रजः- श०६।६, किमाम्रकलिकाभङ्ग- १९४९८6. पाप 7. घुटा पिसा चूर्ण-तां लोध्रकल्केन मारभसे-श०६, ऋतु०६।१७, रघु०९।३३ 2. अंक, हृताङ्गतलाम् ....कु. ७।९। सम-फलः अनार का रेखा। पौधा। ३३ For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५८ ) कल्कनम् [ कल्क्+णिच् + ल्युट् ] घोखा देना, प्रतारणा, | मृतकल्पः, प्रतिपन्नकल्पः आदि । सम०-अन्तः सृष्टि मिथ्यापना। की समाप्ति, प्रलय--भर्त० २।१६, स्थायिन् (वि०) कल्किः , कल्किन् (पुं०) [कल्क+णि+इन्, कल्क। कल्प के अन्त तक ठहरने वाला, आदिः सृष्टि में इनि ] विष्णु का अन्तिम और दसवाँ अवतार (संसार सभी वस्तुओं का पुनर्नवीकरण, कारः कल्पसूत्र का का उसके शत्रुओं से उद्धार करने वाला तथा दुष्टों रचयिता, क्षयः सृष्टि का नाश, प्रलय- उदा०-पुरा का हनन करने वाला) [ विष्णु के अवतारों का कल्पक्षय वृत्त जातं जलमयं जगत्-कथा० २।१०, उल्लेख करते हुए जयदेव कल्कि नामक अन्तिम अव- -तरुः, द्रुमः,-पादपः, वृक्षः 1. स्वर्गीय वृक्षों में तार का इस प्रकार निर्देश करता है—म्लेच्छनिवह- से एक या इन्द्र का स्वर्ग, रघु० २७५, १७।२६, कु० निधने कलयसि करवालम्, धमकेतूमिव किमपि करा- २।३९, ६।४१ 2. इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पलम्, केशव घृतकल्किारीर जय जगदीश हरे-गीत० निक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वक्षनाबद्ध कल्प१२१०।] द्रमतां विहाय जातं तमात्मन्यसिपत्रवृक्षम्--रघु० कल्प (वि.) [ कृप्+अच्, घा वा ] 1. व्यवहार में १४१४८, नै० १११५ 3. (आलं०) अत्यन्त उदार लाने योग्य, सशक्त संभव 2. उचित, योग्य, सही पुरुष-सकलाथिसार्थकल्पद्रुमः-पंच०१,-पाल: शराब 3. समर्थ, सक्षम (संबं०, अपितुमुन्नन्त के साथ अथवा बेचने वाला, लता,-लतिका 1. इन्द्र की नन्दनसमास के अन्त में)-धर्मस्य, यशस: कल्प:--भाग० कानन की लता--भर्तृ० ११९०, 2. सब प्रकार की अपना कर्तव्य आदि करने में समर्थ, स्वक्रियायामकल्पः इच्छाओं को पूर्ण करने वाली लता-नानाफल: त०, अपना कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ, इसी प्रकार फलति कल्पलतेव भूमि:---भर्तृ० २।४६, तु० ऊ. -स्वभरणाकल्पः आदि,- ल्प: 1. धार्मिक कर्तव्यों का 'कल्पतर' से,—सूत्रम् सूत्रों के रूप में यज्ञ-पद्धति । विधि-विधान, नियम, अध्यादेश 2. विहित नियम, कल्पक: [क्लप+वल 11. संस्कार 2. नाई। विहित विकल्प, ऐच्छिक नियम--प्रभुः प्रथमकल्पस्य | कल्पनम् [क्लप् + ल्युट ] 1. रूप देना, बनाना, क्रमबद्ध योऽनुकल्पेन वर्तते--मनु० ११३० अर्थात् उस विहित करना 2. सम्पादन करना, कराना, कार्यान्वित करना विधि का अनुसरण करने में समर्थ जिसको दूसरे सब 3. छंटाई करना, कांटना 4. स्थिर करना 5. सजावट नियमों की अपेक्षा अधिमान्यता दी जाती है, प्रथम के लिए एक दूसरी पर रक्खी हुई वस्तु,-ना कल्पः-मालवि० १, अर्थात् बहुत अच्छा विकल्प,-एष 1. जमाना, स्थिर करना---अनेकपितृकाणां तु पितृतो व प्रथमः कल्पः प्रदाने हव्यकव्ययो:--मनु० ३।१४७ भागकल्पना-याज्ञ० २।१२०, २४७, मनु० ९।१६ 3. (अतः) प्रस्ताव, सुझाव, निश्चय, संकल्प----उदारः 2. बनाना, अनुष्ठान करना, करना 3. रूप देना. कल्प:-श०७ 4. कार्य करने की रीति, कार्य विधि, व्यवस्थित करना--मच्छ० ३।१४ 4. सजाना, विभूरूप, तरीका, पद्धति (धर्मानुष्ठानों में)-क्षात्रेण कल्पे- षित करना 5. संरचन 6. आविष्कार 7. कल्पना, नोपनीय---उत्तर० २, कल्पविकल्पयामास बन्या- -विचार कल्पनापोढः---सिद्धा-कल्पनाया अपोढः मेवास्य संविधाम्---रघु० ११९४, मनु० ७।१८५ 8. विचार, उत्प्रेक्षा, प्रतिमा (मन में कल्पना की हुई) 5. सृष्टि का अन्त, प्रलय 6. ब्रह्मा का एक दिन या ---शा० २१७ 9. बनावट, मिथ्या रचना 10. जाल१००० युग, मनुष्यों का ४३२०००००० वर्ष का साजी 11. कपट-योजना, कूटयु क्ति 12. (मीमां० द. समय, तथा सृष्टि की अवधि का माप; श्रीश्वेतवाराह में)-अर्थापत्ति। कल्पे (वह कल्प जिसमें अब हम रहते हैं)--कल्प | कल्पनी [ कल्पन+ ङीप् ] कंची। स्थितं तनुभृतां तनुभिस्ततः किम्--शा० ४२ कल्पित (वि०) [ कृप्+णिच् +क्त ] व्यवस्थित, निर्मित, 7. रोगी की चिकित्सा 8. छ: वेदांगों में से एक-नामतः संरचित, बना हुआ, दे० कलप (प्रेर०)। -जिसमें यज्ञ का विधि-विधान निहित है तथा जिसमें कल्मष (वि०) [ कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो. यज्ञानुष्ठान एवं धार्मिक संस्कारों के नियम बतलाये साधुः ] 1. पापी, दुष्ट 2. मलिन, मैला,-षः,-बम गये हैं, दे० 'वेदांग' के नी० १. संज्ञा और विशेषणों के 1. लांछन, गन्दगी, उच्छिष्ट 2. पाप, स हि गगनअंत में जुड़ कर निम्नांकित अर्थ बतलाने वाला शब्द | विहारी कल्मषध्वंसकारी-हि० १।२१, भग० ४१३०, --"अपेक्षाकृत कुछ कम" 'प्राय: ऐसा ही' 'लगभग ५।१६, मनु० ४।२६०, १२।१८, २२ । बराबर' (हीनता की अवस्था के साथ २ समानता कल्माष (वि.) (स्त्री०-पी) [कलयति, कल+क्विप, को प्रकट करना)-कुमारकल्पं सुषुवे कुमारम्--रघु. तं माषयति अभिभवति, माष्-+-णिच् +अच, कल् ५.३६, उपपन्नमेतदस्मिन्नविकल्पे राजनि-श०२, चासो माषश्च-कर्म० स. 11. रंगबिरंगा, चित्तीप्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी-रघु. ३२२, इसी प्रकार | दार, काला और सफेद,-पः 1. चित्रविचित्र रंग For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २५९ ) 2. काले और सफेद का मिश्रण 3. पिशाच, मूत, बी | यमुना नदो। सम० – कण्ठः शिव की उपाधि । कल्य ( वि० ) [ कल + यत् ] 1. स्वस्थ, नीरोग, तन्दुरुस्त - सर्वः कल्ये वयसि यतते लब्धुमर्थान्कुटुम्बी- विक्रम० ३, याज्ञ० १।२८, यावदेव भवेत्कल्यः तावच्छ्रे यः समाचरेत् — महा० 2. तत्पर, सुसज्जित -- कथयस्व कथामेतां कल्याः स्मः श्रवणे तव महा० 3. चतुर 4. रुचिकर, मङ्गलमय (जैसा कि प्रवचन) 5. बहरा और गूंगा 6. शिक्षाप्रद ल्यम् 1. प्रभात, पौ फटना 2. आने वाला कल 3. मादक शराब 4. बधाई, मंगल कामना 5. शुभ समाचार । सम० – आशः - जग्धिः (स्त्री०) सबेरै का भोजन, कलेवा, - पालः, -पालकः कलवार, शराब खींचने वाला - वर्तः सवेरे का भोजन, कलेवा (र्तम्) (अतः ) कोई भी हल्की चीज, तुच्छ या महत्त्वहीन, मामूली – ननु कल्यवर्तमेतत् मृच्छ० २, क्षुद्र वस्तु - स्त्रीकल्यवर्तस्य कारणेन ४, स इदानीमर्थकयवर्तस्य कारणादिदमकार्य करोति ९ । कल्या [ कलयति मादयति कल् + णिच् + क् +टाप् ] 1. मादक शराब 2. बधाई । सम० - पालः, पालकः शराब खींचने वाला, कलवार । कल्याण ( वि० ) ( स्त्री० णाणी ) [ कल्ये प्रातः अण्य शब्द्यते - अणु - घञ ] 1. आनन्ददायक, सुखकर सौभाग्यशाली, भाग्यवान् त्वमेव कल्याणि तयोस्तृतीया - रघु० ६।२९, मेघ० १०९ 2. सुन्दर, रुचिकर, मनोहर 3. श्रेष्ठ, गौरवयुक्त 4. शुभ, श्रेयस्कर मंगलप्रद, भद्र -- कल्याणानां त्वमसि महतां भाजनं विश्वमूर्ते - मा० १३, - णम् 1. अच्छा भाग्य, आनन्द, भलाई समृद्धि - कल्याणं कुरुतां जनस्य भगवांश्चन्द्रार्धचूड़ामणिः - हि० १।१८५, तद्रक्ष कल्याणपरम्पराणां भोक्तारमूर्जस्वलमात्मदेहम् - रघु० २५०, १७ १, मनु० ३।६० इसी प्रकार अभिनिवेशी का० १०४ 2. गुण 3. उत्सव 4. सोना 5. स्वर्ग । सम० - कृत् ( वि० ) 1. सुखकर, लाभदायक, हितकर - भग० ६ । ४० 2. मंगलप्रद, भाग्यशाली 3. गुणी, धर्मन् (वि०) गुणसम्पन्न, — वचनम् मित्रवत् भाषण, शुभ कामना । heatre (fro) (स्त्री० -- णिका) [ कल्याण + कन्] शुभ, समृद्धिशाली, आनन्ददायक । कल्याणिन् (वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ कल्याण + इनि] 1. प्रसन्न, समृद्धिशाली 2. सौभाग्यशाली, भाग्यवान्, आनन्ददायक 3. मंगलप्रद, शुभ । कल्याणी [ कल्याण + डीष् ] गाय - रघु० ११८७ । कल (वि० ) [ कल्ल् + अच्] बहरा हल्लोलः [कल्ल्+ ओलच् ] 1. बड़ी लहर, ऊर्मि – आयुः कल्लोललोलम् -- भर्तृ० ३३८२, कल्लोलमालाकुलम् - भामि० १५९२. शत्रु 3. हर्ष, प्रसन्नता । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्लोलिनी [कल्लोल + इनि + ङीष् ] नदी – स्वर्लोककल्लीलिनि त्वं पापं तिरयाधुना मम भवव्यालावलीढात्मनः - गंगा० ५०, इसी प्रकार - विपुलपुलिनाः कल्लोलिन्यः । कव (भ्वा० आ० - कवते, कवित) 1. स्तुति करना 2. वर्णन करना, ( कविता ) रचना करना 3. चित्रण करना, चित्र बनाना । कवकः [ कव् + अच् + कन्] मुट्ठीभर,कम् कुकुरमुत्ता - विड्जानि कवकानि च याज्ञ० १।१७१, मनु० ५ ॥ ५, ६।१४ । कवच:, --- चम् [कु + अच] 1. सन्नाह, जिरह बस्तर, वर्म, रक्षाकवच, ताबीज़, रहस्यपूर्ण अक्षर (हुँ, हूँ) जो कि रक्षाकवच की भाँति प्ररक्षक समझे जाते हैं 3. घौंसा, ताशा । सम० पत्रः भोजपत्र का पेड़, पाकर का वृक्ष, सर ( वि० ) 1. कवचधारी 2. कवच धारण करने योग्य आयु का कवचहरः कुमारः - पा० ३|२| १० पर सिद्धा०, तु० वर्महर - रघु० ८ ९४ । कवटी [कु + अटन् + ङीष् ] दरवाज़े का दिला या पल्ला । कव ( ब ) र ( वि० ) ( स्त्री० - रा, –री ) [ कु + अरन् ] 1. मिश्रित, अन्तमिश्रित - शि० ५।१९ 2. जटित, खचित, जड़ा हुआ 3. चित्रविचित्र रंगबिरंगा, रः, रम् 1. नमक 2. खटास, अम्लता, -र: चोटी, जुड़ा । कब (ब) री [कवर + डीप्] चोटी, जूड़ा-दघती विलोलकबरीकमाननम् - उत्तर० ३ ४, शि० ९।२८ अमरु ५१९ । सम० - भरः भारः गुथी हुई चोटी -घटय जघने कांचीमंच स्रजा कबरीभरम् गीत० १२ । कवल:, -लम् [केन जलेन वलते चलति - वल् + अच् तारा०] 1. मुट्ठीभर - आस्वादवद्भिः कवलैस्तृणानाम् - रघु० २।५,९५९, कवलच्छेदेषु सम्पादिताः - उत्तर ० ३।१६ । कवलित ( वि० ) [ कवल + इतच् ] 1. खाया हुआ, निगला हुआ (मुट्ठीभर ) 2. चबाया हुआ 3. ( अतः ) लिया हुआ, पकड़ा हुआ — जैसा कि 'मृत्युना कवलितः' । कवाट [कलं शब्दम् अटति, कु + अप, अट् + अच्] दे० 'कपाट' । कवि ( वि० ) [ कु + इ] 1. सर्वज्ञ - भग० ८1९, मनु० ४।२४ 2. प्रतिभाशाली, चतुर, बुद्धिमान् 3. विचारवान्, विचारशील 4. प्रशंसनीय, विः 1. बुद्धिमान् पुरुष, विचारक ऋषि – कवीनामुशना कविः भग० १० । ३७, मनु० ७१४९, २।१५१ 2. काव्यकार - तद् ब्रूहि रामचरित आद्यः कविरसि - उत्तर० २, मन्दः कवियश:प्रार्थी - रघु० १।३, इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे उत्तर० १।१ शि० २२८६ ३. असुरों के आचार्य शुक्र की उपाधि 4. वाल्मीकि, आदिकवि 5. ब्रह्मा 6. सूर्य - ( स्त्री० ) लगाम का दहाना दे० कवि For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६० ) का। सम-ज्येष्ठ: आदिकवि वाल्मीकि की उपाधि, कश्य (वि.) [कशामर्हति--कशा-+-य] कोड़े या चाबुक ---पुत्रः शुक्राचार्य की उपाधि,-राजः 1. महाकवि लगाये जाने के योग्य--श्यम् मादक शराब। . --(श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालंकारहीरःसुतम्-यह कश्यपः [कश्य+पा--क] 1. कछुवा 2. एक ऋषि, अदिति और वाक्य नैषधचरित के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में दिति के पति, अतः देवता और राक्षस दोनों के पिता। पाया जाता है) 2. कवि का नाम, 'राघवपाण्डवीय' (ब्रह्मा का पुत्र मरीचि था, मरीचि का पुत्र कश्यप हुआ, नामक काव्य का रचयिता, रामायण: वाल्मीकि की सृष्टि के कार्य में कश्यप ने बड़ा योग दिया। महाभारत उपाधि। तथा दूसरे ग्रंथों के अनुसार उसका विवाह अदिति तथा कविकः,-का [कवि+कन्, स्त्रियां टाप् च] लगाम का दक्ष की अन्य १३ पुत्रियों के साथ हुआ। अदिति से दहाना। उसके द्वारा १२ आदित्यों का जन्म हुआ-अपनी कविता [कवि+तल+टाप्] काव्य, सुकविता यद्यस्ति दूसरी १२ पत्नियों से उसके अनन्त और विविध प्रकार राज्येन किम् भर्त० २।२१ । की सन्तान हुई- साँप, रेंगने वाले जन्तु, पक्षी, राक्षस, कवि (वी) यम् [कवि+छ] लगाम का दहाना । चन्द्रलोक का नक्षत्रज तथा परियाँ। इस प्रकार करोष्ण (वि.) [कुत्सितम् ईषत् उष्णम् कर्म० स०, कोः वह देव, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी और सरीसृप कवादेशः] कुछ थोड़ा गर्म, गुनगुना-रघु० ११६७, आदिकों का वस्तुतः सभी जीवधारी प्राणिमात्र का ८४ । पिता था। इसी लिए उसे बहुधा प्रजापति कहा कम्यम् [कयते हीयते पितृभ्यः यत् अन्नादिकम् --कु-यत्] जाता है)। (विप० हव्यम्) मृत पितरों के लिए अन्न की आहुति । कष् (भ्वा० उभ०- कषति--ते, कषित) 1. मसलना, -एष वै प्रथमः कल्प: प्रदाने हव्यकव्ययोः-मनु० खुरचना, कसना ... समूलकाषं कषति--सिद्धा०, भद्रि० ३॥१४७, ९७, १२८,-व्यः पितरों का समूह । समः ३।४९ 2. परीक्षा करना, जाँच करना, कसौटी पर -~~वाह, (०),-वाहः,-वाहनः अग्नि । कसना (सोना आदि)---छदहेम कषन्निवालसत्कषकशः [कश्+अच्] कोड़ा (प्रायः बहुवचतान्त),-शा चाबुक पाषाणनिभे नभस्तले- नै० २।६९ 3. चोट मारना, -इदानीं सुकुमारेऽस्मिन् निःशंक कर्कशाः, कशाः, तव नष्ट करना 4. खुजाना। गा। पतिष्यन्ति सहास्माकं मनोरथैः । मच्छ० ९।३५ कव (वि.) [ कष+अच्] 1. रगड़ने वाला, कसने वाला, (यहाँ कशा शब्द स्त्रीलिंग और पुल्लिग दोनों में हो --पः रगड़ कसना 2. कसौटी-छदहेम कषनिवालसकता है) 2. कोड़े लगाना 3. डोरी, रस्सी। सत्कषपाषाणनिभे नभम्तले नै० २६९, मृच्छ० कशिपु (पुं० या नपुं०) [कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वा- ३३१७ । दित्वात् निपातनात् साधुः] 1. चटाई 2. तकिया 3. कषणम् [कष्+ल्युट रगड़ना, चिह्नित करना, खुरचना बिस्तरा,-पु. 1. भोजन 2. वस्त्र 3. भोजन-वस्त्र ... कण्डूलद्विपगण्डपिण्डकषणोत्कम्पेन संपातिभिः-- (विश्वकोश के अनुसार)। उत्तर० २१९, कषणकम्पनिरस्तमहाहिभिः-कि०५।४७ कशे (से) र (पुं०, नपुं०) [के देहे शीर्यते, के जलं वा 2. कसौटी पर कस कर सोने को परखना। शृणाति, क+शु+उ, एरडादेशः, कस्+ एरुन् वा] कषा-कशा। ___1. रीढ़ की हड्डी 2. एक प्रकार का घास । कषाय (वि०) [ कषति कण्ठम् -कष्+आय ] 1. कसैला कामल (वि.) कश+अल, मुद] मैला, गन्दा, अकीर्तिकर, --श०२ 2. सुगंधित- स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः कलंकी-मत्सम्बन्धात्कश्मला किंवदन्ती स्याच्चेदस्मिन्हन्त ---मेघ० ३१, उत्तर० २।२१ महावी० ५।४१ पिछ मामधन्यम्--उत्तर० ११४२,-लम् मन की 3. लाल, गहरा लाल--चूतांकुरस्वादकषायकंठ:--कु. खिन्नता, उदासी, अवसाद-कश्मल महदाविशत् ३१३२ 4. (अतः) मषुर-स्वर वाला-मा० ७ -महा., कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् 5. भूरा, 6. अनुपयुक्त, मैला--यः,-यम् 1. कसैला --भग० २।२ 2. पाप 3. मूर्छा। स्वाद या रस (६ रसों में से एक) दे० कटु 2. लाल कामीर (१०व) [ कश्+ईरन, मुटु ] एक देश का नाम, रंग 3. एक भाग औषधि, चार आठ या १६ भाग वर्तमान कश्मीर (तन्त्र ग्रन्थों में इसकी स्थिति इस पानी में मिलाकर बनाया हुआ (सब को मिलाकर प्रकार बताई गई है-शारदामठमारभ्य कुंकूमादितटां- उबालना जब तक कि चौथाई न रह जाय), काढ़ा तकः, तावत्कश्मीरदेशः स्यात् पंचाशद्योजनात्मकः) -मनु ११।१५४ 4. लेप करना, पोतना-कु०७॥ सम.--.-म्-जन्मन् (पुं० नपुं०) केसर, १७, चुपड़ना 5. उबटन लगा कर शरीर को सुवासित जाफरान-कश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरम्या-भामि० करना-ऋतु०११४ 6. गोंद, राल, वृक्ष का निःश्रवण १७१। 7.मैल, अस्वच्छता 8. मन्दता, जडिया १. सांसारिक For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २६१ विषयों में आसक्ति, यः 1 आवेश, संवेग 2. कलियुग ! Fatति ( वि०) कषाय + इतच् ]1. हलके रंग वाला, लाल रंग का रंगीन - अमुनैव कषायितस्तनी--कु० ४ | ३४, शि० ७ ११2. ग्रस्त । कषि ( वि० ) [ कर्षाति हिनस्ति कष् + इ] हानिकारक, अनिष्टकर, पीडाकर । कबे (से) रुका [ कष् ( स ) + एरक्, उत्वम्, कन् +टाप् ] ड़ की हड्डी मेरुदण्ड कष्ट (वि० ) [ कष् + क्त ] 1. बुरा, अनिष्टकर, रोगी, गलत -- रामहस्तमनुप्राप्य कष्टात् कष्टतरं गता - रघु० १५।४३, अर्थात् अधिक बुरी अवस्था हो गई (दुर्दशाग्रस्त हो गई ) 2. पीडामय, संतापकारी – मोहादभूत्कष्टतरः प्रबोध: - रघु० १४।५६, कष्टोऽयं खलु भृत्यभावः -- रत्न० १, चिन्ताओं से भरा हुआ - मनु० ७/५०, याज्ञ० ३।२९, कष्टा वृत्तिः पराधीना कष्टो वासो निराश्रयः, निर्धनो व्यवसायश्च सर्वकष्टा दरिद्रता । चाण० ५९३. कठिन - स्त्रीषु कष्टोऽधिकारः - विक्रम ० ३।१ 4. दुर्धर्ष ( शत्रु की भाँति ) मनु० ७ १८६, २१० 5. अनिष्टकर, पीडाकर, हानिकर 6. गर्हित, - ष्टम् 1. दुष्कर्म, कठिनाई, संकट, व्यथा, यन्त्रणा, पीडा - कष्टं खल्वनपत्यता श० ६, घिगर्थाः कष्टसंश्रयाः - पंच० १।१६६ 2. पाप, दुष्टता 3. कठिनाई, प्रयास, कष्टेन किसी न किसी प्रकार - ष्टम् ( अव्य० ) हाय ! - हा धिक् कष्टं, हा कष्टं जरयाभिभूतपुरुषः पुत्रैरवज्ञायते - पंच० ४७८, सम० - आगत ( वि० ) कठिनाई से आया हुआ, पहुँचा हुआ, कर ( वि० ) पीड़ा कर दुःखदायी – तपस् (वि०) घोर तपस्या करने वाला - श० ७ - साध्य कठिनाई से पूरा किये जाने के योग्य – स्थानम् बुरा स्थान, अरुचिकर या कठिन जगह । कष्टि ( स्त्री० ) [ कप् + क्तिन् ] 1. परख, जांच 2. पीडा, कष्ट । कसू i ( भ्वा० पर० – कसति, कसित) हिलना-डुलना, जाना, पहुँचना, निस्-, ( प्रेर0) 1. निकालना, बाहर खींचना 2. मोड़ना, बाहर हाँक देना, निर्वासित करना, निष्कासन करना -- निरकासयद्रविमपेतवसुं वियदालयादपरदिग्गणिका - शि० ९।१० येनाहं जीवलोकानिष्कासयिष्ये - मुद्रा० ६, प्र, खोलना, प्रसार करवाना - घनमुक्तां बुलवप्रकाशितः (कुसुमैः ) - घट० १९, वि-, खुलना, प्रसृत होना ( आलं० भी ) विकसति हि पतंगस्योदये पुण्डरीकम् - मा० ११२८, शि० ९।४७, ८२ ७।५५, निजहृदि विकसन्तः - भर्तृ० २०७८ ( प्रेर० ) खोलना, प्रसार करवाना - चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रबालम् -- भर्तृ० २।७३, शि० १५ | १२, अमरु ८४ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) ii ( अदा० आ० – कस्ते, कंस्ते) 1. जाना 2. नष्ट करना । कस्तु (स्तु) रिका, कस्तूरी [ कसति गन्धोऽस्याः कस् + ऊर् + ङीष्, तुद्, कन्+टाप् ह्रस्वः ] मुश्क, कस्तूरी - कस्तूरिकातिलकमालि विधाय सायम् - भामि० २४, ११२१, चौर० ७ 1 सम० - मृगः कस्तूरीमृग - ( वह हरिण जिसकी नाभि से कस्तूरी नामका सुगन्धित द्रव्य निकलता है) । कलारम् [ के जले ह्लादते - क + ह्लाद् + अच् पृषो० दस्य र: ] श्वेत कमल - कलारपद्मकुसुमानि मुहुविधुन्वन् - ऋतु० ३।१५ । कवः [ के जले ह्वयति शब्दायते स्पर्धते वाक +ह्वे+ क] एक प्रकार का सारस । कांसीयम् [ कंसाय पानपात्राय हितम् - कंस +छ+ अण् ] जस्ता । कांस्यः (वि० ) [ कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः - यन्त्र छलोपः ] कांसे या जस्त का बना हुआ मनु० ४/५, स्यम् 1. कांसा, या जस्ता मनु० ५।११४, याज्ञ० १ १९० 2. कांसे का बना घड़ियाल – स्यः, स्यम् जल पीने का वर्तन (पीतल का ) प्याला-- शि० १५।८१ । सम० – कारः ( स्त्री० री) कसेरा, ठठेरा, - ताल: झाँझ, करताल, भाजनम् पीतल का बर्तन, मलम् ताम्रमल, तांबे का जंग । काकः [कै + कन् ] 1. कौवा - काकोऽपि जीवति चिराय बलि च भुङ्क्ते - पंच० १ २४2. ( आलं० ) घूर्णित व्यक्ति, नीच और ढीठ पुरुष 3. लंगड़ा आदमी 4. केवल सिर को भिगोकर स्नान करना (जैसा कि कौवे करते हैं), की कौवी, कम् कौवों का समूह । सम० -- अक्षिगोलकन्याय दे० 'न्याय' के नीचे, - अरिः उल्लू, उदरः साँप, काकोदरो येन विनीतदर्पः - कविराज, - उलुकिका, उलूकीयम्, कौवे और उल्लू की नैसर्गिक शत्रुता ( काकोलूकीय - पंचतन्त्र के तीसरे तंत्र का नाम है), चिचा गुंजा या धुंधची का पौधा ( रत्ती), छवः, -छदिः खंजनपक्षी 2. अलकें — दे० नी० 'काकपक्ष', जातः कोयल, -- तालीय ( वि० ) जो बात अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से हो दुर्घटना - अहो नु खलु भोः तदेतत् काकतालीयं नाम - मा० ५, काकतालीयवत्प्राप्तं दृष्ट्वापि निधिमग्रतः - हि० प्र० ३५, कभी कभी क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर 'संयोग से अर्थ को प्रकट करता है - फलन्ति काकतालीयं तेभ्यः प्राज्ञा न बिभ्यति - वेणी० २।१४ – न्याय दे० 'न्याय' के नीचे, तालुकिन् (वि०) घृणित, निंद्य, दन्तः ( शा० ) कौवे का दाँत, ( आलं० ) असंभव बात जिसका अस्तित्व न हो, ● गवेषणम् असंभव बातों की खोज करना ( व्यर्थ और For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २६२ ) अलाभकर कार्यों के संबंध में कहा जाता है), – ध्वजः वाडवानल, निद्रा हल्की नींद या झपकी जो आसानी से टूट जाय, पक्षः, पक्षकः ( विशेष कर क्षत्रियों के) बालकों और तरुणों की कनपटियों के लंबे बाल या अलकें - काकपक्षघरमेत्य याचितः -- रघु ० १११,३१,४२, ३२८, उत्तर० ३ पदम् हस्तलिखित पुस्तक या लेखों में चिह्न (^) जो यह प्रकट करता है कि यहाँ कुछ छूट गया है, पदः संभोग की एक विशेष रीति, पुच्छ:, पुष्टः कोयल, पेय (fro ) छिछला - काकपेया नदी - सिद्धा०, भोवः उल्लू - मद्गुः जलकुक्कुट, यवः अन्न का वह पौधा जिसकी बाल में दाने न हो- यथा काकयवाः प्रोक्ता यथारण्यभवास्तिलाः, नाममात्रा न सिद्धौ हि धनहीनास्तथा नराः । पंच० २।८६ - तथैव पांडवाः सर्वे यथा काकयवा इव महा० (काकयवा: - = निष्फलतृणधान्यम्), - दत्तम् कौवे की कर्कश ध्वनि (कॉव काँव) जिससे परिस्थिति के अनुसार भावी शुभाशुभ का ज्ञान होता है – शि० ६,७६, बन्ध्या ऐसी स्त्री जिसके एक पुत्र होने के पश्चात् फिर कोई सन्तान न हो, स्वरः ध्वनि (जैसे कि कौवे की कॉव कॉव ) । काकर (रू) क ( वि० ) 1. डरपोक, कायर 2 नंगा 3. गरीब, दरिद्र, --क: 1. औरत का गुलाम, पत्नीभक्त 2. (स्त्री० -की) 2. उल्लू 3. जालसाजी, धोखा, दाँवपेच | काक ( का) ल: [ का इत्य व कलो यस्य ब०स०] पहाड़ी कौवा, लम् कंठमणि । कालि:, - ली (स्त्री० ) [ कल् + इन कलिः, कु ईषत् कलिः, को: कादेशः, स्त्रियां ङीषु च ] 1. मन्द मधुर स्वर - अनुबद्धमुग्धकाकलीसहितम् - उत्तर० ३ ऋतु० ११८ 2. एक प्रकार का मन्द स्वर का बाजा जिसके द्वारा चोर यह पता लगाते हैं कि लोग सोये हैं या नहीं - फणिमुखकाकलीसंदंशक प्रभृत्यनेकोपकरणयुक्तः दश० ४९ 3. कैंची 4. घुंघची का पौधा । सम० -- रवः कोयल । erfert, erfefunt [कक् + णिनि + ङीप् = काकिणी + कन् + टाप्, ह्रस्वः] 1. सिक्के के रूप में प्रयुक्त होने वाली कौड़ी. 2. एक सिक्का जो २० कौड़ी या चौड़ाई पण के बराबर होता है 3. चौथाई माशे के बराबर वजन 4. माप का एक अंश 5. तराजू की डंडी 6. हस्त, ( एक प्राचीन माप जिसकी लम्बाई एक हाथ के बराबर होती है ) । काकिनी ( स्त्री० ) [ कक् + णिनि + ङीप् ] 1. पण का चौथाई 2. माप का चौथाई 3. कौड़ी-हि० ३।१२३ । काकु: ( स्त्री० ) [ कक् + उण् ] 1. भय, शोक, क्रोध आदि संवेगों के कारण स्वर में परिवर्तन- भिन्नकण्ठध्वनिर्षीरैः काकुरित्यभिधीयते - सा० द०, अलीककाकुकर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णकुशलता - का० २२२ ( अतः ) 2. निषेधात्मक शब्द जो इस ढंग से प्रयुक्त किया जाय कि विरुद्ध ( स्वीकारात्मक ) अर्थ को प्रकट करे ( इस प्रकार के अवसरों पर स्वर की विकृति से ही अभीष्ट अर्थ प्रकट किया जाता है) 3. बुड़बुड़ाना, गुनगुनाना 4. जिह्वा । काकुत्स्थः [ ककुत्स्थ+अण्] ककुत्स्थवंशी, सूर्यवंशी राजाओं की उपाधि - काकुत्स्थमालोकयतां नृपाणाम् - रघु० ६२, १२३०, ४६, दे० 'ककुत्स्थ' । काकुचम् [ काकुं ध्वनिभेदं ददाति - काकु + दा + क] तालु। काकोलः [ कक् + णिच् + ओल] 1. पहाड़ी कौवा याज्ञ० १।१७४ 2. साँप 3. सूअर 4. कुम्हार 5. नरक का एक भाग याज्ञ० ३।२२३ । ert: [कुत्सितम् अक्षं यत्र - कोः कादेशः ] तिरछी चितवन, कनखियों से देखना, क्षम् त्यौरी चढ़ना, अप्रसनता की दृष्टि, द्वेषपूर्ण निगाह - काक्षेणानादरेक्षितः -भट्टि० ५।२८ | काग: (पुं०) कौवा, तु० 'काक' । काल (भ्या० पर ० ( महाकाव्यों में आ० भी ) - का क्षिति, काङ्क्षित) 1. कामना करना, चाहना, लालायित होना-पत्काङक्षति तपोभिरन्यमुनयस्तस्मिस्तपस्यन्त्यमी - श० ७।१२, न शोचति न कांडक्षति भग० १२०७, न काङक्षे विजयं कृष्ण - १।३२, रघु० १२५८, मनु० २।२४२ 2. प्रत्याशा करना, प्रतीक्षा करना, अभिलालायित होना, कामना करना, आ-, 1. चाहना, लालसा करना, कामना करना - प्रत्याश्वसंत रिपुराचकाङक्ष – रघु० ७।४७, ५/३८, मनु० २१६२, मेघ० ९१, याज्ञ० १ १५३ 2. अपेक्षा करना आवश्यकता होना, - प्रत्या- घात में रहना, सेवा में उपस्थित रहना वि-कामना करना, चाहना लालसा करना, समाकामना करना, चाहना । कांडा [काक्ष + अ + टाप् ] 1. कामना, इच्छा 2. रुचि, अभिलाषा जैसा कि 'भक्तकांक्षा' में । काक्षिन् ( वि० ) ( स्त्री० - जी ) [ काङक्ष् + णिनि ] कामना करने वाला, इच्छुक, दर्शन, जल आदि भग० ११/५२ । काचः [कच् + घञ्ञ ] 1. शीशा, स्फटिक आकरे पधरा गाणां जन्म काचमणेः कुतः हि० प्र० ४४, काचमूल्येन विक्रीतो हंत चिंतामणिर्मया शा० १।१२ 2. फंदा, लटकता हुआ (अलमारी का ) तख्ता, जुए से बंधी हुई रस्सी जो बोझ को सहार ले 3. आंख का एक रोग, आंख की नाड़ी का रोग जिससे दृष्टि धुंधली हो जाय । सम०- -घटी शीशे की झारी या जग, भोजनम् शीशे का पात्र, मणिः स्फटिक, बिलौर, मलम्, लवणम्, संभवम् काला नमक या सोडा । For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेख। काचनम्, काचनकम् [कच्+णिच् + ल्युट, कन् च] डोरी | काणेली [काण+इल+अच्+डोष] 1. असती या व्यभि या फीता जिससे कागज़ों का बण्डल या हस्तलिखित 'चारिणी स्त्री 1. अविवाहिता स्त्री। सम-मात पत्र बाँधे जाते हैं -तु० कचेल । (पुं०) अविवाहिता माता का पुत्र, हरामी (तिरस्कार काचनकिन् (पुं०) [काचनक+ इनि] हस्तलिखित ग्रन्थ, सूचक शब्द जो केवल सम्बोधन में प्रयुक्त होता है) -~-काणेलीमातः अस्ति किचिच्चिहूं यदुपलक्षयसि काचकः [कच् +ऊकच बा०11. मर्गा 2. चकवा। - मृच्छ० १। काजलम् ईषत् कुत्सितं जलम् -कोः कादेशः] 1. थोड़ा काण्डः,—उम् [कण+ड, दीर्घः] 1. अनुभाग, अंश, खंड पानी 2. स्वादहीन पानी।। 2. पौधे का एक गांठ से दूसरी गाँठ तक का भाग, पोरी काञ्चन (वि०) (स्त्री०-नी) [काञ्च् + ल्युट, स्त्रियां 3. डंठल, तना, शाखा-लोलोत्खातमणालकाण्डकवलडीप सुनहरी, सोने का बना हुआ -तन्मध्ये च स्फ च्छेदेषु-उत्तर. ३।१६, अमरु ९५, मनु० ११४६, टिकफलका काञ्चनी वासयष्टि: मेघ० ७९, काञ्चनं ४८4. ग्रन्थ का भाग, जैसे कि किसी पुस्तक का वलयम्-श०६।५, मनु० ५।११२, - नम् 1. सोना अध्याय, जैसे रामायण के सात काण्ड 5. एक पृथक --- (ग्राह्यम् ) अमेघ्यादपि काञ्चनम् -मनु०२।२३९ विभाग या विषय---उदा० ज्ञान', कर्म आदि 6. झुंड, 2. प्रभा, दीप्ति 3. सम्पत्ति, घन-दौलत 4. कमल तन्तु, गट्टर, समृदाय 7. बाण 8. लम्बी हड्डी, भुजाओं या .: 1. धतूरे का पौधा 2. चम्पक का पौधा। सम० पैरों की हड्डो 9. बेत, सरकण्डा 10. लकड़ी, लाठी ---अङ्गी सुनहरी रंगरूप की स्त्री-भामि० २१७२, 11. पानी 12. अवसर, मौका 13. निजी जगह -कन्दरः सोने की कान,- गिरिः मेरु नामक पहाड़, 14. अनिष्ट कर, बरा, पापमय (केवल समास के अन्त -भः (स्त्री०) 1. सुनहरी (पीली) भूमि 2. स्वर्ण में) सम-कारः बाणों का निर्माता,-गोचरः लोहे का रज, -सन्धिः समता के आधार पर दो दलों में हुई बाण,-पटः,-पटक: कनाल, परदा शि० ५।२२,-पातः सुलह । तु० हि० ४१११३ । तीर की मार, बाण का परास,-पृष्ठ: 1. शस्त्रजीवी, काञ्चनारः (लः) काञ्चन+ऋ(अल)+अण्] कचनार सैनिक 2. वैश्य स्त्री का पति 3. दत्तक पुत्र, औरस से का पेड़। भिन्न कोई अन्य पुत्र 4. (तिरस्कार सूचक शब्द) अषम काञ्चिः ,---ची (स्त्री०) काञ्च् + इन =कांचि-डोष स्त्री कुल, जाति-धर्म या अपने व्यवसाय को कलंक लगाने की (छोटे २ धुंघरुओं युक्त) मेखला या करधनी वाला, कमीना, नमकहराम, महावी० ३ में शतानन्द ने - - एतावता नन्वनुमेयशोभि काञ्चीगुणस्थानमनिन्दि- जामदग्न्य को 'काण्डपृष्ठ' नाम से सम्बोधित किया है ताया:----कु० ११३७, ३।५५, मेघ० २८ शि० ९१३२, (स्वकुलं पृष्ठतः कृत्वा यो वै परकुलं व्रजेत्, तेन दुश्चरघु०६।४३ 2. दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर रितेनासो काण्डपृष्ठ इति स्मृतः),-भंगः किसी अंग जो हिन्दुओं का एक पावन नगर समझा जाता है या हडडी का टूटना--वीणा चाण्डाल की वीणा, (सात नगरों के नामों के लिए दे० 'अवन्ति') । सम. –सन्धिः ग्रन्थि, जोड़ (जैसे कि पौधे की कलम ---पुरो,–नगरी 1. काँची (नगर) 2--पवम् कूल्हा, लगाना), स्पष्टः शस्त्रजीवी, योद्धा, सैनिक । नितम्ब। काण्डवत् (पु.) [काण्ड+मतुप मस्य वः] धनुर्धारी। काजिकम, काञ्जिका कुत्सिका अञ्जिका प्रकाशो यस्य-कु काण्डीरः काण्डईरन धनुर्धारी (कई अवसरों पर यह +अज्+ण्वुल-टाप् इत्वम् कोः कादेशः] खटास से | शब्द 'काण्डपृष्ठ' शब्द की तरह तिरस्कार सूचक शब्द युक्त एक प्रकार का पेय, कॉजी। के रूप में प्रयुक्त होता है तु. महावी० ३) काटकम् कटुकस्य भावः--अण्] खटास, अम्लता। | काण्डोल: [काण्डोल+अण्] नरकुल की बनी टोकरी, दे. काठः [कठघा ] चट्टान, पत्थर ।। 'कण्डोल'। काठिनम्,-न्यम् [कठिन+अण, व्या वा] 1. कठोरता, कात् (अव्य.) [कुत्सितम् अतति अनेन कु+अत्+क्विप कड़ापन --काठिन्यमुक्तस्तनम्-श० ३।११ 2. निष्ठु- ____ कोः कादेशः] तिरस्कार सूचक उद्गार, प्रायः कृके रता, निर्दयता, क्रूरता। साथ, कात्कृ अपमानित करना, तिरस्कार करना काण (वि.) [कण +घञ्] 1. एक आँख वाला -अक्षणा -यन्मयैश्वर्यमत्तेन गुरु: सदसि कात्कृतः-भाग। काणः -सिद्धा०, काणेन चक्षुषा कि वाहि० प्र० कातर (वि.) [ईषत् तरति स्वकार्य सिद्धि गच्छति--त+ १२, मनु० ३।१५५ 2. छिद्रवाला, फटा हुआ (जैसे कि अच् कोः कादेशः–तारा०] 1. कायर, डरपोक, हतोकौड़ी)-- प्राप्तः काणवराटकोऽपि न मया तृष्णेऽधुना त्साह-वर्जयन्ति च कातरान्-पंच० ४।४२, अमरु मंच माम् -- भत० ३१४, फूटी कौड़ी। ७, ३०, ७५, रघु० १११७८ मेघ० ७७ 2. दुःखी, काणेयः, --रः [काणा+ढक, दक वा] कानी स्त्री का पुत्र । शोकान्वित, भयभीत-किमेवं कातरासि श० ४ For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६४ ) 3. विक्षुब्ध, विस्मित, उद्विग्न-भर्तृ० ११६० 4. भय के मातामहसुतो मतः याज्ञ० २।१२९, मनु० ९।१७२ कारण कांपने वाला (जैसे आँख का फरकना) रघु० । में दी गई परिभाषा भी देखिए 2. व्यास 3. कर्ण । २१५२, अमरु ७९ । कान्त (वि०) [कन् (म्)+क्त ] 1. इष्ट, प्रिय, अभीष्ट, कातर्यम् [कातर व्यञकायरता,--कातयं केवला नीति: -अभिमतकान्तं क्रतुं चाक्षुषं-मालवि० १, ४ शौर्य श्वापदचेष्टितम्-रघु० १७/४७ । 2. सुखकर, रुचिकर-भीमकान्तर्नपगुणैः-रघु० १११६ कात्यायनः [कतस्य गोत्रापत्यम्, कत+या+फक्] 1. एक 3. मनोहर, सुन्दर--सर्वः कान्तमात्मीयं पश्यति-श० प्रसिद्ध वैयाकरण जिसने पाणिनि के सूत्रों पर अनुपूरक २,तः 1. प्रेमी 2. पति-कान्तोदन्तः सुहृदुपगतः वार्तिक लिखे हैं 2. एक ऋषि जिसने श्रौतसूत्र व गृह्य सङ्गमात्किचिदून:-मेघ० १००, शि० १०॥३, २९ सूत्र की रचना की है याज्ञ० १।४।। 3. प्रेमपात्र 4. चन्द्रमा 5. बसन्त ऋतु 6. एक प्रकार कात्यायनी [कात्यायन+डीष] 1. एक प्रौढ़ा या अधेड़ | का लोहा 7. रत्न (समास में सूर्य, चन्द्र और अयस् के विधवा (जिसने लाल वस्त्र पहने हए हों) 2. पार्वती।। साथ) 8. कार्तिकेय की उपाधि,-तम् केसर, जाफसम---पुत्रः,-सुतः कार्तिकेय । रान, सम०--आयसम्, चुम्बक, अयस्कान्त । कायञ्चित्क (वि.) (स्त्री-को) कथंचित्+ठक] किसी काता। कान्ता [ कम्।क्त+टाप] 1. प्रेमिका या लावण्यमयी न किसी प्रकार (कठिनाइयों के साथ) सम्पन्न । स्त्री 2. गह स्वामिनी, पत्नी कान्तासखस्य शयनीयकाथिक: [कथा+ठक्] कहानी सुनाने वाला, कहानी-लेखक, शिलातलं ते उत्तर० ३।२१, मेघ० १९, शि० १०, कहानीकार । ७३ 3. प्रियङग लता 4. बड़ी इलायची 5. पृथ्वी। कावम्बः [कदम्ब-+अण्] 1. कलहंस,-रघु० १३१५५, ऋतु० सम.----अनिदोहदः अशोक वक्ष-दे० अशोक । ४।९ 2. बाण-शि०१८।२९ 3. ईख, गन्ना 4. कदम्ब | कान्तारः,-रम् कान्त-ऋ+अण्] 1. विशाल बियाबान वृक्ष,-बम् कदम्ब वृक्ष का फूल-रघु० १३१२७ ।। जङ्गल,--गृहं तु गृहिणीहीनं कान्तारादतिरिच्यते कादम्बरम् कादम्ब-ला+क, लस्य र:] कदम्ब के फूलों --पंच० ४१८१, भर्तृ० ११८६ याज्ञ० १६८ से खींची हई शराब--निषेव्य मधु माधवाः सरसमत्र 2. खराब सड़क 3. सूराख, छिद्र,--र: 1. लाल रंग कादम्बरम—शि० ४।६६,--री 1. कदम्ब वृक्ष के फलों की जाति का गन्ना 2. पहाड़ी आबनूस । से खींची हुई शराब 2. शराब-कादम्बरीसाक्षिकं प्रथम कान्तिः (स्त्री०) [ कम्-क्तिन ] 1. मनोहरता, सौन्दर्य सौहदमिष्यते--श० ६ या कादम्बरीमदविधुणितलोच- -मेघ० १५, अक्लिष्टकान्ति-श० ५, १९ 2. चमक, नस्य युक्तं हि लाङ्गलभूतः पतनं पृथिव्याम् ---उद्भट प्रभा, दीप्ति-मेघ० ८४ 3. व्यक्गित सजावट या 3. मदमाते हाथी की कनपटियों से बहने वाला मद शृङ्गार 4. कामना, इच्छा 5. (अलं० शा० में) 4. सरस्वती की उपाधि, विद्यादेवी 5. मादा कोयल। प्रेमोददीप्त सौन्दर्य (सा.द. शोभा और दीप्ति से कादम्बिनी (स्त्री०) [कादम्ब+इनि+डीप ] बादलों की कान्ति को इस प्रकार भिन्न बताता है .-रूपयौवनपंक्ति--मदीयमतिचुम्बिनी भवत् कापि कादम्बिनी-- लालित्यं भोगाद्यैरङ्गभूषणम, शोभा प्रोक्ता सैव कान्तिरस०, भामि० ४।९। मन्मथाप्यायिता द्युतिः, कान्तिरेवाति विस्तीर्णा दीप्तिकादाचित्क (वि.) (स्त्री०-को) [कदाचित् +ठन ] रित्यभिधीयते--१३०, १३१) 6. मनोहर या कमनीय सांयोगिक, आकस्मिक । स्त्री 7. दुर्गा की उपाधि । सम०-कर (वि०) काद्रवेय: [कद्रोः अपत्यम्--कद्रु+ढक् ] एक प्रकार का सौन्दर्य बढ़ाने वाला, शोभा बढ़ाने वाला,-द (वि०) सांप। सौन्दर्य देने वाला, अलंकृत करने वाला (वम्) काननम् [ कन्+णि+ल्युट ] 1. जङगल, बाग- रघु० । 1. पित्त 2. घी,-,-दायक,–दायिन् (वि०) १२।२७, १३।१८ मेघ० १८, ४२, काननावनि अलंकृत करने वाला,-भृत् (पुं०) चन्द्रमा । ...-जङगल की भूमि 2. घर, मकान । सम०--अग्निः । कान्तिमत (वि.) [ कान्ति+मतुप ] मनोहर, सुन्दर, भव्य जंगली आग, दावानल,---ओकस (40) 1. जंगलवासी | कू० ४।५, ५।७१, मेघ० ३०.-(पू०) चन्द्रमा। 2. बन्दर। कान्दवम् [ कन्दु-+-अण् ] लोहे की कढ़ाई या चूल्हे में धुनी कानिष्ठिकम [ कनिष्ठिका+अण ] हाथ की सबसे छोटी हुई कोई वस्तु । (कनो) अंगुली,। कान्दविक (वि.)[ कान्दव+ठक ] नानबाई, हलवाई। कानिष्ठिनेयः,-यो [ कनिष्ठा+अपत्यार्थे ठक, इनङ च ] कान्दिशीक (वि.) [ का दिशां यामीत्येवं वादिनोऽर्थे ठक, सबसे छोटी लड़की की सन्तान । पृषो० साधुः ] 1. उड़ने वाला, भागने वाला, भगोड़ा कानीनः कन्यायाः जातः-कन्या-अण, कानीन आदेश] --मृगजनः कान्दिशीकः संवृत्तः पंच० ११२, (अतः) अविवाहिता स्त्री का पुत्र--कानीन: कन्यकाजातो । अस्त, भयभीत-भामि०२।१७८ । HEALTHHETHERE For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६५ ) कान्यकुब्जः [ कन्या कुब्जा यत्र-कन्याकुब्ज+अण् पृषो० | रति है, जिस समय देवताओं को तारक के विरुद्ध युद्ध साधुः ] एक देश का नाम दे० 'कन्याकूब्ज'। करने के निमित्त अपनी सेनाओं के लिए सेनापति की कापटिक (वि.) (स्त्री० की) [ कपट+ठक ] 1. जाल- आवश्यकता हुई तो उन्होंने कामदेव से सहायता मांगी साज, बेईमान 2. दुष्ट, कुटिल,-क: चापलूस, चाटु- जिससे कि शिव का ध्यान पार्वती की ओर आकृष्ट कार, पिछलग्गू। हो, यही एक बात थी जो राक्षसों का काम तमाम कापटयम् [ कपट+ष्या ] दुष्टता, जालसाजी, धोखा- कर सकती थी। कामदेव ने इस बात का बीड़ा देही। उठा लिया परन्तु शिव ने अपनी तपस्या के विघ्न से कापथ: [ कुत्सितः पन्थाः ] खराब सड़क (शा० और | क्रुद्ध हो अपने तृतीय नेत्र की अग्नि से काम को भस्म आलं० ) कर दिया। उसके पश्चात् रति की प्रार्थना पर शिब कापाल:, कापालिक: [ कपाल+अण, ठक् वा ] शैव सम्प्र- ने कामदेव को प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने की अनुमति दाय के अन्तर्गत विशिष्ट सम्प्रदाय का अनुयायी दे दी। उसका घनिष्ठ मित्र बसन्त ऋतु और पुत्र (वामाचारी) जो मनुष्य की खोपड़ियों की माला अनिरुद्ध है, वह धनुर्बाण से सुसज्जित है-भ्रमरपंक्ति धारण करते हैं और उन्ही में खाते पीते हैं, पंच. ही उसके धनुष की डोरी है-और पांच विविध २२१२। पौधों के फूल ही उसके बाण है )। सम-अग्नि 1. प्रेम कापालिन् (पु.) [ कपाल+अण+इनि ] शिव।। को आग, प्रचंड प्रेम 2. उत्कट इच्छा, कामोन्माद, कापिक (वि.) (स्त्री..- की) [ कपि । ठक ] बन्दर | संदीपनम् 1. कामाग्नि को प्रज्वलित करना 2. कोई जैसी शक्ल सूरत का या बन्दरों की भांति व्यवहार । कामोद्दीपक पदार्थ,- अङकुशः 1. अंगुली का नाखून करने वाला। 2. पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग-अङगः आम का वृक्ष, कापिल (वि०) (स्त्री०-ली) [ कपिल+अण ] 1. कपिल | -अधिकारः प्रेम या इच्छा का प्रभाव,---अधिष्ठित से सम्बन्ध रखने वाला या कपिल का 2. कपिल द्वारा (वि.) प्रेम के वशीभूत,-अनल: देखो 'कामाग्नि', शिक्षित या कपिल से व्युत्पन्न,-ल: कपिल मुनि द्वारा --- अंध (वि.) प्रेम या कामोन्माद के कारण अन्धा, प्रस्तुत सांख्यदर्शन का अनुयायी 2. भूरा रंग। (-ध:) 'कोयल', अंधा कस्तूरी,--अनिन (वि.) कापुरुषः [ कुत्सितः पुरुषः--कोः कदादेश: 1 नीच घृणित जब इच्छा हो तभी भोजन पाने वाला,-अभिकाम व्यक्ति, कायर, नराधम, पाजी-सुसन्तुष्ट: कापुरुषः (वि.) कामुक, कामासक्त,-अरण्यम् प्रमोद वन या स्वल्पकेनापि तुष्यति पंच० १२५, ३६१।। सुहावना उद्यान,-अरि शिव की उपाधि,-अयिन कापेयम् [ कपि-+ठक् ] 1. बन्दर की जाति का 2. बन्दर (वि०) शृंगार प्रिय, विषयी, कामासक्त,- अवतारः जैसा व्यवहार बन्दर जैसे दांव पेंच।। प्रद्युम्न,--अवसायः प्रणयोन्माद या काम का दमन, कापोत (वि.) (स्त्री०-ती) [ कपोत+अण् । भूरे रंग वैराग्य,-अशनम् 1. जब चाहे तब भोजन करना, का, धूसर रंग का,–तम् 1. कबूतरों का समूह 2. सुर्मा, इच्छानुकुल खाना 2. अनियन्त्रित सखोपभोग,--आतर ...तः भूरा रंग । सम-अंजनम् आंखों में आँजने (वि०) प्रेम का रोगी, काम वेग के कारण रुग्ण का सुर्मा। --कामातुराणां न भयं न लज्जा---सुभा०, आत्मजः काम् (अव्य०) आवाज देकर बुलाने के लिए प्रयुक्त होने प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध का विशेषण-आत्मन् (वि.) वाला अव्यय । विषयी, कामुक, आसक्त--मनु० ७।२७,-आयुधम् कामः [कम्+घा] । कामना, इच्छा- सन्तानकामाय- 1. कामदेव का बाण 2. जननेन्द्रिय (धः) आम का रघु० २१६५, ३।६७, (प्रायः तुमुन्नन्त के साथ वृक्ष,--आयुः (पुं०) 1. गिद्ध 2. गरुड़,-आर्त (वि०) प्रयुक्त) गन्तुकामः-जाने का इच्छुक-भग० २।६२, प्रेम का रोगी, कामाभिभूत-कामार्ता हि प्रकृतिमनु० २।९४ 2. अभीष्ट पदार्थ --सर्वान् कामान् सम- कृपणाश्चेतनाचेतनेषु-मेघ० ५,-आसक्त (वि.) श्नुते--मनु० २१५ 3. स्नेह, अनुराग 4. प्रेम या प्रेम या इच्छा के वशीभूत, कामोन्मत्त, कामासक्त, विषम भोग की इच्छा जो जीवन के चार उद्देश्यों ---ईप्सु (वि.) अभीष्ट पदार्थ प्राप्त करने के लिए (पुरुषार्थ) में से एक है-तु० अर्थ और अर्थ काम सचेष्ट,--ईश्वर: 1. कुबेर का विशेषण 2. परमात्मा, 5. विषयों से तप्ति की इच्छा, कामुकता मनु० २।२१४ -उदकम् 1. जल का ऐच्छिक तर्पण 2. विधि द्वारा 6. कामदेव 7. प्रद्युम्न 8. बलराम 9. एक प्रकार का | विहित अधिकारियों को छोड कर दिवंगत मित्रों का आप- मम 1. विषय, इच्छित पदार्थ 2. वीर्य, धातु : जल से ऐच्छिक तर्पण- याज्ञ०३।४, उपहत (वि.) (हिन्दू पौराणिकता के अनुसार काम ही कामदेव है। कामोन्माद के वशीभूत, या प्रणय रोगी,--कला काम -- वही कृष्ण व रुक्मिणी का पुत्र है। उसकी पत्नी की पत्नी रति,-काम-कामिन् (वि०) प्रेम या ३४ For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६६ ) कामोन्माद के अधिदेशों का अनुयायी,- कार (वि०)। (ब.व.) विषयोपभोग में तृप्ति,-महः चत्रपूर्णिमा को इच्छानुकूल काम करने वाला, अपनी कामनाओं में मनाया जाने वाला कामदेव का पर्व,-मूढ़- मोहित लिप्त रहने वाला (-रः) 1. ऐच्छिक कार्य, स्वतः (वि.) प्रेमप्रभावित या प्रेमाकृष्ट---उत्तर० २।५, स्फूर्त कर्म-.-मनु० १११४१, ४५ 2. इच्छा, इच्छा —रस: वीर्यपात,-रसिक (वि.) कामासक्त, कामात का प्रभाव ---भग० ५.११,-कूटः 1. वेश्या का प्रेमी - क्षणमपि युवा कामरसिक... भर्तृ ० ३।११२,... रूप 2. वेश्यावृत्ति,--कृत् (वि.) 1. इच्छानुसार समय (वि.) 1. इच्छानुकूल रूप धारण करने वाला, पर कार्य करने वाला, इच्छानुकूल कार्य करने वाला —जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः मेघ०६ 2. इच्छा को पूरी करने वाला, (पु०) परमात्मा, 2. सुन्दर, सुहावना (-पाः) (ब० व०) बंगाल के पूर्व -केलि वि०) कामासक्त (लिः) 1. प्रेमी 2. संभोग | में स्थित एक जिला (आसाम का पदिचमी भाग) -क्रीडा 1. प्रेम की रंगरेली, श्रृंगारी खेल 2. संभोग, ---रघु० ४।८०, ८४, रेखा, लेखा वेश्या, रंडी, -ग (वि.) इच्छानुकूल जाने वाला, इच्छानुसार - लता पुरुष की जननेंद्रिय, लिंग,-लोल (वि.) आने जाने या कार्य करने के योग्य (-गा) असती तथा कामोन्मत्त, प्रेम का रोगी, बरः इच्छानुकल चुना कामुक स्त्री याज्ञ० ३१६,-गति (वि०) अभीष्ट हुआ उपहार,-वल्लभः 1. वसन्त ऋतु 2. आम का स्थान पर जाने के योग्य-रघु० १३७६, --गुणः वृक्ष ( भा) ज्योत्स्ना, चांदनी,-वश (वि०) प्रेम1. प्रणयोन्माद का गुण, स्नेह 2. संतृप्ति, भरपूर मुग्ध, (शः) प्रेम के वशीभूत होना,-वश्य (वि०) सुखोपभोग 3. विषय, इन्द्रियों को आकृष्ट करने वाले प्रेमासवत,-वाद (वि०) इच्छानुसार कुछ भी कहना, पदार्थ,-चर-चार (वि०) विना किसी प्रतिबंध मनमाना कहना,-विहंत (वि०) इच्छाओं का हनन के स्वतंत्र रूप से घूमने वाला, इच्छानुकूल भ्रमण करने वाला,-वृत्त (वि०) विषय वासना में लिप्त, करने वाला--कु० श५०, --चार (वि०) अनियंत्रित, स्वेच्छाचारी, व्यसनासक्न-मनु० ५।१५४,-- वृत्ति प्रतिबंधरहित (-र:) 1. अनियन्त्रित गति 2. स्वतंत्र (वि०) इच्छानुसार काम करने वाला, स्वेच्छाचारी, या स्वेच्छापूर्वक कार्य, स्वेच्छाचारिता-न कामचारो स्वतंत्र-न कामवृत्तिर्वचनीयमीक्षते कू० ५।८२, मयि शनीयः— रघु० १४१६२ 3. अपनी इच्छा या (स्त्री०...तिः) 1. मुक्त अनियंत्रित कार्य 2. मन की अभिलाषा, स्वतंत्र इच्छा, कामचारानुज्ञा-सिद्धा०, स्वतंत्रता, वृद्धिः (स्त्री०) कामेच्छा में वृद्धि,-वृन्तम् मन०, २।२२०4. विषयासक्ति 5. स्वार्थ,-चारिन श्रृंगवल्ली का फूल,--शरः 1. प्रेम का बाण 2. आम (वि.) 1. बिना किसी प्रतिबंध के घूमने वाला का वृक्ष, शास्त्रम् प्रेमविज्ञान रतिशास्त्र,-संयोगः ---मेघ० ६३ 2. कामासक्त, विषयी 3. स्वेच्छाचारी अभीष्ट पदार्थों की प्राप्ति,-सखः वसन्त ऋतु,-सू (पुं०) 1. गरुड़ 2. चिड़िया,---ज (वि०) इच्छा या (वि.) इच्छा को पूरा करने वाला-रघु० ५।३३, कामोन्माद से उत्पन्न-मनु० ७.४६, ४७, ५०, ---सूत्रम् वात्स्यायनम निकृत रतिशास्त्र,-हेतुक -जित् (वि.) कामोन्माद या प्रेम को जीतने वाला (वि.) बिना वास्तविक कारण के केवल इच्छामात्र -रघु० ९/३३, (पुं०) 1. स्कंद की उपाधि 2. शिव, से उत्पन्न--भग० १६१८ तालः कोयल,--द (वि०) इच्छा पूरी करने वाला, | कामतः (अव्य०) [ काम+तसिल ] 1. स्वेच्छा से, इच्छाप्रार्थना स्वीकार करने वाला,-दा-कामधेनु, वर्शन पूर्वक 2. अपनी इच्छा से, ज्ञानपूर्वक, इरादतन, (वि०) मनोहर दिखाई देने वाला,-दुघ (वि.) जानबूझ कर-मनु० ४।१३०,—पदास्पृष्टं च कामतः अपनी इच्छाओं को दोहने वाला, अभीष्ट पदार्थों को याज्ञ० १११६८ 3. प्रेमावेश में, भावनावश, कामुकदेने वाला-प्रीता कामदुधा हि सा-रघु० १२८०, तावश-मनु० ३११७३ 4. इच्छापूर्वक, स्वतन्त्रता से, २६३, मा० ३।११,-दुघा-दुह (स्त्री० सब | बिना किसी नियन्त्रण के। इच्छाओं को पूरा करने वाली काल्पनिक गाय--भग० कामन (वि.) [ कम्+णिक+युच ] कामासक्त, कामा१०.२८,---बूती मादा कोयल,-देवः प्रेम का देवता, तुर, -नम् चाह, कामना,---ना कामना, इच्छा। –धेनुः (स्त्री०) समृद्धि की गौ, सब इच्छाओं को कामनीयम् [ कमनीयस्य भावः-अण ] सौन्दर्य, आकर्षपूरा करने वाली स्वर्गीय गाय,-ध्वंसिन् (पुं०) शिव की उपाधि,-पति-पत्नी (स्त्री०) कामदेव की | कामन्धमिन (पुं०) [ कामं यथेष्ट धमति-काम-मा स्त्री रति,-पाल: बलराम,—प्रवेदनम अपनी इच्छा, | +णिनि, धमादेशः मुम् च नि० ] कसेरा, ठठेरा। कामना या आशा को अभिव्यक्त करना - कच्चित् कामम् (अध्य०) [कम् --णिड-- अम्] 1. कामना या रुचि कामप्रवेदने अमर०,-प्रश्न: अनियन्त्रित या मुक्त | के अनुसार, इच्छानुसार, कामगामी 2. सहमतिपूर्वक प्रश्न-फल: आम के वृक्ष की एक जाति,--भोगाः । चाहना-मुद्रा० ११२५ 3. मन भर कर- उत्तर० For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६७ ) ३।१६ 4. इच्छापूर्वक, प्रसन्नता के साथ-शा० ४१४ | काम्बलः [ कम्बलेन आवृतः-कम्बल+अण् ] ऊनी कपड़े 5. अच्छा, बहुत अच्छा (स्वीकृतिबोधक अव्यय), या कंबल से ढकी हुई गाड़ी।। ऐसा हो सकता है कि मनागनभ्यावृत्त्या वा कामं काम्बविक: [ कम्बु+ठक ] शंख या सीपी के बने आभूषणों क्षाम्यत् यः क्षमी-शि० २१४३ 6. मान लिया (कि) का विक्रेता, शंख या सीपी का व्यापारी। यह सच है कि, निस्सन्देह (प्राय: इसके पश्चात् 'तु' | काम्बोजः [ कम्बोज+अण् ] 1. कंबोज देश का निवासी 'तथापि' का प्रयोग होता है) -- कामं न तिष्ठति मदा- --मन्० १०॥४४ 2. कंबोज का राजा 3. पुन्नाग वृक्ष ननसंमुखी सा भूयिष्ठमन्यविषया न तु दृष्टिरस्याः श० 4. कंबोज देश के घोड़ों की एक जाति । ११३१, २०१, रघु० ४।१३, ६।२२, १३१७५, मा० काम्य (वि.) [ कम्+णि+यत् ] वांछनीय, इच्छा के ९।३४ 7. बशक, सचमुच, वास्तव में,-रघु० २।४३ उपयुक्त-सुधा विष्ठा च काम्याशनम्-श० २।८ (बहुधा अनिच्छा या विरोध निहित रहता है) 2. ऐच्छिक, किसी विशेष उद्देश्य से किया गया (विप० 8. अधिक अच्छा, चाहे (प्राय: 'न' के साथ)-काममा- नित्य)-अन्ते काम्यस्य कर्मण:---रघु० १०५०, मनु० मरणात्तिष्ठेद् गृहे कन्यत॒मत्यपि, न चैवैनां प्रयच्छेत्तु २।२, १२।८९, भग० १८०२ 3. सुन्दर, मनोहर, गुणहीनाय कहिचित्-मनु० ७।८९। लावण्यमय, खूबसूरत–नासौ न काम्यः-रघु० ६। कामयमान, (वि.) [कम्+णिड-शानच, पक्षे मक, ३०, उत्तर० ५.१२,--म्या कामना, इच्छा, इरादा, कामयान, | तृच वा] कामासक्त, कामुक-रघु० १९५० --प्रार्थना ब्राह्मणकाम्या-मृच्छ ०३, रघु० ११३५, भग. कामयितु .Jश०३। १०११। सम ०-अभिप्रायः स्वार्थनिहित प्रयोजन, कामल (वि.) [कम् +-णिक कलच] कामासक्त, कामुक -- कर्मन् (नपुं०) किसी विशेष उददेश्य तथा भावी -ल: 1 वसन्त ऋतु 2. मरुस्थल । फल की दृष्टि से किया गया धर्मानुष्ठान, गिर कामलिका [कमल-कन्+टाप, इत्वम्] मादक शराब । (स्त्री०) रुचि के अनुकूल भाषण,-दानम् 1. स्वीकामवत् (वि.) [काम+मतुप्, मस्य वत्वम्] 1. इच्छुक, कार करने योग्य उपहार 2. स्वतंत्र इच्छा से दिया चाहने वाला 2. कामासक्त । गया उपहार, ऐच्छिक भेंट,-मरणम् स्वेच्छापूर्वक कामिन (वि.) (स्त्री०-नी) [कम+णिनि] 1. कामासक्त मरना, आत्महत्या,-व्रतम् ऐच्छिक ब्रत । 2. इच्छुक 3. प्रेमी, प्रिय, (पुं०) 1. प्रेम करने वाला | काम्ल (वि.) [ ईषत् अम्ल:-कोः कादेशः] कुछ कामुक (स्त्रियों की ओर विशेष ध्यान देने वाला) थोड़ा खट्टा, ईषदम्ल। -त्वया चन्द्रमसा चातिसन्धीयते कामिजनसार्थ:---श० कायः, यम् [चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि। ३, त्वां कामिनो मदनदतिमदाहरन्ति--विक्रम० ४।११, घा, आदे: ककारः] 1. शरीर-विभाति कायः करुअनरु २, मालवि० ३३१४ 2. जोरु का गुलाम, णापराणां परोपकारनं तु चन्दनेन—भर्तृ० २०७१, 3. चकवा 4. चिड़िया 5. शिव की उपाधि 6. चंद्रमा कायेन मनसा बुद्धचा- भग० ५.११ इसी प्रकार 7. कबूतर,-नी 1. प्रेम करने वाली, स्नेहमयी, प्रिय कायेन, वाचा, मनसा आदि 2. वृक्ष का तना 3. वीणा स्त्री-मनु०८११२ 2. मनोहर और सुन्दर स्त्री - का शरीर (तोरों को छोड़कर वीणा का ढाँचा) उदयति हि शशांकः कामिनीगण्डपाण्डुः - मच्छ० ११५७ 4. समुदाय, जमघट, संचय 5. मूलधन, पूंजी 6. घर, केषां नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय—प्रस० १॥ आवास, वसति 7. कुंदा, चिह्न 8. नैसर्गिक स्वभाव २२ 3. सामान्य स्त्री-मगया जहार चतुरेव कामिनी - यम् ('तीर्थ' के साथ या 'तीर्थ' के बिना) अंग----रघु० ९।६९, मेघ० ६३, ६७, ऋतु. १।२८ लियों से नीचे का हाथ का भाग, विशेषकर कन्नो 4. भीरु स्त्री 5. मादक शराब । अंगुली (यह अंगुलो प्रजापति के लिए पावन मानी कामुक (वि.) (स्त्री० --का, -को) [कम् + उकञ् ] जाती है और 'प्रजापति तीर्थ' कहलाती है-तू० 1. कामना करता हुआ, इच्छुक 2. कामासक्त, कामातुर, मनु० २।५८,५९),-यः आठ प्रकार के विवाहों में से -क: 1. प्रमी, कामातुर-कामकैः कुम्भीलकैश्च परि- एक जिसे 'प्राजापत्य' कहते हैं--याज्ञ० ११६०, मनु० हर्तव्या चन्द्रिका --मालवि० ४, रघु० १९।३३, ऋतु० ३१३८ । सम०-अग्निः पाचनशक्ति,-क्लेशः शरीर ६९ 2. चिड़िया 3. अशोकवृक्ष --का) धन की का कष्ट या पीड़ा,-चिकित्सा आयर्वेद के आठ इच्छुक स्त्री(-की) कामातुर या कामासक्त स्त्री। विभागों में से तीसरा, समस्त शरीर में व्याप्त रोगों काम्पिल्लः, काम्पीलः [ कम्पिला नदी विशेषः तस्याः अदूरे की चिकित्सा,- मानम् शरीर की माप,--वलनम् भवः - कम्पिला+अण्=काम्पिल+अरम् नि० साधुः कवच,-स्थः 1. लेखक जाति (क्षत्रियपिता और कम्पिला+अण् नि० दीर्घः,] एक वृक्ष का नाम-मा० शुद्र माता की संतान) 2. इस जाति का पुरुष-कायस्थ ९।३१। इति लध्वी मात्रा-मुद्रा० १, याज्ञ० ११३३६ मृच्छ० ९, For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६८ ) (स्त्री०-स्था) 1. कायस्थ जाति की स्त्री | वधुः शयने--काव्य०१०, --हेतः क्रियात्मक या क्रिया2. आंवले का वृक्ष (स्त्री०-स्थी) कायस्थ की पत्नी, परक कारण (विप० ज्ञापक हेतु)। --स्थित (वि०) शरीरगत, शारीरिक । कारणम् कृ+णिच+ ल्युट] 1. हेतू, तर्क –कारणकोपाः कायक (स्त्री०-यिका), कायिक (स्त्री०-की) (वि.) कुटुम्बिन्य:-मालवि० श२८, रघु० १।७४, भग०१३। [काय-बुज, स्त्रियां टाप्, इत्वम्-काय+ठक २१ 2. आधार, प्रयोजन, उद्देश्य-कि पुन: कारणम्स्त्रियां ङीप्] शरीर संबंधी, शारीरिक, शरीर विष महा०, याज्ञ० २।२०३, मनु० ८।३४७, कारणमानुषीं यक---कायिकतप:--मनु० १२१८,--का ब्याज (धन तनुम्-रघु० १६।२२ 3. उपकरण, साधन-याज्ञ० के उपयोग के बदले में जो कुछ दिया जाय)। सम० ३।२०६५ 4. (न्या० द. में) वह कारक जो निश्चित -~-वृद्धिः (स्त्री०) धरोहर रखे हुए किसी पशु या रूप से किसी फल का पूर्ववर्ती कारण हो, या 'मिल' के वाणिज्य-सामग्रो के उपयोग के बदले मजरा दिया मतानुसार-'पूर्ववर्ती कारण या उनका समूह जिन पर गया ब्याज 2. एसा ब्याज जिसकी अदायगी से कार्य निश्चित रूप से, बिना किसी लागलपेट के निर्भर मूलधन पर कोई प्रभाव न पड़े, धरोहर रक्खे हुए पशु करता है; नैयायिकों के मतानुसार इसके तीन भेद को उपयोग म लाना। हैं:-(क) समवायि (घनिष्ठ और अन्तहित) जैसा कार (वि.) (स्त्री०-री) [कृ+अण, घा वा] (समास कि कपड़े का कारण तन्तु,---धागे (ख) असमवायि के अन्त में) बनाने वाला, करने वाला, सम्पादन करन (जो न तो घनिष्ठ हो न अन्तहित) जैसा कि कपड़े वाला, कार्य करने वाला, निर्माता, कर्ता, रचयिता के लिए तन्तुओं का संयोग (ग) निमित्त (उपकरणा-ग्रंथकारः = रचयिता, कुंभकारः, स्वर्णकारः आदि, त्मक) जैसा कि कपड़े के लिए जुलाहे की खड्डी -र: 1. कृत्य, कार्य जैसा कि 'पुरुषकार' में 2. किसी 5. जननात्मक कारण-सृष्टिकर्ता, पिता, कू० ५।८१ एसी ध्वनि या शब्द को प्रकट करने वाला पद जो 6. तस्व, तत्त्व-सामग्री-याज्ञ० ३११४८, भग० १८१३ विभक्ति चिह्न से युक्त न हो जैसा कि अकार,-मनु० 7. किसी नाटक या काव्य का मूल या कथावस्तु आदि २२७६, १२६, ककार, फूत्कार आदि 3. प्रयास, चेष्टा 8. इन्द्रिय 9. शरीर 10 चिह्न, दस्तावेज, प्रमाण या -शि० १९।२७ 4. धार्मिक तप 5. पति, स्वामी, अधिकार-पत्र-मनु० ११५८४ 11 जिसके ऊपर कोई मालिक 6. संकल्प 7. शक्ति, सामथ्र्य 8. कर या चंगी मत या व्यवस्था निर्भर करती है। सम०--उत्तरम् 9. हिम का ढर 10 हिमालय पर्वत। सम०---अवरः विशेष तर्क, अभियोग के कारण को मुकरना (स्वीकार एक मिश्रित या नीचजाति का पुरुष जो निषाद पिता न करना), आरोप को सामान्यतः मान लेना परन्तु व वैदेही माता से उत्पन्न हुआ--तु० मनु० १०॥३६, वास्तविक (वंध) तथ्य को अस्वीकृत कर देना,--कार-~कर (वि.) कार्य करने वाला, अभिकर्ता,-भूः णम् प्रारंभिक या प्राथमिक कारण, अण,—गुणः कारण चुंगीघर । का गुण,-भूत (वि.) 1. जो कारण बना हो 2. कारक (वि०) (स्त्री०–रिका) [कृ+बुल] (प्रायः समास कारण बनने वाला,-माला एक अलंकार 'कारणों की के अन्त में) 1. बनान वाला, अभिनय करने वाला, शृंखला'-यथोत्तरं चेत्पूर्वस्य पूर्वस्यार्थस्य हेतूता, तदा करन वाला, सम्पादन करने वाला, रचने वाला, कर्ता कारणमाला स्यात्-काव्य०१०-उदा० भग० २।६२, आदि--स्वप्नस्य कारक:---याज्ञ० ३११५०, २।१५६, ६३, सा० द०७२८,–वादिन (पू) अभियोक्ता, वर्णसंकरकारक:-भग० ११४२, मनु० ७२०४ पंच० वादो,--वारि (नपुं०) सृष्टि के आरंभ में उत्पन्न मूल ५।३६ 2. अभिकर्ता-कम् । (व्या० में) संज्ञा और जल,---विहीन (वि.) विना कारण के,-शरीरम् क्रिया के मध्य रहने वाला संबंध (या संज्ञा और उससे (वेदान्त द०) शरीर का आन्तरिक बीजारोपण, मूलसंबद्ध अन्य शब्द) इस प्रकार के कारक गिनती म सूत्र, या कारणों की रूपरेखा । छः ह जा 'संबंधकारक' को छोड़कर शेष विभक्तियों कारणा| कृ+-णिच् +युचु+टाप् ] 1. पीड़ा, वेदना से संबद्ध है १. कर्ता २. कर्म ३. करण ४. सम्प्रदान 2. नरक में डालना। ५. अपादान और ६. अधिकरण 2. व्याकरण का वह कारणिक (वि.) कारण+ठक] 1. परीक्षक, निर्णायक भाग जो इनके व्यवहार को बतलाता है -- अर्थात् 2. कारण परक, नैमित्तिक! वाक्य रचना या कारक-प्रकरण । सम०-दीपकम् - कारण्डवः [ रम् +5=रण्डः, ईषत् रण्ड:-कारण्डः तं (अलं. शा० म) एक अलंकार जिसमें एक ही वाति-वा+क] एक प्रकार की बत्तख-तप्तं कारक उत्तरोतर अनेक क्रियाओं से संयुक्त हो--उदा० वारि विहाय तीरनलिनों कारण्डव: सेवते-विक्रम -खिद्यति कणति वेल्लति विचलति निमिषति विलोक- २।२३। यति तिर्यक, अन्तनंदति चुम्बितुमिच्छति नवपरिणया । कारन्धमिन् (प.) [कर एव कारः, तं घमति, कार+ध्मा For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६९ ) +इनि पृषो०] 1. कसेरा 2. खनिज विद्या को जानने | कार्तवीर्यः [ कृतवीर्य-+-अण ] कृतवीर्य का पुत्र हैहय देश वाला। का राजा, जिसकी राजधानी माहिष्मती नगरी थी कारवः [का इति रवो यस्य ब० स०] कौवा । (पूजा के फलस्वरूप उसने दत्तात्रेय से कई वर प्राप्त कारस्करः [कारं करोति-कार कृ+ट, सुट्] किपाक किये जैसे कि हजार भुजायें, स्वर्णमय रथ जो वृक्ष । इच्छानुसार जहाँ चाहे जा सकता था, न्याय द्वारा कारा कीर्यते क्षिप्यते दण्डा) यस्याम-कृ+अडर, गुणः, अनिष्ट निवारण की शक्ति, दिग्विजय, शत्रुओं द्वारा दीर्घः नि०] 1. कारावास, बन्दीकरण 2. जेलखाना, अपराजेयता आदि (तु० रघु०६।३९) । वायुपुराण के बन्दीगृह 3. वीणा का गर्दन के नीचे का भाग, तूंबी अनुसार धर्म तथा न्याय पूर्वक उसने ८५४०० वर्ष तक 4. पीडा, कष्ट 5. दूती 6. सोने का काम करने वाली राज्य किया तथा १०००० यज्ञ किए। वह रावण स्त्री। सम० --अगारम,--गहम्-वेश्मन् बन्दीघर, का समकालीन था, उसने रावण को अपनी नगरी के जेलखाना-कारागृहे निजितवासवेन लड्डेश्वरेणोषित- एक कोने में पशु की भाँति बन्दीखाने में डाल दिया माप्रसादात् ---रघु० ६।४०, शा० ४११०, भर्तृ ० ३१२१, -तु० रघु० ६।४०, कार्तवीर्य को परशराम ने मार - गुप्तः बन्दी, कैदी, पाल: बन्दीगृह का रखवाला, डाला, क्योंकि वह परशुराम के पूज्य पिता जमदग्नि कारागार का अधीक्षक । की कामधेन को उड़ा कर ले गया था। कार्तवीर्य कारिः (स्त्री०) [कृ+-इञ] कार्य, कर्म, (पुं०-स्त्री०) को सहस्रार्जुन भी कहते हैं)। कलाकार, शिल्पकार । कार्तस्वरम् [ कृतस्वर + अण् ] सोना,--स तप्तकार्तस्वरकारिका [कृण्वल+-टाप, इत्वम् ] 1. नर्तकी भासुराम्बरः-शि० ११२०, दंडेन--का०८२ । 2. व्यवसाय, धंधा 3. व्याकरण, दर्शन तथा विज्ञान से कार्तान्तिक: [कृतान्त-+ठक ज्योतिषी, भाग्यवक्ता-कार्तासंबद्ध काव्य, या पद्य संग्रह-उदा०, (व्या० पर) न्तिको नाम भूत्वा भुवं बभ्राम-दश० १३० । भर्तहरि की कारिका, सांख्यकारिका 4. यन्त्रणा, | कातिक (वि.) (स्त्री०-की) [कृत्तिका+अण ] कार्तिक यातना 5. व्याज। मास से संबंध रखने वाला-रघु० १९।३९,----क: कारीषम् [ करीष-+अण् ] सूख गोबर की करसियों का 1. वह महीना जब कि पूरा चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र के ढेर । निकट रहता है (अक्तूबर-नवम्बर महीना) 2. स्कन्द कारु (वि०) (स्त्री०-४) [कृ+अण् ] 1. निर्माता, का विशेषण, (-की) कार्तिक मास की पूर्णिमा। कर्ता, अभिकर्ता, नौकर 2. कारीगर, शिल्पकार, कार्तिकेयः [कृत्तिकानामपत्यं ढक ] स्कन्द (क्योंकि कलाकार - कारुभिः कारितं तेन कृत्रिमं स्वप्नहेतवे उसका पालन-पोषण छः कृत्तिकाओं द्वारा हुआ था) ---विद्धशा० १।१३, इति स्म सा कारुतरेण लेखितं भारतीय पौराणिकता के अनुसार कातिकेय युद्ध का नलस्य च स्वस्य च सख्यमीक्षते-नै० ११३८, याज्ञ० देवता है, शिव जी का पुत्र है, (परन्तु उसके जन्म में २२४९, १२१८७, मनु० ५११२८, १०।१२, (वे ये किसी स्त्री का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं है) उसके जन्म है-तक्षा च तन्त्रवायश्च नापितो रजकस्तथा, पंचम- के विषय में बहुत सी परिस्थितियों का उल्लेख मिलता श्चर्मकारश्च कारवः शिल्पिनो मताः।)-रु:-----देवताओं है। शिव ने अपना वीर्य अग्नि में फेंका (जो कि के शिल्पी विश्वकर्मा 2. कला, विज्ञान। सम० कबूतरी के रूप में शिव के पास गई जब कि वह ----चौरः सेंध मारने वाला, डाक -जः 1. शिल्प से पार्वती के साथ सहवास का सुखोपभोग कर रहे थे) बनी कोई वस्तु, शिल्पकर्म द्वारा निर्मित वस्तु 2. युवा जिसने इसे सहन न करने के कारण गंगा में फेंक हाथी या हाथी का बच्चा 3. पहाड़ी, बमी 4. फेन, दिया (इसीलिए स्कन्द को अग्निभू या गंगापुत्र भी झाग। कहते हैं)। उसके पश्चात् यह छ: कृत्तिकाओं (जब कारणिक (वि.) (स्त्री०-को) [ करुणा+ठक् ] दयालु, बह गंगा में स्नान करने गई) में संक्रांत कर दिया कृपालु, सदय-नागा० १।१ । गया। फलस्वरूप वह सब गर्भवती हुई और प्रत्येक कारण्यम् [करुणा+ष्य ] दया, कृपा, रहम-कारुण्य- ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया परन्तु बाद में इन छ: मातन्यते-गीत० १, करिण्यः कारुण्यास्पदम्-भामि० पत्रों को बड़े रहस्यमय ढंग से जोड़ कर एक कर दिया गया, इस प्रकार वह छ: सिर, बारह हाथ तथा कार्कश्यम् [कर्कशष्या ] 1. कठोरता, रूखापन बारह आँखों वाला असाधारण रूप का व्यक्ति बना 2. दृढ़ता 3. ठोसपन कड़ापन, शि० २०१७ पंच० (इसीलिए उसे कार्तिकेय, षडानन या षण्मुख कहते १।१९. 4. कठोरहृदयता, सख्ती, क्रूरता-कार्कश्यं है)। दूसरी कहानी के अनुसार गंगा ने शिव के गमितेऽपि चेतसि-अमरु २४ । वीर्य को सरकंडों में फेंक दिया, इसी कारण उसे शर For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) । २७० वनभव या शरजन्मा कहते है। कहते हैं कि उसने क्रौंच पहाड़ को विदीर्ण कर दिया इसीलिए वह क्रौंचदारण कहलाता है। एक शक्तिशाली राक्षस तारक के विरुद्ध युद्ध में वह देवताओं की सेना का सेनापति था-जिसमें उसने राक्षसों को परास्त करके तारक को मार डाला, इसीलिए उसका नाम सेनानी और तारकजित है, उसका चित्रण मयूरारोही के रूप में किया जाता है)। सम-प्रसू: (स्त्री०) पार्वती, कातिकेय की माता। कात्स्न्यम् [कृत्स्नध्या ] पूर्णता, समग्रता, समूचापन ---तान्निबोधत कात्स्येन द्विजाग्र्यान् पङ्क्तिपावनान् --मनु० ३।१८३ । कार्दम (वि०) (स्त्री०—मी) [कर्दम+अण्] कीचड़ से भरा हुआ, मिट्टी से सना हा या गारे से लथपथ । कार्पट: [कर्पट+अण्] 1. आवेदक, अभियोक्ता, अभ्यर्थी 2. चिथड़ा 3. लाक्षा। कार्पटिकः [कर्पट--ठक] 1. तीर्थयात्री 2. तीर्थों के जलों को ढोकर अपनी आजीविका कमाने वाला 3. तीर्थ यात्रियों का दल 4. अनुभवी पुरुष 5. पिछलग्ग । कापण्यम् [कृपण--ष्य] 1. गरीबी, दरिद्रता, गरीबीव्यक्तकार्पण्या 2. दया, रहम 3. कंजूसी, बुद्धिदौर्बल्य -भग०१७ 4. लघुता, हल्कापन । कास (वि०) (स्त्री०-सी) [ कास+अण् ] रूई का बना हुआ,-सः,--सम् रूई की बनी हुई कोई वस्तू -मनु० ३८१३२६, १२०६४ 2. कागज,-सी रूई का पौधा, बाड़ी। सम० --अस्थि (नपुं०) कपास का बीज बिनौला,-नासिका तकुआ,-सौत्रिक (वि.) रूई के सूत से बना हुआ-याज्ञ० २।१७९।। कासिक (वि.) (स्त्री०-की) [कसि-+-ठक] कपास का या रूई से बना हुआ। कासिका, कार्पासी कापसी+कन+टाप् ह्रस्व, कापस +डी] रूई या कपास का पौधा, बाड़ी। कार्मण (वि.) (स्त्री०-णी) [कर्मन्+अण्] 1. काम को पूरा करने वाला 2. कार्य को पूर्ण रूप से भलीभांति करने वाला,---णम् जादू, अभिचार ... निखिलनयनाकर्षणे कार्मणज्ञा-भामि०२७९, विक्रमांक०२।१४, ८२। कामिक (वि.) (स्त्रो०-की) [कर्मन्+ठक] 1. हस्तनि मित, हाथ से बना हुआ 2. बेलबूटों से युक्त, रंगीन धागों से अन्तमिश्रित 3. रंगविरंगा या बेलबटेदार वस्त्र। कार्मक (वि०) (स्त्री०-की) [कर्मन्+उका] काम | करने योग्य, भलीभांति और पूर्णत: काम करने वाला, -कम्। धनुष-त्वयि चाधिज्यकार्मुके -श. ११६ | 2. बाँस । कार्य (सं० कृ०) [+ज्यत्] जो किया जाना चाहिए, । बनना चाहिए, सम्पन्न होना चाहिए, कार्यान्वित किया जाना चाहिए आदि,--कार्या सैकतलीनहंसमिथुनासोतोवहा मालिनी-श०६।१६, साक्षिणः कार्या:-मनु० ८.१६, इसी प्रकार दण्डः, विचार: आदि,-र्यम् 1. काम, मामला, बात-कार्य त्वया नः प्रतिपन्नकल्पम् -कु० ३।१४, मनु० ५।१५० 2. कर्तव्य-शि० २१ 3. पेशा, जोखिम का काम, आकस्मिक कार्य 4. धार्मिककृत्य या अनुष्ठान 5. प्रयोजन, उद्देश्य, अभिप्राय --शि० २१३६, हि० ४।६१ 6. कमी, आवश्यकता, प्रयोजन, मतलब (करण के साथ)-कि कार्य भवतो हृतेन दयितास्नेहस्वहस्तेन में-- विक्रम० २।२०, तणेन कार्य भवतीश्वराणाम-पंच० ११७१, अमरु ७१ 7. संचालन, विभाग 8. काननी अभियोग, व्यावहारिक मामला, झगड़ा आदि-बहिनिष्क्रम्य ज्ञायतां कः कः कार्यार्थीति-मच्छ० ९, मनु ० ८।४३ १. फल, किसी कारण का अनिवार्य परिणाम (विप० कारण) 10 (व्या० में) क्रियाविधि, विभक्तिकार्य-रूपनिर्माण 11. नाटक का उपसंहार-कार्योपक्षेपमादी तनुमपि रचयन्- मुद्रा० ४।३ 12. स्वास्थ्य ( आयु. ) 13. मूल । सम-अक्षम (वि०) अपना कार्य करने में असमर्थ अक्षम,-अकार्यविचारः किसी वस्तु के औचित्य से संबंध रखने वाली चर्चा, किसी कार्यप्रणाली के अनकूल या प्रतिकूल विचारविमर्श, अधिप: 1. किसी कार्य या विषय का अधीक्षक 2. वह ग्रह या नक्षत्र जो ज्योतिष में किसी प्रश्न का निर्णायक होता है, अर्थ: किसी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य का उद्देश्य, प्रयोजन मनु० ७।१६७ 2. सेवानियक्ति के लिए आवेदनपत्र 3. उद्देश्य या प्रयोजन,--अथिन (वि.) 1. प्रार्थना करने वाला 2. अपना उद्देश्य या प्रयोजन सिद्ध करने वाला 3. सेवा नियक्ति की खोज करने वाला 4. न्यायालय में अपने पक्ष का समर्थन करना, न्यायालय में जाने वाला-मच्छ०९--आसनम किसी कार्य को संपन्न करने के लिए बैठने का स्थान, गद्दी,- ईक्षणम् सरकारी कार्यों की देखभाल-.. मनु०७।१४१,-उद्धारः कर्तव्य को पूरा करना, -कर (वि०) अचूक, गुणकारी,--कारणे (द्वि० व.) कारण और कार्य, उद्देश्य और प्रयोजन, भावः कारण और कार्य का संबंध,-काल: काम करने का समय, मौसम, उपयुक्त समय या अवसर,--गौरवम किसी कार्य की महत्ता, -- चितक (वि.) 1.बूरदर्शी, सावधान, सतर्क, (-क:) किसी व्यवसाय का प्रबन्धकर्ता, कार्यकारी अधिकारी याज्ञ० २११९१,---च्युत (वि.) कार्यरहित, बेकार, किसी पद से बर्खास्त,-दर्शनम् 1. किसी कार्य का निरीक्षण करना 2. सार्वजनिक मामले की पूछताछ --निर्णयः किसी बात का फैसला,--पुटः 1. निरर्थक For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७१ ) काम करने वाला आदमी 2. पागल, सनकी, विक्षिप्त | भुवनफलके क्रीडति प्राणिशारैः-.-भत० ३१३९ 3. आलसी व्यक्ति, -प्रद्वेषः काम करने में अरुचि, 8. मृत्यु का देवता यम,,---कःकालस्य नगांचरान्तरगतः आलस्य, सुस्ती,-प्रेष्यः अभिकर्ता, दूत,--बस्तु (न०) ---पंच० १११४६ 9. भाग्य, नियति 10. आँख की लक्ष्य और उद्देश्य,---विपत्तिः (स्त्री०) असफलता, पूतली का काला भाग 11. कोयल 12. शनिग्रह 13. शिव प्रतिकूलता, दुर्भाग्य,--शेषः 1. बचा हुआ कार्य-मनु० 14. काल की माप (संगीत और छन्दः शास्त्र में) ७।१५३ 2. कार्य की पूर्ति 3. किसी कार्य का अंश, 15. कलाल, शराबखींचने तथा बेचने वाला 16. अनुभाग, --सिद्धिः (स्त्री०) सफलता, स्थानम काम करने को खण्ड, लम्, लोहा 2. एक प्रकार का सुगंधित जगह, कार्यालय,-हंत 1. दूसरे के कार्य में बाधा डालने द्रव्य । सम० अक्षरिकः साक्षर, पढ़ा लिखा,-अगुरुः वाला,--हि० ११७७ 2. दूसरे के हितों का विरोधी । एक प्रकार का चन्दन का वक्ष, काला अगर--भामि० -- कार्यतः (अव्य०)[कार्य+तसिल] 1. किसी उद्देश्य ११७०, रघु० ४८१ (नपुं०) उस वृक्ष की लकड़ी, या प्रयोजन के कारण 2. फलतः, अनिवार्यतः । ऋतु० ४।५, ५।५,---अग्निः ,—अनलः सृष्टि के अन्त कार्यम् [कृश्न-ध्या] 1. पतलापन, दुर्बलता, दुबलापन में प्रलयाग्नि, अंग (वि.) काले नीले शरीर वाला, ---मेघ० २९ 2. छोटापना, अल्पता, कमी--रधु० (जैसे कि काली नीली धारवाली तलवार),अजिनम् ५।२१। काले हरिण की खाल, अञ्जनम् एक प्रकार का अंजन कार्षः [ कृषि-1-M ] किसान, खेतीहरे। या-सुर्मा कु० ७१२०, ८२, अण्डजः कोयल, अतिरेक: कार्षापणः,–णम् (या पणक:) [ कप + अण् - कार्षः, आ समय की हानि, विलंब,--अत्यय: 1. विलंब 2. समय +पण्+घा आपणः, कार्षस्य आपण: ब० स०] का बीतना 3. काल के बीत जाने के कारण हानि, भिन्न भिन्न मल्य का सिक्का या बट्टा-मनु० ८।१३६, ----अध्यक्षः 1. 'समय का प्रधायक' सूर्य की उपाधि ९।२८२, (=कर्ष),--- णम् धन । 2. परमात्मा, अनुनादिन (प.)1. मधुमक्खी 2. चिड़िया कार्षापणिक (वि.) (स्त्री०-की) [ कार्षापण+टिठन् ] 3. चातक पक्षी, अन्तकः समय जो मृत्यु का देवता एक कार्षापण के मूल्य का। माना जाता है, सर्वसंहारक,- अन्तरम् 1. अन्तराल कार्षिक कार्षापण। 2.समय की अवधि 3. दूसरा समय या अबसर, °आवृत्त कार्ण (वि.) (स्त्री०-- ९) [ कृष्ण-अण् ] 1. कृष्ण (वि०) काल के गर्भ में छिपा हुआ, क्षम (वि०) या विष्णु से सम्बन्ध रखने वाला,-.-रघु० १५।२४ विलम्ब को सहन करने के योग्य--अकालक्षमा देव्याः 2. व्यास से सम्बन्ध रखने वाला 3. काले हरिण से शरीरावस्था--- का० २६२, श० ४, "विषः चूहे की सम्बन्ध रखने वाला--मनु० २।४१ 4. काला। भांति केवल क्रोधित किये जाने पर ही जहरीला जन्तु, कार्णायस (वि०) (स्त्री०--सी ) [ कृष्णायस् + अण् ] --अभ्रः काला जल से भरा हुआ बादल,-अयसम् काले लोहे से बना हुआ,---सम् लोहा।। लोहा,-अवधिः नियत किया हुआ समय,--अशुद्धिः काक्षिणः [ कृष्णस्य अपत्यम्-कृष्ण-+इन ] कामदेव की (स्त्री०) शोक मनाना, सूतक, पातक या जन्म-मरण उपाधि-शि० १९।१० । से पैदा होने वाला अशौच, दे० अशौच,--आयसम् काल (वि.) (स्त्री०-ली) [कु ईषत् कृष्णत्वं लाति लोहा,-----उप्त (वि०) ऋतु आने पर बोया हुआ, ला+क, कोः कादेशः ] 1. काला, काले या काले- ----कञ्जम् नीलकमल,—कटम्,-कटः शिव की उपाधि, नोले रंग का 2. समय --विलंबितफलै: कालं निनाय -- कण्ठः 1. मोर 2. चिड़िया 3. शिव की उपाधि स मनोरथैः-- रघु० ११३६, तस्मिन् काले-उस समय, --उत्तर० ६,करणम्, समय का नियत करना काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्-हि --कणिका,-कर्णी दुर्भाग्य, मुसीबत,-कर्मन (न०) १११, बुद्धिमान् अपना समय बिताते हैं 3. उपयुक्त या मृत्यु,-कोलः कोलाहल,-कुण्ठः यम,-कूटः,- टम् समुचित समय (किसी कार्य को करने के लिए) उचित (क) हलाहल विष (ख) समुद्र मन्थन से प्राप्त तथा समय या अवसर (संबं०, अधि०, सम्प्र० तथा तुमु- शिव द्वारा पिया गया---अद्यापि नोज्झति हर: किल नंत के साथ)-रघु० ३।१२, ४१६, १२॥६९, पर्जन्यः कालकूटम् -चौर० ५०,-कृत् (पुं०) 1. सूर्य 2. मोर कालवर्षी-मच्छ० १०, ६० 4. काल का अंश या 3. परमात्मा,--क्रमः समय का बीतना, समय का अवधि (दिन के घण्टे या पहर)-षष्ठे काले दिवसस्य अनुक्रम--कालक्रमेण-समय पाकर, समय के अनुक्रम -विक्रम २। मनु० ५।१५३ 5. ऋतु 6. वैशे- या प्रक्रिया में, कु० १।१९,क्रिया 1. समय नियत षिकों के द्वारा नौ द्रव्यों में से 'काल' नामक एक द्रव्य करना 2. मृत्यु,-क्षेपः 1. विलंब, समय की हानि 7. परमात्मा जो कि विश्व का संहारक है, क्योंकि -मेष० २२, मरणे कालक्षेपं मा कुरु-पंच०१ 2. वह संहारक नियम का मूर्तरूप है- काल: काल्या समय बिताना,-सब्जनम्,-खण्डम् यकृत, जिगर, For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७२ ) कन्] यह की पुतलाच अच् लिजर --ांगायमनानदी,-प्रन्थिः एक वर्ष,--चक्रम 1. समय जाता है,-संरोधः 1. बहुत देर तक काम में हाथ न का चक्र (समय सदैव घुमते हए पहिए के रूप में डालना--मनु०८।१४३ 2. किसी लम्बे समय का क्षय वर्णित किया जाता है) 2. चक 3. (अत:) (आल०) होना,-सदृश (वि०) उपयुक्त, सामयिक,- सर्पः काले संपत्ति का चक्र, जीवन को परिस्थितियां,-चिह्नम् और अत्यन्त विषैले साँप को जाति, --सारः काला मत्यु के निकट आने का समय,---चोदित (वि०) यम- हरिण,--सूत्रम्, सूत्रकम 1. समय या मृत्य की डोरी दूतों के द्वारा बुलाया हुआ-ज्ञ (वि.) (किसी कार्य 2. एक विशेष नरक का नाम याज्ञ० २।२२२, मनु० के) उचित समय या अवसर को जानने वाला—अत्या- ४१८८-स्कन्धः तमाखू का पेड़,... स्वरूप (वि०) रूढो हि नारीणामकालज्ञो मनोभव:-रघु० १२३३, मृत्यु जैसा भयङ्कर, हरः-शिव की उपाधि,-हरणम् शि० २१८३-ज्ञ: 1. ज्योतिषी 2. मुर्गा,--अयम् तीन समय की हानि, विलम्ब--श० ३, उत्तर० ५,-हानिः काल, भूत, भविष्य और वर्तमान--वी--का० ४६, (स्त्री०) विलम्ब--रघु० १३३१६ । --दण्डः मुत्य, धर्मः,--धर्मन (पु.) 1. किसी विशेष | कालकम् [काल-कन] यकृत, जिगर,-क: 1. मस्सा, झाई समय के लिए उपयुक्त आचरण रेखा 2. निर्दिष्ट 2. पनीला साँप 3. आंख की पुतली काला भाग । काल, मृत्यु-न पुनर्जीवितः कश्चित्कालधर्ममुपागतः | कालंजरः[कालं जरयति-काल---+णि+अच] 1. एक -महा०, परीता: कालधर्मणा-आदि,--धारणा समय- पहाड़ तथा उसका समीपवर्ती प्रदेश (वर्तमास कलिंजर वृद्धि,--नियोगः भाग्य या नियति का समादेश, भाग्य- 2. धार्मिक भिक्षुओं या साधओं की सभा 3. शिव की निर्णय-कि० ९.१३,--निरूपणम समय का निर्धा- उपाधि । रण करना, कालविज्ञान,---नेमिः 1. समय चक्र का | कालशेयम् कलशि ढक] छाछ, मट्ठा (मन्थन के द्वारा घेरा 2. एक राक्षस जो रावण का चाचा था और जिसे जो कलशी में उत्पन्न होता है)। हनुमान को मारने का काम सौंपा गया था 3. सौ हाथों काला [काल-|-अच् ---टाप् दुर्गा की उपाधि । वाला राक्षस जिसे विष्णु ने मारा था,--पक्व (वि०) | कालापः [कालो मत्युः आप्यते यस्मात्-काल-आप्+घञ] अपने समय पर पका हुआ----अर्थात् स्वतः स्फूर्त 1. सिर के वाल2. सांप का फण 3. राक्षस, पिशाच, -~-मनु० ६।१७, २१, याज्ञ० ३।४९,--परिवास: भूत 4. 'कलाप' व्याकरण का विद्यार्थी 5. 'कलाप' थोड़े समय तक पड़े रहने वाला जिससे कि बासी व्याकरण का वेत्ता। जाय,-पाश: यम या मृत्यु का जाल,-पाशिक: कालापकः कालाप --वन] 1. 'कलाप' के विद्यार्थियों का जल्लाद,- पृष्ठम् 1. काले हरिण की जाति 2. बगला समूह 2. कलाप की शिक्षा या उसके सिद्धांत । ( कम्) 1. कर्ण का धनुष-वेणी० ४ 2. सामान्य कालिक (वि.) (स्त्री०-की) काल-ठक 1. काल धनुष,-प्रभातम् शरत्काल (बरसात के पश्चात् आने संबंधी 2. कालाश्रित विशेषः कालिकोऽवस्था---अमर० वाले दो मास का समय सर्वोत्तम समझा जाता है), 3. मौसम के अन कल, सामयिक,-क: 1. सारस,2.बगला, -भक्षः शिव की उपाधि,-मानम् समय का मापना, ---का 1. कालापन, काला रंग 2. मसी, स्याही, मुखः लंगरों की एक जाति, --मेषी मंजिष्ठा पौधा, काली मसी 3. कई किस्तों में दिया जाने वाला मुल्य -यवनः यवनों का राजा कृष्ण का शत्र, यादवों के 4.निर्दिष्ट समय पर दिया जाने वाला सामयिक ब्याज कृष्ण के लिए अपराजेय शत्र, युद्ध क्षेत्र में उसका 5. बादलों का समूह, घनघोर घटा जिसके बरसने का मारना असम्भव समझ कर कृष्ण ने उसको कपट से डर हो--कालिकेव निबिडा बलाकिनी... रघु०११११५ मुचकुन्द की गुफा में धकेल दिया जिसने उसको भस्म 6. सोने में मिलाया जाने वाला खोट 7. यकृत, जिगर करके उसका काम तमाम कर दिया। -यापः,-याप- 8. कौवी 9. बिच्छू 10. मदिरा 11. दुर्गा,-कम् काले नम् टालमटोल करना, देर लगाना, स्थगित करना, चन्दन की लकड़ी। --योगः भाग्य, नियति, योगिन् (पु.) शिव की कालिङ्गग (वि.) (स्त्री०-गो)[कलिङ्ग+अण] कलिंग देश उपाधि,-रात्रिः,-रात्री (स्त्री०) 1. अन्धेरी रात में उत्पन्न या उस देश का,-गः कलिंग देश का राजा 2. विश्व की समाप्तिसूचक महाप्रलय की रात (दुर्गा -प्रतिजग्राह कालिङ्गस्तमस्त्रजसाधन:--रघु०४१४० के साथ समरूपता दिखाई गई है),-लोहम्-स्टील, 2. कलिंग देश का साँप 3. हाथी 4. एक प्रकार की इस्पात,-विप्रकर्षः काल की वृद्धि,--वृद्धिः (स्त्री०) ककड़ी,- गाः (ब०व०) कलिंग देश--दे० कलिंग, सामयिक व्याज (मासिक, त्रैमासिक या बंधे समय पर --गम् तरबूज । देय)-मनु० ८।१५३, वेला शनिकाल, अर्थात् दिनकालिन्द (वि.) (स्त्री०-दी) [कलिन्द+अण+कलिन्द का विशिष्ट समय (प्रतिदिन आधा पहर) जब कि पहाड़ या यमुना नदी से प्राप्त या संबद्ध---कालिन्द्याः किसी भी प्रकार के धर्मकृत्य का करना उचित समझा | पुलिनेषु केलिकुपिताम्-वेणी० १२, रघु० १५।२८ For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७३ ) शा० ४।१६। सम० कर्षणः,-भेदनः वलराम का। डीप् दक्षिणभारत में बहने वाली एक नदी-कावेरी विशेषग, सूः (स्त्री) सूर्य की पत्नी संज्ञा, -सोदरः सरितां पत्युः शकुनीयामिवाकरोत रघु० ४।४५ मृत्युपा देवता यम । 2. [कुत्सितं वेग शरीरमस्याः] वेश्या, रंडी। कालिमन् (०) काल-|-इमनि] कालापन ----अमरु ८८ | काव्य (वि.) [कवि ण्यत् ] 1. ऋषि या कवि के गुणों मि. ४,५७। से यक्त 2. मंत्रद्रष्टाविषयक या पैगम्बरी, प्रेरणा-प्राप्त, कालियः | के जले आलीयते .क+11- लोक अत्यन्त छन्दोबद्ध,-व्यः राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य,---ठया विशालकाय सपं जो कि यमना नदी को तली में रहता 1. प्रज्ञा 2. सखी,-व्यम् 1. कविता, महाकाव्य,-मेघदूतं था। द स्थान सोभरिमपि के बाप के कारण साँगों नाम काव्यम 2. काव्य, कविता, कवितामयी रचना के पत्र पल्ड के लिए निषिद्ध धा। कृष्ण ने जब कि (काव्यशास्त्र के रचयिताओं ने काव्य की भिन्न भिन्न अभी वह बालकही या उस सांप को कुचल दिया परिभाषाएँ दी है----तददोषौ शब्दार्थो सगुणावनलंकृती - ०६।४९ । सम० दानः नः कृष्ण के पुन: क्वापि-काव्य० १, वाक्यं रसात्मकं काव्यम् विशेषण। -सा० द० १, रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम् काली काल | डोप] 1. पालिमा 2. मसी, काली मसी - रस०, शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली 3. पार्वती को उपाधि, गिर की पत्नी काले बादलों ----काव्या० श१०, दे० चन्द्रा० ११७ भी 3. प्रसकी पंक्ति 5. काले रंग की स्त्री 6. व्याल की माता नता, कल्याण 4. बुद्धिमत्ता, अन्तः प्रेरणा। सम० सत्यवती 7. रात, ... तनयः भैसा । - अर्थः कवितासम्बन्धी चिन्तन या विचार, चौरः कालीक: के जले अलति पर्याप्नोति क-1-अल। इकन् दूसरे कवि के विचारों का चोर, काव्य चौर, यदस्य पृषी० दीर्घः एक प्रकार का वगला, प्रौञ्च पक्षी।। दैत्या इव लुण्ठनाय काव्यार्थचौरा: प्रगुणीभवन्ति कालीन (वि०) काल+ब! 1. किसी विशिष्ट समय से ---विक्रमः १११,-चौरः दूसरे व्यक्तियों की कविसम्बन्ध रखने वाला 2. तु के अनुकूल । ताओं को चुराने वाला,---मीमांसकः साहित्यशास्त्री, कालीयात, कासवाल छ, कन् वा एक प्रकार की चन्दन विवेचक,-रसिक (वि.) जो काव्य के सौन्दर्य को की लकड़ी। मराह सके या काव्यरस रखता हो,---लिंगम् एक अलकालुल्यम् कला या 1. मरिनता, गन्दगी, गन्दला- कार, इसकी परिभाषा --काव्यलिङ्गं हेतोवविय पदार्थता पन, पंकिता आलं० से भी)...-काल प्यमुपयाति बुद्धिः ...--काव्य०१०, उदा०--जितोऽसि मन्द कन्दर्प मच्चि..का० १०३, गन्दलीना मलिन हो जाती है तेऽस्ति त्रिलोचनः-चन्द्रा० ५।११९।। 2 नालन 3. अगहमति । काश (भ्वा०, दिवा० आ०--काश-----इय...ते, काशित) कालेय (वि.) किलि-हक कलि-पग से सम्बन्ध रखने 1. चमकना, उज्ज्वल या मुन्दर दिखाई देना--रघु० बाला, यम् 1. जिगर 2. कालो चन्दन को लकड़ी १०.८६, ७।२४, कु० २२४, भट्रि० २२५, शि० ---कु०७२ 3. केसर, जाफ़रान । ६१७४ 2. प्रकट होना. दिखाई देना, नैवभमिर्न च कालेयरु: (०) !. कुना 2. चन्दन को जाति । दिशः प्रदिशो वा चकाशिरे--महा० 3. प्रकट होना, काल्पनिक (वि०) (स्त्री- की कल्पना : ठक्] 1. केवल की भांति दिखाई देना, निस् , (प्रेर०) 1. निकाल विचारों को, बाटी--काल्पनिको व्यत्यति:--2, खोटा, देना, निर्वासित करना, ठेल देना, जलावर्तन करनावनापटी (किसी कला से)। दे० निरा पूर्वक कस्..... खोलना 2. प्रकाशित करना काल्य (वि०) काल ..त् 1. समय पर, "तु के अनुकूल, 3. वृष्टि के सामने प्रस्तुत करना, प्र.-,चमकना, रुचिकर, सुहावना, शुभ, ल्यः पौ फटना, प्रभातकाल ! उज्ज्वल दिखाई देना 2. दिखाई देना, प्रकट होना होना। ... एषु सर्वेषु भूतेषु गूढात्मा न प्रकाशते. कठ० काल्याणकम् [कल्याग--वामांगल्य, शुभ ।। 3. की भांति दिखाई देना या प्रकट होना (प्रेर०) काचिका (वि०) (स्त्री०- की) किवच-ठ] जिरह 1. दिखाना, प्रदर्शित करना, आविष्कार करना, उद्घा बस्तर सम्बधी कवचधारी,--कम् कवचधारी व्यक्तियों टित करना, व्यक्त करना ---अवसरोऽयमात्मानं प्रकाशका समूह। गितम्-श०१, सां० का० ५९ 2. प्रकाश में लाना, कावृकः [कुत्सतो वृक इव, वा पित् वृक इव, को: कादेशः। प्रकाशित करना, उद्घोषणा करना... कदाचित्कुपितं ___ 1. नुर्गा 2. चकमक पक्षी। मित्र सर्वदोष प्रकाशयेत् - चाण० २७ 3. मुद्रित कावेरम् किस्य सूर्यरा इस, वा ईपन रम् अङ्ग यस्य ज्यो- करवाना, प्रकाशित करना (पूस्तक आदि)-प्रणीतः तिर्नपत्यात केसर, जाफ़रान। न तु प्रकाशितः ---उत्तर० ४ 4. रोशनी करना, कावेरी किं जलमेव रं शरीरमस्याः ... क+ र+अण् + (दीपक) जलाना - यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोक ३५ For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २७४ ) मिमं रविः - भग० १३/३३,५१६, प्रति 1. की तरह प्रकट होना 2. विरोध या विषमतास्वरूप चमकना, वि, 1. खिलना, खुलना ( फूल की भांनि ) 2. चमकना, सम्, की भाँति दिखाई देना । काश:, शम् [काश् + अच्] छत में या चटाइयों के बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाला एक प्रकार का घास - ऋतु० ३।१२ - शम् 'काश नामक घास का फूल – कु० ७ ११, रघु० ४।१७, ऋतु० ३३२८, - शः = कासः । काशि (पुं० ब० व० ) [ काश् + इक् ] एक देश का नाम । काशि:, शी (स्त्री० ) [ काश् +इन्, काश् + अच् + ङीष् ] गंगा के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध नगरी, वर्तमान वाराणसी, सात पावन नदियों में से एक - दे० कांची । सम० - पः शिव की उपाधि, राज: एक राजा का नाम, अंबा, अंबिका और अंबालिका के पिता । काशिन् ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) ( प्रायः समास के अंत में ) [काश् +इन्, स्त्रियां ङीप् ] दीप्यमान, किसी का रूप धारण किये हुए दिखाई देने वाला या प्रकट होने वाला, उदा० जितकाशिन् - जो काशि के विजेता की भांति व्यवहार करता है-दे० । काशी- दे० काशि । सम० - नाथः शिव की उपाधि, - यात्रा वाराणसी की तीर्थयात्रा । काश्मरी [काश् + वनिप, र ङीप्, पृषो० मत्वम्] एक पौधा जिसे लोग बहुधा गांधारी के नाम से पुकारते हैं, काश्मर्याः कृतमालमुद्गतदलं को यष्टिकष्टीकते -मा० ९।७। काश्मीर (वि० ) ( स्त्री - री ) [ कश्मीर +अण्] काश्मीर में उत्पन्न, काश्मीर का या काश्मीर से आने वाला, -रा: ( ब० व० ) एक देश और उसके निवासियों का नाम - दे० कश्मीर भी, रम् 1. केसर, जाफरान --- काश्मीरगन्धमृगनाभिकृताङ्गरागाम् - चौर० ८. भर्तृ० १, ४८, काश्मीरगौरवपुषामभिसारिकाणाम् -- गीत० ११, १ भी 2. वृक्ष की जड़ । सम० जम्, - जन्मन् ( नपुं०) केसर, जाफ़रान भामि० १।७१, शि० ११।५३ । काश्यम् [कुत्सितम् अश्यं यस्मात् ब० स०] मदिरा । सम० -पम् मांस । काश्यपः [ कश्यप + अण् ] 1. एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम 2. कणाद । सम० - नन्दनः 1. गरुड़ की उपाधि 2. अरुण का नाम । काश्यपिः [ कश्यप् + इ ] गरुड़ और अरुण विशेषण | का काश्यपी [ काश्यप + ङीष् ] पृथ्वी, तानपि दधासि मातः काश्यपि यातस्तवापि च विवेक:- भामि० १४६८ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काष: [ कष् + घञ ] 1. रगड़ना, खुरचना - पथिषु विटपिनां स्कन्धकाषैः स धूमः - वेणी० २।१८ 2. जिससे कोई वस्तु रगड़ी जाय ( जैसे कि वृक्ष का तना ) -लीनालिःसुरकरिणां कपोलकाषः -- कि० ५/२६, दे० 'कपोलकाष' । काषाय ( वि० ) ( स्त्री० –यी ) [ कषाय +अण्] लाल, गेरुए रंग में रंगा हुआ — काषायवसनाघवा- अमर०, – यम लाल कपड़ा या वस्त्र - इमे काषाये गृहीते मालवि० ५, रघु० १५७७ । काष्ठम् [काश् + क्त्थन् ] 1. लकड़ी का टुकड़ा, विशेषकर ईंधन की लकड़ी मनु० ४।४९, २४१, ५/६० 2. लकड़ी, शहतीर लकड़ी का लट्टा या टुकड़ा यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महोदधी - हि० ४/६९ मनु० ४/४० 3. लकड़ी- याज्ञ० २।२१८ 4. लम्बाई मापने का उपकरण । सम० – अगार अगारम् लकड़ी का घर या घेरा, अम्बुवाहिनी - लकड़ी का डोल, - कबली जंगली केला, कीटः घुण, एक छोटा कीड़ा जो सूखी लकड़ी में पाया जाता है, कुहः, ---- कूट: खुटबढ़ई, कटफोड़वा-पंच० १३३२, ( जंगल में पाया जाने वाला जन्तु), कुदाल: लकड़ी की बनी एक कुदाल जो किस्ती में से पानी उलीचने या उसकी तलों को खुरचने और साफ करने के काम आती है, - तक्ष (पुं० ) - तक्षकः बढ़ई, तन्तुः शहतीर में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा, दारुः दियार या देवदारु का वृक्ष, दु: पलाश (ढाक) का वृक्ष, - पुतलिका कठपुतली, कारु की बनी प्रतिमा, - भारिकः लकड़हारा, मठी (स्त्री० ) चिता, मल्लः अर्थी, लकड़ी का चौखटा जिस पर मुर्दे को रख कर ले जाते हैं, लेखक: लकड़ी में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा, काष्ठकूट, लोहिन् (पुं०) लोहा जड़ा हुआ सोटा, वाट:, - टम् लकड़ी की बनी दीवार । काष्ठकम् [काष्ठ + कन् ] अगर की लकड़ी । - काष्ठा [काश् + क्थन् + टाप् ] 1. संसार का कोई भाग या प्रदेश दिशा, प्रदेश - कि० ३।५५ 2. सीमा, हद स्वयं विशीर्णदुमपर्णवृत्तिता परा हि काष्ठा तपसः - कु० ५/२८ 3. अन्तिम सीमा, चरम सीमा, आधिक्य --काष्ठगत स्नेहसानुविद्धम् कु० ३1३५ 4. घुड़दौड़ का मैदान, मैदान 5. चिह्न, निर्दिष्ट चिह्न 6. अन्तरिक्ष में बादल और वायु का मार्ग 7. काल की माप = ॐ कला । काष्ठिकः [ काष्ठ + ठन् ] लकड़हारा । काष्ठिका [ काष्ठिक+टाप् ] लकड़ी का छोटा टुकड़ा । काष्ठीला ( स्त्री० ) [ कुत्सिता ईषत् वा अष्ठीलेव, को: कादेशः ] केले का पेड़ । For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७५ ) कास् (म्वा० आ० कासते, कासित) 1. चमकना, दे० | किडिरात: [ किकिर-अत्+अण् ] 1. तोता 2. कोयल, काश् 2. खांसना, किसी रोग को प्रकट करने वाली | 3. कामदेव 4. अशोक वृक्ष । आवाज करना। किजल:,--किजल्क: [किंचित् जलं यत्र ब० स०, किंचित् कासः,-सा [कास्+घा 11. खांसी, जुकाम 2. छींक जलम् अपवारयति–किम्+जल+क] कमल का सूत आना, सम० --कुण्ठ (वि.) खांसी से पीडित,----इन, या फूल या कोई दूसरा पौधा-आकर्षद्भिः पकिञ्ज-हृत् (वि.) खांसी दूर करने वाला, कफ ल्कगन्धान्-उत्तर० ३।२, रघु० १५१५२ । निकालने वाला। किटि: [किट +इन्+किच्च] सूअर । कासरः (स्त्री०-री) [ के जले आसरति-क+आ+स् । किटिभः [किटि+मा+क] 1. ज, लीक 2. खटमल। +अच् ] भैसा। किट्टम्, किट्टकम् [ किट्+क्त, स्वाथै कन् च ] स्राव या कासारः,-रम् [ कास्+आरन, कस्य जलस्य आसारो यत्र कीट, विष्ठा, गाद, मैल-अन्न । ब० स०] जोहड़, तालाब, सरोवर - भामि० ११४३, | किट्टाल: [ किट्ट,+अल+अच् ] 1. तांबे का पात्र 2. लोहे भर्तृ० १३३२, गीत०२। का जंग या मुर्चा । कासू (शू) (स्त्री०) [कास्+ऊ] 1. एक प्रकार का किण: [कण्+अच् पृषो० इत्वम्] 1. अनाज, घट्ठा, चकत्ता, भाला 2. अस्पष्ट भाषण 3. प्रकाश, प्रभा 4. रोग | घाव का चिह्न,-ज्ञास्यसि कियद्भुजो मे रक्षति मो:5. भक्ति । किणाङ्क इति-श० १३१३, मृच्छ० २।११, रघु० १६। कासुतिः (स्त्री०) [कुत्सिता सरणिः कोः कादेशः ] ८४, १८।४७, गीत० १ 2. चर्मकील, तिल या मस्सा पगडंडी, गुप्त मार्ग । 3. घुण। काहल (वि.) [कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब० स०] 1. शुष्क, किण्वम | कण+क्वन्, इत्वम् ] पाप- -वः,-एवम मदिरा माया हुआ 2. शरारती 3. अत्यधिक, प्रशस्त के निर्माण में खमीर उठाने वाला बीज, या औषधि विशाल,-ल: 1. बिल्ला 2. मर्गा 3. कौवा 4. सामान्य .. मन ०८।३२६ । । ध्वनि,-लम् अस्पष्ट भाषण,-ला बड़ा ढोल (सैनिक), | कित् (भ्वा० पर०-केतति) 1. चाहना 2. रहना -ली (स्त्री०) तरुण स्त्री 3. (चिकित्सति) स्वस्थ करना, चिकित्सा करना। किंवत् (वि.) [किम्म तुप, मस्य वः ] निर्घन, तुच्छ, कितवः (स्त्री० - वो) [कि+क्त:-कित+वा-क] नगण्य । 1. धूर्त, झूझा, कपटी--अर्हति किल किसव उपद्रवम् किंशाः [किम् +श+ञण् ] 1. अनाज की बाल का -मालवि० ४, अमरु १७, ४१, मेघ० १११ 2. धतूरे अग्रभाग, बाल का सूत, सस्यशक 2. बगला, का पौधा 3. एक प्रकार का गन्धद्रव्य । 3. तीर। किन्धिन् (पुं०) [कि कुत्सिता धीर्बुद्धिरस्य-किंधी किशकः [ किंचित् शुकः शकावयवबिशेष इव--] ढाक का | +इनि ] घोड़ा। पेड़ जिसके फूल बड़े सुन्दर परन्तु निर्गन्ध होते है | किन्नर दे० 'किम्' के नीचे। (विद्याहीना न शोभन्ते निगंधा इव किशका:-चाण० ७, । किम (अव्य०) [ कु-डिम बा०] 'बुराई', 'हास' 'दोष' ऋतु०६।२०, रवु०९।३१,-कम् ढाक का फूल, टेसू,-कि 'कलंक' और निन्दा के भाव को प्रकट करने के लिए किंशुकैः शुकमुखच्छबिभिर्न दग्धम् - ऋतु० ६।२१। यह समस्त शब्द के आदि में केवल 'कु' के स्थान में किंशुलुकः [ किंशुक नि० साधुः ] ढाक का वृक्ष, दे० प्रयुक्त होता है-- उदा०-किसखा बुरा मित्र, किन्नरः किंशुक । -बुरा या विकृत पुरुष आदि, नीचे के समस्त पदों किङ्किः [ कक+इन् पो० इत्वम् ] 1. नारियल का पेड़ को देखो। सम०--दास: बुरा गुलाम या नौकर, 2. नीलकण्ठ पक्षी 3. चातक, पपीहा । इस पक्षी को ---नर. बुरा या विकृत पुरुष, पुराणोक्त पुरुप जिसका किंकिन, किकिदिवि, और किकीदिवि भी कहते हैं )। सिर घोड़े का हो तथा शेष शरीर मनुष्य का-जयो किङ्कणी, किङ्किणिका, किङ्किणी, किङ्कणीका [ किंचित् दाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान्-रघु० ४७८--कु० कणति कण्+इन्+ङीप्, पृषो० साधुः-किंकिणी+ ११८, ईशः 'ईश्वरः कुबेर का विशेषण (स्त्री०-री) कन्+टाप, ह्रस्वश्च ] घूघरुदार आभूषण, करधनी 1. किन्नरी-मंघ० ५६ 2. एक प्रकार की बीणा, -क्वणकनककिङ्किणी झणझणायितस्यन्दनैः उत्तर० -पुरुषः घृणा के योग्य नीच पुरुष, किन्नर-कु० १। ५।५, ६।१, शि० ९१७४, कु० ७।४९ । १४, ईश्वरः कुवेर का विशेषण.-प्रभुः बुरा स्वामी किङ्किरः [ किम् +क+क] 1. घोड़ा 2. कोयल 3. मधु- या राजा हितान्न यः संशृणुते स किप्रभुः,-कि० ११५, मक्खी, 4. कामदेव 5. लाल रंग,—रम् गजकुंभ, ----- राजन् (वि०) बुरे राजा वाला, (पुं०) बुरा राजा, ---रा रुधिर । - सखि (०) (कर्तृ०, ए० व०,--किसखा) बुरा For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७६ मित्र,-स किंसखा साधु न शास्ति योऽधिपम् ---कि० १।५। किम् (सर्व०वि०) (कर्त० ए० व०, ५०-क:) [स्त्री० 'का] [नपुं०--किम् ] 1. कौन, क्या, कौनसा | (प्रश्नवाचक के रूप में)-प्रजासु क: केन पथा प्रयातीत्यशेषतो वेदितुमस्ति शक्तिः --श० ६२६, करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वद किं न मे हृतम -----रघु० ८।६७, का खल्वनेन प्रार्थ्यमानात्मना विकत्थते --विक्रम० २, कः कोऽत्र भोः, सर्वनाम के रूप में यह शब्द कभी कभी कार्य करने की शक्ति या अधिकार' को जताने के लिए प्रयुक्त होता है--उदा० के आवा परित्रातुं दुष्यन्तमाक्रन्द--श० १, 'हम कौन हैं ?' अर्थात् 'हममें क्या शक्ति है ?' आदि 2. नपु० (किम) संज्ञा शब्दों के करण के साथ प्रयुक्त होकर बहुधा अर्थ होता है, क्या लाभ है ? ---कि स्वामिचेष्टानिरूपणेन ---हि० १, 'लोभश्चेदगुणेन किम्' आदि भर्त० १५५, 'कि तया दृष्टया' श० ३, कि कुलेनोपदिष्टेन शीलमेवात्र कारणम्-मच्छ० ९७, प्रायः 'अनिश्चय' अर्थ को प्रकट करने के लिए, 'किम' के साथ 'अपि' 'चित्' 'चन' 'चिदपि या 'स्वित जोड़ दिया जाता है--विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनम्- कु. ५।३० कोई तपस्वी'; कापि तत एवागतवती -----मा० १, कोई स्त्री; कस्यापि कोऽपीति निवेदितं च. ११३३, किमपि किमपि जल्पतोरक्रमेण --3. १२२७; कस्मिंश्चिदपि महाभागधेयजन्मनि मन्मभविकारमुपलक्षितवानस्मि-मा० १, किमपि, किंचित् 'थोड़ा सा' 'कुछ'-याज्ञ० २।११६, उत्तर० ६।३५, 'किमपि' का अर्थ 'अवर्णनीय' भी है, दे० अपि, 'संभावना' के अर्थ को जतलाने के लिए कभी कभी 'किम्' के साथ 'इव' भी जोड़ दिया जाता है (अधिकतर काल के साथ बल और सौंदर्य को जोड़ने वाला) -विना सीतादेव्या किमिव हि न दुःखं रघुपतेः-उत्तर० ६।३०, किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ----शा० ११२०, 'इव' को भी दे, (अव्य०) 1. प्रश्नवाचक निपात, जातिमात्रेण किं कश्चिद्धन्यते पूज्यते क्वचित् --हि. ११५८, 'मारा जाता है या पूजा जाता है। आदि, ततः किम्-तो फिर क्या 2. 'क्यों' 'किसलिए' अर्थ को प्रकट करने वाला अव्यय-किमकारणमेव दर्शनं विलपन्त्य रतये न दीयते--कू० ४७ 3. क्या, प्रश्नवाचक या ('या' की भावना को प्रकट करने वाले सहसंबंधी शब्द–किम, उत, उताहो, आहोस्वित्, वा, किंवा, अथवा, इन शब्दों को देखो)। सम०-अपि (अध्य०) 1. कुछ अंश तक, कुछ, बहुत अंशों तक 2.बर्णनातीत रूप से, अवर्णनीय रूप से (गण, परिमाण व प्रकृति आदि) 3. अत्यधिक, कहीं अधिक, किमपि । ) कमनीयं वपुरिदम् श० ३, किमपि भीषणं किमपि करालम्-आदि,—अर्थ (वि.) किस उद्देश्य या प्रयोजन बाला किमर्थोऽयं यत्नः,-अर्थम् (अव्य०) क्यों, किसलिए,---आख्य (वि०) किस नाम वाला ----किमाख्यस्य राजर्षेः सा पत्नी,---श० ७,-इति (अव्य०) क्यों निस्सन्देह, किस लिए निश्चयार्थ, किस प्रयोजन के लिए (प्रश्न पर बल देने वाला), तत्किमित्य दासते भरता:-..-मा० १, किमित्यपास्याभरणानि यौवने धृतं त्वया वार्यकशोभि वल्कलम् -- कु० ५।४४, --उ, --उत 1. क्या, या (सन्देह या अनिश्चय को प्रकट करने वाला);-किम विविसर्पः किमु मदः --उत्तर० ११३५, अमरु ९ 2. क्यों (निस्संदेह), प्रियसत्सार्थः किम त्यज्यते 3. और कितना अधिक, कितना कम,-यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता, एककमप्यनर्थाय किम यत्र चतुष्टयम । हि० प्र० ११, सर्वाविनयानामेकैकमप्येषामायतनं किमुत समवायः --का० १०३, रघु०१४१६५, कु० ७१६५ करः नौकर, सेवक, दास अवेहि मां किङ्करमष्टमूर्तेः- रघु० २।३५, (रा) सेविका, नौकरानी (रो) सेवक की स्त्री, कर्तव्यता - कायंता वह अवस्था जब कि मनुष्य अपन मन में सोचता है कि अब क्या करना चाहिए.....किंकर्तव्यतामढः (यह समझने में असमर्थ या घबराया हुआ कि अब क्या करना चाहिए), .-कारण (वि०) क्या कारण या क्या तर्क रखने वाला,--किल (अव्य०) कैसी दयनीय अवस्था (असंतोष या दुःख, को अभिव्यक्त करने वाला—पा० ३।३।१५१), न संभावयामि न मर्पयामि तत्रभवान् कि किल वृषलं याजयिष्यति-सिद्धा०,-क्षण (वि०) जो कहता है कि 'एक मिनट का है ही क्या', एक आलसी पुरुष जो क्षणों की परवाह नहीं करता है -हि० २।९१,--गोत्र (वि०) किस परिवार से सम्बन्ध रखने वाला,-च (अव्य०) इसके अतिरिक्त और फिर, आगे,---चन (अव्य०) कुछ दर्जे तक, थोड़ा सा,चित् (अव्य०) कुछ दर्जे तक, कुछ, थोड़ा सा - किंचिदुत्कान्तशैशवी-रधु० १५।३३, २०४६, १२।२१, ज्ञ (वि.) थोड़ा सा जानने वाला, पल्लवग्राही, कर (वि.) कुछ करने वाला, उपयोगी, - काल:---कुछ समय, थोड़ा सा समय प्राणः थोड़ा सा जीवन रखने वाला, मात्र (वि.) थोड़ा सा, -छन्दस् (वि.)किस वेद से अभिज्ञ,--तर्हि (अव्य०) तो फिर क्या, परन्तु, तथापि,-तु (अव्य०) परन्तु, तो भी, तथापि, इतना होते हुए भी-अवैमि चैनामनघेति किन्तु लोकापवादो बलवान्मतो मे...रघु. १४१४०, श६५,-देवत (वि.) किस देवता से सम्बद्ध,-नामधेय, नामन् (वि.) किस नाम वाला, For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि०) किरणदीप्ययान ज्या दोषो गुण ( २७७ ) -निमित (वि.) किस कारण या हेतु को रखने | सन्तिः सन्तः कियन्तः---भर्तृ० २।७८, त्वदभिसरणरभवाला, किस प्रयोजन वाला,-निमित्तम् (अव्य०) सेन वलन्ती पतति पदानि कियन्ति चलन्ती.. गीत. क्यों, किस लिए,-न (अव्य०) 1. क्या---किनु में ६ । सम-एतिका प्रयास, शक्तिशालीन धैर्ययक्त मरणं श्रेयो परित्यागो जनस्य वा ---नल० १०१० चेष्टा,-कालः (अव्य०) 1. कितनी देर 2. कुछ 2. और भी अधिक, और भी कम-अपि त्रैलोक्य राज्यस्य थोड़ा समय,-चिरम् (अव्य०) कितनी देर तक-कियाहेतोः किन्नु महीकृते भग० १॥३५ 3. क्या, निस्स- च्चिरं श्राम्यसि गौरि ...कु० ५५०,-दूरम् (अव्य०) न्देह-किन्नु मे राज्यनार्थः,-7 खल (अव्य०) 1. किस 1. कितनी दूर, कितनी दूरी पर, कितने फासले पर प्रकार से, सम्भवतः, कैसे है कि, क्या निस्सन्देह, -कियद्रे स जलाशयः पंच० १.० १।१३७ क्यों, सचमुच - किन्न खल गीतार्थमाकर्ण्य इष्टजन- 2. थोड़ी देर के लिए जरा सी दूर। विरहादतेऽपि बलवदुत्कण्ठितोऽस्मि ---श० ५ 2. ऐसा किरः [कक ] सुअर।। न हो कि-किन्न खल यथा वयमस्यामेवमियमप्य- किरकः [क+-0वल ] 1. लिपिक 2. [ किर-कन् ] सूअर स्मान प्रति स्यात्-- श०१, --पच,-पचान (वि०) | किरणः [ कृ+क्य 11. प्रकाश की किरण, सूर्य, चन्द्रमा कजस, कृपण,-- पराक्रम (बि.) किस शक्ति या या किसी दीप्ययान ज्योति की) किरण-रविकिरणस्फूति से युक्त,- पुनर (अव्य०) कितना और अधिक सहिष्ण----श० २१४, एको हि दोषो गुणसन्निपाते या कितना और कम-स्वयं रोपितेषु तरुपूत्पद्यते निमज्जतीन्दोः किरणेप्विवाङ्कः-कु० १३, शा० स्नेहः किं पुनरसंभवष्वपत्येष-का० २९१, मेघ० ३, ४१६, रघु० ५।७४, शि०४।५८, "मय 1. चमकदार, १७, विक्रम ३, -प्रकारम् (अव्य०) किस प्रकार से, उज्ज्वल 2. रजकण। सम०,.-मालिन (4) सूर्य । -प्रभाव (वि.) किस गक्ति से सम्पन्न, ---भूत | किरातः [किरं पर्यन्तभूमिम् अतनि गच्छतीति किरातः] (वि.) किस प्रकार का या किस स्वभाव का,--रूप एक पतित पहाड़ी जाति जो शिकार करके अपनी (वि.) किस शक्ल का, किस रूप का, - वदन्ति, जीविका चलाती है, पहाड़ी,-वैयाकर्णाकरातादपशब्द. तो (स्त्री०) जनश्रुति, अफवाह —मत्सम्बन्धात् मृगाः क्व यान्तु संत्रस्ताः, यदि नटगणकचिकित्सककश्मला किंवदन्ती----उत्तर० ११४२, उत्तर० ११४, वैतालिकवदनकन्दरा न स्युः । 1.सुभा०,कु० ११६,१५, -..वराटक: अमितव्ययी, खर्चीला, --वा (अव्य०) 1. रत्न० २३ 2. वहशी, जंगली 3. बौना 4. साईस, प्रश्नवाचक अव्यय-कि वा शकुन्तलेत्यस्य मातुराख्या अश्वपाल 5. किरातवेशवारी शिव,--ताः (ब० व०) श० ७ 2. या (किम् - ...(क्या) का सहसम्बन्धी) एक देश का नाम,.-- सम०-आशिन् (पु०) गरुड की ---राजपूत्रि सूप्ता किं वा जागपि -पंच० १, तत्कि उपाधि। मायामि किंवा विष प्रयच्छामि कि वा पशधर्मेण | किराती [किरात+डीप 1. किरात जाति की स्त्री, 2. चंवर व्यापादयामि --त०, शृङ्गार० ७,-विद (वि०) | डुलाने वाली स्त्री-रघु० १६१५७ 3. कूटिनी, दूती क्या जानने वाला, व्यापार (वि.) किस कार्य को 4. किरात के वेश में पार्वती 5. स्वगंगा। करने वाला,-शील (वि.) किस आदत का,-स्वित् किरिः [क ] 1. सूअर, वगह 2. वादल। (अव्य०) क्या, किस तरह अद्रेः शृङ्गं हरति पवन: | किरीट:,-टम [ क-कीटन् ] मकुट, ताज, चूडा, शिरोकिम्पिदित्यन्मखीभिः- मेघ०१४ । वेष्टन-किरीटबद्धाजलय: ०७२२ 2. व्यापारी। कियत् (वि.) |कि परिमाणमस्य किम् --बतुप, घः, किमः सम०-धारिन् (पुं०) राजा । - मालिन (पुं०) कि आदेश: 1 (कर्त०, ए०६०, पु० --कियान्, स्त्री० अर्जुन का विशेषण। —कियती, नपु० कियत्) 1. कितना बड़ा, कितनी किरीटिन् (वि.) [किरीट+इनि] ताज या मुकुट पहनने दूर, कितना, कितने, कितने विस्तार का, किन गणों वाला,-भग० ११११७, ४६, पंच० ३,-(पु०) का (प्रश्नवाचकना का बल रखने वाला)-किया- अर्जुन-भग० १११३५, (महा० में इस नामकरण की कालस्तवैवस्थितम्य संजातः ---पंच० ५, नै० १११३०, व्याख्या इस प्रकार है-पुरा शक्रेण में बद्धं यध्यतो अयं भूतावामी विश कियतों याति न दगाम् ----शा० दानवर्षभैः, किरीट मनि भि तेनाहुर्मा १२५, ज्ञास्यति कियभुजो म रक्षति-श० १११३, किरीटिनम् । कियदवशिष्टं रजन्या:--ठा० ४ 2. किस गिनती किर्मीर (वि.) [ क--ईरन, मुटु ] चित्रविचित्र रंग का, का अर्थान् किसा अर्थ का नहीं, निकम्मा. राजेति चितकबरा, चित्तीदार,-रः 1. एक राक्षस जिसको कियनी मात्रा--पंच० १८०, मातः कियन्तोरयः, भीम ने मारा था . वेणी०६ 2. शवल या बहरंगी वेणी० ५।९ 3. कुछ, थोड़ा सा, थोड़ी संख्या, चन्द रंग। सम० -जित्,-निषदनः,-सूदनः भीम के (अनिश्चित बल रखने वाला)-निजहृदि विकसन्तः । विशेषण । | किरीटकिरीटबहा राजा For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २७८ 0 - किल: [ किल् + क ] क्रीडा, तुच्छ, खेलखेल में हो जाने वाला । ० कचितम् प्रेमी- मिलन के अवसर पर शृंगारी उत्तेजन, रुदन, हास, रोष आदि भाव । किल ( अव्य० ) [ किल + क] निश्चय ही, बेशक, निस्संदेह, अवश्य अर्हति किल कितव उपद्रवम् - मालवि० ४, इदं किलाव्याजमनोहरं वपुः श० १।१८२. जैसा कि लोग कहते हैं, जैसा कि बतलाया जाता है ( विवरण या परंपरा दर्शाने वाला ) - बभूव योगी किल कार्तवीर्यः -- रघु० ६।३८, जघान कसं किल वासुदेवः - महा० 3. झूठमूठ का कार्य, प्रसह्य सिंहः किल तां चकर्ष रघु० २ २७ कि० ११२ 4. आशा, प्रत्याशा, संभावना पार्थः किल विजेष्यते कुरून् - गण० 5. असंतोष, अरुचि, – एवं किल केचिद्वदन्ति - गण० 6. घृणा - त्वं किलं योत्स्यसे - गण० 7. कारण, हेतु - ( अत्यंत विरल ) --स किलेवमुक्तवान् - गण० 'क्योंकि उसने ऐसा कहा' । Profes: ला [ किल्+क, प्रकारे वीप्सायां वा द्वित्वम्, पक्षे टाप् ] किलकारी, हर्ष और प्रसन्नतासूचक चीख । किलकिलायते ( ना० घा० आ०) किलकारी मारना, कोलाहल करना - भट्टि० ७ १०२ । लिजम् [ किलि + न् +ड ] 1. चटाई 2. हरी लकड़ी का पतला तख्ता, फलक । किल्विन (१०) [ किल् + क्विप्, किल् + विनि ] घोड़ा । किल्विषम् [ किल् + टिषच, वुक् ] 1. पाप, मनु० ४।२४३, १०।११८, भग० ३।१३, ६।४५ 2. त्रुटि, अपराध, क्षति, दोष मनु० ८२३५ 3. रोग, बीमारी । ferer:, यम् [ किंचित् शलति - किम् + ल् + कयन् बा०, पृषो० साधुः ] पल्लव, कोंपल, अंकुर, अंखुआ -दे० 'किसलय' । किशोर: [ किम् + श् + ओरन् ] 1. बछेरा, वन्य पशु- शावक, किसी जानवर का बच्चा - केसरिकिशोरः --आ० 2. तरुण, बालक, १५ वर्ष से कम आयु का, अवयस्क ( विधि में) 3. सूर्यरी एक नवयुवती, तरुणी । किष्किन्धः, न्य्यः [ किं किं दधाति - किं + किं + घा+क, पूर्वस्य किमो लोप:, सुट्, षत्वम्, - किष्किन्ध + यत् ] एक देश का नाम 2. उस प्रदेश में स्थित एक पहाड़ का नाम, धा, ध्या एक नगरी, किष्किन्धा को राजधानी । किष्कु (वि० ) [ कै+कु नि० साधुः ] दुष्ट, निन्द्य, बुरा, कु: (पुं० [स्त्री० ) 1. कोहनी से नीचे भुजा 2. एक हस्त परिमाण, हाथ भर की लम्बाई, एक बालिश्त । किसल:, लम्, ॥ [ किञ्चित् शलति - किम् + ल् + क किसलय:, यम्, (कयन्) बा०, पृषो० साधुः ] पल्लव, कोमल अंकुर या कोंपल - अधरः किसलयरागः, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श० १।२१, किसलयमलूनं कररुहैं: - २०१०, किसलयैः सलयैरिव पाणिभिः - रघु० ९१३५ । कीकट ( वि० ) ( स्त्री०टी ) [ की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की + कट् +अच् ] 1. गरीब, दरिद्र 2. कजूस, ट: घोड़ा,-टा: ( ब० व०) एक देश का (विहार) नाम । कीकस (वि० ) [ की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की + स् + अच् ] कठोर, दृढ, सम् हड्डी । कीचकः [ चीकयति शब्दायते चीक् + वुन्, आद्यन्तविष - यः ] 1. खोखला बांस 2. हवा में खड़खड़ाते या साँय साँय करते हुए बांस - शब्दायन्ते मधुरमनिलैः कीचका: पूर्यमाणाः - मेघ० ५६, रघु० २।२२, ४७३, कु० ११८ 3. एक जाति का नाम 4. विराट राज का सेनापति ( जब द्रौपदी, सैरिन्ध्री के वेश में, भेस बदले हुए अपने पांचों पतियों के साथ राजा विराट के दरवार में रह रही थी, उस समय एक बार कीचक ने उसे देखा, द्रौपदी के सौन्दर्य से उसके हृदय में कामाग्नि प्रज्वलित हुई; तब से लेकर उसकी पाप दष्टि द्रौपदी पर लगी रही और उसने अपनी बहन ( राजा विराट की पत्नी) की सहायता से उसके सतीत्व को भंग करने की चेष्टा की । द्रौपदी ने अपने प्रति उसके अशिष्ट व्यवहार की शिकायत राजा से की, परन्तु जब राजा ने हस्तक्षेप करने में आनाकानी की तो उसने भीम से सहायता मांगी और उसके सुझाव को मानकर उसने कीचक के प्रस्ताव के प्रति अनुकूलता दर्शाई । तब यह निश्चय किया गया कि वे दोनों आधी रात के समय महल के नाच घर में मिलें, फलत: कीचक वहाँ गया और उसने द्रौपदी का आलिजन करने का प्रयत्न किया, परन्तु अन्धेरा होन के कारण वह दुष्ट द्रौपदी के बजाय भीम के भुजपाश में फंस गया और उसके बलबान् हाथों से वह वहीं कुचला जाकर मौत का शिकार हुआ ) । सम० -- जित् (पुं०) द्वितीय पाण्डवराज भीम का विशेषण । कीटः [ कीट् + अच् ] 1. कीड़ा, कृमिकीटोऽपि सुमन:सङ्गादारोहति सतां शिरः हि० प्र० ४५ 2. तिरस्कार व घृणा को व्यक्त करने वाला शब्द (बहुधा समास के अन्त में ) द्विपकीट: - अधम हाथी, इसी प्रकार पक्षिकीटः आदि । सम० -घ्नः-- गंधक, जम् रेशम, जा लाख, मणिः जुगनू । कीटक: [कीट + कन् ] 1. कीड़ा 2. मगध जाति का भाट । कोक्ष (स्त्री० -क्षी) [ किम् + दृश् + क्त, क्न्,ि कीदृश, कीदृश (स्त्रीशी ) कञ्ञ, वा, किमः की आदेश: ] किस प्रकार का, किस स्वभाव का, तद्भोः कीदृगसी विवेकविभवः कीदृक् प्रबोधोदयः - प्रबो० १, ने० १।१३७ । For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७९ ) कोनाश (वि.) [ क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य | कोश (वि०) [क+ईश्+क] नंगा,--शः 1. लंगूर, बन्दर लोपो नामागमश्च ] 1. भूमिधर 2. गरीब, दरिद्र | 2. सूर्य 3. पक्षी। 3. कृपण 4. लघु, तुच्छ,-शः मृत्यु के देवता यम को कु: (स्त्री०) [कु-+डु] 1. पृथ्वी 2. त्रिभुज या सपाट उपाधि 2. एक प्रकार का बन्दर । आकृति की आधार-रेखा, सम०-पुत्रः मंगलग्रह । कोरः [ की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति—की+ई+ कु (अव्य०) 'खराबी', ह्रास, अवमूल्यन, पाप, भर्त्सना, अच् ] 1. तोता-एवं कीरवरे मनोरथमयं पीयूषमास्वा- ओछापन, अभाव, त्रुटि आदि भावों को संकेत करने दयति-भामि० ११५८,-रा: (ब० व.) काश्मीर वाला उपसर्ग; इसके स्थानापन्न अनेक हैं, उदा० कद् देश तथा उसके निवासी,-रम् मांस । सम०–इष्टः (कदश्वः), कद (कवोष्ण), का (कोष्ण), कि आम का वृक्ष (इसे तोते बहुत पसन्द करते हैं)। (किंप्रभुः)-- पंच० ५।१७ । सम-कर्मन् (नपुं०) ---वर्णकम् सुगन्धों का शिरोमणि । बुरा कार्य, नीच कर्म,—ग्रहः अमंगल-ग्रह, प्रामः कीर्ण (वि.) [क-+क्त) 1. छितराया हुआ, फैलाया छोटा गाँव या पुरवा (जहाँ राजा का अधिकारी, हुआ, फेंका हुआ, बखेरा हुआ 2. ढ़का हुआ, भरा अग्निहोत्री, डाक्टर या नदी न हो),-चेल (वि.) हुआ 3. रक्खा हुआ, घरा हुआ 4. क्षत, चोट पहुं- फटे पुराने वस्त्र पहने हुए,--चर्या दुष्टता, अशिष्टाचाया गया--दे० का चरण, अनौचित्य,-जन्मन् (वि.) नीच कुल में कोणिः (स्त्री०) [क+क्तिन्] 1. बखेरना 2. ढकना, उत्पन्न,-तनु (वि०) विकृतकाय, कुरूप (नः) छिपाना, गुप्त कर देना 3. घायल करना । कुबेर का विशेषण-तंत्री खराब बीणा,-तर्कः कीर्तनम् [कत् + ल्युट्] 1. कथन, वर्णन 2. मन्दिर,-ना 1. कुटतत्मिक, हेत्वाभासरूप 2. धर्मविरुद्ध सिद्धान्त ___ 1. कीर्तिवर्णन 2. सस्वर पाठ 3. यश, कीर्ति ।। स्वतंत्र चिन्तन--कुतर्केष्वभ्यासः सततपरपैशुन्यमननम् कोर्तय-कत् । -गंगा० ३१, पथः तर्क करने की झठी रीति कोतिः (स्त्री०) [कत् + क्तिन्] 1. यश, प्रसिद्धि, कोति ---तीर्थम् खराब अध्यापक-दृष्टि: (स्त्री०) 1. --इह कीर्तिमवाप्नोति-मनु० २।९, वंशस्य कर्तार- कमजोर नजर 2. पापदृष्टि, कुटिल आंख (आलं.) मनन्तकीर्तिम्-रघु० २०६४, मेघ० ४५ 2. अनुग्रह, 3. वेदविरुद्ध सिद्धान्त, धर्मविरुद्ध सिद्धांत-मनु० अनुमोदन 3. मैल, कीचड़ 4. विस्तृति, विस्तार १२।९५,-देशः 1. बुरा देश या बुरी जगह 2. वह 5. प्रकाश, प्रभा 6. ध्वनि। सम०-भाज (वि.) देश जहाँ जीवन की आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध (पु.) द्रोण का विशेषण या जो अत्याचार से पीड़ित हो,–बेह (वि.) कुरूप, जो कि कौरवों और पांडवों का सैन्य-शिक्षाचार्य था, विकृतकाय (हः ) कुबेर का विशेषण,--धी (वि०) ..... शेषः केवल यश के रूप में जीवित रहना, यश के 1. मूर्ख, बुद्ध, बेवक्फ 2. दुष्ट,---नटः बुरा पात्र, अतिरिक्त और कुछ नहीं छोड़ना अर्थात् मृत्यु-तु० -- नदिका छोटी नदी, क्षुद्र नदी, लघु स्रोत--सुपूरा नामशेष, आलेख्यशेष । स्यात्कुनदिका-पंच० ११२५,-- नाथः बुरा स्वामी, कोल (भ्वा० पर०) 1. बांधना 2. नत्थी करना 3. कील -नामन् (पु.) कंजूस,- रथः 1. कुमार्ग, बुरा गाड़ना। रास्ता (आलं. भी) 2. धर्मविरुद्ध सिद्धान्त,-पुत्रः कोलः [कील+घा] 1. फन्नी, खंटी-कीलोत्पाटीव | बुरा या दुष्ट पुत्र,-- पुरुषः नीच या दुष्ट पुरुष,--पूय वानरः-पंच० १।२१ 2. भाला 3. बल्ली, खंभा (वि०) नीच दुष्ट, तिरस्करणीय,-प्रिय (वि०) 4. हथियार, 5. कोहनी 6. कोहनी का प्रहार 7. ज्वाला अरुचिकर, तिरस्करणीय, नीच, अधम,-प्लवः बुरी 8. परमाणु 9. शिव का नाम ।। किश्ती-कुप्लवैः संतरन् जलम्-- मनु० ९।१६१, कोलकः [कील+कन्] 1. फन्नी या खंटी 2. खंबा, स्तंभ -ब्रह्मः,-ब्रह्मन् पतित ब्राह्मण,--मंत्रः 1. बुरा दे. कील। उपदेश 2. बरे कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए कोलाल: [कील--अल+अण] 1. अमृतोपम स्वर्गीय पेय, प्रयुक्त मंत्र,-योगः अशुभ संयोग (ग्रहों का), रस देवताओं का पेय 2. मधु 3.हेबान,-लम् 1. रुधिर (वि.) बरे रस या स्वाद वाला, (सः) एक प्रकार 2. जल । सम-धिः समुद्र,—पः पिशाच, भूत । की मदिरा,-रूप (वि.) कुरूप, विकृत रूप, पंच० कोलिका [कील+कन्+टाप, इत्वम्] धुरे की कील । ५।१९,-रूप्यम टीन, जस्ता, वंगः सीसा,---बच्चस्, कोलित (वि.) [कील+क्त 1. बंधा हुआ, बद्ध 2. स्थिर वाक्य (वि०) गाली देने वाला, अश्लील भाषी, कील से गड़ा हुआ, कील ठोक कर जड़ा हआ–तेन दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला (नपुं०) दुर्वचन, मम हृदयमिदमसमशरकीलितम...गीत०७, सा नश्चे- दुर्भाषा,-वर्षः आकस्मिक प्रचंड बौछार,-विवाहः तसि कीलितेव- मा०५।१०। विवाह का भ्रष्ट या अनुचित रूप-मनु० ३।६३,-वृत्तिः For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८० ) (स्वी) बरा व्यवहार, ... वैद्यः खोटा वैद्य, कठवैद्य, ।। १५।१५, शि०१३।४० 3. किसी चीज का भीतरी नीम हकीम,---शील (वि०) अक्खड़, दुष्ट, अशिष्ट, भाग---रघु० १०॥६५ (यहाँ शब्द द्वितीय अर्थ को भी दुष्ट स्वभाव, ...ष्ठलम् बुरी जगह,-- सरित् (स्त्री०) । प्रकट करता है) 4. गर्त 5. गुफा, कन्दरा रघु० २। क्षुद्र नदी, छोटा स्रोत-उच्छिद्यन्ते क्रियाः सर्वाः ग्रीष्मे ३८,६७ 6. तालवार का म्यान 7. खाड़ी। सम० कुसरितो यथा--पंच० २।८५ - सृतिः (स्त्री) -शूल: पेट दर्द, उदरशल । 1. दुराचरण, दुष्टता 2. जादू दिखाना 3. धूर्तता,-स्त्री कुक्षिरभरि (वि०) कुक्षि भू-इन्, मम्] अपना पेट भरने खोटी स्त्री। की चिन्ता करने वाला, स्वार्थी, पेट्', बहुभोजी। कु। (म्वा० आ० ..कवते) ध्वनि करना। कुडकुमम् कुक+जमक, नि० मम] केसर, जाफ़रान-लग्न।। (तुदा० आ० • कुवते) 1. बड़बड़ाना, कराहना कुकुमकेसरान् (स्वन्यान्)-रघु० ४।६७, तु०४।२, 2. चिल्लाना, क्रंदन करना । ५।९, भर्तृ० १११०, २५, । सम०-- अद्रिः एक पहाड़ iii (अदा० पर०--कौति) भिनभिनाना, कूजना, गुंजन का नाम। करना (मधुमक्खी की भांति)। कुच् i (तुदा० पर० - कुचति, चित) 1. (पक्षी की भांति) कुकभम् कुकेन आदानेन पानेन भाति --कुक+मा+क] कर्कश ध्वनि करना 2 जाना 3. चमकाना 4. सिकोएक प्रकार की तीक्ष्ण मदिरा।। ड़ना, झुकाना 5. सिकुड़ना 6. वाघा उपस्थित करना कुकील: [को पृथिव्यां कील: इव] पहाड़। 7. लिखना, अंकित करना, सम् - , 1. टेढ़ा होना, कुकु (क) दः [कुकु वा कू इत्यव्ययम्---अल कृता कन्या तां 2. संकुचित करना, 3. संकुचित होना-यथा-गात्रं संकु सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकु (कू)+दा+क] उपयुक्त चितं, मगपतिरपि कोगात् सङ्कुचत्युत्पतिष्णुः -- पंच० शृंगारों से सुभूषित (अलकृत) कन्या को विधिपूर्वक । ३।४३ 3. वन्द करना मुझाना---कमलवनानि समविवाह में देने वाला। कुत्रन्-दम०, (प्रेर०) वन्द करना, सिकोड़ना, कुकुन्द (द) रः स्कंद्यते कामिना अत्र, नि० सावु:] जघन- | घटाना। कूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में ii(श्वा०पर (कुज्च भी)--कोचति, कुञ्चति, कुचित) होते है, दे० 'ककुन्दर'। 1. कुटिल बनाना, झुकाना वा टेढ़ा करना 2. टेढ़ी तरह कुकुराः (ब० व०) [कुकुर+क] एक देश का नाम, इसे से चलना 3. छोटा करना, घटाना 4. सिकुड़ना, संकू. 'दशाह' भी कहते हैं। चित होना 5. की ओर जाना, आ , सिकोड़ना, टेढ़ा कुकलः, लम् [क ऊलच. कुगागम:] 1. चोकर, भुसी करना, झुकाना (प्रेक० भी) कु० ३१७० रघु०६।१५, ---.कलानां राशौ तदनु हृदयं पच्यत इव-उत्तर०६। भल० ११३,-वि.--, सिकोड़ना, टेढ़ा करना । ४० 2. भमी से बनी आग,--लम् [कोः कुलम् प० कुचः | बच्+क) स्तन, उरोज, चूनी-- अगि बनान्तरगल्पत०] 1. छिद्र, खाई (खंटे स्थूणादिकों से भरी हुई) कुचन्तरा-विक्रम० ४।२६ । सम अनन्, --मुखम्, 2. कवच, बस्तर। चूचक,- तटम्, -तटी 1. (स्त्रियों के स्तनका उतार, कुनकुटः किक-न-क्विप, तेन कुटति, कुक+कुट+क --फल: अनार का वृक्ष । 1. मर्गा, जंगली माँ 2. जले हए भुस का फिसफिसाना, । कुचर (वि.)(स्त्री -रा-रो) 1. मान वर्ग: जाने वाला, जलती हई लकड़ी 3. आग को चिगारी। रें। कर जाने वाला 2. दृष्ट, नीच, दुश्चरित 3. अपकुटिः , -- टी (स्त्री०) [कुक्कूट+इन्, पक्षे डीप्] दम्भ, मानित करने वाला, छिद्रान्वेपो, ... रः स्थिर तारा। पापण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थ सिद्धि । कुच्छम् [कु-छो1-क कमल को एक जाति, कुमुद । कुक्कुभः कुक्कु शब्दं भाषते कुक्कु+भाष-1-3 बा०] ! कुजः कुन-जन्+] 1. वृक्ष 2. मंगल ग्रह 3. एक राक्षस 1. जंगली मई 2. मां 3. वानिश ।। जिसे कृष्ण ने मार गिराया था ('नरक' भी इसी का कर (स्त्री० री) कोकते आदते-कुछ--क्विा , कुक नाम है), जा सीता। पिणि महल जनं दृष्ट्या कृति शब्दायते--कुक कूजम्भल: कुभिल: कोः पृथिव्याः जम्भनमिव अब ३०स०, पारका कुत्ता-यस्यैतच्च न कुक्कूरैरहरहर्जनांतरं कोः पृथिव्याः को पृथिव्यां वा जमल: पत वा बते. मछ० २।१२ । सम-वाच (पुं०) हरिणों म० त०] सेंध लगाकर घर में चोरी करने का का पक लालि। दोर। कुज्झटिः, कुज्झटिका, कुण्झटो कुज । विस, नाइन, TA: क्सि] 1. पेट ..जिहिताध्मातकुभिः (भुजग- कुज चामौ झटिच्च कर्म स०, कुज्झटि- कन-टार, T), मृच्छ० ९।१२ 2. गर्भाशय, पेट का वह भाग कुज्झटि-डीष कुहा, धुन्ध । निगमें भ्रण रहता है-कुम्भीनस्याश्च कुक्षिज:--- रघु० । कुञ्च -दे० कुच।। २ का वृक्ष मान चरित E For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( कुञ्चनम् कुञ्च् + ल्युट् ] टेढ़ा करना, झुकाना, सिकोड़ना । [+] मुट्ठियों या अँजलियों की घारिता का माप अष्टमुष्टिर्भवेत्कुञ्चिः । कुञ्चिका [ कुच् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम् ] 1. कुंजी, चावी - भर्तृ० १।६३ 2. बाँस का अंकुर । कुचित ( वि० ) [ कुंच् +क्त] सिकुड़ा हुआ, टेढ़ा किया हुआ झुकाया हुआ । कुञ्जः --, जम् [कु + जन्+उ, पृषो० साधुः ] 1. लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला, २८१ - --चल सखि कुञ्ज सतिमिरपुंजं शीलय नीलनिचोलम् -- गीत० ५, वंजुललताकुंजे - १२, मेघ० १९, रघु ९।६४ 2. हाथी का दाँत । सम० कुटीरः लतामण्डप, लताओं तथा पौधों से परिवेष्टित स्थान- गुञ्जत्कुञ्जकुटीरकौशिकघटा — उत्तर० २०२९, मा० ५/१९, कोकिलकूजितकुंजकुटीरे - गीत० १ । कुञ्जरः [कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति कुञ्ज + र ] 1. हाथी 2. ( समास के अन्त में ) कोई सर्वोत्तम या श्रेष्ठ वस्तु - अमरकोश इस प्रकार के निम्नांकित प्रयोग बतलाता है- स्युरुत्तरपदे व्याघ्र पुंगवर्षभकुञ्जराः, सिंह शार्दूलनागाद्या: पुंसि श्रेष्ठार्थवाचकाः । 3. पीपल का वृक्ष ( अश्वत्थ ) 4. हस्त नामक नक्षत्र । सम० - अनीकम् सेना का एक प्रभाग जिसमें हाथी हों, हस्ति - सेना, -- अशनः अश्वत्थ वृक्ष - अराति: 1. शेर 2. शरभ ( आठ पैर का एक काल्पनिक जन्तु), ग्रहः हाथी पकड़ने वाला । कुट् । ( स्वा० पर० -- कुटति कुटित ) 1. कुटिल या वक्र होना 2. टेढ़ा करना या झुकाना 3. वेइमानी करना, छल करना, धोखा देना । i (दिवा० पर० कुयति) तोड़ कर टुकड़े टुकड़े करना, फाड़ देना, विभक्त करना, विघटित करना । कुट: टम् [कुद |कम् ] जलपात्र, करवा, कलश, टः 1. किला, दुर्ग 2. हथोड़ा 3. वृक्ष 4. घर 5. पहाड़ । सप० – जः 1. एक वृक्ष का नाम - मेघ० ४, रघु ० १९१३७, ऋतु० ३।१३, भर्तृ० १।४२ 2 अगस्त्य 3. द्रोण-हारिका सेविका, नौकरानी । लस का हल | छत, छप्पर । कुटकम् [कुट -कन् ] विना कुङ्कः [कु + टङ्क + घञ् कुङ्गकः [कुटस्य अङ्गकः ष० त०] 1. वृक्ष के ऊपर फैली हुई लताओं से बना लतामण्डप 2. छोटा घर, झोंपड़ी कुटिया | कुटप: [ कुट + पा + क्र] 1. अनाज की माप ( कुडव ) 2. घर के निकट वाटिका 3. ऋषि संन्यासी, पम् कमल । कुटरः | कुट् + करन् बा०] वह थणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है । ३६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) कुटलम् [कुट् + कलच् ] छत, छप्पर । कुटि: [ कुट् + छन् ] 1. शरीर 2. वृक्ष (स्त्री० ) 1. कुटिया, झोंपड़ी 2. मोड़, झुकाव | सम० चरः संस, शिशुक । कुटिरम् [कुद | इरन् ] कुटिया, झोंपड़ी । कुटिल ( वि० ) [कुट् + इलय् ] 1. टेढ़ा, झुका हुआ, मुड़ा हुआ, घूंघरदार-भेदात् भ्रुवोः कुटिलयोः - श० ५/२३, रघु० ६।८२, १९।१७ 2 घुमावदार, बलखाती हुई---क्रोशं कुटिला नदी - सिद्धा० 3. ( आलं० ) कपटी, जालसाज, बेईमान | सम० - -आशय ( वि० ) दुरात्मा, दुर्गति, - पक्ष्मन् (वि०) मुड़ी हुई पलकों वाला, - स्वभाव (वि०) कुटिल प्रकृति, बेईमान, दुर्गति । कुटिलिका [ कुटिल + कन्+टाप्, इत्वम् ] 1. दबे पाँव आना (जिस प्रकार कि शिकारी अपने शिकार पर आते हैं) दुबक कर चलना, 2. लुहार की भट्टी । कुट्टी [ कुटि + ङीप् ] 1. मोड़ 2, कुटिया, झोंपड़ी - प्रासादीयति कुयाम् - सिद्धा० मनु० ११।७२, पर्ण, अश्व आदि 3. कुट्टिनी, दूती । सम० - चकः किसी संघविशेष का संन्यासी - चतुविधा भिक्षवस्ते कुटीचकबदक, हंसः परमहंसश्च यो यः पश्चात् स उत्तमः । - महा० - चरः एक संन्यासी जो अपने परिवार को अपने पुत्र की देख रेख में छोड़कर अपन आपको पूर्णतया धर्मानुष्ठान एवं तपश्चर्या में लगा देता है । कुटीरः, रम् कुटौ+र, कुटीर + कन्] झोंपड़ी, कुटिया, कुटीरकः 1 उत्तर० २।२९, अमरु ४८ । कुटुनी [कुट् + उन्+ ङीष् ] कुट्टिनी, दूती दे० कुट्टनी । कुटुम्बम् कुटुम्बकम् [ कुटुम्ब + अच्, कुटुम्ब + कन् ] 1. गृहस्थी, परिवार - उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्ब - कम् हि० ११७०, याज्ञ० ११४५ मनु० ११ १२, २२, ८। १६६ 2. परिवार के कर्तव्य और चिताएँ - तदुपहितकुटुंब: - रघु० ७७१, – ब:, बम् 1. बंधु, वंश या विवाह के फलस्वरूप संबंध 2. बालबच्चे, संतान 3. नाम 4. वंश । सम० -- कलहः, -हम् घरेलू झगड़े ---भरः परिवार का भार भर्ना तदर्पितकुटुम्बभरेण सार्धम् श० ४।१९, व्यापूत ( वि० ) ( वह पिता ) जो पालन पोषण करता है, तथा परिवार की भलाई का ध्यान रखता है । कुटुम्बिकः, कुटुम्दिन (पुं० ) [ कुटुम्ब - + ठन्, इनि वा ] गहस्थ, कुल पिता, जिसे परिवार का भरण पोषण करना पड़ता है, या जो देखभाल करता है - प्रायेण गृहिणीनेत्राः कन्यार्थेषु कुटुम्बिनः - कु० ६।८५, विक्रम ० ३।१, मनु० ३८०, याज्ञ० २।४५ 2 परिवार का एक सदस्य नी 1. गृहपत्नी, गृहिणी (गृह स्वामिनी), भवतु कुटुम्विनीमा पृच्छामि मुद्रा० १, प्रभवन्त्योऽ पि हि भर्तृषु कारणकोपा: कुटुम्बिन्यः – मालवि० १ । १७, ६० ८८६, अमरु ४८ 3. स्त्री । For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८२ ) कुट (चुरा० उभ० -कुट्टयति, कुट्टित) 1. काटना, ( कुड्मल (वि०) [कुड्+कल, मुटु ] खुलता हुआ, पूरा बांटना 2. पीसना, चूर्ण करना 3. दोष देना, निन्दा | खिला हुआ, लहराता हुआ (जैसे खिला हुआ फूल) करना 4. गुणा करना। -रघु० १८१३७,-लः खलना, कली---विज़म्भणोकुट्टकः [ कुद्र+वल ] कटने वाला, पीसने वाला। द्गन्धिषु कुड्मलेषु-रघु० १६।४७, उत्तर० ६।१७, कुट्टनम् [ कुट्टल्युट ] 1. काटना 2. कूटना 3. दुर्वचन शि० २।७,-लम् एक प्रकार का नरक-मनु० कहना, निन्दा करना। ४१८९, याज्ञ० ३।२२२। कुट्ट (हि) नो [ कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् --कुट्ट, | कुड्मलित (वि०) [कुड्मल + इतच् ] 1. कलीदार, खिला +णिच् +त्यट+डीप, कुट्ट+ इनि वा] कुटनी, हुआ 2. प्रसन्न, हंसमुख । दूती, दल्ली । कुडघम् [कु+यक , डुगागमः 11. दीवार-भेदे कूडधावकुट्टमितम् [ कुट्ट+घञ , तेन निवृत्त इत्यर्थे कुट्ट + इमप् पातने-याज्ञ० २।२२३, शि० ३४५ 2. (दीवार पर) +इतच् ] प्रियतम के प्यार का दिखावटी तिरस्कार | पलस्तर करना, लीपना, पोतना 3. उत्सुकता, जिज्ञासा। (झूठमूठ ठुकराना) (नायिका के २८ हावभाव तथा सम-छेदिन् (पुं०) घर में सेंध लगाने वाला, अनुनय, में से एक) सा० द० परिभाषा देता है-केश चोर, छेद्यः खोदने वाला, (धम्) खाई, गड्ढा, स्तनाधरादीनां ग्रहे हर्षेपि संभ्रमात्, प्राहुः कुट्टमितं (दीवार में) दरार। नाम शिरःकरविधननम्, १४२।। कुण् (तुदा० पर०-कुणति, कुणित) 1. सहारा देना, कुटाक (वि०) (स्त्री०- की) [ कुद्र.+षाकन् ] जो सहायता देना 2. शब्द करना। विभक्त करता है या काटता है--सारङ्गसङ्गरविधा कुणकः [ कुण+क+कन् ] किसी जानवर का अभी पैदा विभकुम्भकूटकुट्टाकपाणिकुलिशस्य हरेः प्रमाद:---मा० हुआ बच्चा। ५।३२। कुणप (वि.) (स्त्री०—पी) [कुण -- कपन्] 1. मुर्दे जैसी कुट्टारः [ कुट्ट +-आरन् ] पहाड़, रम् 1. मैथुन 2. ऊनी दुगंध देने वाला, बदबूदार–पः,-पम् मुर्दा, शवकंबल 3. एकान्त । शासनीयः कुणपभोजन:--विक्रम० ५ (गिद्ध),-अमेध्यः कटिमः,-मम् [ कुट्ट+इमप् ] 1. खड़जा, छोट-छोटे कुणपाशी च--मनु० १२। ७१, जीवित जन्तुओं के पत्थरों को जमा कर बनाया हआ फर्श, पक्का फर्श प्रति घणा व तिरस्कार का द्योतक शब्द,-प: 1. बर्डी -कांतेन्दुकान्तोपलकूट्रिमेषु-शि० ३१४०, रघु० १०९ 2. दुर्गंध, बदबू । 2. भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि कुणिः [कुण + इन्] लुजा, जिसकी एक बाँह सूख गई हो। 3. रत्नों की खान 4. अनार 5. झोंपड़ी, कुटिया, कुण्टक (वि.) (स्त्री०-की) [कुण्ट +ण्वुल] मोटा, छोटा घर। स्थूल। कटिहारिका--[कुट्टि मत्स्यमांसादिकं हरति इति---कुट्टि । कुण्ठ (भ्वा० पर०—कुण्ठति, कुण्ठित) 1. कुण्ठित, ठूण्ठा +ह+वुल टाप्, इत्वम् ] सेविका, दासी। या मन्द हो जाना 2. लंगड़ा, और विकलांग होना कुटुमल-कुडमल। 3. मंदबुद्धि या मूर्ख होना, सुस्त होना 4. ढीला करना कुठः [ कुठयते छिद्यते-कुठ+क] वृक्ष । (प्रेर० या चुरा० पर०) छिपाना । कुठर=दे० 'कुटर'। कुण्ठ (वि.) [कुण्ट-+-अच्] 1.ठ्ठा, सुस्त, वज्र तपोवीर्यकुठारः (स्त्री०-री) [ कुछ ---आरन् ] कुल्हाडा (परश), महत्सु कुण्ठम् --कु० ३।१२, प्रभावरहित हो गया, कुल्हाड़ी-मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम् । कुण्ठीभवन्त्युपलादिपु क्षुरा:--शारी० 2. मन्द, मूर्ख, ---भर्त० ३।११।। जड 3. आलसी, सुस्त 4. दुर्बल । कुठारिकः [ कुठार+ठन् ] लकड़हारा, लकड़ी काटने । कुण्ठकः [कुण्ठ् + बुल] मूर्ख । वाला। कुण्ठित (भू० क० कृ.) [कुठ+क्त 1.ठ्ठा, मन्दीकृत कुठारिका [ कुठार+की+कन्+टाप, ह्रस्वश्च ] छोटा (आलं. भी)-बिभ्रतोऽस्त्रमचलेप्यकुण्ठितम् --- रघु० कुल्हाड़ा, फरसा। ११।७४, भामि० २१७८, कु० २।२०, शास्त्रष्वकु. कुठारः [ कुठ+आरु ] 1. वृक्ष 2. लंगूर, बन्दर । ठिताबुद्धिः - रघु० ॥१९, निर्बाध रही 2. जड कुठिः [कुठ+इन+कित् ] 1. वृक्ष 2. पहाड़। 3. विकलांग। कुडङ्गः (पुं०) कुंज, लतागृह । कुण्डः, डम् [कुण --ड] 1. प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलकुडवः (पः) [ कुड+-कवन्, कपन् वा] एक चोथाई प्रस्थ । मची, कटोरा 2. हौज 3. कंड, कुंड--- अग्निकुण्डम के बराबर या बारह मुठ्ठी (अंजलि) अनाज की । 4. पोखर या पल्वल-विशेषतः जो किसी देवता के नाम तोल। पर धर्मार्थ समर्पित कर दिया गया हो 5. कमंडलु या For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८३ ) भिक्षापात्र, -- 3: (स्त्री०-डी) पति के जीवित रहते । के आगे 'चिद्' 'चन' या 'अपि' जोड़ दिया जाता है व्यभिचार द्वारा किसी दूसरे पुरुष के संयोग से उत्पन्न तो यह अनिश्चयबोधक बन जाता है। सन्तान—पत्यौ जीवति कुंड: स्यात् -- मनु० ३।१७४, | कुतपः [ कु+तप् + अच् ] 1. ब्राह्मण 2. द्विज 3. सूर्य याज्ञ० ११२२२। सम-आशिन् (पु.) भडुवा, 4. अग्नि 5. अतिथि 6. बैल, सांड 7. दोहता 8. भानजा विट, अपनी जीविका के लिए जो कुण्ड पर निर्भर 9. अनाज 10 दिन का आठवाँ महर्त-अह्रो महुर्ता करता है अर्थात् वर्णसंकर, जारज, मनु० ३३१५८ विख्याता दश पंच च सर्वदा, तत्राष्टमो मुहूर्तो यः स याज्ञ० ११२२४, ऊधस् (कुण्डोनी) 1. वह गाय काल: कुतपः स्मृतः ।-पम् 1. कुश घास 2. एक जिसका ऐन या औड़ी भरी हई हो 2. भरे पूरे स्तनों प्रकार का कंबल। वाली स्त्री,-कोटः 1. रखली स्त्रियाँ रखने वाला कुतस्त्य (वि.) [कुतस्+त्यप] 1. कहाँ से आया हुआ 2. चार्वाकमतावलंबी, नास्तिक, जारज ब्राह्मण, कोल: 2. कैसे हुआ। नीच या दुश्चरित्र व्यक्ति,--गोलम्-गोलकम् | कुतुकम् [कुत+उका 1. इच्छा, रुचि 2. जिज्ञासा 1. कांजी 2. कुण्ड और गोलक का समुदाय। (कौतुक) 3. उत्सुकता, उत्कण्ठा, उत्कटता-केलिकलाकुण्डलः,-लम् [कूण्ड ---मत्वर्थे ल] 1. कान की बाली, कान कुतुकेन च काचिदम यमुनाजलकले, मंजुलवंजुलकुंजगतं का आभूषण-श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन-भर्तृ० २०७१, विचकर्ष करेण दुकूले- गीत०१। चौर० ११, ऋतु० २।२०, ३१९, रघु० ११३१५ कुतुषः, कुतः (स्त्री०) [कुतू+डुप पृषो०, कु--तन्+कू 2. कड़ा 3. रस्सी का गोला। टिलोपः बा०] कुप्पी (तेल डालने के लिए चमड़े की कुण्डलना कुण्डल+णिच-+-यच+टाप] घेरा डालना (शब्द बनी)। को गोल घेरे में रखना) यह प्रकट करने के लिए कि कुतूहल (वि.) [कुतू+हल-|-अच] 1. आश्चर्यजनक यह भाग छोड़ देना या इस पर विचार नहीं करना 2. श्रेष्ठ सर्वोत्तम 3.प्रशंसाप्राप्त, प्रसिद्ध,-लम् 1. इच्छा, है; -तदोजसस्तद्यशसः स्थिताविमौ वथेति चित्ते जिज्ञासा-उज्झिताब्देन जनितं नः कुतूहलम् - श०१, कुरुते यदा यदा, तनोति भानोः परिवेषकैतवात्तदा यदि विलासकलासु कुतूहलम्-गीत० १, (पपी) कुतूविधिः कूण्डलनां विधोरपि। नै० १११४, तु० २।९५ हलेनेव मनुष्यशोणितम्-रघु० ३।५४,१३।२१, से भी। ।६५ 2. उत्सुकता 3. जिज्ञासा को उत्तेजित करने कुण्डलिन् (वि.)(स्त्री०-नी)[कुण्डल---इनि] 1. कुण्डलों बाला, सुहावना, मनोरंजक, कौतुक या जिज्ञासा। से विभूषित 2. गोलाकार, सपिल 3. घुमावदार, | कुत्र (अव्य०) [किम्+अल्] 1. कहाँ, किस बात में,-कुत्र कुण्डली मारे हुए (साँप की भांति)-पु. 1. सांप में शिशुः-पंच० १, प्रवृत्तिः कुत्र कर्तव्या-हि०१ 2. मोर 3. वरुण की उपाधि । 2. किस विषय में---तेजसा सह जातानां वयः कुत्रोपकुण्डिका [कुंड+कन्+टाप, इत्वम्] 1. घड़ा 2. कमंडल । युज्यते-पंच० ११३२८ (कभी कभी 'कुत्र' का प्रयोग कुण्डिन् (पुं०) [कुण्ड् + इनि] शिव की उपाधि । 'किम्' शब्द अधि० एक० २० के लिए किया जाता कुण्डिनम् [कुण्ड्+इनच्] एक नगर का नाम, विदर्भदेश की है), जब 'कुत्र' के साथ चिद्, चन, या अपि, जोड़ राजधानी। दिया जाता है तो वह अर्थ की दृष्टि से अनिश्चयाकुंडि (डी) र (वि०) [कुण्ड् + इ (ई) रन्] बलवान्, त्मक बन जाता है, कुत्रापि, कुत्रचित् किसी जगह, -रः मनुष्य । कहीं, न कुत्रापि कहीं नहीं; कुत्रचित्-कुत्रचित्--एक कुतः (अव्य०) [किम् +तसिल] 1. कहाँ से, किधर से स्थान पर दूसरे स्थान पर, यहाँ-यहाँ-मनु० ९।३४ । ..-कस्य त्वं वा कुत आयातः-मोह० ३ 2. कहाँ, । कुत्रत्य (वि.) [कुत्र+त्यप्] कहाँ रहने वाला या कहाँ और कहाँ, और किस स्थान पर आदि-ईदग्विनोद: वास करने वाला। कुतः-श० २२५ 3. क्यों, किस लिए किस कारण से, कुत्स (चुरा० आ०-कुत्सयते, कुत्सित) गाली देना, 'बुराकिस प्रयोजन से-कुत इदमच्यते-श.५ 4. कैसे, भला कहना, निन्दा करना, कलंक लगाना, मनु० २१५४, किस प्रकार -स्फुरति च बाहुः कुतः फलमिहास्य-श० याज्ञ० ११३१, शा० २१२८ । १।१५ 5. और अधिक, और कम-न त्वत्समोस्त्यभ्य-कुत्सनम्, कुत्सा [कुत्स्+ल्युट्, कुत्स्+अ+टाप] दुर्वचन, धिकः कुतोऽन्यः-भग० १११४३, ४१३१, न मे स्तेनो घृणा, भत्र्सना, गाली देना-देवतानां च कुत्सनम्-मनु० जनपदे न कदर्यो "न स्वैरी स्वैरिणी कूत:----छा. 6. ४११६३ । क्योंकि, कभी कभी कुतः' केवल 'किम्' शब्द के अपा- | कुत्सित (वि०) [ कुत्स्+क्त ] 1. घृणित, तिरस्करणीय दान के रूप में ही प्रयुक्त होता है-कुत: कालात्स- 2. नीच, अधम, दुश्चरित्र । मुत्पन्नम्--वि० पु०(=कस्मात् कालात्), जब 'कुतः' । कुथः [कु+थक्] कुशा नामक घास । For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८४ ) कुथः,-यम,-था 1. छींट की बनी हाथी की झूल 2. दरी। । कुन्दमः [ कुन्द-1-मा+क] बिल्ली। कुद्यारः,-लः, लकः कु+द+णिच्+अण, पृयो०, कु+दल कुन्दिनी [ कुन्द ---इनि-डीप् ] कमलों का समूह । +णिच् ---अण् पृषो०, कुद्दाल- कन्] 1. कुदाली, कुन्दुः [कु-+-+डुबा० नुम् ] चहा, मूसा। खुर्पा 2. कांचन वृक्ष। कुप् (दिवा० पर० --कुप्यति, कुपित) 1. क्रुद्ध होना (प्रायः कुपलम्-कुड्मलम् । उस व्यक्ति के लिए सम्प्र० जिस पर क्रोध किया कुजूर-गः [कुद्र+के-क नि० साधुः, कू+उत्- रञ्ज जाय, परन्तु कभी कभी कर्म० या संबं० भी प्रयुक्त होते +घञ] 1. चौकी 2. मचान पर बना मकान । हैं) कुप्यन्ति हितवादिने- का० १०८, मालवि० ३। कुनकः [?] कौवा। २१, उत्तर० ७, चुकोप तस्मै स भृशम्- रघु० ३।५६ कुन्तः [कु+उन्+क्त, बा० शाक० पररूपम्] 1. भाला, 2. उत्तेजित होना, सामर्थ्य ग्रहण करना प्रचंड होना, पंखदार बाण, बर्ची-कुन्ताः प्रविशन्ति-काव्य० २ जैसा कि-दोषाः प्रकुप्यन्ति-- सुश्रु० अति-, क्रुद्ध (अर्थात्-कुन्तधारिणः पुरुषाः); विरहिनिकृन्तनकुन्त- होना, भट्टि० १५।५५, परि-, क्रुद्ध होना, प्र-, 1. क्रुद्ध मुखाकृतिकेतकिदन्तुरिताशे-गीत०१ 2. छोटा जन्तु, होना,-निमित्तमद्दिश्य हि यः प्रकृप्यति ध्रुवं स तस्याकीड़ा। पगमे प्रसीदति--पंच० ११२८३, 2. उत्तेजित होना, कुन्तलः [कुन्तला -क] 1. सिर के बाल, बालों का गुच्छा, बल प्राप्त करना, बढ़ना (प्रेर०) उभारना, चिढ़ाना -प्रतनुविरलैः प्रान्तोन्मीलन्मनोहरकुन्तलै:--उत्तर० खिझाना। श२०, चौर०४, ६, गीत०२ 2. कटोरा 3. हल,-लाः कुपिन्द-दे० कुर्विद । (ब० व०) एक देश तथा उसके निवासियों का नाम । कुपिनिन् (पु०) [ कुपिनी मत्स्यधानी अस्ति अस्य -- कुपिनी कुन्तयः ('कुंत' का ब०व०, ५०) एक देश और उसके +इन् ] मछुवा। निवासियों का नाम । कुपिनी [ कुप+ इनिङीप् ] छोटी-छोटी मछलियां पकड़ने कुन्तिः [कम+झिच्] एक राजा का नाम, ऋथ का पुत्र । का एक प्रकार का जाल । सम०-भोजः एक यादव राजकुमार, कुन्तिदेश का | कुपूय (वि.) [कु+-पू-अच् ] घृणित, नीच, अधम, राजा, जिसने निस्सन्तान होने के कारण कुन्ती को तिरस्करणीय ।। गोद ले लिया था। कुप्यम् [ गुप्- क्यप, कुत्वम् ] 1. अपधातु 2. चाँदी और कुन्ती कुन्ति--डीप्] 'शूर' नामक यादव की पुत्री पृथा सोने को छोड़ कर और कोई धातु-कि० ११३५, जिसको कुंतिभोज ने गोद लिया। (यह पांडु की मनु० ७।९६, १०।११३ । पहली पत्नी थी, किसी शाप के कारण पांडु से संतान | कुबे (वे) र: [ कुत्सितं वे (वे) रं शरीरं यस्य सः ] धन न हुई, उसने इसी लिए कुंती को अनुमति दे दी कि दौलत और कोष का स्वामी, उत्तरदिशा का स्वामी वह दुर्वासा ऋषि से प्राप्त अपने मंत्र का प्रयोग करे --कुबेरगुप्तां दिशमुष्णरश्मौ गन्तुं प्रवृत्ते समयं विलंध्य जिसके द्वारा वह किसी भी देवता का आवाहन करके -कु० ३।२५ (इस पर मल्लि० की टीका के अनुसार) उससे पुत्र प्राप्त कर सकती है। फलतः उसने धर्म, [ कुबेर इडविडा में उत्पन्न विश्रवा का पुत्र है, और बायु और इन्द्र का आवाहन किया और उनसे क्रमश: इसीलिए यह रावण का आधा भाई है। धन और युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन को प्राप्त किया। वह उत्तर दिशा का स्वामी होने के अतिरिक्त यह यक्ष कर्ण की भी माता थी उसने अपनी कौमार्य अवस्था और किन्नरों का राजा तथा रुद्र का मित्र है, इसका में मंत्र का परीक्षण करने के लिए सूर्य का आवाहन वर्णन विकृत शरीर के रूप में पाया जाता है, इसके किया और उसके संयोग से उसने कर्ण को प्राप्त किया) तीन टाँगे और आट दांत थे, और एक आँख के स्थान में कुन्थ् (भ्वा०-या० पर०–कुन्थति, कुथ्नाति, कूस्थित) एक पीला चिह्न था, अचलः,--अद्रिः कैलास पर्वन 1. कष्ट सहन करना 2. चिपकना 3. आलिंगन करना की उपाधि, --दिश् (स्त्री०) उनर दिशा । 4. चोट पहुंचाना। कब्ज (वि०) [कू ईपत् उजमाव यत्र शक० तारा०] कुन्द,-दम् [हु दै (दो)-1-क, नि. मुम्, या कु+दत्, कुबड़ा, कुटिल, --ब्ज: 1. मुड़ी हुई तलवार 2. पीठ पर नम् चमेलो का एक भेद, मोतिया (सफेद और कोमल) निकला हुआ कुब, - ब्जा कस की एक सेविका, कहते कुन्दावदाताः कलहंसमाला:----भट्टि० २११८, प्रातः है कि उसका शरीर तीन स्थानों पर विकृत था (कृष्ण कुन्दप्रसवशिथिलं जीवितं धारयेथा:-मंघ० ११३, और बलराम ने, जब वह मथुग जा रहे थे राजमार्ग ---दम् इस पौधे का फूल-अलके बालकुन्दानुविद्धम् | पर कुब्जा को देखा, वह कंस के लिए उबटन ले जा --मेघ० ६५, ४७,--दः 1. विरणु की उपाधि रही थी। उन्होंने उसमें से कुछ उबटन मांगा, कुब्जा 2. खैराद। सम-करःखैरादी। ने जितना बे चाहते थे, उबटन उनको दे दिया । कृष्ण For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८५ ) उसके इस अनुग्रह से अत्यन्त प्रसन्न हुआ, उसने उसका नाम 3. कपूर 4. बन्दरों की एक जाति 5. एक नाग कब मिटाकर उसे पूरी तरह सीधा कर दिया, तब से जिसने अपनी छोटी बहन कुमद्वती को राम के पुत्र कुश वह अत्यन्त सुन्दरी स्त्री लगने लगी)। को प्रदान किया.–दे० रघु० १६७५-८६ । सम. कुब्जकः [ कुब्ज+कन् ] एक वक्ष का नाम + मनु० ८। -आकारः, चाँदी,-आकरः, - आवास: कमलों से २४७, ५।२। भरा हुआ सरोवर, ईशः चन्द्रमा,-खण्डम् कमलों का कुब्जिका [ कुब्जक-|-टाप, इत्वम् ] आठवर्ष की अविवाहित समूह, नाथः, पतिः, बन्धुः, -बान्धवः,-सुहृद् (पुं०) लड़की। चन्द्रमा। कुभृत् (पु.) [ कु++क्विप्, तुकागमः ] पहाड़। कुमुदवती कुमुद-1-मतुप्-+ङीप्, बत्वम्] कमल का पौधा । कुमारः [कम्+आरन्, उपधायाः उत्वम् ] 1. पुत्र, बालक, | कुमिदिनी [कुमुद-+इनि] 1. सफ़ेद फूलों की कुमुदिनी यवा-रघु०३१४८ 2. पाँच वर्ष से कम आय का बालक -यथेन्दाबानन्दं ब्रजति समपोढे कुमुदिनी-उत्तर० ५। 3. राजकुमार, युवराज (विशेषतः नाटकों में)-विप्रो- २६, शि० ९।३४ 2. कमलों का समूह 3. कमलस्थली। षितकुमार तद्राज्यमस्तमिलेश्वरम् रघु० १२।११, सम० - नायकः, -पतिः चन्द्रमा। कुमारस्यायुषो बाणः - विक्रम० ५, उपवेष्टुमर्हति । कुमुदत् (वि०) [कुमुद्-+-मतुप, बत्वम् जहाँ कमलों की कुमारः --- मुद्रा० ४ (मलयकेतु ने राक्षस को कहा) बहुतायत हो -- कुमुत्सु च वारिषु-रघु०४।१९, ती 4. युद्ध के देवता कातिकेय,-कुमारकल्प सुषवे कुमारम् 1. सफ़ेद फूलों की कुमुदिनी (जो चन्द्रमा के उदय रघु० ५।३६, कुमारोऽपि कुमारविक्रम:-..-३।५५ होने पर खिलती है)-अन्तहिते शशिनि सैव कुमद्वती 5. अग्नि 6. तोता 7. सिन्धु नदी। सम०--पालन 1. में दष्टि न नन्दयति संस्मरणीयशोभा-----श० ४।२, बच्चों की देखरेख रखने वाला 2. राजा शालिवाहन, कुमुद्रती भानुमतीव भावं (न वबंध)-रपु० ६।३६ भत्या 1. छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख 2. गर्भावस्था 2. कमलों का समूह 3. कमलस्थली,-"ईशः चन्द्रमा । में स्त्री की देखरेख, प्रसूति विद्या-रघु० ३।१२ | कुमोदकः [कु-मुद्+णिच्+ण्वुल] विष्णु का विशेषण । -वाहिन्,---वाहनः मोर, -सूः (स्त्री०) 1. पार्वती कुम्बा [कुम्बु ।-अङ+टाप्] यज्ञभूमि का अहाता । का विशेषण 2. गंगा का वि० ।। कुम्भः [कु भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति-उम्भ+अच कुमारकः [ कुमार---कन् ] 1. बच्चा, युवा 2. आँख का शक० तारा०] 1. घड़ा, जलपात्र, करवा इयं सुस्तनी तारा। मस्तकन्यस्तकुम्भा जग०, वर्जयेत्तादृशं मित्रं विपकुम्भं कुमारयति (ना० धा० पर०) खेलना, क्रीडा करना (बच्चे पयोमुखम् ---हि० ११७७, रघु० २३४ इसी प्रकार की तरह)। कुच", स्तन 2. हाथी के मस्तक का ललाट स्थल कुमारिक (वि.) (स्त्री० को)) [ कुमारी+ठन्, -इभकुम्भ-मा० ५।३२, मतेभकुम्भदलने भुवि सन्ति कुमारिन (वि.) (स्त्री० - णी)। कुमारी---इनि शा:-भर्त११५९ 3. राशिचक्र में ग्यारहवीं राशि कुम्भ जिसके लड़कियाँ हो, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो। 4. २० द्रोण के बराबर अनाज की तौल-- मनु०८। कुमारिका, कुमारी [ कुमारी+ठन् +-टाप, कुमार-+ ङीष् ] ३२० 5. (योग दर्शन में) श्वास को स्थगित करने के 1. दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की लिए नाक तथा मुखविवर को बन्द करना 6. वेश्या 2. अविवाहिता तरुणी, कन्या-त्रीणि वर्षाण्यु दीक्षेत का प्रेमी। सम-कर्णः 'पड़े के सदृश कान वाला' कुमार्य तुमती सती मनु०९।९०, १११५८, व्यावर्त- एक महाकाय राक्षस जो रावण का भाई था तथा राम तान्योपगमात्कुमारी · रघु०६।६९ 3. लड़की, पुत्री के हाथों मारा गया था (कहते हैं कि इस राक्षस न 4. दुर्गा 5. कुछ पौधों के नाम। सम... पुत्रः हजारों प्राणी, ऋषि तथा स्वर्गीय अप्सराओं को अपने अविवाहिता स्त्री का पुत्र, श्वशुरः विवाह से पूर्व मुंह का ग्रास बना लिया, देवता उत्सुकतापूर्वक उस भ्रष्ट लड़की का श्वसुर ।। दिन की प्रतीक्षा करने लगे, जब कि इस शक्तिशाली कुमुद् (वि.) [कु०+ मुद्+क्विप्] 1. कृपाशून्य, अमित्र राक्षस से मुक्ति मिले । इन्द्र और उसके हाथी ऐरावत 2. लोभी (नपुं०) 1. सफ़ेद कुमुदिनी 2. लाल कमल । के दैन्यभाव के कारण ब्रह्मा ने इसे शाप दिया। तब कमवः,--वम् [को मोदते इति कुमुदम्] 1. सफ़ेद कुमुदिनी, से कुम्भकर्ण अत्यन्त घोर तपस्या करने लगा। ब्रह्मा जो कहते हैं कि चन्द्रोदय के समय खिलती है- नोच्छ्व- प्रसन्न हुआ, और उसे वरदान देने ही वाला था कि सिति तपनकिरणश्चन्द्रस्येवांशुभिः कुमदम्-विक्रम० देवों ने सरस्वती से प्रार्थना की कि वह कुम्भकर्ण की ३।१६, इसी प्रकार श० ५।२८, ऋतु० ३।२, २१, जिह्वा पर बैठकर उसे बदल दे। तदनुसार जब वह २३, मेघ० ४० 2. लाल कमल, - वम् चाँदी,—दः ब्रह्मा के पास गया तो 'इन्द्रपद मांगने के बजाय 1. विष्णु का विशेषण 2. दक्षिण दिशा के दिगराज का | उसके मुंह से निद्रापद निकला, जो उसी समय For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८६ ) स्वीकार कर लिया गया। कहते हैं कि वह छ: महीने कुम्भीरः [कुम्भिन्+ईर+अण् ] घड़ियाल, । सोता था और फिर केवल एक दिन के लिए जागता , कुम्भीरकः, कुम्भील: कुम्भीलकः कुम्भीर+कन, रस्य ल:, था। जब लंका को राम की वानरसेना ने घेर लिया। तत: कन् च चोर-लोप्त्रेण गृहीतस्य कुम्भीरकस्यास्ति तो रावण ने बड़ी कठिनाई के साथ कुंभकर्ण को जगाया । वा प्रतिवचनम्-विक्रम० २, कुम्भीलकैः कामुकैश्च जिससे कि वह उसकी प्रबल शक्ति का उपयोग कर परिहर्तव्या चन्द्रिका-मालवि०४। सके। २००० कलश सुरा पीने के पश्चात् कुम्भकर्ण कुर (तुदा० पर०-कुरति) शब्द करना, ध्वनि करना ने हजारों बन्दरों को अपना मुखग्रास बनाने के अति- । कुरकरः, कुरकुरः [ कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति--कुरम् रिक्त सुग्रीव को बन्दी बना लिया। अन्त मे कुंभकर्ण + +ट, कुरम् --कुर+शच् च ] सारस पक्षी। राम के हाथों मारा गया),-कारः 1. कुम्हार-याज्ञ० कुरंगः (स्त्री०-गी) [क+अङ्गच् ] 1. हरिण-तन्मे ३।१४६ 2. वर्ण संकर जाति (वेश्यायां विप्रतश्चौर्या- हि कुरंग कुत्र भवता कि नाम तप्तं तपः-शा० त्कुम्भकारः स उच्यते-उशना, या मालाकारात्कर्मकर्या १।१४, ४।६ लवंगी कुरंगी दगंगीकरोतु ---जग० कुम्भकारो व्यजायत --पराशर),-घोणः एक नगर का 2. हरिण को एक जाति (कूरंग ईषत्ताम्रः स्याद्धरिणानाम,-जः,-जन्मन् (पु),योनिः,--संभवः 1. अगस्त्य कृतिको महान्)। सम०- अक्षी,-नयना, नेत्रा मनि के विशेषण-प्रससादोदयादम्भः कुम्भयोमहौजसः हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री,-नाभिः कस्तूरी। -रघु० ४।२२, १५।५५ 2. कौरव और पांडवों के | कुरंगमः [ कुर+गम् + खच, मुम् ] दे० 'कुरंग' । सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण 3. वशिष्ट का रचिल्लः | कूर-+-चिल्ल+अच] केकड़ा विशेषण,–वासी कुटिनी, दूती (कभी कभी यह शब्द कुरटः [ कुर+अटन--कित ] जूता बनाने वाला, मोची। गाली के रूप में प्रयक्त होता है)--लग्नम् दिन का । कुरंटः, कुरंटकः, कुरंटिका [ कुर्+-अण्टक्, कुरण्ट - कन्, वह समय जब कि राशि चक्र क्षितिज के ऊपर उदय स्त्रियां टाप इत्यम ] पीला सदाबहार, कटसरैया। होता है,-मंडक: 1. (शा०) घड़े का मेंढ़क करंडः [ कुर-अण्डक ] अण्डकोश की वृद्धि, एक रोग 2. (आल०) अनुभवशून्य मनुष्य--तु० कूपमंडूक, जिसमें पोते वढ़ जाते हैं। -----संधिः हाथी के सिर पर ललाटस्थलियों के बीच का कुररः (लः) [ कु+कुरच, रलयोरभेदः ] क्रौंच पक्षी, गर्त । समुद्री उकाब।। कम्भकः [कुम्भ-कन-+के+क वा] 1. स्तंभ का आधार कररी [कुरर+ङीप्] 1. मादा क्रौंच, ---चक्रन्द विग्ना कुर 2. (योगदर्शन में) प्राणायाम का एक प्रकार जिसमें रीव भूय:-रघु० १४।६८ 2. भेड़ । सम० ---गणः दाहिने हाथ को अंगुलियों से दोनों नथुने और मुख बंद क्रौंच पक्षियों का झुंड । करके सांस रोका जाता है । कुरवः (बः), फरव (ब) कम् [ ईपत् रवो यत्र इति, कुरव कुम्भा [कुत्सितम् उम्भति पूरयति इति-उम्भ +अच् +कन ! सदावहार या कटसरया की जाति,- - कुरखकाः +टाप् शकं° पररूपम् | वेश्या, वारांगना । रवकारणतां ययुः रघु० ९।२९, मेघ० ७८, तु० कुम्भिका | कुम्भ । कन् +टाप, इत्वम् ] 1. छोटा बर्तन ६।१८ --वं (बं), -- व (ब) कम् सदाबहार का फूल 2. वेश्या । -चूडापाशं नवकुरवकम् -- मेघ० ६१५, प्रत्याख्यात कुम्भिन [ कुम्भ+ इनि] 1. हाथो - भामि० ११५२ विशेषकम् कुरबकं श्यामावदातारुणम्-मालबि०३।५। 2. मगरमच्छ । सम०-नरकः एक विशेष प्रकार का करीरम [ ईग्न, उकारादेश: 1 स्त्रियों का एक प्रकार नरक,–मवः हाथी के मस्तक से बहने वाला मद । । का सिर पर ओढ़ने का कपड़ा। कुम्भिलः [ कुम्भ+ इलच् ] 1. सेंध लगा कर घर में घसने कुरुः (बब०) [कृ+कु उकारादेशः] 1. वर्तमान दिल्ली के वाला चोर 2. काव्य चोर, लेख चोर 3. साला, पत्नी निकट भारत के उत्तर में स्थित एक देश --श्रियः का भाई 4. गर्भ पूरा होने से पहले ही उत्पन्न बालक । कुरूणामधिपस्य पालनीम् -कि० १११, चिराय तस्मिन कुम्भी [ कुम्भ डीप ] पानी का छोटा पात्र, घड़िया ।। कुरवश्चकासते--१।१७ 2. इस देश के राजा--हः सम०,-नसः एक प्रकार का विषैला साँप -- उत्तर 1.पुरोहित 2. भात । सम---क्षेत्रम दिल्ली के निकट २।२९ ---पाकः (ए० व० या व० व०) एक विशेष एक विस्तृत क्षेत्र जहाँ कौरद पाण्डवों का महायुद्ध प्रकार का नरक जिसमें पापो जन कुम्हार के वर्तनों : हुआ था-धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता: युयुत्सवः -- भग० की भांति पकाये जाते हैं - याज्ञ० ३।२२५, १११, मनु० २।१९, --जाङ्गलम् =कुरुक्षेत्र---राज मनु० १२१७६। (पु०)-राजः दुर्योधन का विशेषण,-- विस्तः ७०० कुम्भीकः [ कुंभी-+के+क] पुन्नागवक्ष। सम-मक्षिका ट्राय ग्रेन के बरावर (४ तोले) सोने का तोल । एक प्रकार की मक्खी। ---वृद्धः भीष्म का विशेषण । For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २८७ ) कुरुंट: (पुं०) लालरंग का सदाबहार टो काठ की गुड़िया पुत्तलिका । कुरुवक = कुरबक | कुरुजिद:, दम् [ कुरु + विद्+श, 1. काला नमक 2. दर्पण | कुरुल: (पुं०) वालों का गुच्छा, विशेषकर माथे पर बिखरी हुई जुल्फ । मुम् ] लालमणि - दम् कुर्कुट: [ कुरु + कुटु + क ] 1. मुर्गा 2. कूड़ा-करकट | कुर्कुरः [ कुर् +कुर्+क ] कुत्ता, + उपकर्तुमपि प्राप्तं निःस्वं मन्यंति कुकुरम् पंच० २०९०, अने० पा० । कुचिका = कूचिका । कुर्द, कुर्दन दे० कुर्द, कूर्दन । कु (कु) पर:' [कुर्+क्विप्, कुर्+ पृ+-अव् पक्षे दीर्घः नि० ] 1. घुटना 2. कोहनी । कु (कू) पस:, कु ( कू) र्पासकः [ कुर+अस् + ञ्ञ, पो०, कुस ( कूर्पास) । कन् । स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अँगिया या चोली 1. मनोजकूर्पासकपीडितस्तना:- ऋतु०५/८, ४११६ अने० पा० । कुर्वत् ( शत्रन्त ) [ कृ + शतृ] करता हुआ (पुं० ) 1. नौकर 2. जूते बनान वाला । कुलम् [कुल + क] 1. वंश, परिवार निदानमिक्ष्वाकुकुलस्य सन्ततेः - रघु० ३।१ 2. पारिवारिक आवास, आसन घर, गृह - वसन्तृषिकुलेषु सः - रघु० १२/२५ 3. उत्तमकुल, उच्च वंश, भला घराना कुले जन्म – पंच ० ५/२, कुलशीलसमन्वितः मनु० ७।५४, ६२, इसी प्रकार कुलजा, कुलकन्यका आदि 4. रेवड़, दल, झुंड, संग्रह, समूह - मृगकुलं रोमन्यमभ्यस्यतु - श० २५ अलिकुलसङ्कुल- - गीत० १, शि० ९।७१, इसी प्रकार गोम महिषी आदि 5. चट्टा, टोली, दल (बुरे अर्थ में) 6. शरीर 7. सामने का या अगला भाग, -ल: किसी निगम या संघ का अध्यक्ष | सम० --- अकुल ( fro ) 1. मिश्र चरित्रबल का 2. मध्यम श्रेणी का, ° तिथि: ( पुं० -- स्त्री०) चांद्रमास के पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और दशमी, वार: बुधवार - अङ्गना आदरणीय तथा उच्च वंश की स्त्री – अङ्गारः जो अपन कुल को नष्ट करता है, अचलः, अत्रि, पर्वतः शैलः मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं उन सात पहाड़ों में से एक, उनके नाम ये हैं: - महेन्द्रो मलयः सहा शुक्तिमान् ऋक्षपर्वतः, विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः । अन्वित ( वि०) उच्चकुल में उत्पन्न, अभिमानः कुल का गौरव, आचारः किसी परिवार या जाति का विशेष कर्तव्य या रिवाज, - आचार्य: 1. कुलपुरोहित या कुलगुरु 2. वंशावलीप्रणेता - आलम्बिन् (वि०) परिवार का पालन पोषण करने वाला, – ईश्वरः 1. परिवार का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुखिया 2. शिव का नाम, उत्कट (वि०) उच्चकुलोद्भव (ट) अच्छी नसल का घोड़ा० उत्पन्न, उद्गत, उद्भव ( वि०) भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव, उद्वहः कुटुंब का मुखिया या उसे अमर बनाने वाला - दे० उह, उपदेशः खानदानी नाम, कज्जलः कुलकलंक, कण्टकः जो अपने कुटुंब के लिए कांटे की भांति कष्टदायक हो, कन्यका, कन्या उच्चकुल में उत्पन्न लड़की - विशुद्धमुग्धः कुलकन्यकाजनः मा० ७१, गृहे गृहे पुरुषाः कुलकन्यकाः समुद्वहन्ति - मा० ७, --करः कुलप्रवर्तक कुल का आदिपुरुष, कर्मन् ( नपुं० ) अपने कुल की विशेष रीति, - कलङ्क जो अपने कुल के लिए अपमान का कारण हो, क्षय: 1. कुटुंब का नाश 2. कुल की परिसमाप्ति, गिरिः, भूभृत् ( पुं० ) -- पर्वतः दे० 'कुलाचल' ऊपर, घ्न (वि० ) कुल को बर्बाद करने वाला दोवरेतेः कुलघ्नानाम् - भग० १/४२, ज, जात (वि०) 1. अच्छे कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव 2. कुलक्रमागत, आनुवंशिक - कि० १1३१ ( दोनों अर्थों में प्रयुक्त), जनः उच्चकुलोद्भव या संमाननीय पुरुष, तन्तुः जो अपने कुल को बनाये रखता है, तिथि: (पुं० [स्त्री० ) महत्त्वपूर्ण तिथि, नामतः चांद्र पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी, तिलकः कुटुंब की कीर्ति, जो अपने कुल को सम्मानित करता है, दीपः- दीपकः जिससे कुल का नाम उजागर हो, दुहित ( स्त्री० ) दे० कुलकन्या, देवता अभिभावक देवता, कुल का संरक्षक देवता - कु० ७ २७ - - धर्मः कुल की रीति, अपने कुल का कर्तव्य या विशेष रीति- उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन - भग० ११४३ मनु० १।११८, ८ १४, – धारक : पुत्र, धुर्यः परिवार का भरणपोषण करने में समर्थ (पुत्र), वयस्क पुत्र न हि सति कुलधुर्ये सूर्यवंश्या गृहाय -- रघु० ७/७१ - नन्दन ( वि० ) अपने कुल को प्रसन्न तथा सम्मानित करने वाला, नायिका वाममार्गी शाक्तों की तान्त्रिकपूजा के उत्सव के अवसर पर जिस लड़की की पूजा की जाय, -नारी उच्चकुलोद्भव सती साध्वी स्त्री, नाशः 1. कुल का नाश या बरबादी 2. विधर्मी आचारहीन, बहिष्कृत 3. ऊँट, परम्परा वंश को बनाने वाली पीढ़ियों की श्रेणी, पति: 1. कुटुंब का मुखिया 2. वह ऋषि जो दस सहस्र विद्यार्थियों का पालनपोषण करता हैं तथा उन्हें शिक्षित करता है - परिभाषा - मुनीनां दशसाहस्रं योऽनदानादिपोषणात्, अध्यापयति विप्रषिरसौ कुलपतिः स्मृतः । --अपि नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात् श० १, रघु० ११९५, उत्तर० ३१४८, पांसुका कुलटा स्त्री जो अपने कुल को कलंक लगावे, व्यभिचारिणी स्त्री, पालिः —पालिका, For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुर्गा। आरन का बलोद्भव कला ( २८८ ) ---पाली (स्त्री०) उच्चकुलोद्भुत सती स्त्री-पुत्रः +घञ । पक्षियों का घोंसला,-कूजक्लान्तकपोतअच्छे कूल में उत्पन्न वेटा--इह सर्वस्वफलिनः कुल- कुक्कुटकुलाः कूले कुलायद्रुमाः --उत्तर० २।९, नै० १। पुत्रमहाद्रुमाः--मृच्छ० ४।१०,-पुरुषः 1. सम्मान के १४१ 2. शरीर 3. स्थान, जगह 4. बुना हुआ वस्त्र, योग्य तथा उच्चकुल में उत्पन्न पुरुष--कश्चुम्बति जाला 5. बक्स या पात्र। सम-निलायः घोंसले कुलपुरुषो बेश्याधरपल्लवं मनोज्ञमपि---भर्त० १९२ में बैठना, अंडे सेना, अंडों में से बच्चे निकालने के लिए 2. पूर्वज,-पूर्वगः पूर्व पुरुष,-भार्या सती साध्वी पत्नी, अंडों के ऊपर बैठना। -स्थ: पक्षी। - भत्या गर्भवती स्त्री की परिचर्या, -- मर्यादा कुल कुलायिका | कुलाय !- ठन्।-टाप् ] पक्षियों का पिंजड़ा, का सम्मान या प्रतिष्ठा,-मार्गः कूल की रीति, सर्वो- चिड़ियाघर, कबूतरखाना, दड़बा। त्तमरीति या ईमानदारी का व्यवहार, " योषित, | कुलालः | कुल --कालन् ] 1. कुम्हार,- ब्रह्मा येन कूलाल -वधु (स्त्री०) अच्छे कूल की सदाचारिणी स्त्री, वनियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे-भर्तृ० २।९५ 2. जंगली -~~-वारः मुख्य दिन (अर्थात् मंगलवार और शुक्रवार) -विद्या कुलक्रमागत प्राप्त ज्ञान, परंपराप्राप्त ज्ञान, कुलिः [ कुल--इन्, कित् ] हाथ । --विप्रः कुलपुरोहित, वृद्धः परिवार का बूढ़ा तथा | कुलिक (वि.) कुल- ठन् ] अच्छे कुल का, उत्तम कुल अनुभवी पुरुष, -व्रतः,--तम् कुल का व्रत या प्रतिज्ञा में उत्पन्न,-क: 1. स्वजन-याज्ञ०२।२३३ 2. शिल्पि-गलितवयसामिक्ष्वाकूणामिदं हि कुलव्रतम् - रघु० संघ का मुखिया 3. उच्चकुलोद्भव कलाकार। सम० ३।७०, विश्वस्मिन्नधुनाऽन्यः कुलवतं पालयिष्यति कः -बेला दिन का वह समय जबकि कोई शुभ कार्य -~भामि० १११३,---श्रेष्ठिन् (पुं०) किसी कुटुंब या आरम्भ नहीं करना चाहिए। श्रमिकसंघ का मुखिया 2. उच्चकूल में उत्पन्न शिल्प कुलिङ्गः [--लिङ्ग+अच ] 1. पक्षी 2. चिड़िया। कार,--संख्या 1 कुल की प्रतिष्ठा 2. सम्मानित परि कुलिन (वि०) (स्त्री०---नी) [कुल- इनि ] कुलीन, बारों में गणना-मनु० ३१६६,--सन्ततिः (स्त्री०) उच्चकुलोद्भव, (पुं०) पहाड़। संतान, वंशज, वंशपरम्परा-मनु ५।१५९, --संभव कलिन्दः (ब०व०) [कल+इन्द] एक देश तथा उसके (वि०) प्रतिष्ठित कूल में उत्पन्न,-सेवकः श्रेष्ठ | शासकों का नाम ।। नौकर,-स्त्री उच्च कुल की स्त्री, कुललक्ष्मी,-अधर्माभि- | कलिरः,--रम [कुल+इरन्,, कित् ] 1. केकड़ा 2. राशि भवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ... भग० १४१, चक्र में चौथी राशि, कर्करादि । -स्थितिः (स्त्री०) कुटुन्व की प्राचीनता या कुलि (ली) शः, -शम [ कुलि+शी+ड, पक्षे पृषो० समृद्धि। दीर्घः ] इन्द्र का वज्र--वृत्रस्य हन्तु: कुलिशं कुण्ठिता कुलक (वि०) [ कुल कन् ] अच्छे कुल का, अच्छे कुल श्रीव लक्ष्यते---कु० २।२०, अवेदनाशं कुलिशक्षतानाम् में जन्मा हआ, कः 1. शिल्पियों की श्रेणी का मुखिया ......१।२०, रघु० ३।६८, ४।८८, अमरु ६६ 2. वस्तु 2. उच्च कुल में उत्पन्न शिल्पकार 3. बाँबी,---कम् का सिरा या किनारा ...मेघ० ६१। सम० . धरः, 1. संग्रह, समूह 2. व्याकरण की दृष्टि से सम्बद्ध इलोकों ---पाणिः इन्द्र का विशेषण, नायकः मैथुन की विशेष का समूह, (पाँच से पन्द्रह तक के श्लोकों का समह रीति, रतिसंबंध । जो एक वाक्य बनाते हों) उदा० दे० शि० १११-१०, ! कली [ कलि-डीष ] पत्नी की बड़ी बहन, बड़ी साली। रघु० ११५--९, इसी प्रकार कु० ॥११-६। । कुलीन (वि०) [ कुल-ख ] ऊँचे वंश का, अच्छे कुल का, कुलटा [ कुल+अट्-+-अच्+टाप् शक० पररूपम् ] व्यभि उत्तम परिवार में जन्म हुआ, दिपयोषितमिवाकूलीचारिणी स्त्री-- मद्रा० ६.५, याज्ञ० ११२१५ । सम० नाम -..का. ११,-नः अच्छी नसल का घोड़ा। .--पतिः भ्रष्टा या जारिणी स्त्री का स्वामी। कुलीनसम् [कुलीनं भूमिलग्नं द्रव्यं स्यति - कुलीन+सो कुलतः (अव्य०) कुल-तसिल ] जन्म से। +क] पानी। कलत्थः [ कुल+स्था+क पृषो० साधु: ] कुलथी, एक कलीर::--रकः [ कल-ईरन, कित; कुलोर-कन्] प्रकार की दाल । - 1. केकड़ा 2. राशिचक्र में चौथी राशि, कर्क राशि । कुलन्धर (वि०) [ कुल+-+-खच्, मुम् ] अपने कुल का | कुलक्कगुजा [को पृथिव्यां लुक्का, लुक्कायिता गुज इव] सिलसिला चलाने वाला। लुकाठी, जलती हुई लकड़ो। कुलम्भरः,-लः [ कुल+भू-खच्, मुम् ] चोर ।। कुलतः (ब०व०) एक देश और उसके शासकों का नाम । कुलवत् [ कुल+मतुप्, मस्य वत्वम् ] कुलीन, अच्छे घराने | कुल्माषम् [ कुल ---क्विप, कुल माषोऽस्मिन् ब० स०] में उत्पन्न। कांजी, षः एक प्रकार का अनाज । सम०--अभिकुलायः, यम् [ कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र-कुल+अय् । षुतम् कांजी । For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८९ ) कुल्य (वि.)[ कुल+यत् ] 1. कुटुंब, वंश या निगम से । में दर्शन दिए और कहा कि उसे इस प्रकार देवी का संबंध रखने वाला 2. सत्कूलोद्भव,---ल्यः प्रतिष्ठित तिरस्कार नहीं करना चाहिए, तब कुश अयोध्या को मनुष्य, -- ल्यम् 1. कौटुंबिक विषयों में मित्रों की भांति लौट आया- दे० रघु १६॥३-४२),-शम् पानी जैसा पूछताछ (समवेदना, बधाई आदि) 2. हड्डी-महावी० कि 'कुशेशय' में। सम-अग्रम् कुशघास के पत्ते २०१६ 3. मांस 4. छाज,-- ल्या 1. साध्वी स्त्री का तेज किनारा, इसीलिए समास में यह शब्द प्रायः 2. छोटी नदी, नहर, सरिता-कुल्याम्भोभिः पवनचपलैः 'तीक्ष्ण' 'तेज' और 'तीव्र' अर्थ प्रकट करता है जैसाकि शाखिनो धौतमूला: ... श० १११५, - कूल्येवोद्यानपाद- 'बुद्धि (वि०) तीव्रबुद्धि, तेजबुद्धि वाला, तीक्ष्णबुद्धि; पान्..... रघु० १२।३ ७।४९ 3. परिखा, खाई 4. आठ ---(अपि) कुशाग्रबुद्धे कुशली गुरुस्ते-- रघु० ५।४, द्रोण के बराबर अनाज को तोल । - अग्रीय (वि.) तीव्र, तेज,-अगरीयम् कुशघास की कुवम् [कु+वा+क] 1. फूल 2. कमल । बनी अंगठी जो धर्मानुष्ठान के अवसर पर पहनी जाती कुवर-दे० तुवर। है,-आसनम् कुशा का बना हुआ आसन या चटाई, कुवलम् [ कु, वल+अच्] 1. कुमुद 2. मोती 3. पानी। – स्थलम् उत्तर भारत में एक स्थान का नाम कवलयम [ कोः पथिव्याः वलयमिव---उप० स०] 1. नीला .. वेणी०१। कुमुद कुवलयदलस्निग्धैरङ्गैर्ददौ नयनोत्सवम्-उत्तर० । कुशल (वि.) [कुशान् लातीति--कुश+ला+क] ३।२२ 2. कुमुद 3. पृथ्वी (पं० भी)। 1. सही, उचित, मंगल शुभ-शि० १६।४१, भग० कुवलयिनी [कुवलय --इनि+डीप 1 1. नीली कूमदिनी १८।१० 2. प्रसन्न, समृद्ध 3. योग्य, दक्ष, चतुर, प्रवीण, का पीधा 2. कमलों का समूह 3. कमलस्थली अभिज्ञ (अधि० के साथ या समास में)-दण्डनीत्यां 4. कमल का पौधा । च कुशलम् - याज्ञ० ११३१३, २१८१, मनु० ७।१९० कुवाद (वि०) [ कु-बद्-|-अण् ] 1. मान घटाने बाला, रघु० ३।१२,-लम् 1. कल्याण, प्रसन्न तथा समृद्ध साख कम करने वाला, निन्दक 2. नीच, दुरात्मा, अवस्था, प्रसन्नता,—पप्रच्छ कुशलं राज्ये राज्याश्रममुनि अधम । मुनिः-- रघु० ११५८, अव्यापन्नः कुशलमबले पृच्छति कुविकः (ब०२०) एक देश का नाम । त्वाम् – मेघ० १०१ अपि कुशलं भवतः 'आप अच्छी कुधि (पि) न्दः कु--विद् +श, मुम्, कुप्+किन्दच् ] | तरह से है ? 2. गुण 3. चतुराई, योग्यता। सम० 1. बुनकर -- कुविन्दस्त्वं तावत्स्टयसि गुणग्राममभितः --- काम (वि०) प्रसन्नता का इच्छुक,---प्रश्न: किसी -..-काव्य० ७ 2. जुलाहा जाति का नाम ।। से कुशलमंगल पूछना (मित्रों की भौति),-बुद्धि कुवेणी| कु-वेण इन+डीप] 1. मछलियाँ रखने की (वि०) बुद्धिमान्, समझदार, तीव्रबुद्धि, तीक्ष्णबुद्धि । टोकरी [ कुत्सिता वेणो ] 2. बुरी तरह बँधो हुई सिर कुशलिन् (वि.) (स्त्री०---नी) [ कुशल- इनि ] प्रसन्न, की चोटी। राजो खुशी, समृद्ध-अथ भगवाँल्लोकानुग्रहाय कुशली कुवेलम् | कुवेषु जलजपुष्णेषु ई शोभा लाति-- कुव-ई | काश्यपः-श० ५, रघु० ५।४, मेघ० ११२ । -ला-क] कमल । कुशा [ कुश+टाप् | 1. रस्सी 2. लगाम । कुशः [कु- शी---ड] 1. एक प्रकार का घास (दर्भ) जो | कुशावती [कुश-मतुप, मस्य वः, दीर्घः] इस नाम की एक पवित्र माना जाता है और बहुत से धर्मानुष्ठानों में नगरी, राम के पुत्र कुश की राजधानी, दे० 'कुश'। जिसका होना आवश्यक समझा जाता है,-पवित्रार्थ इमे | कुशिक (वि.) [ कुश-1-ठन् ] भैगी आँख वाला,—क: कुशा: ... श्राद्धमन्त्र-कुशपूतं प्रवधास्तु विष्ट रम्.-....रघु० | 1. विश्वामित्र के दादा का नाम, (कुछ दूसरे वर्णनों के ८1१८, ११४९, ९५ 2. राम के बड़े पुत्र का नाम (बह अनसार- विश्वामित्र के पिता का नाम) 2. फाली राम के जडवा पुत्रों में से एक था, जब रामने सौता (हल की) 3. तेल की गाद । को निष्ठुरतापूर्वक जंगल में छोड़ दिया था, उसके कुशी [ कुश+डीष् ] हल की फाली। बाद शीघ ही जड़वां पुत्रों का जन्म हुआ जिनमें कुश कुशीलवः [कुत्सितं शीलमस्य--कुशील+व] 1. भाट, बड़ा था क्योंकि उसने संसार को पहले देखा; कुश गवैया--मनु० ८१६५, १०२ 2. (नाटक का) पात्र, और लव दोनों भाइयों का पालन पोषण वाल्मीकि ने नर्तक तत्सर्व कुशीलवा: सङ्गीतप्रयोगेण मत्समीहितकिया, उन्हें आदिकवि के महाकाव्य रामायण का पाठ संपादनाय प्रवर्तताम्-मा० १, तकिमिति नारम्भयसि करना सिखाया गया। राम ने कुश को कुशावती का कुशीलवैः सह सङ्गीतकम ----वेणी०१ 3. समाचार राजा बना दिया और वह आने पिता की मृत्यु के फैलाने वाला 4. वाल्मीकि का विशेषण । पश्चात् कुछ समय तक वहाँ रहा। परन्तु अयोध्या । कुशम्भः [कु+शुम्भ +अन् । संन्यासी का जलपात्र, की पुरानी राजधानी की अधिष्ठात्री-देवी ने उसे स्वप्न कमण्डल । For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९० ) कुशलः [ कुस्+ऊलच, पृषो० सस्य शत्वम् ] 1. अन्नागार | प्रयुक्त होती है,-- अञ्जलिः मुट्ठी भर फूल,- अधिपः, (खत्ती), कोठी, भंडार--को धन्यो वह भिः पूत्रैः --अधिराज् (पुं०) चम्पक वक्ष (इसके फूल पीले रंग कुशलापूरणाकै--हि० प्र० २० 2. भूसी से बनाई के सुगंधयुक्त होते हैं),- अवचायः फूलों का चुनना हुई आग। .....अन्यत्र यूयं कुसुमावचायं कुरुध्वमत्रास्मि करोमि कुशेशयम् [ कुशेशी +अच, अलक स०] कुमद, कमल सख्यः– काव्य० ३,-अवांसकम् फूलों का गजरा, -भूयात्कुशेशयरजोमृदुरेणुरस्याः (पन्थाः )---२० ४११०, --- अस्त्रः, - आयुधः,-- इषुः,-बाणः,-शरः 1. पुष्परघु० ६।१८,-यः सारस पक्षी। मय वाण 2. कामदेव,---अभिनवः कुसुमेषुव्यापारः कुष (ऋया० पर०-कुष्णाति, कुपित) 1. फाड़ना, निचो- -मा० १ यहाँ 'कुसुमेषु व्यापारः' भी पढ़ा जा सकता ड़ना, खींचना, निकालना--शिवाः कुष्णन्ति मांसानि है)--तस्मै नमो भगवते कुसुमायुघाय-भर्त० १११, - भट्रि० १८।१२, १७१०, ७४९५ 2. जाँचना, ऋतु०६।३३, चौर० २०, २३, रघु०७६१, शि० परीक्षा लेना 3. चमकना, निस्-निचोड़ना, फाड़ना, ८७०, ३१२ कुमुमशरबाणभावेन-गीत० १०, आकरः निकालना-उपान्तयोनिष्कुषितं विहङ्गः - रघु० ७।५०, 1. उद्यान 2. फूलों का गुच्छा 3. बसंत ऋतु- ऋतूनां भद्रि० ९।३०, ५।४२, इसी प्रकार--काकैनिकुषितं कुसुमाकर:-भग० १०॥३५, इसी प्रकार भामि० ११४८, श्वभिः कवलितं गोमाय भिलण्ठितम् --गंगाप्टक । --आत्मकम् केसर, जाफरान,- आसवम् 1. शहद कुषाकुः [ कुष्-+ काकु ] 1. सूर्य 2. अग्नि 3. लंगूर, बंदर । 2. एक प्रकार की मादक मदिरा (फलों से तैयार की कुष्ठः,-ष्ठम् [कुष-+कथन ] कोढ़ (कोढ़ १८ प्रकार का गई), उज्ज्वल (वि०) फूलों से चमकीला, कार्मुकः, होता है)-गलत्कुष्ठाभिभूताय च-भर्तृ० १।९.० । ...चापः,-धन्वन् (पुं०) कामदेव के विशेषण -- कुसुमसम-अरि: 1. गंधक 2. कुछ पौधों के नाम । चापमतेजयदंशुभिः - रघु० ९।२९, ऋतु. ६।२७, कुष्ठित (वि.) [ कुष्ठ+इतच ] कोढ़ से पीड़ित, कोढ़- | -चित (वि०) पुष्पों का अम्बार हो गया है जहाँ ग्रस्त । -पुरम् पाटलीपुत्र (पटना) का नाम कुसुमपुराभिकुष्ठिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ कूष्ट---इनि ] कोढ़ी। ! योग प्रत्यनदासीनो राक्षसः -- मुद्रा० २,-लता खिली कुष्माण्डः [ कु ईषत् उष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य-ब० स० हई लता,...-शयनम् फूलों की शय्या ----विक्रम० ३।१०, शक° पररूपम् ] एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी, ----स्तवकः फलों का गुच्छा, गुलदस्ता-- -कुसुमस्तवककुम्हड़ा। स्येव द्वे गती स्तो मनस्विनाम्-- भत० २।३३। कुस् (दिवा० पर०- कुष्यति, कुसित) 1. आलिंगन करना | कुसुमवती [ कुसुम+मतुप्-+-डोम्, मस्थ वः ] ऋतुमती या 2. घरना। रजस्वला स्त्री। कुसितः [ कुस्+क्त ] 1. आवाद देश 2. जो सूद से जीविका कुसुमित (वि०) [कुगुम- इतन् ] फूलों से युक्त, पुष्पों चलाता है, दे० 'कुशोद' नी०। से सुसज्जित। कुसी (सि) दः [कुस+ईद] (इसे 'कशीद' या 'कृयीद' कुसुमालः [ कुसुमक्त् लोभनीयानि द्रव्याणि आलाति- इति भी लिखते हैं। साहूकार, सूदखोर-दम्, 1. वह । कुसुम---आ+ला+क] चोर । कर्जा या वस्तू जो ब्याज सहित लौटायी जाय। कुसुम्भः,-भम् कुस् + उम्भ] 1. कुमुम्भ, कुमुम्भारुणं चारु 2. उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय | चेलं वसाना---जग०, रघ० ६।६ 2. केसर 3. संन्यासी -कुसीदाद् दारिद्रयं परकरगतग्रन्थिशमनात्---पंच० का जलपात्र, कमण्डल,---भम सोना,--भः बाह्य स्नेह ११११, मनु० १।९०, ८१४१०, याज्ञ० ११११९ । (कुसुम्भी रंग से तुलना की गई है)। सम-पथः सूदखोरी, सूदखोर (पठान) का ब्याज, | कुसूलः [ कुस्-Fऊलच ] 1. अन्नागार (खत्ती), भण्डार, प्रतिशत से अधिक ब्याज-वद्धिः (स्त्री) धन पर गृह (अनाज आदि के लिए)। मिलने वाला ब्याज,—कूसीदवद्धिद्वैगम्यं नात्येति सक- | कुसृतिः (स्त्री०)[ कुत्मिता सृतिः ] जालसाजी, ठगी, धोखादाहृता--मनु० ८।१५१ ।। "देही। कुसोदा [ कुसीद+-टाप् ] सूदखोर स्त्री। कुस्तुभः [ कु+-स्तुंभ---क ] 1. विष्ण 2. समुद्र । कुसीदायी [ कुसीद-। डीप, ऐ आदेशः । सूदखोर की पत्नी। कुहः [ कुह +णि+अच् ] कुबेर, धनपति । कुसोदिकः - कुसीदिन् (पुं०) [ कुसीद--प्टन्, इनि वा ] कुहकः [ कुह+क्वन् ] छली, ठग, चालाक (ऐन्जालिक), सूदखोर । --कम,--का चालाकी, धोखा। सम--कार कुसुमम् [ कुप+उम ] 1. फूल,-उदेति पूर्व कुसुमं ततः (वि.) कपटी, छलिया,- चकित (वि०) दाँवपेंच से फलम्,-- श० ७।३० 2. ऋतु-स्राव 3. फल। सम० डरा हुआ, शक करने वाला, सावधान, सजग--हि० -अञ्जनम् पीतल की भस्म जो अंजन की भांति | ४११०२,--स्वनः,--- स्वरः मुर्गा। For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २९१ ) कुहनः [ कु+हन् + अच्] 1 मूसा 2. साँप - नम् 1. छोटा मिट्टी का बर्तन 2. शीरों का वर्तन । कुहना, कुहनिका | कुह + य, कुहन + क + टापू, इत्वम् ] स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ | कहरम् [ कुह + क -- कुहं राति, रा+क ] 1. गुफा, गढ़ा जैसा कि 'नाभिकहर' या आस्य में 2. कान 3. गला 4. सामीप्य 5. मैथुन । कुहरितम् | कुहर | इतच् | 1. ध्वनि 2. कोयल की कुकू 3. मैथन के समय सी, सी का शब्द । कह:, कुहूः (स्त्री० ) [ कुह । कु, कुहु + ऊ ] 1. नया चंद्रदिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन - ( अमावस्या ) जब कि चन्द्रमा अदृश्य होता है करगतैव गता यदियं कुहूः - नं० ४1५७ 2. इस दिन की अधिष्ठात्री देवी मनु० ३।८६ 3. कोयल की कूक पिकेन रोपाणचक्षुपा मुहुः कुरुतायन चन्द्रवैरिणी- नै० ११००, उन्मीलति कुहू कुहूरिति कलात्तालाः पिकानां गिरः-- गीत० १ सम० कण्ठः, मुखः, -रवः, - - शब्दः कोयल | (स्वा० तुदा० आ०- कवते, कुवते ) ( क्या० उभ० -- कुकूनाति, कु कुनीते ) 1. ध्वनि करना, कलरव करना 2. कष्टावस्था में कन्दन करना-खगारचुकु त्रिभम् भट्टि०१४/२० १२० १८१५, १५०६, १६।२१ । कः (स्त्री० ) [ कृ + क्विप् ] पिशाचिनी, चुड़ैल | कचः | कृ | चट् | स्त्री का स्तन ( विशेष कर जवान या अविवाहित स्त्री का ) दे० 'कु' | कचिका, कची | कूच + कन् । टापू, इल्बम् कृत्र | झीप ] 1. बालों का बना छोटा ब्रा, कंची 2. नाही | कूज् (भ्वा० पर०---कृजनि, कृजित ) अस्पष्ट ध्वनि करना, गंजना, कजना, ककना कजलं राम रामेति मधरं मधुराक्षरम् - रामा० पुंस्कोकिला यन्मधुरं चुकूज - कु० ३३२ ० ६ । २२, रघु० २।१२, नै० १।१२७ नि , परि वि कूजना, कुक की अस्पष्ट वर्शन करता । कूज:, कूजनम्, कूजितम् | कृज् - अन् कुन् ल्युट् कृ 1 + ] 1. कूजन, कुक की ध्वनि करना 2. पहियां की घरघराहट | , कूट ( वि० ) [ कूट + अच् ] 1. मिथ्या, जैसा कि 'कूटा: पूर्वसाक्षिणः' में याज्ञ० ११८० 2. अचल, स्थिर, टः, -टम् 1. जालसाजी, भ्रम, धोखा 2. दांव, जाल साजी से भरी हुई योजना 3. जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल जैसा कि कूटटलोक और कूटान्योक्ति 4. मिध्यात्व असत्यता ( प्रायः समास म विशेषण के बल के साथ प्रयोग) वचनम्, झूठे या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धोखे में डालने वाले शब्द तुला, मानम् आदि 5. पहाड़ का शिखर या चोटी-वर्धयन्निव तत्कूटानुद्धतेर्धातुरेणुभिः -- रघु० ४।७१, मेघ० ११३ 6. उभार या उत्तुंगता 7. अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा 8 सींग 9 सिरा, किनारा - याज्ञ० ३।९६ 10. प्रधान, मुख्य 11 राशि ढेर, समूह; अभ्रकूटम् वादलों का समूह, इसी प्रकार अन्नकूटम् - अनाज का ढेर 12. हथौड़ा, घन 13. हल की फाली, कुशी 14. हरिणों को फसाने का जाल 15 गुप्ती, जैसे ऊनी म्यान में वर्धी, या हाथ की यष्टिका में कृपाण 16. जलकलश, टः 1. घर, आवास 2. अगस्त्य की उपाधि | सम०-अक्षः झूठा या कपट से भरा पासा ( सीमा या पारा भरा हुआ जिससे फेंकने पर वह खाग बल पर ही चित हो) कूटाक्षोपधिदेविन:- याज्ञ० २२२०२ - अगारम् छत पर बनी कोठरी, -अर्थ: अर्थो की सन्दिग्धता "भाषिता कहानी, उपन्यास, - उपायः जालसाजी से भरी योजना, कूटचाल, कूटनीति -कारः बांखेबाज, झूठा गवाह, - कृत् (वि०) ठगनेवाला, धोखा देने वाला 2 जाली दस्तावेज बनानेवाला - याज्ञ० २७० 3. घूस देने वाला (पुं० ) 1. कायस्थ 2. शिव का विशेषण, कार्षापण: झूठा कार्यापण, खङ्गः गुप्ती, छद्यन् (पुं० ) ठग, तुला पासंग वाली तराजू, धर्म (वि०) जहाँ झूठ ( मिथ्यात्व ) कर्तव्य कर्म Test जाय ( ऐसा स्थान, घर, और देश आदि), पाकल: पित्तदोपयुक्त ज्वर जिससे हाथी ग्रस्त होता है, हस्तिवातज्वर अचिरेण वैकृतविवर्तदारुणः कलभं कठोर इव कूटपाकल ( अभिहन्ति ) - मा० १/३९, ( कभी कभी इसी शब्द को 'कूटपालक' भी लिख देते हैं ) - पालक: कुम्हार, कुम्हार का आवा, पाशः, - वन्धः जाल, फंदा, - रघु० १३१३१ - मानम् झूठी माप या तोल - मोहनः स्कन्द का विशेषण, यन्त्रम् हरिण एवं पक्षियों को फंसाने का जाल या फंदा, युद्धम् छल और धोखे की लड़ाई, अधर्मयुद्ध रघु० १७/६९, - शाल्मलि : (पुं० [स्त्री० ) 1. सेमल वृक्ष की एक जाति, 2. तेज काटा से युक्त वृक्ष (एक उपकरण -गदा- जिससे यमराज पापियों को दण्ड देता है) - दे० रघु० १२ । १५ और इस पर मल्लि० की टीका, शासनम् जाली आज्ञापत्र या फरमान, - साक्षिन् (पुं०) झूठा गवाह, -स्थ (वि०) शिखर पर खड़ा हुआ, सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित (वंशावलीद्योतक तालिका में प्रधान पद पर अवस्थित), स्थः परमात्मा (अचल, अपरिवर्तनीय, तथा सावन) भग० ६।८, १२०३, स्वर्णम् खोटा सोना । कूटकन् [ कूट- कन् ] 1. जालसाजी, धोखादेही, चालाकी 2. उत्सव, उत्तुंगता 3. कुशी, हल की फाली । सम ० -- आख्यानम् गढ़ी हुई कहानी । For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९२ ) कूटशः (अव्य०) [ कूट+-शस् ] ढेरों या समूहों में। कूर्चः,-चम् [ कुर् = चट् नि० दीर्घः ] 1. गुच्छा, गठरी कवचम्-कुड्य । 2. मुट्ठीभर कुश घास 3. मोरपंख 4. दाढ़ी-आगतकूण (चुरा० उभ०--कूणयति-ते, कूणित) 1. बोलना, मनध्यायकारणं सविशेषभूतमद्य जीर्णकूर्चानाम्-उत्तर० बातचीत करना 2. सिकोड़ना, बंद करना (इस अर्थ | ४, या पूरयतिव्यमनेन चित्रफलक लंबकूर्चानां तापसानां में आ० माना जाता है)। कदम्बः-श०६ 5. चुटकी 6. नाक का ऊपरी भाग, कणिका [कूण+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] 1. किसी पशु का | दोनों भौवों के बीच का भाग 7. कूची, ब्रुश 8. धोखा, - सींग 2. वीणा की खूटी। जालसाजी 9. शेखी बघारना, डींग मारना 10. दम्भ, कूणित (वि.) [ कूण्+क्त ] बन्द, मुंदा हुआ। -र्च: 1. सिर 2. भण्डार। सम-शीर्ष:-शेखरः कुहालः [कु+दल+अण, पृषो.] पहाड़ी आबनूस । नारियल का पेड़। कूपः [कुवन्ति मण्डका अस्मिन-कु+एक दीर्घश्च] कचिका [ कूर्चक+टाप+इत्वम् ] 1. चित्रकारी करने की 1. कूओं-कूपे पश्य पयोनिधावपि घटो गृह्णाति तुल्यं कूची, ब्रुश या पैंसिल 2. चाबी 3. कली, फूल जलम् --भर्तृ०. २०४९, इसी प्रकार-नितरां नीचोऽ- 4. जमाया हुआ दूध 5. सुई। स्मीति त्वं खेदं कूप मा कदापि कृथाः, अत्यन्तसरस- | कूर्द (भ्वा० उभ० --- कूर्दति-ते, कूदित) 1. छलांग लगाना, हृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि-भामि० ११९ कूदना 2. खेलना, बालकेलि करना-ववश्चुराजुघूर्णश्च 2. छिद्र, रन्ध्र, गढ़ा, गर्त जैसा कि 'जघनकूप' में स्येमुश्चुकूदिरे तथा-भट्टि० १४१७७, ७९, १५।४५, 3. चमड़े की बनी तेल रखने की कुप्पी 4. मस्तूल उद्-, कूदना, उछलना। -क्षोणीनौकूपदण्ड:-दश० १। सम० --अङ्क:-अङ्गः | कूर्दनम् [ कूर्द +ल्युट ] 1. उछलना 2. खेलना, क्रीडा रोमांच,---कच्छपः, -मण्डकः--की (शा०) कुएँ का | करना, नी 1. चैत्र की पूर्णिमा को कामदेव के सम्मान कछुवा या मेढक, (आलं०) अनुभवशून्य मनुष्य, जो । में मनाया जाने वाला पर्व 2. चैत्रमास की पूर्णिमा। सांसारिक अनुभव नहीं रखता, सीमित जानकारी कूपः [ कुर्+पा+क, दीर्घः ] दोनों भौवों के बीच का रखने वाला मनुष्य जो केवल पास पड़ोस को ही। भाग। जानता है, (प्रायः 'तिरस्कारद्योतक' शब्द),-पन्त्रम् | कूपर: [ कुर् + विवप्, कुर्-पृ+-अच्, दीर्घः नि०] रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र-यन्त्रघटिका, 1. कोहनी-शि० २०११९ 2. घुटना। यन्त्रघटी रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोल कर्मः [को जले ऊमिः वेगोऽस्य पृषो० तारा०] 1. कछुवा चियाँ । यन्त्रघटिका न्याय दे० 'न्याय' के नीचे । -गृहेकूर्म इवाङ्गानि रक्षेद्विवरमात्मनः - मनु०७४ कूपकः [ कूप+कन् ] 1. कुआँ (अस्थायी या कच्चा) १०५, भग०२।५८ 2. विष्णु का दूसरा (कूर्मावतार) 2. छिद्र, रंध्र, गर्त 3. कूल्हों के नीचे का गड्ढा अवतार । सम० --अवतारः विष्ण का कूर्मावतार 4. खूटा जिसके सहारे किस्ती का लंगर बांध दिया --तु० गीत० १-क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति जाता है 5. मस्तूल 6. चिता 7. चिता के नीचे का पृष्ठे धरणिधरणकिणचक्रगरिप्ठे, केशव धृतकच्छपरूप, छिद्र 8. चमड़े की बनी तेल-कुप्पी 9. नदी के बीच की जय जगदीश हरे । --पृष्ठम्,---पृष्ठकम् 1. कछुवे की चट्टान या वृक्ष। कसर या पीठ 2. तश्तरी का ढकना,--राजः द्वितीय कूपा (वा) रः [ कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन्-ब० अवतार के समय कछुवे के रूप में विष्णु। स०] समुद्र, सागर । कूलम् । कूल+अच् ] 1. किनारा, तट---राधामाधवयोर्जकूपी [ कूप+ ङीष् ] 1. छोटा कुआँ, कुइया 2. पलिघ, | यन्ति यमुनाकूले रहाकेलयः--गीत० १, नदीवोभयकूलबोतल 3. नाभि ।। भाक्--रघु०१२।३५, ६८ 2. ढलान, उतार 3. छोर, कब (ब) र (वि.) (स्त्री०-री) [कु+ब (व) रच् ] कोर, किनारी, सन्निकटता–कुलायकुलेषु विलठ्य तेषु 1. सुन्दर, रुचिकर 2. कुबड़ा,-,-रम् गाड़ी की | ते-नै० १११४१ 4. तालाब 5. सेना का पिछला वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है, भाग 6. ढेर, टीला। सम... चर (वि.) नदी के -री 1. कम्बल या किसी दूसरे कपड़े के परदे से | किनारे चरने वाला, या विचरने (घूमने) वाला ढकी हुई गाड़ी 2. गाड़ी की बल्ली जिससे जूआ बांधा -भूः (स्त्री०) तटस्थित भूखंड,--हण्डकः, हण्डक: जाय-वेणी० ४। भंवर। करः, रम् [वे+क्विप्-ऊः, को भूमौ उवं वयनं लाति कलङ्कष (वि.) [ कूल+का+खच, मुम् ] तट को --ला+क, लरयोरभेदः] भोजन, भात-इतश्च काटने वाला, या अन्दर ही अन्दर जड़ खोखली करने करण्युततैलमिश्र पिण्ड हस्ती प्रतिग्राह्यते मात्रपूरुषः वाला-कूलङकषेव प्रसन्नमम्भस्तटतरुं च-श० ५।२१, मृच्छ० ४। --पः नदी की धारा, या प्रवाह,--षा नदी। For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९३ ) कूलन्धय (वि.) [ कूल+धे+खश्, मुम् ] चूमता हुआ | कृ, स्वाहा कृ आदि 21. गुजारना (समय) विताना अर्थात् नदी के तट को सीमा बनाने वाला। -वर्षाणि दश चक्र:--बिताये, क्षणं कुरु---जरा ठहकलमुबुज (वि०) [कूल+उद्+रुज्+खश्, मुम् ] रिए 22. की ओर मुड़ना, ध्यान मोड़ना, दृढ़ निश्चय किनारों को तोड़ने वाला (जैसे नदियाँ, हाथी)-रघु० करना (अधि० या सम्प्र० के साथ)---नावमें कुरुते ४॥२२॥ मनः---मनु० १२।११८, नगरगमनाय मतिं न करोति कूलमुह (वि.) [ कूल+उद्+वह, --खश, मुम् ] किनारे -श०२ 23. दूसरे के लिए कोई काम करना (चाहे को फाड़ डालने तथा बहा कर ले जाने वाला-मा० लाभ के लिए हो या हानि पहुँचाने के लिए);-यदनेन ५।१९। कृतं मयि, असौ कि मे करिप्यति आदि 24. उपयोग कूष्माण्डः [ कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु बीजेपु यस्य ] पेठा, करना, काम में लगाना, उपयोग में लाना-कि तया कुम्हड़ा, तूमड़ी। क्रियने धेन्वा--पञ्च०१ 25. विभवत करना, टुकड़े कहा [कु ईषत् उह्यतेऽत्र, कु-उह. | क ] कुहरा, धुंद । टुकडे करना ('धा' पर समाप्त होने वाले क्रिया विशे पणा के साथ) विधा कृ दो टुकड़े करना, शतधा कृ, कृi (स्वादि० उभ०-कृणोति, कृणुते) प्रहार करना, सहस्रधा कृ आदि 26. अधीन बनाना, ('सात्' पर घायल करना, मार डालना ii (तना० उभ-करोति, समाप्त होने वाले किया विशेषणों के साथ) पूर्ण रूप कुरुते, कृत) 1. करना-तात कि करवाण्यहम् से किसी विशेष अवस्था को प्राप्त कराना आत्म2. बनाना - गणिकामवरोधमकरोत्-दश०, नृपेण चके सात्कृ, अधीन करना अपने में लीन करना--रघु० युवराजशब्दभाक् रघु० ३।४५, युवराजः कृतः आदि ८. भम्ममा कृ राख बना देना, यह धातु बहुधा 3. निर्माण करना, गड़ना, तैयार करना कुम्भकारी मंज्ञा, बिटोपण और अव्ययों के साथ उनको क्रिया घटं करोति, कटं करोति आदि 4. बनाना, रचना करना-गुरूं कुरू, सभा कुरु मदर्थे भोः 5. पैदा करना, बनाने के लिए कुछ कुछ अंग्रेजी के प्रत्यय ' या निमित्तभूत होना, उत्पन्न करना–रतिमभयप्रार्थना न' की भांति प्रयुक्त होता है और अर्थ होता है कुरुते-ग० २११ 6. वनाना, क्रमबद्ध करना,-अनि "किसी व्यक्ति या वन को वह बना देना जो वह करोति कपोतहस्तकं कृत्वा 7. लिखना, रचना करना पहले नहीं है' उदा० कृष्णीकृ उस वस्तु को जो पहले . चकार सुमनोहरं शास्त्रम पञ्च० १ 8. मम्पन्न से काली नहीं है कालो करना अर्थात् Blacken, इसी प्रकार स्वेतीकृ--सफेद करना (whiten), करना, व्यस्त हाना पूजां करोति 9. कहना, वर्णन घनीकृत ठोस बना दना (Slidity); विरलीकृ करना, इति बहुविधाः कथा: कुर्वन् आदि 10. 'पालन करना, कार्यान्वित करना, आज्ञा मानना, एवं दूर दूर कहीं कहीं करना (Pujy), आदि । कभी क्रियते युप्मदादेश: - मा० १, या करियामि बचस्तव की इस प्रकार की रूप रचना दूसरे अर्थों में भी या शासनं मे कुहाव आदि 11. प्रकाशित करना, पूग होती है--उदा० कोडीकृ--छाती से लगाना, आलिकरना, कार्य में परिणत करना- सत्सङ्गतिः कथय गन करना, भस्मीकृ-राख करदेना, प्रवणीकृ - रुचि किन करोति पंसाम - भर्त० १२३ 12. फेंकना, पैदा करना, झुकना, तृणीकृ-निनके की भांति तुच्छ एवं निकालना, उत्सर्ग करना, छोड़ना मृत्रं कृ मूत्रात्मर्ग हीन समझना, मंदीकृ-शिथिल करना, चाल धीमी करना, पेशाव करना, इसी प्रकार पुरीपं कृ टट्टी करना, इसी प्रकार शलाकृ-नोकदार लोहे की सलाखों फिरना 13. धारण करना, पहनना, ग्रहण करना के सिरे पर रख कर भूनना, सुखाकृ-प्रसन्न करना, - स्त्रीरूपं कृत्वा, नानारूपाणि कुर्वाण:- याज्ञ० समयाकृ समय बिताना आदि। विशे०--यह धातु ३१६२ 14. मुंह से निकलना, उच्चारण करना उभयपदी है, परन्तु निम्नलिखित अर्थों में आत्मने-मानुपी गिरं कृत्वा, कलहं कृत्वा आदि 15. रग्बना, पी ही रहती है:-(क) क्षति पहुँचाना (ख) निन्दा पहनना (अधि० के साथ)-क हारमकरोत् । का० करना, कलंकित करना (ग) काम देना और (घ) २१२, पाणिमरसि कृत्वा आदि 16. सौंपना (कोई बलात्कार करना, हिंसात्मक कार्य करना (ङ) तैयारी कर्तव्य), नियत करना अध्यक्षान्त्रिविधानकर्यात्तत्र करना, दशा बदलना, मोड़ना (च) सस्वर पाठ करना तत्र विपश्चितः । मनु० ७८१ 17. पकाना (भोजन) (छ) काम में लगाना, प्रयोग में लाना--दे० पा० जैसा कि 'कृतान्न' में 18. सोचना, आदर करना, १।३। ३२, विशे० कृ धातु का संस्कृत साहित्य में खयाल करना दृष्टिरतणीकृतजगत्रयसत्वसारा बहत प्रयोग मिलता है, इसके अर्थ भी नाना प्रकार से ----उत्तर०६।१२ 19. ग्रहण करना (हाथ में)-कुरु अदलने बदलते रहते हैं या सम्बद्ध संज्ञा के अनुसार प्रायः करे गुरुमेकमयोधनम नै०८१५९ 20. ध्वनि करना अनन्न अर्थ हो जाते है---उदा० पदं कृ,-कदम रखना -यथा खात्कृत्य, फूत्कृत्य भुङ्क्ते, इसी प्रकार वपद ---आश्रम पदं करिष्यसि-श० ४११९, क्रमेण कृतं For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९४ ) मम वपुपि नवयौवनेन पदम्-का० १४१, मनसाकृ-- सोचना, मध्यस्थता करना, मनसि कृ-सोचना-दृष्ट्वा मनस्येवमकरोत् का० १३६, दृढ़ निश्चय करना संकल्प करना,--सख्यं, मैत्री कृ मित्रता करना, अस्त्राणि कृ-शस्त्रास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास करना, दंड कृ-दंड देना, हृदये कृ-ध्यान देना, कालं कृ-मरना, मति, बुद्धि कृ-सोचना, इरादा करना, अभिप्राय होना -उदकं कृ-पितरों को जल का तर्पण करना, चिर कृ-देर करना,दर्दरं कृ-वीणा बजाना, नखानि कृ-नाखन साफ करना, कन्यां कृ-- सतीत्वभ्रष्ट करना, कौमार्य भंग करना, बिना कृ-अलग करना, छोड़ा जाना जैसा कि 'मदनेन विनाकृतिः रतिः' कु० ४।२१ में, मध्य कृ -- बीच में रखना, संकेत करना-मध्ये कृत्य स्थितं ऋथकैशिकान-मालबि० ५।२, वशे कृ --जीतना, बस में करना, दमन करना, चमत्कृ आश्चर्य पैदा करना, प्रदर्शन करना, सत्कृ-सम्मान करना, सत्कार करना, तिर्यक कृ-एक ओर रख देना,--प्रेर० (सारयति-ते) करवाना, सम्पन्न करवाना, बनवाना, कार्यान्वित करवाना -आज्ञां कारय रक्षोभिः--भट्रि०८1८४, भत्यं भृत्येन वा कटं कारयति-सिद्धा०-, इच्छा० (चिकीपति-ते) करने की इच्छा करना, अङ्गी-1. स्वीकार करना, अपनाना-लबङ्गी कुरङ्गी दृगङ्गीकरोतु-जग०, दक्षिणामाशामङ्गीकृत्य--का० १२१ 2. मान लेना, स्वीकृति देना, अपनाना मान लेना 3. करने की प्रतिज्ञा करना, जिम्मेवारी लेना-किं त्वङ्गीकृतमुत्सृजकृपणवच्छलाध्यो जनो लज्जते--मुद्रा० ॥१८ 4. दमन करना, अपना बनाना, अनुग्रह करना--अमरु ५२, अति-बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना, अधि०, 1. अधिकारी होना, हकदार बनना, अधिकृत बनना, किसी कर्तव्य के लिए पात्रीकरण,-वाध्यकारिष्महि वेदवृत्ते--भट्टि० २१३४, कि० ४।२५ 2. लक्ष्य बनाना, उल्लेख करना, ('विषय पर' 'के विषय में' 'के लिए' 'संकेत करके' 'उल्लेख करते हुए' अर्थो के लिए 'अघिकृत्य' शब्द का प्रयोग होता है--ग्रीष्मसमयमधिकृत्य गीयताम्--श० १, शकुन्तलामधिकृत्य ब्रवीमि---श० २, रघु० १११६२) 3. धारण करना--अधिचक्रे नयं हरिः--भट्टि० ८।२० 4. अभिभूत करना, दबा लेना, श्रेष्ठ बनना 5. रोकना, रुकना, हाथ खींचना । अनसूरत शकल में मिलना, अनुगमन करना, विशेषत: नकल करना (कर्म व संब० के साथ)-शैलाधिपस्यानुचकार लक्ष्मीम्-भट्टि० २।८, मनु० २।१९९, श्यामतया हरेरिवानुकुर्वतीम्-का० १०, अनुकरोति भगवतो नारायणस्य-६, अप- 1. खींचकर दूर करना, हटाना, दूर खींचकर अनादर करना, योऽपचक्रे वनात्सीताम् --भट्टि० ८।२० 2. प्रहार करना, क्षति पहुं- । चाना, बुरा करना, हानि पहुँचाना, हानि या क्षति पहुँचाना (संब० के साथ) न किचिन्मया तस्यापकर्तुं शक्यम्--पंच० १, अया-- 1. दूर करना, त्याग देना, हटाना, मिटाना-तन्नै तिमिरमपाकरोति चन्द्रः २० ६२९, न पुत्रवात्सल्यमपाकरिष्यति --कु० ५।१४ 2. फेंक देना, अस्वीकार करना, एक ओर रख देना, छोड़ देना - शिवा भुजच्छदमपाचकार -.-रघु० ७५०, अभ्यन्तरी .. 1. दीक्षित करना 2. मित्र बनाना (अभ्यन्तर के नी० दे०) अलम्विभूषित करना, सजाना,शोभा बढ़ाना-उभावलञ्चक्रतुरञ्चिताभ्यां तपोवनावृत्तिपथं गताभ्याम-रघु० ११॥ १८, कतमो वंशोऽलङकृतो जन्मना २० १, आ, (प्रेर०) 1. पुकारना, बुलाना, निमंत्रित करना, ... आकारयनमत्र 2. निकट लाना, आविस् -, प्रकट करना, दर्शनीय बनना, जाहिर करना, प्रदर्शन करना ('आविस्' के नी० दे०) उप (वर्त०-उपकरोति) 1. (क) मित्र बनाना, सेवा करना, सहायता करना, अनुग्रह करना, उपकृत करना (प्रायः संबं०, कभीकभी अधि० के साथ)-सा लक्ष्मीरुपकुरते यया परेषाम् - -भट्टि० ८।१८, आत्मनश्चोपकर्तुम् --मेघ० १०१, शि० २०७४, मनु० ८।३९४ (ख) 1. हाजरी में खड़े रहना, सेवा करना 2. (वर्त० ---उपस्करोति) (क) विभूषित करना, शोभा बढ़ाना, सजाना (ख) प्रयत्न करना (संब० के साथ)----भट्टि० ८।१९११९ (ग) तैयार करना, विस्तार से कार्य करना, पूरा करना, निर्मल करना,-उपा--- 1. सौंपना, देना 2. प्रारंभिक संस्कार सम्पन्न करना मनु० ४।९५ -दे० उपाकर्मन् 3. उठा लाना, लाना 4. आरंभ करना, उरी, उररी---, उररी-ऊरी-, या ऊररी स्वीकार करना, दे० अंगीकृ. ऊपर, रघु० १५१७०-दे० उरी भी, तिरस्-1. अपशब्द कहना, बुरा भला कहना, अनादर करना, घणा करना 2. पीछे छोड़ना, आगे बढ़ना, जीतना, दे० 'तिरस्' के नीचे०, त्वम्-तू, कोई (तिरस्कार सूचक) दक्षिणी-, या प्रदक्षिणी-, किसी वस्तु के चारों ओर घूमना (अपना दक्षिण पार्श्व उसकी ओर करके), प्रदक्षिणीकुरुष्व सद्योहताग्नीन्-श० ४, प्रदक्षिणीकृत्य हुतं हुताशमनन्तरंभर्तुररुन्धती च, रघु० २।७१, दुस् --, बुरे ढंग से करना, धिक--, झिड़कना, बुरा भला कहना, अनादर करना ---दे०धिक के नी०, नमस्-, नमस्कार करना, पूजा करना--मुनित्रयं नमस्कृत्य-सिद्धा०-दे० नमस् के नी०, नि-, क्षति पहुँचाना, बुरा करना, निस् .. 1. हटाना, हाँक कर दूर कर देना. मनु० १११५३ 2. तोड़ देना, निकम्मा कर देना--- भट्टि० १५।५४, निरा-- 1. निकाल देना, परे कर देना, निकाल बाहर करना- भट्टि For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९५ ) ६।१००, रघु० १४१५७ 2. निराकरण करना (मत : -कि सत्त्वानि विप्रकरोषि-श० ७, कु० २।१ आदि का) 3. छोड़ना, त्यागना 4. पूर्ण रूप से नष्ट 2. बुरा करना, दुर्व्यवहार करना - श० ४, १७ कर देना, ध्वंस करना 5. बुरा भला कहना, नीच 3. प्रभावित करना, परिवर्तन लाना,कमपरमवशं न समझना, तुच्छ समझना, न्यक, अपमान करना, विप्रकुर्युः कु० ६।९५, व्या- 1. प्रकट करना, अनादर करना, परा--, (पर०) अस्वीकार करना, साफ करना नामरूपे व्याकरवाणि-छा० 2. प्रतिअवहेलना करना, निरादर करना, खयाल नहीं करना पादन करना, व्याख्या करना 3. कहना, वर्णन करना ... तां हनुमान् पराकुर्वनगमत् पुष्पकम् प्रति भट्रि० --तन्मे सर्व भगवान् व्याकरोतु महा०, सम्८1५०, परि (परिकरोति) 1. घेरना 2. (परिष्क- (संकुरुते) (क) करना (पाप, अपराध)--ये पक्षारोति) विभूषित करना, सजाना ग्थो हेमपरिष्कृतः परपक्षदोपसहिताः पापानि संकुर्वते -मृच्छ० ९।४ --महा०, (आलं.) निर्मल करना, चमकाना, शुद्ध (ख) निर्माण करना, तैयार करना (ग) करना करना (शब्दों का), पुरस्---, सम्मुख रखना . राजा संपन्न करना 2. (संस्कुरुते) (क) अलंकृत करना, शकुन्तलां पुरस्कृत्य वक्तव्यः . . श० ४, हते जरति शोभा बढ़ाना--ककुभं समस्कुरुत माघवनीम--शि० गाङ्गेये पुरस्कृत्य शिखण्डिनम् वेणी० २०१८-दे० ९।२५ (ख) निर्मल करना, चमकना-वाण्येका समलपुरस् के नीचे, प्र- 1. करना, सम्पन्न करना करोति पुरुष या संस्कृता धार्यते--भर्त० २११९, शि० आरंभ करना (अधिकतर उसी अर्थ में प्रयुक्त होता १४.५० (ग) वेदमंत्रों के उच्चारण से अभिमंत्रित है जिसमें 'कृ')-जानन्नपि नरो देवात्प्रकरोति विहि- करना--मनु ० ५।३६, (घ) वेदविहित संस्कारों से तम् - पंच० ४।३५, भट्टि०२।३६, ऋतु०१६ मनु० (किसीपुरुप को) पवित्र करना, शुद्ध करने वाले ८/५४,६०, ८१२३९, अमरु १३ 2. बलात्कार करना, शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करना,-- संचस्कारोअत्याचार करना, अपमान करना, भट्टि० ८।१९ भयप्रीत्या मैथिलेयौ यथाविधि रघु० १५।३१, 3. सन्मान करना, पूजा करना, प्रति- 1. बदला देना, याज्ञ० २।१२४, साची---, एक ओर मुड़ना, परोक्ष वापिस देना, लौटाना -पूर्व कृतार्थों मित्राणां नार्थ । रूप से सड़ना--साचीकृता चारुतरेण तस्थौ -कु० प्रतिकरोति य:-रामा० 2. उपचार करना,-व्याधि- ३।६८, रघु०६।१४। मिच्छामि ते ज्ञातुं प्रतिकुर्यां हि तत्र वै....-महा०, | 3. वापिस देना, ज्यों का त्यों कर देना, पुनः स्थापित | कृरुणः (र.) [कृ+कण-+अच, कृ++ट] एक करना---मनु० ९।२८५ 4. प्रतिशोध करना रघु० प्रकार का तीतर। १२।९४, प्रमाणी -- 1. भरोसा करना, विश्वास कृक (क) लाश: [कृक+लस --अण् । छिपकली, करना 2. प्रमाण पुरुष मानना, आज्ञा मानना शासनं गिरगिट । तरुभिरपि प्रमाणीकृतम् श० ६ 3. आँख गड़ाना, कृकवाकुः [कृक--वन्-ऋण, क् आदेशः] 1. मुर्गा 2. मोर वितरण करना, बर्ताव करना या व्यवहार करना 3. छिपकिली सम०-ध्वजः कार्तिकेय का विषेशण। देवेन प्रभुणा स्वयं जगति यद्यल्य प्रमाणीकृतम् कृकाटिका | कृ+अट : अण्- कृकाट किन् : टाप, ---भत० २।१२१, प्रादुस्, प्रकट करना, प्रदर्शन इत्वम् 1. योवा का सोया उठा हुआ भाग 2. गर्दन करना, दिखलाना, जाहिर करना-२० प्रादुस् के का पिछा नाग। नी०, प्रत्युप- - 1. प्रतिफल देना, (आभार) प्रत्यर्पण कृच्छ (वि.) [कृतो+रक. छ आदेशः ] 1. कष्ट देने करना, वि-, बदलना, परिवर्तन करना, प्रभावित वाला, पीडाकर मनु० ६७८2. बुरा, विपद्ग्रस्त, करना--विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि अनिष्टकर 3. दुष्ट, पापी 4. संकटग्रस्त, पीडित, त एव धीराः कु०११५९, रघु०१३।४२ 2. आकृति --च्छ,,--च्छम, 1. कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, बिगाड़ना, विरूप करना --विकृताकृतिः मन०९।५२ संकट, भव--कृच्छ महत्तीर्ण:--रघु० १४॥६, 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, सम्पन्न करना मनु० १३१७७ 2. शारीरिक तप, तपस्पा, प्रायश्चित्त १७५, नास्य विघ्नं विकुर्वन्ति दानवाः-महा० +. विघ्न मनु० ४।२२२. ५।२१, ११।१०५-- च्छम, कृच्छण, डालना, हानि पहुँचाना, क्षति पहुँनाना (आ०) कृच्छात् बड़ी कठिनाई के साथ, दुःख पूर्वक, बड़े कष्ट -हीनान्यनुपकर्तृ णि प्रवृद्धानि विकुर्वते रघु० १७। के साथ ----लब्धं कृच्छेण रक्ष्यते -हि० १११८५, । ५८ 5. उच्चारण करना --विकुर्वाग: स्वरानद्य सम-प्राण (वि०) 1. जिसका जीवन खतरे में है -भट्टि० ८।२० 6. (पत्नी की भांति) विश्वास- 2. कष्टपूर्वक सांग लेने वाला 3. कठिनाई से जीवनघातक होना, विनि , प्रहार करना, क्षति पहुँचाना, यापन करने वाला,--साध्य (वि.) 1. कठिनाई से विप्र- 1. सताना, कष्ट देना, तंग करना, हानि पहुँचाना ठीक हो सके, (रोगी या रोग) 2. कष्टसाध्य । For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९६ ) कृत (तुदा० पर०-कृन्तति, कृत्त) 1. काटना, काट कर दोषी, मजरिम, अभय (वि.) भय या खतरे से सुर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़ना, धज्जियाँ उड़ाना, क्षित, अभिषेक (वि०) राज्याभिषिक्त, यथा विधि टुकड़े २ करना, नष्ट करना-प्रहरति विधिर्ममच्छेदी पद पर प्रतिष्ठित किया हआ,--अभ्यास (वि०) नं कृन्तति जीवितम्-उतर. ३।३१, ३५ भट्टि० ९।४२ अभ्यस्त,---अर्थ (वि.) 1. जिसने अपना उद्देश्य सिद्ध १५।९७ १६:१५, मनु० ८1१२, अव-,काट फेंकना, कर लिया है, सफल 2. सन्तुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त,-कृतः विभक्त करना, फाड़ कर टुकड़े २ करना, उद्-, कृतार्थोऽस्मि निहितांहसा--शि० श२९, रघु० ८।३, 1. काटना या काट फेंकना, फाड़ना-रघु० १२१४९, कि० ४।९ 3. चतुर, (कृतार्थीकृ) 1. सफल बनाना मनु० ११११०५ 2. खण्ड खण्ड करना, टुकड़े काटना 2. भरपाई होना-कान्तं प्रत्युपचारतश्चतुरया कोप: --उत्कृत्योत्कृत्य कृत्ति-मा० ५।१६ वि- 1. काटना, कृतार्थीकृत:-अमरु १५,- अवधान (वि०) होशियार, फाड़ना, टुकड़े २ करना-विश्वासाद्भयमुत्पन्नं मला- सावधान,-अवधि (वि०) 1. निश्चित, नियत 2. हदन्यपि निकन्तति-पंच०२१३९, निकृन्तन्निव मानसम बन्दी किया हुआ, सीमित,-अवस्थ (वि.) 1. बलाया ----भट्रि०७।११ भल्लनिकृत्तकण्ठ:---रघु०७।५८ । हुआ, प्रस्तुत कराया हुआ 2. निश्चित, निर्धारित, ii (रुधा० पर०-कृणत्ति, कृत्त)1. कातना, 2. घेरना। ---अस्त्र (वि०) 1. हथियारबन्द 2. शस्त्र या अस्त्र कृत् (वि.) कृ+क्विप] (प्रायः समास के अन्त में) विज्ञान में प्रकाशित-रघु० १७१६२,-आगम (वि०) निष्पादक, कर्ता, निर्माता, अनुष्ठाता, उत्पादक, रच- प्रगत, प्रवीण (पुं०) परमात्मा, -आगस् (वि०) दोषी, यिता आदि पाप, पुण्य', प्रतिमा आदि, (पुं०) अपराधी, मुजरिम, पापी,-आत्मन् (वि.) 1. संयमी, 1. प्रत्ययों का समूह जिनको धातु के साथ जोड़ने से स्वस्थचित्त, स्थिरात्मा 2. पवित्र मन वाला,--आयास (संज्ञा, विशेषण आदि) बनते हैं 2. इस प्रकार बना (वि०) परिश्रम करने वाला, सहन करने वाला, हुआ शब्द । --आह्वान (वि०) ललकारा हुआ,-- उत्साह (वि०) कृत (वि.) [कृ+क्त) किया हुआ, अनुष्ठित, निर्मित, परिश्रमी, प्रयत्नशील, उद्यमी, उद्वाह (वि०) क्रियान्वित, निष्पन्न, उत्पादित आदि (भू० क० कृ० 1. विवाहित 2. हाथ ऊपर उठा कर तपस्या करने वाल!, ----- कृ-तना० उभ०)-तम् 1. कार्य, कृत्य, कर्म-मनु० —उपकार (वि.) 1. अनुगहीत, मित्रवत् आचरित, ७।१९७ 2. सेवा, लाभ 3. फल, परिणाम 4. लक्ष्य, सहायता प्राप्त--कु० ३।७३ 2. मित्रसदश,---उपभोग उद्देश्य 5. पासे का वह पहल जिस पर चार बिन्दु (वि.) बरता हुआ, उपभुवत,-कर्मन् (वि०) अंकित है 6. संसार के चार यगों में पहला यग जो 1. जिसने अपना काम कर लिया है-रघु० ९१३ 2. दक्ष मनुष्यों के १७२८००० वर्षों के बराबर है-दे० मनु० चतुर (पुं०) 1. परमात्मा 2. संन्यासी,--काम (वि.) ११७९, और इस पर कुल्लूक को टीका, परन्तु महा जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो गई है, काल (वि.) भारत के अनुसार यह युग मनुष्यों के ४८०० वर्षों से 1. समय की दृष्टि से जो स्थिर है, निश्चित 2. जिसने अधिक वर्षों का है, चार की संख्या। सम० - अकृत कुछ काल तक प्रतीक्षा की है (ल:) नियत समय (वि.) किया न किया अर्थात् कुछ भाग किया गया, याज्ञ० २।१८,-कृस्य (वि) कृतार्थ, - भग० १५२० पूरा नहीं किया गया,-अङ्क (वि.) 1. चिह्नित, दागी 2. सन्तुष्ट परितप्त.....-शा० ३.१९ 3. जिसने अपना ----मनु० ८।२८१, 2. संख्यांकित, (कः) पासे का बह कर्तव्य पूरा कर लिया है,-क्रयः खरीदार, · क्षण भाग जिस पर चार विन्दु अंकित हों,-अञ्जलि (वि०) (वि.) 1. निश्चित समय को आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा विनम्रता के कारण दोनों हाथ जोड़े हुए-भग० करने बाला, --वयं सर्वे सोत्सुकाः कृतक्षणास्तिष्ठामः ११।१४, मनु० ४११५४, अनुकर (वि०) किये हुए कार्य -पञ्च०१ 2. जिसे कोई अवसर उपलब्ध हो गया का अनुकरण करने वाला, अनुसेवी,-अनुसारः प्रथा है,-उन (वि०) 1. अकृतज्ञ, मनु० ४१२१४, ८।१९ परिपाटी,-अन्त (वि०) समाप्त करने वाला, अव 2. जो पहले किये हुए उपकारों को नहीं मानता है, सायी, (तः) 1. मृत्यु का देवता यम-द्वितीयं कृतान्त- -~-चूडः 1. जिस बालक का मुण्डनसंस्कार हो गया है मिवाटतं व्याधमपश्यत्-हि० १ 2. भाग्य, प्रारब्ध -- मनु० ५।५८, ६७,--ज्ञ (वि.) 1. उपकार मानने ------फरस्तस्मिन्नपि न सहते सङ्गमं नौ कृतान्तः । मेघ० वाला, आभारी - मनु० ७।२०९, २१०, याज्ञ० १०५ 3. प्रदशित उपसंहार, रूढि, प्रमाणित सिद्धान्त १।३०८ 2. शुद्धाचारी (ज्ञः) कुत्ता,- तीर्थ (वि०) 4. पापकर्म, अशुभ कर्म 5. शनि ग्रह का विशेषण 1. जिसने तीर्थों के दर्शन किए हैं 2. जो (अध्यापनवृत्ति 6. शनिवार, ... जनकः सूर्य,- अन्नम् 1. पकाया हुआ के) अध्यापक से अध्ययन करता हो 3. जिसे ताकीबें भोजन,-कृतान्नमुदकं स्त्रियः--मनु० ४।२१९ १११३ खूब सूझती हों 4. पथ प्रदर्शक,.. दासः किसी निश्चित 2. पचा हुआ भोजन 3. मल,-अपराध (वि.)अपराधी समय के लिए रक्खा हआ बैतनिक सेवक, बैतनिक १५४, अनुकीय जोड़े हुए(वि०) For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९७ ) सेवक,—धी (वि०) 1. दूरदर्शी, लिहाज रखने वाला | ८।४६ 4. दत्तक (पत्र) (बहधा समास के अन्त में (दूरदर्शी) 2. विद्वान् शिक्षित, बुद्धिमान--मुद्रा० भी)--यस्योपांते कृतकतनयः कान्तया वधितो मे (बाल ५।२०,—निर्णेजनः पश्चात्तापी,-निश्चय (वि०) कृत- मन्दारवृक्षः)-मेघ० ७५, सोऽयं न पुत्रकृतक: पदवीं संकल्प, दृढ़प्रतिज्ञ,--पुख (वि०) धनुर्विद्या में निपुण, मृगस्ते (जहाति)-श० ४।१३।। -पूर्व (वि.) पहले किया हुआ,-प्रतिकृतम्, आक्र- कृतम् (अव्य०) [ कृत्+कम् बा०] पर्याप्त और अधिक मण और प्रत्याक्रमण, धावा बोलना और प्रतिरोध नहीं, बस करो अथवा मत करो (करण के साथ) करना-रघु० १२।९४,-प्रतिज्ञ (वि०) 1. जिसने अथवा कृतं सन्देहेन-श० १, अथवा-गिरा कृतम् किसी से कोई करार किया हुआ है 2. जिसने अपनी - रघु० ११४१, कृतमश्वेन- उत्तर०४ । प्रतिज्ञा को पूरा कर लिया है,-बुद्धि (वि०) विद्वान्, कृतिः (स्त्री०) कृ-+क्तिन] 1. करनी, उत्पादन, निर्माण, शिक्षित, बुद्धिमान-मनु० ११९७,७।३०,-मुख (वि.) __ अनुष्ठान 2. कार्य, कृत्य, कर्म 3. रचना, काम, संविद्वान्, बुद्धिमान्,-- लक्षण (वि.) 1. मुद्रांकित, रचना—(तो) स्वकृति गापयामास कविप्रथमपद्धतिम चिह्नित 2. दागी--मनु० ९।२३९ 3. श्रेष्ठ, सुशील --रघु० १५।३३, ६४,६९, नै० २२।१५५ 4. जादू, परिभाषित, विवेचित,-वर्मन् (पुं०) कौरवपक्ष इन्द्रजाल 5. क्षति पहुँचाना, मार डालना 6. बीस की का एक योद्धा जो कृप और अश्वत्थामा के साथ संख्या। सम०-करः रावण का विशेषण ।। महाभारत के युद्ध में जीवित रहा, बाद में वह | कृतिन (वि.) [ कृत-इनि ] कृतकार्य, कृतार्थ, संतुष्ट, परि. सात्यकि के हाथों मारा गया, - विद्य (वि०) विद्वान्, तृप्त, प्रसन्न, सफल -यस्य वीर्येण कृतिनो वयं च शिक्षित-शरोऽसि कृतविद्योऽसि—पञ्च ४१४३, भुवनानि च-उत्तर० १३२, न खल्वनिर्जित्य रघु सवर्णपूष्पितां पृथ्वीं विचिन्वन्ति त्रयो जनाः, शूरश्च कृती भवान् --रघु० ३।५१, १२॥६४ 2. (अतः) कृतविद्यश्च यश्च जानाति सेवितुम् --पञ्च० ११४५, सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मतवाला, भाग्यवान्-श. -वेतन (वि०) वैतनिक, तनखादार (नौकर आदि) ११२४, श० ७।१९ 3. चतुर, सक्षम, योग्य, विशेषज्ञ, --याज्ञ०२।१६४,--वेदिन (वि.) आभारी दे० कुशल, बुद्धिमान्, विद्वान् ;-तं क्षुरप्रशकलीकृतं कृती कृतज्ञ,—वेश (वि०) सुवेशित, विभूषित --गतवति --- रघु० ११।२९, कु० २।१०, कि० २।९ 4. अच्छा, हृतवेशे केशवे कुञ्जशय्याम्-गीत०११,-शोभ (यि०) | गुणी, पवित्र, पावन तावदेव कृतिनामपि स्फुरत्येष 1. शानदार 2. सुन्दर 3. पटु, दक्ष,-शौच ( वि० ) निर्मलविवेकदीपकः---भर्त० ११५६ 5. अनुवर्ती, पवित्र किया हुआ,---श्रमः,--परिश्रमः अध्येता, जिसने आज्ञाकारी, आदेशानुसार करने वाला। अध्ययन कर लिया है-कृतपरिश्रमोऽस्मि ज्योति:- कृते, कृतेन (अव्य.) [संब० के साथ या समास में) के शास्त्रे-मद्रा० १, (मैंने अपना समय ज्योतिःशास्त्र के लिए, के निमित्त, के कारण-अमीषां प्राणानां कृते अध्ययन में लगाया है),-संकल्प (वि.) कृतनिश्चय, भत० ३।३६, काव्यं यशसेऽर्थकृते-काव्य०१, भग० दृढ़संकल्प,-संकेत (नि.) (समय आदि का) नियत । १३५, याज्ञ० ११२१६, श०६। करने वालानामसमेतं कृतसंकेतं वादयते मृदु वेणुम् / कृत्तिः (स्त्री०) [कृत-+क्तिन] 1, चमड़ा, खाल 2. (विशे -गीत० ५,-संज्ञ (वि०) 1. पुनः चेतना प्राप्त, होश षतः) मगचर्म जिसपर (धर्मशिक्षा का) विद्यार्थी में आया हुआ 2. उद्बोधित, ....समाह (वि.) कवचधारी, बैठता है 3. (लिखने के लिए) भोजपत्र 4. भोजवृक्ष ---सापत्निका वह स्त्री जिस के पति ने दूसरा विवाह 5. कृत्तिका नक्षत्र, कृत्तिका मंडल । सम-वासः कर लिया है, एक विवाहित स्त्री जिसकी सपत्नी भी --बासस् (पुं०) शिव का विशेषण-स कृत्तिवासाविद्यमान हो, हस्त,-हस्तक (वि०) 1. दक्ष, चतुर, स्तपसे यतात्मा-कु. ११५४, मालवि० १११। कुशल, पटु 2. धनुर्विद्या में कुशल, -- हस्तता 1. कौशल, कृत्तिका (ब० व० [कृत+तिकन, कित 11. २७ नक्षत्रों दक्षता 2. धनुविद्या या शस्त्रविद्या में कुशल--कौरव्ये में से तीसरा कृत्तिका नक्षत्र (६ तारों का पुंज) 2. छ: कृतहस्तता पुनरियं देवे यथा सारिणी-वेणी०६।१२, तारे जो युद्ध के देवता कार्तिकेय की परिचारिका का महावी० ६।४१। कार्य करने वाली अप्सराओं के रूप में वर्णित हैं। सम० कृतक (वि.) [कृत+कन् ] 1. किया हुआ, निर्मित, -तनयः,-पुत्रः,-सुतः कार्तिकेय का विशेषण,-भवः सज्जित (विप० नैसर्गिक)--- यद्यत्कृतं तत्तदनित्यम्- चाँद। न्यायसुत्र 2. कृत्रिम, बनावटी ढंग से किया हुआ, कृत्नु (वि.) [कृ+क्त्तु] 1. भली भांति करने वाला, करने ----अकृतकविधिसर्वाङ्गीणमाकल्पजातं – रघु० १८.५२ के योग्य शक्तिशाली 2. चतुर, कुशल,--स्नुः कारीगर, 3. झूठा, व्यपदिष्ट या बहाना किया हुआ, मिथ्या, | कलाकार। दिखावटी, कल्पित---कृतककलहं कृत्वा-मुद्रा०३, कि० | कृत्य (वि.) [कृ+क्यप, तुक] 1. जो किया जाना चाहिए नका वह स्त्री-संनाह ( विप्राप्त, होश ३८ For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २९८ ) सही, उचित, उपयुक्त 2. युक्तियुक्त, व्यवहार्य 3. जो राजभक्ति से पथभ्रष्ट किया जा सके, विश्वासघाती - राजत० ५।२४७, त्यम् 1. जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य, कार्य - मनु० २।२३७७ ६७ 2. कार्य, व्यवसाय, करनी, कार्यभार - बन्धुकृत्यम् मेघ० ११४, अन्योन्यकृत्यैः -- श० ७ ३४ 3. प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य - कूजद्भिरापादितवं शकृत्यम् - रघु० २११२, कु० ४। १५ 4. मंशा, कारण, स्यः कर्मवाच्य के कुदन्त के संभावनार्थक प्रत्ययों का समूह - नामतः तव्य, अनीय य और एलिम, स्पा 1. कार्य, करनी 2. जादू 3. एक देवी जिसकी यज्ञादि के द्वारा पूजा इसलिए की जाती हैं कि विनाशकारी और जादू टोनों के कार्यों में सिद्धि प्राप्त हो । कृत्रिम (वि० ) [ कृत्या निर्मितम् - कृ + क्ति + मपू] 1. बनावटी, काल्पनिक, जो स्वतः स्फूर्त या मनमाना न हो, अजित 'मित्रम्, शत्रु: आदि, रघु० १३।७५, १४१३७ 2. गोद लिया हुआ (बच्चा) - दे० नी०, मः, पुत्रः नकली या गोद लिया हुआ पुत्र, हिन्दूधर्म में माने हुए १२ पुत्रों में से एक, गोद लिया हुआ ऐसा वयस्क पुत्र जिसके पिता की स्वीकृति गोद लेते समय न ली गई हो, तु० कृत्रिमः स्यात्स्वयं दत्तः -- याज्ञ० २११३१, तु० मनु० ९।१६९ से भी, मम् 1. एक प्रकार का नमक 2. एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । सम०-धूपः, -धूपकः, एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप--पुत्रः दे० कृत्रिमः, - पुत्रकः गुड्डा, पुत्तलिका कु० १।२९, भूमिः (स्त्री) बनाया हुआ फर्श, वनम् वाटिका, उद्यान । prat (अव्य० ) एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के साथ 'तह' और 'गुणा' अर्थ को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है--उदा० अष्टकृत्व:- आठगुणा, आठ तह का इसी प्रकार दश, पंच आदि । कृत्सम् [कृत्+स, कित्] 1. जल 2. समूह, त्सः पाप । कृत्स्न ( वि० ) [ कृत् + वस्न] सारे, सम्पूर्ण समस्त एक: कृत्स्नां नगरपरिघप्रांशुबाहुर्भुनक्ति श० २।१५ भग० ३।२९, मनु० १।१०५, ५।४२ । कृन्तत्रम् [कृत् + क्तून्, नुमागमः ] हल | कृन्तनम् [कृत् + ल्युट् ] काटना, काट कर फेंक देना, बिभक्त करना, फाड़ कर टुकड़े २ करना । . कृपः [कृप + अच्] अश्वत्थामा का मामा (कृप और कृपी दोनों भाई बहन शरद्वत् ऋषि की सन्तान थे, इनकी माता जानपदी नाम की अप्सरा थी । कृप का पालन पोषण शन्तनु ने किया था । विद्या में बड़ा निपुण था, महाभारत के युद्ध में वह कौरव पक्ष की ओर से लड़ा और अन्त में मारा गया । पाण्डवों ने उसे शरण दी । वह सात चिरंजीवियों में से एक है) कृपण (वि० ) [ कृप - क्युन् न स्यणत्वम् ] 1. गरीब, दयनीय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभागा, असहाय - राजन्नपत्यं रामस्ते पाल्याश्च कृपणाः प्रजाः - उत्तर० ४।२५ 2. विवेकशून्य, किसी कार्य को करने या विवेचन करने के अयोग्य अथवा अनिच्छुक, कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु मेघ० ५, इसी प्रकार राजश्वर्य प्ररान गह्नाक्षेपकृपणः भर्तृ० ३।१७ ३. तोच, अधम, दुष्ट-भग० २१४९ मुद्रा० २। १८, भर्तृ० २।४९ 4. यूम, कंजूस, ण दुर्दशा, णः सूम, कृपणेन समो दाता भुवि कोऽपि न विद्यते, अनइन वितानि यः परेभ्यः प्रयच्छति व्यास | सम० धोः, बुद्धिः छोरी दिल का, नीच मन का, वत्सल (वि०) दीनदयालु | कृपा [ ऋ + भिदा० अङ +टाप्, संप्र०, ] रहम, दयालुता, करुणा - चक्रवाकयोः पुरो वियुक्ते मिथुने कृपावती कु० ५।२६, शा० ४।१९, सकृपम् कृपा करके । कृपाः [कृपां नुदति--नुद् | ड संज्ञायां णत्वम्- तारा०] 1. तलवार, स पातु वः कंसरिपोः कृपाण:- विक्रम ० १११, कृपणस्य कृपाणस्य च केवलमाकारतो भेदः -- सुभा० 2. चाकू । कृपाणिका ( कृपाण - कन् + टाप, इत्वम्] बछ, छुरी । कृपाणी [ कृपाण + ङीष् ] 1. कैच 2. बल । कृपालु (वि० ) [ कृपां लाति कृपा + ला आदाने मि० डु] दयालु, करुणापूर्ण, सदय । कृपी [कृप । ङीष् ] कृप की बहन तथा द्रोण की पत्नी । सम० - पतिः द्रोण का विशेषण, - सुतः अश्वत्थामा का विशेषण | कृपीटम् [कृप् + कीटन् ] 1. तलझाड़ियाँ, जंगल की लकड़ी 2. वन, जलाने की लकड़ी 3. पानी 4. पेट | सभ० - पाल: 1. पतवार 2. समुद्र 3. वायु, हवा । सम० योनि अग्नि । कृति ( वि० ) [ क्रम्+इन्, अत इत्वम् संप्र० ] 1. कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त कृमिकुलचितम् भर्तृ २९ 2. कीड़े (रोग) 3. गधा 4. मकड़ी 5 लाख ( रंग ) 1 सम० ---कोश:, - कोप:, रेशम का कोया, उत्थम् मी कपड़ा, जम्, जग्धम् अगर की लकड़ी, जा लाख कीड़ों द्वारा उत्पादित लाल रंग, जलज, वारिरुहः घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा, पर्वतः शैलः बांबी, - फलः गूलर का पेड़ - शङ्खः शंख के भीतर रहने वाली मछली, शुक्तिः (स्त्री० ) 1. दोहरी पीठ वाला घोंघा 2. सीपी में रहने वाला कीड़ा 3. घोंघा । कृमिण, कृमिल ( वि० ) [ कृमि +न, ल वा णत्वम् ] कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त । कृमिला [ कृमि + ला + क +टाप्] बहुत सन्तान पैदा करने वाली स्त्री । कृश् ( दिवा० पर० - कृश्यति, कृश ) 1. दुर्बल या क्षीण होना 2. ( चन्द्रमा की भांति ) उतरोत्तर हास होना ( प्रेर०) दुर्बल करना । For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९९ ) कृश (वि.) (मध्य० ऋशीयस, उत्त० कशिष्ठ) [कृश+ वृद्धि करना नि-डुबोना, कम करना, घटाना क्त, नि०] 1. दुबला पतला, दुर्बल, शक्तिहीन, क्षीण निस्---, 1. बाहर खींचना 2. खींचतान कर निकालना, -- कृशतनुः कृशोदरी आदि 2. छोटा, पोड़ा, सूक्ष्म बलपूर्वक निकालना, छीनना या जबरदस्ती लेना (आकार या परिमाण में)-गुहृदपि न याच्यः कृशधन: -निष्क्रप्टुमर्थं चकमे कुबेरात्-रघु० ५।२६, परि----भर्तृ० २।२८ 3. दरिद्र, नगण्य-मनु० ७४२०८ । --,खींचना, निकालना, घसीटना, प्र-, 1. खींच लेना, सम०-अक्षः मकड़ी,- अङ्ग (वि०) दुबला, पतला, खींचना, आकृष्ट करना 2. (सेना का) नेतृत्व करना (..गी) 1. तन्वंगी 2. प्रियंगु लता,---उदर (वि.) 3. (धनुष का) झुकाना 4. बढ़ाना, बि-, 1. खींचना पतली कमर वाला--- विक्रम०५।१६। 2. (धनुष का ) झुकाना-~शरासनं तेषु विकृष्यताकृशला [कृश+ला+क+टाप्] (सिर के) बाल । मिदम् श० ६।२८, विप्र--हटाना, संनि--,निकट कृशानुः [ कृश् + आनुक ] आग—गुरोः कृशानुप्रतिमा लाना । द्विभेषि-रघु० २१४९, ७।२४, १०।७४, ० ११५१ | कृषक: [कृष्-+-क्वन् ] 1. हलवाहा, हाली,किसान 2. फाली भर्तृ० २।१०७। सम० ...रेतस् (पु.) शिव की 3. बैल। उपाधि। कृषाणः, कृषिक: [ कृष्- आनक, किकन् वा ] हलवाहा, फुशाश्विन (पु०) [ कृशाश्व+ इनि ] नाटक का पात्र । किसान । कृषi (तुदा० उभ० -कृषति–ते, कृष्ट) हल चलाना, कृषिः (स्त्री०) [ कृष्+इक] 1. हल चलाना 2. खेती, खुड बनाना। काश्तकारी-चीयते बालिशस्यापि सत्क्षेत्रपतिता ii (भ्वा० पर०--कर्षति, कृष्ट) 1. खींचना, घसीटना, कृषिः-मुद्रा० ३, कृषिः क्लिष्टाऽवृष्ट्या-पंच० ११११, चीरना, खींच देना, फाड़ना--प्रसह्य सिंहः किल तां मनु० ११९०, ३।६४, १०७९, भग० १८।४४ । सम० चकर्ष---रघ० २।२७, विक्रग० २१९ 2. किसी को ----कर्मन् (नपुं०) खेती का काम, जीविन् (वि०) ओर खींचना, आकृष्ट करना--भट्टि०१५।४७, भग० खेती से निर्वाह करनेवाला किसान,-- फलम् खेती से १५७ 3. (सेना आदि का) नेतत्व या संचालन करना होने वाली उपज, या लाभ-मेघ० १६,-सेवा खेती —स सेनां महतीं कर्षन्-रघु० १४।३२ 4. झुकाना करना, किसानी। (धनुष आदि का)-नात्यायतकृष्टशाङ्ग:-रघु० ५।५० कृषीवलः | कृषि-|-बलच, दीर्घः] जो खेती से अपनी 5. स्वामी होना, दमन करना, परास्त करना, अभिभूत जीविकार्जन करे, किसान, कृषि चापि कृषीवल:-याज. करना-बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्पति-मन. ११२७६, मनु० ९।३८ । रा२१५, नत्र: स्वस्थानमासाद्य गजेन्द्रमपि कर्षति कृष्करः [कृष+कृ=टक पृषो०] शिव को उपाधि । --पंच० ३।४६ 6. हल चलाना, खेती करना- अन- कृष्ट (वि०) [कृष्+क्त ] 1. खींचा हुआ, उखाड़ा हुआ, लोमकृष्टं क्षेत्र प्रतिलोमं कर्षति---सिद्धा. 7. प्राप्त घसीटा हुआ, आकृष्ट 2. हल चलाया हुआ। करना, हासिल करना-कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति कृष्टि: [कृष्+क्तिन् ] विद्वान् पुरुष-(स्त्री) 1. खींचना, च महद्यश:--महा० 8. किसी से ले लेना, किसी को आकर्षण 2. हल चलाना, भूमि जोतना। बंचित करना' (द्विकर्म०) अप---पीछे खींचना, खींच कृष्ण (वि.) कृष्+नक ] 1. काला, श्याम, गहरा ले जाना, घसीट कर दूर करना, लंबा करना, नीला 2. दुष्ट, अनिष्टकर,-ण: 1. काला रंग 2. काला निचोड़ना-दन्ताग्रभिन्नमपकृष्य निरीक्षते च--ऋतु० हरिण 3. कौआ 4. कोयल 5. चान्द्रमास का कृष्णपक्ष, ४।१४, रघु० १६१५५ 2. हटाना-- उत्तर० ११८ 6. कलियुग 7. आठवाँ अवतारधारी विष्णु (भारतीय 3. कम करना, घटाना, अव ---,खींचना, खींच लेना, पुराणशास्त्र के अनुसार कृष्ण अत्यंत प्रसिद्ध नायक है, आ----,खींचना, समीप पहुँचना, धकेलना, खींच लेना, देवताओं में सर्वप्रिय है ! वसुदेव और देवकी का पुत्र निचोड़ना (आलं.)--केशेष्वाकृष्य चम्बति--हि. होने के कारण कृष्ण कंस का भान्जा है, पर व्यवहा१११०९, श० ११३३ दूरममुना सारङ्गेण वयमाकृष्टाः रतः वह नन्द और यशोदा का पूत्र है, उन्होंने ही इसका -श० १, अमरु २१७२, कु० २।५९, रघु० ११२३ पालन-पोषण किया और वहीं कृष्ण ने अपना बचपन 2. (धनुष आदि का) झुकाना-श० ३।५, शि० बिताया। जब उसने कंस द्वारा उसकी हत्या के लिए ९।४०3. निचोड़ना, उधार लेना--हि० प्र० ९।४, भेजे गये पूतना और बक आदि क्रूर राक्षसों को मार 4. छीनना, बलपूर्वक ग्रहण करना-भट्टि० १६६३० गिराया तथा शुर-चीरता के अनेक आश्चर्यजनक कर्तव्य 5. किसी दूसरे नियम या वाक्य से शब्द ला देना, किये तो क्रमशः उसका दिव्य लक्षण प्रकट होने लगा। उद्--, 1. ऊपर खींचना, उखाड़ना--अङ्गदकोटिलग्न युवावस्था के उसके मख्य साथी थे गोकूल के ग्वालों प्रालम्बमुत्कृष्य-रघु०६।१४, शि० १३१६. 2. बढ़ाना, । की बधुएँ तथा गोपियां जिनमें राधा उनको विशेष For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०० ) प्रिय थी (तु. जयदेव के गी० की)। कृष्ण ने कंस, । कृष्णलः [कृष्ण+ला+क] धुंधची का पौधा, गुंजा-पौधा, नरक, केशि, अरिष्ट तथा अन्य अनेक राक्षसों को मार । -लम् धुंघची, चहुंटली। गिराया। यह अर्जुन का घनिष्ठ मित्र था, महाभारत | कृष्णा [कृष्ण+टाप्] 1. द्रौपदी का नाम, पांडवों की के युद्ध में उसने अर्जुन का रथ हाँका, पांडवों के । पत्नी-कि० १२२६ 2. दक्षिण भारत की एक नदी हितार्थ दी गई कृष्ण की सहायता ही कौरवों के नाश जो मसुलीपट्टम् में समुद्र में गिरती है। का मुख्य कारण थी। संकट के कई अवसर आये, कृष्णिका [कृष्ण+ठन्+टाप] काली सरसों। परन्तु कृष्ण की सहायता और उनकी कल्पनाप्रवण कृष्णिमन् (पुं०) [कृष्ण+इमनिच ] कालिमा, कालापन। मति ने पांडवों को कोई आंच न आने दी । यादवों का | कृष्णी [कृष्ण+ङीष् ] अँधेरी रात । प्रभासक्षेत्र में सर्वनाश हो जाने के पश्चात् वह जरस | कi (तूदा० पर०--किरति, कीर्ण) 1. बखेरना, इधरनामक शिकारी के बाण का, मग के धोखे में, शिकार उधर फेंकना, उडेलना, डालना, तितर-बितर करना हो गये। कहते हैं कृष्ण के १६००० स्त्रियाँ थीं, परन्तु --समरशिरसि चञ्चत्पञ्चचूडश्चमनामपरि शरतुषारं रुक्मिणी, सत्यभामा (राधा भी) उनको विशेष प्रिय कोऽप्ययं वीरपोत:, किरति--उत्तर० ५।२, ६६१, दिशि थी। कहते है उसका रंग सांवला या बादल की भांति दिशि किरति सजलकणजालम् -- गीत०४, श० १७, काला था-तु० बहिरिव मलिनतरं तव कृष्ण मनोऽपि अमरु ११ 2. छितराना, ढंकना, भरना-भट्टि० ३।५, भविष्यति नूनम्-गीत०८, उसका पुत्र प्रद्युम्न था)। १७४४२। अप--, 1. बखेरना, इधर-उधर डालना, 8. महाभारत का विख्यात प्रणेता व्यास 9. अर्जुन —अपकिरति कुसुमम-सिद्धा० 2. पैरों से खुरचना 10. अगर की लकड़ी,-ष्णम 1. कालिमा, कालापन (भोजन या आवास आदि के लिए), पूरा हर्ष, 2. लोहा 3. अंजन 4. काली पूतली 5. काली मिर्च (चौपायों और पक्षियों में) (इस अर्थ में क्रिया का 6. सीसा । सम-अगुरु (नपुं०) एक प्रकार के चंदन रूप अपस्किरते बनता है)- अपस्किरते वृषो हृष्टः, की लकड़ी,-अचल: रैवतक पर्वत का विशेषण,-अजिनम कुक्कूटो भक्षार्थी श्वा आश्रयार्थी च-सिद्धा, अपा-, काले हरिण का चर्म,--अयस् (नपुं०)-अयसम्,-आमि- उतार फेंकना, अस्वीकार करना, निराकरण करना, षम् लोहा, कच्चा या काला लोहा,-अध्वन,-अचिस् अव-, बखेरना, फेंकना .-अवाकिरम्बाललताः प्रसून: (पुं०) आग,-अष्टमी भाद्रपद कृष्णपक्ष का आठवां ---रघु० २११०, आ--, 1. चारों ओर फैलाना दिन, यही कृष्ण का जन्म दिन है, इसे गोकुलाष्टमी 2. खोदना, उद्--, 1. ऊपर को बखेरना, ऊपर को भी कहते हैं, --आवासः अश्वत्थ वृक्ष,-उबरः एक प्रकार फेंकना-रघु० ११४२ 2. खोदना, खोदकर खोखला का साप,-कन्दम् लाल कमल,-कर्मन् (वि०)काली करतूत करना 3. उत्कीर्ण करना, खुदाई करना, मूर्ति बनाना वाला, मजरिम, दृष्ट, दुश्चरित्र, दोषी, काकः पहाड़ी -उत्कीर्णा इव वासयष्टिषु निशानिद्रालसा बहिणः कोआ,-कायः भैंसा,-काष्ठम् एकः प्रकार की चंदन -~~-विक्रम० ३।२, रघु० ४१५९, उप-, (उपस्किरति) की लकड़ी, काला अगर,-कोहल: जुआरी,-गतिः आग, काटना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, परि , -आयोधने कृष्णगति सहायम्-रघु० ६।४२, प्रीवः 1. घेरना-परिकीर्णा परिवादिनी मुनेः----रघु० ८) शिव का नाम,-तारः काले हरिणों की एक जाति,-वेहः ३५ 2. सोपना, देना, बाँटना-महीं महेच्छ: परिकीर्य मधुमक्खी,-धनम् बुरे तरीकों से कमाया हुआ धन, पाप सूनी-रघु० १८५३३, प्र- 1. बखेरना, फेंकना उडेकी कमाई,-वैपायनः व्यास का नाम, तमहमरागम- लना-प्रकीर्णः पुष्पाणां हरिचरणयोरञ्जलिरयम कृष्णं कृष्णद्वैपायनं वन्दे-वेणी० २३,-पक्षः चांद्रमास --वेणी० १२ 2. (वीज आदि) बोना, -प्रति----, का अवेरा पक्ष, मृगः काला हरिण-शृङ्गे कृष्णमृगस्य (प्रतिस्किरति) चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, फाड़ना वामनयनं कण्डूयमानां मृगीम्-श०६।१६,-मुखः,-वक्त्रः, -उरोविदारं प्रतिचस्करे नख:- शि० ११४७, वि.--, पदनः काले मुंह का बन्दर, यजुर्वेदः तैत्तिरीय या बखेरना, इधर-उधर फेंकना, छितराना, फैलाना कृष्ण यजुर्वेद,-लोहः चुम्बक पत्थर,-वर्णः 1. कालारंग -कु० ३।६१, कि० २।५९, भट्टि० १३११४, २५, 2. राहु 3. शूद्र, वमन् (पु.) 1. आग,-रघु० ११॥ विनि-, फकना, छोड़ना, उतार फेंकना-कु. ४१६, ४२, मनु० २।९४ 2. राहु का नाम 3. नीच पुरुष, सम्-, मिलाना, सम्मिश्रण करना, एक स्थान पर दुराचारी, लुच्चा,-वेणा नदी का नाम,-शकुनिः कौवा, गड्डमड्ड करना, समुद्-छेदना, मुराख करना, शारः, सारः चितकबरा कालामृग-कृष्णसारे ददच्चक्षुः बींधना-रघु० ११४।। त्वयि चाधिज्यकार्मुके-श० १२६,-शृङ्गः भैसा,-सखः, _ii (कथा० उभ०-कृणाति, कृणीते) क्षति पहुँचाना, -सारथिः अर्जुन का विशेषण । चोट पहुँचाना, मार डालना। कृष्णकम् [कृष्ण-+-कन् ] काले मृग का चमड़ा। | कत (चुरा० उभ०-कीर्तयति-ते, कीर्तित) 1. उल्लेख EFFEEPE EFFE For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०१ ) करना, दोहराना, उच्चारण करना--नाम्नि कीर्तित | क्लुप्तिक (वि.) [क्लृप्त+ठन्] खरीदा हुआ, मोल लिय एव-रघु० १४८७, मनु०७।१६७, २११२४ 2. कहना, । हुआ। सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना केकयः (ब० व०) एक देश और उसके निवासी- मगध--मनु० ३।३६, ९।४२ 3. नाम लेना, पुकार करना कोसलकेकयशासिनां दुहितर:--रघु० ९।१७ । 4. स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव | केकर (वि.) (स्त्री०—री) के मूनि नेत्रतारां कर्तुं शीलमनाना-अपप्रथत् गुणान् भ्रातुरचिकीर्तच्च विक्रम ___ मस्य-कृ+अच् अलुक तारो०] भेंगी आंख वाला, -भट्टि० १५।७२, पंच० १।४।। -- रम् भेंगी आंख ; तु० आकेकर। सम० ...अक्ष क्लप (म्वा० आ०- कल्पते, क्लप्त) 1. योग्य होना, यथेष्ट (वि०) वक्रदृष्टि, भेंगी आंख वाला। होना, फलना, प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, पैदा केका [ के+के+ड+टाप, अलुक स०] मोर की बोली करना, ठुलकना (संप्र० के साथ)-कल्पसे रक्षणाय-श० - केकाभिर्नीलकण्ठस्तिरयति वचनं ताण्डवादुच्छिखण्ड: ५।५, पश्चात्पुत्ररपहृतभरः कल्पते विश्रमाय-विक्रम -मा० ९१३०, षड्जसंवादिनी: केका:---रघु० ११३९, ३।१, विभावरी यद्यरुणाय कल्पते कु० ५।४४, ६।२९, | ७।६९, १३१२७, १६।६४, मेघ० २२, भर्त० ११३५ । ५।७९, मेघ० ५५, रघु० ५।१३, ८१४०, श०६।२३, केकावलः, केकिकः, केकिन् (पुं०) [केका+वलच, केका भट्टि० २२।२१ 2. सुप्रबद्ध तथा विनियमित होना, सफल +ठन्, केका---इनि ] मोर-इत: केकिक्रीडाकलकलहोना 3. होना, घटित होना, घटना--कल्पिष्यते हरेः रवः पक्ष्मलदशां-भर्तृ० १३७ । प्रीतिः-भट्टि० १६।१२, ९।४४, ४५ 4. तैयार होना, केणिका [ के मूनि कुत्सितः अणकः-टाप् ] तम्ब । सज्जित होना-चक्लपे चाश्वकुञ्जरम्-भट्टि० १४१८९| केतः [ कित् + घन ] 1. घर, आवास 2. रहना, बस्ती 5. अनकूल होना, किसी के काम आना, अनुसेवन 3. झंडा 4. इच्छा शक्ति, इरादा, चाह । करना 6. भाग लेना, (प्रेर०) 1. तैयार करना, क्रम केतकः [कित्+ण्वुल ] एक पौधा-प्रतिभान्त्यद्य वनानि से रखना, संवारना 2. निश्चित करना, स्थिर करना केतकानाम्-घट० १५ 2. झण्डा,-कम् केवड़े का फूल 3. बांटना 4. सामान जुटाना, उपस्कृत करना --केतकैः सूचिभिन्नैः---- मेघ० २४, २३, रघु० ६.१७, 5. विचार करना, अव-, फलना, झुकना, सम्पन्न १३.१६,-को एक पौधा-केवड़ा (=केतक)-हसितकरना (संप्र. के साथ) आ--(प्रेर०) अलंकृत मिव विधत्ते सूचिभिः केतकीनाम् --ऋतु० २।२३ करना, सजाना, उप--, 1. फलना, परिणाम निकालन, 2. केतकी का फूल-ऋतु० २, २०, २४ । (संप्र. के साथ) मनु० ३१२०२ 2. तैयार होना, केतनम् [ कित+ल्युट ] 1. घर, आवास-अकलितमहिमान: तत्पर होना-मनु० ३२०८, ८१३३३, परि-, केतनं मङ्गलानां मा० २१९, मम मरणमेव वरमति (प्रेर०) 1. फैसला करना, निर्धारण करना, निश्चित वितथकेतना- गीत०७2. निमंत्रण, बुलावा 3. स्थान, करना 2. तैयार करता, तैयार होना 3. गुणयुक्त जगह 4. पताका, झंडा–भग्नं भीमेन मरुता भवतो करना-श०।९ प्र-, होना, घटित होना रथकेतनम्-वेणी० २।२३, शि०१४।२८, रघु० ९।३९ 2. सफल होना (प्रेर०) 1. आविष्कार करना, उपाय 5. चिह्न, प्रतीक जैसाकि मकरकेतन 6. अनिवार्य कर्म निकालना, (योजनाएँ) बनाना 2. तैयार होना, तैयार (धामिक भी)-निवापाञ्जलिदानेन केतनैः श्राद्धकर्मभिः, करना, वि--, संदेह करना, संदिग्ध होना (प्रेर०) तस्योपकारे शक्तस्त्वं कि जीवन् किमतान्यथा-वेणी० संदेह करना, सम---, (प्रेर०) 1. दृढ़ निश्चय करना, । ३।१६। दृढ़ संकल्प करना, निश्चित करना 2. इरादा करना, । केतित (वि०) [ केत+इतच् ] 1. बुलाया गया, आमंत्रित प्रस्ताव रखना, समुप----, तैयार होना। 2. आबाद, बसा हुआ। क्लप्त (भू० क० कृ०) [क्लप्+क्त] 1. तैयार किया हुआ, | केतुः [चाय+तु, की आदेशः] 1. पताका, झंडा-चीनांकिया हुआ, तैयार हुआ, सुसज्जित-क्लप्तविवाहवेषा शुकमिव केतोः प्रतिवातं नीयमानस्य-श० ११३४ -रघु०६।१० विवाहवेष में सुभूषित 2. काटा हुआ, 2. मुख्य, प्रधान, नेता, प्रमुख, विशिष्ट व्यक्ति (बहुधा छीला हुआ---क्लप्तकेशनखश्मश्रु-मनु० ४।३५ समास के अन्त में)--- मनुष्यवाचा मनुवंशकेतुम्-रघु० 3. उत्पन्न किया हुआ, पैदा किया हुआ 4. स्थिर २।३३, कुलस्य केतुः स्फीतस्य (राघवः)--- रामा० किया हुआ, निश्चित 5. सोचा हुआ, आविष्कृत । 3. पुच्छलतारा, धूमकेतु-मनु० ११३८ 4. चिह्न, अंक सम०--कीला अधिकार पत्र, दस्तावेज, धूपः 5. उज्ज्वलता, स्वच्छता 6. प्रकाश की किरण 7. सौरलोबान । मंडल का नवा ग्रह जो पुराणों के अनुसार संहिकेय क्लप्तिः (स्त्री०) [क्लप्+क्तिन्] 1. निष्पत्ति, सफलता राक्षस का कबंध है तथा जिसका सिर राहु है-कुर2. आविष्कार, बनावट 3. क्रमबद्ध करना । ग्रहः सकेतुश्चन्द्रमसं पूर्णमण्डलमिदानीम्-मुद्रा० १।६। FFFFFEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०२ ) सम-प्रहः अवरोही शिरोविन्दु (जहाँ ग्रहमार्ग व | प्रिज,....सखः परिहाम, क्रीडा, मनोरंजन,--वक्षः कदंबरविमार्ग एक दूसरे को बटन है।-मःयाल, यष्टिः बक्ष का जाति, --- शयनम् विलाशय्या, सुवाया, कोच (स्त्री०) ध्वज का दंड ५० १२११०३, रत्नम् --लिपनाबातम् गीत० ११,-- शुषिः (म्बी०) नीलम, वैदूर्य, -- वसनम् ध्वजा, पताका । पृथ्वी, . सचिवः आमादप्रिय सखा, विश्रब्ध मित्र । केदारः [ के शिसि दारो.स्य- व. स.] 1. पानी भगति के-ि--कन् | अशोक वृक्ष । हुआ खेत, चरागाह 2. थांबला, आलवाल 3. पहाड़ । औली कलि-डी 1. जल, क्रीड़ा 2. आमोद-कीडा । मम० 4. केदार नामक पहाड़ जो हिमालय का एक भाग है जिका माननादार्थ रक्ली हाई कोयल,-वनी प्रमोद5. शिव का नाम। सम० ख मिट्टी का बना काका, वालिकानन, कीडोद्यान,--शुकः मनोरंजनार्थ एक छोटा सा बांध जो पानी को रोके, नाथः शिव पाला दुआ जोता।। का विशेष रूप। क्षेवल (4) कंद सेवने पाकल ] 1. विशिष्ट, एकाकेनारः [ के मनि नारः-- अल० स०] 1. सिर 2. खोपड़ी। ति::, अगाधारण 2. अकेला, मात्र, एकल, एकमात्र, 3. गाल 4. जोड़। इकादुक्का सहितस्य न केवला थियं प्रतिगेदे सककेनिपातः [ के जले निपात्यतेऽमी--- के नि-+ +णि । लान् गुपानपि-- रधु०८।५, न केवलानां पयसां प्रमूति+अच् ] पतवार, डांड, चप्पू ।। मवेहि मां कामदुधां प्रमन्नाम् २।६३, १५।१, कु. केन्द्रम् (नपु०) 1. वृत्त का मध्य बिंदु 2. वृत्त का प्रमाण २।३४ 3. पूर्ण, समस्त, परम, पूरा 4. नग्न, अनावत 3. जन्मकुंडली में लग्न से पहला, चौथा, सातवां और (भूमि आदि) कु० ५.१२ 5. बालिस, सरल, अमिदसवां स्थान । श्रित, विमल-कातर्य केवला नीति: -रघ० १७४४७, केयूरः,---रम् [ के बाहौ शिरसि वा याति, या+कर किच्च, - लम् (अव्य०) केवल, सिर्फ, एकमात्र, पूर्ण रूप से, अल० स०, तारा०] टाड, बिजायठ, बाजूबंध . केयरान नितान्त, सर्वथा--केवलमिदमेव पच्छामि-का० १५५, विभूषयन्ति पुरुष हारा न चन्द्रोज्ज्वला:-भतं० २१९, न केवला - अपि न सिर्फ" बल्कि, म तस्य पिभोर्न रघु० ६।६८, कु० ७।६९, - रः एक रतिबंध । केवलं गुणवत्तापि परप्रयोजना --रघ० ८।३१, तु० केरलः (ब० ब०) दक्षिण भारत का एक देश (वर्तमान ३।१९, २०।३१। सम-आत्मन् (वि०) परम मलाबार) और उसके निवासी---- मा०६।१९, रघ० । एकता ही जिसका सार है कू० २।४,--नैयायिकः सिर्फ ४।५४,—ली (स्त्री० ) 1. केरल देश को स्त्री ताकित (जो ज्ञान को किमी और शाखा में प्रवीण न 2. ज्योतिर्विज्ञान । हो), इसो प्रकार वैयाकरण । केल (म्वा० पर०केलति, केलित) 1. हिलाना.खेलना, केवलतः (अव्य०) [ केवल-तमिल | केवल, निग, नवथा, खिलाड़ी होना, क्रीडा परायण या केलिप्रिय होना। निपट, मिर्फ। केलकः [ केल+वल ] नर्तक, कलाबाजी करने वाला नट । सलिन 19ी . मी केवल नि |1 अकेला केलासः [ केला विलासः सीदत्यस्मिन्- केला+सद् +ड: ] एकमात्र 2. आला की एकता के परम सिद्धान्न का स्फटिक। पक्षपाती। केलिः (पुं०--स्त्री०) [केल-इन् ] 1. खेल, क्रीडा क्षेशः विनायते क्लिानानि ना किला --अन, लालोपटच | 2. आमोद-प्रमोद, मनोविनोक-केलिचलन्मणिकुण्डल । 1. चाल ----विकीर्ण कगार परेन भूमिग कु० ५।६८ आदि-गोत० १, हनिरिह मुग्धवनिकरे विलासिनि 2. सिर के बाल-केगेपु गृहीला-या-केगमा यध्यन्ते बिलराति केलिपर-१०, राधामाधवयोजयंति यमनाकले । — मिासकेगा मा० १०.१, कंगव्यपरोपणारह के लयः-१०, अ. 3, मा० ८१३५३, ऋतु०४।१० वित्र ...२०५६, ८ 3. घोड़े या शेर की अबाल 3. परिहास, सन्द, हसीदिल्ली ,---लि: (स्त्रि०) । 4. प्रकाश को किरण 5. वसा का विशेषण एक पश्वी 1. --कला कीड़ा प्रिय कला विलासिता, । प्रकार का मृगन्ध व्य। मम ---अन्त: 1. बाल का शृंगाप्रिया मंधा 2. मस्पनी की वोगा,---किल: मिग 2. नीचे लटकने हा लम्बे वाल, वालों का गच्छा नाटक में नायक का विश्वस्त सहचर (एक प्रकार का 3. गण्डन संस्कार--मन. ६५,.--उच्चयः अधिक विपक),-किलारती रनि, कामदेव की पत्नी-कीर्णः था सुन्दर वाल, -कर्मन् (नपं०) (मिर के) बालों को ऊँट.-कृचिका पत्नी की छोटी बहन,---कुपित (वि०) संभालना, कलापः बालों का देर-कोट: जं, गर्भः खेल में रुष्ट-वेणी० ११२-कोषः नाटक का पात्र, . वालों की मींडी,- गहीत (दि०) वालों में पकड़ा हुआ, नानक, नवैया, गृहम, -निकेतनम् .. मन्दिरम् -- सद- -ग्रह:--प्रहणम् बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना मम आगोलभवन, निजी कमग, अमरु ८, --नागरः । केशग्रहः ग्बल नदा द्रुपदात्मजाया:-वेणी० ।।११,०१, काभासवत,---पर (दि०) क्रीडापर, बिलामी, आमोद मेघ० ५०, इसी प्रकार - यत्र रतेषु केगग्रहः-का० ८ For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -नम् दूषित गंजापन, -च्छिद् (पु.) नाई, हज्जाम, या गलगल का पेड़ 5. पुन्नाग वृक्ष 6. हनुमान के पिता --जाहः बालों की जड़,--पक्षः,पाशः, -हस्तः बहुत काना।। सम--सुतः हनुमान् का विशेषण । अधिक अथवा संवारे हुए बाल--तं केशपाशं त्रसम्प्रेक्ष्य के (ना० पर० - -कायति) शब्द करना, ध्वनि करना । कुर्यलिप्रियता शिथिलं चमर्यः ...कु० ११४८,७१५७, केशुकम् शिशु क-अण्] किशक वृक्ष का फूल । तु० कचपक्ष कचहस्त आदि ---बन्ध जूड़ा,-भू-भूमिः कैकयः [केकय+अण् केकय देश का राजा, दे० 'केकय । सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते हैं कंकसः [कीकस अण] राक्षस, पिशाच । ....-प्रसाधनो, –माजकम,—मार्जनम कंधो, रचना कैकेयः केवयानां राजा-अण' केकय देश का राजा या बालों को संवारना, ...वेश कबरी-बन्धन। राजकुमार, धी केकय देश के राजा की बेटी, राजा केशटः | केश-+ अट-अच्, शक' पररूपम्] 1. बकरा दशरथ की सबसे छोटी परनी, भरत की माता (जब 2. विष्णु का नाम 3. खटमल 4. भाई। राम को राजगदी जिलने वाली थी, तो कैकेयी को केशव (वि.) केशाः प्रशस्ताः सन्त्यत्स्य, केश || बहत कौलल्या से कार सत्रता न थी, परन्तु उसकी दासी या सुन्दर बालों वाला, वः विष्णु का विशेषण-केशव मन्धरा बड़ी दुष्ट थी, उसे राम से पुराना द्वेष था; जय जगदीश हरे गीत० १, केशवं पतितं दृष्ट्वा इस समय वाला लेने का अच्छा अवसर समझकर पाण्डवा हर्षनिर्भरा:-सुभा० । समआयुधः आम मन्थरा ने कैफेयो का मन इतना अधिक पलट दिया का वृक्ष (-धम्) विष्णु का शस्त्र,-आलयः,-आवासः कि वह मन्थरा के सुझाव के अनुसार राजा दशरथ से अश्वत्थ वृक्ष । वे दो वरदान मांगने के लिए उद्यत हो गई जो उन्होंने केशाकेशि (अव्य.) [केशेषु केशेषु गृहीत्वा प्रवृत्तं युद्धम् पहले कभी देने की प्रतिज्ञा की थी। एक वर से ---पूर्वपदस्य आकारः इत्वम् च एक दूसरे के बाल उसने अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी तथा दूसरे वर खींच कर, नोच कर की जाने वाली लड़ाई-झोंटा से राम के लिए १४ वर्षका निर्वासन माँगा। रोषान्ध झोंटी....केशाकेश्यभवद्युद्धं रक्षसां वानरैः सह -- महा०, दशरथ ने कैकेयो को उसके दूषित प्रस्तावों के लिए याज्ञ० २।२८३ । बहुत बुरा भला कहा परन्तु अन्ततः उन्हें उसकी हठ केशिक (वि.) (स्त्री०-की) [केश+ ठन् सुन्दर या अलं- के आगे झुकना पड़ा। इस दुष्कृत्य के कारण कैकेयो कृत वाली वाला। का नाम बदनाम हो गया)। केशिन (पं०)[केश+इनि] 1. सिंह 2. एक राक्षस जिसको | कैटभः [कीट-+-भा+3--अण्] राक्षस का नाम जिसे विष्णु कृष्ण ने मार गिराया था 3. एक और राक्षस जो देव ने मार गिराया (वह बड़ा बलवान् राक्षस था, कहा सेना को उठा कर ले गया और बाद में इन्द्र द्वारा जाता है कि वह और मधु दोनों राक्षस विष्णु के कान मारा गया था 4. कृष्ण का विशेषण 5. सुन्दर बालों से निकले जब कि वे सोये हुए थे, परन्तु जब राक्षस वाला । सम... निषूदनः,-मवनः कृष्ण के विशेषण ब्रह्मा को खाने के लिए दौड़ा तो विष्ण ने उसको मार --भग० १८१२। गिराया)। सम० --अरिः, जित् (पुं०)-रिपुः-हन् केशिनी केशि ।-डीप्] सुन्दर जुड़े वाली स्त्री 2. विधवा विष्णु के विशेषण। की पत्नी, रावण और कासकर्ग की माता। केतकन् केराकी-|-अण केवड़े का फूल । केस (श) रः,-रम् [के+सृ (A):- अच्, अलुक स०] कैतवम् किता+अण] 1. जुए में लगाया गया दाँत्र 1. (सिंह आदि की) अयाल-नहन्त्यदूरेऽपि गजान्मगे- 2. जुआ खेलना है. झूठ, धोखा, जालसाजी, चालबाजी, श्वरो विलोलजिह्वश्चलितान केसर: -...नु० १११४, चालाकी----हृदये पासीति मत्प्रियं यदवोचस्तदमि ०७।१४ 2. फूल का रेशा या तन्तु-नीपं दष्ट्रवा कैतवम्-कु. ४१९, --बः 1. छली, चालबाज 2. जुआरी हरितकपिशं केसररर्धरूढः-मेघ० २१, ०६।१७, 3. धतुरे का पौधा । सम० –प्रयोगः चालाकी, दाँव, मालवि० १११, रघु० ४१६७ शि० ९।४७ 3. बाल - -वादः झूठ, चालबाजी। का पेड़ 4. (आम आदि का) रेशा या सूत्र,-रम् | कंदारः केदारअण] चावल, अनाज,--रग खेतों का बकुल वृक्ष का फूल- रघु० ९।३६ । सम०-- अचलः . समूह, 'केदार्य' भी इसी अर्थ में। मेरु पहाड़ का विशेषण,-बरम केसर, जाफ़रान । कैमुतिकः [किमुत-|-ठक] (न्याय) और कितना अधिक केस (श) रिन (पु०) [केसर- इनि] 1. सिंह-अनुहुंकु- न्याय, एक प्रकारका तर्फ (किमत और कितना गते पनवनि न हि गोमायुरुतानि केसरी - शि० १६॥ अधिक' से व्युत्पन्न)। २५ धनर्धरः केसरिणं ददर्श ----रघु० २१२५, २०७३ करवः कि जले रोति..केरब: हंसः तस्य प्रियं .... केन्द!2. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, अपने वर्ग का पाल (ममास के अण्] 1. जुआरो, धोखा देने वाला, चालबाज 2. शत्र, अन्त में-तु० कुंजर, सिह आदि) 3. चोड़ा ६. नींबू ! --वम् श्वेत कुम द जो चन्द्रोदय के समय खिलता है For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०४ ) ---चन्द्रो विकासयति करवचक्रवालम्--भर्तृ० २।७३ । , कोथः, कोडणः (ब०व०) एक देश का नाम, सह्याद्रि और सम०-बन्धुः चन्द्रमा का विशेषण । समुद्र का मध्यवर्ती भूखंड । करविन् (पुं०) [कैरव+इनि] चन्द्रमा । कोणा [ कोकण+टाप ] रेणका, जमदग्नि की पत्नी। करविणी करविन्+ङीप्] 1. श्वेत फूल वाला कुमुद का | सम-सुतः परशुराम का विशेषण । पौधा 2. वह सरोवर जिसमें श्वेत कमल खिले हों | कोजागरः [को जागति इति लक्षम्या उक्तिरत्र काले पृषो० 3. श्वेत कमलों का समूह । तारा०] आश्विन मास की पूर्णिमा की रात में मनाया करवी करव+ङीष] चाँदनी, ज्योत्स्ना। जानेवाला आमोदपूर्ण उत्सव । कलासः [के जले लासो दीप्तिरस्य - केलास+अण्] पहाड़ कोटः [ कुट्+घञ्] 1. किला 2. झोंपड़ा, छप्पर 3. कुटि का नाम, हिमालय की एक चोटी, शिव और कुबेर | लता 4. दाढ़ी। का निवास स्थान-मेघ०११, ५८ रघु० २।३५ । सम० | कोटरः-रम कोटं कौटिल्यं राति रा+क ता० ] वृक्ष की -..नायः 1. शिव का विशेषण 2. कुबेर का विशेषण । खोखर नीवाराः शुकगर्भकोटरमुखभ्रष्टास्तरूणामधः --- कैलासनाथं तरसा जिगीष:-रघु० ५।२८, कैलास- -श० १।१४, कोटरमकालवृष्ट्या प्रबलपुरोबातया नाथमुपसत्य निवर्तमाना--विक्रम० ११२ । गमिते-मालवि० ४।२ ऋतु०१।२६।। कैवर्तः [ के जले वर्तते-वत--अच, केवर्तः ततः स्वार्थे कोटरी, कोटवी [ कोट+री (वी)-+-क्विथ् ] 1. नंगी स्त्री अण् तारा० ] मछवा --मनोभः कैवर्त: क्षिपति परित- 2. दुगदिबी का विशेषण (नग्न रूप में वर्णन)। स्त्वां प्रति मुहुः (तनूजाली जालम् )—शा० ३।१६, । कोटिः, टी (स्त्री) [ कुट+इन, कोटि+डी ] 1. धनुष मनु० ८।२६०, (इसके जन्म के विषय में दे० का मुड़ा हुआ सिरा-भूमिनिहितककोटिकार्मकम्-रघु० मनु०१०।३४)। ११।८१ उत्तर०४।२९ 2. चरमसीमा का किनारा, कैवल्यम् [ केवल+ष्य ] 1. पूर्ण पृथकता, अकेलापन, नोक या धार-सहचरी दन्तस्य कोट्या लिवन्-मा० एकान्तिकता 2. व्यक्तित्व 3. प्रकृति से आत्मा का ९।३२, अङ्गदकोटिलग्नम् रघु०६।१४,७।४६, ८।३६ पार्थक्य, परमात्मा के साथ आत्मा की तद्रूपता 3. शस्त्र की धार या नोक 4. उच्चतम विन्दु, आधिक्य 4. मुक्ति, मोक्ष। पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष-परा कोटिमानन्दकंशिक (वि.) (स्त्री--की) [ केश+ठक ] बालों के स्याध्यगच्छन्-का० ३६९, इसी प्रकार कोपकोटिमा समान, बालों की भांति सुन्दर,...क: शृंगार रस, पन्ना-पंच०४, अत्यंत कुपित 5. चन्द्रमा की कलाएँ विलासिता,-कम् बालों का गच्छा,----की नाट्य शैली --कु० २१२६ 6. एक करोड़ की संख्या-रघु० ५।२१, का एक प्रकार (अधिक शुद्ध 'कौशिकी' शब्द है)। १२।८२, मनु० ६।६३ 7. (गणित) ९० कोटि के केशोरम् [ किशोर+ अञ ] किशोरावस्था, बाल्यकाल, चाप की सम्पूरक रेखा 8. समकोण त्रिभुज की एक कौमार आयु (पन्द्रह वर्ष से नीचे की)-कशोरमापंच- भुजा (गणित) 9. श्रेणी, विभाग, राज्य-मनुष्य , दशात् । प्राणि ० आदि 10. विवादास्पद प्रश्न का एक पहल, कैश्यम [ केश-ष्यन ] सारे बाल, बालों का गुच्छा। विकल्प। सम०-ईश्वरः करोड़पति,-जित् (प.) कोकः [ कुक आदाने अच् -तारा०] 1. भेड़िया ....वनयथ कालिदास का विशेषण,-ज्या (गणित) समकोण त्रिभुज परिभ्रष्टा मगी कोकैरिवादिता-रामा० 2. गुलाबी में एक कोण की कोज्या,-वृयम दो विकल्प, पात्रम् रंग का हंस (चक्रवाक), कोकानां करुणस्वरेण पतवार,-पालः दुर्ग रक्षक,-वेधिन (वि.) (शा०) सदृशी दीर्घा मदभ्यर्थना-गीत ५ 3. कोयल 4. मेंढक नियत विन्दु पर प्रहार करने वाला, (आलं.) अत्यन्त 5. विष्णु का नाम । सम०--देवः 1. कबूतर, 2. सूर्य कठिन कार्यों को सम्पन्न करने वाला। का विशेषण। कोटिक (वि.) [ कोटि+के+क] किसी वस्तु का उच्चकोकनदम् [कोकान् चक्रवाकान् नदति नादयति नद्+अच्] / तम सिरा। लाल कमल - किचित्कोकनदच्छदस्य सदशे नेत्र स्वयं | कोटिरः / कोटिं राति राक ता०] सन्यासियों द्वारा रज्यतः ---उत्तर० ५।३६, नोलनलिनाभमपि तन्वि मस्तक पर बनी सींग के रूप की बालों की चोटी तव लोचनं धारयति कोकनदरूपम --गीत० १०, शि० 2. नेवला 3. इन्द्र का विशेषण । ४१४६ । कोटि (टी) शः [ कोटि (टी)+शो+क] मैड़ा, पटेला । कोकाहः [ कोक+आ+हुन+] सफेद घोड़ा। कोटिशः (अव्य०) [ कोटि+शस | करोड़ों, असंख्य । कोकिलः [कुक+इलच्] 1. कोयल-स्कोकिलो यन्मधुरं | कोटीरः [कोटिमोरयति ईर्+अण् ] 1. मुकुट, ताज चुकूज-कु० ३।३२, ४।१६, रघु० १२१३९ 2. जलती 2. शिखा 3. सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बाँधी गई हुई लकड़ी। सम०-आवासः,-उत्सवः आम का वृक्ष ।। बालों की चोटी जो सींग जैसी दिखाई देती है, जटा लाट पराकाष्ठा, ६. इसी प्रकार की कलाएँ For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टव्यापारपारगम कोट नमः ० १ कोण नयनपणा की कमान कोमल ( ३०५ ) -कोटीरबन्धनधनुर्गुणयोगपट्टव्यापारपारगममुं भज | धात् पादानतः कोपनयावधूतः कु. ३८, अमरु ६५। कोपिन् (वि.) [ कोप+इनि] 1. क्रोधी, चिड़चिड़ा कोट्टः [ कुट्ट+घा नि० गुणः | दुर्ग, किला। ....... सत्यमेवासि यदि सुदति मयि कोपिनी-गीत०१० कोटटवी | कोट वाति वाक, गौरा० ङीष तारा०] 2. क्रोध उत्पन्न करने वाला 3. चिड़चिड़ा, शरीर में 1. नग्न स्त्री जिसके बाल बिखरे हुए हों 2. दुर्गादेवी त्रिदोष विकारों को उत्पन्न करने वाला। 3. बाण की माता का नाम । कोमल (वि.) [कु+कलच्, मुटु च नि० गुणः] कोट्टारः [कुट्ट+आरक् पृषो०] 1. किलेबन्दी वाला नगर, 1. सुकुमार, मृदु, नाजुक (आलं० से भी)-बन्धुरकोम दुर्ग 2. तालाबको सीढ़ियां 3. कुआँ, तालाब 4. लम्पट, लाङगुलि (करम् )-२०६।१२, कोमलविटपानुकारिणी दुराचारी। बाहू-१२१, संपत्सु महता चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् कोणः [कुण करणे घञ , कर्तरि अच् वा तारा०] 1. किनारा, -भर्तृ० २१६६ 2. (क) मृदु, मन्द-कोमलं गीतम् कोना-भयेन कोणे क्वचन स्थितस्य-विक्रमांक० १२९९, (ख) रुचिकर, सुहावना, मधुर रे रे कोकिल कोमलै: (युक्तमतन्न तु पुनः कोणं नयनपद्मयो:-भामि० २। कलरवैः किं त्वं वृथा जल्पसि-भर्तृ० ३।१० १७३ 2. वृत्त का अन्तर्वर्ती बिन्दु 3. वीणा की कमानी, 3. मनोहर, सुन्दर । सारंगी बजाने का गज 4. तलवार या शस्त्र की तेज | कोमलकम् [कोमल+कन् ] 1. कमलडंडी के रेशे । धार 5. लकड़ी, लाठी, गदा 6. ढोल बजाने की लकड़ी कोयष्टिः, कोयष्टिक: [कं जलं यष्टिरिवास्य ब. स. 7. मंगल ग्रह 8. शनिग्रह । सम-आघातः ढोल, ढपड़ें पृषो० अकारस्य उकारः-कोयष्टि+कन् ] टिटहिरी, बजाना (विविध वाद्ययंत्रों की मिश्रित ध्वनि)-कोणा- कुररी-काश्मर्याः कृतमालमुद्गतदलं कोयष्टिकष्टीघातेषु गर्जत्प्रलयघटघटान्योन्यसंघट्टचण्ड:-वेणी० कृते-मा० ९१७, मनु० ५।१३, याज्ञ० १११७३।। ११२२, (भरत द्वारा दी गई परिभाषा-ढक्काशत- कोरक:-कम [ कुर+बुन् ] 1. कली, अनखिला फूल, सहस्राणि भेरीशतशतानि च, एकदा यत्र हन्यन्ते -संनद्धं यदपि स्थितं कुरबकं तत्कोरकावस्थया-श० कोणाघातः स उच्यते), कुणः खटमल । ६।३ 2. (आलं०) कली के समान कोई वस्तु-अर्थात् कोणपः दे० कोणप। अधखिला फल, अविकसित फल,--राधायाः स्तनकोरकोणाकोणि (अव्य०) एक कोण से दूसरे कोण तक, एक कोपरि चलन्नेत्रो हरिः पातु वः-गीत० १२ 3. कमलकिनारे से दूसरे किनारे तक, तिरछे, आड़े। डंडी के रेशे 4. एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । कोदण्डः,-डन् [ कु-विच्कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य कोरदूषः कोद्रवः । व०सं० ] धनुष,--रे कन्दर्प कर कदर्षयसि कि कोदण्ड- कोरित (वि०) [कोर+इतच् ] 1. कलीयुक्त, अङकुरित टङ्का रवैः-भत० ३।१००, कोदण्डपाणिनिनदत्प्रतिरोध- 2. पिसा हुआ, चूरा किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े कानाम-मालवि० ५।१०,--डः भौं। किया हुआ। कोद्रवः | कु+विच्-का, द्रु-अक-द्रव, कर्म० स० कोलः [ कुल+अच् ] 1. सूअर, वराह-शि० १४१४३ कोदों का अनाज जिसे गरीब लोग खाते हैं-छित्वा 2. लट्ठों का बना बेड़ा, नाव 3. स्त्री की छाती कर्परखण्डान् वृतिमिह कुरुने कोद्रवाणां समन्तात्-भर्तृ० । 4. नितंब प्रदेश, कुल्हा, गोद 5. आलिङ्गन 6. शनिग्रह २२१००। 7. बहिष्कृत, पतित जाति का व्यक्ति 8. जंगली कोपः [कुप+घन ] 1, क्रोध, गुस्सा, रोष-कोपं न -लम् 1. एक तोले का भार 2. काली मिर्च 3. एक गच्छति नितान्तबलोऽपि नाग:-पंच० ०१२३, न त्ववा प्रकार का बेर । सम०–अञ्चः कलिंग देश का नाम कोपः कार्यः--क्रोध मत करो 2. (आयुर्वेद) शारी - पुच्छः बगला। रिक त्रिदोष विकार-अर्थात पित्तकोप, वातयोप, कफ- कोलम्बकः [ कुल+ अम्ब किन् ] वीणा का ढांचा । कोप। सम-आकुल-आविष्ट (वि०) क्रुद्ध, कोला,-लिः,-लो (स्त्री०) [कुल्+ण+टाप, कुल+इन्, प्रकुपित, -क्रमः 1. कोधी या रुष्ट पुरुष 2. क्रोध का कुल+अच् + ङीष् वा ] दे॰ बदरी। मार्ग,-पदम्, 1. क्रोध का कारण 2. बनावटी क्रोध, ' कोलाहल, लम् [कोल+आ+हल+अच् ] एक साथ वशः काष को वश्यता, वेगः क्रोध का प्रचण्डता, बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा । तीक्ष्णता। | कोविद (वि.) [ +विच, तं वेत्ति---विद+क] अनुकोपन (वि०) [ कुप-+ ल्युट् ] 1. रोषशील, चिड़चिड़ा, भवी, विद्वान्, कुशल, बुद्धिमान्, प्रवीण (संबं० या कोवी 2. क्रोध पैदा करने वाला 3. प्रकोपी, शरीर के अधि० के साथ, परन्तु बहुधा समास में)-गुणदोषको. त्रिदोषों में प्रवल विकार उत्पन्न करने वाला, ना विट: ----शि० १४१५३, ६९ प्राप्यावन्तीनुदयनकथारोषशील या क्रोधी स्त्री-कयासि कामिन् सुरतापरा-। कोविदग्रामवृद्धान्-मेघ. ३०, मनु० ७२६ । For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३०६ ) कोविचारः - रम् [ कु + वि + दृ + अण् ] एक वृक्ष का नाम, कचनार चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः ऋतु० ३।६। कोशः (ष) - शम् [कुश (ष्) +घञ्ञ, अच् वा ] 1. तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी 2. डोल, कटोरा 3. पात्र 4. संदूक, डोली, दराज, ट्रंक 5. म्यान, आवरण 6. पेटी, ढकना, ढक्कन 7. भाण्डार, ढेर - मनु० १९९ 8. भाण्डारगृह 9. खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान -- मनु० ८।४१९10. निधि, रुपया, दौलत निःशेषविश्राणितकोषजातम् - रघु० ५११ ( आलं० ) कोशस्तपसः - का० ४५ 11. सोना, चांदी 12. शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली 13. अनखिला फूल, कली -सुजातयोः पंकजकोशयोः श्रियम् रघु० ३१८, १३।२९, इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार - सुभा० 14. किसी फल की गिरी 15. फली 16. जायफल, कठोरत्वचा 17. रेशम का कोया - या० ३।१४७ 18. झिल्ली, गर्भाशय 19. अण्डा 20. अण्डकोष, फोते 21. शिश्न 22. गेंद, गोला 23. ( वेदांत में ) पांच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि 24. ( विधि में ) एक प्रकार की अपराधियों की अग्नि परीक्षा तु० याज्ञ० २।११४ । सम० अधिपतिः, -अध्यक्षः 1. खजानची, वेतनाध्यक्ष ( तु० आधुनिक वित्तमंत्री ) 2. कुबेर, - अगारः खजाना, भाण्डारगृह, कार: 1. म्यान बनाने वाला 2. शब्दकोश का निर्माता 3. कोये के रूप में रेशम का कीड़ा 4. कोशशायी, कारक: रेशम का कीड़ा, कृत् (पुं० ) एक प्रकार का ईख, - गृहम् खजाना, भाण्डागार रघु० ५।२९, चञ्चुः सारस, नायक:- पाल: खजानची, कोशाध्यक्ष, पेटकः, -कम् धन रखने का संदूक, तिजौरी- बासिन (पुं०) सीपी में रहने वाला कीड़ा, कोशशायी, वृद्धिः 1. धन की वृद्धि 2. फोतों का बढ़ जाना, शायिका म्यान में रक्खा हुआ चाकू, बन्द किया हुआ चाकू, स्थ (वि०) पेटी में बन्द म्यान में बंद ( स्थः) कोशकीट, कोशशायी - हीन ( वि० ) धनहीन, निर्धन । कोशलिकम् [कुशल + ठन् ] रिश्वत, घूस (अधिक शुद्ध रूप = कौशलिक) । कोशातकिन् (पुं० ) [ कोश + अत् + क्वन् कोशातक - + इनि] 1. वाणिज्य, व्यापार 2. व्यापारी, सौदागर 3. बडवानल | कोशि (षि) न् (पुं० ) [ कोश (ष) + इनि) आम का वृक्ष । htos: [ कुष् + थन् ] 1. हृदय, फेफड़ा आदि शरीर के भीतरी अंग या आशय 2. पेट, उदर 3. आभ्यन्तर कक्ष 4. अन्नभण्डार, अन्न का कोठा, -ष्ठम् 1. नहारदीवारी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. किसी फल का कड़ा छिलका । सम० अगारम् भाण्डार, भाण्डारघर - पर्याप्तभरितकोष्ठागारं मांसशोणितमें गृहं भविष्यति वेणी० ३, मनु० ९१२८०, -अग्निः पाचन शक्ति, आमाशय का रसपालः 1. कोषाध्यक्ष, भंडारी 2. चौकीदार, पहरेदार 3. सिपाही ( आधुनिक नगरपालिकाधिकारी से मिलता-जुलता ), - शद्धिः मलोत्सर्ग । [कोष्ठ + कन् ] 1. अन्नभांडार 2. चहारदीवारी, -कम् ईट चूने से बनाया गया पशुओं के पानी पीने का स्थान ( बोलचाल की भाषा में 'खेल' कहते हैं ) । कोष्ण ( वि० ) [ ईषदुष्णः - कोः कादेशः ] 1. थोड़ा गरम, गुनगुना रघु० ११८४, ष्णम् गरमी । कोस (श) ल: ( ब० व० ) एक देश और उसके निवासियों का नाम - पितुरनन्तरमुत्तरकोसलान्- रघु० ९९, ३५, ६।७१, मग कोसलकेकयशा सिनां दुहितरः - ९।१७ । कोस ( श) ला अयोध्या नगर । कोहलः [की हलति स्पर्धते अच् पृषो तारा०] 1. एक प्रकार का वाद्ययन्त्र 2. एक प्रकार की मदिरा । कौक्कटिक: [कुक्कुट + ठक् ] 1. मुर्गे पालने वाला, या मुर्गों का व्यवसाय करने वाला 2. वह साधु जो चलते समय अपना ध्यान नीचे जमीन पर रखता है जिससे कि कोई कीड़ा आदि पैरों के नीचे न दब जाय 3. ( अतः ) दंभी । कौक्ष (वि० ) ( स्त्री० -क्षी) [ कुक्षि + अण् ] 1. कोख से हुआ या कोख पर होने वाला 2. पेट से सम्बन्ध रखने वाला । कौक्षेय ( वि० ) ( स्त्री० - यी ) [ कुक्षि + ढञ् ] 1. पेट में होने वाला 2. म्यान में स्थित असि कौक्षेयमुद्यम्य चकारापनसं मुखम् भट्टि० ४ । ३१ । -o. stars: [कुक्षी बद्धोऽसि:- ढुक्कज्ञ ] तलवार, खङ्ग वाम पावविलम्बिना कौक्षेयकेन- का० ८, विक्रमाङ्क० १। ९० । कौङ्कः, कौङ्कणः ( ब० च० ) [ कु+अण्, कोङ्कण-+अण्] एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम (दे० कोंकण) । कौट (वि०) (स्त्री०टी) [कूट + अ ] 1. अपने निजी घर में रहने वाला, ( अतः ) स्वतन्त्र, मुक्त 2. पालतू, घरेलू, घर में पला हुआ 3. जालसाज़, बेईमान 4. जाल में फँसा हुआ, ट: 1. जालसाजी, बेईमानी 2. झूठी गवाही देने वाला। सम०-जः कुटज वृक्ष- तक्ष: ( favo ग्रामक्षः ) स्वतन्त्र बढ़ई जो अपनी इच्छानुसार अपना कार्य करता है, गाँव का कार्य नहीं, साक्षिन् (पुं०) झूठा गवाह, साक्ष्यं झूठी गवाही । hters, कौटिक : [कूट + कन्, कूटक + ठञ, कूट + ठक् ] 1. बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०७ ) में बन्द कर बेचना है 2. पंक्षियों के मांस का विक्रेता, | कौग्ज्यम् [कुब्ज---व्यञ] 1. टेढ़ापन, कुटिलता 2. कुबड़ाकसाई, शिकारचोर। पन । कोटलिकः [कुटिलिकया हरति मृगान् अङ्गारान् वा-कुटि- कौमार (वि.) (स्त्री०-री) [कुमार+अण्] 1. तरुण, लिका+अण्] 1. शिकारी 2. लहार । यवा, कन्या, कुँवारी (स्त्री और पुरुष दोनों) कौमारः कौटिल्यम कुटिल-प्या] 1. टिलपना (शा० तथा पतिः, कौमारी भार्या 2. मद्, कोमल, रम् 1. बचपन आलं०) 2. दुष्टता 3. बेईमानी, जालसाजी, ल्यः (पाँच वर्ष तक की अवस्था) कुंआरीपना (१६ वर्ष 'चाणक्य नीति' नामक नीतिशास्त्र का प्रख्यात प्रणेता की आयु तक) कुमारीपन--पिता रक्षति कौमारे भर्ता चाणक्य, चन्द्रगुप्त का मित्र और मन्त्रकार, मुद्राराक्षस रक्षति यौवने मनु० ९।३, देहिनोऽस्मिन् यथा देहे नाटक का एक महत्त्वपूर्ण पात्र कौटिल्यः कुटिलमतिः कौमारं यौवनं जरा भग० २११३ । सम.- भूत्यम् स एष येन क्रोधाग्नी प्रसभमदाहि नन्दवंशः ...-मुद्रा० बच्चों का पालनपोषण व चिकित्सा,-हर (वि.) ११७. स्पशति मां भृत्यभावेन कौटिल्यशिप्य:-मुद्रा० ७ । विवाह करने वाला, कन्या को पत्नी रूप में ग्रहण कौटुम्ब (वि.) (स्त्री०... बी) [कुटम्बं तद्भरणं भोजनमस्य करने वाला, य: कौमारहरः स एव हि वरः-काव्य १ । --- कुटम्ब+अण] किसी परिवार या गहस्थ के लिए कौमारकम् [कौमार+कन् बचपन, तारुण्य, किशोरावस्था आवश्यक, बम् पारिवारिक सम्बन्ध । .. कौमारकेऽपि गिरिवद्गुरुतां दधानः--उत्तर० ६॥ कौटुम्बिक (वि०) (स्त्री--की) | कुटुम्बे तद्भरणं प्रसृतः | १९। ....कूटम्ब+ठक | परिवार को बनाने वाला,-कः किसी कौमारिकः [कूमारी-ठक] वह पिता जिसकी सन्तान परिवार का पिता या स्वामी । लड़कियाँ ही हों। कोणपः कृणप- अण] पिशाच, राक्षस । सम० दन्तः | कौमारिकेयः (कुमारिका ढक्] अविवाहिता स्त्री का पूत्र । भीष्म का विशेषण । | कौमुदः [कुमुद -अण्] कार्तिक का महीना।। कौतुकम् [ कुतुक+अण् ] 1. इच्छा, कुतूहल, कामना | कौमुदी | कौमुद | डीप्] 1. चाँदनी-शशिना सह याति 2. उत्सुकता, आवेग, आतुरता 3. आश्चर्य जनक वस्तु कौमुदी कु० ४।३३, शशिनमपगतेयं कौमदी मेघ4. वैवाहिक कंगना-रघु० ८।१ 5. विवाह से पूर्व वैवा- मुक्तम् रघु० ६८५, (शब्द की व्यत्पत्ति--- को हिक कंगना बाँधने की प्रथा 6. पर्व, उत्सव 7. विशेष- मोदन्ते जना यस्यां तेनासौ कौमदी मता) 2. चाँदनी कर विवाह आदि शुभ उत्सव कु. ७।२५ 8. खुशी, का काम देने वाली कोई चीज अर्थात प्रसन्नता देने हर्प, आनन्द, प्रसन्नता . भर्त० ३.१४० 9. खेल, वाली तथा ठण्डक पहुँचाने वाली त्वमस्य लोकस्य च मनोविनोद 10. गीत, नत्य, तमाशा 11. हँसी, मजाक नेत्रकौमुदो कु० ५१७१, या कौमुदी नयनयोर्भवतः 12. बधाई, अभिवादन । सम० --आगारः, - रम् सुजन्मा मा० १२३४, तु० .. चंद्रिका 3. कार्तिक मास ...- गृहम आमोद-भवन कौतुकागारमागात् ...कु०७। की पूणिमा 4. अनाश्विन मास की पूणिमा 5. उत्सव ९४, -- क्रिया - मङ्गलम् 1. महान् उत्सव 2. विशेषतः 6. विशेषत: वह उत्सव जब घरों में, मन्दिरों में सर्वत्र विवाह-संस्कार रघु० १११५३, तोरण:-णम् उत्सव दीपावली होती है 7. (पुस्तकों के नामों के अन्त में) के अवसरों पर बनाय गये मंगलसूचक विजय द्वार । व्याख्या, स्पष्टीकरण, प्रस्तुत विषय पर प्रकाश डालने कौतूहलम् (ल्यम्) कुतुहल+ अण, ष्यत्र वा] 1. इच्छा, वाली . उदा०तकौमुदी, सांख्यतत्त्वकौमदी, सिद्धान्तजिज्ञासा, रुचि-विषयब्यावनकौतूहल: विक्रम० ११९, कौमदी आदि। सम०-पतिः चन्द्रमा-वृक्षः दीवट। श० १ 2. उत्सुकता, उत्कण्ठा 3. कूतहलवर्धक, | कौमोदकी, कोमोदी कोः पृथिव्याः मोदकः =कुमोदक+ आश्चर्यजनक । अण+ डीप कुं पृथिवी मोदयति- कुमोद+अण्+ कौन्तिकः [कुन्तः प्रहणमस्य - ठा] भाला चलाने वाला, डीप विष्णु की गदा। नेजाबरदार। कौरव (वि०) (स्त्री० वी) [ कुरु+अण् 1 कुरुओं से संबंध कौन्तेयः [कुन्त्याः अपन्यं ढक्| कुन्ती का पुत्र, युधिष्ठिर, भीम रखने वाला- क्षेत्र क्षत्रप्रधनपिशन कौरवं तद्भजेथाः और अर्जुन का विशेषण । -मेघ०४८,-व: 1. कुरु की सन्तान-मथ्नामि कौरवशतं कोप (वि०) (स्त्री० --पी) [कूप+अण] कुएँ से सम्बन्ध समरे न कोपात् - वेणी० १२१५ 2. कुरुओं का राजा। रखने वाला या कुएँ से आता हुआ (जल आदि)। कौरव्यः [ कुरु---ण्य ] 1. कुरु की सन्तान-कौरव्यवंशदावेकौपीनम् [कप+खा। 1. योनि, उपस्थ 2. गुप्ताङ्ग, ऽस्मिन् क एष शलभायते---वेणी० १११९, २५, कौरव्ये गुह्येन्द्रिय 3. लंगोटी -कौपीनं गतखण्डजर्जरतर कन्या कृतहस्तता पुनरियं देवे यथा सीरिणि–६।१२ 2. कुरुओं पुनस्तादृशी-भर्तृ० ३।१०१ 4. चिथड़ा 5. पाप, अनु- का शासक। चित कर्म। | कौप्यः [ ग्रीक भाषा का शब्द ] वृश्चिक राशि । For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३०८ | कौल (वि०) (स्त्री० ली ) [ कुल + अण् ] 1. परिवार से संबंध रखने वाली, पैतृक, आनुवंशिक 2. अच्छे घराने का, सुजात, लः वाममार्गी सिद्धांतों के अनुसार 'शक्ति' की पूजा करने वाला, लम् वाममार्गी शाक्तों के सिद्धान्त और व्यवहार । कौलकेयः [ कुल + ढक्, कुक् ] व्यभिचारिणी स्त्री का पुत्र, हरामी, वर्णसंकर । फौल टिप: [ कुलटा +ढक्, इनङादेशः ] 1. सती भिखारिणी का पुत्र 2. वर्णसंकर । कौलिक ( वि०) (स्त्री० की ) [ कुल + ठक् ] 1. किसी वंश से संबंध रखने वाला 2. कुल में प्रचलित, पैतृक, वंशपरंपरागत,—कः 1. जुलाहा - कौलिको विष्णुरूपेण राजकन्यां निषेवते - पंच० १।२०२ 2 विधर्मी 3. वाममार्गी, शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी । कौलीन ( वि० ) [ कुल + खञ ] खदानी, कुलीन, नः 1. भिखारिणी स्त्री का पुत्र 2. वाममार्गी शाक्त सिद्धांतों का अनुयायी, -नम् लोकापवाद, कुत्सा - मालविकागतं किमपि कौलीनं श्रूयते - मालवि० ३, तदेव कोलीनमिव प्रतिभाति - विक्रम० २, मेघ० ११२, कौलीनमात्माश्रयमाचचक्षे --- रघु० १४/३६, ८४ 2. अनुचित कर्म, दुराचरण - रुपाते तस्मिन् वितमसि कुले जन्म कोलीनमेतत्-वेणी० २।१० 3. पशुओं की लड़ाई 4. मुर्गों की लड़ाई 5. संग्राम, युद्ध 6. उच्च कुल में जन्म 7. गुप्तांग, योनि । कौलीम्यम् [ कुलीन + ष्यञ ] 1. कुलीनता 2. वंश की कुत्सा । कोत: [ कुलूत + अण् ] कुलूतों का राजा - कौलूतश्चित्रवर्मा - मुद्रा० १२० । कौलेयकः [ कुल + ढका ] कुता, शिकारी कुत्ता । कौल्प (वि० ) [ कुल + ष्यञ ] उच्च कुल में उत्पन्न, खान्दानी | -- कौबे (वे) र (वि०) (स्त्री० री) [कुबे (वे) र + अण] कुबेर से संबंध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला --- यानं सस्मार कौबेरम्-- रघु० १५/४५, री उत्तर दिशा - ततः प्रतस्थे कौबेरीं भास्वानिव रघुर्दिशम् — रघु० ४ । ६६ । कौश ( वि० ) ( स्त्री० शी ) [ कुश = अण् ] 1. रेशमी 2. कुश घास का बना हुआ । कौशलम् (ल्यम् ) [ कुशल + अण्, ष्यञ वा ] 1. कुशलक्षेम, प्रसन्नता, समृद्धि 2. कुशलता, दक्षता, चतुराई - किमकौशलादुतप्रयोजनापेक्षितया – मुद्रा० ३, हावहारि हसितं वचनानां कौशलं दृशि विकारविशेषाः - शि० १० । १३ । कौशलिकम् [ कुशल + ठक् ] घूस, रिश्वत । कौशलिका, कौशली [ कौशलिक+टाप्, कुशल + अण् + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) ङीप् ] 1. उपहार, चढ़ावा 2. कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन । कौशलेयः [ कौशल्या + ढक्, यलोपः ] राम का विशेषण, कौशल्या का पुत्र । कौशल्या [ कोशलदेशे भवा-छय ] दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी तथा राम की माता । कौशल्यायनिः [ कौशल्या + फिञ्ञ ] कौशल्या का पुत्र राम, भट्टि० ७/९० । कौशाम्बी [ कुशाम्ब + अणु + ङीप् ] गंगा के किनारे स्थित एक प्राचीन नगर (जिसे कुश के पुत्र कुशांब ने बसाया था - यह नगर ही वत्स देश की राजधानी थी ) । कौशिक (वि०) (स्त्री० की ) [ कुशिक + अण् ] 1. डब्बे में बन्द, म्यान में रक्खा हुआ 2. रेशमी - कः 1. विश्वामित्र का विशेषण 2. उल्ल - उत्तर० २।२९३. कोशकार 4. गूदा 5. गुग्गुल 6. नेवला 7. सपेरा 8. श्रृंगार रस 9. जो गुप्तधन को जानता है 10 इन्द्र का विशेषण, - का प्याला, पानपात्र, की 1. बिहार प्रदेश में बहने वाली एक नदी का नाम 2. दुर्गादेवी का नाम 3. चार प्रकार की नाट्यशैलियों में एक सुकुमारार्थसंदर्भा कौशिकी तासु कथ्यते - दे०, सा० द०, ४११, तथा आगे पीछे । सम० अरातिः, अरिः कौवा, फल: नारियल का वृक्ष, प्रियः राम का विशेषण | (षे ) यम् कोशस्य विकार:-- ढञ्ञ ] 1. रेशम - पंच० १।९४ 2. रेशमी कपड़ा मनु० ५।१२० 3. रेशम का बना स्त्री का पेटी कोट निर्नाभि कौशेयमुपाशबाणमभ्यङ्गनेपथ्यमलञ्चकार - कु० ७१९, विद्युद्गुण कौशेय :- मृच्छ०५३, ऋतु०५९ । कौसीद्यम् [ कुसीद + ष्यञ ] 1. व्याज लेने का व्यवसाय 2. आलस्य, अकर्मण्यता । कौशे कौसूतिकः [ कुसृति + ठक् ] 1. ठग, बदमाश 2. बाजीगर । कौस्तुभः [ कुस्तुभो जलधिस्तत्र भवः - अण् ] एक विख्यात रत्न जो समुद्रमन्थन के फलस्वरूप १३ अन्य रत्नों के साथ समुद्र से प्राप्त हुआ तथा जिसको विष्णु ने अपने वक्षस्थल पर धारण किया हुआ है-सकौस्तुभं ह्रेपयतीव कृष्णम् - रघु० ६०४९, १०/१० । सम० -- लक्षण: - वक्षस् (पुं० ) - हृदयः विष्णु के विशेषण | क्रूय् [ स्वा० आ० क्रूयते) 1. चूं चूं शब्द करना 2. डूबना 3. गीला होना । क्रकचः [ ऋ इति कचति शब्दायते क्र + कच् + अच् ] आरा। सम० उछदः केतक वृक्ष, पत्रः सागौन वृक्ष, --पाव (पुं० ) - पादः छिपकली । क्रकरः [* इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य क्र + कृ + अच् ] 1. एक प्रकार का तीतर 2. बारा 3. निर्धन व्यक्ति 4. रोग । ऋतु: [ कृ + कतु] 1. यज्ञ - तोरशेषेण फलेन युज्यताम् - रघु० ३।६५, शतं ऋतूनामपविघ्नमाप सः - ३०३८, For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवि० ११४, मनु० ७।७९ 2. विष्णु का विशेषण 3. दस प्रजापतियों में एक--मालवि०१।३५ 4. प्रज्ञा, बुद्धि 5. शक्ति, योग्यता। सम - उत्तमः राजसूय यज्ञ,--बहू,---विष् (पुं०) राक्षस, पिशाच,... ध्वंसिन् (पुं०) शिव का विशेषण (शिव ने ही दक्ष के यज्ञ को नष्ट किया था), -पतिः यज्ञ का अनुष्ठाता, पशुः यज्ञीय घोड़ा, पुरुषः विष्णु का विशेषण, भुज (पुं०) देवता, देव,---राज् (पुं०) 1. यज़ों का स्वामी यथा श्वमेधः ऋतुराट्-मनु० ९।२६० 2. राजसूय यज्ञ । कथ् (म्वा० पर०-ऋथति, ऋथित) क्षति पहँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना। ऋयकशिक: (ब० व०) एक देश का नाम- अथेश्वरेण ऋथकंशिकानाम्... रघु० ५।३९ मनु० ५।२। कथनभ [ ऋथ् + ल्युट ] वध, हत्या। कथनकः [ क्रथन+कन् ] ऊँट । कन्द (म्वा० पर०-क्रन्दति, ऋन्दित) 1. चिल्लाना, रोना, आंसू वहाना-कि क्रन्दसि दुराक्रन्द स्वपक्षक्षयकारक -पंच० ४।२९, कंदत्यतः करुणमप्सरसां गणोऽयम् -विक्रम० ११२, चक्रन्द विग्ना करीव भूयः-रघु० १४।६८, १५।४२, भट्टि० ३।२८, ५।५ 2. पुकारना, दया की पुकार करना (कर्म० के माथ) फन्दत्यविग्तं सोऽथ भ्रातृमातृमुतानथ-मार्क० (चरा० पर० या प्रेर०) 1. लगातार चिल्लाना 2. रुलाना । आ-, चिल्लाना, चीखना, चरमराना, चीत्कार करना-तणाग्रलग्नस्तुहिनैः पतद्भिराक्रन्दतीवोपमिशीनकाल:-कल० ४१७, भटि० १५।५० 2. पुकार करना (प्रेर०) एह्येहीति शिखण्डिना पटुतरैः केकाभिराक्रन्दित:-मच्छ० ५।२३। कन्दनम्, ऋन्दितम् [ कन्द - ल्युट,क्त वा ] 1. आर्तनाद, रोना, विलाप करना-हातातेति ऋन्दितमाकर्ण्य विषण्णः -रघु० ९।७५ 2. पारस्परिक ललकार, चनौती। कम् (भ्वा० उभ०, दिवा० पर०-क्रामति-क्रमते, काम्यति, कान्त) 1. चलना, पदार्पण करना, जाना-कामत्यनुदिते सूर्य बाली व्यपगतक्रमः-रामा०, गम्यमान न तेनासीदगतं कामता पुर:-भटि० ८१२,२५ 2. चले जाना, पहुँचना (कर्म के साथ)-देवा इमान् लोकानक्रमन्तशत० 3. जाना, पार करना, पार जाना-सुग्वं योजनपञ्चाशत्क्रमेयम्-गमा० 4.दना, छलांग माग्ना-क्रम वबन्ध अमिनु सकोपः (हरिः)-भटि० २१९, ५।५१, 5. ऊपर जाना, चढ़ना 6. अधिकार में रखना, वश में करना, अधिकार में लेना, भरना-क्रान्ता यथा चेतसि विस्मयन-रघु० १४११७ 7. आगे बढ़ना, आगे निकल जाना-स्थितः मर्वोन्नतेनार्वी क्रान्त्वा मेरुरिवात्मना -रघु० १११४ 8. उत्तरदायित्व लेना, संप्रयास करना, योग्य या सक्षम होना, शक्ति दिखलाना (संप्र. या । तुमुन्नन्त के साथ)-व्याकरणाध्ययनाय क्रमते-सिखा०, धर्माय क्रमते साधुः-वोप० व्युत्पत्तिरावजितकोबिदापि न रञ्जनाय क्रमते जडानाम-विक्रमांक १११६, हत्या रक्षांसि लवितुमक्रमीन्मारुतिः पूनः, अशोकबनिकामेव -भटि० ९।२८ १. बढ़ना या विकसित होना, पूरा क्षेत्र मिलना, स्वस्थ होना (अधि० के साथ)-कृत्येषु क्रमन्ते-दश० १७०, क्रमन्तेऽस्मिशास्त्राणि-या-ऋक्ष क्रमते बुद्धिः-सिद्धा०, क्रममाणोऽरिसंसदि-भटि०८ २२ '10. पूरा करना, निष्पन्न करना 11. मैथुन करना, (पा. १३१३८ क्रम-आ० में 'सातत्य' 'विघ्नों का अभाव' 'शक्ति या प्रयोग' 'विकास, वृद्धि' तथा 'जीतना, पार पहुँचना' आदि अर्थ को प्रकट करती है) अति- 1. पार करना, पार जाना-सप्तकक्षान्तराण्यतिकम्य-का० ९२ 2. परे जाना, लांघना-मेघ०५७, ४० 3. बढ़ जाना, आगे निकल जाना-मनु० ८।१५१ 4. उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, आगे कदम रखना-अतिक्रम्य सदाचारम-का० १६० 5. अवहेलना करना, पृथक् करना, उपेक्षा करना-प्रथितयशसां प्रवन्धाननिक्रम्य-मालवि० १, कि वा परिजनमतिक्रम्य भवान्सन्दिष्ट:-मालवि० ४, या कथं ज्येष्ठानतिक्रम्य यवीयान् राज्य महंति-महा० 6. गुजरना, (समय का) बीतना-अतिक्रान्ते दगाहे-मनु०५७६, यथा यथा यौवनमतिचक्राम-का०५९, अधि-, चढ़ना, अET-, अधिकार करना, भरना, ग्रहण करना-अध्याक्रान्ता वसतिरमनाध्याथम सर्वभोग्य-श० २१४ अनु-, 1. अनुगमन करना 2. आरम्भ करना 3. अन्तर्वस्तु देना, अ.वा-, एक के पश्चात दूसरे के दर्शन करना, अप-, छोड़ जाना, चले जाना, अभि-, 1 जाना, पहुँचना, प्रविष्ट होना-अभिचक्राम काकुत्स्थः शरभङ्गाश्रमं प्रतिरामा० 2. घूमना, भ्रमण करना 3. आक्रमण करना अव-, वापिस हटना आ-, 1. पहँचना, की ओर जाना 2. आक्रमण करना, दमन करना, जीतना, परास्त करना-पक्षिशावकानाक्रम्य-हि० १, पौरस्त्यानेवमाक्रामन्-रघु० ४।३४, भर्तृ० ११७० 3. भरना, प्रविष्ट होना, अधिकार में करना-बं केशवोऽपर इवाक्रमित प्रवृत्तः-मच्छ० ५।२।९।१२ 4. आरम्भ करना, शुरू करना 5. उन्नत होना, उदय होना (आ०) यावत्प्रतापनिधिराक्रमते न भानु:-रघु० ५।७१ 6. चढ़ना, सवारी करना, अधिकार में करना, उद्-, 1. ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना-ऊर्ध्व प्राणापत्कामन्ति --मनु० २११२० 2. अवहेलना करना, उपेक्षा करना -आप प्रमाणमुत्क्रम्य धर्म न प्रतिपालयन्-महा०, धर्ममुत्क्रम्य 3. परे कदम रखना-रघु० १५।३३, उप-, 1. की ओर जाना, पहुँचना 2. धावा बोलना, आक्रमण करना 3. बर्ताव करना, उपचार करना, (वैद्य For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३१० ) की भांति) चिकित्सा करना, स्वस्थ करना, 4. प्रेम करना, प्रेम से जीत लेना - सर्वेरुपाये रुपक्रम्य सीताम - रामा० 5. अनुष्ठान करना, प्रस्थान करना 6. ( आ ) आरम्भ करना, शुरू करना - प्रसभं वक्तुमुपक्रमेत कः - कि० २०२८, रघु० १७३३, निस्, 1. चले जाना, चल देना, बिदा होना 2. निकलना, प्रकाशित होना - भट्ट० ७०७१, परा-, ( आ० ) 1. साहस प्रदर्शित करना, शक्ति या शूरवीरता दिखाना, बहादुरी के साथ करना - बकवच्चिन्तयेदर्थान् सिंहवच्च पराक्रमेत् - मनु० ७११०६, भट्टि ८ २२,९३ 2. वापिस मुड़ना 3. चढ़ाई करना, आक्रमण करना, परि-, 1 इधर उधर घूमना, चक्कर लगाना - परिक्रम्यावलोक्य च ( नाटकों में) 2. पकड़ लेना, प्र - ( आ० ) 1. आरम्भ करना, शुरू करना - प्रचक्रमे च प्रतिवक्तुमुत्तरम् - रघु० ३।४७, २०१५, कु० ३1२ 2. कुचलना, ऊपर पैर रख कर चलना - भट्टि० १५/२३ 3. जाना, प्रस्थान करना, प्रति, वापिस आना वि- (आ० ) 1. में से चलना, विष्णुस्त्रेधा विचक्रमे - तीन पग रक्खे भट्टि० ८ २४ 2. छापा मारना, पराजित करना, जीतना 3. फाड़ना, खोलना ( पर०), व्यति-, 1. उल्लंघन करना 2. समय बिताना, व्युद् दे० उत्-, सम्- 1. आना या एकत्र होना 2. पार जाना, पार करना, में से जाना 3. पहुँचना, जाना 4. पार चले जाना, स्थानान्तरित होना 5. दाखिल होना, प्रविष्ट होना कालो ह्ययं संक्रमितुं द्वितीयं सर्वोपकारक्षममाश्रमं ते रघु० ५ १०, समा-, 1. अधिकार करना, कब्जे में लेना, भरता सममेव समाक्रान्तं द्वयं द्विरदगामिना, तेन सिंहासनं पित्र्यमखिलं चारिमंडलम् - रघु० ४।४ 2. छापा मारना, जीतना, दमन करना म: [ क्रम् + घञ्ञ ] 1. कदम, पग - त्रिविक्रमः सागरः - लन्ण क्रमेणैकेन लम्बितः - महा० 2. पैर 3. गति, प्रगमन, मार्ग, क्रमात् क्रमेण दौरान में, क्रमशः, कालक्रमेण उत्तरोत्तर, समय पाकर, भाग्यक्रमः, भाग्य का उलट जाना- रघु० ३।७, ३०, ३२4. प्रदर्शन आरंभ -इत्यमत्र विततक्रमे ऋतौ शि० १४/५३ 5. नियमित मार्ग, क्रम, श्रेणी, उत्तराधिकारिता, निमित्तनमित्तिकयोरयं क्रमः श० ७।३० मनु० ७/२४, २९१८५ २ १७३३।६९ 6. प्रणाली, रीति नेत्रक्रमेणोपरुरोध सूर्यम् - रघु० ७।३९ 7. ग्रसना, पकड़ क्रमगता पशोः कन्यका - मा० ३।१६ 8 ( दूसरे जन्तु पर आक्रमण करने से पूर्व की जानवर की ) स्थिति 9. तैयारी, तत्परता भट्टि० २1१ 10 व्यवसाय, साहसिक कार्य 11. कर्म या कार्य, कार्यविधि-कोऽप्येष कान्तः क्रमः -- अमरु ४३।३३ 12. वेदमंत्रों को सस्वर उच्चारण करने की विशेष रीति - क्रमपाठ 13. शक्ति, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामर्थ्य, मम् गारा । सम० अनुसारः, अन्वयः, नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था, आगत आयात ( वि० ) वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक, ज्या ग्रह की लंबरेखा, क्षय, भंगः अनियमितता । क्रमक ( वि० ) [ क्रम् + वुन् ] क्रमबद्ध, प्रणाली के अनुसार, - कः वह विद्यार्थी जो किसी नियमित पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है । क्रमण: [ क्रम + ल्युट् ] 1. पैर 2. घोड़ा, णम् 1. कदम 2. पग रखना 3. आगे बढ़ना 4. उल्लंघन *मतः ( अन्य ० ) [ ऋम् + तसिल् ] क्रमशः, उत्तरोत्तर | क्रमश: ( अव्य० ) [ क्रम + शस् ] 1. ठीक क्रम में, नियमित रूप से उत्तरोत्तर क्रमानुसार 2. क्रम से, मात्रा के अनुसार रघु० १२।५७, मनु० १/६८, ३।१२ । क्रमिक (वि० ) [ क्रम + ठन् ] 1. उत्तरोत्तर, सिलसिले वार 2. वंशपरंपरागत, पैतृक, आनुवंशिक । क्रमुः, क्रमुकः [ क्रम्+उ, कन् च ] सुपारी का पेड़-आस्वा दितार्द्र क्रमुकः समुद्रात्- शि० ३।८१, विक्रमांक ० १८९८ । *मेल:, क्रमेलकः [ क्रम् + एल् + अच्, कन् च ] ऊँट -निरीक्षते केलिवनं प्रविश्य क्रमेलकः कण्टकजालमेव विक्रमांक ० १४२९, शि० १२ १८, नं० ६।१०४ । *य: [ की + अच् ] खरीदना, मोल लेना । सम० - आरोहः मंडी, मेला, क्रीत ( वि०) मोल लिया हुआ, लेख्यम् - बैनामा, बिक्रयनामा, दानपत्र (गृहं क्षेत्रादिकं क्रीत्वा तुल्य मूल्याक्षरान्वितम्, पत्रं कारयते यत्तु क्रयलेख्यं तदुच्यते बृहस्पति), विक्रयौ ( द्वि० व० ) व्यापार, व्यवसाय, खरीद-फरोख्त मनु० ८1५ ७/१२७, विक्रयिकः व्यापारी सौदागर | ऋणम् [ क्री + ल्युट् ] खरीदना, मोल लेना । क्रयिकः [ क्रय + ठन् ] 1. व्यापारी, सौदागर 2. क्रेता, मोल लेने वाला । ऋव्य (वि० ) [ श्री + यत्, नि० ] मंडी में विक्रय के लिए रक्खी हुई वस्तु, बिकाऊ ( विप० ' क्रय' जिसका अर्थ है ' मोल लिये जाने के उपयुक्त' । ऋव्यम् [ क्लव्+ यत्, रस्य ल: ] कच्चा मांस, मुरदार ( शव या लाश ) स्थपुटगतमपि क्रव्यमव्यग्रमत्ति- मा० ५।१६ । सम० – अद्-अद, भुज् (वि०) कच्चा मांस खाने वाला, मनु० ५।१३१, (पुं० ) 1. शेर, चीता आदि मांसभक्षी जन्तु, उत्तर० 2. राक्षस, पिशाच - रघु० १५।१६ । ऋशिमन् (पुं० ) [ कृश + इमनिच् ] पतलापन, कृशता, दुबलापतलापन । १/४९ काकचिकः [ क्रकच - + ठक् ] आराकश । कान्त ( वि० ) [ क्रम् + क्त ] गया हुआ, आरपार गया हुआ For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (भू० क० कृ०),--त: 1. घोड़ा 2. पैर, पग । सम० विहित समस्त कार्य 2. किसी व्यवसाय के समस्त -----दशिन् (वि०) सर्वज्ञ । विवरण, कारः 1. अभिकर्ता, कार्यकर्ता 2. शिक्षारंभ कान्तिः (स्त्री० [क्रम+क्तिन ] 1. गति, प्रगमन करने वाला, नौसिखिया, नवच्छात्र 3. इकरारनामा, 2. कदम, पग 3. आगे बढ़ने वाला 4. आक्रमण करने प्रतिज्ञापत्र, द्वेषिन (पु०) (पाँच प्रकार के साक्षियों वाला, अभिभूत करने वाला 5. नक्षत्र की कोणीय में से एक) वह साक्षी जिसका साक्ष्य पक्षपातपूर्ण हो, दूरी 6. क्रांतिवलय, सूर्य का भ्रमण मार्ग। सम० -निर्देशः गवाही, साक्ष्य,--पटु (वि०) कार्यदक्ष, -- कक्षः,-मण्डलम्, -- वृत्तम्, सूर्य का भ्रमण मार्ग, —पथः औषधोपचार की रीति,---पदम क्रियावाचक ---पातः वह बिंदु जहाँ क्रांतिवलय विवत् रेखा से शब्द, ...पर (वि०) अपने कर्तव्य-पालन में परिश्रम मिलता है,-वलयः 1. सूर्य का भ्रमण मार्ग 2. उष्ण शील, --- पादः अभियोक्ता या वादी के द्वारा अपने दावे कटिबंधीय क्षेत्र, उष्ण कटिबंध । को पुष्टि में दिए गये प्रमाण, दस्तावेज तथा गवाहियाँ काय (यि) क: [को+ण्वुल – क्रय-+ठक् ] 1. क्रेता, आदि जो कानुनी अभियोग का तीसरा अंग है,-योगः खरीददार 2. व्यापारी, सौदागर । 1. क्रिया के साथ संबंध 2. तरकीब और साधनों का क्रिमिः [ क्रम् + इन्, इत्वम् ] 1. कीड़ा 2. कीट-दे० कृमि । प्रयोग, लोपः आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों का परिसम-जम् अगर को लकड़ी,--शैलः बांबो। त्याग, क्रिपालोपात् वृषलत्वं गता..... मनु० १०१४३, क्रिया [ कृश, रिङ आदेशः, इयङ] 1. करना, कार्या --वशः आवश्यकता, क्रियाओं का अवश्यंभावी प्रभाव, न्विति, कार्य-सम्पादन, निष्पादन करना, उपचार, - वाचक,- बाचिन् (वि.) कर्म को प्रकट करने धर्म-प्रत्यक्तं हि प्रणयिषु सतामोप्सितार्थक्रियेव वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द,-वादिन् (पुं०) -- मेघ० ११४ 2. कर्म, कृत्य, व्यवसाय, जिम्मेदारी वादी, अभियोक्ता,-विधिः कार्य करने का नियम, ---प्रणयिक्रिया-विक्रम०४।१५, मनु० २।४ 3. चेष्टा, किसी धर्म कृत्य को सम्पन्न करने की रीति-मनु० शारीरिक चेष्टा, श्रम 4. अध्यापन, शिक्षण --क्रिया ९।२२०, -- विशेषणम 1. क्रिया की विशेषता प्रकट हि वस्तूपहिता प्रसीदति-रघ० ३।२९ 5. (नृत्य करने वाला शब्द 2. विधेय विशेषण,---संक्रान्ति गायन आदि), किसी कला पर आधिपत्य, ज्ञान (स्त्रो०) दूसरों को ज्ञान देना, अध्यापन-मालवि. -शिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था -- मालवि० १।१६ १११९, ----समभिहारः किसी कार्य की आवृत्ति । 6. आचरण (विप० शास्त्र-सिद्धान्त) 7. साहित्यिक त्रियावत् (वि.) [क्रिया+मतुप् ] कर्म में व्यस्त, किसी रचना-शृणुत मनोभिरवहितः क्रियामिमा कालिदास- कार्य के व्यवहार को जानने वाला—यस्तु क्रियावान् स्य ---विक्रम ११२. कालिदासस्य क्रियायां कथं पुरुषः स विद्वान् --हि० श६७। । परिषदो बहमानः-मालवि० १ 8. शुद्धि-संस्कार, की (क्रया० उभ० ----क्रीणाति, क्रीणीते, कीत) 1. खरीदना धार्मिक संस्कार १. प्रायश्चित्तस्वरूप संस्कार, मोल लेना,- -महता पुण्यपण्येन क्रोतेयं कायनोस्त्वया प्रायश्चित्त 10. (क) श्राद्ध (ख) औद्रदेहिक -शा० ३१, क्रीणीष्व मज्जीवितमेव पण्यमन्यत्र संस्कार 11. पूजन 12. औषधोपचार, चिकित्सा-प्रयोग, चेदस्ति तदस्तु पुचम-नै० ३.८७ ८८, पंच० १११३ इलाज-शीतक्रिया...मालवि० ४, शीतल उपचार मनु० २१७४ 2. विनिमय, अदलाबदलो-कच्चित्सह13. (व्या० में) क्रिया के द्वारा अभिहित कर्म स्रर्खाणामेकं क्रोणासि पण्डितम् . महा०, आ-, 14. चेष्टा या कर्म 15. विशेषतः वैशेषिक दर्शन में खरीदना, निस् .., कुछ देकर पिंड छुड़ाना, दाम देकर प्रतिपादित सात द्रव्यों में से एक-दे० कर्मन् फिर से खरीद लेना, निस्तार करना, परि---, (आ०) 16. (विधि में) साक्ष्यादिक मानवसाधनों से तथा 1. मोल लेना-संभोगाय परिक्रीत: कास्मि तब नाप्रिअन्य परीक्षाओं द्वारा अभियोग की छानबीन करना यम्--भट्रि०८७२ 2. किराये पर लेना, कुछ समय 17. प्रमाण-भार। सम० - अन्वित (वि०) शास्त्रोक्त के लिए मोल लेना (निर्धारित मल्य में करण तथा सन्कमों को करने वाला, - अपवर्गः 1. किसी कार्य की सम्प्र० के साथ)-शतेन शताय वा परिक्रीतः - सिद्धा० संपति या इतिश्री, कार्यसम्पादन--क्रियापवर्गेष्वनुजीवि- 3. वापिस करना, बदला देना, चकाना-कृतेनोपकृतं सात् कृताः- कि०२४४ 2. कर्मकाण्ड से मुक्ति, वायोः परिक्रीणानमत्थितम् ---भट्रि० ८८, वि . , छुटकारा,--अभ्युपगमः विशेष प्रकार का करार या 1. बेचना (इस अर्थ में आ०).....गवां शतसहस्रण प्रतिज्ञा-पत्र, --क्रियाभ्य पगमात्त्वेतत बीजार्थं यत्प्रदीयते विक्रीणीषे सुतं यदि-रामा०, विक्रीणीत तिलान् शुद्धान -- मनु० ९।५३, अवसन्न (वि०) गवाहों के बयान -मनु० १०१९०, ८१९७, २२२, शा० १११२ के कारण मुकदमा हार जाने वाला व्यक्ति,....इन्द्रियम् 2. विनिमय, अदलाबदली-नाकस्माच्छाण्डिलीमाता दे० 'कर्मेन्द्रिय', --कलापः 1. हिन्दु-धर्मशास्त्र द्वारा | विक्रीणाति तिलैस्तिलान्-पंच० २०६५ । For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१२ ) कीड़ (न्या. पर०-क्रीडति, क्रीडित) 1. खेलना, मनो-। आदि शब्दों के भी साथ-ममोपरि स क्रुद्धः, न मां प्रति रंजन करना-वानराः क्रीडितुमारब्धा:---पंच० १, | क्रुद्धो गुरुः, प्रति-- बदल में कुपित होना-क्रुध्यन्तं एष क्रीडति कृपयन्त्रपटिकान्यायप्रसक्तो विधि:-मृच्छ० न प्रतिक्रुध्येत्--मनु० ६।४८, सम्--, कुपित होना १०१५९ 2. जूआ खेलना, पासों से खेलना-बहुविध ___-संक्रुध्यसि मृषा कि त्वं दिदृढं मां मृगेक्षणे-भट्टि यूतं क्रीडत:-मच्छ० २, नाक्षैः क्रीडेत्कदाचिद्धि-मनु० ८७६ । ४१७४, याश० १११३८ 3. हँसी दिल्लगी करना, | क्रुध् (स्त्री०) [क्रुध् +-क्विप्] क्रोध, कोप। मजाक करना, खिल्ली उड़ाना-सद्वत्तस्तनमण्डलस्तव- क्रुश् (भ्वा० पर० ----क्रोशति, क्रुष्ट) 1. चिल्लाना, रोना, कथं प्राणैर्मम क्रीडति-गीत० ३, क्रीडिष्यामि तावदेनया विलाप करना, शोक मनाना-क्रोशन्त्यस्तं कपिस्त्रियः -विक्रम०३, एवमाशाग्रहग्रस्तः क्रीडन्ति घनिनोऽर्थिभिः ----भट्रि० ६।१२४ 2. चीखना, किलकिलाना, कुका --हि० २।२३, पंच० १।१८७, मृच्छ० ३, अनु---- देना, चीत्कार करना, पुकारना-अतीव चुक्रोश जीवनाश (आ.) खेलना, किलोल करना, जी बहलाना ननाश च-भट्टि० १४१३१, अन--, दया करना, -साध्वनुक्रीडमानानि पश्य वृन्दानि पक्षिणाम्-भट्टि. करुणा करना, अभि-, विलाप करना, आ-, ८1१०, आ-, परि -, सम्-, (आ०) खेलना, 1. चिल्लाना, जोर से पुकारना-अये गौरीनाथ त्रिपुरकौतुक करना-संक्रीडन्ते मणिभिर्यत्र कन्या:--मेघ० हर शम्भो बिनयन प्रसोदेत्याक्रोशन-भर्त० ३।१२३ ७०, परन्तु सम् पूर्वक क्रीड (पर०) 'कोलाहल करने' 2. खरीखोटी सुनाना, गालियाँ देना-शतं ब्राह्मणमाके अर्थ को प्रकट करता है-संक्रीडन्ति शकटानि-महा० क्रुश्य क्षत्रियो दण्डमर्हति-मनु० ८।२६७, भट्टि० ५। 'गाड़ियाँ चूं-धूं करती है। ३९, परि-, विलाप करना, प्रत्या-, गाली के उत्तर कीरः [ क्रीड़धन ] 1. किलोल, मनबहलाव, खेल, । में गाली देना, वि , 1. चीखना, चिल्लाना-आक्रोश आमोद 2. हंसी दिल्लगी, मजाक । विक्रोश लपाधिचण्डम् --मृच्छ० ११४१, भट्टि० १४॥ कोरनम् [क्रीड्+ल्युट] 1. खेलना, किलोल करना ४२, १६।३२ 2. उच्चारण करना (कर्म० के साथ) 2. खेलने की चीज, खिलौना।। 3. पुकारना (कर्म के साथ) 4. गूजना, व्या-विलाप कीसनकः, कम, कीडनीयम, यकम [ क्रीडन--कन्, क्रीड करना, शोक मनाना। +अनीयर, क्रीडनीय+कन ] खेलने की चीज, ऋष्ट (वि.) [ऋश्+क्त1. चिल्लाया हुआ 2. पुकारा खिलौना। हुआ,--ष्टम् चिल्लाना, चीखना, रोना । कीडा [क्रीड्+अ+टाप्] 1. किलोल, जी बहलाना, खेलना, | कर (वि.) कृत् + रक धातोः क्रू| 1. निर्दय, निष्ठुर, कठोरआमोद-तोयक्रीडानिरतयुवतिस्तानतिक्तमद्भिः -मेघ० हृदय, निष्करुण-तस्याभिषेकसम्भारं कल्पितं क्रनिश्चया ३३।६१ 2. हंसी, दिल्लगी। सम० --गहम आमोद — रघु० १२४, मेघ० १०५, मनु० १०.९ 2. कठोर, भवन, शैल: आमोद-निवास का काम देने वाला कड़ा 3. दारुण, भयंकर, भीषण 4. नाशकारी, अनिष्टएक बनावटी पहाड़, आमोदगिरि,-क्रीडाशैलः कनकक कर 5. घायल, चोट लगा हआ 6. खूनी 7. कच्चा दलीवेष्टनप्रक्षगीयः-मेघ० ७७, -नारी वेश्या,-कोपः 8. मजवत १. गरम, तेज, अरुचिकर-मनु० २।३३,-र: झूठमूठ का क्रोध-अमरु १२,मयूरः मनोरंजन के बाज, बगला, -रम् 1. घाव 2. हत्या, क्रूरता 3. भीषण लिए पाला गया मोर--रघु० १६।१४, -रत्नम् कृत्य । सम०-आकृति (वि.) डरावनी सूरत वाला कामकेलि, मथुन । (तिः) रावण का विशेषण,--आचार (वि०)शूर और श्रीत (वि.) [क्री+क्त ] मोल लिया हुआ...-दे० क्री०, बर्बर आचरण करने वाला, --आशय (वि.) 1. भया तः हिन्दुधर्मशास्त्र में प्रतिपादित १२ प्रकार के नक जीवजन्तुओं से भरा हुआ (जैसे कि कोई नदी) पुत्रों में से एक, अपने नैसर्गिक माता पिता से मोल 2. क्रूर स्त्रभाष का, --- कर्मन (नपं.) 1. रक्तरंजित लिया हुआ पुत्र-क्रीतश्च ताभ्यां विक्रीतः ----याज्ञ० करतूत 2. कठोर श्रम,-कृत् (वि.) भीषण, क्रूर, निर्मम, २।१३१, मनु० १७४। सम..-अनुशयः किसी ----कोष्ठ (वि०) कड़े कोठे वाला जिस पर मदु विरेवस्तु को मोल लेकर पछताना, किये का निराकरण चन का असर न हो,---गन्धः गन्धक,... दृश् (वि०) करना, खरीदी हुई वस्तु को वापिस करना (कुछ 1. बरी दृष्टि वाला, कुदृष्टि डालने वाला 2. खल, बातों में धर्मशास्त्रों से अनुमोदित)। दुष्ट, --राविन् (पुं०) पहाड़ी कौवा,-लोचनः शनिग्रह म् (पुं०) कुञ्यः [कुञ्च+क्विन् अच् वा] जलकुक्कुटी, | का विशेषण। बगला। केत ()[की+तच] क्रेता, खरीददार, -- याज्ञ० २।१६८ । (दिवा० पर० --क्रुध्यति, क्रुद्ध) गुस्से होना (क्रोध के क्रोञ्चः [ कुञ्च् +अच, बा० गुणः ] एक पहाड़ का नाम, पात्र में सम्प्र०) हरये क्रुध्यति, कभी कभी 'उपरि' 'प्रति' | दे० 'क्रौञ्च'। For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोड: [ऋड+घञ्] 1. सूअर 2. वृक्ष की खोडर, गढ़ा। ---वारणः,-सूदन: 1. कार्तिकेय और 2. परशुराम के -हा हा हन्त तथापि जन्मविटपिकोडे मनो धावति-उद्धट विशेषण। 3. सीना, वक्षः स्थल, छाती, कोडोक छाती से लगाना | क्रौर्यम् [क्रूर+व्या क्रूरता, कठोरहृदयता। -भर्त० २।३५ 4. किसी वस्तु का मध्यभाग--विक्र- | क्लन्द (भ्वा० पर०-क्लन्दति, क्लन्दित) 1. पुकारना, मांक. ११७५-दे० 'क्रोड' (नपुं०) 5. शनिग्रह का चिल्लाना 2. रोना, विलाप करना, (भ्वा० आ० विशेषण,-डम्डा 1. छाती, सीना, कन्धों के बीच —क्लन्दते या क्लदते) घबड़ा जाना। का भाग 2. किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, क्लम् (म्वा०-दिवा०, पर०-क्लामति, क्लाम्यति, क्लान्त) कोटर। सम०-अक:-अघ्रिः , पावः कछुवा,-पत्रम् थक जाना, थक कर चूर होना, अवसन्न होना-न 1. प्रान्तवर्ती लेख 2. पत्र का पश्चलेख 3. सम्पूरक चक्लाम न विव्यथे-भट्टि० ५।१०२, १४११०१, वि-, 4. वसीयतनामे का परवर्ती उत्तराधिकार-पत्र । थक जाना। कोडीकरणम् [क्रोड्+च्चि++ ल्युट्] आलिंगन करना, | क्लमः, क्लमयः [क्लम्+घञ, अथच् वा थकावट, क्लान्ति छाती से लगाना। अवसाद-विनोदितदिनक्लमाः कृतरुचश्च जाम्बूनदैः क्रोडीमुखः [क्रोडयाः मुखमिव मुखमस्या:-ब० स०] गेंडा। --शि० ४।६६, मनु० ७.१५१, श० ३।२१ । कोषः [क्रुध+घञ] 1. कोप, गुस्सा-कामाक्रोधोऽभिजा- क्लान्त (वि.) [क्लम्+क्त] 1. थका हुआ, थक कर चूर यते-भग० २।६२, इसी प्रकार क्रोधान्धः, क्रोधानल: हुआ,--तमातपक्लान्तम्-रघु० २।१३, मेघ०१८,३६, 2. (सा० शा० में) क्रोध एक प्रकार की भावना है विक्रम० २।२२ 2. मुाया हुआ, म्लान--क्लान्तो जिससे रौद्ररस का उदय होता है। सम-उजित मन्मथलेख एष नलिनीपत्रे नखरर्पितः-श० ३१३६, (वि०) क्रोध से मुक्त, शान्त, स्वस्थ,--मूछित (वि.) रघु०१०।४८ 3. दुबला-पतला। क्रोध से अभिभूत या क्रोधोन्मत्त । क्लान्ति (स्त्री०) क्लम्+क्तिन] थकावट । सम-छिद क्रोधन (वि०) [क्रुध् + ल्युट्गुस्से से भरा हुआ, क्रोधा- (वि.) थकावट दूर करने वाला, बलदायक । विष्ट, क्रुद्ध, चिड़चिड़ा-यद्रामेण कृतं तदेव कुरुते | क्लिद् (दिवा० पर०—क्लिद्यति, क्लिन्न) गीला होना, द्रौणायनिः क्रोधनः-वेणी० ३।३१,--नम् क्रुद्ध होना, आर्द्र होना, तर होना-प्रेर० तर करना, गीला करना कोप। ---न चैन क्लेदयन्त्यापः-भग० २।२३, भट्टि. १८॥ क्रोधालु (वि०) [ऋ---आलची क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा, ११। गुस्सैल। क्लिन (वि०) [क्लिद्+क्त] गीला, तर। सम०- अक्षा कोशः [श+घञ्] 1. चिल्लाना, चीख, चीत्कार, कूका (वि.) चौंधियाई आँखों वाला। देना, कोलाहल 2. चौथाई योजन, एक कोस-क्रोशाध क्लिश i (दिवा० आ०--(कुछ के मत में) पर०, क्लिश्यते प्रकृतिपुरःसरेण गत्वा-रघु० १३१७९, समुद्रात्पुरी क्लिष्ट, क्लिशित) 1. दुःखी होना, पीड़ित होना, कष्ट क्रोशो-या-क्रोशयोः । सम०-तालः,-ध्वनिः एक उठाना-अप्युपदेशग्रहणे नातिक्लिशते वः शिष्याः बड़ा ढोल। ---मालवि० १, त्रयः परार्थे क्लिश्यन्ति साक्षिणः कोशन (वि.) [क्रुश्+ल्युट्] चिल्लाने वाला,-नम् चीख प्रतिभूः कुलम् ---मनु० ८।१६९ 2. दुःख देना, सताना, चिल्लाहट । ii (ऋया. पर०-क्लिश्नाति, क्लिष्ट, क्लिशित) कोष्टु (पुं०) (स्त्री०---ष्ट्री) [क्रुश्+तुन] गीदड़ (इस दुःख देना, पीड़ित करना, सताना, कष्ट देना,-- शब्द की रूप रचना में यह शब्द सर्वनाम स्थान में क्लिश्नाति लब्धपरिपालनवृत्तिरेव-...श० ५।६, एवअनिवार्यतः क्रोष्ट्र बन जाता है, तथा अन्यत्र कोष्ट, एवं माराध्यमानोऽपि क्लिश्नाति भुवनत्रयम्-कु० २१४०, खरादि' में द्वि० तथा पष्ठो व०व० को छोड़कर सर्वत्र रघु० १११५८। विकल्प से)। क्लिशित,क्लिष्ट (वि०) [क्लिश्+क्त] 1. दुःखी, पीडित, कौञ्चः [क्रुञ्च+अण्] जलकुक्कुटी, कुररी, बगला-मनोहर- संकट ग्रस्त 2. कष्टग्रस्त, सताया हुआ 3. मुझया क्रौंचनिनादितानि सीमान्तराण्यत्सुकयन्ति चेत:----ऋतु० हुआ 4. असंगत, विरोधी-उदा. माता मे बन्ध्या ४१८, मनु०१२१६४ 2. एक पर्वत का नाम (कहते 5. परिष्कृत, कृत्रिम (रचना आदि) 6. लज्जित । है कि यह पहाड़ हिमालय का पोता है, तथा कार्तिकेय | क्लिष्टिः (स्त्री०) [क्लि+क्तिन् ] 1. कष्ट वेदना, दुःख, एवं परशुराम ने इसे बींध दिया है) हंसद्वार भग- | पोडा 2. सेवा। पतियशोवर्म यत्क्रौंचरन्ध्रम् -- मेघ० ५७ । सम० क्लीब (ब) (वि०) [क्लीब् (व)+क] 1. हिजड़ा नपुं--अदनम् कमलडंडो के रेशे, अरातिः,-अरिः,-रिपुः सक, बधिया किया हुआ—मनु० ३।१५०, ४।२०५, 1. कार्तिकेय का विशेषण 2. परशुराम का विशेषण । याज्ञ. ११२२३ 2. पुरुषार्थहीन, भीरु, दुर्बल, दुर्बलमना For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३१४ - रघु० ८८४, क्लीबान् पालयिता - मृच्छ० ९।५ । क्वणः, क्वणनम्, क्वणितं, क्वाण: [ क्वणु -+- अप्, ल्युट् क्तं, 3. कायर 4. नीच अधम 5. सुस्त 6. नपुंसक लिंग का, बः, बम् (वः, – बम् ) 1. नामर्द, हिजड़ा, घञ्न् वा ] 1. सामान्य शब्द 2. किसी भी वाद्ययंत्र की ध्वनि । War मूत्र फेनिलं यस्य विष्ठा चाप्सु निमज्जति मेढ चोन्मादशुक्राभ्यां हीनं क्लीः स उच्यते - दायभाग में उद्धृत कात्यायन 2. नपुंसक लिंग । क्लेदः [ क्लिद् + घञ्ञ, ] गीलापन, आर्द्रता, तरी, नमी - शा० १।२९, रघु० ७।२१ 2. बहने वाला, घाव से निकलने वाला मवाद 3. दुःख, कष्ट रघु० १५/३२, ( = उपद्रव, मल्लि०) 1 क्लेशः [ क्लिश् + ञ्ञ ] पीड़ा, वेदना, कष्ट, दुःख, तकलीफ -- किमात्मा क्लेशस्य पदमुपनीतः श० १, क्लेशः फलेन हि पुनर्नवतां विधत्ते - कु० ५।८६, भग० १२/५ 2. गुस्सा, क्रोध 3. सांसारिक कामकाज । सम० -क्षम ( वि० ) कष्ट सहने में समर्थ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (व्यम्) [ क्लीब (व) + ष्यञ ] 1. नामर्दी ( शा० ) - वरं क्लैब्यं पुंसां न च परकलत्राभिगमनम् - पंच० १ 2. पुरुषार्थहीनता, भीरुता, कायरता - क्लैब्यं मास्म गमः पार्थ - भग० २।३ 3. अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्ति - हीनता -- रघु० १२।८६ । क्लोमम् [ क्लु + मनिन् ] फेफड़े । aa (अव्य० ) [ किम् + अत्, कु आदेश: ] 1. किघर, कहाँ -क्व तेऽन्योन्यं यत्नाः क्व च नु गहनाः कौतुकरसाः -- उत्तर० ६ ३३, क्व क्व ( जब किसी समान वाक्य खंड में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ है-'भारी अंतर' 'असंगति' - क्व रुजा हृदयप्रमाथिनी क्व च ते विश्वसनीयमायुधम् - मालवि० ३१२, क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व चाल्पविषया मतिः- रघु० ११२, कि० १०६, २० २०१८ 2. कभी कभी 'क्व' का प्रयोग 'किम्' शब्द के अधि० का होता है--क्व प्रदेशे - अर्थात् कस्मिन् प्रदेशे (क) - अपि 1. कहीं, किसी जगह 2. कभी कभी (ख), - चित् 1. कुछ स्थानों पर प्रस्निग्धाः क्वचिदिङगुदीफलभिदः सूच्यन्त एवोपलाः श० ११४, ऋतु० ११२, रघु० १४१ 2. कुछ बातों में - क्वचिद् गोचरः क्वचिन्न गोचरोऽर्थः क्वचित् क्वचित् (क) एक जगह--दूसरी जगह, यहाँ-वहाँ क्वचिद्वीणावाद्यं क्वचिदपि च हा हेति रुदितम् - भर्तृ० ३११२५ १।४ ( ख ) कभी-कभी ( समय सूचक) क्वचित्पथा संचरते सुराणाम्, क्वचित् घनानां पततां क्वचिच्च - रघु० १३।१९ । कवण ( स्वा० पर० - क्वणति, क्वणित ) 1. अस्पष्ट शब्द करना, झनझन शब्द, टनटन शब्द- इति घोषयतीव डिण्डिमः करिणो हस्तिपकाहतः क्वणन् हि० २।८६, क्वणन्मणिनुपूरौ - अमरु २८, ऋतु० ३।३६, मेघ० ३६ 2. भिनभिनाना, (भौरों का ) गुंजन, अस्पष्ट गायन --कु० १०५४, उत्तर० ३।२४, भट्टि० ६८४ । (वि० ) [ क्व + त्यप्] किस स्थान से संबंध रखने वाला, कहाँ पर होने वाला । क्वय् ( Faro पर० क्वथति, क्वथित) 1. उबालना काढ़ा बनाना 2. पचाना । क्वयः [ स्वाथ् + अच्, घञ्ञ वा] काढ़ा, लगातार मंदी आँच में तैयार किया गया घोल । क्वचित्क ( वि० ) [स्त्री० की ] अकस्मात् घटित, विरल, असाधारण, – इति क्वाचित्कः पाठः । क्ष [ क्षि+ड ] 1. नाश 2. अन्तर्धान, हानि 3. बिजली 4. खेत 5. किसान 6. विष्णु का नरसिंहावतार 7. राक्षस । क्षण (न्) (तना० उभ० - क्षणोति, क्षणुते, क्षुत्त) 1. चोट पहुंचाना, क्षति पहुँचाना-इमां हृदि व्यायतपातमक्षणोत् कु० ५1५४ 2 तोड़ना, टुकड़े २ करना - (धनुः ) त्वं किलानमित पूर्व मक्षणोः - रघु० ११।७२, उप-, परिवि - उसी अर्थ में प्रयोग जो 'क्षण' का मूल अर्थ है । क्षण:, - णम् [ क्षण + अच् ] 1. लम्हा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप, क्षणमात्रषिस्तस्थौ सुप्तमीन इव हृदः - रघु० १०७३, २६०, मेघ० २६, -- क्षणमवतिष्ठस्व-कुछ देर ठहरो 2. अवकाश -- अहमपि लब्धक्षणः स्वगेहं गच्छामि - मालवि० १, गृहीतः क्षण:- ०२, मेरा अवकाश आपके सुपुर्द है अर्थात् आपका कार्य कर देने का मैं आपको वचन देता हूं 3. उपयुक्त क्षण या अवसर - रहो नास्ति क्षणो नास्ति नास्ति प्रार्थयिता नरः पंच० १।१३८ मेघ० ६२, अधिगतक्षणः – दश० १४७ 4. उत्सव, हर्ष, खुशी 5. आश्रय, दासता 6. केन्द्र, मध्यभाग । सम० --अन्तरे ( अव्य० ) दूसरे क्षण, कुछ देर के पश्चात्, क्षेपः क्षणिक विलंब, दः ज्योतिषी ( -- दम् ) पानी (वा) 1. रात - क्षणादथैष क्षणदापतिप्रभः नं० १२६७, रघु० ८०७४, १६ ४५, शि० ३।५३ 2. हल्दी करः पतिः चाँद, शि० ९।७०, चरः रात में घूमने वाला, राक्षस, ---सानुप्लवः प्रभुरपि क्षणदाचराणाम् - रघु० १३ ७५, ● आध्य रात्रि में अन्धापन, रतौंधी, धृतिः (स्त्री० ) - प्रकाशा, - प्रभा बिजली, - निश्वासः शिशुक, भङ्गुर ( वि०) क्षणस्थायी, चंचल, नश्वर - हि० ४११३० -मात्रम् ( अव्य० ) क्षणभर के लिए, रामिन् (पुं० ) कबूतर - विध्वंसिन ( वि०) क्षणभर में नष्ट होने वाला (पुं०) नास्तिक दार्शनिकों का सम्प्रदाय जो यह मानता है कि प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होकर नया बनता रहता है । क्षण: [ क्षण् + अतु ] घाव, फोड़ा। For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१५ ) क्षणनम् ] क्षण + ल्युट ] क्षति पहुँचाना, मार डालना, । क्षत्रियः [क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा घः तारा०] घायल करना। दूसरे वर्ण या सैनिक जाति का पुरुष-ब्राह्मणः क्षत्रियो क्षणिक (वि.) [क्षण+ठन ] क्षणस्थायी, अचिरस्थायी वैश्यस्त्रयो वर्णाः द्विजातयः-मनु०१०।४। सम० -स्वप्नेषु क्षणिकसमागमोत्सवैश्च--रघु०८/९२, एक- -हणः परशुराम का विशेषण । स्य क्षणिका प्रीतिः-हि० १।६६,का बिजली। क्षत्रियका, क्षत्रिया, क्षत्रियिका [क्षत्रिया+कन +टाप, क्षणिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ क्षण+इनि ] 1. अवकाश ह्रस्व:-क्षत्रिय-+-टाप्-क्षत्रिया+कन्+टाप् इत्वम् रखने वाला 2. क्षणस्थायी,-नी बिजली। वा ] क्षत्रिय जाति की स्त्री। क्षत (वि.) [क्षण+क्त घायल, चोट लगा हुआ, क्षति- | क्षत्रियाणी [क्षत्रिय+डीए, आनुक ] 1. क्षत्रिय जाति की ग्रस्त, काटा हुआ, फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तोड़ा हुआ, स्त्री 2. क्षत्रिय की पत्नी। -.-दे०क्षण-रक्तप्रसाधितभुवः क्षतविग्रहाश्च-वेणी. क्षत्रियी [ क्षत्रिय+ङीष् ] क्षत्रिय की पत्नी। १७, रघु० १।२८, २।५६, ३५३, तम् 1. खरोच | संत (वि०) (स्त्री०-त्री) [क्षम् +तृच् ] प्रशान्त, 2. घाव, चोट, क्षति-क्षते क्षारमिवासह्यं जातं तस्यैव । सहिष्णु, विनम्र। दर्शनम् --उत्तर. ४१७, क्षारं क्षते प्रक्षिपन्-मृच्छ० क्षप् (भ्वा०---क्षपति-ते, क्षपित) उपवास करना, संयमी ५।१८ 3. भय, विनाश, खतरा-क्षतात् किल वायत होना--मनु० ५।६९, (प्रेर० या चुरा० उभ०-क्षपइत्युदन:--रघु० २१५३। सम-अरि (वि०) यति-ते, क्षपित) 1. फेंकना, भेजना, डालना विजयी, उदरम् पेचिश, कासः आघात से उत्पन्न | 2. चूक जाना। खांसी,---जम् 1. रुधिर-स छिन्नमूल: क्षतजेन रेणुः । क्षपणः [क्षप्+ल्युट] बौद्धभिक्षु,-णम् 1. अपवित्रता, अशौच -~-रघु० ७१४३, वेणी० २।२७ 2. पीप, मवाद,-योनिः । 2. नाश करना, दबाना, निकाल देना। (स्त्री०) भ्रष्ट स्त्री, वह स्त्री जिसका कौमार्य भंग क्षपणकः [क्षपण+कन् ] बौद्ध या जैनसाधु-ननक्षपणके हो चुका हो,--विक्षत (वि०) विक्षतांग, जिसका देशे रजकः किं करिष्यति-चाण. ११०, कथं प्रथमशरीर बहुत जगह से कट गया हो, तथा घावों से मेव क्षपणक:-.-मुद्रा०४। भरा हो,---वृत्तिः (स्त्री०) दरिद्रता, जीविका के | क्षपणी [क्षप्+ल्युट+डीप् ] 1. चप्पू 2. जाल । साधनों से वंचित,---व्रतः वह विद्यार्थी जिसने अपनी क्षपण्युः [क्षप्-अन्यु, णत्वम् ] अपराध। धार्मिक प्रतिज्ञा या व्रत भंग कर दिया हो। क्षपा [क्षप्-+-अच+टाप् ] 1. रात-विगमयत्यु निद्र एव क्षतिः (स्त्री०) [क्षण-क्तिन् ] 1. चोट, घाव 2. नाश, क्षपाः-श० ६४, रघु० २।२०, मेघ० ११० काट, फाड़-विस्रब्धं क्रियतां वराहततिभि: मुस्ताक्षतिः 2. हल्दी। सम-अटः 1. रात में घूमने वाला 2. राक्षस, पल्वले-श० २६ 3. (आलं.) बर्बादी, हानि, पिशाच-ततः क्षपाटः पृथुपिंगलाक्षः--भट्टि० २।३०, नुकसान-सुखं संजायते तेभ्यः सर्वेभ्योऽपीति का -करः,-नाथः 1. चन्द्रमा 2. कपूर-घनः काला क्षति: सा.द०१७ 4. ह्रास, क्षय, न्यूनता-प्रताप- बादल,—चरः राक्षस, पिशाच । क्षतिशीतला:-कु० २।२४, हि० १२११४। क्षम् (भ्वा०, आ०-क्षमते, क्षाम्यति, क्षान्त या क्षमित) क्षत (पु०)[क्षद् +तुच्] 1. जो काटने और रूपरेखा खोदने 1. अनुमति देना, इजाजत देना, चलने देना-अतो का काम करता है-(मतिकार या संगतराश) 2. परि- नपाश्चक्षमिरे समेताः स्त्रीरत्नलाभं न तदात्मजस्य चारक, द्वारपाल 3. कोचवान, सारथि 4. शूद्रपिता -रघु० ७।३४, १२।४६ 2. क्षमा करना, माफ कर तथा क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान-तु० मनु० १०९ देना (अपराध आदि)-क्षान्तं न क्षमया भर्तृ० ३।१३, 5. दासी का पुत्र (उदा० विदुर) 6. ब्रह्मा, 7. मछली। क्षमस्व परमेश्वर, निघ्नस्य मे भर्तनिदेशरीक्ष्यं देवि क्षत्रः, त्रम् [क्षण+क्विप्=क्षत्, ततः त्रायते-+क] क्षमस्वेति बभूव नम्रः-रघु० १४१५८ 3. धैर्यवान् 1. अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य 2. क्षत्रिय जाति होना, चुप होना, प्रतीक्षा करना--रघु० १५।४५ का पुरुष ----क्षतात्किल बायत इत्युदनः क्षत्रस्य शब्दो 4. सहन करना, गम खा जाना, भुगतना-अपि भुवनेषु रूढ़:--रघु० २।५३, ११।६९, ७१-असंशयं क्षमन्तेऽस्मदुपजापं प्रकृतयः-मुद्रा० २, नाज्ञाभङ्गकरान क्षत्रपरिग्रहक्षमा-श० ११२१, मनु० ९।३२२ । सम० राजा क्षमेत स्वसुतानपि-हि० २११०७ 5. विरोध -अन्तकः परशुराम का विशेषण, धर्मः 1. बहादुरी, करना, रोकना 6. सक्षम या योग्य होना---ऋते रवे: सैनिक शरवीरता 2. क्षत्रिय के कर्तव्य,-पः राज्यपाल, क्षालयितुं क्षमेत कः क्षपातमस्काण्डमलीमस नभ:-शि० उपशासक,-बन्धुः 1. क्षत्रिय जाति का पुरुष-मनु० ११३८, ९।६५। क्षम (वि.) [ क्षम् +अच् ] 1. धैर्यवान् 2. सहनशील, क्षत्रिय, तु. ब्रह्मबंधु। विनम्र 3. पर्याप्त सक्षम, योग्य (समास में या संबं०, For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधि० अथवा तुमुनंत के साथ)-मलिनो हि यथादों । क्षर् (म्वा० पर०-क्षरति, क्षरित) (इसका प्रयोग अकर्मक रूपालोकस्य न क्षमः-याज्ञ० ३४१, सा हि रक्षण- तथा सकर्मक दोनों प्रकार से होता है) 1. बहना, विधी तयोः क्षमा-रघु० ११५, हृदयं न त्ववलंबितुं सरकना 2. भेज देना, नदी की भांति बहना, उडेलना, क्षमा:-रघु० ८।५९-गमनक्षम, निर्मूलनक्षम आदि निकालना-रघु० १३।७४, भट्टि० ९८ 3. बूंद-बूंद 4. समुपयुक्त, योग्य, उचित, उपयुक्त तन्नो यदुक्त- करके गिरना, टपकना, रिसना 4. नष्ट होना, घटना, मशिवं न हि तत्क्षमते-उत्तर० १११४, आत्मकर्म मिटना 5. व्यर्थ होना, प्रभाव न होना- यशोऽनृतेन क्षम देहं क्षात्रो धर्म इवाश्रित:---रघु०१।१३, श० क्षरति तपः क्षरति विस्मयात्-मनु० ४।२३७ ५।२६ 5. योग्य, समर्थ, अनुरूप-उपभोगक्षमे देशे 6. खिसकना, वञ्चित होना (अपा० के साथ) (प्रेर० —विक्रम० २, तपः क्षमं साधयितुं य इच्छति-श० -क्षारयति) आरोप लगाना, बदनाम करना (प्रायः १।१८ 6. सहन योग्य, सह 7. अनुकूल, मित्रवत् । 'आ' उपसर्ग के साथ), वि---, पिघलना, घुल जाना। क्षमा [क्षम् +अ+टाप् ] 1. धैर्य, सहिष्णुता, माफी क्षर (वि.) [क्षर+अच ] 1. पिघलने वाला 2. जंगम -क्षमा शत्रौ च मित्रे च यतीनामेव भूषणम्-हि. 3. नश्वर-क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते २, रघु० १२२, १८।९, तेजः क्षमा वा नैकान्तं -भग० १५।१६,-रः बादल,--रन् 1. पानी कालजस्य महीपते:-शि० २६८३ 2. पृथ्वी 3. दुर्गा का 2. शरीर। विशेषण । सम-जः मंगलग्रह,-भुज-भुजः राजा। क्षरणम् [क्षर+ल्युट् ] 1. बहने, टपकने, बूंद-बूंद गिरने क्षमित (वि.) (स्त्री०–त्री), क्षमिन् (वि०) (स्त्री० और रिसने की क्रिया 2. पसीना आ जाना—अङगु -नी) [क्षम् +तच, क्षम्+घिनण, स्त्रियाँ डीप लिक्षरणसन्नवर्तिक:---रघु० १९।१८ । च, ] धैर्यवान्, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव | क्षरिन् (पुं०) [क्षर+इनि ] बरसात का मौसम । वाला-कामं क्षाम्यतु यः क्षमी-शि० २।४३, याज्ञ. | क्षल (चुरा० उभ०--क्षालयति-ते, क्षालित) 1. धोना, २।२००, १११३३ । घो देना, पवित्र करना, साफ करना-ऋते रवेः क्षयः [क्षि+अच् ] 1. घर, निवास, आवास–यातनाश्च क्षालयितुं क्षमेत कः क्षपातमस्काण्डमलीमसं नभः यमक्षये-मनु० ६।६१, निर्जगाम पुनस्तस्मात्क्षयाना- -शि०११३८, हि०४।६० 2. मिटा देना-(अयशः) रायणस्य ह-महा०, 2. हानि, ह्रास, छीजन, घटाव, तेषामनुग्रहेणाद्य राजन् प्रक्षालयात्मन:-महा०, वि-, पतन, न्यूनता-आयुःक्षय:--रघु० ३।६९, धनक्षये वर्धति धोकर साफ करना-रघु०-५।४४। जाठराग्निः -पंच. २११७८ इसी प्रकार चन्द्रक्षय, क्षवः क्षवयुः [क्षु+अप, अथुच वा] 1. छींक 2. खांसी । क्षयपक्ष आदि 3. विनाश, अंत, समाप्ति-निशाक्षये क्षात्र (वि.) (स्त्री०-त्री) [क्षत्र+अण ] सैनिक याति ह्रियेव पाण्डुताम्-ऋतु. ११९, अमरु ६० जाति से संबंध रखने वाला क्षात्री धर्मः श्रित इव 4 आर्थिक क्षति--मनु० ८।४०१ 5. (मूल्य आदि तनुं ब्रह्मघोषस्य गुप्त्यै–उत्तर० ६१९, रघु० १११३, का) गिरना 6. हटाना 7. प्रलय 8. तपेदिक 9. रोग —त्रम् 1. क्षत्रिय जाति 2. क्षत्रिय के गुण -गीता 10. निर्गुणता, (बीजगणित में) ऋण । सम-कर इस प्रकार बतलाती है 'शौर्य तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे (क्षयंकर भी) (वि०) नाश या तबाही करने वाला, चाप्यपलायनम्, दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावबर्बादी करने वाला, कालः 1. प्रलयकाल 2. अवनति जम् --भग० १८१४३ । का समय,कालः तपेदिक की खांसी,-पक्षः कृष्णपक्ष, ! क्षान्त (भ० क००) [क्षम् +क्त ] 1. धैर्यवान्, सहनअँधेरापक्ष,-यक्तिः (स्त्री०),- योगः नाश करने का। शील, सहिष्ण 2. क्षमा किया गया,-ता पथ्वी। अवसर,-रोगः तपेदिक, राजयक्ष्मा,-वायुः प्रलयकाल शान्तिः (स्त्री०) क्षम---क्तिन् ] 1. धैर्य, सहनशीलता, की हवा,-संपद् (स्त्री०) सर्वनाश, ब दी। । क्षमा--क्षांतिश्चेद्वचनेन किम् --भर्तृ० २।२१, भग० क्षयय [क्षि -अथ ] तपेदिक के रोगी को खांसी, १८०४२ । तपेदिक। क्षान्तु (वि०) [क्षम्+तुन्, वृद्धि ] धैर्यवान्, सहनशील, क्षयिन (वि०) (स्त्री०–णी) [क्षय+इनि ] 1. ह्रास- -तुः पिता। मान, मुझने वाला-आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण क्षाम (वि०) [१+क्त ] 1. दग्ध, झुलसा हुआ 2. क्षीण, -भर्तृ० २१६०, ह्रासोन्मुख, क्षीयमाण-न चाभूत्ताविव पतला, परिक्षीण, कृश, दुवला-पतला क्षामक्षाम क्षयी-रघु० १७१७१, मनु० ९।३१४ 2. क्षयरोगग्रस्त कपोलमाननम्-श० ३।१०, मध्ये क्षामा-मेघ०८२, 3. नश्वर, भंगुर-(पुं०) चन्द्रमा । क्षामच्छायं भवनमधुना मद्वियोगेन नूनम् -८०, ८९ क्षयिष्णु (वि०) [क्षि+इष्णुच ] 1. बरबाद करने वाला, 3. क्षुद्र, तुच्छ, अल्प 4. दुर्बल, निःशक्त । नाश कारी 2. नश्वर, भंगुर । | क्षार (वि.) [क्षर्+ण बा०] संक्षरणशील, क्षारक या For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१७ ) दाहक, तिक्त, चरपरा, कटु, खारी,-र: 1. रस, अर्क | 2. समय बिताना, अप-, घटना, क्षीण होना, न्यून 2. शीरा, राब 3. कोई क्षारीय या खट्टा पदार्थ-क्षते । होना, परि-, प्र.---, सम्-, 1. कम होना, क्षीण क्षारमिवासां जातं तस्यैव दर्शनम् -उत्तर. ४१७, होना 2. कृश होना, दुबला-पतला होना। क्षारं क्षते प्रक्षिपन्-मच्छ० ५।१८, (क्षारं आते क्षिप् | क्षितिः (स्त्री० [क्षि+क्तिन ] 1. पथ्वी 2. निवास, --एक लोकोक्ति बन गया है- इसका अर्थ है 'पीडा आवास, घर 3. हानि, विनाश 4. प्रलय । सम०--ईशः, को जो पहले से ही असह्य है और बढ़ा देना' 'बुरे -ईश्वरः राजा--- रघ० ११५, ३॥३, ११११,-कणः को और अधिक बुरा कर देना' 'जले पर नमक धूल,—कम्पः भूचाल,-क्षित् (पुं०) राजा, राजकुमार, छिड़कना' 4. शीशा 5. बदमाश, ठग,-- रम् 1. काला -ज: 1. वृक्ष 2. गंडोआ, केचुआ 3. मंगल ग्रह नमक 2. पानी। सम० -अच्छम् समुद्री नमक, 4. विष्णु के द्वारा मारा गया नरक नाम का राक्षस --अजनम् सज्जी का लेप,---अम्बु खारी रस या (-जम्) जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए प्रतीत खारा पानी,--उदः,-- उदकः,- उदधिः,- समुद्रः खारा होते है, (--जा) सीता का विशेषण,--तलम् पृथ्वी समुद्र,... अयं, त्रितयम, सज्जी, शोरा, सुहागा, नदी की सतह, - देवः ब्राह्मण,--धरः पहाड़ कु० ७५९४ नरक में खारे पानी की नदी, भूमिः (स्त्री०), -नाथः,--पः,-पतिः,-पाल:,-भुज् (पुं०) ... मत्तिका रिहाली भूमि-किमाश्चर्य क्षारभूमौ प्राणदा —रक्षिन् (पुं०) राजा, प्रभु-रघु० २०५१, ५/७६, यमदूतिका. -उद्भट,-मेलकः खारा पदार्थ,—रसः | ६१८६, ७३, ९।७५,-पुत्रः मंगल ग्रह,-प्रतिष्ठ (वि०) खारा रस। पृथ्वी पर रहने वाला, -- भूत (पुं०) 1. पहाड़-सर्वक्षारकः [ क्षार+कन्] 1. खार, रेह 2. रस, अर्क क्षितिभृतां नाथ-विक्रम० ४।२७ (यहाँ इस शब्द 3. पिजरा, पक्षियों के रहने की टोकरी या जाल का अर्थ 'राजा' भी है) कि० ५।२०, ऋतु०६।२६ 4. धोबी 5. मंजरी, कलिका । 2. राजा,--मण्डलम् भूमंडल,-रन्ध्रम् खाई, खोडर, भारणम,-णा [क्षर+णिच् + ल्युट, युच् वा ] दोषारोपण, रह, (पु.) वृक्ष,-वर्धनः (पुं०) शव०, मुर्दा शरीर, विशेषकर व्यभिचार का। -वृत्तिः (स्त्री०) पृथ्वी को गति, धैर्ययुक्तव्यवहार, भारिका [क्षर-+-वुल+टाप, इत्वम् ] भूख ।। व्युवासः गुफा, बिल। क्षारित (वि०) 1. खारे पानी में से टपकाया हुआ क्षितः [क्षिद् + रक् ] 1. रोग 2. सूर्य 3. सींग । 2. जिस पर (व्यभिचार) का मिथ्या अपवाद लगाया ! लिप (तुदा० उभ०-- अभि, प्रति या अति पूर्व होने पर गया हो। पर०-, दिवा० पर० क्षिपति-ते, क्षिप्यति, क्षिप्त) क्षालनम् [क्षल+णिच्-+ल्यट] 1. घोना, (पानी से | 1. फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, घोकेर) साफ करना 2. छिड़कना । जाने देना (अधि० या कभी कभी संप्र० के साथ) क्षालित (वि.) [क्षल-णिच् + क्त] 1. धोया हुआ, साफ़ -मरुद्भध इति तु द्वारि क्षिपेदप्स्वद्भप इत्यपि मनु० किया हुआ, पवित्र किया हुआ 2. पोंछा हुआ, प्रतिदत्त ३१८८, शिलां वा क्षेप्स्यते मयि- महा०, का० १२, (बदला चुकाया हुआ)-उत्तर० १।२८। ९५, प्रतिपूर्वक भी, भर्तृ० ३१६७ 2. रखना, पहनना, hिi (भ्वा० पर०-क्षयति, क्षित या क्षीण) 1. मुझाना, लगाना-स्रजमपि शिरस्यन्धः क्षिप्ता धुनोत्यहिशङ्कया छीजना 2. राज्य करना, शासन करना, स्वामी होना। -श०७।२४, याज्ञ० ११२३०, भग०१६।१९ 3. आरोii (म्वा०, स्वा०, क्या०-पर०---क्षयति, क्षिणोति, पित करना, लगाना (कलंक आदि)--भत्ये दोषान् क्षिणाति) 1. नष्ट करना ग्रस्त कर लेना, बर्बाद क्षिपति--हि. २ 4. फेंक देना, डाल देना, उतार करना, भ्रष्ट करना न तद्यशः शस्त्रभृतां क्षिणोति देना, मुक्त होना-किं कर्मस्य भरव्यथा न वपुषि मां -रघु० २।४० 2. न्यून करना, बर्बाद करना न क्षिपत्येप यत्-मुद्रा० २।१८ 5. दूर करना, नष्ट --रघु० १९।४८ 3. मार डालना, क्षति पहुँचाना करना-मा० १११७ 6. अस्वीकार करना, पणा करना -(कर्मवाक्य-क्षीयते) 1. बर्बाद होना, घटना, 7. अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, नष्ट होना, न्यून होना (आलं. भी)-प्रतिक्षणमयं धमकाना-मनु ८।३१२, २७०, शा० ३.१०, कायः क्षीयमाणो न लक्ष्यते-हि० ४।६६, प्रत्यासन्न- अधि-, 1. निन्दा करना, कलंक लगाना 2. नाराज विपत्तिमढमनसां प्रायो मतिः क्षीयते-पंच० २१४, करना, अपवाद करना 3. आगे बढ़ जाना, अव-, अमरु ९३, भर्त० २।१९, (प्रेर.-क्षययति या क्षप- 1. उतार फेंकना, छोड़ना, त्यागना 2. तिरस्कार यति) 1. नष्ट करना, दूर हटा देना, समाप्त कर देना करना, भर्त्सना करना, आ-, 1. फेंकना, डाल देना, --ममापि च क्षपयतु नीललोहितः पुनर्भवं परिगत- प्रहार करना 2. सिकोडना 3. वापिस लेना, छीनना, शक्तिरात्मभूः-२०७४३५, रघ० ८५४७, मेघ० ५३ । खींचना, ले लेना-अग्रपादमाक्षिप्य-रषु. ७७, For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१८ ) भर्त० ११४३, मेघ०६८4. संकेत करना, इशारा फुर्ती से, तुरन्त-विनाशं व्रजति क्षिप्रमामपात्रमिवाम्भसि करना 5. परिस्थितियों से अनुमान लगाना--जात्या --मनु० ३३१७९, शा० ३।६, भट्टि० २१४४ । सम० व्यक्तिराक्षिप्यते 6. (तर्क के रूप में) आक्षेप करना -कारिन (वि०) आशुकारी, अविलम्बी। 7. अवहेलना करना, उपेक्षा करना 8. तिरस्कार क्षिया [क्षि-+-अङ-+-टाप्] 1. हानि, विनाश, बर्वादो, ह्रास करना, उद्--, उछालना--ऋतु० ११२२, उप-, 2. अनौचित्य, सर्वसम्मत आचार का उल्लंघन--उदा० 1. डालना, फेंकना-वपुषि वधाय तत्र तव शस्त्रमुप- स्वयमहरथेन याति उपाध्यायं पदाति गमयति - क्षिपत:-मा० ५।३१ 2. संकेत करना, इशारा करना सिद्धा। निष्कर्ष निकालना - छन्नं कार्यमुपक्षिपन्ति-मृच्छ० | क्षीजनम् [क्षी+ल्युट पोले नरकुलों में से निकली हुई ९३ 3. आरम्भ करना, शुरू करना 4. अपमान सरसराहट की ध्वनि । करना, डोटना-फटकारना, नि, 1. नीचे रखना, क्षीण (वि.) [क्षि+क्त, दीर्घः] 1. पतला, कृश, क्षयस्थापित करना, धर देना --याज्ञ० २१०३, अमरु प्राप्त, निर्बल, घटा हुआ, थका हुआ या समाप्त, खर्च ८० 2. सौंपना, देख रेख में सुपूर्द करना,-..-मनु० ६। कर डाला हुआ---भार्यां क्षीणेपु वित्तेषु (जानीयात्)३, ३३१७९, १८० 3. शिविर में रखना 4. फेंक देना हि० ११७२, इसी प्रकार क्षीणः शशी, क्षीणे पुण्ये अस्वीकार करना 5. प्रदान करना, परि-, 1. घेरना, मत्यलोक विशन्ति 2. सुकुमार, नाजुक 3. थोड़ा अल्प गङ्गास्रोतःपरिक्षिप्तम्-कु० ६३८ 2. आलिंगन 4. निर्धन, संकटग्रस्त 5. शक्तिहीन, दुर्वल । सम० करना, पर्या-, बाँधना, (बालों को) एकत्र करना .–चन्द्रः घटता हुआ अर्थात् कृष्णपक्ष का चन्द्रमा - (केशान्तं) पर्याक्षिपत् काचिदुदारबन्धम् ----कु० --धन (वि.) जिसके पास पैसा न रहा हो, निर्धन ७।१४, प्र-, 1. रखना, डालना- नामेध्यं प्रक्षिपेदग्नी --पाप (वि०) जो अपने पाप कर्मों का फल भुगत कर -मनु० ४।५३, क्षार क्षते प्रक्षिपन्—मृच्छ ० ५।१८ निष्पाप हो गया हो,-पुण्य (वि०)जो अपने सब पुण्य 2. बीच में डालना, अन्तहित करना-इति सूत्रे कैश्चि कों का फल भोग चुका हो, तथा अगले जन्म के प्रक्षिप्तं—कयट, वि-, 1. फेंकना, डालना 2. मन लिए जिसे और पुण्य कार्य करने चाहिएँ,-मध्य मोड़ना 3. ध्यान हटाना, सम् --, 1. संचय करना, (वि.) जिसकी कमर पतली हो,-- वासिन् (वि०) ढेर लगाना-आतपात्ययसंक्षिप्तनीवारासु निषादिभिः खंडहर में रहने वाला,-विक्रान्त (वि०) साहसहीन, -रघु० ११५२, भट्टि० ५।८६ 2. पीछे हटना, नष्ट पौरुषहीन- वृत्ति (वि.) जीविका के साधनों से करना 3. छोटा करना, कमी करना, संक्षिप्त करना वञ्चित, बेरोजगार। संक्षिप्यंत क्षण इव कथं दीर्घयामा त्रियामा - मेघ० क्षीब, क्षोब दे०क्षीव, क्षीव । १०८, मनु० ७।३४ । क्षीर:-रम् [घस्यते अद्यसे घस।ईरन, उपघालोपः, क्षपणम | क्षिप+क्युन बा०] 1. भेजना, फेंकना, डालना घस्य ककारः पत्वं च] 1. दूध,---हंसो हि क्षीरमादत्ते 2. झिड़कना, दुर्वचन कहना। तन्मिश्रा वर्जयत्यपः - श०६।२७ 2. वक्षों का दुधिया क्षिपणिः,-णी (स्त्री०) [क्षिप्+अनि, क्षिपणि+डोष ] रस-ये तत्क्षीरस्रतिसुरभयो दक्षिणेन प्रवृत्ता:--मेघ० 1. चप्पू 2. जाल 3. हथियार,—णिः प्रहार । १०७, कु० १९ 3. जल । सम०-अदः शिशु, दूधक्षिपण्यः [क्षिप्+कन्युच् ] 1. शरीर 2. बसंत ऋतु । पीता बच्चा,----ब्धिः दुग्धसागर "ज: 1. चन्द्रमा लिपा [ क्षिप्+अङ+टाप् ] 1. भेजना, फेंकना, डालना 2. मोती, जम् समुद्री नमक, जा-तनया लक्ष्मी का 2. रात्रि । विशेषण,--आह्वः सनोवर का वृक्ष,--उदः दुग्धसागर क्षिप्त (भू० क० कृ०) [क्षिप्+क्त] 1. फेंका हआ, बिखेरा --क्षीरोदवेलेब सफेनपुजा-कु० ७।२६, तनयः हुआ, उछाला हुआ, डाला हुआ 2. त्यागा हुआ चन्द्रमा, तनया, सुता लक्ष्मी का विशेपण,----उदधि 3. अवज्ञात, उपेक्षित, अनादृत 4. स्थापित 5. ध्यान क्षीरोद,- ऊमिः दुग्धसागर की लहर - रघु० ४।२७, हटाया हुआ, पागल (दे० क्षिप),---प्तम गोली लगने - ओदन: दूध में उबाले हुए चावल,-कण्ठः दूधपीता से बना घाव । सम०—कुक्कुरः पागल कुत्ता,-चित्त बच्चा (कण्ट में दूध रखने वाला)..... त्वया तत्क्षीर(वि.) उचाट मन, विमना,-~-देह (वि.) प्रसृतशरीर, कण्ठेन प्राप्तमारण्यकं व्रतम् ... महावी० ४१५२, ५।११, लेटा हुआ। --जम् जमा हुआ दूध,---द्रुमः अश्वत्थवृक्ष, --धात्री क्षिप्तिः (स्त्री०) [क्षिप्+क्तिन् ] 1. फेंकना, भेज देना । दूध पिलाने वाली नौकरानी, धाय, धिः,---निधिः 2. (पहेलियां आदि के) कूट अर्थ को प्रकट करना। दुग्धसागर---इन्दुः क्षीरनिवाविव-रघु० १।१२,--धेनुः क्षिप्र (वि.) [क्षिप्+रक] (म० अ०-क्षपीयम्, उ० अ० (स्त्री०) दूध देने वाली गाय,-नोरम 1. पानी और क्षेपिष्ठ) सजीव, आशुगामी,-प्रम् (अव्य०) जल्दी, । दूध 2. दूध जैसा पानी 3. गाढ़ालिंगन,-पः बच्चा For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१९ ) ..-वारिः,-वारिषिः, दुग्ध सागर,-विकृतिः जमा (वि.) ओछे मन का, कमीना,-- रसः शहद,-रोगः हुआ दूध,-वृक्षः 1. बड़, गूलर, पीपल और मधूक नाम मामूली बीमारी (सुश्रुत में ४४ रोगों का उल्लेख के वृक्ष 2. अंजीर,--शरः मलाई, दूध की मलाई, है),-शंखः छोटा शंख या घोंघा (सीपी),-सुवर्णम् -समुद्रः दुग्धसागर,-सारः मक्खन,-हिंडीरः दूध के | हल्का या खोटा सोना अर्थात् पीतल । झाग या फेन । क्षुद्रल (वि०) [क्षुद्र-। लच् ] सूक्ष्म, हल्का (विशेष कर क्षीरिका [क्षीर+ठन +टाप ] दूध से बना भोज्य पदार्थ । | रोगों व जंतुओं के लिए प्रयुक्त)। क्षोरिन् (वि.) [क्षीर+ इनि ] दूधिया दुधार दूध देने क्षुध (दिवा० पर०-क्षुध्यति, क्षुधित) भूखा होना, भूख वाला। लगना-भट्टि० ५।६६, ६।४४, ९।३९ । क्षीय (म्वा० दिवा०, पर०---क्षीवति, क्षीव्यति) 1. मत- क्षुध (स्त्री०) क्षुधा क्षुध+क्विप, क्षुध+टाप् ] भूख, वाला होना, मदोन्मत होना, नशे में होना 2. थूकना, -- सीदति क्षुधा--मनु० ७४१३४, ४११८७ । सम० मुंह से निकालना। ---आर्त,--आविष्ट क्षुधापीडित,-क्षाम (वि.) शीव (वि.) [क्षो+क्त नि०] उत्तेजित, मतवाला, मदो- भूखा होने से दुर्बल-भट्टि० २।२९,-पिपासित (वि०) न्मत्त-ध्रुवं जये यस्य जयामृतेन क्षीवः क्षमाभर्तुरभू- भूखा प्यासा,--निवृत्तिः (स्त्री०) भूख शान्त होना। स्कृपाण:-विक्रमांक० २९६, क्षीवो दुःशासनासृजा क्षुधालु (वि०) [क्षुध+आलुच् ] भूखा --वेणी० ५।२७। क्षुधित (वि०) [क्षुध्+क्त ] भूखा क्ष (अदा० पर०-क्षौति, क्षत) 1. छींकना-अवयाति । क्षुपः [क्षुप्+क] छोटी जड़ों के वृक्ष, झाड़, झाड़ी। सरोषया निरस्ते कृतकं कामिनि चुक्षुवे मृगाक्ष्या-शि०क्षम (भ्वा० आ०, दिवा०, श्या० पर०-क्षोभते, क्षुभ्यति, ९१८३, चौर० १०, भट्टि० १४१७५ 2. खाँसना । क्षुम्नाति, क्षुभित, क्षुब्ध) 1. हिलाना, कंपित करना, क्षुण्ण (भू० क० कृ०) [क्षुद्+क्त] 1. कूटा हुआ, कुचला क्षुब्ध करना, आंदोलित करना,--महा ह्नद इव क्षुम्यन् हुआ---रघु० १११७ 2. (आलं०) अभ्यस्त, अनुगत --भट्टि० ९१११८, रघु० ४।२१, शि० ८।२४ -क्षुद्रजनक्षुण्ण एष मार्गः--का० १४६ 3. पीसा हुआ 2. अस्थिर होना 3. लड़खड़ाना (आलं० भी), प्र—दे० क्षुद्र । सम०-मनस् (वि०) पश्चात्तापी, पछ- | -वि---सम कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना । ताने वाला। क्षुभित (वि०) [ क्षुभ्+क्त ] 1. हिलाया हुआ, आंदोलित क्षुत् (स्त्री०), क्षुतम्,--ता [क्षु+क्विप्, तुगागमः; क्षु+ आदि० -- महाप्रलयमारुतक्षुभितपुष्करावर्तक-वेणी० क्त, क्षुत-+-टाप् | छींकने वाली, छींक । ३१२ 2. डरा हुआ 3. क्रुद्ध । क्षुद् (रुधा०, उभ० - क्षुणत्ति, क्षुते, क्षुण्ण) 1. कुचलना, | क्षुब्धः (वि.) क्षुभ्+क्त] 1. आन्दोलित, चंचल, अस्थिर घिसना, (पैरों से) कुचल डालना, रगड़ना, पीस देना 2. डांवाडोल 3. डरा हुआ,-ब्ध० मन्थन करने का --क्षुणनि सर्पान् पाताले ---भट्टि० ६।३६, ते तं व्या- डण्डा-शोभैव मन्दरक्षुब्धक्षभिताम्भोधिवर्णना--शि० शिषताक्षौत्सुः पादर्दन्तस्तथाच्छिदन-१५।४३, १६।६६ २१०७ 2. रति क्रिया का विशेष आसन, रतिबन्ध । 2. उत्तेजित करना, क्षुब्ध होना (आ०), प्र-, कुच- क्षुमा [क्षु-मक् ] अलसी,एक प्रकार का सन । लना, खरोंचना, पीसना---मित्रघ्नस्य प्रचुक्षोद गदयोगं | क्षुर् (तुदा० पर०-क्षुरति, क्षुरित) 1. काटना, खुरचना विभीषणः---भट्टि० १४१३३ ।। 2. रेखाएँ खींचना, हल से खेत में खूड बनाना । क्षुद्र (वि) क्षिद्+रक] (म० अ०-- क्षोदीयस्, उ० अ. क्षुरः [क्षुर-+क] 1. उस्तरा . रघु० ७।४६, मनु० ९। --क्षोदिष्ट) 1. सूक्ष्म, अल्प, छोटा सा, तुच्छ, हलका २६२ 2. उस्तरे जैसी नोक जो तीर में लगाई जाय 2. कमीना, नीच, दुष्ट, अधम.-क्षुद्रेऽपि नूनं शरणं 3. गाय या घोड़े का सुम 4. बाण। सम-कर्मन् प्रपन्ने--कु० ॥१२ 3. दुष्ट 4. क्रूर 5. गरीब, दरिद्र (नपुं०)-- क्रिया हजामत बनाना,--चतुष्टयम् हजामत 6. कृपण, कंजूस---मेघ० १७,-द्रा 1. मधुमक्खी करने की आवश्यक चार चीजें,-धानम्,-भाण्डम् 2. झगड़ाल स्त्री 3. अपाहज या विकलांग स्त्री 4. वेश्या । उस्तरे का खोल,-धार (वि०) उस्तरे जैसा तेज, ----उपसृष्टा इ. क्षुद्राधिष्ठितभवनाः–का० १०७ । ----प्रः बाण जिसकी नोक घोड़े की नाल जैसी हो-तं सम० अञ्जनम् कुछ रोगों में आंखों में लगाया जाने क्षुरप्रशकलीकृतं कृती - रघु० ११।२९, ९।६२ वाला अंजन या लेप,-अन्त्रः हृदय के भीतर का छोटा 2. खुी, घास खोदने का खुर्पा,--माविन्,--मुण्डिन् सा रंध,-कम्बुः छोटा शंख,-कुष्ठम् एक प्रकार का (पुं०) नाई। हल्का कोठ,-घण्टिका 1. चूंघरु 2. घूघर वाली कर- अरिका, क्षुरी [क्षुर-+ङीष्,+क+-टाप् ह्रस्वः, क्षुर धनी,-बावनम् लाल चंदन की लकड़ी, .- जन्तुः कोई +डीष ] 1. चाकु, छुरी 2. छोटा उस्तरा । भी छोटा जीव, ---वंशिका डांस, गो मक्खी,----बुद्धि । क्षरिणो [क्षर+इनि+कोष ] नाई की पत्नी । For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२० ) झुरिन् (पुं०) [ क्षुर+इनि ] नाई । | क्षेत्रिन् (पुं०) [क्षेत्र+इनि] कृषक, काश्तकार, खतिहर क्षुल्ल (वि०) [क्षुदं लाति गह्नाति-क्षुद+ला+क] –याज्ञ० २।१६१ 2. नाममात्र का पति-श० ५ छोटा, स्वल्प। सम०-तातः पिता का छोटा भाई _____3. आत्मा 4. परमात्मा भग० १३।३३।। --तु० खुल्ल। क्षेत्रिय (वि.) [क्षेत्र+घ] 1. खेत से संबंध रखने वाला क्षुल्लक (वि.) [ क्षुल्ल+कन् ] 1. स्वल्प, सूक्ष्म 2. नीच, 2. असाध्य रोग, जिसका उपचार देहान्तर प्राप्ति पर दुष्ट 3. नगण्य 4. निर्धन 5. दुष्ट, द्वेषयुक्त 6. बच्चा। ही हो अथवा इस जीवन में जिसका उपचार न हो क्षेत्रम् [क्षि+ष्ट्रन् ] 1. खेत, मैदान, भूमि-चीयते बालि सके--दण्डोऽयं क्षेत्रियो येन मय्यपातीति साऽब्रवीत्शस्यापि सत्क्षेत्रपतिता कृषि:-मुद्रा० ११३ 2. भूसंपत्ति भट्टि० ४।३२,--यम् 1. आंगिक रोग 2. चरागाह, भूमि 3. स्थान, आवास, भूखण्ड, गोदाम-कपटशतमयं गोचरभूमि,-यः व्यभिचारी, परदाररत । क्षेत्रमप्रत्ययानाम्-पंच० १११९१, भर्तृ० ११७७, क्षेपः [क्षिप्+घञ ] 1. फेंकना, उछालना, डालना, इधर मेघ० १६4. पुण्यस्थान, तीर्थस्थान-क्षेत्र क्षत्रप्रघन उधर हिलाना (अंगों की) गति—कन्दक्षेपानुगम पिशुनं कौरवं तद्भजेथाः--मेघ० ४६, भग० १११, --मेघ० ४७, भ्रूक्षेपमात्रानुमतप्रवेशाम् ---कु० ३।६० 5. बाड़ा 6. उर्वरा भूमि 7. जन्मस्थान 8. पत्नी—अपि 2. फेंकना, डालना 3. भेजना, प्रषित करना 4. आघात नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात्-श० १, 5. उल्लंघन 6. समय बिताना, कालक्षेप 7. विलम्ब, मनु० ३१८५ १. कायक्षेत्र शरीर (आत्मा का कर्म देरी 8. अपमान, दुर्वचन-क्षेपं करोति चेदंड्यः क्षेत्र)--योगिनो यं विचिन्वन्ति क्षेत्राभ्यन्तरवर्तिनम याज्ञ० २।२०४, किंक्षेपे 9. अनादर, घृणा 10 घमंड, -कु. ६१७७, भग०१३।१,२,३ 10. मन 11. घर, अहंकार 11. फूलों का गुच्छा, कुसुमस्तवक । नगर 12. सपाट आकृति जैसे कि त्रिभुज 13. रेखा-क्षेपक (वि०) [क्षिप्+ण्वुल ] 1. फेंकने वाला, भेजने चित्र। सम०-अधिदेवता किसी पुण्य भूस्थल की। वाला 2. मिलाया हुआ, बीच में घुसाया हुआ अधिष्ठात्री देवता,-आजीवः,-करः, कृषक, खेतिहर, 3. गालियों से युक्त, अनादरपूर्ण,--क: बनावटी या -णितम् ज्यामिति, रेखागणित,-गत (वि०) बीच में मिलाया हुआ। . ज्यामितीय उपपत्तिः (स्त्री०) ज्यामितीय प्रमाण, । क्षेपणम् [क्षिप् + ल्युट ] 1. फेंकना, डालना, भेजना, -ज (वि.) 1. खेत में उत्पन्न 2. शरीर से उत्पन्न निदेश आदि देना 2. (समय) बिताना 3. भूलना (जः) हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार १२ प्रकार के पूत्रों 4. गाली देना 5. गोफन,-णिः, --णी (स्त्री०) में से एक, अपने पति के निमित्त संतानोत्पत्ति करने । 1. चप्पू 2. मछली फंसाने का जाल 3. गोफन या के लिए विधिवत् नियत किए गए किसी संबन्धी द्वारा ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जायें। उसकी पत्नी में उत्पादित संतान-मनु० ९।१६७, क्षेम (वि.) [क्षिन-मन् ] 1. प्रसन्नता सुख और आराम १८० याज्ञ० १।६८, ६९, २।१२८, -जात (वि.) देने वाला, शुभ, उदार, राजीखुशी -धार्तराष्ट्रा रणे दूसरे पुरुष की पत्नी में उत्पादित संतान,--- (वि०) हन्यस्तन्मे क्षेमतरं भवेत- भग० ११४५ 2. समृद्ध, 1. स्थानीयता को जानने वाला 2. चतुर, दक्ष (ज्ञः) । आराम में, सुखी 3. सुरक्षित, प्रसन्न,---मः,-मम् 1. आत्मा -तु. भग० १३।१-३, मनु० १२।१२ 1. शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता----वित2. परमात्मा 3. व्यभिचारी 4. किसान,-पतिः भस्वामी न्वति क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन् कुरवश्चकासतेभूमिधर,- पदम् देवता के लिए पवित्र स्थान, --पाल: कि० १११७, वैश्यं क्षेमं समागम्य (पृच्छत् )---मनु० 1. खेत का रखवाला 2. क्षेत्र की रक्षा करने वाला २।१२७, अधुना सर्वजलचराणां क्षेमं भविष्यति-पंच. देवता 3. शिव का विशेषण,--फलम् (गणित में) १२ 2. सुरक्षा, बचाव,-क्षेमेण बज बान्धबान्-मृच्छ ० आकृति की लम्बाई चौड़ाई का गुणनफल,-भक्तिः ७।७, सकुशल-पंच० १३१४६ 3. संरक्षण करने वाला, (स्त्री०) खेत का बँटवारा,-भूमिः (स्त्रो०) भूमि प्ररक्षा करने वाला-रघु० १५।६ 4. अवाप्त को जिसमें खेती की जाय,-राशिः ज्यामितीय आकृतियों सुरक्षित रखना---तु. योगक्षेम 5. मुक्ति, शाश्वत द्वारा प्रकट किया गया परिमाण,-विद (वि.) आनन्द,-मः एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । सम० -क्षेत्रज्ञ (पुं०) 1. किसान 2. ऋषि, जिसे आध्या-! कर ('क्षेमंकर भी) (वि०) मंगलप्रद शान्ति और त्मिक ज्ञान हो- कु. ३५० 3. आत्मा,-स्थ (वि०) सुरक्षा करने वाला। पुण्य भूमि में रहने वाला। मिन् (वि.) (णी) [क्षेम+ इनि ] सुरक्षित, आक्रमण क्षेत्रिक (वि०) (स्त्री० --की) [क्षेत्र+छन् ] खेत से से रक्षित, प्रसन्न । सम्बन्ध रखने वाला,--क: 1. एक किसान-मनु० ई (भ्वा० पर० क्षायति, बाम) क्षीण होना, नष्ट होना, ८१२४१, ९।५३ 2. पति--मनु०९।१४५ । कृश होना, ह्रास होना, मुर्माना । माय उपाय रेखागणित कृषक खेति For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३२१ क्षैण्यम् [[ क्षीण + ष्यञ ] 1. सुकुमारता । विनाश 2 दुबलापन, क्षेत्रम् [ क्षेत्र + अण् ] 1. खेतों का समूह 2. खेत । क्षरेय ( वि० ) ( स्त्री० [ क्षीर + ढञ ] दूधिया, दूध जैसा । यी ) ोड: [ शोड़ +घञ ] हाथी बांधने का खंभा । क्षोणि:, क्षोणी (स्त्री) • क्षै + डोनि, 1. पृथ्वी 2. एक (गणित में ) । क्षत (पुं० ) [ क्षुद् + तृच् ] मूसली, बट्टा । क्षोदः [ क्षुद् + घञ्ञ ]1. चूरा करना, पीसना 2. सिल ( जिस पर रखकर कोई चीज पीसी जाती है) 2. धूल, कण कोई छोटा या सूक्ष्मकण-उत्तर० ३।२। - ( वि० ) जो जांच पड़ताल या अनुसन्धान में ठहर सके । सम० -- क्षोदिमन् (पुं० ) [ क्षोद + इमनिच् ] सूक्ष्मता । क्षोभः [ क्षुभ् + घञ् ]1. डोलना, हिलना, लोटपोट होना -- मेघ० २८, ९५, इसी प्रकार काननक्षोभः 2. हत्रकोले खाना - रघु० १५८, विक्रम० ३।११3. (क) आन्दोलन, डाँवाडोल होना, उत्तेजना, संवेग स्वयंवर | क्षोभकृतामभावः रघु० ७/३, अर्थेन्द्रियक्षोभमयुग्मनेत्रः पुनर्वशित्वाद्वलवन्निगृह्य - कु.० ३।६९, (ख) उकसाहट, चिढ़ - प्रायः स्वमहिमानं क्षोभात्प्रतिपद्यते जन्तुः - श० ६/३१ क्षोभणम् [ क्षुभ् + णिच् + ल्युट् ] क्षुब्ध करना, व्याकुल करना - णः कामदेव के पाँच वाणों में से एक । क्षोम, मम् [क्षु + मन्] घर की छत पर बना कमरा, चौबारा | क्षौरम् [ क्षुर + अण् ] हजामत । क्षोणि + ङीष् ] क्षौरिकः [ क्षौर + ठन् ] नाई । क्षौणि: - णी (स्त्री०) दे० क्षोणि । सम० प्राचीर: समुद्र, -भुज् (पुं०) राजा, भृत् (पुं०) पहाड़ । क्षौद्रः क्षुद्र - अण् ] चम्पक वृक्ष, द्रम् 1 हल्कापन 2. कमीनापन, ओछापन 3. शहद सक्षौद्रपटलैरिव - रघु० ४।६३ 4. जल 5. धूलकण सम०-जम् मोम | क्षौद्रेयम् [ क्षीद्र ठञ ] मोम | ख Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) क्षौमः, -मम् [ क्षु + मन् + अण् ] 1. रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा - क्षौमं केनचिदिन्दुपाण्डुतरुणा माङ्गल्यमाविष्कृतम् - श० ४ । ५ - क्षोमान्तरितमेखले (अङ्के) रघु० १०८ 2. चौबारा 3. मकान का पिछला भाग, मम् 1. अस्तर 2. अलसी, मी सन । खः [ग्वव् + ] सूर्य, खम् 1. आकाश खं केशवोऽपर इवाक्रमितुं प्रवृत्तः -- मृच्छ० ५। २ यावद्गिरः खे मरुतां चरन्ति कु० ३१७२, मेघ० ९ 2. स्वर्ग, 3. ज्ञानेन्द्रिय 4. एक नगर 5. खेत 6. शून्य 7. एक बिन्दु, अनुस्वार 8. गर, द्वारक, विवर, रन्ध्र मनु० ९।४३१. शरीर ४१ ( अदा० पर० - क्ष्णौति, क्ष्णुत) पैना करना, तेज करना । सम्-, ( आ०) तेज करना (आलं० भी ) भट्टि० ८४० । क्ष्मा [ क्षम+अच् उपधालोपः ] 1. पृथ्वी, ( पुत्रं) क्ष्मां लम्भयित्वा क्षमयोपपन्नम् - रघु० १८१९, किं शेषस्य भरव्यथा न वपुषि क्ष्मां न क्षिपत्येष यत् मुद्रा० २११८ 2. (गणित में ) एक की संख्या । सम० -ज: मंगलग्रह, -प:, पतिः, भुज् (पुं० ) राजा, कविक्ष्मापतिः - गीत० १, देशानामुपरि क्ष्मापा:- पंच० १।१५५, -भृत् (पुं०) राजा या पहाड़ । क्ष्माय् (भ्वा० आ० - क्ष्मायते, क्ष्मायित) हिलाना, कांपना -चक्ष्माये च मही - भट्टि० १४/२१, १७/२३ । क्ष्विड् ( स्वा० उभ० --- -श्वेडति - ते, क्ष्वेट्ट या क्ष्वेडित) भिनभिनाना, दहाड़ना, चहचहाना, गुर्राना, बुदबुदाना, अस्पष्ट ध्वनि करना - मनु० ४१६४ । क्ष्विड़ ( भ्वा० आ०) क्ष्विद् ( दिवा० पर० - क्ष्विद्यति, क्ष्वेदित, क्ष्विण्ण), 1. गीला होना, चिपचिपा होना 2. ( वृक्ष का दूध या ) रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना, प्र--, बुदबुदाना, भिनभिनाना भट्टि० ७ १०३ । वेड: [ विड् + घञ, अच् वा ] 1. शब्द, शोर, कोलाहल 2. विष, जहर - गुणदोषो बुधो गृह्णन्निन्दुक्ष्वेडाविवेश्वरः, शिरसा श्लाघते पूर्वं परं कण्ठे नियच्छति - सुभा० 3. आर्द्र या तर करना 4. त्याग, डा 1. शेर की दहाड़ 2. युद्ध के लिए ललकार, रणगुहार 3. बाँस । वेडितम् [ दिवड + क्त ] सिंह गर्जना । क्ष्वेला [ क्ष्वेल् + अ + टाप् ] खेल, एसी, मजाक । के द्वारक ( जो गिनती में ९ हैं अर्थात् मुंह, दो कान, दो आँखें, दो नाथुनें, गुदा तथा जननेन्द्रिय ) - खानि चैव स्पृशेदद्भि: - मनु० २२६०, ५३, ४ १४४, याज्ञ० १।२० तु० कु० ३।५० 10. घाव 11 प्रसन्नता, आनन्द 12. अभ्रक 13. कर्म 14. ज्ञान 15. ब्रह्मा । सम० For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२२ ) .--अट: (खेऽट:) 1. ग्रह, 2. राहु, आरोही शिरोबिन्दु मण्डलम्-श० ७.११ 2. निश्चित, सम्मिश्रित 3. जड़ा -~-आपगा गंगा का विशेषण,--उल्क: 1. धमकेतु 2. ग्रह, हुआ, जटित, भरा हुआ (समासगत) मणि, रत्न । -उल्मुकः मंगल ग्रह,-कामिनी दुर्गा, -कुन्तल: शिव, खज [भ्वा० पर०... खजति, खजित ] मंथन करना, बिलोना, ---ग: 1. पक्षी--अधुनीत खगः स नकधा तनुम्-० | आंदोलित करना। २।२, मनु० १२।६३ 2. वायु, ह्वा--तमासीव यथा | खजः,-जकः [ खज्+अच्, कन् च ] मथानी, रई का सूर्यों वृक्षानग्निर्धनान्खगः---महा० 3. सूर्य 4. ग्रह डंडा। -उदा० आपोक्लिमे यदि खगाः स किलेन्दुवार:-तारा० खजपम् [खज+कपन ] घी। 5. टिड्डा, 6. देवता 7. बाण, अधिपः गरुड का विशेषण खजाक: [ख आक | पक्षी । अंतक: बाज, श्येन, °अभिरामः शिव का विशेषण, | खजाजिका [ख+अ+टाप -- खजा, अज्+घा, आसनः 1. उदयाचल 2. विष्ण का विशेषण, इन्द्रः, खजाये आजो यस्याः ब० स०, खजाज+डी-|-कन् °ईश्वरः पतिः गरुड के विशेषण, 'वती (स्त्र०) पृथ्वी, +टाप, ह्रस्वः ] कड़छी चम्मच । स्थानम् 1. वृक्ष की खोडर 2. पक्षी का घोंसला, | खंज (भ्वा० पर०... खजति) लँगड़ाना, ठहर-ठहर कर -गंगा आक श-गंगा, गतिः (स्त्री०) हवा में उड़ान, चलना-खजन् प्रभञ्जनजनः पथिक: पिपासु:- नै० -मः पक्षी,-(खे) गमनः एक प्रकार का जलकुक्कुट, ११११०७ । ....गोल: आकाशमंडल, विद्या ज्योतिष विद्या, चमस. | खंज (वि.) [ख ।-अच् ] लँगड़ा, विकलांग, पंगु चाँद,-चरः (खेचर भी) 1. पक्षी 2. बादल 3. सूर्य -~-पादेन खञ्जः--सिद्धा०, मनु० ८।२४२, भर्तृ० १॥ 4. हवा 5. राक्षस (-री अर्थात् खेचरी) 1. उड़ने ६४। सम०---खेट:,--- खेलः खंजनपक्षी।। वाली अप्सरा 2. दुर्गा की उपाधि, जलम 'आकाशीय | खञ्जनः [खञ् | ल्युट ] खंजन पक्षी-- स्फुटकमलोदर जल' ओस, वर्षा, कोहरा आदि, ज्योतिस् (पुं०) खेलितखजनयुगमिव शरदि तड़ागम् - गीत० ११, नेत्रे जुगनू,-तमाल: 1. बादल 2. धूआँ,—द्योतः 1. जुगन् खञ्जनगञ्जने--सा० द०, एको हि खजनवरो नलिनी- खद्योताली विलसि ।निभां विद्युदुन्मेषदृष्टिम् -- मेघ दलस्थः----शृंगार० ४,७... नम् लंगड़ा कर जाने वाला, ८१ 2. सूर्य, द्योतनः सूर्य, --धूपः अग्निबाण - मुमुचुः सम० - रतम् सन्यासियों का गुप्त मथुन । खधूपान्-.-भट्टि० ३।५, ---परागः अंधकार, पुष्पम् खञ्जना, खञ्जनिका [खञ्जन | टाप, खञ्जन। ठन् + आकाश का फूल, असम्भवता को प्रकट करने की आलं० टाप् ] खञ्जन पक्षियों की जाति । अभिव्यक्ति इस प्रकार की ४ असंभ वनाएं इस श्लोक | खजरीटः,-टकः, खजलेखः [खज+ऋ । कीटन्, कन् में बतलाई गई हैं :-- मृगतृष्णाम्भसि स्टातः शशशृंग- च, खन्ज- लिख -- घा] खंजन पक्षी-भामि० धनुर्धतः, एष बन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखर:- सुभा०, २१७८, चौर०८, मनु० ५।१४, याज्ञ० १११७४ अमरु, भम् ग्रह,- भ्रान्तिः दयेन,-मणिः 'आकाश की मणि' सूर्य, मीलनम् निद्रालुता, थकावट, --भूतिः शिव का खटः [खट् -- अच्] 1. कफ 2. अन्धा कुआँ 3. कुल्हाड़ी विशेषण,—वारि (नपं०) वर्मा का पानी ओस आदि, 4. हल 5. घास सम० कटाहकः पीकदान, ... खादक: -बाय: बर्फ, पाला,- शय (खेशय भी) (वि.) 1. गीदड़ 2. कौवा 3. जानवर. शीशे का बर्तन । आकाश में विश्राम करने वाला या रहने वाला,-शरी- खटक: खट-बुन्] 1. सगाई-विवाह तय करने का व्यवरम् आकाशीय शरीर,-श्वासः हवा, वायु, समुत्थ, साय करने वाला-तु० घटक: 2. अधमुन्दा हाथ । --संभव (वि०) आकाश में उत्पन्न... -सिंधुः चाँद, खटकामखम बाण चलाते समय हाथ की विशेष अवस्थिति। -स्तनी पृथ्वी, स्फटिकम् सूर्यकान्त या चन्द्रकान्त | खटिका खट-अच- कन्+टाप, इत्वम] 1. खोडया मणि-हर (वि०) जिस (राशि) का हर शून्य हो।। 2. कान का बाहरी विवर। खक्खट (वि.) खक्ख अटन् ] कठोर, ठोस, टः खड़िया। खट (ड) क्किका-पार्श्वद्वार, सिड़की। खङ्करः [ख-+ +खच्, मुम् ] अलक, बालों की लट। खटिनी, खटी [ खट-इनि- डीप, खट् + अक्-डी ] खच् (भ्वा०---क्या० परखचति-खच्नाति, खचित) | खड़िया। 1. आगे आना, प्रकट होना 2. पुनर्जन्म होना 3. पवित्र खट्टन (वि०) [खट्ट+ ल्युट्] ठिंगना,- नः ठिंगना आदमी। करना, (चुरा० उभ०-खचयति, खचित) जकड़ना, खद्रा खल+अच्-+टाप] 1. खाट 2. एक प्रकार का बांधना, जड़ना,-उद्--,मिलाना, गडमड करना, जड़ना घास ।। -रघु० ८१५३, १३१५४, मुद्रा, ४।१२ । खट्टिः (पु०, स्त्री...) खट्ट । इन्) अर्थी । सचिन (वि.) खचत] 1. जकडा हुआ, संपुवत, भरा खट्टिकः खट्ट+अच्+टन्] 1) कसाई 2. शिकारी, बहे हुआ,। अन्तमिश्रित, शाकुन्तनीहसचितं बिभ्रज्जटा-]". लिया। HD. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२३ ) खट्टेरक (वि०) [खट्ट+ एक ठिगना । 2. एक प्रकार का ईख, गन्ना । सम०--अभ्रम् 1. बिखड़े खट्वा |बट + क्वन+टाप] 1. खाट, सोफा, खटोला हए बादल 2. कामकेलि में दांतों का चिह्न,--आलि: 2. झला, पालना। सम०---अंग सोटा या लकड़ी जिसके (स्त्री) 1 तेल की एक नाप 2. सरोवर या झील सिरे पर खोपड़ी जड़ी हो (यह शिव जी का हथियार 3. वह स्त्री जिसका पति व्यभिचारी हो,-कथा छोटी समझा जाता है तथा संन्यासी और योगी इसे धारण कहानी, --काव्यम् मेघदूत जैसा छोटा काव्य-परिकरते हैं)--मा० ५१४, २३ 2. दिलीप, 'धर, भन् भाषा:----खण्डकाव्यं भवेत्काव्यस्यैकदेशानुसारि च (पु०) शिव को उपाधियाँ,-. अनिन् (पुं०) शिव का ----सा० द० ५६४,- जः एक प्रकार की खाँड़,-धारा विशेषण,- आप्लुत - आरुढ (वि०) 1. नीच, दुष्ट कैची,---परशुः शिव का विशेषण-महश्वर्य लीलाज2. परित्यक्त, बदमाश 3. मुखं, बेवकुफ । नितजगतः खण्डपरशोः-- गंगा० १, येनानेन जगत्सु खट्वाका, खटिवका [खट्वा --कन् टाप, इत्यम् वा] खण्डपरदादेवो हरः ख्याप्यते--महावी० २।३३ खटोला, छोटी खाट । 2. जमदग्नि का पुत्र, परशुराम का विशेषण,--- पशुः खड़ दे० खंड। 1. शिव 2. परशुराम 3. राहु 4. टूटे दाँत वाला हाथी, खडः खड् + अच् | तोड़ना, टुकड़े टुकड़े करना । -पाल: हलवाई,--प्रलय: विश्व का आंशिक प्रलय खडिका खडी | खड्- अच् |- डीए, कन्, ह्रस्व, खद+ जिसमें स्वर्ग से नीचे के सब लोकों का नाश हो जाता डीप खड़ियाँ । है, -मण्डलम् वृत्त का अंश, .... मोदकः खांड के लड्डू, खङ्गः [वाड्-गन् | 1. तलवार--- न हि खगो विजानाति ---लवणम् एक प्रकार का नमक, ---विकारः चीनी, कर्मकार स्वकारणम् -उद्भट, खङ्गं परामश्य आदि ..... शर्करा मिसरी,—शीला असती, व्यभिचारिणी 2. गडे के सींग 3. गैडा-रघु०९।६२, मनु० ३।२७२, स्त्री। ५।१८,---शा लोहा । सम०—आघात: तलवार का | खण्डकः,--कम् | खण्ड-|-कन] टुकड़ा, भाग, अंश,-क: 1. धाव, आधारः मान, कोश, आमिषम् भंस का चीनी, बांड 2. जिसके नाखन न हो। मांस, --आह्वः गैडा, कोशः म्यान, --धरः खड्गधारी | खण्डन (वि.) [खण्ड् + ल्युट् ] 1. तोड़ने वाला, काटने योद्धा,---धेनः, धेनुका 1. छोटी तलवार 2. गैडे की वाला, टुकड़े २ करने वाला 2. नष्ट करने वाला, मादा, पत्रम तलवार की धार, पाणि (वि.) हाथ मारने वाला---स्मरगरलखण्डनं मम शिरसि मण्डनम् में तलवार लिये हुए, पात्रम भैस के सींगों का बना ! -. गीत. १०, भवज्वरखण्डनम्-१२, - गम् 1. तोड़ना पात्र, पिधानम् पिधानकम म्यान,--पुत्रिका चाकू, काटना 2. काट लेना, क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना छोटी नलवार, प्रहारः तलवार का आघात,-.-फलम् : -... अधरोष्ठखण्डनम् -पंच० १, घटय भुजबन्धनं तलवार का फलक (मुठ को छोड़ कर शेष तलवार)। जनय रदखण्डन गीत० १०, चौर० १३ 3. हताश खड़गवत् (वि.) [खड् :- मतुप] तलवार से सुसज्जित ।। करना, (प्रणय में) निराश करना 4. विघ्न डालना खङ्गिकः खङ्ग+ठन्] 1. खगधारी योद्धा 2. कसाई। रसखण्डनजितम्-रघु०९।३६ 5. ठगना, धोखा देना खगिन् (वि०) (स्त्री० ---नी) खड़ग+इनि] तलवार से 6. (तक का) निराकरण करना- ६१३० ___सुज्जित (पु०) गंडा। 7. विद्रोह, विरोध 8. बर्खास्तगी। खड्गीकम् [म्बग-ईक वा०] दरांती। खण्डल:,- लम् [खण्ड+लच् नि.] टुकड़ा। खण्ड चुग० पर० खण्यति, खण्डित) 1. तोडना, काटना । खण्डशः (अव्य०) [खण्ड+शस्] 1. अंशों में, टुकड़ों में, कृ टुकड़े २ करना, कुचलना भट्टि० १५१५४ 2. पूरी काट कर टुकड़े २ करना 2.-थोड़ा २ करके, टुकड़ा २ तरह हराना, नष्ट करना, मिटाना रजनीचरनाथेन कर के, टुकड़े २ कर के। खण्डिते तिमिरे निशि -हि०३।१११ 3. निराश करना ! खण्डित (भ० क० कृ०) [ खण्ड्+क्त ] 1. काटा हुआ, भग्नाग करना, (प्रणय में) हताश करना - स्त्रीभिः तोड़ कर टुकड़े २ किया हुआ 2. नष्ट किया हुआ, कस्य न खण्डित भुवि मन: - पंच० १११४६ 4. विघ्न ध्वंस किया हुआ 3. (तर्क का) निराकरण किया हुआ डालना 5. धोखा देना। 4. विद्रोह किया हुआ 5. निराश किया हुआ, धोखा खण्डः, इम खण्ड। घन ] 1. दरार, खाई, विच्छेद, दिया हुआ, परित्यक्त--खण्डितयवतिविलापम्-गीत. कटाव, अस्थिभंग 2. टुकड़ा, भाग, खंड, अंश दिव: ८, ता वह स्त्री जिसका पति अपनी पत्नी के प्रति कान्तिमखंडमेक --मेघ० ३० काष्ट', मांस आदि अविश्वास का अपराधी रहा हो, और इसलिए उसकी 3. ग्रंथ का अनुभाग, अध्याय 4. समुच्चय, संघात, पत्नी उससे क्रुद्ध हो, संस्कृत साहित्य में वणित १० समूह-तरुखण्डस्य का० २३,---3. 1. चीनी, खाँड़ प्रकार की नायिकाओं में से एक--रघु० ५।६७, मेघ० 2. रत्न का एक दोष,-डम् 1. एक प्रकार का नमक ! ३९, परिभाषा इस प्रकार की है:- पार्श्वमेति प्रियो For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२४ ) यस्या अन्यसंभोगचिह्नितः, सा खण्डितेति कथिता धीर- | 2. नाई की दुकान,--कोण:.-क्वाणः चकोर. तीतर, रीकिषायिता-सा० द. ११४ । सम-विग्रह -कोमल: ज्येष्ठ मास, गृहम, हम गधों का (वि.) अंगहीन, विकलांग:-वृत्त (वि०) आचार- अस्तबल,---णस्--णस (वि०) नुकीली नाक वाला, हीन, दुश्चरित्र। ---दण्डम् कमल,-ध्वंसिन् (पु.) खरहन्ता राम का साहिनी (खण्ड+इनि+डीप् ] पृथ्वी । विशेषण,-नादः गधे का रेंकना, मल: कमल,-पात्रम् सविकाः (ब०व०) खील, लाजा, तला हुआ या भुना । लोहे का बर्तन,-पालः लकड़ी का बर्तन,-प्रियः हुआ अनाज । कबूतर,-यानम् गघों से खींची जाने वाली गाड़ी, सविरः [खद्+किरच ] 1. खैर का पेड़,--याज्ञ. ११३०२ ---शम्ब: 1. गघे का रेंकना 2. समुद्री बाज,-शाला 2. इन्द्र का विशेषण 3. चाँद । गधों का अस्तबल,-स्वरा जंगली चमेली। सन् (म्वा० उभ०-खनति-ते, खात, कर्म० खन्यते-खायते) खरिका [खर+कन्+टाप, इत्वम् ] पिसी हुई कस्तूरी। खोदना, खनना, खोखला करना-खनन्नाखबिल सिंहः खरिन्धम,-2 (वि.) [खरी+ध्मा (धमादेशः) पक्षे धे -पंच० ३११७, मनु० २२२१८ भट्टि० १।१७, +खश्, मुम् ] गधी का दूध पीने वाला। अभि--, खोदना, उद- खुदाई करना, जड़ निकालना | खरी [खर+ङीष् ] गधी। सम०---जः शिव का उन्मूलन करना, उखाड़ना (आलं. भी)-बङ्गानुत्खाय विशेषण,--वृषः गधा । तरसा-रघु० ४।३६, ३३, १४१७३, मेघ० ५२, खत (वि.) [खन्+कु, रश्चान्तादेशः ] 1. श्वेत 2. मूर्ख, भट्टि० १२१५, १५।५५, मा० ९।३४, नि-, 1. खनना, मूढ 3. ऋर 4. निषिद्ध वस्तुओं का इच्छुक.---- खोदना 2. दफनाना, गाड़ना-ऊनद्विवर्ष निखनेत् | 1. घोड़ा 2. दांत 3. घमंड 4. कामदेव 5. शिव,-: याज्ञ. ३११, वसुधायां निचख्नतु:--रघु० १२।३०, (स्त्री०) लड़की जो अपना पति स्वयं चने । भट्टि० ४१३, १६।२२ 3. (स्तंभ के रूप में) उठाना खर्ज (म्वा० पर०—खर्जति, खजित) 1. पीडा देना, -निचखान जयस्तम्भान्-रघु० ४।३६ 4. जमाना, | बेचैन करना 2. कड़कड़ शब्द करना । स्थिर करना, घुसेड़ना-निचखान शरं भुजे-रघु० ३५५, । खर्जनम् [ खर्ज ल्युट् ] खरोचना। १२।९०, भट्टि० ३३८, हि० ४।७२, परि-, (खाई | जिका [ खर्ज +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] 1. उपदंश रोग आदि) खोदना। 2. गजक । सनक: [खन्+ण्वुल ] 1. खनिक 2. सेंध लगाने वाला खर्जुः (स्त्री०) [खर्ज +उन् ] 1. खरोंच 2. खजूर का ___3. चूहा 4. कान । वृक्ष 3. धतूरे का पेड़ । बननम् खिन्+ल्युट् ] 1. खोदना, खोखला करना, पोला | खघुरन् । खर्ज +उरच् ) चाँदी। करना 2. गाड़ना। खर्जू: (स्त्री०) [खर्ज+ऊ ] खाज, खुजली। सनिः,-नी (स्त्री०) [खन्+इ, स्त्रियां ङीष् ] 1. खान | खर्जरः [खर्ज+ऊर ] 1. खजूर का पेड़ 2. बिच्छू,--रम् -रघु० १७१६६, १८।२२, मुद्रा० ७१३१ 2. गुफा। चाँदी 2. हरताल,-री खजूर का पेड़-रघु० ४।५७ । अनित्रम् [ खन्+इत्र ] कुदाल, खुर्पा, गैती। खर्परः [-कपर पृषो० कस्य खः ] 1. चोर 2. बदमाश, खपुरः [खं पिपति उच्चतया-ख++क] सुपारी का ठग 3. भिखारी का कटोरा 4. खोपड़ी 5. मिट्टी का पेड। फूटा हआ बर्तन ठीकरा 6. छाता। सर (वि.) [खं मुखविलमतिशयेन अस्ति अस्य-ख+र खपरिका, खपरी [खर्पर+अच्+की, केन्+टाप, अथवा खमिन्द्रियं राति-ख+रा+क] (विप० ह्रस्व, खर्पर+झीष् ] एक प्रकार का सुर्मा । -मृदु०, श्लक्ष्ण, द्रव) 1. कठोर, खुर्दरा, ठोस खर्व (4) (म्बा० पर०-खर्वति खवित) 1. जाना, 2. अमृदु, तेज, सख्त-रघु० ८१९, स्मरः खरः खलः फिरना, चलना 2. घमंड करना।। कांतः काव्या० ११५९ 3. तीखा, चरपरा 4. घना, खर्व-(ब) (वि०) [खर्व (4)+अच् ] 1. विकलांग, सघन 5. पीडाकर, हानिकर, कर्कश 6. तेज धार वाला अपाहज, अपूर्ण (अंगहीन) 2. ठिंगना, ओछा, कद में -देहि खरनयनशरघातम् --गीत.7. गरम-खरांशु छोटा,---,-वन् दस अरब की संख्या। सम० -आदि 8. क्रूर, निष्ठुर,-रः 1. गधा-मनु० २। शाख (वि०) ठिंगना, ओछा, छोटा। २०१, ४।११५, १२०, ८१३७०, याज्ञ० २।१६० खर्वटः,-टम् [खर्व +अटन् ] 1. नगर जिसमें पेंठ भरती 2. खच्चर 3. बगला 4. कौवा 5. एक राक्षस का नाम हो, मंडी 2. पहाड़ की तराई का गाँव । जो रावण का सौतेला भाई था और जो राम के द्वारा | खल (भ्वा० पर०-खलति, खलित) 1. चलना-फिरना, मारा गया था-रषु० १२।४२ । सम० अंशुः, | हिलना-जुलना 2. एकत्र करना, संग्रह करना । -कर-रश्मिः सूर्य,-कुटी 1. गधों का अस्तबल । खल:-लम खल+अच्] 1. खलिहान-मनु० ११११७, ११४ For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३२५ ) | याज्ञ० २२८२ 2. पृथ्वी, भूमि 3. स्थान, जगह 4. धूल का ढेर 5. तलछट, गाद, तेल आदि के नीचे जमा हुआ मैल, --ल: दुष्ट या शरारती आदमी - सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्वात् क्रूरतरः खलः, मन्त्रौषधिवशः सर्पः, खल: केन निवार्यते - चाण० २६, विषधरतोऽ यतिविषमः खल इति न मृषा वदन्ति विद्वांसः यदयं नकुलद्वेषी सकुलद्वेषी पुनः पिशुनः - वासव० [खलीकृ 1. कुचलना 2. घायल करना या क्षति पहुँचाना 3. दुर्व्यवहार करना, घृणा करना-परोक्षे खलीकृतोऽयं द्यूतकार:- मृच्छ० २] सम० उक्तिः (स्त्री०) दुर्वचन दुर्भाषण, -- धान्यम् खलिहान - पूः (पुं० [स्त्री०) झाड़ देने वाला, साफ करने वाला, मूर्तिः पारा, संसर्ग: दुष्टों की संगति । खलकः [ख+ला---क-+- कन्] घड़ा | खलति ( वि० ) [ स्खलन्तिकेशा अस्मात् - स्खल् + अतच् to साधुः ] गंजे सिर वाला, गंजा --- युवखलतिः । स्खलतिकः [ खलति +कै+ क] पहाड़ । खलि:, ली (स्त्री० ) खिल् + इन्] तेल की तलछट, खली स्थाल्यां वैदूर्यमय्यां पचति तिलखलीमिन्धनैश्चन्दनाद्यैः - भर्तृ० २।१०० । खलि (ली ) नः, -नम् [ खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् पृषो० वा ह्रस्वः ] लगाम का दहाना, लगाम की रास । खलिनी [खल् + इनि + ङीप् ] खलिहानों का समूह । खलकार:, कृति: ( स्त्री० ) [ खल + च्त्रि + कृ + छन्, fare वा] 1. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना 2. दुर्व्यवहार शा० ११२५ 3. अनिष्ट, उत्पात । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खलच् (पुं० ) [ खम् इन्द्रियं लुञ्चति हन्ति इति खलु + क्विप्] अन्धकार । खलूरिका परेड का मैदान जहाँ सैनिक लोग कवायद करें। खल्या [खल + यत्---टाप्] खलिहानों का समूह । खल्लः [खल् + क्विप्, तं लाति -- खलु + ला + क] 1. खरल -. जिसमें डाल कर औषधियाँ पीसी जायें, चक्की 2. गढ़ा 3. चमड़ा 4. चातक पक्षी 5. मशक । खल्लिका [ खल्ल + कन् + दाप्, इत्वम् ] कढ़ाई । खल्लि (ली) ट (वि०) ( खल्ल +इन् + टल् + ड, खल्लि + | डीष् + ल् + ड] गंजे सिर वाला । खल्वाट (वि० ) [ खल् + वाट उप० स० ] गंजा, गंजे सिर वाला - खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणः सन्तापितो मस्तके - भर्तृ० २।९०, विक्रमांक ० १८।९९ । खश: ( ब० व०) भारत के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी प्रदेश तथा उसके अधिवासी मनु० १०।४४ । खशरः ( ब० व० ) एक देश तथा उसके अधिवासियों का खलु (अव्य० ) [ खल् + उन् बा० यह अव्यय निम्नांकित अर्थों को प्रकट करता है-1. निस्सन्देह, निश्चय ही, अवश्य, सचमुच - मार्गे पदानि खलु ते विषमीभवन्ति - श० ४।१४, अनुत्सेकः खलु विक्रमालङ्कारः - विक्रम ० १, न खल्वनिर्जित्य रघु कृतौ भवान् - रघु० ३।५१ 2. अनुरोध, अनुनय-विनय प्रार्थना -- न खलु न खलु बाणः सन्निपात्योऽयमस्मिन् श० ११०, न खलु न खलु मुग्धे साहसं कार्यमेतत् - नागा० ३ 3. पूछताछ - न खलु तामभिक्रुद्धो गुरुः-- विक्रम ० ३ ( किमभिक्रुद्धो गुरुः) न खलु विदितास्ते तत्र निवसन्तश्चाणक्य हतकेन - मुद्रा ० २, न खलूरुषा पिनाकिना गमितः सोऽपि सुहृद्गतां गतिम् कु० ४।२४ 4. प्रतिषेध (क्रियात्मक संज्ञाओं के साथ) – निर्धारितेऽर्थे लेखेन खलुक्त्वा खलु वाचिकम् - शि० २७० 5 तर्क- न विदीयें कठिना खलु स्त्रियः -- कु० ४१५, (गण० कार इसे विषाद के निदर्शन के रूप में उद्धृत करता है) - विधिना जन एष वञ्चितस्त्वदवीनं खलु देहिनां सुखम् - ४११० 6. कभी कभी 'खल' पूरक की भाँति भर्ती कर दिया जाता है 7. कभी कभी वाक्यालंकार की तरह प्रयुक्त होता है । | नाम । खष्पः [ खन्+प नि० नस्य षः ] 1. क्रोध 2. हिंसा, निष्ठु रता । खस [खानि इन्द्रियाणि स्यति निश्चलीकरोति --ख + सो -+- क] 1. खाज, खुजली 2. एक देश का नाम दे० 'श' | खसूचि: (पुं० [स्त्री० ) [ ख + सूच् + इ ] 1. अपमानसूचक "अभिव्यक्ति (समास के अन्त में ) - वैयाकरण खसूचिः - जो व्याकरण अच्छी तरह न जानता हो या भूल गया हो । खस्खस: [ खस प्रकारे द्वित्वम्, पृषो० अकारलोपः ] पोस्त । सम० रस: अफ़ीम । खाजिकः [खाज + ठन् ] तला हुआ या भुना हुआ अनाज । खाट् (तु) ( अव्य० ) गला साफ करते समय होने वाली ध्वनि, खात् खखारना । खाटः, टा, टिका, टी (स्त्री० ) [ ख + अट् + घञ, स्त्रियां टाप - खाट + न् + टाप्, इत्वम्, खाट + ङीप् ] अर्थी, टिक्टी जिस पर मुर्दे को रख कर चिता तक ले जाते हैं । खाण्डव [ खण्ड + अण् + वा + क] खांड, मिश्री, बम् कुरुक्षेत्र प्रदेश में विद्यमान इन्द्र का प्रिय वन जिसे अर्जुन और कृष्ण की सहायता से अग्नि ने जला दिया था । सम० - प्रस्थः एक नगर का नाम । खाण्डविकः, खण्डिकः [ खाण्डव + ठन्, खण्ड + ठन् ] हलवाई | खात (वि० ) [ खन् + क्त] 1. खुदा हुआ, खोखला किया हुआ 2. फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तम् 1. खुदाई 2. सूराख 3. खाई, परिखा 4. आयताकार तालाब । सम० - भूः (स्त्री०) खाई, परिखा । For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२६ ) सातकः [खात+कन्] 1. खोदने वाला 2. कर्जदार,-कम् । -हि०२।१४१, पराभूत-शा०३।७, भट्टि०१४।१०८, खाई, परिखा। १७।१० 2. डरना, त्रस्त करना, (प्रेर०)। परि-- खाता [खात+टाप् बनाया हुआ तालाब । पीडित होना, कष्ट सहना, दुःखी या क्लांत होना । खातिः (स्त्री०) [खन्+क्तिन्] खुदाई, खोखला करना। खिदिरः [खिद् + किरच ] 1. संन्यासी, 2. दरिद्र 3. चन्द्रमा। खात्रम् [खन्+ष्ट्रन्, कित् .] 1. कुदाली 2. आयताकार खिन्न (भू० क० कृ०) [खिद्+क्त ] 1. अवसाद प्राप्त, तालाब 3. धागा 4. वन, जंगल 5. विस्मयोत्पादक कष्ट ग्रस्त, उदास, दुःखी, पीडित-गुरुः खेदं खिन्ने भय । मयि भजति नाद्यापि कुरुष-वेणी० ११११, अनङ्गबाणखाद् (भ्वा० पर०- खादति, खादित) खाना निगल लेना, व्रणखिन्नमानस:-- गीत०३ 2. क्लान्त, थका हुआ, खिलाना, शिकार करना, काट लेना-प्राकपादयोः श्रान्त- खिन्नः खिन्न: शिखरिषु पदं न्यस्य गन्तासि पतति खादति पृष्ठमांसम्-हि० ११८१, खादन्मांसं न यत्र-मेघ० १३, ३८, तयोपचारांजलिखिन्नहस्तया दुष्यति- मनु० ५।३२, ५३, भट्टि०६।६, २१७८, -रघु० ३।११, चौर० ३।२०, शि० ९।११। १४१८७, १०१, १५।३५ । खिलः,----लम् [खिल+क] 1. ऊसर भूमि या परती जमीन खादक (वि.) (स्त्री०- विका) [खाद+ण्वुल] खाने वाला का टुकड़ा, मरुभूमि, वृक्षहीन भूमि 2. अतिरिक्त सूक्त उपभोग करने वाला,—क: कर्जदार । जो किसी मलसंग्रह में जोड़ा गया हो---मनु० ३।२३२ खादनः खाद्+ल्युट] दांत,-नम् 1. खाना, चबाना 3. सम्पूरक 4. संग्रहग्रंथ या संकलित ग्रंथ 5. खोखला2. भोजन । पन, शन्यता ('खिल' का प्रयोग भ या कृ के साथ भी खाविर (वि.)(स्त्री०--री) [खादिर+अञ] खैर वृक्ष होता है--खिलीभू अगम्य होना, बन्द होना, अनभ्यस्त का, या खैर वृक्ष की लकड़ी का बना हुआ-खादिरं रहना ---खिलीभते विमानानां तदापातभयात्पथि...-कु० यूपं कुर्वीत--- मनु० २।४५ । २१४५, खिलीकृ (क) रोकना, बाधा डालना, अगम्य खावुक (वि.) (स्त्री०-को) [खाद्+उन्+कन्] उत्पाती, बनाना, रोकना-रघु० ११।१४, ८७ (ख) परती हानिकर द्वेषपूर्ण। छोड़ना, उजाड़ना, पूर्णतः नष्ट कर देना....विपक्षमखिखाद्यम् [खाद्+ण्यत् भोजन, भोज्य पदार्थ । लीकृत्य प्रतिष्ठा खलु दुर्लभा-शि० २१३४ । खानम् खिन् + ल्युट] 1. खुदाई 2. क्षति । सम०---उदक: । खुङ्गाहः [खुम् इत्यव्यक्तशब्दं कृत्वा गाहते - खुम्+गाह नारियल का पेड़। +अच् ] काला टट्ट या घोड़ा। खानक (वि.) (स्त्री०-निका) [खन् ।- ण्वल ] खोदने | खुरः [खुर+क] 1. सुम– रघु० ११८५, २।२, मनु० वाला, खनिक। ४१६७ 2. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य 3. उस्तरा खानिः (स्त्री०) खनिरेव पृषो० वृद्धिः] खान । 4. खाट का पाया। सम०---आघातः,-क्षेप: लात खानिक:-कम् [खान+ठन ] दीवार में किया हुआ छेद, मारना,---णस्,--णस (वि०) चिपटी नाक वाला, दरार, तरेड़। --पदवी घोड़े के पदचिह्न,---प्र: अर्धगोलाकार नोक सानिल: [खान+इलच बा० घर में सेंध लगाने वाला। का बाण-दे० क्षुरप्र। खारः,-रिः, (स्त्री०---री) [खम् आकाशम् आधिक्येन । खरली [खुरैः सह लाति पौन: पुन्येन पत्र-खुर+ला-+क ऋच्छति-ख-+ +अण, ख+आ+रा+क+ङीष् +ङीष् ] (शस्त्र तथा धनुष आदि का) सैनिक अभ्यास वा ह्रस्वः ] १६ द्रोण के बराबर अनाज का माप। । - अस्त्रप्रयोगखुरलीकलहे गणानाम्---महावी० २१३४, खारिपच (वि०) [खारिम्+पच्+खश् ] एक खारी-भर दूरोत्पतनखुरलीकेलिजनितान्---५।५ । अनाज पकाने वाला। खुरालकः [खुर इव अलति पर्याप्नोति---खुर : अल+ण्वुल्] खार्वा (स्त्री०) त्रेतायुग, दूसरा युग। लोहे का बाण । खिकरः (स्त्रो०-री) [ खिम् इति शब्द किरति-खिम्+ खरालिकः [ खुराणाम् आलिभिः कायति प्रकागते. खुरालि +क पृषो०] 1. लोमड़ी 2. खाट या चारपाई का +के+क.] 1 उस्तरा रखने का घर 2. लोहे का पाया। तीर 3. तकिया। सिदi (भ्वा०, तुदा० पर०-खिन्दति, खिन्न) प्रहार करना, खुल्ल (वि.) [--क्षुल्ल, पृषो०] छोटा, ओछा, अधम, खींचना, कष्ट देना । (दिवा० रुधा०, आ०--खिद्यते, नीच-दे० क्षुद्र । सम० तात: चाचा । खिन्ते, खिन्न) 1. पीडित होना, कष्ट सहना, कष्टग्रस्त खेचर दे० 'खचर'। होना, क्लान्त होना, थकान अनुभव करना, अवसाद या खट: [खे अटति ---अद+अच, खिच-+-अच् वा ] 1. गाँव, श्रान्ति अनुभव करना-श० ५।७, किं नाम मयि छोटा नगर, पुरखा 2. कफ 3. बलराम की गदा खिचते गुरु:-बेणी० १, स पुरुषो य: खिद्यते नेन्द्रियः। 4. घोड़ा (वि० समासान्त 'खेट' सदोषता तथा ह्रास For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३२७ ) को प्रकट करता है जो 'अभागा' या 'कंबख्त' आदि शब्दों | से पुकारा जा सकता है, नगरखेदम् अभागा नगर ) 'खेट' के लिए देखें ख के नीचे । खेटितानः, -लः [ खिट् + इन् खेटि, खेटि: तानोऽस्य, तालोऽस्य वा ] वैतालिक, स्तुतिपाठक जो गृहस्वामी को गा वजा कर जगाता है । खेटिन् (पुं० ) [ खिट् | गिनि ] दुराचारी, दुश्चरित्र । खेदः [ विद्+घञ् ] 1. अवसाद, आलस्य, उदासी 2. थकान, श्रान्ति - अलसलुलित मुग्धान्यध्वसंजातखेदात् -- उत्तर० ११२४, अध्यखेद नयेथाः मेघ० ३२, रघु० १८/४५ ३. पीडा, यन्त्रणा - अमरु ३ 4. दुःख, शोक --- गुरुः खेदं खिन्न मदि भजति नाद्यापि कुरुपु वेणी ० १।११, अमरु ५३ | खेयम् [ खत्+पप्, इकारादेशः ] खाई, परिखा, यः पुल । खेल (स्वा० पर ० - खेलति खेलित ) 1. हिलाना, इधरउधर आना जाना 2. कांपना 3. खेलना । खेल (त्रि० ) [ खेल् + अच् | खिलाड़ी, - रघु० ४।२२, वि० ४।१६ ४३ । खेलनम् [ ल् + ल्युट् ] रसिया, क्रीडापूर्ण 1. हिलाना 2. खेल, मनोरंजन 3. तमाशाः । खेला | खेल | अ | टप् ] क्रीडा, खेल । खेल: (स्त्री० ) [ से आकाशे अलति पर्याप्नोति से ! अल्+इन् ] 1. क्रीडा, खेल 2. तीर । खोटि : (स्त्री० ) [ खोट् +इन् ] चालाक और चतुर स्त्री । खोड (वि० ) [ खोड + अच् ] विकलांग, लंगड़ा, पंगु । खोर (क) (वि० ) [ खोर् (ल्) + अच् ] पंगु, लंगड़ा । खोलकः [ खोल + कन् ] 1. पुरवा 2. बांबी 3. सुपारी का छिलका 4. डेगची । खोलिः [ खोल्+इन् । तरकस | गया (अदा० पर० ( आर्धधातुक लकारों में आ० भी ) -- ख्याति ख्यात ) कहना, घोषणा करना, समाचार देना (संप्र० के साथ ) - कर्म० ख्यायते 1 कहलाना -भट्टि० ६१९७२ प्रसिद्ध या परिचित होना, प्रेर० - ख्यापयति - ते 1. ज्ञात कराना, प्रकथन करना - मनु० ७/२०१ 2 कहना, घोषणा करना, वर्णन ग ग (वि० ) [+] ( केवल समास के अन्त में प्रयुक्त ) जो जाता है, जाने वाला, गतिमान् होने वाला, ठहरने वाला शेष रहने वाला, मैथुन करने वाला, 1. गन्धर्व 2. गणेश का विशेषण 3. दीर्घ मात्रा ('गुरु' T: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करना -- भर्तृ० २।५९, मनु० ११९९ 3. स्तुति करना, प्रख्यात करना, प्रशंसा करना । अभि-, ( कर्म ० ) ज्ञात होना, प्रेर० घोषणा करना, प्रकथन करना, आ--- 1. कहना, घोषणा करना, समाचार देना ( प्रायः संप्र० के साथ), - ते रामाय वधोपायमाचख्युविबुधद्विषः -- रघु० १५५, ४१, ७१, ९३ १२/४२, ९१; भग० ११/३१, १८६३, ( कभी कभी संबं० के साथ-आख्याहि भद्रे प्रियदर्शनस्य ) पंच० ४।१५ 2. घोषणा करना, व्यक्त करना 3. पुकारना, नाम लेना- रघु० १०/५१, मनु० ४/६ परि-, सुपरिचित होना, परिसम्-गिनती करना, प्रसुपरिचित होना, प्रत्या- 1. मुकर जाना 2. इंकार करना, मना करना अस्वीकार करना 3. मना करना, प्रतिषेध करना 4. वर्जित करना 5. पोछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना - मालवि० ३।५, वि सुपरिचित या प्रसिद्ध होना, व्या-, 1. कहना, समाचार देना, घोषणा करना- भट्टि० १४।११३ 2. व्याख्या करना, वर्णन करना रावणस्यापि ते जन्म व्याख्यास्यामि -- महा० 3. नाम लेना, पुकारना - विद्वद्वन्दैवणावाणी व्याख्याता सा विद्युन्माला - श्रुत० १५, सम्- गिनना, गणना करना, हिसाब लगाना, जोड़ना तावन्त्येव च तत्त्वानि सास्यैः सख्यायन्ते शारी० । स्यात (भू० क० कृ० ) [ ख्या । क्त ] 1. ज्ञात रघु० १८६ 2. नाम लिया गया, पुकारा गया 3. कहा गया 4. विश्रुत, प्रसिद्ध, बदनाम | सम० – गर्हण ( वि० ) कुख्यात, दुष्ट, बदनाम | ख्यातिः [ रूपा | क्तिन् ] विश्रुति प्रसिद्धि, यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा - मनु० १२।३६, पंच० १३७१ 2 नाम, शीर्षक, अभिधान 3. वर्णन 4. प्रशंसा 5. ( दर्शन० में ) ज्ञान, उपयुक्त पद द्वारा वस्तुओं का विवेचन करने की शक्ति - शि० ४।५५ । ख्यापनम् [ख्वा+णिच् + ल्युट् ] 1. घोषणा करना, (रहस्य का) उद्घाटन करना 2. अपराध स्वीकार करना, मान लेना, सार्वजनिक घोषणा करना- मनु० ११/२२७ 3. विख्यात करना, प्रसिद्ध करना । शब्द का संक्षिप्त रूप, छन्द: शास्त्र में ), गम् गायन । गगनम --णम् [ गच्छन्त्यस्मिन् गम् + ल्युट् ग आदेशः ] ( कुछ लोग 'गगण' को अशुद्ध समझते हैं जैसा कि एक For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२८ ) लेखक का कथन है-फाल्गुने गगने फेने णत्वमिच्छन्ति नाम,-पुत्रः 1. भीष्म 2. कार्तिकेय 3. एक संकर जाति बर्बरा) 1. आकाश, अन्तरिक्ष-अवोचदेनं गगन- जिसका व्यवसाय मर्दे ढोना है 4. गंगा के घाट पर स्पृशा रघुः स्वरेण--रघु० ३।४३, गगनमिव नष्टतारम् बैठने वाला पंडा जो तीर्थयात्रियों का पथप्रदर्शन -पंच० ५।६, सोऽयं चन्द्रः पतति गगणात्--श०४, करता है, .--भृत् (पुं०) 1. शिव 2. समुद्र, मध्यम् अने० पा०, शि० ९।२७ 2. (गण में) शून्य गंगा का तल भाग,-यात्रा 1. गंगा नदी पर जाना 3. स्वर्ग। सम०-अग्रम उच्चतम आकाश,--अङ्गना 2. रोगी को गंगातट पर इसलिए ले जाना कि वहीं स्वर्गीय परी, अप्सरा,---अध्वगः 1. सूर्य 2. ग्रह 3. स्व- उसकी मृत्यु हो,-सागरः वह स्थान जहाँ गंगा समुद्र र्गीय प्राणी,-अम्बु (नपुं०) वर्षा का पानी,-उल्मुकः से मिलती है,- सुतः 1. भीष्म का विशेषण 2. कार्तिमंगलग्रह,-कुसुमम्, पुष्पम् आकाश का फूल अर्थात् केय का विशेषण,-ह्रदः एक तीर्थ स्थान का नाम । अवास्तविक वस्तु, असंभावना, दे० 'खपुष्प',--गतिः गङ्गाका, गङ्गका, गङ्गिका [गङ्गा-+क+टाप, ह्रस्वो 1. देवता 2. स्वर्गीय प्राणी--मेघ०४६ 3. ग्रह,-चर वा, पक्षे इत्वम् अपि ] गंगा। ('गगनेचर' भी) (वि०) आकाश में घूमने वाला गङ्गोलः एक रत्न जिसे गोमेद भी कहते हैं । (--) 1. पक्षी 2. ग्रह 3. स्वर्गीय आत्मा,-ध्वजः गच्छः [गम् ।श | 1. वृक्ष 2. (गण में) प्रक्रम का समय 1. सूर्य 2. बादल,--सद् (वि.) अन्तरिक्ष में रहने (अर्थात राशियों की संख्या)। वाला (पुं०) स्वर्गीय जीव-शि० ४५३,-सिन्धु गज़ (भ्वा०पर०-गजति गजित) 1. चिंघाड़ना, दहाड़ना (स्त्री०) गंगा की उपाधि, स्थ,--स्थित (वि०) -जगजुर्गजा:-भट्टि० १४१५ 2. मदिरा पीकर मस्त आकाश में विद्यमान, स्पर्शन: 1. वाय, हवा 2. आठ होना, व्याकुल होना, मदोन्मत्त होना। मरुतों में से एक। गजः [ गज-+अच् ] 1. हाथी-कचाचितौ विष्वगिवागजी गङ्गा गम्+गन्+टाप् ] 1. गंगा नदी, भारत की पवित्र- गजौ--कि० ११३६ 2. आठ की संख्या 3. लम्बाई की तम नदी, अधोऽधो गङ्गेय पदमुपगता स्तोकमथवा माप, गज (परिभाषा-साधारणनरांगल्या त्रिंशदंगलको --भर्तृ० ३।१०, रघु० २।२६, १३॥५७, (इसका गजः) 4. एक राक्षस जिसे शिव ने मारा था। सम० उल्लेख ऋग्वेद० १०।७५।५ में दूसरी नदियों के साथ --अग्रणी (पुं०) 1. सर्वश्रेष्ठ हाथी 2. इन्द्र के हाथी २ मिलता है) (इसके अतिरिक्त और दूसरी नदियों ऐरावत का विशेषण,-अधिपतिः हाथियों का के लिए भी जो भारत में पावन समझी जाती हैं, यह स्वामी, उत्तम हाथी, अध्यक्षः हाथियों का अधीक्षक, शब्द कभी २ प्रयुक्त किया जाता है) 2. गंगा देवी के .- अपसदः दुष्ट या बदमाश हाथी, सामान्य या नीच रूप में मूर्त गंगा (हिमवान् पर्वत की ज्येष्ठ पुत्री गंगा नसल का हाथी--,अशनः अश्वत्थ वृक्ष (--नम्) है, कहते हैं ब्रह्मा के किसी शाप के कारण गंगा को कमल की जड़,--अरि: 1. सिंह 2. शिव जिसने गज इस धरती पर आना पड़ा जहाँ वह शंतनु राजा को नामक राक्षस को मारा था,- आजीदः हाथियों से जो पत्नी बनी; गंगा के आठ पूत्र हए, जिनमें भीष्म सब अपनी जीविकोपार्जन करता है, महावत,- आननः, से छोटा था, भीष्म अपने आजीवन ब्रह्मचर्य तथा शौर्य --आस्यः गणेश का विशेषण,--आयर्वेदः हाथियों की के कारण विख्यात हो गया था। दूसरे मतानुसार चिकित्सा का विज्ञान,--आरोहः महावत, --आह्वम् वह भगीरथ की आराधना पर इस पृथ्वी पर आई, -... आह्वयम् हस्तिनापुर, - इन्द्रः 1. उत्तम हाथी, गजदे० 'भगीरथ' और 'जौँ' और तु० भर्तृ० ३।१०) राज - किं रुष्टासि गजेन्द्रमन्दगमने-शृंङ्गार० ७ सम०–अम्ब,-अम्भस् (नपुं०) 1. गंगाजल 2. वर्षा 2. इन्द्र का हाथी ऐरावत, कर्णः शिव का विशेषण, का विशुद्ध जल (जैसा कि आश्विन मास में बरसता ---कन्दः खाने के योग्य एक बड़ी जड़,--कर्माशिन् है), अवतारः 1. गंगा का इस पृथ्वी पर पदार्पण-भगी (पुं०) गरुड़,—गतिः (स्त्री०) 1. हाथी जैसी मंद रथ इव दृष्टगङ्गावतार:-का० ३२, (यहाँ इस शब्द का चाल, हाथी की सी चाल वाली स्त्री, ---गामिनी हाथी अर्थ-स्नान के लिए गंगा में उतरना भी है) 2. पुण्य की सी मन्द तथा गौरवभरी चालवाली स्त्री,---दघ्न, स्थान का नाम, उद्धवः गंगा का उद्गम स्थान, ----यस (वि.) हाथी जैसा ऊँचा,-- दन्तः 1. हाथी -क्षेत्रम् गंगा तथा उसके दोनों किनारों का दो २ का दांत 2. गणेश का विशेषण 3. हाथीदांत 4. खंटी कोस तक का प्रदेश,-चिल्ली एक जलपक्षी,-जः या ब्रेकेट जो दीवार में लगा हो, मय (वि.) हाथी1. भीष्म 2. कार्तिकेय,-दत्तः भीष्म का विशेषण,-द्वारम दांत से बना हुआ,-दानम् 1. हाथी के गण्डस्थल से समतल भूमि का वह स्थान जहाँ गंगा प्रविष्ट होती है बहने वाला मद 2. हाथी का दान.--- नासा हाथी का (हरिद्वार' भी उसी स्थान को कहते हैं), धरः गंडस्थल, ---पति: 1. हाथियों का स्वामी 2. विशाल1. शिव का विशेषण 2. समुद्र, पुरम् एक नगर का । काय हाथी-शि० ६।५५ 3. सर्वश्रेष्ठ हाथी,-पुङ्गवः For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३२९ ) एक विशालकाय श्रेष्ठ हाथी – गजपुङ्गवस्तु, धीरं । गडु (वि० ) [ गड् + उन्] बेडौल, कुबड़ा, -- डु: 1. पीठ पर कूबड़ 2. नेजा 3. जलपात्र 4. केंचुवा 5. गलगण्ड निरर्थक वस्तु -- दे० अन्तर्गडु | गडकः [गडु +कै+ क] 1. जलपात्र 2. अँगूठी । गडर, ल ( वि० ) [ गडु +-ल बा० र ] कुबड़ा, बेडौल, मुड़ा हुआ । गडेर: [ गड् + एरक्] बादल । गडोल: [गड् + ओलच् ] 1. मुँहभर 2. कच्ची खांड । गड्डुरः, लः [गड् + डर, डल वा ] भेड़ | गड्डरिका [ गड्डुरं मेषमनुधावति + छन् ] 1. भेड़ों की पंक्ति • 2. अविच्छिन्न पंक्ति, नदी, धारा, प्रवाह: 'भेड़िया - धसान' इसका तात्पर्य है, भेड़ों के रेवड़ की भांति अंधानुसरण करना - तु० इति गहुरिकाप्रवाहेणैषां भेदः - काव्य० ८। गड्डुकः [ गडक पृषो० ] सोने का बर्तन । विलोकयति चाटुशतैश्च भुंक्ते भर्तृ० २।३१, पुरम् हस्तिनापुर, बन्धनी, बन्धिनी, हाथियों का अस्तबल, -भक्षकः अश्वत्थ वृक्ष, मण्डनम् हाथी को सजाने का आभूषण, विशेषकर हाथी के मस्तक की रंगीन रेखाएँ, मण्डलिका, मण्डली हाथियों की मंडली, -माचलः सिंह, मुक्ता, मौक्तिकम् मोती जो हाथी के मस्तक से निकला हुआ माना जाता है, मुखः, वक्त्रः, — वदनः गणेश का विशेषण, - मोटनः सिंह, यूथम् हाथियों का झुंड - रघु० ९। ७१, योधिन् (वि०) हाथी पर बैठकर युद्ध करने -राजः उत्तम या श्रेष्ठ हाथी, व्रजः हाथियों का दल - शिक्षा हस्तिविज्ञान, साह्वयम् हस्तिनापुर, - स्नानम् ( शा० ) हाथी का स्नान करना, ( आलं ० ) हाथी के स्नान के समान और निष्फल प्रयत्न (हाथी स्नान करके अपने ऊपर धूल डाल लेता है) तु० -- अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया हि० वाला, १।१८ । जता [गज + तल] हाथियों का समूह । गजवत् (वि० ) ( गज + मतुप् ] हाथियों को रखने वाला रघु० ६९ । गज् (भ्वा० पर० गञ्जति) विशेष ढंग से ध्वनि करना, शब्द करना । गञ्जः [ गंज् + घञ ]1. खान 2. खजाना 3. गोशाला 4. मंडी, अनाज की मण्डी 5. अनादर, तिरस्कार, जा 1. झोंपड़ी, पर्णशाला 2. मधुशाला 3. मदिरापात्र । गञ्जन (वि० ) [ गज् + ल्युट् ] क्षुद्र समझना, लज्जित करना आग बढ़ जाना, सर्वश्रेष्ठ होना- स्थलकमलगञ्जनं मम हृदयरञ्जनं ( चरणद्वयम् ) गीत० १०, अलिकुलगञ्जनमञ्जनकम् – १२ - नेत्रे खञ्जनगञ्जने - सा० द० 2. पराजित करना, जीतना कालियविषधरगञ्जन – गीत० १ । गञ्जिका [ गञ्जा + कन् + टाप्, इत्वम् ] मधुशाला, मदिरालय | गड (भ्वा० पर ० – गडति, गडित ) 1. खींचना, निकालना 2. (तरल पदार्थ की भाँति ) बहना । गड: [ गड् + अच् ] 1. पर्दा 2. बाड़ 3. खाई, परिखा 4. रुकावट 5. एक प्रकार की सुनहरी मछली । सम० उत्थम्, देशजम्, - लवणम् पहाड़ी नमक, विशेषतः वह जो गड प्रदेश में पाया जाता है । गडयन्तः, गडयित्नु: [ गड् । णिन् | झञ, इनुच् वा ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बादल । गडि [ गड् + इन् ] 1. बछड़ा 2. मट्टा बैल - गुणानामेव दौरात्म्याद्धरि धुर्यो नियुज्यते, असंजातकिणस्कन्धः सुखं स्वपिति गोडि:- काव्य० १० । ४२ गण ( चुरा० उभ० – गणयति - ते, गणित ) 1. गिनना, गिनती करना, गणना करना -- लीलाकमलपत्राणि गणयामास पार्वती - कु० ६।८४, नामाक्षरं गणय गच्छसि यावदन्तम् - श० ६।११ 2 हिसाब लगाना, संगणना या संख्या करना 3. जोड़ना, संपूर्ण जोड़ लगाना 4. अन्दाज लगाना, मूल्य निर्धारण करना (करण ० के साथ) - न तं तृणेनापि गणयामि 5. श्रेणी रखना, कोटि में गिनना अगण्यतामरेषु - दश० १५४ 6. हिसाब में लगाना, विचारना-वाणीं काणभुजीमजीगणत् - मल्लि० 7. ध्यान देना, विचार करना, सोचना - त्वया विना सुखमेतावदजस्य गण्यताम् - रघु० ८/६९, ५२०, ११/७५, जातस्तु गण्यते सोऽत्र यः स्फुरत्वन्वयाधिकम् - पंच० ११२७, किसलयतल्पं गणयति विहितहुताशविकल्पम् - गीत० ४ 8. लगाना, आरोपण करना, मत्थे मढ़ना ( अधि० के साथ) जाड्यं ह्रीमति गण्यते भर्तृ० २।५४ 9. ध्यान देना, खयाल करा मन लगाना - प्रणयमगणयित्वा यन्ममापद्गतस्य विक्रम ० ४।१३ 10 (निषेधात्मक अव्यय के साथ) उपेक्षा करना, ध्यान न देना- न महान्तमपि क्लेशमजीगणत्- का० ६४, मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दुःखं न च सुखम् - भर्तृ० २।८१, ९, शा० १ १०, भट्टि० २/५३, १५/५४५, हि० २।१४२, अधि-, 1. प्रशंसा करना 2. गणना करना, गिनना, अव, अवहेलना करना, परि-, 1. गणना करना, गिनना 2. विचार करना, ध्यान देना, सोचना अपरिगणयन् मेघ० ५, प्र, हिसाब लगाना, वि, 1. गणना करना, याज्ञ० ३।१०४ 2. खयाल करना, विचार करना - मेघ० १०९, रघु० ११८७ 3 अवहेलना करना — ध्यान न देना 4. विचार विमर्श करना, चितन करना - पंच० ३।४३ | For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३० ) गण: [गण ---अच् ] 1. रेवड़, झंड, समूह, दल, संग्रह । 2. गणेश (गणेश, शिव और पार्वती का पुत्र है, एक -गणिगणगणनारम्भे, भगण:--आदि 2. माला, श्रेणी आख्यायिका के अनुसार वह केवल पार्वती का ही पुत्र 3. अनुयायी या अन चर वर्ग 4. विशेषतः अर्धदेवों का है क्योंकि उसका जन्म पार्वती के शरीर के मेल से गण जो शिव के सेवक माने जाते हैं और गणेश के हआ। यह बुद्धिमत्ता का देवता और बाधाओं को अधीक्षण में रहते हैं, इस गण का कोई अर्धदेव-गणानां हटाने वाला है, और इसीलिए प्रत्येक महत्त्वपूर्ण कार्य स्वा गणपति हवामहे कविं कवीनाम्- आदि —गणा के आरम्भ होने पर उसकी पूजा होती है तथा नमेरुप्रसवावतंसा:--कु० ११५५, ७।४०, ७१, मेघ० आवाहन किया जाता है उसका चित्रण प्रायः बैठी हई ३३, ५५, कि० ५।१३ 5. समान उद्देश्य को प्राप्त अवस्था में किया जाता है, उसकी तोंद निकली हुई करने के लिए बना मनुष्यों का समाज या सभा 6. सम्प्र- है, चार हाथ है, चूहे पर सवार है तथा सिर हाथी का दाय (दर्शन या धर्म में) 7. २७ रथ, २७ हाथी, ८१ है, इसके सिर में दांत केवल एक है, दूसरा दांत-- शिव घोड़े और १३५ पदाति सैनिकों की छोटी टोली जी के अन्तःपूर में प्रविष्ट होते हए परशराम को ('अक्षौहिणी' का उपप्रभाग) 8. (गण) अङ्क 9. पाद, रोकने के लिए युद्ध करने समय ट गया (इसी लिए चरण (छन्दः शास्त्र में) 10. (व्या० में) धातुओं या गणेश को एकदन्त या एकदशन भी कहते हैं; उसका शब्दों का समूह जो एक ही नियम के अधीन हो -तथा हाथी का सिर है'-- इस बात पर प्रकाश डालने वाली उस श्रेणी के पहले शब्द पर जिसका नाम रक्खा गया अनेक कहानियां है। कहते हैं कि गणेश ने व्यास से हो -उदा० भ्वादिगण अर्थात् 'भू' से आरम्भ होने सुनकर महाभारत लिखा, व्यास ने ब्रह्मा से लिपिकार वाली धातुओं की श्रेणी 11. गणेश का विशेषण । सम० के रूप में गणेश को सेवाएँ प्राप्त कर ली थी),---पर्वत —अग्रणी (प.) गणेश,--अचल. कैलास पहाड़ जिस दे० गणाचल,-पीठकम् छाती, वक्षस्थल, पंगवः किसी पर शिव के गण रहते है,—अधिपः-अधिपतिः वर्ग या जाति का मुखिया (ब० व०),-पूर्वः किसी 1. शिव-शि० ९।२७ 2. गणेश 3. सैन्य दल का मुखिया जाति या वर्ग का नेता,-- भर्त (१०) 1. शिव का सेनापति ; शिष्यों के समूह का मुखिया, गुरु; मनुष्यों विशेषण गणभर्तुरक्षा कि० ५।४२ 2. गणेश का या जानवरों की टोली का मुखिया, यूथपति,-अन्नम् विशेषण 3. किसी वर्ग का नेता,- भोजनम सहनाज, सहभोजशाला, भोज्यपदार्थ जो बहुत से समान मिलकर भोजन करना, यज्ञः सामूहिक संस्कार, व्यक्तियों के लिए बनाया जाय-मनु० ४।२०९, २१९, ---राज्यम् दक्षिण का एक साम्राज्य, रात्रम् रातों -अभ्यन्तर (वि०) दल या टोली का एक व्यक्ति का समूह,- वृतम् दे० गणछन्दस्, हासः, हासक: (र:) किसी धार्मिक संस्था का सदस्य या नेता--मनु० सुगन्ध द्रव्य की एक जाति । ३११५४,—ईशः शिव का पुत्र गणपति (दे० नी० गण- | गणक (वि०) (स्त्री०-णिका) [गण - - प्रवल | बहुत पति), जननी: पार्वती का विशेषण, भूषणम् सिन्दूर, धन देकर खरीदा हुआ, - क: 1. अङ्कगणित का ज्ञाता ---ईशानः, ईश्वर: 1. गणेश का विशेषण 2. शिव 2. ज्योतिषी---रे पान्थ पुस्तकधर क्षणमत्र तिष्ठ वैद्योका विशेषण,--उत्साहः गैडा,-कार: 1. वर्गीकरण ऽसि कि गणकशास्त्रविशारदोऽसि, केनौषधेन मम करने वाला 2. भीमसेन का विशेषण,--कृत्वस् (अव्य०) पश्यति भर्तुरम्बा कि वागमिष्यति पतिः सूचिरप्रवासी सब कालों में, कई बार,-गतिः एक विशेष ऊँची संख्या, --सुभा०,- की ज्योतिषी की पत्नी। .-चक्रकम् गुणीगण का सहभोज, ज्योनार,- छन्दस् | गणनम् [गण+णिच+ ल्युट् ] 1. गिनना, हिसाब लगाना (नपुं०) पादों द्वारा मापा गया तथा विनियमित छन्द, 2. जोड़ना, गणना करना 3. विचार करना, खयाल --तिथ (वि०) दल या टोली बनाने वाला, --दीक्षा करना, ध्यान रखना 4. विश्वास करना, चिन्तन 1. बहुतों को एक साथ दीक्षा, सामूहिक दीक्षा 2. बहुत करना। से व्यक्तियों का एक साथ दोक्षा-संस्कार,-देवताः गणना [गण+णिच् +युच् ] हिसाब लगाना, विचार करना (ब० व.) उन देवताओं का समह जो प्रायः टोली खयाल कस्ना, गिनती करना का वा गणना सचेतनेषु या श्रेणियों में प्रकट होते हैं-अमर० परिभाषा देता अपगतचेतनान्यपि संघट्टायितुमलं (मदन:)... का० है-आदित्यविश्ववसवस्तुषिता भास्वरानिलाः, महा १५७, (हमें क्या आवश्यकता है : ....तु. कथा) राजिकसाध्याश्च रुद्राश्च गणदेवताः।--द्रव्यम् सार्व मेघ० १०, ८७, रघु० १११६४, शि०१६।५९, अमरु जनिक संपत्ति, पंचायती माल,-धरः 1. किसी वर्ग या ६४ । सम०--गतिः (स्त्री)-गणपति,~-पतिः अङ्कसमूह का मुखिया 2. विद्यालय का अध्यापक, नाथः, गणित को जानने वाला,-महामात्रः वित्तमंत्री। नायक: 1. शिव की उपाधि 2. गणेश का विशेषण, | गणशस् (अव्य०) [गण+-शस् ] दलों में, खेड़ों में, श्रेणी -नायिका दुर्गा की उपाधि,--पः,-पतिः 1. शिव । के क्रम से। For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३३१ ) गणि: ( स्त्री० ) [ गण् +इन् ] विनता । गणिका [गण+टाप् ] 1. रण्डी, वेश्या गुणानुरक्ता गणिका च यस्य वसन्तशोभेव वसन्तसेना -- मृच्छ० १६, गणिका नाम पादुकान्तरप्रविष्टेव टुका दुःखेन पुनर्निराक्रिपते मृच्छ० ५, निरकाशयद्रवित विदालयादपरदिग्गणिका - शि० ९।१० 2. हथिनी 3. एक प्रकार का फूल । गणित ( वि० ) [ गण् + क्त ] 1. गिना हुआ, संख्यात, हिसाब लगाया हुआ 2. खयाल किया हुआ, देखभाल किया हुआ - दे० गण्; -तम् 1. गिनना, हिसाब लगाना 2. गणना विज्ञान, गणित ( इसमें अंकगणित [पाटीगणित या व्यक्त गणित | बीजगणित और रेखागणित सम्मिलित है ) - गणितमथ कलां वैशिकी हस्तिशिक्षां ज्ञात्वा - मृच्छ० ११४ 3. श्रेणी का जोड़ 4. जोड़ । गणित ( पु० ) [ गणित + इनि ] 1. जिसने लगाया है 2. गणितज्ञ । हिसाब गणित ( वि० ) ( स्त्री० नी ) [ गण + इनि । ( किन्हीं वस्तुओं की टोली या खेड़ को रखने वाला, श्वगजिन्, कुत्तों के झुंड को रखने वाला, रघु० ९ ५३, ( पु० ) अध्यापक ( शिष्यों की श्रेणी को रखने वाला ) । गणेय ( वि० ) [ गण् + एय । गिनती किये जाने के योग्य, जो गिना जा सके। गणे | गण + एरु ] कर्णिकार वृक्ष ( स्त्री० ) 1. रंडी 2. हथिनी । गणेरुका [ गणेरु+कै+क ] 1. कुटनी, दूती 2. सेविका । गण्ड: [ गण्ड् + अच् ] 1. गाल, कनपटी समेत मुख का समस्त पार्श्व - गण्डा भोगे पुलकपटलं- मा० २१५, तदीयमार्द्रारुणगण्डलेखम् -- कु० ७१८२, मेघ० २६, १२, अमरु ८१, ऋतु० ४६, ६।१० श० ६/१७, शि० १२/५४ 2. हाथी की कनपटी मा० १११ 3. बुलबुला 4. फोड़ा, रसौली, सूजन, फुंसी-अयमपरो गण्ड स्योपरि विस्फोट: - मुद्रा० ५, तदा गण्डस्योपरि पिटिका संवृत्ता - श० २ 5. गंडमाला या गर्दन के अन्य फोड़ा फुंसी 6. जोड़, गांठ 7. चिह्न, धब्बा 8 गैंडा 9 मूत्राशय 10. नायक, योद्धा 11. घोड़े के साज का एक भाग, आभूषण के रूप में घोड़े के जीन पर लगा हुआ बटन । सम० -- अङ्ग गैंडा, उपधानम् तकिया --मृदुगण्डोपधानानि शयनानि सुखानि च सुश्रु०, - कुसुमम् हाथी की कनपटी से झरने वाला मद, कूपः पहाड़ की चोटी पर बना कुआँ, ग्रामः बड़ा गाँव, देश: - प्रदेश: गाल, फलकम् चौड़ा गाल- - धृतमुग्धगण्डकविभुविकसद्धिरास्यकमलैः प्रमदाः- शि० ९१४७ - भित्तिः (स्त्री० ) 1. हाथी के गंडस्थल का छिद्र जिससे मद झरता है 2. भित्ति की भांति गाल' अर्थात् चौड़े, श्रेष्ठ और प्रशस्त गाल – निधौं तदाना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलगण्डभित्तिः (गजः रघु० ५।४३, (यहाँ मल्लिनाथ कहता है- प्रशस्तौ गंडी गंडभित्ती ) १२ १०२, - मालः --- माला कंठमाला रोग (जिसमें गर्दन की गिल्टियों में सूजन हो जाती है ), मूर्ख ( वि० ) अत्यन्त मूर्ख, बिल्कुल मूढ, शिला बड़ी चट्टान, - शैल: 1. भूचाल या आंधी से नीचे गिराई गई विशाल चट्टान - कि० ७ ३७ 2. मस्तक, साह्वया नदी का नाम, (इसे 'गंडकी' भी कहते हैं ), स्थलम्, -स्थली 1. गाल - गण्डस्थलेषु मदवारिषु - पंच० १।१२३. शृङ्गार० ७, गण्डस्थली: प्रोषितपत्रलेखाः - रघु० ६।७२ अमरु ७७ 2. हाथी की कनपटियाँ । गण्डक: [ गण्ड + कन् ]1. गैंडा 2. रुकावट, बाधा 3. जोड़, गांठ 4 चिह्न, धब्बा 5. फोड़ा, रसौली, फुंसी 6. वियोजन, वियोग 7. चार कौड़ी के मूल्य का सिक्का सम० -बती दे० गंडकी । गण्डका [ गंडक+टाप् ] लौंदा, पिण्ड या डली । गण्डकी [ गण्डक + ङीष् ] 1. एक नदी का नाम जो गंगा में मिल जाती है 2. मादा गैंडा । सम० पुत्रः, - शिला शालिग्राम ( पत्थर का ) । गण्डलिन् (पुं० ) [ गण्डल + इनि ] शिव । गण्डि [ गण्ड + इनि । वृक्ष का तना, जड़ से लेकर उस स्थान तक जहाँ से शाखाएँ आरम्भ होती हैं । गण्डिका [ गण्डक+टाप्, इत्वम् 1. एक प्रकार का कंकड़ 2. एक प्रकार का पेय । गण्डीर: [ गण्ड् + ईरन् ] नायक, शूरवीर । गण्ड: (पुं०, स्त्री० ) [ गण्ड् + ड ऊङ् ] 1. तकिया 2. जोड़, गाँठ । गण्डू (स्त्री० ) 1. जोड़, गाँठ 2. हड्डी 3. तकिया 4 तेल । सम० -- पदः एक प्रकार का कीड़ा, केंचुआ, 'भवम् सीसा, -पदी छोटा केंचुआ । गण्डूष:- बा [ गण्ड् + ऊषन ] ( पानी का) मुहभर, मुट्ठी पर - गजाय गण्डूषजलं करेण: ( ददौ ) कु० ३।३७, उत्तर० ३।१६, मा० ९।३४, गण्डुषजलमात्रेण शफरीफर्फरायते --- उद्भट 2. हाथी के सूंड़ की नोक । गण्डोल: [ गंड -+-ओलच् ]1. कच्ची खाँड़ 2. मुँहभर । गत (भू० क० कृ ) [ गम +क्त] 1. गया हुआ, व्यतीत, सदा के लिए गया हुआ - मुद्रा० ११२५ 2. गुजरा हुआ, बीता हुआ, पिछला - गतायां रात्री 3. मृत, मुर्दा, दिवंगत - कु० ४।३० 4. गया हुआ, पहुँचा हुआ, पहुँचने वाला 5. अन्तर्गत, अन्तः स्थित, बैठा हुआ विश्राम करता हुआ, सम्मिलित ( बहुधा समासों में - प्रासादप्रान्तगतः - पंच० १, बैठा हुआ; सदोगतः - रघु० ३।६६, सभा में बैठा हुआ; इसी प्रकार आद्य सर्वगतः सर्वत्र विद्यमान 6. फँसा हुआ, घटाया गया आपद्गत 7. संकेत करते हुए, संबंध रखते हुए, के For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३२ ) में)-राजा शकुन्ट४, वयमपि भवत्या प्रगतः गतिः (स्त्री०), नाओं से उदासीन, स्पृह (वि.) पति: (स्त्री०) विषय में, की बावत, विषयक, संबद्ध (बहुधा समास | (वि०) 1. मृत, ध्वस्त, जीवनरहित 2. ओछा, में)-राजा शकुन्तलागतमेव चिन्तयति-श० ५, -सन्नकः हाथी जिसका मद न झरता हो,-स्पृह (वि.) सांसारिक विषयवासनाओं से उदासीन । गतं किमपि पृच्छामः ..-श० १, इसी प्रकार 'पुत्रगतः गतिः (स्त्री०) [गम+क्तिन् ] 1. गति, गमन. जाना, स्नेहः' आदि, तम् । गति, जाना- -गतमपरि घनाना चाल -गतिविगलिता ...पंच० ४।७८, अभिन्नगतयः वारिगर्भोदराणाम्-श० ७७, शि० श२ 2. चाल, ----श० १११४, (न) भिदन्ति मन्दां गतिमश्वमुख्यः चलने की रीति-कु० ११३४, विक्रम० ४१६ --कु० ११११, उनकी धीमी चाल को मत सुधारो, 3. घटना 4. यदि समास में प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त इसी प्रकार-गगनगति: पंच०१, लघगति: - मेघ० हो तो इसका 'मुक्त' 'विरहित' 'वंचित' और 'बिना' १६, १०,४६, उत्तर० ६१२३ 2. पहँच, प्रवेश-मणौ शब्दों में अनुवाद करते है। सम०-अक्ष (वि.) बज्रसमुत्कीर्ण सूत्रस्येवास्ति मे गतिः . . रघु० ११४ दृष्टिहीन, अन्धा, अध्वन (वि.) 1. जिसने अपनी 3. कार्यक्षेत्र, गुंजायश--अस्त्रगतिः... कु० ३।१९, मनोयात्रा समाप्त कर ली है 2. अभिज्ञ, परिचित, रथानामगतिर्न विद्यते-कु० ५।६४, नास्त्यगतिमनोर(स्त्री०) चतुर्दशी से युक्त अमावस्या,- अनुगतम् थानाम् विक्रम० २ 4. मोड़, चर्या दैवगतिहि पूर्वोदाहरण या प्रथा का अनुयायी होना,-अनुगतिक चित्रा 5. जाना, पहुँचना, प्राप्त करना- वैकुण्ठीया (वि०) दूसरों की नकल करने वाला, अन्धानुयायी गति:..-पंच० १, स्वर्ग प्राप्ति 6. भाग्य, फल-भर्त-गतानुगतिको लोको न लोक: पारमार्थिकः-पंच० गतिर्गन्तव्या- दश० १०३ 7. अवस्था, दशा दानं १।३४२, लोग भेड़ा चाल चलने वाले वा केवल अंधा- भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य-भत०२।४३, नुकरण करने वाले होते हैं- मुद्रा० ६।५, -अन्त पंच० ११०६ 8. प्रस्थापना, संस्थान, स्थिति, अवस्थिति (वि.) जिसका अन्त समय आ गया है,-अर्थ (वि.) -पराय॑गतेः पितुः--रघु० ८।२७ कुसुमस्तबकस्येव द्वे 1. निधन 2. अर्थ हीन (क्योंकि अर्थ का विधान गती स्तो मनस्विनां-भर्त० २।१०४ पंच० २४१, पहले ही किया जा चुका है),----असु,-जीवित,---प्राण ४२० 9. साधन, तरकीब, प्रणालो, दूसरा उपाय (वि०) समाप्त, मृत-भग० २।११, आगतम् -अनुपेक्षणे द्वयो गतिः -- मुद्रा० ३, का गतिः .. क्या 1. जाना आना, बार २ मिलना--भत० ३।७, भग० हो सकता है ? कुछ नहीं हो सकता (प्रायः नाटकों ९।२१, मुद्रा० ४१ 2. (ज्योतिष में) तारों का में प्रयुक्त होता है) पंच० १३१९, अन्या गति स्ति अनियमित मार्ग,-आधि (वि०) चिन्ताओं से मुक्त, ---का० १५८ 10. आश्रय, रक्षास्थल, शरण, शरणाप्रसन्न, -आयुस् (वि०) जीर्ण, निर्बल, अतिवृद्ध, | गार, अवलंब-विद्यमाना गतियपाम् - पंच०११३२०, --आर्तवा जो ऋतुमती होने की आयु को पार कर ३२२, आसयत् सलिले पृथ्वीं यः स मे श्रीहरिगतिः चुकी हो, बुढ़िया,---उत्साह वि० उत्साहहीन, उदास, ----सिद्धा० 11. स्रोत, उद्गम, प्राप्तिस्थान भग० - ओजस् (वि०) शक्ति या सामर्थ्य से विरहित, २।४३, मनु० १३१० 12. मार्ग, पथ 13. प्रयाग, प्रयात्रा -- कल्मष (वि०) पाप या जुर्म से मुक्त, पवित्रीकृत, (जलूस) 14. घटना, फल, परिणाम 15. घटनाक्रम, -कलम (वि०) पुनः तरोताजा,-चेतन (वि०) बेहोश, भाग्य, किस्मत 16. नक्षत्र पथ 17. ग्रह की अपने ही मूछित, चेतनाहीन,—दिनम् (अव्य०) बीता हुआ कक्ष में दैनिक गति 18. रिसने वाला घाव, नासूर कल,..--प्रत्यागत (वि०) जाकर वापिस आया हुआ 19. ज्ञान, बद्धिमत्ता 20. पुनर्जन्म, आवागमन मनु० मनु० ७.१४६,----प्रभ (वि०) दीप्तिरहित, धुंधला, ६७३ 21. जीवन/की अवस्थाएँ (शैशव, यौवन, वार्धमलिन, मद्धम या म्लान,-प्राण (वि.) जीवरहित, क्य आदि) 22. (व्या० में) उपसर्ग तथा क्रियाविशेषमृत,--प्राय (वि०) लगभग गया हुआ, तकरीबन णात्मक अव्यय (अलं, तिरस् आदि) जब कि यह बोता हुआ-गतप्राया रजनी, -भर्तका 1. विधवा किसी क्रिया या कृदन्तक से पूर्व लगाये जायं। सम० स्त्री 2. (बिरल प्रयोग) वह स्त्री जिसका पति परदेश --अनुसारः दूसरे के मार्ग का अनुगमन करने वाला, गया हो (-प्रोपितभर्तृका), लक्ष्मीक (वि.) - भङ्ग ठहरना, --हीन (वि०) अशरण, निस्सहाय, 1. कान्ति हीन, दीप्ति से रहित, म्लान 2. धन से वञ्चित परित्यक्त। निर्धनोकृत, घाटे की यन्त्रणा से पीडित,... वयस्क | गत्वर (वि.) (स्त्री० ---री) [गम्+क्वरप, अनुनासिक (वि.) बहुत आयु का, वृद्ध, बूढ़ा,- वर्षः,--र्षम् लोपः, तुक्] 1. गतिशील, चर, जंगम 2. अस्थायी, बीता हुआ वर्ष, वैर (वि.) मेल मिलाप से रहने । विनश्वर-गत्वरैरसुभिः --- कि० २०११, गत्वर्यो यौवनवाला, पुनमिलित,-व्यथ (वि.) पीड़ा से मुक्त, श्रियः--११।१२। -शैशव (वि० ) जिसका बचपन बीत गया है,-सत्त्व । गद् (भ्वा० पर०—गदति, गदित) 1. स्पष्ट कहना, कथन For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३३ ) करना, बोलना, वर्णन करना--जगादाने गदाग्रजम् । गन्त (वि०) (स्त्री०-त्री) | गम्+तच ] 1. जो जाता ..--शि० २१६९, बहु जगाद पुरस्तात्तस्य मत्ता किलाहम् है, घूमता है 2. किसी स्त्री से मैथुन करने वाला। --११।३९, शुद्धान्तरक्ष्या जगदे कुमारी--रघु० ६।४५ | गन्त्री [गम् +ष्ट्रन्+ङीष् ] बैलगाड़ी। सम-रयः 2. गणना करना, नि--, घोषणा करना, बोलना, | बैलगाड़ी। कहना-रघु० ॥३३॥ गन्ध (चरा० आ०-गन्धयते) 1. क्षति पहुँचाना, चोट पहँगवः [ गद्+अच् ] 1. बोलना, भाषण 2. वाक्य 3. रोग, चाना 2. पूछना, मांगना 3. चलना-फिरना, जाना। बीमारी-...असाध्यः कुरुते कोपं प्राप्ते काले गदो यथा -..शि० २।८४, जनपदे न गदः पदमादधौ-- रघु० गन्धः [ गन्ध + अच् ] 1. बू, वास्य-गन्धमाघ्राय चोा : -मेघ० २१, अपघ्नन्तो दुरितं हव्यगन्धः--श० ९।४, १७।८१ 4. गर्जन, गड़गड़ाहट, दम एक प्रकार ४७, रघु० १२।२७, (ब० स० के उत्तरपद के रूप का विष । सम० --- अगदौ (द्वि० व०) दो अश्विनी कुमार, देवताओं के वैद्य,—अग्रणीः सब रोगों का राजा में प्रयुक्त होने पर यह शब्द बदलकर 'गन्धि' हो जाता है यदि इससे पूर्व उद्, पूति, सु या सुरभि में से अर्थात् तपेदिक, अम्बरः बादल, अरातिः औषधि, कुछ जोड़ दिया गया है, या समास तुलनार्थक है दवा। अथवा 'गन्ध' का अर्थ 'जरा सा', 'थोड़ा सा है- उदा. गदयित्नु (वि.) [ गद् । णिच् + इत्नुच् ] 1. मुखर, -----सुगन्धि, सुरभिगन्धि, कमलगन्धि मुखम् 2. वैशेवाचाल, बातूनी 2. कामुक, विषयी, नुः कामदेव । षिक दर्शन ने प्रतिपादित २४ गुणों में से एक गुण, गदा [ गद् + अच् + टाप् ] 1. क्रीड़ायष्टि या गदा, मुद्गर वहाँ यह पृथ्वी का गुणात्मक लक्षण है, पथ्वी को 'गन्ध-संचूर्णयामि गदया न सुयोधनोरू--वेणी० १२१५ । वती' कहा गया है-तर्क० सं० 3. वस्तु की केवल सम० - अग्रजः कृष्ण--शि० २।८४, -अग्रपाणि (वि०) गन्धमात्र, जरा सा, बहुत ही थोड़े परिणाम में ..घृतदाहिने हाथ में गदा लिए हुए,-धरः विष्णु की उपाधि, गन्धि भोजनम् - सिद्धा. 4. सुगन्ध, कोई सुगन्धित -भत् (वि०) गदाधारी, गदा से युद्ध करने वाला सामग्री-एषा मया सेविता गन्धयुक्ति:--मच्छ०८, (पुं०) विष्णु की उपाधि,--युद्धम् गदा से लड़ा जाने याज्ञ० ११२३१ 5. गन्धक 6. पिसा हुआ चन्दन चूरा वाला युद्ध, हस्त (वि.) गदा से सुसज्जित । 7. संयोग, सम्बन्ध, पड़ोस 8. घमण्ड, अहङ्गार-जैसा गदिन (वि.) (स्त्री० नी) [गदा+इनि ] 1. गदा कि 'आत्तगन्ध' में,-धम् 1. गन्ध, बू 2. काली अगरघारी--भग० ११११७ 2. रोगग्रस्त, रुग्ण (पुं०) लकड़ी। सम-अधिकम् एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य,---अपकर्षणम् गन्ध दूर करना,- अ (नपुं०) गद्गद (वि.) [गद् इत्यव्यक्तं वदति--गद्+गद्+अच्] सुबासित जल,-अम्ला जंगलो नींबू का वृक्ष, ..अश्मन् हकलाने वाला, हकला कर बोलने वाला—तत्कि (पु.) गन्धक,- अष्टकम् आठ सुगन्ध द्रव्यों का रोदिषि गद्गदेन वचसा- अमरु ५३, गदगदगलस्थ्य मिश्रण जो देवताओं पर चढ़ाया जाय, देवताओं की ट्यद्विलीनाक्षरं को देहीति वदेत् -- भर्त० ३८, सानन्द प्रकृति के अनुसार यह भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है, गद्गदपदं हरिरित्युवाच-गीत० १०,-~-दम् (अव्य०) -आखुः छछुन्दर,- आजीवः सुगन्धों का विक्रेता, अटक-अटक कर बोलने या हकलाने का स्वर.-विल - • ओढ्य (वि.) गन्धसमुद्ध, बहत सुगन्धित-स्रजलाप स वाष्पगद्गदम्-- रघु० ८।४३,--वः, - दम् श्चोत्तमगन्धाढ्या:--महा०, ( दयः ) नारंगी का पेड़ हकलान, अस्पष्ट या उलट-पुलट भाषण । सम. (दयम् ) चन्दन की लकड़ी-इन्द्रियम नाक, घ्राणेन्द्रिय, -ध्वनिः हर्ष या शोक सूचक मन्द अस्पष्ट ध्वनि -इभः,-गजः, -द्विपः, --स्तिन् (पुं०) 'सुवास-- -वाच (स्त्री०) सुबकी आदि से अन्तहित, अस्पष्ट या हाथी' सर्वोत्तम हाथी-शमयति गजानन्यान्गन्धद्विपः उलट-पुलट बाणी,--स्वर (वि.) हकलाने वाले स्वर कलभोऽपि सन-विक्रम० ५।१८, रघु० ६१७, १७१७०, से उच्चारण करने वाला (रः) 1. अस्पष्ट तथा हक- कि० १७११७, उत्तमा मदिरा, शराब,---उतम् सुगलाने का उच्चारण 2. भैसा। न्धित जल,----उपजीविन (पुं०) गन्धद्रव्यों से आजीगद्य (सं० क.) [ गद्+यत ] बोले जाने या उच्चारण विका कमाने वाला, गन्धी,-ओतुः (गन्धोतुः या किए जाने के योग्य-गद्यमेतत्त्वया मम--भदि०६।४७, गधौतु: गन्धबिलाव,-कारिका 1. सुगन्ध द्रव्य बनाने -धम नसर, गद्य रचना, छन्दविरहितरचना, तीन वाली सेविका, शिल्पकार स्त्री जो दूसरे के घर उसके प्रकार (गद्य, पद्य, चम्पू) की रचनाओं में से एक नियन्त्रण में रहती है,--- कालिका–काली (स्त्री० ) ---दे० काव्या० १।११।। व्यास की माता सत्यवती,-काष्ठम् अगर को लकड़ी गवाण (न,—ल) क: ४१ घुघचियों के समान भार, ४१ ---कुटी एक प्रकार का गंधद्रव्य,- केलिका,-चेलिका रत्तियों का वजन । कस्तूरी,-गुण (वि.) गंधगुण वाला, गंधयुक्त, घ्राणम् गदार ( की उपाधि, १७ 2.8 जः, नियप्रिय नारंगी का For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गंध का संघना,जलम् सुवासित, सुगंधित जल,ज्ञा 6. कोयल। सम० -- नगरम,--पुरम् गंधों का नासिका, - तूर्यम बिगुल तथा दंदुभि आदि रणवाद्य नगर, आकाश में एक काल्पनिक नगर, संभवतः मरी---तैलम खुशबूदार तेल, सुगन्धित द्रव्यों से तैयार किया चिका आदि किसी नैसगिक घटना का परिणाम, गया तेल,-दारु (नपुं०) अगर को लकड़ो, द्रव्यम् - राजः चित्ररथ, गंधों का स्वामी, विद्या संगीत सुगन्धित द्रव्य,--धुलि: (स्त्री०) कस्तूरो, नकुलः कला, विवाहः मनु० ३।२७ में वर्णित आठ प्रकार के छ छुन्दर,-नालिका,- नाली नासिका,-निलया एक विवाहों में से एक, इस प्रकार का विवाह यवक और प्रकार की चमेली,-पः एक पितृवर्ग,---पलाशिका हल्दी, यवती की पारस्परिक रुचि और पूर्णतः प्रेम का परि--एलाशी आमा हल्दी की जाति, - पाषाण: गन्धक, णाम है, इसमें न किसी प्रकार की रीनिरस्म की --..पिशाचिका धने का धुआं, (अपनी गंध से पिशाचों आवश्यकता है और न किसी मगे संबंधियों की अनुको आकृष्ट करने के कारण तथा कालेरंग का होने के मति की, कालिदास के कथनानुसार यह है:-- कारण सम्भवतः इसका यह नाम पड़ा है),- पृष्पः कथमध्यबान्धवकृता स्नेहप्रवतिः - श० ४११६,.. वेदः 1. बेत का पीधा 2. केवड़े का पौधा, (पम्) खुशबूदार चार उपवेदों में से एक, जिसमें संगीत कला का फूल -पुष्पा नील का पौधा, -- पूतना भूतनी, प्रेतनी, विवेचन है,-हस्तः, हस्तक: एरंड का पौधा । --फली 1. प्रियगलता 2. चम्पककला,-बधुः आम का गन्धारः (ब०व० [गध । ऋ अण ] एक. देश और वृक्ष, ---- मातृ (स्त्री०) पृथ्वी... मादन: 1. भौरा' उसके शासको का नाम । 2. गन्धक ( नः, - नम्) मेरु पहाड़ के पूर्व में स्थित थत गन्धाली (स्त्री०) 1. भिड़ 2. सतत सुगंध । सम० गर्भः माली | एक पहाड़ जिसमें चंदन के अनेक जंगल हैं..... मादनी होती। मदिरा, शराब,-मादिनी लाख, - मार्जारः गन्धविलाव, लाव, , गन्धाल (बि०) गन्ध- आलब ] सुगंधित, सुवासित, .- मुखा, मूषिकः, ----मूषी (स्त्री०) छछुन्दर, मृगः खः 1. गन्धबिलाव 2. कस्तूरोमग, मैथन: साँड, मोदनः प साडा मादनः गन्धिक (जि०) [गन्ध -..ठन । (केवल समास के अन्त में र गन्धक, मोहिनी चम्पक को कली,-यक्तिः (स्त्री०) प्रयोग) 1. गधवाल। जैसा कि 'उत्पलगन्धिक' 2. लेग सुगन्धद्रव्यों के तैयार करने की कला,--राजः एक प्रकार मात्र रखने वाला--भ्रानगन्धिकः (नाममात्र का भाई), की चमेली (जम्) 1. एक प्रकार का गंधद्रव्य -- कः 1. सुगंधों का विक्रेता 2. गंधक । 2. चंदन की लकड़ी,--लता प्रियंगलता, लोलपा मधु गभस्ति (पुं०, स्त्री०) | गम्यते ज्ञायते गम्-- ड-गः मकवी,-वहः वाय-रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति-श० दिषयः तं विभस्ति, भस्। क्तिच् | प्रकाश की किरण, ५।४, दिग्दक्षिणा गन्धवहं मुखेन - कु० ३।२५,--बहा सर्यकिरण या चन्द्र किरण,- स्तिः (प.) सूर्य (स्त्री०) नामिका,-वाहक: 1. वाय 2. कस्तूरीमग,---वाही अग्नि की पत्नी स्वाहा का विशेषण । मम० -- करः नासिका,-विह्वल: गेहूँ,- वक्षः साल का पेड़, व्या .... पाणिः, हस्तः सूर्य ।। कुलम् कंकोल का पेड़,---शुण्डिनी छछु दर, - शेखरः गभस्तिमत् (पु.) ! गम्ति -- मतप । मयं --- धनव्यपायेन कस्तुरी,-सारः चन्दन, सोमम सफेद कुमदिनी, गभस्तिमानिव रघु० ३१३७, (नपुं०) पाताल के -हारिका गंधकारिका, स्वामिनी के पीछे-पीछे सुगंध सात प्रभागों में से एक । लेकर चलने वाली सेविका । गभीर (वि) [गच्छति जलमत्र; गम् -। ईरन्, नि० गन्धक: [ गन्ध+कन् । गंधक । मुगागमः ] = [ गम्भीर] 1. गहरा उत्तालास्त इमे गन्धनम् [गन्ध + ल्युट ] 1. अध्यवसाय, अविराम प्रयत्न गभीरपयसः पुण्या: सरित्सङ्गमा:---उत्तर० ३०, 2. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, मार डालना । भामि०२११०५ 2. गहरी आवाज वाला (ढोल की 3. प्रकाशन 4. सचना, संसचन, सकेत । भांति) 3. घना, सटा हुआ, (जंगल की भाँति) दुर्गम गन्धवती [गध-मतप +डीप, मस्य वत्वम् ] 1. पृथ्वी, 4. अगाध, मेधावी 5. संगीन, संजीदा, महत्त्वपूर्ण, • 2. शराब 3. व्यास की माता सत्यवती 4. चमेलो का । उद्यत 6. गुप्त, रहस्यपूर्ण 7. गहन, दुर्बोध, दुर्गाए । एक भेद। सम० आत्मन् परमात्मा, वेध (वि०) अत्यन्त गन्धर्वः | गन्ध --अब +अच स्वर्गीय गायक, अर्ध देवों का । भेदक या अन्त: प्रवेशी। वर्ग जो देवताओं के गवैये तथा संगीतज्ञ माने जाते गौरिका [गभीर-कन्+टाप, इत्वम् ] गहरी आवाज है, कहते हैं कि वह कन्याओं के स्वर को मधुर बना वाला बड़ा ढोल। देते है-सोमं शौचं ददावासा गंधर्वश्च शभा गिरम् गभोलिकः ! ? छोटा गावदम किया। याज्ञ० ११७१ 2. गवैया 3. घोड़ा 4. कस्तूरोमग गम् (भ्वा० पर०-- गच्छलि, गत--प्रेर० गमति, सन्नन्त 5. मृत्यु के बाद तथा पुनर्जन्म से पूर्व की आत्मा . -जिगमिति, जिगांगते- आ०) जाना, चलना. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३३५ फिरना - गच्छतु आर्या पुनर्दर्शनाय - विक्रम० ५, ! -गच्छति पुरः शरीरं धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः श० १।३४, क्वाधुना गम्यते -अब आप कहाँ जा रहे हैं ? 2. बिदा होना, चले जाना, दूर जाना, खाना होना, प्रस्थान करना -- उत्क्षिप्येनां ज्योतिरेकं जगाम श० ५।३० 3. जाना, पहुँचना, सहारा लेना, आ जाना, समीप आना - यदगम्योऽपि गम्यते पंच० १७, एनो गच्छति कर्तारम् मनु०८।१९, पाप पापी पर भंडलाता है -४११९, इसी प्रकार - धरण मूर्ध्ना गम् --- आदि 4. गुजरना, बीतना, ( समय का ) व्यतीत होना काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् - हि० १११, गच्छता कालेन अनन्त: 5 अवस्था या दशा को प्राप्त होना, होना, अनुभव करना, भुगतना, भोगना ( प्रायः तान्त और त्वान्त संज्ञाओं के साथ अथवा कर्म की संज्ञा के साथ जुड़ता है ) गमिष्याम्युपहास्यतां रघु० ११३, पश्चादुमाख्यां सुमुखी जगाम - कु० ११२६, उमा नामवाली हुई, इसी प्रकार तृप्ति गच्छति तृप्त हो जाता है, विषाद गतः - - - उदास हो गया, कोपं न गच्छति क्रुद्ध नहीं होता है; आनुष्यं गतः तृण से मुक्त हो गया 6. सहवास करना, मैथुन करना - गुरोः सुता यो गच्छति पुमान्- पंच० २१०७, याज्ञ० ११८०, प्रेर०- 1. भिजवाना, पहुँचाना, (दशा को ) प्राप्त होना 2. उपयोग करना, ( समय की भांति ) बिताना 3. स्पष्ट करना, व्याख्या करना, विवरण देना 4. अर्थ बतलाना, संकेत करना, विचार व्यक्त करना - द्वौ नत्र प्रकृतार्थं गमयतः - 'दो नकार एक सकारात्मक अर्थ को प्रकट करते हैं' अति- दूर जाना, बीत जाना, अधि- 1. अभिग्रहण करना, अवाप्त करना, ले लेना-अधिगच्छति महिमानं चन्द्रोऽपि निशापरिगृहीतः - मालवि० १।१३, खनन्वार्यधिगच्छति मनु० २।२१८, ७३३ भग० २६४, रघु० २६६, ५१३४ 2. निष्पन्न करना, सुरक्षित करना, पूरा करना---अर्थं सप्रतिबंधं प्रभुरधिगन्तु सहायवानेव - मालवि० १।९ 3. समीप जाना, की ओर जाना, पहुँचना, पैठ रखना- गुणालयोऽप्यसन्मन्त्री नृपतिर्नाधिगम्यते पंच० १ ३८४ 4. जानना, सीखना, अध्ययन करना, समझना, तेभ्योऽधिगन्तुं निगमान्त विद्याम् उत्तर० २२३, कि० २१४१ मनु० ७ ३९, याज्ञ० १।९९ 5 विवाह करना, ( पति के रूप में) ग्रहण करना - मनु० ९१९१ अध्या, प्राप्त करना, होना, घटित होना, अनु 1. मिलना-जुलना, पीछे ! चलना, साथ चलना-ओदकान्तात् स्निग्धो जनोऽनुगन्तउप: श० ४, मार्ग मनुष्येश्वरवर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत् रघु ) कि १.२ ११५: प्रच० २०७२ मनु० का ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर देना -- आस्फालितं यत्प्रमदाकरा मृदङ्गधीरध्वनिमन्वगच्छत् रघु० १६।१३, कि० ४१३६, अन्तर, बीच में जाना, सम्मिलित होना, अन्तहित होना, दे० अन्तर्गत अप, 1. दूर चले जाना, जुदा हो जाना, ( समय आदि की भांति ) बीत जाना - पंच० ३१८ 2. ओझल होना, अन्तर्धान होना, से चले जाना; अभि--, निकट जाना, समीप होना, दर्शन करना-एनमभिजग्मुर्ग हर्षयः रघु० १५/५९, कि० १०/२१, - मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः- मनु० १११ 2. मिलना, ( अकस्मात् या संयोग से) घटित होना 3. सहवास करन्म, मैथुन करना - याज्ञ० २।२०५, अभ्या - 1. समीप आना, पहुँचना, निकट आना--सर्वत्राभ्यागती गुरु: - हि० १।१०८ 2. प्राप्त करना, हासिल करना, अभ्युद्, 1. उठना, ऊपर जाना 2. की ओर जाना, मिलने के लिए आगे बढ़ना, अभ्युप, सहमत होना, स्वीकार करना, जिम्मेवारी लेना, मानना, मंजूर करना, अपनाना, अव , 1. जानना, सोखना, विचारना, समझना, विश्वास करना परस्तादवगम्यत एव - श० १, कथं शान्तनित्यभिहिते श्रान्त इत्यवगच्छति मूर्ख :- मृच्छ० १, भग० १०१४१, रघु० ८।८८, भट्टि० ५८१ 2. विचार करना, मानना, समझना ( प्रेर० ) वहन करना, प्रकट करना, संकेत करना, जाहिर करना, कहना भट्टि० १०/६२, आ-, 1. आना, पहुँचना 2. आ जाना, प्राप्त करना, (विशेष दशा को ) पहुँच जाना ( प्रेर0) 1. ले जाना, लाना, बहन करना-- आगमितापि विदूरम् गीत० १२ 2 सीखना, अध्ययन करना- रघु० १०/७१, 3. प्रतीक्षा करना (आ० ), उद् , उठना, ऊपर जाना - असह्य वातोद्गत रेणु मण्डला ऋतु० १।१० अ० पा० 2. अंकुर फूटना, दिखाई देना विक्रम ० ४।२३ 3. उदय होना, निकलना, पैदा होना, जन्म लेना इत्युद्गताः पौरवधूमुखेभ्यः शृण्वन् कथा :- रघु० ७।१६, अमरु ९१4. प्रसिद्ध या विख्यात होना- रघु० १८/२०, उप, 1. जाना, निकट जाना, प्राप्त करना, पहुँचना -- रघु० ६।८५ 2. पैठना, अन्दर घुसना शि० ९१३९ 3. अनुभव करना, भुगतना - तपो घोरमुपागमत् - रामा० 4. अवस्था को प्राप्त होना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना प्रतिकूलतामुपगते हि विधी - शि० ९ ६ तानप्रदायित्वमित्रोपगन्तुम्कु० ११८ 5. मान लेना, स्वीकृति देना, सहमत होना 6. संभोग के लिए स्त्री के निकट जाना सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति मनु० ३ ३४, ४१४०, उपा, 1. आ जाना, पहुँचना ( स्थान पर या व्यक्ति के पास ) 2. पहुँच जाना, अवस्था को चले जाना, प्राप्त करना तृप्तिमुपागतः, पञ्चत्वमुपागतः आदि होतात, प्राप्त करना-याज्ञ० ३।१४३, नि-, 1 पहुँच For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३३६ ) जाना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना, हासिल करना - यत्र दुःखान्तं च निगच्छति - भग० १८/३६, ९/३१ 2. ज्ञान प्राप्त करना, सीखना, निस् (निर्) --, 1. बाहर जाना, जुदा होना- प्रकाश निर्गतः श० ४, हुतवहपरिखेदादाशु निर्गत्य कक्षात् - ऋतु० १।२७, मनु० ९१८३, श० ६।३, अमरु ६१ 2. हटाना, जैसा कि - 'निर्गतविशङ्कः' में 3. ( किसी रोग से चिकित्सा द्वारा ) मुक्त होना परा- 1. वापिस आना, तदयं परागत एवास्मि - उत्तर० ५ 2. घेरना, लपेटना, व्याप्त करना- स्फुटपरागपरागतपङ्कजम् - शि० ६२, परि- 1. जाना, चक्कर लगाना, तं हयं तत्र परिगम्य- रामा०, यथा हि मेरुः सूर्येण नित्यशः परिगम्यते - महा० 2. घेरना, शि० ९२६, भट्टि० १० १, सेनापरिगत आदि 3. सर्वत्र फैलना, सब दिशाओं में व्याप्त होना 4 प्राप्त करना - वृषलताम् -- आदि 5. जानना, समझना, सीखना रघु० ७।१७१ 6. मरना, ( इस संसार से ) चले जाना - वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलु ते भर्त० ३१३८ 7 प्रभावित करना, ग्रस्त करना, जैसा कि - क्षुधया परिगत: --- में, पर्या, 1. निकट जाना, की ओर जाना 2. पूरा करना, समाप्त करना 3. जीतना, अभिभूत करना, प्रति--, 1. वापिस जाना 2. बढ़ना, की ओर जाना प्रत्या--, वापिस आना, लौट आना प्रत्युद् ---, ( सत्कार करने के लिए) आगे जाना, बढ़ना या मिलना - प्रत्युज्जगामा तिथिमातिथेयः -- रघु० ५/२, प्रत्युद्गच्छति मूर्छति स्थिरतमः पुजे निकुञ्ज प्रियः गीत० ११, भामि० ३।३, वि-, ( समय आदि का ) 1. बीत जाना, - सन्ध्ययापि सपदि व्यगमि-शि० ९।१७ 2. ओझल होना, अन्तर्धान होना- सलज्जाया लज्जापि व्यपगमदिव दूरं मृगदृशः- गीत० ११, भग० ११ १, मनु०३/२, ५९, ( प्रेर०) व्यतीत करना, बिताना -- विगमयत्यन्ति एव क्षपाः श० ६।५, विनिस्-, 1. बाहर जाना 2. अन्तर्धान होना, ओझल होना विप्र अलग होना सम्--, ( आ० में प्रयुक्त) 1. मिल जाना, इकट्ठे चलना, मिलना, मुकाबला करना -- अक्षधूर्तेः समगंसि दश०, एते भगवत्यौ कलिन्दकन्यामन्दाकिन्यौ संगच्छेते - अनघं ० ७ 2. सहवास करना, संभोग करना - भार्या च परसंगता - पंच० १।२०८, मनु० ८ ३७८, ( प्रेर० ) इकट्ठा करना, मिलाना या एकत्र करना - रघु० ७।१७. समधि-, 1. निकट पहुंचना 2. अध्ययन करना 3. प्राप्त करना, अभिग्रहण करना यत्ते समधिगच्छन्ति यस्यैते तस्य तद्धनम् - मनु० ८।४१६, समय पूरी तरह से जान लेना, समुपा, 1. पास पहुँचना 2. आ पड़ना । गम ( वि० ) [ गम् + अप् ) ( समास के अन्त में) जाने वाला, हिलने-जुलने वाला, पास जान वाला, पहुँचाने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, प्राप्त करने वाला, हासिल करने वाला आदि खगम, तुरोगम, हृदयंगम आदि मः 1. जाना, हिलना-जुलना 2. प्रयाण करना - अश्वस्यै कागमः 3. आक्रमणकारी का कूच करना 4. सड़क 5. अविचारिता, विचारशून्यता 6. ऊपरीपन, अटकलपच्चू निरीक्षण 7. स्त्री-संभोग, सहवास -- गुर्वङ्गनागमः- मनु० ११५५, याज्ञ० २।२९३ 8. पासे आदि का खेल । सम० आगमः आना-जाना । गमक ( वि० ) ( स्त्री०-मिका ) [ गम् + ण्वुल् ] 1. संके तक, सुझाव देने वाला, प्रणाम, अनुक्रमणी - तदेव गमकं पाण्डित्य वैदग्ध्ययो: मा० १७ 2 विश्वासोत्पादक । गमनम् [ गम् + ल्युट् ] 1. जाना, गति, चाल -- श्रोणीभारादलसगमना मेघ० ८२, इसी प्रकार गजेन्द्रगमने श्रृंगार० ७ 2 जाना, गति ( वैशेषिक इसे पाँच कमों में से एक कर्म समझते हैं ) 3. निकट पहुँचना, पहुँचना 4. अभियान 5. अनुभव करना, भुगतना 6. प्राप्त करना, पहुँचना 7. सहवास । गमिन् ( वि० ) | गम | इनि । जाने के विचार वाला जैसा कि 'ग्रामगमी' (पुं०) यात्री । गमनीय, गम्य (सं० कृ० ) [ गम् + अनीयर्, यत् वा | 1. सुगम, --. उपागम्य विकारस्य गमनीयास्मि संवृत्ता० १ 2. सुबोध, आसानी से समझ में आने योग्य 3. अभिप्रेत, निहित, अर्थयुक्त 4. उपयुक्त, वाञ्छित, योग्य - याज्ञ० १०६४ 5. सहवास के योग्य, दुर्जनगम्या नार्य:- पंच० १ २७८, अभिकामां स्त्रियं यश्च गम्यां रहसि याचितः, नोपैति - महा० 6. ( औषधि आदि से) उपचार योग्य-न गम्यो मन्त्राणाम् भर्तृ० ११८९ । गम्भारिका, गम्भारी [गम् + विच्गम्, तं रामं निम्नर्गात बिभर्ति - गम् + भृ + ल् + टाप्, इत्वम्, गम् भृ + अण् ङीष् ] एक वृक्ष का नाम । गम्भीर (वि० ) [ गंभीर ] रघु० ११३६, मेघ० ६४, ६६,--र: 1. कमल 2. जंबीर, नींबू । सम० – वेदिन् (वि०) (हाथी की भांति) दुर्दान्त, अड़ियल । गम्भीरा, गम्भीरका [गम्भीर + टापू, गम्भीर+कन् + टापु, इत्वम् ] एक नदी का नाम गम्भीरायाः पयसि - मेघ० ४० । गय: 1. गया प्रदेश तथा उसके आस पास रहने वाले लोग 2. एक राक्षस का नाम, या बिहार में एक नगर जो एक तीर्थ स्थान है । गर ( वि० ) ( स्त्री० री) [ गीर्यते गृ+ अच् ] निगलने वाला, रः 1. पेय, शरबत 2. बीमारी, रोग 3. निगलना ('गरा' का भी यही अर्थ है. रः रम् 1. ज़हर 2. विषनाशक औषधि, रम् छिड़कना, तर For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३७ ) करना । सम०-अधिका 1. लाक्षा नामक कीड़ा विष्णु का विशेषण,-अडितम्-अश्मन् (पु.) 2. इस कीड़े से प्राप्त लाल रंग,-नी एक प्रकार की -उत्तीर्णम् पन्ना, ध्वजः विष्णु की उपाधि,-व्यूह मछली,—द (वि०) विष देने वाला, जहर देने वाला एक प्रकार की विशेष सैनिक व्यवस्था दे० (3.) (-वम्) विष,—वतः मोर । ऊपर। गरणम् [ ग+ ल्युट् ] 1. निगलने की क्रिया 2. छिड़कना | गरुत् (पु.) [ग (ग)+ उति ] 1. पक्षी के पर, बाजू 3. विर्ष। 2. खाना, निगलना । सम-योषिन् (०) बटेर। गरभः [ ग|-अभच् ] भ्रूण, गर्भस्थ बच्चा, दे० गर्भ। | गरुत्मत् (वि.) [गरुत् । मतुप् ] पक्षी-गरुत्मदाशीविषगरलः,-लम् [गिरति जीवनम् ---गृ+अलच् तारा० ] भीमदर्शन:-रघु०३।५७, (पुं०) 1. गरुड 2. पक्षी। विष, जहर,-कुवलयदलश्रेणी कण्ठे न सा गरलद्युतिः गहल: [=गरुडः, डस्य ल:] गरुड़, पक्षियों का राजा। —गीत० ३, गरलमिव कलयति मलयसमीरम्-४, | गर्गः [ग+ग] 1. एक प्राचीन ऋषि, ब्रह्मा का एक पुत्र स्मरगरलखण्डनं मम शिरसि मण्डनम-१० 2. साँप का | 2. सांड़ 3. केचुवा (ब० व०) गर्ग की संतान । सम. विष,- लम् घास का गठ्ठड़ । सम० - अरिः पन्ना, –स्रोत: (नपं०) एक तीर्थ। मरकतमणि । गर्गरः [ गर्ग इति शब्दं राति-गर्ग+रा+क] 1. भवर, गरित (वि०) [ गर-इतच् ] विषयुक्त, जिसे जहर दिया जलावर्त 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र 3. एक प्रकार की गया हो। मछली 4. मथानी, दही बिलोने का मटका,-री गरिमन् (पुं०) [गुरु+ इमनिच्, गरादेशः] 1. बोझ, भारी- मथानी, पानी की गागर । पन,-शि० ९।४९ 2. महत्त्व, बड़प्पन, महिमा-पंच० गईट: [ गर्ग इति शब्देन अटति--गर्ग+अट्+अच् ] एक ११३० 3. उत्तमता, श्रेष्ठता 4. आठ सिद्धियों में से प्रकार की मछली। एक सिद्धि जिसके द्वारा अपने आपको इच्छानुसार। गर्ज (म्वा० पर०—चुरा० उभ०-गर्जति, गर्जयति-ते, भारी या हल्का कर सकता है-दे० 'सिद्धि। गर्जित) 1. दहाड़ना, गुर्राना-गर्जन् हरिः साम्भसि गरिष्ठ (वि०) [गुरु+इष्ठन् गरादेशः ] 1. सबसे भारी शैलकुञ्ज-भट्टि० २।९, १५।२१, रणे न गर्जन्ति वृथा '2. अत्यन्त महत्त्वपूर्ण (गुरु शब्द की उत्तमावस्था) हि शूराः-रामा०, हृष्टो गर्जति चातिदर्पितबलो गरीयस् (वि०) [गुरु | ईयसुन्, गरादेशः ] अधिक भारी, दुर्योधनो वा शिखी-मच्छ० ५।६ 2. एक गहरी और अपेक्षाकृत वजनदार, अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण ('गुरु' की गड़गड़ाती हुई गर्जना करना–यदि गर्जति वारिषरो मध्यमावस्था)-मतिरेव बलादगरीयसी-हि०२।८६, गर्जतु तन्नाम निष्ठुराः पुरुषाः--मच्छ० ५।३२, (और वृद्धस्य तरुणी भार्या प्राणेभ्योऽपि गरीयसी---हि० १॥ इस अंक के दूसरे कई श्लोकों में) गर्जति शरदिन ११२, शि० २।२४, ३७ । वर्षति वर्षति वर्षासु निःस्वनो मेघः --उद्भट, अनु-, गरुडः [ गरुद्भ्यां डयते---डी+ड पृषो० तलोपः -ग-1 बदले में गड़गड़ाना, गूंजना---कु० ६।४०, प्रति, उडच ] 1. पक्षियों का राजा (यह 'विनता' नाम की 1. चिंघाड़ना, दहाड़ना (आलं.) 2. मुकाबला करना पत्नी से उत्पन्न कश्यप का पुत्र है, यह पक्षियों का विरोध करना-अयोहृदयः प्रतिगर्जताम्-रघु०९।९। राजा, सांपों का नैसर्गिक शत्र और अरुण का बड़ा | गर्जः [गर्ज+धा ] 1. हाथियों की चिंघाड 2. बादलों भाई है। एक बार इसकी माता और उसकी सौत कद्रु की गरज या गड़गड़ाहट । में 'उच्चैः श्रवा' के रंग के विषय में झगड़ा हुआ, गर्जनम् [ गर्ज +ल्युट् ] 1. दहाड़ना, चिंघाड़ना, गुर्राना, विनता हार गई और शर्त के अनुसार उसे कद्र की गड़गड़ाना 2. (अतः) आवाज, कोलाहल 3. आवेश, दासी बनना पड़ा। गरुड, माता की स्वतन्त्रता क्रोध 4. संग्राम, युद्ध 5. झिड़की। प्राप्त करने के लिए स्वर्ग में इन्द्र के पास गया, वहाँ गर्जा, गजि गर्ज-टाप, गर्ज --इन ] बादलों की गड़गड़ासे साँपों के लिए अमृत का घड़ा लाने में गरुड़ को हट, गरज । उसके साथ जूझना पड़ा, अन्त में वह अमृत प्राप्त गजित (वि.) [ गर्ज+क्त] गर्जा हुआ, चिंघाड़ा हुआ, करने में सफल हुआ, फलत: विनता को स्वतन्त्रता -तम् बादलों की गरज, या गड़गड़ाहट,-स: चिपाडता प्राप्त हो गई। परन्तु इन्द्र अमृत का घड़ा सांपों के हुआ, जिसके मस्तक से मद झरता है। पास से ले गया 1. गरुड को विष्ण की सवारी चित्रित | गर्तः,-तम् [ग+तन् ] कोटर, छिद्र, गुफा-ससत्त्वेषु किया गया है। इसका चेहरा श्वेत, नाक तोते जैसी गतेषु--मनु० ४।४७, २०३, (इस अर्थ में 'गर्ता' भी), पर लाल और शरीर सुनहरी है) 2. गरुड की शक्ल | ---: 1. कटिखात 2. एक प्रकार का रोग 3. एक का बना भवन 3. विशेष सैनिक व्यूह रचना। सम० देश का नाम, त्रिगर्त का एक भाग। सम०--आश्रयः --- अग्रजः सूर्य के सारथि अरुण का विशेषण,--अजूः चूहे की भांति बिल में रहने वाला जानवर। For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३८ ) गतिका [गतः अस्त्यस्याः-गर्त+ठन, 1 जुलाहे का कार खाना, खड्डी, (क्योंकि जुलाहा अपनी खड्डी पर बैठते समय पैर भूमि के नीचे गढे में रखता है)। गई (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०--गर्दति, गर्दयति,-ते) ___ शब्द करना, दहाड़ना। गर्वभः (स्त्री०-----भी) [गर्द +अभच ] 1. गधा--न गर्दभा वाजिधुरं वहन्ति-मच्छ० ४११७, प्राप्ते तु षोडशे वर्ष गर्दभी छप्सरायते-सुभा०, गधे की तीन बड़ी विशेषताएँ है:--अविश्रांतं बहेद्भारं शीतोष्णं च न विदति, ससंतोषस्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात -चाण० ७० 2. गंध, ब,-भम् सफेद कुमदिनी। सम.--अण,-डक: 1. एक वृक्षविशेष 2. वृक्ष, --आह्वयम् सफेद कमल,--गदः चर्मरोगविशेष । गर्षः [गृथ् +घञ, अच् वा ] 1. इच्छा, उत्कंठा 2. लालच । गर्धन, गर्षित (वि.) [गृथ्+ल्युट, क्त वा ] लोभी, लालची। गधिन (वि.) (स्त्री०--नी) [गर्ध+इनि ] 1. इच्छुक, लालची, लोभी-नवान्नामिषधिनः-मनु० ४।२८ | 2. उत्सुकतापूर्वक किसी कार्य का पीछा करने वाली।। गर्भः [ग+भन् ] 1. गर्भाशय, पेट ---गर्भेषु वसतिः-.-पंच० १, पुनर्ग) च संभवम् -मनु० ६।६३ 2. भ्रूण, गर्भस्थ बच्चा, गर्भाधान---नरपतिकूलभूत्य गर्भमाधत्त राज्ञी.-रघु० २१७५, गर्भोऽभवदाजपल्या: -कु० १।१९ ३. गर्भाधान काल-गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनयनम्-मनु० २१३६ 4. (गर्भस्थ) बच्चा श० ६ 5. बच्चा, अण्डशावक 6. किसी वस्तु का अभ्यन्तर, मध्य या भीतरीभाग (इस अर्थ में समस्त पद)-हिमगर्भमयूखं:-श० ३१३, अग्निगर्भा शमीमिव -४११, रघु० ३१९, ५।१७, ९/५५, शि० ९।६२, मा० ३.१२, मुद्रा० १११२7. आकाश-प्रसूति अर्थात् सूर्य किरणों द्वारा आठ मासतक शोषित और आकाश में संचित वाष्पराशि जो बरसात में फिर इस धरती पर बरसती है, तु० मनु० ९।३०५ 8.भीतरी कमरा, प्रसूतिकागृह, जनचा खाना 9. अभ्यन्तरीण प्रकोष्ठ 10 छिद्र 11. अग्नि 12. आहार 13. कटहल का कटीला छिलका 14. नदी का पाट, विशेषतः भाद्रपद चतुर्दशी को गंगा का जब कि वर्षाऋतु अपने यौवन पर होती है तथा दरिया उमड़ कर चलते हैं। सम०-अङ्कः (गर्भऽङ्कः भी) अंक के बीच में विष्कभक जैसा कि उत्तर रामचरित के सातवें अंक में कुश और लव के जन्म का दृश्य, या बालरामायण में सोतास्वयंवर, सा. द०परिभाषा देता है-अबोदर प्रविष्टो योरङ्गद्वारामुखा- . दिमान् अङ्कोऽपरः स गर्भाङ्कः सबीजः फलवानपि । . २७९.-अबक्रान्तिः (स्त्री०) आत्मा का गर्भ में प्रविष्ट । होना,---आगारम् 1. बच्चेदानी 2. भीतरी कमरा, निजी कमरा, अन्तः पुर 3. प्रसूतिकागृह 4. मन्दिर का पूजाकक्ष, जहाँ देवता की मूर्ति स्थापित रहती है, ---आधानम् 1. गर्भ रहना, गर्भधारण गर्भाधानक्षणपरिचयान्नूनमावद्धमाला: (बलाकाः)-मेघ० ९ 2. एक संस्कार, ऋतु-स्नान के पश्चात् एक शद्धि संस्कार (यह संस्कार ही धार्मिक पक्ष में विवाह की पूर्णता को वैध ठहराता है) याज्ञ० ११११,--आशयः योनि, बच्चेदानी, आस्रायः गर्भ का कच्चा गिरना, गर्भपात, --- ईश्वरः जन्म से ही धनी, जन्मजात धनी, पैदाइशी राजा या रईस,- उत्पत्तिः भ्रूण की रचना,-- उपधातः कच्चे गर्भ का गिर जाना,-उपघातिनी वह गाय या स्त्री जिसे बिना ऋतु के गर्भ का स्राव हो जाय,-कर (वि.) गर्भ धारण करने वाला,---कालः ऋतु काल, गर्भधारण का समय, कोशः,-बः गर्भाशय, बच्चेदानी, -क्लेशः गर्भधारण करने का कष्ट, प्रसव की पीड़ा, ----क्षयः गर्भ की कच्ची अवस्था में गिर जाना,--गहम, --भवनम् - वेश्मन् (नपुं०) 1. घर के भीतर का कमरा, घर का मध्यभाग 2. प्रसूतिकागृह 3. मन्दिर का वह कक्ष जिसमें देवता की प्रतिमा स्थापित हो --निर्गत्य गर्भभवनात् --मा० १,--ग्रहणम् गर्भधारण, गर्भ होना,--- धातिन (वि०) गर्भपात कराने वाला, - ..चलनम्, गर्भस्पन्दन, गर्भाशय में बच्चे का हिलनाडोलना, च्युतिः (स्त्री०) 1. जन्म, प्रसूति 2. गर्भस्राव, ----दासः, ---सी जन्म से ही गलाम (तिरस्कार सूचक शब्द), --बुह (वि०) (कर्तृ० ए० व० ध्रुक) गर्भपात करने वाला,--धरा गर्भवती,-धारणं-धारणा गर्भस्थिति, गर्भ में सन्तान को रखना, ध्वंसः गर्भपात, - पाकिन (पु०) साठ दिन में पकने वाला धान, साठी चावल,-पातः चौथे महिने के बाद गर्भ का गिर जाना,--पोषणम्, - भर्मन् (नपुं०) गर्भस्थ बालक का पालन-पोषण-अनुष्ठिते भिषम्भिराप्तरथ गर्भभर्मणि - रघु० ३१४२-मण्डपः शयनागार, प्रसूतिकागृह, -~-मासः वह महीना जिस में गर्भ रहे,--मोचनम् प्रसव, बच्चे का जन्म,– योषा गर्भवती स्त्री (आलं०) चढ़ी हुई गंगा जब कि उसका पानी किनारों से बाहर बहता हो,-रक्षणम् गर्भस्थ बालक की रक्षा करना,-रूपः, -रूपकः बच्चा, शिशु, तरुण,- लक्षणम् गर्भ हो जाने का चिह्न--लम्भनम् गर्भ की रक्षा और उसके विकास के लिए किया जाने वाला एक संस्कार, वसतिः (स्त्री०)-वास: 1. गर्भाशय-मनु० १२१७८ 2. गर्भाशय में रहना,--विच्युतिः (स्त्री०) गर्भाधान के आरम्भ ही में गर्भस्राव हो जाना,-वेदना प्रसवपीडा, ---व्याकरणम् गर्भ की उत्पत्ति और वृद्धि,-शडकः एक प्रकार का औजार जिससे मरे हुए बच्चे को पेट से निकाला जाता है,-शव्या गर्भाशय,-संभवः-संभूतिः For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३९ ) (स्त्री०) गर्भवती होना,--स्थ (वि०) 1. गर्भाशय में | गा (वि०) गह+ण्यत् ] निन्दनीय, निन्दा के योग्य, विद्यमान 2. अभ्यन्तर, आन्तरिक, खायः गर्भ गिर | कलंक दिये जाने के योग्य-गीं कुर्यादुभे कुले-मनु० जाना, गर्भ का कच्ची अवस्था में बह जाना-वरं गर्भ- ५।१४९ । सम०-वादिन (वि.) अपशब्द कहने स्राव:--पंच० १, याज्ञ० ३।२० मनु० ५।६६ । वाला, दुर्वचन बोलने वाला। गर्भक: [ गर्भ-कन् ] बालों के बीच धारण की हुई पुष्प- | गल (भ्वा० पर०-गलति, गलित) 1. टपकाना, चुआना, माला,-कम दो रातों और उनके बीच के दिन का | पसीजना,-चूना-जलमिव गलत्युपदिष्टम् ...का० १०३, समय। अच्छकपोलमलगलितैः (अश्रुभिः)-अमरु० २६९१, गर्भग्डः [गर्भस्य अण्ड इव ष० त०] नाभि का बढ़ जाना। भामि० २।२१, रघु० १९।२२ 2. टपकना, या गिरना गर्भवती [गर्भ+मतुप+डीप, बत्वम् ] गभिणी स्त्री। -- शरदमच्छगलद्वसनोपमा-शि० ६४२, ९।७५, गर्भिणी [ गर्भ+इनि+डीप ] गर्भवती स्त्री (चाहे मनुष्य प्रतोदा जगलुः-भट्टि०१४।९९, १७१८७, गलद्धम्मिल्ल की हो या पशु की)--गोगभिणीप्रियनवोलपमालभारि- - गीत० २, रघु०७।१०, मेघ० ४४ 3. ओझल होना, सेव्योपकण्ठविपिनावलयो भवन्ति-मा० ९।२, याज्ञ० अन्तर्धान होना, गुजर जाना, हट जाना---शैशवेन सह १६१०५, मनु० ३।११४ । सम०- अवेक्षणम् दाईपना, गलति गुरुजनस्नेहः- का० २८९, विद्यां प्रमादगलिगर्भवती स्त्री और नवजात बच्चे की सेवा और परि- तामिव चिन्तयामि-चौर०, भत० २१४४, भट्टि. चर्या,-दोहवम् गर्भवती स्त्री की प्रबल इच्छाएँ या रुचि, ५।४३, रघु० ३१७० 4. खाना, निगलना (ग से -व्याकरणम्,-व्याकृतिः (स्त्री०) (आयुर्वेद शास्त्र का संबद्ध)-प्रेर० या चुरा० उभ० (भू० क. कृ० एक विशेष अङ्ग ] गर्भ के विकास का विज्ञान । -गलित)--1. उड़ेलना 2. निथारना, निचोड़ना गभित (वि.) गर्भ+इतच ] गर्भयक्त, भरा हुआ। 3. बहना (आ०), निस्-, टपकना, रिसना, चूना-रघु० गर्भतप्त (वि.) [अलक स० त०] 1. बालक को भांति ५।१७, पर्या-, टपकाना, भट्टि० २१४, वि-1. टप गर्भ में ही संतुष्ट 2. आहार और सन्तान के विषय में काना- विक्रम० ४।१० 2. टपकना, चूना 3. ओझल __ संतुष्ट 3. आलसी। होना, अन्तर्धान होना। गर्मुत् (स्त्री०) [ग--उति, मट ] 1. एक प्रकार का घास | गल: [ गल+अच् ] 1. कंठ, गर्दन-न गरलं गले कस्तू2. एक प्रकार का नरकुल 3. सोना । रीयं- तु० अजागलस्तन:-भर्त० ११६४, अमरु ८८ गर्व (म्वा० पर०-गर्वति, गर्वित) घमंडी या अहंकारी 2. साल वृक्ष की लाख 3. एक प्रकार का वाद्ययन्त्र । होना, (केवल भू० क० कृ० के रूप में प्रयुक्त, जो कि सम० --- अङ्कुरः गले का एक विशेष रोग (सूजन), विशेषण ही समझा जाता है और गर्व से बना है) --उजुवः घोड़े की गर्दन के बाल, अयाल,--ओघः कोऽर्थान्प्राप्य न गवित:--- पंच० १११४६ ।। गले की रसौली,-कम्बल: गाय बैल की गर्दन का नीचे पर्वः [गर्व+घञ 11. घमंड, अहंकार—मा कुरु धनजन- लटकने वाला चमड़ा, झालर,--गण्डः गंडमाला, गले का यौवनगवं हरति निमेषात्काल: सर्वम् - मोह. ४, मुधे- एक रोग जिसमें गांठ सी निकल आती है,—प्रहः, दानी यौवनगर्व वहसि- मालवि०४ 2. अलं० शास्त्र —ग्रहणम्, 1. गला पकड़ना, गला घोटना, श्वासावरोध म ३३ व्यभिचारिभावों में से एक- रूपधनविद्यादि- करना 2. एक प्रकार का रोग 3. मास में कृष्णपक्ष के प्रयुक्तात्मोत्कर्षज्ञानाधोनपरावहेलनं गर्व:-रस०, या कुछ दिन---अर्थात् चौथ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, सा० द. के अनुसार-गो मदः प्रभावश्रीविद्यासत्कू- त्रयोदशी और तीन इससे आगे के,-चर्मन् (नपुं०) लतादिजः, अवज्ञासविलासाङ्गदर्शनाविनयादिकृत् । अन्ननाली, गला,--- द्वारम् मुंह,--मेखला हार,-वार्त गर्वार: [ गर्व+अट् + अच् ] चौकीदार, द्वारपाल । (वि०) 1. गले की क्रिया में निपुण, खूब खाने और गई (म्वा०, चुरा० आ० (कभी कभी पर० भी)-गर्हते, हजम करने वाला, तन्दुरुस्त, स्वस्थ-दृश्यन्ते चैव तीर्थेषु गर्हयते, गहित 1. कलंक लगाना, निन्दा करना, झिड़की गलवास्तिपस्विन:-पच० ३, अने० पा० 2. पिछलग्ग, देना - विषमां हि दशां प्राप्य देवं गर्ह यते नरः-हि. चाटुकार,--व्रतः मोर,---शुण्डिका उपजिह्वा, ४।३, मनु० ४११९९ 2. दोषी ठहराना, आरोप लगाना --शुण्डी गर्दन की ग्रन्थियों की सूजन,-स्तनी ('गले 3. खेद प्रकट करना, वि--, कलंकित करना, निन्दा स्तनी' भी) बकरी, हस्तः 1. गले से पकड़ना, गला - करना, झिड़की देना-तं विगर्हन्ति साधवः-मनु० ९४६८, घोटना, अर्धचन्द्र या गरदनिया 2. अर्धचन्द्राकार ३।४६, १११५२ ।। बाण, तु० अर्धचन्द्र,--हस्तित (वि०) गले से पकड़ा गहणम्, -णा [ गई + ल्युट्, गह+युच्+टाप् ] निन्दा, | हआ, गर्दनिया देकर निकाला हुआ, गला घोटा हुआ। कलंक, झिड़की, दुर्वचन । गलक: [ गल+बुन् ] 1. कण्ठ, गर्दन 2. एक प्रकार की महाँ [ गर्ह+अ+टाप् ] दुर्वचन, निन्दा। मछली। For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४० ) गलनम् [ गल+ ल्युट ] 1. रिसना, चूना, टपकना 2. चूना, | 1. स्फटिक 2. वैदूर्यमणि 3. कटोरा, शराब पीने का पिषल जाना। गिलास। गलन्तिका, गलती [गल-शत+कोष, नुम्,+कन्+टाप् | गल्ह (भ्वा०-आ०--ल्हते, गल्हित) कलंक लगाना, इत्वम्,-गल+शत+डीए, नुम् ] 1. छोटा घड़ा | निन्दा करना। 2. छोटा पड़ा जिसकी पेंदी में छेद करके देव मूर्ति पर गव [ कुछ समासों, विशेष कर स्वरों से आरंभ होने वाले टांग देते हैं, जिससे कि उस छेद से बराबर जल टप- शब्दों के आरम्भ में 'गो' शब्द का स्थानापन्न पर्याय ] कता रहता है। सम०-अक्षः रोशनदान, झरोखा--विलोलनेत्रभ्रमरैगलि: [ गरि, उस्य लः, गल+इन वा ] हृष्ट पुष्ट परन्तु गवाक्षाः सहस्रपत्राभरणा बभूवुः-रघु० ७।११, कुवमट्ठा बैल । दे० गडि। लयितगवाक्षां लोचनैरङ्गनाना-७१९३, कु. ७५८, गलित (भू० क. कृ०) [गल+क्त ] 1. टपका हुआ, मेघ० ९८, जालम्-जाली, झिलमिली,-अक्षित नीचे गिरा हुआ 2. पिघला हुआ 3. रिसा हुआ, बहता (वि.) खिड़कियों वाला,--अग्रम् गौंवों का झुंड हुमा 4. नष्ट, ओझल, वञ्चित 5. बंधन-रहित, ढीला (गोऽग्रम्, गोअग्रम् या गवाग्रम् लिखा जाता है), 6. खाली हुआ, चू चू कर जो खाली हो गया हो ---अदनम् चरागाह, गोचरभूमि,-अदनी 1. चरागाह 7. छाना हुआ 8. क्षीण, निर्बल किया हुआ। सम० 2. खोर, नांद जिसमें पशुओं के खाने के लिए घास -कृष्ठम् बढ़ा हुआ या असाध्य कोढ़ जब कि हाथ रक्खा जाता है,-अधिका लाख,--अर्ह (वि.) गाय पैर की अंगुलियों भी गल कर गिर जाती है,-वन्त के मूल्य का, अविकम् गाय और भेड़ें, अशनः (वि.) दन्तहीन,—पयन जिसकी आँखों में देखने की 1. मोची 2. जाति से बहिष्कृत, अश्वम बैल और घोड़े, शक्ति न रहे, अंधा। -आकृति (वि.) गाय की शक्ल वाला,-आह्निकम् गलितकः [गलित इव कायति-के+क] एक प्रकार का प्रतिदिन गाय को चारा देने की नाप,--इन्द्र: 1. गौंओं नृत्य। का स्वामी 2. बढ़िया बैल,--शि.,-श्वरः मौओं का गलेगः [अलक स० त०] एक पक्षी जिसके गले से मांस स्वामी, उदः सर्वोत्तम गाय या बैल। की थैली सी लटकती रहती है। गवयः गो+अय+अच] बैल की जाति-गोसदृशो गलम् (भ्वा० आ०-गल्भते, गल्भित) साहसी या विश्वस्त गवय:-तर्क०-दृष्ट: कथंचिद्गवये विविग्न:-कु० ११५६, होना, प्र--, साहसी या आत्म विश्वासी होना-या ऋतु० ११२३। कथंचन सखीवचनेन प्रागभिप्रियतमं प्रजगल्भे-शि० | गवालक: [गवाय शब्दाय अलति-गव+अल+ऊका ] १०१८, न मौक्तिकच्छिद्रकरी शलाका प्रगल्भते कर्मणि =-गवय । टरिकायाः-विक्रमांक १११६, टांकी का काम करने | गविनी/गो+इनि+डीप ] गोओं का झंड या लहंडा । में सक्षम या साहसी नहीं हो सकता। गवेः-,--धुका [ ? ] पशुओं को खिलाने का चारा, गरम (वि.) [गल्भ् +अच् ] साहसी आत्मविश्वासी, । घास । जीवट का। गवेरुकम् गेरू। गल्या [गलानां कण्ठानां समूहः-गल+यत्+टाप् ] गवेष (भ्वा० आ०--चरा० पर. - गवेषते, गवेषयति, कण्ठों का समूह। गवेषित) 1. ढूंढना, खोजना, तलाश करना, पूछ ताछ गल्ल[गल+ल] गाल, विशेषकर मुख के दोनों किनारों करना-तस्मादेष यतः प्राप्तस्तत्रवान्यो गवेष्यताम का पार्श्ववर्ती गाल (अलं० शास्त्री इस शब्द को -कथा० ५५, १७६ 2. प्रयत्न करना, उत्कट इच्छा 'प्राम्य' अर्थात् गंवारू मानते हैं-तु०, काव्य०७ में करना, प्रबल उद्योग करना-गवेषमाणं महिषीकुलं दिए गए उदाहरण का-ताम्बूलभूतगल्लोऽयं भल्लं - जलम्-ऋतु० १२१।। जल्पति मानुषः, परन्तु तु. भवभूति के प्रयोग की | गवेष (वि०) [गवेष्+अच् ] खोजने वाला,-ष: खोज, -----पातालप्रतिमल्लगल्लविवरप्रक्षिप्तसप्तार्णवम्-मा० पूछताछ। ५।२२। सम-चातुरी गाल के नीचे रखा जाने गवेषणम्,-णा [गवेष+ ल्युट, युच+टाप् वा ] किसी - वस्तु की खोज, या तलाश । गल्लक गिल+क्विप,गल, तंलाति ला+क, तत: स्वार्थ गोषित (वि.) [गवेष+क्त ] खोजा हुआ, ढूंढा हुआ, कन् ] 1. शराब का गिलास 2. पुखराज, नीलमणि, | तलाश किया हुआ। देनी. 'गल्वर्क। गव्य (वि.) [गो+यत् ] 1. गौ आदि पशुओं से युक्त मी: मदिरा पीने का प्याला । 2. गौओं से प्राप्त दूध, दही आदि 3. पशुओं के लिए गाव: [गर्मणिभेदः तस्य बर्को दीप्तिरिव-ब. स. ] उपयुक्त,-म्पम् 1. गौगों की हेड, मवेशी 2. गोचर गलबाला छोटा गोल मातुरी गाल के नाणवम्-माः | For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३४१ भूमि 3. गाय का दूध 4. धनुष की डोरी 5. रंगीन बनाने की सामग्री, पीला रंग, -- व्या 1. गौओं की हेड 2. दो कोस के बराबर दूरी 3. धनुष की डोरी 4. रंग देने की सामग्री, पीला रंग । गव्यूतम्, -ति: ( स्त्री० ) [ गो: यूतिः पृषो० ] 1. एक कोस यादो मील की दूरी की माप 2. दो कोस के बराबर दूरी का माप । गह, (चुरा० उभ०- -- गहयति - ते ) 1. ( जंगल की भांति ) संघन या सांद्र होना 2. गहराई तक पहुँचना । गम ( वि० ) [गह + ल्युट् ] 1. गहरा, सघन, सांद्र 2. अभेध, अप्रवेश्य, अलंघ्य, दुर्गम 3. दुर्बोध, अव्याख्येय, रहस्यपूर्ण - सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्य: -- पंच० १।२८५, भर्तृ० २।५८, गहना कर्मणो गतिः- भग० ४।१७, शा० १३८ 4. कठोर, कठिन पीडाकर, कष्टकर - गहनः संसारः - - शा० ३।१५ 5. गहरा किया हुआ, तीव्र किया हुआ मा० १1३०, - नम् 1. गह्वर, गहराई 2. जंगल, झाड़ी या झुरमुट, घोर या अप्रवेश्य जंगल - - यदनुगमनाय निशि गहनमपि शीलितम् - गीत० ७, भामि० १।२५ ३. छिपने का स्थान 4. गुफा 5. पीडा, दुःख । गह्वर ( वि० ) ( स्त्री० - रा - री) [गह, + वरच् ] गहरा, दुस्तर, — रम् 1. रसातल, अथाह खाई 2. झाड़ी या झुरमुट, जंगल 3. गुफा, कन्दरा गौरीगुरोर्गह्वरमा विवेश - रघु० २।२६, ४६, ऋतु० १२१ 4. दुर्गम स्थान 5. छिपने की जगह 6. पहेली 7. पाखंड 8. रोना, चिल्लाना, – रः लतामण्डप, निकुंज, री 1. गुफा, कंदरा, खोह । [+ डा ] गाना, लोक । गाङ्ग (वि०) (स्त्री०--- -गी) [ गङ्गा + अण् ] गंगा में या गंगा पर होने वाला 2. गंगा से प्राप्त या गंगा से आया हुआ---गाङ्गमम्बु सितमम्बु यामुनं कज्जलाभमुभयत्र मज्जतः - काव्य ० १०, कु० ५/३७, ग: 1. भीष्म का विशेषण 2. कार्तिकेय की उपाधि, गम् 1. विशेष प्रकार का वर्षा का जल (जो स्वर्गीय गंगा से आने वाला माना जाता है) 2. सोना । गाङ्गट:, - टेयः [ गाङ्ग + अट् - अच्, शक० पररूप, पृषो० ] झींगा मछली, या जलवृश्चिक । गाङ्गानि [गङ्गा + फि ] भीष्म या कार्तिकेय का नाम । गाङ्गेय ( वि० ) ( स्त्रिी० - यी ) [ गङ्गा + ढक् ] गंगा पर या गंगा में होने वाला - यः भीष्म या कार्तिकेय का नाम - यम् सोना । गाजरम् [ गाजं मदं राति, गाज + रा+क ] गाजर | गाञ्जिकाय: - बत्तख । गाढ (भू० क० कृ० ) [ गाह् + क्त ] 1. डुबकी लगाया हुआ, गोता लगाया हुआ, स्नान किया हुआ, गहरा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) घुसा हुआ 2 बार २ डुबकी लगाया हुआ, आश्रित, संघन या घना बसा हुआ - तपस्विगाढां तमसां प्राप नदीं तुरंगमेण -- रघु० ९।७२ 3. अत्यंत दबाया हुआ, कस कर खींचा हुआ, पक्का, मंदा हुआ, कसा हुआ - गाढाङ्गदे बहुभिः -- रषु० १६/६०, गाढालिङ्गन -अमरु ३६, घुट कर छाती से लगाना - चौर० ६ 4. सघन, सांद्र 5. गहरा, दुस्तर 6. बलवान्, प्रचण्ड, अत्यधिक तीव्र - गाढोत्कण्ठाललितलुलितै रङ्गकंस्ताम्यतीति मा० ११५, मेघ० ८३, प्राप्तगाढप्रकम्पाम् -श्रृंगार० १२, अमर ७२, गाढतप्तेन तप्तम्- मेघ ० १०२, -ढम् ( अव्य० ) ध्यानपूर्वक, जोर से, अस्यधिकता के साथ, भरपूर, प्रचण्डता से, बलपूर्वक । सम० - मुष्टि (वि०) बन्द मुट्ठी वाला, लोलुप, कंजूस, (ष्टिः) तलवार | गाणपत (वि०) (स्त्री० - - ती ) गणपति- अणु 1 1. किसी दल के नेता से संबंध रखने वाला 2. गणेश से संबंध रखने वाला । गाणपत्यः [ गणपति + यक् ] गणेश की पूजा करने वाला, - श्यम् 1. गणेश की पूजा 2. किसी दल का नेतृत्व, चौघरात, नेतृत्व । गाणिक्यम् [गणिकानां समूहः- या ] रंडियों का समूह । गाणेश: [ गणेश + अण् ] गणेश की पूजा करने वाला । गाण्डि (डी) वः, बम् [गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां व पूर्वपद दीर्घो विकल्पेन ] अर्जुन का बाण ( यह बाण सोम ने वरुण को दिया, वरुण ने अग्नि को और अग्नि ने अर्जन को, जबकि खांडव वन को जलाने में उसने अग्नि की सहायता की) गाण्डिवं स्रंसते हस्तात् - भग० १।२९ 2. धनुष । सम० - धम्बन् (पुं०) अर्जुन का विशेषण – मेघ० ४८ । गाण्डीविन् (पुं० ) [ गाण्डीव + इनि ] अर्जुन का विशेषण, तृतीय पांडव राजकुमार - वेणी० ४ । गातागतिक ( वि०) (स्त्री० की) [ गतागत + ठक् ] जाने आने के कारण उत्पन्न । गातानुगतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ गतानुगत + ठक् ] अंधानुकरण से अथवा पुरानी लकीर का फकीर बनने से उत्पन्न । गातुः [गै+तुन् ] 1. गीत 2. गाने वाला 3. गंधर्व 4. कोयल 5. भौंरा । गात (पुं० ) ( स्त्री० – त्री ) 1. गवैया 2. गंधर्व । गात्रम् [गै + त्रन्, गातुरिदं वा, अण् ] 1. शरीर, अपचित मपि गात्रं व्यायतत्वादलक्ष्यं श० २४, तपति तनुगात्रि मदनः – ३।१७ 2. शरीर का अंग या अवयव - गुरुपरितापानि न ते गात्राण्युपचारमर्हन्ति श० ३११८, मनु० ३।२०९, ५।१०९ 3. हाथी के अगले पैर का ऊपरी भाग । सम० -- अनुलेपनी For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ३४२ ) उबटन,-आवरणम् ढाल,-उत्सावनम् सुगंधित पदार्थों 'गंधर्व विवाह') 3. सामवेद का उपवेद जो संगीत से से शरीर को साफ करना, कर्षण (वि०) शरीर को संबंध रखता है 4. घोड़ा,-म गंधयों की कला अर्थात कृश या दुर्बल बनाने वाला-मार्जनी तोलिया,-यष्टिः गाना-बजाना,-कापि बेला चारुदत्तस्य गान्धर्व श्रोतुं दुबला पतला शरीर--रघु० ६८१,-हम् रोंगटे, गतस्य–मुच्छ०३। सम-वित्त (वि.) जिसके बाल, लता दुबला-पतला और सुकुमार शरीर, मन पर गंधर्व ने अधिकार कर लिया है,-शाला इकहरा बदन, संकोचिन् (पुं०) झाऊ चूहा, साही संगीतभवन, गायनालय। (उछलते या छलांग लगाते समय यह अपने शरीर को | गान्धर्व (वि) कः [गांधर्व+कन, गन्धर्व+ठक] गया। सिकोड़ लेता है-इसीलिए यह नाम पड़ा),-संप्लवः | गान्धारः [गन्ध+अण् =गान्ध++अण् । भारतीय सरछोटा पक्षी, गोताखोर । गम के सात प्रधान स्वरों में तीसरा (संगीत के संकेतों गायः [गै+थन् ] गीत, भजन । में बहधा 'ग' से प्रकट किया जाता है) 2. सिंदूर गायक:-विक: [गै+थकन, गाय+ठन् ] 1. संगोतवेत्ता, | 3. भारत और पर्शिया के बीच का देश, वर्तमान कंधार गया 2. पुराणों अथवा धार्मिक काव्यों का लय के 4. उस देश का नागरिक या शासक । साथ गायन करने वाला। | गान्धारिः गान्ध+ +इन] शकुनि का विशेषण, दुर्योधन गावा [गाथ+टाप् ] 1. छन्द 2. धार्मिक श्लोक या छन्द का मामा। जो वेदों से संबंध न रखता हो 3. श्लोक, गीत 4. एक ] गान्धारी [गान्धारस्यापत्यम्-इञ ] गांधार के राजा सुबल प्राकत बोली। सम...कारः प्राकृत काव्यकार।। की पुत्री तथा धृतराष्ट्र की पत्नी (गांधारी के १०० गाधिका [गाथा+कन्+टाप, इत्वम् ] गीत, श्लोक पुत्र--एक दुर्योधन तथा ९९ उसके भाई-हुए। --याश०११४५। उसके पति धृतराष्ट्र अंधे थे इसलिए वह सदैव अपनी गाष (भ्वा० आo-गाधते, गाधित) 1. खड़ा होना, आँखों पर पट्टी बांधे रखती थी (संभवतः अपने आप ठहरना, रहना 2. कूच करना, गोता लगाना, डबकी को अपने पति की स्थिति में लाने के लिए), जब लगाना-गाधितासे नभो भूयः -- भट्टि० २२२२, कौरव सबके सब मर गये तो गांधारी और धृतराष्ट्र ८1१3. खोजना, तलाश करना, पूछ-ताछ करना अपने भतीजे युधिष्ठिर के साथ रहे) । 4. संकलित करना, गुथना या धागे में पिरोना। | गान्धारेयः [गान्धार्या अपत्यम्-तुक] दुर्योधन का विशेषण । गाव (वि.) [गा+घश ] तरणीय, जो बहुत ठहरा | गान्धिकः [गन्ध-+-ठक] 1. सुगंधित द्रव्यों (इतर तेल फलेल न हो, उथला-सरितः कुर्वती गाघाः पथश्चाश्यानकर्द- आदि) का विक्रेता, गंधी 2. लिपिकार, करणिक, मान्--रघु० ४।२४, तु० अगाध,-धम् 1. उथली या -कम् सुगंधित द्रव्य (इतर तेल फुलेल आदि) छिछली जगह, घाट 2. स्थान, जगह 3. लालसा, -पण्यानां गान्धिकं पण्यं किमन्यैः काञ्चनादिक:-पंच. अतितृष्णा 4. पेंदी। १२१३ । गाषिः,गाधिन (पं.) गा+इन्, गाघ-+ इनि] विश्वा- | गामिन (वि. गिम णिति (केवल ममास के अंत में मित्र के पिता का नाम (वह इन्द्र का अवतार तथा प्रयुक्त) 1. जाने वाला, घूमने वाला, सैर करने वाला राजा कौशाम्ब के पुत्र के रूप में उत्पन्न माना जाता -वैदिशगामी-मालवि. ५, मगेन्द्रगामी-रघु० है)। -जः,-नन्दनः-पुत्रः विश्वामित्र का विशेषण, २।३०, शेर की चाल चलने वाला-कुब्ज-पंच० --नगरम्-पुरम् कान्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) का २१५, अलस' अमरु ५१ 2. सवारी करने वाला विशेषण। --द्विरद-रघु० ४।४ 3. जाने वाला, पहुँचनेवाला, पाषेयः गाधि+ढक विश्वामित्र की उपाधि । लागू करने वाला, संबंध रखने वाला-ननु सखीगामी गानम् [गै+ल्युट्] गाना, भजन, गीत। दोषः-श० ४, द्वितीयगामी न हि शब्द एष नः मान्त्री [गन्त्री+अण्+डीप्] बैलगाड़ी। -रघु० ३।४९ 4. नेतृत्व करने वाला, पहुँचने वाला, गान्दिनी गो+दा+णिनि, पृषो०] 1. गंगा का विशेषण घटने वाला--चित्रकूटगामी मार्गः, कर्तुगामि क्रिया 2. काशी की एक राजकुमारी, स्वफल्क की पत्नी फलम् 5. संयुक्त-सदृशभर्तगामिनी--मालवि. ५ तथा अक्रूर की माता। सम०-सुतः 1. भीष्म 6. देनेवाला, सौंपने वाला--श०६, याज्ञ० २।१४५ । 2. कार्तिकेय तथा 3. अक्रूर का विशेषण। गाम्भीर्यम् [गम्भीर+ष्य] 1. गहराई, थाह (जल या गान्धर्व (वि.) (स्त्री०-ची) [गन्धर्वस्येदम्-अण] गंधों ध्वनि आदि को) 2. गहराई, अगाधता (अर्थ या से संबंध रखनेवाला,-4: 1. गायक, दिव्य गवैया चरित्र आदि की)-समुद्र इव गाम्भीर्य-रामा०, शि. 2. आठ प्रकार के विवाहों में से एक-गान्धर्वः समया- | श५५, रघु० ३१३२। म्मियः-याशं० १११६१, (व्याख्या के लिए दे० । गायः [गै+घा गाना, भजन, गीत-याज्ञः ३१११२ । For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायक: [ग+वुल गवैया, संगीतवेत्ता-न नटा न विटा ।। के द्वारा स्थायी रूप से रक्खी जाने वाली तीन यज्ञान गायका:--भर्त० ३।२७ । ग्नियों में से एक, यह अग्नि पिता से प्राप्त की जाती गायत्रः, त्रम् [गायत्री+अण्] गीत, सूक्त । है तथा सन्तान को सौंप दी जाती है, इसी से यश में गायत्री गायन्तं त्रायते-गायत्+त्रा+क+हीप] 1. २४ अग्न्याधान किया जाता है, तु. मनु० २।२३१ मात्राओं का एक वैदिक छंद--गायत्री छन्दसामहम् 2. वह स्थान जहाँ यह अग्नि रक्खी जाती है, स्यम् एक -भग० १०॥३५ 2. संध्या (प्रातः और सायम् ) के परिवार का प्रशासन, गृहपति का पद और प्रतिष्ठा । समय प्रत्येक ब्राह्मण के द्वारा बोला जाने वाला गुरु-गाह मेध (वि.) (स्त्री०-धी) [गृहमेधस्येदम्-अण] गृहमंत्र; इसके जप से बहुत से पापों का प्रायश्चित पति के लिए योग्य या समुचित,-धः पाँच यज्ञ जिनका होता है, वह मंत्र यह है:--तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य अनुष्ठान गृहपति को नित्य करना होता है। धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्-ऋक्० ३।६२।१०, | गार्हस्थ्यम् [गृहस्थ+ष्यञ] 1. गृहस्थ पुरुष के जीवन की -त्रम गायत्री छंद में रचित तथा सस्वर उच्चरित अवस्था या क्रम, घरेलू काम काज, गृहस्थी 2. गृहपति सूक्त । के द्वारा नित्य अनुष्ठेय पंचयज्ञ । गापत्रिन् (वि.) (स्त्री०-णी) [गायत्र+इनि] वेद सूक्तों | गालनम् [गल+णि+ल्यट] 1. (तरल पदार्थ का) छन का गायक, विशेष कर सामवेद के मंत्रों का गायन कर रिसना 2. प्रचंड ताप से गल जाना, गलना, __ करने वाला। पिघलना। गायनः (स्त्री०-नी) [गै+ल्युट गवैया--तर्थव तत्पौरुष-गालव. [ गल+घञ, तं वाति--वा+क] 1. लोध्र गायनीकृता:-०१११०३, भर्त० ३।२७, अने पा०, वृक्ष 2. एक प्रकार का आवनस 3. एक ऋषि, विश्वा--नम् 1. गाना, गीत 2. गायन विद्या से अपनी आजी- मित्र का शिष्य (हरिवंश पुराण में उसे विश्वामित्र विका चलाने वाला। का पुत्र बतलाया गया है। गारुड (वि०) (स्त्री०-डी) [गरुडस्येदम्- अण्] 1. गरुड गालिः [गल-इन् ] अपशब्द, दुर्वचन, गाली--ददतु ददतु की शक्ल का बना हुआ 2. गरुड से प्राप्त या गरुड गालीलिमन्तो भवन्तो वयमपि तदभावाद्गालिदानेसे संबंध रखने वाला,-ड:,-डम् 1. पन्ना-रघु० १३॥ ऽसमर्थाः ---भर्त० ३३१३३ । ५३ 2. साँपों के विष को उतारने का मंत्र-संग्रहीत- | गालित (वि०) [ गल+णिच+क्त ] 1. छाना हुआ गारुडेन-का० ५१ 3. गरुड द्वारा अधिष्ठित अस्त्र 2. (अर्क की भांति) खींचा हुआ 3. पिघलाया हुआ, 4. सोना। ताप से लगाया हुआ। गारुडिकः गारुड+ठक] जादू मंत्र करने वाला, ऐन्द्र- | गालोड्यम [ गलोड्य+अण ] कमल का बीज । जालिक, जहरमोरा या विषनाशक ओषधियों का गावलगणिः [ गवलाण-इन 1 संजय का विशेषण, गवविक्रेता। लगण का पुत्र। गारुत्मत (वि०) (स्त्री०-ती) गरुत्मान् अस्त्यस्य-अण्] गाह (भ्वा० आo---गाहते, गाढ या गाहित) डुबकी 1. गरुड की आकृति का बना हुआ 2. (अस्त्र की लगाना, गोता लगाना, स्नान करना, (पानी जैसे भांति)-गरुडाधिष्ठित- रघु० १६१७७,-तम् पन्ना । पदार्थ में) डुबोना-गाहन्तां महिषा निपानसलिलं गार्दभ (वि०) (स्त्री०-भी) [गर्दभस्येदम् --- अण्] गधे शृङ्गमहुस्ताडितम् -श० २१६, गाहितासेऽथ पुण्यस्य से प्राप्त या गधे से संबद्ध, गर्दभसंबंधी। गङ्गामूर्तिमिव द्रुताम्-भट्टि० २२।११, १४१६७ (आलं. गाद्धघम् [गर्द्ध+व्या ] लालच,-शि० ३।७३ ।। भी); मनस्तु मे संशयमेव गाहते-कु० ५।४६, संशयों गाधं (वि.) (स्त्री०-धी) [गध्रस्यायम--अण] गिद्ध से में डुबा हुआ या संशयाल 2. गहराई में घुसना, बैठना, उत्पन्न,--धं: 1. लालच (प्रायः 'गार्थ्य' का अर्थ) घमना-फिरना-कदाचित्काननं जगाहे-का० ५८, 2. बाण। सम- पक्षः,-वासस् (पुं०) गिद्ध के ऊन न सत्त्वेष्वधिको बबाधे तस्मिन्वनं गोप्तरि गाहपरों से युक्त बाण। माने- रघु० २।१४, मेघ० ४८, हि० १।१७१, कि० गार्भ (वि.) (स्त्री-भी) , [गर्भ साधु-अण् ठक् वा] १३१२४ 3. आलोडित करना, क्षब्ध करना, हिचकोले गाभिक (स्त्री-की) (वि.)] 1. गर्भाशयसंबंधी, भ्रूणवि- देना, बिलोना 4. लीन होना (अधिक के साथ) षयक 2. गर्भावस्थासंबंधी-मन् ०२।२७ ।। 5. अपने आपको छिपाना 6. नष्ट करना,-अब-, गाभिणम्-ण्यम् गिभिणीनां समहः भिक्षा अण] गर्भवती ('अ' को प्रायः लुप्त करके) 1. डुबकी लगाना, स्नान स्त्रियों का समूह । करना, गोता लगाना-तमोपहन्त्री तमसां बगाह्य-रघु० गार्हपतम् गृहपतेरिदम्-- अण्] गहपति का पद व प्रतिष्ठा । १४१७६, स्वप्नेऽवगाहतेऽत्यर्थं जलम्-याज्ञ. १२२७२ गार्हपत्यः [गृहपतिना नित्यं संयुक्तः, संज्ञायां त्र्य] 1. गृहपति । 2. घुसना, पैठना, पूरी तरह व्याप्त होना-पूर्वापरौ For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोयनिधी वगाय स्थितः पृथिव्या इव मानदंड:-कु० वज,---कदम्बः,-बकः, कदंब वृक्ष की जाति--कन्दर १११, ७/४०, उप-, घुसना, प्रविष्ट होना, वि-, गुफा कन्दरा,- कणिका पृथ्वी,-काणः एक आँख से 1. गोता लगाना, डुबकी लगाना, स्नान करना--- अन्धा या एक आँख वाला व्यक्ति,-काननम् पहाड़ी (दीपिकाः) स व्यगाहत विगाढमन्मथ:- रघु० १९४९ निकुंज,---कटम् पहाड़ की चोटी,-गंगा एक नदी का 2. प्रविष्ट होना, पैठना, व्याप्त होना (आल० भी) नाम,-गुडः गेंद,---गुहा पहाड़ की गुफा,-चर (बि०) -विषमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसामिवाशयः पहाड़ पर घूमने वाला-गिरिचर इव नाग: प्राणसार -कि० २१३, रघु० १३।१ 3 आन्दोलित करना, बिति-श० ३।४ (-रः) चोर,-ज (वि०) विक्षुब्ध करना-विगाह्यमानां सरयं च नोभिः-रघु० पहाड़ पर उत्पन्न (जम्) 1. अबरक 2. गेरू 3. गुग्गुल १४१३०, सम्--, धुसना, अन्दर जाना, पैठना--सम- 4. शिलाजीत 5. लोहा (-जा) 1. (हिमालय की गाहिष्ट चाम्बरम्-भट्टि० १५।६९ । पुत्री) पार्वती 2. पहाड़ी केला 3. मल्लिका लता माहः [गाह+घञ ] 1. डुबकी लगाना, गोता लगाना, 4. गंगा का विशषण,तनयः, नन्दनः -सुत: स्नान करना 2. गहराई, आम्यन्तर प्रदेश । 1. कार्तिकेय का विशेषण 2. गणेश का विशेषण, पप्तिः गाहनम् [गाह.+ल्युट ] डुबकी लगाना, गोता लगाना, शिव का विशेषण, °मलम् अबरक,-जालम् पर्वतमाला, स्नान करना-आदि। ---स्वरः इन्द्र का वज,-दुर्गम पहाड़ी किला, पहाड़ माहित (वि.) [गाह+क्त ] 1. स्नान किया हुआ, पर विद्यमान दुर्ग-नदुर्ग गिरिदुर्ग वा समाश्रित्य गोता लगाया 2.पंदा हुआ, धुसा हुआ-दे० गाह, । वसेत्पुरम्--मनु० ७/७०,७१,-द्वारम् पहाड़ी मार्ग, निम्नुक: [गेन्दुकः पृषो.] 1. गेंद 2. एक वृक्ष का नाम | -धातुः गेरू..- ध्वजम् इन्द्र का वज,-नगरम् दे 'गेंदुक'। दक्षिणापथ में विद्यमान एक जिला,-नदी (नदी) गिर (स्त्री०) [ +क्विप् ] (कर्तृ०, ए० व०-गी:, पहाड़ी नदी, छोटा चश्मा या नदी,--ण (नड) करण० वि० व०-गीाम् आदि) 1. भाषण, शब्द, (वि०) पहाड़ों से घिरा हुआ,--- नन्दिनी 1. पार्वती भाषा--वचस्यवसिते तस्मिन् ससर्ज गिरमात्मभूः-कु. 2. गंगानदी 3. दरिया (पहाड़ से निकलकर बहने २१५३, भवतीनां सूनुतयेव गिरा कृतमातिथ्यम् -२० वाला)-कलिन्दगिरिनन्दिनीतटसुरद्रुमालम्बिनी-भामि० १, प्रवृत्तिसाराः खलु मादशा गिरः-कि० १०२५, ४॥३, --णितम्बः (नितम्बः) पहाड़ का ढलान,-पील: शि० २२१५ याज्ञ. ११७१ 2. सरस्वती का आवाहन, एक फलदार वृक्ष, फालसा,-पुष्पकम् शिलाजीत, स्तुति, गीत 3. विद्या और वाणी की देवी सरस्वती। -पृष्ठ: पहाड़ की चोटी,-प्रपात: पहाड़ का ढलान, सम....देवी (गीदेवी) वाणी की देवी सरस्वती, ---प्रस्थः पहाड़ की समतल भूमि,-प्रिया सुरा, गाय, --पतिः (गीः पतिः, गीपतिः, गीपतिः ) 1. देव- -भिद् (पुं०) इन्द्र का विशेषण,-भू (वि०) पहाड़ ताओं के गुरु बृहस्पति 2. विद्वान् पुरुष,-रथः पर उत्पन्न (भः --स्त्री) 1. गंगा का विशेषण (गीरथः) बृहस्पति,-या (बा) ण (गीर्वाणः) देव, 2. पार्वती का विशेषण,-मल्लिका कुटज वृक्ष,---मानः देवता-परिमलो गीर्वाणचेतोहर:-भामि० ११६३, ८४ । हाथी. एक विशालकाय हाथी, --- मद, - मद्भवम् गेरू गिरा [गिर+क्विप्+टाप्] वाणी, बोलना, भाषा, .-राज (प.) 1. ऊँचा पहाड़ 2. हिमालय का आवाज। विशेषण, --राजः हिमालय पहाड़,-ग्रजम् मगध में गिरि (वि.) [ग+इ किच्च ] श्रद्धेय, आदरणीय, पूज विद्यमान् (राजगृह) एक नगर का नाम,---शालः एक नीय,-रिः '1. पहाड़, पर्वत, उत्थापन –पश्याध: प्रकार का पक्षी,-शृङ्गः गणेश का विशेषण,-(गम्) खनने मूढ गिरयो न पतन्ति किम् --श्रृंगार० ----१९, पहाड़ की चोटी,--षद् (सद्) (०) शिव का विशेननु प्रवातेऽपि निष्कम्पा गिरयः--श०६ 2. विशाल पण,-सानु (नपु०) पठार, अधित्यका, सारः 1. लोहा चट्टान 3. आँख का रोग 4. संन्यासियों की सम्मान 2. टीन 3. मलय पहाड़ का विशेषग-सुत: मैनाक सूचक उपाधि--उदा० आनन्दगिरि 5. (गण में) पहाड़,-सुता पार्वती का विशेषण,-सवा पहाड़ी नदी। आठ की संख्या 6. गेंद ( जिससे बच्चे खेलते हैं), गिरिकः, गिरियकः, गिरियाकः [ गिरि।-कै--क, गिरि -रि: (स्त्री) 1. निगलना 2. चहा, मूसा (इस 1 +या-1-क-कन, गिरि+या+क्विप -कन् ] गेंद । अर्थ में 'गिरी' भी लिखा जाता है) । सम-इन्द्रः गिरिका [ गिरि कन्टाप ] छोटा चूहा।। 1. ऊँचा पहाड़ 2. शिव का विशेषण 3. हिमालय | गिरिशः [गिरौ कैलास पर्वते शेने-गिरि--शी+ड बा] पहाड़,-ईश: 1. हिमालय पर्वत का विशेषण 2. शिव शिव का विशेषण - प्रत्याहतास्त्रो गिरिशप्रभावात् का विशेषण-सुतां गिरीशप्रतिसक्तमानसाम्-कु० । -रघु० २४१, गिरिशमुपचचार प्रत्यहं सा सुकेशी ५/३,-कच्छप: पहाड़ी कछुवा,कष्टकः इन्द्र का -कू०११६०, ३७। For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४५ ) गिल (तुदा० पर-गिलति, गिलित) निगलना (वस्तुतः | गोणिः (स्त्री०) [ गु+क्तिन् ] 1. प्रशंसा 2. यश यह कोई स्वतंत्र धातु नहीं, बल्कि 'ग' से सम्बद्ध हैं)। 3. खा लेना, निगल जाना। गिल (वि०) [गिल+क] जो निगलता है, उदरस्थ करगु (तुदा० पर०-गुवति, गून) विष्ठा उत्सर्ग करना, लेता है-उदा० तिमिङ्गिलगिलोऽप्यस्ति तदगिलोप्यस्ति | मलोत्सर्ग करना, पाखाना करना। राघवः --दे० तिमिङ्गिल,----ल: नींबू का वृक्ष । सम० | गुग्गुलः,-लुः [गुज+क्विप् =गुक रोगः ततो गुडति ---गिल:--ग्राहः मगरमच्छ, घड़ियाल । रक्षति-गुक्+गुड्+क (कु) डस्य लकारः ] एक गिलनम्, गिलिः (स्त्री०) [गिल+ल्युट, गिल+इन् ] प्रकार का सुगंधित गोंद, राल, गुग्गल । निगलना, खा लेना। गुच्छः [गु+क्विप्=गुत् तं श्यति-गुत् +शो+क] गिलायुः गले के भीतर एक कड़ी गाँठ या रसौली। 1. बंडल, गुच्छा 2. फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, (वृक्षों गिलि (रि) त (वि.) [गिल+क्त] खाया हुआ, का)झंड-अक्ष्णोनिक्षिपदञ्जनं श्रवणयोस्तापिच्छगच्छानिगला हुआ। वलिम्—गीत० ११, मनु० ११४८ शि० ६५० गि (गे) ष्णुः [गै+इष्णुच् आद्गुणः] 1. गवैया 3. मयूरपंख 4. मोतियों का हार 5. बत्तीस लड़ियों 2. विशेषकर वह ब्राह्मण जो सामवेद के मन्त्रों का का मुक्ता हार (कुछ के मतानुसार ७० लड़ियाँ) गायन करने में चतुर हो, सामगायक । सम-अधः चौबीस लड़ियों का मोतियों का हार गीत (भू० क० कृ०) [गे+क्त ] 1. गाया हुआ, अलापा (र्षः, धम्) आधा गुच्छा,-कणिशः एक प्रकार का हुआ (शा०)-आर्य साधु गीतम-श०१, चारणद्वन्द्व अनाज,-पत्रः ताड़ का पेड़,—फल: 1. अंगूर की बेल गीतः शब्दः-श० २११४ 2. घोषणा किया हुआ, 2. केले का वृक्ष । बतलाया हुआ, कहा हुआ-गीतश्चायमर्थोङ्गिरसा-मा० गुच्छक: [ गुच्छ+कन् ] दे० 'गुच्छ' । २, ('गे' के नीचे भी दे०),-तम् गाना, भजन, गुज (भ्वा० पर०-गोजति, बहुधा म्वा० पर० गुञ्ज -तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं हत:-०११५, --गुञ्जति, गुञ्जित या गुजित) गुंगू शब्द करना, गीतमुत्सादकारि मृगाणाम् -- का० ३२ । समक गुंजार करना, गूंजना, भनभनाना,-न षट्पदोऽसौ न --अयनम् गाने का साधन या उपकरण अर्थात् वीणा जुगुज य: कलम्- भटि० २।१९, ६।१४३, १४१२, बंसरी आदि,--क्रमः गीत का गानक्रम,-- (वि.) उत्तर० २।२९-अयि दलदरविन्द स्यन्दमानं मरन्दं तव गानकला में प्रवीण,-प्रिय (वि.) गाने बजाने का। किमपि लिहन्तो मञ्ज गुञ्जन्तु भङ्गा:-भामि० ११५। शौक़ीन (यः) शिव का विशेषण, -मोदिन् (पु.) | गुजः [गुज्+क ] 1. भिनभिनाना, गूंजना 2. कुसुमस्तवक, किन्नर, शास्त्रम् संगीत विद्या। फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता--तु० गुच्छ । सम० गीतकम् [ गीत+कन् ] स्तोत्र, भजन । -कृत् भौंरा । गीता [गै+क्त+टाप् ] (बहुधा गुरु-शिष्य संवाद के रूप | गुञ्जनम् । गुञ् + ल्युट ] मन्द-मन्द शब्द करना, भिन में) संस्कृत पद्य में लिखे गये कुछ धार्मिकग्रंथ जो भिनाना, गंजना। विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का गजा [गञ्ज+अच-टाप्] गुंजा नाम की एक छोटी झाड़ी प्रतिपादन करते हैं-उदाः शिवगीता, रामगीता, भगवद् जिसके लाल बेर जैसे फल लगते हैं, घंघची-अन्तविषगीता आदि, परन्तु यह नाम केवल अन्तिम ग्रन्थ (भगवद्- मया ह्येता बहिश्चैव मनोरमाः, गुजाफलसमाकारा गीता) तक ही सीमित प्रतीत होता है --- गीता सुगीता योषितः केन निर्मिता:-पंच०१।१६९, किं जातु गुञ्जाकर्तव्या किमन्यः शास्त्रविस्तरैः, या स्वयं पद्मनाभस्य फलभषणानां सूवर्णकारेण बनेचराणाम--विक्रमांक० मुखपद्माद्विनि सता - श्रीधर स्वामी द्वारा उद्धृत । २५ 2. इस झाड़ी का फल, गुंजा जो १५ट ग्रेन के गीतिः (स्त्री०) [गै-क्तिन् ] 1. गीत, गाना-अहो राग बराबर वजन की होती है, या कृत्रिम रूप से जिसका परिवाहिणी गीतिः श० ५, श्रुताप्सरोगीतिरपि क्षणेऽ तोल २३ ग्रेन की भाप का समझा जाता है 3. गुंजार स्मिन् हरः प्रसंख्यानपरो बभूव-कु० ३।४० 2. एक मंद-मंद गुंजन का शब्द 4. ढपड़ा, ताशा,-- भटि छंद का नाम, दे० परिशिष्ट । १४।२ 5. मधुशाला 6. चिंतन, मनन । गीतिका [गीति+कन्+टाप् ] 1. छोटा गीत 2. गाना। ना। गुञ्जिका [गुञ्जा+कन् +टाप्, इत्वम्] धुंधची। गरि गीतिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ गीत+इनि ] जो गाकर | गुञ्जितम् [गुज+क्त भनभनाना, गुनगुनाना-स्वच्छन्द सस्वर पाठ करता है---गीती शीघ्री शिर:कम्पी तथा दलदरविन्द ते मरन्दं विदन्तो विदधत गञ्जितं मिलिन्दाः लिखितपाठक:--शिक्षा ३१। । - भामि० १।१५, न गुञ्जितं तन्न जहार यन्मनः गीर्ण (वि०) [ग+क्त ] 1. निगला हुआ, खाया हुआ | - भट्टि० २।१९। 2. वर्णन किया गया, स्तुति किया गया (दे० ग)। । गुटिका [गु+टिक्-गुटि - कन्+टाप्] 1. गोली 2. गोल For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३४६ ) कंकड़, कोई छोटा गोला या पिंड - लोष्टगुटिका: क्षिपति मुच्छ० ५ 3. रेशम के कीड़े का कोया 4. मोती - निधैति हारगुटिकाविशदं हिमाम्भः रघु ० ५।७० । सम० - अञ्जनम् एक प्रकार का सुर्मा । गुटी [गुटि + ङीप् ] दे० 'गुटिका' । गुड: [ गुड् + क] 1. शीरा, राब, ईख के रस से तैयार किया हुआ गुड - गुडधानाः - सिद्धा०, गुडीदन:- याज्ञ० १।३०३, गुडद्वितीयां हरीतकी भक्षयेत्- सुश्रु० 2. भेली, frण्ड 3. खेलने की गेंद 4. मुंहभर, ग्रास 5. हाथी का जिरहबख्तर, कवच गुड का शरबत, उद्धवा शक्कर, कर उबाले हुए मीठे चावल, तृणम्, – दायः, द ( नपुं०) गन्ना ईख, धेनुः (स्त्री०) दूध देने वाली गाय, जो प्रतीक रूप से गुड की बना कर ब्राह्मणों को उपहार में दी जाय - पिष्टन् गुड के लड्डू, - फल: पीलू का पेड़, शर्करा खांड, शृङ्गम् - गुड द्रावणी कलश, - हरीतकी गुड में रक्खी हुई हरें, मुरब्बे की हरं । | सम० --- उदकम् ओदनन् गुड डाल गुड [ गुड + कन् ] 1. पिण्ड, भेली 2. ग्रास 3. तैयार की हुई औषधि । गुड से गुडलम् [गुड + ला+क] गुड़ से तैयार की हुई शराब । गुडा [ गुड +टाप् ] 1. कपास का पौधा 2. बटो, गोली । jarat [safaintaयति देहेन्द्रियादीनि इति गुडः तमा कति प्रकाशयति गुड + आ + कै + क + टाप् ] 1. तन्द्रा 2. निद्रा । सम० ईश: 1. अर्जुन का विशेषण, - मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमर्हसि - ११७, ( गीता में और कई स्थानों पर ) 2. शिव का विशेषण । - भग० गुडगुडायनम् [गुडगुड इत्येवमयनं यस्य -- ब० स०] खांसी आदि के कारण कण्ठ से गुडगुड की आवाज निकलना । गुडेर: [ गड् + रक् ] 1. पिण्ड, भेली 2. कौर, टुकड़ा 1 गुण ( चुरा० उभ० – गुणयति - ते, गुणित ) 1. गुणा करना 2. उपदेश देना 3. निमंत्रित करना । गुणः [ गुण् + अच्] 1 धर्म, स्वभाव ( बुरा या अच्छा ) दुर्गुण, सुगुण 2. (क) अच्छी विशेषता, विशिष्टता उत्कर्ष, श्रेष्ठता कतने ते गुणाः या० १, रघु० १९, २२, साधुत्वे तस्य को गुणः पंच० ४ १०८, (ख) गौरव 3. उपयोग, लाभ, भलाई ( करण० के साथ) मुद्रा० १1१५4. प्रभाव, परिणाम. फल, शुभ परिणाम 5. धागा, डोरी, रस्सी, डोर मेखलागुणैः - कु०४/८, ५।१०, यतः परेषां गुणग्रहीतासि - भामि० १९१९ ( यहाँ 'गुण' का अर्थ विशिष्टता भी है) 6. धनुष की डोरी - गुणकृत्ये धनुषो नियोजिता कु० ४०१५, २९, कनकपिङ्गतडिद्गुणसंयुतम् - रघु०९/५४ 7. वाद्ययंत्र के तार शि० ४।५७ 8. स्नायु 9. खूबी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेषण, धर्म- मनु० ९।२२ 10 विशेषता, सब पदार्थों का धर्म या लक्षण, वैशेषिक के सात पदार्थों में से एक ( गुणों की संख्या २४ है ) 11. प्रकृति का अवयव या उपादान, समस्त रचित वस्तुओं से संबद्ध तीन गुणों में से कोई एक ( यह हैं - सत्व, रजस् और तमस् ) -- गुणत्रयविभागाय - कु० २/४, भग० १४1५, रघु० ३।२७ 12. बत्ती, सूत का धागा 13. इन्द्रियजन्य विषय ( यह पाँच रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द ) 14. आवृत्ति, गुणा (संख्याओं के बाद समास के अन्त में लगकर प्राय: 'तह' या 'गुणा या वार' को प्रकट करता है ) --माहारो द्विगुणः स्त्रीणां बुद्धिस्तासां चतुर्गुणा, षड्गुणो व्यवसायश्च कामश्चाष्टगुणः स्मृतः - चाण० ७८, इसी प्रकार त्रिगुण, – शतगुणी भवति - सोगुना हो जाता है 15. गौण तत्त्व, आश्रित अंश ( विप० मुख्य ) 16. आधिक्य, बहुतायत, बहुलता 17. विशेषण, वाक्य में अन्याश्रित शब्द 18. इ, उ, ऋ तथा ल के स्थान में ए, , ओ, अर और अल्, अथवा अ, ए, ओ, अर् और अल स्वर का आदेश 19. (अलं० शा ० में) रस का अन्तर्निहितगुण, मम्मट के अनुसार---ये रसस्याङ्गिनो धर्माः शौर्यादय इवात्मनः, उत्कर्ष हेतवस्ते स्युरचलस्थितयो गुणाः -- काव्य ०.८, (अलं० शा ० के प्रणेता वामन पंडित जगन्नाथ, दण्डी तथा अन्य विद्वान् गुणों को शब्द और अर्थ दोनों का धर्म समझते हैं तथा प्रत्येक के दस दस प्रकार बतलाते हैं। परन्तु मम्मट केवल तीन गुण मानता है और दूसरों के विचारों की समालोचना करने के पश्चात् कहता है: - माधुयोजः प्रसादाख्यास्त्रयस्ते न पुनर्दश - काव्य० ८ ) 20. ( व्या० ओर मी० में) शब्द समूह का अर्थ, धर्म या गुण माना जाता है, उदा० वैयाकरण शब्दार्थ के चार प्रकार मानते हैं:--जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य, इन अर्थों को समझाने के लिए क्रमश. प्रत्येक का गौः, शुक्लः, चल: और डित्थ:-- उदाहरण देते हैं 21. ( राजनीतिशास्त्र में ) कार्य करने का समुचित प्रक्रम, सही रीति (विदेशराजनीति विषयक छः रीतियाँ राजाओं के द्वारा व्यवहायं बतलाई गई हैं--- 1. संधि, शान्ति, सुलह 2. विग्रह, युद्ध 3 यान, चढ़ाई करना 4. स्थान या आसन अर्थात् पड़ाव 5. संश्रयं अर्थात् शरणस्थल ढूंढना 6. द्वैध या द्वैधीभाव संधिर्ना विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः अमर० दे० याज्ञ० १ ३४६ मनु० ७।१६०, शि० २।२६, रघु०८।२१ 22. तीन गुणों से व्युत्पन्न तीन की संख्या 23. ( ज्या० में) सम्पर्क जोवा 24. ज्ञानेन्द्रिय 25. निचले दर्जे का विशिष्ट भोजन - मनु० ३१२२४, २३३ 26. रसोइया 27. भीम का विशेषण 28. परित्याग, उत्सर्ग | सम० - अतीत (वि०) सब प्रकार के गुणों से मुक्त, गुणों For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४७ ) से परे,--अधिष्ठानकम् वक्षस्थल का वह प्रदेश जहाँ । आसक्ति, संपद् (स्त्री०) गुणों की श्रेष्ठता या समृद्धि, पेटी बाँधी जाती है,..... अनुरागः दूसरों के सद्गुणों की बड़ा गुण, पूर्णता,-सागरः 1. गुणों का समुद्र, एक सराहना करना-कि० ११११,-अनुरोधः अच्छे गुणों बहुत गुणी पुरुष 2. ब्रह्मा का विशेषण । की अनुरूपता या उपयुक्तता,-अन्वित (वि०) अच्छे गुणक: [गुण+ण्वुल ] 1. हिसाब करने वाला, या हिसाब गुणों से युक्त, श्रेष्ठ, मूल्यवान, अच्छा, सर्वोत्तम,--अप- लगाने वाला 2. (गणित में) वह अंक जिससे गुणा वादः गुणों का तिरस्कार, गुणों का अपकर्षण, गुण- किया जाय। निन्दा, आकरः 'गुणों की खान' सर्वगुणसंपन्न,--आढघ गुणनम् [गुण + ल्युट ] 1. गुणा करना 2. संगणना 3. गुणों (वि०) गणों से समृद्ध,--आत्मन (वि०) गणी-आधारः का वर्णन करना, गुणों को बतलाना या गिनना-इह गुणों का पात्र, सद्गुणी, गुणवान् व्यक्ति, आश्रय रसभणने कृतहरिगुणने मधुरिपुपदसेवके ----गीत. ७, (वि.) गुणी श्रेष्ठ,-उत्कर्षः गुण को श्रेष्ठता, उत्तम -नी पुस्तकों की परीक्षा करना, अध्ययन करना, गुणों का स्वामित्व,-उत्कीर्तनम् गुणों का कीर्तन, विभिन्न पाठों के मूल्य को निर्धारण करने के लिए सुति, प्रशस्ति,--उत्कृष्ट (वि०) गुणों में श्रेष्ठ,--कर्मन् पाण्डुलिपियों का मिलान करना। (नपुं०) 1. अनावश्यक या गौण कार्य 2. (व्या० में) | गणनिका [गुण+यु-कन्, इत्वम् ] 1. अध्ययन, बारगौण या कार्य का व्यवधानसहित (अर्थात् अप्रत्यक्ष) बार पढ़ना, आवृत्ति--विशेषविदुषः शास्त्रं यत्तवोद्ग्राकर्म, उदा०-नेताश्वस्य सुघ्नं सुघ्नस्य वा, में स्रुघ्नं ह्यते परः, हेतुः परिचयस्थर्य वक्तुर्गणनिकव सा-शि० गणकर्म है,-कार (वि०) अच्छे गुणों का उत्पादक, २।७५, (आमेडितम् -- मल्लि.) 2. नाच, नाचने का लाभदायक, हितकर (रः) 1. वह रसोइया जो अति- व्यवसाय या नृत्यकला 3. नाटक की प्रस्तावना "रिक्त विशिष्ट भोजन तैयार करता है 2. भीम का 4. माला, हार-दरिद्राणां चिन्तामणिगुणनिका, विशेषण,--गानम् गणों का गान करना, स्तुति, प्रशंसा, -आन० ३ 5. शून्य, अंकगणित में विशेष चिह्न जो —ानु (वि०) 1. अच्छे गुणों का इच्छुक 2. अच्छे शून्यता को प्रकट करता है। गुणों वाला,-गृह्म (वि०) गुणों की सराहना करने गुणनीय (वि.) [गुण+अनीयर ] 1. वह राशि जिसे वाला, गुणों से संलग्न, गुणों का प्रशंसक-ननु वक्त- गुणा किया जाय 2. जिसको गिना जाय 3. जिसे उपविशषनि:स्पृहा गुणगृह्या वचने विपश्चित:-कि० २।५, देश दिया जाय,—यः अध्ययन, अभ्यास । पहीत,-ग्राहक, पाहिन् (वि.) दूसरों के) गुणों गुणवत् (वि०) [गुण+मतुप् ] गुणों से युक्त, गुणी, का प्रशंसक-रत्न. ११६, भामि० १९,ग्रामः गुणों श्रेष्ठ। का समूह-गुरुतरगुणग्रामाम्भोजस्फुटोज्ज्वलचन्द्रिका | गुणिका [गुण +इन्+कन् +टाप्] रसौली, गिल्टी, सूजन। –भर्त० ३।११६, गणयति गुणग्रामम्-गीत० २, | गणित (भ० क० कृ०) [गण+क्त] 1. गुणा किया हुआ भामि० १११०३,-श (वि०) गुणों की सराहना जानने 2. एक स्थान पर ढेर लगाया हुआ, संगृहीत 3. गिना वाला, प्रशंसक,-भगवति कमलालये भशमगुणज्ञासि -मुद्रा०२, गुणागुणज्ञेषु गुणा भवन्ति--हि० प्र० | गुणिन् (वि०) [गुण+इनि] 1. गुणों से युक्त, गुणवाला, ४७,-त्रयम्, 'त्रितयम् प्रकृति के तीन घटक धर्म गुणी--गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः-मनु० ८७३, अर्थात् सत्त्व, रजस् और तमस,-धर्मः कुछ गुणों याज्ञ० २२७८ 2. भला, शुभ-गुणिन्यहनि-दश० पर आधिपत्य करने में आनुषंगिक गुण या धर्म,-.निधि: ६१ 3. किसी के गुणों से परिचित 4. गुणों को धारण गुणों का भण्डार,---प्रकर्षः गुणों की श्रेष्ठता, बड़ा गुण, करने वाला (कर्म) 5. (अप्रधान) अंशों वाला, मुख्य --लक्षणम् आन्तरिक गुण का सांकेतिक चिह्न,-लय- (विप० गुण)-गुणगुणिनोरेव संबन्धः । निका,-- लयनी तंबू,--वचनम्,-वाचक: विशेषण, गुण गणीभूत (वि०) [अगुणी गुणीभूतः-गुण+वि+भू बतलाने वाला शब्द, संज्ञा शब्द जो विशेषण की भांति +क्त] 1. मूल महत्त्वपूर्ण अर्थ से वञ्चित 2. गौण या प्रयुक्त हो जैसे 'श्वेतोऽश्व:' में 'श्वेत' शब्द,-विवेचना अप्रधान बनाया हुआ 3. विशेषणों से आवेष्टित । दूसरों के गुणों की सराहना करने में विवेकबुद्धि, सम०--व्यङ्ग्यम् (अलं० शा० में) काव्य के तीन -वृक्षः,-वृक्षक: एक मस्तूल या स्तंभ जिससे नौका भेदों में से दूसरा-मध्यम-जिसमें अभिधेय अर्थ की या जहाज बांधा जाय,-वृत्तिः गौण या अप्रधान संबंध अपेक्षा व्यंजना द्वारा अभिव्यक्त अर्थ अधिक आकर्षक (विप० मुख्यवृत्ति),-वशेष्यम् गुण की प्रमुखता, नहीं होता है, सा०६० परिभाषा देता है:-अपरं तु -शमः विशेषण, -संख्यानम् तीन अनिवार्य गुणों की गुणीभूतव्यङग्यं वाच्यादनुत्तमे व्यङग्ये, २६५, काव्य का संगणना, सांख्यदर्शन (योगदर्शन सहित), संग: यह भैद इसके आगे आठ भागों में विभक्त किया गया 1. गुणों का साहचर्य 2. सांसारिक विषयवासनाओं में । है-दे० सा.द. २६६, काव्य० ५। हुआ। For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३४८ गुष्ठ (चुरा० उभ० गुण्ठयति-ते, गुण्ठित) 1. परिवृत्त करना, 'घेरना, लपेटना, परिवेष्टित करना 2. छिपाना, ठक लेना, अव, ढकना, परदा डालना, छिपाना, अवगुण्ठित करना । गुण्ठनम् [ गुण्ठ् + ल्युट् ] 1. छिपाना, ढकना, गोपन 2. मलना — यथा भस्मगुण्ठनम् । गुष्ठित ( वि० ) [ गुण्ठ् + क्त ] 1. घिरा हुआ, ढका हुआ 2. चूर्ण किया हुआ, पीसा हुआ, चुरा किया हुआ । गुण्ड (चुरा० उभ० गुण्डयति, गुण्डित) 1. ढकना, छिपना पीसना, चूरा करना । गुण्डकः [ गुण्ड्+अच् +कन् ] 1. धूल, चूर्ण 2. तेल का बर्तन 3. मन्द मधुर स्वर । गुण्डिकः [ गुण्ड+ठन् ] आटा, भोजन, चूर्ण । गुडित (वि० ) [ गुण्ड + क्त ] 1. चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ 2. धूल से ढका हुआ । गुष्य (वि० ) [ गुण् + यत् ] 1. गुणों से युक्त 2. गिने जाने के योग्य 3. वर्णन किये जाने के योग्य, प्रशस्य 4. गुणा करने के योग्य, वह राशि जिसे गुणा किया जाय । गुस्सः गुच्छः । गुत्सक: [ गुघ्+स+कन् ] 1. गट्ठर, गुच्छ 2. गुलदस्ता 3. चैवर 4. पुस्तक का अनुभाग या अध्याय । गुब् (स्वा० आ० - गोदते, गुदित) क्रीड़ा करना, खेलना । गुवम् [ गुद् +क ] गुदा याज्ञ० ९३ ९ मनु० ५।१३६, ८।२८२ । सम० अङकुर: बवासीर - आवर्त कोष्ठ बद्धता, उद्भषः बवासीर, ओष्ठः गुदा का मुख, - कील:, - कीलकः बवासीर, ग्रहः कब्ज, मलावरोध -पाक: गुदा की सूजन, ( मलद्वार का पक जाना ), - भ्रंश: कांच निकलना, वर्त्मन् ( नपुं०) गुदा, मलद्वार, स्तम्भः कब्ज । गुष् i ( दिवro पर० – गुध्यति, गुधित) लपेटना, ढकना, आवेष्टित करना, ढांपना, ii ( क्या० पर०- गृध्नाति) क्रुद्ध होना; iii (भ्वा० आ० - गोधते ) क्रीड़ा करना, खेलना । गुम्बलः [ गुन् इति शब्देन दल्यतेऽसौ - गुन्+दल् + णिच् + अच् एक छोटे आयताकार ढोल का शब्द । गुन्बा (ब्रा) ल: [ पुं० ] चातक पक्षी । गुप् i ( भ्वा० पर० - गोपायति, गोपायित या गुप्त ) 1. रक्षा करना, बचाना, आत्मरक्षा करना. रखवाली करना - गोपायन्ति कुलस्त्रिय आत्मानम् महा०, जुगोपात्मानमत्रस्तः - रघु० १।२१, जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम् - २१३ भट्टि० १७/८० 2. छिपाना, ढकना - कि वक्षश्चरणानतिव्यतिकरव्याजेन गोपायते - अमरु २२, दे 'गुप्त' | ii ( वा० आ०~- जुगुप्सते - गुप् का सन्नन्त रूप ) 1. तुच्छ समझना, कतराना, घिन करना, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) अरुचि करना, निन्दा करना ( अपा० के साथ, कभी कभी कर्म० के साथ भी) पापाज्जुगुप्से सिद्धा०, किं त्वं मामजुगुप्सिष्ठाः भट्टि० १५११९, याज्ञ० ३।२९६ 2. छिपाना, ढकना ( इस अर्थ में गोपते) iii ( दिवा० पर० - गुप्यति) घबराना, विह्वल हो जाना, iv ( चुरा० उभ० गोपायति - ते ) 1. चमकना 2. बोलना 3. छिपाना (कविरहस्य से उद्धृत निम्नांकित श्लोक धातु के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालता है - गोपायति क्षितिमिमां चतुरब्धि सीमां, पापाज्जुगुप्सत उदारमतिः सदैव, वित्तं न गोपयति यस्तु aritreat वीरो न गुप्यति महत्यपि कार्यंजाते । गुलिः [ गुप् + इलच् ] 1. राजा 2. रक्षक । गुप्त (भू० क० कृ० ) [ गुप् +क्त] 1. प्ररक्षित, संघृत, रक्षित - रघु० १०1६० 2. छिपाया हुआ, ढका हुआ, रहस्यमय - मनु० २।१६०, ७७६८ ३७४ 3. अदृश्य, आँख से ओझल 4. संयुक्त प्तः वैश्यों के नाम के साथ जुड़ने वाली वर्ण : सूचक उपाधि - चन्द्रगुप्तः, समुद्रगुप्तः आदि ( ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रायः 'देव' या 'शर्मन' क्षत्रियों के नामों के साथ 'वर्मन् ' या 'त्रा', वैश्यों के नामों के साथ 'गुप्त', 'भूति' अथवा 'दत्त' और शूद्रों के नामों के साथ 'दास' जोड़ा जाता हे तु०, शर्मा देवश्च विप्रस्य वर्मा त्राता च भूभुजः, भूतित्तरच वैश्यस्य दासः शूद्रश्य कारयेत् ), प्लम् ( अव्य० ) गुप्त रूप से, निजी तौर पर, अपने ढंग परे --प्ता काव्यग्रंथों में वर्णित मुख्य स्त्रीपात्रों में से एक, परकीया नायिका, सुरति छिपाने वाली नायिका- वृत्तसुरतगोपना वर्तिष्यमाणसुरतगोपना और वर्तमानसुरतगोपना दे० रसमं० - २४ । सम० – कथा गुप्त या गोपनीय समाचार, रहस्य, -- गतिः गुप्तचर, जासूस, --चर जासूस, छिप कर घूमने वाला (र) 1. बलराम का विशेषण 2. गुप्तचर, जासूस, दानम् छिपा कर दिया जाने वाला दान, गुप्त उपहार, वेशः बदला हुआ भेस । गुप्तिः (स्त्री० ) [ गुप्+ क्तिन् ] 1. संधारण, प्ररक्षा, गुप्तक: [ गुप्त + कन् ] संधारक, प्ररक्षक । - सर्वस्यास्य तु सर्गस्य गुप्त्यर्थम् - मनु० ११८७, ९४, ९९, याज्ञ० १।१९८२. छिपाना, लुकाना 3. ढकना, म्यान में रखना - असिधारासु कोषगुप्तिः - का० ११ 4. बिल, कन्दरा, कुण्ड, भूगर्भगृह 5. भूमि में बिल खोदना 6. प्ररक्षा का उपाय, दुर्ग, दुर्गप्राचीर 7. कारागार, जेल – सरभस इव गप्तिस्फोटमर्क: करोमि शि० ११।६० 8. नाव का निचला तल 9. रोक, थाम । गुरु, गुम्फ़ (तुदा० पर०- गुफति, गुम्फति, गुफित) गुंथना, गुंफन करना, बांघना, लपेटना- भट्टि० ७११०५ 2. (आलं) लिखना, रचना करना । For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४९ ) गरणम् [ गु ना ) [मरिष्ठ) पूर्जगतो गु (गु) फित (भू.क. कृ०) [गु (गुम) फ्+क्त ] | प्रधान, अधीक्षक, शासक-वर्णाश्रमाणां गरवे स वर्णी इकट्ठा गुंथा हुआ, बांधा हुआ, ब्रुना हुआ। -रघु० ५।१९, वर्ण और आश्रमों का प्रधान -- गुरुगुम्फः [ गुम्फ+घा] 1. बांधना, गूंथना,---गुम्फो नृपाणां गुरवे निवेद्य-- २०६८ 6. बृहस्पति, देवगुरु वाणीनाम्-बालरा० १११ 2. एक स्थान पर रखना, - गुरु नेत्रसहस्रेण चोदयामास वासवः-कू० २।२९ रचना, करना, क्रम पूर्वक रखना 3. कंकण 4. गल- 7. बृहस्पति नक्षत्र-गुरुकाव्यानगां बिभ्रच्चान्द्रीमभिमुच्छ, मूंछ। नभः श्रियम-शि० १२ 8. नये सिद्धान्त का गुम्फना [ गुम्फ+ युच-+ टाप् ] 1. एक जगह गूंथना, नत्थी व्याख्याता 9. पुष्य नक्षत्र 10. कौरव और पांडवों के करना 2. क्रम पूर्वक रखना, रचना करना 3. सुसा- गुरु 11. मीमांसकों के एक संप्रदाय का नेता प्रभाकर मंजस्य (शब्द और अर्थ का), अच्छी रचना-वाक्ये (उसके नाम पर 'प्राभाकर' या 'प्रभाकरीय' कहलाता शब्दार्थयोः सम्यग्रचना गुम्फना मता। है), -अर्थ:--शिष्य को शिक्षा देने के उपलक्ष्य में गुर (तुदा० आ०--गुरते, गूर्त, गूर्ण) प्रयत्न करना, चेष्टा गरुदक्षिणा---गर्वर्थमाहर्तमहं यतिष्ये --रघु० ५।७, करना, i (दिवा० आ० –भू० के० कृ०- गूर्ण) ---- उत्तम (वि.) अत्यंत सम्माननीय (-मः) पर1. चोट पहुंचाना, मार डालना, क्षति पहुंचाना मात्मा,--कारः पूजा, उपासना,-- क्रमः उपदेश, पर2. जाना। म्पराप्राप्त शिक्षा,-जनः श्रद्धेय पुरुष, वृद्धसंबंधी गुरणम् । गुर+ल्युट ] प्रयत्न, धैर्य । बुजुर्ग-- नापेक्षितो गुरुजनः – का० १५८, भामि० गुरु (वि० ---रु, वी) [ग+कु, उत्वम् ] (म० अ० २१७, -तल्प: 1. अध्यापक की शय्या (भार्या) 2. अध्या---गरीयस, उ० अ० गरिष्ठ) 1. भारी, बोझल पक को शय्या का उल्लंघन अर्थात् गुरुपत्नी के साथ (विप० लघु०) (आल० से भी)-वेन धूर्जगतो गुर्वी अनुचित संबंध,- तल्पग, -- तल्पिन् गुरु-पत्नी के अनुसचिवेषं विचिक्षिपे---रघु० ११३४, ३॥३५, १२।१०२, चित संबंध रखने वाला (हिन्दुधर्म शास्त्र के अनुसार ऋतु०१७ 2. प्रशस्त, बड़ा, लम्बा, विस्तृत 3. लंबा ऐसा व्यक्ति महापातकियों में गिना जाता है....अति(काल मात्रा या लंबाई में) आरम्भगुर्वी --भर्तृ० पातकी, तु०, मनु० ११११०३) 2. जो अपनी सौतेली रा६०, गुरुषु दिवसेष्वेव गच्छत्सु-मेघ० ८३ 4. महत्त्व माता के साथ व्यभिचार करता है, बक्षिणा आध्यापूर्ण, आवश्यक, बड़ा-विभवगुरुभिः कृत्यैः-श० ४।१८, त्मिक गुरु को दी जाने वाली दक्षिणा- रघु० ५।१, स्वार्थात्सता गुरुतरा प्रणयिक्रियैव-विक्रम० ४.१५ -देवत: पुष्य नक्षत्र, -पाक (वि०) पचने में कठिन, 5. दुःसाध्य, असह्य -कान्ताविरहगुरुणा शापेन-मेघ० ---भम् 1. पुष्यनक्षत्र 2. धनुष,- मर्दल: एक प्रकार १ 6. बड़ा, अत्यधिक, प्रचंड, तीव्र --गुरुः प्रहर्षः की ढोलक या मृदंग,-- रत्नम् पुखराज, - लाघवम् प्रबभूव नात्मनि-रघु० ३११७, गुर्वपि विरहदुःखम् सापेक्षिक महत्त्व या मूल्य,-वतिन, -वासिन् (पुं०) गरु के घर रह कर पढ़ने वाला ब्रह्मचारी,-वासरः --श० ४।१५, भग०६।२२ 7. श्रद्धेय, आदरणीय 8. भारी, दुष्पाच्य 9. अभीष्ट, प्रिय 10. अहंकारी, बृहस्पति बार, - - वृत्तिः (स्त्री०) ब्रह्मचारी का अपने घमंडी, दर्पोक्ति 11. (छन्दःशास्त्रमें) दीर्घमात्रा, (या तो गुरु के प्रति आचरण। स्वयं दीर्घ, अथवा संयुक्त व्यंजन से पूर्व होने के कारण गुरुक (वि.) (स्त्री० --की) [गुरु+कन] 1. जरा भारी दीर्घ) उदा. 'ईड' में ई, तथा 'तस्कर' में त, (यह 2. (छन्द० में) दीर्घ । छं० में प्रायः 'ग' लिखा जाता है —मात्ती गौ चेच्छा- | गु (गू) जरः (गुरु+ज+-णिच् +अण-पृषो०] 1. गुजरात लिनी वेदलोकै:-आदि),-हः पिता न केवलं तद्गु का प्रदेश या जिला--तेषां मार्ग परिचयवशाजितं हरेकपार्थिवः क्षितावभूदेकनपरोऽपि सः-रघु० ३।३१, गुर्जराणां यः संतापं शिथिलमकरोत् सोमनाथं विलोक्य ४८, ४११, ८२९ 2. कोई भी श्रद्धेय या आदरणीय --विक्रमांक. १८१९७ । पुरुष, वृद्ध पुरुष या संबंधी, बुजुर्ग (ब०२०) शुश्रू गुविणी, गुर्वी [गुरु-+ इनि+ङीप, गुरु+कोष] गर्भवती षस्व गुरून् -श० ४।१४, भग० २।५, भामि० २।७, स्त्री-उदा० गुर्विणीं नानुगच्छन्ति न स्पशन्ति रज१८, १९, ४९, आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया-रघु० स्वलाम् । १४१४६ 3. अध्यापक, शिक्षक--गुरुशिष्यो 4. विशेष- गुलः [=गुड, डस्य ल:] गुड़ तु० गुड । तया धार्मिकगरू, आध्यात्मिक गुरु -- तो गुरुगुरुपत्नी गुलच्छः,-गुलञ्छ: [=गुच्छ पृषो० गुड्+क्विप, उस्य ल:, च प्रीत्या प्रतिननन्दतुः-रघु० ११५७, (पारिभाषिक गुल+उञ्छ् + अण्] गुच्छ, झुंड दे० गुच्छ । रूप से गुरु वह है जो गायत्री मंत्र का उपदेश करे | गुल्फः [गल+फक अकारस्य उकारः] टखना -आगुल्फऔर शिष्य को वेदाध्यापन करे--स गुरुर्यः क्रियाः कीर्णापणमार्गपुष्पं कु. ७५५, गुल्फावलंबिना कृत्वा वेदमस्मै प्रयच्छति-याज्ञ. ११३४) 5. स्वामी, -का० १० । For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५० ) गुल्मः,-ल्मम् [गुड+मक, डस्य ल:-तारा०] 1. वृक्षों का | गू: (स्त्री०) [गम् --कू टिलोप:] 1. कूड़ा करकट 2. मल, झुंड, झुरमुट, वन, झाड़ी-मनु० ११४८, ७११९२, | विष्ठा। १२।५८, याज्ञ० २।२२९ 2. सिपाहियों का दल, सैन्य- | गूढ (भू० क० कृ०) [गूह+क्त] 1. छिपा हुआ, गुप्त, गुप्त दल जिसमें ४५ पदाति, २७ अश्वारोही, ९ रथारोही रक्खा हुआ 2. ढका हुआ। सम०---अङ्गः कछुवा, और ९ गजारोही होते हैं 3. दुर्ग 4. तिल्ली 5. तिल्ली -अघ्रिः सांप-आत्मन् (समास होकर 'गूढोत्मन्' बनता का बढ़ जाना 6. गाँव को पुलिस चौकी 7. घाट । ह, सिद्धा० ने इस प्रकार समाधान किया है-भवेद् गुल्मिन (वि०) (स्त्री०-नी) [गुल्म+ इनि] झुरमुट या | वर्णागमाद् हंसः सिंहो वर्णविपर्ययात्, गूढोरमा वर्ण झाड़वन्द में उगनेवाला, बढ़ी हुई तिल्ली वाला, तिल्ली विकृतेर्वर्णलोपात्पृषोदरः), परमात्मा,-उत्पन्नः-जः के रोग से ग्रस्त । हिन्दूधर्म शास्त्रों में वर्णित १२ प्रकार के पुत्रों में से गुल्मी [गुल्म+अच+डोष्] तंबू । एक, यह उस स्त्री का गुप्त पुत्र है जिसका पति परदेश गु (गू) वाकः [गु- आक] सुपारी का पेड़। गया हुआ है, तथा वास्तविक पिता अज्ञात है--गृहे गह (भ्वा० उभ०-गृहति-ते) ढकना, छिपाना, परदा प्रच्छन्न उत्पन्नो गूढजस्तु सुतः स्मृतः -- याज्ञ०२।१२९, डालना, गुप्त रखना-गुह्यं च गृहति गुणान् प्रकटी १७०,- नोडः खंजनपक्षी, - पथ: 1. गुप्तमार्ग 2 पगकरोति-भर्तृ० २०७२, गूहेत्कर्म इवाङ्गानि- मनु० । डंडी 3. मन, बुद्धि,-पाद,-पादः सांप,-पुरुषः जासूस, ७।१०५, रघु० १४।४९, भट्टि० १६१४९, उप--, गुप्तचर, भेदिया,- पुष्पकः बकुलवृक्ष,- मार्गः भूगर्भ आलिंगन करना, तरङ्गहस्तैरुपगृहतीव--रघु० १३।६३, मार्ग,-मैथुनः कौवा,-वर्चस् (पुं०) मेंढक,--- साक्षिन् १८।४७, भट्टि० १४१५२, शि० ९।३८, नि ,छिपाना, (पु०) गुप्त गवाह, ऐसा साक्षी जिसने प्रतिवादी की गुप्त रखना। बातों को चुपचाप सुना हो। गुहः गुह+क] 1. कार्तिकेय का विशेषण-- गुह इवाप्रति- | गूयः, थम् [गू+थक्] मल, विष्ठा । हतशक्ति:-का० ८, कु० ५।१४ 2. घोड़ा 3. निषाद | गन (वि.) [गू+क्त उत्सृष्ट मल । या चांडाल का नाम जो शृंगवेर का राजा तथा गूरणम् -दे० 'गुरण'। भगवान् राम का मित्र था। गषणा ? मोर के पंख में बनी हुई आंख की आकृति । गुहा [गुह+टाप्] 1. गुफा, कंदरा, छिपने का स्थान, गू (भ्वा० पर०.... गरति) छिड़कना, तर करना गीला -गुहानिबद्धप्रतिशब्ददीर्घम्-रघु० २१२८, ५१, करना। धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्-महा० 2. छिपाना, गृज, गृज् (भ्वा० पर०... गर्जति, गृञ्जति) शब्द करना, ढकना 3. गढ़ा, बिल 4. हृदय । सम० - आहित दहाड़ना, गुर्राना आदि। (वि.) हृदय में रक्खा हुआ, चरम् ब्रह्म,-मुख गञ्जनः [ग +ल्युट] 1. गाजर 2. शलजम 3. गांजा (वि०) गुफा जैसे मुंह का, चौड़े मह का खुले मह (गांजे की पत्तियों को चबाना जिससे कि मादकता पैदा का,-शय: 1. चूहा 2. शेर 3. परमात्मा। हो),....नम् विषैले तीर से मारे हुए पशु का मांस । गुहिनम् [गुह,+इनन्] वन, जंगल । गण्डि (डी) वः [?] गीदड़ों की एक जाति । गुहेरः [गुह,+एरक्] 1. अभिभावक, प्ररक्षक 2. लहार। गृध् (दिवा० पर० . गृध्यति, गृद्ध) ललचाना. इच्छा गुह्म (सं० कृ०) [गुह, +-क्यप्] 1. छिपाने के योग्य, करना, लोभवश प्रयत्नशील होना, लालायित होना, गोपनीय, गुप्त रखने के योग्य, निजी-गुह्यं च गृहति अभिलाषी होना। --भर्तृ० २०७२ 2. गुप्त, एकान्तवासी, विरक्त | गधु (वि.) [गध+कु] कामातुर, लम्पट,-धुः कामदेव । (सेवानिवृत्त) 3. रहस्यपूर्ण --भगः १८।६३, - ह्यः गृनु (वि.) [गध +-क्नु] 1. लोभी, लालची-अगृध्नराददे 1. पाखंड 2. कछुवा,-ह्यम् 1. भेद, रहस्य --मौनं । सोऽर्थम् - रघु० १२१ 2. उत्सुक, इच्छुक । चैवास्मि गुह्यानाम्-भग० १०॥३८, ९।२, मनु | गध्यम्,-ध्या [गृध् + क्यप्] इच्छा, लोभ । १२।११७ 2. गुप्त इन्द्रिय, पुरुष या स्त्री की जनने- | गध्र (वि.) [गध-क] 1. लोभी लालची-ध्रः,-ध्रम् न्द्रिय । सम---गुरुः शिव का विशेषण, दीपक: गिद्ध,-मार्जारस्य हि दोषेण हतो गद्धो जरगवः जुगन,निष्यन्दः मत्र,-भाषितम 1. गुप्तवार्ता -हि. ११५९, रघु० १२५०, ५९। सम-कटः 2. भेद, रहस्य की बात,-मयः कार्तिकेय का विशेषण। राजगह के निकट विद्यमान एक पहाड़,-पतिः,-राजः गुह्यकः [गुह्यं गोपनीयं कं सुखं येषाम् ...ब० स०] यक्ष जैसी गिद्धों का राजा, जटाय-अस्यैवासीन्महति शिखरे एक अर्धदेवों की श्रेणी जो कुबेर के सेवक तथा उसके गधराजस्य वासः--उत्तर० श२५,-~-वाज, बाजित कोष के संरक्षक है-गाकस्तं ययाचे--मेघ० ५, (वि.) गिद्ध के परों से युक्त (बाण आदि)। मनु० १२।४७ । गृष्टिः (स्त्री०) [गृह्णाति सकृत् गर्भम् - -ग्रह +क्तिच् For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतिगृहानुत्तरमी, कुटंब डको, औ ( ३५१ ) पृषो० तारा०] 1. एक बार ब्याई हुई गौ, पहलौठी । नम् हवा,--नाशनः जंगली कबूतर,-नीड: चिड़िया, गाय (सकृत्प्रसूता गोः)-आपीनभारोद्वहनप्रयत्नादगृष्टि: गोरया,-पतिः 1. गृहस्थ, ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात् --रघु० २।१८, स्त्री तावत्संस्कृतं पठन्ती दत्तनवनस्या विवाहित जीवन बिताने वाला घर का मालिक इव गृष्टि: सूसूशब्दं करोति - मच्छ०३ 2. (दूसरे 2. यजमान 3. गृहस्थ के उपयक्त कर्म अर्थात् आतिथ्य पशुओं के नामों के साथ जुड़कर) किसी भी पशु का आदि,-पाल: 1. घर का संरक्षक 2. घर का कुत्ता, (मादा बच्चा, वासितागृष्टि : हथिनी का(मादा)बच्चा। -..-पोतक: घर की जगह, वह भूभाग जिस पर घर गृहम् [ग्रह +क] 1. घर, निवास, आवास भवन-न गृहं की इमारत बनी हुई है और जो घर को घेरती है, गृहमित्याहुगुहिणी गृहमुच्यते-पंच० ४।८१, पश्य वानर --प्रवेश: नये घर में विधिपूर्वक प्रवेश करना,- बभ्रुः मूर्खण सुगृही निर्गुहीकृता० - पंच० १२३९० 2. पत्नी पालतू नेवला,-बलि: वैश्वदेव यज्ञ में दी जाने वाली (उपर्युक्त उद्धरण कई बार निदर्शन के रूप में प्रयुक्त | आहुति, अवशिष्ट अन्न सब जीवजन्तुओं को वितरण होता है) 3. गृहस्थ-जीवन 4. मेषादि राशि 5. नाम करना, मनु० ३१२६५, भुज् (पुं०) 1. कौवा या अभिधान, हाः (पुं०, ब० व०) 1. घर निवास 2. चिड़िया ---नीडारम्भर्गहबलिभुजामाकुलग्रामचैत्या: --इमे नो गृहा:--मुद्रा० १, स्फटिकोपलविग्रहा गृहाः, -मेघ०२३, देवता घर का देवता जिसे आहुति दी जाती शशभृद्भित्तनिरङ्कभित्तयः- नै० १७६, तत्रागारं है,- भग: 1. घर से निर्वासित व्यक्ति, प्रवासी 2. घर धनपतिगृहानुत्तरेणास्मदीयम् मेघ० ७५ 2. पत्नी का नाश करना 3. घर में सेंध लगाना 4. असफलता 3. घर के निवासी, कुटंब। सम०--अक्षः झरोखा, किसी दुकान या घर की बर्बादी या नाश,-भूमिः मोखा, गोल या आयताकार खिड़की,-अधिपः-ईशः, (स्त्री०) वास्तु स्थान, वह जमीन जिस पर कोई -ईश्वरः 1. गृहस्थ 2. किसी राशि का स्वामी, मकान बना हो,--भेदिन् (वि.) 1. घर के कामों - अयनिक: गृहस्थ,--अर्थ: घरेलू मामला, घरेलू बातें में ताक झांक करने वाला 2. घर में कलह कराने -~-ग्रहार्थोऽग्निपरिष्क्रिया-मनु० २०६७,--अम्लम् वाला, - मणिः दीपक,-माचिका चमगीदड़, मगः एक प्रकार की कांजी,-अवग्रहणी देहली,-अश्मन् कुत्ता,- मेधः 1. गुहस्थ 2. पंचयज्ञ, मेधिन् (पु०) (५०) सिल, (एक आयताकार पत्थर जिस गहस्थ-गृहेर्दारमधन्ते संगच्छन्ते-मल्लि०) प्रजायै गृहपर मसाले पीसे जाते हैं), - आरामः गृहवाटिका, मेधिनाम्-रघु० १७, दे० 'गृहपति',-यन्त्रम् उत्सव --आश्रमः गृहस्थों का आश्रम, ब्राह्मण के धार्मिक आदि के अवसर पर झंडा फहराने का डंडा या कोई जीवन की दूसरी अवस्था--दे० आश्रम, .. उत्पातः और उपकरण--गृहयन्त्रपताकाश्रीरपौरादरनिर्मिता-कु० कोई घरेल वाधा,-उपकरणम् घरेलू बरतन, गृहस्थ ६।४१, -वाटिका--वाटी घर से मिली हुई बगीची, के उपयोग की सामग्री,-कच्छप:-गृहाश्मन् दे०, -वित्तः घर का स्वामी,-शुक: पालतू तोता, आमोद -कपोतः, तक: पालतू कबूतर,-करणम् 1. घरेलू के लिए पाला हुआ तोता-अमरु १३,-संवेशक: मामला 2. घर की इमारत-कर्मन् (न०) गृहस्थ व्यावसायिक भवन निर्माता, स्थपति, स्थ: गही, दूसरे के लिए विहित कर्म, दास: चाकर, घरेल नौकर आश्रम में प्रवेश करके रहने वाला संकटा ह्याहिता ग्नीनां प्रत्यवायर्गहस्थता-उत्तर० ११९, दे० 'गृहपति' शम्भुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां येनाक्रियन्त सततं और मनु० ३।३८, ६१९०,°आश्रम: गृहस्थ का जीवन गृहकर्मदासाः-भर्तृ० १११, कलह, घरेल झगड़ा भाई दे० गृहाश्रम, धर्मः गृहस्थ के कर्तव्य ।। भाई की लड़ाई, कारक: घर बनाने वाला, राज, याज्ञ० ३।१४६,--कुक्कुट: पालतू मुर्गा, कार्यम् घर गृहयाय्यः [गृह---णिच्+आय्य] 1. गृहस्थ, घरबार वाला का कामकाज- मनु० ५।१५०,-चूल्ली साथ लगे (तारा के अनुसार 'शब्दकल्पद्रुम' में दिया गया हुए दो कमरों का घर जिनमें से एक का मुख पूर्व 'गृहयाप्य' रूप शुद्ध नहीं है)। और दूसरे का पश्चिम की ओर हो,--छिद्रम 1. घर | गृहयाल (वि.) [गृह-+-णिच्+आलु] पकड़ने वाला, की गुप्त बातें या कमजोरियाँ 2. कौटुम्बिक अनबन, ___ ग्रहण करने वाला। --जः,-जातः घर में ही पैदा हुआ नौकर,---जालिका | गहिणी [गह+इनि+की गहस्वामिनी, पत्नी, गहपत्नी, धोखा, कपटवेष,-ज्ञानिन् (गहेज्ञानिन्' भी) 'घर (घर का कार्यभार संभालने वाली स्त्री)-न गृहं में ही तीसमारखां', अनुभवशून्य, जड, मूर्ख, तटी गृहमित्याहुहिणी गृहमुच्यते, गृहं तु गृहिणीहीनं घर के सामने बना चबूतरा,-दासः घरेल सेवक, कान्तारादतिरिच्यते---पंच० ४।८१ । सम-पदम --देवता घर की अधिष्ठात्री देवता, (व० व०) गृहस्वामिनी का पद या प्रतिष्ठा-यांत्येवं गृहिणीपर्द कुल देवताओं का समूह,-वेहलो घरको दहलोज-यासां युवतयो वामाः कुलस्याधयः-श. ४११७, स्थिता बलि: सपदि मद्गृहदेहलीनाम्-मृच्छ० ११९,-- नम- गृहिणीपदे १८। For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५२ ) पहिन (वि.) [गृह+इनि] घर का स्वामी, गृहस्थ, के योग्य, - यम् 1. गीत, गायन गाने की कला-गये घरबारी--पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनयाविश्लेषदुःखै- | केन विनीतौ वाम् --रघु० १५।६९, मेघ० ८६, अनन्ता नवैः ~श० ४१५, उत्तर० २।२२, शा० २।२४ । वाङमयस्याहो गयस्येव विचित्रता-शि० २।७२ । गहीत (भ० क० कृ०) [ग्रह +क्त] 1. लिया हुआ, पकड़ा | गेष् (भ्वा० आ० -- गेषते, गेष्ण) ढुंडना, खोजना, तलाश हआ-केशेष गृहीत: 2. स्वीकृत 3. प्राप्त, अवाप्त करना--तू० 'गवेष' । 4. परिहित, पहना हुआ 5. लुटा हुआ 6. अधिगत; । गेहम् [गो गणेशो गंधर्वो वा ईहः ईप्सितो यत्र तारा०] घर, ज्ञात-दे० 'ग्रह'। सम० गर्भा गर्भवती स्त्री, आवास -- सा नारी विधवा जाता गेहे रोदिति तत्पतिः -विश् (वि०) 1. भागा हुआ, भगोड़ा, तितरबितर ----(सुभा०, वि०- इस शब्द का अधि० का रूप हुआ 2. तिरोभूत, लापता । अलुक त० स० बनाने के लिए कई शब्दों के साथ गहोतिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [गहीत+ इनि] जिसने प्रयोग होता है, उदा० गेहेमवेडिन् (वि०) 'घर पर कोई बात समझ ली है (अधि० के साथ)-गृहीती तीसमारखां' अर्थात् कायर, भीरु, मेहेदाहिन (वि०) षट्स्वङ्गेषु - दश० १२०। 'घर पर ही तेज' अर्थात् कायर, गेहेनदिन् (वि०) गृह्य (वि०) [ग्रह+क्यप्] 1. आकृष्ट या प्रसन्न होने के 'घर पर ही ललकारने वाला' अर्थात् कायर धूरे का योग्य जैसा कि 'गुणगृह्यः' 2. घरेलू 3. जो अपना मुर्गा या डरपोक', गेहेमेहिन् (वि०) 'घर में ही मूतने स्वामी न हो, परतन्त्र 4. पालतू, घर में सधाया हुआ वाला' अर्थात् आलसी, गेहेव्याड: डींग मारनेवाला, 5. बाहर स्थित -ग्रामगृह्या सेना -(गाँव के बाहर | आत्मश्लाघी, शेखीखोर, गेहेशरः 'अपने मोहल्ले में स्थित सेना), ह्यः 1. घर में रहने वाला 2. पालतू कुत्ता भी शेर होता है' चहारदीवारी के सूरमा, कालीन जानवर,—ाम् गुदा । सम०--अग्निः अग्निहोत्र के शर, डींग मारनेवाला कायर । की आग जिसको स्थापित रखना प्रत्येक ब्राह्मण का गहिन (वि.) (स्त्री०-दी) [गेह+ इनि]:-गृहिन् । विहित कर्म है। गेहिनी गहिन् + डोप पत्नी, घर की स्वामिनी-धैर्य यस्य गृह्या गृह्य +टाप्] नगर के निकट बसा हुआ गाँव । पिता क्षमा च जननी शान्तिश्चिरं गहिनी-शा० गत (ऋचाः पर० --गृणाति, गर्ण) 1. शब्द करना, पुका- । ४१९, मदगेहिन्याः प्रिय इति सखे चेतसा कातरेण रना, आवाहन करना 2. घोषणा करना, बोलना, -मेघ० ७७। उच्चारण करना, प्रकथन करना -रघु० १०११३ (भ्वा० पर० - गायति, गीत) 1. गाना, गीत गाना 3. बयान करना, प्रचारित करना 4. प्रशंसा करना, ---अहो साधु रेभिलेन गीतम् -- मच्छ० ३, ग्रीष्मसमयस्तुति करना-केचिद्धीताः प्राञ्जलयो गणन्ति -- भग० मधिकृत्य गीयताम्- श०१, मनु० ४।६४, ९।४२ ११।२१, भट्टि० ८1७७, अनु-प्रोत्साहित करना, 2. गाने के स्वर में बोलना या पाठ करना 3. वर्णन भट्टि० ८1७७, (तुदा० पर० .-गिरति या गिलति) करना, घोषणा करना, कहना--(छन्दोमयी भाषा में) 1. निगलना, हडप करना, खा जाना 2. निकालना, मीतश्चायमर्थोङ्गिरसा-मा० २ 4. गाने के स्वर में उंडेलना, थूक देना, मह से फेंकना, अव --,(आ.) वर्णन करना, बयान करना या प्रख्यात करना—चारणखाना, निगलना-तथावगिरमाणश्च पिशाचर्मास द्वन्द्वगीत: श० २।१४, प्रभवस्तस्य गीयते-कु० २१५, शोणितम् ---भट्टि० ८१३०, उद -1. फेंकना, थूक देना, अनु-, गाने में अनुकरण करना--अनुगायति वमन करना -उद्गिरतो यद् गरलं फणिनः पूष्णासि काचिदुदञ्चितपञ्चमरागम् ---गीत० १, कि० ३१६०, परिमलोद्गारः .. भामि० ११११, शि०१४।१ 2. उत्स अव-, निन्दा करना, कलंकित करना, उद्-, ऊँचे र्जन करना, निकाल बाहर करना, उगल देना --कु० स्वर में गाना, उच्च स्वर में गायन -- उद्गास्यता११३३, रघु० १४१५३ वेणी० ५।१४, पंच० ५।६७, मिच्छति किन्नराणाम - - कु. ११८, गेयमुद्गातुकामा नि-,निगलना, खा जाना ---भामि० ११३८, सम् - ---मेघ० ८६, उद्गीयमानं वनदेवताभि:-रघु०२।१२, 1. निगलना 2. प्रतिज्ञा करना, व्रत करना, (आ०), उप--, गाना, निकट गाना-शिष्यप्रशिष्यरुपगीयमासमुद्र -, 1. बाहर फेंक देना, निकाल देना 2. जोर नमवेहि तन्मण्डनमिश्रधाम --उद्भट, कि० १८।४७, से चिल्लाना, ii (चुरा० आ० --गारयते) 1. बत परि-, गाना, बयान करना, वर्णन करना, वि-, लाना, वर्णन करना 2. अध्यापन करना। 1. बदनाम करना, झिड़कना, कलंकित करना-विगीगेंड (दु) क: [गच्छतीति गः इन्दुरिव, गेदु+कन्, गेंडुक यसे मन्मथदेहदाहिना --नै० १७९ 2. विषम स्वर (बेमेल स्वर) में गाना। गेय (वि.) [गै+यत्] 1. गायक, गाने वाला—यो माण- गैर (वि.) (स्त्री०-री) [गिरि-+-अण्] पड़ाड़ से आया वक: साम्नाम् -पा० ३।४१६८, सिद्धा. 2. गाये जाने । हुआ, पहाड़ी, पहाड़ पर उत्पन्न । गेंड (यू) कामकालिए गेंद, (गेंडूक' भी)। ) (स्त्री-रो) [गिरि For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५३ ) गरिक (वि.) (स्त्री०-को) [गिरि + ठञ् ] पहाड़ पर ।। प्रकार बुद्धि, दृष्टि', श्रवण आदि 4. पृथ्वी पर उत्पन्न,-क:-कम् गेरु, कम सोना । घूमने वाला (र) 1. पशुओं का क्षेत्र, चरागाह-- गरेयम् [गिरि+ढक] शिलाजीत । उपारता: पश्चिमरात्रिगोचरात-कि० ४१० गो (पु०, स्त्री०) कर्तृ• गौः [गच्छत्यनेन, गम् करणे डो 2. मंडल, विभाग, प्रांत, क्षेत्र 3. इन्द्रियों का परास, तारा०] 1. मवेशी, गाय (ब० व०) 2. गौ से उप इन्द्रियों का विषय-श्रवणगोचरे तिष्ठ (जहाँ तक लब्ध वस्तु- दूध, मांस चमड़ा आदि 3. तारे 4. आकाश कानों से सुना जा सके-वहीं ठहरो) नयन गोचरं या 5. इन्द्र का वज्र 6. प्रकाश की किरण 7. हीरा 8. स्वर्ग दिखाई देना 4. क्षेत्र, परास, पहुंच-हर्तर्याति न 9. बाण, (स्त्री०) 1. गाय-जुगोप गोरूपधरामिवो- गोचरम् -भर्तृ० २।१६ 5. (आलं०) पकड़, दबाव, र्वीम् --रघु० २।३, क्षीरिण्यः सन्तु गाव:- मच्छ० शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण-कः कालस्य न गोचरान्तर१०१६० 2.पृथ्वी -दुदोह गां स यज्ञाय -रघु०१।२६, गत:-पंच० १११४६, अपि नाम मनागवतीर्णोऽसि रतिगामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य-५।२६, १११३६, भग० रमणबाणगोचरम्-मा० १ 6. क्षितिज,-चमन १५।१३, मेघ० ३० 3. वाणी, शब्द-रघोरुदारामपि । (नपुं०) 1. गोचर्म 2. विशेष माप (सतह नापने का) गां निशम्य-रघु० ५.१२, २०५९, कि० ४१२० ----वशिष्ठ के अनुसार परिभाषा-दशहस्तेन वंशेन 4. वाणी की देवता-सरस्वती 5. माता 6. दिशा | दशवंशान् समंततः, पंच चाभ्यधिकान् दद्यादेतद्गोचर्म 7. जल (ब० व०) 8. आँख (पु.) 1. साँड, बैल चोच्यते । वसनः शिव का विशेषण,--चारक: ग्वाला, -असञ्जातकिणस्कन्धः सुखं स्वपिति गोगडि:-काव्य चरवाहा,-जरः बूढ़ा बैल या साँड,-जलम् गोमूत्र, १०, मनु० ४१७२, तु० जरद्गव 2. शरीर के बाल, -~-जागरिकम् मांगलिकता, आनन्द, तल्लजः श्रेष्ठ रोंगटे 3. इन्द्रिय 4. वृषराशि 5. सूर्य 6. (गणित में) बैल या साँड, तीर्थम् गौशाला,-त्रम् 1. गौशाला नौ की संख्या 7. चन्द्रमा 8. घोड़ा । सम०--कण्टकः, 2. पशुशाला 3. परिवार, वंश, कुल परम्परा--गोत्रण -कम बैलों द्वारा खूदा हुआ फलत: जाने के अयोग्य | माठरोऽस्मि-सिद्धा०, इसी प्रकार कौशिकगोत्राः, स्थान या सड़क 2. गाय के खुर 3. गाय के खुर की वसिष्ठगोवा: -आदि-मनु० ३.१०९, ९।१४१ नोक, कर्णः 1. गाय का कान 2. खच्चर 3. सांप 4. नाम, अभिधान--जगाद गोत्रस्खलिते च का न तम् 4. बालिश्त (अंगुठे के सिरे से कन्नो की अंगुली तक --० ११३०, देखो स्खलित नी०, मद्गोत्राएं की दूरी) 5. दक्षिण में स्थित एक तीर्थस्थान का नाम, विरचितपदं गेयमद्गातुकामा-मेघ० ८६ शिव का प्रियस्थान—श्रितगोकर्णनिकेतमीश्वरम-रघु० 5. समुच्चय 6. वृद्धि 7. वन 8. खेत 9. सड़क ८.३३ 6. एक प्रकार का बाण, · किराटा,-किरादिका 10. संपत्ति, दौलत 11. छतरी, छाता 12. भविष्य का मैना पक्षी,---किल:--कोल: 1. हल 2. मसल,-कुलम् ज्ञान 13, जाति, श्रेणी, वर्ग, (--त्रः) पहाड़, कोला 1. गौओं का लहंडा-वृष्टिव्याकुलगोकुलावनरसादु- पृथ्वी, ज (वि) समान कुल में उन्पन्न, एक ही जाति द्धृत्य गोबर्धनम् --गीत०४, गोकुलस्य तुषार्तस्य-महा. का, संबंधी - याज्ञ० २।१३५, पट: वंश विवरण, 2. गौशाला 3. 'गोकुल' एक गांव (जहाँ कृष्ण का वंशतालिका, बंशवृक्ष, वंशावली, °भिद् (पुं) इन्द्र का पालन पोषण हुआ),-कुलिक (वि०) 1. दलदल में विशेषण-हृदि क्षतो गोत्रभिदप्यमर्षण:---रघु० फंसी गाय का उद्धार करने में सहायता न देने वाला ३।५३, ६७३, कु० २१५२, स्खलनम् स्खलितम् 2. भेंगा, वक्रदृष्टि,--कृतम् गाय का गोबर, क्षीरम् नाम लेकर पुकारना, गलत नाम से पुकारना-स्मरसि गाय का दूध, --खा नाखून,-गृष्टिः सकृत्प्रसूता गाय, स्मर मेखलागणरुत गोत्रस्खलितेषु बन्धनम्-कु०४१८, पहलौठी, - गोयुगम् बैलों की जोड़ी,-गोष्ठम् गौशाला, (-त्रा) 1. गौओं का समूह 2. पृथ्वी,-वन्तम् हरताल, पशुशाला,-ग्रन्यिः 1. कंडे, सूखा गोबर 2. गौशाला, -दा गोदावरी नामक नदी,-दानम् 1. बाल काटने ----ग्रहः पशुओं को पकड़ना,—ग्रासः प्रायश्चित्त के रूप की दक्षिणा तथास्य गोदानविधेरनन्तरम्- रघु० में गाय को घास का कौर देना या भोजन का वह ३१३३ 2. केशान्त संस्कार (दे० मल्लि० की व्याख्या) भाग जो गाय को देने के लिए अलग कर दिया जाय, कृतगोदानमंगला:-उत्तर० १ (रामा० में भिन्न प्रकार ----घुतम् 1. बारिश का पानी 2. गाय का घी,--चन्द- की व्याख्या है),-वारणम् 1 हल 2. फावड़ा, खुर्पा, नम् एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी,-चर (वि०) ---बाबरी दक्षिण देश की एक नदी का नाम, बुह, 1. चारागाह 2. बार-बार जाने वाला, आश्रय (पुं) दुहः ग्वाला,-दोहः 1. गो का दूध निकालना लेने वाला, बारंबार मंडराने वाला—पितसमगोचरः 2. गाय का दूध 3. गौओं को दोहने का समय, कु० ५।७७ 3. क्षेत्र, शक्ति या परास के अन्त- -दोहनम् 1. गौओं को दोहने का समय 2. गौओं को र्गत-अवाजमनसगोचरम् --रघु० १०.१५, इसी दोहना, बोहनी वह बर्तन जिसमें दूध दुहा जाय,--कः ४५ For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५४ ) गोमूत्र,-धनम् गौओं का समूह, मवेशी,-धरः पहाड़। 2. एक तरह की (चोर के द्वारा लगाई गई) सध, -धुमः,- धूमः 1. गेहूँ 2. संतरा,-धूलि: पृथ्वी की ---(खम्) टेढामेढ़ा बना हुआ मकान, (-खम्, धूल, संध्या का समय (संध्या समय हो गौएँ जंगलों -खी) जपमाला रखने की छायाशंकू के आकार की से घर लौटती है, उनके चलने से धूल के बादल एकत्र थैलो जिसमें हाथ डाल कर माला के दानों को गिनते हो जाते हैं, इसी लिए इस काल का नाम 'गोधूलि' रहते है,-मूढ (वि.) बैल की भांति बुद्ध, -- मूत्रम् पड़ा),-धेनुः दूध देने वाली गाय जिसके नोचे बछड़ा गाय का मूत्र,-मृगः नीलगाय, गवय, एक प्रकार हो,--ध्रः पहाड़, नन्दी मादा सारस (पक्षी),--नर्दः का बैल,--मेवः ‘गोमेद' नाम का एक रत्न (यह 1. सारस पक्षी 2. एक देश का नाम,-नर्दीयः महा- रत्न हिमालय पहाड़ और सिन्धु नदी से प्राप्य भाष्य के कर्ता पतंजलि मुनि,-नसः,-नासः 1. एक है तथा श्वेत, पीला, लाल और गहरे नीले रंग का प्रकार का सांप 2. एक प्रकार का रत्न,-- नायः होता है), --यानम् बैलगाड़ी, रक्षः 1. ग्वाला 1. सांड़ 2. भूमिधर 3. ग्वाला 4. गौओं का स्वामी, 2. गोपाल 3. सन्तरा, रडकुः 1. मुर्गाबी 2. बन्दी --नायः ग्वाला,-निष्यन्तः गोमत्र,-पः ग्वाला (एक 3. नग्नपुरुष, दिगंबर साधु, रस: 1. गाय का दूध वर्णसंकर जाति)-गोपवेशस्य विष्णो:-मेघ० १५ 2. दही 3. छाछ, जम् मट्ठा-राजः बढ़िया साँड़,-पतम् 2. गौशाला का प्रधान 3. गाँव का अधीक्षक 4. राजा दो कोस के बराबर दूरी का माप,-राटिका,--- राटी 5.प्ररक्षक, अभिभावक, (पी) 1. ग्याले को पत्नी मैना पक्षी-रोचना एक सुगन्धित पदार्थ जिसकी -गोपीपीनपयोधरमर्दनचंचलकरयुगशाली-गीत० ५, उत्पत्ति गोमूत्र, गोपित्त से मानो जाती है अथवा जो गाट °अध्यक्षः, इन्द्रः ईशः ग्वालों का मुखिया, कृष्ण का के सिर से उपलब्ध होता है, लवण नमक की मात्रा विशेषण, दल: सुपारी का पेड़ वधूः (स्त्री०) ग्वाले जो गाय को दी जाती है-लांग (ग) ल: लंगूर, एक को पत्नी वधूटी गोपी, ग्वाले की तरुण पत्नी---गोप- तरह का बन्दर-मा० ९१३०,-लोभी वेश्या,-वत्सः वघटीदुकलचौराय-भाषा० १,-पतिः 1. गौओं का बछड़ा, आविन् (पुं०) भेड़िया,--बर्धनः मथुरा के स्वामी 2. सांड़ 3. नेता, मुखिया 4. सूर्य 5. इन्द्र निकट वृन्दावन प्रदेश में स्थित एक विख्यात पहाड़, 6. कृष्ण का नाम 7. शिव का नाम 8. वरुण का नाम धरः, धारिल् (पुं०) कृष्ण का विशेषण,- वशा 9. राजा,-पशुः यज्ञीय गाय,-पानसी छप्पर को संभा- वांश गाय, ---वाटम,- वासः गौशाला,-विव1. गोलने के लिए उसके नीचे लगी टेढ़ी बल्ली, वलभी, पालक, गौशाला का अध्यक्ष 2. कृष्ण 3. बृहस्पति, ---..पाल: 1. ग्वाला 2. राजा 3. कृष्ण का विशेषण -विष (स्त्री०),-विष्ठा गोदर,-..विसर्गः भोर, °धानी गौशाला, गौघर, पालक: 1. ग्वाला 2. शिव तड़के (जब गौएँ जंगल में चरने के लिए खोली जाती का विशेषण,-पालिका, पाली ग्वाले की पत्नी, है), वीर्यम् दूध का मूल्य,-वृन्दम् गौओं का लहंड़ा, गोपी,... पीतः खंजन पक्षी का एक प्रकार,- पुच्छम् ---वृन्दारक बढ़िया साँड़ या गाय,-वृषः बढ़िया सांड़, गाय की पूंछ (च्छः) 1. एक प्रकार का बन्दर 2. दो, ध्वजः शिव का विशेषण,-व्रजः 1. गोशाला 2. गौओं चार या चौंतीस लड़ी का एक हार,-पुटिकम् शिव के का समूह, गोचर भूमि,- शकृत (नपुं०) गोबर, बैल (नादिया) का सिर,-पुत्रः जवान बछड़ा, पुरम् --शाला,-ला गौओं को रखने का स्थान, बङ्गवम् 1. नगरद्वार 2. मुख्य दरवाजा-कि० ५.५ गौत्रों को तीन जोड़ी, ठ: गौओं का स्थान, गोठ, 3. मन्दिर का सजा हुआ तोरणद्वार,-पुरीषम् गाय का .. संख्यः ग्वाला,-सदृक्षः नीलगाय, गवय की एक गोबर,--प्रकाण्डम् बढ़िया गाय का सांड़,-प्रचारः जाति, सर्गः भोर, तड़के (वह समय जब गौएँ गोचरभूमि, पशुओं का चरागाह-चाज्ञ० २।१६६, प्रात:काल चरने के लिए खोल दी जाती है), सत्रिका —प्रवेशः गौओं का जंगल से लौटने का समय, सायं गाय बाँधने की रस्सी,. - स्तनः 1. गाय का काल या संध्या समय, भूत (०) पहाड़,---मक्षिक ऐन, औड़ी 2. फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता आदि (वि०) डांस, कुत्तामाखी,--मंडलम् 1. भूगोल 3. चार लड़ की मोतियों की माला, स्तना, नी 2. गौओं का समूह,-मतम्-दे० गब्यूति,---मतल्लिका अंगूरों का गुच्छा, स्थानम् गोशाला, स्वामिन सीधी गाय, श्रेष्ठ गौ,--मयः ग्वाला,-मांसन गो का (पुं०) गौओं का स्वामी 2. धार्मिक साधु 3. मांस, मायुः 1. एक प्रकार का पेढक 2. गीरड़-अन्हें- संज्ञाओं के साथ लगाने वाली सम्मानसूचक पदवी कुरुते घनध्वनि न हि गोमायरुतानि केसरी- ज.. (उदा० बोपदेव गोस्वामिन्),-हत्या गोवध, हनम् १६।२५ 3. गाय का पित्तदोष 4. एक गन्धर्व का (हन्नम् ) गोबर,- हित (वि०) गौओं की रक्षा करने नाम,-मुखः,-मुखम् एक प्रकार का बाद्ययन वाला। --भग० १६१३ ( खः) 1. मगरमच्छ, घड़ियाल | गोडम्बः [?] तरबूज । Imeagsar For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३५५ गोणी [गुण् + + ङीय् ] 1. गूण, बोरा 2. 'द्रोण' के बरावर माप 3. चीथड़े, फटपुराने कपड़े । गोण्ड : [ गो: अण्ड इव] 1. मांसल नाभि 2. निम्न जाति का पुरुष, पहाड़ी, नर्मदा तथा कृष्णा नदी के मध्यवर्ती दि प्रदेश के पूर्वी भाग का निवासी । गोतमः [ गोभिः व्यस्तं तमो यस्य व० स० पृषो० ] अङ्ग'राकुल से संबन्ध रखने वाला एक ऋषि, शतानन्द का पिता तथा अहल्या का पति । गोतमी [ गोतम - डीपू | गोतम की पत्नी अहल्या । सभ० पुत्रः शतानन्द का विशेषण । गोधा [ गुध्येते, वेष्टयते दारतया गुब+घञ्ञ ! टाप् ] 1. धनुष के चिल्ले की चोट से बचने के लिए बाएँ हाथ में बांधी जाने वाली चमड़े की पट्टी 2 मंडियाल, भगरमच्छ 3. स्नायु, तांत । गोधिः (पुं० ) [ गौत्र धीयतेऽस्मिन् आधारे इन् ] 1. मस्तक 2. गंगा में रहने वाला घड़ियाल | गोधिका [ गुध्नाति गुब् + ल् + प्] एक प्रकार की छिपकली, गोह | गोपः (स्त्री० - पी ) ( गुरु + अच्; घन वा | 1. रक्षक, रक्षा artamaanitयो जगुर्यशः- रघु० ४।२० 2. छिपाना, गुप्त रखना 3. दुर्वचन, गाली 4. हड़बड़ी, सोभ 5. प्रकाश, प्रभा, दीप्ति । गोदान [ गुप्+आय् + ल्युट् । प्ररक्षण, संरक्षण, बचाव । गोपायित ( वि० ) [गुप-आय् +क्त] प्ररक्षित बचाया हुआ । गोप्तृ ( स्त्री० स्त्री ) [ गुप् + तृच् 1. प्ररक्षक, संधारक, अभिभावक - तस्मिन्वनं गोप्तरि गाहमाने - रघु० २।१४, १९५५ मालवि० ५।२० भग० ११ ११ 2. छिपाने वाला, गुप्त रखने वाला - (पुं०) विष्णु का विशेषण | गोमत् (वि० ) ( गो + मनुप् ] 1. गौओं से संपन्न, तो एक नदी का नाम । गोमयः -- यम् [गो + मयट् ] गोवर, छत्रम् प्रियम् कुकुरमुत्ता, साँप की छतरी भी । गोभिन् (पुं०) गो+मिनि] 1. मवेशियों का स्वामी 2. गीदड़ 3. पूजा करने वाला 4. बुद्धदेव का सेवक गोरणम् गुर् स्फूर्ति, अध्यवसाय, धैर्य । गोदम् गुरु ददन्, नि० ] ( 'गोद' भी) गस्तिष्क, दियारा । गोल: [गुल 1. विण्ड, गोर 2. लि लोक, अंतरिक्ष, 3. आकाश मंडल 4. Farrer जारज पुत्र तु० कुंड 5. एक राशि पर कई ग्रहों का समागम, -- ला ! काठ की गेंद ( इससे लड़के हैं) 2. गांव पानी भरने का घड़ा 3. कार मबिया, सैनसिल 4. मसी, स्वाही 5. सखी सहेली 46. gut bin 7. iRT HÅLL गोल्फ : गुड् | स्थल: ] 1. पिंड, भूगोल 2. बच्चों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) के खेलने के लिए काठ की गेंद 3. पानी का मटका 4. विधवा का जारज पुत्र 5. पाँच या पाँच से अधिक ग्रहों का सम्मिलन 6. गुड़ की पिंडियां 7. खुशबूदार गोंद । गोष्ठ (स्वा० आ० --गोष्टते) एकत्र होना, इकट्ठे होना, ढेर लगना । गोष्ठः, ष्ठम् [गोष्ठ +अच्] (प्रायः 'गोष्ठम् ) 1. ब्रज, गोशाला, गो-घर 2 ग्वालों का स्थान, ष्ठः सभा या रामाज " व्रज का कुत्ता जो हरेक को भौंकता है, ( आलं०) वह आलसी पुरुष जो अपने पड़ोसियों की निंदा करता है, गोष्ठेपण्डितः 'व्रज में निपुण' शेखीखोरा, मिथ्या डींग हांकने वाला । गोष्ठि, ष्ठी (स्त्री० ) [ गोट् +इन्, गांठ + ङीप् | 1. सभा, सम्मेलन 2. जनसमुदाय, समाज 3. संलाप, बातचीत, प्रवचन- गोष्ठी सत्कविभिः समम् भर्तृ० ११२८ -- मा० १००२५ तेनैव सह सर्वदा गोष्ठीमनुभवति पंच० २ 4. समुदाय, जमाव 5. पारिवारिक संबंध, रिश्तेदार (विशेषतः वह जिससे संबंध बनाये रखने की आवश्यकता 6. एक प्रकार का एकांकी नाटक, पतिः सभा का प्रधान, सभापति । गोष्पदम् [गोः पदम्, प० त० - गो + पद + अच्, नि० सुट् पत्वं च | 1. गाय का पैर 2. धरती पर बना गाय के पैर का चिह्न 3. पैर के चिह्न में समा जाने वाले जल को मात्रा, अर्थात् बहुत ही छोटा गड्ढा 4. आय के खुर-चिह्न में समाने के योग्य मात्रा 5. वह स्थान जहाँ गौओं का आना-जाना बहुतायत से हो । गोह्य (त्रि०) | गुह + ण्यत् । गोपनीय, छिपाने के योग्य । गौञ्जिकः [गुञ्जा + ठक् ] सुनार । गौडः (पुं) एक देश का नाम स्कंदपुराण इसकी स्थिति इस प्रकार बतलाता है-बङ्गदेशं समारभ्य भुवनेशान्तगः शिवे, गौडदेश: समाख्यातः सर्वविद्याविशारदः । 2. ब्राह्मणों का एक भद, डा (व० ब ० ) गौड़ देश के निवासी, डी 1. गुड़ से बनाई हुई शराब - गौडी पेष्टीच माध्वी च विज्ञेया त्रिविधा सुरा - मनु० ११४९५ 2. एक रागिनी 3. (अलं० श० में) रीति, वृनि या काव्य रचना की एक शैली - सा० द० कार चार रीदियों का वर्णन करना है, काव्य में केवल तीन का ही उल्लेख है, वहाँ 'पा' का ही दूसरा नाम 'गोडी' है ओजः प्रकाशकैस्तैः ( वर्णः ) तु रुपा (अर्थात् गोडी) काव्य० ७, आज प्रकाशकबन्ध आडम्बरः पुनः समासबहुला गौडी - सा० द० ६२७ । गॉडिफ: 1 / ठक् ] देख, गन्ना । पण (वि०) (स्त्री० णी) [गुण द्वितीय कोटि का अनावश्यक 2. For Private and Personal Use Only अण् ] 1. मातहत, ( व्या० में) अप्रत्यक्ष Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५६ ) या व्यवधान-सहित (विप. मुख्य या प्रधान)--गौणे। सम-आसनम सम्मान का पद,-ईरित (वि.) कर्मणि दह्यादेः प्रधाने नीहकृष्वहाम्-सिद्धा. 3. आलं- प्रशस्त, यशस्वी, विख्यात । कारिक, रूपक, अप्रधान अर्थ में प्रयुक्त (शब्द या | गौरवित (वि.) [गौरव+इतच अत्यंत सम्मानित, गौरव अर्थ आदि) 4. प्रधान और अप्रधान अर्थ की समानता | युक्त। पर स्थापित जैसा कि 'गोणी लक्षणा' में 5. गणा की | गौरिका गौरी+कन--टाप, इत्वम कुमारी कन्या, अविगणना से संबद्ध 6. विशेषण। । वाहिता लड़की। गौप्यम् गुण+ध्य] मातहती निचली या घटिया अब- गौरिलः [गौर+इलच] 1. सफेद सरसों 2. इस्पात या स्थिति। । लोहे का चूरा। गौतमः[गोतम+अण] 1. भारद्वाज ऋषि का नाम 2. गोतम | गौरी [गौर डीष] 1. पार्वती-जैसा कि 'गौरीनाथ' में का पुत्र, शतानन्द 3. द्रोण का साला, कृपाचार्य 4. बुद्ध 2. आठवर्ष की आयु की कन्या-अष्टवर्षा भवेद्गौरी 5. न्यायशास्त्र का प्रणेता। सम०--संभवा गोदावरी 3. वह लड़की जो अभी रजस्वला नहीं हुई, कुमारी नदी। कन्या 4. गोरे या पीले रंग की स्त्री 5. पृथ्वी 6. हल्दी गौतमी गौतम-कीप] 1. द्रोण की पत्नी, कृपी 2. गोदा 7. गोरोचन 8. वरुण की पत्नी 9. मल्लिका लता वरी का विशेषण 3. बुद्ध की शिक्षा 4. गौतम द्वारा 10. तुलसी का पौधा 11. मजीठ का पौधा। सम० प्रणीत न्यायशास्त्र 5. हल्दी 6. गोरोचन । -कान्तः, नाथः शिव का विशेषण,-गुरुः हिमालय पहाड़ गोषूमीनम् [गोधूम+खञ] गेहूँ का खेत । -गौरीगुरोर्गह्वरमाविवेश-रघु० २२२६, कि० ५।२१, गौमः [गोनर्द+अण] महाभाष्य के प्रणेता पतंजलि मनि -जः कार्तिकेय (जम्) अभरक,--पट्टः योनिरूपी अर्घा का विशेषण। जिसमें शिवलिंग (की मूर्ति स्थापित किया जाता है, गोपिकः [गोपिका+अण] गोपी या ग्वाले की स्त्री का -पुत्रः कार्तिकेय, ललितम् हरताल,-सुतः 1. कार्तिकेय पुत्र । 2. गणेश 3 ऐसी स्त्री का पूत्र जिसका विवाह आठ गौप्यः [गुप्ता+ठक्] वैश्य स्त्री का पुत्र । वर्ष की अवस्था में हुआ था। गौर (वि०) (स्त्री०---रा-री) [गुन-र, नि०] श्वेत | गौरतल्पिक: [गुरुतल्प। ठक्] गुरुपत्नी से साथ व्यभिचार -कैलासगौरं वृषमारुरुक्षोः-रघु० २।३५, द्विरदद- | करने वाला । शनच्छेदगोरस्य तस्य-मेघ० ५९, ५२, ऋतु. ११६ | गौलक्षणिकः [गोलक्षण+ठक] जो गाय के शुभ या अशुभ 2. पीला सा, पीत--रक्त-गोरोचनाक्षेपनितान्तगौरम् । चिह्नों को पहचानता है। -कु० ७.१७, रघु० ६१६५, गौराङ्गि गर्व न कदापि | गौल्मिक: (गल्म+ठक] किसी सेना की टोली का एक कुर्या:--रस०3. लालरंग का 4. चमकता हुआ, उज्ज्वल | सिपाही। 5. विशुद्ध, स्वच्छ, सुन्दर,–२: 1. सफेद रंग 2. पीला | गौशतिक (वि.) (स्त्री०-की) [गोशतन-ठ] सौ गौओं रंग 3. लाल रंग 4. सफेद सरसों 5. चन्द्रमा 6. एक | का स्वामी। प्रकार का भैंसा 7. एक प्रकार का हरिण,--रम् | ग्मा [गम+मा, डित, डित्त्वात् अमो लोपः] पृथ्वी। 1. पद्मकेसर 2. जाफरान 3. सोना। सम-आस्यः अथ, ग्रन्थ (भ्वा० आ०--प्रथते, गन्थते) 1. टेढ़ा होना एक प्रकार का काला बंदर जिसका मह सफेद हो, 2. दुष्ट होना 3. मुकना। -सर्षपः सफेद सरसों। | प्रथनम् [ग्रन्थ् + ल्युट नलोपः] 1. जमाना, गाढ़ा करना, गौरक्ष्यम् [गोरक्षा+-ष्यज] ग्वाले का कार्य, गोपालन । जाम हो जाना 2. एक जगह नत्थी करना 3. रचना गौरवम् [गुरु--अण्] 1. बोझ, भार (शा०)--सुरेन्द्रमा- | करना, लिखना (इस अर्थ में-'प्रथना' शब्द भी है)। प्राश्रितगर्भगौरवात्--रघु० ३।११ 2. महत्त्व, ऊँचा | ग्रन्थः [ग्रन्थ्+नङ झुंड, गुच्छा, लच्छा। मूल्य या मूल्यांकन--स्वविक्रमे गौरवमादधानम्-रघु० | प्रथित (भू० क० कृ०) [ग्रन्थ+क्त, नलोपः] 1. एक जगह -१४११८, १८।३९, कार्यगौरवेण-मुद्रा० ५, गुरुता नत्थी किया हुआ या बांधा हुआ 2. रचित-वर्णः या महत्त्व 3. सम्मान, आदर, विचार-तथापि यन्म- कतिपयैरेव ग्रथितस्य स्वरैरिव-शि० २।७२ 3. क्रमप्यपि ते गुरुरित्यस्ति गौरवम-शि० २०७१, प्रयोजना- | बद्ध, श्रेणीबद्ध 4. गाढ़ा किया हुआ 5. गांठवाला। पेक्षितया प्रभूणां प्रायश्चलं गौरवमाश्रितेषु-कु०३।१, | अन्य (भ्वा०, ऋचा० पर०; चुरा० उभ०, भ्वा० आ० अमरु १९ 4. सम्मान, मर्यादा, श्रद्धा-कोऽर्थी गतो --ग्रन्थति, ग्रथ्नाति; ग्रथयति-ते, प्रथति, अथते) गौरवम्-पंच० १२१४६, मनु० २।१४५ 5. दुष्करता | 1. गूंथना, बांधना, नत्थी करना-भट्रि० ७.१०५ 6. (छं० में) दीर्घता (जैसे की अक्षर की) 7.(अर्था- स्रजों प्रथयते 2. क्रम से रखना, श्रेणीबद्ध करना, विक की) गहराई–चार्थतो गौरवम्-मा० १७।।। नियमित सिलसिले में जोड़ना 3. बटना, बटा चढ़ाना का मुंह सफेद हो अथ, ग्रन्थ् ( वाहत्त्वात् अमो लोपा For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५७ ) 4. लिखना, रचना करना- अध्नामि काव्यशशिनं । प्रस् । (भ्वा० आ.--ग्रसते, ग्रस्त) 1. निगलना, भसकना, विततार्थरश्मिम्-काव्य० १० 5. बनाना, निर्माण खा जाना, समाप्त कर देना-स इमां पृथिवीं कृत्स्नां करना, पैदा करना- ग्रन बाष्पबिन्दूनिकरं पक्ष्म- संक्षिप्य ग्रसते पुनः--महा०, भग० ११०३० 2. पकपङक्तयः-का० मट्टि. १७१६९, उद्-', बांधना, डना 3. ग्रहण लगना-द्वावेद असते दिनेश्वरनिशानत्थी करना, मुद्रा० ११४ अन्तर्जटित करना-- लता- प्राणेश्वरौ भास्वरो- भर्त० २।३४, हिमांशुमाशु असते प्रतानोद्ग्रथितैः स केदाः-रघु० २१८ 2. खोलना, तन्म्रदिम्नः स्फुटं फलम्-शि० २१४९ 4. शब्दों को ढीला करना। मिला-जुला कर अस्पष्ट लिखना 5. नष्ट करना, अन्यः [ग्रन्थ --घा] 1. बांधना, गूंथना (आलं० से भी) सम्-- नष्ट करना भट्रि० १२१४; i (म्वा० पर०, 2. कृति, प्रबन्ध, रचना, साहित्यिक कृति, पुस्तक चुरा० उभ०---ग्रसति, ग्रासयति-ते) खाना निगलना। --ग्रन्यारम्भे, ग्रन्थकृत, ग्रन्थसमाप्ति आदि 3. दौलत, | असनम् [ग्रस् -ल्युट ] 1. निगलना, खा लेना 2. पकड़ना सम्पत्ति 4. ३२ मात्राओं का श्लोक, अनुष्टुप् छंद । सूर्य या चन्द्रमा का खण्डग्रास । सम०--कारः,---कृत् (पुं०) लेखक, रचयिता---ग्रन्था- ग्रस्त (भ० क० कृ०) [ग्रस्+क्त 1. खाया हुआ, निगला रंभे सम चितेष्टदेवतां ग्रन्थकृत्परामगति--काव्य० १, हुआ 2. पकड़ा हुआ पीड़ित, ग्रस्त, अधिकृत, ग्रह, --कुटी,-कटी 1. पुस्तकालय 2. कलामन्दिर, विपद् आदि 3. ग्रहण-ग्रस्त,--स्तम् अर्घोच्चारित शब्द ---विस्तरः,-विस्तारः ग्रन्थ का कई भागों में विभा या वाक्य । सम०--अस्तम् ग्रहणग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा जन, विस्तारमयी शैली,--सन्धिः किसी पुस्तक का का अस्त होना, उदयः ग्रहण-ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा अनुभाग या अध्याय (संस्कृत में 'अनुभाग' आदि के | का उगना। पर्याय 'अध्याय' शब्द के अन्तर्गत देखें)। ग्रह (श्या० उभ० (वेद में 'ग्रभ')-गणाति, गृहीत; प्रन्यनम्-ना [ग्रन्थ् + ल्युट] दे० 'ग्रथन' । प्रे० ग्राहयति, सन्नन्त-जिघक्षति) 1. पकड़ना, लेना, ग्रहण ग्रन्थिः [ग्रन्थ-। इन्] 1. गांठ, गच्छा, उभार स्तनौ मांस- करना, पकड़ लेना, थामना, लपक लेना, कस कर ग्रन्थी कनककलशावित्युपमितौ---भर्त० ३।२०, इसी पकड़ना-तयोर्जगृहतुः पादान् राजा राज्ञी च माधवी प्रकार 'मेदाग्रन्थिः' 2. रस्सी का बंधन या गाँट, वस्त्र ---रघु० ११५७... आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु की गांठ-इदमुपहितसूक्ष्मग्रंन्थिना स्कन्धदेशे श०१।१८, गृह्यते. मृच्छ० ११५०, तं कण्ठे जग्राह-का० ३६३ मच्छ० १११, मनु० २।४३, भर्त० ११५७ 3. रुपया- पाणि गृहीत्वा, चरणं गृहीत्वा 2. प्राप्त करना, लेना, पैसा रखने के लिए कपड़े के अंचल में गाँठ, अतएव स्वीकार करना, बलपूर्वक वसूल करना-प्रजानामेव बटुवा, धन, सम्पत्ति कुसोदाहारिद्रचं परकरगतग्रन्थि- भत्यर्थ स ताभ्यो वलिमग्रहीत्--रघु० १११८, मनु० शमनात--पंच० १११ 4. नरकुल की गाँठ, गन्ने ७।१२४, ९।१६२ 3. हिरासत में लेना गिरफ्तार आदि की पोरों की गांठ या जोड़ 5. शरीर के अवयवों करना बन्दी बनाना-- बन्दिग्राहं गहोत्वा. विक्रम का जोड़ 6. टेढ़ापन, तोड़ना-मरोड़ना, मिथ्यात्व, सचाई १, यांस्तत्र चारान् गृह्णीयात्--मनु०८।३४ 4. गिरमें उलट फेर 7. शरीर की वाहिकाओं में सूजन, फ़्तार करना, रोकना, पकड़ना- भग० ६।३५ 5. मोह कठोरता । सम०--छेदकः,-भेदः --मोचकः गिरहकट लेना, आकृष्ट करना—महाराजगृहीतहृदयया मया जेबकतरा-अङ्गलीग्रन्थिभेदस्य छेदयेत् प्रथमे ग्रहे --विक्रम० ४, हृदये गृह्यते नारी-- मच्छ० ११५०, - मनु० ९।२७७, याज्ञ० २।२७४,-- पर्णः, पर्णम् माधुर्यमीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम्- रघु० १८१३ 1. एक मुगन्धयुक्त वृक्ष-विक्रमांक० १११७ 2. एक ! 6. जीत लेना उकसाना, अपनी ओर करने के लिए फुसप्रकार का सुगन्ध द्रव्य,-- बन्धनम् 1. विवाह के अवसर लाना -लुब्धमर्थन गृहणीयात्- - चाण. ३३ 7. प्रसन्न पर दूल्हे और दुलहिन का गठजोड़ा करना 2. वन्धन, करना, सन्तुष्ट करना, तृप्त करना, अनुकूल करना - हरः मन्त्री। -~-ग्रहीतुमार्यान् परिचर्यया महर्महानुभावा हि निताप्रन्धिकः अधिक क|1. ज्योतिपी, दैवज्ञ 2. राजा । न्तमथिन:-शि० ११७, ३३ 8. ग्रस्त करना, पकड़ना, विराट के यहाँ अज्ञातवास के अवसर पर नकुल का । चिपटना (भूत प्रेतादिक का) जैसे कि 'पिशाचगृहीत' नाम । या 'वेतालगृहीत' में 9. धारण करना, लेना--द्युतिमप्रन्थित-दे० प्रथित । ग्रहीत् ग्रहगण:---शि० ९।२३, भट्टि० १९।२९ प्रन्थिन् (पुं०) [ग्रन्थ+ इनि] 1. जो बहन सी पुस्तकें पढ़ता 10. सीखना, जानना, पहचानना, समझना--कि० हो, किताबो... अज्ञेभ्यो ग्रन्थिनः श्रेष्ठाः ग्रन्थिभ्यो १०८ 11. ध्यान देना, विचार करना, विश्वास धारिणो वरा:-मन० १२।१०३ 2. विद्वान, पण्डित । करना, मान लेना-- -मयापि मत्पिण्डबुद्धिना तथव गही प्रन्थिल (वि.) [ग्रन्थिविद्यतेऽस्य-लच] गांठवाला, जटिल। तम्-श० ६, परिहासविजल्पितं सखे परमार्थेन न मृच्छ० कसाना, महातुम For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवानि वस्त्रारिक १५17 १२२ 19 गृह्यतां वच:- श०. २११८ एवं जनो गह्णाति करना, रोकना 3. फैलाना, विस्तार करना, प्रति-, मालवि० १, भुद्रा० ३ 12. (इन्द्रियों द्वारा) समझ 1. थामना, पकड़ना, सहायता देना - वर्पधरप्रतिगृहीतलेना, या प्रत्यक्ष करना --ज्यानिनादमय गृह्णती तयोः मेनम् . मालवि०४, मनु० २।४८ 2. लेना, स्वीकार -रधु० ११११५ 13. पारंगत होना, मस्तिष्क से करना, प्राप्त करना । ददाति प्रतिगणाति-पंच० पकड़ना, समझ लेना,---रघु० १८।४६ 14. अनुमान २, अमोघाः प्रतिगृहान्तावानुपदमाशिष:---रघु० लगाना, अटकल लगाना, अन्दाज करना - नेत्रवक्त्र- ११४४, २।२२ 3. उपहार स्वरूप लेना या स्वीकार विकारैश्च गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः--मनु० ८२६ करना 4. शत्रुवत व्यवहार करना, विरोध करना, 15. उपचारण करना, उल्लेख करना,(नाम आदि का) गुकाबला करना, रोकना--प्रतिजग्राह काकुत्स्थस्तयदि मयान्यस्य नामापि न महोतम् का० ३०५, न मस्त्रंगजसाधन..... रघु० ४१४०, १२१४७ 5. पाणितु नामापि गह्णीयात् पत्यो प्रेते परस्य तु मनु० ग्रहण करना ----मनु० ९१७२ 6. आज्ञा मानना, ५।१५७ 16. मोल लेना, खरीदना कियता मल्येनैत- समनुरूप होना, ध्यान से सुनना 7. आश्रय लेना, त्पुस्तकं गृहीतम्---पंच०२, याज्ञ० २।१६९, भनु० अवलंवित होना, बि-, 1. थामना या पकड़ना 2. कलह ८/२०१ 17. किसी को वंचित करना, छीन लेना, करना, लड़ना, लिवाद करना, विगृह्य पके नमुचिद्विपा लट लेना, बलपूर्वक ले लेना, भट्टि० ९१९, १५।६३ बली य इत्यमस्वास्थ्यमहदिवं दिवः . शि. ११५१, 18. पहनना, धारण करना ( वस्त्रादिक ) वासांसि भट्टि० ६८६, १७१२३, सम्-, 1. संग्रह करना, जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि एकत्र करना, संचय करना, जोड़ना -- संगृह्य धनम्, -भग०२।२२ 19. गर्भ धारण करना 20. (उपवास) पाशान 2. सानुग्रह प्राप्त करना 3. दमन करना, रखना 21. ग्रहण लगना 22. उत्तरदायित्व लेना [इस रोकना, (धोड़ों को) लगाम देना 4. (धनुष आदि धातु के अर्थ उस संज्ञा के अनुसार विभिन्न प्रकार से की) डोरी खोलना; i (भ्वा० पर०-चुरा० उभ० परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे इसे जोड़ा जाय| प्रेर० ... ग्रहति, ग्राहयति ते) लेना, प्राप्त करना आदि । 1. ग्रहण करवाना, पकड़वाना, स्वीकार करवाना | पहा ग्रह - अच] 1. पकड़ना, ग्रहण करना, अधिकार 2. विवाह में उपहार देना 3. सिखाना, परिचित जमाना, अभिग्रहण - रुरुधुः कचग्रहः .. रघु० १९॥३१ करवाना, अनु---, अनुबह करना, आभार मानना, 2. पकड़, ग्रहण, प्रभाव -- कर्कटकग्रहात - पंच० कृपा प्रदर्शित करना--अनुगहीतोऽहमनया मघवतः १२२६० 3. लेना, प्राप्त करना, स्वीकार करना, प्राप्ति संभावनया-....श. ७, अनुगृहीताः स्मः 'अनेक धन्यवाद' 4. चुराना, लटना-अगुलोग्रन्थिभेदस्य छेदयेत्प्रथमे ग्रहे 'हम बड़े आभारी है', अनुसम् -विनम्र नमस्कार --मनु० ९.७७ इसी प्रकार 'गोग्रह' 5. लट का करना, अप-, दूर करना, फाड़ना, अभि--बलपूर्वक माल, बटमा ) 6. ग्रहण लगना दे० ग्रहण 7. ग्रह पकड़ना, अब-.-, 1. विरोध करना, मुकाबला करना (यह गिनतीनौ हैं-सूर्यश्चन्द्रो मंगलइच बुधश्चापि 2. दण्ड देना 3. हस्तगत करना, पराभूत करना, बृहस्पतिः, शुक्रः शनैश्चरो राहः केतुश्चेति ग्रहा नव।) आ-, आग्रह करना, उद्---, 1. उठाना, ऊपर करना, -नक्षत्रताराग्रहसकुलापि (रात्रिः)रपु० ६।२२, ३।१३, सीधा खड़ा करना-उद्गृहोतालकन्ताः मेघ. ८, १२।२८, गुरुणा स्तनभारेग मुखचन्द्रेण भास्वता, भट्टि० १५।५२ 2. जमा करना, निकालना, उप--, शनैश्चराभ्यां पादाभ्यां रेजे ग्रहमयोव सा--भर्तृ० 1. जुटाना 2. पकड़ लेना, अधिकार में ले लेना-मनु० २०१७ 8. उल्लेख, उच्चारण, दुहराना (नाम आदि ७११८४ 3. स्वीकार करना, मंजूरो देना 4. सहायता का) नामजातिग्रहं त्वेषामभिद्रोहेण कुर्नतः-मनु. करना, अनुग्रह करना, नि-, 1, थाम लेना, जांच- ८।२७१, अमरु ८३ 9. मगरमच्छ, घड़ियाल पड़ताल करना 2. दमन करना, रोकना, दबाना, 10. पिशाचशिश, भूतना 11. अनिष्टकर राक्षसों का नियंत्रण करना--भग० १६८ 3. ठहराना, बाधा एक विशेष वर्ग जो बच्चों से चिपट कर उन्हें ऐंठन डालना-निगृहीतो बलाद् द्वारि-महा. 4. दण्ड मरोड़ या कुमेड़ों से ग्रस्त कर देता है 12. (विचारों देना, सजा देना-मनु० ८।३१०, ९।३०८ 5. पकड़ना, वधारणाओं का) ग्रहण, प्रत्यक्षीकरण 13. समझने का लेना, हाथ डालना--तमार्य गुह्यं निगृहीतधेनुः-- रघु० अंग या उपकरण 14. दृढ़नाहिता, धर्य, अध्यवसात २०३३ 6. (आँख आदि) बंद करना, मूंदना-माथुरोऽ- 15. प्रयोजन, आकल्पन 16 अनुग्रह, संरक्षण । सम० क्षिणी निगृह्य-मच्छ० २, परि-, 1. कौलो भरना, अधीन (वि.) ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर,--अव. आलिंगन करना 2. घेरना 3. हस्तगत करना, पकड़ना मर्दनः राहु का विशेषण, (नम्) ग्रहों की टक्कर, 4. लेना, धारण करना 5. स्वीकार करना 6 सहायता | --अधीशः सूर्य,---आधारः-आश्रयः ध्रुव नक्षत्र करना, संरक्षण देना, प्र-, 1. लेना, पकड़ना 2. दमन | (नक्षत्रों का स्थिर केन्द्र),---मामयः 1. गिगी 2. भूता करना, म पना 3. हा आ For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेश,—आलुञ्चनम् अपने शिकार पर झपटना, और । भग० ८।१९, ९१८ 4. सरगम, (संगीत में) स्वरउसे फाड़ डालना पेनो ग्रहालञ्चने-मच्छ ० ३१२० ग्राम गा सुरक्रप। सम० ----अधिकृतः,-अध्यक्ष: -ईशः सूर्य, कल्लोल: राहु का विशेषण,-गतिः ग्रहों ----- ईशः,---ईश्वरः ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या की चाल चिन्तकः ज्योलिपी, - दशा जन्मराशि को प्रधान,- अन्तः गाँव की सीमा, गांव को समीपवर्ती दृष्टि से ग्रहों की स्थिति, वह समय जब कि उनका जगह-मनु०४।११६, ११७९,--अन्तरम् दूसरा गाँव, शुभाशुभ फल होता है,--देवता ग्रह विशेष का ....अन्तिकम् गाँव का पड़ोस,--आचारः गाँव के रस्मअधिष्ठातृ देवता,-- नायक: 1. सूर्य 2. शनि का रिवाज,---आधानम् शिकार,-उपाध्यायः गाँव का विशेषण,- नेमिः चन्द्रमा,-पतिः 1. सूर्य 2. चन्द्रमा, पुरोहित,---कण्टक: 1. गाँव के लिए कांटा' जो गांव --पीडनम---पीडा 1. ग्रहजनित पीडा, बाधा 2. ग्रहण को कष्ट देने वाला हो 2. त्रुगलखोर, ... कुक्कुटः पालतू लगना - शशिदिवाकरयोग्रहपीडनम् --- भर्त० २९१, मुर्गा, कुमार: 1. ग्राम का सुन्दर बालक 2. देहाती ----मण्डलम्,- लो ग्रहों का वृत्त,--युतिः (स्त्री०) लड़का, - कूट: 1. गाँव का श्रेष्ठ पुरुष 2. शूद्र,-गृह्म एक ही राशि पर ग्रहों का संयोग,—युद्धम् ग्रहों का । (वि.) गाँव के बाहर होने वाला,-गोबुहः गाँव का परस्पर विरोध या संघर्ष,--राजः 1. सूर्य 2. चन्द्रमा जाला, घातः गाँव को लटना,--घोषिन् (०) इन्द्र 3. बृहस्पति,-वर्षः ग्रहों की चाल के अनुसार माना का विशेषण, ..चर्या स्त्री संभोग,-चैत्यः गाँव का जाने वाला वर्ष,-त्रिः ज्योतिषी, ---शान्तिः (स्त्री) पनित्र 'गलर' का वृक्ष---मेघ० २३,--जालम् गांवों यज्ञ, जप, पुजनादि के द्वारा ग्रहदोष की नित्ति का का रामह, ग्राममंडल, - णीः 1. गाँव मा जाति का उपाय किया जाना, ग्रहों को प्रसन्न करना, संगमम् नेता या मुखिया 2. नेता, प्रधान 3. नाई 4. विषयाकई ग्रहों का इकट्ठा हो जाना । सक्त पुरुष (स्त्री०) 1. वारांगना, वेश्या 2. नील ग्रहणम् बह+ ल्युट्] 1. पकड़ना, फांसना, अभिग्रहण -श्वा का पौधा, तक्षः गाँव का बढ़ई,-देवता गाँव का मृगग्रहणेऽशुचिः-मनु० ५।१३० 2. प्राप्त करना, स्वीकार अभिरक्षक देवता, धर्मः स्त्री-संभोग, ओष्य: किसी करना, ले लेना आचारधूमग्रहणात्-रषु० ७।१७ गाँव या जाति का दूत या सेवक,--मद्गुरिका झगड़ा, 3. उल्लेख करना, उच्चारण करना--नामग्रणम् फसाद, हंगामा, हल्लागुरुला, -मुखः बाजार, मंडी, 4. पहनना, धारण करना--सोत्तरच्छदमध्यास्त नेप- -मुगः कुत्ता,--याजकः,-याजिन् (पुं०) 1. ग्रामथ्यग्रहणाय सः-रघु०१७।२१ 5. ग्रहण लगना-यान० पुरोहित, वह पुरोहित जो सभी जातियों के धार्मिक ११२१८ 6. अवबोधन, समझ, ज्ञान-न परेषां ग्रह- संस्कार कराता है, फलत: पतित ब्राह्मण समझा जाता णस्य गोचराम-नै० २०९५ 7. अधिगम, अवाप्ति, है 2. पुजारी,---लुण्ठनम् गाँव को लूटना.-वासः ('ग्रामे मन से समझ लेना, पारंगत होना-लिपेर्यथावग्रह- बासः' भी) गाँव में रहना,--पण्ड: नपुंसक क्लीव, णेन वाङमयं नदीमुखेनेव समुद्रमादिशत् रघु० ३।२८ -संपः प्राम-निगम,-सिंहः कुत्ता,-स्थ (वि०) 1. गाँव 8. शब्द पकड़ना, प्रतिव्यनि---आदिग्रहणगुरुभिजित- में रहने वाला, ग्रामीण 2. गाँव का सहवासो, एक हो नतंयेथाः-मेघ० ४४१. हाथ 10 इन्द्रिय । गाँव का रहनेवाला साथी,-हासक: बहनोई, जीजा। ग्रहणिः,-णी (स्त्री०) [ग्रह +अनि, ग्रहणि ---ङीष्] अति- ग्रामटिका [?] गाँवड़ी, अभागा गाँव, दरिद्र गाँव-कतिसार, पेचिश। पयग्रामटिकापर्यटनदुर्विदग्ध--प्रस०१। प्रहिल (वि.) [ग्रह+इलच्] 1. लेनेवाला, स्वीकार करने प्रामिक (वि.) (स्त्री-की) [ग्राम+37 1 देहाती, वाला 2. न दबने वाला, अटल, कठोर --न निशाखि- गंवार 2. अक्खड़,--कः गाँव का चौधरी या मुखिया लयापि वापिका प्रससाद ग्रहिलेव मानिनी--- नै० मनु० ७११६, ११८। २७७ । ग्रामीणः [ग्राम+खन] 1. ग्रामवासी, गाँव का रहने महोत (वि०) (स्त्री०--त्री) [ग्रह +तच, इटो दीर्घः] वाला-ग्रामीणवध्वस्तमलक्षिता जनश्चिरं वृतीनाम 1. प्राप्तकर्ता, जैसा कि 'गुणग्रहोतृ' में 2. प्रत्यक्षज्ञाता, परि व्यलोकयन् --शि० १२॥३७ अमरु ११ 2. कुत्ता निरीक्षक 3. कर्जदार। 3. कौवा 4. सूअर।। ग्रामः [ग्रस्---मन्, आदन्तादेशः] 1. गाँव, पुरवा--पत्तने | ग्रामेय (वि.) (स्त्रो०-यो) ग्राम--ढक गाँव में उत्पन्न, विद्यमानेऽपि ग्रामे रत्नपरीक्षा--मालवि० १, पजेदेकं | गंवार,---यो रंडी, वेश्या । कुलस्यार्थे ग्रामस्थार्थे कुलं त्यजेत्, ग्रामं जनपदस्यार्थे ग्राम्य (वि०) [ग्राम+यत्] 1. गाँव से संबंध रखने वाला, स्वात्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् - हि० १११४९, रघु० गाँव में रहने का अभ्यस्त --मनु० ६३, ७४१२० २४४, भेष० ३० 2. वंश, जाति 3. समुच्चय, संग्रह 2. गाँव में रहने वाला, देहाती, गंवार- अल्पव्ययेन (किन्हीं वस्तुओं का)--उदा० गुणग्राम, इन्द्रियग्राम । सुन्दरि, ग्राम्यजनो मिष्टमश्नाति-छं० ११३ 3. घरेल, For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६० ) पालतू (पशु आदि), 4. आवधित (विप० 'वन्य') से संबंध रखने वाला, उवा,-जा,-भवा नव5. नीच अशिष्ट (शब्द की तरह) केवल ओछे व्यक्तियों मल्लिका लता, नेवारी। द्वारा प्रयुक्त-चुम्बनं देहि मे भार्ये कामचाण्डालतप्तये | अव (स्त्री-वी), अवेय (स्त्री०-यो) (वि.) [ग्रोवा--अण, -रस० या कटिस्ते हरते मन:--सा० द. ५७४, ढा वा] गर्दन पर होने वाला या गर्दनसंबंधी,---वम, यह ग्राम्य उक्तियों के उदाहरण हैं 6. अभद्र, अश्लील, ---यम् 1. गले का पट्टा, या हार 2. हाथी की गर्दन --म्यः पालतू सूअर,--म्यम् 1. गंवारु भाषण 2. देहात में पहनी जाने वाली जंजीर--नालसत् करिणां ग्रेवं में तैयार किया हुआ भोजन 3. मथुन । सम० ----अश्वः त्रिपदीछेदिनामपि --रघु० ४१४८, ७५ । गधा,-कर्मन् ग्रामीण का व्यवसाय, कुडकुमम, कुसंभ, वेयकम [ ग्रीवा+ठकम् ] 1. गले का आभूषण-उदा. -धर्मः 1. ग्रामीण का कर्तव्य 2. स्त्रीसंभोग, मैथुन, अस्माकं सखि वाससी न रुचिरे ग्रेवेयकं नोज्ज्वलम्-सा० –पशुः पालतू जानवर, बुद्धि (वि.) उजड्डु, मजा- द०३ 2. हाथी के गले में पहने जानेवाली जंजीर । किया, अनाड़ी,-वल्लभा वेश्या, रंडी,----सुखम् स्त्री- | प्रेमक (वि.) (स्त्री०--मिका) [ ग्रीष्म + बुञ ] संभोग, मैथुन । 1. गरमी के मौसम में बोया हुआ 2. गरमी के ऋतु में प्रावन (पं.) [ग्रस=ड--ग्रः, ---आ-वन+वित] दिया जाने वाला (कण आदि)। 1. पत्थर, चट्टान --कि हि नामैतदम्बुनि मज्जन्त्यला- ग्लपनम् [ ग्ल+णि+ल्युट, पुरू, ह्रस्व ] 1. मुझाना, बुनि ग्रावाणः संप्लवन्त इति--महावी०१, अपि ग्रावा सूख जाना 2. थकावट। रोदिति अपि दलति बज्रस्य हृदयम्-उत्तर० १२८ ग्लस् (म्वा० आ०-ग्लसते, ग्लस्त) खाना, निगलना। शि० ४१२३ 2. पहाड़ 3. बादल। ग्लह (भ्वा० उभ०, चुरा० आ०-लहति-ते, ग्लाहयति-ते) प्रासः [भर+घञ्] 1. कौर, कौर के बराबर कोई वस्तु 1. जुआ खेलना, जुए में जीतना 2. लेना, प्राप्त करना। मनु० ३।१३३, ६।२८. याज्ञ० ३५५ 2. भोजन, । ग्लहः [ ग्लह+अप] 1. पासे से खेलने वाला 2. दाव, पोषण 3. सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहणग्रस्त भाग । बाजी लगाना, शर्त लगाना 3. पासा 4. जुआ खेलना सम० --आच्छादनम् -भोजन वस्त्र अर्थात अनिवार्य | 5. बिसात । जीवन साधन, ---शल्यम गले में अटकने वाला (मछली | ग्लान (भ० क. कृ.) [ ग्लै+त | 1. क्लान्त, श्रान्त, का काँटा) आदि कोई पदार्थ । थका हुआ, ग्लान, अवसन्न 2. रोगी, बीमार । पाह (वि.) (स्त्री० --ही) [ग्रह.+घञ] पकड़ने वाला, ग्लानिः (स्त्री०) [ ग्लं+नि ] 1. अवसाद, क्लान्ति, थका मुट्ठी से जकड़ने वाला, लेने वाला, थामने वाला. वट-मनश्च ग्लानिमृच्छति-मनु० ११५३, अङ्गग्लानि प्राप्त करने वाला,-ह: 1. पकड़ना, जकड़ना 2. घडि- सुरतजनिता-मेघ० ७०, ३१, शा० ४१४ 2. ह्रास याल, मगरमच्छ-रागग्राहवती-भर्त० ३।४५ 3. बन्दी क्षय-आत्मोदयः परग्लानिर्दयं नीतिरितीयती --शि० 4. स्वीकरण 5. समझना, ज्ञान 6. हट, दृढाग्रह २।३०, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत 7. निर्धारण, दृढ़ निश्चय--भग० १७.१९ 8. रोग । ...--भग० ४१७ 3. दुर्वलता, निर्बलता 4. बीमारी। प्राहक (वि०) (स्त्री-हिका) [ग्रह.+पवल] प्राप्त । ग्लास्नु (वि.) [ग्लन-स्नु ] क्लान्त, श्रान्त । करने वाला, लेने वाला,-क: 1. वाज, श्यन 2. विष- | ग्लच (भ्वा० पर०-लोचति, ग्लुक्त) 1. जाना, चलना चिकित्सक 3. क्रेता, खरीदार 4. पुलिस अधिकारी। फिरना 2. चराना, लटना 3. छीन लेना, वञ्चित ग्रीवा [गिरत्यनया----वनिप्, नि.] गर्दन, गर्दन का करना-बहूनामग्लुचत् प्राणान् अग्लोचीच्चरणे यशः पिछला भाग-ग्रीवाभङ्गाभिराम महरनुपतति स्यन्दने । -भट्टि. १५।३० । दत्तदृष्टि: --श० ११७। सम-घण्टा घोड़े के गले | ग्ल (भ्वा० पर-रलायति, ग्लान) 1. विरक्ति या अरुचि में लटकता हुआ घंटा। अनुभव करना, काम करने को जी न करना, (तुमश्रीवालिका-दे० ग्रीवा। अन्त के साथ) 2. क्लान्त या श्रान्त होना, थका हुआ प्रीविन् (पुं०) [ग्रीवा इनि] ऊंट। या अवसन्न अनुभव करना 3. साहस छोड़ना, हतोप्रीष्म (वि.) [ग्रसते रसान्-ग्रस+मनिन] गरम, उष्ण, त्साह होना ---उदास होना-भट्टि० १९।१७, ६।१२ -मः 1. गर्मी का मौसम, गरम ऋतु ज्येष्ठ और 4. क्षीण होना, मछित होना--प्रेर० ग्ल .. ग्ला-पयति आषाढ़ के महीने ) ---ग्रीष्मसमयमधिकृत्य गीयताम् | 1. सुखा देना, शुष्क कर देना, चोट पहँचाना, क्षति श०१ रघु० १६.५४, भामि० १३५ 2. गर्मी, | पहुँचाना 2. थका देना। उष्णता। समकालीन (वि.) गर्मी के मौसम ग्लो (पं०) [ ग्ल-डौ ] 1. चन्द्रमा 2. कपूर । For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घ घ (वि.) हन-टक, टिलोपः. घत्वं च (यह केवल । बराबर तोल 6. स्तम्भ का एक अंश । सम० ---आटोपः समास में उत्तर पद के रूप में प्रयुक्त होता है) प्रहार । रथ या कुर्सी आदि को पूरा ढकने का कपड़ा,-उद्भवः, करने वाला, मारने वाला, नाश करने वाला---जैसा -जः, योनिः- सम्भवः अगस्त्य मुनि के विशेषण कि पाणिव और राजघ आदि में,—घः 1. घण्टी -ऊबस् (स्त्री०) गाय जिसकी औड़ी दूध से भरी 2. खड़खड़ाना, गरगराहट, टिनटिनाना। हो-गाः कोटिशः स्पर्शयता घटोन्नी:---रघु० २।४९, घट । (भ्वा० आ० ---घटते, घटित) व्यस्त होना, प्रयत्न ------कर्परः 1. कवि का नाम 2. ठीकरा, बर्तन का करना, प्रयास करना, जानबूझ कर किसी काम में लगना टुकड़ा-जीयेय येन कविना यमकैः परेण तस्मै वहेय(तुमुन्नत, अधि० या संप्र० के साथ)-दयितां त्रातुमलं मुदकं घटकपरेग--घट० २२,---कारः, कृत् (पुं०) घटस्व -भट्टि० १०१४०, अंगदेन सम योद्धमघटिष्ट कुम्हार,-ग्रहः पानी भरने वाला,-- वासी कुटनी तु० १५।१७, १२।२६, १६।२३, २०१२४, २२।३१ 2.होना कुम्भदासो,-पर्यसमम् पतित व्यक्ति का अन्त्येष्टि घटित होना, सम्भव होना-प्राणस्तपोभिरथवाऽभिमतं | संस्कार करना (जो अपने इस जीवन में अपनी जाति मदोयैः कृत्यं घटेत सुहृदो यदि तत्कृतं स्यात् --मा० में फिर सम्मिलित होना न चाहता हो),-भेवनकम ११९, क्या यह सम्भव है, कस्पापरस्योडुमयः प्रसूनः । बर्तन बनाने का एक उपकरण,-राजः पक्की मिट्टी का वादित्रसष्टिवंटते भटस्य-नै० २२२२ 3. आना, जलपात्र, स्थापनम् दुर्गा के रूप में जल-कलश की पहुँचना। प्रेर-घटयति 1. एकत्र करना, मिलाना, एक ! स्थापना। जगह करना-इत्थं नारीर्घटयितुमलं कामिभिः-शि० घटक (वि.) [घट्+णिच् +ण्वुल] 1. प्रयास करने वाला ९।८७, अनेन भैमों घटयिष्यतस्तथा-नै० ११४६, कुवा । प्रयत्नशील-एते सत्पुरुषाः परार्थघटका: स्वार्थ परिसंधि भीमो विघटयति यूयं घटयत ---वेणी० १११०, त्यज्य ये-भर्तृ० २।७४ 2. प्रकाशित करने वाला, भट्टि० १११११ 2. निकट लाना या रखना, सम्पर्क में निष्पन्न करने वाला 3. सारभूत अंश बनाने वाला, लाना, धारण करना---घटयति धनं कण्ठाश्लेषे रसान्न अवयव, उपादान, -क: 1. वह वृक्ष जिसके फूल दिखाई पयोधरौ-रत्न० ३।९, घटय जपने कांचीम् ... गीत० न देकर फल ही लगे 2. सगाई, विवाह ते कराने १२ 3. निष्पन्न करना, प्रकाशित करना, कार्यान्वित वाला, एक अभिकर्ता जो वंशावली मिला कर विवाहकरना तटस्थ: स्थानान् घटयति च मौनं च भजते सम्बन्ध ते कराये 3. वंशावली का जानने वाला। -मा० १११४, (अभिमतम्) आनोप झटिति घटयति- घटनम् - ना [ घट+ल्युट ] 1. प्रयास, प्रयत्न 2. होना, रत्न०१६ 4. रूप देना, गढ़ना, आकार देना, निर्माण घटित होना 3. निष्पन्नता, प्रकाशन, कार्यान्वयन जैसा करना, बनाना-एवमभिधाय वैनतेयम् -अघटयत् कि 'अघटितघटना' में 4. मिलाना, एकता, क स्थान .....पंच १, कान्ते कथं घटितवानुपलेन चेतः - शृंगार० पर मिलाना, जोड़-तप्तेन तप्तमयसा घटनाय योग्यम् ३, घटय भुजबन्धनम् --गीत० १० 5. प्रणोदित -- विक्रम २।१६, देहद्वयार्धघटनारचितम्-का० करना, उकसाना स्नेहोघो घटयति मां तथापि वक्तुम् २३९ 5. वनाना, रूप देना, आकार देना। --भट्टि० १०७३ 6. मलना, स्पर्श करना, प्र- घटा घिट्+अड+टाप] 1. चेष्टा, प्रयत्न, प्रयास 2. संख्या, 1. व्यस्त होना, काम में लगना- भट्टि २०१७ टोली, जमाव प्रलयघनघटा-का० १११, कौशिक2. आरम्भ करना, शुरू करना--भट्टि० १४१७७ घटा--उत्तर० २।२९, ५।६, मातंगघटा--शि० ११६४ वि-1. वियुक्त होना, अलग होना 2. बिगड़ना, बर्बाद 3. सैनिक कार्य के लिए एकत्र हुई हाथियों की टोली होना, रुक जाना, ठहर जाना, बन्द कर देना --प्रेर० 4. सभा। अलग २ करना, तोड़ना, सम् -मिलाना, 1 (चुरा० घटिकः [घट+ठन] घड़नई के सहारे नदी पार करने वाला. उभ० ...घाटयति, घाटित) 1. चोट मारना, क्षति कम् नितम्ब, चूतड़। पहँचाना, मार डालना 2. मिलाना, जोड़ना, इकट्ठा घटिका [ घटी-+-कन्+टाप, ह्रस्वः] 1. एक छोटा घड़ा, -करना, संग्रह करना, उद्-, खोलना, तोड़ कर खोलना करवा, छोटा मिट्टी का बर्तन --नार्यः श्मशानघटिका कगाट मुद्घाटयति -- मृच्छ० ३, निरयनगरद्वारमुद्- इव वर्जनीया:--पंच. १२१९२, एष क्रीडति कृपयन्त्रघाटयन्ती-भर्तृ० ११६३ । घटिकान्यायप्रसक्तो विधिः । मच्छ० १०१५९ 2. २४ घटः घिट -अच | 1. मिट्टी का मटका, घड़ा, मर्तबान, पानी भिनट का समय, एक घड़ी 3. एक जल घट जिससे देने का पात्र . कपे पश्य पयोनिधावपि घटो गणाति दिन को बड़ियाँ गिनी जाती थीं 4. टखने के ऊपर का तुल्यं जलम् भर्त० २।४९ 2. कुम्भ राशि 3.हाशी तथा पिण्डलो से नीने का पतला भाग। का मस्तक 4. कुम्भक प्राणायाम 5.२० रोण के घटिन् (पू.) [घर+इनि] कुंभ राशि । For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६२ ) घटिन्धम (वि.) [घटी+मा+खश+मुम, धमादेशः] की मुख्य सड़क, राजमार्ग, मुख्य मार्ग (दशधन्वन्तरो बर्तन में फंक मारने वाला,-- मः कुम्हार । राजमार्गो घण्टापथः स्मृतः कौटि०),-शब्द: 1. कासा घटिन्षय (वि.) [ घटो+धेट-+खश, मुम, ह्रस्वः ] जो 2. घंटे की आवाज। घड़ा भर (पानी) पीता है। घण्टिका [ घण्टा+डीप- कन्, ह्रस्व: । छोटो घटियाँ, बढी [घट+डीष] 1. छोटा घड़ा 2. २४ मिनट के बराबर घंघरु । समय की नाप 3. छोटा जल-घड़ा जिससे दिन की धष्टः [ घण्ट+उण् ] 1. हाथी की छाती पर बंधी एक पट्टी घड़ियाँ गिनने का कार्य लिया जाय । सम०-कारः जिसमें धूंधरु लगे होते हैं 2. ताप, प्रकाश । कुम्हार,---ग्रह-प्राह (वि.) दे० 'घटग्रह', यन्त्रम् । घण्टः [घण इति शब्दं कुर्वन डीयते घण-+डी+ड ] 1. पानी ऊपर उठाने वाली रहट की घड़िया, कूएँ पर मधुमवखो। पड़ा हुआ रस्सी-डोल-- दे० अरघट्ट 2. दिन का समय | धन (वि.) [हन मर्ती अप घनादेशश्च-तारा०] जानने का एक साधन । 1. संहत, दृढ़, कठोर, ठोस-संजातश्च घनाघनः---मा० घटोत्कचः [?] हिडिंबा नाम की राक्षसी से उत्पन्न भीम ९।३९, नासा धनास्थिका-याज्ञ० ३१३९, रघु०११।१८ का एक पुत्र (यह बहुत बलवान् पुरुष था, कौरव और 2. सघन, घनिष्ठ, धिनका-घनविरलभावः ---उत्तर० पाण्डवों के युद्ध में यह बहुत वीरतापूर्वक पाण्डवों की २।२७, रघु० ८1८१, अमरु ५७ 3. गठा हुआ, पूर्ण, ओर से लड़ा परन्तु इन्द्र से प्राप्त शक्ति द्वारा कर्ण के पूर्णविकसित (जैसे कि कुच) - घटयति सुघने कुचहाथों मारा गया--तु० मुद्रा० २।१५)। युगगगने मृगमदरुचिरुपिते--गीत० ७, अगुरुचतुष्क घट्ट (म्वा० आ०-घट्टते --बहुधा चुरा० उभ० -- घट्ट- भवति गुरूद्वी धनकुचयुग्मे शशिवदनाऽसौ -- श्रुत०८, यति-ते, घट्टित) 1. हिलाना, हरकत देना -जैसे भर्त० १२८, अमरु २८ 4. (शब्द को भांति) गम्भीर 'वायुघट्टिता लताः' में 2. स्पर्श करना, मलना, हाथों -- मा० २।१२ 5. निरन्तर, स्थायी 6. अभेद्य 7. बड़ा, से मलना--विटजननखघट्टितेव वीणा--मच्छ० १।२४, अत्यधिक, प्रचंड 8. पूर्ण 9. शुभ, भाग्यशाली,-न: भट्रि० १४१२ 3. चिकनाना, सहलाना 4. ई-द्वेष बादल-घनोदयः प्राक् तदनन्तरं पयः-...श० ७.३०, की भावना से बोलना 5. बाधा पहुँचाना, अव--, घनरुचिरकलापो निःसपत्नोऽस्य जात:-विक्रम० ४।१० खोलना, परि- प्रहार करना...-शि० ९१६४, वि., 2. लोहे का मुद्गर, गदा 3. शरीर 4. (गणित में) 1. हडताल कर देना, तितर-बितर करना, बखेरना, संख्याद्योतक घन (किसी अंक को उसी अंक से दो उड़ा देना--शि० ११६४, भर्त० ३१५४ 2. मलना, बार गुणा करने से उपलब्ध गणनफल) 5. विस्तार, घिसना, रगड़ना-कारण्डवाननविघट्टितवीचिमाला: प्रसार 6. संग्रह, समुच्चय, परिमाण, राशि, जमाव ऋतु० ३८,४१९, कु. १३९, कि०८।४५, शि० ८।२४, या समवाय 7. अभरक,-नम् 1. झांझ, घण्टी, घण्टा १३।४१, सम्--1. थपथपाना 2. इकट्ठा करना, 2. लोहा 3. टोन 4. चमड़ी, त्वचा, बल्कल। सम० मिलाना 3. एकत्र करना, संचय करना 4. रगड़ना, .---अत्ययः,--- अन्तः बादलों का लोप, वर्षाऋतु के घिसना, दबाना--रघु० ६१७३ । पश्चात् आने वाली ऋतु, शरद्,-अम्बु (नपुं०) वर्षा, घटः [घट्ट+घा ] 1. घाट--- नदी के तट से पानी तक ---आकरः वर्षा ऋतु,---आगमः बादलों का आगमन, बनी सीढ़ियां 2. हिलगा-जुलना, आन्दोलन 3. चंगी वर्षाऋतु--घनागमः कामिजनप्रियः प्रिये---ऋतु० २११, घर । सम०-फुटी चुंगी घर, प्रभातन्याय न्याय के ----आमयः छुहारे का वृक्ष,- आश्रयः पर्यावरण, अन्तनी० दे०,--जीविन् (पुं०) घाट से प्राप्त महसूल से रिक्ष,- उपलः ओले,-ओघः बादलों का एकत्र होना, अपना निर्वाह करने वाला 2. वर्णसंकर (वैश्यायां रज- --कफः ओले,-- काल: वर्षाऋतु,-गजितम 1. मेघकाज्जातः)। ध्वनि, बादलों की गड़गड़ाहट या गर न, बिजली की घट्टमा [घट्ट+युच+टाप ] 1. हिलाना, डुलाना, हर- कड़क 2. गंभीर और ऊँची दहाड़ या गरज,... गोलक: कत देना, आन्दोलन करना 2. रगड़ना 3. जीविका चांदी सोने की मिलावट,—जम्बाल: गाढ़ी दलदल, वृत्ति, अभ्यास, व्यवसाय, पेशा। ----ताल: एक प्रकार का पक्षी, चातक, सारंग, -तोल: घण्टः [ घण्ट-+ अच् ] एक प्रकार का व्यंजन, चटनी। चातक पक्षी,-नाभिः धूआँ (यह वादलों का मुख्य घण्टा [घण्ट+ अट्+टाप् ] 1. घंटी, 2. लोहे का या कांसे | अवान समझा जाता है-मेघ०५),--नोहार: गाढ़ा का गोल पट्ट जिसे समय की सूचना के लिए मूंगरी से कोहरा, सघन तुपार,-पदवी 'बादलों का मार्ग' अन्तपीट कर बजाते हैं। सम-अगारम् घण्टा घर, रिक्ष, आकाश-कामद्भिर्घनपदवीमनेफसंख्यैः--कि० -----फलकः,- कम घण्टियों से युक्त प्लेट, साय: थंटा । ५.३४,- पाषा: मोर, फलम् (ज्गा० में) किसी बजाने वाला,--मानः घण्टे की आवाज, .. पयः गाँव वस्तु की लंबाई-चौड़ाई और मोटाई का गुणनफल For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६३ ) अथवा ठोसपन, मूलम् (गणित में ) घन राशि का मूल अंक, रस: 1. गाढ़ा रस 2. अर्क गाढ़ा 3. कपूर 4. जल, – वर्गः घन का वर्ग, (गणित में ) छठा पात, - धर्मन् ( नपुं०) आकाश धनवत्मं सहस्रवेव कुर्वन् - कि० ५११७, वल्लिका, वल्ली बिजली, घासः एक प्रकार का कद्दू, कुम्हड़ा, वाहन: 1. शिव 2. इन्द्र, श्याम ( वि०) 'बादल' की भांति काला' गहरा काला, पक्का रंग, ( -मः ) 1. राम और कृष्ण का विशेषण, समयः वर्षाऋतु सारः 1. कपूर-धनसारनीहारहार- दश० १, (श्वेत पदार्थों में उल्लेख ) 2. पारा 3. जल, – स्वनः मेघगर्जन, – हस्तसंख्या (गणित में ) खुदाई की विट्टी आदि नापने की माप ( एक हाथ लंबा, एक हाथ मोटा या चौड़ा और एक हाथ ऊँचा ढेर ) । घनाघनः [हन् + अच्, हन्तेर्घत्वम् दित्वमभ्यासस्य आक् च ] 1. इन्द्र 2. चिड़चिड़ा, या मदमस्त हाथी 3. पानी से भरा हुआ या बरसाने वाला बादल । घरट्ट: [ घरं सेकम् अदृति अतिक्रामति- घर | अट्ट् + अणू, शक० पररूपम् ] खरांस, घराट, चक्की । घर (वि०) [घर्ष +रा+क] 1. अस्पष्ट, घर्घराट करने वाला, गरगर शब्द करने वाला - घर्घररवा पारश्मशानं सरित मा० ५/१९ 2. कलकल ध्वनि करने वाला, (बादलों की भांति ) गड़गड़ शब्द करने वाला, -र: 1. अस्पष्ट कलकल ध्वनि, मन्द बड़बड़ या गरगर की ध्वनि 2. कोलाहल, शोर 3. दरवाजा, द्वार 4. हंसी, अट्टहास 5. उल्लू 6. तुषाग्नि । घरा - [ धर+टाप्, ङोष वा] 1. घुंघरू जो आभूषण की भांति काम आयें 2. घुंघरुओं की गर्गर ध्वनि 3. गंगा 4. एक प्रकार को वीणा । घरिका [ घर + न् +- टाप् ] 1. आभूषण की भांति प्रयुक्त होने वाले घुंघरू 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र । घरितम् [घर्धर + इतच् ] सूअर के घुरघुराने का शब्द । धर्मः [ घरति अङ्गात् घृ + मक् नि० गुणः ] 1. ताप, गर्मी -- हि० ११९७ २. गर्मी को ऋतु, निदाघ — निःश्वासहार्याशुकमाजगाम धर्मः प्रियावेशमिवोपदेष्टुम् - रघु० १६।४३ 3. स्वेद, पसीना - शि० १।५८ 4. कड़ाह, उबालने का पात्र । सन० - अंशुः सूर्य ० ५।१४, ---अन्तः वर्षाऋतु - अम्बु, अम्भस् ( नपुं०) स्वेद, पसीना, श० १३०, मा० १।३७, चचिका धाम, पित्त, घमौरी (दबे हुए पसीने और गर्मी से शरीर पर पैदा होने वाले छोटे-छोटे दाने ), - दीधितिः सूर्य --- रघु० ११।६४, धुतिः सूर्य- कि० ५१४१, पयस् ( नपुं०) स्वेद, पसीना - शि० ९।३५ । घ, घर्षणम् [ष +घञ, ल्युट् वा] 1. रगड़, घिसर 2. पीसना, चूरा करना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घस् (भ्वा० अदा० --- पर० - घसति, घस्ति, घस्त) खाना, निगलना, (यह अधूरी धातु है. 'अद्' धातु के कुछ लकारों में ही इसके रूप बनते हैं ) । घस्मर ( वि० ) [ घस् + कमरच्] 1 खाऊ, पेटू - दावानलो घस्मरः -- भामि० १।३४ 2. निगल जाने वाला, हड़प करने वाला -- दुपदसुतचमूघस्मसे द्रौणिरस्मि - वेणी० ५/३६ । (०) [घस् + रक्] पीड़ाकर, क्षतिकर, खः 1. दिन -घस्त्रो गमिष्यति भविष्यति सुप्रदोषम् - सुभा० 2. सूर्य महावी० ६६८, - स्त्रम् केसर, जाफरान । घाट: -टा [ घट् + अच्, स्त्रियां टाप्] गर्दन का पिछला भाग । घाण्टिकः [घंटा + ठक् ] 1. घंटी बजाने वाला 2. भाट या चारण 3. धतूरे का पौधा । घातः [हन् + णिच्+घञ] 1. प्रहार, आघात, खरौच, चोट ज्याघात - श० ३।१३, नयनशरघात गीत० १०, इसी प्रकार पाणिघात, शिरोघात आदि 2. मार डालना, चोट पहुँचाना, संहार करना, वध करना -वियोगो मुग्धाक्ष्याः स खलु रिपुधात विधिरभूत् - उत्तर० ३।४४, पशुघातः - गीत० १, याज्ञ० २ १५९, ३।२५२ 3. बाण 4. गुणनफल । सम० - चन्द्रः अशुभ राशि पर स्थित चन्द्रमा – तिथिः अशुभ चान्द्र दिन, मक्षत्रम् अशुभ नक्षत्र, बार: अशुभ दिन,-स्थानम् बूचड़खाना, वधस्थान । घातक ( वि० ) [ हन् + ण्वुल् ] मारनेवाला, संहार करने वाला, हत्यारा, संहारक, कातिल, बघ करने वाला । घातन ( वि० ) [ हन् + णिच् + ल्युट् ] हत्यारा, क़ातिल, ----नम् 1. प्रहार करना, मार डालना, हत्या करना, वध करना, ( यज्ञ में ) पशु बलि देना । घातिन् (वि०) (स्त्री० मी) [हन् + णिच् + णिनि ] 1. प्रहार करने वाला, मारने वाला 2. (पक्षियों को) पकड़ने वाला या मारने वाला 3. विनाशकारी । सम० -- पक्षिन्, -- विहंग: बाज, श्येन । धातुक (वि०) ( स्त्री० की) [हन् + णिच् + उकञ ] 1. मारने वाला, संहारकारी, अनिष्टकर, वोट पहुँचाने वाला 2. क्रूर, नृशंस, हिंस्र । घात्य ( वि० ) [ हन् + णिच् + ण्यत् ! मारे जाने के योग्य, वह व्यक्ति जिसे मार देना चाहिए । धार: घृ + घन् । छिड़कना, तर करना । धातिकः घृतेन निर्वृतः ठज्ञ ] घी में तले हुए पूड़े (विशेषतः जिनमें छिद्र होते हैं ) ( इन्हीं को देखकर पंचतंत्र में मूर्ख पंडितों ने कहा था--छिद्रेष्वनर्था बहुलीभवन्ति ) । घासः [ घस् +घञ् ] 1. आहार 2. गोचर भूमि या चरागाह का घास — घासाभावात् - पंच० ५, घासमुष्टि परगवे For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६४ ) दद्यात् संवत्सरं तु य:--महा० । सम०-कुन्वम्, | ३।२ । उद- उच्च स्वर से घोषणा करना, सार्व--स्थानम् चरागाह । जनिक रूप से घोषणा करना, ii (भ्वा०-आ०-घुषते) घु (भ्वा० आ०-धवते, घुत) शब्द करना, हल्ला मचाना । सुन्दर या उज्ज्वल होना। घुः [घु+क्लिप्] कबूतर की गुटर गूं। घुसणम् [धष+ऋणक, पृषो०] केसर, जाफ़रान--यत्र धुढ़ (तुदा० पर० घुटति, घुटित) 1. फिर प्रहार करना, स्त्रीणां मसृणघुसृणालेपनोष्णा कुचश्रीः - विक्रम बदला लेने के लिए प्रहार करना, मुक़ाबला करना १८।३१। 2. विरोध करना, ii (म्वा० आ०-घोटते)घकः [घू इत्यव्यक्तं कायति-घू+के+क] उल्लू । सम० 1. वापिस आना, लौटना 2. वस्तु विनिमय करना, -अरिः कौवा। अदला-बदली करना। पूर्ण (भ्वा० आ० --तुदा० पर०-घूर्णते, घूर्णति, घृणित) घटः, घुटिः,-टी, (स्त्री०) धुटिकः,--का [घट+अच, । इधर-उधर लुढ़कना, इधर-उधर घूमना, चक्कर इन् वा, घुटि+डीष, कन स्त्रियां टाप वा] टखना। काटना, मुड़ना, हिलाना, लिपटना, लड़खड़ाना घुणां (भ्वा० आ०, तुदा० पर--घोणते, धुणति, धुणित) ---योषितामतिमदेन जपूर्णविभ्रमातिशयषि वषि लुढ़कना, चक्कर खाना, लड़खड़ाना, अटेरना, -शि० १०॥३२, भयात्केचिदणिपु:- भट्टि० १५।३२, ii (भ्वा० आ०) लेना, प्राप्त करना। ११८, शि० ११११८ अद्यापि तां सुरतजागरघुणः [धुण+क] लकड़ी में पाया जाने वाला विशेष प्रकार घूर्णमाना-चौर०५, प्रेर०-घूर्णति–ते हिलाना, का कीड़ा । सम०---अक्षरम,---लिपिः (स्त्री०) लकड़ी अटेरना या लपेटना-नयनान्यरुणानि चूर्णयन्-कु० या पुस्तक के पत्रों में कीड़ों के द्वारा बनाई हई रेखाएँ ४।१२, शि०२।१६, भर्तृ० १२८९, (आ, तथा वि जो कुछ-कुछ अक्षरों जैसी प्रतीत होती है। न्याय उपसर्ग के लग जाने पर भी धातु का वही अर्थ रहता दे० 'न्याय' के अन्तर्गत । घुण्टः, घुम्टकः, धुष्टिका [घुण्ट+क, घुण्ट+कन्, घुण्टक+ घूर्ण (वि.) [पूर्ण+अच्] हिलाने वाला, इधर-उधर टाप् इत्वम्] टखना। चलने-फिरने वाला । सम०-वायु: बवण्डर । घुण्डः [घुण+ड, नि०] भौंरा। घूर्णनम्,-ना घूर्ण-ल्युट]-हिलाना-डुलाना, लपेटना, घुर् (तुदा० पर०-घुरति, धुरित) 1. शब्द करना, | चक्कर खाना, मुड़ना, घूमना-मौलिघूर्णनचलत् कोलाहल करना, खुर्राटे भरना, फुफकारना, (सूअर __-गीत० ९, घूर्णनामात्रपतनभ्रमणादर्शनादिकृत्कुत्ते आदि का) घुरघुराना----कः कः कुत्र न घुर्धरायित- सा० द०। धुरीघोरो घुरेच्छूकरः-का० ७ 2. डरावना बनना, घृ । (भ्वा० पर० घरति, घृत) छिड़कना । भयंकर होना 3. दुःख में चिल्लाना । ii (चुरा० उभ०---धारयति –ते, धारित) छिड़काव धुरी [धुर्-+कि+डोष्] नाथना, (विशेषकर सूअर की । करना, गीला करना, तर करना, अभि---, छिड़कना, थूथन) -घुर्घरायितघुरोघोरो धुरेच्छूकरः .. काव्य० आ---, छिड़काव करना । घृण (तना० पर०-- -घृणोति, घृण्ण) चमकना, जलना । घुघुरीः [घुर् इत्यव्यक्तं धुरति-धुर+घुर+] 1. चोलर, | घृणा [ +न+टाप् ] दया, तरस, सुकुमारता--ता चिल्लड़ (एक प्रकार का कोड़ा) 2. खुर्राटे भरना, विलोक्य वनितावधे घृणां पत्रिणा सह ममोच राघवः गुर्राना, सूअर आदि जानवर के गले से निकलने वाली ---रघु० ११११७, ९६८१, कि० १५॥१३ 2. ऊब, आवाज । अरुचि, घिन... तत्याज तोपं परपुष्टघुष्टे घृणां च घुर्धर [घुघुर-+-अच्-+-डीष] सूअर की आवाज़ । वीणाक्वणिते वितेने नै० ३।६०, ११२०, रघु. घुलघुलारयः ['घुलबुल' इत्यव्यक्तमारीति-घुलघुल+आ | ११।६५ 3. झिड़की, निन्दा । +-+अन् । एक प्रकार का कबूतर। घृणाल (वि.) [ घृणा+आलुच् ] सकरुण, दयापूर्ण, घुष । (भ्वा०पर०, चुरा० उभ० -- घोषति घोषयति--ते, मद्-हृदय । घुषित, घुष्ट, घोषित) 1. शब्द करना, कोलाहल करना धुणिः [ +नि, नि.] 1. गर्मी, धूप 2. प्रकाश की 2. ऊँचे स्वर से चिल्लाना, सार्वजनिक रूप से घोषणा | किरण 3. सूर्य 4. लहर (नपं०) जल । सम---निधिः करना--स स पापादते तासां दुष्यन्त इति घुष्यताम् सूर्य। ----श० ६।२२, घोषयतु मन्मथनिदेशम्--गीत० १०, घतम् धक्त] 1. घी, ताया हुआ मक्खन--(सपिविलीनइति घोफ्यतीव डिडिमः करिणोहस्तिपकाहत: क्वणन् माज्यं स्यात् घनीभूतं घृतं भवेत्--सा०) 2. मक्खन --हि० २६८६, रघु० ९।१०, आ--, उच्च स्वर से 3. जल। सम०-अन्न:-अचिः (पु०) दहकती रोना, सार्वजनिक रूप से घोषणा करना-भट्टि हुई आग, -- आहुतिः (स्त्री०) घी को आहुति,--आह्वः For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६५ ) सरल नामक वृक्षविशेष, उदः 'घी का समुद्र' सात | समुद्रों में से एक, ओवन घी से युक्त उबले हुए चावल, कुल्या घी की नदी, दीधितिः अग्नि, धारा घी की अविच्छिन्न धार, पूरः वरः एक प्रकार की मिठाई, लेखनी घी का चम्मच । घृताची [घृत + अञ्चु + क्विप् + ङीष् ] 1. रात 2. सरस्वती 3. एक अप्सरा ( इन्द्र के स्वर्ग की मुख्य अप्सराएँ निम्नांकित हैं-- घृताची मेनका रम्भा उर्वशी च तिलोत्तमा, सुकेशी मञ्जुघोषाद्याः कथ्यन्तेऽप्सरसो बुधैः) | सम० - गर्भसंभवा बड़ी इलायची । घृष् ( वा० पर० - घर्षति, घृष्ट) 1. रगड़ना, घिसना - अद्यापि तत्कनककुण्डलघृष्टमास्यम् - चौर० ११, पंच० १।१४४ 2. कूंची करना, परिष्कृत करना ( मांजना ), चमकाना 3. कुचलना, पीसना, चूरा करना द्रौपद्या ननु मत्स्यराजभवने घुष्टं न किं चन्दनम् पंच० ३।१७५ 4. होड़ करना, प्रतिद्वन्द्वी होना (जैसा कि 'संवृष्' में) उद्-, खुरचना, चूड़ामणिभिरुद्धृष्टपादपीठम् महीक्षिताम् - रघु० १७/२८, सम् प्रतिद्वन्द्विता करना, होड़ाहोड़ी करना, प्रतिस्पर्धा करना--स प्रयोगनिपुणैः प्रयोक्तृभिः संघर्ष सह मित्रसंनिधौ रघु० १९/३६ 2. रगड़ना, खुरचना । घृष्टिः [ घृष् + क्तिच् ] सूअर ( स्त्री०) 1. पीसना, चूरा करना, खुरचना 2. होड़ाहोड़ो, प्रतिद्वन्द्विता, प्रतियोगिता । घोट:, घोटक: [ घुट् + अच्, ण्वुल् वा ] घोड़ा । -अरि: भंसा । सम० घोटी, घोटिका [ घोट + ङीष्, घुट् + ण्वुल् + टापु, इत्वम् ] घोड़ी, सामान्य अश्व -- आटोकसेऽङ्ग करिघोटि पदातिजुषि वाटिभुवि क्षितिभुजाम्--- अस्व० ५ । घोण (न) सः [ गोनस, पृषो० ] एक प्रकार रेंगने वाला जन्तु घोणा [ धुण् + अच्+टाप् ] 1. नाक, घोणोन्नतं मुखम् —मृच्छ० ९।१६ 2. घोड़े की नथुना, (सूअर की ) थूथन -- घुर्षु रायमाणघोरघोणेन - का० ७८ । घोण (पु० ) [ घोणा + इनि ] सूअर । | घोटा. [ घुणु + +टाप् ] उन्नाव का वृक्ष | घोर (वि० ) [ घुर् + अच् ] 1. भयंकर, डरावना, भोषण, भयानक, – शिवाघोरस्वनां पश्चादबुबुधे विकृतेति ताम् - रघु० १२।३९, तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव - महा०, घोरं लोके विततमयशः -- उत्तर० ७६, मनु० १५० १२/५४ 2. हिस्र, प्रचण्ड - रः शिव, -- रा रात, - रम् 1. संत्रास, भीषणता 2. विष । सम० - आकृति - दर्शन ( वि०) देखने में डरावना, भयंकर विकराल, पुष्यम् कांसा, रासन:, - - रासिन्, - वाशन:, - वाशिन् (पुं०) गीदड़, रूपः शिव का विशेषण । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घोल:, - लम् [ घुर् + घञ्ञ, रस्य ल: ] मट्ठा, घुला हुआ दही जिसमें पानी न हो ( तत्तु स्नेहमजलं मथितं घोलमुच्यते - सुश्रु० ) घोषः [ घुष् + घञ ] 1. कोलाहल, हल्ला, हंगामा - स घोष धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्-भग० १११९, इसी प्रकार रथ, तुर्य, शंख आदि 2. बादलों की गरज - स्निग्धगम्भीरघोषम् - मेघ० ६४ 3. घोषणा 4. अफवाह, जनश्रुति 5. ग्वाला हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान् -- रघु० १।४५ 6. झोपड़ी, ग्वालों की बस्ती - गङ्गायां घोषः -- काव्य० २, घोषादानीयमृच्छ० ७ 7. ( व्या० में) घोषव्यंजनों के उच्चारण मैं प्रयुक्त घोषध्वनि 8 कायस्थ, पम् कांसा | घोषणम् - णा [ घुप् +-त्युट् ] प्रख्यापन, प्रकथन, उच्च स्वर से बोलना, सार्वजनिक एलान – व्याघातो जयघोषणादिषु बलादस्मद्बलानां कृतः- मुद्रा० ३।२६, रघु० १२।७२ । घोषयित्नुः [ घुत्र + णिच् + इत्नुच् ] 1. ढिढोरची, भाट, हरकारा 2. ब्राह्मण 3. कोयल । न ( वि० ) ( स्त्री० घ्ती ) [ केवल समास के अन्त में प्रयोज्य ] [ हन् +क, स्त्रियां ङीप् ] वध करने वाला विनाशक, दूर करने वाला, चिकित्सक - ब्राह्मणघ्नः, बालघ्नः, वातघ्नः, पित्तघ्नः, वञ्चित करने वाला, दूर करने वाला, पुण्यघ्न, धर्मघ्न आदि । प्रा (भ्वा० पर० जिघ्रति, घ्रात घ्राण ) 1. सूंघना, पता लगाना, सूंघ का प्रत्यक्ष ज्ञान करना- स्पृशन्नपि गजो हन्ति जिघ्रन्नपि भुजङ्गमः - हि० ३।१४, भामि० १९९, चुंबन करना प्रेर०- ( घ्रापयति ) सुंधवाना - भट्टि० १५ १०९, ( अव, आ, उप, वि, सम् आदि उपसर्ग लगने पर भी इस धातु के अर्थों में विशेष अन्तर नहीं आता -- गन्धमाघ्राय चोव्याः - मेघ० २१, आमोदमुपजिवन्ती - रघु० ११४३, दे० भट्टि० २ १० १४ १२, रघु० ३।३, १३७०, मनु० ४।२०९ भी ) । घ्राण (भू० क० कृ० ) [घ्रा + क्त ] सूंघा, -- णम् सूंघने की क्रिया, घ्राणेन सूकरो हन्ति मनु० ३।२४१2. गंध, बू 3. नाक बुद्धीन्द्रियाणि चक्षुःश्रोत्र घ्राणरसनात्वगाख्यानि सां० का० २६, ऋतु०६।२७, मनु० ५। १३५ । सम० - इन्द्रियम् सूंधने की इन्द्रिय, नाक-नासाप्रवर्ति घ्राणम् - तर्क सं०, चक्षुष् (वि०) जो आँखों का काम नाक से लेता है - अर्थात् अंधा (जो संघ कर अपने मार्ग का ज्ञान प्राप्त करता है), तर्पण ( वि० ) नाक को सुहावना, या सुखकर खुशबूदार, सुगन्धयुक्त ( - णम्) खुशबू, सुगन्ध । प्रातिः (स्त्री० ) [घा + क्तिन] सुंघन की क्रिया - घातिरयमयोः मनु० ११।६८ 2. नाक । For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चचिण् (चि)+3] 1. चन्द्रमा 2. कछआ 3. चोर | चकास्ति नीलनलिनश्रीमोचनं लोचनम-गीत०१०, (अध्य०) निम्नांकित,अर्थो को बतलाने वाला अव्यय . चकासतं चारुचमूरुचर्मणा-शि० ११८, भट्टि० ३.१७ -1. संयोजन (और, भी, तथा, इसके अतिरिक्त) 2. (आलं.) प्रसन्न होना, समझ होना-वितन्वति -शब्द या उक्तियों को जोड़ने के लिए प्रयुक्त किया क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन करवश्चकासते-कि. जाता है। (इस अर्थ में यह उस प्रत्येक शब्द या उक्ति १।१७, प्रेर० चमकाना, प्रकाशित करना-शि० ३१६, के साथ प्रयुक्त होता है जिसे मिलाता है या इस प्रकार वि० चमकना, उज्ज्वल होना। मिले हुए अन्तिम शब्द या उक्ति के पश्चात् रक्खा चकित (वि.)[चक्-+-क्त] डर के कारण)1. थरथराता हुआ, जाता है, परन्तु यह वाक्य के आरम्भ में कभी प्रयक्त कांपता हुआ, भय, साध्वस-मेघ० २७ 2. डराया नहीं किया जाता है) • मनो निष्ठाशून्यं भ्रमति च हुआ, प्रकम्पित, भौचक्का--व्याधानुसारचकिता किमप्यालिखति च--मा० १३१, तो गुरुगुरुपत्नी च हरिणीव यासि--मृच्छ० १११७ अमरु ४६, मेष०१३ ---रघु० ११५७, मनु० ११६४, ३५. कुलेन कान्त्या | 3. भयभीत, भीरु, सशंक-चकितविलोकितसकल वयसा नवेन गर्णश्च तैस्तैविनयप्रधानः-रघु० दिशा---गीत० २, पौलस्त्यचकितेश्वराः (दिशः) ६।७९, मनु० १२१०५, ३।११६ 2. वियोजन (परन्तु, -~-रघु० १०७३, - तम् (अव्य०) भय से, भौचक्का तथापि, तो भी)-शान्तमिदमाश्रमपदं स्फरति च बाहः होकर, संत्रस्त होकर, विस्मय के साथ-चकितमुपैति -श० १११६ 3. निश्चय, निर्धारण (निस्सन्देह, निश्चय तथापि पार्श्वमस्य -- मालवि० ११११, सभयचकितम् ही, ठीक, बिलकुल, सर्वथा)-- अतीतः पन्थानं तव च --गीत० ५, शा०४।४। महिमा वाजमनसयो: -गण, ते तु यावंत एवाजीचकोरः[चक+ओरन] पक्षीविशेष, तीतर की जाति का तावांश्च ददृशे स तै:- रघु० १२१४५ 4. शर्त (यदि पक्षी (कहते हैं कि चन्द्रमा की किरणें ही इसका -चेत्) जीवितुं वेच्छसे (= इच्छसे चेत्) मूढ हेतुं मे आहार है)-ज्योत्स्नापानमदालसेन वपुषा मत्ताश्चकोरांगदतः शृणु-महा०, लोभश्चास्ति (अस्ति चेत् ) गुणेन । गना:---विद्धशा०, ११११, इतश्चकोराक्षि विलोकयेति किम्-भ० २१४५, अने० पा० 5. यह प्रायः पादपूर्ति --रघु० ६५९, ७४२५, स्फुरदधरसीधवे तव वदनके लिए भी प्रयुक्त होता है-भीमः पार्थस्तथैव च चन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरम्-गीत० १०।। -~ण. (कोशकार उपर्य क्त अर्थों के साथ 'च' के चक्रम् क्रियते अनेन, कृ धार्थे क नि० द्वित्वम्-ताराम निम्नांकित अर्थ और बतलाते हैं जो कि संयोजन या -गाड़ी का पहिया-चक्रवत्परिवर्तन्ते दूःखानि च समुच्चय के सामान्य अर्थों के अन्तर्गत है:-1. अन्वाचय सुखानि च हि०१।१७३ 2. कुम्हार का चाक 3. एक -अर्थात् मुख्य तथ्य को किसी गौण तथ्य से मिलाना तीक्ष्ण गोल अस्त्र, चक्र (विष्णु का) 4. तेल पेरने का -भो भिक्षामट गां चानय, दे०, अन्वाचय 2. समाहार कोल्ह 5. वृत्त, मण्डल-कलापचक्रे निवेक्षिताननम अर्थात् समुच्चयार्थक संबंध- यथा पाणी च पादौ च ----ऋतु० २।१४ 6. दल, समुच्चय, संग्रह-शि० पाणिपादम् 3. इतरेतरयोग - अर्थात पारस्परिक २०११६ 7. राज्य, एकाधिपत्य 8.प्रांत, जिला, ग्रामसंयोग-यथा प्लक्षश्च न्यग्रोधश्च प्लक्षन्यग्रोधी समूह 9. वर्तुलाकार सैनिक व्यूह 10. देह के भीतर के 4. समुच्चय---- अर्थात् सब मिलाकर यथा पचति च 'षट्चक्र', मूलाधार आदि 11. कालचक्र, वर्ष समह पठति च); दो उक्तियों के साथ च की बार२ आवृत्ति 12. क्षितिज 13. सेना, समूह 14. ग्रन्थ का अध्याय होती है 1. 'एक ओर-दूसरी ओर' 'यद्यपि तथापि या अनुभाग 15. भँवर 16. नदी का मोड़,---: अर्थ -विरोध को प्रकट करने के लिए न सुलभा 1. हंस, चकवा 2. समूह, दल, वर्ग। सम----अङ्गः सकलेन्दुमुखी च सा किमपि चेदमनङ्ग विचेष्टितम् 1. टेढ़ी गर्दन वाला हंस 2. गाड़ी 3. चकवा, -विक्रम० २१९, ४।३, रघु० १६७ या 2. दो बातों ---अट: 1. बाजीगर, सपेरा 2. दुष्ट, धूर्त, ठग का एक साथ होना या अव्यवहित घटना को प्रकट 3. स्वर्णमुद्रा, दीनार,-आकार,--आकृति (वि०) करने के लिए (ज्योंही-त्योंही)- ते च प्रापुरुदन्वन्तं वर्तुलाकार, गोल,---आयुधः विष्णु का विशेषण, बुबुधे चादिपूरुषः-रघु०-१०१६, ३।४०, कु. ३।५८, - आवर्तः भवर वालो या चक्करदार गति,---आखः, ६६, श०६७, मा०९।३९ । --आह्वयः चकवा-चक्राह्व ग्रामकुक्कुटम्-मनु० ५। चक (भ्वा० उभ०-चकति--ते, चकित) 1: तृप्त होना, -१२,-ईश्वर: 1. 'चक्रस्वामी' विष्णु का नाम 2. जिले सन्तुष्ट होना 2. प्रतिरोध करना, मुकाबला करना। का सर्वोच्च अधिकारी, उपजीविन् (पुं०) तेलो, घकास् (अदा० पर० (बिरलतः-आ०) चकास्ति--स्ते, -----कारकम् 1. नाखन, 2. एक प्रकार का सुगन्ध चकासित) 1. चमकना, उज्ज्वल होना --- गण्डश्चण्डि | द्रव्य,-गण्डुः गावदुम तक्रिया,-गतिः (स्त्री०) चक्रा For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार गति, गोलाई में घूमना,-गुच्छः अशोक वृक्ष,। वाला 2. मंडलाकार, (पु.) 1. तेली 2. प्रभु, सम्राट ---ग्रहणम्,--णी (स्त्री०) दुर्गप्राचीर, परकोटा, 3. विष्णु का माम। - खाई,बर (वि०) वृत्त में घूमने वाला,-चूडामणिः | चक्राकी, चांडकी [ब० स०] हंसिनी। मकुट में लगी गोलमणि,-जीवकः, --जीविन् (पुं०) | चक्रिका [चक्र+ठन्- टाप् 1. ढेर, दल 2. दुरभिसंधि कुम्हार,-तीर्यम्-एक पुण्य स्थान का नाम, बंष्ट्रः | 3. घुटना। सूअर,-धरः 1. विष्णु का विशेषण---चक्रधरप्रभावः | चक्रिन (पु०) [चक्र+इनि] 1. बिष्णु का विशेषण-शि० -रघु० १६.५५ 2. प्रभु, प्रान्त का राज्य पाल या १३।२२ 2. कुम्हार 3. तेली 4. सम्राट, चक्रवर्ती शासक 3. गाँव का कलाबाज या बाजीगर,-धारा राजा, निरंकुश शासक 5. राज्यपाल 6. गधा 7. चकवा पहिए का घेरा-नाभिः पहिए की नाह:- नामन् 8. संसूचक, मुखबिर 9. साँप 10 कौवा 11 एक प्रकार (पु.) 1. चकवा 2. लोहे की माक्षिक धातु,--- नायक: का कलाबाज या बाजीगर । 1. दल का नेता 2. एक प्रकार का सुगंध-द्रव्य,- नेमिः चक्रिय (वि०) [ चक्र+घ] गाड़ी में बैठ कर जाने वाला, पहिए की परिधि या घेरा-नीचर्गच्छत्यपरि च दशा यात्रा करने वाला। चक्रनेमिक्रमेण-भेष. १०९,--पाणि विष्णु का विशे-चक्रीवत (पू.) [चक्र+मतुप, मस्य वः, नि० चक्रस्य षण,-पादः,-- पावक: 1. गाड़ी 2. हाथी,~पाल: ___चक्रीभाव: ] गधा--शि० ५।८। 1. राज्यपाल 2. सेना के एक प्रभाग का अधिकारी। चश् (अदा० आo-चष्टे) [ आर्धधातुक लकारों में 3. क्षितिज,-बन्धुः,... बान्धवः सूर्य,- बाल:---:, अनियमित ] 1. देखना, पर्यवेक्षणा करना, प्रत्यक्षज्ञान --वाल:--लम्,--उम् 1. वृत्त, मंडल 2. संग्रह, वर्ग, प्राप्त करना 2. बोलना, कहना, बतलाना (संप्र० के समुच्चय, राशि-करवचक्रवालम् --भर्तृ० २१७४ साथ), आ--, बोलना, घोषणा करना, वर्णन करना, 3. क्षितिज, (लः) 1. पुराणों में वणित एक पर्वत बयान करना, बतलाना, पढ़ाना, समाचार देना (संप्र. शृंखला जो भमंडल को दीवार की भांति घेरे हुए के साथ)- रघु०५।१९, १२१५५, मनु० ४।५९, ८०, तथा प्रकाश व अंधकार की सीमा समझी जाती हैं इत्याख्यानविद आचक्षते---मा०२२, कहना, संबोधित 2. चकवा,- भूत् (पुं०) 1. चक्रधारी 2. विष्णु का करना-भामि० ११६३ 3. नाम लेना, पुकारना, नाम,-भेदिनी रात, भ्रमः,-भ्रमिः (स्त्रो०) खराद परि-., 1. घोषणा करना, वर्णन करना 2. गिनना सान—आरोप्य चक्रभ्रमिमुष्णतेजास्त्वष्ट्रब यत्नोल्लि 3. उल्लेख करना 4. नाम लेना, पुकारना-वेदप्रदानाखितो विभाति रघु० ६।३२, मण्डलिन् (पुं०) दाचार्यं पितरं परिचक्षते - मनु० ॥१७१, भग० सांप की एक जाति,--मुखः सूअर, यानम् पहिये से १७।१३, १७, प्र-, 1. कहना, बोलना, नियम बनाना चलने वाला वाहन,--रवः सूअर, --तिन् (पुं०) -स्वजनाश्रु किलातिसंततं दहति प्रतमिति प्रचक्षते-रघु० .1 सम्राट्, चक्रवर्ती राजा, संसार का प्रभु, समुद्र तक ८1८६ 2. नाम लेना, पुकारनायोऽस्यात्मनः कारफैले राज्य का स्वामी (आसमुद्रक्षितीश-- अमर०) यिता तं क्षेत्रज्ञं प्रचक्षते --- मनु० १२११२, २०१७, पुत्रमेवं गुणोपेतं चक्रवर्तिनमाप्नुहि--'श० १११२, तव ३१२८, १०।१४, प्रत्या-त्याग देना, छोड़ देना, तन्वि कुचावेतौ नियतं चक्रवतिनी, आसमुद्रक्षितीशोऽ पीछे हटा देना, व्या-, व्याख्या करना, टीका टिप्पण पि भवान् यत्र करप्रद:---उ.दूट; (जहाँ 'चक्रवर्तिन्' करना। शब्द में श्लेष है, वहाँ दूसरा अर्थ है 'आकार प्रकार चक्षस् (पुं०) [ चश् + असि ] 1. अध्यापक, धर्म-विज्ञान में चकवे से मिलता जुलता' 'गोल'),-बाकः (स्त्री० का शिक्षक, दीक्षागुरु, आध्यात्मिक गुरु 2. बृहस्पति का -की) चकवा-रीभूते मयि सहचरे चक्रवाकीमि विशेषण। बैकाम् – मेष० ८३,-बाट: 1. सीमा, हद 2. दीवट घष्य (वि०) [ चक्षुषे हितः स्यात् . चक्षुस्+यत् ] 3. कार्य में प्रवृत्त होना,-बातः बवंडर, तूफान-आंधी, 1. मनोहर, प्रियदर्शन, सुहावना, सुन्दर 2. आँखों के .-वृद्धि ब्याज पर ब्याज, चक्रवृद्धि ब्याज--मनु० ८. लिए हितकर, -- ज्या प्रियदर्शन या सुन्दरी स्त्री। १५३, १५६,--म्यूहःसैन्यदल की मंडलाकार स्थापना, -संहम् रांय, (ल.) चकवा,-साहयः चकवा, हस्तः चक्षुस् (नपुं०) [चक्षु-+ उसि ] 1. आँख, दृश्यं तमसि न विष्णु का विशेषण । पश्यति दीपेन बिना सचक्षुरपि-मालवि० ११९, कृष्ण सारे ददच्चक्षुः श० ११६, तु० घ्राणचक्षुस, ज्ञानचक्षुस्, पा (वि०) [ चक्रमिव कायति-- के+क] पहिये के नयचक्षुस्, चारचक्षुस् आदि शब्दों की 2. दृष्टि, आकार का, मंडलाकार,--क: (तर्क०) मंडल में तर्क दर्शन,, नजर, देखने की शक्ति-चक्षुरायुश्चव प्रहीकरना। यते- मनु० ४।४१, ४२। सम-गोचर (वि.) पावत् (वि०) [ चक्र-+-मतुप्; मस्य वः ] 1. पहियों दृश्य, दृष्टिगोचर, दृष्टि-परास के अन्तर्गत होने वाला, For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६८ | -- दानम् प्राण प्रतिष्ठा के समय मूर्ति की आँखों में रंग भरना, - पथः दृष्टि- परास क्षितिज, मलम् आँखों की ढोड़, मल, - रागः (चक्षूरागः ) 1. आंखों में लाली 2. 'आँख का प्रेम' आँख लड़ाने से उत्पन्न प्रेम या अनुराग --- पुरश्चक्षुरागस्तदनु मनसोऽनन्यपरता- मा० ६।१५, चक्षूरागः कोकिलेषु न परकलत्रेषु - का० ४१ ( यहाँ इस शब्द का अर्थ 'आँख लड़ जाना' भी है), - रोग: ( चक्षूरोगः ) आँख की बीमारी, विषयः 1. दृष्टि- परास, निगाह, उपस्थिति, दृश्यता - चक्षुविषयातिक्रांतेषु कपोतेषु - हि० १, मनु० २।१९८ 2. दृष्टि का विषय, कोई भी दृश्य पदार्थ 3. क्षितिज, भवस् (पुं०) साँप, कि० १६/४२, नं० १२८ चक्षुष्मत् (वि०) [ चक्षुस् + मतुप् ] 1. देखने वाला, आँखों वाला, देखने की शक्ति वाला, तदा चक्षुष्मतां प्रीतिरासीत्समरसा द्वयोः - रघु० ४।१८ °तां ४।१३, 2. अच्छी दृष्टि रखने वाला । चकुणः, ---र: [ चंडक् + उना, उरच् वा ] 1. वृक्ष 2. गाड़ी 3. वाहन ( नपुं० भी ) । चक्रमणम् [ क्रम + यज्ञ + ल्युट् यत्रो लुक् तारा० ] 1. इधर उधर घूमना, आना-जाना, सैर करना विषं चङ्क्रमणं रात्रौ - चाण०९७, चक्रे स चक्रनिभचकपणच्छलेन - ० १११४४, 2. शनैः २ या टेढा-मेढा जाना । चञ्च् (स्वा० पर० चञ्चति, चंञ्चित ) 1. चलायमान करना, लहराना, हिलाना - समरशिरसि चञ्चत्पञ्चचूडश्चमूनां - उत्तर०५/२, मा०५।२३, चञ्चच्च नागा ०४, चचत्पराग - गीत० १ 2. विलपति हसति विषीदति रोदिति चञ्चति मुञ्चति तापम् गीत० ४ । चच: [ चञ्च् + अच्] 1. टोकरी 2. पाँच अगुलियों से मापा जाने वाला मापदण्ड, पंचांगुल मान । चरिन् (पुं० ) [ चर् + यङ, णिनि, यङोलुक् ] भौंरा, --- करी बरीभरीति चेद् दिशं सरीसरीति काम्, स्थिरी चरोकरीति चेन्न चञ्चरीतिचञ्चरी उद्भट । चञ्चरीकः [ चर् + इकन्, नि० द्वित्वम्] भौंरा, चुलुकयति मदीयां चेतनां चञ्चरीक:- रस०, कुंन्द लतायाविमुक्तमकरन्द रसाया अपि चञ्चरीकः, प्रणय प्ररूढ प्रेमभरभञ्जनकातरभावभीतः - विद्वशा० ११४, विक्रमांक ० ११२, भामि० १।४८ । चञ्चल (वि० ) [चंच् + अलच्, चञ्चं गति लाति ला+क वा तारा० ] 1. चलायमान, हिलता हुआ, कंपमान, धरथराता हुआ - श्रुत्वैव भीतहरिणोशिशुचञ्चलाक्षीं - चौर० २७, चञ्चलकुण्डल - गीत० ७, अमरु ७९ 2. ( आलं० ) चलचित्त, चपल, अस्थिर भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सीदामिनीचञ्चलाः भर्तृ० ३५४, कि०२।१९, मनश्चञ्चलमस्थिरम् - भग०६।२६,-लः ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. वायु 2. प्रेमी 3. स्वेच्छाचारी, ला 1. बिजली, 2. घनकी अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी । चञ्चा [ चञ्च् +अच् + टाप् ] 1. बेत से बनी कोई वस्तु 2. पुआल का बना पुतला, गुड्डा, गुड़िया । चतु [चंञ्च् + उन् ] 1. प्रसिद्ध, विख्यात, विदित 2. चतुर ( जैसे कि अक्षर चञ्चु ) दे०चुञ्चु, चुः हरिण, चु - ( स्त्री०) चोंच, चूँच सम० पुट, टम् पक्षी की बन्द चोंच चबूपुटं चपलयन्ति चकोरपोता: -- रस०, भामि० २/९९, अमोचि चञ्चूपुटमौनमुद्रा विहायसा तेन विहस्य भूयः नं० ३।९९, व्यलिखच्चञ्चुपुटेन पक्षती - २१२, ४, अमरु १३ - प्रहारः चोंच से दूंग मारना, भृत्, मत् (पुं०) पक्षी, सूचिः बय्या, सौचिक पक्षी । चंचुर (वि० ) [ चञ्च् + उरच् ] चतुर, विशेषज्ञ । चट् (स्वा० पर० चटति, चटित) टूटना, गिरना, अलग होना, ii ( चुरा० उभ० चाटयति - ते ) 1. मार डालना, क्षति पहुँचाना 2. बींधना, तोड़ना, उ-, 1. भयभीत करना, त्रासना, डराना 2. उखेड़ना, हटाना, नाश करना, नै० ३१७ 3. मार डालना, क्षति पहुँचाना। चटक: [ चट् + क्वत् ] चिड़िया, गौरैया । aeer, चटिका, [ चटक+टाप् इदादेशश्च ] चिड़िया । चटुः, ट ( नपुं० ) [ चट् + कु ] कृपा तथा चापलूसी से पूर्ण शब्द, दे० चाटु, टुः पेट | चटुल ( वि० ) [ चटु + लच् ] 1. कम्पमान, थरथराता हुआ, अस्थिर, घुमक्कड़, दोलायमान - आयस्तमैक्षत जनश्चदुलाग्रपादम् - शि० ५/६ त्रासातिमात्रचटुलः स्मरतः सुनेत्र:- रघु० ९१५८, चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि - मेघ० ४० 2. चंचल, चपल ( जैसा कि प्रेम ) कि लब्धं चटुल त्वयेह नयता सौभाग्यमेतां दशाम्- अमरु १४, चटुलप्रेम्णा दयितेन - ७१, 3. बढ़िया, सुन्दर, रुचिकर - इति चटुलचाटुपटु चारुमुरवैरिणो राधिकामधि वचनजातम् गीत० १०, ला बिजली । चटुलोल, चटूल्लोल (वि० ) [ कर्म० स० नि० साधुः ] 1. कंपनशील 2. प्रिय, सुन्दर 3. मधुरभाषी । ar (वि० ) [ चण् + अच् ] ( समास के अन्त में ) विख्यात, प्रसिद्ध, कुशल, कीर्तिकर अक्षरचणः, णः चना । चणक: [ चण् + क्वुन् ] चना उत्पतितोऽपि हि चणकः शक्तः किं भ्रष्ट्र भक्तुम् पंच० १।१३२ । चंण्ड (त्रि० ) [ चंड् + अच् ] 1. (क) हिंस्र प्रचण्ड, उग्र, आवेशयुक्त, कोची, रुष्ट - अर्थकधेनोरपराध चण्डात् गुरोः कृशानुप्रतिमाद् बिभेषि - रघु० २२४९, मालवि० ३२० दे० नी० चण्डी 2. उष्ण, गरम जैसा कि 'चण्डांशु' में 3. सक्रिय, फुर्तीला 4 तीखा, तीक्ष्ण, डम् 1. उष्णता गर्मी 2. आवेश, क्रोध । सम० अंशु:, दीधितिः For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६९ ) — - भानु: सूर्य -- ईश्वरः शिव का एकरूप, मुंडा दुर्गा का ही एक रूप (चामुंडा ), मृगः जंगली जानवर - विक्रम (वि०) तीक्ष्ण शक्ति का, अपनी शक्ति में भीषण । चण्डा, डो ( स्त्री० ) 1. दुर्गा का विशेषण 2. आवेशयुक्त, या कोधी स्त्री-चण्डी चण्डं हन्तुमभ्युद्यता माम्मालवि० ३।२१, चंण्डी मामवधूय पादपतितं जातानुतापेव सा - विक्रम ०४।२८, रघु०१२१५, मेघ० १०५ । सम० - ईश्वरः, पतिः शिव का विशेषण -- पुण्यं यायास्त्रिभुवनगुरोर्घाम चण्डीश्वरस्य – मेघ० ३३ । चण्डातः [ चण्ड-+- अत् + अण् ] सुगंधयुक्त करवीर । चंण्डकः, -कम् [ चण्ड + अत् + ण्वुल् ] लहंगा, साया । चण्डाल ( वि० ) [ चण्ड् + आलच् ] दुष्कर्मा, क्रूर कर्मा, तु० कर्मचांडाल, लः 1. अत्यंत नीच और घृणित वर्णसंकर जाति जिसकी उत्पत्ति शूद्र पिता व ब्राह्मण माता से हुई मानी जाती है 2. इस जाति का पुरुष, जातिबहिष्कृत --- चण्डालः किमयं द्विजातिरथवा भर्तृ० ३५६, मनु० ५।१३१, १०।१२, १६, ११।१७५ । सम० - वल्लकी चंडाल की वीणा, एक सामान्य या देहाती वीणा । --- austfont [ चण्डाल --- ठन् +टाप् ] चण्डाल की वीणा । चण्डिका [ चण्डी+कन्+टाप्, ह्रस्वः ] दुर्गा देवी । arosa (पुं० ) [ चण्ड + इमनिच् ] 1. आवेश, उग्रता, तीक्ष्णता, क्रोध, 2. गर्मी, ताप । चण्डिल: [ चंडु + इलच् ] नाई । चतुर (सं० वि० ) [ चत् + उरन् ] ( नित्य बहुवचनांत, पुं० चत्वारः, स्त्री० चतस्रः, नपुं० चत्वारि ) चार - चत्वारो वयमृत्विजः – वेणी० ११२२, चतस्रोऽवस्था बाल्यं कौमारं यौवनं वार्धकं चेति, चत्वारि शृङ्गा त्रयोऽस्य पादाः आदि-शेषान् मासान् गमय चतुरो लोचने मीलयित्वा मेघ० ११०, समास में चतुर् कार् विसर्ग बन जाता है और विसर्ग कई स्थानों पर स् या में परिणत हो जाता है अथवा अपरिवर्तित रहता है । सम० अंश: चतुर्थ भाग, अङ्ग ( वि०) चार सदस्यीय, चार दल युक्त, (-गम्) 1. हाथी, रथ, घोड़े और पदाति इन चार अंगों से सुसज्जित सेना - एको हि खंजनवरो नलिनीदलस्थो दृष्टः करोति चतुरङ्गनलाविपत्यम् - श्रृंगार० ४, चतुरङ्गवलो राजा जगतीं वशमानयेत्, अहं पञ्चाङ्गबलवानाकाशं वशमानयेसुभा० 2. एक प्रकार की शतरंज, अन्त ( वि० ) चारों ओर सीमायुक्त - भूत्वा चिराय चतुरन्त महीसपत्नीश० ४ १९, अन्ता पृथ्वी, अशीत (वि०) चौरासियाँ, -अशोति (वि० [स्त्री०) चौरासी, अश्र, अत्र (वि० ) ( अश्रि-त्रि के स्थान पर) 1. चार किनारों वाला, चतुष्कोण - रघु० ६।१० 2. सममित, नियमित ४७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या सुन्दर, सुडौल - बभूव तस्याश्चतुरस्रशोभि वपुः -कु० ११३२, ( श्र:, त्रः ) वर्गाकार, अहम् चार दिन का समय - आननः ब्रह्मा का विशेषण- इतरतातापशतानि यथेच्छया वितर तानि सहे चतुरानन- उद्भट, --- आश्रमं ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चार अवस्थाएँ, उत्तर (वि०) चार बढ़ा कर, कर्ण (चतुकर्ण) (वि०) केवल दो व्यक्तियों द्वारा ही सुना गया, कोण ( चतुष्कोण) (वि०) वर्ग, चार कोनों वाला, (ण) वर्ग, चतुर्भुज, चार पार्श्व वाली आकृति गति: 1. परमात्मा 2. कछुवा, गुण (वि०) चारगुणा, चौहरा, चौलड़ा, चत्वारिंशत् ( चतुश्चत्वारिशत्) (वि०) चवालीस, रिंश चवालिसव, णवत (चतुर्णवत) (वि०) चौरानवेवाँ या चौरानवे जोड़ कर - चतुर्णवतं शतम् - एक सौ चौरानवे, दंतः इन्द्र के हाथी ऐरावत का विशेषण, वश (वि०) चौदहवाँ ---दशन् (वि०) चौदह रत्नानि ( ब० व०) समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप समुद्र से प्राप्त १४ रत्न ( इनके नाम निम्नांकित मंगलाष्टक में गिनाये गये हैं: लक्ष्मी: कौस्तुभपारिजात कसुरा धन्वन्तरिश्चन्द्रमा गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवाङ्गनाः, अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शङ्खोऽमृतं चाम्बुधे रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्युः सदा मङ्गलम्, विद्या: ( ब० To) चौदह विद्याएँ (वे यह हैं:- षडंगमिश्रिता वेदा धर्मशास्त्रं पुराणकम्, मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश), दशी चांद्रपक्ष का चौदहवाँ दिन, विशन् सामूहिक रूप से चारों दिशाएँ, दिशम् (अव्य ० ) चारों दिशाओं में, सब दिशाओं में, दोल, लम् राजकीय पालकी, द्वारम् 1. चारों दिशाओं में चार द्वारों वाला मकान 2. सामूहिक रूप से चारों द्वार, नवति (वि०-स्त्री०) चौरानवे, पञ्च ( वि० ) ( चतुः पंच या चतुष्पंच) चार या पांच, पञ्चाशत् ( स्त्री० ) ( चतुःपञ्चाशत्, चतुष्पञ्चाशत् ) चव्वन - पथः (चतुः पथः, चतुष्पथः ) ( थम् भी) वह स्थान जहाँ चार सड़कें मिलें, चौराहा, मनु० ४।३९ ९।२६४, (थ) ब्राह्मण, पद ( वि० ) ( चतुष्पदः ) 1. चार पैरों वाला 2. चार अंगों वाला (दः) चौपाया ( दी ) चार चरण का श्लोक - पद्यं चतुष्पदी तच्च वृत्तं जातिरिति द्विधा - छं० १, पाठी (चतुष्पाठी) ब्राह्मणों का विद्यालय जिसमें चारों वेदों का पठनपाठन होता हो । - पाणि: ( चतुष्पाणिः ) विष्णु का विशेषण, पाद्द ( चतुष्पाद्-द) (वि०) 1, चौपाया 2. पाँच सदस्यीय या पाँच भागों वाला, (पुं०) 1. चौपाया 2. ( विधि में ) न्यायांग की एक कार्यविधि (अभियोगों की जाँच पड़ताल ) जिसमें चार प्रकार की प्रक्रियाएँ हों अर्थात् तर्क, पक्षसमर्थन For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्युक्ति, निर्णय, बाहुः विष्णु की उपाधि (हु-नपु०)। संन्यास,---- भाज (वि०) अपनी प्रजा से आय का वर्ग,-भद्रम् चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ काम तथा । चतुर्थाश ग्रहण करने वाला, राजा, (अर्थ संकट के मोक्ष) की समष्टि, ---भागः चौथाभाग चौथाई, - भुज अवसर पर ही चतुर्थांश लेना विहित है अन्यथा प्रच(वि.) 1. चतुष्कोण 2. चार भुजाओं वाला-भग० लित केवल छठा भाग है)। ११३४६, (०) विष्णु की उपाधि --रघु० १६॥३, चतुर्थक (वि०) [चतुर्थ+कन् ] चौथा,- कः चौथेया (नपुं०) वर्ग,---मासम् चातुर्मास्य, चौमासा (आषाढ | ज्वर (जो हर चार दिन के बाद आता है) चौथिया। सुदी एकादशी से कार्तिक सुदी दशमी तक),-मुख | चतुर्थी [चतुर्थ+ङीप् ] 1. चांद्र पक्ष का चौथा दिन (वि०) चार मुंह वाला (ख:) ब्रह्मा का विशेषण 2. (व्या० में) संप्रदान कारक। सम०- कर्मन् त्वत्तः सर्व चतुर्मुखात्-रघु० १०॥२२, (खम्) (नपुं०) विवाह के चौथे दिन किया जाने वाला 1. चार मुंह-कु० २१७ 2. चार द्वार वाला मकान, संस्कार। -युगम् चार युगों की समष्टि, रात्रम् (चतूरात्रम् चतुर्धा--(अव्य.) [ चतुर्+धा] चार प्रकार से, चार रात्रियों का समूह,-- वक्त्रः ब्रह्मा का विशेषण, चारगुणा। -वर्गः मानव जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ चतुष्क (वि०) [चतुरवयवं चत्वारोऽवयवा यस्य वा कन् ] काम और मोक्ष) का समूह-रघु० १०।२२,--वर्णः 1. चार से युक्त 2, चार बढ़ा कर-द्विकं त्रिकं चतुष्क हिन्दुओं की चार श्रेणियाँ या जातियाँ अर्थात् ब्राह्मण, च पञ्चकं च शतं समम् .. मनु०८।१४२ (अर्थात १०२, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र-चतुर्वर्णमयो लोकः-- रघु० १०३, १०४, या १०५ या दो से पाँच प्रतिशत का १०।२२,-बर्षिका चार वर्ष की आय की गाय,--विश ब्याज),--कम् 1. चार का समूह 2. चौराहा 3. चौकोर (वि.) 1. चौबीस 2. चौबीस जोड़कर जैसे कि आंगन 4. चार स्तंभों पर अवस्थित भवन, कमरा या चतुर्विशशतम्--१२४),--विशति (वि. या स्त्री०) सुकक्ष- कु०५।६९, ७१९,--- एकी 1. एक चौकोर बड़ा चौबीस,--विशतिक (वि०) २४ से युक्त,-विद्य तालाब 2. मच्छरदानी, मसहरी।। (वि.) जिसने चारों वेदों का अध्ययन किया है | चतुष्टय (वि.) (स्त्री०-यी) [ चत्वारोऽवयवा विधा-विध (वि०) चार प्रकार का, चौतही, वेद अस्य तयप् ] चारगुणा, चार से युक्त----पुराणस्य कवे(वि.) चारों वेदों से परिचित (दः) परमात्मा, स्तस्य चतुर्मखरामीरिता, प्रवृत्तिरासीच्छब्दानां चरि- म्यूहः विष्णु का नाम (हम्) आयुर्वेद विज्ञान तार्था चतुष्टयी। कु० २।१७,...- यम् चार का समूह ---शालम् (चतुः शालम्, चतुश्शालम्, चतुः शाली, ___... एकैकमप्यनर्थाय किम यत्र चतुष्टयम् -- हि०प्र०११, चतुश्शाली) चार मकानों का व.., चारों ओर चार कु०७।६२, मासचतुष्टयस्य भोजनम्-हि०१ 2. वर्ग । भवनों से घिरा हुआ चतुष्कोण, षष्टि (वि० या चत्वरम् [चत् -वरच ] 1. चौकोर जगह या आंगन स्त्री०) चौंसठ कला (ब० व०) चौंसठ कलाएँ, 2. चौराहा (जहाँ कई सड़कें मिलें)–स खल श्रेष्ठि---सप्तति (वि० या स्त्री०) चौहत्तर,- हायन,... " चत्वरे निवसति -- मच्छ०२ 3. यज्ञ के लिए तैयार (वि.) चार वर्ष की आय का (इस शब्द का स्त्री- की गई समतल भूमि। लिङ्गरूप आकारान्त है यदि निर्जीव पदार्थों का ही चत्वारिंशत् (स्त्री०)[ चत्वारो दशतः परिमाणमस्य-ब० उल्लेख है; और यदि सजीव जन्तुओं से अभिप्राय है। स०, नि० ] चालीस।। तो यह सब 'ईकारान्त' बन जाता है),--होत्रकम् | चत्वाल: [चत+वाला 11. यज्ञाग्नि रखने के लिए या चारों ऋत्विजों (पुरोहितों) का समूह । आहुति देने के लिए भूमि खोद कर बनाया गया हवनचतुर (वि०) [चत्+उरच ] 1. होशियार, कुशल, कुंड 2. कुशघास 3. गर्भाशय । मेधावी, तीक्ष्णबुद्धि-सर्वात्मना इतिकथाचतुरेव दूती चद् (भ्वा० उभ०--चदति-ते) कहना, प्रार्थना करना। ---मुद्रा० ३।९ अमरु १५।४४, मृगया जहार चतुरेव | चदिरः [चद ---किरच, नि० ] 1. चन्द्रमा 2. कपूर 3. हाथी कामिनी-रघु० ९।६९, १८।१५ 2. फुर्तीला, द्रुत 4. साँप । गामी या तेज 3. मनोज्ञ, सुन्दर, प्रिय, रुचिकर --न चन (अव्य०) नहीं, न केवल, भी नहीं (अकेला कभी पुनरेति गतं चतुरं वयः--रघु० २।४७, कु. ११४७, प्रयुक्त नहीं होता, बल्कि सर्वनाम 'किम्' तथा इससे ३१५, ५।४९,—रम् 1. होशियारी, मेधाविता व्युत्पन्न शब्दों (कद्, कथम् , क्व, कदा, कुतः आदि) के 2. हस्तिशाला। साथ प्रयुक्त होकर अनिश्चयात्मक अर्थ को व्यक्त चतुर्थ (वि.) (स्त्री०---थी) [चतुर्णां पूरणः डट् थुक करता है--दे० 'किम्' के नी०) [ कई विद्वान् 'चन' च] चौथा,-र्थम् चौथाई, चौथा भाग । सम० को पृथक् शब्द न मान कर केबल (च) और (न) -आश्रमः ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चौथी अवस्था का संयोग मानते हैं। For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ३७१ ) चन्द (भ्वा० पर०-चन्दति, चन्दित) 1. चमकना, प्रसन्न । १२४ (त:,-तम्) रात को खिलने वाला श्वेत कुमुद होना, खुश होना। (तम) चन्दन की लकड़ी--कला चन्द्रमा की रेखा चन्दः [ चन्द +-णि --अच् ] 1. चन्द्रमा, कपूर।। --राहोश्चन्द्रकलामिवाननचरी देवात्समासाद्य मे-मा० चन्दनः, -नम् [ चन्द्-+-णिच् + ल्युट ] चंदन (चंदन का ५।२८,--कान्ता 1. रात 2. चांदनी,--कान्तिः चांदनी वृक्ष, इसकी लकड़ी या इससे तैयार किया गया कोई (नपुं०) चांदी,-क्षयः चांद्रमास का अंतिम दिन स्निग्ध पदार्थ–सुगंध और शीतलता की दृष्टि से (अमावस्या) या नूतनचन्द्रदिवस जब कि चन्द्रमा अत्युत्तम समझा जाता है)। अनलायागुरुचन्दनधसे दिखाई नहीं देता,-गहम कर्कराशि, राशिचक्र में चौथी ..--रघु०८७१ मणिप्रकाराः सरसं च चंदनं गचौ प्रिये राशि, गोलः चन्द्रलोक, चन्द्रमंडल,-गोलिका चाँदनी, यांन्ति जनस्य सेव्यताम् ऋतु० ११२, एवं च भापते ---ग्रहणम् चन्द्रमा का राहुग्रस्त होना,-चञ्चला छोटी लोकश्चन्दनं किल शीतलम, पुत्रगात्रस्य संस्पर्शश्चन्द- मछली,-चूडः -चूडामणिः । मौलिः,--शेखरः शिव नादतिरिच्यते-पंच० ५।२०, बिना मलय मन्यत्र चंदनं के विशेषण -रहस्युपालभ्यत चन्द्रशेखरः--कु० ५।५८, न प्ररोहति -११४१। सम०- अचल:-अद्रिः --गिरिः, ८६, रयु० ६॥३४,-दाराः (पु०, ब० ब०) 'चन्द्रमा मलय पर्वत, उदकम् चन्दन का पानी, पुष्पम् लौंग, की पत्नियां' २७ नक्षत्र (पुराणों को दष्टि से यह दक्ष -सारः अत्यंत श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी। की पुत्रियाँ थी और चन्द्रमा को ब्याही गई थीं), चन्दिरः [चन्द+किरच ] 1. हाथी 2. चन्द्रमा --अपि -द्युतिः चन्दन की लकड़ी (स्त्री०) चांदनी,-नामन च मानसमम्बनिधिर्यशो विमलशारदचन्दिरचन्द्रिका (५०) कपूर, पादः चन्द्रकिरण-----मेघ० ७०, मा० --भामि० ११११३, मुकुन्दमखचन्दिरे चिरमिदं चको ३।१२, -प्रभा चन्द्रमा का प्रकाश, -- बाला 1. बड़ी रायताम्--४।१। इलायची 2. चांदनी, बिदुः अनुस्वार (0) का चिह्न चन्द्रः [चन्द्+णिन्+रक] 1. चन्द्रमा, यथा प्रह्लाद -- भस्मन (नपु०) कपूर, --भागा दक्षिणभारत की नाच्चन्द्रः-रघु० ४।१२, हृतचन्द्रा तमसेव कौमुदी एक नदी, -भासः तलवार दे० चंद्रहास,--भूति नपुं०) चाँदी, मणिः चन्द्रकांत मणि,-रेखा,-लेखा चन्द्रमा -----८१३७, न हि संहरते ज्योत्स्ना चन्द्रश्चाण्डालवेश्मनि की कला, रेणुः साहित्यचार-लोक: चंद्रसंसार ---हि० १।६१, मुखं, वदन' आदि; पर्याप्तचन्द्रेव ---लोहकम, -लौहम,---लोहकम चाँदी,-वंशः राजाओं शरतत्रियामा-कु०७।२६ (पौराणिकवन के लिए दे० सोम) 2. चन्द्र ग्रह 3. कपूर ---विलेपनस्याधिकचन्द्र का चन्द्रवंग, भारत के राजवंशों में दूसरी बड़ी पंक्ति, भागताविभावनाच्चापललाप पाण्डुताम्--नै० ११५१ .- बदन (वि०) चन्द्रमा जैसे मुख वाला,-व्रतम् एक 4. मयूर पंखों में 'आँख' का चिह्न 5. जल 6. सोना प्रकार की प्रतिज्ञा या तपस्या-चांद्रायण,-शाला (जब 'चन्द्र' शब्द समाप के अन्त में प्रयक्त होता है: 1. चीत्रारा (घर में सबसे ऊपर की मंजिल का कमरा) ..रघु० १३१४० 2. चाँदनी,- शालिका चौबारा, तो इसका अर्थ होता है श्रेष्ठ, प्रमुख, श्रीमान् यथा पुरुपचन्द्रः, “मनुष्यों में चन्द्रमा” अर्थात् एक श्रेष्ठ या . शिला चंद्रकांतमणि भट्रि० १११५,--संज्ञः महानुभाव व्यक्ति), द्रा 1. इलायची 2. खला कमरा कपूर, संभवः बुध (वा) छोटी इलायची,--सालो(जिम पर केवल छन हो हो) । सम० अंशः चन्द्रमा क्यम् चांद्र स्वर्ग की प्राप्ति,--हन (नपुं०) राहु का को किरण, ...अर्थः आधा चन्द्रमा, चडामणिः, मौलि: विशेपण, हासः 1. चमकीली तलवार 2. रावण की 'शेखरः शिव के विशेषण, आतपः 1. चाँदनी 2. चंदोत्रा तलवार-हे पाणयः किमिति वाञ्छथ चन्द्रहासम् 3. प्रशस्त कक्ष (जिसको केवल छत ही हो),-आत्मजः, -वालरा० ११५६, ६१ 3. केरल का, एक राजा, ...--औरस:--जः--जातः,--तनयः-नन्दनः,--पुत्रः बुध सुधार्मिक का पुत्र (यह मूलनक्षत्र में पैदा हुआ था, ग्रह, ---आनन (वि.) चन्द्रमा जैसे मुख वाला (नः) और इसके बायें पैर में छ: अंगुलियाँ थी, इसी कारण कार्तिकेय का विशेषण,-आपीडः गिव का विशेषण, इसका पिता शत्रुओं द्वारा मारा गया और यह अनाथ - आभासः ‘झुठा चंद्रमा' वास्तविक चन्द्रमा से मिलती और दरिद्र हो गया। बहुत प्रयत्न करने के पश्चात् जुलती आकाश में दिखाई देने वाली आकृति,-आह्वयः उसका राज्य उसे फिर मिल गया। जिस समय अश्वमेव के घोड़े के साथ घूमते हुए कृष्ण और अर्जुन कपुर,-इष्टा कमल का पौधा, कमलों का समह, गत को कुमदिनो का खिलना, उदयः चन्द्रमा का उगना, दक्षिण में आये तो इसने उनसे मित्रता कर ली)। - उपलः चन्द्रकांतमणिा-कान्तः चंद्रकांतमणि ( चन्द्रमा चन्द्रक: [चन्द्र+कन्] 1. चाँद 2. मोर के पंखों में आँख के प्रभाव से कहते है इस मणि से रस झरता है) ___ का चिह्न 3. नाखून 4. चन्द्रमा के आकार का वृत्त -- द्रवति च हिमरश्मावुद्गते चन्द्रकान्तः-उतर० (पानी में तेल की बूंद गिरने से बन जाता है)। ६।१२, शि० ४।५८, अमरु ५७, भर्तृ० ११२१, मा० । चन्द्रकिन् (पं.) [चन्द्रक-इनि] मोर,-शि० ३।४९ । For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३७२ चमस् (पुं०) [चन्द्र + मि+असुन, मादेशः ] चाँद, -नक्षत्र | ताराग्रहसंकुलापि ज्योतिष्मती चन्द्रमसेव रात्रिः-- रघु० ६।२२ । wer [ चन्द्र + न् +टाप् ] 1. चांदनी, ज्योत्स्ना- इतः स्तुतिः का खलु चन्द्रिकाया यदब्धिमप्युत्तरलीकरोति - ने० ३।११६, रघु० १९ ३९, कामुकैः कुम्भीलकैश्च परिहर्तव्या चन्द्रिका - मालवि० ४ 2. ( समास के अन्त में ) विशदीकरण, प्रस्तुत विषय पर प्रकाश डालना । अलंकारचंद्रिका, काव्यचंद्रिका - तु० - कौमुदी 3. जगमगाहट 4. बड़ी इलायची 5. चन्द्रभागा नामक नदी 6. मल्लिका लता । सम० - अम्बुजम् चन्द्रोदय होने पर खिलने वाला कुमुद, - - ब्राथः चन्द्रकांतमणि, - पायिन् (पुं०) चकोर पक्षी । चलि: [ चन्द्र + इलच् ] 1. शिव का विशेषण । चप् i (स्वा० पर०--. चपति) सांत्वना देना, ढाढस देना । ii ( चुरा० उभ० चपयति - ते) पीसना, चूरा करना, मांडना । चपटः चपेटः चपल (वि० ) [ चुप् + कल, उपघोकारस्याकारः ] 1. हिलनेडुलने वाला, कंपमान, थरथराने वाला – कुल्याम्भोभिः पवनचपलैः शाखिनो घौतमूला: - श० १११५, चपलायताक्षी-चौर० ८ 2. अस्थिर, चंचल, चलचित्त, दोलायमान - शा० २।११, चपलमति आदि 3. भंगुर, अनित्य, क्षणिक - नलिनीदलगतजलमतितरलं तद्वज्जीवितमतिशयचपलम् - मोह० ५ 4. फुर्तीला, चंचल, चुस्त- (गतम्) शैशवाच्चपलमप्यशोभते - का० १११८ 5. विचारशून्य, अविवेकी - तु० चापल, लः 1. मछली 2. पारा 3. चातक पक्षी 4. क्षय 5. सुगंध द्रव्य । चपला [ चपल + टापू] 1. बिजली-कुरवककुसुमं चपला सुषमं रतिपतिमृगकानने- गीत० ७ 2. व्यभिचारिणी स्त्री 3. मदिरा 4. धन की देवी लक्ष्मी 5. जिह्वा । सम० - जनः चंचल तथा अस्थिरमन स्त्री । शि० ९।१६ । 'चपेटः [चप् + इट् +अच्] 1 थप्पड़ 2. चाटा । चपेटा, चपेटिका [चपेट् + टाप्, चपेट + कन् + टाप्, इत्वम् ] चांटा - खण्डकोपाध्यायः शिष्याय चपेटिकां ददाति महा० 1 चम् ( वा० पर० - चमति चान्त) 1. पीना, आचमन करना, चढ़ा जाना, चचाम मधु माध्वीकम् भट्टि० १४ । ९४ २. खाना, आ-, ( आ-चामति) 1. आचमन करना, एक सांस में पी जाना, चाटना नाचेमे हिममपि वारि वारणेन - कि० ७।३४, भामि० ४१३८, उत्तर० ४।१ 2. चाट लेना, पी जाना, सोख लेना -- आचामति स्वेदलवान्मुखे ते— रघु० १३।२०, ९।६८ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चमत्करणम्, चमत्कारः, चमत्कृतिः (स्त्री० ) 1. विस्मय, आश्चर्य 2. खेल तमाशा 3. काव्य सौन्दर्य ( जिससे काव्यरस की अनुभूति होती है ) - चेतश्चमत्कृतिपदं कवितेव रम्या - भामि० ३।१, तदपेक्षया वाच्यस्यैव चमत्कारित्वात् -- काव्य ० १ । चमरः [ चम् + अरच् ] एक प्रकार का हरिण, रः, रम् चौरी (प्राय: चमर मृग की पूंछ से बनी ), री, चमर की मादा - यस्यार्थयुक्तं गिरिराजशब्दं कुर्वन्ति बालव्यजनैश्चमर्यः कु० १११, ४८, शि० ४६०, मेघ० ५३ । सम० - पुच्छम् चमर की पूंछ जो पंखे का काम देती है, (च्छः ) गिलहरी । चमरिकः [ चमर + ठन् ] कोविदार वृक्ष, कचनार का पेड़ । चमसः सम् [ चमत्यस्मिन् चम - असच् तारा०] सोमपान करने का लकड़ी का चमचे के आकार का यज्ञ पात्र, -- याज्ञ० १०१८३, ('चमली भी ) । चमूः (स्त्री० ) [ चम् + ऊ ] सेना - पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् - भग० ११३, वासवीनां चमूनाम् - मेघ० ४३, गजवती जवतीव्रह्या चमूः रघु० ९।१० 2. सेना का एक भाग जिसमें ७२९ हाथी, ७२९ रथ, २१८७ सवार तथा ३६४५ पदाति हों । सम० - चरः सैनिक, योद्धा, नाथः, पः, पतिः सेनापति, कमांडर, सेना नायक रघु० १३।७४, -- हरः शिव की उपाधि । चमूदः [ चम् + ऊर, उत्वम् ] एक प्रकार का हरिण चकासतं चारुचमूरुचर्मणा - शि० ११८ । चम्पू ( चुरा० उभ० - चम्पयति - ते ) जाना, चलनाफिरना । चम्पक: [ चम्प | बुल] 1. चम्पा नामक पौधा जिसके पीले, सुगंधयुक्त फूल लगते हैं 2. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य, ---कम् इस वृक्ष का फूल - अद्यापि तां कनकचम्पकदामगीरीम् - चौर० १ । 1. सम० – माला चम्पाकली, स्त्रियों का एक आभूषण जो गले में पहना जाता 2. चम्पा के फूलों की माला 3. एक प्रकार का छंद, दे ० परिशिष्ट, रम्भा केले की एक जाति । चम्पकालुः [ चम्पकेन पनसावयवविशेषेण अलति, चम्पक + अल् + उण् ] कटहल का पेड़ । चम्पकावती, चंपा, चंपावती [ चम्पक + मतुप् + ङीप्, वत्वं दीर्घश्च, चम्प् + अ + टाप्, चम्पा + मतुप् + ङीप् वत्वं ] गंगा के किनारे एक प्राचीन नगर, अंगदेश की राजधानी, वर्तमान भागलपुर । चम्पालु – चम्पकालु | चम्पूः (स्त्री० ) [ चम्पू + ऊ ] एक प्रकार का काव्य जो "गद्य और पद्य दोनों रचनाओं से युक्त होता है तथा जिसमें एक ही विषय की चर्चा होती है---गद्यपद्यमयं For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७३ ) काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते-सा० द० ५६९, उदा० । १२८९, मनु० ५।१५६, न चाप्याचरितः पूर्वरयं धर्मः भोजचंपू, नलचंपू और भारतचंपू आदि । --महा० 2. वर्ताव करना, व्यवहार करना, आचरण चय (भ्वा० आ० --चयते) किसी जगह जाना, हिलना करना-पुत्रमिवाचरेत् शिष्यम्-सिद्धा०, पुर्व मित्रजुलना। वदाचरेत् - चाण० ११ 3. घूमना, इधर-उधर फिरना चयः[ चि-अच ] 1. संघात, संग्रह, समुच्चय, ढेर, राशि 4. आश्रय लेना, अनुसरण करना-रघु० ४।४४, उद-, -चयस्त्विपामित्यवधारितं पुरा--शि० ११३, मदां। 1. ऊपर जाना, उठना, निकलना, आगे बढ़ना--शि० चयः ---उत्तर० २।९, मिट्टी का ढेर, कचानां चयः १७५२, 2. उठना, प्रकट होना, (शब्द) निकलना ---भर्त० २५, बालों का मींडी (गुच्छा), इसी प्रकार । - ---उच्चचार निनदोऽम्भसि तस्याः . रघु०९।७३, १५॥ चमरीचयः-शि० ४।६० कुमुमचय तुपारचय आदि ४६, १६।८७, कोलाहलध्वनिरुदचरत् -- का० २७ 2. किसी भवन की नींव की मिटटी का टीला 3. किले 3. वोलना, उच्चारण करना --शब्द उच्चरित एव को खाई की मिटटी का टीला 4. दूर्गप्राचीर 5. किले मामगात्-रघु० १११७३ 4. मलोत्सर्ग करना, का द्वार 6. तिपाई, चौकी 7. भवनों का समूह, विशाल पुरीपोत्सर्ग करना-तिरस्कृत्योच्चरेत्काष्ठलोष्टपत्रभवन 8. लकड़ियों का चट्टा। तृणादिना -मनु०४।४९ 5. (आ० में प्रयोग) (क) चयनम् [चि- ल्युट्] 1. चुनना, वीनना (फूल आदि का) उत्क्रमण करना, विचलित होना- भट्टि. ८५३१, 2. ढेर लगाना, चट्टा लगाना। (ख) उठना, चढ़ना -नै० ५।४८, प्रेर० बुलवाना, उच्चारण करवाना, उप-, 1. सेवा करना, हाजरी चर (भ्वा० पर०...चरति, चरित) 1. चलना, घमना, इधर देना, सेवा में प्रस्तुत रहना-गिरिशमुपचचार प्रत्यहं सा उधर जाना, चक्कर काटना, भ्रमण करना--नष्टा सुकेशी--कु० श६०, सममपचर भद्रे सुप्रियं चाप्रियं शङका हरिणशिशवा मन्दमन्दं चरन्ति-श० १२१५, (यहाँ 'चर' का अर्थ 'घास चरना' भी है)-इन्द्रियाणां च-मृच्छ० ११३१, रघु० ५।६२, मनु० ३१९३ 2. (रागी की) सेवा करना, चिकित्सा करना, परिहि चरताम्-भग० २०६७, कायश्चेहरातस्य रामस्येव चर्या करना 3. व्यवहार करना 4. निकट जाना, दुस-, मनोरथाः-रघ० १२०५९, मनु० २।२३, ६६८, ८/२३६, ९।३०६, १०१५५ 2. अभ्यास करना, अनु-: ठगना, धोखा देना, परि, --1. जाना, इधर उधर प्ठान करना, पर्यवेक्षण करना-चरतः किल दुश्चरं घूमना 2. सेवा-शुश्रूपा करना, सेवा करना या सेवा में तपः --रघु० ८७९, याज्ञ० १६०, मनु० ३।३०, उपस्थित रहना -मनु० २।२४३, भर्त० ३।४. 3. देख 3. करना, ब्यवहार करना, आचरण करना (प्रायः भाल करना, परिचर्या करना,सेवा करना, प्र, -1. इधर 'अधि०' के साथ)-चरन्तीनां च कामत:-मनु० ५।९० उधर चलना, ऐंठ कर चलना 2. फैलना, प्रचलित ९/२८७, आत्मवत्सर्वभूतेषु यश्चरेत् - महा०, तस्यां त्वं होना, वर्तमान होना 3. (प्रथा का) प्रचलन होना साधु नाचरः --रघु० ११७६, (यहाँ पर धातु 'आचर' 4. कार्य आरंभ करना, मार्ग अपनाना, कार्य करने भी हो सकती है) 4. घास चरना--मुचिरं हि चरन् लगना ...मनु० ९।२८४, (प्रेर०) इधर उधर फिराना, शस्यं-हि० ३।९ 5. खाना, उपभोग करना 6. काम वि, -1. इधर उधर घूमना, भ्रमण करना,--रघु० में लगना, व्यस्त होना 7. जोना, चायने रहना, किसी २२८, मेघ० ११५ 2. करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास न किसी अवस्था में विद्यमान रहना। प्रेर०-चारयति करना 3. कर्म करना, बर्ताव करना, व्यवहार करना, 1. चलाना, हिलाना-जुलाना 2. भेजना, निदेश देना, (प्रेर०) 1. सोचना, विचारना, मनन करता 2. चर्चा हिलाना 3. दूर करना 4. अनुष्ठान करना, अभ्याम करना, वादविवाद करना -रघु० १४१४६ 3. हिसाब कराना 5. संभोग कराना,---अति 1. अतिक्रमण करना लगाना, अनुमान लगाना, हिसाव में गिनना, विचार उल्लंघन करना, अवज्ञा करना 2. अत्याचार करना, करना--परेषामात्मनश्चैव यो विचार्य बलाबलम-पंच० अनु -, अनुकरण करना, अन्वा.....नकल करना, पीछे ३, सुविचार्य यत्कृतम् ----हि० १२२, व्यभि, --1. पथचलना, अप-, 1. अतिक्रमण करता, अत्याचार करना भ्रष्ट होना, विवलित होना 2. उल्लंघन करना, 2. अपज्ञा करना, अभि- 1. आराध करना, उल्लंबन विश्वास घात करना 3. कपटपूर्ण व्यवहार करना, करना 2. (पति के रूप में विश्वास खो देना, बोग्या सम् ---(आ. जब कि करण के साथ प्रयोग हो) देना-मनु० ५।१६२, ९।१०२ 3. जादू करना, मंत्र 1. चलना, घूमना, जाना, गुजरना, इधर उधर फिरना फूकना --तथैवाभिचरन्नपि ----याज्ञ० ११२९५, ३।२८९, ---यानः समचरन्तान्ये-भट्रि० ८१३२, क्वचित्पथा आ-, 1. कर्म करना, अभ्यास करना, करना, अनु- संचरते सुराणाम् --रघु० १३।१९, नै० ६/५७, संचप्ठान करता -..-तपस्विकन्यास्वपिनयमाचरति ...10 रतां धनानां कु०१६ 2. अभ्यास करना, अनुष्ठान ११२५, त्वं च तस्येष्टमाचरेः ---विक्रम० ५।२०, रघु० । करना 3. दे देना, हस्तांतरित होना । (प्रेर०) 1. इधर For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७४ ) उघर भेजना, नेतृत्व करना, संचालन करना,-श०५।५ । -अनिः,-क्ष्माभूत (पु.) पश्चिमी पर्वत (सूर्य 2. फलाना, इधर उधर घुमाना 3. पहुँचाना, और चन्द्रमा इसके पीछे ही अस्त हो जाने वाले माने समाचार देना, दे देना, सौंप देना 4. चरने के लिए जाते हैं),--अवस्था अन्तिम दशा (बुढ़ापा),-काल: मुड़ना। मृत्यु की घड़ी। घर (वि०) (स्त्री० ---री) [चर्+अच् ] 1. हिलने-जुलने | चरिः [ चर्+इन् ] जीव, जन्तु । वाला, जाने वाला, चलने वाला (समास के अन्त में) | चरित (भू० क. कृ.) [चर+क्त ] 1. घूमा हुआ या 2. कांपता हुआ, हिलता हुआ 3. जंगम दे० 'चराचर' फिरा हुआ, गया हुआ 2. अनुष्ठित, अभ्यस्त 3. अवाप्त -मनु० ३।२०१, भग० १३।१५ 4. सजीव---मनु० 4. ज्ञात 5. प्रस्तुत,-तम् 1. जाना, हिलना-जुलना, ५।२९, ७।१५ 5. (प्रत्यय की भांति प्रयुक्त) पूर्व- मार्ग, कर्म करना, करना, अभ्यास, व्यवहार, कृत्य, कर्म कालीन, भूतपूर्व आढ्यचर जो पहले धनवान् था, --उदारचरिताना--हि. १७०, सर्व खलस्य चरितं इसी प्रकार देवदत्तचर, अध्यापकचर (भूतपूर्व अध्या- मशक: करोति- - १६८१ 3. जीवनी, आत्मजीवनी, पक),-र 1. दूत 2. खंजन पक्षी 3. जूआ खेलना साहसकथाएँ, इतिहास, कहानी-उत्तरं रामचरितं 4. कौड़ी 5. मंगलग्रह 6. मंगलवार। सम०--अचर तत्प्रणीतं प्रयुज्यते-उत्तर० १०२,इसीप्रकार 'दशकुमार(वि.) जंगम और स्थावर-चराचराणां भूतानां चरितम्' आदि । सम०-अर्थ (वि.)1. जिसने अपना कुक्षिराधारतां गतः--कु० ६।६७, २।५, भग० १११४३, अभीष्ट ध्येय पूरा कर लिया है, सफल --रामरावणयो(रम्) 1. सृष्टि की समस्त रचना, संसार-मनु० युद्धं चरितार्थमिवाभवत्-रघु० १२।८७, १०३६, ११५७, ६३, ३१७५, भग०.१११७, ९।१० 2. आकाश, २०१७, कि०१३।६२ 2. संतुष्ट, तृप्त 3. कार्यान्वित, अन्तरिक्ष,---द्रव्यम् जंगम वस्तु, मृतिः वह मूर्ति संपन्न । जिसका जलस या सवारी निकाली जाय । चरित्रम् [चर्+इत्र] 1. व्यवहार, आदत, चालचलन, चरकः [चर+कन् ] 1. दूत 2. रमता साधु, अवधूत । अभ्यास, कृत्य, कर्म 2. अनुष्ठान, पर्यवेक्षण 3. इतिहास, चरटः [चर्-+-अटच् ] खंजन पक्षी। जीवनचरित, आत्मकथा, वृत्तांत, साहसकथा 4. प्रकृति, चरणः,-णम् [ चर् + ल्युट् ] 1. पैर---शिरसि चरण एष | स्वभाव 5. कर्तव्य, अनुमोदित नियमों का पालन न्यस्यते वारयनम्-वेणी० ३।३८, जात्या काममवध्यो- -मनु० २२०, ९।७। ऽसि चरणं त्विदमुद्धतम्-३९ 2. सहारा, स्तंभ, थूणी चरिष्णु (वि०) [चर-+-इष्णुच् ] जंगम, सक्रिय, इधर 3. वृक्ष की जड़ 4. श्लोक की एक पंक्ति या पाद उधर घूमने वाला। 5. चौथाई 6. वेद की शाखा या सम्प्रदाय 7. वंश, चरुः [ चर+उन् ] उबले चावल, आदि से, देवताओं –णम् 1. हिलना-जुलना, भ्रमण करना, घूमना . तथा पितरों की सेवा में प्रस्तुत करने के लिए 2. अनुष्ठान, अभ्यास ---मनु० ६७५ 3. जीवनचर्या, तैयार की गई आहुति-रघु० १०१५२, ५४, ५६ । चालचलन, (नैतिक) व्यवहार 4. निष्पन्नता 5. खाना, सम०--स्थाली देवताओं तथा पितरों की सेवा में उपभोग करना । सम-अमृतम्,--उदकम् वह पानी प्रस्तुत करने के लिए चावलों को उबालने का बर्तन । चर्च i (चुरा० उभ०---चर्चयति-ते, चर्चित) पढ़ना, के पैर धोये जा चुके हैं,-- अरविंदम्,--कमलम्, ध्यान पूर्वक पढ़ना, अनुशीलन करना, अध्ययन करना। -पद्मम् कमल जैसे पैर,-आयुधः मुर्गा,---आस्कन्दनम् i (तुदा० पर०.-चर्चति, चचित) 1. गाली देना, पैरों के नीचे रौंदना, कुचलना, पद दलित करना धिक्कारना, निन्दा करना, बुराभला कहना, चर्चा ---प्रन्थि (पुं०)--पर्वन (नपुं०)टखना,-न्यासः पग, करना, विचार करना। कदम, -पः वृक्ष,-पतनम् (दूसरे के चरणों में)गिरना, | | चर्चनम् [चर्च + ल्युट] 1. अध्ययन, आवृत्ति, बार२ पढ़ना साष्टांग प्रणाम करना-अमरु १७, पतित (वि.) | 2. शरीर में उबटन लगाना। चरणों में दण्डवत प्रणाम करना-मेघ० १०५, चर्चरिका, चर्चरी [चर्चरी+कन्-+-टाप, ह्रस्वः, चर्च -शुश्रूषा, सेवा 1. दण्ड प्रणाम 2. सेवा, भक्ति। । +अरन्-+ोष्] 1. एक प्रकार का गान 2. (संगी० चरम (वि.) [चर+अमच ] 1. अन्तिम, अन्त्य, आखरी में) तालियां बजाना 3. विद्वानों का सस्वर पाठ -चरमा क्रिया 'अन्त्येष्टिक्रिया या अन्त्येष्टि संस्कार'। 4. आमोद प्रमोद, हर्षध्वनि 5. उत्सव 6. खुशामद 2. पश्चवर्ती, बाद का-पृष्ठं तु चरम तनो:-अमर० 7. धुंघराले बाल। 3. (आय की दृष्टि से) बढ़ा 4. बिल्कुल बाहर का चर्चा, चचिका [चर्च् +-अङ+टाप, चर्चा+क+टाप, 5. पश्चिमी, पच्छमी 6. सबसे नीच, सबसे कम,-मम् इत्वम्] 1. आवृत्ति, स्वर पाठ, अध्ययन, बार२ पढ़ना (अव्य०) आखिरकार, अन्त में। सम०-अचलः। 2. बहस, पूछ-ताछ, अनुसंधान 3. विचार विमर्श For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4. शरीर में उबटन का लेप करना-अङ्गचर्चामरचयम् । विधि 4. अभ्यास, अनुष्ठान, पालन-मनु० १११११, ...का१५७, श्रीखण्डचर्चाविषम् --गीत०९। व्रतचर्या, तपश्चर्या 5. सब प्रकार के रीति-रिवाज व चचिक्यम् [चर्चिका+यत्] 1. शरीर में लेप (मालिश) संस्कारों का नियमित अनुष्ठान 6. खाना 7. प्रथा, ____ करना 2. उबटन । रिवाज--मनु०६।३२।। चचित (भ० क. कृ.) चर्च+क्त] 1. मालिश किया चर्व (भ्वा० पर--चुरा० उभ०---चर्वति, चर्वयति-ते, हुआ, लेप किया हुआ, सुगंधित, सुवासित आदि चवित) 1. चबाना, कुतरना, खाना, कोपल चरना, --- चन्दनचचितनीलकलेवरपीतवसनवनमाली ---गीत. काटना-लागलं गाढतरं चवितुमारब्धवान्- पंच ४, १, ऋतु० १२१ 2. चर्चा किया गया, विचार किया यस्यैतच्च न कुक्कुरैरहरहर्जङघान्तरं चय॑ते-मच्छ. गया, खोज किया गया । २।११ 2. चूस लेना 3. स्वाद लेना, चखना। चर्पटः [चूप-+-अटन् चपेड़, थप्पड़ तु० 'चपेट' । चर्वणम,–णा [चर्व + ल्युट, स्त्रियां टाप्] 1. चबाना, चर्पटी [चर्पट+डोष्] चपाती, बिस्कुट । खाना 2. आचमन करना 3. (आलं.) चखना, स्वाद चर्भटः [चर्+क्विप्, भट्+अच्, ततः कर्म० स०] एक लेना, आनन्द लेना--प्रमाणं चर्वणवात्र स्वाभिने प्रकार की ककड़ी। विदुषां मतम्--सा० द० ५७, (टी० चर्वणा आस्वादनं चर्भटी [चर्भट--डोष] 1. हर्ष का कोलाहल 2. ककड़ी। तच्च स्वादः काव्यार्थसंभेदादात्मानन्दसमुद्भव इत्युक्तचर्मम् [चर्मन् +अच्, टिलोपः] ढाल । प्रकारम् ), इसी प्रकार 'निष्पत्त्या चर्वणस्यास्य चर्मण्वती [चर्मन+मतुप+ङीष, मस्य वः] गंगा में जाकर निष्पत्तिरुपचारतः' ५८ । मिलने वाली एक नदो, वर्तमान चम्बल नदी। चर्वा [चर्व + अङ] तमाचा, थप्पड़ का प्रहार (चर्वन् (पुं०) चर्मन् (नपुं०) चर्+मनिन्] 1. (शरीर की) त्वचा भी)। 2. चमड़ा, खाल-मनु० २।४१, १७४ 3. त्वगिन्द्रिय | चवित (भ० क० कृ०) चिर्व+क्त] 1. चबाया गया, 4. हाल-शि० १८।२१। सम-अम्भस् (नपुं०) काटा हुआ, खाया हुआ 2. चखा गया। सम० लसीका, अवकर्तनम् चमड़े का काम करना, ---चर्वणम् (शा०) चबाये हुए को चबाना, (आलं.) .... अवतिन,-अयकर्त (पुं) मोची,---कारः, -... कारिन पुनरुक्ति, निरर्थक आवृति, --पात्रम् पीकदान ।। (पं०) मोची, चमड़ा कमाने या रंगने वाला,-कीलः, चल (भ्वा० पर०-चलति, (विरल प्रयोग-चलते) —कीलम् मस्सा, अधिमांस,—चित्रकम् सफ़ेद कोढ़, चलित) 1. हिलाना, कांपना, धड़कना, थरथराना, .-जम् 1. बाल 2. रुधिर, तरङ्गः झुर्रा, दण्डः, स्पंदित होना,-छिन्नाश्चेलुः क्षणं भुजा:-भट्टि -नालिका हण्टर,-मः,-वृक्षः भूर्ज नाम का पेड़, १४।४०, सपक्षोतिरिवाचालीत्-१५।२४, ६१८४ -पट्टिका चमड़े का चौरस टुकड़ा जिस पर पासे डाल 2. (क) जाना, चलते रहना, सैर करना, स्पंदित होना, कर खेला जाय, -पत्रा चमगादड़, छोटा घरों में पाया हिलना-जुलना (एक स्थान से) ---पदात्पदमपि चलितुं जाने वाला चमगादड़,-पादुका चमड़े का जूता,--प्रभे न शक्नोति ---पंच० ४, चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्येकेन दिका मोची की रांपी,--प्रसेवकः, -प्रसेविका धौंकनी, बुद्धिमान् .. चाण० ३२, चचाल बाला स्तनभिन्नवल्कला -बन्धः चमड़े का फ़ोता,---मुण्डा दुर्गा का विशेषण, -कु० ५।८४, मृच्छ० ११५६ । (ख) (अपने मार्ग -यष्टिः (स्त्री०) हंटर, --वसनः 'चर्मावृत्त' शिव, पर) आगे बढ़ना, बिदा होना, कूच करना, चल देना वाद्यम् ढोल, तबला,--संभवा बड़ी इलायची,-सारः -चेलश्चीरपरिग्रहा:-कु०६९३ 3. ग्रस्त होना, सबाघ लसिका, रक्तोदक। होना, घबड़ाया हुआ या अव्यवस्थितचित्त होना, क्षुब्ध चर्ममय (वि.) [चर्मन+मयट] चमड़े का, चमड़े का बना होना, व्याकुल होना -- मुनेरपि यतस्तस्य दर्शनाच्चलते हआ। मन:-पंच० ११४०, लोभेन बुद्धिश्चलति-हि० १११४० चर्मरू,-चारः [चर्मन्-- राकु, चर्मन+ +-अण्] 4. विचलित होना या भटकना (अपा० के साथ) मोची, चमार, चमड़ा रंगने वाला। -चलति नयान्न जिगीषतां हि चेत:-कि०१०।२९,अलग चर्मिक (वि०) [चर्मन् +ठन ढाल से सुसज्जित । होना, छोड़ देना-मनु० ७।१५, याज्ञ० ११३६०, चमिन् (वि०) (स्त्री . ---णी) [चर्मन् + इनि, टिलोपः] (प्रेर०)- च (चा) लयति, च (चा) लित 1. ढाल से सुसज्जित 2. चमड़े का, (पुं०) 1. ढाल- 1. हिलाना-जुलाना डुलाना, हरकत देना 2. दूर करना धारी सैनिक 2. केला 3. भूर्ज वृक्ष। हटाना, निकाल देना 3. दूर ले जाना 4. आनन्द लेना चर्या चर्यत्+टाप् 1. इधर-उधर जाना, हिलना- पालना-पोसना (केवल....चालयति), उद्-~1. चल जुलना, इधर-उधर सैर करना 2. मार्ग, जाल (जैसा देना, प्रस्थान करना,--स्थितः स्थितामुच्चलितः कि 'राहुचर्या' में) 3. व्यवहार, चालचलन, आचरण- प्रयाताम्- रघु० २६, उच्चचाल बलभित्सखो वशी For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३७६ ) - ११ ५१, नगरायोदचलम् - दश० 2. चले जाना, चल देना, (किसी के स्थान को) छोड़ चलना -स्थानादनुच्च लग्नपि श० १।२९, पुष्पोच्चलितषट्पदम् - रघु० १२ २७, प्र- 1. हिलाना, जाना, काँपना -भर्तृ० २१४ 2. जाना, सैर करना, चलते जाना, प्रस्थान करना, कूच करना 3. ग्रस्त होना, बाधायुक्त या क्षुब्ध होना 4. भटकना, बिचलित होना, वि, 1. हिलना-जुलना, चलना पतति पत्रे विचलति पत्रे शङ्कितभवदुपयानम् — गीत०५ 2. जाना, आगे बढ़ना, चल देना 3. क्षुब्ध होना, बाधायुक्त होना, (समुद्र की भाँति ) रूखा होना- व्यचालीदम्भसां पतिः -- भट्टि० १५।७० 4. विचलित होना, भटकना -- याज्ञ० १।३५८, ii (तुदा० पर० - चलति चलित ) खेलना, क्रीडा करना, केलि करना । चल (वि० ) [ चल् + अच् ] 1. (क) हिलने-जुलने वाला काँपने वाला, डोलने वाला, थरथराने वाला, (आँख आदि को ) घुमाने वाला - चलापाङ्गा दृष्टि स्पृशसि —० ११२४, चलकाकपक्ष कैरमात्यपुत्रः रघु० ३। २८, लहराने वाले - भर्तृ० १६, (ख) जंगम ( विप० स्थिर) · - चञ्चलचले लक्ष्ये - श० २।५ 2. अस्थिर, चंचल, परिवर्तनशील, शिथिल, डाँवाडोल - दयितास्वन वस्थितं नृणां न खलु प्रेम चलं सुहृज्जने - कु० ४।२८, प्रायश्चलं गौरवमाश्रितेषु - ३।१ 3. अस्थायी, अनित्य, नश्वर-- चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चलं जीवितयौवनं 4. अव्यवस्थित, - ल: 1. कंपकंपी, वेपथु, क्षोभ 2. वायु 3. पाराला 1. धन की देवी लक्ष्मी 2. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य । सम० अति चलायमान ( = अतिचल ) ; - चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चल: - ० ३।१२८, लक्ष्मीमिव चलाचलाम् कि० ११।३० ( चलाचला-- चंचला - मल्लि०) नं० १ ६०, (ल) कौवा, आतङ्कः गठिया बाय, वात रोग, - आत्मन् (वि०) चलचित्त, चंचलमना, इन्द्रिय ( वि० ) 1. भावुक 2. विषयी, इषुः वह धनुर्धर जिसका तीर लक्ष्यच्युत हो इधर उधर गिर जाता है, अयोग्य धनुर्धर, कर्णः पृथ्वी से ग्रह तक की वास्त far दूरी - चचुः चकोर पक्षी, -- वलः, अश्वत्थ वृक्ष । - पत्रः चलन ( वि० ) [ चल् + ल्युट् ] गतिशील, थरथराने वाला, कंपमान, डाँवाडोल, नः 1. पैर 2. हरिण, नम् 1. काँपना हिलना, डाँवाडोल होना - चलनात्मकं कर्म - तर्क सं०, हस्त, जानु आदि तरल दृगञ्चलचलन मनोहर वदन जनित रतिरागम् -- गीत० 2. घूमना, भरमना, नी 1. सामान्य स्त्रियों के पहनने के लिए लहँगा, पेटीकोट 2. हाथी को बाँधने की रस्सी । ११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चलनकम् [ चलन + कन् ] एक छोटा लहँगा या पेट्टीकोट जिसे नीच जाति की स्त्रियों पहनती हैं । चलिः [ चल् +इन् ] आवरण, चादर | चलित (भु० क० कृ० ) [ चल् + क्त ] 1. हिला हुआ, चला हुआ, आन्दोलित, क्षुब्ध 2. गया हुआ, विसर्जित - एवमुक्त्वा स चलितः 3. अवाप्त 4. ज्ञात, अधिगत (दे० चल् ), तम् 1. हिलाना, स्पंदित करना 2. जाना, चलना 3. एक प्रकार का नृत्य - चलितं नाम नाट्यमन्तरेण - मालवि० १ । चलु: [ चल् + उन्] ( पानी का ) एक घूंट, चुल्लूभर चलुकः [ चलु + कन् ] 1. चुल्लूभर (पानी) 2. अंजलिभर या एक घूँट (पानी) तु० 'चुलुक' । च i ( म्वा० उभ० चषति - ते ) खाना ; ii ( वा० पर० चषति) मार डालना, क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना | चषकः, कम् [ चष् + क्वुन् ] सुरापात्र प्याला, मदिरा पीने का गिलास च्युतेः शिरस्त्रंश्चषकोत्तरेव - रघु० ७|४९, मुखं लालाक्लिन्नं पिबति चषकं सासवमिवशा० ११२९, कि० ९५६, ५७, कम् 1. एक प्रकार की मदिरा 2. मधु, शहद | चर्षातिः । चष् + अति ] 1. खाना 2. मार डालना 3. ह्रास, निर्बलता, क्षय । चवालः [ चष् + आलच् ] 1. यज्ञ के खंभे में लगी लकड़ी की फिरकी 2. छत्ता । चह (स्वा० पर०, चुरा० उभ० चति, चहयति - ते ) 1. दुष्ट होना 2. ठगना, धोखा देना 3. अहंकार करना, घमंडी बनाना । चाकचक्यम् [ चक् +अच्, द्वित्वम्, चकचकः तस्य भावः - प्यञ ] जगमगाना, प्रभा, चमक-दमक | चात्र ( fro ) ( स्त्री० - क्री ) [ चक्र + अण् ] 1. चक्र से किया जाने वाला (युद्ध) 2. मंडलाकार 3. चक्र या पहिए से संबंध रखने वाला । चाक्रिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ चक्र + ठक् ] दे० ऊ० चाक्र, कः 1. कुम्हार 2. तेली - याज्ञ० १।१६५, ( तैलिक - मिता०, दूसरों के मत में शाकटिक गाड़ीवान) 3. कोचवान, चालक | चाक्रिण: [ चक्रिन् +अण्] कुम्हार या तेली का पुत्र । चाक्षुष (वि० [स्त्री० - षी) [चक्षुस् + अण् ] 1. दृष्टि पर निर्भर, दृष्टि से उत्पन्न, 2. आँख से संबंध रखने वाला, आँख का विषय, दाष्टिक 3. दृश्य, जो दिखाई दे, -- षम् दृष्टि पर निर्भर ज्ञान । सम० ज्ञानम् आँखों देखी गवाही, या प्रमाण । चाङ्गः [चिचम् अङ्गम् यस्य ब० स०] 1. अम्ललोणिका शक 2. दातों की सफ़ेदी या सौंदर्य । चाञ्चल्यम् [ चंञ्चल + ष्यञ ] 1. अस्थिरता, द्रुतगति, For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७७ ) विलोलता, (आंख आदि का) कम्पन, फरकना-भामि० पहियों की गाड़ी,-री कुशलता, दक्षता, योग्यता २०६० 2. चंचलता 3. नश्वरता। तद्भटचातुरीतुरी-नै० १।१२। चाट: [चट-अच्] बदमाश, ठग (जो पहले उसमें । रा| चातुरक्षम् [चतुरक्ष+अण] चौपड़ या चार पासों के खेल विश्वास जमा लेता है जिसे वह ठगना चाहता है) में चार का दाँव, क्षः छोटा गोल तकिया। -~याज्ञ० ११३३६ -(चाटा: = प्रतारका विश्वास्य ये चातुरथिकः [चतुर्ष अर्थेषु विहित:-ठक] (व्या० में) एक परवनमपहरन्ति-यित०) । ऐसा प्रत्यय जो चार भिन्न-भिन्न अर्थों को प्रकट करने चाटुः-टु (नपुं०) [चट्+उण्] 1. मधुर तथा प्रिय वचन, के लिए शब्द में जोड़ा जाता है। मीठी बात, चापलूसो, ठकुरसुहाती (विशेषकर किसी चातुराश्रमिक (वि.) (स्त्री०-की), चातुराश्रमिन् प्रेमी के द्वारा अपनो प्रेमिका के प्रति)-प्रियः प्रियायाः (वि०) (स्त्री०–णी) ब्राह्मण की धार्मिक-जीवनचर्या प्रकरोति चाटुम्-ऋतु० ६।१४, विरचितचाटुवचनरचनं के चार कालों में से किसी एक में रहने वाला। चरगरचितप्रणिपातम्--गीत०११, अमरु ८३, पंच० दे० 'आश्रम' । १, शा० ८।१४, चौर० २० (गीतगोविंद के दसवें चातुराधम्यम् [चतुराश्रम+ष्य ] ब्राह्मण की धार्मिकसर्ग का अधिकांश भाग इसी प्रकार की चाटुकारिता जीवनचर्या के चार काल। दे० 'आश्रम'। से भरा हुआ है) 2. स्पष्ट भाषण । सम०----उक्तिः | चातुरिक, चातुर्थक, चातुर्थिक (वि०) (स्त्री०-की) (स्त्री०) खुशामद और झूठी प्रशंसा के वचन, [चातुर+ठक, चतुर्थ+अण, ठक वा] 1. चौथे या, -उल्लोल,--कार (वि.) प्रिय तथा मधुर बोलने हर चौथे दिन होने वाला,-क: चौथैया बुखार, बाला, चापलूस-शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटु- जुड़ीताप। कारः-मेघ० ३१,-पटु (वि०) झूठी प्रशंसा करने | चातुराह्निक (वि.) (स्त्री०-की) [चतुर्थाह्न+ठक्] में कुशल, पूरा चापलूस, -वटुः मसखरा, भांड,-लोल चौथे दिन होने वाला। (वि.) सुंदरतापूर्वक हिलने वाला,-शतम् सैकड़ों चातुर्दशम् [चतुर्दश्यां दृश्यते इति] राक्षस-सिद्धा० । अनुरोध, बार-बार की जाने वाली खुशामद-पटु- चातुर्दशिकः [चतुर्दशी---ठक् जो चांद्रपक्ष की चतुर्दशी के चाटुशतैरनुकूलम्-गीत० २, गजपुङ्गवस्तु धीर विलोक- दिन भी पढ़ता है (यह 'अनध्याय' का दिन है)। यति चाटुशतश्च भुक्ते--भर्तृ० १३१ । चातुर्मासक (वि.) (स्त्री० -सिका) चतुर्षु मासेषु भवः चाणक्यः [चणक-या] नागर राजनीति के प्रख्यात प्रणेता ---अण् + कन्, चतुर्मास+-ठक् +टाप्, ह्रस्वश्च जो विष्णुगुप्त, 'कौटिल्य' भी इन्हीं का नाम है - दे० । चातुर्मास्य यज्ञ का अनुष्ठान करता है। चातुर्मास्यम् चतुर्मास्+ण्य हर चार महीने के पश्चात् चाणरः (पुं०) कंस का सेवक जो प्रसिद्ध मल्लयोद्धा था, | अनुष्ठेय यज्ञ अर्थात् कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के जिस समय अकर कृष्ण को मयुरा ले गया तो इस आरंभ में । दुर्दात योद्धा को कृष्ण से लड़ने के लिए भेजा गया। चातुर्यम् [चतुर+ष्य] 1. कुशलता, होशियारी, दक्षता, मल्लयुद्ध में कृष्ण ने इसे पछाड़ दिया और पृथ्वी पर बुद्धिमता 2. लावण्य, रमणीयता, सौन्दर्य--भ्रूचातुरौंद डाला तथा इसके सिर को चूर्ण कर दिया। र्यम्-भर्तृ० ११३। । चपण्डालः (स्त्री०-ली) [चण्डाल+अण] पतित, अधम तुर्वर्ण्यम् चितुर्वर्ण---ष्य] 1. हिन्दुजाति के मूल चार ----दे० चंडाल,-चाण्डाल: किमयं द्विजातिरथवा-भर्तृ० वर्गों की समष्टि-एवं सामासिक धर्म चातुर्वर्ण्यऽब्रवी३१५६ मनु० ३।२३९, ४।२९, याज्ञ. १९३। न्मनु:-मनु० १०।६३, ऋक् ६।१३ 2. इन चार चााडालिका-चंडालिका।। वर्गों का धर्म या कर्तव्य । चातकः (स्त्री०-को) [चच्+ण्वुल] चातक, पपीहा, चातुविध्यम चतुर्विध+व्यञ] चार प्रकार (कवि सयय के अनुसार यह केवल वर्षाऋतु में ही रूप से), चार प्रकार का प्रभाग । रहता है)-सूक्ष्मा एव पतन्ति चातकमुखे द्वित्राः पयो- चात्वालः [चत् + वालच=चत्वाल+अण्] 1. भूमि में विन्दवः-भर्तृ० २।१२१, दे० २०५१ और रघु० ___खोद कर बनाया हुआ हवनकुण्ड 2. कुशा, दर्भ । ५।१७। सम...-आनन्दन: 1. वर्षाऋतु 2. बादल। चान्दनिक (वि.) (स्त्री०—की) [चन्दन+ठक] चातनम् [चत् +-णिच् + ल्युट्] 1. हटाना 2. क्षति 1. चन्दन से बनाया हुआ, या उत्पन्न 2. चन्दनरस से पहुँचाना। सुगन्धित । चातुर (वि.) (स्त्री०-री) 1. चार की संख्या से संबद्ध | चन्द्र (वि.) (स्त्री०-द्री) [चन्द्र+अण] चन्द्रमा से 2. होशियार, योग्य, बुद्धिमान 3. मधुरभाषी, चाप- | ___ संबंध रखने वाला, चन्द्रसंबंधी ---गुरुकाव्यानुगां विभ्रलूस 4. दृष्टिविषयक, प्रत्यक्षज्ञानात्मक--रम् चार | चान्द्रीमभिनभः श्रियम्-शि० २।२,--द्र: 1. चांद्रमास कौटिल्य । ४८ For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७८ ) 2. शुक्लपक्ष 3. चन्द्रकांतमणि,----द्रम् 1. चांद्रायण । ७।४२, हि० २।२९, मेव० ३५, चित्रन्यस्तमिवाचलं नामक व्रत 2. ताजा अदरक 3. मगशीर्ष नक्षत्र,द्री हयशिरस्यायामवच्चामरम-विक्रम० ११४, २०१८ । चांदनी। सम०-भागा चन्द्रभागा नाम नदी,-मासः सम - ग्राहः,-ग्राहिन पुं०) चंवर डुलाने वाला, चंबर चन्द्रमा की तिथियों के अनुसार गिना जाने वाला वरदार,---ग्राहिणी चंवर डलाने वाली राजा की महीना,---तिक: चांद्रायण व्रत रखने वाला। सेविका-पठे लोलाबलयरणितं चामरग्राहिणीनां चन्द्रकम् [चान्द्र+के+क] सूखा अदरक, सोंठ ।। ....... भर्तृ० ३६१,-पुष्पः,--पुष्पक: 1. सुपारी का पेड़ चान्द्रमस (वि०) (स्त्री-सी) चन्द्रमस+अण] चन्द्रमा 2. केतकी का पौधा 3. आम का वृक्ष । से संबंध रखने वाला, चाँद-संबंधी-लब्धोदया चन्द्रमसीव चामरिन (पुं०) चिमर + इनि] धोड़ा। लेखा-क० ११२५, चन्द्रं गता पद्मगुणान्न भुंक्ते पद्मा- चामीकरम् चमीकर+अण्] 1. सोना-तप्तचामीकराङ्गदः श्रिता चन्द्रमसीमभिख्याम्-११४३, रघु० २।३९, भग० -विक्रम० १२१४, रघु० ७।५, शि० ४।२४, कु० ८।२५,-सम् मृगशिरा नक्षत्रपुंज। ७२४ 2. धतूरे का पौधा। सम०-प्रख्य (वि०) चण्द्रमसायनः,-निः [चन्द्रमसोऽपत्यम् - फिन] बुधग्रह । सोने की तरह का। चान्द्रायणम् [चन्द्रस्यायनमिवायनमत्र, पूर्वपदात् संज्ञायां | चामुण्डा [चम्+ला-+क, पृषो० साधुः दुर्गा का रौद्ररूप णत्वं, संज्ञायां दीर्घः, स्वार्थे अण् वा-तारा०] एक -मा०५।२५ । धार्मिक व्रत या प्रायश्चित्तात्मक तपश्चर्या जो चन्द्रमा चाम्पिला [चम्प+अङ+टाप् =चम्पा+अण् + इलच् | की वृद्धि व क्षय से विनियमित है। इस व्रत में दैनिक । चंपा नाम की नदी (संभवतः वर्तमान 'चंबल' नदी)। आहार (जो १५ ग्रास या कौर का होता है) पूर्णिमा चाम्पेयः [चम्पा+ढक] 1. चम्पक वृक्ष 2. नागकेसर का पेड़, से प्रतिदिन एकर ग्रास घटता रहता है यहाँ तक कि -यम् 1. तन्तु, विशेषकर कमल फल का 2. सोना अमावस्या के दिन नितांत निराहार व्रत रक्खा जाता 3. धतूरे का पौधा (अंतिम दो अर्थों में पुं० भी)। है, उसके पश्चात् फिर शुक्लपक्ष में एक कौर से स चाय (भ्वा० उभ० चायति ---ते) 1. निरीक्षण करना, आरंभ करके पूर्णिमा तक बढ़ाकर फिर १५ ग्रास तक ___अच्छा बुरा पहचानना, देख लेना-शि० १२५१ लाया जाता है) तु० याज्ञ० ३।३२४, मनु०११।२१७ 2. पूजा करना । चान्द्रायणिक (वि०) (स्त्री०-को) [चान्द्रायण-+8]| चारः चिर-घन] 1. जाना, घमना, चाल, भ्रमण चान्द्रायण व्रत का पालन करने वाला। —-मण्डलचारशीघ्रः--विक्रम० ५।२, क्रीडाशैले यदि च चापम् (चप-अण्) 1. धनुष,-ताते चापद्वितीये वहति विचरेत् पादचारेण गौरी--मेघ०६०, पैदल चलना रणधुरां को भयस्यावकाशः--वेणी० ३१५, इसी प्रकार 2. गति, मार्ग, प्रगति --मंगलचार, शनिचार आदि 'चापपाणिः' 2. हाथ में धनुष लिये हुए 3. इन्द्र धनुष 3. भेदिया, चर, गुप्तचर, दूत-मनु० ७।१८४, 4. (ज्यामिति) वृत्त की तोरणाकार रेखा 5. धनुः ९१२६१, दे० चारचक्षुस नी० 4. अनुष्ठान करना, राशि। अभ्यास करना 5. बंदी 6. बंधन, बेड़ी,-रम कृत्रिम चापलम्,- ल्यम् [चपल+अण, ष्यन वा] 1. द्रुतगति, विष । सम-अन्तरितः भेदिया,- ईक्षणः-चक्षुस् (पु) स्फति 2. चंचलता, अस्थिरता, संक्रमणशीलता-कि० 'गुप्तचरों को आँख के स्थान में प्रयुक्त करने वाला २।४१ 3. विचारशन्य या आवेशपूर्ण आचरण, राजा (या राजनीतिज्ञ) जो गुप्तचर या भेदिया उतावलापन, उद्दण्ड कृत्य ---धिक चापलम्-उत्तर ४, रखता है और उन्हीं के माध्यम से देखता है, चारतद्गुणैः कर्णमागत्य चापलाय प्रचोदितः, रघु० १।९, चक्षर्महीपति:--- मनु०९।२५६, तु० कामन्दकः गावः स्वचित्तवत्तिरिव चापलेभ्यो निवारणीया---का० १०१ पश्यन्ति गन्धेन, वेदैः पश्यन्ति च द्विजाः, चारः पश्यन्ति 4. (घोड़े आदि का) अड़ियलपन-पुनः पुनः सूतनिपिद्ध- राजानः चक्षुामितरे जनाः। रामा० भी-यस्मात्पचापलम् --- रघु० ३।४२। श्यन्ति दूरस्थाः सर्वानर्थान्नराधिपाः, चारेण तस्मादुच्यन्ते चामरः,-रम् [चमर्याः विकारः तत्यूच्छनिमितत्वात राजानरचारचक्षुषः। चणः, --चञ्च (वि०) ललित चमरी+अण] (कभो२.-रा,--री) चौरी, चंवर या चाल वाला, सजीला । ... पयः चौराहा,---भट: वीर चमरी की पूंछ, (यह मोरछल या पंखे की भांति योद्वा, वायुः ग्रीष्मकालीन मदु मन्द पवन, बसन्त प्रयुक्त की जाती है, और एक राजकीय चिह्न समझा वायु। जाता है कभी-कभी यह केतपट की भांति घोड़े के चारकः चिर+णिच+ण्वल | 1. भेदिया 2. ग्वाला 3. नेता सिर पर फहराया जाता है)-व्याधूयन्ते निचुलतरुभिः । चालक 4. साथी 5. अश्वारोही, सवार 6. कारागार मञ्जरीचामराणि--विक्रम०४।४, अदेयमासीत् अयमेव ---निगडितचरणा चारके निरोद्धव्या... दश०१२। भूपते: शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे-रघु० ३।१६, कु० । चारणः [चर-+णिच् + ल्यट] 1. भ्रमणशील, तीर्थयात्री For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. घूमने-फिरने वाला नट या गवैया, नर्तक, भाँड, । कुतर्को दार्शनिक जो बहस्पति का शिष्य बताया जाता भाट-मन० १२११४ 3. स्वर्गीय गवैया, गंधर्व-श० है और जिसने भौतिकवाद एवं नास्तिकता के स्थल २।१४ 4. वेद या अन्य धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करने रूप का प्रवर्तन किया (चार्वाकमत के सिद्धांतों के वाला 5. भेदिया। साराश के लिए दे० सर्व०१) 2. महाभारत में वर्णित चारिका [ चर्+णिच् +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] सेविका, | एक राक्षस जो दुर्योधन का मित्र और पांडवों का शत्र दासी। था [ जब युधिष्ठिर अपनी विजयपताका के साथ चारितार्थ्यम् [ चरितार्थ--ष्यञ ] उद्देश्यसिद्धि, सफलता। हस्तिनापुर में प्रविष्ट हुआ तो उस राक्षस ने एक चारित्रम्, त्र्यम् [ चरित्र+अण्, ष्या वा] 1. शील, ब्राह्मण रूप धारण कर लिया तथा उसने युधिष्ठिर, व्यवहार, काम करने को रीति 2. नेकनामी, सच्च एवं एकत्रित ब्राह्मणों को बुरा-भला कहा। परन्तु शीघ्र रित्रता, ख्याति, सचाई, ईमानदारी, अच्छा चालचलन ही उसका पता लग गया, और क्रोध में भर कर असली -अनृतं नाभिधास्यामि चरित्रभ्रंशकारणम्-मृच्छ० ब्राह्मणों ने उसका वहीं काम तमाम कर दिया। उस ३१२५, २६, चारित्र्यविहीन-आढ्योऽपि च दुर्गतो भवति राक्षस ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर भी युधिष्ठिर --.-११४३ 3. सतीत्व, (स्त्रियों का) सदाचरण 4. स्व. को यह कहकर ठगने का प्रयत्न किया था कि भीम भाव, तबीयत 5. विशिष्ट आचार या अभ्यास 6. कुल को तो दुर्योधन ने मार डाला-दे. वेणी०६] । क्रमागत आचार । सम०--कवच (वि०) सतीत्व रूपी | चार्वी [चारु-+ङीप् 1. सुन्दर स्त्री 2. चांदनी 3. बद्धि, कवच में सुरक्षित । प्रज्ञा 4. प्रभा, कान्ति, दीप्ति 5. कुबेर की पत्नी। चारु (वि०) (स्त्री० रु,-वी) [चरति चित्ते--चर+उण चालः [चल+ण] 1. घर का छप्पर या छत, 2. नीलकंठ 1. रुचिकर, सत्कृत, प्रिय, प्रतिष्ठित, अभीष्ट (संप्र० पक्षी 3. हिलना-डुलना, चलना-फिरना 4. जंगम होना। या अधि० के साथ)-वरुणाय या वरुणे चारु: 2. सुखद, ! चालकः [चल वुल] दुर्दान्त हाथी। रमणीय, सुन्दर, कान्त, मनोहर---प्रिये चारुशीले मञ्च चालनम् [चल+णिच् + ल्युट् ] 1. चलाना-फिराना, मयि मानमनिदानम् --गीत० १०, सर्व प्रिये चारुतरं हिलाना डुलाना, (पूंछ की भांति) हिलाना 2. छनवाना, वसन्ते--ऋतु०६।२, चकासतं चारुचमूरुचर्मणा-शि० छानना, छलनी,---नी छलनी, झरना। १२८, ४।४९, ----रु: बृहस्पति का विशेषण,-रु (नपं०) चाषः, -सः [चष्+णिच्+अच्, पृषो० सत्वम् ] नीलकंठ केसर, जाफरान । सम...अङ्गी सुन्दर अंगों वाली | जाफरान | HRA...अहो सटर अंगों वाली पक्षी--मा० ६।५ याज्ञ० १।१७५।। स्त्री०-घोण (वि०) सुन्दर नाक वाला पुरुष,-दर्शन | चि (स्वा० उभ०-चिनोति, चिनुते, चित; प्रेर०-चाय(वि.) प्रियदर्शन, लावण्यमय, --धारा शची, इन्द्राणी, यति, चापयति; चययति, चपयति भी, सन्नन्त-चिचीइन्द्र की पत्नी,--नेत्र,-- लोचन (वि.) सुन्दर आँखों षति, चिकीषति) 1. चुनना, बीनना, इकट्ठा करना वाला, (त्रः, नः) हरिण,-फला, अंगूरों को बेल, अंगूर, (द्विकर्मक धातु होने के कारण दो कर्मों के साथ ...लोचना सुन्दर आँखों वाली,--वक्ता (वि०) सुन्दर अन्वय परन्तु लौकिकसाहित्य में इसका प्रयोग विरल) मुख वाला,-वर्धना स्त्री,-व्रता एक मास तक उपवास -वक्ष पुष्पाणि चिन्वती 2. ढेर लगाना, टाल लगा देना, करने वालो स्त्रो,-शिला 1. जवाहर, रत्न 2. पत्थर अंबार लगा देना-पर्वतानिव ते भूमावचैषुर्वानरोत्तकी सुन्दर शिला,-शील (वि०) कान्त-स्वभाव या मान्-भट्टि० १५।७६ 3. जड़ना, खचित करना, चरित्र, हासिन् (दि०) मधुर मुस्कान वाला। मढ़ना, भरना-दे० चित -- कर्म वा०, फल उत्पन्न चाचिक्यम् | चिका--प्यञ ] 1. गरीर को सुगंधित होना, उगना, बढ़ना, फलना-फूलना, समृद्ध होना करना, चन्दन आदि लगाना 2. उबटन । -सिच्यते चीयते चव लता पूष्पफलप्रदा-पंच० १२२, चार्म (वि.) (स्त्री० ..र्मी) [चर्मन - अग, टिलोपः] | फल लगता है;--चीयते वालिशस्यापि सत्क्षेत्रपतिता 1. चमड़े का बना हुआ 2. (गाड़ो आदि) चमड़े से कृषिः- मुद्रा० ११३, राजहंस तव सैव शुभ्रता चीयते ढका हुआ 3. ढाल धारी, ढाल से युक्त ।। न च न चापचीयते-काव्य०१०, अप- कम होना, चार्मण (वि.) (स्त्री० - णी) [चर्मन+अण, स्त्रियां विहीन होना, वञ्चित होना, (मुख्यतः कर्मवा० में ङीष् च ] चमड़े या साल से ढका हुआ,--णम् खालों 1. घटना, क्षीण होना, कम होना-राजहंस तव सैव या ढालों का ढेर । शुभ्रता चोयते न च न चापचीयते-काव्य० १० 2. शरीर चार्मिक (वि०) (स्त्री... -की) [ चर्मन् + ठक् ] चमड़े का में घटना, क्षीण होना, आ-, 1. एकत्र करना, ढेर बना हुआ---मनु० ८।२८९ । लगाना 2. भरना, ढकना, मढ़ना-भट्टि. १७१६९, चामिणम् | चमिन् । अण ] ढालधारी मनुष्यों का समूह ।। १४।४६, ४७, उद्-, एकत्र करना, बीनना-भट्रि० चार्वाकः [ चारुः लोकसंमतो वाको वाक्यं यस्य--ब० स०] | ३।३७, उप-, जोड़ना, बढ़ाना-उपचिन्वन्प्रभां तन्वीं For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८० ) रचनावादम् । | चिक्का-चिक्कणा इरच्, बा० ] चूहागडो लुक् च ] प्रत्याह परमेश्वर:-कू०६।२५ (कर्मवा०) उगना, चिक्कः (चिक् इति अव्यक्त शब्देन कायति शब्दायते-- चिक बढ़ना-अधोऽधः पश्यतः कस्य महिमा नोपचीयते +के+क] छबुंदर । -हि०२२ भट्रि०६।३३ शि०४।१०, नि-, ढकना चिक्कण (वि.) (स्त्री०-णा,-णी) [चिक्क, क्विप् भरना, फैलाना, बिखेरना (मुख्यतः क्तांत प्रयोग) चिक् तं कणति – कण शब्दे+अच् तारा० -निचितं खमुपेत्य नीरदै:-घट०१, शकुन्तनीडनिचितं 1. चिकना, चमकदार 2. फिसलनी 3. स्निग्ध 4. मसण, बिभ्रज्जटामण्डलम्-श०७।११, भट्टि०१०॥४२, निस् चर्बीला--लघु परित्रायतामेनां भवान् मा कस्यापि --, निर्धारण करना, संकल्प करना, निश्चय करना तपस्विन इंगुदीतैलचिक्कणशीर्षस्य हस्ते पतिष्यति परि-, 1. अभ्यास करना 2. प्राप्त करना, लेना --श० २,—णः सुपारी का पेड़,--णम् चिक्कणवृक्ष (कर्मवा०) बढ़ना--- रघु० ३।२४ प्र-, 1. इकट्ठा का फल, सुपारी। करना, चुनना 2. जोड़ना 3. बढ़ाना, विकसित करना | चिक्कणा,-णी 1. सुपारी का पेड़ 2. सुपारी। -प्राचीयमानावयवा रराज सा--रघु ० ३७, वि-, | चिक्कसः [ चिक्क् +असच जी का आटा। 1. एकत्र करना, चुनना 2. खोजना, ढूँढ़ना--विचित- | चिक्का-चिक्कणा।। इचैष समन्तात् श्मशानवाट:-मा० ५, विनिस्-, चिक्किरः [ चिक्क् + इरच, ब्रा०] चूहा, मूसा। निर्धारण करना, संकल्प करना, निश्चय करना-विनि- [ चिल्किदम् [क्लिद् + यङ्+अच, धातोद्वित्वं यडो लुक च] श्चेतुं शक्यो न सुखमिति वा दुःखमिति वा-उत्तर० | तरी, तरवट, ताजगी। ११३५, सम्-, 1. एकत्र करना, संग्रह करना, संचय | चिचिण्डः [?] एक प्रकार का कद् । करना-रक्षायोगादयमपि तपः प्रत्यहं संचिनोति ---श० चिच्छिलाः [पुं० ब०व० एक देश तथा उसके निवासी। २११४, रघु० १९।२, मनु० ६।१५ 2. क्रमबद्ध करना, चिचा [ चिम+चिन-ड-+टाप् ] 1. इमली का पेड़, या व्यवस्थित करना, ठीक से रखना--भट्टि० ३।३५, उसका फल 2. घुघची का पौधा। समुद्-, संग्रह करना, जोड़ना । | चिट् (भ्वा० पर०-चरा० उभ०-चेटति, चेटयति-ते) चिकित्सकः [कित्+सन्+ण्वुल ] वैद्य, हकीम, डाक्टर भेजना, बाहर भेजना (जैसे कि किसी सेवक को भेजा -उचितवेलातिक्रमे चिकित्सका दोषमुदाहरन्ति--माल जाता है)। वि० २, भर्तृ० ११८७, याज्ञ० १।१६२ । चित् (भ्वा० पर०, चुरा० आ०--चेतति, चेतयते, चेतित) चिकित्सा [कित्+सन्+अ-टाप्] औषध सेवन करना, 1. प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, देखना, नजर डालना, औषधोपचार, इलाज करना, स्वस्थ करना। दृष्टिगोचर करना-नेषूनचेतनस्यन्तम्-भट्टि० १७।१६, चिकिलः [ चि+इलच्, कुक्] कीचड़, महापंक, कर्दम, चिचेत रामस्तत्कृच्छम् ----१४१६२ १५।३८, २।२९ दलदल। 2. जानना, समझना, चौकस होना, सतर्क होना -परचिकीर्षा [कृ+सन्+अ+टाप, द्वित्वम् ] (कोई काम) रध्यारुह्यमाणमात्मानं न चेतयते-दश० १५४ चैतन्य करने की इच्छा, कामना, अभिलाषा, इच्छा। प्राप्त करना 4. प्रकट होना, चमकना । चिकोषित (वि०) [कृ+सन+क्त, द्वित्वम् ] अभिलषित, | | चित् (स्त्री०) [चित्+क्विप] 1. विचार, प्रत्यक्ष ज्ञान इच्छित, साभिप्राय,–तम् अभिकल्प, आशय, अभि 2. प्रज्ञा, बुद्धि, समझ-भर्तृ०२।१, ३।१ 3. हृदय, प्राय । मन 4. आत्मा, जीव, जीवन में सजीवता-सिद्धांत चिकीर्ष (वि०) [कृ+सन्+उ, धातोद्वित्वम्] कुछ करने 5. ब्रह्म। सम०---आत्मन् (पुं०) 1. चितनसिद्धांत की इच्छा वाला, इच्छुक,-भग०११२३, ३।२५ । या शक्ति 2. केवल प्रज्ञा, परमात्मा,-आत्मकम् चिकुर (वि.) [चि इत्यव्यक्त शब्दं करोति -चि+कुर चैतन्य,--आभासः जीव (जो सांसारिक वासनाओं में +क] 1. हिलने-जुलने वाला, कम्पमान, चंचल, लिप्त है),-उल्लासः जीवों के हृदय का हर्ष,- घनः अस्थिर 2. अविचार पूर्ण, आवेशयुक्त--रः 1. सिर के परमात्मा या ब्रह्म, - प्रवृत्तिः (स्त्री०) विचारविमर्श, बाल-मम रुचिरे चिकुरे कुरु मानदं....'कुसुमानि चितन,-शक्तिः (स्त्री०) मानसिक शक्ति, बौद्धिक - गीत० १२, इसी प्रकार--घनचररुचिरे रचयति धारिता,--स्वरूपम् परमात्मा, (अव्य०) 1. 'किम् चिकुरे तरलिततरुणानने-७ 2. पहाड़ 3. रेगने और 'किम्' से व्युत्पन्न अन्य शब्दों के साथ जुड़नेवाला वाला, साँप सम०-उच्चयः,--कलापः,---निकरः, अव्यय (जैसे कि-कद्, कथम्, क्व, कदा, कुत्र, कुतः -पक्षः, पाशुः,-भारः-हस्तः बालों का गुच्छा आदि) जिससे कि अर्थों में अनिश्चयात्मकता आती या ढेर-यस्यांश्चोरश्चिकुरनिकरः कर्णपूरो मयूरः है-यथा कुत्रचित-कहीं, केचित् = कोई 2. चित्' .-प्रस० ०२२। ध्वनि । चिकूरः [चिकुर नि० दीर्घः] बाल । चित (भू० क० कृ०) [चि+क्त] 1. संग्रह किया हुआ, For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८१ ) देर लगाया हुआ, अंबार लगाया हुआ, इकट्ठा किया में) मन की आन्तरिक क्रिया, मानसिक दृष्टि-योगहुआ 2. जमा किया हुआ, संचित 3. प्राप्त, गृहीत । श्चित्तवृत्तिनिरोधः---योग-वेदना कष्ट, चिन्ता 4. ढका हुआ-कृमिकुलचितम्-भर्तृ० २०११ 5. जमाया -~-वैकल्यम मन की व्यग्रता, परेशानी-हारिन् (वि०) हुआ, जड़ा हुआ,-तम् भवन । मनोहर, आकर्षक रुचिकर । चिता [चित+टाप मुर्दे को जलाने के लिए चुनकर रक्खी | चित्तवत (वि.)[ चित्त-मतप, मस्य वः] 1. तर्कसंगत, हुई लकड़ियों का ढेर, चितिका-कुरु संप्रति ताव तर्कयक्त 2. सकरुण, सदय । दोशु में प्रणिपाताञ्जलियाचितश्चिताम्-कु० ४।३५, चित्यम् [ चि+क्यप् ] शव-दाह करने का स्थान,-त्या चिताभस्मन्-कु० ५।६९। सम०–अग्निः शव 1. चिता 2. काष्ठचयन, (वेदी का) निर्माण । को जलाने वाली आग,—चूडकम् चिता । | चित्र (वि.) [ चित्र+अच, चि+ष्ट्रन वा ] 1. उज्ज्वल, चितिः (स्त्री०) [चि+क्तिन्] 1. संग्रह करना, इकट्ठा स्पष्ट 2. चितकबरा, धब्बेदार, शबलीकृत 3. दिलचस्प, ___करना 2. ढेर, समुच्चय, पुंज 3. अम्बार, टाल, चट्टा रुचिकर मा०-१।४ 4. विविध, विभिन्न प्रकार का, 4. चिता 5. चौकोर आयताकार स्थान 6. समझ।। भांति २ का-पंच० १११३६, मनु० ९।२४८, याज्ञ० चितिका [चिता+कन् ।-टाप, इत्वम्] 1. टाल, चट्टा ११२८८5. आश्चर्यजनक, अदभुत, अजीब,-त्र: 1. रंग2. चिता 3. करधनी। विरंगा वर्ण रंग 2. अशोक वृक्ष,-त्रम 1. तसवीर, चित्त (वि.) [चित्+क्त] 1. देखा हुआ, प्रत्यक्षज्ञात चित्रकारी, आलेखन-चित्रे निवेश्य परिकल्पितसत्त्व 2. सोचा हुआ, विचारविमर्श किया हुआ, मनन किया योगा-श० २।९, पुनरपि चित्रीकृता कांता-श० हुआ 3. संकल्प किया हुआ 4. अभिप्रेत, अभिलषित, ६।२०, १३,२१ आदि 2. चमकीला आभूषण 3. असाइच्छित,-त्तम् 1. देखना, ध्यान देना 2. विचार, धारण छवि, आश्चर्य 4. सांप्रदायिक तिलक 5. आकाश, चिन्तन, अवधान, इच्छा, अभिप्राय, उद्देश्य-मच्चित्तः गगन 6. धब्बा 7. सफेद कोढ़, फुलबहरी 8. (सा० सततं भव-भग० १८.५७, अनेकचित्तविभ्रान्त १६११६ शा० में) काव्य के तीन भेदों में अन्तिम काव्यभेद 3. मन-यदासौ दुर्वारः प्रसरति मदश्चित्तकरिणः (यह शब्दचित्र' और 'अर्थवाच्यचित्र' दो प्रकार का है, -~~शा० श२२, इसी प्रकार 'चलचित्त' आदि समस्त काव्यसौन्दर्य मुख्यरूप से अलंकारों के प्रयोग पर निर्भर शब्द 4. हृदय (बुद्धि का स्थान माना जाता है) करता है, जो शब्दों की ध्वनि और अर्थ पर आश्रित 5. तर्क, बुद्धि, तर्कनाशक्ति। सम०-अनुवतिन् है, मम्मट परिभाषा देता है--- शब्दचित्रं वाच्यचित्रम(वि०) मन के अनुकूल कार्य करने वाला, अनुरंजन- व्यङग्य त्ववरं स्मृतम् - काव्य. १) 'शब्दचित्र' का कारी, अपहारक, अपहारिन ( वि० ) मनोहर, उदाहरण रसगंगाधर से उद्धृत किया जाता है--मित्राआकर्षक, मोहक,-आभोगः भावनाओं के प्रति मन त्रिपुत्रनेत्राय त्रयीशात्रवशत्रवे, गोवारिगोत्रजेत्राय की आसक्ति, किसी एक वस्तु में अनन्य अनुराग, गोत्रात्रे ते नमो नमः । --त्रम् (अव्य०) अहा ! कैसा आसनः आसक्ति अनुराग, उद्रेक: घमंड, गर्व, विस्मय है! क्या अद्भुत बात है-चित्र बधिरो नाम -ऐक्यम् सहमति, मतैक्य, उन्नतिः, समुन्नतिः (स्त्री०) व्याकरणमध्यष्यते-सिद्धा० । सम० --अक्षी,-नेत्रा, 1. महानुभावता 2. घमंड, दर्प,--चारिन (वि.) दूसरे -लोचना एक पक्षिविशेष, मैना,-अङ्ग (वि०) धारी की इच्छा के अनुसार काम करने वाला, -जः-- जन्मन् दार, चित्तीदार, शरीरधारी (गम्) सिंदूर, अन्नम् (पुं०),-भ-योनिः 1. प्रेम, आवेश 2. प्रेम का रंगदार मसालों से प्रसाधित चावल—याज्ञ० ११३०४, देवता काम देव-चितयोनिरभवत्पुनर्न यः --रघु० १९॥ ...- अपूपः एक प्रकार का पूड़ा, अपित (वि.) तस्वीर ४६, सोऽयं प्रसिद्धविभवः खलु चित्तजन्मा -..-मा० ११२०, में उतारा हुआ, चित्रित, आरम्भः (वि.) चित्रित - (वि०) दूसरे के मन की बात जानने वाला,-नाशः - रघु० ॥३१, कु० ३१४२–आकृतिः (स्त्री०) बेहोशी,---निर्वतिः (स्त्री०) संतोष, प्रसन्नता, प्रशम चित्रित प्रतिकृति, आलोकचित्र,-आयसम् इस्पात (वि०) स्वस्थ, शान्त, (-मः) मन की शान्ति, प्रसन्नता -आरम्भः चित्रित दृश्य, चित्र की रूपरेखा - विक्रम हर्ष, खुशी,-भेवः 1. विचारभेद 2. असंगति, अस्थिरता, ११४,-उक्तिः (स्त्री०) 1. रुचिकर या वाक्चातुर्य ----मोहः मनोमुग्धता,-विक्षेपः मन का उचाटपन--. से पूर्ण प्रवचन-- जयन्ति ते पञ्चमनादमित्रचित्रोक्तिविप्लवः-विभ्रमः चित्तभ्रंश, बद्धिभ्रंश, उन्मत्तता संदर्भविभषणेषु-विक्रम० १११० 2. आकाशवाणी पागलपन,--विश्लेषः मैत्री-भंग,-वृत्तिः (स्त्री०) 1 मन 3. अद्भुतकहानी,-ओवनः हल्दी से रंगा पीला भात की अवस्था या स्वभाव, रुचि, भावना-एवमात्माभि- --कण्ठः कबूतर,-कथालापः रोचक तथा मनोरंजक प्रायसंभावितेष्टजनचित्तवृत्तिः प्रार्थयिता विडम्ब्यते-श० कहानियाँ सुनाना, कम्बल: 1. छींट की बनी हाथी की २ 2. आन्तरिक अभिप्राय, संवेग 3. (योग----द० । झूल 2. रंग बिरंगा कालीन,-करः 1. चित्रकार For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८२ ) 2. नाटक का पात्र या अभिनेता,-कर्मन् (नपुं० ) 1. असा-। और वसिष्ठ) का विशेषण, जः बहस्पति का विशेषण धारण कार्य 2. विभूषित करना, सजाना 3. तस्वीर --संस्थ (वि.) चित्रित,---हस्तः युद्ध के अवसर पर 4. जादू, (पुं०) 1. आश्चर्यजनक करतब करने वाला हाथों की विशष अवस्थिति । जादूगर 2. चित्रकार, 'विद् (पु०) 1. चित्रकार | चित्रकः [ चित्र कन् ] 1. चित्रकार 2. सामान्य शेर 2. जादूगर, -कायः साधारण शेर 2. चौता, कारः 3. छोटा शिकारी चीता 4. एक वृक्ष का नाम,-कम् 1. चित्रकारी करने वाला 2. एक वर्णसंकर जाति मस्तक पर साम्प्रदायिक तिलक । (स्थपतेरपि गान्धिक्या चित्रकारी व्यजायत-पराशर०), चित्रल (वि०) [ चित्र+कल | चितकबरा, चित्तीदार, ----कूट: एक पहाड़ का नाम, इलाहाबाद के निकट एक -लः रंगबिरंगा रंग । जिले का नाम - रघु० १२११५, १३१४७ उत्तर०१, चित्रा [चित्र- अच्+टाप् चांद्र मास का चौदहवाँ नक्षत्र, ---कृत (पुं०) चित्रकार, ---क्रिया चित्रकारी,---ग, हिमनिर्मक्तयोोंगे चित्राचंद्रमसोरिव-रघ०११४६ । ----गत (वि०) चित्रित किया हुआ, -न्धम् हरताल, __ सम० --अटीरः, ईशः चाँद ।। -गुप्तः यमराज के कार्यालय में मनुष्यों के गुण तथा | चित्रिकः चैत्र+क पृषो० सावः चैत्र का महीना। अवगुणों को लिखने वाला--- मुद्रा० ११२०, गृहम् चित्रिणी [चित्र-णिनि, चित्र अस्त्यर्थे इनि वा] भांति २ चित्रित घर,--जल्पः अटकलपच्च और असंबद्ध बात, के बद्धिवैभव और श्रेष्ठताओं से यक्त स्त्री, रतिशास्त्र विभिन्न विषयों पर बातचीत,-वच् (पुं०) भूर्ज वृक्ष, में वणित चार प्रकार (पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी ...-दण्डकः कपास का पौधा, - न्यस्त (वि.) चित्रित, और हस्तिनी या करिणी) की स्त्रियों में एक । तस्वीर में उतारा हुआ कु० २२४, -पक्षः चकार- रतिमंजरी में चित्रिणी' की परिभाषा इस प्रकार दो सदृश तीतर,–पटः,-ट्टः 1. आलेख, तस्वीर 2. रंगीन गई है :--भवति रतिरसज्ञा नातिखर्वा न दीर्घा या चारखानेदार कपड़ा,-पद, (वि०) 1. भिन्न २ भागों तिलकुसुमसुनासा स्निग्वनीलोत्पलाक्षी-घन कठिनमें विभवत 2. ललित पदावली से युक्त,- पादा मैना, कुचाढया सुंदरो बद्धशीला, सकलगुणविचित्रा चित्रिणी सारिका,-पिच्छकः मोर,-पंखः एक प्रकार का वाण, चित्रवत्रा 0 .....पृष्ठ: चिड़िया,--फलकम् चित्र-पटल, चित्र रखने चित्रित (वि.)[ चित्र -क्त ] 1. रंगबिरंगा, चित्तीदार का तख्ता,--बहः मोर,-भानः 1. आग 2. सूर्य (चित्र 2. चित्रकारी से युक्त । भाविभातीति दिने रवी रात्री वह्नौ-काव्य०२. चित्रिन् (वि०) (स्त्री----णी) |चि-+-इनि] 1. आश्चर्यअजन विधि का निदर्शन दिया गया है) 3. भैरव । कारी2 रगबिरगा। 4. मदार का पौधा,--मण्डल: एक प्रकार का साँप, | चित्रीयते (ना० धा० ... आ०... 1. आश्चर्य पैदा करना, -~-मृगः चित्तीदार हरिण,—मेखल: मोर, -योधिन आश्चर्यजनक होना-एवमत्तरोत्तरभावदिचत्रीयते जीव(पुं०) अर्जुन का विशेषण,--रथः 1. सूर्य 2. गंधर्वो लोकः-महावी० ५, भट्टि. १७६४, १८१२३ के एक राजा का नाम, मुनि नामक पत्नी से कश्यप के 2. आश्चर्य करना। १६ पुत्र हुए चित्ररथ उनमें से एक है-- अत्र मनेस्त- चिन्त (चरा० उभ०-- चिन्तयति-ते, चिन्तित) 1. सोचना, नयश्चित्रसेनादीनां पञ्चदशानां भ्रातणामधिको गुणः ।। विचारना, विमर्श करना, चिन्तन करना-तच्छुत्वा षोडशश्चित्ररथो नाम समुत्पन्न:-काव्य १३६, विक्रम पिकलकश्चिन्तयामास-पंच० 1. चिन्तय तावत्के नापदे१,- लेख (वि०) सुन्दर रूपरेखा वाला, अत्यन्त मंडला- शेन पुन राश्रमपदं गच्छामः -श० 2. सोचना, विवार कार-रुचिस्तव कलावती रुविरचित्रलेखे भ्रवौ--. गीत० करना, मन में लाना - तस्मादेतत् (वित्त) न चिन्तयेत् १०, (खा) बाणासुर की पुत्री, उश की एक सहेली - हि० १, तस्मादस्य व राजा मनसापि न चिन्तयेत् (जब उपा ने अपना स्वप्न अपनो सहेली चित्रलेखा को मनु० ८।३८१, ४१२५८, पंच०१।१३५, चौर० १ सुनाया, तो उसने यह सुझाव दिया कि इस चित्र को 3. ध्यान करना, देखभाल करना, देखरेख रखना आस-पास के राज्यों में घमाया जाय, इस प्रकार जव ---रघु० ११६४ 4.प्रत्यास्मरण करना, याद करना, उषा ने अनिरुद्ध को पहचान लिया तो चित्रलेखा ने 5. मालन करना, उपाय करना, खोज करना, सोच अपने जादू के द्वारा अनिरुद्ध को उपा के महल में कर उपाय निकालना... कोप-युपायश्चिन्त्यताम् ...हि. बलवा दिया),---लेखक: चित्रकार --लेखनिका नित्रकार १ 6. खयाल रखना, सम्मान करना 7. तोलना, की तूलिका, कंची,----विचित्र (वि०) 1. रंगविरंगा, विशेषता बनाना 8. चर्चा करना, निरूपण करना, चित्तकबरा 2. बेलबटेदार,-विद्या चित्रकला-भाला प्रतिपादन करना, अन--., वार वार चिन्तन करना, चित्रकार का कार्यालय,-शिखण्डिन (पुं०) सात पिछला याद करना, मन में तोलना -- श० २१९, भग० ऋषियों (मरीचि, अंगिरस्, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, I ८८, परि · , 1. सोचना, विचारना, कूतना- त्वमेव For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८३ ) परिचिन्तय स्वयं कदाचिदेते यदि योगमहतः ---कू० । चि आदेशः] चपटी नाक वाला,---टचिउड़ा, चपटा ५।६७, भग०१०।१७ 2. चिन्तन करना, याद करना, किया हुआ चावल या अनाज, चौले ।। ध्यान में लाना 3. तरकोब निकालना, भालूम करना, चिपिटः | नि--पिटन चि आदेशः ] दे० चिपट । सम० वि.-, 1. सोचना, विधारता 2. चिन्तन करना, -ग्रीव (वि०) छोटी दर्दन वाला, नास, नासिक आकलन करना, ध्यानमग्न होना--श० ४।१ (वि०) चपटी नाक वाला। 3. विचारकोटि में रखना, ध्यान रखना, खयाल करना चिपिटकः, चिपुटः चिपिट-+-कन, चिपिट पृषो० साधुः] -अस्मान्साधु विचिन्त्य गंयमवनानुच्वः कुल चात्मनः चिउड़ा, चौले। -श० ४१६ 4. इरादा करनः, स्थिर करना, निश्चय ! | चिबु (वृ) कम् | चिन् (व)+उ |-कन्, पृषो० ह्रस्वः ] करना----5. उपाय इंदना, नालन करना, खोज ठोडी, चिबुकं सुदृशः स्पृशामि यावत् –भामि० २।३४ निकालना, सम्-, 1. सोचना, विचारना, विमर्श याज्ञ० ३।९८ । करना, चिन्तनरत होना ---याज्ञ० १।३५९, चौर० ३२ | चिमिः [चिन-मिक बा०] तोता। 2. (मन में) तोलना, विशेषता बताना। चिर (वि.) [चि+रक दीर्घ, दीर्घकाल तक रहने वाला, चिन्तनम्,-ना [चिन्त् + ल्युट्] 1. सोचना, विचारना, दीर्घकाल से चला आया, पुराना-चिरविरह, चिरचिन्तनरत होना-मनसाऽनिष्टचिन्तनम् मनु० १२१५ काल, चिरमित्रम्---आदि, रम् दीर्घकाल (विशे० 2. आतुर चिन्तन । 'चिर' शब्द का अप्रधान कारकों में एक बचन क्रिया चिन्ता [चिन्त-णिन् +अ+टाप 1. चिन्तन, विचार विशेषण की भाँति प्रयुक्त होता है और निम्नांकित 2. दुःखद या शोकपूर्ण विचार, परवाह, फ़िकर अर्थ प्रकट करता है :-'दीर्घकाल' 'दीर्घकाल तक' ----चिन्ताजडं दर्शनम् -... श० ४।५, इसी प्रकार बीत 'दीर्घकाल के पश्चात' 'दीर्घकाल से 'आखिर कार' चिन्तः १२ 3. विचारविमर्श, विचारण 4. (अलं. 'अन्त में' आदि-न चिरं पर्वते वसेत् -मनु० ४।६०, शा० में) चिन्ता-३३ संचारी भावों में से एक ततः प्रजानां चिरमात्मना धृताम् – रघु० ३३५, ६२, -ध्यानं चिन्ता हितानाप्तेः शून्यता श्वासतापकृत् अमरु ७९, कियच्चिरेणायपुत्रः प्रतिपतिं दास्यति --श० --सा० द० २०१ । सम० --आकुल (वि०) चिन्ता ६, रघु० ५।६४, प्रीतास्मि ते सौम्य चिराय जीव मग्न, व्याकुल, आतुर,-कर्मन् (नपुं०) चिन्ता करना --रघु० १४१५९, कु० ५।४७, अमरु ३, चिरात्सुत-पर (वि.) चिन्तनशील, चिन्तातुर, ---मणिः स्पर्शरसज्ञतां ययौ - रघु० ३।२६, १११६३, १२६७, कालनिक रत्न-(यह जिसके पास होता है, कहते चिरस्य वाच्यं न गतः प्रजापतिः ....श० ५।१५, चिरे है, उसकी सब कामनाएं पूर्ण कर देता है) दार्शनिकों कुर्यात् -शत० । सम-आयुस् (वि.) दीर्घ आयु को मणि--काचमूल्येन विक्रीतो हन्त चिन्तामणिर्मया वाला (पुं०) देवता, -आरोधः विलम्बित घेरा, नाके--शा० १११२, तदेकलुब्धे हृदि मेऽस्ति लब्धं निन्ता न वन्दी, ---उत्य (वि०) दीर्घ काल तक रहने वाला, चिन्तामणिमप्यनय॑म् -नै० ३।८१, १११४५, वेश्मन्, कार, -कारिक, .. कारिन्—क्रिय (वि०) मन्थर, (नपुं०) परिषद् भवन, मंत्रणागृह । विलम्बी, ढीला, दोर्घसूत्री, कालः दीर्घकाल, कालिक, चिन्तिडी [ --तिन्तिडी, पृषो० तस्य चत्वम् ] इमली का --कालीन (वि०) दीर्वकाल से चला आता हुआ, पेड़। पुराना, दीर्घकाल से चाल, (रोग के विषय में) जीर्ण चिन्तित (वि०) [चिन्त्+क्त ] 1. सोचा हुआ, विमृष्ट या दोर्घकालानुबन्धी,--जात (वि.) बहुत समय पहले 2. उपेत, विचार किया हुआ। उत्पन्न, पुराना,—जीबिन् (वि०) दीर्घजीवी (पुं०) चिन्तितिः (स्त्री०) चिन्तिया [चिन्त-+-क्तिन्, घ वा] सोच, उन सात चिरजीवियों का विशेषण जो 'अमर' समझे विमर्श, विचार। जाते हैं (अश्वत्थामा बलिया॑सो हनुमांश्च विभीषणः, चिन्त्य (सं० कृ०) [ चित+यत ] 1. सोचने-विचारने के कृपः परशरामश्च सप्तते चिरजीविनः)-पाकिन (वि.) योग्य 2. खोजने के योग्य, मालम किये जाने या देर से पकने वाला,-पुष्पः बकुल वृक्ष,-मित्रम् पुराना उपाय ढूंढ लिये जाने के योग्य 3. विचारसापेक्ष, मित्र, मेहिन् (पु०) गधा, -रात्रम् बहुत रातें, दीर्घसंदिग्ध, प्रष्टव्य यच्च क्वचिदस्फुटालंकारत्वे उदा- काल, उषित (वि.) जो दीर्घकाल तक रह चुका हो, हृतम् (यः कौमारहरः") एतच्चिन्त्यम् ---सा० द०१। ...-विप्रोषित (वि.) दीर्घकाल से निर्वासित, प्रवासी, चिन्मय (वि०) [चित्+मय विशुद्ध बौद्धिकता से युक्त, -सूता,--सूतिका वह गाय जो काई बछड़े दे चुकी हो आत्मिक (जैसे कि परमात्मा), यन् 1. विशुद्ध ज्ञान- तेवकः पुराना नौकर, --स्थ, स्थाथिद--स्थित मय 2. परमात्मा। (वि०) टिकाऊ, देर तक चलने वाला, चालू रहने चिपट (वि.) [नि नता नासिका विद्यतेऽस्प नि--पटच, । वाला, पायेदार। For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८४ ) विरजीव (वि.) [चिरम् +जीव + अच्] दीर्घायु या लम्बी ) चीत्कारः [ चीत् + कृ+घञ्] अनुकरणमूलक शब्द, कुछ उम्र वाला,-वः काम का विशेषण । जानवरों की क्रन्दन विशेषकर गधे की रेंक या हाथी चिरण्टी, चिरिण्टी [चिरे अटति पितगृहात् भर्तगेहम - अट् की चिंघाड़, स विषीदति चीत्कारादगर्दभस्ताडितो यथा +अच, पृषो० तारा०] 1. विवाहित या अविवाहित -हि० २।३१, वैनायक्यश्चिरं वो वदनविधुतयः पान्तु लड़की जो सयानी होने पर भी अपने पिता के घर ही चीत्कारवत्यः मा० १११ । रहे 2. तरुणी, जवान स्त्री। चीनः [चि+नक, दीर्घः] 1. एक देश का नाम, वर्तमान चिरन (वि०) (स्त्री०–त्नी) चिरे भवः चिर-न] चीनदेश 2. हरिण का एक प्रकार 3. एक प्रकार का चिरकालीन, पुराना, प्राचीन । कपड़ा नाः (पुं० ब० व०) चीन देश के निवासी या चिरन्तन (वि.) (स्त्री० -नी) [चिरंम् +टयुल, तुट, च] शासक,नम् 1. झंडा 2. आँखों के किनारों पर बाँधने चिरागत, पुराना, प्राचीन,-स्वहस्तदत्ते मुनिमासनं के लिए पट्टी 3. सीसा । सम०-अंशकम,-बासस् मुनिश्चिरन्तनस्तावदभिन्यवीविशत् - -शि० १।१५, (नपुं०) चीन का कपड़ा, रेशम, रेशमी कपड़ा चिरन्तनः सुहृद-आदि। --चीनांशुकमिव केतोः प्रतिवातं नीयमानस्य-श० चिरायति (ना. घा० पर० (चिरायते भी)) विलम्ब १३४, कु०७।३, अमरु ७५, -- कर्परः एक प्रकार का करना, ढील देना-कथं चिरयति पाञ्चाली-वेणी०१, कपूर, - जम इस्पात, -- पिष्टम् 1. सिन्दूर 2. सीसा, कि चिरायितं भवता, संकेतके चिरयति प्रवरो विनोद: -- वङ्गम् सीसा । -... मच्छ० ३।३। चीनाक: [चीन+अक् -|-अण्] एक प्रकार का कपूर । चिरिः चिनोति मनष्यवत वाक्यानि -चि+रिक तोता। चीरम चि-क्रन दीर्घश्च] 1. चिथडा. फटा पराना कपडा. चिरु [चि+रुक] कन्धे का जोड़।। धज्जी, मनु०६६ 2. वल्कल 3. वस्त्र या पोशाक चिर्भटी [चिर-|-भट् । अच् + ङीष्, पृषो०] एक प्रकार की 4. चार लड़ियों का मोतियों का हार 5. चौड़ी धारी, ककड़ी। रेखा, लकीर 6. रेखाएँ बनाकर लिखना 7. सीसा । चिल (तुदा० पर० ---चिलति) कपड़े पहनना, वस्त्र धारण सम० परिग्रहा-वासस् (वि० ) 1. वल्कलधारी करना। कु०६।९२, मनु० ११११०१ 2. चिथड़े या फटे चिलमी (मि) लिका [चिल् +-मी (मि) ल--- बुल् +-टाप, पुराने कपड़े पहने हुए। इत्वम्] 1. एक प्रकार का हार 2. जुगन 3. बिजली। | चीरिः (स्त्री० [चि |-कि, दीर्घ०] 1. आँखों को ढकने का चिल्ल (भ्वा० पर०-चिल्लति, चिल्लित) 1. ढीला होना, पर्दा 2. झोंगर 3. नीचे पहनने वाले कपड़े की झालर शिथिल होना पिलपिला होना 2. आराम से काम या गोट । करना, क्रीड़ासक्त होना। चोरि (रु) का [चीरि । के+क+टाप्] [=चीरिका पृषो० चिल्लः,--ल्ला [चिल्ल+अच्, स्त्रियां टाप्] चील । सम० साधुः] झीगुर। -~-आभः गठकतरा, जेबकतरा। चीर्ण (वि) [चर-नक, पृषो० अत ईत्वम् ] 1. किया चिल्लिका,चिल्ली [चिल्ल +इन+कन्+टाप, चिल्लि-|- | हुआ, अनुष्ठित, पालित 2. अधीत, दोहराया हुआ डोष झींगर-तू० भिल्लिका। 3. विदीर्ण किया हुआ, विभाजित, 1. सम० - पर्णः चिविः [चीव +-इन् पृषो०] ठोडी। खजूर का पेड़। चिह्नम [ चिह्न+अच ] 1. निशान, धब्बा, छाप, प्रतीक, | चोलिका [ची। ला+क+टाप् इत्वम्] झिंगुर । कुलचिह्न, बिल्ला, लक्षण--ग्रामेषु यपचि ह्वेषु रघु० चीव (भ्वा० उभ०-चीवति-ते) 1. पहनना, ओढ़ना 2. लेना १।४४, ३१५५, संनिपातस्य चिह्नानि-पंच० १११७७ ग्रहण करना 3. पकड़ना। 2. संकेत, इंगित --प्रसादचिह्नानि पुरः फलानि रघु० चीवरम [ चि--प्वरच नि० दीर्धः, ची+अरच वा ] २।२२, -प्रहर्षचिह्न - २।६८ 3. राशिचिह्न 4. लक्ष्य 1. पोशाक, फटा-पुराना, चिथड़ा - प्रेतचीवरवसा दिशा। सम० --कारिन (वि) 1. चिह्न लगाने वाला, स्वनोग्रया. रघु० ११११६ 2. भिक्षुक का परिधान, दाग लगाने वाला 2. प्रहार करने वाला, घायल करने विशेषकर बौद्ध भिक्षु के वस्त्र, चीवराणि परिधत्ते वाला, हत्या करने वाला 3. डरावना, विकराल । सिद्धा०, चीरचीवरपरिच्छदा--मा० १, प्रक्षालित चिह्नित (व०) चिह्न+क्त, 1. निशान लगा हआ, संके- मेतन्मया चीवरखण्डम् - मृच्छ० ८। तित, मुद्रांकित, किसी पद का बिल्ला लगाये हुए-याज्ञ० चीवरिन् (पुं०) [चीवर---इनि] 1. बौद्ध या जैन भिक्षक २१८६, २३१८, दिवा चरेयः कार्यार्थ चिह्निता 2. भिक्षुक । राजशासनैः-मनु० १०.५५, २।१७० 2. दागी | चुक्कारः [चुक्क् +अच्=चुक्क - आ+रा+क] सिंह की 3. ज्ञात, अभिहित । गर्जन या दहाड़। For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८५ ) चुकः [चक् + रक्, अत उत्वं च] 1. एक प्रकार की अमलबेत | चुम्बनम् [चुम्ब् + ल्युट्] चूमना, चुंबन-चुम्बनं देहि मे भार्य या अम्ललोणिका 2. खटास, -क्रम् खटास, अम्लता। कामचांडालतृप्तये--रस० । सम० · फलम् इमली का फल, -वास्तूकम् खटमिट्ठा | चुर् (चुरा० उभ०-चोरयति-ते, चोरित) 1. लूटना, चोका, अम्ललोणिका। चुराना-मनु०८१३३३ विक्रम०३।१७ 2. (बालं०) चुका [चुक्र+टार] इमली का पेड़ । वहन करना, रखना, अधिकार में करना, लेना, धारण चुक्रिमन् (पुं०) [चुक्र+इमनिच खटास, खट्टापन । करना-अचुचुरच्चन्द्रमसोऽभिरामताम् - शि. १२१६ । चुचुकः, -कम्, चुचूकम् [चुचु इति अव्यक्तशब्दं कायति | चरा [चुर्+अ+टाप] चोरी। -+क, पृषो० दीर्घ चूची का बिटकना या घुडी। चरिः-री (स्त्री०) [ चुर+कि, चुरि+ङीष् ] छोटा चुञ्च (वि०) [कुछ समासों के अन्त में प्रयुक्त] प्रख्यात, | * कुआँ। ' प्रसिद्ध, विश्रुत, कुशल ---अक्षर', चार आदि । चुलकः [चुल+उका ] 1. गहरा कीचड़ 2. एक चूंट या खुष्टा, -डा [चुंट (इ)+अ+टाप्] छोटा कुआँ या हथेली भर पानी, चुल्ल,-ममौ स भद्रं चुलुके समुद्रः जलाशय। ---०८।४५, ज्ञात्वा विधातुश्चलुकात् प्रसूतिम्-विक्र चुत् (म्वा० पर० --चोतति] चूना, टपकना, दे० च्युत् । माङ्क० ११३७ 3. छोटा बर्तन । चुतः [चुत्+क] गुदा। चुलुकिन् (पुं०) [चुलुक+इनि ] सूंस, उलूपी । चुद् (चुरा० उभ० --चोदयति-ते, चोदित) 1. भेजना, | चुलम्प् (म्वा० पर०-चुलम्पयति) 1. झूलना, डोलना, निदेश देना, आगे फेकना, प्रेरित करना, हाँकना, इधर उधर हिलना दोलायमान होना, उद-1. झोटे धकेलना-चोदयाश्वान्–श०१ 2. प्रणोदित करना लेना 2. आन्दोलित होना-अम्बोधेर्नालिकेलीरसमिव स्फूर्ति देना, ठेलना, सजीव बनाना, उकसाना--रघु० चुलकैरुच्चुलुम्पन्त्यपो ये-महावी० ५।८। ४।२४, मार्गप्रदर्शन करना, फुसलाना-रघु० १०६७ | चुलुम्पः [चुलुम्प+घञ्] बच्चों को लाड प्यार करना। 3. शीघ्रता करना, त्वरित करना 4. प्रश्न करना, | चुलुम्पा [ चुलम्प+टाप् ] बकरी। पूछना 5. साग्रह निवेदन करना 6, प्रस्तुत करना, चुल्ल (भ्वा० पर०-चुल्लति) खेलना, क्रीडा करना, तर्क या आक्षेप के रूप में सामने लाना, परि - प्रेमोन्माद में प्रीतिसूचक संकेत करना। 1. धकेलना, निदेश देना, भेजना 2. उकसाना, प्रोत्सा- | चल्लिः [ चुल्ल +इन् ] चूल्हा । हित करना, प्र-, 1. ठेलना, प्रणोदित करना, स्फूर्ति देना | चुल्ली [चुल्लि+डी ] 1. चूल्हा 2. चिता । उकसाना-चापलाय प्रचोदित:-रघु० १९. 2. हाँकना, |चुकम्, चुचूकम् [चूष+उका, षकारस्य चकारः, चुक होकना, स्फूर्ति देना, धकेलना 3. निदेश देना | पृषो०] चूची का बिटकना या धुण्डी-शि०७।१९। सम्---, 1. निदेश देना, उकसाना, ठेलना 2. फेंकना, चूडक: [चूडा+कन्, ह्रस्वः ] कूओं। आगे बढ़ाना। चूडा [चूल+अङ, लस्य डः, दीर्घःनि०] 1. बालों की चोटी चुन्दी (चुन्द्+अच् नि० डीए) दूती, कुटनी। चुटिया (मुण्डन संस्कार के अवसर पर रक्खी हुई चुप (म्बा० पर० --चोपति) शनैः शनैः चलना, दबे पाँव शिखा) रघु० १८१५१ 2. मुण्डन संस्कार 3. मुर्ग की चलना, चुपचाप खिसकना। या मोर की कलगी 4. ताज, मुकुट, उष्णीष 5. सिर चुबुकः [=चिबुक, पृषो०] ठोडी।। 6. शिखर, चोटी 7. चौबारा, अटारी 8. कुओं चुम्म् (म्वा०--चुरा० उभ० चम्बति-ते, चुम्बयति-ते, 9. (कलाई में पहना जाने वाला) आभूषण। सम. चुम्बत) 1. चुंबन करना, (आलं० से भी) श्लिष्यति --करणम,-कर्मन् (नपुं०) मुण्डन संस्कार-मनु० चुम्बति जलघरकल्पं हरिरुपगत इति तिमिरमनल्पम्- २०३५, -पाशः बालों का गुच्छा, केश समूह-चूडागीत० ६, प्रियामुखं किंपुरुषश्चुचुम्बे-कु. ३३८ अमरु पाशे नवकुरबकम् --मेघ० ६५.-मणिः,रत्नम् १६, हि० ४।१३२ 2. सुकुमारता पूर्वक स्पर्श करना, 1. सिर पर धारण किया जाने वाला आभूषण, छूते हुए चलना-उत्तर०४११५, परि-चूमना-ऋतु० चूडामणि, शीर्षफूल (आलं० से भी) 2. बढ़िया श्रेष्ठ ६।१७, अमरु ७७। (प्रायः समास के अन्त में)। खुम्बः, बा [चुम्ब+अक्, घा वा, स्त्रियां टाप्] चुंबन, चूडार,-ल (वि.) [चुडा+ऋ+अण, चूडा+लच्] चूमना । 1. सिर पर चुटिया रखने वाला, शिखायुक्त 2. कलचम्बकः [चुम्ब+वल] 1. चूमने वाला 2. कामी, कामासक्त, गीदार। कामुक 3. बदमाश, ठग 4. जिसने चूम लिया, जिसने | चूतः [ चूष+क्त पृषो०] 2. आम का पेड़,-ईषसरजः अनेक विषयों को छू लिया, पल्लवग्राही विद्वान् 5. चुंबक कणाग्रकपिशा चूते नवा मजरी-विक्रम० २७, पत्थर (चकमक)। चूताङकुरास्वादकषायकण्ठः-कु. ३२३२ 2. कामदेव ४९ For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गों का चूर्ण मा हुआ अनाज, अली चेतस् (न आत्मा, तर्कन कुचलनायक विदः स वाली ( ३८६ ) के पांच बाणों में से एक, दे० पंचवाण,-तम् गुदा, । चेटः,-: [ चिट् + अच्, वा टस्य ड: ] 1. नौकर 2. विट, मलद्वार। उपपति। पूर्व (चुरा० उभ० -चूर्णयति-ते, चूर्णित) चूरार करना, | चेटि (डि) का, चेटिः (टो) (डी)-[चिट् --ण्वुल 1कुचलना, पीस देना 2. चकनाचूर करना, कुचल देना, टाप, इत्वं, पक्षे डरवम्, डी, डत्वम् वा] सेविका, -सम्,-रगड़ देना, कुचल देना-संचूर्णयामि गदया दासी। न सुयोधनोरु- वेणी० १११५। चेतन (वि०) (स्त्रि०—नी) [चित् + ल्युट ] 1. सजीव, पूर्ण:--र्णम् [चूर्ण+अच् ] 1. चूरा 2. आटा 3. चूल जीवित, जीवधारी, सचेत, संवेदनशील–चेतनाचेतनेषु 4. सुगन्धित चूरा, पिसा हुआ चन्दन, कपूर आदि ___--मेघ० ५, सजीव और निर्जीव 2. दृश्यमान,-न: -भवति विफलप्रेरणा चूर्णमष्टि:--मेघ०६८ णः 1. सचेत प्राणी, मनुष्य 2. आत्मा, मन 3. परमात्मा, 1. खडिया 2. चूना। सम-कारः चूना फूंकने --ना 1. ज्ञान, संज्ञा, प्रतिबोध-चुलुकयति मदीयां वाला,-कुन्तल: बूंघर, धुंघराले बाल, अलकें-समं केर- चेतनां चञ्चरीक:--रस०, रघु० १२।१४, चेतनां प्रतिलकान्तानां चूर्णकुन्तलवल्लिभिः-विक्रमाङ्क० ४।२, पद्यते--संज्ञा फिर प्राप्त कर लेता है 2. समझ, प्रज्ञा -खण्डम् कङ्कड़, बजरी, पारदः शिंगरफ, सिन्दूर, -पश्चिमाद्यामिनीयामात्प्रसादमिव चेतना-रघु० -योगः गन्ध द्रव्यों का चूर्ण । १७.१ 3. जीवन, प्राण, सजीवता - भग० १३१६ चूर्णकः [चूर्ण+कन् ] भून कर पीसा हुआ अनाज, सत्तू 4. बुद्धिमत्ता, विचारविमर्श ।। -कम् 1. सुगन्धित चूरा 2. गद्य रचना की एक शैली चेतस् (नपुं०) [चित् +असुन् ] 1. चेतना, ज्ञान 2. चिंतनजो कर्णकट शब्दों से रहित तथा अल्प समास वाली | शील आत्मा, तर्कना शक्ति 3. मन, हृदय, आत्मा हो--अकठोराक्षरं स्वल्पसमासं चूर्णकं विदु:---छं०६। -चेतः प्रसादयति---भर्त० २।२१, गच्छति पुरः शरीरं वर्णनम् [चर्ण+ल्युट ] कुचलना, पीसना । धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः-श० ११३४ । सम-जपूणिः,–णी ( स्त्री० ) [ चूर्ण+इन् , चूणि+डोष् ] | मन्,- भवः,-भूः (पुं०) 1. प्रेम, आवेश 2. कामदेव, 1. पीसा हुआ, चूरा 2. सौ कौड़ियों का समूह ।। -विकारः मन की विकृति, संवेग, क्षोभ । बुणिका [ चूर्ण+ठन्+टाप् ] 1. भुना हुआ और पिसा | चेतोमत् (वि.) [चेत+मतुप् ] जिन्दा, जीवित । हुआ अनाज, सत्तू 2. सरल गद्यरचना की एक शैली। | चेद् (अव्य०) यदि, बशर्ते कि, यद्यपि (वाक्य के आरंभ में चूर्णित (वि.) [चूर्ण+क्त ] 1. पीसा हुआ, चूरा किया कभी भी प्रयोग नहीं होता)-अयि रोषमीकरोषि हुआ 2. कुचला हुआ, रगड़ा हुआ, चूर-चूर किया नोचेत्किमपि त्वां प्रतिवारिधे वदामः-भामि० ११४४, हुआ, टुकड़े २ किया हुआ-कु० ५।२४।। -कु० ४।९, · इतिचेद् --न, 'यदि ऐसा कहा गया चलचिल+क पृषो० दीर्घ] बाल, केश,-ला 1. ऊपर ....."" (हम उत्तर देते हैं) तो ऐसा नहीं (विवादास्पद का कक्ष 2. शिखर 3. धूमकेतु की शिखा। विषयों में बहुधा प्रयोग होता है)-- सन्निधानमात्रेण चूलिका [चुल+वल पृषो० दीर्घः] 1. मुर्गे की कलगी राजप्रभृतीनां दुष्टं कर्तृत्वमिति चेन्न- शत०, अथ चेद् 2. हाथी की कनपटी 3. (नाटकों में) नेपथ्य में पात्रों | परन्तु यदि। द्वारा किसी घटना का संकेत–अन्तर्जवनिकासंस्थः विः (पुं० ब० व.) एक देश का नाम--तदीशितारं चेदीनां सूचनार्थस्य चुलिका--सा० द. ३१०, उदा० महावीर भवांस्तमवमस्त मा-शि० २।९५, ६३। सम० चरित के चौथे अंक के आरंभ में। --पतिः,-भूभत् (पुं०), राज् (पुं०)--राजः शिशुपूष (म्बा० पर०-चूषति, चूषित) पीना, चूसना, चूस | पाल, दमघोष का पुत्र, चेदिदेश का राजा-शि० २०९६, लेना। दे० 'शिशुपाल'। पवा[वष+क+टाप] 1. (हाथी का) चमडे का तंग | चेय (वि.) [चि यत् ] 1. ढेर लेगाने के योग्य 2. एकत्र 2. चूसना 3. मेखला।। करने योग्य, संग्रह किये जाने के योग्य । ज्यम् [चूष्+ण्यत् ] चूसे जाने वाले भोज्य पदार्थ । चेल (भ्वा० पर० .. चेलति) 1. जाना, हिलना-जुलना घृत i (तुदा० पर०-वृतति) 1. चोट पहुँचाना, मार | 2. हिलना, क्षुब्ध होना, कांपना। डालना 2. बांधना, एक जगह जोड़ना, ii (म्वा० पर०, | चेलम् [चिल्+घञ्] 1. वस्त्र, पोशाक-कुसुम्भारुणं चारु चुरा० उभ०--चर्तति, चर्तयति--ते) जलाना, प्रज्व- चेलं वसाना--जग० 2. (समास के अन्त में) बुरा, लित करना। दुष्ट, कमीना---भार्याचेलम् =बुरी पत्नी। सम. चेकितानः [कित्+या+शानच्, यङो लुक, धातोद्वित्वम् ] ---प्रक्षालकः धोबी। 1. शिव का विशेषण 2. यदुवंशीराजा जो पांडवों की चेलिका [चेल+कन---टाप, इत्वम् ] चोली, अंगिया । भोर से महाभारत के युद्ध में लड़ा। चेष्ट्र (भ्वा० आ०-- चेष्टते, चेष्टित) 1. हिलना-जुलना, For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८७ ) हिलना-डुलना, सक्रिय होना, जीवन के चिह्न दिखलाना +इन, चित्रा---ठक, इनि वा] चैत्रमास, चैत का --यदा स देवो जागर्ति तदेदं चेष्टते जगत्---मनु० महीना। १।५२ 2. प्रयल करना, कोशिश करना, प्रयास करना, मंत्री [चित्रा-+अण+की ] चैत्र मास की पूर्णिमा । संघर्ष करना 3. अनुष्ठान करना, (कुछ कार्य) करना चैधः [चेदिष्यों ] शिशुपाल, अभियं प्रतिष्ठासुः 4. व्यवहार करना-वि--, 1. हिलना-डुलना, चलना- शि० २।१। । फिरना, गतिशील होना, इधर-उधर फिरना 2. कार्य लम् [चेल+अण् ] कपड़े का टुकड़ा, वस्त्र। सम. करना, व्यवहार करना । । ---बाव: धोबी। चेष्टकः [चेष्ट् + वल ] संभोग का आसन विशेष, रतिबंध। चोक्ष (वि.) [चक्ष+घा, पूषो. साधुः] 1. पवित्र, वेष्टनम् [ चेष्ट् + ल्युट् ] 1. गति 2. प्रयत्न, प्रयास । स्वच्छ 2. ईमानदार 3. होशियार, दक्ष, कुशल चेष्टा [चेष्ट्+अ+टाप् ] 1. चाल, गति--किमस्माकं 4. सुखकर, रुचिकर, प्रसन्नता देने वाला। स्वामिचेष्टानिरूपणेन-हि०३ 2. संकेत, कर्म-चेष्टया चोचम् [ कोचति आवृणोति-कुच+अच् पृषो. ] भाषणेन च नेत्रवक्त्रविकारश्च लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मन:-मनु० | 1. वल्कल, छाल 2. चमड़ा, खाल 3. नारियल। ८५२६ 3. प्रयत्न, प्रयास 4. व्यवहार । सम-नाशः | चोटी--- [चुट-+अण्+डीप् ] छोटा लहंगा, साया पेटी. सृष्टि का नाश, प्रलय,-निरूपणम् किसी व्यक्ति की | __ कोट । गतिविधि पर आँख रखना।। चोड: [ चोडति संवृणोति शरीरम्-चुड़+अ+ोप्] चेष्टित (भू० क. कृ.) [चेष्ट्+क्त ] हिला, चला, __ चोली अंगिया। हिला-डुला,--तम् 1. चाल, अंगभंगिमा, कर्म 2. क्रिया, चोदना |चुद् ।-ल्युट्, स्त्रियां टाप् च] 1. भेजना, निर्देश कर्म, व्यवहार-कपोलपाटलादेशि बभूव रघचेष्टितम देना, फेंकना 2. स्फूति देना, आगे हांकना 3. प्रोत्सा-रघ० ४।६८, तत्तत्कामस्य चेष्टितम्--मनु० २१४, हन देना, उकसाना, उत्साह बढ़ाना, उत्तेजना प्रदान काम करना। करना 4. उपदेश, पुनीत आदेश, वेदविहित विधि। चैतन्यम् [चेतन+ध्या ] 1. जीव, जीवन, प्रज्ञा, प्राण, सम० --गुड खेलने के लिय गेंद । चोदित (भू० क. कृ०) [ चुद - णिच+क्त] 1. भेजा, संवेदन 2. (वेदान्त द० में) परमात्मा जो सभी प्रकार को संवेदनाओं का स्रोत और सब प्राणियों का मूल निर्दिष्ट 2. स्फूर्ति दिया गया, हांका गया 3. उकसाया तत्व समझा जाता है। गया, प्रोत्साहित किया गया, उत्तेजित किया गया बैत्तिक (वि.) [चित्त-ठक ] मानसिक, बौद्धिक । 4. तर्क के रूप म सामने प्रस्तुत किया गया। चंत्यः,--त्यम् [चित्य+अण] 1. सीमा चिह्न बनानेवाला चोद्यम् [चुद्+ण्यत् ] 1. आक्षेप करना, प्रश्न पूछना पत्थरों का ढेर 2. स्मारक, समाधि-प्रस्तर 3. यज्ञ 2. आक्षेप 3. आश्चर्य। मण्डप 4. धामिक पूजा का स्थान, वेदी, वह स्थान | चो(चौ)रः [चु+णिच+अच, चुरा+ण] चोर, लटेरा जहाँ देवमूर्ति प्रस्थापित रहती है 5. देवालय 6. वौद्ध -सकलं चोर गतं त्वया गृहीतम् - विक्रम० ४१६, और जैन मन्दिर 7. गलर का वृक्ष, या सड़क के ___ इन्दीवरदलप्रभाचोरं चक्षुः-भर्तृ. ३१६७। किनारे उगने वाला गूलर का पेड़-मेघ० २३ (रथ्या चो (चौ) रिका [चोर+ठन्+टाप्] चोरी, लूट । वृक्ष - मल्लि.)। सम०-तरुः, द्रमः,--वक्षः किसी | चोरित (वि.) [चु+णिच्+क्त ] चुराया गया, लूटा पवित्र स्थान पर उगा हआ उदुम्बर अर्थात् गूलर का गया। पड़, -पाल: देवालय का संरक्षक,-मुखः साधु-संन्यासी | चोरितकम् [ चोरित+कन् ] 1. चोरी, चौर्य, स्तेय का जलपात्र या कमण्डल। ___2. चुराई हुई वस्तु। चंत्रः [चित्रा+अण् ] एक चान्द्र मास का नाम जिसमें कि | चोलः (पुं०, ब० व.) [चल+घा ] दक्षिण भारत में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र -पुंज में स्थित रहता है, (यह एक देश का नाम, वर्तमान तंजीर, -:--ली, महीना मार्च और अप्रैल के अंग्रेजी महीनों में आता | अंगिया चोली। है) 2. वौद्ध भिक्षु,-श्रम मन्दिर, मृतक की समाधि। चोलकः [चोल-+के+क] 1. वक्षस्त्राण 2. छाल या सम० --आवलिः (स्त्री०) चैत्र की पूर्णिमा, - सखः | वल्कल 3. चोली। कामदेव का विशेपण।। चोलकिन् (पुं०) [चोलक+इनि ] 1. वक्षस्त्राण से सुसचैत्ररथम्,-चम् [ चित्ररथ +अण, प्य वा] कुबेर के ज्जित सैनिक 2. संतरे का पेड़ 3. कलाई। उद्यान का नाम--एको ययौ चैत्ररथप्रदेशान् सौराज्य- | चोल (लो)ण्डमः [चोलस्य अ (उ) ण्डुक इव, प० त०, रम्यानपरो विदर्भान-रघु० ५।६०,५०। शक. पर०] साफा, पगड़ी, किरीट, मकुट। वैत्रिः, पैत्रिकः, पैत्रिन् (पुं०) [चैत्री विद्यतेऽस्मिन्-मंत्री बोषः [ चुप् +घञ्] 1. चूसना, (आयु. में) सूजन । For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८८ ) जाना, उड़ जाना, बच जाना 2. प्रगमन करना चौग() (वि.) (स्त्री-डी (ली)) [चूडा+अण् | 3. भटकना, अलग हो जाना, छोड़ देना 4. खोना, -लयोरभेवः] 1. शिखायुक्त, कलगीदार 2. मुण्डन | वञ्चित होना 5. गिर पड़ना, नीचे गिरना, प्र,-अलग सम्बन्धी-उम्,-लम् मुण्डन संस्कार । हो जाना, नीचे गिर पड़ना आदि (लगभग वह सब चौबन [पोत+ध्य ] 1. चोरी, लूट 2. रहस्य, छिपाव अर्थ जो परि पूर्वक 'च्यु' के होते हैं)। सम.--रतम् सिपे छिपे स्त्री संभोग,-वृत्तिः(स्त्री०) |व्युत् (म्वा० पर०-च्योतति 1. बंद २ गिर कर बहना, लूटने की आदत । रिसना, चूना, झरना--इदं शोणितमभ्यग्रं संप्रहारेऽमचनम् [ +ल्यूट] 1. चलना-फिरना, गति 2. वञ्चित च्युतत्तयोः-भटि० ६२८ 2. गिरपड़ना, नीचे होना, हानि, वञ्चना 3. मरना, नष्ट होना 4. बहना गिरना, फिसलना-इदं कवचमच्योतीत्-भट्टि टपकना। ६।२९ 3. गिराना, बहाना ।। (म्बा. आ०-व्यवते, व्युत) 1. गिरना, नीचे गिर | व्युत (भू. क. कृ.) [च्यु+क्त, च्युत्+क वा] 1. नीचे पड़ना, फिसलना, सूबना (आलं. भी)-श. २८ गिरा हुआ खिसका हुआ, गिरा हुआ 2. दूर किया 2. बाहर निकलना, बहना, बंद २ करके टपकना, गया, बाहर निकाला गया 3. विचलित, भूला हुआ पार निकालना-स्वतश्च्युतं वह्निमिवाद्भिरम्बुद:-रघु० 4. खोया गया। सम-अधिकार (वि.) पदच्युत ३१५८, मट्टि० ९७४ 3. विचलित होना, भटकना, किया गया,-आत्मन् (वि०) दूषित आत्मा वाला, अलग हो जाना, (कर्तव्य आदि) छोड़ देना (अपा० दुष्टात्मा-कु० ५।८१।। के साथ), अस्माबर्मान्न च्यवेत् -मनु० ७९८, १२॥ युतिः (स्त्री०) [च्यु+क्तिन्] 1. अघः पतन, अवपतन ७१,७२.सो देना, बञ्चित होना-अच्योष्ट सत्त्वा 2. विचलन 3. बूंद २ गिरना, रिसना 4. खोना, न्नुपति:-भट्टि. ३२०, ७.९२ 5. अदृश्य होना, । वञ्चित होना-चर्यच्युतिं कुर्याम्-३।१० 5. अदृश्य मोझल होना, नष्ट होना, गायब होना-रघु०८।६५, होना, नष्ट होना 6. योनिच्छद, 7. गुदा। मनु०१२।९६ 6. घटना, कम होना; परि-- 1. चलें | म्युतः [= फ्युतः पृषो० उकारस्य दीर्घः] आम का वृक्ष । राशि, सात छत्रकारमुत्ता, खु .[छो+3, क वा], अंश, खंड । अधिकार के रूप में छत्र धारण करना,-पतिः 1.राजा छगः (स्त्री०-गी) [छ यज्ञादी छेदनं गच्छति–छ+गम् जिसके ऊपर राज्य की मर्यादा के चिह्रस्वरूप छत्र +] बकरा। किया जाय, प्रभुसत्ताप्राप्त सम्राट् 2. जंबुद्वीप के गल: (स्त्री० ली) [ छो+कल, गुक, ह्रस्वः ] बकरा, प्राचीन राजा का नाम,---भग: 1. राजकीय छत्र का कम्-नीला कपड़ा। विनाश, राज्य का नाश, राजगद्दी से उतारा जाना, अगलक: [छगल+कन्] बकरा। सिंहासनच्युति 2. पराश्रयता 3. रशामन्दी 4. परित्यक्त घटा [छो+अट+टाप्] 1. ढेर, ज, राशि, संघात अवस्था, वैधव्य । -सटाच्छटा भिन्नषनेन-शि० ११४७ 2. प्रकाश | छत्रकः [छत्र+के+क] शिव की पूजा के लिए मन्दिर, किरण-समूह, कान्ति, दीप्ति, प्रकाश-शि० ८१३८ | -कम् कुकुरमुत्ता, खुम्भी। 3. अविच्छिन्न रेखा, लकीर-छातेतराम्बुच्छटा-काव्य। छत्रा, छत्राकः [छद्+ष्ट्रन्+टाप्, छत्रा+कन्] कुकुरमुत्ता, सम-आमा बिजली,-फलः सुपारी का वृक्ष। | खुम्भी -मनु० ५।१९-याज्ञ० १११७६ । [छादयति अनेन इति-छद्+णि+त्रन, हस्व:] | छत्रिकः [छत्र+ठन् ] छाता लेकर चलने वाला। कुकुरमुत्ता, खुभी,--त्रम् छाता, छतरी-अदेयमासीत् छत्रिन् (वि.) (स्त्री०–णी) [छत्र+इनि] छाता रखने प्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे-रघु० वाला या लेकर चलने वाला--(पुं०) नाई।। ३२१६ मनु०७।१६। सम-घर-बार छत्र पकड़ छत्थरः [छद्+वरच्] 1. घर 2. कुञ्ज, पर्णशाला। कर चलने वाला,--बारणम् 1. छाता लेकर चलना, छद् (भ्वा०'चुरा० उभ०-छदति-ते, छादयति-ते, या छाता रखना-मनु० २११७८ 2. राजकीय छन्न, छादित) 1. ढकना, ऊपर से ढाप देना, पर्दा करना For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८९ ) -हमश्छन्ना--मेष० ७६, चक्षुः खेदात्सलिलगुरुभिः । पानी पीने के लिए फुसलाया गया 2. प्रार्थना करना, पश्मभिश्छादयन्तीम्-मेघ० ९०; छनोपान्त'... निवेदन करना 3. अनुनय करना 4. कुछ देना। काननानः-१८ 2. (चादर की भांति) बिछाना, छन्दः [छन्द्+पा] 1. कामना, इच्छा, कल्पना, चाह, ढापना 3. छिपाना, ढक लेना, ग्रहण लगना (आलं.), अभिलाषा,-विज्ञायतां देवि यस्ते छन्द इति-विक्रम गुप्त रखना -ज्ञानपूर्व कृतं कर्म छादयंन्ते ह्यसाधवः ३, जैसा आप चाहें 2. स्वतन्त्र इच्छा, अपनी छोट, --महा०, छन्नं दोषमुदाहरन्ती-मृच्छ० ९।४,-अब, मन की मौज, कामचार, स्वतन्त्र या इच्छानुकूल छिपाना, ढकना, ढापना, मा-, 1. ढापना आचरण-षष्ठे काले त्वमपि दिवसस्यात्मनश्छन्दवर्ती नाच्छादयति कौपीनम्-पंच० ३.९७ 2. छिपाना, -विक्रम० २१, गीत० १, याज्ञ० २।१९५, स्वछन्दम् ढकना--भानोराच्छादयत्प्रभाम्-महा. 3. वस्त्र अपनी स्वतन्त्र इच्छा के अनुसार, निरपेक्ष रूप से धारण करना, कपड़े पहनना-मनु० ३।२७, वस्त्र 3. (अतः) वश्यता, नियन्त्रण 4. मतलब, इरादा मान्छादयति, उद-उघाड़ना, कपड़े उतारना, उप-, आशय 5. जहर। 1. आच्छादित करना 2. छिपाना, ढकना, परि छन्दस् (नपुं०) [छन्+असुन्] 1. कामना, चाह, कल्पना, 1. ढांपना, पहनना-दर्भस्तं परिच्छाद्य-पंच० २, इच्छा, मरजी--(गलीयात) मूर्ख छन्दोऽनवृत्तेन या द्वीपिचर्मपरिच्छन्नः (गर्दभः) हि० ३१९ 2. छिपाना, थातथ्येन पण्डितम् ... चाण. ३३ 2. स्वतन्त्र इच्छा, ढांपना, प्र-, 1. ढांपना, लपेटना, पर्दा डालना, अव स्वेच्छाचरण 3. मतलब, इरादा. 4. जालसाजी, गुंठित करना-(वनं) प्राच्छादयदमेयात्मा नीहारे- चालाकी, धोखा 5. वेद, वैदिक सूबतों का पावन पाठ व चन्द्रमाः --महा० 2. छिपाना, ढकना, भेस बद - स च कुलपतिराद्यश्छन्दसां यः प्रयोक्ता-उत्तर० लना-प्रच्छादय स्वान् गुणान्-भर्तृ० २१७७ प्रदान ३४८, बहुलं छन्दसि-पाणिनि के द्वारा बहुधा प्रयुक्त, प्रच्छन्नम् २१६४, मनु० ४।१९८, १०४०, चौर० ४ प्रणवश्छन्दसामिव - रघु०११११, याज्ञ० १११४३, मनु० 3. कपड़े पहनना, वस्त्र धारण करना 4. रुकावट ४।९५ 6. वृत्त, छन्द - ऋक् छन्दसा आशास्ते-श०४, डालना, रोड़ा अटकाना, प्रति-, 1. छिपाना, ढकना गायत्री छन्दसामहम्-भग०१०।३५, १३३१४ 7. मन्दों 2. ढांपना, लपेटना सम्-1. छिपाना 2. अवगुंठित का ज्ञान, छन्दः शास्त्र (छः वेदाङ्गों में से छन्दः शास्त्र करना, लपेटना। भी एक वेदाङ्गमाना जाता है-अन्य वेदान:छरः, छदनम् [छद् -+-अच्, ल्युट् वा ] 1. आवरण, चादर, शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरुक्त और ज्योतिष) । सम. अल्पच्छद, उत्तरच्छद आदि 2. स्कन्ध, पक्ष-छदहेम -कृतम् वेद का पद्यात्मक भाग या कोई दूसरी पावन कषन्निवालसत्-नै० २०६९3. पत्र, पर्ण 4. म्यान, रचना यथोदितेन विधिना नित्यं छन्दस्कृतं पठेत खोल, गिलाफ, पेटी, बक्स । ---मनु० ४।१००,-गः (छन्दोगः) 1. श्लोकों का छदिः (स्त्री०) छदिस् (नपुं०) [छद् +कि, इस् वा] सस्वर पाठ करने वाला 2. सामगायक या सामगान 1. गाड़ी की छत 2. घर की छत या छप्पर । का विद्यार्थी-मनु० ३३१४५, (छन्दोगः सामवेदाध्यायी) छपन् (नपुं०) [छद्+मनित ] 1. धोखा देने वाले वस्त्र, -भङ्गः छन्दः शास्त्र के नियमों का उल्लंघन,-विचितिः कपटवेश 2. दलील, बहाना, ब्याज-ब्रह्मछपा सामर्य- (स्त्री०) 'छन्द: परीक्षा' छन्दः शास्त्र का एक अन्य सारः-महावी० २।२५, पलितछमना जरा--रघु० -कभी कभी इसे दण्डिरचित माना जाता है-छन्दो१२१२, शि० २।२१ 3. जालसाजी, बेईमानी, चालाकी विचित्यां सकलस्तत्प्रपञ्चो निदर्शित: काव्या० १२१२। --छपना परिददामि मृत्यबे-उत्तर० ११४५, मनु० छन्न (वि.) [छद्+क्त ] 1. ढका हुआ 2. छिपा हमा, ४।१९९, ९।७२। सम०--तापसः बना हुआ तपस्वी, गुप्त, रहस्य आदि, दे० 'छद्' । पाखडी,-रूपेण (अव्य०) अज्ञात रूप से, भेस बदल | छमछम् +अण्डन् ] अनाथ, मातृपितहीन, जिसका कोई कर,-वेशिन् (पुं०) खिलाड़ी, ठग, भेस बदले हुए। सम्बन्धी न हो। छनिन् (वि.) (स्त्री० --नी) [छद्मन+इनि ] 1. जाल- छई (चुरा० उभ०----छर्दयति, छर्दित) वमन करना, के साज, धोखेबाज 2. भेस बदलते हुए (समास के अन्त | करना। में) उदा०- ब्राह्मण छपिन् ब्राह्मण का रूप धारण | छवः, छर्दनं छविः (स्त्री०), छविका छविस् (स्त्री०) किये हुए। [छर्द +घञ्, ल्युट्, इन्, छर्दि+कन्+टाप, छर्द + छन्द (चुरा० उभ०-छंदयति -ते, छंदित) 1. प्रसन्न इति वा] वमन, के करना, अस्वस्थता। करना, तुष्ट करना 2. फुसलाना, बहकाना 3. ढाँपना छलः,-लम् [छल+अच् ] 1. जालसाजी, चालाकी, षोखा, 4. प्रसन्न होना, उप-1. चापलूसी करना, फूसलाना, दगाबाजी-विग्रहे शठपलायनच्छलानि-रघु० १९॥३१, आमन्त्रित करना-त्वयोपछन्दित उदकेन-श० ५, छलमत्र न गृह्यते-मृच्छ० ९।१८, यास. १६६१, For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९० ) मनु०८१४९, १८७, अमरु १६, शि० १३३११ 2. बद- छादम् [छद्+णि+घञ्] छप्पर, छत । माशी, धूर्तता 3. दलील, बहाना, ब्याज, बाह्यरूप, छावनम् खिद् +णिच् + ल्युट्] 1. आवरण, पर्दा (आलं. (इस अर्थ में बहुधा 'उत्प्रेक्षा' बतलाने के लिए इसका | भी) विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः-भत० २१७ 2. छिपाना प्रयोग किया जाता है), परिखावलयच्छलेन या न परेषां 3. पत्र 4. परिधान । ग्रहणस्य गोचरा---०२।९५, प्रत्ययं पूजामुपदाच्छ- छादित (वि०) दे० छन्न । लेन-रषु० ७।३०,५४, १६३२८, भट्टि० १११, अमरु छापिक: [छन्+ठक] धूर्त, कपटी - मनु० ४।१९५ । १५, मा० ९।१4. इरादा 5. दुष्टता 6. हेत्वाभास छान्वस (वि.) (स्त्री०-सी) [छन्दस+अण] 1. वैदिक, 7. योजना, उपाय, तरकीब। वेदों के लिए विशेष शब्द जैसा कि "छान्दसः प्रयोगः" उलन,पा[छल+ल्युट, स्त्रियां टाप च] धोखा देना, 2. वेदाध्यायी, वेदज्ञ 3. पद्यमय, छन्दोबद्ध,-सः वेदठगना, बुद्धि में दूसरे को पराजित करना। जाता ब्राह्मण। छत्तयति (ना० धा० पर०) अपनी चतुराई से बुद्धि में दूसरे छाया [छो+य+टाप्] 1. छाँह, छाँव (त. समास के अन्त को पराजित करना, धोखा देना, ठगना--बलि छलयते में 'छाय' हो जाता है जब कि छाँह की सघनता का गीत० १, शैवाललोलाश्छलयन्ति मीनान् -रघु० १६। | बोध अपेक्षित हो--उदा० इक्षुच्छायनिषादिन्यः --रघु० ६१, भग०१०।३६, अमरु ४१ । ४।२०, इसी प्रकार ७।४, ५०, मुद्रा० ४१२१,) छाया. छलिकम् [छल+ठन्] एक प्रकार का नाटक या नृत्य - | मधः सानुगतां निषेव्य---कु. ११५, ६।४६, अनुभवति छलिक दुष्प्रयोज्यमुदाहरन्ति--मालवि० २। हि मूर्ना पादपस्तीव्रमुष्णं शमयति परितापं छायया छलिन् (पुं०) [छल+इनि] ठग, उचक्का, शठ। संश्रितानां-श० ५।७, रघु० २७५, २६, ३७०, छल्ति, स्ली (स्त्री) [छद्+क्विप, तां लाति-ला-+क मेघ० ६७ 2. प्रतिबिम्वित मूर्ति, अक्स-छाया न गौरा की] 1. वल्कल, छाल 2. फैलने वाली लता मुर्छति मलोपहतप्रसादे शुद्धे तु दर्पणतले सुलभावकाशा 3. सन्तान, प्रजा, सन्तति, औलाद । -श० ७.३२ 3. समरूपता, समानता 4. असत्य हविः (स्त्री०) [छयति असारं छिनत्ति तमो वा-छो+वि कल्पना, दृष्टिभ्रम 5. रंगों का समामिश्रण 6. दीप्ति, किञ्च वा कोप] 1. आभा, चेहरे की सुर्सी, चेहरे का प्रकाश---छायामण्डललक्ष्येण - रघु० ४।५, रत्नच्छायारंगरूप-हिमकरोदयपाण्डुमुखच्छविः-रघु० ९।३८, व्यतिकर:----मेघ०१५।३६ 7. रंग--मा०६।५४. चेहरे छविः पाण्डुरा--श० ३।१०, मेघ० ३३ 2. सामान्य की रंगत, स्वाभाविक रंगरूप,-केवलं लावण्यमयी रंगरूप 3. सौन्दर्य, आभा, कान्ति-छविकरं मुखचूर्ण- छाया त्वां न मुञ्चति-श० ३, मेधैरन्तरितः प्रिये तव मतुश्रियः-रषु० ९४५ 4. प्रकाश, दीप्ति 5. त्वचा, मुखच्छायानुकारी शशी--सा.द.१. सौन्दर्य-क्षाम च्छायं भवनम्-मेघ०८०११०४ 10. रक्षा 11. पंक्ति, छाग (वि.) (स्त्री०-गी) [छो+गन बकरे या बकरी रेखा 12. अन्धकार 13. रिश्वत 14. दुर्गा 15. सूर्य की से सम्बन्ध रखने वाला-याज्ञ. १०२५८,-: (स्त्री० पत्नी (यह सूर्य की पत्नी संज्ञा की प्रकृति-या छाया गी) 1. बकरा बकरी, ब्राह्मणश्छागतो यथा (वंचितः) ही थी, फलतः जिस समय संज्ञा अपने पति को बिना -हि० ४।५३, मनु० ३।२६९ 2. मेष राशि,--गम् बताये अपने पिता के घर चलोग ई तो छाया से सूर्य के बकरी का दूध । सम०-भोजन (पुं०) भेड़िया,-मुखः तीन सन्तान हुई-दो पुत्र-सावणि और शनि, एक कार्तिकेय का विशेषण,-~रवः,-वाहनः आग की देवता कन्या --तपनी) । सम० - अङ्कः चन्द्रमा,-करः छाता अग्नि की उपाधि । लेकर चलने वाला,--प्रहः शीशा, दर्पण, सनयः,-सुतः छागणः [छगण+अण] सूखे कण्डों की आग । सूर्यपुत्र शनि, सबः वह वृक्ष जिसकी छाया धनी हो, छागल (वि०) (स्त्री० - ली) [छगल+अण् ] बकरी से छायादार पेड़-मेष०१-द्वितीय (वि.) वह जिसका प्राप्त होने वाला या उससे सम्बद्ध,-ल बकरा। साथ एक मात्र छाया हो, अकेला, पथः पर्यावरण छात (वि.)[छो+क्त 1. काटा गया, विभक्त 2. निर्बल --रघु०१३।२,--भृत् (पुं०) चन्द्रमा,-मानः चन्द्रमा, दुबलापतला, कृश। -नम् छाया का मापना,-मित्रम् छतरी,- मृगपरः छाछवं गुरोर्वैगुण्यावरणं शीलमस्य-सिद्धा० छत्रण] चन्द्रमा,--यन्त्रम् छाया द्वारा काल का ज्ञान कराने विद्यार्थी, शिष्य,-त्रम् एक प्रकार का मधु । सम० वाला यन्त्र, धूपघड़ी। डकाव्य का अन्यमनस्क विद्यार्थी जिसे श्लोकों | छायामय (वि.)[छाया+मयट ] प्रतिबिम्बित, छायादार। का केवल बारम्भिक पद याद हो, बर्शनम् एक दिन छिः (स्त्री) [छो+कि बा० ] गाली, अपशब्द। रक्खे हुए दूध से निकाला हुआ मक्खन,-व्यंसकः | छिक्का [छिक्+के+क टाप् ] छींकना, छींक । मन्दबुद्धि या धूर्त विद्यार्थी। छित (वि०) दे'छात'। For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छित्तिः (स्त्री०) [ छिद्+क्तिन् ] काटना, टुकड़े-टुकड़े। साफ कर देना, निवारण करना, हटाना (संदेह करना। आदि)। छित्वर (वि.) (स्त्री-री) [छिद् + ध्वरप् पृषो० | छिन् (वि.) [ छिद् +क्विप् ] (समास के अन्त में) काटने दस्य तः ] 1. काटना, काट देना, चीरना, कटाई करना, वाला, विभस्त करने वाला, नष्ट करने वाला, हटाने फाड़ना, छेदना, टुकड़े २ करना, विदीर्ण करना, खण्ड वाला, खण्ड-खण्ड करने वाला-श्रमच्छिदामाश्रमपादखण्ड करना, विभक्त करना-नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि पानाम् --- रघु० ५।६ पङ्कच्छिद: फलस्य-मालवि. भग० २।२३, रघु०१२।८०, मनु० ४।६१, ७० याज्ञ० २।८। २३०२ 2. बाधा डालना, विघ्न डालना 3. हटाना, छिदकम् [छिद्+क्वन 11 इन्द्र का वच, 2.हीरा। दूर करना, नष्ट करना, शान्त करना, मारना-तृष्णां छिदा [छिद्+अ+टाप् ] काटना, विभाजन । छिन्धि-भर्तृ. २७७, एतन्मे संशयं छिन्धि मतिमै छिदिः (स्त्री०) [छि+इन् ] 1. कुल्हाड़ा 2. इन्द्र का संप्रमुपति–महा०, राघवो रथमप्राप्तां तामाशां च वज़। सुरद्विषाम्, अर्धचन्द्रमुखैाणश्चिच्छेद कदलीमुखम्- | छिदिरः [छिद्+किरच ] 1. कुल्हारा 2. शब्द 3. अग्नि रघु० १२।९६, कु. ७१६, अव,-काट डालना, 4. रस्सा, डोरी। टुकड़े २ कर देना, अलग २ करना, विभक्त करना छिदुर (वि०)[छिद्+कुरच 11. काटने वाला, विभक्त 2. भेद बताना, विवेचन करना 3. सुधारना, परिभाषा करने वाला 2. आसानी से टूटने वाला 3. टूटा हुआ, देना, सीमित करना (इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग अव्यवस्थित, अस्तव्यस्त-संलक्ष्यते न म्छिदुरोपि न्याय में बहुमत से होता है), दे० अवच्छिन्न आ,- हार:-रघु० १६॥६२ 4. शत्रु 5. धूर्त, बदमाश, शठ। 1. काट डालना, फाड़ना, टुकड़े २ करना 2. छीनना, | छिद्र (वि०)[छिद+रकु, छिद्र+अच् वा] छिदा हुआ, खसोटना, ले लेना कु० २।४६, मा० ५।२८ 3. काट छिद्रों से युक्त,-ब्रम् 1. छिद्र, दरार, फांट, कटाव, डालना, अलग कर देना-मनु० ४।२१९ 4. हटाना, रन्ध्र, गर्त, विवर, दरज-नवच्छिद्राणि तान्येव प्राणखींचकर दूर करना 5. खींचना, खींचकर दूर स्यायतनानि तु-याज्ञ० ३।९९, मनु० ८।२३९ अयं करना, उद्धत करना, निकालना 6. अवहेलना करना, पटश्छिद्रशतैरलङकृत:-मच्छ० २।९, इसी प्रकार काष ध्यान न देना, उद्--,1. काट डालना, नष्ट करना, धमि० 2. दोष, त्रुटि, दूषण-त्वं हि सर्षपमात्राणि परउन्मूलन करना, उखाड़ देना-नोच्छिद्यादात्मनो मूलं च्छिद्राणि पश्यसि, आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपिन परेषां चातितृष्णया-महा०, किं वा रिपुंस्तवर पश्यसि-महा० 3. भेद्य या क्षीण अंश, दुर्बल पक्ष, दोष, स्वयमच्छिन्नत्ति-रघु० ५।७१, २।२३, पंच० १९४७ न्यूनता–नास्य छिद्रं परो विद्याद्विद्याच्छिद्रं परस्य तु, 2. हस्तक्षेप करना, विघ्न डालना, रोकना-अर्थेन तु गुहेत् कर्म इवाङ्गानि रक्षेविवरमात्मन:-मनु०७।१०५, विहीनस्य पुरुषस्याल्पमेधसः, उच्छिद्यन्ते क्रियाः सर्वाः १०२, छिद्रं निरूप्य सहसा प्रविशत्यशङ्क:-हि० ११८१ ग्रीष्मे कुसरितो यथा-पंच० २।८४, मनु० ३।१०१ (यहां 'छिद्र' का अर्थ 'सूराख' भी है), पञ्च० ॥३९ परि-1. फाड़ना, काट डालना, टुकड़े-टुकड़े करना सम-अनुजीविन,-अनुसम्पानिम्,--अनुसारिन्,2. घायल करना, अंग-भंग करना 3. अलग करना, अन्वेषिम् (वि.) 1. दोष या त्रुटियां ददने वाला विभक्त करना, जुदा करना--शतेन परिच्छिद्य-सिद्धा. 2. दूसरों को दूषित बातों को खोजने वाला, दूसरों में 4. सही-सही निश्चित करना, सीमा बनाना, परिभाषा दोष निकालने वाला, छिद्रान्वेषी-सर्पाणां दुर्जनाना करना, निश्चय करना, भेद बताना, विवेचन करना, परच्छिद्रानुजीविना-पञ्च०१,--अन्तर बेत, नर-मध्यस्था भगवती नौ गुणदोषतः परिच्छेत्तुमर्हति कुल, सरकण्डा,-- आत्मन् (वि.) जो अपनी त्रुटियाँ -मालवि०१, (न) यशः परिच्छेत्तुमियत्तयालम्-रघु० दूसरों पर प्रकट कर देता है, कर्ण (वि) जिसने ६१७७, १७.५९, कु० २।५८ प्र---, 1. काट डालना, कान बिंधवा लिये है,-वर्शन (वि.) 1. दोषों का टुकड़े २ करना 2. ले जाना, वापिस लेना वि---, प्रदर्शन करने वाला 2. दोषदर्शी। 1. काट डालना, तोड़ना, फ़ोड़ना, विभक्त करना-यदर्धे छिद्रित (वि.) [छिद्र+इतच् ] 1. छिद्रों से युक्त 2. बिंधा विच्छिन्नं भवति कृतसन्धानमिव तत्-श० ११९, | हुआ, छिदा हुआ। रघु० १६।२०, भर्तृ० ११९६ 2. बाधा डालना, तोड़ | छिन्न (भू० क० कृ०) [छिद्+क्त] 1. कटा हुआ, विभक्त देना, समाप्त करना, खतम करना, नष्ट करना, किया हुआ, विदीर्ण, कटा हुआ, खण्डित, फाड़ा हुआ, (कुल का दीपक) बुझा देना-विच्छिद्यमानेऽपि कुले टूटा हुआ 2. नष्ट हुआ, दूर किया हुआ--दे० छिद्र, परस्य-भट्टि० ३१५२, अमरु ७४, सम्,--1. काटना, -प्रा वाराङ्गना, वेश्या। सम०-केश (वि०) जिसके काट डालना, विभक्त करना 2. दूर करना, बाल काट लिये गये हैं, जिसका क्षौर या मुण्डन हो रुः For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३९२ ) चुका है, मः खण्डित वृक्ष, द्वेष (वि०) जिसका सन्देह मिट गया है, नासिक (वि०) जिसकी नाक कट गई है, भिझ ( वि० ) जो पूरी तरह काट दिया गया है, जिसका अंग भंग हो गया है, क्षतविक्षत, काटा हुआ, मस्त, मस्तक ( वि०) कटे हुए सिर वाला, - मूल (वि० ) जिसे जड़ से काट दिया गया है- रघु० ७१४३, श्वासः एक प्रकार का दमा, संशय (वि० ) जिसके सन्देह दूर हो गये हैं, सन्देहमुक्त, पुष्ट । छछुन्दरः (स्त्री० री) [ छुछुम् इत्यव्यक्तशब्दो दीयंते निर्गच्छति अस्मात् छुछुम्+दृ + अप्] छछुन्दर नाम का जन्तु, गन्धाखु-याश० ३।२१३, मनु० १२२६५ । छप् (तुदा० पर०-छुपति) स्पर्श करना, छूना । छप: [ छुप+क ] 1. स्पर्श 2. झाड़ी, शंखाड़ 3. संघर्ष, युद्ध । छुट्ट (भ्वा० पर० - छोरति, छुरित) 1. काटना, विभक्त करना 2. उत्कीर्ण करना, ii ( तुदा० पर० छुरति, छुरित) 1. ढांपना, सानना, लीपना, जड़ना, पोतना, rajठित करना 2. मिलाना, वि, सानना, लीपना, ढकना, पोतना -- मनः शिलाविच्छुरिता निषेदुः कु० ११५५, चौर० ११, विक्रम ० ४।४५ । छुरणम् [ छुर्+युट् ] सानना, लीपना – ज्योत्स्नाभस्मच्छुरणधवला रात्रिकापालिकीयम् - काव्य० १० । छुरा [ छुर् + क+टाप् ] चुना । छुरिका [छुर् + क् +टाप्, इत्वम् ] चाकू, छूरी । छुरित (भू० क० कृ० ) [ छुर् + क्ते ] 1. खचित, जडि 2. ऊपर फैलाया हुआ, पोता हुआ, आच्छादित किया हुआ - अनेकधातुच्छुरिताश्मराशेः - शि० ३१४, ७, इन्दुकिरणच्छुरितमुखीम् - काव्य० १० 3. समामिश्रित अन्तमिश्रित - परस्परेण छुरितामलच्छवी - शि० १।२२ । छुरी, छुरिका, छूरी [ छुर + ङीप्, छूरी + कन् + टापू, ह्रस्वः, छुरी पृषो० दीर्घः ] चाकू, छुरी । छड् i (म्बा० पर०, चुरा० उभ० छर्दति, छर्दयति ते) जलाना ii (रुषा० उभ० छृणत्ति, छन्न) 1. खेलना 2. चमकना 3. वमन करना । छेक (वि० ) [ छो+ डेकन् बा० तारा० ] 1. पालतू, घरेलू ( जैसे कि हिस्रजन्तु) 2. नागरिक, शहरी 3. बुद्धिमान्, नागर । सम० - अनुप्रासः अनुगस के पाँच भेदों में से | ज (वि० ) [ जि-जन् जु+ड ] ( समास के अन्त में) से या में उत्पन्न, पैदा हुआ, वंशज, अवतीर्ण, उद्भूत, आदि - अत्रिनेत्रज, कुलज, जलज, क्षत्रियज, अण्डज, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक, 'एक बार वर्णावृत्ति' जो कि व्यंजन समूहों में अनेक प्रकार से तथा एक ही बार घटने वाली समानता है -- उदा० - मादाय बकुलगन्धनन्धीकुर्वन्पदे पदे भ्रमरान्, अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः-सा० द० ६३४, - अपह्नुतिः (स्त्री० ) अपह्नुति अलंकार का एक भेद चन्द्रालोक सोदाहरण निरूपण करता है - छेकापह्नुतिरन्यस्य शङ्कातस्तस्य निह्नवे, प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः कान्तः किं न हि नूपुर :- ५/२७, उक्ति: ( स्त्री०) वक्रोक्ति, व्यंग्यात्मक वक्रोक्ति, द्वघर्थक मुहावरा । छेः [ छिद्+घञ ] 1. काटना, गिराना, तोड़ डालना, खण्ड-खण्ड करना -- अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियन्ते नन्दनद्रुमाः -- कु० २१४१, छेदो दंशस्य दाहो वा मालवि० ४/४, रघु० १४१, मनु० ८ २७०, ३७०, याज्ञ० २।२२३२४० 2. निराकरण करना, हटाना, छिन्नभिन्न करना, सौंफ करना, जैसा कि 'संशयच्छेद' में 3. नाश, बाधा - निद्राच्छेदाभिताम्रा मुद्रा० ३।२१ 4. विराम, अवसान, समाप्ति, लोप होना जैसा कि 'धर्मच्छेद' में 5. टुकड़ा, ग्रास, कटौती, खण्ड, अनुभाग - बिस किसलयच्छेदपाथेयवन्तः --- मेघ० ११, ५९, अभिनवकरिदन्तच्छेदपाण्डुः कपोल: -- मा० ११२२, कु० १४ श० ३।७, रघु० १२ १००, 6. (गणित में ) भाजक, हर ( भिन्नराशि का ) । छेदनम् [ छिद् + ल्युट् ] 1. काटना, फाड़ना, काट डालना, टुकड़े २ करना, खण्ड-खण्ड विभक्त करना - मनु ८ २८०, २९२, ३२२ 2. अनुभाग, अंश, टुकड़ा, भाग 3. नाश, हटाना। छविः [ छिद् +इन् ] बढ़ई । छेमण्ड [ छम् + अण्डन्, एत्वम् ] मातृपितृहीन, अनाथ । छलकः [ छो+डेलक ] बकरा । [छवि: [ छेद + ठक् ] बेत । छो (दिवा० पर ० - उघति, छात या छित-प्रेर० छापयति ) काटना, काट कर टुकड़े टुकड़े करना, कटाई करना, लवनी करना, भट्टि० १४/१०१,१५/४० ॥ छोटिका [ छुट् + ण्वुल +टाप्, इत्वम् ] चुटकी । छोरणम् [ छुर् + ल्युट् ] त्याग करना, छोड़ देना । उद्भिज आदि, --ज: 1. पिता 2. उत्पत्ति, जन्म 3. विष 4. भूतना, प्रेर या पिशाच 5. विजेता 6. कान्ति, प्रभा 7. विष्णु । For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९३ ) जकुट: (पुं०) 1. मलय पर्वत 2. कुत्ता। | जघन्य (वि.) [ जघने भवः यत् ] 1. सबसे पिछला, जश् (अदा० पर०-जक्षिति, जक्षित या जग्ध) खाना, | अन्तिम-भग० १४११८ मनु०८।२७० 2. सबसे बुरा खा लेना, नष्ट करना, उपभोग करना-भट्टि० ४।३९, अत्यन्त दुष्ट, कमीना, अधम, निंद्य 3. नीच कूल में १३।२८, १५।४६, १८११९ । उत्पन्न,--न्यः शूद्र। सम-जः 1. छोटा भाई लक्षणम्, जक्षिः [जश् + ल्युट, इन् वा ] खाना, उपभोग | 2. शूद्र। करना। जनिः [ हन्+किन्, द्वित्वम् ] (आक्रमणकारी) शस्त्र, जगत् (वि०) (स्त्री-ती) [गम् +क्विप् नि० द्वित्वं | हथियार। तुगागमः ] हिलने-जुलने वाला, जङ्गम - सूर्य आत्मा | जघ्नु (वि०) [हन्+कु, द्वित्वम् ] प्रहार करने वाला, जगतस्तस्थुषश्च-ऋक १।११५ । १, इदं विश्वं जगत्सर्व- वध करने वाला। मजगच्चापि यद्भवेत्-महा०, (पुं०), वायु, हवा (नपुं०) जङ्गम (वि.) [गम्+यह+अच, घातोद्वित्वं यङो लक संसार---जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरी-रषु० च] हिलने-जुलने वाला, जीवित, चर-चिताग्निरिव १०१। सम-अम्बा, -अम्बिका दुर्गा,-आत्मन् जङ्गमः-रघु०१५।१६, शोकाग्निरिव जनमः-महावी० (पुं०) परमात्मा, आदिजः शिव का विशेषण,-आधारः ५।२०, मनु० १२४९,- भम् चर या हिलने-डुलने 1. समय 2. वायु, हवा, आयुः,-आयुस् (पुं०) वाला पदार्थ-रघु० २।४४। सम०--इतर (वि०) हवा, ईशः,-पतिः विश्व का स्वामी, परमदेव,-उद्धारः अचर, स्थावर,-कुटी छाता, छतरी । संसार की मुक्ति,-कर्त,---धातु (पुं०) सष्टि का | | जङ्गलम् [गल+य+अच् पृषो०] 1. मरुस्थल, सुनसान बनाने वाला,--चक्षुस् (पुं०) सूर्य,-नाथः विश्व का "जगह, ऊसर भूमि 2. झुरमुट, वन 3. एकान्त निर्जन स्वामी,-निवासः 1. परमात्मा 2. विष्णु का विशे स्थान। षण-जगन्निवासो वसुदेवसनि-शि० १११ 3. सांसा जङ्गाल: [=जङ्गल, पृषो० साधुः ] मेढ़, बाँध, सीमा रिक अस्तित्व,-प्राणः, -बलः हवा,-योनिः 1. परम चिह्न । पुरुष 2. विष्ण का विशेषण 3. शिव की उपाधि जङगुलम् [ गम् +यङ् + डुल, धातोद्वित्वं यङो लुक् च ] 4. ब्रह्मा का विशेषण (नि:-स्त्री०) पृथ्वी,-यहा पृथ्वी, । विष, जहर। --साक्षिन् (पुं०) 1. परमात्मा 2. सूर्य। जडा [जङ्गन्यते कुटिलं गच्छति-हन+यह+अच, जगती [ गम् +अति नि० साधुः ] पृथ्वी, (समीहते) नयेन- यङो लुक पृषो०] जांघ, टखने से लेकर घुटने तक का जेतुं जगतीं सुयोधनः-कि० १७, समतीत्य भाति भाग, पिण्डली। सम-आरः,कारिकः पावक, जगती जगती---५।२० 2. लोग, मनुष्य 3. गाय हरकारा, दूत, सन्देशहर,--त्राणम् टांगों के लिए 4. छन्दो भेद (दे० परिशिष्ट)। सम०-अधीश्वरः, कवच। ईश्वरः राजा-नै० २११,-रह (पुं०) वृक्ष । | जङ्घाल (वि.) [ जवा+लच् [ शीघ्रधावक, प्रजवी, जगनुः (ः)=1. अग्नि 2. क्रीड़ा 3. जन्तु । -ल: 1. हरकारा 2. हरिण, बारहसिंघा। जगरः [जागर्ति युद्धेऽनेन-जागृ+अच पृषो० तारा०] कवच । जडिल (वि.) [जङ्का+इलच्] प्रधावक, प्रजवी, फुर्तीला। जगल (वि.) [जन् ड जः जातः सन् गलति गल+ । जज, जज (भ्वा० पर०-जजति, जजति) लड़ना, युद्ध अच् ] बदमाश, चालाक, धूर्त,-लम् 1. गोबर करना। 2. कवच 3. एक प्रकार की मदिरा (पुं०) (अन्तिम दो | जट् (भ्वा० पर० ---जतति) जुड़ जाना, (बालों का) पल अर्थों में भी)। खाकर जटाजूट होना। जग्ध (वि.) [अद्+क्त जग्धादेश: ] खाया हुआ। जटा [जट्+अच्+टाप्] 1. बटे हुए बाल, आपस में जग्धिः (स्त्री०) [अद् +क्तिन् जग्धादेशः] 1. खाना बल खाकर चिपके हुए बाल-अंसव्यापि शकुन्तनीड2. भोजन । निचितं बिभ्रज्जटामण्डलम्-श० ७।११, जटाश्च जग्मिः [गम्+कि, द्वित्वम् ] हवा । बिभृयान्नित्यम्-मनु० ६।६, मा० ११२ 2. तन्तुमय जधनम् [ हन्+अच्, द्वित्वम् ] 1. पुट्ठा, कूल्हा, चूतड़,- जड़ 3. सामान्य जड़ 4. शाखा 5. शतावरी का पौधा । घटय जघने काञ्चीमञ्च स्रजा कबरीभरम्-गीत० सम०-चीरः,-टः,-टीरः,-धरः शिव के विशेषण, १२ 2. स्त्रियों का पेड़ 3. सेना का पिछला भाग, सेना --जूट: 1. जटाओं के रूप में बटे हुए बालों का समूह का सुरक्षित भाग। सम-कूपको (द्वि० व०) किसी 2. शिव की जटाएँ - जटाजूटग्रन्थो यदसि विनिबद्धा सुन्दरी के कूल्हे के ऊपर के गड्ढे,--चपला व्यभि- पुरभिदा-गंगा० १४,-ज्वाल: दीप, लैंप,-घर (वि०) चारिणी स्त्री, कामुका-पत्युविदेशगमने परमसुखं जटाधारी। जघनचपलायाः-पञ्च० १।१७३। जटायुः [ जटं संहतमायुः यस्य ब० स०] श्येनी और अरुण ५० For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का पुत्र, अर्घ दिव्य पक्षी [ यह दशरथ का घनिष्ठ -याज्ञ० २।२५, मनु० २।११० 4. मन्दीकृत, उदासीन मित्र था, जब रावण सीता का अपहरण करके ले या चेतनाशून्य किया हुआ, गुणविवेचनशून्य अरसिक जा रहा था तो जटायु ने सीता का रुदन और करुण- ---वेदाभ्यासजडः कथं नु विषयव्यावृत्तकौतुहल: क्रन्दन सुना, फलत: वह बेधड़क हो रावण से भिड़ --विक्रम० ११९ 5. हड़बड़ा देने वाला, जड बना देने गया, घमासान युद्ध हुआ, परन्तु वह सीता को रावण वाला, संज्ञाशन्य करने वाला 6. गंगा 7. वेद (दायभाग) के पजे से न छुड़ा सका और स्वयं घायल हो पढ़ने के अयोग्य,-डम् 1. पानी 2. सीसा। सम० प्राणान्तक पीड़ा से तड़पता रहा। अन्त में सीता -क्रिय (वि.) मन्थर, दीर्घसूत्री।। की खोज करते हुए राम उसके पास से निकले तो । जउता,-स्वम् [जड+तल-टाप, जड+त्व वा] 1. मन्दता, उस दयाल जटायु ने राम को यह बतला कर कि कार्य में अरुचि, आलस्य 2. अज्ञान, बुद्धपन 3. (अल. सीता को रावण उठा कर ले गया है, अन्तिम श्वास ___ शा० में) ३३ संचारी भावों में एक-मन्दता, सा० लिया। राम और लक्ष्मण ने उसका विधिपूर्वक द० १७५ । अन्त्येष्टि संस्कार किया ] 1 जडिमन् (पुं०) [ जड+ इमनिच् ] 1. ठण्डक 2. जडता जटाल (वि.) [जटा+लच] 1. जटाजूटधारी 2. (चिपके 3. मन्दता, उदासीनता 4. मूर्छा, संज्ञाहीनता। हुए बालों की भांति) एक स्थान पर इकट्ठे किये हुए | जत (नपं०) [जायते वृक्षादिभ्यः जन्+उ त आदेशः] --भामि० ११३६,-ल: गूलर का पेड़ । लाख । सम०--अश्मकम् शिलाजीत,-पुत्रकः शतरंज जटिः (टी) (स्त्री०) [जट+-इन्, जटि+ ङीष्] 1. गूलर __ का मोहरा,-रसः लाख, महावर । __ का पेड़ 2. उलझ पुलझ कर चिपके हुए 3. संघात, | जतुकम् [जतु कन्] लाख, महावर । समुच्चय। जतुका [जतुक+टाप्] 1. लाख 2. चमगादड़ । जटिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [जटा+इनि ] जटाधारी, जतुकी, जतूका [जतुक+डीष, जतुका नि० दीर्घः] (५०) 1. शिव का विशेषण 2. प्लक्ष का वृक्ष, पाकड़ । चमगादड़। का पेड़। जत्रु (नपुं०) [जन्+रु तोऽन्तादेशः] ग्रीवास्थि, हंसुली। जटिल (वि.) [जटा+इलच्] 1. (संन्यासियों की भांति)। | जन (दिवा० आ०-जायते, जात-क० वा. जन्यते या जटाधारी,-विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनम्-कु० जायते) पैदा होना, उत्पन्न होना (अपा० के साथ), ५।३०, (यहाँ 'जटिल' शब्द 'संज्ञा' भी है और इसका अजनि ते वै पुत्र:-ऐत०, मनु० ११९, ३।३९, ४१, अर्थ है 'संन्यासी') 2. पेचीदा, अव्यवस्थित, अन्तर्मि प्राणाद्वायुरजायत- ऋग्० १०१९०११२, मनु०१०१८, श्रित, गडमड किया हुआ-विजानन्तोऽप्येते वयमिह ३।७६, ११७५ 2. उठना, फूटना (पौधे की भांति) विपज्जालजटिलान्, न मुञ्चामः कामानहह गहनो उगना 3. होना, बन जाना, आ पड़ना, 'घटित होना, मोहमहिमा--भर्तृ० ३।२१ 3. सघन, अभेद्य,-ल: घटना-अनिष्टादिष्ट लाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा 1. सिंह 2. बकरा। -हि० ११६, रक्तनेत्रोऽजनि क्षणात्-भट्टि०६।३२, जठर (वि०)[ जायते जन्तुर्गर्भो वास्मिन् ... जन+अर ठान्त याज्ञ० ३।२२६, मनु० १२९९, प्रेर० जनयति जन्म देश:-तारा०] कठोर. सख्त, दृढ़,--:,-रम् पेट, देना, पैदा करना, उत्पन्न करना-अन-1. बाद में उदर-जठरं को न बिभर्ति केवलम्--पंच० १।२२ पैदा होना-पुत्रिकायां कृतायां तु यदि पुत्रोऽनुजायते-- 2. गर्भाशय 3. किसी वस्तु का भीतरी भाग। सम. मनु० ९।१३४ 2. समरूप पैदा होना-असौ कुमारस्त---अग्निः पेट में स्थित अग्नि जो आहार को पचाने मजोऽनुजात:-रघु० ६१७८ (तस्माज्जातः-मल्लि.), का काम करती है, आमाशय की गिल्टियों से निकलने अभि-, 1. पैदा होना, उत्पन्न होना, उदय होना, वाला रस, -आमयः जलोदर रोग,-ज्वाला, -व्यथा फुटना-कामाक्रोधोऽभिजायते--भग० २।६२० हि. उदर-ज्वाला, भूख का कष्ट, शूल -यंत्रणा, -यातना श२०५ 2. होना, घटित होना 3. परिणत होना गर्भवास का कष्ट । 4. उच्चकुल में जन्म होना 5. उत्पन्न होना-भग० जड (वि०) [जलति घनीभवति जल+अच, लस्य ड: ] १६१३, उप-, 1. पैदा होना, उत्पन्न होना, निकलना, 1. शीतल, जमा हुआ या ठंडा, शीत या ठिठुरा देने उगना-ऊष्मणश्चोपजायते-मनु० ११४५, सङ्गस्तेषवाला 2. मन्द, लूला-लंगड़ा, गतिहीन, जडीकृत पजायते-भग० २१६२, १४|११ 2. फिर जन्म लेना, -चिन्ताजडं दर्शनम् - श० ४।५, परामशन हर्षजडेन याज्ञ० ३।२५६, भग० १४१२, 3. होना, घटित होना। पाणिना--रघु० ३२६८, २१४२ 3. निश्चेतन, । प्र-, वि-, सम्-, 1. उगना, निकलना, फूटना 2. पैदा चेतनारहित, विवेकशून्य, मन्दबुद्धि-जडानन्धान पंगुन् होना, उत्पन्न होना। ..'त्रातुम-गंगा० १५, इसी प्रकार जडघी, जडमति | जनः [जन्+अच् ] 1. जीवजन्तु, जीवित प्राणी, मनुष्य For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९५ ) 2. व्यक्ति, पुरुष (चाहे मनुष्य हो या स्त्री)- क्व वयं को सुख देना, लोकप्रियता का प्रसाद प्राप्त करना, क्व परोक्षमन्मयो मृगशावः सममेधितो जनः । श० | --खः 1. किंवदन्ती 2. बदनामी, लोकापवाद,-लोकः २।१८, तत्तस्य किमपि द्रध्यं यो हि यस्य प्रियो जनः ऊपर के सात लोकों में से पाँचवाँ, महर्लोक के ऊपर -उत्तर० २।१९, इसी प्रकार 'सखीजनः' सहेली, स्थित लोक,-वादः ('जनेवादः' भी) 1. समाचार, 'दासजनः' सेवक, 'अबलाजनः' आदि (इस अर्थ में जनश्रुति 2. लोकापवाद,-व्यवहार लोकप्रिय चलन, 'जनः' या 'अयंजन:' का प्रयोग बहुधा वक्ता के द्वारा -श्रुत (वि.) विख्यात, प्रसिद्ध,-श्रुतिः (स्त्री०) स्त्री या पुरुष दोनों के लिए एकवचन या बहुवचन किंवदन्ती, जनरव,-संबाध वि० घना बसा हुआ, में किया जाता है और उत्तम पुरुष भी प्रथम पुरुष के -स्थानम् दण्डक वन के एक भाग का नाम-रघु० रूप में प्रयुक्त होता है)-अयं जनः प्रष्टुमनास्तपोधने १२।४२, १३।२२, उत्तर० ११२८, २।१७। --कु० ५।४० (मनुष्य); भगवन्परवानयं जनः प्रति अनक (वि.) (स्त्री०---निका) [जन्+णिच+पवुल] कूलाचरितं क्षमस्व मे--- रघु०८1८१ (स्त्री), पश्यानङ्ग जन्म देने वाला, पैदा करने वाला, कारण बनने वाला शरातरं जनमिमं त्रातापि नो रक्षसि-नागा० १११ या उत्पन्न करने वाला; क्लेशजनक, दुःखजनक आदि, (स्त्री, ब०व०) 2. सामूहिक रूप में मनुष्य, लोग, --क: 1. पिता, जन्म देने वाला 2. विदेह या मिथिला संसार (ए. व. या ब०व० में)–एवं जनो गृह्णाति के प्रसिद्ध राजा, सीता का धर्मपिता। वह अपने -मालवि० १, सतीमपि ज्ञातिकुलकसंश्रयां जनोऽन्यथा प्रभूत ज्ञान, अच्छे कार्य और पवित्रता के कारण भर्तमती विशइते-श० ५।१७ 3. वंश, राष्ट्र, प्रसिद्ध था। राम के द्वारा सीता का परित्याग किये कबीला 4. 'महः' लोक से परे का संसार, देवत्व को जाने पर उन्होंने वैराग्य ले लिया, सुख और दुःख के प्राप्त मनुष्यों का स्वर्ग। सम.--अतिग (वि.) प्रति उदासीन हो गये और अपना सगय दार्शनिक असाधारण, असामान्य, अतिमानव,-अधिपः,-अधिनाथः चर्चा में बिताया। याज्ञवल्क्य मुनि जनक के पुरोहित राजा,--अन्तः 1. वह स्थान जहाँ मनुष्य नहीं रहते, और परामर्श दाता थे। सम०-- आत्मजा,--तनया, वह स्थान जो बसा हुआ नहीं है 2. प्रदेश 3. यम का -नन्दिनी,-सुता जनक की पुत्री सीता के विशेषण । विशेषण, अन्तिकम् गुप्त संवाद, कान में कहना या जनङ्गमः [ जनेभ्यो गच्छति बहिः, जन+गम्+खच्, एक ओर होकर कहना (अव्य०) एक ओर को शुभागमः ] चाण्डाल। (नाटकों में)-सा० द. रंगमंच के निदेश की परि- जनता [जनानां समूहः-तल] 1. जन्म 2. लोगों का भाषा इस प्रकार बतलाता है :-त्रिपताकाकरेणान्या- समूह, मनुष्य जाति, समुदाय-पश्यति स्म जनता नपवातिराकथाम, अन्योन्यामंत्रणं यत् स्याज्जनान्ते दिनात्यये पार्वणी शशि दिवाकराविव-रघु० ११३८२, तज्जनान्तिकम, ४२५,-अर्दनः विष्णु या कृष्ण का १५।६७, शि० ९।१४। विशेषण, अशनः भेडिया,-आकीर्ण (वि.) लोगों जनन (वि.) [ जन+ल्य टु ] पैदा करने वाला, उत्पन्न से ठसाठस भरा हुआ, जनसंकुल,-आचारः लोकाचार, करने वाला आदि,-नम् 1. जन्म, पैदा होना,लोकरीति,-आश्रमः धर्मशाला, सराय, पथिकाश्रम, यावज्जननम् तावन्मरणम् - मोह० १३ 2. पैदा करना, -आधयः मण्डप, शामियाना,-इन्द्रः,-ईशः,-ईश्वरः उत्पादन करना, सृजन करना-शोभाजननात्-कु. राजा, नष्ट (वि०) लोकप्रिय (ष्ट:) एक प्रकार १४२ 3. साक्षात्कार, प्रत्यक्षीकरण, उदय 4. जीवन, की चमेली,--उदाहरणम् यश, कोर्ति, ओघः जनसंमर्द, अस्तित्व-यदैव पूर्वे जनने शरीरं सा दक्षरोषारसुदती भीड़, जमघट,-कारिन् (पुं०) अलक्तक,--चक्षुस् ससर्ज-कु० ११५३, श० ५।२, गोत्र, कुल, वंशपरंपरा। (नपुं०) 'लोकलोचन' सूर्य,-त्रा छाता, छतरी,-देवः | जननिः (स्त्री०) जिन्+अनि] 1. माता 2. जन्म । राजा,-पदः 1. जनसमुदाय, वंश, राष्ट्र- याज्ञः | जननी [जन्+णि+अनि+ङीप्] 1. माता 2. दया, ११३६० 2. राजधानी, साम्राज्य, बसा हुआ देश | दयालुता, करुणा 3. चमगादड़ 4. लाख । -जनपदे न गदः पदमादधौ-रघु० ९।४, दाक्षिणात्ये | जनमेजयः [जनान् एजयति इति जन् + एज+णिच् +खश, जनपदे-पंच०१, मेघ० ४८ 3. देश (विप० पुर, ममागमः] हस्तिनापुर का एक प्रसिद्ध राजा, परीक्षित नगर)-जनपदवधूलोचनैः पीयमानः-मेघ० १६ का पुत्र और अर्जुन का पोता (जनमेजय का पिता 4. जनसाधारण, प्रजा (विप० प्रभु) 5. मनुष्यजाति, साँप के काटे जाने से मरा, इसलिए जनमेजय ने उस -परिन् (पुं०) किसी जनसमुदाय या देश का राजा, क्षति का प्रतिशोध करने के लिए संसार से सर्पजाति -प्रवाः 1. अफ़वाह, किंवदन्ती, जनश्रुति 2. लोका- का समूल विनाश करने के लिए दृढ़ संकल्प किया। पवाद, बदनामी,-प्रिय (वि.) 1. लोक हितेच्छु तदनुसार एक सर्पयज्ञ का आरंभ किया गया जिसमें 2. सर्वप्रिय,-मर्यावा सर्वसम्मत प्रथा,-रजनम् लोगों तक्षक को छोड़ कर और सब सर्प जला दिये गये। For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३९६ ) आस्तिक ऋषि के बीच में पड़ने से तक्षक के प्राण बचे और सर्पयज्ञ बन्द कर दिया गया। इस यज्ञ के कारण ही वैशम्पायन ने राजा को महाभारत की कथा सुनाई, राजा ने भी ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित्त करने के लिए उस कथा को ध्यानपूर्वक सुना ) । जनयत् (वि० ) ( स्त्री - श्री) [जन् + णिच् + तृच् ] पैदा करने वाला, जन्म देने वाला, सृष्टिकर्ता - ( पुं०) पिता । जनयित्री [ जनयितृ + ङीप् ] माता । जनस् (नपुं० ) [जन् + णिच् + असुन्] दे० जन ३ । जनि:, जनिका जनी (स्त्री० ) [ जन्+इन्, जनि + कन् + टापू, जनि + ङीष् ] 1. जन्म, सृजन, उत्पादन 2. स्त्री 3. माता 4. पत्नी 5. स्नुषा, पुत्रबधू । जनित ( वि० ) [जन् + णिच् + क्त ] 1. जिसे जन्म दिया गया है 2. पैदा किया हुआ, सृजन किया हुआ, उत्पन्न किया हुआ । जनितू (पुं० ) [जन् + णिच् + तृच् ] पिता । जनित्री [जनितू + ङीप् ] माता । जनु (नू ) ( स्त्री० ) [ जन्+उ, जनु + ऊङ् ] जन्म, उत्पत्ति । जनुस् (नपुं०) [ जन्+उसि.] 1. जन्म- - धिग्वारिधीनां जनु: - भामि० ११६ 2. सृष्टि, उत्पादन 3 जीवन, अस्तित्व - जनुः सर्वश्लाघ्यं जयति ललितोत्तंस भवतः - भामि० २५५ । सम० – जनुषान्धः जन्म से अन्धा, जन्मान्ध । जन्तुः [ जन् + तृन् ] 1. जानवर, जीवित प्राणी, मनुष्य - श० ५/२, मनु० ३।७१ 2. आत्मा, व्यक्ति 3. निम्न जाति का जानवर। सम० कम्बुः 1. घोघे की सीपी 2. घोध, फलः गूलर का वृक्ष । जन्तुका [ जन्तु +कै++ टाप ] लाख । जन्तुमतो [ जन्तु + त् + ङीप् ] पृथ्वी । जन्मम् [ जन्+मन् ] उत्पत्ति । जन्मन् [ जन् + मनिन् ] 1. जन्म- तां जन्मने शलवधूं प्रपेदे – कु० १।२१ 2. मूल उद्गम, उत्पत्ति, सृष्टि -आकरे पद्मरागाणां जन्म काचमणेः कुतः - हि० प्र० ४४, कु० ५।६० (समास के अन्त में) से उत्पन्न या उदय - सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा दवाग्निः - मेघ० ५३ 3. जीवन, अस्तित्व – पूर्वेष्वपि हि जन्मसु मनु० ९/१००, ५1३८, भग० ४/५ 4. जन्म-स्थान 5. उत्पत्ति । सम० अधिपः 1. शिव का विशेषण 2. ( ज्योतिष में ) जन्म लग्न का स्वामी - अन्तरम् दूसरा जन्म, अन्तरीय ( वि० ) दूसरे जन्म से सम्बद्ध या किसी दूसरे जन्म में किया हुआ, अन्ध (वि०) जन्म से ही अन्धा, अष्टमी भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी, श्रीकृष्ण का जन्म दिन, - - कील: विष्णु का विशेषण, - कुण्डली जन्म-पत्रिका में बनाया गया चक्र जिसमें जन्म के समय की ग्रहों की स्थिति दर्शायी गई हो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --कृत् (पुं०) पिता, क्षेत्रम् जन्म स्थान – तिथि: ( पुं०, स्त्री० ) - दिनम् - दिवस: जन्मदिन, यः (वि०) पिता, नक्षत्रम् भम् जन्म के समय का नक्षत्र, - नामन् ( नपुं०) जन्म से बारहवें दिन रक्खा गया नाम, पत्रम्, पत्रिका वह पत्र या पत्रिका जिसमें जन्म लेने वाले बालक के जन्म काल के नक्षत्र या ग्रह आदि बतलाये गये हों, प्रतिष्ठा 1. जन्म स्थान 2. माता श० ६ - भाज् (पुं०) जानवर, जीवित प्राणी - मोदन्तां जन्मभाजः सततं - मुच्छ० १०/६०, --- भाषा मातृभाषा — यत्र स्त्रीणामपि किमपरं जन्मभाषावदेव प्रत्यावासं विलसति वचः संस्कृतं प्राकृतं च - विक्रम ० १८०६, भूमिः (स्त्री०) जन्म स्थान, स्वदेश, – योग: जन्मपत्र, रोगिन (वि०) जन्म का रोगी, जिसे जन्मसे ही रोग लगा हो, लग्नम् वह लग्न जो जन्म के समय हो, वर्मन् (नपुं० ) योनि, शोधनम् जन्म से प्राप्त कर्तव्यों का परिपालन, साफल्यम् जीवन के उद्देश्यों की सिद्धि, स्थानम् 1. जन्मभूमि, स्वदेश, वह घर जहाँ जन्म लिया है 2. गर्भाशय । जन्मिन् (पुं० ) [ जन्मन् + इनि] जानवर, जीवधारी प्राणी । जन्य ( वि० ) [ जन् + ण्यत्, जन्+ णिच् + यत् वा ] 1. जन्म लेने वाला, पैदा होने वाला 2. जात, उत्पन्न, 3. ( समास के अन्त में) से उत्पन्न, जनित 4. किसी वंश या कुल से संबद्ध 5. गंवारू, सामान्य 6. राष्ट्रीय, 1. पिता 2. मित्र, दूल्हे का सम्बन्धी या सेवक 3. साधारण जन 4. जनश्रुति, किंवदन्ती, -म्यम् 1. जन्म, उत्पत्ति, सृष्टि 2. जात, सृष्ट, उत्पादित वस्तु, (विप० जनक ) - जन्यानां जनकः कालः- भाषा० ४५; जनकस्य स्वभावो हि जन्ये तिष्ठति निश्चितम् - - शब्द०, 3. शरीर 4. जन्म के समय होने वाला अपशकुन 5. बाजार, मण्डी, मेला 6. संग्राम, युद्ध-तत्र जन्यं रघोघोरं पार्वतीयैर्गणैरभूत् - रघु० ४।७७ 7 निन्दा, अपशब्द, क्या 1. माता की सहेली 2. बघू का सम्बन्धी वधू की सेविका - याहीति जन्यामवदत्कुमारी -- रघु० ६।३० 3. सुख, आनन्द 4. स्नेह । जन्युः [ जन् + युच् बा० न अनादेशः ] 1. जन्म 2. जानवर जीवधारी, प्राणी 3. आग 4. सृष्टिकर्ता ब्रह्मा । जप (भ्वा० पर० - जपति, जपित या जप्त ) 1. मन्द स्वर में उच्चारण करना, मन ही मन में बार कहना, गुनगुनाना --जपन्नपि तवैवालापमन्त्रावलिम् - गीत० ५, हरिरिति हरिरिति जपति सकामम् ४, नं० ११/२६ 2. मन्त्रों का गुनगुनाना, मन ही मन प्रार्थना करना - मनु० ११।१९४, २५१, २५९, उप, कान में कहना कानाफूसी करके अपने अनुकूल कर लेना, विद्रोह के लिए भड़काना या उकसाना — उपजप्यानुपजपेत् — मनु० ७।१९७ । For Private and Personal Use Only -FT: Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपः [जप्+अच्] 1. मन ही मन प्रार्थना करना, धीमे स्वर | जम्बु,-बू (स्त्री०)[जम् +कु पृषो० बुकागमः, जम्बु+ऊ] से किसी मन्त्र को बार २ दुहराना 2. वेदपाठ करना, जामुन का पेड़, जामुन (सम०-खण्डः,-द्वीपः मेरु देवताओं के नाम बार २ दुहराना-मनु० ३।७४, पहाड़ के चारों ओर फैले हुए सात द्वीपों में से एक । याज्ञ० ११२२ 3. मन्द स्वर से उच्चरित प्रार्थना । | जम्बु (बू) कः (स्त्री०-की) [जम्बु (बू)+के+क] सम०--परायणः (वि.) प्रार्थना मन्त्रों को धीमे स्वर | 1. गीदड़ 2. नीच मनुष्य । में उच्चारण करने में व्यस्त, माला जप करने की | जम्बूलः [ जम्बु (बू) तन्नाम फलं लाति ला+का एक प्रकार माला। का वृक्ष, केवड़ा,-लम् दूल्हे के मित्रों एवं दुल्हन की जप्यः,-प्यम् [जप्+यत्] 1. मन्द स्वर से या मन ही मन सखियों द्वारा किया गया परिहास या परिहासात्मक में बोली जाने वाली प्रार्थना 2. जपने योग्य प्रार्थना अभिनन्दन। 3. जपी हुई प्रार्थना। जम्भः [जम्भ+घञ्] 1. जबाड़ा (प्रायः ब०व०) 2. दांत जम, जम्भत (भ्वा० पर०-जभति, जम्भति) संभोग करना, 3. खाना 4. कुतर-कुतर कर टुकड़े करना 5. खण्ड, तु० यम् ii (भ्वा० आ०-जभते, जंभते) जम्हाई अंश 6. तरकस 7. ठोडी 8. जम्हाई, उबासी 9. एक लेना, उबासी लेना। राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने मार गिराया था 10. चकोजम् (भ्वा० पर० जमति) खाना । तरे का पेड़ । सम०-अरातिः,-द्विष,—भेदिन-रिपुः जमदग्निः (पुं०) भृगुवंश में उत्पन्न एक ब्राह्मण, परशुराम इन्द्र का विशेषण,-अरि: 1. आग 2. इन्द्र का वन का पिता, (जमदग्नि, सत्यवती और ऋचीक का पुत्र 3. इन्द्र । था, वह बड़ा ही पुण्यात्मा ऋषि था, कहते हैं कि उसने जम्भका, जम्भा, जम्भिका [जम्भ+कन्+टाप, जम्भ-+-णिच वेदों का पूर्ण स्वाध्याय किया था, उसकी पत्नी रेणुका +अ+टाप्, जम्भा+कन्+टाप, इत्वम् ] जमुहाई, थी जिससे पाँच पुत्र हुए। एक दिन रेणुका स्नान उबासी। करने के लिए नदी पर गई तो वहाँ उसने किसी गंधर्व- जम्भ (भी) रः [जम्भं भक्षणरुचि राति ददाति--जम्भ+ दम्पती (कुछ के मतानुसार वह चित्ररथ और उसकी रा+क, जम्भ + ईरन् ] नींबू या चकोतरे का पेड़। पत्नी थे) को जल में क्रीडा करते देखा। उस जयः [जि+अच्] 1. जीत, विजयोत्सव, विजय, सफलता, मनोहर दृश्य को देखकर उसके मन में ईर्ष्या जागी जीतना (युद्ध में खेल में या मक़दमे में) 2. संयम और वह उन दूषित विचारों से कलुषित हो गई, नदी दमन, जीतना-~~-जैसा कि 'इन्द्रियजय' में 3. सूर्य का में स्नान करने पर भी वह पवित्र न हो सकी जब वह नाम 4. इन्द्र का पुत्र जयन्त 5. पाण्डव राजकुमार वापिस घर आई तो क्रोध के अवतार जमदग्नि ने उसे युधिष्ठिर 6. विष्णु का सेवक 7. अर्जुन का विशेषण, सतीत्व की कान्ति से हीन देखकर बड़ा धमकाया और -~-या 1. दुर्गा 2. दुर्गा का सेवक 3. एक प्रकार का अपने पुत्रों को उसका सिर काट देने की आज्ञा दी। झण्डा । सम-आवह (वि०) विजय दिलान वाला, परन्तु पहले चारों पुत्रों ने ऐसा क्रूर दुष्कृत्य करने में -उद्धर (वि०) विजयोल्लास मनाने वाला,-कोलाहल: आनाकानी की। परशुराम उनका सबसे छोटा पुत्र 1. जयघोष 2. पासों से खेलना,-घोषः,-घोषणम, था। उसने तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया —णा विजय का ढिंढोरा,----ढक्का जीत का डंका, एक फलतः एक कुल्हाड़े से अपनी माता का सिर काट प्रकार का ढोल जिसे विजय की सूचना देने के लिए डाला। इससे जमदग्नि का क्रोध शांत हो गया और बजाया जाता है,-पत्रम् विजय का अभिलेख, ---पाल: उसने परशराम से वरदान मांगने के लिए कहा । 1. राजा 2. ब्रह्मा का विशेषण 3. विष्णु का विशेषण, दयाल परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने —पुत्रकः एक प्रकार का पासा,- मङ्गलः 1. राजकीय की प्रार्थना की जो तुरंत ही स्वीकार की गई)। हाथी 2. ज्वरनाशक उपचार, बाहिनी शची (इन्द्राणी) अमनम् जेमनम्। का विशेषण, शब्दः 1. जयध्वनि 2. चारणों द्वारा जम्पती (पुं० द्वि० व०) [जाया च पतिश्च ] पति और उच्चरित जयजयकार,-स्तम्भः विजय मनाने के लिए पत्नी--तु० दम्पती और जायापती। बनाया गया स्तम्भ, विजयसूचक स्तम्भ-निचखान जम्बालः [जम्भ+पा नि० भस्य बः==जम्ब+आ+ला जयस्तम्भान् गङ्गास्रोतोऽन्तरेषु स:- रघु० ४१३६, ६९, +क] 1. गारा कीचड़ 2. काई, सेवार 3. केवड़े का | जयद्रथः [ जयत् रथो यस्य --ब० स०] सिन्धु प्रदेश का पौधा। राजा, दुर्योधन का बहनोई, (क्योंकि धृतराष्ट्र की पुत्री जम्बालिनी [जम्बाल-इनि+डीप | एक नदी। दुश्शला जयद्रथ को ब्याही थो) [एक बार जयद्रथ बम्बीरः [ जम्भ + ईरन्, ब आदेशः ] चकोतरे का (नींबू । शिकार के लिए गया-वहाँ जङ्गल में उसे द्रौपदी की जाति का) पेड़,-रम् चकोतरा । दिखाई दी। उसने द्रौपदी से अपने लिए और अपने For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९८ ) साथियों के लिए भोजन मांगा। अपनी जादू की। सिर अपनी पत्नी को गोद में रक्खे सो रहे थे, सूर्य थाली से द्रौपदी ने उनको पर्याप्त मात्रा में प्रातराश डूबने को था। पत्नी ने यह देख कर कि संध्याकालीन परोस दिया। उसके इस कार्य से तथा उसके सौन्दर्य प्रार्थना का समय बीता जा रहा है, आहिस्ता से जगा से वह इतना अधिक मुग्ध हुआ कि उसने द्रौपदी को दिया। परन्तु नींद में बाधा पहुँचने के कारण जरत्कारु अपने साथ भाग चलने के लिए कहा। उसने क्रोध को क्रोध आ गया और वह अपनी पत्नी को छोड़ के साथ उसकी बात को अस्वीकार कर दिया परन्तु कर सदा के लिए वहाँ से चल दिया। जाते समय वह उसे बलपूर्वक उठा कर ले जाने में सफल हो गया वह अपनी पत्नी को बता गया कि तुम गर्भवती हो --क्योंकि द्रौपदी के पति उस समय बाहर शिकार के और तुम्हारा पुत्र ही तुम्हें सम्भालने वाला होगा लिए गये हुए थे। जब वह वापस आये तो उन्होंने --साथ ही साथ वह सर्प वंश के क्षय को बचावेगा । उस अपहर्ता का पीछा किया, उसे पकड़ कर द्रौपदी यह पुत्र ही 'आस्तीक' था,-गवः बढ़ा बैल-दारिद्रयस्य को मुक्त कराया-तथा बहुत तिरस्कृत हो जाने पर परा मूर्ति र्यन्मानद्रविणाल्पता, जरदगवधनः शर्वस्तथापि उसे भी छोड़ दिया। उसने अभिमन्य को मारने के परमेश्वरः ---पंच० २११५९ । उपाय ढूँढ़ने में बड़ा भाग लिया। अन्त में वह अर्जुन जरती [ज+शत् +ङीप्] एक बूढ़ी नारी। के द्वारा महाभारत की लड़ाई में मारा गया। जरन्तः [ज+झन्, अन्तादेश:] 1. बूढ़ा आदमी 2. जयनम् [जि+ ल्युट ] 1. जीतना, दमन करना 2. हाथी | भैसा । और घोड़ों आदि का कवच । सम०-युज् (वि.) | जरा [ज+अ+टाप् ]('जरा' शब्द के स्थान पर कर्म० 1. जीनपोश से सुसज्जित 2. विजयो। द्विः व. के आगे अजादि विभक्ति परे होने पर विकल्प जयन्तः [जि+झच, अन्तादेशः] 1. इन्द्र के पुत्र का नाम, से 'जरस्' आदेश हो जाता है) 1. बुढ़ापा-बोकेयी ---पौलोमीसम्भवेनैव जयन्तेन पुरन्दरः-विक्रम शङ्कयेवाह पलितच्छद्मना जरा-रघु० १२१२, तस्य ५।१४, श० ७।२, रघु० ३।२३ ६।८ 2. शिव का धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरया (जरसा) विना--११२३ नाम 3, चन्द्रमा, --ती 1. झण्डा या पताका 2. इन्द्र को 2. क्षीणता, निर्बलता, बुढ़ापे के कारण दुर्बलता पुत्री 3. दुर्गा। सम-पत्रम् (विधि में) न्यायाधीश 3. पाचनशक्ति 4. एक राक्षसी का नाम-दे० 'जरासंध' द्वारा दी गई लिखित व्यवस्था (दोनों दलों में से किसी नी०। सम० -अवस्था क्षीणता, जीर्ण (वि) एक के पक्ष में) 2. अश्वमेध यज्ञ के लिए छोड़े हुए वयोवृद्ध, निर्बलीकृत, दुर्बल-भत० ३।१७,-- सन्धः घोड़े के मस्तक पर लगा नामपट्ट । एक प्रसिद्ध राजा और योद्धा, बृहद्रथ का पुत्र (एक जयिन् (वि०) [जेतुं शीलमस्य---जि-- इनि] 1. विजेता, पौराणिक कथा के अनुसार यह अलग-अलग दो पराजेता--विरूपाक्षस्य जयिनीस्ताः स्तुवे वामलोचनाः टुकड़ों के रूप में पैदा हुआ, 'जरा' नामक राक्षसी --विद्धशा० 2. सफल (मुकदमा) जीतने वाला ने इन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया-इसीलिए यह -याज्ञ० २१७९ 3. मनोहर, आकर्षक हृदय को दमन 'जरासन्ध' के नाम से प्रख्यात हआ। अपने पिता करने वाला—जगति जयिनस्ते ते भावा नवेन्दुकलादयः की मृत्यु के पश्चात् यह मगव और चेदि देश का मा० ११३६, (पुं०) विजेता, जयशील-पोरस्त्या- राजा बना। जब इसने सुना कि कृष्ण ने मेरे जामाता नेवमाकामंस्तांस्ताञ्जनपदाञ्जयी- रघु० ४१३४ । कंस को मार डाला तो इसने बड़ी भारी सेना लेकर जय्य (वि.) [जि+यत् ] जीतने के योग्य, प्रहार्य, जो। १८ बार मथुरा को घेरा--परन्तु हर वार मुंहकी जोता जा सके (विप० जेय)। खानो पड़ी। जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का जरठ (वि.) [ज+अठच ] 1. कठोर, ठोस 2. पूराना, अनुष्ठान किया तो अर्जुन, कृष्ण और भीम ब्राह्मण अधिक आय का-अयमतिजरठा: प्रकामगर्वीः परिणत- का रूप धारण करके केवल अपने शत्रु को मार कर दिक्करिकास्तटीविभति -शि० ४।२९ (यहाँ 'जरठ बन्दी राजाओं को कैद से छड़ाने के लिए जरासन्ध का अर्थ 'कठोर' भो है) 3. क्षीण, जीर्ण, निर्बल को राजधानी में गये परन्तु जरासन्ध ने वन्दो राजाओं 4. पूर्णविकसित, पक्का, परिपक्व, जरठकमल-शि० को छोड़ने से इंकार किया, तब भीम ने उसे द्वन्द्व युद्ध ११११४5. कठोर हृदय, क्रूर, --ठः पाण्डु, पाँचों पाण्डवों के लिए ललकारा। जरासन्ध वाहर निकल कर आया के पिता। —दोनों में घोर युद्ध हुआ-पर अन्त में जरासन्ध जरण (वि.) [ज ल्यूट बढा, क्षीण, निर्वल।। भीम के हाथों मारा गया। जरत् (वि०) ज+शत] 1. बड़ा अधिक आय का 2. निर्बल जरायणि: [जराया अपत्यम्-फि ] जरासन्य का नाम । जोर्ण। सम० -कारः एक ऋषि जिसने वासुकि सर्प | जरायु (नपुं०) [जरामेति-इ.+जण ] 1. साँप की की बहन से विवाह किया था [एक दिन वह अपना । केंचुली 2. भ्रूण की ऊपरी झिल्ली 3. योनि, गर्भाशय । For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३९९ ) - मनु० सम० - ज ( वि०) गर्भाशय से उत्पन्न, पिण्डज११४३, कु० ३।४२ पर मल्लि० । जरित (वि० ) [ जरा + इतच् ] 1. बूढ़ा, वयोवृद्ध 2. क्षीण, निर्बल | जरिन् (वि० ) ( स्त्री० –णी ) [ जरा + इनि ] बूढ़ा, वयोवृद्ध । जरूथम् [जू+ऊथन् ] माँस । जर्जर (वि० ) [ जर्ज + अर] 1. बूढ़ा, निर्बल, क्षीण 2. जीर्ण, फटा पुराना, टूटा-फूटा, तोड़कर टुकड़े २ किया हुआ, खण्ड-खण्ड किया हुआ, छोटे २ टुकड़ों में विभक्त - जराजर्जरितविषाणकोटयो मृगाः का० २१, गात्रं जराजर्जरितं विहाय – महावी० ७११८, विसर्पन् धाराभिर्लुठति धरणीं जर्जरकणः - उत्तर० ११२९, शि० ४।२३ 3. घायल, क्षतविक्षत 4 झोझरा, खोखला ( जैसे कि टूटे घड़े की आवाज ) - रम् इन्द्र का झण्डा । जर्जरित (वि० ) ( जर्जर + णिच् +क्त] 1. बूढ़ा, क्षीण, निर्बल 2. घिसा-पिसा, झीर-झीर, फटा-पुराना, चिथड़े चिथड़े हुआ 3. पूरी तरह पराभूत, अयोग्य स्मरशरजर्जरितापि सा प्रभाते - गीत० ८ । जर्जरीक (वि० ) [ जर्जर् + ईक नि० साधुः ] 1. बुढ़ा, क्षीण 2. जीर्ण-शीर्ण- छेदों से भरा हुआ, सछिद्र । जर्तुः [ जन्+तु, र आदेश: ] 1, योनि, 2. हाथी । जल (वि० ) [ जल् + अक् ] स्फूर्तिहीन, ठण्डा, शीतल, जड । -लम् पानी तातस्य कूपोऽयमिति ब्रुवाणाः क्षारं जलं कापुरुषाः पिबन्ति पञ्च० १।३२२ 2. एक सुगन्धित औषधि का पौधा, खस 3. शीतलता 4. पूर्वाषाढ़ नक्षत्र । सम० अञ्चलम् 1. झरना 2. निर्झर 3. काई, अञ्जलिः 1. चुल्लू भर पानी 2. मृतक के पितरों को जल तर्पण - कुपुत्रमासाद्य कुतो जलाञ्जलिः - चाण० ९५, मानस्यापि जलाञ्जलिः सरभसं लोके न दत्तो यथा - अमरु ९७ ( यहाँ जलाजलि दा' का अर्थ है - छोड़ देना, त्यागना ), अटनः सारस, अटनी जोक, अण्टकः घड़ियाल, मगरमच्छ, अत्ययः शरद्, पतझड़, अधिदेवतः तम् वरुण का विशेषण, (तम्) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र पुञ्ज, अधिप वरुण का विशेषण, अम्बिका कूआँ, अर्क: जल में पड़ने वाला सूर्य का प्रतिविम्ब, अर्जव: 1. वर्षा ऋतु 2. मीठे पानी का समुद्र, -- अर्थिन् (वि०) प्यासा - अवतारः नदी के किनारे नाव पर उतरने का घाट, अष्ठीला बड़ा चौकोर तालाब, असुका जोक, आकरः झरना, फौवारा, कुआँ, आकाङ्क्षः, -- काइक्षः, --काक्षिन् (पुं०) हाथी, आखुः ऊदबिलाव, आत्मिका जोक, - आधारः तालाब, झील या सरोवर, जलाशय, आयुका जोक, --- आई (वि०) गीला (र्द्रम्) गीले कपड़े (द्र) पानी से तर पङ्खा - आलोका जोक, - आवर्तः भँवर, जल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुल्म, आशय: 1. तालाब, सरोवर, जलाशय 2. मछली 3. समुद्र, --- आश्रयः 1. तालाब, जलाशय, आह्नयम् कमल, -- इन्द्रः 1 वरुण का विशेषण 2. समुद्र, -- इन्धनः वाडवाग्नि, इभः जलहस्ती, ईशः, -ईश्वरः 1. वरुण का विशेषण 2. समुद्र, उच्छ्वासः नाली, परवाह 2. छलक कर बहना, उबरम् जलोदर नाम का रोग जिसमें पेट की त्वचा के नीचे पानी इकट्ठा हो जाता है, उद्भव (वि०) जलचर, उरगा, ओकस् ( पुं० ) - ओकसः जोक, कण्टकः मगरमच्छ, कपिः सूंस, कपोतः जलकबूतर, करङ्कः 1. एक खाल 2. नारियल 3. बादल 4. तरङ्ग, कमल, कल्कः कीचड़, - काकः जलकौआ, कान्तः हवा, - कान्तारः वरुण का विशेषण, किराटः मगरमच्छ, घड़ियाल, कुक्कुट : जलमुर्ग, मुर्गाबी, कुन्तलः, -कोशः काई, सेवारज, फूपी 1. झरना, कुआं 2. तालाब, 3. भंवर, कूर्मः सूँस, — केलिः (पुं० ) - क्रीडा ( स्त्री० ) जल में विहार करना, एक दूसरे पर पानी उछालना, क्रिया मृतकों का पितरों को जल-तर्पण देना, गुल्मः 1. कछुवा 2. चौकोर तालाब 3. भंवर, चर (वि० ) ('जलेचर' भी) जल में रहने वाले जीव-जन्तु आजीव: 'जीवः मछवा, चारिन् 1. जलजन्तु 2. मछली, ज वि० जल में उत्पन्न या पैदा, (ज: ) 1. जलजन्तु 2. मछली 3. काई 4. चन्द्रमा (जः, -जम् ) 1. खोल 2. शङ्ख -अधरोष्ठे निवेश्य दध्मौ जलजं कुमारः- रघु० ७६३, ११ ६०, ( जम्) कमल, आजीवः मछवा, आसन: ब्रह्मा का विशेषण वाचस्पतिरुवाचेदं प्राञ्जलिर्जलजासनम् - कु० २३०, जन्तुः 1. मछली 2. कोई जल का जन्तु, जन्तुका जोक, जन्मन् कमल, जिह्नः मगरमच्छ, – जीविन् (पुं० ) मछवाहा । - तरङ्ग 1. लहर 2. एक वाद्य विशेष - जिसमें जल से भरा हुआ कटोरा (छड़ी के आघात से ) 1) सम स्वर पैदा करता है । - ताडनम् ( शा० ) पानी पीटना ( आलं० ) व्यर्थ काम, त्रा छाता, - त्रासः जलातङ्क रोग, पागल कुत्ते के काटने से हड़कायापन, दः 1. बादल जायन्ते विरलालोके जलदा इव सज्जनाः पञ्च १।२९2. कपूर, ● अशन: साल का वृक्ष, आगम: वर्षाऋतु, काल: वर्षाऋतु क्षयः शरद्, पतझड़, दर: एक प्रकार का वाद्य यन्त्र, देवता जलदेवी, जलपरी, द्रोणी डोलची, - घर: 1. बादल 2. समुद्र, धारा पानी की धार, - 1. समुद्र 2. दसनील 3. चार की संख्या, गा नदी, 'ज: चाँद, 'जा लक्ष्मी, धन की देवी रशना पृथ्वी, - नकुलः ऊदबिलाव, नरः जलपुरुष ( इसके शरीर का निचला आवा भाग मछली के आकार का होता है ), निधि: 1. समुद्र 2. चार की संख्या - निर्गमः 1. नाली, पानी का निकास 2. जलप्रपात, झरने के For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाकन् वा ( ४०० ) पानी का नदी में गिरना,-नीलिः काई, सेवार,-पट- । जलाका, जलालुका, जलिका, जलुका, जलका [जले आकालम् बादल,--पतिः 1. समुद्र 2. वरुण का विशेषण, यति प्रकाशते-जल+आ+के+क+टाप, जले -पथः जलयात्रा-रघु० १७१८१, -पारावतः जल- अलति गच्छति-जल+अल+उक+टाप, जल-ठन् कपोत,--पित्तम् आग,- पुष्पम् पानी में होने वाला टाप, जलम् ओको यस्य पृषो०] जोंक। फूल, कमल आदि, पूरः 1. जल की बाढ़ 2. पानी की | जलेजम्, जलेजातम् [जले+जन्+ड, क्त वा सप्तम्या नदी,-पृष्ठजा काई, सेवार,-प्रदानम् मृतक पितरों । अलुक ] कमल।। को जल तर्पण,-प्रलयः जल के द्वारा विनाश,-प्रान्तः जलेशयःजले---शी-अच, सप्तम्या अलुक ] 1. मछली नदी का किनारा,-प्रायम् जलबहुलप्रदेश--जलप्रायम 2. विष्णु का नाम। नूपं स्यात् ---अमर०,-प्रियः 1. चातक पक्षी 2. मछली, जल्प (म्वा० पर० जल्पति, जल्पित) बोलना, बातें करना, --प्लवः ऊदबिलाव,-प्लाबनम जलप्रलय, बाढ़,--बधुः संलाप करना-अविरलितकपोलं जल्पतोरक्रमेण-उत्तर० मछली,-बालकः,--,बालकः बिध्य पहाड़ - बालिका ११२१, एकेन जल्पन्त्यनल्पाक्षरम्-पंच० ११११६, बिजली,-बिडालः ऊदबिलाव,-बिम्बः,-बिम्बम् बुल भर्तृ० १६८२ 2. गुनगुनाना, अस्पष्ट उच्चारण करना बुला,-बिल्वः 1. एक (चौकोर) तालाब, सरोवर 3. प्रलाप करना, किच-किच करना, बालकलरव करना, 2. कछुवा 3. केकड़ी,-भू (वि.) जल में उत्पन्न,-भूः कलकलध्वनि करना, अभि---, बोलना, बातें करना, (पुं०) 1. बादल 2. पानी जमा करके रखने का प्र-, 1. बोलना, कहना, बातें करना-कु० ११४५, स्थान 3. एक प्रकार का कपूर,–मक्षिका पानी में रहने 2. पुकारना-सम् ---, बोलना, संलाप करना । वाला एक कीड़ा,--मण्डूकम्-एक प्रकार का वाद्य जल्पः [ जल्प+घi j1. वक्तृता, भाषण 2. प्रवचन, यन्त्र, जल दर्दुर, मार्गः नाली, जलप्रणाली,-मुच् बातचीत 3. बालकलरव, प्रलाप, गप-शप 4. वादविवाद, (पुं०) बादल-मेघ ६९ 2. एक प्रकार का कपूर, वाग्युद्ध। -मूतिः शिव का विशेषण,--मूर्तिका ओला, यन्त्रम् जल्प (पा) क (वि.) (स्त्री-ल्पिका) [ जल्प-वुल, 1. पानी निकालने का यन्त्र--रहट 2. फव्वारा गृहम्, षाकन् वा, ] बातूनी, गप्पी। °निकेतनम्, °मन्दिरम् जल के मध्य बना भवन (ग्रीष्म जव (वि.) [ जु+अप] फुर्तीला, चुस्त,-वः (क) वेग, भवन) या मकान जिसके आस पास फुहारे हों-क्वचि फुर्ती, तेजी, द्रुतता-जवो हि सप्ते: परमं विभूषणम् द्विचित्रं जलयन्त्रमन्दिरम्-ऋतु० ११२,---यात्रा जल -भर्त० ३३१२१, श० ११८, (ख) त्वरा, क्षिप्रता मार्ग से नाव आदि के द्वारा यात्रा,--यानम् पानी की --जवेन पीठादुदतिष्ठदच्युतः-शि०१११२ 2. वेग। सवारी--जहाज,--रजकुः जलकुक्कुट,--रण्डः,-रुण्डः सम-अधिक: वेगवान् घोड़ा, द्रुतगामी घोड़ा,-अनिलः 1. भंवर 2. पानी की बूंद, बूंदाबांदी, जलकण 3. साँप, तेज हवा, आंधी। -रसः समुद्री या सांभर नमक,-राशिः समुद्र,-रुहः, जवन (वि०) (स्त्री०-नी) [जु+ ल्युट् ] तेज, फुर्तीला, --हम् कमल,---रूपः मगरमच्छ,-लता लहर, झाल वेगवान् रघु० ९।५६,--नः द्रुतगामी घोड़ा, तेज घोड़ा, ---वायसः कौडिल्ला पक्षी,-वासः जल में बसना, -नम् चाल, द्रुतगति, वेग। -वाहः बादल, वाहनी पानी की मोरी:-विषुवत् जवनिका, जवनी [ जयते आच्छाद्यते अनया--जु+ल्युट शारदीय विषुवत् (२२ या २३ सितम्बर)-वृश्चिक: +ङीप् --जवनी+कन्+टाप, ह्रस्वः-जवनिका ] झींगा मछली,-व्याल: पनियल साँप,-शयः, शयनः, 1. कनात 2. चिक, पर्दा-नरः संसारान्ते विशति ---शायिन् (पुं०) विष्णु का विशेषण,-शूकम् काई, यमधानीजवनिकाम्- भर्त० ३।११२ । सेवार,---शूकरः मगरमच्छ,-शोषः सोखा, अनावृष्टि जवसः [जु+असच पशुओं के चरने योग्य घास। --सपिणी जोक,---सूचिः (स्त्री०) 1. गंगाई संस जवा [जव+टाप्] अड़हुल, जपा।। 2. एक प्रकार की मछली 3. कौवा 4. जोक,--स्थानम्, जष (म्वा० उभ०-जषति-ते) क्षति पहुँचाना, चोट -स्यायः तालाब, सरोवर, जलाशय, हम छोटा ___पहुंचाना, मारना। जलमन्दिर (ग्रीष्म भवन) जो पानी के मध्य बना हो या जिसमें फौव्वारे लगे हों। -हस्तिन् (पू.) जल जस् i (दिवा० पर०–जस्यति) स्वतन्त्र करना, मुक्त करना, हाथी, हारिणी नाली, हासः 1. झाग 2. समुद्रफेन ii (म्वा० चुरा० पर०-जसति, जासयति) 1. चोट (मसीक्षेपी नामक जलचर का भीतरी कवच)। पहुँचाना, क्षति पहुंचाना, प्रहार करना 2. अवज्ञा करना, अपमान करना, उद्-, मारना—निजीजसोज्जासअलङ्गमः [जल गम्+खच्, मुमागमः ] चाण्डाल। यितुं जगद्रुहाम्-शि० ११३७, भट्टि० ८। १२० । अलमसिः [जलेन मस्यति परिणमति-जल+मस्+इन् ] जहकः [हा+कन्, द्वित्वम] 1. समय 2. बालक 3. सांप 1. बादल 2. एक प्रकार का कपूर । की केचुली। फुतीला प्ते परमं तो For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४०१ ) जहत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ हा+शतृ ] छोड़ने वाला, खबरदार या सावधान रहना (आलं. भी)-सोऽपसर्प त्यागने वाला । सम-लक्षणा,---स्वार्था लक्षणा का र्जजागार यथाकालं स्वपन्नपि-रघु० १७१५१, गुरी एक प्रकार (इसे 'लक्षणलक्षणा' भी कहते हैं) जिसम षागण्यचिन्तायामार्य चाय च जाग्रति-मद्रा०७।१३, शब्द अपने मुख्यार्थ को छोड़ देता है परन्तु एक ऐसे अर्थ रात को बैट रहना---या निशा सर्वभूतानां तस्यां में प्रयुक्त होता है जो किसी न किसी प्रकार उस जागति संयमी-भग० २६९ 2. निद्रा से जगाया मुख्यार्थ से सम्बद्ध है, उदा० 'गंगायां घोषः' (गंगा में जाना, जागते रहना, आगे का देखना, दूरदर्शी होना। घर) में 'गंगा' शब्द अपने मुख्यार्थ को छोड़ कर | जाघनी [जघन-अण्+ङीप्] 1. पूँछ 2. जंधा। 'गंगातट' को प्रकट करता है.-तु० 'अजहत्स्वार्थी' जाङ्गल (वि०) (स्त्री०-ली) [जङ्गल+अण] 1. देहाती, की भी। चित्रोपम 2. जङ्गली 3. बर्बर, असभ्य 4. बंजर, असर जहानकः हा+शान+कन्] महाप्रलय । -ल: चकोर, तीतर,-लम् 1. मांस 2. हरिण का जहुः [हा+उण, द्वित्वम्] पशु का बच्चा। मांस। जह्नः [ हा+नु, द्वित्वमाकारलोपश्च ] सुहोत्र का पुत्र, एक | जाङ्गुलम् [जङगुल+अण्] जहर, विष । प्राचीन राजा जिसने गंगा को अपनी पुत्री के रूप में | जाङ्गुलिः, जाङ्गुलिकः [जङगुल-+इञ , ठक् वा] साँप के गोद लिया था। (जब गंगानदी भगीरथ की तपस्या काटे का चिकित्सक, विषवंद्य । के द्वारा स्वर्ग से इस धरा पर लाई गई तो मैदान में। जाडिकः [जडा+ठा] 1. हरकारा, दूत 2. ऊँट । आकर उसने राजा जह्न की यज्ञभूमि को पानी में जाजिन् (पुं० [जज +णिनि योद्धा, लड़ने वाला--जजौ जोजाजिजिज्जाजी-शि० १९१३ । डुबो दिया। जह्न ने ऋद्ध हो कर गंगा को पी डाला। देवता, ऋषि और विशेष कर भगीरथ ने उनके क्रोध जाठर (वि०) (स्त्री०-री) [जठर+अण] पेट से संबंध को शान्त किया। जह्न ने प्रसन्न होकर गंगा को। रखने वाला या पेट में होने वाला, उदरवर्ती, औदर, -रः पाचनशक्ति, जाठर रस । अपने कानों के द्वारा बाहर निकालने की स्वीकृति दी। जाड्यम् [जड --ष्य | 1. ठंडक, शीतलता 2. अनासक्ति, इसलिए गंगा जल की पुत्री समझी गई और उसे आलस्य, निष्क्रियता 3. बुद्धि की मन्दता, बेवकूफी, जाह्नत्री, जलकन्या, ज हुतनया, जह्ननन्दिनी या जन- जडता-सज्जाडयं वसुधाधिपस्य-भत० २।१५, जाडचं सुता आदि नामों से पुकारा गया-तु० रघु० ६।८५, | धियो हरति-२२२३, जाड्यं ह्रीमति गण्यते-५४ ८९५)। 4. जिह्वा की नीरसता। जागरः [ जागृ--घन, गुण] जागरण, जागना, जागते । जात (भू० क० कु०) [जन + क्त] 1. अस्तित्व में लाया रहना, --रात्रिजागरपरो दिवाशयः-रघु० ९३४ गया, जन्म दिया गया, पैदा किया गया 2. उगा हुआ, 2. जाग्रत अवस्था की मन: सृष्टि 3 कवेच, जिरह निकला हुआ 3. उद्भूत, उत्पन्न 4. अनुभूत, ग्रस्त बख्तर। (प्रायः समास में) दे० 'जन्', तः पुत्र, बेटा (नाटकों में प्रायः 'स्नेह या प्रेम द्योतक' के अर्थ में प्रयुक्त जागरणम् [जागृ+ ल्युट्] 1. जागना, प्रबुद्ध रहना 2. खबरदारी, सतर्कता। -अयि जात कथयितव्यं कथय-उत्तर० ४, प्यारे जागरा [जागृ-|-अ-टाप्] दे० जागरण । बच्चे' 'मेरे लाल, दुलारे'),–तम् 1. जन्तु, जीवधारी, प्राणी 2. उत्पादन, उद्गम 3. भेद, प्रकार, श्रेणी, जागरित (वि०) [जागृ---क्त] जागा हुआ,-तम् जागना। जाति 4. श्रेणी बनाने वाली वस्तुओं का समूह-नि:जागरित (वि) (स्त्री०---त्री) जागरूक (वि०) [जाग शेषविधाणितकोशजातम् -- रघु० ५।१, संपत्ति का तिव, स्त्रियां डीप च, जाग+ऊक] 1. जागरणशील, समूह अर्थात् हर प्रकार की सम्पत्ति, इसी प्रकार जागता हुआ, निद्राशून्य--स्वपतो जागरूकस्य याथार्थ्य कर्मजातम्- (सब कर्मों का समूह)-सुख° वह सब वेद कस्तव-रघु० १०३४ 2. खबरदार, सतर्क कुछ जो सुख में सम्मिलित है 5. बालक, बच्चा । -वर्णाथमाक्षणजागरूक:-रघु०१४।१५, शि०२० सम०-अपत्या माता,-अमर्ष (वि०) नाराज, क्रुद्ध, -----अश्रु (वि०) आँसू बहाने वाला, इष्टिः (स्त्री०) जागतिः, जागर्या, जानिया [ जाग+क्तिन्, जाग+श-+ जातकर्मसंस्कार,-उक्षः थोड़ी आयु का बैल,-कर्मन् यक्+टाप, गुण, जाग ।-श्, रिङादेशः ] जागरण, बच्चे के जन्मते ही अनुष्ठेय संस्कार ...रघु० ३।१८ । जागते रहना। ---- कलाप (वि.) (मोर की भाँति) पूंछ वाला, काम जागुडम् [जगुड+अण्] केसर, जाफ़रान । (वि.) आसक्त,-- पक्ष (वि.) जिसके डैने या पंख जाग (अदा० पर० जागति, जागरित) जागते रहना, । निकल आये हों, अजातपक्ष, अनुदितपक्ष,-पाश (वि.) For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०२ ) मन बन्धन युक्त, बेड़ी पड़ा हुआ, प्रत्यय ( वि०) जिसके | 'में विश्वास उत्पन्न हो गया हो, - मन्मथ ( वि० ) प्रेम में आसक्त, मात्र ( वि०) तुरंत का उत्पन्न, सद्योजात, रूप ( वि०) सुन्दर, उज्ज्वल, (पम्) सोना - अप्याकरसमुत्पन्ना मणिजातिरसंस्कृता, जातरूपेण कल्याणि न हि संयोग मर्हति - मालवि० ५।१८, नं० ११२९ - वेदः (पुं० ) अग्नि का विशेषण - कु० २।४६, शि० २५१, रघु० १२ १०४, १५।७२ । जातक (बि० ) [ जात + कन् ] जन्सा हुआ, उत्पन्न, कः 1. नवजात शिशु 2. भिक्षु, कम् 1. जातकर्म संस्कार 2. जन्म विषयक फलित ज्योतिष की गणना 3. एक जैसी वस्तुओं का संग्रह | जातिः (स्त्री० ) [जन् + क्तिन् ] 1. जन्म, उत्पत्ति - मनु० २०१४८ 2. जन्म के अनुसार अस्तित्व का रूप 3. गोत्र, परिवार, वंश 4. जाति, कबीला या वर्ग ( जनसमुदाय) अरे मूढ जात्या चेदवध्योऽहम् एषा सा जातिः परित्यक्ता-वेणी० ३ ( हिन्दुओं की प्राथमिक जातियाँ केवल चार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं) 5. श्रेणी, वर्ग, प्रकार, नस्ल -- पशुजाति, पुष्पजाति आदि 6. किसी एक वर्ग के विशेष गुण जो उसे और दूसरे वर्गों से पृथक करें, किसी एक नस्ल के लक्षण जो मूल तत्त्वों को बतलाएँ जैसे कि गाय और घोड़ों का 'गोत्व' 'अश्वत्व' – दे० गुण क्रिया और द्रव्य - शि० २।४७, तु० काव्य २ 7. अंगीठी 8. जायफल 9. चमेली का फूल या पौधा - पुष्पाणां प्रकरः स्मितेन रचितो नो कुन्दजात्यादिभिः - अमरु १०, ( इन दो अर्थों में 'जाती' ऐसा भी लिखा जाता है ) 10. ( न्या० में) व्यर्थं उत्तर 11. ( संगीत में) भारतीय स्वरग्राम के सात स्वर 12. छन्दों की एक श्रेणी - दे० परिशिष्ट । सम० - अन्ध (वि०) जन्मान्ध - भर्तृ० ११९०, - कोशः, षः षम्, जायफल, कोशी, षी जावित्री, धर्मः 1. किसी जाति के कर्तव्य, आचार 2. किसी जाति की सामान्य सम्पत्ति, - ध्वंसः जाति या उसके विशेषाधिकारों की हानि, -पत्री जावित्री, जायफल का ऊपरी छिल्का, ब्राह्मण: केवल जन्म से ब्राह्मण, गुण कर्म, तप और स्वाध्याय से हीन, अज्ञानी ब्राह्मण (तपः श्रुतं च योनिश्च त्रयं ब्राह्मण्यकारणम्, तपः श्रुताभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव सः --- शब्दार्थचिन्तामणि, भ्रंशः जातिच्यति - मनु० ९ ६७, भ्रष्ट (वि०) जातिच्युत, जातिबहिष्कृत, मात्रम् 1. 'केवल जन्म' केवल जन्म के कारण जीवन में प्राप्त पद 2. केवल जाति ( तत्सम्बन्धी कर्तव्यों के पालन का अभाव ) -मनु० ८ २०, १२११४, लक्षणम् जातिसूचक भेद, जातिसूचक विशेषताएँ, - वाचक ( वि०) नस्ल को बतलाने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला ( शब्द ) - गौरश्वः पुरुषो हस्ती, वैरम् जातिगत द्वेष, स्वाभाविक शत्रुता, - वंरिन् (पुं०) स्वाभाविक शत्रु, शब्दः नस्ल या जाति बतलाने वाला नाम, जातिबोधक शब्द, जातिवाचक संज्ञा गौः, अश्व:, पुरुषः, हस्ती आदि, संकरः दो जातियों का मिश्रण, दोगलापन, सम्पन्न ( वि०) अच्छे घराने का, कुलीन, ---सारम् जायफल, स्मर ( वि० ) जिसे अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त याद हो जातिस्मरो मुनिरस्मि जात्या का० ३५५, स्वभावः जातिगत स्वभाव या लक्षण, हीन ( वि०) नीच जाति का जाति - बहिष्कृत | जातिमत् (वि० ) [ जाति + मतुप् ] उत्तम कुल में उत्पन्न, ऊँचे घराने में जन्मा । जातु ( अव्य० ) [ जन् + क्तुन् पृषो० साधुः | निम्नांकित अर्थों को प्रकट करने वाला अव्यय - 1. कभी, सर्वथा, किसी समय, संभवतः --- किं तेन जातु जातेन मातुयौं वनहारिणा पंच० १०२६, न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति मनु० २/९४, कु० ५/५५ 2. कदाचित्, कभी रघु० १९१७ 3. एकबार एक समय, किसी दिन 4. विधिलिङ् में प्रयुक्त होने पर इसका अर्थ हो जाता है "अनुमति न देना, सहन न कर सकना " - जातु तत्र भवान्वषलं याजयेन्नावकल्पयामि ( न मर्पयामि) सिद्धा० 5. लट् लकार में प्रयुक्त होकर यह ' निन्दा ( ग ) ' प्रकट करता है - जातु तत्र भवान् वृषलं याजयति तदेव । जातुधानः [ जातु गर्हितं धानं सन्निधानं यस्य ब०स०] राक्षस, पिशाच । जातुष (वि०) (स्त्री०-बी) [ जतु + अण्, बुक् ] 1. लाख से बना हुआ, या लाख से ढका हुआ 2. चिपचिपा, चिपकने वाला | जात्य ( वि० ) [ जाति + यत् ] 1. एक ही परिवार का, सम्बन्धी 2. उत्तम, उत्तमकुलोद्भव, सत्कुलोत्पन्न, - जात्यस्तेनाभिजातेन शूरः शीर्यवता कुशः -- रघु० १७/४ 3. मनोहर, सुन्दर, सुखद । जानकी [ जनक + अण् + ङीप् ] जनक की पुत्री सीता, राम की भार्या । जानपद: [ जनपद + अण् ] 1. देहाती, गंवार, ग्रामीण, किसान (विप० पौर) 2. देश 3. विषय, दा सर्वप्रिय उक्ति । जानि (बत्रीहि समास में 'जाया शब्द' के स्थान में आदेश ) जानु ( नपुं० ) [ जन् + ण् ] घुटना- जानुभ्यामवनिं गत्वा, पृथ्वीपर घुटनों के बल चल कर या घुटने टेक कर । सम० - दहन ( वि०) घुटनों तक ऊँचा, घुटनों तक गहरा, फलकम्, - - मण्डलम् घुटने की पाली, --- सन्धिः घुटने का जोड़ | For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०३ जापः [ जप्+घञ्ञ ] 1. प्रार्थना जपना, कान में कहना, गुनगुनाना 2. जप की हुई प्रार्थना या मन्त्र | जाबाल: [ जबाल + अण् ] रेवड़, बकरों का समूह । जामदग्न्यः [ जमदग्नि । यज्ञ ] परशराम, जमदग्नि का पुत्र । जामा | जम् + अण् वा० स्त्रीत्वम् ] 1. पुत्री 2. स्नुषा, पुत्रवधू ! जामातृ ( १० ) [ जायां माति मिनोति मिमीते वा नि० ] 1. दामाद - जामातृयज्ञेन वयं निरुद्धा: - उत्तर० १११, जामाता दशमो ग्रहः सुभा० 2. स्वामी मालिक 3. सूरजमुखी फूल । जामिः (स्त्री० ) [ जम् +इन् नि० बृद्धिः ] 1. बहन, पुत्री 3. पुत्रबधू 4. नजदीकी संबंधिनी ( सन्निहितसपिङ स्त्री-कुल्लूक ) मनु० ३।५७, ५८ 5. गुणवती सती साध्वी स्त्री । जामित्रम् [जायामित्रम् ] जन्मकुंडली में लग्न से सातवां घर, तिथी च जामित्रगुणान्वितायाम् कु० ७ १, ( जामित्र लग्नात्सप्तमं स्थानम - मल्लि०) वि०-कुछ लोग इस शब्द को 'जाया' से व्युत्पन्न मानते हैं क्योंकि फलित ज्योतिष में 'जामित्र' का चिह्न पत्नी के भावी सौभाग्य का सूचक [ जायामित्रम् ] है परन्तु इस शब्द का स्पष्ट सम्बन्ध ग्रीक शब्द ( Diametron ) से है । जामेय: [ जाम्या भगिन्या अपत्यम् - ञ्ञ ] भानजा, बन का पुत्र । जाम्बवम् [ जम्ब्वाः फलम् अण् तस्य बा० न लुप्-तारा० ] 1. सोना 2. जम्बुवृक्ष का फल, जामन । जाम्बवत् (पुं० ) [ जाम्ब + मतुप् ] रीछों का राजा जिसने लंका पर आक्रमण के समय राम की सहायता की। यह अपनी चिकित्सा संबन्धी कुशलता के लिए भी प्रसिद्ध था ( यह जांबवान् संभवतः कृष्ण के समय तक जीवित रहा, क्योंकि उस समय स्यमन्तक मणि के लिए कृष्ण और जाम्बवान् में युद्ध हुआ । इस स्यमन्तक मणि को जांबवान् ने सत्राजित् के भाई प्रसेन से प्राप्त किया था। युद्ध में कृष्ण ने जांबवान् को पछाड़ दिया । परास्त होकर जांबवान् ने स्यमन्तक मणि के साथ अपनी पुत्री जांबवती को भी कृष्ण के अर्पण कर दिया ) जम्बीरम् (लम् ) [ जंबीर + अण्, पक्षे रलयोरभेदः ] चकोतरा । | जाम्बूनदम् [ जम्बूनद + अण् ] 1. सोना- रघु० १८०४४ 2. एक सोने का आभूषण — कृतरुचश्च जाम्बूनदै: - शि० ४।६६ 3. धूतरे का पौधा । जया [जन् + यक् + टापु, आत्व ] पत्नी, ( शब्द की व्युत्पत्ति मनु० ९१८ के अनुसार पतिर्भार्या संप्रविश्य Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) गर्भो भूत्वेह जायते, जायायास्तद्धि जायात्वं यदस्यां जायते पुनः- दे० रघु० २।१ पर मल्लि०) बहुव्रीहि के उत्तर पद में 'जाया' का बदलकर 'जानि' हो जाता है यथा 'सीताजानि' सीता जिसकी पत्नी है, इसी प्रकार युवजानिः, वामार्धजानिः । सम० - अनुजीविन् ( पुं० ) - आजीव: 1. अभिनेता, नट 2. वेश्या का पति 3. मोहताज, दरिद्र, पती ( द्वि० व०) पति और पत्नी ( इसके दूसरे रूप हैं- दंपती, जंपती) जायिन् ( वि० ) ( स्त्री० वाला, दमन करने वाला (पुं० ) जाति की एक ताल । जा: [ जि + उण् ] 1. औषधि 2. वैद्य । जारः [ जीर्यति अनेन स्त्रियाः सतीत्वम् ज् + घञ्ञ, जरयतीति जार: निरु० ] उपपति, प्रेमी, आशिक रथकारः स्वकां भार्या सजारां शिरसावहत् - पंच० ४।५४ | सम० - ज:, - जन्मन्, जातः दोगला, हरामी, भरा व्यभिचारिणी स्त्री । जारिणी [ जार + इनि + ङीप् ] व्यभिचारिणी स्त्री । जालम् [ जल् + ण ] 1. फंदा, पाश 2. जाला, मकड़ी का जाला 3. कवच, तार की जालियों का बना शिरस्त्राण 4. अक्षिकारंध्र, गवाक्ष, झिलमिली, खिड़की जालान्तरप्रेषितदृष्टिरन्या - रघु० ७/९, धूपैर्जालविनिः सृतैर्वलभयः संदिग्धपारावताः विक्रम० ३१२, कु० ७/६० 5. संग्रह, संघात, राशि, ढेर- चितासन्ततितन्तुजाल निबिडस्यूतेव मा० ५/१०, कु० ७१८९, शि० ४,४६, अमरु ५८ 6. जादू 7. भ्रम, घोखा 8. अनखिला फूल । सम० --- अक्षः झरोखा, खिड़की, - कर्मन् ( नपुं० ) मछली पकड़ने का धंधा, मछली पकड़ना, कारक: 1. जाल निर्माता 2. मकड़ी, गोणिका एक प्रकार की मंथानी, पाद् - पादः कलहंस, प्रायः कवच, जिरहबख्तर । नी) [ जि + णिनि ] जीतने ( संगीत में) ध्रुपद जालकम् [ जालमिव कार्याति +कै+क ] 1. फन्दा 2. सम च्चय, संग्रह----बद्धं कर्णशिरीषरोधि वदने धर्माम्भसां जालकम् - श० ११३०, रघु० ९।६८. 3. गवाक्ष, खिड़की 4. कली, अनखिला फूल --- अभिनवजलकर्मालतीनाम् - मेघ० ९८, इसी प्रकार - यूथिकाजालकानि -- २६ 5. ( बालों में पहना जाने वाला) एक प्रकार का आभूषण - तिलकजालक जाल कमौक्तिकैः – रघु० ९१४४ ( आभरणविशेषः) 6. घोंसला 7. भ्रम, घोखा । सम० - मालिन् ( बि० ) अवगुण्ठित । जालकिन् (पुं० ) [ जालक + इनि | बादल । जालकिनी [ जालकिन् + ङीप् | भेड़ । जालिक: [ जाल + ठन् ] 1. मछवाहा 2. बहेलिया, चिड़ीमार 3. मकड़ी 4. प्रान्त का राज्यपाल या मुख्य शासक 5. बदमास, ठग, का 1. जाली 2. जञ्जीरों का बना For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०४ ) कवच 3. मकड़ी 4. जोंक 5. विधवा 6. लोहा 7. घूंघट, मुख पर डालने का ऊनी कपड़ा । जालिनी [जाल + इनि + ङीप् ] चित्रों से सुभूषित कमरा । जाल्म ( वि० ) ( स्त्री० -- हमी ) [ जल +णिक् बा० म ] 1. क्रूर, निष्ठुर, कठोर 2. उतावला, अविवेकी, ल्मः ( स्त्री हमी) 1. बदमाश, शठ, लुच्चा, पाजी, कुकर्मी --अपि ज्ञायते कतमेन दिग्भावेन गतः स जाल्म इति - विक्रम ० १ 2. निर्धन आदमी, नीच, अधम । जल्मक ( वि० ) ( स्त्री० - ल्मिका ) [ जाल्म + कन् ] घृणित, नीच, कमीना, तिरस्करणीय । जावम्यम् [ जवन + ष्यञ् ] 1. चाल, तेजी 2. शीघ्रता, त्वरा । जाहम् एक प्रत्यय जो शरीर के अङ्गों के अभिधायक संज्ञा शब्दों के अन्त में 'मूल' को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है - कर्णजाहम् - कान की जड़, इसी प्रकार अक्षि ओष्ठ आदि । जाह्नवी जनु + अण् + ङीप् ] गङ्गा नदी का विशेषण । जि (म्वा० पर० ( परा और वि पूर्व आने पर आ० - जयति, जित) 1. जीतना, हराना, विजय प्राप्त करना, दमन करना - जयति तुलामधिरूढो भास्वानपि जलद पटलानि पञ्च० १।३३० भट्टि० १५/७६, १६२ 2. मात कर देना, आगे बढ़ जाना-- गर्जितानन्तरां वृष्टि सौभाग्येन जिगाय सा – कु० २१५३, रघु० ३।३४ घट० २२, शि० १११९ 3, जीतना ( दिग्विजय करना या जूए में जीतना ), दिग्विजय करके हस्तगत करना - प्रागजीयत घृणा ततो मही- रघु० ११।६५, (यहाँ 'जि' का अर्थ विजय प्राप्त करना भी है) - मनु० ७९६ 4. दमन करना, दबाना, नियन्त्रण रखना ( कामावेग आदि पर ) विजय प्राप्त करना 5. विजयी होना, प्रमुख या सर्वोत्तम बनना ( प्रायः नान्दी श्लोकों या अभिवादन आदि में प्रयुक्त ) - जयतु जयतु महाराजः ( नाटकों में ) स जयति परिणद्धः शक्तिभिः शक्तिनाथः - मा० ५११, जितमुडुपतिना नमः सुरेभ्यः - रत्न० १४, भर्तृ० २१२ गीत० १।१, प्रेर० जापयति, जितवाना, विजय दिलाना, सन्नन्त - जिगीषति जीतने की, हस्तगत करने की, आगे बढ़ जाने की, रीस करने की, होड़ लगाने की इच्छा करना; अधि- जीतना, हराना, पछाड़ना - भर्तृ० १९/२, निस्-- 1. जीतना, हराना - रघु० ३।५१, भट्टि० २५२, ७/९४ याज्ञ० ३।२९२ 2. जीत लेना, दिग्विजय द्वारा हस्तगत करना - मनु० ८ १५४, परा - ( आ० ) 1. हराना, जीतना, विजय प्राप्त करना, दमन करना-यं पराजयसे मूषा-याज्ञ० २०७५ भट्टि०८/९२. खोना, वञ्चित होना 3. जीत लिया जाना या वशीभूत किया जाना, (कुछ) असह्य लगना — अध्ययनात्पराजयते – सिद्धा०, अध्ययन करना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कठिन या असा लगता है - भट्टि० ८ ७१, वि - (आ० ) 1. जीतना 2. हराना, वशीभूत करना, दमन करना -- व्यजेष्ट षड्वर्गम्- भट्टि० ११२, प्रायस्त्वन्मुखसे वया विजयते विश्वं स पुष्पायुधः - गीत० १०, भट्टि० २३९ १५/३९ 3. मात कर देना, आगे बढ़ जाना- चक्षुर्भेचकमम्बुजं विजयते - विद्धशा० १।३३ 4 जीत लेना, दिग्विजय करके हस्तगत करना - भुजविजितविमानरघु० १२ १०४, १५९, शा० २।१३ 5. विजयी होना, श्रेष्ठ या सर्वोत्तम होना - विजयतां देवः - श० ५, जि: [ जि + डि ] पिशाच । जिगनुः [गम् + लु सन्वद्भावत्वात् द्वित्वम् ] जीवन । प्राण, जिगीषा [ जि+सन् + अ + टापु ] 1. जीतने की, दमन करने की, या वशीभूत करने की इक्छा - यानं सस्मार कौबेरं वैवस्वतजिगीषया - रघु० १५/४५ 2. स्पर्धा प्रतिद्वंद्विता 3. प्रमुखता 4. चेष्टा, व्यवसाय, जीवनचर्या । जिगीषु ( वि० ) [ जि + सन् + उ ] जीतने का इच्छुक । जसा [ अद् + सन् + अ, घसादेशः 1. खाने की इच्छा, बुभुक्षा 2. हाथपाँव मारना 3. प्रबल उद्योग करना । जिघत्सु (वि० ) [ अद् + सन् + उ घसादेश: [ बुभुक्षु, भूखा । जिघांसा | हन् + सन् + अ + टाप् ] मार डालने की इच्छा --- रघु० १५।१९ । जिघांसु [ हन्+ सन् + उ ] मार डालने का इच्छुक, घातक, --सुः शत्रु, वैरी । जिघृक्षा [ ग्रह, + सन् + अ + टाप् ] ग्रहण करने की या लेने की इच्छा । जिन ( दि० ) [ घा+श जिघ्रादेशः ] 1. सूंघने वाला 2. अटकलबाज, अनुमान लगाने वाला, निरीक्षण करने वाला - उदा० मनोजिघ्रः सपत्नीजनः सा० द० । जिज्ञासा | ज्ञा + सन् + अ +टाप् ] जानने की इच्छा, कुतू हल, कौतुक या ज्ञानेप्सा । जिज्ञासु (वि०) [ज्ञा + सन् + उ ] 1. जानने का इच्छुक, ज्ञानेप्सु, प्रश्नशील- भग० ६/४४2. मुमुक्षु | जित् (वि० ) [ जि + क्विप् ] ( समास के अन्त में प्रयुक्त ) जीतने वाला, परास्त करने वाला, विजय प्राप्त करने वाला — तारकजित्, कंसजित् सहस्रजित् आदि । जित (भू० क० कृ० ) [ जि+क्त] जीता हुआ, अभिभूत, दमन किया हुआ, ( शत्रु या आवेग आदि) संयत, 2. हस्तगत, हासिल, (दिग्विजय द्वारा) प्राप्त 3. मात दिया हुआ, आगे बढ़ा हुआ 4. वशीभूत, दासीकृत या प्रभावित कामजित श्रीजित आदि । सम अक्षर (वि०) भलीभांति या तुरन्त पढ़ने वाला, अमित्र (वि०) जिसने अपने शत्रुओं को जीत लिया है, जेता विजयी, अरि (वि०) जिसने अपने शत्रुओं पर विजय For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०५ ) प्राप्त कर ली है (रिः) बुद्ध का विशेषण, आत्मन् ( वि० ) जितेन्द्रिय, आवेशशून्य, आहव ( वि० ) विजयी, इन्द्रिय ( वि० ) जिसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली है या जिसने अपनी ज्ञानेन्द्रियोंरूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द को वश में कर लिया है - श्रुत्वा स्पृष्ट्वाऽथ दृष्ट्वा च भुक्त्वा घ्रात्वा च यो नरः, न हृष्यति ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः - मनु० २०९८, काशिन् (वि०) विजयी दिखाई देने वाला, विजय का अहंकार करने वाला, अपनी विजय की शान दिखाने वाला - चाणक्योऽपि जितकाशितया मुद्रा० २, जितकाशी राजसेवकः - तदेव -- कोप, — क्रोध ( वि० ) स्थिरता, शान्तचित्तता, अनुत्तेजनीयता, नेमिः पीपल के वृक्ष की लाठी, श्रमः -- परिश्रम करने का अभ्यस्त, कठोर, स्वर्गः जिसने स्वर्ग प्राप्त कर लिया है । जिति: ( स्त्री० ) [ जि + क्तिन्] विजय, दिग्विजय । जितुम:, जित्तमः [जित् + तम, जित्तमः जितुम पृषो० साधुः ] मिथुन राशि राशिचक्र में तीसरी राशि ( 'ग्रीक' शब्द) । जिल्वर ( वि० ) ( स्त्री० री) [ जि+क्वरप् ] विजयी, जीतने वाला, विजेता- शास्त्राण्युपायंसत जित्वराणि – भट्टि० १ १६, कदलीकृत भूपाल भ्रातृभिर्जित्वरैदिशाम् — शि० २।९ । जिन ( वि० ) [ जि + नक् ] 1. विजयी, विजेता 2. अतिवृद्ध, - मः 1. किसी वर्ग का प्रमुख, बौद्ध या जैनसाधु, जैनी अर्हत् या तीर्थंकर 3. विष्णु का विशेषण । सम० - इन्द्र:, - ईश्वरः 1. प्रमुख बौद्ध सन्त 2. जैन तीर्थंकर, सपन ( नपुं०) जैनमन्दिर या विहार । जिवाजिव : [ जीवञ्जीव, पृषो० साधुः ] चकोर पक्षी । जिष्णु (वि० ) [ जि+गुल्नु ] 1. विजयी, विजेता, – रघु० ४८५, १०।१८ 2. विजय लाभ करने वाला, लाभ उठाने वाला 3. ( समास के अन्त में ) जीतने वाला, आगे बढ़ जाने वाला - अलिनीजिष्णुः कचानां चयः -भट्टि० १६, शि० १३।२१, ४णु: 1. सूर्य 2. इन्द्र 3. विष्णु 4. अर्जुन जिह्य (वि० ) [ जहाति सरलमार्ग, हा + मन् सन्वत् आलोपश्च] 1. ढलवां, कुटिल, तिरछा 2. टेढ़ा, बांका, वक्रदृष्टि ऋतु० १।१२ 3. घुमावदार, वक्र, टेढ़ामेढ़ा 4. नैतिकता की दृष्टि से कुटिल, धोखेबाज, बेईमान, दुष्ट, अनीतिपूर्ण धृतहेतिरप्यधृतजिह्ममतिः - कि० ६।२४ सुहृदर्थमीहितमजिह्यधियाम् शि० ९/६२ 5. धुंधला, निष्प्रभ, फीका विधिसमयनियोगातिसंहारजिह्मम् कि० १।४६ 6. मन्थर, आलसी - हाम्- बेईमानी, झूठा व्यवहार । सम० - अक्ष ( वि० ) भंगा, ऐंचाताना, गः साँप, गति (वि०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टेढ़ामेढ़ा चलने वाला, तिर्यग्गति से चलने वाला ऋतु० १।१३, मेहन: मेंढक, - योधिन् (वि० ) अधर्मी योद्धा, शल्यः खर का वृक्ष । जिह्नः [ह्वे+ड द्वित्वादि ] जीभ । जिह्वल (वि०) [ जिह्व + ला + क] जिभला, चटोरा । जिह्वा [ लिहन्ति अनया - लिह + वन् नि० ] 1. जीभ 2. आग की जीभ अर्थात् लौ । सम० - आस्वादः चाटना, लपलपाना, - उल्लेखनी, उल्लेखनिका, - निर्लेखनम् जीभ खुरचने वाला पः 1 कुत्ता 2. बिल्ली 3 व्याघ्र 4. चीता 5. रीछ, मूलम् जिल्ला की जड़, - मूलीय ( वि०) क् और ख से पूर्व विसर्ग की ध्वनि, तथा कण्ठ्य व्यञ्जनों की ध्वनि का द्योतक शब्द (व्यro ), रवः पक्षी, लिह (पुं०) कुत्ता, - लौल्यम् लालच, शल्यः खैर का पेड़ । जीन (वि०) [ज्या+क्त] बूढ़ा, वयोवृद्ध, क्षीण, - नः चमड़े का थैला - जीनकार्मुकबस्तावीन् पृथगदद्याद्विशुद्धये -- मनु० ११ । १३९ । जीमूतः [ जयति नभः, जीयते अनिलेन जीवनस्योदकस्य मूर्त "बन्धो यत्र, जीवन जलं मूतं बद्धम् अनेन जीवनं मुञ्चतीति वा पृषो० तारा०] 1. बादल - जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन् प्रवृत्ति - मेघ० ४ 2. इन्द्र का विशेषण | सम० --- कूटः एक पहाड़, वाहनः 1. इन्द्र 2. नागानन्द नाटक में नायक, विद्याधरों का राजा (कथा सरित्सागर में भी उल्लेख [ जीमूतवाहन, जीमूतकेतु का पुत्र था, अपनी दानशीलता तथा वृत्ति के कारण प्रख्यात था। जब उसके बन्धुबान्धवों ने ही उसके पिता को राजधानी पर आक्रमण किया तो उसने अपने पिता जी को कहा कि इस राज्य को अपने आक्रमणकारी बन्धुबान्धवों के लिए छोड़ दो तथा स्वयं मलयपर्वत पर रह कर अपना पवित्र जीवन बिताओ। एक दिन कहा जाता है कि जीमूतवाहन ने उस साँप का स्थान ग्रहण किया जो कि अपने समझौते के अनुसार गरुड़ को उसके दैनिक भोजन के रूप में प्रस्तुत किया जाना था । अन्त में अपने उदार तथा हृदयस्पर्शी व्यवहार के द्वारा जीमूत वाहन ने गरुड़ को इस बात के लिए अभिप्रेरित किया कि वह साँपों को खाने की आदत छोड़ दे । नाटक में इस कहानी को बड़े ही कारुण्यपूर्ण ढंग से कहा गया है ], वाहिन् (पुं०) धूआँ । जीरः [ ज्या + रक्, सम्प्रसारणं दीर्घश्च ] 1. तलवार 2. जीरा । जीरकः, जीरणः [जीर + कन्, पृषो० कस्य णः ] जीरा । जीर्ण (वि० ) [ ज+क्त]1. पुराना, प्राचीन 2. घिसा पिसा, शीर्ण, बरबाद, ध्वस्त, फटा-पुराना (वस्त्रादिक ) -- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय - भग० २।२२, For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४०६ ) 3. पचा हुआ,सुजीर्णमन्त्रं सुविचक्षणः सुतः-हि. ] याज्ञ०२१३०१ 2. सेवा करना, आश्रित रहना--शि० ११२२,–ण: 1. बूढ़ा आदमी 2. वृक्ष,--णम् 1. गुग्गुल ९।३२ । 2. बुढ़ापा, क्षीणता। सम०-उबारः पुराने को नया जीव (वि०) [जीव+क] जीवित, विद्यमान,-व: बनाना, मरम्मत, विशेषकर किसी मन्दिर धर्मार्थ 1. जीवन का सिद्धांत, श्वास, प्राण, आत्मा-गतजीव, संस्था या धार्मिक, स्थान की,-उद्यानम् उजड़ा जीवत्याग, जीवाशा आदि 2. वैयक्तिक या व्यक्तिगत हुआ तथा उपेक्षित बाग,- ज्वरः पुराना बुखार, रूप से मानव शरीर में रहने वाला आत्मा जो कि इस अधिक दिनों से रहने वाला मन्द ज्वर,–पणंः शरीर को जीवन, गति तथा संवेदना देता है (जीवाकदम्ब वृक्ष,-बाटिका उजड़ी हुई बगीची,-वनम् | त्मन' कहलाता है, विप० 'परमात्मन्' शब्द है) याज्ञ. वैक्रान्तमणि। ३३१३१, मनु० १२।२२, २३ 3. जीवन, अस्तित्व मोर्णकः (वि०) [जीर्ण+कन् ] करीब-करीब सूखा या | 4. जानवर, जीवधारी प्राणी 5. आजीविका, व्यवसाय मुरझाया हुआ। 6. कर्ण का नाम, 7. एक मरुत् का नाम 8. 'पुष्य' जीणिः (स्त्री० [ज़+क्तिन् ] 1. बुढ़ापा, क्षीणता, कृशता, | नक्षत्रपुंज। सम०-- अन्तक: 1. चिड़ीमार, बहेलिया दुर्बलता 2. पाचन-शक्ति । 2. कातिल, हत्यारा,-आदानम् (पुं०) मानव शरीर जीव (भ्वा० पर०-जीवति, जीवित) 1. जीना, जीवित रहना में रहने वाला आत्मा (विप० परमात्मन)-आदानम् -यस्मिजीवन्ति जीवंति बहवः सोऽत्र जीवति-पंच. स्वस्थ रुधिर निकालना, (आयु. में) रुधिर निकलना, २२३, मा जीवन् यः परावज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति -~-आधानम् जीवन का प्ररक्षण-आधारः हृदय-इंध. ---शि० २।४५, मनु० २।२३५ 2. पुनर्जीवित करना, नम् दहकती हुई लकड़ी, जलता हुआ काठ,--उत्सर्गः जीवित होना 3. (किसी वृत्ति के सहारे) रहना, निर्वाह प्राणोत्सर्ग करना, ऐच्छिक मृत्यु, आत्महत्या,-ऊर्णा करना, आजीविका करना (करण के साथ)-सत्या जीवित पशु की अन---गहम्, - मन्दिरम् आत्मा का नृतं तु वाणिज्यं तेन चैवापि जीव्यते-मनु० ४।६, वासगृह, शरीर,-प्राहः जीवित पकड़ा हुआ कैदी, जीवः विपणेन च जीवन्तः ३.१५२, १६२, ११०२६, कभी कभी (जीवजीवः भी) चकोर पक्षो,-दः 1. वैद्य 2. शत्रु, सजातीय कर्म के साथ इसी अर्थ में प्रयुक्त--अजिह्मा -वशा नश्वर अस्तित्व,-धनम 'जीवित दौलत' जीवमशठां शुद्धां जीवेद् ब्राह्मणजीविकाम-मनु० ४।११ धारी प्राणियों के रूप में संपत्ति, पशुधन,-पानी पृथ्वी, 4. (आले.) आश्रित रहना, जीवित रहने के लिए -पतिः (स्त्री०)-पत्नी वह स्त्री जिसका पति जीवित किसी पर निर्भर करना (अधि. के साथ)--चौराः है,-पुत्रा,-वत्सा वह स्त्री जिसका पुत्र जीवित प्रमत्ते जीवन्ति व्याधितेप चिकित्सकाः, प्रमदाः काम है,-मातृका सात माताएं या देवियाँ जो प्राणियों का 'यानेष यजमानेष याचकाः, राजा विवदमानेष नित्यं पालन पोषण करने वाली मानी जाती हैं (कुमारी मूर्खेषु पण्डिताः महा०, प्रेर०--1. फिर जान डालना, धन दानन्दा विमला मंगला बला पद्मा चेति च विख्याता: 2. पालन पोषण करना, (भोजन द्वारा) पालना, सप्तता जीवमातृकाः)-रक्तम् स्त्री का रज, आर्तव, शिक्षित करना, सिखाना पढ़ाना, अति-, 1. जीवित -लोक: जीवधारी प्राणियों का संसार, मर्त्यलोक, रह जाना 2. जीवन प्रणाली में दूसरों से आगे बढ़ प्राणिजगत् - त्वत्प्रयाण शान्तालोकः सर्वतो जीवजाना (अधिक शान से रहना)--अत्यजीवदमराल लोक:- मा० ९।३७, जीवलोकतिलक: प्रलीयते-२१, केश्वरो-रघु० १९११५, अनु -1. लटकना, सहारे इसी प्रकार--स्वप्नंद्रजालसदृशः खलु जीवलोकः---शा० निर्भर रहना, जीवित रहना, सेवा करना,--स तु तस्याः २२, भग० १११७ उत्तर० ४११७, 2. जीवधारी प्राणी, पाणिग्राहक मनजीविष्यति-दश० १२२ 2. बिना ईर्ष्या मनुष्य-दिवस इवाभ्रश्यामस्तपात्यये जीवलोकस्य-श. के देखना-यां तां श्रियमसूयामः पुरा दृष्ट्वा युधि ३३१२, आलोकमर्कादिव जीवलोकः---रघु० ५।५५, ष्ठिरे, अद्य तामनुजीवाम: महा0 3. किसी के लिए - वृत्तिः (स्त्री०) पशुपालन, गायभंस आदि पालन का जीवित रहना 4. जीवनचर्या में दूसरों के पीछे चलना रोजगार,---शेष (वि.) जिसकी केवल जान बची हो, ----- रघु० १९०१५, अने० पा० (अन्वजीवत् या अव्य जो सब कुछ छोड़ कर केवल जान लेकर भाग आया जीवत) 5. जीवित रहना, बचा रहना, उद्,-पुनर्जी हो,--संक्रमणम् जीव का एक शरीर छोड़कर दूसरे वित करना, फिर जीवित होना-उदजीवत् सुमित्राभूः शरीर में जाना,-साधनम् धान्य, अनाज,-साफल्यम् --भट्टि०१७४९५, उप--, 1. किसी आधार पर जीवित जीवनधारण करने के मुख्य लक्ष्य को प्राप्ति,-सःजीवरहना, निर्वाह करना, आजीविका करना--का वृत्ति धारी प्राणियों की माता, वह स्त्री जिसके बच्चे जीवित मुपजीवत्यार्यः, संवाहकवत्तिमपजीवामि-मच्छ०२, । हों, स्थानम् 1. जोड़, अस्थिसंधि 2. मर्म, हृदय । शेषास्तमुपजीवेयुर्यथैव पितरं तथा-मनु० ९।१०५, 'जीवकः [ जीव् + णिच् +ण्वुल ] 1. जीवधारी प्राणी For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४०७ ) जीवित आधार (वि०) ( जिन्दा, सज 2. सेवक 3. बौद्ध भिक्षु, भिक्षा के सहारे ही जीवित । जीवित (वि.) [जीव+क्त ] 1. जीता हुआ, विद्यमान, रहने वाला भिखारी 4. सूदखोर 5. सपेरा 6. वृक्ष। सजीव-रघु० १२।७५ 2. पुनः जीवनप्राप्त 3. जीवन जीवत् (वि.) (स्त्री०-न्ती) [ जीव+शत ] जीवित. युक्त, अनुप्राणित 4. (काल) जिसमें रहा जा पका सजीव । सम० --तोका वह स्त्री जिसके बच्च जिन्दा है।-तम 1. जीवन, अस्तित्व-त्वं जीवितं त्वमसि मे हो,-पति: (स्त्री०)-पत्नी (स्त्री०) वह स्त्री जिसका हृदयं द्वितीयम् - उत्तर० ३।२६, कन्येयं कुलजीवितम् पति जीबित है,-मुक्त (वि.) जीवन्मक्त, जिसने कु० ६।६३, मेघ० ८३, नाभिनन्देत मरणं नाभिनन्देत परमात्मा के सत्यज्ञान से पवित्र होकर भावी जीवन जीवितम्-मनु. ६४५, ७।१११ 2. जीवन की अवधि से मक्ति पा ली है, सांसारिक बंधनों से मुक्त,-मक्तिः 3. आजीविका 4. जीवधारी प्राणी । सम-अन्तक: (स्त्री०) इसी जीवन में परममोक्ष की प्राप्ति,-मत शिव का विशेषण,-आशा जीने की उम्मीद, जीवन से (वि०) जीता हुआ ही मतक, जो जीता हुआ ही मुर्दे प्रेम,-ईशः 1 प्रेमी, पति 2 यम का विशषण-जीविके समान बेकार है, (पागल आदमी या भ्रष्टचरित्र तेशवसतिं जगाम सा--रघु० १०२० (यहाँ शब्द व्यक्ति)। प्रथम अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है) 3. सूर्य 4. चन्द्रमा, जीवथः [ जीव् + अथ ] 1. जीवन, अस्तित्व 2. कछुवा ---काल: जीवन की अवधि,माधमनी,-व्ययः प्राणों 3. मोर 4. वादल । का त्याग,-संशयः जीवन की जोखिम, प्राणसंकट, जोवन (वि.) (स्त्री०--नी) [ जीव+ ल्युट ] जीवनप्रद, जीवन को खतरा-स आतूरो जीवितसंशये वर्तते जीवनदाता, प्राणप्रद,--न: 1. जीवित आधारी 2. वाय -वह बुरी तरह से रुग्ण है, उसके प्राण संकट में 3. पुत्र,-नम् जिन्दा रहना, अस्तित्व (आलं.) त्व हैं-भामि० २।२०। मसि मम भूषणं त्वमसि मम जीवनम्गीत० १० जीविन (वि.) (स्त्री०--नी) [जीव-इनि] (सामान्यत: 2. जीवन का सिद्धांत, संजीवनीशक्ति--भग० ७।९ । समास के अन्त में) 1. जिन्दा, सजीव, विद्यमान--रषु० 3. जल बीजानां प्रभव नमोऽस्तु जीवनाय-कि० ११६३ 2. किसी के सहारे जिन्दा रहने बाला-शस्त्र १८१३९, या जीवन-जीवनं हन्ति प्राणान हन्ति समीरणः जीविन, आयुधजीविन -(६०) जीवधारी प्राणी। -उद्भट 4. आजीविका, वत्ति, अस्तित्व के साधन जीव्या [जीव् । यत्+टाप] आजीविका के साधन । (आलं० से भी) मनु० १११७६, हि० ३।३३ 5. पिछले जुगुप्सनम्, जुगुप्सा [गुप्+सन्+ल्युट, अ+टाप् वा] दिन के रक्खे दूध से बनाया गया मक्खन 6. मज्जा । 1. निन्दा, झिड़की 2. नापसन्दगी, अभिरुचि, घृणा, सम-अन्तः मृत्यु,---आघातम् विष,--आवासः बीभत्सा 3. (अलं० शा०) बीभत्स रस का स्थायीभाव 1. जल में रहना, वरुण का विशेषण, जल की अधिष्ठात्री परिभाषा इस प्रकार है :-दोषेक्षणादिभिर्गो जुगुप्सा देवता 2. शरीर,--उपाय: आजीविका,----ओषधम विषयोद्भबा-सा० द० २०७। 1. अमृत 2. संजीवनी औषध ।। जुष् (तुदा० आ०-जुषते, जुष्ट) 1. प्रसन्न होना, संतुष्ट जीवनकम् [ जीवन+कन् ] आहार, भोजन । होना 2. अनुकूल होना, मङ्गलप्रद होना 3. पसन्द जीवनीयम् [जीव+अनीयर ] 1. जल, 2. ताजा दूध । करना, अत्यन्त चाहना, प्रसन्नता या खुशी मनाना, जीवन्तः / जीव-झन् ] 1. जीवन, अस्तित्व 2. दवाई, सुखोपभोग करना---सत्त्वं जुषाणस्य भवाय देहिनाम् औषधि । -भाग 4. भक्त होना, अनुरक्त होना, अभ्यास जीवन्तिकः [ =जीवान्तकः, पृषो० ] बहेलिया, चिड़ीमार। करना, भुगतना, भोगना--पौलस्त्योऽजुषत शुचं विपन्नजीवा [ जी+अ+टाप् ] 1 जल 2. पृथ्वी 3. धनुष की बन्धुः---भट्टि० १७११२ 5. प्राय: जाना, दर्शन डोरी-महर्जीवाघोषेर्बधिरयति-महावी०६।३०4. चाप करना, बसना----जुषन्ते पर्वतश्रेष्ठमपयः पर्वसन्धिष के दो सिरों को मिलाने वाली रेखा 5. जीवन के महा० 6. प्रविष्ट होना, बिठाना, आश्रय लेना-रथं च साधन 6. धातु से बने आभूषणों की झंकार 7. एक जुजुषे शुभम्-भट्टि० १४१९५ 7. चुनना। पौधा, वच। ii (भ्वा० पर०---चुरा० उभ.--जोषति, जोषयति जीवातु (पु०, नपुं)[ जीवत्यनेन-जीव-आतु] 1. भोजन, ...ते) 1. तर्क करना, चिन्तन करना 2. जाँचपड़ताल आहार 2. प्राण, अस्तित्व 3. पुनर्जीवन, फिर जीवित करना, परीक्षा करना 3. चोट पहुंचाना 4. संतुष्ट करना-रे हस्त दक्षिण मतस्य शिशोद्विजस्य जीवातवे विसृज शूद्रमुनौ कृपाणम्-उत्तर० २।१०, पुनर्जीवन | जुष् (वि०) [ जुष् + क्विप् ] (समास के अन्त में) पसन्द दाता औषधि। करने वाला, उपभोग करने वाला, आनन्द लेने वाला जीविका जोव+अकन्, अत इत्वम् ] जीने का साधन, - भर्त० ३।१०३ 2. दर्शन करने वाला, निकट जाने रोजगार। वाला, पहुँचने वाला, लेने वाला, धारण करने वाला होना। For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४०८ ) आश्रय लेने वाला आदि--परलोकजुषाम् --रघु० ८। उबासी लेना, मुंह खोलना-व्यजृम्भिषत चापरे-भट्टि० ८५, रजोजुषे जन्मनि ...का० १। १५।१०८ विजम्भितमिवान्तरिक्षण---मच्छ० ५ जुष्ट (भू० क० कृ०) [ जुष। क्त ] 1. प्रसन्न, संतुष्ट 2 खुलना, खिलना (फूल आदि का) 3. सर्वत्र फैल 2. अभ्यस्त, आश्रित, देखा हुआ, भुगता हुआ-भग० जाना, व्याप्त करना, भर देना- मुखश्रवा मंगलतूर्यनि २।२ 3. सज्जित, सम्पन्न, युक्त । स्वनाः "न केवलं सग्रनि मागधीपतेः पथि व्यजम्भन्त जहः (स्त्री.) [ह-+-क्विप नि० हित्वं दीर्घश्च तारा०] दिवौकसामपि----रघु० ३।१९, १२।७२, रजोन्धकारस्य अग्नि में घी को आहति देने के लिए काठ का बना विजम्भितस्य ७।४२ 4. उदय होना प्रकट होना, अर्धचन्द्राकार चम्मच, नुवा। समद् --, प्रयत्न करना, हाथपाँव मारना, कोशिश जुहोतिः [जु+श्तिप्] ‘जुहोति' क्रिया से सम्पन्न होने वाले करना--व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्ध समुज्जृम्भते यज्ञानुष्ठानों का परिभाषिक नाम, इससे भिन्न अनुष्ठानों -भर्तृ० २१६ । के लिए दूसरा नाम 'यजति' है--क्षरन्ति सर्वा वैदिक्यो जृम्भः,-- भम्, जृम्भणम्, जृम्भा, जृम्भिका [ जृम्भ+घञ जुहोतियजतिक्रिया:--मनु० २०८४ (दे० मेघातिथि ल्युट् वा, जम्भ+अ+टाप, जृम्भा-कन्, इत्वम् ] तथा दूसरे भाष्यकार, सर्वज्ञ नारायण-जुहोति यज्ञा- 1. जम्हाई लेना, उबासी लेना 2. खुलना खिलना, नुष्ठानों को 'उपविष्ट होम' तथा यजति-यज्ञानुष्ठानों विस्तृत होना-कलिकाश्रयो जम्मा प्रभवति-का० को 'तिष्ठद्धोम' का नाम देते है-दे० आश्वलायन २५७, जम्भारम्भप्रविततदलोपान्तजालप्रविष्ट:-वेणी० --१२२।५ भी)। २१७, मालती शिरसि जम्भणोन्मुखी-भर्तृ० ११२५ जः (स्त्री०) [जू+क्विप] 1. चाल 2. पर्यावरण 3. राक्षसी 3. अंगड़ाई लेना- (अंगानि) मुहुर्मुहुर्जुम्भणतत्पराणि 4. सरस्वती का विशेषण । -ऋतु० ६।१०। जूकः [ग्रीक शब्द] तुला राशि । ज़ (भ्वा० दिवा० ऋया० पर० चुरा० उभ० जरति, जीर्यति, जूटः [ जुट+अच, नि० ऊत्वम् ] चिपटे हए तथा मीढी जणाति, जारयति-ते, जीर्ण जारित) 1. बूढ़ा होना, बनाये हुए केशों का समूह-भूतेशस्य भुजङ्गवल्लि- जर्जर होना, सूचना, मुरझाना-जीयन्ते जीर्यतः केशा वलयस्रङनद्धजूटा जटाः---मा० ११२।। दन्ता जीर्यन्ति जीर्यतः, जीर्यतश्चक्षुषी श्रोत्रे तृष्णका जटकम् [जूट- कन्बट कर मीढ़ी बनाय हुए बाल, जटा। तरुणायते---पंच० ५।८३, भट्रि० ९।४१ 2. नष्ट होना, जतिः स्त्री० [जू+क्तिन् चाल, वेग। खा-पी जाना (आलं.) अजारीदिव च प्रज्ञा बलं शोकाजूर् (दिवा० आ०--जूयंते, जूर्ण) 1. चोट पहुँचाना, क्षति तथाऽजरत् ---भट्टि० ६.३०–जेरुराशा दशास्यस्य पहुँचाना, मारना 2. कुद्ध होना (संप्र० के साथ)-भत्रे ---१४१११२ 3. घल जाना, पच जाना-जीर्णमन्न नखेभ्यश्च चिरं जुजूरे भट्टि० ११३८ 3. पुराना प्रशंसीयात्-चाण० ७९ उदरे चाजरन्नन्ये- भट्टि० होना। १५।५०। जूतिः (स्त्री०) [ज्वर् +क्तिन्, ऊठ्] बुखार, जूड़ी। जेत (पुं०)[जि---तच | 1. जीतने वाला, विजेता 2. विष्ण ज़ (भ्वा० पर० जरति) 1. नम्र बनाना, नीचा दिखाना का विशेषण । 2 आगे बढ़ जाना। जेन्ताकः (पु०) गरम कमरा जिसमें बैठने पर शरीर से जभ, जम्भ (भ्वा० आ०---जभते, जम्भते, जम्भित, ज़ब्ध) पसीना बहे, शुष्क उष्ण स्नान । 1. उबासी लेना, जमहाई लेना-मन० ४।४३ | जेमनम् [ जिम् + ल्युट् ] 1. खाना 2. भोजन । 2. खोलना, विस्तार करना, खिलना (फल आदि का) जंत्र (वि.) (स्त्री०) [जेत-+अण, स्त्रियां डीप च] -परयुवतिमुखाभं पङ्कजं जम्भतेऽद्य---ऋतु० ३१२२ 1. विजयी, सफल, विजय प्राप्त कराने वाला-इदमिह 3. बढ़ाना, फैलाना, सर्वत्र प्रसार करना- जंभतां मदनस्य जैत्रमस्त्रं विफलगुणातिशयं भविष्यतीति-मा० जम्भतामप्रतिहतप्रसरं क्रोवज्योति: - वेणी० १, तष्णे २५ धनुर्जत्रं रघुर्दधौ-रघ० ४।६६, १६१७२ जम्भसि (पर० अनियमित)-भर्तृ० ३।५ भोगः कोऽपि 2. बढ़िया, --त्रः 1. विजयी, विजेता 2. पारा,--त्रम् स एक एव परमो नित्योदितो जम्भते-३८० 4. प्रकट | ___ 1. विजय, जीत 2. बढ़ियापन । होना, उदय होना, अपनी शान दिखाना, दर्शनीय होना | जैनः [ जिन+अण् ] जैन सिद्धान्तों का अनुयायी, जैन मत व्यक्त होना-संकल्पयोनेरभिमानभूतमात्मानमाधाय | को मानने वाला। मधुर्जजम्भे--कु० ३।२४ 5. आराम में होना 6. (धनुष | जैमिनिः (पुं०) प्रख्यात ऋषि और दार्शनिक जिन्होंने दर्शन की भांति) पीछे मुड़ना, पल्टा खाना प्रेर० जमुहाई संप्रदाय में 'पूर्वमीमांसा' का प्रणयन किया-मीमांसादिलाना, प्रसार करवाना, उद्, प्रकट होना, उदय कृतमन्ममाथ सहसा हस्ती मनि जैमिनिम-पंच० होना, फूटना-नै० २।१०५, वि., जमुहाई लेना, | २०३३ । For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०९ ) जैवातृक ( वि० ) ( स्त्री० - की) [ जीव् + णिच् + आतृकन् ] 1. दीर्घजीवी, जिसके लिए दीर्घायु की इच्छा की जाय - जैवातृक ननु श्रूयते पतिरस्या:-- दश० २, दुबला-पतला, कृशकाय, कः 1. चन्द्रमा-- राजानं जनयाम्बभूव सहसा जैवातृक त्वां तु यः -- भामि० २७८ 2. कपूर 3. पुत्र 4. दवाई, औषधि 5. किसान । जवेयः [ जीवस्य गुरोः अपत्यम् जीव + ढक् ] बृहस्पति के पुत्र कच की उपाधि | यम् [ जिह्म + ष्यञ् ] टेढ़ापन, धोखा, झूठा व्यवहार । जोङ्गः [ जुंङ्गति अरोचकत्वं परित्यजति अनेन जुङ्ग + अटन् नि० गुणः 1 गर्भवती स्त्री की प्रबल रुचि, दोहद । जोटिङ्गः [ जुट् +इन्, जोटि + गम् + ड, रिक्तत्वात् मुम् ] शिव की उपाधि । जोषः [ जुप् +य् ] 1. सन्तोष, सुखोपभोग, प्रसन्नता, आनन्द 2. चुप्पी, बम् ( अव्य० ) 1. इच्छानुसार, आराम से 2. चुपचाप किमिति जोषमास्यते - श० ५, भामि० २।१७ । जोषा, जोषित् (स्त्री० ) [ जुष्यते उपभुज्यते - जुब् + घञ + टापू, जुब् + इति । स्त्री, नारी - तु० योषा, योषित् । जोषिका [ जुष् + ल् + टाप्, इत्वम् ] 1. नई कलियों का समूह 2. स्त्री, नारी । ज्ञ (वि० ) [ज्ञा + क ] ( समास के अन्त में ) 1. जानने वाला, परिचित कार्यज्ञ, निमित्तज्ञ, शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ 2. बुद्धिमान् जैसा कि 'जंमन्य' में (अपने आपको बुद्धिमान् समझता हुआ), - नः 1. बुद्धिमान् और विद्वान् पुरुष 2. चैतन्य विशिष्ट आत्मा 3. बुध नक्षत्र 4. मंगल नक्षत्र 5. ब्रह्मा का विशेषण । ज्ञपित, ज्ञप्स (नि० ) [ ज्ञा + णिच् + क्त, ] जताया गया, संसूचित, स्पष्ट किया गया, सिखाया गया । ज्ञप्तिः (स्त्री० ) [ज्ञा + णिच् + क्तिन् ] 1. समझ, 2. बुद्धि 3. घोषणा । ज्ञा ( कया० उभ० जानाति, जानीते, ज्ञात) 1. जानना ( सब अर्थों में ) सीखना, परिचित होना मा ज्ञासीत्वं सुखी राम यदकार्षीत् स रक्षसाम् - भट्टि० १५/९, 2. जानना, जानकार होना, परिचित या विज्ञ होना जाने तपसो वीर्यम् - श० ३१, जानन्नपि हि मेवावी जडवल्लोक आचरेत् -- मनु० २।११० १२३, ७ १४८ 3. मालूम करना, निश्चय करना, खोज करना--ज्ञायतां कः कः कार्यार्थीति -- मृच्छ०९ 4. समझना, जानना, अवबोध करना, महसूस करना, अनुभव करना जैसा कि दुःखज्ञ, सुखज्ञ आदि में 5 परोक्षण करना, जांच करना, वास्तविक चरित्र जानना आपत्सु मित्रं जानीयातु - हिं० ११७२, चाण० २१ 6. पहचानना न त्वं दृष्ट्वा न पुनरलकां ज्ञास्यसे कामचारिन् मेघ० ५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३ 7. लिहाज करना, खयाल करना, मान करना - जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः मेघ ० ६ 8. काम करना, व्यस्त करना ( संब० के साथ ) सर्पिषो जानीते--- सिद्धा० - वह घी से अपने आपको यज्ञ में व्यस्त करता है (सर्पिषा सर्पिषः ) प्रेर०- ( ज्ञापयति, ज्ञपयति ) 1. घोषणा करना, सूचित करना, जतलाना, ज्ञात करना, अधिसूचित करना 2. निवेदन करना, कहना ( आ० ) - सन्नन्त - जिज्ञासते, जानने की इच्छा करना, खोजना, निश्चय करना -- रघु० २।२६ भट्टि० ८ ३३, ४,९१, अनु, अनुमति देना, इजाजत देना, स्वीकृति देना, 'हाँ' करना सहमत होना, स्वीकार कर लेना - अनुजानीहि मां गमनाय उत्तर० ३ 2. सगाई करना, विवाह में वचनबद्ध होना, वचन देना ( विवाह में ) मां जातमात्रां घनमित्रनाम्नेऽन्वजानाद्भार्या मे पिता- दश० ५० 3. क्षमा करना, माफ करना 4. प्रार्थना करना 5. अपनाना अप, छिपाना, गुप्त रखना, इनकार करना, मुकरना ( आ०) शतमपजानीते - सिद्धा०, आत्मानमपजानानः शशमात्रोऽनयद्दिनम् भट्टि० ८/२६, अभि० 1. पहचानना - नाभ्यजानान्नलं नृपम् महा० 2. जानना, समझना, परिचित होना, जानकार होना- भग० ४ १४, ७ १३, १८, ५५ 3. ध्यान रखना खयाल रखना, मानना 4. मान लेना, स्वीकार कर लेना, अव-, तुच्छ समझना, घृणा करना, तिरस्कार करना, अपेक्षा करना – अवजानासि मां यस्मात् - रघु० १११७, भट्टि० ३१८, भग० ९।११, आ, जानना, समझना, खोजना, निश्चय करना ( प्रेर०) आज्ञा देना, आदेश देना, निदेश देना 2. विश्वास दिलाना 3. विसर्जित करना, जाने के लिए छुट्टी देना, परि, जानकार होना, जानना, परिचित होना - वृषभोऽयमिति परिज्ञाय पंच० १, मनु० ८११२६ 2. खोजना, निश्चय करना - सम्यक् परिज्ञाय पंच० १ 3. पहिचानना - तपस्विभिः कैश्चित् परिज्ञातोऽस्मि - श० २, प्रति (आ० ) 1. प्रतिज्ञा करना - हरचापारोपणेन कन्यादानं प्रतिजानीते - प्रस० ४ भट्टि० ८ २६, ६४, मनु० ९/९९२. पुष्ट करना, 3. बताना, अभिपुष्टि करना, दावा करना, वि- 1. जानना, जानकार होना भर्तृ० ३।२१ 2. सीखना, समझना, जान लेना 3. निश्चय करना मालूम करना 4. लिहाज करना, मान लेना, खयाल करना ( प्रेर0) 1. निवेदन करना, प्रार्थना करना ( विप० आज्ञापयति ) - आर्यपुत्र अस्ति में विज्ञाप्यम् - ( रामः ) ननु आज्ञापय - उत्तर० १, रघु० ५/२० 2. समाचार देना, सूचना देना 3. कहना, बतलाना, सम्-, ( आ० ) जानना, समझना, जानकार होना 2. पहचानना 3. मेलजोल से रहना, परस्पर सहमत For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होना (कर्म० या करण के साथ)--पित्रा पितरं वा । निश्चिति, निश्चयीकरण,---निष्ठ वि० सच्चे आत्मज्ञान संजानीते-सिद्धा. 4. रखवाली करना, खबरदार को प्राप्त करने पर तुला हुआ,---यज्ञः आत्मज्ञानी, रहना-भट्टि०८।२७ 5. राजी होना, सहमत होना दार्शनिक-योगः सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त करने 6. (पर०) याद करना, सोचना–मातु: मातरं वा या परमात्मानुभूति प्राप्त करने का मुख्यसाधन, संजानासि-सिद्धा० (प्रेर०) सूचना देना । --चिन्तन, विचारणा, शास्त्रम् भविष्य कथन का ज्ञात (वि०) [ज्ञा+क्त] जाना हुआ, निश्चय किया हुआ, शास्त्र,---साधनम् 1. सच्चा आत्म ज्ञान प्राप्त करने समझा हुआ, सीखा हुआ, समवधारित-दे० 'ज्ञा' का साधन 2. प्रत्यक्ष ज्ञान की इन्द्रिय । ऊपर । सम-सिद्धान्तः पूर्णरूप से शास्त्रों में | ज्ञानतः (अव्य०) ज्ञान+तसिल] ज्ञान पूर्वक, जानबूझकर, निष्णात। इरादतन । ज्ञाति: [शा--क्तिन 1. पंतक संबंध, पिता, भाई आदि, ज्ञानमय (वि.) [ज्ञान+मयट] 1. ज्ञानयुक्त, चिन्मय एक ही गोत्र के व्यक्ति (समष्टि रूप से) 2. बन्धु, --इतरो दहने स्वकर्मणां ववृते ज्ञानमयेन वह्निना बांधव 3. पिता। सम-भावः संबंध, रिस्तेदारी, -रघु० ८२० 2. ज्ञान से भरा हुआ,--य: -भेवः संबंधियों में फट,-विद् (वि.) जो निकटस्थ 1. परमात्मा 2. शिव की उपाधि । व्यक्तियों से संबंध जोड़ता है। शानिन् (वि.) (स्त्री-~-नी) [ज्ञान+इनि] 1. प्रतिभाजातेयम् ज्ञाति+ढक्] संबंध, रिश्तेदारी। शाली, बुद्धिमान् (पुं०) 1. ज्योतिषी, भविष्यवक्ता जात (पुं०) [ज्ञा+तृच] 1. बुद्धिमान् पुरुष 2. परिचित । 2. ऋषि, आत्मज्ञानी। व्यक्ति 3. जमानत, प्रतिभू । ज्ञापक (वि०) [ज्ञा+णिच-+-वल] जतलाने वाला, सिखाने ज्ञानम् ज्ञा+ल्युट] 1. जानना, समझना, परिचित होना, वाला, सूचना देने वाला, संकेतक, -क: 1. अध्यापक प्रवीणता-सांख्यस्य योगस्य च ज्ञानम् --मा० १७ 2. समादेशक, स्वामी,-कम (दर्शन० में) सार्थक 2. विद्या, शिक्षण-बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति-मनु० ५।१०९, उक्ति, व्यंजनात्मक नियम, (यहाँ उन शब्दों से ज्ञाने मौनं क्षमा शत्री-रघु० श२२ 3. चेतना, अभिप्राय है जो अपने शाब्दिक अर्थ की अपेक्षा भी संज्ञान, जानकारी--ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि --मनु० नियमों के संबंध में कुछ अधिक व्यक्त करते हैं)। ८।२८८, जाने अनजाने, जानबूझकर, अनजाने में | ज्ञापनम् [ज्ञा+णिच् + ल्युट्] जतलाना, सूचना देना, 4. परम ज्ञान, विशेषकर उस धर्म और दर्शन की सिखलाना, घोषणा करना, संकेत देना। ऊँची सचाइयों पर मनन से उत्पन्न ज्ञान जो मनुष्य शापित (वि०) [ज्ञा+णि+क्त] जतलाया गया, सूचित को अपनी प्रकृति या वास्तविकता को जानना, तथा । किया गया, घोषित किया गया, प्रकाशित । आत्मसाक्षात्कार या परमात्मा से मिलन की बात । जीप्सा [ज्ञा+सन्+अ-1-टाप्] जानने की इच्छा। सिखलाता है (विप० कर्म) तु० ज्ञानयोग और कर्मयोग | | ज्या ज्या+अ+टाप] 1. धनुष की डोरी-विश्राम भग० ३।३ 5. बुद्धि ज्ञान और प्रज्ञा की इन्द्रिय । लभतामिदं च शिथिलज्याबन्धमस्मद्धनु:- श० २१६, सम०---अनुत्पादः अज्ञान, मूर्खता,-आत्मन् (वि०) रघु० ३.५९, ११११५, १२॥१०४ 2. चाप के सिरों सर्वविद, बुद्धिमान,-इन्द्रियम प्रत्यक्षीकरण को इन्द्रिय को मिलाने वाली सीधी रेखा 3. पृथ्वी 4. माता । (यह पांच है-त्वचा, रसना, चक्षु, कर्ण, और घ्राण, | ज्यानिः (स्त्री०) [ज्या+नि] 1. बुढापा, क्षय 2. छोड़ना, 'बद्धीन्द्रिय' शब्द को देखो 'इन्द्रिय' के नीचे), काण्डम् त्यागना 3. दारेया, नदी। वेद का आंतरिक या रहस्यवाद विषयक भाग जिसमें | ज्यायस् (स्त्री०-सी) [अयमनयोरतिशयेन प्रशस्यः वृद्धो वा वास्तविक आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान का उल्लेख है, +-ईयसुन् ज्यादेशः] 1. आय में बड़ा, अधिकतर इसके विपरीत संस्कारों का ज्ञान (कर्मकांड) भी वेद वयस्क-प्रसवक्रमेण स किल ज्यायान्- उत्तर० ६ में निहित है,---कृत (वि.) जानबूझ कर या इरादतन । 2. दो में बढ़िया श्रेष्ठतर, योग्यतर--मनु० ४१८, किया हुआ,—गम्य (वि०) समझ के द्वारा जानने ३।१३७, भग० ३.१,८ 3. महत्तर, बहत्तर 4. (विधि योग्य,--चक्षुस् (नपुं०) बुद्धि की आँख, मन की ___ में) जो अवयस्क न हो अर्थात् वयस्क या अपने कार्यों आँख, बौद्धिक स्वप्न (विप० चर्म चक्षुस्)----सर्व तु । के लिए उत्तरदायी। समवेक्ष्येदं निखिलं ज्ञानचक्षुषा-मनु० २१८, ४।२४, ज्येष्ठ (वि.) [अयमेषामतिशयेन वृद्धः प्रशस्यो वा+ इष्टन, (पुं०) बुद्धिमान् और विद्वान् पुरुष,-तस्वम वास्तविक ज्यादेशः] 1. आयु में सब से बड़ा, जेठी 2. श्रेष्ठतम, ज्ञान, ब्रह्मज्ञान, तपस् (नपुं०) सत्यज्ञान की प्राप्ति सर्वोत्तम 3. प्रमुख, प्रथम, मुख्य, उच्चतम,-ठः रूप तपस्या,-वः गुरु, दा सरस्वती का विशेषण, | 1. बड़ा भाई, रघु० १२।१९, ३५ 2. चान्द्रमास -बल (वि.) जिसमें ज्ञान की कमी है।---निश्चयः, । (ज्येष्ठ का महीना),--ष्ठा 1. सबसे बड़ी बहन 2.१८ For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४११ नक्षत्र पुंज (तीन तारों वाला) 3. बिचली अंगुली । 4. छोटी छिपकली 5 गंगा नदी का विशेषण । सम० अंश: 1. सबसे बड़े भाई का भाग 2. सबसे बड़े भाई का पैतृक संपत्ति में वह भाग जो सबसे बड़ा होने के कारण उसे मिले 3. सर्वोत्तमभाग - अम्बु (नपुं०) 1. अनाज का धोवन 2. मांड (चावलों का ), आश्रमः 1. ब्राह्मण अथवा गृहस्थ के धार्मिक जीवन में उच्चतम या सर्वोत्तम आश्रम 2. गृहस्थ, तातः पिता का बड़ा भाई, ताऊ, - वर्ण: सर्वोच्च जाति, ब्राह्मण जाति, - वृत्तिः बड़ों का कर्तव्य - श्वश्रूः (स्त्री०) बड़ी साली । [ ज्येष्ठा+अण्] वह चांद्रमास जिसमें पूर्ण चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्रपुंज में स्थित होता है, जेठ का महीना ( मई-जून), , -ष्ठी 1. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 2. छिपकली | ज्यो ( वा० आ० -- ज्यवते ) 1. परामर्श देना, नसीहत देना 2. ( व्रत आदि) धार्मिक कर्तव्य का पालन करना । ज्योतिर्मय ( वि० ) ( ज्योतिस् + मयट् ] तारों से युक्त, ज्योति से भरा हुआ, युतिमय - रघु० १५५९, कु० ६ ३ । ज्योतिष (वि० ) ( स्त्री० षी) (ज्योतिस् + अच्] 1. गणित या फलित ज्योतिष- षः 1. गणक, दैवज्ञ 2. छः वेदाङ्गों में से एक (गणित ज्योतिष पर एक ग्रन्थ ) | सम० - विद्या गणित अथवा फलित ज्योतिर्विज्ञान । ज्योतिषी, ज्योतिष्कः [ ज्योतिस् + ङीष्, ज्योतिः इव कायति ---कै- + - क] ग्रह, तारा नक्षत्र । ज्योतिष्मत् (वि० ) [ ज्योतिस् + मतुप् ] 1. आलोकमय, तेजस्वी देदीप्यमान, ज्योतिर्मय - नक्षत्रता राग्रहसंकुलापि ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रिः - - रघु० ६।२२२ स्वर्गीय -- ( पुं०) सूर्य, ती 1. रात्रि ( तारों से प्रकाशमान ) 2. ( दर्शन० में) मन की सात्त्विक अवस्था अर्थात् शान्त अवस्था । ज्योतिस् ( नपुं० ) [ द्योतते द्युत्यते वा - द्युत् + इसुन् दस्य जादेश: ] प्रकाश, प्रभा, चमक, दीप्ति- ज्योतिरेक जगाम - श० ५1३०, रघु० २।७५, मेघ० ५ 2. ब्रह्मज्योति, वह ज्योति जो ब्रह्म का रूप है - भग० ५। २४, १३।१७ 3. बिजली 4. स्वर्गीय पिण्ड, ज्योति ( ग्रह, नक्षत्र आदि ) - ज्योतिभिरुद्यद्भिरिव त्रियामा कु० ७२१, भग० १० २१, हि० १।२१ 5. देखने की शक्ति 6. आकाशीय संसार - (पुं० ) 1. सूर्य 2. अग्नि । सम० - इङ्गः, – इङ्गणः जुगनू, कणः अग्नि की चिनगारी, -- गणः समष्टिरूप से खगोलीय पिण्ड, - चक्रम् राशिचक्र, ज्ञः गणक, दैवज्ञ, मण्डलम् तारकीय मण्डल, --- रथः (ज्योतीरथः) ध्रुव तारा, – बिद् (पुं०) गणक या देवज्ञ, विद्या, - शास्त्रम ( ज्योतिश्शास्त्रम् ) गणितज्योतिष या नक्षत्रविद्या, फलितज्योतिष । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योत्स्ना [ ज्योतिरस्ति अस्याम् - ज्योतिस् + न, उपधालोपः ] 1. चन्द्रमा का प्रकाश – स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाघवलिततले क्वापि पुलिने - भर्तृ० ३।४२, ज्योत्स्नावतो निर्विशति प्रदोषान् - रघु० ६।३४ 2. प्रकाश । सम० -- ईश: चाँद, -- प्रियः चकोर पक्षी, वृक्षः दीवट दीपाधार । ज्योत्स्नी [ ज्योत्स्ना अस्ति अस्य --- ज्योत्स्ना + अण् + ङीप् ] चाँदनी रात । ज्यौः [ ग्रीक शब्द ] बृहस्पति नक्षत्र । ज्योतिषिकः [ ज्योतिष + ठक् ] खगोलवेत्ता, गणक, दैवश या ज्योतिषी । ज्योत्स्नः [ ज्योत्स्ना + अण् ] शुक्ल पक्ष । ज्वर ( भ्वा० प० ज्वरति, जूर्ण ) बुखार या आवेश से गर्म, होना, ज्वरग्रस्त होना 2. रुग्ण होना । ज्वरः [ज्वर्+घञ्ञ ] 1. बुखार, ताप, (आयु० में) बुखार की गर्मी – स्वेद्यमानज्वरं प्राज्ञः कोऽम्भसा परिषिञ्चति -- शि० २।५४ ( आलं० भी ) दर्पज्वरः, मदनज्वरः, मदज्वरः आदि 2. आत्मा का बुखार, मानसिक पीड़ा, कष्ट, दुःख, रंज, शोक-व्येतु ते मनसो ज्वरः रामा०, मनसस्तदुपस्थिते ज्वरे- रघु० ८१८४, भग० ३।३० । सम० – अग्निः बुखार का वेग या तेजी, अङ्कुशः ज्वरप्रशामक, बुखार कम करने वाला, प्रतीकारः, बुखार का इलाज, ज्वर प्रशामक औषधि । ज्वरित, ज्वरिन् (वि० ) ( स्त्री० -णी ) [ ज्वर + इतच् इनिवा] ज्वराक्रान्त, ज्वरग्रस्त । ज्वल ( स्वा० पर० – ज्वलति, ज्वलित) 1. तेजी से जलना, दहकना, दीप्त होना, चमकना, – ज्वलति चलितेंन्धनोऽग्निः -- श० ६/३० कु० ५।३० 2. जल जाना, जल कर भस्म हो जाना, ( आग से ) कष्टग्रस्त होना -- अमृतमधुरमृदुतरवचनेन ज्वलति न सा मलयजपवनेन गीत० ७ 3. उत्सुक होना, - जज्वाल लोकस्थितये स राजा - भर्तृ० ११४, प्रेर० ज्वलयति - ते, ज्वालयति - ते 1. आग लगाना, आग जलाना 2. देदीप्य मान करना, रोशनी करना, प्रकाश करना — ककुभां मुखानि सहसोज्ज्वलयन्- शि० ९१४२, त्वदधरचुम्बनलम्बितकज्जलमुज्ज्वलय प्रियलोचने- गोत० १२, प्र―, तेजी से जलना, जाज्वल्यमान होना -- रणाङ्गानि प्रजज्वलुः - भट्टि० १४/९८, ( प्रेर० ) -- 1. जलाना, आग सुलगाना 2. चमकाना, रोशनी करना । ज्वलन (वि० ) [ज्वल् + ल्युट् ] 1. दहकता हुआ, चमकता हुआ 2. ज्वलना, दहनशील, नः 1. आग तदनु ज्वलनं मदर्पितं त्वरयेदक्षिणवातवीजनैः -- कु० ४।३६, ३२, भग० ११।२९ 2. तीन की संख्या, नम जलना, दहकना, चमकना । सम० अश्मन् (पुं०) सूर्यकान्त मणि । For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१२ ) ज्वलित (वि.) ज्वल+क्त] 1. दग्ध, जला हुआ, प्रका- १५।१६ भर्तृ० ११९५ । सम-जिहः,-ध्वजः आग शित 2. प्रदीप्त, प्रज्वलित। -मुखी लावा निकलने का स्थान,-बकत्रः शिव का ज्वालः [ज्वल+ण] 1. प्रकाश, दीप्ति 2. मशाल । विशेषण। ज्वाला [ज्वाल+टाप्] 1. अग्निशिखा, लो, लपट- रघु० | ज्यालिन् (पुं०) ज्वल+णिनि] शिव का विशेषण । शः झट-न-ड] 1. समय का बिताना 2. झन झन, खनखन । सम्पः, भम्पा [झम्+पत्+ड, स्त्रियां टाप् च उछल, कूद, या इसी प्रकार की कोई और ध्वनि 3. झंझावात छलांग- महावी०५।६२ । 4. बहस्पति । सम्पाकः, सम्पाय:, मम्पिन (पं०) [झम्पेन अकतिगच्छति झगमगायति (ना० धा० पर०) चमक उठना, दमकना, । -झंम्प+अक्+अण, झम्प+आ+रा+डु, झम्पा+ जगमगाना, चमचमाना । इनि वा] बन्दर, लङ्गूर । मग (गि) ति (अव्य०) [ =झटिति ] जल्दी से, तुरन्त ] शरः, मरा, झरी [ झ+अच, स्त्रियां टापु, ङीष् च] -साऽप्यप्सरा झगित्यासीत्तद्रूपाकृष्टलोचना--महा०। प्रपातिका, झरना, निर्झर, नदी-प्रत्यग्रक्षतजझरीसङ्कारः, प्रकृतम् [ झमिति अव्यक्तशब्दस्य कारः---+ निवृत्तपाद्यः -- महावी०६।१४, भामि०४।३७ । घा, कृ+क्त वा झनझनाहट, भिनभिनाना-(अयं) मरः झर्श+अरन्] 1. एक प्रकार का ढोल 2. कलियुग दिगन्तानातेने मधुपकुलझङ्कारभरितान-भामि० ११३३, । 3. बेंत की छड़ी 4. झांझ, मजीरा,-रा वेश्या ४।२९, भर्त० ११९, अमरु ४८, पंच० ५१५३ । वारांगना। झङ्कारिणी झङ्कार+इनि+डीप] गङ्गा नदी । मरिन (पुं०) [झर्झर+इनि] शिव का विशेषण ।। सडकृतिः [ झम्++क्तिन् ] खनखनाहट या झनझनाहट, | मलमला [झलझल इत्यव्यक्तः शब्दः अस्त्यत्र-अच+ (धातु के बने आभूषणो की ध्वनि जैसी ध्वनि) । टाप ] बंदों के गिरने का शब्द, झड़ी, हाथी के कान शासनम् [झञ्झ+ ल्युट ] 1. आभूषणों की झनझन या की फड़फड़ाहट । ___ख नखन 2. खड़खड़ाहट या टनटन की ध्वनि। मला [ =झरा पो०] 1. लड़की, पुत्री 2. धूप, चिलसमझा [ झमिति अव्यक्तशब्दं कृत्वा झटिति वेगेन वहति | चिलाती धूप, चमक । - झम झट-+-+-टाप ] 1. हवा के चलने या वर्षा मल्लः [झस+क्विप, तं लाति-- ला+क] 1. मल्लयोद्धा के होने का शब्द 2. हवा और पानी, तूफान, आँधी | 2.एक नीच जाति-मनु०१०।२२, १२।४५,-ली ढोलकी। 3. खनखन की ध्वनि, झनझन । सम० - अनिलः, मल्लकम,-को [ झल्ल+कन्, स्त्रियां ङीष् च ] झाँझ, ----मरुत, -- वातः वर्षा के साथ आँधी, तूफ़ान, प्रभंजक, । मजीरा। अन्धड़-----झञ्झावातः सवृष्टिक:-अमर हिमम्बझञ्झा- (झल्लकण्ठः [ब० स०] कबूतर । निलविह्वलस्य (पभस्य)-भामि० २०६९, अमरु ४८ | झल्लरी [झझं +अरन्+डीष् पृषो०] झाँझ, मजीरा। मा० ९।१७। मल्लिका [झल्ली+के+क, पृषो०] 1. उबटन आदि के झटिति (अव्य०) [झट+क्विप्, इ---क्तिन् ] जल्दी से लगाने से शरीर से छूटा हुआ मैल 2. प्रकाश, चमक, तुरन्त-मुक्ताजालमिय प्रयाति झटिति भ्रंश्यशोऽदृश्यताम् ---भर्तृ० १४९६,७०। सषः [ झप-+अच्] 1. मछली-- झपाणां मकरश्चास्मि झणझणम -णा [झणत्+डाच, द्विप्वं, पूर्वपदटिलोपः] झन- | -भग० १०॥३१, तु० नी० दिये गये 'झषकेतन' आदि झनाहट। शब्दों से 2. बड़ी मछली, मगरमच्छ 3. मीन राशि झणझणायित (वि०) [ झणझण+क्यङ्क्त ] टनटन, 4. गर्मी, ताप,--षम् मरुस्थल, सुनसान जङ्गल । सम० झनझन, टनटन करना--उत्तर० ५।५ । -अजूल-केतनः,-केतुः,-ध्वजः कामदेव-स्त्रीझण (न)त्कारः [झण (न)त्++घन] झनझन, टनटन, मुद्रां झषकेतनस्य-पंच०४१३४,-अशनः संस, उदरी (धातु से बने आभूषण आदि का) झुनझनाना, व्यास की माता सत्यवती का विशेषण ।। खनखनाना,-झणत्कारक्रूरक्वणितगुणगुजद्गुरुधनुर्धत- साङ्कृतम् [झडाकृत+अण्] 1. झांझन, पायजेब 2. (जल प्रेमा बाहुः- उत्तर० ५।२६, उद्वेजयति दरिद्रं परमद्रा- के गिरने की) आवाज, छपछप का शब्द- स्थाने स्थाने गणनझणत्कार:--उद्भट । मुखरककुभो झाङकृतनिर्झराणाम् --उत्तर० २११४ । दमक। For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - ( ४१३ ) झाट: [ झट् + घञ्ञ ] 1. पर्णशाला, लतामण्डप 2. कान्तार, वृक्षों का झुरमुट | शिटि:- टी (स्त्री० ) [ झिम् + रट् + अच् + ङीष् पृषो० एक प्रकार की झाड़ी । झिरिका [ झिरि |कै + क+टाप् ] झींगुर । झिल्लि : ( स्त्री० ) [ झिरिति अव्यक्त शब्दं लिशति - झिर् + लिश् + डि] 1. झींगुर 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र | - टक् (चुरा० उभ० – टङ्कयति ते, टङ्कित) 1. बांधना, कसना, जकड़ना 2. ढकना, उद्--1. छीलना, खुरचना 2. छिद्र करना, सूराख करना । टङ्कः, कम् [ टङ्क +घञ्ञ, अच वा ] 1. कुल्हाड़ी, कुठार, cit (पथकाने या गढ़ने के छेनी) टर्मन:शिलगुहेव विदार्यमाणा - मृच्छ० ११२०, रघु० १२.८० 2. तलवार 3. म्यान 4. कुल्हाड़ी की धार के आकार की चोटी, पहाड़ी की ढाल या झुकाव - भट्टि० १८ 5. क्रोध 6. घमंड 7. पैर का पैर, लात । टङ्ककः [ टङ्क +-कन् ] चाँदी का सिक्का । सम० पतिः टकसाल का अध्यक्ष, शाला टकसाल 1 (नः) टङ्कणम् (नम् ) [ टक् + ल्युट् ] सोहागा, - णः 1. घोड़े की एक जाति 2. एक देश विशेष के निवासी । सम० --- क्षारः सोहागा । टङ्कारः [ टम् +कृ+- अण् ] 1. धनुष की डोर खींचने से होने वाली ध्वनि 2. गुर्राना, चिल्लाना, चीत्कार, चीख । कारिन् (वि० ) ( स्त्री० णौ ) [ टङ्कार + इनि] टंकार करने वाला, फूत्कार या सीत्कार करने वाला; झंकार करने वाला टङ्कारिचापमनु लङ्काशरक्षतजपङ्कावरूषितशरम् अस्व० १ । [ टङ्क + न् + टाप्, इत्वम् ] टांकी, कुल्हाड़ी - विक्रमांक० १।१५ । टंगः, -गम् [टङ्कः पृषो० ] कुदाल, खुर्पा, कुल्हाड़ी । टङ्गणः,—णम् [=टङ्कण पृषो० ] सोहागा । टङ्गा [ टङ्ग+टाप् ] टांग, लात, पैर । ट |टहरी [ व्हेति शब्द राति रा + क + ङीष् ] 1. एक प्रकार का वाद्ययंत्र 2. परिहास, ठठ्ठा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5 5: (पु० ) (धातु के बने बर्तन के सीढ़ियों में से गिरते हुए ध्वनि जैसी ) अनुकरणात्मक ध्वनि - रामाभिषेके मलाया: कक्षाच्च्युतो हेमघटस्तरुण्याः, सोपानमार्गे प्रकरोति शब्द ठठं ठठठं ठठठं ठठंठः सुभा० । झिल्लिका [ झिल्लि + कन् + टाप् ] 1. झींगुर 2. धूप का प्रकाश, चमक, दीप्ति । झिल्ली (स्त्री० ) [ झिल्लि + ङीप् ] 1. झींगुर 2. दीये की बसी 3. प्रकाश, चमक । सम० -कष्ठ: पालतू कबूतर | treet ( स्त्री०) झींगुर । झुण्ड: [ लुण्ट् + अच्, पृषो०] 1. वृक्ष, बिना तने का पेड़ 2. झाडी, झाड़-झंखाड़ । झोड: (पुं०) सुपारी का पेड़ । टाङ्कारः [ टङ्कार+अण् ] झंकार, टङ्कार | टिक (स्वा० आ० - टेकते ) जाना, चलना-फिरना । टिटि (ट्टि) भः (स्त्री० भी ) [ टिटि (ट्टि) इत्यव्यक्तशब्द भणति -- टिटि (ट्टि) + भण्ड] टिटिहिरी पक्षी, -- उत्क्षिप्य टिट्टिभः पादावास्ते भङ्गभयाद्दिवः - पंच ० १३१४, मनु०५।११, याज्ञ० १।१७२, ('टिट्टिभक' भी) । टिप्पणी (नी) [ टिप् + क्विप्, टिपा पन्यते स्तूयते - टिप् + पन् + अच् + ङीष् पृषो० पात्वं वा] भाप्य, टीका । (कभी कभी 'भाष्य' पर लिखी गई 'व्याख्या' के लिए भी उदा० महाभाष्य पर कैयट की व्याख्या या टीका या कैयट के भाष्य पर नागोजी भट्ट की टीका या भाष्य ) । टीक् ( स्वा० आ० टीकते) चलना-फिरना, जाना, सहारा, 'देना - करमर्याः कृतमालमुद्गतदलं कोर्याष्टिकष्टीकते मा० ९ ७, -- आ-, जाना, चलना-फिरना, इधर-उधर घूमना - आटीकसेऽङ्ग करिघोटीपदातिजुषि वाटीभुवि क्षितिभुजाम् अस्व० ५ । टीका [ टीक्यते गम्यते, ग्रन्थार्थोऽनया - टीक् + क+टाप् ] व्याख्या, भाष्य – काव्यप्रकाशस्य कृता गृहे गृहे टीका तथाप्येष तथैव दुर्गमः । टुटुक (वि० ) [ टुटु इति अव्यक्तशब्द कायति टुटु+के+ क] 1. छोटा, थोड़ा 2. दुष्ट, क्रूर, नृशंस 3. कठोर । ठक्कुरः ( पुं० ) 1. मूर्ति, देवमूर्ति 2. पूज्य व्यक्ति के नाम के साथ लगने वाली सम्मानसूचक उपाधि - उदा० गोविन्द ठक्कुर ( काव्य प्रदीप के रचयिता ) । ठानी (स्त्री०) तगड़ी, करघनी । For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१४ ) डमः [ड-+मा+क] एक घृणित और मिश्रित जाति, डोम । | डिण्डिमः [डिडीति शब्दं माति----डिण्डि+मा+ क] एक उमरः [म-+अच् मरम्, डेन त्रासेन मरं पलायनम, त० प्रकार का छोटा ढोल (आलं. भी) इति घोषयतीव त०] 1. झगड़ा, फ़साद, दंगा 2. भावभंगिमा और डिण्डिमः-हि० २१८६ मुखरयस्व यशो नवडिण्डिमम् ललकारों से शत्रु को भयभीत करना,---रम् डर के ...न० ४।५३, अमरु २८, चण्डि रणिरसनारवडिण्डिमकारण भाग जाना, भगदड़। मभिसर सरसमलज्ज --गीत० ११, आर्यबालचरितउमरः [डमित्यव्यक्तशब्दम् ऋच्छति--- डम् ---ऋ+कु] एक प्रस्तावनाडिण्डिमः-महावी० ११५४।। प्रकार का बाजा, डुगडुगी (इस वाद्ययन्त्र को प्रायः | डिण्डी (डि) रः [डिण्डि+र पक्षे दीर्घः] 1. मसीक्षेपी का कापालिक साधु बजाया करते हैं) कभी कभी नपुं० | भीतरी कवच ; जो समुद्रफेन की भाँति काम में लाया भी माना जाता है। जाता है 2. झाग-उद्दण्डातेन डिण्डीरे पिण्डपङक्तिरडम्ब (चुरा० उभ०- डम्बयति-ते) 1. फेंकना, भेजना दश्यत - विक्रमांक-- ४१६४, २।४ । 2. आदेश देना 3. देखना, वि-, अनुकरण करना, डिमः [डिम्+क] दस प्रकार के नाटकों मे से एक--मायेन्द्रनक़ल करना, तुलना करना।- (तं) ऋतुविडम्बयामास जालसंग्रामक्रोधाद् भ्रान्तादिचेष्टितः, उपरागश्च भूयिष्ठो न पुनः प्राप तच्छियम् - रघु०४।१७ । वपुःप्रकर्षण डिमः ख्यातोऽतिवृत्तकः सा० द० ५१७।। विडम्बितेश्वरः-३।१२, १३१२९, १६।११, कि० ५।४६ | डिम्बः [डिब-+घञ] 1. दंगा, फ़साद 2. कोलाहल, भय के १२।३८, शि० ११६, १२१५ 2. हंसी उड़ाना, अवहास कारण चीत्कार 3. छोटा बच्चा या छोटा जानवर करना, खिल्ली उड़ाना-सम्मोहयन्ति, मदयन्ति, 4. अंडा 5. गोला, गेंद, पिण्ड ! सम---आहवः, विडम्बयन्ति निर्भत्सयन्ति रमयन्ति विषादयन्ति-भत ० -युद्धम् मामूली लड़ाई, (बिना शस्त्र प्रयोग के) ११२२, यथा न विडम्ब्यसे जनः—का० १०९ 3. ठगना, झड़प, खटपट, मुठभेड़, झूठमूठ की लड़ाई- मनु० धोखा देना-एवमात्माभिप्रायसम्भावितेष्टजनचित्तवृत्ति: ५।९५। प्रार्थयिता विडम्व्यते-श० २ 4. कष्ट देना, पीड़ा देना। डिम्बिका [डिम्ब् +ण्वुल + टाप, इत्वम्] 1. कामुकी स्त्री, उम्बर (वि०) [ डम्ब्+अरन् ] प्रसिद्ध, विख्यात,-.-रः 2. बुलबुला। 1. समवाय, संग्रह, ढेर-मा० ९।१६ 2. दिखावा, टिम-डिम्भः [डिम्भ+अच ] 1. छोटा बच्चा 2. कोई छोटा टाम 3. सादृश्य, समानता, आभास 4. घमण्ड, अहंकार।। जानवर जैसे शेर का बच्चा;-जुम्भस्व रे डिम्भ दन्तांस्ते उम्भ (चुरा० उभ०-- डम्भयति-से). इकट्ठा करना। गणयिष्यामि-- श०७ 3. मूर्ख, बुद्ध। उयनम् [डी+ल्युट) 1. उड़ान 2. होली, पालकी । डिम्भकः (स्त्री०-भिका) [डिम्भ -- वुल, स्त्रियां टाप इत्व डवित्थः (पुं०) काठ का बारहसिहा । च ] 1. एक छोटा बच्चा 2. जानवर का छोटा बच्चा। डाकिनी [डाय भयदानाम अकति व्रजति-ड+अ+ | डो (भ्वा० दिवा० आ०- इयते, डीयते, डीन) 1. उड़ना, इनि+डोप] पिशाचिनी, भूतनी। हवा में से गुजरना 2. जाना, उद्---, हवा में उड़ना, डाकृतिः (स्त्री०) [डाम् + -- क्तिन घण्टी के बजने की ऊपर उड़ना-सर्वेरुड्डीयताम्-हि. १ (हंसः) ध्वनि, डिङ्ग-डाङ्ग आदि । उदडीयत वकृतात्करग्रहजादस्य विकस्वरस्वरः--नै० डामर (वि.) [ डमर+अण] 1. उरावना, भयावह, २१५, प्र-, उपर उड़ना-हसः प्रडीनरिव- मच्छ० भयानक--पर्याप्त मयि रमणीयडामरत्वं संधत्ते गगन- ५।५, प्रोद्---, ऊपर उड़ जाना--प्रोड्डीयेव बलाकया तलप्रयाणवेग: ...मा० ५।३ 2. दंगा करने वाला, सरभसं सोत्कण्ठमालिङ्गितः...२३ । हुड़दङ्गी 3. सूरत शक्ल में मिलता-जुलता, अनुरूप | डीन (भ० क० कृ०) [ डी+क्त ] उड़ा हुआ,-नम् पक्षी (अर्थात्, मनोहर, सुन्दर)-रतिगलिते ललिते कुस्मानि की उड़ान, पक्षियों की उड़ान १०१ प्रकार की वताई शिखण्डकडाभरे (चिकुरे)-गीत०१२,-रः 1. होहल्ला, गई हैं, किसी भी विशेष उड़ान को प्रकट करने के हंगामा, दंगा, फ़साद 2. उत्सव के अवसर पर चहल- लिए 'डीन' से पूर्व उपयुक्त उपसर्ग लगा दिया जाता पहल, लड़ाई झगड़े के अवसर पर खलबलो, हलचल । है--उदा० अबडीनम्, उड्डीनम्, प्रडीनम्, अभिडीनम्, डालिमः [=दाडिमः, पृषो०] अनार।। विडीनम्, परिडीनम, पराडीनम् आदि । डाहलः (ब०व०) एक देश तथा उसके अधिवासी-कीर्तिः । हुण्डभः [डुण्डु+भाक साँपों का एक प्रकार जिनमें जहर समाश्लिष्यति डाहलोर्वीम् - विक्रमांक० १११०३ । नहीं होता ---- (निविषाः डुण्डुभाः स्मृताः) । डिङ्गरः (पु.) 1. सेवक 2. बदमाश, ठग, धूर्त 3. पतित डुलिः (स्त्री०) -- ढलि: पृषो. एक छोटो कछवी। या नीच आदमी। डोमः (पुं०) अत्यन्त नीच जाति का पुरुष । For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढक्का [ ढक इति शब्देन कायति ---इक्+के+क+टाप् ] बौक (स्वा० आ०--दौकते, ढौकित) जाना, पहुँचाना बड़ा ढोल-न ते हुडक्केन न सोपि ढक्कया न मर्दलः ......यान्तं वने रात्रिचरी डुढौके-भट्टि० १२३, १४। सापि न तेऽपि ढक्कया --नै० १५।१७ । ७१, १५७९-प्रेर०-ढोकयति--ते 1. निकट लाना, ढामरा (स्त्री०) हंसनी। पहुँचाना -- तन्मान्सं चैव गोमायोस्तैः क्षणादाशु ढौकिढालम् नपुं०] म्यान । तम्-महा०, भट्टि०१७।१०३ 2. उपस्थित करना, ढालिन् (०) [ढाल - इनि ढालधारी योद्धा । प्रस्तुत करना। दुण्डिः दण्ढ़ --इन् गणेश का विशेषण । ढौकनम् [ढौक + ल्यु टु] 1. भेंट 2. उपहार, रिश्वत । ढौलः (पुं०) बड़ा ढोल, मृदङ्ग, ढपली । [संस्कृत में 'ण से आरम्भ होने वाला कोई शब्द नहीं, 'ण' से आरम्भ होने वाले बहुत से धातु है वस्तुत: वे सब 'न' से आरम्भ होते हैं, धातुकोश में उन्हें 'ण' से केवल इसलिए आरम्भ किया गया है जिससे कि यह प्रकट हो जाय कि यहाँ 'न' प्र, परि तथा अन्तर आदि उपसर्ग पूर्व होने पर 'ण' में परिवर्तित हो जाय] । तकिल (वि.) [तक+इलन् ] जालसाज, चालाक, धूर्त । | तक्षणम् [ तम् +त्य | छीलना, काटना दारवाणां च तकम् | तक+रक् ] छाछ, मट्ठा । सम०-अटः रई का तक्षणम्-मनु० ५।११५, याज्ञ० १११८५ । डंडा,-सारम् ताज़ा मक्खन । 'तक्षन् (पुं०) [तक्ष+कनिन् ] 1. बढ़ई, लकड़ी काटने ता (न्वा० स्वा० पर०-तक्षति, तक्ष्णोति, तष्ट) नीरना, वाला (जाति से अथवा लकड़ी का काम करने के काटना, छीलना, छेनी से काटना, टुकड़े-टुकड़े करना, : कारण) अतक्षा तक्षा-काव्य०, जो जाति से तक्षा नहीं खण्डशः करना आत्मानं तक्षति ह्येष वनं परशुना है, वह तक्षा कहलाता है जब कि वह तक्षा की भांति यथा--महा०, निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः तक्षा के काम को करने लगता है, बढ़ई-शि० १२।२५ --- अमर० 2. गढ़ना, बनाना, निर्माण करना (लकड़ी 2. देवताओं का शिल्पी--विश्वकर्मा । में से) 3. बनाना, रचना करना 4. घायल करना, चोट / तगरः | तस्य क्रोडस्य गरः, ष० त. ] एक प्रकार का पौधा । पहँचाना 5. आविष्कार करना, मन में बनाना,-निस्, तक (भ्वा० पर०---तङकति, तडित) 1. सहन करना, -टकड़े-टकड़े करना, सम, छीलना, छेनी से काटना, बर्दाश्त करना 2. हैसना 3. कष्टग्रस्त रहना । चीरना 2. घायल करना, चोट पहुंचाना, प्रहार करना तङ्कः [तङक्--घा अच् वा ] 1. कष्टमय जीवन, आपद्-निस्त्रिशाभ्यां सुतीक्ष्माभ्यामन्योन्यं संततक्षतु:-महा०, ग्रस्त जीवन 2. किसी प्रिय वस्तु के वियोग से उत्पन्न वराह० ४२।२९ । शोक 3. भय, डर 4. संगतराश की छेनी। तमकः [ तक्ष-ज्वल ] 1. बढ़ई, लकड़ी का काम करने तङ्कनम् [तङक् + ल्यटा कष्टमय जीवन, आपदग्रस्त जिंदगी। (जाति से अथवा लकड़ी का धंधा करने के | तङ्ग (भ्वा० पर०-तङ्गति, तङ्गित) 1. जाना, चलना-फिरना कारण) 2. सूत्रधार 3. देवताओं का वास्तुकार, विश्व- 2. हिलाना-जुलाना, कष्ट देना 3. लड़खड़ाना। कर्मा 4. पाताल के मुख्य नागों अर्थात् सपों में से एक, तञ्च (रुधा० पर०-तनक्ति, तञ्चित सिकोड़ना, सिकूडना कश्यप और कद्र का पुत्र (आस्तीक ऋषि के बीच में --तनच्मि व्योम विस्तृतम्- भट्टि० ६१३८ । पड़ने से जनमेजय के सर्पयज्ञ में जलजाने से बचा हुआ, तटः [ तट अच् ] 1. ढाला, उतार, कगार 2. आकाश या इसी सर्पयज्ञ में अनेक सर्प जल कर भस्म हो गये थे) क्षितिज,-टः,-टा, टी,---टम् 1. किनारा, कूल, For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उतार, ढाल -शीलं शैलतटात्पततु -भर्त...-२२३९, -अवरोहति शैलाग्रं तडित्वानिव तोयदः विक्रम प्रोतुंगचिन्तातटी ३.४५, सिन्धोस्तटादोष इव प्रवृद्धः । १।१४, कि० ५१४, (पुं०) बादल शि० १११२ । —कु० ३।६, उच्चारणात्यक्षिगणास्तटीस्तम्-शि० | तडिन्मय (वि०) [तडित् +मयट बिजली से युक्त-कु० ४।१८ 2. शरीर के अवयव (जिनमें स्वभावत: कुछ ५।२५। ढाल है ) ...-पद्मपयोधरतटीपरिरम्भलग्न -गीत० १, तण्ड (म्वा० आ० ---- तण्डते, तण्डित) प्रहार करना । नो लुप्तं सखि चन्दनं स्तनतटे-शृंगार० ७, इसी तण्डकः [तण्ड्+ण्वुल] खञ्जन पक्षी। प्रकार जघनतट, कटितट, श्रोणीतट, कुचतट, कण्ठतट, | तण्डुलः [ तण्ड्+उलच् ] कूटने, छड़ने और पिछोड़ने के ललाटतट आदि,-टम् खेत । सम०--आघातः पश्चात् प्राप्त अन्न (विशेषतः चावल) [ शस्थ, धान्य, सींगों की टक्कर से मिट्टी उखाड़ना, तट या ढलान तण्डुल और अन्न यह चार प्रकार एक दूसरे से भिन्न पर सिर से टक्कर मारना---अभ्यस्यन्ति तटाघातं है - शस्यं क्षेत्रगतं प्रोक्तं सतुषं धान्यमुच्यते, निस्तुषः निजितैराहता गजा:-कु० २१५०,-स्थ (वि.)। तण्डुलः प्रोक्तः स्विन्नमन्त्रमुदाहृतम् (शा.) किनारे पर विद्यमान, कूलस्थित 2. (आलं०) | | तत (भू० क० कृ०) [तन्+क्त फैलाया हुआ, विस्तारित अलग खड़ा हुआ, अलग-अलग, उदासीन, पराया, घेरा हुआ-(दे० तन्)-स तुमों तमोभिरभिगम्य तताम् निष्क्रिय --तटस्थ: स्वानर्थान् घटयति मौनं च भजते --शि० ९।२३, ६।५०, कि० ५।११,–तम् तारों -मा० १११४, तटस्थं नैराश्यात्-- उत्तर० ३।१३, वाला बाजा। मया तटस्थस्त्वमुपद्रुतोसि --नै० ३५५, (यहाँ 'तटस्थ ततस् (ततः) [अव्य.--तद्+तसिल] 1. (उस स्थान या का अर्थ 'कूलस्थित' भी है)। व्यक्ति) से, वहाँ से, न च निम्नादिव हृदयं निवर्तते तटाकः, कम तट आकन् तालाब (जो कमल तथाअन्य मे ततो हृदयम् -श० ३३१, मा० २।१०, मनु० ६।७, जलीय पौधों के लिए पर्याप्त गहरा हो) दे० 'तडाग' । १२।८५ 2. वहाँ, उधर 3. तब, तो, उसके बाद - ततः तटिनी [तटमस्त्यस्या इनि डीप्] नदी-कदा वाराणस्यामम कतिपयदिवसापगमे – का० ११०, अमरु ६६, कि० रतटिनीरोधसि वसन्-भर्तृ० ३।१२३, भामि० ११२३ । १।२७, मनु० २।९३, ७५९ 4. इसलिए, फलतः, इसी तड़ (चुरा० उभ०---ताडयात-ते, ताडित) 1. पीटना, कारण 5. तब, उस अवस्था में, तो ('यदि' का सह मारना, टकराना--गाहन्तां महिषाः निपानसलिलं सम्बन्धी) यदि गृहीतमिदं ततः किम्-- का० १२०, शृङ्गेम हस्ताडितम्-श० २।५, (नौः) ताडिता मारु अमोच्यमश्वं यदि मन्यसे प्रभो ततः समाप्ते -रघु० तैर्यथा-रामा०, रघु० ३।६१, कु० ५।२४, भर्तृ० १॥ ३६५ 6. उससे परे उससे आगे, और आगे, इसके ५० 2. पीटना, मारना, दण्डस्वरूप पीटना, आघात अतिरिक्त -- ततः परतो निर्मानुषमरण्यम्--का० १२१ पहुँचाना--लालयेत्पञ्चवर्षाणि -दशवर्षाणि ताडयेत् 7. उससे, उसकी अपेक्षा, उसके अतिरिक्त-यं लब्ध्वा -----चाण० ११११२, न ताडयत्तणेनापि--मनु० ४। चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः-भग० ६।२२, २। १६९, पादेन यस्ताडयते--अमरु ५२ 3. प्रहार करना, ३६ 8. कई बार 'तत्' शब्द के सम्प्र० के रूप की (ढोल आदि का) पीटना ताड्यमानासु भेरीषु-.-महा०, भाँति प्रयुक्त होता है- यथा तस्मात्, तस्याः, ततोऽन्य अताडयन् मृदंङ्गाश्च-भट्टि० १७७ वेणी० १२२२ त्रापि दृश्यते-सिद्धा० । यतः ततः (क) जहाँ-वहाँ 4. बजाना, (बीणा के तारों का) आहनन करना --यतः कृष्णस्तत: सर्वे यतः कृष्णस्ततो जयः-महा०, -- श्रोतुर्वितन्त्रीरिव ताड्यमाना-कु० ११४५ 5. चम मनु० ७।१८८ (ख) क्योंकि-इसलिए यतो यतः कना 6. बोलना। -- ततस्ततः जहाँ कहीं-वहीं- यतो यतः षट्चरणोऽभितडगः दे० तडाग। वर्तते ततस्ततः प्रेरितवामलोचना-श० १४२३, ततः तडागः [ तड्+आग ] तालाब, गहरा जोहड़, जलाशय किम तो फिर क्या, इससे क्या लाभ, क्या काम-प्राप्ताः स्फुटकमलोदरखेलतिखजनयुगमिव शरदि तडागम् श्रियः सकलकामदुधास्ततः किम्-भर्तृ० ३१७३, ७४, --गीत० ११, मनु० ४।२०३, याज्ञ० २।२३७ । शा०४।२, ततस्ततः (क) यहाँ-वहाँ, इधर-उधर--ततो तडाघातः दे० 'तटाघात' (उच्चः करिकराक्षेपे तडाघातं दिव्यानि माल्यानि प्रादुरासंस्ततस्तत:-महा० (ख) विदुर्बधाः शब्द)। 'फिर क्या' 'इसके आगे 'अच्छा तो फिर' (नाटकों में तडित् (स्त्री०) [ ताडयति अभ्रम् -तड्+इति ] बिजली, प्रयुक्त) सतः प्रभृति तब से लेकर ('यतः प्रभूति' का घनं घनान्ते तडितां गुणरिव-शि० ११७, मेघ० ७६, सह सम्बन्धी)-तृष्णा ततः प्रभृति मे त्रिगुणत्वमेति रघु०६।६५ । सम-गर्भः बादल,-लता बिजली -अमरु ६८, मनु० ९।६८ । की कौंच जिसमें लहरें हों, --रेखा बिजली की रेखा। | ततस्त्य (वि.) [ततस । त्यपवहाँ से आने वाला, वहाँ तडित्वत् (वि.) [ तडित्+मतुप, वत्वम् ] बिजली वाला | से चलने वाला—कि० ११२७ । For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तति (सर्व वि०) (नित्य बहुवचनांत, कर्तृ० कर्म० तति) । तथा (अव्य०) [तद् प्रकारे थाल विभक्तित्वात ] 1. वैसे, [तत+उति] इतने अधिक, उदा०---तति पुरुषाः सन्ति इस प्रकार, उस रीति से तथा मां वञ्चयित्वा-श० -आदि,-तिः (स्त्री०---तन्+क्तिन् ] 1. श्रेणी, ५, सूतस्तथा करोति-विक्रम० १ 2. और भी, इस पंक्ति, रेखा-विस्रब्धं क्रियतां वराहततिभिमस्ताक्षतिः प्रकार भी, भी-अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नमतिपल्वले-श० २।५, बलाहकतती: शि० ४१५४, ११५ स्तथा--पंच० ११३१५, रघु० ३।२१ 3. सच, ठीक 2. गण, दल, समूह 3. यज्ञ कृत्य । इसी प्रकार, सचमुच वैसा ही-यदात्थ राजन्यकुमार तरवम् [तन् -क्विप, तुक, पृषो० तत-त्व] (कभी कभी तत्तथा--रघु० ३।४८, मनु०१।४२ 4. (अनुरोध के 'तत्वम्' भी लिखा जाता है) 1. वास्तविक स्थिति या रूप में) ऐसा निश्चित जैसा कि ('यथा' को पहले रख दशा 2. तथ्य,-वयं तत्त्वान्वेषान्मधुकर हतास्त्वं खलु कृती कर) दे० यथा ('यथा' के सहसंबंधी के रूप में 'तथा' ---श० २४ 3. यथार्थ या मूल प्रकृति--संन्यासस्य के कुछ अर्थों के लिए 'यथा' के नी० दे०) तथापि महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्-भग०१८।१, ३।२८, (प्रायः 'यद्यपि' का सहसंबंधी) तो भी' तब भी' 'फिर मनु० १४३,३९६,५।४२ 4. मानव आत्मा की वास्त भी' 'तिस पर भी'-प्रथितं दुष्यन्तस्य चरितं तथाविक प्रकृति या विश्वव्यापी परमात्मा के समनुरूप पीदं न लक्षये—श० ५, बरं महत्याम्रियते पिपासया विराट सृष्टि या भौतिक संसार 5. प्रथम या यथार्थ तथापि नान्यस्य करोत्युपासनाम्-चात० २।६, वपुःसिद्धांत 6. मूलतत्त्व या प्रकृति 7. मन 8. सूर्य 9. वाद्य प्रकर्षादजयद्गुरुं रघुस्तथापि नीचेविनयाददृश्यत-रघु० का भेद विशेष, विलंबित 10. एक प्रकार का नृत्य । ३।३४, ६२, तथेति 'सहमति', 'प्रतिज्ञा' को प्रकट सम-अभियोगः असन्दिग्ध दोषारोप या घोषणा, करता है, तथेति शेषामिव भर्तुराज्ञामादाय मूर्ना मदनः -अर्थः सचाई, वास्तविकता, यथार्थता, वास्तविक प्रतस्थे--कु० ३।२२, रघु० ११९२, ३।६७, तथेति प्रकृति, -,-विद् (वि०) दार्शनिक, ब्रह्मज्ञान का निष्क्रान्तः (नाटकों में) तथैव 'उसी प्रकार' 'ठीक उसी वेत्ता,--न्यासः विष्णु की तंत्रोक्त पूजा में विहित एक भाँति' तथैव च 'उसी ढंग से तथाच 'और इसी अंगन्यास (इसमें शरीर के विभिन्न अंगों पर गह्य प्रकार', 'इसी ढंग से', 'इसी प्रकार कहा गया है अक्षर या अन्य चिन्ह बनाने के साथ कुछ प्रार्थनाएँ कि' तथाहि 'इसी लिए' 'उदाहरणार्थ', इसी कारण बोली जाती हैं) ( यह कहा गया है कि )-तं वेधा विदधे नूनं तस्वतः (अव्य०) [तत्त्व+तस् ] वस्तुतः, सचमुच, ठीक महाभूतसमाधिना, तथाहि सर्वे तस्यासन् परार्थेकफला ठीक---तत्त्वत एनामुपलप्स्ये-०१, मनु०७।१०। गुणा:---रघु० १२२९, श० १२३१ । सम०-कृत तत्र (अव्य०) [तत् । बल] 1. उस स्थान पर, वहाँ, सामने, (वि०) इस प्रकार किया गया,----गत (वि.) 1. ऐसी स्थिति या दशा में होने वाला तथागतायां परिहासउस ओर 2. उस अवसर पर, उन परिस्थितियों में, तब, उस अवस्था में 3. उसके लिए, इसमें निरीतयः पूर्वम्--रघु०६८२ 2. इस गुण का, (तः) 1. बुद्ध यन्मदीयाः प्रजास्तत्र हेतुस्त्वद् ब्रह्मवर्चसम्- -रघु० -काले मितं वाक्यमुदर्कपश्यं तथागतस्येव जनः सुचेताः ११६३ 4. प्राय: 'तद्' के अघि० के रूप के अर्थ में -शि०२०८१ 2. जिन,-गुण (वि०) 1. ऐसे गुणों से युक्त या संपन्न 2. ऐसी अवस्था को प्राप्त, ऐसी प्रयुक्त -मनु० २।११२, ३१६०, ४।१८६, याज्ञ. श२६३, तत्रापि 'तब भी' 'तो भी' (यद्यपि का सह अवस्था में तथाभूतां दृष्ट्वा नपसदसि पाञ्चालतनसंबंधी) तंत्र तत्र 'बहुत से स्थानों पर या विभिन्न याम्-वेणी०१।११,-राजः बुद्ध का विशेषण,---रूप, विषयों में 'यहाँ-वहाँ 'प्रत्येक स्थान पर'... अध्यक्षान्वि -~-रूपिन् (वि०) इस आकार प्रकार का, इस प्रकार विधान्कुर्यात् तत्र तत्र विपश्चित:--- मनु० ७८१ । दिखाई देने वाला,-विध (वि०) इस प्रकार का, ऐसे सम-भवत् (वि०) (स्त्री०-ती) श्रीमान्, महोदय, गुणों का, इस स्वभाव का--तथाविधस्तावदशेषमस्तु श्रद्धेय, आदरणीय, महानुभाव, (सम्मानपूर्ण उपाधि जो सः-कु० ५।८२, रघु० ३१४,-विधम् (अव्य०) नाटकों में उन व्यक्तियों को दी जाती हैं जो वक्ता के 1. इस प्रकार, इस रीति से 2. इसी भांति, समान समीप उपस्थित न हों)----पूज्य तत्रभवानत्रभवांश्च रूप से। भगवानपि; आदिष्टोऽस्मि तत्रभवता काश्यपेन- श० तथात्वम् [ तथा+त्व] 1. ऐसी अवस्था, एसा होना ४, तत्रभवान् काश्यपः श०१, आदि,--स्थ (वि०) 2. वस्तु स्थिति या मूल बात, सचाई। उस स्थान पर खड़ा हुआ या वर्तमान, उस स्थान से तथ्य (वि.) [ तथा+यत् ] यथार्थ, वास्तविक, असली संबद्ध। -प्रियमपि तथ्यमाह प्रियंवदा-श०१,-ध्यम सचाई, तत्रत्य (वि.) [त त्यप्] वहाँ उत्पन्न या जन्मा हुआ, वास्तविकता,सा तथ्यमेवाभिहिता भवेन--कु० उस स्थान से संबद्ध । ३।६३, मनु० ८।२७४ । ५३ For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१८ ) तद् (सर्व० वि० ) [ कर्तृ० ए० व० – सः (पुं० ), सा | ( स्त्री०), तत् (नपुं० ) ] 1. वह, अविद्यमान वस्तु का उल्लेख ( तदिति परोक्षे विजानीयात् ) 2. वह (प्रायः 'यद्' का सहसम्बन्धी ) – यस्य बुद्धिर्बलं तस्य पंच० १ 3. वह अर्थात् प्रख्यात-सा रम्या नगरी महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च तत् - भर्तृ० ३।३७, कु० ५/७१ 4. वह (किसी देखे हुए या अनुभूतार्थ का उल्लेख ) । उत्कम्पनी भयपरिस्खलितांशुकांन्ता ते लोचने प्रतिदिशं विधुरे क्षिपन्ती - काव्य ० ७, भामि० २५ 5. वही, समरूप, वह, विल्कुल वही, ( प्रायः 'एव' के साथ ) - तानीन्द्रियाणि सकलानि तदेव नाम - भर्तृ० २/४० कभी कभी 'तद्' के रूप उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष के सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होते हैं, साथ ही बल देने के लिए निर्देशक तथा सम्बन्धबोधक सर्वनामों के साथ भी ( इसका अनुवाद प्राय: 'इसलिए' 'तो' करते । हैं ) - सोहमिज्याविशुद्धात्मा - रघु० १।६८, ( मैं वही व्यक्ति, अतः मैं, मैं अमुक व्यक्ति), स त्वं निवर्तस्व विहाय लज्जाम् २।४०, 'अत: तुम्हें वापिस आ जाना चाहिए'; जब 'तद्' की आवृत्ति की जाय तो इसका अर्थ होता है " कई ' 'भिन्न २” – तेषु तेषु स्थानेषु का० ३६९, भग० ७१२०, मा० ११३६, तेन तद् का करण० रूप, क्रिया विशेषण केवल के साथ 'इसलिए 'इस कारण ' ' इस विषय में' 'इसी कारण' अर्थों को प्रकट करता है, तेन हि यदि ऐसा है तो फिर ( अव्य० ) 1. वहाँ, उवर 2. तब उस अवस्था में, उस सम 3. इसी कारण, इसीलिए, फलस्वरूप - तदेहि विमर्दक्षमां भूमिमवतरावः - उत्तर० ५, मेघ० ७ ११०, रघु० ३।४६ 4. तब ( 'यदि' का सहसम्बन्धी ) तथापि -- यदि महत्कुतूहलं तत्कथयामि - का० १३६, भग० १।४५ । सम० - अनन्तरम् ( अव्य० ) उसके पश्चात् तुरन्त, तो फिर, अनु (अव्य० ) उसके पश्चात्, बाद मैं ---सन्देशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि श्रोत्र पेयम् - मेघ० १३, रघु० १६/८७, मा० ९१२६ - अन्त ( वि० ) उसी में नष्ट होने वाला, इस प्रकार समाप्त होने वाला अर्थ, अर्थीय ( वि० ) 1. उसके निमित्त अभिप्रेत 2. उस अर्थ से युक्त, अहं (वि०) उस योग्यता से युक्त, अवधि ( अव्य० ) 1. वहाँ तक, उस समय तक, तब तक - तदवधि कुशली पुराणशास्त्रस्मृति | शतचारुविचारजो विवेक:- भामि० २।१४ 2. उस समय से लेकर तब से श्वासो दीर्घस्तदवधि मुखे पाण्डिमा - भामि० २०६९ – एकचित्त ( वि० ) उस पर ही मन को स्थिर करने वाला, कालः विद्यमान क्षण, वर्तमान समय, घी (वि०) समाहित, प्रत्युत्पन्नमति, -- कालम् (अव्य० ) अविलम्ब, तुरन्त, क्षण: 1. इस क्षण, फ़िलहाल 2. विद्यमान या वर्तमान समय रघु० 1 तदा ( अव्य० ) [ तस्मिन् काले तद्+दा ] 1. तब, उस समय 2. फिर उस मामले में ('यदा' का सहसंबंधी ) भग० २५२, ५३, मेघ० ११५२, ५४-५६, यदा यदा - तदा तदा 'जब कभी' तदा प्रभृति तब से, उस समय से लेकर - कु० १।५३ | सम० मुख ( वि० ) आरब्ध, उपक्रांत या शुरू किया हुआ, (खम् ) आरम्भ | तदात्वम् [ तदा + त्व | मौजूदा समय, वर्तमान काल । तदानीम् ( अव्य० ) [ तद् + दानीम् ] तब, उस समय । १५१, - क्षणम्, क्षणात् ( अव्य० ) तुरन्त, प्रत्यक्षतः, फ़ौरन - रघु० ३।१४, शि० ९०५, याज्ञ० २।१४, अमरु ८३, - - क्रिया ( वि० ) बिना मजदूरी के काम करने वाला, गत ( वि०) उस ओर गया हुआ या निदेशित, तुला हुआ, उसका भक्त, तत्सम्बन्धी, गुणः एक अलंकार (अलं० ) - स्वमुत्सृज्य गुणं योगादत्युज्ज्वलगुणस्य यत् वस्तु तद्गुणतामेति भण्यते स तु तद्गुणः -- काव्य० १०, दे० चन्द्रा० ५।१४१ - ज ( वि० ) व्यवधानशून्य, तात्कालिक, – ज्ञः जानने वाला, प्रतिभाशाली, बुद्धिमान्, दार्शनिक, तृतीय (त्रि०) उसी कार्य को तीसरी बार करने वाला, धन (वि०) कंजूस, दरिद्र, -- पर ( वि० ) 1. उसका अनुसरण करने वाला, पश्चवर्ती, घटिया 2. उसी को सर्वोत्तम पदार्थ मानने वाला, बिल्कुल तुला हुआ, नितान्त संलग्न, उत्सुकतापूर्वक व्यस्त ( प्रायः समास में प्रयोग ) -सम्राट् समाराधनतत्परोऽभूत् रघु० २५, १६६, मेघ० १०, याज्ञ० ११८३, मनु० ३१२६२, परायण ( वि० ) पूर्णतः संलग्न या आसक्त, पुरुष: 1. मूल पुरुष, परमात्मा 2. एक समास का नाम जिसमें प्रथम पद प्रधान होता है, या जिसका उत्तरपद पूर्वपद द्वारा परिभाषित या विशिष्ट कर दिया जाता है, शब्द की मूल भावना भी स्थिर रहती है - यथा, तत्पुरुषः, तत्पुरुष कर्मधारय येनाह् स्यां बहुव्रीहिः उद्भट - पूर्व ( वि० ) पहली बार घटने वाला, या होने वाला, -- अकारि तत्पूर्वनिबद्धया तथा कु० ५११०, ७३०, रघु० २४२, १४।३८ 2. पूर्व का, पहला, प्रथम (वि०) पहली बार ही उस कार्य को करने वाला, -बल: एक प्रकार का बाण, भावः उसके अनुरूप, --मात्रम् 1. केवल वह, सिर्फ़ मामूली, अत्यन्त तुच्छ मात्रा युक्त 2. ( दर्शन ० ) सूक्ष्म तथा मूलतत्त्व (उदा० शब्द, रस, स्पर्श, रूप और गन्ध), --- वाचक (वि०) उसी को संकेतित या प्रकट करने वाला, विद् (वि०) 1. उसको जानने वाला 2. सचाई को जानने वाला, - विध (वि०) उस प्रकार का, रघु० २१२२, कु० ५/७३, मनु० २।११२, हित (वि०) उसके लिए अच्छा, ( : ) एक प्रत्यय जो प्रातिपदिक शब्दों के आगे व्युत्पन्न शब्द बनाने के लिए लगाया जाता है । For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तदानीन्तन (वि.) [तदानीम् +टयुल, तुद ] उस समय से 4. (धनुष का) तानना--धनुर्वितत्य किरतोः शरान् संबंध रखने वाला, उस समय का समकालीन, --एषो- -उत्तर० ६११, भट्टि० ३।४७ 5. उत्पन्न करना, ऽस्मि कार्यवशादायोध्यिकस्तदानीन्तनश्च संवत्त:- पैदा करना, सूजन करना, देना, प्रदान करना 6. (ग्रंथ उत्तर०१। का) रचना यो लिखना-विराटपर्वप्रद्योती भावदीपो तदीय (वि.) [तद+छ] उससे संबंध रखने वाला, उसका, वितन्यते 7. करना, अनुष्ठान करना (यज्ञादिक या उसकी, उनके, उनकी-रघु०१२८१, २१२८,३।८, २५ । किसी संस्कार का) कु० २०४६ 8. दिखावा करना, तद्वत् (वि.) [ तद्-मतुप ] उससे युक्त, उसको रखने प्रस्तुत करना, सम्-,चालू करना, ii (म्वा० पर० वाला, जैसा कि 'तद्वानपोहः' में-काव्य० २. (अव्य०) . –चुरा० उभ०–तनति, तानयति-ते) 1. भरोसा 1. उसके समान, उस रीति से 2. समान रूप से, समान करना, विश्वास करना, विश्वास रखना 2. सहायता रीति से, इसलिए साथ ही। करना, हाथ बंटाना, मदद करना 3. पीडित करना, तन् । (तना० उभ०-तनोति, तनुते, तत-क० वा. रोगग्रस्त करना 4. हानिशून्य होना। -तन्यते, तायते, सन्नन्त-तितंसति, तितांसति, तितनि तनयः | तनोति विस्तारयति कुलम् --तन्-|-कयन् ] 1. पुत्र षति) 1. फलाना, विस्तार करना, लंबा करना, तानना 2. सन्तान लड़का या पुत्री; गिरि', कलिंग आदि । -बाह्वोः सकरयोस्ततयोः --अमर० 2. फैलाना, तनिमन् (पु.) [ तनु- इमनिच् ] पतलापन, सुकुमारता, बिछाना, पसारना - भट्टि० २।३०, १०३२, १५।९१ सूक्ष्मता। 3. ढकना, भरना--स तमी तमोभिरभिगम्य तताम् | तनु (वि०) (स्त्री० - नु, न्वी) [तन्+उ] 1. पतला, ---शि० ९।२३, कि० ५.११ 4. उत्पन्न करना, पैदा दुबला, कृश 2. सुकुमार, नाजुक, मृदु (अङ्गादिक, करना, रूप देना, देना, भेंट देना, प्रदान करना, त्वयि सौन्दर्य के चिह्नस्वरूप-रघु०६।३२, तु० तन्वनी विमखे मयि सपदि सुधानिधिरपि तनुते तनुदाहम् 3. बढ़िया, कोमल (वस्त्रादिक) ऋतु०१७ 4. छोटा, -----गीत०४, पितुर्मुदं तेन ततान सोऽर्भक:- रघु० थोड़ा, नन्हा, कम, कुछ, सीमित-तनुवाग्विभवोऽपि ३।२५, ७७, यो दुर्जन वशयितुं तनुते मनीषां-भामि० सन् -रघु० १।९, ३२, तनुत्यागो बहुग्रहः -हि. १२९५, १० 5. अनुष्ठान करना, पूरा करना, संपन्न २।९१, थोड़ा देने वाला 5. तुच्छ, महत्त्वहीन, छोटा करना--(यज्ञादिक)---इति क्षितीशो नवति नवाधिका --अमरु २७ 6. (नदी को भांति) उथला हुआ, महाऋतूनां महनीयशासनः, समारुरुक्षुर्दिवमायुषः क्षये (स्त्री०) 1. शरीर, व्यक्ति 2. (बाहरी) रूप, प्रकटीततान सोपान परंपरामिव --रचु० ३।६९, मनु० करण---प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टा४१२०५ 6. रचना, करना, (ग्रन्थादिक) लिखना, भिरीश:--श० १११, मालवि० १११, मेघ० १९ यथा--नाम्नां मालां तनोम्यहं, या---तनते टीकाम 3. प्रकृति, किसी वस्तु का रूप और चरित्र 4. खाल । 7. फैलाना, झुकाना (धनुष आदि का) 8. कातना, सम० - अङ्ग (वि.) सुकुमार अङ्ग वाला, कोमलांगी वनना 9. प्रचार करना, प्रचारित होना 10 चाल (-गी) कोमलाङ्गिनी स्त्री, कपः रोमकूप,-छवः कवच, रहना, टिका रहना। सम०—अव-1. ढकना, फैलाना रघु० ९।५१, १२६८६,-जः पुत्र,-जा पुत्री,-त्यज 2. उतरना आ-विस्तृत करना, बिछाना, तुकना, (वि०) 1. अपने जीवन को जोखिम में डालने वाला ऊपर फैलाना---कि० १६:१५ 2. फैलाना, पसारना 2. अपने व्यक्तित्व को छोड़ने वाला, मरने वाला, 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, सृजन करना, बनाना --त्याग (वि.) थोड़ा व्यय करने वाला, बचा देने --कि० ६।१८ 4. (धनुप या धनुष की डोरी) तानना वाला, दरिद्र,-- त्रम्,-त्राणम् कवच,-भवः पुत्र (वा) -मौर्वी धनुषि चातता ---रघु० २१९, १११४५, पुत्री-भस्त्रा-नाक ---भृत् (पुं०) शरीरघारी जीव, उद्--,फैलानां प्र-,1. फैलाना, पसारना - ख्यातस्त्वं जीवधारी जन्तु, विशेष कर मनुष्य-कल्प स्थितं तनुविभवैर्यशांसि कवयो दिक्षु प्रतन्वन्ति न:---भत० ३।२४ भृतां तनुभिस्ततः किम् .. भर्तृ० ३१७३, मध्य (वि.) 2. ढकना 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, सृजन करना पतली कमर, कमर वाला,-रसः पसीना,--रहा-हम् दिखावा करना, प्रदर्शन करना, प्रस्तुत करना.-तदूरी शरीर का बाल,-वारम् कवच,-व्रणः फुन्सी, सञ्चाकृत्य कृतिभिर्वाचस्पत्यं प्रतायते-शि० २।३० 5. अनु रिणी छोटी स्त्री, या दस वर्ष का लड़का,-सरः, प्ठान करना (यज्ञादिक का), वि-1. फैलाना, बिछाना पसीना,-ह्रदः गुदा, मलद्वार । - स्फुरितविततजिह्वः---मच्छ० ९।१२ 2. ढकना, | तनुल (वि.) [तन्+डलच फैलाया हुआ, विस्तारित । भरना-प्रस्वेदबिन्दुविततं वदनं प्रियायाः चौर० ९, | तनुस् (नपुं०) [तन्+उसि] शरीर । यो वितत्य स्थितः खम-मेघ० ५८ 3. रूप देना, बनाना | तन (स्त्री०) [तन्+3] शरीर । सम-उजुवः,-जः श्रेणीवन्धाद्वितन्वद्भिरस्तम्भां तोरणस्रजम्-रघु० ११४१) पुत्र,.-उद्धवा---जः पुत्री,-नपम् घी,-मपात (0) For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२० ) आग-तनुनपाइमवितानमाधिज:-शि०११६२, अधः- | 24. ढेर, जमाव 25, घर 26. सजावट 27. दौलत कृतस्यापि तन्नपातो नाधः शिखा याति कदाचिदेव 28. प्रसन्नता। सम-काष्ठम्-तन्तुकाष्ठ - वापः, -हि. २०६७,सहम् 1. शर पर उगे हुए बाल -बापम् 1. बुनाई 2. करघा,—वापः 1. मकड़ी (पुं० भी) 2. पक्षी के पंख, बाजू (:) पुत्र। 2. जुलाहा। तन्तिः (स्त्री०) [तन्+क्तिच् ] 1. रस्सी, डोर, सूत्र | तन्त्रकः [तन्त्र---कन्] नई वेशभूषा (कोरा कपड़ा)। 2. पंक्ति, श्रेणी । सम-पाल: 1. गोरक्षक 2. विराट | तन्त्रणम् [ लन्त्र+ल्युट् ] शान्ति बनाये रखना, अनुशासन, के घर रहते समय का सहदेव का नाम । व्यवस्था, प्रशासन रखना। तन्तुः [तन्+तुन्] 1. धागा, रस्सी, तार, डोर, सूत्र-चिन्ता | तन्त्रिः,—त्री (स्त्री०) [ तन्त्र +इ, तन्त्रि+डीष् ] 1. डोरी, सन्ततितन्तुमा०५।१०, मेघ०७० 2. मकड़ी का रस्सी--मनु० ४।३८ 2. धनुष की डोरी 3. वीणा का जाला--रषु० १६।२० 3. रेशा--बिसतन्तुगुणस्य तार-तन्त्रीमाद्री नयनसलिल: सारयित्वा कथंचित् कारितम्-कु. ४।२९ 4. सन्तान, बच्चा, सन्तति मेघ० ८६ 4. स्नायु तांत 5. पूंछ । 5. मगरमच्छ 6. परमात्मा। सम०-काष्ठम् जुलाहों | तन्द्रा [ तन्द्र--घा +टाप् ] 1. आलस्य, थकावट, थकान, का एक औजार जिससे ताना साफ़ किया जाता है। क्लांति 2. ऊंध, शैथिल्य----तन्द्रालस्यविवर्जनम्-याज्ञ० -कीट: रेशम का कीड़ा,-नागः बड़ा मगरमच्छ, ३।१५८, महावी० ७।४२, हि. १६३४ -निर्यासः ताड का वृक्ष,-नाभः मकड़ी,-भ: 1. सरसों | तन्द्राल (वि.) [तन्द्रा+ आलुच्] 1. थका हुआ, परि2. बछड़ा,-बाचम् ऐसा बाजा जिसमें तार कसे हुए श्रांत 2. निद्राल, आलसी। हों,बानम् बुनना,-बापः 1. जुलाहा 2. करघा | तन्द्रिः,-जी (स्त्री०) [तंन्द्+किन्, तन्द्रि+ङीष् ] निद्रा3. बुनाई,-निग्रहा केले का वृक्ष, -शाला जुलाहे का | लुता, ऊंघ। कारखाना, सन्तत (वि.) बुना हुआ, सिला हुआ, | तन्मय (वि०) (स्त्री०-पी) [ तत्+मयट् ] 1. उसका -सारः सुपारी का पेड़। बना हुआ 2. तल्लीन--मा० ११४१, श० ६।२१ तन्तुकः [तन्तु+कन् ] सरसों के दाने । 3. तद्रूप, तदेकरूप । तन्तुनः-णः [तन्+तुनन्, पक्षे नि० णत्वम् घड़ियाल। तन्वी [तन+डोष् ] सुकुमार या कोमलांगी स्त्री-इयमतन्तुरम्,-लम् [ तन्तु+र, लच् वा ] मृणाल, कमल की धिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी-श० ११२०, तव तन्वि नाल। कुचावेतो नियतं चक्रवतिनौ-उद्भट। तन्त्र (चुरा० उभ-तन्त्रयति-ते, तन्त्रित) 1. हकूमत तप (म्बा० पर० (आ० विरल) तपति, तप्त) (अक. करना, नियन्त्रण रखना, प्रशासन करना-प्रजाः प्रजाः प्रयोग) (क) चमकना, (आग या सूर्य की भांति) स्वा इव तन्त्रयित्वा-श. ५।५ 2. (आ०) पालन प्रज्वलित होना--तमस्तपति धर्माशो कथमाविर्भविष्यति पोषण करना, निर्वाह करना। -श० ५।१४, रघु० ५।१३, उत्तर० ६।१४, भग० तन्त्रम् तत् +अंच 1. करघा 2. धागा 3. ताना 4. वंशज ९।१९ (ख) गर्म होना, उष्ण होना, गर्मी फैलना 5. अविच्छिन्न वंश परम्परा 6. कर्मकाण्ड पद्धति, रूप- (ग) पीडा सहन करना -तपति न सा किसलयशयरेखा, संस्कार--कर्मणां युगपद्भावस्तन्त्रम्-कात्या० नेन-गीत०७ (घ) शरीर को कृश करना, तपस्या 7..मुख्य विषय 8. मुख्य सिद्धान्त, नियम, बाद, शास्त्र करना- अगणिततनतापं तप्त्वा तपांसि भगीरथः -जितमनसिजतन्त्र विचारम्-गीत० २ 9. पराधीनता, -उत्तर० ११२३ 2. (सक० प्रयोग) (क) गर्म करना, पराश्रयता-जैसा कि 'स्वतन्त्र' 'परतन्त्र'; देवतन्त्र उष्ण करना, तपाना--भट्टि० ९।२ भग० ११।१९ दुःखम्-श. ५ 10. वैज्ञानिक कृति 11. अध्याय, (ख) जलाना, दग्ध करना, जला कर समाप्त कर देना अनुभाग (किसी प्रन्यादिक के)-तन्त्रः पञ्चभिरेतच्च- --तपति तनुगात्रि मदनस्त्वामनिशं मां पूनर्दहत्येव-- कार शास्त्रम्-पंच० १ 12. तन्त्र-संहिता (जिसमें श० ३।१७, अङ्गरनङ्गतप्तः-३७, (ग) चोट पहुँचाना, देवताओं की पूजा के लिए अथवा अतिमानव शक्ति नुकसान पहुंचाना, खराब करना--यास्यन्सुतस्तप्यति प्राप्त करने के लिए जादू-टोना या मन्त्रतन्त्र का वर्णन मां समन्यु-भट्टि० २२३, मनु०७६ (घ) पीडा है) 13. एक से अधिक कार्यों का कारण 14. जादू- देना, दुःख देना-कर्मवा०-तप्यते, (कुछ लोग इसे टोना 15. मुख्योपचार, गण्डा, ताबीज़ 16. दवाई, दिवा० की धातु मानते हैं) 1. गर्म किया जाना, पीडा औषधि 17. कसम, शपथ 18. वेशभूषा, 19. कार्य सहन करना 2. घोर तपस्या करना, (प्रायः 'तपस्' के करने की सही रीति 20. राजकीय परिजन, अनुचर- साथ)-प्रेर०-तापयति-ते, तापित, 1. गर्म करना, वर्ग, भूत्यवर्ग 21. राज्य, देश, प्रभुता 22. सरकार, तापना; गगनं तापितपायितासिलक्ष्मी-शि० २०१७५, हकमत, प्रशासन-लोकतन्त्राधिकारः-श०५ 23. सेना । न हि तापयितुं शक्यं सागराम्भस्तृणोल्कया-हि. १२८६, For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२१ ) 2. यंत्रणा देना, पीडित करना, सताना--भशं तापितः ।। तपनीयोपानद्यगलमायः प्रसादीकरोतु--महावी. ४, कन्दर्पण--गीत०११, भट्रि०८।१३, अनु,--1. पश्चा- असंस्पृशन्तो तपनीयपीठम् -रघु० १८१४१ । ताप करना, अफसोस करना, खिन्न होना 2. पछताना | तपस् (नपुं०) [तप्+असुन्] 1. ताप, गर्मी, आग 2. पीडा उद्,-1. तापना, गर्म करना, झुलसाना, (सोना कष्ट 3. तपश्चर्या, धार्मिक, कड़ी साधना, आत्मआदि) पिघलाना (जिस समय अक० के रूप में 'चम- नियन्त्रण --तप: किलेदं तदवाप्तिसाधनम्-०५।१४ कना' अर्थ प्रकट करने के लिए यह धातु प्रयुक्त की 4. आत्मदमन, और आत्मोत्सर्ग के अभ्यास से सम्बद्ध जाती है, या जब इसका कर्म स्वयं शरीर का ही कोई ध्यान 5. नैतिक गुण, खूबी 6. किसी विशेष वर्ण का अंग होता है, तो उस समय 'आत्मनेपद' में प्रयुक्त | विशेष कर्तव्यपालन 7. सात लोकों में से एक लोक होती है)-उत्तपति सुवर्ण सुवर्णकार:--महा०, परन्तु अर्थात् 'जन-लोक' के ऊपर का लोक (-पुं०) भाष उत्तपमान आतप:-भट्टि० ८।१, शि० २०१४०, उत्तपते- का महीना-तपसि मन्दयभस्तिरभीषमान-शि०६।६३, पाणी--महा० 2. खा पी जाना, यन्त्रणा देना, पीडित (पुं०, नपुं०) 1. शिशिर ऋतु 2. हेमन्त 3. ग्रीष्म करना, तपाना-शि० ९/६७, उप-,1. गर्म करना, ऋतु। सम०-अनुभावः धार्मिक तपश्चर्या का प्रभाव, तपाना 2. पीडित करना, दुःख देना-शि० ९।६५, --अवटः ब्रह्मावर्त देश,-क्लेशः धार्मिक कड़ी साधना निस्,-1. गर्म करना 2. पवित्र करना 3. परिष्कार का कष्ट,-चरणम्,-चर्या कठोर साधना,-तमः करना, परि--1. गर्म करना, जलाना, नष्ट करता इन्द्र का विशेषण, धनः 'साधना का धनी' तपस्वी, 2. प्रज्वलित करना, आग लगाना पश्चात, ---पछताना, भक्त-रम्यास्तपोधनानां क्रिया:-- श०१।१३, शमखेद प्रकट करना, वि-1. चमकना ('उदपुर्वक' प्रधानेषु तपोधनेषु-२२६, ४१, शि० १२२३, रघु. की भांति आत्म.)-रविवितपतेऽत्यर्थ-भर्त०८।१४ १४।१९ मनु० ११।२४२,-निषिः धर्मप्राण व्यक्ति, 2. तपाना, गर्म करना, सम् --- 1. गर्म करना, तपाना संन्यासी-रघु० ११५६,-प्रभाकः,-बलम् कड़ी साधनाओं -सन्तप्तचामीकर--भट्टि० ३।३, सन्तप्तायसि संस्थि- के फलस्वरूप प्राप्त शक्ति, तप द्वारा प्राप्त सामर्थ्य तस्य पयसो नामापि न ज्ञायते--भर्त० २०६७ 2. दुःखी या अमोघता,-राशिः संन्यासी,-- लोकः जनलोक के होना, पीड़ा सहन करना, खिन्न होना-संतप्तानां ऊपर का लोक,-बनम तपोभूमि, पवित्र वन जहाँ त्वमसि शरणम्-मेघ०७, 'दुःखियों का'-दिवापि संन्यासी कठोर साधना में लिप्त हो-कृतं त्वयोपवन मयि निष्कान्ते संतप्येते गुरू मम-महा०, भर्तृ० २। तपोवनमिति प्रेक्षे-श० १, रघु० ११९०, २।१८, ३१८, ८७ 3. पछताना । --बट (वि०) जो बहुत तप कर चुका हो,-विदोषः तप (वि.) [तप - अच] 1. जलाने वाला, तपाने वाला भक्ति की श्रेष्ठता, धर्म सम्बन्धी अत्यन्त कठोर तपा कर समाप्त करने वाला 2. पीड़ाकर, कष्टकर, __ साधना,-स्थली 1. धार्मिक कठोर साधना की भूमि दुःख,द ----प: 1. गर्मी, आग, आँच 2 सूर्य 3. ग्रीष्म 2. बनारस । ऋतु -शि० ११६६ 4. तपस्या, धार्मिक कडी | तपसः [तप्+असच्] 1. सूर्य 2. चन्द्रमा 3. पक्षी। साधना। सम०-अत्ययः, अन्तः ग्रीष्म ऋतु का | तपस्यः [तपस्-यत्] 1. फाल्गुन का महीना 2. अर्जुन का अन्त और वर्षा ऋतु का आरम्भ-रविपीतजला विशेषण,-स्या धार्मिक कड़ी साधना, तपश्चरण । तपात्यये पुनरोधेन हि युज्यते नदी-कु० ४।४४, | तपस्पति (ना० धा० पर०) तपस्या करना-सुरासुरगुरुः ५।२३ । सोऽत्र सपत्नीकस्तपस्यति-श० ७१९, १२, रघु. तपतो [तप् + शतृ +डीप्] ताप्ती नदी । १३।४१, १५।४९, भट्टि० १८१२१ । तपनः [तम् +ल्युट] 1. सूर्य-प्रतापात्तपनो यथा--रघ० तपस्विन् (वि०) [तपस्+विनि] 1. तपस्वी, भक्तिनिष्ठ ४।१२, ललाटन्तपस्तपति तपन:-उत्तर० ६, मा०१ 2. गरीब, दयनीय, असहाय, दीन-सा तपस्विनी 2. ग्रीष्मऋतु 3. सूर्यकान्तमणि 4. एक नरक का नाम निर्वृता भक्तु-श. ४, मा० ३, नै० १११३५, (पुं०) 5. शिव का विशेषण 6. मदार का पौधा। सम० संन्यासी-तपस्विसामान्यमवेक्षणीया-रघु० १४१६७। -आत्मजः, -तनयः यम, कर्ण और सुग्रीव का सम०-पत्रम् सूर्यमुखी फूल । विशेषण,-आत्मजा,-तनया, यमुना और गोदावरी तप्त (भू० क० कृ०) [तप्+क्त ] 1. गर्म किया हुआ, का विशेषण,-इष्टम् ताँबा, - उपल:--मणिः सूर्यकान्त जला हुआ 2. रक्तोष्ण, गरम 3. पिघला हुआ, गला मणि,-छदः सूर्यमुखी फूल । हुआ 4. दुःखी, पीड़ित, कष्टप्रस्त 5. (तप का) किया तपनी तपन-डीप] गोदावरी नदी या ताप्ती नदी। गया अनुष्ठान । सम-काञ्चनम् आग में तपाया तपनीयम् [तप् +अनीयर् ] सोना, विशेषतः वह जो आग हुआ सोना, कृच्छम् एक प्रकार की कठोरसाधना, में तपाया जा चुका है---तपनीयाशोक:-मालवि०३, | -रूपकम् साफ़ की हुई चाँदी। For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२२ ) तम् (दिवा० पर०-ताम्यति, तान्त) 1. दम घुटना, रुद्ध- कार,---एतत्तमालदलनीलतमं तमिस्रम् --गीत० ११, श्वास होना 2. परिश्रांत होना, थक जाना-ललित- करचरणोरसि मणिगणभषणकिरणविभिन्नतमिस्रम् शिरीषपुष्पहननरपि ताम्यति यत-मा० ५।३१ 3. (मन -२, कि० ५।२ 2. मानसिक अंधकार (अज्ञान) या शरीर से) दुःखी होना, बेचन या पीडित होना, भ्रम 3. क्रोध, कोप। सम०-पक्षः कृष्णपक्ष (चांद्रपीड़ा देना, बर्बाद करना-प्रविशति महः कुञ्ज 'मास का) रघु०६।३४। गुञ्जन्मुहुर्बहु ताम्यति-गीत० ५, गाढोत्कण्ठा ललित- | तमिला [तमिस्र+टाप् ] 1. (अंधियारी) रात-सूर्ये तपललितरङ्गस्ताम्यतोति--मा० १११५, ९।३३, अमरु त्यावरणाय दृष्टे: कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्रा-रघु० ७, उद्-, उतावला होना--हृदय किमेवमुत्ताम्यसि ५।१३, शि. ६।४३ 2. व्यापक अंधकार । श०१। तमोमयः [तमस्+मयट् ] राहु । तमम् [तम्+घ] 1. अन्धकार 2. पैर की नोक,-मः 1. राहु | तम्बा, तम्बिका [ तम्बति गच्छति-तम्+अच+टाप, का विशेषण 2. तमाल वृक्ष । तम्ब्+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] गाय, गो। समस् (नपुं०) [तम्+असुन्] अन्धकार–कि वाऽभविष्य-तय् (भ्वा० आo-तयते) 1. जाना, हिलना-जुलना-अध्यु दरुणस्तमसा विभेत्ता तं चेत्सहस्रकिरणो धुरि नाक- | वास रथं तेये पुरात्-भट्टि० १४१७५, १०८ 2. रखरिष्यत्-श० ७४, विक्रम १७, मेघ० ३७ 2. नरक वाली करना, रक्षा करना। का अन्धकार-मनु० ४१२४२ 3. मानसिक अन्धेरा, तरः[त+अप्] 1. पार जाना, पार करना, मार्ग--भट्टि भ्रम, भ्रांति-मुनिसुताप्रणयस्मतिरोधिना मम च ७५५ 2. भाडा--दी(ध्वनि यथादेशं यथाकालं तरो मुक्तमिदं तमसा मन:-श०६।६ 4. (सां० द० में) भवेत्-मनु०८१४०६ 3. सड़क 4. घाटवाली नाव । अन्धकार या अज्ञान, प्रकृति के संघटक ३ गुणों में से सम-पण्यम् नाव का भाड़ा,---स्थानम् घाट, वह एक (दूसरे दो है-सत्त्व, रजस्)-कु० ६।६१, मनु० स्थान जहाँ नाव आकर ठहरती है। १२।२४ 5. रंज, शोक 6. पाप (पुं० नपुं० ) राहु | तरक्षः, तरक्षः [ तरं बलं मार्ग वा क्षिणोति-तर+क्षि का विशेषण। सम०-अपह (वि०) अज्ञान या | +डु, पक्षे पृषो उलोपः ] बिज्ज, लकड़बग्घा। अन्धकार को दूर करने वाला, ज्ञान देने वाला, तरङ्गः [तु+अङ्गच्] 1. लहर-उत्तर० ३।४७, भर्तृ० प्रकाशित करने वाला-कि० ५।२२, (हः) 1. सूर्य ११८१, रघु० १३१६३, श० ३१७ 2. किसी ग्रन्थ का 2. चन्द्रमा 3. आग,--काण्डः,-डम् घोर अन्धकार अध्याय या अनुभाग (जैसे कथासरित्सागर का) 3.क्द, -गुणः दे० 'तमस्' ऊपर(४),-न: 1 सूर्य 2. चाँद छलांग, सरपट चौकड़ी, (घोड़े आदि की) छलांग 3. आग 4. विष्णु 5. शिव 6. ज्ञान 7. बुद्धदेव । लगाने की क्रिया 4. कपड़ा, वस्त्र । —ज्योतिस् (पुं०) जुगनू, ततिः व्यापक अन्धकार, | तरङ्गिणी [ तरङ्ग+इनि+छीप् ] नदी। -नुद् (पुं०) 1. उज्ज्वल शरीर 2. सूर्य 3. चाँद | तरङ्गित (वि०) [ तरङ्ग+इतच् ] 1. लहराता हुआ, लहरों 4. आग 5. लैम्प, प्रकाश,-नुदः 1. सूर्य 2. चन्द्रमा के साथ उछलने वाला 2. छलकता हुआ 3. थरथराता -भिद,-मणिः जुगनू,-विकारः रोग, बीमारी-हन, हुआ,---तम् कंपायमान-अपाङ्गतरङ्गितानि बाणाः -हर (वि०) अन्धकार को दूर करने वाला (०)। गीत०३। 1. सूर्य 2. चन्द्रमा । | तरणः [त+ल्युट ] 1. नाव, बेड़ा 2. स्वर्ग,–णम् 1. पार तमसः [तम्+असच ] 1. अंधकार 2. कुआँ । करना 2. जीतना, पराजित करना 3. चप्पू, डांड। तमस्विनी, तमा [तमस्+विनि --ङोप, तम+टाप् रात। तरणिःत+अनि 1. सूर्य 2. प्रकाश-किरण,---णिः, -णी समालः[तम्+कालन् ] 1. एक वृक्ष का नाम (इसकी (स्त्री०) बेड़ा, घड़नई, नाव । सम-रत्नम् लाल । छाल काली होती है)-तरुणतमालनीलबहलोन्नमद- तरण्डः,-डम् [त+अण्डच ] 1. सामान्य नाव 2. घड़नई म्बुधरा:-मा० ९।१९, रघु०१३।१५,४९, गीत०११ (जो उलटे हए कदद् या घड़ों को बांसों से बांध कर 2. मस्तक पर चन्दन का सांप्रदायिक तिलक (चिह्न) । बनाई जाती है) 3. चप्पू या डांड । सम०--पादा एक 3. तलवार, खड्न। सम..--पत्रम् 1. मस्तक पर प्रकार की नाव । सांप्रदायिक चिह्न 2. तमाल का पत्ता। तरण्डी, तर, तरन्ती (स्त्री०) [तरण्ड+डोष, त+अदि, तमिः,-मी (स्त्री) [तम् +इन्, तमि+डोष् ] 1. रात तरन्त+डोष ] नाव, बड़ा, घड़नई। -विशेषकर, काली अंधियारी रात-स तमी तमोभि- | तरन्तः [तृ-+झच् ] 1. समुद्र 2. प्रचड बौछार 3. मेंढक रभिगम्य तताम्-शि० ९/२३ 2. मूर्छा, बेहोशी | 4. राक्षस। 3. हल्दी । | तरल (वि.) [त+अलच् ] 1. कंपमान, लहराता हुआ, तमिन्न (वि.) [तमिस्रा+अच् ] काला,-त्रम् 1. अंध- हिलता हुआ, थरथराता हुआ-तारापतिस्तरलविद्यु For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिवाभ्रवृन्दम्-रघु० १३।७६ घन इव तरलबलाके । तरः [त+उन् ] वृक्ष-नवसंरोहणशिथिलस्तरुरिव सुकरः ----गीत० ५, शि० १०।४०, श० ११२६ 2. चंचल, समुद्धर्तुम्-मालवि० १८। सम०-ख, उम्, अस्थिर, चपल-वैरायितारस्तरला: स्वयं मत्सरिणः -षण्डः,-डम् वृक्षों का झुण्ड या समह,-जीवनम् परे--शि० २१११५, अमर २७ 3. शानदार, चमक- वृक्ष की जड़,-तलम् वृक्ष के तने के पास का स्थान, दार, चटकीला 4. द्रवरूप 5. कामक, स्वेच्छाचारी, वृक्ष की जड़,-नखः कांटा,-मृगः बन्दर,-रागः ---ल: 1. हार की मध्यवर्ती मणि-मक्तामयोऽप्यतरल- 1. कली या फूल 2. कोमल अंकुर अंखुवा,-राजः मध्य:-वासव० ३५, हारांस्तारांस्तरलगुटिकान् (मल्लि. ताल का पेड़,-रहा पेड़ पर ही उत्पन्न होने वाला नाथ के मतानुसार यह मेघदूत का प्रक्षेपक है) 2. हार पौधा,--विलासिनी नव मल्लिका लता,-शायिन् 3. समतल सतह 4. तली, गहराई 5. हीरा 6. लोहा, (पुं०) पक्षी। --ला मांड। तरुण (वि.) [त-+ उनन् ] 1. चढ़ती जवानी वाला, जवान तरलयति (ना० धा० पर०) कंपन उत्पन्न करना, लहराना, पुरुष युवक 2. (क) बच्चा, नवजात, सुकुमार, कोमल इधर-उधर हिलना-जुलना----अमरु ८७ । -भर्तृ० ३।४९ (ख) नवोदित, (सूर्य की भांति) तरलायते (ना. धा० आ०) कांपना, हिलना, इधर-उधर जो आकाश में ऊँचा न हो, कु. ३।५४ 3. नूतन, चलना-फिरना। ताजा-तरुणं दधि-चाण० ६४, तरुणं सर्षपशाके तरलायितः [तरल-क्यच् + क्त ] बड़ी लहर, कल्लोल । नवौदनं पिच्छिलानि च दधीनि, अल्पव्ययेन सुन्वरि तरलित (वि.) [तरल+ इतच् ] हिलता हुआ, थरथराता ग्राम्यजनो मिष्टमश्नाति । ई०१ 4. जिन्दादिल, हुआ, आंदोलित होता हुआ-'तुङ्गतरङ्ग-गीत०११, विशद,-णः युवा पुरुष, जवान-पञ्च ०१।११, भामि० हारा । २१६२, णो युवती या जवान स्त्री-वृद्धस्य तरुणी तरवारिः [तरं समागत विपक्षबलं वारयति-तर+4+ | विषम् -चाण० ९८ । सम-ज्वरः एक सप्ताह णिच् +इन् ] तलवार । रहने वाला बुखार,-वधि (नपुं०) पांच दिन का तरस् (नपुं०) त !-असुन् ] 1. चाल, वेग 2. बीर्य, जमाया हुआ दूध,—पीतिका मैनसिल। शक्ति, ऊर्जा-कैलाशनाथं तरसा जिगीषुः-रघु०५।२८, तरुश (वि.) [तरु+श] वृक्षों से भरा हुआ। १११७७, शि० ९।७२ 3. तट, पार करने का स्थान तर्क (चुरा० उभ० --तर्कयति-ते, तकित) 1. कल्पना 4. घड़नई, बेड़ा। करना, अटकल करना, शंका करना, विश्वास करना, तरसम् [त+असच् ] आमिष, मांस । अन्दाज लगाना, अनुमान करना-वं तावत्कतमा तरसान: [त+आनच् , सुट् ] नाव । तर्कयसि-श० ६, मेघ० ९६ 2. तर्क करना, विचातरस्विन् (वि०) (स्त्री०-नी) 1. तेज, फुर्तीला 2. मज़- रना, विमर्श करना 3. खयाल करना, मान लेना वत, शक्तिशाली, साहसी, ताक़तवर--रघु० ९२३, (द्विकर्मक) 4. सोचना, इरादा कराना, अभिप्राय ११।८९, १६।७७, (पुं०) हलकारा, आशुगामी दूत रखना, विचार में रहना ---(पात) त्वं चेदच्छस्फटिक 2. शरवीर 3. हवा, वायु 4. गरुड का विशेषण । विशदं तर्कयस्तिर्यगम्भ:-मेघ० ५३ 5. निश्चय करना, तराधुः, तरालुः [ तराय तरणाय अन्धुरिव, तराय अलति 6. चमकना 7. बोलना, प्र---,1. तर्क करना, विचार प्राप्नोति तर+अल+उण् ] एक बड़ी चपटी तली विमर्श करना 2. सोचना, विश्वास करना, खयाल की नाव। करना,कल्पना करना-भट्टि० २।९, वि०-~-1. अटतरिः,री (स्त्री०) [तरति अनया+त+इ, तरि+ कल करना, अन्दाज करना 2. सोचना, कल्पना, ङोष | 1. नाव -जीर्णा तरिः सरिदतीवगभीरनीरा --- विश्वास करना 3. विचार विमर्श करना, तर्क उद्भट, शि० ३७६ 2. कपड़े रखने का सन्दूक 3. कपड़े करना। का छोर या मगजी (किनारा) 1. सम-रयः चप्पू, तर्कः [तर्क+अच् ] 1. कल्पना, अन्दाज, अटकल-प्रसन्नस्ते डाड। तर्कः, विक्रम २ 2. तर्कना, अटकलबाजी, चर्चा, तरिकः, तरिकिन् (पु०) [तर+छन्, तरिक+ इनि] दुरूह तर्कना-कुतः पुनरस्मिन्नवधारिते आगमार्थे तर्क मल्लाह। निमित्तस्याक्षेपस्यावकाशः, इदानीं तर्कनिमित्त आक्षेपः तरिका, तरिणी, तरित्रम, तरित्री, [तरिक-टाप, तर परिहियते-शारी०, तर्कोऽप्रतिष्ठः स्मृतयो विभिन्नाः +-इनि डीप, तु+ष्ट्रन् तरित्र+ङीप्] नाव -महा०, मनु०१२।१०६ 3. सन्देह 4.न्याय, तर्कशास्त्र किश्ती। -यत्काव्यं मधुवर्षि धर्षितपरास्तष यस्योक्तयः-२० तरीषः । त । ईषण ] 1. बेडा, नाय 2. समुद्र 3. सक्षम २२११५५, तर्कशास्त्रम्, तर्क दीपिका 5. (न्याय० में) व्यक्ति 4. स्वर्ग 5. कार्य, धन्धा, व्यवसाय, पेशा। उपहासास्पद होना, वह परिणाम जो पूर्व कथित तथ्यों For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२४ ) (पक्ष) के विपरीत हो 6. कामना, इच्छा 7. कारण,। -शुद्धे तु दर्पणतले सुलभावकाशा-श० ७३२, प्रयोजन। सम०--विद्या न्यायशास्त्र । नभस्तलम् 2. हाथ की हथेली--रघु० ६।१८ 3. पेर तर्ककः [तक +ण्वुल ] 1. वादी, पूछताछ करने वाला, प्रार्थी का तला 4. बाहू 5. थप्पड़ 6. नीचपन, पद का घटि2. तर्कशास्त्री। यापन 7. निम्न भाग, नीचे का भाग, आधार, पैर, तर्कुः (i० स्त्री०) [ कृत् +उ नि.] तकवा, लोहे की पेंदी-रेवारोघसि वेतसीतरुतले चेतः समुत्कण्ठते तकलो जिस पर सूत लिपटता जाता है-तर्कुः कर्तन- -काव्य० १ 8. (अतः) वृक्ष या किसी दूसरी वस्तु साधनम्। सम०-पिण्डः --पीठीः चीचली (तकुवे. की नीचे की भूमि, किसी भी वस्तु से प्राप्त शरण के किनारे पर लिपटा हुआ सूत का गोला। -फणी मयूरस्य तले निषीदति-ऋतु० १११३ 9. छिद्र, तर्भुः [=तरक्षुः पृषो०] लकड़बग्घा, बिज्जू । गढ़ा,-ल: 1. तलवार की मठ 2. तालवृक्ष,-लम् तयः [तक्ष+ज्यत्] यवक्षार, जवाखार; शोरा। 1. तालाब 2. जङ्गल, वन 3. कारण, मूल, प्रयोजन तर्ज (भ्वा० पर०, चुरा० आ० प्रायः पर० भी)-तर्जति, 4. बायीं बाहु पर पहना जाने वाला चमड़े का फीता तर्जयति-ते, तर्जित) 1. धमकाना, धुड़कना, उसना (इसी अर्थ में तला' भी) । सम०-अवगुलिः (स्त्री०) --सखीमगुल्या तर्जयति-श०१, अहितानलिनोदत- पर की उंगली,-अतलम् सात अधोलोकों में चौथा, स्तर्जयन्निव केतुभिः- रघु० ४।२८, १११७८, १२।४१, -ईक्षणः सूअर,—उदा नदी,-घातः थप्पड़, ताल: भट्टि० १४१८० 2. झिड़कना, बुरा-भला कहना, निन्दा एक प्रकार का वाद्ययन्त्र,-त्रम्,-त्राणम्,-वाणरम् करना, कलंक लगाना-भट्टि ६॥३, ८१०१, धनुंधर का चमड़े का दस्ताना,-प्रहारः थप्पड़,-सारकम् १७.१०३ 3. खिल्ली उड़ाना, अपहास करना। अधोबन्धन, तङ्ग। तर्जनम्,-ना [त+ल्युट्] 1. धमकाना, डराना 2. निन्दा तलकम् तिल+कन् बड़ा तालाब । करना-रघु० १९।१७, कु० ६।४५ । सलतः (अव्य.) [तल+तसिल] पेंदी से। तर्जनी [तर्जन+ङीप्] अंगूठे के पास वाली अंगुली। सलाची तल +अ+क्विप्+डीप चटाई। तर्णः, तर्णकः [ तृण् + अच्, तर्ण+कन् ] बछड़ा-शि० | तलिका तल+ठन तंग, अधोबन्धन । १२।४१। सलितम् [तल्+क्त] तला हुआ माँस ।। तणिः [त+नि] 1. बेड़ा 2. सूर्य । तलिन (वि०) [तल+इनन्] 1. पतला, दुर्बल, कृश 2. थोड़ा तद् (भ्वा० पर० तर्दति) 1. क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना कम 3. स्पष्ट, स्वच्छ 4. निम्न भाग में या निचली 2. मार डालना, काट डालना-भट्टि० १४।१०८, जगह पर स्थित 5. पृथक्,-नम् बिस्तरा, गद्दीदार __ 'तद्' भी दे। लम्बी चौकी। तर्पणम् [तृप+ल्युट्] 1. प्रसन्न करना, तृप्त करना 2. तृप्ति | तलिमम् तल+इमन्] 1. फ़र्श लगी हुई भूमि, खड्जा प्रसन्नता 3. (प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले) । 2. बिस्तरा, खटिया, सोफ़ा 3. चंदोवा 4. बड़ी तलवार पाँच यज्ञों में से एक, पितयज्ञ (दिवंगत पूर्वजों के । या चाकू। पितरों के निमित्त जल-तर्पण) 4. समिधा, (यज्ञीय | तलुनः [तल+उनन् हवा। अग्नि के लिए इंधन)। सम०- इच्छु: भीष्म का | तल्कम् [तल+कन्] जङ्गल।। विशेषण । तल्पः,-ल्पम् | तल+पक ] 1. गद्देदार लम्बी चौकी, तर्मन (नपुं०) [त+मनिन्] यज्ञीय स्तंभ का शिखर । बिस्तरा, सोफ़ा-सपदि विगतनिद्रस्तल्पमुज्झांचकार तर्षः [तृष् +घञ] 1. प्यास 2. कामना, इच्छा 3. समुद्र । -रघु० ५।७५, 'बिस्तरा छोड़ा उठा 2. (आलं.) 4. नाव 5. सूर्य। पली (जैसा कि 'गुरुतल्पगः' में) 3. गाड़ी में बैठने का तर्षणम् [तृष् + ल्युट् | प्यास, पिपासा । स्थान 4. ऊपर की मजिल, बुर्ज, कंगूरा, अटारी। तषित, तवुल (वि०) [तर्ष+ इतच्, तृष् + उलच्] 1. प्यासा | तल्पकः [तल्प+कन (नोकर आदि) जिसका कार्य बिस्तरे 2. अभिलाषी, इच्छुक ।। बिछाने या तैयार करने का है। तहि (अव्य०) त+हिल] 1. उस समय, तब 2. उस तल्लजः [तत्+लज् + अच्] 1. श्रेष्ठता, सर्वोत्तमता, प्रस विषय में, यदा-तहि 'जब-तब यदि-तहि 'अगर-तो' नता 2. (समास के अन्त में) श्रेष्ठ (इस अर्थ में यह शब्द कर्थ-तहि तो फिर किस प्रकार। सदैव पुं० होता है । समास के पूर्व पद का चाहे कोई तलः,-लम् [तल-अच्] 1. सतह ----भुवस्तलमिव व्योम | लिंग हो),--गोतल्लजः श्रेष्ठ गाय, इसी प्रकार 'कुमारी 'कुर्वन् व्योमेव भूतलम्-रघु० ४।२९, (कभी कभी तल्लजः' श्रेष्ठ कन्या। अर्थों में बहुत परिवर्तन न कर, समास के अन्त में तल्लिका तस्मिन् लीयते--तत् |-लो+3+कन्, इत्वम्] प्रयोग)-महीतलम् भूमि की सतह अर्थात् पृथ्वी । ताली, कुंजी। For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२५ ) तल्ली [तत् लसति -तत्+लस् +3+की ] तरुणी, उन्माद-नृत्य या प्रचण्ड नाच-त्र्यम्बकानन्दि वस्ताण्डवं - जवान स्त्री। देवि भूयादभीष्ट्यै च हृष्ट्यै च न:-मा० ५।१३, १११ तष्ट (वि.) [तश्+क्त] 1. चीरा हुआ, काटा हुआ, ! 3. नृत्यकला 4. एक प्रकार का घास । सम-प्रियः तराशा हुआ, खण्ड-खण्ड किया हुआ 2. गढ़ा हुआ, शिव जी। दे० 'तक्ष्। तातः तिनोति विस्तारयति गोत्रादिकम्- तन्+क्त, दीर्घ तष्ट (पुं०) [तक्ष्+तृच ] 1. बढ़ई 2. विश्वकर्मा । 1. पिता,-मृष्यन्तु लवस्य बालिशतां तातपादा:-उत्तर० तस्करः [तद्++अच, सुट, दलोपः ] 1. चोर, लुटेरा ६, हा तातेति कन्दितमाकर्ण्य विषण्ण:-रघु० ९७५ --मा सञ्चर मनःपान्थ तत्रास्ते स्मरतस्करः-भर्तु ० 2. स्नेह दया या प्रेम को प्रकट करने वाला शब्द ११८६, मनु० ४११३५, ८१६७ 2. (समास के अन्त (प्रायः अपने से आयु में छोटों के प्रति, विद्यार्थियों के में), जघन्य, घृणित,-री कामुक स्त्री। प्रति या बच्चों के प्रति प्रयुक्त),-तात चन्द्रापीड-का०, तस्यु (वि.) [स्था+कु, द्वित्वम्] स्थावर, अचर, स्थिर । रक्षसा भक्षितस्तात तव तातो बनान्तरे-महा. ताक्षण्यः, साक्ष्णः [ तक्षन्+ण्य, तक्षन् + अण् ] बढ़ई का 3. सम्मान द्योतक शब्द (जो अपने से बड़े और श्रद्धेय व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है) हेपिता हि बहवो ताच्छोलिकः [तच्छील+ठ ] विशेष प्रवृत्ति, आदत नरेश्वरास्तेन तात धनुषा धनुर्भूतः-रघु० १११४० या रुचि को प्रकट करने वाला प्रत्यय ।। तस्मान्मुच्ये यथा तात संविधान तथार्हसि-११७२। ताटङ्कः [ताड्यते, पुषो० डस्य टः, ताट् अङ्क ब० स०] सम-गु (वि०) पिता के अनुकूल,-(गः) तऊ । कान का आभूषण, बड़ी बाली। तातनः तात+त+3] खंजन पक्षी।। ताटस्थ्यम् [ तटस्थ+व्यञ ] 1. सामीप्य 2. उदासीनता, तातलः [ताप+ला+क पृषो० पस्य तः] 1. एक रोग अनवधानता, पक्षपातशून्यता-दे० 'तटस्थ' । 2. लोहे का डण्डा, या सलाख 3. पकाना, परिपक्व ताडः [तड्+घञ ] 1. प्रहार, ठोकर, चूंसा या थप्पड़ करना 4. गर्मी। 2. कोलाहल 3. पूला, गट्ठर 4. पहाड़। तातिः [ताय+क्तिच ] सन्तान,-तिः (स्त्री०) सातत्य, ताडका [तड्+णि+बुल+टाप् ] एक राक्षसी, सुकेतु उत्तराधिकार-जैसा कि 'अरिष्टताति या शिव की पुत्री, सुन्द की पत्नी और मारीच की माता ताति' में। अगस्त्य की समाधि भंग करने के कारण वह राक्षसी तात्कालिक (वि.) (स्त्री०-की) [तत्काल+ठ ] बना दी गई। जब उसने विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न __ 1. उसी समय में होने वाला 2. अव्यवहित ।। डाला तो राम के द्वारा वह मारी गई। राम पहले तात्पर्यम् [ तत्पर+ध्यञ्] 1. आशय, अर्थ, अभिप्राय तो स्त्री के लिए धनुष तानने के विरुद्ध थे, परन्तु ----अत्रेदं तात्पर्यम-आदि 2. प्रस्तुत योजना का ऋषि ने उनकी शंकाओं को दूर कर दिया था] दे० आशय-काव्य०२ 3. उद्देश्य, अभिप्रेत पदार्थ, किसी रघु० ११।१४-२०। पदार्थ का उल्लेख प्रयोजन इरादा (अधि० के साथ) ताउकेयः [ ताडका ढक] ताडका के पुत्र मारीच राक्षस -इह यथार्थकथने तात्पर्यम्-पा० १३१४३, भाष्य का विशेषण। 4. वक्ता का आशय (वाक्य में विशेष शब्दों के प्रयोताडङ्कः, ताडपत्रम् [तालम् अक्यते लक्ष्यते-अङक -+-घन गार्थ)-वक्तुरिच्छा तु तात्पर्य परिकीर्तितम-भाषा० लस्य इत्वम्, शक० पररूपम् --तालस्य पत्रमिव ८४, तात्पर्यानुपपत्तितः-८२। --प० त० लस्य ड: ] दे० 'ताटङ्क। तात्त्विक (वि.) [तत्त्व+ठक | यथार्थ, वास्तविक, परमाताडनम् [ तड्+णिच् + ल्युट ] मारना-पीटना, हण्टर वश्यक-कि चासीदमृतस्य भेदविगमः साचिस्मिते लगाना, बेत लगाना,-लालने बहवो दोषास्ताडने बहवो तात्त्विक:---भामि० २१८१, तात्त्विकः संबंध:---आदि । गुणाः ---चाण० १२, अवतंसोत्पलताडनानि वा --कु०.| RTRA तदात्मन -कु | तादात्म्यम् । तदात्मन्+ष्यत्र ] प्रकृति की अभिन्नता, ४१८, शृङ्गार० ९,-नी हण्टर। समरूपता, एकता नयनयोस्तादात्म्यमम्भोरुहाम्--- तडिः,-डी (स्त्री० [तड़+णिच-+ इन , ताडि+डीष ] भामि० २।८१, भगवत्यात्मनस्तादात्म्यम्-आदि । 1. एक प्रकार का ताड, 2. एक प्रकार का आभूषण । तादृक्ष (वि०) (स्त्री०-क्षी) तादृश, तादृश (वि.) ताउपमान (वि०)[ तड+णिच् +शान] पीटा जाता (स्त्री०-शी) वैसा, उस जैसा, उसकी भांति-ताद हुआ, प्रहार किया जाता हुआ,-नः (ढोल आदि) रगुणा--मनु० ९४२२, ३२, अमरु०४६, यादृशस्तादृशः वाद्ययन्त्र (जो किसी यष्टिका से बजाया जाय)। -कोई, जो कोई, सामान्य मनुष्य-उपदेशो न दातव्यो ताण्डवः, - वम् तण्ड -अण्1. नाच, नृत्य---मदताण्ड-1 यादशे तादृशे जने - पंच० ११३९० । वोत्सवान्ते-उत्तर० ३।१८ 2. विशेष कर शिव का ] तानः [ तन्+घञ 1 1, धागा, रेशा 2. (संगीत० में) For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२६ ) विलम्बित स्वर प्रधान टेक—यथा तानं विना रागः । ७०,८८ 2. सोना, ताँबा, सी कमलों वाला -भामि० १।११९, तानप्रदायित्वमिवोपगन्तुं- कु० | सरोवर । ११८,—नम् 1. विस्तार, प्रसार 2. ज्ञानेन्द्रियों का | तामस (वि०) (स्त्री०--सी) [तमोऽस्त्यस्य अण] 1. काला, विषय । अन्धकारग्रस्त, अन्धकार सम्बन्धी, अन्धेरा 2. प्रकृति के तानवम् [ तनु । अण् ] पतलापन, छोटापन- हास्यप्रभा तीन गणों में से एक)- भग० ७.१२, १७१२, तानवमाससाद-विक्रमांक० १११०६ । मालवि० १४१, मनु० १२१३३-४ 3. अज्ञानी 4. दुर्व्यतानूरः [तन् +-ऊरण] भंवर, जलावर्त । सनी,-स: 1. दुष्ट, दाहक, दुर्जन 2. साँप 3. उल्ल, तान्त (वि०) [तम् + क्त] 1. थका हुआ, निढाल, क्लान्त | --- सम् अन्धेरा,--सी 1. रात, कालीरात 2. नींद 2. परेशान, कष्टग्रस्त 3. म्लान, मुर्शाया हुआ—दे० 3. दुर्गा का विशेषण।। 'तम्। तामसिक (वि.) (स्त्री० - को) [तमस्+ठा] 1. काला, तान्तवम् [तन्तु+अण्] 1. कातना, बुनना 2. जाला 3. बुना अन्धकारयुक्त 2. तम से सम्बन्ध रखने वाला, तम से हुआ कपड़ा। उत्पन्न या तमोमय । तान्त्रिक (वि.) (स्त्री०--की) [तन्त्र+ठक किसी शास्त्र | तामिस्रः [तमिस्रा + अण] नरक का एक प्रभाग। या सिद्धान्त में सुविज्ञ 2. तन्त्रों से सम्बद्ध 3. तन्त्रों से ] ताम्बलम् [ तम् ---उलच, बक, दीर्घः ] 1. सुपारी 2. पान प्राप्त शिक्षा,—कः तन्त्र सिद्धान्तों का अनुयायो । (जिसमें कत्था चूना लगाकर सुपारी के साथ लोग तापः [तप्+घा] 1. गर्मी, चमक-दमक--अर्कमयूखतापः भोजन के पश्चात् चबाते हैं) ताम्बलभतगल्लोऽयं -श० ४।१०, मा० २।१३, मनु० १२१७६, कु० ७। भल्लं जल्पति मानुषः- काव्य०७, रागो न स्खलित८४ 2. सताना, पीड़ित करना, कष्ट, सन्ताप, वेदना स्तवाधरपुटे ताम्बूलसंबधितः-शृगार० ७,। सम० -इतरतापशतानि तवेच्छया वितरितानि सहे चतु- ---- करडू-पेटिका पानदान,--द:--,धर:- वाहकः रानन-उद्भट, समस्ताप: कामं मनसिजनिदाघप्रस- पान-दान लेकर अमीरों के पीछे चलने वाला नौकर, रयो:--श० ३१८, भर्तृ०१।१६ 3. खेद, दुःख । सम० - वल्ली पान की बेल रघ०६।६४ । -त्रयम् तीन प्रकार के संताप जो मनुष्य को इस | ताम्बूलिकः [ताम्बूल+ठन्] तमोली, पान बेचने वाला । संसार में सहन करने पड़ते हैं अर्थात आध्यात्मिक, ताम्बूली [ ताम्बू+डीप् ] पान की बेल-- ताम्बूलीनां दलआधिदैविक और आधिभौतिक,-हर (दि०)शीतलता स्तत्र रचिता पानभूमयः- रघु० ४।४२।। देने वाला, गर्मी दूर करने वाला। ताम्र (वि.) [तम् + रक्, दीर्घः | ताँबे के रङ्ग का, लाल तापनः [ तप-णिच् + ल्युट 1 1. सूर्य 2. ग्रीष्म ऋतु ---उदेति सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च,--म्रम् 3. सूर्यकान्तमणि, कामदेव के बाणों में से एक, नम् तांबा,। सम० अक्षः 1. कौवा 2. कोयल, ~ अर्घः 1. जलाना 2. कष्ट देना 3. ठोकना-पीटना । कांसा,—अश्मन् (पुं०) पद्मरागमणि,- उपजीविन तापस (वि.) (स्त्री०-सी) 1. सन्यासी से सम्बद्ध, कड़ी (40) कसेरा, ताँबे की चीज़ बनाकर जीवन-निर्वाह साधना से सम्बन्ध रखने वाला 2. भक्त,–सः (स्त्री० करने वाला,--ओष्ठः (ताम्रोष्ठ या ताम्रौष्ठ) लाल —सी) वानप्रस्थ, भक्त, संन्यासी। सम० ---इष्टा होठ--कु० ११४४,-कारः कसेरा, ताँबे का कार्य अंगूर,-तरुः, द्रुमः हिंगोट का वृक्ष, इंगुदी। करने वाला, कृमिः इन्द्रवधूटी, एक प्रकार का लाल तापस्यम् तापस-या तपस्या। कीड़ा,-चूडः मुर्गा,-पुजम् पीतल,-द्रुः लाल चन्दन तापिच्छः [ तापिनं छादयति -- तापिन्+छद --ड पृषो०] की लकड़ी, पट्टः,-पत्रम् ताम्रपट्टिका जिस पर प्रायः तमाल का वृक्ष या फूल (नपुं०)-प्रफुल्लतापिच्छ- भूदान के दाता तथा ग्रहीता के नाम खुदे रहते थे निभैरभीषुभिः - शि० ११२२, व्योम्नस्तापिच्छगुच्छा- --याज्ञ० ११३१९,–पर्णी मलय पर्वत से निकलने वलिभिरिव तमोवल्लरीभित्रियंते --मा० ५।६, (इसी वाली एक नदी का नाम, (कहते है कि यह नदी अर्थ में 'तापिंज' शब्द भी प्रयुक्त होता है)। मोतियों के कारण प्रसिद्ध है), रघु० ४।५२,.... पल्लव: तापी तय+णिच् + अच् । ङीष | 1. ताप्ती नदी जो सूरत अशोकवृक्ष, ---लिप्तः एक देश का नाम (प्ताः-ब० के निकट समुद्र में गिर जाती है 2. यमुना नदी । व०) इस देश की प्रजा या शासक,-- वृक्षः चन्दन के तामः [ तम्+घञ ] 1. भय का विषय 2. दोष, कमी, वृक्षों का एक भेद । 3. चिन्ता, दुःख 4. इच्छा। ताम्रिक (वि०) (स्त्री०-को) [ताम्र+ठक तांबे का तामरम् [ताम ए+क] 1. पानी 2. घो। बना हुआ ताम्रमय,—कः कसेरा, तांबे का कार्य तामरसम् तामरे जले सस्ति--सस्-/-ड] 1. लाल कमल करने वाला। पंच. ११९४, रव० ६।३७, ९।१२, ३७, अमरु | ताय (भ्वा० आ०–तायते, तायितम्) 1. किसी समान For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२७ ) रेखा में प्रगति करना, फैलाना, विस्तार करना 2. रक्षा | तारणः [त+णिच् + ल्युट् ] नाव, खड़नई,--णम् 1. पार करना, सरंक्षण में रखना,--वि. फैलाना, रचना करना | उतारना 2. बचाना, छुड़ाना, मुक्त करना । ----भट्रि०१६।१०५ । तारणिः,–णी (स्त्री०) [त+णिच् +अनि, तारणि+ ङीष्] तार (वि०) [त---णिच् +अच्] 1. (स्वरादिक) ऊँचा घड़नई, बेड़ा। 2. (शब्दादिक) उत्ताल, कर्कश ---मा० ५।२० 3. चम- | तारतम्यम् तरतम-+ष्या] 1, क्रमांकन, अनुपात, सापेक्ष कीला, उज्ज्वल, स्पष्ट -हारांस्तारांस्तरलगुटिकाम् महत्व, तुलनात्मक मूल्य 2. अन्तर, भेद-निर्धनं (मल्लि. इसको मेघदूत का प्रक्षेपक मानते हैं), उरसि निधनमेतयोयोस्तारतम्यविधिमक्तचेतसां, बोधनाय निहितस्तारो हार:--अमरु २८ 4. अच्छा, श्रेष्ठ, सुरस, विधिना विनिर्मिता रेफ एव जयवैजयन्तिका-उद्भट । --र: 1. नदी का किनारा 2. मोती की चमक 3, सुन्दर तारलः [तरल+अण्] कामुक, लम्पट, विषयी । और बड़ा मोती-हारममलतरतारमुरसिदधतम्-गीत० तारा [तार+टाप्] 1. तारा या ग्रह-हंसश्रेणीषु तारासु ११ 4. उच्चस्वर,—र:-रम् 1. तारा या ग्रह -रघु०४।१९, भर्तृ० १११५ 2. स्थिर तारा-रघु० 2. कपूर,-रम् । चाँदी 2. आँख की पुतली (पुं० ६।२२ 3. आँख की पुतली, आँख का डेला-कान्ताभी माना जाता है)। सम०--अभ्रः कपूर,-अरिः मन्तः प्रमोदादभिसरति मदभ्रान्ततारश्चकोर:-मा० लोहभस्म,-पतनम् तार का गिराना या उल्कापतन, ९।३०, विस्मयस्मेरतारैः-१।२८, कू० ३।४७ 4. मोती -पुष्पः कुन्द या चमेली की बेल,-वायः सायँ सायँ 5. (क) वानरराज वाली की पत्नी, अंगद की माता, करती हुई या सनसनाती हुई हवा,--शुद्धिकरम्-सीसा, इसने अपने पति को राम और सुग्रीव के साथ युद्ध -स्वर (वि०) ऊँचे स्वर का या उत्ताल ध्वनि का, न करने के लिए बहुत समझाया। राम द्वारा वाली -हारः 1. सुन्दर मोतियों की माला 2. एक चम के मारे जाने पर इसने सुग्रीव से विवाह कर लिया कीला हार। (ख) देवगुरु बृहस्पति की पत्नी, एक बार चन्द्रमा तारक (वि.) (स्त्री० -रिका) [तृ+णिच्-+पवुल.] इसको उठा कर ले गया और याचना करने पर भी 1. आगे ले जाने वाला 2. रक्षा करने वाला, बचाकर वापिस नहीं किया। घोर युद्ध हुआ, अन्त में ब्रह्मा रखने वाला, बचाने वाला,-कः 1. चालक, खिवैया, ने सोम को इस बात के लिए विवश कर दिया कि कर्णधार 2. छुड़ाने वाला, बचाने वाला 3. एक तारा बृहस्पति को वापिस दे दी जाय । तारा से राक्षस जिसे कातिकेय ने मार गिराया था (यह वज्रांग बुध नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। यह बुध ही और वरांगी का पुत्र था, पारियात्र पहाड़ पर तपस्या चन्द्रवंशी राजाओं का पूर्वज कहलाया (ग) राजा करके इसने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया और वरदान मांगा हरिश्चन्द्र की पत्नी तथा रोहितास की माता-इसीको कि मुझे संसार में, ७ दिन के बच्चे को छोड़ कर, और तारामती भी कहते हैं) । सम-अधिपः, आपीडः, कोई न मार सके। इस वरदान की बदौलत वह -पतिः चाँद-रघु० १३१७६, कु० ७१४८, भर्तृ० १७१, देवताओं को सताने लगा। दुःखी होकर देवता ब्रह्मा –पयः पर्यावरण, वातावरण,-प्रमाणम्-नक्षत्रमान के पास गये और इस राक्षस को मारने के लिए उनको नक्षत्रकाल,-भूषा रात, मण्डलम् 1. तारालोक, सहायता मांगी (दे० कु०२) ब्रह्मा ने उन देवताओं राशिचक्र 2. आँख की पुतली,—मृगः मृगशिरा नाम को उत्तर दिया कि केवल शिव का पूत्र ही उन्हें का नक्षत्र । परास्त कर सकता है, उसके पश्चात् कार्तिकेय का | तारिकम तार+ठन] किराया, भाड़ा। जन्म हुआ, और उसने अपने जन्म से सातवें दिन तारुण्यम् [तरुण+ष्यञ] 1. युवावस्था, जवानी 2. ताजगी उस राक्षस का काम तमाम कर दिया)।-कः, (आलं०)। -कम घड़नई, बेड़ा,-कम् 1. आँख को पुतलो तारेयः [तारा+ढक्] 1. बुधग्रह 2. वालि के पुत्र अंगद का 2. आँख । सम०-अरिः-जित (पं०) कार्तिकेय विशेषण। का विशेषण । ताकिकः [तर्क+ठक] 1. नैयायिक, ताकिक 2. दार्शनिक । तारका [तारक+टाप्] 1. तारा 2. उल्का, धूमकेतु 3. आँख | तायः [तक्ष+ अण्-तार्क्ष+ष्यञ] 1. गरुड़ का विशेषण को पुतली-संदधे दृशमुदग्रतारकाम्-रघु --स्तेन ताात् किल कालियेन—रघु० ६।४९ ६९, चौर० ५, भर्त० १११। 2. गरुड़ का बड़ा भाई अरुण 3. गाड़ी 4. घोड़ा 5. साँप तारकिणी तारक इनि-डोष ] तारों भरी रात, वह 6. पक्षी। सम० --ध्वजः विष्णु का विशेषण,-नायकः रात जिसमें तारे खिले हुए हों। गरुड़ का विशेषण। तारकित (वि.) तारक-+इतच] तारों वाला, सितारों | तार्तीय (वि.) तृतीय+अण्] तीसरा। भरा, ताराजटित । | तार्तीयोक (वि०) [तृतीय+ईकक] 1. तीसरा-तार्तीयो For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ४२८ ) कतया मितोऽयमगमत्तस्य प्रबन्धे-नै० ३।१३६, तार्ती- | तालुरः [ तल+-णिच् + ऊर ] जलावर्त, भेवर । यीकं पुरारेस्तदवतु मदनप्लोषणं लोचनं वः-भा० १, | तालषकम् [तल+णि+ऊषक ] ताल । अने० पा० । | तावक (वि.) (स्त्री०-की) तावकीन (वि०) [युष्मद् तालः [तल+अण्] 1. ताड का वृक्ष-भर्तृ० २।९०, रघु० +अण्, तवक आदेशः-तवक-+ख ] तेरा, तेरी १५/२३ 2. ताड का बना हुआ झण्डा 3. तालियाँ -तपः क्व वत्से क्व च तावकं वपुः-कु० ५।४, कि० बजाना 4. फटफटाना 5. हाथी के कानों का फड़फड़ाना ३११२, भामि० ११३६, ९६ । 6. (संगी० में) टेक देना, नियत मात्राओं पर ताली तावत् (वि.) ('यावत्' का सह संबंधी) [तत्+डावतु] बजाना, करकिसलतालमुग्धया नय॑मानम्-उत्तर० 1. इतना, उतना, इतने-ते तु यावन्त एवाजी तावांश्च ३३१९, मेघ० ७९ 7. कांसे का बना एक वाद्ययन्त्र ददृशे स तैः-रघु० १२१४५, हि० ४।७२, कु० २।३३ -रघु० ९।७१ 8. हथेली १. ताला, कुण्डी 10. तलवार 2. इतना विशाल, इतना बड़ा, इतना विस्तृत-यावती की मूठ,-लम् 1. ताड वृक्ष का फल 2. हरताल । संभवेद् वृत्तिस्तावतीं दातुमर्हसि-मनु० ८।१५५, सम० अङ्क: 1. बलराम 2. ताड का पत्ता जो लिखने ९।२४९, भग० २।४६ 3. उतना समस्त, सारा, यावके काम आता है 3. पुस्तक 4. आरा,-अवचरः नाचने इत्तं तावद्भुक्तम्-गण०, (अव्य०) 1. पहले (बिना वाला, नट,-केतुः भीष्म का विशेषण,-क्षीरकम, और कुछ काम किये)--आर्ये इतस्तावदागम्यताम् गर्भः ताड का निःस्रवण,--ध्वजः-भूत् (पुं०) -~-श० १, आह्लादयस्व तावच्चन्द्रकरश्चन्द्रकान्तमिव बलराम का विशेषण,-पत्रम् 1. ताड का पत्ता जिस पर -विक्रम० ५।११, मेघ० १३ 2. किसी की ओर से, लिखा जाता है 2. कान का आभूषण विशेष, बद्ध- इसी बीच में सखे स्थिरप्रतिबन्धो भव, अहं तावत् शुद्ध (वि.) तालों के द्वारा मापा गया, लयात्मक, स्वामिनश्चित्तवृत्तिमनुवर्तिष्ये-श० २, रघु० ७।३२ संगीत में मात्राकाल से विनियमित,-मर्दलः एक प्रकार 3. अभी-गच्छ तावत् 4. निस्सन्देह (किसी उक्ति पर का वाद्ययन्त्र, झाँझ करताल,--यन्त्रम् जर्राह का एक बल देने के लिए)-त्वमेव तावत्प्रथमो राजद्रोही-मुद्रा० उपकरण, रेचनकः नर्तक, अभिनेता, लक्षणः बलराम १, तुम स्वयम्,- त्वमेव तावत्परिचितय स्वयम्-...कु. का विशेषण,-बनम् वृक्षों का समूह,-वृन्तम् पंखा-श० ५।६७ 5. सचमुच, वस्तुतः (स्वीकृतिसूचक)-दृढस्ता३।२१, कु० २।३५ ।। वद्वन्धः-हि०१ 6. के विषय में, के संबंध में-विग्रहतालकम् [ताल+कन्] 1. हरताल 2. कुण्डी, चटखनी । स्तावदुपस्थित:--हि. ३, एवं कृते तव तावत्क्लेशं विना सम०--आभ (वि०) हरा, (-भः) हरा रंग। प्राणयात्रा भविष्यति--पंच०१7. पूर्णरूप से तावत्प्रतालङ्कः [=ताडंकः] कान का आभूषण विशेष । कीर्णाभिनवोपचाराम् – रघु० ७४, (तावत्प्रकीर्ण= तालव्य (वि०) [तालु+यत्] तालु से सम्बन्ध रखनेवाला, साकल्येन प्रसारित-मल्लि. 8. आश्चर्य (ओह ! कितना तालु स्थानीय । सम०-वर्णः तालु स्थानीय अक्षर, आश्चर्य है ।) ('यावत्' के सहसंबंधी के रूप में तावत्' अर्थात् इ, ई, च छ ज झ ञ और य तथा श्,-स्वरः के अर्थ देखो-'यावत्' के नीचे) सम०--कृत्वः तालु स्थानीय स्वर--अर्थात् इ ई। (अव्य०) इतनी बार,मात्रम् केवल इतना,--वर्ष तालिकः [ तल+ठक् ] 1. खुली हथेली 2. ताली बजाना (वि.) इतने वर्ष पुराना। -यथैकेन न हस्तेन तालिका संप्रपद्यते--पंच०२।१२८, तावतिक (वि०) तावत्क (वि.) [तावत्+क, इट् ] इतने उच्चाटनीयः करतालिकानां दानादिदानी भवतीभिरेषः से मोल लिया हआ, इतने मूल्य का, इतनी कीमत का। -~० ३७। तावुरिः [पुं० ग्रीक शब्द ] वृष राशि । तालितम् [ तड्+णिच् + क्त, डस्य+लत्वम् ] 1. रंगदार तिक्त (वि.) [तिज + क्त ] 1. कड़वा, तीखा (छ: रसों कपड़ा 2. रस्सी, डोरी। में से एक) मेघ० २० 2. सुगंधित-मेघ० ३३,-क्तः ताली [ तल+णिच् +अच-डी ] 1. पहाड़ी ताड़ का 1. कड़वा स्वाद, (कटु' के नीचे दे०) 2. कुटज वृक्ष पेड़, ताड़ का वृक्ष 2. ताड़ी 3. सुगंध युक्त मिट्रो 3. तीखापन 4. सुगंध। सम०-गन्धा सरसों,-धातुः । 4. एक प्रकार की कुंजी। सम०-बनम् ताड़ के वृक्षों पित्त,-फलः,-मरिचः कतक का पौधा,- सारः खैर का समूह-- रघु० ४।३४, ६।५७ । का वृक्ष। ताल (नपुं०) [तरन्त्यनेन वर्णाः---त+उण, रस्य ल:] तिग्म (वि.) [तिज-मक जस्य गः] 1. पैन, नुकीला ऊपर के दांतों और कौवे के बीच का गड़ा,-तषा (शस्त्रों की भांति) 2. प्रचंड 3. गरम, दाहक 4. तीखा, महत्या परिशुष्कतालवः-ऋतु० १।११। सम० चरपरा 5. उत्तेजक, जोशीला,--ग्मम 1. गर्मी 2. तीखा-जिहः मगरमच्छ,-स्थान (वि०) तालु स्थानीय पन । सम०-अंशः 1. सूर्य--तिग्मांशुरस्तंगत:-गीत. -(नम्) तालु। ५ 2. आग 3.शिव,--करः,-दीधितिः,-रश्मिः सूर्य । For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वम् ] चलनी (नपुं०) | 2. आर्द्र, गीला, तर वरच ] अन्धकारमय, विन्य ( ४२९ ) तिi (भ्वा० आ० (तिज का नितांत-इच्छार्थक) तिति-| सहायता से मारा था (इसी युद्ध में कैकेयी ने मछित क्षते, तितिक्षित) 1. सहन करना, वहन करना, साथ दशरथ के प्राणों को रक्षा की, और उनसे दो वर प्राप्त निर्वाह करना, साहस के साथ भुगतना-तितिक्षमाण- किये ; इन्हीं वरों से कैकेयी ने बाद में राम को १४ स्य परेण निन्दाम्-मालवि० १११७, तांस्तितिक्षस्व वर्ष का वनवास दिलाया। भारत-भग०२।१४, महावी० २।१२, कि० १३१६८, तिमिडिल: [तिमि-गिल+खश, मम् ] एक प्रकार की मनु०६।४७, ii (चुरा० उभ० या प्रेर०-तेजयति मछली जो 'तिमि' मछली को निगल जाती है-भामि० -ते, तेजित) 1. पैना करना, पनाना-कुसुमचापम- ११५५, अशन:, गिल: एक ऐसी बड़ी मछली जो तेजयदंशुभिः रघु० ९।३९ 2. उकसाना, उत्तेजित तिमिङ्गिल कोभी निगल जाती है---तिमिङ्गिलगिलोकरना, भड़काना। ऽप्यस्ति तगिलोऽप्यस्ति राघवः । तितमः [तन् + डउ, द्वित्वम्, इत्वम् ] चलनी (नपुं०) | तिमित (वि०)[ तिम् --क्त ] 1. गतिहीन, स्थित, निश्चल छाता। तितिक्षा [ तिज्+सन्+अ+टाप, द्वित्वम् ] सहनशक्ति, तिमिर (वि०) [तिस+किरच ] अन्धकारमय,–विन्यसहिष्णुता, त्याग, क्षमा। स्यन्तीं दृशौवि तिमिरे पथि-गीत० ५, बभवस्तिमिरा तितिक्षु (वि०) [तिज्न-सन्+उ, द्वित्वम् ] सहिष्णु, दिशः -महा०,-र:---रम् अन्धकार-तन्नशं तिमिरसहन करने वाला, सहनशील। मपाकरोति चन्द्र:-श० ६।१९, कु. ४।११, शि० तितिभः [तितीतिशब्देन भणति तिति+भण+ड] ४५७ 2. अन्धापन 3. जंग, मुर्चा । सम०-अरिः, 1. जुगनू 2. एक प्रकार का कीडा, इन्द्रवधूटी, वीर- -नुद् (पुं०)-रिपुः सूर्य । .बहोटो। | तिरश्ची | तिर्यक् जातिः स्त्रियां ङीष् ] जानवर, पशु या तितिरः, तित्तिरः[ तिति इति शब्दं राति ददाति रा+क पक्षी (स्त्री०)। चकोर, तीतर। | तिरश्चीन (वि.) [तिर्यक+ख ] 1. टेढ़ा, पार्श्वस्थ, तित्तिरिः [ तित्तीति शब्द रौति—रु बा० डि तारा०] तिरछा-गतं तिरश्चीनमनूरुसारथे:--.-शि० ११२, 1. तीतर 2. एक ऋषि जो कृष्णयजुर्वेद का प्रथम -..-यथा तिरश्चीनमलातशल्यम्- उत्तर० ३।३५ अध्यापक था। 2. अनियमित। तिथः [ तिज थक, जलोपः ] 1. अग्नि 2. प्रेम 3. समय | तिरस (अव्य तिरति दष्टिपथं-त+असून ] बांकेपन ___4. वर्षा ऋतु या शरद । से, टेढ़ेपन से, तिरछेपन से;-स तिर्यङ् यस्तिरोंऽचति तिथि: (पुं० या स्त्री०) [अत + इथिन, पृषो० वा डीप ] --अमर० 2. के बिना, के अतिरिक्त 3. चुपचाप, 1. चान्द्र दिवस,--तिथिरेव तावन्न शुध्यति-मुद्रा० ५, प्रच्छन्न रूप से, बिना दिखाई दिये (श्रेण्य साहित्य में कु०६।९३, ७.१ 2.-१५ की संख्या। सम०---क्षयः 'तिरस' शब्द का स्वतन्त्र प्रयोग नहीं मिलता-यह 1. अमावस्या 2. वह तिथि जो आरम्भ होकर सूर्यो- मुख्यतः प्रयुक्त होता है (क) 'कृ' के साथ-ढकना, दय से पूर्व ही या दो सूर्योदयों के बीच में ही समाप्त घृणा करना, आगे बढ़ जाना-(रघु० ३।८,१६।२०, हो जाती है,-पत्री पञ्चाङ्ग,-प्रणीः चाँद,-वृद्धिः मनु० ४।४९, अमरु ८१, भट्टि० ९।६२, हि० ३१८) वह दिन जिसमें तिथि दो सूर्योदयों के अन्दर पूरी (ख) 'धा' के साथ-ढकना, छिपाना, अभिभूत करना, होती है। अन्तर्धान होना (रघु० १०४८, १२९१) और (ग) तिनिशः (0) एक वृक्ष विशेष-दात्य हैस्तिनिशस्य कोटर- 'भू' के साथ अन्तर्धान होना (रघु०१६।२०, भट्टि० वति स्कन्धे निलीय स्थितम्-मा० ९।७। ६७१, १४१४४) । सम०-करिणः-कारिणी 1. परदा, तिन्तिडः,-डी, तिन्तिडिका, तिन्तिडिक: [=तिन्तिडी पुषो०, धूंघट-तिरस्करिण्यो जलदा भवन्ति-कु० १।१४, तिन्तिडी+कन् टाप, ह्रस्वः, तिम्+ईकन् नि.] मालवि० ११ 2. कनात, कपड़े का पर्दा,-कारः इमलो का वृक्ष । -क्रिया 1. छिपाना, अन्तर्धान करना, घृणा,-कृत तिन्दुः, तिन्दुक:-तिन्दुल: [तिम् + कु०नि०, तिन्दु+कन्, पक्षे (वि०) 1. जिसकी अवहेलना की गई हो, अपमानित, कस्य ल: ] तेन्दू का पेड़। निरादृत 2. गहित 3. गुप्त, ढका हुआ,---धानम् तिम् (भ्वा० पर०---तेमति, तिमित) आर्द्र करना, गीला 1. अन्तर्धान होना, दूर हटाना ---अथ खल तिरोधानकरना, तर करना। मधियाम–गङ्गा० १८ 2. आच्छादन, अवगुण्ठन, तिमिः । तिम्+इन् | 1 समुद्र 2. एक बड़ी विशालकाय | म्यान,-भावः ओझल होना,-हित (वि.) 1. ओझल मछलो, ह्वेल मछली-रघु०१३।१०। सम०-कोषः हुआ, अंतहित 2. ढका हुआ, छिपा हुआ, गुप्त । समुद्र,-ध्वजः एक राक्षस जिसे इन्द्र ने दशरथ की । तिरयति (ना० घा० पर०) 1. छिपाना, गुप्त रखना For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. बाधा डालना, रोकना, रुकावट डालना, दृष्टि से ] न खल शोभयति स्म वनस्थली न तिलकस्तिलकः ओझल करना -तिरयति करणानां ग्राहकत्वं प्रमोहः प्रमदामिव --रघु० ९।४१ 2. शरीर पर पड़ी चित्ती --मा० ११४० बारम्बारं तिरयति दशोरुद्गमं बाष्प- या खाल पर हआ कोई नैसगिक चिह्न,--कः,-कम पूरः-३५ 3. जोतना। 1. चन्दन की लकड़ी या उबटन आदि से किया गया तिर्यक (अब्ध०) [ तिरस्+अञ्च+क्विप, तिरस: तिरि चिह्न --मुखे मधुश्रीस्तिलकं प्रकाश्य-कु० ३।३० आदेशः, अञ्चेनलोप: 1 टेढ़ेपन से, तिरछेपन से, तिरछा कस्तूरिकातिलकमालि विधाय सायं-भामि० २।४, या टेढी दिशा में-विलोकयति तिर्यक-काव्य. १०, १११२१ 2. किसी वस्तु का अलङ्कार ('पूज्य' 'प्रमुख' मेघ० ५१, कु० ५।७४। 'श्रेष्ठ' अर्थ में समास के अन्त में प्रयुक्त),---का एक तिर्यच (वि.) (स्त्री० तिरश्ची, विरलतः-तिर्यची) ! प्रकार का हार,-कम् 1. मूत्राशय 2. फेफड़े 3. एक [तिरस । अञ्च-क्विप्, तिरस: तिरि आदेशः, प्रकार का नमक । सम० आश्रयः मस्तक । अञ्चेर्नलोपः ] 1. टेढ़ा, आड़ा, अनुप्रस्थ, तिरछा. तिलन्तुदः [तिल-+तुद+खश्, मुम्] तेली। 2. मुड़ा हुआ, वक्र -- (पुं० नपुं०) जानवर (जो मनुष्य तिलशः (अव्य०) [ तिल-शस् | तिल तिल करके, कण की भाँति सीधा न चल कर, टेढ़ा चलता है) निम्न __ कण करके, अत्यन्त अल्प परिमाण में। जाति का या बुद्धिहीन जानवर -- बन्धाय दिव्ये न तिलित्सः (पुं०) एक बड़ा साँप । तिरश्चि कश्चित् पाशादिरासादितपौरुषः स्यात्-नै० | तिल्वः [तिल+वन् ] लोध का पेड़ । ३।२०, कु० ११४८ । सम० ---अन्तरम् आरपार मापा तिष्ठद्गु (अव्य०) [तिष्ठन्त्यो गावो यस्मिन् काले, तिष्ठत हआ मध्यवर्ती स्थान, चौड़ाई,--अयनम् सूर्य द्वारा +गो नि०] गौओं के दोहने का समय (अर्थात् वार्षिक परिक्रमण,-ईक्ष (वि०) तिरछा देखने वाला, सायंकाल का समय डेढ़ घण्टा बोतने पर)-अतिष्ठद्गु ...जातिः (स्त्री०) पशु-पक्षी की जाति (विप० मनुष्य जपन् सन्ध्याम् भट्टि० ४।१४, (तिष्ठद्गु-रात्रैः जाति), -प्रमाणम् चौड़ाई,-प्रेक्षणम् तिरछी आँख प्रथमनाडिका)। करके देखना,--योनिः (स्त्री०) पश-पक्षो की सृष्टि | तिष्यः [तुष्+क्यप् नि० 1. २७ नक्षत्रों में आठवाँ नक्षत्र, या वंश-तिर्यग्योनौ च जायते-मनु० ४।२००,-स्रोतस् इसे 'पुष्य' भी कहते हैं 2. पौष भास (चान्द्र), -व्यम् (पुं०) जानवरों की दुनियां, पशु सृष्टि । कलियुग। तिलः [तिल+क] 1. तिल का पौधा-नासाभ्येति तिल- तीक (भ्वा० आ०-- तीकते) जाना, हिलना-जुलना, तु० प्रसूनपदवीम् - गीत० १० 2. तिल के पौधे का बीज 'टीक'। -नाकस्माच्छाण्डिलोमाता विक्रोणाति तिलस्तिलान्, तीक्ष्ण (वि.) [ति+स्न, दोघः। 1. पैना (सभी अर्थों लुचितानितरर्येन कार्यमत्र भविष्यति । पञ्च० २।५५ में), तीखा, शि० २।१०९ 2. गरम, उष्ण (किरणों 3. मस्सा, धब्बा 4. छोटा कण, इतना बड़ा जितना की भांति) ऋतु० १११८ 3. उत्तेजक, जोशीला कि तिल-। सम.--अम्बु, उदकम् तिल और जल 4. कठोर, प्रबल, मजबत (उपाय आदि), 5. रूखा, (दोनों को मिला कर मृतकों का तर्पण किया जाता चिड़चिड़ा 6. कठोर, कटु, कड़ा, सख्त,- मनु० ७११४० है) श० ३, मनु० ३।२२३,-उत्तमा एक अप्सरा 7. अनिष्टकर, अहितकर, अशुभ 8. उत्सुक 9. बुद्धिका नाम, ओदनः,-नम् तिल और दूध मिश्रित भात, मान, चतुर 10. उत्साही, उत्कट, ऊर्जस्वी 11. भक्त, --कल्क: तिल को पीस कर बनाई गई पीठी, °जः आत्मत्याग करने वाला,-क्ष्णः 1. जवाखार 2. लम्बी तिलों को खली,-कालकः मस्सा, तिल के बराबर मिर्च 3. काली मिर्च 4. काली सरसों या राई,-क्ष्णम् शरीर पर होने वाला काला दारा-किट्रम, -खलि: 1. लोहा 2. इस्पात 3. गर्मी, तीखापन 4. यद्ध, लड़ाई (स्त्रो०)-खली,-चूर्णम् तेल के निकालने के पश्चात् 5. विष 6. मृत्यु 7. शस्त्र 8. समद्री नमक 9. क्षिप्रता। बची हुई तिलों को खल-तण्डुलकम् आलिङ्गन (जिस सम०---अंशुः 1. सूर्य 2. आग, आयसम् इस्पात, प्रकार तिल चावल मिलते हैं, इसी प्रकार आलिङ्गन - उपायः प्रवल साधन, मजबूत तरकीब,-कन्दः प्याज, में दो शरोर मिलते हैं),-तैलम तिलों का तेल,---पर्णः - कर्मन् (वि०) उद्यमी, उत्साही ऊर्जस्वी, दंष्ट्र: तारपीन, (-र्णम्) चन्दन की लकड़ी, --पर्णी 1. चन्दन व्याघ्र,-धारः तलवार,--पुष्पम् लौंग,-पुष्पा 1. लौंग का पेड़ 2. धूप देना 3. तारपीन,--रस: तिलों का का पौधा 2. केवड़े का पौधा,-बुद्धि (वि०) तीव्रतेल,-स्नेहः तिलों का तेल,-होमः वह होम जिसमें बुद्धि, तेज, चतुर, घाघ, कुशाग्रबुद्धि, - रश्मिः सूर्य, तिलों को आहुति दी जाय । -रसः 1. जवाखार 2. जहर का पानी, जहर - शत्रुतिलक तिल-कन् 1. सुन्दर फूलों का एक वृक्ष;-आक्रान्ता प्रयुक्तानां तीक्ष्णरसदायिनाम् --- मुद्रा० ११२, लौहम् तिलकक्रियापि तिलकर्लीनद्विरेफाञ्जन:-मालवि० ३।५।। इस्पात,---शूकः जो। For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होम (दिवा० पर० तीम्यति) गोला हाना र तीर्थों के दर्शनार्थ निकला हा, पानी की ( ४३१ ) तीम् (दिवा० पर० तीम्यति) गोला होना, तर होना। । तीथिकः तीर्थ+-ठन् ] तीर्थ यात्री, वह संन्यासी ब्राह्मण जो तीरम् [ तीर-+-अच् ] 1. तट, किनारा-नदीतोर, सागर- | तीर आदि 2. उपान्त, कगर, कोर या धार, ----र: 1. एक | तीवरः त+वरच्] 1. समुद्र 2. शिकारी 3. राजपुत्री को प्रकार का बाज 2. सीसा 3. टोन। किसो क्षत्रिय (वर्णसंकर) के संयोग से उत्पन्न वर्णतीरित (वि.) तीर-|-वत | सुलझाया हुआ, समंजित, साक्ष्य संकर सन्तान । के अनुसार निर्णीत,-तम किसी बात का सोच विचार । तोत्र (वि०) [ तोब - रक् ] 1. कठोर, गहन, पंना, तेज़, तीर्ण (वि.)[त-क्त ] 1. पार किया हुआ, पार पहुँचा प्रचण्ड, कड़वा, तोखा, उग्र-विलङधिताधोरणतीव्रयत्नाः हुआ 2. फैलाया हुआ, प्रसारित 3. पीछे छोड़ाहुआ, --रघु० ५।४८, घोर या प्रचण्ड प्रयत्न-उत्तर० ३। आगे बढ़ा हुआ। ३५ 2. गरम, उष्ण 3. चमकीला 4. व्यापक 5. अनन्त, असोन 6. भयानक डरावना,--व्रम् 1. गरमी, तीखापन तीर्थम् [त--थक ] 1. मार्ग, सड़क, रास्ता, घाट 2. नदी 2. किनारा 3. लोहा, इस्पात 4. टोन, रांगा,---प्रम् में उतरने का स्थान, घाट (नदी के किनारे बनी हई सीढ़ियाँ) --विषमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसा (अव्य०) प्रचण्ड रूप से, तेजी से, अत्यन्त । सम० मिवाशयः --कि० २।३, (यहाँ तीर्थ' का अर्थ 'उपचार -- आनन्दः शिव का विशेषण,---गति (वि०) शीघ्र गामी, फ़ीला पौरुषम् 1. साहसपूर्ण शौर्य 2. शरया साधन' भी है) .. तीर्थ सर्वविद्यावताराणाम् ---का० वीरता,-संवेग (वि०) 1. दृढ़-आवेगयक्त, दृढनिश्चयी ४४ 3. जलस्थान 4. पवित्रस्थान तीर्थयात्रा का उपयुक्त स्थान, मन्दिर आदि जो किमी पुण्यकार्य के लिए 2. अत्युग्र, अत्यन्त तेज़ ।। अर्पित कर दिया गया हो (विशेष कर वह जो किसी तु (अव्य०) [तुद् --डु] (वाक्य के आरम्भ में नितान्त पावन नदी के किनारे स्थित हो)--शुचि मनो यद्यस्ति प्रयोगाभाव, प्रायः प्रथम शब्द के पश्चात् प्रयोग) तीन किम् -भर्त० २५५ रघु० ११८५ 5. मार्ग, 1. विरोध सुचक अव्यय - अर्थ---'परन्तु' 'इसके विपमाध्यम, साधन - तदनेन तीन घटेत-आदि --मा० रोत' 'दूसरी ओर' तो भी'-स सर्वेषां सुखानामन्तं १ 6. उपचार, तरकीब 7. पुण्यात्मा, योग्यव्यक्ति, ययो, एक तु सुतमुखदर्शनसुखं न लेभे-का० ५९, श्रद्धा का पात्र, उपयुक्त आदाता ---4व पुनस्तादृशस्य विपर्यये तु पितुरस्या: समीपनयनमवस्थितमेव - श० तीर्थस्य साधोः संभवः उत्तर० १, मनु० ३११०३ ५, (इस अर्थ में 'तु' बहुधा 'कि' और 'परं' के साथ 8. धर्मोपदेष्टा, अध्यापक --मया तीर्थादभिनयविद्या जोड़ दिया जाता है और 'किन्तु' तथा 'परन्तु' तु के शिक्षिता--मालवि० १ 9. स्रोत, मूल 10. यज्ञ विपरीत वाक्य के आरम्भ में प्रयक्त होते हैं) 2. और 11. मन्त्री 12. उपदेश, शिक्षा 13. उपयुक्त स्थान या अब, तो, और एकदा तु प्रतिहारी समुपसृत्याब्रवीत् क्षग 14. उपयुक्त या यथापूर्व रोति 15. हाथ के कुछ ----का० ८, राजा तु तामायाँ श्रुत्वाऽब्रवीत् -१२ भाग जो देवताओं और पितरों के लिए पवित्र होते है 3. के सम्बन्ध में, के विषय में, की बाबत -प्रवयंतां 16. दर्शनशास्त्र के विशिष्ट सिद्धान्त वादी 17. स्त्रियो ब्राह्मणानुद्दिश्य पाकः, चन्द्रोपरागं प्रति तु केनापि विप्रचित लज्जा 18. स्त्रोरज 19. ब्राह्मण 20. अग्नि,-र्थः लब्धासि --मुद्रा० १ 4. कभी कभी इससे 'भेद' या सम्मान सूचक प्रत्यय जो सन्तों और संन्यासियों के नामों 'श्रेष्ठ गुण' का पता लगाता है - मष्टं पयो मृष्टतरं तु के साथ जोड़ा जाय-.-उदा० आनन्दतीर्थ आदि । सम० दुग्धम -गण. 5. कभी कभी यह 'बलात्मक' अव्यय के -उदकम पवित्र जल..--तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः रूप में प्रयुक्त होता है-भीमस्तु पाण्डवानां रौद्रः, शुद्धिमहतः - उतर० १११३,-करः 1. जैन अर्हत्, गण. 6. कभी कभी केवल यह पद पूर्ति के लिए ही धर्मशास्त्रोपदेष्टा, जैन सन्त (इस अर्थ में 'तोर्थकर' प्रयुक्त होता है -निरर्थकं तुहीत्यादि पूरणकप्रयोजनम् भी) 2. संन्यासी 3. अभिनव दार्शनिक सिद्धान्त या --चन्द्रा०२।६। । धर्मशास्त्र का प्रवर्तक 4. विष्ण,-काकः,---ध्वांक्ष:, तुक्खारः, तुखारः, तुषारः (पुं०) विन्ध्याचल पर रहने वाली ---वायसः तीर्थ का कौवा अर्यात लोलप तीर्थोपजीवी एक जाति के लोग-तु० विक्रमांक० १८१९३ । ---भूत (वि.) पावन, पवित्र, -- यात्रा किसी पवित्र तुङ्ग (वि.) [ तुफ़-घा, कुत्वम् ] 1. ऊँचा, उन्नत, स्थान के दर्शनार्थ जाना, पावनस्थानों की यात्रा, लम्बा, उत्तुंग, प्रमुख-जलनिधिमिव विधुमण्डलदर्शनतर---राजः प्रयाग, इलाहाबाद,---राजिः ---जी (स्त्री०) लिततुङ्गतरङ्गम् -गीत० ११, तुङ्ग नगोत्संगभिवारुबनारस का विशेषण,-वाकः सिर के बाल,-विधिः रोह ---रघु०६।३ ४१७०, शि० २।४८, मेघ० १२१६४ (क्षौर आदि) संस्कार जो किसी तीर्थ स्थान पर किये 2. दोघं 3. गुम्बजदार 4. मुख्य, प्रधान 5. उग्र, जायँ, --सेविन (वि०) तीर्थ में वास करने वाला जोशीला,----गः 1. ऊँचाई, उन्नतता 2. पहाड़ 3. चोटी, (पुं०) सारस । शिखर 4. बुधग्रह 5. गैडा 6. नारियल का पेड़ । सम० For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकूल। --बीजः पारा,-भद्रः दुन्ति हाथी, मदमत्त हाथी, | तुन्दवत् (वि.) [तुन्द+मतुप, मस्य वत्वम् ] तोंदवाला --भद्रा एक नदी जो कृष्णा नदी में गिरती है,-वेणा | मोटा। एक नदी का नाम,-शेखरः पहाड़। तविक, तुन्दिन, तुन्दिभ, तुन्दिल (वि०) [तुन्द+ठन्, तुद तुङ्गी [ तुङ्ग+डी ] 1. रात 2. हल्दी। सम-ईश: +इनि, तुन्दि+भ, तुन्द+इलच] 1. मोटे पेट वाला 1. चन्द्रमा 2. सूर्य 3. शिव की उपाधि 4. कृष्ण की | 2. जिसकी तोंद बढ़ गई है 3. भरा हुआ, लदा हुआ एक उपाधि,--पतिः चन्द्रमा। -मकरन्दतुन्दिलानामरविन्दानामयं महामान्य:-भामि० तुच्छ (वि.)[तुद्+क्विप्-तुद+छो+क]1. खाली, शून्य, असार, मन्द 2. अल्प, क्षुद्र, नगण्य 3. परित्यक्त, सम्प तुम्न (वि.) [तुद्+क्त1. प्रहृत, चोट किया हुआ, घायल रित्यक्त 4. नीच, कमीना, नगण्य, तिरस्करणीय, निक- 2. सताया हुआ। सम०-वायः दर्जी। म्मा 5. गरीब, दीन दुःखी,--मछम् तुष, भूसी। सम० | तुभ् (दिवा०, क्रया० पर०-तुभ्यति, तुम्नाति) चोट -द्रुः एरण्ड का वृक्ष,-धान्यः,-धान्यकः भूसी, बूर । मारना, क्षति पहुंचाना, प्रहार करना-भट्टि० १७१ तुजः [तु +अच्] इन्द्र का वन । तुमः [तुट्+ उम] मूसा, चूहा। तुमुल (वि.) [तु+मुलक] 1. जहाँ पर शोरगुल मच रहा तुण (तुदा० पर०—तुणति) 1. टेढ़ा करना, मोड़ना, हो, कोलाहलमय भग० १११३, १९ 2. भीषण, क्रोधी झुकाना 2. चालबाजी करना, ठगना, धोखा देना। --रघु० ३१५७ 3. उत्तेजित 4. उद्विग्न, घबड़ाया तुण्डम् [तुण्ड + अच्] 1. मुंह, चेहरा, चोंच (सूअर की)। हुआ, व्याकुल, अव्यवस्थित-रघु० ५।४९, (पुं० नपुं०) --थूथनतुण्डेराताम्रकुटिल: (शुकाः)-काव्या० २।९ | 1. होहल्ला, हंगामा 2. अव्यवस्थित द्वन्द्व युद्ध, रण 2. हाथी की सूंड 3. उपकरण की नोक । तुण्डिः [तुण्ड+इन्] 1. चेहरा, मह 2. चोंच,-डि: (स्त्री) | तुम्बः [तुम्ब्+अच्] एक प्रकार को लौकी ! _नाभि, सूण्डी। तुम्बरः [तुम्ब+रा+क] एक गंधर्व का नाम, दे० तुम्बरु तुण्डिन् (पुं०) [तुण्ड+इनि] शिव के बैल का नाम । -रम् एक प्रकार का वाद्य यंत्र तान पूरा ! तुण्डिम (वि.) [तुण्ड---भ] दे० 'तुन्दिन। तुम्बा [तुम्ब+टाप्] 1. एक प्रकार की लम्बी लौकी तुण्डिल (वि.) [तुण्ड । भ सिध्मा० लच् वा] 1. बातूनी, दुधार गाय । वाचाल 2. उभरी हुई नाभि वाला 3. गप्पी--तु० तुम्बि, बी (स्त्री०) [तुम्ब् + इन्, तुम्बि+ङीष] एक 'तुन्दिल'। प्रकार की लौकी कड़वी तूम्बी, न हि तुम्बीफलविकलो तुत्यः [तुद् +-थक्] 1. आग 2. पत्थर, स्थम् एक प्रकार | वीणादण्डः प्रयाति महिमानम्-भामि० १२८० । का नीला थोथा या तूतिया जो सूर्म की भाँति आँख | तुम्ब (बु) रु. [तुम्ब+उरु] एक गंधर्व का नाम । में डाला जाय,-स्था 1 छोटी इलायची 2. नील का | तुरङ्गः [तुरेण वेगेन गच्छति-तुर+गम् +5] 1. घोड़ा पौधा । सम-अजनम् तूतिया या कासीस,जो आँखों —तुरगखुरहतस्तथा हि रेणुः-श० १।३१, रघु० में दवा की भाँति लगाया जाय । ११४२, ३।५१ 2. मन, विचार,—गी घोड़ी। सम० तुद् (तुदा० पर०-तुदति, तुन्न) 1. प्रहार करना, घायल —आरोहः घुड़सवार,-उपचारक: साइस,-प्रियः, करना, आघात करना--तुतोद गदया चारिम्- भट्टि० -यम्, जौ, ब्रह्मचर्यम् बलात्-कृत या अनिवार्य १४१८१, १५:३७, शि० २०१७७ 2. चुभोना, अंकुश ब्रह्मचर्य, स्त्रीसंग के अभाव में विवश हो ब्रह्मचर्यचुभोना 3. खरोंचना, चोट पहुँचाना 4. पीड़ा देना, | जीवन बिताना । तंग करना, सताना, कष्ट देना-सुतीक्ष्णधारापतनोग्र- | तुरगिन् () [तुरग---इनि] घुड़सावार । सायकैस्तुदन्ति चेत: प्रसभं प्रवासिनाम्-ऋतु० २१४, | तुरङ्गः [तुर+गम्+खच् मुम् वा ङिच्च घोड़ा-भानुः ६।२८, आ--, प्रहार करना, ताड़ना देना, मनु०४। सकृद्युक्ततुरङ्ग एव--श० ५।५, रघु० ३।३८, १३।३, ६८, प्र-, मारना, चोट पहुँचाना, घायल करना -गम् मन, विचार,--गी घोड़ी । सम०--अरिः भैंसा, (प्रेर०) प्रेरित करना, आगे ढकेलना (आलं०), जोर -द्विषणी भैंस,-प्रियः,--यम् जौ,- मेधः अश्वमेध डालना, बार २ आग्रह करना (किसी काम को करने यज्ञ-रघु० १३॥६१,-यायिन्,--सादिन् (पुं०) के लिए)-प्रविश गृहमिति प्रतोद्यमाना न चलति वक्त्राः ,-वदनः किन्नर,- शाला, स्थानम् अस्तबल, भाग्यकृतां दशामवेक्ष्य --मृच्छ० ११५६ । अश्वशाला,-स्कन्धः घोड़ों का दल। तुन्दम् [ तुन्द्+दन पृषो० ] पेट, तोंद । सम०—कूपिका, तुरङ्गमः [तुर+गम् +खच, मुम्] घोड़ा, रघु० ३।६३, -कूपी नाभि का गर्त, परिमार्ज,-परिम-मृज | ९७२। (वि.) सुस्त, आलसी। तुरायणम् [तुर+फक्] 1. अनासक्ति 2. एक प्रकार का यज्ञ। For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ४३३ ) नूपुर (पसमा कराना चांदी तोलार की छत पर तुरासाहू (पुं०) [तुर + सहू + णिच् + क्विप[ (कर्तृ विष्णु के उपासक पूजा करते हैं। सम-पत्रम् ए. व.-तुराषाट्-ड्) इन्द्र, कु० २१, रघु० (शा०) तुलसी का पत्ता, (आलं.) बहुत तुच्छ १५।४० । उपहार,-विवाहः कार्तिक शुक्ला द्वादशी को, बालकृष्ण तुरी तुर+इन्+डीप्] 1. एक रेशेदार उपकरण जिससे को प्रतिमा के साथ तुलसी का विवाह । जलाहे बाने के धागों को साफ़ करके अलग अलग | तला तोल्यतेऽनया--तुल+अब+टाप] तराजू, तराजू करते हैं 2. नली, जुलाहे की नाल—तद्भटचातुरीतुरी | की डंडी। -०१२3. चित्रकार की कची। तुलया 1. तराजू में रखना, तोलना 2. माप तोल 3. तोलना तुरीय (वि.) [चतुर्-+-छ, आद्यलोपः] चौथा,—यम् 4. मिलाना-झुलना, समानता, समकक्षता, समता चौथाई, चौथा भाग, चौथा (वेदा० द० में) 2. आत्मा (संब०, करण या समास में प्रयोग)-कि धूर्जटेरिव की चतुर्थ अवस्था जिसमें वह ब्रह्म अर्थात् परमात्मा तुलामुपयाति सख्ये---वेणी० ३१८, तुला यदारोहति के साथ तदाकार हो जाती है। सम०---वर्ण: चौथे दन्तवाससा-कु० ५१५४, रघु० ८।१५, सद्यः परस्परवर्ण का मनुष्य, शूद्र। तुलामधिरोहता द्वे-रधु० ५।६८, १९४८,५० 5. तुला तुरुष्कः [ब० ०] तुर्क लोग। राशि, सातवीं राशि-जयति तुलामधिरूढो भास्वानपि तुर्य (वि०) चितुर+यत, आद्यलोपः] चौथा, नै० ४११२३, जलदपटलानि--पंच० १३३०6. घर की छत पर -र्यम् 1. एक चौथाई, चौथा भाग 2. (वेदा० द० में) लगा ढाल शहतीर7. सोना चांदी तोलने का १०० पल आत्मा की चौथी अवस्था जिसमें आत्मा ब्रह्म के साथ बट्टा । सम०--कूटः कम तोलना,-कोटिः,-टी तदाकार हो जाती है। नपुर (पैरों में पहनने का स्त्रियों का आभूषण)--लीला (भ्वा० पर०, चुरा० उभ-तोलति, तोलयति--ते, चलत्स्त्रीचरणारुणोत्पलस्खलत्तलाकोटिनिनादकोमल:(तुलयति-ते भी जिसे कुछ लोग 'तुला' की नामधातु शि० १२१४४,-कोशः-बः तोल द्वारा कठिन मानते हैं) 1. तोलना, मापना 2. मन में तोलना, परीक्षा,-दानम् शरीर के बराबर तोल कर सोने या विचार करना, सोचना 3. उठाना, ऊपर करना चाँदी का किसी ब्राह्मण के लिए दान,---घटः तराज का --कैलासे तुलिते--महावी० ५।३७, पौलस्त्यतुलितस्या- पलड़ा,-धर: 1. व्यापारी, व्यवसायी, सौदागर 2. राशिदेरादधान इव ह्रियम्-रघु० ४१८०, १२६८९, शि० चक्र में तुलाराशि,--धारः व्यापारी, व्यवसायी, सौदा१५।३० 4. सम्भालना, पकड़ना सहारा देना-पृथिवी- गर, परीक्षा तुला द्वारा तोलने की कठिन परीक्षा, तले तुलितभूभृदुच्यसे--शि० १५।३०, ६१ 5. तुलना -पुरुषः सोना, जवाहरात तथा अन्य मूल्यवान् वस्तुएँ जो करना, उपमा देना (करण के साथ)-मुखं श्लेष्मागारं एक मनुष्य के भार के बराबर हों (तथा दान में किसी तदपि च शशाङ्कन तुलितम् --भर्त० ३।२०, शि० ब्राह्मण के लिए दी जायँ) तु० तुलादान,-प्रग्रहः, ८।१२ 6. तुल्य होना, समकक्ष होना (कर्म के साथ) ---प्रग्राहः तराजु की डंडी या डोरी,--मानम्,---यष्टिः प्रासादास्त्वां तुलयितुमलं यत्र तैस्तविशेषः-मेघ०६४ | तराज की डंडी,-बीजम् घंधची, गुंजा,-सूत्रम् तराजू 7. हल्का करना, गहण, करना, तिरस्कार करना-. की डोरी। अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिल: शक्ष्यति त्वाम--मेघ० | तुलित (भू० क. कृ०) [तुल+क्त ] 1. तोला हुआ, २०, (यहाँ 'तु' का अर्थ है 'सम्भालना या बहा ले प्रतितुलित 2: तुलना किया हुआ, उपमित, बराबर जाना') शि० १५।३० 8. सन्देह करना, अविश्वास किया हुआ--भर्तृ० ३।३६, दे० 'तुल' । पूर्वक परीक्षण करना--कः श्रद्धास्यति भूतार्थं सर्वो मां तल्य (वि.) तुलया संमितं यत्] 1. समान प्रकार या तुलयिष्यति-मच्छ० ३।२०, ५।४३ (यहाँ कुछ संस्करणों श्रेणी का, संतुलित, समान, सदृश, अनुरूप (संबं० या में 'तूलयिष्यति' भी पाठ है) 9. जांच करना, परीक्षण करण के साथ अथवा समास में) मनु० ४।८६, याज्ञ० करना, दुर्दशा करना --हा अवस्थे ! तुलयसि-मच्छ ० २१७७, रघु० २।३५, १२६८०, १८१३८ 2. योग्य १, (तूलयसि),--उद्,-सम्भालना, सहारा देना, 3. समरूप, वही 4. समदर्शी। सम०-- दर्शन समदर्शी, थामे रहना। सबको समष्टि से देखने वाला,--पानम् मिलकर तुलनम् तुल+ल्युट्] 1. तोलना 2. उठाना 3. तुलना करना मद्यपान करना, सहपान,-योगिता (अलं. शा. में) उपमा देना आदि, ना 1. तुलना 2. तोलना 3. उठाना एक अलंकार, एक ही विशेषण रखने वाले कई पदार्थों उन्नयन 4. निर्धारण करना, आंकना, प्राक्कलन करना का एकत्र संयोग, पदार्थ चाहे प्रसंगानुकूल हो अथवा 5. परीक्षा करना। असंबद्ध-नियतानां सकृद्धर्मः सा पुनस्तुल्ययोगिता तुलसी [तुलां सादृश्यं स्थति नाशयति--तुला सोक -काव्य० १०, तु. चन्द्रा० ५।४१, रूप (वि०) +ही एक पवित्र पौधा जिसकी हिन्दू विशेषकर । अनुरूप, समरूप, समान, सदृश । हा अवस्य जांच करना, पकरणों / For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३४ ) तुबर (वि.) [तु+वरच ] 1. कषाय, कसला 2. बिना । 4. कपूर । सम-अंशुः,-करः,--किरणः,---धुतिः, दाढ़ी का (तूवर भी)। ____-रश्मिः 1. चन्द्रमा,=शि० ९।३० 2 कपूर, अचल: तुष (दिवा० पर०-तुष्यति, तुष्ट), प्रसन्न होना, सन्तुष्ट -अदिः,-शैलः हिमालय पहाड़,----रघु० ८५५४,-कणः होना, परितृप्त होना, खुश होना (प्रायः करण के ओस की बूंद--अमर ५४,-शर्करा बर्फ।। साथ)-रत्नमहार्हस्तुतून देवा:--भर्तृ० २।८० मनु० । । (चुरा० उभ०-तूणयति-ते) सिकोड़ना, 11 (चुरा० ३।२०७, भग० २।५५, र्भा २।१३, १५१८, रघु० __ आ०-- तूणयते) भरना, भर देना। ३२६२, प्रेर०-तोषयति-ते, प्रसन्न करना, परितुष्ट | तणः तण+घा 1 तरकस--मिलितशिलीमुखपाटलिकरना, सन्तुष्ट करन, परि-परितृप्त होना, प्रसन्न पटलकृतस्मरतूणविलासे-गीत० १, रघु० ७।५७ । होना, सन्तुष्ट होना–वयमिह परितुष्टा वल्कलस्त्वं च ___ सम० --धारः धनुर्धर।। लक्ष्म्या --भर्तृ० ३१५०, अस्मत्कृते च परितुष्यति तूणी, तूणीर [ तूण+ङीष्, तूण् + ईरन् ] तरकस-रघु० काचिदन्या - २।२, सम् ..,प्रसन्न होना, परितृप्त होना ९५६ । सन्तुष्ट होना--सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्ना भार्या तूवरः [तु-+-क्विप, तु+ पृषो०] 1. बिना दाढ़ी का मनुष्य तथैव च मनु० ३।६०, भर्तृ ० ३।५, भग० ३।१७ । 2. बिना सींग का बैल 3. कषाय, कसला 4. हिजड़ा। तुषः [तुष+क] अनाज की भूसी,---अजानताथं तत्सर्वतर (दिवा० आ०-सूर्यते, तूर्ण) 1. जल्दी से जाना, शीघ्रता (अध्ययनम) तुषाणां कण्डनं यथा-मनु० ४१७८ । करना 2. चोट पहुँचाना, मारना। सम० - अग्नि:-अनलः अनाज की भूसी या बूर की | तूरम् [तूर्+घञ ] एक प्रकार का वाद्ययन्त्र । आग,—अम्बु (नपुं०),--उदकम् चावल या जौ को पूर्ण (वि.) त्वर+क्त, ऊठ, तस्य नत्वम्] फुर्तीला, तेज, कांजी,--प्रहः, - सारः आग । शीघ्रकारी 2. द्रुतगामी, बेड़ा,--र्णः फुर्ती, शीघ्रता, तुषार (वि.)[ तुष+आरक् ] ठण्डा, शीतल, तुषाराच्छन्न -र्णम् (अध्य०) फुर्ती से, जल्दी से --चूर्णमानीयतां (पाले के कारण शीतल), ओस से युक्त—शि० ९७, तूर्णं पूर्णचन्द्रनिभानने-सुभाष । अपां हि तृप्ताय न वारिधारा स्वादुः सुगन्धिः स्वदते 4ः,र्यम् [ तूर्यते ताड्यते तूर+यत् ] एक प्रकार का तुषारा - नै० ३।९३, रः 1. कोहरा, पाला 2. बर्फ, वाद्य यन्त्र, तुरही-मनु० ७२२५, कु० ७.१०। सम० हिम-कु. ११६, ऋतु०४।१3. ओस-रघु० १४१८४ - ओषः उपकरणों का समूह । श०५।१९ 4. धुन्द, क्षीणवर्षा, फुहार, ठण्डे पानी की तूलः,-लम् तूल+क] रूई,-लम् 1. पर्यावरण, आकाश, बौछार,—पृक्तस्तुषारैगिरिनिर्झराणाम् - रघु० २।१३, वायु 2. घास का गुच्छा 3. शहतूत का पेड़,-ला 1. कपास ९।६८5. एक प्रकार का कपूर । सम०-अतिः, का पेड़ 2. लैम्प की बनी,-ली 1. रूई 2. दोवे की --गिरिः,-पर्वतः हिमालय पहाड़-तुषाराद्रिवाता: बत्ती 3. जुलाहे का ब्रुश या कची 4. चित्रकार की -मेष० १०७, -कणः ओस के कण, हिमकण, कुहरा कूची या तूलिक 5. नील का पौधा । सम-कार्मुकम् पाला,-कालः सरदी का मौसम,---किरणः, रश्मिः --धनुस् धुनकी, अर्थात् रूई पीनने की घनुही,—पिचः चन्द्रमा,---अमरु ४९, शि० ९।२७,--गौर (वि०) रूई,-शर्करा बिनौला रूई के पौधे का बीज । 1. हिम की भांति श्वेत 2. हिम के कारण श्वेत,- तूलकम् [ तूल+कन् ] रूई। तुलिः (स्त्री०) [तूल+इन् ] चितेरे को कूची । तुषिताः (ब०१०)[तुष+कितच । उपदेवताओं का स तुलिका [तूलि+कन्+टाप चित्रकार की कची, लेखनी, जो गिनती में १२ या ३६ कहे जाते हैं। -उन्मीलितं तूलिकयेव चित्रम्-कु० १।३१ 2. रूई तुष्ट (भु० क. कृ०) [तुष्+क्त ] 1. प्रसन्न, तुष्ट, खुश, की बत्ती (दीपक के लिए अथवा उबटन आदि लगाने परितृप्त, परितुष्ट 2. जो कुछ अपने पास है उसी से के लिए) 3. रूई भरा गद्दा 4. बर्मा, छेद करने की सन्तुष्ट, तथा अन्य के प्रति उदासीन । सलाख। सुष्टिः (स्त्री०) [तुष्+क्तिन् ] 1. सन्तोष, परितृप्ति, प्रस- | तूष्णीक (वि.) [तुष्णीम्+क, मलोपः ] चुप रहने वाला, प्रता, परितोष 2. (सां० द० में) मौन स्वीकृति, प्राप्त | मौनी, स्वल्पभाषी। वस्तु से अधिक की लालसा न होना। तूष्णीम् (अव्य०)[ तूष्+नीम् बा० ] नीरवता में चुपचाप, तुष्टः [तुष्+तुक ] कर्णमणि कानों में पहनने की मणि चुपके से, बिना बोले या विना किसी शोरगुल के--किं तुस-तुष। भवास्तूष्णीमास्ते–विक्रम० २, न योत्स्य इति गोविन्द तुहिन (वि.) [तुह -+-इनन्, ह्रस्वश्च ] ठण्डा, शीतल, मक्त्वा तूष्णीं बभूव ह --भग०२।९। सम-भावः -नम् 1. हिम, बर्फ 2. ओस, कुहरा - तृणाग्रलग्न- नीरवता, निस्तब्धता,--शोल: खामोश, स्वल्पभाषी या स्तुहिनः पतद्भिः ऋतु० ४१७, ३१५ 3. चाँदनी | मौनी । For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३५ ) तूस्तम् [ तूस्+तन्, दीर्घः ] 1. जटा 2. धूल 3. पाप गया, तत्पुरुषः करणकारक का समास,-प्रातिः 4. कण, सूक्ष्म जरा ।। (पुं० स्त्री०) हीजड़ा। तंह, (तुदा० पर० -तृहति) मारना, चोट पहुँचाना-दे० | तृतीयिन् (वि०) [ तृतीय+इनि ] तीसरे अंश का अधिकारी तृह । (दाय का)। तुद् (भ्वा० पर०, रुघा० उभ० तर्दति, तणत्ति, तम्प्ते, तृष्ण) तुणम् तिह+क्न, हलोपश्च ] 1. घास---कि जीणं तण 1. फाड़ना, खण्डशः करना, चीरना 2. मार डालना, मत्ति मानमहतामग्रेसरकेसरी भर्तृ० २।२९ 2. घास नष्ट करना, संहार करना---भट्रि० ६।३८, १४१३३, को पत्ती, सरकण्डा, तिनका 3. तिनकों की बनी कोई चीज़ (जैसे बैठने की चटाई), तुच्छता के प्रतीक रूप १०८, १५१३६, ४४ 3. मुक्त करना 4. अवज्ञा में प्रयुक्त---तृणमिव लघुलक्ष्मी व तान्संरुणद्धि-भर्त० करना। २।१७, दे० 'तृणीकृ' भी। सम०-- अग्नि: 1. भुस तप । (दिवा०, स्वा०, तुदा० पर० तृप्यति, तृप्नोति, तृपति, या तिनकों की आग-मनु० ३११६८ 2. जल्दी बुझ तृप्त) 1. संतुष्ट होना, प्रसन्न होना, परितुष्ट होना जाने वाली आग,-- अञ्जनः गिरगिट,---अटवी ऐसा --अद्य तपस्य॑न्ति मांसादा:-भट्रि० १६।२९, प्राशीन्न जङ्गल जिसमें घास की बहुतायत हो,-आवर्तः हवा चातृपत् क्रूरः--१५।२९, (प्रायः करण के साथ, का बबण्डर, भभूला, असृज् (नपु०), कुकुमम्, परन्तु कभी-कभी संबंच्या अधिक के साथ भी)-कोन .....गौरम् एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य,-इन्द्रः ताड का तृप्यति वित्तेन-हि० २।१७४, तृप्तस्तत्पिशितेन-भर्तृ० वृक्ष,-उल्का तिनकों की मशाल, फूस की आग की २२३४, नाग्निस्तृप्यति काष्ठानां नापगानां महोदधिः, लौ,-ओकस् (नपुं०) फँस की झोपड़ी, काण्डः, उम् नातङ्क सर्वभूतानां न पुंसां वामलोचना:-पंच० ११३७, घास का ढेर, कुटी-कुटीरकम् घास फँस की कुटिया तस्मिन्हि तत्पुर्देवास्तते यज्ञे-महा० 2. प्रसन्न करना, -केतुः ताड का वृक्ष, --गोधा एक प्रकार की गिर परितृप्त करना,-प्रेर० परितप्त करना, प्रसन्न करना गिट, गोह, प्राहिन् (पुं०) नीलम, नीलकान्त मणि, ---इच्छा० तितृप्सति, तितर्पिषति, ii (भ्वा० पर० --चरः गोमेद, एक प्रकार का रत्न,- जलायुका, चुरा० उभ०-तर्पति, तर्पयति-ते) 1. जलाना, --जलका तितली का लार्वा, - द्रुमः 1. ताड का वृक्ष, प्रज्वलित करना 2. (आ.) सन्तुष्ट होना। खजर 2. नारियल का पेड़ 3. सुपारी का पेड़ 4. केतकी | तृप्त (वि.) [तृप्+क्त ] संतप्त, संतूष्ट, परितुष्ट । का पौधा 5. छुहारे का वृक्ष, धान्यम् जङ्गली अनाज तृप्तिः (स्त्री०) [तुप+क्तिन् ] संतोष, परितोष, रघु० जो बिना बोय उगे,-ध्वजः 1. ताड का वृक्ष 2. बांस, २२३९, ७३, ३३३ मनु० ३।२७१, भग० १०॥१८ -- पीडम दस्त-ब-दस्त लड़ाई, पूली चटाई, सरकण्डो 2. अतितृप्ति, ऊब 3. प्रसन्नता, परितुष्टि । का बना मढ़ा--प्राय (वि.) तिनके के मूल्य का, सृष (दिवा० पर० तृष्यति, तृषित) 1. प्यासा होना,-भट्टि. निकम्मा, नगण्य,----बिन्दुः एक ऋषि का नाम-रघु० ७.१०६, १४॥३०, १५।५: 2. कामना करना, लाला८७९,–मणिः एक प्रकार का रत्न (अम्बर, राल), यित होना, उत्सुक या उत्कंठित होना। -मत्कुणः जमानत या जामिन प्रतिभू (सम्भवतः | तृष् (स्त्री०) [ तृष्-+क्विप्] (कर्तृ० ए० व०-तृट्-२) 'ऋणमत्कुण' का अशुद्ध पाठ), राजः 1. नारियल का 1. प्यास-तृषा शुष्यत्यास्य पिबति सलिलं स्वादु पेड़ 2. बांस 3. ईख, गन्ना 4. ताड़ का पेड़-. वृक्षः सुरभि-भर्तृ० ३।९२, ऋतु० ११११ 2. लालसा, 1. ताड का पेड़, खजूर का वृक्ष 2. छुहारे का वृक्ष उत्सुकता। 3. नारियल का पेड़ 4. सुपारी का पेड़,-शीतमें | तषा-दे० तृष् । सम-आर्त (वि०) प्यास से आकुल, एक प्रकार का सुगन्धित घास,-सारा केले प्यासा,--हम् पानी। का पेड़,-सिंहः कुल्हाड़ा, हर्पः घास फूस का | तृषित (भू० क० कृ०) [ तृष्+क्त ] 1. प्यासा--घट. बना घर। ९, ऋतु. १।१८ 2. लालची, प्यासा, लाभ का तण्या [ तृण-----टाप ] घास का ढेर।। इच्छुक । तृतीय (वि.) [त्रि+तीय, संप्र०] तीसरा,--यम् तीसरा | तुष्णज् (वि.) [तृष+नजिक] लोभी, लालची, प्यासा। भाग । सम०-प्रकृतिः (पुं०, स्त्री०) हीजड़ा। तृष्णा [ तृष्+न+टाप् किच्च ] 1. प्यास (शा. और तृतीयक (वि.) [तृतीय+कन् ] प्रति तीसरे दिन होने आलं०)--तृष्णा छिनत्त्यात्मनः हि० १११७१, ऋतु० वाला, (बुखार) तैया। २१५ 2. इच्छा, लालसा, लालच, लोभ, लिप्सा तृतीया [तृतीय+टाप् ] 1. चांद्र पक्ष का तीसरा दिन, तीज -तृष्णां छिन्धि भर्तृ० २१७७, ३३५, रघु० ८।२। 2. (व्या० में) करण कारक या उसके विभक्ति-चिह्न। सम-क्षयः इच्छा का नाश, मन की शान्ति, संतोष । सम-कृत (वि०) (खेत आदि) तीन बार जोता तृष्णाल (वि.) [तृष्णा+आलु ] बहुत प्यासा । For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तह (बघा० पर०, चुरा० उभ० -तृणेढि, तयति-ते, तृढ, स्वीकृत करना, प्रदान करना, अभिदान करना, अर्पित इच्छा० तितक्षति, तितुंहिषति) क्षति पहुंचाना, आघात करना, कृपा करना, अनुग्रह करना-.-भगवान्मारीचस्ते पहुँचाना, मार डालना, प्रहार करना-न तृणेझीति | दर्शनं वितरति-श०७, वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्या लोकोऽयं वित्त मां निष्पराक्रमम्-भट्टि० ६।३९ (तानि) यथैव तथा जडे-उत्तर० २।४, निवासहेतोरुटज वितेरुः तृणेदु रामः सह लक्ष्मणेन १२१९ । ----रघु० १४१८१, मा० ११३ 3. पैदा करना, उत्पादन त (म्वा० पर०–तरति, तीर्ण) 1. पार पहुंच जाना, पार करना-ज्योत्स्नाशङ्कामिह वितरति हंसश्रेणी--कि० करना-केनोडपेन परलोकनदीं तरिष्ये-मच्छ०८।२३, ५।३१, गीत०१ 4. ले जाना, व्यति-पार करना, स तीर्खा कपिशाम् --रघु० ४१३८,मनु० ४१७७ 2. पार पूरा करना, जीत लेना, सम्--,1. पार करना पहुँचाना, (मार्ग) तय करना, कु. ७४८ मेघ० १८ | 2. तैरना, बहना 3. पूरा करना, जीत लेना, अन्त 3. बहना, तैरना-शिला तरिष्यत्यदके न पर्णम्--भट्टि० तक जाना। १२१७७ 4. पूर्ण करना, जीत लेना, पार करना, विजयी तेजनम् [तिज्+ल्युट ] 1. बांस 2. पैना करना, तेज़ करना हो जाना धीरा-हि तरन्त्यापदम्---का० १७५, कृच्छ्रम् 3. जलाना 4. प्रदीप्त करना 5. चमकाना 6. सरकंडा, महत्तीर्णः-रघु० १४१६, भग० १८१५८, मनु० १११३४ नरकुल 7. बाण की नोक, शस्त्र की धार । 5. किनारे तक जाना, पारंगत होना- रघु० ३१३० तेजल: [तिज्+णिच्+कलच् ] एक प्रकार का तीतर । 6. पूरा करना, सम्पन्न करना (प्रतिज्ञा का) पालन तेजस् (नपुं० [ति+असुन्] 1. तेजी 2. (चाकू की) करना-देवात्तीर्णप्रतिज्ञः-मुद्रा० ४।१२ 7. बचाया पनी धार 3. अग्नि शिखा की चोटी, आग की लपट जाना, बच निकलना,-गावो वर्षभयात्तीर्णा वयं तीर्णा की नोक 4. गर्मी, चमक, दीप्ति 5. प्रभा, प्रकाश, महाभयात् हरि०, कर्मवा०-तीर्यते, पार किया जाना, ज्योति, कांति-रधु० ४।१, भग० ७।९, १०१३० (प्रेर० तारयति-ते 1. ले जाना, आगे बढ़ाना 2. पहुँ 6. गर्मी या प्रकाश, सृष्टि के पांच मूलतत्त्वों में से चाना 3. बचाना, उद्धार करना, मुक्त करना; इच्छा० एक-अग्नि (अन्य चार ये हैं--पृथिवी, अप, वायु और -तितीर्षति, तितरिषति, तितरीषति) पार करने की आकाश) 7. शरीर की कांति, सौंदर्य-रघु० ३.१५ इच्छा करना-दोा तितीर्षति. तरङ्गवतीभुगजङ्गम् 8. तेजस्विता--श० २।१४, उत्तर०६।१४ १. ताक़त, -काव्य० १०, अति-1. पार पहुँचना, जीत लेना, शक्ति, सामर्थ्य, साहस, बल, शौर्य, तेज-तेजस्तेजसि विजयी होना-भग०१३।२५, हि०४, अव--1. उत शाम्यतु-उत्तर० ५ 10. तेजस्वी-तेजसां हि न वयः रना, अवतरित होना-रथादवततार च--रघु०११५४, समीक्ष्यते-रघु० ११११ 11. आत्मबल, ओज या ऊर्जा १३।६८, मेघ० ५० 2. बहना, में गिरना-सागरं 12. चरित्रबल, ओजस्विता 13. तेजोयुक्त कान्ति, बर्जयित्वा कुत्र वा महानद्यवतरति-श०३ 3. प्रविष्ट महिमा, प्रतिष्ठा, प्रभुता, गौरव-तेजोविशेषानुमितां होना, घुसना, आना-मालवि० १२२, शि० ९।३२ (राजलक्ष्मी) दधानः-रघु० २१७ 14. वीर्य, बीज, 4. पूर्ण करना, दमन करना, पार करना 5. (किसी शक्र--स्याद्रक्षणीयं यदि में न तेजः-रघु० १४।६५, देवता का) मनुष्य के रूप में इस धरती पर अवतार रघु० २।७५, दुष्यन्तेनाहितं तेजो दधानां भूतये भुवः लेना-तु० अवतार, प्रेर०–लाना, जाकर लाना, -श० ४।१ 15. वस्तु की मूल-प्रकृति 16. अर्क, सत लगाना-रघु० ११३४, उ- 1. (पानी में से) 17. आत्मिकशक्ति, नैतिक शक्ति, जादू की शक्ति बाहर निकलना, (जहाज से) उतरना, निकलना-रधु० 18. आग 19. मज्जा 20 पित्त 21. घोड़े का वेग २०१७, शि०८।६३ 2. पार जाना, पार पहुंचना 22. ताजा मक्खन 23. सोना। सम०-कर (वि०) उदतारिषुरम्भोधिम्-भट्टि. १५।३३, १०, रघु० 1. कान्तिवर्धक 2. वीर्यवर्धक, शक्तिप्रद-भङ्गः १२।७१, १६॥३३, मेघ० ४७ 3. दमन करना, जीतना, 1. अपमान, प्रतिष्ठा का नाश 2. अवसाद, हतोत्सापार करना-व्यसनमहार्णवादुत्तीर्णम् -मृच्छ० १०॥४९ हता,-मण्डलम् प्रकाश का परिवेश,-मतिः सूर्य,-रूपः इसी प्रकार-रोगोत्तीर्ण, निस-,1. पार पहुंचना परमात्मा ब्रह्म। ...-भर्तृ० १४ 2. पूरा करना, सम्पन्न करना, निष्पन्न | तेजस्वत् तेजोवत् (व०) [ तेजस्+मतुप, मस्य वः] करना 3. पार करना, पूरा करना, जीतना-रघु० 1. उज्ज्वल, चमकीला, शानदार 2. तेज, तीखा 3. वीर, ३७ 4. पूरा करना, अन्त तक जाना- रघु० १४।२१, शौर्यशाली 4. ऊर्जस्वी।। प्र.-पार पहुँचना, प्रेर. ठगना, धोखा देना-मां तेजस्विन् (वि.) (स्त्री०-नी) तेजस्+विनि] 1. चमकतथा प्रतायं-श. ५, कित्वेवं कविभिः प्रतारितमना- दार, उज्ज्वल 2. शक्तिशाली, शौर्यसम्पत्र, बलवान्स्तत्वं विजानन्नपि-मर्तृ० ११७८, वि-1. पार कि० १६६१६ 3. गौरवशाली, महानुभाव 4. प्रसिद्ध, जाना, पार करना, परे जाना-रषु. ६७७ 2. देना, विक्यात 5. प्रचंड 6. अभिमानी 7. विधिसम्मत । For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४३७ ) तेजित (वि० ) [ तिज् + णिच् + क्त ] 1. पनाया हुआ, तेज किया हुआ 2. उत्तेजित, उद्दीप्त, प्रणोदित । तेजोमय (व० ) [ तेजस् + मयट् ] 1. यशस्वी 2. उज्ज्वल, चमकदार प्रकाशमान - भग० ११।४७ । तेमः [ तिम् + घञ ] गीला या तर होना, आर्द्रता । तेमनम् [ तिम् + ल्युट् ] 1. गीला करना, तर करना 2. आर्द्रता 3. चटनी, मिर्च मसाला (जो भोजन को रुचिकर बनाये) । तेवनम् [तेव् + ल्युट् ] 1. खेळ, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद 2. विहारभूमि, क्रीडास्थल । तेजस ( वि० ) ( स्त्री० -सी) [ तेजस् अण् ] 1. उज्ज्वल, शानदार, प्रकाशमान 2. प्रकाशयुक्त - तेजसस्य धनुषः प्रवृत्तये रघु० ११०४३ 3. धातुमय 4. जोशीला 5. जोजस्वी, ऊर्जस्वी 6. शक्तिशाली, प्रबल, सम् घी । सम० - आवर्तनी कुठाली । तैतिक्ष ( व्या० ) ( स्त्री० -क्षी) [ तितिक्षा + ण ] सहनशील, तंतिरः [ तैत्तिर पृषो०] तीतर | तैतिल : ( पु० ) 1. गैंडा 2. देवता । तिरः [तित्तिर+अण्] 1. तीतर 2. गैंडा, रम् तीतरों का समूह । तैत्तिरीय (पुं० ब० व० ) [ तित्तिरिणा प्रोक्तम् अधीयते - तित्तिरि + छ ] यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के अनुयायी, - यः यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा ( कृष्ण यजुर्वेद) । तैमिर: [ तिमिर + अण् ] आँखों का एक रोग-धुंधलापन । fee (वि० ) [ तीर्थ + ठञ्ञ] पवित्र, पावन, कः 1. एक संन्यासी 2. किसी नवीन धार्मिक या दार्शनिक सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाला, कम् पवित्र जल (जैसा कि किसी पुण्यतीर्थ से लाया हुआ हो ) । तैलम् [ तिलस्य तत्सदृशस्य वा विकारः अण् ] 1. तेल - लभेत सिकतासु तैलमपि यतः पीडयन् भर्तृ० २२५, याज्ञ० ११२८३, रघु० ८ ३८ 2. धूप । सम० - अटी भिरं, वरैया - अभ्यङ्गः शरीर में तेल की मालिश करना --- कल्कजः खली, पणिका, पर्णी 1. चन्दन 2. धूप 3. तारपीन, पिञ्जः सफ़ेद तिल – पिपीलिका छोटी लाल रंग की चिऊँटो, फल: हिंगोट का वृक्ष, भाविनी चमेली, माली दीवे की बत्ती, यन्त्रम् तेली का कोल्हू -- स्फटिक : एक प्रकार की मणि । तैलङ्गः एक देश का नाम, वर्तमान कर्नाटक प्रदेश, गाः ( ब० व० ) इस देश के लोग । तैलिकः, तैलिन् (पुं० ) [ तैल + ठन्, तैल + इनि] तेली, तेल पेरने वाला । तैलिनी [तैलिन् + ङीप् ] दीवे की बत्ती । तैलीनम् [तिलानां भवनं क्षेत्रम् खञ् ] तिलों का खेत । तेषः [तिप्येण नक्षत्रेण युक्ता पौर्णमासी- तिष्य + अण् + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ङीप् तैषी, सा अस्ति अस्मिन् मासे - तेषी + अण् ] पौष का महीना । तोकम् [तु + क] सन्तान, बच्चा । तोककः [तोक + कन्] चातक पक्षी । तोडनम् [तुड् + ल्युट् ] 1. टुकड़े २ करना, खण्डशः करना 2. फाड़ना 3. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना । तोत्रम् [तुद्+ष्ट्रन्] पशुओं को या हाथी को हाँकने का अंकुश । तोदः [तुद् + घा] पीडा, वेदना, संताप । तोवनम् [तुद् + ल्युट् ] 1. पीडा, वेदना 2. अंकुश 3. चेहरा, मुँह तोमरः, -रम् [तुम्पति हिनस्ति तुम्प् + अर्, नि०] 1. लोहे का डण्डा 2. भाला, नेजा । सम० धरः अग्निदेव । तोयम् [तु + विच्, तवे पूर्व्यं याति - या + क नि० साधुः ] पानी श० ७/१२ । सम० – अधिवासिनी पाटला वृक्ष, आधारः, आशयः सरोवर, कूआँ, जलाशय तोयाधारपथाश्च वल्कलशिखानिष्यन्दरेखाङ्किताः - श० १।१४, - आलय: समुद्र, सागर, - ईशः वरुण का विशेषण ( - शम् ) पूर्वाषाढ़ नक्षत्रपुञ्ज, -- उत्सर्गः जलोन्मोच वर्षा - मेघ ० ३७, कर्मन् ( नपुं० ) 1. अङ्गमार्जन 2. दिवंगत पितरों को जलतर्पण, कृच्छ्रः छम् एक प्रकार की तपश्चर्या जिसमें कुछ निश्चित समय तक जल पीकर ही रहना पड़ता हैं, क्रीडा जलविहार - मेघ० ३३, - गर्भः नारियल, चरः एक जलजन्तु, - डिम्बः, -भः ओला, दः 'बादल - रघु० ६/६५५ विक्रम० १११४, अत्ययः शरद् ऋतु घरः बादल - धिः, -निधिः समुद्र, नीवी पृथ्वी, प्रसावनम् कतकफल, निर्मली, मलम् समुद्रफेन, मुच् (पुं० ) बादल, - यन्त्रम् 1. जल-घड़ी 2. फौवारा, - राज्, - राशि: समुद्र, -- वेला जल का किनारा, समुद्रतट, व्यतिकरः ( नदियों का संगम - रघु० ८/९५- शुक्तिका सीपी, -सपिका, सूचक: मेंढक । - तोरणः णम् [तुर् +युच् आधारे ल्युट् वा तारा०] 1. महरा बदार बनाया हुआ द्वार, सिंह द्वार 2. बहिर्द्वार, प्रवेशद्वार -- गणोनृपाणामथ तोरणाद् बहिः- शि० १२ । १, दूरालक्ष्यं सुरपतिघनुदचारुणा तोरणेन- मेघ० ७५ 3. अस्थायी रूप से बनाया हुआ शोभाद्वार कु० ७१३, रघु० १४१, ७/४, ११५ 4. स्नानागार के निकट का चबूतरा, - णम् गर्दन, कण्ठ । तोल:-लम् [ तुल् + घञ्ञ ] 1. तोल या भार जो तराजू में तोल लिया गया हो 2. सोने चांदी का एक तोला या १२ माशे का भार । तोषः [तुष् + घञ ] सन्तोष, परितोष, प्रसन्नता, खुशी । तोषणम् [ तुष + ल्युट् ] 1. सन्तोष, परितोष 2 सन्तोषप्रद परितृप्ति । For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लौकिकः, -तौलिकिक: [ तुलि + ठक्, चित्रकार । ( ४३८ ) तोवलम् [ तोष+लू + ड] मूसल, सोटा । तौकिक: (ग्रीक शब्द ) तुला राशि । तौतिकः ( पुं० ) वह सीपी जिसमें से मोती निकलती है, -कम् मोती । सौर्यम् [ सूर्य + अण् ] तुरही का शब्द । सम० - त्रिकम् नृत्य, गान और वाद्य की समेकता, तेहरी स्वरसंगति - तौयंत्रिकं वृथाट्या च कामजो दशको गणः मनु० ७१४७, उत्तर० ४ | तौलम् [ तुला + अण् ] तराजू । तुलिका + ठक् ] स्वपत ( भू० क० कृ० ) [ त्यज् + क्त ] 1. छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ, परित्यक्त, उन्मुक्त 2. उत्सृष्ट, जिसने आत्मसमर्पण कर दिया है 3. कतराया हुआ, टाला हुआ - दे० त्यज् । सम० अग्निः वह ब्राह्मण जिसने अग्निहोत्र करना छोड़ दिया है, -जीवित प्राण (वि०) प्राण देने के लिए तैयार, कोई भी जोखिम उठाने को तैयार — मदर्थे त्यक्तजीविताः -- भग० ११९, – लज्ज (वि० ) निर्लज्ज, बेशर्म त्यज् (भ्वा० पर० त्यजति त्यक्त ) 1. छोड़ना ( सब अर्थो में) त्यागना, उत्सर्ग करना, चले जाना - भानोस्त्यजाशु - मेघ० ३९, मनु० ६/७७, ९।१७७, स० ५।२६ 2. जाने देना, बरखास्त करना, सेवामुक्त करना, मट्टि० ६।१२२ 3. छोड़ देना, त्यागना, उत्सर्ग करना, आत्मसमर्पण करना - भर्तृ० ३।१६, मनु० २/९५, ६।३३, भग० ६।२४, १६।२१ 4. कतराना, टालना 5. छुटकारा पाना, मुक्त करना - भग० १३ 6. अवहेलना करना, उपेक्षा करना त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च भगं० १।३३ 7. उद्धृत करना 8. वितरण करना, प्रदान कर देना, कृतं (संचयं) आश्वयुजे त्यजेत् - - याज्ञ० ३।४७, मनु० ६।१५, प्रेर० छुड़वाना, इच्छा० - तित्यक्षति छोड़ने की इच्छा करना, परि- 1. छोड़ना, उत्सर्ग करना, त्याग करना 2. पद त्याग करना, छोड़ देना, रद्द कर देना, तिलाञ्जलि देना --- प्रारब्धमुत्तमगुणा न परित्यजन्ति मुद्रा० २।१७ 3. उद्धृत करना- तृणमप्यपरित्यज्य · सतृणम्, सम्-- 1. त्यागना, जायामदोषामुत सन्त्यजामि - रघु० १४।३४ 2. टालना, कतराना - भर्तृ० १1८१ 3. छोड़ देना, तिलांजलि देना -- मनु० ४)१८१ 4. उद्धृत करना - उदा० - संत्यज्य विक्रमादित्यं धैर्यमन्यत्र दुर्लभम् - राजत० ३।३४३ । स्यागः [ त्यज् + ञ ] 1, छोड़ना, परित्याग, छोड़ देना, छोड़ कर चले जाना, वियोग न माता न पिता न स्त्री न पुत्रस्त्यागमर्हति मनु० ८ ३१९, ९१७८ 2. छोड़ देना, पदत्याग कर देना, तिलांजलि देना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मनु० १।११२, भग० १२।४१ ३. उपहार, दान, धर्मार्थ दान करे श्लाघ्यस्त्यागः - भर्तृ० २२६५, हि० १।१५४, त्यागाय सम्भृतार्थानाम् - रघु० १।१७ 4. मुक्तहस्तता, उदारता- रघु० १।२२ 5. स्राव, मलोत्सगं । सम० युत, - शील (वि०) मुक्त हस्त, उदार, दानशील। स्यागिन् (वि० ) [ त्यज् + घिनुण् ] 1. छोड़ने वाला, परित्याग करने वाला, छोड़ देने वाला 2. प्रदाता, दाता 3. शौर्यशाली, शूरवीर 4. वह जो धार्मिक अनुष्ठानों के फलस्वरूप किसी पारितोषिक या पुरस्कार की अपेक्षा नहीं करता है - यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते भग० १७।११ । त्रप् ( स्वा० आ० - त्रपते, त्रपित) शर्माना, लजाना, झंझट में फँस जाना - पन्ते तीर्थानि त्वरितमिह यस्योद्धृतिविधौ गङ्गा० २८, अप, मुड़ना, शर्म के कारण कार्यनिवृत्त होना --तस्माद्बलैरपत्रेपे - भट्टि० १४१८४, येनापत्र पते साधुरसाधुस्तेन तुष्यति महा० । त्रपा [ त्रप् + अङ्+टाप् ] 1. शर्म, लाज- मन्दत्रपाभर -गीत० १२ 2. हया, शर्म (अच्छे और बुरे अर्थ में) 3. कामुक या व्यभिचारिणी स्त्री 4 प्रसिद्धि, ख्याति । सम० ---- निरस्त, -हीन (वि०) निर्लज्ज, बेशर्म - रण्डा वेश्या । त्रपिष्ठ (वि० ) [ अयम् एषाम् अतिशयेन तृप्रः - तृप्र + इष्ठन्, तृप्रशब्दस्य त्रपादेशः ] अत्यन्त सन्तुष्ट । त्रपीयस् ( वि० ) ( स्त्री० -सी ) तृप्र + ईयसुन्, तृप्र शब्दस्य पादेश: ] अपेक्षाकृत अधिक सन्तुष्ट | (पुं० ) [ अग्नि दृष्ट्वा त्रपते लज्जते इव त्रप् + उन् तारा० ] टीन, रांगा-यदि मणिस्त्रपुणि प्रतिबध्यतेपंच १।७५ । त्रपुलम्, षम्, त्रपु ( नपुं०), सम् [ त्रप् + उल, त्रप् + उष, त्रप् + उस्, प् + उस ] टीन, रांगा। अप्स्यम् (नपुं०) मट्ठा, घोला हुआ दही । त्रय (वि०) (स्त्री-पी) [त्रि + अयच् ] तेहरा, तिगुना, तीन भागों में विभक्त, तीन प्रकार का त्रयी वै विद्या ऋचो यजूंषि सामानि शत०, मनु० ११२३, पम् तिगड्डा, तीन का समूह - अदेयमासीत् त्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे - रघु० ३।१६, लोकत्रयम्भग० १११२०, ४३, मनु० २७६ ॥ त्रयस् ( 'त्रिशब्द' पुं०, कर्तृ० ब० व०, समास में प्रयोग, अथवा संख्यावाचक शब्दों के साथ ) तीन । सम० -- चत्वारिंश (वि०) तैंतालीसवाँ, चत्वारिंशत ( वि० या स्त्री०) तैंतालीस, त्रिंश (वि०) तैंतीसवाँ -- त्रिशत् ( वि० या स्त्री० ) तैंतीस दश ( वि० ) 1. तेरहवाँ 2. तेरह जोड़ कर - त्रयोदशं शतम्' एक सौ तेरह, - बशन् ( वि०, ब० व०) तेरह - बशन ( वि० ) For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३९ ) तेरहवाँ,-बशी चान्द्र पक्ष को तेरहवीं तिथि,-नवतिः प्रतिरक्षा, प्ररक्षा--आर्तत्राणाय वः शस्त्रं न प्रहर्तुमना(स्त्री०) तिरानवे,-पञ्चाशत् (स्त्री०) तरेपन,-विश गसि-श० ११११ रघु० १५।३ 2. शरण, सहारा, (बि०) 1. तेइसवी 2. तेईस से युक्त,-विशतिः आश्रय-भट्रि० ३१७०।। (स्त्रो०) तेईस, -- षष्टिः (स्त्री०) तरेसठ,-सप्ततिः |त्रात (भू० क. कृ)[+क्त] 1. प्ररक्षित, बचाया गया, (स्त्री०) तिहत्तर। रक्षा किया गया। त्रयी[त्रय+कीप] 1. तीनों वेदों की समष्टि (ऋग्यज:- | पापुष (वि०) (स्त्री-पी) [त्रपुष+ अण्] रांगे का बना सामानि)-त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नमः-का० १, तो हुआ। त्रयीवर्जमितरा विद्या; परिपाठिती-उत्तर०२, मनु | त्रास (वि.) [वस्+घञ्] 1. चर, चलनशील 2. हराने ४।१२५ 2. तिगड्डा, त्रिक, त्रिसमूह- व्यद्योतिष्ट वाला, सः डर, भय, आतंक-अन्तः कञ्चुकिकञ्चुसभावेद्यामसो नरशिखित्रयो-शि० २।३ 3. गृहिणी कस्य विशति त्रासादयं वामनः-रत्ना०२।३, रघु० या विवाहिता नारी जिसका पति तथा बालबच्चे २१३८, ९।५८ 2. चौकन्ना करने वाला, भयभीत करने जीवित हों 4. बुद्धि, समझ । सम-तनुः 1. सूर्य का वाला 3. मणिगत दोष । विशेषण, इसी प्रकार 'त्रयीमयः' 2. शिव का एक त्रासन (वि.) [त्रस्+णि+ल्युट्] खोफ़नाक, डरावना, विशेषण,-धर्म: तीनों वेदों में वर्णित धर्म-भग० ९॥ भयङ्कर,-नम् डराने को क्रिया, डराना। २१,-मुखः ब्राह्मण। शासित (वि०) [त्रस+णिच+क्त] डराया हुआ, मातंकित प्रसi (भ्वा०, दिवा० पर०-सति, स्यति, त्रस्त) भयभीत । 1. थर्राना, काँपना, हिलना, भय के कारण विचलितत्रि (सं०वि०-केवल ब. व०, कर्त० पुं० त्रयः, स्त्री० होना 2. डरना, भयभीत होना, डर जाना (अपा० के तिस्रः, नपुं० त्रीणि) तीन-त एव हि त्रयो लोकास्त एव साथ, कभी-कभी सम्बं० या करण के साथ)-प्रमद- त्रय आश्रमा:-मनु० २।२९९, प्रियतमाभिरसो तिसवनात् त्रस्यति-का० २५५, कपेरत्रासिषुर्नादात् भिर्बभौ-रघु० ९।१८, त्रीणि वर्षाण्यदीक्षेत कुमार्यतु-भट्टि० ९।११, ५।७५, १४१४८, १५।५८, शि० ८। मती सती-मनु० ९/९० । सम.- अंशः 1. तिहाई २४, कि० ८७, प्रेर०-डराना, भयभीत करना,-वि०-, भाग 2. तीसरा अंश,-अक्षः-अक्षकः शिव का एक भयभीत या त्रस्त होना-वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः विशेषण,-अक्षरः 1. ईश्वर द्योतक अक्षर 'ओम' जो कटाक्षः-भर्तृ० १३९, सम्---,डरना, भयभीत होना, तीन अक्षरों से मिल कर बना है-दे० 'अ' में 2. जोड़ी त्रस्त होना-भट्टि०१४॥३९।। मिलाने वाला, घटक (यह शब्द तीन वर्षों से मिल ii (चुरा० उभ-त्रासयति-ते) 1. जाना, हिलना- कर बना है), अफूटम्, अङ्गगटम् 1. वह तीन रस्सियाँ जुलना 2. थामना 3. लेना, पकड़ना 4. विरोध करना, जिनके सहारे बहंगी के दोनों पलड़े दोनों किनारों पर रोकना। लटकते रहते हैं 2. एक प्रकार का अंजन, सुर्मा, अस (वि.) [स् +क] चर, जंगम,-सः हृदय,-सम् -अजलम्-लिम् तीन अंजलि (मिला कर), अधि 1. वन जंगल 2. जानवर । सम०-रेणुः अणु, धूल का ष्ठान: आत्मा,–अध्वगा,-मागंगा,--वमंगा गंगा कण या अणु जो सूर्यकिरण में हिलता हुआ दिखाई देता नदी (तीनों लोकों में बहने वाली) के विशेषण, है..-तु० जालान्तरगते भानो सूक्ष्म यदृश्यते रजः, -~-अम्बकः('त्रियम्बक' भी, यद्यपि लौकिक साहित्य में प्रथमं तत्प्रमाणानां त्रसरेणुं प्रचक्षते—मनु० ८।१३२, प्रयोग विरल है) तीन आंखों वाला, शिव, त्रियम्बक याज्ञ० ११३६१। संयमिनं ददर्श--कु० ३।४४, जडीकृतस्त्र्यम्बकवीक्षणेन असरः [त्रस्+अरन् बा०] ठरकी (जुलाहों का एक उपकरण -रघु० २।४२, ३१४९, सखः कुबेर का विशेषण, जिसमें धागों की नली रख कर बुनते हैं)। ---अम्बका पार्वती का विशेषण,--अब्द (वि०) तीन असुर, बस्नु (वि.) [त्रस्+उरच, अस्+क्नु ] भीरु, वर्ष पुराना (----बम्) तीन वर्ष,--अशोत (वि.) काँपने बाला, डरपोक-अत्रस्तुभिर्युक्तधुरं तुरङ्गः तिरासिवा, अशीतिः (स्त्री०)तिरासी,-अष्टन् (वि०) ...रघु० १४।४७, सीतां सौमित्रिणा त्यक्ता सध्रीची चौबीस,- अध-अस्त्र त्रिकोण, त्रिभुजाकार (सम्) अस्नुमेकिकाम्-- भट्टि• ६।७। । तिकोन, त्रिभुज,--अहः तीन दिन का काल, - अहित अस्त (भू० क० कृ०) [त्रस्+क्त] 1. भयभीत, डरा हुआ, (वि.) 1. तीन दिन में उत्पादित या अनुष्ठित 2. हर आतंकित-त्रस्तकहायनकुरङ्गविलोलदृष्टि:---मा०४८ तीसरे दिन घटने वाला--(यथा बुखार) तैया,-अचम् 2. डरपोक, भीरु 3 फुर्तीला, चंचल । ('तृचम्' भी) तीन ऋचाओं की समष्टि--मनु० प्राण (भू० क० कु) [+क्त तस्य नत्वम् ] रक्षा किया ८।१०६,.- ककुद् (पुं०) 1. त्रिकूट पहाड़ 2. विष्णु गया, अभिरक्षित, प्ररक्षित, बचाया गया,-णम् 1. रक्षा या कृष्ण,-कर्मन् (नपुं०) ब्राह्मण के तीन मुख्य कर्तव्य For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् यज्ञ करना, वेद का अध्ययन करना, तथा दान । देना (-पुं०) जो इन तीन कर्मों को सम्पन्न करने । में व्यस्त हो, ब्राह्मण,-कायः बुद्ध का नाम,-कालम् तीन काल अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्यत् या तीन समय - प्रातः, मध्याह्न तथा सायम् 2. क्रिया के तीन काल (भूत, वर्तमान और भविष्यत्) झ, दशिन (वि०) सर्वज्ञ,-कटः सीलोन का एक पहाड़ जिस पर रावण की राजधानी लंका स्थित थी-शि० २१५, --कर्चकम् तीन फलों का चाकू,-कोण (वि.) त्रिभुजाकार, त्रिकोण बनाने वाला (–णः) 1. तीन कोन वाली आकृति 2. योनि,-खट्वम्,-खट्वी तीन खाटों का समूह, -गणः सांसारिक जीवन के तीन पदार्थों की समष्टि अर्थात् धर्म, अर्थ और काम,-न बाघतेऽस्य त्रिगणः परस्परम-कि० ११११, दे० नी. 'त्रिवर्ग',-गत (वि.) 1. तिगना 2. तीन दिन में सम्पन्न,-गर्ताः (ब०व०) 1. भारत के उत्तरपश्चिम में एक देश, इसका नाम 'जलंधर' भी है 2. इस देश के निवासी या शासक, गर्ता कामासक्त स्त्री, स्वैरिणी, --गुण (वि.) 1. तीन डोरों से युक्त तगड़ी-व्रताय मौंजी त्रिगुणां बभार यां-कु० ५।१० 2. तीन बार आवृत्ति किया हुआ, तीन बार विविध, तेहरा, तिगुना ----सप्त व्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य (दिनानि)-रघु० २।२५ 3. सत्त्व, रजस् तथा तमस् नाम के तीन गुणों से युक्त, (- णम्) (सां० द० में) प्रधान (णा) (वेदा० द०1 में) 1. माया 2. दुर्गा का विशेषण ----चक्षुस् (०) शिव का एक विशेषण,-चतुर (वि.) (ब०व०) तीन या चार गत्वा जवात् विचतुराणि पदानि सीता - बालरा० ६३४,-चत्वारिंश (वि०) तेतालीसवाँ,-चत्वारिंशत् (स्त्री०) तेतालीस,--जगत् (नपुं०) ---जगती तीन लोक 1. स्वर्गलोक, अन्तरिक्षलोक तथा भूलोक या (२) स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक, जटः शिव का एक विशेषण, -जटा एक राक्षसी, जिसको रावण ने अशोकवाटिका में सीता की देखरेख के लिए नियत किया था, जब सीता वहाँ बन्दी के रूप में रक्खी गई। उस समय त्रिजटा ने स्वयं सीता के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया, तथा अपनी दूसरी सहचरियों को भी प्रेरित किया कि वह भी ऐसा ही करें,--जीवा,-ज्या तीन चिह्नों की त्रिज्या, या ९० कोटि, अर्धव्यास,--णता, धनुष,णव,--णवन् (वि० ब० व०)३४९, नौ का तिगुना अर्थात सत्ताइस, तक्षम,-तक्षी तीन बढ़इयों का समूह,-दण्डम् 1. (संसार से विरक्त) सन्यासी के तीन डंडों को बांधकर एक किया हुआ 2. तिगुना संयम -~~-अर्थात मन, पाणी और कर्म का, (...डः) एक धर्मनिष्ठ संन्यासी की अवस्था-दण्डिन् (पुं०) धर्म निष्ठ साधु या संन्यासी जिसने सांसारिक विषय वासनाओं का त्याग कर दिया है, और जो अपने दहिने हाथ में तीन-दंड (एक जगह मिला कर बंधे हुए) रखता है 2 जिसने अपने मन, वाणी और शरीर को वश में कर लिया है-तु० वाग्दण्डोऽथ मनोदण्ड: कायदण्डस्तथैव च,यस्यैते निहिता बद्धौ त्रिदण्डीति स उच्यतेमनु० १२११०,दशाः (ब०व०) 1. तीस 2. तेंतीस देवता, (---शः) देवता, अमर-कु० ३३१, अंकुशः आयुधम् इन्द्र का बज -रषु० ९:५४, °अधिपः, °ईश्वरः पतिः इन्द्र के विशेषण, °अध्यक्षः विष्णु का एक विशेषण, अरिः राक्षस, °आचार्यः बृहस्पति का विशेषण, आलयः, आवासः 1. स्वर्ग 2. मेरु पर्वत, °आहारः देवताओं का भोजन, गुरुः बृहस्पति का विशेषण, गोपः एक प्रकार का कीड़ा, वीरबहटी (इन्द्रगोप)--श्रद्दधे त्रिदशगोपमात्रके दाहशक्तिमिव कृष्णमनि -- रघु० १११४२, मंजरी तुलसी का पौधा, °वध, वनिता अप्सरा या स्वर्ग की देवी--कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथिः स्याः --मेघ० ५८, वर्मन् आकाश, --दिनम तीन दिनों की समष्टि,-दिवम् 1. स्वर्ग, त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः- कु०१।२८, श०७३ 2. आकाश, पर्यावरण 3. प्रसन्नता, अधीशः ईशः 1. इन्द्र का विशेषण 2. देवता, उद्भया गंगा, °ओकस् (पुं०) देवता-दृश (पुं०) शिव का एक विशेषण-दोषम् शरीर में होने वाले तीनों दोष अर्थात् वात, पित्त और कफ,---धारा गंगा,- णयनः (नयनः)-नेत्रः-- लोचनः शिव के विशेषण -- रघु. ३.६६, कु० ३१६६, ५।७२,--नवत (वि०) तिरानवेवां, -- नवतिः (स्त्री०) तिरानवे,-पञ्च (वि०) तीनगुना पाँच अर्थात् पन्द्रह,-- पञ्चाश (वि०) तरेपनवाँ, पञ्चाशत् (स्त्री०) तरेपन, -- पटुः काच,-- पताकः 1. हाथ जिसकी तीन अंगुलियाँ फैली हुई हों 2. त्रिपुंड तिलक लगा हुआ मस्तक,---पत्रकम् ढाक,-पवम् तिराहा, अर्थात् धुलोक, अन्तरिक्ष तथा भूलोक, या आकाश, भूलोक तथा पाताल 2. वह स्थान जहाँ तीन सड़कें मिलती हों, गा गंगा का विशेषण-धृतसत्पथस्त्रिपथगामभित स तमारुरोह पुरुहूतसुत:--कि० ६।१, अमरु ९९, --पदम्, पदिका तीन पैर वाला,-पदी 1. हाथी का तंग---नासत्करिणां ग्रेवं त्रिपदीच्छेदिनामपि--रघु० ४।४८ 2. गायत्री छन्द 3. तिपाई 4. गोधापधी नाम का पौधा,-पर्णः ढाक का पेड़ -पाद (वि.) 1. तीन पैरों वाला 2. तीन खण्डों से युक्त, तीन चौथाई,-रघु० १५०९६ 3. त्रिनाम (पुं०) वामनावतार भगवान् विष्णु का विशेषण,---पुट (वि०) त्रिभुजाकार (-टः) 1. बाण 2. हथेली 3. एक हाथ परिमाण 4. तट या किनारा,-पुटकः त्रिकोण, त्रिभुज, For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४४१ ) उन्होंने भी प्रशंकु ने उन्होंने ---पुटा दुर्गा का विशेषण,--पुण्डम,-पुण्डकम् चन्दन, राख या गोबर से बनाई हई तीन रेखाएँ, पुरं 1. तीन नगरों का समूह 2. धुलोक, अन्तरिक्ष और भूलोक में मय राक्षस द्वारा बनाये गये सोने, चाँदी और लोहे के ३ नगर (देवताओं की प्रार्थना पर यह तीनों नगर--- उनमें रहने वाले राक्षसों समेत शिव जी द्वारा जला दिये गये)--कु० ७१४८, अमरु २, मेघ० ५६ भर्तृ० २१२३, (रः) इन नगरों का अधिपति राक्षस °अन्तकः अरिः, नः, दहनः द्विष्, (पुं०) हरः शिव के विशेषण-भर्तृ० २।१२३, रघु० १७.९४, दाहः | तीन नगरों का जलाया जाना-कि० ५।१४, (-री) जबलपुर के निकट एक नगर जो पहले चेदिदेश के राजाओं की राजधानी था-2. एक देश का नाम,-पौरुष (वि०) तीन पीढ़ियों से सम्बन्ध रखने वाला, या तीन पीढ़ियों तक जलने वाला,—प्रस्तुतः वह हाथी जिससे मद का स्राव हो रहा हो,-फला तीन फलों (हरड़, बहेड़ा और आँवला) का संघात, बलि:,-बली, -वलिः, ---वली स्त्री की नाभि के ऊपर पड़ने वाले तीन बल (जो सौन्दर्य का चिह्न समझे जाते हैं) -झामोदरोपरिलसत्त्रिवलोलतानाम्-भर्तृ० १.९३, ८१, तु. कु० १२३९,भवम् स्त्रीसहवास, मैथुन, स्त्रीसम्भोग,-भुजम् त्रिकोण,-भुवनम् तीन लोक -पुण्यं या यास्त्रिभुवनगुरोर्धाम चण्डीश्वरस्य---मेघ० ३३, भर्तृ० १२९९,---भूमः तिमंजिला महल,-मार्गा गंगा ---कु० ११२८, -मुकुटः त्रिकूट पहाड़,-मुखः बुद्ध का एक विशेषण, --मूर्तिः हिन्दुओं के त्रिदेव--ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त रूप--कु० २।४,-यष्टि: तीन लड़ों का हार,-यामा रात्रि (तीन पहर वाली --आरम्भ और अन्त का आधा आधा पहर इससे पृथक है)-संक्षिप्येत क्षण इव कथं दीर्घयामा त्रियामा --मेघ० १०८. कु०७।२१, २६, रघु० ९।७०, विक्रम ३।२२,--योनिः तीन कारणों (क्रोध, लोभ, और मोह) से होने वाला अभियोग,-रात्रम् तोन रातों (तथा दिनों) का समय,-रेखः शंख,-लिंग (वि.) तीनों लिंगों में प्रयुक्त अर्थात् विशेष, (गः) एक देश जिसे तैलंग कहते हैं, (गी) तीनों लिंगों की समष्टि, लोकम् तीनों संसार, ईशः सूर्य नाथः तीनों लोकों का स्वामी, इन्द्र का विशेषण रघु० ३।४५ 2. शिव का विशेषण ----कु० ५।७७ (—को) तीनों लोकों को समष्टि, विश्व ---सत्यामेव त्रिलोकी सरिति हरशिरश्चम्बिनी विच्छटायाम् --भर्त० ३।९५, शा० ४।२२, वर्ग: 1. सांसारिक जीवन के तीन पदार्थ-- अर्थात धर्म, अर्थ और काम--कु० ५।३८ 2. तीन स्थितियाँ हानि, स्थिरता और वृद्धि-क्षय' स्थानं च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम----अमर०,--वर्णकम पहले तीन वर्णों । (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) का समाहार,-वारम् (अव्य०) तीन वार, तीन मर्तबा,-विक्रमः वामनावतार विष्णु,-विद्यः तीनों वेदों में व्युत्पन्न ब्राह्मण -विष (वि०) तीन प्रकार का, तेहरा,--विष्टपम्, -पिष्टपम् इन्द्रलोक, स्वर्ग,—त्रिविष्टपस्येव पति जयन्त:-रघु० ६।७८, सद् (पुं०) देवता-वेणिः, --णी (स्त्री) प्रयाग के निकट त्रिवेणी संगम जहाँ गंगा यमुना और सरस्वती मिलती है,--वेवः तीनों वेदों में निष्णात ब्राह्मण,-शडकः अयोध्या का विख्यात सूर्य वंशी राजा, हरिश्चन्द्र का पिता (त्रिशंकु बुद्धिमान् धर्मात्मा और न्याय-परायण राजा था, परन्तु उसमें यह एक बड़ा दोष था कि वह अपने व्यक्तित्व को बहुत प्रेम करता था। उसने इसी शरीर से स्वर्ग जाने की इच्छा से यज्ञ करना चाहा, फलतः उसने अपने कूलगरु वशिष्ठ से यज्ञ कराने की प्रार्थना की, परन्तु जब उन्होंने इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो उसने उनके १०० पुत्रों से प्रार्थना की, परन्तु उन्होंने भी इसके प्रस्ताव को बेहूदा बता कर ठुकरा दिया। त्रिशंकु ने उन सबको कायर और नपुंसक कहा, और इसके बदले उन्होंने उसे 'चाण्डाल बनने' का शाप दे दिया। जब त्रिशंकू की ऐसी दुर्दशा हई तो विश्वामित्र ने जिसका परिवार एक दुर्भिक्ष के समय त्रिशंकु का आभारग्रस्त हो गया था---उसका यज्ञ सम्पन्न कराना स्वीकार कर लिया। उसने यज्ञ में देवताओं का आवाहन किया-जब देवता यज्ञ में न आये तो विश्वामित्र ने क्रुद्ध हो अपनी शक्ति से त्रिशंकु को इसी शरीर से ऊपर स्वर्ग में भेजा। त्रिशंकु ऊपर ही ऊपर उड़ता चला गया और आकाशमण्डल से जा टकराया। वहाँ इन्द्र तथा दूसरे देवताओं ने उसे सिर के बल धकेल दिया। तो भी तेजस्वी विश्वामित्र ने नीचे आते हुए त्रिशंकु को बीच ही में 'त्रिशंकु वहीं ठहरों' कह कर रोक दिया। फलतः भाग्यहीन राजा सिर के बल वहीं दक्षिणगोलार्ध में नक्षत्रपुंज के रूप में अटक गया। इसीलिए यह लोकोक्ति ('त्रिश कूरिवान्तरा तिष्ठ श०२ प्रसिद्ध हो गई) 2. चातक पक्षी 3. बिल्ली 4. टिड्डा 5. जुगण, जः हरिश्चन्द्र का विशेषण, याजिन् (पुं०) विश्वामित्र का विशेषण, -शत (वि०) तीन सौ (तम्) 1. एक सौ तीन 2. तीन सौ, -शिखम् 1. त्रिशूल 2. (त्रिशाख) किरीट या मुकुट,--शिरस् (पुं०) एक राक्षस जिसको राम ने मारा था,---शूलम् तिरसूल, अंकः धारिन् (पु०) शिव का विशेषण,---शलिन (पुं०) शिव का विशेषण, --शृङ्गः त्रिकूट नाम का पहाड़,- षष्टिः (स्त्री०) तरेसठ, सन्ध्यम, सन्ध्यी दिन के तीन काल अर्थात प्रातः, मध्याह्न और सायम्,-सन्ध्यम् (अव्य०) तीनों H For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४४२ ) संध्याओं के समय,-सप्तत वि०) तिहत्तरवा, सप्ततिः | त्रिक 2. तीन यज्ञाग्नियों का समाहार- मनु० २।२३१, तिहत्तर,-सप्तन्-सप्त (वि०व०व०) तीन बार सात रघु० १३१३७ 3. पासे को विशेष ढंग से फेंकना, तीन अर्थात् २१-साम्यस् तीनों (गणों) का साम्य, स्थली का दांव फेंकना-वेताहृतसर्वस्व... मच्छ० २८ तीन पवित्र स्थान---अर्थात् काशी, प्रयाग और गया, 4. हिन्दुओं के चार युगों में दूसरा--दे० 'युग'।। -स्रोतस् (स्त्री०) गंगा का विशेषण-त्रिस्रोतसं वहति त्रेधा (अव्य०) [त्रि+एघाच ] तिगुनेपन से, तीन प्रकार यो गगनप्रतिष्ठाम-स०७।६, रघु०१०।६३, कु०७।१६ से, तीन भागों में-तदेकं सत्त्रेधाख्यायते शत०, -सीत्य,-हल्य (वि.) (खेत आदि) तीन बार | (नमः) तुभ्यं त्रेधा स्थितात्मने-रघु० १०१६ । जोता हुआ,-हायण (वि.) तीन वर्ष का। | (म्वा० आ० त्रायते, त्रात या त्राण) रक्षा करना, प्ररत्रिंश (वि.) (स्त्री०-शी) [ त्रिशत्+डट्] 1. तीसवाँ क्षित रखना, बचाना, प्रतिरक्षा करना (प्रायः अपा० 2. तीस से जुड़ा हुआ, उदा०त्रिशं शतं-'एक सौ तीस के साथ) क्षतात्किल पायत इत्यदनः क्षत्रस्य शब्दो 3. तीस से युक्त। भुवनेषु रूढः--रघु० २१५३, भग० २१४०, मनु० ९। त्रिंशक (वि.)[त्रिंश+कन्] 1. तीस से युक्त 2. तीस के १३८, भट्टि०५।५४, १५:१२०, परि-, बचाना, परिमूल्य का या तीस में खरीदा हुआ। त्रायस्व परित्रायस्व (नाटकों में)। त्रिंशत् (स्त्री०) [त्रयोदशत: परिमाणमस्य नि० ] तीस, | कालिक (वि०) (स्त्री०--को) [त्रिकाल+ठम] तीन -पत्रम् सूर्योदय के साथ खिलने वाला कमल। कालों से (भूत, वर्तमान और भविष्यत्) सम्बद्ध । त्रिंशकम् [विशत+कन] तीस की समष्टि, तीस काकाल्यम् [त्रिकाल+ध्या] तीन काल अर्थात- भूत, वर्तसमाहार। मान तथा भविष्यत् । त्रिक (वि०) [ त्रयाणां संघ:-कन् ] 1. तिगुना तेहरा | गुणिक (वि०) त्रिगुण+6] तिगुना, तेहरा। 2. तिगड्डा बनाने वाला 3 तीन प्रतिशत,--कम गुण्यम् [त्रिगुण+व्यञ] 1. तिगुनापन, तीन धागों या 1. तिगड्डा 2. तिराहा 3. रीढ़ की हड्डी का निचला गुणों का एकत्र होने का भाव 2. तीन गुणों का समाभाग, कूल्हे के पास का भाग-त्रिके स्थूलता-पंच० हार 3. तीन गुणों (सत्त्व, रजस्, तमस्) की समष्टि १।१९०, कश्चिद्विवृत्तत्रिकभिन्नहारः . रघु० ६।१६ -गुण्योद्भवमत्र लोकचरितं नानारसं दृश्यते-मालवि० 4, कन्धे की हड्डियों के बीच का भाग 5. तीन मसाले-(त्रिफला, त्रिकटु, त्रिमद),--का रस्सी के पुरः [ त्रिपुर+अण् ] 1. त्रिपुर नाम का देश 2. उस देश आने जाने के लिए कुएं पर लगाई हुई लकड़ी की | , का निवासा या । का निवासी या शासक । गिट। त्रैमातुरः [त्रिमात+अण, उत्वम्] लक्ष्मण का विशेषण । त्रितय (वि.) (स्त्री०-यो) [त्रयोऽवयवा अस्य ---त्रि+ त्रैमासिक (वि.) (स्त्री० --की) [त्रिमास+ठन ] तयप्] तीन भागों वाला, तिगुना, तीन तह का,--यम् 1. तीन मास पुराना 2. तीन महीने तक ठहरने वाला, तिगड्डा, तीन का समूह-श्रद्धा वित्तं विधिश्चेति त्रितयं या हर तीन महीने में आने वाला 3. तिमाही। तत्समागतम्-श० ७।२९, रघु० ८७८, याज्ञ० श्रराशिकम् [त्रिराशि+ठन ] (गणित) तीन ज्ञात राशियों के द्वारा चौथी अज्ञात राशि निकालने की रीति । त्रिषा (अव्य.)[त्रि+धाच तीन प्रकार से या तीन भागों त्रैलोक्यम् [ त्रिलोकी+यन ] तीन लोकों का समाहार में, कु०७४४, भग० १८/१९ । ___ ----रघु० १०५३। त्रिस् (अव्य.) [त्रि+सुच्] तीसरी बार, तीन बार। वणिक (वि.) (स्त्री०-की) [ त्रिवर्ण+ठ ] पहले त्रुट (दिवा० तुदा० पर० त्रुटयति, त्रुटति, त्रुटित) फाड़ना, तीन वर्षों से संबंध रखने वाला। तोड़ना, टुकड़े २ करना, तड़कना, फिसल जाना विक्रम (वि०) [त्रिविक्रम+अण् ] त्रिविक्रम या विष्णु (आलंभी०) गद्गदगलल्ल्युटयद्विलीनाक्षरम् - भर्तृ० से सम्बन्ध रखने वाला ।-रघु० ७।३५ । ३८, १२९६, अयं ते बाष्पोषस्त्रुटित इव मुक्तामा विद्यम् [ त्रिविद्या+अण् ] 1. तीनों वेद 2. तीनों वेदों सरः--उत्तर. श२९।। का अध्ययन 3. तीन शास्त्र-ग्रः तीनों वेदों में निष्णात त्रुटि:,-टी (स्त्री०) [त्रुट्+इन कित्, त्रुटि+ङीष् ] | ब्राह्मण-भग० ९।२०। 1. काटना, तोड़ना, फाड़ना 2. छोटा हिस्सा, अणु विष्टपः, विष्टपेयः [ त्रिविष्टप+अण, ढक् वा ] देवत।। 3. समय का अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर, १/४ क्षण या शवः [ त्रिशकु+अण् ] त्रिशंकु के पुत्र हरिश्न्द्र का लव 4. सन्देह, अनिश्चितता 5. हानि, नाश 6. छोटी । विशेषण । इलायची (पौधा)। प्रोटकम् [श्रुट् + णिच् + ण्वुल] नाटक का एक भेद-सप्ताष्ट त्रेता [त्रीन् भदान् एति प्राप्नोति--पृषो० साधुः] 1. तिकड़ी | नवपञ्चाकं दिम्बमानुषसंश्रयम्, त्रोटकं नाम तत्प्राहुः For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४४३ ) प्रत्येकं सविदूषकम् — सा० द० ५४०, उदा० कालिदास का विक्रमोर्वशी । त्रोटिः (स्त्री० ) [ त्रुट् + इ ] चोंच, चंचु । सम० - हस्तः पक्षी । त्रोत्रम् [ + उत्र ] पशुओं को हांकने की छड़ी । त्वम् (स्वा० पर० त्वक्षति, त्वष्ट) कतरना, बक्कल उतारना, छीलना । स्वङ्कारः [ स्वम् + कृ + अण् ] निरादर सूचक 'तू' शब्द से संबोधन करना | स्वग् ( म्वा० पर० त्वङ्गति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. कूदना, सरपट दौड़ना 3. कांपना । स्वच् (स्त्री० ) [ त्वच् + क्विप् ] 1. खाल ( मनुष्य, साँप आदि की) 2. (गी, हरिण आदि का ) चमड़ा - रघु ० ३।३१ 3. छाल, वल्कल – कु० १७, रघु० २।३७, १७।१२4. ढकना, आवरण 5. स्पर्शज्ञान। सम० अङ्कुरः रोमांच होना, इन्द्रियम् स्पर्शेन्द्रिय, कण्डुरः फोड़ा, -- गन्धः सन्तरा – छेदः चमड़ी में घाव, खरोंच, रगड़, --जम् 1. रुधिर 2. बाल ( शरीर पर के), तरङ्गकः झुर्री, त्रम् कवच, त्वक्त्रं चाचकचे वरम्-- भट्टि० १४०९४, – दोषः चर्मरोग, कोढ़, पारुष्यम् चमड़ी का रूखापन, -- पुष्प: रोमांच, सारः ( त्वचि सारः) बांस, त्वक्साररन्ध्रपरिपूरणलब्धगीतिः -- शि० ४१६१, सुगंध संतरा । त्वचा [ त्वच्+टाप् ] दे० त्वच् । स्वदीय (वि० ) [ युष्मद् + छ, त्वत् आदेशः ] तेरा, तुम्हारा - रघु० ३।५० । त्वद् [ युष्मदः त्वद् आदेशः समासे ] ( मध्यम पुरुष का रूप जो कि बहुधा समास में प्रथम पद के रूप में पाया जाता है - उदा० त्वदधीन, त्वत्सादृश्यम् -- आदि । स्वद्विध (वि० ) [ तव इव विधा प्रकारो यस्य ] तेरी तरह, तुम्हारी भांति । त्वर् (भ्वा० आ० त्वरते, त्वरित) शीघ्रता करना, जल्दी करना, वेग से चलना, फुर्ती से कार्य करना -- भवान्सुहृदर्थे त्वरताम् - मालवि० २, नानुनेतुमबलाः स तत्वरे - रघु० १९/३८, - प्रेर० त्वरयति-जल्दी कराना, थ थः [ थुड् + उ ] पहाड़, धम् 1. रक्षा, प्ररक्षा 2. त्रास, भय 3. मांगलिकता | बुड़ ( तुदा० पर० - धुडति ) 1. ढकना, पर्दा डालना 2. छिपाना गुप्त रखना । बुडनम् [ थुड् + ल्युट् ] ढकना, लपेटना । पुस्कारः [ थुत् +कृ+अण्] 'थुत्' ध्वनि जो थूकने की Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीघ्रता कराना, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना । स्वरा, स्वरि: ( स्त्री० ) [ त्वर् + अ + टाप्, त्वर् +इन् ] शीघ्रता, क्षिप्रता, वेग - औत्सुक्येन कृतत्वरा सहभुवा व्यावर्तमाना हिया - रत्ना० १।२ । त्वरित ( वि० ) [ त्वर् +क्त] शीघ्रगामी, फुर्तीला, वेगवान्, -तम् शीघ्रता करना, जल्दी करना ( अव्य०) जल्दी से, तेजी से, वेग से, शीघ्रता से । स्व (पुं० ) [ त्वक्ष् + तृच् ] 1. बढ़ई, निर्माता, कारीगर 2. देवताओं का शिल्पी विश्वकर्मा [ पौराणिक कथा के अनुसार त्वष्द् अग्निदेवता माना जाता है, उसके त्रिशिरा नाम का पुत्र तथा संज्ञा नाम की पुत्री थी । संज्ञा का विवाह सूर्य के साथ हो गया परन्तु संज्ञा अपने पति के दारुण तेज को सहन न कर सकी, फलतः त्वष्टा ने सूर्य को खराद पर रख कर उसके प्रभा-मंडल को सावधानी से काट-छांट कर परिष्कृत कर दिया (तु० रवु० ६।३२ -- आरोप्य चक्रभ्रमिमुष्णतेजास्त्वष्ट्रेव यत्नोल्लिखितो विभाति उस बची हुई कतरन से विष्णु का चक्र तथा शिव जी का त्रिशूल एवं देवताओं के अन्य शस्त्र बनाये गये ) । त्वादृश्, त्वादृश (स्त्री० शी ) [ त्वमिव दृश्यते युष्मद् + दृश् + क्विन्, कञ् वा, स्त्रियां ङीप् ] तुझ सरीखा, तेरी तरह का - मेघ० ६९ । त्विष (भ्वा० उभ० त्वेषति - ते ) चमकना, जगमगाना, दमकना, दहकना । विष् (स्त्री० ) [ त्विष् + क्विप् ] 1. प्रकाश, प्रभा, दीप्ति, चमक-दमक चयस्त्विषामित्यवधारितं पुरा - शि० १।३, ९।१३, रघु० ४/७५ रत्ना० १।१८ 2. सौन्दर्य 3. अधिकार, भार 4 अभिलाष, इच्छा 5. प्रथा, प्रचलन 6. हिंसा 7. वक्तृता । सम० - ईशः ( त्विषां पतिः ) सूर्य त्विषि: [ त्विष् +इन् ] प्रकाश की किरण । त्सरुः [ त्सर् + उ ] 1. रेंगने वाला जानवर 2. तलवार या किसी अन्य हथियार की मूठ – सुप्रग्रहविमलकलधौतसहणा खड्गेन - - - वेणो० ३, त्सरुप्रदेशादपवर्जिताङ्गः - कि० १७/५८, रघु० १८।४८ । क्रिया करते समय होती है । थुर्व (भ्वा० पर० थूर्वति) चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना। थूत्कारः, थूत्कृतम् [ थूत् + कृ + अण्, क्त वा ] 'थूत्' की ध्वनि जो थूकने की क्रिया करते समय होती है । येथे (अव्य० ) किसी संगीत वाद्य यंत्र की अनुकरणात्मक ध्वनि । For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४४४ ) द द (वि० ) [ दै- दो या दा + क] ( प्रायः समासान्त प्रयोग ) देने वाला, स्वीकार करने वाला, उत्पादन करने वाला, पैदा करने वाला, कांट कर फेंकने वाला, नष्ट करने वाला, दूर करने वाला यथा धनद, अन्नद, गरद, तोयद, अनलद आदि, द: 1. उपहार, दान 2. पहाड़, - दम् पत्नी, वा 1. गर्मी 2. पश्चात्ताप । वंश ( म्वा० पर० - दशति, दष्ट- इच्छा० दिदङक्षति ) काटना, डंक मारना - भट्टि० १५/४, १६ १९, मृणालिका अदशत्- का० ३२, खा लिया, कुतर लिया, उप, चटनी, अचार आदि खाना-- मूलकेनोपदश्य भुङ्क्ते - सिद्धा०, सम् 1. काटना, डंक मारना संदष्टाधरपल्लवा - अमरु ३२ 2. चिपटना, संलग्न रहना, या चिपके रहना उरसा संदष्ट सर्पत्वचा -- श० ७:११, ३।१८, संदष्टवस्त्रेष्वबलानितम्बेषु रघु० १६/६५, ४८ । देश: [ श् + घञ् ] 1. काटना, डंक मारना मुग्धे विधेहि मयि निर्दय दन्तदंशम् - गीत० १० 2. साँप का डंक 3. काटना, काटा हुआ स्थान- छेदो दंशस्य दाहो वा -मालवि० ४।४ 4. काटना, फाड़ना 5. डांस, एक प्रकार की बड़ी मक्खी रघु० २५, मनु० १४०, याज्ञ० ३१२१५ 6 त्रुटि, दोष, कमी (मणि आदि की ) 7. दाँत 8. तीखापन 9. कवच 10 जोड़, अंग । सम० --भीरुः भैंसा 1 दंशकः [ दंश् + ण्वुल् ] 1. कुत्ता 2. बड़ी मक्खी 3. मक्खी । दंशनम् [ श् + ल्युट् ] 1. काटने या डंक मारने की क्रिया -- उदा० दष्टाश्च दशनैः कान्तं दासीकुर्वन्ति योषितः - सा० द० 2. कवच, जिरहबख्तर - शि० १७/२१ । दंशित (वि० ) [ दंशु + क्त] 1. काटा हुआ 2. धृतकवच, कवच से सुसज्जित । दंशिन् (पुं० ) [ दंश् + णिनि ] दे० 'देशक' । दंशी [वंश + ङीष् ] छोटा डांस या वनमाखी । दंष्ट्रा [ दंश् + ष्ट्रन्+टाप् ] बड़ा दाँत, हाथी का दाँत, विषैला दांत, प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्राङ्कुरात् -- भर्तृ० २४, रघु० २२४६, दंष्ट्राभंग मृगाणामधिपतय इव व्यक्तमानावलेपा, नाज्ञाभङ्ग सहन्ते नृवर नृपतयस्त्वादृशाः सार्वभौमाः मुद्रा० ३।२२ । सम० अस्त्रः, आयुधः जंगली सूअर, कराल ( वि० ) भयंकर दाँतों वाला, विषः एक प्रकार का साँप । इंष्ट्राल (वि० ) [ दंष्ट्रा + ल ] बड़े बड़े दाँतों वाला । दंष्ट्रिन् (पुं० ) [ दंष्ट्रा + इनि ] 1. जंगली सूअर 2. साँप 3. लकड़बग्घा । दक्ष (वि० ) [ दक्षू --अच् ] योग्य, सक्षम, विशेषज्ञ, चतुर, कुशल, - नाट्ये च दक्षा वयम् - रत्ना० १।६, मेरी स्थि दोवरि दोहदक्षे - कु० १२, रघु० १२ ११2. उचित Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपयुक्त 3. तैयार, खबरदार, सावधान, उद्यत - याज्ञ० १।७६ 4. खरा ईमानदार, -क्षः 1. विख्यात प्रजापति का नाम [ दक्ष प्रजापति ब्रह्मा के उन दस पुत्रों में से एक था जो उसके दाहिने अंगूठे से पैदा हुआ था । मानव समाज के पितृपरक कुलों का वह प्रधान था, कहते हैं उसके बहु सी कन्याएँ थीं, जिनमें से २७ तो नक्षत्रों के रूप में चन्द्रमा की पत्नी थीं और १३ कश्यप की पत्नियाँ थीं। एक बार दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया, परन्तु उसमें उसने न अपनी पुत्री सती को आमन्त्रण दिया और न अपने जामाता शिव को बुलाया। फिर भी सती यज्ञ में गई, परन्तु वहाँ अपमानित होने के कारण वह जलती आग में कूद कर भस्म हो गई । जब शिव ने यह सुना तो वह बड़े उत्तेजित होकर उसके यज्ञ में गये, और यज्ञ का पूर्णतः विनाश कर दिया । कहते हैं, कि फिर भी शिव ने दक्ष ( जिसने मृग का रूप धारण कर लिया था) का पीछा किया और उसका सिर काट डाला। बाद में शिव ने उसे पुनः जिला दिया। तब से लेकर दक्ष देवताओं की प्रभुता स्वीकार करने लगा। दूसरे मतानुसार जब शिव बहुत उत्तेजित हुए तो उन्होंने अपनी जटा में से एक बाल तोड़ा और बलपूर्वक उसे ज़मीन पर पटक दिया, वहाँ से तुरन्त एक राक्षस निकला और शिव के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा । उसे दक्ष के यज्ञ में जाकर उसके यज्ञ को नष्ट करने को कहा गया- तब वह बलवान् राक्षस कुछ गणों को ( उपदेवों को ) साथ लेकर यज्ञ में गया और वहाँ उपस्थित देवों तथा पुरोहितों का काम तमाम कर दिया । एक और मतानुसार दक्ष का सिर स्वयं शिव ने काटा था ] 2. मुर्गा 3. आग 4. शिव का बैल 5. बहुत सी प्रेमिकाओं में आसक्त प्रेमी 6. शिव का विशेषण 7. मानसिक शक्ति, योग्यता, धारिता । सम० — अध्वरध्वंसकः - क्रतुध्वंसिन् (पुं०) शिव के विशेषण, कन्या, जा, तनया 1. दुर्गा का विशेषण 2. अश्विनी आदि नक्षत्र, - सुतः देवता । दक्षाय्यः [ दक्ष + आय्य ] 1. गिद्ध 2. गरुड़ का विशेषण । दक्षिण (वि० ) [ दक्ष + इनन् ] 1. योग्य, कुशल, निपुण, सक्षम, चतुर 2. दायाँ, दाहिना ( विप० बायाँ) 3. दक्षिण पार्श्व में स्थित 4- दक्षिण, दक्षिणी जैसा कि दक्षिणवायु दक्षिणदिक् में 5. दक्षिण में स्थित 6. निष्कपट, खरा ईमानदार, निष्पक्ष 7 सुहावना सुखकर, रुचिकर 8. शिष्ट, नागर 9. आज्ञानुवर्ती, वशवर्ती 10 पराश्रित, णः 1. दायाँ हाथ या बाजू 2. शिष्ट व्यक्ति, एसा प्रेमी (क) जिसका मन अन्य नायिका द्वारा हर लिया गया है परन्तु फिर भी For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह केवल एक ही प्रेयसी में अनुरक्त है 3. शिव या या सम्ब० के साथ)-दक्षिणेन वृक्षवाटिकामालाप इव विष्णु का विशेषण । सम०-- अग्निः दक्षिण की ओर . श्रयते-- श० १, दक्षिणेन ग्रामस्य । स्थापित अग्नि, इसको 'अन्वाहार्यपचन' भी कहते दग्ध (भू० क० कृ०) [दह +क्त] 1. जला हुआ, आग में है,..अन (वि०) दक्षिण की ओर संकेत करता हुआ, भस्म हुआ 2. (आलं०) शोकसंतप्त, सताया हुआ, -~-अचल: दक्षिणी पहाड़ अर्थात् मलयपर्वत,-अभिमुख दुःखी 3. दुभिक्षग्रस्त 4. अशुभ 5. शुष्क, नीरस, स्वाद(वि०) दक्षिण की ओर मुंह किये हुए, दक्षिणोन्मुख, हीन 6. दुर्वत्त, अभिशप्त, दुष्ट ('दुर्वचन' सूचक शब्द, ---अयनम् भूमध्य रेखा से दक्षिण की ओर सूर्य की समास का प्रथम पद)- नाद्यापि में दग्धदेहः पतति प्रगति, वह आधावर्ष जब कि सूर्य उत्तर से दक्षिण की - उत्तर० ४, अस्य दग्धोदरस्यार्थे कः कुर्यात्पातकं ओर बढ़ता है, शरद् की दक्षिणी अयन सीमा,--अर्धः महत्-हि० १६८, इसी प्रकार 'दग्धजठरस्यार्थे' 1. दायाँ हाथ 2. दाहिना या दक्षिणी पार्श्व,—आचार भर्त० ३।८। (वि.) 1. ईमानदार, आचरणशील 2. पावन अनुष्ठान दग्धिका [ दग्ध+कन् + टाप, इत्वम् ] मुर्मुरे, भुने हुए के अनुसार शक्ति का उपासक, -आशा दक्षिण दिशा, चावल। पतिः यम का विशेषण, - इतर (वि०) 1. बायाँ । दध्न (वि०) (स्त्री०- नी) ऊँचाई, गहराई या पहुँच (हाथ या पैर) कु० ४।१९ 2. उत्तरी (-रा) उत्तर की भावना को प्रकट करने के लिए संज्ञा शब्दों के दिशा,-उत्तर (वि०) दक्षिण उतर की ओर मुड़ा साथ लगने वाला प्रत्यय--उरुदघ्नेन पयसोत्तीर्य-का० हआ, वृत्तम् मध्याह्न रेखा,---पश्चात् (अव्य): ३१०, कीलालव्यतिकरगुल्फदध्नपङ्कः (मार्गः)-मा० दक्षिण पश्चिम की ओर,--पश्चिम (वि.) दक्षिण ३११७, ५।१४, याज्ञ० २।१०८।। पश्चिमी, (-मा) दक्षिण पश्चिम दिशा,-पूर्व, ----प्राच दण्ड (चरा० उभ० दण्डयति-ते, दण्डित) सजा देना, (वि०) दक्षिण पूर्वी,-पूर्वा,--प्राची दक्षिण पूर्व दिशा, जुर्माना करना, मरम्मत करना, (१६ द्विकर्मक धातुओं -समुद्रः दक्षिणी सागर,-स्थः सारथि। में से एक धातु) तान् सहस्रं च दडण्येत् .....मनु० दक्षिणतः (अव्य०) [दक्षिण+तसिल | 1. दाईं ओर से या ९।२३४, ८।१२३, याज्ञ० २।२६९, स्थित्यं दण्डयतो दक्षिण दिशा से 2. दाई ओर को 3. दक्षिण दिशा की दण्डधान्-~रधु० १।२५। ओर (सम्बं० के साथ)। दण्डः --- डम् [ दण्ड + अच् ] 1. यष्टिका, डंडा, छड़ी, गदा, दक्षिणा (अव्य०) [दक्षिण+आच ] 1. दाईं ओर, दक्षिण मुद्गर, सोटा--पततु शिरस्यकाण्ड यमदण्ड इवैष भुजः की ओर 2. दक्षिण दिशा में (अपा० के साथ) [दक्षिण -मा० ५।३१, काष्ठदण्ड: 2. राजचिह्न, राजसत्ता +टाप्]-णा 1. (यज्ञादिक धार्मिक कृत्यों की पूर्णा का प्रतीकरूप दण्ड---आत्तदण्ड-श० ५।८ 3. उपहुति पर) ब्राह्मणों को उपहार 2. दक्षिणा (जो प्रजा नयन संस्कार के समय द्विज को दिया गया डण्डा-तु० पति को पुत्री तथा मूर्तरूप यज्ञ को पत्नी समझी जाती मनु० २।४५-४७ 4. संन्यासी का डण्डा 5. हाथी की है-पत्नी सुदक्षिणेत्यासीदध्वरस्येव दक्षिणा-रघु० १। संड 6. (कमल आदि का) डंठल या वन्त (छतरी ३१ 3. भेंट, उपहार, दान, शुल्क, पारिश्रमिक-प्राण आदि की) मूठ-ब्रह्माण्डच्छत्रदण्ड: दश०१ (आरंभिक दक्षिणा, गुरुदक्षिणा आदि 4. अच्छी दुधार गाय, बहु श्लोक); राज्यं स्वहस्तधृतदंडमिवातपत्रम्-श०५।६, प्रसवी गाय 5. दक्षिण दिशा 6. दक्षिण देश अर्थात कु०७८९, इसी प्रकार 'कमल दंड, आदि 7. पतवार, दक्षिणभारत । सम० ---अर्ह (वि०) उपहार प्राप्त करने डांड 8. रई का डंडा 9. जुर्माना-मनु० ८।३४१, के योग्य या अधिकारी,-आवर्त (वि०) 1. दाईं ओर ९।२२९, याज्ञ० २।२३७ 10. ताडन, शारीरिक दण्ड, मुड़ा हुआ 2. दक्षिण की ओर मुड़ा हुआ, काल: सामान्य दण्ड-यथापराधदण्डानाम्-रघु० ११६, एवं दक्षिणा प्राप्त करने का समय,--पयः भारत का राजापथ्यकारिषु तीक्ष्णदण्डो राजा--मद्रा० १, दण्ड दक्षिणी प्रदेश --अस्ति दक्षिणापथे विदर्भेषु पमपुरं नाम दण्डचेषु पातयेत्-मनु० ८।१२६, कृतदण्डः स्वयं राज्ञा नगरम्-मा० १,-प्रवण (वि०) दक्षिणोन्मुख । लेभे शूद्रः सतां गतिम् -- रघु० १५।५३ 11. कैद दक्षिणाहि (अव्य०) [दक्षिण+आहि ] 1. दूर दाईं ओर 12. आक्रमण, हमला, हिंसा, दण्ड--वर्णित चार उपायों 2. दूर दक्षिण में, के दक्षिण की ओर (अपा० के साथ) में से अन्तिम-दे० 'उपाय' मनु० ७।१०९, शि० दक्षिणाहि ग्रामात्---सिद्ध०। २०५४ 13. सेना--तस्य दण्डवतो दण्डः स्वदेहान्न व्यदक्षिणीय, दक्षिण्य (वि.) [ दक्षिणामहति-दक्षिणा-छ, शिष्यत-रघु०१७।६२, मनु० ७१६५, ९।२९४, कि० यत् वा ] यज्ञीय उपहार को ग्रहण करने के योग्य या २।१२ 14. सैन्यव्यवस्था का एक रूप, व्यूह 15. वशीअधिकारी जैसा कि ब्राह्मण । करण, नियंत्रण, प्रतिबन्ध-वाग्दण्डोऽथ मनोदण्ड: दक्षिणेन (अध्य.) [दक्षिण एनप्] की दाईं ओर (कर्म । कायदण्डस्तथैव च, यस्यते निहिता बुद्धौ त्रिदण्डीति स हुति पर) ब्राह्मण मूर्तरूप यज्ञ का दक्षिणा-रघु For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्यते-मनु० १२।१० 16. चार हाथ के परिमाण एक प्रकार की व्यूह-रचना जिसमें सैनिक पास २ का नाप 17. लिंग 18. धमंड 19. शरीर 20. यम का कतारों में खड़े किये जाते है,---शास्त्रम् दण्ड निर्णय विशेषण 21. विष्णु का नाम 22. शिव का नाम का शास्त्र, दण्डविधान, -हस्तः 1. द्वारपाल, पहरेदार, 23. सूर्य का सेवक 24. घोड़ा (अन्तिम पाँच अर्थों में संतरी 2. यम का विशेषण।। 'ल्लिग' है)। सम०-अजिनम् 1. (भक्ति के बाह्य- | दण्डकः [ दण्ड कन् ] 1. छड़ी, डण्डा आदि 2. पङ्क्ति , सूचक) डण्डा और मृगछाला 2. (आलं.) पाखण्ड, कतार 3. एक छंद-दे० परिशिष्ट, --कः,-का, छल, -- अधिपः मुख्य दण्डाधिकरण,--अनीकम् सेना --कम दक्षिण में एक विख्यात प्रदेश जो नर्मदा और की एक टुकड़ी,-तव हृतवतो दण्डानीकैविदर्भपतेः गोदावरी के बीच में स्थित है (यह एक बड़ा प्रदेश श्रियम्-मालवि० ५।२,--अपूपन्यायः 'न्याय' के अन्त- है, कहते हैं राम के समय यहाँ जङ्गल था) प्राप्तानि र्गत दे०,-अर्ह (वि०) दण्ड दिये जाने के योग्य, दण्ड दुःखान्यपि दण्डकेष्वपि--रघु० १४।२५, कि नाम का भागी,-अलसिका हैजा,--आज्ञा दण्डित करने के दण्डकेयम् .. -उत्तर० २, क्वायोध्यायाः पुनरुपगमो लिए न्यायाधीश का वाक्य,---आहता मट्ठा, छाछ, दण्डकायां वने वः --उत्तर० २०१३-१५ । -कर्मन् (नपुं०) दण्ड देना, ताडना करना, काकः बण्डनम् दण्ड + ल्युटु दण्ड देना, ताड़ना करना, जुर्माना पहाड़ी कौवा, काष्ठं लकड़ी का डण्डा या सोटा, करना। ---प्रहणम् संन्यासी का दण्ड ग्रहण करना, तीर्थयात्री | दण्डादण्डि (अव्य०) [ दण्डैश्च दण्डैश्च प्रहत्य प्रवृत्तं का डण्डा लेना, साधु हो जाना, --छदनम् बरतन रखने यद्धम् इच, द्वित्वं, पूर्वपददीर्घः ] लाठियों की लड़ाई, का कमरा,-ढक्का एक प्रकार का ढोल, ----दासः ऋण- वह मारपीट जिसमें दोनों ओर से लाठी चलती हों, परिशोध न करने के कारण बना हुआ सेवक, --देव- डण्डों की सोटों की लड़ाई। कुलम् न्यायालय, -धर, धार (वि.) 1. डण्डा रखने | दण्डारः [दण्ड+ऋ+अण् ] 1. गाड़ी 2. कुम्हार का चाक वाला, दण्डधारी 2. दण्ड देने वाला, ताडना करने ____3. बेड़ा, नाव 4. मदमस्त हाथी। वाला-उत्तर० २६१०, (-रः) 1. राजा -श्रमनुदं दण्डिकः [ दण्ड+ठन् ] दण्डधारी, छड़ीबरदार । मनुदण्डधरान्वयम् - रघु० ९।३ 2. यम 3. न्यायाधीश, दण्डिका [ दण्डिक-+टाप् ] 1. लकड़ी 2. पक्ति , कतार, सर्वोच्च दण्डाधिकरण,नायकः 1. न्यायाधीश, पुलिस श्रेणी 3. मोतियों को लड़ी, हार 4. रस्सी। का मुख्य अधिकारी, दण्डाधिकरण 2. सेना का मुखिया, | दण्डिन (पुं०) [ दण्ड---इनि ] 1. चौथे आश्रम में स्थित सेनापति, · नीतिः (स्त्री०) 1. न्याय प्रशासन, न्याय- ब्राह्मण, संन्यासी 2. द्वारपाल, ड्योढ़ीवान 3. डाँड करण 2. नागरिक तथा सैनिक प्रशासन,--पद्धति, चलाने वाला 4. जैन संन्यासी 5. यम का विशेषण राज्यशासनविधि, राज्यतंत्र ---रघु० १८१४६,---नेत 6. राजा 7. दशकूमार चरित और काव्यादर्श का रच(पुं०) राजा,-पः राजा -पांशुल: दरबान, द्वारपाल, यिता, दण्डी कवि-जाते जगति वाल्मीके कविरित्य-पाणिः यम का विशेषण,-पातः 1. डण्डे का गिरना भिघाऽभवत्, कवी इति ततो व्यासे कवयस्त्विति 2. दण्ड देना,..पातनम् दण्ड देना, ताडना करना दण्डिनि-उद्भट। --पारुष्यम् 1. संप्रहार, प्रघात 2. कठोर तथा दारुण | वत् (१०) [ सर्वनाम स्थान को छोड़ कर सर्वत्र 'दन्त' के दण्ड देना--पालः, -पालक: 1. मुख्य दण्डाधिकरण स्थान में 'दत्' आदेश विकल्प से ] दाँत । सम० 2. द्वारपाल, ड्योढ़ीवान,---पोणः मूठदार चलनी, --छवः (दच्छदः) होछ, ओष्ठ । -प्रणामः 1. शरीर को विना झकाये नमस्कार करना इत्त (भू० क० कृ०) [ दा+क्त ] 1. दिया हुआ, प्रदत्त, (डण्डे की भांति सीधे खड़े रह कर) 2. भूमि पर लेट प्रस्तुत किया हुआ 2. सोंपा हुआ, वितरित, समर्पित कर प्रणाम करना,-बालधिः हाथी,-मनः दण्डाजा पर | 3. रक्खा हुआ, फैलाया हुआ-दे० 'दा', -- तः 1. हिन्द्र अमल न करना,-भृत् (पुं०) 1. कुम्हार 2. यम का धर्मशास्त्र में वणित १२ प्रकार के पुत्रों में से एक विशेषण,-माण (न) वः 1. दण्डधारी 2. दण्डधारो ('दत्त्रिम' भी कहते हैं)-- माता पिता वा दद्यातां संन्यासी, मार्गः राजमार्ग, मुख्यमार्ग,-यात्रा 1. बरात यद्भिः पुत्रमापदि, सदर्श प्रीतिसंयक्तं स ज्ञेयो दत्तिमः का जलूस 2. युद्ध के लिए कूच, दिग्विजय के लिए सुत: 1. मनु० ९।१६८ 2. वैश्यों के नामों के साथ प्रस्थान,---यामः 1. यम का विशेषण 2. अगस्त्य मुनि लगने वालो उपाधि तु० 'गुप्त' के अन्तर्गत उद्धरण से की उपाधि 3. दिन,--वादिन,-बासिन द्वारपाल 3. अत्रि और अनसूया का पुत्र--दे० 'दत्तात्रेय' नी०, सन्तरी, पहरेदार,- वाहिन् (पुं०) पुलिस अधिकारी, ----तम् उपहार, दान । सम०-अनपकर्मन्--अप्रदा -विधिः 1. दण्ड देने का नियम 2. दण्डविधान, निकम् दी हुई वस्नु को न देना, या दान की हुई वस्तु -विष्कम्भः मथानी की रस्सी बांधने का खंभा,व्यहः को वापिस लेना, हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित १८ स्वाधि यामः बार पुलिडविधा For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - ( ४४७ ) कारों में से एक, अवधान ( वि०) सावधान, आत्रेयः एक ऋषि अत्रि और अनसूया का पुत्र, जो ब्रह्मा विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है, आवर ( वि० ) 1. आदर प्रदर्शित करने वाला, सम्मानपूर्ण 2. सन्मान प्राप्त शुल्का दुलहिन जिसको दहेज दिया गया है 1 - - - हस्त (वि०) जिसने दूसरे की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया है, हाथ का सहारा पाये हुए शम्भुना दत्तहस्ता - मेघ० ६०, शम्भु की भुजा पर टेक लगाये हुए-स कामरूपेश्वरदत्तहस्तः- रघु० ७ १७, (आलं) साहाय्यवान्, समर्थित, साहाय्यित, सहायता-प्राप्त-- देवेनेत्थं दत्तहस्तावलम्बे - रत्ना० ११८, वात्या खेदं कृशाङ्ग्याः सुचिरमवयवैर्दत्तहस्ता करोति - वेणी० २।२१ । दत्तकः [ दत्त + कन् ] गोद लिया हुआ पुत्र याज्ञ० २। १३०, दे० 'दत्त' ऊपर । दद् (स्वा० आ० ददते) देना, प्रदान करना । बद ( वि० ) [ दा० + श ] देने वाला, प्रदान करने वाला । वदनम् [ दद् + ल्युट ] उपहार, दान । दष् (भ्वा० आ० दधते ) 1. पकड़ना 2. धारण करना, पास रखना 3. उपहार देना । दधि ( नपुं० ) [ दध् + इन्] 1 जमा हुआ दूध, दही, क्षीरं भावेन परिणमते - शारी० दध्योदनः आदि 2. तारपीन 3. वस्त्र । सम० अन्नम्, ओवनम् दही मिला हुआ भात, - - ' उत्तरम्, उत्तरकम्, गम्- दही की मलाई, तोड़, उब:, - उदकः जमे हुए दूध का सागर, - कूचिका जमे हुए और उबले हुए दूध का मिश्रण, -- चारः रई -जम् ताजा मक्खन, - फल: कैथ, - मण्डः, वारि (नपुं०) दही का तोड़-मन्थनम् दही का मथना, -- शोणः बन्दर, सक्तु ( पुं० ब० व० ) दही मिला हुआ सत्तू, सारः, स्नेहः ताजा मक्खन, स्वेदः after दही । [ दधि + स्था + क पृषो० ] कैथ, कपित्थ । atta: ( jo) me faख्यात ऋषि, जिसने अपने शरीर की देवताओं को दे दी थीं और स्वयं मरने के लिए उद्यत हो गया था। इन हड्डियों से देवताओं के शिल्पी ने एक वज्र बनाया और इन्द्र ने इसी वस्त्र के द्वारा वृत्र तथा अन्यान्य राक्षसों को परास्त किया । सम० अस्थि ( नपुं० ) 1. इन्द्र का वज्र 2. हीरा । नुः (स्त्री०) दक्ष की एक कन्या जो कश्यप को व्याही गई थी। यही दानवों की माता थी। सम० – जः, पुत्रः, - संभव:, सूनुः, एक राक्षस, अरिः - द्विष् (पुं०) देवता । दन्तः [ दम् + तन् ] 1. दांत, हाथी का दांत, विषदंत ( साँप या अन्य विषैले जन्तुओं का ), वदसि यदि किंचिदपि दन्तरुचिकौमुदी हरति दरतिमिरमतिघोरम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गीत० १०, सर्पदंत, वराह आदि 2. हाथी का दांत, गजदंत पांचालिका मा० १०१५ 3. बाण की नोक 4. पर्वत की चोटी 5. लताकुंज, पर्णशाला । सम - अग्रम् दांत की नोक, अन्तरं दांतों के बीच का स्थान, -- उब: दातों का निकलना, -उलूखलिकः खलिन् (पुं०) जो अपने दांतों को ऊखल की भांति प्रयुक्त करते हैं, (खाने वाले धान्य को अपने दांतों के बीच में रखकर पीसने वाले), एक प्रकार के साधु संन्यासी, तु० मनु० ६ । १७, कर्षणः नींबू का वृक्ष - कार: हाथीदांत का काम करने वाला कलाकार, काष्ठम् दतौन-कूरः लड़ाई, ग्राहिन् (वि०) दाँतों को क्षति पहुँचाने वाला, दाँतों को खराब करने वाला, -घर्षः दाँतों का किचकिचाना, दाँत पोसना, चाल: दाँतों का ढीलापन, - छदः होठ, -- वारंवारमुदारशीत्कृतकृतो दन्तच्छदान् पीडयन् - भर्तृ० १४३, ऋतु० ४११२, जात (वि०) ( वह बच्चा ) जिसके दाँत निकल आये हों, दाँत निकलने का समय, जाहम् दाँत की जड़, धावनम् 1. दाँतों को धोना, साफ करना 2. दतौन ( - नः ) खैर का वृक्ष, मौलसिरी का पेड़, पत्रम् एक प्रकार का कर्णाभूषण-रघु० ६।१७, कु० ७/२३, ( प्रायः कादम्बरी में प्रयुक्त), पत्रकम् 1. कान का आभूषण 2. कुन्द फूल, पत्रिका 1. कान का आभूषण शि० १६० 2. कुन्द, पवनम् 1. दतौन 2. दाँतों का धोना साफ करना, पास: दाँतों का गिरना, पाली 1. दाँत की नोक 2. मसूड़ा, पुष्पम् 1. कुन्द फूल 2. कतक फल, निर्मली, - प्रक्षालनम् दाँतों का धोना, - भाग: हाथी के सिर का अगला भाग (जहाँ दांत बाहर निकले होते हैं), मलम् दाँतों का मैल, मांस, -- मूलम् - वल्कम् मसूड़ा, मूलीया: ( ब० व०) दन्त्य वर्ण अर्थात् लृ त् थ् द् ध् न् ल् और स्, -- रोगः दाँत की पीड़ा, वस्त्रम् - वासः (नपुं०) होठ - तुलां यदारोहति दन्तवाससा - कु० ५/३४, शि० १० ८६, वीज, - बीज:, - - वीजक:, - बीजक: अनार का पेड़, वीणा 1. एक प्रकार का बाजा, सारंगी 2 दाँत कटकटाना -- दन्तवीणां वादयन् - पंच० १ - बंदर्भ: बाह्यक्षति के द्वारा दाँतों का टूटना, व्यसनम् दाँत का टूटना - शठ (वि०) खट्टा, चरपरा ( - ठः) नींबू का पेड़, -शर्करा दाँतों के ऊपर मेल की पपड़ी, शाण: दाँतों पर लगाने का दन्तमंजन, दन्तशोधन मिस्सी, शूल, लम् दाँत की पीड़ा, – शोधनि: ( स्त्री०) दांत कुरेलनी,- शोफ: मसूड़ों की सूजन, संघर्ष: दाँतों का रगड़ना, - हर्षः दाँतों में (ठंडा पानी) लगना, – हर्षक: नींबू का पेड़ । वन्तकः [ दन्त + कन् ] 1. चोटी, शिखर 2. खूंटी, पलहण्डी । वन्तावन्ति ( अव्य० ) [ दन्तैश्च दन्तश्च प्रहृत्य प्रवृत्तं युद्धम् For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४४८ ) समासान्तः इच्, पूर्वपददीर्घः] ऐसी लड़ाई जिसमें एक हमयः,-युः [ दम् +अथच्, अथुच् वा ] 1. अपनी उग्र दूसरे को दाँतों से काटा जाय । वृत्तियों को रोकना, या वश में करना आत्मनियन्त्रण दन्तावलः, वन्तिम् (पुं०) [अतिशायिती दन्तो यस्य-दन्त 2. दण्ड। +वलच्, दीर्घः, दन्त-+इनि] हाथी,--भामि० १६०, दमन (वि०) (स्त्री०-नी) [दम् + ल्युट्] 1. पालने वाला, तृणैर्गुणत्वमापन्नध्यन्ते मत्तदन्तिनः--हि. ११३५, दबाने वाला, वश में करने वाला, जोतने वाला हराने रघु० १७१, कु० १६।२। बाला-जामदग्न्यस्य दमने नव निर्वक्तुमर्हसि-उत्तर० दन्तुर (वि.) [दन्त+उरच बड़े २ या आग निकले हुए ५।३२, भर्तृ० ३८९ इसी प्रकार 'सर्वदमन' 'अरि दांतों वाला-शूकरे निहते चैव दन्तुरो जायते नरः दमन' 2. शान्त, निरावेश, नम् 1. पालना, वश में -तारा०, शि०६।५४ 2. दाँतेदार, दन्तुरित, दरार- करना, दबाना, नियन्त्रित करना 2. दण्ड देना, ताड़ना दार, दंदानेदार, उन्नतावनत, विषम (आलं.) अखर्व- करना-दुर्दान्तानां दमनविधयः क्षत्रियेष्वायतन्ते गर्वस्मितदन्तुरेण-विक्रमांक० १५० 3. उमिल ----महावी० ३।३४ 3. आत्मसंयम । 4. उठना (बालों का) खड़ा होना । सम०-छदः नींबू दमयन्ती दमयति नाशयति अमङ्गलादिकम् ---दम्+णिच् का पेड़। +शत-डीष] विदर्भ के राजा भीम की पुत्री (इसका दन्तुरित (वि.) [दन्तुर+इतच] बड़े या आगे निकले हुए नाम 'दमयन्ती' इस लिए पड़ा था-कि इसने अपने दांतों वाला 2. दांतेदार, उन्नतावनत, खड़े रोंगटों अनुपम सौन्दर्य से सभी सुन्दर महिलाओं का दर्प चूर वाला-केतकिदन्तुरिताशे-गीत० १, पुलकभर ११, चूर कर दिया था-०२।१८ - भुवनत्रयसुभ्रुवामसी का० २८६ । दमयन्ती कमनीयतामदम्, उदियाय यतस्तनुश्रिया दमदन्त्य (वि.) [दन्त यत् दाँतों से सम्बद्ध,-त्यः (अर्थात् यन्तीति ततोऽभिधां दधी। एक स्वर्णहंस ने पहले वर्णः) दन्तस्थानीय वर्ण, दे० 'दन्तमूलीय' ऊपर ।। दमयन्ती के सामने नल के गण और सौन्दर्य की प्रशंसा बन्दशः (पुं०) दाँत । की फिर उसी के द्वारा दमयन्ती ने अपने प्रेम का बन्दशक (वि.) [दंश-+-यङ+ ऊक ] 1. काटने वाला, समाचार उसको भिजवाया। उसके पश्चात् स्वयम्वर विषैला 2. उत्पाती,--क: 1. साँप, सर्प 2. रेंगने वाला में दमयन्ती ने नल को उन बहत से प्रतियोगियों में से, जन्तु 3. राक्षस-इषुमति रघुसिंहे दन्दशकाजिघांसी जिनमें कि इन्द्र, अग्नि, यम और वरुण यह चारों देव -भट्टि० १।२६ । भी स्वयं उपस्थित थे, पति के रूप में चुन लिया और बम, बम्भ i (म्वा० स्वा० पर० दभति, दम्नोति दब्ध फिर दोनों प्रसन्नता पूर्वक अपना दाम्पत्य जीवन बिताने ---इच्छा० धिप्सति, धीप्सति, दिदम्भिषति) 1. क्षति लगे। परन्तु उनका यह सुखमय जीवन अधिक देर पहँचाना, चोट पहुँचाना 2. धोखा देना, ठगना 3. जाना, तक नहीं रहना था। नल के सौभाग्य से ईर्ष्या करने ii (चुरा० उभ० दम्भयति-ते) ठेलना, उकसाना, | वाला कलि, नल के शरीर में प्रविष्ट हो गया और ढकेलना। उसने नल को अपने भाई पुष्कर के साथ जुआ खेलने भ्र (वि.) [दम्भ+-रक] थोड़ा, स्वल्प,--अदभ्रदर्भामधि- के लिए उकसाया। खेल की गर्मी में ही मूढ़ राजा शय्य स स्थलीम् --कि० ११३८, दे० अदभ्र,-भ्रः समुद्र, ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया और स्वयं तथा -भ्रम् (अव्य०) थोड़ा, जरा, किसी अंश तक। पली को छोड़ सब कुछ हार गया। फलतः नल बम् (दिवा० पर० --दाम्यति, दमित, दान्त-प्रेर० दमयति) और दमयन्ती को केवल एक वस्त्र पहने राजधानी से 1. पाला जाना 2. शान्त होना - मनु० ४१३५, ६८, निकाल दिया गया। दमयन्ती को बहुत से कष्ट ७।१४१ 3. पालना, वश में करना, जीतना, रोकना उठाने पड़े। परन्तु उसकी पति-भक्ति में कोई अन्तर -यमो दाम्यति राक्षसान्--भट्टि० १८२०, दमित्वा- न आया। एक दिन जब दमयन्ती पड़ी सो रही थी, प्यरिसंघातान्-९।४२, १९, १५।३७ 4. शान्त करना । हताश होकर नल उसे छोड़ कर चल दिया। तब दमः [दम्+घञ | 1. पालना, दमन करना वश में करना) दमयन्ती को विवश होकर अपने पिता के घर जाना 2. आत्मनियन्त्रण, अपनी उग्र भावनाओं को वश में पड़ा। कुछ समय के पश्चात् वह फिर अपने पति से करना, आत्मसंयम--भग० १०१४,--(निग्रहो बाह्य- मिली और फिर शेष जीवन उन्होंने निर्बाधसुख में वृत्तीनां दम'इत्यभिधीयते) 3. बुराई को ओर से मन | विताया--दे० 'नल' और 'ऋतुपर्ण) 1 को हटाना, बुरी वृत्तियों का दमन करना (कुत्सिता- दमयित (वि.) [ दम् +-णिच् + तृन् ] 1. पालने वाला, कर्मणो विप्र यच्च चिननिवारणं, स कीर्तितो दमः) । दमन करने वाला 2. दण्ड देने वाला, ताड़ना करने 4. मन की दृढ़ता 5. दण्ड, जुर्माना - मनु० ९।२८४, वाला 3. विष्णु का विशेषण । २९०, याज्ञ०२१४ 6. दलदल, कीचड़ । | दमित (वि०) [दम्+क्त] 1. पाला हुआ, शान्त, शान्त For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया हुआ 2. विजित, दमन किया हुआ, वशीभूत, | दयित (भू० क० कृ०) [ दय् + क्त ] प्रिय, चाहा हुआ, परास्त। इष्ट--भट्टि० १०९,-त: पति, प्रेमी, प्रिय व्यक्ति बमु (मू) नस् (पुं०) [दम् + उनस्, पक्षे दीर्घः] आग। । ---विक्रम०३१५, भामि० २।१८२,-ता पत्नी, प्रेयसी बम्पती [जाया च पतिश्च द्व० स० - जायाशब्दस दमादेशः ।। --दयिताजीवितालम्बनार्थी-मेघ० ४, रघु० २१३, द्विवचन पति और पत्नी, रघु० १।३५, २।७०, मनु० भामि० २११८२, कि०६।१३, दयिताजितः जोरू का ३।११६ । गुलाम, पत्नीभक्त पति । दम्भः [ दम्भ +घञ्] 1. धोखा, जालसाज़ी, दांवपेच | दर (वि.) [दृ+-अप] फाड़ने वाला, चीरने वाला 2. धार्मिक, पाखण्ड-भग० १६१४ 3. अहङ्कार, (प्राय: समासान्त में),-रः,-रम् 1. गुफा, कन्दरा, घमण्ड, आत्मश्लाघा 4. पाप, दुष्टता 5. इन्द्र का छिद्र 2. शङ्ख,-र: 1. भय, त्रास, डर,-सा दरं पूतना निन्ये हीयमाना रसादरम्-शि० १९।२३, न जातदम्भनम् [ दम्भ + ल्युट ] ठगना, धोखा देना, छल । हार्देन न विद्विषादर: कि० १३३,--रम् (अव्य०) दम्मिन् (पुं०) [दम्भ+णिनि ] पाखण्डी, धूर्त---याज्ञ० थोड़ा, जरा (समास में)--दरमीलन्नयना निरीक्षिते २१३०, भग०१३।७।। ---भामि० २०१८२, ७, दरविगलितमल्लीवल्लिचञ्चदम्भोलि: [ दम्भ +असुन-दम्भस, तस्मिन् प्रेरणे अलति त्पराग-आदि०--गीत० १, इसी प्रकार दरदलित पर्याप्नोति-अल--इन् ] इन्द्रका वज।। -विकसित-उत्तर०४, मा०३ । सम-तिमिरम् दम्य (वि०) [दम् + यत् ] 1. पालने के योग्य, सधाये भय का अन्धकार, हरति दरतिमिरमतिघोरम्-गीत. जाने के लायक 2. दण्ड दिये जाने योग्य, --म्यः 1. नया बछड़ा (जिसे प्रशिक्षण तथा अनुभव की अपेक्षा है) | दरणम् | दृ+ल्युट् ] तोड़ना, टुकड़े २ करना। -नार्हति तातः पुङ्गवधारितायां धरि दम्यं नियोजयितुम वरणिः (० स्त्री०) दरणी [द-+अनि, दरणि+डीष ] -- विक्रम० ५, गुर्वी धुरं यो भुवनस्य पित्रा धुर्यण | 1. भंवर 2. धारा 3. हिलोर । दम्यः सदृशं बिभर्ति रघु० ६७८, मुद्रा० ३।३ | दरद् (स्त्री०) [द+अदि] 1. हृदय 2. श्रास, भय 2. वह बछड़ा जिसे अभी सधाना है। 3. पहाड़ 4. चट्टान, किनारा, टीला। दय (भ्वा० आ०--दयते,दयित) दया आना, करुणा का | वरदाः (पुं०ब० ब०)[दर+दे+क] कश्मीर की सीमा को भाव होना, तरस खाना, सहानुभूति प्रदर्शित करना ___छूता हुआ एक देश,-द: भय, त्रास,-दम् सिंगरफ। (संबं० के साथ)-रामस्य दयमानोऽसावध्येति तव- | दरि-री (स्त्री०) [+इन्, दरि+ङीष् ] गुफा, लक्ष्मणः --भट्टि० ८।११९, तेषां दयसे न कस्मात कन्दरा, घाटी, दरीगृह-कु. ११०, एका भार्या -११३३, १५।६३ 2. प्यार करना, अच्छा लगना, सुन्दरी वा दरी वा - भर्तृ० ३।१२० । रुचिकर होना --दयमानाः प्रमदा:-श० ११३, भट्टि० दरिद्रा (अदा० पर०-दरिद्राति, दरिद्रित:-प्रेर० दरिद्र१०१९ 3. रक्षा करना --नगजा न गजा दयिता दयिता: यति, इच्छा दिदरिद्रासति, दिदरिद्रिषति) 1. निर्धन --भट्टि० १०१९ 4. जाना, हिलना-जुलना 5. स्वीकार होना, गरीब होना,-अधोऽधः पश्यतः कस्य महिमा करना, देना, वितरण करता, नियत करना 6. चोट नोपचीयते, उपर्यपरि पश्यन्तः सर्व एव दरिद्रति---हि. पहुँचाना। २१२, भट्टि० १८०३१ 2. कष्टग्रस्त होना, युक्तं दया [ दय् । अङ्+टाप् ] तरस, सुकूमारता, करुणा, ममैव कि वक्तुं दरिद्राति यथा हरिः-भट्टि० ५।८६ अनुकम्पा, सहानुभुति--निर्गुणेष्वपि सत्त्वेष दयां कुर्वति 3. दुबला पतला होना, - दरिद्रति वियद्रुमे कुसुमसाधवः--हि. ११६०, रघु० २।११, इसी प्रकार | कान्तयस्तारकाः विक्रमांक० १११७४ । 'भूतदया'। सम-कूटः,कचः बुद्ध के विशेषण, | दरिद्र (वि०) [दरिद्रा+क] निर्धन, गरीब, अभावग्रस्त, -वीरः (अलं० शा०) वीरतापूर्ण करुणा की भावना, दुर्दशाग्रस्त-स तु भवतु दरिद्रो यस्य तुष्णा विशाला, करुणा के फलस्वरूप उदय होने वाला वीररस-उदा० . मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्र:-भर्तृ० २१५०, जीमूतवाहन (नागानन्द में) गरुड से कहता है- -ता ग़रीबो----शङ्कनीया हि लोकेऽस्मिन्निष्प्रतापा शिरामुखैः स्यन्दत एव रक्तमद्यापि देहे मम मांसमस्ति, दरिद्रता--मच्छ० ३।२४।। तृप्ति न पश्यामि तवापि तावत् कि भक्षणात्वं विरतो दरोदरः (दरो भयं तज्जनकमुदरं यस्य 1. जुआरी 2. जूए गरुत्मन, तु० 'दयावीर' के अन्तर्गत रस में। पर लगा दाँव,--रम् 1. जुआ खेलना 2. पांसा, अक्ष, दयालु (वि.) [दय् +आलुच] कृपालु, सुकुमार, सदय, दे० 'दुरोदर।। करुणापूर्ण--यशःशरोरे भव मे दयाल:-रघु० २२५७, बदरः [द यद्+अच्] 1. पहाड़ 2. कुछ टूटा हुआ मत३२५२। वान। ५७ For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५० ) दर्वरीकः [दु+या+ईकन्] 1. मेढक 2. बादल 3. एक | दर्शक (वि०) [ दृश् +ण्वुल ] 1. देखने वाला, अनुष्ठान प्रकार का वाद्ययन्त्र,-कम एक वाद्ययन्त्र । करने वाला 2. दिखलाने वाला, बतलाने वाला-कु० बर्दुरः [द+यङ्+उरच्] 1. मेंढक-पङ्कक्लिन्नमुखाः पिवन्ति ६।५२,--कः 1. प्रदर्शन करने वाला 2. द्वारपाल, पहरे सलिलं धाराहताः दर्दुरा:-मृच्छ० ५।१४ 2. बादल दार 3. कुशल व्यक्ति, किसी कला में प्रवीण व्यक्ति । 3. बन्सरी जैसा एक वाद्ययन्त्र 4. पहाड़ 5. दक्षिण में दर्शनम् [दृश् + ल्युट्] देखना, दर्शन करना, निरीक्षण करना स्थित एक पहाड़ का नाम ('मलय' सम्मिलित)-स्त रघु० ३६४, 2. जानना, समझना, प्रत्यक्ष जानना, नाविव दिशस्तस्याः शैलौ मलयदर्दरौ-रघु० ४१५१ । . परिदर्शन करना-रघु० ८७२ 3. दृष्टि, दर्शन वर्तुः (ः) (स्त्री०) [दरिद्रा+उ नि० साधुः] दाद, एक -चिन्ताजडं दर्शनम्-श० ४५ 4. आँख 5. निरीक्षण, प्रकार का चर्मरोग। परीक्षा 6. दिखलाना, प्रदर्शन करना, प्रदर्शनी अर्पः [दुप्+घ, अच् वा] 1. घमण्ड, अहङ्कार, घृष्टता, 7. दिखलाई देना 8. भेंट करना, दर्शन करना, दर्शन अभिमान---मनु०८।२१३, भग०१६।४. 2. उतावला- -देवदर्शनम् 9. (अतः) किसी के सम्मुख जाना, पन 3. गर्व, दम्भ 4. रोष, विक्षोभ 5. गर्मी 6. कस्तुरी। श्रोता-मारीचस्ते दर्शनं वितरति श०७---राजदर्शनं सम-आध्मात (वि.) अभिमान से फूला हुआ, मे कारय-आदि 10, रंग, पहल, दर्शन-भग० ११।१०, -छिद्,-हर (वि०) घमण्ड तोड़ने वाला, नीचा रघु० ३१५७ 11. दर्शन देना (न्यायालय में) उपदिखाने वाला। स्थित होना---मनु० ८।१५८, १६०, 12. स्वप्न, वर्पकः [दृप्+णिच्+ण्वुल्] प्रम के देवता, कामदेव । ख्वाब 13. विवेक, समझ, बुद्धि 14. निर्णय, अवबोध वर्पणः दिप-णिच+ल्यट] मंह देखने का शीशा, आयना 15. धार्मिक ज्ञान 16. शास्त्र में व्याख्यात कोई नियम --लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति--छं० या सिद्धान्त 17. दर्शनशास्त्र-जैसा कि 'सर्वदर्शनसंग्रह' १०९, कु०७।२६, रघु० १०॥१०, १६॥३७,—णम् में 18. दर्पण 19. गुण, व्यवहार की खूबी 20. यज्ञ । 1. आँख 2. जलना, प्रज्वलित करना। सम०--ईप्सु (वि०) दर्शन करने का अभिलाषी,-पथ वपित, बपिन् (वि.) (स्त्री०-णी) [ दृप्+क्त, दृप्+ दृष्टि या दर्शन का परास, क्षितिज,-प्रतिभूः उपस्थित णिनि] घमण्डी, अहंकारी, अभिमानी। होने के लिए ज़मानत या जामिन ।। वर्भः [+भ] एक प्रकार का पवित्र (कुशा) घास जो दर्शनीय (वि.) [दश-अनीयर 1 1. देखन के योग्य, यज्ञानुष्ठानों के अवसर पर प्रयुक्त किया जाता है निरीक्षण के योग्य, प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करने के योग्य --श० ११७, रघु० १९।३१, मनु० २।४३, ३।२०८, 2. देखने के लिये उचित, सुहावना, मनोहर, सुन्दर ४१३६ । सम०-अड्कुरः कुश घास का नुकीला पत्ता 3. न्यायालय में उपस्थित होने के योग्य । --श० २।१२,-----अनूपः दर्भ घास से परिपूर्ण दलदली दर्शयित (पुं०) [दृश्+णिच् +तृच ] 1. दौवारिक, प्रवेभूमि,-आह्वयः मुंज घास । शक, द्वारपाल 2. मार्ग प्रदर्शक । वर्भटम [ + अटन् ] निजी कमरा, आराम करने का दर्शित (वि.) [दश+णिचक्त | 1. दिखाया गया, प्रदएकान्त कमरा। शित, प्रकटीकृत, प्रदर्शित की गई 2. देखा गया, समझ वर्वः [+] 1. एक उत्पातकारी अनिष्टकर जन्तु लिया गया 3. व्याख्यात, सिद्ध 4. प्रतीयमान । 2. राक्षस, पिशाच 3. चमचा । दल (भ्वा० पर०-दलति, दलित) 1. फट पड़ना, टुकड़ें२ दवंट: [ दर्व+अट् + अच् शक० पररूपम् ] 1. गाँव का होता, फट जाना, तरेड़ आजांना-दलति हृदयं गाढोद्वेगं पहरेदार, पुलिस अधिकारी 2. द्वारपाल । द्विधा न तु भिद्यते-उत्तर० ३।३१, अपि ग्रावा रोदिति पर्वरीकः [ दुईकन्, नि० साधुः ] 1. इन्द्र का विशेषण अपि दलति वजस्य हृदयम्-१२२८, मा० ९।१२, २०, 2. एक प्रकार का वाद्य यन्त्र 3. हवा, वायु । दलति न सा हृदि विरहभरेण...गीत०७, अमरु ३८ दविका [दर्वि+क+टाप् कड़छी, चमचा । 2. प्रसार करना, विकसित होना, (पुष्प की भांति) दी (वि०) (स्त्री०) [द+विन्, वा ङीष् ] 1. कड़छी, खिलना-दलन्नवनीलोत्पल-उत्तर० १, स्वच्छंन्दं दल चम्मच 2. साँप का फैलाया हुआ फण-शि० २०१४२ । दरविन्द ते मरन्दं विन्दन्तो विदधतु गुञ्जितं मिलिन्दाः सम-करः साँप, सर्प। -भामि० १११५, शि०६।२३, कि० १०३९,-प्रेर० द दर्शः [दृश्+घञ्] 1. दृष्टि, दृश्य, दर्शन (प्रायः समास (दा) लयति 1. फोड़ना, फाड़ना 2. काटना, बांटना, में) दुर्दर्शः, प्रियदर्शः 2. अमावस्या 3. पाक्षिक यज्ञ, टुकड़ २ करना,-उद्,-(प्रेर०) फाड़ डालना, (वि) अमावस्या के दिन होने वाला यज्ञीय कृत्य । सम० 1. तोड़ना, खण्ड-खण्ड करना, तरेड़ आ जाना-त्वदि---पः देवता, यामिनी अमावस्या की रात्रि,-विपद् | पुभिर्व्यदलिष्यदसावपि-नै० ४।८८ 2. खोदना । (पुं०) चाँद । | दलः, लम् [ दल+अच् ] 1. टुकड़ा, अंश, भाग, खण्ड For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -शि० ४।४४ 2. उपाधि 3. दो आघों में से एक । (वि.) पाँच (धः) बुद्ध का विशेषण, अवताराः (०, जैसे दाल, आधा भाग 4. म्यान, कोष 5. छोटा अंकुर ब० ब०) विष्णु के दस अवतार, दे० 'अवतार' के या कोंपल, फूल की पंखड़ी, पत्ता-..-रघु० ४।४२, श० अन्तर्गत,-अश्वः चन्द्रमा,--आननः,-आस्य: रावण ३।२१, २२ 6. शस्त्र का फलक 7. पंज, राशि, ढेर के विशेषण-रघु० १०७५,-आमयः रुद्र का विशे8. सेना की टुकड़ी, सैनिकों की टोली । सम-आढकः षण, -- ईशः दस ग्रामों का अधीक्षक, एकादशिक 1. झाग 2. मसीक्षेपी मत्स्य का भीतरी कवच 3. खाई, (वि०) जो दस रुपये देकर ग्यारह लेता है, अर्थात परिखा 4. बवंडर, आँधी 5. गेरु, कोषः कुन्दलता, जो १० प्रतिशत पर उधार देता है, कण्ठः, कम्बरः -निर्मोकः भोजपत्र का वृक्ष,-पुष्पा केवड़े का पौधा, रावण के विशेषण-सप्तलोककवीरस्य दशकण्ठकुल---सूचिः, --ची (स्त्री०) कांटा, --स्नसा पत्ते का रेशा द्विपः-उत्तर० ४।२७, अरिः, जित् (पुं०) रिपुः या नस । राम के विशेषण --रघु० ८।२९, गुण (वि.) दस बलनन् [ दलल्युट ] फट पड़ना, तोड़ना, काटना, बांटना, गुना, दस गुणा बड़ा,—ग्रामिन् (पुं०)-प: दस ग्रामों कुचलना, पीसना, टुकड़े २ करना --मत्तेभकुम्भदलने को अधीक्षक, ----ग्रीवः =दशकण्ठः,-पारमितास्वरः 'दस भुवि सन्ति शरा:--भर्तृ० ११५९ । सिद्धियों का स्वामी' बुद्ध का विशेषण,-पुरः एक बलनी (स्त्री०) दलिः (०) [दलन+डी, दल+इन् ] प्राचीन नगर का नाम, राजा रन्तिदेव की राजधानी मिट्टी का ढेला, मिट्टी का लौंदा। -मेघ०४७,-बल:,-भूमिगः बुद्ध के विशेषण,-मालिका: बलपः [दल+-कपन् ] 1. शस्त्र 2. सोना 3. शास्त्र । (ब० व०). 1. एक देश का नाम 2. इस देश के बलशः (अन्य०) [ दल+शस् ] टुकड़े-टुकड़े करके, खण्ड | निवासी या शासक,--मास्य (वि०) 1. दस महीने खण्ड करके। का 2. गर्भ में दस मास (जन्म से पूर्व का बच्चा), दलित (भू० क० कृ०) [ दल-+क्त ] 1. टूटा हुआ, चीरा -मुखः रावण का विशेषण, रिपुः राम का विशेषण हुआ, फाड़ा हुआ, फटा हुआ, टुकड़े २ हुआ 2. खुला ---रघु० १४१८७,-- रथः अयोध्या का एक प्रसिद्ध हुआ, फैलाया हुआ। राजा, अज का पुत्र, राम और उनके तीन भाइयों का दल्भः [ दल+भ] 1. पहिया 2. जालसाजी, बेईमानी पिता, (दशरथ के तीन पत्नियां थीं, कौशल्या, सुमित्रा, 3. पाप। और कैकेयी, परन्तु कई वर्षों तक उनके कोई सन्तान दवः [दु+अच् ] 1. वन, जंगल 2. जंगल की आग, दावा- न हई । वशिष्ठ ने दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के ग्नि--बितर वारिद वारि दवातूरे - सुभा० 3. आग, लिए कहा, ऋष्यशृङ्ग की सहायता से वह यज्ञ संपन्न गर्मी 4. बुखार, पीड़ा। सम०---अग्निः ,-दहनः जंगल हुआ। इस यज्ञके पूरा होने पर कौशल्या से राम को आग, दावाग्नि ----यस्य न सविधे दयिता दवदहन- का, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का तथा कैकेयी स्तुहिनदीधितिस्तस्य, यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तु- से भरत का जन्म हुआ। दशरथ को अपने सभी पुत्र हिनदीधितिस्तस्य-काव्य० ९, भामि० ११३६, मेघ बड़े प्यारे थे परन्तु राम तो उनका 'प्राण' था। ५३, शशाम वृष्टयापि विना दवाग्निः --रघु० २१४। इसके पश्चात जब कैकेयी ने मन्थरा के द्वारा उकसाये वक्युः [ दु+अथुच् ] 1. आग, गर्मी 2. पीडा, चिन्ता, जाने पर अपने दो पूर्व प्रतिज्ञात वर मांगे तो दशरथ दुःख 3. आँख की सूजन ।। ने उसके गहित प्रस्तावों से उसका मन हटाने के लिए दविष्ठ (वि०) [ दूर-- इष्ठन्, दवादेशः ] 1. अत्यंत दूर कैकेयी को धमकाया, जब वह न मानी तो खुशामद, __का, के, को। अनुनय विनय के द्वारा उसे समझाने का प्रयत्न किया। दवीयस् (वि.) [दूर + ईयमुन्, दबादेशः ] 1. अपेक्षाकृत परन्तु कैकेयी बराबर निर्दय बनी रही। फलत: दूर का 2. कहीं परे, कहीं दूर,-- विद्यावतां सकल मेव बेचारे राजा को अपने पुत्र राम को निर्वासित करने गिरां दबीयः--भामि० ११६९ ।। के लिए बाध्य होना पड़ा। और उसके पश्चात् दशक (वि.) [ दशन्+कन् ] दस से युक्त, दशगुना, .. उन्होंने इसी दुःख में अपने प्राण त्याग दिय),- रश्मि----कामजो दशको गणः- मनु०७।४७,---कम् दश का शतः सूर्य .... रघु०८।२९,---रात्रम् दस रातों (बीच के समाहार। दिनों समेत) का समय (त्रः) दस दिन तक चलने वशत्, दशतिः (स्त्री०) [दशन् । अति | दस का समाहार, वाला एक विशेष यज्ञ,--रूपभृत् (पुं०) विष्णु का दशक। विशेषण,-वक्त्रः,--बदन: दे० 'दशमुख,-वाजिन दशन (सं० वि० ब०व०) [दंश् --कनिन् ] दस,-स (पुं०) चन्द्रमा,-वाषिक (वि०) हर दश वर्ष के भूमि विश्वतो वृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्-ऋग् १०।९०, पश्चात् होने वाला या दश वर्ष तक टिकने वाला। १। सम-अबगुल (वि०) दस अडगुल लम्बा, अधं । विध ( वि० ) दस प्रकार का,--शतम् 1. एक हजार Foon For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की। 2. एक सौ दस, रश्मिः सूर्य,-शती एक हजार,-साह- 2. लैंप, दीपक,-पाकः-विपाक: 1. भाग्य की परिखम् दस हजार, हरा 1. गङ्गा का विशेषण 2. गङ्गा पक्वावस्था---भाग्य के अनुसार फल प्राप्ति 2. जीवन के सम्मान के उपलक्ष्य में ज्पेष्ठ शुक्ला दशमी को की परिवर्तित दशा। मनाया जाने वाला पर्व 3. दुर्गा के सम्मान में आश्विन दशार्णाः (ब०व०) [दश० ऋणानि दुर्गभूमयो वा यत्र शक्ल दशमी को मनाया जाने वाला पर्व (विजया ब० स०] 1. एक देश का नाम --संपत्स्यन्ते कतिपयदशमी)। दिनस्थायिहंसा दशार्णा:-मेघ० २३ 2. इस देश के बहातय (वि.) (स्त्री०-यी) [दशन ---तयम् ] दस भागों निवासी। से युक्त, दस गुना । दशिन् (वि०) (स्त्री०--नी) [ दशन् + इनि ] दश रखने बाधा (अव्य.) [दशन्+घा] 1. दस प्रकार से 2. दस वाला--(पुं०) दश ग्रामों का अधीक्षक । भागों में। दशेर (वि.) [देश-+-एरक काटनेवाला, उपद्रवी, अनिष्ट बशनः,--नम् [ दंश्+ल्युट नि० नलोपः] 1. दाँत,--मुहु- ___कर, पीडाकर--रः शरारती या विषला जंतु । महुर्दशनविखण्डितोष्टया-शि० १७।२, शिखरिदशना दशे (से) रकः [दशेर+कन् ] ऊँट का बच्चा। -मेघ० ९०, भग० १०।२७ 2. काटना,-नः पहाड़ दस्युः [ दस्+युच् ] 1. दुष्कर्मियों या राक्षसों का समूह, की चोटी,-नम् कवच । सम०-अंशु दांतों की चमक जो कि देवताओं के विद्रोही तथा मानव जाति के शत्रु -कु० ६।२५, -अङ्कः दांत से काटने का चिह्न थे और इन्द्र के द्वारा मारे गये (इस अर्थ में प्रायः काटना,-उच्छिष्टः 1. होठ 2. चुम्बन 3. आह,-छदः, वैदिक) 2. जातिबहिष्कृत, अपने कर्तव्यकर्मों से च्युत –बासस् (नपुं०) 1. होठ 2. चुम्बन,-पदम् बुड़का हो जाने के कारण जाति से बहिष्कृत-तु० मनु० भरना, दांत का चिह्न- दशनपदं भवदधरगतं मम ५।१३१, १०१४५ 3. चोर, लुटेरा, उचक्का--पात्रीजनयति चेतसि खेदम्-गीत० ८,- बीजः अनार का कृतो दस्युरिवासि येन ----श० ५।२०,रघु०९।५३, मनु० पेड़। ७।१४३ 4. दुष्ट, उत्पातशील -मा० ५।२८ 5. आतबाम (वि.) (स्त्री०मी) [ दशन्+डट्-मट् ] दशवाँ । तायी, उद्धत, अत्याचारी । बशामिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [ दशमी+इनि ] बहुत | दस्र (वि०) [दस्यति पासून दस् । रक् ] बर्बर, भीषण, पुराना। विनाशकारी, -सौ (पुं० द्वि०व०) दोनों अश्विनीबशनी (स्त्री०) 1. चान्द्र मास के पक्ष का दसवाँ दिन कुमार, देवों के वैद्य,-स्रः 1. गधा 2. अश्विनी नक्षत्र । 2. मानव जीवन की दशवी दशाब्दी 3. शताब्दी के सम०--सूः (स्त्री०) सूर्य की पत्नी और अश्विनीअन्तिम दस वर्ष । सम--स्थ, (वशमी गत) (वि०) कुमारों की माता संज्ञा । ९० वर्ष से अधिक आयु । दह (भ्वा० पर० दहति, दग्ध--इच्छा० दिधक्षति) रष्ठ (वि.) [दंश+क्त ] काटा गया, उङ्क मारा गया जलाना, झुलसाना (आलं० से पी)--दग्धु विश्वं दहनआदि । किरणोंदिता द्वादशाःि -वेणी० ३१६, ५।२०, सपदि बमा [दंश+अङ्ग नि० टाप् ] वस्त्र के छोर पर रहने वाले मदनानलो दहति मम मानसं देहि मुखकमलमघुपानम् धागे, कपड़े पर लगी गोट, झालर, मगजी,--रक्तां- -- गीत० १०, श० ३११७ 2. उड़ा देना, पूर्ण रूप से शुक पवनलोलदशं वहन्ती-मृच्छ० १२०, छिन्ना नष्ट कर देना 3. पीडा देना, सताना, कष्ट देना, दुःखी इवाम्बरपटस्य दशाः पतन्ति-५।४ 2. दीवे की बत्ती करना-इत्यमात्मकृतमप्रतिहतं चापलं दहति --श० ५, -भर्तृ० ३।१२९, कु०४।३० 3. आयु, या जीवन तत्सविषमिव शल्यं दहति माम् -- ६१८, एतत्तु मां दहति की अवस्था--दे० नी० 'दशांत' 4. जीवन की एक यद्गुहमस्मदीयं क्षीणार्थमित्यतिथयः परिवर्जयन्ति अवस्था या काल-जैसा कि वाल्य, यौवन आदि-रघु० -मच्छ० १।१२, रघु०८1८६ 4. (आयु० में) गर्म ५।४.5. काल 6. स्थिति, अवस्था, परिस्थिति-नीच- लोहे या कास्टिक तेजाब से जला देना, निस्,-- र्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण-मेघ० १०९, 1. जलाना, जलाकर समाप्त कर देना 2. सताना, विषमां हि दशां प्राप्य देवं गर्हयते नरः-हि० ४१३ दुःख देना, पीडित करना, परि-,जलाना, झुलसाना 7. मन की स्थिति या अवस्था 8. कर्मों का फल -- दिशि दिशि परिदग्या भूमयः पावकेन-ऋतु० ११२४ -भाग्य 9. ग्रहों की स्थिति (जन्म के समय) 10. मन. भग. ११३०, प्र--1. जलाना 2. पूरी तरह से अला समझ सम०-अन्तः 1. बत्ती का छोर 2. जीवन का देना 3. पीडा देना, सताना 4. कष्ट देना, चिड़ाना, अन्त-निविष्टविषयस्नेहः स दशान्तमुपेयिवान् ...रघु. सम्- जलाना-अभिजन: संदह्यतां वह्निना----भर्तृ. १२१ (यहाँ शब्द दोनों अथों में प्रयुक्त हुआ है), २३९। वनः सैप, दीपक, कर्षः 1. वस्त्र का किनारा । बहन (वि.) (स्त्री.-नी) [ दह, ल्युट् ] 1. जलाना, For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४५३ आग में जलाकर समाप्त कर देना भर्तृ० १७१ 2. विनाशकारी, क्षतिकर, नः 1. आग 2. कबूतर 3. 'तीन' की संख्या 4. बुरा आदमी 5. 'भल्लातक' का पौधा, नम् 1. जलाना, आग में जलाकर समाप्त कर देना (आलं० से भी) - रघु० ८ २० 2. गर्म लोहे या कास्टिक तेजाब से जला देना । सम० - अरातिः पानी, - उपल: सूर्यकांत मणि, उल्का, जलती हुई लकड़ी, - केतनः धूआँ, प्रिया अग्नि की पत्नी स्वाहा, सारथिः हवा | दहर (वि० ) [ दह + अर] 1. रंचमात्र, सूक्ष्म, बारीक, लघु 2. छोटा, र: 1. बच्चा, शिशु 2. जानवर का बच्चा 3. छोटा भाई 4. हृदयरन्ध्र, हृदय 5. चूहा, पूसा । दह: [द + रक् ] 1. आग 2. दावाग्नि, जंगल की आग | वा i ( वा० पर० - यच्छति, दत्त) देना, स्वीकार करना, प्रति, विनिमय करना - तिलेभ्यः प्रतियच्छति माषान् - सिद्धा०, ii ( अदा० पर० दाति) काटना, - ददाति द्रविणं भूरि दाति दारिद्र्यमथिनाम् कवि०, iii ( जुहो० उभ० - ददाति दत्ते, दत्त-परन्तु 'आ' पूर्व होने पर 'आत', उप पूर्व होने पर उपात, नि पूर्व होने पर निदत्त या नीत्त तथा प्र पूर्व होने पर प्रदत्त या प्रत्त ) 1. देना, स्वीकार करना, प्रदान करना, प्रस्तुत करना, सौंपना, समर्पित करना, भेंट देना ( प्रायः कर्म० के साथ वस्तु के पक्ष में व्यक्ति के पक्ष में संप्र०, कभी संबं० अथवा अधि० भी ) अवकाशं किलोदन्वान् रामायाभ्यर्थितो ददौ रघु० ४५८, सेचनघटैः बालपादपेभ्यः पयो दातुमित एवाभिवर्तते - श० १, मनु० ३।३१, ९।२७१, कथमस्य स्तन दास्ये हरि० 2. ( ऋण, जुर्माना आदि) देना 3. सौंपना, दे देना 4. लौटाना, वापिस करना 5. छोड़ देना, त्यागना, उत्सर्ग करना, -- प्राणान् दा प्राण दे देना, इस प्रकार आत्मानं दा प्राण त्याग देना 6. रखना रख देना, लगाना, जमाना कर्णे करं ददाति - आदि 7. विवाह में देना यस्मै दद्यात् पिता त्वेनाम् --- मनु० ५ १५१, याज्ञ० २।१४६, ३।२४४ अनुमति देना, अनुज्ञा देना ( प्राय: 'तुमुन्नन्त' के साथ) - वाष्पस्तु न ददात्येनां द्रष्टुं चित्रगतामपि श० ६।२१, (इस धातु के अर्थ उस संज्ञा के अनुसार जिससे जोड़ी जाय नाना प्रकार से अदलववल किये जा सकते हैं या फैलाये जा सकते हैं, उदा०, अग्नि (पावकं ) दा आग लगाना, अर्गलं दा कुंडी लगाना, चटखनी लगाना, अवकाश वा स्थान देना, जगह देना दे० 'अवकाश', आज्ञां (निवेश) दा आज्ञा देना, आदेश देना, आतपेदा धूप में रहना, आत्मानं खेदाय दा, अपने आपको कष्ट में फंसाना, आशिवं दा आशीर्वाद | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) देना, कर्ण वा कान देना, ध्यान से सुनना, चक्षुः (दृष्टि) वा नज़र डालना, देखना, तालं वा तालियाँ जाना, दर्शना अपने आपको दिखलाना, दूसरों की बात सुनना, निगडं दा हथकड़ी डालना, श्रृंखला में बाँधना, प्रतिवचः ( वचनं ) या प्रत्युत्तरं दा उतर देना, मनो वा किसी बात में मन लगाना, मार्गदा रास्ता देना, जाने की अनुमति देना, रास्ते से अलग हो जाना, वरं दा वर देना, वाचं वा भाषण देना, वृति दा घेरना, बाड़ लगाना, शब्वं वा शोर मचाना, शापं दा शाप देना, शोकं दा, रंज पैदा करना, श्राद्धं दा श्राद्ध का अनुष्ठान करना, संकेतं दा नियुक्ति करना, संग्रामं वा लड़ना, आदि । प्रेर० - दापयति - ते दिलवाना, स्वीकार करवाना आदि- इच्छा० दित्सति - ते देने की इच्छा करना, आ - ( आ० ) लेना, ग्रहण करना, स्वीकार करना, सहारा लेना व्यवहारासनमाददे युवा - रघु० ८/१८, १०/४०, ३।४६, प्रदक्षिणाचिर्हविरग्निराददे - ३१४१, १।४५ 2. शब्दोच्चारण करना - कि० १ ३, शि० २।१३ 3. पकड़ना, थामना कु० ७/९४4. उगाहना वसूल करना ( कर आदि ) -- अगृध्नुराददे सोऽर्थान् - रघु० १।२१, मनु० ८ ३४१ 5. ले जाना, लेना, वहन करना -- तोयमादाय गच्छे: - मेघ० २०, ४६, कुशानादाय - श० ३6. प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, समझना घ्राणेन रूपमादत्स्व रसानादत्स्व चक्षुषा आदि-महा० 7. बन्दी बनाना, क़ैद करना - उपा ( आ ) 1. ग्रहण करना, स्वीकार करना 2. अवाप्त करना, प्राप्त करना - उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी - रघु० ५ १, भूर्या पितामहोपात्ता-याज्ञ० २।१२१ 3. लेना, धारण करना, ले जाना 4. अनुभव करना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना 5. पकड़ना, आक्रमण करना, परि-, सौंपना, समर्पण करना, दे देना - छद्मना परिददामि मृत्यवे -- उत्तर० १४५, मनु० ९ ३२७, प्र- स्वीकार करना, देना, प्रस्तुत करना स्वं प्रागहं प्रादिपि नामराय किं नाम तस्मै मनसा नराय नै० ६।९५, मनु० ३।९९, १०८, २७३, याज्ञ० २।१० 2. शिक्षा देना, सिखाना, भर्तृ० ११५, प्रति अदलाबदली करना, विनिमय करना 2. लीटाना, वापिस देना - चौर० ५३ 3. बदला देना, क्षतिपूर्ति करना, व्या-, ( पर० आ० ) खोलना, तोड़ कर खोलना न व्यावदात्याननमत्रमृत्यु: - कि० १६।१६, नदी कूलं व्याददाति या व्याददते पिपीलिकाः पतङ्गस्य मुखम् - महा०, संप्र- 1. देना, स्वीकार करना, प्रदान करना, तं तेऽहं संप्रदास्यामि 2. परम्परा से प्राप्त होना - दे० संप्रदाय 3. दानपत्र लिखना, उत्तराधिकार में सौंपना । दाक्षायणी [ दक्ष + फिन + ङीप् ] 1. २७ नक्षत्रों में (जो For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि पुराणानुसार दक्ष की पुत्रियाँ मानी जाती हैं) से | दाण्डाजिनिक (वि.) (स्त्री०---की) [दण्डाजिन+ठा] कोई सा एक नक्ष 2. दिति, कश्यप की पत्नी, | (धर्म भक्ति के बाह्य चिह्न) डण्डा और मृगछाला । देवताओं की माता 3. पार्वती 4. रेवती नक्षत्र 5. कद्रु, ! लिए हुए,--. कः ठग, पाखण्डी, धर्त। नता 6. दन्ती का पौधा । सम०-पति: 1. शिव | दाण्डिक: दिण्ड+ठ ताडना देने वाला, दण्ड देने वाला। का एक विशेषण 2. चन्द्रमा,-पुत्रः देवता । दात (वि.) [ दा+क्त ] 1. बाँटा हुआ, काटा हुअ. दाक्षाय्यः [दक्ष् +अय्य+अण] गिद्ध । ! 2. धोया हुआ, पवित्रीकृत 3. काटी हुई (फसल)। बाक्षिण (वि०) (स्त्री-णी) [दक्षिणा+अण] 1. यज्ञीय | दातिः (स्त्री०) [दा--क्तिन्] 1. देना 2. काटना, नष्ट दक्षिणा से सम्बद्ध अथवा उपहार से सम्बद्ध 2. दक्षिण करना 3. वितरण ।। दिशा से सम्बन्ध रखने वाला, --णम् यज्ञीय दक्षिणाओं | दात (वि.) (स्त्री० -त्री) [दा+तच ] 1. देने वाला' का समूह या संचय । स्वीकार करने वाला, 2. उदार (१०-ता) 1. दाता बाक्षिणात्य (वि.) [दक्षिणात्यक ] दक्षिण से सम्बन्ध -कु० ६१ 2. दानी-भामि० १२६६. 3. महाजन, रखने वाला या दक्षिण में रहने वाला, दक्षिणी-अस्ति उधार देने वाला 4. अध्यापक । दाक्षिणात्ये जनपदे महिलारोप्यं नाम नगरम् --पंच. | दात्यूहः [ दाति+जह + अण् ] जलकुक्कुट-दात्यूहस्ति१,---त्यः 1. दक्षिण देश का निवासी,-आरम्भशूराः निशस्य कोटरवति स्कन्धे निलीय स्थितम्-मा० ९७ खल दाक्षिणात्याः 2. नारियल। 2. चातक पक्षी 3. बादल 4. जल-कौवा 'दात्यौह' वाक्षिणिक (वि.) (स्त्री०--को) [ दक्षि+ठक् ] यज्ञीय भी लिखा जाता है)। दाक्षिणा सम्बन्धी। बात्रम् [दा---ष्ट्रन्] काटने का एक उपकरण, एक प्रकार दाक्षिण्यम् [दक्षिण+ध्यम] 1. (क) नम्रता, शिष्टता, | को दांती या चाकू । सुजनता-तस्य दाक्षिण्यरूलेन नाम्ना मगधवंशजा-रघु० दादः [दद् +घञ] उपहार, दान । सम०-- द; दानी।। ११३१ (ख) कृपालुता—विक्रम० ११२, भर्तृ०२।२३ | बान् (भ्वा० उभ०-दानति-ते) काटना, बाँटना-इच्छा० मा० १८2. किसी प्रेमी का (अपनी प्रेमिका के | दीदांसति--ते, सीधा करना (यहाँ सन्नन्त केवल रूप प्रति) बनावटी तथा अतिशालीन शिष्टाचार - श० की दृष्टि से है अर्थ की दृष्टि से नहीं)। ६५3. दक्षिण से आने की या सम्बन्ध रखने की दानम् [दा+ल्यट] 1. देना, स्वीकार करना, अध्यापन स्थिति-स्तेहदाक्षिण्ययोर्योगात् कामीव प्रतिभाति मे 2. सौंपना, समर्पण करना 3. उपहार, दान, पुरस्कार -विक्रम० २।४, (यहाँ इस शब्द के दोनों ही अर्थ हैं --मनु० २१५८, भग० १७१२०, याज्ञ० ३१२७४ ----प्रथम तथा द्वितीय) 4. तालमेल, सामंजस्य, सहमति 4. उदारता, धर्मार्थ, धर्मार्थ पुरस्कार, दानशीलता 5. नैपुण्य, चतुराई। ---रघु० ११६९, भर्तृ० ९।४३ 5, मदमत्त हाथी के दाक्षी [दक्ष+इन+ङीष्] 1. दक्ष की पुत्री 2. पाणिनि मस्तक से चूने वाला रस, मद,-सदानतोयेन विषाणि की माता । सम०-पुत्र: पाणिनि। नाग:-शि०४।६३, कि० ५।९, विक्रम० ४।२५, पंच० बालेयः [दाक्षी+ढक] पाणिनि का मातृपक्षीय नाम । २१७५, (यहाँ शब्द का चतुर्थ अर्थ भी घटता है) वाक्यम् [दक्ष+ष्य] 1. चतुराई, कुशलता, उपयुक्तता, रघु० २१७,४१४५, ५।४३ 6. रिश्वत, घस, अपने शत्रु दक्षता, योग्यता--भग० १८।४३ 2. सचाई, अखण्डता, के ऊपर विजय प्राप्त करने के चार उपायों में से एक, ईमानदारी। दे० 'उपाय' 7. काटना, बांटना 8. पवित्रीकरण, स्वच्छ बायः [दह+धा कुत्वम्] जलाना, जलन । करना 9. रक्षा 10. आसन, अङ्गस्थिति । सम०-कुल्या बाउक: [ दल+णिच्+ण्वुल, लस्य डः ] दाँत, हाथी का हाथी की पुटपुड़ी से बहने वाले मद जल का प्रवाह, दांत। -धर्मः दान देने का धर्म, दानरूपी धर्म,--पतिः दाडि (लि) मः,-मा [दल+घ +इपम्, डलयोरभेदः] 1. अत्यन्त उदार पुरुष 2. अक्रूर, कृष्ण का एक मित्र, अनार का पेड़-पाकारुणस्फूटदाडिमकान्ति वक्त्रम् -~-पत्रम् दान-लेख, ----पात्रम् दान लेने के योग्य व्यक्ति, -मा०९।३१, अमरु १३ 2. छोटी इलायची,-मम ब्राह्मण,-प्रातिभाव्यम् ऋण परिशोध करने की जमा अनार का फल। सम०-प्रियः,-भक्षणः तोता। नत,--भिन्न (वि.) रिश्वत देकर फोड़ा हुआ,-बीरः बाडिम्ब [दा+डिम्ब बा०] अनार का पेड़ । 1. बहुत दानी व्यक्ति 2. दान शीलता के फलस्वरूप बाबा [दा+क्विप्म्दानढोक+5+टाप्] 1. बड़ा दांत, वीररस, वीरतापूर्ण दान शीलता का रस, उदा० परशदाढ़ 2. समुच्चय 3. कामना, इच्छा। राम जिसने सात द्वीपों वाली इस पृथ्वी को दान कर बाढिका [दाढ+कन्+टाप, इत्वम्] दाढ़ी,--मनु० ८।२८३, , दिया-तु० रस० में दी गई ('दानवीर' के अन्तर्गत) (कुल्लू ० श्मथू)। उक्ति कियदिदमधिकं मे यद द्विजायार्थयित्रे कवचम For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ। रमणीयं कुण्डलं चार्पयामि, अकरुणमवकृत्य द्राक्कृपा- जगह । सम.-अपवर्तनम् उत्तराधिकार में प्राप्त णेन निर्यद बहलरुधिरवारं मौलिमावेदयामि, -शील, सम्पत्ति को जब्त करना--मनु० ९१७९,-अहं (वि०) --शर,शौण्ड (वि०) अत्यन्त उदार या दानशील। पैतकसम्पति को पाने का दावेदार-आवः 1. जो पैतृक दानकम् [दान+कन् ] तुच्छ दान। सम्पत्ति के एक भाग का अधिकारी हो, उत्तराधिकारी दानवः [दनोः अपत्यम्--दन+अण] राक्षस, पिशाच -पुमान् दायादोऽदायादा स्त्री-निरु०, याज्ञ० २१११८, -त्रिदिवमुद्धतदानवकण्टकम्-श० ७१३ । सम० मनु०८।१६० 2. पुत्र 3. बन्धु, बान्धव, निकट या दूर -अरिः 1 देवता 2. विष्णु का विशेषण,---गुरुः शुक्र का सम्बन्धी 4. दावेदार या दावेदार होने का बहाना का विशेषण । करने वाला-- गवां गोषु वा दायाद:--सिद्धा०-आवा, दानवेयः [ दनु+ऊड+तुक ] =दानवः । -आदी 1. उत्तराधिकारिणी 2. पुत्री,-आद्यम् दान्त (भू० क. कृ०) [ दम्-क्ति ] 1. पालतू, वश में | 1. उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पत्ति 2. उत्तराधिकारी किया हुआ, दमन किया हुआ, नियन्त्रित, लगाम द्वारा बनने की स्थिति,-कालः पैतृक सम्पत्ति को बांटने रोका हुआ, दे० दम् 2. पालतू, मदु 3. त्यक्त 4. उदार, का समय,-बन्धुः 1. पैतृक सम्पत्ति का भागीदार ---तः 1. पालतू बैल 2. दानो 3. दमन का वृक्ष । 2. भाई, ...-भागः उत्तराधिकारियों में सम्पत्ति की बाट दान्तिः (स्त्री०) [ दम् +-क्तिन् ] आत्म संयम, वश में | (सम्पत्ति का विभाजन)। करना, आत्मनियन्त्रण । दायक (वि०) (स्त्री०-यिका) [ दा+ण्वुल , युक्] दान्तिक (वि०) [दन्त+ठ ] हाथी दांत का बना देने वाला, स्वीकार करने वाला (समास के अन्त में प्रयुक्त) उत्तर', पिण्ड आदि। दायित (वि०) [दा + णिच+क्त ] 1. दिलाया गया | दारः [द+घा] 1. दरार, रिक्ति, फटन, छिद्र 2. जुता 2. जो देने के लिए बाध्य किया गया हो, जिस पर हुआ खेत,-राः (ब०व०) पत्नी,-एते वयममी दाराः अर्थ दण्ड लगाया गया हो 3. जिसका निर्णय किया कन्येयं कुलजीवितम्-कु० ६।६३, दशरथदारानविष्ठाय गया हो 4. अधिन्यस्त, प्रदत्त ।। वशिष्ठ: प्राप्त:--उत्तर०४, पंच० १।१००, मनु० वामन् (नपुं०) [ दो-मनिन ] 1. डोरी, धागा, फीता, ११११२, २।२१७, श० ४।१६, ५।२९। सम० रस्सी, 2. फूलों का गजरा, हार-आद्य बद्धा विरह- --अधीन (वि.) भार्या पर आश्रित,-उपसंग्रहः, दिवसे या शिखा दाम हित्वा--मेघ ० ९२, कनकचम्पक- -प्रहः,--परिग्रहः,-ग्रहणम् विवाह, नवे दारपरिग्रहे दामगौरी-चौर० १, शि०४।५० 2. लकीर, धारी --उत्तर० १११९,-कर्मन् (नपुं०)--क्रिया विवाह (जैसे बिजली की)--विद्युद्दाम्ना हेमराजीव विन्ध्यम् -रघु० ५/४०। -मालवि० ३२०, मेघ० २७ 4. बड़ी पट्टी। सम | दारक (वि.) (स्त्री०-रिका) [+णिच्+ण्वुल तोड़ने .. -अञ्चलम्,-अञ्जनम् घोड़े की पिछाड़ी बांधने की वाला, फाड़न वाला, टुकड़े २ करने वाला-दारिका रस्सी- शि० ५।६१,-उदरः कृष्ण का विशेषण।। हृदयदारिका पितुः,-क: 1. लड़का, पुत्र 2. बच्चा, बामनी [ दामन+अण+डीप ] वह रस्सी जिसके सहारे | शिशु 3. जानवर का बच्चा 4. गाँव । , पशुओं के पैर बांध दिये जाते हैं। दारणम् [दु+णिच् + ल्युट ] टुकड़े २ करना, फाड़ना, दामिनी [ दामन+इनि+ङीप् ] बिजली। चीरना, खोलना, दो कर देना। बाम्पत्यम् [ दम्पती+यक् ] विवाह, स्त्री पुरुष का पति- दारदः [ दरद्+अण् ] 1. पारा 2. समुद्र,-47-चम् पत्नी सम्बन्ध। सिन्दूर। दाम्भिक (वि.) (स्त्री० -की) [दम्भ+ठक] 1. घोखे-दारिका दारक+टाप, इत्वम्] 1. पुत्री 2. वेश्या । बाज, पाखण्डी 2. घमण्डी, अभिमानी 3. आडम्बर | दारित (वि.) [द+णि+क्त] फाड़ा हुआ, विभक्त प्रिय, ढोंगी। किया हुआ, खण्ड २ किया हुआ, चीरा हुआ। बायः[दा--घश 11. उपहार, पुरस्कार, दान ....रहसि | दारिद्रघम दिरिद्र+ष्या] गरीबी, निर्धनता-दारिद्रप रमते प्रीत्या दायं ददात्यनुवर्तते-मा० ३।२, प्रीतिदायः | दोषो गुणराशिनाशी-सुभा०।। मा० ४, मालवि० ८११९९ 2. वैवाहिक उपहार (जो | दारी [दु+णिच् + इन्+ ङीष] 1. दरार 2. एक प्रकार वर या बधू को दिया जाय 3. भाग, अंश, उत्तराधि- का रोग। कार, पंतृक संपत्ति,-अनपत्यस्य पुत्रस्य माता दायमवा- | दार (वि.) [दीर्यते दु+उण] फाड़ने वाला, चीरने वाला, प्नुयात् --मनु० ९।२१७, ७७, २०३, १६४ 4. भाग, --- : 1. उदार या दानशील व्यक्ति 2. कलाकार, हिस्सा 5. सौंपना, समर्पण करना 6. बांटना, वितरण (नपुं०) (पुं० भी) 1. लकड़ी, लकड़ी का टुकड़ा, करना 7. हानि, विनाश 8. देवदुर्विपाक 9. स्थान, । शहतीर 2. गुटका 3. उत्तोलन दण्ड 4. चटखनी For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५६ ) 5. देवदारु वृक्ष 6. कच्चा लोहा 7. पीतल । सम। मछुवों का गाँव, -नन्दिनी व्यास को माता सत्यवती ..-अण्डः मोर, --आघाटः खुटबड़ई,-गर्भा काठ को का विशेषण। पुतलो,-जः एक प्रकार का ढोल, -पात्रम् कठरा, | दाशरथः,-दाशरथिः [दशरथ---अग, इन वा]-दशरथ का काठ का बर्तन, -पुत्रिका,--पुत्री लकड़ी की गुडिया, पुत्र,---रघु०१०१४४ 2. राम और उसके तीनों भाई, ---मुख्याहया, मुख्याह्वा छिपकिली,---यन्त्रम् 1. कठ- विशेषकर राम---रघु० १२।४५ । पूतलो 2. लकड़ी का यन्त्र,-बवः लकड़ी की गुड़िया, | दाशार्हाः (ब० व०) [दशाह+अण् ] दशाह के वंशज, .. सारः चन्दन, हस्तकः लकड़ी का चम्मच । यादव--शि० २।६४ । दारुकः [दारु-+कन्] 1. देवदारु का पेड़ 2. कृष्ण के सारथि | दाशेरः | दाशी+ढक् ] 1. मछुवे का बेटा 2. मछुवा का नाम-उत्कन्वरं दारुक इत्युवाच-शि०४।१८,-का| 3. ऊँट । 1. कठपुतली 2. लकड़ी की मूर्ति । दाशेरकः [ दाशेर+कन् ] मालव देश,-काः (ब० व०) दारुण (वि०)[+णिच् + उनन् ] 1. कड़ा, सख्त-उत्तर० मालव देश के निवासी या शासक, दे० 'दाशेर' भी। ३३३४ 2. कठोर, क्रूर, निर्दय, निष्ठुर,-मय्येव दासः [ दास्+अच्] 1. गुलाम, सेवक---गृहकर्मदाशाः विस्मरणदारुणचित्तवृत्तौ -श० ५।२३, पशुमारण- --भर्तृ० १११, गृह, कर्म', आदि 2. मछुवा 3. शूद्र, कर्मदारुणः-६६१, मनु० ८।२७० 3. भीषण, भयानक, चौथे वर्ण का पुरुष, तु० 'गुप्त'। सम० ----अनुदासः भयंकर---श० ६।२९ 4. घोर, प्रचण्ड, उग्र, तीव्र, --गुलाम का सेवक (अत्यंत विनम्र सेवक) (कभी अत्यन्त पीड़ाकर (शोक, पीडा आदि),-हृदयकुसुम- कभी वक्ता के द्वारा यह शब्द 'विनम्रता' का सूचक शोषी दारुणो दीर्घशोक:-उत्तर० ५ 5. बहुत तेज, समझा जाता है),-जनः सेवक या गुलाम-कमपराधलवं कर्कश (शब्द आदि) 6. नशंस, रोमाञ्चकारी,-णः मयि पश्यसि त्यजसि मानिनि दासजनं यत:-विक्रम भयानक रस,—णम् उग्रता, निर्दयता, बीभत्सता आदि । ४।२९ ( भीड़भाड़ या सामान्य जनसमूह के लिए दाढयम् [दृढ़-+ष्या] 1. कड़ापन, सख्ती, दृढ़ता 2. पुष्टि, 'दास्यकुलम्' समस्तशब्द प्रयक्त किया जाता है ) समर्थन । दासी [ दास+डोष ] 1. सेविका, नौकरानी 2. मछुवे की दार्दुरः,-रम् [दर्दुर---ण] 1. दक्षिणावर्ती (दाईं ओर खुलने पत्नी 3. शूद्र की पत्नी 4. वेश्या । सम०-पुत्रः, वाला) शंख 2. जल। -सुतः सेविका या गुलाम स्त्री का पुत्र, सभम दासियों दार्भ (वि०) (स्त्री०- ) [दर्भ+अण् ] कुश घास का का समूह, (जिस समय 'संबं० ए०व० 'दास्याः बना हुआ-दार्भ मुञ्चत्युटजपटलं वीतनिद्रो मयूरः-श० शब्द समास में प्रयुक्त होता है तो उसका शाब्दिक ४, (अने० पा०)। अर्थ नष्ट हो जाता है, उदा० दास्याः पुत्रः,-सुतः वार्य (वि०) (स्त्री०-:) [ दारु+अण् ] काठ का बना छिनाल का बेटा, (हराम का बच्चा---एक प्रकार का हुआ। अपशब्द)-दास्याः पुत्रैः शकुनिलुब्धकैः-श० २; दार्वटम् [पर्शियन शब्द --दारु+अट् + क ] मन्त्रणागृह, परन्तु 'दास्याः सदृशी' सेविका के समान । न्यायालय। दासेरः,-रकः [ दासी+डक, दासेर+कन् ] 1. दासी या दार्शनिकः [दर्शन-|-ठञ] दर्शन शास्त्रों से परिचित । । सेविका का पुत्र 2. शूद्र 3. मछुवा 4. ऊँट-शि० दार्षद (वि.) (स्त्री०-दी) [दषद+ अण ] 1. पत्थर का १२।३२, ५।६६, (इस अर्थ में 'दासेय' शब्द भी है)। बना हुआ, खनिज 2. सिल पर पिसा हुआ (सत्तू | दास्यम् [ दास+प्या ] दासता, गुलामी, सेवा, अधीनता आदि)। -पतिकुले तव दास्थमपि क्षमम् -श० ५।२७, मनु० दान्ति (वि०) (स्त्री०-जी) [दृष्टान्त---अण् ] दृष्टान्त ८४१०। देकर समझाया गया या व्याख्या किया गया, सचित्र | दाहः [दह +घञ ] 1. जलन, दावाग्नि,-दाहशक्तिमिव वर्णन का विषय अर्थात उपमेय--स्वापस्य दार्टान्ति- कृष्णवत्मनि -रघु० १२४२, छेदो दंशस्य दाहो वा कत्वेन विवक्षितं---शंकर। --मालवि० ४।४, कि० ५।१२ 2. (आकाश की दाल्मिः [दालयति असुरान्-दल+णिच् +-मि] इन्द्र । भांति) दहकती हुई लाली 3. जलन की उत्तेजना दावः [दुनाति दु+ण]दव । सम० ---ग्निः, अनल: 4. ताप, संताप। सम-अगुरु (नपुं०)काष्ठम् ---बहनः, जङ्गल की आग, दावाग्नि ... आनन्दमग- एक प्रकार का सुगन्ध, अगर, --आत्मक (वि०) जल दावाग्निः शीलशाखिमदद्विपः, ज्ञानदीपमहावायुरयं खल- उठने वाला,-ज्वरः जलन वाला बुखार,-सरः, समागमः---भामि० १।१९०, ३४ । .....सरस् (नपुं०),--स्थलम मुर्दो के जलाने का स्थान, बाशः [दशति हिनस्ति मत्स्यान् -दंश् -ट, नस्य आत्वम्] | श्मशानभूमि,-हर (वि०) गर्मी को दूर हटाने वाला मछुवा, मनु० ८५४०८,४०९, १०३४ । सम०-ग्रामः । (--रम्) उशीर पौधा, खस । For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४५७ ) दाहक ( वि० ) ( स्त्री० हिका ) [ दहू + ण्वुल् ] 1. जलाने | दिनम् [ द्युति तमः, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः ] 1. दिन वाला, सुलगाने वाला 2. आग लगाने वाला, दहनशील 3. दागने वाला, कः आग । ( विप० रात्रि) - दिनान्ते निहितं तेजः सवित्रेव हुताशन: - रघु० ४१, यामिनयन्ति दिनानि च सुखदुःखवशीकृते मनसि - काव्य० १० दिनान्ते निलयाय गन्तुम्२१५ 2 दिन (रात्रि समेत २४ घण्टे का समय ) - दिने दिने सा परिवर्धमाना कु० १।२५, सप्त व्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य दिनानि - रघु २।२५ । सम ० - अण्डम्-अन्धकार, - अत्ययः - अन्तः, -अवसानम् सायंकाल, सूर्यास्त का समय - रघु० २।१५, ४५, अधीशः सूर्यः - अर्धः मध्याह्न, दोपहर, - आगमः, -आदिः, -आरम्भः, प्रभात, प्रातःकाल, - - ईशः, ईश्वर: सूर्य आत्मज: 1. शनि का विशेषण 2. कर्ण का विशेषण 3. सुग्रीव का विशेषण, --- करः -- कर्त-कृत् ( पुं०) सूरज-तुल्योद्योगस्तव दिनकृतश्चाधिकारी मतो नः-विक्रम ० २११, दिनकरकुलचन्द्र चन्द्रकेतो- उत्तर० ६८, रघु० ९।२३, - केशरः, -व: अंधेरा, -क्षयः सायंकाल, चर्या दैनिक व्यस्तता, प्रतिदिन का कार्यकलाप, - ज्योतिस् ( नपुं० ) धूप:, - दुःखितः चक्रवाक पक्षी, पः, पतिः, बन्धुः, - मणिः, -मयूखः, -रत्नम् सूर्य, मुखम् प्रातःकाल - रघु ० ९।२५, मूर्धन् ( पु० ) प्राची दिशा का पर्वत ( उदयाचल ) जिसके पीछे से सूर्य उदित होता हुआ माना जाता है, यौवनम् मध्याह्न, दोपहर ( दिन की जवानी ) । दानम् [दह + ल्युट् ] बाह्यम् [ दह + ण्यत् ] के योग्य | fare: [ दिक् +कै+ क] बीस वर्ष का जवान हाथी, करभ । दिग्ध ( वि० ) [ दिह + क्त ] 1. सना हुआ, लिपा हुआ, पोता हुआ - हस्तावसग्दिग्धमनु० ३।१३२, रघु० १६।१५, दिग्घोऽमृतेन च विषेण च पक्षमलाक्ष्या गाढ़ निखात इव मे हृदये कटाक्ष : मा० ११२९ 2. मिट्टी में सना हुआ, कलुषित 3. विषाक्त कु० ४४२५, धः 1. तेल, मल्हम 2. चिकना पदार्थ, उबटन आदि 3. आग 4 जहर में बुझा तीर 5. कहानी ( वास्तविक हो या काल्पनिक) दिण्डि, दिण्डिर: [ तिण्डि, हिडिर पृषो० साधुः ] एक प्रकार का वाद्ययंत्र । दित ( वि० ) [ दो + क्त, इत्वम् ] कटा हुआ, चीरा हुआ, फाड़ा हुआ, विभक्त । दितिः (स्त्री० ) [ दो + क्तिन् ]1. काटना, टुकड़े २ करना, विभक्त करना 2. उदारता 3. दक्ष की एक कन्या, कश्यप की पत्नी, राक्षसों और दैत्यों की माता । सम०जः, - तनयः पिशाच, राक्षस । 1. जलाना, भस्म करना 2. दागता । 1. जलाने के योग्य 2. जल उठने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दित्यः [ दिति + यत् ] राक्षस । farer [ दातुमिच्छा - दा + सन् + अ + टाप् ] देने की इच्छा - भामि० १।१२५ । दिदृक्षा [ द्रष्टुमिच्छा - दृश् + सन् + अ + टाप् ] देखने की इच्छा - एकस्थ सौंदर्यदिदृक्षयेव- कु० ११४९ । दिधिषुः [ दिघं धैर्यं स्यति सो + कु दिधिषुमात्मनः इच्छति --- दिधिषु + क्यच् + क्विप् । पुनर्विवाहित स्त्री का दूसरा पति (स्त्री० ), अक्षतयोनि विधवा जिसका दूसरा विवाह हुआ हो । विधि (घी) षूः (स्त्री० ) [ दिधि + सो + कू पृषो० साधुः ] 1. दूसरी बार ब्याही हुई स्त्री 2. अविवाहित बड़ी बहन जिसकी छोटी बहन का विवाह हो गया हो - ज्येष्ठायां यद्यनूढायां कन्यायामुह्यतेऽनुजा, सा चाग्रे दिधिषूज्ञेया पूर्वा च दिधिषूः स्मृता । सम०- पतिः वह पुरुष जिसने अपने भाई की विधवा से मैथुन किया हो ( केवल वासना की तृप्ति के लिए न कि पवित्र कर्तव्य की दृष्टि से ) - भ्रातुर्यं तस्य भार्यायां योsनुरज्येत कामतः, धर्मेणापि नियुक्तायां स ज्ञेयो दिधिपूपतिः मनु० ३।१७३४ विधीर्षा [ घ् + सन् + अ + टाप् ] जीवित रखने की इच्छा, सहारा देने की इच्छा - दिक्कुञ्जराः कुरुत तत् त्रितय दिधीर्षां- बालरा० १।४८ । ५८ दिनिका [ दिन + न् + टाप् ] दिन की मजदूरी । दिपिकः (g०) खेलने की गेंद । दिलीप: ( पु० ) एके सूर्यवंशी राजा, अंशुमान् का पुत्र, भगीरथ का पिता । परन्तु कालिदास के अनुसार रघु का पिता ), [ कालिदास ने दिलीप को एक आदर्श राजा बताया है, उसकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था, जो सब प्रकार से अपने पति के अनुरुप थी। उनके कोई सन्तान न थी । फलतः वे अपने कुलगुरु वसिष्ठ के पास गये, गुरु ने उनको नंदिनी नाम की कामधेनु की सेवा करने के लिए कहा- उन्होंने २१ दिन तक गाय की सेवा की और २२वें दिन गौ ने उनपर कृपा की । फलतः उनके यहाँ एक यशस्वी बालक का जन्म हुआ जिसने बड़े होकर समस्त विश्व पर विजय प्राप्त की और फिर वही रघुवंश का प्रवर्तक बना ] दिव् i ( दिवा० पर० - दीव्यति, द्यूत या धून- इच्छा० दुधपति, दिदेविषति ) 1. चमकना, उज्ज्वल होना 2. फेंकना, ( अस्त्र की भाँति ) क्षपण करना- भट्टि० १७८७, ५८१ 3. जुआ खेलना, पांसे से खेलना ( 'पांसे' में कर्म० या करण०) - अक्षैरक्षान्वा दीव्यति -- सिद्धा०, वेणी० १।१३ 4. खेलना, क्रीडा करना 5. हँसी दिल्लगी करना, चुटकियों में उड़ा देना, खेल करना, मजाक करना ( कर्म० के साथ) 6. दाँव पर For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४५८ ) रखना, शर्त लगाना 7. बेचना, व्यापार करना ( सम्बन्ध० के साथ) - अदेवी बंधुभोगानाम् - भट्टि० ८। १२२, (उपसर्ग पूर्व होने पर कर्म० या सम्बन्ध० के साथ — शतं शतस्य वा परिदीव्यति सिद्धा० ) 8. उड़ाना, अपव्यय करना 9. प्रशंसा करना 10. प्रसन्न होना, हर्ष मनाना 11. पागल होना, पीकर मस्त होना 12. नींद आना 13. कामना करना, ii ( भ्वा० पर०, चुरा० उभ० देवति, देवयति - ते ) विलाप कराना, पीडा दिलाना, प्रकुपित कराना, सताना, iii ( चुरा० आ० – देवयते ) पीडा सहन करना, विलाप करना, आर्तनाद करना, परि - विलाप करना, क्रन्दन करना, पीडा सहन करना । भट्टि० ४१३४ । दिव् (स्त्री० ) दीव्यन्त्यत्र दिव् + बा आधारे डिवि तारा० ] ( कर्तृ० ए० ब० द्यौः ) 1. स्वर्ग, रघु० ३४, १२, मेघ० ३० 2. आकाश 3 दिन 4. प्रकाश, उजाला - विशे० वह समस्त शब्द जिनका पूर्वपद दिव् हैं, अधिकांश अनियमित हैं--उदा० दिवस्पतिः इन्द्र का विशेषण, अनतिक्रमणीया दिवस्पतेराज्ञा- श० ६, - दिवस्पृथिव्यों स्वर्ग और पृथिवी - दिविजः, -दिविष्ठः, - दिविस्थ, – दिविस ( ब ) द (पुं०) दिवोस् (पुं० ) दिवौकस्, सः स्वर्ग का रहने वाला, देवता - श० ७, रघु० ३।१९, ४७, दिविषद्द्वृन्दैः गीत० ७ । दिवम् (नपुं०) [ दिव् + क] 1. स्वर्ग 2. आकाश 3. दिन 4. वन, जङ्गल, अरण्य । दिवसः, -सम् [ दीव्यतेऽत्र दिव् + असच् किक्च] दिन - दिवस वायामस्तपात्यये जीवलोकस्य - श० ३।१२ । सम० -- ईश्वरः करः सूर्य, ऋतु० ३१२२, मुखम् प्रातःकाल, प्रभात, विगमः सायंकाल, सूर्यास्त- मेघ० ९९ । दिवा ( अव्य० ) [ दिव् + का ] दिन में, दिन के समय, दिवाभू --दिन निकलना । सम० - अटनः कौवा, - अन्धः उल्लू, · अन्धकी, — अन्धिका छछुन्दर, करः 1. सूर्य कु० १११२, ४/४८ 2. कौवा 3. सूरजमुखी फूल, -- कीर्ति: 1. चाण्डाल, नीच जाति का पुरुष 2. नाई 3. उल्लू, निशम् ( अव्य०) दिन रात, प्रदीपः दिन का दीपक या लैम्प, अप्रसिद्ध पुरुष, – भीतः, -भीतिः 1. उल्लू - दिवाकराद्रक्षति यो गुहासु लीनं दिवाभीतमिवान्धकारम् - कु० १।१२ 2. चोर, सेंध लगानेवाला, - मध्यम् मध्याह्न, रात्रम् (अव्य०) दिनरात, - वसुः सूर्य - शय ( वि० ) दिन में सोने वाला - रघु० १९१३४, स्वप्नः -- स्वापः दिन के समय सोना । विवातन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ दिवाभवः - ट्यु, तुट् च ] दिन का या दिन से सम्बन्ध रखने वाला -- कु० ४/४६, भट्टि० ५/६५ । दिवि: [ दिव् + इन्] चाष पक्षी, नीलकण्ठ ('दिवः' भी ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्य ( वि० ) [ दिव् + यत् ] 1. देवी, स्वर्गीय, आकाशीय 2. अति प्राकृतिक, अलौकिक---परदोषेक्षणदिव्यचक्षुषः - शि० १६।२९, भग० १११८ 3. उज्ज्वल, शानदार 4. मनोहर, सुन्दर, – व्यः 1. अलौकिक या स्वर्गीय प्राणी - दिव्यानामपि कृतविस्मयां पुरस्तात्- शि० ८०६४ 2. जो 3. यम का विशेषण 4. दार्शनिक, व्यम् 1. देवी प्रकृति, दिव्यता 2. आकाश 3. देवी परीक्षा ( यह दस प्रकार की गिनाई गई है ), तु० याज्ञ० २२२, ९५ 4. शपथ, सत्योक्ति 5. लौंग 6. एक प्रकार का चन्दन । सम० अंशुः सूर्य, - अङ्गना - नारी, - स्त्री स्वर्गीय अप्सरा, दिव्य कन्या, अप्सरा, अदिव्य ( वि० ) कुछ लौकिक तथा कुछ अलौकिक (जैसा कि अर्जुन), उदकम् वर्षा का जल, -- कारिन् (वि० ) 1. शपथ उठाने वाला 2. अग्नि परीक्षा देने वाला, - गायनः गन्धर्व, --चक्षुस् ( वि० ) 1. अलौकिक दृष्टि रखने वाला, दिव्य आँखों से युक्त रघु० ३।४५ 2. अन्धा ( पुं० ) बन्दर ( नपुं० ) ॠषीय आँख, अलौकिक दृष्टि, मानव आँखों द्वारा अदृष्ट पदार्थों को देखने की शक्ति, ज्ञानम् अलौकिक जानकारी, दृश् ( पुं० ) ज्योतिषी, प्रश्नः दिव्यलोकान्तर्गत तत्त्वों की पूछताछ, भावी घटना क्रम की पूछ ताछ शकुन विचार, - मानुषः उपदेवता,-रत्नम् काल्पनिक रत्न जो स्वामी की सब इच्छाओं को पूरा करने वाला कहा जाता है, दार्शनिकों की मणि तु० चिन्तामणि, रथः स्वर्गीय रथ जो आकाश में चलता है, रसः पारा, अस्त्र ( वि० ) दिव्य वस्त्रों को धारण करने वाला ( स्त्रः ) 1. धूप 2. सूरजमुखी का फूल, सरित् (स्त्री० ) आकाशगङ्गा, सारः साल का वृक्ष । दिश ( तुदा० उभ० - दिशति-ते, दिष्ट; प्रेर० देशयति - ते, इच्छा० दिदिक्षति-ते ) 1. संकेत करना, दिखलाना, प्रदर्शन करना, ( साक्षी के रूप में) प्रस्तुत करना - साक्षिणः सन्ति मेत्युक्त्या दिशेत्युक्तो दिशेन यः - मनु० ८/५७, ५३ 2. अधिन्यस्त करना; नियत करना - इष्टां गति तस्य सुरा दिशन्ति महा० 3. देना, स्वीकार करना, प्रदान करना, अर्पण करना, सौंपना -- बाणमत्र भवते निजं दिशन् कि० १३६८, रघु० ५/३०, ११२, १६।७२ 4. ( कर के रूप में) देना 5. स्वीकृति देना - रघु० ११/४९ 6. निदेश देना, आदेश देना, हुक्म देना 7. अनुज्ञा देना, इजाजत देना -स्मतु दिशन्ति न दिवः सुरसुन्दरीभ्यः - कि० ५/२८, अति-, 1 अधिन्यस्त करना, सौंपना 2. प्रयोग का विस्तार करना, सादृश्य के आधार पर घटाना इति ये प्रत्यया उक्तास्तेऽत्रातिदिश्यन्ते सिद्धा०, या प्रधानमल्ल निर्वहणन्यायेनातिदिशति-शारी०, अप-, 1. संकेत करना, इशारा करना, दिखलाना 2. प्रकथन करना, For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४५९ प्रस्तुत करना, कहना, घोषणा करना, बतलाना, चेतावनी देना मनु० ८।५४ 3. ढोंग रचना, बहाना करना -- मित्रकृत्यमपदिश्य - रघु० १९३१, ३२, ५४, शिरः शूलस्पर्शनमपदिशन् -- दश० ५०, सिरदर्द के बहाने की युक्ति देते हुए 4. उल्लेख करना, निर्देश करना - रहसि भर्त्रा मद्गोत्रापदिष्टादश० १०२, आ-, 1. करना, दिखलाना 2. आदेश देना, आज्ञा देना, निर्देश देना -- पुनरप्यादिश तावदुत्थितः कु० ४/१६, आदिक्षादस्याभिगमं बनाय - भट्टि० ३1९, ७७२८, रघु० ११५४, २०६५, मनु० ११।१९३ 3. उद्दिष्ट करना, अलग करना, अधिन्यस्त करना -भट्टि० ३1३ 4. अध्यापन करना, उपदेश देना, शिक्षा देना, अङ्कित करना, निश्चित करना - रघु० १२।६८ 5. विशिष्ट करना, 6 आगे होने वाली बात बताना, उद्-, 1. संकेत करना ज्ञापन करना, द्योतित करना, उल्लेख करना - प्रथमोद्दिष्टमासनम् कु० ६।३५, यथोद्दिष्टव्यापारा - श० ३, अनेडमूक उद्दिष्टः शठे - मेदि० 2. उल्लेख करना, निर्देश करना, संकेत करना - स्मरमुद्दिश्य – कु० ४।३८ 3. अभिप्राय रखना, उद्देश्य रखना, निर्देश करना, अधिन्यस्त करना, अर्पित करना - फलमुद्दिश्य भग० १७।२१, उद्दिष्टामुपनिहितां भजस्व पूजाम् - मा० ५।२५, वयशिलामुद्दिश्य प्रस्थितः - पंच० १4. सिखाना, उपदेश देना सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम् - भर्तृ ० २।२८, उप, 1. अध्यापन करना, उपदेश देना, सिखाना - सुखमुपदिश्यते परस्य – का० १५६, मालवि० ११५, रघु० १६।४३, भग० ४।३४ 2. संकेत करना, इशारा करना, उल्लेख करना - गुणशषामुपदिश्य- रघु० ८.७३ 3. कथन करना, बतलाना, घोषणा करना- किं कुलेनोपदिष्टेन शीलमेवात्र कारणम् - मृच्छ० ९।७ 4. निर्दिष्ट करना, अङ्कित करना, स्वीकृति देना, निश्चित करना-न द्वितीयश्च साध्वीनां क्वचिद्भतपदिश्यते - मनु० ५ १६२, २।१९० 5. नाम लेना, पुकारना, निस्-, 1. संकेत करना, इशारा करना, दिखलाना - एकैकं निर्दिशन् -- श० ७, अङगुल्या निर्दिशति - आदि 2 अधिन्यस्त कर देना, दे देना -- निर्दिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य -- रघु० १।९५ 3. सुझाना, निर्देश करना, संकेत करना 4. भविष्यवाणी करना 5. उपदेश देना 6. बतलाना, समाचार देना, प्र- 1. संकेत करना, इशारा करना, दिखाना, निर्देश करना – तस्याधिकारपुरुषः प्रणतैः प्रविष्टाम् - रघु• ५२६३, २/३९ 2. बतलाना, कथन करना- भग० ८ २८, भट्टि० ४।५ 3. देना, स्वीकार करना, उपहार देना, प्रदान करना - विद्ययोः पथि मुनिप्रदिष्टयोः रघु० ११९, ७३५, निःशब्दोऽपि प्रदिशसि जलं याचितश्चात केभ्यः ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मेघ० ११४, मनु०८/२६५, प्रत्या-, (क) अस्वीकार करना, दूर फेंकना, कतराना - प्रत्यादिष्टविशेषमण्डनविधिः- ० ६।५, (ख) पीछे ढकेलना - रघु० ६।२५ 2. पछाड़ देना; प्रत्याख्यान करना (व्यक्ति का ) - कामं प्रत्यादिष्टां स्मरामि न परिग्रहं मुनेस्तनयाम् -- श० ५/३१ 3. दुरूह बनाना, निस्तेज करना, परास्त करना, पृष्ठभूमि में फेंक देना- रघु० १०६१, १०१६८ 4. विपरीत आज्ञा देना, वापिस बुलाना, व्याप, 1. नाम लेना, पुकारना, — व्यपदिश्यते जगति विक्रमीत्यतः - शि० १५।२८ 2. मिथ्या नाम लेना, मिथ्या पुकारना - मित्रं च मां व्यपदिशस्यपरं च यासि - मुच्छ० ४1९ 3. बोलना, गर्व से कहना – जन्मेन्दोर्विमले कुले व्यपदिशसि - वेणी० ६।७ 4. बहाना करना, ढोंग रचना - महावी० २1११, सम्-, 1. देना, स्वीकृति देना, अधिन्यस्त करना, सौंपना - भट्टि० ६ १४१, याज्ञ० २।२३२ 2. आज्ञा देना, निर्देश देना, शिक्षा देना, उपदेश देना, सन्देश भेजना - किंनु खलु दुष्यन्तस्य युक्तरूपमस्माभिः सन्देष्टव्यम् - श० ४, शि० ९/५६, ६१ 3. सन्देश के रूप में भेजना, सन्देश सौंपना - अथ विश्वात्मने गौरी सन्दिदेश मिथः सखीम् - कु० ६ १ । दिश् (स्त्री० ) [ दिशति ददात्यवकाशम् दिशू + क्विप् ] ( कर्तृ० ए० व०- दिक्, -ग) 1. दिशा, दिग्बिन्दु, चार दिशाएँ, परिधि का बिन्दु, आकाश का चौथाई - दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखा: - रघु० ३।१४, दिशि दिशि किरति सजलकणजालम् —गीत० ४ 2. (क) वस्तु का केवल निर्देश, इंगित, ( सामान्य रूप रेखा का ) संकेत, इतिदिक् (भाष्यकारों द्वारा बहुल प्रयोग, (ख) ( अतः ) रीति, रूप, प्रणाली -- मुनेः पाठोक्तदिशा - सा० द०, दिगियं सूत्रकृता प्रदर्शिता, दासीसभं नृपसभं रक्षः सभमिमा दिश: अमर० 3. प्रदेश, अन्तराल, स्थान 4. विदेश या दूरस्थ प्रदेश 5. दृष्टिकोण, विषय को सोचने की रीति 6. उपदेश, आदेश 7. 'दस' की संख्या 8 पक्ष, दल 9. काटने का चिह्न (विशे० समास में स्वरादि, सघोष तथा ऊष्म व्यंजनादि शब्दों से पूर्व 'दिग्' तथा अघोष व्यंजनादि शब्दों से पूर्व 'दिक' हो जाता है उदा० दिगम्बर, दिग्गज, दिक्पथ, दिक्करिन् आदि) । सम० अन्तः दिशाओं का किनारा या क्षितिज, दूर का अंतर, दूरस्थ स्थान - भामि० १२, रघु० ३३४, ५/६७, १६८७ नानादिगन्तागता राजानः आदि, अन्तरम् 1. दूसरी दिशा 2. मध्यवर्ती स्थान, अन्तरिक्ष, अन्तराल 3. दूरवर्ती दिशा अन्य प्रदेश, विदेश, अम्बर (वि०) दिशाएं ही जिसका वस्त्र हों, बिल्कुल नग्न, विवस्त्र - दिगम्बरत्वेन निवेदितं वसु कु० ५/७२, ( : ) 1. नग्न भिक्षु (जैन या बौद्ध संप्रदाय का ) 2. साधु, संन्यासी For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६० ) 3. शिव का विशेषण 4. अंधेरा,-ईशः,-ईश्वरः दिशा | विष्टया (अव्य०) [दिष्टि का करण० ए०व०] भाग्य से, का अधिष्ठात्री देवता ...कु० ५।५३, दे० 'अष्टदिक्- सौभाग्य से, ईश्वर का धन्यवाद, मैं कितना प्रसन्न हूँ, पाल,--करः 1. युवा, जवान आदमी 2. शिव का कितना सौभाग्यशाली, शाबाश (हर्ष या बधाई का विशेषण,--कारिका-करी, जवान लड़की या स्त्री, उद्गार)-दिष्टया प्रतिहतं दुर्जातम्-मा०४, दिष्टया --करिन्,-गजः,-दन्तिन--वारणः (पुं०) वह हाथी सोयं महाबाहुरञ्जनानन्दवर्धनः-उत्तर० ११३७, वेणी० जो पृथ्वी को संभालने के लिए किसी दिशा में स्थित | २।१२, दिष्टचा वध बधाई देना,-दिष्ट्या धर्मपत्नी कहा जाता है (यह आठों दिशाओं में स्थित होने के । .. समागमेन पुत्रमुखदर्शनेन चायुष्मान्वर्धते-श०७। कारण अष्ट दिग्गज कहलाते हैं)-दिग्दन्तिशेषाः ककु (अदा० उभ०-देग्धि, दिग्धे, दिग्ध---इच्छा० भश्चकार-विक्रम० ७१,-ग्रहणम् पृथ्वी की दिशाओं "दिधिक्षति) 1. लीपना, सानना, पोतना, बिछाना का अवलोकन,--चक्रम् 1. क्षितिज 2. समस्त विश्व, -भट्टि० ३।२१, ७.५४ 2. मैला करना, भ्रष्ट करना, -जयः,--विजयः दिग्विजय, सब दिशाओं में भिन्न २ अपवित्र करना-रघु० १६।१५, सम्-, 1. सन्देह देशों को जीतना, विश्व का विजय करना . स दिग्वि करना, अनिश्चित रहना--- याज्ञ० २।१६, संदिग्धो जयमव्याजवीरः स्मर इवाकरोत-विक्रमांक० ४।१, विजयो युधि- पंच० ३।१२ 2. भूल करना, हतबुद्धि -दर्शनम् केवल दिशाएँ दिखाना, केवल सामान्य रूप, होना (कर्मवा०)-पान्तु त्वामकठोरकेतकशिखासंदिग्धरेखा की ओर संकेत करना,-नागः 1. पृथ्वी की दिशा मग्धेन्दवः (जटा:)-मा० ११२, या-धर्जालविनि:का हाथी, दे० दिग्गज 2. कालिदास का समसामयिक सतैबलभयः संदिग्धपारावता:--विक्रम० ३१२, कु० एक कवि (यह बात मेघ०१४ में मल्लि० की व्याख्या ६।४० 3. आक्षेप आरम्भ करना। पर जो बड़ी संदिग्ध है, आधारित है),---मण्डलम् दी (दिवा० आ०-दीयते, दीन) नष्ट होना, मरना। =दिकचक्रम, मात्रन केदल दिशा या संकेत,--मुखम् दीक्ष (भ्वा० आ० - दीक्षते, दीक्षित) 1. किसी धर्मआकाश की कोई सी दिशा या भाग-- हरति मे हरि संस्कार के अनुष्ठान के लिए अपने आपको तैयार वाहनदिङमुखम्-विक्रम० ३१६, अमरु ५,--मोहः मार्ग करना, दे० नी. दीक्षित' 2. अपने आपको समर्पित या दिशा भूल जाना,---वस्त्र (वि०) विल्कुल नंगा, करना 3. शिष्य बनाना 4. उपनयन संस्कार करना विवस्त्र, (स्त्रः) 1. दिगम्बर संप्रदाय का जैन या बौद्ध 5. यज्ञ करना 6. आत्म संयम करना। भिक्षु 2. शिव का विशेषण,--विभावित (वि.) विश्रुत, वित (वि०) विधुत) | दीक्षकः [दीक्ष+ण्वल आध्यात्मिक मार्ग-दर्शक । विख्यात या सब दिशाओं में प्रसिद्ध। दीक्षणम् [दीक्ष् + ल्युट्] दीक्षा देना, धर्मार्पण । विशा [दिश् +अ+टाप् ] पृथ्वी का चौथाई, ओर, | दीक्षा दीक्षअ+टाप] 1. किसी धर्म-संस्कार के लिए तरफ, प्रदेश । सम-गजः,--पालः, दे० दिग्गज, समर्पण, पवित्रीकरण--रघु० ३१४४, ६५ 2. यज्ञ से दिकपाल। पूर्व किया जाने वाला प्रारम्भिक संस्कार 3. धर्मसंस्कार विश्य (वि.) [दिशि भवः --दिश्य त् ] पृथ्वी की ----विवाह दीक्षा-रघ० ३।३३, कु० ७।१, ८।२४ किसी दिशा से सम्बन्ध रखने वाला, या किसी दिशा 4. यज्ञोपवीत संस्कार करना, किसी विशेष उद्देश्य के में स्थित । लिए अपने आपको समर्पण करना। सम... अन्तः दिष्ट (वि.) [दिश् + क्त] 1. दिखलाया हुआ, संकेतित, पूर्वकृत यज्ञादि कर्म की त्रुटियों की शान्ति के लिए निर्देश किया हुआ, इशारे से बताया हुआ 2. वणित, किया जाने वाला पूरक-यज्ञ । उल्लिखित 3. स्थिर, निश्चित 4. निदेशित, आदेश दीक्षित (भू० क० कृ०) [दीक्ष+क्त] संस्कारित, (किसी दिया हुआ,-ष्टम् 1. अधिन्यास, नियतीकरण 2. भाग्य, धर्म-संस्कार के अनुष्ठान के लिए) दीक्षा-प्राप्त-- एते नियति, सौभाग्य या दुर्भाग्य -भो दिष्टम् --श०२ विवाहदीक्षिता यूयं-उत्तर० १, आपन्नाभयसत्रेषु 3. आदेश, निदेश 4. उद्देश्य, ध्येय। सम-अन्तः दीक्षिताः खलु पौरवा:-श० २।१६, रघु० ८।७५, नियत किय हुए समय को समाप्ति, मृत्यु -दिष्टान्त- १११२४, वेणी० १२१५ 2. यज्ञ के लिए तैयार 3. व्रत माप्स्यति भवानपि पुत्रशोकात् --रघु० ९६७९।। लेकर (किसी पुण्य कार्य के लिए) तैयार-रघु० दिष्टिः (स्त्री०) [दिश् +-क्तिन् | 1. अधिन्यास, नियती- १०६७4. अभिषिक्त--रघु० ४।५, -तः 1. दीक्षा करण 2. निदेश, आज्ञा, शिक्षा, नियम, उपदेश कार्य में व्यस्त पुरोहित 2. शिष्य 3. वह पुरुप जिसने 3. भाग्य, किस्मत, नियति 4. अच्छी किस्मत, प्रसन्नता, या जिसके पूर्व-पुरुषों ने ज्योतिष्टोम जैसे वृहद् यज्ञों शुभ कार्य (जैसा कि पुत्रजन्म)-दिष्टिवृद्धिमिव शुधाव का अनुष्ठान किया हो। --का० ५५, दिष्टिवृद्धसम्भ्रमो महानभूत्-का० | दीदिविः [दिव-क्विन् , द्वित्वं, दीर्घश्च]1. उबले हुए चावल ७३। 2. स्वर्ग । से बताया हुआ दीक्षित (भू० ठान के लिए) For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीये का गुलादपः, वृक्षः दीपक, र शत्र: पतंग, दीधितिः (स्त्री०) [दीधी+क्तिन, इट, ईकारलोपश्च ।। दीये का गुल-कपी,-खरी दीवे की बत्ती-ध्वजः 1. प्रकाश की किरण --रघु० ३।२२, १७।४८, न० काजल, पादपः, -वृक्षः दीपाधार, दीवट,--पुष्पः २।६९ 2. आभा, उजाला 3. शारीरिक कान्ति, स्फूति चम्पा का वृक्ष--भाजनम् दीपक, रघु० १९।५१, --भर्तृ० २।२९। -माला प्रकाश करना, रोशनी करना,-शत्रुः पतंग, दीधितिमत् (वि०) दीधिति+मतुप् ] उज्ज्वल (पुं०) -शिखा दीपक की लौ,-शृङ्खला दीवों की पंक्ति, सूर्य--कु० २२, ७७० । रोशनी। दोधी (अदा० आ० दीघोते) 1. चमकना 2. दिखाई देना, | दीपक (वि.) (स्त्री०-पिका) [ दीप+णिचण्वुल ] प्रतीत होना। 1. आग सुलगाने वाला, प्रज्वलित करने वाला दीन (वि.) [दी+क्त, तस्य नः] 1. गरीब, दरिद्र 2. दुःखी 2. रोशनी करने वाला, उज्ज्वल बनाने वाला 3. सचित्र नष्ट-भ्रष्ट, कष्टप्रस्त, दयनीय, अभागा 3. खिन्न, बनाने वाला, सुन्दर बनाने वाला, विख्यात करने वाला उदास, विषण्ण, शोकग्रस्त-सा विरहे तव दीना 4. उत्तेजक, प्रखर करने वाला-शि० २०५५ -गीत०४ 4. भीरु, डरा हुआ 5. क्षुद्र, शोचनीय 5. पौष्टिक, पाचन शक्ति को उद्दीप्त करने वाला, —भर्त० २।५१, -नः गरीब आदमी, दुःखी या विपद्- पाचनशील,-कः 1. प्रदीप-तावदेव कृतिनामपि स्फुरत्येष ग्रस्त ---दीनानां कल्पवृक्षः -मच्छ० ११४८, विनानि निर्मल विवेकदीपक:-भर्त० २५६ 2. बाज़ 3. कामदेव दीनोद्धरणोचितस्य---रघु० २।२५। सम०-दयालु, का विशेषण ('दीप्यक' भो),-कम् 1. ज़ाफ़रान, केसर -वत्सल (वि.) दीन-दुखियों के प्रति कृपालु-बन्धुः 2. (अलं० शा०) एक अलंकार जिसमें समान विशेषण दीन-दुखियों का मित्र। रखने वाले दो या दो से अधिक पदार्थ (प्रकृत और दीनारः [दी+आरक, नुट्] 1. एक सोने का विशेष सिक्का, अप्रकृत) एक जगह मिला दिये जायें, या जिसमें -जितश्चासौ मया षोडशसहस्राणि दीनाराणाम्-दश० कुछ विशेषण (प्रकृत और अप्रकृत) एक ही कर्म के 2. सिक्का 3. सोने का आभूषण । विधेय बना दिये जायँ, सकृद्वत्तिस्तु धर्मस्य प्रकृतादीप (दिवा० आ०-दोप्यते, दीप्त --वारम-देदीप्यते) प्रकृतात्मनां, सैव क्रियासु बह्वीषु कारकस्येतिदीपकम् ; 1. चमकना, जगमगाना (आलं. भी)-सर्वैरुपैः समग्रै- -काव्य० १०, तु० चन्द्रा०--बदन्ति वावानां स्त्वमिव नपगणैर्दीप्यते सप्तसप्ति: ---मालवि० २।१३, धर्मैक्यं दीपकं वुधाः, मदेन भाति कलभः प्रतापेन तरुणीस्तन इव दीप्यते मणिहारावलि रामणीयकम् | महीपतिः -- ५।४५ । -०२१४४, भट्टि० २२, रघ ० १४१६४, हि०प्र० दीपन (वि०) [ दीप् +णिच् + ल्युट्] 1. आग सुलगाने ४६ 2. जलना, प्रकाशित होना-यथा यथा चेयं चपला वाला, प्रकाश करने वाला 2. पूष्टिकारक, पाचनशक्ति दीप्यते -का० १०५ 3. दहकना, प्रज्वलित होना, को उद्दीप्त करने वाला 3. उतेजक, उद्दीपक 4. केसर, बड़ना--(आलं. भी) रघु० ५।४७, भट्टि० १४।८८, जाफ़रान । शि० २०७१ 4. क्रोध से आगबबूला होना-कि० - दीपिका [दीप+णिच्--ण्वुल-टाप, इत्वम्] 1. प्रकाश, ३।५५ 5. प्रख्यात होना-प्रेर० दोपयति-ते, आग मशाल-रघु० ४।४५, ९।७० 2. (समास के अन्त सुलगाना-प्रज्वलित करना, रोशनी करना, प्रकाश में) सचित्र वर्णन करने वाला, स्पष्टकर्ता; तर्ककरना, वन्दावनान्तरमदीपदंशजालैः (इन्दुः)-गीत. दीपिका। ७, उद्-, प्रेर० 1. आग सुलगाना, 2. उद्बोधित करना, दीपित (वि.) [दीप् णिच्+क्त] 1. जिसको आग लगा उत्तजित करना, उद्दीपित करना, प्र-सम-, चमकना, दी गई हो 2. प्रज्वलित 3. रोशनीवाला, प्रकाशमय जगमगाना। 4. प्रव्यक्त, प्रकाशित। दीपः [दी-+-णि+अच], लैप, दीवा, प्रकाश-नपदीपो | दीप्त (भू० क० कृ०) [दीप्+क्त ] 1. जलाया हुआ, धनस्नेहं प्रजाभ्यः संहरन्नपि, अन्तरस्थैर्गुणः शुभ्रलक्ष्यते प्रज्वलित, सुलगाया हुआ 2. दहकता हुआ, गरम, नैव केनचित्-व० १२२२१, न हि दोपौ परस्पर- प्रकाश उगलने वाला, चकाचौंध करने वाला 3. प्रकाशस्योपकुरुतः --शारी०, इसी प्रकार 'ज्ञानदीप' । समः मय 4. उत्तेजित, उद्दीपित,–प्तः 1. सिंह 2. नींबू का -अन्विता 1. अमावस्या 2.--दीपावलो,--आराधनम् पेड़,-सम् सोना । सम०-अंशः सूर्य,-अक्षः विल्ली, दीप थाल में रख कर देवमति की आरती उतारना, -अग्नि (वि.) (आग को भाँति) सुलगाया हुआ ---आलिः, -ली,-आवली-उत्सवः 1. दीपपंक्ति, (-ग्निः) 1. धधकती हुई आग 2. अगस्त्य का नाम, रात के समय रोशनी करना 2. विशेषरूप से दिवाली -अङ्गः मोर,-आत्मन् (वि.) जोशीले स्वभाव का, का उत्सव जो कार्तिक को अमावस्या में मनाया जाता -- --उपल: सूर्यकान्तमणि,-किरणः सूर्य,---कीतिः है,-कलिका दीपक की लौ,-किट्रम् दीपक का फूल, । कार्तिकेय का विशेषण,-बिहा लोमड़ी (आलंकारिक For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ४६२ ) रूप से झगड़ाल और दुष्टस्वभाव वाली स्त्री के लिए। कार्य करने वाला, मन्थर, प्रत्येक कार्य को देर में करने प्रयुक्त होता है),--- तपस् ( वि० ) उज्ज्वल धर्म- बाला, टालने वाला, देर लगाने वाला--दीर्घसूत्री निष्ठा से युक्त, उत्कट भक्ति वाला,-पिङ्गलः सिंह, विनश्यति-पंच० ४।। –रसः कैचुवा,-लोचन: बिल्ली,-लोहम् पीतल, | दोधिका [दीर्घ+क+टाप, इत्वम्] 1. एक लम्बा सरोकाँसा। वर, जलाशय-मालवि० २।१३, रघु० १६।१३ 2. कूओं दीप्तिः (स्त्री.) [दीप+क्तिन] 1. उजाला, चमक, प्रभा, या बावड़ी। आभा 2. सौंदर्य की उज्ज्वलता, अत्यन्त मनोरमता दीर्ण (वि०) [+क्त] 1. चीरा हुआ, फाड़ा हुआ, टुकड़े (दीप्ति और कान्ति के अन्तर के लिए दे० कान्ति) .. टुकड़े किया हुआ 2. डरा हुआ, भयभीत । 3. लाख 4. पीतल। दु (स्वा० पर०-दुनोति, दूत, या दून) 1. जलाना, आग वीप्र (वि.) [ दीप्+र] चमकीला, जगमगाता हुआ में भस्म करना-भट्टि० १४१८५ 2. सताना, कष्ट चमकदार,--प्रः आग। देना, दुःख देना उद्भासोनि जलेजानि दुन्वन्त्यदयितं दीर्घ (वि.) [+घञ्] (म० अ०-द्राधीयस्, उ० अ० जनम्-भट्टि० ६७४, ५।९८, १७।९९, (मुखं) तव -द्राधिष्ठ) 1. (समय और स्थान की दृष्टि से) विश्रान्तकथं दुनोति माम्--रघु० ८1५५ 3. पीड़ा लम्बा, दूर तक पहुँचने वाला,-दीर्घाक्षं शरदिन्दु देना, शोक पैदा करना-वर्णप्रकर्षे सति कणिकारं कान्तिवदनम् --मालवि० २।३, दीर्धान् कटाक्षान दुनोति निर्गन्धतया स्म चेतः---कु० ३।२८ 4. (अक०) —मेघ० ३५, दीर्घापांग आदि 2. लम्बी अवधि का कष्टग्रस्त होना, पीड़ित होना--देहि सुन्दरि दर्शनं टिकाऊ, उबा देने वाला...दीर्घयामा त्रियामा-मेघ० मम मन्मथेन दुनोमि-गीत० ३,---कर्मवा० (या १०८, विक्रम० ३।४, श० ३।१५ 3. (आह की दिवा० आ०) कष्टग्रस्त होना, पीड़ित होना -नायातः भौति) गहरा-अमरु. ११, दीर्घमुष्णं च निःश्वस्य सखि निर्दयो यदि शठस्त्वं दूति किं दूयसे-गीत०७, 4. (स्वर की भाँति) लम्बा, जैसा कि 'काम' में 'आ' | कु० ५।१२, ४८, रघु० ११७०, १०।२१ । 5. उत्तुंग, ऊँचा, उन्नत,-र्घम् (अव्य०) 1. चिर, | दुःख (वि.) [दुष्टानि खानि यस्मिन, दुष्टं खनति–खन् चिरकाल तक 2. अत्यन्त 3. अधिक,--: 1. ऊँट, +ड, दुःख +अच् वा तारा०] पीड़ाकर, अरुचिकर, 2. दीर्घस्वर । सम-अध्वगः दूत, हरकारा,-अहन् दुःखमय-सिंहानां निनदाः दुःखाः श्रोतुं दुःखमतो वनम् (पुं०) ग्रीष्म,-आकार (वि०) बड़े आकार का, -रामा० 2. कठिन, बेचैन-खम् 1. खेद, रंज, ---आयु-आयुस् (वि.) दीर्घजीवी, लम्बी आय विषाद, दुःख, पीड़ा, वेदना-सुखं हि दुःखान्यनुभूय वाला,—आयुधः 1. भाला 2. कोई लम्बा हथियार शोभते--मृच्छ० ११०-यदेवोपनतं दुःखात्सुखं तद्र3. सूअर,- आस्यः हाथी,- कण्ठः,- कण्ठकः,-कन्धरः सवत्तरम्-विक्रम० ३।२१, इसी प्रकार 'दुःखसुख' सारस,-काय (वि०) (क़द में) लम्बा,-केशः रीछ, 'समदुःखसुख' 2. कष्ट, कठिनाई-शृंगार० १२, ('बड़ी —गतिः,-ग्रीवः, -घाटिकः, सङ्घः, ऊँट,--जिह्वः कठिनाई से' 'मुश्किल से' 'कष्ट से' अर्थ को प्रकट साँप, सर्प,-तपस् (५०) अहल्या के पति गौतम का करने के लिए 'दुःखम्' तथा 'दुःखेन' शब्द क्रिया विशेविशेषण --रघु० १११३४,-तरुः,-दण्डः,-द्रुः ताड़ षण के रूप में प्रयुक्त किये जाते है-श० ७१३, वृक्ष,—तुण्डी छछुन्दर,-दशिन् (वि०) विवेकी, समझ- भग० १२१५, रघु० १९१४९, हि० १११५८) । सम. दार, दूरदर्शी, दूर तक की बात सोचने वाला-पंच० —अतीत (वि०)दुःखों से मुक्त, अन्तः मोक्ष,---कर ३।१६८ 2. मेधावी, बुद्धिमान, (पुं०) 1. रीछ 2. उल्ल, (वि०) पीड़ाकर, कष्टदायक,—ग्रामः 'दुःखों का दृश्य' --.-नाद (वि.) लगातार देर तक शोर मचाने वाला, । सांसारिक अस्तित्व, संसार,-छिन्न (वि०) 1. सख्त, (-दः) 1. कुत्ता 2. मुर्गा 3. शंख,-निद्रा 1. लम्बी कठोर 2. पीड़ित, दुःखी, प्राय, बहुल (वि०) कष्ट नींद 2. चिरशयन, मृत्यु-रघु० १२।११,-पत्रः ताड़ और दुःखों से पूर्ण,-भाज (वि०) दुःखी, अप्रसन्न, का वृक्ष,-पादः बगुला,-पावपः 1. नारियल का पेड़ -लोकः सांसारिक जीवन, सतत यातना का दृश्य, 2. सुपाड़ो का पेड़ 3. ताड़ का वृक्ष,--पष्ठः साँप, संसार,-शील वि०)जो दूसरों को प्रसन्न न कर सके, -बाला एक प्रकार का हरिण, चमरी, (इसकी पूंछ बुरे स्वभाव का, चिड़चिड़ा--रघु० ३।६। से चौरी बनती हैं),-मारुतः हाथी,-रतः कुत्ता,--रदः दुःखित,-दुःखिन् (वि०) (स्त्री०-नी) दुःख +इतच, सूअर,--रसनः साँप,--रोमन् (पुं०) भालू,-वक्त्रः इनि वा] दुःखी, कष्टग्रस्त, पीड़ित 2. बेचारा, विषण्ण, हाथी, सक्थ (वि.) लम्बी जंधाओं वाला,-सत्रम् दयनीय । चिरकाल तक चलने वाला सोमयज्ञ (त्रः) सोमयाजी कलम् [दु+ऊलच्, कुक] बुना हुआ रेशम, रेशमीवस्त्र, -रघु० १८०,---सूत्र,—सूत्रिन् (वि०) शनैः २ |" अत्यन्त महीन वस्त्र-श्यामलमृदुलकलेवरमण्डनमधि For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बरी दशा म .) कुरूप, बस 2. दुर्गम, गतगोरदुकलम् ---गीत० ११, कु० ५।६७, ७८, भट्टि० ३।३४, १०।१, रघु०१७।२५ । दुग्ध (वि.) [ दुह +क्त ] 1. दुहा हुआ 2. जिसका दूध दुह लिया गया है, चूस लिया गया है या निकाल लिया गया है-दे० 'दुह ,-धम् 1. दूध, 2. पौधों का दूधिया रस । सम--अग्रम्- तालीयम् दूध का फेन, मलाई,-पाचनम् वह बर्तन जिसमें दूध डाल कर। औटाया जाय,---पोष्य (वि०) अपनी माँ के दूध पर रहने वाला बच्चा, दूध पीता (बच्चा) स्तनपायी, ----समुद्रः दूध का सागर, सात समुद्रों में से एक । दुध (वि०) [दुह+क] (प्रायः समास के अन्त में) 1. दूध देने वाला 2. सौंपने वाला, देने वाला, जैसा कि 'कामदुघा' में। दुधा [दुध+टाप् ] दूध देने वाली गाय, दुधार गौ। दुण्डुक (वि०) [दुण्डुभ इव कायति दुडुभ-+के+क, पृषो० भलोपः] बेईमान, दुष्ट हृदय वाला, जालसाज । दुण्डुभः- डुडुभ । दुन्द्रमः [ दुर दुष्टो द्वन्म:--पृषो० रलोपः ] हरा प्याज । दुन्दमः (०) [ दुन्द इत्यव्यक्तं मणति शब्दायते-दुन्द +-मण्ड ] एक प्रकार का ढोल, दे० दुन्दुभि । दुन्दुः (पु०) 1. एक प्रकार का ढोल 2. कृष्ण के पिता वसुदेव का नाम । दुन्दुभः [ दुन्दु-भण्-ड] 1. एक प्रकार का बड़ा ढोल, तासा 2. एक प्रकार का पनियल साँप । दुन्दुभिः (पुं०, स्त्री०) [ दुन्दु इत्यव्यक्तशब्देन भाति-भा +कि ] एक प्रकार का बड़ा ढोल, नगाड़ा--विजयदुन्दुभितां ययुरणवाः--रघु० ९।११, (पुं०) 1. विष्णु की उपाधि 2. कृष्ण का विशेषण 3. एक प्रकार का विष 4. एक राक्षस जिसे वालि ने मारा था, (जब सुग्रीव ने इस राक्षस का अस्थिपंजर भगवान् राम को यह बतलाने के लिए कि वालि कितना बलवान था, दिखलाया तो राम ने इसे मामूली सी ठोकर मारी और वह अस्थिपंजर मीलों दूर जाकर पड़ा)। दुर (अव्य०) [दु+रुक] ('दुस्' के स्थान में प्रयुक्त किया जाने वाला उपसर्ग जो 'बुराई' 'कठिनाई' का अर्थ प्रकट करने के लिए स्वरादि तथा घोषवर्णादि से आरम्भ होने वाले शब्दों से पूर्व लगाया जाता है, दुस्पूर्वक समासों के लिए दे० 'दुस्')। सम०-अक्ष (वि.) 1. दुर्बल आँख वाला 2. खोटी दृष्टि वाला (-क्षः) कपट का पासा,-अतिक्रम (वि०) 1. दुर्जय, दुस्तर, अजेय-स्वजाति१रतिक्रमा-पंच०१ 2. दुर्लध्य 3. अनिवार्य,-अत्यय (वि.) 1. जो कठिनाई से जीता जा सके,----रघु० ११३८८ 2. दुर्लभ, अगाध -----अदृष्टम् दुर्भाग्य, विपत्ति-अधिग,-अधिगम (वि०) 1. दुष्प्राप्य, जिसे प्राप्त करना कठिन हो, पंच० । ११३३० 2. दुस्तर 3. दुर्जेय, जिसे अध्ययन करना बहुत कठिन हो-कि० ५।१८,-अधिष्ठित (वि.) बरी तरह से संपन्न, प्रबद्ध या क्रियान्वित किया गया -~-अध्यय (वि.) 1. दुर्लभ 2. दुर्बोध,—अध्यवसायः, मुर्खतापूर्ण व्यवसाय,----अध्वः कुमार्ग,---अन्त (वि.) 1. जिसके किनारे पर पहुँचना कठिन हो, अनन्त, अन्तहीन-संकर्षणाय सूक्ष्माय दुरन्तायान्तकाय च-भाग० 2. परिणाम में दुःखदायी, विषण्ण-अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता—कि० २२३, नत्यति युवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य दुरन्ते (वसन्ते)-गीत० १,-अन्वय (वि०) 1. दुर्गम 2. जिसका पालन करना, या अनुसरण करना कठिन हो 3. दुष्प्राप्य, दुर्बोध (यः) अशुद्ध निष्कर्ष, दिये हुए तथ्यों का गलत अनुमान,-अभिमानिन् (वि०) मिथ्या अहंकार करने वाला, . झूठा घमंडी,--अवगम (वि०) दुर्बोध,--अवग्रह (वि०) जिसे रोकना या काबू में रखना कठिन हो, जिसका नियंत्रण कष्ट-साध्य हो,---अवस्थ (वि०) दुर्दशाग्रस्त, बुरी दशा म पड़ा हुआ,-अवस्था दुर्दशा, दयनीय स्थिति, आकृति (वि०) कुरूप, बदसूरत,--आक्रम (वि.) 1. अजेय, जो जीता न जा सके 2. दुर्गम, -आक्रमणम् 1. अनुचित हमला 2. कठिन पहुँच, ---आगमः अनुपयुक्त या अवैध अधिग्रहण,---आग्रहः मूर्खतापूर्ण हठ, जिद, अनुचित आग्रह, -आचर (वि०) कष्टसाध्य,-आचार (वि.) 1. बुरे चालचलन का, कदाचारी 2. कुत्सित आचरण वाला, दुर्वृत्त, दुश्चरित्र -भग० ९१३०, (र:) दूषित आचरण, कदाचार, दुश्चरित्रता,-आत्मन् (पुं०) दुर्जन, लच्चा, लफंगा,--आधर्ष (वि.) 1. जिस पर आक्रमण करना कठिन है 2. जिसका लेशमात्र भी पराभव न हो सके 3. उद्धत, -आनम (वि.) जिसे झुकाना बहुत कठिन हो, ... -रघु० १११३८,-- आप (वि०) दुर्लभ --श्रिया दुराप: कथमीप्सितो भवेत्----श० ३३१४, रघु० ११७२ ६।६२, --आराध्य (वि.) जिसे प्रसन्न करना बहुत कठिन हो, जिसको जीत लेना कष्टसाध्य हो,--आरोह (वि.) जिस पर चढ़ना कठिन हो, (-हः) 1. नारियल का पेड़ 2. ताड़ का पेड़ 3. छुहारे का पेड़-आलापः 1. दुर्वचन, गाली 2. बुरी बातचीत, अपशब्दयुक्त भाषा -आलोक (वि०) 1. जो कठिनाई से देखा जा सके 2. जिसकी ओर देखने आँखें झंप जायं, चकाचौंध करने वाला प्रकाश-- दुरालोकः स समरे निदाधाम्बररत्नवत -काव्य० १०, (---कः) चकाचौंध पैदा करने वाली चमक,--आवार (वि.) 1. जिसे ढकना कठिन हो 2. जिसे रोकना, बन्द करना, या ठहराना कठिन हो, --आशय (वि०) दुर्मनस्क, कुत्सित विचारों वाला व्यक्ति, जिसकी नीयत खराब हो, नीच हृदय का, For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --आशा 1. बुरी इच्छा 2. ऐसी आशा करना जो पूरी । न हो सके,-आसद (वि०) 1. जिसके पास पहुँचना कठिन हो, दुर्गम, दुर्धर्ष, दुर्जय रघु० ३।६६, ८१४, महावी० २।५, ४११५ 2. दुर्लभ, दुष्प्राप्य 3. अद्वितीय, अनुपम, - इत (वि.) 1. कठिन 2. पापी (तम्) 1. कुमार्ग, बराई, पाप-दरिद्राणां दैन्यं दुरितमथ दुर्वासनहृदां द्रुतं दूरीकुर्वन्-गंगा०२, रघु० ८१२, अमरु २, महावी० ३।४३ 2. कठिनाई, भय 3. संकट,- इष्टम् दुर्वचन, गाली 2. दूसरे व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के लिए किया जाने वाला जादूटोना या यज्ञानुष्ठान,-ईशः बुरा स्वामी, किंप्रभु,-ईषणा,-एषणा अभिशाप, दुर्वचन,--उक्तम्,-उक्तिः दुर्वचन, झिड़की, गाली, बुराभला कहना,- उत्तर (वि०) जिसका उत्तर न दिया जा सके,--उदाहर (वि०) जिसका उच्चारण किया जाना कठिन हो---अनुज्झितार्थसम्बन्धः प्रबन्धी दुरुदाहरः--शि० २१७३,-उद्वह (वि.) बोझिल, असह्य, --ऊह (वि.) बहुत माथा पच्ची करने पर भी जल्द समझ में न आने वाला, कठिन,---ग (वि.) 1. जहाँ पहुँचना कठिन हो, अगम्य, दुर्गम 2. अप्राप्य 3. दुर्बोध (--गः, गम्) कठिन या तंग रास्ता, (जंगल में से, नंदी या पहाड़ों में से) संकीर्ण घाटी, भीड़ा दर्रा 2. गढ़, किला, कोट 3. ऊबड़-खाबड़ जमीन 4. कठिनाई, विपत्ति, संकट, दुःख, भय--निस्तारयति दुर्गाच्च --मनु० ३९८, १२४३, भग० १८१५८, अध्यक्षः, पतिः, पालः किले का समादेष्टा या प्रशासक, कर्मन् (न५०) किलाबन्दी, मार्गः घाटी का मार्ग, गहरी घाटी लंघनम कठिनाइयों को पार करना (-- नः) ऊँट, संचरः 1. (घाटी के ऊपर से, पूल पर से, या किले का) कठिन मार्ग,--गा शिव की पत्नी पार्वती की उपाधि,—ात (वि०) 1. दुर्भाग्यग्रस्त, दुर्दशाग्रस्त --भट्टि० १८५१० 2. दरिद्र, गरीब 3. दुःखी, कष्टग्रस्त,--गतिः (स्त्री०) 1. दुर्भाग्य, गरीबी, कमी, कष्ट, दरिद्रता-भग० ६४० 2. कठिन स्थिति या मार्ग । 3. नरक, --- गन्ध (वि.) बुरी गन्ध वाला (--) 1. बुरी गन्ध, सड़ांद 2. दुर्गंधयुक्त पदार्थ 3. प्याज 4. आम का वृक्ष,----गन्धि, -गन्धिन् (वि.) जिसमें से बुरी गन्ध आवे-गम (वि.) 1. जिसमें से जाया न जा सके, जहाँ पहुँचना कठिन हो, अप्रवेश्य... कामिनीकायकांतारे कुचपर्वतदुर्गमे--- भर्तृ० १२८६, शि० । १२।४९ 2. अप्राप्य, दुष्प्राप्य 3. दुर्योध,गाड़,---गाध, गाह जिसका अवगाहन करना या अनुसंधान करना कठिन हो, अनवगाह्य,- ग्रह (वि.) 1. कष्टसाध्य 2. जिसको जीतना या वश में कपना कठिन हो-रघु० १७५२ 3. दुर्बोध ( ह) मरोड़, ऐंत- घट (वि.) 1. कठिन 2. असम्भव,-चोक: 1. कर्कश ध्वनि 2. रीछ, ---जन (वि.) 1. दुष्ट, बुरा, खल 2. वदनाम, द्वेषपूर्ण उपद्रवी, (---नः) बुरा या दुष्ट आदमी, द्वेष रखने वाला या उपद्रव करने वाला व्यकिा, दुर्वत्त--- दुर्जनः प्रियवादी च नंतद्विश्वासकारणम्- चाण० २४, २५, शाम्येत्प्रत्यपकारेण नोपकारेण दुर्जनः,--कु० १४०,-जय (वि०) अजेय, जिसको जीता न जा सके,---जर (वि०) 1. चिरयुवा 2. (भोजनादि) जो कठिनाई से पचे, अपचनशील 3. जिसका उपभोग करना कठिन हो,- जात (वि०) 1. दुःखी, अभागा 2. बुरे स्वभाव का बुरा, दुष्ट 3. मिथ्या, अवास्तविक, (-तम्) दुर्भाग्य, संकट, कठिनाई, रघु० १३१७२,-जातिः (वि.) 1. बुरे स्वभाव का, दुर्जन, दुष्ट. अमरु ९६ 2. जाति से बहिष्कृत (स्त्री०-ति:) 1. दुर्भाग्य, दुर्दशा,--ज्ञान, --ज्ञेय (वि.) जो कठिनाई से जाना जा सके, दुर्बोध, ---णयः, -नयः 1. दुराचरण 2. अनौचित्य 3. अन्याय -णामन्,-नामन् (वि०) बदनाम, दम, दमन, ---दम्य (वि०) जिसे दबाना या वश में करना कठिन हो, जो सीधा न किया जा सके, प्रबल,-दर्श (वि०) 1. जो कठिनाई से दिखाई दे 2. चकाचौंध करने वाला-भग० १११५२,--दान्न (वि.) 1. जिसको वश में करना कठिन हो, जो पालतू न हो सके, जो सीधा न किया जा सके-शि० १२२२ 2. उच्छंखल, घमण्डी,-धृष्ट, दुर्दान्तानां दमनविधयः क्षत्रियेष्वायतंते –महावी० ३।३४, ( तः) 1. बछड़ा 2. झगड़ा, कलह,-दिनम् 1. बुरा दिन 2. मेघाच्छन्न दिन, आँधी, तूफ़ान का मौसम, वृष्टिकाल,.....उन्नमत्यकालदिनम् ---मृच्छ०५--कु० ६।४३, महावी० ४१५७ 3. बौछार -रघु० ४।४१, ८२, ५।४७, उत्तर० ५।५ 4. घोर अन्धकार, दृष्ट (वि०) जिस पर ग़लत तरीके से विचार किया गया हो, जिसका फ़ैसला ठीक नहआ हो,-देवम् बुरी किस्मत, दुर्भाग्य,-छूतम् बेईमानी का खेल,---द्रुमः प्याज़,-धर (वि०) 1. जिसका मुकाबला न किया जा सके, जो रोका न जा सके 2. दुस्सह, --दुर्घरेण मदनेन साधते... घट० ११, मनु० ७।२८, (-२)पारा-धर्ष (वि.) 1. अनुल्लङघनीय, अनतिक्रम्य 2. अगम्य-हि० प्र० ५ 3. भयंकर, डरावना 4. उद्धत,---धी (वि०) मूर्ख बेवकूफ़,-- नामनः ववासीर,-निग्रह (वि०) जिसको दबाया न जा सके, जिस पर शासन न किया जा सके, जिसका प्रतिरोध न किया जा सके, उच्छंखल.... मनो दुनिग्रहं चलम् --भग० ६३५,-निमित (वि.) असावधानी से जमीन पर रक्खा हुआ-पदे दुनिमिते गलन्ती-रघु० ७१०,--निमित्तम् 1. अपशकुन,-- रघु० १४१५० 2. बुरा बहाना,--निवार,-निवार्य (वि.) जिसको For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हटाना या दूर करना कठिन हो, जिसका मुकाबला । करना कठिन हो, अजेय,--नीतम् कदाचरण, दुर्नीति, दुर्व्यवहार,--नीतिः (स्त्री०) बुरा प्रशासन-भामि० ४१३६,---बल (वि.) 1. कमजोर, बलहीन 2. क्षीणकाय, शक्तिहीन-उत्तर० १२४ 3. स्वल्प, थोड़ा, कम-रघ० ५।१२,--बाल (वि.) गंजे सिर वाला, ----बुद्धि (वि०) 1. बेवकूफ़, मूर्ख, बुद्ध 2. कुमार्गी, दुष्ट मन का, दुष्ट-भग० १२३,-बोध (वि०) जो शीघ्र समझ में न आये, जिसकी तह तक न पहँचा जाय, दुर्गाह्य-निसर्गदुर्बोधमबोधविक्लवाः क्व भूपतीनां चरितं क्व जन्तवः--कि० ११६,-भग (वि०) भाग्यहीन अभागा,-भगा 1. वह पत्नी जिसे उसका पति न चाहता हो 2. बुरे स्वभाव की स्त्री, कलहप्रिय स्त्री,-भर (वि०) जिसे निभाना कठिन हो, बोझा, भार,--भाग्य (वि.) भाग्यहीन, अभागा (---ग्यम्) बुरी किस्मत,--भक्षम् 1. खाद्य सामग्री की कमी, अभाव, अकाल-यन० २।१४७, मनु० ८।२२, हि. ११७३ 2. कमी,-भत्यः बुरा सेवक,-भ्रातु (पुं०) बुरा भाई,–मति (वि.) 1. मूर्ख, दुर्बुद्धि, बेवकूफ़, अज्ञानी, 2. दुष्ट, खोटे हृदय का--मनु० ११॥३०, -मद (वि०) शराबखोर, खूखार या हिंस्र, मदोन्मत्त, दीवाना,-मनस् (वि.) खिन्नमनस्क, हतोत्साह, दुःखी उदास,--मनुष्यः दुर्जन, दुष्ट पुरुष,-मन्त्रः,-मन्त्रितम् बुरी नसीहत, बुरा परामर्श,-मरणम् बुरी मौत, अप्राकृतिक मृत्यु,-मर्याद (वि०) निर्लज्ज, अशिष्ट, -मल्लिका,---मल्ली एक प्रकार का उपरूपक, सुखान्त प्रहसन-सा० द० ५५३,--मित्रः 1. बुरा दोस्त 2. शत्रु,-मुख (वि.) बुरे चेहरे वाला, विकराल, बदसूरत-भर्तृ० १।९० 2. कटुभाषी, अश्लीलभाषी बदज़बान -भर्तृ० २।६९,-मूल्य (वि.) बहुत अधिक मूल्य का महंगा,-मेघस् (वि०) मूर्ख, बेवकूफ़, मन्दबुद्धि, बुद्धू (पुं०) मूढमति, मन्दबुद्धि मनुष्य, बुद्ध -ग्रन्थानधीत्य व्याकर्तुमिति दुर्मेचसोऽप्यलम् --शि. २।२६,-योध-योधन (वि.) अजेय, जो जीता न जा सके, (-नः) धृतराष्ट्र और गान्धारी का ज्येष्ठ पुत्र (दुर्योधन बचपन से ही अपने चचेरे भाई, पाण्डवों से घणा करता था, विशेष कर भीम से। इसलिए पाण्डवों का विनाश करने के लिए उसने यथाशक्ति प्रयत्न किये। जब उसके पिता धतराष्ट्र ने यधिष्ठिर को युवराज बनाने का प्रस्ताव रक्खा, तो दुर्योधन को अच्छा न लगा, क्योंकि धृतराष्ट्र ही उस समय राजा थे, इसलिए दुर्योधन ने अपने अन्धे पिता को इस बात पर राजी कर लिया कि पाण्डवों का निर्वासन कर दिया जाय। वारणावत' उनका भावी निवासस्थल चुना गया---और उनके रहने के लिए एक विशाल | महल बनवाने के बहाने दुर्योधन ने लाख, बेर्जा आदि दहनशील सामग्री से एक भवन इस आशा से बनवाया कि पाण्डव सब उसमें जल कर मर जायेंगे। परन्तु पाण्डवों को दुर्योधन की इस चाल का पता लग गया था, अतः वह सुरक्षित उस भवन से निकल भागे। फिर पाण्डव इन्द्रप्रस्थ में रहने लगे- यहाँ रहते हुए उन्होंने बड़े ठाट बाट के साथ एक राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इस घटना ने दुर्योधन की ईर्ष्या और क्रोधाग्नि को और भी अधिक भड़का दियाक्योंकि दुर्योधन का पाण्डवों को वारणावत में जला कर मारने का षड़यन्त्र पहले ही निष्फल हो चुका था। फलतः दुर्योधन ने अपने पिता को उकसाया कि पांडवों को हस्तिनापुर में आकर जआ खेलने के लिए निमन्त्रण दिया जाय क्योंकि युधिष्ठिर विशेष रूप से जए का शौक़ीन था। इस जूए के खेल में दुर्योधन को अपने मामा शकुनि की सहायता प्राप्त थी। युधिष्ठिर ने जो कुछ भी दाँव पर लगाया-वही हार गया, यहाँ तक कि इस हार से अन्धे होकर उसने अपने आप को, अपने भाइयों को और अन्त में द्रौपदी को भी दाँगपर लगा दिया। और इस प्रकार जुए में सब कुछ हार जाने पर, शर्त के अनुसार यधिष्ठिर को १२ वर्ष का बनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास बिताने के लिए अपनी पत्नी तथा भाइयों सहित जंगल की ओर जाना पड़ा। परन्तु यह दीर्घकाल भी समाप्त हो गया। बनवास से आकर पाण्डव और कौरवों ने 'भारती' नाम के महायुद्ध की तैयारी की। यह युद्ध १८ दिन रहा और सारे कौरव अपने अधिकांश बन्धुबान्धवों सहित इसी युद्ध में मारे गये। युद्ध के अन्तिम दिन भीम का दुर्योधन से द्वन्द्व युद्ध हुआ और भीम ने अपनी गदा से दुर्योधन को जंघा तोड़ कर उसे मौत के घाट पहुँचाया),-योनि (वि.) नीच जाति में उत्पन्न, अधम कुल का,-लक्ष्य (वि०) जो कठिनाई से देखा जा सके, जो दिखाई न दे, लभ (वि.) 1. जिसका प्राप्त करना कठिन हो, दुष्प्राप्य, दुस्साध्य-रघु० १॥ ६७, १७७०, कु० ४१४०, ५।४६,६१ 2. जिसका ढूंढना कठिन हो, जिसका मिलना दुष्कर हो, विरल -- शुद्धान्तदुर्लभम्-श० १।१६ 3. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ, प्रमुख 4. प्रिय, प्यारा 5. मल्यवान् - ललित (वि.) लाड प्यार से बिगड़ा हुआ, अत्यधिक लाड प्यार में पला हुआ, जिसे प्रसन्न करना कठिन है, हा मबङ्कदुर्ललित-वेणी०~-४, विक्रम २।८, मा० ९ 2. (अतः) स्वेच्छाचारी, नटखट, अशिष्ट, उच्छंखल ---स्पृह्यामि खलु दुर्ललितायास्मै-श०७, (-तम्) स्वेच्छाचारिता, अक्खड़पन, लेख्यम् जाली दस्तावेज, -वच (वि.) 1. जिसका वर्णन करना कठिन हो, For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६६ ) अवर्णनीय 2. वह बात जिसका बतलाना उचित न हो | दुरोवरः [दुष्टमासमन्तात् उदरं यस्य ब० स०] 1. जूआरी, 3. अनुचित बोलने वाला, गाली देने वाला, (-चम्) द्यूतकार 2. पासा, जूआ 3. बाजी, दाँव,--रम् जूआ गाली, फटकार, दुर्वचन,--वचस(नपुं०) गाली, झिड़क, खेलना, पासे से खेलना--दुरोदरच्छाजितां समीहते --वर्ण (वि०) बुरे रंग का, (-र्णम) चाँदी,-वसतिः नयेन जेतुं जगतीं सुयोधनः-कि० १७, रघु० ९/७ । (स्त्री०) पीडाजनक निवासस्थान-रघु० ८।९४,--वह दुल (चुरा० उभ०-दोलयति-ते, दोलित) झूलना इधर(वि०) भारी, जिसे ढोना कठिन हो--उत्तर० २११०, उधर हिलना-जुलना, इधर उधर घुमाना, झुलाना कु. १।१०,-वाच्य (वि०) 1. जिसका कहना या --कटिं चेहोलयेदाशु-रति०, दोलयन द्वाविवाक्षौ-भर्त. उच्चारण करना कठिन हो 2. कुभाषी, बदज़बान ३१३९ 2. हिलाकर ऊपर को करना, ऊपर फेंकना 3. कठोर, क्रूर, (च्यम्) 1. झिड़की, दुर्वचन 2. बद- -दोलयति धूलि वायु:---शब्द० । नामी, लोकापवाद,- बादः अपवाद, अपयश, कुख्याति, | बुलिः (स्त्री०) [दुल+कि छोटा कछुवा, या कछुवी। --वार,-वारण (वि०) जिसका मुकाबला न किया दुष् (दिवा० पर०-दुष्यति, दुष्ट) 1. बुरा या भ्रष्ट हो जा सके, असह्य-रघु० १४१८७, कु०२।२१, वासना जाना, दूषित होना, घाटा उठाना 2. मलिन होना, 1. ओछी कामना, बुरी इच्छा-भामि० १८६ असती होना (स्त्री का), कलंकित होना, अपवित्र होना, 2. कपोलकल्पना,-वासस् (वि.) 1. बुरा वस्त्र विगड़ना, पंच० ११६६, मनु० ७५२४, ९।३१८, १०॥ धारण किये हुए 2. नंगा (0) 3. एक बड़ा क्रोधी १०२ 3. पाप करना, गलती करना, गलती होना, ऋषि, अत्रि और अनसूया का पुत्र इसे प्रसन्न करना । 4. असती होना, अभक्त या श्रद्धाहीन होना--प्रेरक अत्यन्त कठिन था, बहुत से स्त्री पुरुयों को उसने --दूषयति (परन्तु-दूषयति-दोषयति यदि अर्थ है अपमान तथा मुसीबत सहन करने के लिए शाप दिया। 'दूषित करना, भ्रष्ट करना) 1. भ्रष्ट करना, बिगाजमदग्नि के क्रोध की भाँति, इसका क्रोध भी प्रायः ड़ना, नष्ट कराना, क्षतिग्रस्त करना, विनष्ट करना, एक लोकोक्ति बन गया,-विगाह --विगाह्य (वि०) दूषित करना, धब्बा लगाना, कलंकित करना, विषाक्त जिसमें प्रवेश करना कठिन, हो, जिसका अवगाहन करना, अपवित्र करना--(शा० तथा आलं० से)-न मुश्किल हो, अगाध, ..विचिन्त्य (वि०) अचिन्तनीय, भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितं यशः----मच्छ० १०॥ अतयं,-विदग्ध अकुशल, नौसिखुवा, बेवकूफ़, मन्द- २७, पुरा दूषयति स्थलीम्--रघु० १२१३०, ८१६८, बुद्धि, मूर्ख 2. बिल्कुल अनाड़ी 3. थोड़े से ज्ञान से ही १०१४७, १२१४, मनु० ५।१, १०४, ७.१९५, याज्ञ० फूला हुआ, गर्वित, झूठा घमण्ड करने वाला-वृथाशस्त्र १११८९, अमरु ७० ---न त्वेनं दूषयिष्यामि शस्त्रग्रहग्रहणदुर्विदग्ध-वेणी० ३, ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि, महाव्रतम् - महावी० ३।२८,--दूषित नहीं करूँगा, नरं न रंजयति --भर्त० २१३,-विध (वि०) 1. कमीना, उल्लंघन नहीं करूंगा, तोडूंगा नहीं आदि 2. चरित्र अधम, नीच 2. दुष्ट, दुश्चरित्र 3. गरीब, दरिद्र भ्रष्ट करना, उत्साह भंग करना 3. उल्लंघन करना, ---विदधाते रुचिगर्वदुर्विध-० २।३३ 4. मन्दबुद्धि, अवज्ञा करना--मनु० ८।३६४, ३६८ 4. निराकरण मूर्ख, बेवकूफ़,--विनयः औद्धत्य, उद्दण्डता,--विनीत करना, हटा देना, रद्द कर देना 5. दोष लगाना, निन्दा (वि०) 1. (क) बुरी तरह से शिक्षित, अशिष्ट, करना, दोष निकालना, किसी के विषय में बुरा कहना असभ्य, दुष्ट-शासितरि दुविनीतानाम्-श० ११२५, दोषारोपण करना-दूषितः सर्वलोकेषु निषादत्वं गमि(ख) अक्खड़, नटखट, उपद्रवी 2. हठीला, दुराग्रही प्यति-रामा०, याज्ञ. ११६६ 6. मिलावट करना -विपाकः 1. दुष्परिणाम, बुरा नतीजा-उत्तर० 7. मिथ्या या बनावटी करना 8. निराकरण करना, ११४०, महावी० ६७ 2. पूर्व जन्म के या इस जन्म खण्डन करना, प्र--, 1. भ्रष्ट होना, बिगड़ना, के किये हुए कर्मों का बुरा परिणाम,-विलसितम् विषाक्त होना-याज्ञ० ३.१९ 2. पाप करना, गलती स्वेच्छाचार, अक्खड़पन, नटखटपना,--वृत्त (वि०) करना, श्रद्धाहीन या असती (अभक्त) होना-भग० 1. दुश्चरित्र, दुष्ट, असभ्य 2. बदमास, (तम्) दुरा- ११४०, मनु० ९।७४,(प्रेर०)1. बिगाड़ना, भ्रष्ट करना, चरण, अशिष्ट व्यवहार,-वृष्टिः (स्त्री०) थोड़ी | गदला करना, धब्बे लगाना 2. दोष लगाना, निन्दा बारिश, अनावृष्टि, व्यवहारः गलत निर्णय (विधि में) करना, दोष निकालना सम्... दूषित या कलंकित होना ---ात (वि०) नियमों का पालन न करने वाला, जो | --(प्रेर०) 1. दूषित करना भ्रष्ट करना, गदला आज्ञाकारी न हो,- हुतम् वह यज्ञ जो बुरी रीति से | करना, धब्बे लगाना 2. उल्लंघन करना 3. दोषारोपण किया गया है, हृद् (वि०) दुष्ट हृदय का, तुच्छ | करना, निन्दा करना, दोष निकालना। विचारों वाला, शत्रु (पुं०) वैरी, हृदय (वि.) | तुष्ट (भू० क० कृ०) [दूषु + क्त] 1. बिगड़ा हुआ, खराब दुरात्मा, दिल का खोटा, दुष्ट । हुआ, क्षतिग्रस्त, बाँद 2. दूषित, बब्चे लगा हुआ, For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६७ ) उल्लंघन किया हुआ, कलुषित 3. मलिन, भ्रष्ट । 4. पापासक्त, बदमाश-दुष्टवषः 5. दोषी, अपराधी 6. नीच, अधम 7. दोषयुक्त, सदोष जैसा कि तर्क० में हेतु 8. पीड़ाकर, निकम्मा। सम० ----आत्मन्, -आशय (वि०) खोटे मन वाला, दुष्ट हृदय वाला, -गजः बदमाश हाथी,-चेतस्,-धी,--बुद्धि (वि०) खोटे मन का, दुर्भाक्नापूर्ण, दुःशील,--वृषः मजबूत परन्तु अड़ियल बैल, (जो गाड़ी न खींचे) बैल। दुष्टिः (स्त्री०) [दुष+क्तिन] भ्रष्टाचार, खोट । दुष्टु (अव्य०) [दुर+स्था+कि] 1. खराब, बुरा 2. अनु चित रूप से, अशुद्ध रूप से, गलती से । वुष्यन्तः (पु.) चन्द्रवंश में उत्पन्न एक राजा, पुरु की सन्तान, शकुन्तला का पति, भरत का पिता (जंगल में शिकार खेलता हुआ, एक बार दुष्यन्त, हरिण का पीछा करता हुआ कण्व के आश्रम की ओर निकल गया। वहाँ कण्व की गोद ली हुई पुत्री शकुन्तला ने उसका स्वागत-सत्कार किया। शकुन्तला के अलौकिक सौन्दर्य से राजा दुष्यन्त उस पर मोहित हो गया—उसने उसको अपनी रानी बनाने के लिए राजी कर लिया और फलतः गान्धर्व विवाह कर लिया। कुछ समय शकुन्तला के साथ बिता कर राजा अपनी राजधानी को लौटा। कुछ महीनों के पश्चात् शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया। कण्व ने यह उचित समझा कि शकुन्तला को उसके पति के घर भेज दिया जाय । जब शकुन्तला दुष्यन्त के पास गई और उसके सामने खड़ी हुई तो दुष्यन्त ने लोकनिन्दा के डर से कहा कि विवाह करने की बात तो दूर रही मैंने तो तुम्हें कभी देखा तक नहीं, परन्तु उसी समय उसे स्वर्गीय । वाणी ने बतलाया कि शकुन्तला उसकी वैध पत्नी है। फलतः उसने शकुन्तला को पुत्र समेत स्वीकार कर उसे अपनी पटरानी बनाया। वह राजा रानी वृद्धावस्था तक सुखपूर्वक रहे, और फिर अपने पुत्र भरत को राज्य देकर जंगल की ओर चल दिये। दूप्यन्त और शकुन्तला का उपयुक्त वर्णन महाभारत में दिया हुआ है, कालिदास द्वारा वणित कहानी कई महत्त्व पूर्ण बातों में इससे भिन्न है-दे० 'शकुन्तला')। दुस [ दु+सुक ] 'बुरा, खराब, दुष्ट, घटिया, कठिन या । मुश्किल आदि अर्थों को प्रकट करने के लिए मंशा शब्दों से पूर्व (कभी २ धातुओं के पूर्व भी) लगाया जाने वाला उपसर्ग। (विशे० स्वर और व्यंजनों से पूर्व दुस् का स् बदल कर र हो जाता है, ऊपम वर्गों के पूर्व विसर्ग, च और छ से पूर्व श तथा क और प् से पूर्व षु हो जाता है)। सम-कर (वि.) 1. दुष्ट, बुरी तरह से करने वाला 2. करने में कठिन, कठोर । या मुश्किल वक्तुं सुकरं कर्तु दुष्करम्—करने की अपेक्षा कहना आसान है,---अमरु ४१, मृच्छ० ३।१, मनु०७।५५, (--रम) 1. कठिन या पीड़ाकर कार्य, कठिनाई 2. पर्यावरण, अन्तरिक्ष,--कर्मन (पं०) कोई भी बुरा काम, पाप, जुर्म,-- कालः 1. बुरा समय -मुद्रा० ७५ 2. प्रलयकाल 3. शिव का विशेषण, -कुलम् बुरा या नीच घराना---(आददीत) स्त्रीरत्न दुष्कुलादपि ---मनु० २।२३८, कुलीन (वि०) नीच जाति में उत्पन्न,-कृत् (पुं०) दुष्टपुरुप, कृतम्,-कृतिः (स्त्री०) पाप, दुष्कृत्य-उभे सुकृतदुप्कृते ---भग० २। ५०,-क्रम (वि०) ऋमहीन, अस्तव्यस्त, अव्यवस्थित, -चर (वि०) 1. जिसका पूरा करना कठिन हो, मुश्किल --रघु० ८७९, कु०७।६५ 2. अगम्य, दुर्गम 3. बुरा करने वाला, दुर्व्यवहार करने वाला, (-रः) 1. रीछ 2. द्विकोपीय शंख या सीपी, चारिन् (वि०) कठोर तपस्या करने वाला,-चरित (वि०) दुष्ट, दुराचरण करने वाला, परित्यक्त (तम्) दुराचरण, बुरा चालचलन, चिकित्स्य (वि०) जिसका इलाज करना कठिन हो, असाध्य,--च्यवनः इन्द्र का विशेषण, ... च्यायः शिव का विशेषण,--तर (वि०) (दुष्टर या दुस्तर) 1. जिसका पार करना कठिन हो-रघु० ११२, मनु० ४।२४२, पंच० १११११ 2. जिसका दमन करना कठिन हो, अपराजेय, अजेय,---तर्कः मिथ्या तर्कना. -पच (दुष्पच) (वि.) जिसका हजम होना कठिन हो,-पतनम् 1. बुरी तरह से गिरना 2. दुर्वचन, अपशब्द,-परिग्रह (वि.) जिसका पकड़ना, ग्रहण करना या लेना कठिन हो, (-हः) बुरी पत्नी,—पूर (वि.) जिसका पूरा करना, या जिसको सन्तुष्ट करना कठिन हो,-प्रकाश (वि०) अप्रसिद्ध, अन्धकारमय, मिल, ..प्रकृति (वि.) बुरे स्वभाव का, नीच प्रकृति का, ....प्रजस् (वि.) बुरी सन्तान वाला,--प्रज्ञ (दुष्प्रज्ञ) (वि०) कमजोर मन का, दुर्बुद्धि,---प्रधर्ष,-प्रधृष्य (वि.) जिस पर प्रहार न किया जा सके, दे० 'दुर्धर्ष' -- रघु०२।२७,----प्रवादः बदनामी, कलंक, अपकीर्ति, --प्रवृत्तिः (स्त्री०) बुरा समाचार, कुख्याति -रघु० १२१५१,–प्रसह (दुष्प्रसह) (वि.) 1. जिसका प्रतिरोध न किया जा सके, भयानक 2. असह्य-मालवि. ५।१०,--प्राप,—प्रापण (वि०) अप्राप्य, दुष्प्राप्य ----- रघु० ११४८, भग०६।३६,-कुनम् बुरा सगुन, अपशकुन,-शला धृतराष्ट्र की इकलौती पुत्री जो जयद्रथ को ब्याही गई थी,---शासन (वि०) जिसका प्रबन्ध करना या शासन करना कठिन हो, अविनेय, (नः) धृतराष्ट्र के १०० पुत्रों में से एक (यह बहादुर योद्धा था, परन्तु दुष्ट और दुर्दान्त । जब युधिष्ठिर द्रौपदी को दाँव पर लगा कर हार गया तो दुःशासन For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६८ ) PETEREST उसकी चोटी पकड़ कर उसे भरी सभा में खींच लाया, ] दुहित (स्त्री०) [ दुह+तृच् ] बेटी, पुत्री। सम०-पतिः वहाँ उसने उसे विवस्त्र करना चाहा, परन्तु दीन | 'दुहितुः पतिः' भी) जामाता, दामाद । दुःखियों के सहायक श्रीकृष्ण ने उसका चीर बढ़ा कर | (दिवा० आ० यते, दून) 1. कष्टग्रस्त होना, पीडित उसकी लज्जा की रक्षा की। दुःशासन के इस जघन्य होना, खिन्न होना--न दूये सात्वतीसूनुर्यन्मह्यमपराकृत्य से भीम इतना उत्तेजित हो गया कि उसने भरी ध्यति-शि० २०११, कथमथ वंचयसे जनमनुगतमसमसभा में प्रतिज्ञा की 'कि मै तब तक सुख की नींद न शरज्वरदून- गीत० ८, कष्टग्रस्त, दुःखी--दे० 'दु' सोऊंगा जब तक इस दुष्ट दुःशासन का खून न पी लूं। (कर्मवा०) 2. पीडा देना। महाभारत युद्ध के १६ वें दिन भीम का दुःशासन से । दूतः, दूतक: [दु+क्त, दीर्घश्च, दूत-+कन् ] सन्देशहर, सामना हुआ। भीम ने एक ही पछाड़ में दुःशासन संदेशवाहक, राजदूत-चाण० १०६ । सम०–मुख का काम तमाम कर दिया-- और उसका खून पीकर (वि०) राजदूत के द्वारा बात करन वाला। अपनी प्रतिज्ञा पूरी की),-शील (दुश्शील) (वि०)। | दूतिका, दूतीः [ दू+ति-कन्+टाप्, दूति + ङीष् ] गुण्डा, दुराचारी, बदमाश,—सम (दुःसम या दुस्सम) 1. संदेशवाहिका रहस्य की (गुप्त) बातें जानने वाली (वि.) 1. असम, असमान, असदृश 2. प्रतिकूल, 2. प्रेमी और प्रेमिका से बातचीत कराने वाली, कुटनी दर्भाग्यपूर्ण 3. अनिष्टकर, अनुचित, बुरा,-समम् (विशे० दूती का 'ती' कभी कभी ह्रस्व हो जाता है (अव्य०) बुरी तरह से, दुष्टतापूर्वक,-सत्वम् दुष्ट --दे० रघु० १८१५३, १९।१८, कु० ४।१६, और प्राणी,-सन्धान,- सन्धेय (वि०) जिनका मिलना या इसके ऊपर मल्लि०)। जिनमें सुलह कराना कठिन हो,---सह (दुस्सह) (वि०) । दूत्यम् [ दूतस्य भाव:-दूत (ती)+यत् ] 1. किसी दूत असह्य, अप्रतिरोध्य, असमर्थनीय,-साक्षिन् (पुं०) का नियुक्त करना 2. दूतालय 3. संदेश । सूठा गवाह, साध,-साध्य (वि०) 1. जिसका पूरा | दून (वि.) [दू+क्त, नत्वम् ] पीडित, कष्टग्रस्त, आदि, होना कठिन हो 2. जिसका इलाज करना कठिन हो दे० 'दु' और 'दू' के नीचे । 3. जिसपर विजय न प्राप्त की जा सके, ---स्थ,-स्थित दूर (वि.) [ दुःखेन ईयते-दुर्+इण्+रक्, धातोः (वि.) ['दुस्थ' या 'दुस्थित' भी लिखा जाता है। लोपः ] (म० अ० दवीयस्, उ० अ० दविष्ठ) दूरस्थ, 1. दुर्दशाग्रस्त, गरीब, दयनीय 2. पीड़ित, विषण्ण, दूरवर्ती, फासले पर, दूरस्थित, विप्रकृष्ट---किं दूरं दुःखी 3. अस्वस्थ, रुग्ण 4. अस्थिर, अशान्त 5. मूर्ख, व्यवसायिनाम्- चाण० ७३, न योजनशतं दूरं वाह्यबुद्धिहीन, अज्ञानी, (अव्य०-स्थम्) बुरी तरह से, मानस्य तृष्णया--हि० १११४६, ४९,-रम् दूरी, अधूरे ढंग से, अपूर्ण रूप से,-स्थितिः (स्त्री०) 1. दुर्दशा, फासला ('दूर' शब्द के अप्रधान कारक के कुछ रूप विषण्णता, दयनीयता 2. अस्थिरता, स्पृष्टम् (दुस्पृ- निम्नलिखित रूप से क्रिया विशेषण की भांति प्रयुक्त ष्टम्) 1. ईषत्स्पर्श या सम्पर्क 2. जिह्वा का ईषत् होते हैं-(क) दूरम् 1. फ़ासले पर, विप्रकृष्ट, दूरी पर स्पर्श या प्रयत्न जिससे य, र, ल तथा व् की ध्वनि (अपा० या संबं० के साथ)-ग्रामात् वा ग्रामस्य दूरं निकलती है,-स्मर (वि.) जिसका याद रखना कठिन --सिद्धा० 2. ऊपर ऊँचाई पर 3. नीचे गहराई में या पीड़ा कर हो-उत्तर० ६।३४,-स्वप्नः बुरा स्वप्न । 4. अत्यंत, अत्यधिक, बहुत ज्यादह-नेत्रे दूरमनजने यह (अदा० उभ०-दोग्धि, दुग्धे, दुग्ध) दोहना, निचोड़ना, ---सा० द. 5. पूर्णरूप से, पूरीतरह से,-निमग्नां दूर उद्धृत करना (द्विक० के साथ)--भास्वन्ति रत्नानि मम्मसि-कथा० १०।२९, दूरमुख़्ततापा:-मेघ० ५५, - महौषधीश्च पृथूपदिष्टां दुदुहुर्धरित्रीम्- कु. १२, यः (ख) दूरेण 1. दूर, दूरवर्ती स्थान से, दूर से,---खल: पयो दोधि पाषाणं स रामाद्भुतिमाप्नुयात्-भट्रि. कापटचदोषेण दूरेणव विसृज्यते--भामि० ११७८ ८1८२, पयो घटोनीरपि गोंदु हन्ति-१२।७३, रघु० 2. कहीं अधिक, अत्यधिक ऊँचाई पर-दूरेण ह्यवरं ५।३३ 2. किसी वस्तु में से कोई दूसरी चीज निका- कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय-भग० २।४९, रघु० १०॥३० लना,-(द्विक० के साथ)-प्राणान्दुहन्निवात्मानं शोक अने. पा. (ग) दूरात् 1. फासले से, दूरी से,--प्रक्षाचित्तमवारुषत्-भट्टि० ८१९ 3. छान कर निकाल लनाद्धि पक्षस्य दूरादस्पर्शनं वरम्, दूरादागतः-दूर से लेना, लाभ उठाना-दुदोह गां स यज्ञाय शस्याय आया हुआ (यह समस्त पद समझा जाता है)-नदीयमघवा दिवम्-रघु० ११२६ 4. (अपेक्षित पदार्थ) मभितो......... दूरात्परित्यज्यताम्-भर्तृ० १३८१, प्रदान करना कामान्दुग्धे विप्रकर्षत्यलक्ष्मीम्-उत्तर० रघु० ११६१ 2. सूक्ष्म दृष्टि से 3. सुदूर पूर्व काल से ५।३१ 5. उपभोग करना-प्रेर० दोहयति-दुहाना, (घ) दूरे, दूर, फ़ासले पर, दूरवर्ती स्थान पर-न मे इच्छा०-दुधुक्षति, दुहने की इच्छा करना-राजन् । दूरे किचित्क्षणमपि न पावें रथजवात्-श० ११९, पुलसि यदि क्षितिधेनुमेनाम्-भर्तृ० २०५६ । । भोः श्रेष्ठिन् शिरसि भयमतिदूरे तत्प्रतीकारः-मुद्रा० FEEEEEEEEEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १, भर्तृ० ३३८८, दूरीकृ-1. फ़ासले पर हटा देना, । दूलिका, दूली [दूली+कन्+टाप, ह्रस्वः, दूर+अ+ हटाना' दूर करना,-आश्रमे दूरीकृतश्रमे---दश० ५, ङीष, रस्य ल:] नील का पौधा । भामि० १।१२२ 2. वंचित करना अलग करना दूष (वि०) [दूष+णिच् + अच्] (समासान्त में प्रयुक्त) --मृच्छ० ९।४ 3. रोकना, परे करना 4. आगे बढ़ | दूषित करने वाला, अपवित्र करने वाला-दा. जाना, पीछे छोड़ जाना, दूर रखना-श० १११७, 'पंक्तिदूष'। इसी प्रकार दूरीभू-दूर रहना, परे रहना, अलग | दूषक (वि०)(स्त्री०-षिका) [दूष+णि+ण्वुल] 1. भ्रष्टारहना, फ़ासले पर रहना-दूरीभते मयि सहचरे चक्र- चार करने वाला, अपवित्र करने वाला, विषाक्त करने वाकीमिवैकाम् । सम०-अन्तरित (वि.) लम्बी वाला, दूषित करने वाला, बिगाड़ने वाला 2. उल्लंघन दूरी होने से वियुक्त,-आपातः दूर से निशाना लगाना करन वाला, अवज्ञा करने वाला, गुमराह करने वाला ---आप्लाव (वि०) दूर तक कूदने वाला, लम्बी 3. अपराध करने वाला, अतिक्रमण करने वाला, छलांग लगाने वाला,---आरुढ (वि०) 1. ऊँचाई पर अपराधी 4. आकृति बिगाड़ने वाला 5. पापी, दुष्कृत, चढ़ा हुआ, दूर तक आगे बढ़ा हुआ 2. गहरा, उत्कट --कः कुपथ पर चलाने वाला, भ्रष्ट करने वाला, -दूरारूढ़ः खलु प्रणयोऽसहन:--विक्रम०४,---ईरितेक्षण बदनाम या दुष्ट पुरुष । (वि.) भंगी दृष्टि वाला,- गत (वि.) दूर हटा दूषणम् [दूष-+ल्युट्] 1. बिगाड़ना, भ्रष्ट करना, विषाक्त हुआ, दूरस्थ, दूर गया हुआ, आगे तक बढ़ा हुआ, करना, बर्बाद करना, अपवित्र करना आदि 2. उल्लंघन गहराई तक गया हुआ-दूरगतमन्मथाऽक्षमेयं काल- करना, तोड़ना (समझौता आदि) 3. पथभ्रष्ट करना, हरगस्य----श० ३,-ग्रहणम् दूरस्थित पदार्थों को भी बलात्कार करना, सतीत्व नष्ट करना 4. गाली देना, देखने की दिव्य शक्ति,--दर्शन: 1. गिद्ध 2. विद्वान् निन्दा करना, कलंकित करना-रघु० १२१४६ पुरुष, पण्डित, दशिन् (वि०) दूर की देखने वाला, 5. बदनामी, अप्रतिष्ठा 6. विपरीत आलोचना, आक्षेप अग्रदृष्टि, वुद्धिमान् (-पुं०) 1. गिद्ध 2. विद्वान् पुरुष 7. निराकरण 8. दोष, अपराध, त्रुटि, पाप, जुर्म 3. द्रष्टा, पैगम्बर ऋषि,-दृष्टि: दूर तक देखने की ---नोलकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् शक्ति 2. बुद्धिमत्ता, अग्रदृष्टि,-पातः 1. दूर तक - भर्तृ० २।९३, हा हा धिक् परगृहवासदूषणं-उत्तर गिरना 2. दूर की उड़ान 3. बहुत ऊँचाई से गिरना, ११४०, मनु० २।२१३, हि० १९८, ११५, २११८०, -पात्र (वि०) विस्तृत पाट वाला (नद आदि) ---णः एक राक्षस, रावण की सेना का एक नायक -पार (वि०) 1. बहुत चौड़ा (दरिया) 2. जो जिसे भगवान राम ने मार गिराया था। सम०-अदित कठिनाई से पार किया जा सके,-बन्धु (वि०) पत्नी राम का विशेषण,-आवह (वि.) कलंक में किसी तथा अन्य भाई बन्धुओं से निर्वासित ..... मेघ०६, को फंसाने वाला। -भाज् (वि०) दूरवर्ती, फ़ासले पर विद्यमान,-वर्तिन | दूषिः, --बी (स्त्री०) [दूष+णिच् +इन, दृषि+कीष] (वि.) दूरी पर विद्यमान, दूर हटाया हुआ, दूरस्थ, __ ढीढ, आँख का कीचड़। फासले पर,-वस्त्रक (वि०) नंगा, -विलम्बिन् (वि०) | दषिका [दृषिकन+टाप] 1. लेखनी, चित्रकार की कंची नीचे दूर तक लटकने वाला,-वेधिन् (वि०) दूर से 2. एक प्रकार का चावल 3. ढीढ, आँखों का कीचड़। ही बींधने वाला,—संस्थ (वि०) दूरी पर विद्यमान | बूषित (वि.) [दूष् + णिच्-क्त] 1. भ्रष्ट, दूषित, विकृत फासले पर, दूरवर्ती --कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने कि | 2. चोटिल, क्षतिग्रस्त 3. अपहत, हतोत्साहित 4. कलंपुनरसंस्थे-मेघ० ३। कित, बदनाम 5. मिथ्यादोषारोपित, बदनाम, निन्दित। दूरतः (अव्य०) [दूर+तस्] 1. दूर से, फ़ासले से-तद्राज्यं | दूष्य (वि.) [दूष-+-णिच्+यत्] 1. भ्रष्ट होने के योग्य दूरतस्त्यजेत्-- पंच० ५।६९, वहति च परीतार्प दोष 2. गर्हणीय, दण्डनीय, दूषनीय-व्यम् 1. मवाद, राद विमुञ्चति दूरतः-गीत० २ 2. दूर, फ़ासले पर ! 2. विष 3. कपास 4. पोशाक, वस्त्र 5. तम्बू-शि० - पंच० १।९। १२।६५,-व्या हाथी का चमड़े का तंग। दूरेत्य (वि.) [दूरे भवः--दूर+एत्य] दूरी पर मौजूद, | द (तुदा० आ०-द्रियते, द्रित, इच्छा० दिदरिषते) दूर से आया हुआ। (इसका स्वतन्त्र प्रयोग विरल है-प्रायः आ उपसर्ग सूर्यम् [दूरे उत्सार्यम्-दूर-+यत्] विष्ठा, मैला । लग कर प्रयुक्त होता है) आदर करना, सम्मान करना, दूर्वा दुर्व+अ+टाप, दीर्घः] भूमि पर फैलने वाली एक पूजा करना, प्रतिष्ठा करना-द्वितीयाद्रियते सदा घास, दूब (यह घास देव पूजा के लिए पवित्र समझी __-हि०प्र० ७, मुद्रा० ७१३, भट्टि० ६५५ 2. रखजाती है)। सम-अकुर दूब के कोमल पत्ते वाली करना, मन लगाना (प्रायः --'न' के साथ) ---विक्रम ३।१२। 3. अपने आप के अच्छी तरह लगाना, संलग्न करना, For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ४७० ) ध्यान रखना-भूरि श्रुतं शाश्वतमाद्रियन्ते-मा० १।। ९९, याज्ञ० ३।२६८ 2. मछली 3. खाल, चमड़ा ५4. इच्छा करना। 4. धौंकनी। सम-हरिः कुत्ता। वह i (म्वा० पर०--हति, इंहित) 1. पुष्ट करना, | वृन्फः (स्त्री०) [दृम्फ् +-कू नि.] साँप, वज्र । 2. समर्थन करना। दन्भः दिम्फ+कू नि०] 1. इन्द्र का वज़ 2. सूर्य 3. राजा ii (म्वा० आ०) 1. दृढ़ होना 2. विकसित होना या । यम, मृत्यु का देवता, अन्तक । बढ़ना। दप (म्वा० पर०, चुरा० उभ०--दर्पति, दर्पयति--ते) इंहित (भू० क० कृ०) दंह,+क्त] 1. पुष्ट किया गया, प्रकाशित करना, प्रज्वलित करना, सुलगाना । सथित, 2. विकसित, वर्षित। ii (दिवा० पर०-दृप्यति, दप्त) 1. घमण्ड करना, दकम् [+कक्] छिद्र, सूराख । अहंकार करना, ढीठ होना,—स किल नात्मना दृष्यति वृद्ध (वि.) [दृह,+क्त] 1. स्थिर, दृढ़, मजबूत, अचल, -उत्तर०, दृप्यदानवदूयमानदिविषदुरदुःखापदोम् अथक-भग० १५.३, हि० ३३६५, रघु० १३१७८ --गीत०९ 2. अत्यन्त प्रसन्न होना, 3. असभ्य या 2. ठोस, पिण्डाकार 3. संपुष्ट, स्थापित 4. स्थिर, दुर्दान्त होना। घेर्यशाली-भग०, ७।२८ 5. दृढ़ता पूर्वक बाँधा हुआ, | दुप्त (वि.) [दृप्+क्त] 1. घमण्डी, अहंकारी 2. मदोन्मत्त कस कर बन्द किया हुआ 6. सुसंहत 7. कसा हुआ, असभ्य, पागल। घनिष्ठ, सघन 8. मजबूत, गहन, बड़ा, अत्यधिक, | दृप्र (वि०) [ दृप्+रक् ] घमण्डी, अहंकारी, बलवान् ताक़तवर, कठोर, शक्तिशाली---तस्याः करिष्यामि | । शक्तिशाली। दृढ़ानुतापम् --कु० ३१८, रघु० ११०४६ 9. कड़ा दश (भ्वा० पर०-पश्यति, दृष्ट) 1. देखना, नजर डालना 10. (धनुष की भांति) झकाने या तानने में कठिन अवलोकन करना, समीक्षा करना, निहारना, दृष्टि11. टिकाऊ 12. विश्वासपात्र 13. निश्चित, अचूक, गोचर करना-द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम्-मेघ० १।१०, –वम् 1. लोहा 2. गढ़, किला 3. अधिकता, बहुतायत, १९, रघु० ३।४२ 2. निरीक्षण करना, सम्मान करना, ऊँचा दर्जा,-तुम् (अव्य०) 1. दृढ़तापूर्वक, कस कर विचार करना-आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः2. अत्यधिक, अत्यन्त, तेजी से 3. पूरी तरह से । सम० चाण० ५ 3. दर्शन करना, प्रतीक्षा करना, दर्शनार्थ –अङ्ग (वि०) मज़बूत अंगों वाला, हुष्टपुष्ट (गम्) जाना-प्रत्युद्ययो मुनि द्रष्टु ब्रह्माणमिव वासवः हीरा--इषुधि (वि.) मज़बूत तरकस रखने वाला, --रामा० 4. मन से दृष्टिगोचर करना, सीखना, ----काण्ड:-प्रन्थिः बाँस, प्राहिन (वि.) मज़बूती से जानना, समझना-मनु०१।११०, १२।२३ 5. निरीपकड़ने वाला अर्थात् हाथ धोकर काम के पीछे पड़ने क्षण करना, खोज करना 6. ढूंढना, अनुसन्धान करना, वाला,-वंशकः मगरमच्छ,-द्वार (वि.) बिल्कुल परीक्षा करना, निश्चय करना-याज्ञ. ११३२७, २। सुरक्षित दरवाजों वाला,-धनः बुद्ध का विशेषण, ३०५ 7. अन्तान की दिव्य दृष्टि से देखना-ऋषि--धन्वन,-धन्विन् (पुं०) अच्छा धनुर्धारी,-निश्चय दर्शनात्स्तोमान ददर्श --नि08. विवश होकर देखते (वि०) 1. दृढ़ संकल्प वाला, अडिग, अटल 2. पूष्ट, रहना--कर्मवा० दृश्यते 1. दिखलाई देना, दृष्टिगोचर -नीरः,-फल: नारियल का पेड़,-प्रतिज्ञ (वि.) होना, दर्शनीय होना, प्रकट होना-तव तच्चारु वपुर्न प्रण का पक्का, बात का धनी, सहमति पर निश्चल, दृश्यते-कु० ४।११३, रघु० ३।४०, भट्टि० ३.१९, --प्ररोहः गूलर का पेड़,-प्रहारिन् (वि.) 1. कड़ा मेघ० ११२ 2. प्रतीत होना, दृश्यमान होना, दिखाई प्रहार करने वाला 2. कस कर मारने वाला, अचूक देना, मालूम होना-रघु० ३।३४ 3. मिलना, दिखाई लक्ष्यवेध करने वाला,-भक्ति (वि०) निष्ठावान्, देना, घटित होना (पुस्तक आदि में)-द्वितीयामेडितांश्रद्धालु, मति (वि.) कृतसंकल्प, स्थिरबुद्धि, अडिग, न्तेषु ततोऽन्यत्रापि दृश्यते-सिद्धा०-इति प्रयोगो भाष्ये -मुष्टि (वि०) बन्दमुट्ठी वाला, कृपण, कंजूस, (ष्टिः) दृश्यते 4. खयाल किया जाना, माना जाना,-सामातलवार,—मूल: नारियल का पेड़,-लोमन् (पुं०) न्यप्रतिपत्तिपूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया—२०४।१६, जंगली सूअर,-वैरिन (पुं०) निर्दय शत्र, निष्करुण प्रेर०-दर्शयति-ते 1. किसी को (कर्म०, संप्र० या दुश्मन, व्रत (वि.) 1. धर्म साधना में अटल 2. अडिग संबं०) कोई चीज (कर्म०) देखने के लिए प्रेरित भक्त 3. धैर्यवान्, आग्रही,-सन्धि (वि.) 1. कस करना, दिखलाना, संकेत करना-दर्शय तं चौरसिंहम् कर जुड़ा हुआ, संघनता पूर्वक मिला हुआ 2. सघन, --पंच० १, दर्शयति भक्तान् हरिम्-सिद्धा० प्रत्यसंहत 3. सटा हुआ,-सौहर (वि.) अटल मित्रता भिज्ञानरत्नं च रामायादर्शयत्कृती-रघु० १२।६४, १॥ वाला। ४७, १३।२४, मनु० ४१५७ 2. सिद्ध करना, करके इतिः (पुं० स्त्री०) [+ति, ह्रस्वः] मशक,-मनु० २।।। दिखलाना,--भट्टि० १५।१२ 3. दिखलाना, प्रदर्शन For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७१ ) करना, दर्शनीय बनना -- तदेव मे दर्शय देव रूपम् ) - भग० ११।४५ 4. ( न्यायालय आदि में ) प्रस्तुत करना - मनु० ८।१५८ 5. ( साक्षी के रूप में ) उपस्थित करना -- अत्र श्रुति दर्शयति 6. ( आ० ) अपने आप को दिखलाना, प्रकट होना, अपनी कोई वस्तु दिखलाना - भवो भक्तान् दर्शयते - सिद्धा० ( अर्थात् स्वयमेव ), स्वां गृहेऽपि वनितां कथमास्यं ह्रीनिमोलि खलु दर्शयिताहे - नं० ५।७१ स सन्ततं दर्शयते गतस्मयः कृताधिपत्यामिव साधु बन्धुताम् कि० १ १०, इच्छा० -- दिदृक्षते - देखने की इच्छा करना, अनुभावदृश्य के रूप में देखना- प्रेर० 1. दिखलाना, प्रदर्शन करना 2. स्पष्ट करना, व्याख्या करना, आ, प्रेर० दिखलाना, संकेत करना - उत्कलादर्शितपथ: कलिंगाभिमुखो यो — रघु० ४१३८, उद्, प्रत्याशा करना, मुँह ताकना, आगे का देखना, मनोगत भाव देखना --- उत्पश्यतः सिंहनिपातमुग्रम् - रघु० २६०, उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं यियासोः कालक्षेप ककुभसुरभी पर्वते पर्वते ते मेघ० २२, उप-, देखना, अवलोकन करना--- प्रेर० सामने रखना, समाचार देना, परिचित करना - राज्ञः पुरो मामुपदर्श्य हि० ३, नयविर्निवे राज्ञि सदसच्चोपदर्शितम् - रघु ० ४ ॥ १०, नि, प्रेर० 1. दिखलाना, संकेत करना - रघु० ६४३१२. सिद्ध करना, करके दिखलाना 3. विचार करना, बातचीत करना, चर्चा करना (जैसे पुस्तकादिक में ) 4. अध्यापन करना 5. उदाहरण देकर समझाना दे० निदर्शना, प्र, प्रेर० 1. दिखलाना, संकेत करना खोज लेना, प्रदर्शित करना 2. सिद्ध करना, करके दिखलाना, सम्1. देखना, अवलोकन करना - भट्टि०१६/९ 2. भलीभाँति देखना, समीक्षा करना - प्रेर० दिखलाना, प्रदर्शित करना, खोज निकालना - आत्मानं मृतवत्संद - हि० १, भट्टि० ४/३३, मालवि० ४१९ । दृश् (वि० ) [ दृश् + क्विप् ] ( समासान्त में) 1. देखने वाला, ratक्षण करने वाला, सर्वेक्षण करने वाला, समीक्षा करने वाला 2. विवेचन करने वाला, जानने वाला 3. ( के समान) दिखलाई देने वाला, प्रतीत होने वाला ( स्त्री० ) 1. देखना, समीक्षा, दृष्टिगोचर करना, 2. आँख, दृष्टि - संदधे दृशमुदग्रतारकाम्- रघु० ११ ॥ ६९3. ज्ञान 4. 'दो' की संख्या 5. ग्रहदशा । सम० - अध्यक्षः सूर्य, - कर्ण: साँप - क्षयः दृष्टि की क्षीणता या हानि, धुंधला दिखाई देना, - गोचर: दृष्टि-परास, - जलम् आँसू, क्षेपः ज्या पराकोटि की दूरी की लम्बरेखा, -- पथः दृष्टिपरास, पातः दृष्टि, झलक, -प्रिया सौन्दर्य, प्रभा, भक्तिः (स्त्री० ) प्रेमदृष्टि, अनुरागभरी चितवन,लम्बनम् ऊर्ध्वाधर दिग्भेद, - विषः साँप, श्रुतिः सर्प, साँप । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृशद् (स्त्री० ) [दृषद्, पृषो०] पत्थर, दे० दृषद् । दृशा (दृश् + टाप्] आँख | सम० - आर्काक्ष्यम् – कमल, -- उपमम् श्वेत कमल । दृशानः [ दुश् + आनच् ] 1. आध्यात्मिक गुरु 2. ब्राह्मण 3. लोकपाल, नम् प्रकाश, उजाला । वृशिः, शी ( स्त्री० ) [ दृश् +इन्, दृशि + ङीष् ] 1. आँख शास्त्र | वृश्य (सं० कृ० ) 1. देखे जाने योग्य, दर्शनीय 2. देखने के 3. सुन्दर, दृष्टिसुखद, प्रिय- रघु० ६ ३१, कु० ७ ६४, - श्यम् दिखाई देन वाला पदार्थ - मालवि० १।९ । दृश्वन् ( वि० ) [ दृश् + क्वनिप् ] ( समासान्त में ) 1. देखने वाला, दृष्टिगोचर करने वाला 2. (आलं०) परिचित, जानकार जैसा कि 'श्रुतिपारदृश्वा - रघु० ५।२४ तथा विद्यानां पारदृश्वनः - १।२३ में । दृषद् (स्त्री० ) [दु + अदि, षुक्, ह्रस्वश्च ] 1. चट्टान, बड़ा पत्थर - मेघ० ५५, रघु० ४।७४, भर्तृ० ११३८ 2. चक्की का पत्थर, शिला ( जिस पर मसाला आदि पीसा जाय ) । - उपल: मसाला आदि पीसने के लिए सिल- ( दृषदिमायक: चक्कियों से लिया जाने वाला कर) । दृषद्वत् (वि० ) [ दृषद् + व्रत् ] पथरीला, चट्टान से बना हुआ,—ती एक नदी का नाम जो आर्यावर्त की पूर्वी सीमा बनाती है तथा सरस्वती नदी में मिलती है । तु० मनु० २।१७ | दृष्ट (भू० क० कृ० ) [ दृश् + क्त ] 1. देखा हुआ, अब लोकन किया हुआ, दृष्टिगोचर किया हुआ, पर्यवेक्षित निहारा हुआ 2. दर्शनीय, पर्यवेक्षणीय 3. माना गया, खयाल किया गया 4. घटित होने वाला, मिला हुआ 5. प्रकट होने वाला व्यक्त 6 जाना हुआ, मालूम किया हुआ 7. निर्धारित, निर्णीत निश्चित 8. वैध 9. नियत किया गया- दे० दृश्, ष्टम् डाकुओं से डर । सम० -- अन्तः, तम् 1. उदाहरण, निदर्शन, दृष्टांत कथा - पूर्णश्चन्द्रोदयाकांक्षी दृष्टान्तोऽत्र महार्णवः -- शि० २।३१ 2. (अलं० शा ० में) एक अलंकार जिसमें कोई उक्ति उदाहरण देकर समझाई जाय ( उपमा और प्रतिवस्तूपमा से भिन्न- दे० काव्य ० १०, और रस० ) 3. शास्त्र या विज्ञान 4. मृत्यु ( तु० दृष्टांत ), अर्थ ( वि० ) 1. जिसका अर्थ बिल्कुल स्पष्ट तथा व्यक्त हो 2. व्यावहारिक, कष्ट, दुःख जिसने मुसीबत झेली हों, कष्ट सहन करने का अभ्यस्त हो गया हो, कूटम् पहेली, गूढ़ प्रश्न - दोष (वि०) 1. जिसमें दोष देखा गया हो, जिसे अपराधी समझा गया हो 2. दुर्व्यसनी 3. जिसका भंडाफोड़ हो गया हो, जिसका पता लगा लिया गया हो, प्रत्यय ( वि० ). 1. विश्वास रखने वाला 2. विश्वस्त - रजस् (स्त्री० For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह कन्या जो रजस्वला हो गई हो,-व्यतिकर (वि.) दे (भ्वा० आ० दयते, दात--इच्छा दित्सते) रक्षा करना, 1. जिसने कष्ट और मुसीबते झेली हों 2. जो आने | पालना, पोसना। वाले अनिष्ट को पहले ही से भांप लेता है। देदीप्यमान (वि.) [दो+यह+शानच् ] अत्यंत चमक दृष्टिः (स्त्री०) [दृश्+क्तिन् ] 1. देखना, समीक्षण ने वाला, ज्योतिष्मान्, जगमगाता हुआ। 2. मन को आँख से देखना 3. जानना, ज्ञान 4. आँख, देय (वि०) [दा+यत्] 1. दिये जाने के लिए, उपहत देखने की शक्ति, नजर-केनेदानीं दृष्टं विलोभयामि किये जाने के लिए-रघु० ३३१६ 2. दिये जाने के .-विक्रम २, चलापानां दष्टिं स्पशसि-श० १।१४, योग्य, भेंट के लिए उपयक्त 3. वस्तु जो वापिस करने -दृष्टिस्तृणीकृतजगत्त्रयसत्त्वसाराउत्तर० ६।१९ । के लिए है, विभावितैकदेशेन देयं महदभियज्यते--विक्ररघु० २८, श० ४।२, देव दृष्टिप्रसादं कुरु-हि०१ मांक०४।१७, मनु० ८।१३९, १८५ । 5. नजर, चितवन 6. विचार, भाव --क्षद्रष्टिरेषा (भ्वा० आ०-देवते) 1. क्रीडा करना, खेलना, जूआ -का० १७३, एतां दृष्टिमवष्टभ्य-भग० १६८९ खेलना 2. विलाप करना 3. चमकना, परि-, बिलाप 1. विचार, आदर 8. बुद्धि, बुद्धिमत्ता, ज्ञान । सम० करना, शोक मनाना। -कृत,-कृतम् स्थलपद्म, कुंमुद,-क्षेपः निगाह डालना, देव (वि०) (स्त्री० ----वी) [दिव्+अच् ] दिव्य, स्वर्गीय अवलोकन करना,--गुणः तीर का निशाना, चांदमारी, -भग० ९।११, मनु०१२।११७,-व: 1. देव, देवता लक्ष्य,—गोचर (वि०) दृष्टि-परास के अन्तर्गत, जो –एको देवः केशवो वा शिवो वा-भर्त० ३।१२० दिखाई दे, दृश्य,--पथः-दृष्टि-पास,--पातः 1. निहा- 2. वर्षा का देवता, इन्द्र का विशेषण ----यथा 'द्वादश रना, निगाह डालना-मार्गे मृगप्रेक्षिणि दृष्टिपातं कुरुष्व वर्षाणि देवो न ववर्ष' में 3. दिव्य पुरुष, ब्राह्मण -रघु० १३।१८, भर्तृ० ११११, ९४, ३१६६, 2. देखने 4. राजा, शासक, जैसाकि 'मनुष्यदेव' में 5. ब्राह्मणों की क्रिया, आँख का कार्य-रजःकणविनितदष्टिपाताः के नामों के साथ लगने वाली उपाधि-जैसा कि -कु० ३।३१, (मल्लि. 'पात' का अर्थ 'प्रभा' दर्शाते 'गोविन्द देव, पुरुषोत्तमदेव' में 6. (नाटकों में) राजा हैं जो हमारी समझ में अनावश्यक है), पूत (वि०) को संबोधित करने के लिए सम्मान सूचक उपाधि दृष्टिमात्र से पवित्र किया हआ अर्थात् देख लिया कि -ततश्च देव--वेणी० ४, यथाज्ञापयति देवः आदि किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं है,-दृष्टिपूतं न्यसेत्पादम् । 7. (समासान्त में) अपने देवता के रूप मे-यथा -मनु० ६।४५,-बन्धुः जगन्,-विक्षेपः कनखियों से मात, पित। सम०-अंशः भगवान का अंशावतार देखना, कटाक्ष, तिरछी नजर,--विद्या नेत्र-विज्ञान, ----अगारः,-रम मन्दिर,-अंगना स्वर्गीय देवी, अप्सरा, ----विभ्रमः अनुराग भरी दृष्टि, हाव-भाव से युक्त ----अतिदेवः, ----अधिदेवः 1. उच्चतम देवता 2. शिव नजर,-विषः साँप । का विशेषण,-अधिपः इन्द्र का विशेषण,-अंधस (नपं०) बृह, वंह, (म्या० पर० ---दर्हति, इंहति) 1. स्थिर या दृढ़ --अन्नम् 1. देवताओं का आहार, दिव्य भोजन, होना 2. विकसित होना, बढ़ाना 3. समृद्ध होना। अमत 2. वह भोजन जो पहले भगवान की मूर्ति के 4. कसना। आगे प्रस्तुत किया गया है-दे० मनु० ५७ तथा इस द (दिवा० क्रया० पर०-दीर्यति, दणाति, दीर्ण) 1. फट पर कुल्ल० भाष्य, अभीष्ट (वि०) 1. देवताओं को जाना, टूट जाना, टुकड़े २ होना 2. फाड़ना, चीरना, प्रिय 2. देवता पर चढ़ाया हुआ, (---ष्टा) तांबूली, विभक्त करना, विदीर्ण करना, खण्ड २ करना, टुकड़े २ पान-सुपारी,-अरण्यम् बाग-रघु० १०६८०,-अरिः करना। कर्मवा.--दीर्यते 1. फटना, टूटना, खण्ड २ राक्षस,---अर्चनम्,-ना देवपूजा,-अवसथः मन्दिर, होना,-कथमेवं प्रलपतां वः सहस्रधा न दीर्णमनया -अश्वः उच्चैःश्रवा का विशेषण, इन्द्र का घोड़ा, जिह्वया-वेणी० ३ 2. अलग करना, प्रेर०-द --आक्रीडः देवोद्यान, नन्दन वन,-आजीवः,--आजी----दा--रयति--ते 1. टुकड़े २ करना, चीर डालना, विन् (पुं०) 1. भगवान् की मूर्ति का सेवक 2. एक खोदकर विभक्त करना 2. तितर-बितर करना, नीचकोटि का ब्राह्मण जो मूर्ति की सेवा द्वारा, तथा बखरना, वि, टुकड़े २ करना, फाड़ डालना, विभक्त मति पर आये हुए चढ़ावे से अपना जीवन-निर्वाह करना, काट कर टुकड़े २ करना--ऐन्द्रिः किल नख- करता है, आत्मन् (पुं०) गूलर का वृक्ष-आयतनम् स्तस्या विददार स्तनौ द्विजः--रघु० १२।२२, न मन्दिर-मनु० ४।४६,---आयुधम् 1. दिव्य हथियार विदीयें कठिनाः खल स्त्रियः-कु०४१५, रघु० १४१३३ 2. इन्द्रधनुष,-आलयः 1. स्वर्ग 2. मन्दिर,-आवासः 2. फाड़ना (आलं०)-चित्तं विदारयति कस्य न कोवि- 1. स्वर्ग 2. अश्वत्थवृक्ष 3. मन्दिर 4. सुमेरु पहाड़, दार:---ऋतु० ३१६, भग०१।१९, (अव, आ तथा प्र --आहारः अमृत, पीयूष,-इज (वि.) (कर्त० ए० आदि उपसर्ग लगन पर धातु का अर्थ नहीं बदलता है)।। व. देवेट - ड) देवताओं की पूजा करने वाला,- इज्यः For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवगुरु बृहस्पति का विशेषण,—इन्द्रः,--ईशः 1. इन्द्र | का विशेषण 2. शिव का विशेषण,-उद्यानम् 1. दिव्य । बाग 2. नन्दन वन 3. मन्दिर का निकटवर्ती बाग, --ऋषिः (देवर्षिः) 1. सन्त जिसने देवत्व प्राप्त कर लिया है, दिव्य ऋषि, प्रथा, अत्रि, भग, पुलस्त्य, अंगिरस आदि--एवं यातिनि देवर्षी ----कु०६।८४ (अर्थात् अंगिरम) 2. नारद का विशेषण-भग०१०११३, २६, -~ओकस् (न०) सुमेरु पर्वत, ----कन्या स्वर्गीय देवी, अप्सरा, कर्मन् (नपुं०) - कार्यम् 1. धार्मिक कृत्य या संस्कार 2. देवों को पूजा, काष्ठम् देवदारु का वृक्ष,-कुण्डस् प्राकृतिक झरना,- कुलम् 1. मन्दिर 2. देवों का समूह,-कुल्या स्वर्गीय गंगा,-कुसुसम् लौंग, --खातम्,--खातकम् 1. पर्वतों में बनी एक प्राकृतिक गुफा 2. एक प्राकृतिक तालाब या जलाशय – मनु० ४।२०३ 3. मन्दिर का निकटवर्ती तालाब, विलम् एक गुफ़ा, कन्दरा,--गणः देवों की एक श्रेणी,-गणिका अप्सरा,-गर्जनम् बादल की गड़गड़ाहट,-गायनः स्वगीय गायक, गन्धर्व,---गिरिः एक पहाड़ का नाम-मेघ० ४२, ---गुरुः 1. (देवों के पिता) कश्यप का विशेषण 2. (देवों के गुरु) बहस्पति का विशेषण, ही सरस्वती या उसके किनारे पर स्थित स्थान का विशेषण, --गृहम 1. भन्दिर 2. राज-प्रासाद,-चर्या देवों की पूजा या सेवा, ..-चिकित्सकौ (द्वि०व०) देवों के वैद्य अश्विनीकुमार, -- छन्दः १०० लड़ की मोतियों की माला, तरुः 1. गूलर का वृक्ष 2. स्वर्गीय वृक्षों (मंदार, पारिजात, संतान कल्प और हरिचंदन) में से एक, -...ताड: 1. आग 2. राहु का विशेषण,-वत्तः 1. अर्जुन के शंख का नाम --भग० १२१५ 2. कोई व्यक्ति (अनिश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त) देवदत्तः पचति, पीनो देवदत्तः दिवा न भुक्ते- आदि, -.--.दार (०, नपुं०) देवदारु की जाति का पेड़-कू० ११५४, रघु० २।३६,~दासः मन्दिर का सेवक (-सी) 1. मन्दिर या देवों को सेविका 2. वेश्या (जिसे मन्दिर में नाचने के लिए लगाया गया हो),--दीपः आँख, ---दूतः दिव्य संदेशवाहक, देवदूत, दुंदुभिः 1. दिव्य ढोल 2. लाल फूलों वाला तुलसी का पौधा,--देवः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. शिव-कु० ११५२ 3. विष्णु, -द्रोणी देवमति का जलस,--धर्मः धार्मिक कर्तव्य या पद,-नदी 1. गंगा 2. कोई भी पावन नदी--मन० २।१७, --नन्दिन् (पुं०) इन्द्र के द्वारपाल का नाम, -नागरी एक लिपि का नाम जिसमें प्रायः संस्कृत भाषा लिखी जाती है,-निकायः देवावास, स्वर्ग, -निन्दकः देवताओं को निन्दा करने वाला, नास्तिक, —निमित (वि०) देवता द्वारा रचित, प्राकृतिक, --पतिः इन्द्र का विशेषण,-पथः 1. स्वर्गीय मार्ग । आकाश, अन्तरिक्ष 2. छायापथ,–पशुः देवता के नाम पर स्वच्छंद छोड़ा हुआ पशु,-पुर,—पुरी (स्त्री०) अमरावती का विशेषण, इन्द्र की नगरी,-पूज्यः बृहस्पति का विशेषण,-प्रतिकृतिः (स्त्री०)-प्रतिभा देवमूर्ति, देवता की प्रतिमा,-प्रश्नः ग्रहादिसंबंधी जिज्ञासा, भविष्य सम्बन्धी प्रश्न, भविष्य की बातें बतलाना, -प्रियः देवों को प्रिय, शिव का विशेषण (देवानांप्रियः) एक अनियमित समास, इसका अर्थ है 1. बकरा 2. मूढ, (पशु की भांति जड-जैसाकि 'तेऽप्यतात्पर्यज्ञा देवानां प्रियाः' काव्य०),-बलिः देवताओं को दी जाने वाली आहुति,-ब्रह्मन् (पुं०) नारद का विशेषण, ब्राह्मणः 1. वह ब्राह्मण जो अपना निर्वाह मन्दिर से प्राप्त आय से कर लेता है, 2. आदरणीय ब्राह्मण,-भवनम् 1. स्वर्ग 2. पन्दिर 3. गूलर का वृक्ष,-भूमिः (स्त्री०) स्वर्ग,-भूतिः (स्त्री०) गंगा का विशेषण,-भूयम् देवत्व, दिव्यप्रकृति, भूत् (पुं०) 1. विष्णु का विशेषण 2. इन्द्र का विशेषण,-मणिः 1. विष्णु की मणि, कौस्तुभ 2. सूर्य,-मातक (वि.) वृष्टि के देवता तथा बादल ही जिसकी प्रतिपालिका माता हो, जिसे केवल वर्षा का जल ही लभ्य हो, जो सिंचाई को छोड़कर केवल वर्षा के जल पर ही निर्भर हो, (वह देश) जो और प्रकार की जलव्यवस्था से वंचित हो-देशौ नद्यम्बुवृष्टघम्बुसंपन्नव्रीहिपालितः, स्यान्नदीमातृको देवमातृकश्च यथाक्रमम्-अमर०, तु०-वितन्वति क्षेममदेवमातृकाः (अर्थात् नदीमातृकाः) चिराय तस्मिन् कुरवश्चकासते ---कि० १११७, मानकः विष्णु की मणि जिसे कौस्तुभ कहते है,-मुनिः दिव्य ऋषि,-यजनम् यज्ञभूमि, यज्ञस्थली-देवयजनसंभवे सीते-उत्तर०४,-यजिः (वि०) देवताओं के आहति देने वाला,-यज्ञः वह हवन जिसमें वरिष्ठ देवताओं के निमित्त अग्नि में आहुति दी जाती है, (गृहस्थों के पाँच नैत्यिक यज्ञों में से एक--मनु० ३३८१, ८५-दे० पंचयज्ञ),-यात्रा किसी देवप्रतिमा का जलूस, या सवारी निकालने का उत्सव,—यानम्, ---रथः दिव्यरथ---,युगम् चार युगों में से एक, कृतयुग, सतयुग,-योनिः अतिमानव प्राणी, उपदेव 2. दिव्य उत्पत्ति वाला, योषा अप्सरा-रहस्यम् देवी रज या रहस्य--राज,-राजः इन्द्र का विशेषण, लता नवमल्लिका लता, नेवारी-लिङ्गम देवता की मूर्ति या प्रतिमा,-लोकः स्वर्गलोक, दिव्य-लोक मन० ४११८२, -वक्त्रम् आग का विशेषण,-वर्मन् (नपुं०) आकाश, --वकिः , --शिल्पिन् (पुं०) विश्वकर्मा, देवताओं का शिल्पी-वाणी दिव्य वाणी, आकाशवाणी, वाहनः अग्नि का विशेषण, व्रतम् धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक व्रत (तः) 1. भीष्म का विशेषण 2. कार्तिकेय का विशेषण,-शत्रुः राक्षस,-शुनी देवों की कुतिया सरमा ६० For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७४ का विशेषण - शेषम् देवनिमित्त किये गये यज्ञ का बचा हुआ अंश, श्रुत: 1. विष्णु का विशेषण 2. नारद का विशेषण 3. पावन शास्त्र 4. देव, सभा 1. देवताओं की सभा, सुधर्मा 2. जूए का घर, सभ्यः 1. जुआरी 2. जुएघरों में प्रायः जाने वाला 3. देवसेवक, सायुज्यम् किसी देवता से मिलकर एक हो जाना, देवसंयोजन, देवत्वप्राप्ति, सेना 1. देवों की सेना 2. स्कन्द की पत्नी, स्कन्देन साक्षादिव देवसेनाम्रघु० ७।१ (मल्लि०- देवसेना – स्कन्द पत्नी - संभवतः यहाँ देवों की सेना का ही मूर्त रूप में वर्णन है) पतिः कार्तिकेय का विशेषण, स्वम् देवों की संपत्ति, ( धर्मकार्यों के निमित्त) देवापित संपत्ति यद्धनं यज्ञशीलानां देवस्वंत द्विदुर्बुधाः मनु० ११/२०, २६. - हविस् ( नपुं०) बलिपशु । देवकी [देवक - + ङीष् ] देवककी एक पुत्री, वसुदेव की पत्नी, कृष्ण की माता । सम० – नन्दनः पुत्रः – मातृ (पुं० ) - सूनुः श्रीकृष्ण के विशेषण । देव: [ दिव् + अन्] कारीगर, दस्तकार । देवता [देव + तल +टाप् ] 1. दिव्य प्रतिष्ठा या शक्ति, देवत्व 2. देव, सुर- कु० १।१3 देव की प्रतिमा 4. मूर्ति 5. ज्ञान इन्द्रिय । सम० अगारः, रम्, -- आगारः, - रम्, गृहम् मन्दिर, -- अधिपः इन्द्र का विशेषण - अभ्यर्चनम् देव पूजन, - - आयतनम्, आलय:, -- वेश्मन् ( नपुं० ) मन्दिर देवालय, प्रतिमा देवमूर्ति प्रतिमा स्नानम् देवमूर्ति का स्नान । देवद्रच् (वि०) [देवम् अचति पूजयति देव + अंच् - क्विन् अद्रि आदेश: ] देवोपासक | देवन (१०) (दिव + अनि] पति का छोटा भाई, देवर । देवन: [ दिव् + ल्युट् ] पासा, नम् 1. सीन्दर्य, दीप्ति, कान्ति 2. जुआ खेलना, पासे का खेल 3. खेल, कीड़ा, विनोद 4. प्रमोद स्थल, प्रमोद-वाटिका 5. 6. स्पर्धा, आगे बढ़ जाने की इच्छा 7 मामला, ब्यवसाय 8. प्रशंसा, ना जुआ खेलना, पासे का खेल | देवयानी (स्त्री०) असुरगुरु शुक्राचार्य की पुत्री [एक बार कमल amrat अपने पिता के शिष्य कच पर मोहित हो गई परन्तु कच ने उसके प्रेम को ठुकरा दिया ! देवयानी ने उसे शाप दे दिया, बदले मैं कच ने भी देवयानी को शाप दिया कि वह एक क्षत्रिय की पत्नी बनेगी । दे० 'कच' | एक वार देवयानी दैत्यों के राजा वृषपर्वा की पुत्री अपनी सखी शर्मिष्ठा के साथ स्नान करने गई, अपने वस्त्र उतार कर तट पर रख दिया। हवा से उनके वस्त्र बदल गये, जब उन्होंने बदले हुए वस्त्र पहने तो दोनों आपस में झगड़ने लगीं, यहां तक कि क्रोध में आकर शर्मिष्ठा ने देवयानी के मुँह पर तमाचा मारा और उसे एक कुएं में फेंक दिया ! सौभाग्य से ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ययाति ने उसे कुएँ से निकाल कर उसके प्राणों की रक्षा की। उसके पश्चात् देवयानी के पिता की स्वीकृति से ययाति का देवयानी के साथ विवाह हो गया, और शर्मिष्ठा को देवयानी के प्रति अपने दुर्व्यव हार के कारण उसकी दासी बनना पड़ा । देवयानी ने ययाति के साथ कई वर्ष सुखपूर्वक बिताये यदु और तुर्वसु नामक उसके दो पुत्र हुए। उसके पश्चात् ययाति शर्मिष्ठा पर आसक्त हो गया । इस बात से दुःखी होकर देवयानी ने अपने पति को छोड़ दिया तथा अपने पिता के घर चली आई। शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री के कहने पर ययाति को बुढ़ापे की अशक्तता का शाप दिया। दे० 'ययाति') । देवर:, देव (पुं० ) [ देव् + अर, दिव् + ऋ ] पति का भाई (चाहे छोटा हो या बड़ा) - मनु० ३1५५, ९/५९, याज्ञ० १।६८ । देवलः [देव + ला + क] देवमूर्ति का सेवक, एक नीच कोटि का ब्राह्मण जिसका अपना निर्वाह देव - प्रतिमा पर प्राप्त चढ़ावे के ऊपर निर्भर है। वेवसात् ( अव्य० ) [ देव + साति] देवताओं की प्रकृति के समान, 'भु बदल कर देवता बनना । देविक (वि० ) ( स्त्री० की), देविल (वि०) [देव + छन्, दिव् + इलच्] 1 दिव्य, देवगुणों से युक्त 2. देव से प्राप्त । देवी [ दिव् + अच् + ङीप् ] 1. देवता, देवी 2. दुर्गा 3. सरस्वती 4. रानी - विशेषतः राज्याभिषिक्त रानी, (अग्रमहिषी - जिसने राज्याभिषेक के अवसर पर पति के साथ सब राज - संस्कारों में पत्नी के नाते भाग लिया हो) - 1- प्रेष्यभावेन नामेयं देवी शब्दक्षमा सती, स्वानीratafor पोर्ण वोपयुज्यते - मालवि० ५।१२ देवीभावं गमिता परिवारपदं कथं भजत्येषा - काव्य ० १० 5. सम्मानसूचक उपाधि जो सर्वश्रेष्ठ महिलाओं के साथ प्रयुक्त होती है । देश: [ दिश् + अ ] 1. स्थान, जगह- देश: कोनु जलावसेकशिथिल: मच्छ० ३।१२ इसी प्रकार 'स्कन्धदेशे' ---- श० १:१९, द्वारदेश, कण्ठदेश आदि 2. प्रदेश, मुल्क, प्रान्त - यं देशं श्रयते तमेव कुरुते बाहुप्रतापाजितम् - हि० ११७१३ विभाग, भाग, पक्ष, अंश (किसी 'पूर्ण' के ) जैसा कि एक देश, एकदेशीय 4. संस्था, अध्यादेश । सम० अतिथिः (पुं० ) विदेशी, अन्तरम् दूसरा देण, विदेशी भाग मन० ५१७८, --अन्तरिन् (पुं०) विदेशी, --आचारः, धर्मः स्थानीय कानून या प्रथा, किसी देश के रीति-रिवाज मनु ० १|१८८, कालज्ञ ( त्रि०) उपयुक्त स्थान और समय को जानने वाला - ज, जात ( वि० ) 1. स्वदेशीय, स्वदेशोत्पन्न 2. ठीक देश में उत्पन्न 3. असली, खरा, For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४७५ ) निर्मलवंशोद्भव,--भाषा किसी देश की बोली,-रूपम् । षतः मनुष्य,-भुज् (पुं०) 1. जीव, आत्मा 2. सूर्य, औचित्य, उपयुक्तता -- व्यवहारः स्थानीय, प्रचलन, -भृत् (पुं०) जीवधारी, मनुष्य-धिगिमां देहभृतादेशविदेश की प्रथा। मसारताम्-रघु० ८५१, भग० ८१४, १४।१४ देशकः [दिश-बुल] 1. शासक, राज्यपाल 2. शिक्षक, गुरु 2. शिव को विशेषण 3. जीवन, जीवनशक्ति,--यात्रा 3. पथ-प्रदर्शक। 1. मरण, मृत्यु 2. पोषक पदार्थ, आहार, लक्षणम् देशना [दिश+णि --यच-टाप] निर्देशन, अनदेश । मस्सा, त्वचा के ऊपर काला तिल,-वायः पाँच जीवनदेशिक (वि.) [देश+ठन] स्थानीय, किसी विशेष स्थान वायु में से एक, प्राणवायु,-सारः मज्जा,-स्वभावः से सम्बन्ध रखने वाला, देशी-क: 1. आध्यात्मिक शरीर का स्वभाव या गुण । गुरुः 2. यात्री 3. पथ-दर्शक 4. स्थानों से परिचित । देहभर (वि.) [देह-+9+खच्, मुम्] पेटू, उदरंभरि । देशिनी दिश् +णिनि+डो] तर्जनी, अंगूठे के पास वाली बेहवत् [देह+मतुप्] शरीरधारी, (पुं०) 1. मनुष्य 2. जीव । अंगली। देहला [देह+ला--क] मदिरा, शराब। देशी [देश-+-डोष] किसी देशविशेष की बोली, प्राकृत का | देहलिः, लो (स्त्री०) [देह+ला+कि, देहलि+ ङीष्] एक भेद-दे० काव्या० १।३३। दरवाजे की चौखट में नीचे वाली लकड़ी जिसे लांघ देशीय (वि०) [देश+छ] 1. किसी प्रान्त से सम्बन्ध रखने कर घर में घुसते निकलते हैं,--विन्यस्वन्ती भवि वाला, प्रान्तीय 2. स्वदेशीय, स्थानीय 3. किसी देश गणनया देहलीदत्तपुष्पैः-मेघ० ८७, मृच्छ० ११९ । का निवासी (समासान्त में) जैसा कि मगधदेशीय, सम-दीपः देहलीपर रक्खा हुआ दीपक, न्याय, दे० तद्देशीय, बंगदेशीय आदि में 4. अदूर, लगभग, सीमान्त- 'न्याय के अन्तर्गत । वर्ती (शब्दों के अन्त में प्रत्यय की भाँति प्रयुक्त) देहिन (वि०) (स्त्री०-नी) [देह-इनि] शरीरधारी, --अष्टादशवर्षदेशोयां कन्यां ददर्श-का० १३१, लगभग शरीरी (पुं०) 1. जीवधारी प्राणी-विशेषतः मनुष्य १८ वर्ष की लड़की (जिसकी आयुसीमा १८ हो) - त्वदधीनं खलु देहिनां सुखम्-कु० ४।१०, शि० --- रघु० १८।३९, इसी प्रकार 'परदेशीय' आदि । २।४६ भग० २।१३, १७।२, मनु० १।३० ५।४१ देश्य (वि०) [दिश् + प्रयत्] 1. जिसकी ओर संकेत करना 2. आत्मा, जीव (शरीर में प्रतिष्ठापित)-तथा शरी हो, या जिसे प्रमाणित करना हो 2. स्थानीय, प्रान्तीय राणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही 3. देशी, स्वदेशी 4. असली, खरा, निर्मल वंशोद्भव - भग० २२२२, १३,५।१४,-नी पृथ्वी । 5. अदूर, लगभग-दे० ऊपर 'देशीय',-श्यः 1. चश्म- दै (भ्वा०-पर० दायति, दात) 1. पवित्र करना, शुद्ध दीद गवाह,--अभियोक्ता दिशेद्देश्यम् --मनु० ८.५२, । करना 2. पवित्र होना, 3. रक्षा करना, अव-, 1. धवल ५३, किसी देशविशेष का निवासी,-श्यम् प्रश्नोक्ति, करना, उज्ज्वल करना 2. पवित्र करना। तर्कोक्ति, पूर्वपक्ष। दैतेयः [दिति+ढक] दिति का पूत्र, राक्षस, दैत्य, । सम० देहः-हम् [दिह घन] शरीर,---देहं दहन्ति दहना इव -इज्यः,-~-गुरुः,-पुरोधस् (पुं०)-पूज्यः असुरों के गन्धवाहा:-भामि० १११०४, दे० नी० समस्त शब्द । | गुरु शुक्राचार्य के विशेषण,-निषदनः विष्णु का विशेसम०–अन्तरम् अन्य (दूसरे का) शरीर, प्राप्तिः । षण, मातृ (स्त्री०) दिति दैत्यों की माता, मेवजा (स्त्री०) दूसरा जन्म लेना,-आत्मवादः भौतिकता, पृथ्वी। चार्वाकों के सिद्धान्त,-आवरणम् कवच,पोशाक,-ईश्वरः | दत्यः [दिति-+ण्य] दे० 'दैतेय'। सम-अरिः 1. देवता आत्मा, जीव,--उद्भव,-उद्भूत (वि०) शरीरज, 2. विष्णु का विशेषण,-देवः 1. विष्णु का विशेषण सहज, जन्मजात-कर्तृ (पु.) 1. सूर्य 2. परमात्मा 2. वायु,---पतिः हिरण्यकशिपु का विशेषण । 3. पिता,..कोषः 1. शरीर का आवरण 2. पर, बाज़ | दैत्या [दैत्य+टाप्] 1. औषधि 2. मदिरा ।। 3. त्वचा, चमड़ा, क्षयः 1. शरीर का हास 2. रोग, | देन (स्त्री-नी), दैनंदिन (स्त्री०-नी), दैनिक (स्त्री० बीमारी,-गत (वि.) शरीर में प्राप्त, मूर्तरूप,—जः -को) (वि.) [दिन+अण, दिनं दिनं भवः दिन• पुत्र,-जा पुत्री,-त्यागः 1. मृत्यु 2. इच्छामृत्यु, शरीर दिन+अण्, दिन। ठन] आह्निक, प्रति दिन का, को छोड़ना,--तीर्थे तोयव्यतिकरभवे जह्नकन्यासरवो- -भामि० १११०३। देहत्यागात्---रघु० ८०९५,---दः पारा,-दीपः आँख, दैनम् --न्यम् [दीन+अण, ष्या वा] 1. ग़रीबी, दरिद्रा--धर्मः शरीर के अंगों की क्रिया,-वाहकम् हड्डी, वस्था, दयनीय अवस्था, दुर्दशा--दरिद्राणां दैन्यम् -धारणम, जीना, जीवन,-धिः बाजू, कक्ष,-धृष् - गंगा०२, इन्दोर्दैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्ते विति (पुं०) वायु, हवा,-बद्ध (वि.) मूर्त, सशरीर-रघु० ---मेघ०७४ 2. कष्ट, खेद, विषाद, शोक, उत्साह११।३५,-भाज् (पुं०) शरीरधारी, जीवधारी, विशे- हीनता 3. दुर्बलता 4 कमीनापन। For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७६ ) foot [ दैनिक + ङीप् ] प्रतिदिन की मज़दूरी, दिनभर की उजरत, घ्याड़ी । वैर्घम्, र्यम् [ दीर्घ + अण्, प्यञ, वा] लम्बाई, लम्बापन । देव ( वि० ) ( स्त्री-बी) [ देव + अण् ] देवों से सम्बन्ध रखने वाला, दिव्य, स्वर्गीय संस्कृतं नाम देवी बागन्वाख्याता महर्षिभिः --- काव्या० ११३३, रघु० ११६० याज्ञ० २।२३५, भग० ४।२५, ९।१३, १६३, मनु० ३।७५ 2. राजकीय, वः ( अर्थात् विवाहः ) आठ प्रकार के विवाहों में से एक, (इसमें कन्या यज्ञ कराने वाले ऋत्विज् को ही दे दी जाती है) - यज्ञस्य ऋत्विजे देव :- पाश० १५९, ( विवाह के आठ प्रकारों के लिए दे० 'उद्वाह' या मनु० ३।२१), बम् 1. भाग्य, नियति, भवितव्यता, किस्मत- दैवमविद्वांसः प्रमाणयति -- मुद्रा० ३, विना पुरुषकारेण देवमत्र न सिध्यति — 'भगवान् उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करते हैं, -- दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या -पंच० १।३६१, देवात् 1. संयोग से, भाग्ययश, अकस्मात् 2. देव, देवता 3. धार्मिक संस्कार, देवों को आहुति । सम० -- अत्ययः देवी उत्पात, आकस्मिक अनर्थ, अधीन, आयत (वि०) भाग्य पर निर्भर, - दैवायत्तं कुले जन्म मदायत्तं तु पौरुषम्, - वेणी० ३।३३, -- अहोरात्रः देवताओं का एक दिन अर्थात् मनुष्यों का एक वर्ष,उपहत ( वि०) दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा - मुद्रा० ६८, - कर्मन् ( नपुं०) देवताओं को आहुति देना, कोविद, चिन्तकः, ज्ञः ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, याज्ञ० ११३१३, काम० ९१२५, गतिः (स्त्री० ) भाग्य का फेर - मुक्ताजालं चिरपरिचितं त्याजितो दैवगत्या - मेघ० ९६ – तन्त्र ( वि० ) भाग्य पर आश्रित, दीपः आँख, दुविपाकः भाग्य की निष्ठुरता भाग्य का बुरा फेर या प्रतिकूलता - उत्तर० ११४०, - दोषः भाग्य की कठोरता, पर ( वि० ) 1. भाग्य पर भरोसा करने वाला, भाग्यवादी 2. भाग्य में लिखा हुआ, प्रारब्ध - प्रश्नः भविष्यकथन, ज्योतिष, युगम् देवों का एक युग' (१२००० देववर्षों का एक युग माना जाता है, इस विषय में दे० मनु० ११७१ पर कुल्लू ० ), योग: संयोग, इत्तिफ़ाक भाग्य, मौका --- दैवयोगेन दैवयोगात् भाग्य से, अकस्मात् - लेखक: भविष्यवक्ता, ज्योतिषी, - वशः, शम् नियंति का बल, भाग्य की अधीनता, - वाणी 1. आकाशवाणी 2. संस्कृत भाषा - तु० काव्या० १।३३ ऊपर उद्धृत, - होन ( वि०) भाग्यहीन, क़िस्मत का मारा, अभागा । देवकः [ देव -+-कन् ] देवता । दैवत ( वि०) ( स्त्री० -ती) [ देवता + अण् ] दिव्य, तम् देव, देवता, दिव्यता --मृदंगां दैवतं विप्रं घृतं मधु चतुष्पदं, प्रदक्षिणानि कुर्वीत मनु० ४।३९, १/५३, अम३ 2. देवों का समूह, देवताओं का पूरा समूह 3. देवमूर्ति (यह शब्द पुं० भी बतलाया जाता है परन्तु विरल प्रयोग है, मम्मट इस बात को शब्द का 'अप्रयुक्तत्व' दोष बतलाते हैं- दे० 'अप्रयुक्त ' ) । देवलस् ( अव्य० ) [ देव + तस् ] संयोगवश, किस्मत से, भाग्य से । देव (वि० ) ] देवता + ष्यव्य ] किसी देवता को संबोघित, या मान्य - याज्ञ० १९९, मनु० २।१८९, ४। १२४ । वैबलः, --लकः [देव + ला+क, देवल + अण् दैवल + कन्] प्रेतपूजक, किसी दुष्ट आत्मा ( भूत प्रेतादिक) का उपासक । देवारिपः [ देवारीन् असुरान् पाति आश्रयदानेन दैवारिपः समुद्रः, तत्र भवः देवारिप अण् ] शंख । देवासुरम् [ देवासुरस्य वैरम् - अण् ] देवताओं और राक्षसों के मध्य रहने वाली स्वाभाविक शत्रुता । दैविक (वि० ) ( स्त्री० -- की) [ देव + ठक् ] देवताओं से सम्बन्ध रखने वाला, दिव्य, मनु० १/६५, ८/१०९, -कम् अवश्यंभावी घटना । | दैविन् दैव्यं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (पुं० ) [ देव + इनि ] ज्योतिषी । (वि० ) ( स्त्री० - व्या, -व्यी) [देव + यज्ञ ] दिव्य, व्यम् किस्मत, भाग्य 2. दिव्य शक्ति । दैशिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ देश + ठञ, ] 1. स्थानीय, प्रांतीय 2. राष्ट्रीय, समस्त देश से सम्बन्ध रखने वाला 3. स्थान सम्बन्धी 4. किसी स्थान से परिचित 5. अध्यापन करने वाला संकेतक, निदेशक, दिखलाने वाला, कः 1. अध्यापक, गुरु 2. पथ दर्शक । देष्टिक ( वि० ) ( स्त्री०- की) [दिष्ट + ठक् ] भाग्य में लिखा हुआ, प्रारब्ध, कः भाग्यवादी । दैहिक (वि० ) ( स्त्री० - की ) [ देह + ठक् ] शारीरिक, देहसम्बन्धी । देह्य (वि० ) [ देहे भवः - ष्यञ ] शारीरिक, ह्यः आत्मा ( शरीरगत ) । दो ( दिवा० पर० - द्यति, दित-प्रेर० दायरति इच्छा० दित्सति) 1. काटना, बांटना 2. फसल काटना, अनाज काटना, अव-काट डालना -- यदन्यस्मिन्यज्ञे स्रुच्य वद्यतिशत० । दोग्ध (पुं०) दुह् + तृच् ] 1. ग्वाल, दूध दोहने वाला, दूधिया - मेरी स्थिते दोग्धरि दोहदक्षे- कु० ११२ 2. बछड़ा 3. चारण या भाट ( वह भाड़े का कवि जो पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कविता की रचना करता 4. जो स्वार्थवश कोई कार्य करता है ( अपने आप को लाभ पहुंचाने के लिए) । दोग्ध्री [ दोग्वृ + ङीप् ] 1. दुधारु गाय 2. दूध पिलाने वाली गाय । For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४७७ ) दोषः [ दुह, +अच्, नि० ] बछड़ा । दोरः [ = डोर, नि० डस्य दः ] रस्सी, रज्जु । दोलः [ दुल् + घञ्ञ ] 1. झूलना, डोलना, (घड़ी के लंगर की भांति इधर-उधर ) हिलना 2. हिंडोला, डोलो 3. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होने वाला उत्सव जब कि बालकृष्ण की मूर्तियों को हिंडोले में झुलाया जाता है । दोला, दोलिक ] दोल +टाप्, दोल + कन् + टाप् इत्वम् 1. डोली, पालकी 2. हिंडोला, पालना (ओल० भी ) - आसीत्स दोलाचलचित्तवृत्तिः रघु० १४।३४, ९।४६, १९।४४, संदेहदोलामारोप्यते - का० २०७, २४६ 3. झूलना, घट-बढ़ होना 4. संदेह अनिश्चितता । सम० -- अधिरूढ, - आरूढ (वि० ) ( शा० ) झूले पर सवार (आलं) अनिश्चित, अस्थिर, चंचल - युद्धम् सफलता की अनिश्चितता, वह युद्ध जिसमें हार-जीत का कुछ निश्चय न हो । दोलायते ( ना० वा० आ० ) 1. झूलना, इधर-उधर डोलना, इधर-उधर हिलना, घटबढ़ होना, आगे-पीछे होना ( आलं० भी ) 2. चंचल या बेचैन होना । दोष: [ दुष् + ] (क) त्रुटि, धब्बा, निन्दा, कमी. लांछन, लचर दलील - पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम्---भर्तृ० २३९३, नात्र कुलपतिर्दोषं ग्रहीव्यति-- श० ३, कुलपति इस बात को दोष नहीं मानेंगे - सा पुनरुक्तदोषा-रघु० १४१९ (ख) भूल (अशुद्धि, गलती 2. जुर्म, पाप, कसूर अपराध - जायामदोषामुत संत्यजामि - रघु० १४।३४, मनु० ८ २४५, याज्ञ० ३। ७९३. अनिष्टकारी गुण, बुराई. क्षतिकारक प्रकृति या गुण --- जैसा कि 'आहार दोष' में 4. हानि, अनिष्ट, भय क्षति- बहुदोषा हि शर्वरी - मृच्छ० ११५८, को दोष: - ( इसमें क्या हानि हैं) 5. बुरा फल, अनिष्टकारी फल, बाधक प्रभाव, तत्किमयमतिपदोषः स्यात् - श० ३, अदाता वंशदोषेण कर्मदोषाद् दरिद्रता - चाण० ४८, मनु० १०।१४6. विकृत व्याधि, रोग 7. शरीर के तीनों दोषों का कुपित होना, त्रिदोषको 8. ( न्या० में ) परिभाषा का दोष (अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव ) 9. (अलं० में ) रचना का एक दोष (पददोष, पदांशदोष, वाक्यदोष, रसदोष, और अर्थदोष जिनका वर्णन काव्यप्रकाश के सातवें उल्लास में किया गया है) 10. बछड़ा 11. निराकरण । सम० - आरोपः दोष लगाना, इलजाम लगाना, एकदृश् (वि०) दोष ढूंढने वाला, दोषदर्शी छिद्रान्वेषी, कर, -कृत् (वि०) बुराई करने वाला, अनिष्टकर, प्रस्त ( वि० ) 1. सिद्धदोष, अपराधी 2. दोषपूर्ण, त्रुटिपूर्ण, - प्राहिन ( वि० ) 1. विद्वेषी, दुर्भावनापूर्ण 2. छिद्रावेषी, ज्ञ (वि०) दोषों का ज्ञाता (ज्ञः ) 1. बुद्धिमान या विद्वान् पुरुष - रघु० १।९३ 2. वैद्य, - त्रयम् शरीर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के तीन दोष ( अर्थात् वात, पित्त और कफ ), दृष्टि (वि०) दोषदर्शी, प्रसङ्गः कलंक लगाना, वदनामी, निन्दा, -- भाज् (वि०) दोषी, अपराधी, सदोष । दोषणम् [ दुष् + णिच् + ल्युट् ] इलजाम लगाना, दोष मढ़ना । दोषन् (पुं०, नपुं० ) ( इस शब्द के सर्वनामस्थान ( पहले पाँच वचन, में रूप नहीं होते ) भुजा, बाजू । दोबल (वि०) [ दोष --लच ] दोषी, सदोष, भ्रष्ट । दोषस् (स्त्री०) [ दुप् +असुन् | रात ( नपुं० ) अंधरा । दोषा ( अव्य० ) | दुष्यते अन्धकारेण दुष् + ञ +टाप् ] रात को, दोषाऽपि नूनमहिमांशुरसी किलेति-शि० ४१४६. ६२, (स्त्री० ) 1. भुजा 2 रात्रि का अंधेरा, रात - धर्मकालदिवस इव क्षपितदोष: का० ३७, ( यहाँ शब्द का अर्थ 'दोष या पाप' भो है) । सम० - आस्य:, - तिलकः दीपक, लैम्प, - करः चाँद । दोषातन ( वि० ) ( स्त्री० नी ) [ दोषा + टचु, तुट् ] रात को होने वाला, रात्रि विषयक - रघु० १३ ७६ । दोषिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ दोष + ठन् ] दोषी, बुरा, सदोष, कः रुग्णता, रोग । दोषिन् ( वि० ) ( स्त्री० - णी ) [ दुष् + णिनि ] 1. अपवित्र, दूषित, कलुषित 2. अपराधी, सदोष, मुजरिम, दुष्ट, बुरा। दोस् (पुं०, नपु ं० ) [ दम्यते अनेन दम् + डोसि ] ( कर्म० द्वि० ० के पश्चात् इस शब्द को विकल्प से 'दोषन्' आदेश हो जाता है) 1. अग्रभुजा, भुजा - तमुपाद्रवदुद्यम्य दक्षिणं दोर्निशाचरः -- रघु० १५ २३, हेमपात्रगतं दोभ्यमादधानं पयश्चरु - १०१५१, कु० ३।७६ 2. चाप का वह भाग जो त्रिज्या का निर्माण करता ह | सम० - गडु ( वि० ) ( दोर्गड ) टेढ़ी भुजाओं वाला, - - ग्रह ( दोर्ग्रह) (वि०) सबल, शक्तिशाली, (हः ) भुजा में रहने वाली पीड़ा, ज्या ( दोर्ज्या ) आधार की लंबरेखा, दण्ड: (दोर्दण्डः ) डंडे जैसी भुजा, मजबूत भुजा - महावी० ७८, भामि० १।१२८, - मूलम् (दोर्मूलम् ) काख, बगल, – युद्धम् (दोयुद्धम् ) द्वन्द्वयुद्ध, कुस्ती - महावो० ५१३७, शालिन् (वि०) (दो.शालिन् ) प्रबल भुजाओं वाला, रणोत्सुक, वोर, वेणी० ३।३२, शिखरम् (दोः शिखरम् ) कंधा - सहस्त्रभूत ( दो: सहस्रभृत्) (पुं) 1. बाणासुर का विशेषण 2. सहस्रार्जुन का विशेषण, स्थः ( दोस्थ : ) 1. सेवक 2. सेवा 3. खिलाड़ी 4. खेल, क्रीडा | दोहः [ दुह +घञ ] 1. दोहना - आश्चर्यो गवां दोहो गोपेन सिद्धा०, कु० ११२, रघु० २।२२, १७/१९ 2. दूव 3. दूध की बाल्टी । सम० - अपनयः, -जम् दूध । For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४७८ ) दोहवः, --दम् [ दोहमाकर्ष ददाति-दाक ] गर्भवती। किस्मती,--याज्ञ० २२८३। स्त्री की प्रबल रुचि - प्रजावती दोहदशंसिनी ते -रध्रु० दौत्रिम् | दुर्भात+अण् ] भाइयों का आपसी कलह । १४।४५, उपेत्य का दोहददुःखशीलतां यदेव वबे तद- दौर्मनस्यम् | दुर्मनस-व्यञ ] 1. बुरा स्वभाव, 2. मानपश्यदाहृतम--३१६, ७. 2. गर्भावस्था 3. कलो सिक पीड़ा, कष्ट, खेद, बिषाद 3. निराशा। आने के समय पौधों की इच्छा (उदाहरणतः अशोक दौर्मन्यम् [ दुर्मन्त्र+व्या ] अनिष्टकारी उपदेश, बुरी चाहता है कि तरुणियाँ उसे ठोकर मारें, बकुल सलाह-दौमन्त्र्यान्नृपतिविनश्यति-भत ०२।४२ । चाहता है कि उसके ऊपर मदिरा के कुल्ले किये जायें) ! दौर्वचस्यम् [ दुर्वचस्+यन दुर्वचन, अपभाषण । -महीरुहा दोहदसेकशक्तेराकालिकं कोरकमुगिरन्ति- दौर्ह दम्, दौहृवम् [ दुहृद+अण् ] 1. मन की दुरवस्था, नै० ३।२१, रघु० ८।६२, मेघ० ७८, दे० प्रियंग शत्रुता (इस अर्थ में 'दौहद' भी) 2. गर्भावस्था 4. उत्कट अभिलाप-प्रवर्तितमहासमरदोहदाः नरपतयः । —सुदक्षिणा दौर्ह दलक्षणं दधौ-रघु ० ३.१ 3. गर्भ-वेणी० ४ 5. सामान्यतः कामना, इच्छा। सम० वती की प्रबल लालसा 4. इच्छा। ----लक्षणम् 1. भ्रूण, गर्भ (दौह दलक्षण) 2. जीवन दौ« दयम् [ दुई दय--अण् ] मन को दुरवस्था, शत्रुता । की एक अवस्था से दूसरी में प्रवेश। दौल्मिः [ दुल्म-इञ ] इन्द्र का विशेषण । दोहदवती [ दोहद+मतुप-डीप , वत्वम् ] गर्भवती स्त्री दौवारिकः (स्त्री०--को) [ द्वार+ठक, औ आगम] जिसे किसी वस्तु की इच्छा हो। द्वारपाल, पहरेदार---रघु ० ६१५९।। दोहन (वि०) [दुह.+ल्युट्] 1. दोहने वाला 2. अभीष्ट दौश्चर्यम् [ दुश्चर+प्पा ] 1. दुराचरण, दुष्टता, पदार्थों को देनेवाला, --नम् 1. दोहना2. दूध की | दुष्कृत्य । बाल्टी, नी दूध की बाल्टी। दौष्कुल (वि०) (स्त्री०---ली), दौष्कुलेय (वि.) (स्त्री० दोहल: [ दोह+ला+क] दे० दोहद, वथा वहसि दोह- --यी) [ दुष्कुलं अस्य ब० स०, स्वार्थे अण् , दुष्टं __लम् (अने० पा०) ललितकामिसाधारणम्-मालवि० कुलम् प्रा० स०-दुष्कुल-Fठक ] नीच कुल में ३।१६। उत्पन्न, नीच घराने में उत्पन्न । दोहली [ दोहल |-डी ] अशोकवृक्ष । दौष्ठवम् [ दुः+स्था-कु-दुष्ट तस्य भावः -- अण् ] दोह्य (वि०) [ दुह +ण्यत् ] दुहने योग्य, दुहे जाने | बुराई, दुष्टता। योग्य,ह्यम् दूध । दौष्यं (ज्म) न्तिः [ दुष्य (प्म) न्त-+इच ] दुष्यंत का दौः शील्यम् [ दुःशील+या ] बुरा स्वभाव, दुष्टता, पुत्र---दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य-श० ४।२० । दुर्भावना। दौहित्रः [ दुहित+अञ ] दोहता, पुत्री का पुत्र----मनु० दौः साधिक: [ दुःसाथ +ठक 1 1. द्वारपाल, डचोढीवान ३।१४८ ९।१३१,...त्रम् तिल । 2. गाँव का अधीक्षक । दौहित्रायणः [ दौहित्र+फक ] दोहते का पुत्र।। दौक (ग) लः | दुकल+अण | रेशमी आवरण से ढका दौहित्री [ दौहित्र+ङीप् ] दोहती, पुत्री की पुत्री । हुआ रथ, --लम् बढ़िया रेशमी वस्त्र । दौहृदिनी [ दौहृद् + इनि+डीप् ] गर्भवती स्त्री। दौत्यम् [ दूत-Fध्यञ् ] संदेश, दूत का कार्य । | यु (अदा० पर०-द्यौति) अग्रसर होना, मुकाबला करना दौरात्म्यम् [ दुरात्मन्--ष्यञ् ] 1. दुष्टता, दुष्ट स्वभाव, हमला करना, आक्रमण करना--भटि० ६।११८, दुर्भावना रघु० १५१७२ 2. दुर्जनता--गुणानामेव १४।१०४। दौरात्म्याद् धुरि धुर्यो नियुज्यते -काव्य०१०।। यु (नपुं०) [ दिव+उन् , कित् ] 1. दिन 2. आकाश दौर्गत्यम् | दुर्गत+ध्यन ] 1. गरीबी, कमी, अभाव- 3. उजाला 4. स्वर्ग (-पुं०) आग ( पद अर्थात् पंच० २०९२ 2. दरिद्रता, दुःख ।। व्यंजनादि विभक्तियों के आने पर 'दिव' (स्त्री०) के दौध्यिम् [ दुर्गन्ध+व्या ] बुरी या अरुचिकर गंध। । स्थान में 'धु' आदेश होता है, या समासों में द्यु का दौर्जन्यम् [ दुर्जन-ध्या | दुष्टता, दुर्भावना ।। प्रयोग होता है)। सम०-- गः पक्षी, ---चरः दोर्जीवित्यम् | दुर्जीवित-या ] कष्टमय जीवन, विपद- 1. ग्रह, 2. पक्षी, जयः स्वर्ग प्राप्त करना, -धुनि: ग्रस्त जीवन । (स्त्री०), -नदी स्वर्गगा, --निवासः देवता, सुरं दौर्बल्यम् [ दुर्बल+ध्या ] नपुंसकता, दुर्बलता, कमजोरी, शोकाग्निनाऽगात् धुनिवासभूयम्-भट्टि० २१, निर्बलता-मनु०८1१७१, भग०२३। -पतिः 1. सूर्य 2. इन्द्र का विशेषण,-मणिः सूर्य, दौर्भागिनेयः [ दुर्भगा+ढक , इनङ ] अभागी स्त्री (जिसे --लोकः स्वर्ग, --षद् , --सद् (पुं०) 1. सुर, उसका पति न चाहे) का पुत्र । देवता,-शि० ११४३ 2. ग्रह,--सरित् (स्त्री०) दौर्भाग्यम् [ दुर्भग-प्यन उभयपदवृद्धिः ] दुर्भाग्य, वद- गंगा। For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुकः द्य+कन उल्लू। सम० ... अरिः कौवा। द्योतः [द्युत्+घा] 1. प्रकाश, ज्योति, उजाला जैसा कि द्युत (भ्वा० आ० --द्योतते, द्युतित या द्योतित-इच्छा० खद्योत' में 2. धूप 3. गर्मी। दिद्युतिषते, दिद्योतिषते) चमकना, उजला होना, द्योतक (दि०) [द्युत् । वुल] 1. चमकने वाला 2. प्रकाशजगमगाना-दिद्युते च यथा रवि: -भट्रि० १४।१०४, मय 3. व्याख्या करने वाला, व्यक्त करने वाला, बत६।२६, ७।१०७, ८1८९, पर द्योतयति 1. प्रकाश लाने वाला। करना, देदीप्यमान करना--भट्टि० ८।४६ कु०६।४ द्योतिस (नपुं०) [द्यत+इसुन] 1. प्रकाश, उजाला, चमक 2. स्पष्ट करना, व्याख्या करना, समझाना 3. अभि- 2. तारा । सम० ---इङ्गणः (द्योतिरिणः) जुगनू । व्यक्त करना, अर्थ प्रकट करना, अभि -, प्रेर० - द्रडक्षणम् [द्रांक्षन्ति अनेन-द्राक्ष--ल्युट् पृषो० ह्रस्वः] भार प्रकाश करना.....रघु० ६।३४, उद्-, प्रकाश करना, का माप या बट्टा, एक तोला । दीपक जलाना, सजाना, सुभूषित करना-रघु० १०॥ द्रढयति (ना० धा० पर०) 1. दृढ़ करना, जकड़ना, कसना ८०, वि.---,चमकना, उज्ज्वल होना-व्यद्योतिष्ट । (शा०) यथा ---जटाजूट ग्रन्थि द्रढयति 2. समर्थन सभावेद्यामसौ नरशिखित्रयी--शि० २।३, १।२०।। करना, पुष्ट करना, अनुमोदन करना--निवेश: शैलानां द्युतिः (स्त्री०) [द्युत्-+इन्] 1. दीप्ति, उजाला, कान्ति, तदिदमिति बुद्धि द्रइयति-उत्तर० २।२७, विशुद्धरुसौन्दर्य-कानः काञ्चनसंसर्गाद्धत्ते मारकतीं द्युतिम्-हि० त्कर्षस्त्वयि तु मम भक्ति द्रढयति-४।११।। प्र० ४१, मा० २।१०, रघु० ३।६४ 2. प्रकाश, प्रकाश | द्रढिमन् (पुं०) [दृढ+ इमनिच्] 1. कसाव दृढ़ता–बधान की किरण--भर्तृ० ११६१ 3. महिमा, गौरव मनु द्रागेव द्रढिमरमणीयं परिकरम् गंगा० ४७ 2. पुष्टि, ११८७। समर्थन--उक्तस्यार्थस्य द्रहिम्ने-शंकर 3. प्रकथन, युतित (वि०) [द्युत्+क्त प्रकाशित, चमकदार, उजाला। पुष्टीकरण 4. गुरुता। द्युम्नम् [द्युम्ना +क] 1. आभा, यश, कान्ति 2. बल, द्रप्सम् ('द्रप्स्यम्') [दप्यन्ति अनेन दृप्+स, र आदेशः] सामर्थ्य, शक्ति 3. वैभव, सम्पत्ति 4. प्रोत्साहन । जमे हुए दूध का घोल, पतला दही । धुवन् (पुं०) [धु कनिन् सूर्य। द्रम् (भ्वा० पर० .... द्रमति ) इधर-उधर जाना, दौड़ना, द्युतः, तम् [दिव+क्त, ऊम् | 1. खेलना, जुआ खेलना, | इधर उधर भागना--भट्टि० १४।७० । पासे से खेलना.... द्यूतं हि नाम पुरुषस्यासिंहासनं द्रम्मम् [ग्रीक शब्द से व्युत्पन्न] 'द्रम' नाम एक प्रकार का राज्यम् ---मच्छ० २, द्रव्यं लब्धं द्यूतेनैव, दारा मित्र सिक्का । द्यनेनैव, दत्तं भुक्तं द्यूतेनैव, सर्व नष्टं घुतेनैव-२।७, द्रव (वि.) [द्र+अप्] 1. (घोड़े की भांति) दौड़ने अप्राणिभिर्यत्कियते तल्लोके द्यूतमुच्यते--मनु० ९। वाला 2. चूने वाला, रिसने वाला, गीला, टपकने वाला २२३ 2. जीता हुआ पुरस्कार । सम-अधिकारिन् -आक्षिप्य काचिद् द्रवरागमेव (पादम्)-रघु० (पुं०) द्यूतगृह का स्वामी, जूआ खिलाने वाला, ....करः ७१७ 3. बहने वाला, पनीला 4. तरल (विप० कठिन) .. कृत् जुआ खेलने वाला, जुआरी--अयं द्यूतकर: ---कु० २।११ 5. पिघला हुआ, तरल बनाया हुआ, सभिोन खलीक्रियते--मच्छ० २,-कारः, कारक: -व: 1. जाना, इधर-उधर घूमना, गमन 2. गिरना, 1. जुआघर का रखने वाला 2. जुआरी,- क्रीड़ा पासों टपकना, रिसना, निःस्रवण 3. भगदड़, प्रत्यावर्तन से खेलना, जुआ खेलना,--पूर्णिमा,--पौणिमा आश्विन 4. खेल, विनोद, क्रीडा 5. तरलता, द्रवीकरण 6. तरल मास की पूणिमा, (इस समय जन साधारण लक्ष्मी पदार्थ, प्रवाही 7. रस, सत 8. काढ़ा 9. चाल, वेग देवी के सम्मान में खेलों का उत्सव मनाते हैं),--बीजम् (ब्रवीकृ-पिघलाना, तरल करना, द्रवीभू-पिघलना, कौड़ी (खेलने के काम आने वाली),-वृत्तिः 1. पेशे- पसीजना जैसे दया से---- द्रवीभवति मे मनः, महावी. वर जुआरी 2. जूआघर का रखवाला, सभा,-समाजः ७।३४, द्रवीभूतं प्रेम्णा तव हृदयमस्मिन्क्षण इव-उत्तर 1. जुआखाना 2. जुआरियों का समूह । ३।१३, द्रवीभूतं मन्ये पतति जलरूपेण गगनम्--मृच्छ० छ (वा० पर० द्यायति) 1. घृणा करना, तिरस्कार युक्त ५।२५.) । सम-आधारः 1. छोटा बर्तन या पात्र व्यवहार करना 2. विरूप करना। 2. चुल्ल,—जः राब,- द्रव्यम् तरल पदार्थ,-रसा यो (स्त्री०) [कर्तृ० ए० व० द्यौः] [द्युत् + डो] स्वर्ग, 1. लाख 2. गोंद । वैकुण्ठ, आकाश -द्योभूमिरापो हृदयं यमश्च-पंच० द्रवन्ती [दु-+शत + डीप ] नदी, दरिया। १६१८२, श०२।१४, (द्वन्द्व समास में 'द्यो' को बदल द्रविडः (१०) 1. दक्षिण के घाट पर स्थित एक देश-अस्ति कर द्यावा' हो जाता है-उदा० द्यावापृथिव्यौ, द्यावा द्रविडेषु काञ्ची नाम नगरी-दश० १३० 2. उस देश का भूमी ( ---युलोक और भूलोक) । गम-भूमिः पक्षी, निवासी -जग्वविधार्मिकरयेच्छया निसृष्टः .. का. - सद् (धौषद्) देवता। २२९ 3. एक नीच जाति--तु० मनु० १०१२२ । For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८० } प्रविणम् [ द्रु + इनन् ] 1. दौलतमन्दी, धन, संपत्ति, द्रव्य | द्राघयति ( ना० धा० पर० ) 1. लम्बा करना, फैलाना, -वेणी० ३१२०, भामि० ४।२९ 2 सोना रघु० ४।७० 3. सामर्थ्य, शक्ति 4. वीरता, विक्रम 5. बात. सामग्री सामान । सम० अधिपतिः, ईश्वरः कुबेर का विशेषण । विस्तार करना 2. बढ़ाना, गाढ़ा करना - द्राघयंति हि से शोकं स्मर्यमाणा गुणास्तव भट्टि० १८ ३३3. ठहरना, देर करना । द्रव्यम् [दु + यत् ] 1. वस्तु, सामग्री, पदार्थ, सामान 2. अवयव, उपादान 3. सामग्री 4. उपयुक्त पात्र ( शिक्षादि ग्रहण करने के लिए) मुद्रा० ७११४, दे० 'अद्रव्य ' भी 5. मूल तत्त्व, गुणों का आधार, वैशेषिकों के सात प्रवर्गों में से एक (द्रव्य नौ हैं पृथिव्यप्तेजोवायवाकाशकाल दिगात्ममनांसि ) 6. स्वायत्तीकृत कोई पदार्थ, दौलत, सामग्री, संपत्ति, धन-तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः उत्तर० २।१९ 7. औषधि, दवाई 8. लज्जा, शालीनता 9 कांसा 10. मदिरा 11. शर्त, दाँव । सम०-- अर्जनम्, -वृद्धिः, - सिद्धि: ( स्त्री० ) धन की अवाप्ति, ओघः सम्पन्नता, धन की बहुतायत, - परिग्रहः संपत्ति या धन का संचय, प्रकृतिः ( स्त्री०) माया का स्वभाव, - संस्कारः यज्ञ के पदार्थों का शुद्धीकरण, वाचकम् संज्ञा, सत्तासूचक | द्रव्यवत् (वि० ) [ द्रव्य + मतुप् ] 1 धनी दौलतमंद 2. सामग्री में अन्तर्निहित । द्रष्टव्य (सं० कृ० वि० ) 1. देखे जाने के योग्य, जो दिखलाई दे सके 2. प्रत्यक्षज्ञानयोग्य 3. देखने, अनुसंधान करने या परीक्षा करने के योग्य 4. प्रिय, दर्शनीय, सुन्दर - त्वया द्रष्टव्यानां परं दृष्टम् श० २, भर्तृ०१८ | द्रष्टृ (पुं०) (दृश् + तृच् ] 1. दर्शक, मानसिक रूप से देखने वाला, जैसाकि 'ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः' में 2. न्यायाधीश । ग्रहः [ हृद पृषो० साधुः ] गहरी झील । ब्रा (अदा० दिवा० द्राति, द्वायति ) 1. सोना 2. दौड़ना, शीघ्रता करना 3. उड़ना, भाग जाना, नि,नींद आना, सोना, सो जाता - अथावलंव्य क्षगमेकपादिकां तदा निद्रापपल्वलं खगः नं० १।२१, नाव ते समयो रहस्यमना निद्राति नायः - भर्तृ० ३।९७, भानि० १४१, भट्टि० १०/७४, शा० ४।१९, वि०, प्रत्यावर्त करना, भाग जाना, उड़ना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राक् ( अव्य० ) [ द्रा + कु ] जल्दी से, तुरन्त उसी समय तत्काल | सम० - भूतकम् कुएँ से अभी २ निकाला हुआ जल । ब्राक्षा [द्राञ्ज् !-अ---टाप्, नि० नलोपः ] अंगूर, दाख ( अंगूर की बेल या फल) द्राक्षे द्रक्ष्यंति के त्वाम् गीत० १२, रघु० ४।६५, भामि० १ १४,४३९ । सम० --- रस: अंगूर का रस, मदिरा । दामिन् (पुं० ) [ दीर्घ + इमनिच् द्राघ् आदेशः ] 1. लम्बाई 2. अक्षांश रेखा का दर्जा । द्राधि ( वि० ) [ अतिशयेन दीर्घः दीर्घ + इष्ठन्, द्राघ् आदेशः ] 1. सबसे अधिक लम्बा 2. अत्यन्त लम्बा, ( 'दीर्घ' की उ० अ० ) । द्राघीयम् (वि० ) ( स्त्री० सी ) [ दीर्घ + ईयसुन्, द्राघ्, आदेश: ] अपेक्षाकृत लम्बा, बहुत लम्बा ( 'दीर्घ' का म० अ० ) । द्राण ( वि० ) [द्रा + क्त, नत्वं णत्वम् ] 1. उड़ा हुआ, भागा हुआ, 2. सोता हुआ, निद्रालु, - णम् 1. दौड़ जाना, भगदड़, प्रत्यावर्तन 2. निद्रा । [द्रा + णिच् +अच्, पुक् ] 1. कीचड़, दलदल 2. स्वर्ग, आकाश 3. मूर्ख, जड 4. शिव का विशेछोटा शंख । दामिल: [ मिल +- अण् ] चाणक्य | ब्रायः [ द्रु+घञ ] 1. भगदड़, प्रत्यावर्तन 2. चाल, षण, 3. दौड़ना, बढ़ाव 4. गर्मी 5. तरलीकरण, पिघलना । ras: [+] 1. पिघलाने वाला पदार्थ 2. अयtara after 3. चन्द्रकांत मणि 4. चोर 5. बुद्धिमान पुरुष, परिहास चतुर्, ठिठोलिया, विदूषक 6. लम्पट, व्यभिचारी, कम् मोम | द्रावणम् [दु + णिच् + ल्युट् ] 1. भाग जाना 2. पिघलना, गलना 3. अर्क निकालना 4. रीठा । द्राविड: [ ft + अण् ] 1. द्रविड देश निवासी, द्रविड का 2. पंच द्रविड ( द्राविड, कर्णाट, गुर्जर, महाराष्ट्र, और तैलंग) ब्राह्मणों में एक, डाः ( ब० व०) द्रविड देश तथा उसके निवासी, डी इलायची । द्राविडकः [ द्राविड + कन् ] आमाहल्दी, --कम् काला नमक । । (स्वा० पर० द्रवति, द्रुत, इच्छा० दुदूपति) 1 दौड़ना, बहना, भाग जाना, प्रत्यावर्तन करना ( प्रायः कर्म० के साथ) - या नदीनां बह्वोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखं द्रवन्ति भग० ११/२८, रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति ३६ द्रुतं द्रवत कौरवाः महा० 2. धावा बोलना, हमला करना, सत्वर आक्रमण करनाभट्टि० १/५९ 3. तरल होना, घुलना, पिघलता, रिसना ( आलं० भी ) द्रवति च हिमरश्माबुद्गते चंद्रकान्त: मा० ११२८, द्रवति हृदयमेतत् - वेणी० ५।२१. शि० ९१९ भट्टि० २१२ 4 जाना, हिलना-डुलना | प्रेर० द्रावयति - ते 1. भगा देना, उलटे पाँव भगा देना 2. पिघलना, गलना, अनु, For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८१ ) 1. पीछे भागना, अनुसरण करना, साथ जाना-- रघु० ३३८, १२६७, १६।२५, शि० १५२ 2. पीछा करना, पैरवी करना, अभि, 1. हमला करना, धावा बोलना, ( शत्रु के सामने ) जाना - गजा इवान्योन्यमभिद्रवन्तः मृच्छ० ५।२१ 2. आ पड़ना 3. ऊपर से चले जाना, उथ 1. हमला करना, आक्रमण करना -२० १५/२३ 2 की ओर भागना, प्र, भाग जाना, प्रत्यावर्तन, दौड़ जाना ( कर्म० या अपा० के साथ) - रणात्प्रद्रवन्ति बलानि - वेणी० ४ भट्टि० १५/७९, प्रति भागना, उड़ना, चले जानाभट्टि० ६।१७, वि, भागना, भाग जाना, प्रत्यावर्तन, प्रेर० ---- भगा देना, विदका देना, तितर बितर कर देना भामि० १।५२ मा० ३ । ii ( स्वा० पर० द्रुणोति ) 1. क्षति पहुँचाना, अनिष्ट करना - तं दुद्रावादिणा कपिः भट्टि० १४।८१, ८५ 2. जान 3. पछताना | दु (पुं० नपुं० ) | द्रु+डु ] 1. लकड़ी 2. लकड़ी का बना उपकरण (पुं० ) 1. वृक्ष -मनु० ७।१३१2. शाखा । सम० – किलिमं देवदारु वृक्ष, घणः 1. मोगरी, गदा या थापी 2 बढ़ई की हथौड़ी जैसा कोहे का उपकरण 3. कुठार, कुल्हाड़ी 4. ब्रह्मा का विशेपण, ती कुल्हाड़ी, -नख: कांटा, नस ( स ) ( वि० ) बड़ी नाक वाला, -न (ण) हः म्यान, सल्लक: एक वृक्ष पियाल । द्रुण: [ द्रुण् | क ] 1. बिच्छू 2. मधुमक्खी 3. बदमाश -णम् 1. धनुष 2. तलवार । सम० - हः असि कोष, म्यान । द्रुणा [ द्रुण+टाप् ] धनुष की डोरी । दुणि:,, --णी (स्त्री० ) [ द्रुण् +इन्, द्रुणि + ङीष् ] 1. एक छोटा कछुवा या कछुवी 2. डोल 3. कान खजूरा । व्रत (भू० क० कृ० ) [ द्रु + क्त ] 1. आशुगामी, फुर्तीला, तगामी 2. वहा हुआ, भागा हुआ, पलायित 3. पिघला हुआ, तरल, घुला हुआ, दे० 'द्रु', --तः 1. बिच्छू 2. वृक्ष 3. बिल्ली, तम् ( प्रत्य० ) जल्दी से, फुर्ती से, वेग से तुरन्त । सम० पद ( वि०) आशुगामी, विलम्बितम् एक छंद का नाम, दे० परिशिष्ट । वृति: ( स्त्री० ) [दु+वितन् ] 1. पिघलना, घुलना, 2. चले जाना. भाग जाना । द्रुपदः ( पुं० ) पांचाल देश के एक राजा का नाम ( दुपद के पिता का नाम पृवत था, दुपद और द्रोण दोनों ने द्रोण के पिता भरद्वाज से धनुविद्या सोनी । जव द्रुपद को राजगद्दी मिल गई तो एक बार आर्थिक कठिनाइयों में ग्रस्त होने के कारण द्रोण अपनी छात्रा ६१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्था की मित्रता के आधार पर द्रुपद के पास गया, परन्तु उसने घमंड के कारण द्रोण का अपमान किया। इस कारण द्रोण ने उसे अपने शिष्यों (पाण्डव) द्वारा पकड़वा कर बन्दी बनाया -- फिर उसका आधा राज्य उसे वापस कर दिया। परन्तु यह हार द्रुपद के मन में सदैव करकती रही, और एक ऐसा पुत्र पाने की इच्छा से जो उस हार का बदला ले सके, उसने एक यज्ञ किया । उस यज्ञाग्नि से धृष्टद्युम्न नामक पुत्र तथा द्रौपदी नाम की पुत्री ने जन्म लिया । बाद में इसी पुत्र ने धोखे से द्रोण का सिर काट लिया, दे० 'द्रोण' भी ) । ब्रुमः [दुः शाखाऽस्त्यस्य मः ] 1. वृक्ष, यत्र द्रुमा अपि मृगा अपि बन्धवो मे - उत्तर० ३1८2. पारिजात वृक्ष । सम० -- अरिः हाथी, आमय लाख, गोंद, ... आश्रयः छिपकली, ईश्वरः 1. ताड़ का वृक्ष 2. चन्द्रमा 3. परिजात वृक्ष, उत्पलः कर्णिकार वृक्ष, -- नख:, - मर: काँटा, व्याधिः लाख, गोंद, श्रेष्ठः ताड़ का वृक्ष, षण्डम् वृक्षोद्यान, पेड़ों का समह । तुमिणी [दुभ + इनि + ङीप् ] वृक्षों का समूह 1 दुवयः [दु + वय ] माप, मान । बुह (दिवा० पर० दुह्यति, दुग्ध) 1. ईर्ष्या द्वेष करना, क्षति या द्वेष पहुँचाने की चेष्टा करना, द्वेषपूर्वक बदला लेने की इच्छा से षड्यन्त्र रचना ( सम्प्र ० ) यान्वेति मां द्रुति ममेव सात्रेत्युपालम्भि तयालिवर्गः नं० ३७, भट्टि० ४१३९, अभि-, क्षति पहुँचाना, हमला करने का प्रयत्न करना, षड्यन्त्र रचना ( कर्म० के साथ) --मच्छरीरमभिद्रोग्धुं यतते - मुद्रा० १ । द्रुह (वि०) [ह + क्विप्] ( समास के अन्त में प्रयोग ) ( कर्तृ० ए० व० - ध्रुक् ग्, ध्रुट्, -ड) क्षति पहुँचाने वाला, चोट पहुँचाने वाला, षड्यन्त्र कारी, शत्रुवत् व्यवहार करने वाली शि० २।३५, मनु० ४/९०, ( स्त्री० ) -- क्षति, हानि । ब्रहः [ द्रुह, + क] 1. पुत्र 2. सरोवर, झील । ण, हिण: [ संसारगति हन्ति - दु+ न् + अच्, द्रुह्यति दुष्टेभ्यः, द्रुह |इनन्, णत्वम् ] ब्रह्मा या शिव का नाम । : [g -+- क्विप्, दीर्घः ] सोना । दूषण: [ -दुषण:, पृषो० साधुः ] हथौड़ा, लोहे का हथौड़ा, ० '' | दूण: [ द्रुण, पृषो० साधु०] बिच्छू । द्रोण: [द्रुण + अच् या द्रु+न] 1. चार सौ बाँस लम्बी झोल, या सरोवर 2. बादल ( विशेष प्रकार का बादल ) जल से भरा बादल ( जिसमें से वर्षा इस प्रकार निकले जैसे डॉल में से पानी ) कोऽयमेवंविधे काले कालपाशस्थिते ययि, अनावृष्टिहते शस्ये द्रोणमेघ इवोदितः, For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८२ ) मृच्छ० १०॥२६ 3. पहाड़ी कौवा, मरदारखोर कौवा | आघात या आक्रमण करने की चेष्टा, क्षति, उपद्रव, 4. बिच्छू. 5. वृक्ष 6. सफेद फूलों वाला वृक्ष 7. कौरव ईर्ष्या-अद्रोहशपथं कृत्वा- पंच०२।३५, भग० ११३७, पाण्डवों का गुरु (द्रोण भरद्वाज ऋषि का पुत्र था, मनु० २।१६१ ७।४८, ९।१७ 2. धोखा, विश्वासघात इसका यह नाम इसलिए पड़ा कि घृताची नामक 3. अन्याय, दोष 4. विद्रोह । सम०---अटः 1. पाखंडी, अप्सरा को देखते ही जब उनका वीर्यपात हआ तो धर्त, छद्मवेषी 2. शिकारी 3. झूठा मनुष्य,-चिन्तनम् उन्होंने उसको एक द्रोण में सुरक्षित रक्खा। जन्म से ईर्ष्यायक्त विचार, अपकार चिन्ता, हानि पहुँचाने का ब्राह्मण होने पर भी द्रोण ने परशुराम से शस्त्रास्त्र. इरादा,- बुद्धि (वि०) उपद्रव करने पर उतारू या विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। बाद में धनुविद्या और दूषित व्यवहार पर तुला हुआ (स्त्री० --द्धिः) दुष्ट शस्त्र चालन द्रोण ने कौरव पाण्डवों को सिखलाया।। प्रयोजन, दुराशय । जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ तो वह कौरव द्रौणायनः,---निः,--ौणिः [द्रोण+फा, फित्र वा, द्रोण पक्ष की ओर से लड़ा, और जब भीष्म घायल होकर +इञ] अश्वत्थामा का विशेषण-यद्रामेण कृतं 'शरशय्या पर लेट गये तो कौरवसेना की बागडोर तदेव कुरुते द्रौणायनि: क्रोधनः-वेणी० ३।३१।। द्रोण ने संभाली तथा चार दिन तक युद्ध करके पाण्डव द्रौपदी [द्रपद+अण+डी] पांचालराज द्रुपद की पुत्री पक्ष के हजारों योद्धाओं को मौत के घाट उतारा । का नाम (स्वयम्बर में अर्जुन ने इसे प्राप्त किया। युद्ध के पन्द्रहवें दिन रात को भी संग्राम होता रहा जब उन्होंने घर आकर अपनी माता कुन्ती को कहा और फिर सोलहवें दिन प्रातःकाल कृष्ण के सुझाव पर कि आज हमने बड़ी अच्छी वस्तु प्राप्त की है। तब भीम ने द्रोण को सुना कर कहा कि अश्वत्थामा मारा माता ने कहा कि सब आपस में बाँट लो। क्योंकि गया (तथ्य यह था कि अश्वत्थामा नाम का हाथी कुन्ती के मुख से निकलो बात कभी झूठी नहीं हो युद्ध में काम आया था) इस पर विश्वास न कर इस सकती अतः वह पाँचों भाइयों की पत्नी बनी। जब तथ्य की यथार्थता जानने के लिए उसने सत्यवादी युधिष्ठिर जुए में अपने राज्य को हार गया, द्रौपदी युधिष्ठिर से पूछा। युधिष्ठिर ने भी, कृष्ण के परा- को हार गया, यहाँ तक कि अपने आग को भी हार मर्शानुसार, बात को छलपूर्वक टाल दिया। उन्होंने गया तो दुःशासन ने और दुर्योधन की पत्नी ने उसका 'अश्वत्थामा' शब्द को ऊँचे स्वर से उच्चारण किया बड़ा अपमान किया। परन्तु इस प्रकार के अपमान तथा 'गज' शब्द को धीमे स्वर से-दे० वेणी० ३१९, को द्रौपदी ने असाधारण सहिष्णुता के साथ सहन अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु का समाचार सच समझ किया। और जब कभी, कई अवसरों पर उसकी कर अत्यन्त शोकग्रस्त हो बूढ़ा पिता मछित हो गया। तथा उसके पतियों को परीक्षा ली गई तो उसने उनके उसी समय धृष्टद्युम्न ने (जिसने द्रोण को मारने की मान की रक्षा की (जैसा कि उस समय जब दुर्वासा प्रतिज्ञा की थी) उस अवसर से लाभ उठाकर द्रोण ऋषि ने अपने साठ हजार शिष्यों के लिए रात को का सिर काट डाला ।--णः,-णम् एक विशेष तोल भोजन माँगा)। अन्त में एक दिन उसकी सहिष्णुता का बट्टा, या तो एक आढक या चार आढक, अथवा समाप्त हो गई और उसने अपने पतियों को बड़े ताने खारी का १/१६ भाग, या ३२ अथवा ६४ सेर,-णम् के साथ उसी लहजे में कहा जिसमें कि वह अपने 1. काष्ठ पात्र, प्याला, कठौती 2. लकड़ी की कृण्ड या शत्रुओं से प्राप्त क्षति और अपमान का कड़वा बूंट पी खोर। सम०---आचार्यः दे० ऊ० द्रोण,-काकः पहाड़ी रहे थे...दे० कि० ११२९-४६,----इसी के फलस्वरूप कौवा,-क्षीरा,-घा, दुग्धा,- दुघा एक द्रोण दूध पाण्डवों न युद्ध करने का दृढ़ संकल्प किया। यह उन देने वाली गाय,--मुखम् ४०० गाँव की राजधानी, पांच सती स्त्रियों में से हैं जो प्रातः स्मरणीय समझी मुख्य नगर। जाती है--दे० अहल्या)। प्रोणिः,-णी (स्त्री०) [+नि, द्रोणि+डी] 1. लकड़ी द्वोपवैयः [ द्रौपदी+ढक] द्रौपदी का पुत्र-भग० ११६।१८। का बना एक अण्डाकार पात्र जिसमें पानी रखते हैं. | द्वन्द्वः [द्वौ सहाभिव्यक्ती-द्वि शब्दस्य द्वित्वम्, पूर्वपदअथवा पानी जिससे बाहर निकालते हैं, डोल, चिलमची स्य अम्भावः, उत्तरपदस्य नपुंसकत्वम्, नि०] घड़ियाल कुप्पी 2. जलाधार 3. काट की खोर 4. दो शूर्प या जिस पर प्रहार करके घंटों की सूचना दी जाती है, १२६ सेर के बराबर धारिता की माप 5. दो पहाड़ों -दुम् 1. जोड़ा, जन्तु युगल, (मनुष्ययुगल भी) 2. स्त्रीके बीच की पाटीद, बृह-द्रोणीशलकान्तारप्रदेशमधिति- पुरुष, नर-मादा.... द्वन्द्वानि भावं क्रियया विववः-कू० ष्ठतो माधवस्यान्तिके प्रयामि-मा० ९, हिमवद् ३।३५, मेघ० ४६, न चेदिदं द्वन्द्वमयोजयिष्यत्-कु. द्रोणी। सम० --बलः केतक का पौधा ।। ७।६६, रघ० ११४०, श० २।१४, ७२७ 3. दो द्रोहः [वह+घञ] 1. किसी के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना, वस्तुओं का जोड़ा, दो विरोधी अवस्थाओं या गुणों का For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८३ द्वन्द्वैर११२६, जोड़ा, (जैसे कि सुख-दुःख, शीत और उष्ण ) योजयच्चेमाः सुखदुःखादिभिः प्रजाः - मनु० ६८१, सर्वर्तुनिर्वृतिकरे निवसन्नपैति न द्वन्द्वदुःखमिह किचिदकिचनोऽपि शि० ४।६४ 4 झगड़ा, लड़ाई, कलह, टाण्टा, युद्ध 5. कुश्ती 6. संदेह, अनिश्चिति 7. किला, गढ़ 8. रहस्य, द्वः ( व्या० में) समास के चार मुख्य भेदों में से एक जिसमें दो या दो से अधिक शब्द एक साथ जोड़ दिये जाते हैं, जो कि असमस्त होने की अवस्था में एक ही विभक्ति के रूप 'और' (समुच्चय बोधक अव्य० ) अव्यय से जोड़े जाते - - चार्थे द्वन्द्वम् - पा० २२ २९, द्वन्द्वः सामासिकस्य च भग० १०१३३ । सम० चर, चारिन् (वि०) जोड़े के रूप में रहने वाले - (पुं०) चकवा - दयिता द्वन्द्वचरं पतत्त्रियम् - रघु० ८५५, १६०६३, भावः वैपरीत्य, अनबन - भिन्नम् स्त्री और पुरुष ( नर या मादा) का वियोग, भूत ( वि० ) 1. एक जोड़ा बनाते हुए 2. संदिग्ध, अनिश्चित - युङ्खम् मल्लयुद्ध, अकेलों (दो) को लड़ाई । द्वन्द्वशः (अव्य० ) ( ' द्वन्द्व + गस् ] दो दो करके जोड़े में । द्वय ( वि० ) ( स्त्री० यी) [ द्वि + अयट् ] दोहरा, दुगुना, दो प्रकार का, दो तरह का - अनुपेक्षणे द्वयो गतिः मुद्रा० ३, भर्तृ० २।१०४, अने० पा०, कभी कभी ब० व० में भी प्रयुक्त, दे० शि० ३।५७, यम् 1. जोड़ी, युगल, युग्म ( प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त ) - द्वितयेन द्वयमेव संगत- रघु० ८ ६, ११९, ३८, ४/४2. दो प्रकार की प्रकृति, द्वैधता 3. मिथ्यात्व - यी जोड़ी, युगल । सम० – अतिग (वि०) जिसका मन रज और तमस्' इन दो गुणों के प्रभाव से मुक्त हो गया है, सन्त, महात्मा, आत्मक द्वैधप्रकृति से युक्त, - वादिन्, द्विजिह्न, कपटी । द्वयस ( वि० ) ( स्त्री० सी) 'जहाँ तक हो सके' 'इतना ऊँचा जितना कि' 'इतना गहरा जितना कि' 'पहुंचने वाला' अर्थ का बतलाने वाला प्रत्यय जो संज्ञा शब्दों के साथ लग गुल्फयसे मदपयसि - का० ११४, नारीनितंबसं बभूव (अभः) रघु० १६/४६, शि० ६।५५ । द्वापरः, रम् [द्वाभ्यां सत्य त्रेतायुगाभ्यां परः पृषो० - तारा० ] 1. विश्व का तृतीय युग - मनु० ९।३०१२. पासे कावह पार्श्व जिस पर 'दो' को संख्या अंकित है 3. संदेह, राशोपंज, अनिश्चितता । द्वामुष्यायण ( वि० ) [ अदस् + फक्=आमुष्यायणः ष० त० ] दे० 'द्वयामुष्यायण' । द्वार (स्त्री० [दु + णिच् + विच् ] 1. दरवाजा, फाटक - याज्ञ० ३।१२, मनु० ३।३८ 2. उपाय, तरकीब, द्वारा 'के उपाय से' की मार्फत । सम० - स्थः, -स्थितः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) ( द्वाःस्थः, द्वास्थ: द्वाः स्थितः, द्वास्थितः ) द्वारपाल, ड्योढ़ीवान् । द्वारम् [हृ + णिच् + अच् ] 1. दरवाजा, तोरण, प्रवेशद्वार, फाटक 2. मार्ग, प्रवेश, घुसना, मुंह, अथवा कृतवाग्द्वारे वंशेऽस्मिन् — रघु० ११४, ११।१८ ३. शरीर के द्वार या छिद्र ( ये गिनती में नौ हैं दे० खम् ) कु० ३।५०, भग० ८।१२, मनु० ६।४८ 4. मार्ग, माध्यम, साधन या उपाय द्वारेण 'में से' 'के साधन से' । सम० --अधिपः ड्योढ़ीवान्, द्वारपाल, कण्टकः दरवाजे की कुंडी, कपाटः, -टम् दरवाजे का पत्ता या दिला, - गोपः नायकः, पः, -पालः, पालकः, द्वारपाल, ड्योढ़ीवान्, पहरेदार, दारुः सागवान की लकड़ी, पट्टः 1. दरवाजे का दिला 2. दरवाज का पर्दा, -- पिंडी दरवाजे की देहली, पिधानः दरवाजे की कुंडी -- बलिभुज् (पुं० ) 1. कौवा 2. चिड़िया, बाहुः दरवाजे की बाजू, द्वार का पाखा, - - यन्त्रम् ताल, कुंडी -स्थः द्वारपाल | द्वार (रि) का [ द्वार+कै+क ] गुजरात के पश्चिमी किनारे पर स्थित कृष्ण की राजधानी ('द्वारका' के के वर्णन के लिए दे० शि० ३।३३-६० ) । सम० - ईशः कृष्ण का विशेषण । द्वारवती, द्वारावती द्वारका । द्वारिक: द्वारिन् (पुं०) ड्योढ़ीवान्, द्वारपाल । द्वि ( संख्या ० वि० ) ( कर्तृ ० द्वि० व० पुं० द्वौ, स्त्री०, नपुं० - द्वे) दो, दोनों सद्यः परस्परतुलामधिरोहतां द्वे - रघु० ५।६८, ( विशे० दशन् विशति और त्रिशत् से पूर्व द्वि को 'द्वा' हो जाता है, चत्वारिंशत्, पञ्चाशत्, षष्टि, सप्तति और नवति से पूर्व द्वि को द्वा होता है परन्तु विकल्प से, और अशीति से द्वि में कोई परिवर्तन नहीं होता) | सम० - अक्ष (वि०) दो आँखों वाला, अक्षर (वि०) द्वयक्षरी, दो अक्षरों से संबद्ध, --- अडगुल ( वि०) दो अंगुल लम्बा, (-लम्) दो अंगुल की लम्बाई, अणुकम् दो अणुओं का संघात, -- अर्थ ( वि० ) 1. दो अर्थ रखने वाला 2. संदिग्ध, अस्पष्ट या द्वयर्थक 3. दो बातों का ध्यान रखने वाला, अशीत ( वि०) बयासीवाँ, -- अशीतिः ( स्त्री० ) बयासी, अष्टम् तांबा, अहः दो दिन का समय, आत्मक (वि०) 1. दो प्रकार के स्वभाव वाला 2. दो होने वाला, - आमुष्यायणः दो पिताओं का पुत्र, गोद लिया हुआ बेटा, जो अपन मूल पिता की सम्पत्ति का भी साथ ही साथ उत्तराधिकारी हो । -- ऋचम् (द्वृचम्, द्वयर्चम्) ऋचाओं का संग्रह, कः, —ककारः 1. कौवा ( क्योंकि 'काक' शब्द में दो 'क' होते हैं) 2. चकवा ( क्योंकि कोकं शब्द में भी दो 'क' हैं), - ककुद (पुं०) ऊँट, For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८४ ) जः (वि०) दो गौओं से विनिमय किया हुआ, (गुः ) तत्पुरुष समास का एक भेद जिसमें पूर्वपद संख्यावाचक होता है – द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहम् - उद्भट, - गुण (वि०) दुगुना, दोहूरा, (द्विगुणीकृ-दो बार हल चलाना, दुगुना करना, बढ़ाना), गुणित (वि०) 1. दुगुना किया हुआ, कि० ५।४६ २. दो तह किया हुआ 3. लपेटा हुआ 4. दुगुना बढ़ाया हुआ, चरण (वि०) दो टाँगों वाला, दो पैरों वाला - द्विवरणपशूनां क्षितिभुजाम्शा० ४११५, चत्वारिश (वि० ) [ द्विचत्वारिशद्वाः ] बयालीसवाँ - चत्वारिशत् (स्त्री०) ( द्वि-द्वाचत्वारिंशत्) बयालीस, दुजन्मा, 1. हिन्दुओं के प्रथम तीन वर्णों में (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) कोई एक दे याज्ञ० १/३९ 2. ब्राह्मण ( जिसपर पवित्रीकारक कृत्य या संस्कारों का अनुष्ठान किया जा चुका है ) -जन्मना जायते शूद्रः संस्काद्विज उच्यते 3 अंडज जंतु जैसे कि पक्षी, साँप, मछलो आदि- स तमानंदमविदत्त द्विजः नै० २१, श० ५।२१, रघु० १२।२२, मुद्रा० १।११, मनु० २।१७ 4. दाँत कीर्ण द्विजानां गणैः भर्ता १११३ | यहाँ 'द्विज' शब्द का अर्थ ब्राह्मण भी है ) अप्रघः ब्राह्मण, अयनो यज्ञोपवीत जिसे हिन्दुओं के प्रथम तीन वर्ण धारण करते हैं, 'आलयः द्विज का घर इन्द्र:,, ईश: 1. चन्द्रमा शि० १२१३ 2. गरुड का विशेषण 3. कपूर, दासः शूद्र, पतिः, 'राजः 1. चन्द्रमा का विशेषण - रघु० ५।२३ 2. गरुड, 3. कपूर, प्रपा 1. आलवाल, थांवला 2. चुबच्चा ( जहाँ पशु पक्षी पानी पीयें, बन्धुः, बुवः 1. जो ब्राह्मण बनने का बहाना करता है 2. जो जन्म से ब्राह्मण हो, कर्म से न हो, तु० ब्रह्मबन्धुः, लिङ्गिन् ( पुं० ) 1. क्षत्रिय 2. झूठा ब्राह्मण, ब्राह्मण वेशधारी, वाहनः विष्णु की उपाधि (गरुडारोही), सेवक शूद्र, जन्मन्, - जाति: (पुं०) 1. हिन्दुओं के प्रथम तीन वर्णों में से किसी एक वर्ण का मनु० २।२४ 2. ब्राह्मण - कि० ११३९, कु० ५/४० 3. पक्षी पंछी 4. दाँत, - - जातीय ( वि० ) हिन्दुओं के प्रथम तीन वर्णों में से किसी एक वर्ण का, -जिह्नः 1. साँप - शि० १/६३, रघु० ११/६४, १४ ४१, भामि० १२० 2. संसूचक, मिथ्यानिन्दक, चुगलखोर 3. कपटी पुरुष, त्र ( वि० ) ( ब० द० ) दो तीन - रघु० ५।२५, भर्तृ० २।१२१, त्रिश ( द्वात्रिंश) 1. बत्तीसवाँ 2. बत्तीस से युक्त, त्रिंशत् (द्वात्रिंशत्) बत्तीस लक्षण ३२ शुभलक्षणों से युक्त, - दण्डि ( अव्य० ) । डंडे से डंडा बत् (वि०) दो दाँत रखने वाला, बश (वि०) ( ब० व० ) बीस, -- बश (वि० ) ( द्वादश) 1. बीसव, मनु० २।३६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. बारह से युक्त, -वशन् (द्वादशन् ) ( वि०, ब० To ) बारह, अंशुः 1. बृहस्पति ग्रह तथा 2. देवों के गुरु बृहस्पति का विशेषण, 'अक्षः करः 'लोचन: कार्तिकेय का विशेषण, अंगुल १२ अंगुल का माप, अह 1. बारह दिन का समय- मनु० ५।८३, ११।६८ 2. १२ दिन तक चलने वाला या १२ दिन में पूर्ण होने वाला यज्ञ, आत्मन् (पुं०) सूर्य, 'आवित्याः ( ब० ० ) बारह सूर्य दे० आदित्य, आयुस् (पुं० ) कुत्ता, सहल (वि०) १२००० से युक्त, बशी ( द्वादशी ) चाँद्र मास के पक्ष की १२वीं तिथि, -देवतम् विशाखानाम नक्षत्र, देहः गणेश का विशेषण, धातुः गणेश का विशेषण, नग्नकः वह मनुष्य जिसकी सुन्नत हो चुकी हो, नवत ( द्विद्वानयतः ) बानवेव, नवतिः (द्वि-अनवतिः) बानवे, --प: हाथी, 'आस्य: गणेश का विशेषण, - पक्षः 1. पंछी 2. महीना - पञ्चाश (द्वि- द्वापञ्चाश) (वि०) बावनवाँ -- पञ्चाशत् ( द्वि-द्वापञ्चाशत् ) ( स्त्री ० ) बावन, - पथम् दो मार्ग, पदः, दुपाया, मनुष्य, पदिका, - पदी 1. दुपाया मनुष्य 2. पक्षी, देवता, – पाद्यः, -- पाद्यम् दुहरा जुर्माना, -- पायिन् (१०) हाथी - बिंदु: विसर्ग: (:)) - भुजः कोण, - भूम (वि० ) ( महल की भांति ) दो मंजिला, - मातृ, मातृजः 1. गणेश तथा 2. जरासंध का विशेषण, - मात्रः दीर्घ स्वर ( दो मात्राओं बाला ), -- मार्गी पगडंडी, -मुखा जोंक, रः 1. भौरा - तु० द्विरेफ 2. बर्बर, रवः हाथी- रघु० ४१४, मेघ० ५%, 'अन्तकः, 'अरातिः, अशनः सिंह, -रसनः साँप, -रात्रम् दो रातें - रूप (वि०) 1. दो रूपों का, 2. दो रंग का, द्विदलीय, रेतस् (पुं० ) खच्चर, - रेफः भौंरा ('भ्रमर' इसमें दो 'र' हैं) कु० १ २७, ३।२७, ३६, वचनम् ( व्या० में ) द्विवचन, - वज्रकः १६ कोणों का खोखा या पावों का घर, -वाहिका बहंगी, विश (द्वाविंश) (वि०) बाइसर्वां, -- विशतिः (द्वाविंशतिः ) ( स्त्री० ) बाईस, - विष (वि०) दो प्रकार का, दो तरह का, भनु० ७। १६२ - वेरा खड़खड़ा, खच्चरों से खींची जाने वाली हल्की गाड़ी, शतम् 1. दो सौ 2. एक सौ दो, शत्य ( वि०) दो सौ में खरीदा हुआ या दो सौ के मूल्य का, शफ (वि०) दो फटे खुर वाला (फ) कोई भी फटे दो खुर वाला जानवर, शीर्षः अग्नि का विशेषण, -- षष् (वि० ) ( ब० व० ) दो बार छः, बारह, -- बष्ट (डिवष्ट, द्वाषष्ट) बासठवीं, षष्टिः ( स्त्री० ) ( द्विषष्टिः, द्वाषष्टिः ) बासठ, -सप्त (द्विद्वासप्तत) (वि०) बहत्तरवां, -सप्ततिः ( स्त्री० ) ( द्वि + द्वासप्ततिः) बहत्तर -सप्ताहः For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८५ ) पक्ष, पखवाड़ा, सहस्र, साहस्र ( वि० ) २००० से युक्त (खम् ) दो हजार, सीत्य, हल्प (वि० ) दोनों ओर से हल चला हुआ अर्थात् पहले लम्बाई की ओर से और फिर चौड़ाई की ओर से, सुवर्ण (वि०) दो सोने की मोहरों से खरीदा हुआ या दो स्वर्ण मुद्राओं के मूल्य का, - हन् (पुं० ) हाथी, - हायन् -वर्ष (वि०) दो वर्ष की आयु का -हीन (वि०) नपुंसक लिंग, हृदया गर्भवती स्त्री - होत (पुं० ) अग्नि का विशेषण । कि ( वि० ) ( द्वाभ्यां कायति - द्वि / कै+क] 1. दोहरा, जोड़ी बनाने वाला, दो से युक्त 2. दूसरा 3. दोवारा होने वाला 4. दो अधिक बढ़ा हुआ, दो प्रतिशत - द्विकं शतं वृद्धिः - मनु० ८।१४१-२ । द्वितय (वि० ) ( स्त्री० थी ) ( द्वौ अवयवो यस्य – हि + तयप्] दो से युक्त, दो में विभक्त, दुगुना, दोहरा ( कई बार व० ० में प्रयुक्त) द्रुमसानुमता किमन्तरं यदि वायो द्वितयेऽपि ते चलाः रघु० ८९०, -यम् जोड़ी, युगल -- र६० ८/६, द्वितीय ( वि० ) [ द्वयोः पूरणम् द्वितीय] दूसरा त्वं जीवितं त्वमसि मे हृदयं द्वितीयम् उत्तर० ३।२६, मेघ० ८३, रघु० ३।४९, य: 1. परिवार में दूसरा, पुत्र 2. साधी, साझीदार, मित्र ( प्राय: समास के अन्त में ) प्रयतपरिग्रहद्वितीयः -- रघु० ११९५, इसी प्रकार छाया, दुःख, या चान्द्रमास के पक्ष की दोयज, पत्नी, साथी, साझीदार | सम० आश्रमः ब्राह्मण या गृहस्थ के जीवन की दूसरी अवस्था अर्थात गार्हस्थ्य | द्वितीयक (fro) [ द्वितीय + कन् ] दूसरा । द्वितीयाकृत (वि०) (द्वितीय + डाच् +कृ+क्त] (खेत आदि) जिसमें दो बार हल चलाया जा चुका हो । द्वितीयन् ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ द्वितीय + इनि] दूसरे स्थान पर अधिकार किये I द्विध (वि० ) [ द्विधा + क] दो भागों में विभक्त, दो टुकड़ों में कटा हुआ । द्विधा (अव्य० ) [द्रि + धात्र]। दो भागों में - द्विधाभिन्ना चिखन्डिमि: रघु० ११३९, मनु० १/१२,३२, द्विधेव हृदयं तस्य दुःखितस्याभवनदा महा० 2. दो प्रकार से । सम०करणम् दो भागों में विभाजन, टुकड़े-टुकड़े करना, गति: 1. उभयचर जन्तु, जलस्थल चर 2. केंकड़ा 3 मगरमच्छ । द्विशस् (oro) [fa + शस्] दो दो करके दो के हिसाब से, जोड़े में । द्विष् ( अदा० उभ० द्वेष्टि, द्विष्टे, द्विप्ट) घृणा करना, पसंद न करना, विरोधी होना-न द्वेक्षि यज्जनमतस्त्वमजातशत्रुः - - वेणी० ३।१५, भग० २।५७, १८ १०, | | भट्टि० १७/६१, १८/९, रम्यं द्वेष्टि - श० ६।५, (प्रवि, सम् आदि उपसर्ग लगने पर इस धातु के अर्थों में कोई परिवर्तन नहीं होता) । द्विष् ( वि० ) | द्विष् + क्विप् । विरोधी, घृणा करने वाला, शत्रुवत् (पुं०) शत्रु - रन्ध्रान्वेषणदक्षाणां द्विषामामिषतां ययौ रघु० १२ ११, ३।४५, पंच० १।७० । द्विष [ द्विष् + क] शत्रु ( द्विवन्तप) वि० शत्रु को संतप्त करने वाला, परिशोध लेने वाला ) । द्विषत् (पुं० ) [ द्विष् + शतृ] शत्रु ( कर्म० या संबं० के साथ) - ततः परं दुष्प्रसह द्विषद्भिः - रघु० ६/३१, शि० २।१, भट्टि० ५। ९७ । (वि० ) | द्विष् +क्त]। विरोधी 2. घृणित, अप्रिय - ष्टम् तांबा । द्विष्ट Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्विस् ( अव्य० ) [ द्वि+सुच्] दो बार द्विरिव प्रतिशब्देन व्याजहार हिमालय: कु० ६/६४, मनु० २/६० । सम० - आगमनम् ( द्विरागमनम् ) गौना, मुकलावा, दुल्हन का अपने पति के घर दूसरी बार आना, -- आपः (द्विराप ) हाथी, उक्त ( द्विरुक्त) (वि० ) 1. आवृत्ति, पुनरुक्ति 2. अतिरेक, अनुपयोग, कढा ( द्विरूढा ) पुनर्विवाहित स्त्री, भावः, - बच्चनम् द्विरावृत्ति | द्वीपः, -पम् [ द्विगंता द्वयोदिशोर्वा गता आपो यत्र द्वि-अप्, अप ईप] 1. टापू 2. शरणस्थान, आश्रयगृह उत्पादन स्थान 3. भूलोक का एक भाग (भिन्न २ मतानुसार इन भागों की संख्या भी भिन्न २ है, चार, सात, नौ या तेरह, कमल की पंखड़ियों की भांति सब के सब मेरु के चारों ओर स्थित हैं, इनमें से प्रत्यक को समुद्र एक दूसरे से वियुक्त करता है। ० १।५ में अठारह द्वीपों का वर्णन है, परन्तु सात की संख्या सामान्य प्रतीत होती है- तु० रषु० १६५, और श० ७ ३३, केन्द्रीय भाग जम्बूद्वीप का है जिसमें भारतवर्ष विद्यमान है ) । - कर्पूर: चीन से प्राप्त कपूर । द्वेषः -- द्वीपवत् (वि० ) [ द्वीप + मतुप् ] टापुओं - ( पु० ) समुद्र, ती पृथ्वी । द्वीपिन् (पु० ) ( द्वीप + इनि] 1. शेर चर्मणि द्वीपिनं हन्ति - सिद्धा० 2. चीता, व्याघ्र । सम० नखः,खम् 1. शेर की पूँछ 2. एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । या ( अव्य० ) [ द्वि | धा], दो भागों में, दो तरह से, दो बार । [द्विप् + घञ् ] 1. घृणा, अरुचि, बीभत्सा, अनिच्छा, जुगुप्सा १० ५।१८, भग० ३।३४, ७/२७, इसी प्रकार अन्नद्वेष, भक्तद्वेषः 2. शत्रुता, विरोध, ईर्ष्या -- मनु० ८।२२५ । द्वेषण (वि० ) [ द्विप् + ल्युट् ] घृणा करने वाला, नापसन्द For Private and Personal Use Only सम० - से भरा हुआ, Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुष्यम् , द्वतावस्था दो पर अधिक स्वार्थ अण्] उभ्यम् WEATI ( ४८६ ) करने वाला,-णः शत्रु,-णम् घृणा, जुगुप्सा, शत्रुता, | की अवस्था या प्रकृति 2. दो खण्ड, विभिन्नता, अरुचि। द्विधाभाव 3. संदेह, अनिश्चितता, डाँवाडोल होना वेषिन्, बेष्ट (वि) [द्वेष+इनि, द्विष् + तृच्] घृणा करने । निलम्बन,-धतद्वधीभावकातरं मे मन:-श०१4. दुविधा वाला, (पुं०) शत्रु ।। 5. विदेश नीति के छ: गुणों में से एक (कुछ के मताद्वेष्य (सं० कृ.) [द्विष + ण्यत्] 1. घृणा के योग्य, 2. नुसार इसका अर्थ है-दो तरह का व्यवहार, दुरंगापन, घिनौना, घृणित, अरुचिकर-रघु० १।२८,--व्यः बाहर से शत्रु के साथ मित्र जैसे संबंध रचना-बलिशत्रु भग०६।९, ९।२९, मनु० ९।३०७ । नोद्विषतोर्मध्ये वाचात्मानं समर्पयन, द्वैधीभावेन द्वैगुणिः- [द्विगुण+ठक्] सूदखोर जो शत-प्रतिशत ब्याज तिष्टेत्तु काकाक्षिवदलक्षितः; दूसरों के मतानुसार लेता है। शत्रु की सेना में फूट डालना और अपने से बलवान् द्वैगुण्यम् [द्विगुण+व्या ] 1. दुगुनी राशि मूल्य या माप शत्रु का छोटी२ टुकड़ियों में मुकाबला करना तथा 2. द्वित्व, द्वैतावस्था 3. तीन गुणों (अर्थात् सत्त्व, आक्रमण द्वारा उसे दुःखी करना-द्वैधीभावः स्वबलस्य रजस् और तमस् ) में से दो पर अधिकार रखना। द्विधा करणम्-याज्ञ० ११३४७ पर मिता०, तु० द्वतम् [द्विघा इतम् द्वितम्, तस्य भावः स्वार्थे अण] मनु०७१७३, व १६० से। 1. द्वित्व 2. द्वैतवाद (दर्श०) दो विशद नियमों का ध्यम् [ द्विघा+व्य] 1. दुरंगी चाल 2. विविधता, प्रकथन, जैसे कि जीव और प्रकृति, ब्रह्म और विश्व, विभिन्नता। आत्मा और परमात्मा एक दूसरे से भिन्न है-तू० द्रुप (वि०) (स्त्री०-पी) [द्वीप+अण्] 1. टापू से 'अद्वत'--कि शास्त्र श्रवणेन यस्य गलति द्वतान्धकारो संबंध या टापू पर रहने वाला 2. शेर से संबंध रखने त्करः- भामि० ११८६ 3. एक जंगल का नाम । वाला, शेर की खाल का बना हआ या व्याघ्र की खाल सम०-वनम् एक जंगल का नाम--कि० १११, से ढका हुआ,-पः शेर की खाल से ढकी हई गाड़ी। --वादिन् (पुं०) वह दार्शनिक जो द्वैतसिद्धान्त को द्वैपक्षम् [द्विपक्ष+अण ] दो दल, दो टोलियां मानता है। द्वैपायनः [द्वीपायन+अण् टापू में उत्पन्न, वेदव्यास। द्वैतिन् (पु.) [द्वैत-+ इनि] द्वैतवादी दार्शनिक । द्वप्य (वि०) (स्त्री०--प्या,---प्यी) [द्वीप+य ] टापू द्वतीयीक (वि०) (स्त्री० --की) [द्वितीय+ ईकक् ] निवासी या टापू से संबन्ध-शि० ३।७६ । दूसरा-द्वतोयीकतया मितोऽयमगमत्तस्य प्रबन्धे महा- ! ईमातुर (वि.) [ द्विमातृ-+अण् ] दो माताओं वाला, काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते स! निसर्गोज्ज्वल:-नै० अर्थात् जन्मदात्री माता तथा सौतेली माता,-: २।११०, तु० तार्तीयीक । 1. गणेश का नाम 2. जरासंघ का नाम-हते हिडिंबरिद्वेध (वि०) (स्त्री०-धी) [ द्वि-धमुञ ] दोहरा, पुणा राज्ञि द्वैमातुरे युधि-शि० २।६० । दुगुना (द्वैधीभू-दो भागों में विभक्त होना, खण्ड २ | द्वैमातृक (वि०) (स्त्री०-को) [द्विमातृक+अण् ] (वह होना, द्विविधा में पड़ना, मन में अनिश्चित होना), देश) जहाँ वर्षा तथा नदी दोनों का जल खेती के ---धम् 1. द्वैतावस्था, दोहरी प्रकृति या अवस्था काम आता हो (तु० 'देवमातक')। 2. दो भागों में वियुक्ति 3. दुगुने साधन, गौण आर- द्वैरथम् [ द्विरथ+अण् ] 1. दो रथारोहियों का एकाकी क्षण 4. विविधता, भिन्नता, संघर्ष, विवाद, विभेद युद्ध 2. एकल युद्ध,-थः शत्रु । -~-श्रुतिद्वधं तु यत्र स्यात् तत्र धर्मावुभौ स्मृतौ-मनु० द्वराज्यम् [ द्विराज्य+व्या ] दो राजाओं में बँटा हुआ २।१४, ९।३२, याज्ञ, २।७८ 5. संदेह, अनिश्चितता उपनिवेश। ---भग० ५।२५, वेणी० ६।४४ 6. दो प्रकार का | द्वैवार्षिक (वि.) [द्विवर्ष-ठक् ] प्रति दूसरे वर्ष होने व्यवहार, दुरंगीनीति, विदेशनीति के छ: प्रकारों में से | एक, दे० नी. द्वैधीभाव और गुण । वैविध्यम् [द्विविध+ष्यत्र ] 1. द्वैतता, दुरंगी प्रकृति, द्वैधीभावः [ द्वैध+च्चि+भू+घञ ] 1. द्वैतता, दो प्रकार | 2. विभिन्नता, विविधता, भिन्नता । For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८७ ) ध (वि.) [धा+] (समास के अन्त में), रखने वाला, | श१९ 2. मालदार, धनाढ्य,--अधिन् (वि०) धने संभालने वाला,-थ: 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. कुबेर च्छुक, लालची, कंजूस, - आदय (वि.) मालदार, 3. भलाई, नेकी, आचार, गुण,-धम् धन दौलत, धनी, दौलत मंद,-आधारः खजाना,-शिः, ईश्वरः संपत्ति। 1. कोषाध्यक्ष 2. कुबेर का विशेषण,-उध्मन् (पुं०) धक क्रोधोद्गार-उत्तर० ४।२४। घन की गर्मी-तु० अर्थोष्मन्,--एषिन् (पुं०) साहूधक्क (चुरा० उभ०-धक्कयति-ते) ध्वस्त करना, नष्ट । कार जो अपना रुपया मांगे, केलिः कुबेर का विशेषण, करना। ---- क्षयः धन की हानि, . घनक्षये वर्धति जाठराग्नि:घटः [ध+अट् +अच्, शक० पररुपम्] 1. तराजू, तराजू। पंच० २।१७८,---गर्व,-गवित (वि०) रुपये का के पलड़े 2. तराजू द्वारा कठोर परीक्षा 3. तुला घमंडी, जातम् --सब प्रकार की मूल्यवान् संपत्ति, राशि। समस्त द्रव्य,-1: 1. उदार या दानशील व्यक्ति घटकः [घट+के+क] ४२ गुंजा या रत्तियों के समान 2. कुबेर का विशेषण-रघु० ९।२५, १७१८० एक प्रकार का तोल विशेष । 3. अग्नि का नाम, °अनुजः रावण का विशेषण-रषु० टिका, घटी [घटी+कन्+टाप, ह्रस्वः; धन्+अ+ १२०५२, ८८,-वंड: अर्थदंड, जुर्माना,---दायिन् डीष, नि० नस्य ट:] 1. पुराना कपड़ा या चिथड़ा (पुं०) आग,—पतिः कुबेर का विशेषण-तत्रागार 2. लंगोटी धनपतिगृहानुतरेणास्मदीयम् --मेघ० ७५,७,-पाल: धटिन् (पुं०) [घट+इनि] 1. शिव का विशेषण 2. तुला 1. कोषाध्यक्ष 2. कुबेर का विशेषण,-पिशाचिका, राशि,-नी घटी। पिशाची धन का राक्षस, धन की तुष्णा, लालच, धम् (भ्वा० पर०-घणति) शब्द करना। लोलुपता,--प्रयोगः सूद खोरी,-मब (वि) धन का धतूरः, धतूरकः,-का [घयति धातन धे+उरच पृषो०, घमंडी,-मूलम् मूलधन, पूंजी,-लोभः तृष्णा, लिप्सा, पत्तूर+कन्, स्त्रियां टाप् च धतूरे का पौधा । --व्ययः 1. खर्च 2. अपव्यय,- स्थानम् खजाना, हर धन् (भ्वा० पर०-धनति) शब्द करना । 1. उत्तराधिकारी 2. चोर 3. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य। धनम् [घन्+अच्] 1. संपत्ति, दौलत, धन, निधि, रुपया (सोना, आदि चल संपत्ति)-धनं तावदसुलभम् - धनकः, बनाया [धनस्य कामः--धन-कन्] तृष्णा, हि०१, (आलं. भी) जैसा कि तपोधन, विद्याधन लालच, लालसा ! आदि में 2. (क) मूल्यवान् संपत्ति, कोई प्रियतम धनञ्जयः [धन+जि+खच, मुम्] 1. अर्जुन का नाम या स्निग्धतम पदार्थ, प्रियतम निधि-कष्टं जनः । (नाम की व्युत्पत्ति-सञ्जिनपदान् जित्वा वित्तमाकुलधनैरनुरजनीयः-उत्तर०१।१४, गुरोरपीदं धन- दाय केवलम्. मध्ये धनस्य तिष्ठामि तेनाहमा माहिताग्नेः-रघु० २।४४, मानधनम्, अभिमान धनञ्जयम्--महा. 2. अग्नि का विशेषण । आदि (ख) मूल्यवान् वस्तु- मनु० ८/२०१, २०२ धनवत् (वि०) [धन+मतुप] धनी, दौलतमंद । 3. पूंजी (विप० वृद्धि या व्याज) 4. लूट का माल | धनिकः [धनमादेयत्वेनास्ति अस्य-ठन्] 1. धनवान् या अपहृत वस्तु, ऊपरी आय 5. मल्लयुद्ध में विजेता दौलतमंद पुरुष 2. महाजन, साहकार-दापयेद्धनिको प्राप्त होने वाला पुरस्कार, खेल में जीता हुआ कस्यार्थम् --मनु० ८।५१, याज्ञ० २१५५, 3. पति पारितोषिक 6. पुरस्कार प्राप्त करने के लिए प्रति 4. ईमानदार व्यापारी 5. 'प्रियंगु' वृक्ष । अनिन (वि.) (स्त्री-नी) धन+इनि] धनी, मालदार, अवशिष्ट 9. (गणि० में) जोड़ की राशि (विप० दौलतमंद (पुं०) 1. दौलतमंद 2. साहूकार-याश० ऋण)। सम-अधिकारः संपत्ति में अधिकार, १८,४१, मनु० ८।६१ । उत्तराधिकार में संपत्ति पाने का हक़,—अधिकारिन्, धनिष्ठ (वि०) [घन+इष्ठन्, घनिन् की उ० अ०] .-अधिकृतः 1. कोषाध्यक्ष 2. उत्तराधिकारी-अधि- अत्यंत धनी,-ठा तेइसवा नक्षत्र, (इसमें चार नक्षत्रों गोप्त,--अधिपः-- अधिपतिः, - अध्यक्षः 1. कुबेर का का पुंज है)। विशेषण–कि ०५:१६ 2. कोषाध्यक्ष, --अपहारः | धनी धनीका [धनमस्ति अस्या:--धन्+अच्-+डी ] 1. अर्थदंड 2. लूट खसोट का माल,--अचित (वि.) तरुणी, जवान स्त्री। धन के उपहारों से सम्मानित, मुल्यवान उपहारों से धनुः [धन्- --उ ] धनुष, (संभवतः 'धनुर' का ही रूप) संतुष्ट किया गया,--मानधना धनाचिता:-कि० धनुस् (वि.) [धन्+उसि] 1. धनुष से सुसज्जित (नपुं०)। For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८८ ) धनुष, धनुष्यमोघं समधत्त बाणम् कु० ३।६६, इस प्रकार इन्द्रधनुः आदि (बहुव्रीहि समास के अन्त में 'धनुस्' के स्थान में 'धन्वन्' आदेश हो जाता हैरघु० २८ ) 2. चार हाथ के बराबर लंबाई की माप - याज्ञ० २।१६७, मनु० ८।२३७ 3. वृत्त की चाप 4. धन राशि 5. मरुस्थल तु० धन्वन् । सम० कर ( वि० -- धनुष्कर ) धनुष से सुसज्जित (र: ) धनुष - बनान वाला काण्डम् (धन, कांडम् ) धनुष और बाण -- खण्डम् (धनुः खंडम् ) धनुष का भाग- मैघ ०१५, - गुणः (धनुर्गणः) धनुष की डोरी, --ग्रहः (धनुर्ग्रह) धनुर्धारी, ज्या ( धनुर्ज्या ) धनुष की डोरी -अनवरतधनुर्ज्यास्फालनक्रूरपूर्वम् - श० २१४, द्रुमः ( धनर्दुमः) बाँस --धरः भृत् (पुं०) (धनुर्धरः आदि) धनुर्धारी -- रघु० २।११, २९, ३३१,३८,३९, ९।११, १२ ९७, १६।७७, - - पाणि ( वि०) धनुष्पाणि) धनुष से सुसज्जित, हाथ में धनुष लिये हुए, मार्गः (धनुर्मार्गः ) धनुष की भांति टेढ़ी रेखा, वक्र, -- विद्या (धनुविद्या ) धनुविज्ञान, वृक्ष:, (धनुर्वृक्षः) 1. बाँस, 2. अश्वत्थ का वृक्ष, वेदः (धनुर्वेदः) चार उपवेदों में से एक धनुर्वेद, धनुविज्ञान | धनू ( स्त्री० ) [ धन् + ऊ ] धनुष, कमान । धन्य ( वि० ) [ धन् + यत् ] 1. धन प्रदान करने वाला, -- मनु० ३।१०६,४१९ 2. दौलतमंद, धनी, मालदार 3. सौभाग्यशाली, भाग्यवान् महाभाग, ऐश्वर्यशाली -- धन्यं जीवनमस्य मार्गसरसः- भामि० १११६, धन्या केयं स्थिता ते शिरसि - मुद्रा० १1१4. श्रेष्ठ, उत्तम, गुणवान् न्यः भाग्यवान् या सौभाग्यशाली, किस्मत वाला व्यक्ति -- धन्यास्तदङ्गरजसा मलिनीभवति -- श० ७ १७, भर्तृ० ११४१, धन्यः कोऽपि न विक्रियां कलयते प्राप्ते नवे यौवने - १।७२ 2. काफिर, नास्तिक 3. जादू या 1. धात्री 2. धनिया, -- न्यम् दौलत, कोष । सम० - - वादः 1. साधुवाद देने के लिए बोला जाने वाला शब्द, साधुवाद 2. प्रशंसा, स्तुति, वाहवाह । धन्यंमन्य ( वि० ) ( धन्य + मन् - - - खश्, मुम् ] अपने आपको भाग्यशाली मानने वाला । धन्यकम् [ धन्य + आकन्, नि० ] 2. धनिया । 1. धनिये का पौधा धन्वम् [ धन् + वन् ] धनुष ( श्रेण्य साहित्य में विरल प्रयोग ) । सम० -- धिः धनुष रखने की पेटी । धन्वत् (पुं०, ननुं० ) [ धन्व् +कनिन् ] 1. सूखी जमीन, मरुभूमि, परत की भूमि एवं धन्वनि चंपकस्य सकले संहारहेतावपि भामि० १३१2. समुद्रतट, कड़ी भूमि । सम० दुर्गम् गढ़ ( जो चारों ओर फैली मरुभूमि के कारण अगम्य हो ) मनु० ७ ७० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्वन्तरम् (नपुं०) चार हाथ के बराबर दूरी की माप, तु० 'दंड' | धन्वन्तरि [ धनुः चिकित्साशास्त्रं तस्यान्तमृच्छति - धनु + अन्त + ऋ + इ ] देवताओं के वैद्य का नाम, ( कहते हैं कि धन्वंतरि समुद्रमंथन के फलस्वरूप, अमृत हाथ मैं लिए हुए समुद्र से निकले थे तु० चतुर्दशरत्न । धन्विन् ( वि० ) ( स्त्री०-नी ) [ अन्त्र चापोऽस्त्यस्य इनि ] धनुष से सुसज्जित, (पुं० ) 1. धनुर्वारी के मम धन्विनोऽन्ये कु० ३।१०, उत्यर्थः स च धन्विनां यदिषयः सिध्यन्ति लक्ष्ये चले - श० २/४ 2. अर्जुन 3. शिव और 4. विष्णु का विशेषण 5 धनु राशि । धन्विनः [ धन्व् +इनन् ] सूअर । धम ( वि० ) ( स्त्री० मा, मी) [ धम् + अच् ] ( प्रायः समास के अन्त में) 1. धोकने वाला - अग्निन्धम, नाजिम 2. पिघलाने वाला, गलाने वाला, - मः 1. चन्द्रमा 2. कृष्ण की उपाधि 3 मृत्यु के देवता यम, और 4. ब्रह्मा का विशेषण । धमकः [ घम् + ल् ] लुहार । areमा ( स्त्री० ) अनुकरणमूलक शब्द जो धौंकनी या बिगल की ध्वनि को व्यक्त करता है । धमन ( वि० ) [ धम् + ल्युट् ] 1. धौंकने वाला 2. क्रूर, - नः एक प्रकार का नरकुल । धमनिः, नी [ धम् +अनि, धमनि + ङीष् ] 1. नरकुल, न 2. शरीर की नाड़ी, शिरा 3. गला, गर्दन | धमिः [ धम् + इ ] फूंक मारना । धम्मलः, धम्मिलः, धम्मिल्लः [ धम्+ विच्, मिल | क् पृ० ] स्त्री के सिर का मोंढीदार अलंकृत जूड़ा जिसमें मोती और फूल लगे हों आकुलाकुलगलद्धम्मिल्ल गीत० उरसि निपतितानां स्रस्तधम्मल्लकानाम् (वधूनाम् ) भर्तृ० १:४९, शृंगार० १ । धय ( वि० ) ( घे+श ] ( प्रायः समास के अन्त में ) पीने वाला चूसने वाला जैसा कि 'स्तनंधय' में । धर ( वि० ) ( स्त्री० - रा, रो) [ धृ-+-अच् ] ( प्रायः समास के अन्त में ) पकड़ने वाला ले जाने वाला, संभालने वाला, पहनने वाला, रखने वाला, कब्जे में करने वाला, संपन्न, प्ररक्षा करने वाला, निरीक्षण करने ला जैसा कि अक्षघर, अंशुवर, गदाधर, गंगाधर, महीवर, असृग्वर, दिपांवरवर आदि, र: 1. पहाड़ - उत्कन्धरं द्रष्टुमवेदन शौरिमु- कन्धरं दारुक इत्युवाच शि० ४।१८ 2 रूई का ढेर 3. ओछा, छिछोरा 4. कच्छपराज अर्थात् कूर्मा- बतार भगवान् विष्णु 5. एक वस्तु का नाम । धरण (वि० ) ( स्त्री० णी ) । वृ । ल्युट् । व्यन वाघ, प्ररक्षण करने वाला, संभालने वाला आदि णः 1. टीला ( जो पुल का काम दे रहा हो ), पर्वतपार्श्व For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४८९ ) 2. संसार 3. सूर्य 4. स्त्री की छाती 5. चावल, अनाज हिमालय ( पहाड़ों का राजा ), णम् 1. सहारा देना, निर्वाह कराना, संभालना - सारंधरित्री धरणक्षमं च - कु० १०१७, धरणिधरणकिणचकगरिष्ठे गीत० १ 2. कब्जे में करना, लाना, उपलब्ध करना 3. थूनी, टेक, सहारा 4. सुरक्षा 5. दस पल के वजन का बट्टा । धरणिः णो ( स्त्रो) [धु + अनि, धरणि + ङीष् ] पृथ्वी लुठति धरणिशयने बहु विलपति तव नाम -- गीत० ५ 2. भूमि, मिट्टी 3. छत का शहतीर 4. नाड़ी, शिरा । सम० - ईश्वरः 1 राजा 2. विष्णु का या 3. शिव का विशेषण, कीलकः पहाड़, जः, - पुत्रः सुतः 2. मंगल के विशेषण 2. 'नरक' राक्षस के विशेषण, ज, पुत्री - सुता जनक की पुत्री सीता ( पृथ्वी से उत्पन्न होने के कारण ) का विशेषण --- घर: 1. शेष या 2. विष्णु का विशेषण 3. पहाड़ 4. कछवा 5. राजा 6. हाथी (जो, कहते हैं, कि पृथ्वी को संभाले हुए है), धृत् (पुं० ) 1. पहाड़ 2. विष्णु या 3. शेष का विशेषण । धरा [ धृ - अच्+टाप् ] 1. पृथ्वी धरा धारापातर्मशिरीभिद्यत इव तच्छ० ५१२२ 2. शिरा 3. गूदा 4. गर्भाशय या यांनि । सम० -अधिपः - राजा, अमर:, - देवः सुर: ब्राह्मण, आत्मज:, - पुत्रः सूनुः 1. मंगल ग्रह के विशेषण 2. नरक राक्षस के विशेषण, आत्मजा सीता का विशेषण, - उद्धारः पृथ्वी का छुटकारा, - घर: 1. पहाड़ 2. विष्णु या कृष्ण का विशेषण 3. शेष का विशेषण, पति 1. राजा 2. विष्णु का विशेषण, - भुज् (पुं०) राजा, ---भृत् (पुं०) पहाड़ । धरित्री [ धृ + इ + ङीष् ] 1. पृथ्वी, श० २०१४, रघु० १४।५४ कु० १२, १७2. भूमि, मिट्टी । धरिमण् (पुं० ) [ धृ + इमनिच् ] तराजू, तराजू के पलड़े । धर: [ वस्तुर पृषो० साधुः ] धतूरे का पौधा । धृ + ] 1. घर 2. थूनी, टेक 3. यज्ञ, 4. सद्गुण, मलाई, नैतिक गुण । धर्मः [ते लोकोऽनेन धरति लोकं वा धृ + मन् 1. कर्तत्र, जाति, सम्प्रदाय आदि के प्रचलित आचार का पालन 2. कानून, प्रचलन, दस्तूर, प्रथा, अध्यादेश, जनुनिधि 3. धार्मिक या नैतिक गुण, भलाई, नेकी, अच्छे काम (मानव अस्तित्व के चार पुरुषार्थो में से एक) कु०५/३८. दे० 'त्रिवर्ग' भी, एक एव निहि० १६५ 4. कर्तव्या वास्त्रविहित आवरण क्रम, पष्ठांशवृतेपि धर्म एषः श० ५१४, मनु० १।११४ 5. अधिकार, न्याय, ६२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औचित्य या न्यायसाम्य, निष्पक्षता, 6. पवित्रता, औचित्य, शालीनता 7. नैतिकता, नीतिशास्त्र, 8. प्रकृति, स्वभाव, चरित्र - मा० १६, प्राणि, जीव 9. मूल गुण, विशेषता, लाक्षणिक गुण ( विशिष्ट ) विशेषता वदन्ति वयवर्ण्यानां धर्मैक्यं दीपकं बुधाः - चन्द्रा० ५०४५ 10 रीति, समरूपता, समानता 11. यज्ञ 12. सत्संग, भद्रपुरुषों की संगति 13. भक्ति, धार्मिक भावमग्नता 14. रीति प्रणाली 15. उपनिषद् 16. ज्येष्ठ पांडव युविष्ठिर 17. मृत्यु का देवता यम । सम० -- अङ्गः, --गा सारस, अधमा (पुं० द्वि० ० ) सत्य और असत्य, कर्तव्य और अकर्तव्य, 'विद् (पुं०) मीमांसक जो कर्म के सही या गलत मार्ग को जानता है, - अधिकरणम् 1. विधि का प्रशासन 2. न्यायालय – अधिकरणिन् (पुं० ) न्यायाधीश, दण्डनायक, अधिकार: 1. धार्मिक कृत्यों का अधीक्षण श० १ 2. न्याय - प्रशासन 3. न्यायाधीश का पद, --अधिष्ठानम् न्यायालय, ---- अध्यक्ष : 1. न्यायाधीश 2. विष्णु का विशेषण, -- अनुष्ठानम् धर्म के अनुसार आचरण, अच्छा आंचरण, नैतिक चालचलन, अपेत ( वि० ) जो धर्म विरुद्ध हो, दुराचारी, अनीतिकर, अधार्मिक ( तम् ) दुर्व्यसन, अनैतिकता, अन्याय, अरण्यम् तपोवन, वन जिसमें संन्यासी रहते हों धर्मारण्यं प्रविशति गजः --- श० १1३३. अलीक (वि०) झूठे चरित्र वाला - आगम: धर्मशास्त्र, विधि-ग्रन्थ आचार्य: 1. धर्मशिक्षक 2. धर्मशास्त्र या कानून का अध्यापक, -- आत्मज: युधिष्ठिर का विशेषण, आत्मन् (वि०) न्यायशील, भला, पुण्यात्मा, सद्गुणी, आसनम् न्याय का सिंहासन, न्याय की गद्दी, न्यायाधिकरण--- न संभावितमद्य धर्मासनमध्यासितुम् — श० ६, धर्मासनाद्विशति वासगृहं नरेन्द्रः उत्तर० ११७, इन्द्रः युधिष्ठिर का विशेषण, - ईश: यम का विशेषण - उत्तर (वि०) अतिधार्मिक, जो न्याय धर्म का प्रवान पक्षपाती हो, निष्पक्ष और न्यायपरायण - धर्मोत्तरं मध्यममाश्रयन्ते - रघु० १३/७ -- उपदेश: 1. धर्म या कर्तव्य की शिक्षा, धार्मिक या नैतिक शिक्षण 2. धर्मशास्त्रकर्मन् ( नपुं० ) कार्यम्, क्रिया, कर्तव्य कर्म, नीति का आचरण, धर्मपालन, धार्मिककृत्य या संसार 2, सदाचरण, कथादरिद्रः कलियुग, -- कायः बुद्ध का विशेषण, कील: अनुदान, राजकीय लेख या शासन, केतुः बुद्ध का विशेषण-कोशः षः धर्मसंहिता, धर्मशास्त्र - धर्मकोषस्य गुप्तयेमनु० ११११ - क्षेत्रम् 1. सान्तवर्ष ( धर्म की भूमि ) 2. दिल्ली के निकट का मैदान, कुरुक्षेत्र ( यहां ही कौरव पांडवों का महायुद्ध हुआ था) - धर्मक्षेत्रे कुरु For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्नी, चितना कर्तव्यों का विचार असली बेटा क्षेत्रे समवेता ययत्सवः--भग० १११, ---घटः वैशाख । के महीने में ब्राह्मण को प्रतिदिन दिये जाने वाले सुगन्धित जल का घड़ा, --चक्रभृत् (पुं०) बौद्ध या जैन, -चरणम्, -चर्या कानून का पालन, धार्मिक कर्तव्यों का सम्पादन--कु०७।८३, -चारिन् (वि.) भद्रव्यवहार करने वाला, कानन का पालन करने वाला, सद्गुणी, नेक-रघु० ३।४५, (पु०) संन्यासी --चारिणी 1. पत्नी 2. पतिव्रता सतो साध्वी पत्नी, -चिंतनम् , -चिता भलाई या सदगुणों का अध्ययन, नैतिक कर्तव्यों का विचार, नीति-विमर्श, -ज: 1. धर्म से उत्पन्न, वैष, पुत्र, असली बेटातु० मनु०९।१०७ 2. युधिष्ठिर का नाम, -जन्मन् (पुं०) युधिष्ठिर का नाम, -जिज्ञासा धर्म सम्बन्धी पूछताछ, सदाचरण विषयक पृच्छा--अथातोधर्मजिज्ञासा -जै०,-जीवन (वि.) जो अपने वर्ण के नियमानुसार निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन करता है, (नः) वह ब्राह्मण जो दूसरों के धर्मानुष्ठान में साहाय्य प्रदान कर अपनी जीविका चलाता है,- (बि.) सही बात को जानने वाला, नागरिक तथा धार्मिक कानूनों का जानकार--मनु० ७१४१, ८।१७९, १०।१२७ 2. न्यायशील, नेक, पुण्यात्मा,---त्यागः अपने धर्म का त्याग करने वाला, धर्मच्यत,--- दाराः (१०, ब०व०) वैध पत्नी-स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च पुंसा--मा० ६।१८, --द्रोहिन् (पुं०) राक्षस, धातुः बुद्ध का विशेषण, -..ध्वजः, ध्वजिन् (०) धर्म के नाम पर पाखंड रचने वाला, छद्मवेशी, नन्दनः यधिष्ठिर का विशेषण--नाथः कानुनी अभिभावक, वैध स्वामी,---नाभः विष्णु का विशेषण,--निवेशः धार्मिक भक्ति,-निष्पत्तिः (स्त्री०) कर्तव्य का पालन, नीति-पालन, धार्मिक अनुष्ठान,-पत्नी वैधपत्नी, धर्मपत्नी-रघु० २१२,२०,७२,८१७, याज्ञ० २६१२८, --पथः भलाई का मार्ग, चाल चलन का सन्मार्ग, --पर (वि०) धर्मपरायण, पुण्यात्मा, नेक, भला, –पाठकः नागरिक या धार्मिक कानूनों का अध्यापक, ---पाल: कानून का रक्षक (आलं. से इसे 'दंड' कहते हैं), दण्ड, सजा, तलवार,-पीडा कानून का उल्लंघन करना, कानून के प्रति अपराध,-पुनः 1. धर्मसम्मत पूत्र, (जो कर्तव्य ज्ञान की दृष्टि से उत्पन्न किया या माना गया हो केवल कामवासना का परिणाम न हो) 2. युधिष्ठिर का विशेषण, ...प्रवकत (पुं०) 1. धर्म का व्याख्याता, कानूनी सलाहकार, 2. धार्मिक शिक्षक, धर्म-प्रचारक,-प्रवचन 1. कर्तव्यविज्ञान- उत्तर० ५।२३ 2. धर्म की व्याख्या करना, (नः) बुद्ध का विशेषण,बा(वा)णिजिक: 1. जो अपने सद्गुणों से व्यापारी की भांति लाभ उठाने का प्रयत्न । करता है 2. लाभदायक व्यवसाय को करने वाले व्यापारी की भांति जो पुरस्कार पाने की इच्छा से धार्मिक कृत्यों का सम्पादन करता है,--भगिनी 1. वैधभगिनी 2. धर्मगुरु की पुत्री 3. धर्मबहन, अनरूप धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए जिसको बहन मान लिया जाता है,- भागिनी साध्वी पत्नी, ---भाणक: व्याख्यानदाता जो महाभारत तथा भागवत आदि ग्रन्थों की व्याख्या सार्वजनिक रूप से अपने श्रोताओं के सामने रखता है,- भ्रातु (पु.) 1. धर्मशिक्षा का सहपाठी, धर्म का भाई 2. वह व्यक्ति जिसको अनुरूप धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए, भाई मान लिया जाता है,---महामात्रः धर्ममंत्री, धार्मिक मामलों का मंत्री, मूलम् नागरिक या धार्मिक कानूनों की नींव, वेद, युगम् सतयुग, कृतयुग,-यूपः विष्णु का विशेषण,-रति (वि.) भलाई और न्याय में प्रसन्नता प्राप्त करने वाला, नेक, पुण्यात्मा, न्यायशील--रघु० १२३,--राज् (पुं०) यम का विशेषण, -राजः 1. यम 2. जिन 3. युधिष्ठिर, और 4. राजा का विशेषण,--रोधिन् (वि.) 1. कानून के विरुद्ध, अबैध, अन्याय्य 2. अनैतिक, --लक्षणम् 1. धर्म का मूल चिह्न 2. वेद, (णा) मीमांसा दर्शन, --लोपः 1. धर्माभाव, अनैतिकता, कर्तव्य का उल्लंघन-रघु० ११७६,-वत्सल (वि.) कर्तव्यशील, धर्मात्मा,---वतिन् (वि०) न्याय परायण, नेक, --वासरः पूर्णिमा का दिन,.... वाहनः 1. शिव का विशेषण 2. भैंसा (यम की सवारी), ----दिद् (वि०) (नागरिक तथा धर्म विषयक) कर्तव्य का ज्ञाता, ---विधिः वैध उपदेश, या व्यादेश,- विप्लवः कर्तव्य का उल्लंघन, अनैतिकता,-वीरः (अलं० शा० में) भलाई या पवित्रता के कारण उत्पन्न वीर रस, शौर्यसहित पवित्रता का रस, रस० में निम्नांकित उदाहरण दिया गया है :--सपदि विलयमेतु राजलक्ष्मीपरि पतन्त्वथवा कृपाणधाराः, अपहरतुतरां शिरः कृतान्तो मम तु मतिर्न मनागपंतु धर्मात् । ----वृद्ध (नि०) सद्गुण व पवित्रता की दृष्टि से आगे बढ़ा हुआ (बूढ़ा)---कु० ५।१६,-वैतंसिकः वह जो अपने आपको उदार प्रकट करने की आशा में, अवैधरूप से कमाये हए धन को दान कर देता है, -शाला 1. न्यायालय, न्यायाधिकरण 2. धर्मार्थसंस्था, शासनम्,-शास्त्रम् धर्मसंहिता न्यायशास्त्र हि० १२१७, याज्ञ. ११५, ... शील (वि०) न्यायशील, पुण्यात्मा, सदाचारी या सदगुणी,-संहिता धर्मशास्त्र (विशेष रूप से मनु, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों द्वारा प्रणीत स्मृतियाँ), --सङ्गः 1. सद्गुण या न्याय से अनुराग या आसक्ति 2. पाखंड, सभा न्यायालय, For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४९१ -सहायः धार्मिक कर्तव्यों के पालन करने में सहायक, साथी या साझीदार | धर्मतः (अव्य० ) [ धर्म - + तसिल् ] 1. धर्म के अनुसार, नियमानुकूल, सही तरीके से, धर्म पूर्वक, न्याय के अनुरूप 2. भलाई से, नेकी के साथ 3. भलाई या नेको के उद्देश्य से । धर्मयु ( वि० ) [ धर्म यु]1. सद्गुणसंपन्न, न्यायशील, पुण्यात्मा, नेक | धमिन् ( वि० ) [ धर्म + इनि ] 1. सद्गुणों से युक्त, न्यायशील, पुण्यात्मा 2. अपने कर्तव्य को जानने वाला 3. कानून का पालन करने वाला 4. ( समास के अंत में) किसी वस्तु के गुणों से युक्त, प्रकृति का, विशिष्ट गुणों से युक्त, - षट्सुताः द्विजधर्मिणः - मनु० १०। १४, कल्पवृक्षफलम कांक्षितम्- रघु० १११५०, ( पुं० ) विष्णु का विशेषण । धर्मपुत्र: (पुं०) अभिनेता, नाटक का पात्र, खिलाड़ी । धर्म्य ( वि० ) ( धर्म + यत् ] 1. धर्मसम्मात कर्तव्य संगत कानूनी रूप से सही, बंध - मनु० ३३२२, २५, २६ 2. धर्मयुक्त ( कार्य ) - कु० ६ । १३ 3. न्यायोचित, भला, उपयुक्त धर्म्याद्धियुद्धाच्छ्रे योऽन्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते - भग० २।३१, ९२, याज्ञ० ३।४४4. वैध, यथारीति 5. विशेष गुणों से युक्त - यथा 'तद्धर्म्यम्' । धर्षः [ धुष् + घञ् ] 1. धृष्टता, अविनय अहंकार, ढिठाई 2. घमंड, अभिमान 3. अधीरता 4. संयम 5. बलात्कार, ( स्त्री का ) सतीत्व हरण 6. क्षति बुराई, अवज्ञा 7. हीजड़ा । सम० कारिणी बलात्कार द्वारा जिसका सतीत्वहरण हो चुका हो । ai ( वि० ) [ घृष् + ण्वुल् ] 1. हमला करने वाला, आक्रमणकारी, प्रहार करने वाला 2. बलात्कार करने वाला, सतीत्वहरण करनेवाला 3. अधीर, -कः 1. सतीत्वहर्ता, व्यभिचारी, बलात्कारी 2. अभिनेता, नर्तक । घर्षणम् - णा [ घृष् + ल्युट् ] 1. धृष्टता, अविनय 2. अवज्ञा, मानहानि 3. आक्रमण, अत्याचार, सतीत्वहरण, बलात्कार नारी 4. स्त्रीसंभोग 5. तिरस्कार, निरादर 6. दुर्वचन । धर्षणिः, -णी [ धूप + अनि, धर्षणि + ङीष् ] असती, स्वैरिणी, कुलटा स्त्री | षित ( वि० ) [ धृष् + क्त ] 1. जिसका चरित्र भ्रष्ट किया गया है, अत्याचार पीडित, जिसके साथ बलाकार हो चुका है 2. विजित, पराभूत, परास्त- नं० २२।१५५ 3. जिसके साथ दुर्व्यवहार किया गया है, जिसे गाली दी गई है, तिरस्कृत, तम् 1. औद्धत्य, घमंड 2. सहवास, मैथुन, - ता कुलटा, असती स्त्री । धषिन् ( वि० ) [ धृष् + णिनि ]1. घमंडी, उद्धत, उद्दंड 2. आक्रमण करने वाला, सतीत्वहरण करने वाला, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलात्कार करने वाला 3. तिरस्कार करने वाला, दुर्व्यवहार करने वाला 4. बेधड़क, दिलेर 5. स्त्री सहवास करने वाला - णी कुलटा, या असती नारी । ध: [ धु + अप् ] 1. हिल- जुल, कम्पन 2. मनुष्य 3. पतियथा 'विधवा' में 4. मालिक, स्वामी 5. बदमाश, ठग 6. एक प्रकार का वृक्ष 'धी' | धवलः [ धवं कम्पं लाति - ला + क तारा० ] 1. श्वेत, - धवलातपत्रम् धवलं गृहम् 2. सुन्दर 3. स्वच्छ, विशुद्ध, - - ल: 1. श्वेत रंग 2. अत्युत्तम बेल 3. चीन, कपूर 4. 'धव' नाम का वृक्ष, लम् सफ़ेद कागज़ -ला सफ़ेद गाय, घोली गाय । सम० उत्पलम् श्वेत कुमुद ( चन्द्रोदय होने पर इस का खिलना प्रसिद्ध है ) -- गिरिः हिमालय पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी, गृहम् चूने से पुता घर, महल, पक्षः 1. हंस 2. चान्द्रमास का शुक्लपक्ष, मृत्तिका चाक-मिट्टी । धवलत ( वि० ) [ धवल + इतच् सफ़ेद किया हुआ, श्वेत बना हुआ । धवलम ( नपुं० ) [ धवल + इमनिच् ]1. सफ़ेदी, सफ़ेद रंग 2. पांडुता पीलापन - इयं भूतिर्नाङ्गे प्रियविरहजन्मा घवलिमा - सुभा० । safar [ धू + इत्र ] मृगचर्म से बना पंखा । था ( जुहो० उभ० दधाति धत्ते, हित, कर्मवा० धीयते, प्रेर० वापयति-ते, इच्छा० धित्सति - ते ) 1. रखना, धरना, जड़ना, लिटा देना, भर्ती करना, तह जमाना -- विज्ञातदोषेषु दधाति दण्डम् महा०, निःशंक धीयते (अने० पा० 'दीयते' के स्थान पर) लोकैः पश्य भस्मये पदम् - हि० २।१७३ 2. जमाना, ( मन और विचारों को ) लगाना, ( संप्र० या अधि० के साथ ) धत्ते चक्षुर्मुकुलिनि रणत्कोकिले बालचूते-- मा० ३।१२, दधुः कुमारानुगमे मनांसि भट्टि० ३।११, २७: मनु० १२/२३3 प्रदान करना, अनुदान देना, देना, अर्पित करना, उपहार देना, (संप्र० संब० या अधि० के साथ) धु लक्ष्मीमथ मयि भृशं घेहि देव प्रसीद मा० १३, यद्यस्य सोऽदधात्सर्गे तत्तस्य स्वयमाविशत् - मनु० १२९4 पकड़ना, रखना - तानपि दघासि मातः- भामि० ११६८, श० ४। १ 5 पकड़ना, हस्तगत करना - भट्टि० १/२६, ४२६, कि० १३५४ 6. पहनना, धारणा करना, वहन करना-- गुरूणि वासांसि विहाय तूर्णं तनूनि घत्ते जनः काममदालसाङ्ग - ऋतु० ६ १३, १६, धत्ते भरं कुसुमपत्र फलॉवलीनाम् - भामि० ११९४, दघतो मङ्गलक्षौमेरघु० १२८, ९ ४०, भट्टि० १८1५४ 7. धारण करना, लेना, रखना, दिखलाना, प्रदर्शन करना, कब्जे में करना ( प्रायः आ० ) - काचः काञ्चनसंसर्गाद्धत्ते मारकती द्युतिम् - हि० प्र० ४१, शिरसि मसीपटलं For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दधाति दीपः-भामि० ११७४, रघु० २१७, अमरु । २३।६७, मेघ० ३६, भर्तृ० ३।४६, रघु० ३।१, भट्टि० २।१,४।१६-१८, शि० ९१३,१०८६, कि० ५।५ 8. संभालना, निबाहना, थामे रखना,--गामधास्यत्कथं नागो मृणालमदुभिः फणः--कु० ६।६८ 9. सहारा देना, स्थापित रखना--संपद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयं--रधु० ११२६ 10. पैदा करना, रचना करना, उत्पादन करना, उत्पन्न करना, बनानामुग्धा कुड्मलिताननेन दधती वायु स्थिता तस्य सा-- अमरु ७० 11. सहना, भोगना, ग्रस्त होना-शि० ९।२, ३२.६६ 12. सम्पन्न करना, ['दा' की भांति इस धातु के अर्थ भी दूसरे शब्दों के साथ जुड़ने से विविध प्रकार के हो जाते हैं, उदा० मनःपाः, मतिधा, धियं धा, मन को लगाना, विचारों को लगाना दृढ़ संकल्प करना, पदं धा पग रखना, प्रविष्ट होना, कर्णे करं धा, कान पर हाथ रखना ] अतिसम् - ठगना, धोखा देना ....भगवन् कुसुमायुध लया चन्द्रमसा च विश्वसनीयाभ्यामतिसंधीयते कामिजनसार्थ: ...श० ३, विक्रम० २, अन्तर---, 1. मन में रखना, मानना, ग्रहण रखना-तथा विश्वम्भरे देवि मामंतातुमर्हसि ---रघु० १५४८१, 2. अपने आपको छिपाना, गुप्त रखना, ओझल होना (संप्र० के साथ) -भट्टि० ५।३२, ८1७१, 3. ढकना, छिपाना, दृष्टि से ओझल करना, लपेटना, टांकना (आलं ० भी) पितुरंन्तर्दधे कोटि शीलवृतसमाधिभि:--महा० अनुसम्,---, 1. ढूंढना, पूछताछ करना, अन्वेषण करना, जांचपड़ताल करना 2. सचेत होना, अपने आपको शांत करना 3. उल्लेख करना, संकेत करना, लक्ष्य बनाना 4. योजना बनाना, क्रमबद्ध करना, क्रम में रखना, अपि-(कभी कभी 'अपि' का 'अ' लुप्त हो जाता हैं) । (क) बन्द करना, भेजना----ध्वनति मधुपसमहे श्रवणमपिदधाति-गीत० ५, इसी प्रकार-कर्णी नयने-पिदधाति (ख) ढकना, छिपाना, गुप्त रखना, ---प्रायो मूर्खः परिभवविधौ नाभिमानं पिधत्ते --शृंगार० १७, प्रभावपिहिता--विक्रम० ४।२, शि० ९१७६, भट्टि० ७६९ 2. रोकना, बाधा डाला, प्रतिबंध लगाना - भुजङ्गपिहितद्वारं पातालमधितिप्ठति--रघु० १६८० अभि-, (क) कहना, बोलना, वताना- ० ३१६३, मनु० ११४२, भट्रि० ७७८, भग० १८१६८, (ख) 1. मंकेत करना, व्यक्त करना, मुख्यत: बतलाना प्रस्तुत करना----साक्षात्संकेतितं योऽर्थमभिधत्ते स वाचक: काव्य ० 2. तमाम येनाभिदधाति सत्त्वम् 2. अभिधान होना, पुकारना, अभिसम्-, 1. किसी पर फेंकना, निशाना लगाना, (तीर आदि | का) लक्ष्य बनाना 2. ध्यान में रखना, (मन में) । निशाना बनाना, सोचना-ऋष्यमूकमभिसंधाय --महावी० ५, अभिसंधाय तु फलम् ---भग० १७१२, २५, विक्रम० ४।२८ 3. धोखा देना, ठगना-- जनं विद्वानेकः सकलमभिसंधाय-मा० १११४ 4. अपने पक्ष में कर लेना, मित्र बना लेना, दूसरों का मित्र बन जाना तान्सर्वानभिसंदध्यात् सामादिभिरुपक्रमः --- मनु० ७१५९ (वशीकुर्यात्) 5. प्रतिज्ञा करना, प्रकथन करना 6. जोड़ना, अभ्या-नीचे रखना, नीचे फेंकना, अव-सावधान होना, ध्यान देना, कान देना ... इतोऽवधत्तां देवराज:-- महावी० ६, आ, (प्रायः 'आ०' में) 1. रखना, घरना, ठहरना-जनपदे न गद पदमादधौ-रघु० ९।४, भग० ५।४० श० ४१३ 2. प्रयोग करना, जमाना, किसी की ओर संकेत करना ..प्रतिपात्रमाधीयतां यत्नः--श० १, मय्येव मन आवत्स्व-भग०१२।८, आधीयतां धैर्य थम च धीः -का०६३, 3. लेना, आधिकार में करना, वहन रखना -- गर्भमाधत्त राज्ञी- रघु० २१७५, (गर्भ बहन किया) आधत्ते कनकमयातपत्रलक्ष्मी-कि० ५।३९, (लेती है या धारण करती है) कु. ७।२६, 4. बोझा उठाना, थामना, सहारा देना -- शेषः सदैवाहितभूमिभार:-श० ५।४ 5. पैदा करना, उत्पादन करना, सर्जन करना, उत्तेजित करना (भय या आश्चर्य) छायाश्चरन्ति बहुधा भयमादधाना:- ० ३।२७, कि० ४११२ 6. देना, समर्पित करना रघु० १९८५ 7. नियुक्त करना, स्थिर करना तमेव चाधाय विवाहसाक्ष्ये-रघु० ७।२० 8. संस्कृत करना-कु० ११४७ 9. अनुष्ठान करना, (व्रत आदिका) पालन करना,---आविस, भेद खोलना, प्रकट करना (श्रेण्यसाहित्य में बहुत प्रयोग नहीं) उप---, 1. रखना, उठाना, नीचे रखना, अन्दर रखना---अधिजानु बाहु. मुपधाय शि० ९।५४, हृदि चनामुपधातुमर्हसि -रघु० ८७७, (हृदयस्थित करने के लिए) उपहितं शिशिनागमश्रिया मुकुलजालगशोभत किशुके-रघ० ९।३१, कु० ११४४ 2. निकट रखना,- (घोड़े आदि को) जोतना, महावी० ४५६ 3. पैदा करना, निर्माण करना, उत्पादन करना - मच्छ० ११५३ 4. ऊपर डालना, सौंपना, संभालना, देख रेख में करना ---तदुपहितकुटुंम्बः,-रधु० ७.७१, 5. तकिये के स्थान में प्रयुक्त करना--वामभुजमुपधाय... दश० १११ 6. काम में लगाना, अभ्यर्थना करना, प्रदान करना -क्रिया हि वस्तूपहिता प्रसीदति---रघु० ३।२९ 7. ढकना, छिपाना 8. देना, जताना, समाचार देना, उपा,--...1. निकट रखना, ऊपर रखना 2. पहनना 3. पैदा करना, सर्जन करना, उत्पादन करना -भर्त० ३१८५, तिरस्-, 1. छिपाना, गुप्त रखना, For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४९३ ) 2. ( आ०) लुप्त होना, ओझल होना - अभिवृष्यमहत्सस्यं कृष्ण मेघस्तिरोदधे रघु० १०१४८, ११९१, तिरस् के नी० भी देखिये नि०, 1. रखना, धरना, जड़ देना- शिरसि निदधानोऽञ्जलिपुटम् भर्तृ ० ३।१२१, रघु० ३।५०, ६२, १२।५२ शि० १।१३ 2. भरोसा करना, सौंपना, देख-रेख में रखना - निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे - रघु० १२/४४, १४/३६ ३. देना, समर्पित करना, जमा कर देना-दिनान्ते निहितं तेजः सवित्रेव हुताशनः– रघु० ४।१ 4. दबा देना, शान्त करना, रोक देना-सलिलं निहितं रजः क्षिती घट० १5. दफन करना, (भूमि के अन्दर ) गाड़ देना, छिपाना - मनु० ५/६८, परि-, 1. ( वस्त्रादिक) पहनना, धारण करना - त्वचं स मेध्यां परिवाय रौवीं रघु० ३।३१ 2. अहाता बना लेना, घेरा डाल लेना 3, किसी की ओर संकेत करना, पुरस् -- सिर पर रखना या धारण करना - तुरासाहं पुरोधाय धाम स्वायंभुवं ययुः कु० २ १, रघु० १२।४३ 2. कुलपुरोहित बनाना, प्रणि, रखना, नोचे धरना या लिटा देना, साष्टांग प्रणत होना- प्रणिहितशिरसं वा कान्तमार्द्रापराधम् - मालवि० ३११२, तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायम् - भंग० ११।४४ 2. जड़ना, अन्दर रखना, अन्दर लिटाना, पेटी में बन्द करना - यदि मणिस्त्रपुणि प्रणिधीयते - पंच० १७५, अने० पा० 3. प्रयोग करना, स्थिर करना, किसी की ओर संकेत करना---भर्तृ प्रणिहितेक्षणाम् - रघु० १५/८४, भट्टि० ६।१४२ 4. फैलाना, विस्तार करना - मामाकाशप्रणिहितभुजं निर्दयाश्लेषहेतोः मेघ० १०६, नोवीं प्रति प्रणिहिते तु करे प्रियेण सख्यः शपामि यदि fafaaपि स्मरामि काव्य० ४ 5. (चर के रूप में ) बाहर भेजना, प्रतिवि, 1. प्रतीकार करना, संशोधन करना, मरम्मत करना, बदला लेना, उपाय करना, विरुद्ध पग उठाना - अर्थवाद एष:, दोषं तु मे कंचित्कथय येन स प्रतिविधीयेत उत्तर० १, क्षिप्रमेव कस्मान्नप्रतिविहितमार्येण मुद्रा० ३ 2. व्यवस्था करना, क्रम से रखना, सजाना 3. प्रेषित करना, भेजना, प्रदि, 1. बाँटना 2. करना, बनाना, वि, 1. करना, बनाना, घटित करना, प्रभावित करना, सम्पन्न करना, अनुष्ठान करना, पैदा करना, उत्पादन करना, उत्पन्न करना यथाक्रमं पुंसवनादिका: क्रिया घृतेश्च धीरः सदृशीयंधरा सः - रघु० ३।१० - तन्नोदेवा विषेयासुः -- भट्टि० १९/२, विधेयासुर्देवाः परमरमणीयां परिणतिम् - मा० ६ ७, प्रायः शुभं च विदधात्यशुभं च जन्तोः सर्वङ्कषा भगवती भवितव्यतैव १२३, ये द्वे कालं विधराः श० ११, पैदा करना, उत्पादन करना, समय का विनियमित करना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir —तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् भग० ७/२१, रघु० २।३८, ३६६, ( यह अर्थ 'विधा' के साथ जुड़ने वाले शब्द के अनुसार और भी अधिक अदल-बदल किए जा सकते हैं, तु० 'कृ' ) 2. निर्धारित करना, विधान बनाना, निर्दिष्ट करना, नियत करना, स्थिर करना, आदेश देना, आज्ञा देना- प्राङ्नाभिवर्धनात्पुंसो जातकर्म विधीयते मनु० २२९, ३।१९, याज्ञ० १।७२, शूद्रस्य तु सवर्णैव नान्या भार्या विधीयते ९।१५७, ३०११८ 3. रूप बनाना, शक्ल देना, सर्जन करना, निर्माण करना---तं वेधा विदधे नूनं महाभूतसमाधिना -- रघु० ११२९ अङ्गानि चम्पकदलैः स विवाय नूनं कान्ते कथं घटितवानुपलेन चेतः - श्रृंगार० ३ 4 नियुक्त करना, प्रतिनियुक्त करना ( मन्त्री आदि को ) 5. पहनना, धारण करना - पंच० १।२९ 6. स्थिर करना, ( मन आदि को ) लगाना -- भग० २४४, भर्तृ० ३।५४ 7 क्रमबद्ध करना, व्यवस्थित करना 8 तैयार करना, तत्पर करना, व्यव 1. बीच में रखना, बीच में डालना, हस्तक्षेप करना प्रेक्ष्य स्थितां सहचरी व्यवधाय देहम् रघु० ९।५७ 2 छिपाना, ढकना, पर्दा डालना - शापव्यव हितस्मृतः - श० ५. श्रद्, भरोसा करना, विश्वास रखना ( कर्म० के साथ ) - कः श्रद्धास्यति भूतार्थम् मृच्छ० ३।२४, श्रधे त्रिदशगोपमात्रके दाहशक्तिमत कृष्णवर्त्मनि - रघु० ११०४२, सम्-, 1. मिलाना, एकत्र लाना, संयुक्त करना, मिला देना, यानि उदकेन संधीयते तानि भक्षणीयानि कुल्लूक ० 2. बर्ताव करना, मित्रता करना, संधि करना- शत्रुणा न हि संदध्यात्सुलिष्टेनापि संधिना हि० ११८८, चाण० १९, काम० ९ ४१ 3. स्थिर करना, संकेत करना संदधे दृशमुदग्रतारकाम् – रघु० ११/६९ 4. ( किसी अस्त्र या तीर आदि को ) धनुष पर ठीकठीक बैठाना, या ठीक से जमाना --- धनुष्यमोघं समधत्त बाणम् - कु० ३।६६, रघु० ३५३, १२/९७5. उत्पादन करना, पैदा करना पर्याप्तं मयि रमणीयचमरत्वं संधत्ते गगनतलप्रयाणवेग: मा० ५३, संघते भृशमरतिं हि सद्वियोग: कि० ५।५१ 6 मुकाबला करना, मुकाबले में सामने आना, शतमेकोऽहि संधत्त प्राकारस्थो धनुर्धरः — पंच० १।२२९ 7 सुधारना, मरम्मत करना, स्वस्थ करना 8 कष्ट देना 9. ग्रहण करना, सहारा देना, वागडोर संभालना 10. अनुदान देना, संनि, 1. रखना, एकत्र रखना मनु०२।१८६ 2. निकट रखना - श० ३।१२, 3. स्थिर करना, निर्दिष्ट करना - रघु० १३ । १४४ 4. निकट जाना पहुँचना --- प्रेर० निकट लाना, एकत्र संग्रह करना, समा-- 1. एकत्र रखना या धरना, मिलाना, संयुक्त For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४९४ करना 2. रखना, घरना, स्थापित करना, लागू करना - पदं मूर्ध्नि समाधत्तं केसरी मत्तदन्तिनः पंच० १। ३२७ ३. जमाना, अभिषेक करना, राजगद्दी पर बिठाना रघु० १७३८ 4 समाश्वस्त होना, ( मन को. ) शान्त करना - मनः समाधाय निवृत्तशोकः --- रामा०, न शशाक समाधातुं मनो मदनवेपितम् - भाग० 5. सकेन्द्रित करना, (आँख या मन आदि को) एकाग्र करना, भग० १२०९, भर्तृ० ३१४८ 6. संतुष्ट करना, ( शंका का ) समाधान करना, आक्षेप का उत्तर देना इति समाधत्ते ( टीकाओं में) 7. मरम्मत करना, सुधारना, ठीक करना, हटा देना -न ते शक्याः समाधातुम् हि० ३।३७, उत्पन्नामापदं यस्तु समाधत्त स बुद्धिमान् ४1७ 8 विचार करना भट्टि० १२/६ 9 सौंपना, अर्पण करना, हस्तान्तरित करना 10. पैदा करना, कार्यान्वित करना, सम्पन्न करना ( निम्नांकित श्लोक में सोपसर्ग धा धातु के प्रयोगों का चित्रण किया गया है अधित कापि मुखे सलिलं सखी व्यधित कापि सरोजदलैः स्तनौ, व्यापि हृदि व्यजनानिलं व्यधितं कापि सुतनो स्तनों ने० ४।१११, इससे भी अच्छा निम्नांकित जगन्नाथ का श्लोक - निधानं धर्माण किमपि च विधानं नवदां प्रधानं तीर्थानाममलपरिवानं त्रिजगतः, समाधानं बुद्धेरथ खलु तिरोधानवियां श्रियामाधानं नः परिहरतु तापं तव वपुः - गंगा० १८ ) । धाकः [ धा+क उणा० तस्य नेत्वम् ] 1. बैल 2. आधार, आशय 3. आहार, भात 4. स्थूणा, खंभा, स्तंभ I घाटी [ घट् + घञ + डीप् ] धावा, आक्रमण | धाणकः [श्रा -+- आणक] एक सोने का सिक्का ( दीनार का अंश) धातुः [वा + तुन्] संघटक या मूल भाग, अवयव 2. मूल तत्व, मुख्य या तत्व मूलक सामग्री अर्थात् पृथिवी, आप, तेजस्, वायु और आकाश, 3. रस, मुख्य द्रव्य या रस, शरीर का अनिवार्य उपादान ( यह गिनती में सात माने जाते हैं - रसासृङ्गमांसमेदोऽस्थि मज्जाशुक्राणि in: कई बार केश, त्वच् और स्नायु को मिला कर दस मान लिये जाते हैं ) 4. शरीर के स्थितिविधायक तत्त्व ( अर्थात् वात, पित्त, कफत्रिदोष) 5. खनिज पदार्थ, धातु, कच्ची धातु न्यस्ताक्षरा वातुरसेन यत्र, कु० ११७, त्वामालिरूप प्रणयकुपितां धातुरागः शिलायां मेघ०१०५, रघु० ४७१, कु० ६/५१ 6 क्रिया का मूल भूवादयो धातत्र: पा० १।३।१, पश्चादव्ययनार्थस्य धातोरधिरिवाभवत् २० १५९ 7 आत्मा 8 परमात्मा 9. ज्ञानेन्द्रिय 10 पांच महाभूतों का गुण ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम० अर्थात् रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द 11. हड्डी । उपलः खड़िया, चाकू- काशीश, म्- कासीसम्कसीस, कुशल - (वि०) धातु के कायों में दक्ष-क्रिया धातुकामिकी, धातुकर्म, खानित्री, धातृविज्ञान - क्षयः शरीर के तत्त्वों का नाश, क्षयरोग, जम शिलाजीत, शैलज तेल, - ब्रावकः सुहागा, पः खाद्य, पौष्टिक रस, शरीर के सात मूल उपादानों में मुख्य उपादान -पाठः पाणिनि की व्याकरण पद्धति के अनुसार बनी धातुओं की सूकी ( पाणिनि के सूत्रों के परिशिष्ट के रूप में धातु पाठ, पाणिनि निर्मित एक आवश्यक सूची है), - भृत् (पुं० ) पहाड़, मलम् 1. शरीरस्थ धातुओं के मल के अपवित्र रूपांतर 2. सीसा,- माक्षिकम् 1. एक उपधातु सोनामक्खी 2. खनिज पदार्थ, -मारिन् (पुं०) गंधक, राजकः वीर्य, - वल्लभम् सुहागा, बाद: खनिज विज्ञान, धातुविज्ञान, वादिन् (पुं०) खनिज विज्ञाता - वैरिन् (पुं०) गंधक - शेखरम् कासीस, गंधक का तेजाब, शोधनम्, संभवम् सीसा, साम्यम् अच्छा स्वास्थ्य ( त्रिदोष समता ) ! धातुमत् (वि० ) [ धातु + मतुप् ] धातुओं से भरा हुआ, धातु संपन्न । सम० - ता घातुओं का बाहुल्य, कु० ११४ । धातृ (पुं० ) [धा + तृच् ] 1. निर्माता, रचयिता, उत्पादक, प्रणेता 2. धारण करने वाला, संधारक, सहारा देने वाला 3. सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का विशेषण -- मन्ये दुर्जनचित्तवृत्तिहरणे धातापि भग्नोद्यम:- हि० २।१६५, रघु० १३६, शि० १।१३, कु० ७४४ कि० १२।३३ 4. विष्णु का विशेषण 5 आत्मा 6. ब्रह्मा की प्रथम सृष्टि होने के कारण सप्तर्षियों के नाम, तु०कु० ६९ 7 विवाहित स्त्री का प्रेमी व्यभिचारी ! धात्रम् [ धा + ष्ट्र ] बर्तन, पात्र, । धात्री | धात्र + ङीप् ] 1. दाई, वाय, उपमाता उवाच धात्र्या प्रथमोदितं वच: रघु० ३१२५ कु० ७१२५ 2. माता-याज्ञ० ३।८२, 3. पृथ्वी 4. आँवले का वृक्ष । सम० पुत्रः धाय का पुत्र, धर्म भाई 2. अभिनेता, - फलम् आँवला । धात्रेयिका, धात्रेयी [ धात्रेयो + कन् + टाप्, ह्रस्व:, धात्री ढक् ङीप् ] धात्रीपुत्री -- धात्रेयिकायाश्चतुरं वचश्च - मा० १३२, कथितमेव नां मालतीधात्रेय्या लबङ्गिकया -- मा० १2. धाय, दूध पिलाने वाली धाय । धानम्, -नी [ घा ल्युट् धान + ङीप् ] आधार, पात्र, गद्दी, स्थान, जैसा कि मसीधानी, राजधानी, धानी । यम धानाः (स्त्री० ब० व० ) [ धान+टाप् ] भुने हुए जी या चावल, खीर 2. सत्तू 3. अनाज, अन्न 4. कली, अंकुर । For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धानुदंण्डिकः, धानुष्कः [धनुर्दण्ड+ठक, धनुष+टक+क] ! तीक्ष्ण बौछार, तेजी से उड़ा ले जाने वाली झड़ी तीरंदाज, (धनुष के द्वारा अपनी जीविका कमाने) 3. हिम, ओला 4. गहरी जगह 5. ऋण 6. हद, सीमा । वाला धतुर्धर-निमितादाराद्धेषोर्धानुष्कस्येव वल्गि- | धारकः [धृ=ण्वुल ] 1. किसी प्रकार का वर्तन (बक्स तम्-शि०२।२७। ट्रंक आदि), जलपात्र 2. कर्जदार। धानुष्यः [ धनुष-व्या | बाँस । धारण (वि.) (स्त्री० -सी) [ध-णिच् + ल्युट् ] धांधा (स्त्रो०) इलायची। संभालने वाला, थामने वाला, ले जाने वाला, संधाधाम्पम् [धान+यत् 1. अनाज, अन्न, चावल 2. धनिया रण करने वाला, निबाहने वाला, रक्षा करने वाला, (सस्य और धान्य, तथा तंडल और अन्न की भिन्नता रखने वाला, धारण करने वाला, - णम् !. संभालने, के लिए दे० तण्डुल) । सम-अम्लम् मांड़ से थामने, सहारा देने, संधारण करन या सुरक्षित रखने तैयार को हुई कांजी, --- अर्थः चावल या अनाज के रूप की क्रिया 2. कब्जे में करना, संपत्ति 3. पालन करना, में धन, · अस्थि (नपुं०) तूस या भूसी, बूर या दृढ़ता पूर्वक पकड़ना, 4. याद रखना---ग्रहणधारण पटबालक: 5. (किसी का ) कर्जदार होना,—णी चोकर,--उत्तमः बढ़िया अन्न अर्थात् चावल,--कल्कम् 1. छिल्का (अन्न का), घान्यत्वचा 2. भूसी, चोकर, 1. पंक्ति या रेखा 2. शिरा, नलाकार वाहिका । पुआल,-कोशः,-कोष्ठकम् अनाज की खत्ती,-क्षेत्रम् धारणकः [धारण+कन कर्जदार। अनाज का खेत,---चमसः चौला, चिड़वा,-स्वच् धारणा [धारण-+टाप्] 1. संभालने, थामने, सहारा देने (स्त्री०) अनाज का छिल्का,- मायः अनाज का । या सुरक्षित रखने की क्रिया 2. मन में धारण करने व्यापारी,-राजः जौ,- वर्धनम् व्याज के लिए की शक्ति, अच्छो धारणात्मकस्मरण शक्ति अनाज उधार देना, अनाज की सूदखोरी, ---- धोरणावती मेधा--अमर 3. स्मरण शक्ति 4. मन ----वीजम् (बीजम्) धनिया,-वीरः उड़द (माष) की को शांत रखना, श्वास को थामे रखना, मन की दृढ़ दाल,--शीर्षकम् अनाज की बाल,--शूकम् अनाज भावमग्नता--परिचेतुमपांशु धारणा -..- रघु० ८।१८, का सिर्टा, टुंड,--सारः कट पीट कर निकाला मनु०६७२, याज्ञ० ३।२०१, (धारणेत्युच्यते चेयं हुआ अन्न। धार्यते यन्मनस्तया) 5. धैर्य, दृढ़ता, स्थिरता धान्या, धान्याकम् [धान्य +टाप, स्वार्थे कन् च ] धनिया। 6. निश्चित विधि या निषेध, निश्चित नियम, उपधान्वन् (वि.) (स्त्री० ----नो) [ धन्वन्+अण् ] मरु- संहार, इति धर्मस्य धारणा--मनु० ८।१८४, ४।३८, भूमि का, मरुस्थल में विद्यमान । ९।१२४ 7. समझ, बुद्धि 8. न्याय्यता, औचित्य, धामकः-धानक पृषो० ] एक माशे की तोल । शालीनता 9. आस्था, विश्वास । सम० - योगः धामन् (नपुं० ) [धा+मनिन् ] 1. आवास--स्थान, | गहरी भक्ति, मनोयोग,---शक्तिः (स्त्री०) धारणात्मक गृह, निवासस्थान, घर-तुरासाहं पुरोधाय धाम स्वायं स्मरण शक्ति । भुवं ययुः कु० २।१, पुण्यं यायास्त्रिभवनगरोमि | धारयित्री [धृ+णिच् +तुच+डीप्] पथ्वी। चण्डीश्वरस्य-मेघ० ३३, भग० ८।२१, भर्त० श३३ | धारा [धार--टाप 1. पानी की सरिता या धार, गिरने 2. जगह, स्थान, आश्रय-श्रियोधाम 3. घर के हुए जल की रेखा, सरिता, धार----भर्तृ० २।९३, निवासी, परिवार के सदस्य 4. प्रकाश किरण, सहस्र- मेघ० ५५, रघु० १६१६६, आबद्धधारमश्रु प्रावर्तत---- वामन्--मुद्रा० ३३१७, मिवामन्—शि० ९।५३ दश०७४ 2. बौछार, वर्षा की तेज घड़ी 3. अन5. प्रकाश, कान्ति, दीप्ति-मुद्रा० ३।१७, कि० वरत रेखा-भामि०२:२० 4. घड़े का छिद्र 5. घोड़े २१२०, ५४, ५९, १०१६, अमरु ८६, रघु० ६६, १८१ का कदम-धाराः प्रसाधयितुमव्यतिकीर्णरूपाः --शि. २२, 6. राजयोग्य कांति, यश, प्रतिष्ठा-रघु० ११॥ ५।६० 6. हाशिया, किनारा, किसी वस्तु की किनारी ८५ 7. शक्ति, सामर्थ्य, प्रताप---कि० २।४७ या सीमा--प्रवं स नीलोत्पलपत्रधारया शमीलतां 8. जन्म 9. शरीर 10. टोली, दल 11. अवस्था, छेतुमषिय॑वस्यति-श० १४९८ 7. तलवार, कुल्हाड़ा दशा । सम-केशिन,-निधिः सूर्य । या किसी काटने वाले उपकरण का तेज किनारा या धामनिका, धामनी [ धामनी+कन्-+टाप् ह्रस्वः, धमनी धार-तजितः परशुधारया मम-रघु० १११७८, +अण+डीप् ] दे० धमनी।। ६।४२, १०८६, ४१, भर्त० २।२८ 8. किसी पहाड़ धार (वि.) [ध+णि+अच् 1 1. संभालने वाला, या चट्टान का किनारा 9. पहिया या पहिये का सामने वाला, सहारा देने वाला, 2. नदी को भांति परिणाह या परिघि रघु० १३।१५ 10. उद्यान प्रवाहित होने वाला, टपकने बाका, बहने वाला,- -रः की दीवार, बाड़, छाड़वदी 11. सेना की अग्रिम 1. विष्ण का विशेषण 2. वर्षा को आकस्मिक तथा । पंक्ति 12. उच्चतम बिन्दु, सर्वोपरिता 13. समुच्चय For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४९६ ) 14. यश, 15. रात 16. हल्दी 17. समानता, ।। आक्रमण करना, मुकाबला करना---भट्टि० १६।६७ 18. कान का अग्रभाग। सम० --अग्रम बाण का । 3. बहना, नदी की भांति प्रवाहित होना . धावत्यचौड़ा फलका,---अकुंरः 1. वर्षा की बँद 2. ओला भसि तैलवत् ---सुश्रु० 4. दौड़ना, उड़ जाना i (भ्वा० 3. (शत्रु का मुकाबला करने के लिए) सेना के आगे २ उभ०-- धावति-ते, धौत, धावित) 1. धोना, साफ बढ़ते जाना, -- अंगः तलवार,--अट: 1. चातक पक्षी करना, मांजना, निर्मल करना, रगड़ना... दधावाद्धि2. घोड़ा 3. बादल 4. मदमाता हाथी, ....अधिरूढ़ स्ततश्चक्षः सुग्रीवस्य विभीषणः, विदांचकार धौताक्षः (वि.) उच्चतम स्वर तक उठाया हुआ अवनिः स रिपंखे ननदं च - भट्रि. १४।५० श० ६।२५, (स्त्री०) हवा, अश्रु (नपुं०) अश्रु प्रवाह---अमरु ... शि० १७४८ 2. उज्ज्वल करना, चमकाना 3. किसी १०...आसारः भारी वर्षा, मूसलाधार वर्षा-- धारा- ।। व्यक्ति से टकराना (आ०) निस, धो डालना--- सारमहती वृष्टिर्बभूव-हि. ३, विक्रम ४११, निर्धात सति हरिचन्दने जलौघे:-शि०३१५१, निधीत--उष्ण (वि.) (गौ के स्तन से निकला हुआ) गरम दाना मलगंडभित्तिः रघु० ५।४३, ७० । (दूध), गृहम् स्नानागार जिसमें फौवारा लगा हो, धावकः धा+ण्वुल ] 1. धोबी, 2. एक कवि (कहा घर जिसमें फौवारे से सुसज्जित स्नानागार हो जाता है कि इसने श्रीहर्ष राजा के लिए रत्नावली की रघु० १६।४९. रत्त० १।१३, धरः 1. बादल रचना की थी--श्रीहर्षादेविकादीनामिव यशः ---- 2. तलवार, ---निपातः, --पातः 1. बारिश का होना, काव्य० १, अने० पा०-प्रथितयशसां धावकसौमिल्लबौछार का टपटप गिरना - मेघ०४८ 2. जल की कविपुत्रादीनां प्रवन्धाननिक्रम्य -मालवि० १, अने. धारा सरिता,--यन्त्रम् फौवारा, झरना (पानी का) पा० । अमरु ५९, रत्न०१११२,-वर्षः,-बम-सपातः लगातार । धावनम | धावल्यट] 1. दौड़ना, सरपट भागना घोर मसलाधार वृष्टि - रघु० ४।८२,-वाहिन । 2. बहना, 3. आक्रमण करना 4. मांजना, पवित्र करना, (वि०) अनवरत, लगातार..-उत्तर० ४१२,--विषः रगड़ना, बहा देना 5. किसी चीज से रगड़ना। टेढ़ी तलवार। धावल्यम् [ धवल - प्यन ] 1. सफेदी 2. पांडुरता। धारिणी [धृ-णिनि + डीप्] पृथ्वी ! धि i (तुदा० पर०-- धिपति) संभालना, रखना, अधिधारिन (वि०) (स्त्री०-णी) [भ+-णिनि] 1. ले जाने कार में करना, सम्-, मुलह करना --तु० संधा. वाला, वहन करने वाला, निबाहने वाला, सुरक्षित (या धिन्व स्वा० पर० धिनोति) प्रसन्न करना, रखने वाला, रखने वाला, संभालने वाला, सहारा खुश करना, संतुष्ट करना ....पश्यन्ती चात्मरूपं तदपि देने वाला-..-पादाम्भोरुहधारि-गीत० १२, कर आदि विललितस्रग्धरेयं विनोति -गीत० १२, घिनोति 2. स्मृति में रखने वाला, धारणात्मक स्मरण शक्ति नास्मान्जलजेन पूजा त्वयान्वहं तन्वि वितन्यमाना-नै० रखने वाला, अज्ञेभ्यो ग्रन्थिन: श्रेष्ठाः ग्रन्थिभ्यो ८।९७, उत्तर० ५।२७, कि० श२२। । धारिणो बराः मनु० १२।१०३ । धिः (समास के अन्त में प्रयुक्त) आधार, भंडार, आदाय धार्तराष्ट्रः [धृतराष्ट्र+अण्] 1. धृतराष्ट्रका पुत्र 2. एक आदि --उदधि, इषधि, वारिधि, जलधि आदि । प्रकार का हंस जिसके पैर और चोंच काली होती धिक (अव्य) [ धा+डिकन् । निन्दा, बुराई, विपाद की है-निष्पतन्ति धार्तराष्ट्राः कालवशान्मेदिनीपृष्ठे---- भावना को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक वेणी० ११६, (यहाँ शब्द उपर्य क्त दोनों अर्थों में अव्यय ...(धिक्कार, फटे मह, शर्म, दुःख, तरस प्रयुक्त है) ! -- कर्म० साथ)---धिक तां च तं च मदन च इमां च धामिक (वि.) (स्त्री०-को) धर्म-ठक] 1. नेक, मां--च, भर्तृ० २१२, विगिमां देहभृतामसारताम्-रघु० पुण्यात्मा, न्यायशील, सद्गुणसंपन्न 2. सत्याश्रित, ८।५० धिकतान् विकतान् धिगेतान् कथयति सततं न्याय्य, न्यायोचित 3. धर्म से युक्त ! कीर्तनस्थो मुदङ्गः, धिक सानुज कुरुपति धिगजात-- धामिणम् [र्मिन्- अण्] सद्गुणियों का समाज । शत्रु वेणी०३।११, कभी-कभी कर्त० संबो० और धाटघम् [धृष्ट-प्या] अहंकार, अविनय, औद्धत्य, संबं के साथ धिगर्थाः कष्टसंश्रयाः पंच० १. धिड - ढिठाई, अक्खड़पन ! मूर्व, धिगस्तु हृदयस्यास्य (धिकृ तिरस्कार करना) धाव (मा०पर-धावति, धावित) 1. दौड़ना, आगे अवज्ञा करना, रद्द करना, बुरा भला कहना) । सम० बढ़ना - अद्यापि धावति मन: --चौर० ३६, धावन्त्यमी - कारः--क्रिया झिड़कना, फटकारना, तिरस्कार मृगजवाक्षमयेव रय्याः ----श० ११८, गच्छति पुरः करना, अवज्ञा करना, ---दण्डः डांटफटकार बताना, शारीरं धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः १०३४, 2. किसी निदा मनु० ८।१२९,-पारुष्यम् अपशब्द, डांट की ओर दौड़ना, किसी के मुकाबले में आगे बढ़ना, फटकार, भर्त्सना। For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४९७ ) धिप्सु (वि.) [ दम्भ-+ सन्+उ धोखा देने का इच्छुक, ।। समझदार, विद्वान् चतुर-धृतेश्च धीरः सदृशीळधत्त धोखा देने वाला-- भटि० ९।३३ । सः-रघु० ३।१०, ५।३८, १६।७४, उत्तर० ५।३१ धिन्व दे० धि। 8. गहरा, गंभीर, ऊँचा स्वर, खोखलास्वर स्वरेण धीघिषणः | धम् । क्यु, धिप आदेशः ] देवों के गुरु बृह- रेण निवर्तयन्निव- रघु० ३।४३, ५२, उत्तर० ६११७ स्थति का नाम,-- णम् निवासस्थान, आवास, घर, 9. आचरणशील, आचारवान् 10. (वायु आदि) --णा 1. भाषण, 2. स्तुति, सूक्त 3. बुद्धि, समझ मन्द, मदु, सुहावना, सुखकर-धीरसमीरे यमुनातीरे महावी० ६७ 4. पृथ्वी 5. प्याला, कटोरा ।। वसति बने वनमाली-गीत०५ 11. सुस्त, आलसी धिष्ण्यः [धृष्|-य नि० ऋकारस्य इकार: 1 1. यज्ञाग्नि 12. साहसी 13. हेकड़,--र: 1. समुद्र 2. राजा बलि के लिए स्थान, हवनकुण्ड, अमीवेदि परितः कृतधि का विशेषण,--रम् केसर, जाफरान,--रम् (अव्य०) एण्या-श० ४७ 2. असुरों के गुरु शुक्राचार्य का साहसपूर्वक, दृढ़ता के साथ, अडिग होकर धीरज के नाम 3. शुक्र ग्रह शक्ति, सामर्थ्य,--ण्वम् साथ-भत० २।३१, अमरु १११ सम०-उदात्तः 1. आसन, आवास, स्थान, जगह, घर-न भौमान्येव अच्छे विचारों का शूरवीर व्यक्ति (काव्य नाटक में) धिष्ण्यानि हित्वा ज्योतिर्मयान्यपि-रघु० १५।३९, नायक, -अविकत्थनः क्षमावानप्तिगम्भीरो महासत्त्वः, 2 केतु, उल्का 3. अग्नि 4. तारा, नक्षत्र। स्थेयानिग ढमानो धीरोदात्तो दृढ़वतः कथित:--सा० धीः (स्त्री०) [ध्य +विवप, संप्रसारण ] 1. (क) बुद्धि, द० ६६,--उद्धतः शूरवीर परन्तु अभिमानी (काव्यसमझ--धियः समग्रैः स गुणरुदारधीः-- रघु० २।३० नाटक में) नायक ---मायापरः प्रचण्डश्चपलोऽहंकार-कृ० कुधी, सुधी आबि (ख) मन, दुष्टधी दुष्ट दर्पभूयिष्ठः, आत्मश्लाघानिरतो धीरैर्धीरोद्धतः कथितः बुद्धि पाला--भग० २।५४, रघु० ३।३० 2. विचार -सा० द. ६७,-चेतस् (वि०) दृढ़, अडिग, दृढ़ कल्पना, उत्प्रेक्षा, प्रत्यय ---न धिया पथि वर्तसे-कु० मन बाला, साहसी,-प्रशान्तः (काव्य नाटक में) ६।२२ 3. विचार, आशय, प्रयोजन, नैसर्गिक प्रवृत्ति, नायक जो शरवीर और शान्त व्यक्ति हो-सामान्यकि० ११३७ 4. भक्ति, प्रार्थना 5. यज्ञ । सम० गुणभूयान् द्विजातिको धीरप्रशान्तः स्यात्-सा० द. ---इन्द्रियम् प्रत्यक्षज्ञान का अंग (ज्ञानेन्द्रिय), मनः ६९, --ललितः (काव्य नाटक में) नायक जो दृढ़ कर्णस्तथा नेत्रं रसना च त्वचा सह, नासिका चेति षट् और शुरवीर होने के साथ-साथ क्रीडाप्रिय और तानि चीन्द्रियाणि प्रचक्षते, -गुणाः (व० व०) असावधान हो ...निश्चितो मदरनिशं कलापरो धीरबौद्धिक गुण, (शुश्रुषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा, ललित: स्यात् सा० द०६८, स्कन्धः भैसा । ऊहापोहार्थविज्ञान तत्त्वज्ञानं च धीगुणा:-काम- धीरता धिोर+तल+टाप्] । धैर्य, साहस, मनोबल न्दक),-पतिः (धियां पतिः) देवों के गुरु बृहस्पति ---विपत्तौ च महाँल्लोके धीरतामनगच्छति---हि. -मन्त्रिन (पु०),- सचिवः 1. सलाहकार मंत्री ३४४ 2. ईर्ष्या का दमन 3. गंभीरता, शान्तचित्तता (विगः कर्मसचिव-कार्यान्वयोमंत्री) 2. बुद्धिमान् ---प्रत्यादेशान्न खल भवतो धीरतां कल्पयामि-मेघ. और दूरदर्शी सलाहकार,---शक्तिः (स्त्री०) बौद्धिक १४४, (दूसरे अर्थों के लिए दे० 'धैर्य')। शक्ति,-सखः सलाहकार, परामर्शदाता, मंत्री। धोरा धीर+टाप] काव्य नाटक में वर्णित नायिका जो धीत (वि.) [धे-क्ति] 1. चला गया, पोया गया, दे० अपने पति या प्रेमी से ईर्ष्या रखती हुई भी, उसकी उपस्थिति में अपनी बाह्य भावमुद्रा से अपना रोष भोति: (स्त्री०) [धे-न-क्तिन्] 1. पोना, चूसना, 2. प्यास। प्रकट नहीं होने देती. - रसमंजरी की उक्ति:--व्यङ्ग्यधीमत् (वि०) [धो--मतुप] बुदिमान, प्रतिभाशाली, कोप प्रकाशिका धीरा--दे० सा० द०१०२-५, भी। विद्वान् (पं०) बृहस्पति का विशेषण। सम-अधीरा काव्य नाटक में वर्णित नायिका जो घोर (वि०) धोरा+क] 1. यहादुर, उद्धत साहसी । अपने पति या प्रेमी से ईर्ष्या रखती हुई अपने रोष .... धोरोद्धता गति:-उत्तर०६।१९ 2. स्थिर, सुदढ़ को अभिव्यक्त भी कर देती है, और अपनी ईर्ष्या अटल, टिकाऊ, चलाऊ, स्थायो -रघु० २१६ 3. दृढ़ को छिपा भी लेती है-व्यङ्ग्याव्यङ्ग्यकोप प्रकाशिका मनस्क, र्यवान, स्वस्थचित्त, अडिग, दृढ़ निश्चय घोरा-धीरा---रसमंजरी।। वाला,-.-धीरा र तरन्त्यापदं-का० १७५, विकारहेती | धीलटिः,---टी (स्त्री०) [धी+लट्-+इन्, धीलटि+ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः -कु० डी] पुत्री, बेटी। ११५२ 4. स्वस्थचिन, शान्त, सावधान 5. सीम्य, | धीवरः [दधाति मत्स्यान्.....धा--वरच] मछुवा-- मृगस्थिरबुद्धि, प्रशान्त, गम्भीर --- रघु० १८१४ 6. मज- | | मीनसज्जनानां तृणजलसंतोषविहितवृत्तीना, लुब्धकबूत, बलवान 7. बुद्धिमान्, दूरदर्शी, प्रतिभाशाली, धीवरपिशुना निष्कारणवैरिणो जगति-- भर्तृ० २०६१, ६३ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४९८ ) ११८५,-रम् लोहा,-री 1. मछुवे की स्त्री छ वा ] 1. बोझा ढोने या सँभालने के योग्य 2. जोते 2. मछलियां रखने की टोकरी। जाने के योग्य 3. महत्त्वपूर्ण कार्यों में नियक्त (णः, धु (स्वा० उभ०-धुनोति, धुनुते, धुत) दे० 'धू'। -~यः) 1. बोझा ढोने वाला पश 2. आवश्यक कार्यों धुम् (म्वा० आ० धुक्षते, धुक्षित) 1. सुलगना 2. जीना | में नियुक्त 3. मुख्य, प्रधान, अग्रणी। 3. कष्ट भोगना--प्रेर० धुक्षयति-सुलगाना, | धर्य (वि.) [ धर+यत ] 1. बोडा सँभालने के योग्य प्रज्वलित करना, सम् --सुलगाना, उत्तेजित होना 2. महत्त्वपूर्ण कार्य सौगे जाने के योग्य 3. नोटी पर (आलं. भी) संदुधुक्षे तयोः कोपः-भट्टि०१४।१०९, स्थित, मुख्य, प्रमख,-र्यः 1. बोझा ढोने का पश प्रेर० सुलगाना, प्रज्वलित करना, उत्तेजित करना 2. घोड़ा या बैल जो गाड़ी में जुता हुआ हो - नावि-निर्वाणभूयिष्ठमथास्य वीर्य संधुक्षवन्तीव वपुर्गुणेन नीव्रजेत् धयः -- मन० ४।६७, यनेदं ध्रियते विश्व -~-कु. ३१५२। धुयर्यानमिवाध्वनि-कु० ६७६, धुर्यान् विथामयति धुत (वि.) [धु+क्त] 1. हिला हुआ,---रघु० ११११६ -~-रघु० ११५४, ६१७८, १७।१२, 3. (उत्तरदायित्व 2. छोड़ा हुआ, परित्यक्त ।। के) भार को संभालने वाला - रघु० ५।६६, 4. मुख्य धुनिः, --नी (स्त्री०) [धु+नि, धुनि + ङीष्] नदी, अग्रणी, प्रधान न हि सति कुलधयें सूर्यवंश्या ग्रहाय दरिया-पुराणां संहतुः सुरधुनि कपर्दोऽधिरुरुहे-गंगा० -- रघु० ७७१ 5. मंत्री, महत्त्वपूर्ण कार्यों पर २२ । सम० -नायः समुद्र ।। नियुक्त व्यक्ति । धुर [ घुर्व + क्विप् ] ( कर्तृ० ए० व०~-धः) 1. (शा०) धुस्तु (स्तू) रः [धु+उर्, स्तुद् ] धतूरे का पौधा । जुआ, न गर्दभा बाजिधुरं वहन्ति--मृच्छ० ४।१७. ध (तदा० पर०, म्वा०, स्वा०, क्रघा०, चुरा० --उभ० अत्रस्तुभियुक्तधुरं तुरङ्ग:---रघु० १४१४७, 2. जए । धुवति; धवति ---ते; धूनोति, धूनुते ; धुनाति, धुनीते का वह भाग जो कंधों पर रक्खा रहता है, 3. पहिए धनयति-ते) 1. हिलाना, क्षुब्ध करना, कंपाना की नाभि को धुरी के साथ स्थिर करने के लिए धरी -- धुन्वन्ति पक्षपवन न नभो बलाका:--ऋतु०३।१२, के दोनों किनारों पर लगी कील 4. गाड़ी का बम धुन्वन् कल्पद्रुमकिसलयानि–मेघ०६२, कु० ७१४९, 5. बोझा, भार (आलं. भी) उत्तरदायित्व, कर्तव्य, रघु० ४।६७, भट्टि० ५।१०१, ९।७, १०१२२ 2. उतार कार्य-तेन धूर्जगतो गुर्वी सचिवेषु निचिक्षिपे-~रघु० देना, हटाना, फेंक देना-स्रजमणि शिरस्यन्धः क्षिप्तां ११३४, २०७४, ३।३५, ६६, कु०६।३० आप्तरत्यन धुनोत्यहिशङ्कया-श० ७१२४ 3. फूंक मार कर उड़ा वाप्तपौरुषफलैः कार्यस्यधरुज्झिता-मद्रा० ६।५, देना, नष्ट करना 4. सुलगाना, उत्तेजित करना (आगे ४।६, कि० ३।५०, १४१६ 6. प्रमुखतम या उच्चतम को) पंखा करना --वायुना धूयमानो हि वनं दहति स्थान, हरावल, अग्रभाग, शिखर, सिर अपांसूलाना पावकः---महा०, पवनधूत: अग्निः ऋतु० २६ धुरि कीर्तनीया-रघु० २१२, धुरि स्थिता त्वं पति 5. अशिष्ट व्यवहार करना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँदेवतानाम्, १४१७४, अविघ्नमस्तु ते स्थेयाः पितेव घरि चाना-मा नधावीररि रणे-भदि० ९१५०, १५।६१ पुत्रिणाम्-१२९१, धुरि प्रतिष्ठापयितब्य एव-मालवि० 6. अपने ऊपर से उतार फेंकना, अपने आपको मुक्त १।१६, ५।१६, (धुरि सिरे पर रखना या आगे करना---(सेवका:) आरोहन्ति शनै: पश्चाद्धन्वन्तमपि रखना -- श०७४) । सम-- गत (धूर्गत) (वि.) पार्थिवम्-पंच० ११३६, (कवि रहस्य के निम्नलिखित 1. रथ के बम पर खड़ा हुआ 2. सिर पर खड़ा हुआ श्लोक में इस घातु के विभिन्न गणों के रूप में दिए मुख्य, प्रधान, प्रमुख, --जटि: शिव का विशेषण, गये हैं:-धनोति चम्पकवनानि धुनोत्यशोक चतं ---धर (पूर्धर, 'धुरंधर' भी) (वि०) 1. जआ धुनाति धुवति स्फटितातिमुक्तम्, वायुर्विधनयति संभालने वाला 2. जोते जाने के योग्य 3. अच्छे गुणों चम्पकपुष्परेणून् यत्कानने धवति चन्दनमंजरीश्च )। से युक्त या महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों से लदा हुआ 4. मुख्य, अव-हिलाना, इधर-उधर करना, कम्पाना, लहराना, प्रधान, अग्रगण्य प्रमुख, कुलधुरंधरो भव-विक्रम ----रेणुः पवनावधूत:---रघु० ७।४३, लोलावत५, (रः), 1. बोझा ढोने वाला जानवर 2. जिसके श्चामरः --मेघ० ३५, कि० ६।३, शि० १३।३६ ऊपर किसी कार्य का भार हो 3. मुख्य, प्रधान, 2. उतार फेंकना, हटाना, पराभूत करना, राजसत्त्वअग्रणी,--वह (धुर्वह) (वि०) भार वहन करने मवधूय मातृकम् - रघु० १११९०, सुरवधूरवधूतभयाः वाला 2. काम का प्रबंधक, (ह:) बोझा ढोने वाला शरैः-९४१९, ३.६१, कि० ११४२ 3. अवहेलना पशु, इसी प्रकार 'धूवाद। करना, अस्वीकृति करना, उपेक्षा करना, तिरस्कारधुरा (स्त्री०) बोझा, भार-रणधुरा वेणी० ३।५।। युक्त व्यवहार करना--चण्डी मामवधूय पादपतितं धुरीण, धुरीय (वि०) [ धुरं वहति, अर्हति वा, धुर्+ख, | -विक्रम ४॥३८, पादानतः कोपनयाऽवधूत:-कु० For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८, विक्रम० ३५, उद-हिला डालना, उठाना, वासना, घुपाना,--वृक्षः एक पेड़ जिससे गुग्गुल ऊपर को उछालना, लहराना-कैर्नोद्धतानि चामराणि निकलता है, सरल वृक्ष । --...का० ११७, रघु० १६८५, ९।५०, उद्धनीयात धूमः [ घूमक] 1. धुआँ, बाष्प- घमज्योतिःसलिलमरुतां सत्केतून् - भट्टि० १९८, कि० ५।३९, मारुतभरो- सन्निपातः क्व मेघः----मेघ० ५ 2. धुंध, कोहरा द्वतोऽपिधूलिव्रजः . घन० 2. उतार फेंकना, हटाना, 3. उल्का, केतु 4. बादल 5. (नस्य, छींक लाने दूर करना, नष्ट करना (आलं. भी)- उद्धृतपापा: वाला) धूआँ 6. डकार, उदगार । सम०-आभ ---मेघ० ५५, शि० १८१८ 3. बाधा पहुंचाना, (वि०) धुएँ जैसा प्रतीत होने वाला, धुमैले रंगका, उत्तेजित करना, भड़काना, निस्--, 1. उतार फेंकना, --आवलिः धुएँ का बादल या धूममाला,--उत्थम् हटाना, दूर करना, निकाल देना, नष्ट करना-निधृतोऽ नौसादर,-उद्गारः 1. धुआँ या वाष्प उठना,---उर्णा धरशोणिमा--गीत० १२, ज्ञाननिर्धतकल्मषा:---भग० यम को पत्नी का नाम, पतिः यम का विशेषण, ५११६, रघु० १२१५७ 2. उपेक्षा करना, तिरस्कार- • - केतनः, - केतुः 1. आग,-कोषस्य नंदकुलकाननधूमयुक्त व्यवहार करना, अवज्ञा करना 3. त्याग देना, केतो:--मुद्रा० १११०, रघु० ११३८१ 2. उल्का, छोड़ देना, फेंक देना, वि-, 1. हिलाना, इधर-उधर पुच्छल तारा, गिरता हुआ तारा-धूमकेतुमिव किमपि करना, कंपाना, मदुपवनविधूतान्-ऋतु० ६।२९, करालम्--गीत० १, धूमकेतुरिवोत्थितः--कु० २।३२ ३।१० दीर्घा वेणी विधुन्वाना--- महा0 2. उतार देना, 3. केतु,...जः बादल,-ध्वजः अग्नि, पानम् धुआँ नष्ट करना, निकाल देना, दूर भगा देना कपेविध- या बाष्प पीना,-महिषी कोहरा, धुंध,...योनिः बादल वितु द्युतिम्-भटि० ९।२८, रघु० ९७२, अन० तु० मेघ० ५। पा० उपेक्षा करना, घृणा करना, तिरस्कारयुक्त | धूमल (वि.) [धूम+ला+क] धुमैला, भूरा-लाल, व्यवहार करना रघु० १११४० 4. छोड़ना, छोड़ मटमैला । देना, त्याग देना - नै० १२३५ । धमायति-ते (ना० धा० पर०) धुएँ से भर देना, बाष्प धूः (स्त्री०) [धू+क्विप् ] हिलना, कांपना, क्षुब्ध होना। से ढक देना, अँधेरा करना- धमायिता दश दिशो धूत (भू० क. कृ०) [धू--क्त] 1. हिला हआ दलितारन्विदा:---भामि० १२१०४, मच्छ० ५।५७। 2. उतार फका हआ, हटाया हआ 3. भडकाया धूमिका | धूम+ठन्-+टा] बाप्प, कोहरा, घंध । हुआ 4. परित्यक्त, उजड़ा हुआ 5. फटकारा हआ। धूमित (वि.) [धूम+इतच धुएं से ढका हुआ, अंधकार6. परीक्षित 7. अवज्ञात, तिरस्कारपूर्वक व्यवहार युक्त-कु०४।३० । किया गया 8. अनुमानित। सम-कल्मष,-...पाप धम्या [धूम+यत्+टाप् ] धुएँ का बादल, प्रगाढ़ धुआँ । (वि.) जिसने अपने पाप उतार फेंके है, पापमुक्त । धूम (वि.) [धूम+रा+क] 1. धुमैला, धुएँ वाला, धूतिः (स्त्री०.) [धू+क्तिन् | 1. हिलाना, इधर-उधर भूरा भर्त० ३।५५, रघु० १५।१६ २. गहरा लाल करना 2. भड़काना। 3. काला, अंधकारावृत 4. मटमैला,-नः 1. काले धून (भू० क० कृ०) [धू+क्त, तस्य न: ] हिला हुआ, . और लाल रंग का मिश्रण 2. लोबान,--म्रम् पाप, क्षब्ध। दुर्व्यसन, दुष्टता। सम० -- अट: एक प्रकार की धूनिः (स्त्री०) हिलाना, क्षुब्ध करना । शिकारी चिड़ियाँ,-इच् (वि.) मटमैले रंग का, धूप । (भ्वा० पर० पायति, धुपायित) गरम करना, । -लोचनः कबूतर,-लोहित (वि.) गहरा लाल, गरम होना, ii (चुरा० उभ० धूपयति-ते) 1. धूनी गाढ़ा मटमैला, (तः) शिव का विशेषण,-शूक: ऊँट । देना, सुवासित करना, धुपाना, सुगंधित करना | धूम्रकः [धूम्र+के+क] ऊँट ! 2. चमकना 3. बोलना। धर्त (वि०) [धर्व (घर)+क्त] 1. चालाक, शठ, बदमाश, धूपः [ध- अच् ] 1. धूप, लोबान, गन्धद्रव्य, कोई मक्कार, जालसाज, 2. उपद्रवी, क्षति पहुंचाने वाला, सुगंधयत पदार्थ 2. (गोंद विरोजा आदि सुगंधित -त: 1. टग, बदमाश, उचक्का, 2. जुआरी 3. प्रेमी, पदार्थों से उठने वाली बाप्प, सुगंधित बाष्प या रसिया, विनोदप्रिय धूर्त-तत्ते धूर्त हृदि स्थिता प्रियघऔं ----पोष्मणा त्याजितमार्द्रभावम----कु० ७।१४, तमा काचिन्ममेवापरा-पंच० ४१६, धूतोऽपरां चुबति मेघ० ३३, विक्रम० ३।२, रघु० १६।५० 3. सुगंधित --अमरु १६, इसी प्रकार-धूतानामभिसारसत्वरचूर्ण । सम० - अगुरु (नपुं०) एक प्रकार की गुग्गुल हृदाम्-गीत० ११ 4. धतूरा । सम-कृत् (वि.) जो धुपाने के काम आती है,---अङ्ग: 1. तारपीन मक्कार, बेइमान, (पु.) धतूरे का पौधा,-जन्तुः 2. सरल वृक्ष,-अहम् गुग्गल,-पात्रम् धूपदान अगर- मनुष्य,-रचना धूर्त विद्या, बदमाशी । दान, धूप जलाने का पात्र,-वासः गंधद्रव्य के धुएँ से । धुर्तकः धूर्त, कन्] 1. गीदड़ 2. बदमाश। For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०० ) पूर्वी [धुर+अज्+क्विप्, अज् इत्यस्य वी आदेशः] गाड़ी | विरल.),--वृक्षसेचने द्वे धारयसि मे, श० १, तस्मै का बम, या अगला भोग ! तस्य वा धनं धारयति आदि 11. थामना, रखना धूलकम् [धू+लक+बा०] विष, जहर ! 12. पालन करना, अभ्यास करना 13. हवाला देना, धूलिः,-ली (पुं०, स्त्री०) [धू+लि बा०, धूलि+कीष्] उद्धत करना (इस धातु के अर्थ उन संज्ञा शब्दों के 1. धूल, अनीत्वापकतां धूलिमुदकं नावतिष्ठते-शि० अनुसार, जिनसे यह जुड़े, विविध प्रकार के हो जाते २१३४ 2. चूर्ण । सम०---कुट्टिमम्,--केदारः है-उदा० मनसा ५ मन में धारण करना, याद 1. टीला, प्राचीर 2. जोता हुआ खेत, ध्वजः वायु, रखना, शिरसा धू, मूनि ५ सिर पर रखना, अत्यंत - पटलः धूल का ढेर,-पुष्पिका,--पुष्पी केतकी का आदर करना, अंतरे ५ धरोहर रखना, जमानत के पौधा! रूप में जमा करना, समये ५ सहमत करना, दण्डं ५ धूलिका [धूलि+कन्+टाप्] कोहरा, धुंध ! दण्ड देना, सजा देना, बल का उपयोग करना, जीवितं, धूसर (वि.) [धू+सर, किच्च न षत्वम] धूल के रंग का, प्राणान् शरीरं, गात्रं वेहम् ध जीवित रहना, आत्मा भूरा सा, धुमला-सफेद रंग का, मटमैला-शशी को स्थापित रखना, प्राणों का सुरक्षित रखना, व्रतं घु दिवसधूसरः----भग० २।५६, कु० ४।४, ४६, रघु० व्रत का पालन करना, तुलया ५ तराजू में रखना, ५।४२, १६।१७, शि० १७४१,-र: 1. भूरारंग तोलना, मनः, मतिम्, चित्तम, बुद्धिम् ध किसी वस्तु 2. गधा 3. ऊँट 4. कबूतर 5. तेलो! में मन लगाना, मन जमाना, सोचना, दृढ़ संकल्प ५i (तुदा० आ०--कइयों के मतानुसार घृ का कर्मवा० करना गर्भ धू, गर्भवती होना, धारणां धू (एकाग्रता संयम का पालन करना, 1. अव,--1. स्थिर करना, रूप-ध्रियते, धृत) 1. होना, विद्यमान होना, रहना रहते रहना, जीवित रहना-आर्यपुत्र ध्रिये एषा निर्धारित करना, निश्चित.. करना, शि० ११३ ध्रिये-उत्तर० ३, ध्रियते यावदेकोऽपि रिपुस्तावत्कुतः 2. जानना, निश्चय करना, समझना, सही सही सुखम् --शि० २।३५, १५४८९ 2. स्थापित या सुर जानना, न विश्वमूर्तेरवधार्यते वपुः--कु० ५।७८, क्षित रहना, रहना, चलते रहना... सुरतश्रमसंभृतो रघु० १३१५, उद्,-1. ऊपर उठाना, उन्नत करना मुखे ध्रियते स्वेदलवोद्गमोऽपिते-रघु० ८।५१, 2. बचाना, परित्राण करना 3. बाहर निकालना, कु० ४।१८ 3. संकल्प करना, ! (भ्वा० चुरा० उद्धत करना 4. उन्मूलन करना, उखाड़ना, (उद् उभ० घरति-ते, धारयति-ते, धत, धारित) 1. थामना, पूर्वक धू के वही है रूप जो उद् पूर्वक ह के है) निस्---, संभालना, ले जाना-- भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि निर्धारण करना, निश्चित करना, नियत करना, पुष्पवद्धारयेत्-भर्तृ० २।४, वैणवीं धारयेद्यष्टिम् –निर्धारितेऽर्थे लेखेन खलूक्ता खल वाचिकम्---शि० सोदकं च कमण्डलुम् ---मनु० ४।३६, भट्टि० १७१५४, २०७०, ९।२०, वि-,1. धर पकड़ना, पकड़ लेना, विक्रम० ४१३६ 2. थामना, संभालना, स्थापित ग्रहण करना, धारण कर लेना-- अंशुक पल्लवेन रखना, सहारा देना, जीवित रखना-..धृतमंदर--गीत. विधतः, अमरु ७९, ५५ 2. पहनना, धारण करना, १, यथा सर्वाणि भूतानि धरा धारयते समम् मन्० उपयोग में लाना--रघु० १२।४० 3. स्थापित रखना, ९।३११, पंच० १११६, प्रातः कुन्दप्रसवशिथिलं वह्न करना, सहारा देना, थामलेना, पंच० १२८२, जीवितं धारयेथाः-- मेघ० ११२, चिरमात्मना धृताम् भर्तृ० ३।२३ 4. टकटकी लगाना, निदेश देना, .- रघु० ३.३५ 3. अपने अधिकार में थामे रखना, सम्-, 1. थामना, संभालना, ले जाना 2. थाम लेना, अधिकार में करना, पास रखना, रखना-या संस्कृता सहारा देना-अरैः संधार्यते नाभिः-पंच. १९८१ धार्यते-भर्तृ० २।१९ 4. धारण करना, (रूप, 3. दबाना, नियंत्रण में रखना, रोकना 4. मन में छद्मवेश), लेना-केशव धृतशूकररूप--गीत० १, रखना, याद रखना, समूद्---,1. जड़ से उखाड़ लेना, धारयति कोकनदरूपम् --१०, 5. पहनना, धारण उन्मूलन करना दे० उद् पूर्वक 'हृ' 2. बचाना, परिकरना, (वस्त्रालंकारादिक) उपयोग में लाना, श्रित- त्राण करना, संप्र,- 1. जानना, निर्धारण करना, कमलाकुचमण्डल धृत कुण्डल ए-गीत०१6. रोकना, निश्चय करना शि० ९।६० 2. विचार विमर्श करना, दमन करना, नियंत्रण करना, ठहराना, स्थगित चिन्तन करना, सोचना, विचार करना-मनु० १०।७३, करना 7. जमाना, संकेत करना (संप्र० या अधि० एवं संप्रधार्य पंच०१। के साथ)-बाह्मण्ये धृतमानसः, मनो दधे राजसूयाय | घृत ( भू. क. कृ.) [+क्त] 1. थामा गया, ले आदि 8. भुगतना, भोगना 9. किसी व्यक्ति के लिए जाया गया, बह्न किया गया, सहारा दिया गया कोई वस्तु निर्धारित करना, नियत करना, निर्दिष्ट | 2. अधिकृत किया गया 3. रक्खा गया, संधारित, धारण करना 10. किसी का ऋणी होना (संप्र०, संबं० ।। किया गया 4. पकड़ा गया, आत्मसात् किया गया, For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०१ ) संभाला गया, पहना गया, उपयोग में लाया गया 6. | अडिग 2. संतुष्ट, प्रसन्न, प्रहृष्ट, तृप्त-रघु० रख दिया गया, जमा किया गया 7. अभ्यास किया | १३१७७ । । गया, पालन किया गया 8. तोला गया 9. (कतवा०) | धत्वन (पु.) [धृ-+-क्वनिप] 1. विष्णु का विशेषण, धारण किया हुआ, संभाला हुआ 10. तुला हुआ दे० 2. ब्रह्मा की उपाधि 3. सद्गुण, नैतिकता 4. आकाश ऊपर 'धू' । सम०-आत्मन् (वि०) पक्के मन वाला, 5. समुद्र 6. चतुर व्यक्ति। स्थिर, शान्त,स्वस्थचित्त--दंड (वि०) 1. दण्ड देने धष 1. (भ्वा० पर० घर्षति, धषित) 1. एकत्र होना, वाला 2. वह जिसको वण्ड दिया जाता है-पट संहत होना, चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, 11 (भ्वा० (वि.) कपड़े से ढका हुआ- राजन् (वि.) (देश पर० चुरा० उभ० घर्षति, धर्षयति-ते)। नाराज आदि) अच्छे राजा द्वारा शासित,-- राष्ट्रः विचित्र करना, चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना 2. अपमानित वीर्य की विधवा पत्नी से उत्पन्न व्यास का ज्येष्ठपुत्र करना, मर्यादा से हीन व्यवहार करना 3. घावा (ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण धृतराष्ट्र राज्य का अधि बोलना, जीतना, पराभूत करना, विजय प्राप्त करना, कारी था, परन्तु जन्मांध होने के कारण उसने प्रभु नष्ट करना 4. आक्रमण करने का साहस करना, सत्ता पांडु को सौंग दी। जिस समय पाण्ड वानप्रस्थ ललकारना, चुनौती देना 5. (किसी स्त्री के साथ) लेकर जंगल की ओर गया, तो राज्य की वागडोर बलात्कार करना, सतीत्व हरण करना, iii (स्वा० फिर धृतराष्ट्र ने स्वयं संभाल ली, और अपने ज्येष्ठ पर० घृष्णोति, धृष्ट) 1. दिलेर या साहसी होना पुत्र दुर्योधन को युवराज बनाया। जब युद्ध में भीम 2. विश्वस्त होना 3. घमंडी होना, उद्धत होना, ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया तो चतराष्ट्र 4. ढीठ होना, उतावला होना 5. साहस करना, निडर को बदला लेने की इच्छा हुई, फलतः उसने युधिष्ठिर होना (तुमुन्नत के साथ) 6. ललकारना, चुनौती और भीम को आलिंगन करना चाहा। श्रीकृष्ण उसकी देना--भट्टि० १४।१०२ 7. (चुरा० आ०–घर्षइस बात को तुरन्त ताड़ गये, उन्हें विश्वास हो गया यते) हमला करना, आक्रमण करना, बलात्कार करना । कि धृतराष्ट्र ने भीम को अपना शिकार समझ लिया है। इस लिए श्रीकृष्ण ने लोहे की एक भीग की मूर्ति धृष्ट (वि.) [धृष्+क्त] 1. दिलेर, साहसी, विश्वस्त, बनवाई। जिस समय धृतराष्ट्र भीम का आलिंगन 2. बीट, अक्खड़, निर्लज्ज, उच्छं खल, अविनीत करने के लिए आगे बढ़ा तो श्रीकृष्ण ने भीम की ----- धृष्ट: पार्वे वसति-हि० १२६ 3. प्रगल्भ, लौहमति आगे करवा दी जिसको कि बदला लेने के दुःसाहसी 4. दुश्चरित्र, लुच्चा,--ष्ट: विश्वासघातक पति या प्रेमी--कृतागा अपि निःशस्तजितोऽपि न प्रबल इच्छुक धृतराष्ट्र ने इस प्रकार इतना बल लगा लज्जितः, दृष्टदोषोऽपि मिथ्यावाक् कथितो घृष्टकर दबाया कि वह लौह मूर्ति टुकड़े २ हो गई। इस नायकः। सा० द०७२ । सम०-युम्नः द्रुपद का प्रकार असफल प्रयत्न हो धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी समेत हिमालय पर्वत की ओर चला गया पुत्र और द्रौपदी का भाई (धष्टद्युम्न और उसका जताँ कुछ वर्षों के पश्चात् वह स्वर्ग सिधार गया), पिता द्रुपद दोनों महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़े। धृष्टद्युम्न ने कई दिन तक पांडवों की -~-वर्मन् (वि.) कवच पहने हुए, कवचित । सेना के मुख्य सेनापतित्व का पद संभाला। जब धृतिः (स्त्री०) [धु-+-क्तिन् 1 1. लेना, पकड़ना, हस्तगत द्रोण ने घोर संघर्ष के पश्चात् द्रुपद को मार डाला, करना 2. रखना, अधिकृत करना 3. स्थापित रखना, तो धृष्टद्युम्न ने प्रतिज्ञा की कि मैं अपने पिता की सहारा देना 4. दृढ़ता, स्थिरता, स्थैर्य 5. धैर्य, स्फति, मृत्यु का बदला लूंगा। आखिर युद्ध के सोलहवें दिन दृढ़संकल्प, साहस, आत्म-संयम-भज तिं त्यज प्रातः काल धृष्टद्युम्न को अपनी प्रतिज्ञा पूरा करने भीतिपसेतुकाम् –नै० ४।१०४, कि० ६।११, रघु० का अवसर मिला जव कि उसने अन्यायपूर्वक द्रोण ८१६६ 6. सन्तोष, तृप्ति, सुख, प्रसन्नता, खुशी, हर्ष का सिर काट डाला, दे० द्रोण। उसके पश्चात् एक धृतेश्च ..धीरः सदृशोळवत्त सः- रघु० ३।१०, १६। दिन यह पाण्डवशिविर में सो रहा था कि अचानक ८२, चक्षर्वध्नाति न तिम-विक्रम०२।८, शि. अश्वत्थामा ने आ दबाया और मौत के घाट उतार ७।१० १४7. साहित्यशास्त्र में वणित ३३ व्यभि दिया गया)। चारीभावों में 'सन्तोष' की गिनती की गई है-ज्ञाना धृष्णज (वि.) [ष+नजिङ ] 1. साहसी, विश्वस्त भीष्टागमाद्यैस्तु संपूर्णस्पताधतिः, सौहित्यवचनोल्लास 2. ढीठ, निर्लज्ज। सहास प्रतिभादिकृत्-सा० द० १९८, १६८ | धष्णिः [धृष् + नि] प्रकाश की किरण । 8. यज्ञ । धष्णु (वि.) [धृष्+क्नु] 1. दिलेर, विश्वस्त, साहसी, धृतिमत् (दि०) [ धृति -- मतुप् ] 1. पक्का, स्थिर, दृढ़, I बहादुर, बलशाली (अच्छे अर्थ में) 2. निर्लज्जं, ढीठ । For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५०२ धे (भ्वा० पर० धयति, धीत-प्रेर० धापयति, इच्छा० धित्सति ) 1. चूसना, पीना, घूंट भरना, निगल जाना ( आलं० भी ) अधाद्वसामधासोच्च रुविरं वनवासि - नाम् भट्टि० १५/२९, ६ १८, मनु० ४५९, याज़ ० १।१४० 2. चूमना- धन्यो धयत्याननम् - गीत० १२ 3. चूस लेना, खींच लेना, ले लेना । धेनः [धे+नन् ] 1. समुद्र 2. नद, धेनुः (स्त्री० ) [ धयति सुतान् धीयते वत्सेर्वाधे + नु इच्च तारा०] गाय दुधार गाय धेनुं धीराः सूनृतां वाचमाह :- उत्तर० ५।३१ 2. किसी जाति की स्त्री ( इस अर्थ में किसी भी पुरुरवाचक नाम के आगे लग कर उसे स्त्रीवाचक शब्द बना देता है यथा खङ्गधेनुः, asai: आदि 3, पृथ्वी ( कई बार समास के अन्त में लग कर इससे अल्पार्थवाची शब्द बनता है, जैसे असिधेनुः खङ्गधेनुः ) | धेनुक [ धेनु + कन् ] एक राक्षस का नाम जिसको बलराम नेमार गिराया था । सम० - - सूदनः बलराम का विशेषण | धेनुका [ धेनुक + टाप् ] 1. हथिनी 2. दूध देने वाली गाय । धेनुष्या [ धेनु + यत्, सुक्] वह गाय जिसका दूध बंधक रूप में सुरक्षित हो । धेनुकम् [ धेनु + ठक् ] 1. गौओं का समूह 2. रतिबंध । यम् [धीर + ष्यञ् ] दृढ़ता, टिकाऊपन, सामर्थ्य, ठोसपन, स्थिरता, स्थायिता, धीरज, साहस धैर्यमवष्टभ्य -- पंच० १, विपदि धैर्यम् भर्तृ० २२६३, इसी प्रकार 'धैर्यवृत्ति' शि० ९।५९ 2. शान्ति, स्वस्थता 3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सहिष्णुता 4. अनम्यता 5. हिम्मत, दिलेरी मेघ० ४० । वतः [धीमत् + अण् पृषो० मस्य वत्वम् ] भारतीय सरगम स्वरग्राम के सात स्वरों में छठा स्वर । धवत्यम् [धीवत् + ष्यञ ] चतुराई । घोड:- डुडुभ । घोर ( भ्वा० पर० धोरति ) 1. जल्दी जाना, अच्छे कदम रखना, दौड़ना, दुल्की चलना 2. कुशल होना । धोरणम् [ धोर् + ल्युट् ] । ( घोड़ा, हाथी आदि ) वाहन, सवारी 2. जल्दी जाना 3. घोड़े की दुल्की चाल । घोरणि:, - जी (स्त्री० ) [ धोर् + अनि, घोरणि + ङीप् ] 1, अनवच्छिन्न श्रेणी या नैरन्तर्ययैर्माकन्दवने मनोज्ञपवने सद्यः स्खलन्माधुरीधाराघोरणिधौतधामन धराधीशत्व मालम्ब्यते, तेषां नित्यविनोदिनां सुकृतिनां माध्वीकपानां पुनः कालः किं न करोति केतकि यतस्त्वं चापि केलिस्थलो - उद्भट, परम्परा । धोरितम् [ धोर् + क्त ] 1. क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, प्रहार करना, 2. गमन, गति 3. घोड़े की दुल्की चाल । घौत ( भू० क० कृ० ) [ धाव् + क्त ] 1. घोया हुआ, ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहाया गया, साफ किया गया, पवित्र किया गया, प्रक्षालन किया गया कुल्याम्भोभिः पवनचपल: शाखिनो धौतमूला:- श० १११५, शिक्षा० ५८, कु० १/६, ६/५७, रघु० १६/४९, १९।१० 2. चमकाया हुआ, उजला किया हुआ 3. उजला, सफ़ेद, चमकदार, चमकीला, चमचमाता हुआ, हरशिरश्चन्द्रिकाधोतर्म्या – मेघ० ७१४४, विकसद्दन्तांशुघौताधरम्गीत० १२, तम् चाँदी, सम० कटः मोटे कपड़े का थैला, कोषजम्, कौषेयम् घुली हुई रेशम, - शिलम् स्फटिक । धौमः [ धूम्र + अण् ] 1. भूरापन 2. (विशेष रूप से तैयार किया गया) मकान बनाने के लिए स्थान । धरितकम् [ घोरित + अण् + कन् ] घोड़े की टुल्की चाल । धौरेय (वि०) (स्मी०-यी ) [ धुरं वहति ढक् ] बोझा ले जाने के योग्य, -य: 1. बोझा ढोने का पशु 2. घोड़ा 1 धौर्तकम्, घौतिकम्, धौर्त्यम् [ घूर्तस्य भावः कर्म वा - घूर्त + वुञ, ठञ ष्यञ वा | जालसाजी, बेईमानी, दमाशी । ध्मा (म्वा० पर० धर्मांत, ध्मात, प्रेर० ध्मापयति ) 1. फूंक मारना. श्वास बाहर निकालना, निःश्वसन 2. (हवा उपकरण की भांति) धोकना, फूंक मार कर बजाना - शंखं दध्मौ प्रतापवान् भग० १।१२,१८, रघु० ७/६३, भट्टि० ३।३४,१७७ 3. आग को फूंकना, फूंक मारकर आग को उद्दीप्त करना, चिंगारियाँ उठाना को धमेच्छांतं च पावकम् महा० 4. फूंक द्वारा निर्माण करना 5. फेंकना, फॅक से उड़ाना, फेंक देना, आ-, 1. हवा भरना, फुलाना 2. फूंक मारना या हवा से भरना, (शंख आदि को ), उप, फूंक मारकर तेज करना, पंखा करना नाग्नि मुखेनोपधमेत्- मनु० ४।५३ मिस्, फूंक मारकर बाहर निकालना, प्र, (शंख आदि) बजाना - शङ्खी प्रदध्मतुः - भग० १ १४ वि बखेरना तितर वितर करना, नष्ट करना । = धमाकारः [ घ्मा+कृ+ अण् ] लुहार, लोहकार । ध्मांक्षः अने० पा० = ध्वांक्षः । ध्मात (भू० क० कृ० ) [ ध्मा+क्त] 1. ( वायुवाद्ययंत्र की भांति ) बजाया हुआ, पंखा किया हुआ, भड़काया हुआ 2. हवा भरा हुआ, फूला हुआ, फुलाया हुआ । ध्यात ( वि० ) [ ध्ये+क्त] सोचा हुआ, विचार किया हुआ, दे० 'ध्ये' । ध्यानम् [ ध्यै + ल्युट् ] 1. मनन, विमर्श, विचार, चिन्तन ज्ञानाद् ध्यानं विशिष्यते भग० १२/१२, मनु० १। १२, ६।७२ 2. विशेष रूप से सूक्ष्मचिंतन, धार्मिक मनन- तदैव ध्यानादवगतोऽस्मि - श० ७, रघु० १| For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ 3. दिव्य अन्तर्ज्ञान या अन्तविवेक 4. किसी गया दे० गीत०) 8. समय, काल, युग 9. ब्रह्मा का देवता की व्यक्तिगत उपाधियों का मानसिक चिन्तन- विशेषण, 10. विष्णु और 11. शिव की उपाधि इति ध्यानम् । सम-गम्य (वि.) केवल मनन 12. उत्तानपाद के पुत्र और मन के पौत्र का नाम [ध्रुव द्वारा प्राप्य, - तत्पर,--निष्ठ पर (वि.) विचारों उत्तर दिशा में स्थित एक तारा है, परन्तु पुराणों में में खोया हुआ, मनन में लीन, चिन्तनशील,-स्थ उत्तानपाद के पुत्र के रूप में इसका वर्णन उपलब्ध है। (वि.) मनन में लीन, विचारों में खोया हआ। सामान्य मर्त्य का ध्रुव तारे के उच्च पद को प्राप्त ध्यानिक (वि.) [ध्यान+ठका सूक्ष्म मनन और पवित्र करने का वर्णन इस प्रकार है--उत्तानपाद के सुरुचि चितन के द्वारा अनुसंहित या प्राप्त । और सुनीति नाम की दो पत्नियां थीं, सुरुचि के पुत्र ध्याम (वि०) [ध्य+मक ] अस्वच्छ, मैला, काला, का नाम उत्तम था, तथा ध्रुव का जन्म सुनीति से __ मलिन -भट्टि० ८७१,- मम् एक प्रकार का घास । हुआ था। एक दिन ध्रुव ने अपने बड़े भाई उत्तम ध्यामन् (पुं०) [ध्ये+मनिन् ! माप, प्रकाश (नपुं०) की भांति पिता की गोद में बैठना चाहा, परन्तु उसे मनन ('ध्यामन्' कम शुद्ध)। राजा और सुरुचि दोनों ने दुत्कार दिया । 1. ध्रुव ध्य (भ्वा० पर० ध्यायति, ध्यात, इच्छा० दिध्यासति, सुबकता हुआ अपनी माता सुनीति के पास गया, कर्मवा० ध्यायते) सोचना, मनन करना, विचार उसने बच्चे को सांत्वना दी और समझाया, कि संपति करना, चिंतन करना, विचार विमर्श करना, कल्पना और सम्मान कठोर परिश्रम के बिना नहीं मिलते। करना, याद करना- ध्यायतो विषयान पुंसः संगस्तेषुप इन बचनों को सुन कर ध्रुव ने अपने पिता के घर जायते-- भग० २।६३, न ध्यातं पदमीश्वरस्य--भर्त. को छोड़ कर जंगल की राह ली। यद्यपि वह अभी ३।११, पितृन् ध्यायन् - मनु० ३१२२४, ध्यायन्ति बच्चाही था, तो भी उसने घोर तपस्या की जिसके फलचान्यं धिया-पंच० १११३६, मेघ० ३, मनु० ५।४७, स्वरूप विष्णु ने उसको ध्रुव तारे का पद प्रदान ९।२१, अनु - 1. सोचना, ध्यान लगाना 2. याद किया),--वम् 1. आकाश, अन्तरिक्ष 2. स्वर्ग,-वा करना 3. मंगलकामना करना, आशीर्वाद देना, 1. (लकड़ी का बना) यज्ञ का श्रुवा 2. साध्वी स्त्री, अनुग्रह करना, रघु० १४।६०,१७।३६, अप-, बुरा ----बम् (अव्य०) अवश्य, निश्चित रूप से, यकीनन सोचना, मन से शाप देना, अभि---, 1. कामना - रघु०८।४९, श० १११८ । सम०-अक्षरः विष्णु करना, इच्छा करना, लालच करना---याज्ञ० ३।१३४ की उपाधि,-आवर्तः सिर पर रक्खे मुकुट का वह 2. सोचना अव--, अवहेलना करना, निस् - सोचना, स्थान जहां से बाल चमकते हैं, तारकम्-तारा मनन करना, वि--, 1. सोचना, मनन करना, याद ध्रुव तारा। करना----भट्टि० १४०६५ 2. गहन मनन करना, ध्रुवक: [ ध्रुव+कन् ] 1. गीत का आरम्भिक पद (जो टकटकी लगाकर देखना--अंगलीयकं निध्यायन्ती समवेत गान की भांति दोहराया जाय, टेक 2. तना, मालवि० १, शि० ८।६९,१२।४, कि० १०॥४६।। भूत 3. स्थूणा। ध्राडिः [ धाड्+इन् ] फूल चुनना। ध्रौव्यम् [ ध्रुव-प्या ] 1. स्थिरता, दृढ़ता, स्थावरता 2. अवधि 3. निश्चय ।। ध्रुव (वि.) [ध्रुक] (क) स्थिर, दृढ़, अचल, ध्वस् (भ्वा० आ० ध्वंसते, ध्वस्त) 1. नीचे गिरना, गिर स्थावर, स्थायी, अटल, अपरिवर्तनीय-इति ध्रुवेच्छा कर टुकड़े २ होना, चूर २ हो जाना-भट्टि० १५। मनुशासती सुताम्- कु० ५।५, (ख) शाश्वत, सदैव ९३, १४१५५ 2. गिरना, डूबना, हताश होना --मा० रहने वाला, नित्य --- ध्रुवेण भर्ना-कु० ७८५, मनु० ९।४४ 3. नष्ट होना, बर्बाद होना 4. ग्रस्त होना ७।२०८ 2. स्थिर (ज्योतिष में) 3. निश्चित, -मुद्रा० ३१८, प्रेर०-नष्ट करना, प्र---, नष्ट होना, अचूक, अनिवार्य-जातस्य हि ध्रुधो मृत्यधुवं जन्म मिट जाना, वि-, 1. गिरकर टुकड़ २ होना 2. तितरमृतस्य च - भग० २।२७ यो ध्रुवाणि परित्यज्य वितर हो जाना, बिखर जाना 3. नष्ट होना, मिट अधूवाणि निषेवते-चाण० ६३ 4. मेधावी, धारण जाना बर्बाद होना। शील-जैसा कि 'ध्रुवा स्मृति' में 5. मजबूत, स्थिर, (दिन की भांति) निश्चित-व: 1. ध्रव तारा, रथः । ध्वंसः, ध्वंसनम् [ध्वंस्+घा , ल्युट वा ] 1. नीचे गिर १७।३५, १८।३४, कु० ७।८५ 2. किसी बड़े वृत्त के जाना, डूबना, गिर कर टुकड़े २ हो जाना 2. हानि, दोनों सिरे 3. नाक्षत्र राशिचक्र के आरंभ से ग्रह की नाश, बर्बादी,-सी सूर्य की किरण में धूलिकण । दुरी, ध्रवीय देशांतर रेखा 4. बटवक्ष 5. स्थाण, ध्वंसिः [ध्वंस्। इन् मुहूर्त का शतांग। खूटा 6. (कटे हुए वक्ष का) तना 7. गीत का आरं- ध्वजः [ ध्वज |-अच् ] 1. ध्वज, झण्डा, पताका, वैजयन्ती, भिक पाद, टेक (समवेत गान की भांति दोहराया | रघु० ७।४०, १७१३२, पंच० ११२६ 2. पूज्य या For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमुख व्यक्ति, झंडा या भूषण (समास के अन्त में) ध्वनः। ध्वन+अप] 1. शब्द, स्वर 2. भिनभिनाना, जैसा कि 'कूलध्वजः' (कूल का भूषण या पूज्य गुनगुनाना । व्यक्ति) में 3. वह बांस जिसमें झण्डा लहराता है, ध्वननम [ध्वन+ ल्यट] 1. ध्वनि निकालना 2. संकेत 4. चिह्न, निशान, लक्षण, प्रतीक-वृषभ, मकर । करना, सुझाव देना, या (अर्थ) लगाना 3. (सा. आदि 5. देवता की उपाधि 6. पथिकाश्रम का चिह्न । शा० में) व्यंजना शक्ति, शब्द या वाक्य की वह 7. व्ययसाय का चिह्न-व्यवसाय लक्षण 8. जननेन्द्रिय शक्ति जिसके कारण यह मख्यार्थ से भिन्न किसी ( किसी जानवर की, चाहे नर हो या मादा) । और ही अर्थ को प्रकट करे, सुझाव-शक्ति--तु० 9. कलाल 10. किसी वस्तु से पूर्व की ओर स्थित धर। 'अंजन' भी। 11. घमंड 12. पाखंड, (ध्वजीकृ झंडा लहराना, ध्वनिः [ध्वन-इ] 1. शब्द, प्रतिध्वनि, कोलाहल या आलं. बहाने के रूप में प्रयुक्त करना)। समः । शोर-मदङ्गधीर ध्वनिमन्वगच्छत्--रघु० १६.१३, -अंशुकम्-पटः,-पटम् झंडा-रघु० १२१८५, रा७२, उत्तर१६।१७ 2. लय, तान, स्वर शि० -आहृत (वि०) युद्धभूमि में पकड़े हुए,-गृहम् वह ६।४८ 3. वाद्ययंत्र की ध्वनि -रघु० ९।७१ 4. बादल कमरा जहाँ झंडे रखे जाते हैं,-ब्रुमः ताड का वृक्ष, गरज या गड़गड़ाहट 5. केवल रिक्तध्वनि 6. शब्द प्रहरणः वायु, हवा,-यन्त्रम् झंडा खडा करने की 7. (सा० शा. में) काव्य के तीन मुख्य भेदों में से कूटयुक्ति,-पष्टिः (स्त्री०) झंडे का डंडा या वांस सर्वोत्तम काव्य जिसमें कि संदर्भ का ध्वन्यर्थ, अभिहित मनु० ९।२८५। अर्थ की अपेक्षा अधिक चमत्कारक हो, या जहाँ ध्वजवत् (वि.) [ध्वज+मतुप+मस्य वः] 1. झंडों से | मख्यार्थ, ध्वन्यर्थ के अधीन हो - इदमत्तममतिशयिनि सजा हुआ 2. चिह्न से युक्त 3. अपराधी के लक्षण से व्यंग्ये वाच्चादध्वनिवृधः कथितः- काव्य०१, (रसयुक्त, दागी,--- (पुं०) 1. झंडा-वाहक 2. मद्य विक्रेता, गंगाधर में ध्वनि के पाँच भेद बताये गये हैं, दे० कलाल । 'ध्वनि के नीचे) । सम० -- ग्रहः 1. कान 2. श्रवण, ध्वजिन् (वि.) (स्त्री० --नी)[ध्वज+इनि ] 1. झण्डा- । या श्रुति 3. श्रवणेन्द्रिय,--नाला 1. एक प्रकार का बरदार, झण्डा ले जाने वाला 2. चिह्नधारी 3. सुरा- । बिगुल 2. बांसुरी 3. मुरली, वंशी,--विकारः भय या पात्र के चिह्न वाला-मनु०११।९३, (पुं०) 1. पताका ! शोक के कारण वाणी का विकार, दे० काकू । वाहक 2. कलाल, मद्य विक्रेता-याज्ञ. १११४१ । ध्वनित (भ० . कृ.) [ध्वन- त] 1. निनादित 3. गाड़ी, शकट, रथ 4. पहाड़ 5. साँप 6. मोर 2. निहित, ध्वनित, संकेतित,--तम् 1. शब्द 2. वादल 7. घोड़ा 8. ब्राह्मण,-नी सेना --रघु० ७।४०, शि० ___ की गरज या गड़गड़ाहट-कि० ५।१२।। १२।६६, कि०१३।९।। ध्वस्तिः (स्त्री०) [ध्वंस-क्तिन् ] नाश, बर्बादी । ध्वजीकरणम् [ध्वज-च्चि-कृ+ल्यट] 1. झंडोत्तोलन, ध्वाक्षः [ध्वंक्ष-अच ]1. कौआ--(कभी-कभी 'तिरस्कार' झंडे को फहराना 2. दावा स्थापित करना, किसी बात प्रकट करने के लिए समास के अन्त में प्रयुक्त किया को हेतु बनाने वाला। जाता है --उदा. टीर्थध्वांक्षः) 2. भिक्षक 3. ढीठ ध्वन (भ्वा० पर० -ध्वनति, ध्वनित) शब्द करना, ध्वनि । व्यक्ति 4. मुर्गाबी, सारस। सम० --अरातिः उल्लू, पैदा करना, गुनगुनाना, भिनभिनाना, गूंजना, प्रति- -पुष्टः कोयल। ध्वनि करना, गरजना, दहाड़ना --विभिद्यमाना इव ध्वानः | ध्वन-घम ] 1. शब्द 2. गुनगुनाना, भिनदब्वनुदिश:--कि० १४।४६, अयं धीरं धोरं ध्वनति भिनाना, बुडबुड़ाना। नवनीलो जलघर:--भामि० १६०, कपिर्दध्वान मेघ- | १६०, कापदध्वान मेघ- ध्वान्तम् [ध्वन्+क्त | अंधकार-ध्वान्तं नीलनिचोलचारु वत् -भट्टि० ९।५, १४।३, ध्वनति मधुपसमूहे श्रवण- सुदशां प्रजमालिङ्गति-. गीत० ११, नै० १९४४२, मयि दधाति-गीत० ५, प्रेर०-ध्वनयति, शब्द करवाना, शि० ४।६२ सम०-उन्मेषः, वित्तः जुगनू, ---शात्रवः (घंटी की भांति) बजवाना, परन्तु 'ध्वानयति' अस्पष्ट 1. सूर्य 2. चाँद 3. आग 4. श्वेतवर्ण । उच्चारण करवाना। | ध्व (भ्वा० पर०-ध्वरति) 1. झकाना 2. हत्या करना। For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०५ ) - । समा० न (वि.) नह (नश)+ड 1. पतला, फाल्तू 2. खालो, नाना प्रकार के रूपों का शस (अव्य०) बार २, रिक्त 3. वही, समरूप 4. अविभक्त,-न: 1. मोती, बहुवा,---किचन (वि०) अत्यंत गरीब, भिखारी के 2. गणेश का नाम, 3. दौलत, सम्पन्नता 4. मंडल, समान। 5. युद्ध-(अन्य) (क) निषेधात्मक अधय, 'नहीं' | नकुटम् [कुट+क, न शब्देन समासः] नाक, नासिका। 'न तो' 'न' का समानार्थक, लोट् लकार में प्रति-नकुलः नास्ति कुलं यस्य, नमो न लोपः प्रकृतिभावात्] षेवात्मक न होकर, अज्ञा, प्रार्थना या कामना के नेवला, आखेटी नकुल-यदयं नकुलद्वेषी, सकुलद्वेषी लिए प्रयुक्त, (ख) विधिलिङ्क की क्रिया के साथ पुनः पिशुनः ---वास. 2. चौथा पाण्डव राजकुमार प्रयक्त किये जाने पर कई बार इसका अर्थ होता है ..अहं तस्य अतिशयितदिव्यरूपिणो नकुलस्य दर्शने--'ऐसा न हो कि' इस डर से कि कहीं ऐसा न हो नोत्सुका जाता--वेणी० २, (यहाँ नकुल का प्रथम -क्षविर्धार्यते शस्त्रं नार्तशब्दो भवेदिति--रामा० अर्थ है, परन्तु दुर्योधन ने दूसरा अर्थ ग्रहण किया)। (ग) तर्कपूर्ण लेखों में 'न' शब्द 'इतिचेत' के पश्चात नक्तम [ना+क्त] 1. रात 2. केवल रात्रि के समय खाना, रक्खा जाता है और इसका अर्थ होता है 'ऐसा नहीं एक प्रकार का धार्मिक व्रत या तपश्चर्या । सम० (घ) जब भिन्न-भिन्न वाक्यों में या एकही वाक्य के -अन्ध (वि०) रात्र्यंघ, जिसे रात में दिखाई नहीं क्रमबद्ध वाक्यखण्डों में निपेधक की पुनरावृत्ति करनी देता,-चर्या रात को घूमना,--चारिन् (0) होती है तो केवल 'न' की आवृत्ति की जा सकती है, 1. उल्लू 2. विलाव 3, चोर 4. राक्षस, पिशाच, भूत अथवा उत, च, अपि, चापि और वा आदि अध्धयों प्रेत,--भोजनम् रात का भोजन, ब्याल,--माल: एक के साथ 'न' को रखा जा सकता है-नाधोयीताश्व- वृक्ष का नाम-रघु० ५।४२,---मुखा संध्या, सायंमारूढो न वृक्षं न च हस्तिनम्, न नावं न खरं नोष्ट्र काल,-ब्रतम् 1. दिन भर व्रत रखना तथा रात को नेरिणस्यो न यानगः । मन्० ४।१२०, प्रविशंन्त न मां भोजन करना 2. कोई भी साधना या धार्मिक व्रत जो कश्चित्सनामधारयत्--महा०, मनु० २।१९५, रात में किया जाय । ३३८, ९, ४११५, श० ६.१७, कई बार 'ज' द्वितीय नक्तम् (अव्य०) रात के समय, रात को... गच्छन्तीनां तथा अन्य वाक्मवंडों में न रक्खा जाकर केवल च, रमणवसति योषितां तत्र नक्तम्--मेघ० ३७, मनु० ना, अपिता ने स्थानापत्ति करता है --संपदि यस्य न ६।१९ । सम०-चरः रात को घूमने वाला प्राणी ' हों विपदि विवादो रणे च धोरत्वम -हि० ११३३, ! 2. चोर, ----चारिन (पुं०)-नक्तचारिन,-विनम् रात (ङ) किसो उक्ति पर बल देने के लिए बहधा 'न' दिन,-दिनम्-दिवम् (अत्य०) रात और दिन । को एक और 'न' के साथ अथवा किसी अन्य निषेधा-। नक्तकः [नक्त+के+क] गंदा, मैला फटा पुराना कपड़ा सफ अध्यय के साथ जोड़ दिया जाता है ....प्रत्यवाच नक्रः [न कामतीति न-क्रम् +ड, नशे न लोपः ] तमपिर्न तत्त्वतस्त्वां न वेनि पुरुष पुरातनम् ----रघु० घड़ियाल, मगरमच्छ, नक्र: स्वस्थानमासाद्य गजेन्द्रमपि ११३८५, न च न परिचितो न चाप्यगम्यः--मालविः | कर्षति -पंच० ३।४६ रघ० ७।३०, १६.५५, - क्रम् ११११, न पुनरलंकारथियं न पूष्पति-श० १, 1. दरवाजे की चौखट की ऊपर की लकड़ी 2. नाक, नादंडयो नाम राज्ञोऽस्ति - मनु० ८।३३५, मेघ० -... का 1. नाक, 2. मक्खियों या भिडों का छत्ता। ६३, १०६, नासो, न काम्यो न च वेद सम्यग् द्रष्टुं नक्षत्रम् नक्ष-अत्रन् ] 1. तारा 2. तारक पुंज, चन्द्रपथ न सा - रघु० ६१३०, शि. ११५५, विक्रम०।१०, में तारावलो, नक्षत्र-नक्षत्रताराग्रहसंकुलापि---रघु० (च) कुछ शब्दों में न तत्यूका के आरम्भ में 'ज' ६।२२ । सम० -- ईशः,-ईश्वरः,-नाथः --पः, को ऐसा का ऐसा हो रख लिया जाता है -- यथा -पतिः -- राजः चन्द्रमा,--रघु० ६।६६,-- चक्रम् न.क, नासत्य, नकुल, आदि -पा० ६।३१७५, (छ) 1. स्थिर तारा-मंडल 2. नक्षत्रों का समह,-दर्श: 7' को बहुधा दुसरे अब्धयों के साथ भी जोड़ दिया ज्योतिविद, ज्योतिषी,-नेमिः 1. चन्द्रमा 2. ध्रुवतारा जाताहै नप, नवा, नेव, नतू, नचेस, नखल आदि । 3. विष्णु की उपाधि (मिः---स्त्री.) अन्तिम नक्षत्र, सम्म० - असत्यो (पुं० द्वि० व०) अश्विनी कुमार, खेती, -पथः आकाश जिसमें तारे खिले हों,--पाठक: देवों के वैद्ययुगल, एक (वि.) 'एक नहीं' अर्थात् ज्योतिषी, ..माला 1. तारापंज 2. २७ मोतियों की एक से अधिक, कुछ, कई, आत्मन् (वि.) विविध माला 3. चन्द्रपथ में तारामंडल 4. हाथियों के कण्ठ भाति का विभिन्न प्रकृति का, चर (वि.) न रहने का आभूषण-अनङ्गवारण शिरोनक्षत्रमालायमानेन वाठा' यथवारी, संघातवासी, समाज में रहने वाला, मेखलादाम्ना का० ११,-योः चन्द्रमा का नक्षत्रों सामाजिक भेद, रूप (वि.) विविध प्रकार का, से मिलन,वस्मन् (पुं०) आकाश,-विद्या गणित, For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५०६ ज्योतिष - वृष्टिः (स्त्री० ) टूटने वाले तारे, -- सूचकः अयोग्य ज्योतिषी-तिथ्युत्पत्ति न जानन्ति ग्रहाणां नैव साधनम्, परवाक्येन वर्तते ते वै नक्षत्रसूचकाः । या अविदित्व यः शास्त्रं देवज्ञत्वं प्रपद्यते, स पंक्ति दूपकः पापो ज्ञेयो नक्षत्रसूचकः, वराह० २।१७, १८ । नक्षत्रन् (पुं० ) [ नक्षत्र + इनि ] 1. चन्द्रमा 2. विष्णु का विशेषण । नखः, नखम् [ नह+ख, हकारस्यलोपः ] हाथ या पैर की अंगुली का नाखून, पंजा, नखर नखानां पाण्डित्यं प्रकटयतु कस्मिन्मृगपतिः -- भामि० १२, ३१, १२ १२ 2. बीस की संख्या, - खः भाग, अंश । सम० --अङ्क : खरोंच, नखचिह्न - भामि० २/३२, आघातः खरोंच, नख द्वारा किया गया घाव मा० ५/२३, - आयुधः 1. व्याघ्र 2. सिंह 3. मुर्गा, आशिन् (पुं०) उल्लू, – कुट्टः नाई, -- जाहम् नाखून की जड़ - दारण: बाज, श्येन (णम्) नहरनी, नाखून काटने की कैंची निकृन्तनम्, रजनी नाखून काटने की कैची, नहरना, पदम् - व्रणः नखचिह्न, खरोंच, नखपदसुखान् प्राप्य वर्षाग्रविन्दून् - मेघ० ३५, मुखः धनुष - लेखा 1. नखचिह्न, 2. नाखून रंगना, विष्किरः ( अपने पंजों से फाड़ने वाला) शिकारी पक्षी, शङ्खः छोटा शंख । Rava ( fro ) [ नख पच् + खश्, मुम् ] नाखून झुलसाने वाला, शि० ९१८५ । नखरः,-रम् [ नख+रा+क ] अंगुली का नाखून, पंजा, नख । सम० आयुधः 1. मात्र 2. सिंह 3. मुर्गा आह्नः करवीर । नखानख ( अभ्य० ) [ नखैश्च नश्च प्रहृत्य प्रवृत्तं युद्धम् ० स० ] परस्पर नखाघात द्वारा होने वाला युद्ध, नाखूनों की लड़ाई । नाखिन् (वि० ) [ नख + इनि ]1. बड़े 2. नाखूनों वाला, तेज पंजों वाला 2. कंटीला, काँटेदार (पुं०) व्याघ्र या शेर जैसा नवधारी जन्तु । गः [ न गच्छति न + गम् + ड 11. पहाड़ - कु० १| | १७, ७२ शि० ६७९ 2. वृक्ष 3. पौधा 4. सूर्य 5. साँप 6. सात की संख्पा । सम० अटन: बंदर - अधिपः, --- अधिराजः इन्द्रः 1. ( पहाड़ों का स्वामी) हिमालय पर्वत 2. सुमेरु पर्वत, अरिः इन्द्र का विशेषण, उच्छ्राय: पहा की ऊँचाई, ओकस ( पुं० ) 1. पक्षी 2. कौवा 3. सिंह 4. शरभ नाम का काल्पनिक पक्षी - ज ( वि०) पहाड़ पर उत्पन्न, पहाड़ी -- भट्टि० १०१९, (ज) हाथी, जानन्दिनी पार्वती का विशेषण - पति 1. हिमालय पहाड़ 2. ( वनस्पतियों का स्वामी) चन्द्रमा, भिद् (पुं० ) 1. कुल्हाड़ा ) 2. इन्द्र का विशेषण, - मूर्धन् (पुं०) पहाड़ की चोटी --करः कार्तिकेय का विशेषण - र० ९२ । नगरम् [ नग इव प्रासादाः सन्त्यत्र बा० र] कस्बा, शहर ( विप० ग्राम ) नगरगमनाय मतिं न करोति श० २ । सम० अधिकृतः, - अधिपः, अध्यक्षः नगर का मुख्य दण्डनायक, मुख्य आरक्षाधिकारी 2. नगर ..पाल, नगर का अधीक्षक, उपान्तः उपनगर नगर के आसपास की आबादी, ओकस् (पुं०) नागरिक, --- काक: 'शहरुआ 'कौवा' एक तिरस्कारयुक्त उक्ति .. घातः हाथी, - जनः 1. नगर के लोग, नागर 2. नागरिक, - - प्रदक्षिण जलूस में मूर्ति को नगर के चारों ओर घुमाना, - प्रान्तः उपनगर - मार्गः प्रवान सड़क, राजपथ, रक्षा नगर का अघीक्षण या शासन, स्थः नगरवासी, नागरिक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगरी [ नगर + ङीप् ] नगर, । बकः कौवा । नान ( वि० ) [ नज् + क्त, तस्य नः] नंगा, विवस्त्र, वस्त्रहीन न नग्न स्नानमाचरेत् मनु० ४।४५, नग्नक्षपणके देशे रजकः किं करिष्यति चाण० ११० 2. बिना जोता हुआ, बिना बसा, सुनसान - ग्नः 1. नंगा भिक्षु 2. क्षपणक 3. पाखंडी 4. सेना के साथ रहने वाला भाट, घूमता हुआ भाट - ना 1 नंगी० निर्लज्ज, (या स्वेच्छाचारिणी) स्त्री 2. रजस्वला होने के पूर्व की आयु वाली लड़की, दस बारह वर्ष को आयु से कम की ( अर्थात् जो इधर उधर नंगी आ जा सके ) । सम० अट:, अटक: 1. जो इधर उधर नंगा घूम सके 2. विशेष रूप से ( दिगंबर संप्रदाय का ) जैन या बौद्ध भिक्षु | राम० काकः सारस, aree (त्रि० ) ( स्त्री - ग्नि ) | नग्न + कन् | नंगा, feata, कः 1 नंगा भिक्षु 2. दिगंबर सम्प्रदाय का) जैन या बौद्ध भिक्षु 3. भाट । नट areer, after [artक ! टाप पक्षेइत्यम् ] 1. नंगी, निर्लज्ज, (या स्वेच्छाचारिणी) स्त्री 2. रजोधर्म होने से पूर्व की अवस्था को लड़की । नग्नकरणम् [अनग्नः नग्नः क्रियते नग्न+च्चि --कृ+ख्य, मुम् ] नंगा करना । भष्णु - भाबुक ( वि० ) कञ्ञ नंगा होने वाला । जंगः न नति गच्छति न । गम् -1 ड] प्रेमी, जार। नचिकेतस (पुं० ) अग्नि का विशेषण | afar (वि०) न चिरम्, न शब्देन समाराः ] दे० अचिर, [ नग्न + भू इष्णुच् भग० ५/६ १२।७ । नञ (अव्य०) निषेधात्मक अव्यय 'न' के लिए पारिभाषिक शब्द | ( वा० पर० नदति 'चोट पहुंचाने' के अर्थ में For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'प्र' के पश्चात् 'न' को 'ण' हो जाता है) 1. नाचना, | नत (भू०क०कु०) [नम् --क्त] झुका हुआ, प्रणत, झुकने यदि मनसा नटनीयम् .....गीत०४ 2. अभिनय करना वाला, रुझान वाला 2. डुबा हआ, अवसन्न 3. कुटिल, 3. (धोखे से चालाकी से) क्षति पहुँचाना, प्रेर०- टेढ़ा--तम् याम्योत्तर रेखा (मध्यं दिन रेखा) से नाटयति-ते 1. अभिनय करना, हाव भाव व्यक्त किसी ग्रह की दूरी। सम०-अंशः शिरोबिंदू की करना, (नाटकों में) नाटक के रूप में वर्णन करना, दूरी-अंग (वि० ) 1. झुके हुए शरीर वाला शरसंधानं नाटयति ---श० १ 2. अनुकरण करना, 2. झकने वाला 3. प्रणत (गी) 1. झुके हुए अंगों नकल करना-स्फटिककटकभूमिर्नाटयत्येष शैलः... वाली स्त्री 2. स्त्री-नासिक (वि०) चपटी नाक अधिगतधवलिम्नः शुलपाणेरभिख्याम् ...श० ४।६५, | वाला,-भ्रः टेढ़ी भौहों वाली स्त्री। (विशे० 'नाना' अर्थ को प्रकट करने के लिए 'नट' | नतिः (स्त्री०) [नम्+क्तिन् ] 1. झुकाव, झुकना, धातु का 'नटयति' रूप बनता है-भर्त० ३।१२६), प्रणमन 2. वक्रता, कुटिलता 3. अभिवादन करने के ii (चुरा० उभ० नाटयति-ते 1. गिर पड़ना, गिरना लिए शरीर का झुकाना, प्रणति, शालीनता 4. (ज्यो० 2. चमकना 3. क्षति पहुँचाना। में) भोगांश में स्थानभ्रंश । नटः [नट् + अच्] 1. नाचने वाला---न नटा न विटा न नद (भ्वा० पर० नदति, नदिन) 1. शब्द करना, कलकल गायकाः -भर्त० ३।२७ 2. अभिनेता-कुर्वन्नयं प्रहस ध्वनि करना, (वादल की भांति) गरजना--वामनस्य नट: कृतोऽसि-भर्त० ३११२६, ११२, 3. पतित श्चायं नदति मधुरं चातकस्ते सगंध:-मेघ० ९, क्षत्रिय का पुत्र 4. अशोक वृक्ष 5. एक प्रकार का नदत्याकाशगंगायाः स्रोतस्युडामदिग्गजे-रघु० ११७८, नर कुल। सम०--अंतिका लज्जा, ह्री,-ईश्वरः शि० ५।६१, भट्टि० २।४ 2. बोलना, चिल्लाना, शिव का विशेषण --चर्या नाटक के पात्र का अभि पुकारना, दहाड़ना (प्रायः शब्द, स्वन नाद कर्म के नय, - भूषणः, ----मंडनम् हरताल---रंग: नाट्य रंग साथ) ननाद बलयन्नाद, शब्दं घोरतरं नदन्ति---महा० मंच, वरः 'प्रधान नट' सूत्रधार..--संज्ञकम् हरताल 3. थरथराता-२० नादयति-ते 1. कोलाहल से (कः) अभिनेता, नट । भर देना, कोलाहलमय करना 2. शब्द करवाना, नटनम् [नट । ल्युट | 1. नाचना, नाच 2. अभिनय करना, उद्-दहाड़ना, ज़ोर से पुकारना, (बैल की भांति) हावभाव प्रकट करना, नाटकीय चित्रण । रांभना, कु० ११५६, नि---, शब्द करना, चिल्लानानटी [नट+डीप्] 1. अभिनेत्री 2. मुख्य नटी (सूत्रधार रघु० ५।७५, मालवि० ५।१०, भट्टि०६।११७, प्र की पत्नी) 3. वेश्या, रंडी। सम०-सुतः नर्तकी (प्रणदति) ध्वनि करना, गूजना, प्रतिध्वनि करना का पुत्र। -- ऋव्यादाः प्राणदन् घोराः महा० शिवा: प्रणदंति नटचा नट-+-य-टाप अभिनेताओं की मंडली! आदि प्रति--, गंजना, प्रतिध्वनि करना, प्रेर....... नडः,-डम् [नल् +अच, लस्य डत्वम् नरकुल का एक कोलाहल से भरना, गुंजायमान करना - शा० २।२६, भेद। सम०---अगारम्, आगारम् नरकुलों का ऋतु० ३।१४, वि---, ध्वनि करना, गूंजना- भग० बना झोंपड़ा-प्राय (वि०) जहाँ नरकुल बहुत ११२, प्रेर०—कंदन करवाना या गीत गवानाहोते हों बनम् नरकुलों का जंगल-संहतिः (स्त्री०) अंबुदैः शिखिगणो विनाद्यते-घट० १०॥ नरकुलों का संग्रह। नदः [नद्+अच् ] 1. दरिया, बड़ी नदी (जैसी कि नडश (वि.) (स्त्री०-शी) [नड-श सरकंडों से ढका सिंधु) शि० ६६, (यहाँ मल्लि० की टिप्पणहुआ। प्राकस्रोतसो नद्यः प्रत्यक्स्रोतसो नदा नर्मदां विनेत्याहः) नडिनी | नड -।-इनि डीप] 1 सरकंडों का ढेर 1. सर 2. नदी, प्रवहणी, नाला-कि० ५।२७ 3. समुद्र । कंडों का बना हुआ मूढ़ा या शय्या, वह नदी जहाँ सम -राजः समुद्र । सरकंड़ों के पौधे बहुतायत से हों। नदथः [नद्अथुच् ] 1. शोर, दहाड़ 2. बैल की दहाड़। नडिल, (वि०), नड़वत (वि.) (स्त्री०-ती) नड:- नदी (नद+डी] दरिया, प्रवहणी, सरिता-रविधीतजला इलच, ड्वतुप् वा सरकंडे जहाँ पर बहुतायत से हों, तपात्यये पुनरोधेन हि युज्यते नदी-कु० ४।४४। चा जो सरकंडों से ढका हुआ हो, सरकंडों से यात सम०--ईन:-ईशः, कान्तः समुद्र,----कुलप्रियः एक स्थान । प्रकार का नरकुल-ज (वि.) जलोत्पन्न (ज:) नड्या निड्+य-टाप] सरकंडों का ढेर । भीष्म का विशेषण (जम) कमल ---तरस्थानम् उतरने नड्वल (वि.) [नड । ड्वलच] सरकंड़ों से व्याप्त-लम का स्थान, घाट-दोहः भाड़ा, उतराई, किराया, सरकंडों का ढेर या शय्या, यो नड्वलानीव गजः ....धरः शिव का विशेषण, - पतिः 1. समुद्र 2. वरुण परेषां बलान्यमदनान्नलिनाभवक्त्राः--रघु० १८१५। J का विशेषण, पूरः उमड़ा हुआ दरिया,---भवम For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०८ ) नदोलवण,-मातक (वि.) (देश आदि) जहां नदी -नंदयति--ते-प्रसन्न करना, खुश करना, हर्षित के पानी से सिचाई होती हो, सिंचित, नदी या नहर करना, आनन्दित करना—अन्तहिते शशिनि सैव कूमद्वारा सिंचाई पर जो निर्भर करता हो, नै० ३।३८, द्वती मे दृष्टिं न नन्दयति संस्मरणीयशोभा-श०४१२, तु० देवमातृक,-रयः नदी की धार,-वंकः नदी का भट्टि० २।१६, रघु० ९।५२ अभि---1. हर्ष प्रकट मोड़,----ण (वि.) (स्त) 1. नदी में स्नान करने करना, प्रसन्न होना, संतुष्ट होना--आत्मविडंबनामवाला 2. नदियों के भयानक स्थानों, उनकी गहराइयों भिनंदति-का० १०८, नाभिनंदति न द्वेष्टि ... भग० और प्रवाहों को जानने वाला-ततः समाज्ञापयदाश २।५७ 2. बधाई देना, जय जयकार करना, स्वागत सर्वानानायिनस्तद्विचये नदीष्णान् रघु० १६७५, ! करना, नमस्कार करना-तापसीभिरभिनंद्यमानातिष्ठति अत: 3. अनुभवी, चतुर,-सर्ज: अर्जुन वृक्ष। -श०४, तमभ्यनंदप्रथमं प्रबोधितः रघु० ३१६८, नड (भू० क० कृ०) [ नह+क्त ] 1. बंधा हुआ, बाँधा । २०७४, ७६९, १११३०, १६६४ 3. प्रशंसा करना, हुआ, जकड़ा हुआ, चारों ओर से बद्ध, धारण किया । तारीफ करना, श्लाघा करना, अच्छा समझना-नाम हुआ 2. ढका हुआ, जड़ा हुआ, अन्तर्ग्रथित 3. संयुक्त, यस्याभिनंदति द्विषोऽपि स पुमान् -कि० १११७३, संयोजित दे० 'नह',--सम् गांठ, बंधन, बंध, गिरह । श० ३।२४, रघु० १२।३५, न ते वचोऽभिनंदामि-श. नवध्री [नह+ष्ट्रन +डोप् ] चमड़े का फीता। २ 4. कामना करना, चाहना, पसन्द करना, अपेक्षा ननंद, ननाद (स्त्री०) [ननन्दति सेवयापि न तुष्यति न+ करना (प्राय: 'न' के साथ) नाभिनंदति केलिकला: नन्द+ऋन् ] पति को बहन, ननान्दुः पत्या च देव्या: ---मा० ३, नाभिनंदेत मरणं नाभिनंदेत जीवितम् संदिष्टमष्यशृंगेणं--उत्तर० १। सम० --मनांदपतिः - - मनु० ६।४५, हि० ४।४, आ-प्रसन्न होना, खुश (ननांदुःपतिः) ननदोई, पति की बहन का पति ।। होना-आनंदितारस्त्वां दृष्ट्वा भट्टि० २२११४, ननु (अव्य०) (मूल रूप से न और नु का संयुक्त रूप, : प्रेर... प्रसन्न करना, खुश करना...-उत्तर० ३३१४, जिसे आज कल पृथक् शब्द के रूप में प्रयुक्त किया । याज्ञ० ११३५६, प्रति -, 1. आशीर्वाद देना-रघु० जाता है) यह अव्यय निम्नांकित अर्थ प्रकट करता ११५७, मनु० ७।१४६, कु० ७८७ 2. स्वागत करना, है---1. पूछताछ, प्रश्न, ननु समाप्त कृत्यो गौतमः बधाई देना, जयजयकार करना, हर्ष पूर्वक सत्कार मालवि०४ 2. निश्चय ही, अवश्य, निस्संदेह, क्या करना-प्रतिनंद्य स तां पूजाम्-महा०, मनु० २।५४ | यह असन्दिग्ध नहीं (प्रश्न सूचक बल के साथ) यदा- नन्दः [ नन्द +अच्] 1. आनन्द, सुख, हर्ष 2. (११ इंच उमेधाविनी शिष्योपदेश मलिनयति तदाचार्यस्य दोषो लम्बी) एक प्रकार की बांसुरी 3. मेंढक 4. विष्णु नन-मालवि० १3. निस्सन्देह, बेशक, अवश्य- 5. एक ग्बाले का नन जो यशोदा का पति तथा कृष्ण उपपन्नं ननु शिवं सप्तस्वंगेष-रघु० २६०, त्रिलोक- का पालकपिता (जिसको देख रेख में कृष्ण को रक्खा नाथेन सदा मद्विषस्त्वया नियम्या ननु दिव्यचक्षुपा- गया था जब कि कंस उसे मारना चाहता था) 6. नंद ३१४५ 4. संबोधन सूचक अव्यय ('आ' 'अहो') नन वंश का प्रतिष्ठाता (यह वही नंदवंश था जिसके नो मानव-दश०, ननु मूर्खाः पठितमेव युष्माभिस्तकांडे भाई पाटलिपुत्र में राज्य करते थे तथा जिन्हें चन्द्रगप्त ---उत्तर. ४ 5. 'कृपा करके' 'अनग्रह करके' अर्थ के मंत्री चाणक्य की नीति के द्वारा यमलोक भेज दिया को प्रकट करने के लिए प्रतिषेधात्मक कथन के रूप : गया था)--समुत्खाता नंदा नव हृदयरोगा इस भव: में प्रयुक्त होता है-नन म प्रापय पत्युरन्तिकम् ----- ! -मद्रा० १४१३, अगृहीते राक्षसे किमुखातं नन्दकु० ४।३२ 6. कभी-कभी संशोधनशब्द के रूप में वंशस्थ ---मुद्रा० ११३, २७, २८। सम-आत्मजः, प्रयुक्त होता है-नन पदे परिवृत्य भण-मच्छ० ५, -नंदनः कृष्ण का विशेषण-पालः वरुण का विशेषण । नन भवानग्रतो में वर्तते --श० २, ननु विचिनोतु नन्धक (वि०) [नन्द्+गिच । वल ] 1. हर्पित करने भवान--विक्रम २ 7. तानुबद्ध चर्चा के समय बाला, आनन्दित करने वाला, प्रसन्न करने वाला आक्षेप करने या विरोवो प्रस्ताव प्रस्तुत करने के 2. बुशहाने बाला, हर्ष मनाने वाला 3. परिवार को लिए प्रयुक्त होता है (इसके पश्चात् प्रायः 'उच्यते । प्रसन्न करने वाला क: 1. मेंढक 2. कृष्ण की तलवार आता है) नवचेतनान्येव वृश्चिकादिशरोराणि अचेत- । 3. तलवार +. आनन्द । नानां च गोमादोना कार्या गोति उच्यते -शारो। नन्दकिन् (पुं०) [ नन्दक :-इनि ] विष्ण का विशेषण । नन्द (भ्वा० पर० नंदति, नंदित) प्रसन्न होना, हर्षित नन्दथः। नन्द+अथव आनन्द, प्रसन्ना , खुशी। होना, खुश होना सन्तुष्ट होना, (किसी बात पर) ' नन्दन (वि०) [नन्द +णिव + ल्युट 1. खुश करने हर्ष प्रकट करना-नंदतुस्तत्सदशेन त समो- रब वाला, सुहावना, प्रसन्न करने वाला-नः 1. पुत्र ३३२३, ११, २।२२, ४।३, भट्टि० १५२८, प्रेर० –याज०११२७४, रघु० ३।४१ 2. मेंढक 3. विष्णु For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०९ ) का विशेषण 4. शिव---नम् इन्द्र का उद्यान, आनन्द- नप्त (पु.) [न पतन्ति पितरो येन-न- पत्+ तृच् धाम-अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियते नन्दनद्रुमाः कु० । नि० ] पाता नाती, (लड़के का पुत्र या लड़की का २२४१, रघु० ८।९५ 2. हर्ष मनाने वाला, प्रसन्न होने पुत्र)। वाला, 3. हर्ष, सम..- जम् पीले चंदन की लकड़ी, | नभः [ नम्--अच् ] श्रावण मास,--भम् आकाश, अन्तहरिचंदन । रिक्ष। नंदतः, नंदयन्तः [नंद । झन्, अन्त आदेशः, नन्द णिच् नभस् (नपुं०) [नह्यते मेघः सह--नह+असून, भश्चा+झच् (अन्त) ] पुत्र, बेटा ।। न्तादेशः ] 1. आकाश, अन्तरिक्ष-रघु० ५।२९, नन्दा | नन्द |-टाप् ] 1. खुशो, हर्ष, आनन्द 2. सम्पन्नता, भग० १२१९, ऋतु० ११११ 2. बादल 3. कोहरा, धनाढयता, समृद्धि 3. छोटा मिट्टी का जल-पात्र बाष्प 4. पानी 5. जीवन की अवधि, आयु (पुं०) 1. 4. ननद, पति की बहन 5. प्रतिपदा, षष्ठी और एका- वर्षा ऋतु 2. नासिका, ध्राण 3. (जुलाई-अगस्त के दशी, चांद्रमास की तीन तिथियाँ, (यह शुभ तिथियाँ अनुरूप, इस अर्थ में नपुं० भी) श्रावण मास-प्रत्यासमझी जाती हैं। सन्ने नभसि दयिताजीवितालवनाथीं-मेघ० ४, रघु० नन्दिः (१०, स्त्री०) [नन्द+इन | हर्ष, प्रसन्नता, खुशी १२।२९, १७।४१, १८५ 4. पीकदान । सम० ---कौशल्यानन्दिवर्धन: - दिः (पु०) 1. विष्णु का अंबुपः चातक पक्षी,-कांतिन् (पुं०) सिंह-जः विशेषण 2. शिव 3. शिव का अनुचर 4. जूआ खेलना, बादल,-चक्षुस् (पुं०) सूर्य, चमसः 1. चन्द्रमा 2. क्रीडा (इस अर्थ में नपुं० भी)। सम०.--ईशः, जादू-चर (वि०) गगन बिहारी-कु० ५।२३, -- ईश्वरः 1. शिव का विशेषण 2. शिव का प्रधान (---र:) 1. देवता, उपदेवता रघु० १८१६. 2. पक्षी अनुचर-ग्रामः वह गाँव जहाँ राम के बनवासकाल --दुहः बादल, दृष्टि (वि.) 1. अंधा 2. आकाश में भरत रहा-रघु० १२।१८,---घोषः अर्जुन का की ओर देखने वाला,-द्वीपः,-धूमः बादल, नदी रथ - वर्धनः 1. शिव का विशेषण 2. मित्र 3. चांद्र आकाश गंगा-प्राणः हवा,-मणिः सूर्य,-मंडलम् पक्ष का अन्त अर्थात् अमावस्या या पूणिमा। आसमान, अन्तरिक्ष, नेदं नभोमंडलमंबुराशि:-- सा० नन्विकः [ नन्दि-1-कन् ] 1. हर्ष, प्रसन्नता 2. छोटा जल द० १०, द्वीपः चन्द्रमा,-रजस् (पुं०) अंधकार, पात्र 3. शिव का अनुचर। सम०---ईशः,...ईश्वरः -रेणुः (स्त्री०) कोहरा, धुंध,-लयः धूआँ, --लिह, 1. शिव का एक मुख्य अनुचर 2. शिव । (वि०) आकाश को चाटने वाला, उन्नत, बहुत ऊँचा तु० अभ्रंलिह,--सद् (पुं०) देवता-शि० १।११, नन्दिन् (वि.) [नन्द+णिनि, नन्द -- णिच + णिनि वा ] -सरित् (स्त्री०) 1. छायापथ 2. आकाशगंगा 1. आनन्दित, हृष्ट, प्रसन्न, खुश 2. आनन्दित करने ---स्थली आकाश,--स्पृश् (वि०) गगनचुंबी, उन्नत । वाला, प्रसन्न करने वाला- (१०) 1. पुत्र, 2. नाटक में नान्दीपाठ या आशीर्वचन कहने वाला व्यक्ति नभसः [ नम्-असन् ] 1. आकाश 2. वर्षा तु 3. शिव का मुख्य अनुचर, द्वारपाल, या वह बैल जिस 3. समुद्र। पर शिव सवारी करता है - लतागृहारगतोऽथ नंदी नमसंगयः [ नभस+गम् +खच्+मुम् ] पक्षी। --- कु० ३१४३, मा० १११, नी 1. पुत्री उत्तर० नभस्यः [नधस् । यत् ] (अगस्त-सितंबर के अनुरूप) १२९ 2. ननद, पति की बहन 3. काल्पनि गाय, काम भाद्रपद का महीना-रघु० ९/५४, १२।२९, धेनु - (जो सब इच्छाओं को पूरा करतो है तथा जिस १७:४१ का स्वामी कुलगुरु वसिष्ठ है) अनिद्या नन्दिनो नाम नभस्वत् (वि०) [ नभस्+मतुप, मस्य वः ] बाष्पयुक्त, वेनुराववृते वनात् - रघु० ११८२, २०६९ 4. गंगा का धुंधवाला, मेघाच्छन्न,--(पुं०) हवा, वायु नै० विशेषण 5. पवित्र काली तुलसी। १२९७, रघु० ४१८,१०।७३, शि०१।१०।। नपात् (पुं०) [ पाती इति-पा---शत, ततो नभा समासे नभाकः [ नभ्+आक] 1. अंधकार 2. राह का विशेषण प्रकृतिभावः] (प्रायः वेद में प्रयक्त) पोता, यथा नभ्राज् (पु.) [ भ्राज्+क्विम्, नत्रा समासे प्रकृतितनूनपात् । भावः ] काला बादल, काली घटा ।। नपुंस् (पुं०) नपुंसः [ ना समासे प्रकृतिभावः ] जो नन् (भ्वा० पर०--कभी कभी अ०- नमति-ते, नत, पुरुप न हो, हिजड़ा। प्रेर० नमयति-ते, परन्तु उपसर्ग पूर्व होने पर केवल नपुंसकः,-कम् [ न पुमान् न स्त्री, नि० स्त्रीसयो: पंसक 'नमयति', इच्छा० निनसति) 1. झुकना, नमस्कार आदेशः ] 1. उभयलिंगी (न स्त्री न पुरुष) 2. करना, अभिवादन करना (सम्मान सूचक लक्षण) नामर्द, हिजड़ा 3. भीरु, डरपोक,--कम् 1 नपुंसक (कर्म या संघ के साथ) इयं नमति व: सर्वान लिंग का शब्द 2. नपुंसकलिंग। त्रिलोचनवरिति-कु. ६८९, भग० ११११७, For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टि० ९।५१, १०॥३१, १२।३९, शि० ४।५७, । करना, अभिवादन करना, विनम्र प्रणति करना अधीन होना, पराभव स्वीकार करना, झुक जाना (कर्म० या संत्र के साथ) न प्रणमंति देवताभ्यः -~~अशक्तः संधिमान् नमेत् --काम० ८५५ 3. __-का० १०८, तां प्रणनाम -का० २११, भग० झकना, दबाना, नीचा होना--अनसीदभवरेणास्प ११।४४, रधु० २।२१, (साष्टांग प्रणम् आठ अंगों से -भट्टि० १५।२५ नेमः सर्वदिमा-का० ५५, उन्न- झुक कर प्रणाम करना ..दे० 'साष्टांग', दण्डवत् प्रणम् वति नमति वर्षति . . . . मेघ:-मृच्छ० ५।२६ 4. 8-1 डड की भांति पूर्ण रूप से भूमि पर लेट कर नमस्कार रना, झुकाव होना 5. झुका हुआ होना, वक्र होना 6. करना, सब अंगों से भूमि को स्पर्श करते हुए तु० ध्वनि निकालना। अभ्युद् --, उठाना, उन्नत होना दंडप्रणाम), वि -, 1. अपने आपको झुकाना, नम्र अव---, 1. झुकना, नम्र होना, नीचे को ढलना करना, विनीत होना -विनमंति चास्य तरवः प्रवये --शि० ९७४ 2. झुकाना, लटकाना - त्वय्यादातुं -कि० ६१३४. भर्त० १६७, भट्टि० ७.५२, दे० जलमबनते-मेध. ४५, उद्---, 1. (क) उदय 'विनत' विपरि--1. बदलना 2. बदल कर खराव होना, प्रकट होना, उगना --उन्नम्योन्नम्य लोयते होना सम्- 1. झुकना नीचे को होना, झुकाव होना दरिद्राणां मनोरथा:-पंच० २।२१, (ख) 1. लट- --संनतांगो कृ० ११३४, भट्रि० २।३१, पर्वसु संतता कना, समीप होना-उन्नमत्यकालदुर्दिनम् -मच्छ० ---विक्रम० ४।२६ 2. नम्र होना, विनीत होना ५ 2. उदय होना, चढ़ना, ऊपर उठना (आलं. - - संनमतामरीणाम्--रघु०१८।३४ । भी) उन्नमति नमति बर्षति गर्जति मेघः- मच्छ० नमत (वि०) नम्+अतच झका हुआ, विनीत, कुटिल, ५।२६, नम्रत्वेनोन्नमंतः...-भर्तृ० २१६९, ३३२४, शि० वक्र ---तः 1. अभिनेता 2. धुआँ 3. स्वामी, प्रभु ९१७९ 3. उठाना, उन्नति करना-कि० १६।३५, प्रेर० 4. बादल। ऊपर उठाना, सीधा खड़ा करना-उप---, आना आ नमनम् निम्ल्यू ट] 1. विनीत होना, झुकना, नम्र होना जाना, पहुंचना 2. होना, भाग्य में होना, बटित होना, 2. दबना 3. विनति, नमस्कार, अभिवादन । सामने आना (संप्र० के साथ या अकेला) कस्यात्यन्तं | नमस् (अव्य०) |नम् + असुन्] प्रामति, अभिवादन, सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा-मेघ० १०९, मत्सं- प्रणाम, पूजा (यह शब्द स्वयं सदैव संप्र० के साथ भोगः कथनपनयत् स्वप्नजोऽपि-- मेघ० ९१, यदेवो- प्रयुक्त होता है, तस्मै वदान्यगुरवे तरवे नमोऽस्तु पनतं दुःखात्सुख तद्रसवत्तरम्-विक्रम० ३।२१, ----भामि० १२९४, नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यम् कु० २।४, भर्त० २।१२१, मेघ० १०, रघु० १०॥३९ 3. उप- परन्तु 'कृ' के योग में कर्म के साथ मुनित्रय स्थित करना, देना, प्रस्तुत करना--परलोकोपनतं नमस्कृत्य-सिद्धा०, परन्तु कभी-कभी संप्र० के साथ जशंजलिम्--रघु० ८।६८, परि-, 1. नीचे को भी-नमस्कुर्मो नृसिंहाय-सिद्धा०, यह शब्द संज्ञा ढलना, झुकना (जैसे कि कोई हाथी अपने दांतों से शब्द का अर्थ रखता परन्तु समझा जाता है अव्य०)। प्रहार करने के लिए) वाक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीय सम०-कारः, -कृतिः (स्त्री०)----कारणम् प्रणानि, ददर्श-मेघ २, विपके नागः पर्यणंसोल स्व एवं सादर प्रणाम, सादर अभिवादन ('नमग' शब्द के -शि० १८०२७ 2. झुकना, नमस्कार करना, झुकाव उच्चारण के साथ),-कृत (वि०) 1. जिसे प्रणति होना...लज्जापरिणतः (वदनकमल:)...- भट्टि० १४, दी गई है, जिसको प्रणाम किया गया है 2. सम्मानित, 3. परिवर्तित होना, रूपांतरित होना, रूप धारण चित, पूजित,--गुरुः आध्यात्मिक गुरु, --बाकम् करना । करण के साथ ) लताभावेन (अन्य०) 'नमस्' शब्द का उच्चारण करना, अर्थात् परिणतमस्या रूपम्-विक्रम० ४।२८, क्षीर विनम्र अभिवादन करना - इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमाजलं वा स्वयमेव दपिहिमभावेन परिणमते वाकं प्रशास्महे-उत्तर० १११ । -~-शारी०, मेघ० ४५ 4. विकसित या परिपक्व होना, | नमस (वि.) नम्---असञ्] अनुकल, सानुग्रह व्यवस्थित । पकाना, परिणतपलस्य वाणोम् - उत्तर ७४२०, ममसित, नमस्थित (वि.) नमस्क्य च, नमस्य+का, मेष० १८, कि० ५/६७, भालवि० १८, ऋतु० विकल्पेन यलोपः। जिसे नमस्कार किया गया हो, ११२६ 5. (आयु में) बढ़ना, बड़ा होना, बूढ़ा होना, । सम्मानित, जिसे प्रणाम किया गया है। क्षीण होना, परिणत शरच्चन्द्रिकासु क्षपासु-मेघ० नमस्यति (ना० धा० पर०) नमस्कार करना, श्रद्धांजलि ११०, इसी प्रकार जरापरिणत' आदि 6. डूबना, । अर्पित करना, पूजा करना भर्तृ० २।९४ । (सूर्य आदि का) पश्चिम में छिपना अनेन समयेन नमस्य (वि.) [नमस्-+यत् | 1. अभिवादन प्राप्त करने का परिणतो दिवस:-का० ४७ 7. पच जाना, ग्रस्त ___अधिकारी, सम्मानित, आदरणीय, वन्दनीय 2. आदरपरिणमेच्च यत्---महा०, प्र (प्रणमति) नमस्कार | युक्त, विनीत,-स्था पूजा, अर्चना, श्रद्धा, भक्ति । . बाल For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमुचिः [न-मच- इन 1. एक दैत्य जिसे इन्द्र ने मार (0) राज नीतिशास्त्र पारंगत--विद (पं०) गिराया था। बमचे नमुचेररये शिर:-रघु० --विशारदः राजनयिक, राजनीतिज्ञ-शास्त्रम् ९।२२, (जब इन्द्र ने असुरों पर विजय प्राप्त की तो 1. राजनीतिशास्त्र, 2. राजनीति का या राजनीतिक नमुचि नामक एक असुर ने इन्द्र का डटकर मुकाबला ! अर्थशास्त्र का कोई ग्रन्थ 3. नीतिशास्त्र..... शालिन् किया और अन्त में इन्द्र को बन्दी बना लिया। (वि.) न्यायपूर्ण, न्यायपरायण कि० ५।२४ । उस दैत्य ने इन्द्र से कहा कि यदि तुम यह प्रतिज्ञा नयनम् [नी ल्युट ] 1. मार्ग दर्शन, निर्देशन, संचालन, करो कि 'न मैं तुम्हें दिन में मारूँगा न रात को, न प्रबन्धन 2. लेना, निकट लाना, खींचना 3. हकमत पानी में न सूखे में तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। इन्द्र ने करना, शारान करना 4. प्रापण 5. आँख। सम० प्रतिज्ञा की और फलतः उसे छोड़ दिया गया। फिर ----अभिराम (वि.) आँखों को प्रसन्न करने वाला, इन्द्र ने संध्या समय पानी के झाग के साथ (जो न प्रियदर्शन (-मः) चाँद,---उत्सवः 1. दीपक, लैंप पानी था न सूखापन नमुचि का सिर काट डाला । 2. आँख को प्रसन्नता 3. कोई प्रिय वस्तु उपांतः दूसरे एक कथन के अनुसार नमचि इन्द्र का मित्र था आँख का कोना--कु० ४१२३, - गोचर (वि०) उसने एक बार इन्द्र की शक्ति को पी लिया दृश्यमानं, दृष्टि-परास के अन्तर्गत,-छनः पलक,--पयः और उसे निर्बल एवं अशक्त बना दिया, फिर दुष्टि-परास----चुटम् अक्षिगोलक,--विषयः 1. कोई अश्विनीकुमारों (सरस्वती ने भी) ने इन्द्र को वज दश्यमान पदार्थ 2. क्षितिज,-सलिलम ओम् मेष० ३९ । दिया जिससे उसने नमुचि का सिर काट डाला) | | नरः । न+अब्] 1. मनुष्य, पुमान् पुरुष संयोजयति 2. कामदेव । विद्येच नोचगागि नरं सरित, समुद्रमिय दुर्घर्ष नपं. नभेरुः [नम् + एरु] एक वृक्ष का नाम, रुद्राक्ष या सुरपुन्नाग भाग्यगतः परम् -- हि०प्र० ५, मनु० १९६, २२१३ गणा नमेप्रसवावतसाः --तु० ११५५, ३१४३, रघ० 2. शतरंज का मोहरा 3. धूपघड़ी की कील, शंकु ४।७४ । 4. परमात्मा, नित्यपुरुष 5. दोनों हाथों को दोनों नम्र (पि०) [नमं+र] । विनीत, प्रणतिशील, झुका हुमा, ओर सीधा फैलाकर, हाय के एक सिरे से दूसरे हाथ विनत, नीचे लटकने वाला भवंति नम्रास्तरवः फला- के सिरे तक की लम्बाई 6. एक पात्रीन ऋषि का गर्म :... श० ५।१२, स्तोकनम्रा स्तनाभ्या-मेघ ० ८२, नाम 7. अर्जुन का नाम -- दे० नी. नरनारायण । पंच० १।१०६, रत्न० ११११ 2. प्रणतिशील, सादर सम०--अत्रियः, -- अधिपतिः, ...- ईशः, -- ईश्वरः अभिवादनशील,...-अभूच्छ नम्रः प्रणिपात शिक्षया - देवः, - पतिः पाल. राजा, भग० १०।२७, मनु० .....रधु० ३।२५, इत्युच्यते तागिरुमा स्म नम्रा --कु० ७.१३, रघु० २२५, ३१४२, ७६२, मध० ३७, ७।२८ 3. सुशील, विनयो, विनयशील, श्रद्धाल याज्ञ० ११३१०, अंतक: मृत्यु, अवनः विष्णु का --गंध० ५५ 4. कुटिल, वक्र 5. पूजा करने वाला विशेषण,---अंशः रास, पिशाच,----इन्द्र: 1. राजा --- 6. भक्त, उपासक । रघु० २।१८, ३४३३, ६१८०, मनु० ९।२५३ 2. वैच, नय (भा० आ०-नयते) 1. जाना 2. रक्षा करना । विषनाशक औषधियों का विक्रेता, बिनाशक --तेनयः नी--अन् । 1. निर्देशन, मार्गदर्श, प्रबन्धन कश्चिन्नरेन्द्राभिमानी तां निर्वण्य --- दश० ५१, 2. व्यवहार, नित्यचर्या, आचरण, दिनचर्या-जैसा कि सुनिग्रहा नरेन्द्रेण फणोद्रा इव राजव:-----शि० २।८८, दुर्नय में 3. दूरदर्शिता, अग्रदृष्टि 4. नीति, शासन (यहाँ शब्द दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है),--उत्तमः निमयक बुद्धिमत्ता, राजनीतिज्ञता, नागरिक प्रशासन विष्णु का विशेषण, ऋषभः 'मनुष्यों में श्रेष्ठ' राजराज्य की नीति - नयप्रचारं व्यवहार दुष्टताम् - कुमार, राजा,--कचालः मनुष्य की खोपड़ी, --कोलक: मच्छ० ११७, नवगुणोपचितामिव भूपतेः सदुपकार आध्यात्मिक गुरु की हत्या करने वाला, केशरिन् फला श्रियमर्थिनः-- रघु० ९।२७ 5. नैतिकता, न्याय, (पुं०) विष्णु का चौथा अवतार, तु० 'नसिह' को नो०, न्यायपरता, पाय्यता चलति नयान्न जिगीषतां हि --विष् (पुं०) राक्षस, पिशाच-भट्टि० १५।९४. चेतः .... कि० १०।२९, २१३, ६।३८,१६।४२ 6. रूप- ---नारायणः कृष्णा का नाम, (द्वि० व०–णी) मूलरेखा, ढांचा, योजना-मुदा०६।११,७।९ 7. सिद्धांत रूप से दोनों एक ही माने जाते थे, परन्तु पुराणों वाक्य, नियम 8. क्रम, प्रणाली, रीति 9. पद्धति, वाद, और महाकाव्यों में दो स्वतंत्र माने जाने लगेसम्मति 10. दार्शनिक पद्धति -वैशेषिके नये - नर को अर्जुन का समरूप तथा कृष्ण का नारायण भाषा०, १०५ । सन०.--कोविद् (वि०) नीति का रूप (कुछ स्थानों पर इन्हें 'देवो' पूर्वदेवा' 'ऋषी' कुशल, दूरदर्शी - चक्षुस् (वि०) शासमय अग्रदृष्टि या 'ऋषिसत्तमौ' कहते है, कहा जाता है कि यह रखने वाला, बुद्धिमान्, दूरदर्शी --रघु० १५५ --नेतृ दोनों हिमालय पर्वत कड़ी साधना और तपस्या किया For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५१२ करदे थे, इनकी इस तपस्या से इन्द्र भयभीत हुआ, फलतः उसने इनको तपस्या में विघ्न डालने के लिए कई देव कन्याओं को भेजा । परन्तु नारायण ने अपनी जंवा पर रक्खे एक फूल से सौंदर्य में इनसे बढ़ चढ़कर 'उर्वशी' नाम को एक अप्सरा को उत्पन्न करके इन स्वर्गदेवियों को लज्जित कर दिया, तु० स्थाने खलु नारायगषि विलोभयंत्यस्तसंभवामिमां दृष्ट्वा त्रीडिताः सर्वा अप्सरस इति विक्रम० १), -- पशुः पशु जैसा मनुष्य, मानव रूप में पशु पुंगवः श्रेष्ठ, उत्तमपुरुष, मानिका, मानिनी, -मालिनी मनुष्य जैसी स्त्री जिसके दाढ़ी हो, मर्दानी औरत, मेधः नरयज्ञ, यंत्रम् धूपघड़ी, यानम् - रथः वाहनम् मनुष्य द्वारा खींची जाने वालो गाड़ी -लोक: 1. मनुष्यों का संसार, पृथ्वी, पार्थिव संसार 2. मानवता, वाहनः कुबेर का विशेण-बु० ९/११, वीरः पराक्रमी मनुष्य शूरवीर, व्याघ्रः - शार्दूलः प्रमुत्र पुरुष, श्रृंगम् ' मनुष्य का सींग, असंभावना शेर के मुँह बकरे के धड़ और साँप की पूंछ वाला बकरा अर्थात् बन्ध्यापुत्र, सताहीनता, संसर्गः मानव-समाज, सिंहः, हरिः 'नरसिंह' विष्णु का चौथा अवतार, तु० तत्रकरकमलवरे नव मद्भुतवं दलितहरण्यकशिपुतनुभृंगम्, केशव घृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे - गोत० १. स्कंधः मनुष्यों को टोली । तरकः, --कम् [तृणाति क्लेशं प्रापयति-नृ + त्रुन् ] दोजख पुन प्रदेश ( प्लूटो के राज्य के अनुरूप स्वात, नरक गिननियों में २१ माने जाते हैं जहाँ को विविध प्रकार की यातनायें दी जाती है), ---क एक राक्षस का नाम, प्राग्ज्योतिष का राजा ( एक वृत्त के अनुसार तरक एक बार अदिति के कर्णाभूषण उडाना, तब देवताओं को प्रार्थना सुनकर कृष्ण ने उसको एक ही पछाड़ में मार गिराया और वह आभूषण प्राप्त किया। एक दूसरे वृस के अनुसार नरक ने हाथी का रूप धारण किया और वह कर्मा की पुत्री को उठा कर ले गया तथा उसके साथ बलात्कार किया। उसने गंधर्वों, देवों, और को लड़कियों तथा अप्सराओं को उठाया और इस हजार से अधिक युवतियों को अपने अन्तःपुर में रक्ता । कृष्ण ने जब नरक को मार दिवा यह सब युवतियाँ कृष्ण के अन्तःपुर में हा तरित कर दी गईं। यह राक्षस भूमि उत्पन होने के कारण भी कहलाता है) । सन० अंतकः, --- अरिs - जि (पुं०) कृष्ण के विशेषण, आमयः 1. मृत्यु के पश्चात आत्मा 2. भूत प्रेत कुंड क का गढ़ा जहाँ दुष्टों को नाना प्रकार को यातनायें दो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) जाती हैं- इस प्रकार के, ८६ स्थान गिनाये गये हैं), -स्था वैतरणी नदी । नरंगम्, नरांगः [ नृ + अंगच् नर + अंग् + अण् ] पुरुष की जननेन्द्रिय, लिङ्ग । | नरधिः [ नराः धीयन्तेऽस्मिन्नर + धा + कि, पो० मुम् ] सांसारिक जीवन या अस्तित्व । तरी [ नर + ङीप् ] नारी, स्त्री - भामि० ३ । १६ । नरकुटकम् ] नरस्य कुटमित्र, पृषो० ] नाक, नासिका । नर्तः [ नृत् + अच्] ] नाचना, नाच । नर्तकः [ नृतु + ध्वन् ] 1. नाचने वाला, नृत्यशिक्षक 2. अभिनेता, नट, मूकनाटक का पात्र 3. भाट, चारण 4. हाथी 5. राजा 6. मोर की 1. नाचने वाली स्त्री, नटी, अभिनेत्री रंगस्य दर्शयित्वा निवर्तते नर्तकों यथा नृत्यात्- सां० का० ५९, क्रि० १० ४१, ० १९।१४, १९ 2. हथिनो 3. मोरनी । नर्तनः । नृत् + ल्युट् ] नाचने वाला, नन् हावभाव प्रद शित करना, नाचता नाच । सभ० गृहम्, शाला नाचघर, – प्रियः शिव का विशेषण । नति (वि० ) [नृतु + णिच् +क्ति ] नाचा हुआ, नचाया हुआ । नर्द ( वा० पर० नईति नदित) गरजना, दहाड़ना, शब्द करना अदषुः कपिव्याघ्राः भट्टि० १५/३५, १४१४०, १५।२८, १७।४० 2 जाना, गतिशील होना । नर्द ( वि० ) [ नर्द + अच् ] गरज दहाड़ । नर्ददम् [ नई + ल्युट् ] 1. गरजना, दहाड़ना 2. प्रशंसा का प्रचार करना, ॐबे स्वर में कीर्तिनान करना । नदितः [ नई + क्त ] एक प्रकार का पासा, पासे का हाथ दिर्ग:कटन वामिच्छ २१८, -तम् आवाज, दहाड़, गरज । नर्मटः [ नर्मन् + अटन्, पृषो० ] 1. ठोकरावर्तनका टुकड़ा 2. सूर्य । नम: | जर्मन + अठत् ] 1. भांड 2 लम्पट दुश्चरित्र, स्वेच्छाचारी 3. क्रोडा, मनोरंजन, विनोद 4 मैथुन, संभोग 5. ठोड़ी 6. चूक । न ( नपुं० [न +मति 11. क्रोडा, विनोद, विलास आनोद, प्रमोद, कामकेलि केलिविहार जितरुमले विमले परिकर्तन नर्म जलकमलकं मुखे - पीत० १२ ( कौतुकजनक ); बु० १९।२८ 2 परिहास, हँसी दिल्लगी, ठड्डा, रसिकोक्ति -नप्रायाभिः कथाभिः का० ७०, परिहासपूर्ण, सरस । सप० - कील: पति, गर्भ (वि०) रसिक ठिठोलिया, विनोदी ( : ) गुप्तत्रेो द (वि०) आह्लादकारी, आनन्ददायक (दः) विद्रूपक ( नर्मसचिव), दाि पर्वत से निकलने वाली एक नदी जो संवात की खाड़ो For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में जाकर गिरती है; -ति (वि.) हर्षोत्फुल्ल, 2. जल 3. नील का पौधा, नलिनेशयः विष्णु का हंसमुख, प्रसन्नवदन (स्त्री० -तिः) परिहास का मजा विशेषण । लेना-सचिवः, -सुहृद् (५०) विदूषक, राजा या नलिनी [नल-|-इनि+डीप] 1. कमल का पौधा-न किसी रईस का मनोविनोद करने वाला साथी इदं पर्वताग्रे नलिनी प्ररोहति-मच्छ० ४।१७, नलिनीत्वदंपर्यं यदुत नपतेर्नर्मसचिवः सूतादानान्मित्रं भवतु दलगतजलमतितरलम्-मोह०५, कू०४।६ 2. कमलों ..-मा० २७, तो याचते नरपतेर्नमसुहन्नन्दनो नप- का समूह 3. कमलों से भरा हुआ सरोवर । सम०मखेन –११११, शि० ११५९ ।। खंडम्, ---पंडम् कमलपुंज,--कहः ब्रह्मा का विशेषण, नर्मराः [ नर्मन+र+टाप् ] 1. घाटी, कंदरा 2. धौंकनी (हम) कमलडंडी, कमल का रेशा । 3. बढी स्त्री जिसे अब रजोधर्म न होता हो 4. सरला | नल्वः निल-व] दूरी मापने का नाप जो ४०० हाथ नाम का पौधा। | लम्बा हो। नलः [ नल अच् ! 1. एक प्रकार का नरकुल 2. निषध- नव (वि०) [नु+अप | 1. नया, ताजा, थोड़ी आयु का, देश का एक विख्यात राजा, 'नैषध चरित' काव्य का नवीन -चित्तयोनिरभवत्पुनर्नव:--रघु० १९१४६, क्लेशः नायक । (नल अत्यन्त उदार और सदगण संपन्न फलेन हि पुनर्नवता विधत्ते-कु० ५।८६, पत्तर० १११९ राजा था। देवताओं का विरोध सहकर भी दमयंती रघु० १।८३, २।४७, ३।५०, ११, शि० ११४, ३।३१, इसे अपना पति चुना था, फिर वे कुछ वर्षों तक कि० ९।४३ 2. आधुनिक,-वः कौवा--बम् (अव्य०) सानन्द रहते रहे 1. परन्तु दमयंती को प्राप्त करने आजकल में, हाल में, अभी अभी, बहुत दिन हुए। में निराश होकर कलि ने नल पर जुल्म ढाये, वह 1. सम० --अन्नम् नये चावल या नया अनाज, नल के शरीर में प्रविष्ट हो गया) इस प्रकार -अंजु (नपुं०) ताजा पानी,--अहः पक्ष का पहला कलिग्रस्त हो नल ने आने भाई पुष्कर के साथ जुआ दिन इतर (वि०) पुनाना-रघु० ७२२,-उद्धतम् खेला, उसमें सब कुछ हार जाने पर उसे सपत्नीक ताजा मक्खन,--ऊढा,-पाणिग्रहणा, अभी की विवाहित राजधानी से निर्वासित कर दिया गया। एक दिन जब स्त्री, दुलहिन-हि० ११२१०, भर्तृ० १४, रघु०८1७, कि वह जंगल में मारा २ थिर रहा था, हताश होकर ---कारिका,-कालिका,-फलिका 1. नवविवाअपनी स्त्री को अर्ध नग्नावस्था में छोड़ कर चल हित स्त्री 2. नूतन रजस्वला स्त्री,---छात्रः नया दिया। उसके पश्चात् कर्कोटक सांप के काटने से विद्यार्थी, नौसिखिया, नवशिष्य-नी (स्त्री०)--- उसका शरीर विकृत हो गया। इस प्रकार विकृत नीतम ताजा मक्खन –अहो नवनीतकल्पहृदय आर्य शरीर हो वह अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के यहाँ पुत्रः—मालवि० ३,-नीतकम् 1. परिष्कृत मक्खन गया और वहाँ वह बाहुक नाम से नौकर हो गया 2. ताजा मक्खन,--पाठकः नया अध्यापक,---मल्लिका और उसके घोड़ों के साहस का काम करने लगा। --मालिका चमेली का एक भेद,-~-यशः नये अन्न या उसके पश्चात् राजा ऋतुपर्ण की सहायता से नये फलों से आहति देना, ---यौवनम् नई जवानी, उसने अपनी पत्नी दमयंती को फिर से प्राप्त किया यौवन का नया विकास,---रजस् (स्त्री०) लड़की और वे आनन्द पूर्वक रहने लगे -दे० 'ऋतुपर्ण' और जिसे हाल ही में रजोदर्शन हुआ हो,-वधूः,-वरिका 'दमयंती') 3. एक प्रमुख वानर जो विश्वकर्मा का नवविवाहिता लड़की,--बल्लभम् एक प्रकार का पुत्र था तथा जिसने नलसेतु नामक एक पत्थरों का चन्दन,-.--वस्त्रम् नया कपड़ा,-शशिभूत (पुं०) शिव पुल बनाया, जिसके ऊपर से होकर राम ने अपने का विशेषण-मेघ० ४३,-सूतिः (स्त्री०),-सूतिका सैन्यदल समेत लंका में प्रवेश किया,---लम् कमल । 1. नई सूई हुई या दुधार गाय 2. जच्चा स्त्री। सम० --कोल: घुटना--कब (ब) रः कुबेर के एक नवकम् निवन्' ---कन् नलोपः] नौ वस्तुओं का समूह, नौ पुत्र का नाम--वम् एक सुगंधित जड़, खस, उशीर-- का गुच्छा। कि० १२।५०, नै० ४।११६,-पट्टिका नरकुलों की नवत (वि.) (स्त्री-ती) [नवति+डद] नम्वेवां--तः बनी हुई एक प्रकार की चटाई, - मीनः जल वृश्चिक, | ___1. छींट की बनी हाथी की झूल 2. ऊनी कपड़ा, झींगा मछली। कंबल 3. चादर, आवरण। नलकम् [नल+के+क] 1. शरीर की कोई भी लंबो नवतिः (स्त्रिी०) नि०] 1. नव्वे नवनवतिशताद्रव्यहड्डो-महावी० ११३५ 2. कुहनी की हडडी। कोटीश्वरास्ते--मुद्रा० ३।२७, रघु० ३।६९ । नलकिनी [नलक-!-इनि डी 1. घुटने को कपाली | नवतिका [नवति-+-कन्-+-टाप्] 1. नव्वे 2. चित्रकार 2. टांग। की कूची (कहा जाता है कि इस कूची में नव्वे नलिनः [नल-इनच्] सारस-नम् 1. कमल, कुमुद | बाल होते हैं)। For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवन् (सं० वि०)[नु-+कनिन् बॉ० गुणः] (नित्यबहु०) । 1. अन्तर्धान करना 2. नष्ट करना, हटा देना, मिटा नौ-नवति नवाधिका----रघु० ३।६९, दे० नीचे देना, भगा देना, उड़ा देना, प्र-, (प्रणश्यति) दिए गये समस्त शब्द (आरंभ में प्रयक्त होनेपर 'नवन्' वि-, ध्वस्त होना, मरना-भट्टि० ३।१४, भग० के 'न्' का लोप हो जाता है)। सम०-अशीतिः ८।२०। (स्त्री०) नवासी,—अचिस् (पुं०), दीधितिः मंगल- नश् (स्त्री०) नश:, नशनम् [नश् ।-क्विप, क, ल्युट् ग्रह, कृरवस् (अव्य०) नौ गुणा,-ग्रहाः (पुं०,ब०व०) वा ] नाश, ध्वंस हानि, अन्तर्धान। नौ ग्रह, दे० 'ग्रह' के अन्तर्गत, चत्वारिंश (वि०) - नश्वर (वि०) (स्त्री०-री) [ नश्+क्वख ] 1. नष्ट उनचासवाँ,... चत्वारिंशत् (स्त्री०) उनचास, होने वाला, क्षणस्थायी, क्षणभंगर, अनित्य, अस्थायी -छिद्रम्,-द्वारम् शरीर (नौ दरवाजो वाला, दे० -निखिलं जगदेव नश्वरम्--रस० 2. विनाशकारी, 'ख'),-त्रिंश (वि०) उतालीसवां,-त्रिंशत् (स्त्रिी०) उत्पातकारी। उतालीस-वश (वि०) उन्नीसवाँ, -दशन् (ब०व०) नष्ट (भ० क० कृ०) [नश+क्त ] 1. खोया हुआ, उन्नीस,---नवतिः (स्त्री०) निन्यानवे,....निधिः (पुं०, .. अनहित, लुप्त, अदृश्य 2. मृत, ध्वस्त, उच्छिन्न 3. ब०व०) कुबेर के नौ खजाने-अर्थात्-- महापद्मश्च भ्रष्ट, क्षीण 4. भागा हुआ 5. वंचित, मुक्त (समास पद्मश्च शंखो मकरकच्छपौ, मकूदकूदनीलश्च खर्वश्च निध में) । सम० -अर्थ (वि०) निर्धनीकृत (जिसका धन योनव,--पंचाश (वि.) उनसठवा-पंचाशत् (स्त्री०) नष्ट हो गया हो),--आतंकम् (अव्य०) निश्चितता उनसठ,रत्नम् 1. नौ अमूल्य रत्न-अर्थात्-मुक्ता के साथ, निर्भय होकर-नष्टातंक हरिणशिशवो मंदमाणिक्यवैदूर्यगोमेदान् वनविद्रमौ, पद्मरागं मरकत मंदं चरन्ति-श० ११३, अने० पा०,-आत्मन् नीलं चेति यथाक्रमम् 2. राजा विक्रमादित्य के (वि.) ज्ञान से वंचित, बेहोश,--आप्तिसूत्रम् लूट दरबार के नौ कवि, कविरत्न-धन्वंतरिक्षपणकामर का माल, लूट-खसोट, ----आशंक (वि०) निडर, सुरसिहशंकु बेतालभट्ट घटकपरकालिदासाः ख्यातो वराह- क्षित, भयरहित, इंदुकला पूर्णिमा का दिन,-इंन्द्रिय मिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव (वि०) इन्द्रियरहित, चेतन, चेष्ट,---संज्ञ (वि०) विक्रमस्य, रसाः (पु०, ब०व०) काव्य के नौ रस, जिसकी चेतना जाती रही है, अचेतन, बेहोश, मछित, दे० 'अष्ट रस' और 'रस',-रात्रम् 1. नौ दिन का —चेष्टता विश्वविनाश । समय 2. आश्विन मास के प्रथम नौ दिन जो दुर्गा नस् (स्त्री०) [ नस् ---क्विप् (दूसरी विभक्ति के द्वि० पूजा के दिन मान जाते है,-- विश (वि०) उतीसवाँ, व० के पश्चात 'नासिका' के स्थान में होने वाला ---विशतिः (स्त्री०) उतीस, -विध (वि.) नौ तरह आदेश) नाक, नासिका । सम०-क्षुद्र (वि०) छोटी का, नौ प्रकार का,—-शतम् 1. एक सौ नौ 2. नौ नाक वाला। सो, --पष्टि: (स्त्री०) उनहत्तर,--सप्ततिः उनासी। नस्तस् (अव्य०) [नस् तसिल ] नाक से....-याज... नवधा (अव्य०) [ नवधा ] नौ प्रकार से, नौगणा।। ३।१२७। नवम (वि०) (स्त्री०-मी) [ नवन+डट, डट्स्थाने नसा [ नस्+टाप् ] नाक, नासिका। मट ] नवां-मी चान्द्रमास के पक्ष का नवाँ दिन । नस्तः[ नस+क्त ] नाक,---स्तम् नस्य, सँघनी---स्ता नवशः (अब्ब०) [ नवन+शस ] नौ नौ करके । . नाक के नथुने में किया गया छिद्र । सम०-ऊतः नवीन, नव्य (वि.) [ नव+ख, यत् वा ] 1. नया, नकेल द्वारा चलाया गया बल । ताजा, हाल का 2. आधुनिक । नस्तित (वि०) [ नस्त+इतच ] नाथा हुआ (नाक में नश (दिवा० पर०--नश्यति, नष्ट, प्रेर०–नाशयति रस्सी डालकर)। -इच्छा० निर्मक्षति, निनशिषति) 1. खोया जाना, | नस्य (वि.) [ नासिक-यत् नसादेशः ] अनुनासिक, अन्तर्धान होना, लुप्त होना, अदृश्य होना -ध्रुवाणि --स्यम् 1. नाक का बाल 2. सुंघनी,-स्या 1. नाक तस्य नश्यंति --हि० १, तथा सीमा न नश्यति--मनु० 2. पशु के नाक में से निकली हई रस्सी, नकेल ८।२४७, याज्ञ० २१५८, -क्षणनष्टदृष्टतिमिरम् -शि०१२।१०। मृच्छ १ ५।४ 2. नष्ट होना, ध्वस्त होना, मरना, नह (दिवा० उभ०--नाति--ते, नद्ध, इच्छा० निनत्सति बर्बाद होना-जीवनाशं ननाश च--भट्टि० १४।३१, -ते) बांधना, बंधनयुक्त करना, ऊपर से चारो मनु०८।१६ ७१४०, मुद्रा० ७८ 3. भाग जाना, उड़ ओर से या एक जगह बांधना, कमर कराना-शैलेयजाना, बच निकलना नश्यति वन्दानि ददर्श कपीद्रः नद्धानि शिलातला नि . कु. १५६, रघु० ४।५७, --भट्टि० १०॥१२, नंशुश्चित्राः निशाचरा:-१४१११२, १६।४१ 2. पहनना, वस्त्र धारण करना, सुसज्जित रत्न० २१३ 4. भग्नाश होना, असफल होना--प्रेर० करना (आ०), प्रेर०-पहनना, अप-खोलना अपि For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५१५ -- ( कभी-कभी बदलकर केवल 'पि' रह जाता है) 1. ! बांधना, कमर कसना, बंधन में डालना - अतिपिनद्धेन वल्कलेन - श० १, मंदारमाला हरिणा पिनद्धा श० ७२ 2 पहनना, कपड़े धारण करना - भट्टि० ३।४७ 3. ढकना, (लिफाफे में ) बंद करना - श० १११९, उद् बांधना, जकड़ना, गूंथना- रघु० १७/३०, १८/५०, परिघेरना, अन्तर्जटित करना, परिवृत्त करना - सजगति परिणद्धः शक्तिभिः शक्तिनाथः -- मा० ५/१, रघु० ६६४, मालवि० ५ १०, ऋतु० ६।२५, सम् - 1. कसना, बांधना, जकड़ना 2. वस्त्र पहनना, धारण करना, शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होना, संवारना, लिबास पहनना - समनात्सीत्ततः सैन्यम् भट्टि० १५०१११२, १४७, १७१४ 4. ( किसी कार्य के लिए) अपने आपको तैयार करना, (आ० इस अर्थ में) युद्धाय संह्यते महा०, छेत्तुं वज्रमणी शिरीषकुसुमप्रांतेन संनह्यते भर्तृ० २२६, दे० 'संनद्ध' भी । नहि ( अव्य० ) निश्चय ही नहीं, निश्चित रूप से नहीं, किसी भी अवस्था में नहीं, बिल्कुल नहीं- आशंसा न हि नः प्रेते जीवेम दशमूर्धनि भट्टि० १९/५ । नहुषः [ नह + उषच् ] एक चन्द्रवंशी राजा ययाति का पिता, पुरुरवा का पोता और आयुस् का पुत्र, यह बहुत बुद्धिमान्, और बलवान राजा था। जब इन्द्र ने वृत्र को मार दिया, और उस ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के लिए वह एक सरोवर में जा छिपा, तो उस समय नहुष राजा को इन्द्र के आसन पर बिठाया गया । वहाँ रहते हुए नहुष इंद्राणी के प्रेम को जीतने के विचार से सप्तर्षियों को पालकी में जोत कर उसके भवन की ओर चला। मार्ग में उसने सप्तर्षियों को 'सर्प' 'सर्प' (तेज़ चलो, तेज़ चलो) कह कर फुर्ती से चलने के लिए कहा । उस समय अगस्त्य मुनि ने नहुष को साँप बन जाने का शाप दिया । वह आकाश से इस पृथ्वी पर गिरा और तब तक इसी दुरवस्था में पड़ा रहा जब तक कि युधिष्ठिर ने आकर उद्धार न किया हो ) । ना [ नह+डा ] नहीं, न (न) । नाकः [ न कम् अकम् दुःखम्, तत् नास्ति अत्र इति नि० प्रकृतिभावः ] 1. स्वर्ग आनाकरथवर्त्मनाम् रत्रु० १५, १५/९६ 2. आकाश मंडल, ऊर्ध्वतर गगन, अन्तरिक्ष । सम० चरः 1. देव 2. उपदेवनाथः, -नायकः इन्द्र का विशेषण, वनिता अप्सरा सद् (पुं०) देव, भट्टि० १।४ । नाकिन (पुं० ) [ नाक + इनि ] देवता, सुर- शि० ११४५ । नाकुः [ नम् + उ नाक् आदेशः ] 1. वल्मीक 2. पहाड़ । माक्षेत्र (वि०) (स्त्री० त्री ) [ नक्षत्र + अण् ] तारा ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्बन्धी, नक्षत्रविषयक, -त्रम् २७ नक्षत्रों में से चन्द्रमा की गति के आधार पर गिना गया महीना, ६० घड़ी वाले तीस दिनों का एक मास- नाडीषष्ट्या तु नाक्षत्रमहोरात्रं प्रकीर्तितम् सूर्य० । नाक्षत्रिकः [ नक्षत्र + ठञ ] २७ दिनों का महीना (जिसमें प्रत्येक दिन चन्द्रमा की नक्षत्रान्तर्गति पर आधारित है ) । नागः [ नाम + अण् ] 1. सांप, विशेष कर काला साँप 2. एक काल्पनिक नागदैत्य जिसका मुख मनुष्य जैसा और पूंछ साँप जैसी होती है तथा जो पाताल में रहता है - भग० १०।२९, रघु० १५।८३ 3. हाथी - मेघ० ११, ३६, शि० ४।६३ विक्रम० ४।२५ 4. मगरमच्छ 5. क्रूर, अत्याचारी व्यक्ति 6. ( समास के अन्त में), गण्यमान्य और पूज्य व्यक्ति उदा० पुरुषनाग 7. बादल 8. खूंटी ( दीवार में गड़ी हुई). 9. नागकेसर, नागरमोथा 10. शरीरस्थ पाँच प्राणों में वह वायु जो डकार के द्वारा बाहर निकलती है 11. सात की संख्या-गम् 1. रांग 2. सीसा । सम० --अंगना 1. हथिनी 2. हाथी की सूंड - अंजना हथिनी, - अधिपः शेष का विशेषण, अंतकः, अरातिः, -अरि: 1. गरुड का विशेषण 2. मोर 3. सिंह, - अशनः 1. मोर- पंच० १।१५९२. गरुड का विशेपण, आननः गणेश का विशेषण, आह्नः हस्तिनापुर, इन्द्र: 1. भव्य या श्रेष्ठ हाथी - कु० १।३६ २. इन्द्र का हाथी ऐरावत 3. शेष का विशेषण, - ईश: 1. शेष की उपाधि 2. परिभाषेन्दुशेखर तथा कई अन्य पुस्तकों का प्रणेता 3 पतंजलि, उदरम् 1. लोहे का तवा (जो सैनिक छाती के बांधते हैं), वक्षस्त्राण 2. गर्भावस्था का एक रोग विशेष, गर्भोपद्रवभेद, केसरः सुगंधित फूलों का एक वृक्ष, गर्भम् सिन्दूर, चूडः शिव की उपाधि, जम् 1. सिदूर 2. रांग, जिह्निका मैनसिल, -- जीवनम् रांगा - दंतः, दंतक: 1. हाथी दांत 2. दीवार में लगी खूंटी या दीवारगीरी, दंती 1. एक प्रकार का सूरजमुखी फूल 2. वेश्या, नक्षक्षम्, -नायकम् आश्लेषा नक्षत्र, (कः ) सांपों का स्वामी, नासा हाथी की सूंड, निर्यूहः दीवार में लगी खूंटी या दीवारगीरी, पंचमी श्रावणशुक्ला पंचमी को मनाया जाने वाला उत्सव, पदः एक प्रकार का रतिबंध, - पाश: 1. युद्ध में शत्रुओं को फंसाने के लिए प्रयुक्त एक प्रकार का जादू का जाल 2. वरुण का शस्त्र या जाल, पुष्पः 1. चम्पक का पौधा 2. पुन्नाग वृक्ष, -- बंधक: हाथी पकड़ने वाला, बंधुः गूलर का पेड़, पीपल का पेड़ -- बल: भीम की उपाधि-- भूषणः शिव की उपाधि - मंडलिक: 1. सपेरा 2. सांप पकड़ने वाला, - मल्लः ऐरावत का विशेषण, - यष्टिः (स्त्री०) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाज का प्रास्तिनापुर । नगर + अण्] खाने वाला, नाष्टादि कास्तकेन-श° -पष्टिका 1. नये खुदे तालाब में पानी की गहराई माटारः (नटपा अपत्यम् आरक] अभिनेत्री का पुत्र । नापने के लिए अंशांकित बांस विशेष 2. धरती में छेद नाटिका नाट+कन्+काप, इत्वम एक छोटा या लघु करने का बर्मा,-रक्तम्, रेणुः सिंदूर,--रंगः संतरा प्रहसन, एक रूपक, उदा० रत्नावली, प्रियदर्शिका, या - राजः शेष की उपाधि,-लता,-वल्लरी,-वल्ली विद्धशालभंजिका; सा० द० परिभाषित करता है नागकेसर, पान की बेल,-लोकः सांपों की दुनिया, -नाटिका क्लप्तवत्ता स्यात् स्त्रीप्राया चतुरङ्किका, सांपों का कुल, भूलोक के नीचे अवस्थित पाताल लोक, । प्रख्यातो धीरललितस्तत्र स्यानायको नृपः; स्यादन्तः ---वारिक: 1. राजकील हाथी 2. महावत 3. मोर पुरसंबंधा संगीतव्याप्ताऽथवा; कन्यानुरागा कन्याऽत्र 4. गरुड की उपाधि 5. हाथियों का युथपति 6. किसी नायिका नृपवंशजा; संप्रवर्तेत नेताऽस्या देव्यास्त्रासेन समाज का प्रधान व्यक्ति,-संभवम्,---संभूतम् सिन्दूर। शङ्कितः, देवी पुनर्भवेज्जेष्ठा प्रगल्भा नृपवंशजा; पदे पदे मानवती तद्वशः संगमो द्वयोः, वृत्तिः स्यात्कौशिकी मागर (वि.) (स्त्री०-री) [नगर+अण] 1. नगर में स्वल्पविमर्शाः संधयः पुनः ५३९ । उत्पन्न, नगर में पला 2. नगर से संबंध रखने वाला, नाटितकम् [नट+णिच् +क्त+कन्] अनुकृति, किसी की नगरीय 3. नगर में बोला जाने वाला 4. नम्र, शिष्ट चेष्टादि का अनुकरण, संकेत, हावभाव प्रदर्शन 5. चतुर, चालाक 6. बुरा, दुष्ट, दुर्व्यसनी (जिसने -भीतिनाटितकेन-श० ५। नगर की बुराइयाँ ग्रहण करली हैं),--र: 1. नागरिक -र: 1. नागारक । नाटेयः,-र: [नटी+तुक ढक वा] किसी अभिनेत्री या --मेघ. २५, शा०४।१९ 2. देवर, पति का भाई नर्तकी का पुत्र । 3. व्याख्यान 4. नारंगी 5. थकावट, कठिनाई, श्रम नाटयम् [नट+व्यञ् ] 1. नाचना 2. अनुकरणात्मक 6. मुकरना, जानकारी का खण्डन,--री 1. लिपि, चित्रण, स्वांग, हावभाव प्रदर्शन, अभिनय करना-- वर्णमाला जिसमें प्रायः संस्कृत लिखी जाती है-तु० नाटये च दक्षा वयम्--रत्न० ११६, नूनं नाटये भवति देवनागरी 2, चालाक और बुद्धिमती स्त्री-हन्ता च चिरं नोर्वशीगर्वशीला-विक्रमांक० १८०२९ भीरीः स्मरतु स कथं संवृतो नागरीभिः- उ० दू० १६ 3. नृत्यकला, अभिनय कला, नाटकला नाटधं 3. स्नुही नाम का पौधा । भिन्नरुचेर्जनस्य बहधाप्येक समाराधनम---मालवि० मागरक, नागरिक (वि०) नगरेभवः कुंज, नगर-+-ठक ११४,-टघः अभिनेता। सम-आचार्यः नृत्यकला 1. नगर में पला नगर में उत्पन्न 2. नम्र, शिष्ट, का गुरु,- उक्तिः (स्त्री०) नाटकीय वाक्यविन्यास, शालीन-नागरिकवृत्त्या संज्ञापय॑नाम्-श०५ 3. चतुर, -मिका,...धर्मों अभिनयसंबंधी नियमावली-प्रियः बांवमान, चालाक,क: 1. नागरिक 2. नम्र या शिष्ट शिव की उपाधि, -शाला 1. नाचघर 2. नाटक व्यक्ति, वीर बहादुर, वह प्रेमी जो अपनी पहली प्रेमिका खेलने का घर या स्थान,--शास्त्रम् 1. नाटय विज्ञान को अतिशय प्रेम प्रदर्शित करता है, परन्तु किसी अन्य नृत्य, गीत तथा अभिनय संबंधी विद्या 2. नाटयशास्त्र से अपनी प्रणय प्रार्थना करता है 3. जो नगर के पर लिखा गया ग्रन्थ । दुर्व्यसनों में फंस गया है 4. चोर 5. कलाकार 6. पुलिस नाडि-बी (स्त्री) [ना+णिच+इन, नाडि+डी ] का मुख्य अधिकारी-विक्रम०५, श०६।। 1. किसी पौध को पोला रंठल 2. कमल की खोखली मापरीट, नागवी [नागरी+इट+क, नाग इव व्येटति उंडी 3. (धमनी या शिरा की भांति) नलियों के नाग+वि+इट्+क] 1. लम्पट, दुश्चरित्र 2. जार आकार का शरीर का अंग- षडधिकदशनाडीचक्रम 1 संबंध भिड़ाने वाला। व्यवस्थितात्मा-मा० ५।१,२ 4. बांसुरी, मुरली माया नाग++क] संतरा, नारंगी।। 5. नासूर वाला घाव, नासूर, नाडीत्रण 6. हाथ या नाम भागर+ध्य] पुद्धिमत्ता, चतुराई। पैर की नब्ज 7. चौबीस मिनट के समय के बराबर पाधिोतः माचिकेता+अण] अग्नि । माप, घड़ी 8. आधे मुहर्त का कालमान 9. ऐन्द्रजालिक काटनट+पम]1. नाचना, अभिनय करना 2. कर्णाटक जाल । सम...परणः एक पक्षी, ...चीरम् एक छोटा नरकुल,-अंधः कौवा,-परीक्षा नब्ज देखना,-मंडलम मायाम निट्+ण्वुल] 1. स्वांग, रूपक 2. रूपक के दस आकाशीय विषुवत् रेखा,-यंत्रम् नली के आकार का मुख्य भेदों में से पहला, परिभाषा आदि के लिए एक उपकरण,-वण: नासूर, पूयव्रण, रिसने वाला दे० सा०२० २७७,--क: अभिनेता, नाचने वाला। फोड़ा। नाटकीय (वि०) [नाटक+छ] नाटकसंबंधी, नाटक- नारिका [नाडि+क+टाप् ] 1. नली के आकार का विवयक-पूर्वरंगः प्रसंगाय नाटकीयस्य वस्तुनः बंग 2. २४ मिनट का समय, घड़ी-नाडिका विच्छेद पटहः-मा० ७, का० १३,७० । For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडि (डी) धम (वि०) [ नाडी धमति-नाडी+मा+ | नाना (अव्य०) [न+नाम.] 1. अनेक स्थानों पर, खश, धमादेशः, ह्रस्वः, मुम च, प्रक्षे ह्रस्वाभावः ] विभिन्न रीति से, विविध प्रकार से, तरह तरह से (भय आदि) नलिकाकार अंगों को गति देने वाला, 2. स्पष्ट रूप से, अलग, पृथक रूप से, 3. विना नाडिघमेन श्वासेन-का० ३५३,–मः सुनार । (कर्म० करण० या अपा के साथ) नाना नारी माणकम् [न आणकम्, इति ] सिक्का, मोहर लगी हुई निष्फला लोक यात्रा-वोप०, (विश्वं) न नाना कोई वस्तु, एषा नाणकमोषिका मकशिका-मच्छ० शंभुना रामात् बर्षेणाघोक्षजो वरः--तदेव 4. (समास ११२३, याज्ञ० २।२४० । के आरंभ में विशेषण के रूप में प्रयोग) विविध नातिचर (वि.) [न अतिचरः ] जो बहुत लंबी अवधि प्रकार का, तरह तरह का, नाना प्रकार का, विभिन्न, का न हो, जो दीर्घकालीन न हो। विविध---नाना फलैः फलति कल्पलतेव भूमिः---भर्तृ० नातिदूर (वि०) [न अतिदूरः ] जो बहुत दूर न हो, २।४६, भग० ११९, मनु० ९।१४८ । सम० अत्यय अधिक दूरी पर न स्थित हो । (वि.) विभिन्न प्रकार का, बहपक्षी-अर्थ (वि.) नातिवादः [न अतिवादः ] दुर्वचन तथा अपशब्दों का 1. विविध उद्देश्य या लक्ष्यों वाला 2. विविध अर्थों परिहार करना। वाला, (शब्द के रूप में) अनेकार्थक-फारम नाथ् (म्वा० पर० नाथति-कभी-कभी आ० भी) (अव्य०) विविध प्रकार से करके,-रस (वि०) 1. निवेदन करना, प्रार्थना करना, किसी बात की विविध रुचि से युक्त-मालवि०१४,--रुप (वि०) याचना करना (संप्र० अथवा द्विकर्म० के साथ), विभिन्न रूपों वाला, विविध प्रकार का, बहुरूपी, मोक्षाय नाथते मुनि:- वोप०, नाथसे किम पति न नाना प्रकार का,--वर्ण (वि.) भिन्न २ रंगों का, भूभतः—कि० १३१५९, संतुष्टमिष्टानि तमिष्टदेवं -विध (वि.) विविध प्रकार का, तरह तरह का, नार्थति के नाम न लोकनाथम-नै० ३।२५ 2. शक्ति बहुविध,--विधम् (अव्य०) विविध रीति से। रखना, स्वामी होना, छा जाना 3. तंग करना, कष्ट नानांद्रः [ननांद+अण ] ननद का पुत्र । देना 4. आशीर्वाद देना, मंगल कामना करना, शुभा- : नांत (वि.) [न० ब०] अन्तरहित, अनन्त । शोष देना (केवल इस अर्थ में आ०), नाथितशमे--: नांतरीयक (वि०) [न अन्तराविनाभव:-अन्तरा+छ, महावी० १११, (मम्मट निम्नांकित पंक्ति में +कन् ] जो अलग न किया जा सके, अनिवार्य रूप बतलाता है कि यहाँ 'नाथते' स्थान पर 'नाथति' होना से जुड़ा हुआ। चाहिए, क्योंकि यहाँ अर्थ केवल 'निवेदन या प्रार्थना नांत्रम् [नम् +ष्ट्रन् ] प्रशंसा, स्तुति । करना है--दीनं त्वामनुनाथते कुचयुगं पत्रावृतं मा | नांदिकरः, नांदिन् (पुं०) [ नान्दी करोति-कृ+, ह्रस्वः, कृथाः), सर्पिषो नाथते-सिद्धा०। नन्द+णिनि ] नांदी पाठ करने वाला, (नाटक के नाथः [ नाथ् +अच् ] 1. प्रभु, स्वामो, रक्षक, नेन .. नाथे । आरम्भ में मांगलिक वचन बोलने वाला)। कुतस्त्वय्पशुभं प्रजानाम् --- रघु० ५।१३, ३।४५, । नांदी [ नन्दन्ति देवा अत्र नन्द+धा, पुषो० वृद्धि, डीप] त्रिलोक', कैलास आदि 2. पति 3. भारवाही बैल 1. हर्ष, संतोष, खुशी--2. समृद्धि 3. • धर्मानुष्ठान के की नाक में डाला हुआ रस्स । सम० --हरिः पशु । आरम्भ में देवस्तुति 4. विशेषकर, नाटक के आरम्भ नायवत् (वि.) [नाथ --मतुप, वत्वम् ] 1. सनाथ, में मंगलाचरण के रूप में आशीर्वादात्मक लोक या जिसका कोई स्वामी या रक्षक हो-नाथवंतस्तया इलोकों का पाठ, स्वस्त्ययन-आशीर्वचनसंयुक्ता नित्यं लोकास्त्वमनाथा विपत्स्यसे उत्तर० ११४३ 2. परा- । यस्मात्प्रयुज्यते, देवद्विजनपादीनां तस्मान्नांदीति संज्ञिता श्रयी, परवीन । या-देवद्विजनपादीनामाशीर्वचनपूर्विका, नंदति देवता नादः [नद्+घञ ] 1. ऊँची दहाड़, चिल्लाहट, चीख, यस्यां तस्मान्नान्दीति कीर्तिता। सम-करः दे० गरजना, दहाड़ना---सिंहनादः, घन' आदि 2. ध्वनि 'नांदिन'-निनावः हर्षनार-महावी० २।४,–पट: -मा० ५।२० 3. (योगशास्त्र में) अनुनासिक ध्वनि कुएँ का ढक्कन-मुख (वि.) (दिवंगत पूर्वज या जिसे हम चन्द्रबिन्दु (') के द्वारा प्रकट करते हैं। पितर) जिनके लिए नांदीमुख श्राद्ध किया जाय नादिन् (वि.) [नद् +णिनि ] ध्वनि या शब्द करने : (-खम्) धातुम् पितरों की पुण्यस्मति में किया वाला, अनुनादो –अंबुदवृंदनादी रथः-रघु० ३।५९, जाने वाला श्राद्ध, विवाह आदि शुभ उत्सवों से पूर्व १९१५ 2. रांभने वाला, गरजने वाला-खर', सिंह की जाने वाली आरंभिक स्तुति (खः) कये का ढक्कन, आदि। ---वादिन् (पुं०) 1. नाटक में मंगलाचरण के रूप नादेय (वि.) (स्त्री-यो) [ नदी-+ठक् ] नदी में | में नान्दी पाठ करने वाला 2. ढोल बजाने वाला, उत्पन्न, जलीय, समुद्रीय,--यम् सेंधानमक । --श्रावम् दे० ऊपर 'नांदीमुखम् । For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५१८ ) नापितः [न आप्नोति सरलताम्-न+आप+तन्, इट् ] | नाम भूत्वा---दश० १३०, इसी प्रकार 'भीतो नामाव नाई, हजामत बनाने वाला--पंच० ५।१। सम. प्लत्य १०४, मानों भयभीत होकर-परिश्रमं नाम --शाला नाई की दुकान, क्षौरगृह, वह स्थान जहाँ विनीय च क्षणम्-कु० ५।३२ 6. (लोट् लकार के हजामत होती हो। साथ) माना कि, यद्यपि, हो सकता है, अच्छानापिप्यम् [ नापित+व्या ] नाई का व्यवसाय । तद्भवतु नाम शोकावेगाय-का० ३०८ करोतु नाम नाभिः (पुं०, स्त्री०) [ नह+इञ , भश्चान्तदेशः ] सूंडी नीतिज्ञो व्यवसायमितस्तत:-हि० २११४, यद्यपि ----गंगावर्तसनाभि भि:--दश०२, निम्ननाभिः-मेघ०. वह स्वयं प्रयत्न कर सकता है, इसी प्रकार-मा० ८३, रघु० ६५२, मेघ० २८ 2. नाभि के समान गर्त १०७, श० ५।८ 7. आश्चर्य-अंधो नाम पर्वत--(पुं०) 1. पहिए की नाह पंच० १६८१ 2. केन्द्र, मारोहति-गण. 8. रोष या निदा-ममापि नाम किरणबिन्दु, मुख्य बिंदु 3. मुख्य, अग्रणी, प्रधान दशाननस्य परैः परिभव:-गण, (यह वाक्य निंदा----कृत्स्यनाभिनुपमंडलस्य-रघु० १८५२०4. निकट सूचक भी हो सकता है), किं नाम विस्फुरं शस्त्राणिकी रिश्तेदारी, बिरादरी, (जाति आदि) का समुदाय उत्तर. ४, ममापि नाम सत्वरभिभूयते गहाः --श. जैसा कि 'सनाभि में 5. सर्वोपरि प्रभु-रघु० ९।१६ ६; नाम शब्द प्रायः प्रश्न वाचक सर्वनाम तथा उससे 6. निकटसंबंधी 7. क्षत्रिय 8. जन्मभूमि,-भिः (स्त्री०) व्युत्पन्न 'कथम्' 'कदा' आदि अन्य शब्दों के साथ कस्तुरी (अर्थात् मृगनाभि) (विशे० बह० समास के प्रयुक्त होकर निम्नलिखित अर्थ प्रकट करता हैअन्त में प्रयुक्त 'नाभि' शब्द बदल कर 'नाम' बन 'संभवतः' 'निस्सन्देह', 'मैं जानना चाहँगा'--अयि जाता है) जैसा कि 'पद्मनाभः' में) । सम० ---आवर्तः कथं नामैतत्-उत्तर० ६, को नाम राज्ञां प्रियःनाभि का गर्त,-जा-जन्मन् (पु.)-भूः ब्रह्मा के पंच. १४१४६, को नाम पाकाभिमुखस्य जंतुराणि विशेषण,-नाडी,-नालन् 1. नाभिरज्जु, जन्मरज्जु. देवस्य पिधातुमोष्टे---उत्तर० ७।४।। नाल 2. नाभि का विदारण । नामन् (नपुं०) [म्नायते अभ्यस्यते नम्यते अभिधीयते नाभिल (वि.) [ नाभिरस्त्यस्य-लच् ] नाभि से संबद्ध, अर्थोऽनेन वा म्ना+मनिन् नि. साधुः] 1. नाम, या नाभि से आने वाला। अभिधान, वैयक्तिक नाम (विप० गोत्रम्) किन भाभीलम् [ नाभि+गी-+ला+क] 1. नाभि का गर्त नामैतदस्याः --- मुद्रा० १, नाम ग्रह संबोधित करना 2. पीडा, 3. विदीर्ण नाभि ।। या नाम लेकर बुलाना, नामग्राहमरोदीत्सा भटि० नाम्य (वि.) [ नाभि-यत् ] नाभि से संबंध रखने वाला, ५।५, नाम क या दा, नाम्ना या नामतः कृ नाम नाभि से आने वाला, नाभि में रहने वाला, नाल से रखना, पुकारना, नाम लेकर बुलाना-चकार नाम्ना जुड़ा हुआ,-म्यः शिव का विशेषण।। रघुमात्मसंभवम् रघु० ३।२१, ५।३६, तौ कुशलबौ नाम (अव्य०) [नम् +णिच - ड] निम्नांकित अर्थों में चकार किल नामतः--१५।२२ चंद्रापीड इति नाम प्रयुक्त होने वाला अव्यय-1. नामधारी, नामक, नाम चक्रे का० ७४, मातरं नामतः पृच्छेयम् श० ७ से-हिमालयो नाम नगाधिराज:--कु० १, तन्नन्दिनी 2. केवल नाम --संतप्तायसि संस्थितस्य पयसो सुवृत्तां नाम-दर०७ 2. निस्सन्देह, निश्चय ही, नामापि न ज्ञायते-- भर्त० २।६७, 'नाम भी नहीं' सचमुच, वास्तव में, यथार्थ में, अवश्य, वस्तुतः-मया अर्थात् 'कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता है' आदि नाम जितम्--वेणी. २०१७, विनीतवेषेण प्रवेष्टव्यानि 3. (ब्या० में) संज्ञा, नाम (विष० आख्यात) तन्नाम तपोवनानि नाम-श०१, आश्वासितस्य मम नाम येनाभिदधाति सत्त्वं-या-सत्त्वप्रधानानि नामानि--विक्रम० ५।१६, जब कि मैं जरा आश्वस्त हुआ निरु. 4. शब्द, नाम, समानार्थक शब्द-इति वृक्ष 3. संभवतः, कदाचित्-प्रायः 'मा' के साथ - अये नामानि 5. सामग्री (विप० गुण)। सम० - अंक पदशब्द इव मा नाम रक्षिणः .. मृच्छ० ३, कदाचित (वि.) नाम से चिह्नित-रघु० १२।१०३,--अनु. (परन्तु मुझे आशा नहीं) रखवालों का--मा नाम शासनम्,-अभिधानम् 1. किसी के नाम की घोषणा अकार्यं कुर्यात्- मच्छ० ४ 4. संभावना-तवैव करना 2. शब्द संग्रह, शब्दकोष,- अपराधः (किसी नामास्त्रगतिः - कु० ३।१९, त्वया नाम मनि विमान्यः प्रतिष्ठित व्यक्ति को) नाम लेकर गाली देना, नाम -श०५।१९, क्या यह संभव है (निंदात्मक ढंग से), लेकर बुलाना अर्थात तिरस्कार करना,---आवली इसका प्रयोग 'अपि' के साथ बहधा निम्नांकित अर्थ किसी देवता की) नाम-सूची,--करणम्,-कर्मन् में होता है-'मेरी इच्छा है क्या ही अच्छा हो' (नपुं०) 1. नाम रखना, जन्म होने के पश्चात् क्या यह संभव है कि आदि, दे० 'अपि' के अन्तर्गत बालक का नामकरण करना 2. नाम मात्र का अनु5. झूठमुठ का कार्य, बहाना (अलीक), कार्तातिको बंध,-प्रहः नामोल्लेख करना, नाम लेकर संबोधित For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०)रम् मनुष्यों को आदि), पाता धातू (जैसे पार्यायते, वृषस्यात ( ५१९ ) करना, नामोच्चारण, नाम याद करना --पुण्यानि के लिए दे० सा० द० ९७–११२, और रसमं० नामग्रहणान्यपि महामुनीनाम् --४३, मनु० ८।२७१, ३---९४, तु० 'अन्यस्त्री' भी) रघु० ७४१,-त्यागः नाम छोड़ना, स्वनामत्यागं नारः [ नर+अण् ] जल (स्त्री० भी-तु० मनु० १॥ करोमि पंच० १, मैं अपना नाम छोड़ दूंगा', धातुः १०)-रम् मनुष्यों की भीड़ या सम्मर्द । सम० जीवनम् सोना। आदि), धारक,-धातिन् (वि०) नाम मात्र रखने नारक (वि०) (स्त्री०-को) [ नरक+अण् ] नारकीय, वाला, नाम मात्र का, नाममात्र-पंच० २१८४,- नरकसंबंधी, दोजखी,-क: 1. नारकीय प्रदेश, दोजख धेयम् नाम, अभिधान,-वनज्योत्स्नेति कृतनामधेया नरकवासी। श० १, किं नामधेया सा-मालवि० ४, रघु० ११४५, ] नारकिक, नारकिन, नारकीय (वि०) [नरक+ठक, १०१६७, ११३८, मनु० २।३०,-निर्देश: नाम से _इनि, छ वा ] 1. नरक का, दोजखी 2. नरक या संकेत---मात्र (वि०) केवल नामधारी, नाममात्र दोजख में रहने वाला। का, नाम के लिए, पंच०११७७, २१८६,-माला,- नारंगः [ न+अंगच्, वृद्धि] 1. संतरे का पेड़ 2. लुच्चा, संग्रहः नामों की सूची, (संज्ञाओं की) शब्दावली, लम्पट 3. जीवित प्राणी 4. युग्गल,-गम्, --गकम् --मुद्रा मोहर लगाने की अंगूठी, नामांकित अँगूठी- 1. संतरे, सद्योमुंडित मत्तहूणचिबुकप्रस्पर्धिनारंगकम् उभे नाममुद्राक्षराण्यनुवाच्य परस्परमवलोकयत:--- 2. गाजर। श० १,..--लिगम् संज्ञाओं का लिंग अनुशासनम् संज्ञा मारवः [नरस्य धर्मो नारं, तत् ददाति--दा-+क] शब्दों के लिंगों की नियमावली,--वजित (वि.) प्रसिद्ध देवर्षि का का नाम, दिन ऋषि, सन्त महात्मा 1 नाम रहित 2. मूर्ख, बेवकूफ, वाचक (वि०) जिसने देवत्व प्राप्त किया | देवर्षि नारद ब्रह्मा के दस नाम बतलाने वाला (कम्) व्यक्ति वाचक संज्ञा . मानस पूत्रों में से एक है जो उसकी जंघा से उत्पन्न शेष (वि०) जिसका केवल नाम ही बाकी रह गया हो, हए, यह वेदों के संदेशवाहक के रूप में चित्रित किया जिसका नाम ही जीवित हो, स्वर्गीय-उत्तर०२।६। गया है जो मनुष्यों को देवों का संदेश देते तथा नामिः [नम् + इञ] विष्णु की उपाधि ।। मनुष्यों का संदेश देवों तक पहुंचाते थे। यह देवता नामित (वि.) [नम् +णिच्+क्त] झुका हुआ, विनम्र, और मनुष्यों में कलह के बीज बोने के कारण 'कलिविनीत । प्रिय' कहलाते थे, कहा जाता है कि 'वीणा' का नाम्य (वि०) [नम् --णिच्+क्त] लचकदार, लचीला, आविष्कार इन्होंने ही किया था, यह एक आचारलचकीला। संहिता के भी प्रणेता है जिसका नाम इन्हीं के नाम नायः नी+घञ 1. नेता, मार्ग दर्शक 2. मार्ग दिख- पर 'नारद-स्मृति' है ] । लाने वाला, निर्देशक 3. नीति 4. उपाय, तरकीब । | नारसिंह (वि.) [नरसिंह--अण ] नरसिंह से संबंध नायकः [ नी+वल ] 1. मार्गदर्शक, अग्रणी, संवाहक 2. रखने वाला,---हः विष्णु का विशेषण । मुख्य, स्वामी, प्रधान, प्रभु 3. गण्यमान्य या प्रधान नाराचः [ नरान् आचमति ---आ+चम् +3 स्वार्थे अण्, पुरुष, पूज्य व्यक्ति सेनानायक: आदि 4. सेनानायक, नारम् आचामति वा तारा०] 1. लोहे का बाण, सेनापति 5. (अलं० शा० में) नाटक या काव्य का तत्र नाराचदुर्दिने-रघु० ४।४१ 2. बाण-कनकनायक, (सा० द० के अनुसार नायक चार प्रकार के नाराचपरंपराभिरिव-का० ५७ 3. जल हाथी। है-धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित और धीर- नाराचिका, भाराचो नाराच+हन+टाप, नाराच+ प्रशान्त, इन चारों के कुछ अवान्तरभेद होने के अच् + ङीष् ] सुनार को तराजू, (कसौटी रूपी कारण नायक के भेद संख्या में ४० होते हैं, सा० द. तराजू)। ६४।७५, रागमंजरी केवल तीन भेदों का (पति, उप- | नारायणः [ नारा अयनं यस्य ब० स० ] 1. विष्णु की पति और वैशिक ९५३११० उल्लेख करती है) 6. उपाधि (मनु० १११० में इसको व्युत्पत्ति यह दी है हार के बीच का मुख्य मणि 7. निदर्शन या मुख्य आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः, ता यदउदाहरण-दर्शते स्त्रीषु नायका: । सम-अधिप: स्यायनं पूर्व तेन नारायण: स्मृतः 2. एक प्राचीन राजा, प्रभु। ऋषि का नाम जो 'नर' के साथी थे तथा जिन्होंने नायिका [ नायक+टाप, इत्वम् ] 1. स्वामिनी 2. पत्मी अपनी जंघा से उर्वशी को पैदा किया-तु० उरुद्भवा 3. किसी नाम या नाटक को नायिका (सा.द. नरसवस्य मनेः सुरस्त्री-- विक्रम० ११२, दे० 'नरके अनसार नायिका के तीन भेद है--स्सा या स्टीया, नारायणं 'नर' के अन्तर्गत--णी 1. धन की देवी अन्या या परकीया तथा साधारण स्त्रो आगे वर्गीकरण लक्ष्मी का विशेषण 2. दुर्गा का विशेषण । For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२० ) नारोकेरः,--ल: [ किल+घञ् =केलः, नार्याः केल: नाव्य (वि.) नावा तायं नौ-यत] 1. जहाँ किश्ती या -- १० त०, पृषों० ह्रस्वः, अथवा नल+इण् लस्य जहाज से जाया जा सके, (नदी आदि) जिसमें जहाज र:- नारि, केन जलेन इलति--इल+क कर्म० . चलाया जा सके-- नाव्याः सुप्रतरा नदी:---रघु० स०] नारियल---नारिकेलसमाकारा दृश्यते हि ४१३१, नाव्यं पयः केचिदतारिषुर्भुजः-शि० १२१७६ सुहृज्जनाः-हि० ११९४ (यह शब्द इस प्रकार । 2. प्रशंसा के योग्य - व्यम् नयापन, नूतनता । (नारिकेलि-ली, नारिकेर-ल, नाडि (डी) केर, नाशः [नश्+घा] 1. ओझल होना-गता नाशं तारा नालिकेर, नालिकेलि-ली) भी लिखा जाता है। उपकृतमसावाविव जने-मच्छ० ५.२५ 2. भग्नाशा, नारी[न-नर वा जातौ ङीष नि०] 1. स्त्री,-अर्थतः ध्वंस, वर्बादी, हानि-भग० २।४० रघु० ८।८८, पूरुषो नारी या नारी सार्थत: पुमान् ...मृच्छ० ३।२७। १२।६७, इसी प्रकार वित्त बुद्धि° 3. मृत्यु ... सम०---तरंगक: 1. जार, उपपति 2. लम्पट, दूषणम् ' मुसीबत, संकट 5. परिहार, परित्याग 6. भगदड़, स्त्री का दुर्व्यसन (वे हैं- पानं दुर्जनसंसर्गः पत्या च | पलायन । विरहोऽटनम्, स्वप्नोभ्यगृहवासश्च नारीणां दूषणानि | नाशक (वि०) नश्+णिच् +ण्वुल] विध्वंसक, नाश षट्-मनु० ९।१३,-प्रसंगः कामासक्ति, लम्पटता, करने वाला। --रत्नम् स्त्रीरत्न, श्रेष्ठ स्त्री। नाशन (वि०) (स्त्री०--नी) [नश् +-णिच् + ल्युट्] नायंगः [ नारीणामङ्गमिव शोभनमंग यस्य | संतरे का नष्ट करने वाला, नाश कराने वाला, हटाने वाला पेड़। (समास में) --नम् 1. विध्वंस, बर्बादी 2. दूर हटाना, नाल (वि०) [ नलस्येवम् -... अण् ] नरकुल का बना हुआ दूर कर देना, बाहर निकाल देना 4. नष्ट होना, .-लम् 1. पोला डंठल, विशेष कर कमल की डंडी; मृत्यु। विकचकमल: स्निग्धबड्यनाल:-मध० ७६, रघु० नाशिन (वि.) (स्त्री-नी)/नश् +-णिनि 1. विध्वंसक, ६।१३, कु० ७८९, (पुं० भी इस अर्थ में) 2. शरीर नाश करने वाला, हटाने वाला 2. नष्ट करने वाला, की नलिकाकार वाहिनी, घमनी 3. हरताल 4. मूठ, नष्ट होने योग्य –भग० २।१८ मनु० ८।१८५ । दस्का --ल: नहर, नालो। नाष्टिकः [नष्ट+ठ ] खोई हुई वस्तु का स्वामी। नालंबी (स्त्री०) शिव की वीणा।। नासा नास्- अ+टाप] 1. नाक ---स्फुरदधरनासापुटतया नाला [ नल+ण+टाप् ] पोला डंठल, विशेषकर कमल उत्तर० १।२९, भग० ५।२६ 2. हाथी की सैंड नाल । 3. दरवाज़े की चौखट को ऊपर की लकड़ी। सम० नालिः, -----ली (स्त्रो०) नल-+-णिच् + इन्, नालि+ अग्रम् नाक का अग्रभाग, मा० .१११, --छिद्रम्,.. ङोष्] । शरीर की नलिकाकार वाहिनी, धमनी 2. रन्धम्,... विवरम् नथुना,-- दारु (नपुं०) दरवाजे की पोलाडंठल, विशेषकर कमलनाल, 3. २४ घंटे का नौखट की ऊपर बाली लकड़ी, -- परित्रावः नाक का समय, घड़ी 4. हाथी के कानों को बींधने का बहना, सर्दी लगना,-पुटः,-पुटम् नथुना,--वंशः नाक उपकरण 5. नहर, नाभी 6. कमलफूल। की हड्डी, स्त्रावः सर्दी से नाक का बहना। नालिक: [नलमेव नालमस्त्यस्य ठन्] भैसा-का 1. कमल ! नासिकंघय (वि.) [नासिका+धे-- खश्, मुम, ह्रस्वश्च ' की डंडी 2. नली 3. हाथी का कान बींधने का नाक के द्वारा पीने वाला। उपकरण, -कम् 1. कमल का फुल 2. एक प्रकार का | नासिका | नास+ण्वुल-टाप, इत्वम् ] नाक, दे० 'नासा'। फंक से बजने वाला वाद्ययंत्र, बांसुरी। सम०-मल: नाक से निकलने वाला श्लेष्मा। नालिकेर, नालिकेलि -ली दे० नारिकेर आदि । नासिक्य (वि.) [नासिकायच] 1. अनुनासिक 2. नाक नालीक: [नाल्यां कायति-क+क तारा०] 1. बाण 2. में होने वाला, क्यः अनुनासिक ध्वनि,-क्यम् नाक । भाला, नेजा 3. कमल 4. कमल की रेशेदार डंडी 5. | नासीरम् | नासाय ईत ईर-+क तारा०] सेना के सामने कमल के फूलों का रेशेदार डंठल । आगे बढ़ना या लड़ना --र: 1. (सेना का) अग्रभाग नालीकिनी [नालोक -इनि+डीप्] 1. कमल फूलों का । -नासोरचरयोर्भटयोः महावी०६, नै० ११६८2 गुच्छा , समूह 2. कमलों का सरोवर । सेना की पंक्ति के आगे चलने वाला योद्धा। नाविकः [नावा तरति-ठन् जहाज़ का कर्णधार, चालक | नास्ति (अव्य०) न+अस्ति] 'यह नहीं है' अनस्तित्व, -- अख्यातिरिति ते कृष्ण मग्ना नौ विके त्वयि, जैसा कि 'नास्तिक्षीरा' में। सम०-वादः 'सर्वोपरि नाविकपुरुषे न विश्वास:--महा० 2. पौतवाहक, शासक या परमात्मा का अनस्तित्व' सिद्धांत, नास्तिमल्लाह 3. नौयात्री। कता, अनास्था..-बौद्धेणव सर्वदा नास्तिवादशरेण नागिन् (पुं०) नौ+ इनि] केवल, मल्लाह । -का०४९ । For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५२१ ) नास्तिक ( वि० ) ( नास्ति परलोकः तत्साक्षीश्वरो वा इति । निःसारणम् [ निर् + सृ + णिच् + ल्युट् ] 1. निष्कासन, निकाल बाहर करना 2. घर से निकलने का मार्ग, मतिरस्य उन्] याकः अनीश्वरवादी, अविश्वासी, जो वेदों की प्रामाणिकता, पुनर्जन्म और परमात्मा या विश्व के विधाता के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता है-- शि० १६।७ मनु० २।११, १२२ । नास्तिक्यम् [ नास्तिक + ष्णञ्ञ्] नास्तिकता, अनास्था, पाखंडधर्म । नास्तिक: (पुं०) आम का वृक्ष । नास्यम् [नासा + यत् ] नाक की रस्सी, चालू बैल की नकेल । नाहः [नह+घञ्ञ, ] 1. बंधन, निग्रह 2. फंदा जाल 3. मलावरोध, कोष्ठबद्धता । नाहुष:, - षि: [ नहुषस्यापत्यम् - नहुष + अण, इण् वा ] ययाति राजा की उपाधि । पूर्व नि ( अव्य० ) [नी + डि] ( प्राय: संज्ञा या क्रिया के उपसर्ग के रूप में प्रयुक्त होता है, क्रिया विशेष या संबंधबोधक अव्यय के रूप में विरल प्रयोग ), गण० के अनुसार, इस शब्द के निम्नांकित अर्थ है -- 1. निचान, नीचे की ओर गति निपत् निषद् 2. समूह, या संग्रह, निकर निकाय 3 तीव्रता - निकाम, निगृहीत 4. हुक्म, आदेश, निदेश 5. सातत्य, स्थायित्व - निविशते 6. कुशलतानिपुण 7 नियन्त्रण, निग्रह, निबंध 8. सम्मिलन (में, अन्तर्गत) निपीतमुदकम् 9. सान्निध्य, सामीप्य निकट 10. अपमान, बुराई, हानि - निकृति, निकार 11 दिखलावा, निदर्शन 12. विश्राम, निवृत्ति 13 आश्रय शरण 14. सन्देह 15. निश्चय 16. पुष्टीकरण 17. ( दुर्गादास के अनुसार ) फेंकना, देना आदि । निःक्षेपः [ निर् + क्षिप् । घञ् ] 1. फेंकना, भेज देना 2. व्यय करना । निःश्रयणी, निःश्रेणि: (स्त्री० ) [ निःनिश्चितं श्रीयते आमीयते अनया निर् + श्रि + ल्युट् +- ङीपू, निश्चिता श्रेणिः सोपानपक्तिः यत्र ब० स०] सीढ़ी, जीना रघु० १५/१०० । निःश्वासः, निश्श्वास: [ निर् / श्वय् घञ्ञ ] 1. साँस बाहर निकालना, बहिःश्वसन 2. आह भरना, लम्बा साँस लेना, श्वास लेना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निःसरणम् [ निर् + सृ :- ल्युट् ] 1. बाहर जाना, बहिर्गमन 2. निकास द्वार, दरवाजा 3. महाप्रयाण, मृत्यु 4. उपाय, तरकीब, उपचार 5. मोक्ष । निःसह ( वि० ) [ निर् + सह खल ] सहन करने या रोकने के अयोग्य असत्य 2. निःशक्त, बलहीन, हतोत्साह, म्लान, थान्त, अवि विरम निःसहासि जाता इसी प्रकार मा० २, ७, उत्तर० ३ 3. असहनीय, जो सहा न जा सके, अनिवार्य । मा० २. ६६ द्वार, दरवाजा | निःस्रव: [ निर् + स्रु + अप् ] शेष, बचत, फाल्तू | निःस्राव: [ निर् + स्तु ] 1. व्यय, खर्च करना, अर्थव्यय 2. चावलों का मांड । free ( fao ) [नि समीपे कटति नि + कट् + अच् ] नजदीकी, समीपस्थ, अदूरस्थ, आसन्न, टः, टम् समीप्य ('नजदीक ' 'पास' 'समीप' अर्थों को क्रिया विशेषण के रूप में प्रकट करने के लिए 'निकटे' प्रयुक्त होता हैवहति निकटे कालस्रोतः समस्तभया वहम् शा० ३।२ ) निकर: [ नि + कृ + अच्, अप् वा ] 1. ढेर, चट्टा 2. झुण्ड, समुच्चय, संग्रह --- पपात स्वेदांबुप्रसर इव हर्षाश्रुनिकरः - गीत० ११, शि० ४।५८, ऋतु०६।१८ 3. गठरी 4. रस, सार, सत 5. उपयुक्त उपहार, दक्षिण 6. निधि, खजाना । निकर्तनम् [ नि + कृत् + ल्युट् ] काट डालना । निकर्षणम् [ नि | कृप । ल्युट् ] विश्राम या बिहार के लिए खुला स्थान, नगर में या नगर के निकट खेल का मैदान 2. दालान 3. पड़ोस 4. जमीन का टुकड़ी जो अभी जोता न गया हो । free: [ नि | कष् + घ, अच् वा ] 1. कसौटी, निकष-प्रस्तर, निकषे हेमरेखेव रघु० १७१४६, महाघी० १।४ 2. ( आलं० ) कसौटी का काम देने वाली कोई वस्तु, परीक्षण -- नन्वेष दर्पनिकषस्तव चन्द्रकेतुः उत्तर० ५)१०, आदर्श: शिक्षितानां सुचरितनिकष :- मृच्छ० ११४८, दश० १, का० ४४ 3. कसौटी पर बनी सोने की रेखा कनकनिकष रुचिशुचिवसनेन श्वसिति न सा हरिजन हसनेन - गीत० ७, कनकनिकषस्निग्धा विद्युप्रिया न ममोवंशी - विक्रम ० ४।१, ५/१९ । सम० ---उपल:, - प्रावन् (पुं०), पाषाण: कसौटी निकषप्रस्तर -- तत्प्रेम हेमनिकषोपलतां तनोति गीत० ११, तत्त्वनिकषग्रावा तु तेषां विपद् हि० १२१०, २१८०० freer [ति | कष् + अ + टाप् ] 1. रावण आदि राक्षसों की माता, (अव्य० ) 2. निकट, अदूर, समीप, पास ( कर्म० के साथ - निकषा सौधभित्तिम्---दश०, विलंध्य लंका निकषा हनिष्यति - शि० १।६८ | सम० -आत्मजः राक्षस | निकाम ( वि० ) [ नि + कम्+घञ्ञ ] 1. पुष्कल, विपुल, वहुल — निकामजलां स्रोतोवहां श० ६।१६, 2. इच्छुक - म, मम् कामना, चाह, मम् (अव्य० ) 1. यथेच्छ इच्छा के अनुसार 2. आत्मसंतोषार्थ, मनभर कर, रात्रौ निकामं शयितव्यमपि नास्ति श० २, 'मैं रात्रि को भी आराम से नहीं सो पाता 3. अत्यंत, अत्यधिक — निकामं क्षामांगी - मा० २३, ( इसके For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२२ ) अन्तिम 'म' का लोप करके, इसे समास के प्रथमखण्ड । जालसाजी, घोखा--अनिकृतिनिपूणं ते चेष्टितं मानके रूप में भी बहुधा प्रयुक्त किया जाता है निकाम- शौण्ड ---वेणी० ५।२१, कि० ११४५ 3. तिरस्कार, निरंकुश:--गीत० ७, कु० ५।२३, शि० ४।५४ । अपराध, अपमान-मुद्रा० ४।११ 4. गाली, झिड़की निकायः [नि+चि--घा, कुत्वम् ] 1. ढेर, संघटन, 5. अस्वीकृति, निराकरण 6. गरीबी, दरिद्रता । श्रेणी, समुच्चय, झुण्ड, समूह, महावी० ११५० सम-प्रज्ञ (वि०) दुष्ट, दुर्मना। 2. सत्संग या विद्वत्सभा, विद्यालय धार्मिक परिषद् निकंतन (वि.)-नी) [मि+कृत्+ल्युटी काट डालना, 3. घर, आवास, निवास-स्थल-कशीनिकायः आदि नष्ट करना, विरहिनिकेतनं कृतमुखाकृति केतकिदंतुरि 4. शरीर 5. उद्देश्य, चांदमारी, निशाना 6. परमात्मा। ताशे (वसंते)-गीत० ११-मम् काटना, काट निकाय्यः [नि+चि+ण्यत्, नि०] निवास, आवास, डालना, नष्ट करना 2. काटने का उपकरण, एकेन घर--न प्रणाय्यो जनः कच्चिन्तिकाय्यं तेऽधितिष्ठति- नखकंतनेन सर्व कार्णायसं विज्ञातं स्यात्-शारी। भट्टि०६।६६ । निकृष्ट (वि.) [नि- कृष्+क्त ] 1. नीच, अधम, निकारः [नि++घञ्] 1. अनाज फटकना 2. ऊपर कमीना 2. जातिबहिष्कृत, घृणित 3. गंवारू, देहाती। उठाना 3. वध, हत्या 4. अनादर, ताबेदारी | निकेतः [निकेतति निवसति अस्मिन् -- नि+कित्+घा] 5. अवज्ञा, क्षति, अनिष्ट, अपराध'; तीणो निकारा घर, आवास, भवन, आलय-श्रितगोकर्णनिकेतमीर्णवः---वेणी० ६।४३, ४४१६ 6. गाली, बुरा भला श्वरम् - रघु० ८।३३, १४१५८, भग० १२०१९, कु. कहना, अवमान 7. दुष्टता, द्वेष 8. विरोध, वचन ५।२५, मनु० ६।२३, शि० ५।२६ । विरोध। निकेतनः [ निकित + ल्युट ] प्याज--नम भवन, घर, निकारणम् [नि++णिच् + ल्युट् ] वध, हत्या। आलय, सिंजानां मंजुमंजीर प्रतिवेश निकेतनम् - गोत० निकाशः,-सः [नि+काश् (स्)+घञ ] 1. दर्शन, ११, मनु० ६।२६,११।१२८, कि० १।१६ । दृष्टि 2. क्षितिज 3. सामीप्य, पड़ौस 4. समानता, निकोचनम् [नि+कुच-+ ल्युट् ] सिकुड़न, सिमटन । समरूपता (समास के अन्त में) मा० ५।१३ । निक्वणः, निक्वाणः [नि+क्यण् - अप, घञ वा ] निकाषः [नि कंप+घञ ] खुरचना, रगड़ना-कि० 1. संगीतस्वर 2. ध्वनि, स्वर । निक्षा [ निश् +अ+टाप् | जू का अंडा, लीख ('लिक्षा' निकुंचनः [नि+-कुंच+ल्युट [ एक तोल जो ११४ कुदव का अशुद्ध रूप)। के बराबर है (आउ तोले के बराबर तोल)। निक्षिप्त (भू० क० कृ०) [नि---क्षिप्+क्त ] 1. फेंका निकुंजः,-जम् [नि+कु+जन्+ड, पृषो०] लतामण्डप, हुआ, डाला हुआ, रक्खा हुआ 2. जमा किया हुआ, लतागृह, कुंज पर्णशाला -यमुनातीरवानीरनिकुंजे न्यस्त, धरोहर के रूप में रक्खा हुआ 3. भेजा हुआ, मंदमास्थितम्---गीत०४।२,११, ऋतु० ११२३ ।। पहुँचाया हुआ 4. अस्वीकृत, परित्यक्त। निकुम्भः [नि-कुम्भ-+-अच् ] 1. शिव के एक अनुचर निक्षेप | नि--क्षिप+घञ ] 1. फेंकना, डालना (कर्म० का नाम - रघु० २।३५ 2. सुन्द और उपसुन्द के के साथ), अलं मान्याना व्याख्यानेष कटाक्षनिक्षेपेणपिता का नाम । सा० द० २ 2. धरोहर, न्यास, अमानत -पंच० निकुरं (5) बम् [नि+कुर+अम्बच्, उम्बच् वा ] झुंड, | १३१४, मनु० ८।४ 3. किसी के भरोसे पर या संग्रह, पुंज, समुच्चय--लतानिकुळंबम्-गीत० ११, । क्षतिपूर्ति के निमित्त, विना मोहर लगाये रक्खी हुई किरण आन० २०, चिकुर° ४३ । । जमा, खुली धरोहर- समक्षं तु निक्षेपणं निक्षेपः निकुलीनिका [नि+कुलोन+कन्+टाप, इत्वम् ] अपने ---- याज्ञ० २१६६ पर मिता० 4. भेजना 5. फेंक देना, कुल की विशेष कला, खांदानी हुनर, जो जन्म से परित्याग करना 6. मिटाना, सुखाना। मनुष्य को उत्तराधिकार में प्राप्त होती है, किसी । निक्षेपणम् [ नि+-क्षिप् + ल्युट ] 1. डालना, पैरों के नीचे घराने की परंपरागत विशेष कला या दस्तकारी। रखना कु० १।३३ 2. किसी वस्तु को रखने का निकृत (भू० क. कृ०) [नि+कृ+क्त ] 1. विजित, उपाय । निरुत्साहित, दीन 2. तिरस्कृत, क्षुब्ध--उत्तर० ६.१४ निखननम् [ नि+खन्+ ल्युट् ] खोदना, गाड़ना- जैसा 3. प्रवंचित, धोखा खाया हुआ 4. हटाया हुआ कि स्थूणानिखननन्याय । 5. कष्टग्रस्त, क्षतिग्रस्त 6. दुष्ट, बेईमान 7. अधम, निखर्व (वि.) [नितरां खर्वः प्रा० स०] ठिंगना- धम नीच, कमीना। दस हजार करोड़। निकृतिः (वि.) नि--कृ--क्तिन अधम, बेईमान, दाट निखात (भू० क० कृ०) [नि+खन --क्त| 1. खोदा (स्त्री०--तिः) 1. अधमपना, दुष्टता 2. वेईमानी, हुआ, खोदकर निकाला हुआ 2. जमाया हुआ, (खूटे For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निखिल की भांति) खोदकर गाड़ा हुआ, अन्दर गड़ाया हुआ- डकारा हुआ 2. पूर्ण रूप से निगला हुआ, या लय शल्यं निखातमुदहारयतामरस्तः -रघु० ९१७८ किया हुआ, छिपा हुआ, गुप्त, अतएव आपूरणीय .. अष्टादशद्वीपनिखातयूपः --- ६।३८, गाढं निखात इव मे उपमानेनांतनिगोर्णस्योपमेयस्य यदध्यवसानं सका--- हृदये कटाक्षः-मा० १२९ 3. गाड़ा हुआ, दफ़नाया काव्य० १०॥ हआ। निगूढ (वि०) नि+गुह+क्त] 1. छिपाया हुआ, गुप्त नवत्तं खिलं शेषो यस्मात ब० स०] "-शि० १३।४०, 1. रहस्य, निजी-तुम् (अव्य०) संपूर्ण, पूरा, समस्त, सब-प्रत्यक्षं ते निखिलमचिराद चुपचाप, निजी ढंग से ।। भ्रात रुक्तं मया यत्--मेघ ० ९४ । निगूहनम् [नि+गुह + ल्युट] दुराना, छिपाना ! निगड (वि.) [नि+गल+अच् लस्य डः] बेड़ी से बंधा निग्रंथनम् [नि+ग्रंथ् + ल्युट्] वध, हत्या ! हुजा, शृंखलित, वृद्धस्य निगडस्य च-मनु० ४।२१०, | निग्रहः [नि+ग्रह,+अप्] 1. रोक रखना, नियंत्रित ---,-म 1. हाथी के पैरों के लिए लोहे की करना, दमन करना, वश में करना-जैसा कि जंजीर, बद्धापराणि परितो निगडान्यलावीत्-शि० 'इन्द्रियनिग्रह' में-मनु० ६.९२, याज्ञ. १२२२२ ५।४८, भामि० ४।२० 2. हथकड़ी, बेड़ी। भर्तृ० १६६६, भग० ६।३४ 2. दबाना, रोकना, निगडित (वि.) [निगड-+-इतच्] हथकड़ी से बंधा हुआ, कुचलना- मनु० ६७१ 3. दौड़ कर पकड़ लेना, बेड़ी से जकड़ा हुआ, शृंखलित, बांधा हुआ। अधिकार में कर लेना, गिरफ्तार करना---त्वन्निग्रहे निगणः [निगरण, पृषो० साधुः] यज्ञाग्नि को धूआँ ! तु वरगात्रिन मे प्रयत्न:-मुच्छ० श२२, शि० २।८८ निगदः, निगादः नि+गद् +अप, घा वा] 1. सस्वर 4. कैद करना, कारागार में डालना 5. पराजय, पाठ, स्तुति पाठ 2. ऊँचे स्वर से बोली गई प्रार्थना पछाड़ देना, परास्त करना 6. हटा देना, नष्ट करना, 3. भाषण, प्रवचन 4. अर्थ सीखना -यदधीतमविज्ञातं दूर करना---रघु० ९।२५, १५।६, कु० ५।५३ निगदेनैव शब्द्यते--निरु० 5. उल्लेख, उल्लेखीकरण - 7. रोगों की रोकथाम, चिकित्सा 8. दण्ड, सजा इति निगदेनैव व्याख्यातम् ! (विप० अनुग्रह) निग्रहानुग्रहस्य कर्ता-पंच० १, निगवितम् [नि-गद्+क्त] प्रवचन, भाषण ! निग्रहोऽप्ययमनुग्रहीकृतः-रघु० १११९०, ५५, १२॥ निगमः [नि+गम+घञ वेद, वेद का मल पाठ-साढ ५२, ६३ 9. डांट, फटकार, गहा 10. अरुचि, नाप साढ्वा साढेति निगमे---पा० ६३।११३, ७।२।६४ संदगी, जुगुप्सा 11. (न्या० में) तर्कगत दोष, त्रुटि, वैदिक उद्धरण, वेद का वाक्य तथापि च निगमो अनुमान-प्रक्रिया में भूल (जिसके कारण हेतुवादी भवति (निरुक्त में बहुधा प्रयुक्त) 3. सहायक ग्रंथ, परास्त हो जाता है) तु० मुद्रा० ५।१० 12. मूठ उपवेद, वेद भाष्य, मन० ४११९ तथा उसका कुल्ल . 13. सीमा, हृद। भाप्य 4. वेद का विधि वाक्य, ऋषियों के वचन | निग्रहण ( वि० ) [ नि-+-ग्रह- ल्युट ] पीछे कर 5. (शब्द का मूल स्रोत) धातु 6. निश्चय, विश्वास देने वाला, दबाने वाला-णम् 1. दमन करना, 7. तर्क 8. व्यवसाय, व्यापार 9. मंडी, मेला दबाना 2. पक- ड़ना, कैद करना 3. सज़ा, दण्ड 10. चलते फिरते सौदागरों को मण्डली 11. मार्ग, 4. पराजय । मण्डी का मार्ग 12. नगर । निग्राहः [नि+ग्रह +घञ्] 1. दण्ड 2. कोसना---जैसा निगमनम् [नि+गम् + ल्युट] 1. वेद का उद्धरण, या कि निग्राहस्ते भूयात्' (भगवान्, तुम्हें शापग्रस्त करे) उद्धत शध्द 2. (त० में) अनुमान-प्रक्रिया में भट्रि० ७१४३ में। उपसंहार, (पंचावयवी भारतीय अनुमान-प्रक्रिया निघ (वि.) [नि+हन, नि०] जितना चौड़ा उतना ही में पाँचवाँ अवयव), घटाना । लम्बा ,-घः 1. गेंद 2. पाप। निगरः, निग़ारः [नि-ग+अप, घा वा] निगलना, निघंटुः [नि+घण्ट्+कु] 1. शब्दावली 2. विशेष रूप डकारना । से वैदिक शब्दावली जिसकी व्याख्या यास्क ने अपने निगरणम् [ नि--ग+ल्यद ] 1 निगलना, डकारना निरुक्त में की है। 2. (आलं०) ग्रहण कर लेना, पूर्ण रूप से लय कर | निघर्षः निघर्षणम् [नि+घृष्-+-घन, ल्यट वा] रगडना देना--ण: 1. गला 2. यज्ञाग्नि का धूआँ । घर्षण करना, कि० २०५१। निग (गा) ल: [-निगरं, निगार, रलयोरभेदः] 1. निग- | निघसः [नि+अद्+अप, घसादेशः 1. खाना, भोजन ___लना, डकारना 2. घोड़े का गला या गर्दन वत् करना 2. भोजन । (०) घोड़ा। निधातः [नि+हन्+घञ्] 1. अभिघात, प्रहार--रघु० निगीर्ण (भू०क००) [नि--ग+क्त] 1. निगला हुआ, । १११७८ 2. स्वर का दमन करना या अभाव । For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२४ ) निघातिः (स्त्री०) [ नि+हन्+इञ, कुत्वम् ] लोहे सहज, अन्तर्भव, जन्मजात 2. अपना, स्वकीय, आत्मीय की गदा। अपने दल का या अपने देश का--निज बपुः पुनरनयनिघुष्टकम् [नि+घुष्+क्त ] ध्वनि, शब्द । निजां रुचिम् ---शि० १७१४, रघु० ३३१५, १८, निघ्न (वि.) [नि हिन्+क] 1. आश्रित, अनुसेवी, मन० २।५० 3. विशिष्ट 4. निरन्तर रहने वाला, आज्ञाकारी (नौकर की भांति), तथापि निघ्न नप चिरस्थायी। तावकीनैः प्रह वीकृतं मे हृदयं गणौधः-कि०३।१३, निज् ( अदा० आ०—निक्ते ) धोना, प्र-, धोना निघ्नस्य में भर्तृनिदेशरौक्ष्यं देवि क्षमस्वेति बभूवः | प्रणिक्ते । नम्रः-रघु० १४१५८ 2. शिक्ष्य, विधेय 3. पराश्रित निटलम् ('निटिल' भी लिखा जाता है) [नि+टल+ (अर्थात् विशेष्य के लिंगादि का अनुसरण करने के अच् ] मस्तक, निटिलतटचुबित-दश० ४, १५ । वाला-इति विशेष्यनिघ्नवर्गः 4. (संख्या वाचक सम-अक्ष: शिव का नाम । शब्द के पश्चात्) गुणित । निडीनम [ मीचैः डीनं पतनमस्ति ] पक्षियों का नीचे की निचयः [नि+चि+अच् ] 1. संग्रह, ढेर, समुच्चय ! ! ओर उड़ना, या झपट्टा मारना, दे० 'डीन'। -कि० ४।३७ 2. अवयों का संघातजिसने पूर्णता नितंबः [ निभृतं तम्यते कामुकः, तमु कांक्षायाम् ] 1. आजाय ---जैसा 'शरीरनिचय' में 3. निश्चितता। । चूतड़, (स्त्री का) पिछला उभरा हुआ भाग, श्रोणि निचायः [ नि+चि+घ ] ढेर । प्रदेश, कुल्हा,-यातं यच्च नितंबयोर्गुरुतया मंदं निचिकिः दे० नचिकी। विलासादिव-श० २।१, रघु० ४।५२, ६।१७, मेघ निचित (४० क० कृ०) [ नि+चि+क्त ] 1. ढका ४१, भर्त० १५, मालवि० २१७ 2. (पर्वत का) हुआ, आच्छादित, फैला हुआ, निचितं खमुपेत्य नीरदः ढलान, पर्वतश्रेणी, पार्श्व या पहल—सनाकवनितं ----घट०१शि०१७।१४ 2. भरा हुआ, पूरित 3. नितंबरुचिरं (गिरम्) कि० ५।२७, सेव्या नितंबा: उठाया हुआ। किम भूधराणां किं वा स्मरस्मेरविलासिनीनाम निचुल: [ नि --चुलक ] 1. एक प्रकार का नरकुल 2. भर्त०१९, विक्रम० ४।२६, भट्टि० २१८, ७५८ एक कवि, कालिदास का मित्र-स्थानादस्मात् । 3. खड़ी चट्टान 4. नदी का ढलवां किनारा 5. कंधा। सरसनिचुलादुत्पतोदङ्मुखः खम्-मेष० १४, (यहाँ सम०—बिबम् गोलाकार कूल्हा, ऋतु० १।४ । मल्लि.-निचुलो नाम महाकविः कालिदासस्य सहा- नितंबवत (वि.) [ नितंब-मतुप ] सुन्दर कूल्हों वाला ध्यायः, परन्तु यह व्याख्या बड़ी संदिग्ध है) 3. ऊपर --ती स्त्री चारु चुचुंब नितंबवती दयित-गीत से शरीर ढकने का कपड़ा, चादर, तु० निचोल। १, विक्रम ० ४।२६। निचुलकम् [ निचुल-कन् ] वक्षत्राण, चोली, अंगिया। नितंबिन (वि.) [ तितंब+इनि ] सुन्दर कूल्हों वाला, वि निचोल: [ निचल+घञ ] 1. अवगुण्ठन, चूंघट, पर्दा सुडौल चूतड़ वाला- (बहुधा 'जघन' के लिए प्रयुक्त) ध्वांत नीलनीचोलचारु-गीत० ११, शीलय नील- तु० मालवि० २।३, कि० ८।१६, रघु० १९।२६, 2. निचोलम्-५ 2. बिस्तरे की चादर 3. डोली का अच्छे पाश्वांगों वाला (पहाड़ आदि)-नी 1. बड़े आवरण। और सुन्दर कूल्हों वाली स्त्री-कि० ८।३, शि० निचोलकः [ निचोल+के+क] 1. बनियान, चोली 2. ७।६८, कु० ३१७ 2. स्त्री। सिपाही की जाकट जो उरस्त्राण का काम दे। नितराम (अव्य०) [ नितिरप-+अमु ] 1. पूर्णरूप से, निच्छबिः [ प्रा० ब० ] एक प्रदेश जिसे आज कल तिरहुत । सर्वथा, पूरी तरह से.-प्राणांस्त्यजामि कितरां तदकहते हैं। वाप्तिहेतोः --चौर० ४१, भर्तृ० ११९६ 2. अत्यंत, निच्छिविः (पं०) एक वात्य जाति, पतित जाति (ब्रात्य अत्यधिक, बहुत ज्यादह-तुर्दति चेतो नितरां प्रवाक्षत्रिय की सन्तान) दे० मनु०१०।२२।। सिनां—ऋत. १४, अमरु १०, शोषितसरसि निदाघे निज (जहो. उभ० --- नेनेक्ति, नेनिक्ते, प्रणेनेक्ति, नितरामेवोद्धतः सिंधः---पंच० १४१०४, नितरां निक्त) धोना, निर्मल करना, स्वच्छ करना--सस्नुः नीचोऽस्मीति-भामि०१९ 3. निरंतर, सदा, लगापयः पपुरनेनिज़रंबराणि-शि० ५।२८2. अपने तार 4. सर्वथा 5. निश्चय ही। आपको धोना, निर्मल करना, स्वच्छ होना (आ०) नितलम् [ नितरां तलम् अधोभागः यस्मिन् ] पाताल के 3. पोषण करना, अव---, प्रक्षालन करना, पानी छिड़- सात प्रभागों में से एक, दे० पाताल । कना, निस्-, धोना, निर्मल करना, स्वच्छ करना नितांत (वि.) [नि+तम्+क्त+दीर्घः ] असाधारण, --रघु० १७।२२, याज्ञ०, १११९१, मनु०५।१२७ । अत्यधिक, बहत अधिक, तीव्र-नितांतकठिन रुजं मम निज (वि.) [नि+जन् --ड] 1. अन्तर्जात, स्वदेशजात, न वेद सा मानसीम-विक्रम० २।२,-तम् (अव्य०) HAILEE For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२५ ) अत्यधिक, बहुत ज्यादह, अत्यंत, अतिशय । लाना 3. प्रमाण, साक्ष्य - बलिना सह योद्धव्यमिति नित्य (वि.) | नियमेन नियतं वा भवं-नि+त्यप् ] 1. नास्ति निदर्शनम्-पंच०३ ।२३ 4. दृष्टान्त, उदा निरंतर रहने वाला, चिरस्थायी, लगातार, देर तक हरण, मिसाल-ननु प्रभुरेव निदर्शनम् --- श० २, निदटिकने दाला, शाश्वत, निर्बाध-यदि नित्यमनित्येन र्शनमसाराणां लघुर्बहुतृणं नरः--शि० २।५०, रघु० ८। लभ्येत...हि. ११४८, नित्यज्योत्स्नाः प्रतिहततमो- ४५ 5. अग्रसूचक 6. चिह्न, शकुन 7. योजना, पद्धति वृत्तिरम्याः प्रदोषाः- मेघ (लल्लि० इसे प्रक्षिप्त 8. विधि, वेदविहित प्रमाण, निषेध,----ना अलंकार मानता है) मनु० २।२०६ 2. अटल, नियमित, शास्त्र में एक अलंकार-निदर्शना, अभवन्वस्तुसंबंध निश्चित, अनैच्छिक, नियमित रूप से नियत (विप० । उपमापरिकल्पक:-काव्य० १०, उदा० रघु० ०२। काम्य) 3. आवश्यक, अवश्यकरणीय, अपरिहार्य 4. निदाधः [ नितरां दह्यते अत्र ---नि-+ दह.+घङ | 1, ताप, सामान्य, प्रवलित (विप० नैमित्तिक). (समास के गर्मी 2. ग्रीष्म ऋतु, गर्मी का मौसम (ज्येष्ठ और अन्त में) निरंतर निवास करने वाला, लगातार किसी आषाढ़ के महीने) निदाघमिहिरज्वालाशतैः–भामि० काम में लगा हुआ या व्यस्त, जाह्नवीतीर', अरण्य', श१६, निदाघकाल: समुपागतः प्रिये-ऋतु० १११, आदान , ध्यान आदि, त्यः समुद्र, -त्यम् (अव्य०) पंच० १।१०५, कु० ७८४ 3. स्वेद, पसीना । सम० प्रतिदिन, लगातार, सदा, हमेशा, निरन्तर सदैव । --- करः सूर्य,-काल: गरमी की ऋदु । सम० ---अनध्यायः-ऐसा अवसर जब वेद पठन-पाठने निदानम् [ निश्चयं दीयतेऽनेन ---नि+दा+ल्यट | 1. सर्वथा त्याग दिया जाय, मनु०४।१०७,---अनित्य पट्टी, तस्मा, रस्सी, डोरी 2. बछड़े को बांधने का (वि०) शाश्वत तथा नश्वर, - ऋतु (वि०) ऋतु के रस्सा 3. प्राथमिक कारण, प्रथम या आवश्यक आने पर नियमित रूप से होने वाला,-कर्मन् (नपुं०), कारण-निदानमिक्ष्वाकुकूलस्य संतते:-रघु० ३।१, -- कृत्यम्,- क्रिया प्रतिदिन किया जाने वाला आव अयथा बलमारंभो निदानं क्षयसंपदः--शि० २१९४ श्यक कार्य, लगातार किया जाने वाला कर्तव्य, जैसे 4. सामान्य कारण--मुंच मयि मानमनिदानम --- गीत. कि दैनिक पंचयज्ञ,—गतिः वाय, हवा,-दानम् प्रति ५ 5. (आय० में) रोग का कारण जानना, रोगदिन दान देने का कर्म,-नियमः अटल सिद्धांत, नैमि- विज्ञान 6. किसी रोग का निरूपण 7. अन्त, समाप्ति तिकम किसी निमित्त विशेष से नियमित रूप से होने 8. पवित्रता, निर्मलता, शुद्धता। वाला या किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निदिग्ध (भ.क. कृ०) [नि-+-दिह+क्त] 1. लेप किया निरन्तर किया जाने वाला अनुष्ठान (उदा० पर्वश्राद्ध), | हुआ, चुपड़ा हुआ 2. बढ़ाया हुआ, संचित--ग्धा -प्रलयः सुषुप्ति,-मुक्तः परमात्मा,-योक्ना (सदा ! __ छोटी इलायची। यवती बनी रहने वाली) द्रौपदी का विशेषण, - शंकित निदिध्यासः, निदिध्यासनम् [नि+ध्ये+सन्+घ, ल्युट् (वि.) सदैव चौकन्ना, सदैव सशंक, -- समासः अनि | वा] बारंबार ध्यान में लाना, निरंतर चिन्तन ।। वार्य समास, ऐसा समास जिसके अर्थों को पृथक् २ निवेशः [नि+दिश+ध] 1. आज्ञा, हुक्म, हिदायत, शब्दों द्वारा अभिव्यक्त न किया जा सके-उदा० अनुदेश---वाक्येनेयं स्थापिता स्वे निदेशे—मालवि. जमदग्नि, जयद्रथ आदि, इवेन नित्यसमासः आदि । ३१४, स्थितं निदेशे पृथगादि देश-रषु० १४।१४ नित्यतो,--- त्वम् [ नित्य+तल+टाप त्व वा ] 1. स्थि- 2. भाषण, वर्णन, समालाप 3. सामीप्य, पढ़ोस 4. रता, अनवरतता, नैरन्तर्य, शाश्वतता, निरन्तरता 2. पात्र, वर्तन । आवश्यकता । निवेशिन् (वि.) [निदेश+ इनि] संकेत करने वाला, निश्यबा (अव्य) [ नित्य+दाच् ] लगातार, हमेशा,' --नी 1. दिशा, पृथ्वी का एक बिन्दु 2. प्रदेश । । प्रतिदिन, सदैव । निद्रा [निन्द्+र+टाप, नलोपः] 1. सुप्तावस्था, नींद नित्यशस् (अव्य.) [ नित्य+शस् ] लगातार, हमेशा, --प्रच्छायसुलभनिद्रा दिवसा:--श० ११३ 2. शिथिसदेव-- भग० ८।१४, मनु० २।९६,४।१५० । लता 3. आँखे मुंदना, कली की अवस्था 1. सम. निबनुः [निदात् विषात् द्वाति पलायते---निद+द्रा-कु] - भंगः जागरण, नींद टूट जाना,---वृक्षः अंधकार मनुष्य । -संजननम् श्लेष्मा, कफात्मक वृत्ति। निदर्शक (वि.) [नि+दृश् +पवुल ] 1. देखने वाला 2. निद्राण (वि.) [ निद्रा +क्त, तस्य नः, ततो णत्वम्] अन्दर देखने वाला, प्रत्यक्ष करने वाला 3. संकेत सोता हुआ, शयान, । करने वाला, प्रकथन करने वाला, इंगित करने वाला। | निद्राल (वि.) [नि+द्रा+आलुच शयान, निद्रित, निदर्शनम् [नि+दश+ ल्युट ] 1. दृश्य, अन्तर्दष्टि, अन्त- --विष्णु की उपाधि । रीक्षण, नजर, दर्शनशक्ति 2. इशारा करना, बत- निद्रित (वि.) [निद्रा+इतच्सोया हुआ, सुप्त । For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निधन (वि०) [निवृत्तं धनं यस्मात्-ब० स०] गरीब, (स्त्री०) 1. व्याजस्तुति, स्तुति के रूप में निन्दा दरिद्र --अहो निधनता सर्वापदामास्पदम् - मच्छ० 2. प्रच्छन्नस्तुति। १२१४,-नः-नम् 1. वंस, सर्वनाश, मरण, हानि निदित भू० क० कृ०) [निंद+क्त] कलंकित, दोषा -स्वधर्म निधनं श्रेयः-भग० ३।३५, म्लेच्छनिवह । रोपित, गाली दिया हुआ, बदनाम किया हुआ। निधने कलयसि करवालम् ---गीत० १, कल्पांतेष्वपि | निदुः (स्त्री०) [निन्दु उ] मरा बच्चा पैदा करने वाली न प्रयाति निधनं विद्याख्यमंतर्धनम् -- भर्त० २०१६ स्त्री, मृतवत्सा। 2. उपसंहार, अन्त, परिसमाप्ति,-नम् परिवार, वंश । निंद्य (वि.) [निंद+ण्यात्] 1. कलंक के योग्य, दोषानिधानम् [नि+-धा+ल्युट्] 1. नीचे रखना, निर्धारित रोपण के लायक, निर्भत्स्य, गहित, जघन्य 2. वजित, करना, जमा करना 2. संभाल कर रखना, सुरक्षित प्रतिषिद्ध । रखना 3. गोदाम, आधार, आशय-निधान धर्माणाम् | निपः, --पम् [नियतं पिबति अनेन -नि-+पा+क] जल - गंगा० १८4. खजाना-- निधानगर्भामिव सागरां | का घड़ा---पः कदम्ब का पेड़ । वराम् --रघु० ३१९, भग० ९।१८, विद्यैव लोकस्य | | निप (पा) ठः [नि |-पठ् + अप्, घन वा पढ़ना, परं निधानम् 5. कोष, भंडार, संपत्ति, दौलत । सस्वर पाठ करना अध्ययन करना । निधिः (नि+था कि 1. घर, आधार, आशय----जल, निपतनम् [नि+-पत्+ ल्युट | 1. नीचे गिरना, नीचे तोय, तपोनिधि आदि 2. भंडारगृह, कोपागार 3. उतरना, उतरना 2. नीचे की ओर उड़ना। खजाना, भंडार, संचय (कुवेर के नौ खजानों के निपत्या [निपतंति अस्याम् नि+पतु क्यप्+टाप्] 1. के लिए दे० 'नवनिधि') 2. समुद्र 5. विष्णु का | फिसलन वाली भूमि 2. रणक्षेत्र । विशेषण 6. सद्गुणसंपन्न व्यक्ति । सम० -- ईशः, | निपाक: [नि-+-पच् +-घन] परिपक्व करना, पकाना। -..-नाथः कुबेर का विशेषण। निपातः [नि+-पत्+घञ्] 1 नीचे गिरना, नीचे आना, निधुवनम् [नितरां धुवनं हस्तपादादि चालनमत्र] 1. क्षोभ, नीचे उतरना - पयोधरोत्सेघनिपातर्णिताः--कु० कम्पन 2. संभोग, मैथुन--अतिशयमधुरिपुनिधुवन- ५।२४, ऋतु० ५।४ 2. आक्रमण करना, टूट पड़ना, शीलम् .. गीत. 3. शि० ११।१८, चौर० ४, ९, २५ झपटना, कूदना-- रघु० २।६० 3. फेंकना, फेंक कर 3. आनन्द, उपभोग, केलि। मारना, दागना - कु० ३.१५ 4. उतार, प्रपात, निध्यानम् |नि+ध्य- ल्युट दर्शन, अवलोकन, दष्टि । निशितनिपाताः शराः--श० १११० 5. मरण, मृत्युनिध्वानः [नि+ध्वन् । घा] ध्वनि, शब्द । मनु० ६।३१ 6. आकस्मिक घटना 7. अनियमित निनक्षु (वि.) [नष्टुमिच्छु:-नश् + सन्ड ] 1. मरने । रूप, अनियमितता, अनियमित या अपवाद मानना, को इच्छा वाला 2. भाग जाने या बच निकलने का एते निपाताः, निपातोऽयम---आदि ४. अव्यय, वह इच्छुक-भट्टि० ४।३३ । शब्द जिसके और रूप न बने - पा० ११५६ । निन (ना) दः [नि+नद् +अप, घज वा] 1. ध्वनि, निपातनम [नि+पत--णिच-ल्यट] 1. नोचे फेंक शोर-उच्चचार निनदोंभसि तस्या:---रघु० ९।७३, देना, पछाड़ देना, मारना- मनु० ११४२०८, ११।१५, ऋतु०१, १५ 2. (मक्खियों का) भिन 2. परास्त करना, बर्बाद करना, वध करना 3. मर्म भिनाना, गुंजन करना। स्पर्श करना 4. अनियमित या अपवाद मानना निनयनम् [नि+नी+ल्युट्] 1. अनुष्ठान 2. किसी कार्य 5. शब्द का अनियमित रूप, अनियमितता, अपवाद । को पूर्ण करना, सम्पन्न करना ३. उडेलना। निपानम् [नि+पा+ल्युट ] 1. पीना 2. जलाशय, निंद (भ्वा० पर० निदंति, निदित, प्रणिदति) दोष देना, जोहड़, पोखर, गाहन्तां महिषा निपानसलिलं शृंगै निदा करना, छिद्रान्वेषण करना, बुरा भला कहना, महुस्ताडितम् --श० २१६, हि० २१७२, रघु० ९॥ डांटना, फटकारना, धिक्कारना--निनिद रूपं हृदयेन ५३ 3. चौबच्चा, कुएँ के समीप पानी का हौज़ पार्वतो--कु० ५।१, सा निदंती स्वानि भाग्यानि जिसमें पशुओं के पोने का पानी भरा हो 4. कुआँ बाला-श० ५।३०, भग० २।३६, मनु० ३१४२ । । 5. दूध की बाल्टी। निक (वि०) [निद्+ण्वुल कलंक लगाने वाला, निंदा निपीडनम् [नि+पीड़+णिच-+ल्यूट ] 1. निचोड़ना, करने वाला, गालो देने वाला, बदनाम करने वाला। दबाना, भींचना--शि० १६७४, १३।११ 2. चोट निवनम, निदा निंद-ल्युट, निद-+-अ+टाप् वा] 1. । पहुँचाना, घायल करना,-- ना अत्याचार करना, कलंक, दोषारोप, डांट, फटकार, गालो, बुरा-भला । घायल करना, क्षति पहुँचाना।। कहना, बदनामी-व्याजस्तुतिमखे निंदा--काव्य निपुण (वि.) [नि+पुण+2] 1. चतुर, चालाक, १०, पर', वेद 2. क्षति, दुष्टता। सम०- स्तुतिः बुद्धिमान, कुशल वयस्य निसर्गनिपुणाः स्त्रियः For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२७ ) मालवि० ३ 2. प्रवीण, कुशल, जानकार, परिचित । निबिड (वि.) [नि+विड+क] सधन, तिनका, दे० (अधि० या करण के साथ) वाचि निपूणः, वाचा | 'निविड'। निपुण: 3. अनुभवशोल 4• कृपालु, मित्रसदृश 5. सूक्ष्म, । निभ (व.) [नभा+क 1 (केवल समास के अन्त में) बढ़िया, कोमल 6. सम्पूर्ण, पूरा, सही-- णम् (अव्य०), सदृश, समन, अनुरूप ... उद्बुद्धमुग्धकनकाब्जनिभं निपुणेन, 1. कौशल से, चतुराई से 2. पूरी तरह से, वहंति ---मा० ११४० इसी प्रकार 'चन्द्रनिभानना' पूर्णरूप से, सर्वथा 3. ठीक, सावधानी से, यथार्थतः, आदि,-भः, भम् 1. दर्शन, प्रकाश, प्रकटीकरण सूक्ष्मरूप से-निपुणमन्विष्यन्नुपलब्धवान्-दश० ५९ । 2. ब्रहाना, छद्मवेश, व्याज 3. चाल, जालसाजी। 4. म दुता के साथ। निभालनम् [नि+भल-णिच ल्युट | देखना, दृष्टि, निबद्ध (भू० क० कृ०) [नि+बंध ---क्त | 1. बाँधा | प्रत्यक्षीकरण। हुआ, कसा हुआ, हथकड़ी पहनाया हुआ, रोका हुआ, निभूत (वि०) नि-भक्त ] 1. अत्यन्त भीत 2. गया बंद किया हुआ 2. जुड़ा हुआ, संबद्ध 3. निर्मित हुआ, बीता हुआ। 4. खचित, जड़ा हुआ 5. गवाह के रूप में बुलाया ! निभत (वि०) [ निभ+क्त ] 1. रक्खा हुआ, जमा हुआ। किया हुआ, नीचा किया हुआ 2. भरा हुआ, आपूरित निबंधः [ निबंध । घा ] 1. बांधना, कसना, जकड़ना -----चित या निभृतः -- भाग० 3. छिपाया हुआ, गुप्त, 2. आसक्ति संलग्नता भग० १६।५ 3. रचना दृष्टि से ओझल, अनीक्षित, अनवलोकित-निभृतो करना, लिखना 4. साहित्यिक रचना या कृति, भूत्वा --पंच० १, नभसा निभृतेंदुना- रघु०८।१५, प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रवंधविन्यासर्वदग्ध्यनिधिनिबंध चक्रे चन्द्रमा के अन्तहित होने पर, जब चाँद अस्त होने को वास० 5. संग्रह-ग्रन्थ 6. नियंत्रण, अवरोध, बंधन था शि. ६।३० 4. गुप्त, प्रच्छन्न, शि० १३१४२ 7. मत्रावरोध 8. बंध, हथकड़ी 9. संपत्ति का अनुदान, 5. (क) चुप, शान्त -- निभृतद्विरेफ (काननं) कु० पशु, रुपया आदि सहायता के रूप में देना - भूर्या ३।४२, ६।२, (ख) स्थिर, नियत, अचल, गतिहीन पितामहोपात्ता निबंधो द्रव्यमेव वा.-याज्ञ० २।१२१, श० ११८ 6. मद्, सौम्य --अनिभूता वायव: ---कि० स्थिर संपत्ति 10. बुनियाद, मल 11. हेतु, कारण। १३।६६ जो कोमल न हो, प्रचंड, दृढ़-मा०२।१२ निबंधनम् [नि--बंध--- ल्युट् ] 1. एक जगह जकड़ना, 7. विनीत, नम्र --अनिभूतकरेषु प्रिये --मेघ०६८, मिलाकर बांधना 2. संरचना करना, निर्माण करना प्रणामनिभृता कुलवधूरियं- मुद्रा० १ 8. दृढ़, अटल 3. नियंत्रण करना, रोकना, कैद करना 4. बंध, हथ- 9. एकाकी, अकेला-निभृतनिकुंजगृहं गतया - गीत० कड़ी 5. गांट, बंध, सहारा, टेक ---आशानिबंधनं जाता २ 10. बंद, (दरवाजा) मुंदा हुआ, तम् (अव्य०) जीवलोकस्य ...-उत्तर० ३, यस्त्वमिव मामकीनस्य 1, गुप्त रूप से, प्रच्छन्न रूप से, निजी तौर पर, बिना मनसो द्वितीयं निबंधनम् --- मा० ३ 6. पराश्रयता, किसो के देखे --श० ३, शि० ३।७४, मनु० ९।२६३ संबंध -पंच० ११७९, अन्योन्याश्रित 7. कारण, मूल, 2. चुपचाप, शान्ति से--कि० १३४।। हेतु प्रयोजन, आधार, बनियाद-वाकप्रतिष्ठानिबंध | निमग्न (भू० क० कृ०) [नि |-मस्+क्त ] 1. डूबा नानि देहिनां व्यवहारतंत्राणि .. गा०४, आधारित हुआ, डुबोया हुआ, बोरा हुआ, आप्लावित, जलमग्न आदि, प्रत्याशा°३; अनिबंधन-निष्कारण, आक हुआ (आलं. भी) निमग्नस्य पयोराशी, चितानिमग्न स्मिक-उत्तर० ५।७ 8. आगार, गद्दी, आधार -- आदि 2. नीचे गया हुआ, (सूर्य की भांति) अस्त मा० २१६ 9. रचना करना, क्रमबद्ध करना-कु० 3. अभिप्लुत, आच्छादित 4. अवसन्न, अप्रमुख । ७।९० 10. साहित्यिक रचना या कृति, पुस्तक निमज्जथुः [नि+मस्+अथुच ] 1. डुबकी लगाना, गोता 11. (भूमि का) अनुदान, नियोजन या हस्तांतरण लगाना 2. बिस्तरे में डुबना, शयन करना, सो जाना प्रलेख-सद्वत्तिः, सन्निबंधना -शि० २१११२, (यहाँ -तल्पे कांतांतरैः सार्धं मन्येऽहं घिङ् निमज्जथुम 'निबंधन' का अर्थ 'पुस्तक' भी ह) 12. वीणी की ---भट्रि० ५।२० । खूटी 13. (व्या० में) कारक प्रकरण 14. भाष्य। निमज्जनम् | नि+मस्ज् + ल्युट ] स्नान करना, डुबकी निबंधनी [ निबंधन--डीप बंध, हथकड़ी, डोरी या लगाना, गोता लगाना, डूबना (शा० और आलं०) रस्सी । दृङ् निमज्जनमुपैति सुधायाम - न० ५।९४, एवं संसारनिब (ब) हण (वि.) [नि-ब (व) ह. ल्युट ] नष्ट गहने उन्मज्जननिमज्जने-महा० । करने वाला, विनायक, (समाम में) शत्रु कि० | निमन्त्रणम् ! नि+म+ल्युट ] 1. न्यौता 2. आमन्त्रण, २०४३, महावी० ३१३७, णम् वध, व्यंग, विनाश, बुलावा 3. आह्वान, तलबी। हत्या -- नै० १११३१ । | निमयः [नि+मि+अच] वस्तु-विनिमय. अदला-बदली। For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२८ ) निमानम् [नि+मा+ल्युट ] 1. माप 2. मूल्य (निमानम् निम्नः (वि०) [नि+म्ना+क] गहरा (शा० और ==मूल्यम्-सिद्धा०)। आलं०) चकितहरिणीप्रेक्षणा निम्ननाभिः- मेघ. निमिः (पुं०) 1. आँख का झपकना, निमेष 2. ईक्ष्वाकु की ८२, ऋतु० ५।१२, शि० १०५७ 2. नीच, अबसन्न, एक संतान, मिथिला में राज्य करने वाले राजाओं के ---म्नम् 1. गहराई, नीची भूमि, निम्न देश (कः) कुल का पूर्वज। पश्यच निम्नाभिमुखं प्रतीपयेत्-...कु. ५।५, न च निमितम् [ निमिद+क्त ] 1. कारण, प्रयोजन, आधार | निम्नादिव सलिलं निवर्तते मे ततो हृदयम्-श० ३।२, हेतु --निमित्तनैमित्तिकयोरयं क्रमः-श०७।३० 2. कर-। .. याज्ञ० २।१५१, ऋतु. २।१३ 2. ढलान, ढाल णात्मक या कौशलदर्शी करण (विप० उपादान) 3. व्यवधान, भूरन्ध्र, 4. अवसाद, निबला भाग-- 3. प्रतीयमान कारण, ब्याज, निमित्तमात्रं भव सव्य- जलनिविडितवस्त्रब्यक्त निम्नोन्नताभि:-मा० ४।१०। साचिन्- भग० १११३३, निमित्तमात्रेण पांडवक्रोधेन सम० -- उन्नत (वि०) ऊँचा नीचा, अवनत उन्नत, भवितव्यम-वेणी० १ 4. चिह्न, संकेत, निशानी ऊबड़खाबड़,..-गतम् निम्नस्थान,-गा नदी, पहाड़ी 5. छंठ, लक्ष्य, निशाना--निमित्तादपराद्धेषो(नष्क- नदी-रघु० ८५८ । स्येव वल्गितम् -शि० २।२७ 6. भविष्यसूचक (शभाशुभ) शकुन, निमित्तं सूचयित्वा, श० १, निमितानि निबं परिचरेत्तु यः, यश्चैनं पयसा सिंचेन्नैवास्यं मधुरो च पश्यामि विपरीतानि केशव-भग० ११३०, रघु० भवेत्---रामा०। १९६, मन० ६।५०, याज्ञ० ११२०३, ३।१७१, निम्लोचः [ निम्लच+अञ] सूर्यास्त ।। ('निमित्त' शब्द समास के अन्त में 'कारण या उत्पत्ति'. नियत (भूक००) [ नियम+क्त] 1. दमन किया अर्थ को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है हुआ, नियंत्रित 2. अभिभूत, नियंत्रण में किया हुआ, ---किनिमित्तोऽयमातंकः--श० ३, निमित्तम, निमित्तेन, स्वस्थ, स्वशासित 3. संयमी, मिताहारी 4. सावधान निमित्तात के कारण, क्योंकि, इस कारण कि' । सम० 5. जमा हुआ, स्थायी, अनवरत, स्थिर 6. अवश्यंभावी, --अर्थः (व्या० में) अकर्तक क्रिया की अवस्था, तुम - निश्चित, अचक 7. अनिवार्य 8. ध्रुव, निश्चित न्नंत प्रयोग,-आवृत्तिः (स्त्री०) किसी विशेष कारण 9. विचारणीय विषय (प्रसंगानुकूल हों चाहे असंबद्ध) पर आश्रय, ....कारणम्,-हेतु: करणात्मक या कौशल दे० 'तुल्ययोगिता',--तम् (अव्य०) 1. हमेशा, लगादर्शी कारण,-कृत (पु०) कौवा, --धर्मः 1. प्रायश्चित्त तार 2. निश्चयात्मक रूप से, अवश्य, अनिवार्यतः, 2. सामयिक संस्कार,-विद् (वि.) अच्छे और शकुनों निश्चय ही। का ज्ञाता--(०) ज्योतिषी।। नियति (स्त्रिी०) [नि-यम् --क्तिन् ) 1. नियंत्रण, निमिषः [ नि--मिष-+-क] 1. आँख झपकना, आँख बन्द प्रतिबन्ध 2. भाग्य प्रारब्ध, भवितव्यता, किस्मत करना, पलक झपकाना 2. पलकमात्र समय, पलभर | (बरी हो या अच्छी हो) नियतिबलान्तु-दश०, 3. फूलों का बन्द होना 4. आँख की पलक का शब्द होना नियतेनियोगात...शि. ४१३४, कि० २११२, ४।२१ 5. विष्णु । सम०-अंतरम् क्षण भर का अन्तराल। 3. धार्मिक कर्तव्य 4. आत्म नियंत्रण, आत्म संयम । निमीलमम् [नि+मील+ल्युट्] 1. पलकें बन्द करना, नियंत (पं.) नि+यम+तुच] 1. सारथि, चालक झपकना, --नयननिमीलनखिन्नया यया ते---गीत० ४, शि० १२।२४ 2. राज्यपाल, शासक, स्वामी, विनिअमरु ३३ 2. मरणसमय आँखें मुंदना, मृत्यु 3. (ज्यो. यंता ---रघु० १।१७, १५।५१ 3. दण्ड देने वाला, में) पूर्णग्रास । सजा देने वाला। निमिला, निमीलिका [नि+मील+अ+टाप, निमिल नियंत्रणम,....णा [नि-यंत्र--स्यट; स्त्रियां टाप् च] +कन्+टाप, इत्वम् ] 1. आँखें बन्द करना 2. आँख 1. रोक, आरक्षण, प्रतिबंध---अनियंत्रणानयोगो दाम झपकाना, पलक मारना, किसी की ओर आँख मिच तपस्विजन:-श०१ 2. प्रतिबंध लगाना, सीमित काना 3. जालसाजी, बहाना, चालाकी। करना (किसी विशेष अर्थ में) अनेकार्थस्य शब्दस्यनिमलम् (अव्य०) [ निक्रां मूलम्, प्रा० स०] नीचे जड़ कार्थनियंत्रणं सा० द० २ 3. निर्देशन, शासन तक-निमलकाषं कति । 4. परिभाषा बताना। निमेषः [नि-+-मिष+घञ 1 आँख का झपकना, क्षण, दे० नियंत्रित (भू.क.कृ.) [नि+यंत्र+क्त] 1. दमन किया 'निमिब-'हरति निमेषात् काल: सर्वम्--मोह० ४, हा, रोका हआ 2. प्रतिबद्ध, सीमित (किसी विशेष अनिमेषेण चक्षुषा-टकटकी लगाकर, एकटक दृष्टि से अर्थ में, शब्द के रूप में)। --रघु० २।१९,३१४३, ६१ । सम०----कृत (स्त्री) | नियमः [नि-यन्+अप] 1. नियंत्रण, रोक 2. सधाना, बिजली-इच् (पुं०) जुगनू । वशीभूत करना 3. सीमित करना, रोक लगाना For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4. निग्रह, निरोध-मनु० ८।१२२ 5. सीमाबंधन, । निर्धारित 3. विवादास्पद विषय को उठाने के लिए हरदी 6 नियम या विधि कानून, प्रचलन-नाय | अनुज्ञात 4. संलग्न 5. उपबद्ध 6. निर्णीत । मकान्ततो नियम:-शारी० 7. नियमितता-रत्न | नियुक्तिः (स्त्री०) [नि-- युज+क्तिन् ] 1. निषेधाज्ञा, ११२०8. निश्चितता, निश्चय 9. संविदा, प्रतिज्ञा, | आदेश, हम 2. नियोगन, आयोग, पद, कार्यभार। व्रत, वादा 10. आवश्यकता, अनिवार्यता, 11. कोई नियुतम् [नि+य+क्त ] 1. दस लाख 2. सौ हेजार 3. ऐच्छिक वा स्वेच्छा से गृहीत धार्मिक अनुष्ठान । दस हजार करोड़ या १०० अयत। (वाह्य अवस्थाओं पर निर्भर)-रघु० ११९४, (दे० | नियुद्धम् [ नि-+ युध्+क्त ] पैदल युद्ध करना, घमासान महिल०, शि० १३६३३ तथा कि० ५।४२ पर) युद्ध, व्यक्तिगत लड़ाई। 12. कोई छोटा अनुष्ठान या छोटा ब्रत, विहित नियोगः [नि+युज+घञ ] 1. किसी काम में लगाना, कर्तव्य जो यम की भांति अनिवार्य न हो- शौच उपयोग, प्रयोग 2. निषेधाज्ञा, आदेश, हक्म, निदेश, मिज्या तपो दानं स्वाध्यायोपस्थनिग्रहः व्रतमौनोपवास आयोग, कार्यभार, निर्धारित कर्तव्य, किसी की देख व स्नान बनिसमा दशअत्रि 13. तपस्या, भक्ति, रेख में आयुक्त कार्य-..-यः सावज्ञो माधव श्रीनियोगे धार्मिक साधना ...नियम विघ्नकारिणी श० १, रघु० -... मालवि. ५।८, मनोनियोगक्रिययोत्सुकं में-रघु० १५.७४ 12. (सीमा० में) इस प्रकार का नियम या ५।११ अथवा नियोगः खल्वीदशो मंदभाग्यस्य विधि जिसमें उस बात का विधान किया जाता है, -उत्तर० १, आज्ञापयतु को नियोगोऽनुष्ठीयतामिति जो, यदि यह नियम न होता तो ऐक्छिक होती श० १, त्वमपि स्वनियोगमशून्यं कुरु (अपना काम विपिरल्यंतगप्राप्तौ नियमः पाक्षिके सति 15. (योग० करो-अपने निर्धारित कार्य में लगो) (नौकरों को में) मन का निग्रह, योग में समाधि के आठ मुख्य दूर हट जाने के लिए कहने की एक शिष्ट रीति अंगों में दूसरा 16. (अलं० में) कविसमय, जैसा कि जिसका प्रायः नाटकों में अधिक प्रचलन है) 3. किसी वसंत ऋतु में कोयल का वर्णन, वर्षा ऋतु में मोरों के साथ संलग्न करना 4. आवश्यकता, अनिवार्यता का वर्णन, नियमेन–नियम पूर्वक, अनिवार्यतः । तत्सिवे नियोगे न स विकल्पपराङमुखः -- रघु० गय० -निष्ठा विहित संस्कारों का दढ़ता पूर्वक १९/४९ 5. प्रयत्ल' चेष्टा 6, निश्चितता, निश्चयन पालन, पत्रम लिखित संविदा पत्र,-स्थितिः 7. प्राचीन काल की एक प्रथा जिसके अनुसार निस्स(स्त्रिी०) धार्मिक कर्तव्यों का दृढ़तापूर्वक पालन, न्तान विधवा को अपने देवर या और किसी निकट साधना । संबंधी के द्वारा संतान पैदा कराने की अनुमति है, इस नियमनम् नियम ल्युट) 1. अवरोध करना, शासन प्रकार पैदा होने वाला पुत्र 'क्षेत्रज' कहलाता है, तु० में वना, निमन्त्रण करना, दमन करना--नियमना- मनु० ९।५९---देवराद्वा सपिंडाद्वा स्त्रिया सम्यनियुदसतां व नराधिनः --रघ ० ९४६ 2. प्रतिबन्ध, सीमा- क्तया, प्रजेप्सिताधिगंतव्या संतानस्य परिक्षये-दे० निबंधन3. दीनता, 4. विधि. स्थिर नियम । ६०, ६५ भी। (व्यास ने इसी रीति से विचित्रवीर्य नियमवती | नियम-मतुप+ डीप ] स्त्री जिसे मासिक की विधवाओं से पांडु और धृतराष्ट्र को पैदा किया)। धर्म नियमित रूप से होता हो। नियोगिन् (पुं०) [ नियोग+इनि ] अधिकारी, आश्रित, नियतित (भूक००)[नि+-यम+पिच्+क्त] 1. अव मंत्री, कार्यनिर्वाहक । रुद्ध दमन किया नियन्त्रित 2. शासित, निर्देशित | नियोग्यः नि+यज- ण्यन ] प्रभ, स्वामी।। ... विनियमित, विहित, निर्धारित स्थिर, सवेदित | नियोजनम [ नि-यज---ल्यट] 1. जकडना, संलग्न प्रतिज्ञात। करना 2. आदेश देना, विधान करना 3. उकसाना, नियालः [ नि-|-यम् +घञ्] 1. नियंत्रण 2. धार्मिक व्रत प्रेरित करना 4. नियत करना । मक (वि.) (स्त्री --मिका) नियम--णिच नियोज्यः । नि-यजयत ] किसी कर्तव्य का कार्यभार +बुल ] 1. नियंत्रण करने वाला, अवरुद्ध करने संभालने वाला, कार्यनिर्वाहक, अधिकारी, सेवक, पाला2 दमन करने वाला, पछाड़ने वाला 3. सीमित नौकर-सिध्यंति कर्मसु महत्स्वपि यन्नियोज्या:--श० करने वाला, प्रतिबंधन लगाने वाला, ध्यानपूर्वक परि- ७।४। भाषा बनाने वाला 4. निर्देश करने वाला, शासन | नियोधु (पुं०) [कि+युध+तृच ] 1. योद्धा, पहलकरने वाला,...क: 1. स्वामी, शासक 2. सारथि 3. वान 2. मुर्गा। केपट. मला कर्णधार, विमानचालक । निर् (अव्य०)[न+क्विप, इत्वम् ] ('से मुक्त' 'विना' निधात (न०००) [नि-|-युज् । क्त ] 1. निदे- | से रहित' से दूर से बाहर' आदि अर्थों को प्रकट शित, आज्ञप्त, अनुदिष्ट, आदिष्ट 2. अधिकृत, । करने के लिए सघोष व्यंजनों और स्वरों से पूर्व 'निस्' For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५३० का स्थानापन्न; संज्ञा से पूर्व 'अ' या 'अन्' लगा कर भी इस अर्थ को प्रायः व्यक्त किया जा सकता है, दे० नी० दिए गये समस्त शब्द, दे० 'निस्' और तु० 'अ' से) । सम० - अंश (वि० ) 1. पूर्ण, समस्त 2. पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति में भाग लेने का अनधिकारी-अक्ष: ( ज्यो० में) भोगांश से मुक्त स्थान- अग्नि (वि० ) जिसने अग्निहोत्र करना त्याग दिया हो- अंकुश (वि०) 'जिस पर किसी प्रकार का दबाव न हो, कोई रोक टोक न हो, नियंत्रण से मुक्त, उद्दंड, स्वतंत्र, स्वेच्छाचारी, उच्खल --- निरंकुश इव द्विपः - भाग ०, कामो निकामनिरंकुश :- गीत ● ७, निरंकुशाः कवयः सिद्धा०, भर्तृ० ३।१०६, महावी० ३।३९, - अंग ( वि० ) 1. अंगहीन 2. साधनहीन, अजिन (f ( वि० ) त्वचारहित, अंजन ( वि० ) 1. 'बिना आंजक का 2. निष्कलंक, निर्दोष 3. मिथ्यात्व से रहित 4. सीधासादा, जिसमें बनावट न हो (नः) शिव का विशेषण (ना) पूर्णिमा, अतिशय (वि०) जिससे बढ़चढ़ कर दूसरा न हो, अद्वितीय, अत्यय ( वि० ) 1. निर्भय, निरापद, सुरक्षित रघु०१७/५३ 2. निरपराध, निष्कलंक, निर्दोष, निःस्पृह कि० १११२, १३३६१, पूर्णतः सफल, - अध्व (वि०) जो रास्ता भूल गया हो, - अनुक्रोश (वि० ) निर्मम, निर्दय कठोर हृदय, (शः ) निर्दयता, निष्ठुरता - अनुग (वि०) जिसका कोई अनुयायी न हो, अनुनासिक (वि०) अनुनासिक से भिन्न, जिसके उच्चारण में नाक का योग न हो, - अनुरोध ( वि० ) 1. अननुकूल, अमैत्रीपूर्ण 2. निष्करुण, सद्भावशून्यमा १०. - अंतर ( वि० ) 1. सदा बना रहने वाला, लगातार होने वाला, अव्यवहित, अविच्छिन्न- निरंतराधिपटल:- भाभि० १।१६, निरंतरास्वंत रवातवृष्टिषु — कु० ५।२५ 2. व्यवधानरहित, निरंतराल, सटा हुआ - मूढे निरंतरपयोधरया मयैव मृच्छ०५/१५, हृदयं निरंतरवृत्कठिनस्तनमंडलावरणमप्यभिदन्- शि० ९/६६ ३. अखंड, सघन - शि० १६ | ७६ 4. मोटा, स्थूल 5. विश्वसनीय, (मित्र की भांति ) ईमानदार, सच्चा 6. सदा आंखों के सामने हने वाला 7. अभिन्न, समान, समरूप ( अव्य० - रम् ) 1. निर्बाध, लगातार, सतत, अनवरत 2. बिना किसी मध्यवर्ती अन्तराल के 3. पक्की तरह से, कसकर, दृढ़तापूर्वक -- 6- - ( परिष्वजस्व) कान्तैरिदं मम निरंतरमंगमंगे: - वेणी० ३।२७, परिष्वजेते शयने निरंतरम् - ऋतु ० २।११ 4. तुरन्त 'अभ्यासः अनवरत अध्ययन, सपरिश्रम अभ्यास, अन्तराल (वि०) जिसके बीच में स्थान न हो, सटा हुआ 2. तंग, भीड़ा, - अन्वय ( वि० ) 1. निस्संतान, संतानरहित 2. असंबद्ध, संबंधरहित (वाक्य में शब्द की भांति ) 3. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रासंगिक 4. असंगत, संगतिरहित, अव्यवस्थित 5. अदृश्य, आंख ओझल - मनु० ८ ३३२ 6. बिना नौकर-चाकरों के अनुचरवर्ग जिसके साथ न हो - दे० 'अन्वय', - अपत्रप (वि० ) 1. निर्लज्ज, ढीठ 2. साहसी, - अपराध (वि० ) निर्दोष, निरीह, दोषरहित, कलंकरहित (-धः ) भोलापन, - अपाय (वि०) 1. दुष्टता से रहित 2. क्षयरहित, अनश्वर 3. अमोघ, अचूक, -अपेक्ष (वि० ) 1. जो किसी दूसरे पर निर्भर न हो, स्वतंत्र, किसी और की अपेक्षा न रखने वाला ( अधि० के साथ ) न्यायनिर्णीतसारत्वान्निरपेक्षमिवागमे कि० ११।३९2. अवहेलना करने वाला ध्यान न देने वाला 3. तृष्णा से मुक्त, निर्भय- हि० ११८३ 4. लापरवाह, असावधान, उदासीन 5. सांसारिक विषयवासनाओं से विरक्त मनु० ६१४१०. निःस्पृह, दूसरे से किसी पुरस्कार की इच्छा न रखने वाला - भामि० ११५ 7. निष्प्रयोजन, (क्षा) उदासीनता, अवहेलना, अभिभव ( वि० ) जो दीनता या तिरस्कार का पात्र न हो, - अभिमान ( वि० ) 1, जो अहंमन्यता से मुक्त हो, घमंड या अहंकार रहित 2. स्वाभिमानशून्य - अभिलाष (वि०) जिसे किसी वस्तु की चाह न हो, उदासीन स्वसुखनिरभिलाषः खिद्य से लोकहेतो:- श० ५/५ अभ्र (वि० ) मेघरहित, - अमर्ष ( वि० ) 1. क्रोधशून्य, धर्यवान् 2. निरीह, -- अम्बु ( वि० ) 1. जल से परहेज करने वाला 2. निर्जल, जलरहित, अर्गल (वि०) अर्गलारहित, प्रतिबंधरहित, निर्बाध, अनियंत्रित, निर्विघ्न, पूर्णत: मुक्त मालवी० ५ ( अव्य०- लम्) मुक्त रूप से, अर्थ (वि१ ) 1. निर्धन, गरीब, दरिद्र 2. अर्थहीन, ( शब्द या वाक्य ) निरर्थक 3. अनर्थक 4. व्यर्थ, बेकार, निष्प्रयोजन - अर्थक (वि०) 1. बेकार व्यर्थ, अलाभकर 2. अर्थहीन, अनर्थक, जिसका कोई तर्कयुक्त अर्थ न हो ( कम ) पूरक - निरर्थकं तु हीत्यादि पूरणकप्रयोजनम् -- चन्द्रा० २/६, अवकाश (त्रि०) 1. मुक्त स्थान से रहित 2. जिसके पास फुर्सत का समय न हो, - अवग्रह (वि० ) 1. नियंत्रण से मुक्त, अनि यंत्रित, अनवरुद्ध, नियंत्रणरहित, दुनिवार 2. मुक्त, स्वतंत्र 3. स्वेच्छाचारी, दुराग्रही, अबध (वि०) निष्कलंक, निर्दोष, अकलंकनीय, जिसमें कोई आपत्ति न हो सके - हृद्य निरवद्यरूपो भूपो बभूव दश० १, -अवधि (वि०) जिसका कोई अन्त े न हो, असीम -उत्तर० ३।४४, - अवयव ( वि० ) 1. खंडरहित 2. अविभाज्य 3. अंगरहित, अवलंब (वि० ) 1. असहाय, निराश्रय- श० ६ 2. जो सहारा न दे - अवशेष (वि०) पूर्ण, पूरा, समरत, अवशेषेण ( अव्य० ) पूरी तरह से, सर्वथा, पूर्णरूप से, बिल्कुल For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५३१ --अशन (वि०) भोजन से परहेज करने वाला (नम्) उपवास, अस्त्र ( वि० ) जिसके पास हथियार न हो, निहत्था, - अस्थि (वि०) बिना हड्डी का, अहंकार, - अहंकृति (वि०) घमंडरहित, अभिमानशून्य, विनीत नम्र, -- अहम् (वि०) अहंमन्यता से मुक्त, आकांक्ष ( वि० ) 1. जिसे किसी वस्तु की इच्छा न हो, इच्छा से मुक्त 2. ( वाक्य या शब्द के अर्थ आदि को ) पूरा करने के लिए जिसे किसी की अपेक्षा न हो, आकार ( वि० ) 1. आकृतिशून्य, आकाररहित, बिना रूप का 2. कुरूप, विरूप 3. छद्मवेषी 4. विनम्र, कुशील (रः) 1. परमात्मा, सर्वशक्तिमान 2. शिव की उपाधि 3. विष्णु का विशेषण, आकुल ( वि० ) 1. जो घबराया न हो, अनुद्विग्न, जो हतबुद्धि न हुआ हो 2. स्थिर, शांत 3. स्वच्छ, निर्मल, - आकृति - ( वि० ) 1. आकाररहित, रूपरहित 2. विरूप (तिः ) 1. वह ब्रह्मचारी जिसने विधिपूर्वक वेदाध्ययन न किया हो 2. विशेषकर वह ब्राह्मण जिसने अपने वर्ण के लिए निर्धारित वेदाध्ययन के कर्तव्य को पूरा न किया हो, आक्रोश (वि०) जिस पर दोषारोपण न किया गया हो, जिसका तिरस्कार न हुआ हो, आगस् (वि०) निर्दोष, निरीह, निष्पाप -- रघु० ८०४८, आचार (वि०) आचारहीन, धर्मभ्रष्ट, आडंबर वि०) बिना ढोल का, ढोंगरहित, - आतंक ( वि० ) 1. भय से मुक्त - रघु० १/६३, 2. नीरोग, सुखद, स्वस्थ, आतप ( वि०) जिसमें धूप या गर्मी न हो, छायादार (पा) रात, आदर ( वि० ) अपमानजनक, आधार (वि०) 1. आवाररहित 2. निराश्रय, आश्रमहीन ( आलं० भी ) निराधारो हा रोदिमि कथय केषामिह पुरः - गंगा० ४१३९, - आधि ( वि० ) निर्भय, चिन्तामुक्त, आपद् (वि० ) आपत्ति रहित, संकटमुक्त, आबाध (वि० ) असन्तापित, उत्पीडन र हित, बाधारहित, बाधामुक्त, 2. निर्बाध 3. जो बाधक न हो, जो पीड़ा न पहुँचाता हो 4. ( विधि में ) ( मुक़दमा या अभियोग का कारण आदि) मूर्खतापूर्वक प्रबाधी उदा० अस्मद्गुहप्रदीप प्रकाशनायें स्वगृहे व्यवहरति-मिता०, -- आमय ( वि० ) 1. रोगमुक्त, स्वस्थ, नीरोग, भला चंगा 2. निष्कलंक, विशुद्ध 3. निष्कपट 4. दोषों से मुक्त, निर्दोष 5. भरा हुआ, संपूर्ण 6: अमोध ( यः, -यम् ) नीरोगता, स्वास्थ्य, कल्याण, मंगल, आनन्द (यः) 1. जंगली बकरी 2 सूअर, ---आमिष ( वि० ) 1. बिना मांस का मांस न खाने वाला 2 वासनारहित, लालच से मुक्त 3. पारिश्रमिक आदि न पाने वाला, आय ( वि० ) जिससे कोई आमदनी या राजस्व प्राप्त न हो, लाभ रहित, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) - आयास (वि० ) जिसम परिश्रम न लगे, सुकर, आसान, आयुध ( वि० ) जिसके पास हथियार न हो, निरस्त्र, निहत्था, आलंब (वि०) जिसे कोई सहारा न हो, ( आलं० भी ) महावी० ४।५३ 2. जो दूसरे पर आश्रित न हो, स्वतंत्र 3. जो अपना आश्रय आप ही हो, असहाय, अकेला -- निरालंबो लंबोदरजननि कं यामि शरणम्-जग०, आलोप (वि० ) 1. इधर उधर न देखने वाला 2. दृष्टिहीन 3. प्रकाशरहित, अंधकारयुक्त मा० ५/३० - आश (वि०) आशाशून्य, निराश, नाउम्मीद मनो बभूवेंदुमतीनिराशम् - रघु० ६१२, - आशंक (वि०) निर्भय, - आशिष् ( वि० ) 1. आशीर्वाद या वरदान से वञ्चित 2. निरिच्छ, इच्छारहित, निराश, उदासीन -- जगच्छरण्यस्य निराशिषः सतः - कु० ५/७६, -आश्रय (बि० ) 1. आश्रयहीन, जिसे कोई सहारा न हो, आश्रयरहित 2. मित्रहीन, दरिद्र, अकेला, शरणहित निराश्रयाधुना वत्सलता, आस्वाव ( वि०) स्वादरहित, फीका, बेमजा, आहार ( वि० ) जिसे भोजन न मिले, उपवास करने वाला, भोजन से परहेज करने वाला (-र: ) उपवास करना, इच्छ ( वि० ) विना इच्छा के, चाहरहित, उदासीन, इन्द्रिय ( वि० ) 1. जिसका कोई अंग नष्ट हो गया हो या काम न दे 2. विकलांग, अपांग 3. दुर्बल, अशक्त, कमजोर 4. ज्ञान के साधन से हीन, जिसकी कोई इन्द्रिय बेकाम हो गई हो - मनु० ९११८, - इंधन ( वि० ) इंधनरहित, इति ऋतुओं के संकट ( अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि) से मुक्त - रघु० १/६३, दे० इति - ईश्वर ( वि० ) ईश्वर को न मानने वाला नास्तिक, - ईषम् हल का फाल, -- ईह ( वि० ) 1. तृष्णा से रहित, उदासीन, रघु० १० २१2. उद्य महीन, उच्छ्वास (वि०) 1. जो श्वास न लेता हो, श्वास रहित ( उ ) श्वास- क्रिया का अभाव, उत्तर (वि०) 1. उत्तर रहित, बिना उत्तर के 2. जो कुछ उत्तर न दे सके, चुप 3. जिससे बड़ा कोई और न हो, उत्सव ( वि० ) विना उत्सव का – विरतं गेयमृतुनिरुत्सवः - रघु० ८३६६, उत्साह (वि०) जिसमें उत्साह न हो, उत्साह रहित, स्फूर्ति शून्य (हः ) उत्साह का अभाव, आलस्य - उत्सुक (वि० ) 1. उदासीन 2. शान्त, चूपचाप, उदक (वि०) जलरहित, उद्यम, उद्योग (वि०) निश्चेष्ट, निकम्मा, आलसी, सुस्त, उद्वेग (वि०) उत्तेजना रहित, जिसमें घबराहट न हो, गम्भीर, शांत, उपक्रम (वि०) जिसका आरम्भ न हुआ हो, उपद्रव (वि०) 1. संकट या कष्ट से मुक्त, जिसमें या जहाँ कोई भय या उत्पात न हो, भाग्यशाली, सुखद, निर्वाध For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संताप-विपक्षियों के आक्रमण से सुरक्षित 2. राष्ट्रीय | दुःखों या अत्याचारों से मक्त 3. जो किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचाये 4. सुरक्षित, शांतिमय, --उपधि (वि.) निष्कपट, ईमानदार ---उत्तर० २।२,-उपपत्ति (वि०) अनुपयुक्त, उपपद (वि०) 1. जिसकी कोई उपाधि या पद न हो--मुद्रा० ३. 2. गौण शब्द से असंबद्ध, उपप्लव (वि.) वाधारहित, जहाँ कोई रुकावट या सकट न हो, जहाँ किसी प्रकार की हानि न हो-निरूपप्लानि नः कर्माणि संवत्तानि - श० ३, उपम (वि०) अनुपम, बेजोड़, अतुलनीय, उपसर्ग (वि०) जहां उत्पात न होते हों, उपद्रव से रहित, उपाख्य (वि०) 1. अवास्तविक, मिथ्या, (बंध्यापुत्र की भांति) जिसका कोई अस्तित्व न हो 2. अभौतिक 3. नीरूप, --उपाय (वि०) उपायरहित, असहाय,-उपेक्ष (वि०) 1 जालसाजी या चालाको से मुक्त 2. जिसकी उपेक्षा न की गई हो,–उष्मन् (वि०) तापशून्य, शीतल, गंध (वि०) गंधशून्य, गंधरहित, जिसमें गंध न हो, बिना गंध के -निर्गंधा इव किंशुकाः, पुष्टिः (स्त्रि०) सेमर का पेड़,--गर्व (वि.) अभिमानरहित, -- गवाक्ष (वि०) जहाँ कोई खिड़की न हो,-गुण (वि०) 1. (धनुष की भांति) बिना डोरी का 2. संपत्तिशुन्य 3. गुणरहित, बुरा, निकम्मा-निर्गुणः शोभते नैव विपुलाडवरोऽपि ना--भामि० २११५ 4. जिसका कोई विशेषण न हो 5. जिसकी कोई उपाधि न हो (णः), परमात्मा, -गृह (वि०) जिसका कोई घर न हो, घररहित - सुगही निर्गही कृता- पंच० ११३९०, -गौरव (वि.) 1. जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो, प्रतिष्ठारहित,---ग्रंथ (दि०) 1. बंधनमुक्त, बाधारहित 2. गरीब, संपत्तिरहित, भिखारी 3. अकेला, असहाय (थः) 1. जड, मूर्ख 2. जुआरी 3. सन्त महात्मा जो सब प्रकार की सांसारिक विषय वासनाओं को त्याग कर नग्न होकर विचरता है, और विरक्त संन्यासी की भांति रहता है,- ग्रंथक (वि०) 1. निपुण, विशेषज्ञ 2. असहाय, अकेला 3. छोड़ा हआ, परित्यक्त 4. निष्फल (क:) धार्मिक साधु, क्षेपणक 2. दिगंबर साधु 3. जुआरी,-ग्रंथिकः नंगा रहने वाला साधु, दिगंवर संप्रदाय का जैन-साधु, क्षपणक,-घटम् 1. वह बाजार जहाँ दुकानदारों से किसी प्रकार का कर न लिया जाता हो 2. बड़ा बाजार जहाँ बहुत भीड़ भड़क्का हो,-घण (वि०) 1. क्रूर, निष्ठुर, निर्दय 2. निर्लज्ज, बेहाया,-जन (वि.) जहाँ कोई न रहता हो, जो आबाद न हो, जहाँ कोई आता-जाता न हो, एकान्त, सुनसान (नम्) मरुभूमि, एकांत सुनसान जगह,--जर (वि०) । 1. जो कभी बढ़ा न हो, सदा युवा रहने वाला 2. अनश्वर, जिसकी कभी मृत्यु न हो, (रः) देवता, सुर (कर्तृ० ब० व०---निर्जरा: --निर्जरसः) (रम्) अमृत, सुधा, --जल (वि.) 1. जलरहित, मरुभूमि, जलशुन्य 2. जिसमें पानी न मिला हो (लः) ऊसर, बंजर, वीरान उजाड़, -जिह्वः मेंढक, जीव (वि.) 1. प्राणरहित 2. मृतक, -ज्वर (वि०) जिसे बुखार न हो, स्वस्थ,-दंडः शुद्र,--दय (वि०) 1 निर्दय, क्रूर, निर्मम, बेरहम, करुणारहित 2. उग्र 3. घनिष्ठ दृढ़, मजवन, अत्यधिक, प्रचंड ... मुग्धे विदेहि मयि निर्दयदंतदशम ---गीत०१०, निर्दयरतिथमालसाःरघु० १९।३२, निर्दयाश्लेषहेतोः मेघ० १०६, ----दयम् (अव्य०) 1. निष्ठरता के साथ, क्रूरतापूर्वक 2. प्रचंडता के साथ, कठोरतापूर्वक-रघु० ११४८४, दश (वि०) दस से अधिक दिनों का, दशन (वि०) बिना दांतों का, दुःख (वि०) 1. पीड़ा से मुक्त, पीडारहित 2. जो पीडा न दे, दोष (वि०) 1. निरपराध, दोषरहित-न निर्दोष न निर्गुणम् 2. अपराधशून्य, निरीह, - द्रव्य (वि०) संपत्तिरहित, गरीब, द्रोह (वि०) जो शत्रु न हो, मित्रवत्, कृपापूर्ण, जो द्वेषपूर्ण न हो,--द्वन्द्व (वि.) जो सुखदुःख के द्वंद्वों से रहित हो, हर्ष और विषाद से परे हो,-निद्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् --भग० २४५ 2. जो औरों पर आश्रित न हो, स्वतंत्र 3. ईर्ष्या द्वेष से मुक्त हो 4. जो दो से परे हो 5. जिसमें मुकाबला न हो, जिसमें किसी प्रकार का झगड़ा न हो 6. जो दो सिद्धांतों को न मानता हो,--धन (वि.) संपत्तिहीन, गरीब, दरिद्र-शशिनस्तुल्यवंशोऽपि निर्धनः परिभूयते-चाण० ८२, (नः) बूढ़ा बैल,--धर्म (वि०) धर्महीन, अधर्मी, धूम (वि०) जहाँ धूआँ न हो---ज़र (वि०) मनुष्यों द्वारा परित्यक्त, उजाड़,--नाय (वि.) जिसका कोई अभिभावक या स्वामी न हो,--निद्र (वि.) जिसे नींद न आई हो, जागरूक,--निमित्त (वि.) अकारण बिना कारण का,--निमेष (बि०) बिना पलक झपकार्य टकटकी लगाने वाला,--बंधु (वि०) बंधुरहित, मित्रहीन,--बल (वि.) शक्तिरहित, कमज़ोर, बलहीन,--बाध (वि.) 1. बाधारहित 2. जहाँ प्रायः आना-जाना न हो, एकांत, निर्जन 3. निरुपद्रव, बुद्धि (वि०) मूर्ख, अज्ञानी, बेवकूफ़,-बुष,-बुस (वि०) जिसकी भसी न निकाली गई हो, जिसमें से बूर निकाल दिया गया है,-.-भय (वि.) 1. निडर, निश्शंक 2. भय से मुक्त, सुरक्षित, निरापद्---मनु० ९।२५५,-भर (वि०) अत्यधिक, तीव्र, उग्र, बहुत मजबूत–वपाभर निर्भर स्मरशर—गीत० १२, For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५३३ ) अमरु ४२ 2. उत्सुक 3. दृढ़, प्रगाढ़ (आलिंगन आदि)- कुचकुंभनिर्भरपरीरंभामतं बांछति - गीत. ५, परिरध्य निर्भरम् ... गीत०१ 4. गाढ़, गहरा (नींद आदि) 5, (समास के अन्त में) भरा हुआ, आनन्द०, गर्व० आदि (रम) अधिकता (अव्य०-- रम्) 1. अत्यधिक, अत्यंत, वहत 2. खब, चैन से-, । भाग्य (वि०) भाग्यहीन, दुर्भाग्यपूर्ण भूति (वि०) बेगार में काम करने वाला,--मक्षिक (वि०) । 'मक्खियों से मुक्त' निधि, निर्जन, एकांत (अब्ध म्) विना मक्खियों के अर्थात एकान्त, निर्जन-- कृतं भवतेदानीं निर्मक्षिकम् ... श० २१६,.. मत्सर (वि.) ईर्ष्यारहित, ईर्ष्या न करने वाला, मत्स्य (वि०) जहाँ मछलियां न हों,-..मद (वि.) 1. जो | नशे में न हो, संजीदा, गंभीर, शान्त 2. अभिमानरहित, विनीत 3. (हाथी की भाँति) मदजल से रहित,- मनुज,-मनुष्य (वि०) मनुष्यों से रहित, गैर-आबाद, मनुष्यों द्वारा परित्यक्त,. मन्यु (वि०) बाह्य संसार के सब प्रकार के संबंधों से मक्त, जिसने सब सांसारिक बंधनों को तिलांजलि दे दी है, संसार मिव निर्ममः (ततार) रघु० १२१६०, भग० २०७१, ३।३०, 2. उदासीन (अधि. के साथ)---निर्मम निर्ममाऽर्थेप मधुरां मधुराकृतिः ....रघु०१५।२८, प्राप्तेप्वर्थप निर्ममा:-महा०,-मर्याद (वि.) 1.मीगारहित, अपरिमित 2. औचित्य की सीमा का उल्लंघन करने वाला, अनियंत्रित, उदंड, पापमय, अपराधीमनुजपशुभिनिर्मर्यादैर्भवद्धिदायवैः-वेणी० ३१२२, --- मल (वि.) 1. मैल और गन्दगी से मुक्त 2. स्वच्छ, शुद्ध,अकलप, निष्कलंकित (आलं. भी) धोरात्रिर्मलतो जनिः... भामि० ११६३ 3. निप्पाप, सद्गुणसंपन्न, मनु० ८।३१८ (लम्) 1. कहानी 2. देवता के | चढ़ावे का अवशेप, उपलः स्फटिक, मशक (वि०) मच्छरों से मुक्त, -मांस (वि०) मांसारहित-- मानुष (वि०) जो वमा हुआ न हो, निर्जन, - मार्ग (वि.) मार्ग रहित, पथशून्य,—मुटः 1. सूर्य 2. बदमाश (टम) वह बाजार या मेला जहाँ कर या चुंगीन । लगे,-मूल 1. (वृक्ष आदि) बिना जड़ का 2. निराधार, आधारहीन (वक्तव्य या दोपारोप आदि)। 3. उन्मलित,- मेघ (वि.)नि भ्र, बादलों से रहित, -मेध (वि०) जिसे समघ न हो, निर्बुद्धि, जड़, . मूर्ख, मन्दबुद्धि,.. मोह (वि.) माया या छल से मुक्त, “यत्न (वि.) निश्चेप्ट, उद्यमहीन - यंत्रण . (वि०) 1. जहां कोई नियंत्रण न हो, निर्वाध, नियंत्रणरहित, प्रतिबन्धशन्य, 2. उदंड, स्वेच्छाचारी, स्वतन्त्र (णम्) प्रतिवन्धशन्यता, स्वतन्त्रता,-यशस्क (वि०) जिसकी कीति न हो, अकीतिकर, लज्जा-: जनक युथ (वि.) जो अपने दल से बिछड़ गया हो, (हाथी की भांति) यूथभ्रष्ट,-- रयत (नीरषत) (वि०) बिना रंग का, फीका, रज, रजस्क (वि०) (नीरज, नीरजस्क) 1. धूल से मुक्त, 2. रागशुन्य अन्धकार शून्य, रजस् (वि०) (नीरजस्) दे० 'नीरज' (स्त्री०) रजस्वला न होने वाली स्त्री, तमसा राग या अन्धकार का अभाव, रंध्र (वि०) (नोरंध्र) 1. जिममें छिद्र न हों, अत्यन्त सटा हुआ, संसक्त, साथ लगा हुआ - उत्तर० २।३ 2. निविड, सघन 3. मोटा, स्थूल,- रव (वि०) (नीरव) शब्दरहित, ध्वनिशन्य - रघु० ८1५८,- रस (वि०) (निरस) 1. स्वादरहित, बेमजा, रसहीन 2. (अलं.) फीका, काव्य सौन्दर्य से विहीन-नीरसानां पद्यानाम् -~~-सा०द० १ 3. सूखा, रूखा, शुष्क-शृंगार०९ 4. व्यर्थ, बेकार, निष्फल, अलब्धफलनीरसान् मम विधाय तस्मिन् जने-विक्रम० २।११ 5. अरुचिकर, 6. क्रूर निष्ठूर (सः) अनार,--रसन (वि०) (नीरसन) विना मेखला या कटिसूत्र के (रसना)-- कि० ५।११, - रुच् (वि०) (नीरुच) कान्तिहीन, म्लान, धूमिल,----,-रुज (वि०.) (नीरज, नीरुज) रोग से मुक्त, स्वस्थ, अरोगी--नीरजस्य किमीपर्धः-हि०१, ---रूप (वि०) (नीरूप) रूपरहित, निगकार---रोग (वि.) (नीरोग) रोग या बीमारी से मुक्त, स्वस्थ, अरोगी,--- लक्षण (वि.) 1. अशुभ चिह्नीं से युक्त, अमंगलकारी (मनहूस) सूरतशक्लवाला 2. जिसकी प्रसिद्धि न हो 3. अनावश्यक, निरर्थक 4. बेदाग, -लज्ज (वि.) बेशर्म, बेहया, नीठ,... लिंग (वि०) जिसमें कोई परिचायक चिह्न न हो... - लेप (त्रि.) 1. जो लिपा हुआ न हो, जिस पर मालिग न की गई हो-मनु० ५।११२ 2. निष्कलंक, निप्पाप, --लोध (वि) लालच से मुक्त, लाभ-हित, -लोमन् (वि०) जिसके बाल न हों, बालों से शन्य,-वंश (वि.) जिसका वंश उच्छिन्न हो गया हो, निःसन्तान, वण,-.-वन (वि.) i. बन से बाहर 2. वन से रहित, नंगा, खुला हुआ,- बसु (वि०) धनहीन, गरीव,--वात (वि०) वायु से सुरक्षित या मुक्त, शान्त, चुपचाप,-रघु०१५।६६, (तः) बायु के प्रकोप से मक्त स्थान, वानर (वि०) बंदरों से मुक्त, --वायस (वि०) कौओं से सुरक्षित,--विकल्प,-विकल्पक, (व.) 1. विकल्प से रहित 2. जिसमें दृढ़ संकल्प या निश्चय का अभाया है 3. पारस्परिक संबंध से विहीन 4. प्रतिवन्धय बत 5. कर्ता, कर्म या ज्ञाता तथा ज्ञेय के विवेक से रहित एक प्रकार का प्रत्यक्ष ज्ञान जिसमें किसी विपय का केवल इसी रूप में ज्ञान होता है कि यह कुछ है। जिस प्रकार कि समाधि की For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५३४ अवस्था में केवल एक ही अभिन्न तत्त्व (ब्रह्म) पर एकमात्र ध्यान केन्द्रित होता है, और ज्ञाता, ज्ञेय, तथा ज्ञान के विभेद का बोध नहीं रहता यहाँ तक कि आत्मचेतना का भी भास नहीं होता - निर्विकल्पकः ज्ञातृज्ञानादिविकल्पभेदलयापेक्षः, नोचेत् चेतः प्रविश सहसा निर्विकल्पे समाधौ भर्तृ० ३।६१, वेणी० १२३, ( अव्य० - ल्पम् ) बिना किसी संकोच या हिचक के, - विकार ( वि० ) 1. अपरिवर्तित, अपरिवर्त्य, निश्चल 2. विकार रहित -- मालवि० ५।१४ 3. उदासीन स्वर्थहीन - ऋतु० २।२८ - विकास ( वि० ) जो खिला न हो, अविकसित, विघ्न (वि.) बिना किसी प्रकार के हस्तक्षेप के, जिसमें कोई बाधा न हो, विघ्न-बाधाओं से मुक्त (नम् ) विघ्नों का अभाव, विचार (वि०) अविमर्शी, विचार शून्य, अविवेकी- रे रे स्वैरिणि निविचारकविते मास्मत्प्रकाशीभव-चन्द्रा० १2, ( अव्य-रम् ) बिना बिचारे, निस्संकोच, – विचिकिल्स (वि०) सन्देह या शंका से मुक्त, विचेष्ट ( वि० ) गतिहीन, संज्ञाहीन, -- वितर्क ( वि०) जिस पर तर्क या सोच विचार न किया जा सके, विनोद (fro ) आमोद प्रमोद से रहित, मनोरंजनशून्य - मेघ० ८६, विषया विन्ध्य पहाड़ियों में बहने वाली एक नदी - मेघ० २८, - विमर्श (वि०) विचारशून्य, अविवेकी, सोचविचार न करने वाला, -- विवर (वि०) 1. बिना किसी विवर या मुंह के 2. जिसमें कोई छिद्र या अन्तराल न हो, सटा हुआ, शि० ९१४५, विवाद ( वि० ) 1. विवाद रहित 2. जिसमें कोई झगड़ा न हो, कोई विरोध न हो, विश्वसम्मत, विवेक ( वि० ) ना समझ, विवेकशून्य, अदूरदर्शी, मूर्ख, -विशंक (वि०) निडर, निश्शंक, विश्वस्त मनु० ७।१७६, पंच० ११८५ - विशेष (वि०) कोई अन्तर न मानने वाला, बिना भेद-भाव के, किसी प्रकार का भेदभाव न रखने बाला -- निर्विशेषा वयं त्वयि - महा०, निर्विशेषो विशेष :- भर्तृ० ३०५०, 'भेद-भावका अभाव ही अन्तर' 2. जहाँ भिन्नता का अभाव हो, समान, तुल्य ( प्रायः समास में) अभिन्न -- प्रवातनीलोत्पलनिविशेषम् - कु० १९४६, स प्रतिपत्तिनिर्विशेषप्रतिपत्तिरासीत् - रघु० १४।२२ 3. अभेदकारी, गड्डमड्ड (षः) अन्तर का अभाव (निविशेषम् और निविशेषेण शब्द 'बिना किसी भेद-भाव के', 'समान रूप से' 'बिना किसी अन्तर के ' अर्थों को प्रकट करने के लिए क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं, स्वगृहनिर्विशेषमत्र स्थीयताम् - हि० १, रघु० ५/६ ), - विशेषण ( वि०) बिना किसी विशेषण के विष (वि० ) ( सांप आदि ) जिसमें जहर न हो --निर्विषा डुडुभाः स्मृताः -- विषय (बि० ) 1. अपनी जन्मभूमि या निवास स्थान से ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्वासित किया हुआ --मनो निर्विषयार्थकामया - कु० ५।३८, रघु० ९।२८ 2. जिसे कार्य क्षेत्र का अभाव हो - किंच एवं काव्यं प्रविरलविषयं निर्विषयं वा स्यात् - सा० द० १3. ( मन की भांति ) विषय-वासनाओं में अनासक्त घाण (वि०) बिना सींगो का - बिहार ( वि० ) जिसके लिए आनन्द का अभाव हो, वीज (खोज) (वि०) 1. बिना बीज का 2. नपुंसक 3. निष्कारण, वीर (वि०) वीर विहीन निर्वीरमुर्वीतलम् - प्रस० ११३१ २. कायर- वीरा वह स्त्री जिसका पति व पुत्र मर गये हों - वीर्य ( वि० ) शक्तिहीन, निर्बल, पुरुषार्थहीन, नपुंसक - निवर्य गुरुशापभाषितवशात् किं मे तवेवायुधम् - वेणी ० ३।३४, - वृक्ष (वि०) जहाँ पेड़ न हों, वृष (वि०) जहाँ अच्छे बैल न हों, वेग (वि०) निश्चेष्ट, गतिहीन, शान्त, वेगरहित, वेतन (वि०) अवैतनिक, विना वेतन का, वेष्टनम् जुलाहे को नरी, ढरकी, -- वर (वि०) वैरभाव से रहित, स्नेही शान्तिप्रिय ( रम् ) शत्रुता का अभाव, व्यंजन ( वि०) सीधा सादा, खरा 2. बिना मसाले का ( अव्य० ने) सीधासादे ढंग से, बेलाग, ईमानदारी से, व्यथ ( वि० ) 1. पीडा से मुक्त 2. शान्त, स्वस्थ, - व्यपेक्ष ( वि० ) उदासीन, निरपेक्ष रघु० १३।२५, १४१३९, व्यलीक ( वि० ) जो किसी प्रकार की चोट न पहुंचाये 2. पीडारहित 3. प्रसन्न मन से कार्य करने वाला 4. निष्कपट, सच्चा, पाखंडहीन, - व्याघ्र ( वि० ) जहाँ चीतों का उत्पात न हो, व्याज (वि०) 1. स्पष्ट का, खरा, ईमानदार, सरल 2. पाखंडरहित भर्तृ ० २२८२, ( अव्य० -- जम्) सरलता से, ईमानदारी से, स्पष्ट रूप से, अमरु ७९ - व्यापार (वि०) जिसे कोई काम न हो, बेकार, रघु० १५/५६, व्रण (वि०) 1. जिसे चोट न लगी हो, व्रणरहित 2. जिसमें दरार न पड़ी हो, व्रत (वि०) जो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन न करे, - हिमम् जाड़े को समाप्ति, हिमशून्य, - हेति (वि०) निरस्त्र, जिसके पास कोई हथियार न हो, हेतु (वि०) निष्कारण, बिना किसी तर्क, या कारण के, हीक (वि०) 1. निर्लज्ज, बेहया ढीठ 2. साहसी, निर्भीक । निरत ( वि० ) [ नि + रम् + क्त ] 1. किसी कार्य में लगा हुआ या रुचि रखने वाला 2. भक्त अनुरक्त, संलग्न, आसक्त वनवासनिरतः का० १५७ 3. प्रसन्न, खुश 4. विश्रान्त, विरत । निरतिः (स्त्री० ) [ नि+रम्+ क्तिन् ] दृढ़ आसक्ति, अनुरक्ति, भक्ति । निरयः [ निस् + इ + अच् ] नरक - निरयनगरद्वारमुद्धाटयंती - भर्तृ० १६३, मनु० ६ ६१ । For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५३५ ) निरवहानि (लि) का [ निर्--अव+ हन् (ल)+ण्वुल । निराकृतिः (स्त्री०) मिराक्रिया [निर्+आ++तिन्, +टाप, इत्वम् ] बाड़ा, चाहारदीवारी।। निर्+आ+कृ-श+टाप ] 1 प्रत्याख्यान, निष्कानिरस (वि.) [ निवृत्तो रसो यस्मात् प्रा० ब० ] स्वाद- सन, अस्वीकरण 2. इंकार 3. अवबाधा, विघ्न, रुका' रहित, फीका, सूखा-स: 1. रस की कमी, फीकापन, बट, हस्तक्षेप विरोध, प्रतिरोध । स्वादहीनता 2. रसहीनता, सूखापन 3. उत्कण्ठा का | निराग (वि.) [निवृत्तः रागो यस्मात् प्रा० ब०] उत्कण्ठाअभाव, भावना की कमी। रहित, जिसमें जोश न रहे। निरसन (वि.) (स्त्री०-नी०) [निर+असल्यट] निरादिष्ट (वि.) [ निर+आ+दिश्+क्त ] जो ऋण निकालने वाला, हटाने वाला, दूर भगाने वाला, । वापिस कर दिया गया हो। -शि० ६।४७ 2. उद्वमन या के करने वाला--नम् | निरामालुः [ मि+रम् +आलु ] कैथ का वृक्ष । 1. निकालना, प्रक्षेपण, निष्कासन, हटाना 2. मुकरना, | निरासः [ निरअस+घा ] 1. प्रक्षेपण, निर्वासन, वचन-विरोध, अस्वीकृति, इंकार 3. के करना, थूक बाहर फेंक देना, हटाना 2. उगलना 3. निराकरण देना 4. रोकना, दबाना 5. बिनाश, वध, उन्मूलन। | 4.बिरोध । निरस्त (भू.क. कृ.) [ निर+अस्+क्त 11. दूर | निरिंगिणी, नी [निः निभंतं जनमिति प्राप्नोति डाला हुआ, दूर फेका हुआ, प्रत्याख्यात, हांका हुआ, | निर+इंग+इनि+डीप् ] परदा, चूंघट । निष्कासित, निर्वासित-कोलीनभीतेन गृहान्निरस्ता। | निरीक्षणम्, निरीक्षा [निर्+ईक्ष + ल्युट्, अ+टाप् वा ] ---रघु० १४१८४ 2. दूर भगाया गया, नष्ट किया ___ 1. दृष्टि 2. देखना, ध्यान देना, नज़र डालना, गया, अह्राय तावदरुणेन तमो निरस्तम्-रघ० अवलोकन करना 3. ढूंढना, खोजना 4. विचार, ५।७१ ३. छोड़ा हुआ, परित्यक्त 4. दूर हटाया गया, खयाल,---निरीक्षया की बाबत, के विषय 5. आशा, वंचित, शून्य-निरस्तपादपे देशे एरंडोऽपिद्रमायते प्रत्याशा 6. ग्रहदशा। --हि. १९६९ 5. (बाण आदि) चलाया हुआ 6. निरीश, षम् [ निर्-+ईश्+()+क] हल का फाल । निराकृत 7. उगला हुआ, थूका हुआ 8. शीघ्रतापूर्वक | निरुक्त (वि०) [निर्+वच्+क्त ] 1. अभिहित, उच्चरित 9. फाड़ा हुआ, विनष्ट 10. दबाया हुआ, उच्चरित, अभिव्यक्त, परिभाषित 2. उच्चस्वर से बोला रोका हुआ 11. (करार, प्रतिज्ञा आदि) तोड़ा हुआ, हुआ, स्पष्ट,-क्तम् 1. व्याख्या, निर्वचन, व्यत्पत्ति-स्तम् 1. अस्वीहृति, इंकार 2. छोड़ देना, दूतो- सहित व्याख्या 2. छः वेदांगों में एक जिसमें अप्रचलित च्चारण । सम०-भेद (वि.) सब प्रकार के भेद- शब्दों की व्याख्या की गई है, विशेषकर वैदिक शब्दों भाव हटाये हुए, वही, समरूप,-राग (वि०) जिसने की–नाम च धातु जमाह निरुक्ते-नि० 3. यास्क समस्त सांसारिक अनुरागों का त्याग कर दिया है। द्वारा निघण्टु पर किया गया भाष्य। निराक: [ निर+अकघा ] 1. पकाना 2. स्वेद, निक्तिः (स्त्री) निर+व+क्तिन् ] 1. व्युत्पत्ति, पसीना 3. दुष्कर्मों का निस्तार ('निपाक' भौ)। शब्दों की व्युत्पतिसहित व्याख्या 2. (अलं. शा० निराकरणम् [ निर्---आ++ल्यट1. प्रत्याख्यान में) एक काव्यालंकार जिसमें शब्द की व्यत्पत्ति की करना, निकाल बाहर करना, रद्द कर देना--निरा मनमानी व्याख्या की जाय, परिभाषा इस प्रकार हैकरणविक्लवा--- श० ६, 2. निर्वासन 3. अवबाधा, निरुक्तिर्योगतो नाम्नामन्यार्थत्वप्रकल्पनम्, ईदर्शश्चरिविरोध, प्रतिरोध, अस्वीकृति 4. खण्डन, उत्तर 5. तर्जाने सत्यं दोषाकरो भवान्-चन्द्रा० ५।१६८, तिरस्कार 6. यज्ञ के मुख्य कर्तव्यों की उपेक्षा 7. (दोषाकरः =दोषाणामाकरः)। विस्मति । निरुत्सुक (वि०) [निर्+उद्+सू---क्विप्+कन्,ह्रस्वः] निराकरिष्णु (वि.) [निर्+आ++इष्णुच् ] 1. प्रत्या- | 1. अत्यंत आतुर, 2. उत्सुकतारहित, उदासीन । ख्यान करने वाला, बाहर निकालने वाला, निकाल | निरुद्ध (भ. क. कृ०) [नि+रुध्+क्त] 1. अवबाधित, बाहर करने वाला रघु०१४१५७ 2. विघ्न डालने प्रतिरुद्ध, अवरुद्ध, नियन्त्रित, दमन किया गयावाला, बाधक 3. ठुकराने वाला, तिरस्कर्ता 4. किसी उत्तर० ११२७ 2. संसीमित, बंदीकृत। सम.----कंठ को किसी वस्तु से वंचित करने की चेष्टा करने । (वि०) जिसका सांस रुक गया हो, दम घुट गया हो,- गुदः मलद्वार का अवरोध । निराकुल (वि.) [ निर् +आ+कुल- क ] 1. भरा | निरूढ (वि.) [नि कह+क्त ] परंपरागत, प्रचलित, हुआ, व्याप्त, ढका हुआ अलिकुलसंकुलकुसुमसमूहनि- रूढ़ (शब्द का अर्थ---विप० यौगिक अर्थात् व्युत्पराकूलबकुलालापे -- गीत०१ 2. दुःखी - दे० 'निर'। त्यर्थ) द्यौर्न काचिदथवाऽस्ति निरूढा सैव सा चलति के अन्तर्गत भी। यत्र हि चितम्-० ५।५७ 2. अविवाहित,--: बाला। For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५३६ ) !. अन्तनिधान, न्यास (जैसा कि "लाल" में | निर्घर्षणम् [ निर+घृष् + ल्युट ] रगड़, टक्कर। 'लालिमा')। सम-लक्षणा शब्द का वह गौण निर्धातः [ निर-+हन+घञ ] 1. विनाश 2. बवंडर, प्रयोग जो वक्ता के विशेष आशय या विवक्षा पर हवा का प्रचंड झोंका, आँधी 3. हवा की सनसनाहट, निर्भर नहीं करता, बल्कि उसके स्वीकृत या लोकरूढ़ आकाश में हवा के झोंकों के टकराने का शब्द प्रचलन पर आधारित है। निर्घातोः कुंजलोनाञ जिघांसुयानि?षैः क्षोभयानिरूढिः (स्त्री०) [नि+रह+क्तिन् ] 1. प्रसिद्धि, मास सिंहान्-रघु० ९।६४, गनु० ११३८, ४।१०५, ख्याति 2. जानकारी, परिचय, प्रवीणता ---नपविद्यासु ७, याज्ञ० १११४५, (वायना निहतो वायर्गगनाच्च निरूढिमागता--कि० २६ 2. संपुष्टि । पतत्यवः, प्रचंडघोरनिर्घोषो निर्यात इति कथ्यते) 4. निरूपणम्,-णा [नि+ रूप+णिच-+ल्युट ; स्त्रियां टाप शूकंप 5. वज्रपात-अहह दारुणो देवनिर्धात: च] 1. रूप, आकृति 2. दृष्टि, दर्शन 3. ढूंढना, -उत्तर० २। खोजना 4. निश्चयन, अन्वेषण, निर्धारण 5. परिभाषा। निर्घातनम् [ निर्-+हन--णिवल्युट ] बलपूर्वक निरूपित (भू० क. कृ०) [नि+रूप् + णिच्-|-क्त ] बाहर निकालना, प्रकाशित करना । 1. देखा गया, खोजा गया, चिह्नित, अवलोकित निर्घोषः [ निर्+घु+घ ] 1. ध्वनि देणी० ४, 2. नियत, चुना हुआ, निर्वाचित 3. विवेचन किया रघु० ११३६ 2 निनाद, खड़बड़ाहट, ठनक ज्यानिगया, विचार किया गया 4. निश्चय किया गया, । घोषैः क्षोभयामास सिंहान् रघु० ९।६४, भारतीनिर्धारित। निर्घोष:--उत्तर० ३। निरूहः [नि+रुह । घा] 1. वस्तिकर्म का एक प्रकार | निर्जयः, निजितिः (स्त्री०) [ निर् ---जि-+अच, क्तिन 2. तर्क, युक्ति 3. निश्चितता, निश्चय 4. वाक्य वा] पूरी विजय, वशीकरण, परास्त करना। जिसमें न्यूनपद न हो, संपूर्ण वाक्य । निसरः,-रम् [ निर+झ+अप ] झरना, जल प्रपात, निऋतिः [निर++क्तिन् ] 1. क्षय, नाश, विघटन घनघोरवष्टि, वारिपवाह, पहाड़ी झरना . शीत 2. संकट, अनिष्ट, विपदा, विपत्ति--सा हि लोकस्य निर्झरवारिपानम्-नागा० ,, रपु० २।१३, शा० निति:--उत्तर० ५।३० 3. अभिशाप, आक्रोश २।१७, २१, ४१६,--र: 1. भूसी जलाना 2. हाथी 4. मृत्य, मतिमान् विनाश, मत्य या विनाश की देवी, 8. सूर्य का घोड़ा। दक्षिण-पश्चिम कोण की अधिष्ठात्री देवी--मनु० - निरिन् (पुं०) निर्झर-इनि ] पहाड़। ११।११९। निझरिणी, निर्झरी निर्धारित-अप, निर्झर+डोष ] निरोधः, निरोधनम् । निरु+घा , ल्युट वा ] 1. कैद नदी, पहाड़ी झरना--स्खलनमखरभूरिस्रोतसो निर्झ करना, रोधागार में रखना, हवालात में रखना-मनु० रिण्यः --- उत्तर० २।२०। ८।२१०,३७५ 2. घेरना, ढक देना-- अमरु ८७ निर्णय [ निर+नी+अच ] 1. दरोकरण, हटाना 2. 3. प्रतिबंध, रोक, दमन, नियंत्रण ...योगश्चित्तवृत्ति पूर्ण निश्चय, फैसला, प्रकथन, निर्धारण स्थिरीकरण निरोधः -योग०, कु० ३।४८ 4. रुकावट, अववाधा, .-संदेहनिर्गयो जात: दा० ११२७, मनु० ८१३०१, विरोध 5. चोट पहुँचाना, दण्ड देना, क्षति पहँचाना ४०९, ९४२५०, याज्ञ० २।१० हृश्यं निर्णयमेव धावति 6. ध्वंस, विनाश 7. अरुचि, नापसंदगी 8. निराशा, --कि० २।२९ 3. घटना, अटकल, उपसंहार, (तर्क० भग्नाशा। में) प्रदर्शन 4. विचारविमर्श, गवेपणा, विचारण 5. निर्गः [ निर+गम्+ड] देश, प्रदेश, स्थान । किसी विचारपति द्वारा किसी विवाद के विषय में निगंधनम् निर-1-गंध--ल्यट] वध, हत्या। स्थिर किया गया मत, व्यवस्था, फैसला सर्वज्ञस्यानिर्गमः [निर-+गमअप] 1. बाहर जाना, चले जाना | प्येकाकिनो निर्णयाभ्यपगमो दोयाय----मालवि० १ । -~रघु० १११३ 2. बिदायगी, ओझल होना-रघु० सम०--पादः निर्णय को आजप्ति, फरमान, व्यवस्था १९।४६ 3. द्वार, मार्ग, निकास ---कथमप्यवाप्तनिर्गमः (विधि में)। प्रययौ-का०१५९ 4. निष्क्रमण, बाहर जाने का द्वार । निर्णायक (वि०) । निरनी --प्रवल ] निर्णय देने निर्गमनम् [निर-+-गम् + ल्युट ] बाहर निकलना या वाला, अन्तिम फैसला करने वाला। चले जाना। | निर्णायनम [ निर-नी+ल्पट ] 1. निश्चय करना 2. निगूढः [ निर्--गुह+क्त ] वृक्ष का कोटर । हाथी के कान का बाहरी कोण । नियनम् [ निर+ग्रन्थ्+ ल्युट ] वध, हत्या। निणिक्त (भ०० कृ.) । निर ।-निजक्त ] धला निघंटः, टम् [ निर्+घण्ट- घन ] 1. शब्दावली, शब्द हुआ, शद्ध किया हुआ, स्वच्छ किया हआ रघु० संग्रह 2. सूचीपत्र। १७१२२। । , कु० ३।४८योगश्चित्तवत्ति / निर्णय निर विरोध निर्गनिर + गम 2. बिदायमा कथा For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५३७ ) सफाई 2. निणिक्ति: ( स्त्री० ) [ निर् + निज् + क्तिन् ] 1. घुलाई 2. प्रायश्चित्त, परिशोधन महावी० ४।२५ ! निर्णेकः [ निर् + निज् + ञ्ञ ] 1. धुलाई, संचालन 3. परिशोधन, प्रायश्चित्त । निर्णेजक: [ निर् + निज् + ण्वुल् ] धोबी । निर्णेजनम् | निर् + निज् + ल्युट् ] 1. संक्षालन 3. प्रायश्चित्त, परिशोधन ( किसी अपराध के लिए ) । निर्णोद: [ निर् + निद् +घञ ] दूर करना, निर्वासन । निर्वट - ड (वि० ) [ निर्दय पृषो० साधुः ] 1. निष्क रुण, नृशंस, निर्मम 2. दूसरों की त्रुटियों पर हर्ष मनाने वाला 3. ईर्ष्यालु 4. गालीगलौज करने वाला, पिशुन 5. व्यर्थ, अनावश्यक 6. प्रचंड 7. पागल, उन्मत्त । निबंरः, रिः [ निर्+दृ + अप्, इन् + वा ] कन्दरा गुफा 1 निर्दलनम् [ निर् + ल् + ल्युट् ] टुकड़े २ करना, तोड़ना, नष्ट करना । निर्दहनम् [ निर् + द + ल्यु ] जलाना, दग्ध करना । निर्वात (१०) ( निर् +-दाँ (दो) + तृच् ] 1. निराने वाला 2. दाता 3. किसान, खेती काटने वाला । निर्धारित ( वि० ) [ निर्+दृ + णिच् + क्त ] 1. फाड्रा हुआ, विदीर्ण 2. खोला हुआ, काट कर खोला हुआ - शि० १८।२८ | निदिग्ध (भू० क० कृ० ) [ निर् + दिह + क्त ] 1. लेप किया हुआ, मालिश की हुई 2. सुपोषित, स्थूलकाय, हृष्ट पुष्ट । निर्दिष्ट (भू० क० कृ० ) [ निर् + दिश् + क्त] 1. इशारे से बताया हुआ दिखाया हुआ, संकेतित 2. विशिष्ट, | विशिष्टीकृत 3. वर्णित 4. अविन्यस्त, नियत 5. दृढतापूर्वक कहा हुआ, प्रकथित 6 निश्चय किया हुआ निर्धारित 7. आदिष्ट । निर्देशः [निर्+दिश्+घञ्ञ ] 1. इशारा करना, दिख लाना, संकेत करना 2. आदेश, हुक्म निदेश रघु० १२।१७ 3. उपदेश, अनुदेश 4. बतलाना, कहना, घोषणा करना 5. विशेषता करना, विशिष्टीकरण, विशिष्टता, विशिष्टोल्लेख अयुक्तोयं निर्देश:- महा०, भग० १७।३३6. निश्चय 7 पड़ौस सामीप्य । निर्धारः, निर्धारणम् [निर्+घृ + णिच् +घञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. बहुतों में से एक को विशिष्ट करना, या पृथक् करना--- यतश्च निर्धारणम् - पा० २।३।४१, विक्रम ० ३।९२ 2. निश्चय करना, फैसला करना, निर्णय करना 3. निश्चितता, निश्चय । निर्धारित (नू० क० कृ० ) ( निर्+ धृ + णिच् +क्त] निर्धारण किया गया, निश्चय किया गया, स्थिर किया गया, निश्चित किया गया, दे० 'निस्' पूर्वक घृ । ६८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्धूत (भू० क० कृ० ) [ निर् + धू+क्त] 1. हिलाया गया, हटाया गया रघु० १२।५७ 2 परित्यक्त, अस्वीकृत 3. वंचित, रहित 4. टाला गया ५. निराकृत 6. नष्ट किया गया, (दे० 'निस्' पूर्वक 'धू' ) । निधत ( भू० क० कृ० ) [ निर् + धाव् +क्त] 1. धो दिया गया, रघु० ५।४३ 2. चमकाया गया, उज्ज्वल । निबंध : [ निर्बंध + घञ ] 1. आग्रह, हठ, जिद, दुराग्रह - निबंधसंजातरुषा ( गुरुणा ) - रघु० ५।२१, कु० ५/६६ 2. दृढ़ाग्रह, भारी मांग, अत्यावश्कता [निर्बंध पृष्टः स जगाद - रघु० १४।३२, अत एव खलु निबंध - श० ३ 3. ढिठाई 4. दोषारोपण 5. कलह, झगड़ा । निबर्हण - दे० निबर्हण | • निर्भट ( वि० ) [ निर् + भट् + अच्] कठोर, दृढ़ । निर्भर्त्सनम्, ना [ निर् + भर्ल्स + ल्युट् स्त्रियां टापू च] 1. धमकी, घुड़की, शि० ६/६२ 2. गाली, झिड़की, बुरा-भला कहना, दोषारोपण 3. दुर्भावना 4. लाल रग, लाख । निर्भेदः [ निर् + भिद् + ञ] 1. फट जाना, विभक्त करना, टुकड़े २ करना 2. फटन, दरार 3. स्पष्ट उल्लेख या घोषणा - मालवि० ४ 4. नदी का तल 5. किसी बात का निर्धारण । निर्मथः, निर्मथन, निर्मथः, निर्मथन [निर् + मर्थ +घञ, ल्युट् वा, निर + मंथु +घञ्ञ, ल्युट् वा ] रगड़ना, मना, हिलाना 2. दो अरणियों (लकड़ी के टुकड़ों) को आग पैदा करने के लिए आपस में रगड़ना, अरणि । निर्मथ्य ( वि० ) [ निर् + मंथ + ण्यत् ] 1. हिलाये जाने या मथे जाने के योग्य 2. ( आग की भांति ) रगड़ से पैदा करने के योग्य - व्यम् अरणि ( वह लकड़ी जिसे रगड़ कर आग पैदा की जाती है) । निर्माणम् [ निर् + मा + ल्युट् ] 1. मापना, नाप - यतश्चा ध्वकालनिर्माणम् - पा० २।३।२८ वार्ति० 2. माप, फैलाव, विस्तार अयमप्राप्तनिर्माण: ( बाल: ) -रामा० 'पूर्ण विकास को अभी प्राप्त नहीं हुआ 3. उत्पादन, रचना, निर्मिति, ईदृशो निर्माणभागः परिणतः उत्तर० ४ 4. सृष्टि, रचित वस्तु रूप--- निर्माणमेवहि तदादरलालनीयम् - मा० ९/४९5. रूप, बनावट, आकृति -- शरीरनिर्माणसदृशा नन्वस्थानुभावः महावी० १ 6. रचना, कृति) भवन -- णा उपयुक्तता, औचित्य, सुरीति । निर्माल्यम् [ निर् + मल् - - ण्यत् ] 1. शुद्धता, स्वच्छता, निष्कलंकता है. किसी देवता के चढ़ावे का अवशेष, फूल आदि निर्माल्योज्झितपुष्पदामनिकरे का पट्पदानां रतिः - श्रृंगार० १० 3. देवता पर समर्पित For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५३८ ) करने के पश्चात् माये हए फल-निर्माल्यरथ | ५५, (यहां मल्लिनाथ इसका अर्थ लिखते हैं - "मत्त ननृतेऽवधीरितानाम्-शि०८।६० 4. अवशेष । वारणाख्यः उपाश्रयः" और वैजयन्ती का उद्धरण निर्मितिः (स्त्री०) [निर+मा+क्तिन्] उत्पादन, सृजन, देते हैं, संभवत: इसका नाम इसके हाथी के रूप की निर्माण, कलात्मक वस्तु की रचना-नवरसरुचिरां समामता के कारण पड़ा है) चारूतोरणनिर्यहा निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति । ...---रामा० 2. शिरोभूषण, चड़ामणि, मुकूट 3. दीवार निर्मुक्त (भू० क० कृ०) [निर्+मुच्+क्त] 1. छोड़ा में लगी खुटी 4. दरवाजा, फाटक 5. सत्त्व, काढ़ा। हुआ, मुक्त किया हुआ, स्वतंत्र किया हुआ-रघु० | निलञ्चनम् [ निर्+लुञ्च+ल्युट् ] उखाड़ना, फाड़ना, १९४६ 2. सांसारिक अनुरागों से मुक्त 3. वियुक्त, । छीलना। अलग किया हुआ,-क्त: साँप जिसने हाल ही में | निलुंठनम् [ निर्+लुण्ठ+ ल्युट् ] 1. लूटना, लूटखसोट अपनी केंचुली छोड़ी हो। 2. फाड़ डालना। निर्मूलनम् [ निर्+मूल+णिच् + ल्युट् ] उच्छेदन, जड़ से निर्लेखनम् [निर्--लिख + ल्युट् ] 1. खुरचना, खरोंचना, उखाड़ फेंकना, उन्मूलन (आलं. भी) कर्मनिर्मूलन- । नोचना 2. खुरचनी, रांपी। क्षम:- भर्तृ ० ३।७२ । निर्वयनी [ निर्-+ली+ ल्युट्, पृषो० साधुः ] सांप को निर्मष्ट (भू० क० कृ०) [निर्--मृज्+क्त ] पोंछा गया, केंचुली। धोया गया, रगड़ा गया-निर्मुष्टरागोऽधरः-सा० निर्वचनम [ निर+वच-+-ल्यट ] 1. उक्ति, उच्चारण 2. लोकप्रसिद्ध उक्ति. लोकोक्ति 3. व्यत्पत्तिसहित, निर्मोकः [निर्+मुच्+घञ ] 1. मुक्त करना, स्वतंत्र व्युत्पत्ति 4. शब्दावली, शब्दसूची। करना 2. खाल, चमड़ी, विशेष रूप से केंचुली-रघु० | निपणम् [ निर्+व+ल्युट ] 1. उडेल देना, भेंट करना १६।१७, शि० २०१४७ 3. कवच, जिरहबख्त 4. 2. विशेष रूप से पितरों को पिंडदान, तर्पण-मनु० आकाश, अन्तरिक्ष । ३१२४८, २६० 3. उपहार प्रदान करना 4. पुरस्कार, निर्मोक्षः [ निर्+-मोक्ष +घञ ] मुक्ति, छुटकारा-रघु० दान । १०।२। निवर्णनम् [ निर+वर्ण+ल्युट ] 1. नजर डालना, देखना निर्मोचनम् [ निर्+मुच्+ ल्युट ] मुक्ति, छुटकारा । दृष्टि 2 चिह्न लगाना, ध्यान पूर्वक अवलोकन करना । निर्याणम् [ निर ---या+ल्युट् ] 1. निष्क्रमण, बाहर जाना, निर्वर्तक (वि.) (स्त्री०-टिका) [निर्-+-वृत्-|-णिच प्रस्थान करना, बिदायगी 2. अन्तर्धान, ओझल 3. --वुल ] पूरा करने वाला, निष्पन्न करने वाला, मरण, मृत्यु 4. चिन्तन मुक्ति, परमानंद 5. हाथी की समाप्त करने वाला, कार्यान्वित करने वाला, सम्पन्न आँख का बाहरी किनारा-बारणं निर्याणभागेऽभिघ्नन करने वाला । ---दश० ९७, निर्याणनियंदसृजं चलितं निषादी-- शि० | निर्वर्तनम् [ निर्-- वृत्---णिच् + ल्युट् ] निष्पत्ति, पूति, ५१४१ 6. पशुओं के पैर बाधने की रस्सी, पैकड़ा कार्यान्वित । -----निर्याणहस्तस्य पुरो दुधुक्षतः -शि० १२।४१ ।। निर्वहणम् [निर् + दह -- ल्युट् ] 1. अन्त, पूर्ति--शि० निर्यातनम् [निर+यत्+णि+ल्युट ] 1. वापिस १४।६३ 2. निर्वाह करना, अन्त तक निबाहना, करना, लौटाना, अर्पण करना, (धरोहर) प्रत्यर्पण जीवित रखना.....मानस्य निर्वहणम्-अमरू 3. ध्वंस, करना 2. ऋणपरिशोध 3. उपहार, दान 4. प्रतिहिंसा, सर्वनाश. (नाटकों में) उपक्रांति, वह अन्तिम बदला (जैसा कि 'वैर निर्यातन') 5. वध, हत्या। अवस्था जब कि महान परिवर्तन का अन्तिम क्षण हो, निर्यातिः (स्त्री०) [निर+या+क्तिन् ] 1. निकलना, नाटक या उपन्यास आदि का उपसंहार---तत्कि प्रस्थान 2. इस जीवन से बिदा लेना, मरण, मृत्यु । निमित्तं कुरु-विकृतनाटकस्येव अन्यन्मुखेऽन्यनिर्वहणे निर्यामः [ निर+यम् +णिच् +घञ ] मल्लाह, कर्णधार -मुद्रा०६। या चालक, नाविक, नाव खेने वाला। निर्वाण (भू० क. कृ.) [ निर्+वा-|-क्त ] 1. फूंक निर्यासः , सम् [निर+यस-+घञ ] वृक्षों या पौधों मार कर बुझाया हुआ, (आग या दीपक की भांति) का निःश्रवण, गोद, रस, राल ---शालनिर्यासगंधिभिः बुझाया गया--निर्वाण-वैरदहनाः प्रशमादरीणाम् ---रघु० ११३८, मनु० ५।६ 2. अर्क, सार, काढ़ा -वेणी० ११७, कु० २।२३ 2. खोया हुआ, लुप्त 3. कोई गाढ़ा तरल पदार्थ ।। 3. मत, मरा हुआ. जीवन से मुक्त 5. (सूर्य की नियुहः [ निर+उह+क; पृषो० साधुः] 1. कंगुरा, भांति) अस्त 6. शान्त, चुपचा: 7. डूबा हुआ, णम् मीनार, बुर्ज या कलश (जो स्तम्भ या दरवाजों पर 1. बुझाना-१।१३१, शनिर्वाणमाप्नोनि गिरिधान बनाया जाता है) वितदिनियूहविटंकनीड:---शि० ३।। इवानल:---महा० 2. दृष्टि से ओझल होना, लोप For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण होना 3. विघटन, मृत्यु 4. माया या प्रकृति से मुक्ति प्रान्त-निविष्टं वैश्यशूद्रयोः--गौ० 4. विवाहित पाकर परमात्मा से मिलन, शाश्वत आनन्द-निर्वाण- 5. व्यस्त । मपि मन्येऽहमन्तरायं जयश्रियः--कि० ११६९, | घृत (भू० क० कृ०) [निर+व+क्त] 1. संतृप्त, रघु० १२०१ 5. (बौद्ध-विषयक) सांसारिक संतुष्ट, प्रसन्न, निवृतौ स्व:-श०२१४ 2. निश्चित, जीवन से व्यक्ति का पूर्ण निर्वाण, बौद्धों बेफ़िकर, आराम में 3. विश्रान्त, समाप्त। की मोक्षप्राप्ति 6. पूर्ण और शाश्वत शान्ति, सदा के | निर्वृतिः (स्त्री०) [ निर्+वृ+क्तिन् ] 1. संतृप्ति, लिए विश्राम-कि० १८।३९ 7. पूर्ण संतोष या प्रसन्नता, सुख, आनन्द, व्रजति निर्वतिमेकपदे मन: आनन्द, ब्रह्मानन्द, परमानन्द- अये लब्धं नेत्रनिर्वाणम् विक्रम० २।९, रघु० ९।३८, १२१६५, श० ७।१९ ------श० ३, मालवि० ३.१, शि० ४।२३, विक्रम शि० ४१६४, १०१२८, कि० ३१८ 2. शान्ति, विश्राम, ३१२१ 8. विश्राम, विराम 9. शून्यता 10. सम्मिलन, विश्रान्ति 3. मुक्ति, निर्वाण-द्वार निर्वतिसानो साहचर्य, संगम 11. हस्तिस्नान-दे० 'अनिर्वाण' विजयते कृष्णेतिवर्णद्वयम्-भामि० ४।१४ 4. संपूर्ति, रघु० १७१ में 12. विज्ञान में शिक्षण । सम० निष्पत्ति 5. स्वतंत्रता 6. अन्तर्धान होना, मृत्यु, --भूयिष्ठ (वि.) प्रायः आंखों से ओझल या लुप्त विनाश । --निर्वाणभूयिष्ठमथास्य वीर्य संधुक्षयंतीव वपुर्गुणेन निर्वत्त (भ० क० कृ०) [निर+त+क्त] निष्पन्न, --कु० ३१५२,--मस्तकः मुक्ति, मोक्ष। अवाप्त, सम्पन्न। निर्वादः [ निर+वद्--घन ] 1. दोषा रोपण, दुर्वचन | निर्वत्तिः (स्त्री०) [निर+वृत्+क्तिन् ] निष्पन्नता, 2: बदनामी, लोकापवाद, परिवाद-रघु० १४१३४ पूर्णता, सम्पन्नता-मनु० १२।१।। . 3. शास्त्रार्थ का निर्णय 4. वाद का अभाव । निर्वेदः [ निर+विद्+घञ ] 1. घणा, जगप्सा 2. अतिनिर्वापः [निर+व+घा ] दे० 'निर्वपणम्'। तृप्ति, छक जाना 3. विषाद, निराश, अवसादनिर्वापणम् [निर्+व+णि+ल्युट ] 1. चढ़ावा, परिभवान्निर्वेदमापद्यते--मच्छ० ११४ 4. दीनता आहति, पिंडदान या श्राद्ध 2. भेंट, दान 3. बुझाना, 5. शोक 6. विरक्ति-भग० २।५२, (एक प्रकार गुल करना 4. उडेलना, बखेरना, (बीज का) बोना की भावना जिससे शान्तरस का उदय होता है5. पुरस्करण, प्रदान 6. निराकरण, उपशमन, शान्ति काव्य-निर्वेदस्थायिभावोऽस्ति शांतोऽपि नवमो रस: ---कर्तव्यानि दुःखितैदुःखनिर्वापणानि--उत्तर. ३ 7. स्वावमान, दीनता (तेंतीस संचारिभावों में से 7. विनाश 8. बध, हत्या 9. ठण्डा करना, विश्रांति एक), तु० रस० में दी गई परिभाषा से, निम्नांकित करना--शरीरनिर्वापणाय--श० ३ 10. प्रशीतल दष्टांत दिया गया है-यदि लक्ष्मण सा मगेक्षणा न और ठंडा उपचार । मदीक्षासरणि समेष्यति, अमुना जडजीवितेन में जगता निर्वाला, निर्वासनम् [ निर ।-वस्---घन, निर+व+ वा विफलेन किं फलम् । णि ल्यूट ] 1. निकालना, निर्वासन करना, देश. | निवशः [ निर+विश+घा 11. लाभ, प्राप्ति 2. मज़निकाला देना 2. वध, हत्या। दूरी, भाड़ा, नौकरी 3. भोजन, उपभोग, सेवन निर्वाहः [निर+वह +घञ ] 1. निबाहना, निष्पन्न 4. भुगतान की अदायगी 5. प्रायश्चित्त, परिशोधन करना, संपन्न करना 2. सम्पूर्ति, अन्त 3. अन्ततक 6. विवाह 7. मछित होना, बेहोश होना 8. छिद्र, निबाहना, सहारा देना, दृढ़तापूर्वक डटे रहना, धैर्य- रंध्र। निर्वाहः प्रतिपन्नवस्तुषु सतामेतद्धि गोत्रव्रतम्-मुद्रा० नियंढ (भ० क. कृ.) [निर-वि+बह ---क्त ] २।१८ 4. जीवित रहना 5. पर्याप्ति, यथेष्ट व्यवस्था, 1. पूरा किया गया, समाप्त किया गया 2. उद्गतया अक्षमता 6. वर्णन करना, बयान करना। उदित, वर्धित, विकसित-मुहर्तनिhढविस्मय-मा० ७, निर्वाहणम् [ निर-+-वह +णि + ल्युट ] दे० 'निर्वहण' । नियूंढसौहृदभरेति~६।१७, (उपचित---जगद्धर) निविण्ण (भू० क० कृ०) [निर+विद-क्ति ] 1. निर्वेद- 3. प्रतिसमर्थित, पूर्णतः प्रदर्शित, सत्यप्रमाणित, युक्त, खिन्न, मच्छ० १११४ 2. भय या शोक से श्रद्धापूर्वक या अन्त तक पालन किया गया-हा तात अभिभूत 3. शोक से कृश 4. दुरुक्त, पतित 5. किसी जटायो नियंढस्तेऽपत्यस्नेहः-उत्तर० 3. नियंढ: वस्तु से घृणा-मत्स्याशनस्य निर्विण्ण:-पंच० १ संभावनाभारो बुद्धरक्षितया-मा० ८, नियंढे 6. क्षीण, मुाया हुआ 7.विनम्र, विनीत । तातस्य कापालिकत्वम-मा० ४१९, १०, महावी० निविष्ट (भू० क० कृ०) [निर+विश्+क्त] ७८ 4. परित्यक्त, छोड़ा हुआ। 1. उपभुक्त, अवाप्त, अनुभत 2. पूर्णतः उप-निळविः (स्त्री०) [निर+वि+बह+क्तिन] 1. अन्त, भुक्त-रघु० १२११, 3. पारिश्रमिक के रूप में । पूर्ति 2. शिखर, उच्चतम बिंदु । For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४० ) निर्ग्रहः [निर्+वि+वह +घञ ] दे० 'नियूह' 1. कंगूरा । निवरा [ नि-वृ+अप्+टाप् ] अक्षतयोनि, अविवाहित 2. शिरस्त्राण, कलगी 3. दरवाजा, फाटक 4. दीवार | कन्या। में लगी खूटी या बकेट 5. काढ़ा । निवर्तक (वि.) [नि--वत+वल 1 1. वापिस देने निर्हरणम् [निर्+है+ल्युट्] 1. शव का दाहसंस्कार के वाला, आने वाला या पीछे मड़ने वाला 2. ठहरने लिए ले जाना, शव को चिता पर रखना 2. ले जाना, वाला, पकड़ने वाला 3. उन्मूलक, निष्कासित करने बाहर निकालना, निचोड़ना, हटाना 3. जड़ से वाला, मिटाने बाला 4. वापिस लाने वाला। उखाड़ना, उन्मूलन करना। निवर्तन (वि०) [नि+वृत्+ल्यट] 1. लौटाने वाला निर्हादः [निर्+हद्+घञ्] मलोत्सर्ग, मलत्याग। 2. पीछे मुड़ने वाला, ठहरने वाला-नम् वापिस निहारः [निर+ह+घञ ) 1. ले जाना, दूर करना, होना, मड़ना, या वापिस आना, लौटना-इह हि हटाना 2. बाहर खींचना, उखाड़ना 3. जड़ से उखा पतता नास्त्यालंबो न चापि निवर्तनम-शा० ३१२ डना, विनाश 4. मृतक शरीर को दाह संस्कार के 2. न घटने वाला, बन्द होने वाला 3. रुकने वाला, लिए ले जाना 5. निजी धन संचय, निजी जमा परहेज करने वाला (अपा० के साथ) 4. काम से - मनु० ९।१९९ 6. मलत्याग, (वि० आहार)। हाथ खींचना, निष्क्रियता (विप० प्रवर्तन)-काम० निर्हारिन् (वि.) [निर्+ह+णिनि] । पालन करने १।२८ 5. वापिस लाना- अमरु ८४ 6. पश्चात्ताप वाला 2. व्याप्त, ( गंधादिक ) विस्तारशील 3. करना, सुधार करने की इच्छा 7. बीस बांस लम्बी गंधयुक्त । भूमि । निहं तिः (स्त्री० [निर+ह+क्तिन्] मार्ग से हटाना, निवसतिः (स्त्री) निवस+अतिच ] घर, आवास, दूर करना। __ आवासस्थान, वासगृह, निवासस्थान । निदिः [निर्+हृद्+घञ्] ध्वनि,-रघु० ११०१।। निवसथः [नि+वस्-+-अथच् ] गाँव, ग्राम । निलयः [नि-लो-अच] 1. छिपने का स्थान, (जानवरों | विनिम.. | निवसनम् [ नि--वस्- ल्युट ] 1. गह, आवास, निवासका) भट या मांद, (पक्षियों का) घोंसला-शि० स्थान 2. परिधान, वस्त्र, अन्तर्वस्त्र-शि० १०॥६०, ९।४ 2. आवास, निवास, घर, गृह (प्रायः समास के - रघु० १९।४१ । अन्त में) रहने बाला, वास करने वाला 3. अस्त होना, I निवरः---भर्त० ३।३७. इसी प्रकार घन' दैत्य कपोत छिपना-दिनांते निलयाय गंतुम्-रघु० २११५, (यहाँ __ आदि 2. सात पवनों में से एक पवन का नाम । यह शब्द 'प्रथम अर्थ' को भी प्रकट करता है। निवात (वि.) [ निवृत्तः वातो यस्मिन् ब. स.] 1. निलयनम् [नि+लो+ल्युट्] 1. किसी स्थान पर बसना, से सुरक्षित, जहाँ वाय न हो, शान्त-रघु० १९।४२ उतरना 2. शरणगृह, धर, गृह, आवास । 2. जिसे चोट न लगी हो, क्षति न पहुँची हो, बाधा निलिंपः [नि+लिए+श, नुम] 1. देवता - निलिंपैर्मुक्ता रहित 3. सुरक्षित, अभय 4. सुसज्जित, दृढ़ कवच नपि च निरयान्तनिपतितान -गंगा० १५ 2. मरुतों धारण किए हुए,--तः 1. शरणगृह, निवासस्थान, का दल । सम० --निर्झरी स्वर्गीय गंगा। आश्रयागार 2. अकाट्य कवच, तम् 1. वायु से निलिपा, निलिपिका [निलिम्प+टाप, कन्न-टाप, इत्वं सुरक्षित स्थान-निवातनिष्कपमिव प्रदीपम् --कु० च गाप। ३।४८, कि० १४।३७, रघु० १३१५२, ३११७, भग० निलोन (भू० के० कृ०) [नि+ली+क्त] 1. पिघला ६।१९ 2. वायु का अभाव, शान्त, निस्तब्धता--रघु० हुआ या गला हुआ 2. वन्द या लिपटा हुआ, गुप्त १२।३६ 3. निष्कंटक स्थान 4. दृढ़ कवच ।। 3. अन्तर्ग्रस्त, घिरा हुआ, परिवलयित 4. ध्वस्त, | | निवापः [नि+वप्--घा 1 1 बीज, अनाज, बीज के नष्ट 5. परिवर्तित, रूपान्तरित (दे० नि पूर्वक ली)। रक्खे हुए दाने 2. मृतक पूर्वजों के पितरों को या निवचने (अव्य०) [प्रा० स०] न बोलना, बोलना बन्द दूसरे बन्धओं को भेंट, जलतर्पण (श्राद्ध के अवसर करके, जिह्वा को राक कर ('कृ' के साथ प्रयक्त पर) एको निवापसलिलं पिबसीत्य युक्तम्---मा० होने पर गति' के रूप में या उपसर्ग के रूप में ९।४०, निवापदतिभिः-रघु०८।८६, निवापांजलयः अथवा स्वतंत्र शब्द समझा जाता है--उदा० निवचने- पितृणाम् --५।८, १५।९१, मुद्रा० ४।५ 3. भेंट या कृत्य, निवचने कृत्वा-पा० १।४।७६)। उपहार । निवपनम् [नि+वप् | ल्युट् ] 1. बिखेरना, उद्देलना, निवारः, निवारणम् [ नि-+-+-णि+अच, ल्युट वा] नीचे फेंकना 2. वोना 3. पितरों के नाम पर चढ़ावा, 1. दूर रखना, रोकना, हटाना--देशनिवारणश्च मृतपूर्वजों को लक्ष्य करके दो गई आहुति-को नः | ~-रघु ० ०।५ 2. प्रतिपेध, बाधा । कुले निवपनानि नियच्छनीति - ० ६२४ । सः [नि-वस ---घञ ] 1. रहना, बसना, निवास For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५४१ ) करना 2. घर, आवास, वासगृह, विश्राम स्थान -- निवासश्चितायाः मृच्छ० ११५, शि० ४/६३, ५।२१, भग० ९।१८, मृच्छ० ३।२३ 3. रात बिताना 4. पोशाक, वस्त्र । निवासनम् [ नि + स् + णिच् + ल्युट् ] 2. पड़ाव, डेरा 3. समय बिताना । निवासिन् ( वि० ) [नि + वस् + णिनि ] 1. निवास करने वाला, रहने वाला 2. पहनने वाला, वस्त्रों से ढका हुआ कु० ७/२६, (पुं०) निवासी, आवासी । निवि (बि) ड (वि० ) [ नि + विड् +क ] 1. निरन्त राल, सघन, सटा हुआ 2. दृढ़, कसा हुआ, पक्का, निविडो मुष्टि: रघु० ९५८, १९४४ 3. मोटा, अप्रवेश्य, घना, अभेद्य - रघु० ११।१५ 4. स्थूल, मोटा 5. महाकाय, विशाल 6. ठेढ़ी नाक वाला । निविशेष (वि० ) [ निवृत्तो विशेषो कस्मात् ब० स० ] - अभिन्न, समान, ब: अन्तर का अभाव । निविष्ट (भू० क० कृ० ) [ नि + विश् + क्त ] 1. स्थित, ऊपर बैठा हुआ 3. पड़ाव डाला हुआ रघु० १०1६८ 3. स्थिर, तुला हुआ 4 संकेन्द्रित, दमन किया हुआ, नियंत्रित - कु० ५/३१ 5. दीक्षित 6. व्यवस्थित | 1. निवासस्थान निवीतम् [ नि + व् + क्त, सम्प्रसारणम् ] 1. यज्ञोपवीत पहनना ( माला की भाँति गले में धारण करना ) निवीतं मनुष्याणां प्राचीनावीतं पितॄणामुपवीतं देवानाम् - जै० न्या० 2. धारण किया हुआ जनेऊ, तः, तम् परदा, अवगुंठन, आवरण' दुपट्टा । निवृत ( भू० क० कृ० ) [ नि/वृ/क्त ] घिरा हुआ, लपेटा हुआ, - तः, तम् अवगुंठन, परदा, आवरण । I निवृति: ( स्त्री० ) [ नि + वृ + क्तिन् ] आवरण, घेरा निवृत्त ( भू० क० कृ० ) [ नि + वृत्त् + क्त ] 1 लौटा हुआ, वापिस आया हुआ 2. गया हुआ, विदा हुआ 3. रुका हुआ, परहेजगार ठहरा हुआ, विरत 4. सांसारिक कार्यों से परहेज करने वाला, इस संसार से विरक्त, शान्त 5 असदाचरण के लिए पश्चात्ताप 6. समाप्त पूरा समस्त दे० नि पूर्वक वृत्–तम् लौटना । सम० -- आत्मन् (पुं०) 1. ऋषि २. विष्णु की उपाधि, कारण (वि०) बिना किसी अन्य कारण या प्रयोजन के (-णः) धर्मात्मा मनुष्य, सांसारिक इच्छाओं से अप्रभावित, मांस ( वि०) जो माँस खाने से परहेज करता है, निवृत्तमांसस्तु जनकः - उत्तर० ४, -राग (वि०) जितेन्द्रिय- वृत्ति (वि०) किसी व्यवसाय से उपरल होने वाला, हृदय ( वि०) हृदय में पछताने वाला 1. निवृत्ति: ( स्त्री० ) [नि + वृत् + क्तिन् ] 1 लौटना, - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वापिस आना, लौट आना शि० १४ । ६४, रघु० ४।८७ 2. अन्तर्धान, विराम, उपरति स्थगन - शापनिवृत्ती -- श० ७, रघु० ८1८२ 3 काम से दूर रहना, निष्क्रियता ( विप० प्रवृत्ति) 4. परहेज करना, अरुचि - प्राणाघातन्निवृत्तिः भर्तृ० ३।३३ 5 छोड़ना, रुकना 6. वैराग्य, सांसारिक कार्यों से उपराम, शान्ति, संसार से वियुक्ति 7. विश्राम, आराम 8 आनन्द, कैवल्य 9. मुकरना, अस्वीकार करना 10 उन्मुलन, प्रतिरोध । निवेदनम् [ नि + विद् + ल्युट् ] 1. बतलाना, कहना, प्रकथन करना समाचार, उद्घोषणा 2. अर्पण करना, सौंपना 3. समर्पण 4. प्रतिनिधान 5. चढ़ावा या आहुति । निवेद्यम् [ नि + विद् + ण्यत् ] किसी देवमूर्ति को भोग लगाना - तु० 'नैवेद्य' । निवेश: [ नि + विश् + घज्ञ ] 1. प्रवेश, दाखला 2. पड़ाव डालना, ठहरना 3. ठहरने का स्थान, शिविर, खेमा सेनानिवेशं तुमुलं चकार रघु० ५/४९, ७१२, शि० १७/४० कि० ७/२७ 4. घर, आवास, निवास कि० ४।१९ 5. विस्तार, (छाती को ) सुडौलपना - कि० ४१८ 6. जमा करना, अर्पण करना 7. विवाह करना, विवाह, जीवन में स्थिर होना 8. छाप, नकल 9. सैन्यव्यवस्था 10. आभूषण, सजावट । निवेशनम् [ति + विश् + णिच् + ल्युट् ] 1. प्रवेश, दाखला 2. ठहरना, पड़ाव डालना 3. विवाह करना, विवाह 4. लेखबद्ध करना, शिला-लेखन 5. आवास, निवास, घर, आवास स्थान 6. शिविर 7. कस्बा या नगर 8. घोंसला । निवेष्ट: [ नि + वेष्ट +घञ ] आवरण, लिफाफा | निवेष्टनम् [ नि + वेष्ट + ल्युट् ] डकना, लिफाफे में बन्द करना । निशु (स्त्री० ) (यह शब्द, कारक की दूसरी विभक्ति के द्वि० ० के पश्चात् सारी विभक्तियों में 'निशा' शब्द के स्थान में विकल्प में आदेश हो जाता है, पहले पांच वचनों में इसका कोई रूप नहीं होता) 1. रात 2. geat! निशमनम् [ नि+शम् + णिच् + ल्युट् ] 1. देखना, अवलोकन करना 2. दर्शन, दृष्टि 3. सुनना 4 जानकार होना । निश (शा) रणम् [ नि + ऋ + ( णिच्) + ल्युट् ] बध, हत्या | निशा [ नितरां श्यति तनूकरोति व्यापारान् शो + कु तारा० ] 1. रात - या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागति संयमी भग० २।६९ 2. हल्दी । सम० अबः, - अदन: 1. उल्लू 2. राक्षस, भूत, पिशाच, अति 1 For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५४२ ) भाग, आख्या, प्रकाश:, क्रमः, --- कप्ययः, -अन्तः, -- अवसानम्, 1 रात बिताना 2. पौ फटना अदः - निशाद - अंध ( वि० ) जिसे रतौंधा आता हो, रात का अंधा, अधीशः, --- ईशः, -- नाथः, – पतिः, मणिः, रलम् चन्द्रमा, चाँद - अर्धकालः रात का पूर्वा - आह्वा हल्दी, आदि: सांध्यकालीन - उत्सर्गः रात्रि का अवसान, पौ फटना कर: 1. चाँद - कु० ४११३ 2. मुर्गा 3. कपूर, गृहम् शयनागार, -चर (वि०) (स्त्री० रा, री) रात में घूमने फिरने वाला, रात को चुपचाप पीछा करने वीला ( - रः ) 1. राक्षस, पिशाच, भूत, प्रेत रघु० १२०६९ 2. शिव का विशेषण 3. गीदड़, 4. उल्ल 5. साँप 6. चक्रवाक 7. चौर पति: 1. शिव और 2. रावण का विशेषण (री) 1. राक्षसी 2. रात को निश्चित किये हुए समय पर अपने प्रेमी से मिलने के लिए जाने वाली स्त्री - राममन्मथशरेण ताडिता दुःसहेन हृदये निशाचरी -- रघु० ११।२० ( यहां पर यह शब्द 'प्रथम अर्थ' के लिए भी प्रयुक्त है) 3. वेश्या, -- चर्मन् (पुं० ) अंधकार, जलम् ओस, कोहरा, - दर्शिन् (पुं०) उल्लू, निशम् ( अव्य० ) पर रात, सदैव --- पुष्पम्, सफेद कमलिनी ( रात को खिलने वाली ) 2. पाला, ओस, - मुखम् रात्रि का आरम्भ -मृगः गीदड़ -- वनः क्षण, बिहारः पिशाच, राक्षस ——प्रचक्रतु रामनिशाविहारी - भट्टि० ० २।३६ - वेदिन् ( पुं० ) मुर्गा, हसः श्वेत कमल, कुमुद ( रात को खिलने वाला) | कि० निशात ( भू० क० कृ० ) [ नि + शो + क्त ] 1. पहनाया हुआ, ज्ञान पर चढ़ा कर तेज किया हुआ, तेज १४१३० 2. चमकाया आ, झलकाया हुआ उज्ज्वल । निशानम् [ नि+शो+ ल्युट् ] पह्नाना, शान पर चढ़ाकर तेज करना । निशांत (भू० क० कृ० ) [ नि + शम् + क्त ] शांतियुक्त, शांत, चुपचाप, सहनशील, तम् घर, आवास, निवास - रघु० १६/४० । निशाम: [ नि + शम् + घन् ] निरीक्षण करना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, दर्शन करना । निशामनम् [ नि + शम् + णिच् + ल्युट् ] 1. दर्शन करना, अवलोकन करना 2. दृष्टि 3. सुनना 4. वार २ निरी क्षण करना 5. छाया, प्रतिबिंब । निशित ( वि० ) [ नि+शो+क्त] पैना किया हुआ, शान पर तेज किया हुआ निशितनिपाताः शराः श० १। १० 2. उद्दीपित, तम् लोहा । निशीयः [ निशेरते जना अस्मिन् निशी अवारे थक - तारा० ] 1. आधीरात निशीथदीपाः सहसा हृतत्विषः - रघु० ३।१५, मेघ ० ८८ 2. मांने का समय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रात-- शुचौ निशीथेऽनुभवंति कामिनः - ऋतु० ११३, अमरु० ११ । निशीथिनी, निशीथ्या [ निशीथ + इनि + ङीप्, निशीथ + यत्+टाप् ] रात । निशुंभ: [ नि + शुम्भ्+घञ ] 1. वध, हत्या - मा० ५।२२ 2 तोड़ना, ( धनुष आदि का ) झुकाना --- महावी० २।३३ 3. एक राक्षस का नाम जिसको दुर्गा ने मार दिया था । सम० - मथमी, मदनी दुर्गा का विशेषण | निशुंभनाम् [ नि + शुभ् + ल्युट् } वध करना, हत्या करना । निश्वयः [ निस् + चि+अप् ] 1. जांच पड़ताल, खोज, पूछताछ 2. स्थिर मत, दृढ़ विश्वास, पक्का भरोसा 3. निर्धारण, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता- एष मे स्थिरो निश्चयः - मुद्रा ० १ 4 निश्चिति, स्पष्टता, असंदिग्ध, परिणाम 5 पक्का इरादा, योजना, प्रयोजन, उद्देश्य - कैकेयी क्रूरनिश्चया- रघु० १२/४, कु० ५५ । निश्चल (वि० ) [ निस् + चल् + अच् ] 1. अचर, स्थिर, अटल, अडिग 2. अपरिवर्त्य, अपरिवर्तनीय भग० २।५३ ला पृथ्वी । सम० - अंग ( वि०) दृढ़ शरीरवाला, मजबूत ( ग ) 1. सारस की एक जाति 2. चट्टान, पहाड़ । निश्चायक ( fa० ) [ निस् + चि + ण्वुल् ] निधीरक, निर्णयात्मक, अन्तिम या निश्चयात्मक । निश्चारकम् [ निस् + चर् + ण्वुल् ] 1. मलोत्सर्ग करना 2. हवा, वायु 3. हठ, स्वेच्छाचारिता । निश्चित ( भू० क० कृ० ) [ निस् + चि+क्त] निश्चित किया हुआ, निर्धारित किया हुआ, फैसला किया, तय किया हुआ समापन किआ हुआ ( कर्तृवा० में भी प्रयुक्त) अरावणमरामं वा जगदद्येति निश्चितः रघु० १२/८३, तम् निश्चय, निर्णय, तम् ( अन्य ० ) निःसन्देह, निश्चित रूप से अवश्यमेव । निश्चितिः (स्त्री० ) [ निस् + चि + क्तिन् ] 1. निश्चय करना. निर्णय करना 2. निर्धारण, दृढ़ संकल्प । निश्रमः [ नि + म् +घञ ] किसी कार्य पर किया गया परिश्रम, अध्यवसाय, अनवरत परिश्रम । निश्रयणी, निश्रेणि, निश्रेणी [ नि + श्रि + ल्युट् + ङीप, नि श्रि + नि, ङीष् वा ] सीढ़ी, जीना, तु० 'नि:श्रयणी' । निश्वास: [ नि + श्वस् + घञ ] साँस खींचना, साँस लेना, आह भरना - तु० 'निःश्वास' । निषंग: [ नि + सज् + ञ ] 1. आसक्ति, संलग्नता 2. सम्मिलन, साहचर्य 3. तरकस -- शि० १०/३४, कि० १७१२६. रघु० २३०, ३।३४ ॥ निषंगथि: [ नि + सज् + घथिन् ] 1. आलिंगन 2. धनुवर 3. सारथि 4. रथ, गाड़ी । For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निषंगिन (अव्य० )[ निषंग+इनि 11. आसक्त, संलग्न । रिसना, झरना, तैलनिषेकबिंदुना-रघु० ८१३८, ----शि० १२१२६ 2. तरकसधारी--पुं० 1. धानुष्क, ___टपकते हुए तेल की एक बूंद 3. स्राव, प्रस्राव धनुर्धर 2. तरकस 3. खड्गधारी। 4. वीर्यपात, वीर्यसिंचन, गर्भवती करना, बीजनिषण्ण ( भू० क. कृ०) [नि+सद्+क्त] 1. बैठा कु० २।१६, रघु० १४।६० 5. सिंचाई, 6. प्रक्षालन हुआ, आसीन, विश्रान्त, आश्रित,--रघु० ९।७६, के लिए जल 7. वीर्य की अपवित्रता 8. मैला पानी। १३।७५ 2. सहारा दिया हुआ 3. गया हुआ 4. निषेधः [ नि-+-सिध् । घञ्] 1. प्रतिषेध, दूर रखना, खिन्न, कष्टग्रस्त, नतमख--तु० 'विषण्ण'। दूर हटाना, रोकना, प्रतिरोध 2. प्रत्याख्यान, मुकरना निषण्णकम् [ निषण्ण+कन् ] आसन। 3. नकारात्मक अव्यय-द्वौ निषेधौ प्रकृतार्थं गमयतः निषद्या [नि-+-सद्+क्या+टाप् ] 1. खटोला, पीला | 4. प्रतिषेधक नियम (विप० विधि) 5. नियम से 2. व्यापारी का कार्यालय, दुकान 3. मंडी, हाट व्यतिक्रम करना, अपवाद । ---शि०१८।१५। निषेवक [नि+से+ण्वल ] 1. अभ्यास करने वाला, निषद्वरः [नि+सद् + वरच् ] 1. गारा, दलदल 2. अनुगमन करने वाला, भक्त, अनुरक्त 2. बार २ कामदेव,-री रात । आने वाला, बसने वाला, आश्रयग्रहण करने वाला निषधः ( ब० द०) [नि+सद् +अच्, पृषो०] नल 3. उपभोग करने वाला। द्वारा शासित एक देश तथा उसके निवासियों का | निषेवणम्, निषेवा [नि+से+ल्युट, अ+टाप् वा] नाम,--धः 1. निषध देश का शासक 2. पहाड़ का 1. सेवा करना, नौकरी, हाजरी में खड़े रहना नाम । 2. पूजा, आराधना 3. अभ्यास, अनुष्ठान 4. आसक्ति, निषादः [ नि+सद +घञ ] 1. भारत की एक जंगली लगाव 5. रहना, बसना, उपभोग करना, उपयोग में आदिम जाति, जैसे शिकारी, मछ्वे आदि, पहाड़ी लाना 6. परिचय, उपयोग। --मा निषादं प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वती: समा: निष्क् (चुरा० आ०--निष्कयते) तोलना, मापना । --रामा० रघु० १४१५२, ७० 2. पतित जाति का निष्कः,-कम् [ निष्क-+-अच् ] 1. स्वर्णमुद्रा (भिन्न-भिन्न मनुष्य, चाण्डाल, एक वर्णसंकर जाति 3. विशेषकर मूल्य की, परन्तु सामान्यरूप १६ माशे या एक कर्ष शूद्रा स्त्री से ब्राह्मण का पुत्र-मनु० १०१८ 4. के तोल के सोने के बराबर) 2.१०८ से १५० कर्ष ( संगीत में ) हिन्दूसरगम का पहला (यदि उपयु- के तोल का सोना 3. छाती या कण्ठ में पहनने का क्तता के अधिक निकट हो तो--अन्तिम या सप्तम ) स्वर्णाभूषण 4. सोना,--कः चांडाल। स्वर--पीतकलाविन्यासमिव निषादानुगतम्--का० निष्कर्षः निस्कृप-धा 1 1. बाहर निकालना, २१, ( यहाँ यह प्रथम भी रखती है)। निचोड़ना 2. सत्, सारभूत अर्थ, तत्व--इति निष्कर्षः निषावित [ नि+सद् + णिच् +क्त ] 1. बैठाया हुआ 2. (भाष्यकारों द्वारा बहुधा प्रयुक्त)-मनु० ५।१२५, कष्टग्रस्त, दुखी। भाषा० १३८ 3. मापना 4. निश्चय, जाँचपड़ताल । निषादिन् (वि० ) ( स्त्री०--नी) [ निषाद-+-इनि] निष्कर्षणम् [निस्+कृष् + ल्युट ] 1. बाहर निकालना, बैठने वाला या लटने वाला, विश्राम करने वाला, निचोड़ना, खींचना-रघु०१२।९७, 2. घटाना । आराम करने वाला--रघु० १।५२, ४।२, (पुं० ) निष्कालनम् [निस्+कल्--णिच् + ल्युट ] (गाय भैसों महावत,--शि० ५।४१ । को) हांक कर दूर करना 2. वध, हत्या। निषिद (वि०) [नि+सि+क्त ] 1. मना किया हुआ, निष्कासः (सः) [निस्+काश् (स्)+घञ्] 1. बाहर प्रतिषिद्ध, दूर हटाया हुआ, रोका हुआ-दे० नि पूर्वक | निकलना, निर्गम, निकास 2. प्रासाद आदि का द्वारसिधु । मण्डप 3. प्रभात 4. अन्तर्धान। निषिक्त (भु०क० कृ०) [नि+सिच+क्त ] 1. छिड़का निष्कासित (भु०क० कृ०)[निस+कस-न-णिच+क्त ] हुआ 2. भरा हुआ, टपकाया हुआ, उँडेला हुआ, 3. निर्वासित, बाहर निकाला हुआ, हांक कर बाहर व्याप्त किया हुआ। किया हुआ 2. बाहर गया हुआ, बाहर निकाला हुआ, निषिधिः [नि-+-सिध् +क्तिन् ] 1. प्रतिषेध, दूर रखना, 3. रक्खा हुआ, जमा किया हुआ 4. ठहराया हुआ, _ दूर हटाना 2. प्रतिरक्षा । नियत किया हुआ, 5. खोला हुआ, खिला हुआ, निषूदनम् [नि+सू+णि+ल्युट ] वय करना, हत्या फैलाया हुआ 6. बुराभला कहा हुआ, झिड़का हुआ। करना-वधिक जैसा कि 'बलवृत्रनिषूदन' में। निष्कासिनी [निस+क+णिनि-1-डी नह दामी जो निवेकः [निसि +धम ] 1. छिड़कना, तर करना ... अपने स्वामी के नियंत्रण में हो। मुखसलिकनिषेक:-ऋतु. १२२८ 2. बूंद २ टपकना, निष्कुटः [निस्+कुट+क] 1. घर से लगा हुआ प्रमद For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४४ ) बन, क्रीडोद्यान 2. खेत 3. स्त्रियों का रनवास, राजा । पुरस्कार 3. भाड़ा, मजदूरी 4. अदायगी, चुनौती का अन्तःपुर 4. दरवाज़ा 5. वक्ष की कोटर । -शि० ११५० 5. अदला-बदली, विनिमय । निष्कुटिः,-टी (स्त्री०) [निस्+कुट+इन्, स्त्रियाँ डीप]/ निष्क्रयणम् [निस्+की+ल्वट ] निस्तार, छुटकारा, बड़ी इलायची। बन्दी का उद्धार-मूल्य । निष्कुषित (भू० क० कृ०) [निस्+कुष्+क्त ] 1. फाड़ा निष्क्काथः [ निस् । क्वथ् +घञ ] 1. काढ़ा 2. रसा, हुआ, बलात् बाहर खींचा हुआ, विदीर्ण---रघु० | शोरबा । ७५० 2. निकाला हुआ, निर्वासित--दे० निस् पूर्वक | निष्टपनम् [निस्+त+ल्यट् ] जलन, । 'कुष्' । निष्टानकः [ निस्+तानक: ] घनध्वनि, कलकल ध्वनि, निष्कुहः [निस् - कुह, +अच् ] वृक्ष की कोटर-तु० __ मरमरध्वनि । 'निष्कुट'। निष्कृत (भू० क० कृ०) [निस++क्त ] 1. ले जाया निष्ठ (बि०) [ नितरां तिष्ठति ----नि+स्था+क 1 (प्रायः समास के अंत में) 1. अन्दर रहने वाला, स्थित गया, हटाया गया 2. जिसने प्रायश्चित्त कर लिया तनिष्ठे फेने 2. निर्भर, आश्रित, संकेत करने वाला है, दोषमुक्त, क्षमा किया गया, तम् प्रायश्चित्त या या संबंध रखने वाला -तमोनिष्ठाः- मनु० १२।९५ परिशोधन । 3. भक्त, अनुरक्त, अभ्यास करने वाला, इरादा निष्कृतिः (स्त्री०) [ निश्++क्तिन् ] 1. प्रायश्चित्त, --सत्यनिष्ठ 4. कुशल 5. आस्था रखने वाला--धर्म परिशोधन पंच० ३११५७ 2. निस्तार, प्रतिदान, निष्ट,--ठा 1. अवस्था, दशा 2. स्थैर्य, दृढ़ता, स्थिऋणशोधन, कर्तव्यसम्पादने-न तस्य निष्कृतिः शक्या रता –नभो निष्ठा-शून्यं भ्रमति च किमप्यालिवति कर्तु वर्ष शतैरपि-मनु० २।२२७, ३।१९, ८।१०५, ९। च-मा० ११३१ 3. भक्ति, श्रद्धा, घनिष्ठ अनुराग १९, ११।२७ 3. हटाना ५. आरोग्यलाभ, चिकित्सा, 4. विश्वास, दृढ़ भक्ति, आस्था-शास्त्रेषु निप्या-मा० प्रतीकार 5. टालना, बचना 6. अपेक्षा करना 7. बुरा ३।११, भग० ३।३ 5. श्रेष्ठता, कुशलता, प्रवीणता, चालचलन, बदमाशी। पूर्णता 6. उपरांहार, अन्त, अवसान --अत्यारूढिर्भवति निष्कृष्ट (भू० क० कृ०) [निस- कृष्+क्त ] 1. उखाड़ा महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा-श० ४ 7. उत्क्रान्ति या हआ, खींच कर बाहर निकाला हुआ, उद्धत 2. नाटक का अन्त 8. निष्पत्ति, संपूर्ति --मनु० ८।२२७ संक्षिप्तावृत्ति । 9. चरम विन्दु 10. मृत्यु, विनाश, प्रला 11. स्थिर निष्कोषः, निष्कोषणम् [ निस्+कुष्--क्त ल्युट वा ] 1. या निश्चित ज्ञान, निश्चिति 12. भिक्षा मांगना 13. फाड़ना, खींचकर बाहर निकालना, उखाड़ना, उन्म- भोगना, कष्ट उठाना, दुःख, चिन्ता 11. (या) क्त, लन करना 2. भूसी निकालना, छिल्का उतारना। वतवतु (त और तवत्) के लिए पारिभागिा शब्द । निष्कोषणकम् [निष्कोपण+कन् ] दांत खुरचनी पंच. | मिष्ठानम [ नि स्था+ल्यट | चटनी, मसाला । १७१। निष्ठी (2) वः,-बम् , निष्ठो (प्ठे) बनम् निष्ठीवितम निष्क्रमः [ निरा+ऋम्+घञ ] 1. बाहर जाना, निक [नि-+-ष्टि -+घञ, दीयः, दीर्घाभावे गुगः; ल्युट लना 2. बिदा होना, निर्गमन करना 3. एक संस्कार वा, दीर्घः पक्षे गुणः; क्त, दीर्घश्च ] थूक देना, थूकना (चौथे मास में शिशु को) पहली बार खुली हवा में -भर्तृ० ११९२। निकालना, चतुर्थे मासि निष्क्रमः-याज्ञ० १११२. तु० | निष्ठर (वि.) [नि+स्था+उरच ] 1. कठोर, कर्कश, 'उपनिष्क्रमण' से भी 4. पतित होना, जाति भ्रष्टता, उजडु, रूखा 2. कड़ा, तेज, (हवा के झोंके की भांति) जाति-हीनता 5. बौद्धिक शक्ति । तीक्ष्ण--शि० ५।४९ 3. कर, कठोर, पाषाणहृदय निष्क्रमणम् [लिस+क्रम् + ल्युट ] 1. आगे या बाहर (पुरूषों के विषय में) व्यवसाय: प्रतिरतिनिष्टुर: जाना 2. एक संस्कार (इसमें नवजात बालक को रघु०८।६५, ३।६२. उद्धत। चौथे मास में पहली बार खुली हवा में निकाला जाता | निष्ठात (भू० क० कृ०) [नि+ष्ठित्न , ऊ] हुआ, है) चतुर्थे मासि कर्तव्यं शिशोनिष्क्रमणं गृहात् चूआ हुआ, फेंका हुआ--निष्ठयुतश्चरणोपयोगमुलभो --मनु० २१३४ । लाक्षारसः केनचित्-श०४१५, रघु०२।७५. शि०३।१०। निष्क्रमणिका [निष्क्रमण+क+टाप. इत्वम् । दे० | निष्ठघूतिः (स्त्री०) [नि+ष्ठिव+तिन्. ऊम् ] थूक, निष्क्रम (३)। खकार । निष्क्रयः [निस्+की+अच् ] निस्तार. छुटकारा, वन्दी निष्ण,निष्णात (वि.) [ नि--स्ना |- क, का वा नपुर, का उद्वार-मूल्य-ददौ दत्तं समुद्रेण पीतेनेवात्मनिष्क्रयम् कुशल, विज्ञ, दक्ष, सुपरिचित, विशेषज्ञ निष्णाता---रघु० १५५५, २।५५, ५।२२, मुद्रा०६।२० 2. I ऽपि च वेदांते साधुत्वं नैति दुर्जनः-भामि० ११८७, For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न होतालान बन्दलाली भट्टि० २।२६, शि० ८१६३, मनु० २०६६, ६॥३० 2. प्रकाशित, सम्पन्न, निष्पन्न--मा० १०॥२४ (निःशंक विहितः-जगद्धर 3. बढ़िया, पूर्ण । निष्पक्व ( वि०)[ निस्+पच्+क्त ] 1. काढ़ा बनाया हुआ, जल में भिगोया हुआ 2. भली प्रकार पकाया हआ। निष्पतनम् [ निस्+-पत्+लट् ] 1. झपट कर निकलना, शीघ्रता से बाहर जाना। निष्पत्तिः ( स्त्री०) [ निस्+पद्+क्तिन् ] 1. जन्म, उत्पादन-शस्यनिष्पत्तिः 2. परिपक्वावस्था, परिपाक-कु० २१३७ 3. पूर्णता, समापन 4. संपूर्ति, संपन्नता, समाप्ति। निष्पन्न ( भू० क० कृ० ) [ निस्+पद्+क्त ] 1. जन्मा हुआ, उदित, उद्गत, पैदा हुआ 2. कार्यान्वित हुआ, पूरा हुआ, संपन्न 3. तत्पर । निष्पवनम् [ निस् +-पू+ल्यूट ] फटकना। निष्पादनम् [ निस्+पद्+णिच् + ल्युट् ] 1. कार्यान्व यन, निष्पत्ति 2. उपसंहरण 3. उत्पादन, पैदा करना । निष्पावः [ निस्+पू+घञ ] 1. फटकना, अनाज साफ करना 2. छाज से उत्पन्न होने वाली वायु 3. हवा । निष्पीडित (भू० क० कृ०) [ निस् ।-पोड़ +-णिच --क्त ] निचोड़ा हुआ, ीचा हुआ,---निष्पीडितेंदुकरकंदलजो नु सेक:-उत्तर० ३।११ । निष्पेषः, निष्पेषणम् [ निम् +पिय् +घञ, ल्युट् वा ] 1. मिलाकर रगड़ना, पीसना, चूर-चूर करना, कुचलना-- भजांतरनिष्पेप:-वेणा०३ 2. खोटना या कूटना, आघात करना, रगड़ देना-रघु० ४।७७, महावी० १२३४, का० ५६ । निष्प्रवाणम्-णि (नपुं०) [ निस--प्रवे+ल्युट, निर्गता प्रवाणी तन्तुवाप शलाका अस्मात् अस्य वा नि० - साधुः ] नया कोरा कपड़ा, युगलम् -दश०। निस ( अव्य० ) [ निस+ स्विप ] 1. उपसर्ग के रूप में यह धातुओं के पूर्व लग कर बियोग (से दूर, के वाहर), निश्चिति, पूर्णता, उपभोग, पार करना, अतिक्रमण आदि अर्थों को बतलाता है, उदाहरण दे० पीछे 'निर' के अन्तर्गत 2. संज्ञा शब्दों के पूर्व उपसर्ग के रूप म प्रयुक्त, होकर बहुत से नाम और विशेषण बनाता है तथा निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है (क) ... 'में से' 'से दूर' जैसा कि 'निर्वन, निष्कौशाम्बि' या (ख) अधिक प्रचलित 'नहीं' के विना' से शन्न' (अभावात्मकता पर बल देने वाला), निःशेष -बिना शेष के, निष्फल, निर्जल आदि (विशे० समासो में निस् का स स्वरों के, अथवा वर्ग के तीसरे, चौथे या पांचवें वर्ण, या य र ल व ह में से कोई वर्ण, परे होने पर, बदल कर र हो जाता है, दे० निर, ऊष्म वर्णों के परे होने पर विसर्ग, च छ से पूर्व श् तथा क और प से पूर्व ष हो जाता है, दे. दुस)। सम-कंटक (निष्कंटक) (वि०) 1. बिना कांटों का 2. काटों से या शत्रुओं से युक्त, भय तथा उत्पातों से मुक्त,-कंद (निष्कंद) (वि.) भक्ष्य मूलों के बिना,---कपट (निष्कपट) (वि०) निश्छल, शुद्ध हृदय,--कंप (निष्कप) (वि०) गतिहीन, स्थिर, अचर-निष्कंपचामरशिखा-श० १२८, कु. ३।४८,-करण (निष्करुण (वि.) निर्दय, निर्मम, क्रूर,-कल (निष्कल) (वि.) 1. अखंड, अविभक्त, समस्त 2. प्राप्तक्षय, क्षीण, न्यून 3. पुंस्त्वहीन, ऊसर 4. विकलांग-(लः) 1. आधार 2. योनि, भग 3. ब्रह्मा (-ला,-ली) एक बूढ़ी स्त्री जिसके बच्चे होने बन्द हो गये हों, या जिसे अब रजोधर्म न होता हो,-कलंक (निष्कलंक) (वि.) निर्दोय, कलंक से रहित,-कषाय (निष्कषाय) (वि०) मैल तथा दुर्वासनाओं से मुक्त,-काम (निष्काम) (वि.) 1. कामना या अभिलाषरहित, निरिच्छ, निस्वार्थ, स्वार्थरहित 2. संसार की सब प्रकार की इच्छाओं से मुक्त (अव्य-मम्) 1. विना इच्छा के 2. अनिच्छा पूर्वक,-कारण (निष्कारण) (वि०) 1. बिना कारण के, अनावश्यक 2. निस्वार्थ, निष्प्रयोजन-निष्कारणो बंधुः 3. निराधार, हेतुरहित (अध्य० णम) बिना किसी कारण या हेतु के, कारण के अभाव में, अनावश्यक रूप से,-कालक: (निष्कालक:) पश्चात्ताप में रत (अपराधी) जिसके बाल, रोएँ सब मूंड कर धी लगाया गया हो,-कालिक (निष्कालिक) (वि.) 1. जिसकी जीवनचर्या समाप्त हो गई, जिसके दिन इने गिने हों 2. जिसे कोई जीत न सके, अजेय,-किंचन (निष्किचन) (वि०) जिसके पास एक पैसा भी न हो, धनहीन, दरिद्र,-कुल (निष्कुल) (वि.) जिसका कोई बन्धुबान्धव न रह। हो, संसार में अकेला रह गया हो (निष्कुलं कृ पूर्ण रूप से संबंध विच्छेद करना, निर्मूल कर देना; निष्कूला कृ 1. किसी के परिवार को तहस-नहस कर देना 2. छिल्का उतारना, भसी अलग करना-निष्कुलाकरोति दाडिमम्-सिद्धा०),-कुलीन (निष्कुलीन) (वि.) नीच कुल का,-कूट (निष्कूट) (वि.) छलरहित, ईमानदार, निर्दोष,-कृप (निष्कृप) (वि०) निर्मम, निर्दय, क्रूर,---कैवल्य (निकैवल्य) (वि०) 1. केवल, विशद्ध, निरपेक्ष 2. मोक्ष से वञ्चित, मोक्षहीन,--कौशांबि निष्काशांबि) (वि.) जो कौशांबि से बाहर चला गया है,--क्रिय (निष्क्रिय) (वि०) 1. क्रियाहीन 2. जो धार्मिक संस्कारों का अनुष्ठान न करता हो,--क्षत्र (निःक्षत्र),-क्षत्रिय (निःक्षत्रिय) (वि०) सैन्यजाति For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से रहित,-क्षेपः (निःक्षेपः) =निक्षेप,-चक्रम् (निश्चक्रम्) (अव्य०) पूर्ण रूप से,--चक्षुस् (निश्चक्षुस्) (वि.) अन्धा, बिना आँखों का,-चत्वारिंश (निश्चत्यारिंश) (वि.) जिसने चालीस पार लिये हों, -चितं (निश्चिंत) (वि.) 1. चिन्ताओं से मक्त, असंबद्ध, सुरक्षित 2. विचारहीन, चितन शन्य, -चेतन (निश्चेतन) चेतनारहित,-चेतस् (नश्चेतस्) ( वि०) जो अपने ठीक होश में न हो,-चेष्ट (निश्चेष्ट) (वि०) गतिहीन, निःशक्त, चेष्टाकरण (निश्चेष्टाकरण) (वि०) किसी को गति से वञ्चित करना, गतिहीनता का उत्पादक (कामदेव के एक बाण का विशेषण),-छंदस् (निश्छंदस्) (वि०) जो वेदों का अध्ययन न करता हो,-छिद्र (निश्छिद्र) ( वि० ) 1. जिसमें सूराख न हो 2. निर्दोष 3. निर्बाध, क्षतिरहित,-तंतु (वि०) जिसके कोई सन्तान न हो, निस्सन्तान,-तन्द्र (वि०) जो आलसी न हो, फुर्तीला, स्वस्थ,-तमस्क, - तिमिर (वि०) अंधकार मुक्त, प्रकाशमान् 2. पाप और नैतिक मलिनताओं से मक्त,-तl (वि०) कल्पनातीत, अचिन्तनीय, --तल (वि०) 1. गोल, वर्तुलाकारमुक्ताकलापस्य च निस्तलस्य --कु०११४२ 2. हिलने वाला, कांपने वाला, डोलने वाला 3. तलीरहित, --तुष (वि०) 1. भूसी से वियुक्त ?. विशद्ध, स्वच्छ सरलीकृत, क्षीरः गेहूँ,° रत्नम् स्फटिक,-तेजस वि०) निरग्नि, ताप या शक्ति रहित, निःशक्त, पुंस्त्वहीन 2. उत्साहित, मन्द 3. गूढ, --अप ( वि० ) ढीठ, निर्लज्ज,-विश (वि.) 1. तीस से अधिक --निस्त्रिंशानि वर्षाणि चैत्रस्य --पा० ४।४।७३, सिद्धा० 2. निर्मम, निर्दय, क्रूर --अमरु ५ (-शः) तलवार भृत् (पुं०) कृपाणधारी,--त्रैगुण्य (वि.) तीन गुणों सत्त्व, रजस तथा तमस् ) से शून्य,- पंक (निष्पक) (वि.) कीचड़ से मुक्त, स्वच्छ, शुद्ध, -पताक (निष्पताक) (वि.) बिना किसी झंडे के,-पतिसुता (निष्पतिसुता) वह स्त्री जिसके न कोई पुत्र हो, न पति, ---पत्र (निषत्र) (वि.) 1. जिसमें कोई पत्ता न हो 2. जिसके पंखे न हों, बिना पंखों का (निष्पत्रा कृ बाण से इस प्रकार बींधना जिससे कि पंख विद्ध जन्तु के आर पार निकल जाय, अत्यन्त पीड़ा पहुँचाना (आल०) निष्पत्राकरोति (मग व्याधः) (सपुखस्य शरस्य अपरपावें निर्गमनानिष्पत्र करोति-सिद्धा०), एकश्च मगः सपत्राकृतोऽन्यश्च निष्पत्राकृतोऽपतत्-दश० १६५, इसी प्रकार-यांती गुरुजनैः साकं स्मयमानाननांबुजा, तिर्यग्ग्रीवं यदद्राक्षीत्तनिष्पत्राकरोज्जगत्-भामि० २।१३२, ---पद (निष्पद) (वि०) बिना पैरों का (दम) एक गाड़ी जो बिना पैरों या बिना पहियों के चले,-परिकर (निष्परिग्रह) (वि०) बिना तैयारी के,--परिग्रह (निष्परिग्रह) जिसके पास किसी प्रकार की संपत्ति न हो,-मुद्रा० 2. (हः) वह संन्यासी जिसने न तो विवाह किया हो, न जिसका कोई आश्रित हो और न जिसके पास कुछ सामान हो, ----परिच्छद (निष्परिच्छद) (वि०) जिसका कोई अनुचर या पिछलगुआ न हो,-परीक्ष (निष्परीक्ष) (वि०) जो यथार्थ या सही सही परख न करे, ----परीहार (निष्परीहार) (वि०) जो सावधानी न रक्वे,-पर्यंत (निष्पर्यंत),—पार (निष्पार) (वि.) सीमा रहित, असीमित०,-पाप (निष्पाप) (वि०) पापरहित, निर्दोष, पवित्र,-पुत्र (निष्पुत्र) (वि०) पुत्र रहित, निस्सन्तान,-पुरुष (निष्पुरुष) (वि०) 1. निर्जन, बिना किसी असामी के, उजाड़ 2. पुंसन्तान हीन 3. जो पुंलिंग न हो, स्त्रीलिंग, नपुंसक लिंग ((षः) 1. हीजड़ा 2. कायर, पुलाक (निष्पुलाक) बिना पुराली का, बिना भुसो का,-पौरुष (निष्पौरुष) (वि०) पौरुषहीन,-प्रकंप (निष्पकप) (वि०) स्थिर, अचर, गतिहीन,-प्रकारक ( निष्प्रकारक) (वि.) जातिभेदरहित, वैशिष्टयरहित, पूर्ण ... निष्प्रकारकं ज्ञानं निर्विकल्पम् -तर्क ०,---प्रकाश (निष्प्रचार) (वि.) पारदर्शक, अस्पष्ट, अंधकारमय,-प्रचार (निष्प्रचार) (वि.) 1. न हिलने डुलने वाला 2. एक ही स्थान पर स्थिर रहने वाला 2. संकेन्द्रित, जमाया हुआ, स्थिर किया हुआ,-प्रति (तो) कार (निष्पति) (तो) कार), प्रतिक्रिय (निष्प्रतिक्रिय) (वि.)1. जिसकी चिकित्सा न हो सके, जिसका कोई प्रतिकार न हो सके -सर्वथा निष्पतिकारेयमापदुपस्थिता-का० १५१ 2. निर्बाघ, बाधारहित (अव्य रम्) बिना किसी विघ्न के,-प्रतिघ (निष्पध) (वि०) विघ्नरहित, निधि, बाधाशून्य-रघु० ८७१, --प्रतिद्वन्द्व (निष्प्रतिद्वन्द्व) (वि.) 1. शत्रुरहित, निविरोध 2..बेजोड़, अप्रतिम, अनुपम,-प्रतिभ (निष्प्रतिभ) (वि.) 1. कान्तिशून्य 2. प्रज्ञाहीन जो प्रत्युत्पन्नमति न हो, मन्द बुद्धि, जड़ 3. उदासीन, ---प्रतिभान (निष्प्रतिभान) (वि.) कायर, भीरु, -प्रतीप (निष्प्रतीप) (वि.) 1.सीधा सामने देखने वाला, पीछे मुड़कर न देखने वाला 2. (दृष्टि) असंबद्ध,-प्रत्यूह (निष्प्रत्यूह) (वि.) निर्विघ्न, अबाध,--प्रपंच (निष्प्रपंच) 1. विस्तारहीन 2. छल कपट से रहित, ईमानदार,--प्रभ (निःप्रभ या निष्प्रभ) (वि.) 1. कान्तिविहीत, विवर्ण दिखाई देने वाला-रघु० ११५८१ 2. शक्तिरहित 3. निस्तेज, द्युतिहीन, अन्धकारमय,-प्रमाणक (निष्प्रमाणक) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४७ ) (वि०) बिना अधिकार का,-प्रयोजन (निष्प्रयोजन)। जहाँ मार्ग उपलब्ध न हो, जहाँ मार्ग अवरुद्ध हो (वि.) 1. निरुद्देश्य, जो किसी प्रयोजन से प्रभावित (–तः) आधीरात का अँधेरा, गप अंधरा, घना न हो 2. निष्कारण, निराधार 3. व्यर्थ 4. अनपयोगी, अंधकार,-संबाध (निःसंबाध) (वि.) जो संकीर्ण अनावश्यक (अव्य-नम्) बिना कारण या हेतु के, न हो, प्रशस्त, विस्तृत,-संसार (निःसंसार) (वि.) बिना किसी मतलब के-मद्रा० ३,-प्राण (निष्प्राण) 1. नीरस, सारहीन, बिना गूदे का 2. निकम्मा, (वि०) प्राणहीन, निर्जीव, मृतक,--फल (निष्फल) असार,-सोम (निःसीम), सीमन् (निःसीमन्) (वि.) 1. जिसका कोई फल न निकले, फलहीन, (वि०) अपरिमेय, सीमारहित-अहह महतां निः (आलं० भी) असफल--निष्फलारंभयत्ना:--मेघ० सीमानश्चरित्रविभूतयः-भर्तृ० २।३५, निःसीमशर्म५४ 2. अनुपयोगी, बिना लाभ का, निरर्थक-कू० पदम् -३।९७,-स्नेह (निःस्नेह) (वि.) जो ४।१३ 3. बाझ, ऊसर 4. (शब्द) निरर्थक 5. बिना चिकना न हो, बिना चिकनाई का, शुष्क 2. स्नेहबीज का, निर्वीर्य (--लाली) स्त्री जिसके सन्तान रहित, भावनाशून्य, कृपाहीन, उदासीन 3. जिससे होना बन्द हो गया हो,---फेन (निष्फेन) (वि०) कोई प्यार न करता हो, जिसकी कोई देखभाल न बिना झागों का,--शब्द (निःशब्द) (वि.) जो करता हो-पंच० १२८२, --स्पंद (निःस्पंद या शब्दों में व्यक्त न किया गया हो, शब्दरहित-11. निस्स्पंद) (वि०) गतिहीन, स्थिर-रधु० ६।४०, शब्दं रोदितुमारेभे--का. १४३,--शलाक (निः -~-स्पृह (निःस्पृह) (वि.) 1. कामनाशून्य 2. लाशलाक) (वि.) अकेला, एकांतसेवी, निवृत्त--(कम्) परवाह, उदासीन-ननु वक्तविशेषनिःस्पृहा--कि० निर्जन स्थान, एकान्तस्थान-अरण्ये निःशलाके वा २।५, रघु० ८.१० 3. सन्तुष्ट, डाह न करने वाला मंत्रयेदविभावितः--मनु० ७।१४७, -शेष (निः शेष)। 4. सांसारिक बन्धनों से मुक्त-स्व (निःस्व) (वि०) (वि०) बिना कुछ शेष रहे, पूर्ण, समस्त, पूरा, निर्धन, दरिद्र-निःस्वो वष्टि शतम् --शा० २१६, निः शेषविश्राणितकोशजातम् - रघु० ५।१,-शोध्य ----स्वादु (निःस्वादु) (वि०) स्वादरहित, बिना स्वाद (नि.शोध्य) (वि०) धोया हुआ, स्वच्छ,---संशय का, बदमजा । (निःसंशय) (वि०) 1. असन्दिग्ध, निश्चित 2. सन्देह निसंपात दे० निःसंपात । रहित, आशंकारहित, संदेहशून्य-रघु० १५४७९ निसर्गः [ नि+सज्+घा ] 1. प्रदान करना, अनुदान (अव्य... यम) निस्सन्देह, असन्दिग्ध रूप से, निश्चित देना, उपहार देना, पुरस्कार देना--मनु०८।१४३ 2. रूप से, अवश्य, -संग (निःसग) (वि०) 1. अना- अनुदान 3. मलोत्सर्ग, शून्यीकरण, मलत्याग 4. त्याग, सक्त, भक्तिरहित, अनपेक्ष, उदासीन-यन्निःसंगस्त्वं तिलांजलि देना 5. सष्टि-निसर्गदुर्बोधम् ---कि० ॥ फलस्यानतेभ्यः-कि० १८०२४ 2. सांसारिक आस- ६, १८।३१, रघु० ३।३५, कु० ४।१६,-निसर्गतः, क्तियों से मुक्त 3. निलिप्त, वियुक्त, अनुरागशून्य निसर्गण प्रकृति से, स्वभावत. 7. अदला-बदली, विनि4. अबाध (अम-गम्) निस्स्वार्थ भाव से-संश मय । सम०-ज,--सिद्ध (वि०) सहज, अन्तर्जात, (निःसंज्ञ) (वि०) बेहोश,-सत्त्व (निःसत्त्व) (वि०) स्वाभाविक,-भिन्न (वि०) स्वभावतः और प्रकार 1. सत्त्वरहित, दुर्वल, पुंस्त्वहीन 2. नीच, नगण्य, का-निसर्ग भिन्नास्पदमेकसंस्थम् --रघु० ६२९, अधम 3. सत्ताहीन, असार 4. जीवित प्राणियों से -विनीत (वि०) 1. स्वभावतः विवेको 2. स्वभावंचित (.-त्वम्) 1. शक्ति या ऊर्जा का अभाव | वतः विनम्र । 2. सत्ताहीनता 3. नगण्यता,-संतति (निस्संतति), | निसारः [नि+स+घञ ] समुच्चय, समूह । संतान (निस्सन्तान) (वि०) जिसके कोई सन्तान | निसूदन (वि०) [ नि+सूद् + ल्युट् ] मारने वाला, नष्ट न हो, सन्ततिरहित,-संदिग्ध (निस्सन्दिग्ध),-संदेह करने वाला,-नम् बध, हत्या । (निस्सन्देह) (वि.) दे० नि:संशय,- सन्धि (निस्संधि, । (भ० क० कृ०) [नि+सज+न्त ] 1, सौंपा निःसन्धि) (वि.) जिसमें दिखाई देने वाली कोई गया, दिया गया, अपित 2. छोड़ा गया, त्यक्त 3. गांठ न हो, संहत, सधन, सटा हुआ,-सपत्न (निः विजित 4. अनुज्ञात, अनुमत 5. केन्द्रवर्ती, मध्यस्थ । सपत्न) (वि०) 1. जिसका कोई शत्रु न हो-धन- सम० ---अर्थ (वि.) जिसे किसी कार्य का प्रबन्ध रुचिरकलापो निःसपत्नोऽद्य जात:--विक्रम० ४।१० सौंपा गया हो 2. दूत, अभिकर्ता-दे० सा० ८०८६, 2. जिसका कोई और दावेदार न हो, जो सर्वथा एक ८७, दूती वह स्त्री जो नायक और नायिका के प्रेम ही का हो 3. अजातशत्रु,-- समम् (निस्समम्) को जान कर स्वयं उनको मिलाती है तन्निपूर्ण निस(अव्य.) 1. बिना ऋतु के, अञ्चित समय पर स्टार्थदूतोकल्पः सूचयितव्यः ---मा० १ (यहां जगद्धर 2. दुष्टता के साथ, --संपात (निःसंपात) (वि०) । 'निसृष्टार्थदूती' शब्द की व्याख्या इस प्रकार करता है For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४८ ) -~-नायिकाया नायकस्य वा मनोरथं ज्ञात्वा स्वमत्या | निहीन (वि.) नितरां हीन: प्रा० स०] अधम, नीच, कार्य साधयति वा)। -नः नीच आदमी, अधम कुल में उत्पन्न । निस्तरणम् | निस्+त+ल्युट ] 1. बाहर जाना, बाहर | निह्नवः [नि+नु+अप् ] 1. मुकर जाना, जानकारी . आना 2. पार करना 3. बचाना, मुक्ति, छुटकारा | __ का छिपाना-कार्यः स्वमतिनिह्नवः-मा० १११२, 4. तरकीब, उपाय, योजना। चन्द्रा० ५।२७ 2. गोपनीयता, छिपाव-याज्ञ० २।११ निस्तहणम् [ निस्+तृह ल्युट ] वध, हत्या । २६७ 3. रहस्य 4. अविश्वास, सन्देह, शंका 5. दुष्टता निस्तारः [निस्+त+घञ्] 1. पार करना-संसार | 6. परिशोधन, प्रायश्चित्त 7. बहाना। तव निस्तारपदवी न दवीयसी-भट्टि० ११६९ 2. | निह्न तिः (स्त्री०) [नि+ह+क्तिन् ] 1. मकरना, छुटकारा पाना, छुट्टी, बचाव, उद्धार 3. मोक्ष 4. जानकारी का छिपाव, अमरू८ 2. पाखंड, संवरण, ऋणपरिशोधन, चुकौती, अदायगी-वेतनस्य निस्तारः | मनोगुप्ति 3. गोपनीयता, छिपाना, गुप्त रखना । कृतः--हि० ३ 5 उपाय, तरकीब । नी (भ्वा० उभ० नयति-ते, नीत) [ द्विकर्मक धातू, उदानिस्तीर्ण (भू० क० कृ०) [निस्+त+क्त ] 1. उद्धार हरण नी० दे० ] 1. ले जाना नेतृत्व करना, लाना, किया हुआ, मुक्त किया हुआ, बचाया हुआ 2. पार | पहुँचाना, लेना, संचालन करना-अजां ग्राम नयति किया हुआ (आलं०) वेणी०६।३६ । सिद्धा०, नय मां नवेन बसति पयोमुचा--विक्रम० निस्तोदः [ निस्+तुद्+घञ् ) चुभना, डंक मारना। ४१४३ 2. निर्देश करना, निदेश देना, शासन करना निस्पंदः [ नि+स्पन्द +धा ] कंपकपी, घड़कन, -मालवि० ०२ 3. दूर ले जाना, बहा ले जाना---- गति। सीता लंकां नीता सुरारिणा-भट्टि० ६।४९, रघु० निस्यं (व्यं) दः [ नि+स्यन्द +धा षत्वं विकल्पेन ] १२।१०३, मनु०६८८ ६. उठा ले जाना--- शा० ३। 1. आगे, या नीचे की ओर बहना, चना, टपकना, ५. किसी के लिए ले जाना (आ०) 6. व्यय करना, बंद २ करके गिरना, झरना, रिसना-वल्कलशिखा (समय) बिताना-येनामन्दमरन्दे दलदरविन्दे दिनान्यनिस्यंदरेखांकिता:-श० १।१४ 2. क्षरण, स्राव, नायिषत-भामि० १२१०, नीत्वा मासान् कतिचित् रसीलापदार्थ, रस-उत्तर० २।२४, मा० ९।६ 3. ----मेघ० २, संविष्टः कुशशयने निशां निनाय-रघु० प्रवाह, स्रोत, पानी को धार-हिमाद्रि निस्वंद इवाव- १२९५ 7. किसी अवस्था तक कृश करना-तमपि तीर्णः- रघु० १४।३,४१, १६१७०, मदनिस्यंदरेखयोः तरलतामनयदनंग:-का० १४३, नीतस्त्वया पंचताम् ----१०५८, मेध० ४२ । रत्न० ३।३, रघु०८।१९ (इस अर्थ में यह धातु नामों निस्यविन (वि.) [ नि+स्यन्द+-णिनि ] टपकने वाला, के साथ उसी प्रकार प्रयुक्त होती है जिस प्रकार कृ बहने वाला, रिसने वाला। - उदा. 1. अस्तं नो छिपाना . दंडंम् नी दण्ड देना, नित्रवः, निस्रायः [न++अप, धन वा ] 1. सरिता, सजा देना 3. दासत्वं नी दास बनाना 4. दुःखं नी धारा 2. चावलों का मांड़। संकटग्रस्त करना 5. परितोषं नी तप्त करना, निस्वनः, निस्वानः [ नि+स्वन्+अप, धश वा ] शब्द, प्रसन्न करना 6. पुनरुक्ततां नी फालतू करना 7. आवाज, रधु० ३।१९, ऋतु० १।८, कि० ५।६ । भस्मतांनी 8. भस्मसात् नी जलाकर राख करना निहत (भू० क० कृ०) [नि+हन्-क्त ] 1. पटखी 9. वशं नी अधीन करना, जीत लेना 10. विक्रय नी दिया हुआ, आधात किया हुआ; बथ किया हुआ, 11. विनाशं नो नष्ट करना 12. शद्रतां नी शूद्र मारा हुआ 2. प्रहार किया हुआ, चोट जमाया हुआ बनाना 13. साक्ष्यं नी गवाही मानना 8. निश्चय 3. अनुरक्त, भक्त । । करना, गवेषणा करना, पूछताछ करना, निर्णय करना, निहननम् [नि+हन्+ ल्युट् ] वध, हत्या । फैसला करना-छल निरस्य भूतेन व्यवहारान्नयेन्नृपः निहवः [नि+हे+अप, संप्रसारण ] आवाहन, बुलावा । -याज्ञ० २।१९, एवं शास्त्रेषु भिन्नेषु बहुधा नीयते निहारः [नि-1-ह-धज ] दे० 'नीहार'। क्रिया-महा०१. पता लगाना, लीक के सहारे पीछा निहिसनम् नि-+-हिस् ल्यट] बध, हत्या। करना, खोज निकालना-एतलिगर्नयेत् सीमा-मनु० निहित (भू० क० कृ०) [नि+धा+क्त ] 1. रक्खा ८।२५२, २५६, यथा नयत्यसकपातैर्मगस्य मृगयु: पदम् हुआ, धरा हुआ, टिकाया हुआ, स्थापित, जमा किया '-८।४४, याज्ञ० २११५१ 10. विवाह करना 11. हुआ 2. सौंपा हुआ, समर्पित 3. प्रदत्त, प्रयुक्त 4. बहिष्कृत करना 12. (आ०) शिक्षा देना, अनदेश अहित, अंदर रक्खा हुआ 5. कोषबद्ध किया हआ देना-शास्त्रे नयते-सिद्धा, प्रेर०- नाययति-तें, 6. संभाला हुआ 7. (धूल आदि) पड़ी हुई 8. गंभीर मार्गदर्शन करना, पहुंचवाना (करण के साथ) तेन स्वर में उच्चरित । मां सरस्तीरमनाययत्-का० ३८, इच्छा० निनीषति For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -ते, ले जाने की कामना करना, अनु–मानना, । अपने पक्ष का बना लेना, प्रवृत्त करना, फुसलाना, ! प्रार्थना करना, राजी करना, बहलाना, (क्रोधादिक) शान्त करना, प्रसन्न करना, लुभाना-स चानुनीत: प्रणतेन पश्चात् - रघु० ५।५४, विग्रहाच्च शयने पराङमुखी नुनेतुमबलाः स तत्वरे-१९।३८, कि० १३। ६७, भट्टि० ५।४६, ६।१३७ 2. स्नेह करना -- भर्तृ. २१७७ 3. साधना, अनुशासन में रखना, अप-1. दूर । ले जाना, दूर बहा ले जाना, निवृत्त करना--मनु० ३।२४२ 2. (क) हटाना, नष्ट करना, ले जाना --श० ६।२६, शत्रूनपनेष्यामि-भट्टि० १६।३०, (ख) लूटता, चुराना, लूटमार करना, छीनना, ले लेना -रधु० १३१२४ 2. उद्धृत, निचोड़ करना -शल्यं हृदयादपनीतमिव-विक्रम० ५, दूर करना, (वस्त्रादिक) उतारना, खींचकर उतारना-चरणान्निगड़मपनय-- मच्छ०६, अपनयंतु भवत्यो मृगयावेषम् -श० २, रघु० ४।६४, अभि-, 1. निकट लाना, संचालन करना, नेतृत्व करना, ले जाना--कि० ८।३२ मुद्रा० १।६,१५ 2. अभिनय करना, नाटकीय रूप से प्रतिनिधान या प्रदर्शन करना, हाव-भाव (बहुधा रंगभूमि के निदेशों में प्रयुक्त) प्रदर्शित करना-श्रुतिमभिनीय---श० ३, कुसुमावचयनभभिनयंत्यो सख्यौ-श० ४, मुद्रा० ११२, ३१३१ 3. उद्धृत करना, घटाना, अभिवि-,अध्यापन करना, शिक्षा देना, सधाना, आ--, 1. लाना, जाकर लाना-भुवनं मत्याश्र्वमानीयते --श० ७८, मनु० ८।२१० 2. प्रकाशित करना, पैदा करना, उत्पादन करना---आनिनाय भुव: कंप रघु०१५,२४ 3. किसो अवस्था में पहुंचाना आनीयतां नम्रताम्-रत्न ११ 4. निकट ले जाना, पहुचाना उद्-1. आगे बढ़ाना, पालनपोषण करना 2. उठाना, उन्नत करता, सीधा खड़ा करना (आ) दंडमुन्नयते-सिद्धा० 3. एक ओर ले जाना, एकान्तमुन्नीय-- महा0 4. अनुमान लगाना, निश्चय करना, : अटकल लगाना, अन्दाज लगाना उत्तर० १२९, । ३।२२, उप-- 1. निकट लाना, जाकर लाना विधिनवोपनीतस्त्वम्-मच्छ० ७१६, मनु० ३।२२५, मालवि० २।५, कु० ७७२ 2. उठाना, उन्नत करना, ले जाना शि० ९।७२ 3. प्रस्तुत करना, उपस्थित करना-रधु० २।५९, कु० ३१६९ 4. प्रकाशित करना, पैदा करना, उत्पादन करना-उपनयनर्थान-पंच० ३.१८०, उपनयन्त्रगैरनंगोत्सबम् --गीत०१5. किसी अवस्था में लाना, अवस्थाविशेष तक पहुंचाना-पुरोपनीतं नृप रामणीयकम् ----कि० ११३९ 6. यज्ञोपवीत धारण कराना (आ०) माणवकमुपनयते-सिद्धा०, भट्टि० १।१५, रधु० ३।। २९, मनु० २।४९ 7. भाड़े पर रखना, भाड़े के नौकर रखना-कर्मकरानुपनयते---सिद्धा०, उपा-, अवस्था विशेष में लाना, घटाना, नि-, 1. निकट ले जाना, समीप पहुँचाना- याज्ञ०३।२९५ 2. झकना, विनत होना,-वक्त्रं निनीय-3. उडेलना 4. घटित करना, निष्पन्न करना, निस्-, 1. ले उड़ना, 2. निश्चय करना, तय करना, फैसला करना, संकल्प करना, दृढ़ करना-कथमप्युपायमात्मनव निर्णीय दश०, कि० १२३९, परि-, 1. (अग्नि की) प्रदक्षिणा करना-तौ दंपती चि: परिणीय वह्नि (पुरोधाः) -कु० ७८०-अग्नि पर्यणयं च यत्-रामा० 2. विवाह करना, ब्याहना-परिणेष्यति पार्वतीं यदा तपसा तत्प्रवणीकृतो हः-कु० ४।४२ 2. निश्चय करना, खोज करना-मनु० ७।१२२, प्र--, 1. (सेना आदि का) नेतृत्व करना-वानरेन्द्रेण प्रणीतेन (बलेन) रामा० 2. प्रस्तुत करना, देना, उपस्थित करनाअयं प्रणीय जनकात्मजा-भट्रि० ५।७६ 3. चेताना, (आग) सुलगाना, पंच० ३.१ 4. वेदमंत्रों के पाठ से अभिमंत्रित करना, पूजना, अर्चना करना-विधाप्रणीतो ज्वलनः-हरि० 5, (दण्ड आदि) देना-मनु० ७।२०, ८१२३८ 6. निर्धारित करना, शिक्षा-प्रदान करना, प्रख्यायन करना, प्रतिष्ठापित करना, विहित करना--स एव धर्मो मनुना प्रणीत:-रधु०१४।६७, भवत्प्रणीतयाचारमामनंति हि साधवः-कु० ६।३१ 7. लिखना, रचना करना-प्रणीतः न तु प्रकाशित: - उत्तर० ४, उत्तरं रामचरितं तत्प्रणीतं प्रयुज्यते उत्तर० ११३ 8. निष्पन्न करना, कार्यान्वित करना, अनुष्ठान करना, प्रकाशित करना-नै० ११५,१९, भर्त० ३।८२ 9. (अवस्था विशेष तक) पहुँचाना, निम्न अवस्था में ले जाना, प्रति-,वापिस ले जाना,. वि-, 1. हटाना, ले जाना, नष्ट करना (आ०, उस स्थान को छोड़कर जहाँ कर्म के स्थान में शरीर का कोई भाग' हो) पटुपटहध्वनिभिविनीतनिद्र:रघु० ९।७१, ५१७५, १३।३५,४६, १५।४८, कु० १४९, विनयते स्म तद्योधा मधुभिबिजयश्रमम् --- रधु० ४।६५,६७ 2. अध्यापन करना, शिक्षण देना, शिक्षा देना, प्रशिक्षित करना-विनिन्यरेनं गुरवो गुरुप्रियम् ----रधु० ३।२९,१५।६९,१८१५१, याज्ञ. ११३११ 3. पालना, वशीभूत करना, प्रशासित करना, नियंत्रित करना-वन्यान् विनेष्यन्निव दुष्टसत्त्वान्-रधु० २।८, १४१७५, कि० २१४१ 4. प्रसन्न करना, (क्रोध आदि) शान्त करना (आ०) 5. व्यतीत हो जाना, (समय का) बिताना-कथमपि यामिनीं विनीय --- गीत० ८ 6. पार ले जाना, सम्पन्न करना, पूरा करना 7. व्यय करना, प्रयुक्त करना, उपयोग में (आ०) लाना, For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५० ) ना 2. हकूमत नोड: नोड + कन्नी -क्त ] 1. एकता महाना 4. निकट लाना, सन करना 3. वापिस । 3. निम्न शतं विनयते--सिद्धा० 8. देना, प्रस्तुत करना, प्रदान । +क, लस्य तारा०] 1. पक्षी का घोसला-श. करना, (श्रद्धांजलि अर्पित करना (आ०), करं | ७.११ 2. बिस्तरा, गद्दा 3. माँद, भट 4. रथ का विनयते--सिद्धा० 9. नेतृत्व करना, संचालन करना | भीतरी भाग 5. स्थान, आवास, विश्रामस्थल । सम० -कु० ७१९, सम्-, 1. एकत्र करना 2. हकूमत -उद्भवः,-जः पक्षी। करना, प्रशासन करना, पथप्रदर्शन करना 3. वापिस | नीडकः [ नीड-+-कन् ] 1. पक्षी 2. धोंसला । प्राप्त, लौटाना 4. निकट लाना, समा-, 1. मिलाना, | नीत (भू० क० कृ०) [नी+क्त ] 1. ले जाया गया, एकता में आबद्ध करना, एकत्र करना ...-रघु० २१६४, संचालित, नेतृत्व किया गया 2. लब्ध, प्राप्त 3. निम्न श० ५।१५ 2. जा कर लाना लाना-- रधु. १२२७८।। - अवस्था को पहुंचाया हुआ 4. व्यतीत, बिताया गया नो (पं०) [नी+क्विप्] (समास के अन्त में प्रयुक्त) 5. भली भांति व्यवहृत, सही-दे० 'नो',-तम् 1. नेता, पथप्रदर्शक, जैसा कि ग्रामणी, सेनानी और धन 2. धान्य, अनाज। अग्रणी में। नोतिः (स्त्री० [नी+क्तिन् ] 1. निर्देशन, दिग्दर्शन, नीका (स्त्री०) कुल्या, गूल, खेत की सिंचाई के लिए | प्रबंध 2. आचरण, चालचलन, व्यवहार, कार्यक्रम 3. बनी नहर । औचित्य, शालीनता 4. नीतिकौशल, नीतिज्ञता, बुद्धिनीकारः दे० 'निकार। मत्ता, व्यवहारकुशलता- आर्जवं हि कुटिलेषु न नोकाश (वि०) [नि+काश् +अच्, दीर्घः ] दे॰ 'निकाश' | नीति:-० ५।१०३, रधु० १२॥६९, कु. १२२२ -शि० ५।३५ । 5. योजना, उपाय, कूटय क्ति-मा०६।३ 6. राजनय, नीच (वि०) [निकृष्टतमी शोभां चिनोति-चि+ड, | राजनीति विज्ञान, राजनीतिज्ञता, राजनीतिक बुद्धि तारा०] 1. नीच, छोटा, स्वल्प, थोड़ा, बौना मत्ता-आत्मोदय: परग्लानिर्द्वयं नीतिरितीयती---शि. 2. निम्नस्थित, निकृष्ट --भग०६।११, मनु० २।१९८, २।३०, भग० १०।३८ 7. आचारशास्त्र, आचार, याज्ञ० १३१३१ 3. नीची, गहरी (आवाज) 4. नीच, नीतिशास्त्र, आचारदर्शन 8. अवाप्ति, अधिग्रहण 9. कमीना, अधम, दुष्ट, अत्यंत खोटा-प्रारभ्यते न देना, प्रदान करना, प्रस्तुत करना 10. संबंध, सहारा। खल विघ्नभयेन नीचः-भर्त० २।२७, नीचस्य गोचर- सम०-कुशल,-ज्ञ,-निष्ण,-विद् (दि०) 1. गत सुखमास्यते के:-५९, भामि० ११४८ 5. निकम्मा, राजनीतिविशारद, राजनीतिज्ञ, नीतिज्ञ 2. दूरदर्शी, निरर्थक,-चा श्रेष्ठगाय । सम०-गा नदो,-भोज्यम् बुद्धिमान्,-घोष:-बृहस्पति की गाड़ी,-दोषः आचार, प्याज,-योनिन् (वि.) नीच कुलोत्पन्न, नीच घराने नीतिविषयक भूल,-बीजम् षड्यंत्र का स्रोत, ---निर्वामें जन्मा हुआ, इसी प्रकार 'नीचजाति',-बज्रः, पणं कृतम् - पंच० १,-विषयः नैतिकता या दूरदर्शी -वज्रम्, वैक्रान्तमणि । व्यापार का क्षेत्र,-व्यतिक्रमः 1. नीतिशात्र या राजनीच (चि) का [नीच--कन् -- टाप, पक्षे इत्वं वा ] नीति-विज्ञान के नियमों का उलंघन 2. चालचलन की बढ़िया या श्रेष्ठ गाय, (नौचिकी' भी)। त्रुटि, नीतिविषयक भूल,-शास्त्रम् नीतिशास्त्र या नोकिन् (पुं०) [नीचक-+ इनि] 1. किसी वस्तु का राजनय, नैतिकता। शिखर 2. बैल का सिर 3. अच्छी गाय का स्वामी। | नीध्रम (ब्रत) [ नितरां ध्रियते मूलवि क दीर्घः नोचकः (अव्य०) [ नीचेस् इत्यस्य ट: प्रागक] (प्रायः --तारा० ] 1. छत का किनारा 2. जंगल 3. पहिए विशेषण के अर्थ में प्रयुक्त) 1. नीचा, नीचे, अधः, की परिधि या घेरा 3. चन्द्रमा 5. रेवती नक्षत्र । के नीचे, तले, नीचे की ओर (विप० उपरि)-.. नोपः नी-4 बा० गुणाभावः ] 1. पहाड़ की तलहटी 2. नीचैर्गच्छत्यपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण-मेघ० १०९ कदंब वृक्ष (बरसात में फल देने वाला) नीप: प्रदी2. नीचे झुककर, विनम्र हो कर, विनयपूर्वक-रघु० पायते-मच्छ० ५।१४, सीमन्ते च त्वदुपगमजं यत्र ५।६२ 3. आहिस्ता २, कोमलता से-नीचैवस्यिति- नीपं वधूनाम् – मेघ० ६५, ६ 3. अशोक जाति का मेघ० ४२ 4. मन्द स्वर में--धीमी आवाज से-नीचैः वृक्ष 4. राजाओं का एक कुल ---रधु० ६।४६,---पम् शंस हृदिस्थितो ननु स मे प्राणेश्वरः श्रोष्यति-अमरु कदंब वृक्ष का फूल-मेघ० २१, रघु० १९३७ ।। ६७, नीचैरनुदात्तः ---पा० ११२।३०, 5. छोटा, गुटका, नीरम् [नी-रक | 1. पानी-नीरानिर्मलतो जनिः बौना-तथापि नोचैविनयाददृश्यत --- रघु० ३।२४, भामि० ११६३ 2. रस, आसव । सम०-- जम् 1. (पं०) पहाड़ का नाम-नीच राख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र कमल 2. मोती, --दः बादल-धीरध्वनिभिरलं ते विश्रामहेतोः-मेघ. २६ । सन०-गतिः (स्त्रो०) नीरद मे मासिको गर्भ:-..भामि० श६१, शि० ४५२, शिथिलगति, -मुख (वि०) नोचे को मुंह किये हुए। -धिः,---निधिः, समुद्र,--रुहम् कमल । नीडः,-डम् [ नितरां मिलन्ति खगा अत्र-नि+इल | नीराजनम्,-ना [ निर-राज-ल्युट, स्त्रियाँ टाप् ] 1. For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५५१ ) । शास्त्रास्त्रों को चमकाना, एक प्रकार का सैनिक व धार्मिक पर्व जिसको राजा या सेनापति आश्विन मास में संग्राम क्षेत्र में जाने से मनाते थे (अर्थात् राजा के पुरोहित, मंत्री तथा सेना के अधिकारी अपने विविध शस्त्रास्त्रों सहित वेद मंत्रों द्वारा ) ४/४५, १७।१२, नं० ४।१४४ 2. अर्चना के रूप में देवमूर्ति के सामने प्रज्वलित दीपक घुमाना । नील (वि० ) ( स्त्री० - ला (वस्त्रादिक) - ली (जीव जन्तु आदि ) [ नील् + अच् ] 1. नीला, गहरा नीला-नील स्निग्धः श्रयति शिखरं नूतनस्तोयवाहः उत्तर० १।३३ 2. नील से रंगा हुआ, - ल: 1. गहरा नीला या काला रंग 2. नीलमणि 3. गूलर का पेड़, बड़ का पेड़ 4. राम की सेना में एक वानर मुख्य 5 नीलगिरि, पर्वत की एक मुख्य श्रृंखला, लम् 1. काला नमक 2. नीला थोथा या तूतिया 3. सुरमा 4. विष । सम० - अंगः सारस पक्षी, अंजनम् सुरमा, अंजना, --अंजना, अंजसा बिजली, - अब्जम् - अंबुजम्, - अम्बुजन्मन् ( नपुं० ), उत्पलम् नील कमल, -- अभ्र: काला बादल, अंबर (वि०) गहरे नीले वस्त्रों से सुसज्जित ( : ) 1. राक्षस, पिशाच 2. शनि ग्रह 3. वलराम का विशेषण, अरुणः प्रभातकाल, पी फटना, अश्यन् (पुं० ) नीलमणि - कंठ: 1. मोर, मा० ९।३०, मेघ० ७९ 2. शिव का विशेषण 3. एक प्रकार का जलकुक्कुट 4. नीलकंठ पक्षी 5. खंजन पक्षी 6. चिड़िया 7. मधुमक्खी, केशी नील का पैथा, ग्रीवः शिव का विशेषण, छदः 1. छुहारे का पेड़ 2. गरुड़ का विशेषण, तरुः नारियल का वृक्ष - ताल: तमाल का वृक्ष, पंकः, -कम् अंधेरा, -पटलम् 1. काला आवरण, काली तह 2. अंबे आदमी की आँख का जाला पंच० ५-- पिच्छः बाज पक्षी, -- पुष्पिका 1. नील का पौधा 2. अलसी --भः 1. चाँद 2. बादल 3. मधुमक्खी, मणिरत्नम् नीलम नीलकान्तमणि - नेपथ्यो चितनील रत्नम् -- गीत ● भामि० २२४२, - मोलिकः जुगनू, मृत्तिका 1. लौहमाक्षिक 2. काली मिट्टी, राजिः (स्नी०) अंधकार की रेखा, गुप अंधेरा, घोर अंधकार --निशाशशांकक्षतनीलराजयः - ऋतु० ११२ - लोहितः शिव का विशेषण, श० ७१३७ कु० २।५७ | नीलकम् [नील | कन् ] 1. काला नमक 2. नीला इस्पात 3. तूतिया, कः काले रंग का घोड़ा । ५, नीलं (लो) गु: ( नि + लङ्ग + कु, पूर्वदीर्घः ] एक प्रकार का कोड़ा। नीला दे० नीलो | नीलिका (नील० +क-टाप् इत्वम् नोल का पौधा ('नीलिनी' भी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीलिमन् (पुं०) (नील + इमनिच् ] नीलारंग, कालापन, नीलापन । नीली (नील + अच् + ङीप] 1. नील का पौधा - तत्र नीलीरस परिपूर्ण महाभांडमासीत् पंच० १ एको ग्रहस्तु मीनानां नीलीमद्यपयोर्यथा- पंच० १ २६० 2. नीलमक्खियों की एक जाति 3. एक प्रकार का रोग । सम० - राग ( वि० ) अनुराग में दृढ़ (गः) 1. नील के रंग की भांति अपरिवर्तनीय स्नेह, दृढानुरक्ति 2. पक्का मित्र - संधानम् नील का खमीर भांडम नील का वर्तन । नीवरः [नी + ध्वरक् ] 1. व्यवसाय, व्यापार 2. व्यावसायिक 3. धर्मभिक्षु, सन्यासी 4 कीचड़, - रम् जल | नोवाकः [नि + वच् + घञ, कुत्वं, डीर्घः] 1. कमी के समय अनाज की बढ़ी मांग 2. दुर्भिक्ष, अकाल । नीवारः [नि + वृ + घञ, दीर्घ जंगली चावल जो बिना जोते बोये उत्पन्न हो- नीवारः शुकगर्भ कोटरमुखभ्रष्टास्तरूणामथः-श० १।१४, रघु० १५०,५९,१५१ नीविः, -वी (स्त्रिी० ) [ निव्ययति निवीयते वा नि+व्ये +इन्, नीवि + ङीप् ] कमर में लपेटी हुई घोती, धोती के दोनों किनारों की गांठ जो सामने पेट पर बांधी जाय, धोती की गाँठ, नाड़ा, कमरबन्द - प्रस्थानभिन्नां न वबंधनोविम्-- रघु० ७१९, नीवीबंधोछ्वसनम् - मा० २३५, कु० ११३८, नीवि प्रति प्रणिहिते तु करे प्रियेण - काव्य० ४, मेक० ६८, शि० १०/६४ 2. पंजी, मूलधन 3. दाँव, बाजी, शतं । नीवत् (पुं० ) ( नि + वृ + क्विप्, पूर्वदीर्घः ] कोई भी आबाद देश, राज्य, राजधानी । नीव दे० नीघ्र | नीशारः [नि + - शृ + घञ्ञ, पूर्व दीर्घः ] 1. गरम कपड़ा, कंबल 2. मसहरी, मच्छदानी 3. कनात । नोहारः [नि + ह् + घञ, पूर्वदीर्घः ] 1, कुहरा, धुंध रघु० ७१६०, याज्ञ० १।१५०, मनु० ४।११३ 2. पाला, भारी ओस 3. मलमूत्र त्याग । तु ( अव्य० ) [नुद् + डू] प्रश्नवाचकता का द्योतक तथा ''सन्देह' एवं 'अनिश्चयात्मकता' प्रकट करने वाला अव्य० -- स्वत्लो नु माया नु मतिभ्रमो नु - श०, अस्तशैलगहनं नु विवस्वानाविवेश जलधि तु महींनु - कि० ९७,५१, ८।५३, ९१५, ५४, १३१४, कु० १ ४७, शि० १० १४, श० २१८ २. 'संभावना' और 'अवश्य' के अर्थों को बतलाने के लिए इसे प्रश्नवाचक सर्वनाम तथा उससे व्युत्पन्न शब्दों से साथ जोड़ दिया जाता है कि न्वेतत्स्यात्किमन्यदितोऽथवा मा० १।१७, कथं नु गुणवद्विदेय कलत्रम् - दश ०, दे० किन्तु भी । For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुतिः १४१११२, दे० नमन नुनाव-कु. ९० ( ५५२ ) न (अदा० पर० नौति, प्रणीति, नुत-प्रर० नावयति, । न (पुं०) [नी+ऋन् डिच्च] (कर्तृ० ए० ५०–ना, इच्छा० नुनूषति)। · प्रशंसा करना, स्तुति करना, संबंध०, ब०व०, नृणां या नृणाम्) 1. मनुष्य, एक श्लाघा करना-सरस्वती तन्मिथुनं नुनाव-कु० ७.९०, व्यक्ति- स्त्री हो, चाहे पुरुष, मनु० ३८१, ४१६१, ७६१, १०१३३ 2. मनुष्यजाति 3. शतरंज का मुतिः (स्त्रिी०) [नु+क्तिन्] 1. प्रशंसा, संस्तुति, प्रशस्ति मोहरा 4. सूरजघड़ी की कील 5. पल्लिग शब्द परगुणनुतिभिः (अने० पा०) स्वान् गुणान् ख्यापयंताः -संधिर्ना विगहो यानम्-अमर० ।. सम-अस्थिभर्तृ० रा६९ 2. पूजा, समादर । मालिन् (पुं०) शिव का विशेषण,-कपालम् मनुष्य नुव (तुद० उत्तम० नुदति-ते, नुत्त या नुत्र, प्रणुदति) की खोपड़ी,-केसरिन् (पु) 'नर-शेर,' नृसिंहावतार 1. धकेलना, धक्का देना, हांकना, ठेलना, प्रोत्साहित में विष्णु भगवान्-तु० 'नरसिंह',-जलम् मनुष्य का करना-मंद मंदं नुदति पवनश्चानुकलो यथा त्वाम् मूत्र,-देवः एक राजा,--धर्मन् (पुं०) कुबेर का -मेघ० ९ २. प्रोत्साहित करना, उकसाना, आगे विशेषण,--पः मनुष्यों का राजा, राजा, प्रभु अध्वरः बढ़ाना-शि०११।२६ ३. हटाना, भगा देना, फेंक राजसूय यज्ञ जिसे सम्राट् सम्पन्न करता है और जिसमें देना, मिटाना-~-अदस्त्वया नुन्नम नुत्तमं तमः सभी पदों का कार्य सहायक राजाओं द्वारा किया -शि० १२२७, केयूरबंधोच्छ्वसितर्नुनोद-रधु० जाता है, आत्मजः राज कुमार, युवराज,-आभी६१६८, ८१४०, १६५८५, कि० ३।३३, ५।२८ 4. रम,--°मानम् राजभोज में होने वाला संगीत, फेंकना, डालना, भेजना-प्रेर० 1. हटाना, दूर —आमयः तपदिक, क्षय,- आसनम् राजगद्दी, करना 2. प्रोत्साहित करना, उकसाना, ढकेलना, सिंहासन, राज्य को कुर्सी,-गृहम् राजमहल,-नीतिः ठेलना, आगे बढ़ाना,-अप्-भगाना, हटाना--भट्टि. (स्त्री०) राजनय, राजा को नीति, राजनीति १०११३, उप-धकेलना, आगे चलाना-शि० ४६६१, -वेश्यांगनेव नपनीतिरनेकरूपा-भर्त०२।४७-प्रियः निस्-1. अस्वीकार करना, इंकार करना-धाना आम का पेड़, लक्ष्मन् (नपुं०),-लिंगम् राजचिह्न मत्स्यान्ययो मांसं शाकं चव न निर्णदेत-मनु० राजत्व का लक्षण, राजकीय अधिकार चिह्न, विशेष ४१२५० 2. हटाना, मिटाना, प्र-मिटाना, दूर कर श्वेत छत्र,-शासनम राजविज्ञप्ति, सभम् सभा करना, हटाना-शि० ९१७१, वि.-,1. आधात करना, राजाओं की सभा,—पतिः,-पालः राजा,---पशः बींधना 2. (वीणा आदि) वाययंत्र बजाना--प्रेर० मनुष्य की शक्ल का जानवर, हिंसक पशु, नृशंस, 1. हटाना, दूर करना, मिटाना, फेंक देना-तापं -मिथुनम् मिथुन राशि, -मेषः नरमेध यज्ञ, –यज्ञः विनोदय दृष्टिभिः-गीत० १०, शि० ४।६६ 2. 'मनुष्यों के लिए किया जाने वाला यज्ञ', आतिथ्य, आगे बढ़ना, (काल) बिताना 3. मोड़ना, बहलाना, अतिथियों का सत्कार (दैनिक 'पंच यज्ञो' में से एक मनोरंजन करना-लतासु दृष्टि विनोदयामि-श० यज्ञ-दे० पंचयज्ञ), लोकः मरण-धर्मा लोगों का ६, रघु० १४३७७ 4. दिल बहलाना-रघु० ५।६७, संसार, मर्त्यलोक, --बराहः 'सूअर' के अवतार में सम् - 1. एकत्र करना, संग्रह करना 2. प्राप्त करना, विष्णु भगवान्,-वाहन कुबेर का विशेषण,--वेष्टनः मिलना। शिव का नाम,-शृंगम 'मनुष्य का सींग' अर्थात् नूतन, नूत्म (वि.) [नव+तनप् (लवा) ने आदेशः । असंभावना,-सिंहः 1. 'सिंह जैसा मनुष्य', शेरेनर, प्रमुख 1. नया-नूतनो राजा समाज्ञापयति-उत्तर० १, मनुष्य, पूज्य व्यक्ति 2. विष्णु भगवान्, का चौथा रघु. ८१५ 2. ताजा, बच्चा 3. भेंट, उपहार अवतार, 'नसिहावतार', तु०नरसिंह 3. एक प्रकार का 4. तात्कालिक 5. हाल का, आधुनिक 6. कुतूहल रतिबंध,--सेनम्,--सेना मनुष्यों की फ़ौज,--सोमः पूर्ण, अजीब। वैभव- शाली मनुष्य, बड़ा आदमी-रघु० ५।५९ । ननम् (अव्य.) [नु+ऊन्+अम्] असंदिग्ध रूप से, नुगः (०) वैवस्वत मनु का पुत्र, जो एक ब्राह्मण के विश्वस्त रूप से, निश्चय ही, अवश्य, निस्सन्देह | शापवश छिपकली बना। -अद्यापि नूनं हरकोपबह्निस्त्वयि ज्वलत्यौर्व इवां नत् (दिवा० पर० नृत्यति, प्रणत्यति, नृत्त) नाचना, इधर बुराशी श० ३३, मेघ० ९।१८ ४६, भर्तृ० ११०, उधर हिलना-नृत्यति युवतिजनेन समं सखिकु. १०१२, ५।७५, रधु०१२२९, 2. अत्यधिक संभावना गीत० १, लोलोर्मी पयसि महोत्पलं ननर्त-शि० के साथ, पूरी संभावना है कि उत्तर. ४।२३।। ८।२३, भट्टि ३।४३ 2. रंगमंच पर अभिनय करना नपुर-रम् नू+क्विप्नु +पुर+क] पाजेब, पैरों 3. हाव भाव दिखाना, नाटक करना, प्रेर० -नतं. का आभूषण-नाहि चूडामणिः पादे नूपुरं मूनि धार्यते यति-ते 1. नचबाना-त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो -हि. २०७१। नर्तयसि माम् ~ भर्त० ३१६, तालः शिंजावलयसुभग प्रसंदिग्ध रूप से, मृगः शापवश छिपकली याता, प्रत्यति, नृत्त) नम सखि For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नतितः कांतया मे-मेघ० ७९, उत्तर० ३।१९ । बाहरी किनारा,-पिंडः 1. अक्षिगोलक 2: बिल्ली, 2. हिलजुल पैदा करना, आ-, (प्रेर०) 1. नाच -मलम् ढीढ, आँख का मेल,-योनिः, "1. इन्द्र का कराना 2. नचवाना, फुर्ती के साथ हिलाना-मरु- विशेषण (जिसके शरीर पर, गौतम द्वारा दिये गये द्विरानतितनक्तभाले-रघु०५।४२, अमरु ३२, ऋतु. शाप के फलस्वरूप, स्त्री-योनि से मिलते जुलते हजार ३।१०, उप-, 1. नाचना 2. किसी दूसरे के आगे चिह्न हों) 2. चन्द्रमा,-रंजनम् अंजन; सुरमा,-रोमन् नाचना-उपानृत्यंत देवेशम् , प्र--, नाचना, प्रति- (नतुं०) आँख की बरौनी,-वस्त्रम् आँख का पर्दा, नाच की नकल करके हंसो उड़ाना। पलक,-स्तंभः आँखों का पर्थरा जाना । नृतिः (स्त्री०) [नृत् +इन् ] नाचना, नाच । नेत्रिकम् [नेत्र+ठन्] 1. नली 2. चम्मच। नृतम्, नृत्यम् [मृत+क्त, क्यप् वा] नाचना, अभिनय | नेत्री [नेत्र+डीष] 1. नदी "2. धमनी"3. स्त्री मती कला, नाच, मूक अभिनय, हावभाव--नृत्तादस्याः 4. लक्ष्मी का विशेषण स्थितमतितरां कांतम् - मालवि० २।७, नृत्यं मयूरा नदिष्ठ (अयम् एषाम् अतिशयेन अन्तिक:-+इष्ठन्, विजहुः--रबु०१४।६९, मेघ० ३२,३६, रघु०३।१९। अन्तिकस्य नेदादेशः] निकटतम, दूसरा, अत्यंत निकट सम-प्रियः शिव का विशेषण,-शाला नाचघर, (अंतिक' की उत्तमावस्था)। -स्थानम् रंगमञ्च, नाचने का कमरा । नेदीयस (वि.) (स्त्री०-सी) [अनयोः अतिशयेन नृपः, नृपतिः, नपाल: नरान् पाति रक्षति-न-पाक, अन्तिकः+ईयसुन् अन्तिकस्य नेदादेशः] निकटतर, नृणां पतिः, ष० त०, नृ+पाल+दे० 'नृ' के नीचे। अधिक पास (अतिक की मध्यमावस्था) - नेदीयसी णिच् +अण्] - भूत्वा-मा० १, निकट आंकर, पहुंचकर। नृशंस (वि.) नि+शस+अणु] दुष्ट, द्वेषपूर्ण, क्रूर, उपद्रवी, - 'कमीना, मच्छ०३१२५, मनु० ३१४१, याज्ञ०२६४।। नेपथ्यम् नी+विच्, नेः नेता तस्य पश्यम्] 1. सजोफ्ट, मंजकः [नि-बुल घोबी। आभूषण 2. परिधान, पोशाक, वेशभूषा, वस्त्र उदार जनम् [निज + ल्युट घोना, साफ करना, मांजना। नेपथ्यभृत् ---रघु० ६।६, राजेन्द्रनेपथ्यविधानशोमा-- तु (पुं०) [नी+तच्] 1. जो नेतृत्व या पथप्रदर्शन करे, १४।९, उज्जवलनेपथ्यविरचना-मा० १, कु०७१७, अग्रेसर, संचालक, प्रबंधक, (हाथियों तथा और जान- विक्रम०५3. विशेषकर नाटक के पात्र की वेशवरों का पथप्रदर्शक,-रघु० ४।७५, १४।२२, १६॥ भषा-विरलेनेपथ्ययोः पात्रयोः प्रवेशोऽस्तु-मालवि० २०, मेघ० ६९, नेताश्वस्य स्रुघ्नं सुघ्नस्य वा- १ 4. परिधान कक्ष (जहाँ नाटक के पात्र अपनी सिद्धा०, मुद्रा० ७.१४ 2. निदेशक, गुरु-भर्तृ० २१८८ बेशभूषा धारण करते हैं, यह सदव परदे के पीछे 3. मुख्य, स्वामी, प्रधान 4. (दण्ड आदि) देने वाला होता) रंगमंच पृष्ठ, नेपथ्ये परदे के पीछे। समे० ---मनु० ७।२५ 5. मालिक 6. नाटक का नायक । विधानम् परिधान कक्ष की व्यवस्था या १ नेत्रम् [नयति नोयते वा अनेन-वी+ष्ट्रन] 1. नेतत्व | नेपालः (१०) भारत के उत्सर में स्थित एक देश का माम करना, संचालन 2. आँख ---प्रायेण गृहिणीनेत्राः __ लाः-(ब० व०) इस देश के निवासी,-लम् तांबा, कन्यार्थेषु कुटुंबिन:--कु० ६८५, २।२९, ३०, ७।१३ .: –लो जंगली छहारे का वृक्ष या इसका फल सिम 3. रई के डंडे की रस्सी 4. बुनी हुई रेशम, महीन ___---जा,--जाता मैनसिल । रेशमी वस्त्र-नेत्रक्रमेणोपरुरोध सूर्यम् ---- रघु० | नेपालिका [नेपाल+डी+कम् -टाप, ह्रस्वः] मैनसिल ने ७.३९, (यहाँ कुछ भाष्यकार 'नेत्र' शब्द का सामान्य नेम (वि.) (कर्तृ० ब०-मे-नेमाः) नीमन] अर्थ 'आँख' ही मानते हैं) 5. वृक्ष की जड़ 6. बस्ति- आधा,-मः 1. भाग 2. समय, काल, ऋतु 3. हद, क्रिया की नली 7. गाड़ी, वाहन 8. दो की संख्या | सीमा 4. घेरा, बाड़ा 5. दीवार की नींव 6. जाल9. नेता, अगुआ 10. नक्षत्र पुंज, तारा (इन दो अर्थों साजी, घोखा:7. सायंकाल 8. विवर, खाई.9. जड़। में पुंलिंग)। सम०--अंजनम् आँखों के लिए सुरमा- नेमिः,-मी (स्त्री०) [नी+मि, नेमि+डी] 1. परिधि, श्रृंगार० ७, -अंतः आँख का बाहरी किनारा, पहिये का घेरा, उपोढ़शब्दा न रथांगनेमयः-श. -अंबु,-अम्भस् ( नपुं० ) आँसू,-आमयः आंख का ७११०, चक्रनेमिक्रमेण-मेष० १०९, रधु० ॥१७, रोग, नेत्र-प्रदाह,-उत्सवः सुखद तथा सुन्दर पदार्थ, ३९ 2. किनारा, घेरा 3. हस्तघर्घरी, गरारी 4. वृत्त, -उपमम् बादाम,-कनीनिका आँख की पुतली,-कोषः परिधि-उदधिनेमि-रघु० ९।१०5. बज 6. पाती, 1. अक्षिगोलक 2. फूल की कल -गोचर (वि०) । —मिः तिनिश का वृक्ष । दृष्टि-परास के भीतर, प्रत्यक्षज्ञेय, दृश्य,-छदः पलक, नेष्ट (पुं०) [ नेष्+तृच् ] सोमयाग के प्रधान ऋत्विजों -अम्,-जलम्,-बारि आँसू,-पर्यन्तः आँख का | (जिनकी संख्या १६ होती है) में से एक। For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५५४ ) नेष्टुः [ निश् + तुन् ] मिट्टी का लोंदा । नैः श्लेयस् ( वि० ) ( स्त्री० - सी), नैःश्रेयसिक (वि० ) ( स्त्री० - की ) [ निःश्रेयस + अण्, ठक् वा ] मोक्ष या आनन्द की ओर ले जाने वाला । नैः स्वम्, नैःस्व्यम् [ निःस्व + अण्, ष्यञ् वा ] धनहीनता, गरीबी, दरिद्रता । नैक (वि०) [न + एक ] जो अकेला न हो ( प्रायः समास मैं प्रयुक्त) 'आत्मन् (पुं०) रूप: श्रृंगः परमपुरुष परमात्मा के विशेषण । नैकटिक ( त्रि०) ( स्त्री० - की ) [ निकट + ठक् ] पार्श्ववर्ती, निकट का, सटा हुआ, कः संन्यासी या भिक्षु - भट्टि० १४।१२ । कटपम् [ निकट + ष्यञ् ] सामीप्य, पड़ोस । नैकषयः [निकजा + ढक् राक्षस ( निकपा की सन्तान 1 नैकृतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ निकृत्या परापकारेण जीवति - निकृति + ठक् ] 1. बेईमान, झूठा, क्रूर - मनु० ४।१९६ 2. नीच, दुष्ट, दुरात्मा 3. दुःशील, रूखे मिजाज का | नैगम ( वि० ) ( स्त्री० - मी ) [ निगम - अण् ] वेद से संबद्ध, वेद में पाया जाने वाला, दे० कांडम्, -मः 1. वेद का व्याख्याता - इति नंगमा: 2. उपनिषद 3. उपाय, तरकीब 4. विवेकपूर्ण आचरण 5. नागरिक, 6. व्यापारी, सौदागर - धाराहारोपनयनपरा नैगमाः सानुमंतः - विक्रम ० ४।४ । दुम् [ निघंटु + ठक् ] वैदिक शब्दों का संग्रहग्रंथ (पाँच अध्यायों में) जिसकी व्याख्या यास्कने अपने निरुक्त में की है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेपातिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ निपात + ठक् ] अकस्मात् या दैवयोग से होने वाला उल्लेख । नैपुण्यम् [ निपुण + अण्, ष्यञ वा ] 1. दक्षता, कौशल, चतुराई, प्रवीणता - नैपुणोन्नेयमस्ति - उत्तर० ६ २६, शि० १६।३० 3. कोई कार्य जिसमें कौशल की आव श्यकता हो, सूक्ष्म बात 4. समग्रता, पूर्णता - मनु० १०1८५ । नैभृत्यम् [ निभृत + ष्यन्न ] 1. लज्जाशीलता, विनम्रता 2. गोपनीयता - भृत्यमवलंबितम् - मालवि० ५ । नंमन्त्रणकम् [ निमंत्रण + अण् + कन् ] भोज, दावत | नैयमः [ निमय + अण् ] व्यापारी, सौदागर । नैमित्तिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ निमित्त + ठक् ] 1. किसी विशेष कारण के फलस्वरूप उत्पन्न, संबद्ध या निर्भर 2. असाधारण, कभी कभी होने वाला, सांयोगिक, किसी विशेष निमित्त से किया गया (विप०- नित्य), --कः ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, कम् 1. कार्य ( विप० - कारण) निमित्तनैमित्तिकयोरयं क्रमः - श० ७।३० 2. किसी विशेष अवसर पर होने वाला संस्कार, आवर्ती पर्व | नैमिष (वि० ) ( स्त्री० - षी ) [ निमिष + अण् ] निमिषमात्र या क्षणभर रहने वाला, क्षणिक, अस्थायी-म् पवित्र वनस्थली जहाँ कुछ ऋषि मुनि रहते थे जिनको कि सौति ने महाभारत सुनाया था-- रघु० १९/७. ( नाम करण इस प्रकार हुआ यतस्तु निमिषेणेदं निहतं दानवं बलम्, अरण्येऽस्मिन् ततस्तेन नैमिषारण्यसंज्ञितम् ) । नैमेयः [ नि + मि + यत् + अण् ] बिनिमय, अदलाबदली । नयग्रोधम् [ न्यग्रोध + अण् ] वड़ या वरगद का फल, बरगद का 1 किम् [ नीचा + ठक् ] बैल का सिर । [चिः + गोकर्णशिरोदेशः, ततः स्वार्थे कन् -नि- नयत्यम् [ नियत + ष्यञ, ] नियंत्रण, आत्मसंयम । चिकः + अ + डीप् ] बढ़िया गाय । नैयमिक (वि०) (स्त्री० की ) [ नियम + ठक् ] नियम तलम् [ नितल + अण् ] पाताल, नरक । सम० सन् या विधि के अनुरूप, नियमित, कम् नियमितता । (पुं०) यम, - महावी० ५।१८ । नैयायिक [ न्याय + टक् ] तार्किक, न्यायदर्शन के सिद्धान्तों नेत्यम् [ नित्य + अण् ] नित्यता, शाश्वतता । नैres ( वि०) (स्त्री० की), नंत्यिक (वि०) (स्त्री० - की) [ नंत्य + कन्, नित्य + ठक् ] 1. नियमित रूप से घटने वाला, बार २ दोहराया गया 2. नियमित रूप से अनुष्ठेय (विशेष अवसरों पर नहीं) 3. अपरिहार्य, अनवरत, अवश्यकरणीय । नंदाघः [ निदाघ + अण् ] ग्रीष्म ऋतु । नैदानः [ निदान + अण् ] शब्दव्युत्पत्तिशास्त्र का वेत्ता । नैदानिक: [ निदान + ठक् ] निदानशास्त्र का ज्ञाता, व्याधिकोविद । नैवेशिकः [ निदेश + ठक् ] आदेशों और निदेशों का पालन करने वाला, सेवक । का अनुयायी । नैरंतर्य [ निरंतर + ष्यञ् ] 1. निर्बाधता, निरंतर होने का भाव, अविच्छिन्नता 2. सान्निध्य, संसक्ति । नैरपेक्ष्यम् [ निरपेक्ष + ष्यञ् ] अवहेलना, निरपेक्षता, उदासीनता । नैरयिकः [ निरय - + ठक् ] नरकवासी, नरक भोगने वाला । नैरर्थ्यम् [ निरर्थ + व्यञ] निरर्थकता, बेहूदगी, बकवास । नैराश्यम् [ निराश + ष्यज्ञ ] 1. आशा का अभाव, नाउ म्मीदी, निराशा ---तटस्थं नैराश्यात् उत्तर० ३।१३ 2. कामना या प्रत्याशा का अभाव - येनाशा: पृष्ठतः कृत्वा नैराश्यमवलंबितम् - हि० १, १४४, भामि० ४ । For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरुक्तः [ निरुक्त+अण् ] जो शब्दों की व्युत्पत्ति जानता | नैष्ठिकम्-रधु० ८२५ 2. निर्णीत, निश्चायक, है, शब्दव्य त्पत्तिशास्त्रविद् । निर्णायक (उत्तर आदि) 3. स्थिर, दृढ़, संलग्न 4. नेरज्यम् [ निरुज+व्यञ ] स्वास्थ्य, आरोग्य । उच्चतम, पूरा 5. पूर्ण रूप से जानकार, या विज्ञ 6. नंतः [ निऋति+अणु ] एक राक्षस-भयमप्रलयोद्वेगा- निरन्तर त्यागमय शुद्ध पवित्र जीवन बिताने की दाचरव्यु ब्रतोदधेः-रघु० १०॥३६, ११२१, १२। प्रतिज्ञा करने वाला,-कः वह शाश्वत छात्र जो ४३, १४१४, १५।२०।। आण्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए निर्धारित नेती [ नैर्ऋत--डीप ] 1. दुर्गा का विशेषण 2. दक्षिण काल के पश्चात् भी सदैव गुरु की सेवा में रहे, और पश्चिमी दिशा। जिनसे आजन्म ब्रह्मचारी तथा जितेन्द्रिय रहने की नर्गुण्यम् [ निर्गुण--ष्य ] गुणों या धर्मों का अभाव, _प्रतिज्ञा कर ली है-कु० ५।६२, तु० याज्ञ० ११४९ । 2. श्रेष्ठता की कमी, अच्छे गुणों का अभाव-नैर्गुण्य- नैष्ठुर्यम् [ निष्ठुर+व्या | क्रूरता, कर्कशता, कठोरता। मेव साधीयो विगस्तु गुणगौरवम्-भामि० ११८८। नैष्ठयम् [ निष्ठ+व्या ] स्थायित्व, दृढ़ता। नपुंण्यम् [ निघृण+-व्यञ् ] निर्ममता, क्रूरता-वैषम्य- नैसर्गिक (वि.) (स्त्री० की) [ निसर्ग+ठक् ] स्वाभा नघृण्ये न सापेक्षत्वात् तथा हि दर्शयति-ब्रह्म० विक, अन्तर्जात, सहज, अन्तहित---नैसर्गिकी सुरभिणः २१११३४। कुसुमस्य सिद्धा मूनि स्थितिन मुसलरवताडनानि नर्मल्यम् [ निर्मल-+ष्यन्न ] स्वच्छता, शुद्धता, ----मा० ९।४९, रघु० ५।३७, ६।४६ । निष्कलङ्कता। नैस्त्रिशिकः [ निस्त्रिश+ठक ] कृपाणधारी, तलवार रखने नर्लज्ज्यम् [निर्लज्ज-ध्या ] निर्लज्जता, बेहयाई, वाला। _ ढीठपना। नो (अव्य.) [न+उ ] नहीं, न, मत (प्रायः 'न' की नल्यम [ नील-ध्या नीलापन, गहरा नीला रंग । भांति प्रयुक्त) भग० १७।२८, पंच० ५।२४, अमरू नवि (बि) ड्यम् [ निवि (बि) ड+या ] संशक्तता, । ५,७,१०,६२। सटा हुआ होने का भाव, घनापन, सधनता। नोचेत् (अव्य०) [नो+चेत+दू० स०] अन्यथा, वरना। नैवेद्यम् [ निवेद । व्यञ ] किसी देवता या देवमुति को नोदनम् [ नुद्+ल्युट ] 1. ठेलना, हांकना, आगे बढ़ाना भेंट देने के लिए भोज्य पदार्थ । 2. हटाना, दूर करना, मिटाना। नेश (वि.) (स्त्री...शी) नैशिक (वि.) (स्त्री०-को) नोधा (अव्य०) [नो+धा ] नौ प्रकार, नौ गुणा । निशा-अण, ठत्र वा ] रात से संबंध रखने वाला, | नौः (स्त्री०) [नद्यते अनया--न+डौ] जहाज, नौका, रात्रि विषयक, रात को होने वाला-तन्नशं तिमिर पोत महता पुण्यपण्येन क्रीतेयं कायनोस्त्वया--शा० ३। मपाकरोति चन्द्र:-श० ६।२९, नेशस्याचिर्तुतभुज १ 2. एक नक्षत्रपुंज का नाम । सम०- आरोहः इवच्छिन्नभूयिष्ठधूमा-विक्रम० ११८, कि० ५२ 2. (नावारोहः) 1. जहाज का यात्री 2. मल्लाह- कर्ण रात को मनाया जाने वाला। धारः, नाविक, पोतचालक,--कर्मन् (नपुं०) मल्लाह नैश्चल्यम् [ निश्चल+व्यञ् ] स्थिरता, अचलता, दृढ़ता। की वृत्ति---मनु० १०॥३४,--धरः,--जीविकः मल्लाह नश्चित्यम [ निश्चित+व्या ] 1. निर्धारण, निश्चिति माँझी-.-रधु० १७१८१,--तार्य (वि.) जिसमें नाव 2. निश्चित समय पर होने वाला संस्कार। चल सके, जो नाव से पार किया जा सके,-वंड डांड, नेषधः [ निषध+अण् ] 1. निषध देश का राजा 2. विशे- चप्पू,-यानम् पोत-कौशल, नौकायन,-यायिन (वि०) षतः, राजा नल का विशेषण 3. निषध देश का वासी, नाव या जहाज से जाने वाला, नौयात्री--मनु०८। या जो निषध देश में उत्पन्न हुआ है। ४०९,-वाहः कर्णधार, कर्णी, पोतवाहक, केवट,-व्यनैष्कर्म्यम् [ निष्कर्म+ध्यञ् ] 1. अकर्मण्यता, क्रियाहीनता सनम् पोतभंग, नौका का टूट जाना-नौव्यसने 2. कर्म और उनके फलों से मुक्ति-भग० ३४, विपन्न:--श०६,-साधनम् जहाजी बेड़ा, नौसमूह, १८१४९ 3. वह मुक्ति जो कर्म न कर केवल भाव, पोतावली -- वंगानुत्खाय तरसा नेता नौसाधनोद्यतान् ध्यान आदि से प्राप्त की जाय (विप० कर्म भार्ग द्वारा --रघु०४१३६। । प्राप्त मुक्ति)। नौका [ नौ+कन्+टाप् ] एक छोटी नाव, किश्ती--क्षण नष्किक (वि.) (स्त्री-की) [निष्क+ठक्] निष्क | मिह सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका देकर भोल लिया हुआ, या निष्क से बना हुआ-कः --- मोह०६ । सम० -दंडः चम्पू, पतवार । टकसाल का अध्यक्ष। न्यक (अव्य०) [ नि+अंचू+ क्विन ] क्रियाविशेषण, धृणा नैष्ठिक (वि०) (स्त्री०--को) [ निष्ठा+ठक ] 1. अपमान एवं दीनता को द्योतन करने के लिए 'कृ' अन्तिम, आखीर का, उपसंहारक-विदधे विधिमस्य । और 'भू' से पूर्व लगने वाला उपसर्ग । सम०--करणम् तिमिर २९, नेश छन्नभूयिष्ठयमा For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -कार: 1. दीनता, अवमानना 2. अनादर, घृणा, अप- | न्यायः [नियन्ति अनेन--नि-+-+घञ्] 1. प्रणाली, मान-न्यक्कारो हृदि वकील इव मे तीब्र परिस्पं- तरीका, रीति, नियम, पद्धति, योजना-अधार्मिक दते-महावी० ५।२२, ३।४०, गंगा० ३२,--भावः विभिार्यनिग्रहीयात् प्रयत्नतः--मनु० ८।३१०. 2. 1. दीनता, अवमानना 2. घटिया करने वाला, मात- उपयुक्तता, औचित्य, सुरीति-कि० ११॥३० 3. हती, अधीनता,--भावित (वि.) 1. दीन, अधः कानून, न्याय या इंसाफ़, नैतिक विशालता, न्याय्यता, "-पतित, अपमानित 2. आगे बढ़ा हुआ, श्रेष्ठता को "सचाई, ईमानदारी-यांति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यंचोऽपि प्राप्त, अप्रधानीकृत- स्यम्भावितवाच्यव्यंग्यव्यंजन सहायताम् –अनर्घ० ११४ 4. कानूनी मुक़दमा, क्षमस्य शब्दार्थयुगलस्य-काव्य०.१। कानूनी कार्रवाई 5. कानून के अनुसार दण्ड, निर्णय म्यक्ष (वि०) [ नियते निकृते वा अक्षिणी यस्य-ब० स०, ...6. राजनीति, अच्छा शासन 7. समानता, सादृश्य 8. षच् प्रत्ययः ] नीच, अधम, दुष्ट, कमीना,-क्षः 1, लोकरूढ़ नीतिवाक्य, उपयुक्त दृष्टांत, निदर्शना जैसे भैस 2. परशुराम का विशेषण,क्षम् सूराख, छिद्र । कि 'दंडापूप न्याय' 'काकतालोय न्याय' 'घृणाक्षर म्यप्रोषः [ न्यक रुणद्धि-न्यक+रुध् + अच् ] 1. बरगद न्याय' आदि दे० नी० १. वैदिक स्वर-न्याय स्त्रिभिरुका पेड़ 2. पुरस, लंबाई का एक नाप जिसकी लंबाई दीरणम्---कु० २।१२ (मल्लि. 'न्याय' शब्द का उतनी होती है जितनी कि दोनों हाथों को फैलाने से अर्थ 'स्वर' करते हैं, परन्तु हमारी सम्मति में यहाँ होवे । सम-परिमंडला श्रेष्ठ स्त्री (श्रेष्ठ स्त्री की 'पद्धति' 'रीति' है जो कि तीन 'पद्धतियों 'अर्थात् परिभाषा यह है-स्तनौ सुकठिनौ यस्या नितंबे च ऋक, यजुस् और सामन् में प्रकट किया गया है) विशालता, मध्ये क्षीणा भवेद्या सा न्यग्रोधपरिमंडला भत० ३।५५ 10. (व्या० में) विश्वव्यापी नियम (शब्द०), दूर्वाकांडमिव श्यामा न्यग्रोधपरिमंडला 11. गौतम ऋषि प्रणीत न्यायशास्त्र 12 तर्क शास्त्र, -भट्टि० ४।१८ । न्यायदर्शन 13. अनुमान की पूरी प्रक्रिया (जिसमें म्यंकुः [नि+अञ्च् +डु] एक प्रकार का बारहसिंगा पाँचों अंग अर्थात प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन सम्यिलित है)। सम-पथः मीमांसा -रघु०.१३।१५। म्य (वि.) (स्त्री०-नीची) [नि अञ्च+ क्विन् । दर्शन,-वतिन् (वि०) आचरणशील, न्यायानुसार नीचे की ओर मुड़ा या झुका हुआ, या नीचे की ओर आचरण करने वाला, वादिन् (वि.) न्याय्य और जाता हुआ 2. मुंह के बल लेटा हुआ 3. नीच, घृणा धर्मानुमोदित बात कहनेवाला,--- शास्त्रम तर्क विज्ञान, 'के योग्य, अधम, कमीना, दुष्ट--शि० १५।२१, (यहाँ तर्कशास्त्र,--सारिणी उचित तथा उपयुक्त व्यवहार, इसका अर्थ 'निम्न' या नीचे की ओर' भी है) 4. --सूत्रम् गौतम प्रणीत न्यायदर्शन के सूत्र ।.. मन्थर, आलसी 5. पूर्ण, समस्त। विशे० कुछ सिद्धान्त-वाक्य या लोकरूढ़ नीतिवाक्यों को न्यंचनम् [नि+अञ्च् + ल्युट् ] 1. वक्र 2. छिपने का पाठकों के उपयोग के लिए संग्रह करके नीचे अकरादि...स्थान 3. कोटर। . क्रम से रख दिया गया है। न्ययः [नि++अच्] 1. हानि, नाश 2. बरबादी, क्षय । | 1. अंधचटकन्यायः [अन्धे के हाथ बटेर लगना] अर्थ में म्पसनम् नि+अस्+ल्युटु] 1. जमा करना, लेटना 2. _ 'घुणाक्षर न्याय' के समान । सौंपना, छोड़ना। . . 2. अंधपरंपरान्यायः [अंधानुकरण -जब लोग बिना विचारे .. न्यस्त (भू. क. कृ०) [नि+अस्+क्त] 1. डाला हुआ, दूसरों का अन्धानुकरण करते है और यह नहीं फेंका हुआ, लिटाया हुआ, जमा किया हुआ 2. कि इस प्रकार का अनुकरण उन्हें अन्धकार में अन्दर रक्सा हुआ, अन्तहित, प्रयुक्त-न्यस्ताक्षरा: फंसा देगा। 03णित चित्रित 3. अरुंधती दर्शनन्यायः [अरुन्धती तारादर्शन का सिद्धांत, सुपुर्द किया हुआ, सौंपा हुआ, स्थानान्तरित-विक्रम ज्ञात से अज्ञात का पता लगाना; शंकराचार्य की ५।१७, रत्न० १११० 5. रहना, टिकना 6. छोड़ा हुआ, निम्नांकित व्याख्या से इसका प्रयोग स्पष्ट हो जायगा एक ओर डाला हुआ, उत्सृष्ट। सम-दंड (वि०) दंड | ---अरुंधती दिदर्शयिषुस्तत्समीपस्थां स्थूला ताराजोड़ने वाला,-वेह (वि०) मरा हुआ, मृत,-शस्त्र | ममुख्यां प्रथममरुंधतीति ग्राहयित्वा तां प्रत्याख्याय (वि.) 1. जिसने हथियार डाल दिये हों-आचार्यस्य पश्चादरुंधतीमेव ग्राहयति । त्रिभुवनगुरोन्यस्तशस्त्रस्य शोकात्-वेणी० ३.१८ 4. अशोकवनिकान्यायः [अशोकवृक्षों के उद्यान का न्याय 2, निरस्त्र, अरक्षित 3. जो हानि कारक न हो। ...रावण ने सीता को अशोकवाटिका में रक्खा था, न्याश्यम् [नि+अ+ ण्यत् तले हुए चावल, मुर्मुरे। परन्तु उसने और स्थानों को छोड़ कर इसी वाटिका न्यायः [नि+अद्+ण] खाना, खिलाना। में क्यों रक्खा, इसका कोई विशेष कारण नहीं बताया For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५७ ) जा सकता। सारांश यह हुआ कि जब मनुष्य के पास [ 10. कूपयंत्रघटिका न्यायः [ रहटटिंडर न्याय ] इसका किसी कार्य को सम्पन्न करने के अनेक साधन प्राप्त उपयोग सांसारिक अस्तित्व की विभिन्न अवस्थाओं हों, तो यह उसकी अपनी इच्छा है कि वह चाहे को प्रकट करने के लिए किया जाता है-जैसे रहट किसी साधन को अपना ले। ऐसी अवस्था में किसी के चलते समय कुछ टिंडर तो पानी से भरे हुए ऊपर भी साधन को अपनाने का कोई विशेष कारण नहीं को जाते हैं, कुछ खाली हो रहे हैं, और कुछ बिल्कुल दिया जा सकता। खाली होकर नीचे को जा रहे है-कांश्चित्तच्छयति 5 .अश्मलोष्टन्यायः [पत्थर और मिट्टी के लौंदे का न्याय] प्रपूरयति वा कांश्चिन्नयत्यन्नति कांश्चित्पातविधी मिट्टी का ढला रूई की अपेक्षा कठोर है परन्तु वही करोति च पुनः कांश्चिन्नयत्याकुलान्, अन्योन्यप्रतिकठोरता मदुता में बदल जाती है जब हम 'उसकी पक्षसंहतिमिमां लोकस्थिति बोधयन्नेष क्रीडति कपतुलना पत्थर से करते है। इसी प्रकार एक व्यक्ति यंत्रटिकान्यायप्रसक्तो विधिः । मृच्छ० १०५९ । बड़ा महत्त्वपूर्ण समझा जाता है जब उसकी तुलना 11. घटकूटीप्रभातन्यायः [ चुंगी घर के निकट पौफटी उसकी अपेक्षा निचले दर्जे के व्यक्तियों से की जाती का न्याय ] कहते हैं एक गाड़ीवान चुंगी देना नहीं है, परन्तु यदि उसकी अपेक्षा श्रेष्ठतर व्यक्तियों से चाहता था, अतः वह ऊबड़-खाबड़ रास्ते से रात को तुलना की जाय तो वही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति नगण्य वन ही चल दिया, परन्तु दुर्भाग्यवश रात भर इधर-उधर जाता है । 'पाषाणेष्टकन्याय' भी इसी प्रकार प्रयुक्त घूमता रहा, जब पौफटी तो देखता क्या है कि वह किया जाता है। ठीक चुंगीघर के पास ही खड़ा है, विवश हो उसे . 6. कदंबकोरक (गोलकन्यायः [ कदंब वृक्ष का कलि चुंगी देनी पड़ी इसलिए जब कोई किसी कार्य को का माय] कदंब वृक्ष की कलियाँ साथ ही खिल जानबूझ कर टालना चाहता है, परन्तु में उसी को जाती है, अतः जहाँ उदय के साथ ही कार्य भी होने करने के लिए विवश होना पड़ता है तो उस समय लगे, वहाँ इस न्याय का उपयोग करते हैं। इस न्याय का प्रयोग होता है. -दे० श्रीधर-तदिदं 7. काक तालीय न्यायः कौवे और ताड़ के फल का न्याय] घट्टकुटीप्रभातन्याय मनुवदति। एक कौवा एक वृक्ष की शाखा पर जाकर बैठा ही 12. धुणाक्षर न्यायः [लकड़ी में धुणकोटों द्वारा निर्मित था कि अचानक ऊपर से एक फल गिरा और कौवे अक्षर का न्याय किसी लकड़ी में घुन लग जाने से के प्राण पखेरु उड़ गये ----अत: जब कभी कोई घटना अथवा किसी पुस्तक में दीमक लग जाने से कुछ शुभ हो या अशुभ अप्रत्याशित रूप से अकस्मात् अक्षरों की आकृति से मिलते-जुलते चिह्न अपने आप बन घटती है, तब इसका उपयोग होता है-तु० चन्द्रा०- जाते हैं, अत: जब कोई कार्य अनायास व अकस्मात हो यत्तया मेलनं तत्र लाभो मे यश्च सुभ्रवः, तदेतत्काक- जाता है तब इस न्याय का प्रयोग किया जाता है। तालीयमविकितसंभव । कुवलयानन्द में भी-- दण्डापूपन्यायः [ डंडे और पूड़े का न्याय | जब डंडा पतत् तालफलं यथा काकेनोपभुक्तमेवं रहोदर्शने और पूड़ा एक ही स्थान पर रक्ख गये-और एक क्षुभितहृदया तन्वी मया भुक्ता। दे० 'काकतालीय' व्यक्ति ने कहा कि इंडे को तो चहे घसीट कर ले भी। गये और खा लिया, तो दूसरा व्यक्ति स्वभावतः यह 8. काकदंतगवेषणन्यायः [ कौवे के दाँत ढूंढना ] यह समझ लेता है कि पूड़ा तो खा ही लिया गया होगान्याय उस समय प्रयुक्त होता है जब कोई व्यक्ति क्योंकि वह उसके पास ही रक्खा था। इसलिए व्यर्थ, अलाभकारी या असंभव कार्य करता है। जब कोई वस्तु दूसरी के साथ विशेष रूप से अत्यंत १. काकाक्षिगोलन्यायः [कौवे की आंख गोलक का न्याय संबद्ध होती है और एक वस्तु के संबंध में हम कुछ एकदृष्टि, एकाक्ष आदि शब्दों से यह कल्पना की कहते है तो वही बात दूसरी के साथ भी अपने आप जाती है कि कौवे की आँख तो एक ही होती है, लागू हो जाती है, तु०-मूषिकेण दंडो भक्षितः इत्यपरन्तु वह आवश्यकता के अनसार उसे एक गोलक से नेन तत्सहचरितमपूपभक्षणमर्थादायातं भवतीति नियतदूसरे गोलक में ले जा सकता है। इसका उपयोग समानन्यायादतिरमापततीत्येष न्यायो दंडापूपिकाउस समय होता है जब वाक्य में किसी शब्द या सा० द०१०। पदोच्चय का जो केवल एक ही बार प्रयुक्त हुआ है, 14. बेहलीदीपन्यायः [ देहली पर स्थापित दीपक का आवश्यकता होने पर दूसरे स्थान पर भी अध्याहार न्याय जब दीपक को देहली पर रख दिया जाता है कर लें-अर्थात् =द्वीपोऽस्त्रियातरीपः इत्यत्र अस्त्रि- तो इसका प्रकाश देहली के दोनों ओर होता है अतः यामित्यस्य काकाक्षिगोलकन्यायेन अंतरीपशब्देनाप्य- यह न्याय उस समय प्रयुक्त किया जाता है जब एक न्वयः । ही वस्तु दो स्थानों पर काम आवे । For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५८ ) 15. नपनापितपुत्रन्यायः [ राजा और नाई के पुत्र वह सभी बातें आ जाय जो एक व्यक्ति चाहता है। को न्याय ] कहते हैं कि एक नाई किसी राजा के महाभाष्य में कथा आती है कि एक बुढ़िया कुमारी यहाँ नौकर था, एक बार राजा ने उसे कहा कि मेरे को इन्द्र ने कहा कि एक ही वाक्य में जो वरदान राज्य में जो लड़का सब से सुन्दर हो उसे लाओ। चाहो मांगो, तब बुढ़िया बोली-पुत्रा मे बहुक्षीरनाई बहुत दिनों तक इधर उधर भटकता रहा परन्तु घृतमोदनं कांचनपाच्यां भुजीरन् (अर्थात् मेरे पुत्र उसे ऐसा कोई बालक न मिला जैसा राजा चाहता सोने की थाली में घी दूध युक्त भात खायँ)। इस था। अन्त में धककर और निराश होकर वह घर एक ही वरदान में बुढ़िया ने पति, पुत्र, धन-धान्य, लौट आया-तब उसे अपना काला-कलटा लड़का पशु, सोना चाँदी सब कुछ माँग लिया। अतः जहाँ ही अत्यंत सुन्दर लगा। वह उसी को लेकर राजा के एक की प्राप्ति से सब कुछ प्राप्त हो वहाँ इस न्याय पास गवा पहले तो उस काले कलटे बालक को देख का प्रयोग होता है। कर राजा को बड़ा क्रोध आया परन्तु यह विचार शाखाचंद्रन्यायः [ शाखा पर वर्तमान चन्द्रमा का कर कि मानव मात्र अपनी वस्तु को ही सर्वोत्तम न्याय ] जब किसी को चन्द्रमा का दर्शन कराते हैं समझता है, उसे छोड़ दिया --तु० सर्व: कांतमात्मीयं तो चन्द्रमा के दूर स्थित होने पर भी हम यही कहते पश्यति-हिन्दी-अपनी छाछ को कौन खट्टा बताता है। हैं 'देखो सामने वृक्ष की शाखा के ऊपर चांद दिखाई 16. पंकप्रक्षालनन्यायः [ कीचड़ धोकर उतारने का देता है'। अतः यह न्याय उस समय प्रयक्त होता है न्याय ] कीचड़ लगने पर उसे धो डालने की अपेक्षा जब कोई वस्तु चाहे दूर ही हो, निकटवतीं किसी यह अधिक अच्छा है कि मनष्य कीचड़ लगने ही न पदार्थ से संसक्त होती है। देवे। इसी प्रकार भयग्रस्त स्थिति में फंस कर उससे ! 23. सिंहावलोकनन्यायः [ सिंह का पीछे मड़ कर देखना निकलने का प्रयत्न करने की अपेक्षा यह ज्यादह यह उस समय प्रयुक्त होता है जब कोई व्यक्ति आगे अच्छा है कि उस भयग्रस्त स्थिति में कदम ही न चलने के साथ २ अपने पूर्वकृतकार्य पर भी दृष्टि रक्खे-तु०-'प्रक्षालनाद्धि पंकस्य दूरादस्पर्शनं वरम्'- डालता रहता है-जिस प्रकार सिंह शिकार की 'सौ दवा से एक परहेज़ अच्छा ' । तलाश में आगे भी बढ़ता जाता है परन्तु साथ ही 17. पिष्टपेषणन्यायः [ पिसे को पीसना ] यह न्याय उस | पीछे मुड़कर भी देखता रहता है। समय प्रयुक्त हाता ह जब कोई कय हुए काय का | 24. सूचीकटाहन्यायः। सूई और कडाही का न्याय ] यह ही दुबारा करने लगता है, क्योंकि पिसे को पीसना उस समय प्रयुक्त किया जाता है, जब दो बातें एक फाल्तू और व्यर्थ कार्य है-तु० कृतस्य करणं वथा। कठिन और एक अपेक्षाकृत आसान- करने को हों, 18. बीजांकुरन्यायः [बीज और अकूर का न्याय | तो उस समय आसान कार्य को पहले किया जाता कार्य कारण जहाँ अन्योन्याश्रित होते हैं वहाँ इस है, जैसे कि जब किसी व्यक्ति को सूई और कड़ाही न्याय का प्रयोग होता है (बीज से अडकूर निकला, दो वस्तुएँ बनानी है तो वह सूई को पहले वनावेगाऔर फिर समय पाकर अंकूर से हो बीज की उत्पति क्योंकि कड़ाही की अपेक्षा सूई का बनाना आसान हुई) अतः न बीज के बिना अङकुर हो सकता है या अल्पश्रमसाध्य है। और न अंकुर के बिना बीज । 25. स्थूणानिखननन्यायः [ गढ़ा खोदकर उसमे थूणी 19. लोहचुम्बकन्यायः [ लोहे और चुवक का आकर्षण जमाना ] जब किसी मनुष्य को कोई थणी अपने घर न्याय ] यह प्रकृति सिद्ध बात है कि लोहा चुंबक की में लगानी होती है तो मिट्टी कंकड़ आदि बार बार ओर आकृष्ट होता है, इसी प्रकार प्राकृतिक घनिष्ट डाल कर और कूटकर वह उस थूणी को दृढ़ बनाता संबंध या निसर्गवृत्ति की बदौलत सभी वस्तुएँ एक है, इसी प्रकार वादी भी अपने अभियोग की पुष्टि में दूसरे की ओर आकृष्ट होती है। नाना प्रकार के तर्क, और दष्टान्त उपस्थित करके 20. वहिधमन्यायः [धुएँ से अग्नि का अनुमान] धूएँ अपनी बात का और भी अधिक समर्थन करता ह । और अग्नि की अवश्यंभावी सहवर्तिता नैसर्गिक है, 26. स्मामिभूत्यन्यायः [ स्वामी और सेवक का न्याय] अतः (जहाँ धूआँ होगा वहाँ आग अवश्य होगी) । इसका प्रयोग उस समय किया जाता है जब पायल यह न्याय उसी समय प्रयुक्त होता है जहाँ दो पदार्थ और पाल्य, पोषक और पोष्य के संबन्ध को बतलाना कारण-कार्य या दो व्यक्तियों का अनिवार्य संबंध होता है या ऐसे ही किन्हीं दो पदार्थों का संबंध बतबताया जाय। लाया जाता है। 21. वृजकुमारीवाक्य (बर)न्यायः [बूढ़ी कुमारी को | न्याय्य (वि०) [ न्याय-+ यत् ] 1. ठीक, उचित, सही, वरदान न्याय ] इस प्रकार का वरदान मांगना जिसमें । न्यायसंगत, उपयुक्त. योग्य-न्याय्यात्पथः प्रविचलंति For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५९ ) पदं न घोरा:-भर्तृ० २१८३, भग० १८११५, मनु० । न्यासिन् (पु.) [न्यास+इनि ] जिसने अपने समस्त २।१५२, ९।२०२, रघु० २।५५, कि० १४१७, कु० सांसारिक बंधनों को काट डाला है, संन्यासी। ६६८७ 2. सामान्य, प्रचलित। | न्यु (न्यू) ख (वि०) ] नि+उङख्+घञ्] 1. मनोहर, न्यासः [नि+अस् । धा ] 1. रखना, स्थापित करना, | सुन्दर, प्रियं 2. उचित, ठीक । आरोपण करना-तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसु-रधु० | न्यग्ज (वि.) । नि--उब्ज+अच ] 1. नीचे की ओर २१२, कु. ६५०, चरणन्यास, अंगन्यास आदि 2. झुका हुआ, या मुड़ा हुआ, मह के बल लेटा हुआ अतः कोई भी छाप, चिह्न, मोहर, ठप्पा, अतिशस्त्र -ऊॉर्पित न्युजकटाहकल्पे (व्योम्नि)--नै नखन्यासः-रघु० १२०७३, 'जहाँ नखचिह्न, शस्त्र २२१३२ 2. झुका हुआ, टेड़ा 3. उन्नतोदर 4. कुबड़ा, चिह्नों से,भी बढ़ गये, दंतन्यास: 3. जमा करना 4. ---उजः बड़ या बरगद का पेड़। सम-खङ्गः खांडा, धरोहर, अमानत प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा-श० बक्र खड्ग। ४।२१, रघु० १२१८, याज्ञ० २०६७ 5. सौंपना, बचन न्यून (वि.) [नि+ऊन्+अच् ] 1. कम किया हुआ, बद्ध होना, सिपुर्द करना, हवाले करना 6. चित्रित घटाया हुआ, छोटा किया हआ 2. सदोष, घटिया, करना, लिख रखना 7. छोड़ना, उत्सर्ग करना, त्यागना, तिलांजलि देना---शस्त्र', भग० १८।२ 8. हीन, अभावग्रस्त, रहित या विहीन-जसा कि अर्थ न्यून में 3. कम (विप० अधिक)--याज्ञ० २१११६ सम्मख रखना, घटाना 9. खोद कर निकालना, ६. सदोष (किसी अंग से) पाद 5. नीच, दुष्ट, (पंजे आदि से) पकडना 10. शरीर के भिन्न भिन्न अंगों में भिन्न भिन्न देवताओं का ध्यान जो सामान्य दुर्वत, निद्य,-नम् (अव्य.) कम, कम मात्रा में। सम०-अंग (वि०) अपांग, विकलांग,-अधिक रूप से मंत्र पाठ के साथ २ तदन रूप हावभाव सहित सम्पन्न किया जाता है। सम०-~-अपह्नवः किसी (वि०) कम या ज्यादह, असमान,-धी निर्बुद्धि, अज्ञानी, मूर्ख। धरोहर का प्रत्याख्यान करना,-धारिन् (पुं०) धरोहर रखने वाला, रहन रखने वाला। | न्यूनयति (ना० धा० पर०) घटना, कम करना । प (वि.) [पा+क] (समास के अन्त में प्रयुक्त ] 1. 1 भूना हुआ, उबाला हुआ-जैसा कि 'पक्वान्न' में पीने वाला, जैसा कि 'द्विप' 'अनेकप' में 2. चौकसी। 2. पचा हुआ 3. सेका हुआ, गरम किया हुआ, तपाया करने वाला, रक्षा करने वाला, हकमत करने वाला। हुआ (विप० आम) पक्वेष्टकानामाकर्षम्-मृच्छ । जैसा कि 'गोप' 'नप' और 'क्षितिप' में-पः 1. वायु ३ 4. परिपक्व, पक्का, पक्वबिम्बाधरोष्ठी मेघ० हवा. पत्ता 3. अंडा । ८२ 5. सुविकसित, सुपूरित, परिपक्व जैसा कि पक्कणः [पचति श्वादिनिकृष्ट मांसमिति—पच+क्विप 'पक्वधी' में 6. अनुभवशील, बुद्धिमान् 7. (फोड़े को) =-पक्=शवरः तस्य कणः कोलाहलशब्दो यत्र ] 1. भांति) पका हुआ चिसमें पोप पड़ने वाली हो 8. चांडाल का घर बर्बर या जंगली आदमी का घर । सफेद (बाल) 9. नष्ट, क्षीयमाण विनाश के अन्त पक्तिः (स्त्री०) [ पच-+क्तिन् ] 1. पकाना 2. पचना, पर, अपनी मृत्यु का स्वागत करने के लिए पक्का । हाजमा या पाचन शक्ति 3. पक जाना, परिपक्व सम-अतिसारः पुरानी पेचिश,-अन्नम् मसाला होना, परिराक्वावस्था विकास 4. प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा । आदि डालकर बनाया गया भोचन,-आशयः पेट, सम० -शुलम् अजीर्ण के कारण पेट में होने वाला उदर,-इष्टका पकी हुई ईंट,ष्टकचितम् पक्की दर्द, उदर पीड़ा। ईंटों से निर्मित भवन, कृत् (वि.) 1. पकाने वाला, पक्त (वि.) [ पच्+तुच् ] 1. रसोइया पाचक 2. पकाने 2. परिपक्व होने वाला, रसः शराब, मदिरा-वारि वाला 3. उद्दीपक, पचाने वाला--(पुं०) जठराग्नि । (नपुं०) कांजी का पानी। पक्तम् [ प +ष्ट्रन् ] 1. यज्ञाग्नि को स्थापित रखने वाले परवशः (पुं०) एक बर्बर जाति का नाम, चाण्डाल। गृहस्य की दशा 2. इस प्रकार स्थापित यज्ञाग्नि । (भ्वा० पर०, चुरा० उभ, पक्षति, पक्षयति-ते) 1. पक्तिम् (वि०) [ पच्+क्ति-मम् ] 1. पक्का, पका लेना, ग्रहण करन 2. स्वीकार करना 3. पक्ष लेना, हआ 2. परिपक्व, 3. पकाया. हुआ। तरफदारी करना। पक्व (वि.) [ पच्+क्त, तस्य वः ] 1. पकाया हुआ, | पक्षः [ पश् +अच् ] बाजू, भुजा, अद्यापि पक्षावपि नोद्भि For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५६० ) येते-का० ३४७, इसी प्रकार 'उद्भिन्त्रपक्षः' निकल पक्ष लेने वाला, किसी एक की तरफ़दारी करने वाला आये हैं पंख जिसके, पक्षयुक्त, पक्षच्छेदोद्यतं शक्रम् (र:) 1. पक्षी 2. चन्द्रमा 3. हिमायती 4. यूथभ्रष्ट -रघु. ४११०, ३।४० 2. बाण के दोनों ओर लगे हाथी,-- नाडी पक्षो का मोटा पर जिसे कलमकी भांति पंख 3. किसी मनुष्य या जन्तु का पाव, कंधा-स्तं- प्रयुक्त करते हैं,-पातः 1. किसी एक की तरफ़दारी बेरमा उभयपक्षविनीतनिद्राः-रघु० ५/७२ 4. किसी करना 2. (किसी वस्तु के लिए) स्नेह, प्रेम, चाह, भी वस्तु का पाश्र्व, बगल-5 सेना का एक कक्ष या रुचि--भवति भव्येषु हि पक्षपाता:-कि० ३.१२, पार्व 6. किसी वस्तु का अर्धभाग 7. चान्द्र. मास का वेणी० ३.१०, उत्तर० ५।१७, रिपुपक्षे बदःपक्षपातः अर्घभाग, पखवारा (१५ दिनों का) (इस प्रकार के - मुद्रा० ११३ 3. किसी दल विशेष की ओर अनुदो पक्ष होते हैं। शुक्लपक्ष-जिन दिनों चन्द्रमा राग, हिमायत, तरफ़दारी- पक्षपातमत्र देवी मन्यते निकला. रहता है, कृष्ण या तमिश्रपक्ष-अंधियारा ---मालवि० १, सत्यं जना वकिम न पक्षपातात पाख) तमिश्रपक्षेऽपि सह प्रियाभिज्योत्स्ना -वतो -भर्त० १४७ 4. पंखों का गिरना, पक्षमोचन 5. निर्विशति प्रदोषात्--रघु० ६।३४, मनु० ११६६, हियायती-पातिन (वि.) 1. पक्षपात करने वाला, याज़० ३५०, सीमा वृद्धि समायाति शुक्लपक्ष इवो- किसी एक दल का अनुयायी, (किसी एक विशिष्ट डुराट्-पंच० ११९२ 8. दल, गुट, पहलू --प्रमुदित- बात का) तरफ़दार---पक्षपातिनो देवा अपि पांडवावरपक्ष--रघु०६८६, शि० २११७, भग० १४१२५, नाम् वेणी० ३ 2. सहानुभूति करने वाला-वेणी० रघु० ६१५३,१८१. किसी एक दल से संबद्ध, अनु ३ 3. अनुयायो, हिमायती, मित्र-यः सुरपक्षपाती यायी, साझीदार-शत्रुपक्षोभवान् -हि० १ 10. —विक्रम०१, (नै० २१५२ में 'पक्षपातिता' शब्द का श्रेणी, समुदाय, समूह, अनुयायियों को संख्या--शत्रु, अर्थ ह 'पंखों की गति' भी),–पालिः चोर दरवाजा, मित्र° 11. किसी तर्क का एक पहल, विकल्प, दो में --बिदुः कंक पक्षी,-- भागः 1. पाव, बगल 2. से कोई सा एक पक्ष,-पक्षे दूशरा पहल, इसके विप- विशेषतः हाथी का पार्व, भुक्तिः उतरी दूरी जितनी रीत -पूर्व एवाभवत्पक्षस्तस्मिन्नाभवदुत्तर:-रधु. सूर्य एक पखवारे में तय करता है,- मूलम् पंख की ४११०, १४।३४, तु० पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष 12. एक जड़, - वादः 1. एकतरफ़ा बयान 2. एक पक्ष को सामान्य विचार जैसा कि 'पक्षांतरे में 13. चर्चा का उक्ति, मताभिव्यक्ति, वाहनः पक्षी, हतः (वि.) विषय, प्रस्ताव 14. अनुमान-प्रक्रिया का विषय (वह जिसका एक पावं लकवे से बेकाम हो गया हो, हरः वस्तु जिसमें साध्य की स्थिति · संदिग्ध हो) संदिग्ध- पक्षी, -होम 1. पन्द्रह दिन तक होने वाला यज्ञ 2. साध्यवान् पक्षः-तर्क०, दधतः शुद्धिभूतो गृहीतपक्षाः पाक्षिक यज्ञ । ---शि० २०१११ (यहां इसका अर्थ 'पंखयक्त' भी है) | पक्षकः [पक्ष+कन] 1. चोर दरवाजा 2. पक्ष, पार्श्व 3. 15. दो की संख्या को प्रतीकात्मक उक्ति 16. पक्षी 17. साथी, हिमायती (समास के अन्त में प्रयुक्त)। अवस्था, दशा 18. शरीर 19. शरीर का अंग 20, राजा पता [ पल तलटाप 1 1. मित्रता. का हाथी 21. सेना:22. दीवार 23: विरोध 24. प्रति 2. दल- विशेष का अनुगमन 3, किसी एक पक्ष का बचम, उत्तर 25. राशि,समुच्चय (समासमें 'बाल'का अर्थ होना । देने वाले शब्दों के साथ), केशपक्षः, तू० हस्त। सम० | पक्षतिः (स्त्री०) [पक्षस्य मूलम्-पक्ष+ति] 1. पंख की अतः कोई से भी पक्ष का पन्द्रहवां दिन अर्थात् ' जड़ अलिखच्चचुपुटेन पक्षती–० २१२, खङ्गं अमावस्या या प्रणिमा का दिन- अंतरम् 1. दूसरा च्छिन्न जटायपक्षतिः -उत्तर० ३।४३, शि० १११२६ पाव 2. किसी तर्क का दूसरा पहल 3. और विचार 2. शुक्लपक्ष की प्रतिपदा । या कल्लना,--आघातः 1.शरीर के एक अंग का मारा पक्षालुः [पक्ष---आलुच पंछी। जामा, अधलकवा आभासः 1. भ्रामक तर्क 2. | पक्षिणी [पक्ष इनि+ डीप्] 1. मादा पक्षी 2. दो दिनों मिथ्या परिवाद या फ़रियाद, ---आहारः पखवारे में के बीच की रात (द्वावलावेक रात्रिश्च पक्षिणीत्यकेवल एक बार भोजन करना, ग्रहणम किसी भी भिधीयते) 3. पूर्णिमा। पक्ष का हो जाना,-चरः 1. यूथभ्रष्ट हाथी 2. चन्द्रमा, पक्षिन (वि०) (स्त्री -णो) पक्ष-इनि] 1. पंखयुक्त -छिद् (पुं०) इन्द्र का विशेषण (पहाड़ के पंखों या 2. बाजूवाला 3. तरफदार, दल विशेष का अनुयायी भुजाओं को काटने वाला), कु. १२०,-जः चाँद । ---[पु०) 1. पक्षी 2. तीर 3. शिव का विशेषण । -द्वयम् 1. किसी विवाद के दोनों पहल 2. दो सम--इन्द्रः --प्रबरः - राज् (पुं०) -- राजः, --सिंहः पखवारे अर्थात् एक मास,--द्वारम् चोरदरवाजा, ...स्वामिन् (प.) गरुड का विशेषण,--कीटः छोटी निजी द्वार,-धर (वि.) 1. पंखधारी 2. एक का | चिड़िया,-शाला 1. घोंसला 2. चिड़ियाघर । For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६१ पक्ष्मन् (नपुं० ) [ पक्ष + मनिन् ] 1. बरौनी-सलिलगुरुभिः पक्ष्मभिः - मेघ० ९०१४७, रघु० २।१९, ११३६, 2. फूल की पंखड़ी 3. धागे का सिरा, पतला धागा 4. बाजू । पक्ष्मल ( वि० ) ( पक्ष्मन् + लच् ] 1. दृढ़, लम्बी और सुन्दर बरौनी बाला - पक्षमलाक्ष्याः - श० ३।२५ 2. बालों वाला, लोमश, रोएंदार- मृदितपक्ष्मलरल्लकांगः - शि० ४।६१ । पक्ष्य ( वि० ) [ पक्ष + यत् ] 1. पखवारे में होने वाला, पाक्षिक 2 तरफदार 3. पक्षपाती, क्ष्यः हिमायती, अनुवायी मित्र, सखा ननु वज्रिण एव वीर्यमेतद्विजयंते द्विषतो यदस्य पक्ष्याः - विक्रम० १।१६ | पंक:, -कम् [पंच् विस्तारे कर्मणि करणे वा घञ्ञ, कुत्वम् ] गारा, लसदार मिट्टी, दलदल अनीत्वा पंकतां धूलि - मुदकं नावनिष्ठते शि० २१३४, किं० २२६, रघु० १६।३० 2. अतः मोटी राशि, स्थूल ढेर-कृष्णागुरुपंक का० ३० 3. दलदल, कीचड़, धंसन 4. पाप । सम० कीरः टिटहिरी, क्रीडः सूअर, ग्राहः, मगरमच्छ, घड़ियाल, छिद् (पुं०) रीठे का वृक्ष ( कतक, जिसके फल से गदले पानी को स्वच्छ किया जाता है) मालवि० २२८, जम् कमल, जः, 'जन्मन् (पुं० ) ब्रह्मा का विशेषण, नाभः विष्णु का विशेषण - २० १८१२०, जन्मन् ( नपुं०) कमल ( पुं० ) सारस पक्षी, मंडुकः द्विकोष शंख, रुह, ( नपुं०), रुहम् कमल, वासः केंकड़ा । पंकज [पंकज + इनि] 1. कमल का पौधा - कि० १०1३३ 2. कमलों का समूह 3. कमलों से भरा हुआ स्थान 4. कुमुद डंडो । - पंकण: [ पृषो० सा०] चांडाल की झोंपड़ी, दे० 'पक्कण' । पंकारः [ प + ऋ + अण् ] 1. सिवार 2. बाँध, मेंड़ 3. जीना, सीड़ी, पौड़ियाँ । पंकिल ( वि० ) [पंक + इलच्] गारे से भरा हुआ, गदला, मैला, मलिन शि० १७३८ । पंकेज [पंके जायते पंके + जन् + ड] कमल । पंकेरुह ( नपुं०), हम् [ पंके + रुह + क्विप्, क वा ] कमल, हः शारस पक्षी । पंकेश ( वि० ) [ पंके + शी + अच् ] दलदल में रहने वाला | पंक्ति: (स्त्री० ) [ पंच + क्तित्]. लाइन, कतार, श्रेणी, सिलसिला- दृश्येत चारुपदपंक्ति रलक्तकांका- विक्रम ० ४ ६, पक्ष्म पंक्ति - रघु० २११९, अलिपंक्तिः कु० ४।१५, रघु० ६।५ 2. समूह, संग्रह, रेवड़, दल 3. ( एक ही जाति के लोगों की लाइन जो खाने पर बैठी हो, एक ही जाति के सहभोजियों का समुदाय तु० पंक्तिपावन 4 जीवित पीढ़ी 5. पृथ्वी 6. यश, प्रसिद्धि ७१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) 7. पाँच का संग्रह, पाँच की संख्या 8. दस की संख्या जैसा कि 'पंक्तिरथ' और 'पंक्तिग्रीव' में है । सम०ग्रीवः रावण का विशेषण, चरः समुद्री उकाब, कुरर पक्षी, दूषः, दूषकः, जिसके साथ बैठकर भोजन करने में दूषण लगे, ऐसा समाज को दूषित करने वाला व्यक्ति, - पावनः आदरणीय या सम्मानित व्यक्ति, एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण जो विद्वान् होने के साथ २ अपनी उपस्थिति से भोज की पंक्ति को पवित्र कर देता है, पंक्तिपावनाः पंचाग्नयः - मा० १, यहाँ जगद्धर कहता है पंक्तिपावना: पंक्ती भोजनादिगोष्ठयां पावनाः, अग्निभोजिनः पवित्रावा; यद्वा यजुषां पारगो यस्तु साम्नां यश्चापि पारगः, अथर्वशिरसोऽध्येता ब्राह्मण: पंक्ति पावनः । या--- अस्याः सर्वेषु वेदेषु सर्व प्रवचनेषु च यावदेते प्रपश्यंति पंक्तयां तावत्पुनंति च । ततो हि पावनात्पंक्तचा उच्यते पंक्तिपावनाः । मनु इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार करते हैं: --- अपक्तियोषहताः पंक्तिः पाव्यते द्विजोत्तमैः, तान्निबोधन कार्त्स्न्येन द्विजाय्चान् पंक्तिपावनान् । मनु० ३।१८४ - दे० ३।१८३, १८६ भी, - रथः दशरथ का नाम रघु० ९।७४ । पंगु ( वि० ) ( स्त्रिी० -गू - ग्भी ) [ खञ् + कु, खस्य पत्वे जस्य गादेशः, नुम् ] लंगड़ा, लड़खड़ाता, विकलांग - गुः 1. लंगड़ा, आदमी, मूकं करोति वाचलं पंगु लंघयते गिरिम् 2. शनि का विशेषण । सम० ग्राहः 1. मगरमच्छ 2. दसवीं राशि मकरराशि | ( वि० ) [ पङ्ग, + लच्] लङ्गड़ा, विकलांग | (भ्वा० उभ० पचति ते, पक्व ) 1. पकाना, भूनना, भोजन बनाना ( वह धाते द्विकर्मक बतलाई जाती है -- उदा० तच्छुलानोदनं पचति परन्तु इस प्रकार का प्रयोग लौकिक संस्कृत में विरल है ), यः पचत्यात्मकारणात् मनु० ३।११८, शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन् दुर्बलान् बलवत्तराः - ० २०, भर्तृ० १८५ 2. पकाना, ( ईंट आदि) पकाना, दे० पक्व 3. ( भोजन आदिक) पचाना -- पंचाम्यन्नं चतुविधम्-भग० १५।१४ 4. पकना, परिपक्व होना 5. पूर्णता को पहुंचाना, ( समझ आदि का ) विकास करना 6. ( धातु आदि का) गलाना 7. ( अपने लिए) पकाना ( आ० ) - कर्मवा० पच्यते, 1. पकाया जाना 2. पक्का होना, परिपक्व या विकसि होना, पकना ( आलं० ) फल देना, पूर्णता को प्राप्त करना - रघु० ११:५०, पाचयति - ते पकवाना, पक्का कराना, विकसित कराना, पूर्णता को पहुँचाना - सन्नंत पिपक्षति - पकाने की इच्छा करना - परि-, पकना, परिपक्व होना, विकसित होना, वि- 1. परिपक्व होना, विकसित होना पकना, फल देना - रघु० १७/५३ 2. पचाना 3. भलीभांति पकाना । पंगुल पच् For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ii (भ्वा० आ०-पचते) स्पष्ट करना, विशद करना।। पचतः [पच् + अत] 1. अग्नि 2. सूर्य 3. इन्द्र का नाम । | पचर (वि०) [पच्+ल्युट] पकाना, भोजन बनाना, परि पक्व करना-नः अग्नि-नम् 1. पकाना, भोजन बनाना, परिपक्व करना 2. पकाने के उपकरण, बर्तन, इन्धन आदि । पचपचः [प्रकारे पच इत्यस्य द्वित्वम्] शिव जी की उपाधी। पचा [ पच्+अड्-+टाप् ] पकाने की क्रिया। पचिः [पच+इन् ] अग्नि । पचेलिम (वि०) [पच+एलिमच ] 1. शीघ्र ही पकने वाला 2. परिपक्व होने के योग्य 3. स्वतः या नैसर्गिक रूप से पकने वाला - ददर्श मालरफलं पचेलिमम् नै०१३९४,--मः 1. अग्नि 2. सूर्य । पचेलुकः [पच्+एलक] रसोइया। पसटिका (स्त्री०) एक छोटी घंटी। पंचक (वि.) [पंच+कन् ] 1. पाँच से युक्त 2. पाँच से संबद्ध 3. पाँच से निर्मित 4. पांच से खरीदा हुआ 5. पाँच प्रतिशत लेने वाला,-कः,-कम् पाँच वस्तुओं | का संग्रह, 'अम्लपंचक' । पंचत् (स्त्री०) पंच, पंचसमुदाय, पंचायत ।। पंचता, स्वम् [पंचन्+तल+टाप, त्व वा] 1. पाँचगुना स्थिति 2. पाँच का संग्रह 3. पाँच तत्त्वों की समष्टि --अतः पंच-तां-वं-म-या उन पाँच तत्त्वों में घुलमिल जाना जिनसे शरीर बना है, मरना, नष्ट होना, पंचता-स्वं नो मार डालना, नष्ट करनापंचभिनिमिते देहे पंचत्वं च पूनर्गते, स्वां स्वां योनि मनुप्राप्ते तत्र का परिदेवना। रत्न० ३।३ । पंचथुः [पञ्चन् +अथुच् ] 1. समय 2. कोयल । पंचधा (अव्य०) [पंचन् । धा ] 1. पाँच भागों में 2. पाँच प्रकार से। पंचन् (सं० वि०) [पंच+ कनिन् ] (सदैव बहुवचनांत, कर्त० कर्म .....पंच) पांच (समास में पूर्वपद होने के स्थिति म पंचन के 'न' का लोप हो जाता है)। सम० अंशः पाँचवाँ भाग, पांचवां-अग्निः 1. पाँच यज्ञाग्नियों का समूह (अर्थात्-अन्वाहार्य पचन या दक्षिण, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य और आवसथ्य) 2. पंचाग्नियों को स्थापित रखने वाला गृहस्थ-. पंचाग्नयो धृतव्रताः-मा० १, मनु० ३।१८५--अंग (वि.) पाँच - सदस्यीय, पाँच अंगों वाला, जैसा कि पंचागः प्रणामः (अर्थात् बाहुभ्यां चैव जानुभ्यां शिरसा वक्षसा दशा), कृतपंचांगविनिर्णयो नयः-. कि० २।१२, (दे० मल्लि. और कादंबक) (गः) 1. कट्वा 2. एक प्रकार का घोड़ा जिसके शरीर के विभिन्न भागों पर पांच चिह्न हों (गी) लगाम का दहाना, मुखरी (गम) 1. पाँच भागों का संग्रह या । समष्टि 2. भक्ति के पाँच प्रकार 3. पंचांग, तिथिपत्र, जंत्री-तिथिरिश्च नक्षत्र योगः करणमेव च, चतुरंगबलो राजा जगतीं वशमानयेत्, अहं पंचांग बलवानाकाशं वशमानये-सुभा० गप्तः एक प्रकार का समुद्री कछुवा शुद्धिः (स्त्री०) तिथि, वार, नभत्र, योग, और करण (ज्योतिष), इन पाँच आवश्यक अंगों की अनुकूल स्थिति,-अंगुल (वि०) (स्त्री० --ला,-ली) पाँच अंगुल को माप, ----अ (आ) जम् बकरी से प्राप्त होने वाले पाँच पदार्थ, - अप्सरम् (नपुं०) मंडकर्णी ऋषि द्वारा निर्मित कहा जाने वाला सरोवर-तु० १३३३८,--अमृतम् देवपूजा के लिए पाँच मिष्ट पदार्थों का संग्रह (दुग्धं च शर्करा चैव धृतं दधि तथा मधु),- अचिस् (पुं०) बुधग्रह, ---अवयव (वि०) पांच अंगों वाला (जैसे कि अनुमान प्रक्रिया -इसके प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन, यह पाँच अंग है),-अवस्थः शव, (क्योंकि यह पांचों तत्त्वों में घुल मिल जाता है) तु० 'पंचत्व' से,-अविकम् भेड़ से प्राप्त पाँच प्रकार के पदार्थ - अशीतिः (स्त्री०) पचासी,--अहः पाँच दिन का समय,--आतप (वि०) पंचाग्नियों (चारों ओर चार अग्नि, तथा ऊपर सूर्य) से तपस्या करने वाला-.. तु० रघु० १३१४१,----आननः,---आस्यः ,--मुख-वक्तः 1. शिव का विशेषण 2. सिंह (क्योंकि इस मुख प्रायः खूब खुला होता है, चार पंजे भी मुख जैसा काम करते हैं-पंचम् आननं यस्य) (अत्यधिक विद्वत्ता तथा प्रतिष्ठा को प्रकट के लिए प्रायः विद्वानों के नामों के अन्त में लगाया जाता है-न्याय, तर्क० आदि-उदा० जगन्नाथ तर्कपंचानन),--इंद्रियम् पाँच अंगों की समष्टि (ज्ञानेन्द्रिय या कर्मेद्रिय-दे० इन्द्रियम्), इषुः-बाणः-शरः कामदेव का विशेषण (क्योंकि इसके पाँच बाण है-अरविंदमशोक च चतं च नवमल्लिका, नीलोत्पलं च पंचते पंचबाणस्य सायकाः),-उष्मन् (पुं०, ब० व०) शरीर में रहने वाली पांच अग्नियाँ,-कर्मन् (नपुं०-आयु. में) पाँच प्रकार की चिकित्साएँ अर्थात् 1. वमन-'उल्टी कराने वाली औषधियाँ देना' 2. रेचन-शौच लाने वाली औषधियों का सेवन 3. नस्य-छींक लाने वाली औषधियाँ--नसवार-देना 4. अनुवासन -तैलयुक्त बस्तिकर्म 5. निरूह-बिना तेल का बस्तिकर्म,--कृत्वस् (अव्य०) पांच बार,-कोणम् पांच कोण की आकृति,-कोलम् पाँच मसालों (पीपल, पिप्परामूल, चई, चित्रकमूल और सोंठ) का चूर्ण, -कोषाः (पुं०, ब० ब०) पाँच प्रकार का परिधान 1. अन्नमय कोष या स्थूल शरीर 2. प्राणमय कोष 3. मनोमय कोष 4. विज्ञानमय कोष (२, ३, व ४ से For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६३ ) मिल कर लिंग शरीर बनता है 5. आनन्दमय कोष -अर्थात् मोक्ष) जिनसे आत्मा लिप्त समझा जाता , - कोशी पाँच कोस की दूरी, लट्वम् - खट्वो पाँच खाटों का समूह, गवम् पांच गौवों का समूह, - गव्यम् गी से प्राप्त होने वाले पांच पदार्थों ( अर्थात् दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर - क्षीरं दघि तथा चाज्यं मूत्रं गोमयमेव च ) का समूह, गु ( वि०) पाँच गौओं के बदले खरीदा हुआ, गुण (वि०) पाँच गुणा - गुप्त ः 1. कछुवा 2. दर्शनशास्त्र में वर्णित भौतिकवाद की पद्धति, चार्वाकों का सिद्धांत, - चत्वारिंश (वि० ) पैंतालीसवां चत्वारिंशत् पैतालीस, जनः 1. मनुष्य, मनुष्य जाति 2. एक राक्षस जिसने शंखशुक्ति का रूप धारण कर लिया था तथा जिसकी श्रीकृष्ण ने मार गिराया था 3. आत्मा 4. प्राणियों की पाँच श्रेणियाँ अर्थात् देवना, मनुष्य, गंधर्व, नाग, और पितर 5. हिन्दुओं की चार मुख्य जातियाँ (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा पाँच निपाद या असभ्य लोग ( इन दो अर्थों में व० To ) [ पूरे विवरण के लिए दे० ब्रह्म० १।४।११-१३ पर पारीरभाप्य ] - जनीन ( वि०) पंचजनों का भक्त ( : ) अभिनेता, बहुरूपिया, विदूषक, — ज्ञानः 1. बुद्ध का त्रिशेषण क्योंकि वह पाँच प्रकार के ज्ञान से युक्त है 2. पाशुपत सिद्धांतों से परिचित मनुष्य, - तक्षम, क्षी पाँच रथकारों का समूह... तत्त्वम् 1. पाँच तत्त्वों को समष्टि अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश 2. (तंत्रों में ) तांत्रिकों के पाँच तत्त्व जो पंचमकार अर्थात् मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन - भी कहलाते हैं, - तपस् (पुं०) एक संन्यासी जो ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों के नीचे चारों ओर आग जला कर बैठा हुआ तपस्या करता है - तु० - हविर्भुजामेघवतां चतुर्णां मध्य | ललाटंत पसप्तसप्तिः - रघु० १३।४१, कु० ५/२३, मनु० ६।२३, और शि० २।५१ भी तय (वि० ) पांच गुणा (यः) पंचायत, - त्रिश ( वि० ) पैंतीसवाँ, त्रिशत् - त्रिशतिः (स्त्री० ) पैंतीस - दश ( वि० ) 1. पन्द्रहवाँ 2. जिसमें पन्द्रह बढ़े हुए हैं - यथा पंचदशशतम् - एक सौ पन्द्रह - दशन् ( वि०, ० ० पन्द्रह, अहः पन्द्रह दिन की अवधि -- वशिन् ( वि०) पन्द्रह से युक्त या निर्मित – दशी पूर्णिमा, - दीर्घम् शरीर के पाँच लंबे अंग- बाहू नेत्रद्वयं कुक्षितु नासे तथैव च स्तनयोरंतरं चैव पंचदीर्घ प्रचक्षते, नखः 1. पाँच पंजों से युक्त कोई जानवर - पंच पंचनखा भक्ष्या ये प्रोक्ताः कृतजेद्विजः भट्टि० ६।१३१, मनु०५/१७, १८, याज्ञ० १।१७७ 2. हाथी 3. कछुवा 4. सिंह या व्याघ्र - नवः पाँच नदियों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का देश, वर्तमान पंजाब' (पांच नदियों के नाम- शतद्रु विपाशा, इरावती, चन्द्रभागा और वितस्ता या क्रमशः सतलुज, व्यास, रावी, चेनाव और झेलम) (-दा: - ० ० ) इस देश के निवासीपंजाबी, नवतिः (स्त्री०) पिचानवें, नोराजनम् देवमति के सामने पाँच पदार्थों को हिलाना और फिर उसके सामने लंबा लेट जाना ( पांच पदार्थों के नाम दीपक, कमल, वस्त्र, आम और पान का पत्ता), पंचास (वि०) पचपनवाँ, पंचाशत् पंचपन, पदी पाँच कदम पंच० २।११५ – पात्रम् 1. पांच पात्रों का समूह 2. एक श्राद्ध जिसमें पाँच पात्रों में रखकर भेंट दी जाती है, - प्राणा: ( प्र० ब० व० ) पांच जीवन प्रदवायु- प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान, प्रासादः विशिष्ट आकार का मन्दिर ( जिसमें चार कंगूरे और एक मीनार या शिखर हो ) - बाण: -- वाणः, -- शरः कामदेव के विशेषण दे० 'पंचेषु', - भुज (वि०) पांच भुजाओं का ( ज ) पंचभुज या पंचकांना तु० पंचकोण, भूतम् पाँच मूलतत्व --- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश मकारम् वाममार्गी तन्त्राचार के पाँच मूलतत्व जिनके नाम का प्रथम अक्षर 'म' है (मद्य, मांस, मत्स्व, मद्रा और मैथुन) दे० 'पंचतत्व' ( 2 ), महापातकम् पांच बड़े पाप दे० महापातक, महायज्ञः (पुं०, ब० व० ) पाँच दैनिक यज्ञ जो एक ब्राह्मण के लिए अनुष्ठेय हैं - दे० महायज्ञ, -- यामः दिन, रत्नम् पाँच रत्नों का संग्रह ( वे कई प्रकार से गिने जाते हैं - ( १ ) नीलकं बज्रकं चेति पद्मरागश्च मौक्तिकम्, प्रवालं चेति विज्ञेयं पंचरत्नं मनीषिभिः, (२) सुवर्ण रजतं मुक्ता राजावतं प्रवालकम्, रत्नपंचकमा रख्यातम्, (३) कनकं हीरकं नीलं पद्मरागश्च मौक्तिकम्, पंचरत्नमिदं प्रोक्तमृषिभिः पूर्वदर्शिभिः, रात्रम् पाँच रात्रियों का समय - राशिकम् ( गणि० में ) गणित की एक क्रिया जिससे चार ज्ञात राशियों के द्वारा पाँचवीं राशि निकाली जाती है, लक्षणम् एक पुराण ( क्यों कि इसमें पाँच महत्वपूर्ण विषयों का उल्लेख है -सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम्, दे० 'पुराण' भी, लवणम् नमक के पाँच प्रकार -- अर्थात् काचक, सैन्धव, सामुद्र, बिड और सौवर्चल, वटी 1. अंजीर की जाति के पाँच वृक्ष - अर्थात् पीपल, वेल, वड़, हरड़ और अशोक 2. दण्डकारण्य का एक भाग जहाँ से गोदावरी निकलती हैं और जहाँ राम ने सीता समेत बहुत दिन बिताये थे, वह स्थान नासिक से दो मील की दूरी पर है - उत्तर० २ २८, रघु० १३।३१ - बर्षदेशीय (वि०) लगभग पाँच वर्ष की आयु का, -वर्षीय (वि०) पाँच For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्ष का,—वल्कलम् पाँच प्रकार के वृक्षों (अर्थात् बड़, पंजरम् [पंज+अरन्] पिंजरा, चिड़ियाघर-पंजरशुकः, गूलर, पीपल, प्लक्ष और वेतस) की छाल,-विश भुजपंजर:---रः, - रम् 1. पसलियाँ 2. कंकाल, ठठरी (वि.) पच्चीसवां,-विशतिः (स्त्री०) पच्चीस, र: 1. शरीर 2. कलियुग। सम०-आखेटः मछलियाँ --विशतिका पच्चीस का संग्रह जैसा कि 'वेतालपंच- पकड़ने का जाल या टोकरी,-शुकः पिंजरे का तोता, विशतिका' में,-विध (वि०) पाँच गुणा या पाँच पिंजड़े में बंद तोता विक्रम० २।२३ । प्रकार का,-शत (वि.) 1. जिसका जोड़ पांच सौ । पंजिः,---जी (स्त्री०) [पंज्+इन्, पंजि-+डीष] 1. रूई हो 2. पांच सौ (-तम्) 1. एक सौ पांच 2. पांच सौ, का गल्हा जिससे धागा काता जाय, पूनी 2. अभिलेख, -शाखः 1. हाथ 2. हाथी,-शिखः सिंह- (वि०) पत्रिका, बही पंजिका 3. तिथि-पत्र, जंत्री, पत्रा या (ब० व०) पांच छः, सन्त्यन्येऽपि बहस्पतिप्रभतयः पंचांग । सम०-कारः,-कारकः लेखक, लिपिकार । रांभाविताः पञ्चषाः- भर्तृ० २१३४,-बष्ट (वि०) पट i (म्वा० पर०–पटति) जाना, हिलना-जुलना-प्रेर० पैसठवां,---षष्टिः (स्त्री०) पैसठ,---सप्तत पचहत्तरवां, या चुरा० उभ०-पाटयति-ते 1. टुकड़े करना, --सप्ततिः (स्त्री०) पचहत्तर,--सूनाः (स्त्री०) विदीर्ण करना, फाड़ना, फाड़ कर अलग २ करना, घर में रहने वाली पांच वस्तुएं जिनके द्वारा छोटे २ फाड़ कर खोलना, विभक्त करना ..'कंचिन्मध्यात्पाटजीवों की हिंसा हो जाया करती है वे ये है-पंच यामास, दंती शि० १८१५१, दत्वर्ण पाटयेल्लेखम् सूना गृहस्थस्व चुल्लीपेषण्युपस्करः कंडनी चोदकुंभश्च --याज्ञ० २।९४ मृच्छ० ९ 2. तोड़ना, तोड़ कर --मनु० ३।६८ (चूल्हा, चक्की या सिलबट्टा, झाडु, खोलना--अन्यासु भित्तिषु मया निशि पाटितासु ओखली और पानी का घड़ा),-हायन (वि०) पांच -मृच्छ० ३.१४ 3. छेदना, चुभोना, धुसेड़ना - दर्भवर्ष की आयु का। पाटिततलेन पाणिना-रघु०११।३१ 4. दूर करना, पंचनी [पंचन ल्युट-डीप् ] शतरंज जैसे खेल की कपड़े हटाना 5. तोड़ डालना उद -, 1. फाड़ डालना, __ की बनी हुई विसात । निकाल लेना---दंतैनोत्पाटयेन्नखान्- मनु० ४।६९, पंचम (वि.) (स्त्रो०-मी) [पंचन---मट्] 1. पांचवाँ कीलमुत्पाटयितुमारभे- पंच०१ 2. जड़ से उखा 2. पांचवा भाग बनानेवाला 3. दक्ष, चतुर 4. सुन्दर, इना, उन्मूलन करना-कु० २१४३, रघु० १५।४९ उज्ज्वल,--मः 1. भारतीय स्वरग्राम का पाँचवाँ (बाद 3. उद्धृत करना वि-1. फाड़ डालना (केतकबह) के समय में सातवाँ) स्वर, कथित कोकिलरव (कोकिलो विपाटयामास युवा नखा:-रघु० ६।१७ 2. खींचना, रौति पंचमम्-नारद) शरीर के पाँच अंगों से उत्पन्न बाहर निकालना, उद्धृत करना। होने के कारण इसका नाम 'पंचम' है-वायुः समु- | ii (चुरा० उभ०–पटयति-ते) 1. गूंथना, बुनना दगतों नाभेरुरोहत्कंठमुर्घसु, विचरन् पंचमस्थानप्राप्त्या —कुर्विदस्त्वं तावत्पश्यसि गणग्राममभितः-काव्य. पंचम उच्यते 2. संगीत स्वर या राग का नाम ७ 2. वस्त्र पहनाना, लपेटना 2. घेरना, घेरा बनाना। ----व्यथयति वथा मौन तन्वि प्रपंचय पंचमम्-गीत० पटः, टम् [पट वेष्टने करणे घार्थे कः] 1. वस्त्र, १०, इसी प्रकार उदंचित पंचम रागम् --गीत० १, पहनावा, कपड़ा, चिथड़ा-अयं पटः सूत्रदरिद्रतां गतो मम् 1. पाँचवाँ 2. मैथुन, तान्त्रिकों का पाँचवाँ मकार, 'ह्ययं पटश्छिद्रशतैरलंकृत:--मच्छ० २।९, मेघाः -मी 1. चान्द्रमास के पक्ष की पांचवीं तिथि 2. सति बलदेवपट प्रकाशा:–५।४५ 2. महीन कपड़ा (व्या० में) अपादान कारक, द्रौपदी का विशेषण 4. 3. चूंघट, परदा 4. कपड़े का टुकड़ा जिस पर चित्र शतरंज की कपड़े की बिसात। सम०-आस्यः कोयल। बनाये जायें-- टम् छप्पर, छत। सम०-उटजम् पंचालाः (पुं०, ब० व०) [पंच+कालन्] एक देश तथा तंबू,-कारः 1. जुलाहा 2. चित्रकार,--कुटी (स्त्री०), उसके निवासियों का नाम,-लः पंचालों का राजा। --मंडपः,—वापः, - वेश्मन् (नपुं०) तंबू-शि० पंचालिका [पंचाय प्रपंचाय अलति-अल-बल+टाप, १२।६३,-वासः 1. तंबू 2. पेटीकोट 3. सुगंधित चूर्ण इत्वम् गुड़िया, पुतली --तु० 'पांचालिका'। --- रत्न०१,-वासकः सुगंधित चूर्ण । पंचाली पंचाल ङीष ] 1. गुड़िया, पुतली 2. एक प्रकार | पटकः [पट+के+क] 1. शिविर, पड़ाव 2. रूई का कपड़ा का राग 3. शतरंज आदि खेल की कपड़े की बनी | पटच्चरः [पटत् इति अव्यक्तशब्द चरति-पटत्+चर+ बिसात । अचचोर, तु. पाटच्चर,-रम् चिथड़ा, फटे पुराना पंचाश (वि०) (स्त्री० शी) [पंचाशत् --डट् ] पचासवाँ । कपड़ा। पंचाशत्, पंचाशतिः (स्त्री०) पचास । पटत्कः [पटत्+के+क] चोर । पंचाशिका [पंचाश+क+टाप् इत्वम् पचास श्लोकों का | पटपटा (अव्य०) अनुकरण मूलक ध्वनि । संग्रह-अर्थात् 'चोर पंचाशिका'। पटलम् [पट+कलच्] 1. छत, छप्पर-विनमितपटलांतं For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्यते जीर्णकुड्यम् -मुद्रा० ३।१५ 2. उकना, आव-) कुकुरमुत्ता, सांप की छतरी--- (नपुं०) नमक । सम० रण, अवगण्ठन, लेपन-शिरसि मसीपटलं दधाति कल्प,-वेशीय (वि०) खासा चतुर, तीक्ष्णबुद्धि। दीपः ---भामि० ११७४ 3. आँखों का जाला 4. देर, | पटोलः [पट+ओलच् ] परमल, ककड़ी की जाति का, समुच्चय, राशि, परिमाण रथांगपाणेः पटलेन रोचि-| -लम् एक प्रकार का कपड़ा। पाम-शि० ०२१, जलदपटलानि पंच० ११३६१, पटोलकः [पटोल+कै-क] शक्ति, घोंघा । क्षौद्रपटल:-- रघु० ४।६३, मुक्तापटलम् ---१३।१७ | पट्टः-ट्टम् [पट्+क्त, इडभावः ] 1. शिला, तस्ती तारकपटलम्---गीत०७ 5. टोकरी 6. अनुचरवर्ग, (लिखने के लिए) पट्टिका-शिलापट्टमधिशयाना-शि० नोकर चाकर,--लः,- लो 1. वृक्ष 2. डंठल, लः, ३, इसी प्रकार भालपट्ट आदि 2. राजकीय अनुदान, -लम् पुस्तक का अध्याय । सम०-प्रातः छत का राजाज्ञा--याज्ञ०१।३१७ 3. किरीट, मुकुट-रघु० किनारा। १८१४४ 4. धज्जी--- निर्मोकपटाः फणिभिविमक्ताः पटहः [पटेन हन्यते-पट+हन्ड ] 1. धौंसा, नगाड़ा, -रघु० १६६१७ 5. रेशम-पट्टोपधानम् का०१७, ढोल, तबला, कुर्वन् संध्यावलिपटहतां शूलिनः श्लाघनी- भत० ३।७४, इसी प्रकार 'पद्राशक' 6. महीन या याम् -- मेघ० ३४, पटुपटहध्वनिभिविनीतनिद्रः . . रघु० रंगीन कपड़ा, वस्त्र 7. ओढ़ने का वस्त्र-भट्टि. ९/७१ 2. आरम्भ, उपक्रम 3. घायल करना, मारना। १०१६० 8. शिरोवेष्टन, पगड़ी, रंगीन रेशमी साफा सम-धोषकः ढिंढोरची (जी ढोल पीटता जाता है ---रत्न०११४ . सिंहासन 10. कुर्सी, तिपाई 11. ढाल और घोषणा करता जाता है) डोंडी पीटने वाला, 12. चक्की का पाट 13. चौराहा 14. नगर, कस्बा --भ्रमणम् लोगों को एकत्र करने के लिए ढोल पीटते 15. पट्टी, तनी या बंधनी । सम० अौं पटरानी-उपाहुए इधर उधर घूमना । ध्यायः राजाज्ञा तथा अन्य प्रलेखों या दस्तवेजों के पटालुका [ पट+अल् + उक+टाप् ] जोक । लिखने वाला,—अम् एक प्रकार का कपड़ा--देवी, पटिः,-टी (स्त्री) [ पट - इन्, पटिन-डोष ] 1. रंगशाला --महिषी,--राज्ञी पटरानी, वस्त्र, वासस् (वि०) का पर्दा 2. कपड़ा 3. मोटा कपड़ा, कैनवस 4. कनात । रेशमी या रंगीन वस्त्रों से सुसज्जित । सम० ---क्षेपः (रंगशाला) के पर्दे को एक ओर गिराना, | पट्टनम्,-जी [ पट्+तनप, पट्टन---कीप् ] नगर। यह एक प्रकार का रंगमच का निर्देशन है जो किसी पट्टिका [पट्टी+कन् +टाप, ह्रस्वः ] 1. तख्ती, फलक पात्र के शीघ्रता पूर्वक रंगमच पर आने को प्रकट जैसा कि 'हृत्पट्टिका' में 2. प्रलेख या दस्तावेज करता है, तु० 'अपटी क्षेप' । 3. धज्जी कपड़े का टुकड़ा-वल्कलंकदेशाद्विपाटय पद्रिपटिमन् (पुं० [पटु---इमनिच् ] 1. दक्षता, चतुराई काम-का० १४९ 4. रेशमी कपड़े का टुकड़ा 2. निपुणता 3. तीक्ष्णता 4. नैपुण्य 5. प्रचंडता, | 5. बन्धनी या तनी, पट्टी। सम-बायक: रेशम तीव्रता आदि । की बुनावट। पटीरः [ पट+ईरन ] 1. खेलने की गेंद चंदन की लकड़ो (ट्टी) शः (सः) [पट्ट-टिश (स) च्, पक्षे पट्टी 3. कामदेव--रम् 1. कत्था 2. चलनी 3. पेट 4. खेत +शो (सो)+क] एक तेज धार को बी, कणप5. बादल 6. ऊँचाई। सम० .-जन्मन् (पुं०) चन्दन | प्रासपट्टिश आदि दश० (पट्टिशो लोहदंडो यस्तीक्ष्णधारः का पेड़ .....वहति विपधरान पटीरजन्मा-भामि० क्षुरोपमः-वैजयंती) ११७४। पट्टोलिका [ पट्ट+उल्+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] एक प्रकार पटु (वि.) (स्त्री०-टु, टोम० अ०-पटोयस, उ० अ० ___ का बंध या पट्टा (भूमिकरग्रहणव्यवस्थापक: पत्रभेदः पटिप्ट) [ पट+-णिच् +उ, पटादेशः] 1. चतुर, --तारा०) । कुशल, दक्ष, प्रवीण' (प्रायः अधि के साथ) वाचि (भ्वा० पर०-पठति, पठित) 1. जोर से पढ़ना या पटुः 2. तीक्ष्ण, तीखा, चरपरा 3. प्रखर, काइयाँ दोहराना, सस्वर पाठ करना, पूर्वाभ्यास करना-य: 4. प्रचंड, मजबूत, तीव, गहन--अयमपि पटुर्धारासारो पठेच्छणुयादपि 2. पाठ करना, अध्ययन करना, अनुन बाणपरंपरा--विक्रम० ४।१, उत्तर०४।३ 5. कर्कश, शोलन करना-इत्येतन्मानवं शास्त्र भृगुप्रोक्तं पठन् सुश्राव्य, तेजध्वनियक्त-किमिदं पटपटहशंखमिश्रो द्विजः- मनु० १२।१२६, ४१९८३ 3. ( देवता का ) नांदीनादः-मुद्रा० ६, पटुपटहध्वनिभिविनीतनिद्रः आवाहन करना 4. हवाला देना, उद्धृत करना, (किसी -र० ९।७१, ७३ 6. प्रवण, स्वस्थ---शि०१५।४३ पुस्तक का) उल्लेख करना---एतदिच्छाम्यहं धोतं 7. कठोर, कर, पापाणहृदय 8. मक्कार, धूर्त, चालाक, पूराणे यदि पठ्यते--महा० 5. घोषणा करना, अभिशठ 9. नीरोग, स्वस्थ 10. सक्रिय, व्यस्त 11. वाक्पटु, व्यक्त करना--भार्या च परमो ह्यर्थः पुरुषस्येह पठ्यते वाग्मी 12. खिला हुआ, फुलाया हुआ-दुः-टु (नपुं०) । महा० 6. (अपा० के साथ)......से पढ़ना, प्रेर.. For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६६ ) पाठयति ते 1. जोर से पढ़वाना 2. अध्यापन करना, शिक्षा देना – सन्नत पिपठिपति पाठ करने की इच्छा करना, परि, उल्लेख करना, घोषणा करना ( प्रेर० ) शिक्षा देना - तौ सर्व विद्या: परिपाटितौउत्तर० २, सम् पढ़ना सीखना मनु० ४९८ । पटक: [ पठ् + ण्वुल् ] पढ़ने वाला | पठनम् [ पठ् + ल्युट् ] 1. पढ़ना, पाट करना 2. उल्लेख करना 3. अध्ययन करना, अनुशीलन करना । पठि: (स्त्रिी० [ पठ् - इन्] पढ़ना, अध्ययन करना, अनुशीलन करना । | पण i ( भ्वा० आ० - पणते, पणित ) 1. व्यापार करना, लेन-देन करना, खरीदना, मोल लेना नं० २०९१ 2. सौदा करना, वाणिज्य करना 3. शर्त लगाना या दाँव पर लगाना (शर्त की वस्तु में प्राय: संबं०, परन्तु कभी कर्म० भी ) - प्राणानामपणिष्टासी भटिङ० ८। १२१, पणस्व कृष्णां पांचालोम् महा० 4 जोखिम उठाना, ii ( स्वा० आ०, चुरा० उभ० -- पणते, पणायति - ते ) 1. प्रशंसा करना 2. सम्मान करना, वि, बेचना, अदल बदल करना आभीरदेशे किल चन्द्रकांत त्रिभिर्व विपणति गोपाः - सुभा० । पणः [पण् + अ ] 1. पासों से या दाँव लगार कर खेलना 2. जूआ, जो दाँव या शर्त लगा कर खेला जाय -- या २०१८, दमयंत्याः पणः साधुर्वर्तताम्-महा० 3. दाँव पर लगाई हुई वस्तु 4. शर्त, संविदा, समझौता - संधि करोतु भवतां नृपतिः पणेन वेणी० ११५, ठहराव, सुलह हि० ४।११८, ११२ 5: मजदूरी, भाड़ा 6 पारितोषिक 7. रकम जो या तो fresों में हो या कौड़ियों में 8. ८० कौड़ी के मूल्य का सिक्का - अशीतिभिर्वराटकैः पण इत्यभिधीयते 8. मूल्य •10. धन दौलत, संपत्ति 11 विक्रयवस्तु 12. व्यापार लेनदेन 13. दुकान 14. विक्रेता, बेचने वाला 15. शराब खींचने वाला 16. मकान । सम० अंगना - स्त्री वेश्या, रंडी, ग्रंथिः मंडी, मेला या पेठ-बंध: 1. संधि या सुलह करना -- पणबंधमुखान् गुणानजः षडुपायुक्त समीक्ष्य तत्फलम् रघु० ८ २१, १०८६ 2. समझौता, ठहराव ( यदि भवानिदं कुर्यात्तदहं भवते दास्यामीति समयकरणं पणबंधःमनोरमा ) । पणनम् [पण + ल्युट] 1. अदल-बदल करना, खरीदना 2. शर्त लगाना 3. बिक्री । पणवः [पणं स्तुति वाति-पण + वा + क] एक प्रकार का वाद्ययंत्र - भग० १।१३, शि० १३१५ । पणाया [ पण् + आ + अप्+टाप् ] 1. लेनदेन, व्यवसाय, व्यापार 2. मंडी 3. वाणिज्य से प्राप्त होने वाला लाभ 4. जुआ खेलना 5. प्रशंसा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पणि: (स्त्री० ) [ पण् + इन्] बाजार ( पुं० ) 1. कंजूस, लोभी 2. अपावन मनुष्य या पापी । पणित ( भू० क० कृ० ) [ पण् । क्त ] 1. (व्यापार में ) किया गया लेन-देन 2. शर्त पर क्या हुआ, दे० 'पण' । पंड i ( भ्वा० आ०--पंडते, पंडित) जाना, हिलना-जुलना; ii ( चुरा० उभ० - पंडयति - ते ) संग्रह करना, चट्टा लगाना, ढेर लगाना । पंड: | पंड् + अच्, ड वा | हिजड़ा, नपुंसक । पंडा | पंड | टाप् । 1. बुद्धिमत्ता, समझ 2. ज्ञान, विज्ञान । पंडावत् (पुं० ) | पंडा - | मतुप् ] बुद्धिमान्, विद्वान् । पंडित (त्रि०) पंडा | इतच् ) 1. विद्वान्, बुद्धिमान् — स्वस्थे को वा न पंडित 2. सूक्ष्मबुद्धि, चतुर 3. दक्ष, प्रवीण, कुशल ( प्रायः अधि० के साथ या समास में ) - मथुरालापनिसर्ग पंडिताम् कु० ४।१६, इसी प्रकार 'रतिपंडित' - ४।१८, 'नयपंडित' आदि, तः 1 शास्त्रज्ञ, विद्वान् 2. गंधद्रव्य | सम० - जातीय ( वि०) कुछ चतुर, मानिक मानिन, पंडितंमन्य ( वि० ) अगने आप को विद्वान् समझने वाला, घमंडी आदमी, अपने आपको शास्त्रज्ञ या पंडित मानने वाला । पंडितिमन् (पुं० ) | पंडित + इमनिच् ] ज्ञान, विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता । पण्य (त्रि० ) [ पण् + यत् ]1. विकाऊ, विक्रयार्थं 2. लेनदेन के योग्य ण्यः 1. बर्तन, वस्तु, विक्रेयवस्तु पूराबभासे विगणिस्थपण्या रघु० १६/४१, पण्याना गांधिक पण्यम् - पंच० १।१३, मनु० ५। १२९. याज्ञ० २।२४५, मालवि० १९६२ वाणिज्य, व्यवसाथ 3. मूल्य - महता पुण्प पण्येन क्रीतेयं कायनांस्त्वया शा० ३।१ । सम० - अंगना, योषित् (स्त्री०), - विलासिनी, - स्त्री (स्त्री० ) वेश्या, रंडी- पण्यस्त्रीषु विवेककल्पलतिकाशस्त्रीषु रज्येतकः भर्तृ० ११९०, मेघ० २५, अजिरम् मंडी, आजीवः व्यापारी, ----आजीवकम् मंडी, पेंठ या मेला'- पतिः बड़ा व्यापारी - भूमिः (स्त्री०) मालगोदाम, वीथिका, - वीथी, शाला 1. मंडी, 2. विक्रयणी, दुकान । पत् (भ्वा० पर० पतति पतित) 1. गिरना, गिर पड़ना, नीचे आना, उतरना अवाजमुखस्योपरि पुष्पवृष्टिः पपात विद्याधर हस्तमुक्ता -- रघु० २६०, वृष्टिर्भवने चास्य पेतुषी - १०1७७, (रेणुः ) पतति परिणतारण प्रकाशः सलभसमूह इवाश्रमदुमेषु श० १ ३१, मेघ० १०५, भट्टि० ७९, २१६ 2 उड़ना, वायु में आना जाना, उड़ान भरना हंतुं कलहकारोऽसौ शब्दकारः पपात खम्--- भट्टि० ५/१०० दे० नी० 'पतत्' 3. छिपाना, डूबना ( क्षितिज के नीचे ) सोऽयं चन्द्रः पतति गगनादल्पशेषर्मयूखः - श० ४, अने० पा० For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पतत्पतंगप्रतिमस्तपोनिधि:--शि० १११२ 4. अपने फूटना, उत्पन्न होना-निष्पेषोत्पतितानल-रघु० आप को डालना, नीचे फेंकना-मयि ते पादपतिते ४।७७, रसात्तस्माद्वरस्त्रिय उत्पेतुः . रामा०, नि-, किंकरत्वमुपागते-पंच०४।७, इसी प्रकार 'चरणपति- 1. नीचे गिरना या आना, अवरोहण करना, उतरना, तम्' मेध० १०५ 5. (नैतिक दृष्टि से) गिरना, डबना-निपतती पतिमप्यपातयत्-रघु० ८।३८, भट्टि. जाति से पतित होना प्रतिष्ठा का नष्ट होना, भ्रष्ट १५।२७ 2. फेंका जाना, निर्दिष्ट होना-रघु० ६।११ होना- परधर्मेण जीवन् हि सद्यः पतति जातितः 3. (पैरों में) डालना, साष्टांग लेटना-देवास्तदंते मनु० १०१९७, ३।१६, ५।१९, ९।२००, याज्ञ० ११३८ हरमढभार्य किरीटबद्धांजलयो निपत्य-- कु०७।९२, 6. (स्वर्ग से) नीचे आना--पतंति पितरो ह्येषां भर्त० २।३१ 4. गिरना, उतरना, मिल जाना---रघु० लुप्तपिंडोदकक्रिया:-भग०११४१ 7. घटना, आपद्- १०।२६ 5. टूट पड़ना, आक्रमण करना, पिलप डना-- ग्रस्त या संकटापन्न होना-प्रायः कंदुकपातेनोत्पतत्यार्य: सिंहः शिशुरपि निपतति मदमलिनकपोलभित्तिषु गजेषु पतन्नपि भर्त० २।१२३ 8. नरक में जाना, नारकीय -भर्त० २।३८6. होना, घटित होना, आ पड़ना, भाग्य यातना सहन करना-मन्० १११३७, भग० १६११६ मे होना–सकृदंशो नियतति मनु० ९।४७ 7. रक्खा 9. पड़ना, घटित होना, हो जाना, संपन्न होना-- जाना, स्थान पर अधिकार करना-अभ्यहित पूर्व लक्ष्मीर्यत्र पतंति तत्र विवृतद्वारा इव व्यापदः-सुभा० निपतति–प्रेर०-1. नीचे गिराना, फेंकना, पटक देना 10. निदिष्ट होना, उतरना या पड़ना (अधि० के 2. मार डालना, नष्ट करना, बर्बाद करना निस्साथ )---प्रसादसौम्यानि सतां सुहृज्जने पतंति चक्षुषि निकलना, फूट पड़ना, फल निकलना, निकल पड़नान दारुणाः शरा:-- श० ६।२८ 11. भाग्य में होना अरविवरेभ्यश्चातकनिष्पतद्धिः--श० ७७, एषा 12. ग्रस्त होना, फँसना-प्रेर०-(पातयति-ते-पतयति विदूरीभवतः समुद्रात्सकानना निष्पततीव भूमिः-- विरल प्रयोग) 1. नीचे गिराना, उतारना, डबोना रघु० १३११८, मनु० ८1५५, याज्ञ० २।१६, कु०३। -निपतंती पतिमप्यपातयत्-रघु० ८१३८, ९।६१, ७१, मेघ० ६९, परा-, 1. पहुँचना, निकट आना, ११७६ 2. गिरने देना, नीचे को फेंकना, गिराना, पास जाना 2. वापिस आना, परि , इधर उधर (वृक्ष आदि का) गिराना 3. बर्बाद करना, परास्त उड़ना, चक्कर काटना, छा जाना--बिंदूत्क्षेपान् करना 4. (आँसू) गिराना 5. फेंकना, (दृष्टि) पिपासुः परिपतति शिखी भ्रांतिमद्वारियंत्रम्-मालवि० डालना, सन्नन्त--पिपतिषति-पित्सति, गिरने की २११३, अमरु ४८ 2. झपट्टा मारना, आक्रमण करना, इच्छा करना—अनु---, 1. उड़ना 2. पीछे दौड़ना, टूट पड़ना (युद्ध में) 3. सब दिशाओं में दौड़नाअनुसरण करना, पीछे लगे रहना, पीछा करना (हयाः) परिपेतुर्दिशो दश-महा. 4. चले जाना, ---मुहुरनुपतति स्पंदने दत्तदृष्टि:-- श० ११७, मा० गिर पड़ना-शि० ११४१, प्र-, 1. नीचे आना, ९।८, शि० १११४०, अभि-, 1. निकट उड़ना, नीचे गिरना, उतरना 2. गिरकर अलग या दूर हो नजदीक जाना, पास पहुँचना, अधिरोढमस्तगिरि- जाना 3. उड़ना, इधर उधर झपटना, प्रणि--, प्रणाम मभ्यरतत्----शि० ९।१, कि० १२।३६ 2. आक्रमण । करना, अभिवादन करना (कर्म० या संप्र० के साथ) करना, धावा बोलना, टूट पड़ना-रघु ० ७।३७ प्रणिपत्य सुरास्तस्मै— रघु०१०।१५, वागीशं वाग्भिर3. उड़ कर पकड़ लेना 4. वापिस आना, लौट पड़ना र्थ्याभिः प्रणिपत्योपतस्थिरे-कु० २१३, प्रोद-ऊपर पीछे हटना, अभ्युद्--, टूट पड़ना, आक्रमण करना, उड़ना, उड़ान भरना, विनि-, उड़ना, गिरना, उतरना आ--, 1. टूट पड़ना, आक्रमण करना, धावा बोलना -~-ऋतु० ४।१८ (प्रर०) गिराना, बर्बाद करना, --रघु० १२१४४, ५.५० 2. उड़ना, पिल पड़ना, नष्ट करना--मच्छ० २।८, सम्-, 1. मिल कर झपटना 3. निकट जाना 4. होना, घटित होना, आ उड़ना, एकत्र होना 2. इधर उधर जाना या घूमना पड़ना-कथमिदमापतितम्--उत्तर० २, अहो न 3. आक्रमण करना, टूट पड़ना, धावा बोलना 4. होना, शोभनमापतितम्-पंच०२5. सूझना, (मन में) आना, घटित होना, (प्रेर०)-1. निकट लाना 2. संग्रह करना, इति हृदये नापतितं--का० २८८, उद्-, उछलना एकत्र करना मिलाना,-.-रघ०१४।३६, १५।७५ । कूदना-मंसूदपाति परितः पटलै रलीनाम्-शि० ५। पतः [ पत्- अच्] 1. उड़ना, उड़ान 2. जाना, गिरना, ३७, (प्रायः कर्म या संप्र० के साथ) उत्पतोदङमखः उतरना, । सम०-गः पक्षी, मन० ७।२३ । खम्-मेघ १४, भट्टि० ५।३०, स्वर्गायोत्पतिता पतंगः [ पतन् उत्प्लवन् गच्छति-गम् | ड, नि०] 1. पक्षी भवेत ...विक्रम० ४।२, कु०६।३६. सूझना, विचार –नपः पतंग समघत्त पाणिना---०१।१२४, भामि० में आना रघु० १३.११ 3. (गेंद को भांति) उछल १।१७ 2. सूर्य विकसति हि पतंगस्योदये पुंडरीकमकर आना--भर्तृ० २।८५ 4. उदय होना, जन्म लेना, उत्तर० ६।१२, मा० १११२ शि० १११२, रघु०२। For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६८ ) १५ 3. शलभ, टिड्डी दल, टिड्डा-पतंगवद्वह्निमुखं विविक्षुः कु० ३२६४, ४२०, पंच ३।१२६ 4. मधुमक्खी, गम् 1. पारा 2. एक प्रकार की चंदन की लकड़ी | पतंगमः [ पत + गम् + खच्, मुम् ] 1. पक्षो 2. शलभ । पतंगिका [ पतंग + कन् + टाप्, इत्वम् ] 1. छोटी चिड़िया 2. एक छोटी मधुमक्खी । पतंगिन् (पुं० ) [ पतंग + इनि ] पक्षी । पतंचिका | पतं शत्रु चिक्कयति पीडयति की डोरी । पतंजलि : (पुं०) पाणिनि के सूत्रों पर लिखे गये - महाभाष्य के प्रसिद्ध निर्माता, दार्शनिक, योगदर्शन के प्रवर्तक | पृषो० ] धनुष पतत् (वि० ) ( स्त्री०ती) [ पत् + शतृ ] उड़ने वाला, अवरोहण करने वाला, उतरने वाला, नीचे आने वाला (पुं०) पक्षी - परमः पुमानिव पतिः पतताम् - कि० ६०१ क्वचित्पथा संचरते सुराणां क्वचिद्धनानां पततां क्वचिच्च -- रघु० १३०१९, शि० ९।१५ । सम० - ग्रहः 1. प्रारक्षित सेना 2. थूकने का बर्तन, पीकदान- तमेकमाणिक्यमयं महोन्नतं तद्ग्रहं ग्राहितवान्नलेन सः नै० १६।२७, भोरु: बाज़, श्येन । पतत्रम् [ पत्-करणे अत्रन् ] 1. बाजू, डैना 2. पर, पंख 3. सवारी । पतत्रिः [ पत् + अत्रिन् ] पक्षी पतत्रिन् (पुं० ) [ पतत्र + इनि ] 1. पक्षी, दयिताद्वन्द्वचरं पतत्रिणं ( पुनरेति) रघु० ८ ५६,९।२७,११ ११, १२/४८, कु० ५१४ 2. बाण 3. घोड़ा । सम० -- केतनः विष्णु का विशेषण । पतनम् [ पत् + ल्युट् ] 1. उड़ने या नीचे आने की क्रिया, उतरना, अवरोहण करना, अपने आपको नीचे पटकना 2. ( सूर्यादिका) अस्त होना 3. नरक में जाना 4. धर्मभ्रंश 5. मर्यादा या प्रतिष्ठा से गिरना 6. अवपात, ह्रास, नाश, विपत्ति ( विप० उदय या उच्छ्राय ) ग्रहाधीना नरेन्द्राणामुच्छ्रायाः पतनानि च याज्ञ० १।३०७ 7. मृत्यु 8. नीचे लटकना, ( छाती का ) ढरकना 9. गर्भस्राव होना । पतनीय ( वि० ) [ पत् + अनीयर् ] गिराने वाला, जाति भ्रष्ट करने वाला - यम् पतित करने वाला पाप या जुर्म - याज्ञ० ३।४० २९८ । पतमः, पतसः [ पत् + अम, असच् वा ] 1. चाँद 2. पक्षी 3. fagt! पतयालु ( वि० ) पत् + णिच् + आलुच् ] पतनोन्मुख, पतनशील । पताका [पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया पत् + आ + टापू ] झण्डा, ध्वज ( आलं० से भी ) यं काममंजरी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कामयते स तु सुभगपताकाम् दश० ४७, ( सर्वोपरि सौन्दर्य या सौभाग्य का आनंद लेने दो उसे ) 2. ध्वजदण्ड 3. संकेत, लक्षण, चिह्न, प्रतीक 4. उपा ख्यान या नाटकों में आई हुई प्रासंगिक कथा, दे० नी० 'पताकास्थानक 5. मांगलिकता, सौभाग्य । सम ० -- अंशुकम् - झंडा -- स्थानकम् (नाटय० में) प्रासंगिक कथा की सूचना जब कि अप्रत्याशित रूप से, किसी परिस्थितिवश उसी लक्षण वाली कोई दूसरी आकस्मिक अविचारित वस्तु प्रदर्शित की जाती है ( यत्रार्थे चितितेऽन्यस्मिस्तलिंगोऽन्यः प्रयुज्यते, आगन्तुकेन भावेन पताकास्थानकं तु तत्, सा० द० २९९ ( इसके अन्य प्रकारों की जानकारी के लिए दे० ३०० - ३०४ तक ) । पताकिक ( वि० ) [ पताका + ठन् ] झंडा उड़ाने वाला, ध्वजदडधारी । पताकिन् ( वि० ) [ पताका + इनि ] झंडा ले जाने वाला, पताकाओं से अलंकृत (पुं०) 1. झंडाघारी, झंडाबरदार 2. ध्वजा, नी सेना ( न प्रसेहे ) रथवर्त्मरजोऽप्यस्य कुत एव पताकिनीम् - रघु० ४।८२, कि० १४।२७ । पति: [ पाति रक्षति - पा· इति ] 1. स्वामी, प्रभु जैसा कि 'गृहपति' में 2. मालिक, अधिपति, स्वामी - क्षेत्रपति 3. राज्यपाल, शासक, प्रधानता करने वाला, औषधीपतिः, वनस्पतिः कुलपतिः आदि 4. भर्ता प्रमदाः पतिवर्त्मगा इति प्रतिपन्नं हि विचेतनैरपि - कु०४ । ३३ । सम - घातिनी, --घ्नी वह स्त्री जो अपने पति का वध कर देती है, -देवता, - - देवा वह स्त्री जो अपने पति को देवता समझती है, पतिव्रता, सती स्त्री- कः पतिदेवतामन्यः परिमार्टुमुत्सहेत श० ६, तमलभंत पति पतिदेवताः शिखरिणामिव सागरमापगाः- रघु० ९११७, घुरि स्थिता त्वं पतिदेवतानाम् - १४१७४, धर्मः अपने पति के प्रति ( पत्नी का ) कर्तव्य, -- प्राणा सती स्त्री -- लोक: वह लोक जहाँ मृत्यु हो जाने के पश्चात् पति पहुंचता है,—व्रता भक्त, श्रद्धालु, निष्ठावती स्त्री; सती स्त्री त्वम् पति के प्रति निष्ठा, स्वामिभक्ति, सेवा पति के प्रति भक्ति । पतिवरा [ पति + वृ + खच्, मुम् ] अपना वर चुनने के लिए तत्पर स्त्री-- रघु० ६।१०, ६७ । पतितः (भू० क० कृ० ) [ पत् + क्त ] 1. गिरा हुआ, अवरूड, उतरा हुआ 2. नीचे गिरा हुआ 3. (नैतिक दृष्टि से ) पतित, भ्रष्ट, दुश्चरित्र 4. स्वधर्मभ्रष्ट 5. अपमानित, जातिबहिष्कृत 6. युद्ध में हारा हुआ, पराजित, परास्त 7. ग्रस्त, फंसा हुआ जैसा कि 'अवंशपतित' में। पतेर: [ पत् + एरक् ] 1. पक्षी 2. छिद्र या विवर । For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५६९ पत्तनम् | पतंति गच्छेति जना यस्मिन् पत् + तनन् ] कस्बा, नगर ( विप० ग्राम ) - पत्तने विद्यमानेऽपि ग्रामे रत्न परीक्षा - मालवि० १ । पत्तिः [ पद्+ति ] 1. पैदल, पैदल सैनिक - रघु० ७।३७ 2. पैदल चलने वाला यात्री 3. वीर - ( स्त्री ० ) 1. सेना का छोटे से छोटा दस्ता जिसमें एक रथ, एक हाथी, तीन घुड़सवार और पाँच पैदल सैनिक हों 2. जाने वाला, चलने वाला। सभ० कायः पैदल सेना, -- गणक: सेना का अधिकारी जिसका काम पैदल सेना की गिनती करता है, संहतिः (स्त्री० ) पैदल सिपाहियों की टुकड़ी, पैदल सेना । रत्तिन् (पुं० ) [ पद्भ्यां तेलति पाद + तिल् + डिन्, पदादेश | पैदल सिपाही | पत्नी | पति + ङीप्, नुक् ] सहर्द्धामणी, भार्या । सम - आट: रनिवास, अंतपुर, सन्नहनम् धर्मपत्नी का कटिसूत्र या करधनी । पत्रम् | पत् + ष्ट्रन् ] 1. ( वृक्ष का ) पत्ता - धत्ते भरं कुसुफलावलीनाम् भामि० १।९४2. फूल की पत्ती, कमल का पत्ता - नीलोत्पलपत्रवारया -- श० १।१७ 3. पत्ता जिसके ऊपर लिखा जाय, कागज, लिखा हुआ पत्र - पत्रमारोप्य दीयताम् - श० ६ पत्र पर लिख कर विक्रम० २०१४ 4. पत्र, दस्तावेज 5. किसी धातु का पतला पत्रा, स्वर्ण-पत्र 6. पक्षी का बाजू, पंच, पर 7. बाण का पंख -- रघु० २३१ 8 सामान्य मदारी (रव, घोड़ा, ऊँट आदि ) --दिशः पपात पत्रेण वेगपिकेतुना - रघु० १५।४८ ने० ३।१६१. शरीर पर ( विशेष कर मुख पर ) चन्दन आदि सुगंधित द्रव्य का लेप करना रचय कुचयोः पत्रं चित्रं कुरुष्व कपोलयो:- गीत० १२, रघु० १३।५५ 10. तलवार या बाकू का फल 11. चाकू, छूरी । सम० - अंगम् 1. भूर्ज वृक्ष 2. लाल चंदन - अंगुलिः शरीर (गर्दन, तक आदि) पर अंगुलियों से केसर मिश्रित चंदन या अन्य किसी सुगंधित पदार्थ से चित्रण करना, -- अंजनम् मसी, ---आवलिः (स्त्री० ) 1. गेरु 2. पत्तों का कतार 3. शरीर पर सजावट की दृष्टि से चंदनादि से रेखाचित्रण करना, आवली 1. पत्तों की पंक्ति 2 = आवली ( 3 ) आहारः पत्ते खाकर निर्वाह करना, -- कर्णम् बुनने वाली रेशम, रेशमी वस्त्र स्नानीय वस्त्रक्रियया पत्रोर्ण वोपयुज्यते - मालवि० ५।१२, काहला परों की फटफटाहट, पत्तों की खड़खड़ाहट, - दारकः आरा, नाडिका पत्ते के रेशे, परशुः रेती, पाल: लंबी छुरी, बड़ा चाकू (ली) 1. बाण का पंखवाला भाग 2. कैची, पाइया मस्तक का सोने का आभूषण, टीका, पुटम् पत्तों से बना पात्र, दोना - रघु ० २।६५, - - बा (वा) लः चप्पू--भंगः, ७२ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --भंगि:, - गी (स्त्री०) शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना - कस्तूरीवरपत्रभंगनिकरो मृष्टो न गंडस्थले श्रृंगार० ७ ( कादंबरी में बहुलता से प्रयुक्त ) - यौवनम् नया पत्ता या कोंपल, रथः पक्षी - व्यर्थीकृतं पत्ररथेन तेन - नं० ३।६, इन्द्रः गरूड़ का नाम, इन्द्रकेतुः विष्णु का नाम रघु० १८/३०, रे (ले) खा, -वल्लरी, वल्लिः, वल्ली (वि०) दे० ऊ० पत्र भंग' - रघु० ६७२, १६/६७, ऋतु० ९।७, शि० ८। ५६, ५९ - - वाज (वि०) (बाण आदि) पंखों से युक्त, - वाहः 1. पक्षी शि० १८/७३ 2. बाण 3. डाकिया, चिट्टीरसां, विशेषक: चित्रकारी की रेखाएँ - दे० 'पत्रभंग' - कु० ३।३३, रघु० ३१५५, ९१२९, वेष्टः एक प्रकार का कानों का आभूषण, शाकः शाकभाजी जिसमें मुख्यरूप से पत्ते हों, श्रेष्ठः बेल का पेड़, -सूचिः (स्त्री०) कांटा, हिमम् जाड़े की ऋतु जब पाला या बर्फ पड़े । - पत्रकम् [ पत्र + कन् ] 1. पत्ता 2. सौन्दर्य बढ़ाने की दृष्टि से शरीर पर बनाई गई रेखाएँ या चित्रकारी । पत्रणा [ पत्र + णिच् + युच् + टाप् ]1. सौन्दर्य वृद्धि के लिए शरीर पर बनाई गई रेखाएँ और चित्रकारी 2. बाण में पंख लगाना । पत्रिका [ पत्री + कन+टाप्, ह्रस्वः ] 1. लिखने के लिए कागज 2. चिट्टी, लेख, प्रलेख । पत्रिन् (वि० ) ( स्त्री० - णी ) [ पत्रम् अस्त्यर्थ इनि ] 1. पंखों से युक्त, परों वाला – मयूर॰—रघु० ३।५६ २. जिसमें पत्ते या पृष्ठ हो ( पुं० ) 1. बाण - तां विलोक्य वनितावधे घृणां पत्रिणा सह मुमोच राधवः - रघु० ११ १७, ३५३, ९/६१२ पक्षी - रघु० १२/२९ 3. बाज 4. पहाड़ 5. रथ 6- वृक्ष । सम० - वाहः पक्षी । पत्सलः [ पत्+सरन्, रस्य लः ] रास्ता, मार्ग । पथः [ पथ् +-क (धञ्ञर्थे ) ] रास्ता, मार्ग, प्रसार, (समास के अन्त में ) किनारा। सम० – कल्पना जाडु के खेल, --- दर्शकः मार्ग बतलाने वाला । पथिकः [ पथिन् + ष्कन् ] 1. यात्री, मुसाफिर, बटोही पथिकवनिताः मेघ० ८, अमरू ९३ 2. पथप्रदर्शक | सम० -- संततिः, संहतिः ( स्त्री०, सार्थः यात्रियों का समूह, काफला । पथिन् (पुं० ) [ पथ् आधारे इनि ] ( कर्तृ० पंथाः, पंथानौ, पंथान:, कर्म ० ब ० ० - पथः, करण० ब० व० - पथिभिः आदि, समास के अन्त में यह शब्द बदल कर 'पथ' हो जाता है -- तोयाधारपथाः, दृष्टिपथः, नष्टपथः, सत्पथः, प्रतिपथम् आदि ) 1. मार्ग, रास्ता, For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७० ) पथ श्रेयसामेव पंथा:--भर्त० २।२६, वक्र: पंथाः -मेध०२७ 2. यात्रा, राहगीरी या पर्यटन—जैसा कि 'शिवास्त्रे संतु पंथानः' में (मैं आपफी सुखद यात्रा की कामना करता हूं, भगवान् आपकी यात्रा सफल करें) 3. परास, पहुंच जैसा कि- कर्णपथ, श्रुति', और दर्शन में 4. कार्यपद्धति, आचरण की रेखा, व्यवहारक्रम:--पथः शुचेर्दर्शयितार ईश्वरा मलीमसा- माददते न पद्धतिम्-रघु० ३।४६ 5. संप्रदाय, सिद्धांत 6. नरक का प्रभाग । सम०-देयम सार्वजनिक मार्गों पर लगाया गया राजकर,--द्रुमः खैर का पेड़, ----प्रज्ञ (वि०) मार्गों का जानकार-वाहक (वि.) कर (कः) 1. शिकारी, चिड़ीमार 2. बोझा ढोने वाला, कुली। पथिलः [ पथ् । इलच् ] यात्री, राहगीर, बटोही। पथ्य (वि०) [ पथिन् ।-यत्-+इनो लोपः ] 1. स्वास्थ्य प्रद, स्वास्थ्यवर्धक, कल्याणकारी, उपयोगी (औपधि, आहार, सम्मति आदि) अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:--रामा०, याज्ञ० ३।६५, पथ्यमन्त्रम् 2. योग्य उचित, उपयुक्त,--भ्यम् 1. स्वास्थ्यबर्धक या पौष्टिक आहार जैसा कि 'पथ्याशी स्वामी वर्तते' में 2. कल्याण, कुशलक्षेम-उत्तिष्ठमानस्तु परो नोपेक्ष्यः पथ्यमिच्छता ----शि० २।१०। सम०--अपथ्यम् उन पदार्थों का समूह जो किसी रोग में स्वास्थ्यवर्धक या हानिकर समझे जाते है। पद (फुरा० आ० पदयते) जाना, हिलना-जुलना। ij (दिवा० आ० पद्यते, पन्न-प्रेर०--पादयति-ते, इच्छा० पित्सते) 1. जाना, चलना-फिरना 2. पास जाना, पहुंचना (कर्म० के साथ) 3. हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना -ज्योतिषामाधिपत्यं च प्रभावं चाप्यपद्यत--.-महा०. पालन करना, अनुसरण करना -स्वधर्म पद्यमानास्ते-महा० अनु-1. पीछे चलना, अनुगमन करना, सेवा करना 2. स्नेहशील होना, अन्रक्त होना 3. प्रविष्ट होना, अन्दर जाना 4. अपनाना 5. मालूम करना, देखना, निरीक्षण करना, समझना, अभि, पास जाना, नजदीक होना, पहुंचना-रावणावरजा तत्र राघवं मदनातरा, अभिपेदे निदाघार्ता व्यालीव मलयद्रुमम्-रघु० १२०३२, १९।११ 2. संमिल्लित होना -शि० ३२५ 4. अवलोकन करना, विचार करना, खवाल करना, समझना-क्षणमभ्यपद्यत जनै मृषा गगन गणाधिपति मुतिरिति -शि० ९।२७ 4. सहायता करना, मदद करना, मयाभिपन्नं तम्-महा०पकड़ना, परास्त करना, आक्रमणकरना, दबोच लेना, अधिकार में कर लेगा, ग्रस्त करना - सर्वतश्चाभिन्नैपा धार्तराष्ट्री माचमः, चंडवाताभिपन्नानामुदधीनामिव स्वन:--महा०, दे० 'अभिपन्न । 6. लेना, धारण करना-मन०१३ 7. स्वीकार करना, प्राप्त करना, अभ्युप--, 1. दया करना, सांत्वना देना, आराम पहँचाना, तरस खाना, अनुग्रह करना (कष्ट से) मुक्त करना---कु०४।२५, ५।६१ 2. सहायता मांगना, दीनता प्रकट करना .. सहमत होना, स्वीकृति देना आ--, 1. निकट जाना, की ओर . चलना, पहुँचना--भट्टि० १५॥८१ 2. प्रविष्ट होना, (किसी स्थान या स्थिति को) चले जाना या प्राप्त करना-निर्वेदमापद्यते - मच्छ० १११४, (ऊब जाता है) आपेदिरेऽबरपथं परितः पतंगा:- भामि० १।१७, इसी प्रकार क्षीरं दधिभावमापद्यते-शारी०3. कष्ट फँसना, दुर्भाग्यग्रस्त होना--अर्थधी परित्यज्य यः काममनुवर्तते, एवमापद्य तेक्षिप्रं राजा दशरथी यथा-... रामा० 4. होना, घटित होना-भटिट० ६।३१, प्रेर.----1. प्रकाशित करना, सामने लाना, कार्यान्वित करना, निष्पन्न करना-- रप० २११२ 2. निकालना, जन्म देना, पैदा करना ---लधिमानमापादयति-का० १०५ 3. घटाना, कष्टग्रस्त करना, ले जाना—रघ० ५।५ 4. बदलना 5. नियंत्रण में लाना, उद-, 1. जन्म लेना, पैदा होना, उदय होना, उत्पन्न होना, उगना--- उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा-मा० ११६, मनु० ११७७ 2. होना, घटित होना---प्रेर० --1. पैदा करना, सर्जन करना, जन्म देना, उत्पन्न करना, कार्यान्वित करना, प्रकाशित करना-वस्त्राण्यत्पादयति-पंच० २ 2. सामने लाना, उप-, 1.पहँचना. निकट जाना, पास जाना, पधारना यमुनातटमपपदे पंच०१.हासिल होना,प्राप्त होना, हिस्से में आना-भग०६।३६, १३११८ 3. होना, घटित होना, आ पड़ना, पैदा हो जानादेवि एवमपपद्यते---गाल वि० १, उपपन्ना हि दारेषु प्रभता सर्वतोमुखी--श० ५।२६----रघु० ११६० 4. संभव होना संभाव्य होना--नेश्वरो जगतः कारणमुपद्यते-शारी० कु. ६।६१, ६।१२ ६. उपयुक्त होना, योग्य होना, पर्याप्त होना, अनुरूप समुचित-- (अधि० के साथ) मा क्लैव्यं गच्छ कीन्तेय नैतत्त्वय्यपपद्यते--भग० २।३, १८१७ 6. आक्रमण करना, प्रेर० ....1. किसी स्थिति में लाना, पहुँचाना, प्राप्त कराना--विश्वासमुपपादयति 2. नेतृत्व करना, ले जाना 3. तैयार होना-- रथमपपादयति--वेणी० २ 4. किसी को कोई वस्तु प्रदान करना, प्रस्तुत करना, उपहार देना-रघु० १४१८, १५:१८, १६:३२, याज्ञ. १६३१५ 5. प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, उपार्जन करना, कार्यान्वित करना, काम में लाना, अनुष्ठान करना- यावत मानके शक्यमपापादयितुम् -... बा० ६२, देवकार्यमुपपादयिष्यतः - रघु० १११९१, १७५५ 6. न्याय्य ठहराना, तर्क देना, प्रदर्शित करना, प्रमा For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७१ ) णित करना 7. संपन्न करना, युक्त करना, निस्-, 1. निकलना, उगना 2. पैदा होना, प्रकाशित होना, । उदय होना, कार्यान्वित होना,-निष्पचंते च सस्यानिमनु० ९१२४७, प्रेर०..-पंदा करना, प्रकाशित करना, जन्म देना, कार्यान्वित करना, तैयार करना-त्वं नित्यमेकमेव पटं निष्पादयसि-पंच०, प्र--, 1. (क) की ओर जाना, पहँचना, आश्रय लेना, चले जाना, पहुँच जाना...तां जन्मने शैलवधू प्रपेदे--कु०१२१, (क्षितीशं) कौत्सः प्रपेदे वरतंतुशिष्यः--रधु० ५।१, भट्टि० ४।१, कि० ११९, १११६, रघु० ८.११ (ख) आश्रय ग्रहण करना-शरणार्थमन्यां कथं प्रपत्स्ये त्वयि दीप्यमाने-रघु०१४।६४ 2. किसी विशिष्ट अवस्था को जाना, पहुँचना या किसी विशिष्ट दशा में होनारेणः प्रपेदे पथि पंकभावम्---रघु० १६।३०, मुहूर्त कर्णोत्पलतां प्रपेदे-कू०७।८१, इदशीमवस्था प्रपन्नोऽस्मि ---श०५, ऋषिनिकरैरिति संशयः प्रपेदे-भागि० ४।३३, अमरु २७ 3. प्राप्त करना, खोज लेना, हस्तगत करना, प्राप्त करना, हासिल करना, सहकार न प्रपेदे मवपेन भवत्सम जगति---भामि० १२१, रब ० ५।५१ . व्यवहार करना, बर्ताव करना,-कि प्रपद्यते वैदर्भः -- मालवि० १, (वह करने के लिए क्या सुझाव प्रस्तुत करता है), पश्यामो मयि किं अपद्यते--अमरु २० 5. प्रविष्ट करना, अनुमति देना, सहमत होना, स्वीकार करना—याज्ञ० २।४०, 6. निकट खिसकना, आना, ( समय आदि का ) पहँचना 7. चले चलना, प्रगति करना 8. प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, प्रति--, 1. कदम रखना, जाना, पहँचना, सहारा लेना (किसी व्यक्ति का) आश्रय लेना-उमामुखं तु प्रतिपद्य लोला द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप लक्ष्मी:-कु०११४३ 2. ग्रहण करना, कदम रखना, लेना, अनुसरण करना, (मार्ग आदि) इतः पन्थानं प्रति पद्यस्व-०४,प्रतिपत्स्ये पदवीमहं तव-कु० ४।१० 3. पधारना, पहुँचना, प्राप्त करना-शि० ६.१६ 4. हासिल करना, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, भाग लेना, हिस्सा लेना-स हि तस्य न केवलां श्रियं प्रतिपेदे सकलान् गुणानपि -रघु० ८।५, १३, ४।१, ४४, १११३४, १२१७, १९।५५, भग०१४।१४, शि० १०।६३ 5. स्वीकार करना, मान लेना,-शि० १५।२२, १६।२४, 6. वसूल करना, फिर प्राप्त करना, पुनः उपलब्ध करना, ग्रहण करना--- श० ६१३१, कु० ४।१६, ७९२ 7. मान लेना, स्वीकार करना-में मासे प्रतिपत्तासे मां चेन्मासि मैथिलि-भट्टि० ८७५, श० ५।२२, प्रमदाः पतिवम॑गा इति प्रतिपन्नं हि विचेतनरपि-कु. ४।३३ 8. थामना, ग्रहण करना, पकड़ना-सुमंत्रप्रतिपन्नरश्मिभिः-रघु०१४। ४७ १. विचार करना, खयाल करना, सोचना, अवलोकन करना-तद्धनुर्ग्रहणमेव राघवः प्रत्यपद्यत समर्थमुत्तरम् -रघु० १११७९ 10. अपने जिम्मे लेना, करने की प्रतिज्ञा करना, हाथ में लेना-निर्वाहः प्रतिपन्नवस्तुष सतामेतद्धि गोत्रप्रतम्-मुद्रा० २।१८, कार्य त्वया नः प्रतिपन्नकल्पम् -कु० ३।१४, रघु० १०१४० 11. हामी भरना, सहमत होना स्वीकृति देना--तथेति प्रतिपन्नाय-रघु० १५।९३ 12. करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास करना, पालन करना ---आचारं प्रतिपद्यस्व-श०४, विक्रम० २, "औपचारिक आचार (अभिवादन आदि) का पालन करो", शासनमहतां प्रतिपद्यध्वम् मुद्रा० ४।१८, आज्ञा पालन करो 13. व्यवहार करना, बर्ताव करना, किसी का कोई कार्य करना (संबं० या अधि के साथ), स कालयवनश्चापि कि कृष्णे प्रत्यपद्यत-हरि०, स भवान् मातृपितृवदस्मासु प्रतिपद्यताम् – महा०, कथमहं प्रतिपत्स्ये-श० ५, न युक्तं भवतास्मासु प्रतिपत्तुमसांप्रतम् ..... महा0 14. (उत्तर) देना, (प्रत्युत्तर) देना--कथं प्रतिवचनमपि न प्रपद्यसे-मुद्रा०६ 15. प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, जानकार होना 16. जानना, समझना, परिचित होना, सीखना, मालम करना 17. घुमना, भ्रमण करना 18. होना, घटित होना, (प्रेर०)-1. देना, प्रस्तुत करना, प्रदान करना, अभिदान करना, समर्पित करना.-अर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धि पराम्-.. भर्तृ० २।१८, मनु० ११।४, गुणवते कन्या प्रतिपादनोया-श० ४ 2. सिद्ध करना, प्रमाणित करना, प्रमाण देकर पक्का करना उक्तमेवार्थमदा. हरणेन प्रतिपादयति 3. व्याख्या करना, स्पष्ट करना 4. लाना या वापिस मोड़ना, (किसी स्थान पर) ले जाना 5. खयाल करना, विचार करना 6. उपस्थिति की घोषणा करना, पुनः प्रस्तुत करना 7. उपार्जन करना 8. कार्यान्वित करना, निष्पन्न करना, वि-,बरी तरह विफल होना, असफल होना, (व्यवसाय आदि), का विफल होना 2. दुर्भाग्यग्रस्त या दुर्द शाग्रत होना -स बंधों विपन्नानामापदुद्भरणक्षमः-हि. १३१ 3. विकलांग होना, अशक्त होना 4. मरना, नष्ट होना -नाथवंतस्त्वया लोकास्त्वमनाथा विपत्स्यसे----उत्तर० ११४४, मृच्छ० ११३८, व्या-, 1. (पृथ्वी पर) उतरना, नीचे आना 2. मरना, नष्ट होना-दे० व्यापन-(प्रेर०)-मारना, कतल करना,-सम्-1. (तैयार माल) बाहर निकालना, सफलता प्राप्त करना, समृद्ध होना, · सम्पन्न होना, पूरा होना, --संपत्स्यते वः कामोऽयं काल: कश्चित्प्रतीक्ष्यताम् -कु. २०५४, रघु० १४।७६, मनु० ३१२५४, ६।६९ 2. पूरा होना, (संख्या आदि) जुड़ कर होना For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७२ ) व्याहताः पंच पंचदश संपद्यते 3. बन जाना, होना संपत्स्यंते नभसि भवतो राजहंसाः सहायाः- मेघ० ११, २३, संपेदे श्रमसलिलोद्गमो विभूपाम्-कि. ७।५ 4. उदय होना, जन्म लेना, पैदा होना 5. एक जगह पड़ना, एकत्र होना 6. सुसज्जित होना, संपन्न होना, स्वामी होना-अशोक यदि सद्य एव कुसूमैन संपत्स्यसे--मालवि० ३।१६, दे० 'संपन्न' 7. (किसी ओर) प्रवृत्त होना, करवाना, पैदा करना (संप्र० के साथ)- साधो: शिक्षा गणाय संपद्यते नासाधोः -पंच० १, मुद्रा० ३।३२ 8. प्राप्त करना, उपलब्ध करना, अधिग्रहण करना, हासिल करना 9. संलग्न होना, लीन होना (अधि० के साथ)-(प्रेर०)--1. करवाना, होना, पैदा करना, सम्पन्न करना, पूरा करना, कार्यान्वित करना-इति स्वसुर्भोजकुलप्रदीप संपाद्य पाणिग्रहणं स राजा-रघु० ७।२९ 2. उपार्जन करना, प्राप्त करना, सज्जित करना, तैयार करना अधिग्रहण करना, हासिल करना 4. सज्जित करना, संपन्न करना युक्त करना 5. बदलना, रूपान्तरित करना, 6. करार या वादा करना, संप्रति-1. की ओर जाना, पहुँचना 2. विचार करना, खयाल करना-कु० ५।३९, समा 1. घटित होना, होना घटना होना 2. हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना । पद् (५०) [पद् +-क्विप] (इस शब्द का पहले पाँच वचनों में कोई रूप नहीं होता, कर्म० द्वि० व०, के पश्चात् विकल्प से यह पद के स्थान में आदेश हो जाता है) 1. पैर 2. चरण, चौथाई भाग (किसी कविता या श्लोक का)। सम-काशिन् (पुं०) पैदल चलने वाला, हतिः, ती (स्त्री०) (पद्धतिः;-ती) रास्ता, पथ, मार्ग, बटिया (आलं० भी) इयं हि रघु सिंहानां वौरचारित्रपद्धतिः --उत्तर० ५।२२, रघु० ४।४६, ६।५५, ११३८७, कविप्रथम पद्धतिम्-१५१३३, 'कवियों को दिखाया गया पहला मार्ग' 2. रेखा, पंक्ति, शृंखला 3. उपनाम, वंशनाम, उपाधि या विशेषण, व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों के समास में प्रयुक्त होने वाला शब्द जो जाति या व्यवसाय का बोधक हो-उदा० गुप्त, दास, दत्त आदि 4. विवाहादि विधि को सूचित करने वाली पुस्तक,-हिमम् (पद्धिमम्) पैरों का ठंडापन । पदम [ पद्+अच् ] 1. पैर (इस अर्थ में पुं० भी होता है)। पदेन पैदल-शिखरिषु पदं न्यस्य--मेघ० १३, अयथे पदमर्पयति हि---रघु० ९१७४, 'कूमार्ग पर कदम रक्खा ' ३१५०, १२२५२, पदं हि सर्वत्र गुणनिधीयते--३।६२, 'गणों के द्वारा सर्वत्र कदम रक्खा जाता है--अर्थात् : गणों की ही कद्र होती है, जनपदे न गदः पदमादधी ---९।४ 'देश में किसी भी रोग ने कदम नहीं रक्खा ' .. यदवधि न पदं दधाति चित्ते---भामि०२।१४, पदं कृ (क) कदम रखना (शा०)---शांते करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन्-श० ४।२५, (ख) प्रवृत्त होना, अधिकार करना, कब्जा करना, (आल०) कृतं वपुषि नवयौवनेन पदम्-का० १३७, कृतं हि मे कुतूहलेन प्रश्नावकाशया हृदि पदम् ---१३३, इसी प्रकार कु० ५।२१, पंच०२४०, कृत्वा पदं नो गले-मुद्रा० ३।२६, 'हमारे विरुद्ध' (शा०-अपना कदम हमारी गर्दन पर रखकर), मध्नि पदं कृ किसी के सिर पर चढ़ना, दीन बनाना--पंच० ११३२७, आकृति विशेषेप्वादरः पदं करोति--मालवि०१, सुन्दर रूप ध्यान आकृष्ट करता है (आदर प्राप्त करता है)-जने सखीपदं कारिता --श०४, (मित्रता या विश्वास का बर्ताव कराया गया, धर्मेण शर्वे पार्वती प्रति पदं कारिते-कू० ६।१४ 2. कदम, पग, डग -तन्वी स्थिता कतिचिदेव पदानि गत्वा श० २१२, पदे पदे हर कदम पर --अक्षमालामदत्त्वा पदात्पदमपि न गंतव्यम--या- चलितव्यम् "एक कदम भी मत चलो" पितः पदं मन्यममत्पतंती -विक्रम० १११९, 'विष्णु का बिचला कदम' अर्थात् अन्तरिक्ष (पौराणिक मतानुसार पृथ्वी, अन्तरिक्ष और पाताल यह तीनों लोक ही वामनावतार (पंचम अवतार) विष्णु के तीन कदम माने जाते है) इसी प्रकार -~~अथात्मनः शब्दगुणं गुणज्ञः पदं विमानेन विगाहमानः -रधु० १३.१ 3. पदचिह्न, पद--छाप, पदांक--पदपंक्तिः ----श० ३४८, या पदावली ----पगछाप, पदमनुविधेयं च महतां-भर्तृ० २।२८, 'महाजनों के पदचिह्नों पर ही चलना चाहिए' 4. चिह्न, अंक, छाप, निशान ---रतिवलयपदांके चापमासज्य कंठे-कु० ॥६४, मेघ० ३५, ९६, मालवि. ३ 5. स्थान, अबस्था, स्थिति अधोऽघः पदम् -.-भर्तृ० २०१०, आत्मा परिश्रमस्य पदमपनीतः-श० १, कप्ठ की अवस्था तक पहुंचाया'-- तदलब्धपदं हृदिशाकघन-रघु० ८।९१, 'हृदय में स्थान न पाया' (अर्थात हृदय पर छाप न छोड़ी),-अपदे शंकितोऽस्मि-मालवि० १, 'मेरे सन्देह स्थान से बाहर थे' अर्थात् निराधार--कृशकुटुबेपु लोभः पदमधत्त ... दश० १६२, कु०६।७२, ३।४, रघु० २।५०, ९१८२, कृतपदं स्तनयुगलम् --उत्तर० ६।३५, 'स्तनयगल विकासोन्मुख था' 6. मर्यादा, दर्जा, पद, स्थिति या अवस्था--भगवत्या प्राश्निकपदमध्यासितव्यम-मालवि० १, यान्त्येवं गृहिणीपदं युवतयः-श. ४।१८, 'पदवी को प्राप्त करती हैं' सचिव, राज° आदि 7. कारण, विषय, अवसर, वस्तु, मामला या बात-व्यवहारपदं हितत्-याज्ञ० २५, झगड़े की बात या अवसर, कानूनी दृष्टि से स्वामित्व अधिकार, अदालती कार्रवाई-सतां हि संदेहपदेषु वस्तुषु प्रमाण For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५७३ ) मन्तःकरणप्रवृत्तयः श० १।२२, बांछित फलप्राप्तेः पदम् - रन्न० १६ 8 आवास, पदार्थ, आशयपदं दृशः स्याः कथमीश मादृशाम् – शि० १३७, १४।२२, अगरीयान्न पदं नृपश्रियः - कि० २०१४, अविवेकः परमापदां पदम् - २ ३०, के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारंभयत्नाः- मेघ० ५४, हि० ४०६९ १. श्लोक का एक चरण, एक लाइन --- विरचितपदं (गेयम् ) मेघ० ८६, १३३ - मालवि० ५/२, श० ३।१६ 10. विभक्तिचिह्न से युक्त पूरा शब्द- सुप्तिङन्तं पदम् पा० १।४।१४, वर्णाः पदं प्रयोगानिन्विर्तकार्थबोधकाः --- सा० द० ९, रघु० ८ ७७ 11. कर्तृ० ए० ब० को छोड़ कर शेष सभी व्यंजनादि विभक्तिचिह्नों का साकेतिक नाम 12. वैदिक शब्दों को सन्धिविच्छेद करके पृथक् २ रखना, वैदिक मन्त्रों का पद-पाठ निर्धारित करना 13. बहाना शि० ७।१४ 14. वर्गमूल 15. ( वाक्य का) प्रभाग या खंड 16. लम्बाई की माप 17. प्ररक्षा, संधारण या प्ररक्षण 18. शतरंज की बिसात पर बना वर्गाकार घर, द: प्रकाश की किरण । सम० – अंक:, - चिह्नम् पदछाप, अंगुष्ठः पैर का अँगूठा, - अनुगः अनुगामी, सहचर, अनुशासनम् शब्द विज्ञान, व्याकरण, अंतः शब्द का अन्त, अन्तरम् दूसरा पग, एक पग का अन्तराल --- पदांतरे स्थित्वाश० १, अब्जम् — अंभोजम्, अरविंदं, कमलम्, - पंकजम्, पद्मम् चरणकमल, कमल जैसे पग, -अर्थ: 1. शब्द का अर्थ 2. वस्तु या पदार्थ 3. शीर्षक या विषय ( नैयायिक इसके आगे १६ उपशीर्षक गिनाते हैं ) 4. अभिधेय, वह वस्तु जिसका कुछ नाम रक्खा जा सके, प्रवर्ग, वैशे० के अनुसार इन प्रवर्गों या पदार्थों की संख्या सात, सांख्यों के अनुसार २५, ( या पतंजलि के अनुयायिओं के अनुसार २७ ) और वेदान्तियों के अनुसार केवल दो ही है, आघातः 'पैर का प्रहार' या ठोकर, -- आजि: पैदलसिपाही, - आवली शब्दों का समूह, शब्दों या पंक्तियों का अविच्छिन्न क्रम ( काव्यस्य शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली - काव्या० ११०, मधुरकोमलकांतपदावलीं शृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् गीत० १, -- आसनम् पादपीठ, पैद रखने की चौकी, क्रमः चलना, क़दम रखना, गः पैदल सिपाही, च्युतः ( वि० ) पद से हटाया गया, गद्दी से उतारा हुआ - छेदः - विच्छेदः, – विग्रहः शब्दों को अलग २ करना, पदच्छेद करना, वाक्य का संघटकों में पृथक्करण, न्यासः 1. क़दम रखना, डग भरना, पग रखना 2. पदचिह्न 3. पैरों की एक मुद्रा विशेष 4. गोखरु का पौधा - पंक्तिः (स्त्री० ) 1. पदचिह्नों की क़तार - श० ३३९, विक्रम० ४/६ २. शब्दों का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रम कि० १०/३० 3. ईंट, पवित्र इष्टका, पाठः वैदिक मंत्रों का एक विशेषक्रम जिसमें मंत्र का प्रत्येक शब्द उच्चारणविकारों से निरपेक्ष होकर अपने मूलरूप में ही लिखा जाता है और इसी मूलरूप में उच्चारण किया जाता है ( विप० संहितापाठ ), -पातः, --विक्षेपः क़दम (घोड़े का भी ) क़दम, भंजनम् शब्दों का विग्रह, निरुक्ति, भंजिका एक टीका जिसमें किसी संदर्भ के शब्द, पृथक् २ किये जाते हैं तथा समासों का विग्रह कर दिया जाता है, माला जादू का गुर, वृत्तिः (स्त्री० ) दो शब्दों के बीच अंतर या विराम । पदकम् [ पद + कन् ] क़दम स्थिति, पदवी-दे० 'पद' — कः कण्ठ का एक आभूषण 2. पद पाठ का ज्ञाता । पदविः - वी (स्त्री० ) [ पद् + अवि वा डीष् ] 1. रास्ता, मार्ग, पथ, बटिया ( आलं० ) पवन पदवी - मेघ ० ८, अनुयाहि साधुपदवीम् - भर्तृ० २७७, भले आदमियों के पदचिह्नों पर चलो' – श० ४।१३, रघु० ३५०,७७,८,११, १५/९९, भर्तृ० ३।४६, वेणी० ६।२७, इसी प्रकार 'यौवनपदवीमारूढः ' पंच० १, 'वयस्कता प्राप्त की' ( अर्थात् पूरा मनुष्य बन गया ) 2. अवस्था, स्थिति, दर्जा, मर्यादा, पदवी, पद 3. जगह, स्थान । पदातः पदातिः [ पद्भ्यामतति — अत् + अच् इन् वा ] 1. पदल सिपाही - रघु० ७।३७ 2. पैदल यात्र ( पैदल चलने वाला) उत्तर० ५।१२ । पदातिन् (वि० ) [ पदात + इनि ] 1. ( सेना ) जिसमें पैदल सिपाही हों 2. पैदल चलने वाला (पुं० ) पैदल सिपाही । पदिक ( वि० ) [ पादेन चरति - पाद - छन्, पादस्य पदादेश। ] पैदल चलने वाला - (पुं० ) पैदल आदमी । पद्मम् [ पद् + मन् ] 1. कमल ( इस अर्थ में पुं० भी ) पद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियम् 2. कमल जैसा आभूषण, 3. कमल का रूप या आकृति 4. कमल की जड़ 5. हाथी सूँड और चेहरे पर रंगीन निशान 6. कमल के आकार खड़ी की हुई सेना 7. विशेषरूप से बड़ी संख्या, ( १०००००००००००००००) 8. सीसा, प्रः 1. एक प्रकार का मंदिर 2. हाथी 3. साँप की एक जाती 4. राम का विशेषण 5 कुबेर के नौ खजानों में से एक दे० नवनिधि 6. एक प्रकार का रतिबंध, मैथुन, या सौभाग्य की देवी लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी ( तं) पद्मा पद्मातपत्रेण भेजे साम्राज्यदीक्षितम् - रघु० ५ सम० - अक्ष ( वि० ) कमल जैसी सुन्दर आँखों वाला ( -क्षः) विष्णु या सूर्य का विशेषण, (क्षम् ) कमल गट्टा, आकरः 1. एक विशाल सरोवर जिसमें कमल खिले हों For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७४ ) 2. पोखर, पल्वल 3. कमलों का समूह -भर्त० २१७३, भेद किये हैं उसमें प्रथम प्रकार की स्त्री, इनका लक्षण --आलयः जगत्स्रष्टा ब्रह्मा का विशेषण, (-या) रतिमंजरी में इस प्रकार दिया है-भवति कमलनेत्रा लक्ष्मी का विशेषण,-आसनम् 1. कमल पीठ-कु० नासिकाक्षुदरंध्रा अविरलकुचयग्मा चारुकेशी कृशांगी ७।८६, 2. एक प्रकार का योगासन-उरूमले वामपादं मवचनसुशीला गीतवाद्यानुरक्ता सकलतनुसुवेशा पुनस्तु दक्षिण पदं, वामोरौ स्थापयित्वा तु पद्मासनमिति पद्मिनी पद्मगंधा। स्मृतम्, (नः) जगत्स्रष्टा ब्रह्माका विशेषण,-आह्वम् पद्मशयः [ पद्मे शेते--मो--अच्, अलु० स०] विष्णु का लौंग,-उद्धवः ब्रह्मा का विशेषण-करः,-हस्त विष्णु का विशेषण । विशेषण (रा,- स्ता) लक्ष्मी का नाम,—कणिका पद्म पद्य (वि०) [पद्+यत् ] 1. पद या पंक्तियों वाला का बीजकोश,-कलिका कमल का अनखिला फूल, कली, 2. चरण या पद को मापने वाला,-धः 1. शूद्र -केशरः-कम कमलफूल का रेशा--कोशः,--कोषः 2. शब्द का एक भाग,--या पगडंडी, पथ, वटिया, 1. कमल का संपुट 2. संपुटित कमल के आकार की --ग्रम् (चार चरणों से युक्त) श्लोक, कविता उँगलियों की एक मुद्रा,-खंडम्,-पण्डम् कमलों --मदीयपद्यरत्नानां मंजूषा मया कृता--भामि० का समूह,-गंध,--ांधि (वि.) कमल की गंधवाला ४।४५, पद्यं 'चतुष्पदी तच्च वृत्तं जातिरिति द्विधा या कमल की सी गंधवाला,-गर्भः 1. ब्रह्मा का -छं० २ 2. प्रशंसा, स्तुति। विशेषण 2. विष्णु का विशेषण 3. सूर्य का विशेषण, | पद [ पद्यतेऽस्मिन् पद्+रक ] गाँव । ---गुणा-गहा धन की देवी लक्ष्मी का विशेषण, पदः [पद्+वन् ] 1. भूलोक, मयं लोक 2. रथ 3. मार्ग। --जः,-जातः,--भयः,-भ:-योनिः,-संभवः कमल पन (भ्वा० उभ०--पनायति-ते, पनायित या पनित) से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण,-तंतुः कमल का रेशेदार प्रशंसा करना, स्तुति करना-तु० 'पण' ।। डंठल--नाभः,-भि विष्णु का विशेषण-नालम्प नसः [पनाय्यते स्तूयतेऽनेन देवः-पन्+असच् ] 1. कटकमल का डंठल,--पाणि: 1. ब्रह्मा का विशेषण हल का वृक्ष 2. काँटा,-सम् कटहल का फल । 2. विष्णु का विशेषण,-पुष्पः कणिकार का पौधा, | पंथक (वि०) [पथि जात:--पथिन्+कन्, पन्थादेशः ] -बंधः एक प्रकार की कृत्रिम रचना जिससे शब्दो को | मार्ग में उत्पन्न । कमल-फल के रूप में व्यवस्थित किया हो-दे० काव्य० | पत्र (भू० क० कृ०) [पद्+क्त ] 1. गिरा हुआ, डूबा ९,-बंधुः 1. सूर्य 2. मधुमक्खी ,-रागः,--म् लाल, हआ, नीचे गया हुआ, अवतरित 2. बीता हुआ-३० माणिक्य, रघु० १३१५३, १७१२३, कु० ३।५३,-रेखा पद्। समाः साँप, सर्प-विपकृतः पन्नगः हथेली में (कमल फूल के आकार की) रेखायें जो फणां कुरुते--श०६।३० ( म) सीसा, अरिः, अत्यन्त धनवान होने का लक्षण है,-लांछन 1. ब्रह्मा अशनः, नाशनः गरुड के विशेषण । का विशेषण 2. कुबेर का विशेषण 3. सूर्य और पपिः [पातिलोकम्--पिबति वा, पा--कि, द्वित्वम् ] 4. राजा का विशेषण (ना) 1. धन की देवी लक्ष्मी चन्द्रमा । का विशेषण 2. या विद्या की देवी सरस्वती का पपीः | पा+ई, द्वित्वं किच्च ] 1. चन्द्रमा 2. सूर्य । विशेषण-बासा लक्ष्मी का विशेषण।। पपु (वि०) [पा-3, द्वित्वम् ] पालन-पोपण करन पाकम् [पद्म+कन् ] 1. कमलफूल के आकार की व्यूह- वाला, रक्षा करने वाला,--पुः (स्त्री०) धात्री माता, रचना में स्थित सेना 2. हाथी की संड और चेहरे पर प्रतिपालिका। रंगीन स्थान 3. बैठने की विशेष मुल। पंपा [पाति रक्षति. महादीन--पा० द्वित्वम् मुडागमश्च, पाकिन् (पुं०) [पद्मक+इनि ] 1. हाथी 2. भोजपत्र नि.] दंडकारण्य का एक सरोवर-इदं च पंपामिधानं का वृक्ष । सरः--उत्तर० १, रघु० १३।३०, भट्टि० ३।७३ पद्मावती [ पद्म--मतुप, वत्वम्, दीर्घश्च ] 1. लक्ष्मी का । 2. भारत के दक्षिण में एक नदी का नाम । विशेषण 2. एक नदी का नाम--मा० ९।१। पथस् (नपुं०) [पय+असुन, पा+असुन, इकारादेश्च ] पश्चिन् (वि.) [पद्म+इनि] 1. कमल रखने वाला 1. पानी 2. दूध पयः पानं भुजगानां केवल विपवर्धनम् 2. चितकबरा (०) हाथो--नी 1. कमल का पौधा -हि० ३।४, रघु० २।३६, ६३, १४१७८, (यहाँ दोनों --सुरगज इव बिभ्रत् पद्मिनी दंतलग्नाम--कु०३। अर्थ अभिप्रेत है) 3. वीर्य (हर वर्णों से पूर्व पयस् ७६, रघु० १६३८८, मेघ० ३३, मालवि० २०१३ को बदल कर 'पयों हो जाता है)। समालः, 2. कमलफूलों का समूह 3. सरोवर या झील जिसमें --T: 1. ओला 2. टापू,-धनम् ओला,-चयः जलाशय कमल लगे हुए हों 4. कमल का रेशेदार डंटल या सरोवर,-जन्मन् (पुं०) बादल-दः बादल 5. हथिनी 6. रतिशास्त्र के लेखकों ने स्त्रियों के चार --मेघ० ७, रघु० १४१३७,-सुहृद् (पुं०) मोर For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७५ ) --धरः 1. बादल. स्त्री की छाती--पद्मपयोधरतटी --गीत० १, विपांडुभिर्लानतया पयोधरैः-कि. ४।२४, (यहाँ शब्द का अर्थ 'बादल' भी है)-रघु० १४।२२ 3. ऐन औडो--रघु० २।३ 4. नारियल का गेड़ 5. रीढ़ की हड्डी ,--धस् (पुं०) 1. समुद्र 2. तालाब, सरोवर, जलाशय,--धिः,-निधः समुद्र, तु० २।७, नै० ४।५०,-मुच् (पुं०) बादल-रघु० ३।३, ६१५,--वाहः बादल,-रघु० ११३६, । पयस्य (वि.) [पयसो विकारः पयसः इदं वा-पथस +-यत् ] 1. दूध से युक्त, दूध से बना हुआ 2. पानी से युक्त,-स्यः बिल्लो,-स्या दही। पयस्वल (वि.) [ पयस्+वलच् ] दूध से भरा हुआ, यथेष्ट दूध देने वाला,-ल: बकरी। पयस्विन् (वि०) [ पयस्+विनि ] दूधिया, जल से युक्त, -नो 1. दूध देने वाली गाय---रघु० २।२१,५४,६५ 2. नदी 3. बकरी रात।। पयोधिकम् [ पयोधि+फै+क ] समुद्रझाग । पयोष्णी (स्त्री०) विन्ध्यपर्वत से निकलने वाली एक नदी (कुछ विद्वान् इसे वर्तमान 'ताप्ती' मानते हैं, परन्त वाप्ती' की एक सहायक नदी 'पूर्णा' है जिसको 'पयोष्णी' के साथ अभिन्नता अधिक संभव प्रतीत होती है)। पर (वि.) [पृ०+ अप, कर्तरि अच् वा ] (जब सापेक्ष स्थिति बतलाई जाती है इस शब्द के रूप विकल्प से कर्तृ० संबो० अपा०, और अधि० में सर्वनाम की भांति होते हैं) 1. दूसरा, भिन्न, अम्य--दे० 'पर' पुं० भी 2. दूरस्थित, हटाया हुआ, दूर का 3. परे, आगे , के दूसरी ओर-म्लेच्छदेशस्ततः परः-मनु० २२३, ७४१५८ 4. बाद का, पीछे का, आगे का (प्राय: अपा० के साथ) वाल्यात्परामिव दशां मदनोऽच्युवास-रघु० ५।६३, कु० ११३१ 5. उच्चतर, श्रेष्ठ, सिकतात्वादपि परां प्रपेदे परमाणुताम् --रघु० १५।२२, इन्द्रियाणि पराण्याहू --रिन्द्रियेभ्यः परं मनः, मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु स:--भग० २।४३, 6. उच्चतम, महत्तम, पूज्यतम, प्रमुख, मुख्य, सर्वोत्तम, प्रधान-न त्वया द्रष्टव्यानां परं दृष्टम् --श०२, कि० ५।२८ 7. (समास में) आगे का वर्ण या ध्वनि रखने वाला, पीछे का 8. विदेशी, अपरिचित, अजनवी 9. विरोधी, शत्रतापूर्ण, प्रतिकूल 0. अधिक, अतिरिक्त, बचा हुआ...जैसा कि परं शतम् ---एक सौ से अधिक 11. अन्तिम, आखीर का 12. (समास के अन्त में) किसी वस्तु को उच्चतम पदार्थ समझने वाला, लोन, तुला हुआ, अनन्यक्त, पूर्णतः व्यस्त --परिचर्यापर:-रघु० ११९१, इसी प्रकार 'ध्यानपर' : शोकपर, देवपर, चितापर आदि-र: 1. दूसरा, ! व्यक्ति, अपरिचित, विदेशी (इस अर्थ में बहुधा ब० व०) यतः परेषां गुणग्रहीतासि-भामि० ११९, शि० २०७४, दे० 'एक' 'अन्य' भी 2. शत्र, दुष्मन, रिपु उत्तिष्ठमानस्पु परो नोपेक्ष्यः पथ्यमिच्छता-शि० २। १०, पंच० २।१५८, रघु० ३।२१,--रम् उच्चतम स्वर या बिन्दु, चरम विन्दु 2. परमात्मा 3. मोक्ष विशे०-कर्म०, करण, और अधि० के एक वचन के 'पर' शब्द के रूप क्रिया विशेषण की भांति प्रयुक्त किये जाते हैं--अर्थात् (क) परम 1. परे, अधिक, में से (अपा०), वर्त्मनः परम् - रघु० १२१७, 2. के पश्चात् (अपा०) अस्मात् परं-श० ४।१६, ततः परम् 3. उस पर, उसके बाद 4. परंतु, लोभी 5. अन्यथा 6. ऊँची मात्रा में, अधिकता के साथ, अत्यधिक, पूरी तरह से, सर्वथा...परं दुःखितोऽस्मि -आदि 7. अत्यंत (ख) परेण !. आगे, परे, अपेक्षाकृत अधिक---किंवा मृत्योः परेण विधास्यति-मा० २।२ 2. इसके पश्चात-मयि त कृतनिधाने कि विदध्याः परेण-महावी० २।४९ 3. के बाद (अपा० के साथ) स्तम्य त्यागात्परेण- उत्तर० २।७, (ग) परे 1. बाद में, उसके पश्चात-अथ ते दशाहतः परे --रघु० ८७३ 2. भविष्य में। सम०–अंगम् शरीर का पिछला,-अंगवः शिव का विशेषण,- अवनः अरब या पशिया के देशों में पाया जाने वाला घोड़ा, -अधीन (वि.) पराधीन, पराश्रित, परवश, मनु० १०१५४,५३,-अंताः (पुं०, ब० व०) एक राष्ट्र का नाम,---अंतकः शिव का विशेषण-अन्न (वि.) दूसरे के भोजन पर निर्वाह करने वाला (श्रम) दूस रेका भोजन परिपुष्टता दूसरों के भोजन से पालन-पोषण याज्ञ० ३२४१ भोजिन् (वि०) दूसरों के भोजन पर निर्वाह करने वाला हि० १२१३९, -- अपर (वि०) 1. दूर और किकट, दूर और समीप 2. पूर्ववर्ती और पश्चवर्ती 3. पहले और बाद में, पहले और पीछे 4. ऊंचा और नीचा, सबसे उत्तम और सबसे खराब (-रम्) (तर्क० में) महत्तम और लघूत्तम संख्याओं के बीच की वस्तु, जाति (जो श्रेणी और व्यक्ति दोनों के मध्य विद्यमान हो), अमृतम् वृष्टि,... अयण (अयन ) (वि.) 1. अनुरक्त, भक्त, संसक्त 2. आश्रित, वशीभूत 3. तुला हुआ, अनन्य भक्त, सर्वथा लीन (समास के अन्त में )--प्रभुधनपरायणः-भर्तृ० २।५६, इसी प्रकार-शोक कु० ४११, अग्निहोत्रं आदि (-णम्) प्रधान या चरम उद्देश्य, मुख्य ध्येय, सर्वोत्तम या अन्तिम सहारा,---अर्थ (वि०) दूसरा ही उद्देश्य या अर्थ रखने वाला, 2. दूसरे के लिए अभिप्रेत, अन्य के लिए किया हुआ (-र्थः) 1. सर्वोच्च हित या For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७६ ) लाभ 2. किसी दूसरे का हित (विप० स्वार्थ)स्वार्थो यस्य परार्थ एव स पुमनेकः सतामग्रीणी:-- सुभा०, रघु० ११२९ 3. मुख्य अर्थ 4. सर्वोच्च उद्देश्य (अर्थात् मैथुन) (-र्थम-र्थे) (अव्य०) दूसरे के लिए,-अर्धम् 1. दूसरा भाग (विप० पूर्वार्ध) उत्तरार्ध-दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्ना छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्----भर्तृ० २१६० 2. विशेष रूप से बड़ी संख्या अर्थात् १००,०००,०००,०००,०००,०००, एकत्वादि परार्धपर्यंता संख्या-तर्क०,--अर्ध्य (वि०) दूसरे किनारे पर होने वाला 2. संख्या में अत्यंत दूर का हेमंतां वसन्तात्परार्ध्यः--शत० 3. अत्यंत श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, परम श्रेष्ठ, अत्यंत मूल्यवान्, सर्वोच्च, परम-रघु० ३।२७, ८।२७, १०॥३४, १६।३९ शि० ८१४५ 4. अत्यंत कीमती-शि० ४१११ 5. अत्यंत सुन्दर, प्रियतम, मनोज्ञतम-रघु० ६।४, शि० ३।५८, (-य॑म्) 1. अधिकतम 2. अनन्त या असीम संख्या, –अवर (वि०) 1. दूर और निकट 2. सवेरी और अवेरी 3. पहले का और बाद का या आगामी 4. उच्चतर और निम्नतर 5. परंपराप्राप्त-मनु० १११०५ 6. सर्वसम्मिलित, अहः दूसरे दिन,--- अहः तीसरा पहर, दिन का उत्तरार्ध भाग, आचित (वि०) दूसरे द्वारा पाला-पोसा हआ (-त:) दास,आत्मन् (पुं०) परमात्मा,---आयत्त (वि.) दूसरे के अधीन, पराश्रित, पराधीन--परायत्तः प्रीतेः कथमिव रसं देत्तु पुरुषः--मुद्रा० ३।४, आयुस् (पुं०) ब्रह्मा का विशेषण,-आविद्धः 1. कुलेर का विशेषण 2. विष्णु की उपाधि,-आश्रयः-आसंगः परावलंबन दूसरे को अधीनता,--आस्कंदिन (पं०) चोर, लुटेरा, --इतर (वि.) 1. शत्रुता से भिन्न अर्थात मैत्री पूर्ण, कृपालु 2. अपना, निजी—कि० १।१४, -ईशः ब्रह्मा का विशेषण,---उत्कर्षः दूसरे की समृद्धि,---उपकारः दूसरों की भलाई करना जनहित षिता, उदारता, धर्मार्थ—परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्,-उपजापः शत्रुओं में फूट डालना,-उपरुद्धः (वि०) शत्रु के द्वारा घेरा हुआ,--ऊढा दूसरे की पत्नी,---एधित (वि.) दुसरे द्वारा पालित-पोषित (तः) 1. सेवक 2. कोयल,--कलत्रम् दूसरे की पत्नी, - अभिगमनम् व्यभिचार-हि०१११३५,-कार्यम् दूसरे का व्यवसाय या काम,--क्षेत्रम् 1. दूसरे का शरीर 2. दूसरे का क्षेत्र--मनु० ९।४९ 3. दूसरे की पत्नी-मनु० ३। १७५,--गामिम् (वि.) 1. दूसरे के साथ रहने वाला 2. दूसरे से संबंध रखने वाला, 3. दूसरे के लिए लाभदायक,---ग्रंथिः (अंगुली आदि का) जोड़, गांठ,-चक्रम् 1. शत्रु की सेना, 2. शत्र के द्वारा। आक्रमण ६ ईतियों में से एक, छंदः दूसरे की इच्छा, । HOTECH --अनुवर्तनम् दूसरे की इच्छा का अनुगमन करना, -छिद्रम् दूसरे की कमजोरी, दूसरे की त्रुटि-जात (वि०) 1. दूसरे से उत्पन्न 2. जोविका के लिए दूसरे पर आश्रित (तः) सेबक,---जित (वि.) दूसरे से जीता हुआ (तः) कोयल,-तंत्र (वि०) दुसरे पर आश्रित, पराधीन, अनुसेवी,---दाराः (पुं०, ब० व०) दूसरे की पत्नी,-दारिन (पं०) व्यभिचारी, परस्त्रीगामी,- दुःखम् दूसरे का कष्ट या दुःग्य --विरल: परदुःखदुखितो जनः, महदपि परदुःवं शीतलं सम्यगाहुः-विक्रम० ४।१३,- देशः विदेशः,-देशिन (पं०) विदेशी,--द्रोहिन् --द्वेषिध् (वि०) दूसरों से घृणा करने वाला, विरोधी, शत्रुतापूर्ण,-धनम् दूसरे की संपत्ति,--धर्मः 1. दूसरे का धर्म-स्वधर्म निवन श्रेयः परधर्मो भयावहः-भग० ३१३५ 2. दूसरे का कर्तव्य या कार्य 3. दूसरी जाति का कर्तव्य---मनु० १०। ९७,--निपातः समारा में शब्द की अनियमित पश्चवर्तिता अर्थात् भूतपूर्वः यहाँ अर्थ है 'पूर्व भूतः' इसी प्रकार राजदंतः, अग्न्याहितः आदि,-पक्षः शत्रु का दल या पक्ष,--पदम् 1. उच्चतम स्थिति, प्रमुखता 2. मोक्ष,-पिंड: दूसर का भोजन, दूसरों से दिया गया भोजन अद् (वि०) वह जो दूसरों का भोजन कर या जो दूसरे के खर्च पर जीवन निर्वाह करे (१०) सेवक, रत (वि०) दूसरे के भोजन पर पलने वाला, पुरुषः 1. दूसरा मनुष्य, अपरिचित 2. परमात्मा, विष्णु 3. दूसरी स्त्री का पति, -पुष्ट (वि०) दूसरे के द्वारा पाला पोसा हुआ (-टः) कोयल महोत्सवः आम का वृक्ष,--पुष्टा 1. कोयल. वेश्या, रंडी,-पूर्वा यह स्त्री जिसका दूसरा पति डो, -प्रेष्यः सेवक, घरेल नौकर,--ब्रह्मन् (नपुं०) परमात्मा, - भागः दूसरे का हिस्सा, 2. श्रेष्ठ गुण 3. सौभाग्य, समृद्धि 4. (क) सर्वोत्तमता, श्रेष्ठता, सर्वोपरिता---दूरधिगमः परभागो यावत्पुरुषेण पौरुषं न कृतम्-पंच० १।३३०, ५।३४, (ख) अधिकता, बाहुल्य, ऊँचाई-स्थलकमलगंजनं मम हृदयरंजनं जनितरतिरंगपरभागम् ..गीत० १०, आभाति लब्धपरभागतयाधरोष्ठे--. रघु० ५।७९, कु० ७.१७, कि० ५।३०, ८।४२, शि० ७।३३, ८1५१. १०.८६,-- भाषा विदेशी भाषा,-भुक्त (वि०) दूसरे के द्वारा भोगा हुआ, भत् (५०) कौवा (क्योंकि यह दूसरे का अर्थात् कोपल का पालन-पोषण करता है),.....भत:- ता कोयल (क्योंकि यह दूसरे के द्वारा अर्थात कौवे से पाली पोसी जाती है) तु. श० ५।२२, कु० ६१२, रघु० ९।४३ श० ४।९, ___ ---मृत्युः कौवा,-रमणः विवाहित मीना पार या जार--पंच० १११८०, लोकः दुसरा (आगामी) दुनिया-कु० ४।१०.-कु० ४।१० °विधिः अन्त्येष्टि For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७७ ) संस्कार, -वधा -वश्य प ण : 1. न्यायकर्ता | मित्युक्ता आदि०। सभ०-- अंगना संस्कार,-वा-वश्य (वि.) दूसरे के अधीन, परा-। (अच्छा, बहुत अच्छा, हाँ, ऐसा ही)--ततः परम श्रित, वाच्यम् दोष या त्रुटि,--वाणि: 1. न्यायकर्ता | मित्युक्ता प्रतस्थे मुनिमंडलम्-कु०६।३५ 2. अत्य2. वर्ष 3. कार्तिकेय के मोर का नाम,बादः 1. अफवाह, जनश्रुति 2. आपत्ति, विवाद-वाविन् (पुं०) श्रेष्ठथी--अणुः अत्यणु, अत्यल्पमात्रा का अणु-रघु० झगड़ालू विवादी,-व्रतः धृतराष्ट्र का विशेषण, १५।२२, परगुण परमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यम्--भर्तृ० --श्वस् (अव्य०) परसों (आगामी),-संज्ञकः आत्मा २१७८, पृथ्वी नित्या परमाणुरूपा–तर्क० (परमाणु --स्वर्ण (वि.) (व्या० में) अग्रवर्ती वर्ण का की परिभाषा-जालांतरगते रश्मी यत्सूक्ष्म दृश्यते सजातीय,-सेवा दूसरे को सेवा, स्त्री दूसरे की पत्नी, रजः, तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणुः स उच्यते ।) --स्वम् दूसरे को संपत्ति--रघु० ११२७, मनु० -अवतम् 1. परमात्मा 2. विशुद्ध एकेश्वरवाद, ७।१२३ हरणम् दूसरे को संपत्ति हर लेना, - हन । --अत्रम् खीर, दूध में पके हुए चावल,---अर्थः 1. (वि०) शत्रुओं को मारने वाला,-हितम् दूसरे का सर्वोच्च या नितांत अलौकिक सत्य, वास्तविक आत्मभला। ज्ञान, ब्रह्म या परमात्मासंबंधी ज्ञान -रघु० ८२२, परकीय (वि.) [परस्य इदम्-पर छ, कुक] 1. दूसरे महावी० ७२ 2. सचाई, वास्तविकता, आन्तरिकता से संबंध रखने वाला---अर्थो हि कन्या परकीय एव --परिहासविजल्पितं सख परमार्थेन न प्रह्यताँ -श० ४।२१, म०४।२०१,-या दूसरे को पत्नी, वचः-० २११८, (प्रायः समास में प्रयुक्त जो अपनी न हो, नायिकाओं के तीन मुख्य प्रकारों में होकर 'सत्य' 'वास्तविक' अर्थ प्रकट करता है) से एक-दे० 'अन्यस्त्रो ' और सा० द. १०८ । °मत्स्याः -रघु० ७१४०, महावी० ४।३० परंजः (पुं०) !. तेल कोल्हू 2. तलवार का फल । 3. कोई श्रेष्ठ या महत्त्वपूर्ण पदार्थ 4. सर्वोत्तम अर्थ, परंजनः, परंजयः परस्याः पश्चिमस्याः दिशोजनः स्वामी ---अर्थतः (अव्य०) सचमुच, वस्तुतः, यथार्थतः, नि०, पर+जि+अच, मम] वरुण का विशेषण ।। सत्यतः-विकारं रवल परमार्थतोऽज्ञात्वाऽनारंभः परतः (अय०) [पर+तस् ] 1. दूसरे से --- भामि० प्रतीकारस्य-श० ४, उवाच चैनं परमार्थतो हर १।१२० 2. शत्रु से रघु० ३।४८ 3. आगे, अपेक्षाकृत न वेत्सि नूनं यत एवमात्थ माम्--कु० ५।७५, पंच० अधिक, परे, वाद, ऊपर (प्रायः अपा० के साथ) १११३६,--अहः श्रेष्ठ दिन,--आत्मन (पुं०) सर्वोपरि --बुद्धेः परतस्तु सः-भग० ३।४२ ... अन्यथा 5. आत्मा या ब्रह्म,--आपद (स्त्री०) अत्यंत भारी संकट भिन्न प्रकार से। या दुर्भाग्य,--ईशः विष्णु का विशेषण, 2. इन्द्र की परत्र (अव्य०) परत्र) 1. दूसरे लोक में, भावी जन्म उपावि 3. शिवका विशेषण 4. सर्वशक्तिमान् परमें-परत्रेह च शर्मणे . -रघु० ११६९, कु. ४।३७, मनु० मात्मा का विशेषण,--ऋषिः उच्चाकोटिका ऋपि, ३१२७५, ५११६६ ८।१२७, उत्तर भाग में, आगे या ..-ऐश्वर्यम् सर्वशक्तिमत्ता, सर्वोपरिता,-तिः (स्त्री०) बाद में 3. आने वाले समय में, भविष्य में। सम० मोक्ष, निर्वाण,-गवः श्रेष्ठजाति का बैल या गाय, --भीरुः परलोक के भय से विस्मित हो, धर्मात्मा --पदम् !, सर्वोत्तम स्थिति, उच्चतम दर्जा 2. मोक्ष, पुरुष । --पुरुषः,-पुरुषः परमात्मा, ·-प्रख्य (वि०) प्रसिद्ध परंतप (वि.) [परान् शवुन तापयति -पर-नि-+-णिच विख्यात,-ब्रह्मन् (नपुं०) परमात्मा,--हंसः उच्चतम +खच्, ह्रस्वः, मुम् च दूसरों को सताने वाला, कोटि का संन्यासी, वह जिसने भावात्मक समाधि अपने शत्रुओं का दमन करने वाला---भग० ४।२, के द्वारा अपनी इन्द्रियों का दमन करके उनको वश रघु० १७,--पः शूरवीर, विजेता। में कर लिया है--तु० कुटीचक । परम (वि.) परं परत्वं माति-क तारा०] 1. दूरतम. | परमेष्ठः [ परम |- इष्ठन् ] ब्रह्मा का विशेषण । अन्तिम 2. उच्चतम, सर्वोत्तम, अत्यंत श्रेष्ठ, महत्तम परमेष्ठिन (पुं०) [परमेष्ठ इनि ] 1. ब्रह्मा की 2. शिव -प्राप्नोति परमां गतिम-मनु० ४११४, ७।१, __ की 3. विष्णु की 4. गरुड की 5. और अग्नि को २।१३ 3. मुख्य, प्रधान, प्राथमिक, सर्वोपरि -----मन। उपाधि 6. कोई भी आध्यात्मिक गुरु । ८१३०२, ९।३१९ ५. अत्यधिक, अन्तिम 5. यथेष्ट, | परंपर (वि.) [ परंपिपति -अच्, अल० स०] 1. एक पर्याप्त,-मम् सर्वोच्च या उच्चतम मुख्य या प्रमुख के बाद दूसरा 2. पूर्वानुपर, उत्तरोत्तर,-रः प्रपौत्र, भाग (समास के अन में), प्रधानतया युक्त, पूर्णतः -रा 1, अविच्छिन्न, श्रृंखला, नियमित सिलसिला, मं लग्न ----कामोपभागारमा एतावदिति निश्चिनाः आनुपूर्ण,- महतीयं खल्वनर्थपरंपरा--का० १०३, - --भंग १६।११, मनु० ६९६, ....मम् (अव्य.) 1. कर्ण परंपरया 'एक कान से दूसरे कान में सुन सुना स्वीकृतिबोधक, अंगीकार या सहमति बोधक, अव्यय कर, परंपरया आगम् 'नियमित परम्परा के क्रम में For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७८ ) प्राप्त होना' 2. (नियमित वस्तुओं की) पंक्ति, । सुन अत्यंत क्षुब्ध हुआ, उसी समय उसने समस्त कतार, संग्रह समूह-तोयांतर्भास्करालीव रेजे मुनि क्षत्रिय जाति का उन्मलन करने की भीपण प्रतिक्षा परंपरा--कु०६।४९, रघु० ६।५, ३५,४०, १२५०, की। वह अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में सफल 3. प्रणाली, क्रम, सुव्यवस्था 4. वंश, कुटुंब, कुल हुआ, करते है कि उसने इस पृथ्वी को इक्कीस बार 5. क्षति, चोट, मार डालना। क्षत्रिय जाति से मुक्त किया। वह क्षत्रिय जाति का परंपराक (वि.) [परंपरया कायेत प्रकाशते---कै--क] नाशकर्ता बाद में दशरथ के पुत्र राम के द्वारा जब यज्ञ में पशु का वध करना। कि वह केवल सोलह ही वर्ष के थे (दे० रघु० ११॥ परंपरीण (वि.) [परंपर+ख ] उत्तराधिकार में प्राप्त, । ६८,९१) परास्त किया गया। कहते हैं कि कार्तिकेय आनुवंशिक -- लक्ष्मी परंपरीणां स्वं पुत्रपौत्रीणतां नय- की शक्ति से ईर्ष्या होने के कारण उसने क्रौंच पर्वत भट्टि० ५.१५ 2. परंपराप्राप्त । को भी एक बार तीरों से बींध दिया--तु० मेघ ० परवत् (वि०) [पर+मतुप मस्य वः ] 1. पराधीन, दूसरे ५७; सात चिरजीवियों में इनकी भी गिनती है, के वश में, आज्ञापालन के लिए तत्पर--सा बाला विश्वास किया जाता है कि परशराम अब भी महेन्द्रपरवतीति में विदितम्-श० ३२, भगवन्परवानयं पर्वत पर बैठ तपस्या कर रहे हैं—तु० गीत०१, जन:-रघु० ८१८१, २।२६, (प्रायः करण० या क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापं स्नपयसि पयसि शमितअधि० के साथ) भ्रात्रा यदित्थं परवानसि त्वं-- रघु० भवतापम्, केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे॥ १४१५९ 2. शक्ति से वंचित, निःशक्त परवानिव | परश्व (स्व) धः | पर+श्वि+ड-परश्वः, तंदधाति शरीरोपतापेन-मा० ३ 3. पूर्णरूप से (दूसरे के) अधीन --धा+क; नि० शस्य सत्वम् ] कुल्हाड़ी, कुठार, जो स्वयं अपना स्वामी न हो, विजित, पराभूत- फरसा--धारां शितां रामपरश्वधश्य संभावयत्युत्पलविस्मयेन परवानस्मि-उत्तर० ५, आनंदेन परवानस्मि पत्रसाराम्--रघु ० ६।४२ । ----उत्तर. ३, साध्वसेन-~मा०६। परस् (अव्य०) [ पर+असि] (श्रेण्य संस्कृत में इसका परवत्ता [ पखत्+तल+टाप ] दूसरे की अधीनता, परा- स्वतंत्र प्रयोग विरल है) 1. परे, आगे, और भी घीनता, विक्रम० ५।१७ । 2. इसके दूसरी ओर 3. दूर, दूरी पर 4. अपवाद रूप परशः [स्पृशति इति पृषो०] पारसमणि जिसके स्पर्श से, से। सम० -- कृष्ण (वि०) अत्यन्त काला,--पुरुषः कहा जाता है कि लोहा आदि दूसरी घातुएँ सोना (वि०) मनुष्य से लंबा या ऊँचा-शत (वि.) सौ बन जाती है, संभवतः यह दार्शनिकों का पारस से रोधिक कि० १२०२६. शि० १२।५०,---श्वस् पत्थर है। (अव्य) आगामी परसों,... सहस्र (वि.) एक हजार परशुः परं शृणति--शृ+कु ङिच्च ] कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी, से अधिक—परः सहस्राः शरदस्तपांसि तप्त्वा-उत्तर० कुठार फरसा--तजितः परशुधारया मम-रघु० ११॥ १११५, परः सहस्रः पिशाचैः--महावी० ५।१७ । ७८ 2. शस्त्र, हथियार ३. बज्र । सम-धरः परस्तात् (अव्य०) [पर+अस्ताति ] 1. परे, के दूसरी 1. परशुराम का विशेषण 2. गणेश की उपाधि ओर, और आगे (संब० के साथ)-आदित्यवर्ण 3. कुठारधारी सैनिक,-रामः 'कुठारधारी राम' एक तमसः परस्तात--भग०८।९ 2. इसके पश्चात्, बाद विख्यात ब्राह्मणयोद्धा जो जमदग्नि का पुत्र और बाद में 3. अपेक्षाकृत ऊँचा। विष्णु का छठा अवतार था (इसने अपनी बाल्या- परस्पर (वि०) [परः परः इति विग्रहे समासवद्भावे पूर्ववस्था में ही अपने पिता की आज्ञा से जब कि उसके पदस्य सुः ] आपस में--परस्परां विस्मयवन्ति लक्ष्मीभाइयों में से कोई भी तैयार न हुआ, अपनी माता मालोकयांचऋरिवादरेण-भट्टि० २।५, (सर्व० वि०) रेणुका का सिर काट डाला-दे० जमदग्नि। इसके अन्योन्य, एक दूसरा (केवल ए० व०, में प्रयुक्त पश्चात् एक बार राजा कार्तवीर्य, जमदग्नि के आश्रम -प्रायः समास में) परस्परस्योपरि पर्यचीयत में आये और उसकी गौ को खोलकर ले गये। परन्तु -रघ० ३१२४, ७३५, अविज्ञातपरस्परैः अपसर्पः घर आने पर जिस समय परशराम को पता लगा -१७१५१, परस्पराक्षिसादश्यम-११४०, ३२४, तो वह कार्तवीर्य से लड़ा और उसे मयलोक पहुँचा विशे० 'एक दूसरे के विरुद्ध' 'आपस में' 'एक दूसरे से दिया। जब कार्तवीर्य के पूत्रों ने सुना तो वह बड़े 'एक दूसरे के द्वारा' 'इतरेतर के रूप में' 'आपस में' ऋद्ध हए-फलत: वे आश्रम में आये और जमदग्नि आदि अर्थों को प्रकट करने के लिए इस शब्द के कर्म को अकेला पाकर उसे मार डाला। जब परशुराम-- करण और अपा० के एक वचन के रूप क्रियाविशेषण जो कि इस घटना के समय आश्रम में नहीं था, की भाँति प्रयक्त होते है--दे० भग०३।११, १०९. वापिस आया, तो अपने पिता के वध का समाचार | रघु० ४१७९, ६।४६, ७।१७, ५१, १२।१४ । For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७९ ) परस्मैपवम्, परस्मैभाषा [परस्म परार्थ पदं भाषा वा] हुआ, विमुख 2. पराङ्मुख, अरूचि रखने वाला 3. दूसरे के लिए प्रयुक्त वाच्य, क्रिया के दो रूपों में से परवाह न करने वाला, उपेक्षा करने वाला 4. बाद (परस्मै तथा आत्मने) एक जिसमें कि संस्कृत की में होने वाला, उत्तरकालभव 5. दूसरी ओर स्थित, धातुओं के रूप चलते हैं। परे होने बाला। परा (अव्य०) [प-|-अन् + टाप 1 'दूर' 'पीछे' 'उल्टे क्रम पराजयः [ परा+जि+अच् ] 1. परास्त करना, बिजय, से एक ओर' की ओर' अर्थो को प्रकट करने के जीतना, अधीनीकरण, हार-रध० ११११९, मनु० लिए धातु या संज्ञा से पूर्व लगने वाला उपसर्ग । ७.१९९ 2. परास्त होना, सहन करने के योग्य न गण के अनुसार 'परा' के अर्थ निम्नलिखित है होना (अपा० के साथ) अध्ययनात्पराजयः 3. हारना, --1. मार डालना, आघात करना आदि (पराहत) हार, असफलता (मुकदमे आदि में) अन्यथावादिनो 2. जाना (परागत) 3. देखना, सामना करना (परा- (साक्षिणः) यस्य ध्रुवस्तस्य पराजयः--याज्ञ० २१७९ वृष्ट) 4. पराक्रम (पराक्रान्त) 5. की ओर निदेश, 4. पदच्युति, बंचना 5. परित्याग ।। (परावृत्त) 6. आधिक्य (पराजित) 7. पराधीनता पराजित (भू० क० कृ०) [परा-जि-+क्त ] जीता (पराधीन) 8. उद्धार, मुक्ति (पराक्त) 9. प्रतीपक्रम हुआ, वश में किया हुआ, हराया हुआ 2. कानून पीछे की ओर (पराङमुख) 10. एक ओर रख देना, द्वारा दण्डित, (मुकदमे में) हारा ह आ, पछाड़ा हुआ। अवहेलना करना। परान (ण) सा [ वरा+अन् (ण)+अस+टाप् ] औषपराकरणम् [ परा+क+ल्युट | एक ओर रख देने की धीय चिकित्सा, वैद्य, हकीम या डाक्टर द्वारा इलाज, क्रिया अस्वीकार करना, अवहेलना करना, तिरस्कृत वैद्य का व्यवसाय । करना। पराभवः [ परा+भू-अप] 1. (क) हार, असफलता, पराक्रमः [पराक्रम्+घञ्] 1. शूरवीरता, बहादुरी, पराजय-पराभवोऽत्यत्सव एव मानिनाम्-कि० ११४१ साहस, शौर्य पराक्रमः परिभवे-शि०२।४४ 2. विरोधी । (ख) मानभंग, मानमर्दन, प्रतिष्ठाभंग - कुबेरस्य अभियान करना, आक्रमण करना 3. प्रयत्न, कोशिश, मनः शल्यं शंसतीव पराभवम् -... कु० २२२, तद उद्योग 4. विष्णु का नाम । पदपल्लवरिपराभवमिदमनु भवतु सुवेशम् -गीत० परागः [ परा+ गम् +ड] 1. पुष्पराज,--स्फुटपरागप- १२ 2. धृणा, अवहेलना, तिरस्कार 3. विनाश 4. रागतपंकजम् ---शि० ६।२, अमरु ५४ 2. धूलि-रघु० लोप, वियोग (कभी-कभी 'पराभाव' भी लिखा ४।३० 3. स्नान के पश्चात् सेवन किया जाने वाला जाता है)। सुगंधित चूर्ण 4. चन्दन 5. सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण पराभूतिः (स्त्री०) [ परा+भू+क्तिन् ] दे० 'पराभव' । 6. यश, प्रसिद्धि 7. स्वाधीनता। परामर्शः [ परामिश्+घञ ] 1. पकड़ लेना, खींचना परांगवः [परांगं प्रचुरशरीरं वाति प्राप्नोति-वा+क] . जैसा कि 'केशपरामर्श में 2. झुकाना या (धनुष) समद्र। का तानना 3. हिंसा, आक्रमण, हमला--. याज्ञसेन्याः परा(रा) च् (वि०) (स्त्री० ची) [परा+अंच परामर्शः. महा०4. बाधा विघ्न - तपः परामर्शवि +क्विन् ] 1. परे या दूसरी ओर स्थित, ये चामुष्मा- वृद्धमन्योः कु० ३१७१ 5. ध्यान करना, प्रत्यास्मरण त्परांचो लोकाः छां० 2. मुंह मोड़ कर (पराङ मुख) 6. बिचार, विमर्श, चिन्तन 7. निर्णय 8. (तर्क० में) शि०१८।१८ 3. जो अनुकूल न हो, प्रतिकूल-दैवे घटाना, निश्चय करना कि अपना पक्ष या विषय सहे. पराचि भामि० १११०५ या दैवे पराम्बदनशालिनि तुक है-व्याप्तिविशिष्ट पक्षधर्मताज्ञानं परामर्श:-तर्क० हंत जाते-३।१ 4. दूरस्थ 5. बाहरकी ओर निदेशित। या.. व्याप्तस्य पक्षधर्मत्वधीः परामर्श उच्यते सन० ---मुख (वि.) (पराङमुखी नुनेतुगबलाः भाषा०६६। सतत्वरे--रघु० १९।३८, अमरु ९० मनु० २।१९५, परामष्ट (भू० क० कृ०) [ परा+मश्+क्त ] 1. छूआ १०।११९ 2. (क) विमुख, उलट-भातुन केवल गया, हाथ लगाया गया, दबोचा गया, पकड़ा गया स्वस्याः श्रियोऽप्यासीत् पराङ्मुखः --रघु० १२।१३, 2. रूखा व्यवहार किया गया, व्यवहार किया गया (ख) उदासीन, कतराने वाला, टाल जाने वाला 3. तोला गया, विचार किया गया, कता गया 4. --प्रवृत्तिपराङमु खो भावः--विक्रम ४२०, श०. सहन किया दया 5. संबद्ध 6. (रोग से) ग्रस्त--दे० ५।२८ 3. प्रतिकूल, अनु कुल--तनुरपि न ते दोषोऽ- परा पूर्वक 'मश। स्माकं विधिस्तु पराङम ख:--अमर २७ 4. उपेक्षा परारि (अव्य०) [ पूर्वतरे वत्सरे इत्यर्थे परभावः आदि च करने वाला--मत्येष्वास्थापराङमुखः-रघु० १०॥४३। संवत्सरे ] पूर्वतर वर्ष में, विगतवर्ष में, परियार साल। पराचीन (वि०) [ पराच्-+-ख ] विरूद्ध दिशा में मुड़ा । परायण दे० 'पर (पर+अयन) के नीचे । For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५८० परावर्तः, परावृत्तिः [ परा + वृत् + घञ्ञ, वितन् वा ] 1. पीछे मुड़ना, वापसी, प्रत्यावर्तन 2. अदल-बदल, विनिमय 3. पुनः प्राप्ति 4. ( कानुन में ) दण्ड या संजा की उलट-पलट | पराशरः [ परान् आशृगाति शू+अच् ] एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम जो व्यास के पिता तथा एक स्मृतिकार थे । परासम् | परा+अस् + ञ ] रांगा, टीन | परासनम् [ परा + अस् + ल्युट् ] बव, हत्या | परासु (वि० ) [परागताः असवो वस्य प्रा० ब० स० ] निजीव, मृतक, प्राक् परासुद्विजात्मजः रघु० १५ ५६, ९।७८ । परास्त ( भू० क० कृ० ) [ परा + अस् + क्त ] 1. फेंका हुआ, डाला हुआ 2. निष्कासित, निकाला हुआ 3. अस्वीकृत 4. निराकृत व्यक्त हराया हुआ । परात ( भू० क० कृ० ) [ परा + न् + क्त | 1. पटका हुआ, पछाड़ा हुआ 2. पोछे हटाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ, तम् प्रहार, आघात । परि ( अव्य० ) [ पू+इन् ] ( कभी-कभी बदलकर 'परी' भी हो जाता है, जैसे कि 'परिवाह' या 'परवाह', परिहास या परोहास' में) यह उपसर्ग के रूप में धातु या संज्ञाओं से पूर्व उपकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है 1. ( क ), चारों ओर इधर उवप, इर्द गिर्द (ख) बहुत, अत्यन्त 2. पृथक्करणीय अव्यय ( संबं० also ) के रूप में निम्नांकित अर्थ है ( क ) की ओर की दिशा में, की तरफ के सामने ( कर्म० के साथ ) वृक्षं परि विद्योतते विद्युत् (ख) क्रमशः, अलग. २ करके (कर्म० के साथ) वृक्षं वृक्षं परि सिचति, 'वह एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को सींचता है ( ग ) हिस्से मं, भाग्य में (कर्म० के साथ) यदत्र 'मां परि स्यात् 'जो मेरे भाग्य में बदा हो, लक्ष्मीहरि (परि-- सिद्धा० (घ) से, में से (ङ) सिवाय (अपा० के साथ) परि त्रिगर्तभ्यां वृध्दी देंगे, या - पर्यनतात् त्रयस्तापाः बोप ० (च) बीत जाने के बाद (छ) फलस्वरूप 3. क्रिया विशेषण उपसर्ग के रूप में संज्ञाओं से पूर्व लग कर. जबकि क्रिया से साधन हो 'बहुत' अति' अत्यधिक' अत्यन्त' आदि सूर्य प्रकट करता है जैसा कि पर्यश्रु ( आँसू ढरकना) में इसी प्रकार परिचतुर्दशन् परिदौर्बला 4. अवायीभाव समासों से पूर्व 'परि' का निम्नांकित अर्थ होता है। ( क ) बिना सिवाय के बाहर इसको छोड़ कर जैसा कि, परित्रिगर्त वृष्टो देवः - ० ११ १२, ६१२/३३, प्रा० २ ११० के अनुसार परि अक्ष, "शलांका या संख्या वाचक शब्द के पश्चात् अव्ययीभाव समास के अन्त में प्रयुक्त होता है यदि पासा उलट | T Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाने के कारण या दुर्भाग्यदश हार या पराजय हो जाय ( द्यूतव्यवहारे पराजये एवायं समासः ) उदा० अक्षपरि. शलाकापरि एकपरितु० अक्षपरि ( ख ) इर्द दिर्द, चारों ओर घिरा हुआ जैसा कि 'पर्यग्नि' में ( ज्वालाओं के बीच में ) 5. कर्मधारय समास के १न्त में परि' का अर्थ है 'श्रान्त', क्लात' 'उबा हुआ' जैसा कि 'पर्यध्ययन - परिग्लानोऽध्ययनाय में । परिकथा | प्रा० स०] आख्यानप्रिय व्यक्ति के इतिवृत्त तथा उसके साहसिक कार्यों को बतलाने वाली रचना, काल्पनिक कथा | परिकंप: [ प्रा० स० ] 1. भारी त्रास 2. प्रचंड कंपकंपी, या थरथराहट महावी० २१२७ । परिकरः । प्रा० स० 1. परिजन, अनुचर वर्ग, नौकरचाकर, अनुयायिवर्ग 2. समुच्चय, संग्रह, समूह - रत्न० ३५ 3. आरंभ, उपक्रम भतृ० १६ 4 परिधि, कटिबंध, कटिवस्त्र - अहिपरिकरभाजः शि० ४/६५, परिकरं बंध (कृ) कमर कराना, तैयार होना, किसी कार्य के लिए अपने आपको सज्जित करना-बघ्नन्सवेगं परिकर का० १७० कृतपरिकरस्य भवादृशस्य त्रैलोक्यपfr न क्षमं परिपत्रोभवितुम् - वेणी०३, गंगा० ४७, अमरु० ९२ 5. सोफा 6. (सा० शा० मे० ) एक अलंकार जिसके सार्थक विशेषणों का उपयोग होता है--विशेपणैर्यत्साकूनैरुक्तिः परिकरस्तु स. काव्य० १०. उदा० सुधांशुकलितोत्तंसस्तापं हन्तु वः शिवः चन्द्रा० ५५९7. (नाट्य० में नाटक की वस्तु कथा में आने वाली घटनाओं का परोक्षसूचन, 'बीज' का मूलतत्त्व, दे० सा० द० ३४० 8 निर्णय । परिकर्त (पुं० ) | प्रा० रा० ] वह पुरोहित जो बड़े भाई के रहते हुए छोटे भाई का विवाह संस्कार करता है - परिकर्ता याजकः- हारीत, तु० परिवेतृ । परिकर्मन् (पुं० ) |परि | कृ | भनिन् । सेवक - नपुं० - शरीर को चित्रित या सुगंधित करना, वैयक्तिक सजावट, अलंकृत करना, प्रसाधन कृताचार परि कर्माणम् -- ० २ 2. पैरों में महावर लगाना- कु० ४।१९ 3 सज्जा, तैयारी 4. पूजा अर्चना 5. (योग० में) शुद्ध करना, पवित्रीकरण मन को शुद्ध करने के साधन - शि० ४१५५: ( इसके ऊपर दे० मल्लि० ) 6. गणित की प्रक्रिया ( इसके आठ भेद है ) । परिकर्षः, कर्वणम् [ परि कृष्+घञ्ञ, ल्युट् वा ] खींच कर बाहर निकालना, उखाड़ना । परिकलकनत् [ परि + कल् - 1 क + ल्युट् ] धोखा, ठगी, छल-कपट | परिकल्पनम्--ना [ परि + कृप् + ल्ड् ] 1. निर्णय करना, स्थिर करना, फैसला करता निर्धारण करना 2. उपाय निकालना, आविष्कार नरना, रूप वेता, क्रम For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५८१ ) बद्ध करना -- मुद्रा० ७ १५ 3. जुटाना, सम्पन्न करना 4. वितरण करना । परिकांक्षितः [ परि + कांक्ष् + क्त ] धर्म परायण साधु या सन्यासी, भक्त । परिकीर्ण (भू० क० कृ० ) [ परि कृ + क्त ] 1. फैलाया हुआ, प्रसृत, इधर उधर बखेरा हुआ 2. घिरा हुआ, भीड़भड़क्का से युक्त, भरा हुआ - शि० १६ १०, रघु० ८।४५ । परिकूटम् | प्रा० स० ] अवरोध, आड़, नगर के फाटक के सामने की खाई । परिकोपः [ परि + कुप् घञ् ] असह्य क्रोध, भीषणता । परिक्रमः । परि + क्रम्+घञ् ] 1. इधर उधर भ्रमण करना, इतस्ततः घूनना- कि० १०।२ 2 भ्रमण घूमना, टहलना 3. प्रदक्षिणा करना 4. इच्छानुसार व्हलना 5. सिलसिला क्रम 6. यथाक्रमा, उत्तरोत्तर 7. घुसना । सम० सहः बकरी । परिक्रयः, -क्रमणम् [ परि + की +घञ, ल्युट् वा ] 1. मजदूरी, भाड़ा 2 मजदूरी पर काम में लगाना 3. मोल लेना, खरीद डालना 4. विनिमय, अदल-बदल 5. रुपया देकर की गई संधि तु० हि० ४। १२२ । परिक्रया । परितः क्रिया प्रा० स० ] 1. बाड़ लगाना, चारों ओर खाई खोदना 2. घेरना 3. ( नाट्य० में ) === परिकर (७) । परिक्लांत ( भू० क० कृ० ) [ परि कलम् +क्त] थका हुआ, परिश्रांत, उकताया हुशा । परिक्लेदः [ परि + क्लिद् + घञ्ञ ] गीलापन, नमी, आर्द्रता । परिक्लेशः [ परि + क्लिश् घञ्न् ] कठिनाई, थकावट, कष्ट । परिक्षय: [ परि + क्षि + अच्] 1 ह्रास, बर्बादी, विनाश, परिक्षयोऽपि अधिकतर रमणीयः मृच्छ० १, किरण० ४४६ 2 अन्तर्धान होना, समाप्त होना 3. बर्बादी, नाश, असफलता - कि० १६/५७, मनु० ९।५९ । परिक्षाम [ परि + क्षै + क्त, मकारा देश: ] कृश, क्षीण, दुर्बल 1. बोना, परिक्षालनम् [ परि + ल् + णित्रु | ल्युट् ] मांजना 2. धोने के लिए पानी । परिक्षिप्त ( भू० क० कृ० ) परि + क्षिप् । क्त | 1 बखेरा हुआ, प्रसृत 2. परिवेष्टित, घेरा हुआ वेतसपरि क्षिप्ते मंडपे श० ३ कु० ६३८ भाई से घेरा हुआ 4. ऊपर से फैलाया हुआ, ऊपर डाला हुआ 5. छोड़ा हुआ, परित्यक्त । परिक्षीण ( भू०क० कृ० ) [ परि + क्षि+क्त] 1. अन्तर्हित, लुप्त, 2. बर्बाद हुआ, हासित 3. कृश, घिसा हुआ, थका हुआ 4. दरिद्र किया हुआ, सर्वथा बर्बाद किया Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ - भर्तृ० २।४५ 5. खोया हुआ, नाश किया हुआ 6. कम किया हुआ, घटाया हुआ 7. ( कानून में) दिवालिया । परिक्षीव ( वि० ) [ परि + क्षीव् + क्त, तस्य लोपः ] बिल्कुल नशे में चूर । परिक्षेप: [ परि + क्षिप् + ञ] 1. इधर उधर घूमना, टहलना 2. बखेरना, फैलाना 3. घेरना, परिवेष्टन, चारों ओर बहना 4. घेरे की सीमा, हद जिससे कोई चीज घेरी जाय रघु० १२।६६ । परिखा [ परितः खन्यते खन् + ड+टाप् ] प्रतिकूप, खाई, नगर या किले के चारों ओर बनी नाली या खातरघु० ११३०, १२/६६ परिखातम् [ परि + खन् + क्त ] 1. प्रतिकूप, खाई 2. लीक, खूड 3. चारों ओर से खोदना । परिखेदः [ परितः खेदः प्रा० स०] थकावट, परिश्रान्ति, थकान — कु० १/६०, ऋतु० १।२७ । परिख्यातिः (स्त्री० ) [ परि + ख्या + क्तिन् ] यश, प्रसिद्धि । परिगणनम्, -ना [ परि + गण + ल्युट् ] पूर्ण गिनती, सही वर्णन या हिसाब - श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशंतो बलाका:- मेघ० ( मल्लि० इसको क्षेपक समझते हैं ) । परिगत (भू०क० कृ० ) [ परि + गम् + क्त] 1. घेरा हुआ, आवेष्टित, अहाता बनाया हुआ 2. प्रसृत, चारों ओर फैलाया हुआ 3. ज्ञात, समझा हुआ रघु० ७/७१, परिगत परिगंतव्य एव भवान् वेणी० ३, महावी० ३२४७ 4. भरा हुआ, ढका हुआ, सम्पन्न ( प्रायः समास में ) शि० ९/२६ 5 हासिल, प्राप्त' भर्तृ० ३।५२ 6. याद किया हुआ । परिगलित ( भू०क० कृ० ) [ परि + गल् + क्त ] 1. डूबा हुआ 2. उथला हुआ 3. लुप्त 4. पिघला हुआ 5. बहता हुआ । परिगर्हणम् [परि + गर्ह, + ल्युट् ] भारी कलङ्क । परिगूढ (भू०क० कृ०) [परि + गुह +क्त] 1. बिल्कुल गुप्त 2. अबोध्य, जो समझने में अत्यंत कठिन हो । परिगृहीत् ( भू० क०कु० ) [ परि + ग्रह +क्त] 1. अप नाया हुआ पकड़ा हुआ, ग्रहण किया हुआ 2. आलिगन किया हुआ, घेरा हुआ है. स्वीकार किया हुआ, लिया हुआ, प्राप्त किया हुआ 4. हामी भरा हुआ, स्वीकृत किया हुआ, माना हुआ 5 संरक्षण दिया हुआ, अनुग्रह किया हुआ 6. अनुसरण किया हुआ, आज्ञा माना हुआ 7. विरोध किया हुआ दे० परिपूर्वक 'ग्रह' । परिगृह्या [परि + + क्यप् + टाप्] विवाहिता स्त्री । परिग्रहः | परि + ग्रह +घञ्ञ ] 1. पकड़ना, थामना, लेना, ग्रहण करना, आसनरज्जु परिग्रहे रघु० ९/४६, शंका परिग्रहः मुद्रा० १, शंका करना 2. घेरना, For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५८२ ) बन्द करना, चारों ओर से घेरा डालना, बाड़ बनाना | 2. जान पहचान, परिचिति, घनिष्ठता, सरकारी 3. पहनना, (वेषभूषा की भांति) लपेटना--मौलि- संरक्षण-पुरुषपरिचयेन-मच्छ० २५६, अतिपरिपरिग्रहः-रघु० १८०३८ 4. धारण करना, लेना--- चयादवज्ञा 'अतिपरिचय से होता है, अरुचि अनादर मानपरिग्रह:--अमरु ९२, विवाहलक्ष्मी उत्तर०४ भाय' परिचयं चललक्ष्यनिपातेन-रधु० ९।४९, 5. प्राप्त करना, लेना, स्वीकार करना, अंगीगार । सकलकलापरिचयः-का० ७६ 3. जांच, अध्ययन, करना-भौमो मनेः स्थानपरिग्रहोऽयम्-रघु० १३। अभ्यास, मुहमहु- आवृत्ति, हेतुपरिचयस्थये वक्तुर्गुण३६, अर्घ्यपरिग्रहांते-७०, १२।१६, कु० ६।५३, निकैव सा--शि० २१७५, ११५, वर्णपरिचयं करोति विद्यापरिग्रहाय -मा० १, इसी प्रकार--आसनपरि- -श० ५ 4. ज्ञान ---महावीर ५।१० 5. पहचान, ग्रहं करोतु देव:.-उत्तर० ३, 'आसन-ग्रहण कीजिए --मेघ०९। महाराजाधिराज' 6. वैभव, संपत्ति, सामान-त्यक्त- परिचरः [परि+चर-अच] 1. सेवक, अनुचर, टहलुआ सर्वपरिग्रहः--भग० ४।२१, रघु० १५५५, विक्रम 2. शरीर रक्षक 3. रक्षक, पहरेदार 4. श्रद्धांजलि, ४।२६ 7. आवाह, विवाह-- नवे दारपरिग्रहे सेवा। उत्तर. १।१९,-मा० ५।२७, श० ११२२ 8. पत्नी, परिचरणः पिरि-चर-+ल्युट] सेवक, टहलूवा, सहायक, रानी-प्रयतपरिग्रहद्वितीयः-- रघु० ११९५, ९२, । | --णम् 1. सेवा, टहल 2. इधर उधर जाना। ९।१४, १११३३, १६।८, २०५।२७, ३०, परिग्रह परिचर्चा परिचर-1क्यपटाप। । मेवा. टहल बहुत्वेऽपि- श० ३१२१ 9. अपने रक्षण में लेना, __ --रघु० २९१, भग० १८।४४ 2. अर्चना, पूजा अनुग्रह करना--उत्तर० ७.११, मालवि० १४१३ -शि० १११७। 10. अनुचर, अनुसेवी, नौकर-चाकर, परिजन, सेवक परिचाय्यः [परि+चि प्रयत] यज्ञाग्नि (कुण्ड में स्थासमूह 11. गृहस्थ, परिवार, परिवार के सदस्य पित)। 12. राजा का अन्तःपुर, रनिवास 13. जड़, मूल परिचारः परि+चर+घा] 1. रोवा, टहल 2. सेवक 14. सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण 15. शपथ 12. सेना 3. टहलने का स्थान । का पिछला भाग 17. विष्णु का नाम 18. संक्षेप, परिचारकः, परिचारिकः [परि+च+ बुल, परिचार उपसंहार। +ठन् सेवक, टहलवा। परिग्रहीतु (पुं०) [परि---गद+तृच पति--श० ४।२२। परिचित (भू. क. कृ.) [परि चि+क्त] 1. ढेर परिक्लान (भू० क० कृ०) [परि+ग्ल+क्त] 1. शिथिल, लगाया हुआ, इकट्ठा किया हुआ 2. जानकार, थका हुआ 2. विमुख, पराङमुख । घनिष्ठ, जान पहचान का 3. सीखा गया, अभ्यस्त । परिघः [परि हुन् । अप, घादेशः] 1. लोहे की छड़ या । परिचितिः (स्त्री०) [परि+चि-+-क्तिन्] जान पहचान, लकड़ी का मसल जो द्वार को बंद रखने के लिए परिचय, घनिष्टता। प्रयुक्त की जाय, अर्गला- एकः कृत्स्ना नगरपरिष परिच्छद् (स्त्री०) [परि+छद् -+-क्विप्] 1. परिजन, प्रांशुबाहु नक्ति-श० २।१५, रघु० १६३८४, शि० अनुचरवर्ग 2. साज-सामान । ३२, मालवि० ५।२ 2. (अतः) रोक, अवरोध, परिच्छदः [परि+छ+णिच्+घ] 1. आवरण, चादर, विघ्न, बाधा-भार्गवस्य सुकृतोऽपि सोऽभवत्स्वर्गमार्ग पोशाक 2. वस्त्र, वेशभुषा- शाखावसक्तकमनीय परिघो दुरत्ययः-रघु० ११३८८ 3. लोहे की स्याम परिच्छदानाम्-कि० ७।४० 3. नोकरचाकर, परिजन, लगी हुई लाठो, मुद्गर जिसमें लोहे की स्याम जड़ टहलए, आश्रितमंडली-रघु० ९/७० 4. साजदो गई हो रघु० १२७३ 4. लोहे की गदा 5. जल सामान, (छत्र, चामर आदि) ऊपरी सामान–सेना पात्र, धड़ा 6. शीशे की झारी 7. घर 8. मारना, परिच्छदस्तस्य-रघु० १११७ 5. सामान, असबाब, नष्ट करना 9. प्रहार करना-आघात या थप्पड़ । व्यक्तिगत सामान, निजी चीजे व सामान (बर्तनभांडे, परिघट्टनम् [परि+घट्ट ल्यूट घोटना, कड़छी चलाना। तथा अन्य उपकरण आदि) - विवास्यो वा भवेद्राष्ट्रापरिघातः, -घातनम् [परि+हन्+णिच घा, नस्य तः, त्सद्रव्यः सपरिच्छदः-- मनु० ९४२४१,७१४०, ८१४०५, ल्युवा] 1. मारना, प्रहार करना, हटाना, छुटकारा ९।७८, १२७६ 6. यात्रा का आवश्यक सामान । पाना 2. मुद्गर, मोटे सिरे की छड़ी। परिच्छंदः [परि। छन् । को नौकर-चाकर, परिजन । परिघोषः [परि-+-घुष्+घञ्] 1. कोलाहल 2. अनुचित परिच्छन्न (भू० क० कृ०) [परि-|-छद्+क्त] 1. वेष्टित, भाषण 3. गर्जन। ढका हुआ, वस्त्राच्छादित, जिसने वस्त्र पहने हुए हों परिचतुर्दशन् (वि.) [प्रा० स०] पूरे चौदह । 2. ऊपर फैलाया हुआ, या बिछाया हआ 3. घिरा परिचयः [परि ।-चि --अप] 3. ढेर लगाना, एकत्र करना । हुआ (परिजनों से) 4. छिपा हुआ। For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिच्छित्तिः (स्त्री०) [परिछिद्+किन] 1. यथार्थ हुआ, विनत, ढलता हुआ-मेघ० 2 2. (आयु में) परिभापा, सीमित करना 2. विभाजन, अलग अलग वृद्ध, ढलता हुआ--परिणते वयसि-का० 35,62, करना। 63 3. पक्का, परिपक्व, पका हुआ, पूर्णविकसित-- परिच्छिन्न (भू. क. कृ०) [परि+छिद्-:-क्त] 1. शब्दब्रह्मविदः कवेः परिणतप्रज्ञस्य वाणीमिमाम् उत्तर० काटा हुआ, विभक्त 2. यथार्थ परिभाषा से युक्त, 7 / 21, मेघ० २३-परिणतमकरंदमामिकास्ते-भामि० निर्धारित, निश्चयीकृत, कु० 2 / 58 3. सीमित, 118, शि० 11 / 49 4. पूर्णरूप से बढ़ा हुआ, प्रौढ़, सीमाबद्ध, परिसीमित दे० परिपूर्वक 'छिद'।। पूर्णविकसित परिणतशरच्चंद्रकिरण:--भर्त० 3149, परिच्छेदः [परि+छिद्+घञ] . काटना, वियक्त मेघ० 100 5. (भोजन आदि) पचा हुआ करना, विभक्त करना, (उचिन और अनुचित में) 6. रूपान्तरित या परिवर्तित (करण के साथ) विवेचन 2. यथार्थ परिभाषा, फैसला, यथार्थ निर्धारण, विक्रम० 4 / 28 7. समाप्त, पर्यवसित, अवसायी, निश्चय करना परिच्छेदव्यक्तिर्भवति न पुरस्थेऽपि अनेन समयेन परिणतो दिवस:--का० 47 8. (सूर्य विपये--मा० 1 / 31, परिच्छेदातीतः सकलवचनानाम- आदि) अस्त,-तः अपने दांत से प्रहार करने के लिए विषयः - 1130, सब प्रकार की परिभाषा और झुका हुआ या पाश्र्वाधात देने वाला हाथी (तिर्यग्दंतनिर्धारण से श्रेष्ठतर होना इत्यारुढबहप्रतकमपरिच्छे- प्रहारश्च गजः परिणतो मतः--हला०) शि० 2 / 29, दाकुल मे मनः-- श० 5 / 9 3. विवेक, निर्णय, सूक्ष्म- कि०६।७। दप्टि...परिच्छेदा हि पांडित्यं यदापना विपनयः, | परिणतिः (स्त्री०) [परि-+-नम्+क्तिन् ] 1. झुकना, अपरिच्छेदातणां विपदः स्य: पदे पदे हि० 11148, ढलना, नत होना 2. पक्कापन, परिपक्वता, विकास-- कि पांडित्यं परिच्छेदः 147 4. सीमा, हद, सीमा महावी० 2114 3. परिवर्तन, रूपान्तरण, कायापलट स्थिर करना, हदवन्दी-अलमलं परिच्छेदेन मा 4. पूर्णता 5. नतीजा, परिणाम, फल-परिणतिरलवि० 26. अनभाग या पुग्नक का कांड ('अन् ववार्या यत्नतः पंडितेन-भर्तृ० 2 / 94, 1 / 20,3 / 17, भाग' के अन्य नामों के लिए दे० 'अध्याय' के महावी० 628 6. अन्त, उपसंहार समाप्ति, अवअन्तर्गत)। सान-परिणतिरमणीयाः प्रीतयस्त्वद्विधानां मा०६। परिच्छेद्य (वि०) | परि छिद |-यत | 1 यथार्थरूप से 7,16, शि० 1111 7. जोवन की अन्तिम झांकी, परिभाषा के योग्य, परिभापणीय, मनु०४।९, रघु० बढापा-सेवाकाग परिणतिरभूत-विक्रम० 3.1, 10 / 28 2 तोलने या अनुमान लगाने के योग्य / अभवद्गतः परिणति शिथिल: परिमंदमूर्यनयनो दिवस: परिजनः [प्रा० स०] 1. मदा साथ रहने वाले नौकर- --शि० 13, (यहां प० का अर्थ है 'अन्त या चाकर, अनुयायिवर्ग, अनु च रवर्ग--परिजनो राजा- उपसंहार' भी) 8. (भोजन का) पचना। नमभितः स्थित:--मालवि०१2 अरदली लोग, / लोग, परिणद्ध (भू० क० कृ०) [परि+नह +क्त ] 1. बँधा सेवकममह, सेविकाओं का समह, वांदियाँ, दामियां-- हुआ, लिपटा हुआ 2. विस्तृत, विशाल-परिणद्धरघ०१२।२३ 3. सेवक, दास / कंधर:-रघु० 3 / 34 / परिजल्पितम् | परिजल्+क्त ] (नौकर या सेवक का) परिणयः,-णयनम [ परि+नी--अप, ल्यट वा ] विवाहगुप्त संकेत जिमसे अपनी कुशलता श्रेष्ठता तथा ___नवपरिणया वधूः शयने-काव्य० 10 / स्वामी की क्रूरता एवं शठता तथा और दूसरे इसी परिणहनम् [ परि--नह + ल्युट कमर कसना, कमर पर प्रकार के दोष प्रकट हों; उज्ज्वलनीलमणि इस प्रकार कपड़ा लपेटना। परिभाषा बताते है--प्रभोनिर्दयनाशाठ्यचापलाद्युप परि (री) णामः [परिनम +घञ, पक्षे उपसर्गस्य पादनात, स्वविचक्षणताव्यक्तिभंग्या स्यात्परिजल्पि दोघः) 1. बदलना, परिवर्तन, रूपान्तरण 2. पाचनतम् / (विल्सन के अनुमार अपने प्रिय से उपेक्षित अन्नं न मम्यक् परिणाममेति-सुश्रुत, भुक्तस्य परिकिसी रमणी के द्वारा प्रयुक्त गुप्त झिड़कियाँ ही णामहेतुरौदर्यम्--नकं० 3. नतीजा, निप्पत्ति, फल, 'पग्जिल्पित है)। प्रभाव-अप्रियस्यापि पथ्यस्य परिणामः सूखावहःपरिज्ञप्तिः [ परि+ज्ञा+कितन् | 1. संलाप, संवाद हि० 26135, मृच्छ० 3 / 1, परिणामसुखे गरीयसि 2. पहचान। वचसि औपधे-कि० 214, भग० 18 / 37, 38 परिज्ञानम् परिज्ञा- ल्युट | पूग ज्ञान, पूरी जानकारी। 4. पकना, परिपक्वता, पूर्ण विकास--उपैतिशस्यं परिपरिडीनम् [ परि / डी-क्न ] पक्षियों का गोल बना कर णामग्म्यताम--कि० 422, फलभरपरिणामश्याम उहना या पक्षियों के गोल की उड़ान--दे० डोन / / जबू'"उत्तर० 220, मा० 9 / 24 5. अन्त, समाप्ति, परिणत (भू० क० कृ०) [ परि--नम् + क्त ] 1. झुका / उपसंहार, अवसान, ह्रास-दिवसाः परिणामरमणीयाः For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 584 ) --श० 123, वयः परिणामपांडरशिरसं-का. 10, 1 / 12, शि० 5 / 26, 9 / 36, कि० 1114, गाहितपरिमाणमुपैति दिवसः-का० 254, 'दिन समाप्त मखिलं गहनं परितो दृष्टाश्च विटपिनः सर्वे भामि० होने वाला है' 6. बुढ़ापा-परिणामे हि दिलीप- 1 / 21, 29 2. की ओर, की दिशा में आपेदिरेंऽबवंशजा:-रघु० 8 / 11 7. (समय का) बीतना , रपथं परितः पतंगाः भामि० 1117, रघु० 9 / 66 / 8. (अलं. शा. में) रूपक से मिलता जुलता एक परितापः [परि+तप्+घञ्] 1. अत्यंत या झुलसा अलंकार जिसमें उपमेय के गुण उपमान में परिवर्तित देने वाली गर्मी-(पादपः) शमयति परितापं छायया कर दिये जाते हैं (चन्द्रालोक में दी गई परिभाषा संश्रितानाम्-श० 57 गुरुपरितापानि गात्राणि और उदाहरण-परिणामः क्रियार्थश्चेद्विषयी विषया- -~-3 / 18, ऋटु० 1 / 22 2. पीड़ा, वेदना, व्यथा, स्मना, प्रसन्नेन दगब्जेन वीक्षते मदिरेक्षणा-५।१८, शोक-प्रसक्ते निर्वाणे हृदयपरितापं वहसि किम दे० रसगंगाधर में परिणाम' के नीचे)। सम० ---मालवि० 3.1 3. विलाप, मातम, शोक-बिर-पशिन् (वि.) बुद्धिमान्, दूरदर्शी, दृष्टि (वि०) चितविविधविलापं सा परितापं चकारोच्चैः--गीत. बुद्धिमान् (--ष्टि:-स्त्री०) बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, 74. कांपना, भय / ----पथ्य (वि.) जिसका फल स्वास्थ्यप्रद हो शूलम् / | परितुष्ट (भू० क० कृ.) [परि+तुष्+क्त ] 1. पूर्ण पीडायुक्त अजीर्ण या मन्दाग्नि, उदरपीडा, पीड़ा के रूप से संतुष्ट-वयमिह परितुष्टा वल्कलस्न्वं च साथ उदरवायु, बायगोले का दर्द। लक्ष्म्या ---- भतुं० 3 / 50, इसी प्रकार---मनसि च परिपरि (री) णायः [ परि+नी+घञ पक्षे उपसर्गस्य तुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः-भत० 3150 2. प्रसन्न, दीर्घः ] 1. शतरंज की गोट का चलाना 2. (शतरंज खुश। __ की) चाल / परितुष्टिः (स्त्री०) [ परि+तुष्+क्तिन् ] 1. संतृप्ति, परिणायकः [परि+नी+ण्वुल ] 1. नेता 2. पति | पूर्ण संतोष 2. खुशी, हर्ष / ---शि० 9173 / परितोषः [परि+त+घञ ] 1. सन्तोष, इच्छा का परि (री) णाहः [परि+नह+घा, पधे उपसर्गस्य अभाव (विप० लोभ) सव इह परितोषो नि बशेषो दीर्घः ] 1. परिधि, वृत्त, विस्तार, फैलाव, चौड़ाई, विशेषः भर्त० 3 / 50 2. पूर्ण सतोष, तृप्ति--आपअर्ज-स्तनयुगपरिणाहाच्छादिना वल्कलेन--श० // रितोषाद्विदुर्षा न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम्... श० 19, स्तनपरिणाह विलासवैजयंती . मा० 3 / 15, 112 3. प्रसन्नता, खुशी, हर्ष, पसन्दगी (अधि० के विशाल वक्षःस्थल,-ककुदे वृषस्थ कृतबाहुमकृश / साथ) कु. 6.59, रघु०१११९२, गुणिनि परितोषः / परिणाह शालिनी -कि० 1220, मृच्छ० 39, | परितोषण (वि०) [ परि+तुष्+णिच् + ल्युट् ] संतुष्ट रत्न० 2 / 13, महावी० 7 / 24 2. वृत्त की परिधि / ___करने वाला तृप्त करने वाला,--णम् संतुष्ट करना / परिणाहवत् (वि.) [ परिणाह+मतुप, मस्य वत्वम् ] | परित्यक्त. (भू० क. कृ.) [ परि+त्यज-+क्त ] 1. विशाल, बड़ा, विस्तृत / छोड़ा हुआ, उत्सृष्ट, सर्वथा त्यागा हुआ 2. वञ्चित, परिणाहिन (वि.) [ परिणाह+इनि] विशाल, बड़ा / रहित (करण के साथ) 3. (तोर आदि) छोड़ा -कू०१।२६।। हुआ 4. अभावग्रस्त / परिणिसक (वि.) परि+निस्+ण्वुल ] स्वाद चखने | परित्यागः [ परि+त्यज्+घ ] 1. छोड़ना, उत्सर्ग वाला, खाने बाला-पलानां परिणिसकः-भट्टि० 9/ करना, सर्वथा त्यागना, छोड़कर भाग जाना, (पत्नी 106 2. चुम्बन / आदि का) सम्बन्ध विच्छेद - अपरित्यागमयाचदात्मनः परिणिष्टा [ परि-+-निष्ठा प्रा० स० ] पूरा कौशल। --रस० 12, कृतसीतापरित्याग:-१५।१ 2. छोड़ देना, परिणीत (भ. क. कृ०) [ परि+नी+क्त ] विवाहित त्यागना, फेंक देना, विरक्त होना, गद्दी छोड़ देना, -ता विवाहित स्त्री। ----स्वनाम परित्यागं करोमि पंच० 1, "मैं अपना परिणेतु (पुं०) [ परि+नी+तृच् ] पति-श० 5 / 17, नाम छोड दूंगा'---मनु० 2 / 25 3. अवहेलना, भूलरघु० 1025, 14 / 26, कु० 7 / 31 / / चूक-मोहात्तस्य (कर्मणः) परित्यागस्तामसः परिकीपरितर्पणम् [परि+तृप्+ल्युट ] तृप्त करना, सन्तुष्ट तितः ... भग० 187 4. वदान्यता, उदारता 5. करना। हानि, कंगाली। परितस् (अव्य.) [परि+तस् ] (संज्ञा के साथ प्रायः परित्राणम् [ पपि++ल्युटु ] संधारण, संरक्षण, बचाना कर्म में, कभी-कभी स्वतंत्र रूप से प्रयोग) 1. इर्दगिर्द, प्रतिरक्षा, मुक्ति, छुटकारा-परित्राणाय साधूनां मब ओर, घुमा फिराकर, सब दिशाओं में, सर्वत्र, विनाशाय च दुष्कृताम्-भग० 418, रामापरित्राण चारों ओर-रक्षांसि वेदि परितो निरास्थत्--भट्रि० / विहस्तयोधं सेनानिवेशं तुमुलं चकार-रघु० 5 / 49 / For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 585 ) परित्रासः [परि--स-+घञ | त्रास, भय, डर / धूसर (वि.) [ परितः सर्वतोभावेन धूसरः-प्रा० स०] परिर्दशित (वि.) [परि+देश+क्त ] कवच से ढका | बिल्कुल भूरा-बसने परिधूसरे वसाना-श० 7 / 21, हुआ, आपादमस्तक शस्त्रों से सुसज्जित (पूर्णतया रघु० 11160 / जिरहबख्तर से युक्त)। परिधेयम् [ परि+धा+यत् ] अधोवस्त्र, नीचे पहनने का परिदानम् [परि+दा+ल्युट ] 1. विनिमय, अदला- | कपड़ा। बदली 2. भक्ति 3. धरोहर का वापिस मिलना। | परिध्वंसः [परि+ध्वंस्+घञ ] 1. दुःख, विनाश, बरपरिदायिन् (पुं०) [ परि+दा-+-णिनि ] वह पिता जो बादी, कष्ट 2. असफलता, विध्वंस, संहार 4. जाति अपनी पुत्री का विवाह ऐसे पुरुष से करता है जिसका च्यति / बड़ा भाई अभी तक अविवाहित है-तु० 'परिवेत्तृ' / परिध्वंसिन् (वि.) [परि+ध्वंस्+णिनि ] 1. गिर कर परि (री) वाहः [परि+दह-+घञ, पक्षे उपसर्गस्य ___अलग होने वाला 2. बर्बाद होने वाला, नष्ट हो जाने दीर्घः ] 1. जलन 2. व्यथा, पीडा, दुःख, शोक। वाला-हि० 2 / 134 / परिदेवः [परि+दिव+घञ ] शोक मनाना, मातम, | परिनिर्वाण (वि०) [प्रा० स०] बिल्कुल बुझा हुआ, विलाप। –णम् (भ्यक्ति की) अन्तिम विलुप्ति, परिमति / परिदेवनम्,-ना, परिदेवितम् [परि+दिव् + ल्युट्, | परिनिर्वत्तिः (स्त्री०) [परि+निर -वत+क्तिन् / परि+दिव+क्त] 1. विलाप, विलखना, रोना-धोना- आत्मा की शरीर से पूर्णमुक्ति, पुनर्जन्म से छुटकारा, अथ तैः परिदेविताक्षर:--कु० 4 / 25, रघु 0 14 / 83, पूर्ण मोक्ष / भग० 2 / 28, तत्र का परिदेवना--याज्ञ० 3 / 9, हि० परिनिष्ठा [प्रा० स०] 1. (किसी वस्तु का) पूरा ज्ञान 4161 2. पश्चात्ताप, खेद / या परिचय, 2. पूर्ण निष्पत्ति 3. चरम सीमा। परिदेवन (वि.) [ परि+दिव् + ल्युट् ] शोकसंतप्त, | परिनिष्ठित (भू० क कृ०) ] परि+नि+स्था+क्त ] खेदजनक, दुःखी। 1. पूर्ण कुशल 2. सुनिश्चित-अपरिनिष्ठितस्योपदेशपरिद्रष्ट्र (पं०)[परि---दश---तच ] तमाशबीन, दर्शक / स्यान्याच्यं प्रकाशनम् -पालवि०१। परिघर्षणम् [परि+धूप+ल्युट ] 1. हमला, आक्रमण, | परिपक्व (भू० क० कृ०) [परि+पच्+क्त ] 1. पूरी बलात्कार 2. अपमान, निरादर, तिरस्कार 3. दुर्व्यव- तरह पका हुआ, 2. भलीभाँति सेका हुआ, 3. बिल्कुल हार, रूखा व्यवहार / पक्का, प्रौढ़, सिद्ध, पूर्णता को प्राप्त (आलं. भी) परि (री) आनम् [परि+धा-+ ल्युट, पक्षे उपसर्गस्य --प्रफुल्ललोध्रः परिपक्वशालि:---ऋतु० 411, इसी दीर्घः] 1. कपड़े पहनना, वस्त्र धारण करना 2. पोशाक, प्रकार–परिपक्वबुद्धिः 4. सुसंबधित, समझदार, अधोवस्त्र, कपड़े आत्तचित्रपरिधानविभूषा:-कि० काइयाँ 5. पूरी तरह पचा हुआ 6. मुनि वाला, 9 / 1, शि० 1151, 61, 4 / 61 / मृत्यु के निकट / परिघानीयम् [ परि+था+अनीयर् ] अधोवस्त्र, नाभि | परिपणं (नम्) [परि+पण+घ प्रा०स०] पूंजी, मूलसे नीचे का पहरावा। धन, वारदाना / परिधायः [ परि+धा+घञ्] 1. नौकर-चाकर, अनुचर परिपणनन [ परि+पण+ल्युट ] वादा करना, प्रतिज्ञा टहलुए 2. आधार, आशय 3. नितंब, चूतड़ / करना। परिधिः [परि+धा+कि ] 1. दीवार, मेंड, बाड़, घेरा | परिपणित (भू.क.कृ.)[परि--पण्+क्त] वादा किया 2. सूर्य या चन्द्रमा का परिवेश - परिचेमक्त इवोष्ण- हुआ, वचन दिया हुआ, प्रतिज्ञा की हुई-शि०७।९। दीधितिः - रघु०८।३०, शशिपरिधिरिवोच्चमडलस्तेन | परिपंथकः परि+पन्थ--- बुल] शत्रु, विरोधी, दुश्मन / तेने--०२११०८ 3. प्रकाशमंडल 4. क्षितिज | परिपंथिन् (वि.) [ परिपंथ-णिनि ] रास्ता रोकने 5. परिधि या वृत्त 6. वृत्त की परिधि 7. पहिये का बाला, रोड़ा अटकाने वाला, विरोध करने वाला, घेरा 8. (पलाश' आदि पवित्र वृक्ष की) समिधा.या विघ्न डालने वाला (पाणिनि के मतानुसार केवल लकड़ी जो यज्ञकुण्ड के चारों ओर रक्खी रहती है...... वेद में मान्य, परन्तु तु० नीचे दिए हुए उद्धरणों से)सप्तास्यासन् परिधयः त्रि: सप्तः समिधः कृता:-ऋक अर्थपरिपंथी महानरातिः—मुद्रा० 5, नाभविष्यमहं 10190 / 15 / सम०--पतिखेचरः शिव का विशेषण तत्र यदि तत्परिपंथिनी-मा० 9 / 50, इसी प्रकार -स्थ: 1. चौकीदार 2. किसी राजा या सेनापति का भामि० 1162, भग० 3 / 34, मनु० 7 / 108, 110 सहायक अधिकारी)। (पुं०) रिपु, शत्रु, प्रतिद्वन्दी, दुश्मन 2. लुटेरा, चोर परिधूपित (वि.) [परिधूिप-क्त ] धूप द्वारा सुवासित डाक। या सुगंधित किया हुआ। | परि (री) पाकः [ परि+पच्+घञ, पक्षे उपसर्गस्य For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - 10, शिशु स्त्रिी०) [पार - डीप्] 1. ( 586 ) दीर्घः ] 1. पूरी तरह से पकाया जाना या संवारा | परिपोषणम् [ परि+पुष्+ ल्युट ] 1. खिलाना-पिलाना, जाना 2. पचना, जैसा कि 'अन्नपरिपाक' में 3. पक भरण-पोषण 2. आगे बढ़ाना, उन्नति करना। जाना, परिपक्वन, विकास, पूर्णता - शि० 4 / 48, कु० / परिप्रश्नः [प्रा०स०] पूछताछ, प्रश्नवाचकना, सवाल, 6 / 10 4. फल, नतीजा, परिणाम प्रपन्नानां मूर्तः कतरकतमी जाति परिप्रश्ने-पा०२।१।६३, 333 / 110 सुकृतपरिपाको जनिमताम् महावी० 7 / 31, भर्त० तद्विमि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया--भग० 4 / 34 / 2:132, 3 / 135 5. चतुराई, दूरदर्शिता, कुशलता। परिप्राप्तिः (स्त्री०) [प्रा० स०] अधिग्रहण, उपलब्धि / परिपाटल (वि.) [प्रा०स०] पीला लाल--रघु० परिप्रेष्यः [प्रा०स०] सेवक / 10, शिशु 13142 / परिप्लब (वि०) [ परि+प्ल-अच् ] 1. वहला हुआ परिपाटिः,-टी (स्त्रिी०) [परि भागेन पाटिः पाटनं गतिः 2. थरथराता हुआ, कांपता हुआ, डोन्टना हुआ, यस्या-प्रा०ब०स०, परिपाटि-+-डीष] 1. प्रणाली, हिलोरे लेता हुआ, कम्पायमान 3. अस्थिर, चंचल---- रीति, प्रक्रम ---पाटीर तव पटीयान्कः परिपाटीमिमा- शि० 14168, -- व: 1. जलप्लावन 2. जल में मुरीकर्तृम् -भामि० 1112, कदंबानां वाटी रसिक डुबोना, गीला करना 3. किश्ती, नाव 4. उत्पीड़न, परिपाटी स्फुटयति-हंस० 24 2. व्यवस्था, क्रम, अत्याचार। उत्तराधिकार। परिप्लुत (भू.क.कृ.) [परि-प्लु | क्त | 1. वादग्रस्त, परिपाठः [प्रा०स०] परिगणना, पूर्ण निर्देशन, पूरा विवरण। जलप्लावित 2. घबड़ाया हुआ, व्याकुल जैसा कि परिपाल (वि.) [अत्या०स०] निकट, पार्श्व में, पास, शोक म 3. आद्रीकृत, क्लिन्न, स्नात,तम् उछल नजदीक ही। छलांग,-ता शराब। परिपालनम् [परि+पल्+णि+ल्युट] 1. भली-भांति / परिप्लुष्ट (भू०क० कृ०) [परि- प्लप -- क्त) जला हुआ, पालना, रक्षा करना, संधारण करना, संभाले रखना, झुलसा हुआ, भनभनाया हुआ। जीवित रखना-क्लिश्नातिलब्धपरिपालनवृत्तिरेव परिब (व) हः परिव (व) ई-छन / अनुचर, श० 5 / 6 2. भरण पोषण, संवर्धन-जातस्य परि- नौकर-चाकर, टहलए इयं प्रचु परिवहमा भवत्या पालनम् -- मनु० 9 / 27 / संवर्यताम् .. दश०१०८ 2. उपस्कर, घर के अन्दर परिपिष्टकम् [परि+पिप्+क्त-कन] सीसा / का सामान परिवर्डवंति वेश्मानि.-...रघ० 1415, परिपीडनम् [परि+पीड़--ल्युटु) 1. निचोड़ना, भींचना / __ "उपयुक्त सामान से सुसज्जित कमर" 3. राज चिह्न 3. क्षति पहुँचाना, चोट लगाना, नुकसान पहुंचाना। 3. संपत्ति, धनदौलत / परिपुटनम् [परि+पुट्+ल्यूट] 1. हटाकर अलग करना परिव (य) हणम् [ परि+व (व) ई --ल्युट् ] 1. 2. बल्कल या छाल उतारना। अनुचर, नीकर-चाकर 2. बनाव-सिंगार, काट-छांट 3. परिपूजनम्, परिपूजा [परि--पूज् + ल्युट, प्रा०स०] सम्मान : वृद्धि 4. पूजा / करना, पूजा करना, अर्चना करना / परिबाधा [प्रा० स० ] 1. कप्ट, पीड़ा, सनापन 2. थकापरिपूत (भू.क.कृ.) [गरि+पू+कत] 1. विशुद्ध किया | वट, उग्र व्यथा / गया, विशुद्ध --- उत्पत्तिपरिपूतायाः किमस्याः पावनांतरः परिव (व) हणम् [ परिव (व) ह / ल्यूट ] 1. उत्तर० 1113, शि०२।१६ 2. पूरी तरह फटका ! समृद्धि, कल्याण 2. परिशिष्ट, सम्पूरक / हुआ, पिछोड़ा हुआ, भूसी से पृथक् किया हुआ। परिबं (व) हित (भू० क० कृ०) 1. वढ़ा हुआ, आवधित परिपूणम् [परि+पूर--ल्युट् ] 1. भरना --शि० 4 / 61 2. फलाफूला, समृद्ध हुआ 3. से युक्त, मंपन्न,--तम् 2. पूर्णता को पहुँचाना, पूरा करना। हाथी की चिंघाड़।। परिपूर्ण (भू०००) [परि+पूर+क्त] 1. पूरी तरह / परिभंगः [ प्रा० स० ] छिन्नभिन्न होना टूट कर टुकड़े भरा हुआ, ...इंदु: पुरा चौद, समस्त, साग, भली / होना। भाति भरा हुआ 2. स्वसंतुष्ट, संतप्त। परिभर्सनम् [ परि-भन्गं ल्यूट ] धमकाना, घड़कना / परिपूर्तिः (स्त्री०) परि+पूर - कितन् | पूर्णता, पर्याप्तता। परि (रो) भवः [ परि-भू अप, पक्षे उपमर्गग्य दीघं. परिपुच्छा [परि+प्रच्छ -...अड+टाप] पूछ-ताछ, प्रश्न / 1. अपमान, क्षति पहुंचाना, प्रतिष्ठा भंग, निकार, परिपेलय (वि.) [प्रा०स०] अति कोमल, सूक्ष्म, अत्यन्त निगदर, मानहानि पराक्रमः परिभवे बयान्यं मरनेमृदु। विा (भूपणग)-शि०८८, 10 1137 वणी. परिपोटः,-पोटक: पिरि--पुट+घञ परिपोट - कन] / 1125, महावी० 180, 3 / 27 2. हार, गगजय / (आयु. में) एक प्रकार कर्ण रोग (जिसमें कान | सम-आस्पदम्.--पदम् 1. घृणा का पात्र, हि की खाल गलने लगती है)। 3151 2. अपमान, अपमानपूर्ण स्थिति,--विधि: For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत क म अप महावी० पट वा ( 587 ) प्रतिष्ठाभंग-प्रायो मुर्खः परिभवविधौ नाभिमानं परिभ्रमः [ परि-भ्रम्+घा] 1 घूमना, इधर उधर तनोति-शृंगार 16 / | टहलना 2. घुमा-फिरा कर बात कहना, वाग्जाल, परिभविन् (वि.) (स्त्री०--नी) [ परि+भु+ इनि 1. वक्रोक्ति 3. भूल, भ्रम / मानहर, तुच्छ, अनादर या घृणायुक्त व्यवहार करने ] परिभ्रमणम् [ परि+भ्रम् + ल्युट् ] 1. घूमना, इधर उधर वाला 2. अपमानग्रस्त, तिरस्कार, पीडित / टहलना, पर्यटन 2. चारों ओर घूमना, चक्कर काटना, परिभावः [ परि-भू---घा ] दे० 'परिभव' / परिधि। परिभाविन (वि.) (स्त्री.....नी [परि+भ-णिनि / परिभ्रष्ट (भू० क० कृ०) [परि-/-भ्रंश्+क्त ] 1. गिरा 1. मानमर्दन करने वाला, पणा करने वाला, तिरस्कार- हुआ, स्खलित 2. बच कर निकला हुआ 3. फेका हुआ, यक्त व्यवहार करने वाला... श०४ 2. लज्जित अध:पतित 4. वञ्चित, शून्य (अपा० या करण के करने वाला, आगे बढ़ जाने वाला, श्रेष्ठ होने वाला साथ) 5. अवहेलना करने वाला। 3. तुच्छ समझने वाला, उपेक्षा करने वाला वैद्ययत्न | परिमंडल (वि.) [प्रा० ब० स०] गोलाकार, गोल, परिभाविनं गदम् रघ० 19453, औषधोपचार की | वर्तलाकार, -- लम् पिंड, गोलक 2. गेंद 3. वृत्त / उपेक्षा करने वाला। परिमंथर (वि०) [प्रा० स०] अत्यन्त मंद, शि० 9 / 78 / परिभाषाग [ परि+भा + ल्युट ] 1. वार्तालाप, प्रवचन, परिमंद (वि०) प्रा० स०] 1. अत्यंत मंद, धुंधला, बिल्कुल बातचीत करना, गपशप लगाना, गप्पे हांकना 2. फीका परिमंद सूर्यनयनो दिवस:--शि० 9 / 3 2. निन्दाभिव्यक्ति, धिक्कारना, झिड़की, अपशब्द 3. अत्यंत मंद 3. बहुत थका हुआ... शि. 9 / 32 4. नियम, विधि। बहुत थोड़ा---शि० 9527 / परिभाषा [ परिभाष-+-अ-+-टाप् ] 1. व्याख्यान, प्रव- | परिमरः [ परि-मृ / अप् ] विनाश-चिरात् क्षत्रस्यास्तु चन 2. निन्दा, झिड़की, कलङ्क, गाली 3. पारिभाषिक | प्रलय इव घोर: परिमरः-महावी० 3 / 41 / शब्दावली, पारिभाषिक पदाबलो, (किसी ग्रंथ में परिमदः, परिमर्दनम् [परि---मृद+घा, ल्युट वा] प्रय क्त) तकनीकी शब्दावली-इति परिभाषा प्रकर- | 1. रगड़ना, पीसना 2. कूचलना, पैरों के नीचे रोदना णम् सिद्धा०, इको गुणवद्धीत्यादिका परिभाषा ___3. विनाश 4. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना __महा0 4. (अतः) कोई सामान्य नियम, विधिया 5. आलिंगन, परिरंभण। परिभाषा जो सर्वत्र घट सके (अनियमनिवारको परिमर्षः पिरि--मष+घञ ] 1. ईर्ष्या, अरुचि 2. क्रोध / न्याय विशेषः), परितः प्रमिताक्षरापि सर्व विषयं | परिमलः [ परि-+-मल+अच ] 1. सुगंध, सुवास, सौरभ, प्राप्तवती गता प्रतिष्ठाम्, न खलु प्रतिहन्यते कदाचित महक-परिमलो गीर्वाणचेतो हरः... भामि० 1163, परिभाषेव गरीयसी यदाज्ञा-शि० 16180 5. किसी 66,70,71, मेघ० 25 2. सुगंधयुक्त पदार्थों का भी पुस्तक में प्रयक्त संकेत था संक्षेपकों की सूची 6. पीसना 3. सुगंधद्रव्य 4. सहवास अथपरिमलजाम(व्या० में) पाणिनि के अन्य सूत्रों में मिला हुआ वाप्यलक्ष्मीम-कि०१०११ 5. विद्वत्सभा 6. कलंक, व्याख्यानात्मक मूत्र जो उन सूत्रों के प्रयोग की रीति धब्बा। बतलाता है। परिमलित (वि.) [परि+मल+क्त ] 1. सुगंधित परिभुक्त (भू० क० कृ०) [ परि---भुज+क्त ] 1. 2. कलुषित, सौन्दर्य भ्रष्ट / खाया हुआ, प्रयोग में लाया हुआ 2. उपभुक्त 3. | परि(री)माणम् [ परि-+मा+ल्युट, पक्षे उपसर्गस्यदीर्घः] अधिकृत। 1. मापना, (शक्ति या ताक़त की) माप-सद्यः परिभुग्न (वि.) [परि+भुज्+क्त ] विनत, वक्रीकृत, परात्मपरिमाण विवेकमूढः- मुद्रा०१११०, कु० 208, झका हुआ। मनु० 8 / 133 2. तोल, संख्या, मूल्य-याज्ञ० 2262, परिभूतिः (स्त्री०) [परि-भू+क्तिन् ] तिरस्कार, 1319 / अपमान, अनादर, अवमानना-मुद्रा०४।११। परिमार्गः, परिमार्गणम् [ परिमार्ग---घा , ल्युट वा ] परिभूषणः [ परि+भूष--ल्युट ] किसी भूमि का समस्त 1. हूंढना, खोज करना, तलाश करना, पता लगाना, राजस्व छोड़ कर जो संधि की गई हो। पदचिह्न देखते हुए खोज निकालना 2. स्पर्श, सम्पर्क परिभोगः [ परि--- भुज+घञ्] 1. उपभोग-रघु० -शि० 775 3. साफ़ करना, पोछना। 4 / 45 2. विशेष कर मैथुन,-रघु० 11452, 19 // | परिमार्जनम् (परि-+मज-णि +ल्यट] 1. मांजना, 21, 28 / 30 3. दूसरे के सामान का अवैध प्रयोग। साफ़ करना, झाड़-पोंछ करना 2. घी और शहद से परिभ्रंशः [परि-भ्रंश+घा 11. बच निकलना 2. | बनी मिठाई। गिरना। परिमित (भू० क. कृ.) [परि-+मा+क्त ] 1. मध्यम, For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 588 ) मितव्ययी 2. सीमित 3. मापा हुआ, नपातुला | शिथिल 3. क्षीण, निस्तेज, हतप्रभ 4. मलिन, 4. विनियमित, समंजित / सम-आभरण (वि.) कलंकित / थोड़े आभूषण धारण करने वाला, मध्यमरूप से | परिरक्षकः [ परि---रक्ष-वल ] रक्षा करनेवाला, अभिअलंकृत, --आयुस् (वि०) अल्पायु, थोड़ी उम्र जीने भावक / वाला,-आहार,---भोजन (वि०) परहेज़गार, मिता- परिरक्षणम्, परिरक्षा [परि---रक्ष + ल्यट, अङ्ग-+टाप हारी, कमभोजन करने वाला,-कथ (वि.) थोड़ा / च] 1. रक्षा, संधारण, देखभाल करना---- मनु० 9 / बोलने वाला, मितभाषी, नपे तुले शब्द बोलने वाला 54, 72 2. ध्यान रखना, बनाये रखना, पालन--मेघ० 83 / पोषण-न समयपरिरक्षण क्षमते-कि० 1145, परिमितिः (स्त्री०) [परि+मा+क्तिन् ] 1. माप, परि- 3. छुटकारा, बचाव। माण 2. सीमाबंधन / परिरथ्या [प्रा० स० ] गली, सड़क / परिमिलनम् [परि-मिल+ल्यट] 1. स्पर्श, संपर्क, परि(रो) रंभः, परिरंभणम् [परि---रम् ---पत्र, पक्षे उपरत्न० 2012 2. सम्मिश्रण, मेल / / सर्गस्यदीर्घः, परि+रभ - ल्युट | आलिंगन करना, परिमुखम् (अव्य०) [अव्य० सं०] मुंह के सामने, (किसी अंक में भर लेना द्रुतपरिरंभनिपीडनक्षमत्वम्-शि० ___ के) इर्द गिर्द, चारों ओर / 1 / 74, 10152, उत्तर० श२४,२७, कि पुरेव ससंपरिमुग्ध (वि.) [परि+मुह.+क्त ] 1. भोला भाला, भ्रम परिरंभणं न ददासि—गीत०३।। प्रिय, सरल, मनोहर 2. आकर्षक परन्तु मूर्ख / परिराटिन् (वि.) परि+रट् + घिनुण] जोर से परिमदित (भ० क.कृ.)[परि+मद+क्त] 1. पैरों चिल्लाने वाला, चीखने वाला, रट लगाने वाला। तले रौंदा हुआ, कुचला हुआ, पददलित, दुर्व्यवहार- | परिलघु (वि०) [प्रा० स०] 3. बहुत हल्का (शा०), प्रस्त -परिमदितमणालीम्लानमंगम-मा० 122, (कपड़ा आदि) 2. बहुत हल्का या जल्दी पचने उत्तर० 124 2. आलिंगित, परिरंभंण किया हआ वाला—क्षीणः क्षीणः परिलघु पयः स्रोतसां चोपभुज्य 3. मसला हुआ, पीसा हुआ। ---मेघ 13 3. बहुत छोटा -उत्तर० 4 / 21 / परिमष्ट (भू० क० कृ०) [परि-+मज-+-क्त ] 1. धोया परिलुप्त (भू० क० कृ०) परि-लप+क्त ] 1. अन्त हुआ, मांजा हुआ, शुद्ध किया हुआ 2. मसला हुआ, र्बाधित, सबाघ, घटाया हुआ 2. नष्ट, लुप्त / स्पर्श किया हुआ, थपथपाया हुआ--वेणी० 3 परिलेखः परि +लिख-प] 1. रूपरेखा, आलेखन, 3. आलिंगन 4. फैला हुआ, ब्याप्त, भरा हुआ-कि० चित्रण, खाका 2. चित्र। 6 / 23 / परिलोपः [परि+लुप+घञ्] 1. क्षतिः 2. उपेक्षा, परिमेय (वि.) [परि--मा-+यत् ] 1. थोड़े, सीमित--- भूलचूक / परिमेयपुरः---सरो-रघु० 1137 2. जो मापा जा परिवत्सरः [प्रा० स०] वर्ष, एक समूचा वर्ष, वर्ण का सके, गिना जा सके 3. सान्त, जिसकी सीमा हो, आवर्तन .... देव्या शन्यस्य जगतो द्वादशः परिवत्सरः समापिका / -उत्तर० 3 / 33 / परिमोक्षः [परि---मोक्ष-घा] 1. हटाया, मुक्त / परिवर्जनम् [परि+वृज् + ल्युट] 1. छोड़ना, त्यागना, करना--प्रायो विषाणपरिमोक्षलघूत्तमांगान बङ्गाश्च- तजना 2. छोड़ देना, तिलांजलि देना 3. दय, हत्या / कार नृपतिनिशितैः क्षुरप्रैः-रघु० 9 / 62, सींगों को परि (री) वर्तः परि-न-वृत्--घा, पक्षे उपसर्गस्य हटाना- अर्थात् सींग तोड़ डालना2. मुक्त करना, दीर्घः] 1. परिक्रमण, (ग्रह अ का) घूमना 2. स्वतंत्र करना, छुटकारा 3. खाली करना, मलत्याग कालचक्र, कालक्रम, कालगति---युगशतपरिवर्तान् 4. बच निकलना 5. मोक्ष, निर्वाण / ---शं० 734 3. यग का अन्त शि० 17.12 4. परिमोक्षणम् [ परि+मोक्ष् + ल्युट / 1. मुक्ति, छुटकारा आवत्ति, पुनरावर्तन परिवर्तन, अदल-बदल-तदी2. खोल देना। दशो जीवलोकस्य परिवर्तः... उत्तर० 3, 'जीवन को परिमोषः [परि+म+घञ ] चुराना, लुटाना, चोरी। परिवर्तित अवस्था' 'परिस्थितियों में अदल-बदल', इसी परिमोषिन् (पुं०) ] परि+मुष-+-णिनि ] चोर, लटेरा। प्रकार जीवलोकपरिवर्तमनभवामि-मा० 7, स्वर परिमोहनम् [प्रा० स०] 1. बहकाना, प्रलोभन देना, परिवर्तः मृच्छ०१6. प्रत्यावर्तन, पलायन, अपक्रमण फुसलाना, मंत्रमुग्ध करना 2. व्यामोहित करना, प्रेम 7. बर्ष 8. पुनर्जन्म, आवागमन 9. विनिमय, अदलामें अन्धा करना। बदली-शि० 5 / 39 10. पुनरागमन, वापसी 11. परिम्लान (भू० क० कृ०)[परि---म्ला- वत] 1. मुझाया आवास 12. किसी पुस्तक का अध्याय या परिच्छेद हुआ, मूछित, कुम्हलाया हुआ, कु० 2 / 2 2. धान्त, 13. कर्मावतार, विष्णु का दूसरा अवतार / For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 589 ) परिवर्तक (वि.) [परि-वृत् +-णिच-+ण्वुल] 1. घुमाने दोषारोपण करने वाला, वादी, अभियोक्ता,---नी वाला, चक्कर देने वाला 2. बदला चुकाने वाला, | सात तारों की वीणा, शि०६।९, रघु० 8 / 35 / वापिस करने वाला। परि (री) वापः [ परि+व+घञ, पक्षे उपसर्गस्य परिवर्तनम् [परिवृत्+ल्युट्] 1. इधर उधर घूमना, दीर्घः] 1. मुंडन या हजामत करना, मूंडना या बाल इधर उवर मड़ना (बिस्तर आदि पर) करवटें बदलना काटना 2. बोना 3. जलाशय, पल्वल, पोखर, जोहड़ -कु० 5 / 12, रघु० 9 / 13, शि० 4 / 47 2. इधर 4. सामान (घरका) 5. नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग। उधर मुंह फिराना, चक्कर काटना, चकराना 3. | परिवापित (वि.) [परि-वणिच्+क्त मुंडा हआ क्रान्तिकाल, चक्र का अन्त 4. बदलना-वेपपरिवर्तनं जिसके बाल कटे हुए हो या जिसने हजामत करा ली हो। विधाय--पंच० 3 5. अदला-बदलो, विनिमय 6. | परि (री) वारः [ परिब्रियते अनेन / परि ---|-धा, पलटना, उलटना। पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः] 1. नौकर-चाकर, अनुचरवर्ग, परिवर्तिका [परि-| वत् +-अवल-टाप, इत्वम्] (आयु०) टहलए, अनुयायो - (यानं) अध्यास्य कन्या परिवार लिंग की अग्रत्वचा का सिकुड़ जाना / शोभि-रघु० 610, 12 / 16, ग्रहगणपरिवारो परिवतिन् (वि०) परि-1-वत णिनि | 1. इधर उधर राजमार्ग प्रदीपः----मच्छ० 1157 2. ढक्कन, चादर मड़ने वाला, घूमने वाला 2. सदा प्रत्यावी, वार 2 3. म्यान, कोष। आने वाला, परिवतिनि संसारे भृतः को वा न जायते | परिवारणम् [ परि + वृ- णिच् -ल्युट ] 1. ढक्कन, पंच० 1127 3. बदलने वाला 4. निकट रहने लिफाफ़ा 2. नौकर चाकर, अनुचर 3. दूर हटाना / वाला, इधर उधर पाने वाला प्रत्यावर्ती, पलायन परिवारित (भू० क०कृ० ) [ परि+-+गिच्+क्त ] शील 6. विनिमय गोल 7. क्षतिपूर्ति करने वाला, ___ 1. परिवेष्टित, लपेटा हुआ, घरा हुआ 2. व्याप्त, बदला देने वाला। फैलाया हुआ. शि० 3 / 34 कि० ५।४२,---तम् ब्रह्मा परिवर्धनम् [परि-+-वृथ् / ल्युट | 1. बढ़ना, विस्तृत होना | का धनष। 2. संवन, पालन-पोषण करना बड़ा होना, | परिवासः [ परि+वस्'--घन ] आवास स्थान, ठहरना, ला, विस्तृत होना, परिवासः / , प्रवास, बसे वृद्धि: परिवसथः [परितो बसन्ति अत्र ----परि बस् / अथ] गाँव। परि (री) वाहः [ परि+बह --- घन, पक्षे उपसर्गस्य परिवहः [परि+वह-अच्| वायु के सात मार्गों में एक दीर्घः / (तालाव का)। -----छठा मार्ग, इसी मार्ग से सप्ताष घूमते हैं तथा / परिवाहिन् (वि.) [परि+वह --णिनि छलकता हुआ, आकाश गंगा बहती है,-सप्तपिचक्र स्वर्गगां षष्ठः जैसा कि-आनन्दपरिवाहिणा चक्षुपा--०४। परिवहन्तथा-- वायु के दूसरे मार्गों के लिए दे० | परिविण्णः (नः), परिवित्तः, परिधित्तिः [परि--विद / 'वायु' के नीचे, तु० -कालिदास द्वारा दिये गये परि क्त, पक्षे नत्वणत्वयोरभावः, परि-|-विद्-+-क्तिच्] वह के वर्णन -त्रिस्त्रोतसं वहति यो गगनप्रतिष्ठा अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह ज्योतीषि वर्तयति च प्रविभक्तरश्मिः, तस्य द्वितीय हो गया हो दे० मनु० 31171, 'परिवेत' भी। हरिविक्रमनिस्तमस्कं वायोरिमं परिवहस्य वदंति परिविद्धः [परि+व्य-क्त कुबेर का विशेषण / मार्गम् ---श०७।६। परिधिदकः, परिविंवत् (पं०) परि---विद्... एवल, शत परि (री) पादः |परि-बदना , पक्षे उपसर्गस्य दीर्गः) वा] विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविकलंक, निन्दा, बदनामी, गाली ..अयमेव भयि प्रथम वाहित हो। परिवादरतः..--- मालवि० 1, याज० 15133 2. लोका- परिविहारः [परितो विहारः प्रा०स०] इधर उधर सैर पवाद, कलंक, दूपण, अपकीर्ति--मा भूत्परोवादन करना, घूमना, टहलना / वावतार:---रघु० 5 / 24, 14186, महावी० 5 / 28 | परिविह्वल (वि०) [प्रा०स०] अत्यन्त व्याकुल, क्षब्ध या 3. दोषी ठहराना, दोषारोपण करना-मृच्छ० 3 / 30 घबड़ाया हुआ। 4. सारंगी बजाने का उपकरण / परिवृढः परि+बुंह+क्त स्वामी, प्रभु, मालिक, प्रधान, परिवादकः परि+व+णि -- बुल] 1. वादी, अभि- मख्य (विशेषण की भांति भी प्रयुक्त)- कि भुवः योक्ता, दोषारोपक 2. सारंगी बजाने वाला। परिवढा न विवोढुं तत्रतामुपनता विवदंते-नै० 5 / 52, परिवादिन् (वि०) परि- बद्---णिनि खरीखोटी सुनाने कु०१२।५८, महावी० 6 / 25, 31,48 / वाला, निन्दा करने वाला, गाली देने वाला, बुरा-भला | परिवृत (भू०क००) [परि+-+क्त] 1. घिरा हुआ, कहने वाला 2. दोषारोपण करने वाला 3. चीखने / परिवेष्टित, सेवित 2. प्रच्छन्न, गुप्त 3. व्याप्त, फैला वाला, चिल्लाने वाला 4. निमिदत, कलंकित--(पं) हुआ 4. ज्ञात / For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीछे मुड़ा हुआ विक्रम० 1 / 17 2. प्रत्या, परिवेष्टनम् [ परिमय किया हुआ भला-बदली किया हुआ, तित... 2. परिधि 3. वेष्ट ल्युट् ] 1. घेरना. ( 590 ) परिवस (भू.क.कृ.) [परि-|-वृत्+क्त] 1. घुमा हुआ, परिवेष्टनम् [ परि+वेष्ट्--ल्युट ] 1. घेरना, लपेटना मोड़ा हुआ अर्धमुखी विक्रम० 1117 2. प्रत्यावर्तित | 2. परिधि 3. ढक्कन, आवरण। पीछे मड़ा हआ 3. अबला-बदली किया हुआ, विनि- परिवेष्ट (50) [ परि+वेष्ट -तच | भोजन के समय मय किया हुआ 4. समाप्त किया हुआ, अन्त किया / सेवा करने वाला, भोजन परोसने वाला मरुतः परिहुआ, ---तम् आलिंगन / वेष्टारो मरुतस्थावसन् गृहे .. ऐत०।। परिवत्तिः (स्त्री०)[ परि-+-वृत् / क्तिन् ] 1. क्रांति -- परिव्ययः / प्रा० स०11. लागत, मल्य 2. भिममाला। शि० 10 / 91 2. वापसी, लोटना 3. विनिमय, ! परिव्याधः परि-+-मथ--- नरकुटना सरकंडे की अदला-बदली 4. अन्त, समाप्ति 5. घेरा 6. किसी एक जाति / स्थान पर टिकना, बसना 7. ( अलं० शा० ) एक परिवज्या परि। न वयम् गा]1. चहलकदमी करना, अलंकार जिसमें किसी समान, कम या बड़ी बस्तु से जगह जगह घूमते फिरना 2. सन्यासी होना, साथ विनिमय हो परिवतिविनिमयो योऽर्थानां स्यात्समा- नहात्माओं का जीवन बिताना 3. सांसारिक मोहमाया समैः-काव्य० १०-उदा०-दत्त्वा कटाक्षमेणाक्षो जग्राह का त्याग, वैराग्य में अन राग, धार्मिक साधना / हृदयं मम, मया तु हृदयं दत्त्वा गृहीतो मदन ज्वरः / परिवाज (पुं०) परिवाजः, जकः [ परित्यज्य सर्वान् विषसा० द०७३४ 8. अर्थ को बिना बदले एक शब्द यभागान् ब्रजति परिव -क्विप्, घन, एबुल् के स्थान में दूसरा शब्द रखता, जैसा कि --- शब्दपरि वा ] भ्रमणशील साथ, अवधत, तपस्वी, सन्यासी वृत्तिसहत्वम् काव्य 0 10 उदा० 'वृषध्वज' में 'ध्वज' (चौथे आश्रम में) जिसने सांसारिक मायामोह का के स्थान में लांछन या वाहन लगाया जा सकता है। त्याग कर दिया हो। परिवद्धिः (स्त्रिी०) [प्रा०स०] संवर्धन, बढ़ती, उन्नति / परिशाश्वत (वि.) (स्त्री० ती) [ प्रा० स० | सदा के रिवेदक: [ प्रा०स० 1 विवाहित छोटा ! लिए उसी रूप में बना रहने वाला। भाई जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो . रघु० 120- परिशिष्ट (वि०) [परि ।-शिप-+क्त | छोड़ा हुआ, बचा 16, ज्येष्ठे अनिविष्ट कनीयान् निविशन् परिवेत्ता / हुआ, .. ष्टम् सम्पूरक, अतिरिक्त जैसा कि गत्य भवति, परिविष्णो ज्येष्ठः, परिवेदनीया कन्या, परि-! परिशिष्ट'। दायी दाता, परिकर्ता याजकः, सर्वे ते पतिता:---- | परिशीलनम् [ परि+शील ल्यट ] 1. स्पर्श, सम्पर्क हारीत / (शा०)-ललितलवंगलतापरिशीलनकोमलमलयसमीरे परिवेवन परि-विद् + ल्युट] 1. बड़े भाई के अविवाहित ----- गीत० 1, इसी प्रकार - बदनकमलपरिशीलन रहते छोटे भाई का विवाह 2. विवाह 3. पूरा या मिलित .....11 2. अनवरत सम्पर्क, आपसीमेलसही ज्ञान 4. उपलब्धि, अधिग्रहण 5. अग्न्याधान,-- जोल, पत्र व्यवहार 3. अध्ययन, (किसी वस्तु में) 1160 6. सर्वव्याप्ति, विश्वव्यापी या विश्व- आसक्ति, स्थिर या निश्चित बत्ति काव्यार्थ० सत्ता, ना 1. समझदारी, बुद्धिमानी 2. बुद्धिमत्ता, सा० द०। दूरदर्शिता। परिशुद्धिः (स्त्री) [प्रा० स० 11. पूर्ण शुद्धि, अग्नि" परिवेदनीया, परिवेविनी [ परि+विद --अनीयर-+-टाप उत्तर०४ 2. दोष-शुद्धि, रिहाई। परि---विद --णिनि+की उस छोटे भाई की पत्नी परिशष्क (भ० के० कृ०) [ परि-|-शुल् + क्त] 1. पूरी जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो। तरह सूखा हुआ, सुखाया हुआ, तपापा हुआ,... तृपा परि (री) वेशः (षः) [परि---विश् (प)+घञ, पक्षे महत्या परिशुष्कतालवः ऋतु० 1 / 11 2. मुझाया उपसर्गस्य दीर्घः] 1. भोजन के समय सेवा करना, हुआ, कुम्हलाया हुआ, (गालों की भांति) चिपका भोजन बांटना, भोजन परोसना 2. वृत्त, चक्र, (दीप्ति) हुआ, --कम् एक प्रकार का तला हआ मांस / मंडल - रघु० 5 / 74, 6 / 13, शि० 5 / 52, 1749 | परिशून्य (वि.) [प्रा० स०] बिल्कुल खाली, रधु० 3. (विशेषतः) सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल -- लक्ष्यते 8 / 66 2. सर्वथा स्वतन्त्र, नितान्त शून्य. 19 / 6 / / स्म तदनन्तरं रविर्बद्धभीम परिवेषमंडल: .-रघ० | परिशृतः [परि+ +क्त ] तीक्ष्ण मदिरा। 11 / 52 4. वृत्त की परिधि 5. सूर्यबिंब, चन्द्रबिब परि (री) शेषः [ परि+शिव+घा, पक्षे उपसर्गस्य 6. कोई वस्तु जो घेरती है या रक्षा करती है। दीर्घः ] 1. बचा हुआ, बाकी 2. परिशिष्ट 3. रामाप्ति, परिवेषकः [ परि+विष --प्रवल ] भोजन परोसने वाला। उपसंहार, संपूर्ति / परिवेषणम् [ परि+विष+ल्युट ] 1. भोजन परोसना, | परिशोधः, परिशोधनम् [परि--शुध, घा ल्युट्] 1. युद्ध (सेवा के लिए) प्रस्तुत रहना, भोजन वितरण करना करना, मांजना 2. छुटकारा, भारावतरण, (ऋण 2.लपेटना, घेरना 3. सर्यमंडल, चन्द्रमंडल 4. परिधि / आदि का) भुगतान। For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 591 ) परिश्रमस्य पद - भतु [ऊचे वर्ष, परिसंवर परिशोषः [ परि+शुप्- घन | बिल्कुल सूख जाना, / परिष्वक्त (भू० क० कृ०) [ परि+स्वंज्+क्त ] परिरब्ध पूरी तरह भुन जाना। आलिगित या आलिंगनबद्ध / परिश्रमः परिश्रम् / घा ] 1. थकान, थक कर परिष्वंगः [ परि-स्वंज- घन | 1. आलिंगन-कि० पर 2 होना, कष्ट, पीड़ा .आत्मा परिश्रमस्य पद- 18 / 19, हि० 3.67 2. स्पर्श, सम्पर्क, मेल-मिलाप मपनीतः श०१, रघु० 1158, 11 / 12 2. चेष्टा, - भतुं० 3 / 17 / उद्योग, गहन अध्ययन, लगातार व्यस्त रहना - आये परिसंवत्सर (वि.) [ऊर्ध्व संवत्सरात्-अव्य० स० / अनाधिमोऽस्मि चतु.पष्टयंगे ज्योतिः शास्त्रे-मद्रा०१० पूरा एक वर्ष का, - रः पूरा वर्ष, परिसंवत्सरात् पूरे परिश्रयः [ परिधि ....अन् ] 1. सम्मिलन, सभा 2. / एक वर्ष से ऊपर,-मनु० 3 / 119 / शरण, आथय। , परिसंख्या [ परि+सम् +ख्या+अङ+टाप्] 1. गिनती, परिश्रान्तिः (स्त्री०) परि-1-श्रम् / क्तिन् ] 1. थकान, संगणना 2. योगफल, जोड़, पूर्ण संख्या- वित्तस्य ऊब, काट, पककर चूर चूर होना 2. उद्योग, चेष्टा / विद्यापरिसंख्या मे— रघु० 5 / 21 3. (मीमांसा. परिश्लेषः परि ! शिलप्- घञ् | आलिंगन / में) अपाकरण, विशेष विवरण, स्पष्ट रूप से बताई परिवद (सी०) परित: सीदन्ति अस्याम परि-1-सद् गई ऐसी सीमा जिससे कि विहित वस्तुओं से भिन्न -विर | 1. सभा, सम्मिलन, मन्त्राणासभा, श्रोत- सभी वस्तुओं का निषेध हो जाय; परिसंख्या-विधि गण अभिरूपभूयिष्ठा परिषदियम् - श० 1 2. (जो पहली बार विधान किया जाय) तथा नियम धर्मसभा, मीमांसासभा / / (विविध विकल्पों में से किसी विशेष विकल्प का परिषदः, परिषद्यः / परितः सीदति परि+सद् - अच्, चनाव) का विपरीतार्थक शब्द; विधिरत्यन्तमप्राप्ती यत् / किसी सभा का सदस्य या मेंबर।। नियमः पाक्षिके सति, तत्र चान्यत्र च प्राप्तो परिपरिषेकः, परिषेचनम् | परि-सिच् + घन, ल्युट् ] पानी संख्तेति गीयते / उदा० 'पंच पंचनखा भक्ष्याः'मीमांसको छिड़कना या उडेलना, गीला या तर करना / द्वारा बहुधा उद्धत), मनु० 3 / 45 पर कुल्लू०-अयं परिष्कगण (न्न) (वि०) | परिस्किन्द- क्त, णत्वं वा ] नियमविधिन तू परिसंख्या 4. (अलं० में) विशेष दूसरे रो पालित, पणः पोष्यपुत्र, जिसे किसी अपरि- उल्लेख या एकान्तिक विशेष विवरण, अर्थात् जहाँ चितन पाला पोसा हो। जाँच करके या बिना किसी पछताछ के किसी बात परिष्कं (स्कम् ) द (वि.) [ परि-स्कन्द ---घi ] की पुष्टि की जाय जिससे कि किसी अन्य वैसे ही दूसरे के हारा पाला गया, दः 1. पोप्य पुत्र 2. भृत्य, वस्तु का अभिहित या अध्याहृत खंडन हो (श्लेष पर सबक। आधारित होने की स्थिति में यह अलंकार विशेष परिष्कारः परि ---|-अप, सुट्, पत्वम् ] सजावट, प्रभावोत्पादक होता है) यस्मिश्च महीं शासति चित्रअलंकृत करना। कर्मसु वर्णसंकराश्चापेषु गुणच्छेदाः आदि या-यस्य परिष्कारः / परि+क+घञ, सुट् पत्वम् ] 1. सजावट, नूपुरेषु मुखरता विवाहेषु करग्रहणं तुरंगेषु कशाभिआभूपण, अलंकरण 2. पाचनक्रिया, खाना पकाना धातः का०, अन्य उदाहरणों के लिए देखो--सा० दोक्षा, आरंभिक संस्कारों द्वारा पवित्रीकरण 4. (घर का) सामान ('परिस्कार' भी इस अर्थ में)। / परिसंख्यात (भू० क० क०) 1. गिना हुआ, हिसाब लगाया परिष्कृत (भू० क० कृ०) [ परि+क+क्त. सुट, षत्वम् ] | हुआ 2. एकान्तिकरूप से विशिष्ट या निर्दिष्ट / 1. अलंकृत, सजाया हुआ-कि० 7140 2. पकाया | परिसंख्यानम् [परि+संख्या ल्युट ] 1. गिनती, जोड, गया. प्रसाधित किया गया 3. आरंभिक संस्कारों द्वारा पूर्णसंख्या 2. एकान्तिक विशेष निर्देश 3. मही अभिमन्त्रित (दे० परि पूर्वक 'कृ') ('परिस्कृत' भी __ अनुमान, ठीक अंदाजा। इस अर्थ में)। परिसंचरः [परि+सम्+च+अच् ] विश्वप्रलय का परिष्क्रिया [ परि+क+श -टाप, सुट् ] अलंकरण, सजा- समय। बट, शृंगार। परिसमापन, परिसमाप्तिः (स्त्री०) [परि+सम-+-आप परिष्टो (स्तो) मः | परि + स्तु+मन्, षत्वं वा ] 1. हाथी -ल्युटु, क्तिन् ] समाप्त करना, पूरा करना। की रंगीन झुल 2. आच्छादन, आवरण / परिसम्हनम् [परि+सम्+ऊह+ल्युट ] 1. एकत्र परियं (स्पं) H परि+सांद्+घ, षत्वं वा] करना, ढेर लगाना 2. (अग्नेः समन्तात् मार्जनम् ) 1. नौकर-चाकर. अनुचर 2. (फलों से) केश शृंगार यज्ञाग्नि के चारों ओर (विशेष रीति से) जल 3. शृंगार, सजावट 4. बड़कन, थरथराहट, धकधक, छिड़कना। स्पंदन 5. खाद्यसामग्री, संवर्धन 6. कुचलना / | परिसरः [परि+स+घ ] 1. तट, किनारा, सामीप्य, For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधि। आसपास, पड़ौस, पर्यावरण (किसी नदी, पहाड़ या ! परिहाणिः (निः) (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. घटी, कमी, नगर का)-गोदावरीपरिसरस्य गिरेस्तटानि -उत्तर नुकसान 2. मुझाना, क्षीण होना ..-रघु० 19 / 50 / 318, परिसरविषयेषु लोढमुक्ताः कि० 5 / 38, परिहार्य (वि०) | परि+ह धा ] कतराये जाने के 2. स्थिति, स्थान 3. चौड़ाई, अर्ज 4. मृत्यु 5. नियम, योग्य, टाले जाने के योग्य, जिससे बचा जाय, जिसे ले जाया जाय या दूर किया जा ..यः कंकण / परिसरणम् [ परि+स+ल्यूट ] इधर-उधर दौड़ना। परि (री)हासः | परि+हस्। घन 11. मखौल, मज़ाक, परिसर्पः [ परि-सप्घा ] 1. इधर-उधर घूमना, हँसी, ठठा -त्वराप्रस्तावोऽयं न खल परिहासस्थ 2. खोज में निकलना, पीछा करना, अनुसरण करना विषयः---मा० 6 / 14, परिहासपूर्वम् - मखौल में, 3. घेरना, मण्डलाकार करना / हँसी दिल्लगी में ..-रघु०६।८२- परिहासविजल्पितम् परिसर्पणम् [परिस-+ ल्युट | 1. चलना, रेंगना -श० 2 / 18, मखौल में कहा हआ--परीहासाश्चित्राः 2. इधर-उधर दौड़ना, उड़ना, भागना-पतंगपतेः सततमभवन येन भवतः, वेणी० 3.14, कृ० 719, परिसर्पणे च तुल्यः-मृच्छ० 3 / 21 / रघु० 918, शि. 10 / 12 2. हँसी उड़ाना, उपहास परि (री) सर्या, परि (री) सारः [ परि+स-!-श+यक करना / सम० --वेदिन् (पुं०) विदूषक, हंसोकड़ा, +टाप् घा वा पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः ] इधर उधर रसिक व्यक्ति। घूमना फिरना, प्रदक्षिणा, फेरी। | परिहृत (भू० क० कृ०) [ परि--हृ० का] 1. कनराया परिस्तरणम् [परि-स्तु-यट ] 1. विछाना, फैलाना, हुआ टाला हुआ 2. छोड़ा हुआ, परित्यक्त इधर उधर बखेरना 2. आवरण, ढक्कन / 3. निराकृत, अपास्त (आरोप या आपत्ति आदि) परिस्फुट (वि.) [प्रा० स०] 1. सर्वथा समतल, व्यक्त, 4. लिया हुआ, पकड़ा हुआ---दे० परिपूर्वक 'ह'। स्पष्टगोचर 2. पूर्णविकसित, फूला हुआ, बढ़ा हुआ। परीक्षकः [ परि+ईक्ष ।-एल] परीक्षा लेने वाला, जाँच परिस्फुरणम् [परि+स्फुर+ल्यूट ] 1. कंपकंपी, थरथरी करने वाला, न्याय करने वाला। 2. कली का खिलना। परीक्षणम् | परि-।- ईक्ष + ल्युट ] जाँच पड़ताल करना, परिस्यवः [ परि+स्यन्द -।-घा ] 1. रसना, बूंद 2 टप- परखना, इम्तहान लेना -- मनु० 11117 / कना, चूना 2. बहाव, धारा 3. अनुचरवर्ग.-दे० परीक्षा परि+ईक्ष+अ+टाप ] 1. इम्तहान, जाँच, परिष्यंद' / परख-पत्तने विद्यमानेऽपि प्रामे रत्नपरीक्षा--मालवि० परित्रवः [परि---अप] 1. वहना, बहाव 2. नीचे 1, मनु० 9 / 19 2 (विधि में) जांच-पड़ताल के सरकना 3. नदी, निर्झर / विविध प्रकार / परित्रावः [ परि ----णिच् +अच् ] निकास, निस्राव / परीक्षित् (50) [ परि+क्षि-+-विप, तुक, उपसर्गस्य परिजुत् (स्त्री०)[परि / जु+क्विम् + तुक,] 1.एक प्रकार दीर्घः ] अर्जुन का पौत्र, अभिमन्यु का पुत्र, युधिष्ठिर __ की नशीली शराब 2. रिसना, टपकना, वहना।। के पश्चात् यही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठा; साँप परित्ता परिसूत ।-टाप् ] 1.एक प्रकार की मादक शराव द्वारा काटे जाने पर इसकी मत्य हई। कहते हैं। 2. रिसना, टपकना, बहना। इसी के राज्य से कलियग का आरंभ हुआ। परिहत (वि.) [परि-+-हन+क्त ] ढीला किया हआ। परीक्षित (भ० क० कृ०) [परि+ईश्+क्त ] परखा परिहरणम् [परि++ ल्युट ] 1. छोड़ना, तजना, तिला- किया, जाँच पड़ताल की गई--परीक्षितं काव्यसूवर्ण जलि देना 2. टालना, कतराना 3. निराकरण करना मेतत्-विक्रम० 1124 / 4. पकड़ना, ले जाना।। परीत (भ० क० कृ०) [परि +5+क्त ] 1. घिरा हआ, परि (री) हारः परि+हु+घञ , पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः] पर्यावत 2. समाप्त हुआ, बीता हुआ 3. विगत, व्यतीत 1. छोड़ना, तजना, तिलांजलि देना, त्याग देना 4. पकड़ा हुआ, अधिकार में किया हुआ, भरा हुआ2. हटाना, दूर करना जैसा कि 'विरोधपरिहार' में कोषपरीतमानसम्-कि० 2 / 25, मुद्रा० 3 / 30 / 4. निराकरण करना, निवारण करना 5. उल्लेख न | परोताप, परीपाक, परीवार, परीवाह, परीहास आदि.....दे करना, भूल, चूक 6. आरक्षण, गप्त रखना 7. गाँव परिताप' आदि / या नगर के चारों ओर सामान्य भूखण्ड --धनः गतं / परीप्सा [परि+आप+सन् +अ+टाप्] 1. प्राप्त करने परीहारो ग्रामस्य स्थान्समंतत:--मनु० 8 / 237 की इच्छा 2. जल्दी, शीघ्रता। 8. विशेष अनुदान, छट, विशेषाधिकार, शक्ल से | परीरम् 14.!-ईग्न् ] एक फल / माफ़ी या छुटकारा मनु० 7 / 201 9. तिरस्कार, | परोरणम् [परिईर् + ल्युट] 1. कछुवा 2. छड़ी 3. अनादर 10. आपत्ति। पोशाक, वेशभूषा / For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परीष्टिः (स्त्री०) [परि+इप--क्तिन्] 1. अनुसंधान, | खलीकर्त शक्यते न ममाग्रत:--- मालवि.२, परोक्षे पूछताछ, गवेपणा 2. सेवा, परिचर्या 3. आदर, पूजा, कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम-नाण० 18, नोदाश्रद्धाजलि। हरेदस्य नाम परोक्षमपि केवलम् -- मनु० 2 / 119 / पहः [प+उ] 1. जोड़, गाँठ 2. अवयव, अंग 3. समुद्र 4. सम-भोगः स्वामी की अनुपस्थिति में किसी वस्तु स्वर्ग, वैकुण्ठ, 5. पहाड़। का उपभोग,---वृत्ति (वि०) आँखों से दूर रहने वाला परुत् (अव्य०) [पूर्वस्मिन वत्सरे-इति पूर्वस्य परभावः उत् (ति:--स्त्री०) अदृष्ट और अज्ञात जीवन / च गत वर्ष, पिछला साल / परोष्टिः, परोष्णी [ पर+उप--क्तिन् परः शत्रु: उष्णो परवारः | ब० स० घोड़ा। यस्याः व० स०] तेलचट्टा (झींगुर के आकार काले परुष (वि.) [4--उपन] 1. कठोर, रूखा, सरूत, कड़ा रंग का एक कीड़ा)। (विप० मृदु या इलक्ष्ण) परुपं चर्म, परुपा माला- | पजन्यः [प-शन्य, नि० पकारस्य जकार:] 1. बरसने आदि 2. (शब्द आदि) कट, अपभाषित, निष्ठुर, वाला मेघ, गरजने वाला बादल, बादल या मेघ . निष्करुण, क्रूर, निर्मम, (वाक) अपस्पा परुषाक्षर- प्रवद्ध इब पर्जन्यः सारंगैरभिनंदित:--रघु० 17 / 15, मीरिता--रघु० 9 / 8, पंच० 1150, (व्यक्ति भी) यंत नदयो वर्षतु पर्जन्या:-तै० सं०, मच्छ० 10 // 60 गीत० 9, याज्ञ० 11309 3. (शब्द) कर्णकटु, अरु. 2. वाग्गि, अन्नाद्भवंति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः चिकर-तेन वनपरुषस्वनं धनः रघु० 11146, मेघ० भग० 3 / 14 3. वृष्टि का देवता अर्थात् इन्द्र / 4. रूखा, स्थल, वरदरा, (वाल) मैला-कुचला। पर्ण (चुरा० उभ०-पर्णयति-ते) हराभरा करना--.वसंतः शुद्धस्नानात्परुपमलक...-मेघ० 19 5. तीक्ष्ण, प्रचण्ड, पर्णयति चम्पकम् / मजबूत, उत्सुक, (वायु आदि) वेधक ----परुपपवनवे पर्णम् [पर्ण + अन्] 1. पंख, बाजू जैसा कि 'सुपर्ण' में गोतिक्षप्तसंशुष्कपर्ण:ऋतु० 1 / 22, 2 / 28 6. ठोस, 2. बाण का पंख 3. पत्ता 4. पान का पत्ता,--णः ढाक गाढ़ा 7. मलिन, मैला, पम् कठोर या दुर्वचनय क्त का पेड़। सम० ----अशनम् पत्ते खाकर जीना (नः) भाषण, अपभाषण / मम० ---इतर (वि०) जो रूखा बादल, -- असिः काली तुलसी,....आहार (वि०) पत्ते न हो, कोमल, मृदु---रघु० ५।६८,-उक्तिः -यच- खाकर निर्वाह करने वाला, - उटजम पत्तों की कुटिया, नम् अपभापित / साधुओं की झोपड़ी, आश्रम,--कारः पनवाड़ी, तमोली, पवस् (नपुं०) [प-उस] 1. सन्धि, प्रन्थि, जोड़, गाँठ 2. पान बेचने वाला,-कुटिका, - कुटी पत्तों की बनी अवयव, गरीर का अंग / कुटिया,.-कृच्छः प्रायश्चित्त संबंधी साधना जिसमें परेत (भू० क० कृ०) [पर-इ+त] दिवंगत, मृत्य प्राप्त, प्रायश्चितकार को पाँच दिन तक पत्ते और कुशाओं मृत -तः प्रेत, भून / सम०-भर्तृ, राज् (पुं०) का काढ़ा पीकर रहना पड़ता है, दे० याज्ञ० 31317, मृत्यु का देवता, यमराज शि० ११५७,-भूमिः इसके ऊपर मिताक्षरा भी,...खंडः फलपत्तों के बिना (स्त्री०),--वासः कब्रिस्तान कु०६८ / वक्ष (-डम) पत्तों का ढेर,----चीरपटः शिव का परेवि, परेवः (अव्य०) परस्मिन अहनि, नि० माध०] विशेषण, - चोरकः एक प्रकार का सुगंध द्रव्य,--नरः दूसरे दिन, और दिन / पत्तों से बनाया गया पुतला जो अप्राप्त शव की जगह परेष्टुः (स्त्री०), परेप्ट का [पर+इप तु, परेप्टु+कन् रखकर जलाया जाता है,-मेदिनी प्रियंगुलता, +टाप्] वह गाय जो कई बार व्या चुकी हो। -भोजनः बकरी,-मुब् (पुं०) जाड़े की मौसम, परोक्ष (वि०) [अक्षण: परम--अ० स०] 1. दष्टिपरास शिशिर ऋतु,---मगः वृक्षों की शाखाओं पर रहने वाला स परे, या बाहर, जो दिखाई न दे, अगोचर 2. जंगली जानवर, - रुह (पुं०) वसंत ऋतु,--लता पान अनुपस्थित-स्थाने वृता भूपतिभिः परोक्षः ...रघ० की बेल ---,वीटिका पान का बीड़ा,-शय्या पत्तों की 7113 3. गप्न, अज्ञान, अपरिचित परोक्षमन्मथो सेज, .. शाला पनों की बनी कुटिया, साधुओं का ---- जनः -ग. 2018, 'काम के प्रभाव से अपरिचित' आश्रमनिर्दिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य---रघु० -हि०प्र० १०,-क्षः सन्यामी,---क्षम 1. अनुपस्थिति 1195, 12 / 40 / अगोचता 2. (व्या० में) भूतकाल (जो वक्ता ने न | पर्णल (वि०) [ पर्ण-लच 1 पत्तों से भरा हुआ, पतों देखा हो) परोक्षे लिट-पा० 3 / 115, 'परोक्ष' के वाला--भट्रि० 6 / 143 / कर्म०, नया अधिक के ए० 0 .-(अर्थात परोक्षम्, | पर्णसिः[-असि, णुक ] 1. पानी के मध्य बड़ा भवन, गरो) अनपस्थिति में' 'दष्टि में पर' पीठ पोले। ग्रीम भवन 2. कमल 3. शाक सब्जी 4. सजावट अर्थ का प्रकट करने के लिए क्रियाविशेषण के रूप में | प्रसाधन, शृंगार। प्रयक्त होते है (सब के बिना, या साथ)—परोक्षे / पणिन (40) [ पर्ण+इनि ] वृक्ष / For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पवित्र / पणिल (वि.) [ पर्ण+इलच् ] दे० 'पर्णल' / पर्यवदात (वि०) [प्रा० स० ] पूरी तरह शुद्ध और पर्द (भ्वा० आ०-पर्दते) पाद मारना, अपानवायु छोड़ना। पर्दः [पर्द+अच् ] 1. केश समूह, घना बाल 2. पाद, पर्यवरोधः [ प्रा० स० ] बाधा, विघ्न / अपान वाय। पर्यवसानम | प्रा० स०] 1. अन्त, समाप्ति, उपसंहार ?. पर्पः [+] 1. नया उगा घास 2. पंगु-पीठ, पंगुगाड़ी निर्धारण, निश्चयन / / --येन पीठेन पंगवश्चरंति स पर्यः-पा० 4 / 4 / 10 पर्यवसित (भू० क० कृ.) [ परि + अव | सोक्त ] 1. पर सिद्धा. 3. घर। समाप्त किया गया, अन्त तक किया हुआ, पूरा किया पर्परीकः [पृ-नईकन् ] 1. सूर्य 2. आग 3. जलाशय, हुआ 2. नष्ट, लप्त 3. निर्धारित / तालाब / पर्यवस्था, पर्यवस्थानम् [परि+अब+स्था |-अङटाप, पर्यक (अव्य.) [ परि+अंच+क्विप ] चारों ओर, सब स्यूट वा ] 1. विरोध, मुकाबला, बाधा 2. वैपरीत्य / दिशाओं में। पर्यभु (वि.) [प्रा० ब० स०] आँसुओं से भरा हुआ, पर्यकः [ परिगतः अङ्कम्-अत्या० स.] 1. खाट, पलंग, अपरिप्लावित, आँस बहाने वाला, अश्रयक्त- पर्य सोफा 2. अरूमाली 3. समाधि-अवस्था में योगी के अणी मंगलभंगभीरुन लोचने मीयित विषेहे---कि० बैठने की विशेष अंगस्थिति-योगासन 4. वीरासन 3136, पर्यश्रुरस्वजत मर्धनि चोपजघ्रौ-- रघु० -~-बसिष्ठ द्वारा दी गई परिभाषा--एक पादमर्थक- 13170 / स्मिन् विन्यस्योरौ दु संस्थितम्, इतरस्मिस्तथैवोरु पर्यसनम् [ परि+अस+ल्युट् / 1. फेंकना, इधर उधर वीरासनमुदाहृतम् / पर्यंकग्रंथिबंध आदि-मच्छ० डालना 2. भेजना, धकेलना 3. भेज देना, 4. स्थगित 111 / सम०--बंधः जांध के सहारे बैठने की स्थिति करना। जिसे 'पर्यंक' कहते हैं, पर्यंकबंधस्थिरपूर्वकायम् / पर्यस्त (भ० क० कृ०) [परि---अस् / क्त ] 1. इधर -कु० ३४५,५९,-भोगिन् (पुं०) एक प्रकार उधर फेंका गया, बखेरा गया पर्यस्तो धनंजयस्योपरि का साँप / शिलीमखासारः वेणी० 4, शि० 10111 2. घेरा पर्यटनम्, पर्यटितम् [ परि-+-अट् + ल्युट, क्त वा ] घूमना, हुआ, मण्डलाकृतः 3. उलटाया गया, उथला हुआ 4. इधर उधर भ्रमण करना, यात्रा करना। पदच्युत, एक ओर रक्खा हुआ 5. प्रहार किया हुआ, पर्यनुयोगः [ परि--अनु+ युज्+घञ्] किसी उक्ति का | चोट पहुंचाया हुआ, मारा हुआ। खंडन करने के उद्देश्य से पूछताछ (दूषणार्थ जिज्ञासा पर्यस्तिः (स्त्री०) पर्यस्तिका [परि+अस्+क्तिन, -हला०) एतेनास्यापि पर्यनुयोगस्यानवकाशः--दाय। पर्यस्ति+कन -!-टाप् ] वीरासन, पलंग / पर्यंत (वि.) [ प्रा० स०] से सीमा बद्ध, तक फैला हुआ पर्याकल (वि.) प्रा०स० / 1. मैला, गंदा (पानी -समद्रपर्यंता पथिवी---समुद्र की सीमा से आवद्ध आदि) 2. अव्यवस्थित, उद्विग्न, भयभीत-श 1 पृथ्वी,-तः 1. आवर्त, परिधि 2. गोट, किनारा, 3. क्रमहीन, अव्यवस्थित, उथल-पुथल-श० 1130 मंगजी, चरमसीमा, हद--उटजपर्यंतचारिणी-श० 4, 4. उत्तेजित, क्षुब्ध, घबरागा आ-पर्याकुलोऽस्मि पर्यन्तवनम् ---रघु० 13 / 38 ऋतु० 3 / 3 3. पार्श्व, .....श० 6, ऋतु० 6 / 22 5. भरा हुआ, पूरा-स्नेह, कक्ष--रत्न० 2 / 3, रघु० 18143 4. अन्त, उपसंहार, क्रोध' आदि / समाप्ति-पंच० 11125 / सम० - देशः-भः, पर्याणमा परि--या+ल्यट, पुषो०] जोन, काठी--दत्त..-भूमिः मिला हुआ या जुड़ा हुआ प्रदेश,-पर्वतः पर्याणम्--का० 126, जीन कसा हुआ। संलग्न पहाड़। पर्याप्त (भू० क० कृ०) [परि अप्+क्त ] 1. प्राप्त पर्यंतिका [ प्रा० स० ] अच्छे गुणों को हानि, भ्रष्टाचार, किया हुआ, हासिल किया हुआ, उपलब्ध 2. समाप्त नैतिक पतन / किया हुआ, पूरा किया हुआ 3. भरा हुआ, पूर्ण, पर्ययः परि-इ.+अच ] क्रान्ति, पतन, निःश्वास-काल- | समस्त, सारा, समग्र -पर्याप्त चन्द्रेव शरतत्रियामा पर्ययान्-पाज० 31217, मनु० 1130, 1127 2. - कु० 726, रघु०६।४४ 4. योग्य, सक्षम, यथेष्ट (समय की) बर्बादी, या खोना 3. परिवर्तन, अदल- रघु० 10155 5. काफी, यथोचित--रघु० 15 / 18, बदल. उलट-पुलट, अव्यवस्था, अनियमितता 5. 17 / 17 मनु० १११७,--प्तम् (अव्य०) 1. स्वेच्छाशास्त्रीय मर्यादा का अतिक्रमण, कर्तव्य की अवहेलना पूर्वक, तत्परता के साथ 2. ससन्तोष, काफी, यथेष्ट 6. विरोध / रूप से--पर्याप्तमाचामति उत्तर० 4 / 1, यथेच्छ पर्ययणम् [ परि + अय् + ल्युट् ] 1. चारों ओर घूमना, पी लेता है 3. पूरी तरह से, योग्यतापूर्वक, सक्षमता प्रदक्षिणा 2. घोड़े की जीन / के साथ। For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 595 ) पर्याप्तिः (स्त्री०) [ परि | आप + क्तिन् ] 1. प्राप्त / पर्युत्थानम् [परि+उद्+स्था+ल्युट्] खड़ा होना। करना, अधिग्रहण 2. अन्त, उपसंहार, समाप्ति 3. पर्युत्सुक (वि.) [प्रा०स० ] 1. शोक पूर्ण, खेद युक्त, काफी, पूर्णता, यथेष्टता 4. तृप्ति, संतोष 5. साधारण, खिन्न, दुःखद त्वम् शोक, रघु० 5 / 67 2. अत्यन्त प्रहार को रोकना 6. उपयुक्तता, सक्षमता। / इच्छुक, आतुर, सोत्सुक, प्रबल इच्छा रखने वालापर्यायः | परि-इ-घा ] 1. चक्कर लगाना, क्रान्ति स्मर पर्युत्सुक एष माधवः-कू० 4 / 28, विक्रम 2. (समय की) समाप्ति, व्यतीत होना, बीसना 3. / 16 / नियमित परावर्तन, या आवत्ति 4. बारी, उत्तराधि- पदचनम् [परि + उध+-अञ्चल्युट] 1. ऋण, उधार कार, उवित या नियमित क्रम -पर्याय सेवामत्सृज्य 2. उधार लेमा, उठाना, उद्धार करना। -कु० 2 / 36, मनु०४१८७, मुद्रा० 3 / 27 5. प्रणाली, स्त ( भू० क० कृ०) [ परि+उद्+अस्+क्त ] व्यवस्था 6. तरीका, रीति, प्रक्रिया की प्रणाली 7. 1. बहिष्कृत किया हुआ, निकाला हुआ 2. रोका गया समानार्थक, पर्यायवाची पर्यायो निधनस्यायं निध (नियमित) आपत्ति उठाई गई। नत्वं शरीरिणाम-पंच. 199, पर्वतस्य पर्याया बासः [ परि+उद्+अस्+घन ] अपवाद, निषेध इमे-आदि 8. सुष्टि, निर्माण, तैयारी, रचना 9. सुचक नियम या विधि / धर्म, गुण 10. (अलं० में) एक अलंकार ...दे० काव्य पर्यपस्थानम् [परि+उप-+स्था+ल्युट ] सेवा, टहल, 10, चन्द्रा०५।१०८, 109, सा० द. 723 (विशे० . उपस्थिति। पर्यायण क्रिया विशेषण के रूप में प्रयक्त होकर पर्युपासनम् [परि+उप+आस् + ल्युट] 1. पूजा, सम्मान, निम्नांकित अर्थ बताता है 1. बारी बारी से, उत्तरोत्तर, सेवा 2. मित्रता, शिष्टता 3. पास पास बैठाना / नंबरदार, नियमित क्रम से 2, यथावसर, कभी कभी पर्युप्तिः (स्त्री०) [परि- व+क्तिन्] बोना, बीजना / --पर्यायेण हि दृश्यते स्वप्नाः कामं शुभाशुभा:-वेणी० पर्युषणम् [परि+ उष् + ल्युट पूजा, अर्चा, सेवा। 2 / 13 / सभ० ... उपतम् एक अलंकार, धुमाफिरा कर पर्युषित (वि०) [परि+वस्- क्त] बासी, जो ताजा न कहना, वक्रोक्ति या वाकप्रपंच से कहने की रीति, | हो तु० 'अपर्युषित' 2. फीका 3. मूर्ख 4. घमंडी। जब बात को घुमा फिरा कर या वाग्जाल के साथ पर्यषणम् -णा [परि-इषु | ल्युट] 1. तर्क द्वारा गवेषणा कहा जाय . उदा० दे० चन्द्रा० 5166, या सा० द. 2. खोज, सामान्य पूछ-ताछ 3. श्रद्धांजलि, पूजा / 703, --च्युत (वि.) गुप्त रूप से उखाड़ा हआ, पर्येष्टिः (स्त्री०) [परि-।-इषु ।-क्तिन् ] खोज, पुछताछ / जिसका स्थान छलपूर्वक ले लिया गया है,-वचनम् / पर्वकम् [पर्वणा ग्रन्थिना कायति-पर्वन् / के-1-क] घुटने -शब्दः समानार्थक,-शयनम् बारी 2 सोना और का जोड़। चौकसी रखना। पर्वणी पर्व --ल्यूट, स्त्रियां डीप्] 1. पूर्णिमा, या शुक्लपर्याली (अव्य०) | परि | आ-|-अल-ई हानि या प्रतिपदा 2. उत्सव 3. (आय० में) आँख की संधि क्षति को (हिंसन) अभिव्यक्त करने वाला अव्यय जो का विशेष रोग। प्रायः कृ, गूथा अस् से पूर्व लगाया जाता है यथा | पर्वतः [ पर्व + अचच् ] 1. पहाड़, गिरि----परगुणपरपर्यालीकृत्य-हिसित्वा / माणुन्पर्वतीकृत्य नित्यम् भर्तृ० 2178, न पर्वताये पर्यालोचनम् -- ना [ परि- आ-लोच- ल्युट् ] 1. साव- नलिनी प्ररोहति 2. चट्टान 3. कृत्रिम पहाड़ या ढेर धानता, समीक्षा, विचार, परिपक्य विमर्श 2. जानना, 4. 'सात' की संख्या 5. वृक्ष। सम०-अरिः इन्द्र पहचानना। का विशेषण,- आत्मजः मैनाक पर्वत का विशेषण, पर्यावर्तः, पर्यावर्तनम् [ परि -आ -वृत् | घन , ल्युट वा] -आत्मजा पार्वती का विशेषण, --आधारा पृथ्वी, वापिस आना, प्रत्यागमन / ---आशयः बादल, आश्रयः शरभ नामक काल्पनिक पर्याविल (वि०) [प्रा० स०] बड़ा गदला, मैला, मिट्टी जंतू,--काकः पहाड़ी कौवा,—जा नदी, -- पतिः हिमामें भरा हुआ -रघु० 7140 / लय पहाड़ का विशेषण,--मोचाप हाड़ी केला,--राज पर्यासः [परि--अस्+घञ] 1. अन्त, उपसंहार, समाप्ति (पुं०),-राजः 1. विशाल पहाड़, 2. पर्वतों का 2. परावर्तन, क्रान्ति 3. उलटा क्रम या स्थिति / / स्वामी हिमालय,--स्थ (वि०) पहाड़ी, पर्वत र पर्याहारः [ परि+आ+ह-1-धा ] 1. बोझा धोने के स्थित / लिए कंधों पर रक्खा गया जूआ 2. ले जाना 3. बोझा, पर्वन् (नपुं०) [पृ+वनिप्] 1. गांठ, जोड़ (बहुव्रीहि भार 4. धड़ा 5. अनाज को भंडार में रखना। समास के अन्त में कभी कभी बदल कर 'पर्व' हो जाता पर्युक्षणम् [परि+उक्ष-|-ल्युट बिना किसी मन्त्रोच्चारण है जैसा कि 'कर्कशांगुलिपर्वया--- रघु० 12 // 41' में के चारों ओर चुपचाप जल के छींटे देना। . 2. अवयव, अंग 3. अंश' भाग, खण्ड 4. पुस्तक, For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 596 ) अध्याय (जैसा कि महाभारत में 5. जीने की सीढ़ी कर बनाई गई मिठाई, गजक। सम०-~-उबरः पित्त, -रघु० 16646 6. अवधि, निश्चित समय 7. विशष- ---प्रियः 1. पहाड़ी कौवा 2. राक्षस / कर, चन्द्रमा के चार परिवर्तन अर्थात् दोनों पक्ष की | पलवः [पल+वा+क] मछलियाँ पकड़ने का जाल या अष्टमी पूर्णिमा तथा अमावस्या 8. चन्द्रमा के परि- / टोकरी / वर्तन काल के अवसर पर अनुष्ठित यज्ञ 9. पूर्णिमा पलांडु (पुं०, नपुं०) [पलस्य मांसस्य अंडमिव-पल या अमावस्या,-अपर्वणि ग्रहकलषेन्दुमंडला विभावरी +अंड+कु प्याज---मनु० 5 / 5, याज्ञ. 1176 / कथय कथं भविष्यति --मालवि० 4 / 15, रघु० 7 / 33 | पलापः / पलं मासम् आप्यते बाहुल्येन अत्र-पल+आप मनु०४।१५०, भर्तृ० 2 / 34 10. सूर्य या चन्द्रमा | +धा ] 1. हाथी की पुटपुड़ी 2. पगहा, रस्सी। का ग्रहण 11. उत्सर्व, त्योहार, हर्ष का अवसर पलायनम् [परा- अय् + ल्युट रस्य ल: ] भागना, लोटना 12. सामान्य अवसर। सम-कालः 1. चन्द्रमा उड़ान, वच निकलना भग० 18043, रघु०१९:३१ का आवर्तिक परिवर्तन 2. वह काल जब चन्द्रमा | पलायित (भू० क० कृ०) [परा+अय-|-क्त ] भागा पर्वसन्धि में से गुजरता है (मिलते या निकलते समय), हुआ, लौटा हुआ, दौड़ा हुआ, बच निकला हुआ। -कारिन (पुं०) वह ब्राह्मण जो अमावस्या आदि पलालः --लम् [पल+कालन् ] पुआल, भसी-नै०८।२। के आवर्तिक अनुष्ठान या संस्कारों को अपने लाभ के सम० -- दोहदः आम का वृक्ष / कारण सामान्य दिनों में करता है, गामिन् (पुं०) पलालिः [पल+अल-+इन् ] मांस का ढेर।। पर्व आदि शास्त्र निषिद्ध अवसरों पर भी अपनी पलाशः [ पल--अश् + अण् ] एक वृक्ष, ढाक का पेड़ ... पत्नी से मैथुन करने वाला व्यक्ति,- धिः चन्द्रमा, . किशुकनवपलाशपलाशवनम् पूरः-शि० 6 / 2, शम् योनिः बेत, नरकुल,-रह (पुं०) अनार का वृक्ष,-- 1. इस वृक्ष का फूल - बालेंदुवक्राण्यविकाशभावाद्वभुः संधिः पूर्णिमा या अमावस्या तथा प्रतिपदा के मध्य पलाशान्यतिलोहितानि कु० 3129 2. पत्ता, पंखड़ी का समय, अर्थात् पूर्णिमा या अमावस्या को समाप्ति -.चलत्पलाशातरगोचरास्तरो:-शि० 121, 62 पर प्रतिपदा आरम्भ। 3. हरा रंग। पशुः [ परं शत्रु शृणाति-पर--शृ+कु स च डित् वा पलाशिन् (पू०) [ पलाश-+इन् ] ढाक का पेड़ / स्पृशति शत्रून्-...स्पृश्+शुन, पृ आदेशः] 1. कुठार, | पलिक्नी पिलित+अच, तस्य क्न, डाप्] 1.बढ़ी स्त्री जिसके कुल्हाड़ी-तु० 'परशु' 2. शस्त्र, हथियार। सम- बाल सफेद हो गये हों 2. पहली बार ही व्याई हुई पाणिः 1. गणेश का विशेषण 2. परशुराम का गौ, बालगभिणी। विशेषण / पलियः [ परि+हन्-+अप, घादेशः, रस्यर: ] 1. शीशे पशुका [पशु-कन् - टाप-] पसलो। का बर्तन, घड़ा 2. फसोल, परकोटा 3. लोहे की गदा पर्वधः[-परश्वधा +क, पपी० दे० 'परश्वध'। / .. तु० परिध 4. गौशाला, गोगह / पर्षद (स्त्री०) [पप्+अदि | 1. सभा, सम्मिलन, सम्मद | पलित (वि०) | पल+वत ] भूरा, धवल, सफेद बालों 2. विशेषकर धर्मसभा--याज्ञ० 19 / वाला, बद्ध, बढ़ा, तातस्य मे पलितमौलिनिरस्तकाशे पलः [पल् + अच् ] पुआल, भूसी,- लम् 1. मांस, आमिष (शिरसि) वेणी० ३.१९--तम् 1. सफेद बाल या 2. कर्प का तोल 3. तरल पदार्थों को मापने का भान वालों की सफेदी जो बदामे के कारण हर्द हो-कैकेयी4. समय मापने का मान / सम०-- अग्निः पित्त, शंकयेवाह पलितच्छमना जा रघु० 1212, मनु० –अंगः कछुवा, ...-अदः, ---अशन: पिशाच, राक्षस, 62. अधिक या अलंकृत केश। ----क्षारः रुधिर,---गंड: पलस्तर करने वाला, राज पलितकरण (वि.) अपलितं पलिनं क्रियतेऽनेन पलित -प्रियः 1. राक्षस 2. पहाड़ी कौवा,---भा मध्याह्न ---- ख्युन, मम् सफेद करने वाला। की विषवीय छाया -- अर्थात् मध्याह्न के समय धूपघड़ी पलितंभविषण (वि.)[ अपलितः पलितो भवति ....पलित के कील की तत्कालीन छाया।। -भ-+-खिष्णुच, मम् ] सफेद होने वाला। पलंकट (वि.) पलं मांस कटति-पल+कट् +खच, भुम् ] पल्यंकः [ परितः अक्यतेऽत्र, परि+अंक+घ रस्य ल: ] भीरु, बुजदिल / पलंग, खाट-दे० पर्यक / पलंकरः पलं मामं करोति--- पलम् + कृ--अच, द्वितीया पल्ययनम् [ परि+अय+ल्युट, रस्यल: ] 1. जीन, काठी या अलक पित्त / 2. रास, लगाम / पलंकषः [पलं कषति -पलम् ---कष्- अच, द्वितीयाया| पल्लः | पल्ल + अच | अनाज का बड़ा भंडार, खत्ती / अलुक ] 1. राक्षस, पिशाच, दानव, लम् 1. मांस पल्लवः--वम् [पल+विवप्.- पल, ल+अप-लव, पल 2. कीचड़, दलदल 3. पिसे हुए तिल व चीनी मिला- चासौ लवश्च कर्म० स०] 1. अंकुर, कोंपल, टहनी For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 597 ) हु आ-तम् काली मिर्च, पवित्र किया हुआ, छाना रो। सम० अंकुर करपल्लवः, लतेव संनद्धमनोज्ञपल्लवा-रघु० 117 / पवाका [पू+आप, नि० साधु: बवंडर, आँधी, झंझावात। 2. कली, मंजरी 3. विस्तार, फलाव, अभिस्तृति | पविः [पू+इ ] इन्द्र का वज। 4. लालरंग, महावर, अलक्त 5. सामर्थ्य, शक्ति | पवित (वि०) [पू+क्त ] पवित्र किया हुआ, छाना 6. घास की पत्ती 7. कंकण, बाजूबंद 8. प्रेम, केलि | 9. चञ्चलता,..वः स्वेच्छाचारी। सम०-अंकुरः, पवित्र (वि०) [पू+इत्र] 1. पुनीत, पावन, निष्पाप, ---आधारः शाखा, - अस्त्रः कामदेव का विशेषण, पवित्रीकृत (व्यक्ति या वस्तुएँ)-त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि ---D: अशोक वृक्ष। दौहित्रः कुतपस्तिलाः ---मनु० 3 / 236, पवित्रो नरः, पल्लवकः [ पल्लव-कै] 1. स्वेच्छाचारी 2. लौंडा, / पवित्र स्थानम् आदि 2. शुद्ध, छना हुआ 3. यज्ञादि गांड 3. रंडी का प्रेमी 4. अशोक वृक्ष 5. एक प्रकार के अनुष्ठानों द्वारा पवित्र किया गया 4. पवित्र की मछली 6. अंकुर। करना, पाप धोना,--त्रम् 1. छानने या शुद्ध करने का पल्लविकः [ पल्लवः शृंगारो रसः अस्ति अस्य -- पल्लव+ उपकरण, चलनी, झरना 2. कूश की दो पत्तियां जो ठन् ] 1. स्वेच्छाचारी, रसिया 2. लौंडा, बांका, यज्ञ में घी को पवित्र करने तथा छींटे देने के काम छल। आती है 3. कुशा की बनी अंगठी जो कई धार्मिक पल्लवित (वि०) [ पल्लव- इतन् / 1. अंकुरित होने अवसरों पर चौथी अँगुली में पहनी जाती है 4. जनेऊ वाला, नई 2 कोपलों से युक्त 2. फैला हुआ, विस्तृत / जो हिन्दुजाति के प्रथम तीन वर्ण पहनते हैं 5. तांबा -अलं पल्लवितेन 'बस रहने दो और अधिक विस्तार' 6. वृष्टि 7. जल 8. रगड़ना, मांजना 9. अर्घ्य देने 3. लाख से लाल रंग हुआ-त: लाखका रंग। का पात्र 10. घी 11. शहद, मधु / सम० आरोपणम्, पल्लविन (वि.) (स्त्री०-नी) [पल्लव-इनि] 1. नई 2 -आरोहणम् यज्ञोपवीत धारण करने का संस्कार, कोंपलों से युक्त, नये किसलयों वाला---कु० 3 / 54, | उपनयन संस्कार,-पाणि (वि०) दर्भघास को हाथ ___--- (0) वृक्ष / से थामने वाला,-धान्यम् जौ। पल्लिा,-पल्ली (स्त्री०) / पल्ल+इन्, पल्लि-+ ङीष् ] पवित्रकम् [पवित्र+के+क] सन या सुतली का बना 1. छोटा गाँव, 2. झोपड़ी 3. घर, पड़ाव 4. एक जाल या रस्सा। नंगर या कस्वा (नगरों के नामों के अन्त में प्रयुक्त पशव्य (वि.) [पश+यत् ] 1. मवेशियों (गाय भैसों जैसे कि त्रिशिरपल्लि) 5. छिपकलो। आदि) के लिए उचित या उपयुक्त. याज्ञ. 11321 पल्लिका [पल्लि+कन्+टाप् ] 1. छोटा गाँव, पड़ाव 2. पशुओं से या रेवड़ या लहंड़े से संबंध रखने वाला 2. छिपकलो। 3. पशुओं का स्वामी 4. पशुतापूर्ण / पल्वलम् [पल-- ववच 1 छोटा तालाब, छप्पड़, जोहड़, पशः [ सर्वमविशेषेण पश्यति .....दश-, पशादेशः] तडाग (अल्पं सरः) स पल्वलजलेऽधुना कथं 1. मवेशी, (एक या समष्टि) मनु० 327, 331 वर्तताम्-भामि० श३, रघु० 217,3 / 3, / सम० 2. जानवर 3. बलिपशु जैसे कि बकरा 4. नशंस, --आवासः कछुवा -- पंकः छप्पड़ का गारा, कीचड़ / जंगली, तिरस्कार प्रकट करने के लिए नर' वाचक पवः [T+अप् ] 1. वायु 2. पवित्रोकरण 3. अनाज फट- शब्दों के साथ जोड़ा जाता है... पुरुषपशोश्चपशोश्च कना-वम् गोवर। को विशेष:---हि० 1, तु० नृपशु, नरपशु 5. एक उपपवनः [ पू. ल्युट हवा, वायु सर्पाः पिबन्ति पवनं न च देवता, शिव का एक अनुचर। सम-अबदानम् पशुबलि दुर्बलास्ते-सुभा०, पवनपदवी, पवनसुतः आदि--नम् -क्रिया 1. बलियज्ञ की प्रक्रिया 2. स्त्रीप्रसंग,-गायत्री 1. पवित्रीकरण 2. फटकना 3. चलकी, झरना वह मन्त्र जो कि बलिके पश के कान में बोला जाता 4. पानी 5. कुम्हार का आवा (पु० भी)-नी झाड़। है, यह प्रसिद्ध गायत्री मंत्र हास्यमय अनुकृति हैसम-अशनः-भुज (पुं०) साँप,-आत्मजः 1. हनुमान पशुपाशाय विग्रहे शिरश्छेदाय (विश्वकर्मणे) धीमहि, का विशेषण 2. भीम का विशेषण 3. आग,... आशः तन्नो जीवः प्रचोदयात्,- घातः यज्ञ के लिए पशुओं साँप, सर्प,--नाशः 1. गरुड़ का विशेषण 2. मोर, का वध,-चर्या सहवास, स्त्री प्रसंग, धर्मः 1. पशुओं ---तनयः,.... सुतः 1. हनुमान का 2. भीम का विशेषण, को प्रकृति या लक्षण 2. पशुओं की चिकित्सा 3. -~-व्याधिः 1. कृष्ण के सलाहकार और मित्र उद्धव स्वच्छन्द मंथन... मनु० 9 / 66 4. विधवाविवाह, का विशेषण 2. गटिया / -नाथः शिव का विशेषण,---प: ग्वाला--पतिः 1. पवमानः [पू+शानच्, मुक] 1. हवा, वायु-पवमानः शिव का विशेषण मेघ० 36, 56, कु० 6 / 95 2. पृथिवीरुहानिव---रघु० 8 / 9 2. एक प्रकार की ग्वाला, पशुओं का स्वामी 3. 'पाशुपत' नामक दार्शयज्ञाग्नि जिसे गार्हपत्य कहते हैं। निक सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाला दर्शन शास्त्र For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 598 ) --दे० सर्व, पालः-पालकः ग्वाला, पशुओं का | पश्यतोहरः [ पश्यन्तं जनम् अनादृत्य हरति-ह-+-अच्, 10 पालन करने वाला,-पालनम्,--रक्षणम् पशुओं को | तं० अलुक समासः ] चोर, लुटेरा, डाक (वह व्यक्ति पालना, रखना,--पाशक: एक प्रकार का रतिबन्ध जो दूसरों की आंखों के सामने ही या स्वामी के या मधुन प्रकार,-प्रेरणम् पशुओं कों हांकना, मारम् देखते रहने पर भी चोरी कर लेता है, जैसे सुनार)। (अव्य०) पशुवध की रीति के अनुसार--इष्टिपशु- पश्यंती [ दृश्---शत, पश्यादेशः, नुम् ] 1. वेश्या, रंडी मारं मारितः श०६,-यशः,-यागः,-व्यम् पशु 2. विशेष प्रकार की ध्वनि। यज्ञ, रजः (स्त्री०) पशुओं को संभालने के लिए पस्स्यम अपस्त्यायन्ति संगीभय तिष्ठति यत्र---अप-+रस्सी.--राजः सिंह, केसरी। स्त्ये क नि० अंकारलोपः ] घर, निवास, आवास पश्चात् (अव्य०) [अपर+अति, पश्चभावः] 1. पोछे / पस्त्यं प्रयातुमथ तं प्रभुरापपृच्छे कीति० 9 / 74 / से, पिछली ओर से -पश्चादपुरुषमादाय---श०६, पस्पशः (40) पतंजलिप्रणीत महाभाष्य के प्रथम अध्याय पश्चादुच्चर्भवति हरिणः स्वांगमायच्छमान:---श० 4, का प्रथम आलिक- शब्दविद्येव नो भाति राजनीति(पाठान्तर) 2. पीछे, पीछे की ओर, पीछे की तरफ रपस्पशा-शि० 2 / 112, (यहाँ 'अपस्पश' का अर्थ (विप० पुरः) गच्छति पुरः शरीरं धावति पश्चादसं है 'बिना गुप्त चरों के) 2. प्रस्तावना, उपादोत / स्तूतं चेत:--श० 1133, 317 3. (समय और स्थान पाल (ह) वाः, पतिकः (०ब०व०) एक जाति का की दृष्टि से) बाद में, तब, इसके बाद, उसके अन्तर / / नाम, संभवतः पशिया देशवासी / --लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्-भर्तृ 0 2 / 60, / पा (म्वा० पर० पिवति, पति, कर्मवा० पीयते) 1. तस्य पश्चात्--उसके बाद---रघु० 4 / 30, 1217, / पीना, एक सांस में चढ़ा जाना पिव स्तन्यं पोत 17 / 39, 16 / 29, मेघ० 36, 44 4. आखिरकार, / अन्त में, अन्ततोगत्वा 5. पश्चिम से 6. पश्चिम की --भामि. 1160, दुःशासनस्य रुधिरं न पिबाम्बरस्तः ओर, पश्चिम दिशा की तरफ / सम०--कृत (वि०) -वेणी० 1315, रघु० 3 / 54, कु० 3136, भट्टि० 14 / 92, 15 / 6 2. चूमना पिबलासी पावयते च पीछे छोड़ा हुआ, आगे बढ़ा हआ, पृष्ठभूमि में फेंका हुआ .....पश्चात्कृताः स्निग्धजनाशिषोऽपि --- कु० 7128, सिंध:-रघु० 1319, श० श२४ :. चिंतन करना (आंख और कान से पीना), उत्सव मनाना, ध्यान रघु० 17118, तापः पछताना, ग्लानि, पछतावा पूर्वक सुनना-निवातपद्मस्तिमितेन चक्षुषा नृपपं कृ पछताना। स्य कांतं पिबत: सुताननम् रघु० 3117, 2019,73, पश्चार्यः [ अपरश्चासौ अर्ध:, कु० स०, अपरस्य पश्च 11136, 13130, मेघ०१६, कु०७।६४ 5. अवभावः ] (शरीर का) पिछला भाग, या पार्श्व .. पश्चा शोपण करना, पी जाना (बाणः) आयर्देहातिगः पीतं धैंन प्रविष्टः शरपतनभयाद्भयसा पूर्वकायम्-, श० रुधिरं तु पतत्रिभि:--रघ०१२।४८, प्रेर०-पावयति 17 2. (समय और देश की दृष्टि से) अन्तिम ... ते, 1. पिलाना, पीने के लिए देना,---रव० 1319 -----पश्चिमे वयसि वर्तमानस्य का० 25, रघु०१९।१, भट्टि० 8141, 62 2. सींचना,--इच्छा० पिपासति, 56, - पश्चिमाद्यामिनीयामात् प्रसादमिवचेतना रघु पीने की इच्छा करना-हलाहलं खल पिपासति कौतु. 17.1. स्मरतः पश्चिमामाज्ञा 1748, पत पश्चि. केन --भामि० 1195 अनु , बाद में पीना, अनुसरण मयोः पितुः पादयोः- मुद्रा० 7 3. पश्चिमी, करना---अनुपास्यसि वाष्पदुषितं परलोकनतं जलापश्चिमी ढंग का - मनु०२।२२, 5192 (पश्चिमेन) जलिम-रघु० 8 / 68, आ---, 1. पीना-रघु० 14 // क्रियाविशेषण के रूप में "पश्चिम में' 'बाद में पीछे 22 2. पी जाना, अवशोपण करना, चस लेना अर्थों को प्रकट करने लिए, कर्म० या संबंध के साथ ----आपीतसूर्य नमः- मच्छ० 5 / 20 उपेति सविता प्रयक्त, इसी प्रकार ..पश्चिम में। सम०- अर्घः 1. हस्तं रसमापीय पार्थिवम् --महा०, 3. (आँख, कान उत्तरार्ध 2. रात का पिछला पहर 3. रात्रि का से) पीने का उत्सव मनाना,---ता राघवं दृष्टिभिरापिछला भाग उपारता: पश्चिमरात्रगोचरात् 'कि० पिबत्यः रघु० 7.12, नि-, 1. पीना, चूमना-अन.. 4 / 10, (पाठान्तर) / एव निपीयतेऽधरः पंच० 1189, दंतच्छदं प्रियतमन पश्चिमा [परिचम --टाप] पश्चिम दिशा / सम० निपीतसारम्-मनु० 4 / 13 2. (आँख या कान से) ___---उत्तरा उत्तरपश्चिम / पीना, सौन्दर्यावलोकन करना, परि.-...,आत्मसात् पश्यत् (वि.) (स्त्री०-न्ती) [ दरा+शत, पश्यादेश: | करना-उपनिषदः परिपीता: भाभि० 140, / / देखने वाला, प्रत्यक्ष ज्ञान करने वाला, अवलोकन (अदा० पर०-पाति, पात) 1. रक्षा करना, देखकरने वाला, दृष्टिपात करने वाला, निरीक्षण करने भाल करना, चौकसी रखना, बचाना, संधारण करना वाला आदि। --(प्राय: अपा० के साथ) पर्याप्तोऽसि प्रजाः पातुम् For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 599 ) ---रघु० 10 // 25, पांतु त्वां"भतेशस्य भजंगवल्लि- / धूल से भरा हुआ,-क्षारम्,-जम् एक प्रकार का वलयस्रङ्नद्ध-जूटाजटाः -- मा० 112, जीवन् पुरः नमक,—चत्वरम् ओला,--चंदनः शिव का विशेषण, शश्वदुपप्लवेभ्यः प्रजाः प्रजानाथ पितेव पासि--रघु० ..... चामरः 1. धूल का ढेर 3 तंदू 3. दूम से ढका 2 / 48 2. हुकमत करना, शासन करना-पांतु नदीतट 4. प्रशंसा,- जालिकः विष्णु का विशेषण, पृथ्वीम् भूपाः - मृच्छ० 10160, प्रेर० पालयति ---पटलम् धूल की परत या तह,--मर्दनः पेड़ की ते 1. रक्षा करना, देखभाल करना, चौकसी रखना, जड़ों के पास चारो ओर से खोद कर पानी सींचने संधारण करना ---कथं दुष्टः स्वयं धर्म प्रजास्त्वं का स्थान, आलवाल, थांवला / पालयिष्यसि ... भट्टि० 6 / 132, मनु० 9 / 108 रघु० पांस (श) रः [पांसू (श)+रा+क] 1. डांस, गोमक्खी 9 / 2 2. हुकमत करना, शासन करना--तां पुरी 2. विकलांग, लुजा जो गाड़ी में बैठकर इधर उधर पालयामास रामा० 3. पालन करना, स्थिर रखना, घूमे। अनुपालन करना, पूरा करना (प्रतिज्ञा, व्रत आदि), पांसू (श) लः (वि.) [पांसु (शु) लच्] 1. धूल से पालितमंगराय- रघु० 13 / 65 4. पालन पोषण भरा हुआ घूलिघुसरित-मा० 2 / 4 2. अपवित्र, करना, संवर्धन करना, स्थापित रखना 5. प्रतीक्षा दूपित, कलुषित, कलंकिन दारत्यागी भवाम्याहो करना-अत्रोपविश्य महर्तमार्यः पालयतु कृष्णागमनम् परस्त्रीस्पर्शपांशुल: श. 5 / 28 3. दूषित करने --वेणी. 1 अनु----1. बचाना, मधारण करना, वाला, कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला देखभाल करना, रक्षा करना मनु० 8 / 27, परि...., -- जैसा कि 'कुलपांसुल': में,-ल: 1.दुश्चरित्र, स्वेच्छा1. बचाना, संधारण करना, देखभाल करना, रक्षा चारी, लम्पट 2. शिव का विशेषण,--ला 1. रजस्वला करना--याज्ञ० 11334 मन्० 9/251 2. हुकूमत स्वी 2. असती या व्यभिचारिणी स्त्री, अ° सती स्त्री करना, शासन करना,--- मा० 10 // 25 3. पालन - रघु० 212 3. पृथ्वी / पोषण करना, संवर्धन करना, सहारा देना 4. स्थिर पाकः [पच्-+घञ्] 1. पकाना, प्रसाधन, सेकना, उबारखना, पालन करना, जमे रहना, धैर्य रखना-अंगीकृतं लना 2. (ईट आदि) आंच लगाना, सेकना--मनु० सुकृतिनः परिपालयंति--चौर०५० 5. प्रतीक्षा करना, 5 / 122, याज० 1187 3. (भोजन का) पचना इंतजार करना.-अथ मदनवधूपप्लवांतं व्यसनकृशा 4. पका होना ओपध्यः फलपाकांता: मनु० 246 परिपालयांबभूव-कु० 4 / 46, प्रति---, 1. बचाना, फलमभिमुखपाक राजजंबमस्य-विक्रम० 4 / 13, मा० संधारण करना 2. प्रतीक्षा करना, इंतजार करना, 9 / 31 5. परिपक्वता, पूर्ण विकास धो', मति 3. अमल करना, आज्ञा मानना। 6. सम्पूर्ति, निप्पन्नता, पूरा करना ---युयोज पाकाभि पा (वि.) (समास के अन्त में) [पा+विच] 1. पीने मुखै त्यान् विज्ञापना फले:-रघु० 17140 7. नतीजा वाला, चढ़ा जाने वाला जैसा कि सोमपाः, अग्रेपाः परिणाम, फल, परि फलन, (आलं. भी) आशीभिरेमें 2. बचाने वाला, देखभाल करने वाला, स्थिर रखने धयामासुः पुरः पाकाभिरंबिकाम्-कु० 6 / 90 पाकावाला-गोपा। भिमुखस्य दैवस्य----उत्तर०७४, 14 कृत कार्यों पांस (श) न (वि०) (स्त्री० ना,-नी) [प्रायः समास के फलों का विकास 9. अनाज, अन्न-नीवारपाकादिके अन्त में) [पस् (श्) + ल्युट्, पृषो० दीर्घः] रघु० 5 / 9 (पच्यते इति पाकः धान्यम) 10. पकने कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला, दूषित की क्रिया, ( फोड़े आदि का ) पकना, पीप पड़ना करने वाला--पौलस्त्यकुलपासन महावी० 5 2. 11. बढ़ापे के कारण बालों का सफेद हो जाना विषाक्त करने वाला, भ्रष्ट करने वाला 3. दुष्ट, 12. गार्हपत्याग्नि 13. उल्ल 14. बच्चा, शिशु तिरस्करणीय 4. बदनाम, कुख्यात / 19. एक राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था। सम०पास (श) व (वि०) [पांसु (शु)+अण्] धूल से भरा आगारः, रम् आगारः, --रम् शाला,- - स्थानम् हुआ। रसोई, अतीसारः पुरानी पेचिश, अभिमुख (वि०) पांसुः (शः) [पंस ()+कु, दीर्घः] 1. धूल, गर्द, चूरा 1. पकने के लिए तैयार, विकासोन्मुख 2. कृपापरा (जीर्ण होकर गिरने वाला)-- रघ 0 22, ऋत. यण, जम् 1. काला नमक 2. उदरवायु,- पात्रम् 1113, यान. 1 / 150 2. धूलकण 3. गोबर, खाद पकाने का वर्तन, पुटी कुम्हार का आवा, - यज्ञः 4. एक प्रकार का कपूर / मम० कासीसम कमीस, गह्मयज्ञ, (इमके भेदों के लिए दे० मन० 21143 पर - कुली प्रगस्न पथ, गजगार्ग, - कलम . धूल का उल्लू०) शुक्ला खड़िया -शासनः इन्द्र का विशेषण ढेर 2. ऐमा कानुनी दस्तावेज जा किमी व्यक्ति .-कु० 2 / 63, शासनिः 1. इन्द्र के पुत्र जयन्त का विशेष के नाम न हो, निरुपपदशासन, कृत (वि.)। विशेषण 2. वालि तथा 3. अर्जुन का विशेषण / For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपछा ( 600 ) पाकलः [पाक+ला-|-2] 1. आग 2. हवा 3. हाथी | पांचजन्यः [पंचजन+ज्य] कृष्ण के शंख का नाम-(दधानो) का ज्वर-तु० कुटपाकल / निध्वानमधूयत पांचजन्यः--- शि 3 / 21, भग० 1 / 15 / पाकिम (वि०) [पाकेन निवृत्तम्-पाक-इमप्] 1. पका | सम-धरः कृष्ण का विशेषण। हुआ, प्रसाधित 2. (प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से) | पांचवश (वि०) (स्त्री०-शी) [पंचदशी+अण् ] मास पका हुआ 3. नमक आदि) उबाल कर प्राप्त किया की पन्द्रहवीं तिथि से संबंध रखने वाला। हुआ। पांचवश्यम् [पंचदशन्+व्यत्र] पन्द्रह का समुच्चय / पाकः, पाकुकः [पच् + उण, क आदेशः] रसोइया। पांचव (वि.) [पंचनद+अण्] पंचनद या पंजाब में पाक्य (वि.) [पच्-1-ण्यत्, क आदेशः] पकाने के योग्य प्रचलित / प्रसाधित होने के लायक, परिपक्व होन के योग्य, पांचभौतिक (वि.) (स्त्री-की) |पंचभूत+ठक, द्विपद---क्यः जवाखार शोरा। वृद्धि] पाँच तत्त्वों के समूह से बना हुआ, या पांच पाक्ष (वि०) (स्त्री०क्षी) [पक्ष+अण्] 1. (कृष्ण या तत्त्वों वाला, पांच भौतिकी सृष्टि:- महावी० 6, शुक्ल) पक्ष से संबंध रखने वाला, पाक्षिक 2. किसी याज्ञ० 3 / 175 // दल या पार्टी से संबद्ध / पांचवषिक (वि.) [पंचवर्ष + ठा] पाँच वर्ष का। पाक्षिक (वि.) (स्त्री०की) [पक्ष+ ठक] 1. पक्ष से | पाचशम्विकम् | पंचशब्द-ठक | 1. पाँच प्रकार का संगीत संबद्ध, अर्धमासिक 2. पक्षी से संबद्ध 3. किसी दल | 2. गायन संबंधी वाद्ययंत्र / या पार्टी का पक्ष लेने वाला 4. तर्क विषयक | पांचाल (वि.) (स्त्री०-ली) [पंचाल-|-अण] पंचाल से 5. ऐच्छिक, वैकल्पिक, अनमत परन्तु विशेष रूप से संबद्ध या पंचालों के शासक, --ल: 1. पंचालों का निर्धारित न हो-नियमः पाक्षिके सति,-कः बहेलिया, देश 2. पंचालों का राजकुमार, लाः (पुं०५०) चिड़ीमार। पंचाल देश के लोग। पाखंडः [पातीति--पा+विवप, पा: त्रयीधर्मः, तं खण्ड- | पांचालिका [पांचाली-+कप्---टाप, हस्वः गुड़िया, पुतली यति - पा-खण्ड / अच् विधर्मी, नास्तिक --पाखंड- स्तन्य त्यागात्प्रभति सुमुखी दंत पांचालिकेव क्रीडाचंडालयोः, पापारभकयोमगीव वृकयोर्भीरुर्गता गोचरम् | योगं तदनु विनयं प्रापिता वर्धिता च --मा० 105 / -----मा० 5 / 24, दुरात्मन् पाखंड चंडाल-मा० 5 / पांचाली [पांचाल-|-अण+ डीप ] 1. पंचाल देश की राज पागल ( वि०-) [ पारक्षणम्, तस्मात् गलति विच्युतो कुमारी या स्त्री 2. पांडवों की पत्नी, द्रौपदी 3. भवति ---पा-गल-अच] विक्षिप्त, जिसका दिमाग गुड़िया, पुतली 4. (अलं०) रचना की चार शैलियों खरान हो। में से एक सा० द० द्वारा दी गई परिभाषा---वर्णः पांक्तेय, पांक्स्य (वि.) [पंक्ति-- ढक, यत् वा] 1. भोजन शेषः (अर्थात् माधुर्यव्यजकोजः प्रकाशकाभ्यां भिन्नैः) पंक्ति में एक साथ बैठने के योग्य 2. साहचर्य के पुनर्वयोः, समस्त पंचषपदो बंध: पांचालिको मतः उपयुक्त / 628 / पाचक (वि०) [पच--वल] 1. पकाना, सेकना 2. पचाने पाट (अव्य.) [पट ---णिच+क्विप् ] एक अव्यय जो वाला, पौष्टिक कः 1. रसोइया 2. आग, कम् 'बुलाने के लिए---अर्थात् संबोधन के रूप में प्रयुक्त पित। सम० - स्त्री महाराजिन, रसोई बनाने वाली हो जाता है। पाटकः | पट / णिच् -- ण्वल ] 1. विदारक, विभाजक 2. पाचन (वि.) (स्त्री०-नो) [ प +णि + ल्युट ] गाँव का एक भाग 3. गाँव का आधा हिस्सा 4. एक 1. पकाने वाला 2. पकने वाला 3. पचाने वाला, प्रकार का संगीत-उपकरण 5. तक, किनारा 6. घाट हाजिम, -न: 1. आग 2. खटास, अम्लता, नम् की चौड़ियाँ 7. मूलधन या पंजी की हानि 8. वित्ता 1. पकाने की क्रिया 2. पकने की क्रिया 3. घुलन- या बालिश्तं 1. पासे फेंकना। शील, भोजन पचाने वाली औषधि 4. घाव भरना पाटच्चरः [ पाटयन् छिन्दन् चरति चर--अम्, पृषो०] 5. तपस्या, प्रायश्चित्त / चोर, लुटेरा, पाड़ लगाने वाला, कुसुमरसपाटच्चरः पाचलः [पच्+णिच+कलन ] 1. रसोइया 2. आग -श० 6, पद्मिनीपरिमलालिपाटच्चरः .. भामि० 3. हवा, लम् पकाना, परिपक्व करना। 2175 / पाचा [पच्-।-णिच् +अङटाप्] पकाना। पाटनम् [ पट+णिचु+ल्युट ] विदीर्ण करना, तोड़ना, पांचकपाल (वि.) (स्त्री०-ली) [ पंचकपाल+अण् ] फाड़ना, नष्ट करना। पाँच कपालों में भर कर दी गई आहुति से संबंध | पाटल (वि.) [पट-+-णिच / कलच ] पीतरक्त वर्ण, रखने वाला। गुलाबी रंग, अग्रे स्त्री नखपाटलमं कुरबकम् -विक्रम् / For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 / 7, पाटलपाणिजां कितमुरः -गीत० 12, ल। पाठ करने वाला 3. आध्यात्मिक गुरु 4. छात्र, पीतरक्त, प्याजी या गुलाबी रंग --कपोलपाटलादेशि विद्यार्थी, विद्वान् / बभूव रघुचेष्टितम् - रघु० 4 / 68 2. पादर का फूल | पाठनम् [ पठ्+णिच् + ल्युट 1 अध्यापन, व्याख्यान देना / पाटल संसर्ग सुरभिवनवाता:-श० 113, --लम् 1. | पाठित (भू० क. कृ०) [ पठ्+णिच् --क्त ] पढ़ाया पाटल वृक्ष का फूल -रघु० 16 / 59, 19 / 46 2. हुआ, शिक्षा दिया हुआ। एक प्रकार का चावल जो बरसात में तैयार होता है | पाठिन् (वि.) [प-णिनि, पाठ+इनि वा ] 1. 3. केसर, जाफरान / सम० ---उपल: लाल,---ब्रुमः जिसने किसी विषय का अध्ययन किया हो 2. जानपादर वृक्ष / कार, परिचित / पाटला [ पाटल-अच + टाप् ] 1. लाल लोध्र 2. पादर | पाठीनः [ पठ-ईनण 11. पुराना या अन्य धार्मिक ग्रंथों का वृक्ष तथा उसका फूल 3. दुर्गा का विशेषण / की कथा करने वाला 2. एक प्रकार की मछली पाटलिः (स्त्री०) [ पाटल+इनि ] पादर का फूल / ___ ---विवृत्त पाठीन पराहतं पयः कि० 4 / 5 / सम० -पुत्रम एक प्राचीन नगर, मगव की राजधानी, | पाणः[पण+घा] 1. व्यापार, व्यवसाय 2. व्यापारी जो शोण और गंगा के संगम पर स्थित है, जिसे कुछ 3. खेल 4. खेल पर लगा या गया दाँव 5. करार, लोग वर्तमान 'पटना' मानते हैं, इसको 'पुष्पपुर' या 6. प्रशंसा 7. हाथ / 'कुसुमपुर' भी कहते हैं दे० मुद्रा० 2 / 3, 4 / 16, | पाणिः [पण+इण् ] हाथ--दानेन पाणिनं तु कंकणेन रघु०६।२४। (विभाति)---भर्तृ० २०७१,-णिः (स्त्री०) मंडी पाटलिकः | पाटलि+कन् ] छात्र, विद्यार्थी / (पाणी के हाथ में थामना, विवाह करना,-पाणीपाटलिमन् (पुं०) [ पाटल+इमनिच ] पीतरक्त वर्ण / करणम् विवाह)। सम० गहीती, हाथ से ग्रहण पाटल्या [पाटल+यत्+टाप] पाटल के फूलों का गुच्छा / की गई, ब्याही गई, पत्नी,- ग्रहः,---ग्रहणम् विवाह पाटवम् [ पटु + अण् ] 1. तीक्ष्णता, पैनापन 2. चतुराई, करना, शादी, रघु० 7 / 29, 817, कु०७।४,--ग्रहीत कौशल, दक्षता, प्रवीणता--पाटवं संस्कृतोक्तिष -हि. (पुं०)---ग्राहः दूल्हा, पति— ध्यायत्यनिष्ट यत्किचित 1, कि० 9 / 54 3. ऊर्जा 4. फती, उतावलापना / / पाणिग्राहस्य चेतसा--मनु० 9 / 21, बाल्ये पितुर्वशेपाटविक (वि.) (स्त्री०-को) [पाटव+ठन् ] 1. तिष्ठेत् पाणिग्राहस्य यौवने-५।१४८,--: 1. ढोल चतुर, तीक्ष्ण, कुशल 2. धूर्त, चालवाज, मक्कार / / बजाने वाला 2. कारीगर, शिल्पकार,--पातः हाथ पाटित (भ० क० कृ०) पट+णिच-।-क्त ] 1. फाड़ा का प्रहार, घसा,—जः नाखून-तस्याः पाटलपाणिहुआ. चोरा हुआ, टुकड़े 2 किया हुआ, तोड़ा हुआ 2. जातिमुरः--गीत० १२,--तलम् हथेली,-धर्मः बिद्ध, छिद्रित --रघु० 11 / 31 / विवाह की विधि,-पीडनम् विवाह,--पाणिपीडनमहं पाटी [ पट् ---णिच् +इन+ डीप अंकगणित। सम० दमयन्त्याः कामयेमहि महीमिहिकांशो---नं० 5 / 99 गगितम् अंकगणित / ---पाणिपीडनविधेरनन्तरम् कु० 811, प्रणयिनी पाटीरः [ पटीर+अण ] 1. चन्दन--पाटीर तव पटीयान पत्नी...बंधः 'हाथों का मिलना' विवाह,--- भुज कः परिपाटीमिमामुरीकर्तुम् --भामि० 1112 2. खेत (पुं०) बड़ का वृक्ष, गूलर का वृक्ष,-मुक्तम् हाथ 3. राँगा 4. बादल 5. चलनी। के फेंक कर मारा जाने वाला आयुध, अस्त्र,---वह पाठः [ पठ्+घञ ] 1. प्रपठन, सस्वर पाठ, आवृत्ति (पुं०), रुहः अंगुली का नाखून,-वादः 1. तालियाँ करना 2. पढ़ना, वाचन, अध्ययन 3. वेदाध्ययन, वेद- बजाना 2. ढोल बजाना, सार्या रस्सी। पाठ, ब्रह्मयज्ञ, ब्राह्मणों के द्वारा पाँच दैनिक यज्ञों में पाणिनिः (पु.) एक प्रसिद्ध वैयाकरण का नाम, यह से एक 4. पुस्तक का मूलपाठ, स्वाध्याय, पाठभेद...- अन्तःस्फूर्त मुनि समझे जाते हैं, कहते है कि ज्याकरण अत्र गंधवगंधमादनः इति आगंतुकः पाठः, प्राचीनपा- का ज्ञान इन्होंने शिव से प्राप्त किया था। 'अष्टापाठस्तु सुगंधिगंधमादन: इति पुल्लिगांत: -- मल्लि. ध्यायी' नाम का व्याकरण इन्होंने ही रचा।। कु०६७ पर। सम० ---अन्तरम् गरा पाठ, पाठभेद, | पाणिनीय (वि.) [ पाणिनि--छ] पाणिनि से संबंध -छेदः विराम, यति,-दोषः दूषित पाठ, पाठ को रखने वाला, या उसके द्वारा बनाया गया- शि० अशुद्धियाँ, निश्चयः किसी संदर्भ का पाठ निर्धारित 1975, यः पाणिनि का अनुयायी----अकृतव्यहाः करना, --मंजरी, शालिनी मैना, सारिका, -शाला पाणिनीया:, यम पाणिनि द्वारा प्रणीत व्याकरण / विद्यालय, महाविद्यालय, विद्यामंदिर। पाणिधम-य (वि०) पाणि +ध्मा (धे)-खश, मुम, ] पाठक: [ पठ्-+-णिच् +ण्वल ] 1. अध्यापक, प्राध्यापक, हाथ से धौंकने वाला, हाथ से फूंकने वाला, हाथ से गुरु 2. पुराण या अन्य धार्मिक ग्रन्थों का सार्वजनिक पीने वाला। For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (602 ) पांडर (वि०) [ पाण्डर-+-अच् ] 1. धवल, पीतधवल, पांडुर (वि०) [पाण्डवणोऽस्यास्ति पांडु+र ] सफेद सफ़ेद 2. गेरु 3. चमेली का फूल / सा, पीत-धवल, पीताभ-श्वेत, पीला-छवि: पांडुरा पांडव [ पाण्डोः अपत्यम् / पाण्डु-+अण् ] पाण्ड का पुत्र --श० 3 / 10, रघु०१४।२६, कु० 3133, रम् या सन्तान, पांडु के पाँचों पुत्रों में से कोई सा एक - श्वेत कुष्ठ / सम० इक्षः एक प्रकार की ईख, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव-हंसाः संप्रति- पौण्डा। पांडवा इन बनादज्ञातचर्या गताः-मृच्छ० 5 / 6 / सम० पांडुरिमन् (पुं०) [पांडुर-1-इमनिच् ] पीलापन, सफेदी -आभीलः कृष्ण का नाम,-श्रेष्ठः युधिष्ठिर का नाम। या पीला रंग। पांडवीय (वि०) / पांडव+ छ ] पांडवों से संबंध रखने पांउपाः (0, व० व०) [ गांड देशाः, अभिजनोऽस्य राजा वाला। वा---पाण्डु+ड्यन] एक देश का नाम, देश के पांडवेय-पांडव / निवासियों का नाम---तस्यामेव रघोः पांड्याः प्रताप पांडित्यमापंडित-ध्या] 1. विद्वत्ता, गहन अधिगम-विद्या न विहिरे--रघु० ४।४९,--डयः उस देश का राजा तदेव गमकं पाण्डित्यवदग्ध्ययो:---मा०१७ 2. चतु- ----- रघु० 660 / राई कुशलता, दक्षता, तोक्ष्णता नखानां पाण्डित्यं / पात (वि.) [पा+क्न ] रक्षित, देखभाल किया गया, प्रकटयतु कस्मिन् मृगपतिः ....भामि० 112 / संधारित-तः [पत्+घन ] 1. उड़ना, उड़ान पांडु वि०) [पण्ड् --कु, नि० दीर्घः ] पीत-धवल, सफ़ेद 2. उतरना, अवतरण करना, उतार 3. नीचे गिरना, सा, पीला पीताभविकलकरण: पांडच्छायः शचा पतन, पराजय (आलं० भी) द्रुम०, गृह०, चरणपातः परिदुर्बल:- उत्तर० 3122,: 1. पीत-धवल, या पैरों में गिरना-रघु० 11192, पातोत्पातौ उदय और पीताभ श्वेत रंग 2. पीलिया, यरकान 3. सफ़ेद हाथी अस्त 4. नाश, विघटन, बर्वादी-कु० 3 / 44 5. आघात 4. पांडवों के पिता का नाम [ विचित्रवीर्य की विधवा प्रहार जैसा कि खङ्गपात' में 6. बहना, छटना, अंबिका से व्यास के द्वारा पांडु का जन्म हुआ था। निकलना--असृक्षातः ..मनु० 8 / 44 7. डालना पांडु रंग का पैदा होने के कारण उसका नाम पांड फेंकना, निशाना बनाना--दृष्टि० रघु० 13 / 18, पड़ा, क्योंकि व्यास के साथ सहवास के अवसर पर 8. आक्रमण, हमला 9. घटना, होना, घटित होना उसकी माता गांडु रंग की हो गई थी--(यस्मात्पांडु 10. दोष, त्रुटि 11. राह का विशेषण। त्वमापन्ना विरूपं प्रेक्ष्य मामिह, तस्मादेव सुतस्ते पातकः, .. कम पत्+गिन्-- एवल ] पाप, जुर्म (हिन्दुवै पाण्डुरेव भविष्यति ---महा०,)-किसी शाप के कारण धर्मशास्त्र में पांच महापातक गिनाये गये है-ब्रह्महत्या पाण्डु को स्वयं सन्तानोत्पति करने से रोक दिया सुरापान स्तेयं गर्वगनागमः, महान्ति पातकान्याहुः गया था। इसीलिए उसने कुन्ती को दुर्वासा ऋषि से संसर्गश्चापि तैस्सह-मनु० 1154 / प्राप्त मंत्र का उपयोग करके सन्तान प्राप्त करने की पातङ्गिः पतङ्ग+ इञ् ] 1. शनि 2. यम 3. कर्ण और ति ददा था, फलतः कुन्ता न यधिष्ठिर, भीम सुग्रीव का विशेषण / और अर्जुन को जन्म दिया, इसी मंत्र के उपयोग से पातंजल (वि.) (स्त्री०-ली) [ पतंजलि-अण् ] पतं. माद्री ने नकुल और सहदेव को जन्म दिया। एक जलि द्वारा रचित,..-पातंजले महाभाष्ये कृतभरि दिन पाण्डु अपने शाप को भलकर जिसके कारण वह परिश्रमः -परिभाषेन्दुशेखर,...लम पतंजलि द्वारा सावधान था, उसने माद्री का आलिंगन करने का प्रणोत योगदर्शन, (ऐसा विश्वास किया जाता है कि दुस्साहस किया, परन्तु वह उसके भुजपाश में ही महाभाष्यकार पतंजलि हो योगदर्शन के प्रणेता थे, मृत्यु को प्राप्त हो गया ] | सम० ...-आमयः पोलिया परंतु यह विचार मंदेह से परे नहीं है। यरकान, कंबल: 1. सफ़ेद कंवल 2. गरम चादर / पातनम् | पत् ।-णि + ल्युट् ] 1. गिरने का कारण बनना, 3. राजकीय हाथी की झूल --पुत्रः पांडु का पुत्र, गिराना नीचे लाना या फेंक देना, पछाड़ देना, नीचे पाँचों में से कोई एक, -मतिका, सफ़ेद या पीली. पटक देना 2. फेंकना, डालना 3. हीन करना, नीचा मिट्टी,-रागः सफ़ेदी, पीलापन,-लेखः खड़िया से दिग्वाना / (बिशे० --उन संज्ञा शब्दों के अनुसार बनाई रूपरेखा, भूमि या किमो फलक पर खड़िया जिनके साथ 'पातन' शब्द प्रयुक्त होता है, 'पातन' के से बनाई गई कोई रूपरेखा ---पाण्डुलेखेन फल के भूमौ / भिन्न अर्थ हैं....उदा० दंडम्य पातनम-उंडा गिराना' वा प्रथमं लिनेन, त्यताधिन संशोध्य पश्चायो दण्ड देना, गर्भम्ग पातनम-गर्भ का गिगना, गर्भपात निवेशयेत् पास०,---शमिला द्रौपदी का विशेषण / कगन।)। ---सोपाकः एक वर्ग संकर जाति-चांडालापांडु- पातालम् पतत्यारिमन्नधर्मेण पत्+आलञ] 1. पृथ्वी के गोपाकस्त्वकसारव्यवहारवान् -मनु० 10 / 37 / नीचे स्थित सात लोकों में से अन्तिम लोक-नागलोक, For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह सात लोक ये हैं ---अतल, वितल, सुतल, रसातल, 1 पात्रे बहुलः, पात्रेसमितः [ पात्रे भोजनसमये एव बहुल: तलातल, महातल और पाताल 2. निम्नप्रदेश, या संगतो वान तु कार्य----अलुक समास ] 1. केवल नीचे का लोक-- रघु० 15 / 84, 1280 3. गढ़ा, छिद्र भोजन का साथी, परान्नभोजी 2. धोखेबाज, कपट 4. वडवानल / सम० --गंगा नीचे के लोक में बहने / पाखंडी। पानी गंगा,-ओकस (५०)---निलयः, - निवासः पाथः पीयतेऽदः, पा+थ ] 1. अग्नि 2. सूर्य- थम जल। . बासिन् (10) 1. राक्षस 2. नाग या सर्पदैत्य / पाथस् (नपुं०) [ पा+असुथुन्, थुक् च] 1. जल, गंगा० पातिकः | पान-1-ठन् / गंगा में रहन वाला संस, शिशु 26 2. हवा, वायु 3. आहार / सम० जम् 1. मार। कमल 2. शंख, 3H, धरः बादल, धिः,- मिषिः, पातित (भू० क० कृ०) [ पत्---णि+त] 1. डाल पतिः समुद्र, नै० 13120 / गया, फेंका गया नीचे गिराया गया, पटक दिया गया | पाथेयम [ पथिन+ठा / भोज्य सामग्री जिसे यात्री राह 2. परास्त किया गया, नीचा दिखाया गया 3. नीचा में खाने के लिए साथ ले जाता है, मार्गव्यय जग्राह किया गया। पाथेयमिवेन्द्रसूनु :--कि० 3 / 37, बिसकिसलयच्छेपातित्यम् [पतित : प्य ] पद या जाति का पतन, / दपाथेयवन्तः--मेघ० 11, विक्रम० 4 / 15 2. कन्यापदच्युति, जातिभ्रंशता / राशि। पातिन् (वि.) (स्त्री० नी) [पत् =णिनि] 1. जाने पादः [पद्+घा ] 1. पैर (चाहे मनुष्य का हो या वाला, अवतरण करनेवाला, उतरने वाला 2. पतनशील, किसी जानवर का) तयोर्जगृहतुः पादान - रघु० 1 'इबनेवाला 3. पढ़ने वाला 1. गिरने वाला, फेंकने वाला 57, पादयोनिपत्य, पादपतितः (समास के अन्त में 5. उड़ेलने वाला, छोड़ने वाला, निकालने वाला / 'पाद' को बदल कर ‘पाद्' हो जाता है, यदि इससे पातिलो [पातिः संपातिः पक्षियथं लोयतेऽत्र - पानि+ली पूर्व 'सु' हो या संख्यावाचक शब्द, उदा० सुपाद, +डी ] i. जाल, फंदा 2. छोटा मिट्टी का द्विपाद त्रिपाद् आदि; जिस समय पूर्वपद तुलना-मान बर्तन, हांडी। के रूप में प्रयुक्त किया जाय, उस समय भी 'पाद' पातुक (वि०) (स्त्री०---की) पत्+उका ] 1. पतन- हो जाता है यदि पूर्वपद 'हस्ति' से भिन्न हो-दे. शील, 2. गिरने की आदत वाला,--कः पहाड़ का पा० 5 / 4 / 138-40, उदा. व्याघ्रपाद्; अतिशय लान, चट्टान 2. शिशुमार, संस।। आदर तथा सम्मान व्यक्त करने के लिए, कर्त० का पात्रम [पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा --पा-ष्ट्रन / बहुवचनान्त रूप व्यक्तियों की उपाधियों या नामो 1. पीने का बर्तन, प्याला, गिलास 2. कोई भी बर्तन के साथ जोड़ दिया जाता है - मुष्यंत लवस्य बालि--पात्र निधायायम-रघु० 5 / 2, 12 3. किसी शतां तातपादाः----उत्तर. 6, 229 देवपादानां वस्तु का आधार, प्राप्तकर्ता-- पंच० 2 / 97 4. जला- नास्माभिः प्रयोजनम् - पंच० 1, इसी प्रकार एवमाशय 5. योग्य व्यक्ति, दान पाने के योग्य, दानपात्र राध्यपादा आज्ञापयंति... प्रबो० 1, एवं-कुमारि-~-वित्तस्य पात्रे व्ययः ---भतं० 2082, भग० 17122, पादा: --- आदि 2. प्रकाश की किरण - बालस्यापि याज्ञ. 1 / 201, रघु० 11086 6. अभिनेता, नाटक खेः पादाः पतंत्युपरि भूभृताम् पंच० 12328, शि० का पात्र-तत्प्रतिपात्रमाधीयतां यत्नः--श० 1, 9 / 34, रघु० 16153, (यहां शब्द का अर्थ 'पर उच्चता गात्रवर्ग:-विक्रम० 1, नाटक का पात्र 7. राजा भी है) 3. पैर या पावा (जड़ पदार्थों का, खाट का मंगो 8. नहर या नदी का पाट 9. योग्यता, आदि का) 4. वृक्ष की जड़ या पैर जैसा कि 'पादप' औचित्य 10. आदेश, हुक्म। सम० --उपकरण में 5. गिरिपाद, तलहटी (पादाः प्रत्यंतपर्वताः) मेघ० घटिया प्रकार की सजावट--पाल: 1. चप्पू, डांड 19, श० 6 / 16 6. चौथाई, चौथाभाग, जैसा कि 2. तराजू की डंडी-संस्कारः 1. बर्तनों को मांज 'सपादो रूपकः' में (सवा रुपया)--मनु०८०२४१, धोकर साफ करना 2. नदी का प्रवाह / याज्ञ० 21174 7. श्लोक का एक चरण, पंक्ति 8. पात्रिक (दि०) (स्त्री०-की) / पात्र-- ठन् 1. किसी किसी पुस्तक के अध्याय का चौथा भाग जैसा कि वर्तन की नाप, आढक 2. योग्य, यथोचित, समुचित, ब्रह्मसूत्र का या पाणिनि की अष्टाध्यायी का 9. भाग कम् बर्तन, प्याला, तश्तरी / 10. स्तंभ, खंभा / सम-अग्रम् पैर का * आगे का पात्रिय, पाच्य (वि.) [ पात्रमहति-पात्र-घ, यत् वा ] | भाग-रत्न. १११,.--अंकः पदचिह्न,-- अंगवम्, भोजन में भाग लेने के योग्य / -----दी पैर का आभूषण, नूपुर, पायल,—अंगुष्ठः पर पात्रीयम् | पात्र-+छ ] यज्ञीय पात्र उवा आदि। का अंगठा, अंतः पैरों का अन्तिम भाग,-अंतरम् पात्रीरः,-रम् [ पाश्य राति-पात्री+रा--क ] आहुति / एक पग के बीच का अन्तराल,' एक पग की दूरी For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (अध्य-रे) 1. एक पद की दूरी के बाद 2. निकट, -- शोथः पैर की सूजन,- शौचम पर धोकर साफ सटा हुआ,... अम्बु (नपुं०) छाछ जिसम एक चौथाई करना, पैर धोना,-सेवनम,..-सेवा 1. पैर छुकर पानी हो,-अंभस् (नपुं०) जल जिसमें श्रद्धेय व्यक्तियों सम्मान प्रदर्शित करना 2. सेवा,--- स्फोटः 'बवाई के चरण धोये हों,--अरविवम्,--कमलम,-पंकजम्, फटना' विपदिका, सरदी से पैर फटना,-- हत्त (वि.) -पचम् कमल जैसा पर, कमलचरण, ----अलिंदी / ठुकराया हुआ। किश्ती, नाव,....अबसेचनम् 1. चरण धोना 2. पैर ! पाददिकः पदवी। ठक्] यात्री, पथिक / धोने के लिए पानी, - आघातः ठोकर,--आनत (वि.) पादात (पुं०) [पादाभ्यामतति-पाद अत+विवा] पैदल भूशापी, पैरो में पड़ा हुआ-कु० ३१८,--आवतः सिपाही, प्यादा। कुएं से जल निकालने के लिए पैरों से चलाया जाने पादातः पदातीनां समूहः-पदाति+अण्] पैदल-सिपाही वाला यंत्र, रहट, --आसनम् पैर रखने का पीढ़ा, -शि० १८।४,--तम पैदल-सेना / -आस्फालनम् पैरों से रौंदना, कुचलना, रुक 2 कर पादातिः, पादाविकः पाद+अत् +इन, पादेन अवः रक्षआगे बढ़ने की चेष्टा,... आहत (वि.) ठोकर खाया णम्-- पादाक-न-2 पंदल सिपाही। हुआ, ठुकराया हुआ,- उदकम्-जलम् 1. पैर धोने पादिक (वि.) (स्त्री०-की) [पाद+टक चतुर्थांश, के लिए पानी 2. वह पानी जिममें पुण्यात्मा, तथा चौथा भाग---पादिकं शतम्--२५ प्रतिशत / / सम्मानित व्यक्तियों ने पर धाय हैं और इसीलिए पादिन (वि.) (पाद- इनि] 1. सपाद, परों वाला 2. जो पवित्र समझा जाता है,..-उबरः सॉप,---कटकः, इलोक की भांति चार चरणों से युक्त 4. चौथे भाग --कम-कोलिका नपुर, पायल, क्षेपः कदम, पग को लेने वाला. या चतर्थाश का अधिकारी। --प्रन्थिः टखना,-ग्रहणम् (आदरयुक्त अभिवादन | पादिनः (पुं०) चौथा भाग, चतुर्थांश / के रूप में) पैर पकड़ना, कु० ७।२७,---चतुरः, / पादुकः (वि.) (स्त्री-का-की) [पद्+उकञ] पैदल --चस्वरः 1. मिथ्यानिन्दक 2. बकरा 3. रेतीला तट चलने वाला,- का खड़ाऊँ, जूता--व्रज भरत गृहीत्वा 4. ओला,- चारः पैदल चलना, टहलना-- यदि च पादुके त्वं मदीये-- भट्टि० ३।५६,-रघु० 12 / 17 / विचरेत् पादचारेण गौरी-मेघ० 60, 'यदि गौरी / सम- कारः मोची, जूता बनाने वाला। पैदल चले रघु० 11110 - चारिन (वि०) पैदल | पाबू (स्त्री०) [पद्-+-ऊ, णित्] जूता,-कृत् (पु.) जूता चलने वाला, पैदल योद्धा, (पुं०) 1. फेरी वाला 2. बनाने वाला। पैदल सैनिक,-जः शूद्र,---जाहम् पपोटा, टखने पाद्य (वि.) [पाद--यत] पैरों से संबंध रखने वाला. की हडडी,-सलम् पैर का तलवा,-त्रः,---त्रा, ...प्राणम् -धम पर धोने के लिए जल-पादयोः पाद्यं जूता, बूट,-पः वृक्ष-निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि दुमायते-हि० 1169, अनुभवति हि मूर्ना पाद पानम् [पा- ल्युट्] 1. पीना, चढ़ा जाना, (ओष्ठ का) पस्तीवमुष्णम्- श० 5 / 5, खंडः,--उम् बाग, वृक्षों चुम्बन, पयःपानं देहि मुखकमलमधुपानम्--गीत. का झुरमुट,-पालिका नूपुर, पाजेब,-पाशः पैकड़ा, ! 10 2. सुरापान करना-मनु० 750, 9 / 13, 12 // पशुओं के पैरों को बांधने की रस्सी (शी) 1. हथकड़ी 45 3. पान के योग्य, पेय पदार्थ-मनु० 31227 4. 2. चटाई 3. लता-- टीठः,--ठम् पैर रखने का पीढ़ा, पान-पात्र 5. तेज करना, पनाना 6. बचाना, रक्षा, --रघु० 17528, कु० 3 / 11, पूरणम् 1. पंक्ति -नः शराब खींचने वाला, कलवार / सम०-- अगार: पूरी करना 2. पादपूरक--तु पादपूरणे भेदे समुच्चये- -आगारः,--रम् मदिरालय,--अत्ययः अत्यधिक ऽबधारणे--विश्व०,... प्रक्षालनम् पैर धोना,--प्रतिष्ठा- पीना, गोष्ठिका,-गोष्ठी 1. शराबियों की मंडली नम पैर रखने का पीढ़ा, ...प्रहारः ठोकर, - बंधनम् 2. शराब की दुकान, मदिरालय,-५ (बि०) सुरापान बेड़ी, -मुद्रा पदचिह्न,--मूलम् 1. पपोटा 2. पैर का करने वाला,-पात्रम्--भाजनम्,- भाण्डम् पान-पात्र, तलवा 3. एडी 4. पहाड़ की तलहटी 5. किसी से बात प्याला,-भूः,-भूमिः— भूमी (स्त्री०) शराब पीने करने की विनम्र रोति --देवपादमूलमागताहम-का० का स्थान- रघु० 7149, १९।११,--मण्डलम् शरा८, रसस् (नपुं०) पैरों की धूल,--रज्जुः (स्त्री०). वियों की मंडली,---रत (वि०) सुरापान की लतवाला, हाथी के पैर बाँधने को चमड़े की रस्सी,- रथी जूता, --- वणिज् (पुं०) शराब-बिक्रेता,-विभ्रमः नशा, बूट,--रोहः, -रोहणः बड़ का पेड़,---वंदनम् चरण- -शॉर पियक्कड़, अत्यधिक पीने वाला। वंदना, चरणों में प्रणाम, -- विरजस् (नपुं०) जूता, / पानकम् [पान+कन् पानीय, पेय, पूंट / बूटा (पुं०) देवता,--शाखा पैर की अंगुली, -शैल: पानिकः [पान-+ठक शराब-विक्रेता, कलाल / गिरिपाद, पहाड़ की तलहटी में विद्यमान पहाड़ी, पानिलम [पान- इलच पान-पात्र, प्याला / """सात पसरशिप TOntrI For Private and Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 605 ) पानीयम् [पा-+अनीयर 1. जल 2. पेय, घंट, पानीय- पापद्धिः पापानामृद्धियंत्र--ब० स०] शिकार, आखेट / पीने के योग्य शर्बत आदि / सम-नकुलः ऊद-पापल (वि.) [पाप+ला+क] पाप कमाने वाला, पाप बिलाव,-णिका रेत, बाल,----शाला,-शालिका प्याऊ, जहाँ यात्रियों को पानी पिलाया जाय -तु. प्रपा। पापिन् (वि.) (स्त्री०--नी) [पाप+इनि] पापपूर्ण, पान्थः [पन्यानं नित्यं गच्छति -पथिन+अण, पंथादेशः] दुष्ट, बुरा - (पुं०) पाप करने वाला। यात्री, बटोही रे पान्थ विह्वलमना न मनागपि स्याः पापिष्ठ (वि.) [अतिशयेन पापी-पाप+इष्ठन् ] अत्यंत ---गामि० 1137 / पापपूर्ण, अधम, दुष्टतम ('पाप' की अतिशयावस्था)। पाप (वि.) पिाति रक्षति आत्मानम् अस्मात् पा-1-4) | अपात .. | पापीयस् (वि.) (स्त्री०. सी)[पाप-+ईयसुन, अयमनयो 1. अनिष्टकर, पापमय, दुष्ट, दुर्वत्त पापं का च रतिशयेन पापी, तुलना अवस्था| अपेक्षाकृत पापी, यत् परैरपि कृतं तत्तस्य संभाव्यते - मृच्छ० 1136, अपेक्षाकृत दुष्ट या अनिष्टकर। भग० 619 2. उपद्रपकारो, विनाशक, अभिशप्त पाप्मन् (पुं०) [पान-मानिन्, पुगागमः] पाप, जुर्म, दुष्टता, ... पापेन मत्यना गृहीतोऽस्मि मालवि० 4 3. अपराध-मया गृहीतनामान: स्पृश्यंत इव पाप्मनानीच, अधम, पतित मनु० 3 / 52, 41171 4. उत्तर. 148.7 / 20, मा० 5 / 26, मनु०६८५ / अशुभ, प्रद्वेषी, अनिष्ट सूचक (पाप ग्रह आदि)-पम् पामन् (पुं०) [पा+मनिन्] एक प्रकार का चर्मरोग, बुराई, बुरी अवस्था, दुर्भाग्य-पापं पापा: कथयथ खुजली / सम०--नः गंधक / कथं शौर्यराशेः पितु,... वेणी० 3 / 5, शांतम् पापम् / पामन (वि०) [पामन्-|-न, नलोपः] खुजलो रोग से ग्रस्त / —'पाप से बचाये भगवान्' (प्रायः नाटकों में प्रयुक्त) पामर (वि.) (स्त्री० ----रा,-री) पामन+र] 2. बुराई, जुर्म, दुर्व्यसन, दोष---अपापानां कुले जाते 1. खुजली रोग से ग्रस्त, सकण्डू, खुजली वाला मयि पापं न विद्यते --मच्छ 0 9 / 37, मनु० 11 / 231, अनिष्टकर, दुष्ट 3. नीच, गंवारु, अधम 4. मूर्ख, जड़ 41181, रघु० १२।१९,-पः पाजी, पापी, दुष्ट, दुरा- 5. निर्धन, असहाय---उ० दू० 5, --रः मूढ, जड़बुद्धि चारी। सम-अधम (वि.) अत्यंत दुष्ट, अधम, ----वलगति चेत्पामरा:---भामि० 1162 2. दुष्ट या ...अपनुत्तिः (स्त्री०) प्रायश्चित्त, -- अहः दुर्भाग्यपूर्ण / नीच पुरुष 3. अत्यंत नीच कर्म में प्रवृत्त व्यक्ति / दिवस,---आचार (वि.) पापमय आचरण वाला, | पामा [पामन्+कीनिषेधः, नलोपः, दीर्घः] दे० ऊपर पापपूर्ण जीवन बिताने वाला, दुर्व्यसनी, दुष्ट, पामन्'। सम-- अरिः गंधक / ---आत्मन दुष्टमना, पापपूण, दुष्ट--(पु) पापी, | पायनापा--णिच -यच--टाप] 1. पीलाना 2. सींचना. ....-आशय,-चेतस् (वि०) दुष्ट इरादे वाला, दुष्ट तर करना 3. तेज करना, पैनाना। हृदय, कर,--कारिन्,-कृत् (वि.) पापपूर्ण, पापी, पायस (वि.) (स्त्री -सी) [पयस अण] दूध या अधम,-क्षयः पाप का दूर करना, पाप का नाश, पानी से बना हुआ-सः, सम 1. खीर, दूध में उबले ----ग्रहः दुष्ट ग्रह, प्रद्वेषी (जैसे मंगल, शनि, राहु या / हुए चावल -- मनु० 3 / 271, 5 / 7, याज्ञ. 11173, केतु),...न (वि०) पाप को दूर करने वाला, 2. तारपीन,--सम् दूध / प्रायश्चित कारी,-चर्यः 1. पापी, 2. राक्षस, - दृष्टि | पायिकः (पु) पैदल सिपाही। (वि.) बुरी निगाह वाला, खोटी आँख वाला, धी पायुः [पा-!-उण, युक] गुदा, मलद्वार-पायूपस्थम् मनु० (वि०) दुष्ट हृदय, दुर्बुद्धि,-नापितः चालाक या दुष्ट / 90, 91, याज्ञ० 3 / 92 / नाई, -नाशन (वि.) पापनाशक या प्रायश्चितकारी, पाय्यम् [मा+ ण्यत्, नि० पत्वम्, युगागमः] 1. जल 2. पेय --पतिः जार, उपपति, पुरुषः दुष्ट प्रकृति बाला पदार्थ 3. प्ररक्षण 4. परिमाण / मनुष्य, ..फल (वि०) अनिष्टकर, अशुभ,--बुद्धि | पार:-रम् [ परं तीरं परमेव अण, पृ+घा वा ] 1. ---भाव--मति (वि.) दुष्टहृदय, दुष्ट, दुश्चरित्र, या नदी का परला-सामने वाला दूसरा किनारा --भाज् (वि.) पापपूर्ण, पापी-कु०५४८३,--- मुक्तं --पारं दुःखोदधेर्गन्तुं तर यावन्त भिद्यते--शा० 311, (वि०) पाप से छूटा हुआ, पवित्र,-मोचनम्, विरहजलधेः पारमासादयिष्ये--पदा० 13, हि० 1 // -विनाशनम् पाप का नाश, योनि (दि०) नीच 204 2. किसी भी वस्तु का विरोधी पक्ष-कु० जाति में उत्पन्न (स्त्री--निः) नीच कूल में जन्म, 2058 3. किसी वस्तु का अन्तिम किनारा, अन्तिम ----रोगः 1. कोई बुरा रोग 2. शीतला, चेसक,---शोल सीमा-वेणी० 3 / 35 4. किसी वस्तु का अधिकतम (वि.) दुष्ट कार्यों में प्रवृत्त होने वाला, दुष्ट प्रकृति, परिमाण, समष्टि-स पूर्वजन्मांतरदष्टपारा: स्मरन्निव दुष्टहृदय, संकल्प (वि०) दुष्टहृदय, दुरात्मा (रूपः) ---रषु० 18150, (पारं गम्,--,-या 1. पार दुष्ट विचार / जाना, ऊपर चढ़ना 2. निष्पन्न करना, पूरा करना, For Private and Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसा कि 'प्रतिज्ञायाः पारं गतः', पूर्ण रूप से आत्मसात / पारतः [ पारं तनोति . पार+तन्-|-ड ] पारा / करना, प्रवीण होना-सकलशास्त्र पारंगतः,--र: पारा | पारतंत्र्यम् [परतंत्र+-व्यञ् ] पराश्रयता, अधीनता, अनु(पार 'दूसरी ओर' 'परे' कई बार समास में प्रयुक्त / सेवा। होता है --उदा० पारेगंगम्, पारेसमुद्रम् - गंगा के पारत्रिक (वि.) (स्त्री० की) [ परत्र- ठक ] 1. पर. पार या समुद्र के पार) / सम०--अपारम् --अवारम् लोक संवन्धी 2. भावी जीवन के लिए उपयोगी। दोनों तट, पास का और दूर का (रः) समुद्र, सागर पारच्यम् [ परत्र-1 प्या भावी जीवन में प्राप्य फल, - --शोकपारावारमुत्तर्तुमशक्नुवती---दश० 4, भामि० परलोक फल मनु० 2 / 236 / / ४।११,--अयणम् 1. पार जाना 2. पूरा पढ़ना, अनु- पारयः [ पारं ददाति .. पार-|-दा-न-क] पारा--निदर्शनं शीलन, आद्योपान्त अध्ययन 3. समग्रता, सम्पूर्णता, पारदोऽत्र रस:- भामि० 182 या किसी वस्तु की समष्टि-जैसा कि 'ब्रह्मपारायण पारवारिकः परदाग-। ठक् ] पभिचारी, परदारगामी या मंत्रपारायण' में,...-अयणी . सरस्वती देवी 2. -याज्ञ०२।२९५ / / चिन्तन, मनन 3. कृत्य, कर्म 4. प्रकाश,-काम परदार्यम् | परदार-व्यञ 1 व्यभिचार, परदारगमन (वि.) दूसरे किनारे तक जाने का इच्छुक, -ग .. मनु० 11159, याज्ञः 3 / 235 / (वि.) 1. पार जाने बाला, नाव से पार उतरने पारवेशिक (वि०) (स्त्री० की) [परदेश+रका वाला 2. जो पार पहुंच चका है, जिसने किसी ग्रंथ विदेशी, बाहर के देश का, कः 1. विदेश का रहने का पूरा अध्ययन कर लिया है, पूर्णपरिचित, पूरा वाला 2. यात्री। ज्ञाता (संब० के साथ, या समास में)-मनु० 2 / 148, | पारदेश्य (वि०) (स्त्री० यी) [ परदेश प्यन 11. याज्ञ. 1 / 111 3. प्रकाण्ड विद्वान्,---गत, गामिन् विदेश से संबंध रखने वाला, विदेशी, श्यः 1. अन्य (वि.) जो तट के दूसरी ओर पहुंच गया है,--वर्शक देश का रहने वाला 2. यात्री। (वि.) 1. सामने के तट को दिखलाने वाला 2. / पारभुतम् | इसका शुद्ध रूप संभवत: 'प्राभूत' है | उपहार, जिसके आर पार दिखाई दे, ---दृश्यन् (वि०) 1. भेंट। दूरदर्शी, बुद्धिमान्, समझदार 2. जिसने किसी वस्तु का पारमहंस्यम् [परमहंस--व्या / सर्वोत्कृष्ट सन्यासत्ति, द्रसरा किनारा देख लिया है, जिसने किसी बात को पूर्ण मनन / सम० परि (अव्य० ) इस प्रकार के सन्यासी रूप से जान लिया है-श्रुतिपारदृश्वा रघु० 5 / 24 / से सम्बन्ध रखने वाला। पारक (वि.) (स्त्री...की) [ पण्विल] 1. पार करने पारमाथिक (वि.) (स्त्री०-की) | परमार्थ | ठक् ] की योग्यता रखने वाला 2. आगे ले जाने वाला, 1. परमार्थ' अर्थात सर्वोपरि सत्य अथवा अध्यात्म ज्ञान बचाने वाला, सौंपने वाला 3. प्रसन्न करने वाला, से संबन्ध रखने वाला 2. वास्तविक, आवश्यक, यथार्थ संतुष्ट करने वाला। में विद्यमान सत्ता विविधा पारमाथिकी, व्यावहापारक्य (वि.) [ परस्मै लोकाय हितम् --पर+प्या, रिकी प्रातीतिकी च वेदान्त 3. सत्य का ध्यान रखने कुक् ] 1. पराया, दूसरे का 2. दूसरों के लिए उद्दिष्ट बाला, सत्यप्रय न लोकः पारमाथिक: पंच। 3. विरोधी, शत्रुतापूर्ण,-क्यम् परलोक साधन, पवित्र 11312 3. सर्वश्रेष्ट, सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्तम / आचरण / पारमिक (वि०) (स्त्री०-की) [ परम+ ठक् / सर्वोपरि, पारग्रामिक ( वि०) (स्त्री०- की) [ परग्राम+ठक् ] सर्वोत्तम, मुख्य, प्रधान / पराया, विरोधी, शत्रुतापूर्ण / पारमित (वि०) [ पारमितः प्राप्त:-अलुक स. 1. दूसरे पारज (40) [ पार-णिच+अजि ] सोना, स्वर्ण। तट या किनारे पर गया हुआ 2. पार पहुंचा हआ, पारजायिकः | परजायां गच्छति--परजाया 1-ठक | व्यभि- आर-पार गया गया हुआ 3. परमोत्कृष्ट / चारी पुरुष। पारमेष्व्यम् [परमेष्टिन्+प्य1. सर्वोपरिता, उच्चतम पारटीट:,--नः (पुं०) पत्थर, चट्टान / पद 2. राजचिह्न। पारण (वि.) पिल्यट] 1. पार ले जाने वाला, उवा- पारंपरीण (वि०) (स्त्री-णी) [परंपरा--- खा] परंपरा रने वाला 2. बचाने वाला, उद्धार करने वाला,---: प्राप्त, आनुवंशिक, वंशक्रमागत। 1. बादल 2. संतोष,-णम् 1. निष्पन्न करना, पूरा पारंपरीय (वि०) परम्परा---छपरम्पराप्राप्त, आनकरना 2. पाठ करना, बांचना 3. व्रत (उपवास) के वशिक / पश्चात भोजन करना, ब्रत खोलना .. कारय चक्षुषी पारंपर्यम् (परम्परा-ष्या] 1. आनवंशिक ऋम, अवि. पारणम् विद्ध० 1, 2 / 39, 55, 70, भोजन करना। च्छिन्न क्रम 2. परम्परा से प्राप्त शिक्षा, परम्परा ----कु० 5 / 22. (अभ्यवहारकर्म-मल्लि०) / 3. अन्तर्वतिता, मध्यस्थता / सम०-- उपदेशः परंपरा For Private and Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 607 ) भक्त हो। प्राप्त शिक्षा, परम्परा (इस परम्परा को पौराणिक भवत्यनुदिनं वद कोऽहेतु:--र्तृ० 31154, मेघ० 38 लोग 'प्रमाण' मानते हैं)। 2. बन्दर 3. पहाड़ / सम-अंघ्रिः,-पिच्छः एक पारयिष्णु (वि०) [पार+णिच्--इष्णुच्] 1. सुहावना, प्रकार का कबूतर / तृप्तिकारक 2. किसी कार्य को पूरा करने के योग्य, | पारावारीण (वि.) [पारावार---रव] 1. दोनों छोर तक पार जाने के लिए समर्थ / / जाने वाला 2. पूर्ण रूप से जानकार / पारलौकिक (वि०) (स्त्री०-को) [परलोकाय हितम् पर पाराशरः, पाराशर्यः पराशर+अण्, या वा] पराशर लोक ठक द्विपदवृद्धि: ] परलोक से संबंध रखने के पुत्र व्यास का विशेषण / वाला या परलोकोपयोगी,-धर्म एको मनुष्याणां पाराशरिः [ पराशर- इन ] 1. शुकदेव का विशेषण सहायः पारमार्थिक:-महा०, नै 5 / 92 / 2. व्यास का नाम / / पारवतः [--पारापता (पार-आ-+-पत-- अच्)] कबूतर।। पाराशरिन् (पुं०) [पाराशर--इनि ] 1. साधु, सन्यासी पारवश्यम् [ परवेश-|-व्यञ ] परावलंबन, पराश्रयता, 2. विशेषकर वह जो व्यास के शारीर सूत्रों के अधीनता। अध्येता हों। पारशव (वि०) (स्त्री०-वी)। परशु-अण् ] 1. लोहे। पारिकांक्षिन् (पुं०) [पारयति संसारात् पारि ब्रह्मज्ञानम् का बना हुआ 2. कुठार से संबंध रखने वाला,-वः तत्कांक्षति-पारि ---कांक्ष---णिनि / ध्यानमग्न या 1. लोहा 2 शूद्र स्त्री में उत्पन्न ब्राह्मण का पुत्र - चिन्ताशील सन्त, सन्यासी जो भावात्मक समाधि का यं ब्राह्मणस्तु शूद्रायां कामादुत्पादयेत्सुतम्, स पार यन्नव शवस्तरमात्पारशवः स्मत:-मनु० 9 / 178 पारिक्षितः [परिक्षित+अण] जनमेजय का कुल सूचक या परं शवात् ब्राह्मणस्यष पुत्र: शूद्रापुत्रं पारशवं | नाम, अर्जुन का प्रपौत्र और परीक्षित का पुत्र / तमाहु:--महा० 3. दोगला, हरामी। पारिखेय (वि.) (स्त्री०-यी) [परिखा-द] चारों ओर पारश्वधः, पारश्वधिकः [ परश्वध: प्रहरणमस्य----अण, परिखा या खाई से विरा हुआ। परश्वध-+ठक। फरसा धारण करने वाला, कुठार | पारिजातः, पारिजातकः [पारमस्य अस्ति इतिपारी समद्रः धारी। तस्माजात:-... पारिजात-- कन ] 1. स्वर्ग के पाँच पारस (वि०) (स्त्री०-सी) [पारस्यदेशे भवः अण बा. वक्षों में से एक (कहते है कि समद्र मंथन से 'पारि__ यलोपः] पारसो फारस देश का रहने वाला / जाप्स' की उपलब्धि हुई, जिसे इन्द्र ने अपने नन्दनपारसिकः / . फारस देश 2. फारस देश का, पारसीक। कानन में लगाया, कृष्ण ने इन्द्र से छीन कर इरो पारसी (स्त्री०) फारसो भापा / अपनी प्रिया सत्यभामा के वाग में लगाया)-कल्पद्रु. पारसीकः [पषो० साधः] 1. फारस देश 2. फारस देश माणामिव पारिजातः - रघु० 616, 10111, 1717, का घोड़ा, काः (पुं०, साधुः) फारस देश के रहने 2. मूंगे का पेड़ 3. सुगन्ध / / वाले-पारसीकास्ततो जेतु प्रतस्थ स्थलवमना-पारिणाय्य (वि.) (स्त्री०-य्यी) [परिणय-प्या। रघु० 4 / 6 / 1. विवाह से संबन्ध रखने वाला 2. विवाह के अव. पारस्त्रर्णयः [ परस्त्री+ढक्, इनङ, उभय पदवृद्धिः] सर पर प्राप्त किया हुआ, स्यम् 1. विवाह के दोगला, हरामी ('परस्त्री' से उत्पन्न)। अवसर पर स्त्री को मिली हुई सम्पत्ति-मातुः पारहस्य (वि.) [परहंस / व्यञ] उस सन्यासी से संबंध परिणाय्यं स्त्रियो विभजेरन --वसिष्ठ 2. विवाह रखने वाला जिसने सब इन्द्रियों का दमन कर लिया व्यवस्था। पारितभ्या [ परितथ्य+प्या 1 बालों को बांधने के लिए पारा पार+अच+टाप्] एक नदी का नाम--तदुत्तिष्ठ मोतियों की लड़ी। पारासिंधुसंभेदमवगाह्य नगरीमेव प्रविशावः ...मा० / पारितोषिक (वि.) (स्त्री०-की) [ परितोष+ठन] 4 / 9 / 1 / सुखकर, तृप्तिकर, सान्त्वनाप्रद,-कम् उपहार, पुरपारापतः पार-+आ+पत्---अच्] कबूतर / स्कार-गृह्यतां पारितोषिकमिदमङ्गलीयकम्-मृच्छ० 5 / पारायणिकः पारायण-ठ] 1. व्याख्यानदाता, पुराण | पारिध्वजिकः परितः ध्वजा - परिध्वजा+ठक ] झंडा तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों का पाठ करने वाला 2. शिष्य, | बरदार, झंडा ले चलने वाला। विद्यार्थी। पारिन्द्रः। -- पारीन्द्रः, गृषो० हरवः ] सिंह, केसरी। पाराषक: [पार-- -उपन] पत्थर, चट्टान / पारिपंथिकः परिपंथ :-ठका लुटेरा, डाकू। पारावतः / -- पारापतः, पृषो० पस्य वः ] 1. कबूतर, | पारिपाट्यम् | परिपाटी-यन ] 1. ढंग, प्रणाली, रीति फास्ता, पेंडुको-पारावतः खरशिलाकणमात्रभोजी कामी } (परिपाटी) 2. नियमितता। For Private and Personal Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 608 ) पारिपार्श्वम् [ पारिपार्श्व + अण् ] अनुचरवर्ग, सेवक, पारिशीलः [ परिशील-अण् | रोटी, पूड़ा, मालपुआ अनुयायी। (दे० अपूप)। पारिपाश्र्धकः, पारिपाश्विकः [ पारिपार्श्व-1 कन्, परि- पारिशेष्यम् [ परिशेष - ध्यञ ] बचा हुआ, शेष, बाकी / पार्श्व+ठक ] 1. सेवक, टहलुआ 2. नाटक में सूत्र- पारिषद (वि०) (स्त्री०-दी) [ परिषद् + अण् ] सभा धार का सहायक, नान्दीपाठ के अवसर एक अन्तर्वादी या परिषद् से संबन्ध रखने वाला, --दः 1. सभा में ......प्रविश्य पारिपावकः, तत्किमिति पारिपार्श्विक उपस्थित व्यक्ति, सभा का सदस्य, परामर्शक 2. राजा नारंभयसि कुशीलवैः सह संगीतम्--वेणी० 1 / का सहचर,--दाः (पुं०, ब० व०) देव का अनुचरपारिपाश्विका [ पारिपाश्विका+टाप् ] दासी, सेविका, वर्ग / निजी नौकरानी। पारिषद्यः [ परिषद् -।-ण्यत् ] सभा में विद्यमान व्यक्ति, पारिप्लव (वि०) परिप्लव-अण् ] 1. इधर उधर दर्शक / / घूमने वाला, डांवाडोल, चंचल, अस्थिर, कम्पायमान | पारिहारिको [ पारिहर--उक् +ङीप् ] एक प्रकार की -ननंद पारिष्लवनेत्रया नप:---रघु०३।११ 2. तैरना, बुझौवल, पहेली। बहना रघु० 13130, 16461 3. क्षुब्ध, उद्विग्न, परे पारिहार्यः [ परि / हृ +- ण्यत् ---अण् ] कड़ा, कंगण, शान, घबराया हुआ-उत्तर० 4 / 22,-- नाव, ___ -यम् लेना, ग्रहण करना। बम् बेचैनी, विकलता। पारिहास्यम् [ परिहास -।-ध्या ] हंसी-दिल्लगी, ठठोली, पारिप्लाव्यः [परिपप्लव+प्या ] हंस व्यम् 1. परे हंसी-मजाक / शानी, बेचैनी, क्षोभ 2. कंपकंपी, थरथराहट / पारी [---णिच-घा --डीष ] 1. हाथी के पैरों को पारिबहः [ परिबह+अण ] वैवाहिक उपहार / बांधने का रस्सा 2. जल का परिमाण 3. पानपात्र, पारिभाः [ परिभद्र+अण् ] 1. मुंगे का वृक्ष 2. देवदारू सुराही, प्याला 4. दूध की बाल्टी-शि० 12 / 40 / वृक्ष 3. सरल वृक्ष 4. नीम का पेड़ / पारीक्षितः पारिक्षित। पारिभाष्यम् [परिभू+प्यञ ] जमानत, प्रतिभूति, पारीण (वि.) [पार+ख ] 1. दूसरी पार रहने या जाने जमानत के रूप में रक्खी गई वस्तु / वाला 2. (समास के अन्त में) सुविज्ञ, सुपरिचितपारिभाषिक (वि.) (स्त्री०-की) [ परिभाषा - ठक ] त्रिवर्गपारीणमसौ भवन्तमध्यासयन्तासनमेकमिन्द्रः---- 1. चाल, सामान्य प्रचलित 2. (शब्द आदि) तक- भट्टि० 2 / 46 / नीकी, किसी विशेषार्थ का संकेतक / पारीणाम् परिणह+ष्या, उपसर्गस्य दीर्घः ] घर का पारिमांडल्यमा परिमंडल। प्यन | अणु, सूर्य की किरण सामान या वर्तन आदि। __ में विद्यमान रजकण भाषा० 15 / पारीन्द्रः [पारि पशुः तस्येन्द्रः ] 1. सिंह, 2. अजगर, बड़ा पारिमखिक (वि.) (स्त्री०-की) [परिमुख-ठक सांप। ___ मुंह के सामने का, निकटवर्ती, पास का। | पारीरणः [ पायां जलपूरे रण यस्य ] 1. कछुवा 2. छड़ी, पारिमुख्यम् [ परिमुख --प्या ] उपस्थिति, समीप लाठी। होना। पारुः [ पिवति रसान्-पा-1-7 ] 1. सूर्य 2. अग्नि / पारिया (पा) त्रः (पुं०) सात मुख्य पर्वत शंखलाओं में पारुण्यम् | परुप - ज्या ] 1. खुरदरापन, ऊबड़खाबड़पन, __से एक रघु० 18 / 16, दे० 'कुलाचल' / कड़ापन 2. कठोरता, क्रूरता, (स्वभाव की) निर्दयता पारिया (पा) त्रिकः [ पारियात्र ! ठक ] 1. पारियात्र 3: अपभाषा, गाली देना, बराभला कहना, अश्लील पहाड़ का निवासी 2. पारियात्र पहाड़। भाषा, अपमान-भग० 16 / 8, याज्ञ० 2 / 12,72 पारियानिकः [ परियान | ठक् ] यात्रा पर जाने के 1. (वाणी से या कर्म से) हिंसा ----मनु० 8 / 6,72, लिए गाड़ी। 7 / 48,51 5. इन्द्र का उद्यान 6. अगर, -व्यः बृहपारिरक्षकः [ परिरक्षति आत्मान-~-परि---रक्ष - बुल स्पति का विशेषण / +अण् ] साधु, सन्यासी। पारोवर्यम् | परोवर-+प्या परंपरा / पारियित्त्यम्, पारिवेश्यम् ! परिवित्त-:-छात्र, परिवेत पार्घटम् [ पादे घटते इति अच, पृषो० साधुः ] चूल, राख / +ष्यन / छोटे भाई का विवाह हो जाने पर भी पार्जन्य (वि०) [ पर्जन्य-अण् | वृष्टि से संबंध रखने बड़े भाई का अविवाहित रहना। वाला। पारिवाजकम् पारिवाज्यम् [ परिव्राजक -अण, परिवाज / पार्ण (वि.) (म्त्री०-णी) [ पर्ण | अण् | 1. पत्तों से +प्यञ ] साधु सन्यासी का भ्रमणशील जीवन, संबंध रखने वाला या पत्तों का बना हुआ 2. पत्तों सन्यास। से उठाया हुआ (जैसे कि कर)। For Private and Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्थः [ पृथा+अण] 1. युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का / पाश्वः,-श्वम् [ पशूनां समूहः ] 1. काँख से नीचे का शरीर मातकुलसूचक नाम, परन्तु अर्जुन का विशेषरूप से का भाग, स्थान जहाँ पसलियाँ है-शयने सन्निष---भग० श२५, और दूसरे अनेक स्थल 2. राजा। पणकपाश्र्वाम्--मेघ० 89 2. पांसू, कोख, (सजीव सम० - सारथिः कृष्ण का विशेषण / और निर्जीव पदार्थों का) पाल्ग--पिठरं क्वथदतिपार्थक्यम [ पृथक-+-व्यञ ] पृथकता, अलहदगी, अलग 2 मात्र निजपाश्र्वानेव दहतितराम् --पंच० 11324 होने का भाव, अकेलापन, अनेकता। 3. आस-पास, - इर्वः जिनका विशेषण, ---श्वम् 1. पसपार्थबम [पथ+-अण] विशालता, विस्तार, फैलाब, चौड़ाई। लियों का समूह 2. जालसाजी से भरी हई तरकीब, पार्थिव (वि०) (स्त्री०-वी) [ पथिवी--अण] 1. मिट्टी असम्मानजनक उपाय (पाश्वम् क्रियाविशेषण के का बना हुआ, पृथ्वी संबंधी, भूमिसंबंधी, घरती से रूप में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ हैसंबंध रखने वाला---यतोरजः पाथिवमज्जिहीते-रघ० 'ने निकट' के पास में 'की ओर'--श० 78, इसी 13 // 64 2. धरती पर शासन करने वाला 3. गजमी, प्रकार पाति की ओर से' 'से दूर' पावें 'निकट' राजकीय,--वः 1. पृथ्वी पर रहने वाला 2. गजा, 'नज़दीक' 'पास में' न मे दुरे किंचित्क्षणमपि न पावें प्रभु--रघु० 8 / 1 3. मिट्टी का वर्तन / सम० रथजवात् -- 0 119, भर्तृ० 2 / 37) / सम. -नन्दनः---सुतः राजकुमार, राजपुत्र,-कन्या-नन्दिनी, -----अनुचरः टहलुआ, सेवक -रघु० २।९,-अस्थि -~-सुता राजा की पुत्री, राजकुमारी। (नपुं०) पसली,--आयात (वि०) जो बहुत निकट पाथिवी पार्थिव !-डीप | 1. सीता का विशेषण, धरती आ गया है, ....आसन्न (वि.) पास ही विद्यमान, की पुत्री-पाथिवीमदहद्रध्दहः-रघु०२११४५ 2. लक्ष्मी -उदरप्रियः केकड़ा,--11: टहलुआ, सेवक-रघु० का विशेषण / १११४३,—गत (वि०) पार्श्ववर्ती, पास ही स्थित, पार्परः (पुं०) 1. मुट्ठी भर चावल 2. क्षयरोग, तपेदिक / सेवा करने वाला 2. शरणागत,—चरः सेवक, टहलुआ पायंतिक (वि०) (स्त्री०-की) [पर्यन्त+ठक् ] अन्तिम, ----- रघु० 9 / 72, १४॥२२,-दः टहलआ, सेवक,-वेशः आखरी, निर्णायक / (शरीर की) कोख, पाँसू,--परिवर्तनम् 1. बिस्तर पर पार्वण (वि०) (स्त्री०-णी) [पर्वन्-+-अण् ] 1. पर्व करवट बदलना 2. भाद्रपदशुक्ल 11 में होने वाला संबंधी, रघु० 11382 2. वृद्धि की प्राप्त होना, पर्व (आज के दिन समझा जाता है कि विष्णु करवट बढ़ना (जैसे कि चन्द्रमा का), -म पर्व के अवसर बदलते हैं), भागः कोख, पांसू,--वतिन् (वि०) पर (अमावस्या के दिन) सभी पितरों के निमित्त 1. पास होने वाला, उपस्थित, सेवा में खड़ा हुआ आहुति देने का सामान्य संस्कार / 2. साथ ही लगा हुआ, शय (वि.) पास ही सोने पार्वत (वि.) (स्त्री०-ती) [पर्वत-|-अण | 1. पहाड़ पर वाला, वगल में सोने वाला,--शलः,--लम् कोख में होने या रहने वाला 2. पहाड़ पर उगने वाला, पहाड़ मीठा दर्द, सूत्रकः एक प्रकार का आभूषण-स्थ से प्राप्त होने वाला 3. पहाड़ी। (वि०) पाश्र्ववर्ती, नजदीकी, निकटवर्ती, समीपस्थ पार्वतिकम् | पर्वत+ठा ] पहाड़ों का समुच्चय, पर्वत (स्थः) 1. सहचर 2. सूत्रधार का सहायक-तु. शृंखला। पारिपार्श्वक। पार्वती [ पार्वत। डीप। 1. दुर्गा का नाम, हिमालय की पावकः (स्त्री०-की) [पार्श्व+कन | ठग, प्रवंचक, पुत्री के रूप में उत्पन्न (अपने पहले जन्म में वह सती चोर / थी-तु० कु०१२१) तां पार्वतीत्याभिजनेन नाम्ना | | पार्वतः (अव्य०) [पार्वतस] निकट, नजदीक, बंधुप्रियां बंधुजनो जुहाव ----कु० 1 / 26 2.. ग्वालिन समीप, पास रघ० 19131 / 3. द्रौपदी का विशेषण 4. पहाड़ी नदी 5. एक प्रकार | पाश्विक (वि.) (स्त्री०--की) [ पार्श्व+च ] पाँसू की सुगंधयक्त मिट्टी। सम० नन्दनः 1. कार्तिकेय से संबंध रखने वाला, --कः 1. पक्ष लेने वाला आदमी, की उपाधि 2. गणेश का विशेषण / साझीदार 2. साथी, सहचर 3. जादूगर / पार्वतीय (वि.) (स्त्री०-यी) [ पर्वत + छ ] पहाड़ में | पार्षत (वि०) (स्त्री०--ती) [पषत-+अण् ] चितकबरे रहने वाला,--यः 1. पहाड़ी 2. एक विशेष पहाड़ी हरिण से संबंध रखने वाला--मन० 3 / 269, याज्ञ० जाति का नाम (ब० ब०) तत्र जन्यं रघोोरं १२५७,--तः राजा द्रुपद और उसके पुत्र धृष्टद्युम्न पार्वतीयगणरभूत-घ०४७७ / का पितृकुलसचक नाम / पार्वतेय (वि०) (स्त्री०-यो) पार्वती हक पहाड़ | पार्षती पार्षत - डीप ] 1. द्रौपदी का विशेषण 2. दुर्गा पर उत्पन्न, --यम् अंजन, सुरमा / की उपाधि। पार्शवः [ पशु +-अण् | कुठार से सुसज्जित योद्धा / / पार्षद् (स्त्री०) [परिषद्, पृषो० ] सभा / For Private and Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्वः [पार्षद महति अण्.] 1. साथी, सहचर 2. टहलुआ। --भामि० 2 / 3 4. हद, सीमा 5. श्रेणी, पंक्ति, अनुचरवर्ग 3. सभा में उपस्थित, दर्शक, सभासद् / -~-विपुल पुलकपाली-गीत० 6, शि० 3151 6. पार्वचः [ पर्षद्+ज्य ] सभासद्, सदस्य / धब्बा, चिह्न 7. बांध, पुल 8. गोद, अंक 9. आयतापाणिः (0, स्त्री०) [पृष्+नि, नि० वृद्धिः ] 1. एड़ी | कार तालाब 10. अध्ययनकाल में गुरु द्वारा छात्र का ---उजयत्वंगुलि पाष्णिभागान् --कु० 1111, पाष्णि भरण-पोषण 11. जूं 12. प्रशंसा, स्तुति 13. वह स्त्री प्रहार--का० 119 2. सेना की पिछाड़ी 3. पिछाड़ी, / जिसके दाढ़ी-मूंछे हों। पिछला भाग-शुद्धपाष्णिरयान्वितः रघु० 4 / 26, | पालिका [ पालि-|-कन्+टाप् ] 1. कान का सिरा 2. तल'जिसकी पिछाड़ी शत्ररहित हो गई हैं' 4. ठोकर वार या किसी छुरी आदि काटने वाले उपकरण की (स्त्री.) 1. व्यभिचारिणी स्त्री 2. कुन्ती का विशे- तेज धार 3. पनीर या मक्खन आदि काटने की छुरी / षण। सम०--ग्रहः अनुयायी,- पहणम् शत्रु की पीठ पालित (भू० क. कृ.) पाल- क्त 1.प्ररक्षित, संरक्षित, पर आक्रमण करना,--ग्राहः पृष्ठवर्ती शत्रु 2. पृष्ठवर्ती आरक्षित 2. पालन किया हुआ, पूरा किया हुआ। सेना का सेनापति 3. मित्रराजा जो किसी राजा की | पालित्यम [पलित+व्या ] वद्धावस्था के कारण बालों सहायता करे-मनु०७।२०७,--घातः ठोकर---कि० | की सफेदी, घवलता। १७४५०,-त्रम् पृष्ठरक्षक, पीछे रहने वाली सेना की | पाल्वल (वि.) (स्त्री-लो) पल्वल-!- अण ] पोखर में टुकड़ी, प्रारक्षित,-बाहः बाह्यवर्ती घोड़ा। उत्पन्न, तलैया से प्रात्त / पालः [पाल+अच् ] 1. प्ररक्षक, अभिभावक, संरक्षक | पावकः [पू+ण्वुल ] 1. आग-... पावकस्य महिमा स गण्यते -यथा गोपाल, वृष्णिपाल आदि 2. ग्वाला---विवादः कक्षवज्ज्वलति सागरेऽपि यः--रघ० 11175, 3 / 9, स्वामिपालयोः -- मनु० 8 / 5, 229, 240 3. राजा 16687 2. अग्नि देवता 3. बिजली की आग 4. पीकदान / सम०-धनः कुकुरमुत्ता, साँप की 4. चित्रक वृक्ष 5. तीन की संख्या / सम० ---आत्मजः छतरी। कार्तिकेय का विशेषण 2. सुदर्शन नामक ऋषि / पालक: [ पाल+वल ] 1. अभिभावक, प्ररक्षक 2. राज | पावकिः [ पावक-इन ] कार्तिकेय का विशेषण / कुमार, राजा, शासक, प्रभु 3. साईस, घोड़े का रख | पावन (वि.) (स्त्री०--नी) [पू-+-णिच् - ल्युट / वाला 4. घोड़ा 5. चित्रक वक्ष 6. पालक पिता। 1 निर्मल करने वाला, पाप से मुक्त करने वाला, शुद्ध पालकाप्यः (0) 1. एक ऋषि करेण का पुत्र, (इन्होंने ही करने वाला, पवित्र बनाने वाला-पादास्तामभितो सर्वप्रथम हस्तिविज्ञान की शिक्षा दी) 2. हस्तिविज्ञान / निषण्णहरिणा गौरीगुरोः पावना:-- श० 6 / 17, रघु० पालंकः [पाल+किप्=पाल+अंक+घञ ] 1. पालक 15 / 101 19 / 53, भग० 1815, मनु० 2 / 26, याज्ञ. का साग 2. बाजपक्षी, की एक गंधद्रव्य / 3 / 307 2. पवित्र, पुनीत, विशुद्ध, परिष्कृत-कु० पालंक्यः,---क्या [ पालंक+व्यञ, स्त्रियाँ टाप् च ] एक ५।१७,-न: 1. आग 2. गंध द्रव्य 3. सिद्ध 4. व्यास सुगंध द्रव्य / कवि,--1. नम पवित्री करण, विशुद्धीकरण--पदनखपालन (वि०) [पाल+ल्यूट ] रक्षा करने वाला, संरक्षण नीरजनितजनपावन-गीत०१ 2. तप 3. जल देने वाला, कि० ११९,-नम् 1. प्ररक्षण, संरक्षण, 4. गोबर 5. संप्रदायसूचक तिलक / सम०-ध्वनि: पालना, पोसना, लालन-पालन करना-लब्ध रघु० शंखनाद / 19 / 3, इसी प्रकार प्रजा क्षिति° आदि 2. बनाये | पावनी [पावन+डीप् ] 1. पवित्र तुलसी 2. गाय 3. गंगा रखना, अनुपालन करना, (वत, प्रतिज्ञा, आदि को) | नदी। पूरा करना 3. ताजी ब्याई हुई गौ का दूध, खीस। | पाबमानी [पचमानम् अधिकृत्य प्रवृत्तम्-पवमान+अण पालयित (पु.) [पाल+णिच्+तृच ] प्ररक्षक, संरक्षक, डोप | विशिष्ट वैदिक ऋचाओं का विशेषण / परवरिश करने वाला-रघु० 2069 / पावरः (.) पासे का वह पहल जिस पर 'दो' की संख्या पालाश (वि.) (स्त्री०-शी) [ पलाश+अण्] 1. ठाक अंकित हो; पासे को विशेष ढंग से फेकना,- पावर का, डाक से उत्पन्न 2. ढाक को लकड़ी का बना पतनाच्च शोषित शरीर:----मृच्छ० 2 / 8 / / हुमा, भनु० 2 / 45 3. हरा,-शः हरा रंग। सम० पाशः [ पश्यते बध्यतेऽनेन, पश करणे घा | 1. डोरी, -- ---वणः मगध देश का विशेषण / श्रृंखला, बेड़ी फंदा-पादाकृष्टव्रततिवलयासंगसंजातपालिः, -को (स्त्री०) [पाल+इन् ] कान का सिरा / पाशः - श० 1132, बाहुपाशेन व्यापादिता... मृच्छ. पालि:-ली [स्त्री.] [पाल इन् | 1. कान का सिरा 9, रघु०६।८४ 2. जाल, खटकेदार पिंजड़ा, या फंदा --श्रवणपालि:-गीत. 3 2. किनारा, गोट, मगजी 3. बन्धन जो (वरुण के द्वारा) शस्त्र की भांति -भर्तृ. 3255 3. तेज सिरा, पार या नोक | प्रयुक्त होता है-कु. 221 4. पांसा-रघु० For Private and Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 6 / 18 पर मल्लि. 5. किसी बनी हुई वस्तु की पाषंड: [पा त्रयीधर्मः तं षंडयति-पा+पंड्+अच्] =पाखड किनारी 6. (समास के अन्त में) 'पाश' का अर्थ होता -मनु० 5 / 90, 9 / 285 / / है-- (क) तिरस्कार, अवमान—यथा 'छात्रपाश' पाषंडकः, पाषंडिन् (पं०) [पाषंड+कन्, पा+षड्+ (निकम्मा विद्यार्थी ) में, वैयाकरण०, भिषक० आदि णिनि] नास्तिक, धर्मभ्रष्ट, धर्म के नाम पर झूठा (स) सौन्दर्य, सराहना यथा-संवोष्ठमुद्रा स च आडंबर रचने बाला धूर्त व्यक्ति, याज्ञ० 11130, कर्णपाशः उत्तर० 6 / 27, (ग) बहुतायत, ढेर, 2160 / राशि (केश' अर्थ द्योतक शब्द के पश्चात) केशपाश पाषाणः [पिनष्टि पिष संचूर्ण ने आनच् पृषो० तारा०] (केशकलाप)। सम० -अंतः कपड़े का पृष्ठभाग, पत्थर,....णी बाट का काम देने वाला छोटा पत्थर / ---क्रीडा जुआ खेलना, पांसे के साथ खेलना, धरः, सम० - दारकः, दारणः टांकी,----संधिः चट्टान के ...पाणिः वरुण का विशेषण,--बद्ध (वि०) पिंजड़े में ____ अन्दर गुफा या दरार,-- हृदय (वि.) पत्थर की भांति फंसा हुआ, जाल में पकड़ा हुआ, फंदे में पड़ा हुआ, कठोरहृदय, क्रूर, निष्ठुर / -बंधः बंधन, जाल, फांसी की डोरी,--बंधकः पि (तुदा० पर० पियति) जाना, हिलना-जुलना। बलेलिया, पक्षी पकड़ने वाला, बंधनम् जाल,-भूत् पिकः [अपि कायति शब्दायते-अपि+के+क, अकार(पं०) वरुण का विशेषण...रघु० २।९,--रज्जुः लोपः] कोयल --कुसुमशरासनशासनवंदिनि पिकनिकरे (स्त्रो०) बेड़ी: रस्सी,-हस्तः 'हाथ में जाल पकड़े भज भावम्-गीत० 11 या-उन्मीलंति कुहुः कुहरिति हुए' वरुण का विशेषण / / कलोताला: पिकानां गिरः-गीत० 1 / सम० पाशकः [पाश्यति पीडयति–पश् णिच् +-वुल ] अक्ष, आनन्दः,-बांधवः बसन्तऋतु,-बंधुः,-रागः, वल्लभः पाँसा। सम० पीठम् जुआ खेलने की चौकी। आम का पेड़। पाशनम् | पश् --णिच् | ल्युट ] 1. बंधन, फंदा, जाल, | पिक्कः [पिक इत्यव्यक्तसब्देन कायति--पिक+केका गुलेल या गोफिया 2. डोरी, चाबक या सोटे में लगी 1. 20 वर्ष की आयु का हाथी 2. हाथी का बच्चा / चमड़ की डोरी या तस्मा 3. जाल में फंसाना, पिंजरे साना, पिजर | पिंग (वि.) [पिङ्ग् वर्णो अच कुत्वम्] लालिमा लिये में बन्द करना। भूरा रंग, खाकी, पीला-लाल रंग,—अन्तनिविष्टापाशव ( वि० ) ( स्त्री०-वी) [ पशु- अण् ] जान- मलपिंगतारम् (विलोचनम्) कु० ७।३३,-...गः 1. वरों से प्राप्त, या संबंध रखने वाला, बम् रेवड़, खाकी या भूरा रंग 2. भैंसा 3. चहा,- मा 1. हल्दी लहंडा / सम० पालनम् पशुचरण या चरागाह, 2. केशर 3. एक प्रकार का पीला रोगन 4. चंडिका गोचरभमि. की उपाधि / सम० ----अक्ष (वि०) ललाई लिये भरे पाशित (वि) [ पश् ।-णिच्--क्त ] बद्ध, जाल में फंसा, रंग की आँखों वाला, लाल आँखों वाला (क्ष) 1. बेड़ियों से जकड़ा हुआ। लंगर 2. शिव का विशेषण, ईक्षणः शिव की उपाधि, पाशिन् (पुं० [पाश ।-इति] 1. वरुण का विशेषण 2. यम -----ईशः अग्नि का विशेषण, कपिशा तेल चट्टा, का विशेषण 3. हिरणों को पकड़ने वाला, बहेलिया, --चक्षुस् (पुं०) केकड़ा,--जट: शिव का विशेषण, जाल में फंसाने वाला। --सारः हरताल, स्फटिकः 'पीला बिल्लौर', गोमेद पाशुपत (वि०) (स्त्री० -ती) [पशुपति+अण] 1. रत्न / पशुपति से प्राप्त, या पशुपति से सम्बद्ध अथवा पशुपति पिंगल (वि.) [पिङ्ग-सिध्मा० लच, पिंगलाति ला के लिए पावन, तः 1. शिव का अनुयायी और पूजक +क व तारा०] ललाई लिये भूरे रंग का, पीताभ, 2. पशपति के सिद्धान्तों का पालन करने वाला, --तम् भूरा, खाकी--रघु० 12 / 71, मनु० ३१८--ल: 1. पाशपत सिद्धांत (दे० सर्व०)। सम० -- अस्त्रम् खाकी रंग 2. अग्नि 3. बंदर 4. एक प्रकार का नेक्ला पशुपति या शिव द्वारा अधिष्ठित एक अस्त्र का नाम 5. छोटा उल्लू 6. एक प्रकार का साँप 7. सूर्य के (जिसे अर्जुन ने शिव से प्राप्त किया था)। एक अनुचर का नाम 8. कुबेर के एक कोष का नाम पाशुपाल्पम् पशुपालन व्यञ] पशुओं का पालना, ग्वाले 9. एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम, संस्कृत के छन्दः शास्त्र की वृत्ति या धंधा। का प्रणेता, उसकी कृति का नास- पिंगलच्छंदः पाश्चात्य (वि.) [पश्चात् +त्यक] 1. पिछला 2. पश्चिमी शास्त्र है,--छन्दोज्ञाननिधिं जघान मकरो वेलातटे ....रघु० 4 // 62 3. पश्चवर्ती, बाद का 4. बाद में पिंगलम् --पंच० २।३३,-लम् 1. पीतल 2. पीले होने वाला, त्यम पिछला भाग / / रंग की हरताल,-ला 1. एक प्रकार का उल्लू 2. पाल्या [पाश-+-+टाप] 1. जाल 2. रस्सियों या पौड़ियों शीशम का वृक्ष 3. एक प्रकार की धातु 4. शरीर की ___ का समूह। विशेष वाहिका 4. दक्षिण देश की हथिनी 5. एक For Private and Personal Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 612 ) गणिका जो अपनी पवित्रता तथा पावन जीवन के | पिंजयति-ते) 1. देना 2. लेना 3. चमकना 4. शक्तिकारण प्रसिद्ध है (भागवत में उल्लेख है कि किस / शाली होना 5. रहना, बसना 6. चोट पहुंचाना, क्षति प्रकार उस गणिका ने तथा अजामिल ने इस लोक के पहुंचाना, मार डालना। बंधनों से मुक्ति पाई)। सम-अक्षः शिव का | पिंजः [पिंज+घञ, अच् वा ] 1. चन्द्रमा 2. कपूर विशेषण / ____3. हत्या, वध 4. ढेर,-जम् सामर्थ्य, शक्ति,--जा पिंगलिका [पिंगल+ठन्+टाप]1.एक प्रकार का सारस 2. ____ 1. क्षति, चोट 2 हल्दी 3. कपास / ___एक प्रकार का उल्लू / पिंजटः [पिज्+अटन्] दीद, आँग्य की कीच / पिंगाशः [पिंग+अश्+अण्] 1. गाँव का मुखिया या ! पिजनम् [पिंज। ल्युट] धुनकी, रूई धुनने का धनुपाकार मालिक 2. एक प्रकार की मछली,-शम् प्राकृत स्वर्ण, उपकरण। _-शी नील का पौधा / पिंजर (वि०) पिज्+अरच् ललाई लिये पीले रंग का पिचण्डः, -उम्, पिचिण्डः,-डम् [अपि-|-चण्ड+द्या, खाकी, सुनहरी रंग का,-शिखा प्रदीपस्य सुवर्णपिंजरा अकालोपः, पृषों०] पेट, उदर / -~-मृच्छ० 3 / 17, रघु० १८।४०,---रः ललाई लिये पिचण्डकः [पिचण्ड---कन्] पेटू, औदरिक / पीला या खाकी भूरा रंग 2. पीला रंग-रम 1. सोना पिचितिका [पिचिण्ड + ठन्-+टाप्] पिंडली, टांग की, 2. हरताल 3. अस्थिपंजर . पिंजड़ा। पिंडली। पिंजरकम् [पिंजर+कन्| हरताल। पिचिंडिल (वि०) [पिचिड+इलच् | मोटे पेट वाला, | पिंजरित (वि०) [पिंजर --इतच्] पीले रंग का, हल्के भूरे स्थूलकाय / रंग का। पिचः पच+उ पुषो० तारा०] 1. रूई 2. एक प्रकार का पिंजल (वि.) पिज+कलच। 1. शोकसंतप्त, भयभीत, बाट, (दो तोले के बराबर) कर्ष 3. एक प्रकार का व्याकुल, विस्मित 2. (सेना आदि) आतंकित,-लम् कोढ़। सम०-तलम् रूई,-मंदः,---मर्दः नीम का | ___1. हरताल 2. कुश की पत्ती। पेड़..-शि० 5 / 66 / पिजालम् [पिंज +आलच | सोना, सुवर्ण / पिचुलः [पिचु+ला+क] 1. रूई 2. एक प्रकार का जल- पिंजिका | पिंज- वल-टाप, इत्वम] पूनी, रूई का गोल काक या समुद्री कौवा। ___गल्हा जिससे कातने पर सूत निकलता है। पिच्चट (वि.)। पिच्च+अटन् ] दबाकर चपटा किया पिंजूषः [पिज्+ऊषण] कान का मैल / / हुआ,-टः आँखों की सूजन, नेत्र-प्रदाह,- टम् 1. रांगा, | पिंजटः [ पिजट, पषो०आँखों की कीच, दीद / जस्ता 2. सीसा। पिंजोला [पिंज+ओल+टाप्] पत्तों की खड़खड़ाहट, पत्तों पिच्चा [पिच्च +अच्+टाप्] 16 मोतियों की एक लड़ का खड़-खड़ शब्द करना / जिसका वज़न एक धरण (मोतियों की विशेष तोल) पिट: [पिट् + क सन्दुक, टोकरी- टम् 1. घर, कुटीर 2. छप्पर, छत / पिच्छम् [पिच्छ-+अच् 1. पूंछ का पर (जैसे मौर का) पिटकः,-कम् [पिट+कन्] 1. सन्दुक, टोकरी 2. खत्ती 3. 2. मोर की पूंछ-शि० 4 / 50 3. बाण के पंख फुसी फफोला, छोटा फोड़ा, नासूर (इस अर्थ में 4. बाजू 5. कलगी, शिखा,-च्छः पूंछ,-छा 1. म्यान, 'पिटका' तथा 'पिटिका' भी)-ततः गंडस्योपरि पिटका गिलाफ, कोप 2. चावल का मांड 3. पंक्ति, श्रेणी संवृत्ता-श०२ 6. इन्द्र के झंडे पर एक प्रकार का 4. ढेर, समुच्चय 5. रेशमीकपास के पौधे का गोंद आभूषण। या रस 6. केला 7. कवच 8. टाँग को पिडली 9. साँप | पिटक्यापिटक+य+टाप] सन्दूकों का ढेर / की विषमय लार 10. सुपारी। सम०-बाणः बाज, | पिटाकः [पिट+काक बो०] पिटारी, सन्दूक / श्येन / | पिट्टकम् [==किट्टक, पृषो० कस्य पः] दाँतों का जमा हुआ पिच्छल (वि.) [ पिच्छ+लच् ] 1. चिपचिपा, चिकना, मल। फिसलनवाला, लसलसा- तरुणं सर्षपशाकं नवौदनम् पिठरः,-रम् [पिठ-करन्] बर्तन, तसला, बटलोई. पिच्छिलानि च दधीनि-छन्द०१2. पंछवाला-लः, ('पिठरी' भी इसी अर्थ में)-पिठरं ववथदतिमात्र ला,-लम्, 1. चावलों का मांड, भुक्तमंड 2. चावल निजपाश्र्वानेव दहतितराम-पंच० 11324, जठरकी कांजी से युक्त चटनी 3. मलाई समेत दही। पिठरी दुष्पूरेयं करोति विडंबनाम्-~-भर्तृ० 3 / 116, सम०---स्वच् (पुं०) संतरे का पेड़ या छिल्का। -रम् रई का डंडा। पिi (अदा० आ०-पिक्ते) 1. हल्के रंग की, पुट देना, पिठरकः, कम् [पिठर+कन] बर्तन, तसला। सम. रगना 2. स्पर्श करना 3. सजाना ii (चुरा० उभ० -कपाल,-लम् ठीकरा, खपड़ी, खप्पर / For Private and Personal Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 613 ) पिंडकः, का [पीड्+ण्वल, नि 10 साधुः] छोटा फोड़ा, . वृक्ष 2. चीन का गुलाब 3. अनार (ष्पम्) 1. अशोक फुसी, फफोला / वृक्ष पर फूल आना, मंजरी 2 चीनी गुलाब का फूल पिर (भ्वा० आ०, चुरा० उभ०---पिंडते, पिंडयति-ते, 3. कमल फूल,-भाज् (वि०) पिंड प्राप्त करने का पिडित) 1. इकट्ठा करके पिडी या गोला बनाना 2. अधिकारी (पुं०, ब० ब०) स्वर्गीय मृत पुरुष या जोड़ना, मिलाना 3. ढेर लगाना, इकट्ठा करना। पितर--श० ६।२५,-भूतिः (स्त्री०) जीविका, पिंड (वि.) (स्त्री०---डी) [पिण्ड्+अच्] 1. ठोस, धन जीवन निर्वाह का साधन, मूलम, --- मूलकम् गाजर, 2. मिला हुआ, सघन, सटा हुआ, ...,-- डम् 1. पिंडी, -- यज्ञः श्राद्ध करके पितरों को पिंडदान देना-याज्ञ. गोला, गोलक (अयः पिंडः, नेत्र पिंड आदि) 2. लौंदा, ३।१६,-लेपः पिंड का वह अंश जो हाथ में चिपका ढेला (मिट्टी का) 3. कौर, ग्रास, महभर कवल रह जाता है (यह अंश प्रपितामह से ठीक पूर्ववर्ती -रघु० 2159 4. श्राद्ध में पितरों को दिया जाने तीन पितरों को दिया जाता है),-लोपः (संतान न वाला चावलों का पिंड--- रघु० 1166, 1 / 26, मनु० होने के कारण) पिंडदान का अभाव,--संबंधः जीवित 3 / 216, 9 / 132, 136, 140, याज्ञ. 13159 तथा मृत व्यक्ति के बीच का संबंध जिससे कि पिंड5. भोजन सफलीकृतभर्तपिंडः - भालवि० ५,'नमक- दाता की पिंडभोक्ता के प्रति पात्रता का निर्धारण हलाल' 6. जीविका, वृत्ति, निर्वाह 7. दान किया जाय। --पिडपातवेला . मा० 2 8. मांस, आमिष 9. गर्भ पिंडक:-कम् [पिण्ड+के+क] 1. लौंदा, गोला, गोलक धारण की आरंभिक अवस्था का गर्भ 10. शरीर, / 2. गूमड़ा या सूजन 3. भोजन का ग्रास 4. टांग की शारीरिक ढांचा---एकांतविध्वंसिष मद्विधानां पिंडेष्व- | पिंडली 5. गंधद्रव्य, लोबान 6. गोजर-क: बैताल, नास्था खल भौतिकेषु-रघु 2 / 57 11. ढेर, संग्रह, पिशाच / समच्चय 12. टांग की पिंडली-मा० 5 / 16 पिंडनम् [पिड़+ल्यट] गोले या पिण्ड बनाना / 13. हाथी का कुंभस्थल 14. मकान के आगे का पिंडलः [पिंड्+कलच] 1. पुल, बाँध 2. टीला, ऊर्ध्वभूमि निकाला हुआ छज्जा 15. धूप, या गंध द्रव्य 16. (अंक / या शैलशिला। ग० में) जोड़, कुलयोग 17. (ज्या० में) घनत्व, पिंडसः [पिंड+सन्+ड] भिक्षुक, भिक्षा पर जीवन यापन -डम् 1. शक्ति, सामर्थ्य, ताक़त 2. लोहा 3. ताजा करने वाला साधु / मक्खन 4. सेना (पिंड कृ गोले बनाना, निष्पीडित पिंडातः [पिंड +-अत्+अच] लोबान, गंधद्रव्य / करना, ढेर लगाना, पिंडीभू गोले या लौंदे बनाना)। पिंडारः [पिंड-1-ऋ+अण्] 1. साधु, भिक्षुक 2. ग्वाला सम० ----अन्वाहार्य पितरों को पिंड दान के पश्चात् 3. भैसों को चराने वाला 4. विकंकत वृक्ष 5. निन्दा खाने के योग्य-मनु०३।१२३,-अन्याहार्यकम् पितरों की अभिव्यक्ति / के उद्देश्य से दिया हुआ भोजन,---अभ्रम ओला, , पिडि:-डी (स्त्री० [पिड़+इन, पिडि-1-डीष] 1. पिन्नी, ---अयसम् इस्पात,—अलक्तकः महावर, लाल रंग, गोला 2. पहिये की नाभि 3. टांग की पिडली -अंशनः,-आशः,--आशकः,-आशिन् (पुं०) 5. लौकी, धीया 6. घर 7. ताड़ की जाति का वृक्ष / भिक्षुक,-उदकक्रिया मतव्यक्तियों के निमित्त पिण्डदान सम०--पुष्पः अशोक, वृक्ष,--लेपः एक प्रकार का लेप तथा जलदान,--श्राद्ध और तर्पण,--उबरणम पिंडदान या उबटन,--शूर: गेहेशूरः' पेट्, डींग हाकने वाला, में भाग लेना,--गोसः रसगंध, लोबान की तरह का कायर, आत्मश्लाघी, भीरु, मेहरा-तु. गेहेनदिन् सुगंधित गोंद,-तैलम,-तैलक: गंधद्रव्य विशेष, आदि। लोबान,-द (वि.) 1. जो भोजन देता है, जीवन | पिडिका [पिण्ड्+ण्वुल, इत्वम्] 1. घूम, गोलाकार सूजन निर्वाह के लिए आहार देने वाला---इवा पिंडदस्य 2. टांग की पिडली-दे० ॐ० पिडि'। कुरुते गजपुंगवस्तु धीरं विलोकयति चाटुशतश्च भुंक्ते पिडित (वि.) [पिण्ड्+क्त 1. दबा 2 कर बनाया गया भत० 2031 2. मृत पितरों को पिण्ड देने का... गोला या पिण्डा 2. पिंडाकार बकाया हुआ, लौंदे अधिकारी याज्ञ० 21132 (वः) पिंडदान करने जैसा 3. ढेर किया हुआ, बटौड़ा 4. मिश्रित 5. जोड़ा वाला निकटतम संबंधी पुरुष 2. स्वामी, अभिरक्षक, हुआ, गुणा किया हुआ 6. गिना हुआ, संख्यात / --वानम् 1. अन्त्येष्टि क्रिया के समय पिंड देना ! पिडिन् (वि.) [पिंड+ इनि] 1. पिंड प्राप्त करने वाला 2. अमावस्या की संध्या के समय पितरों को पिंडदान (पितर) (0) भिखारी 2. पितरों को पिण्डदान... देना,-निर्वपणम् पितरों को पिंडदान देना,-पातः / देने वाला। भिक्षा देना, मा० १,-पातिकः भिक्षा से जीविका / पिडिलः [पिण्ड+इलच ] 1. पुल, बांध 2. ज्योतिषी. चलाने वाला,--पाकः-पाचः हाथी, पुष्पः 1. अशोक / गणक / For Private and Personal Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यारा वदे पार्वतीमाता, माता-पिता 4444444444 पिडीर (वि०) [ पिण्ड-ईर् णिच् ] फीका, रसहीन, का विशेषण, --पदम पितरों का लोक, पित (0) नीरस, सूखा,-र: 1. अनार का वृक्ष 2. मसीक्षेपी का दादा, बाबा, पितामह,-पुत्रौ (द्वि०व० पितापुत्री) भीतरी कवच 3. समुद्रफेन-दे० 'डिंडीर'। पिता और पुत्र, (पितुः पुत्रः प्रसिद्ध और लोक विश्रुत पिंडोलिः (स्त्री०) [पिण्ड+ओलि] खाते समय मुंह से पिता का पुत्र, पूजनम् पितरों की पूजा, पैतामह गिरा कण, जूठन, उच्छिष्ट / (वि०) (स्त्री ही) पूर्व पुरुषाओं से प्राप्त, पैतृक, पिण्याकः कम पिष- आक, नि० साधुः] 1. खल (तिल आनुवंशिक (ब०व०-हा.) पूर्व पुरुष, प्रसू: (स्त्री०) या सरसों की) 2. गन्ध द्रव्य, लोबान 3. केशर / 1. दादी 2. सांध्यकालीन झुटपुटा, ---प्राप्त (वि०) 4. हींग / 1. पिता से प्राप्त 2. पितृकुल क्रमागत से प्राप्त,पितामहः (स्त्री०-ही) [पितृ+डामहच्] 1. दादा, बाबा ! बंधुः पितृकुल के नातेदार (नपं०-बंधु) पिता के ___ 2. ब्रह्मा का विशेषण / संबंध से रिश्तेदारी,--भक्त (वि.) पिता का कर्तव्य पित (पुं०)[पाति रक्षति--पा+तुच ] पिता,--तेनास परायण भक्त,-भक्तिः ( स्त्री० ) पिता के प्रति 'लोकः पितमान् विनेश्रा-रघु० 14 / 23, 1124, कर्तव्य, भोजनम् पितरों को दिया गया भोजन,-- ११॥६७,-रौ (द्वि०व०) पिता-माता, माता-पिता भ्रात (पं०) पिता का भाई, चाचा या ताऊ, जगतः पितरी वंदे पार्वतीपरमेश्वरी--रघु० 121, - मंदिरम् 1.पितगह 2. कब्रिस्तान,----मेधः पितरों के याज्ञ. २०११७,-रः(ब०व०) 1. पूर्वपुरुष, पूर्वज, निमित्त किया जाने वाला, यज्ञ, श्राद्ध, यज्ञ: 1. मृत पिता,-श०६।२४ 2. पितृकुल के पितर, पितृवर्ग- पूर्व पूरुषाओं को प्रतिदिन तर्पण या जलदान, ब्राह्मण मनु० 21151 3. पितर-रघु० 2 / 16, 4 / 20, द्वारा अनुष्ठेय दैनिक पंच यज्ञों में से एक पित भग० 10 / 29, मनु० 3 / 81, 192 / सम० --- अजित यज्ञस्तु तर्पणम् मनु० 3 / 70, 122, २८३,-राज् (वि०) पिता द्वारा कमाई हुई पैतृक (संपत्ति), (पुं०), राजः,-राजन् (पं०) यम का विशेषण-..-कर्मन् (नं०), कार्यम्,--कृत्यम्,-क्रिया मृत पूर्व रूपः शिव का विशेषण, लोकः पितरों का लोक..... पुरुषाओं को के निमित्त किया जाने वाला याग या वंशः पिता का कुल, --वनम् श्मशान, कनितान (पितृश्राद्धकर्म,—काननम् कब्रिस्तान, - रघु० 11116,- वनेचर: 1. राक्षस, पिशाच, शिव का विशेषण),कुल्या मलय पर्वत से निकलने वाली नदी,-गणः वसतिः (स्त्री०), सान् (नपू०) श्मशान, कनिस्तान 1. पूर्वपुरुषाओं के समस्त वर्ग 2. पितर, वंश प्रवर्तक कु० 5 / 77, व्रतः श्राद्ध, पितृकर्म, श्राद्धम् पिता जो प्रजापति के पुत्र थे-दे० मनु० 3-194-5,- या मत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला गहम् 1. पिता का घर 2. कब्रिस्तान, जहाँ दफन श्राद्ध, स्वस (स्त्री०) (पितृष्वस,) पितुः स्वसकिये जायँ, - घातकः, -घातिन (पं०) पिता की हत्या भी) भुवा, फूफी --मनु० 2 / 131, प्वम्रीयः फुफेरा करने वाला,--तर्पणम् 1. पितरों को दी जाने वाली भाई,---संनिभ ( वि० ) पितृतुल्प, पितवत् , सूः आहुति या जलदान 2. (मार्जन के अवसर पर) पितर 1. पितामह, दादा, बाबा 2. सांध्यकालीन झटपूटातथा अन्य दिवंगत पूर्वजों के निमित्त दायें हाथ से स्थानः, स्थानीयः अभिभावक (जो पिता के स्थान जल छोड़ना-मनु० 2 / 176 3. तिल,--तिथिः में है),---हत्या पिता का वध, हन् (पुं०) पिता की (स्त्री०) अमावस्या,-तीर्थम् गया तीर्थ जहाँ जाकर हृत्या करने वाला। पितरों के निमित्त श्राद्ध करना विशेष रूप से फल- पितक (वि.) [पितुः आगतम् —पितृ+कन् ] 1. पैतृक, दायक विहित है 2. अँगूठे और तर्जनी के मध्य का | कुलक्रमागत, आनुवंशिक 2. औज़दैहिक / / भाग (इसके द्वारा तर्पण आदि करना पवित्र माना पितृव्यः / पित+व्यत् ] 1. पिता का भाई, चाचा 2. कोई जाता है), दानम् पितरों के निमित्त किया जाने भी वयोवृद्ध पुरुष-नातेदार-मनु० 2 / 130 / वाला दान, दायः पिता से प्राप्त संपत्ति,- दिनम् पित्तम् [ अपि--दो+क्त अपे: अकारलोषः | पित्तदोष, अमावस्या,-देव (वि.) 1. पिता की पूजा करने शरीर में स्थित तीन दोषों में एक (शेष दो हैं वात वाला 2. पितरों की पूजा से संबद्ध (वाः) अग्निष्वात्त और कफ) पित्तं यदि शकरया शाम्यति काऽर्थः आदि दिव्य पितर, -दैवत (वि०) पितरों द्वारा पटोलेन--पंच० 11378 / सम०- अतीसारः पित के अधिष्ठित (तम्) दसवाँ (मधा) नक्षत्र,-द्रव्यम प्रकोप से उत्पन्न दस्तों का रोग,-उपहतः (वि.) पिता से प्राप्त सम्पत्ति, याज्ञ० २।११८,-पक्षः पित्त से ग्रस्त—पश्यति पित्तोपहतः शशिशुभ्रं शंखमपि 1. पितकुल, पैतृक संबंध 2. पितृकुल के संबंधी पीतम -- काव्य० 10, कोषः पित्ताशय, क्षोभः पित्त3. पित पक्ष / आश्विन मास का कृष्ण पक्ष जिसमें दोष की अधिकता, पित्तप्रकोप,---ज्वरः पित्त के प्रकोप पितकृस्य करना प्रशस्त माना गया है,-पतिः यम से होने वाला ज्वर या बुखार,-प्रकृति (वि०) ANTERAS For Private and Personal Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसके शरीर में पित्त की प्रधानता हो, या जो क्रोधी / पिपीलिकः [अपि --पील+इकन्, अपेः अकारलोपः ] चींटा, स्वभाव का हो, प्रकोपः पित्त का आधिक्य या पित्त -कम् एक प्रकार का सोना (चींटों द्वारा एकत्र का कुपित हो जाना, . . रक्तम् रक्तपित्त नामक रोग, न किया हुआ माना जाना जाता है)। - वायुः पित्त के प्रकोप से पेट में वाय का पैदा होना, | पिपीलिका [पिपीलक+टाप, इत्वम् ] चींटी। सम० अफारा, * विदग्ध (वि०) पित्त के प्रकोप से आक्रांत, | --परिसर्पणम् चींटियों का इधर उधर दौड़ना / -शमन, हर (वि०) पित्त के प्रकोप को शान्त | पिप्पलः [पा+अलच, पृषो०] 1. पीपल का पेड़-याश० करने वाला। 11302 2. चूचुक 3. जाकेट या कोट की आस्तीन. पित्तल (वि०) [पित्त-|-ला+क] पित्त बहल, जिसमें --लम् 1. बरबंटा 2. पीपल का, बरबंटा 3. सम्भोग पित्त की अधिकता हो, लम् 1. पीतल 2. भोजपत्र 4. जल। का वृक्ष विशेष / पिप्पलिः,-ली (स्त्री) | प+अचल+डीष पषो० पक्षे पित्र्य (वि०) / पितुः इदम्-पित+यत, रीड आदेश:] हस्वाभावः | पिपरामल, पीपल नाम की औषध / 1. पैतृक, बपौती का, पुश्तैनी 2. (क) मृत पितरों से | पिप्पिका (स्त्री०) दाँतों पर जमी हुई मैल की पपड़ी। संबंध रखने वाला ... मनु० 2 / 59 (ख) और्वदैहिक- पिप्लः [ अपि-प्ल+इ अपे: अकारलोपः ] निशान, तिल, क्रियासंबंधी,-त्र्यः 1. ज्येष्ठ भाई 2. माघमास,- त्र्यामरसा. चित्तीं। 1. मघा नक्षत्रपंज 2. पूणिमा और अमावस्या का पियाल:पीय+कालन, हस्वः] एक वृक्षविशेष (चिराजी) दिन, --त्र्यम् 1. मघा नाम का नक्षत्र 2. अंगठे और और कु. ३३१,-लम् इस वृक्ष (चिरौंजी) का फल / तर्जनी के बीच का हथेली का भाग (पितरों के लिए पिल (चरा० उभ०-पेलयति-ते) 1. फेंकना, डालना 2. भेजना, चलता करना 3. उत्तेजित करना, उकपित्सत् (पुं०) [पत्+-सन्, इस अभ्यासलोपः, पित्स+ साना। शतृ | पक्षी। : पिलुः (पुं०) दे० 'पीलः' / पित्सलः [ पत्+सल, इन ] मार्ग, पथ / पिल्ल (वि.) [ क्लिन्ने चक्षुषी यस्य, क्लिन्न-+ अच्, पिधानम् ! अपि-+धा+ ल्युट अपेः कारलोपः ] 1. ढकना, पिल्लादेशः ] चौंधियाई आँखों वाला,-लम् चुधि छिपाना 2. म्यान 3. चादर, चोगा 4. ढक्कन, चोटी।। याने वाली आँख / पिधायक (वि.)[अपि+धा---प्रवुल, अपेः अकारलोपः ] पिल्लका [ पिल्ल+के+क+टाप ] हथिनी। ढकने वाला, छिपाने वाला, प्रच्छन्न रखने वाला। पिश (तदा० उभ० पिशति-ते) 1. रूप देना, बनाना, पिन (भ० क० कृ०) [ अपि+नह+क्त, अपेः अकार- निर्माण करना 2. संघटित होना 3. प्रकाश करना, लोपः ] 1. जकड़ा हुआ, बंधा हुआ या धारण किया उजाला करना। हआ 2. सुसज्जित 3. छिपाया हुआ, प्रच्छन्न 4. चुभाया पिशंग (वि.) | पिश--अंगच किच्च ] ललाई लिये हुआ, छिदा हुआ 5. लपेटा हुआ, ढका हुआ, आवेष्टित।। भरे रंग का, लाल सा खाकी रंग का--मध्ये समुद्र पिनाकः,-कम् [पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस् ] | कभः पिशङ्गी: शि० 3 / 33, 116, कि० 4 / 36, 1. शिव का धनुप 2. त्रिशूल 3. सामान्य घनुष -गः खाकी रंग। 4. लाठी या छड़ी 5. धूल की बांछार / सम०-गोप्त पिशंगकः [ पिशंग+कन ] विष्णु अथवा उसके अनुचर -धूक,-धृत्,--पाणिः (पुं०) शिव की उपाधियाँ ! " का विशेषण। -कु०३।१०। | पिशाचः [पिशितमाचमति-आ+चम्, बा० ड पृषो०] पिनाकिन (10) [ पिनाक+इनि ] गिव का विशेषण भूत, बैताल, शैतान, प्रेत, दुष्ट प्राणी नन्वाशितः -कु० 5.77, 2016 / पिशाचोऽपि भोजनेन-विक्रम० 2, मनु० 1137, पिपतिषत् (टुं०) [ पत्+सन्+शत ] पक्षी। 12 / 44 / सम०---आलयः वह स्थान जहाँ फास्फोपिपतिषु (वि.) [पत्+सन्+उ] गिरने की इच्छा रस के कारण अंधेरे में प्रकाश होता हो,- एक वाला, पतनशील,-बु: पक्षी। प्रकार का वृक्ष (सिहोर),-बाधा,-संचारः पिशाच पिपासा [पा-सन्+अ+टाप् | प्यास / द्वारा आविष्ट होना,-- भाषा 'शंतानों की भाषा' पिपासित, पिपासिन्, पिपासु (वि०) [पा---सन्-|-क्त, . पैशाची प्राकृत जिसका प्रयोग नाटकों में मिलता है, पिपासा+इनि, पा+मन+-3] प्यासा / संस्कृत का अपभ्रंश,-- सभम् 1. शैतानों की सभा पिपीलः, पिपोली | अपि पील-1-अन, अपे: अकारलोपः, / 2. भूतों का घर, प्रेतावास / पिपील+ङीष ] चीटा, चींटी। .. पिशाकिन् (पुं०) [ पिशाच --इनि, कुक् ] धन के पिपीलकः [ पिपील+कन् ] मकौड़ा। स्वामी कुबेर का विशेषण / For Private and Personal Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिशाचिका [पिशाच+ही+का+टाप, ह्रस्वः ] / हुई कोई चीज़, पिसा हुआ मसाला 2. आटा, बेसन 1. पिशाचिनी, भूतनी, स्त्री पिशाच 2. (समास के - पिष्टं पिनष्टि 'पिसे हुए को पीसता है' अर्थात् अन्त में) किसी पदार्थ के लिए शैतानी या पैशाचिकी त्यर्थ काम करता है, या बिना किसी लाभ के दोहआसक्ति-किमनया आयुधपिशाचिकया- महावी० राता है 3. सीसा / सम० उदकम् आटे में मिला 3, युद्ध के लिए घोर अनरक्ति, पिशाची भी इसी हुआ जल, पचनम् आटा भूनने के लिए कड़ाही, अर्थ में प्रयुक्त होता है, तस्य खल्वियं यावज्जीव- पतीली आदि, पशुः आटे का बनाया हुआ किसी मायुधपिशाची न हृदयादपक्रामति-बालरा० 4 या पश का पुतला पिण्डः आटे की बाटी या पेड़ी-पूरः -कियच्चिरमियमतिनाटयिष्यति भवंतमायुधपि- दे० 'घृतपूर', पेयः, पेयणम् पिसे को पीसना, व्यर्थ शाची--अनर्घ०४॥ काम करना, बिना किसी लाभ के दोहराना न्यायः पिशितम् [ पिश् + क्त ] मांस - कुत्रापि नापि खलु हा दे० 'न्याय' के अन्तर्गत, मेहः एक प्रकार का मधुमेह, पिशितस्य लेश:---भामि० 11105, रघु० 7.50 / ... वतिः एक प्रकार का लड़ड जो घी, दाल या सम...अशनः,-आशः,-आशिन्,-मुन् (पु.) चावल से बनाया जाता है,-सौरभम् (घिसा हुआ) 1. मांसमक्षी, पिशाच, बैताल--(छायाः) संध्यापयो- चन्दन। दकपिशाः पिशिताशनानां चरंति-श० 3 / 27 | | पिष्टकः,--कम् [ पिष्ट+कन् ] 1. बाटी जो किसी अनाज 2. मनुष्यभक्षी, नरभक्षी। के आटे से बनाई गई हो 2. सिकी हुई बाटी, रोटी, पिशुन (वि.) [ पिश् + उनन्, किच्च ] (क) संकेत - पूरी,-कम् तिलकुट, तिल के लड्डू। करने वाला, बतलाने वाला, प्रकट करने वाला, प्रद- | पिष्टपः,- पम् [विशन्ति अत्र सुकृतिनः--विश्+कप् शंन करने वाला, परिचायक-शत्रुणामनिशं विनाश- नि.] विश्व का एक भाग-तु० 'विष्टप' / पिशुनः शि० 1175, तुल्यानुरागपिशुनम् विक्रम | पिष्टातः [पिष्ट-अत् / अण्] सुगंधयुक्त या खुशबूदार 2 / 14. रघु० 1153, अमरू 97 (ख) स्मरणीय, / चूर्ण। स्मारक, क्षेत्र क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद्धजेथाः मेघ | पिष्टिक [पिष्ट+ठन् ] चावलों के आटे की बनी टिकिया। 48 2. मिथ्यानिन्दक, चुगलखोर, चगली खाने वाला | पिस / (भ्वा० पर० पेसति) जाना, चलना / / (चरा० --पिशुनजनं खलु बिभ्रति क्षितीन्द्राः भामि० 1174 उभ०-पेसयति--ते) 1. जाना 2. मजबूत बनना 3. दुष्ट, कर, प्रद्वेषी 4. अधम, कमीना, तिरस्करणीय 3. रहना 4. चोट पहुंचाना, क्षति पहुँचाना 5. देना 5. मूर्ख, मन्दबुद्धि,--न: 1. मिथ्या निन्दा करने वाला, या लेना। चुगलखोर, ढिंढोरवा, अधम, भेदिया, द्रोही, कलंकित | पिहित (भ० क० कृ०) [ अपि-धा+क्त, अपेः आकारकरने वाला हि० 11135, पंच० 11304, मनु० लोपः] 1. बन्द, अवरुद्ध, रुका हुआ, जकड़ा हुआ 3 / 161 2. रूई 3. नारद का विशेषण 4. कौवा / --दे० अपि पूर्वक धा 2. ढका हुआ, छिपा हुआ, गुप्त सम० - वचनम्,-वाच्यम् चुगली, गुणनिन्दा, _..---दे० अपिहित 3. भरा हुआ, ढका हुआ। बदनामी। पी (दिवा० आ० पीयते) पीना-तव वदनभवामतं निपीय पिष् (रुधा० पर०-पिनष्टि, पिष्ट) 1. कूटना, पीसना, मृच्छ० 10 / 13, नै० 111 / चूरा करना, कुचलना-अथवा भवतः प्रवर्तना न कथं ! पोचम् (नपुं०) ठोडी। पिष्टमियं पिनष्टि नः -- 0 2 / 61, 13 / 19, माष- पीठम् [ पेठन्ति उपविशन्ति अत्र--पि+घञ बा० दीर्घः पेष पिपेष ---महावी०६।४५, भट्रि० 6 / 37, 12 / 48 पीयते अत्र पो--ठक ] 1. आसन (तिपाई, चौकी, भामि० 1 / 12 2. चोट पहुंचाना, क्षति पहुँचाना, नष्ट | कुर्सी पलंग आदि) जवेन पीठादुदतिष्ठदच्युतः--शि० करना, मार डालना (संब० के साथ) क्रमेण पेष्टुं 1 / 12, रघु० 4 / 84, 6 / 15 2. ब्रह्मचारी के बैठन के भंवनद्विषामसि -शि० 1240, उद् कुचलना, लिए कुशासन 3. देवासन, वेदी 4. पादपीठ, आधार पीस डालना, -निस्-,कटना, चूर्ण करना, कण कण 5. बैठने को विशेष मद्रा। सम... केलिः विश्वासकरना, (तं) निष्पिपेक्ष क्षितो क्षिप्रं पूर्णकुंभमिवांभसि पात्र पुरुष परोपजीवी,--गर्भः मूर्ति के आधार में वह --महा०, शिलानिष्पिष्टमुद्गरः - रघु० 12173 गड्ढा जिसमें वह जमाई जाती है, नायिका वह 2. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, खरोंच मारना चौदह वर्ष की कन्या जो दुर्गा-पूजा के अवसर पर . भट्टि. 6 / 120 / दुर्गा मान कर पूजी जाती है,-भः आधार, नींव, पिष्ट (भू० क. कृ०) [पिष्+क्त ] पिसा हुआ, चूर्ण भूगृह, तहखाना,-मर्दः 1. सहवर, परोपजीवी, जो किया हुआ, कुचला हुआ---भामि० 212,73 2. रगड़ा | नाटक में बड़े२ कार्यों में नायक की सहायता करता हुआ, भींचा हुआ, (हाथ) मिलाया हआ,-ष्टम् पिसी है जैसे कि नायिका की प्राप्ति में, इसी प्रकार 'पीठ पिट महिला , क्षतिदारः - For Private and Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहायता करता ला देता है, पोड +-अङ्-टाश्रमपीडा---रघुति पहुँचाना मविका' वह स्त्री है जो नायिका के प्रेमी नायक को ! पीडन' में 5. बर्बाद करना, उजाड़ना 6. अनाज प्राप्त कराने में उसकी सहायता करती है 2. नृत्य / गाहना 7. ग्रहण -जैसा कि 'ग्रहपीडन' में 8. ध्वनि शिक्षक जो वेश्याओं को नायकला को शिक्षा देता है, निरोध, स्वरोच्चारण का एक दोष / --सर्प (वि०) लंगड़ा, विकलांग / पीडा पोड़+-अङ-+टाप्] 1. दर्द, कष्ट, भोगना, सताना, पोठिका पोट-डोष-+-+टाप, ह्रस्वः ] 1. आसन परेशानी, वेदना-आश्रमपीडा--रघु० 1137, बाधा, (चौकी, तिपाई) 2. पोढ़ा, आधार 3. पुस्तक का 71, मदन, दारिद्रय आदि 2. क्षति पहुँचाना, अनुभाग या प्रभाग जैसा कि दशकुमार चरित की पूर्व हानि पहुँचाना, नुकसान पहुँचाना भग०१७।१९, पोठिका और उत्तरसीठिका। मनु० 7.169 3. उजाड़ना, बर्बाद करना 4. उल्लंपोड़ (चरा० उभ०--पीडयति-ते, पीड़ित) पोडित करना, घन, अतिक्रमण 5. प्रतिबंध 6. दया, करुणा 7. ग्रहण मनाना, नुकसान पहुँचाना, घायल करना, क्षति पहुँ 8. सुमिरनी, शिरोमाल्य 9. सरलवृक्ष / सम० कर चाना, तंग करना, छेड़ना, परेशान करना नीलं (वि०) कष्टकर, पीड़ामय / चायोपिङच्छरः भट्टि० 1582, मनु० 4167, 238, पीडित (भू० क० कृ०) [पीड्+क्त] 1. पीडा से युक्त, 7129 2. पिरोच करना, सामना करना 3. (नगर तंग किया हुआ, सताया हुआ, अत्याचारग्रस्त, नोचा आदि को) घेरना दवाना, भींचना, निचोड़ना, गया 2. निवोड़ा हुआ, दबाया हुआ 3. विवाहित, चट को काटना कंठे पीडयन मच्छ० 8, लभेत पाणिग्रहीत 4. अतिक्रान्त, तोड़ा हुआ 5. उजाड़ा सिकनासू तेलमपि यत्नतः पोडयन् भर्न० 15, हुआ, बर्बाद किया हुआ. 6. ग्रहणग्रस्त 7. बाँधा हुआ, दशनपीडिनाधरा रघु० 19135 5. दबाना, नष्ट / बंधन प्रस्त, तम् 1. दर्द करना, क्षति पहुँचाना, तंग करना --मनु० 151 6. अवहेलना करना 7. किसी करना 2. मैथुन का विशेष प्रकार, रतिबंध,-तम् अशुभ वस्तु से ढकना 8. ग्रहण-ग्रस्त होना, - अभि, (अब्य०) मजबूती से, सटा कर, दृढ़ता पूर्वक / -अब, दवाना, निचोड़ना, पीड़ित करना, आ--, पीत (वि०) [पा+क्त] 1. पोया हुआ, चढ़ाया हुआ 2. दबाना, भार से झुका देना पयोधरभारेणापीडिन: परिव्याप्त, सिक्त, भरा हुआ, संतृप्त 3. पीला गौत० 12. उद् -, मसलना, घिसना, रगड़ना --विद्यत्प्रभारचित-पीतपटोत्तरीयः - मच्छ० 5 / 2, अन्योन्यमत्पीडपटालायाः स्तनद्वयं पांडु तथा -----तः 1. पीला रंग 2. पुखराज 3. कुसुम्भ,---तम् 1. प्रवदम् –कु० 1140, शि० 3166 2. पिचकाना, सोना 2. हरताल। सम० --अब्धिः अगस्त्य का ऊपर को फेंकना, धकेलना, पेलना -रघु० 5 / 46, विशेषण,-अंबरः विष्णु का विशेषण -इति निगदितः 16 / 66, उप -, I. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, प्रोतः पीतांबरोऽपि तथाकरोत-गीत० 12 2. अभिदुःखी करना, तंग करना, परेशान करना -स्तनोपपीडं नेता 3. पीले वस्त्र पहने हुए साधु सन्यासी, अरुण परिरब्धकामा-कि० 3 / 54, शि०१०।४७ 2. अत्या- (वि०) पीताभरक्त, पीलेपन से युक्त लाल, ...अश्मन् चार करना, बरबाद करना मन 08 / 67, 7.195, (50) पुखराज,-- कदली केले का एक भेद, सुनहरी नि, 1. तंग करना, पीडित करना, परेशान करना, केला,-कंदम् गाजर, - काबेरम 1. केसर 2. पीतल दंड देना, कष्ट देना --मन 0 7123 2. निचोड़ना, ....-काष्ठम् पीला चंदन,--गंधम् पीला चंदन, - चंदनम् दबाना, कस कर पकड़ना, हथिया लेना, थामना-गुरोः 1. एक प्रकार का चंदन 2. केसर 3. हल्दी, ---चम्पक: सदारस्य निपीड्य पादौ -रघु० 2 / 35, 5 / 65, निस् दीपक,-तुंडः कारंडव पक्षी,-दार (नपुं०) एक --, निचोड़ना-दे० निष्पीडित, परि-, 1. पीडा देना,कष्ट प्रकार का चीड का पेड़, या सरल वृक्ष, दुग्धा देना, परेशान करना 2. दबाना, भींचना द्र--, अत्यधिक दुधारू गाय, द्रुः सरल वृक्ष, पादा एक प्रकार का पीडित करना, यातना देना, सताना 2. दबाना, भींचना, पक्षी, मैना, मणिः पुखराज,-माक्षिकम् एक प्रकार सम-, भींचना, चटको काटना कंठे जीर्णलताप्रता का खनिज द्रव्य, सोनामाखी,---मूलकम् गाजर,---रक्त नवलयेनात्यर्थसंपीडितः श० 7 / 11, चौर० 3 / . (वि०) पीलेपन से युक्त लाल रंग का. संतरे के रंग पीडकः पीड्+ण्वल ] अत्याचारी। का (क्तम्) एक प्रकार का पीले रंग का रत्न, पीडनम् पीड्+ ल्युट्] . पीडित करना, कष्ट देना, पुखराज,-रागः 1 पीला रंग 2. मोम 3 पद्मकेसर, अत्याचार करना, पोड़ा पहुंचाना --मनु० 9 / 299 -बालुका हल्दी, वासस् (पुं०) कृष्ण का विशेषण, 2. भींचना, दवाना -दोल्लिबंध-निबिडस्तन पीड- ---सार: 1 पुवराज 2. चन्दन का वृक्ष (रम्) पीली नानि गीत० 10, दंतोप्ठपीडन नखातरक्तसिकताम् नंदन की लकड़ी, --सारि (न) अंजन, सुर्मा--स्कंधः ....चौर० 48 3. दबाने का उपकरण है. लेना, सुअर, --स्फटिकः पुखराज,-हरित (वि०) पीलापन थामना, पकड़ना जैसा कि 'करपीडन' और 'पाणि- लिये हुए हा। 78 For Private and Personal Use Only Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीतकम् पीत+कन्] 1. हरताल 2. पीतल 3. केसर | ताजा...रघु० 38, 5 / 65 19 / 32 2. फूला हुआ 4. शहद 5. अगर की लकड़ी 6. चंदन की लकड़ी। मोटा, -र: कछुवा, री 1. तरुणी 2. गाय / पीतनः [पीत करोति इति-पीत+णिच् + ल्युट वा पीतं / पीवा [पीयते -पी+व+टाप् ] जल। __ नयति इति पीत+नी+ड] गूलर की जाति का वृक्ष पंस् (चुरा० उभ० - पुंसयति-ते)। कुचलना, पीसना -नम् 1. हरताल 2. केसर / 2. पीडा देना, कष्ट देना, दण्ड देना। पोतल (वि०) [पीत+ला-|-क] पीले रंग का,--लः पीला | पंस (0) [या+-डुयसुन् ] (कर्तृ-पुमान्, पुमांसी, रंग,--लम् पीतल।। पुमांसः, करण द्वि० व०-पुभ्याम्, संबो० ए० व० पीतिः [पा+क्तिच् घोड़ा--(स्त्री०) पुमन्) 1. पुरुष 2. नर सि विश्वमिति कुत्र __मदिरालय 3. हाथी की सूड / कुमारी-नै० 5 / 110 2. इंसान, मानव-यस्यार्थाः पीतिका पीत+ठन्+टाप, इत्वम्] 1. केसर 2. हल्दी 3. | स पूमाल्लोके हि०१ 3. मनुष्य, मनुष्य जाति, कौम, पीली चमेली, या सोनजही। राष्ट्र-वंद्यः पुंसां रघुपतिपदैः -मेघ० 12 4. टहपोतुः [पा+ क्तुन्[ 1. सूर्य 2. अग्नि 3. हाथियों के झुंड लुआ, सेवक 5. पुंल्लिग शब्द 6. पुंल्लिग-पुंसि वा का मुख्य हाथी, यूथपति / हरिचन्दनम् - अमर० 7. आत्मा / सम०-अनुज पीथः [पा+थक्] 1. सूर्य 2. काल 3. अग्नि 4. पेय (वि०) (सानुज) [ पुंसा अनुजः, समासे तृतीयायाः 5. जल। अलुक ] वह जिसका बड़ा भाई भी हो, अनुजा पोथिः [-पीति, पृषो० तस्य थः] घोड़ा। (पुमनुजा) लड़का होने के बाद जन्म लेने वाली पीन (वि.) [प्याय+क्त, संप्रसारणे दीर्घः] 1. स्थूल, लड़की अर्थात् बड़े भाई वाली लड़की, अपत्यम् मांसल, हृष्टपुष्ट 2. भरापूरा, विशाल, मोटा-सा (पुमपत्यम्) लड़का, अर्थः (प्रमर्थः) 1. पुरुप या कि 'पीनस्तनी' में 3. पूर्ण, गोलमटोल 4. प्रभूत, मनुष्य का उद्देश्य 2. मानव-जीवन के चार ध्येयों में अधिक / सम०-ऊधस् स्त्री (पीनोध्नी) भरे पूरे से कोई सा एक, अर्थात् धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष, ऐन (औड़ी) वाली गाय, -- वक्षस् (वि.) विशाल- दे० पुरुषार्थ, --आख्या (प्रमाख्या) नर की संज्ञा, वक्षःस्थल वाला, भरी पूरी छाती वाला / आचारः (पुमाचारः) पुरुष का आचार, चालचलन, पीनसः [पीनं स्थूलमपि जन स्यति नाशयति-पीन+सो कटिः (स्त्री०) पुरुष की कमर,---फामा ('पुंस्काम) +क] 1. नाक पर दुष्प्रभाव डालने वाला जुकाम 2. पति की कामना करने वाली स्त्री,-कोकिलः (पंस्कोखांसी, जुकाम / किल:) नर-कोयक . कु०३।३२,--खेटः (पुखैट:)नरपीयः पा+कू नि० यक, ईत्वम] 1. कौवा 2. सूर्य 3. | ग्रह,--गवः (पुंगवः) 1. बैल, सांड 2. (समास के अग्नि 4. उल्ल 5. काल 6. सोना। अन्त में) मुख्य, सर्वोलम, श्रेष्ठतम, पूज्य या किसी पीयूषः,-धम् [ पीय / ऊषन् ] / सुधा, अमृत मनसि भी श्रेणी का प्रमुख व्यक्ति-वाल्मीकिर्मनिपंगवः 'वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः - भर्त० 2 / 68, इमां -रामा०, इसी प्रकार 'गजपुंगवः भर्तृ० 2 / 31, नर पीयूषलहरीम .. गंगा० 53 2. दूध 3. ब्याने के बाद पुंगवः-आदि,-केतुः शिव का विशेषण- कु० 7177, पहले सात दिन का गाय का दूघ / सम० महस् ....चलो (पुश्चलीयः) रंडी का बेटा,--चिह्नम् (पुं०), रुचिः 1 चन्द्रमा 2. कपूर,--वर्षः 1,अमृतवर्षा (पश्चिह्नम) शिश्न, पुरुष की जननेन्द्रिय,-जन्यन् 2. चन्द्रमा 3. कपूर / (पुंजन्मन्) (नपुं) लड़के का पैदा होना, नर-सन्तान पीलकः [ पील+वल ] भकोड़ा। का जन्म लेना, योगः वह नक्षत्रपुंज जिसमें कि लड़कों पोलुः [ पील-उ] 1. बाण 2. अगु 3. कीड़ा 4. हाथी या नरसन्तान का जन्म होता है, दासः (पुंदासः). 5. ताड का तना 6. फूल 7. ताड के वृक्षों का समूह पुरुष-दास,--ध्वजः (ध्वजः) 1. प्राणिमात्र में किसी 8. 'पील' नाम का एक वृक्ष / भी जाति का नर 2. चूहा,--नक्षत्रम् (पुनक्षत्रम्) नर पीलुकः [पील+कन् ] चींटा। जाति का नक्षत्र, नागः (नागः) 1. पुरुषों में हाथी, पीव् (म्वा० पर० पीवति) मोटा-ताजा या हृष्ट पुष्ट पूज्य या आदरणीय पुरुप 2. सफेद हाथी 3. सफ़ेद होना। कमल 4. जायफल 5. नाग केशर नाम का वृक्ष रघु० पीवन (वि०) (स्त्री०-पीवरी) [प्य+क्वनिप, संप्र० 6 / 57, - नाटः,-3: (पुनाट:-डः) इस नाम का वृक्ष, दीर्घः] 1. भरा पूरा, स्थूल, मोटा 2. हृष्ट पुष्ट, ---नामधेयः (पुंनामधेयः) नर, पुरुषवाची,-नामन् बलवान् --(पुं०) पवन / (नामन) (वि.) पुंलिंग नामधारी, (पुं) पुंनाग पीवर (पि.) (स्त्री०-रा-री) [प्य वरच, संप्र० / नामक वृक्ष,-पुत्रः नर-सन्तान, लड़का, प्रजननम् दीर्घः] 1. स्थूल, विशाल, हृष्टपुष्ट, मांसल, मोटा-! पुरुष की जननेन्द्रिय, लिङ्ग,--भूमन् (पुंभूमन्) (पुं) (वृश्चित नपुं) वह नक्षत्र For Private and Personal Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह शब्द जो केवल पुंल्लिग बहुबचनांत ही होता | पुंजि (स्त्री०) [पि +इन्, पृषो०] ढेर, मात्रा, राशि / है ---दाराः 'भूम्नि चाक्षता:-अमर०,--योगः (योग) पुंजिकः [पुंजि+कन्] ओला।" पुरुष के साथ सहवास या संबंध 2. किसी पुरुष या पति (वि०) [ पुंज+इतच् ] 1. ढेरी, संगहीत, एक का संकेत–पयोगे क्षत्रिणी,---रत्नम् (पुरत्नम्) श्रेष्ठ जगह लगाया हुआ ढेर 2. मिलाकर भींचा हुआ, राशिः (पुराशिः नर-राशि,रूपम् (पुंरुपम् ) नर का दबाया हुआ। रूप, -लिंग (पुंल्लिग) (वि०) पुरुषवाचक (शब्द), पुट् (तुदा० पर०-पुटति) 1. आलिंगन करना, लिपटना पुरुष वाचक (गम्) 1. पुरुष वाचक चिह्न 2.वीर्य, 1 2. अन्तर्जटित करना, बटना, गूथना ii (चुरा० उभ० पौरुष 3. पुरुष की जननेन्द्रिय,--वत्सः (पुंवत्सः) पूटयति-ते) 1. मिलना 2. बांधना, जकड़ना 3. पोटबछड़ा,----वृषः (वृषः) छछंदर, वेष (वेष) यति-ते (क) पीसना, चूर्ण करना (ख) बोलना (वि०) पुरुष की वेश भूषा में, मर्दानी पोशाक पहने (ग) चमकना iii (भ्वा० पर० पोटति) 1. पीसना हुए,-सवन (पुंसवन) (वि०) पुत्रोत्पत्ति करने वाला 2. मलना। (नम्) सर्व प्रथय परिप्कारात्मक या शुद्धीकरण संबंधी पुटः,-टम् [पुटक]1. तह 2. खोखली जगह, विवर, खोखला संस्कार, स्त्री के गर्भाधान के प्रथम चिह्न प्रकट होने पन-भिन्नपल्लवपुटो वनानिल:-रघु०९।६८,१११२३, पर पूत्रोत्पत्ति के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता 17.12, मालवि० 319, अंजलिपुट, कर्णपुट आदि है-रघु० 3 / 10 2. भ्रूण, गर्भ 3. दूध। 3. दोना, पत्तों की तहकरके बनाया गया, पुस्तड़ापुंस्त्वम् (पुंस्+त्व]1. पुरुष का लक्षण, वीर्य, पुरुषत्व, मर्दा- दुग्ध्वा पयः पत्रपुटे मदीयम्-रघु० 265, मनु० नगी-यत्नात् पुंस्त्वे परीक्षितः-याज्ञ० 155, 6 / 28 4. कोई उथला पात्र 5. फली, छीमी 6. म्यान, 2. शुक्र, वीर्य 3. पुंलिंग।। ढकना, आच्छादन 7. पलक ('पुटी' भी इन्ही अर्थों पुंवत् (अव्य.) [स् विति] 1. पुरुष की भांति-रघु० में) 8. घोड़े का सुम,--ट: रत्नपेटी,---टम् जायफल / 620 2. पुंलिंग में। सम०--उटजम् सफेद छतरी,-उदकः नारियल,पुक्कश (वि०)(स्त्री-शी), पुक्कस (वि.) (स्त्री०-सी) ग्रीवः 1. बर्तन, कलसा, घड़ा 2. तांबे का पात्र, पाक: [पुक् कुत्सितं कशति गच्छति—पु+कश (स्)+ औषधियां तैयार करने की विशेष पद्धति, (इसमें अच् | अधम, नीच, शः, -सः एक पतित वर्णसंकर औषधियों को पत्तों में लपेट कर ऊपर से मल्तानि जाति, शुद्र स्त्री में उत्पन्न निषाद की सन्तान -जातो पोत देते हैं और फिर आग में भूना जाता है-- अनिनिषादाच्छूद्रायां जात्या भवति पुक्कस:--मनु० 10 / - भिन्नो गभीरत्वादतर्गुढघनव्यथः, पुटपाकप्रतीकाशो १८,--शी,-सी 1. कलो नोल का पौधा 3. पुक्कस / रामस्य करुणो रसः-उत्तर० ३।१,-भेदः 1. पूर, जाति की स्त्री। नगर 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र, आतोद्य 3. जलापुंखः, खम् [ पुमांसं खनति-पुम् + खन्-+ड ] 1. बाण वर्त या भंवर,--भेदनम् कस्बा या नगर-शि० का पंख घाला भाग-रघु० 2 / 31, 3 / 64, 9 / 61 13 / 26 / 2. बाज, श्येन / पुटकम् [पुट-कन्] 1. तह 2. उथला या कम गहरा पुंखितः (वि०) [Kख + इतच्] पंखों से युक्त (यथा प्याला 3. दोना या पुस्तड़ा 4. कमल 5. जायफल / बाण)। 1.पुटकिनी [पुटक+इनि+डीप्] 1. कमल 2. कमल समूह। पंगः,-गम [=पूञ्च, पृषो०] ढेर, संग्रह, समुच्चय। पूटिका [पूट+ण्वल+टाप, इत्वम् ] इलायची। पुंगलः [पुंग+ला+क] आत्मा। पुटित (वि.) [पुट्+क्त] 1. रगड़ा हुआ, पीसा हुआ पुच्छः,-च्छम् [पुच्छ+अच्] 1. पूंछ-पश्चात्पुच्छे वहति 2. सिकुड़ा हुआ 3. टाँका लगाया हुआ, सीया हुआ विपुले-उत्तर० 4 / 27 2. बालों वाली पूँछ 3. मोर | 4. खण्डित / को पूँछ 4. पिछला भाग 5. किसी वस्तु का किनारा। पुटी [पुट+ङीप्] दे० 'पुट'। सम०-अग्रम्,-मूलम् पूंछ का सिरा,-कंटकः बिच्छू, पुड (तुदा० पर०) 1. छोड़ना, त्याग देना, तिलांजलि दे —जाहम् पूंछ की जड़। . * देना 2. पदच्युत करना 3. निकालना, बिदा करना, पुच्छटिः,-टी (स्त्री०) [ पुच्छ् + अट्--इन्, पुच्छटि+ खोजना। डी] अंगुलियाँ चटकाना / पुंड् (वापर०-पुंडति) पीसना, चूरा करना, चूर्ण बना पुच्छिन् (पुं०) [पुच्छ+ इनि] मुर्गा / देना या पीस डालना। पुंजः [पुस्+जि+ड] ढेर, समुच्चय, मात्रा, राशि, संग्रह- पुंड: [पुण्ड्+घञ्] चिह्न, निशान / क्षोरोदवेलेव सफेनपुंजा-कु० 7 / 26, प्रत्युद्गच्छति पुंडरीकम् [पूंड-ईकन् नि०] 1. श्वेतकमल,--उत्तर. मर्छति स्थिरतमः पुंजे निकुंजे प्रियः-गीत० 11 / / 627, मा० 9/74 2. सफ़ेद छाता,-क: 1. सफ़ेद For Private and Personal Use Only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3441, श०' पुण्यं घाम दानपुण्योदकेषु / ( 620 ) रंग 2. दक्षिणपूर्व या आग्नेयी दिशा का अधिष्ठात-। स्थान जहाँ अन्न आदि खैरात बांटी जाय, 2. देवालय, दिक्पाल - रघु० 1818 3. व्याघ्र 4. एक प्रकार का -जनः 1. सद्गुणी 2. राक्षस, पिशाच 3. यक्ष सपि 5. एक प्रकार का चावल 6. एक प्रकार का रघु० 13160, ईश्वरः कुबेर का विशेषण-अनुययो कोढ़ 7. हाथो का बुखार 8. एक प्रकार का आम यमपुण्यजनेश्वरौ-रघु० ९।६,---जित (वि०) पुण्यका वृक्ष 1. घड़ा, जलपात्र 10. आग 11. मस्तक पर द्वारा प्राप्त किया हुआ, तीर्थम् तीर्थयात्रा का शुभसम्प्रदाय द्योतक तिलक / सम० ---अक्षः विष्णु का स्थान, दर्शन (वि०) सुन्दर (न:) नीलकंठपक्षी विशेषण रघु० १८१८,-प्लवः एक तरह का पक्षी, (नम्) पवित्रस्थान, मन्दिर आदि का दर्शन,-पुरुष - मुखी एक तरह की जोक। धर्मात्मा था पुण्यात्मा, प्रतापः अच्छे गुणों या नैतिक पुंडः [पुंड+रक्] 1. एक प्रकार का गन्ना (लाल रंग कार्यों का प्रभाव, फलम् सत्कर्मों का पुरस्कार, (ल:) का) पौंडा 2. कमल 3. श्वेत कमल 4. (मस्तक पर) वह उद्यान जहाँ पुण्यरूपी फलों की प्राप्ति होती है, सम्प्रदायद्योतक तिलक (चन्दनादिक का) 5. कीड़ा भाज् (वि०) सौभाग्यशाली, धर्मात्मा, अच्छे गुणों डाः (ब०व०) एक देश तथा उसके निवासियों वाला पुण्यभाजः खल्वमी मनयः का० ४३,---भः, का नाम / सम० केलि: हाथी / - भूमिः (स्त्री०) पुण्यभूमि अर्थात् आर्यावर्त,-रात्रः पंडकः [पंड+कन्] 1. एक प्रकार का ईख (लाल रंग | शुभरात्रि, लोकः स्वर्ग, वकुण्ठ,---शकुनम् शुभशकुन का) पोंडा 2. संप्रदाय द्योतक तिलक। (नः) शुभशकुनसूचक पक्षी,--शील (वि.) अच्छ पुण्य (वि०) [पू०+यण, णुक्, ह्रस्वः ] 1. पवित्र, स्वभाव वाला, सत्कर्मों में रुचि रखने वाला, धर्मपुनीत, शुचि जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु आश्रमेषु परायण, ईमानदार,-- श्लोक (वि०) सुविख्यात, - मेघ. 1, पुण्यं धाम चंडीश्वरस्य 33, रघु० जिसका नामोच्चारण ही शुभ समझा जाय, उत्तम 341, श०।१४, मनु० 2068 2. अच्छा, भला, यशवाला, पावनचरित्र वाला (कः) (निषध देश के गुणी, सच्चा, न्याय 3. शुभ, कल्याणकारी, भाग्य राजा) नल का विशेषण, युधिष्ठिर और जनार्दन का शाली, अनुकूल (दिन आदि)--मनु० 2 / 30,26 विशेषण---पुण्यश्लोका नलो राजा पुण्यश्लोको युधि4. रुचिकर, सुहावना, प्रिय, सून्दर ...प्रकृत्या पुण्य ष्ठिरः, पुण्यश्लोका च वैदेही, पुण्यश्लोको जनार्दनः / लक्ष्मीको-महावी० 1116,24, उत्तर० 4 / 19, इसी - (का) सीता और द्रौपदी का विशेषण,--स्थानम् प्रकार 'पुण्यदर्शन' 5. मधुर, गंधयुक्त (जैसे सुगंध, पुण्यभूमि, पवित्रस्थान, तीर्थस्थान / परिमल) 6 औपचारिक, उत्सव या संस्कार संबंधी, पुण्यवत् (वि.) [ पुण्य-मतुप, मस्यवः ] 1. सत्कर्म करने ---ण्यम् 1. सद्गुण, धार्मिक या नैतिक गुण अत्यु- याला, सद्गुणी 2. भाग्यशाली, मंगलमय, अच्छी त्कटः पापपुण्यरिदेव फलमश्नुते-हि० 1983, महतो किस्मत वाला 3. सुखी, भाग्यवान् / पुण्यपण्येन क्रीतेयं कायनोस्त्वया---शा० 3 / 1, रखु० पुत् (नपुं०)[+ डुति- पृषो०] नरक का एक विशेष 1169, नै० 3687 2. सद्गुणसंपन्न कृत्य, प्रशस्य प्रभाग जहां पुत्रहीन व्यक्ति डाले जाते हैं, दे० 'प्य' कार्य 3. पवित्रता, पवित्रीकरण 4. पशुओं को पानी नीचे / सम०-नामन् (वि.) 'पुत् नाम वाला। पिलाने के लिए कँड,----ण्या पवित्र तुलसी। सम० पुत्तलः,-ली [ पुत्त्+घञ् = पुनं गमनं लाति-पुत्त-न-ला -अहम् मंगलमय या शुभ दिवस.... पुण्याहं भवंतो +क, स्त्रियाँ डीप ] 1 प्रतिमा, मूर्ति, बुत, पुतला ब्रुवंतु, अस्तु पुग्याहम्-पुण्याहं ब्रज मंगलं सुदिवसं प्रातः 2. गुड़िया कठपुतली। सम० - दहनम,-विधिः प्रयातस्य ते-अमरु 61, 'वाचनम् बहुत से धार्मिक विदेश में जिसका प्राणांत हुआ हो अथवा अप्राप्त शय संस्कारों के आरंभ में तीन बार उच्चारण करना के बदले उसका पुतला बना कर जलाना / 'यह शुभदिवस है',-उदयः सौभाग्य का प्रभात,-उद्यान | पुत्तलकः, पुत्तलिका पुत्तल कन्, पुत्तली। कन्--टाप, (वि०) सुन्दर उद्यान रखने वाला, कर्तृ (पुं०)। हस्यः] गुड़िया, मूर्ति आदि / स्तुत्य या गुणवान् पुरुष,-कर्मन् (वि०) स्तुत्य कार्यों पुत्तिका [पुत्त+ठन्-|-टाप्] 1. एक प्रकार की मधुमक्खी, के करने वाला, खरा, ईमानदार (नपुं०) स्तुत्य कार्य, 2. दीमक / -कालः शुभ समय,-कीति (वि.) अच्छे नाम | पुत्रः [यत्---+क| बेटा (इस शब्द की व्यत्पत्ति-पन्नाम्नो वाला, यशस्वी, विख्यात--भट्टि० 115, - कृत् (वि०) नरकाद्यस्मात् त्रायते पितरं सुतः, तस्मात्पुत्र इति सदगुणसंपन्न, प्रशंसनीय, स्तुत्य,-कृत्या धर्मकार्य, प्रोक्तः स्वयमेव स्वयंभुवा-मनु० 9 / 138, इस ऐसा काम जिसके करने से पुण्य हो,---क्षेत्रम् 1. पवित्र- लिए इस शब्द का शुद्ध रूप 'पुत्त्रः' है) 2. बच्चा, स्थान, तीर्थस्थान 2. 'पुण्यभूमि' अर्थात् आर्यावर्त, किसी जानवर का बच्चा 3. प्रिय वत्स (छोटे बच्चों ----गंध (वि.) मधुर गंध से युक्त,-गृहम् 1. बह की प्यार से संबोधित करने का शब्द) 4. (समास के THEFERREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्त में) कोई भी छोटी वस्तु- यथा असिपुत्रः,। परमाणवः-श्रीधर 2. शरीर, भूतद्रव्य 3. आत्मा शिलापुत्र आदि, त्रौ (द्वि० व०) पुत्र और पुत्री | 4. शिव का विशेषण। (पुत्रीक पुत्र के रूप में गोद लेना रघु० 2 / 36) / पुनर् (अव्य.) [पन् --अर्+उत्वम्] 1. फिर, एक बार सम० अन्नादः 1. जो पुत्र की कमाई पर निर्वाह | फिर, नये सिरे से न पुनरेवं प्रवर्तितव्यम्- श० 6, करता है, या जिसके निर्वाह की व्यवस्था पुत्र द्वारा किमप्ययं वटुः पुनर्विवक्षुः स्फुरितोत्तराधरः-.-कु० की जाय 2. एक विशेष प्रकार का साधु दे० कुटीचक, 5 / 82, इसी प्रकार पुनर्भ फिर पत्नी बनना 2. वापिस, -अयिन् (वि०) पुत्र चाहने वाला,--इष्टि:, विपरीत दिशा में (अधिकतर क्रियाओं के साथ), इष्टिका (स्त्रो०) पुत्र लाभ की इच्छा से किया -~-पुनर्दा वापिस देना, लौटाना, पुनर्या---- ---गम् जाने वाला यज्ञ विशेष, काम (वि.) पुत्र की कामना आदि वापिस जाना, लौटना आदि 3. इसके विपरीत, करने वाला, कार्यम् पुत्र संबंधो संस्कारादि, कृतकः उलटे, परन्तु, तोभी, तथापि इतना होते हुए भी जो पुत्र की भांति माना गया हो, गोद लिया हुआ (विरोध सूचक बल के साथ)-प्रसाद इब मूर्तस्ते स्पर्श: पुत्र--स्यामाकमष्टिपरिवधितको जहाति सोऽयं न पूत्र स्नेहार्द्रशीतलः, अद्याप्यानन्दयति मां त्वं पुनः क्वासि कृतक: पदवी गस्ते श० ४.१३,...जात (वि.) नंदिनि.... उत्तर० 3 / 14, मम पुनः सर्वमेव तन्नास्ति जिसे पुत्र उत्तान हुआ हो, - दारम् पुत्र और पत्नी, --उत्तर० 3 पुनः पुनः फिर---फिर' 'बार बार' -धर्मः पुत्र का पिता के प्रति अपेक्षित कर्तव्य 'बहुधा'-पुनः पुनः सूतनिषिद्धचापलं -रघु० 3 / 42, --पौत्रम्,---त्राः वेटे और पोते, ...पौत्रीण (वि०) कि पुनः कितना अधिक, कितना कम दे० किम् के पुत्र से पौत्र को प्राप्त होने वाला, आनुवंशिक भट्टि० नीचे, पुनरपि फिर, एक बार और, इसके विपरीत / 5 / 15,- प्रतिनिधिः पुत्र के स्थान पर अपनाया हुआ, सम-अथिता बार बार की हुई प्रार्थना, (उदा० . अत्तक पुत्र), - लाभः पुत्र की प्राप्ति,-वधूः ---- आगत (वि०) फिर आया हुआ, लौटा हुआ. (स्त्री०) पुत्र की पत्नी, स्नुषा,-सखः बच्चों से प्रेम --भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः-सर्व०, करने वाला, बच्चों का प्रेमो, हीन (वि०) जिसके ... - आधानम्, -- आधेयम् अभिमंत्रित अग्नि का पूनः पुत्र न हो, निस्सन्तान / स्थापन, आवर्तः 1. वापसी 2. बार 2 जन्म होना, पुत्रकः [पुत्र कन् 1. छोटा पुत्र, बालक, बच्चा, तात, - आवतिन् (वि.) फिर से संसार में जन्म लेने वत्स (वात्सल्य को प्रकट करने वाला शब्द) 2. गुड़िया, वाला, आवृत् स्त्री०),--- आवृत्तिः (स्त्री०) 1. दोह कठपुतली कु० 1429 3. धूर्त, ठग 4. टिड्डी, टिड्डा राना 2. फिर से संसार में आना, बार बार जन्म 5. शरभ या परवाना, पतंग, 0. बाल। लेना - याज्ञ० 3.194 3. दोहराना, (पुस्तक आदि पुत्रका, पुत्रिका, पुत्री पुत्र टाप, पुत्री+कन् का) दूसरा संस्करण, उक्त (वि०) 1. फिर कहा टाप, ह्रस्व:, पुत्र-डोष | 1. बेटी 2. गुड़िया, हुआ, दोहराया गया, 'दुबारा कहा गया 2. फालतू, पुतली 3. (समास के अन्त में) कोई भी छोटी वस्तू अनावश्यक --- शशंस वाचा पुनरुक्तयेव रघु० 2 / 38, ----यथा असित्रिका, खग पूयिका आदि / सम० शि० 9/64, (तम्) पुनरुक्तता 1. दोहराना पुत्रः,--सुतः 1. बेटो का बेटा, दौहित्र, नाना के द्वारा 2. बाहुल्य, आधिक्य, निरर्थकता, द्विरुक्ति या पुनपुत्र के स्थान पर माना हुआ---मनु०९।१२७ 2, बेटी रूक्ति- उत्तर० 5 / 15, भर्तृ० 3178, जन्मन् जो पुत्रवत् मानी जाती है, तथा पिता के घर रहती है (J0) द्विजन्मा, ब्राह्मण, पुनरुक्तबदाभासः प्रतीय(पुत्रिकैव पुत्रः अथवा पुत्रिकैव सुतः पुत्रिका सुतः मान पुनरुक्ति, पुनरुक्ति का आभास होना, एक साऽप्योरससम एव ---याज्ञ० 2 / 128 पर मिता०) अलंकार-उदा० भुजंगकुंडलीव्यक्तशशिशुभ्रांशु3. पौत्र,--प्रसूः वह माता जिसके कन्याएँ ही हों, पुत्र शीतगः, जगत्यपि सदा पायादव्याच्चेतोहरः शिवः / न हो.-.-भर्त (पु०) 'बेटी का पतिजामाता, दामाद / सा० द०६२२, (यहाँ पुनरुक्ति की प्रतीति तुरन्त पुत्रिन् (वि०) (स्त्री० णो) [पूत्र -इनि बेटे दूर हो जाती है जब कि संदर्भ का सही अर्थ समझ वाला, बेटों वाला---- रघु० 1191, विक्रमः 5.14, लिया जाता है, तु. काव्य०९ में 'पुनरुक्तवदाभास' (पुत्र) पुत्र का पिता। के नीचे),---उक्तिः (स्त्री) 1 दोहराना 2 बाहुल्य, पुत्रिय, पुत्रीय, पुश्य (वि०) पुत्र / ध, छ, यत् वा] निरर्थकता, द्विरुक्ति, -उत्थानम् फिर उठना, पुनर्जीपुरसंबंधी, पुत्रविषयक / वित करना, उत्पत्तिः (स्त्री०) 1 पुनरुत्पादन पुत्रीया पुत्र | क्यच ---अ+टाप पत्र प्राप्ति की इच्छा / / 2. फिर जन्म होना, देहान्तरागमन,--उपगमः वापसी पुग्दल (वि.) पुत् कुत्मित गलो यस्मात् ब० स०] ...क्वायोध्यायाः पुनरुपगमो दंडकायां वने व..... उत्तर सुन्दर, प्रिय, मनोहर,-लः परमाणु–पुग्दलाः २।१३,--ऊपोढा, ऊढा दुबारा ब्याही हुई स्त्री, For Private and Personal Use Only Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 622 ) —गमनम् वापसी, फिर जाना,--जन्मन् (नपुं०) पेंठ, छोटा गाँव जहाँ पेंठ लगती हो,तोरणम् नगर बार 2 जन्म होना, देहान्तरागमन, -जात (वि०) का बाहरी फाटक, द्वारम् नगर का फाटक,...निवेशः फिर उत्पन्न हुआ, --णवः, नवः 'बार 2 उगना', नगर की नींव डालना,-पालः नगरशासक, दुर्ग का नाखून, दारक्रिया पुनर्विवाह करना (पुरुष का), सेनापति,—मथनः शिव का विशेषण,--- मार्गः नगर की दूसरी पत्नी लाना, प्रत्युपकारः किसी के उपकार गली, कु० 4 / 11, रघु० १११३,-रक्षः,-रक्षकः, का बदला चुकाना, बार 2 जन्म होना, देहान्तरा- --- रक्षिन् (पुं०) कांस्टेबल, सिपाही, पुलिस-अधिगमन ममापि च क्षपयतु नीललोहितः पुनर्भवं परि- कारी,... रोधः दुर्ग का घेरा,--वासिन (पु.)नागरिक, गतशक्तिरात्मभूः श० 7 / 35, कु० 3 / 5 2. नाखून, नगर का रहने वाला,-- शासनः 1. विष्ण का विशेषण -----भावः नया जन्म, पुनर्जन्म, धू: 1. विधवा जिसका 2. शिव की उपाधि। पुनर्विवाह हो गया हो 2. पुनर्जन्म, यात्रा 1. फिर | पुरटम् पुर् +अटन् ] सोना, स्वर्ण / जाना 2. बार 2 प्रगति करना (जलस निकलना), | पुरणः [+ क्यु, उत्वम्, रपरः / समुद्र, महासागर / ---वचनम् फिर कहना, वसुः (प्रायः द्वि० व०) पुरतः (अव्य०) [पुर+तस् ] सामने, आगे (विप० 1. सातवां नक्षत्र (दो या तीन तारों का पंज) गां पश्चात्), पश्यामि तामित इतः पुरतश्च पश्चात्--मा० गताविव दिवः पुनर्वसू रघु० 11136 2. विष्णु 1140, की उपस्थिति में - यं यं पश्यसि तस्य तस्य और 3. शिव का विशेषण, विवाह फिर विवाह पुरतो मा ब्रूहि दीनम् वचः - भर्तृ० 2051 2. बाद होना, संस्कारः (पुनः संस्कारः) किसी संस्कार या में - इयं च तेऽन्या पुरतो विडंबना कु० 570, शुद्धिकारक कृत्य का दोहराना, संगमः, संधानम् अमरु 43 / (पुनः संधानम् ) फिर से मिलना,-संभवः (पुनः-संभवः) पुरंदरः [पुर दारयति -- इति दृ--णिच् / खच्, मुम् | (संसार में) फिर जन्म लेना, देहान्तरागमन / ___ 1. इन्द्र--रघु० 2 / 74 2. शिव का विशेषण 3. अग्नि पुप्फुलः [ = पुप्फुसः, पृषो० सस्य लत्वम् ] उदरवायु, / की उपाधि 4. चोर, सेंध लगाने वाला,-रा गंगा का अफारा। विशेषण। पुप्फुसः [पुप्फुस्+अच्] 1. फेफड़ा 2. कमल का बीज कोष / पुरंधिः, -- ध्री (स्त्री०) [पूर गेहस्थजनं धारयति ध- खच पुर (स्त्री०) (कर्तृ०, ए० व०-पूः, करण, हि० व० +डीप, पृषो० वा ह्रस्वः-..तारा० / 1. प्रौढ़ विवा . पूाम् ) [ पृ-+-क्वित् ] 1. नगर, शहर जिसके हिता स्त्री, मातृका, विवाहिता स्त्री-पुरंध्रीणां चित्तं चारों ओर सुरक्षादीवार हो पूरप्यभिव्यक्तमुखप्रसादा कुसुमसुकुमारं हि भवति - उत्तर० 4 / 12, मद्रा० 2 / -- रघु० 16 / 23 2. दुर्ग, किला, गढ़ 3. दीवार. 7, कु० 6.32, 7 / 2 2. वह स्त्री जिसका पति व दुर्गप्राचीर शरीर 5 बुद्धि। सम०-द्वार (स्त्री०), बच्चे जीवित हों। द्वारम् नगर का फाटक / पुरला [पुर+ला+क+टाप् 1 दुर्गा का विशेषण / पुरम् [ +क | 1. नगर, शहर (बड़े 2 विशाल भवनों पुरस् (अव्य०) [पूर्व - असि, पुर् आदेशः / 1. सामने, से युक्त, चारों ओर परिखा से घिरा हुआ, तथा आगे, उपस्थिति में, आँखों के सामने ( स्वतंत्र विस्तार में जो एक कोस से कम न हो)-पुरे तावंत- रूप से या संबंध के साथ ) अम पुरः पश्यसि देव मेवास्य तनोति रविरातपम् कु० 23, रघु० 1159 दारुम्-रघु० 2036, तस्य स्थित्वा कथमपि 2. किला, दुर्ग, गढ़ 3. घर, निवास, आवास +. शरीर पुर:-मेघ० 3, कु० 4 / 3, अमरु 43, 5. अन्तःपुर, रनिवास 6. पाटलिपुत्र 7. पुष्पकोश, | प्रायः क, गम् वा और भू धातुओं के साथ पत्तों की बनी फलकटोरी 8. चमड़ा 10. गुग्गुल / प्रयोग (दे० धातु०) 2. पूर्व में, पूर्व से 3. पूर्व को सम..- अट्टः नगरभित्ति पर बना कंगूरा या मीनार, ओर। सम..--करणम,-कारः 1. सामने या आगे -अधिपः, अध्यक्षः नगरपाल, -अरातिः,-अरिः, रखना 2. अधिमान 3. ससम्मान बर्ताव, आदर-प्रदर्शन, --असुहृद (पुं०),-रिपुः शिव के विशेषण -पुरा- अनुरोध 4. पूजा E. सहचारिता, हाजरी देना 6. तैयारी रातिभ्रान्त्या कुसुमशर कि मां प्रहरसि... सुभा०, दे० 7. व्यवस्थापन 8. पूर्ण करना 9. आक्रमण करना त्रिपुर, उत्सवः नगर में मनाया जाने वाला उत्सव, 10. दोषारोपण करना,-- कृत (वि.) 1. सामने रक्खा --उद्यानम् नगरोद्यान, उपवन,- ओकस् (30) नगर हुआ----रघु० 2180 2. सम्मानित, आदर से बर्ताव में रहने वाला, ----कोट्टम् नगररक्षक दुर्ग - ग (वि०) किया गया, पूज्य 3. छांटा गया, माना गया, अनुगमन 1. नगर को जाने वाला 2. अनुकूल, --जित् / द्विष, किया-पुरस्कृतमध्यमक्रम:--- रघु०८।९ 4. आराधित, --भिद् (पुं०) शिव के विशेषण, ज्योतिस् (पुं०) पूजित 5. सेवा में प्रस्तुत, संलग्न, संयुक्त 6. तैयार, 1. अग्नि का विशेषण 2. अग्निलोक, तटी छोटी / तत्पर 7. अभिमंत्रित 8. दोषारोपित, कलंकित 1. पूरा For Private and Personal Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 623 ) किया हुआ 10. प्रत्याशित,-क्रिया 1. आदर प्रदर्शित ! दूत 2. कुलपुरोहित, जो कुल में होने वाले सभी कर्मकरना, सम्मानित बर्ताव, 2. आरम्भिक या दीक्षासंबंधी काण्ड या संस्कारों का संचालन करता है। कृत्य,—ग, गम (पुरोग,- गम) (वि.) 1. मुख्य, पुरस्तात् (अन्य०) [ पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेश: ] 1. अग्रणी, सर्व प्रथम, प्रमुख, प्रायः संज्ञा के बल सहित आगे, सामन (प्रायः संबं० या अपा० के साथ)-रघ० --स किंवदन्ती वदतां पुरोगः रघु०१४।३, 6 / 55, 2144, कु० 7 / 30, मेघ० 15, या स्वतंत्र रूप से कु० 7 / 40 2. समास में प्रयुक्त) अधिष्ठित- इन्द्र- प्रयुक्त अभ्यन्नता पुरस्तात्-श० 38 2. सिर पुरोगमा देवाः 'इन्द्र के नेतत्व में देवता',-गतिः पर, सर्व प्रथम - मालवि० 111 3. पहले स्थान पर, (स्त्री०) 1. पूर्ववर्तिता, (तिः) कुत्ता,---गंत,-गामिन् आरंभ में 4. पहले, पूर्वतः 5. पूर्व की ओर, पूर्व में, (वि०) 1. पहले या आगे जाने वाला 2. मुख्य, नतृत्व या पूर्व की तरफ 6. बाद में, आगे, अन्त में। करने वाला, नेता (पं०) कुत्ता, -- चरणम 1, आरंभिक पुरा (अव्य०) [पुर- का] 1. पूर्व काल में, पहले, या दीक्षा विषयक कृत्य 2. तयारी, दीक्षा 3. किसी प्राचीन काल में- पुरा शक्रमुपस्थाय-- रघु० 175, देवता के नाम का जप तथा हवन में आहति,छदः पूरा सरसि मानसे यस्य यातं बयः--भामि० 113, चूचुक, - जम्नन् (पुरोजन्मन्) (वि०) पहले पैदा मनु० 11119, 5 / 32 2. पहले अव तक, इस समय हुआ,-डाश् (पुं०),—डाशः (पुरोडाश्,-डाशः) तक 3. पहले पहले, सबसे पहले 4. थोड़े समय में, चावलों को पीस कर बनाई गई तथा कपाल में रख शीघ्र, अचिरात् थोड़ी देर में (इस अर्थ में प्राय: कर प्रस्तुत की गई यज्ञ की आहति - मन० 721, वर्तमान काल के साथ, जहाँ कि भविष्यत् काल का --- धस् (पुरोधस्) (पुं०) कुलपुरोहित, विशेषकर अर्थ प्रकट हो) -पुरा सप्तद्वीपां जयति वसुधामप्रतिकिसी राजा का, धानस् (पुरोधानम्) 1. सामने रथः-श० 7 / 33, पुरा दूषयति स्थलीम्--रघु० रखना, पुरोहित द्वारा कराया गया उपचार,—धिका 12 / 30, आलोके ते निपतति पुरा सा बलिव्याकुला (पुरोधिका) (और अब अन्य स्त्रियों की अपेक्षा) वा --- मेघ 85, नै० 1118, शि. 15 / 56, कि० मनचहेती यत्नी, पाक (वि०) पूरा होने के निकट, 1050, 1136 / सम० - उपनीत (वि०) जिस पूरा होने वाला--कु० 6 / 90, -प्रहर्तृ (पुं०) पहली पर पहले अधिकार किया हुआ था, जो पहले आधिपंक्ति में जाकर लड़ने वाला सैनिक ....रघु०१३।७२, पत्य में था,-कथा पुराना उपाख्यान, कल्पः 1. पूर्व - फल (वि.) जिसका फल निकट ही हो, (निकट सृष्टि 2. अतीत की कहानी 3. पहला युग-द्यूतमेतभविष्य में) फल देने वाला -रघु० २।२२,---भाग त्पुराकल्पे दृष्टं वैरकर महत - मनु० 2 / 227,-- कृत (पुरोभाग) (वि०) 1. बलात प्रवेशी, अनधिकार (वि०) पहले किया हुआ,-योनि (वि.) प्राचीन प्रवेशी 2. छिद्रान्वेषण करने वाला 3. स्पृहाशील, मूल (उत्पत्ति),---वसुः भीष्म का विशेषण, -विद् ईर्ष्याल प्राय: समानविद्या परस्परयशः पुरोभागाः (वि०) अतीत से परिचित, पूर्व काल की घटनाओं - मालवि० 1120 (यहाँ 'पुरोभाग' शब्द का अर्थ का ज्ञाता, पहले जमाने या पूर्व घटित बातों का 'ईर्ष्या' भी है) ( गः) 1. आगे का भाग, अगला जानकार वदन्त्यपर्णेति च तां पुराविदः - कु० 5 / 28, भाग, गाड़ी 2. बलात् प्रवेश, अनधिकार प्रवेश 3. डाह, 639, रघु० ११।१०,-वृत्त (वि.) प्राचीन काल में स्पर्धा, भागिन् (वि.) आगे रहने वाला, स्वेच्छा- होने वाला था उससे संवद्ध 2. पुराना, प्राचीन कथा वान्, नटखट-श. 5. बलात प्रवेशी, अनधिकार पुराना उपाख्यान (-तम्) 1. इतिहास 2. पुरानी या प्रवेशी ...विक्रम० 3 / 3, छिद्रान्वेषी,-मारुतः, वातः काल्पनिक घटना-पुरावृत्तोद्भारैरपि च कथिता कार्य (पुरोमारुतः, - वातः) आगे की हवा, सामने चलने पदवी-मा० 2 / 13 / वाली हवा - मालवि० 413, रघ० 1838,-- सर | पूरा [ पुर+टाप] 1. गंगा का विशेषण 2. एक प्रकार (वि०) अग्रेसर, (-रः) आगे चलने वाला, अग्रदूत का गंधद्रव्य 3. पूर्व दिशा 4. किला / श० 4 / 2 2. अनुचर, टहलआ, सेवक-परिमेय पुराण (स्त्री०--णा, णी) [पुरा नवम्--निरु.] 1. पुरःसरौ रघु० 237 3. नेता, जो नेतृत्व करे, पुराना, प्राचीन, पूर्वकाल संबंधी-पुराणमित्येव न साधु सर्वप्रथम, प्रमुख कु०६।४९ 4. (समास के अन्त सर्वन चापि काव्यं नवमित्यवद्यम-मालवि०११२, में) अनुचरों सहित, परिचरों सहित, के साथ--मान- पुराणपत्रापगमादनंतरम्--रघु० 37 2. वयोवृद्ध, पुरःसरम्, प्रमाणपुरःसरम्, वृकपुरःसरा:-आदि पुरातन-अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराण:-भग० -स्थायिन् (वि.) सामने खड़े रहने वाला,-हित 220 3. क्षीण, घिसाघिसाया,--णम् 1. अतीत (वि.) 1. सामने रक्खा हुआ 2. नियुक्त, दूत, घटना, या वृत्तान्त 2. अतीत की कहानी, उपाख्यान, आयुक्त (त:) 1. कार्यभार संभालने वाला, अभिकर्ता, / प्राचीन या पौराणिक इतिहास 3. कुछ विख्यात For Private and Personal Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धार्मिक पुस्तकें जो गिनती में 18 हैं तथा व्यास द्वारा अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया। कौरव और प्रणीत मानी जाती है, यह पुस्तकें ही हिन्दु-पुराण पांडवों का पूर्व पुरुष पुरु ही था)। सम० -जित् कथा शास्त्र का भंडार है, पुराणों में पाँच विषयों का (पुं०) 1. विष्णु का विशेषण .. राजा कुन्तीभोज वर्णन है और इसी लिए 'पुराण' को 'पंचलक्षण' भी या उसके भाई का नाम,--दम् सोना, स्वर्ण,-दंशकः कहते है-'सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च, हंस, लंपट (वि०) बहुत विषयी, या कामातुर, ह, वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम / पूराण के अठा हु बहुत, बहुत से,-हत (वि०) बहुतों से आवाहन रह नामों के लिए दे० अष्टादशन के नीचे,—णः 80 किया गया (तः) इन्द्र का विशेषण---रघु० 4 / 3, कौड़ियों के बराबर मूल्य का एक सिक्का। सम० 165, कु० 745, मनु० 11 / 22, "द्विष् (पु०) इन्द्र —अन्तः यम का विशेषण,-उक्त (वि.) पुराणों में जित् का विशेषण। निर्दिष्ट या विहित,—गः 1. ब्राह्मण का विशेषण 2. पुरुषः [पुरि देहे शेते -शी+ड पृषो० तारा०, पुर--- पुराण पाठक, पुराण की कथा करने वाला, पुरुषः कुषन्] 1. नर, मनुष्य, मर्द .... अर्थतः पुरुषो नारी विष्णु का विशेषण। या नारी सार्थतः पुमान्-मच्छ० 3 / 27, मनु० पुरातन (वि०) (स्त्री.-नी) [ पुरा+ट्यु, तुटु ] 1. 1132, 717, 92, रघु० 2141 2. मनुष्य, पुराना, प्राचीन, शि० 1260, भग० 813 2. वयो मनुष्य जाति 3. किसी पीढ़ी का प्रतिनिधि या सदस्य वृद्ध, प्राक्कालीन, -रघु० 11285, कु० 69 3. 4. अधिकारी, कार्यकर्ता, अभिकर्ता, अनु चर, सेवक घिसाघिसाया, क्षीण,--नः विष्णु का विशेषण। 5. मनष्य की ऊँचाई या माप, दोनों हाथ फैला कर पुरिः (स्त्री०) [+इ ] 1. नगर, शहर 2 नदी। लम्बाई की माप) -द्वौ पुरुपौ प्रमाणमस्याः सा द्वि परिशय (वि०) [ पुरि+शी-|-अच् ] शरीर में विश्राम पुरुषा-षी परिखा--सिद्धा० 6. आत्मा-द्वाविमौ करने वाला। पूरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च-भग०१५।१५ आदि० पुरी [ पूरि+डोष ] 1. शहर, नगर-शशासकपूरीमिव- 1. परमात्मा, ईश्वर (विश्व की आत्मा) शि० 1133, रघु० 1130 2. गढ़ 3. शरीर। सम० मोहः धतूरे | रघु० 1316 8. पुरुष (व्या० में) प्रथम पुरुष, मध्यम का पौधा / पुरुष और उत्तम पुरुष (सिद्धा० में यही क्रम है) 9. आँख पुरीतत् (पुं०, नपुं) [ पुरी देहं तनोति–तन +क्विप् ] को पुतलो 10. (सांख्य में), आत्मा (विप० प्रकृति) 1. हृदय के पास की एक विशेष अंतड़ी 2. अंतड़ियाँ सांख्यमतानुसार यह न उत्पन्न होता है, न उत्पादक --- ('पुरितत्' भी, परन्तु यह रूप अशुद्ध प्रतीत है, यह निष्क्रिय है, तथा प्रकृति का दर्शक है-तु० होता है)। कू०२।१३, 'सांख्य' शब्द की भी,-बम मेरु पर्वत का पुरीषम् प+ईषन् , किच्च मल, विष्ठा, गूथ (गोबर), . विशेषण। सम० --अंगम् पुरुष को जननेन्द्रिय, मनु० 31250 5 / 123, 676, 4156 2. कड़ा लिंग, अदः नरभक्षक, मनुष्य का मांस खाने वाला, करकट, गंदगी। सम०-उत्सर्गः मलत्याग, निग्रह- पिशाच, अधमः अत्यंत नीच पुरुष, बहुत ही जघन्य णम् कोष्ठबद्धता। और पणित व्यक्ति, अधिकारः 1. पुरुष का पद या पुरोषणः [पुरी+ इ +त्यु ट्] मल, विष्ठा,—णम् मलोत्सर्ग कर्तव्य ). मनुष्य का मूल्यांकन या प्राक्कलन ...... कि० करना, मलत्याग करना / 3 / 51,... अन्तरम् दूसरा मनुष्य,- अर्थः 1. मानवपुरीषमः [पुरीषं मिमीतें-- पुरीष+मा+क] उड़द, माष / जीवन के चार मुख्य पदार्थों (अर्थात् धर्म, अर्थ, काम पुर (वि०) (स्त्री०-रु,-बी) [प पालनपोषणयोः और मोन) में से एक 2 मानवप्रयत्न या चेष्टा, - कु] अति, प्रचुर, अधिक, बहत से (लौकिकसाहित्य पुरुषकार, हि० प्र० 35, अस्थिमालिन (40) में 'पुरु' शब्द प्रायः व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के आरम्भ गिव का विशेषण, आद्यः विष्णु का विशेषण, में प्रयुक्त होता है),-- रु. 1. 'फूलों का पराग 2. स्वर्ग, ---आयुषम्, आयुस, मानव-जीवन की अवधि देवलोक 3. एक. राजकुमार का नाम, चन्द्रवंशी .....अकृपणमतिः कामं जीव्याज्जनः पुरुषायषम-विक्रम राजाओं में छठा राजा (यह शर्मिष्ठा और ययाति 6 / 44, पुरुषायषाविन्यो निरांतका निरीतयः का सब से छोटा पुत्र था। जब ययाति न अपने पाँचों --रघु० 1963, आशिन् (पुं०) नरभक्षी, राक्षस, पुत्रों से पूछा कि क्या कोई उनमें से ऐसा है जो मेरे | पिशाच, - इन्द्रः राजा, - उत्तमः 1. श्रेष्ठ पुरुप 2. बुढापे और दुर्बलता के बदले मुझे अपना यौवन व / परमात्मा, विष्णु या कृष्ण का विशेषण---यस्मात सौंदर्य दे दें, तो वह केवल पुरु ही था जिसने विनिमय क्षरमतीनोड मागदगि चोत्तमः, अतोऽस्मि लोके वेदे स्वीकार किया, एक हजार वर्ष के पश्चात् ययाति ने च प्रथितः पुरुषोत्तमः--भग० १५:१८,--कार: 1. पुर का यौवन और सौंदर्य उसे लौटा दिया तथा उसे ' मानवप्रयत्न, मनुष्यचेष्टा, मर्दाना काम, मर्दानगी, For Private and Personal Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 625 ) पराक्रम (विप० देव) ...एवं पुरुषकारेण विना देवं न / चली गई। इस प्रकार उर्वशी ने क्रमशः पांच पुत्रों सिध्यति हि० प्र० 32, देवे पुरुषकारे च कर्मसिद्धि- को जन्म दिया। परन्तु पुरूरवा उसे अपनी जीवन यवस्थिता-याज्ञ० 11349, तु० 'भगवान उनकी संगिनी बनाना चाहता था अतः उसने गंधों के सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते निर्देशानुसार यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसके फलहैं' पंच० 5 / 30, कि० 5 / 52 2. पौरुष, वोर्य, स्वरूप उसका मनोरथ पूरा हुआ। विक्रमोर्वशीय -कुणपः, -पम् मानवशव- केसरिन् (पुं०) 'नर- में दी गई कहानी कई अंशों में भिन्न प्रकार से बताई सिंह' विष्णु का चौथा अवतार---गुरुपकेसरिणश्च गई है इसी प्रकार ऋग्वेद के आधार पर शतपथ पुरा नखः-श० 7 / 3, ...ज्ञानम् मानवजाति का ज्ञान ब्राह्मण में दिया गया वृत्तान्त भी भिन्न प्रकार का ---दघ्न,--द्वयस (वि०) मनुण्य की ऊँचाई के है, जहाँ कि यह बतलाया गया है कि उर्वशी ने दो बराबर लंबा द्विष् (पु०) विष्णु का शत्रु, नायः शर्तों पर पुरूरवा के साथ रहना स्वीकार किया। 1 चमपति, सेनापति 2. राजा, पशुः नरपश, कर- पहली शर्त यह कि उसके दो मेंढे जिनको वह पुत्रवत् व्यक्ति --तु० नरपशु, पुंगवः, -पुंडरीकः अाठपुरुष, / प्यार करती है, उसके पलंग के पास ही बंधेगे तथा प्रमुख व्यक्ति,-बहमानः मनुष्यजाति की प्रतिष्ठा उससे कभी दूर नहीं ले जाये जायंगे; और दूसरे यह ....-भर्त० 319, --मेघः नरमेध, पुरुषयज्ञ,...- वरः कि वह उर्वशी को कभी भी नंगा दिखाई न दे। विष्णु का विशेषण,--वाहः 1. गरुड़ का विशेषण 2. उसके पश्चात एक बार गंधर्व मेंढों को उठा कर ले 2. कुबेरं को उपाधि,--व्याघ्रः, शार्दूलः, सिंहः गये, अतः उर्वशी भी अन्तर्धान हो गई)। 1. 'मनुष्यों में शेर' पूज्य या प्रमुख व्यक्ति 2. शूर-पुरोटिः पूरम ---अट+इन] 1. नदी का प्रवाह 2. पत्तों वीर, बहादुर आदमी,--समवायः मनुष्यों का समूह, की सरसराहट या मर्मरध्वनि, पत्र शब्द / / .-सक्तम ऋग्वेद के दसवें मण्डल का ९०वाँ सूक्त | परोडास. परोधस आदि-- दे० 'पूरस्' के अन्तर्गत / (यह बहुत ही पावन माना जाता है)। पूर्व (म्वा० पर०-पूर्वति) 1. भरना 2. बसना, रहना पुरुषकः,-कम् [पुरुष+कन्] मनुष्य की भांति दो पैरों 3. निमंत्रित करना (अन्तिम दो अर्थों में चुरा० पर० पर बड़ा होने वाला, घोड़े का पालना.....श्रीवृक्षकी | मानी जाती है। पुरुपकोनमितानकाय:--शि० 5/56 / पुल (वि.) [पूल-क महान् विशाल, व्यापक विस्तृत, पुरुषता, स्वम् [ पुरुष तल टाप, त्व वा ] 1. पुरुषत्व. .ल: रोमाञ्च होना / मर्दानगी, पराक्रम 2. वीर्य / पुलकः [तुल--कन्] 1. शरीर के बालों का सीधा खड़ा पुरुषायित (वि०) पुरुष-क्यङक्त मनुष्य को भांति होना, ( भय या हर्प से ) शिहरन, रोमांच--चारु आचरण करने वाला, तम् 1. मनुष्य का अभिनय च चंब नितंबवती दयितं पुलकैरनकले-- गीत० 1, करना, मनुष्यपात्र का अभिनय, संचालन 2. एक मृगमद तिलकं लिखति सपूलकं मगमिव रजनीकरे-- प्रकार का स्त्रीमैथुन जिससे स्त्री पुरुषवत् आचरण 7, अमर 57,77 2. एक प्रकार का पत्थर या रत्न करती है-आकृतिमवलोक्य कयापि वितकितं पुरुया- 3. रत्न में दोप 4. एक प्रकार का खनिज पदार्थ वितं अमिलतालेखनेन वैदग्ध्यादभिव्यक्तिमपनीतम् - 5. अनपिड जिससे हाथी पलते हैं 6. हरताल 7. शराब काव्य 10 / पीने का गिलाम 8. एक प्रकार की सरसों, राई / पुरूरवस् (10) [पुरु प्रत्रं यथास्यात्तथा रौति--पूरु-1- सम० ---अंगः वरुण का जाल, आलयः कुवेर का र असि नि० साधुः। बुध और इला का पुत्र, चन्द्र विशेषण, उद्गमः शरीर के रोंगटों का खड़ा होना, वंशी राजकुल का प्रवर्तक, (मित्र और वरुण के शाप रोमांच होना। के कारण इस पृथ्वी पर उतरती हई उर्वशी को पुलकित (वि.) [पुलक+इतच] जिसके रोंगटे खड़े हो पुरूरवा ने देखा और उस पर आसक्त हो गया। गये है, रोमांचित, गद्गद, आनन्दित, हर्षोत्फुल्ल / उर्वशो भी उस राजा को देख कर उस के लोकविश्रुत | पुलकिन् (वि०) (स्त्री०-नो) पुलक-|-इनि] रोमांचित, सौन्दर्य तथा सवाई, भक्ति, उदारता आदि गणों के जिसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये है,-पुं० कलम्ब कारण उस पर मुग्ध हो गई, फलनः उसकी पत्नी बन वृक्ष का एक प्रकार / गई। बहुत दिनों तक वह मुख पूर्वक रहे, एक पुत्र | पुलस्तिः , पुलस्त्यः [पुल + क्विप्=पुल+अस्+-ति, पुलको जन्म देने के पश्चात् उर्वशी फिर स्वर्ग चली गई। नि-यत एक ऋषि का नाम, ब्रह्मा का एक मानस राजा ने उसके वियोग के शोक में वदा विलाप किया। | पुत्र मनु० 235 / उर्वशी प्रसन्न हो दोबारा उसके पास आकर फिर पुला | पुल+टाप् ] मदु ताल, गले का कौव्वा, तालु रहने लगी और एक पुत्र को जन्म देकर फिर स्वर्ग ! जिह्वा। For Private and Personal Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 626 ) से पुलाका, कम् [पुल+आक नि०] 1. थोथा या मुरझाया / की जिह्वा की नोक-शि० 5 / 30 3. ढोल का हुआ अन्न, कदन्न 2. भात का पिंड 3. संक्षेप, संग्रह चमड़ा अर्थात् वह स्थान जहाँ उस पर चोट मारी 4. संक्षिप्तता, संहति 5. चावलों का मांड 6. क्षिप्रता, जाती है-पुष्करेष्वाहतेषु-मेघ०६६, रधु०१७।११ द्रुतता, त्वरा / 4. तलवार का फल 5. तलवार का म्यान 6. बाण पुलाकिन् (पुं०) [पुलाक+इनि] वृक्ष / 7. वायु, आकाश, अन्तरिक्ष 8. पिंजड़ा 9. जल पुलायितम् [ =पलायित, पृषो०] घोड़े की सरपट चाल / 10. मादकता 11. नृत्यकला 12. युद्ध, संग्राम पुलिनः,-नम् [ पुल+इनन् किच्च ] 1. रेतीला किनारा, 13. एकता 14. अजमेर के निकट एक प्रसिद्ध तीर्थ रेतीला समुद्रतट-रमते यमुनापुलिनवने विजयी मुरारि- स्थान,-र: 1. सरोवर, तालाब 2. एक प्रकार का रघुना-गीत०७, रघु०१४१५२, कभी-कभी ब० व० ढोल, घौसा, ताशा 4. सूर्य 5. अनावृष्टि या भिक्ष में प्रयुक्त-कालिंद्याः पुलिनेषु केलिकुपितामुत्सृज्य पैदा करने वाले बादलों का समूह-मेघ० 6, कु० रासे रसम्-वेणी० 12 2. नदी का प्रवाह हट 2 / 50 6. शिव का विशेषण,---:,--रम् शिव के जाने से तट पर बना छोटा टापू, लघुद्वीप 3. नदीतट। सात विशाल प्रभागों म से एक / सम०-अक्षः विष्णु पुलिनवती [पुलिन+मतुप, बत्वम्, डीप् ] नदी। का विशेषण,- आख्यः,-आहः सारस-तीर्थः स्नान पुलिदक: [पुल+किंदच्, कन्] 1. (प्रायः ब० व० में) करने का एक प्रसिद्ध स्थान देऊ. पुष्कर,-पत्रम् एक असभ्य जाति का नाम 2. इस जाति का एक कमल का पत्ता, प्रियः मोमः,--बीजम् कमलगट्टा, मनुष्य, बर्बर, अशिष्ट, जंगली, पहाड़ी-रघु० 16 // -----व्याघ्रः घड़ियाल,--शिखा कमल की जड़,-स्थपतिः 19,32 / शिव का विशेषण, --सज् (स्त्री०) कमलों की माला। पुलिरिक: (पुं०) साँप / पुष्करिणी | पुष्करिन+डीप् ] 1. हथिनी 2. कमलसरोवर पुलोमन् (पुं०) एक राक्षस का नाम, इन्द्र का श्वसुर / 3. सरोवर, जलाशय 4. कमल का पौधा / सम०-अरिः,-जित,-भिद्,-द्विष (0) इन्द्र के | पुष्करिन् (वि.) (स्त्री०)--णी) | पुष्कर --इन / कमला विशेषण,--जा,--पुत्री शची, पुलोमा की पुत्री तथा से भरी स्थली, (पुं०) हाथी। इन्द्र की पत्नी। पुष्कल (वि०) [पुष+कलच, किच्च, पुष्कसिध्मा० लच पुष (म्वा, दिवा० ऋघा०--पर-पोषति, पुष्यति, वा--तारा०] 1. बहुत, काफ़ी, प्रचुर--भक्षितेनापि पुष्णाति), 1. पोषण करना, (छाती से लगाकर) दूध भवता नाहारो मम पुष्कल: --हि० 1184, मनु० पिलाना, पालना, पोसना, शिक्षित करना-तेनाद्य 3 / 277 2. पूरा, समस्त ... भग० 11 / 21 3. समृद्ध, वत्समिव लोकममुं पुषाण-भर्तृ० 2 / 46, भग० 15 / उज्ज्वल, शानदार 4. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख 5. निकट१३, भट्टि० 3 / 13, 17132 2. सहारा देना, भरण वर्ती 6. निर्घोषमय, गूंजने वाला, प्रतिध्वनि करने पोषण करना, परवरिश करना 3. बढ़ने देना, खिलना, वाला,-ल: 1. एक प्रकार का ढोल 2. मेरु पर्वत का विकसित होना, राहत मिलना-पुपोष लावण्यमयान् विशेषण, लम् 1. 64 मुट्टियों के बराबर एक विशेषान्--कु. 1025, रघु० 3332, न तिरोधीयते विशेष तोल या माप 2. चार ग्रास की भिक्षा / स्थायी तरी पुष्यते परम् ---सा० द०३ 4. बढ़ाना पुष्कलक: [पुष्कल+कन् ] 1. कस्तूरी-मग --सीम्नि पुष्कवृद्धि करना, आगे बढ़ाना, वर्धन (मल्यादि)-पंचा- __लको हतः-सिद्धा० 2. कुंडी, चटखनी, फन्नी। नामपि भूतानामुत्कर्ष पुपुषुर्गुणा:---रघु० 4 / 11,9 / 5 प्रष्ट (भू० क. कृ०) [पुष्+क्त] 1, पाला-पोसा, 5. प्राप्त करना, अधिकार में करना, रखना उपभोग खिलाया-पिलाया, परवरिश किया गया, शिक्षित करना भत० 3 / 34 6. बतलाना, दिखलाना, धारण किया गया 2. फलता-फूलता हुआ, बढ़ता हुआ, करना, प्रदर्शन करना-वपुरभिनवमस्याः पुष्यति बलवान्, हृष्टपुष्ट 3. टहल किया गया, देखभाल स्वां न शोभां--श० 1119, कु० 7 / 18,78, रघु० किया हुआ 4. समृद्ध, पूरी तरह सम्पन्न 5. पूर्ण, पूरा 6 / 58,18 / 32, नहीश्वरव्याहृतयः कदाचित्पूष्णंति- 6. पूरीध्वनि वाला, ऊँची आवाज वाला 7. प्रमुख / लोके विपरीतमर्थम्-कु० 3 / 63, मेघ०८०7. बढ़ना, | पुष्टिः (स्त्री०) [पुष्ट+क्तिन् / पालन-पोषण कला, पुष्ट होना, फलना-फूलना, समृद्ध होना 8. प्रशंसा पालना परवरिश, करना, 2. पालन पोषण, संवर्धन, करना, स्तुति करना,--प्रेर० या चुरा० उभ० वृद्धि, प्रगति -- यत्पिषतामपि नणां पिष्टोऽपि तनोषि पोषयति-ते 1. पालन-पोषण करना, परवरिश परिमलैः पुष्टिम् ---भामि० 1112 3. पराक्रम करना, भरणपोषण करना आदि 2. बढ़ाना, उन्नति शालिता, स्थूलता- अन्धस्य वृष्टिरिव पुष्टिरिवातुरस्य करना। ---मृच्छ० 1149, 4. धन-दौलत, सम्पत्ति, सुख का पुकरण पुष्कं पुष्टि राति-रा+क] 1.नीला कमल 2. हाथी / साधन,-रषु० 18.12 5. समृद्धि, सम्पन्नता 6. For Private and Personal Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 627 ) विकप्स, पूर्णता। सम०--कर (वि०) पौष्टिक, / -मंजरिका नीला कमल,-माला फूलमाला,--मासः पुष्टि कारक, कर्मन् (नपुं) सांसारिक संपन्नता प्राप्त 1. चैत्र का महीना 2. वसंत ऋतु,-- रजस् (नपुं) पराग, करने के लिए किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान, -रथः हवा खोरी के काम आनेवाला रथ (जो युद्ध के -व (वि०) संवर्धनकारी, समृद्धिकर, वर्धन (बि०) लिए न हो, -रस: फूलों का रस, मकरंद,-आह्वयम् कल्याणकारी, समृद्धि कारक (नः) मुर्गा / मधु-रागः,-राजः पुखराज, रेणुः पराग- वायुपुष्प (दिवा० पर० पुष्प्यति) खुलना, धौंकना या / विधनयति चम्पकपुष्परेणन् - कवि०, रघु० 1138, फूकना, विस्तार करना, खिलना - पुष्प्यत्पुष्करवासि- --रोचनः नागकेसर का वृक्ष, लावः फूल चुनने तस्य पयसः --उत्तर० 3 / 16 / वाला, (वी) फूल चुनने वाली, मालिन-मेघ० पुष्पम् [ पुष्प + अच् ] / फूल, कुसुम 2. रजः स्राव, २६,--लिक्षः, - लिह (पु) भौंरा,--वटुकः रसिया, रजोधर्म ...यथा 'पुष्पवती' में 3. पुखराज 4. आंखों बांका, छैल छबीला, - वर्षः, -वर्षणम् फूलों की बौछार का रोग विशेष, श्वेतक 5. कुबेर का रथ-दे० .-रघु० १२११०२,-वाटिका,--वाटी फलवाटी, 'पुष्पक' 6. शौर्य, (प्रेमकी भाषा में) नम्रता 7. विस्तार -----बुक्षः पुष्पप्रधान वृक्ष--रघु० १२।१४,--वेणी होना, खिलना, प्रफुल्ल होना (इस अर्थ में पुं० भी)। चोटी में लगाया हुआ फूलों का गजरा, फूलों की सम -अंजनम् पीतल की भस्म जो अंजन की भांति माला,..शकटी आकाशवाणी,-शय्या, फूलों की सेज, प्रयुक्त होती है,-अंजलिः फूलों की अंजलि, अभिषेक फूलों का बिछौना,-शरः,-शरासनः,-सायकः काम ="स्नान, ----अंबुजम् पुष्प रस या मकरन्द,.. अवचयः देव,-समयः बसन्त,---सारः, स्वेदः फूलों का रस, फूलों का चुनना, फूल एकत्र करना, - अस्त्रः कामदेव मकरद, हासा रजस्वला स्त्री,-हीना गतार्तवा स्त्री, का विशेषण, -आकार (वि०) फूलों से समृद्ध, जिसकी बच्चे पैदा करने को आय बीत चुकी हो।। --मासो नु पुष्पाकरः-विक्रम० 119, आगमः पुष्पकम् [ पुष्प+कन् ] 1. फल 2. पीतल की भस्म 3. बसन्त ऋतु, आजीवः माली, मालाकार, आपीडः लोहे का प्याला 4. कुबेर का रथ (जिसे कुबेर से फलों का गजरा,-आयुधः,---इषुः कामदेव, --- आसवम् रावण ने छीन लिया था, तथा जो फिर राम ने ले मधु, --आसारः फूलों की बौछार मनु० 43, लिया था)-रघु० 12 // 40, 16 / 46 5. कंकण 6. एक -----उद्गमः फूलों का निकलना, उद्यानम् पुष्प वाटिका, प्रकार का पुष्पांजन 7. आंखों का एक विशेष रोग। ---- उपजीविन् (पुं०) माली, बागवान, मालाकार, पुष्पंधयः [ पुष्प+धे+खश्, मुम् ] भौंरा / --कालः 1. फूलों का समय, बसन्त ऋतु 2. मासिक पुष्पलकः [ पुष्प+लक अच् ] स्थाणु, खूटा, फन्नी, कील / रजोधर्म का समय, --कासीसम् एक प्रकार का कसीस, | पुष्पवत् (वि०) [ पुष्प+मतुप, बत्त्वम् ] 1. प्रफुल्ल, -कीट: भौंरा, -केतनः का मवेव,-केतुः कामदेव फूलों से युक्त 2. फूलों से जड़ा हुआ (पुं०-द्वि०व०) (नपुं) 1. पुष्परस, मकरंद 2. पुष्पांजन,गृहम् फूलों सूर्य और चन्द्रमा,-ती रजस्वला स्त्री-पुष्पवत्यपि का घर, पुष्प संधारक,...-घातकः बाँस,-चयः 1. फूल पवित्रा-का०२०। चुनना 2. फूलों का संग्रह,-चापः कामदेव,-चामरः पुष्पा [ पुष्प-अच्+टाप् | चम्पा नाम की नगरी / एक प्रकार की बेंत,-जम् फूलों का रस,—दः वृक्ष, पुष्पिका [ पुष्प+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] 1. दांतों पर जमी -दंत: 1. शिव के एक गण का नाम 2. महिम्नस्तोत्र हुई मैल 2. लिंगच्छद में जमी मैल 3. अध्याय के के रचयिता का नाम वायव्य कोण में अधिष्ठित अन्तिम शब्द जिनमें वणित विषय की सूचना दी जाती दिग्गज,-दामन (नपुं०) फूलमाला,—द्रयः 1. फूलों है-इति श्री महाभारते शतसाहस्यां संहितायां वनका रस मकरंद 2. फूलों का आसव,---द्रुमः पुष्पप्रधान , पर्वणि .......... 'अमुकोऽध्यायः / / वक्ष,--धः व्रात्य ब्राह्मण की सन्तान-तु० मनु० : पुष्पिणी [ पुष्पिन्+ङीप्] रजस्वला स्त्री। १०२१,-धनुस् ,-धन्वन् (पुं०) कामदेव-शि०९।४१, , पुष्पित (वि.) [ पुष्प +-क्त 11. फूलों से युक्त, विकसित कु० // 64, धारणः विष्णु का विशेषण, ध्वजः / फूलों से भरा हुआ, खिला हुआ-चिरविरहेण विलोकामदेव,-निक्षः भौंरा, --निर्यासः,-निर्यासकः पूष्प- क्य पुष्पिताग्राम --- गीत० 4, यहाँ 'पुष्पिताग्रा' एक रस, मकरंद, फूलों का रस, नेत्रम् फूलनली, --पत्रिन छंद का भी नाम है 2. फूलों से अलंकृत, (भाषण) (पु) कामदेव,—पथः योनि -पुरम् पाटलिपुत्र-रघु० भड़कीला 3. फूलों से लदा हुआ, फूलों से सम्पन्न 6 / 24, प्रचयः,--प्रचायः फूल तोड़ना, फूल चुनना, ....यथा--सुवर्णपुष्पिता पृथ्वी- पंच० 1145 4. पूर्ण -प्रचायिका फूलों का चुनना, ---प्रस्तारः पुष्पशय्या, / विकसित, पूरी तरह खिला हुआ, --ता रजस्वला स्त्री। फूलों का बिछौना,-बलिः फूलों को भेंट या चढ़ावा, पुष्पिन् (वि.) [ पुष्प+इनि ] 1. फूल धारण करने -बाणः, -वाणः कामदेव,--भवः पुष्परस, मकरंद, / वाला, प्रफुल्ल 2. फूलों से भरा हुआ, फूलों से समद्ध / HTERNHEHLEER For Private and Personal Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 628 ) पुष्यः पुष-क्यप् ] 1. कलियुग 2. पौष का महीना | पूजित (भू० क. कृ.) [ पुज+क्त | 1. सम्मानित, 3. आठवाँ नक्षत्र (तीन तारों का पंज), इसे 'तिष्य' | आदत 2. आराधित, प्रतिष्टित 3. स्वीकृत 4. संपन्न नाम से भी पुकारा जाता है / सम०-रथः-पुष्य रथ / / 5. अनुशंसित, सिफारिश किया हुआ। पुष्पलकः [ पुष्य+लक+अच् ] दे० 'पुष्पलक'। | पूजिल (वि०) [ पूज+इलच ] श्रद्धेय, आदरणीय,----लः पुस्तम् [ पुस्त+घ ] 1. पलस्तर करना, लेप करना, / देव। रेखाचित्र बनाना 2. मिट्टी का शिल्पकार्य, मिट्टी के पूज्य (वि.) [ पूज-- यच | आदर का अधिकारी, खिलौना बनाना 3. मिट्टी, काष्ठ या किसी धातु की | सम्मान के योग्य, आदरणीय, श्रद्धेय,--ज्यः 1. श्वसुर / बनी कोई वस्तु 4. पुस्तक, हाथ से लिखी पुस्तक / | पूण् ( चुरा० उभ० पूणयति ते) एक जगह ढेर सम-कर्मनु (नपुं०) लीपना-पोतना, चित्रकारी लगाना, रांचय करना, राशि लगाना। करना। पूत् (अव्य०) फूंक मारने की अनुकृति का सूचक शब्द / पुस्तक,-कम्, पुस्ती [ पुस्त+कन्, डीप् वा ] पोथी, हाथ पूत (भ० क० क.) | | क्त] 1. शद्ध किया हआ, की लिखी पुस्तक / छाना हुआ, धोया हुआ (आल० भी) दृष्टिपूतं पू (म्वा० दिवा०,-आ०, क्या० उभ०-पवते, पुनाति, पुनीते न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं विषेत्, सत्यपूतां वदेवाचं मन: पूत, प्रेर०-पावयति-इच्छा० पुपुषति, पिपविषते) पूतं समाचरेत् -- मनु० 6 / 46 2. पिछोडा हआ, 1. पवित्र करना, छानना, शुद्ध करना (शा० और फटका हुआ 3. प्रायश्चित्त किया हुआ 4. योजनाकृत, आल०) अवश्यपाव्यं पवसे. भट्टि० 6 / 64, 3 / 18, आविष्कृत 5. सड़ने वाला, गला-सड़ा, दुर्गवमय, ..पुण्याश्रमदर्शनेन तावदात्मानं पुनीमहे-श० 1, बदबूदार,--तः 1. शंख 2. सफेद कुश घास, तम् मनु० 11105, 2162, याज्ञ० 1158, रघु० 1153 मचाई। सम० आत्मन् (वि०) पवित्र मन वाला भग० 10 // 31 2. निथारना 3. भूसी साफ करना, (पुं०) विष्णु का विशेषण, कतायी इन्द्र की पत्नी फटकना 4. प्रायश्चित्त करना, परिमार्जन करना शची, ऋतुः इन्द्र का विशेषण भट्टि० 8 / 29, 5. पहचानना, विवेक करना 6. सोचना, उपाय ढूंढना, ... तणम् सन्द कुश घास, द्रः पलाश वृक्ष, धान्यम् आविष्कार करना। तिल पाप, पाप्यन् निप्पाप, पाप से रहित,- फल: पूगः [ पू+गन्, कित 11. समच्चय, ढेर, संग्रह, मात्रा कटहल का वृक्ष / -शि० 9 // 64 2. समाज, निगम, संघ–याज्ञ० पूतना [पूणिच्य -टाप | एक राक्षसी जो कृष्ण 2 / 30, मनु० 3 / 151 3. सुपारी, पूगी - रघु० 4 / 44 को जब वह अबोध बालक था, मारने का प्रयत्न करती 6 / 63, 13 / 17 4. प्रकृति, गुण, स्वभाव,-गम् हुई, स्वयं उनके द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुई 2. राक्षसी सुपारी / सम०-पात्रम् 1. थूकने का बर्तन, पीकदान - मा पूतनात्वमुपगाः शिवतातिरेधि मा० 9 / 49 / 2. पान-दान,—पोटम्, पीडम थूकने का बर्तन, सम० अरिः, सूदनः, हन् (पु०) कृष्ण के --फलम् सुपारी, वैरम् अनेक लोगों से शत्रुता। विशेषण / पूज् (चुरा० उभ०-पूजयति-ते, पूजित) 1. आराधना | पूति (वि०) पुय-1-क्तिच् / बदबूदार, सड़ा हुआ, दुर्गध करना, पूजा करना, अर्चना करना, सम्मान करना, युक्त, दुर्गध देनेवाला भग०१७।१०, ति: (स्त्री०) सादर स्वागत करना-यदपूपजस्त्वमिह पार्थ मुरजितभ- 1. पवित्रीकरण 2. दुर्गंध, सड़ांद 3. बदबू ... नपुं० पूजितं सताम् --शि० 15 / 14, मनु०४।३१, भट्टि. 1. गंदा पानी 2. पोप, मवाद / सम० अंड: कस्तुरी 2 / 26, याज्ञ० 2 / 14 2. उपहार देना, भेट चढ़ाना, मृग,.-काष्ठम् देव दारु वृक्ष,--काष्ठकः सरल वृक्ष, -मनु० 7 / 203, सम्-1. पूजना, अर्चना करना, --गंध (वि०) बदबूदार, दुर्गधयुक्त, दुर्गव देने वाला, सम्मान करना 2. उपहार देना, (दक्षिणादि से) सड़ा हुआ (.....धः) 1. सड़ांद, दुर्गध, बदबू 2. गंधक सम्मानित करना। (धम) 1. जस्ता, रांगा 2. गंधक, * गंधि (वि०) पूजक (वि.) (स्त्रो०-जिका) [ पूज्+ण्वुल् ] सम्मान बदबूदार, दुर्गध देनेवाला, नासिक (वि०) दुर्गधमय करने वाला, आराधक, पूजा करने वाला, आदर / नाक वाला,-वक्त (वि०) जिसके मुंह से बदबू आती करने वाला--आदि। हो, वणम् दुषित फोड़ा (जिसमें से पीप निकले) / पूजनम् [ पूज्+ल्युट ] पूजना, सम्मान करना, आराधना | पूकित (वि.) पूति+के+क] सड़ा हुआ, बदबूदार, करना-भग० 1714 / सड़ागला,- कम लोद, मल, विष्ठा / पूजा [पूज्+अ+टाप् ] पूजा, सम्मान, आराधना, | पूतिका [पूतिक+टाप्] एक प्रकार की जड़ी। सम० आदर, श्रद्धांजलि-रघु० 1179 / सम० --अहं (वि०) --मुखःदो कोष वाला शंख / / श्रद्धेय, आदरणीय, पूज्य, श्रद्धास्पद / | पून (वि.) [पू-| क्त तस्य नः] नष्ट किया गया। याज्ञः पूतनापू अबोध बालक बात हुई 2. राक्षर JHARTE For Private and Personal Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 629 ) पूपः [पू। किप, पा+क] पूआ, दे 'अपूप' / पूरा करना 2. क्रम सूचक (अंकों के साथ प्रयुक्त) पूपला, ली, पूपालिका, पूपाली, पूपिका [पूप+ला--क -----जैसे द्वितीय, तृतीय आदि-न पूरणी तं सम्पति +टाप, ङीप् वा; पूपाय अलति---पूप+अल+अच् संख्या-कि० 3 / 51 3. संतुष्ट करने वाला---णः +ङीष्-+कन्+टाप, ह्रस्वः, पूप+अल+पच्, ङीष् 1. पुल, बांध, सेतु 2. समुद्र, -- णम् 1. भरना 2. ऊपर पूप--ठन्+टाप्] एक प्रकार का मीठा पुआ, तक भरना, पूरा करना-- रघु० 9/73 3. फूलना, मालपुआ। सूजना 4. पूरा करना, सम्पन्न करना 5. एक प्रकार पूयः,-- यम पू / अच्| पीप, फोड़ या घाव से निकलने की पूरी या रोटी 6. मतक कार्य में प्रयक्त रोटी वाला मवाद, पीप आना, मवाद निकलना--मनु० 7. वृष्टि, बरसना 8. ऐंठन, मरोड़ 9. (गणि० में) 3 / 180, 41220, 12 / 72 / सम-रक्तः नाक का गुणा / सम-प्रत्ययः क्रम सूचक संख्या बनाने वाला एक रोग विशेष (इसमें पीप से युक्त रक्त, या मवाद प्रत्यय। राक से बहता है) (क्तम्) 1. कचलोहू, मवाद | पूरिका [ पूर+की+कन्--टाप, ह्रस्वः ] पूरी, कचौरी। 2. नथनों से मवाद का बहना / / पूरित (भू० क० कृ०) [ पूर्+क्त ] 1. भरा हुआ, पूरा, पूयनम् पू+ल्युट]-दे० 'पूर्य' / 2. बिछाया हुआ, आच्छादित 3. गुणा किया हुआ। पूरi (दिवा० आ-पूर्यते, पूर्ण) 1. भरना, पूर्ण करना पूरुषः [पुर- कुषन्, नि० दीर्घः ] =दे० 'पुरुष'-भामि० 2. प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना (चुरा० उभ० -- पूरयति-ते, पूरितः---१० का प्रेर० रूप) पूर्ण (भू० क० कृ०) [ पूर+क्त, नि.] 1. भरा हुआ, 1. भरना-को न याति वशं लोके मखे पिडेन पूरितः आपूरित, पूरा किया हुआ, अश्रु शोक आदि 2. भत०२।११८, शि० 9464 2. हवा से भर जाना, संपूर्ण, अखंड, समग्र, समूचा रघु० 3 / 38 3. पूरा (शंख आदि में) फंक मारना 3. ढकना, घेरना किया हुआ, सम्पन्न 4. समाप्त, पूरा 5. अतीत, बीता भट्टि० 7 / 30 4. पूरा करना, संतुष्ट करना .. पूर यतु हुआ 6. संतुष्ट, तृप्त 7. घोष पूर्ण, गुंजायमान, 8. कुतुहल वत्स:.... उत्तर०४, इसी प्रकार आशां, मनोरथं बलवान्, शक्तिशाली 1, स्वार्थी, स्वलीन / सम० आदि 5. तीव्र करना, (ध्वनि आदि) सबल करना --अंकः पूर्ण संख्या,...-अभिलाष (वि०) संतुष्ट, तृप्त, 6. गुजायमान करना 7. बोझ लादना, समृद्ध करना, --आनकम् 1. ढोल 2. ढोल की आवाज 3. बर्तन 4. आ-, 1. भरना, पूर्ण करना, पूरा करना, ऊपर तक चंद्रकिरण 5. दे० पूर्ण पात्र (कभी कभी 'पूर्णालक' भी भरना (आलं० भी)--- रघु० 16 / 65, भग० 1130, पढ़ा जाता है,-इन्दुः पूरा चाँद,-उपमा पूरी या भट्टि० 6 / 118 2. हवा से भरना, (शंख आदि) समूची उपमा अर्थात् जिसमें उपमान “उपमेय' बजाना - कर्मवाच्य में प्रयुक्त 3. अन्तर्ग्रथित करना, 'साधारणधर्म' और 'उपमाप्रतिपादक शब्द' यह चारों पिरोना तु०३।१८, परि, भरना, पूरी तरह से अपेक्षित बातें अभिव्यक्त की गई हो (विप० लुप्तोभर लेना, प्र , 1. भरना, उपहारों से भरना, समृद्ध पमा)-उदा० अंभोरुहमिवातानं मुग्धे करतलं तवकरना मृच्छ० ९।५९,(यहाँ यह दोनों अर्थ देता है), दे० काव्य० 10, 'उपमा' के अन्तर्गत भी, - ककुद् सम् , पूरा करना, भरना। (वि०) पूरे कोहान से युक्त, --काम (वि.) जिसकी पूरः [पूर-क] 1. भरना, पूरा करना 2. संतोष देना, इच्छाएं पूरी हो गई है, संतुष्ट, तृप्त, -कुंभ: 1. पूरा प्रसन्न करना, तृप्त करना 3. उडेलना, पूर्ति करना कलश 2. पानी से भरा घड़ा 3. युद्ध करने की विशेष ..- अतैलपूरा: गुरतप्रदीपा:- कु० 110 4. नदी का रीति 4. (दीबार में) कलश के आकार का गर्त चढ़ना, समुद्र में पानी का बढ़ना, वाढ़ -- रघु० 3 / 17 –तदत्र पक्वेष्टके पूर्णकुंभ एव शोभते--मृच्छ० 3, 5. धारा या नदी का रूप होना, बाढ़ आना - अंबु --पात्रम् 1. जल से भरी गागर 2. कलशपुर, गागर बाप शोणित आदि 6. जलखण्ड, सरोवर, तालाव भर 3. 256 मुट्ठी भर (अनाज का) तोल 4. 7. धाव का साफ़ होना यां भरना 8. एक प्रकार की ( वस्त्रालंकार आदि) मूल्यवान् वस्तुओं से भरा हुआ रोटी या पूरी,-रभ एक प्रकार का गंधद्रव्य,--उत्पीडः (संदुक, टोकरी आदि) बर्तन जो बंधुबांधवों द्वारा वाढ़ या जलाधिक्य / किसी उत्सवादि के अवसर पर उपहार के रूप में पूरक (वि०) [पूर / रावल ] 1. भरने वाला, पूरा करने बांटा जाय, अतः इसका सामान्य अर्थ है वह उपहार वाला 2. संतुष्ट करने वाला, तृप्त करने वाला, ..क: जो किसी सुखद समाचार के लाने वाले व्यक्ति को 1. नींबू का पौधा 2. श्राद्ध की समाप्ति पर पितरों को दिया जाता है—कदा मे तनयजन्ममहोत्सवानंदनि दिया जाने वाला पिंड 3. (अंकगणित में) गुणक / भरो हरिष्यति पूर्णपात्रं परिजनः-- का० 62, 70, पूरण (वि०) (स्त्री० णो) [पूर् + ल्युट्] 1. भरना, | 73, 165, सखीजनेनापह्रियमाणपूर्णपात्राम् 299, For Private and Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्कामं प्रभवति पूर्णपात्रवृत्त्या स्वीकर्तुं मम हृदयं च जीवितं च-मा० 4 / 1, (पूर्णपात्र की परिभाषा -हर्षादुत्सवकाले यदलंकारांशु कादिकम्, आकृष्य गृह्यते पूर्णपात्रं स्यात्पूर्णकं च तत् / या--वर्धापक यदानंदादलंकारादिक पुनः, आकृष्य गृह्यते पूर्णपात्रं पूर्णानकं च तत्-हारावली, बी (वी) जः नींब, -मासी पूर्णिमा, पूनो। पूर्णकः [ पूर्ण+कन् ] 1. एक प्रकार का वृक्ष 2. रसोइया 3. नीलकंठ। पूर्णिमा, पूर्णिमासी [प-नि-पूर्णि, मा+क-टाप, पूर्णि+मास+डीप्] वह दिन जब चन्द्रमा पूर्ण हो जाता है, पूनो-नै० 2 / 76 / / पूर्त (बि०) [ पूर+क्त नि० ] 1. पूर्ण, पूरा 2. छिपाया हुआ, ढका हुआ 3. पालन-पोषण किया गया, रक्षा किया गया, ...तम् 1. पूर्ति 2. पोषण, पालन 3. पुरस्कार, पात्रता 4. पावन, उदारता का कृत्य-परिभाषावापीकूपतडागादिदेवतायतनानि च अन्नप्रदानमारामः पूर्तमित्यभिधीयते-- मन० 4 / 226, (विप० इष्ट) .- अत्रि द्वारा इसकी परिभाषा-- अग्निहोत्रं तपः सत्यं वेदानां चैव पालनम, आतिथ्यं वैश्वदेवश्च इष्टमित्य भिधीयते) -तु० 'इष्टापूर्त / पूतिः (स्त्री०) [ पूर्-+-क्तिन् ] 1. भरना 2. पूरा करना, पूर्णता, सम्पन्नता 3. तृप्ति, संतुष्टि / पूर्व (वि.) [ पूर्व - अच् ] (जब काल और दिशा की दृष्टि से सापेक्ष स्थिति प्रकट की जाती है तो इस शब्द के रूप सर्वनाम की भांति होते हैं, परन्तु वह भी कर्तृ० व० व०, तथा अपादान० व अधिकरण० एक, व में विकल्प से) 1. सामने होने वाला, प्रथम, प्रमुख 2. पूर्वी, पूर्व दिशा में स्थित, के पूर्व में . ग्रामात्पर्वतः पूर्वः 3. पहले क , से पहला 4. पुराना, प्राचीन -पूर्वसूरिभिः... रघु० 114 5. पूर्वोक्त, विगत, पिछला, पहला, पूर्वगामी (विप० उत्तर ), इस अर्थ में प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त यथ: 'श्रुतपूर्व' 6. उपर्युक्त, / पूर्वोक्त 7. (समास के अन्त में) पूर्ववर्ती, से युक्त, अनुसेवित संबंधमाभाषणपूर्वमाहुः- रघु० 2 / 58, पुण्यः शब्दो मुनिरिति महः केवलं राजपूर्वः ... श० / 2114, तान् स्मितपूर्वमाह - कु. 7 / 47 5 / 31, . दशपूर्वरथं यमाख्यया दशकंठारिगुरुं विदुर्बुधाः .. रघु० / 829 - इसी प्रकार ‘मतिपूर्व--- मनु० 11 / 147 'इरादतन' 'जानबूझकर'--१२।३२,--अबोधपूर्वम् अनजाने श० 5 / 3, बः पूर्वज, पूर्व पुरखा, बाप दादा पूर्वः किलायं परिवधितो नः -- रघु० 13 / 3, पय: पूर्वैः सनिश्वासैः कवोष्णमुपभुज्यते 1467, 5 / 14, म अगला भाग, वम (अव्य.) 1. से पहले (अपा० के साथ) मासात्पूर्वम् 2. विगत काल में, पहले, प्रारंभ में, पूर्वतः, पहले ही तं पूर्वमभिवादयेत् ---- मनु० 2 / 117, 3 / 94, 8 / 205, रघु० 12 // 35, पूर्वेण--से पूर्व में (संबं० या कर्म के साथ) अद्य पूर्वम् 'अब तक' 'इससे पहले' पूर्व:-ततः-पश्चात् --उपरि पहले तब, पहले बाद में, विगत काल में --- पूर्वम् ---अधुना या-- अद्य पहले आज / समः - अचल:,- अद्विः उदयाचल (पूर्व दिशा का पहाड़ जिसके पीछे से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होता है), ---अंतः पूर्ववर्ती शब्द की समाप्ति, अपर (वि.) 1. पूर्वी और पश्चिमी पूर्वापरी तोयनिधी वगाह्य -कु. श१ 2. पहला और अन्तिम 3. पहले का और बाद का, पूर्ववर्ती और परवर्ती 4. किसी दूसरे से युक्त, (रम्) 1. जो पहले और बाद में हो 2. संबंध 3. प्रमाण और प्रमेय - विरोधः असंगति, असंबद्धता, -- अभिमुख (वि०) (वि.) पूर्व दिशा की ओर मुख किए हुए, या मुड़े हुए,--अम्बुधिः पूर्वी समुद्र,---अजित (वि०) पूर्वकर्मों द्वारा प्राप्त (तम्) पतृक संपत्ति --धः, --धम् 1. पहला आधा भाग --दिनस्य पूर्वार्धपराधभिन्ना छायेव मंत्री खलसज्जनानाम् -- भर्तृ० 160, समाप्त पूर्वार्धम् - आदि 2. (शरीर का) ऊपर का भाग - श० 3, रघु० 16 // 6, 3. इलोकार्ध का प्रथम भाग,-- अहः मध्याह्न से पूर्व, दोपहर से पूर्व-मनु० 4 / 96, 787 (पूर्वाह्नतन, पूर्वाह्णतेन (वि०) मध्याह्न से पूर्वकाल संबंधी), -- आवेदक: वादी, मुद्दई,- आषाढ़ा बीसवाँ नक्षत्र, (दो नक्षत्रों का पुंज), इतर (वि०) पश्चिमी, ...-उक्त,.. उदित (वि०) पहले कहा हुआ, उपर्यवत, - - उत्तर (वि०) उत्तरपूर्वी (द्वि० व० -रे) पूर्ववर्ती पहले का और बाद का,- कर्मन (नपं०) 1. पहला काम या कार्य 2. प्रथम कार्य, पहले किया जाने वाला कार्य 3. पूर्व जन्म में किया गया कार्य, कल्पः विगत काल, कायः 2. जानवरों के शरीर का अगला भाग पश्चार्धन प्रविष्ट: शरपतनभयाद् भूयसा पूर्वकायम ----- श० 117 2. मनुष्यों के शरीर का ऊपरी भाग --स्पृशन करेणानतपूर्वकायम -- रघ० 5 / 32, पर्यकबंधस्थिर पूर्वकायम् - कु० 3 / 45,-- कालः विगत काल, प्राचीन समय, - कालिक, कालीन (वि०) प्राचीन,- काष्ठा पूर्व, पूर्व दिशा, कृतम् पूर्वजन्म में किया हुआ कार्य, कोटिः (स्त्री०) वाकप्रतियोगिता की आरंभिक उक्ति, विवादविषय, पूर्वपक्ष,-- गंगा नर्मदा नदी,-चोदित (वि०) उपर्यक्त, ऊपर बताया हुआ 2. पहले से कहा हुआ, या पूर्व प्रस्तुत (आक्षेप आदि)-...ज (वि०) 1. जिसकी उत्पत्ति पहले हई हो, पहले जन्मा हुआ 2. प्राचीन, पुराना 3. पूर्वी (जः) 1. बड़ा भाई शि. 16644, रघु०१५।३६ For Private and Personal Use Only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. बड़ी पत्नी का लड़का 3. पूर्वपुरुष, बापदादा, / पवत,-सक्थम् जंघा का ऊपरी भाग,--संध्या -~~-जन्मन् (नपुं०) पहला जन्म, (पू०) बड़ा भाई प्रभातकाल, पौ फटना,-शि० १०४०,-सर (वि०) --रघु०१४।४४, १५।९५,--जा बड़ी बहन, जातिः अग्रेसर, सागरः पूर्वी समुद्र -- रघु० 4 / 32, - साहसः (स्त्री) पूर्वजन्म,-ज्ञानम् पूर्वजन्म का ज्ञान, - वक्षिण | पहला या सबसे भारी अर्थदण्ड, --स्थितिः (स्त्री०) (वि.) दक्षिणपूर्वी ( णा) दक्षिण पूर्व दिशा, | पहली या प्रथम अवस्था। ---- दिक्पतिः पूर्व दिशा का अधिपति इन्द्र,--दिनम् दिन पूर्वक (वि०) [पूर्व+कन्] (समास के अन्त में) 1. का पूर्वभाग, दोपहर से पूर्व का समय,-विश (स्त्री०) / पूर्ववर्ती, अनुसेवित-अनामयप्रश्नपूर्वकमाह-श०५ 2. पूर्व दिशा, --दिष्टम् भाग्य में लिखा, - देवः1.प्राचीन पूर्ववर्ती, पिछला,--- कः पूर्वज, बापदादा / देवता 2. राक्षस या असुर 3. प्रजनक, पिता, देशः | पूर्वगम (वि.) [पूर्व+ गम् +खच्] पहले जाने वाला, पूर्वी प्रदेश, भारत का पूर्वी भाग, --- निपातः समास में पूर्ववर्ती / शब्द की अनियमित प्राथमिकता - तु० परनिपात, | पूर्वतः (अव्य० [पूर्व+तस्] 1. पूर्व में, पूर्व की ओर, --- पक्षः 1. अगला हिस्सा या पार्श्व 2. कृष्णपक्ष | ---रघु० 3 / 42 2. पहले, सामने / (चान्द्रमास का प्रथमपक्ष) 3. विवाद का पूर्वपक्ष, | पूर्वत्र (अव्य०) [पूर्व +त्रल] पूर्ववर्ती भाग में, पहली प्रथमदर्शनाधारित तर्क या प्रश्न का दृष्टिकोण 3. किसी तर्क का प्रथम आक्षेप 4. वादी की प्रतिज्ञा 5. अभि- पूर्ववत् (अव्य०) [पूर्व+वति] पहले की भांति / योग, नालिश, पदम् किसी समास या वाक्य का | पूर्विन (वि.) (स्त्री०-णी) पूर्वीण (वि.) [पूर्व+इनि, प्रथम पद, -पर्वतः उदयाचल जिसके पीछे सूर्य का | पूर्व+ख] 1. प्राचीन 2. पैतृक। उदय होना माना जाता है - पांचालक (वि०) पूर्वी | पूर्वद्यः (अव्य) पूर्वस्मिन अहनि--पूर्व+एद्यस नि० पंचालों से संबंध रखने वाला पाणिनीयाः (पुं०, ब० साध] 1. पहले दिन 2. गत दिवस, बीते हुए कल व०) पूर्व देश के रहनेवाले पाणिनि के शिष्य, पिता- मनु. 3 / 187 3. दिन के प्रथम भाग में, पौ महः बापदादा, पूर्वज, --पुरुषः 1. ब्रह्मा का विशेषण फटने पर 4. भोर में, सबेरे। 2. पिता, पितामह या प्रपितामह में से कोई एक | पूल (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-पूलति, पूलयति-से) 3. पूर्वपुरखा,-पूर्व (वि.) प्रत्येक पूर्ववर्ती --फाल्गनी ढेर लगाना, संचय करना, एकत्र करना / ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित है भवः पूलः, पूलकः [पूल+अच, ण्वुल वा] गठरी, पुली। बहस्पति ग्रह का विशेषण, . भागः अगला हिस्सा, | पूलाक:=पुलाक-दे। -भाद्रपदा पच्चीसवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित लिका [=पूरिका, रस्य ल:] एक प्रकार की रोटी, पूरी। है,-भुक्तिः (स्त्री०) पहले से किया हुआ अधिकार, | पूषः, पूषकः [पूष् -क, पूष्+कन्] शहतूत का वृक्ष / -भूत (वि०) पूर्ववर्ती, पहले का, - मीमांसा प्रथम पूषन् (पुं०) (कर्तृ० -पूषा,- षणी, -षणः) [पूष्+ मीमांसा, वेद के अंतर्गत कर्मकाण्डविषयक पच्छा कनिन् ] सूर्य,-सदा पांथः पूषा गगनपरिमाणं कलयति (विप० उत्तरमीमांसा या वेदान्त-..दे० मीमांसा,-रंगः -भर्तृ० 2 / 114, इन्धनौषधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति नाटक का उपक्रम या आरंभ, आमुख या प्रस्तावना, पूषणम्-शि० 2 / 3 / सम०-असुहद् (पुं०) शिव -पूर्वरंग विधायव सुत्रधारो निवर्तते .सा.द. 283, का विशेषण,-आत्मजः 1. बादल 2. इन्द्र का विशेषण, पूर्वरंगः प्रसंगाय नाटकीयस्य वस्तुनः - शि० 218 --भासा इन्द्र का नगर (अमरावती)। (दे० इस पर मल्लि०), रागः आरंभिक प्रेम, दो | Ti (तुदा० आ०-प्रियते, पत)-व्यस्त होना, सक्रिय होना व्यक्तियों के मिलन से पूर्व (श्रवण दर्शन आदि के (बहुधा 'व्या' उपसर्ग के साथ)-कार्ये व्याप्रियते कारण) उनमें उत्पन्न होनेवाला प्रेम, * रात्रः 1. रात --दे० व्याप्त -प्रर० (पारयति--ते) 1. काम का पहला भाग, रूपम् 1. होने वाले परिवर्तन का कराना, काम पर लगाना, सौंपना, नियत करना संकेत 2. रोग होने का लक्षण 3. दो सहवर्ती स्वर (बहुधा अधि० के साथ) व्यापारितः शूलभता विधाय या व्यंजनों में से पहला जो स्थिर रहे, बयस (वि.) सिंहत्वमकागतसत्त्ववत्ति-रघु० 2 / 38 2. रखना, बच्चा --वतिन् (वि०) पहले से विद्यमान, पहले का, जड़ देना, निश्चित करना, निदेश देना, ढालनापहले होने वाला, वादः बादी द्वारा प्रस्तुत अभियोग, व्यापारयामास करं किरीटे-रघु० 6 / 19 उमामुखे मट्टई द्वारा की गई नालिश, वादिन् (प.) अभि- .''व्यापारयामाम विलोचनानि--कु० 3 / 67, व्यापायोक्ता या मुद्दई, वृत्तम् 1. पहली घटना,---रघु० रितं शिरसि शस्त्रमशस्त्रपाणे:-वेणी० 3 / 19, रघु० 11 / 10 2. पहला आचरण, शारद (वि०) शरद् | 13 / 25 / / ऋतु के पूर्वार्ध से संबंध रखने वाला, - शैलः दे० पूर्व. | i (जुहो० पर०--पिपति, पूर्ण) 1. आगे ले जाना 2. For Private and Personal Use Only Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से मुक्त करना, प्रकाशित करना 3. भरना 4. रक्षा [ पृथ (चुरा० उभ०-पर्थयति-ति) 1. विस्तार करना करना, जीवित रखना, जीवित रहना 5. उन्नति | 2. फेंकना, डालना 3. भेजना, निदेश देना। करना, प्रगति करना। पृथक् (अव्य०) [प्रथ्+अज् कित्, संप्रसारण ] 1. अलगiii (ऋया० पर० पुणाति) रक्षा करना। अलग, जुदा-जुदा, एक एक करके-शंखान्दध्मः पृथक iv (चुरा० उभ०-पारयति-ते, कभी-कभी 'पार' स्वतंत्र पृथक्-भग० 1 / 18, मनु० 6 / 26, 7 / 57 2. भिन्न, घातु मानी जाती है) 1. पार ले जाना, नाव से पार अलग, भिन्नतापूर्वक टि० 5 / 4, 13 / 4, रचिता उतारना 2. किसी वस्तु के दूसरे पार्श्व पर पहुंचना, पथगर्थता गिराम कि० 2 / 27 3. जुदा, एक ओर, निष्पन्न करना, अनुष्ठान करना, सम्पन्न करना, एकाकी-विक्रम० 4 / 20 4. छोड़ कर, सिवाय, (व्रत का) पूरा करना 3. योग्य या समर्थ होना अपवाद के साथ, बिना (कर्म करण. या अपा० -अधिकं न हि पारयामि वक्तुम् ---भामि० 2 / 59, श० के साथ) पृथग्रामेण, रामात्, रामं वा--सिद्धा०, 4 4. सौंपना, बचाना, उद्धार करना, निस्तार भट्टि० 9 / 109 (पृथक् कृ-अलग 2 करना, बाँटना, करना। जुदा-जुदा करना, विश्लेषण करना)। सम० v (स्वा० पर०—पणेति) 1. प्रसन्न करना, खुश करना, -आत्मता 1. अलग-अलग होना, पृथकता 2. भेद, तृप्त करना 2. प्रसन्न होना, खुश होना / भिन्नता 3. विवेक, निर्णय,-आत्मन् (वि०) भिन्न, पृक्त (भू० क० कृ०) [पृच् + क्त] 1. मिश्रित, संपृक्त अलग-आत्मिका व्यक्तिगत सत्ता, वैयक्तिकता -रघु० 2 / 12 2. स्पृष्ट, संपर्क में लाया गया, स्पर्श -करणम्,-क्रिया 1. अलग-अलग करना, भेद करना करने वाला, संयक्त,—क्तम् संपत्ति, दौलत / 2. विश्लेषण करना, -- कुल (वि.) भिन्न कूल से पक्तिः (स्त्री०) [पूच +क्तिन] स्पर्श, संपर्क, संयोग / संबंध रखने वाला, -क्षेत्रः (पू० ब० व०) एक पिता पृक्थम् [पृच+थन्] संपत्ति, धन-दौलत, वैभव / की विभिन्न पत्नियों से सन्तान, या भिन्न-भिन्न जातियों पच / (अदा० आ० पृक्ते, पण) संपर्क में आना। को पत्नियों से सन्तान, --चर (वि०) एकाकी जाने ji (रुघा० पर० पृणक्ति, पृक्त) संपर्क में लाना, वाला, अलग जाने वाला,-जनः नीच पुरुष, ज्ञान सम्मिलित होना, मिल जाना—एवं वदन दाशरथिर- रहित, गँवार आदमी, प्राकृत जन, नीच लोग--न पृणग्धनषा शरम्--भट्टि० 6 / 39 2. मिश्रण करना, पृथग्जनवच्छुचो वशं वशिनामुत्तम गंतुमर्हसि-रधु० मिलाना 3. संपर्क में होना, स्पर्श करना 4. संतुष्ट 8190, कि०१४।२४ 2. मूर्ख, बुद्घ, अज्ञानी--शि. करना, भरना, संतृप्त करना 5. बढाना, वृद्धि करना, 16 / 39 3. दुष्ट आदमी, पापी,-भावः पृथक्ता , सम् -,मिश्रण करना, घोलना, मिलना, मिलाना- वैयक्तिकता (इसी प्रकार 'पृथकत्वम्'),-रूप (वि०) वागर्थाविव संपृक्तौ-रघु० 111, भट्टि० 17 / 106, भिन्न-भिन्न रूपों या प्रकारों का,-विध (वि०) भिन्नदे० संपृक्त iil (भ्वा० पर०, चरा० उभ० पर्वति, भिन्न प्रकार का, नाना प्रकार विविध,-शय्या अलग पर्चयति-ते) 1. स्पर्श करना, संपर्क में आना?.. सोना,—स्थितिः (स्त्री०) अलग सत्ता। रोकना, विरोध करना। पृथवी [ प्रथ+पवन, संप्रसारण ] दे० पृथिवी। पृच्छक: [प्रच्छ+ण्वल पूछताछ करने बाला, गवेषणा पृथा (स्त्री०) पाण्डु की दो पत्नियों में से एक, कुन्ती का करने वाला-पृच्छकेन सदा भाव्यं पुरुषेण विजानता नाम / सम-जः,-तनयः, सुतः,-सूनुः पहले तीन -पंच० 5 / 93, याज्ञ०।२६८। पांडवो का विशेषण परन्तु प्रायः 'अर्जन' के लिए पृच्छनम् [प्रच्छ् + ल्युट्] पूछना, पूछ-ताछ करना / व्यवहृत ... अश्वत्थामा हत इति पृथासूनुना स्पष्टमुक्ता पृच्छा [प्रच्छ+ अङ+टाप् | 1. प्रश्न करना, पूछना, पूछ- ---वेणी० 3 / 9, अभितस्तं पथासुन: स्नेहेन परितस्तरे ताछ करना 2. भविष्य विषयक पूछ-ताछ। ___ -कि० 1118, --पतिः पॉड का विशेषण। पृज् (अदा० आ० ----पंक्ते) संपर्क में आना, स्पर्श करना / | पृथिका [ प्रथ+क+क+टाप् संप्रसारणम्, इत्वम् ] पत् (स्त्री०) पि.+क्विप, तुक] सेना--(पहले पाँच / कनखजूरा। वचनों में इस शब्द का कोई रूप नहीं होता, द्वि० | पृथिवी [ प्रथ+षिवन्, संप्रसारणम् ] पृथ्वी (कई 'पृथिवी' वि०, द्वि. व० के पश्चात् 'पृतना' के स्थान में भी लिखा जाता है)। सम०--इन्द्रः, ईशः, क्षित् विकल्प से 'पृत्' आदेश हो जाता है। (पु०),-पालः,-पालकः,-भुज् (पुं०)-भुजः शक्रः, पतना [प!-तनन्+टाप् ] 1. सेना 2. सेना का एक राजा, तलम् धरातल,- पतिः 1. राजा 2. मृत्यु का प्रभाग जिसमें 243 हाथी, 243 रथ, 729 घोड़े देवता यम, - मंडलः,-लम् भमंडल,---रुहः वृक्ष-पवमानः और 1215 पैदल होते है 3. युद्ध, संग्राम, मुठभेड़ / पृथिवी रुहानिव रघु० ८।९,---लोकः मर्त्यलोक सम--साहः इन्द्र का विशेषण / भलोकः / For Private and Personal Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 633 ) पृयु (वि.) (स्त्री०-थु,-थ्वी) तुल० प्रथीयस्-उत्त० / यशस्वी,--रोमन् (पुं०) मछली, "युग्मः मीन राशि, अ० प्रथिष्ठ) [प्रथ्+कु, संप्रसारणम् ] 1. चौड़ा, -श्री (वि.) अत्यन्त समृद्ध,-श्रोणी (वि.) बड़े विस्तृत, प्रशस्त, फलावदार—पृथुनितंब---दे० नीचे, | ___ भारी कूल्हों वाला,-संपद (वि०) धनवान्, दौलत सिंधोः पृथुमपि तनुम् –मेघ० 46 2. यथेष्ट, बहल, मंद, स्कंधः सूअर। पर्याप्त-विक्रम० 4 / 25 3. विस्तीर्ण, बड़ा--दृशः | पृथुकः,-कम् [पृथु+के+क] चौले, चिवड़े--क: बच्चा पृथुतरीकृताः- रत्न० 2 / 15, शि० 12148, रघु० निन्युजनन्यः पथकान् पथिम्य:-शि० ३१३१,-का 1425 4. विवरणयुक्त, अतिविस्तृत 5. बहुसंख्यक लड़की। 6. चुस्त, फुर्तीला, चतुर 7. महत्त्वपूर्ण,--थ: 1. अग्नि पृथुल (वि.) [पृत्यु+लच, ला+क वा चौड़ा, प्रशस्त, का नाम 2. एक राजा का नाम (पृथु अंग के पुत्र विस्तृत--श्रोणिषु प्रियकरः पृथुलासु स्पर्शमाप सकलेन वेन का बेटा था। वही पहला राजा कहलाता है तलेन--शि० 1065 / जिससे कि इस भूमि का नाम पृथ्वी पड़ा। विष्णु पृथ्वी [पृथु+डीष] 1. पथिवी, धरा 2. पाँच मूल तत्त्वों पुराण में वर्णन मिलता है कि बेन स्वभाव से दुष्ट में से एक, पृथ्वी 3. बड़ी इलायची 4. एक छंद (दे० था, जब उसने यज्ञ व पूजा का निषेध किया तो परिशिष्ट 1) / सम०-ईशः,-पतिः, पालः,पुण्यात्मा ऋषियों ने उसे पीट कर मार डाला, उसके भुज् (पुं०) राजा, प्रभु,-खातम् गुफा,-गर्भः गणेश पश्चात् राजा के न होने पर देश में लूट मार होने का विशेषण,-गृहम् गुफा, कृत्रिम खोह,-जः 1. वृक्ष लगी, अराजकता फैल गई, फलतः मुनियों ने पुत्रोत्पत्ति 2. मंगल ग्रह। की इच्छा से मत राजा की दाई भजा को मसला, | पृथ्वीका [पृथ्वी+कन्+टाप्] 1. बड़ी इलायची 2. छोटी तब उससे अग्नि के समान तेजस्वी पृथु निकला। इलायची। उसे तुरन्त राजा घोषित कर दिया गया। उसको पदाकुः [पर्द+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः] 1. बिच्छू प्रजा दुर्भिक्षग्रस्त थी-अतः उसने राजा से भोज्य | 2. व्याघ्र 3. सांप, छोटा विषैला साप 4. वृक्ष फलों को दिलाने की प्रार्थना की जो कि पृथ्वी ने देना 5. हाथी 6, चीता। बन्द कर दिया था। क्रुद्ध होकर पृथु ने अपना धनुष पश्नि (ष्णि) (स्पृश् +नि नि० पृषो० सलोपः] 1. छोटा, उठाया और पृथ्वी को अपनी प्रजा के लिए आवश्यक छोटे कद का बौना 2. सूकुमार, दुबला-पतला पदार्थ पैदा करने के लिए बाध्य किया। पृथ्वी ने 3. विविध प्रकार का, चित्तीदार,-श्निः 1. प्रकाश गाय का रूप धारण कर लिया और राजा के आगे- की किरण 2. पृथ्वी 3. तारा समूह से युक्त आकाश आगे भागने लगी-राजा भी उसका पीछा करता 4. कृष्ण की माता देवकी। सम-गर्भः-घरःरहा। अन्त में पृथ्वी ने आत्मसमर्पण कर दिया भद्रः कृष्ण के विशेषण,--श्रृंगः 1. कृष्ण का विशेषण और राजा से अपने प्राण बचाने की प्रार्थना की, साथ 2. गणेश का विशेषण / ही यह प्रतिज्ञा की कि आवश्यक फल शाकादिक पश्नि (ष्णि) का, पश्नी (ष्णी) [पश्नी जले कायतिप्रजा को मिल सकेंगे यदि उसे एक बछड़ा दे दिया __ शोभते-पृश्नि+के+क+टाप, पृश्नि-+ ङीष् ] जल जाय जिसके द्वारा वह दूध देने के योग्य हो सके। ___ में पैदा होने वाला एक पौधा, जलकुंभी। तब पृथु ने स्वायंभुव मनु को बछड़ा बनाया, पृथ्वी पृषत् (नपुं०) [पृष्-अति] 1. जल या किसी और को दुहा और दूध अपने हाथों में लिया जहाँ से सब तरल पदार्थ की बूंद (कुछ लोगों के मतानुसार केवल प्रकार के अन्न, शाकभाजियाँ और फलफल प्रजा के ब०व० में प्रयुक्त)। सम० अंशः, अश्वः 1. वायु, पालन-पोषण के लिए उत्पन्न हुए। इसके पश्चात् हवा 2. शिव का विशेषण,--आज्यम दही में मिला पृथु के उदाहरण का बाद में नाना प्रकार से अनुकरण हुआ घी,-पतिः ( पृषतां पतिः ) वायु--बलः वायु किया गया। देव, मनुष्य, ऋषि, पहाड, नाग और का घोड़ा। असुर आदि ने अपने में से ही उपयुक्त दोग्धा तथा पृषतः [पृष्- अतच्] 1. चित्तीदार हरिण 2. पानी की बछड़े को ढूंढा और इस पृथ्वी का अपनी इच्छानुसार बूंद-पृषतैरपां शमयतां च रजः-कि० 6 / 27, रघु० दोहन किया ..तु० कु. २२.),-थुः (स्त्री०) अफीम / 33, 427, 651 3. धब्बा, निशान- सम०-अश्वः सम०--उदर (वि.) मोटे पेंट वाला, हृष्ट-पुष्ट हवा, वायु / (र.) मेंढा,--जघन,—नितंब (वि०) नोटे और पुषत्कः [पृषत् +कन बाण-तदुपोश्च नभश्चरैः पृषत्क:विस्तार युक्त कूल्हों से युक्त--- पृथुनितंब नितंबवती कि० 13 / 23, शि० २०१८,---उद्भट 11, धनुर्भृतां तव-विक्रम० ४।२६,----पत्रः,-त्रम् लाल लहसुन | हस्तवतां पृषत्का--रघु० 7 / 45 / -प्रथ,-यशस् (वि०) दूर-दूर तक प्रसिद्ध, व्यापक | पृषंतिः [ पृष्+झिच् ] पानी की बूंद-पयः पृषंतिभिः 80 For Private and Personal Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ____ स्पष्टा वांति वाताः शनैः शनै:--अमरकोश पर / __ ओर---गच्छ पृष्ठत: 3. पीठ पर 4. पीठ पीछ चुपभरत। चाप, प्रच्छन्न रूप से (पृष्ठतःकृ) 1. पीठ पर रखना, पुषभाषा=पूषभासा। पीछे छोड़ना 2. उपेक्षा करना, तिलांजलि देना, पुषाकरा पष्+क्विप, पूर्व सेचनाय आकीर्यते--पष्-+- छोड़ देना 3. विरक्त होना, हाथ खींचना, त्याग देना, आ-+-+अ+टाप्] छोटा पत्थर (जो बाट की तिलांजलि देना, पृष्ठतो गम् -- अनुसरण करना, भांति प्रयुक्त किया जाय)। पृष्ठतो भू-1. पीछे खड़े होना 2. उपेक्षित होना। पृषातकम् [ पृषत्+आ+तक+-अच् ] दही और घी का पृष्ठ्य (वि.) [पृष्ठ-+-यत् ] पीठ से संबंध रखने वाला, संमिश्रण। - ष्ठयः लटू घोड़ा। पृषोदरः [पृषत् उदरं यस्य, पृषो० तलोपः] (यह शब्द पृष्णिः (स्त्री०) [ -पृश्नि पृषो०] एडी।। पृषत् और उदर से मिल कर बना है, पृषत् के त् का / प (जुहो०, ऋया०-पर० पिपति, पणाति, पूर्ण .. कर्म० अनियमित कारक के रूप में लोप हो गया। इस - पूर्यते, प्रेर० पूरयति--ते, इच्छा० पिपरि (री) पति, प्रकार यह शब्द अनियमित समासों की एक परी श्रेणी पुपूर्षति) 1. भरना, भर देना, पूरा करना 2. पूरा है-पृषोदरादित्वात् साधुः, दे० 'गण' पा० 4 / 3 / 109 / करना, (आशा आदि) पूरी करना, तृप्त करना पृष्ट (भू०००) [प्रच्छ्+क्त ! 1. पूछा हुआ, पता 3. हवा भरना, (शंख, बंसरी आदि) बजाना लगाया हुआ, प्रश्न किया हुआ, सवाल किया हुआ, 4. संतुष्ट करना, थकावट दूर करना, प्रसन्न करना 2. छिड़का हुआ। सम-आयनः 1. धान्य विशेष, -पितनपारीत्-- भट्टि. 12 5. पालना, परवरिश अनाज 2. हाथी। करना, पुष्ट करना, पालनपोषण करना, पालन करना। पृष्टिः (स्त्री०) प्रच्छ -क्तिन् पूछ-ताछ, प्रश्न वाचकता। पेचकः [पच्+वुन, इत्वम् ] 1. उल्ल 2. हाथी की पूंछ पृष्ठम् [पृष् स्पृश् वा थक्, नि० साधुः ] 1. पीठ, पिछला की जड़ 3. पलंग, शय्या 4. बादल 5. जें। हिस्सा, पिछाड़ी 2. जानवर की पीठ - अश्वपृष्ठमा- | पेत्रकिन् (पुं०) पेचिल: [पेचक+इनि, पच्-|- इलच्, रूढः-आदि 3. सतह या ऊपर का पार्श्व --रघु० इत्वम् ] हाथी। 4 / 31,12 / 67, कु. 7.51, इसी प्रकार अवनिपृष्ठ- | जूषः (पुं०) कान का मैल, घ, दे० पिंजूष / चारिणीम् ---उत्तर० 3 4. (किसी पत्र या दस्तावेज़ | पेटः, टम् [ पिट्+अच् ] 1. थैला, टोकरी 2. पेटी, संदूक, की) पीठ या दूसरी तरफ़ याज्ञ० 2193 5. घर --ट: खुला हाथ जिसकी अंगुलियाँ फैलाई हुई हों। की चपटी छत 6. पुस्तक का पृष्ठ। सम० --अस्थि | पेटकः,-कम् [ पेट+कन् ] 1. टोकरी, संदूक, थैला 2. समु(नपुं०) रीढ़ की हड्डी, --गोपः,-रक्षः जो किसी / च्चय, गठरी। लड़ते हुए योद्धा की पीठ को रक्षा करे,—ग्रंथि (वि.) | पेटाकः [ ==पेटक, पृषों०] थैला, टोकरी, संदूक / ककुमान, कबड़ युक्त,-चक्षुस् (पं०) केकड़ा,-तल्पनम् ऐरिकाीापिटबल-टा पेटिका, पेटी [पिट +ण्वुल---टाप, इत्वम्, पेट+डी ] हाथी को पीठ की बाहरी मांसपेशियाँ, - दृष्टि: छोटा थैला, टोकरी। 1. केकड़ा 2. रीक्ष, -फलम् किसी आकृति का फाल्तू पेडा -पेट, पूषो०] बड़ा थला।। भाग,-.-भागः पीठ, मांसम 1. पीठ का मांस 2. पीठ पेय (वि.) [पा+ण्यत् ] 1. पीने के योग्य, चढ़ा जाने पर की गूमड़ी °अद अदन (वि०) चुगलखोर, __ के लायक 2. स्वादिष्ट,- यम पानीय, मद्य या शर्बत बदनाम करने वाला, कलंकित करने वाला (----दम, आदि,-या भात का मांड, चावलों की लपसी। ---दनम् ) चुगली, पृष्ठमांसादनं तद्यत् परोक्षे दोष पेयुः (पुं०) 1. समुद्र 2. अग्नि 3. सूर्य। कीर्तनम् -हेमचन्द्र .. तु० प्राक्पादयोः पतति खादति पेयूषः, पम् [पीय+ऊपन्, बा० गुणः ] 1. अमत 2. उस पृष्ठमांसम् -हि. 181, -यानम् सवारी,-वंशः "गाय का दूध जिसे ब्याये अभी एक सप्ताह से अधिक रीढ की हड्डी ---वास्तु (नपुं०) मकान की ऊपर की नहीं हुआ ---सप्तरात्रप्रसूतायाः क्षीरं पेयूषमुच्यतेमंज़िल, -वाह, (पुं०), वाह्यः लद् बैल, -- शय हारावली, मनु० 516 3. ताज़ा घी। (वि०) पीठके बल सोने वाला, - शृंगः जंगली बकरी, | पेरा (स्त्री०) एक प्रकार का बाद्ययंत्र--भट्रि० 1717 / शृंगिन् (पुं०) 1. मेंढा 2. भैसा 3. हिजड़ा | पेल (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० --पेलति, पेलयति-ते) 4. भीम का विशेषण / 1. जाना, चलना-फिरना 2. हिलना, काँपना। पृष्ठकम् [ पृष्ठ-+कन् ] पीठ / पेलम्, पेलक: ] पेल+अच, पेल+कन् ] अण्डकोष / पृष्ठतस् (अव्य०) [पृष्ठ -|-तसिल ] 1. पीछे, पीठ पीछे, ! पेलव (वि.) [पेल+वा+क] 1. सुकुमार, सुकोमल, पीछे से---गच्छतः पृष्ठतोऽन्वियात् - मनु० 4 / 154, मृदु, मुलायम, धनुपः पेलवपुष्प पत्रिणः कु० 4 / 29, 8 / 300, भग० 1240 2. पीठ की ओर, पीछे की / 5 / 4,7565 2. दुर्बल, पतला, क्षीण-श० 3 / 22 / _ _ For Private and Personal Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 635 ) पेलिः, पेलिन् (पुं०) [ पेल् + इन्, पेल+इनि ] घोड़ा। के लिए पुनीत,-कम् मृत पुरखाओं या पितरों के पेश (ष, स) ल (वि.) [पिश् (ष्, स्)+अलच् ] . सम्मान में अनुष्ठित श्राद्ध / 1. मृदु, मुलायम, सुकुमार-रघु० 9 / 40,11 / 45, पतमत्यः [ पितृमती+ण्य ] 1. अविवाहिता स्त्री का पुत्र मेघ० 93 2. दुबला-पतला, क्षीण (कमर आदि) 2. किसी प्रसिद्ध पुरुष का पुत्र (पितृमतः पुत्रः) / ----रघु० 13334 3. मनोहर, सुन्दर, लावण्ययुक्त / पैतृष्वसेयः, पैतृत्वधीयः [ पितृष्वस+ढक, छण् वा ] फूफी अच्छा-भामि० 22 4. विशेषज्ञ, चतुर, कुशल या बुवा का बेटा। -भर्त० 3156 5. चालाक, छली। पत्त (वि०) (स्त्री०-ती), पंत्तिक (वि.) (स्त्री०-की) पेशिः,-शी पिश+इन, पेशि+ङीष ] 1. मांस का पिंड पित्त+अण, ठा वा] पित्तीय, पित्तसंबंधी। ' 2. मांस राशि 3. अंडा 4. पुट्ठा-याज्ञ० 3 / 100 | पत्र (वि.) (स्त्री०-श्री) [पित+अण् ] 1. पिता या 5. गर्भाधान के पश्चात् शीघ्र बाद का कच्चा गर्भ- पुरखाओं से संबन्ध रखने वाला, पैतृक, पुश्तैनी पिण्ड 6. खिलने के लिए तैयार कली 7. इन्द्र का 2. पितरों के लिए पुनीत,-त्रम तर्जनी और अंगूठे वज्र (पुल्लिग भी) 8. एक प्रकार का वाद्ययंत्र / / का मध्यवर्ती हाथ का भाग (इस अर्थ में 'पत्र्यम्' भी)। सम०-कोशः (षः) पक्षी का अंडा / | पलव (वि.) (स्त्री०-वी) [ पीलु+अण् ] पीलु वृक्ष पेषः [पिष्+घन ] पीसना, चूरा करना, कुचलना---शि० . की लकड़ी से बना हुआ~मनु० 2 / 45 / / 11145 / पेशल्यम् [पेशल+ष्या मदुता, सुशीलता, सुकुमारता। पेषणम् [ पिष+ल्यूट ] 1. चूर्ण बनाना, पीसना 2. खलि- पैशाच (वि०) (स्त्री०-ची) [पिशाच-+अण् ] राक्षसी, हान का वह स्थान जहाँ अनाज की बालों पर दायें नारकीय,...चः हिन्दु-धर्मशास्त्र में वर्णित आठ प्रकार चलाई जाती है 3. सिल और लोढी, पीसने का कोई के बिवाहों में से आठवाँ या निम्नतम श्रेणी का विवाह भी उपकरण। (इसमें किसी सोई हुई प्रमत्त या पागल कन्या का, पेषणिः ( स्त्री० ) पेषणी, पेषाकः [ पिष्+अनि, उसकी स्वीकृति के बिना उसका कौमारहरण किया पेषणि +ङीष्, यिष्+आ–कन् ] चक्की, सिल, जाता है.--सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति खरल। स पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमोऽधमः-मनु० पेस्वर (वि०) [ पेस्+वरच ] 1. जाने वाला, घूमने 3 / 34, याज्ञ. 1161 2. एक प्रकार का राक्षस या वाला 2. नाशकारी। पिशाच,-ची किसी धार्मिक संस्कार के अवसर पर 4 (म्वा० पर० पायति) सूखना, मुरझाना। तैयार किया गया नैवेद्य 2. रात 3. एक प्रकार की पेंगिः [ पिंग+ इश् ] यास्क का पैतृकनाम / अंडबंड भाषा जो रंगमंच पर पिशाचों द्वारा बोली पैंजूषः [ पिंजूष+अण् ] कान / जाय, प्राकृत भाषा का एक निम्नतम रूप। पैठर (वि.) (स्त्री०-री) [ पिठर+अण् ] किसी पात्र | पैशाचिक (वि०) (स्त्री०-की) [ पिशाच+ठक् ] नार___ में उबाला हुआ। कीय, राक्षसी। पैठीनसिः (पुं०) एक प्राचीन ऋषि जो एक धर्मशास्त्र | पैशुनम्, न्यम् [ पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन--प्यन का प्रणेता है। वा ] 1. चुगली, बदनामी, इधर की उधर लगाना, पेंडिक्यम, पंडिन्यम् [पिंड-- ठन्+ष्यञ, पिण्ड+इन् कलंक--मनु०७।४८, 1155, भग० 1602 2. बद +व्या ] भिक्षा पर जीवन निर्वाह करना, भिक्षा- माशी, ठग्गी 3. दुष्टता, दुर्भावना / वृत्ति / पेष्ट (वि.) (स्त्री०-ष्टी) [ पिष्ट-+अण् ] आटे का पतामह (वि.) (स्त्री०-ही) [ पितामह+अण् ] 1. दादा या पीठी का बना हुआ। या पितामह से संबंध रखने वाला 2. उत्तराधिकार पैष्टिक (वि.) (स्त्री०-की) [पिष्ट+ठन ] आटे या में पितामह से प्राप्त 3. ब्रह्मा से गृहीत, ब्रह्मा से अधि- पीठी का बना हुआ-कम् 1. कचौड़ियों का ढेर ष्ठित, या ब्रह्मा से सम्बन्ध रखने वाला - रघु० 15 / / 2. अनाज से खींची हुई मदिरा। 60, हाः (ब०व०) पूर्वपुरखा, बाप दादा। पैष्टी [ पैष्ट-डीष् ] अनाज को सड़ाकर उससे तैयार पंतामहिक (वि०) (स्त्री०-की) [ पितामह+ठक ] की हुई मदिरा-तु० गौडी। पितामह से संबन्ध रखने वाला। | पोगंड (वि.) [ पौः शुद्धो गंड एकदेशो यस्य-तारा०] पैतृक (वि.) (स्त्री०-की) [पित+ठन ] 1. पिता से 1. बच्चा, अवयस्क, अपूर्ण विकसित 2. कम या विकृत सम्बन्ध रखने वाला 2. पिता से प्राप्त या आगत, अंग वाला 3. विकृत, विरूप,-डः बालक जिसकी परखाओं से संबध, पिता की परंपरा से प्राप्त-रघु० आयु 5 से सोलह वर्ष के भीतर की हो, तु० 8 / 6,18 / 40, मनु०९।१०४, याज्ञ०२।४७ 3.पितरों 'अपोगंड। For Private and Personal Use Only Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , हुआ पुत्र, वर्ग के योग्य हो / पोटः [ पुट+घञ घर की नींव / सम०-दलः 1. एक | पोषिन्, पोष्ट (वि०) [ पुष+णिनि, तृच् च ] दूध प्रकार का नरकुल 2. कास 3. एक प्रकार की मछली। पिलाने वाला, पालन-पोषण करने वाला--(पुं०) पोटक [ पुटु वुल ] नौकर। पालक, पोषक, रक्षक। पोटा [ पुट् + अच्+-टाप् ] 1. मरदानी स्त्री, पुरुषों की | पोष्य (वि०) [ पुष् + ण्यत् ] 1. खिलाये जाने के योग्य, भाँति दाढ़ी वाली स्त्री 2. हिजड़ा, उभयलिंगी पालन-पोषण किये जाने योग्य, संपालनीय 2. सुपालित, 3. नौकरानी / फलता-फूलता, समृद्ध / सम०-पुत्रः, सुतः गोद लिया पोटो [ पोट+ङीष् ] स्थूलकाय मगरमच्छ / हुआ पुत्र, -वर्गः ऐसे संबंधियों का समूह जो पालन पोलिका, पोट्टली [ पोट्टली--कन्+टाप, ह्रस्व, पोट + ! पौश्चलीय (यि०) (स्त्री०- यी) [पुंश्चली+छण् ] पोतः[ पू+सन् ] 1. किसी भी जानवर का बच्चा, पश- वेश्याओं से संबंध रखने वाला। शावक, बछेड़ा, अश्वशावक आदि--पिब स्तन्यं पोत | पॉश्चल्यम् [पुंश्चली+ष्यन ] वेश्यापन, कुलटापन -भामि० 160, मगपोतः, करिपोत: आदि, वीरपोतः | -मनु० 9 / 15 / नया योद्धा- - उत्तर० 5 / 3 2. दस बरस का हाथी 3. पौंसवनम् [ पुंसवन+अण् ] दे० 'पुंसवन' / जहाज, बेड़ा, किश्ती पोतो दुस्तरवारिराशितरणे | पाँस्न (वि.) (स्त्री०-स्नी) [ स-स्ना) 1. पुरु--हि० 2 / 165, मनु० 732 4. वस्त्र, कपड़ा 5. | षोचित---भट्रि० 5 / 91 2. मर्दाना, पौरुषेय,-स्नम पौधे का अंकुर 6. घर बनाने की जगह / सम० ___मर्दानगी, पौरुष। -- आच्छादनम् तंबू,- आधानम् छोटी-छोटी मछलियों | पौगंड (वि.) (स्त्री....डी [ पोडंग--अण ] बालोचित, का झुण्ड,-- धारिन् (पुं०) जहाज का स्वामी, --भंगः -डम् बचपन, बाल्यावस्था (5 से 16 वर्ष तक की जहाज का टूट जाना,-रक्षः किश्ती या नाव का चप्पू __ आयु)। या डांड --वणिज् (0) व्यापारी जो समुद्र से आ जो समुद्र से आ | पौडः [ पुंड+अण् ] 1. एक देश का नाम 2. उस देश का जाकर व्यापार करे, --वाहः ---खिवैया, नाविक / राजा, या निवासी 3. एक प्रकार का गन्ना 4. संप्रपोतकः [ पोत-कन् ] 1. पशुशावक 2. छोटा पौधा 3. घर | दायबोधक तिलक 5. भीम के शंख का नाम-पौंड बनाने के निमित्त भूखण्ड / दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदरः-भग० 1115 / पोतासः [पोत नअस्+अच् ] एक प्रकार का कपूर। डकः [पुंड+कन् ] 1. गन्ने (ईख) का एक भेद 2. पोतु (पुं०) [पू+तन् ] यज्ञ में कार्य कराने वाले सोलह J (रस पका कर गुड़ बनाने वालों की) वर्णसंकर जाति ऋत्विजों में से एक (ब्रह्मा नामक ऋत्विज का | __ --तु० मनु० 10144 / सहायक)। पौंडिकः [ पुंड+ठक ] एक प्रकार का गन्ना (ईख) पौंडा / पोत्या [ पोत---य-टाप् ] नौकाओं का बेड़ा / पौंतवम् [=यौतव पृषो०] एक तोल / पोत्रम् [ पू+ष्ट्रन् ] 1. सूअर की थूथन 2. नौका, जहाज | पौत्तिकम [ प्रतिक अण] (पीले रंग का) एक प्रकार का 3. हल का फलका 4. बज्र 5. वस्त्र 6. पोतु का पद / शहद / सम० -आयुधः सूअर, वराह / पौत्र (वि०) (स्त्री० त्री) [ पुत्रस्यापत्यम् - अण् ] पुत्र से पोत्रिन् (पुं०) [ पोत्र---इनि ] सूअर, वराह / प्राप्त या संबद्ध,---त्रः पोता, पुत्र का बेटा,-श्री पोती, पोलः [ पुलण] 1. ढेर 2. राशि, विस्तार / पुत्र की बेटी। पोलिका, पोली [पोली- कन्+टाप, ह्रस्वः, पोल+ | पौत्रियः [ पत्रिका-ठक ] लड़की का पुत्र जो अपने डीप् ] एक प्रकार की पूरी (गेहूँ की बनी हुई)। नाना का वंश चलाये। पोलिंदः [पोतस्य अलिन्द इव --पृषो०] जहाज का पौनः पुनिक (वि०) (स्त्री०-की) [ पुनः पुनः+ठा, मस्तूल। | टिलोपः ] बार 2 दोहराया गया, बार 2 होने वाला। पोषः [पुष्-घन 1. पोषण, संपालन, संधारण 2. पुष्टि, पौनः पुन्यम् [पुनः पुनः+ष्यञ ] बार बार आवृत्ति, वृद्धि, संवर्धन, प्रगति 3. समृद्धि, प्राचुर्य, बाहुल्य / / लगातार दोहराया जाना। पोषणम् [ पुष् +-णिच् + ल्युट् ] पोसना, (छाती का) दूध पौनरुक्तम्, पौनरुक्त्यम् [पुनरुक्त+अण्, प्या, च] पिलाना, पालना, संधारण करना / -आवृत्ति, अतिप्रियोऽसीति पौनरुक्त्यम् ---का. पोषयित्नुः [ पुष् + णिच् + इत्युच् ] कोयल। 217, रघु० 1140 2. आधिक्य, अनावश्यकता, पोषित (वि०) [ पुष्+णिच्+तृच ] दूध पिला कर निरर्थकता-अभिव्यक्तायां चंद्रिकायां कि दीपिका पालने वाला, पालन-पोषण करने वाला-(पुं०) / पौनरुक्तयेन-विक्रम०३। परवरिश करने वाला, दूध पिलाने वाला। पौनर्भव (वि.) [पुनर्भ-अश] 1. जिसने दूसरे पति For Private and Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 637 ) से विवाह कर लिया है ऐसी विधवा से संबंध रखने / 8128 3. पुरुषत्व-भग० 78 4. वीर्य, शुक्र वाला 2. दोहराया हआ, --वः 1. पुनविवाहिता विधवा 5. पुरुप की जननेन्द्रिय, लिंग 6. मनुष्य की पूरी का पुत्र, प्राचीन हिन्दु-धर्मशास्त्र में स्वीकृत वारह पुत्रों | ऊँचाई, खुली हुई अंगुलियों समेत अपने दोनों हाथ में से एक-याज्ञ० 2 / 130, मनु० 3 / 155 2. स्त्री | ऊपर उठाकर जितनी ऊँचाई तक मनुष्य पहुँचे का दूसरा पति मनु० 9 / 176 / / 7. धूपधड़ी। पौर (वि०) (स्त्री०-री) [पूर --अण | किसी नगर | पौरुषेय (वि०) (स्त्री०-यी) पुरुप - ढन] 1. मनुष्य से या शहर से संबंध रखने वाला-रः शहरी, नागरिक प्राप्त, मनुष्य कृत, मनुष्य द्वारा स्थापित या प्रवर्तित (विप० जानपद) कु० 6 / 41 मेघ० 27, रघु० यथा -अपौरुषेया वै बेदाः 2. मर्दाना, पुरुषोचित 2 / 10,74, 1213, 16 / 9 / मम० अंगना योषित 3. आध्यात्मिक, यः 1. मनष्पवध 2. मनष्यों की (स्त्री०), स्त्री नगर में रहने वाली स्त्री,- - जानपद भीड़ 3. रोजनदारी पर काम करने वाला श्रमिक, (वि०) शहर या नगर से संबंध रखने वाला (व. व. __ कमेरा 4. मानवी काम, मनुष्य का कार्य / / --- दाः) नागरिक और ग्रामीण, शहरी और देहाती पौरुष्यम् [ पुरुष-|-प्पा / मर्दानगी, साहस, शौर्य / ---कथं दुर्जनाः पौर जानपदाः---उत्तर० १,-पद्धः | पौरोगवः [पुरोऽग्रेगौः नेत्रं यस्य पुरोगु-- अण् ] राज भवन प्रमुख नागरिक, उपनगरपाल / का अधीक्षक, विशेषतः राजा की रसोई का। पौरकम [ पौर+कैक ] 1. घर के निकट बगोचा | पौरोभाग्यम् पुरोभागिन्--- प्या, अन्य लोपः, वृद्धिः ] 1. 2. नगर के निकट उद्यान / छिद्रान्वेषण, दोषदर्शन--प्रियोपभोग चिह्न पीरोपौरंदर (वि०) (स्त्री०-री) | पुरंदर+अण् ] इन्द्र से भाग्यमिवाचरन्रघु०१२।२२ 2. दुर्भावना, ईर्ष्या, प्राप्त, इन्द्र संबंधी, इन्द्र के लिए पुनीत, रम् ज्येष्ठा डाह / नक्षत्र। | पौरोहित्यम् [ पुरोहित-ध्या ] कुलपुरोहित का पद, पौरव (बि०) (स्त्री०-वो) | पुरु | अण् | पुरु के वंश में | पुरोहिताई। उत्पन्न,-वः पुरु की सन्तान, पुरुवंशी-श० 5, पौर्णमास (वि.) (स्त्री०-सी) [पूर्णमासी--अण् ] पूर्णिमा 2. भारत के उत्तर में स्थित एक देश तथा उसके से संबंध रखने वाला,--सः अग्निहोत्री द्वारा पूर्णिमा के नागरिक 3. उस प्रदेश का निवासी या राजा। दिन अनुष्ठित संस्कार। पौरवीय (वि.) (स्त्री०-यी) [पौरव-- छ ] पौरवों का | पौर्णमासी, पौर्णमी [ पौर्णमास---डी, पूर्ण+मा+क भक्त / | -अण + डीप ] पूर्णिमा, पूर्णमासो।। पौरस्त्य (वि०) [पुरस्+त्यक् ] 1. पूर्वी-पौरस्त्यो / पौर्णमास्यम् / पौर्णमासी+यत् बा] पूर्णिमा के दिन वा सुखयति मरुत् साधुसंवाहनाभिः–मा० 9 / 25, | किया जाने वाला यज्ञ / पौरस्त्यझंझामरुत 9 / 17, रघु० 4 / 34 2. प्रमुख / पौणिमा पुर्णिमा+अण् / टाप पूर्णमासी का दिन / 2. पहला, प्रथम, पूर्ववर्ती। पौतिक (वि०) (स्त्री०--की) [पूर्त+ठक] पुण्यप्रद धर्मार्थपौराण (वि.) (स्त्री०-णी) [ पुराण | अण ] 1. भूत कार्यों से संबंध रखने वाला--मनु०३।१७८, 4 / 227 काल का, प्राचीन, अतीत काल का 2. प्राक्कालोन | पौर्व (वि०) (स्त्री०-बी ) [ पूर्व / अण् ] 1. भूतकाल 3. पुराणों से संबंध रखने वाला या उनसे प्राप्त / संबंधी 2. पूर्व दिशा से संबंध रखने वाला, पूर्वी। पौराणिक (वि.) (स्त्री०-की) [ पुराण+ठक ] 1. भूत / पौर्वदे (दै) हिक (वि०) (स्त्री०-को) पूर्वदेह--ठक काल का, प्राचीन 2. पुराणों से संबद्ध या उनसे प्राप्त पूर्वजन्म संबंधी, पहले जन्म में किया हुआ, पूर्वजन्म3. अतीत काल के उपाख्यानों का ज्ञाता,-क: पुराणों कृत--भग०६६४३, याज्ञ० 11348 / का सुविज्ञ ब्राह्मण, पुराणों का पाठक (जनसाधारण पौर्वपदिक (वि.) (स्त्री०-की) पूर्वपद--ठा समास में बैठ कर) 2. पुराणविद्, पौराणिक कथा जानने | के प्रथम पद से संबंध रखने वाला / वाला व्यक्ति। पौर्वापर्यम् [पूर्वापर+व्या] 1. पहले का और बाद का पौष (वि.) (स्त्री-वी) [ पुरुष---अण] / पुरुष संबंधी, संबंध, पूर्ववर्ती और पश्चवर्ती का संबंध 2. उचित मानवी 2. मर्दाना, पुरुषोचित,—षः एक मनुष्य के क्रम, अनुक्रम, सातत्य / द्वारा ढोये जाने योग्य बोझा, --षी स्त्री पम् 1. | पौर्वाह्लिक (वि०) (स्त्री०-की) [पूर्वाल-ठञ | दोपहर मानवी कृत्य, मनुष्य का काम, चेष्टा, प्रयत्न के पूर्व काल से संबंध रखने वाला, मध्याह्न पूर्व संबंधी। --घिग्घिम्वृथा पौरुषम् भर्त० 288, देवं निहत्य कुरु पौविक (वि०) (स्त्री०-की) पूर्व+ठन] 1. पहला, पौरुषमात्मशक्तया-पंच० 1 2. शौर्य, विक्रम, . पूर्वकालीन, पहले का 2. पैतृक 3. पुराना, प्राचीन / वीरता, मर्दानगी, साहस-पौरुषभूषण:--रघु० 15 / 28, पौलस्त्यः [पुलस्तेः अपत्यम्--पुलस्ति यत्र] रावण का | क्रम For Private and Personal Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 638 ) विशेषण-पौलस्त्यः कथमन्यदारहरणे दोषं न विज्ञात- 15 (अव्य०) [प्रथ+ड] 1. धातुओं के पूर्व उपसर्ग के रूप वान-पंच० 214, रघु० 4180, 105, 12172 में लग कर इसका अर्थ है----'आगे' 'आगे का' 'सामने' 2. कुबेर का विशेषण 3. विभीषण का विशेषण 'आगे की ओर' 'पहले' 'दूर' यथा प्रगम्, प्रस्था, 4. चन्द्रमा। प्रचुर, प्रया आदि 2. विशेषणों के पूर्व लग कर इसका पौलिः (पुं०, स्त्री०) पौली (स्त्री०) [पुल--ण, पोलेन अर्थ है-'बहुत' 'बहुत अधिक' 'अत्यंत' आदि-- निवृत्त:-पोल+इन, पौलि+डीप] एक प्रकार प्रकृष्ट, प्रमत्त आदि, दे० आगे 3. संज्ञाओं (चाहे की पूरी। धातुओं से बने हो) के पूर्व लग कर गण के अनुसार पौलोमी [ पुलोमन् + अण, अनो लोपः, पौलोम+ङीप् ] इसके निम्नांकित अर्थ होते हैं-(क) आरंभ, उपक्रम शची, पुलोमा की पुत्री, इन्द्र की पत्नी--आशीरन्या यथा प्रयाणम, प्रस्थानम् प्राह (ख) लम्बाई यथा न ते युक्ता पौलोम्या सदशी भव-श०७।२८।। प्रवालमूषिक (ग) शक्ति यथा प्रभु (घ) तीव्रता, सम--संभव: जयन्त का विशेषण / आधिक्य यथा प्रवाद, प्रकर्ष, प्रच्छाय, प्रगुण (ङ) स्रोत पौषः [पौषी- अण्] एक चांद्रमास का नाम जिसनें चन्द्रमा या मूल यथा प्रभव, प्रपौत्र (च) पूर्ति, पूर्णता, तृप्ति पुष्य नक्षत्र में रहता है (दिसम्बरःजनवरी में आने यथा प्रभुक्तमन्नम् (छ) अभाव, वियोग, अनस्तित्व वाला मास),-षी पौष मास में आने वाली पूर्णिमा, यथा प्रोषिता, प्रपर्ण वृक्षः (ज) अतिरिक्त यथा प्रज्ञ रघु० 18035 / (झ) श्रेष्ठता यथा प्राचार्य: (ञ) पवित्रता यथा पौष्कर,-रक, (स्त्री०-री,-की) पुष्कर+अण, पौष्कर प्रसन्नं जलम् (ट)अभिलाषा यथा प्रार्थना (ठ)विराम +कन्] नील कमल से संबंध रखने वाला। यथा प्रशम (ड) सम्मान आदर यथा प्रांजलि: (जो पौष्करिणी [ पुष्कराणां समूहः-पौष्कर+इनि---डी ] सादर हाथ जोड़ता है) (ढ) प्रमुखता यथा प्रणस, ____कमलो से भरा हुआ सरोवर, सरोवर / प्रवाल। पौष्कलः [पुष्कल+अण्] अनाज का एक भेद / प्रकट (वि.) [प्र.+कट-+-अच्] 1. स्पष्ट, साफ, जाहिर, पौष्कल्यम् [पुष्कल+ष्यञ] 1. परिपक्वता, पूर्ण विकास, प्रतीयमान, प्रत्यक्ष 2. बेपरदा, खुला हुआ 3. दृश्यमान, पूरी वृद्धि 2. बाहुल्य / ---टम् (अव्य०) साफ तौर से, प्रत्यक्षतः, सार्वजनिक पौष्टिक (वि०) (स्त्री-की) [पुष्टि+ठन] 1. वृद्धि रूप से, स्पष्ट रूप से (प्रकटी क व्यक्त करना, खोलना, करने वाला, कल्याण कारक 2. पोषण करने वाला, प्रदर्शन करना, प्रकटी भू व्यक्त होना, जाहिर होना)। पोषक, पुष्टिकारक, बलवर्धक / सम-प्रीतिवर्षः शिव का विशेषण / पौष्णम् [ पूषादेवता अस्य-पूषन् +अण, उपधालोपः] प्रकटनम् [प्र.+कट् + ल्युट्] व्यक्त होने की क्रिया, रेवती नक्षत्र / खोलना, उघाड़ देना। पौष्प (वि.) (स्त्री०-पी) [पुष्प+अण्] फूल संबंधी प्रकटित (भ० क० कृ०) प्रकट+क्त] 1. व्यक्त, प्रदर्शित, या फलों से प्राप्त, पुष्पमय, पुष्पित,-पी 1. पाटलि- अनावत 2. सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित 3. जाहिर। पूत्र नगर, पटना 2. ( फूलों से तैयार की गई एक | प्रकंपः[प्र+कम्प+घञ] कांपना, हिलना, थरथराना, प्रकार की) शराब। प्रचंड थरथरी या (भूकम्प के) धक्के --बाला चाहं प्याट् (अव्य०) [प्यात् / डाटि (बा.)] हो, अहो आदि मनसिजवशात् प्राप्तगाढप्रकपा--सुभा०, सशिरअव्यय जो बुलाने या पुकारने के लिए व्यवहृत होते प्रकपम्-शि० 13 / 42 / प्रकम्पन (वि.) [प्र.+कम्प+ल्युट्] हिलाने वाला,-मः प्याय् (म्वा०आ०-प्यायते, प्यान या पीन) फूलना, 1. हवा, प्रचंड वाय, आंधी का झोंका-प्रकम्पनेनानुमोटा होना, बढ़ना-दे० नीचे धै। चकम्पिरे सुराः-शि० 1161, 14 / 43 2. नरक का प्यायनम् [प्याय् + ल्युट्] वर्धन, वृद्धि / नाम, नम् अत्यधिक या प्रचंड कंपकंपी, जोरदार प्यायित (वि.) [प्याय+क्त] 1. वर्धित, वृद्धि को प्राप्त थरथरी। 2. जो मोटा हो गया हो 3. विश्रान्त, सशक्त किया प्रकरः [प्र+कृ (क)+अप] ढेर, समुच्चय, मात्रा, संग्रह हुआ। -मुक्ताफलप्रकरभांजि गुहागृहाणि--शि० 5 / 12, प्य (भ्वा० आ०-प्यायते, पीन ) 1. बढ़ना, वृद्धि को बाष्पप्रकर कलुषां दृष्टिम्-श० 6 / 8, रघु० 9 / 56, प्राप्त होना, मोटा होना-भट्टि० 6 / 33 2. पुष्कल कु० 5 / 68 2. गुलदस्ता, पुष्पचय 3. मदद, सहायता, होना, समृद्ध प्रेर० प्याययति-ते 1. बढ़ाना 2. बड़ा मित्रता 4. रिबाज, प्रचलन 5. आदर 6. सतीत्वहरण, करना, मोटा बनाना सुखी करना---मनु० 9 / 314 अपहरण,-रम् अगर की लकड़ी। 2. तृप्त करना, इच्छानुसार संतुष्ट करना। | प्रकरणम् [प्र++ ल्युट] 1. निरूपण करना, व्याख्या For Private and Personal Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 639 ) करना, विचारविमर्श करना 2. विषय, प्रसंग, विभाग, / प्रकांडकः [प्रकाण्ड+कन] दे० 'प्रकाण्ड' / (चित्रण का) विषय —कतमत्प्रकरणमाश्रित्य-श० प्रकांडरः [प्रकाण्ड+रा+क] वृक्ष, पेड़। 1 3. अनुभाग, पाठ, परिच्छेद आदि किसी कृति का प्रकाम (वि.) [प्रा० स०] 1. शृंगारप्रिय 2. अत्यन्त, छोटा प्रभाग 4. मौका, अवसर 5. मामला, बात 6. अति, मनभर कर, सानन्द-प्रकाम विस्तर-रघु० प्रस्तावना, आमुख 7. नाटक का एक भेद जिसकी 2 / 11, प्रकामा लोकनीयताम् कु० २।२४,-मः इच्छा, कथावस्तु कृत्रिम हो जैसा कि मृच्छकटिक, मालती- आनन्द, संतोष--मम् (अव्य०) 1. अत्यधिक, अत्यंत माधव, पुष्पभूषित आदि / सा० द० कार द्वारा दी -जातो ममायं विशदः प्रकामम् (अन्तरात्मा), श० गई परिभाषा--भवेत्प्रकरणे वृत्तं लौकिक कवि- 4 / 21, रघु० 6 / 44, मृच्छ० पा२५ 2. पर्याप्तरूप कल्पितम्, शृंगारोंगी नायकस्तु विप्रोऽमात्योऽथवा से, मन भर कर, इच्छानुकूल 3. स्वेच्छापूर्वक, मन वणिक, सापायधर्मकामार्थ परो धीरप्रशांतकः 511 // से। सम०-भुज् (वि०) अधा कर खाने वाला, प्रकरणिका, प्रकरणी [प्रकरणी+कन्+टाप्, ह्रस्वः, मन भर कर खाने वाला--रघु० 1166 / / प्रकरण+डीप] एक नाटक जो प्रकरण के लक्षणों से प्रकारः [प्र+कृ+घञ] 1. ढंग, रीति, तरीका, शैली ही युक्त हो। सा० द० कार उस परिभाषा इस प्रकार ----कः प्रकारः किमेतत्-मा० 520 2. किस्म, करता है-नाटिकैव प्रकरणिका सार्थवाहा- दिनायिका, जिन्स, भेद, जाति (प्रायः समास में प्रयुक्त) बहुप्रकार समानवंशजा नेतुर्भवेद्यत्र च नायिका 554 / / विविध प्रकार का, त्रिप्रकार, नाना आदि 3. समरूपता प्रकरिका [प्रकरी+क+टाप, ह्रस्वः] एक प्रकार का 4. विशेषता, विशिष्ट गुण / विष्कभ या उपकथा जो नाटक में आगे वाली घटना | प्रकाश (वि.) प्र--काश् +अच] 1. चमकीला, चमकने को बतलाने के लिए सम्मिलित कर दी जाय / वाला, उज्ज्वल-प्रकाशश्चाप्रकाशश्च लोकालोक प्रकरी [प्रकर+डी] एक प्रकार का विष्कंभ या उपकथा इवाचल:- रघु० 1168, 512 2. साफ, स्पष्ट, . जो नाटक में आगे आने वाली घटना को बतलाने प्रत्यक्ष-शि० 1256, भग० 7 / 25 3. विशद, के लिए सम्मिलित कर दी जाय 2. नटों की पोशाक प्रांजल -कि० 1414 4. विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध, 3. रंगस्थली 4. चौराहा 5. एक प्रकार का गीत / / माना हुआ-रघु० 3 / 48 5. खुला, सार्वजनिक प्रकर्षः [प्र+कृष् +घञ] 1. श्रेष्ठता,प्रमुखता, सर्वोपरिता 6. वृक्षादि काट कर साफ किया हुआ स्थान, खुली --वपुः प्रकर्षादजयद्गुरुं रघु:-रघु० 3 / 34, वर्ण जगह-रघु० 4 / 31 7. खिला हुआ, विस्तरित प्रकर्ष सति-कु३२८ 2. तीव्रता, प्रबलता, 8. (समास के अन्त में) (के) समान दिखाई देने आधिक्य-प्रकर्षगतेन शोकसंतानेन-उत्तर० 3 वाला, सदृश, मिलता-जुलता, शः 1. दीप्ति, कान्ति, 3. सामर्थ्य, शक्ति 4. निरपेक्षता 5. लम्बाई, विस्तार आभा, उज्ज्वलता 2. (आलं०) प्रकाशन, स्पष्टीकरण, प्रकर्षेण प्रकर्षात् क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त व्याख्या करना (प्रायः पुस्तकों के नामों के अन्त में) होकर 'अत्यंत' 'अधिकता के साथ' या 'उत्कृष्टता के काव्य प्रकाश, भाव प्रकाश, तर्क प्रकाश आदि 3. धप साथ' अर्थ प्रकट करते हैं)। 4. प्रदर्शन, स्पष्टीकरण शि०९।५ 5. कीर्ति, ख्याति, प्रकर्षणम् [प्र+कृष् + ल्युट] 1. खींचने की क्रिया, आकर्षण प्रसिद्ध, यश 6. विस्तार, प्रसार 7. खुली जगह, खुली 2. हल चलाना 3. अवधि, लंबाई, विस्तार 4. श्रेष्ठता, हवा --प्रकाशं निर्गतोऽवलोकयामि --श० 4 8. सुनहरी सर्वोपरिता 5. ध्यान हटाना। शीशा 9. (पुस्तक का) अध्याय, परिच्छेद या अनुभाग प्रकला [प्रा० स०] अत्यन्त सूक्ष्म अंश / ---शम् (अव्य०) 1. खुले रूप से, सार्वजनिक रूप से प्रकल्पना [प्र+क्लप्+णिच् +-युच+टाप्] स्थिर करना, -प्रतिभूपितो यत्तु प्रकाशं धनिनो धनम्-याज्ञ० निश्चयन, नियत करना-मनु०८।२११ / 2 / 56, मनु० 8 / 193 942282. ऊँचे स्वर से, प्रकट प्रकल्पित (भू० क. कृ०) प्र+क्लप+णिच्+क्त] 1. होकर, (रंगमंच के अनुदेश के रूप में नाटकों में बनाया हुआ, कृत, निर्मित 2. निश्चत किया हआ, प्रयुक्त-विप० आत्मगतम्) / सम०.-आत्मक नियत किया हुआ, ता एक प्रकार की पहेली। (वि.) चमकीला, उजला,-आत्मन् (वि०) उज्ज्वल, प्रकांड:-डम् [प्रकृष्टः कांड:--प्रा० स०] 1. वृक्ष का चमकदार (पुं०) शिव का विशेषण 2. सूर्य-इतर तना जड़ से शाखाओं तक-शि० 9:45 2. शाखा, (वि०) जो दिखाई न दे, अदृश्य,-क्रयः खुल्लमखुल्ला किसलय 3. (समास के अंत में) कोई भी श्रेष्ठ या खरीदना,-नारी वारांगना, रंडी, वेश्या-अलं चतु:प्रमुख प्रकार का पदार्थ ऊरूप्रकांडद्वितयेन तस्याः शाल मिमं प्रवेश्य प्रकाशनारीधृत एष यस्मात्-मच्छ. -07 / 9 3. क्षत्र प्रकांड:-महावी० 4135 . 317 / 5 / 484. भुजा का ऊपरी भाग / | प्रकाशक (वि०) (स्त्री०-शिका) [प्र+काश्+णिच् For Private and Personal Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 640 ) ण्वुल] 1. प्रकट करने वाला, खोजने वाला, उघाड़ने / प्रकृत (भू० क० कृ०) [प्र++क्त ] 1. निष्पन्न, पूरा वाला, सूचित करने वाला, बतलाने वाला, प्रदर्शित किया हुआ 2. आरंभ किया हआ, शुरु किया हुआ करने वाला 2. अभिव्यक्त करने वाला, संकेत करने 3. नियुक्त किया हुआ, जिसे कार्य भार संभाला जा वाला 3. व्याख्या करने वाला 4. उजला, चमकीला, चुका 4. असली, वास्तविक 5. चर्चा का विषय, उज्ज्वल 5. माना हुआ, प्रसिद्ध, विख्यात,---क: 1. सूर्य विचारणीय विषय, प्रस्तुत विषय (अलंकारग्रंथों में 2. खोजी 3. प्रकाशित करने वाला। सम०--ज्ञात 'उपमेय' के लिए बहुधा प्रयुक्त) संभावनमथोत्प्रेक्षा (पुं०) मुर्गा / प्रकृतस्य समेन यत् काव्य० 10 6. महत्त्वपूर्ण, प्रकाशन (वि.) [प्र-+-काश् ।-णिच् + ल्युट्] रोशनी करने मनोरंजक,-तम् मूलविषय, प्रस्तुत विषय, यातु वाला, विख्यात करने वाला,--नम् 1. जतलाना, प्रकट किमनेन प्रकृतमेव अनुसरामः / सम०---अर्थ (वि.) करना, प्रकाश में लाना, उघाड़ना 2. प्रदर्शन, स्पष्टी- मूल अर्थ को रखने वाला (-र्थः) मूल अर्थ / करण 3. रोशनी करना, चमकाना, उजला करना, | प्रकृतिः (स्त्री०) [प्र++क्तिन् ] 1. किसी वस्तु की -नः विष्णु / नैसर्गिक स्थिति, माया, जड़जगत, स्वाभाविक रूप प्रकाशित (भू०क०कु०)[ प्रकाश+णिच्+क्त]1. प्रकट (विप० विकृति जो या तो परिवर्तन है या कार्य) किया गया, स्पष्ट किया गया, प्रदर्शित, प्रकटीकृत प्रकृत्या यद्वक्रम्-श०११९, उष्णत्वमग्न्यातपसंप्रयोगात् 2. छापा गया-प्रणीतो न त् प्रकाशितः-उत्तर०४ शैत्यं हि यत्सा प्रकृतिर्जलस्य-- रघु० 5 / 54, मरण 3. रोशन किया गया, चमकाया गया, ज्योतिर्मान प्रकृतिः शरीरिणां विकृतिर्जीवितमुच्यते बुधः-रघु० किया गया 4. जो दिखलाई दे, दृश्य, स्पष्ट, प्रकट / 8187, अपेहि रे अत्रभवान् प्रकृतिमापन्न:--श० 2, प्रकाशिन् (वि.) [प्रकाश+इनि] साफ, उजला, चमकदार (उन्होंने फिर अपना सामान्य स्वभाव धारण कर आदि। लिया है) प्रकृतिमापद्, प्रकृतिप्रतिपद्, प्रकृतौ स्था प्रकिरणम् [प्र-+-कृ + ल्युट्] इधर उधर बिखेरना, होश में आना, अपना चैतन्य फिर प्राप्त करना छितराना। 2. नैसर्गिक स्वभाव, मिजाज, स्वभाव, आदत, (मानप्रकीर्ण (भू० क० कृ०) [प्र+कृ-|-क्त 1. इधर उधर सिक) रचना, वृत्ति-प्रकृतिकृपण, प्रकृतिसिद्धि-दे० बिखरा हुआ, छितराया हुआ, खिंडाया हआ, तितर नी0 3. बनावट, रूप, आकृति-महानुभावप्रकृतिः बितर किया हुआ--प्रकीर्णः पूष्पाणां हरिचरणयो- -मा० 1 4. वंशानुक्रम, वंशपरंपरा--मृच्छ० 7 रंजलरियम् वेणी० 111 2. फैलाया हुआ, प्रकाशित, 5. मूल, स्रोत, मौलिक या भौतिक कारण, उपादानउद्घोषित 3. लहराया हआ लहराता हुआ- शि. कारण- प्रकृतिश्चोपादानकारणं च ब्रह्माभ्युपगन्तव्यम् 12 / 17 + विपर्यस्त, शिथिल, अस्तव्यस्त 5. अव्य शारी० (ब्रह्म० 114 / 23 पर की गई चर्चा का पूरा वस्थित, असंबद्ध-बह्वपि स्वेच्छया कामं प्रकीर्णमभि विवरण देखिये) यामाहः सर्वभूतप्रकृतिरिति-- श० धीयते-शि० 2 / 63 6. क्षुब्ध, उत्तेजित 7. विविध, 111 6. (सांख्य में) प्रकृति (पुरुष से विभिन्न) मिथित --जैसा कि भट्रिकाव्य का प्रकीर्णकांड,--र्णम - भौतिक सृष्टि का मूलस्रोत जिसमें तीन (सत्त्व, 1. नाना-संग्रह, फुटकर संग्रह 2. फुटकर नियमों के रजस् और तमस् ) प्रधान गुण सन्निविष्ट है 7. (व्या० संग्रह का एक अध्याय / में०) मूलधातु या शब्द (प्रातिपदिक) जिसमें लकार प्रकीर्णक (वि०) [प्रकीर्णकन्] इधर उधर विखरे हए, और कारकों के प्रत्यय लगाए जाते हैं 8. आदर्श, छितरे हुए,... कः,-- कम् चंवर, मोरछल शि० नमूना, मानक (विशेषतः कर्मकाण्ड की पुस्तकों में १२।१७,--कः घोड़ा,-कम् 1. नाना संग्रह, फुटकर 9. स्त्री 10. सृष्टि रचना में परमात्मा की मूर्त इच्छा वस्तुओं का संग्रह 2. विविध विषयों का अध्याय / (इसी को 'माया' या मरीचिका कहते हैं) भग० 9 // प्रकीर्तनम् [प्र.-कृ+ ल्युट] 1. उद्घोषण, घोषणा 2. प्रशंसा 10 11. स्त्री या पुरुष की जननेन्द्रिय, योनि, लिङ्ग करना, स्तुति करना, श्लाघा करना / 12. माता, (ब० व.) 1. राजा के मन्त्री, मन्त्रिपरिप्रकीतिः (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. प्रसिद्धि, प्रशंसा 2. यश, षद्, मन्त्रालय-रघु० 12 / 12, पंच० 048, 301 ख्याति 3. घोषणा। 2. (राजा की) प्रजा--प्रवर्ततां प्रकृतिहिताय पार्थिवः प्रकुंचः [प्र+कुञ्च -+-घा] धारिता का विशेष माप / --श० 7.35, नृपतिः प्रकृतीरवेक्षितुम् .. रघु० 8 / प्रकुपित (भू० क० कृ०) [प्र+कुप्+क्त] 1. अतिक्रुद्ध, 18, 10 3. राज्य के संविधायी सात तत्त्व या अंग कोपाविष्ट, रुष्ट 2. उत्तेजित / अर्थात् 1. राजा 2. मन्त्री 3. मित्रराष्ट्र ४.को प्र प्रकुलम् [प्र+कुल+क] सुन्दर शरीर, सुडौल काया / 5. सेना, 6. प्रदेश 7. गढ़ आदि 8. नगरपालिका या प्रकूष्मांडी [प्रा० ब०-हीष] दुर्गा का विशेषण / निगम (यह भी कभी-कभी उपर्यक्त सातों के साथ For Private and Personal Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोड़ दिया जाता है) स्वाम्यमात्यसूहृत्कोशराष्ट्र- का एक दोष (काव्य०७ में वर्णित 'भग्न-प्रक्रमता' दुर्गबलानि च-अमर 4. अनेक प्रभु जो युद्ध के समय यही है, सममिति या समरूपता का अभाव चाहे वह विचारणीय होते हैं (पूरे विवरण के लिए दे० मनु० अभिव्यक्ति में हो चाहे रचना में नाथे निशायां 7 / 155, और 157 पर कुल्लू.) 5. आठ प्रधान नियतेनियोगादस्तं गते हंत निशापि याता—यह अभितत्त्व जिनसे सांख्यशास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक वस्तु व्यक्ति की समरूपता के अभाव का उदाहरण है, यहां उत्पन्न होती है, दे० सां० का० 3 6. सृष्टि के पांच 'गता निशाऽपि' ने अभिव्यक्ति की अनियमितता को प्रधान तत्त्व, पंच महाभूत अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, शान्त कर दिया है,-विश्रब्धं क्रियतां वराहततिभिवायु और आकाश / सम० -ईशः राजा या दण्डा- मुस्ताक्षतिः पल्वले--रचना की अनियमितता का धिकारी,-कृपण (वि.) स्वभाव से सुस्त, या विवेकहीन उदाहरण है, यहाँ कविता की समरूपता को स्थिर –मेघ० ५,-तरल (वि.) चंचल स्वभाव का, रखने के लिए कर्मवाच्य के बजाय कर्तवाच्य रचना असंगत, बेमेल ----अमरु २७,-पुरुषः मन्त्री, (राज्य का) की आवश्यकता है, इसी पंक्ति को बदलकर 'विश्रब्धा कार्य निर्वाहक-मेघ० 6, --मंडलम् समस्त प्रदेश या रचयंतु शुकरवरा मुस्ताक्षति पल्वले' पढ़ने से दोष का राजधानी-रघु० ९।२,-लयः प्रकृति में समा जाना, परिहार हो जाता है-अधिक विवरण के लिए दे० विश्व का विघटन, सिद्ध (वि०) अन्तर्जात, सहज, काव्य 7 'भग्न प्रक्रमता' के नीचे / / नैसर्गिक--भर्तृ० 2 / 52, सुभग (वि.) स्वभाव से प्रकान्त (भू० क० कृ०) [प्र+क्रम् + क्त ] 1. आरंभ प्रिय, रुचिकर, स्थ (वि.) 1. प्राकृतिक अवस्था किया गया, शुरू किया गया 2. गत, प्रगत 3. प्रस्तुत, में होने वाला, स्वाभाविक, असली 2. अंतहित, सहज, / विवादग्रस्त 4. बहादुर। प्रकृति के अनुरूप --रघु०८।२१ 3. स्वस्थ, तन्दुरुस्त | प्रक्रिया प्रकृ---श+टाप 11. रीति, प्रणाली, पद्धति 4. जिसने आरोग्य प्राप्त कर लिया हो 5. स्वस्थ, 2. कर्मकांड, संस्कार 3. राजचिह्न का धारण करना आत्मलोन 6. विवस्त्र, नंगा। 4. उच्च पद, समुन्नति 5. (किसी पुस्तक का) एक प्रकृष्ट (भू० क० कृ०) [प्र+कष + क्त ] 1. खींचकर अध्याय या अनुभाग-यथा उणादिप्रक्रिया 6. (व्या० निकाला हुआ 2. सुदीर्घ, लंबा, अतिविस्तृत 3. सर्वो- में) व्युत्पत्तिजन्य रूपनिर्माण 7. प्राधिकार / त्तम, पूज्य, श्रेष्ठ प्रमुख, गौरवशाली 4. मुख्य, प्रधान प्रक्रीडः [प्र+-क्रीड्+अच् ] क्रीडा, मनोरंजन, खेल या 5. विक्षिप्त, अशांत / आमोद-प्रमोद / प्रक्लुप्त (भू० क० कृ.) [प्र-क्लप् + क्त ] तैयार किया प्रक्लिन्न (भू० क० कृ०) [प्र+क्लिद्+क्त ] 1. तर, हुआ, सज्जीकृत, व्यवस्थित / __ नमी वाला, गीला 2. तृप्त 3. दया से पसीजा हुआ। प्रकोयः [प्र+कुथ्+घञ ] सड़ांध, बदबू / प्रक्वणः, प्रक्वाणः [प्र+क्वण+-अप, घाच] वीणा प्रकोष्ठः [प्र-कुष् + स्थन् ] 1. कोहनी से नीचे की भुजा, की झनकार / गट्टे से ऊपर का हाथ-वामप्रकोष्ठापितहेमवेत्रः-कु० | प्रक्षयः [ प्रक्षि -+-अप] नाश, बरबादी। 3 / 41, कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ... मेघ० 2, प्रक्षर दे० प्रक्खर / / रघु० 3 / 59 श० 666 2. फाटक के निकट का प्रक्षरणम् [प्र+क्षर् + ल्युट् ] मन्द 2 स्रवित होना, कमरा मुद्रा० 1 3. घर का आँगन, (चारों ओर रिसना। मकानों से घिरा हुआ) चौकोर या वर्गाकार आँगन प्रक्षालनम् [ प्र+क्षल+कि+ल्युट ] 1. धोना, धो -----इमं प्रथम प्रकोष्ठं प्रविशत्वार्य:-आदि--मुच्छ० 4 / डालना--रघु० 6 / 48 2. मांजना, साफ करना, स्वच्छ प्रकोष्ठकः [प्रकोष्ठ+कण् ] फाटक के पास का कमरा करना 5. धोने के लिए पानी। - तस्थुर्विनप्रक्षितिपालसंकुले तदङ्गनद्वारबहिः प्रको प्रक्षालित (भू० क० कृ०) [ प्र+क्षल+णिच्+क्त ] ष्ठके-कु० 15 / 6 / / 1. धोया गया, मांजा गया 2. स्वच्छ किया गया प्रक्वरः [ =प्रखरः पृषो०] 1. हाथी या घोड़े की रक्षा ____ 3. जिसने प्रायश्चित्त कर लिया है। के लिए कवच 2. कुत्ता 3, खच्चर / प्रक्षिप्त (भू० क० कृ०) [प्र+क्षिप्-+क्त ] 1. फेंका प्रकमः [ प्र-क्रम्+घञ्] 1. पग, कदम 2. दूरी मापने गया, ढाला गया, उछाला गया 2. डाला गया—मा० का गज, पग का अन्तर (लगभग 30 इंच 3. आरंभ, 5 / 22 3. निकला हुआ 4. बीच में डाला गया, शुरू 4. प्रगमन, मार्ग----मा० 5 / 24 5. प्रस्तुत बात नकली या खोटा -यथा 'प्रक्षिप्तोऽयं श्लोकः' में। 6. अवकाश, अवसर 7. नियमितता, क्रम, प्रणाली प्रक्षीण (भू० क० कृ०) [प्र+क्षि+क्तं ] 1. मुझया 8. मात्रा, अनुपात, माप / सम-भंगः नियमितता हुआ, दुर्बला होने वाला 2. नष्ट किया हुआ 3. जिसने और सममिति का अभाव, क्रम का टूट जाना, रचना प्रायश्चित्त कर लिया है 4. लुप्त, ओझल / 81 SHARE For Private and Personal Use Only Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रक्षुण्ण (भू० क. कृ.) [प्र+क्षुद्+क्त ] 1. कुचला | 6 / 20 4. हाजिर जवाब, मुस्तैद 5. दृढ़ संकल्पी, हुआ 2. आरपार भेदा हुआ 3. उत्तेजित किया हुआ। ऊर्जस्वी 6. (आयु की दृष्टि से) परिपक्व, कु. 1 // प्रक्षेपः [प्र-+-क्षिपघा 11. आगे फेंकना, उभारना 51 7. परिपक्व, विकसित, पूरा बढ़ा हुआ, बलवान् फेंकना, डालना 3. बखेरना 4. खोट धसाना, बीच प्रगल्भवाक-कु० 5 / 30, (प्रौढवाक्) मा० 9 / 29, में मिलाना 5. गाड़ी का बक्स 6. किसी व्यापारिक उत्तर० 635 8. कुशल- का० 12 1. बेघड़क, संघ के प्रत्येक सदस्य द्वारा जमा की गई धनराशि / उद्धत, घमंडी, उपकारशील 10. निर्लज्ज, ढीठ-रघु० प्रक्षेपणम् [प्र+क्षिप्+णिच् + ल्युट ] फेंकना, डालना, 13 / 9 11. गौरवशाली प्रमुख,-ल्भा 1. साहसी स्त्री उछालना। 2. कर्कशा, झगड़ाल स्त्री 3. उद्धत या प्रौढ़ स्त्री, प्रक्षोभणम् [प्र+क्षुभ् + ल्युट ] उत्तेजना, क्षोभ / काव्यनाटक को नायिकों में से एक' (सब प्रकार के प्रक्वेडनः [प्र+विड्+ल्युट ] लोहे का तीर 2. हल्ला- लाडप्यार व चूमा-चाटी में चतुर, ऊंचे दर्जे के व्यव. गुल्ला, हड़बड़ी। हार से युक्त, शालीनता-सम्पन्न, प्रौढ़ आयु की तथा प्रक्वेडित (वि.) [प्र+विड्+णिच्+क्त ] मुखर, अपने पति पर शासन करने वाली-सा० द०१०१ वीत्कार से पूर्ण, कोलाहलमय / तथा तत्संबंधी उदाहरण)। प्रखर (वि०) [प्रकृष्टः+खर:-प्रा० स०] 1. अत्यन्त | प्रगाढ (भू० क० कृ०) [प्र+गाह+क्त] 1. डुबोया हुआ, गरम-यथा प्रखरकिरण 2. तेज गंधयुक्त, तीक्ष्ण तर किया हुआ, भिगोया हुआ 2. अति, अत्यधिक, 3. अत्यंत कठोर, रूखा,-रः दे० 'प्रक्खर' / तीब 3. दृढ़, मजबूत 4. कठोर, कठिन,-ढम् 1. प्रत्य (वि.) [प्र+ख्या+क ] 1. साफ, प्रत्यक्ष, स्पष्ट कंगाली 2. तपस्या, शारीरिक, कष्ट,-तुम् (अव्य०) 2. (के समान) दिखाई देने वाला, मिलता-जुलता ___ 1. अत्यधिक, अत्यंत 2. दृढ़तापूर्वक / (समास के अन्त में प्रयुक्त) अमृत°, शशाक आदि / प्रगात (पु.) [ प्रेग+तृच् ] उत्तम गाने वाला। प्रख्या [प्र+ख्या+अङ+टाप् ] 1. प्रत्यक्षज्ञेयता, दृश्यता प्रगुण (वि०) [ प्रकर्षण गुणो यत्र प्रा० ब० ] 1. 2. विश्रुति, यश, प्रसिद्धि-व्यवसत्परमप्रख्यः संप्रत्येव सीधा, ईमानदार, खरा, (आलं०, शा० से)-बहिः पुरीमिमाम्--रामा० 3. उखाड़ना 4. समरूपता, समा- सर्वाकारप्रगुणरमणीयं व्यवहरन्-मा० 1 / 14 2. नता (समास में)-याज्ञ०३।१०। सुदशासम्पन्न, उत्तम गुणों से युक्त-श्रमजयात्प्रगणां प्रख्यात (भू० क. कृ.) [ प्र+ख्या+क्त ] 1. मशहूर, च करोत्यसो तनुमतोऽनुमतः सचिवर्ययो- रघु० 9 / 49 प्रसिद्ध, विश्रुत माना हुआ 2. पहले से मोल लिया 3. (क) योग्य, उपयुक्त, गुणी- मा० 116 (ख) हुआ, पूर्वक्रयाधिकार केवल पर अभ्यथित 3. खुश, प्रवीण -9 / 454. कुशल, चतुर (प्रगुणी कृ 1. सीधा प्रसन्न / सम०-वप्तक (वि.) प्रसिद्ध पिता वाला। करना, क्रम से रखना, व्यवस्थित करना 2. चिकना प्रख्यातिः (स्त्री० [प्रख्या +क्तिन् ] 1. कीर्ति, विश्रुति, करना 3. पालन-पोषण करना, परवरिश करना)। प्रसिद्धि 2. प्रशंसा, स्तुति / प्रगुणित (वि.) [प्र+गण+क्त ] 1. सीधा या समतल प्रगंडः [प्रकृष्ट: गंडो यस्य प्रा० ब० कोहनी से ऊपर किया हुआ 2. चिकना किया हुआ। कंधे तक की भुजा।। प्रगृहीत (भू० क. कृ०) [प्र+ग्रह+क्त ] 1. थामा प्रगंडी [ प्रगंड +डोष् ] (नगर का) परकोटा, बाहरी हुआ, संभाला हुआ 2. प्राप्त, स्वीकृत 3. संधि के दीवाल। नियमों की अधीनता का अभाव, दे० नीचे 'प्रगा'। प्रगत (भू.क. कृ.) [प्र+गम्+क्त ] 1. आगे गया प्रगृह्यम् [प्र+ग्रह -क्यप् ] संधि के नियमों से मुक्त हुआ 2. पृथक्, अलग / सम-जानु,-जानुक (वि.) स्वर जो स्वतंत्र रूप से बोला या लिखा जाय 'ईदूदेद्धनुष्पदी, घुटने पर मुड़ी हुई टाँगो वाला। द्विवचनं प्रगृह्यम्' पा० 111 / 11 / / प्रगमः [प्र+गम्+अप् ] प्रेम की आराधना में प्रथम | प्रगे (अव्य०) [प्रकर्षण गीयतेऽत्र--प्र-गै–के ] भोर प्रगति, प्रेम की प्रथम अभिव्यक्ति / होते ही, पौ फटते ही- इत्यं रथाश्वेभनिषादिनां प्रगे प्रगमनम् [प्र+गम् + ल्युट् ] 1. आगे बढ़ना, प्रगति 2. प्रेम गणो नपाणामथ तोरणाद् बहि:--शि० 1211, सायं की आराधना में पहला कदम, दे० ऊ. 'प्रगम'। स्नायात्पगे तथा-मनु०.६९, 4162 / सम-तन प्रगर्जनम् [प्र+गर्ज + ल्युट] दहाड़ना, चिधाड़ना, (वि०) प्रातः काल अनुष्ठेय कर्म,--निश,-शय गरजना। (वि०) जो दिन निकल जाने पर भी सोया पड़ा है। प्रगल्भ (वि.) [प्र+गल्भ् +अच् ] 1. साहसी, भरोसा | प्रगोपनम् [प्र+गुप् + ल्युट ] रक्षण, संधारण / करने वाला 2. हिम्मती, बहादुर, निःशंक, उत्साही, प्रग्रपनम् [प्र+ग्रन्थ ल्युट / नत्थी करना, गूंथना, साहसी,-रषु० 2 / 41 3. वाग्मी, वाक्पटु-रघु० / बुनना। For Private and Personal Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 643 ) प्रग्रहः[प्र-ग्रह+अप] 1. फैलाना, थामना 2. पकड़ना, करना, (फूल आदि) चुनना 2. समुच्चय, मात्रा, लेना, ग्रहण करना, हथियार लेना 3. ग्रहण का आरंभ संचय, राशि-महावी० 2 / 15 3. वृद्धि, वर्धन 4. रास, लगाम--धूताः प्रग्रहाः अवतरत्वायुष्मान् 4. साधारण मेलजोल। -श० 1, शि० 12 / 31 5. रोक थाम, पाबन्दी 6. | प्रचयनम् [प्र+चि+ ल्युट् ] संग्रह करना, एकत्र करना। बंधन, कंद 7. कैदी, बन्दी 8. पालना, (कुत्ते आदि | प्रचरः [प्र+च+अप] 1. मागं, पथ, रास्ता 2. प्रथा, जानवर को) संधाना, 9. प्रकाश की किरण 10. | रिवाज। तराजू की डोरी 11. संधि के नियमों से मुक्त स्वर, | प्रचल (वि.) [प्र-+-चल+अच ] 1. काँपता हुआ, दे० 'प्रगृह्य। हिलता हुआ, थरथराता हुआ,-कु० 5 / 35, मा० प्रग्रहणम् [प्र+ग्रह+ल्युट ] 1. लेना, पकड़ना, धरना 1138 2. प्रचलित, प्रधानुकल। 2. ग्रहण का आरम्भ 3. रास, लगाम 4. रोक थाम, | प्रचलाकः [प्र+चल | आकन् ] 1. धनुर्विद्या 2. मोर की पाबन्दी। पूंछ 3. साँप / प्रग्राहः [प्र+ग्रह, +घञ ] 1. पकड़ना, लेना 2. ले | प्रचलाकिन् (पुं०) [प्रचलाक + इनि] मोर-उत्तर० 2 / 29 / जाना, ढोना 3. तराजू की डोरी 4. रास, लगाम / प्रचलायिक (वि०) [प्रचल+क्यङ/क्त] इधर उधर प्रग्नीवः,--वम् [ प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य-प्रा.ब.] 1. रंगी | करवट बदलने वाला, लुढ़कने वाला,--तम् सिर हई बर्जी 2. किसी मकान के चारों ओर लकड़ी की | हिलाना (बैठे 2 ऊँघते या सोते समय)। ' बाड़ 3. तबेला 4. वृक्ष की चोटी। प्रचायिका [प्र-चि+णिच्--- ण्वुल+टाप् ] (फूल आदि) प्रघटकः [प्र-घट् णिच् +बल ] नियम, सिद्धान्त, बारी 2 से चुनना 2. चुनने वाली स्त्री। विधि (आदेश)। प्रचारः [प्र+चर+घञ ] 1. विचरण करना, भ्रमण प्रघटा [प्रा० स०] किसी विज्ञान के आरंभिक सिद्धान्त करना 2. इधर उधर टहलना, घूमता--कु० 3 / 42, या मूलतत्त्व / सम-विद् (पुं०) ऊपर ऊपर का 3. दर्शन, प्रकटीभवन,-उत्तर० 1, मुद्रा० 1 4. प्रचपाठ करने वाला, पल्लवग्राही। लन, प्रसिद्धि, रिवाज, व्यवहार, प्रयोग-विलोक्य प्रघणः (नः), प्रघाणः (नः) [प्र+हन्-अप,पक्षेवृद्धिः, तेरप्यधुना प्रचारम्--त्रिका० 5. आचरण, व्यवहार णत्वाभावश्च ] 1. भवन के द्वार के सामने बनी 6. प्रथा, रिवाज 8. गोचरभूमि, चरागाह----याज्ञ० ड्योढ़ी, पौली, 2. तांबे का बर्तन 3. लोहे की गदा 21166 1. रास्ता, पथ-मनु० 9 / 219 / या धन (लौहदण्ड)। प्रचालः [प्रकृष्टश्चाल:-प्रा० स०] वीणा की गरदन / प्रघस (वि.) [प्र+अद्---शप, घसादेशः ] खाऊ, पटू प्रचालनम् [प्र+चल+णिच् + ल्युट् ] विलोडन, हिलाना, -सः 1. राक्षस खाऊपना, पेटूपन / हलचल। प्रघातः [प्र+हन्+घञ ] 1. हत्या 2. संघर्ष, युद्ध / / प्रचित (भू० क० कृ०) [प्र+चिक्त ] 1. एकत्र किया प्रघुणः [प्र+घुण+क] अतिथि (पाठान्तर–प्राघुण, हुआ, संचय किया हुआ, तोड़ा हुआ 2. ढेर किया या प्राघूर्ण)। गया, संचित 3. ढका गया, भरा गया। प्रघूर्णः [प्र+घूर्ण+अच् ] अतिथि–दे० 'प्राधूर्ण'। प्रचुर (वि०) [प्र+चुर्+क] 1. अति, यथेष्ट, बहुल, प्रघोषः [प्र+-घुष्+धा ] 1. शोर, शब्द, कोलाहल पुष्कल-नित्यव्यया प्रचुरनित्यधनागमा च-भत० 2. हंगामा, होहल्ला। 2147, शि० 12172 2. बड़ा, विशाल, विस्तृत प्रचक्रम् [ प्रगतश्चक्रम--प्रा० स०] कूच करने वाली –प्रचुर पुरंदरधनु:-गीत० 2 3. (समास के अन्त सेना, प्रयाणोन्मुख फ़ौज / में) बहुत अधिक, भरपूर, परिपूर्ण,--रः चोर / सम० प्रचक्षस् (पुं०) [प्र.+चक्ष-+-अस् ] 1. बृहस्पति ग्रह | -पुरुष (वि०) जनसंकुल, घना आबाद (षः) चोर / 2. बृहस्पति का विशेषण / प्रचेतस् (पुं०)[प्र+चित् + असुन् ] 1. वरुण का विशेषण प्रचंड (वि०) [प्रकर्षेण चण्ड:-प्रा० श०] 1. उत्कट, | -कु० 2 / 21 2. एक प्राचीन ऋषि जो स्मृतिकार अत्यन्त तीव्र, उग्र 2. मजबूत, शक्तिशाली, भीषण | था---मनु० 1135 / 3. अत्युष्ण, दम घोटने वाली (गर्मी) 4. क्रुद्ध, कोपा- | प्रचेत (पुं०)[प्र--चि+-तृच् ] रथवान्, सारथि। विष्ट 5. साहसी, भरोसा करने वाला 6. भयंकर, प्रचेलम् [प्र.+चेल-अच् चन्दन की पीली लकड़ी। भयावह 7. असहिष्णु, असह्य / सम०-आतपः भीषण प्रचेलकः [प्र+चेल+ण्वुल ] घोड़ा। गर्मी,-घोण (वि०) लंबी नाक वाला,---सूर्य (वि०) प्रचोदः [प्र--चुद्+घञ्] 1. आगे हाँकना, बलपूर्वक उष्ण या जलते हुए सूर्य वाला-ऋतु० 111,10 / / चलाना, आगे बढ़ने के लिए उकसना 2. भड़काना, प्रच (चा) यः [प्र+चि+अच्, घन च] 1. संग्रह / प्रेरित करना। For Private and Personal Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रचोवनम् [प्र+चुद्+ ल्युट] 1. हाँक कर आगे बढ़ाना, | प्रच्यवनम् [प्रच्यु +ल्युट] 1.विदा होना, मड़ना, बापसी | 2. हानि, वंचना 3. रिसना, झरना / 3. आदेश देना, निर्देश देना 4. नियम, विधि, समादेश। | प्रच्युत (भू० क० कृ०) [प्र-+च्यु+क्त ] 1. टूट कर प्रचोदित (भू० क. कृ.) [प्र+चुद्+क्त] 1. बलपूर्वक गिरा हुआ, झड़ा हुआ 2. भटका हुआ, विचलित बढ़ाया हुआ, उकसाया हुआ 2. भड़काया हुआ 3. स्थान भ्रष्ट, विस्थापित, पतित 4. खदेड़ा हुआ, 3. निदेशित, आदिष्ट, नियत किया हुआ-मनु० भगाया हुआ। 2 / 191 4. भेजा गया, प्रेषित 5. निर्णीत, निर्धारित। प्रच्युतिः (स्त्री०) [प्र+च्य+क्तिन ] 1. बिदा होना, प्रच्छ (तुदा० पर०-पृच्छति, पृष्ट-प्रेर० प्रच्छयति, वापसी, 2. हानि, वञ्चना, अधःपतन-नित्यं प्रच्युति कर्म० पृछयते, इच्छा० पिपृच्छिषति, पूछना, सवाल शंकया क्षणमपि स्वर्गे न मोदामहे-शा० 4 / 20 3. पात, करना, प्रश्न करना, पूछताछ करना (द्विकर्मक) बर्बादी। पप्रच्छ रामा रमणोभिलाषम-रघु० 14 / 27, भट्टि | प्रजः [प्रविश्य जायायां जायते -- जन-ड ] पति, स्वामी / 6 / 8, रघु० 3 / 5, भग० 217, ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् / प्रजनः [प्र-जत्+घञ / गर्भाधान करना, पैदा करना, ----मनु० 2 / 127 2. ढूंढना, तलाश करना, अनु-, जन्म देना, उत्पादन-मनु० 3 / 61, 9 / 61 2. पशु पूछताछ करना, इधर उधर के प्रश्न करना, आ-,। (नर पशु का मादा पशु से संगम) में गर्भाधान करना पूछना, प्रश्न करना 2. बिदा करना 3. बिदा होना 3. उत्पन्न करना,-पंदा करना-मनु० 9 / 96 / (आ.)-आपृच्छस्व प्रियसखममुं तुंगमालिंग्य शैलम् | प्रजननम् [प्र+जन् + ल्युट् ] 1. प्रसृजन, जनन, योनि में -मेघ० 12, रघु० 8 / 49, 12 / 103, परि---, पूछना, वीर्य-संसेचन 2. उत्पादन, जन्म, प्रसव 3. वीर्य प्रश्न करना, पूछताछ करना। 4. पुरुष या स्त्री की जननेन्द्रिय (लिंग या भग) प्रच्छदः [प्रच्छिद णिच् +घ] आवरण, आच्छादन, 5. सन्तान / लपेटन, चादर, बिछावन बिस्तरे की चादर-रधु० | प्रजनिका [प्र+जन्+णिच् +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] 19 / 22 / सम०-पटः बिछावन, चादर। माता। प्रच्छनम्, ना [प्रच्छ् + ल्युट ] पूछताछ, परिपृच्छा। प्रजनुकः [प्र-जन्+उक] शरीर, काया। प्रच्छन्न (भू० क. कृ.) [प्रच्छिद्+क्त ] 1. ढका | प्रजल्पः [+जल्प+घञ्] बालकलरव, गपशप, असाव हुआ, वस्त्राच्छादित, वस्त्र पहने हुए, लपेटा हुआ, धान या ऊटपटांग शब्द (प्रेमी का अभिवादन करने में लिफाफे में बन्द किया हुआ 2. निजी, गोपनीय प्रयुक्त)-- असूयेामदयुजा योऽवधीरणमुद्रया, प्रियस्य –भर्तृ. 2164 3. छिपा हुआ, गुप्त (दे० प्रपूर्वक कौशलोद्गारः प्रजल्पः स तु कथ्यते। छद्), -प्रम् 1. निजी द्वार 2. झरोखा, जाली, | प्रजल्पनम् [प्र.+जल्प+ ल्युट ] 1. बातचीत करना, बोलना खिड़की,-त्रम् (अव्य०) गुप्त रूप से चुपचाप। 2. बालकलरव, गपशप। सम०--तस्करः गुप्तचर, जो चोरी करता हुआ | प्रजविन (वि०) स्त्री०-नी) |प्र+जु+इ नि] आशु, दिखाई न दे, परन्तु चोरी करे अवश्य / द्रुतगामी, वेगयान्-पुं० आशुगामी दूत, हरकारा। प्रच्छर्दनम् [प्र- छर्द +ल्युट ] 1. वमन 2. बाहर निका प्रजा [प्र+जन्+ड+टांप्] (बहु० समास के अन्त में लना, फेंकना 3. उलटी आने वाली (दवा)। बदल कर 'प्रजस्' हो जाता है जब कि प्रथम पद प्रच्छविका [प्र+छद्+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] उलटी अ, सु या दुस् हो, दे० रघु० 8 / 32, 18 / 29) 1. होना, के आना। प्रसजन, प्रसूति, जनन, प्रजोत्पत्ति, जन्म, उत्पादन 2. प्रच्छादनम् [प्र+छ+णिच् + ल्युट 1. ढकना, छिपाना सन्तान, प्रजा, सन्तति. बच्चे, पक्षिशावक,-प्रजार्थ 2. उत्तरीय,ओढ़नी। सम०-पटः लपेटन, ढकना, चादर। व्रतकर्शितांग-रघु० 2 / 73, प्रजायें गहमेधिनाम् प्रच्छादित (भू० क. कृ.) [प्र+छ+णिच्+क्त ] ---117, मनु० 3 / 42, याज्ञ० 1 / 269, इसी 1. ढका हुआ, लपेटा हुआ, वस्त्राच्छादित आदि 2. गुप्त, प्रकार बकस्य प्रजा, सर्पप्रजा आदि 3. लोग, छिपा हुआ। मनुष्य ---ननन्दुः सप्रजाः प्रजाः-रघु० 4 / 3, प्रजाः प्रच्छायम् [प्रकृष्टा छाया यत्र] सघन छाया, छायादार प्रजाः स्वा इव तंत्रयित्वा - श० 5 / 5, (यहाँ प्रजा स्थान-प्रच्छायसुलभनिद्राः दिवसाः परिणामरमणीयाः का 'सन्तान' अर्थ भी है) रघु० 117, 2173, मनु० -श० 113, मालवि० 3 / 118 4. वीर्य / सम०-अंतकः मृत्यु का देवता यम प्रच्छिल (वि.) [प्रच्छ +इलच ] शुष्क, निर्जल। -रघु० ८।४५,-ईप्सु (वि.) सन्तान की इच्छा प्रच्यवः [प्र+च्यु,+अच् ] 1. पात, बर्बादी 2. सुधार, वाला,-ईशः, -ईश्वरः मनुष्यों का राजा,प्रभु-रघु० प्रगति, विकास 3. वापसी। 3168, 5 / 32, १८।२९,-उत्पत्तिः ,-उत्पादनम् For Private and Personal Use Only Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 645 ) सन्तान का पैदा करना,-काम (वि.) सन्तान की मानसिक चक्षु, मन-मालवि० १,-वृट (वि.) इच्छा वाला,-संतुः वंश परम्परा, कुल, दानम् | समझदारी में बूढ़ा,-हीन (वि.) निर्बुद्धि मूर्ख, चाँदी,-नायः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. राजा, प्रभु, | बेवकूफ। राजकुमार-रघु० 2 / 48, १०८३,—प: राजा, | प्रज्ञात (भू० क० कृ०) [प्र+ज्ञा+क्त] 1. जाना हुआ, -निषेकः गर्भाधान, (गर्भाशय में स्थापित), बीज समझा हुआ 2. अन्तरयुक्त, विविक्त 3. स्पष्ट, साफ -रघु० १४।६०,-पतिः 1. सृष्टि की अधिष्ठात्री | 4. प्रसिद्ध, सुविख्यात, विश्रुत।। देवता ---मनु० 12 / 121 2. ब्रह्मा का विशेषण | प्रज्ञानम् [प्र+ज्ञा+ल्युट्] 1. बुद्धि, जानकारी, समझ -अस्याः सर्गविधी प्रजापतिरभूच्चंद्रो न कांतिप्रदः / | 2. चिह्न,प्रतीक, निशान / -विक्रम० 119 3. ब्रह्मा के दस वंशप्रवर्तक पुत्र प्रज्ञावत् (वि०) [प्रज्ञा+मतुप्] समझदार, बुद्धिमान / -दे० मनु० 234 4. देवशिल्पी विश्वकर्मा का | प्रज्ञाल, प्रजिन (स्त्री०--ती), प्रज्ञिल (वि.) [प्रज्ञा+ विशेषण 5. सूर्य 6. राजा 7. जामाता 8. विष्णु का | लच्, इनि, इलच् च] समझदार, बुद्धिमान्, मनीषी। विशेषण पिता, जनक 10 लिंग,-पालः,-पालक: प्रअ (वि०) [प्रगते विरले जानुनी यस्य-ब० स०, मु राजा, प्रभ,-पालिः-शिव का विशेषण, बुद्धिः "आदेशः] धनुष्पदी, (जिसकी टांगे धनुष की भांति (स्त्री०) सन्तान की वृद्धि, सज ब्रह्मा का विशेषण ___ मुड़ी हों), घुटने पर मुड़ी हुई टांगों वाला / -शि० १२८,--हित (वि.) बच्चों के या लोगों ('प्रज्ञ' भी)। के लिए हितकर (तम्) पानी। प्रज्वलनम् [प्र+ज्वल+ल्युट] देदीप्यमान होना, लपटें प्रजागरः [प्र+जागृ+अप्] 1. रात को जागते रहना, उठना, जलना, दहकना। निद्रा का अभाव-प्रजागरात् खिलीभूतः तस्याः प्रज्वलित (भू० क० कृ०) [प्र.-ज्वल+क्त] 1. लपटों स्वप्ने समागमः---श०६।२१ 2. चौकसी, सावधानी में होना, जलना, लपटें उठना, देदीप्यमान होना 2. 3. अभिभावक, संरक्षक 4. कृष्ण का विशेषण / चमकीला, जगमगाता हुआ। प्रजात (भू. क. कृ०) [प्र+जन्+क्त] पैदा हुआ, | प्रडीनम् [प्र+डी+क्त] 1. हर दिशा में उड़ना 2. आगे उत्पन्न,----ता वह स्त्री जच्चा जिसके बच्चा पैदा दौड़ना, 'डीन' के अन्दर दे०, 3. भाग जाना। | प्रण (वि.) [पुरा भव:-प्र+न] पुराना, प्राचीन / प्रजातिः (स्त्री०) [+जन्+क्तिन्] 1. प्रसुजन, प्रसूति, प्रणवः [प्रकृष्ट: नख:-प्रा० स०] कील का सिरा। उत्पादन, जन्म देना 2. प्रसव 3. प्रजननात्मक शक्ति प्रणत (भू० क० कृ०) [प्र+नम्+क्त] 1. मुका हुआ, 4. प्रसववेदना, प्रसवपीड़ा। __ रुझानवाला, प्रवण 2. प्रणाम करना, नमस्कार करना प्रजावत (वि.) [प्रजा+मतप] प्रजा या सन्तान वाला ___ 3. विनम्र 4. कुशल, चतुर-दे० प्र पूर्वक 'नम्'। 2. गर्भवती,--ती भाई की पत्नी, भाभी-रघु० | प्रणतिः (स्त्री -तम-क्तिन| 1. प्रणाम. 14 / 45, 15 / 13 2. विवाहिता नारी, मातृका, माता। अभिवादन-तव सर्वविधेयवर्तिनः प्रणति बिभ्रति के न प्रजिनः [प्र+जि+नक्] वायु। भूभतः-शि० 1615, रधु० 4 / 88 2. विनयशीलता, प्रजीवनम् [प्र+जीव् + ल्युट्] जीविका, जीवन निर्वाह नम्रता, शिष्टाचार-स ददर्श वेतसवनाचरितां प्रणति का साधन / बलीयसि समृद्धिकरीम् --कि० 65, निजितेषु तरसां प्रजुष्ट (वि०) [प्र+जुष्+क्त] अनुरक्त, भक्त, जुटा तरस्विनां शत्रुषु प्रणतिरेव कीर्तये-रघु० 11389 / हुआ। प्रणवनम् [प्र+न+ल्युट्] शब्द करना, आवाज करना, प्रज्ञ (वि.) [ प्रज्ञा+का बुद्धिमान, मेधावी, विद्वान / शब्द, ध्वनि। प्राप्तिः [त-ज्ञा-णिच्+क्तिन्] 1. सहमति, प्रतिज्ञा प्रणयः [प्र+नी+अच् ] 1. विवाह करना, पाणि ग्रहण 2. शिक्षा, सूचना, समाचार देना 3. सिद्धान्त / करना (यथा विवाह में)–मा० 6 / 14 2. (क) प्रेम प्रज्ञा [प्र+ज्ञा+अ+प्] 1. मेधा, समझ, बुद्धि, बुद्धि- स्नेह, चाव, अनुरक्ति-अभिरुचि,-प्रीतिसाधारणोऽयम् मत्ता, आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः-रघु० भयोः प्रणयः स्मरस्य-विक्रम० 2 / 16, साधारणोऽयं 1 / 15, शस्त्रं निहन्ति पुरुषस्य शरीरमेकं प्रज्ञा कुलं प्रणयः---श० 3, 67, 5 / 23, मेघ० 105, रघु० च विभवं च यशश्च हन्ति-सुभा० 2. विवेक, 6 / 12 भर्तृ० 2 / 42 (ख) अभिलाषा, इच्छा, लालसा विवेचन, निर्णय 3. तरकीब, योजना 4. बुद्धिमती --कु० 5 / 85, मा०८७, 20716 3. मित्रता और विदुषी स्त्री। सम० ---चक्षुस् (वि.) अंधा, पूर्ण परिचय, प्रीति, मैत्री, घनिष्ठता-मा० 119 (शा० बुद्धिरूपी एकमात्र आँख रखने वाला), (पुं०) / 4. परिचय, भरोसा, विश्वास-श० 6 5. अनुग्रह, धृतराष्ट्र का विशेषण, (नपुं०) मन की आँख, / कृपा, सौजन्य-अलंकृतोऽस्मि स्वयंग्राहप्रणयेन भवता For Private and Personal Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाप्यन्यस्मात्प्रणयकलहाट प्रदर्शक, प्रधान, मुख्य / -11. प्रिय, प्यारा 2. मच्छ० 1, 1145 6. अनुरोध, प्रार्थना, निवेदन- 4. हर्षातिरेक की कलकलध्वनि, वाहवा, क्या खूब तद्भ तनाथानुग नार्हसि त्वं संबंधिनो मे प्रणयं विहन्तुम् 5. दुहाई देना 6. कान का विशेष रोग (इस रोग ---रघु० 2 / 28, विक्रम० 4 / 13 7. श्रद्धा, भवित में कानों में 'भनभनाहट' की ध्वनि होती है)। 8. मोक्ष। सम०-अपराधः प्रेम या मित्रता के प्रणामः [प्र+नम् +घञ्] 1. झुकना, नमस्कार करना, विरूद्ध अपचार,----उन्मुख (वि०) 1. प्रेमाविष्ट, अपना | नमन या नति 2. सादर नमस्कार, अभिवादन, दण्डप्रेम प्रकट करने को उद्यत - मालवि० 4113 2. प्रेमा- वत् प्रणाम, प्रणति, यथा साष्टांग प्रणाम.-.कु० वेश के कारण आतुर,---कलहः प्रेमी का झगड़ा, कृत्रिम | 6 / 91 / या झूठमूठ का झगड़ा-नाप्यन्यस्मात्प्रणयकलहाद्वि- प्रणायकः [प्र+नी+ण्वुल 1. नेता, सेनापति 2. पथप्रयोगोपपत्तिः-मेघ०(मल्लि०-नकली या कल्पित)-, कुपित (वि.) प्रेम के कारण क्रुद्ध-मेघ० 105,-- | प्रणाय्य (वि.)[प्र+नी+ण्यत्] 1. प्रिय, प्यारा 2. खरा, कोपः किसी नायिका का अपने नायक के प्रति झूठ ईमानदार, स्पष्टवादी 3. अप्रिय, अनभिमत-भट्टि० मूठ का क्रोध, नखरों से भरा क्रोध,-प्रकर्षः अत्यधिक 6 / 66 4. आवेश शून्य, विरक्त / प्रेम, तीब्र अनुराग,---भंग: 1. मित्रता का टूट जाना प्रणालः,-ली, प्रणालिका [प्र+नल+धन, प्रणाल+ 2. विश्वासघात,---वचनम् प्रेमाभिव्यक्ति,-विमुख डीए, प्रणाली+क+टाप, ह्रस्वः] नहर, जलमार्ग, (वि.) 1. प्रेम से पराङमुख 2. मित्रता करने में नाली---कुर्वन् पूर्णा नयनपयसां चक्रबालैः प्रणाली:अनिच्छुक - मेघ० २७,--विहतिः,-विघातः (प्रार्थना उ० सं० 2, शि० 3144 2. परंपरा, अविच्छिन्न आदि की) अस्वीकृति, न मानना। सिलसिला। प्रणयनम् [प्र+नी+ल्युट] 1. लाना, ले आना 2. संचा- | प्रणाशः [प्र+नश-+ घा] 1. विराम, हानि, लोप, लन करना, पहुँचाना 3. पालन करना, कार्यान्वयन कि० 14 / 9 2. मृत्यु, विनाश---रघु० 14 / 1 / करना, अनुष्ठान करना-कु० 6 / 9 4. लिखना, | प्रणाशन (वि०) [प्र+न+णिच् + ल्युट् ] नष्ट करने अक्षरयोजन करना 5. निर्णयादेश देना, दण्डाज्ञा देना, वाला, हटाने वाला,--नम् समुच्छेदन, उन्मूलन परिनिर्णय या पंचनिर्णय देना, यथा दण्डस्य प्रणयनम् / -रघु०३।६०। प्रणयवत् (वि०) [प्रणय+ मतुप्] 1. प्रेम करने वाला, प्रणिसित (वि०) [प्र-- निस्+क्त ] जिसका चुम्बन प्रीतिकर, स्नेही-रघु० 10 // 57 2. स्पष्टवक्ता, खरा | किया हो। 3. अत्यन्त उत्कण्ठित, आतुर। प्रणिधानम् [प्र---नि+या+ल्युट ] 1. प्रयोग करना, प्रणयिन् (वि.) [प्रणय --इनि] 1. प्रेम करने वाला, नियुक्त करना, व्यवहार, उपयोग 2. महान् प्रयत्न, स्नेही, कृपालु, अनुरक्त-मा०३९ 2. प्रिय, अत्यंत शक्ति 3. धार्मिक मनन, भावचिन्तन-- रघु० 1174, प्यारा 3. इच्छुक, लालायित, उत्कण्ठित-श० 7.17, 8119, विक्रम०२ 4. सम्मानपूर्ण व्यवहार (अधि. मेघ० 3, रघु० 9155, 113 4. सुपरिचित, घनिष्ठ के साथ) 5. कर्मफलत्याग। पुं० 1. मित्र, साथी, कृपापात्र--कु० 5 / 11 2. पति, प्रणिधिः [प्र+नि-|-धा+कि ] 1. चौकन्ना रहने वाला, प्रेमी 3. कृतांजलि, बिनम्र निवेदक, प्रार्थी स्वार्थात् ताक-झांक करने वाला 2. गुप्तचर भेजना 3. जासूस, सता गुरुतरा प्रणयिक्रियव-विक्रम० 4 / 15, 12 भेदिया--कु० 3 / 6, रघु०१७।४८, मनु० 7.153, 4. पूजक, भक्त-कु० 3 / 66, नी 1. गृहिणी, 8 / 182 4. टहलुआ, अनुचर 5. देखभाल, ध्यान प्रियतमा, पत्नी 2. सखी, सहेली। 6. निवेदन, अनुरोध, प्रार्थना। प्रणवः प्र-नू ।-अप, णत्वम्] 1. पवित्र अक्षर 'ओम्'- प्रणिनावः [प्र+नि-नद् |-घा ] गहरी ध्वनि / आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्छंदसामिव-रघु० 1111, | प्रणिपतनम, प्रणिपातः [प्र-+-नि-+पत्-ल्युट, घन च मन० 2174, कु० 2,12, भग० 78 2. एक प्रकार - 1. पैरों में गिरना, साष्टांग प्रणाम, विनति--रघु० का वाद्ययंत्र (ढोल. या मृदंग) 3. विष्णु या परम- 464 2. अभिवादन, नमस्कार, सादर प्रणति पुरुष परमात्मा का विशेषण। —कु० 3 / 61,4 / 35, रघु० 3 / 25 / सम०. रसः प्रणस (वि०) [ प्रगता नासिका यस्य, सादेशः, अच.. शस्त्रास्त्रों पर उच्चारण किया जाने वाला जादू णत्वम्] लम्बी नाक वाला, बड़ी नाक वाला। का मंत्र। प्रणाडी [=प्रणाली, लस्य ड.] अन्तरायण, अन्तः प्रवेशन, प्रणिहित (भू० क० कृ०) [प्र---नि-धा+क्त) 1. रक्खा माध्यम। हुआ, व्यवहृत 2. जमा किया हुआ 3. फैलाया हुआ, प्रणादः [ प्रन--पा1. ऊँची आवाज, चीत्कार, पसारा हुआ-मेघ० 105 4. न्यस्त, समर्पित, सुपुर्द कंदन 2. दहाड़ना, दहाड़ 3. हिनहिनाना, रेंकना / 5. एकाग्रचित्त, लवलीन, जुटा हुआ 6. निर्धारित, For Private and Personal Use Only Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निश्चित 7. सावधान, चौकस 8. अवाप्त, उपलब्ध / प्रतानः [प्र+तन्+घञ ] 1. अंकुरः तन्तु-लताप्रता9. भेद लिया हुआ (दे० 'प्रणि' पूर्वक धा)। नोग्रथितैः सकेश:--रघु० 28, श०७।११ 2. लता, प्रणीत (भू० क. कृ०) [प्र+नी+क्त ] 1. सामने नीचे भूमि पर ही फैलने वाला पौधा 3. शाखा प्रस्तुत, आगे पेश किया हआ, उपस्थित 2. सौंपा प्रशाखा, शाखा संविभाग 4. धनुर्वात रोग या मिरगी गया, दिया गया, प्रस्तुत किया गया, उपस्थित किया रोग। गया 3. लाया गया, कम किया गया 4. कार्यान्वित, | | प्रतानिन् (वि०) [प्रतान+इनि] 1. फैलाने वाला कार्य में परिणत. अनुष्ठित 5. सिखाया गया, नियत 2. अंकुर या तन्तु वाला, नी फैलाने वाली लता। किया गया 6. फेंका हुआ, भेजा गया, सेवामुक्त | प्रपात: [प्र+तप्+घञ्] 1. ताप, गर्मी-पंच० 11107 (दे० प्र पूर्वक 'नी'),-त: मंत्रों से अभिसंस्कृत की 2. दीप्ति, दहकती हुई गर्मी कु० 2 / 24, 3. आभा, गई यज्ञाग्नि,-तम् पकाया हुआ या संवारा हुआ कोई उज्ज्वलता 4. मर्यादा, शान, यश–महावी० 2 / 4 पदार्थ यथा चटनी, अचार आदि / 5. साहस, पराक्रम, शौर्य प्रतापस्तत्र भानोश्च युगप्रणुत (भू० क. कृ.) [प्र+नु+क्त ] प्रशंसा किया पदव्यानशे दिशः -- रघु० 4 / 15, यहाँ 'प्रताप का गया, श्लाघा किया गया / अर्थ गर्मी भी है) 4130 6. शक्ति, बल, ऊर्जा प्रणुत (भू.का. कृ.) [प्र+नुद्+क्त ] 1. हाँककर / 7. उत्कण्ठा, उत्साह / दूर किया हुआ, पीछे ढकेला हुआ 2. भगाया हुआ। | प्रतापन (वि.) [प्र+त+णिच् + ल्युट् ] 1. गर्माने प्रणुन (भू० त० कृ०) [प्र+नु+क्त, नत्वम् ] 1. हाँक वाला 2. संताप देने वाला, नम् 1. जलाना, तपाना, कर दूर भगाया हुआ, 2. गतिशील किया हुआ | गर्माना 2. पीड़ित करना, सताना, दण्ड देना,--न 3. भगाया हुआ 4. हिलता हुआ, काँपता हुआ। एक नरक का नाम / प्रणेत (पुं०) [प्र+नी+तृव ] 1. नेता 2. निर्माता, स्रष्टा | | प्रतापवत् (वि.) [प्रताप+मतुप, वत्वम् ] 1. कीर्तिशाली, 3. किसी सिद्धांत का उद्घोषक, व्याख्याता, अध्यापक ओजस्वी 2. बलशाली, शक्तिसंपन्न, ताक़तवर-पुं० 4. पुस्तक का रचयिता। शिव का विशेपण / प्रणेय (वि.) [प्र+नी+य] 1. पथप्रदर्शन किये जाने | प्रतारः [प्र+तु+णिच् --घा ] 1. पार ले जाने वाला, योग्य, नेतृत्व दिये जाने योग्य, शिक्षणीय, विनम्र, / 2. धोखा, जालसाजी।। विनीत, आज्ञाकारी 2. कार्यान्वित या निष्पन्न किये प्रतारकः [प्र+त+णिच् ---एबुल ] ठग, छपवेषी। जाने योग्य 3. निश्चित या स्थिर किये जाने योग्य। | प्रतारणम् [प्र+त+णिच् + ल्युट ] 1. पार ले जाना प्रणोदः [प्र+नु+घञ्] 1. हाँकना 2. निदेश देना। 2. धोखा देना, ठगना, छल, कपट, णा जालसाजी, प्रतत (भू. क. कृ.) [प्र+तन्+क्त ] 1. बिछाया धोखा, मक्कारी, धूर्तता, वदमाशी, दगाबाजी, पाखंड हुआ, ढका हुआ 2. फैलाया हुआ, पसारा हुआ। यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकेन कर्मणा, उपास्यता प्रततिः (स्त्री०) [प्र+तन्+क्तिन् ] 1. विस्तार, फैलाव, कलौ कल्पलता देवी प्रतारणा, प्रतारणासमर्थस्य प्रसार 2. लता। विद्यया कि प्रयोजनम् उद्भट / प्रतन (वि.) (स्त्री०-नी) [प्र+तन्+अच् ] पुराना, | प्रतारित (वि०) [प्र+त+णिच् + क्त ] छला हुआ, प्राचीन / ठगा हुआ। प्रतनु (वि०) (स्त्री-नु,-वी) [प्रकृष्टः तनुः, प्रा० स०] | प्रति (अव्य) [प्रथ+ डति ] 1. धातु के पूर्व उपसर्ग के 1. पतला, सूक्ष्म, सुकुमार -मेघ० 29 2. अत्यल्प, रूप में लग कर निन्नांकित अर्थ है-(क) की ओर, सीमित, भीड़ा-प्रतनुतपसाम्-का० 43, उत्तर० 1120, की दिशा में (ख) वापिस, लौट कर, फिर (ग) के मेघ० 41 3. दुबला-पतला, कृश 4. नगण्य, मामूली। / विरुद्ध, के मुकाबले में, विपरीत (घ) ऊपर, घृणा प्रतपनम् [प्र+त+ल्युट ] गरमाना, गरम करना। (इस उपसर्ग से युक्त कुछ धातुओं को देखिए) प्रतप्त (भू० क. कृ.) [प्र+त+क्त] 1. तपाया 2. संज्ञाओं (कृदन्त से भिन्न) से पूर्व उपसर्ग के रूप हुआ 2. गर्म, उष्ण 3. संतप्त, सताया हुआ, पीडित / में निम्नांकित अर्थ (क) समानता, समरूपता, सादृश्य प्रतरः (प्र---तु-+-अप] पार जाना, पार करना या जाना / (ख) प्रतिस्पर्धा- यथा प्रतिचन्द्र (प्रतिस्पर्षीचन्द्रमा), प्रतः , प्रतकणम् [प्र-तर्क+अप, ल्युट च] 1. अटकट, प्रतिपुरुप आदि 3. स्वतंत्र रूप से संबंधबोधक अव्यय कल्पना, अनुमान 2. विचारविमर्श / के रूप में प्रयुक्त (कर्म के साथ) निम्नांकित अर्थ प्रतलम् [प्रकुष्टं तलम् -प्रा० स०] निम्नलोक के सात -(क) की ओर, की दिशा में, की तरफ-तौ दम्पती विभागों से एक दे० पाताल, --ल: खुले हाथ की स्वां प्रतिराजधानी प्रस्थापयामास वशी वसिष्ठः हथेली। -रघु० 2170, 1175, प्रत्यनिलं विचेरुः–कु. 3 // For Private and Personal Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 648 ) 31, वृक्षं प्रतिविद्योतते विद्यत-सिद्धा०, (ख) के विरुद्ध प्रतिकूल, की विपरीत दिशा में, सम्मुख --तदा यायाद्रिपुं प्रति-मनु०७१७१, प्रदुद्रुवुस्तं प्रति राक्षसेन्द्रम् --रामा०, ययावजः प्रत्यरिसैन्यमेव -रघु० 755, (ग) की तुलना में, सममूल्य पर, के अनुपात में, जोड़ का - त्वं सहस्राणि प्रति-ऋक 0 21138, (घ) निकट, के आसपास, पास की ओर, में, पर--समासेदुस्ततो गंगां शृंगवेरपुरं प्रति-रामा०, गंगा प्रति (इ) के समय, लगभग, दौरान में-आदित्यस्योदयं प्रति-महा०, फाल्गुनं वाथ चैत्र वा मासौ प्रति-मनु० 7.182, (च) की ओर से, के पक्ष में, के भाग्य में-यदत्र मां प्रतिस्यात् -सिद्धा०, हरं प्रति हलाहलं (अभवत्)—वोप०, (छ) प्रत्येक में, हरेक में, अलग-अलग (विभागसूचक), वर्ष प्रति, प्रतिवर्षम, यज्ञं प्रति याज्ञ. 11110, वृक्ष वृक्षं प्रति सिंचति -~-सिद्धा, (ज) के विषय में, के संबंध में, के बारे में, विषयक, बाबत, विषय में न हि मे संशीतिरस्या दिव्यतां प्रति---का० 132, चन्द्रोपरागं प्रति तु केनापि विप्रलब्धासि-मुद्रा० 1, धर्मप्रतिश० 5, मंदौत्सुक्यो ऽस्मि नगरगमन प्रति- श०१, कु०६।२७, 7 / 83, याज्ञ० 9 / 218, रघु० 6 / 12, 10 / 20, 12 / 51, (झ) के अनुसार, के समनुरूप.-मां प्रति (मेरी सम्मति में), (अ) के सामने, की उपस्थिति में, (ट) क्योंकि, के कारण 4. स्वतंत्र संबंधबोधक अव्यय के रूप में (अपा के साथ) इसका अर्थ है, (क) प्रतिनिधि, के स्थान में, के बजाय--प्रद्युम्नः कृष्णात्प्रति-सिद्धा. संग्रामे यो नारायणतः प्रति-भट्टि० 8 / 89, अथवा (ख) की एवज में, के बदले-तिलेभ्यः प्रति यच्छति माषान्-सिद्धा०, भक्तेः प्रत्यमतं शम्भो:-बोप० 5. अव्ययीभाव समास के प्रथम पद के रूप में प्रायः इसका अर्थ है, (क) प्रत्येक में या पर, यथा प्रतिसंवत्सरम् ~-(प्रतिवर्ष), प्रतिक्षणं, प्रत्यहं आदि, (ख) की ओर, की दिशा में प्रत्यग्नि शलभा डयन्ते 6. 'प्रति' कभी कभी 'अल्पतार्थ' प्रकट करने के लिए अव्ययीभाव समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त होता है सूपप्रति, शाक प्रति (विशे० निम्नांकित समासों में वह सब शब्द जिनका दूसरा पद क्रिया के साथ अव्यवहित रूप से नहीं जुड़ा हुआ है, सम्मिलित कर दिए गए हैं, अन्य शब्द अपने 2 स्थानों पर मिलेंगे। सम०-अक्षरम (अव्य०) प्रत्येक अक्षर में प्रत्यक्षर श्लेषमयप्रबंध -वास, अग्नि (अव्य०) अग्नि की ओर, अंगम 1. (शरीर का) गौण या छोटा अंग ---जैसे कि नाक 2. प्रभाग, अध्याय, अनुभाग 3. प्रत्येक अंग 4. अस्त्र (अव्य-गम) 1. शरीर के प्रत्येक अंग पर-यथा-प्रत्यंगमालिंगितः-गीत०१2.। प्रत्येक उपप्रभाग या उपांग के लिए, अनन्तर (वि.) 1. सट कर पड़ोस में होने वाला 2. उत्तराधिकारी के रूप में) निकटतम विद्यमान 3. तुरन्त बाद का, बिल्कुल जुड़ा हुआ-जीवेत् क्षत्रियधर्मेण स ह्यस्य (ब्रह्मणस्य) प्रत्यनंतरः मनु० 10.82, 8 // 185,- अनिलम् (अव्य०) हवा की ओर, या हवा के विरुद्ध-अनीक (बि) 1. विरोधी, विरुद्ध, विद्वेषी 2 मुकाबला करने वाला, विरोध करने वाला --(क:) शत्रु (-कम्) 1. विरोध, शत्रुता, विपरीत ढंग या स्थिति-न शक्ता: प्रत्यनीकेषु स्थातुं मम सुरासुराः-राम 2. शत्रु की सेना--यस्य शूरा महेब्वासाः प्रत्यनीकगता रणे-महा०, येऽवस्थिताः प्रत्य नीकेषु योधा:-भग० 11 // 32, (यहां 'प्रति' का अर्थ 'शत्रता' भी है) 3. (अलं० शास्त्र) अलंकार - इसमें एक व्यक्ति उस शत्रु को जो स्वयं घायल नहीं हो सकता, चोट पहुंचाने का प्रयत्न करता है-प्रतिपक्षमशक्तेन प्रतिकर्तुं तिरस्क्रिया, या तदीयस्य तत्स्तुत्यै प्रत्यनीकं तदुच्यते-काव्य० १०,-अनुमानम् प्रतिकल उपसंहार-अंत (वि.) संसक्त, सटा हुआ, साथ लगा हुआ, सीमावर्ती (तः) 1. सीमा, हद, रघु० 4 / 26, 2. सीमावर्ती देश, विशेषत: म्लेच्छों द्वारा अधिकृत प्रदेश, देशः सीमावर्ती देश, पर्वतः साथ लगी हुई पहाड़ी--पादाः प्रत्यंग पर्वता:-अमर०, -अपकारः प्रतिशोध, बदले में क्षति पहुंचाना-शाम्येप्रत्यपकारेण नोपकारेण दुर्जन:-कु० २१४०,--अब्दम् (अव्य.) प्रतिवर्ष,-अभियोगः बदले में दोषारोपण, प्रत्यारोप,-अमित्रम (अव्य०) शत्रु की ओर, अर्कः झूठमूठ का सूरज, अवयवम (अव्य०) 1. प्रत्येक अंग में 2. प्रत्येक विशेषता के साथ, विवरण सहित, –अवर (वि०) 1. निम्न पद का, कम सम्मानित 2. अधम, पतित, अत्यंत निगण्य,--अश्मन् (पुं०) गेरु, -अहम (अव्य०) प्रतिदिन, हररोज, रोज-गिरिशमुपचचार प्रत्यहम्-कु. ११६०,—आकारः, कोष, भ्यान, आघातः 1. प्रत्याक्रमण 2. प्रतिक्रिया,-आचारः उपयुक्त आचरण या व्यवहार, आत्मम अकेला, अलग अलग,---आदित्यः झूठमूठ का सूरज,-आरंभ: 1. फिर शुरु करना, दूसरी बार आरंभ करना 2. प्रतिषेध,-आशा 1. उम्मीद, पूर्वधारणा–मा० 9 / 8 2. विश्वास, भरोसा, उत्तरम जवाब, उत्तर का उत्तर, उलक: 1. कौवा 2. उल्ल से मिलता-जुलता पक्षी,-ऋच (अव्य०) प्रत्येक ऋचा में, एक (वि०) प्रत्येक, हरेक. हरकोई (अव्य. कम्) 1. एक एक करके, एक बार में एक, अलग, अलग, अकेला, हर एक में, हर एक को (बहुधा विशेषणात्मक बल के साथ)--विवेश दण्डकारण्यं प्रत्येकं च सतां मनः-रघु० For Private and Personal Use Only Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 649 ) 12 / 9 (प्रत्येक सज्जन पुरुष के मन में प्रवेश किया)। 12 / 3, 7 / 34, कु० 2 / 31, -- कंचुक: शत्रु,-कंठम् (अव्य०) 1. अलग अलग, एक एक करके 2. गले के निकट,---,कश: (वि०) उदंड, जो हण्टर से भी वश में न आवे,- काय: 1. पुतला, प्रतिमा, चित्र, समानता 2. शत्र-की० 13128 3. लक्ष्य, चाँदमारी, निशान, ---कितव: जुए में प्रतिद्वन्द्वी,-कुंजरः प्रतिरोधी हाथी, ..-कूप: परिबार, खाई,---कल (वि०) अननुकूल विरोधी, प्रतिपक्षी, विरुद्ध प्रतिकूलतामुपगते हि विधी विफलत्वमेति बहसाधनता-शि० 916, कु० 3 / 24 2. कठोर, बेमेल, अप्रिय, अरुचिकर-अप्यन्नपुष्टा प्रतिकूलशब्दा-कु. 1145 3. अशुभ 4. विरोधी 5. उलटा, व्युत्क्रान्त 6. विपरीत, आड़ा, कर्कश, कठोर, °आचरितम् कुत्सित या आक्रमणात्मक कार्य अथवा आचरण --रघु०८1८१, °उक्तम्, क्तिः (स्त्री०) विरोध, कारिन् (वि.)विरोध करने वाला, वर्शन (वि.) अशुभ अथवा अभद्र दर्शनों वाला, प्रवतिन् -वतिन् (अव्य०) विपरीत कार्य करने वाला, उलटा मार्ग ग्रहण करने वाला, भाषित (वि.) विरोध करने वाला, असंगत बोलने वाला, 'वचनम् अरुचिकर या अप्रिय भाषण,--- कलम् (अव्य०) 1. विरोधी ढंग से, विपरीतता के साथ 2. उलटी तरह से, विपर्यस्त क्रम से, ...-क्षणम् (अव्य०) प्रत्येक क्षण, हर समय,-कु० 3156, - गजः आक्रमणकारी हाथी, -गात्रम् (अव्य०) प्रत्येक अंग में,---गिरिः 1. सामने | का पहाड़ 2. छोटा पहाड़,—ग्रहम्, ---गेहम् (अव्य०) / हर घर में, - ग्रामम् (अव्य०) हर गांव में,-चंद्र: झूठमूठ का चाँद, चरणम् (अव्य०) 1. प्रत्येक (वैदिक) सिद्धान्त या शाखा में 2. हर पग पर, —छाया 1, प्रतिबिम्ब, परछाईं, खाया 2. प्रतिमा, चित्र,-जंघा टाँग का अगला भाग -जिह्वा,—जिहिका गले की भीतर की घंटी, मांसतालु, कोमल तालु, तंत्रम् (अध०) प्रत्येक तंत्र या सम्मति के अनुसार, तंत्रसिद्धान्तः एक ऐसा सिद्धांत जिसको एक ही पक्ष ने माना हो (वादिप्रतिवाद्येकतरमात्राभ्युपगतः), व्यहम् (अव्य०) लगातार तीन दिन तक, दिनम् (अव्य०) हर रोज़, दिशम् (अव्य०) हर दिशा में, चारों ओर, सर्वत्र मेघ० 58, -देशम् (अव्य०) प्रत्येक देश में, देहम् (अव्य०) हरेक शरीर में,-दैवतम् (अव्य०) प्रत्येक देवता के निमित्त, द्वन्द्वः 1. प्रतिस्पर्धी, विरोधी, शत्रु, प्रतिद्वंद्वी 2. शत्रु० (--द्वम्) विरोध, शत्रुता,-वंद्विन् / (वि०) / विरोधी, शत्रुतापूर्ण 2. प्रतिकूल-कि० 16 / 29 3. लागडांट रखने वाला, प्रतिस्पर्धाशील | -श० 4 / 4, (-पुं०) विरोधी, प्रतिपक्षी, प्रतिस्पर्धी / -रघु०७१३७, १५।२५,-द्वारम् (अव्य०) प्रत्येक दरवाजे पर,–धुरः दूसरे घोड़े के साथ जुड़ा हुआ घोड़ा,--नप्त (पुं०) प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र,-नव (वि०) 1. नूतन, युवा, ताजा 2. हाल का खिला हुआ, या जिसमें अभी कलियाँ आई हों- मेघ० 36, --नाडी प्रशिरा, उपनाडी,-नायकः किसी काव्य का खलनायक जैसे रामायण में रावण, तथा माघकाव्य में शिशुपाल,--पक्षः 1. विरोधी पक्ष, दल या गुटबन्दी, शत्रुता 22. प्रतिकूल, शत्रु, दुश्मन, प्रतिद्वंद्वी, प्रतिपक्षकामिनी प्रतिद्वंद्वी पत्नी भामि० 064, विक्रमांक० 170, 73, प्रतिपक्षमशक्तेन प्रतिकर्तुम् - काव्य०१०, समास में प्रायः 'सम' या 'समान' अर्थ में प्रयुक्त 3. प्रतिवादी, महआल, पक्षित (वि.) 1. विरोध से युक्त, 2. विरोधात्मक प्रतिज्ञा से विफल किया हुआ, (जैसे न्याय में हेतु) (वह हेत) जो सत्प्रतिपक्ष नामक दोष से युक्त हो),--पक्षिन् (वि०) विरोधी, शत्रु, पथम् (अव्य०) मार्ग के साथ२, रास्ते की रास्ते की ओर,-प्रतिपथगतिरासीद्वेगदी/कृतांग:-कु० 3176, पदम् (अव्य०) 1. प्रत्येक पग पर 2. प्रत्येक स्थान पर, सर्वत्र 3. प्रत्येक शब्द में,- पावम् (अव्य०) प्रत्येक चरण में,- पात्रम् (अव्य०) प्रत्येक भाग के विषय में, प्रत्येक पात्र के विषय में प्रतिपात्रमाधीयतां यत्नः - श०१ (प्रत्येक पात्र की देख रेख की जानी चाहिए,-पादपम् (अव्य०) प्रत्येक वृक्ष में,-पाप (वि०) पाप के बदले पाप करने वाला, बुराई के बदले बुराई करने वाला, --पु (पू) रुषः 1. समान या सदश पुरुष 2. स्थानापन्न, प्रतिनिधि 3. साथी 4. पुतला ....आदमी का पुतला जिसे चोर किसी घर में स्वयं घसने से पहले यह जानने के लिए फेंका करते थे कि कोई जाग तो नहीं रहा है 5. पुतला, पूर्वालम् (अव्य०) प्रत्येक मध्याह्नपूर्व, हर दोपहर से पहले, प्रभातम् (अव्य०) प्रत्येक सुबह, -प्राकारः बाहरी परकोटा या फसील,-प्रियम् बदले में की गई कृपा या सेवा रघु० 5 / 56,- बंधुः जो पद व स्थिति में समान हो, -बल (वि०) बल में समान, अपने जोड़े का, समान शक्तिशाली ( लम्) शत्रु की सेना -अस्त्रज्वालावलीढप्रतिबलजलघेरंतरोर्वायमाणे-वेणी० 315, बाहुः भुजा को अगला भाग, कोहनी से नीचे का भाग बि (वि) बः, बम् 1. परछाईं, प्रतिमूर्ति कु० 6 / 42, शि० 9118 2. प्रतिमा, चित्र, भट (वि०) प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी-घटप्रतिभटस्तनि ने० 13.5, (टः) 1. प्रतिद्वंद्वी, प्रतिपक्षी 2. शत्रुपक्ष का योद्धा समालोक्याजौ त्वां विद्गवति विकल्पान् प्रतिभटाः काव्य० 10, भय (वि.) 1. भयावह भीषण, भयंकर, भयानक 2. खतरनाक ..-पंच० 82 For Private and Personal Use Only Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 650 ) 2 / 166, (यम्) भय, खतरा,--मंडलम् केन्द्रनष्ट | प्रत्येक अवसर पर,—वेशः 1. पड़ोस का घर, आसपास परिवेश, मंदिरम् (अव्य०) प्रत्येक घर में, --मल्ल: 2. पड़ोसी,-वेशित् (अ०) पड़ोसी, वेश्मन् (नपुं०) प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी-२० 1 / 63, पातालप्रतिमल्लगल्ल पड़ौसी का घर,--वेश्यः पड़ोसी,-बैरम वैर प्रतिशोध, आदि-मा० 5 / 22, * मायाः जबाबी जादू, मासम् बदला, प्रतिहिंसा,-शब्दः 1. प्रतिध्वनि, गंज,-वसुधा(अव्य०) प्रतिमास, मासिक, मित्रम् शत्रु, विरोधी, धरकन्दराभिसी प्रतिशब्दोऽपि हरेभिनत्ति नागान् ... ---मुख (वि०) 1. मुंह के सामने खड़ा हुआ, सामने विक्रम० 1216, कु० 6.64, रघु० 2 / 28 2. गरज, स्थित -प्रतिमुखागत - मनु० 8 / 291 2. निकटवर्ती, दहाड़,-शशिन् (पुं०) झूठमूठ का चाँद,-संवत्सरम् उपस्थित (खम्) नाटक की एक घटना या गौणकथा- (अब्य०) प्रतिवर्ष, हर साल,--सम (वि.) तुल्य, वस्तु जो नाटक के महान परिवर्तन या उलट फेर को जोड़ का,--सव्य (वि.) विपर्यस्त क्रम में, सायम् या ता जल्दी लादे या और भी अधिक देर कर दे (अव्य०) प्रतिसंध्या, हर साँझ,--सूर्यः, सूर्यक -दे० सा.द. 334 और 351 -३६४,-मुद्रा 1. झूठमूठ का सूरज 2. छिपकली, गिरगिट-उत्तर० मुकाबले की मोहर,--मुहर्तम् (अव्य०) प्रतिक्षण, | २।१६,-सेना, शत्रु की सेना,-स्थानम् (अव्य०) ----मूर्तिः (स्त्री०) प्रतिमा, समानता, यूथपः हर स्थान में, हर स्थान पर,-स्रोतम् (नपु०) धारा आक्रमणकारी हाथियों के झुंड का अगुआ या नेता, के विपरीत--हस्तः, हस्तकः प्रतिनिधि, अभिकर्ता, --रथः प्रतिपक्षी योद्धा (शा० --युद्ध रथ में बैठ कर स्थानापन्न, प्रतिपुरुष--आश्रितानां भतौ स्वामिसेवायां लड़ने वाला)-दौष्यंतिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य-श. धर्मसेवने, पुत्रस्योत्पादने चैव न संति प्रतिहस्तका, 4 / 19, राजः विरोधी राजा, - रात्रम् (अव्य०) --हि० 2 / 33 / हर रात, -रूप (वि०) 1. तदनुरूप, समान, मुकाबले / प्रतिक (वि.) [कार्षापण-टिठन, कार्षापणस्य प्रत्याका भाग रखने वाला,-चेष्टाप्रतिरूपिका मनोवृत्तिः / देशः ] कार्षापण के मूल्य का या कार्षापण से खरीदा .-श०१ 2. उपयुक्त, समुचित (पम्) चित्र, प्रतिमा, हआ। समानता, रूपकम् चित्र, प्रतिमा, - लक्षणम् निशान, प्रतिकरः [ प्रति+कृ+अप् ] प्रतिशोध, क्षतिपूर्ति / चिह्न, प्रतीक, --लिपिः (स्त्री०) लेख की नकल, | प्रतिकत (वि०) (स्त्री०-/) [प्रति+कृ+तृच् ] लिखी हुई प्रति, --लोम (वि.) 1. नैसगिक क्रम के प्रतिशोध लेने वाला, क्षतिपूर्ति करने वाला-(पुं०) बिरुद्ध, व्यत्क्रान्त, उलटा 2. जाति विरुद्ध (अपने पति | विरोधी, विपक्षी। से उच्च वर्ण की स्त्री की सन्तान) 3. विरोधी प्रतिकर्मन (नपं०) [ प्रति+ +मनिन् ] 1. प्रतिशोध, 4. नीच, दुष्ट, अधम 5. वाम (अव्य. मम्) प्रतिहिंसा 2. हर्जाना, उपचार, प्रतिकार 3. शारीरिक श्रृंगार, रूपसज्जा, प्रसाधन, शरीर-सज्जा (अबला:) रूप से, ज (वि.) जाति के विपरीत क्रम में प्रतिकर्म कर्तमपचक्रमिरे समये हि सर्वमपकारि कृतम् उत्पन्न अर्थात् अपने पति से उच्चवर्ण की स्त्री की -शि० 9:43, 5 / 27, कु०७३. विरोध, शत्रुता। सन्तान,--लोमकम् उलटा क्रम, विपरीत क्रम,-वत्स- प्रतिकर्षः [ प्रति कृष्---घा ] 1. एकत्रीकरण, संयोजन रम् (अव्य०) प्रतिवर्ष, हर साल,--बनम् हर जंगल 2. (किसी आगे आने वाले शब्द का) पूर्व विचार / में,-वर्षम् (अव्य०) हरसाल,-वस्तु (नपुं०) प्रतिकषः [ प्रति+क+अच ] 1. नेता 2. सहायक 1. समान, प्रतिमूर्ति, प्रतिरूप 2. प्रतिदान 3. समानता, संदेशटा / तुल्यता उपमा एक अलंकार जिसकी परिभाषा मम्मट प्रति (तो) कारः[ प्रति-कृ--घञ, पक्षे उपसर्गस्य ने यह दी है-प्रतिवस्तूपमा तु सा, सामान्यस्य द्विरे- दीर्घः ] 1. प्रतिशोध, पुरस्कार, प्रतिदान 2. बदला, कस्य यत्र वाक्यद्वये स्थितिः --काव्य. 10, उदा० प्रतिहिंसा, प्रतिफल 3. प्रतिविधान, निवारण, रोकतापेन भ्राजते सूर्यः शूरश्चापेन राजते-चन्द्रा० 5 / थाम, उपचार, इलाज या चिकित्सा-विकारं खल ४८,-वातः उलटी हवा (अब्य०-तम्) हवा के परमार्थतोऽजात्वाऽनारंभः प्रतीकारस्य श० 3, प्रतीविरुद्ध चीनांशकमिव केतोः प्रतिवातं नीयमानस्य कारो व्याधेः सूखमिति विपर्यस्यति जनः-भर्त० 3 / -श० १२३४,-वासरम् (अव्य०) प्रतिदिन 92 4. विरोध / सम-कर्मन् (नपुं०) जीणोद्धार .-विपटम् (अव्य०) 1. प्रत्येक शाखा पर 2. एक करना, सुधार करना,--विधानम् इलाज करना, एक शाखा पर, वेदम् (अव्य०) प्रत्येक वेद में या चिकित्सा करना---प्रतिकारविधानमायपः सति शेष हरेक वेद के लिए,-विषम् विपप्रतीकारक औषधि, हि फलाय कल्पते रघु० 8 / 4 / / -विष्णुक: मुचकुन्द वृक्ष,--वीरः विपक्षी, शत्रु,-वृषः प्रति (ती) काशः [ प्रति--कश् + घन, पक्षे उपसर्गस्य आक्रमणकारी बैल, वेलम् (अव्य०) हर समय, दीर्घः ] 1. परछाईं 2. दृष्टि, दर्शन, सादृश्य-(प्राय: For Private and Personal Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समास के अन्त में' के समान' से मिलता-जुलता' अर्थ / प्रतिगृहीत (भू० क. कृ०) [प्रति+ग्रह + क्त ] प्रकट करता है)-पुटपाकप्रतीकाश:-उत्तर० 31 1. लिया, ग्रहण किया, स्वीकार किया 2. मान लिया, प्रतिकुंचित (वि.) [प्रति-कुञ्च्+क्त ] झुका हुआ, . हामी भरी 3. विवाह किया। मुड़ा हुआ। प्रतिग्रहः [प्रति+ग्रह+अप] ग्रहण करना, स्वीकार प्रतिकृत (भू० क० कृ०) [ प्रति-क-|-क्त ] 1. वापिस करना 2. दान ग्रहण करना या स्वीकार करना किया हुआ, लौटाया हुआ, प्रतिशोधित, प्रतिहिसित 3. दान ग्रहण करने का अधिकार 4. उपहार ग्रहण 2. प्रतिविहित, उपचार किया हुआ। करने का अधिकार (जो कि ब्राह्मणों का ही विशेषाप्रतिकृतिः (स्त्री०) [प्रति+क+क्तिन् ] 1. बदला, धिकार है) --मनु० 188, 4 / 86, याज्ञ० 11118 प्रतिहिंसा 2. वापसी, प्रतिशोध 3. परछाई, प्रतिबिंब 4. भेंट, उपहार, दान-राज्ञः प्रतिग्रहोऽयम्-श० १,शि० 4. समानता, चित्र, मर्ति, प्रतिमा-रघु० 8 / 92, 14 / 35 5. (भेंट का) ग्रहण करने वाला 6. सादर 14 / 87, 18153 5. स्थानापन्न / स्वागत 7. अनुग्रह, शान 8. पाणिग्रहण 9. ध्यान पूर्वक प्रतिकृष्टः (भू० क० कृ.) [प्रति+कृष्+क्त ] 1. दो- सुनना 10. सेना का पिछला भाग 11. पीक दान / बारा जोता हुआ 2. पीछे इकेला हुआ, तिरस्कृत, प्रतिग्रहणम [प्रति+ग्रह+ल्यूट] 1. उपहार ग्रहण अस्वीकृत 3. छिपाया हुआ, गुप्त 4. नीच, दुष्ट, 2. स्वागत 3. पाणिग्रहण / अधम / प्रतिग्रहिन्, प्रतिगृहीत् (पुं०) [प्रतिग्रह+इनि. 1 प्रति प्रतिकोपः, प्रतिकोषः [प्रति+कुप् (क्रुध् ) --घा ] +ग्रह +तृच ] ग्रहण करने वाला, ग्रहीता। क्रोध के प्रति होने वाला क्रोध / प्रतिमाहः [प्रति+ग्रह+ण ] 1. उपहार स्वीकार करना प्रतिक्रमः [प्रति+क्रम्-धा ] उलटा क्रम। 2. थूकदान, पीक दान। प्रतिक्रिया [ प्रति ---+-श, इयङ+टाप् ] 1. क्षतिपूर्ति, | प्रतिघः [प्रति+हन्+ड, कुत्वम् ] 1. विरोध, मुकाबला प्रतिशोध 2.प्रतिहिंसा, बदला, प्रतिफल 3. प्रतिविधान, 2. लड़ाई, संघर्ष, आपस की मारपीट 3. क्रोध, रोष प्रतीकार, दूरीकरण-अहेतुः पक्षपातो यस्तस्य नास्ति 4. मूर्छा 5. शत्रु / प्रतिक्रिया---उत्तर०-५।१७, रघु०१५।४ 4. विरोध | प्रति (ती)घातः[प्रति + हनु+णिच् +अप, पक्षे उपसर्गस्य 5. शरीरसज्जा, शृंगार, रूपसज्जा 6. रक्षा 7. सहा- ! दीर्घः ] 1. दूर हटाना, पीछे ढकेलना 2. विरोध, यता, कुमक या साहाय्य / मुकाबला 3. आघात के बदले आघात, जवाबी आघात प्रतिक्रुष्ट (वि.)[प्रति+क्रुश+क्त ] दयनीय, बेचारा, 4. प्रतिक्षेप, प्रतिकार 5. प्रतिषेध / गराव. प्रतिघातनम् [प्रति+हन् ।णिच्-+ ल्युट् ] 1. पीछे प्रतिक्षयः / प्रति-+-क्षि+ अच् ] संरक्षक, टहलुआ। ___ ढकेलना, दूर हटाना 2. वध, हत्या। प्रतिक्षिप्त (भू० के० कृ०) [प्रति+क्षिप्+क्त] 1. र६ / प्रतिघ्नम [ प्रति+हन+क] शरीर / किया हुआ, अस्वीकृत, हटाया हुआ 2. प्रतिकृत, प्रति- प्रतिचिकीर्षा | प्रति+कृ+सन-+-टाप् ] बदले की इच्छा, रुद्ध, पीछे ढकेला हुआ, अवरुद्ध किया हुआ 3. अप | प्रतिहिंसा की इच्छा, बदला लेने की अभिलाषा / भाषित, भत्र्सना किया हुआ, बदनाम किया हुआ | प्रतिचिन्तनम [प्रति-चिन्त-+ ल्युट ] मनन करना, गहन4. भेजा हुआ, प्रेषित। चितन करना। प्रतिक्षु तम् [प्रति+क्षु+क्त ] छींक / प्रतिच्छदनम् [प्रति-छद्-+ल्यूट 1 ढकना, चादर / प्रतिक्षेपः [प्रति--क्षिप् +-घा | 1. प्राप्ति स्वीकार न | प्रतिच्छंदः, प्रतिच्छंदकः [प्रति+छन्द्+घञ, कन् च] करना, अस्वीकृति 2. विरोध करना, खण्डन करना, 1. समानता, चित्र, मूति प्रतिमा 2. स्थानापन्न प्रतिवाद करना 3. विवाद / प्रतिख्यातिः [प्रति-ख्या+क्तिन् ] विश्रुति, प्रसिद्धि। प्रतिच्छन्न (भू० क० कृ.) [प्रति+छद्+क्त ] 1. ढका प्रतिगत (भू० के० कृ०) [प्रति+गम्+क्त ] आगे या हुआ, आच्छादित, लपेटा हुआ 2. छिपाया हुआ, गुप्त पीछे उड़ान भरना, इधर उधर चक्कर काटना। 3. जुटाया हुआ, पूर्वसंचित 4. गोट या मगजी प्रतिगमनम् | प्रति+गम् + ल्युट ] लौटना, वापिस जाना, | लगाया हुआ, जड़ा हुआ। वापसी। प्रतिच्छे वः [ प्रति-छिद्घा मुकाबला, विरोध / प्रतिहित (भू० क० कृ०) [प्रति-|-गई +क्त ] कलंकित, प्रतिजल्पः [प्रति-- जल्प-घा ] उत्तर, जवाब। निन्दित / प्रतिजल्पकः [प्रतिजल्प+कन् ] सादर सहमति / प्रतिगर्जना [प्रति -गर्ज +-युच्+टाप् ] गर्जन के जवाब प्रतिजागरः [प्रति-+-जागृ+घञ ] निगरानी, देख-रेख, में गर्जना करना, किसी की दहाड़ सुनकर दहाड़ना।। सावधानी। रना, खण्डन करना, शि० 12 / 29 / प्रति+छद्+क्त ] 1. C पीले For Private and Personal Use Only Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 652 ) प्रतिजीवनम् [प्रति+जीवन-ल्युट्] पुनर्जीवन, पुनः / प्रतिनिधिः [प्रति-नि+धा+कि ] 1.स्थानापन्न, एवजी, सजीवता। वह व्यक्ति जो किसी दूसरे के बदले काम पर लगाया प्रतिज्ञा [प्रति--ज्ञा+अ+टाप् ] 1. मानना, अंगीकार | जाय—सोऽभवत्प्रतिनिधिर्न कर्मणा---रघु० 11313, करना 2. व्रत, वचन, वादा, औपचारिक घोषणा | 1181, 4158, 5 / 63, 9 / 40 2. सहायक, प्रणिधि -देवात्तीर्ण प्रतिज्ञः --मुद्रा० 4 / 12, तीा जवेनैव 3. स्थानापत्ति 4. जामिन 5. प्रतिमा, समानता, चित्र / नितांतदुस्तरां नदी प्रतिज्ञामिव तां गरीयसीम्-शि० / प्रतिनियमः [प्रा० स०] सामान्य नियय / 12 / 74 3. उक्ति, दृढोक्ति, घोषणा, प्रकथन ! प्रतिनिजित (भू० क० कृ०) [प्रति +- निजि +क्त ] 4. (न्या० में) प्रस्थापना, सवाक्य पंचांगी अनुमान 1. पराजित, परास्त 2. निराकृत, निरस्त / का प्रथम अंग, दे० 'न्याय' के अन्तर्गत ('पर्वतो | प्रतिनिर्देश्य (वि.) [प्रति+निर+दिश् + ण्यत् ] जो वह्निमान्' सामान्य उदाहरण है) 5. अभियोग, पहला कहा हुआ होने पर भी फिर दोहराया जाय आरोपपत्र / सम०-पत्रम् बंधपत्र, लिखित संविदापत्र, जिससे कि तत्संबंधी और कुछ भी फिर दोहराया जाय -भंगः प्रतिज्ञा का तोड़ देना,-विरोधः वचन के विरुद्ध जिससे कि तत्संबंधी और कुछ भी कह दिया जाय आचरण करना,-विवाहित (वि०) जिसकी सगाई हो --तु. काव्य०७ में दिये गये उदाहरण की-उदेति गई हो,-संन्यास: 1. वचन भंग करना, 2. (न्या० में) सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च --(यहाँ 'ताम्र मल प्रस्ताव का त्याग कर देना (इसी अर्थ में 'प्रतिज्ञा शब्द की पुनरुक्ति यह बतलाने के लिए की गई कि हानि' शब्द भी प्रयुक्त होता है)। सूर्य 'लाल' ही निकलता है, 'लाल' ही छिपता है)। प्रतिज्ञात (भ० क. कृ.) [प्रति+जा+क] 1. उद्घोषित, प्रतिनिर्यातनम् [प्रति+निर+यत् णिच् + ल्युट ] प्रति उक्त, दृढ़ता पूर्वक कथित 2. वचनबद्ध, सहमत शोध, प्रतिहिंसा। 3. माना हुआ, अंगीकृत--तम् वचन, वादा। प्रतिनिविष्ट (वि०) [प्रति+नि+विश्+क्त ] दुराग्रही, प्रतिज्ञानम् [प्रतिज्ञा +ल्युट]। दृढोक्ति, प्रकथन हठी, पक्का, जिद्दी। सम० ..-मूर्खः दुराग्रही बेवकूफ, 2. करार, वादा 3. मानना, स्वीकार करना। पक्का बुद्धू-न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमारा प्रतितरः [प्रति-तृ+अप् ] डांड खेने वाला , मल्लाह या धयेत्-भर्तृ० 2 / 5 / नाविक / प्रतिनिवर्तनम् [प्रति+नि+बृत् + ल्युट ] 1. लौटाना, प्रतितालो [प्रतिगता तालम्-प्रा० स० डीप् ] (दरवाजे वापसी 2. मुड़ना। की) कुंजी, चाबी। प्रतिनोदः [प्रति -नुद+घञ्] पीछे ढकेलना, पीछे प्रतिदर्शनम् [प्रति---दृश् + ल्युट ] देखना, प्रत्यक्ष करना / | हटाना। प्रतिदानम् प्रति-दा+ल्युट्] / पलटाना, प्रत्यर्पण, वापिस प्रतिपत्तिः (स्त्री०) [प्रति+पद+क्तिन ] 1. हासिल देना, (घरोहर आदि की) पूनराप्ति 2. विनिमय, करना, अवाप्ति, उपलब्धि --चन्द्रलोकप्रतिपत्तिः, स्वर्ग. वस्तुओं की अदलाबदली। आदि 2. प्रत्यक्षज्ञान, अवेक्षण, चेतना, (यथार्थ) ज्ञान प्रतिदारणम् [प्रति +-दृ-णिच् + ल्युट् ] 1. लड़ाई, युद्ध | . वागर्थप्रतिपत्तये-रघु० 111, तयोरभेद प्रतिपत्तिरस्ति 2. फाड़ना। मे --- भत० 3 / 99, गुणिनामपि निज रूपप्रतिपत्तिः प्रतिदिवन (पुं०) प्रति ---दिव् - कनिन् ] 1. दिन 2. सूर्य / परत एवं संभवति-- वास. 3. हामी भरना, आज्ञा प्रतिदृष्ट (भू० क. कृ.) [प्रति+दृश+क्त ] 1, देखा ! पालन, स्वीकरण-प्रतिपत्तिपराङमुखी-भदि० 8 / 95 हुआ 2. दृष्टि गोचर, दृश्यमान / (आज्ञानुपालन के विरुद्ध, यश में न आने वाला) प्रतिधावनम् [प्रति-|-धाव- ल्युट ] धावा बोलना, हमला 4. माल लेना, अभिस्वीकृति 5. दढोक्ति, उति करना, आक्रमण करना। 6. समारंभ, शुरु, उपक्रम 7. कार्यवाही, प्रगमन, क्रिया प्रतिध्वनिः, प्रतिध्वानः [प्रति+ध्वन्+३, धन वा ] विधि-वयस्य का प्रतिपत्तिरत्र -मालवि० 4, कू० गंज, प्रतिध्वनन / 5:42, विषादलुप्त प्रतिपत्ति सैन्यम्-रघु० 3 / 40, सेना प्रतिध्वस्त [ भ० क० कृ०) [प्रति+ध्वंस्+क्त ] पछाड़- जो क्या कार्यविधि अपनाई जाय इस बात को विषाद कर नीचे गिराया हुआ, अधोमुख, खिन्न / के कारण न जान सकी) 8. अनुष्ठान, करना, प्रगमन प्रतिनन्दनम् [प्रति-- नन्द+ल्यूट ] 1, बधाई देना, स्वागत करना - प्रस्तुत प्रतिपत्तये--- रघु० 15 / 75 9. दृढ़ करना 2. धन्यवाद देना। संकल्प, निश्चित घारणा-व्यवसायः प्रतिपत्ति निष्ठरः प्रतिनादः [प्रति+नद् + धन ] गंज, प्रतिध्वनि। --रघु०८१५५ 10. समाचार, गुप्त वार्ता कर्मसिद्धा प्रति (ती) नाहः (प्रति+नह---घा, पक्षे उपसर्गस्य वाशु प्रतिपत्तिमानय-- मुद्रा० 4, श० 6 11. सम्मान, दीर्घः झंडा, पताका / आदर, पूजनीयता का चिह्न, आदरयुक्त व्यवहार For Private and Personal Use Only Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 653 ) -सामान्य प्रतिपत्ति पूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया | रक्षा करना, पालन करना, अभ्यास करना / . ... श० 4116, 7.1, रघु० 14122, 15 / 12 | प्रतिपीडनम् [प्रति -पीड्न-णिच् + ल्युट ] अत्याचार 12. प्रणाली, उपाय 13. बुद्धि, प्रज्ञा 14. रिवाज, करना, सताना। प्रयोग 15. उन्नति, तरक्की, उच्चपद प्राप्ति 16. यश, | प्रतिपूजनम्,-पूजा [ प्रति+ पूज- ल्युट्, प्रतिपूज् +अ+ प्रसिद्धि, ख्याति 17. साहस, भरोसा, विश्वास टाप् ] 1. श्रद्धांजलि अर्पित करना, सम्मान प्रदर्शित 18. सम्प्रत्यय, प्रमाण / सम० ... दक्ष (वि.) कार्य करना 2. पारस्परिक अभिवादन, शिष्टाचार का विधि का ज्ञाता,-पटहः एक प्रकार का नगाड़ा,... भेदः विनिमय / मतभेद, दृष्टिकोण में अन्तर, विशारद (वि०) / प्रतिपूरणम् [प्रति+पूर + ल्युट्] 1. पूरा करना, भरना कार्यविधि से परिचित, कुशल, चतुर / 2. (सुईदार पिचकारी द्वारा किसी तरल पदार्थ को) प्रतिपद् (स्त्री०) [प्रति-+पद्+क्विप्] 1. पहुँच, प्रवेश, | अन्तः क्षिप्त करना। मार्ग 2. आरम्भ, शुरु 3. प्रज्ञा, बुद्धि 4. शुक्लपक्ष का प्रतिप्रणामः [ प्रति--प्र-+नम् +घञ्] बदल में किया पहला दिन 5. नगाड़ा। सम०-चन्द्रः (प्रतिपदा गया अभिवादन / का) नया चाँद, (विशेष रूप से पूज्य)--प्रतिपच्चन्द्र- प्रतिप्रदानम् [प्रति+प्र-+दा+ल्यूट] 1. वापिस कारना, निभायमात्मजः-रघु० 8 / 65, तूर्यम् एक प्रकार लौटाना 2. विवाह में देना। का नगाडा। प्रतिप्रयाणम् [प्रति+प्र+या+ल्यट] वापसी, प्रत्यावर्तन / प्रतिपदा,-दी [ प्रतिपद्+टाप, ङीष् वा ] शुक्लपक्ष का प्रति प्रश्नः [प्रति ---प्रच्छ-नङ] के बदले में पूछा गया पहला दिन / प्रश्न 2. उत्तर / प्रतिपन्न (भू० क० कृ०) [प्रति+पद्+क्त 1. उपलब्ध, | प्रति प्रसवः [प्रति--प्र--सू-अप] 1. प्रत्यपवाद, अपवाद प्राप्त 2. किया गया, अनुष्ठित, कार्यान्वित, निष्पन्न का अपवाद (जहाँ अपवाद के अन्तर्गत उदाहरणों में 3. हाथ में लिया हुआ, आरब्ध 4. वचन दिया हआ, ही सामान्य नियम का विधान प्रदर्शित किया जाय) लगा हुआ 5. सहमत, माना हुआ, स्वीकार किया ----तृकाभ्यां कर्तरि इत्यस्य प्रतिप्रसवोऽयम् (याजकाहुआ 6. ज्ञात समझा हुआ 7. जवाब दिया गया, उत्तर दिभिश्च) सिद्धाः। दिया गया 8. प्रमाणित, प्रशित (प्रति पूर्वक' पद' | प्रति प्रहारः [ प्रति+प्र+ह+घञ ] बदल में प्रहार देखो)। करना, थप्पड़ के बदले थप्पड़ लगाना / प्रतिपादक (वि०) (स्त्री०-दिका) [प्रति+पद् -+-णिच् | प्रतिप्लवनम [प्रति--ल-ल्यट] पीछे की ओर कदना / +ण्वुल] 1. देने वाला, स्वीकार करने वाला, प्रदान प्रतिफल: प्रतिफलनम् [ प्रति +-फल-+अच्, प्रतिफल+ करने वाला, समर्पित करने वाला 2. प्रदर्शित करने ल्युट] 1. परछाईं, प्रतिबिम्ब, प्रतिमा, छाया 2. पारिवाला, सहायता करने वाला, प्रमाणित करने वाला, श्रमिक, प्रतिदान 3. प्रतिहिंसा, प्रतिशोध / स्थापित करने वाला 3. सोच-विचार करने वाला, प्रतिफल्लक (वि०)[प्रति+फुल्ल-+-बल] पिलने वाला, व्याख्या करने वाला, सोदाहरण निरूपण करने वाला पूरा खिला हुआ। 4. उन्नत करने वाला, आगे बढ़ाने वाला, प्रगति करने | प्रतिवद्ध (भक० कृ०) [प्रति-|-बंध--क्त] 1. बांधा वाला 5. प्रभावशाली, निष्पादन करने वाला। गया, बँधा हुआ, कसा हुआ 2. जोड़ा गया 3. अवरूद्ध, प्रतिपादनम् (प्रति+पद् --णि-+ल्यट] 1. देना, स्वीकार रुकावट डाली गई, बाधित 4. टंका हुआ, जड़ा हुआ करना, प्रदान करना 2. प्रदर्शन, प्रमाणन, स्थापन | -शि० 948 5. समायुक्त, अधिकार में करने वाला 3. अनुशीलन, व्याख्यान विस्तृत, रूप से प्रस्तुत करना, 6. फंसा हुआ, अन्तर्यस्त 7. दूर रक्खा हआ 8. निराश सोदाहरण निरूपण 4. कार्यान्विति, निष्पन्नता, पूर्णता 9. (दर्शन में) अनिवार्य तथा अविच्छिन्न रूप से 5. जन्म देना, पैदा करना 6. आवृत्ति, अभ्यास संयुक्त (जैसे आग और धुंआँ)। 7. आरम्भ / प्रतिबंधः [प्रतिबंध+घञ] 1. बंधन, बाँधना 2. अबप्रतिपादित (भू. क. कृ.) [प्रति+पद् - णिच् + क्त ] रोध, रुकावट, विघ्न--सतपः प्रतिबंधमन्यना--- रघु० 1. दिया हुआ, प्रदत, स्वीकृत, प्रस्तुत 2. स्थापित, 880, महावी० 5 / 4 3. विरोध, मुकाबला 4. आवप्रमाणित, प्रदर्शित 3. व्याख्यात, सविवरण प्रस्तुत रण, नाकेबंदी, घेरा 5. संबंध 2. (दर्शन० में) 4. उद्घोषित, उक्त 3. जन्म दिया, पैदा किया। अनिवार्य तथा अविच्छिन्न संयोग। प्रतिपालक: [प्रति+पाल+णिच +ण्वल | बचाने वाला, प्रतिबंधक (वि०) (स्त्री०----धिका) [प्रति+बंध-. संरक्षक अभिभावक। एबुल्] 1. बांधने वाला, जकड़ने वाला, 2. रुकावट प्रतिपालनम् [प्रति+पाल+णिच् + ल्युट्] संरक्षण, बचाना। डालने वाला, अवरोध करने वाला, विघ्नकारक 3. For Private and Personal Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुकाबला करने वाला, विरोध करने वाला,-कः / --मा० 3 / 11, दमघोषसुतेन कश्चन प्रतिशिष्टः शाखा, अंकुर / प्रतिभानवानथ-शि०१६।१। प्रतिबंधनम् [प्रति+बं+ल्युट्] 1. बाँधना, कसना 2. | प्रतिभावः [प्रति+भू+घञ्] तदनुरूप वृत्ति / कैद, बंधन 3. अवरोध, रुकावट / प्रतिभाषा [प्रति+-भाष+अ-+-टाप्] उत्तर, जवाब / प्रतिबंधिः,-धी प्रतिबन्ध + इनि, प्रतिबन्ध-हीष] 1. | प्रतिभासः [प्रति+भास्+घञ] 1. मन में स्फरित होना, आक्षेप 2. ऐसा तक जो विपक्ष पर समान रूप से चमकना झलकना, (अकस्मात्) प्रतीति-वाच्य प्रभाव डाले (इस अर्थ में प्रतिबन्दी' शब्द भी है)।। वैचिथ्य प्रतिभासादेव-काव्य० 10 2. दृष्टि, दर्शन प्रतिबाधक (वि.) [प्रति+बाध --- बुल] 1, हटाने वाला, 3. भ्रम, माया। दूर करने वाला 2. रोकने वाला, अवरुद्ध करने वाला। प्रतिभासनम् प्रति+भास्+ ल्युट दृष्टि, दर्शन, झलक / प्रतिवादनम् [प्रति+बाथ् + ल्युट्] हटाना, दूर करना, प्रतिभिन्न (भू० क० कृ०) [प्रति--भिद्-+-क्त 1. पारअस्वीकार करना। विद्ध 2. सटा हुआ, जुड़ा हुआ 3. विभक्त। प्रतिबिंबनम् (प्रतिबिम्ब--विवप् + ल्युट] 1. परछाई 2. प्रतिभूः प्रति+भू+विवप 1. जमानत, प्रतिभूति, तुलना -दृष्टांतः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम् जमानत देने वाला, (उत्तरदायी होने का प्रमाणपत्र), --काव्य० 10 / विश्वास, - सौभाग्यलाभप्रतिभू: पदानाम्---विक्रम प्रतिबिंबित (कि०) [प्रतिबिंव-क्विप+क्त] जिसकी १२९-याज्ञ. 210, 50, नै० 1414 / परछाई पड़ी हो, दर्पण में प्रतिफलित / प्रतिभेदनम् (प्रति+भिद्-+ ल्युट् | 1. आर पार पींधना, प्रतिबुद्ध (भ० क० कृ०) (प्रति+बुध+क्त] 1. जागा घुसेड़ना 2. काटना, खण्डित करना, फाड़ना 3. हुआ, जगाया हुआ 2. पहचाना हुआ, देखा हुआ 3, (आँख) निकाल लेना 4. विभक्त करना / प्रसिद्ध, विख्यात। | प्रतिभोगः [प्रति+भुज+घञ] उपभोग / प्रतिबुद्धि. (स्त्री०) [प्रति + बु+क्तिन्] 1. जागरण प्रतिमा [प्रति+मा+अड-टाप्] 1. प्रतिबिंब, समानता, 2.विरोधी अभिप्राय या इरादा / प्रतिमा, आकृति, बुत-- रघु० 16 / 39 2. समरूपता, प्रतिबोधः [प्रति +बुध+धा] 1. जागना, जागरण, सादृश्य (प्रायः समास में गरोः कृशानुप्रतिमात् जगाया जाना ---तदपोहितुमर्हसि प्रिये प्रतिबोधेन --रघु० 2 / 49 3, परछाई, प्रतिबिंब-- मुखमिंदविषादमाशु मे— रघु० 8154, अप्रतिबोधशायिनी रुज्ज्वलकपोलमतः प्रतिमाच्छलेन सुदृशामविशत्-शि० ---58, 'सदा के लिए सो जाने वाली' -कि०६।१२, 9648, 73, रघु०७।६४, 12 / 100 4. माप, विस्तार 12 / 48 2. प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी 3. अनुदेश, शिक्षण 5. दोनों दांतों के बीच का हाथी के सिर का भाग। 4. तर्क, तर्कना, मनःशक्ति --किमत याः प्रतिबोधवत्यः सम०--गत (वि०) मूर्ति में वर्तमान,--चंन्द्रः प्रतिश० 5 / 22 / बिंबित चन्द्रमा, चन्द्रमा का प्रतिबिंब--रघु० 10 / 65, प्रतिबोधनम् [प्रतिबुध +-णिच् + ल्युट] 1. जगाना 2. इसी प्रकार--प्रतिमें दुः, प्रतिमाशशांकः,--परिचारक: शिक्षण, अनुदेश। पुजारी, मूर्ति का सेवक / प्रतिबोधित (वि.) [प्रति-+बुध+णिच्+क्त] 1. प्रतिमानम् [प्रति+मा+ल्युट] 1. नमना, प्रतिमूर्ति 2. जगाया हुआ 2. अन दिष्ट, शिक्षित / / प्रतिमा, मूर्ति 3. समानता, उपमा, समरूपता 4. बोझ प्रतिभा [प्रति-भाक+टाप्] 1. दर्शन, दृष्टि 2. 5. दांतों का मध्यवर्ती सिर का भाग-पृथुप्रतिमानभाग प्रकाश, प्रभा 3. बुद्धि, समझ-कि० 16 / 2, विक्रम -, शि० 5 / 36 6. परछाई। 1118, 23 4. मेधा, प्रखर बुद्धि, विशद कल्पना, प्रतिमुक्त (वि.) [प्रति---मुच+क्त ] 1. धारण किया प्रज्ञा (प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता) 5. हुआ, पहना हुआ, प्रयुक्त किया हुआ 2. कसा हुआ, प्रतिबिंब, परछाई 6. घृष्टता, ढिठाई। सम-अन्वित बाँधा हुआ, जकड़ा हुआ 3. शास्त्र से सज्जित, (वि.) 1. मेधावी, प्रज्ञावान 2, बेधड़क, साहसी, हथियारबंद 4. मुक्त, छोड़ा हुआ 5. लौटाया हुआ, -मुख (वि०) साहसी, दिलेर,-हानिः (स्त्री०) वापिस किया हुआ 6. फेंका हुआ. उछाला हुआ 1. अंधकार 2. प्रज्ञा या मेधा का अभाव / (दे० प्रतिपूर्वक मच')। प्रतिभात (भू० क० कृ०) [प्रति -भा+क्त] 1. उज्ज्वल, प्रतिमोक्षः, प्रतिमोक्षणम् [प्रति + मोक्ष + घन, ल्युट् प्रभायुक्त 2. ज्ञान, अध्याहृत, अवगत / प्रतिभानम् [प्रति+मा+ ल्युट्] 1. प्रकाश, दीप्ति 2. बुद्धि | प्रतिमोचनम् [प्रति -- मुच्+ ल्युट ] 1. शिथिल करना या समझ, ज्ञान को चमक-हि० 3 / 19 3. हाजिर 2. प्रतिशोध, प्रतिहिंसा, प्रतिदान-वैरप्रतिमोचनाय जवाबी,-प्रत्युत्पन्नमतित्व-कालावबोधः प्रतिभानवत्त्वम् / --रघु० 14141 3. मुक्ति, छुटकारा / शि, दीप्ति 2. बटवा ] मुक्ति, छटकामात- मोक्ष + घना For Private and Personal Use Only Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतियत्नः [प्रति+यत्+नङ्ग] 1. प्रयास, उद्योग, चेष्टा | प्रतिवचनम्, प्रतिवचस् (नपुं०) प्रतिवाच (स्त्री०) प्रति 2.तयारी, परिश्रम द्वारा सम्पादन-शि० 3154 3. पूर्ण वाक्यम् [प्रति+व+ल्युट, वच्--णिच् ---क्विप् ] या पूरा करना 4. नया गुण सिखाना-सतो गुणां- उत्तर, जवाब--प्रतिवाचमदत्त केशवः शपमानाय न तराधान प्रतियत्नः-पा० 2 / 3 / 53 पर काशिका चेदिभूभुजे-शि० 16 / 25, परभृतविरुतं कलं यथा 5. अभिलाषा, इच्छा 6. विरोध, मकाबला 7. प्रति- / प्रतिवचनीकृतमेभिरीदृशम् -श० 4 / 9 / हिंसा, प्रतिशोध, बदला 8. बंदी बनाना, कैद करना | प्रतिवर्तनम प्रति-:-वृत+ल्यट | लौटाना, वापिस करना। 9. अनुग्रह। प्रतिवसथः [प्रति+वस - अथच् ] ग्राम, गाँव / प्रतियातनम् [प्रति / यत् + णिच् + ल्युट् ] प्रतिशोध, प्रति- प्रतिवहनम् [प्रति +बह -+ ल्युट् ] वापिस ले जाना, वापिस हिंसा--जैसा कि 'वैरप्रतियातन' में। ले जाने में नेतृत्व करना / प्रतियातना [प्रति यत् +-णिन् +युच+टाप] चित्र, प्रतिवादः [ प्रति –वद्--घन ] 1. उत्तर, प्रत्युत्तर, जवाब प्रतिमा, मति ----शि० 3 / 34 / / 2. इंकार करना, अस्वीकृति / प्रातयानम् [प्रात+या+ल्युट | लोटना, प्रत्यावतन, वापसा। प्रतिवादिन् (पुं०) [प्रति-+ वद्+-णिनि ] 1. विपक्षी प्रतियोगः [प्रति +युज् +घञ ] 1.किसी वस्तु का प्रतिरूप 2. प्रतिपक्षी उत्तरवादी (कानून में)। होना या बनाना 2. विरोव, मुकाबला 3. अन्तर्विरोध, | प्रतिवारः, प्रतिवारणम् [प्रति-!-- घञ प्रति | lवचनविरोध 4. सहयोग 5. विषनिवारक औषधि, | णिच्--ल्युट ] परे रखना, दूर रखना। उपचार / प्रतिवार्ता [प्रा० स०] वर्णन, सूचना, समाचार, संवाद / प्रतियोगिन् (वि.) [प्रति--युज+घिनुण ] 1. विरोध | प्रतिवासिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [प्रति---वस्-णिनि ] करने वाला, प्रतीकारक. बाधक 2. संबद्ध या तदनु | निकट रहने वाला, पड़ोस में रहने वाला-पुं० पड़ोसी। रूप, किसी वस्तु का प्रतिरूप बनाने वाला, प्रायः प्रतिविघातः [प्रति ।-वि+हन्- घाप्रहार के बदले न्यायविषयक रचनाओं में प्रयुक्त 3. सहयोग करने | प्रहार करना, बचाव / वाला- (पु.) 1. विरोधी, विपक्षी, शत्रु-दहत्यशेषं | प्रतिविधानम् [प्रति +-बि-धा--ल्युट ] 1. प्रतिकार प्रतियोगिगर्व-विक्रम० 11117 2. प्रतिरूप, जोड़ का। करना, विरोध में काम करना, विफल करना, विरुद्ध प्रतियोड (पुं०) प्रतियोधः [ प्रति+युध+तृच, घा | कार्य करना 2. व्यवस्था,क्रम 3. रोक थाम 4. स्थानावा] शत्रु, विपक्षी। पन्न संस्कार, सहकारी संस्कार / प्रतिरक्षणम्,-रक्षा [प्रति+रक्ष--ल्युट, अङ्टाप् वा] | प्रतिविधिः [ प्रति+वि-धा+कि ] 1. प्रतिशोध 2. उपबचाव, संधारण, रक्षा। चार, प्रतिक्रिया के उपाय / प्रतिरंभः [प्रति-रंभ-+घञ्] क्रोध, रोष / प्रतिविशिष्ट (वि.) [ प्रति+वि--शास्+क्त ] अत्यन्त प्रतिरवः [प्रति+: अच। 1. कलह, झगड़ा 2 गूंज, श्रेष्ठ। प्रतिध्वनि। प्रतिवेशः [ प्रति+विश्+घञ्] 1. पड़ोसी 2. पड़ोसी प्रतिबद्ध (भू० क० कृ०) [प्रति--रुघु+क्त ] 1. अवरुद्ध, __ का वासस्थान, पड़ोस / सम०-वासिन् (वि०) बाधित, विघ्नयुक्त 2. रुका हुआ, अन्तरित 3. क्षति- / पड़ोस में रहने वाला (पुं०) पड़ोसी। युक्त 4. विकलीकृत 5. वेष्टित, घेरा डाला हुआ। प्रतिवेशिन् (वि.) (स्त्री०---नी) [प्रतिवेश--इनि ] प्रतिरोधः [प्रति-रुधु+घञ] 1. अटकाव, रुकावट, / पड़ोसी-दृष्टि हे प्रतिवेशिनि क्षणमिहाप्यस्मद्गृहे विघ्न 2. घेरा, नाकेबंदी 3. विपक्षी 4. छिपाना दास्यसि-सा० दा०, मृच्छ० 3 / 14 / 5. चोरी, डकैती 6. निन्दा, घृणा।। प्रतिवेश्यः [ प्रति विश्+ ण्यत् पड़ोसी। प्रतिरोधकः, प्रतिरोधिन् 10) [प्रति+रुध्-वुल, प्रतिवेष्टित (भू० क० कृ०) [ प्रति / वेष्ट्+क्त ] प्रत्याणिनि वा] 1. विपक्षी 2. लुटेरा, चोर-मालवि० वृत्त विपर्यस्त, पीछे की ओर मुड़ा हुआ / 5 / 10 3. रुकावट / प्रतिव्यूढ (भू० क० कृ०) [प्रति+वि+ऊह+क्त ] प्रतिरोधनम् [प्रति-रुध् ल्युट ] विरोध करना, रुकावट संग्राम--व्यूह रचना में परास्त / डालना। प्रतिव्य हः [प्रति+वि+ऊह+घञ ] 1. शत्रु के विरुद्ध प्रतिलंभः [प्रति+लम्घा ] 1. हासिल करना, सेना की व्यह रचना 2. समुच्चय, संग्रह। प्राप्त करना, ग्रहण करना 2. निन्दा, गाली, खरी- प्रतिशमः [ प्रति-+शम् +धा ] बिश्राम, विराम / / खोटी (सुनाना)। प्रतिशयनम् [प्रति शी+ ल्युट् ] किसी अभीष्ट पदार्थ की प्रतिलाभः [प्रति लभ्+घञ ] वापिस लेना, ग्रहण प्राप्ति के लिए अनशन करके देवता के सामने पड़े करना, हासिल करना। रहना, धरना देना। For Private and Personal Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिशयित (वि०) [ प्रति-|-शी-|-क्त ] अपने किसी प्रतिषेधनम् [प्रति + सिध् + ल्युट् ] 1. दूर रखना, परे अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति के लिए बिना खाये पीये हदाना, रोकना 2. निवारण करना 3. मुकरना, देवता के सामने धरना देने वाला -अनया च किलास्मै ! अस्वीकृति। प्रतिशयिताय स्वप्ने समादिष्टम–दश० 121 / प्रतिष्कः, प्रतिष्कसः [ प्रति--स्कंद्-+ड, प्रति+कस् प्रतिज्ञापः [ प्रति--शप्-घा ] शाप के बदले शाप, +अच्, सुट् | जासूस, संदेशवाहक, दूत / बदले में शाप / प्रतिष्कशः [ प्रति+का+अच्, सुट् ] 1. भेदिया, दूत प्रतिशासनम् [ प्रति+शास्+ ल्युट ] 1. आदेश देना, दूत | 2. चाबुक, हंटर। के रूप में भेजना, आज्ञा देना 2. किसी दूत को बाहर प्रतिष्कषः | प्रति+का+अच, मुटु / चाबुक, चमड़े का से बुला भेजना 3. वापस बुलाना 4. विरोधी आदेश, __ कोड़ा। अधिकृत कथन --अप्रतिशासनं जगत्-रघु० 8 / 27. प्रतिष्टंभः | प्रति+स्तंभ +घञ, पत्व अवरोध, रुकावट, (पूर्ण रूप से एक ही शासक के शासन में)। __मुकाबला, विरोध, विघ्न--बाहुप्रतिष्ट भविवृद्धमन्युः प्रतिशिष्ट (भु० क. कृ०) [प्रति+-शास् क्त ] 1. -रघु० 2 / 32, 59 / आदिष्ट, प्रेषित ..शि० 161 2. विजित किया ! पनि प्रतिष्ठा [ प्रति+ स्था+अङ्-टाप् ] 1. ठहरना, रहना, प्रति..शा हुआ, अस्वीकृत 3. विख्यात, प्रसिद्ध / स्थिति, अवस्था-अपौरुषयप्रतिष्ठम् --मा० 1, श० प्रतिश्या, प्रतिश्यानम्, प्रतिश्यायः [ प्रति+-श्य क +टाप, / 7 / 6 2. घर, निवासस्थान, जन्मभूमि, आवास-रघु० ल्युट, ण वा ] जुकाम, सर्दी / 6 / 21, 14 / 5 3. स्थैर्य, स्थिरता, दृढ़ता, स्थायिता, प्रतिश्रयः [प्रति+-श्रि+अच् ] शरणगह, आश्रम 2. घर, दृढाधार--अप्रतिष्ठे रघज्येष्ठे का प्रतिष्ठा कुलस्य आवासस्थान, निवासस्थल—याज्ञ० 11210 मनु० न:--उत्तर० 5 / 25, अत्र खल मे वंशप्रतिष्ठा--श० 10151 3. सभा 4. यज्ञ भवन 5. मदद, सहायता 6. 7, वंश: प्रतिष्ठां नीतः का० 280, शि० 2134 प्रतिज्ञा। 4. आवार, नींव, ठिकाना--जैसा कि गृहप्रतिष्ठा' प्रतिश्रयः [प्रति श्रु-अप] 1, स्वीकृति, सहमति, में 5. पाया, टेक, सहारा (अतः) कीर्तिभाजन, विश्रुत प्रतिज्ञा 2. गंज। अलंकार--त्यक्ता मया नाम कुल प्रतिष्ठा- श०६। प्रतिश्रवणम् [ प्रति+ध्रु--ल्युट ] 1. ध्यान पूर्वक सुनना 24, द्वे प्रतिष्ठे कुलस्य नः 3 / 21, कु० 7 / 27, मनु० 2 / 195 . वचन देना, हामी भरना, सहमत महावी०७।२१ 6. उच्चपद, प्रमखता, उच्च अधिकार होना 3. प्रतिज्ञा। -मुद्रा० 2 / 5 7. ख्याति, यश, कीति, प्रसिद्धि-मा प्रतिश्रुत, प्रतिश्रुतिः (स्त्री०) | प्रति श्र-- क्विप, क्तिन निषाद प्रतिष्ठा त्वमगम: शाश्वती: समा:- रामा० वा ] 1. प्रतिज्ञा 2. गूंज, प्रतिव्वनि रघु० 13 / 40, (--- उत्तर० 215) 8. सस्थापना, प्रतिष्ठापन मद्रा० 16 / 31, शि० 17142 / 1 / 14 9. अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति, निष्पति, (इच्छा प्रतिश्रुत (भू० 0 0 ) [ प्रति|श्रु-:-क्त | वचन दिया को) पूर्ति औत्सुक्यमात्रमवसादयनि प्रतिष्ठा--श० हुआ, सहमत, हामी भरी हुई / / 5 / 6 10. शांति, विश्राम, विश्रान्ति 11. आधार प्रतिषिद्ध (भू० क० कृ०) [ प्रति सिन् ।-क्त ] 1. 12. पृथिवी 13. किसी देवप्रतिमा की स्थापना 16. निषिद्ध, वजित, अननुमत, अस्वीकृत 2. खण्डित, सीमा, हद। प्रत्युक्त / प्रतिष्ठानम् [प्रति+स्था+ल्य ट | J. आधार, नींव प्रतिषेधः प्रति+सिध् + घा] 1. दूर रखना, परे हटाना, 2. ठिकाना, स्थिति, अवस्था 3. टांग, पैर 4. गंगा हाक कर दूर कर देना, निकाल देना --विक्रम० 18 / यमुना के संगम पर स्थित एक नगर जो चन्द्रवंश के 2. प्रतिपेघ यथा 'शास्त्रप्रतिषेधः' में 3. मकरना, आदिकालीन राजाओं की राजधानी था-तु० विक्रम अस्वीकृति 4. निषेध करना, विरुद्ध कथन / सम० 2 / 5 6. गोदावरी पर स्थित एक नगर का नाम / .. - अक्षरम, उक्तिः (स्त्री०) मुकर जाने के शब्द, प्रतिष्ठित (भक० कृ०)[प्रति--स्था+न] 1. जमाया अस्वीकृति - श० 3 / 25, उपमा दण्डि द्वारा वणित हुआ खड़ा किया हुआ 2. स्थिर किया हुआ, स्थापित उपमा का एक भेद, इसको परिभाषा - न जातु शक्ति- किया हुआ 3. रक्खा हुआ, अवस्थित 4. संस्थापित, रिन्दोस्ते मुखेन प्रतिजितम, कलंकिनो जडस्येति प्रतिष्ठापित, अभिमंत्रित पूर्ण,कार्यान्वित 6. क़ीमती, प्रतिषेधोपमैव सा काव्या० 2 / 34 / मूल्यवान् 7. विख्यात, प्रसिद्ध (दे० प्रति पूर्वक स्था)। प्रतिषेधक, प्रतिषेव (वि.) [प्रति-मिथ्-|-बुल, तृच प्रतिसंविद् (स्त्री०) प्रति+सम् ।-विद् +-क्विप् ] किसी वा ] 1. हटाने बाला, निषेध करने वाला, रोकने वाला वस्तु के विवरण का यथार्थ ज्ञान / 2. मना करने वाला -(पुं०) विघ्नकारक, निवारक / / प्रतिसंहारः प्रति+सम+है+घा ] 1. पीछे ले जाना, For Private and Personal Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यक्त करना, छोड़ना क्त ] | प्रतिस्नुकया गया प्रेम / दय की धड़कन वापिस हटाना 2. अल्पता, संपीडन 3. धारणा | प्रतिस्नात (भु० क० कृ०) [प्रति स्ना+क्त ] स्नान शक्ति, समावेश 4. परित्यक्त करना, छोड़ना। किया हुआ। प्रतिसंहृत (भू० क. कृ०) [प्रति+सम्+ह+क्त ] | प्रतिस्नेहः [प्रा० स० ] बदले में प्यार, प्रतिप्रेम या बदले 1. वापिस लिया हुआ, पीछे को खींचा हुआ, एष में किया गया प्रेम। प्रतिसंहृतः --श०१ 2. सम्मिलित करना, अन्तर्गत प्रतिस्पंदनम् [ प्रा० स० ] हृदय की धड़कन / करना 3. संपीडित / प्रतिस्वनः, प्रतिस्वरः [प्रा० स०] गूंज, प्रतिध्वनि-शि० प्रतिसंक्रमः [प्रति+सम्+क्रम्-+धा ] 1. पुनश्चूषण 13 / 31 / 2. प्रतिच्छाया, परछाईं। प्रतिहत (भू० क० कृ०) [प्रति+हन्+क्त ] 1. उलटा प्रतिसंख्या [प्रति+सम्+ख्या+अ+टाप् ] चेतना / मारा हुआ, पछाड़ा हुआ 2. भगाया हुआ, दूर किया प्रतिसंचरः प्रति+सम्+चर+ट] 1. पीछे मड़ना हुआ, पीछे ढकेला हुआ 3. विरोध किया हुआ, अवरुद्ध 2. पुनश्चूषण 3. विशेषतः विराट् जगत् का फिर 4. भेजा हुआ, प्रेषित 5. घृणित, नापसंद 6. हताश, प्रकृति के रूप में लीन हो जाना। भग्नाश / सम०–मति (वि.) घृणा करने वाला, प्रतिसंदेशः [प्रति--सम्+दिश+घञ ] संदेश का जवाब, नापसंद करने वाला / संदेश के बदले संदेश / प्रतिहतिः (स्त्री०) [ प्रति+हन्--क्तिन् ] 1. उलटकर प्रतिसंधानम् [ प्रति+सम् +धा+ ल्युट ] 1. एक स्थान पर प्रहार करना, पछाड़ना, ढकेलना 2. पंलट पड़ना, मिलना, एकत्र होना 2. दो युगों का मध्यवर्ती संक्र- परावर्तन--प्रतिहति ययरर्जुनमुष्टयः-कि० 18 / 5, मणकाल 3. उपाय, उपचार 4. आत्मनियंत्रण, आत्म शि० 9 / 49 3. नाउम्मीदी, भग्नाशा 4. क्रोध / दमन 5. प्रशंसा / | प्रतिहननम् [प्रति+हन-+ल्युट ] उलट कर प्रहार करना, प्रतिसंधिः प्रति-सम-धा+कि 1.1. पूनर्मिलन 2. गर्भा- | पछाड़ देना, पलट कर मारना, आधात के बदले शय में प्रवेशकरण 3. दो युगों का मध्यवर्ती संक्रमण आघात करना। काल 4. विराम, उपरम / प्रतिहत (पुं०) [ प्रति+ +तृच ] पछाड़ने वाला, प्रतिसमाधानम् [प्रति-सम् +आ+धा-+ ल्युट् ]चिकित्सा, | हटाने वाला, पीछे धकेलने वाला, दूर करने वाला। उपचार। प्रति (तो) हारः [ प्रति +ह+घा , पक्षे उपसर्गस्य प्रतिसमासनम् [प्रति+सम् +आ+अस् + ल्युट] 1. सामना दीर्घः ] 1. उलट कर प्रहार करना 2. दरवाजा, होना, जोड़ का होना 2. मुकाबला करना, विरोध फाटक 3. दरबान, द्वारपाल 4. जादूगर 5. ऐन्द्रजालिक, करना, टक्कर लेना। जादूभरी चाल / सम-भूमिः (स्त्री०) (घर की) प्रतिसरः,--रम् [ प्रति+स-अच् ] कलाई या गरदन में देहली... कु० ३१५८,--रक्षी स्त्री द्वारपाल, प्रतिहारी पहनने का ताबीज,---: 1. मेवक, अनुचर 2. कड़ा, ---रघु० 6 / 20 / विवाह-कंकण स्रस्तोरगप्रतिसरेण करेण पाणिः (अग- | प्रतिहारकः [ प्रति+ह+वल ] ऐन्द्रजालिक, जादूगर / ह्यत)--कि० 5 / 33 (=कौतुकसूत्र -मल्लि०) | प्रतिहासः [प्रति+हस+घञ 1 हंसी के बदली हंसी / 3. पुष्पमाला या हार 4. प्रभात काल 5. सेना का प्रतिहिंसा | प्रति हिंस+अ+टाप् ] प्रतिशोध, बदला। पृष्ठभाग 6. एक प्रकार का जादू 7. घाव का पुरना, प्रतिहित (भ० क. कृ०) [ प्रति+धा--क्त ] साथ जड़ा या घाव पर पट्टी बांधना।। गया, साथ सटा दिया गया। प्रतिसर्गः [प्रति+सृज्+घा 11. गौण रचना (जैसा | प्रतीक (यि०) [प्रति+कन, नि० दीर्घः ] 1. की ओर कि ब्रह्मा के मानस पुत्रों द्वारा) 2. विघटन, प्रलय / मुड़ा हुआ 2. विपर्यस्त, उलटा 3. विरुद्ध, प्रतिकूल, प्रतिसांधानिक: [ प्रतिसंधान---ठक् ] भाट, चारण, विपरीत,-क: 1. अवयव, अंग-शि० 1879 बंदी। 2. भाग, अंग,-कम् 1. प्रतिमा 2. मह, चेहरा प्रतिसारणम् [ प्रति+स+णिच् + ल्युट | 1. घाव के 3. (किसी वस्तु का) अप्रभाग 4. (किसी श्लोक या किनारों की मल्हमपट्टी करना 2. घाव में मल्हम वाक्य का) प्रथम शब्द / लगाने का उपकरण। प्रतीक्षणम्, प्रतीक्षा [ प्रति+ईक्ष् + ल्युट, प्रति+ई+ प्रतिसीरा [ प्रति +सि+कुन् +टाप, दीर्घः ] परदा, चिक, अङ+टाप् ] 1. इंतजार करना 2. अपेक्षा, आशा कनात / 3. ख्याल, विचार, ध्यान / प्रतिसृष्ट (भ० कक०) [प्रति सज् किन ] 1. भेजा | प्रतीक्षित (भ० क. कृ०)[प्रति+ +क्त ] 1. जिसकी गया, प्रेषित 2. प्रसिद्ध 3. पीछे ढकेला गया, अस्वीकृत इंतजार की गई, अपेक्षा की गई 2. विचार किया 4. नशे में चूर (धरणि के अनुसार 'प्रमत्त') / गया। For Private and Personal Use Only Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 658 ) प्रतीक्ष्य (सं० कृ०) [प्रति- ईक्ष+ ण्यत ] 1. प्रतीक्षा ऽपि रोषणतया मा स्म प्रतीपं गमः--श० 4 / 18 / किये जाने योग्य 2. ख्याल या विचार के योग्य सम० --ग (वि.) 1. विरुद्ध चलने वाला 2. विपरीत, 3. श्रद्धेय, आदरणीय - रघु०५।१४, शि० 2 / 108 प्रतिकूल-रघु० ११।५८,-गमनम्, गतिः (स्त्री०) 4. अनुसरणीय, प्रतिपालनीय, परिपूरणीय-शि० उलटा चलना-कु० २।२५,–तरणम् धार के विरुद्ध 21180 / जाना या नाव चलाना, वि० ११५,-दशिनी स्त्री, प्रतीची [ प्रति+अञ्च+क्विन-डीप] पश्चिम दिशा। -वचनम् 1. खण्डन 2. दुराग्रहपूर्ण या टालमटोल प्रतीचीन (वि०) प्रत्यञ्च+ख, नलोपो दीर्घश्च ] करने वाला कहने का ढंग,-विपाकिन वि०) विपरीत 1. पश्चिमी, पाश्चात्य 2. भावी, परवर्ती, अनुवर्ती।। फलदायक (कर्ता पर ही उलटा फल रखने वाला) प्रतीच्छकः [ प्रतिगता इच्छा यस्य प्रा० ब०, कप् ] ग्रहण .-मा० 5 / 26 / करने वाला। | प्रतीरम् [प्र+तीर्+क ] तट, किनारा / प्रतीच्य (वि.) [ प्रतीची+यत् ] पश्चिम में रहने वाला प्रतीवापः [ प्रति+वप-1-घा , उपसर्गस्य दीर्घः] 1. (वह पछाहीं, पाश्चात्यदेशवासी। औषधि जो काढ़े आदि में) जोड़ी जाय या मिलायी प्रतीत (भू० क० कृ०) [प्रति+5+क्त ] 1. प्रस्थित, ! जाय 2. धातु को भस्म करना या पिघलाना 3. छूत प्रयात 2. गुजरा हुआ, बीता हुआ, गया हुआ की बीमारी, महामारी। 3. विश्वस्त, भरोसे का 4. प्रमाणित, संस्थापित प्रतीवेशः, प्रतीहारः, प्रतीहासः [प्रति+विश् -हु-हस् 5. स्वीकृत, माना हुआ 6. पुकारा गया, ज्ञात, नामक +घञ ] दे० प्रतिवेश आदि / -सोऽयं वटः श्याम इति प्रतीत:-रघु० 13153 / प्रतीवेशिन् (वि.) [ प्रतीवेश-इनि ] दे० प्रतिवेशिन् / 7. विरूपात, विश्रुत, प्रसिद्ध 8. दृढ़संकल्पयुक्त 1. प्रतीहारी [ प्रतीहार+अच्+ङीष् ] 1. स्त्री द्वारपाल विश्वास करने वाला, भरोसा रखने वाला, विश्रब्ध 2. ड्योढ़ीवान। 10. प्रसन्न, खुश-रघु० 3 / 12, 5 / 26,14 / 47, 16 / 23 प्रतुदः [प्र+तुद्+क] 1. पक्षियों की एक जाति 11. प्रतिष्ठित 12. चतुर, विद्वान्, बुद्धिमान् / (बाज, तोता, कौवा आदि) 2. चुभोने का उपकरण / प्रतीतिः (स्त्री०) [प्रति+इ--क्तिन् ] 1. धारणा, प्रतुष्टिः (स्त्री०) [प्र+तुष्+क्तिन् ] तृप्ति, सन्तोष / निश्चित भरोसा--श० 7 / 31 2. विश्वास 3. ज्ञान, प्रतोदः [प्र+तुद् / घञ्] 1. अङकुश 2. लम्बा चाबुक निश्चय, स्पष्ट प्रत्यक्षज्ञान या समझ अपितु वाच्य- 3. चुभोने वाला उपकरण / वैचित्र्य प्रतिभासादेव चारुताप्रतीति:-काव्य० 10 प्रतूर्ण (वि.) [प्र+वर+क्त ] त्वरित, क्षिप्रगामी, 4. यश, कीर्ति 5. आदर 6. खुशी। फुर्तीला, तेज। प्रतीत (वि०) प्रति / दा-क्त ] वापि दिया हुआ, ! प्रतोली [ प्र-+-तल+घाडीष] गलो. मख्य मार्ग. लौटाया हुआ। नगर की मुख्य सड़क--प्रापत्प्रतोलीमतुलप्रतापः प्रतीन्धक (पुं०) विदेह देश का नाम / ----शि० 3164 प्रतीप (वि.) [ प्रतिगता: आपो यत्र, प्रति+अप+अच, प्रत्त (भू० क. कृ.) [प्र+दा+क्त ] 1. दिया हुआ, अपईप च ] 1. विरुद्ध, प्रतिकूल, विपरीत, विरोधी प्रदत्त, प्रदान किया हुआ, प्रस्तुत किया हुआ 2. विवाह -तत्प्रतीपपवनादि वैकृत--रघु० 11162 2. उलटा, में दिया हुआ, विवाहित / विपर्यस्त, बिगड़ा हुआ 3. पिछड़ा हुआ, प्रतिगामी | प्रत्न (वि.) [प्रलप] 1. पुराना, प्राचीन 2. पहला 4. अरुचिकर, अप्रिय 5. अडियल, आज्ञा का उल्लंघन / 3. परम्परा प्राप्त, प्रथागत / करने वाला, हठी, दुराग्रही-पंच० 11424 / प्रत्यक (अध्य०) [प्रति+अञ्च+क्विन् ] 1. विरुद्ध 6. विघ्नकारी,- पः एक राजा का नाम, महाराज दिशा में, पीछे की ओर 2. के विरुद्ध 3. (अपा० के शान्तनु के पिता तथा भीष्म के पितामह का नाम, साथ) से पश्चिम में 4. भीतर की ओर, अन्तर को -पम् एक अलंकार का नाम जिसमें तुलना के तरफ 5. पहले समय में। सामान्य रूप को बदल कर उपमान की उपमेय से | प्रत्यक्ष (वि०) [ अक्ष्णः प्रति ] 1. दृष्टिगोचर, दृश्य तुलना करते हैं-प्रतीपमपमानस्याप्यपमेयत्वकल्पनम, ... प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीश: त्वल्लोचनसमं पद्मं त्तद्वत्क्रसदृशो विधः--चन्द्रा० 5 / 9 -श० 11 2. उपस्थित, दष्टिगत, आँख के सामने (और अधिक विवरण तथा परिभाषा की जानकारी 3. इन्द्रियग्राह्य, इन्द्रियसंज्ञेय 4. स्पष्ट, विशद, साफ के लिए काव्य० 10 में वर्णित 'प्रतीप' के अन्तर्गत 5. सीधा, व्यवधानशून्य 6. सुस्पष्ट, सुव्यक्त 7. शारीदे०,-पम् (अव्य०) 1. इसके विपरीत 2. विपरीत रिक, भौतिक, क्षम् 1 प्रत्यक्षज्ञान, आँखों देखा क्रमानुसार 3. के विरुद्ध, के विरोध में-भर्तुविप्रकृता- साक्ष्य, इन्द्रियों द्वारा बोध, एक प्रकार का प्रमाण For Private and Personal Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्यक्ष प्रत्यभिवावः, वा नमस्कार 1926 / . - - इन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यं ज्ञानम् प्रत्यक्षम - तर्क०। प्रत्यभिज्ञा [प्रति+अभि+जा+अ+टाप] जानना, पह2. सुव्यक्तता, सुस्पष्टता(प्रत्यक्षम्, प्रत्यक्षेण, प्रत्यक्षतः, चानना-सप्रत्यभिज्ञमिव मामवलोक्य-मा० 1125 / या प्रत्यक्षात् रूप क्रियाविशेषण की भांति प्रयुक्त प्रत्यभिज्ञानम् [प्रति+अभि+ज्ञा+ल्युट्] 1. पहचानना किये जाकर निम्न अर्थ प्रकट करते हैं...1. सामने, --प्रत्यभिज्ञानरत्नं च रामायादर्शयत्कृती-रघु०१२।६। की उपस्थिति में, की दृष्टि में 2. खुलकर, सार्व- | प्रत्यभिज्ञात (भू० क. कृ.) [प्रति+अभि+जा+क्त] जनिक रूप से 3. सीधे, अव्यवहित रूप से 4. व्यक्ति- पहचाना हुआ। गत रूप से 5. देखकर 6. स्पष्ट रूप से। सम० | प्रत्यभिभूत (भू० क० कृ०) [प्रति+अभि+भू+क्त] --- ज्ञानम् आँखों देखी गवाही, सीधा इन्द्रियों द्वारा पराजित, जीता हुआ। प्राप्त ज्ञान,-वर्शनः-वशिन् (वि.) आँखों देखा गवाह, | प्रत्यभियुक्त (भू० क.कृ.) [प्रति+अभि-+ युज्+क्त] -- दृष्ट (वि०) स्वयं देखा हुआ,-प्रमा सही ज्ञान या / बदले में अभियोग लगाया हुआ। वह जानकारी जो सीधे ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त की प्रत्यभियोगः [प्रति+अभि+ युज्+घञ्] 1. अभियोक्ता जाय,----प्रमाणम् आँखों से देखा सबूत, स्वयं ज्ञानेन्द्रियों के विरुद्ध दोषारोप, बदले में दोषारोपण करना का साक्षो होना,-- फल (वि०) स्पष्ट और दृश्य फलों -याज्ञ० 2 / 10 / के रखने वाला,-बादिन (पुं०) वह बौद्ध जो प्रत्यक्ष | प्रत्यभिवावः, प्रत्यभिवादनम् [प्रति+अभि+व+णिच प्रमाण (आँखों देखी बात) के अतिरिक्त और किसी +घञ ल्युट् वा] नमस्कार के बदले नमस्कार, प्रमाण को न मानता हो,-विहित (वि०) सीधा (प्रणाम के बदले आशीर्वाद)-मनु० 2 / 126 / और स्पष्ट विधान किया हुआ। प्रत्यभिस्कंदनम् [प्रति+अभि+स्कन्द-+ल्युट] जवाबी प्रत्यक्षिन् (पु०) [प्रत्यक्ष+इनि आँखों देखा गवाह, नालिश, प्रत्यारोप।। प्रत्यक्ष द्रष्टा / प्रत्ययः [प्रति-+-+अच] 1. घारणा, निश्चित विश्वास, प्रत्यन (वि.) [प्रतिगतम् अग्रम् श्रेष्ठं यस्य ----प्रा० ब०] - मढ़ः परप्रत्ययनेयबुद्धिः - मालवि० 122, संजात 1. ताजा, नया, नूतन, अभिनव-प्रत्यग्रहतानां मासं प्रत्ययः-पंच०४ 2. विश्वास, भरोसा, श्रद्धा, विश्रंभ --वेणी० 3, कुसुमशयनं न प्रत्यग्रम-विक्रम० 3 / 10 -----कु० 6 / 20, शि. 18163, भर्त० 3 / 60 3. संबोध, मेघ० 4, रघु० 1054, रत्न० 1121 2. दोहराया विचार, भाव, सम्मति 4. यकीन, निश्चयता 5. जानहुआ 3. विशुद्ध / सम०--वयस् (वि.) अल्पवयस्क, कारी, अनुभव, संज्ञान-स्थानप्रत्ययात् श० 7, 'स्थान जीवन की परिपक्वावस्था में, तरुण / की दृष्टि से अन्दाजा लगाते हुए' इसी प्रकार-आकृति प्रत्यंच (वि.) (स्त्री० -प्रतीची, वोपदेव के मतानुसार प्रत्ययात्---मालवि० 1, मेघ०८ 6. कारण, आधार, --प्रत्यंची) [प्रति+अञ्च+क्विन] 1. की ओर क्रिया का साधन-कु० 3 / 18 7. प्रसिद्धि, यश, कीर्ति मुड़ा हुआ 2. पश्चवर्ती 3. अनुवर्ती, भावी 4. परे 8. सुप्, तिङ आदि प्रत्यय जो शब्द व धातुओं के किया हुआ, हटाया हुआ 4. पाश्चात्य, पश्चिम दिशा आगे लगते है, कृदन्त व तद्धित के प्रत्यय-शि० का / सम०-- अक्षम् (प्रत्यगक्षम् ) आन्तरिक अवयव, 14 / 66 9. शपथ 10. पराश्रयी 11. प्रचलन, अम्यास, -आत्मन् (पु०) प्रत्यगात्मन्) वैयक्तिक जीव, 12. छिद्र 13. बुद्धि, समझ / सम-कारक,--कारिन आत्मा,-आशापतिः (प्रत्यगाशापतिः) पश्चिम (वि.) विश्वास पैदा करने वाला, भरोसा देने वाला, दिशा का स्वामी, वरुण का विशेषण,- उदच (णी) मुहर, नामांकित मुद्रा या अंगठी। (स्त्री०) प्रत्यगुदच) उतर पश्चिमी, दक्षिणतः प्रत्ययित (वि.) [प्रत्यय+इतच] 1. विश्वस्त, भरोसे का (अव्य. प्रत्यग्दक्षिणतः) दक्षिणपश्चिम की ओर | 2. विश्वासी, विश्वास पूर्वक कहा या लिखा हुआ। -दश (स्त्री०) (प्रत्यग्दृश्) आन्तरिक झांकी, प्रत्यायन (वि.) [प्रत्यय+इनि 1. निर्भर करने वाला, अन्तर्दृष्टि,–मुख (वि०) (प्रत्यङ्मुख ) 1. पश्चिमा- | विश्वास करने वाला, भरोसा रखने वाला 2. विश्वासभिमुखी 2. मुंह मोड़े हुए, स्रोतम् (वि०) पात्र, विश्वास या भरोसे के योग्य / (प्रत्यक्स्रोतस् ) पश्चिम की ओर बहने वाला प्रत्यर्थ (वि०) [प्रति+अर्थ+अच] उपयोगी, यक्ति-शि० 4 / 66 पर मल्लि०, (स्त्री०) नर्मदा नदी का संगत,..म् 1. उत्तर, जवाब 2. शत्रता, विरोध / विशेषण / प्रत्यर्थकः [प्रति+अर्थ--वल | प्रतिपक्षी, विरोधी। प्रत्यंचित (वि.) [प्रति अञ्च+क्त सम्मानित, पूजित, | प्रत्यथिन (वि.) (स्त्री०-नी) प्रति+अर्थ+णिनि] अचित / विपक्षी, विरोधी, शत्रुतापूर्ण,-नास्मि भवत्योरीश्वरप्रत्यवनम् [प्रति+अ+ल्युट्] 1. भोजन करना 2. | नियोगप्रत्यर्थी--विक्रम० 2, (0) 1. विपक्षी, भोजन / विरोधी, शत्रु 2. प्रतिद्वन्द्वी, सम, जोड़ का, चन्द्रो For Private and Personal Use Only Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 660 ) मुखस्य प्रत्यर्थी 3. (कानून में) प्रतिवादी--स धर्मस्थ- अस्वीकार करना 2. मुकरना, मना करना, इनकार सखः शश्वदर्थप्रत्यर्थिनां स्वयम्-रघु० 17139, | 3. अवहेलना 4. भर्त्सना 5. निराकरण। मनु० 879, याज्ञ० 2 / 6 / सम-भूत (वि०) प्रत्यागतिः (स्त्री०) [प्रति+आ+गम्+क्तिन्] वापिस मार्ग में रुकावट, बाधक बना हुआ-कु०१०५९ / / आना, लौटना। प्रत्यर्पणम [प्रति+ऋणिच् + ल्युट्, पुकागमः] वापिस | प्रत्यागमः,-प्रत्यागमनम् [प्रति+आ+गम् +अप, ल्युट् देना, लौटा देना -सीताप्रत्यर्पणैषिणः---रघु० वा] लोटना, वापिस आना। 15585 / प्रत्यावानम् [प्रति+आ+दा+ल्युट्] वापिस लेना, प्रपित (भू० क० कृ०) [प्रति++णिच्+क्त, पुनर्ग्रहण, पुनः प्राप्ति / पुकागमः] लौटाया हुआ, वापिस दिया हुआ। प्रत्याविष्ट (भू० क. कृ०) [प्रति+आ+दिश् + क्त] प्रत्यवमर्शः, -र्षः [प्रति+अव+मा+घञ] 1. गंभीर 1. नियत 2. सूचित 3. अस्वीकृत, पीछे ढकेला हुआ चिंतन, गहन मनन 2. परामर्श, नसीहत 3. प्रत्युप- 4. हटाया हुआ, एक ओर रक्खा हुआ 5. तिरोहित, संहार / अंधकार में डाला हुआ-रघु० 1068 6. चेताया प्रत्यबरोधनम् प्रति+अव+रुघ+ल्यट] रुकावट, विघ्न / / हुआ, सावधान किया हुआ। प्रत्यवसानम् प्रति+अव+सो ल्युट्] खाना या पीना | प्रत्यावेशः [प्रति--आ--दिश--घा] 1. आदेश, हक्म -पा० 114/52 / 2. संसूचन, घोषणा 3. मना करना, मुकरना, प्रत्यवसित (विं.) [प्रति+अव+सो+क्त] खाया हुआ, अस्वीकृति, पीछे हटाना, निराकरण-प्रत्यादेशान्न खलु पीया हुआ। भवतो धीरतां कल्पयामि--मेघ० 114, 95, श० प्रत्यवस्कन्दः,-वनम् [प्रति+अव+स्कन्द-+घञ, ल्युट् 6 / 9 4. तिरोहित करना, ग्रस्त करना, तिरोधाता, वा] विशेष तर्क जिसको कि प्रतिवादी उत्तर के रूप लज्जित करने वाला, अंधकारावत करने वाला...या में प्रस्तुत करता है परन्तु वह आरोप के रूप में नहीं। प्रत्यादेशो रूपगवितायाः श्रियः-विक्रम० 1, का० 5 समझा जाता, प्रतिवादी का वह उत्तर जिसमें वह 5. सावधानी, चेतावनी 6. विशेष रूप से दिव्य वादी के अभियोग का खंडन करता है। सावधानता, अतिप्राकृतिक चेतावनी। प्रत्यवस्थानम् [प्रति +अव+स्था+ल्युट्] 1. अपाकरण | प्रत्यानयनम् प्रति+आ+नी+ल्युटु वापिस लाना, लौटा 2. शत्रुता, विरोध 3. यथास्थिति, पूर्वस्थिति / लाना। प्रत्यवहारः [प्रति+अव+ह+घञ्] 1. वापिस खींचना | प्रत्यापत्तिः (स्त्री०) [प्रति ।-आ+पद्+क्तिन्] 1. वापसी 2. विश्व का विनाश, (सष्टि का) प्रलय--सर्गस्थिति- | 2. अरुचि, सांसारिक विषयों के प्रति विराग, वैराग्य / प्रत्यवहारहेतुः- रघु० 2 / 44 / / प्रत्याम्नायः [प्रति +आ+म्ना+घञ] अनुमान प्रक्रिया का प्रत्यवायः [प्रति+अव+अय्+घञ] 1. ह्रास, न्यूनता | पाँचवा अंग अर्थात् निगमन (प्रथम प्रतिज्ञा की आवृत्ति)। 2. अवरोध, रुकावट- उत्तर० 29 3. विरुद्ध या प्रत्यायः [प्रति+अय्+घञ] चुंगी, कर / विपरीत मार्ग, वैपरीत्य-मनु० 4 / 245 4. पाप, प्रत्यायक (वि.) [प्रति+आ+इ+णिच् +ण्वल] अपराध, पापमयता-अनुत्पत्ति तथा चान्ये प्रत्यवायस्य 1. प्रमाणित करने वाला, व्याख्या करने वाला मन्यते-जाबालि। 2. विश्वास दिलाने वाला, भरोसा उत्पन्न करने वाला। प्रत्यवेक्षणम, प्रत्यवेक्षा [प्रति+अव-ईस् + ल्युट्, अङ् प्रत्यायनम प्रिति--आ--इ---णिच + ल्यट] 1. (दूलहन +टाप् वा ध्यान रखना, खयाल करना, देखरेख का) घर ले जाना, विवाह करना 2. (सूर्य का) करना-रघु० 17153 / छिपना / प्रत्यस्तमयः [प्रति+अस्तम् +अय्+अच्] 1. (सूर्य का) | प्रत्यालीम [ प्रति--आ+लिह+क्त ] निशाना लगाते छिपना 2. अन्त, समाप्ति / __समय का विशेष आसन (विप० आलीढ)। प्रत्याक्षेपक (वि.) (स्त्री०-पिका) [प्रति+आ+क्षिप / प्रत्यावर्तनम् [प्रति+आ+वृत्+ल्युट ] लौटना, बापिस ___ण्वुल] ताना मारने वाला, व्यंग्यपूर्ण, उपहासजनक, आना। 'चिढ़ाने वाला। प्रत्याश्वस्त (भू. क. कृ.) [प्रति+आ+श्वस्+क्त ] प्रत्याख्यात (भू. क. कृ०) [प्रति+आ+ख्या+क्त] सान्त्वना दिया हुआ, जिलाया हआ, ताजा दम किया 1. मना किया हुआ, 2. मुकरा हुआ 3. प्रतिषिद्ध, हुआ, ढाढस बंधाया हुआ। निषिद्ध 4. एक ओर रक्खा हआ, अस्वीकृत 5. पीछे | प्रत्याश्वासः [प्रति+आ+श्वस+धन] फिर से सांस ढकेला हुमा। लेना, (सांस का) फिर लौट आना, फिर चलने प्रत्याक्यानम् [प्रति+आ+च्या+ल्युट्] 1. पीछे हटाना, लगना। For Private and Personal Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्याश्वासनम् [प्रति+आ+श्वस्+-णिच् + ल्युट् ] ढाढस | करने के लिए) अपने आसन से उठना-मनु० बधाना, सान्त्वना देना / / 210 / प्रत्यासतिः (स्त्री०) [प्रति+आ+सद्+किन्] 1. (समय | प्रत्युस्थित (भू० क.क.) [ प्रति+उद्+स्था+क्त ] और स्थान की दृष्टि से) अत्यंत सामीप्य, संसक्ति "(किसी मित्र या शत्रु आदि को) मिलने के लिए उठा 2. घनिष्ठ संपर्क 3. सादृश्य।। हुआ। प्रत्यासन्न (भू० क. कृ०) [ प्रति+आ+सद्+क्त ] | प्रत्युत्पन्न (भु० क० कृ०) [ प्रति+उ+पद्+क्त] समीप, निकट, संसक्त, सटा हुआ। 1. पुनरुत्पादित, फिर से उत्पन्न 2. उद्यत, तत्पर, प्रत्यास ( सा) रः [प्रति +आ+स+अप, घन वा] फुर्तीला 3. (गणित)गुणा किया हुआ,-मम् गुणा / 1. सेना का पृष्ठभाग 2. एक व्यह के पीछे दूसरा सम०- मति (वि०) समय पर जिसकी बुद्धि ठीक व्यह-ऐसी व्यूह रचना या मोर्चा बन्दी / कार्य करे, हाजिर जबाब 2. साहसी, दिलेर 3. तीव, प्रत्याहरणम् [प्रति-+आ+ह+ल्युट्] 1. वापिस लेना, तीक्ष्ण / पुनः ग्रहण करना, वसूली 2 रोकना 3. ज्ञानद्रियों का प्रत्युवाहरणम् [प्रति+उद्+आ+हल्युट ] मुकाबले नियन्त्रण करना। का उदाहरण, विपक्ष का उदाहरण। प्रत्याहारः [प्रति+आ+ह+घञ ] 1. पीछे हटाना, प्रत्युद्गत (भू. क० कृ०) [प्रति+उ+ गम् +क्त] वापिस चलना, प्रत्यावर्तन 2. पीछे रखना, रोकना अतिथि का स्वागत करने के लिए (सादर अभिवादन 3. इन्द्रिय दमन करना 4. सृष्टि का विघटन या प्रलय स्वरूप) अपने आसन से उठा हुआ . प्रत्युद्गतो मां 5. (व्या० में) एक ही ध्वनि के उच्चारण में कई भरतः ससंन्य:-रघु० 13164,1162 2. किसी के अक्षरों का बोध, सूत्र के प्रथम अक्षर से लेकर अन्तिम विरुद्ध आगे बढ़ा हुआ। सांकेतिक वर्ण तक जोड़ना या कई सूत्रों के होने पर | प्रत्युद्गतिः (स्त्री०), प्रत्युद्गमः, प्रत्युद्गमनम् [ प्रति+ अन्तिम सूत्र के अन्तिम वर्ण तक--यथा 'अ इ उ '' उद्+गम् +क्तिन्, अप, ल्युट वा ] अतिथि का सूत्र का प्रत्याहार 'अण्' तथा 'अ इ उ ण, ऋलक, ए। सत्कार करने के लिए अपने आसन से उठना या बाहर ओड, ऐ औच' इन चार सूत्रों का प्रत्याहार 'अच्' जाना। (स्वर) है प्रत्याहार है; व्यंजनों का प्रत्याहार 'हल" प्रत्युद्गमनीयम् [ प्रति+उद्+गम्+अनीयर ] स्वच्छ तथा सभी वर्गों का द्योतक 'अल' प्रत्याहार है। वस्त्र का जोड़ा-गृहीतप्रत्युद्गमनीयवस्त्रा-कु. 7 / 11 प्रत्युक्त (भू० क० कृ०) [प्रति+व+क्त ] उत्तर दिया पत्युद्गमनीय वस्त्रा' का पाठान्तर) दे० 'उद्गमनीय'। गया, बदले में कहा गया, जबाब दिया हुआ / | प्रत्युद्धरणम् [ प्रति+उद्+ह+ल्युट् ] / पुनः प्राप्त प्रत्युक्ति (स्त्री०) [प्रति वच् +-क्तिन् ] उत्तर, जवाब / करना, दी हुई वस्तु को वापिस लेना 2. फिर उठाना। प्रत्युच्चारः, प्रत्युच्चारणम् [प्रति+उद+चर+णिच+ / प्रत्युद्यमः [प्रति+उद्+यम् +अप] 1. प्रतिसंतुलन, समघा, ल्युट् वा ] आवृत्ति, दोहराना। तोलन 2. रोक थाम, प्रतिक्रिया-भर्तृ० 8 / 88, प्रत्युज्जीवनम् [प्रति + उद्+जीव् + ल्युट ] पुनर्जीवन | पाठान्तर। होना, जीवन का फिर संचार होना, फिर से जी उठना | प्रत्युषात (वि०) [प्रति+उद्+या क्त ] दे० 'प्रत्युद्गत' / (आलं. भी)। प्रत्युनमनम [प्रति+उ+नम् + ल्युट ] पुनः उठना, फिर प्रत्युत (अन्य ) [प्रति + उत द्व० स०] 1. इसके विप- उछलना, पलटा खाकर आना / रोत-कृतमपि महोपकारं पय इव पीत्वा निरातङ्कः, प्रत्युपकारः [प्रति+उप++घञ ] किसी की कृपा प्रत्युत हन्तुं यतते काकोदरसोदर खलो जगति-भामि० या सेवा का बदला चुकाना, उपकार का प्रतिदान, 1176 2. बल्कि , भी 3. दूसरी ओर / बदले में सेवा। प्रत्युत्क्रमः, --क्रमणम्,-क्रान्ति: (स्त्री०) [प्रति+उ+ | प्रत्युपक्रिया [प्रति+उप++श, इयङ, टाप् ] सेवा का क्रम् +घञ, ल्युट, क्तिन् वा ] 1. (किसी कार्य को प्रतिफल / करने का) बीड़ा उठाना 2. युद्ध की तैयारी 3. शत्रु प्रत्युपदेशः[प्रति+उप+दिश+घञ 1 बदले में परामर्श पर चढ़ाई करने के लिए प्रयाण 4. गौण कार्य जो या उपदेश - कु. 1034 / * मुख्य कार्य में सहायक हो 5. किसी व्यवसाय का प्रत्युपपन्न (वि.) [प्रति+उप :- पद्+क्त ] दे० समारम्भ / 'प्रत्युत्पन्न / परपुरथानम् [ प्रति ।-उद्+स्था+ल्युट् ] 1. किसी के | प्रत्युपमानम् [प्रति+उप+मा-ल्युट ] 1. समरूपता विरुद्ध उठना 2. युद्ध को तयारी करना 3. किसी का प्रतिरूप 2. नमूना, आदर्श 3. मुकाबले की तुलना अभ्यागत का स्वागत करन के लिए (सम्मान प्रदर्शित -विक्रम० 2 / 3 / For Private and Personal Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D प्रत्युपलब्ध (भू० क.कृ.) [प्रति+उप+लभ् + क्त ] | [प्रथ् + अमच् ] 1. पहला, सबसे आगे का-रघु० वापिस प्राप्त, फिर लिया हुआ। 3 / 44, हि० 2 / 36, कि० 2 / 44 2. प्रमुख, मुख्य, प्रत्युपदेशः,-वेशनम् [प्रति+उप+विश+णिच्+घन, प्रधान, श्रेष्ठतम, बेजोड़, अनुपम-शि० 15142, ल्युट् वा ] आज्ञा-पालन कराने के लिए किसी को मनु० 3.147 3. आदि कालीन, अत्यंत प्राचीन, घेरना। प्राक्कालीन, प्राथमिक 4. पहले का, पूर्वकालीन, प्रत्युपस्थानम् [प्रति+उप+स्था+ ल्युट् ] आसपास, पहला, इससे पूर्व का-प्रथमसुकृतापेक्षया-मेघ० पड़ोस / 17, रघु० 10 // 67 5. (व्या० में) प्रथम पुरुष प्रत्युप्त (50 क. कृ.) [प्रति+व+क्त 11. जड़ा (-अन्य पुरुष या पाश्चात्यपदविज्ञान के अनुसार हुआ, या जमाया हुआ, जटित, भरा हुआ 2. बोय) तृतीय पुरुष), मः 1, प्रथम ( अन्य ) पुरुष 2. वर्ग हुआ 3. स्थिर किया हुआ, गाड़ा हुआ, दृढ़ता पूर्वक का प्रथम व्यंजन,-मा कर्तकारक,--मम् (अव्य०) टिकाया हुआ, या जमाया हुआ-मा० 5 / 10, उत्तर 1. पहले, प्रथमतः, सर्वप्रथम, कु० 724, रघु० 3 / 4 3 / 35, 46 / 2. पहले ही, पहले ही से, पूर्वकाल में-- रघु० 3 / 68 प्रत्युषः, प्रत्युषस् (नपुं०)[प्रत्योषति नाशयति अन्धकारम 3. तुरन्त, तत्काल 4. पहले - यात्रायै चोदयामास त -प्रति+उष्-क, प्रति+उ+असि] प्रभात, शक्तेः प्रथमं शरत्--रघु० 4 / 24, उत्तिष्ठेत्प्रथम भोर, तड़का। चास्य चरम चव संविशेत- मनु० 21194 5. अभी प्रत्यूषः, षम् [प्रति+ऊ नक] भोर, प्रभात, तड़का अभी, हाल में,-प्रथमम्, अनन्तरम्, ततः, पश्चात् -----प्रत्युषेषु स्कुटितकमलामौदमैत्रीकषायः–मेघ० 31, पहले, इसके बाद / सम० अर्धः, - धम् पूर्वाध, --ब: 1. सूर्य 2. आठ वस्तुओं में से एक वस्तु --आश्रमः चार आश्रमों में से पहला आश्रम अर्थात् का नाम / ब्रह्मचर्य आश्रम,--इतर (वि०) 'प्रथम की अपेक्षा प्रत्यूषस् (नपुं०) [प्रति+ऊष+असि ] भोर, प्रभात, | और' अर्थात् दुसरा,--उदित (वि.) पहले उच्चारण तड़का। किया हुआ-उवाच धाश्या प्रथमोदितं वच:---रधु० प्रत्यूहः [प्रति+ऊह+घञ्] रुकावट, बाधा, विघ्न, ३१२५,-कल्पः चलने के लिए बढ़िया मार्ग, प्रथम "-विस्मयः सर्वथा हेयः प्रत्यूहः सर्वकर्मणाम्-हि० 2 / 15 / नियम,-कल्पित (वि.) 1. पहले सोचा हुआ 2. पद प्रप। (भ्वा० आ०-प्रथते, प्रथितम्) 1. (ऐश्वर्य का) या महत्त्व की दृष्टि से सर्वोच्च,-ज (वि.) बढ़ाना 2. (कीति, अफवाह आदि का) फैलाना-तथा सबसे पहले पैदा हुआ,-दर्शनम् पहला दर्शन,-दिवसः यशोऽस्य प्रथते -- मनु० 11115 3. सुविख्यात होना, सबसे पहला दिन--मेध० २,--पुरुषः प्रथम पुरुष, प्रसिद्ध होना ---अतस्तदाख्यया तीर्थ पावनं भुवि पप्रथे अन्य पुरुष (अंग्रेजी पद्धति के अनुसार 'तृतीय पुरुष'), -----रषु० 15 / 101, अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः ---यौवनम् युवावस्था का आरंभ, किशोरावस्था, पुरुषोत्तमः-भग० 1518, शि० 9 / 16, 15 / 23, कु० -वयस् (नपुं०) बचपन, शैशव,—विरहः पहली बार 5 / 7, मेघ 24, रघु० 5 / 65, 976 4. प्रकट होना, का वियोग,-वैयाकरण: 1. अत्यंत पूज्य वैयाकरण उदय होना, प्रकाश में आना-श्रमो नु तासां मदनो 2. व्याकरण में शिशिक्षु, साहसः दण्ड को निम्नतम न पप्रथे-कि० 8 / 53 1 (चुरा० उभ०-प्रथयति या प्रथम स्थिति,-सुकृतम् पूर्वकृपा या सेवा। ते, प्रथित) 1. फैलाना, उद्घोषणा करना-सज्जना प्रथा [प्रथ+अ+टाप् ] ख्याति, प्रसिद्धि-शि० 15 / 27 / एव साधूनां प्रथयन्ति गुणोत्करम्-दृष्टान्त० 12, भट्टि. प्रथित (भू० क० कृ०) [प्रथ्+क्त] 1. बढ़ाया हुआ, 17.107 2. दिखलाना, प्रकट करना, प्रदर्शन विस्तार किया हुआ 2. प्रकाशित, उद्घोषित, फैलाया करना, प्रकाशित करना, सूचित करना -परमं वपुः हआ, घोषणा की हई, प्रथितयशसां भासकविसौमिल्लप्रथयतीव जयम् -कि० 635, 5 / 3, शि० 1025, कविमिश्रादीनाम-मालवि० 1 3. दिखाया गया, रत्न०४।१३, श० 3 / 16 3. बढ़ाना विस्तृत करना, प्रदर्शन किया गया, प्रकट किया गया, प्रकाशित किया ऊंचा करना, अधिक करना, बड़ा करना-भर्तृ० | गया 4. विख्यात, प्रसिद्ध, विश्रुत (दे० 'प्रथ्' भी)। 2 / 45 4. खोलना। प्रथिमन् (पुं०) [ पृथोर्भाव:-पथ+इमनिच] चौड़ाई, प्रवनम् [प्रथल्यट] 1. फैलाना, विस्तार करना विशालता, विस्तार, महत्ता--प्रथिमानं दधानेन जधनेन 2. बखेरना 3. फेंकना, आगे की और बढ़ाना घनेन सा--भट्टि० 4 / 17, (गुणाः) प्रारंभसूक्ष्माः 4. बतलाना, प्रकाशित करना, प्रदर्शन करना 5. वह प्रथिमानमापु:---रघु० 18 / 48 // स्थान जहाँ कोई चीज फैलायी जाय। प्रथिविः (स्त्री०) [ पृथिवी, पृषो०] पृथ्वी, धरती। प्रथम (वि.) (पुं०, कर्तृ०, ब०व०-प्रथमे या प्रथमाः) | प्रथिष्ठ (वि.) [पृथु / इष्ठन्, प्रथादेशः] सबसे बड़ा, For Private and Personal Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 663 ) सबसे चौड़ा, अत्यन्त विशाल ('पृथु' को अतिशया- किया हुआ, प्रदर्शन किया हआ 2. जतलाया गया वस्था ) / ____ 3. सिखाया हुआ 4. व्याख्या किया गया, उद्घोषित प्रथीयस् (वि.) (स्त्री०-सी) [पथु+ ईयसुन् ] अपेक्षा- किया गया। कृत बड़ा, चौड़ा, विशाल 'पृथु' की तुलनावस्था)। प्रदलः [प्र+दल+अ बाण, तीर। प्रथु (वि०) [प्रथ् + उण्] व्यापक, दूर दूरतक फैला हुआ। प्रदवः [प्र+दु+अभ् ] जलना, ज्वालाएँ उठना / प्रथुकः [प्रथ्-+-उक] चिउड़े, चौले, (तु. पृथुक)। | प्रदात (पुं०) [प्रदा +दम् ] 1. देने वाला, दानी प्रदक्षिण (वि०) [प्रा० स०] 1. दाईं ओर रक्खा हुआ, 2. उदार व्यक्ति 3. (विवाह में) कन्या दान करने या खड़ा हुआ दाईं ओर को घूमने वाला 2. सम्मान- वाला 4. इन्द्र का विशेषण / पूर्ण, श्रद्धालु 3. शुभ, शुभलक्षणयुक्त,—णः,---णा, प्रदानम् [ प्र+दा--ल्यट] 1. देना, प्रदान करना, अर्पण ---णम् बाई ओर से दाई ओर को घूमना जिससे करना, प्रस्तुत करना वर", अग्नि, काष्ठ° आदि कि दाहिना पार्श्व सदैव उस व्यक्ति या वस्तु की ओर 2. (विवाह में) कन्या दान करना, कन्या° 3. समर्पित हो जिसकी परिक्रमा की जा रही है, श्रद्धापूर्ण अभि- करना, अध्यापन करना, शिक्षा देना, विद्या 4. भेंट, वादन जो इस प्रकार प्रदक्षिणा द्वारा किया जाय दान, उपहार 5, अंकुश / सम०---शूरः अति दान--कु० 7179, याज्ञ. ११२३२,–णम् (अव्य०)1. बाई शील पुरुष, दाता। ओर से दाई ओर को 2. दाईं ओर को, जिससे कि | प्रदानकम् | प्रदान+कन् ] पुरस्कार, भेंट, दान, उपहार / दाहिना पार्श्व सदैव प्रदक्षिणा की गई व्यक्ति या प्रदायम् [प्र+दाघज, यक ] उपहार, भेंट / वस्तु की ओर रहे 3. दक्षिण दिशा में, दक्षिण दिशा प्रदिः, प्रदेयः [ प्रदा +कि, यत् वा ] उपहार, भेंट / की ओर -मनु० 4 / 87, (प्रदक्षिणी कृ) बाईं ओर | प्रदिग्ध (50 क० कृ०) [ प्र+दिह +क्त ] चिकनाई से दाई ओर को जाना (सम्मान प्रदर्शित करने के | लपेटी हुई, पोती हुई, मालिश किया हुआ,-----स्वम् लिए)-प्रदक्षिणीकुरुष्व सद्योहुताग्नीन् - श० 4, विशेष प्रकार से तला हुआ मांस / प्रदक्षिणीकृत्य हुतं हुताशनम् -रघु० 2171) / सम० प्रदिश (स्त्री०) [ प्रगता दिग्भ्यः-प्र+दिश्+क्विप् ] ...अचिस् (वि.) जिसकी दाईं ओर को ज्वालाएँ 1. संकेत करना 2. आदेश, निदेश, आज्ञा 3. परिधि उठती हों, दाईं ओर को ज्वालाएँ रखने वाला - का अन्तर्वर्ती बिन्दु जैसे कि नती, आग्नेयी, ऐशानी प्रदक्षिणाचिहविरग्निराददे-रधु० 3.14 (स्त्री०) / और वायवी। दाई ओर को मुड़ी हुई ज्वालाएँ-रघु० ४।२५,-क्रिया प्रविष्ट (भू० क० कृ.)[प्र+दिश्+क्त ] 1. दिखाया प्रदक्षिणा करना, सम्मान प्रदर्शित करने के लिए हुआ, संकेतित 2. निदिष्ट, आदिष्ट 3. स्थिर किया सम्माननीय व्यक्ति को दाईं ओर रखना- रघु० हुआ, आदेश लागू किया हुआ, नियोजित किया हुआ 1176, --पट्टिका सहन, आंगन / -रघु० 2 / 39 / प्रदग्ध (भू० क० कृ०) [प्र--दह क्त ] जलाया गया, प्रदीपः [प्र+दीप+-णिच् + क ] 1. दीपक, चिराग __भस्म किया गया। (आलं० से भी) अतैल पूराः सुरतप्रदीपा:---कु० प्रदत्त (भू० क० कृ०) [प्र | दा+क्त ] दे० 'प्रत्त'। 1 / 10, रघु० 2 / 24, 1614, कुलप्रदीपो नृपतिदिलीप: प्रदरः [प्रह-अप] 1. तोड़ना, फाड़ना 2. अस्थिभंग --रघु० 6174, 'कुल का दीपक या अवतंस' - 7 / 29 होना, दरार पड़ना, फटाब, छिद्र, विवर 3. सेना का 2. जो जानकारी कराता है, या बात को खोलकर तितर बितर होना 4. तीर 5. स्त्रियों को होने वाला। कहता है, व्याख्या, विशेषतः ग्रन्थों के नामों के अन्त एक रोग। में प्रयक्त, यथा महाभाष्य प्रदीप, काध्यप्रदीप आदि / प्रदर्पः | प्रा० स०] धमंड, अहंकार / / प्रदीपन (वि०) (स्त्री०-नी) [प्र.--दीप+णिच् + ल्युट् ] प्रदर्शः [प्र.दृश् / घा] 1. दृष्टि, दर्शन 2. निदेश, आज्ञा / 1. जलाना 2. उद्दीपित करना, उत्तेजित करना,-नम् प्रदर्शक (वि०) [प्र-दश+ण्वुल] दिखलाने वाला, | सुलगाने की क्रिया, जलाना, उदीप्त करना,-नः एक प्रकट करने वाला। प्रकार का खनिज विष / प्रदर्शनम् [प्र+दश+ल्युट ] 1. दृष्टि, दर्शन जैसा कि | प्रदीप्त (भ० क० कृ०) [प्र+दीप् / क्त ] 1. सुलगाया 'धोरप्रदर्शनः' में 2. प्रकट होना, प्रदर्शन करना, दिख- हुआ, जलाया हुआ, प्रज्वलित, प्रकाशित 2. देदीप्यलाना, प्रदर्शनी, नुमायश 3. अध्यापन, व्याख्या करना मान, जाज्वल्यमान, प्रकाशमान 3. उठाया हुआ, 4. उदाहरण / विस्तारित---प्रदीप्तशिरसमाशीविषम्-. दश० 4. उद्दी प्रदर्शित (भूक०कृ०)[प्र.--दृश् ।-णिच् + क्त दिखलाया | पित, उत्तेजित (क्षुधा आदि)। हुआ, सामने रक्खा हुआ, प्रकट किया हुआ, प्रकाशित | प्रदुष्ट (भू० क० कृ०) [प्र+दुष्+क्त ] 1. बिगड़ा For Private and Personal Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ, भ्रष्ट 2. दूषित, मलिन, पापमय 3. लम्पट, I मायावती का मन इसके सौन्दर्य पर आकृष्ट हो गया। स्वेच्छाचारी। परन्तु प्रद्युम्न ने मायावती का मातृत्व को दूषित प्रदूषित (भू. क. कृ०) [प्र+दूष-+णिच्+क्त ] करने वाली इस प्रकार की भावनाओं के कारण बुरा 1. भ्रष्ट, विषाक्त, विकृत, पतित 2. अपवित्र, मलिन, भला कहा, क्योंकि वह तो उसे माता समझता था। भ्रष्ट / परन्तु जब उसे बतलाया गया कि वह विष्णु का पुत्र प्रवेय (सं० कृ०)[प्र+दा+यत ] दिए जाने के योग्य, है, उसे शंबर ने समुद्र में फेंक दिया था, तो उसने (समाचार आदि) दिये जाने के लायक, संवहन किये क्रोध से आगबबूला होकर शंबर को युद्ध के लिए जाने के उपयुक्त--रघु० 5.18, 31 / ललकारा, तथा अपनी माया के द्वारा उस का वध कर प्रदेशः [+दिश्+घञ्] 1. संकेत करना, इशारा दिया। उसके पश्चात् वह और मायावती कृष्ण के करना 2. स्थान, क्षेत्र, जगह, देश, प्रदेश, मंडल-पितुः घर गए जहाँ नारद मुनि ने कृष्ण और रुक्मिणी को प्रदेशास्तव देवभूमयः-कु० 5 / 45, रघु० 5 / 60, इसी बतलाया कि यह तो उनका अपना पुत्र हैं तथा मायाप्रकार कंठ तालु हृदय आदि 3. बित्ता, बालिश्त वती उसकी पत्नी है। 4. निश्चय, निर्धारण 5. दीवार 6. (व्या० में) | प्रद्योतः [प्रकृष्टो द्योत:-प्रा० स०] 1. जग मगाना, उदाहरण / प्रकाश, रोशनी 2. आभा, प्रकाश, कान्ति 3. प्रकाश प्रदेशनम् [प्र+दिश्+ल्युट 11. संकेत करना 2. उपदेश, की किरण 4. उज्जयिनी के एक राजा का नाम जिसकी अनुदेश 3. भेंट, उपहार, नढावा विशेष कर देवताओं पूत्री से वत्स के राजा उदयन ने विवाह किया थाकों या श्रेष्ठतर व्यक्तियों को। प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्सराजोऽत्र जहे--मेघ० 32 प्रवेश (शि) नी [ प्रदेशन-+ङीप, प्र+दिश+णिनि+ (मल्लि० इसे 'प्रक्षिप्त' समझते हैं), रत्न० 1 / 10 / ___डीप ] तर्जनी अंगुली, अभिसूचक अंगुली। प्रद्योतनम् [प्र+द्युत् + ल्युट्] 1. जगमगाना, चमकना प्रदेहः [++दिह +घञ ] 1. लेप करना, तेल या औषधि | 2. प्रकाश, - नः सूर्य / आदि की मालिश करना 2. लेप, पलस्तर / प्रद्रवः [प्र+द्र-1-अप् ] दौड़ना, पलायन / प्रदोष (वि०) [ प्रकृष्ट: दोषो यस्य-प्रा० ब० ] बुरा, | प्रद्रावः [प्र+द्र+घञ ]1. भाग जाना, पलायन, प्रत्यावर्तन, भ्रष्ट,-षः 1. दोष, त्रुटि, पाप, अपराध 2. अव्यव- बच निकलना 2. द्रुतगमन, तेजी से जाना। स्थित स्थिति, विद्रोह, बगावत 3. संध्याकाल, रात्रि प्रद्वारः, प्रद्वारम् [ प्रगतं द्वारम् ~प्रा० स०] दरवाजे या का आरंभ----तमः स्वभावास्तेऽप्यन्ये प्रदोषमन्यायिनः | फाटक के सामने का स्थान / ---- शि० 2178 ( यहाँ प्रदोष का अर्थ मुख्य रूप से प्रद्वेषः, प्रद्वेषणम् [प्र+द्विष्+घञ, ल्युट वा ] नापसन्दगी, 'भ्रष्ट' और 'पतित है),-व्रजसून्दरीजनमनस्तोषप्रदोषः | धृणा, अरुचि। -गीत० 5, कु० 5 / 44, रघु० 193, ऋतु० 1 / 11 / / प्रधनम [प्रधा -क्य ] 1. युद्ध, लड़ाई, संग्राम, संघर्ष, सम०-कालः संध्या समय, रात्रि का आरंभ,---तिमि- -प्रहितः प्रधनाय माधवानहमाकारयितुं महीभृता-शि० रम् सध्याकालीन अंधेरा, सांझ का झुटपुटा-कामं 16 / 52, क्षेत्र क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद्भजेथा:-मेघ० प्रदोषतिमिरेण न दृश्यसे त्वम्--मृच्छ० 1 / 35 / 48, रघु 0 11177, महावी०६।३३ 2. युद्ध में लट प्रयोहः [प्र+दुह, +घन ] दुहना, दूध निकालना।। का माल 3. विनाश 4. फाड़ना, तोड़ना, चीरफाड़। प्रद्युम्नः [प्रकृष्टं द्युम्नं बलं यस्य-प्रा० ब०] कामदेव प्रधमनम् [प्र+धम्-+ल्यूट ] 1. लंबा सांस लेना 2. संघनी, का विशेषण, कामदेव / यह कृष्ण और रुक्मिणी का | नस्य। पुत्र था। जब यह छ: वर्ष को आयु का था तो शंबर | प्रधर्षः प्र+ष+घञ ] हमला, आक्रमण ?. बलात्कार। नामक दैत्य ने इसका अपहरण कर लिया क्योंकि उसे प्रधर्षणम्, --णा [प्र+धृष्+णिच् + ल्युट ] 1. हमला, यह पहले ही ज्ञात हो गया था कि प्रद्युम्न के द्वारा आक्रमण 2. बलात्कार, दुव्र्यवहार, अपमान / उसकी मृत्यु हो जायगी। शंबर ने उस बालक को प्रधर्षित (भू० क० कृ०) [प्र+धृष-+णिच्+क्त] घर्घराते हुए समुद्र में फेंक दिया जहाँ उसे एक मछली 1. हमला किया गया, आक्रान्त 2. क्षतिग्रस्त, चोट निगल गई। एक मछुवे ने इस मछली को पकड़ पहुँचाया हुआ 3. घमंडी, अहंकारी। लिया और शंबर के सामने ला रक्खा। जब इस | प्रधान (वि.) [प्र-धा+ल्यूट | 1. मुख्य, मूल, प्रमुख, मछली को काटा गया तो इसके पेट से एक सुन्दर बड़ा, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ जैसा कि प्रधानामात्य, प्रधानबालक मिला। नारद मुनि की इच्छानुसार शंबर पुरुष आदि में-मनु० 7 / 203 2. मुख्य रूप से की गृहिणी मायावती ने इस बालक का पालनपोषण अन्तहित, प्रचलित, प्रबल,---नम् 1. मुख्य पदार्थ, किया। जब यह बालक जवान हो गया तो स्वयं / अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वस्तु, अधिष्ठाता, मुख्य-न For Private and Personal Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिचयो मलिनात्मनां प्रधानम् ----शि०७।६१, गंगा० / प्रनायक (वि०) [प्रगतो नायको यस्मात् प्रा० स० ब०] 18, प्रयोगप्रधानं हि नाट्यशास्त्रम्--मालवि० 1, 1. जिसका नेता विद्यमान न हो 2. नायक या पथशमप्रधानेषु तपोधनेष -श० 2 / 7, रघु० 679 प्रदर्शक से रहित / 2. प्रथम विकासकर्ता, जन्मदाता, भौतिक सष्टि का प्रनालः,-ली (स्त्री०) [प्रा० स०] दे० प्रणाल और स्रोत, प्रथम जीवाणु जिसमें से यह समस्त भौतिक प्रणाली। संसार विकसित हुआ है (सांख्य० के अनुसार)-न | प्रनिघातनम् [प्र+नि+हन्-णिच् + ल्युट ] वध, हत्या। पुनरपि प्रधानवादी अशब्दत्वं प्रधानस्यासिद्धमित्याह | प्रनत्त (वि.) [प्र+नत्+क्त ] नाचने वाला,---सम् -शारी०,दे० 'प्रकृति' भी 3. परमात्मा 4. बुद्धि 5. किसी | नाच। मिश्रण का मुख्य अंग,--नः, -नम् 1. राजा का मुख्य प्रपक्षः [प्रा० स०] पंख का अंतिम सिरा। सेवक या सहचर (उसका मन्त्री या अन्य विश्वस्त प्रपञ्चः [प्रा० स०] 1. प्रदर्शन, प्रकटीकरण-रागप्रायः पुरुष) 2. महानुभाव, राजसभासद 3, महावत, प्रपञ्चः-का० 141 2. विकास, फैलाव, विस्तार -अङ्गम् 1. किसी वस्तु की मुख्य शाखा 2. शरीर का ---शि० 20144 3. विस्तारण, विशद व्याख्या, मुख्य अंग 3. राज्य का प्रधान या प्रमुख व्यक्ति / स्पष्टीकरण, विवरण 4. सुविस्तारता, प्रसार बाहुल्य --अमात्यः प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री,-आत्मन् (पुं०)विष्णु -अलं प्रपञ्चेन 5. बहुविधता, विविधता 6. ढेर, प्राचुर्य, का विशेषण, धातः शरीर का मुख्य तत्व अर्थात् मात्रा 7. दर्शन, दृश्यवस्तु 8. माया, जालसाजी वीर्य, शुक्र, पुरुषः 1. प्रमुख व्यक्ति (राज्य का), 9. दृश्यमान जगत् जो केवल माया, और नानात्व 2. शिव का विशेषण,-मन्त्रिन (पुं०) राज्य का सबसे का प्रदर्शन मात्र है / सम-बुद्धि (वि.)धूर्त, कपटी, बड़ा मंत्री, वासस् (नपुं०) मुख्य वस्त्र, वृष्टिः --वचनम् विस्तृत प्रवचन, प्रसारयुक्त बातचीत / (स्त्री०) वर्षा की भारी बौछार / प्रपञ्चयति (नामधातु-पर०) 1. दिखलाना, प्रदर्शन करना प्रधावनः [प्र.+धात् + ल्युट् ] वायु, हवा, नम् रगड़ देना, -प्रपञ्चय पञ्चमम् --गीत० 10 2. विस्तार करना, घो देना। प्रसार करना। प्रधिः[प्र-धा-कि11. पहिय की नाभि या परिणाह | प्रपउचित (भ० क००) [प्र---पंच+क्त 11. प्रशित -शि० 15179, 17 / 27 2. कुओं। 2. विस्तारित, प्रसारित 3. फैलाया गया, पूरी व्याख्या प्रधी (वि.) [प्रकृष्टा धीः यस्य-प्रा०८. | कुशाग्रबुद्धि, की गई, विशदीकृत 4. भूल जाने वाला, भटका हुआ (स्त्रो०) बड़ी बुद्धि, प्रज्ञा / 5. धोखे में आया हुआ, छला हुआ। प्रधूपित (भू० क० कृ०) [प्र-धूप् क्त | 1. सुवासित, प्रयतनम् प्रयत्+ ल्युट ] 1. उड़ जाना 2. गिराना, "सुगंधयत 2. गर्माया हुआ, तपाया हुआ 3. प्रज्वलित अवपात 3. अवतरण 4. मृत्य, विनाश 5. खड़ी चट्टान, 4. संतप्त, ता 1. कप्टग्रस्त स्त्री 2. वह दिशा जिस ढलवाँ चट्टान / ओर सूर्य बढ़ रहा हो। प्रपदम् [ प्रा० स०] पर का अग्रभाग। प्रधृष्ट (भू० क० कृ०) [प्र-+-धृष्+क्त 1. तिरस्कार प्रपदीन (वि.) [प्रपद--ख ] पैर के अग्रभाग से संबद्ध, "पूर्वक बर्ताव किया गया 2. घमंडी, अहंकारी, दृप्त या या अग्रभाग तक विस्तृत / अभिमानी। प्रपन्न (भू० क. कृ.) [प्र+पद+क्त ] 1. पधारने प्रध्यानम् [ प्र+ध्य + ल्युट् ] 1. गहन विचार या विमर्श वाला, पहुँचने या जाने वाला 2. आश्रय ग्रहण करने 2. विचार या विमर्श / वाला, अपनाने वाला-कु० 315, 5 / 59 3. शरण लेने प्रध्वंसः [प्र-न-ध्वंस् / घा] सर्वथा विनःश, संहार / सम० वाला, संरक्षण ढूंढने वाला, प्रार्थी, दीन, याचक -अभावः विनाशजनित अभाव, चार प्रकार के अभावों -~~-शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्--भग० 27, में से एक, जिसमें विनाश से अभाव की उत्पत्ति होती 4. अनुसरण करने वाला 5. सुसज्जित, युक्त, आधिहै, जैसे कि किसी वस्तु की उत्पत्ति के पश्चात् / पत्य प्राप्त--श० 111. 6. प्रतिज्ञात 7. हासिल, प्रध्वस्त (भू० क० कृ०) [7--ध्वंस- क्त संहार किया प्राप्त 8. बेचारा, कष्टग्रस्त / हुआ, पूर्ण रूप से नष्ट किया हुआ। प्रपन्नाडः [प्रपन्न |-अल+अण, डलयोरभेदः ] दे० प्रनप्त (पुं०) [प्रगतो नप्तारं जनकतया प्रा० स० पौत्र 'प्रपुनाट'। का पुत्र, प्रपौत्र। प्रपर्ण (वि०) प्रपतितानि पर्णानि यस्य-प्रा० ब०] प्रनष्ट (भू.क. कृ०) प्र!-नम् -- तत | 1. अन्तर्धान, पत्तों से रहित (बक्ष),-र्णम् गिरा हुआ पत्ता। लुप्त, अदृश्य 2. खोया हुआ 3. भिटा हआ, मृत | प्रपलायनम् [प्र+परा-अय+ल्यट, रस्य ल:] भाग 4. बरबाद, समुच्छिन्न, उन्मूलित / खड़ा होना, प्रत्यावर्तन। For Private and Personal Use Only Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खड़ा प्रबन्धः अविच्छिन्नता वण, स्खलन पात' में 9 आपको नीचे प्रपा [प्र-+पा-- अङ+टाप्] 1. प्याऊ --व्याख्यास्थानान्य- प्रफुल्लिः (स्त्री०) [प्र.+फुल+क्तिन] खिलना, विस्तरण, मलसलिला यस्य कूपाः प्रपाश्च-विक्रमांक० 18178 | पुष्पित होना। 2. कुआँ, कुण्ड ... मनु० 8 / 319 3. पशुओं को पानी प्रफुल्ल (भू० क० कृ०) [प्र+फल्+क्त, उत्वम् लत्वं च] पिलाने का स्थान, खेल 4. पानी का भंडार / सम० 1. पूरा खिला हुआ, मंजरित, मुकुलित-न हि प्रफुल्ल –पालिका बटोहियों को जल पिलाने वाली स्त्री सहकारमेत्य वृक्षान्तरं काक्षति षट्पदाली-रघु० विक्रमांक० 1189, 13 / 10, - वनम् शीतोद्यान / 6179, 229, कु० 345, 7 / 11 2. खिले हुए प्रपाठकः [प्रकृष्ट: पाठोऽत्र--प्रा० ब०] 1. पाठ, व्याख्यान / फूल की भांति फैली हुई या विस्तारयुक्त (आँख 2. किसी का अध्याय या भाग। आदि) 3. मुस्कराता हुआ 4. प्रमुदित, उल्लसित, प्रपाणिः [प्रकृष्ट: पाणिः --प्रा० स०] 1. हाथ का अगला प्रसन्न / सम० ---नयन,- नेत्र,--लोचन (वि.) हर्ष भाग 2. हाथ की खुली हथेली। के कारण खिली हुई आँखों वाला,-वदन (वि०) प्रपातः [प्र+पत्+ध 1. चले जाना, विदायगी 2. नीचे हर्षोत्फुल्ल या हंसमुख, हंसमुख चेहरे वाला। गिरना, अवपात-मनोरथानामतटप्रपात:-..श० 69, प्रबद्ध (भू० क० कृ०) [ प्रबंध+क्त] 1. बांधा हुआ, कु० 657 3. आकस्मिक आक्रमण 4. वारिप्रवाह, बंधा हुआ, कसा हुआ 2. रोका हुआ, अवरुद्ध, झरना, झाल, वह स्थान जिसके ऊपर पानी गिरता अटकाया हुआ। रहता है... रधु० 2 / 26, 5. तट, बेला, 6. खड़ी | प्रबद्ध (पुं०) [प्र+बंध+तृच्] प्रणेता, ग्रन्थकार / चट्टान, ढलवां चट्टान 7. गिरजाना, झड़ जाना प्रबन्धः [ प्रबन्ध-घञ] 1. बंधन, जोड या गांठ यथा 'केशप्रपात' 8. उत्सर्जन, प्रस्रवण, स्खलन 2. अविच्छिन्नता, सातत्य, नरंतर्य, अविच्छिन्न श्रेणी या ----जैसा कि 'वीर्यप्रपात' में 9 किसी चट्टान से अपने परम्परा विच्छेद माप भवि यस्तु कथाप्रबन्ध:-का० आपको नीचे गिरा देना 10 उड़ान की एक विशेष 239, क्रियाप्रबन्धादयमध्वराणाम् .. रघु० 6 / 23, रीति / 3 / 58, मा० 6 / 3 3. अविच्छिन्न या सुसंगत वर्णन प्रपातनम् [प्र-+-पत्+णिच् + ल्युट] गिराना, (भूमि पर) या प्रवचन अनुज्झितार्थसंबन्धः प्रबन्धो दुरुदाहरः गिराना [ --शि० 2173 4. साहित्यिक कृति या रचना, प्रपादिक: प्रा० स०] मोर। विशेषतः काव्यरचना प्रथितयशसां भासकविसौमिप्रपानम् [प्र.+पाल्युट्] पीना, पेय पदार्थ / ल्लकविमिश्रादीनां प्रबन्धानतिक्रम्य--मालवि० 1, प्रपानकम् प्रपान+कन् | एक प्रकार का पेय / प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रबन्ध- आदि वास० 5. व्यवस्था, प्रपितामहः [प्रकर्षेण पितामहः-प्रा० स०] 1. पड़ बाबा योजना, कल्पना जैसा कि 'कपटप्रबंध' में। सम० पड़दादा 2. कृष्ण का विशेषण- भग० 11 / 39 -- कल्पना झठमूठ की कहानी, किसी तथ्य के उपस्तर 3. ब्रह्मा की उपाधि, . ही पड़दादी। पर आधारित कल्पनाकृति प्रबंधकल्पनां स्तोकसत्यां प्रपितव्य प्रा० स० ताऊ। प्राज्ञाः कथां विदुः। प्रपीडनम् प्र+पोड्+णिच् + ल्युट] 1. भींचना, निचो- प्रबन्धनम् [प्र-बन्ध+ ल्युट ] बंधन, जोड़ या गाँठ / डना 2. रक्तस्त्रावावरोधक औषधि / प्रबभ्रः (पुं०) इन्द्र का नामान्तर / प्रपीत (न) (वि०) [प्रपा (प्याय)+क्त] सूजा हुआ, प्रब (ब) (वि.) [प्र+ब (व) ई, +अच् ] सर्वश्रेष्ठ, फूला हुआ। सर्वोत्तम / प्रघुना (ना) टः, [प्रकर्षण पुमांसं नाटयति-प्र-+पुम् +नट् प्रबल (वि०) [प्रकृष्टं बलं यस्य--प्रा० ब०] 1. बहुत +णि+अण्] चक्रमर्द नाम का वृक्ष, चकवंड। मजबूत, शक्तिशाली, ताकतवर, शूरवीर (पुरुष), प्रपूरणम् [प्र--पूर+ल्युट्] 1. पूरा करना, भरना, पूर्ति रघु० 3 / 60, ऋतु० 3 / 23 2. प्रचंड, मजबूत, तीव्र, करना 2. सन्निविष्ट करना, सुई लगाना 3. सन्तुष्ट अत्यधिक, बहुत बड़ा- प्रवलपुरोवातया वृष्टया करना, तृप्त करना 4. संबद्ध करना / -मालवि० 4 / 2, प्रबलां वेदनाम्- रघु० 850 प्रपूरित (भू० क० कृ०) [प्र+पूर+क्त] भरा हुआ। 3. महत्त्वपूर्ण 4. भरपूर 5. भयानक, विनाशकारी / प्रपृष्ठ (वि.) [प्रा० ब०] विशिष्ट पीठ वाला। प्रब (व) ल्लिका [प्र+ब (व) +ण्वुल+टाप् प्रपौत्रः [प्रा० स०] पड़पोता-याज्ञ० ११७८,—त्री इत्वम् ] दे० 'प्रहेलिका' पड़पोती। प्रबाधनम् [प्र. वा--ल्युट ] 1. प्रत्याचार, प्रपीडन प्रफुल्ल (भूक००)[प्र-+-फल-क्त] / खिला हुआ, पूर्ण, 2. अस्वीकृति, मुकरना 3. दूर रखना। विकसित-लोध्रद्रुमं सानुमतः प्रफुल्लम् ---रघु०।२९ प्रवा (वा) लः, लम् [प्र+ब (व) ल-+-णिच्---अच्] 'प्रफुल्ल' का पाठान्तर)। | 1. कोंपल, अंकुर, किसलय-अपि....प्रवालमासाम For Private and Personal Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नुबन्धि वीरुधाम्-कु० 5 / 34, 1144, 318, रघु० --श०१5. प्रणेता, रचयिता-कु. 25 6. जन्म 6 / 12, 13 / 49 2. मूंगा 3. वीणा की गरदन,-लः __स्थान 7. शक्ति, सामर्थ्य, शौर्य, भव्य गरिमा 1. शिष्य 2. जन्तु / सम०-अश्मन्तक: 1. लाल (प्रभाव) 8. विष्णु की उपाधि 9. (समास के अन्त अश्मंतक वृक्ष 2. मूंगे का वृक्ष,--पद्यम् लाल कमल, में) उत्पन्न होने वाला, व्युत्पन्न -- सूर्यप्रभवो बंशः -फलम् लाल चन्दन की लकड़ी,-भस्मन् (नपुं०) ----- रघु० 112, कु० 3 / 15 / / मुंगे की भस्म / प्रभवित (पुं०)[प्र+भू+तृच ] शासक, महाप्रभु। प्रबाहुः [प्रकृष्टो बाहुः---प्रा० स०] भुजा का अग्रभाग, प्रभविष्णु (वि.) [प्र+भू+इष्णुच ] मजबूत, ताकतपहुंचा। वर, शक्तिशाली,--ष्णुः 1. प्रभु, स्वामी-यत्प्रभविप्रबाहुकम् (अव्य०) [प्रबाहु+कप् ] 1. ऊँचाई पर | ष्णवे रोचते-श०२ 2. विष्णु की उपाधि / 2. उसी समय / प्रभा प्र--भा+अ+टाप 11. प्रकाश, दीप्ति, कान्ति, प्रबुद्ध (भू० क० क०) [प्र-+बुध+क्त ] 1. जगाया हुआ, जगमगाहट, चमक-प्रभास्मि शशिसूर्ययो:-भग०७१८, जागा हुआ 2. बुद्धिमान्, विद्वान्, चतुर 3. ज्ञाता, प्रभा पतङ्गस्य--रघु०२।१५,३१,६।१८, ऋतु० 1219, जानकार 4. पूरा खिला हुआ, फैला हुआ 5. कार्यारंभ मेघ०४७ 2. प्रकाश की किरण 3. धूप घड़ी पर सूरज करने वाला, या कार्यान्वित होने वाला (जादू, मंत्र की छाया 4. दुर्गा की उपाधि 5. कुवेर की नगरी का आदि)। नाम 6. एक अप्सरा का नाम / सम०--करः 1. सूर्य प्रबोषः [प्र+बुध् / घञ्] 1. जागना (आलं. भी) -~-रघु० 1074 2. चन्द्रमा 3. अग्नि 4. समुद्र जागरण, होश में आना, चेतना-अप्रबोधाय सुष्वाप 5. शिव का विशेषण 6. एक विद्वान लेखक का नाम, --रषु. 12050 मोहादभूत्कष्टतरः प्रबोध: -14 // मीमांसा दर्शन की उस एक विचारधारा के प्रवर्तक, 56 2. (फूलों का) खिलना, फैलना 3. जागरण, जो उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है,--कीटः जगन्,-तरल नींद का अभाव 4. सतर्कता, सावधानी 5. ज्ञान, (वि०) जगमगाता हुआ न प्रभातरलं ज्योतिरुदेति समझ, बुद्धिमत्ता, भ्रम को दूर करना, यथार्थ ज्ञान वसुधातलात्-श० २२६,–मण्डलम् प्रकाश का एक ~-यथा 'प्रबोधचन्द्रोदय' में 6. सांत्वना 7. किसी वृत्त, परिवेश-कु० 1 / 24, 614 रघु० 360, 14 / सुगंध द्रव्य में सुगंध का पुनर्जीवन / / १४,-लेपिन् (वि०) कान्तियुक्त, कान्ति का प्रसारक प्रबोधन (वि.) (स्त्री०-नी) [प्र+बुध+णिच् + -विक्रम 4134 / ज्यट | जागरण, जागना,-नम् 1. जागते रहना प्रभागः [प्र+भज+घा] 1. भाग, टुकड़ी 2. (गणित) 2. जाग, जगना 3. सचेत होना 4. ज्ञान, बुद्धिमत्ता भिन्तका भिन्त। 5. शिक्षण, उपदेश देना 6. किसी गंधद्रव्य की सुगंध प्रभात (भू० के० क.) [प्र+मा+क्त ] जो स्पष्ट या का पुनर्जीवन / प्रकाशित होने लगा हो--ननु प्रभाता रजनी-श० 4, प्रबोध (धि) नी [प्रबोधन+डीप, प्र+बुध+णिच्+ --तम् दिन निकलना, पौ फटना। गिनिजी ] देव उठनी एकादशी, कार्तिक शुक्ला / / एकादशा, कातक शुक्ला प्रभानम् / प्र+भा+ल्युट् ] प्रकाश, कान्ति, दीप्ति, एकादशी जिस दिन विष्णु भगवान् चार मास की। ज्योति, चमक। नींद लेने के पश्चात् जागते है। प्रभावः [प्र-भू-धज्ञ ] 1. कान्ति, दीप्ति, उजाला प्रबोधित (भू. क. कृ.) [प्र+बुध+णिच् +क्त ] 2. गरिमा, यश, महिमा, तेज, भव्य कान्ति-प्रभाव 1. जागा हुआ, जगाया हुआ 2. शिक्षण, प्राप्त, सूचना वानिव लक्ष्यते श०१ 3. सामर्थ्य, शौर्य, शक्ति, दिया हुआ। अव्यर्थता-पंच० 117 4. राजोचित शक्ति (तीन प्रभञ्जनम् [प्र+भज्+ल्युट्] टुकड़े टुकड़े करना,-न: शक्तियों में से एक) 5. अतिमानव शक्ति, अलौकिक हवा, विशेषकर आँधी, झंझावात-नै० 1261, पंच० शक्ति -रघु० 2 / 41,62, 3140, विक्रम० 1, 2, 5, 1 / 122 / महानुभावता / सम०---ज (वि०) राजशक्ति से प्रभवः [ प्रगतं भद्रं यस्मात् प्रा.ब.] नीम का पेड़। / उत्पन्न प्रभाव से युक्त। प्रभवः [प्र+भु+अप् ] स्रोत, मूल-अनन्तरत्नप्रभवस्य प्रभाषणम् [प्र+भाष् + ल्युट ] व्याख्या, अर्थकरण / यस्य- कु. 113, अकिंचन: सन् प्रभवः सः संपदाम् / प्रभासः [.प्र+भास्+धन ] दीप्ति, सौन्दर्य, कान्ति, -577, रघु० 975 2. जन्म, पैदायश 3. नदी का -सः,--सम् द्वारका के निकट स्थित एक सुविख्यात उद्गमस्थान-तस्या एव प्रभवमचलं प्राप्य गौरं तीर्थस्थान / तुषारैः-मेघ० 52 4. उत्पत्ति का कारण, (माता, प्रभासनम् [प्र+भास् + ल्युट् ] प्रकाशित होना, जगमग पिता आदि) जन्मदाता-तमस्याः प्रभवमवगच्छ / होना, चमकना / For Private and Personal Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 668 ) प्रभास्वर (वि.) [प्र+भास् ---वरच्] उज्ज्वल, चमकीला, | प्रभ्रंशित (भू० क० कृ०) [प्र+भ्रंश् +-णिच्+क्त ] चमकदार। ___1. फेंका गया, डाल दिया गया 2. वञ्चित / प्रभिन्न (भू० क० कृ.) [प्र-भिद्+क्त ] 1. अलग प्रभ्रंशिन् (वि.) [प्र+भ्रंश+णिनि ] टूटकर गिरना, किया हुआ, खंडित, फाड़ा हआ, विभक्त किया हुआ झड़ना। 2. टुकड़े किया हुआ 3. काटा हुआ, वियुक्त किया प्रभ्रष्ट (भू० क० कृ०) [प्र-भ्रंश् + क्त ] गिरा हुआ, हआ 4. मुकुलित, विकसित, खिला हआ 5. बदला नीचे पड़ा हुआ, ष्टम् सिर पर विराजमान मुकुट हआ, परिवर्तित 6. विरूपित, विकृत 7. शिथिलित, की शिखापर धारण की गई फूल-माला, शिखाबढीला 8. नशे में चूर, मदमस्त---कु० 5 / 80 (दे० लंबिनी फूलमाला। प्रपूर्वक भिद्),-नः मतवाला हाथी / सम०--अञ्जनम् | प्रभ्रष्टकम् [प्रभ्रष्ट+कन् ] दे० 'प्रभ्रष्ट' / काजल / प्रमग्न (भू० क० कृ०) [प्र+मस्ज्+क्त ] डूबा हुआ, प्रभु (वि.) (स्त्री०-भ,म्-वी) [प्र+भू+डु] 1. बल- | गोता दिया हुआ, डुबोया हुआ। वान्, मज़बूत, शक्तिशाली--ऋषिप्रभावान्मयि नान्त- प्रमत (भू० क० कृ.) [प्र+मन् + क्त ] विचारा कोऽपि प्रभः प्रहतूं किमुतान्यहिस्रा: .. रघु० 2 / 62, ! हुआ। समाधिर्भदप्रभवो भवन्ति-कु० 3 / 40 3. जोड़ का प्रमत्त (भ० 0 0) [प्र--मद |क्त ] 1. नशे में चर. ---प्रभुमल्लो मल्लाय-महा०, - भुः 1. अधिपति, मदोन्मत्त ... श० 4 / 1 2. उन्मत्त, पागल 3. लापरस्वामी- प्रभवृषभुवनत्रयस्य यः - शि० 249 / वाह, उपेक्षक, अनवधान, असावधान, अनपेक्ष (प्रायः 2. राज्यपाल, शासक, सर्वोच्च अधिकारी 3. स्वामी, अधि० के साथ) 4. उन्मार्गगामी, भूल करने वाला मालिक 4. पारा 5. विष्णु 6. शिव 7. ब्रह्मा 8. इन्द्र / (अपा० के साथ) --स्वाधिकारात्प्रमत्तः-मेध० 1, सम०-भक्त (वि.) अपने स्वामी में अनुरक्त, 5. चौपट करने वाला 6. स्वेच्छाचारी, लम्पट / सम० राजभक्त (क्तः) बढिया घोड़ा, -- भक्तिः (स्त्री०) ----गीत (वि.) असावधानतापूर्वक गाया हुआ,--चित्त अपने स्यामी की भक्ति, राजभक्ति, स्वामिभक्त / (वि०) लापरवाह, असावधान, बेखबर / प्रभुता, स्वम् | प्रभु ---तल +टाप, प्रभुत्व ] 1. आधि- | प्रमथः [प्र+मथ् +अच ] 1. घोडा 2. शिव के गण पत्य, सर्वोपरिता, स्वामित्व, शासन, अधिकार ... श० (जो भूत प्रेत माने जाते हैं) जो उसकी सेवा में रत 5 / 25, विक्रम० 4 / 12 2. मिल्कियत / है.--कु० 7 / 95 / सम० - अधिपः, नाथः - पतिः प्रभूत (भू० क० कृ०) [प्र+भू+क्त ] 1. उद्भूत, शिव की उपाधि / उत्पन्न 2. प्रचुर, विपुल 3. असंख्य, अनेक 4. परिपक्व, | प्रमथनम् [प्र+म+ल्युट ] 1. चोट पहुंचाना, क्षति पूर्ण 5. ऊँचा, उत्तुंग 6. लंबा 7. प्रधानत्व में। सम० पहुंचाना, संतप्त करना 2. वध, हत्या 3. मन्थन --- यवसेन्धन (वि०) जहाँ हरीघास और इंधन की करना, विलोना। बहुतायत हो, वयस् (वि०) वयोवृद्ध, बूढ़ा, उमर- प्रमथित (भू० क० कृ०) [प्र-मथ् + क्त ] 1. प्रपीड़ित, रसीदा। कष्टग्रस्त 2. कुचला हुआ 3. कतल किया हुआ, वध प्रभूतिः (स्त्री०) [प्रभू+क्तिन् ] 1. उद्गम, मूल | किया हुआ,- मा० 3 / 18 4. भली भांति बिलोया 2. शक्ति, सामर्थ्य 3. पर्याप्तता / हुआ,... तम् जल रहित छाछ, मठ्ठा। प्रभतिः | प्रभ+क्तिन् ] 1. आरंभ, शुरू (इस अर्थ में | प्रमद (वि.) प्रकृष्टो मदो यस्य-प्रा० ब० ] 1 मतयह बहुधा बहुव्रीहि समास के अन्त में प्रयुक्त . वाला, नशे में चूर (आलं० से भी) 2. आवेशपूर्ण इन्द्रप्रभृतयो देवाः आदि)-(अव्य०)2. से, से लेकर, / 3. लापरवाह 4. स्वेच्छाचारी, बदचलन,-दः 1. हर्ष, शुरू करके (अपा० के साथ)--शैशवात्प्रभृति पोषितां | प्रसन्नता, खुशी शि० 354 13.25. धतूरे का प्रियाम् --- उत्तर० 245, रघु० 2 / 38, अद्यप्रभृति पौधा / सम-काननम्, वनम् राजकीय अन्तःपुर आज (अब) से लेकर, अतः प्रभृति, ततः प्रभृति आदि। से जहा हआ, प्रमोद वन, वह उद्यान जिसमें राजा प्रभेवः [प्र--भिद्धा ] 1. फाड़ना, चीरना, खोलना अपनी रानियों के साथ विहार करता है। 2. प्रभाग, बियोग 3. हाथी के गण्डस्थल से मद का प्रमदक (वि.) [प्रमद+कन् ] लम्पट, कामुक / बहना... रधु० 3 / 37 4. अन्तर, भेद 5. प्रकार | प्रमदनम् [ प्र-+-मद् + ल्युट् ] कामेच्छा / या किस्म / प्रमदा [प्रमद्-+-अच्+टाप] 1. सुन्दरी नवयुवती .. रघु० प्रभ्रंशः [प्र+भ्रंश ---घा] गिरना, गिरकर अलग हो 9 / 31, श० 5 / 17 2. पत्नी या स्त्री कु० 4112, जाना। रघु० 872 3. कन्याराशि। सम० - काननम्, प्रभ्रंशयः [प्र--भ्रंश् +अथुच् ] नाक का एक रोग, पीनस। -बनम् राजकीय अन्तःपुर के साथ जुड़ा हुआ प्रमोद For Private and Personal Use Only Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्यान (जहाँ रानियाँ विहार करती हैं), -- जनः / अधिकृत वक्तव्य,--शास्त्रम् 1. वेद, धर्मशास्त्र 2. तर्क 1. नवयुवती, तरुणी 2. स्त्री। विज्ञान,-सूत्रम् मापने की डोरी। प्रमद्वर (वि.) [प्र+म+वरच ] लापरवाह, अनव- प्रमाणयति (ना० धा० पर०) अधिकृत समझना, प्रमाणघान, असावधान। स्वरूप मानना -- हि० 110 / प्रमनस् (वि०) [ प्रकृष्टं मनो यस्य-प्रा० ब.] 1. खुश, प्रमाणिक (वि०) [ प्रमाण +ठन् ] 1. 'नाप' का आकार हर्षयुत, प्रसन्न, आनन्दित / / ग्रहण करने वाला 2. प्रमाण या अधिकार का रूप प्रमन्यु ( वि. ) [ प्रकृष्टो मन्य: यस्य-प्रा० ब० ] धारण करने वाला। 1. क्रोधाविष्ट, चिडचिड़ा चिढ़ा हआ ( अधि० के | प्रमातामहः [प्रकृष्टो मातामहः-प्रा० स०] 1. परनाना, साथ ) रघु० 7.34 2. कष्टग्रस्त शोकान्वित, - ही परनानी। शोकसंतप्त / प्रमाथः [प्र+मथ्+घञ ] 1. प्रपीडन, संताप देना, प्रमयः [ प्र+मी+अच् ) 1. मृत्यु 2. बरबादी, नाश, सताना 2. क्षुब्ध करना, बिलोना 3. वध, हत्या, निधन 3. वध, हत्या। विनाश .. सैनिकानां प्रमाथेन सत्यमोजायितं त्वया प्रमर्दनम् [प्र+मृद्+ल्युट ] मसल डालना, नष्ट करना, ------उत्तर० 5 / 31, 4 4. हिंसा, अत्याचार 5. कुचल देना, नः विष्णु का विशेषण | बलत्कार, बलपूर्वक अपहरण / प्रमा[प्र+मा+अङ्+टाप् ] 1. प्रतिबोध, प्रत्यक्षज्ञान प्रमाथिन् (वि०) प्र+म+णिनि] 1. यन्त्रणा देने 2. (तर्क० में) सही भाव, विशुद्ध ज्ञान, यथार्थ जान- वाला, तंग करने वाला, संपीडित करने वाला, कष्ट कारी, ठीक ठोक प्रत्यय (यथा रंजते इदं रजतमिति देने वाला, दुःख पहुंचाने वाला क्व रुजा हृदयज्ञानम् - तर्क०)। प्रमाथिनी क्व च ते विश्वसनीयमायुधम-मालवि०३।२, प्रमाणम् [प्र+मा+ ल्युट ] 1. (लंबाई चौड़ाई) माप मा० 211, कि० 3 / 14 2. बध करने वाला, विनाश --रघु० 18 / 38 2. आकार, विस्तार, परिमाण कारी 3.,क्षब्ध करने वाला, गतिमान करने वाला (लंबाई चौड़ाई) 3. मान, मानक-पृथिव्यां स्वामि- - भग० 2260, 6 / 34 4. फाड़ने वाला, गिराने भक्तानां प्रमाणे परमे स्थितः-मुद्रा० 21 वाला, पछाड़ने वाला रघु० 11158 5. काट कर 4. सीमा, परिमाण 5. साक्ष्य, शहादत, प्रमाण 6. अधि गिराने वाला कि० 17131 / कारी, सम्मोदन, निर्णता, निश्चायक, वह जिसका प्रमादः [प्रमद्+घञ्] 1. अवहेलना, असावधानी, शब्द प्रमाण माना जाय * श्रुत्वा देवः प्रमाणम् - पंच० अनवधान, लापरवाही, भूल-चक -- ज्ञातं प्रमादस्खलितं 1, 'यह सुनकर श्रीमान् ही निर्णय करेंगे (कि क्या न शक्यम्-श०६।२६, चौर० 1 2. मादकता, करना चाहिए)'-आर्यमिश्राः प्रमाणम्-मालवि० 1, पागलपन, उन्मत्तता 4. गलती, भारी भूल, गलत मुद्रा० 1 / 1, श०११२२, व्याकरणे पाणिनिः प्रमाणम् निर्णय 5. दुर्घटना, उत्पात, संकट, भय--अहो प्रमादः 7. सत्य ज्ञान, यथार्थ प्रत्यय या भाव 8. प्रमाण की --- मा० 3, उत्तर०३। रीति, यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का उपाय ( नैयायिक प्रमापणम् [प्र+मी+पिच् + ल्युट्, पुक] वध, हत्या / केवल चार प्रमाण प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और प्रमार्जनम् [प्र--मृज --णिच् + ल्युद] मिटा देना, रगड़ शब्द मानते हैं, वेदान्ती और मीमांसक अनुपलब्धि देना, धो देना। और अर्थापति दो और मानते हैं। सांख्य केवल | प्रमित (भू० क० कृ०) [प्रमा (भि) ! क्त] 1. नपा प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द को ही मानते हैतु-० 'अनु- / तुला, सीमित 2. कुछ, थोड़ा-प्रभितविषयां शक्तिं भव' भी 9. मुख्य, मल 10. एकता 11. वेद, शास्त्र, विदन्-महावी०११५१, शि० 16180 3. ज्ञात, समझा धर्मग्रन्थ 12. कारण, हेतु, (प्रमाणीकृ) 1. अधिकारी हुआ 4. प्रमाणित, प्रदर्शित / मानना या समझना 2. आज्ञा मानना, अनुमत होना प्रमितिः (स्त्री०) [प्र.--मा (मि)+क्तिन] 1. माप, नाप 3. साबित करना, सिद्ध करना 4. यथोचित भाग 2. सत्य या निश्चित ज्ञान, यथार्थ भाव या प्रत्यय बांटना / सम... अधिक (वि०) सामान्य से अधिक, 3. किसी प्रमाण या ज्ञान के स्रोत से प्राप्त जानकारी। अपरिमित, अत्यधिक---श० १।३०,-अन्तरम् प्रमाण | प्रमोढ़ (वि.) [प्रमिह +क्त 1 घना, सघन, सटा की अन्य रीति,-अभावः प्रमाणशून्यता, ज्ञ(-वि०) हुआ 2. मूत्र बनकर निकला हुआ। (ताकिक की भांति) प्रमाण पद्धति का जानकार, प्रमीत (भू० क० कृ०) [प्र+मी+क्त] मरा हुआ, मृतक, (स.) शिव का विशेषण,-~-दुष्ट (वि.) अधिकारी -तः यज्ञ के अवसर पर बलि चढ़ाया हुआ या वध द्वारा स्वीकृत,-- पत्रम् लिखित अधिकारपत्र, पुरुषः | किया हुआ पशु। विवाचक, निर्णायक, मध्यस्थ,-वचनम्, वाक्यम् ! प्रमोतिः (स्त्री०) [+मी+क्तिन्] मृत्यु, विनाश, निधन / For Private and Personal Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ला (प्र+मील-अ-+-टाप्] 1. तन्द्रा, आलस्य, उत्साह- प्रमोक्षः [प्र+मोक्ष +घञ्] 1. गिराना, गिरने देना हीनता 2. स्त्रियों के राज्य की प्रभुसत्ताप्राप्त स्त्री का 2. मुक्त करना, स्वतंत्र करना / नाम, (जब अर्जुन का घोड़ा उस स्त्री के राज्य में | प्रमोचनम् [प्र+मुच्+ल्युट्] 1. मुक्त करना, स्वतंत्र पहुँचा तो उसने अर्जुन के साथ युद्ध किया, परन्तु छोड़ना 2. उगलना, छोड़ना। अर्जुन के विजय हो जाने पर प्रमीला, अर्जुन की पत्नी प्रमोदः [प्र+मुद्+घञ्] हर्ष, आह्लाद, उल्लास, प्रसन्नता बन गई। -प्रमोदनृत्यैः सह वारयोषिताम् -- रघु० 3 / 19, प्रमीलित (भ० क. कृ०) [प्रमील- क्त] / मनु० 3161 / आँखों वाला। प्रमोदनम् [प्र+मुद्+णिच् +ल्यट] 1. आह्लादित करना प्रमुक्त (भू० क० कृ०) [प्र-मच्+क्त] 1. शिथिलित आनंदित करना, प्रसन्न करना 2. प्रसन्नता.. नः विष्णु 2. स्वाधीन किया हुआ, स्वतंत्र छोड़ा हुआ 3. तितिक्ष, 1 का विशेषण। विरक्त 4. डाला हुआ, फेंका हुआ। सम०-कण्ठम् | प्रमोदित (भू० क० कृ०) [प्र+मद+णि+क्त ] (अव्य०) फूट फूट कर। प्रसन्न, आह्लादित, हृष्ट, आनंदित,--सः कुबेर का प्रमुख (वि.) [प्रा० ब०] 1. मुंह किये हुए, मुंह मोड़े हुए विशेषण। 2. मुख्य, प्रधान, अग्रणी, प्रथम 3. (समास के अंत में) प्रमोहः [प्र-+ मुह,+घञ ] 1. मूर्छा, बेहोशी, जडता (क) प्रधानता में, प्रधान या मख्य बनाकर-वासुकि ---तिरयति करणानां ग्राहकत्वं प्रमोहः मा० 1 / 41, प्रमुखाः कु० 2 / 38 (ख) से युक्त, सहित प्रीति 2. विकलता, घबड़ाहट / / प्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार-मेघ० 4, खः 1. प्रमोहित (भू० क. कृ०) [प्र+मुह.+णिच्+क्त ] आदरणीय पुरुष 2. ढेर, समुच्चय,-खम् 1. मुंह आकुलित, उद्विग्न, घबड़ाया हुआ। 2. अध्याय या परिच्छेद का आरम्भ (प्रमुखतः, प्रमुखे प्रयत (भू० क० कृ०) [प्र+यम्+क्त ] 1. नियंत्रित, क्रिया विशेषण के रूप में प्रयक्त होकर के सामने जितेन्द्रिय, पूत, पावन, भक्त, घार्मिक अनुष्ठानों एवं 'सामने' के विरुद्ध' अर्थ को प्रकट करते है.. भग० साधनाओं से जिसने अपने आपको पवित्र बना लिया 1225, श० 7 / 22) / है, आत्मसंयमी,--रघु० 1195, 8111, 13 / 70, कु. प्रमुग्ध (वि०) [प्र+मुह, --क्त] 1. मूर्छित, अचेत, | 1158, 3 / 16 2. सोत्साह, अत्युत्सुक 3. सुशील, 2. अत्यंत प्रिय। विनम्र / प्रमद् (स्त्री०) (प्र+मद-+क्विप] अत्यंत हर्ष / प्रयत्नः [प्र-यत्-+-नङ ] 1. प्रयास, चेष्टा, उद्योग-रघ० प्रमुदित (भू० क. कृ.) [प्र+मुद्+क्त] उल्लसित, 2156, मुद्रा० 5 / 20 2. अनवरत प्रयास, धैर्य 3. श्रम ___ आह्लादित, प्रसन्न, आनन्दित / सम०-हृदय (वि०) कठिनाई. प्रयत्नप्रेक्षणीयः संवत्त:---श०१, 'दुर्दश्य' प्रसन्नमना / 'दुर्दष्ट' 4. बड़ी सावधानी, चौकसी--कृतप्रयत्नोऽपि प्रमुषित (भू० के० कृ०) [प्र--मुष---क्त] चुराया हुआ, गृहे विनश्यति - पंच०१।२०५ 5.(व्या० में ) उच्चारण अपहृत--शि० १७।७१,–ता एक प्रकार की पहेली। में प्रयास, मख का वह व्यापार जिसके सहारे वर्णों प्रमुढ (भू० क. कृ०) [प्र-+मुह +क्त] 1. विस्मित, का उच्चारण होता है। उद्विग्न, व्याकुल 2. मूर्ख, जड़। प्रयस्त (भू० क. कृ.) [प्र+यस+क्त ] अभ्यस्त, प्रमृत (भू० क० कृ०) [प्र+म+क्त] मरा हुआ, मृतक, सिझाया हुआ, मसाले आदि डाल कर स्वादिष्ट किया - तम् 1. मृत्यु 2. खेती / प्रमृष्ट (भू० क. कृ.) [प्र+म+क्त] 1. रगड़ दिया | प्रयागः [प्रकृष्टों यागफलं यत्र-प्रा.ब.] 1. यज्ञ 2. इन्द्र गया, धो दिया गया, मिटा दिया गया, साफ किया गया- 3. घोड़ा 4. वर्तमान इलाहाबाद के पास गंगा यमुना रघ०६१४१,४४2. चमकाया हुआ, चमकीला, स्वच्छ / के संगम पर बना प्रसिद्ध तीर्थस्थान---मनु० 2021 प्रमेय (वि.) [प्र+मा-+-यत्] 1. मापे जाने योग्य, (इस अर्थ में शब्द नपुं० भी है)। सम-भयः निश्चित 2. प्रमाणित किये जाने योग्य, प्रदर्शनीय, इन्द्र का विशेषण / --यम् 1. निश्चित ज्ञान की वस्तु, प्रदर्शित उपसंहार, | प्रयाचनम् [प्र+या+ल्युट ] माँगना, प्रार्थना करना, साध्य 2. सिद्ध करने योग्य बात, जो विषय सिद्ध गिड़गिड़ाना। (प्रमाणित) किया जा सके। प्रयाजः: [प्र+यज्+घा] प्रधानयज्ञ संबंधी एक प्रमेहः [प्र+मिह -घा] एक प्रकार का मत्र रोग अनुष्ठान / (धातु क्षीणता या मधुमेह आदि) जिसमें मूत्र के साथ | प्रयाणम् [प्र-+-या+ल्युट ] 1. कूच करना, प्रस्थान करना, धातु या शक्कर गिरती हो / बिदा 2. अभियान, मात्रा-मार्ग तावच्छृणु कथयत हुआ। For Private and Personal Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्वत्प्रयाणानुरूपम् मेघ० 13 3. प्रगति, अग्रगमन | 4. प्रदर्शनी, अनुष्ठान, (नाटकीय) अभिनयन, नाटक 4. (शत्रु का) अभियान, हमला, आक्रमण, चढ़ाई खेलना-देव प्रयोगप्रधानं हि नाट्यशास्त्रम् - मालवि० कामं पुरः शुक्रमिव प्रयाणे कु० 3 / 43, रघु०६। 1, नाटिका न प्रयोगतो दष्टा-रत्न० 1 मंच पर 33 5. आरंभ, शुरु 6. मृत्य (इस संसार से) बिदा अभिनीत नहीं देखी गई 5. अभ्यास, (किसी विषय भग० 730 7. घोड़े की पीठ 8. किसी भी जन्तु का) प्रायोगिक भाग (विप. शास्त्र या सैद्धान्तिक का पिछला भाग। सम०-भंगा यात्रा के वीच कहीं ज्ञान) तदत्र भवानिमं मां च शास्त्रेत योगे च विमृशतु रुक जाना, ठहरना पंच०१। मालवि०१ 6. कार्यविधि का क्रम, सांस्कारिक प्रयाणकम् | प्रयाण+कन् ] यात्रा, प्रस्थान - का० 118 / रूप 7. कृत्य, कार्य 8. पाठ करना, पढ़कर सुनाना 305 / 9. आरंभ, शुरू 10. योजना, साधन, युक्ति, तरकीब प्रयात (भू० क० कु०) [प्र+या+ क्त ] 1. आगे बड़ा 11. साधन, उपकरण 12. फल, परिणाम 13. जादू हुआ, गया हुआ, विसजित 2. मृतक, मरा हुआ-तः प्रयोग, ऐन्द्रजालिक रचना, अभिचार 14. ब्याज पर 1. आक्रमण 2. चट्टान, दलवाँ चट्टान / रुपया देना 15. घोड़ा। सम०---अतिशयः प्रस्तावना प्रयापित (भू० क० कृ०) [प्र+या+णिच् + क्त, पक्] के पाँच भेदों में से एक जिसमें प्रस्तुत प्रयोग के 1. आगे पहुँचाया हुआ, भेजा हुआ 2. भगाया हुआ / अन्तर्गत दूसरा प्रयोग इस रीति से उपस्थित किया प्रयामः | प्र+यम् +घञ ] 1. अभाव, कमी, (अन्नादि जाता है कि अकस्मात् पात्र रंगमंच पर प्रवेश करते को) महंगाई 2. रोकथाम, नियन्त्रण 3. लम्बाई। है अर्थात् यहाँ सूत्रधार पात्र प्रवेश का संकेत करता प्रयासः / प्र-+यस्+घन ] 1. प्रयत्न, चेष्टा, उद्योग है और इस प्रकार अपने भावी कार्य (नृत्य) की पूर्व रघु०१२।५३ 14 / 51 2. श्रम, कठिनाई। सूचना देता है--सा० द० परिभाषा देता है यदि प्रयुक्त (भू० क० कृ०) [प्र-+-युज् + क्त ] 1. जोता प्रयोग एकस्मिन् प्रयोगोऽन्यः प्रयज्यते, तेन पात्रप्रवेशहुआ, काठी जीन आदि कसा हुआ 2. प्रचलित, (शब्द श्चेत् प्रयोगातिशयस्तदा। २९१,--निपुण (वि०) आदि) व्यवहार में लाया हुआ 3. प्रयोग में लाया नृत्याभ्यास में कुशल-मालवि०३।। गया 4. नियत किया हुआ, मनोनीत 5. किया हुआ, प्रयोजक (वि०) [प्र---युज+-बुल ] निमित्त बनने वाला, प्रतिनिहित 6. उदित, उद्गत, उत्पन्न, फलित 7. युक्त कारण बनने वाला, सम्पन्न करने वाला, नेतृत्व करने 8. ध्यानमग्न, बेसूब 9. (रुपया आदि) ब्याज पर बाला, उकसाने वाला, उद्दीपक, - कः 1. नियुक्त दिया हुआ 10. प्रेरित किया हुआ, उकसाया हुआ करने वाला, जो इस्तेमाल करे या काम ले 2. ग्रंथकर्ता (दे० प पूर्वक यज)। 3. संस्थापक, प्रवर्तक 4. साहूकार, महाजन 5. धर्म प्रयुक्तिः (स्त्री०) प्रयुज्न-क्तिन् ] 1. इस्तेमाल, उपयोग शास्त्री, विधायक / प्रयोग 2. उत्तेजना, उकसाना 3. प्रयोजन, मुख्य उद्देश्य प्रयोजनम् [प्र+युज् + ल्युट् ] 1. इस्तेमाल, काम में या ध्येय, अवसर 4. परिणाम, फल / लगाना, नियुक्ति 2. उपयोग, आवश्यकता, (आवप्रयुतम् प्रा० स० | दस लाख की संख्या / श्यक बस्तु में करण, तथा उपयोक्ता में संबं०) प्रय युत्सुः [प्र+युध् + सन्+उ,] 1. योद्धा 2. मेंढा सर्वैरपि ..."राज्ञां प्रयोजनम-पंच० 1, बाले किमनेन 3. हवा, वायु 4. सन्यासी 5. इन्द्र / पृष्टेन प्रयोजनम् -- का० 144 3. ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य, प्रयुद्धम् [प्रा० स०] संग्राम, लड़ाई। अभिप्राय प्रयोजनमनुद्दिश्य न मंदोऽपि प्रवर्तते, पुत्र प्रयोक्त (वि०) [प्र+ +तृ ] 1. उपाय, शब्द आदि प्रयोजना दाराः पुत्रः पिंडप्रयोजनः, हितप्रयोजनं मित्र का) उपयोग करने वाला 2. अनुष्ठाता, निदेशक, धनं सर्वप्रयोजनम् सुभा०, गुणवत्ताऽपि परप्रयोजना परिणायक 3. प्रेरक, उत्तेजक, उकसाने वाला 4.प्रणेता, --रघु० 8 / 31 4. प्राप्ति का साधन-मनु० 7.100 अभिकर्ता--उत्तर० 3 / 48 5. (नाटक का) अभिनय- 5. कारण, उद्देश्य, निमित्त 6. लाभ, स्वार्थ / कर्ता 6. ब्याज पर रुपया देने वाला, साहूकार प्रयोज्य (सं० कृ०) [प्रयुज् - ण्यत् ] 1. इस्तेमाल 7. तीरंदाज / करने के योग्य, काम में लाने के योग्य 2. अभ्यास प्रयोगः [प्र+युज +घा ] 1. इस्तेमाल, व्यवहार, उप- करने के लायक 3. उत्पन्न या पैदा करने के योग्य योग जैसा कि 'शब्द प्रयोग' में अयं शब्दो भरि- 4. नियुक्त करने के योग्य 5. चलाने या फेंकने के प्रयोगः, अल्पप्रयोगः इस शब्द का बहुल प्रयोग, या योग्य (अस्त्र) 6. कार्य आरम्भ करने के योग्य / विरल प्रयोग होता है 2. प्रचलित रूप, सामान्य | प्रावित (भू० क० कृ.) प्र रुद्+क्त | फूट फूट कर प्रचलन 3. फेंकना, प्रक्षेपण, मुक्त करना (विप० / रोया हुआ, मुक्त कंठ से रुदन / 'संहार')-...प्रयोगसंहार विभक्तमंत्रम् --रघु० 5 / 57 / प्रहर (भू० क० कृ०) [प्र+रह+क्त ] 1. पूरा बढ़ा For Private and Personal Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 672 ) हआ, पूर्ण विकसित 2. उत्पन्न, उद्भूत, पैदा हुआ प्रलंबनम् [प्र+लम्ब+ल्यूट ] नीचे लटकना, आश्रित --यस्यायमंगात् कृतिनः प्ररूढः --श० 7 / 19 3. बढ़ा | रहना / हुआ 4. गहराई तक गया हुआ - यथा 'प्ररूढमूल' | प्रलंबित (वि.) [प्र-|-लंब्+क्त लटकनशील, लटकने में 5. लम्बे बढ़े हुए - यथा 'प्ररूढ केश' 'प्ररूढमश्रु' में। वाला, निलंबित। प्ररूढिः (स्त्री०) [प्र+रह+क्तिन् ] वर्धन, वृद्धि। प्रलंभः / प्र+-लम् + घा, मुमागम: ] 1. प्राप्त करना, प्ररोचनम् [प्र-+रुच्+णिच्+ल्यूट] 1. उत्तेजना, उद्दीपन लाभ उठाना, अवाप्ति 2. धोखा देना, छलना, ठगना, 2. निदर्शन, व्याख्या 3. (किसी व्यक्ति का) प्रदर्शन प्रवंचना। जिससे लोग देख सकें और पसंद कर-अलोकसामान्य- प्रलयः / प्र+ली-|-अच् ] 1. विनाश, संहार, विघटनगणस्तनूजः प्ररोचनार्थं प्रकटीकृतश्च —मा० 1610 स्थानानि कि हिमवतः प्रलयं गतानि -भर्त० 370 (यहाँ 'प्ररोचनार्थ' का अर्थ जगद्धर पंडित 'प्रवत्ति 69, प्रलयं नीत्वा-श० 11166, 'तिरोहित करके पाटवार्थ'-'संसार से पूर्णतः परिचित होने के लिए' (कल्प के अन्त में) 2. संसार का विनाश,विश्वव्यापी करते है) 4. नाटक में आगे आने वाली बात का विनाश - कु० 2 / 68, भग० 7.6 3. व्यापक विनाश रोचक वर्णन 5. ध्येय की पूर्णरूप से प्रतिस्थापना या बरबादी 4.मृत्यु, मरना, निधन,-प्रारब्धाःप्रलयाय ...दे० सा० द. 388 (अन्तिम दोनों अर्थ को बतलाने मांसवदहो विक्रेतुमेते वयम् - मुद्रा० 5 / 21 1114 के लिए 'प्ररोचना' भी)। भग० 11114 5. मूर्छा, बेहोशी, चेतना का न रहना, द्ररोहः [त-रुह +घञ ] 1. अंकुरित होना, अंखवा गश कु० 4 / 26. (अलं० शा० में)चेतना की हानि निकलना, बढ़ना, बीजांकुरण-यथा यबांकुरप्ररोह (3 व्यभिचारिभावों में से एक--प्रलयः सुख-दुःखाद्य2. अंकुर, अंखुवा (आलं० से भी)-प्लक्षप्ररोह इव ाढमिन्द्रियमूर्छनम् -- प्रता० 7. रहस्यध्वनि, 'ओम्' सौवतलं बिभेद--रधु० 8193, प्लक्षान् प्ररोहजटिला या प्रणव / समकाल: विश्वनाश का समय, जलधरः मिव मंत्रिवृद्धान् 1371, कु० 3 / 60, 717 सृष्टि-विघटन के अवसर की काली घटा,---वहनः 3. किसलय, सन्तान - हा राधेयकुलप्ररोह - वेणी० 4, सृष्टि विघटन के अवसर पर आग,--पयोधिः सृष्टि महावी० 6 / 25 4. प्रकाशांकुर-कुर्वति सामंतशिखा के विनाश का समुद्र। मणीनां प्रभाप्ररोहास्तमयं रजांसि- रघु० 6133, | प्रललाट (वि०) [प्रा० स० ] उन्नत मस्तक वाला। 5. नवपल्लव या टहनी, शाखा, कोपल। प्रलवः [प्रल+-अप] टुकड़ा, कतला, खंड। प्ररोहणम् प्र+रुह + ल्युट ] 1. वर्धन, अंकुरण, स्फुटन प्रलवित्रम् [प्र+ल+इत्र ] काटने का उपकरण / 2. कलो खिलना, अंकुरण या उगाव 1. टहनी, किसलय | प्रलापः [प्र+लप्+घञ्] 1. बात, वार्तालाप, प्रवचन स्फुटन, कोंपल। 2. वाचालता, वालकलरव, असंबद्ध बात या बकवाद प्रलपनम् [प्रलिप् + ल्युट ] 1. बात चीत करना, बात, मन० 1216 3. विलाप, रोना धोना-उत्तराप्रलापो शब्द, संलाप 2. बाचालता, बालकलख बड़बड़, असंबद्ध पजनितकुपो भगवान् वासुदेव:--का० 175, वेणी० बात, बकवास-इदं कस्यापि प्रलपितम् 3. विलाप, 5 / 30 / सम०--हनु (पुं० एक प्रकार का अंजन / रोना-धोना--उत्तर० 3 / 29 / / प्रलापिन् (वि.) [प्रलप्-णिनि] 1.बातूनी, बोलने वाला प्रलपित (भू० क० क०) [प्र+लप्+क्त ] कहा हुआ, | -हा असंबद्धप्रलापिन्-वेणी 3 2. वाचालता, बालकलरव। प्रलाप किया हुआ,--तम् बात-दे० ऊपर 'प्रलपन। प्रलोन (भू० क० कृ०) [प्र---ली-+-कत] 1. पिघला हुआ, प्रलब्ध (भू० क० क०) [प्र+लभ+क्त ] धोखा दिया घुला हुआ 2. लुप्त, विनष्ट 3. निर्बुद्धि, चेतना शून्य / हुआ, ठगा हुआ। प्रलन (भु०क०क०) प्र.-+क्त काट कर गिराया हुआ। प्रलब (वि०) [ प्र-+-लंब अच, घा वा ] 1. लटकन- | प्रलेपः | प्र--लिप्प न | लेप, मल्हम, चापड़। शील, नीचे की ओर लटकने वाला-जैसा कि 'प्रलंब | प्रलेपक[प्र+लिप् -बुल] 1. मलने वाला, लेप करने केश' में 2. उन्नत-यथा 'प्रलंबनासिक' में 3. | वाला 2. एक प्रकार का मन्दज्वर / मन्थर, विलंबकारी,-ब: 1. लटकता हआ, आश्रित | प्रलेहः प्रिलिह, +घञ] एक प्रकार का रसा, शोरबा / 2. कोई भी नीचे को लटकने वाली वस्तु 3. शाखा | प्रलोढनम् [ प्र-लुठ-ल्युट | 1. (भूमि पर) लोटना 2. 4. कण्ठहार 5. एक प्रकार का हार 6. स्त्री की छाती उत्तोलन, उछालना। 7. जस्ता या सीसा 8. एक राक्षस का नाम जिसको प्रलोभः / प्र.ला घन ] 1. अतितष्णा, लालच, बलराम ने मार डाला था। सम० अंड: वह पुरुष | लालसा 2. ललचाना, उछालना / / जिसके पोते लटकते हों,-नः, -मथनः, हन (10) | प्रलोभनम् [प्र+ लुभ् + ल्युट्] 1. आकर्षण 2. ललचाना, फुसबलराम का विशेषण। लाना, लालच देना 3. प्रलोभन की वस्तु, चारा, दाना। HTTERHITHE For Private and Personal Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 673 ) प्रलोभनी [प्रलोभन+डीप ] रेत, बालू / लकड़ी। सम०--वाहनौ (द्वि० व०) अश्विनीप्रलोल (वि.) [प्रा० स०] अत्यंत क्षुब्ध, थरथर करने कुमारों का विशेषण / वाला। प्रवर्गः [ प्रवज्यते निः क्षिप्यते हविरादिकमस्मिन-प्रवृज् प्रवक्त (पुं०) [प्र+व+तुच ] 1. वर्णन करने वाला, घा | 1. यज्ञीय अग्नि 2. विष्णु का विशेषण / वक्ता, उद्घोषक 2. अध्यापक, व्याख्याता-मनु० | प्रवर्यः [प्र-व्रज-+-ण्यत् ] सोमयाग से पूर्व किया जाने 7 / 20 3. सुवक्ता, धाराप्रवाह बोलने वाला। वाला अनुष्ठान / प्रवगः, प्रवङ्गः, प्रवङ्गमः (पुं०) बंदर, दे० 'प्लवंग' और | प्रवर्तः [प्रवत् +धन ] आरंभ, उपक्रम, काम में 'प्लवङ्गमः'। लगाना। प्रवचनम् | प्र+वच्ल्यू ट ] 1. बोलना, प्रकथन करना, प्रवर्तक (वि.) (स्त्री०-तिका) [प्र+वृत्+णिच घोषणा करना, पंच०१।१९० 2. अध्यापन, व्याख्यान +ण्वुल ] 1. चाल करने वाला, स्थापित करने वाला 3. खोलकर समझाना, व्याख्या करना, अर्थ करना 2. प्रगतिशील, उन्नेता, आगे बढ़ाने वाला 3. पैदा करने -.-महावी० 4 / 25 4. वाग्मिता 5. धर्मशास्त्र, मन० वाला, जन्म देने वाला 4. प्रबोधक, प्रोत्साहक, 3 / 184 / सम... पटु (वि.) बात करने में कुशल, उकसाने वाला, भड़काने वाला (बुरे अर्थ में),---क: वाग्मी। जन्मदाता, प्रवर्तक, प्रणेता 2. प्रबोधक, प्रोत्साहक प्रवटः [प्र+व+अच् ] गेहूँ / 3. विवाचक, मध्यस्थ / प्रवण (वि०) [प्र-|-वण---अन् ] 1. ढलवाँ, रुझान वाला, प्रवर्तनम् [प्र--वृत+ल्यट ] 1. चलते रहना, आगे बढ़ना झुकावदार, नीचे को बहने वाला 2. ढालू, दुरारोह, 2. आरंभ, शुरु 3. कार्यारम्भ, नींव डालना, संस्थापन, विप्रपाती, चट्टान जैसा 3. कुटिल, झुका हुआ, प्रतिष्ठापन 4. प्रोत्साहन, बलपूर्वक चलाना, उद्दीपन 4. अनुरक्त, प्रवृत्त, संलग्न (प्रायः समास के अन्त में) 5. व्यस्त होना, काम में लगना 6. होना, घटित होना वंचनप्रवणः-कि० 3 / 19 5. भक्त, अनुरक्त, व्यस्त, 7. क्रियता, कार्य 8. व्यवहार, आचरण, कार्यविधि, तुला हुआ, झुका हुआ, भरा हुआ नृभिः प्राणत्राण- --ना कार्य में प्रेरित करना, प्रोत्साहन देना। प्रवणमतिभिः कश्चिदधुना -भर्तृ०३।२९, शि० 8 / 35, प्रवर्तयित (वि.) [प्र+वृत्+णि+तच्] संचालन मुद्रा० 5 / 21, कि० 2244 6. अनुकूल, उत्सुक--कु० करने वाला, या जो नींव डालता है, संस्थापित करता 4 / 42 7. आतुर, तत्पर कि० 218 8. युक्त, सम्पन्न है और उसे चलाता रहता है या ढकेलता है। 9. विनम्र, सुशील, विनीत 10. मुझाया हुआ, बर्बाद, | प्रवतित (भू० क. कृ.) [प्र+वृत्+(णिच्+क्त क्षीण, णः चौराहा,-णम् 1. उतार, ढलवाँ उतार, 1. मोड़ दिया हुआ, चलाया हुआ, लुढ़काया हुआ, चट्टान 2. पहाड़ का पार्श्वभाग, ढलान, झुकाव / चक्कर खाने वाला --रघु० 9 / 66 2. नींव डाला हुआ प्रवत्स्यत् (वि.) (स्त्री०-ती, न्ती) [प्र+वस् + स्य 3. प्रेरित किया हुआ, उकसाया हुआ, भड़काया हुआ (लट्)-शत | यात्रा पर जाने के लिए तैयार | 4. सुलगाया हुआ 5. जन्म दिया हुआ, निर्मित सम... पतिका उस नायक की पत्नी जो यात्रा पर 6. पवित्र किया हुआ, छाना हुआ -- मनु० 111196 / जाने के लिए तैयार बैठा है (रीतिकाव्यों में आठ प्रवर्तिन् (वि०) [प्रवृत्-णि+णिन] 1. प्रगतिशील, प्रकार की नायिकाओं में से एक)। आगे बढ़न वाला 2. सक्रिय रहने वाला 3. जन्म देने प्रवयणम् ।प्र। वे + ल्युट् ] 1. बुने हुए कपड़े का ऊपर वाला, प्रभावी 4. इस्तेमाल करने वाला। का भाग 2. अङ्कुश---शि० 13119 / प्रवर्धनम् [प्र+वृध ल्युट्] बृद्धि करना, बढ़ाना। प्रवयस् (वि०) [ प्रगतं वयो यस्य प्रा० ब० बड़ी उम्र / | प्रवर्षः [प्र+वृष-+घा भारी वृष्टि, मसलाघार वर्षा / का, वृद्ध, बूढ़ा ...केऽप्येते प्रवयसस्त्वां दिदृक्षवः-उत्तर० | प्रवर्षणम् [प्र+व+ल्युट् ] 1. बरसना 2. पहली 4, रघु०८।१८। वृष्टि / प्रवर (वि०) [प्र+-+-अप] 1. मुख्य, प्रधान, सर्वश्रेष्ठ | प्रवसनम् [प्र+वस् + ल्युट] विदेश जाना, विदेश यात्रा, या पूज्य, सर्वोत्तम, श्रीमान् - संकेतके चिरयति प्रवरो | यात्रा पर जाना। विनोदः मृच्छ० 3 / 3, मनु० 10 / 27, घट०१६ | प्रवहः [प्र-वह ---अच] 1. बहना, धार बनकर बहना 2. ज्येष्ठ, र: 1. बुलावा, आह्वान 2. एक विशेष 2. वायु 3. वायु के सात मार्गों में से एक (जो ग्रहों प्रकार का आवाहन जो अग्न्याधान के अवसर पर को गतिमान करता है। अग्नि को संबोधित किया जाता है 3. वंश परम्परा | प्रवहणम् [प्र--बह+ल्यूट] 1. बन्द गाड़ी या पालकी 4. कुल, परिवार, वंश 5. पूर्वज 6. गोत्रप्रवर्तक ऋषि (स्त्रियों के लिए) 2. गाड़ी, वाहन, सवारी 7. सन्तान, वंशज 8. ढकना, चादर, -- रम् अगर की / 3. जहाज। For Private and Personal Use Only Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 674 ) प्रवाह-वी [प्र+वल +इन्, प्रवह्नि+ङीष्] दे० / लुढ़कना) 6. क्रियता, सक्रिय व्यस्तता 7. तालाब, 'प्रहेलिका। झील 8. बढ़िया घोड़ा (प्रवाहे मूत्रितम्) नदी में प्रवाच् (वि०) प्रा० ब०] वाग्मी, वक्ता--(कुर्वते) मुतना (शा०), व्यर्थ कार्य करना (आलं.)। जडानप्यनुलोमार्थान् प्रवाचः कृतिनां गिरः-शि० प्रवाहकः [ प्रबह+ण्वुल भूत प्रेत, पिशाच / 2 / 25 2. बातूनी, वाचाल-मुद्रा० 3 / 16 / प्रवाहनम् [प्र+वह +-णिच् + ल्युट्] 1. हांक कर आगे प्रवाचनम् [प्र+बच् +-णिच् + ल्युट्] घोषणा, उद्घोषणा, बढ़ना 2. दस्त कराना। प्रकथन। प्रवाहिका [प्रवह +ण्वुल+टाप, इत्व म्[ दस्त लग प्रवाणम् [प्र+ये+ल्युट्] बुने हुए कपड़ों के किनारों के जाना। गोट लगाना या छांटना या सम्भालना / प्रवाही [प्रवाह -|-डीष्] रेत, बालू / प्रवाणिः,जो (स्त्री.) [प्रवाण+ङीप्, नि० ह्रस्वो वा] | प्रविकीर्ण (भू० क० कृ०)[प्रवि +कृ+क्त] 1. बखेरा जुलाहे की ढरकी। हुआ, इधर उधर छितराया हुआ 2. तितर बितर प्रवात (भू० क० कृ०) प्रकृष्टो वातो यस्मिन्-प्रा०/ ब.] किया हुआ, फैलाया हुआ। तूफान में पड़ा हुआ-तम् 1. वायु का झोका, ताजा प्रविण्यात (भू० क० क०) [प्र+वि०- ख्या-क्त ] 1. हवा-प्रवातशयनस्था देवी मालवि०४ 2. तूफानी नामी, बुलाया हुआ 2. प्रसिद्ध, मशहूर, विश्रुत / हवा, आँधी-ननु प्रवातेऽपि निष्कंपा गिरयः श०६, प्रविख्यातिः प्र+विख्या --क्तिन] मशहरी, कीर्ति, 3. हवादार स्थान, कु० 1146 / प्रसिद्धि / प्रवावः [प्र+व+घञ्] 1. शब्द या ध्यनि का उच्चारण प्रविचयः [प्र-वि+चि-|-अच् ] परीक्षा, खोज, अन 2. अभिधान करना, उल्लेख करना, प्रकथन करना | संधान / 3, प्रवचन, वार्तालाप 4. बात, प्रतिवेदन, अफवाह, प्रविचारः [ प्रा० स० विवेचन, विवेक / किंवदन्ती -- अनुरागप्रवादस्तु वत्सयोः सावलौकिकः प्रविचेतनम् [ प्र-+-वि-+-चित् + ल्युट् ] समझ / मा० 1 / 13, व्याघ्रो मानुषं खादतीति लोकप्रवादो प्रवितत (भू० क० कृ०) [प्र-|-वि-तन्+क्त ] 1. दुनिवारः--हि० 1, रत्न० 45 5. आख्यायिका, बिछाया हुआ, फैलाया हुआ 2. विखरे हुए, अस्तव्यस्त गल्प 6. विवाद संबंधी भाषा 7. चुनौती के शब्द, (बाल)। पारस्परिक विरोध-इत्थं प्रवादं युधि संप्रहारं प्रचक्रतु प्रविवार [प्र-वि-|-द+घञ ] फट कर टुकड़े टुकड़े रामनिशाविहारी-भट्टि० 2 / 36 / होना, खुलना। प्रवारः, प्रवारकः [प्र+वृ+घञ, प्रवार+कत्] चादर, प्रविदारणम् [प्र+वि+द+णिच् + ल्युट् ] 1. फाड़ना, आच्छादन। विदीर्ण करना, तोड़ना, फट कर टुकड़े टुकड़े होना प्रवारणम् [प्र+व+णिच् + ल्युट] 1. (इच्छा) पूर्ण करना। 2. कली लगना 3. संघर्ष, युद्ध, लड़ाई 4. भीड़भाड़, छाँट की प्राथमिकता 3. निषेध, विरोध 4. काम्यदान / गड़बड़ी, हल्ला-गुल्ला। प्रवालः (पुं०) दे० 'प्रबाल:। प्रविद्ध (भू० क० कृ०) [प्र+व्यध्+क्त ] डाला, हुआ, प्रवासः प्र+बस+घञ्] 1. विदेशगमन, विदेशयात्रा, | फेंका हआ। घर पर न रहना, परदेशनिवास -- रघु० 16 / 44 / प्रविQत (भू० क० कृ०) [प्र+वि+दु+वत ] तितरसम-गत, स्थ,---स्थित (वि०) विदेश की यात्रा बितर किया हआ, भगाया हुआ, बखेरा हुआ। करना, घर पर न रहने वाला। प्रविभक्त (भू० क. क.) [प्र-+वि+भज-क्ति ] 1. प्रवासनम् प्र+वस+णिच+ल्युट] 1. विदेश निवास, अलग किया गया, वियुक्त 2. हिस्से किया गया, अस्थायी रूप से वास करना 2. निर्वासन, देशनिकाला, | विभाजन किया गया, बाँटा गया, वितरित किया गया वध, हत्या। -ज्योतींषि वर्तयति च प्रविभक्तरश्मि:--श०७।६। प्रवासिन् (पुं०) [प्रवस् --णिनि] यात्री, बटोही, प्रविभागः [प्र+वि+भज+घञ्] भाग, तकसीम, परदेशी। वितरण, वर्गीकरण----रघु०१६।२ 2. हिस्सा, अंश / प्रवाहः [प्र+वह +घञ्] 1. बहाव, धार बन कर बहना | प्रविरः (पुं०) पीला चन्दन / 2. नदी, पेटा या जलमार्ग, घारा--प्रवाहस्ते वारां प्रविरल (वि०) [प्रा० स० 11. बहुत दूर दूर, वियुक्त, श्रियमयमपारां दिशत् न:-गंगा० 2, रघु० 5 / 46, अलगाया 2. बहुत कम, बहुत थोड़े, स्वल्प, थोड़ा 13 / 10,48, कु. 1154, मेघ०४६ 3. बहाव, -प्रविरला इव मुग्धवधूकथा-रघु० 9 // 34 / बहता हुआ पानी 4. अविच्छिन्नं बहाव, अटूट शृंखला, प्रविलयः [प्र-नविली +अच्] 1. पिघलनकर बह जाना नरन्तर्य 5. घटना क्रम (नदी की धार की भांति 2. पूरी तरह घुल जाना या अवशुष्क हो जाना। For Private and Personal Use Only Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रविलुप्त (भू० क० कृ०) [प्रवि --लुप्+क्त ] काटा | सक्रिय सांसारिक जीवन, सांसारिक जीवन में सक्रिय हुआ, निकाला हुआ, हटाया हुआ। भाग लेना (विप० निवृत्ति) 13. समाचार, खबर, प्रविवादः [प्र---वि+वद्+घञ ] झगड़ा कलह, तक- गुप्त वार्ता-जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन् प्रवृत्तिम् --मेघ० 4, विक्रम० 4 / 20 14. नियम की प्रयोजप्रविविक्त (वि.) [प्रा० सस ] | 1. विल्कुल अकेला 2. नीयता या वैधता 15. भाग्य, नियति, किस्मत 16. वियुक्त, अलग किया हुआ। संज्ञान, सीधा प्रत्यक्षज्ञान, समवबोध 17. हाथी का मद प्रविश्लेषः [प्र-वि+श्लिष्+घञ ] वियोग, जुदाई। (जो मस्ती की अवस्था में उसके गंडस्थल से निकलता प्रविषण्ण (भू० क० कृ०) [प्र+वि + सद्+क्त ] खिन्न, है), 18. उज्जयिनी नगरी का नामान्तर / सम० उदास, हतोत्साह। शः जासूस, भेदिया, दूत, गुप्तचर,निमित्तम् किसी प्रविष्ट (भू० क० क०) प्र.विश्- क्त ] 1. अन्दर शब्द का किसी विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होने का कारण, गया हुआ, घुसा हुआ-पश्चाधन प्रविष्ट: शरपतनभया- ---मार्गः सक्रिय या सांसारिक जीवन, कार्य में द्भूयसा पूर्वकायम्-श० 117 2. लगा हुआ, व्यस्त अनुरक्ति, संसार में सुख तथा आनन्द / 3. आरब्ध / प्रबुद्ध (भू० क० कृ०) [प्रवृथ्-+-क्त ] 1. पूरा बढ़ा प्रविष्टकम् [ प्रविष्ट ---कन् ] रंग भूमि का द्वार / हुआ 2. बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, विस्तारित, बड़ा प्रविस्त (स्ता) रः [प्र-+वि-|-स्तु-अप, घा वा] किया हुआ 3. पूरा, गहरा 4. घमंडी, अहंकारी परिधि, वृत्त / 5. प्रचण्ड 6. विशाल / प्रवीण (वि.) [प्रकृष्टा संसाधिता वीणा येन ---प्रा० ब०] प्रवृद्धिः (स्त्री०) [प्र-वृध् / क्तिन् ] 1. बढ़ना, वृद्धि चतुर, कुशल, जानकार- आमोदानथ हरिदंतुराणि | -रघु० 13171, 17/71 2. उन्नति, समृद्धि, पदो नेतुं नैवान्यो जगति समीरणात्प्रवीणः--भामि० 115, / __ नति, तरक्की, उत्कर्ष / - कु०७।४८,। प्रवेक (वि.) [प्र-/-विच् +घन ] उत्तम, मुख्य, छांट प्रबीर (अ०) [प्रा० स०] 1. अग्रणी, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ का, अत्यंत श्रेष्ठ / या पूज्य -- रघु० 14 / 29 16.1, भग० 11148 2. | प्रवेगः [प्र+विज्+घञ ] तीब्र चाल, वेग / मजबूत, शक्तिशाली, शौर्यसम्पन्न,-र: 1. बहादुर / प्रवेटः [ प्र+वी+ट ] जौ, यव / व्यक्ति, नायक, योद्धा 2. मुख्य, पूज्य व्यक्तित्व / प्रवेणिः,–णी (स्त्री०) [प्र.वेण्-|-इन्, प्रवेणि+ङीष् ] प्रवृत (भू० क. कृ.) / प्र-+--+-क्त ] चुना हुआ, 1. बालों का जड़ा-रघु० 15130 2. बिखरे हुए या संकलित, छांटा हुआ। श्रृंगारहीन बाल (पति की अनुपस्थिति में स्त्रियाँ प्रवृत्त (भू० क. कृ.) [प्र--वृत् ।-क्त ] 1. आरंभ किया। प्रायः ऐसे बाल धारण करती हैं) 3. हाथी की झूल गया, शुरु किया गया, प्रगत 2. स्थिर किया हुआ 4. रंगीन ऊनी कपड़े का टुकड़ा 5. (नदी का) प्रवाह -~-अचिरप्रवृतं ग्रीष्मसमयमधिकृत्य -श० 1 3. या धार / व्यस्त, संलग्न 4, जाने के लिए उद्यत, कटिबद्ध | प्रवेत (पुं०) [+अच्+तन्' अजे: वी आदेश:] सारथि, 5. स्थिर, निश्चित, निर्धारित 6. निर्बाध, रथवान् / विवादरहित 7. गोल,त्तः गोल आभूषण / प्रवेदनम् [प्र+विद्+णिच् + ल्युट ] जतलाना, ऐलान प्रवृत्तकम् [ प्रवृत्त+कन् ] रंग भूमि में अवतरण / करना, घोषणा करना। प्रवृत्तिः (स्त्री०) [प्र--वृत्+क्तिन् ] 1. निरन्तर प्रग- प्रवेपः, प्रवेपकः, प्रवेप थुः, प्रवेपनम् [प्र+वेप्+घञ, मन, गति, आगे बढ़ना 2. उदय, मूल, स्रोत, (शब्दों प्रवेपन-कन्, प्र-+-वेष+अथुच, प्र+वेप् + ल्युट ] का) प्रवाह--प्रवृत्तिरासीच्छब्दानां चरितार्था चतुष्टयी | कंपकंपी, ठिठुरन, थरथराना, सिहरन / -कु० 2 / 17 3. दर्शन, प्रकटीकरण-कुसुमप्रवृत्ति- प्रवेरित (वि०) [प्रबेर+इतन् ] इधर उधर डाला हुआ, समये- श० 4 / 17, रघु० 11143, 14 / 39, 1544 फेंका हुआ। 4. उदय, आरंभ, शुरु-आकालिकों वीक्ष्य मधुप्रवृत्ति प्रवेलः प्र+बेल+अच ] एक प्रकार की मुंग / / -कु० 3 / 34 5. प्रयोग, व्यसन, झुकाव, रुझान, रुचि, प्रवेशः [प्र+विश्+घञ ] 1. भीतर जाना, घुसना-पुरप्रवणता--श० 1122 6. आचरण, व्यवहार--रघु० प्रवेशाभिमुखो बभूव-रघु० 7.1, कु० 3 / 40 14173 7. काम में लगाना, व्यवसाय, क्रियाशीलता 2. अन्तर्गमन, पैठ, पहुँच 3. रंगभूमि में प्रवेश-तेन कु०६।२६ 8. प्रयोग, नियोजन, (शब्द का) प्रचलन पात्रप्रवेशश्चेत् ---सा० द० 64. (घर का दरवाजा, 29. अनवरत प्रयत्न, धैर्य 10. सार्थकता, भावार्थ, (शब्द घुसने का स्थान 5. आय, राजस्व 6. (किसी काम की) स्वीकृति 11. निरन्तरता, स्थायिता, प्राबल्य 12. ! का) पीछा करना, प्रयोजन की तत्परता। प्रवेपः, प्रवचन, प्रवेषु ना, सिहरन र डाला हुआ, For Private and Personal Use Only Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवेशकः / प्र+विश्+ण्वुल ] परिचायक, निम्नपात्रों | प्रवाज् (पुं०), प्रव्राजकः [प्रव्रज्---क्विप्, ण्वुल वा] (नौकर चाकर) द्वारा अभिनीत विष्कंभक (इसमें साधु, संन्यासी। श्रोता को रंगमंच पर अप्रस्तुत घटना का आगे होने प्रवाजनम् [प्र-ब्रज-+-णिच+ल्यूट ] निर्वासन, देशवाली बातों की जानकारी के लिए ज्ञान कराना निकाला, निर्वासित करना। आवश्यक है); (विष्कंभक की भांति यह नाटक की प्रशंसनम् [प्र+शंस+ल्यूट ] प्रशंसा करना, स्तुति करना। कथा तथा कथावस्तु के अवान्तर भेदों को जो या तो प्रशंसा [प्र-+-शंस्+अ+टाप् | प्रशंसा, स्तुति, प्रशस्ति, अंकों के अन्तराल में घटित हो चुके हैं या अन्त में गुणगान करना-प्रशंसावचनम्, प्रशंसात्मक या सम्मानहोने वाले हैं, जोड़ देता है / यह पहले अंक के आरम्भ सुचक वाणी 2. वर्णन, उल्लेख-जैसा कि 'अप्रस्तुतया अंतिम अंक के अन्त में कभी प्रयुक्त नहीं होता) प्रशंसा' में 3. कीति ख्याति, प्रसिद्धि / सम०-- उपमा साहित्यदर्पणकार इसकी परिभाषा देते है-प्रवेशकोन- दण्डिद्वारा वणित उपमा के अनेक भेदों में से एक दात्तोक्त्या नीचपात्रप्रयोजितः, अंकद्वयांतविज्ञयः शेषं ---ब्रह्मणोऽप्युद्भवः पद्मश्चन्द्रः शंभुशिरोधृतः, तो तुल्यो विष्कंभके यथा—३०८, दे० 'विष्कभक' / त्वन्मखेनेति सा प्रशंसोपमोच्यते काव्या० 2 / 31, प्रवेशनम् [प्र+विण्+ ल्युट ] 1. दाखिल होना, घुसना, ---मुखर (वि०) ऊँचे स्वर से प्रशंसा करने वाला। अन्दर जाना 2. परिचय देना, नेतृत्व करना, संचालन प्रशंसित (भू० क० कृ०) [प्र+शंस्+क्त ] प्रशंसा 3. घर का मुख्य द्वार, फाटक 4. मैथुन, स्त्री संगम / किया गया, स्तुति किया गया, गुणगान किया गया, प्रवेशित (भ० क. कृ०) [प्र+विश्-+-णिच्-- क्त ] तारीफ़ किया गया। परिचित कराया हुआ, अन्दर पहुँचाया हुआ, अन्दर प्रशस्वन् (पु०) [प्रशद्+क्वनिप्, तुटू] समुद्र, सागर / ले जाया गया, घुसाया हुआ। प्रशत्त्वरी [ प्रशत्त्व +-डीप, र आदेशः ] नदी। प्रवेष्टः [प्रवेष्ट +अच् ] 1. भुजा 2. कलाई, पहुँचा प्रशमः [प्र+शम् + धन ] 1. शमन, शान्ति, स्वस्थ 3. हाथी की पीठ का मांसल भाग (जहां महावत चित्तता--प्रशमस्थितपूर्वपार्थिवम् ----- रघु० 8 / 15, बैठता है) 4. हाथी के नसूड़े 5. हाथी की झूल। कि० 232 2. शान्ति, विश्राम 3. बुझाना, उपशमन प्रव्यक्त (भू. क. कृ.) [प्रकर्षण व्यक्तः-प्री० स०] --कु० 220 4. विराम, अन्त, विनाश ---शि० स्पष्ट, साफ, प्रकट, जाहिर। 2073 5. सान्त्वना, तुष्टीकरण-शि० 16.51 / प्रव्यक्तिः (स्त्री०) [प्र+वि+अं+क्तिन् ] प्रकटी | प्रशमन (वि०) (स्त्री०-नी) [प्रम् +-णिच् + ल्युट् ] भवन, दर्शन। शान्त करने वाला, शान्तिस्थापित करने वाला धीरज प्रव्याहारः [प्र+वि+आ+ह+घञ्] प्रवचन का बंधाने वाला, दूर करने वाला (रोग आदि को), नम् फैलाव या विस्तार / शान्त करना, शान्ति स्थापित करना, धीरज बंधाना प्रवजनम् [प्र+व+ल्युट ] 1. विदेश जाना, अस्थायी 2. दमन करना, धैर्यबंधाना, दिलासा देना, हलका रूप से बसना 2. निर्वासित होना 3. वानप्रस्थ हो करना-आपन्नातिप्रशमनफलाः संपदो युत्तमानाम् जाना। --मेघ० 53 3. चिकित्सा करना, स्वस्थ करनाप्रबजित (भू० क० कृ०) [प्र+व+क्त ] 1. विदेश जैसा कि 'व्याधिप्रशमनम्' में 4. (प्यास) बुझाना, गया हआ या निर्वासित 2. संन्यासी या परिब्राजक (आग) बुझाना, दमन करना, मिटा देना 5. विराम, बना हुआ,-तः 1. साधु, संन्यासी 3. चौथे आश्रम में थामना 6. उपयुक्त रूप से प्रदान करना, सत्पात्र स्थित ब्राह्मण, भिक्षु 3. जैन या वौद्ध भिक्षु का शिष्य, को प्रदान करना-मन० 756, (सत्पाने प्रति-तम् संन्यासी बन जाना, साधु का जीवन / पादनम्-कुल्ल०, परन्तु अन्य विद्वान् इसका अगला प्रव्रज्या [प्र+व+क्यप् +-टाप् ] 1, विदेश जाना, अर्थ समझते हैं) 7. प्राप्त करना, रक्षा करना, देशान्तरगमन 2. पर्यटन, (साध के रूप में इतस्ततः) सुरक्षित रखना-लब्धप्रशमनस्वस्थमथैनं समुपस्थिता भ्रमण 3. संन्यास आश्रम, संन्यासी का जीवन, रघु० 4 / 14 8. वध, हत्या / ब्राह्मण की जीवनचर्या में चौथा आश्रम (भिक्ष जीवन)| प्रशमित (भ० क. कृ.) [प्र. शम्-णिच् + क्त ] -प्रव्रज्यां कल्पवृक्षा इवाश्रिताः- कु. 6 / 6 (यहाँ 1. सान्त्वना दी गई, धीरज बंधाया गया, स्वस्थचित्त, मल्लि. के अनुसार 'प्रव्रज्या' का तात्पर्य वानप्रस्थ / तुष्टीकृत, शान्त किया गया 2. (आग) बुझाई गई, या तृतीय आश्रम है)। सम-अवसितः वह पुरुष (प्यास) शान्त की गई 3. प्रायश्चित्त किया गया, जिसन सन्यास ग्रहण करके उस आश्रम को छोड़ | परिशोधन किया गया-उत्तर० 1140 / दिया हो। प्रशस्त (भू० क. कृ०) [प्र+शंस-1-क्त ] 1. प्रशंसा प्रवचनः[+वश्च+ल्युट लकड़ी काटने का उपकरण।। किया गया, तारीफ़ किया गया, श्लाघा की गई, TELETELLETTE For Private and Personal Use Only Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 677 ) स्तुति की गई 2. प्रशंसनीय, तारीफ़ के योग्य | प्रशिष्यः [ प्रा० स०] शिष्य का शिष्य, पड़शिष्य-शिष्य 3. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ 4. सौभाग्यशाली, प्रसन्न, आनन्दित, अशिष्यरुपगीयमानमवेहि तन्मंडनमिश्रधाम-शंकर। शुभ / सम० --अद्रिः एक पहाड़ का नाम / | प्रशुद्धिः (स्त्री०) [प्रा० स०] स्वच्छता, पवित्रता / प्रशस्तिः (स्त्री०) प्र+शंस+क्तिन् ] 1. प्रशंसा, स्तुति, | प्रशोषः [प्र+शुष-+घा ] सूखना, सूख जाना, तारीफ़ 2. वर्णन उत्तर०७ 3. किसी की (उदा० सूखापन। संरक्षक) प्रशंसा में लिखी गई कविता 4. श्रेष्ठता, | प्रश्चोतनम् प्र+श्चत ल्युट ] छिड़कना, क्षरण---उत्तर० महत्त्व 5. शुभ कामना 6. निर्देशन, शिक्षण, निर्देश- / 3 / 11 / नियम जैसा कि 'लेखप्रशस्ति' (लिखने का एक प्रश्नः [प्रच्छ+न] 1. सवाल, पूछताछ, परिपृच्छा, प्रकार) में। परिप्रश्न (अविज्ञातप्रवचनं प्रश्न इत्यभिधीयते) अनाप्रशस्य (वि०) (म० अ०---श्रेयस् या ज्यायस, उ० अ० मयप्रश्न पूर्वकम्-श० 5, 'कुशलक्षेम के प्रश्न के ---श्रेष्ठ या ज्येष्ठ) [प्र+शंस-+क्यप् ] प्रशंसा के साथ' 2. अदालती जांच पड़ताल या गवेषणा योग्य, तारीफ़ के लायक, श्रेष्ठ / 3. विवादपद, विवादास्पद विषय,विवादग्रस्त दृष्टिकोण प्रशाख (दि०) [ प्रशस्ता शाखा यस्य-प्रा० ब०] --- इति प्रश्न उपस्थितः 4. समस्या, हिसाब का प्रश्न 1. जिसकी अनेक शाखाएँ इधर उधर फैली हों -अहं ते प्रश्नं दास्यामि-मृच्छ० 5 5. भविष्य 2. गर्भपिण्ड की पांचवी अवस्था कहते हैं कि इस संबंधी पूछताछ 6. किसी अन्य का अनुभाग या परिसमय गर्भस्थित बालक के हाथ पैर बन जाते हैं), च्छेद / सम-उपनिषद् (नपुं०) एक उपनिषद् -खा छोटी शाखा या टहनी। का नाम (इसमें छ: प्रश्न तथा उनके छ: उत्तर हैं) प्रशाखिका प्रशाखा+क+टाप, इत्वम् ] छोटी शाखा, -दूतिः,-दूती (स्त्री०) पहेली, बुझौवल / टहनी। प्रश्रयः [प्र-+-श्रथ्-+अच् ] शिथिलता, ढीलापन, शिथिलीप्रशान्त (भू० क० कृ०) [प्र+शम्+णिच् + क्त ] करण / 1. शांत, शान्तिप्राप्त, स्वस्थचित्त 2. निश्चल, सौम्य, | प्रश्रयः, प्रधयणम् [प्र+श्रि+अच्, ल्युट् वा ] 1. आदर, निस्तब्ध, धीर, निश्चेष्ट ---अहो प्रशान्त रमणीयतो- शिष्टता, सुजनता, विनम्रता, सम्मानपूर्ण अथवा द्यानस्य 3. पालतू, वशीकृत, दबाया हुआ 5. समाप्त, शिष्टतायुक्त व्यवहार, विनय-समागतः प्रश्रयनम्रविरत, निवृत्त-तत्सर्वमेकपद एव मम प्रशांतम्-मा० मतिभिः शि० 12133, रघु० 1070, 83, उत्तर० 9 // 36, प्रशान्तमस्त्रम् --उत्तर० 6 'कार्य करने से 6 / 23, सप्रश्रयम् आदरपूर्वक, सविनय 2. प्रेम, स्नेह, रुका हुआ या निवृत्त' 5. मत, मरा हुआ (दे० प्रपूर्वक- आदर---पंच० 2 / 2 / / शम् ) / सम०-आत्मन (वि.) स्वस्थमना, शान्ति- / | प्रश्रित (भू० क. कृ.) [प्र+श्रि+क्त ] सुजन, नत्र, पूर्ण, अचंचल, ऊर्ज (वि.) क्षीणशक्ति, निस्तेज, शिष्ट, विनीत, शिष्टाचरणयुक्त / विषण्ण,-काम (वि०) सन्तुष्ट, - चेष्ट (वि.) | प्रश्लय (वि.) [प्रा० स०] 1. बहुत ढीला या पिलपिला आराम करने वाला, विश्रांत, विरत, बाध (वि.) 2. उत्साह-हीन, निस्तेज। जिसकी समस्त बाधाएँ व संकट दूर हो गये हैं- प्रश्लिष्ट (भू० क० कृ०) [प्र+श्लिष् + क्त ] 1. मरोड़ा कि० 1 / 18 / दिया हुआ, ऐंठा दिया हुआ 2. तर्कसंगत, युक्तियुक्त / प्रशान्तिः (स्त्री०) | प्रा० स०] 1. धैर्य, शान्ति, मनकी प्रश्लेषः [प्र+श्लिष+घा ] घना संपर्क, संहति / स्थिरता, निःशब्दता, विश्राम 2. आराम, विराम, प्रश्वासः [प्र+श्वास्+घञ्] साँस, श्वसन, श्वासठहराव 3. निराकरण करना, (प्यास) बुझाना, प्रश्वासक्रिया। (आग) बुझाना। प्रष्ठ (वि०) [प्र+स्था+क] 1. सामने खड़ा हुआ प्रशामः [प्र+शम् / घञ्] 1. शान्ति, धैर्य, मनकी - रघु० 15 / 20 2. मुख्य, प्रधान, अग्रणी, उत्तम, स्वस्थता 2. (प्यास) बुझाना, (आग) बुझाना, नेता-पुलस्त्यप्रष्ठ:--महावी० 130, 6 / 30, शि० निराकरण करना 3 विश्राम / 19 / 30 / सम०-वाह (पुं०) हल जोतने के लिए प्रशासनम् [प्रशास+ल्युट ] 1. शासन करना, हकूमत सघाया जाता हुआ जवान बैल। करना 2. आदेश देना, बल पूर्वक वसूल करना प्रस् (भ्वा०, दिवा-आ० प्रसते, प्रस्यते) 1, बच्चे को 3. राज्य शासन / जन्म देना 2. फैलाना, प्रसार करना, विस्तार करना, प्रशास्तु (पुं०) [प्र+शास्+तृच ] राजा, शासक, बढ़ाना। राज्यपाल। प्रसक्त (भू० क० कृ०) [प्र+सञ्ज+क्त ] 1. लग्न, प्रशिथिल (वि.) [प्रा० स०] बहुत ढीला / युक्त 2. अत्यन्त आसक्त या स्नेहशील-पंच० 12193 For Private and Personal Use Only Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 678 ) 3. अनुगामी, अनुषक्त 4. स्थिर, तुला हआ, भक्त, | प्रसञ्जनम् [प्र+स +ल्युट्] 1. जोड़ने की क्रिया, व्यस्त, व्यसनग्रस्त, प्रयुक्त-शि० 9/63, इसी प्रकार मिलाना, एकत्र करना 2. व्यवहार में लाना, सबल घत, निद्रा आदि 5. सटा हुआ, निकटस्थ 6. अवि- बनाना, उपयोग में लाना / च्छिन्न, निरन्तर, अनवरत-कि० 4118, रघु० | प्रसत्तिः (स्त्री०) [प्र+स+क्तिन् ] 1. अनुग्रह, कृपा१३१४०, मा० 4 / 6, मालवि० 3.1 7. हासिल, प्राप्त, ___ लुता, शिष्टाचार 2. स्वच्छता, पवित्रता, विशदता / लब्ध,-क्तम् (अव्य०) निरन्तर, लगातार--- कि० / प्रसन्धानम् [प्र-सम्-+-धा+ल्युट ] मिलान, मेल / प्रसन्न (भ० क० कृ०) [प्र+सद+क्त] 1. पवित्र, प्रसक्तिः (स्त्री०) [प्र--सञ्ज + क्तिन् ] 1. आसक्ति, स्वच्छ, उज्ज्वल, निर्मल, विमल, पारदर्शी-कु० 1 // भक्ति, व्यसन, संलग्नता, अनुरक्ति 2. संबंध, संयोग, 23, 7 / 74, श० 5 / 20 2. खुश, आनन्दित, प्रतुष्ट, साहचर्य 3. प्रयोजनीयता, संबंध, प्रयोग जैसा कि शान्तं-गंगा शरन्नयति सिन्धुपति प्रसन्नाम्—मुद्रा० 'अति प्रसक्ति' (अतिव्याप्ति) में 4. ऊर्जा, धैर्य 3 / 9, गम्भीरायाः पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने--मेघ० संतापे दिशतु शिवः शिवां प्रसक्तिम् -- कि० 5 / 50 40 (यहाँ प्रथम अर्थ भी अभिप्रेत है), कु० 5 / 35, 5. उपसंहार, घटाना 6. विषय, प्रवचन का विषय रघु० 2 / 68 3. दयालु, अनुग्रहशील, कृपालु, मंगलप्रद 7. संभावना का घटित होना। -----अवेहि मां कामदुधां प्रसन्नाम्-रघु०२।६३ 4. सरल, प्रसंख्या [प्रा० स०] 1. कुल योग, राशि 2. विचार विमर्श / सीधा, स्पष्ट, सुबोध (अर्थ) 5. सत्य, सही--प्रसन्नस्ते प्रसंख्यानम् [प्र+सम्+ख्या+ल्युट्] 1. गिनना 2. तर्कः-विक्रम० 2, प्रसन्नप्रायस्ते तर्क:-मा० 1, विचारण, मनन, गहन चिन्तन, भाव चिन्तन-श्रुता -नाः 1. प्रसादन, अनुरंजन 2. खींची हुई मदिरा / प्सरोगीतिरपि क्षणेऽस्मिन् हरः प्रसंख्यानपरो बभूव सम-आत्मन् (वि०) कृपालमना, मंगलप्रद,--ईरा -कु. 4 / 30 3. कीर्ति, प्रसिद्धि, विश्रुति, नः खींची हुई मदिरा,-कल्प (वि०) 1. शान्त प्राय अदायगी, भुगतान / 2. सत्यप्राय,-मुख-वदन (वि०) कृपालुदृष्टि वाला, प्रसंगः [प्र-+ सञ्+घञ ] 1. आसक्ति, भक्ति, व्यसन, प्रसन्न चेहरे वाला, मुस्कराता हुसा,-सलिल (वि.) संलग्नता–स्वरूपयोग्ये सुरतप्रसंगे-कु० 1119, स्वच्छ पानी वाला। तस्यात्यायतकोमलस्य सततं द्यूत प्रसंगेन किम्-मृच्छ० | प्रसभः [ प्रगता सभा समानाधिकारी यस्मात्----प्रा० ब०] 2 // 11, शि० 1122 2. मेल-जोल, अन्तःसंपर्क, बल, हिंसा, प्रचण्डता–प्रसभोद्धतारिः ---रघु० 230, साहचर्य, संबंध-निवर्ततामस्माद् गणिका प्रसंगात् -भम् (अव्य०) 1. बलपूर्वक, जबरदस्ती, इन्द्रियाणि -मृच्छ० 4 3. अवैध मैथुन 4. व्यस्तता, एकाग्रता, प्रमाथीनि हरंति प्रसभं मनः-भग०२।६०, मनु०८। कार्यपरता-भ्रूविक्रियायां विरतप्रसंगैः-कु. 3 / 47 332 2. बहुत अधिक, अत्यंत-तवास्मि गीतरागेण 5. विषय, शीर्षक (प्रवचन या विवाद का) 6. अवसर, हारिणा प्रसभं हृतः-श० 105, ऋतु० 6 / 25 घटना-दिग्विजयप्रसंगेन--का. 191, यात्राप्रसंगेन 3. आग्रहपूर्वक-भग० 11141 / सम... दमनम् -मा० 1 7. संयोग, समय, अवसर -मनु० 9 / 5 बलपूर्वक दबाना-श० ७१३३,-हरणम् बलपूर्वक 8. देवयोग, घटना, काण्ड, संभावना का होना-नेश्वरी अपहरण / जगतः कारणमुपपद्यते कुतः वैषम्यनैपुण्य प्रसंगात् | प्रसमीक्षणम्, प्रसमीक्षा [प्र+सम्+ई+ल्युट, प्रसम् --शारी०, एवं चानवस्था प्रसंग: तदेव, कु० 7 / 16 +ईक्ष् + अङ्+टाप् ] विचारण, विचारविमर्श, 9. संबद्ध तर्कना, या युक्ति 10. उपसंहार, अनुमान निर्धारण / 11. संबद्ध भाषा 12. अवियोज्य प्रयोग या संबंध प्रसयनम् [प्र+सि+ल्यूट ] 1. बंधन, कसना 2. जाल / (व्याप्ति) 13. माता पिता का उल्लेख (प्रसंगन, प्रसरः [प्र+स-+अप्] 1. आगे जाना, प्रगमन करना प्रसंगतः, प्रसंगात् - यह क्रिया विशेषण के रूप में --- श० 1129 2. मुक्त या निर्बाध गति, मुक्त क्षेत्र, प्रयक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करते है-1. के पहुँच, गति-रघु० 8 / 23, 16 / 20, मुद्रा० 3 / 5, हि. संबंध में 2. के फल स्वरूप, के कारण, क्योंकि, के 11186 3. फैलाव, प्रसार, विस्तर, विस्तार, फैलना रूप में 3. अवसरानुसार 4. के क्रम में (यथा--कथा- --शि० 971 4. विस्तार, आयाम, बड़ी मात्रा प्रसंङ्गेन 'वातचीत के सिलसिले में)। सम-निवारणम शि० 3 / 35 5. प्रचलन, प्रभाव-शि० 3 / 10, भविष्य में इस प्रकार की स्थिति का रोकना, -वशात 6. सरिता, प्रवाह, धारा, बाढ़-पपात स्वेदाम्बुप्रसर (अव्य०) समय के अनुसार, परिस्थितिवश,-विनिवृत्तिः इव हर्षाश्रुनिकरः-गीत० 11 7. समूह, 8. समुच्चय (स्त्री०) इस प्रकार की संकटस्थिति की पुनरावृत्ति युद्ध, लड़ाई 9. लोहे का बाण 10. चाल 11. विनम्र का न होना। याचना / For Private and Personal Use Only Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसरणम् [ प्र-स+ल्युट ] 1. आगे जाना, दौड़ना, बहना / प्रचण्डता के साथ, जबरदस्ती-प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकर 2. बच निकलना, भाग जाना 3. दूर तक फैलाना वक्तदंष्ट्राङ्कुरात् भर्तृ० 2 / 4, शि० 127, 4. शत्रु को घेरना 5. सौजन्य / 2. अत्यधिक, अत्यंत / प्रसरणिः,---णी [प्र.+स+अनि, प्रसरणि+डीप्] शत्रु | प्रसातिका [प्रगता सातिः (नाश०) सो+क्तिन् -- यस्याः को घेर लेना। -- प्रा० ब०, का+टाप्] एक प्रकार का चावल प्रसर्पणम् [प्रसप् + ल्युट ] 1. चलना, सरकना, आगे (छोटे दानों वाला)। बढ़ना 2. व्याप्त करना, सब दिशाओं में फैलना।। प्रसादः [प्र+सद्घञ] 1. अनुग्रह, कृपा, दाक्षिण्य, प्रस (श) ल: [प्र+शल+अच, पक्षे पुषो० शस्य सः] कल्याणकारिता - कुरु दृष्टिप्रसाद 'कृपा दर्शन दीजिए', हेमंत ऋतु / इत्याप्रसादादस्यास्त्वं परिचर्यापरो भव -- रघु० 1119, प्रसवः [प्र+सू+अप्] 1. जन्म देना, जनन, प्रसूति, 2 / 22 2. अच्छा स्वभाव, स्वभाव में करुणाशीलता जन्म, उत्पादन 2. बच्चे का जन्म, गर्भ मोचन, प्रसूति 3. धीरता, शान्ति, मन की स्वस्थता, सौम्यता, गांभीर्य, -यथा 'आसन्नप्रसवा' में 3. सन्तान, प्रजा, छोटे बच्चे, उत्तेजना का अभाव-भग० 2164 4. स्वच्छता, बालक-केवलं वीरप्रसवा भया:--उत्तर० 1, कू० निर्मलता, उज्ज्वलता, पारदर्शिता, (पानी या मन 7.87 4. स्रोत, मूल, जन्मस्थान (आलं० से भी) आदि की) पवित्रता-गङ्गा रोधःपतनकलुषा गृहृतीव कि० 2 / 43 5. फूल, मंजरी-प्रसवविभूतिषु भूरुहां प्रसादम् ---विक्रम० 118, श० 732, प्राप्तबुद्धिविरक्त:-शि०७।४२, नीता लोध्रप्रसवरजसा पाण्डुता- प्रसादा:-शि० 11 // 6, रघु० 17.1, कि० 9 / 25, मानने श्री:-मेघ०, कुंदप्रसवशिथिलं जीवितम्-११३, 5. प्रसादगुणयुक्तता, शैली की विशदता, मम्मट के रघु० 9 / 28, कु. 1155, 414, 14, 85, 9, मा० अनुसार, तीन गुणों में एक-प्रसाद गण, परिभाषा९।२७, 31, उत्तर० 220 6. फल, उत्पादन / शुष्कॅन्धनाग्निवत् स्वच्छजलवत्सहसैव यः, व्याप्नोसम०-उन्मुख गर्भ से मुक्त होने वाला, उत्पन्न होने त्यन्यत्प्रसादोसौ सर्वत्र विहितस्थिति:-काव्य०८, वाला पतिः प्रतीतः प्रसवोन्मुखीं प्रियां ददर्श-रघु० यावदर्थकपदत्वरूपमर्थवैमल्यं प्रसादः, या श्रुतमात्रा ३।१२,-गृहम् प्रसूतिकागृह, जच्चाघर,-धर्मिन् (वि०) वाक्याथ करतलबदरमिव निवेदयन्ती घटना प्रसादस्य उपजाऊ, उर्वर, बन्धनम् फूल या पत्ते की डंठल, - रस०, दे० काव्या० 1145, सा० द. 611 भी वृन्त–वेदना,--व्यथा प्रसव काल की पीडा, बच्चा 6. भगवान् की मूर्ति को भोग लगाया हुआ नैवेद्य का जनने का कष्ट,-स्थली माता,-स्थानम् 1. प्रसूतिका- अवशिष्ट 7. चढ़ावा, पुरस्कार 8. शान्तिकर भेंट गृह, 2. जाल। 9. कुशल, क्षेम। सम-उन्मुख (वि०) अनुग्रह प्रसवकः [प्रसबेन पुष्पादिना कायति शोभते - प्रसव+के करने के लिए तत्पर ... पराङ्मुख (वि.) 1. अनुग्रह +क] पियाल वृक्ष, चिरौंजी का पेड़ / को वापिस खींचने वाला 2. जो किसी के अनुग्रह की प्रसवनम् [ प्रसू+ल्युट्] 1. पैदा करना 2. बच्चे को अपेक्षा न करे,—पात्रम् अनुग्रह का पात्र,-स्थ (वि.) जन्म देना, उपजाऊपन / 1. कृपालु, मंगलप्रद 2. शान्त, तुष्ट, आनंदित / प्रसवन्तिः (स्त्री० [प्र--सू+झिच्, अन्तादेशः] जच्चा स्त्री। प्रसादक (वि.) (स्त्री०-दिका)[प्र+सद्+णिच्+ण्वुल] प्रसवन्ती [प्र+सू+शत+डीप्] जच्चा स्त्री- न पश्येत् 1. पवित्र करने वाला, स्वच्छ करने वाला, स्फटिक प्रसवन्तीं च तेजस्कामो द्विजोत्तमः-मन 0 4 / 44 / सदश विशद करने वाला 2. तसल्ली देने वाला, ढाढस प्रसवितु (पुं०) [प्र+म+त] पिता, प्रजनक / बंधाने वाला 3. आनन्दित करने वाला, खुश करने प्रसवित्री प्रसवित+डीप माता। बाला 4. अनुग्रह करने वाला, प्रसन्न करने वाला। प्रसव्य (वि.) [प्रगतं सव्यात्-प्रा० स०] प्रतिकूल, प्रसादन (वि०) (स्त्री० नी) प्र+सद्+णिच् + ल्युट] न्यत्क्रांत, बायाँ, उलटा। 1. पवित्र करने वाला, स्वच्छ करने वाला, निर्मल या प्रसह (वि.) [प्र+सह -अच] सहनशील, सहिष्ण, सहन विशुद्ध करने वाला-फलं कतकवृक्षस्य यद्यप्यम्बुप्रसादनम् करने वाला, हः 1. शिकारी जानवर या पक्षी -मनु०६।६७ 2. सांत्वना देने वाला, ढाढस बंधाने 2. मुकाबला, सहन शक्ति, विरोध / वाला 3. खुश करने वाला, आनन्दित करने वाला, प्रसहनः [प्र+सह + ल्युट्] शिकारी जानवर या पक्षी, --- नः राजकीय तंबू,-नम् 1. निर्मल करना, पवित्र .. नम् 1. सामना करना, मुकाबला करना 2. सहन करना 2. सांत्वना देना, ढाढस बंधाना, शान्त करना, करना, बर्दाश्त करना 3. पराजित करना, विजय प्राप्त मन स्वस्थ करना, 3. प्रसन्न करना, तुष्ट करना करना 4. आलिंगन, परिरम्भण। 4. कल्याण करना, अनुग्रह करना, -ना 1. सेवा, पूजा प्रसह्य (अव्य०) [प्र+सह + (क्त्वा) ल्यप्] 1. बल पूर्वक, / / 2. निर्मली करण / For Private and Personal Use Only Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 680 ) पट्टा प्रसावित (भू० क. कृ.) [प्र+सद् +-णिच+क्त] / प्रसितिः (स्त्री०) [प्र+सि+क्तिन् ] 1. जाल 1. पवित्र किया हुआ, स्वच्छ किया हुआ 2. खुश 3. बंधन, नमदे की पट्टी। किया हुआ, प्रसन्न किया हुआ 3. पूजा किया हुआ | प्रसिद्ध (भू० क. कृ०) [प्र+सिध्+क्त ] 1. विश्रुत, 4. धीरज बंधाया हुआ, सांत्वना दिया हुआ। विख्यात, मशहूर 2. सजा हुआ, अलंकृत, विभूषित प्रसाधक (वि.) (स्त्री०--धिका )[प्र+साथ+पवल] -- रघु० 18 / 41, कु० 5 / 9, 7 / 16 / / 1. निष्पन्न करने वाला, पूरा करने वाला 2. पवित्र प्रसिद्धिः (स्त्री०)[प्र+सि+क्तिन् ] 1. कीर्ति, ख्याति, करने वाला, छानने वाला 3. सजाने वाला, अलंकृत मशहूरी, विश्रुति 2. सफलता, निष्पन्नता, पूर्ति-कि० करने वाला, कः पार्श्वचर, अपने स्वामी को वस्त्र 3 // 39, मनु० 413 3. शृंगार, सजावट / पहनाने वाला सेवक / प्रसोदिका [ प्रसाद्यतेऽस्याम्-प्र+सद्+ण्वुल, इत्वम्, प्रसाधनम् | प्र+साथ+ल्युट ] 1. निष्पन्न करना, कार्या- टाप, सीदादेशः ] वाटिका, छोटा उद्यान / न्वित करना, करवाना 2. व्यवस्थित करना, क्रमबद्ध | प्रसुप्त (भू० क० कृ०) [प्र+स्वप्+क्त] 1. सोया करना 3. सजाना, अलंकृत करना, विभूषित करना, हुआ, निद्रित 2. प्रगाढ़ निद्रा में। शरीरसज्जा, वेशभूषा-कु० 4/18 4. सजावट, | प्रसुप्तिः (स्त्री०) [प्र+स्वप+-क्तिन् ] 1. निद्रालता, आभूषण, सजाने या विभूषित करने का साधन-कू० प्रगाढ़ निद्रा 2. लकवे का रोग / 7 / 13, ३०,-नः, नम्,नी, कंघी। सम-विधिः वि०)[प्र+स--क्विप] 1. प्रकाशित करने वाला, सजावट, शृंगार,--विशेषः सबसे ऊँचा शृंगार-प्रसाधन पैदा करने वाला, जन्म देने वाला-स्त्रीप्रसूश्चाधिविधेः प्रसाधन विशेषः-विक्रम० 213 / बेत्तव्या-याज्ञ० ११७३-(स्त्री०) 1. माता-मातरप्रसाधिका [प्रसाधक+टाप्+इत्वम् ] सेविका, वह दासी / पितरौ प्रसूजनयितारौ अमर० 'जनक-जननी' 2. घोड़ी जो अपनी स्वामिनी के श्रृंगार की देख-रेख करे- 3. फैलने वाली लता 4. केला। प्रसाधिकालम्बितमग्रपादमाक्षिप्य --रघु० 7 / 7 / / प्रसूका [प्र+सू+कन्+टाप् ] घोड़ी। प्रसाधित (भू० क० कृ०) [प्र+साध्+क्त ] 1. निष्पन्न, | प्रसूत (भू० क. कृ.) [प्रसू+क्त ] 1. उत्पन्न, जनित पूरा किपा हुआ, पूर्ण किया हुआ 2. विभूषित, 2. पैदा किया हुआ, जन्म दिया हुआ, उत्पादित, तम् सुसज्जित / 1. फूल 2. कोई उपजाऊ स्रोत,-ता जच्चा स्त्री। प्रसारः [प्रस-+घञ ] 1. फैलाना, विस्तार करना प्रसूतिः (स्त्री०) [प्रसू+क्तिन् ] 1. प्रसर्जन, जनन, 2. फैलाव, प्रसृति, विस्तार, प्रसारण 3. बिछावन प्रसव 2. जन्म देना, पैदा करना, गर्भमोचन, बच्चे 4. खाद्यान्वेषण के लिए देश में इधर उधर फैल जाना। को जन्म देना--रघु० 14166 3. बछड़े को जन्म देना प्रसारणम् [प्रस+णि+ल्युट ] 1. विदेशों में फैलना, 4. अंडे देना-नै० 11135 5. जन्म, उत्पादन, जनन बढ़ना, बृद्धि, प्रसृति, फैलाव 2. फैलाना-यथा -रघु० 1053 6. दर्शन, प्रकट होना, (फलों का) 'बाहप्रसारणम्' में 3. शत्रु को घेरना 4. इंधन और विकसन-रघु० 5 / 14, कु० 1142 7. फल, पैदावार घास के लिए समस्त देश में फैल जाना 5. अर्धस्वर 8. संतति, प्रजा, अपत्य-रघु० 1125, 77, 214, वर्णों (यरलव) का स्वरों (इ, ऋल उ) में बदल 57, कु. 217, श० 6 / 24 9. उत्पादक, जनक, जाना, संप्रसारण / प्रस्रष्टा-- रघु० 2 / 63 10. माता। सम०-जम् प्रसारिणी [प्र+सृ+णिनि ङीप् ] शत्रु को घेरना। प्रसव से उत्पन्न होने वाली पीडा, वायुः प्रसव के प्रसारित (भू० क. कृ.) [प्र+स-+-णिच् +क्त] | समय गर्भाशय में उत्पन्न होने वाली वायु / 1. प्रसार किया हआ, फैलाया हुआ, प्रसत किया | प्रसूतिका [प्रसूत+ठन्+टाप् ] जच्चा स्त्री, वह स्त्री हुआ, बढ़ाया हुआ 2. (हाथों की भांति) फैलाया जिसने अभी हाल में बच्चे को जन्म दिया है। हुआ 3. प्रदर्शित किया हुआ, रक्खा हुआ, (बिक्री के प्रसून (भू० क० कृ०) [प्र+-+ क्त, तस्य नत्वम् ] लिए) रक्खा हुआ। पैदा किया गया, उत्पन्न,-नम् 1. फूल-लतायां पूर्वप्रसाहः [प्र+सह +घञ ] अपने प्रभाव में लाना, जीत लूनायां प्रसूनस्यागमः कुतः-उत्तर० 5 / 20, रघु० लेना, पराजित करना। 2 / 10 2. कली, मंजरी 3. फल सम०--इषुः,-बाणः, प्रसित (भू० क० कृ०) [प्र+सि+क्त] 1. बांधा हुआ, ---वाणः कामदेव का विशेषण,--वर्षः पूष्पवृष्टि / कसा हुआ 2. संलग्न, व्यस्त, काम में लगा हुआ प्रसूनकम् [ प्रसून+कन् ] 1. फूल 2. कली, मंजरी। 3. तुला हुआ, प्रबल इच्छुक, लालायित (करण प्रसृत (भू० क. कृ.) [प्रस +क्त ] 1. आगे बढ़ा था अधि० के साथ)-लक्षया लक्ष्म्यां वा प्रसितः हुआ 2. पसारा हुआ, बढ़ाया हुआ 3. फैलाया गया, -सिद्धा०, रघु० 8 / 23, तम् पीव, मवाद / प्रसारित किया गया 4. लंबा, लम्बा किया हुआ For Private and Personal Use Only Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 681 ) 5. व्यस्त, लगा हआ 6, फूर्तीला तेज 7. सुशील, विनीत 6. (छन्द० में) संभावित भेदों समेत छन्द की ह्रस्व -तः हाथ की खुली हथेली, अंजलि,-तः,-तम् दो तथा दीर्घ मात्राओं की धोतिका तालिका / / पल का माप,---ता टांग / सम०-जः पुत्रों का विशिष्ट / प्रस्ताव: [प्रस्तु +घञ ] 1. आरंभ, शुरू 2. आमुख वर्ग, व्यभिचार जनित पुत्र, कुंडगोलकरूप / 3. उल्लेख, संकेत, संदर्भ -नाममात्रप्रस्तावः . श० प्रसृतिः (स्त्री०) [प्र+स+क्तिन् ] 1. आगे जाना, 7 4. अवसर, मौका, समय, ऋतु, उपयुक्तकाल प्रगति 2. बहना 3. फलाये हए हाथ की हथेली, --स्वराप्रस्तावोऽयं न खल परिहासस्य समय:--भा० अंजलि 4. मट्ठी भर (यही दो पल की माप समझी 9 / 44, शिष्याय बहतां पत्य: प्रस्तावमदिशशा जाती है)--परिक्षीणः कश्चित्स्पृहयति यवानां प्रसतये ---शि० 28 5. प्रवचन का प्रयोजन, विषय, शीर्षक ... भर्तृ० 2 / 45, याज्ञ० 21112 / 6. नाटक की प्रस्तावना दे० 'प्रस्तावना' नीचे / सम० प्रसृत्वर (वि०) [प्र+-स-क्वरप्, तुकागमः ] इधर उधर ----यज्ञः ऐसा वार्तालाप जिसमें प्रत्येक अन्तर्वादी फैलने वाला--भामि० 4 / 1 / भाग ले। प्रसृमर (वि.) [प्र+सृ+क्मरच् ] बहता हुआ, चूने प्रस्तावना [प्रस्तु+णिच् +युच्+टाप् ] 1. प्रशंसित वाला, टपकने वाला। या उल्लिखित होने का कारण बनना, प्रशंसा,सराहना प्रसृष्ट (भू० क. कृ.) [प्र सज्+क्त ] 1. एक ओर 2. शुरू, आरंभ-आर्यबालचरितप्रस्तावनाडिण्डिमः डाला हुआ, त्यागा हुआ 2. घायल, क्षतिग्रस्त,-ष्टा महावी०-१५४ 3. परिचय, भूमिका, आमुख-प्रस्ताफैलाई हुई अंगुली (अगुल्यः प्रसृता यास्तु ताः प्रसृष्टा वना इयं कपटनाटकस्य-मा० 2 4. नाटक के उदीरिताः)। आरंभ में सूत्रधार तथा किसी एक पात्र के बीच में प्रसेकः [ प्र+सिच+घन ] 1. बहना, रिसना, टपकना हआ परिचयात्मक वार्तालाप (इसमें नाटककार तथा 2. छिड़कना, आई करना 3. उगिरण, प्रस्रवण उसकी योग्यता का परिचय देकर श्रोताओं के सम्मुख -ऋतु० 3 / 6 4. उद्वमन, कै। नाटक की घटनाओं को रक्खा जाता है) परिभाषा के प्रसेदिका [ =प्रसीदिका, पृषो०] छोटा उद्यान, वाटिका / लिए दे० 'आमुख'। प्रसेवः, प्रसेवकः प्र-सित् +घञ, प्रसेव+कन् ] | प्रस्तावित (वि.) [प्र-+स्तु+णिच्+क्त ] 1 आरंभ 1. थैला, (अनाज के लिए) बोरी 2. चमड़े को बोतल किया हुआ, शुरू किया हुआ 2. उल्लिखित, इङ्गित 3. काष्ठ का बना छोटा उपकरण जो वीणा की गर्दन ---मा० 3 / 3 / के नीचे लगाया जाता है जिससे कि उसका स्वर अपेक्षा- | प्रस्तिरः =प्रस्तरः नि० इत्वम् ] पर्णशय्या, पुष्पशय्या। कृत कुछ गहरा हो जाय / प्रस्तोत,-म (वि.) [प्र-+-स्त्यै क्त, संप्र०, पक्षे तस्य प्रस्कन्दनम् [ प्रस्किन्द +ल्युट ] 1. कूद जाना, छलांग मः] 1. कोलाहल करने वाला, शब्दायमान 2. भीड़लगाना 2. विरेचन, जुलाब, अतिसार,- नः शिव का भड़क्का, झुण्ड बनाते हुए। विशेषण / प्रस्तुत (भू० क. कृ.) [प्र+स्तु-क्ति] 1. जिसकी प्रस्कन्न (भू० क कृ०) [प्र+स्कन्द --क्त ] 1. फलांगा प्रशंसा की गई हो, या स्तुति की गई हो 2. आरंभ हुआ, छलांग लगाकर पार किया हुआ 2. पतित, किया हुआ, शुरू किया हुआ 3. निष्पन्न, कृत, कार्याटपका हुआ 3. परास्त,-न्न: 1. जातिबहिष्कृत न्वित 4. घटित 5. उपागत 6. प्रस्तुत किया गया, 2. पापी, अतिक्रमणकारी। उद्घोषित, विचाराधीन या विचारणीय (दे० प्रपूर्वक प्रस्कुन्दः [ प्रगतः कुन्दं चक्रम् -प्रा० स०] गोलाकार स्तु), तम् 1. उपस्थित विषय, विचाराधीन विषय वेदी। --अधुना प्रस्तुतमनस्रियताम् 2. (अलं० शा०) प्रस्खलनम् [प्रसवल + ल्युट ] 1. लड़खड़ाना 2. डगम- विचार के विषय की रूपरेखा बनाना, उपमेय, दे० गाना, गिर जाना। 'प्रकृत'; अप्रस्तुतप्रशंसा सा या सैव प्रस्तुताश्रया प्रस्तरः [प्रस्तु-अच् ] 1. पर्णशय्या, पुष्पशय्या ---काव्य० 10 / सम०-अकुरः एक अलंकार जिसमें 2. पर्यक, खटिया 3. समतल शिखर, हमवार, समतल श्रोता के मन में निहित किसी बात को प्रकाशित 4. पत्थर, चट्टान 5. मूल्यवान् पत्थर, रत्न / करने के लिए संचारी परिस्थिति का उल्लेख किया प्रस्तरणम्,--णा [ प्रस्तु ल्यद ] 1. पलंग 2. शय्या जाता है, दे० चन्द्रा० 5 / 64, और कुव० (प्रस्तुतांकुर 3. बिछौना। के नीचे)। प्रस्तारः [प्रस्तुघा ] 1. बखेरना, फैलाना, आच्छा - | प्रस्थ (वि०) [प्र+स्था+क] 1. जाने वाला, दर्शन करने दित करना 2. पुष्पशय्या, पर्णशय्या 3. पलंग, खाट वाला, पालन करने वाला--यथा 'वानप्रस्थ' में 4. चपटी सतह, समतल हमवार 5. बनस्थली, जंगल | 2.यात्रा पर जाने वाला 3.फैलाने वाला, विस्तार करने For Private and Personal Use Only Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 682 ) वाला 4. दृढ़, स्थिर, -स्थः,-स्थम् 1. समतलभूमि, / प्रस्फुरित (भू० क० कृ०) [प्र+स्फुर्+क्त] ठिठुरता चौरस मैदान, जैसा कि औषधिप्रस्थ या इंद्रप्रस्थ में हुआ, कांपता हुआ, थरथराता हुआ, कम्पायमान / 02. पर्वत के शिखर पर समतल या चौरस भूमि,-प्रस्थं | प्रस्फोटनम् [प्र+ स्फुट ल्यट] 1. फूट निकलना, खिलना, हिमाद्रेर्मगनाभिगन्धि किंचित्क्वणत्किन्नरमध्यवास-कु० मुकुलित होना 2. स्पष्ट या साफ करना, खोलना, प्रकट 1154, मेघ० 58 3. पहाड़ का शिखर या चोटी | करना 3. टुकड़े-टुकड़े करना 4. खिलाना, विकसित -शि० 4 / 11 (यहाँ यह चौथे अर्थ को भी प्रकट करना 5. अनाज फटकना 6. छाज 7. छेतना, पीटना / करता है) 4. एक विशिष्ट माप जो 32 पलों के | प्रलंसिन् (वि.) (स्त्री०-नी) प्र+संस्+णिनि समय बराबर होता है 5. 'प्रस्थ' के तोल के बराबर कोई से पूर्व गिर जाने वाला (गर्भ), कच्चा गिरना। वस्तु। सम०-पुष्पः तुलसी का एक भेद, दोना प्रस्रवः [प्र++अप्] 1. बूंद-बूंद गिरना, टपकना, बहना मरुआ। रिसना 2. बहाव, धारा 3. औड़ी या स्तन से टपकने प्रस्थम्पच (वि.)[प्रस्थ-पच्+अच्, मुमागमः] प्रस्थमात्र | वाला दूध-प्रस्रवेण (पाठान्तर 'प्रस्रवेन') अभिवर्षन्तो पकाने वाला। वत्सालोकप्रवर्तिना-रघु० 1984 4. मूत्र,-वा:-(व० प्रस्थानम् [प्र+स्था ल्यूट] 1. प्रयाण करना, कूच करना, व०) उमड़ते हुए आँसू / बिदा, प्रगमन करना-प्रस्थानविक्लवगतेरवलम्बनार्थम् प्रस्रवणम् [प्र+सु कान् + ल्युट्] 1. बह निकलना, उमड़ना, ---श० 5 / 3, रघु० 4188, मेघ० 41, अमरु 31 टपकना, झरना, बूंद बूंद गिरना 2. स्तन या औड़ी से 2. पहुँचना--कु० 6 / 61 3. कूच करना, किसी सेना दूध बना-(वृक्षकान्) घटस्तनप्रस्रवणयंवर्धयत्-कु० का या आक्राम का कुच करना 4. प्रणाली, पद्धति 5 / 14 3. जलप्रपात, प्रपातिका, निर्झर 4. झरना, 5. मृत्यु, मरण 6. निकृष्ट श्रेणी का नाटक—दे. फौवारा-समाचिताः प्रस्रवणः समन्तत:-ऋतु० 2013 सा० द.२७६, 544 / मनु० 8 / 248 याज्ञ० 12152 5. नाली, टोंटी प्रस्थापनम् [प्र-स्था+णि+ल्यट, पुकागमः] 1. भेजना, 6. पहाड़ी सरिताओं से बना पोखर, पल्वल 7. स्वेद, तितर-बितर करना, प्रेषित करना 2. दूतावास में पसीना 8. मत्रोत्सर्ग,---णः एक पहाड़ का नाम-जननियुक्ति 3. प्रमाणित करना, प्रदर्शन करना 4. उप- स्थानमध्यगो गिरिः प्रस्रवणो नाम उत्तर० 1 / योग करना, काम में लगाना 5. पशुओं का अपहरण / प्रस्तावः [प्र+उ+घञ ] 1. बहाव, उमड़न, मत्र / प्रस्थापित (भू० क० कु०) [प्र+स्था-णिच्+क्त, प्रस्तुत (भू० क. कृ०) [प्र++क्त ] उमड़ा हुआ, पुकागमः] 1. भेजा गया, प्रेषित 2. स्थापित, सिद्ध / टपका हुआ, बूंद-बूंद कर गिरा हुआ, रिसा हुआ। प्रस्थित (भू० क० कृ०) [प्र+स्था+क्तप्रयात, आगे प्रस्व (स्वा) नः / प्र+स्वन् ।-अप, घा वा ] ऊँची बढ़ा हुआ, बिदा हुआ, विजित, यात्रा पर गया हुआ आवाज। (दे० प्रपूर्वक 'स्था')। प्रस्वापः [प्र+स्वप्+घञ्] 1. निद्रा 2. स्वप्न 3. निद्रा प्रस्थितिः (स्त्री०) [प्र+स्था-क्तिन्] 1. चले जाना, लाने वाला अस्त्र। बिदा होना 2. कूच करना, यात्रा / प्रस्वापनम् [प्र+स्वष् + णिच् + ल्युट् ] 1. सुलाना, निद्रित प्रस्नः [प्रस्ना +क] स्नान-पात्र / करना 2. ऐसा अस्त्र जो आक्रान्त व्यक्ति को सुला दे प्रस्तवः [प्र-+स्तु-+-अप] 1. उमड़ कर बहना, बह निक -रघु०७।६१। लना. निःस्रवण-उत्तर० 622 2. (दूध का) घार | प्रस्विन्न (भ० क० कृ०) [प्र-स्विद-4वत / पसाना या प्रवाह-रघु० 1984 आया हुआ, पसीने से तर / प्रस्तुत (भू० क० कृ०) [प्र-+-स्नु+क्त झरता हुआ, | प्रस्वेदः [प्र+स्विद्+घञ्ज / बहुत अधिक पसीना। रिसता हआ, बहकर निकलता हुआ। सम०-स्तनो प्रस्वेदित (भू० क० कृ०) [प्र+स्विद+णिच् + क्त ] वह स्त्री जिसकी छाती से (मातृस्नेहातिरेक के कारण) 1. स्वेदाच्छन्न, पसीने से सराबोर, पसीना आया हुआ दूध टपकता है-उत्तर० 3 / 2. पसीना लाने वाला, गर्म / प्रस्नुषा [प्रा० स०] पौत्रवधु / प्रहणनम् [प्र+हन् + ल्युट् ] वध, हत्या। प्रस्पन्दनम् [प्रस्पन्द्+ल्युट्] धड़कन, थरथराहट, प्रहत [प्र+हन्+क्त ] 1. घायल, वध किया हुआ, मारा कंपकंपी। हुआ 2. पीटा हुआ, (ढोल आदि) बजाना - स स्वयं प्रस्फुट (वि.) [प्र.+ स्फूट+क] 1. खिला हआ, विकसित, प्रहतपुष्करः कृती-रघु०१९।१४, मेघ०६४ 3. पीछे (फूल आदि) फूला हुआ 2. उद्घोषित, प्रकाशित, ढकेला हुआ, विजित, पराजित 4. फैलाया हआ, फलाया (रिपोर्ट आदि) फैलाई हुई 3. सरल, साफ, प्रकट, हुआ 5. सटा हुआ 6. (पगडंडी) घिसा-पिटा, गतानुस्पष्ट / गतिक 7. निष्पन्न, विद्वान् / For Private and Personal Use Only Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रहरः [प्र--ह+अप् ] दिन का आठवाँ भाग, प्रहर (तीन डालना 3. आघात, मुक्का, चोट, ठोकर, धौल-रघु० घंटे का समय)-प्रहरे प्रहरेऽसहोच्चारितानि गामानये- 7144, मुष्टिप्रहार, तलप्रहार आदि 5. ठोकर-- जैसा त्यादिपदानि न प्रमाणम् - तर्क। कि पादप्रहारः और लत्ताप्रहार: में 6, गोली मारना। प्रहरकः [प्रहर+कन् ] एक पहर / / प्रहारणम् [प्र+हु+णिच् + ल्युट] वाञ्छनीय उपहार / प्रहरणम् [प्र+ह+ ल्युट्] 1. प्रहार करना, मारना | प्रहासः [प्र+हस्+घञ्] 1. ज़ोर की हँसी, अट्टहास 2. डालना, फेकना 3. धावा करना, आक्रमण करना 2. मज़ाक, दिल्लगी, हंसी 3. व्यंग्योक्ति, व्यंग्य 4. घायल करना 5. हटाना, बाहर निकालना 6. शस्त्र 4. नर्तक, नट, पात्र 5. शिव 6. दर्शन, दिखावा अस्त्र, या (उर्वशी) सकुमारं प्रहरणं महेन्द्रस्य -वेणी० 2 / 28 7. एक तीर्थ स्थान का नाम-तु० -विक्रम० 1, रघु० 13173 भग० 119, मा० 89 प्रहास। 7. संग्राम, युद्ध, लड़ाई 8. ढकी हुई पालकी या डोला। प्रहासिन् (पुं०) [प्र+हस्। णिच् + णिनि] विदूषक, प्रहरणीयम् | प्र-हि-अनीयर् ] अस्त्र, शस्त्र / मसखरा। प्रहरिन् (पुं०) [प्रहर -इनि ] 1. रखवाला 2. पहरेदार, प्रहिः[प्र+हि-+क्विप] कुआँ / घंटी वाला। प्रहित (भू० क० कृ०) [प्र+धा+क्त] 1. रक्खा हुआ, प्रहर्तृ (वि.) [प्र--हु-तृच ] 1. प्रहार करने वाला, प्रस्तुत किया हुआ 2. बढ़ाया हुआ, फैलाया हुआ पीटने वाला, हमला करने वाला 2. लड़ने वाला, 3. भेजा हुआ, प्रेषित, निदेशित-विचारमार्गप्रहितेन संयोधी, योद्धा 3. तीरंदाज, निशाने बाज, धनुर्धर / चेतसा- कु० 5 / 42 4. छोड़ा हुआ, निशाना लगाया प्रहर्षः | प्र+हुए+घन ] 1. अत्यधिक हर्ष, अत्यानन्द, ___ हुआ (तीर आदि का) 5. नियुक्त किया गया उल्लास-गुरुः प्रहर्षः प्रबभूव नात्मनि रघु० 3 / 17 6. समुचित, उपयुक्त, - तम् चाट, चटनी / 2. लिङ्ग का खड़ा होना। प्रहीण (भू० क० कृ०) [प्र+हा+क्त, ईत्, तस्य नः, प्रहर्षणम् [प्रहृष् + ल्युट् ] उल्लसित करना, प्रहृष्ट णत्वम् ] छोड़ा गया, खाली किया गया, त्यागा गया, करना, आनन्दित करना,-णः बुध ग्रह / - णम् विनाश, निराकरण, घाटा। प्रहर्ष (षि) णो [प्र+हृष्+णिचू+ ल्युट् + ङीप् -प्र प्रहुतः,-तम् [प्र-हु+क्त] भूतयज्ञ, बलिवैश्यवदेव, दैनिक +हष् +-णिच् --णिनि-डी ] 1. हल्दी 2 एक पाँच यज्ञों में एक, तु० मनु० 3174 / छन्द का नाम, दे० परिशिष्ट / प्रहृत (भू० क० कृ०) [प्र+ह+क्त] पीटा गया, आघात प्रहर्षलः [प्रहृष् + उलच् ] बुध ग्रह / किया गया, चोट किया गया, घायल किया गया / प्रहसनम् [प्र+हस्+ल्युट ] 1. जोर की हँसी, अट्टहास, -तम् मुक्का, प्रहार, चोट / खिलखिलाकर हँसना 2. मजाक, ठिठोली, व्यंग्यौक्ति, प्रहृष्ट (भू० क० कृ०) [प्र+हृष्+क्त] 1. खुश, प्रसन्न, उपहास--धिक् प्रहसनम् -उत्तर० 4 3. व्यंग्यलेख, आनंदित, आह्लादित 2. पुलकित करना, रोमांचित व्यंग्य 4. स्वांग, तमाशा, हँसी का सुखान्त नाटक : करना (रोंगटे खड़े होना) / सम-- आत्मन्-चित्त, --सा० द० में दी गई परिभाषा--भाणवत्सन्धिसध्यं- --मनस् (वि०) मन से खुश, हृदय से आनन्दित / स्याङ्गाङ्कविनिर्मितम्, भवेत्प्रहसनं वृत्तं निन्द्यानां प्रहृष्टकः [प्रहृष्ट+कन्] काक, कौवा।। कविकल्पितम्-५५३ तथा आगे, उदा० 'कन्दर्पकेलि'।। प्रहेलकः [प्र+हिल+ण्वल] 1. एक प्रकार का सुहाल, प्रहसन्ती [प्र-|-हस्+-शत--ङीप्] 1. एक प्रकार की चमेली, मीठी रोटी 2. पहेली-दे० नी० 'प्रहेलिका' / "जुही, यूथिका, बासन्ती 2. एक बड़ी अंगीठी। प्रहेला [प्र-हिल+अ+टाप] मुक्त या अनियंत्रित प्रहसित ( भू० क० कृ० ) [प्र-|-हस् + क्त ] हँसता व्यवहार, शिथिल आचरण, रंगरेली, विहार। हुआ,-तम् हँसी, हास्य / प्रहेलिः (स्त्री०), प्रहेलिका [प्र+हिल-+-इन्, प्रहेलिकन् प्रहस्तः [प्रततः प्रसृतो हस्त: प्रा० स०] 1. खुला हाथ +टाप] पहेली, बुझौवल, कुट प्रश्न, विदग्धम ख जिसकी अँगुलियाँ फैली हों, (थप्पड़) 2. रावण के मंडन में दी गई परिभाषा व्यक्तीकृत्य कमप्यर्थ एक सेनापति का नाम)। स्वरूपार्थस्य गोपनात, यत्र बाह्यन्तरावर्थो कथ्यते सा प्रहाणम् [ प्र+हा+ ल्युट् ] त्यागना, छोड़ना, भूल जाना प्रहेलिका। यह आर्थी और शाब्दी दो प्रकार की है। ---मनु० 5 / 58 / तरुण्यालिङ्गितः कण्ठे नितम्बस्थलमाश्रितः, गुरूणां प्रहाणिः (स्त्री०) [प्र+हानि, णत्वम्] 1. त्यागना सन्निधानेऽपि कः कूजति महमहः। (यहाँ पहेली का 2. कमी, अभाव / उत्तर है- ईषदूनजलपूर्णकुंभः) यह आर्थी का प्रहारः[प्रह-घश। / वार करना, पीटना, चोट उदाहरण है। सदारिमध्यापि न वैरियक्ता नितान्त करना-याज्ञ० 3 / 248 2. घायल करना, मार / रक्ताप्यसितव नित्यं यथोक्तवादिन्यपि नैव दृती का For Private and Personal Use Only Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 684 ) नाम कान्तेति निवेदयाशु / (यहाँ पहेली का उत्तर है / प्रहलिका (स्त्री०) दे० प्रहेलिका। --- सारिका) यह शाब्दी का उदाहरण है। दण्डी ने प्रायः [प्र--ह्वे-घा | बुलावा, आमंत्रण, निमंत्रण / सोलह प्रकार की पहेलियाँ बतलाई हैं--काव्या० प्रांशु (वि०) [प्रकृष्टा अंशवो यस्य-प्रा० ब०] 1. ऊँचा, 3 / 96-~124 / लंबा, कहांवर, ऊँचे कद का (मनुष्य)-शालप्रांशुर्महाप्रह्लन (भू० क० कृ०) [ प्रह्लाद्-क्त, ह्रस्वः] खुश, भुजः— रघु० 1113, 15 / 19 2. लंवा, बढ़ाया हुअर आनंदित, प्रसन्न / ---श० २।१५,-शुः लंबा मनुष्य, बड़े कद का प्रह्ला (ला) दः प्र--ह्लाद+घञ, रलयोरैक्यम् / आदमी-प्रांशुलभ्ये फले लोभादुदाहुरिव वामनः 1. अत्यधिक हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आनन्द 2. शब्द, --रघु० 1 / 3 / आवाज़ 3. हिरण्यकशिपु राक्षस के पुत्र का नाम प्राक् (अव्य०) [प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक ] (पद्मपुराण के अनुसार प्रह्लाद अपने पूर्व जन्म में 1. पहले (अपा० के साथ)--सकलानि निमित्तानि ब्राह्मण था। जब उसने हिरण्यकशिपु के यहाँ जन्म प्राकप्रभातात्ततो मम भट्टि० 810, 6, प्राक् सृष्टे: लिया तो भी उसकी विष्णु के प्रति अनन्यभक्ति बनी केवलात्मने ... कु० 2 / 4, रघु० 14178, श० 5 / 21 रही। उसका पिता यह नहीं चाहता था कि उसका 2. सबसे पहले, पहले ही-प्रमन्यवः प्रागपि कोशलेन्द्रे अपना पुत्र ही उसके घोर शत्रु देवों का ऐसा पक्का -... रघु० 7 / 34 3. पहले, पूर्व, पूर्व अंश में (पुस्तक भक्त बनें ! अतः उससे छुटकारा पाने के उद्देश्य से के)-इति प्रागेव निर्दिष्टम् - मनु० 271 4. पूर्व में, उसने अपने पुत्र प्रहलाद को नाना प्रकार की यातनाएँ से पूर्व दिशा में ग्रामात्प्राक पर्वतः 5. सामने 6. जहाँ दीं। परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का कुछ नहीं तक हो वहाँ तक, पर्यंत, तक प्राक् कडारात् / बिगड़ा, उसने और भी अधिक उत्साह से इस बात का प्राकटयम् [प्रकट व्यञ ] प्रकट करना, प्रकाशित उपदेश करना आरम्भ कर दिया कि विष्ण सर्वव्यापक, करना, कुख्याति / सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। हिरण्यकशिपू ने क्रोधावेश प्राकरणिक (वि.) (स्त्री०--की) [प्रकरण+ठक ] में प्रह्लाद से पूछा कि बता कि यदि विष्णु सर्वव्यापक विचारणीय विषय से संबंध रखने वाला, प्रस्तुत विषय है तो इस वृक्ष के स्तंभ में वह मुझे क्तों नहीं दिखाई (अलंकार शास्त्रियों द्वारा प्रायः 'उपमेय' के अर्थ देता? इस पर प्रह्लाद ने स्तंभ पर मुक्के का आघात में प्रयुक्त हआ है) से संबद्ध,--अप्राकरणिकस्याभिधानेन किया (दूसरे मतानुसार स्वयं हिरण्यकशिपू ने क्रोध में प्राकरणिकस्याक्षेपोऽप्रस्तुतप्रशंसा-काव्य०१० / भरकर अपने पुत्र के विश्वास की मुर्खता का उसे प्राकर्षिक (वि.) (स्त्री० की) [प्रकर्ष-ठक ] श्रेष्ठतर विश्वास दिलाने के लिए स्वयं स्तंभ को ठोकर मारी) / या अधिक अच्छा समझा जाने का अधिकारी। फलतः विष्णु नरसिंह (अर्ध मनुष्य तथा अर्ध सिंह) / प्राकषिकः [प्र---आ-+-कष्-+इकन् ] 1. लौंडा, गांडू के रूप में प्रकट हुआ और हिरण्यकशिपु के टुकड़े टुकड़े 2. दूसरे की स्त्री से अपनी जीविका चलाने वाला। कर दिये / प्रह्लाद अपने पिता का उत्तराधिकारी बना : प्राकाम्यम् [प्रकाम+ध्यञ् ] 1. इच्छा को स्वतंत्रता और बुद्धिमत्ता पूर्वक, तथा न्यायपूर्वक राज्य किया)। -प्राकाम्यं ते विभूतिषु-कु० 21112. स्वच्छाप्रह्ला (ला) दन (वि०) [प्र+ह्लाद्+णिच् + ल्युट, रल चारिता 3. अनिवार्य संकल्प, शिव की आठ प्रकार योरैक्यम् ] आनन्द देने वाला, प्रसन्न करने वाला की सिद्धियों में से एक (जिसकी प्राप्ति से सब -- रघु० १३१४,...नम् हर्ष या प्रसन्नता पैदा करना, मनोरथ पूरे हो जाते हैं) दे० 'सिद्धि' / आनन्द देना, खुश करना---यथा प्रह्लादनाच्चन्द्रः प्राकृत (वि.) (स्त्री०-ता,-ती) [प्रकृति | अण। --रघु० 4 / 12 / 1. मौलिक नैसर्गिक, अपरिवर्तित, अविकृत-स्यातामप्रत (वि.) [प्र--ह्व+वन्, नि० साधुः ] 1. ढलुवाँ, मित्रो मित्रे च सहजप्राकृतावपि--शि० 2 / 36, (इस तिरछा, झुका हुआ - शि० 12156 2. झुकता हुआ, पर देखो मल्लि.) 2. प्रचलित, सामान्य, साधारण नीचे को झुका हुआ, विनम्र,-- विनीत एष प्रह्वोऽस्मि 3. असंस्कृत, गंवार, असभ्य, अशिक्षित प्राकृत इब भगवन् एषा विज्ञापना च नः-महावी० 1147, 6 / 37 परिभूषमानमात्मानं न रुणत्सि-का० 146, भग० 3. दीन, विनीत, सुशील, विनयी- प्रह्वेष्वनिर्वन्धरुषो 18 // 24 3. नगण्य, महत्त्वहीन, तुच्छ-मुद्रा० 1, हि सन्तः-रघु० 16180 4. अनुरक्त, भक्त, व्यस्त, 4. प्रकृति से उत्पन्न-- प्राकृतो लयः 'प्रकृति में ही आसक्त / सम०-अञ्जलि (वि०) सम्मान के चिह्न पुनः लीन होना' 5. प्रान्तीय, देहाती (बोली), दे० स्वरूप दोनों हाथ जोड़ कर सिर झुकाए हुए। नी०,-तः ओछा मनुष्य, साधारण व्यक्ति, देहाती प्रहयति (ना० धा०–पर०) विनीत करना, वशवर्ती पुरुष,-तम् एक देहाती या प्रान्तीय बोली जो संस्कृत बनाना। से व्युत्पन्न तथा उससे मिलती-जुलती है-प्रकृतिः For Private and Personal Use Only Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 685 ) संस्कृतं तत्र भवं तत आगतं च प्राकृतम-हेम० --आ+पूर्ण + वुल, प्राघूर्ण+ ठञ् ] अतिथि, (इनमें बहत सी बोलियाँ संस्कृत नाटकों में निम्न पाहुना, अभ्यागत, मेहमान-चिरापराधस्मतिमांसलोपि श्रेणी के पात्रों या स्त्री पात्रों द्वारा बोली जाती है) रोषः क्षणप्राघुणिको बभूव भामि० 2066, श्रवणताद्धवस्तत्समो देशीत्यनेकः प्राकृतक्रमः--काव्या० प्राघुणिकीकृता जनैः (कथा)-०२१५६ / 1233.34, 35 त्वमप्यस्मादश जनयोग्ये प्राकृतमार्गे प्राङ्गम् [ प्रकृष्टमगं यस्य-प्रा० ब०] एक प्रकार की प्रवृत्तोऽसि-विद्ध०१। सम-अरिः नैसर्गिक शत्र ढोलक, पणव / अर्थात पड़ोसी देश का शाराक दे०, शि० 2 / 26 पर | प्राङ्गणं (नम्) [प्रकर्षेण अंगनं गमनं यत्र-प्रा० ब०] मल्लि,-उदासीन: नैसर्गिक तटस्थ अर्थात् वह राजा ____ 1. सहन, आंगन 2. (घर का) फर्श 3. एक प्रकार जिसका राज्य नसगिक मित्र राज्य के परे है,-ज्वरः की ढोलक / सामान्य या साधारण बुखार,---प्रलयः विश्व का पूर्ण / प्राच, प्राञ्च (वि.) (स्त्री०-ची) प्र-अञ्च --क्विन] विघटन,-मित्रम् नैसगिक मित्र अर्थात वह राजा: 1. सामने की ओर मुड़ा हुआ, सामने बिल्कुल आगे जिसका राज्य नैसर्गिक शत्रु राज्य से मिला हुआ है रहने वाला 2. पूर्वदिशा संबंधी, पूर्व का 3. प्राथमिक, (अथवा जिसका देश उस देश से पृथक है जिसके साथ पहला, पूर्वकाल का (पुं० ब०व०) 1. पूर्व देश के मित्रता का संबंध हो चुका है)। लोग 2. पूर्वीय वैयाकरण / सम०- अग्र (वि.) प्राकृतिक (वि०) (स्त्रो०-को) / प्रकृति --ठा ] (प्रागन) पूर्वदिशा की ओर दृष्टि फेरे हुए, अभावः 1. नैसगिक, प्रकृति से व्युत्पन्न --महावी० 7 / 39 (प्रागभावः) पिछला, सत्ता का अभाव, किसी वस्तु 2. भ्रान्तिजनक, भ्रमोत्पादक / की उत्पत्ति के पूर्व का अनस्तित्व, उत्पत्ति से पूर्व की प्राक्तन (वि.) (स्त्री० ---नी) [ पाच +टयु, तुडागमः ] अवस्था,-अभिहित (वि.) (प्रागभिहित) पूर्वोक्त, 1. पहला, पूर्व का, पिछला–प्रपेदिरे प्रावतनजन्भविद्याः --अवस्था (प्रागवस्था) पहली दशा,-न तर्हि प्राग -कु० 130 2. पुराना, प्राचीन, पहले का 3. पूर्व- बस्थायाः परिहीयसे—मा० 4, 'पहली अवस्था की जन्म से संबद्ध, या पूर्वजन्म में किये हुए कार्य अपेक्षा कमी पर नहीं हो,'--आयत (वि.) (प्रागा -संस्काराः प्राक्तना इव-रधु० 1 / 20, कु० 6 / 10 / यत) पूर्व दिशा की ओर बढ़ा हुआ,-उिक्तिः (स्त्री०) प्राखर्यम् प्रखर-ध्यन / 1. पैनापन 2. तीक्ष्णता (प्रागुक्तिः ) पूर्वकथित,--- उत्तर (व०) (प्रागुत्तर) 3. दुष्टता। पूर्वोत्तर का.--उदीची (स्त्री०) (प्रागुदीची) पूर्वोत्तर प्रागल्भ्यम् [प्रगल्भ : यज] 1. साहस, भरोसा--निःसाध्व- दिशा,-कर्मन् (नपुं) (प्राक्कर्मन्) पूर्वजन्म में किया सत्वं प्रागल्भ्यम् -सा० द. 2. धमंड, अहंकार, हुआ कार्य-काल: (प्राक्काल:) पहला यग,--कालीन 3. प्रवीणता, कुशलता 4. विकास, बडप्पन, परिपक्वता (वि०) (प्राक्कालीन) पूर्वकाल से संबंध रखने .....बुद्धिप्रागल्भ्य, तभः प्रागल्भ्य आदि 5. प्रकटीकरण, वाला, पुराना, प्राचीन,-कूल (वि.) (प्राक्कूल) प्रतीति-अवाप्तः प्रागल्भ्यं परिणतरुचः शैलतनये जिसकी नोक पूर्वदिशा की ओर मुड़ी हुई हो (कुश-काव्य 0 10 'जो प्रतीत हुआ' 6. वाकपटुता ग्रास) मनु० २१७५,—कृतम् (प्राक्कृतम्) पूर्वजन्म --प्रागल्भ्यहीनस्य नरस्य विद्या शस्त्रं यथा कापुरुपस्य में किया गया कार्य,-चरणा (प्राक्चरणा) स्त्री की हस्ते (यहाँ 'प्रागल्भ्य' का अर्थ 'साहस' भी है)--मा० जननेन्द्रिय, योनि,- चिरम् (अव्य०) (प्राचिरम्) 3 / 11 7. धूमधाम, मर्यादा 8. घृष्टता, ढिठाई। समय रहते, देर न करके,-जन्मन् (नपु०) (प्राग्जप्रागारः [प्रकृष्ट: आगार:--प्रा० स०] घर, भवन / न्मन),-जातिः (स्त्री०) (प्राग्जातिः) पूर्वजन्म प्राप्रम् [प्रा० स० ] उच्चतम बिन्दु / सम०-सर (वि०) -- ज्योतिषः (प्राग्ज्योतिषः) 1. एक देश का नाम, प्रथम, अग्रणी, हर (वि०) मुख्य, प्रधान-रघु० कामरूप देश का नामांतर 2. (ब०व०) इस देश 1623 / के रहने वाले लोग, (षम) एक नगर का नाम, प्राग्राटः [प्राग्र+अट्+अच् ] पतला जमा हुआ दूध / / ज्येष्ठ: बिष्ण का विशेषण, दक्षिण (वि०) (प्राप्राग्य (वि.) [ प्राग्र-यत् ] मुख्य, अग्रणी, उत्तम, . ग्दक्षिण) दक्षिणपूर्वी,- देशः (प्राग्देशः) पूर्वदिशा का अतिश्रेष्ठ। देश,--द्वार,-द्वारिक (वि०) (प्रारद्वार, प्रारद्वारिक) प्राघातः | प्रकृष्ट आघातः-प्रा० स० ] युद्ध, लड़ाई।। जिसका दरवाज़ा पूर्व दिशा की ओर हो.-..-न्यायः प्राधारः [प्र+-+घन ] टपकना, बूंद बूद गिरना, (प्राङ् न्यायः) पहली जांचपड़ताल का तर्क, पहले से रिसना / ही निर्णीत मुकदमा-आचारेणावसन्नोऽपि पुनर्लेखयते प्राघुणः, प्राघुणकः, प्राघुणिकः, प्र+धण+क, प्राघुण यदि, सोऽभिधेयो जितः पूर्वं प्राङन्यायस्तु स उच्यते प्राघर्णकः, प्राणिकः +कन्, प्राघुण+ठक् प्र 1. -प्रहारः (प्राकप्रहारः) पहला मुक्का, फल: For Private and Personal Use Only Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 686 ) (प्राकफल:) कटहल का पेड़,--फ (फाल्गुनी (प्राक्फ २६३,-कल्पः पहला कल्प,-गाया पुरानी कहानी, (फा)ल्गुनी) ग्यारहवाँ नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी, भवः | --तिलकः चन्द्रमा,--पनसः बेल का वृक्ष,--बहिस् 1. बृहस्पतिग्रह 2. बृहस्पति का नाम,---फाल्गुनः, (पुं०) इन्द्र का विशेषण,-मतम् पुरानी सम्मति / -- फाल्गुनेयः (प्राकफाल्गुनः, प्राकफाल्गनेयः) वह- प्राचीरम् [प्र+आ- चिकन, दीर्घः ] धेरा, बाड़, स्पतिग्रह,- भक्तम् (प्राग्भक्तम् ) भोजन से पूर्व दीवार / औषधिसेवन - भागः (प्राग्भागः) 1. सामने का भाग | प्राचुर्यम् [प्रचुर+ध्य] 1. बहुतायत, पर्याप्तता, बहुलता 2. अगला भाग,-भारः (प्राग्भारः) 1. पहाड़ का 2. समुच्चय / शिखर या चोटी--मा० 9 / 15 2. सामने का भाग, | प्राचेतसः [प्रचेतसः अपत्यम्-प्रचेतस्+अण् ] 1. मनु का (किसी चीज़का) अगला भाग या किनारा क्रन्द- पैतृक नाम 2. दक्ष का कुलसूचक नाम 3. वाल्मीकि त्फेरवचण्डडात्कृतिभृतप्रारभारभीमस्तटैः-मा० 9 / 15 | का गोत्रीय नाम। 3. बड़ा परिमाण, ढेर, समुच्चय, बाढ़-भर्त० 3.129, | प्राच्य (वि०) [प्राचि भवः यत् ] 1. सामने से स्थित मा० ५।२९,-भावः (प्राग्भाव:) 1. पूर्वजन्म 2. श्रेष्ठता, या विद्यमान 2. पूर्व दिशा में रहने वाला, पुरबैया, उत्तमता, -मुख (वि.) (प्राङ्मुख) 1. पूर्व की ओर पूर्वाभिमुखी 3. प्राथमिक पूर्ववर्ती, पहला 4. प्राचीन, को मुड़ा हुआ --कु० 7 / 13, मनु० 2 / 51, 8187, पुराना--(ब० व०-च्याः) 1. पूर्वी देश, सरस्वती 2. झुका हुआ, कामना करता हुआ, इच्छुक, वंशः के दक्षिण में या पूर्व में स्थित देश 2. इस देश के (प्राग्वंशः) 1. यज्ञशाला जिसके स्तंभ पूर्व की ओर निवासी। सम० --- भाषा पूर्वी बोली, भारत के पूर्व मुड़े हुए हों- रघु०१६।६१ (प्राचीनस्थणो यज्ञशाला- में बोली जाने वाली भाषा। विशेषः- मल्लि०, परन्तु कुछ लोगों के मतानुसार प्राच्यक (वि.) [प्राच्य+कन / पूर्वी, पूरवैया, पूर्वाइस का अर्थ है 'वह कक्ष जहाँ यजमान का परिवार भिमुखी। और मित्र इकठे रहते हों') 2. पहला वंश या पीढ़ी, | प्राछ (वि०) [प्रच्छ--क्विप, नि० दीर्घः ] (कर्त०. ए० -वृत्तम् -दे० प्राङ्न्याय,-वृत्तान्तः (प्राग्वृत्तान्तः) व०-प्राट्,प्राड्) पूछने वाला, पूछताछ करने वाला, पहली घटना,-शिरस,शिरस,-शिरस्क (वि.) प्रश्न करने वाला, जैसा कि 'शब्द प्राट्' में। सम० (प्राकशिरस आदि) पूर्व दिशा की ओर सिर मोड़े हए, -बिवाकः (प्राविवाक) न्यावाधीश, कचहरी या --संध्या (प्रासंध्या) प्रातःकालीन संध्या,-सेवनम् अदालत में प्रधान पद पर अधिष्ठित अधिकारी (प्राकसेवनम्) प्रातःकालीन जलतर्पण या यज्ञ, -मनु०८1७९, 181, 9 / 234 / / -स्रोतस् (वि०) (प्रास्रोतस) पूर्व की ओर | प्राजक: [प्र+अ+णिच-+ण्वुल ] सारथि, चालक, बहने वाला। रथवान् मनु० 8 / 293 / प्राचण्डपम् [प्रचण्ड+यज 11. उत्कटता, उग्रता, प्राजनः तम् / प्र+अ+ ल्युट् ] हंटर, चाबुक, अंकुश 2. भीषणता, विकराल दृष्टि-मा० 3 / 17 / -त्यक्तनाजनरश्मिरङ्किततनुः पार्थाङ्कितर्गिणः प्राचिका [प्र+अञ्चन-कुन+टाप, इत्वम् | 1. मच्छर --वेणी० 5 / 10 / ___डांस की जाति की एक जंगली मक्खी। प्राजापत्य (वि.) [प्रजापति-+यक] प्रजापति से संबंध प्राची [प्र+अञ्च+क्विन्+डीप्] पूर्व दिशा,--तन रखने वाला या जो प्रजापति के लिए पुण्यप्रद हो,-स्यः यमचिरात् प्राचीवार्क प्रसूध च पावनम-श० 4 / 18 / हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों सम०----पतिः इन्द्र का विशेषण, --मूलम् पूर्वी क्षितिज में से एक जिसमें लड़की का पिता वर से बिना किसी --प्राचीमुले तनुमिव कलामात्रशेषां हिमांशोः प्रकार का उपहार लिए केवल इस लिए कन्यादान -.-मेघ० 89 / करता है जिससे वह सानन्द, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक प्राचीन (वि०) [ प्राच्+ख ] 1. सामने की ओर या पूर्व साथ 2 रहकर दाम्पत्य जीवन बिताएँ--सहोभी दिशा की ओर मुड़ा हुआ, पूर्वी, पुरवंया, पूर्वाभिमुखी चरतां धर्ममिति वाचानुभाष्य च, कन्याप्रदानमभ्यर्च्य 2. पहला, पूर्वकाल का, पूर्वोक्त 3. पुराना, पुरातन, प्राजापत्यो विधिः स्मृतः---मनु० 3 / 30, या, इत्यु---नः,-नम् बाड़, दीवार / सम--अग्र (वि०) क्त्वाचरतां धर्म सह या दीयतेऽथिने, स कायः दे० प्रागन,---आवीतम् यज्ञोपवीत, जनेऊ (जो दाहिने (अर्थात-प्राजापत्यः) पावयेत्तज्जः षट् षड़ वंश्यान्सकंधे के ऊपर से तथा बाई भुजा के नीचे से पहना हात्मना-याज्ञ० 160 2. गंगा और यमुना का हुआ हो जैसा कि श्राद्ध के अवसर पर),---आवीतिन, संगम, प्रयाग,-त्यम् 1. एक प्रकार का यज्ञ जो पुत्र -उपवीत (वि०) जनेऊ को दायें कंधे के ऊपर से हीन पिता अपनी लड़की के पुत्र को अपना उत्तरातथा बाईं भुजा के नीचे से पहनने वाला --मनु० / धिकारी नियत करने से पूर्व करता है 2. सर्जनात्मक साथ 2 मिति वाचानुभा मनु० 3 / 30 - कायः For Private and Personal Use Only Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 687 ) ऊर्जा या शक्ति, - त्या संन्यासी बनने से पूर्व अपनी / / --अत्ययः जीवन की हानि,-अधिक (वि. ) सारी संपत्ति को दान कर देना / 1. प्राणों से भी प्रिय, 2. सामर्थ्य और बल में श्रेष्ठ, प्राजिकः [ प्र-+-अज् +ठ ] वाज, पक्षी, श्येन / ----अधिनाथः पति,-अधिपः आत्मा,—अन्तः मृत्य, प्राजित, प्राजिन् (पुं०) [प्र+अज्-+-तृच्, प्र+अज् -अन्तिक (वि०) 1. घातक, नश्वर 2. जीवन भर -णिनि ] सारथि, चालक, रथवान्-शि० 1817 / रहने वाला, जीवन के साथ ही समाप्त होने वाला प्राजेशम् | प्रजेशो देवताऽस्य-प्रजेश। अण] रोहिणी नक्षत्र। 3. फांसी का दण्ड (कम् ) वध,--अपहारिन् (वि.) प्राज्ञ (वि.) (स्त्री०-ज्ञा, ज्ञी) [ प्रकर्षण जानाति इति घातक, प्राणनाशक,-अयनम् ज्ञानेन्द्रिय,-आघातः ---ज्ञा-+-क=प्रज्ञ, ततः स्वार्थे-अण् ] 1. मनीषी जोवन का नाश, जीवित प्राणी का वध-भर्तृ 0 3163, 2. बुद्धिमान्, विद्वान्, चतुर-किमुच्यते प्राज्ञः खलु -- आचार्यः राजा का वैद्य,-आद (वि.) घातक, कुमार: उत्तर० 4,- ज्ञः 1. बुद्धिमान् पुरुष तेभ्यः नश्वर, प्राणघातक, आबाधः जीवन को क्षति,-आयामः प्राज्ञा न बिभ्यति वेणी० 2 / 14, भग० 17.14 देवगुणों का मानस-पाठ करते हुए साँस रोकना,-ईशः, 2. एक प्रकार का तोता,-ज्ञा 1. बुद्धि, समझ 2. चतुर -ईश्वरः प्रेमी, पति-अमरु 67, भामि० 2 / 57, या समझदार स्त्री,-ज्ञी 1. चतुर या विदुषी स्त्री -ईशा, ईश्वरी पत्नी, प्रिया, गृहस्वामिनी,-उत्क्र 2. विद्वान् पुरुष की पत्नी 3. सूर्य की पत्नी का नाम / मणम्---उत्सर्गः आत्मा द्वारा शरीर को छोड़ देना, प्राज्य (वि०) प्र+अज् -!-पत्] 1. प्रचुर, पर्याप्त, बहल, मृत्यु,-उपाहारः भोजन, - कृच्छम् जीवन का खतरा, अधिक, बहुत तव भवतु विडोजाः प्राज्यवृष्टि: प्राणों को भय, घातक (वि०) जीवन का नाश प्रजामु-श० 7 / 34, रघु० 1362, शि० 14125 करने वाला,-घ्न (वि०) धातक, जीवन-नाशक,–छेदः 2. बड़ा, विशाल, महत्त्वपूर्ण-प्राज्यविक्रमाः-कु० वघ, हत्या,--त्याग: 1. आत्महत्या 2. मृत्यु,-दम् 2 / 18, अपि प्राज्यं राज्यं तणमिव परित्यज्य सहसा 1. पानी 2. रुधिर,-दक्षिणा प्राणों की भेंट,---दण्डः -गंगा० 5 / फांसी का दण्ड,----दयितः पति,-दानम् प्राणों की भेंट, प्राञ्जल (वि.) [प्र+अञ्ज+अलच्] निश्छल, स्पष्टवक्ता, किसी की जान बचाना,-द्रोहः किसी की जान पर खरा, ईमानदार, निष्कपट / आक्रमण,धारः जीवित प्राणी,-धारणम 1. भरणप्राञ्जलि (वि.) [प्रबद्धा अञ्जलि र्येन-प्रा० ब०]विनम्रता पोषण, जीवन का सहारा 2. जीवनशक्ति,-नायः और सम्मान के चिह्नस्वरूप जिसने अपने हाथ जोड़े 1. प्रेमी, पति 2. यम का विशेषण,-निग्रहः साँस रोकना, श्वासावरोध,--पति: 1. प्रेमी, पति 2. आत्मा, प्राञ्जलिक, प्राञ्जलिन् (वि.) [प्रांजलि+कन, इनि वा] -परिक्रयः जान जोखिम में डालना,--परिग्रहः जीवनदे० 'प्रांजलि' / धारण करना, जीवन या अस्तित्व रखना,-प्रद (वि०) प्राणः [ प्र+अन्+अच, घा वा] 1. सांस, श्वास जीवन देने वाला, जीवन बचाने वाला,-प्रयाणम् 2. जीवन का सांस, जीवनशक्ति, जीवन, जीवनदायी प्राणों का चला जाना, मृत्यु,---प्रियः 'प्राणों के समान वाय, जीवन का मलतत्त्व (इस अर्थ में प्रायः ब०व०, प्यारा प्रेमी, पति,---भक्ष (वि०) वायुपक्षी,-भाक्योकि प्राण गिनतो में पाँच है-प्राण, अपान, समान, स्वत् (पुं०) समुद्र,--भृत् (पुं०) प्राणधारी जन्तु व्यान और उदान)-प्राणरुपक्रोशमलीमसैर्वा-रध० -अन्तर्गतं प्राणभृतां हि वेद-- रघु० २।४३,----मोक्ष२०५३, 12054 3. जीवन के पाँच प्राणों में से पहला णम् 1. प्राणों का चला जाना, मृत्यु 2. आत्महत्या, (जिसका स्थान फेफड़े हैं) भग० 4 / 20 4. वाय, --यात्रा जीवन का सहारा, भरण-पोषण, जोविका अन्दर खींचा हुआ साँस 5. ऊर्जा, बल, सामर्थ्य, .....पिण्डपातमात्रप्राणयात्रां भगवतीम् --मा० १-योनिः शक्ति, जैसा कि 'प्राणसार' में 6. जीव या आत्मा (स्त्री०) जीवन का स्रोत,-रन्ध्रम् 1. मुंह 2. नथना, (विप० शरीर) 7. परमात्मा 8. ज्ञानेन्द्रिय,-मन ----रोधः 1. श्वासावरोध 2. जीवन को खतरा, 4 / 140 9. प्राणों के समान आवश्यक या प्रिय, प्रिय -विनाशः,-विप्लवः जीवन की हानि मृत्यु,-वियोग: व्यक्ति या पदार्थ, कोश-कोश: कोशवतः प्राणाः प्राणाः शरीर से आत्मा का विच्छेद, मृत्यु,---व्ययः प्राणों का प्राणा न भूपते:--हि०२।९२, अर्थपतेविमर्दको बहि- उत्सर्ग, --संयमः सांस का रोकना,-संशयः,-संकटम् श्चरा: प्राणाः-दश. 10. कविता का सत्, काव्य- -संदेहः जीवन को खतरा, जीवन को भय, भीषण मयी प्रतिभा, स्फूर्ति 11. महत्त्वाकांक्षा, श्वासग्रहण खतरा,-समन् (नपुं०) शरीर, सार (वि०) जीवन -जैसा कि महाप्राण और अल्पप्राण में 12 पाचन ही जिसका बल है, सामर्थ्य से युक्त, बलवान, बलिष्ठ 13. समय का मापक सांस 14. लोबान, गोंद / समक -गिरिचर इव नाग: प्राणसार (गात्रम्) बिभर्ति —अतिपातः जी वित प्राणी का वध, जान लेना, ! श० २१४,-हर (वि.) 1. प्राणघातक, जीवन का अप For Private and Personal Use Only Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 688 ) हरण करने वाला, घातक--पुरो मम प्राणहरो भवि- / प्रातस्तन (वि०) (स्त्री०-नी) [प्रातर्+टयु, तुट् ] ष्यसि, गीत०७ 2. फांसी,-हारक (वि०) घातक प्रातःकाल से संबद्ध, सुबह का / (कम) भयंकर विष / प्रातस्तराम् (अव्य०) [प्रातर+तरप्+आम् ] सुबह प्राणकः [ प्राण+के+क] 1. जीवित प्राणी, जीवधारी बहुत सवेरे ...प्रातस्तरां पतत्रिभ्यः प्रबुद्धः प्रणमन् रविम् जन्तु 2. लोबान / --भट्टि० 4 / 14 / प्राणथः [प्र-अन्+अथ ] 1. वायु, हवा 2. तीर्थ स्थान | प्रातस्त्य (वि०) [ प्रातर्+त्यक ] सुबह का, प्रभात 3. प्राणवारियों का स्वामी। कालीन / प्राणनः [ प्र--अन् ल्युट ] गला,-नम् 1. श्वासप्रश्वास, प्रातिः (स्त्री०) [प्र+अत् +-इन् ] 1. अंगूठे और तर्जनी सांस लेना 2. जीवन, जीवित रहना। के बीच का स्थान 2. भरना / प्राणन्तः [प्र+अन् -1-झ, अन्तादेशः ] वाय, हवा / प्रातिका | प्र+अत्ण्वु ल-+ टाप, इत्वम् ] जवा का प्राणन्ती [ प्राणन्त + ङीष् ] 1. भूख 2. सुबकना पौधा। 3. हिचकी। | प्रातिकूलिक (वि०) (स्त्री० .. की) [ प्रतिकूल +ठक् | प्राणाय्य (वि.) (स्त्री०--य्यी) [प्र--अन्+णि+ ___ विरुद्ध, विरीधी, प्रतिकूल रहने बाला / ण्यत् ] उचित, योग्य, उपयुक्त / | प्रातिकूल्यम् [प्रतिकूल-|-ध्या ] प्रतिकूलता, विरोध, प्राणित (वि.) [ अन्-+-क्त 1 जीवित, जीवधारी। शत्रुता, अननकलता, अमैत्रीपूर्णता / प्राणिन् (वि०) प्राण-+-इनि ] 1. साँस लेने वाला, जीने | प्रातिजनीन (वि० ) (स्त्री० को) [प्रतिजन+खा ] वाला, जीवित (पं०) जीवित या जीवधारी प्राणी, शत्रु का मुकाबला करने के लिए उपयुक्त / जीवित जंतु यथा-प्राणिनः प्राणवन्त: -- श० १११,मेघ० | प्रातिज्ञम् [ प्रतिज्ञा+अणु ] विचाराधीन विषय / 5 2. मनुष्य / सभ० अङ्गम किसी जन्तु का अंग, | प्रातिदेवसिक (वि.) (स्त्री० नी) | प्रतिदिवस / ठक | —जातम् प्राणीवर्ग, -तम् (मर्गों की लड़ाई, मेढ़ों प्रतिदिन होने वाला। की लड़ाई ) तीतर बटेर आदि जन्तुओं को लड़ा कर प्रातिपक्ष (वि०) (स्त्री०- क्षी) | प्रतिपक्ष+अण् ] जुआ खेलना, पीडा जन्तुओं के प्रति करता, --हिसा 1. विरुद्ध, प्रतिकल 2. शत्रुतापूर्ण, शत्रसंवन्धी। जीवन को क्षति, जीवित जन्तुओं को कष्ट देना, हिता प्रातिपक्ष्यम् [ प्रतिपक्ष ष्यत्र | शत्रुता, विरोधिता। जूता, बूट / प्रातिपद (बि०) (स्त्री० दी) [प्रतिपदा-+अण् ] प्राणीत्यम् [ प्रणीत +ध्या ] ऋण। 1. उपक्रम करने वाला 2. प्रतिपदा के दिन उत्पन्न, प्रातर् (अव्य.) [प्र-|-अत् +अरन् ] 1. तड़के, पौ फटने | 11 मारने प्रतिपदा से संबद्ध / पर, प्रभात काल में 2. कल तड़के, अगले दिन सुबह, प्रातिपदिकः / प्रतिपदा+ठा | अग्नि,-कम नाम शब्द कल प्रातः काल / सम० --अह न: दिन का प्रारम्भिक का परिपक्व रूप, विभक्ति चिह्न के जड़ने से पूर्व काल, दोपहर पहले, आशः प्रातःकालीन भोजन, संज्ञा शब्द-अर्थबदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् -पा० कलेवा---अन्यथा प्रातराशाय र्याम त्वामलं वयम् 1 / 2 / 45 / --- भट्टि० ८।९८,--आशिन् (पु०) जिसने कलेवा कर प्रातिपौरुषिक (वि०) (स्त्री०की ) [प्रतिपुरुष +ठक ] लिया है, या प्रातःकाल का भोजन कर लिया है, पौरुषेय मदानगी या पराक्रम से संबद्ध / -कर्मन् (नपुं०)-कार्यम् ---कृत्यम् (प्रातःकर्म / प्रातिभ (वि०) (स्त्री०--मी) [ प्रतिभा--अण ] प्रतिभा ---आदि) प्रातःकालीन कर्म,-कालः (प्रातःकाल:) या दिव्यता से संबंध रखने वाला,..... भम् प्रतिभा या प्रातः का समय,-गेयः चारण जिसका कर्तव्य किसी। विशद कल्पना / जमानत देने के लिए (प्रतिभू के रूप राजा या अन्य महापुरुष को उपयुक्त गान द्वारा प्रात: | में) खड़ा होना। काल जगाना है,-त्रिवर्गा (प्रातस्थिवर्गा) गंगा नदी, प्रातिभाव्यम् [प्रतिभू -ध्या / जमानत या प्रतिभूति -दिनम् दोपहर से पहले,-प्रहरः दिन का पहला पहर होना, जामिनपना, किसी कर्जदार को (कचहरी में) -भोक्तु (पुं०) कौवा,-भोजनम् प्रातः काल का उपस्थित करने का उत्तरदायित्व होना (क्योंकि वह भोजन, कलेवा, -संध्या (प्रातः संध्या) 1. प्रात: विश्वासपात्र है तथा कर्ज का रुपया वापिस कर देगा)। काल को संध्या या भजन,-समयः (प्रातः समयः) | प्रातिभासिक (वि०) (स्त्री०.--की) [ प्रतिभास-ठक] सवेरे का समय, प्रभानकाल,-सवः,- --सवनम् (प्रातः 1. जो केवल दिवाई तो दे पर वस्तुतः हो उसका सवः .-आदि) सोमयाग द्वारा प्रातःकालीन तर्पण, अभाव 3. वास्तविक 2. दिखाई मी देने वाली / -स्नानम् (प्रात: स्नानम् ) सवेरे ही नहाना,-होमः / प्रातिलोमिक (वि०) (स्त्री० की) [ प्रतिलोम+ठक ] (प्रात.मः) प्रातःकाल का यज्ञ / लाभ के विरुद्ध, विरोधी, शत्रुतापूर्ण, अरुचिकर / For Private and Personal Use Only Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 689 ) प्रातिलोम्पम् [प्रतिलोम+ध्यन |1. उलटापन, व्यत्क्रान्त | अस के साथ प्रयोग, प्रादः ष्यात्क इव जित: पुर या प्रतिकूल क्रम-मनु० 10113 2. शत्रुता, बिरोध, परेण -श०८, 12, क, भू और असन् के अन्तर्गत शत्रु जैसी भावना। भी देखिए) / सम० ---करणम् (प्रादुष्करणं) प्रकटीप्रातिवेशिकः, प्रातिवेश्मकः, प्रातिवेश्यकः [प्रतिवेश+ठक, करण, दृश्यमान करना,-भावः (प्रादुर्भावः)1. अस्तित्व प्रतिवेश्म+अग् + कन्, प्रतिवेश या +-कन् / में आना, उदय होना-वपुः प्रादुर्भावात्-काव्य० 10 पड़ोसी। 2. प्रकट या दृश्यमान होना, प्रकटीकरण, दर्शन प्रातिवेश्यः [प्रतिवेग-व्या 1 1. सामान्यत: पड़ोसी 3. सुनने के योग्य होना 4. पृथ्वी पर देवता का प्रगट 2. बराबर के घर में रहने वाला पड़ोसी (निरंतर- होना। गृहह्वासी-कुल्लू। प्रादुष्यम् | प्रादुस-+-यत् ] प्रकटीकरण / प्रातिशाख्यम् | प्रतिशाय भवः-ज्य ] व्याकरण का एक | प्रादेशः [प्र+दिश्+घञ , उपसर्गस्य दीर्घः] 1. अँगूठे और ग्रंथ जिसमें स्वरसंधि तथा अन्य वर्णपरिवर्तनों के तर्जनी के बीच का स्थान 2. स्थान, जगह, प्रदेश / नियमों का उल्लेख है जो कि वेद की किसी भी शाखा | प्रादेशनम् [प्र+आ+-दिश्+ल्य ट ] भेंट, दान / में पाये जाते है तथा जिसमें स्वराघात समेत उच्चारण प्रादेशिक (वि.) (स्त्री० --को) [प्रदेश+ठक् ] 1. पूर्व की पद्धति बतलाई गई है (प्रातिशाख्य चार है--एक दृष्टांत वाला 2. सीमित, स्थानीय 3. यथार्थ,-क: तो ऋग्वेद को शाफल शाखा का, दो यजुर्वेद की दोनों एक जिले का स्वामी। शाखाओं के लिए, तथा एक अथर्ववेद का)। प्रादेशिनी [प्रादेश-+-इनि+डीप् ] तर्जनी अंगुली। प्रातिस्विक (वि०) (स्त्रो०-को) [प्रतिस्व+ठक प्रादोष (वि.) (स्त्री०---षी), प्रादोषिक (वि.) (स्त्री० विशिष्ट, असामान्य, अपना निजी। -की) [प्रदोष ।-अण् ] +-प्रादोष+घञ्] संध्याप्रातिहन्त्रम् प्रतिहन्त- अण् ] बदला, प्रतिशोध / कालीन, संध्या से संबद्ध / प्रातिहारः, प्रातिहारकः, प्रातिहारिक: [ प्रतिहार |-अण, प्राधनिकम् [ प्रधनं संग्राम, तत्साधनमस्य प्रधन+ठक ] प्रातिहार+कन, प्रतिहार+ठक जादूगर, ऐन्द्र नाशकारक शस्त्र, कोई भी युद्धोपकरण / जालिक / प्राधानिक (वि.) (स्त्री०-की) [प्रधान +ठक] 1. अत्यंत प्रातीतिक (वि०) (स्त्री० को) [प्रतीति+ठा मान- श्रेष्ठ या प्रमुख, सर्वोपरि, अत्यन्त पूज्य 2: प्रधान से सिक, केवल मन में विद्यमान, काल्पनिक / संबद्ध या उससे उत्पन्न / प्रातीपः [ प्रतीप+अण् ] शन्तन का पैतृक नाम / प्राधान्यम् [प्रधान +ध्यन ] 1. प्रमुखता, सर्वोपरिता, प्रातीपिक (वि.) (स्त्री० की)[ प्रतीप-1-ठक ] 1. उलटा प्रभुत्व, उदग्रता 2. प्राबल्य, सर्वोच्चता 3. मुख्य या विरोधी, विपरीत। प्रधान कारण (प्राधान्येन, प्राधान्यात, प्राधान्यतः प्रात्यतिकः [प्रत्यन्त--ठक ] प्रत्यन्त का एक राजकुमार। 'मख्य रूप से' 'विशेष रूप से' तथा 'प्रधान रूप से' प्रात्ययिक (वि.) (स्त्री०-को) [प्रत्यय-:-ठक || भग०--१०।१९)। 1. भरोसे का, विश्वासपात्र 2. किसी ऋणी की प्राधीत (वि.) [प्र+अधि। इ+क्त ] भली-भांति पढ़ा विश्वासपात्रता के हेतु जमानत देने के लिए (प्रतिभू के ! लिखा, (ब्राह्मण की भांति) अत्यन्त शिक्षित / रूप में) खड़ा होना। प्राध्व (वि.) [प्रगतोऽध्वानम्-प्रा० स०] 1. दूर का, प्रात्यहिक (वि.) (स्त्रो०-को) प्रत्यह+ठक ] प्रतिदिन दूरवर्ती, दूर 2. झुका हुआ, रुचि रखता हुआ 3. कसा होने वाला, नित्य, प्रतिदिन / हुआ, बंधा हुआ 4. अनुकूल,-व: गाड़ी,-ध्वम् प्राथमिक (वि०) (स्त्री०-की)[प्रथम ठिक ] 1. प्रारं- (अव्य०) 1. अनुकूलता के साथ, रुचिपूर्वक, समनु भिक 2. पूर्व जन्म का, पूर्वकाल का, पहली बार रूपता के साथ, उपयुक्तता से युक्त-सभाजने मे होने वाला। भुजमूर्बबाहुः सव्येतरं प्राध्यमितः प्रयुक्ते-रघु० प्रायम्यम् [प्रथम+प्या] प्रथम होना, पहला उदाहरण, 13 / 43 2. टेलेपन से / प्राथमिकता। प्रान्तः [प्रकृष्टः अन्तः--प्रा० स०11. किनारा, हाशिया, प्रावक्षिप्पम् | प्रदक्षिण :-प्या / किसी व्यक्ति या पदार्थ झालर, मगजी, छोर-प्रान्तसंस्तीर्णदर्भाः-श० 417 के चारों ओर वायें से चल कर दायें को जाना, और 2. (ओष्ठ व आँख आदि का) किनारा-मा० 412, प्रदक्षिणा किये जाने वाले पदार्थ को सदैव अपनी दाई ओष्ठ०, नयन० 3. हृद, सीमा 4. अन्तिम किनारा, और रखना। सीमा,-यौवनप्रांत-पंच० 4 5. बिन्दु, नोक / प्रान्स् (अव्य०) [प्र. अद् ।-डसि | दिखाई देने के साथ, सम० - (वि.) पास ही रहने वाला,-दुर्गम् नगर स्पष्टतः, प्रकटरूप से, दृष्टि में (प्रायः भू, कृ और / के बाहर का, नगरांचल, किले के निकट होने वाला 87 For Private and Personal Use Only Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुचे, शक्ति पार 10 अशल, पहुँच ( 690 ) उपनगर,--विरस (वि०) अन्त में रसहीन,—शन्य सूख° आदि 2. पहँचना, प्राप्त करना 3. पहुँच, (वि०) दे० 'प्रांतरशून्य,-स्थ (वि.) जो सीमा पर आगमन 4. देखना, मिलना 5. परास, पहुँच 6. अनुरहता है। मान, अटकल 7. हिस्सा, अंश, ढेर 8. भाग्य, किस्मत प्रान्तरम् [प्रकृष्टम् अन्तरं व्यवधानं यत्र-प्रा० ब०] 9. उदय, पैदावार 10. किसी पदार्थ को प्राप्त करने 1. लंबा और सुनसान मार्ग, जनशून्य या वीरान की शक्ति (आठ सिद्धियों में से एक) 11. संघ, सड़क 2. छायारहित सड़क, निर्जन भूखण्ड 3. जंगल, समुच्चय, संहति 12. किसी योजना की सफल समाप्ति, उजाड़ 4. वृक्ष की कोटर / सम-शन्यः लंबी सूखागम। सम० आशा किसी चीज को प्राप्त सुनसान सड़क (जिस पर वृक्ष या छाया न हो)। करने की आशा (नाटकीय कथावस्तु के विकास का प्रापक (वि.) (स्त्री०--पिका) [प्र+आप+ण्वुल ] एक भाग)--उपायापायश ड्राभ्यां प्राप्त्याशा प्राप्ति 1. ले जाने वाला, पहुँचाने वाला 2. प्राप्त कराने संभवा-सा० द०६।। वाला, सामग्री से युक्त कराने वाला 3. स्थापित करने | | प्राबल्यम् | प्रबल+ष्यन ] 1. प्रभुता, सर्वोच्चता, बोलवाला, वैध बनाने वाला। बाला 2. शक्ति, बल, ताकत / प्रापणम् [प्र+आप+ल्युट ] 1. पहुँचना, बढ़ जाना / प्राबा (वा) लिकः [प्रवा (वा) ल+ठक | मंगों का व्यापार 2. प्राप्त करना, अधिग्रहण, अवाप्ति 3. ले आना, करने वाला। पहुँचाना, ले जाना 4. सामग्रो से युक्त करना। | प्रबोध (धि) कः [प्र आ-+-बुध ---णिचन एबुल, प्रबोध प्रापणिकः [प्र+आ+पण +किकन् ] सौदागर, व्यापारी / ठा] 1. तड़का, प्रभात 2. चारण जिमका कर्तव्य -आढ्यादिव प्रापणिकादजस्रम्- शि० 4 / 11 / / प्रातःकाल उपयक्त भजन गाकर अपने आश्रयदाता प्राप्त (भू० के० कृ०) [प्र+आप् +-बत ] 1. हासिल, राजा को जगाना है। अवाप्त, उपलब्ध, अजित 2. पहुँचा हुआ, निष्पन्न | प्राभञ्जनम् (प्रभंजन - अण् | स्वातिनक्षत्र / 3. घटित, मिला हुआ 4. (खर्च) उठाया हुआ, ग्रस्त, प्राभञ्जनिः [प्रभजन--- इञ1. हनुमान् का विशेषण सहन किया हुआ 5. पहुँचा हुआ, आया हुआ, उप- 2. भीम का विशेषण / स्थित 6. पूरा किया हुआ 7. उचित, सही 8. नियम | प्राभवम् प्रभु ---अण] सर्वोच्चता, सर्वोपरिता, प्रभुता / के अनुसार। सम० --अनुज्ञ (वि०) जाने के लिए | प्राभवत्यम् [प्रभवत् + प्यन ] सर्वोपरिता, अधिकार, सत्ता, अनुमत, बिदा होने के लिए जिसने अनुमति प्राप्त | शक्ति मन०८।४१२।। कर ली है,—अर्थ (वि.) सफल (र्थः) लब्ध पदार्थ, प्रभाकरः [प्रभाकर-। अण] 'प्रभाकर का अनुयायी' मीमांसा --अवसर (वि.) जिसे मौका या अवसर मिल चुका के आचार्य प्रभाकर के मत (प्राभाकर) का अनुयायो / है,-उवय (वि.) जो उन्नत हो गया है, या जिसने प्राभातिक (वि.) (स्त्री० की) [प्रभात+ठन प्रात:उन्नति अथवा उन्नत पद प्राप्त कर लिया है,-कारिन् काल संबंधी, प्रभातकालीन / (वि.) सही कार्य करने वाला,---काल (वि.) प्राभतम, प्राभतकम [प्र-+आ+भ-+ क्त, प्राभूत+कन्। 1. समयानुकूल, यथाऋतु, उपयुक्त दे० 'अप्राप्त काल, 1. उपहार, भेंट, किसी राजा या देवता को भेंट, 2. विवाह के योग्य 3. नियत, भाग्य में लिखा, (ल:) नजराना 2. रिश्वत / उचित समय, उपयुक्त या अनुकूल क्षण,-पंचत्व (वि०) | प्रामाणिक (वि.) (स्त्री० की) प्रमाण / ठक्] पांचों तत्वों में समाविष्ट अर्थात् मृत, तु० 'पंचत्व', 1. प्रमाण द्वारा सिद्ध, प्रमाण पर आधारित या आश्रित -प्रसव (वि.) जिसने बच्चे को जन्म दे दिया है, 2. शास्त्रसिद्ध 3. अधिकृत, विश्वसनीय प्रमाण ---बुद्धि (वि.) शिक्षण प्राप्त किया हुआ, प्रकाश संबधो,-क: 1. जो प्रमाण को मानता है 2. जो युक्त,--भारः बोझा ढोने वाला पशु, मनोरथ (वि.) नैयायिकों के प्रमाणों का ज्ञाता है, ताकिक 3. किसी जिसका मनोरथ पूरा हो गया है,--यौवन (वि.) व्यवसाय का प्रधान / तरुण, वयस्क, जवान,-रूप (वि०) 1. सुन्दर, मनोहर प्रामाण्यम् [प्रमाण--- व्या] 1. प्रमाण होना या प्रमाण 2. बुद्धिमान्, विद्वान् 3. उपयुक्त, समुचित, सुयोग्य, पर आश्रित होना 2. विश्वसनीयता, प्रामाणिकता -व्यवहार (वि.) वयस्क, बालिग जो कानन की 3. प्रमाण, साक्ष्य, अधिकार / दष्टि से अपने कार्यों को संभालने का अधिकारी हो, प्रामादिक (वि.) प्रमाद+ठक असावधानतावश, गलत, (विप० अवयस्क)- श्री (वि०) जिसकी उन्नति / दोषयुक्त, अशुद्ध - इति प्रामादिकः प्रयोगः या पाठः किसी और के द्वारा हुई हो। आदि। प्राप्तिः (स्त्री०) [प्र+आप+क्तिन् ] 1. प्राप्त करना, प्रामाद्यम् [प्रमाद+व्यञ] 1. त्रुटि, दोष, गलती, अशुद्धि, अधिग्रहण, उपलब्धि, अवाप्ति, लाभ- द्रव्य, यशः,°! 2. पागलपन, उन्माद 3. नशा, मादकता। For Private and Personal Use Only Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 691 ) प्रायः [प्र+अय / घा] 1. अपगमन, बिदायगी, जीवन प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्तत्रब यान्त्यापदः-- भर्त. से प्रयाण 2. आमरण अनशन, व्रत रखना, किसी 2 / 93 2. सर्वथा, अधिकतर, संभवतः, कदाचित इष्ट सिद्धि के लिए खाना पीना छोड़ कर धरना देना, ... तव प्राज प्रसादाद्धि प्रायः प्राप्स्यामि जीवितम् (प्रायः 'आस' 'उपविश' आदि शब्दों के साथ, दे० नी० --- महा। प्रायोपवेगन 3. बड़े से बड़ा भोग, अधिकांश अवस्था प्रावाणिक, प्रायात्रिक (वि.) (स्त्री० की) [ प्रयाण 1. अधिकता, बहतायत, प्रचुरता 5. जीवन की एक ! +ठक, प्रयात्रा-+ठक ] यात्रा के लिए आवश्यक दशा, विशे० (समास के अन्त में लग कर 'प्राय' का या उपयक्त / अनुवाद निम्नांकित होता है (क) अधिकांश में, बहुधा, प्रायिक (वि.) (स्त्री० की) / प्राय+ठक ] प्रचलित, अधिकतर, लगभग, तकरीबन,-पतनप्रायौ गिरने वाले, / सामान्य / मतप्रायः लगभग मरा हुआ, मरने से जरा कम, प्रायुद्धेषिन् (पुं०)| प्रायधि हेषते-पायधहेष-+-णिनि 1 तकरीबन मरा हुआ या (ख) से युक्त, समृद्ध, भरा | घोड़ा। हुआ, अत्यधिक, प्रचुर कष्टप्राय शरीरम् उत्तर 1, ! प्रायेण (अव्य०) [ करण] 1. अधिकतर, साधारण शालीप्रायो देशः पंच० 3, कमलमोदप्राया बनानिलाः नियम के अनुसार प्रायेणते रमणविरहेष्वङ्गनानां ...-उत्तर० 3 / 24, सुगन्ध से भरा हुआ या (ग) के ! विनोदाः-- ,मेघ, प्रायेण सत्यपि हितार्थकरे विधौ हि समान, मिलता-जुलता - वर्षशतप्रायं दिनम्, अमृत- श्रेयांसि लब्धुमसुखानि विनान्तरायः-- कि० 5 / 49, प्रायं वचनम् आदि। सम०-- उपगमनम्, उपवेशः कु० 3 / 28, ऋतु० 6 / 23 / / --उपवेशनम, उपवेशनिका, बिना खाये पीय धरना / प्रायोगिक (वि.) (स्त्री०-रम) [प्रयोग+ठक ] देना और इस प्रकार मरने की तैयारी करना, आमरण . भार इस प्रकार मरनका तयार पारला, आमरण 1. प्रयक्त 2. प्रयज्यमान। अनशन--- मया प्रायापवशन कृत विान पच० 4, . प्रारब्ध (भ० क० कृ०)| प्र---आ-+रभक्त आरंभ प्रायोपवेशनमतिर्नपतिर्बभव रघु० 8194, प्रायोप- किया गया. शुरू किया गया,-ब्धम् 1. जो शुरू किया वेशसदशं व्रतमास्थितस्य-वेणी० 3119, उपेत गया है, व्यवसाय 2. भाग्य, नियति / (वि०) बिना खाये रहकर मत्य की बाट जोहने प्रारब्धिः (स्त्री) | प्र+आ+रभ-+-क्तिन् ] 1. आरंभ वाला, उपविष्ट (वि०) आमरण अनशन करने वाला, शुरू 2. खूटा जिससे हाथी बांधा जाय, हाथी को -दर्शनम् सामान्य घटनातत्त्व / बांधने के लिए रस्सी। प्रायणम् प्रअय् ल्युट्] 1. प्रवेश, आरंभ, शुरू / प्रारम्भः / प्र-आ+रम् - घज मुम् ] आरंभ, शुरू 2. जोवनपथ 3. ऐच्छिक मृत्यु मनु० 9 / 323 --प्रारम्भऽपि त्रियामा तरुणयति निज नीलिमानं 4. शरण लेना। वनेषु - मा० 5 / 6, रघु० 1019, 18 / 49 2. व्यवप्रायणीय (वि०) प्र |-अय+अनीवर] परिचयात्मक, साय, काम साहसिक कार्य, आगमैः सदशारम्भः आरंभिक, दीक्षात्मक,-~-यम सोमयाग का प्रथम दिन / प्रारम्भसदशोदय:-रघु० 1215. फलानुमेयाः प्रारम्भाः प्रायशस् (अव्य०)[प्राय-- शस्] बहधा, अधिकतर, अधिकांश संस्काराः प्राक्तना इव...-२० / में, सर्वथा-आशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्यङ्गनाना प्रारम्भणम् प्र+आ+रम् -- ल्युट, मुम् ] आरम्भ करना, सद्य:पाति प्रणयिहृदयं विप्रयोगे रुणद्धि --- मेघ० 10 / / शुरू करना। प्रायश्चित्तम्, प्रायश्चित्तिः (स्त्री०) प्रायस्य पापस्य- प्रारोहः [प्ररोहण ] अंकुर, अंखुवा, किसलय, दे० चित्तं विशोधनं यस्मात् ब० स०, नि० सूट] प्ररोह / रशाध, पापानष्कृति, क्षातपूति, पाप से निस्तार। प्रार्णम् / प्रकृष्ट मणम्-प्रा० स०] मख्य ऋण / पाने के लिए धार्मिक साधना---मातुः पापस्य भरतः / प्रार्थक (वि.) (स्त्री०-थिका) | प्र-अर्थ-- एल] प्रायश्चित्तमिवाकरोत् रघु० 12 / 19 (प्रायो नाम पूछने वाला, मांगने वाला, प्रार्थना करने वाला, तपः प्रोक्त चितं निश्चय उच्यते, तपोनिश्चयसंयोगात् : निवेदन करने वाला, अनुरोध करने वाला, इच्छा प्रायश्चित्तमितीयंते हेमाद्रि) 2. संतोष, सुधार। करने वाला, कामना करने वाला,-क: आवेदक, प्रायश्चित्तिन, (वि.) [प्रायश्चित-इनि जो पापों का प्राथीं। परिशोध करे। . प्रार्थनम, ना [प्र+अर्थ ल्यट् ] 1. याचना, अनुरोध, प्रायस् (अन्य ) [प्रअय / असुन् | 1. अधिकतर, बहुधा, प्रार्थना, निवेदन ये वर्धन्ते धनपतिपूरः प्रार्थनादुःख साधारणतः, अधिकांशतः, प्राय: प्रत्ययमाधत्ते भाजः-भर्त० 3 / 47 2. कामना, इच्छा-लब्धावस्वगुणेषत्तमादरः कु०६।२०, प्रायो भत्यास्त्यजति काशा में प्रार्थना, या---न दुरवापेयं खल प्रार्थना-श० प्रचलितविभवं स्वामिन सेवमाना: मद्रा० 4 / 21, 1, उत्सपिणी खलु महतां प्रार्थना-श० 7, 7 / 2 For Private and Personal Use Only Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3. नालिश, आवेदन, विनती, प्रणय-प्रार्थना ...कदा- | प्रावास (वि.) (स्त्री० --) सी | प्रवास+अण् ] यात्रा चिदस्मत्प्रार्थनामन्तःपुरेभ्यः कथयेत्-श० 2 / सम० | संबंधी, यात्रा में करने या दिये जाने के योग्य / -.-भङ्गः प्रार्थना अस्वीकार करना, सिद्धिः इच्छा | प्रावासिक (वि०) (स्त्री० की) [प्रवास+ठक | यात्रा की पूर्ति प्रार्थनासिद्धिशंसिनः --रघु० 1142 / के लिए उपयुक्त। प्रार्थनीय (सं० कृ०) [प्र+अर्थ+ अनीयर ] 1. प्रार्थना प्रावीण्यम [प्रवीण-व्यञ ] चतुराई, कुशलता, प्रवीणता, या आवेदन किये जाने के उपयक्त 2. अभिलषणीय, दक्षता आविष्कृतं कथा प्रावीण्यं वत्सेन - उत्तर० 4, चाहने के योग्य,- यम् तृतीय या द्वापर युग / 15168 / प्रार्थित (भू० क० कृ०) [प्र+अर्थ+क्त ] 1. याचना प्रावृत (भू० क० कृ०) [प्र+आ+वृक्त ] घिरा हुआ, किया हुआ, प्रार्थना किया हआ, पुछा हआ, आवेदन घेरा हुआ, ढका हुआ, परदों वाला,--तः, तम् धूंधट, किया गया 2. अभिलषित, इच्छित 3. आक्रान्त, शत्रु बुरका, चादर (स्त्री० भी)। के द्वारा विरोध किया गया-रघु. 9 / 56 4. मारा प्रावृतिः (स्त्री०)प्र+आ+व+क्तिन् ] 1. घेरा, बाड़, गया, चोट की गई (दे० प्रपूर्वक अर्थ)। ___ आड़ 2. आध्यात्मिक अन्धकार / प्राथिन् (वि.) [प्र+अर्थ+णिनि ] 1. मांगने वाला, | प्रावृत्तिक (वि०) (स्त्री० -की) [ प्रवृत्ति+ठक गौण, प्रार्थना करने वाला 2. कामना करने वाला, इच्छा ____ अप्रधान, . कः दूत / करने वाला-मन्दः कवियशःप्रार्थी गमिष्याम्यपहास्य- | प्रावृष (स्त्री०) प्र+आ+वृष्+क्विप्] वर्षा ऋतु, ताम्— रघु० 1 // 3 / मौसमी हवा, वर्षा काल (आषाढ़ और श्रावण काल प्रालम्ब (वि.) [ प्र+आ+लम्ब+अच् ] 1. झूलता का महीना)-कलापिनां प्रावृषि पश्य नृत्यम् रघु० लटकता हुआ--प्रालम्वद्विगुणितचामरप्रहास:-वेणी० 6 / 51, 19 // 37, प्रावट प्रावडिति प्रवीति शय्धी: क्षारं २।२८,-बः 1. मोतियों का बना आभूषण 2. स्त्री क्षते प्रक्षिपन्-मृच्छ० 5 / 18, मेघ० 115 / सम० का स्तन,-बम् छाती तक लटकने वाला कंठहार | - अत्ययः (प्रावृडत्ययः) वर्षा ऋतु का अन्त,—काल: -प्रालंबमुत्कृष्य यथावकाशं निनाय साचीकृतचारुवक्त्रः (प्रावृट्काल:) वर्षा ऋतु। - रघु०६।१४, मुक्ताप्रालंबेषु का० 52 / प्रावृषः,-षा [ प्र--आ- वृष-|-क, प्रावृष---टाप् ] बर्षा प्रालम्बकम् [प्रालम्ब+कन् ] दे॰ 'प्रालम्ब' / ऋतु, वर्षा काल / प्रालम्बिका प्रालम्ब+कन्-टाप, इत्वम् | सोने का हार। प्रावृषिक (वि०) (स्त्री० - को) [ प्रावृष-+ठञ् ] वर्पा प्रालेयम् [प्र+ली--ज्यत्-प्रलेय+अण् ] हिम, कुहरा, ऋतु में उत्पन्न,-कः मोर / ओस, तुषार-ईशाचलप्रालेयप्लवनेच्छया- गीत० 1 | प्रावृषिज (वि.) [प्रावृषि जायते जन्+3, अलुक् प्रालेयशीतमचलेश्वरमीश्वरोऽपि (अधिशेते)-शि० स० ] वर्षा ऋतु में उत्पन्न / 4 / 64, मेघ० 39 / सम० -अद्रिः, -शैलः हिमा प्रावृषेण्य (वि.) [प्रावृष+एण्य ] वर्षा ऋतु में उत्पन्न, च्छादित पहाड, हिमालय ... मेघ०५७ -- अंशु, कारः, वर्षा ऋतु से संबद्ध - सा कि शक्या जनयितुमिह प्राव--- रश्मि 1. चन्द्रमा 2. कपूर, - लेशः ओला। षेण्यन ... वारिदेन भामि० 1130, 416, रधु० प्रावटः [प्र+अव+अट्-+-अच् ] जौ। 1 / 36 2. वर्षा ऋतु में देय (ऋण आदि)---ण्यः प्रावणम् [प्र+आ+वन्+घ ] फावड़ा, खुरपा, कुदाल / 1. कदम्ब वृक्ष 2. कुटज वृक्ष,--ण्यम् बहुसंख्यकता, प्रावरः [ प्र+आ++अप] 1. बाड़, घेरा 2. (हेम० बाहुल्य, प्राचुर्य / ___ के मतानुसार) उत्तरीय वस्त्र 3. एक देश का नाम / | प्रावृष्यः [प्रावृष्-यत् ] 1. एक प्रकार का कदंब का वृक्ष प्रावरणम् [प्र+आ+-+ ल्युट ] ओढ़नी, चादर विशे- 2. कुटज वृक्ष, - ष्यम् वैदूर्यमणि, नीलम / षतः कोई उत्तरीय वस्त्र, चोंगा, लबादा या दुपट्टा / प्रायेण्यभ् (नपुं०) बढ़िया ऊनी चादर / प्रावरणीयम् [प्र+आ+व+अनीयर् ] उत्तरीय वस्त्र। प्रावेशन (वि.) (स्त्री० - ना) | प्रवेशन--अण् प्रवेश प्रावरः [प्र+आ+व-घा ] 1. उत्तरीय वस्त्र, चोंगा, करने पर जो दिया जाय या किया जाय (किसी घर लबादा 2. एक जिले का नाम / सम० --कीटः दीमक, में या रंगमंच पर)। पतंग / प्रावण्यम्, प्राणाज्यम् प्रव्रज्यायण, पक्षे उत्तरपदप्राचारफः [प्रावार+कन् ) उत्तरीय वस्त्र, चोगा या वृद्धिश्च | धार्मिक साधु या सन्यासी का जीवन / लबादा- यदीच्छसि लम्बदशाविशालं प्रावारकं सूत्रश- प्राशः / प्र+अश्+घा ] 1. खाना, स्वाद चखना, तहि युक्तम् ---मृच्छ० 8 / 22, जातीकुसुमवासितः / निर्वाह करना, पुष्ट होना मनु० 11 / 143, धूम प्रावारकोऽनुप्रेषितः मृच्छ०१।। आदि 2. आहार, भोजन / / प्रवारिकः [प्रावार+ठक] उत्तरीय वस्त्रों का निर्माता। प्राशनम् [प्र+अश्+ ल्युट ] खाना, पुष्ट होना, स्वाद For Private and Personal Use Only Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खता। चखना 2. खिलाना, स्वाद चखाना-मनु० 2 / 29, / / भूमिका विषयक-जैसा कि 'प्रास्ताविक विलास' में 3. आहार, भोजन / (भामिनी--विलास का प्रथम या प्रारंभिक अंश) प्राशनीयम् | प्र---अश्+अनीयर ] आहार, भोजन / प्रास्ताविक बचनम् भूमिका में दिया गया विवरण प्राशस्त्यम् [प्रशस्त-व्यञ ] श्रेष्ठता, स्तुत्यता, प्रमु- 2. ऋतु के अनुकूल, अवसरानुसार, सामयिक 3. संगत, प्रसंगानुकूल, (प्रस्तुत विषय से) संबद्ध---अप्रास्ताप्राशित (भू० क० कृ०) [ प्र---अश् + क्त ] खाया हुआ, विकी महत्येषा कथा-मा०२। चखा हुआ, उपभुक्त,--तम् मृत पुरखाओं के पितरों को प्रास्तुत्यम् [ प्रस्तुत-व्यञ ] विचार विमर्शका विषय उदकदान और पिण्डदान, पितरों के और्ध्वदेहिक होना। संस्कार-प्राशितम् पितृतर्पणम् मनु० 3174 / | प्रास्थानिक (वि०) (स्त्री०-की) [प्रस्थान+ठ ] प्राश्निकः [ प्रश्न +ठक ] 1. परीक्षक 2. मध्यस्थ, विवा- प्रयाण से संबद्ध या बिदा के अवसर के उपयुक्त-रघु० चक, न्यायाधीश अहो प्रयोगाभ्यन्तरः प्राश्निकः 2170 2. बिदा के अनुकूल / -~मालवि०१। प्रास्थिक (वि.) (स्त्री०-की) [प्रस्थ--ठण ] 1. तोल प्रासः [ प्र+अस् / घन ] 1. फेंकना, डालना, (तीर) ___ में एक प्रस्थ 2. एक प्रस्थ में मोल लिया हआ छोड़ना 2. बी, भाला, फलकदार अस्त्र (जिसमें 3. प्रस्थभर तोल का 4. एक प्रस्थ बीज से बोया गया। फल लगाया हुआ हो)। मनु०६।३२, कि० 1614 / प्रास्त्रवण (वि.) (स्त्री०-णी) [प्रस्रवण+अण] झरने प्रासकः [ प्रास+कन् ] 1. बी, भाला, या फल लगा हुआ | से उत्पन्न स्रोत से निकला हुआ। अस्त्र 2. पासा। प्राहः [प्रकर्षण 'आह' शब्दो यत्र--प्रा० ब०] नृत्यकला प्रासंगः [प्र-+ सञ्- घन , उपसर्गस्य दीर्घः ] बलों के की शिक्षा। लिए जुआ। प्राहः [प्रथमं च तदहश्च, कर्म० स०, टच, अह्लादेशः, प्रासनिक (वि० ) ( स्त्री० - को)[ प्रसंग-ठक ] णत्वम् ] दोपहर से पहले का समय / 1.घनिष्ट संयोग से उत्पन्न 2. संयुक्त, सहज 3.प्रसंगा- | प्रा प्राहुतन (वि०) (स्त्री०-नी) [प्राहु-+-ट्यु, तुट, नि: नकल, आकस्मिक, आपाती, यदाकदा होने वाला एत्वम् ] मध्याह्न से पूर्व होने वाला, या मध्यानपूर्व ---प्रासङ्गिकीनां विषयः कथानाम् - उत्तर० 2 / 6 संबंधी। #. संबंधानुकूल. ऋत्वनुकूल, अवसरानु कूल 6. उपा- प्राहेतराम्-तमाम् (अव्य०) [प्राह +तरप् (तमप्), ख्यान विषयक। आम्, नि० एत्वम् ] प्रातःकाल, बहुत सवेरे / प्रासङ्ग्यः [प्रासंग-+-यत् | हल में जतने वाला बैल। प्रिय (वि.) [प्री-क] (म० अ०--प्रेयस, उ० अ० प्रासादः [प्रसीदन्ति अस्मिन्-प्रसद्+घञ, उपसर्गस्य -प्रेष्ठ ] 1. प्रिय, प्यारा, पसन्द आया हुआ, रमणीय, दीर्घः ] 1. महल, भवन, गगनचुंबी विशाल भवन - अनुकूल बन्धुप्रियाम् कु० 1126, रघु० 329 . भिक्षुः कुटीयति प्रासादे- सिद्धा०, मेघ० 64 2. राजभवन 3. मंदिर का देवालय / सम०--अङ्गनम 2. सुहावना, रुचिकर-तामूचतुस्ते प्रियमप्यमिथ्याम् - रघु० 1416 3. चाहने वाला, अनुरक्त, भक्त किसी महल या मन्दिर का आंगन,----आरोहणम् महल -प्रियमण्डना ...श. 4 / 9, प्रियारामा वैदेही-उत्तर में जाना या प्रविष्ट होना, कुक्कुटः पालतू कबूतर, २.-.यः 1. प्रेमी, पति-स्त्रीणामाद्यं प्रणयवचनं -तलम् महल की समलत चपटी छत,---पृष्ठ: महल विभ्रमो हि प्रियेष- मेघ० 28 2. एक प्रकार का की चोटी पर बना छज्जा,-प्रतिष्ठा मन्दिर की मृग,--या प्रिया (पत्नी), पत्नी, स्वामिनी-प्रिये प्रतिष्ठा, या अभिमन्त्रण,--शायिन् (वि.) महल चारुशीले प्रिये रम्यशीले प्रिये-गीत० 10 2. स्त्री में सोने वाला, शृङ्गम् किसी महल या मन्दिर का 3. छोटी इलायची 4. समाचार, संसूचन 5. खींची कलस या मीनार, कंगूरा। हुई मदिरा 6. एक प्रकार का चमेली (का फूल), प्रासिकः [ प्रास् +-ठक् ] भाला रखने वाला, बर्ची-धारी। -यम् 1. प्रेम 2. कृपा, सेवा अनग्रह--प्रियमाचरितं प्रासूतिक (वि.) (स्त्री०-का) प्रसूति+ठक] प्रसव लते त्वया मे विक्रम०-१११७, मत्प्रियार्थयियासोः ___ से संबंध रखने वाला, बच्चे के जन्म से संबद्ध / मेघ० 22, प्रियं मे प्रियं मे, 'मेरी अच्छी सेवा की प्रास्त (भू० क० कृ०) [प्र+अस्+क्त ] 1. फेंका गया, गई'...-भग० 1123, पंच० 11365,193 3. सुखद (बछी भाला आदि) चलाया गया, डाला गया, छोड़ा समाचार-रघु०१२।९१, प्रियनिवेदयितारम् श० 4 .. गया 2. निर्वासित किया गया, बाहर निकाला गया। 4. आनन्द, सुख,-यम् (अव्य०) बड़े सुहावने या प्रास्ताविक (वि०) (स्त्री०-की)| प्रस्ताव-+ठक ] प्रस्ता- रुचिकर ढंग से। सम० ...अतिथि (वि.) आतिथेय, वना का काम देने वाला, प्रस्तावना या परिचय, | अतिथिसत्कार करने वाला, अपायः किसी प्रिय वस्तु For Private and Personal Use Only Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 694 ) का अभाव या हानि,-अप्रिय (वि.) सुखद और ! --वादिका एक प्रकार का वाद्ययंत्र,---वादिन् (वि०) दुःखद, रुचिकर और अरुचिकर (भावनाएँ) (यम) कृपा से युक्त तथा मधुर शब्द बोलने वाला, चापलूस सेवा और अनिष्ट, अनुग्रह और क्षति,... अम्बुः म --सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः... --रामा०, का वृक्ष, अहं (वि.) 1. प्रेम या कृपा का अधिकारी ---श्रवस् (पुं०) कृष्ण का विशेषण, संवासः प्रिय उत्तर० 3 2. मिलनसार (हः) विष्णु का नाम,--असु, व्यक्ति का सत्संग, सखः प्रिय मित्र, (स्त्री०-खी) (वि०) जीवन का प्रेमी,-आख्य (वि.) अच्छा समा- सहेलो, अन्तरंग सहेली (किसी स्त्री की)- सत्य चार सुनाने वाला,---आख्यानम् रुचिकर समाचार, (वि.) 1. सत्य का प्रेमी 2. सत्य होने पर भी प्रिय, ----आत्मन् (वि०) मिलनसार, सुखद, रुचिकर,-उक्तिः संदेशः 1. प्रिय समाचार, प्रेमी का समाचार (स्त्री०)-उवितम् कृपा से युक्त या मैत्रीपूर्ण वक्तता, 2. 'चपक' नाम का वृक्ष,-समागमः अपने प्रिय व्यक्ति चापलसी के वचन--,उपपत्तिः (स्त्री०) आनन्दप्रद या (या पदार्थ) से मिलन, सहचरी प्यारी पत्नी, सुखद घटना, - उपभोगः किसी प्रेमी या प्रेयसी के साथ ... सुहृद् (पु०) प्रिय या प्राणप्रिय मित्र, हार्दिक मित्र, रंगरेउियाँ-रघु० १२।२२,-एषिन् (वि०) 1. भला --स्वप्न (वि०) सोने का प्रेमी रघु० 1681 / / चाहने वाला, सेवा करने का इच्छुक 2. मित्रता से युक्त, प्रियंवद (वि०) [प्रियं वदति प्रिय+वद्--खच्, मुम्] स्नेही,-कर (वि०) सुख देने वाला या पैदा करने वाला, मधुरभाषी, प्रिय बोलने वाला, प्यारी बातें करने -कर्मन् वि०)अनुग्रह पूर्वक या मित्रता से युक्त व्यवहार वाला, मिलनसार, कु० 5 / 28, रघु० 3364, दः करनेवाला, कलत्रः अपनी पत्नी से प्रेम करनेवाला पति, 1. एक प्रकार का पक्षी 2. एक गन्धर्व का नाम / अपनो भायो को अत्यन्त चाहन बाला, काम (वि०) प्रियकः प्रिय+कन 1. एक प्रकार का हरिण-शि० 4 / 32 मित्रवत् व्वहार करनेवाला,सेवा करने का इच्छुक, कार, 2. नीप नामक वृक्ष 3. प्रियंग नाम को लता 4. मधु-कारिन वि.)अनुग्रह करने वाला,भला करने वाला,-कृत। मक्वी . एक प्रकार का पक्षी 6. जाफरान, केसर, (०)भला करने वाला, मित्र, हितैषी,--जनः प्रेमपात्र या कम् असन वृक्ष का फूल शि० 8 / 28 / प्यारा व्यक्ति, जानिःअपनी पत्नीको अत्यन्त प्यार करने प्रिय डुर, प्रियङ्करण, प्रियङ्कार (वि०) प्रिय+कृ-- खच्, वाला पति,-तोषणः एक प्रकार का रतिवन्ध, मैथन का ख्युन् अण् वा, मुम् 1. अनुग्रह दर्शाने वाला, कृपा करने आसन विशेष,-दर्श (वि०) देखने में सुन्दर, ---दर्शन बाला, स्नेह करने वाला,-प्रियदरो में प्रिय इत्यनन्दत् (वि०) देखने में सुहावना, सुन्दर दर्शनों वाला, सुन्दर, - रघ० 14148 2. रुचिकर 3. मिलनसार / मनोहर, खूबसूरत-अहो प्रियदर्शनः कुमार:-उत्तर० 5, प्रियङगुः | प्रिय-गम् -- कु] एक लता का नाम (कहते है रघु० 1147, श० 3 / 11, (नः) 1. तोता 2. एक प्रकार कि यह लता स्त्रियों के स्पर्श मात्र से खिल उठती है) का छहारे का वृक्ष 3. गन्धों के राजा का नाम-रघु० प्रियङ्गश्यामाङ्गप्रकृतिरपि मा० 3.9 (निम्नांकित ५।५३,--दशिन् (वि०)राजा अशोक का विशेषण,-देवन श्लोक में उन सभी कविसमयों को एकत्रित कर (वि० जूआ खेलने का शौकीन,-धन्वः शिव का विशेषण, दिया गया है जहाँ विशिष्ट परिस्थितियों में वृक्षों के --पुत्रः एक प्रकार का पक्षो,-प्रसादनम् पति को प्रसन्न फूलों का आना बतलाया गया है पादापातादशोककरना,-प्राय (वि०) अत्यन्त कृपाल या सुशील-उत्तर० स्तिलककुरबको वीक्षणालिङ्गनाभ्यां, स्त्रीणां स्पति 212, (यम् )भाषा में वाक्पटुता,--प्रायस् (नपुं०) बहुत प्रियङविकसति बकुल: सीधगण्डपसेकात्। मन्दारौ ही रोचक बक्तता, जैसा कि एक प्रेमी का अपनी प्रेयसी नर्मवाक्यात पटुमदहसनाच्चम्पको वक्त्रवातात् चूतो के प्रति कथन,-प्रेप्सु वि०) अपने अभीष्ट पदार्थको प्राप्त गीतान्नमेरुविकसति च पुरी नर्तनात् कणिकारः / ) करने की इच्छा करने वाला,----भावः प्रेम की भावना 2. बड़ी पीपल, ग (नपुं०)। जाफ़रान, कैसर / उत्तर०६।३१,-भाषणम् कृपास युक्त या माचकर शब्द, प्रियतम (वि.) प्रियतमप] अत्यंत प्रिय, सबसे अधिक ..-भाषिन् वि०) मधुरभाषी, मण्डन (वि०) अलंकारों प्यारा,-मः प्रेभी, पति-शिप्राधातः प्रियतम इव का प्रेमी--श० ४।९-मधु (वि०) मदिरा का शौकीन, प्रार्थनाचाटकार:-मेप० ३११७०,-मा पन्नी, स्वामिनी, (धुः) बलराम का विशेषण-,रण (वि.) बहादुर, शूर- बल्लमा, प्रेयसी। वीर,-वचन (वि०) रोचक तथा कृपापूर्ण शब्द बोलने प्रियतर (वि.) [ प्रिय-त अधिक प्रिय, अपेक्षाकृत वाला (नम्) कृपा से युक्त, प्रोत्साहक एवं मधुर शब्द प्यारा। ---विक्रम० 2112, -बयस्यः प्रिय मित्र,-वर्णों प्रियंगु प्रियता,-त्वम् | प्रिय-1-तल + टाप, प्रिय। स्व] 1. प्रिय नामक पौधा,---वस्तु (नपुं०) प्यारी चीज़, वाच होना, प्यार 2. प्रेम, स्नेह / (वि०) कृपा से युक्त शब्द बोलने वाला. प्यारी बातें प्रियम्भविष्णु, प्रियम्भावुक (वि०) [प्रिय---भ-खिष्णच करने बाला, (स्त्रो०) कृपामय और रोचक शब्द, खुका वा, मम स्नेह का पात्र, अत्यंत प्रिय। For Private and Personal Use Only Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रियालः [प्रिय-अल+अच्] पियाल नामक वृक्ष, दे० / - बच्चस् (नपुं०),-वचनम् मैत्री से भरी हुई या 'पियाल',-ला अंगूरों की बेल / कृपापूर्ण वाणी, वर्धन (वि.) प्रेम या हर्ष को बढ़ाने प्रो। (क्रया उभ० प्रीणाति, प्रोणीते प्रीत) 1. प्रसन्न करना, वाला (नः) विष्णु का विशेषण, वावः मित्रवत् खुश करना, सन्तुष्ट करना, आनन्दित करना-प्रीणाति विचारविमर्श,-विवाहः प्रीति या प्रेम के कारण होने यः सुचरितः पितरं स पुत्रः-भत० 2 / 68, सस्नुः वाला विवाह, प्रेम-संबंध, (जो केवल प्रेम पर आषापितन पिप्रियुरापगासु-भट्टि 3 / 38, 5 / 104, 7164 रित हो),- श्राहम पितरों के सम्मानार्थ किया जाने 2. प्रसन्न होना, खुश होना-कच्चिन्मनस्ते प्रीणाति बाला औंलदैहिक संस्कार या श्राद्ध। वनवासे-महा० 3. कृपामय बर्ताव करना, अनुग्रह घे (म्वा० आ०-प्रवते) 1. जाना, चलना-फिरना 2. कूदना, दर्शाना 4. प्रसन्न या हंसमुख रहना-प्रेर० (प्रीण- उछलना। यति-ते) प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना। प्रषi (म्वा० पर०-प्रोषति, प्रष्ट) 1. जलाना, खा पी Hi (दिवा० आ०) (प्रीयते-'प्री' क्रिया का कर्मवाच्य जाना 2. भस्म करना ii (क्रया. पर०-पुष्णाति) का रूप) सन्तुष्ट या प्रसन्न होना, तृप्त होना--प्रका- 1. आई या तर होना 2. उडेलना, छिड़कना 3. भरना / ममप्रीयत यज्वनां प्रिय:--शि० 1217, रघु० 15 / 30, पृष्ट (भू० क. कृ०) [पृष+क्त] जलाया हुआ, खाया१९।३० याज्ञ० 10245 2. स्नेह करना, प्रेम करना पोया हुआ, जला कर राख किया गया। 3. सहमति या मंजूरी देना, सन्तुष्ट होना। पुष्यः [अप् + क्वन्] 1. वर्षा ऋतु 2. सूर्य 3. पानी की प्रीण (वि०) प्री+क्त, तस्वनः] 1. प्रसन्न, सन्तुष्ट, बूंद - सिद्धा०। तृप्त 2. पुराना, प्राचीन 3. पहला / | प्रेक्षक: [प्र. ईक्ष +ण्वुल] दर्शक, तमाशबीन, देखने वाला, प्रोणनम् [प्रीण + ल्युट] 1. प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना दृश्य ---द्रष्टा / 2. जो प्रसन्न या सन्तुष्ट करता है। प्रेक्षणम् [प्र--ई-ल्युट] 1. देखना, दृष्टि डालना प्रीत (भू० क० कृ०) [प्री+क्त, नत्वाभावः! प्रसन्न, खुश, 2. दृश्य, दृष्टि, दर्शन 3. आँख -चकित हरिणी प्रेक्षणा प्रहृष्ट, आनन्दित --प्रीतास्मि से पुत्र वरं वृणीष्व -मेघ०८२ 4. तमाशा, सार्वजनिक दृश्य, दिखावा / ---रघु० 2 / 63, 1981, 12 / 94 2. आनंदयुक्त, सम-कटम् आंख का डेला / आह्लादित, हर्षपूर्ण --मेघ० 4 3. सन्तुष्ट . प्रिय, प्रेक्षणकम् [प्रेक्षण+कन् ] दिखावा, तमाशा। प्यारा 5. कृपाल, स्नेही। सम०--आत्मन,--चित् / प्रेक्षणिका [प्र+ईक्ष +-वल, इत्वम् ] तमाशा देखने की - मनस् (वि०) हृदय से खुश, मन से आनन्दित / / शौक़ीन स्त्री। प्रीतिः (स्त्री०) प्री+कितन। 1. प्रसन्नता, आह्लाद, प्रेक्षणीय (वि.) [प्र+ईक्ष+अनीयर 1 1. दर्शनीय, संतोष, खुशी, आनंद, हर्प, तृप्ति -भवनालोकनप्रीतिः विचारणीय, निगाह डालने के योग्य 2. देखने के लिए कु० 2 / 45, 6 / 21 रघु० 2 / 51 मेघ० 62 2. अनु उपयुक्त, मनोहर, सुन्दर-मेघ० 2, रधु० 1419 ग्रह, कृपालुता 3. प्रेम, स्नेह, आदर--मेघ० 4 / 16, 3. विचारणीय, ध्यान देने के योग्य / रघु० 1157, 12 / 54 4. पसन्द, चाह, खुशी, व्यसन प्रेक्षणीयकम् [प्रेक्षणीय+कन् ] दिखावा, दृश्य, तमाशा चूत मगया° 5. मित्रता, सौहार्द 6. कामदेव की -शि० 1083 / एक पत्नी का नाम, रति की सौत (सपत्नी संजाता प्रेक्षा [प्र+ई+अ+टाप् ] 1. दृष्टि डालना, देखना, रत्याः प्रीतिरिति श्रुता)। सम-कर (वि.) तमाशा देखना 2. अवलोकन, दृश्य, दृष्टि, दर्शन प्रेम या अनुराग उत्पन्न करने वाला, रुचिकर,-कर्मन् 3. तमाशवीन होना 4. कोई सार्वजनिक तमाशा, (नपुं०) मंत्री या प्रेम का बर्ताब, कृपापूर्ण कार्य,--दः दिखावा, दष्टि 5. विशेप कर थियेटर का तमाशा, नाटक में विदूषक या मसखरा,-- दत्त (वि०) स्नेह नाटकीय प्रदर्शन, अभिनय 6. बुद्धि, समझ 7. विमर्श, के कारण दिया हआ (त्तम) स्त्री को दी हुई संपत्ति, विचारणा, पर्यालोचन 8. वृक्ष की शाखा। सम० विशेषकर विवाह के अवसर पर सास या श्वसुर द्वारा, -अ (आ) गारः, - रम्, गृहम, स्थानम् 1. थिये-दानम्,-दायः प्रेमोपहार, मित्रता के नाते दिया गया टर, नाट्यशाला, रंगशाला 2. मन्त्रणा-भवन-समाजः उपहार --तदवसरोऽयं प्रीतिदायस्य–मा० 4, रघु० श्रोता. दर्शकों की भीड़, सभा। 15168, --धनम् प्रेम या सौहार्द के कारण दिया प्रेमावत् (वि.) [प्रेक्षा+मतुप् ] विचारशील, बुद्धिमान, हुआ धन,-पात्रम् प्रेम की वस्तु, कोई प्रिय व्यक्ति, / विद्वान् (पुरुष)। या वग्न, --पूर्वम, - पूर्वकम (अव्य.) कृपा के साथ, प्रेक्षित (भू० क० कृ०) [प्र.1-ईक्ष् +क्त देखा हुआ, विचार स्नेहपूर्वक, मनस् (वि०) मन में खुश, प्रसन्न, आनं- किया हुआ, नजर डाला हुआ, निगाह में से निकाला दित, –यु(वि०) प्रिय, स्नेही, प्यारा-कि० 1 / 10, हुआ, अवलोकन किया हुआ,-तम्, रूप, छवि, झलक / For Private and Personal Use Only Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम-खम् [प्र+इत् +घञ् ] झूलना, पेंग (झोटा) प्रत्य (अव्य०) [प्र+5+क्त्वा+ ल्यप् ] (इस संसार से) लेना। विदा होकर मरने के पश्चात दूसरे लोक में -न च ण (वि०) [प्र+इल + ल्युट् ] घूमन वाला, इधर तत्प्रेत्य नो इह--भग० 17 / 28, मनु० 2 / 9,26 / उधर फिरने वाला, प्रविष्ट होने वाला--भट्टि सम-जातिः (स्त्री०) परलोक की स्थिति,-भावः 9 / 106,- 1. झूलना 2. झूला 3. नायक, सूत्रधार / मरने के पश्चात् आत्मा की अवस्था। आदि पात्रों से शून्य एकांकी नाटक-सा० द. द्वारा प्रेत्वन् (पुं०) [प्र+इ+क्वनिप, तुकागम: ] 1. वायु दी गई परिभाषा-गर्भावमर्शरहितं प्रेसणं हीननायकम, 2. इन्द्र का विशेषण / असूत्रधारमेकाङ्कमविष्कम्भ प्रवेशकम्, नियुद्धसंफोटयुतं प्रेसा [प्र+आप+सन् +अ+टाप् ] 1. प्राप्त करने की सर्ववृत्तिसमाश्रितम् / 547, उदा० 'वालिवध'। इच्छा 2. इच्छा / प्रेमा [प्र+इंख्+अड-+टाप् ] 1. झूला 2. नृत्य 3. पर्य B IJI झूला 2. नृत्य 3. पय- | प्रप्सु (वि.) [प्र--आप् सन्+उ] 1. प्राप्त करने का टन, धूमना, यात्रा करना 4. एक प्रचार का भवन या इच्छुक, कामना करता हुआ, अभिलाषी, प्रबल इच्छुक घर 5. घोड़े का विशेष कदम / 2. उद्देश्य रखने वाला। प्रेशन्त (भू. क.कृ.) [प्र+इल+क्त ] झूला हुआ, प्रेमन (पं०, नपुं०) [ प्रियस्य भावः इमनिच् प्रादेशः _ हिलाया हुआ, प्रदोलित या डांवाडोल / एकाच्कत्वात् न टिलोपः - तारा०] प्रेम, स्नेह-तत्प्रेमप्रेलोल (चुरा० उभ०—प्रेङ्खोलयति--ते) झूलना, हिलना | हेमनिकषोपलतां तनोति-गीत० 11, मेघ० 44 डांवाडोल होना। 2. अनुग्रह, कृपा, कृपापूर्ण या मृदु व्यवहार 3. आमोदप्रेसोलनम् [प्रेढोल-+ ल्युट्] 1. झूलना, हिलना, इधर से ! प्रमोद, मनोविनोद 4. हर्ष, खुशी, उल्लास। सम० उधर प्रदोलित होना 2. झूला, पेंग। - अश्रु (नपुं०) हर्षाश्रु, स्नेहाश्रु,-ऋद्धिः (स्त्री०) प्रेत (भू० क. कृ.) [प्र+इ+क्त ] इस संसार से गया स्नेहवर्धन, उत्कट प्रेम, --पर (वि०) स्नेहशील, प्रिय, हुआ, ---मृत-स्वजनाश्रु किलातिसंततं दहति प्रेतमिति - पातनम् 1. (हर्ष के) आँसू 2. (आँसू गिरानेवाली) प्रचक्षते-रघु० ८।२६,-तः 1. दिवंगत आत्मा, आँख, - पात्रम् प्रेम की वस्तू, कोई प्रिय व्यक्ति या और्वदेहिक क्रिया किय जाने से पूर्व जीव की अवस्था / जान से पूर्व जाव को अवस्था / वस्तु, ---बन्धः बन्धनम् स्नेहबन्धन, प्रेम की फाँस / 2. भूत, पिशाच-भग० 1714, मनु० 12171 / प्रेमिन् (वि०) (स्त्री०-णी) [प्रेमन+इनि] प्रिय, स्नेह-शील। सम०. अधिपः यमका विशेषण, अन्नम् पितरों को प्रेयस (वि.) (स्त्री०-सी) [अयमनयोः अतिशयन प्रियः अर्पित आहार,—अस्थि (नपुं) मृतक पुरुष की हड्डी, - प्रिय-ईयसुन, प्रादेश: 'प्रिय' की म० अ०] अधिक धारिन् शिव का विशेषण,—ईशः, ईश्वरः यम का प्यारा, अपेक्षाकृत प्रिय या रुचिकर (10) प्रेमी, विशेषण, उद्देशः पितरों के निमित्त अर्पण,–कर्मन पति (पुं०,नपुं०) चापलसी, सी पत्नी, स्वामिनी। (नपुं०)-कृत्यम्,-कृत्या और्ध्वदेहिक या अन्त्येष्टि प्रेयोपत्यः [अपत्यानां प्रेयः) बगुला, कंक पक्षी। संस्कार, - गहम कब्रिस्तान, शवस्थान,—चारिन (पुं०) कवि स्त्री-रिका) 11-1-ईर-1 णिच-+-वल] शिव का विशेषण, दाहः मुर्दे का जलाना, शवदाह, 1प्रेरित करने वाला, उत्तेजक, उद्दीपक 2. भेजनं ----धूमः चिता से उठता हुआ घूआँ,--पक्षः पितृपक्ष, वाला, निदेशक। आश्विन का कृष्णपक्ष जब कि पितरों के सम्मान में। प्रेरणम्-णा [प्र-+ ईर-णिच+ ल्युट | 1. प्रेरित करना, श्रद्धांजलियाँ अर्पित की जाती हैं, तु० 'पितपक्ष'। उत्तेजित करना, आगे बढ़ाना, उकसाना, भड़काना --पटहः अर्थी ले जाते समय बजाया जाने वाला 2. आवेग, आवेश 3. फेंकना, डालना भवति विफलढोल,-पतिः यम का विशेषण, -पुरम यमराज की प्रेरणा चूर्णमष्टि:-मेघ० 68 4. भेजना, प्रेषित करना नगरी,---भावः मृत्यु, भूमिः (स्त्री०) कब्रिस्तान, 5. आदेश, निदेश 6. (व्या० में) किसी ओर से कार्य शवस्थान,-शरीरम् वियुक्त जीव का शरीर, मत कराने की क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया। शरीर,- शुद्धिः (स्त्री),-शौचम् किसी संबंधी की प्रेरित (भू० क० कृ०) प्र / ईर् / णिच्+क्त] 1. आगे मृत्यु हो जाने पर शुद्धि पातक शुद्धि, ---श्राद्धम् किसी | बढ़ाया गया, उत्तेजित किया गया, उकसाया गया मत संबंधी के निमित्त बरसो से पहले 2 किये जाने 2. उत्तेजित, उद्दीपित, प्रणोदित 3. भेजा गया, प्रेषित वाली और्ध्वदेहिक (मासिक) क्रियाएँ,..- हारः 1. मत 4. स्पर्श किया गया, तः दूत, एलची।। शरीर को (श्मशानभूमि तक) ले जाने वाला प्रेष (भ्वा० उभ० प्रेषति-ते) जाना, चलना-फिरना। 2. निकट संबंधी। प्रेषः प्र. इष -+घञ] 1. भेजना, प्रेषण करना 2. दूत के प्रेतिक [प्रकर्षण इति गमनं यस्य प्रा० ब० प्र+इति रूप में भेजना, निदेश देना, भार या बोझ डालना, +कन्, ] भूत, प्रेत। आयुक्त करना। For Private and Personal Use Only Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठोट ( 697 ) प्रेषित (भू० क० कृ०) [प्र+इष्+क्त ] 1. (संदेशा | प्रोच्चंड (वि.) प्रा० स०] अत्यन्त भीषण या भयानक / देकर) भेजा हुआ 2. आदिष्ट, निदेशित 3. मड़ा प्रोच्चः (अव्य) [प्रा० स०] 1. बहुत ऊँचे स्वर से, हुआ, स्थिर, निदिष्ट होकर, (दृष्टि) डाली हुई | जोर से 2. बहुत अधिकता से। 4. निर्वासित। प्रोच्छ्रित (भू० क कृ०) [प्रा० स० ] अति ऊँचा, उत्तुंग, प्रेष्ठ (वि.) [ अयमेषामतिशयेन प्रियः-प्रिय+इष्टन, उन्नत / उ० अ० ] अत्यंत प्यारा, प्रियतम,-ष्ठः प्रेमी, पति, | प्रोज्जासनम् [प्र+उद्+जस् +णिच् + ल्युट् ] वध, - ष्ठा पली, स्वामिनी। हत्या। प्रेष्य (वि०) [+ ईष् + ण्यत्] आदेश दिये जाने के योग्य, | बोज्झनम् | प्र-+-उज्झ् + ल्युट् ] त्यागना, खाला कर देना, भेजे जाने या प्रेषित किये जाने के योग्य,-व्यः सेवक, छोड़ना। भृत्य, दास, -व्या सेविका, दासी. ,ष्यम् 1. दूतमंडली प्रोज्झित (भू० क० कृ०) [प्र+उज्झ+क्त ] त्यागा को भेजना 2. सेवा। सम०-जनः सेवकों का समह, हुआ, खाली किया हुआ, परित्यक्त, हटाया हुआ। --भावः सेवक की पारिता, सेवा, बन्धन-मालवि. प्रोञ्छनम् प्र+उञ्छ+ल्युट ] 1. मिटा देना, पौंछ देना, 5 / 12,-- वधः 1. सेवक की पत्नी 2. सेविका, दासी, छील देना-नै० 536 2. अवशिष्ट पड़े हुए को --वर्गः सेवकवृन्द, अनुचरवर्ग / चुन लेना। प्रहि [प्र पूर्वक इ धातू, लोट्, मध्य० पू०, एक व.1।प्रोड्डीन (वि.) [प्र+उ+डी+क्त ] जो ऊपर उड सम० कटा विशेष प्रकार की आचारविधि जिसमें | गया हो, या उड़ गया हो। चटाइयों का निषेध है,-- कर्दमा एक विशेष अनुष्ठान | प्रोढ, प्रोढि [प्र+बह+क्त, क्तिन् वा, सम्प्रसारण ] दे० जिसमें सब प्रकार की अपवित्रता वजित है,-द्वितीया प्रौढ, प्रौदि। एक अनुष्ठान विशेष जिसमें किसी और की उपस्थिति | प्रोत (भू० क० कृ०) [प्र+व+क्त, संप्रसारणम् ] वजित है,-वाणिजा एक अनुष्ठानविशेष जिसमें व्यापा- 1. सिला हुआ, टांका लगाया हुआ,-कु० 7149 रियों की उपस्थिति निषिद्ध है (दे० पा० 2 / 1172) / 2. लंबा या सीधा फैलाया हुआ (विप० ओत) प्रेयम् [प्रिय+ अण्] कृपालु होना, अनुग्रह, प्रेम। 3. बंधा हुआ, बाँधा हुआ, कसा हुआ-- महावी० प्रेषः [प्र+इष्+घञ, वृद्धि] 1. भेजना, निदेश देना 6 / 33 4. विद्ध किया हुआ, आर-पार किया हुआ 2. आदेश, समादेश, आमन्त्रण 3. दुःख, कष्ट 4. पागल- -रघु० 9 / 75 5. पारित, आर-पार निकला हुआ पन, उन्माद 5. कुचलना, दबाना, मर्दन करना, --तरुच्छिद्रप्रोतान् अर्थात् (चन्द्रकिरणान्) बिसभींचना। मिति करी संकलयति-काव्य० 10 6. जमाया प्रेष्यः [प्र+ इ + ण्यत्, वृद्धिः] सेवक, भृत्य, दास, प्या। हुआ, जड़ा हुआ-महावी० ११३५,-तम् वस्त्र, बुना दासी, सेविका,-व्यम् सेवा, दासता। सम० - भावः हुआ कपड़ा। सम०-- उत्सादनम् 1. छतरी 2. वस्त्रसेवक की क्षमता, सेवक की भाँति उपयोग करना, भंडार, तंबू / सेवा-कु० 6 / 58 / प्रोत्कण्ठ (वि.) [प्रकर्षण उत्कण्ठ:----प्रा० स०] गर्दन प्रोक्त (भ० क. कृ.) [प्र-+-वच्+क्त ] 1. कहा हुआ, ऊपर उठाये हुए या फैलाये हुए। बोला हुआ, उच्चारण किया हुआ 2. नियत किया | प्रोत्क्रुष्टम् [प्र+उत्+क्रुश्+क्त] कोलाहल, हल्लाहुआ, निर्धारित किया हुआ। गुल्ला / प्रोक्षणम् [प्र+उ+ल्युट् ] 1. छिड़काव, पानी छिड़कना, प्रोत्खात (भू० क० कृ०) [प्र+उत्+खन्+क्त] --मनु० 5 / 118, याज्ञ० 11184 2. छीटे देकर अभि- | खोदा हुआ। मंत्रित करना 3. यज्ञ में पशु का वध,–णी छिड़कने | प्रोत्तुङ्ग (वि०) [ प्रा० स० ] बहुत ऊँचा या उन्नत / या अभिमंत्रण के लिए जल, पुण्यजल (ब० व०, | प्रोत्फुल्ल (वि.) [प्रा० स०] पूरा खिला हुआ, कभी-कभी यह शब्द 'पवित्र जल से पूरित कलश' के / फूला हुआ। लिए भी प्रयुक्त होता है, जिस अर्थ में बहुघा प्रयुक्त | प्रोत्सारणम् [प्र+उत् ।-सृ+णिच् + ल्युट ] छुटकारा होने वाला शब्द 'प्रोक्षणोपात्र' है)। करना, साफ कर देना, हटाना, निर्वासित करना। प्रोक्षणीयम् [प्र+उक्ष+अनीयर ] पवित्रीकरण (प्रोक्षण) | प्रोत्सारित (भू० क० कृ०) [प्र--उत्+स+णिच्+क्त ] के लिए उपयुक्त जल। 1. हटाया गया, छुटकारा पाया हुआ, निष्कासित प्रोक्षित (भू० क० कृ०) [प्र+उक्ष+क्त 1. जलमार्जन 2. आगे बढ़ाया गया, उकसाया 3. परित्यक्त। से पवित्र किया हुआ 2. यज्ञ के अवसर पर बलि | प्रोत्साहः [प्र+उत्-सह+घञ्] 1. अत्यनुरक्ति, चढ़ाया हुआ। उत्कटता 2. बढ़ावा, उद्दीपन / 88 For Private and Personal Use Only Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 698 ) प्रोत्साहकः [प्र-+उत्+सह, +-णिच् + बुल् ] उकसाने | प्रो (प्रो) ष्ठः [ प्रकृष्टः ओष्ठो यस्य -प्रा० ब०, पररूपम्, वाला, भड़काने वाला। पक्षेवद्धिः] 1. बैल, बलीवर्द 2. तिपाई, चौकी 3. एक प्रोत्साहनम् [प्र---उत्-+-सह.+णिच् + ल्युट ] उकसाना, प्रकार की मछली (ष्ठी-भी) / सम०--पदः उद्दीपन, भड़काना, प्रणोदन / भाद्रपद भास (दा) पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा प्रोथ (म्वा० उभ०-प्रोथति-ते) 1. समान होना, जोड़ नाम का पच्चीसवाँ व छब्बीसवाँ नक्षत्र / का होना, मुकाबला करना (सम्प्र० के साथ) | प्रो (प्रौ) ह (वि०) [ प्र--उह, +धञ, पररूपम्, --पुप्रोथास्मै न कश्चन-भट्टि० 14384, 15 / 40, पक्षे वृद्धिः ] तार्किक, विवादी, हः 1. तर्क, उक्ति 2. योग्य होना, यथेष्ट होना, सक्षम होना 3. भरा 2. हाथी का पर 3. ग्रंथि, जोड़। हुआ या पूरा होना। प्रो (प्रो) ढ (वि.) [प्र-+वह +क्त, सम्प्रसारणम्, प्रोथ (वि.)[प्रोथ+घ] 1. विख्यात, सूविश्रत 2. रक्खा पररूपम्, पक्षे वृद्धिः ] 1. पूरा बढ़ा हुआ, पूर्णविकसित हुआ, स्थिर किया हुआ 3. भ्रमण करना, यात्रा पर परिपक्व, पका हुआ, पूरा बना हुआ, पूर्ण (जैसे कि जाना, मार्ग चलना--वृक्षान्तमुदकान्तं च प्रियं प्रोथ- चन्द्रमा)-प्रौढपुष्पः कदम्बः-मेघ० 25, प्रौढतालीविमनुव्रजेत्-तारा०,-थः, थम् 1. घोड़े की नाक या पाण्डु, आदि–मा० 8 / 1,9 / 28 2. वयस्क, बूढ़ा, वृद्ध नथुना-नै० 160, शि० 1111, 12 / 73 2. सूअर - ... वर्तते हि मन्मथ प्रौढ़सुहृदो निशीथस्थ यौवनश्रीः की थूथन,-थ: 1. कूल्हा, नितंब 2. खुदाई 3. वस्त्र, मा०८-शि० 11 // 39 3. घना, सघन घोर-प्रौढं पुराने कपड़े 4. गर्भ, कलल। तमः कुस्कृतज्ञतयैव भद्रम्-मा० 73, शि० 4162 प्रोथिन् (पुं०)। प्रोथ-+इनि ] धोड़ा / 4. विशाल, बलवान, समर्थ 5. प्रचंड, उत्कट 6. भरोसा प्रो ष्ट (भू० क. कृ.) [प्र+-उद्+युष्+क्त ] करने वाला, साहसी, बेघड़क 7. घमंडी,- ढा साहसी 1. गूंजना, प्रतिध्वनि करना 2. कोलाहल करना। और बड़ी उम्र की स्त्री, अपने स्वामी के सामने भी प्रोद्घोषणम् -णा [प्र.+उद्-घुष् + ल्युट् ] 1. ऐलान निर्भीक और निर्लज्ज, काव्यरचनाओं में वर्णित चार करना, घोषणा 2. ऊँचा शब्द करना। प्रकार को मुख्य स्त्रियों में से एक भेद--आषोडशाप्रोद्दीप्त (भू० क० कृ०) (प्र+उद्+दीप्+क्त आग पर बेबाला त्रिंशता तरुणी मता, पञ्चपञ्चाशता प्रौढा ___ रक्खा हुआ, जलता हुआ, देदीप्यमान-भर्तृ० 3 / 88 / / भवेबृद्धा ततः परम् / सम० - अङ्गना साहसी स्त्री, प्रोद्धिन (भू० क. कृ.) [प्र+उ+भिद्+क्त ] | दे० ऊपर,-उक्तिः (स्त्री०) साहसयक्त या दर्पपूर्ण 1. अंकुरित, अंखुवा फूटा हुआ 2. फूट कर निकला उक्ति,-प्रताप (वि०)बड़ा तेजस्वी, बलवान्,-यौवन (वि.) जवानी में बढ़ा हुआ, ढलती जवानी का / प्रोद्भूत (भू० क० कृ०) [प्र+उद्-+ भू+क्त ] फूटा | प्रौ (प्रो) दिः (स्त्री०) [प्र-- वह, +क्तिन् ] 1. पूर्ण हुआ, निकला हुआ। वृद्धि या विकास, परिपक्वता, पूर्णता 2. वृद्धि, वर्धन प्रोद्यत (भू० क० कृ०) [प्र+उद्+यम्+क्त] 1. उठाया | 3. गौरव, ऐश्वर्य, समन्नति, प्रताप-बिक्रम० 1115 हुआ 2. सक्रिय, परिश्रमशील। 4. साहस, निर्भीकता 5. घमंड, अहंकार, आत्मविश्वास प्रोद्वाहः [प्र+उद्+वह +घञ ] विवाह / 6. उत्साह, चेष्टा, उद्योग। सम० वादः वाग्विदग्धता प्रोन्नत (भू० क० कृ०)[प्र+उद्+नम्+क्त ] 1. बहुत से यक्त गर्वीली वाणी 2. साहसपूर्ण उक्ति / ऊँचा या उन्नत 2. उभरा हुआ। प्रौण (वि.) [प्र-ओण+अच् ] चतुर, विद्वान्, कुशल / प्रोल्लाषित (वि०) [प्र.+उ+लाघ्+क्त ] 1. रोग से | प्लक्षः [प्लक्ष +घञ ] 1. वटवृक्ष, गूलर का पेड़---प्लक्ष मुक्त हो उठा हुआ, स्वास्थ्योन्मुख 2. सुगठित, प्ररोह इव सौधतलं बिभेद--रघु० 8 / 93, 1971 हट्टाकट्टा। 2. संसार के सात द्वीपों में से एक 3. पार्व द्वार या प्रोल्लेखनम् / प्र---उद् +-लिख्+ल्युट् ] खुरचना, चिह्न / पिछवाड़े का दरवाजा, निजी गुप्त द्वार। सम० लगाना। .-जाता,-समुद्रवाचका सरस्वती नदी का विशेषण, प्रोषित (भू० क० कृ०) [प्र-+-वस्+क्त ] परदेश में - तीर्थम्,–प्रस्रवणम्,--राज् (पुं०) वह स्थान गया हुआ, विदेश में रहने वाला, धर से दूर, अनु- जहाँ से सरस्वती निकलती है। पस्थित, परदेश में रहने वाला। सम-भर्तका वह प्लब (वि.) [प्ल+अच् ] 1. तैरता हुआ, वहता हुआ स्त्री जिसका पति परदेश गया हो, शृंगारकाव्यान्तर्गत 2. कूदता हुआ, छलांग लगाता हुआ, वः 1. तैरना, आठ नायिकाओं में से एक, सा०६० में दी गई परिभाषा बहना 2. बाढ़, दरिया का चढ़ाव 3. कुलांच, छलाँग -नानाकार्यवशाद्यस्या दूरदेशे गतः पतिः, सा मनोभव- 4. बेड़ा, धड़नई, डोंगी, छोटी नौका-नाशयेच्च शनैः दुःखार्ता भवेत् प्रोषितभर्तृका-११९ / पश्चात् प्लवं सलिलपूरवत्-पंच० 2 / 38, सर्व ज्ञान हुआ। For Private and Personal Use Only Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि- भग० 4 / 36, मनु० / तिल्ली का बढ़ जाना, उदरिन् वह पुरुष जो तिल्ली 4 / 194, 11 / 19, वेणी० 3 / 25 5. मेंढक 6. बन्दर | की वृद्धि से पीड़ित हो। 7. ढलान, ढलवां स्थान 8. शत्रु 9. भेड़ 10. नीच | प्लीहा (स्त्री०) तिल्ली। जाति का पुरुष, चांडाल 11, मछली पकड़ने का जाल | प्लु (भ्वा० आ०-प्लवते, प्लुत) बना, तैरना-कि 12. अंजीर का पेड़ 13. कारण्डव पक्षी, एक प्रकार नामैतत् मज्जंत्यलाबूनि ग्रावाणः प्लवन्त इति-महावी. की बत्तख 11. पदयोजना की दष्टि से जुड़ी हुई पाँच १,क्लेशोतरं रागवशात् प्लवन्ते-रघु० १६१६०,प्लवन्ते या अधिक पंक्तियाँ, कुलक 15. स्वर का दीर्घो- धर्मलघवो लोकेऽम्भसि यथा प्लवाः --सुभा० 2. नाव च्चारण। सम० --ग: 1. बन्दर-रघु० 12178 में बैठ कर पार जाना 3. इधर उधर झूलना, थर2. मेंढक 3. जलीय पक्षी, पनडब्बी पक्षी 4. शिरीष थराना 4. कूदना, छलांग लगाना, फलांगना-भट्टि. का वक्ष 5. सूर्य के सारथि का नाम (... गा) कन्या- 5 / 48, 14 / 13, 15 / 16 5. उड़ना, उड़ान भरना, राशि,-गतिः मेंढक / हवा में मंडराना 6. फुदकना 7. (स्वर का) दीर्घ प्लवक: [प्लु बाहु० अक] 1. मेंढक 2. कूदने वाला होना, प्रेर०-प्लावयति-ते 1. तैराना, बहाना व्यक्ति, कलाबाज, रस्से पर नाचने वाला नट 3. बड़ 2. हटाना, बहा ले जाना 3. स्नान करना 4. जलथल या पाकर का वृक्ष 4. चाण्डाल, जाति-बहिष्कृत एक करना, प्रलय आना, बाढ़ आना, जल में डुबोना 5. बन्दर। घट बढ़ कराना, अभि---, 1. बह निकलना 2. हावी प्लवंगः [प्लव+गम् +-खच्, डित्, टिलोप: मुम् ] हो जाना, पराभूत करना (आलं०), अव-, कूकना, 1. लँगूर, बन्दर 2. हरिण 3. वटवृक्ष , पाकर का छलांग लगाकर बाहर होना, उद्-, 1. बहना, तैरना वक्ष। 2. उछलना, फलांगना--मनु० 8 / 23, 63, कूदना, प्लवङ्गमः [प्लव+गम्+खच्, मम्, ] 1. बंदर-शि० उचकना-शि० 12 / 22, उप---, 1. बहना, तैरना 12155 2. मेंढक / 2. प्रहार करना, हमला करना, आक्रमण करना प्लवनम् [ प्लु+ल्युट ] 1. तैरना 2. स्नान करना, गोता 3. अत्याचार करना, कष्ट देना, तंग करना, सताना लगाना ...मा० 119 3. छलांग लगाना, कृदना -निशाचरोपप्लुतभर्तृकाणां (तपस्विनीनाम् )-रघु० 4. बड़ी भारी बाढ़, प्रलय 5. ढलान / 14164, 1015, मनु० 4 / 188, परि -, 1. तैरना, प्लवाका | प्लु+आकन् +टाप ] घड़नई, बेड्रा। बहना 2. स्नान करना, डुबकी लगाना 3. कूदना, प्लविक (वि०)। प्लव+ठन् ] नाव में बिठाकर ले जाने उछलना 4 जल प्रलय होना, जलथल होना, बाढ़ वाला, खिवैया। आना 5. ढकना 6. हावी हो जाना (आलं.), वि-, प्लाक्षम् [प्लक्ष-अण् ] प्लक्ष का फल / 1. इधर उधर बहना, इधर उधर डावाँडोल होना, प्लावः [प्ल+घञ 11. बह निकलना 2. कदना, छलांग घटबढ़ होना 2. (समुद्र में) निरुद्देश्य संचरण करना, लगाना 3. इतना भरना कि किनारे से बाहर निकल तितरबितर होना-हि० 312 3. (मन आदि का) जाय 4. तरल पदार्थ को छानना (उसका मैल दूर अव्यवस्थित होना 4. बर्वाद होना, नष्ट हो जाना करने के लिए)- याज्ञः 11190 (दे० इस पर 5. असफल होना, प्रेर०-1. बहाना, तैरना 2.(अयोग्य मिता०)। व्यक्तियों का) अध्यापन करना मन० 114199 प्लावनम् [ प्ल+णि+ल्यूट 1 1. स्नान, आचमन 3. अव्यवस्थित होना, घबड़ाना, उद्विग्न होना, सम्,-- 2. बाहर निकल कर बहना, बाढ़ आ जाना, जलमय / 1. घट बढ़ होना, इधर-उधर बहना 2. इकट्ठे बहना, हो जाना 3. बाढ़. प्रलय / (पानी की भांति) मिलना--भग० 2146 / प्लावित (भू० क० कृ०) [ प्लु+णिच् +क्त ] प्लुत (भू० क० कृ०) [प्लु-+क्त] 1. तैरता हुआ, बहता 1. तेराया गया, बहाया गया, जलथल किया गया हुआ 2. जलमय हुआ, जल में डूबा हुआ, जल में बहा 2. जलमय किया गया, बाढ़ में डुबोया गया, जल से हुआ 3. कूदा हुआ, फलांगा हुआ 4. (स्वर) दी|कृत, लबालब भरा गया 3. तर किया गया, गीला किया प्रदीर्घ हुआ 5. ढका हुआ (दे० 'प्लु'), तम् 1, कूद, गया, छिड़का गया-शि० 1225, कि० 11136 उछल, उचक 2. कूद फांद, घोड़े का कदम विशेष / 4. ढका हुआ, आच्छादित। सम०-गतिः खरगोश (स्त्री०) 1. उछल कूद कर प्लह (भ्वा० आ०---प्लेहते) जाना, चलना-फिरना। चलना 2. सरपट दौड़ना, घोड़े की टप्पेदार चाल / प्ली (क्रया०-पर० प्लीनाति) जाना, चलना-फिरना। प्लुति: (स्त्री०) [प्ल+क्तिन् ] 1. बाढ़, ऊपर से बहना, प्लीहन् (पुं०) [प्लिह +वनिन्, नि० दीर्घः ] तिल्ली, जलमय होना 2. उछल, कूद, उचक जैसा कि 'मंडूक तिल्ली का बढ़ जाना (प्लिहन भी)। सम०---उदरम् / प्लुति' में 3. कूदफांद कर चलना, घोड़े की एक चाल निताoU For Private and Personal Use Only Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 700 ) विशेष 4. स्वर की ध्वनि का लंबा करना, प्रदीर्घ | प्लोषः [ प्लुष्-+-धज ] जलाना, अन्तर्दाह होना ('प्रोष' करना। भी)। प्लष् i (म्वा०, दिवा० ऋया० पर०-प्लोषति, प्लष्यति, | प्लोषण (वि.) (स्त्री०- णी) [प्लष् + ल्युट ] जलना, प्लष्णाति, प्लुष्ट) जलाना, झुलसना, धकधकाना, गर्म झुलसना, जल कर राख हो जाना-तार्तीयीक पूरालोहे से दागना--ऋतु० 1 / 22, भट्टि० 2034 / / रेस्तदवतु मदनप्लोषणं लोचनं व:--मा० 1, (पाठाii (ऋया० पर० प्लुष्णाति) 1. छिड़कना, गीला न्तर),–णम् जलना, झुलसना ('प्रोषण' भी)। करना 2. लेप करना 3. भरना। प्सा (अदा० पर० प्साति, प्सात) खाना, निगल जाना / प्लुष्ट (भ० क० कृ०) [प्लुष+क्त ] झुलसाया गया, प्सात (भू० क० कृ०) [प्सा+क्त ] 1. खाया हुआ 2. भखा। प्लेख (भ्वा० आ० प्लेवते) सेवा करना, हाजरी देना, सेवा | प्सानम् [प्सा+ ल्युट् ] 1. खाना 2. भोजन / में उपस्थित रहना। प्सा (अदा पर क्त ] झुलसाया गया प्ले गया, दागा गया। फक्क (म्वा० पर०-फक्कति, फक्कित) 1. शनैः-शनैः / / स्थिताम् भर्त० 2 / 35 / सम०-करः सांप, धरः चलना-फिरना, फुर्ती से जाना, सरकना, धीरे-धीरे | 1. साँप 2. शिव का नाम - भूत (पुं०)साँप,.... मणिः चलना 2. गलती करना, दुर्व्यवहार करना 3. फूल सांप के फण में पाई जाने वाली मणि,-मण्डलम् साँप उठना। का कुंडलीकृत शरीर--- करालफलमण्डलम- रघु०१२। फक्किका [ फक्क+पवुल-+टाप, इत्वम् ] 1. एक अवस्था, 98, तत्फणामण्डलोदचिर्मणिद्योतितविग्रहम्-१०।७ / सिद्ध करने के लिए पूर्वपक्ष, उक्ति या प्रतिज्ञा जिसको फणिन् (पुं०) | फणा--इनि ] 1. फणधारी साँप, सामान्य बनाये रखना है-फणिभाषितभाष्यफक्किका विषमा साँप, सर्प--उदुमिरतो यद्गरलं फणिनः पुष्णासि कुण्डलनामवापिता-नै० 2 / 95 2. पक्षपात, पूर्वचिन्तित परिमलोद्गारः - भामि० 1 / 12,58, फणी मयूरस्य सम्मति / तले निषीदति -- ऋतु० 113, रघु० 16 / 17, कु० फट (अव्य०) एक अनुकरणमूलक शब्द जिसे जादू मंत्रा- 3 / 21 2. राहु का विशेषण 3. पतंजलि का विशेषण, दिक के उच्चारण करने में रहस्यमय रीति से प्रयक्त (पाणिनि के सूत्रों पर महाभाष्य के प्रणेता)--फणिकिया जाता है - अस्त्राय फट / भाषितभाष्यफक्किका--नै० 2695 / सम०- इन्द्रः, फट: [ स्फूट-अच, पृषो०] 1. साँप का प्रसारित किया ..... ईश्वरः 1. शेषनाग का विशेषण 2. सांपों के हआ फणा ('फटां' भी इसी अर्थ में) निविषेणापि अधिपति अनन्त का विशेषण 3 पतंजलि का विशेषण, सर्पण कर्तव्या महती फटा (पाठान्तर---फणा) विष --खेल: लवा, बटेर,-- तल्पगः विष्णु का (शेषनाग भवत् मा भूद्वा फटाटोपो भयङ्करः- पंच० 11204 जिनकी शय्या है) विशेषण,-पतिः 1. वासुकि या 2. दाँत 3. धूर्त, ठग, कितव।। शेषनाग का विशेषण 2. पतंजलि का विशेषण-प्रियः फडिंगा [फड़ इति शब्दमिङ्गति --फड्+इग-|-अच वाय,... फेनः अफीम, भाष्यम (पाणिनि के सूत्रों पर टाप् ] झींगुर, टिड्डी, टिड्डा, फतिंगा। किया गया भाष्य) महाभाष्य, भुज् (पुं०) 1. मोर फण (भ्वा० पर० फणति, फणित) 1. चलना-फिरना. 2. गरुड़ का विशेषण। इधर उधर घूमना,-रुजुर्भेरि फेणुर्बहुधाहरिराक्षसा: फत्कारिन (पं०)! फत्कार-|-इनि ] पक्षी।। --भट्टि० 14178 2. अनायास उत्पन्न करना, बिना फरम् [ फल+अच, रलयोरभेदः ] ढाल-तु० फलक | किसी परिश्रमके पैदा करना (यह अर्थ कुछ के मता- 1 फरुबकम् (नपुं०) पानदान पान रखने का डब्बा / नुसार प्रेरणार्थक क्रिया का है)। फर्फरीकः [स्फुर+ईकन्, धातोः फर्फरादेशः ] खुले हुए फणः,-णा [फण+अच्, स्त्रियां टाप् ] किसी भी साँप . हाथ की हथेली / -कम् 1. ताजा अंकुर या टहनी का का फैलाया हुआ फण - विप्रकृतः पन्नगः फर्ण (फणां) अंखुवा 2. मृदुता,- का जूता / कुरुते-श० 6 / 30, मणिभिः फणस्थैः-- रघु० 13 / फल (भ्वा० पर० फलति, फलित) 1. फल आना, फल 12, कु० 668, वहति भुवनश्रेणि शेषः फणाफलक- पैदा करना-नानाफलैः फलति कल्पलतेव विद्या-भर्तृ० For Private and Personal Use Only Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2040, परोपकाराय द्रुमाः फलन्ति- सुभा०-विधातुयापारः फलतुः च मनोज्ञश्च भवतु-मा० 1 / 16 (इस अर्थ में प्रायः सकर्मक के रूप म धातु का प्रयोग होता है) ---..मोर्यस्यैव फलन्ति विविधश्रेयांसि मन्नीतयः-मुद्रा० 2 / 16 'निष्पन्न या घटित करना' 2. परिणामयुक्त होना, सफल होना, पूरा होना, निष्पन्न होना, कामयाब होना 'कैकेयि कामाः फलितास्तवेति- रघु० 13 / 59, 15 / 78, यदा न फेलुः क्षणदाचराणां (मनोरथाः)-भट्रि० 14 / 113, 12166, नवाकृतिः फलति नैव कुलं न शीलम्-भर्त० 2196,116 3. फल निकलना, परिणाम या नतीजा पैदा करना—फलितमस्माकं कपटप्रबन्धेन-हि. 1, फलितं नस्तहि भगवती पादप्रसादेन-मा० 6, कि० 18 / 25, खल: करोति दुर्वत्तं नूनं फलति साधुषु-हि० 3121, 'दुष्ट व्यक्ति बुरे कार्य करते है और भले पुरुषों को उनका परिणाम भुगतना पड़ता है 4. पक्का होना, पक जाना। ii (भ्वा० पर०-फलति, फुल्ल या फुल्त (पहले अर्थ में), दूसरे अर्थ में फलित) 1. बलपूर्वक तोड़ना, खंड 2 करना, फट जाना, दरार पड़ना-तस्य मूर्धानमासाद्य पफालासिवरो हि सः---महा० 2. प्रति फलित होना, अक्स पड़ना-कि० 5 / 38 3. जाना / फलम् [ फल ---अच् ] 1. फल (आलं 0 से भी) जैसे वृक्ष का उदेति पूर्व कुसुमं ततः फलम् --श० 7 / 30, रघु० 4 / 33, 1649 2. फसल, पैदावार-कृषिफलं --- मेघ० 16 3. परिणाम, फल, नतीजा, प्रभाव --अत्यत्कटः पापपुण्यरिहव फलमश्नुते-हि० 1183, फलेन ज्ञास्यसि—पंच० 1, न नवः प्रभुराफलोदयात् स्थिरकर्मा विरराम कर्मणः-रघु० 8 / 22, 1133 4. (अतः) पुरस्कार, क्षतिपूर्ति, पारितोषिक (शुभ या अशुभ) प्रतिफल --फलमस्योपहासस्य सद्यः प्राप्स्यसि पश्य माम्-रघु० 12 // 37 5. कृत्य, कर्म (विप० वचन)- ब्रुवते हि फलेन साधवो न तु कंठेन निजोपयोगिताम्-२० 2148, भले पुरुष अपनी उपयोगिता कर्मों से सिद्ध करते हैं न कि वचनों से' 6. उद्देश्य, आशय, प्रयोजन-परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः -पंच० 1143, किमपेक्ष्य फलम-कि०।२१ / 'किस आशय को विचार में रखकर', मेघ० 54 7. उपयोग, भलाई, लाभ, हित....जगता वा विफलेन कि फलम् -भामि० 2061 8. लाभ या मूलराशि का ब्याज 9. प्रजा, सन्तान-रघु० 14139 10. (फल की) गिरी 11. पट्टिका या फलक 12. (तलवार का) फल 13. तीर की नोक या सिरा, बाण, गीतकार-मुद्रा० 7.10 14. ढाल 15. अंडकोष 16. उपहार 17. (गणित में) गणना-फल 18. गुणनफल 19. रजःस्राव 20. जायफल 21. हल का फल, फाली। सम०-अदनः---फलाशन,... अनुबन्धः परिणामक्रम, फलपरम्परा,- अनुमेय (वि.) जिसका अनुमान फल या परिणाम पर निर्भर हो - फलानुमेयाः प्रारम्भाः संस्काराः प्राक्तना इव रघु० १।२०,---अन्तः बांस,-अन्वेषिन् (वि०) (कर्मों के) पुरस्कार या क्षतिपूर्ति की खोज करने वाला,-- अपेक्षा (कर्मो के) फ़ल या परिणामों की आशा, नतीजे का ध्यान, अशनः तोता,-अम्लम इमली,-अस्थि (नपुं०) नारियल,-आकांक्षा (अच्छे परिणामों की) आशा -दे० फलापेक्षा,- आगमः 1. फलों की पैदावार, फलों का भार,- भवन्ति नम्रास्तरवः फलागमैः-श० 5 / 12 2. फलों का मौसम, पतझड़, आढ्य (वि०) फलों से भरा हुया,-आढचा एक प्रकार के अंगूर (जिसमें गुठलियाँ या बीज नहीं होते),-उत्पत्तिः (स्त्री०) 1. फलों की पैदावार 2. फायदा, लाभ (त्तिः) आम का वृक्ष (कभी-कभी इसी अर्थ को प्रकट करने के लिए 'फलोत्पत्ति' भी लिखा जाता है), - उदयः 1. फलों का दिखाई देना (आना), फल या परिणाम का निकलना, अभीष्ट पदार्थ या सफलता की प्राप्ति-आफलोदयकर्मणाम्-रघु० 115, -- उद्देशः फलों का ध्यान, दे० फलापेक्षा,--कामना परिणाम या फल की इच्छा,----काल: फलों का समय, -----केशरः नारियल का पेड़, ग्रहः हित या लाभ को ग्रहण करने वाला, ---प्रहि, ---ग्रहिन् (वि०) (फलेग्रहि या फलेग्राहिन्) फलो से भरा हुआ, मौसम में फल देने वाला, - इलाध्यतां कुलमुपैति पैतृकं स्यान्मनोरथतरुः फलेग्रहिः-कोति० 3 / 60, मा० 9 / 39, ---द (वि०) 1. उपजाऊ, फलदार, फल देने वाला - मनु० 11 / 142 2. लाभकर या फायदा पहुंचाने वाला (वः) वृक्ष, निवृत्तिः (स्त्री०) परिणामों की समाप्ति,-निष्पत्तिः फलों का उत्पादन, पाकः (फलेपाकः' भी) 1. फलों का पकना 2. परिणामों की पूर्णता, - पावपः फलवृक्ष,-पूरः,-पूरक: सामान्य नीबू का पेड़, -प्रदानम् 1. फलों का देना 2. विवाह के अवसर पर एक संस्कार विशेष,-बन्धिन् (वि.) फल को विकसित करने वाला या रूप देने वाला, --भूमिः (स्त्री०) वह स्थान जहाँ मनुष्य अपने कर्मों का शुभाशुभ फल भोगता है (अर्थात् स्वर्ग या नरक),-भूत् (वि.) फलदायी, फलों से पूर्ण,--भोगः 1. फलों का आनन्द लेना 2. भोगाधिकार,-योगः 1. अभीष्टपदार्थ या फल की प्राप्ति - मुद्रा० 7 / 10 2. मजदूरी, पारिश्रमिक, ... राजन् (पुं०) तरबूजा -वतुलम् तरबूज,--वृक्षः फलदारवृक्ष, वृक्षक कटहल का वृक्ष,-शाउवः अनार का पेड़,-श्रेष्ठः आम का पेड़,-संपद् 1. फलों की बहुतायत 2. सफलता, For Private and Personal Use Only Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 702 ) —साधनम् अभीष्ट पदार्थ की उपलब्धि का उपाय, | विशेष:---सिद्धा०, फाण्टचित्रास्त्रपाणय:-भट्टि०९।१७, उद्देश्य की पूर्ति, - स्नेहः अखरोट का पेड़, हारी (दे० भाष्य)। काली या दुर्गा का विशेषण / फालः,-लम् [ फल-+-अण, फल-+-घञ वा ] 1. हल का फलकम् [फल+कन्] 1. पट्ट, तख्ता, शिला, पटल या . फल, फाली-मनु०६।१६ 2. बालों की मांग निकालना, पट्टी--काल: काल्या भुवनफलके क्रीडति प्राणिशारैः सीमंतभाग नै० १११६,-ल: 1. बलराम का विशेषण -भर्तृ 0 3 / 39, धूत चित्र आदि 2. चपटी सतह 2. शिव का विशेषण 3. नीबू का पेड़, लम 1. सूती --चुंब्यमानकपोल फलकाम् –का० 218, धृतमुग्ध- / कपड़ा 2. जोता हुआ खेत / गंण्डफलकविवभः-गि०९।४७,३७, तु० तट' 3. हाल फाल्गनः | फाल्गुन / अण] 1. महीने का नाम (जो फ़रवरी4. पत्र, पृष्ठ 5. नितंब, कल्हा 6. हाथ की हथेली / मार्च में आता है) 2. अर्जुन का विशेषण महा० में सम०-पाणि (वि०) (योद्धा की भांति) ढाल से / नाम की व्याख्या इस प्रकार है-उत्तराभ्यां फल्गुनीभ्यां सुसज्जित, ----यन्त्रम् भास्कराचार्य द्वारा आविष्कृत नक्षत्राभ्यामहं दिवा, जातो हिमवतः पृष्ठे तेन मा एक ज्योतिविषयक उपकरण / फाल्गुनं विदुः 3. वृक्ष का नाम, जिसे 'अर्जन' कहते फलतः (अव्य०) फल-तसिल] फलस्वरूप, परिणामरूप, हैं / सम०- अनुजः 1. चैत्र का महीना 2. वसंतकाल यथार्थतः। 3. नकुल और सहदेव का विशेषण / फलनम् फल + ल्युट्] 1. फल आना, फलवान होना 2. फल फाल्गुनी [ फाल्गुनी+अण् + ङीप् ] फाल्गुन मास की या परिणाम उत्पन्न करना / पूर्णिमा / सम० भवः बृहस्पति ग्रह का विशेषण / फलवत (वि.) फलमत्प्] 1. फलवान, फलदार | फिरङ्गः (पं०) फिरंगियों अर्थात यरोपियनों का देश / 2 फलदायी, परिणामदर्शी सफल, लाभकारी, ती | फिरङ्गिन् (पुं०) [ फिरंग-1-इनि] फिरंगी, अंग्रेज, 'प्रियंग' नामक लता / यूरोपियन / फलिता फल-इत+टाप] रजस्वला स्त्री। फुकः फु+के+क पक्षी / फलिन् (वि०) फल इनि] फलों से पूर्ण, फलदायी, फु (फ) त् (अन्य 0 ) अनुकरणमूलक शब्द जो प्राय: 'कृ' (आलं. भी) पुष्पिणः फलिनश्चैव वृक्षास्तूभयतः के साथ प्रयक्त होता है, तरल पदार्थों में फेंक मारने स्मृताः-मनु० 1147, मृच्छ० 4 / 10, (पुं० ) से पैदा होने वाली ध्वनि, कभी-कभी इससे घणा सूचित वक्ष। होती है, फु (फ) त् कृ (किसी तरल पदार्थ में) फलिन (वि०) फल+इनच] फलों से पूर्ण, फलदायी, फंक मारना-बाल: पायसदग्धो दध्यपि फत्कृत्य -नः कटहल का पेड़। भक्षयति हि० 41103 / सम० -- कारः, कृतम्, फलिनी,-फली फलिन् / डीप, फल + अच्---ङोप्] प्रियंगु / -कृतिः (स्त्री०) 1. फूंक मारना 2. साँप की फुफकार लता (कवियों के द्वारा इसे 'आम की पत्नी' कहा 3. सी सी करना, सायं सायं की ध्वनि 4. सुबकना गया है-तु० रघु० 8 / 61) / 5. चीन मारना, जोर की चीख, चीत्कार / फल्ग (वि.) [फल-उ, गक च] 1. बिना गदे का, फुप्फुसः, सम् (नपु०) फफड़। रसहीन, तत्त्वरहित, सारविहीन-सारं ततो ग्राह्यम- फुल्ल (भ्वा० पर० फुल्लति, फुल्लित) कली आना, फूलना, पास्य फल्ग--पंच० 112 2. अयोग्य, निरर्थक, | फुलाना, (पुष्प का) खिलना। महत्त्वहीन -शि० 376 3. अल्प, सूक्ष्म 4. निर्मल, फुल्ल (भू० क० कृ०) |फल+ क्त, उत्वं लत्वम् ] 1. फैलाया व्यर्थ 5. दुर्बल, बलहीन, निस्सार,—ल्गुः (स्त्री०) हुआ, खिला हुआ, फूला हुआ- पुष्पं च फुल्लं नव1 वसन्त ऋतु 2. गलर का वृक्ष 3. गया के पास एक मल्लिकायाः प्रयाति कान्ति प्रमदाजनानाम् -- ऋतु० नदी। सम० ---उत्सवः वसन्तोत्सव, होली का त्योहार / 6 / 6, फुल्लारविंदवदनाम् .... चौर० 1 2. फल आना, फल्गुनः [ फल+उनन् , गुक च] 1. फाल्गुन का महीना खिला हआ रघु० 9 / 63 3. विस्तारित, फैलाया 2. इन्द्र का नामान्तर,--नी एक नक्षत्र का नाम ----कु० हुआ, (आँखों की भाँति) खूब खुला हुआ पंच० 7 / 6 / 1 / 136 / सम० लोचन (वि.) (हर्ष से) खिली फल्यम् [फल+यत् ] फूल / हुई आँखों वाला (नः) एक प्रकार का मग / फाणिः, फाणितम् [ फण्+णिच् + इञ , क्त वा ] सीरा, फेट्कारः | फेट् --कृ-घा] चीख, हक (कुत्ते भेड़िये की राब। / ध्वनि)। फाण्ट (वि.) [ फग्+क्त, नि० साधुः सुगम प्रक्रिया | फेणः,-नः स्फिाय-+न, फे शब्दादेशः, पक्षे णत्वम्] 1. झाग, द्वारा निर्मित, आसानी से बनाया हुआ (जैसे काढ़ा), फेन (कफ आदि)-गौरीवक्तभृकुटिरचना या विह-ट:,टम् अर्क, काढ़ा-फाण्टमनायाससाध्यः कषाय- | स्येव फेनैः- मेघ० 50, रघु 0 13 / 11, मनु० 2061 For Private and Personal Use Only Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. मुंह का झाग या बुलबुला 3. थूक / सम०-- पिण्डः चण्डडात्कृति-मा० 5 / 19 2. धूर्त, बदमाश, ठग 1. बुलबुला 2. खोखला विचार, अनस्तित्व, वाहिन् | 3. राक्षस, पिशाच / (पुं०) छानने के काम का कपड़ा। फेरुः फे-+-+डु] गीदड़। फेण (न) क [फेण / कन्] दे० 'फेन' / फेलम्, फेला, फेलिका, फेली [ फेल्यते दूरे निक्षिप्यते, फेनिल (वि.) [ फेन+इलच् ] झागदार, बुलबुले वाला, फेल्-अङ्, स्त्रियां टाप, फेल्+ इन्क न्+टाप, फेनिलमम्बराशि रघु० 13 / 2 / / फेलि+ङीष उच्छिष्ट भोजन, भोजन का बचा खुचा फेरः, फेरण्डः [फे |-रा+क, फे+रण्ड्+अच्] गीदड़। भाग, जूठन / फेरवः [फे इति रवो यस्य ब० स०] 1. गीदड़-क्रन्दत्फेरव बंह (भ्वा० आ० बहते, बंहित) बढ़ना, उगना / | बटुः |बट् +उ, बवयोरभेदः] बालक, लड़का, छोकरा बंहिमन् (पुं०) बहुल |-इमनिच, बहादेशः] बहुतायत, (बहुधा तिरस्कारसूचक) चाणक्यबटु:-आदि दे० 'वट' / बाहुल्य / बडि (लि) शम् (नपुं०) मछली पकड़ने का कांटा-भर्त० बंहिष्ठ (वि.) [बहुल इप्ठन्, बहादेशः उ० अ०] 3 / 31 / अत्यन्त अधिक, अत्यंत बड़ा, बहुत ही ज्यादह / बत (अव्य०)[वन् / क्त, बवयोरभेदः]निम्नांकित अर्थ प्रकट बंहीयस् (वि.) बहुल+ ईयसुन्, बहादेश: म० अ०] अपे- करने वाला अव्यय 1. शोक, खेद-वयं बत विदूरतः क्षाकृत अधिक, बहुत ज्यादह, अपेक्षाकृत बहुसंख्यक / क्रमगता पशो: कन्यका-मा० 3 / 18, अहो बत महबकः वङ्क | अच, पृषो० साधु:] 1. बगला 2. ठग, धूर्त, त्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम, भग० 1145 2. दया या पाखंडी (बगला बड़ा धूर्त पक्षी है, वह अपने पंजे में करुणा-क्व वत हरिणकानां जीवितं चातिलोलम् दूसरों को फांस लेता है) 3. एक राक्षस का नाम -श० 1110 3. संबोधन, पुकारना-बत वितरत तोय जिसे भीम ने मारा था 4. एक राक्षस का नाम जिसे तोयवाहाः नितान्तम्- गण, रघ० 9 / 47 4. हर्ष या कृष्ण ने मारा था 5. कुवर का नामान्तर / सम०-चरः, संतोष-अहो बतासि स्पृहणीयवीर्यः-कु० 3 / 20 ---वृत्तिः,-व्रतचरः,-वतिकः,-वतिन (पं०) वगले 5. आश्चर्य, अचंभा, अहो बत महच्चित्रम्-का० 154, की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी-अघो- 6. निन्दा ('अहो' के साथ 'बत' के अर्थ 'अहो' के दृष्टिनैष्कृतिकः, स्वार्थसाधनतत्पर:, शठो मिथ्याविनीत अन्तर्गत दे०) / श्च बकव्रतचरो द्विजः --मनु० ४।१९६,-जित् (पुं०) बदरः[बद्+अरच् ]वेर का पेड़,-- रम् बेर का फल,-कर--निषूदन: 1. भीम का विशेषण 2. कृष्ण का विशे- बदरसदृशमखिलं भुवनतलं यत्प्रसादतः कवयः, पश्यन्ति षण, --व्रतम् बगले की भांति आचरण, पाखंड / सूक्ष्ममतयः सा जयति सरस्वती देवी-वास० 1, बकुलः [बक +-उरच, रेफस्य लत्वम्, नलोपः] एक (मौल भामि० 2 / 8 / सम०-पाचनम् एक पूण्यतीर्थ स्थान / सिरी) वृक्ष (कहा जाता है कि कविसमयानसार तरु- बदरिका [बदरी+कन् / टाप, ह्रस्वः] बेर का पेड़ या णियों द्वारा मदिरा का गंडष छिड़कने पर इसमें फल,- अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः-हि. मंजरी फूट आती है)-कांक्षत्यन्यो (अर्थात् केसर 1194 2. गंगा का एक स्रोत, जो नर और नारायण या बकुल) वदनमदिरां दोहदच्छद्मनाऽस्या:-मेघ० के आश्रम के निकट स्थित है, इसे ही बदरीनारायण 78, बहुल: सीधुगंडूषसेकात् (विकसित) (इस प्रकार कहते हैं। सम-आश्रमः बदरिका का आश्रम / के अन्यवृक्षों से संबद्ध कविसमयों के लिए प्रियंग के | बदरी [बदर-डीष] 1. बेर का पेड़; दे० बादरायण नीचे उद्धरण देखो),-लम् मौलसिरी वृक्ष का सुगंधित 2.-बदरिका (ऊपर 2) / सम० तपोवनम् बदरीफूल-भामि० 1154 / / स्थित तपस्या करने का उद्यान-कि० 12 / 33, बकेरुका |बकानां बकसमूहानाम् ईरुक गतिर्यत्र-ब० स०] / -- फलम् बेर के पेड़ का फल, वनम् (णम्) बेर छोटी बगली। __ की झाड़ी या जंगल,-शैलः बदरी पर स्थित पहाड़। बकोटः (पुं०) बगला। | बद्ध (भू० क० कृ०) [बन्ध+क्त] 1. बाँधा हुआ, बंधा For Private and Personal Use Only Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ, कसा हुआ 2. शृंखलित, बेडियों से जकड़ा हुआ बध (भ्वा० आ०-बीभत्सते-मूल अर्थ को बताने वाले 3. बंदी, पकड़ा हुआ 4. अवरुद्ध, कारावासित 5, कमर बघ धातु का सन्नन्त रूप) घिन करना, घणा करना, कसे हुए 6. संयत, दबाया हुआ, रोका हुआ अरुचि रखना, संकोच करना, झिझका, ऊबना (अपा० 7. निर्मित, बनाया हुआ 8. प्यार किया गया, के साथ) येभ्यो बीभत्समाना:- उत्तर० 1 / रिझाया गया 9. मिलाया गया, संहित 10. पक्का | बधिर (वि०) [बन्ध+किरच बहरा, ध्वनिभिर्जनस्य जमाया गया. दढ / सम०-अडगलित्र.- अगङलित्राण | बधिरीकृतश्रुतेः---शि० 1313, मनु० 7149 / (वि.) दस्ताना पहने हुए,-अञ्जलि (वि.) हाथ / | बधिरयति (ना० धा० पर०) बहरा बनाना (आलं. जोड़े हए, आदर या सम्मान प्रदर्शित करने के लिए से भी) बधिरिताशेषदिगन्तरालम्- का०, महावी० नम्रता पूर्वक दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करते 680 / हुए,-- अनुराग (वि०) स्नेह में बंधा हुआ, प्रेम के बधिरित (वि.) [बधिर+इतच बहरा किया गया, बहरा कारण अनुरक्त, प्रेमबंधन में जकड़ा हुआ, अनुशय बनाया गया। (वि०) पश्चात्ताप करने वाला, आशक (वि.) बधिरिमन (पं०) बधिर इमनिच बहरापन / जिसकी आशंकाएं बढ़ गई हैं, शङ्काकुल,-उत्सव (वि०) | बन्दिः, दी (स्त्री) विन्द-इन, वन्दि+डीप] 1. बंधन, उत्सव या त्यौहार मनाते हुए, उद्यम (वि०) मिलकर | कारावास 2. कैदी, बंधुआ---कु० 2 / 61 / प्रयत्न करनेवाले, * कक्ष, कक्ष्य (वि०) दे० 'बद्धपरि बन्ध (क्रया० पर० बध्नाति, बद्ध०, कर्म० बध्यते) कर'-कोप, मन्यु,-रोष (वि०) 1. क्रोध अनुभव करते 1. बांधना, कसना, जकड़ना-बद्धन संभावित एव हुए, क्रोध या रोष की भावना रखते हुए 2. अपने तावत्करेण रुद्धोऽपि च केशपाशः - कु. 7.57, रघु० क्रोध का दमन करने वाला, चित्त, मनस् (वि०) 719, कु०७।२५, भट्टि० 9 / 75 2. दबोचना, पकड़ना, मन को किसी ओर जमाये हए, मन को किसी ओर जेल में डालना, जाल में फंसाना, वंदी बनाना दृढ़तापूर्वक लगाने वाला, -जिह्व (वि०) जिसकी __-कर्मभिर्न स बध्यते भग० 4 / 14, बलिर्बबन्धे जिह्वा कील दी गई है,--दृष्टि,-- नेत्र, --लोचन -भट्टि० 2 / 39, 14 / 56 3. जंजीर में बांधना, (वि०) आंख को एक ओर जमा कर ताकने वाला, बेड़ी में जकड़ना 4. रोकना, ठहराना, दमन करना टकटकी लगाकर देखने वाला,-धार (वि.) लगातार यथा बद्धकोप, बद्धकोष्ठ आदि में 5. पहनना, धारण अविच्छिन्न रूप से बहने वाला, नेपथ्य (वि०) करना- न हि चूडामणिः पादे प्रभवामीति बध्यते नाटकीय वेशभूषा धारण किये हए, परिकर (वि०) --पंच० 1172, बबन्धुरंगुलित्राणि भट्टि० 1417, कमर बांधे हुए, कमर कसे हुए, तैयार, सज्जित, 6. (आंख आदि का) आकृष्ट करना, गिरफ्तार ---- प्रतिज्ञ (वि०) 1. जिसने कोई व्रत या प्रतिज्ञा की करना- बबन्ध चक्षूपि यवप्ररोहः- कु० 7.17, या है 2. दृढ़ संकल्प बाला, भाव (वि०) स्नेहशील, वध्नाति मे चक्षुः (चित्रकूट:). रघु० 13147 दिल लगाये हुए, मुग्ध (अधि० के साथ) - दृढं त्वयि 7. स्थिर करका, जमाना, (आँख या मन आदि) बद्धभावोर्वशी-विक्रम 02, - मुष्टि (वि०) 1. मुट्ठी निदेशित करना, डालना (अधि० के साथ) - दृष्टि बांध हुए 2. मुट्ठी भींचे हुए, कंजूस, - मूल (वि०) लक्ष्येषु बन्धन् ---मुद्रा० 112, रधु० 3 / 4, 6 / 36, जिसकी जड़ गहराई तक गई हो, जड़ पकड़ हुए भट्टि० 20122 8. (बाल आदि) बाँधना, मिलाकर -बद्धमूलस्य मूलं हि महद्वरतरोः स्त्रियः ----शि० जकड़ना -- मुद्रा० 7.17 9. निर्माण करना, संरचन 2 / 28,-- मौन (वि०) जीभ थामे हुए, मौन रहने करना, रूप देना, व्यवस्थित करना-बद्धोमिनाकववाला, चुप अदृश्यत त्वच्चरणारविन्दविश्लेषदुःखा- नितापरिभुक्तमुक्तम्--कि० 8 / 57, मुगकुलं रोमन्थदिव बद्धमौनम्-- रघु० 13123, राग (वि.) मभ्यस्यतु० श० 216, तस्याञ्जलि बन्धुमतो वबन्ध आसक्त, मुग्ध, अनुरक्त-पंच० 11123,--- वसति -~~-रघु०१६।५, 4 / 38, 11 / 35, 78, कु० 2147, (वि०) अपना वास स्थान स्थिर करने वाला, --वाच 5 / 30 भट्टि० 777 10. एकत्र करना, रचना (व०) जिह्वा रोके हुए, चप रहने वाला,-वेपथु करना, (कविता श्लोक आदि) निर्माण करना (वि.) कंपकंपी से ग्रस्त, वर (वि.) जिसको ... तुष्टबद्धं तदलघु रघुस्वामिनः सच्चरित्रम् किसी से घोर घृणा हो गई हो या पक्की शत्रुता हो गई -विक्रम०१८।१०७, श्लोक एव त्वया बद्धः-रामा० हो,- शिख (वि०) 1. जिसने अपनी चोटी बांध ली 11. वनाना, पैदा करना, (फल आदि) जन्म देना ह, (चोटी में गाँठ दे ली है) 2. जो अभी बच्चा है, --रघु० 12 / 69, श०६।४ 12. रखना, अधिकार में बालक,---स्नेह (वि.) अनुराग करने वाला, करना, ग्रहण करना, संजो कर रखना --उत्तर० 2 / 8, स्नेहशील / ('बंध' के अर्थों में उन संज्ञाओं के अनुसार जिनसे वह For Private and Personal Use Only Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 705 ) संयुक्त होता है, नाना प्रकार के परिवर्तन होते हैं। पीछे हटाना, निकाल देना, बंद कर देना-प्रतिउदा०--अर्टि बन्धू भौंहों में बल डालना, स्योरी बध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः-रषु० 1179 चढ़ाना, मुष्टि बन्ध मुट्ठी बाँधना, अञ्जलि बन्छ नम्र 5. रोकना, हस्तक्षेप करना-मैनमन्तरा प्रतिबध्नीतम् निवेदन के लिए हाथ जोड़ना, चित्तं, धियं, श० 6, सम्- 1. मिला कर बांधना या कसना, एकत्र मनः, हदयं, बन्ध मन लगाना, दिल लगाना, करना, संयुक्त करना, साथ लगाना 2. संरचन करना, प्रीति, भावं, रागं बन्ध, प्रेमपाश में बद्ध होना, बनाना-दे० संबद्ध। मुग्ध होना,-सेतुं बन्धु पुल बनाना, सेतु का निर्माण वन्धः [वन्ध-घञ] 1. ग्रन्थि, बन्धन---यथा-आशाबन्ध) करना, वरं बन्ध् घृणा पैदा होना, शत्रुता, 2. वालों को बांधने की पट्टी, फीता -विक्रम०४।१०, सख्यं, सौहदंबन्ध मंत्री करना, गोलं बन्ध गोल श० 130 3. श्रृंखला, वेड़ी 4. बेड़ी डालना, बाँधना, मंडलं बन्ध, मंडल बनाना, गोल बांध कर कारागार में डालना, जेल में बंद करना- मनु० बैठना, मौनं बन्ध, चुप्पी साधना, परिकर बन्ध , कक्षा 81310 5. बोचना, पकड़ना, पकड़ लेना--गजबन्ध बन्ध कमर कसना, तैयार हो जाना दे० बद्ध के नीचे ---रघु० 16 / 2 6. निर्माण, संरचना, व्यवस्थापन समस्त शब्द, प्रेर० - बंधवाना, बनवाना, रचवाना, ...-सर्गबन्धो महाकाव्यम–सा.द. 6 7. भावना, निर्माण करवाना--रघु० 12170, अनु -1. बांधना, धारणा, विचारना-- हे राजानस्त्यजत सुकविप्रेमबन्धे जकड़ना --शि० 8 / 69 2. लग जाना, चिपकना, जुड़ विरोधम्-विक्रमांक०१८।१०७,रघु०६८१ 8. संयोग, जाना-- तान्येवाक्षराणि मामनुबध्नन्ति उत्तर० 3, मिलन, अन्तः सम्पर्क 9. जोड़ना, मिलाना, मिश्रण 3. उपस्थित रखना, चुपचाप अनुसरण करना, पद करना-रषु०१४।१३, अञ्जलिबन्ध आदि 10. पट्टी, चिह्नों पर चलना मधुकरकुलरनुबध्यमानम् का. तनी 11. सहमति, सामनस्य 12. प्रकटीकरण, प्रदर्शन, 139, को नु खल्वयमनुबाध्यमानस्तपस्विनीभ्यामबाल- निरूपण--रघु० 18152 13.बंधन, भवबंधन (विप० सत्त्वो बाल: श० 7 4. दबाव डालना, प्रेरित करना, मुक्ति०---अर्थात् सांसारिक बंधनों से पूर्ण मोक्ष) बन्धं अत्यंत आग्रह करना, आ --, 1. बांधना जकड़ना, मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी--भग. कसना-मनु० 111205 2. बनाना, निर्माण करना, 18130, बन्धान्मुत्य खलु मखमुखान् कुर्वते कर्मव्यवस्थित करना----आबद्धमण्डला तापसपरिषद--का० पाशान्--भामि० 4 / 21, रघु० 13 / 58, 187 49, आबद्धमालाः ---मेघ० 9, भट्टि० 3 / 30, कि० 14. फल, परिणाम 15. स्थिति, अंगविन्यास,---आसन५।३३,-आबद्धरेखमभितो नवमञ्जरीभिः--गीत०११ बन्धधीरः--रघु० 2 / 6 कु. 3 / 45, 59 16. मैथुन 3. स्थिर करना, जमाना, निदेशित करना-रघ० करते समय विशेष आसन, रतिबंध, (रतिमंजरी में 1140, उद्---, बांधना, लटकाना - कठमुद्बध्नाति इस प्रकार के 16 आसन बताये गये हैं, जब कि और -मुद्रा० 6, रघु०१६।६५, नि , बांधना, कसना / लेखक 84 तक बढ़ा देते हैं) 17. गोट, किनारी, रूप जकड़ना, श्रृंखलित करना, वेड़ी में बांधना आत्म- रेखा, ढांचा 18. किसी श्लोक का कोई विशिष्ट रूपवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय भग० 4 / 41, उदा० खङ्गबंध, पद्मबंध, मजबंध-काव्य० 9 9 / 9, 147, 18 / 17, मनु० 674, कु० 5 / 10 19. स्नाय, कण्डरा 20. शरीर 21. अमानत, धरोहर / 2. स्थिर करना, जमाना -त्वयि निवद्धरतं विक्रम सम० --करणम् बेड़ी डालना, कारागार में डालना, 4 / 29 3. बनाना, निर्माण करना, संरचना करना - तन्त्रम् पूरी सेना या चतुरंगिणी सेना अर्थात् गजाव्यवस्थित करना-हेमनिबद्ध चक्रम्, पाषाणचयबद्धः रोही, अश्वारोही, रथारोही तथा पदाति,-पाष्यम् कपः आदि 4. लिखना, रचना करना - मया निबद्धेय- अस्वाभाविक या कृत्रिम शब्दरचना,-स्तम्भः पशुओं मतिद्वयी कथा-क० 5, निस् , दबाव डालना, प्रेरित को बांधने का खूटा (उदा० हाथी आदि)। करना, अत्यंत आग्रह करना, परि -,1. कसना, बाँधना | बन्धकः [बन्ध वल] 1. बांधने वाला, पकड़ने वाला 2. पहनना 3. घेरा डालना, चारों ओर से बांधना 2. बोचने वाला 3. बंध, गांठ, रस्सी, चमड़े का तस्मा 4. गिरफ्तार करना, ठहराना 5. विघ्न डालना, 4. मेंढ, किनारा, बांध 5. धरोहर, अमानत 6. शरीर रुकावट डालना, प्रति , 1. कसना, जकड़ना, बांधना का अंगन्यास 7. अदलाबदली, विनिमय 8. भंग करने ---पोतप्रतिबद्धवत्साम् (धेनुम्) -रघु० 211 2. स्थिर वाला, तोड़ने वाला 9. प्रतिज्ञा 10. नगर 11. भाग करना, निदेशित करना, कु० 7.91 3. खचित करना, या अंश (द्विगु समास के अन्त में)-ऋणं सदशबन्धकम् जड़ना, मढ़ना-यदि मणिस्त्रपुणि प्रतिबध्यते पंच ------याज्ञ०२।७६,-कम बांधना, सीमित करना,-की 1175, बहलानुरागकुरुविन्ददलप्रतिबद्धमध्यमिव दिग्व- 1. असती स्त्री-न मे त्वया कौमारबन्धक्या प्रयोजनम् लयम-शि० 98 4. अवरोध करना, विघ्न डालना, ' -मा० 7, वेणी० 2 2. वेश्या, वारांगना--बलात् धान्मुक्त्य 21, रघु त्यास, आसमान 89 For Private and Personal Use Only Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 706 ) तोसि मयेति बन्धकीधार्टयम्-का० 237, / कर्तव्य-त्वयि तु परिसमाप्तं बन्धुकृत्यं प्रजानाम् - श० 3. हथिनी। 5 / 8 2. मैत्रीपूर्ण कार्य या सेवा कच्चित्सौम्य व्यवबन्धनम् बन्ध+ल्युट] 1.बाँधने की क्रिया, जकड़ना, कसना, सितमिदं बन्धुकृत्यं त्वया मे- मेष. ११४,--जनः कु०४८ 2. चारों ओर से बाँधना, लपेटना, आलिंगन 1. रिस्तेदार, भाई-बंधु 2. बंधुवर्ग, स्वजन, - जीवः,-विनम्रशाखाभुजबन्धनानि-कु०३।३९, घटय भुज जीवकः वृक्ष का नाम-बन्धुजीवमधुराधरपल्लवमुल्लबंधनम्-गीत०१०, रघु० 19 / 17 3. गांठ, प्रन्थि सितस्मितशोभेम्-गीत० 2, रघु० १११२५,--दत्तम् (आलं० से भी) रघु० 12176, आशाबन्धनम् आदि एक प्रकार का स्त्रीधन या स्त्री की संपत्ति, विवाह के 4. बेड़ी डालना, जंजीर से बाँधना, कैद करना अवसर पर कन्या के संबन्धियों द्वारा कन्या को दिया 5. श्रृंखला, बेड़ी, पगहा, रज्जु आदि 6. गिरफ्तार गया धन-~-याज्ञ० 21144, -प्रीतिः ( स्त्री०) करना, पकड़ना 7. बांधना, कैद, जेल, कारा, जैसा 1. रिस्तेदार का प्रेम-बन्धुप्रीत्या-मेघ० 49 2. मित्र कि 'बन्धनागार' में 8. बन्दीगृह कारागार, जेलखाना. के लिए प्रेम,—भावः 1. मित्रता 2. रिश्तेदारी-वर्गः --त्वां कारयामि कमलोदरबन्धनस्थम् / श०६।२०, भाई-बन्धु, स्वजन,-हीन (वि.) बंधुबांधवों या मित्रों मनु० 9 / 286 1. बनाना, निर्माण, संरचना,-सेतु से रहित / बन्धनम् कु० 4 / 6 10. संयक्त करना, मिलाना, बन्धुक: 1. बंधुजीव नामक पेड़ 2. हरामी (सन्तान) वर्णजोड़ना 11. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना 12. डंडौ, संकर,- का, की असती स्त्री (दे० बंधकी)। डंठल, (फूल का) वृन्त-श० 36, 618, कु० | बन्धुता [ बन्धु+तल+टाप् ] 1. रिश्तेदार, भाई-बंधुः 4 / 14 13. स्नायु, पुट्ठा 14. पट्टी। सम० स्वजन (सामूहिक रूप से) 2. रिश्तेदारी, संबंध / - आ(आ)गारः,-रम्,-आलयः कारागार, जेलखाना, | बंधुवा [ बन्धु+दा+क+टाप् ] असती स्त्री। -प्रन्यिः 1. पट्टी की गांठ 2. जाल 3. पशुओं को | बंधुर (वि.) [बं+उरच ] 1. डांवाडोल, लहरदार, बांधने का रस्सा,--पालकः, रक्षिन् (पुं०) काराध्यक्ष, ऊँचा-नीचा-शि० 7.34, कु० 142 2. झुका हुआ, जेल का अधीक्षक, वेश्मन् (नपुं०) कारागार-स्थ: रुझान वाला, विनत - बन्धुरगात्रि-रघु० 13147, बंदी, कैदी,-स्तम्भः खूटा, (हाथी आदि पशुओं को (-सनतांगि) 3. टेढ़ा, वक्र 4. सुहावन, मनोहर, बांधने का) खंभा,-स्थानम् अस्तबल, घुड़साल। सुन्दर, प्रिय-श०६।१३, (यहाँ इसका अर्थ 'डांवाबंधित (वि.) [बंध+इतच्] 1. बंधा हुआ, जकड़ां डोल' भी है) 5. बहरा 6. हानिकर, उत्पातप्रिय, हुबा 2. कैदी, बंदी। -र: 1. हंस 2. सारस 3. औषधि 4. खलीं 5. योनि, बन्धित्रः [बंध् + इत्र ] 1. कामदेव 2. चमड़े का पंखा --राः (ब० व.) मुर्मरे या खाद्य पदार्थ,-रा असती 3. धब्बा, मस्सा। स्त्री, -- रम् मुकुट, ताज / बन्धुः [.बन्ध+उ] 1. रिस्तेदार, बंध, बांधव, संबंधी-यत्र | बन्षुल (वि.) [बन्धु+उलच् ] 1. झुका हुआ, वक्र, द्रुमा अपि मृगा अपि बन्धवो मे - उत्तर० 318, मातृ- रुझान वाला 2. सुहावन, खुशनुमा, आकर्षक, सुन्दर, बन्धुनिवासनम् - रघु० 12 / 12, श० 6 / 22, भग० -ल: 1. हरामी (संतान)-परगहललिताः परान्नपुष्टाः 69 2. किसी प्रकार के संबंध से बंधा हुआ, भाई, परपुरुषर्जनिताः पराङ्गनास, परधननिरता गुणेष्ववाच्या -प्रवासबन्धुः सह यात्री, धर्म बन्धुः आध्यात्मिक भ्राता गजकलभा इव बन्धुला ललाम:- मृच्छ० 4 / 28, -श. 49 3. (विधि में) सजातीय बंधुजन, (विदूषक के प्रश्न 'भोः के ययं बन्धुला नाम ?' का अपना निजी सगोत्र बंधु (बंधु तीन प्रकार के हैं: - यह उत्तर है जो स्वयं बंधलों ने दिया) 2. वेश्या आत्म, पितृ तथा मात) 4. मित्र (जैसा कि नीचे का सेवक 3. बंधूक नाम का पेड़। 'बंधुकृत्य' में) प्रायः समास के अन्त में--मकरन्दगन्ध- बन्धकः [बन्ध + ऊक] एक वृक्ष का नाम-तव करनिकरण बन्यो-मा० 1236, 'गंध का मित्र अर्थात् सुवासित' स्पष्टबन्धकसूनस्तबकरचितमेते शेखरं बिभ्रतीव-शि० 9 / 13 5. पति–वैदेहिबंघोहृदयं विदद्रे - रघु० 11146, ऋतु० ३१५,---कम् इस वृक्ष का फूल 14 // 33 6. पिता 7. माता 8. भ्राता 9. बंधुजीव - बन्धूकद्युतिबान्धवोऽयमघरः-गीत० 10, ऋतु० नाम का वृक्ष 10. वह व्यक्ति जिसका किसी जाति 3 / 25 / या व्यवसाय से नाममात्र का संबंध हो, अर्थात् जो बन्धूर (वि.) [बन्ध-न-ऊरच् ] 1. डांवाडोल, उन्नतावनत जाति में जन्म लेकर अपनी उस जाति के कर्तव्यों का 2. झुका हुआ, रुझानवाला, विनत 3. सुहावना, पालन न करता हो (प्रायः तिरस्कारसूचक शब्द) / खुशनुमा, प्रिय, तु० बंधुर,-रम् छिद्र, सूराख / स्वमेव ब्रह्मबन्धुनोद्भिन्नो दुर्गप्रयोगः-मालवि० 4, बन्धूलिः [बंध+ऊलि ] बन्धुजीव नामक वृक्ष / तु. मात्रबंषु / सम-कृत्पम् 1. सगोत्रबंधु का | बल्य (वि.) [बन्ध + ण्यत्] 1. बांधे जाने के योग्य, बेड़ी For Private and Personal Use Only Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 707 ) द्वारा जकड़े जाने योग्य, कैद किये जाने या बन्दी जोश में भरकर उसने अर्जन पर एक अर्धचन्द्राकार बनाये जाने के योग्य —याज्ञ. 20243 2. मिलाकर बाण छोड़ा जिससे उसका सिर धड़ से अलग हो बाँधने या जोड़ने के योग्य 3. निर्माण किये जाने के गया। संयोगवश उस समय वहाँ चित्रांगदा के पास योग्य, बनाये जाने या संचरित किये जाने के योग्य उलूपी विद्यमान थी, उसने अर्जुन को पुनर्जीवित कर 4. निरुद्ध, निगृहीत 5. बाँझ, बंजर, जो उपजाऊ न दिया। अर्जुन ने भी बभ्रुवाहन को अपना सच्चा पुत्र हो, निष्फल, निरर्थक (व्यक्ति या वस्तु)-बन्ध्यश्रमास्ते मान लिया और अपनी यात्रा पर आगे चल दिया)। -रघु० 1675, अबन्ध्ययत्नाश्च बभूवर ते-३।२९, बम्ब (भ्वा० पर० बंबति) जाना, चलाना-फिरना। कि० 1133 6. जिसका मासिक रजःस्राव आना बन्द बम्भरः [भू+अच, द्वित्वं मम् च ] मधुमक्खी, भौंरा / हो गया हो 7. ( समास के अन्त में ) विहीन, बम्भराली बम्भर+अल+अच्+ङीष् ] मक्खी / विरहित ! सम० --फल (वि.) निरर्थक, अर्थहीन, बरटः [वृ+अटन्, बवयोरभेदः ] एक प्रकार का अन्न / सुस्त। बर्व (स्वा० पर बर्वति) जाना, चलना-फिरना / बन्ध्या [बन्ध्य-टाप] बाँझ स्त्री नहि बन्ध्या विजानाति बर्बटः (बर्व+अटन् ] एक प्रकार का अनाज, राजमाष / गुर्वा प्रसववेदनाम् —सुभा० 2. बाँझ गौ 3. एक प्रकार बर्बटी [बर्बट-डीष ] 1. एक प्रकार का अन्न, राजमाष का गन्धद्रव्य (बालछड़)। सम०---तनयः,-पुत्रः 2. वेश्या, रंडी। ---सुतः या ---दुहित,- सुता बाँझ स्त्री का पुत्र या | बर्बणा (स्त्री०) नीली मक्खी। पुत्री अर्थात् घोर असंभाव्यता, जिसका न अस्तित्व है | बर्बरः [+अरच, बुट बवयोरभेदः] 1. जो आर्य न हो, न हो सकता है, एवं बन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखरः | अनार्य, असभ्य, नीच 2. मूखं, बुद्ध-शृणु र बबर —दे० 'खपुष्प' / ___--हि०२। बंध्रम् [ धंध+ष्ट्रन ] बन्धन, गाँठ। | बर्बुरः [बर्ब +उरच एक वृक्ष, बाभल-उपसर्गम भवन्तं बभ्रवी [ बभ्रु: अण् + ङीप्, नवृद्धि ] दुर्गा की उपाधि / बर्तुर वद कस्य लोभेन--भामि० 1 / 24 / / बभ्रु (वि.) [ भृ+कु, द्वित्वम्-बभ्रू+उ वा ] 1. गहरा बर्ह (भ्वा० आ० बर्हते) 1. बोलना 2. देना 3. ढकना भूरा, खाकी, लाली लिये हुए भूरा-ज्वालाबभ्र 4. क्षति पहुंचाना मार डालना, नष्ट करना शिरोरुहः - रघु० 15 / 16, 19125, बवन्ध बालारुण ____5. फैलाना, नि-, मार डालना, नष्ट करनाबभ्रु वल्कलम् --कु० 5 / 82 किसी रोग के कारण शि० 1129 / गंजे सिर वाला, भ्रुः 1. आग, 2. नेवला 3. खाकी | वहः,-हम् [ बह +अच् ] 1. मोर की पूंछ-दवोल्काहतरंग 4. भूरे बालों वाला 5. एक यादव का नाम-शि० शेषबहाः-रघु० 16 / 14 (केशपाशे) सति कुसुम 2 / 40 6. शिव का विशेषण 7. विष्ण का विशेषण / सनाथे के हरेदेष बहः-विक्रम० 4110, पाठान्तर सम० ---धातुः 1. सोना 2. गेरु, सूवर्णगरिक,--वाहनः 2. पक्षी की पूंछ 3. पूंछ का पंख (विशेषकर मोर चित्रांगदा के गर्भ से उत्पन्न अर्जन का एक पुत्र, की) मेघ० 44, कु० 1115, शि०८1११ 4. पत्ता [युधिष्ठिर द्वारा छोड़े गये अश्वमेध के घोड़े की देख- अपाण्डुरं केतकबहमन्यः-रघु०६।१७ 5. अनुचरवर्ग, भाल अर्जुन करता था। वह घोड़ा घूमता हुआ नौकर-चाकर। सम-भारः 1. मोर की पंछ मणिपुर देश में चला गया। उस समय वहाँ बभ्रुवाहन 2. मोरछल, लाठी की मठ में बंधा मोर के पंखों राज्य करता था। वह अद्वितीय पराक्रमी था। जब का गुच्छा / वह घोड़ा उसके पास लाया गया और उसने घोड़े के वर्हणम् [बर्ह + ल्युट ] पत्ता। सिर पर बँधे पट्ट पर 'पांडवों' का नाम पढ़ा तथा यह बहिः [बह +इन् ] आग-(नपुं०) कुश नामक घास / जाना कि उसके पिता अर्जन राज्य में आ गए हैं तो बहिणः [बह +इनच् ] मोर-आवासवृक्षोन्मुखबहिणानि शीघ्रता से वह उनके पास गया, बड़े सम्मान, के (बनानि) रघु० 2 / 17, 16 / 14, 19 / 37 / सम. साथ अपना राज्य और कोष, अश्वसहित उनके सामने --वाजः मोर के पंख से युक्त बाण,--वाहनः कातिप्रस्तुत किया। अर्जुन ने उस बुरे समय में बभ्रुवाहन केय का विशेषण। के सिर पर प्रहार किया और उसकी कायरता के | बहिन (पुं०) [बह+इनि] मोर-रघु० 16.64, लिए उसे डाँटा, फटकारा और कहा कि यदि वह सच्चा पराक्रमी होता, तथा अर्जुन का सच्चा पुत्र -पुष्पम् एक प्रकार का गंधद्रव्य, ध्वजा दुर्गा का होता तो उसे अपने पिता से डरना नहीं चाहिए था, विशेषण,---यानः,-वाहनः कार्तिकेय का विशेषण / और न इस प्रकार दीनता दिखलानी चाहिए थी।। बहिस् (पुं०, नपुं०) [बह +(कर्मणि) इसि] कुश नामक इन शब्दों से उस वीर युवक को अत्यन्त क्रोध आया, घास-कु० 1160 2. बिस्तरा या कुशवास का 16 / 64, gem2,4110, ऋतु० 6 न पिता से डरना नहीं सच्चा पुत्र For Private and Personal Use Only Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 708 ) बिछौना-(पुं०) 1. आग 2. प्रकाश, दीप्ति (नपुं०)। __ में अव्यवस्था, गदर, विद्रोह,---चक्रम् 1. उपनिवेश, 1. जल 2. यज्ञ / सम०-केश.----ज्योतिः (पुं०) साम्राज्य 2. सेना, समूह, जम् 1. नगर का फाटक, आग का विशेषण,---मुखः (बहिर्मुखः) 1. आग का मुख्यद्वार 2. खेत 3. अनाज, अन्न का ढेर, शि० 1417 विशेषण 2. देवता (जिसका मुख अग्नि है),-शुष्मन् 4. युद्ध, लड़ाई 5. वसा, मज्जा ( जा) 1. पृथ्वी (पु.) आग का विशेषण,-- सद् (बहिषद्) (f 2. सुन्दरी स्त्री 3. एक प्रकार की चमेली, दः बैल, कुशनामक घास के आसन पर बैठा हुआ (पुं०) बलीवर्द,-दर्पः शक्ति का अभिमान,-देवः 1. वायु, पितर (ब०व०)। - -हवा 2. कृष्ण के बड़े भाई का नाम दे० नी० i (भ्वा० पर. बलति) 1. सांस सेना, जीना 'बलराम',.. द्विष् (पुं०)- निषूदनः इन्द्र के विशेषण 2. अनाज संग्रह करना ii (भ्वा० उभ० बलति-ते) —बलनिषूदनमर्थपति च तम् रघु० ९१३,--पतिः 1. देना 2. चोट पहुंचाना क्षति पहुँचाना, मार डालना 1, सेनापति, सेनानायक 2. इन्द्र का विशेषण,-प्रद 3. बोलना 4. देखना, चिह्न लगाना। प्रेर०-(बालयति (वि०) ताकत देने वाला, बलवर्धक,-- प्रसः बलराम ते) पालना-पोसना, भरणपोषण करना। की माता रोहिणी, भद्र: 1. बलवान् मनुष्य 2. एक प्रकार का बैल 3. बलराम का नाम, दे० नी० बलम् [बल+अच् ] 1. सामर्थ्य, शक्ति, ताकत, वीर्य, 4. लोध्र नामक वृक्ष, भिद् (पुं०) इन्द्र का विशेषण ओज 2. जबरदस्ती, हिंसा जैसा कि 'बलात्' में 3. सेना, चम्, फौज, सैन्यदल-भवेदभीष्ममद्रोणं -- श० 2, भत् (वि.) बलवान्, शक्तिशाली, .... रामः 'बलवान् राम' कृष्ण के बड़े भाई का धृतराष्ट्रबलं कथम्-वेणी० 3 / 24,43, भग० 1110, नाम (यह वसुदेव और देवकी का सातवाँ पुत्र रघु० 16 // 37 4. मोटापन, पुष्टि (शरीर की) 5. शरीर, आकृति, रूप 6. वीर्य, शुक्र 7. रुधिर था, कंस की क्रूरता का शिकार होने से बचाने 8. गोंद, रसगंध (लोबान की तरह का सुगंधित गोंद) के लिए यह रोहिणी के गर्भाशय में स्थानान्तरित 9. अंकुर, अँखुवा, (बलेन 'सामर्थ्य के आधार पर', कर दिया गया। यह और कृष्ण दोनों का 'की बदौलत' बाहुबलेन जितः, वीर्यबलेन'.", बलात् गोकुल में नन्द द्वारा पालन-पोषण किया गया। जब 'बलपूर्वक' 'जबरदस्ती' 'हिंसापूर्वक' 'इच्छा के विरुद्ध' यह बालक ही था तो इसने शक्तिशाली राक्षस धेनुक बलानिंद्रा समायाता-पंच० 1, हृदयमदयें तस्मिन्नेवं और प्रलंब को मार गिराया, तथा अपने भाई कृष्ण पूनर्वलते बलात्-गीत०७),--ल: 1. कौवा 2. कृष्ण की भांति अनेक आश्चर्यजनक काम किये। एक बार के बड़े भाई का नाम- दे० नी० 'बलराम' 3. एक मदिरा के नशे में जिसका कि वह बहुत शौकीन था राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने मारा था / सम० यमुना नदी को निकट आने का आदेश दिया जिससे -अग्रम् अत्यधिक सामर्थ्य, शक्ति (--ग्रः) सेना कि वह स्नान कर सके; जब उसकी आज्ञा पर ध्यान का प्रधान, अंगकः बसन्त-हेम० १५६,—अञ्चिता नहीं दिया गया तो उसने अपने हल की फाली से बलराम की वीणा,---अट: एक प्रकार का शहतीर, यमुना नदी को खींचा; अन्त में यमना ने मनुष्य का -अधिक (वि०) सामर्थ्य में बढ़चढ़ कर, अत्यंत रूप धारण कर उससे क्षमा मांगी। एक दूसरे अवबलशाली,- अध्यक्षः 1. सेनापति मनु० 7 / 182, सर पर उसने दीवारों समेत समस्त हस्तिनापुर को 2. युद्धमंत्री,-अनुजः कृष्ण का विशेषण,-अन्वित अपनी ओर खींचा। जिस प्रकार कृष्ण पांडवों के (वि०) सामर्थ्य से युक्त, बलवान्, शक्तिशाली, प्रशंसक थे, उसी प्रकार बलराम कौरवों के प्रशंसक ---अबलम् 1. तुलनात्मक सामर्थ्य और असमर्थता, थे जैसा कि उसकी इस बात से प्रकट होता है कि आपेक्षिक सामथ्र्य तथा दुर्बलता-- रघु० 17159 वह अपनी बहन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना 2. आपेक्षिक सार्थकता तथा नगण्यता, तुलनात्मक चाहता था न कि अर्जुन से। इतना होते हुए भी महत्त्व तथा महत्त्वशून्यता-समय एव करोति बला- उसने महाभारत के युद्ध में न पांडवों का पक्ष लिया बलम्-शि०.६६४४,अनः बादल के रूप में सेना, और न कौरवों का। इसका वर्णन नीली वेशभूषा -अरातिः इन्द्र का विशेषण,-अवलेपः सामर्थ्य का धारण किये हुए 'हल' से जो कि उसका अत्यंत प्रभावअभिमान,---अश:,—असः 1. क्षयरोग, तपेदिक 2. कफ शाली शस्त्र था, सुसज्जित किया जाता है। उसकी का आधिक्य 3. गले में सूजन (आहार नली का पत्नी का नाम रेवती था। कई बार इसे शेषनाग अवरोष), आत्मिका एक प्रकार का सूरजमुखी फूल, का अवतार और कई बार विष्णु का आठवाँ अवहस्तिशृंडी,-आहः पानी,- उपपन्न,- उपेत (वि.) तार समझा जाता है-तु० गीत०),--विन्यासः सन्य सामध्ये से युक्त, मजबूत, शक्तिशाली,-ओघः सैन्य- दल की व्यहरचना,-व्यसनम् सेना की हार,--सूदनः बल का समह, असंख्य सेना-शि० ५।२,-क्षोभः / / इन्द्र का विशेषण,-स्थः योद्धा, सैनिक,--स्थितिः For Private and Personal Use Only Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 709 ) (स्त्री०) 1. शिविर, पड़ाव 2. राजकीय छावनी, | धार्मिक) नीबारबलि विलोकयतः-श० 4120, -हन (पुं०) इन्द्र का विशेषण,-हीन (वि.) 1149 2. दैनिक आहार (चावल, अनाज तथा पी वलहीन, दुर्बल, अशक्त / आदि) में से कुछ अंश का सब जीवों को उपहार, बलक्ष (वि.) [ बलं क्षायत्यस्मात्-क्षे+क ] श्वेत--द्विर (इसे 'भूतयज्ञ' भी कहते हैं) दैनिक पंच महायज्ञों में ददन्तबलक्षमलक्ष्यत स्फुरितभङ्गमगच्छवि केतकम् से एक, बलिवैश्वदेव यज्ञ (दे० मनु० 33691) -शि० 6 / 34 / सम० - गुः (गो 'किरण' का इसका अनुष्ठान घर के द्वार के निकट, भोजन करने रूपान्तर) चन्द्रमा-यथानत्यर्जुनाब्जन्मसदक्षाको बल- से पूर्व दैनिक आहार का कुछ अंश बाहर आकाश में क्षगुः -- काव्या० 1146, (गौडीयों के प्रसाद गुण का फेंक कर किया जाता है यासां बलि: सपदि मदंगएक उदाहरण)। हदेहलीनां हंसश्च सारसगणश्च विलुप्तपूर्वः-मच्छ. बललः [ बल+ला+क] इन्द्र का विशेषण। 119 3. पूजा, आराधना-कु. 160, मेघ० 55, श. बलवत् (वि०) [बल+मतुप ] 1. मजबूत, शक्तिशाली, 4 4. उच्छिष्ट 5. देवमूर्ति पर चढ़ाया नैवेद्य 6. शुल्क, ताकतवर-विधिरहो बलवानिति मे मतिः-भर्तृ० कर, चुंगी-प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलि२।९१ 2. बलिष्ठ, हट्टा-कट्टा 3. सघन, घिनका (अंध मग्रहीत् --रघु० 1118, मनु० 780, 81007, कार आदि) 4. अधिभावी, सर्वप्रमुख, प्रभविष्णु 7. चंवर का डंडा 8. एक प्रसिद्ध राक्षस का माम (यह बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति-मनु० 2 / 215 प्रह्लाद के पुत्र विरोचन का पूत्र था, बहत शक्तिशाली 5. अति महत्त्वपूर्ण, अत्यावश्यक-रघु० 14 / 40 था, देवताओं को अत्यंत पीडित करता था। फलस्व(अव्य०) 1. मजबूती से, शक्ति के साथ-पुनर्व- रूप देवताओं ने विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। शित्वादलवद्विगृह्य-कु० 3169 2. अत्यधिक, अत्यंत, विष्णु ने कश्यप और अदिति का पुत्र बन कर वामन अतिशय मात्रा मे-बलवदपि शिक्षितामात्मन्यप्रत्ययं का अवतार धारण किया। उसने साधु का वेश धारण चेतः--श०१२, शीताति बलबदुपेयषेव नीरः - शि० किया। और बलि के पास जाकर उससे तीन पग 8 / 62, श० 5 / 31 / पृथ्वी मांगी। स्वभाव से उदार बलि न निस्संकोच बला [बल+अच-+टाप्] शक्तिसंपन्न ज्ञान या मन्त्रयोग प्रकट रूप से इस सामान्य प्रार्थना को स्वीकार कर (यह योग विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को बतलाया लिया। परन्तु शीघ्र ही वामन ने अपना विराट रूप था)-तौ बलातिबलयोः प्रभावतः - रघु०११।९। दिखलाया और तीन पग मापना शुरु किया। पहले बलाकः,-का [ बल+अक्+अच, स्त्रियां टाप् च ] बगला, पग से उसने सारी पृथ्वी को आच्छादित कर लिया, -~-सेविष्यते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः मेघ० दूसरे से समस्त अन्तरिक्ष को और तीसरे पग के लिए 9, मृच्छ० 5 / 18, 19,- का प्रिया, कान्ता / स्थान न पाकर उसे बलि के सिर पर रख दिया, बलाकिका [ बलाका+कन्+टाप्, इत्वम् | छोटी जाति और राजा बलि को उसकी असंख्य सेना समेत पाताल बगला। लोक भेज कर वहाँ का शासक बना दिया। इस बलाकिन् (वि.) [बलाका-इनि 1 बगलों या सारसों प्रकार विश्व एक बार फिर इन्द्र के शासन में बा से भरा हुआ-कालिकेव निबिड़ा बलाकिनी-रघु० गया) छलयसि विक्रमणे बलिमभृत-वामन-गीत. 11 / 15, कु०७।३९ / 1, रघु० 7 / 35, मेघ० 57, - लि: (स्त्री०) तह, बलात्कारः [ बल+अत्+विवप्= बलात्-+ कृ०+अण् ] झरौं (प्रायः 'बलि' लिखा जाता है)। सम० --कर्मन् 1. हिंसा का प्रयोग करना, बल लगाना 2. सतीत्व (नपुं०) 1. सब जीवजन्तुओं को भोजन देना 2. कर नाशन, विनयभंग, बल, अत्याचार, छीनाझपटी-रघु० अदायगी, वानम् 1. देवता को नैवेद्य अर्पण करना 10 / 47, बलात्कारेण निर्वर्त्य आदि 3. अन्याय 2. सब जीव जंतुओं को भोजन देना,-ध्वंसिन् (पुं०) 4. (विधि में) उत्तमर्ण द्वारा अघमर्ण को रोकना विष्णु का अवतार,-नन्दनः - पुत्रः, सुतः बलि के तथा ऋण की वापसी के लिए बल का प्रयोग करना / पुत्र बाण का विशेषण,- पुष्टः,-भोजनः कौवा,-प्रियः बलातत (वि.) [बलात्++क्त] जिसके साथ जबर- लोध्र वृक्ष, बन्धनः विष्णु का विशेषण,-भज(पुं०) दस्ती की गई हो या जो परास्त कर दिया गया हो / 1. कौवा 2. चिड़िया 3. बगला या सारस,-मन्दिरम्, बलाहक: [बल+आ+हा+कून ] 1. बादल- बलाह- ---- वेश्मन् -- सद्मन् (नपुं०) पाताल लोक, बलि का कच्छेदविभक्तरागामकालसन्ध्यामिव धातुनत्ताम्- कु. आवासस्थान,-व्याकुल (वि०) पूजा में अथवा सब 114 2. एक प्रकार का बगला या सारस 3. पहाड़ जीव जन्तुओं की भोजन देने वाला - मेघ०८५-हन् 4. प्रलयकालीन सात बादलों में से एक / (पुं०)विष्णु का विशेषण,-हरणम् सब जीव जन्तुओं बलिः [बल+इन् ] 1. आहुति, भेंट, चढ़ावा (प्रायः / / को भोजन देना। For Private and Personal Use Only Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 710 ) बलिन् (वि.) [बल+इनि ] मजबूत, शक्तिशाली, बस्तः [बस्तु +घा बकरा। सम-कर्णः साल वृक्ष / ताकतवर, रघु० 16 / 37, मनु० ७।१७४--(पुं०) | बहल (वि.) [बहु, +अलच्] 1. अत्यधिक, यथेष्ट, प्रचुर, 1. भैसा 2. सूअर 3. ऊँट 4. साँड़ 5. सैनिक 6. एक पुष्कल, बहुबिध, महान्, मजबूत --उत्तर० 1138, प्रकार की चमेली 7. कफात्मक वृत्ति 8. बलराम का 3 / 23, शि०९।८, भामि० 4 / 27 2. घिनका, सघन विशेषण। 3. लोमश (पूंछ की भांति)-मा० 3 4. कठोर, दृढ़, बलिन, बलिभ [वलि+न, भवा, बवयोरभेदः ] दे० सटा हुआ,-लः एक प्रकार का इक्षुरस, ईख, गन्ना, 'वलिन - भ'। -ला बड़ी इलायची। सम०-गन्धः एक प्रकार मलिन्दमः [बलि+दम् +खच्, मुम्] विष्णु का विशेषण। का चंदन। बलिमत (वि.) [ बलि+मतुप् ] 1. पूजा या आहुति की | बहिस (अव्य) [वह इसन ] 1. में से. बाहर (अपा० सामग्री तैयार रखने वाला - रघु० 14 / 15 2. कर के साथ)-निवसन्नावसथे पुराबहिः ---रघु० 8 / 15, उगाहने वाला। 11129 2. बाहर की ओर, दरवाजे के बाहर (विप० बलिमन् (पुं०) [ बल+इमनिच् ] सामर्थ्य, ताकत, अन्तः) बहिर्गच्छ 3. बाह्यतः, बाहर की ओर से-अन्तशक्ति / बहिः पुरत एव विवर्तमानाम्-मा० 140, १४-हि. बलिवर्द दे० बलीवर्द। 1194 (बहिष्कृ 1. बाहर की ओर रखना, से निकाबलिष्ठ (वि०) [ बलवत् (बलिन्) +इष्ठन् ] अत्यन्त लना, हांक कर बाहर कर देना-मनु० 81380, बलशाली, अत्यन्त मजबूत, अतिशय शक्तिशाली, याज्ञ० 1193 2. जाति से बाहर करना, बहिर्गम्, -ठः ऊँट। -या,- इ बाहर जाना, चले जाना) / सम०-अङ्ग बलिष्णु (वि०) [ बल+ इष्णुच् ] अपमानित, अनादृत, (वि०) बाहर का, बाहर की ओर का (गम) 1. बाहरी तिरस्कृत। भाग 2. बाहरी अंग,---उपाधिः (बहिरुपाधिः) बाहरी बलीक: [ बल+ईकन् 1 छप्पर की मंडेर। दशा या परिस्थिति--मा० ११२४,चर (वि०) बाहर बलीयस् (वि.) (स्त्री०-सी) [ बलवत् (बलिन् / का, बाहर की ओर का, बाहर की तरफ का-बहिश्चराः ईयसुन् ] 1. अपेक्षाकृत मजबूत, अधिक शक्तिशाली प्राणा:-.-दश०,-द्वारम् बाहर का दरवाजा, दहलीज। 2. अधिक प्रभावी 3. अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण। (वि०) (स्त्री०-हु,-ह्वी) [बह +कु नलोपः-म. बली (री) वर्दः [वृ+क्विप्-वर,ई वश्च = ईवरो, तौ अ०-भूयस्, उ० अ०-भूयिष्ठ] 1. अधिक, पुष्कल, ददाति-दा+क, ईवर्द, बली चासौ ईवर्दश्च कर्म० प्रचुर, बहुत--तस्मिन् बहु एतदपि-श० 4, 'यह स० ] सांड़, बैल ---गोरपत्यं पुमान् बलीवर्दः / भी उसके लिए अधिक था' (इतना अधिक जितने बल्य (वि०) [बल+ यत् ] 1. मजबूत, शक्तिशाली की उससे अपेक्षा न की जा सके )-बहु प्रष्टव्यमत्र 2. शक्तिप्रद, ल्यः बौद्ध भिक्षु, ल्यम् वीर्य शुक्र / -----मुद्रा० 3, अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्-रधु० बल्लवः [ बल्ल-अच तं वाति वा+कः] 1. ग्वाला 2 / 47 2. अनेक, असंख्य ---यथा 'बह्वक्षर' और -कुजेष्वाक्रांत वीरुन्निचयपरिचया बल्लवाः संचरन्तु 'बहु प्रकार' में 3. बार-बार किया गया, दोहराया --वेणी० 6 / 2, शि० 1138 2. रसोइया 3. विराट गया 4. बड़ा, विशाल 5. भरापूरा, समद्ध (समास के के यहाँ भीम का नाम जब वह रसोइये का कार्य प्रथम पद के रूप में)-बहुकण्टको देश:-आदि-(अन्य०) करता था,-वी ग्वालिन-कि० 417 / सम० अति, बहुतायत से, अत्यधिक, अत्यंत, अतिशयपूर्वक, -युवतिः, ती (स्त्री०) जवान ग्वालिन (गोपी) बड़े परिमाण में 2. कुछ, लगभग, प्राय: जैसा कि हरिविरहाकुलबल्लवयुवतिसखीवचनं पठनीयम् 'बहुतण' में (कि बहुना अधिक, कहने से क्या लाभ ? --गीत० 4 / 'संक्षेप में' बहुमन् बहुत सोचना, बहुत मानना, ऊँचा बल्वजः-जा [?] एक प्रकार का मोटा घास-मनु० 2043 / मूल्य लगाना, बहुमूल्य मानना, कद्र करना-- त्वत्सबल्हिकाः, बल्हीकाः (ब० व०) एक (बलख) देश का भावितमात्मानं बहु मन्यामहे वयम् - कु० 6 / 20, तथा उसके अधिवासियों का नाम / ययातेरिव शर्मिष्ठा भर्तुर्बहुमता भव--श० 4 / 6, 7 / 1, बष्कय (वि०) [बष्क+अयन् | बहड़ा (एक वर्ष का रघु० 12189 भग० 2 / 35, भट्टि० 3 / 53, 5 / 84, बछड़ा)। 8 / 12) / सम०--अक्षर (वि०) अनेक अक्षरों बष्कय (यि) णी (नी) (स्त्री०) [बष्कय+इनि+ङीप्] वाला, (शब्द) बहुत से अक्षरों से बना हुआ,-अच, 1. वह गाय जिसका बछड़ा पूरा बढ़ गया हो...नै० ----अच्क (वि०) अनेक स्वरों से युक्त, बहुत स्वरों 16.92 2. बहुप्रसवी गाय (जिसके बहुत बछड़े पैदा बाला,-अप,-अपं (वि०) जलयुक्त,--अपत्य (वि०) अनेक संतानों से युक्त (त्यः) 1. सूअर 2. मूसा, बर For Private and Personal Use Only Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 711 ) चूहा, (त्या) वह गाय जिसके बहुत बछड़े बछड़ियाँ / भाषिन् (वि.) मुखर, वाचाल,-मजरी तुलसी का हैं।--अर्थ (वि०) 1. अनेक अर्थों से युक्त 2. बहुत / पौधा,--मत (वि.) बहुत माना हुआ, मूल्यवान्, से उद्देश्य रखने वाला 3. महत्त्वपूर्ण,-आशिन् (वि.) कीमती, सम्मानित,- मतिः (स्त्री०) बड़ा मूल्य, या बहुभोजी, पेटू,--उदकः एक प्रकार का भिक्षु जो मूल्यांकन-कि०७।१५,-मलम् सीसा,-मानः वड़ा अज्ञात नगर में निवास करता है तथा घर घर भिक्षा सम्मान या आदर, ऊँचा मूल्यांकन,-पुरुषबहुमानो मांग कर अपना निर्वाह करता है-तु० 'कुटीचक', विगलित:-भर्त० 3 / 9, वर्तमानकवेः कालिदासस्य -उपाय (वि.) प्रभावी, क्रियावान्,-अच् (वि.) क्रियायां कथं परिषदो बहुमान:-मालवि० 1, विक्रम अनेक ऋचाओं से युक्त, (स्त्री०) ऋग्वेद का नामान्तर, 112, कु. 5 / 31, (नम्) उपहार जो बड़ों द्वारा --एनस् (वि.) अति पापमय,-कर (वि०) अति- छोटों को दिया जाय,-मान्य (वि०) आदरणीय, क्रियाशील, व्यस्त, उद्योगी, (रः) 1. भनी, झाड़ देने माननीय, --माय कलामय, छलयुक्त, द्रोही- पंच. वाला 2. ऊंट, (रो झाडू,-कालम् (अव्य०) बहुत देर १२३२१,--मार्गगा गंगा-रत्न. १३,-मार्गी जहाँ तक,-कालीन (वि०) बहुत समय का, पुराना, प्राचीन, बहुत सी सड़कें मिलती हों,-मत्र (वि.) मधुमेह -कूर्चः एक प्रकार का नारियल का पेड़,-गन्धदा राग से पीडित,-मर्धन (वि.) विष्णु का विशेषण, कस्तूरी, मुश्क,-गन्धा 1. यथिका लता 2. चंपाकली, - मूल्य (वि.) मूल्यवान्, ऊंची कीमत का-मृग --गुण (वि.) 1. अनेक सद्गुणों से युक्त 2. कई (वि०) जहाँ बहुत से मृग हों,-रत्न (वि.) रत्नों प्रकार का, तरह-तरह का 3. अनेक धागों से युक्त, से समुद्ध,-रूप (वि०) 1. अनेक रूपी, बहुरूपी, -जल्प (वि.) बहुभाषी, मुखर, वाचाल,- (वि०) विश्वरूपी 2. चितकबरा, धब्बेदार, रंगविरंगा या बहुत जानकारी रखने वाला, अच्छा जानकार, सुविज्ञ, चारखानेदार, (पः) 1. छिपकली, गिरगिट 2. बाल - तृणम् कोई पदार्थ जो बहुघा घास की भांति हो 3. सूर्य, 4. शिव 5. विष्णु 6. ब्रह्मा 7. कामदेव, अतः महत्त्वशून्य या तिरस्करणीय हो--निदर्शनमसा- -- रेतस् (पुं०) ब्रह्मा का विशेषण,-रोमन् (वि.) राणां लघुर्बहुतृणं नरः-शि० 150, त्वक्कः, स्वच् बहुलोमी, रोंएदार (पु.) भेड़, - लवणम् लुनिया (पुं०) एक प्रकार का भोजवृक्ष,- दक्षिण (वि०) घरती,--वचनम् (व्या० में) एक से अधिक वस्तुओं 1. जिसमें बहुत दान और उपहार प्रस्तुत किया जाय का ज्ञान कराने का प्रकार,-वर्ण (वि.) बहुरंगी, 2. उदार, दानशील,-दायिन् (वि०) उदार, दान- रंगबिरंगा,-वार्षिक (वि.) बहत वर्षों तक रहने शील, उदारतापूर्वक दान देने वाला,-दुग्ध (वि.) वाला,-विघ्न (वि.) अनेक कठिनाइयों से युक्त, बहुत दूध देने वाला, (ग्धः) गेहूँ, (ग्या) बहुत दूध | नाना विघ्नबाधाओं से भरा हुआ,-विष (वि.) देने वाली गाय, दृश्वन् (वि.) बड़ा अनुभवी, अनेक प्रकार का, तरह-तरह का, विविध प्रकार का, जिसने बहुत देखा सुना हो,--दोष (वि.) 1. जिसमें -- वो (बी) जम् शरीफा, बोहि (वि.) बहुत चावलों अनेक दोष हों, बहुत सी त्रुटियाँ हों, अतिदुष्ट पाप- वाला-तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः-उट पूर्ण 2. अपराधों से युक्त, भयदायी--बहदोषा हि (यहाँ यह समास का नाम भी है), (हिः) संस्कृत के शर्वरी-मृच्छ० ११५८,--धन (वि.) बहुत धनी, चार मुख्य समासों में एक (इसमें दो पद पास-पास धनाढय,-धारम् इन्द्र का वज, - धेनुकम् दूध देने रख दिये जाते हैं, विशेषणात्मक पद (चाहे वह संज्ञा वाली गौओं की बड़ी संख्या,-नादः शंख,-पत्रः प्याज, हो या विशेषण) को पहले रखते हैं, जो दूसरे पद को (त्रम्) अभ्रक, (त्री) तुलसी का पौधा,--पद्,-पाद्- विशेषित करता है, परन्तु वह दोनों पद पृथक्-पृथक्पादः (पु०) बड़ का वृक्ष,-पुष्पः 1. मुंगे का पेड़ अभीष्ट अर्थ का प्रतिपादन नहीं करते, बल्कि मिलकर 2. नीम का वृक्ष,-प्रकार (वि०) बहुत प्रकार का, एक अन्य अर्थ द्योतक शब्द का निर्माण होता है। नाना प्रकार का, विविध प्रकार का,-प्रज (वि०) यह समास विशेषणपरक होता है। परन्तु कभी-कभी बहुत सन्तान वाला, अनेक बच्चों वाला, (जः) इसका प्रयोग संज्ञाओं की भांति किया जाता है जहाँ 1. सूअर 2. मूंज-एक घास,-प्रतिज्ञ (वि.) 1. नाना यह किसी विशिष्ट व्यक्ति के अर्थ में संनियंत्रित होता प्रकार की उक्ति और वाक्यों से यक्त, पेचीदा है उदा० चक्रपाणि, शशिशेखर, पीतांबर, चतुर्मुख, 2. (विधि में) अभियोग पत्र के रूप में जहाँ कई त्रिनेत्र, कुसुमशर आदि,-शत्रुः गोरैया चिड़िया,-पाल्यः प्रकार का शुल्क लगे,-प्रद (वि०) अत्यन्त उदार, खदिरवृक्ष का एक भेद,-शृङ्गः विष्णु का विशेषण, उदार, दाता,-प्रसूः अनेक बच्चों की माँ, प्रेयसी / -श्रुत (वि.) 1. विज्ञ पुरुष, प्रविद्वान्-हि० 111, (वि०) जिसके बहुत से प्रेमी हों,-फल (वि.) पंच० 21, रघु० 15 / 36 2. वेदों का जानकार फलों से समृद्ध, (ल.) कदम्ब का वृक्ष,-बलः सिंह, / -मनु०८।३५०, सन्तति (वि०) अनेक बाल-बच्चों जहाँ कई (वि.) दाता, प्रसव For Private and Personal Use Only Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 712 ) वाला (तिः) एक प्रकार का बाँस,--सार (वि०)। -पंच० 2 / 175 2. दूर तक फैलना, प्रकाशित होना, बहुत अधिक मज्जा यो रस से युक्त, सारयुक्त, (र: बदनाम होना, सुविदित होना, दूर दूर तक फैल जाना खदिरवृक्ष, खैर,-सू: 1. अनेक बच्चों की माँ -- बहुलीभवन्तं .....सोढुं न तत्पूर्वमवर्णमीशे-रघु० 2. शूकरी, सरी,-सूतिः (स्त्री०) 1. अनेक बच्चों को 14138) / सम०-आलाप (वि०) बातूनी, वाचाल, मां 2. बहुत बार ब्याने बाली गाय,-स्वन (वि०) मुखर,-गन्धा इलायची।। कोलाहलपूर्ण (नः), उल्लू,-वामिक (वि०) जिसके | बहलिका (स्त्री०-ब.व.) कृत्तिकानक्षत्र / स्वामो अनेक हों। | बहुशः (अव्य०) [बहु+शस ] 1. अत्यंत, बहतायत के बहुक (वि०) [ बहु+कन् ] महंगा खरीदा हुआ, कः साथ, अत्यधिकता के साथ -- मेघ० 106 2. बार 1. सूर्य 2. मदार का पौधा 3. केकड़ा 4. एक प्रकार | बार, दोहरा कर, महुर्महः-चलापाङ्गां दृष्टि स्पृशसि का जलकुक्कुट / बहुशो वेपथुमतीम्-श० 1123, कु०४१३५ 3. साधाबहुतर (वि.) [ बहु+तरम् ] अपेक्षाकृत असंख्य, अधिक, रणतः, सामान्य रूप से। ज्यादह। बाकुलम् [ बकुल+अच् ] बकुल वृक्ष का फल / बहुतम (वि.) [बहु+तमप् ] अत्यन्त अधिक, अतिशय / बार (म्वा० आ० बाडते) 1. स्नान करना 2. गोता बहुतः (अव्य.) [ बहु+तस् ] नाना पावों से, कई लगाना। तरफ से। बाडवः [ वडवा+अण, बवयोरभेदः ] दे॰ 'वाडद / बहुता, स्वम् [ बहु+तल् +टाप, त्व वा ] बहुतायत, प्राचुर्य, बाडवेय (वि.) [ वडवा+ठक ] दे० 'वाडवेय'। असंख्यता। माडव्यम् [ वाडव+यत् ] दे० 'वाडव्यम्' / बहुतिष (वि.) [ बहु+तिथुक् ] ज्यादह, अधिक, अनेक- बाढ (वि०) [ वह +क्त नि० साधुः] (म० अ०-साधी काले गते बहुतिये-श० 5 / 3, तस्य भुवि बहुतिथा- यस, उ० अ० साधिष्ठ) 1. दृढ़, मजबूत 2. ऊंचे स्तिथयः कि० 12 / 2 / स्वर का,-ढम् (अव्य०) 1. यक़ीनन, निश्चय ही, बहुधा (अव्य०) [बह+धाच ] 1. कई प्रकार से, विविध अवश्य, वस्तुतः, हाँ (प्रश्न के उत्तर के रूप में) प्रकार से, बहुत तरह से- बहधाप्यागमभिन्ना:-रघु० -चाणक्यः चन्दनदास, एष ते निश्चयः, चन्दनदास:१०।२६, भग० 13 / 4 2. भिन्न-भिन्न रूप से या बाढम्, एष मे स्थिरो निश्चयः-मुद्रा० 1, बाढमेषु रीतियों से 3. बारंबार, दोहराकर 4. विविध स्थानों दिवसेषु पार्थिवः कर्म साधयति पुत्रजन्मने- रघु० या दिशाओं में। 19 / 52 2. बहुत अच्छा, तथास्तु, शुभम् 3. अत्यंत, बहुल (वि.) [बंह, +कुलच्, नलोपः] (म० अ० | बहुत ज्यादह --शि० 9177 / ---बहीयस्, उ० अ०--बंहिष्ठ) 1. घिनका, सघन, बाणः [बण्+घञ ] तीर, बाण, शर-धनुष्यमोषं समसटा हुआ 2. विशाल, विस्तृत, आयत, विपुल, बड़ा धत बाणम् --कु० 3 / 66 2. तीर का निशाना, 3. प्रचुर, यथेष्ट, पुष्कल, अधिक, असंख्य--अविनय- बाण का लक्ष्य 3. तीर का पंखयक्त भाग 4. गाय बहुलतया-का० 143 4. अनेक, बहुत प्रकार का ऐन या औड़ी 5. एक प्रकार का पौधा (नीलका, अनगिनत-मा० 9/18 5. भरापूरा, समृद्ध, झिटी' भी)-विकचबाणदलावलयोऽधिकं रुचिरे रुचिरेप्रभूत-जन्मनि क्लेशबहुले किं नु दुःखमतः परम्-हि. क्षणविभ्रमाः -- शि० 6 / 46 6. एक राक्षस का नाम, 1 / 184, भग० 2143 6. संयुक्त, संलग्न 7. कृत्तिका बलि का पुत्र-~-तु० उषा 7. एक प्रसिद्ध कवि का नक्षत्र में जिसका जन्म हआ है 8. काल, --लः नाम जो सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राजा हर्षवर्धन 1. मास का कृष्णपक्ष,-प्रादुरासबहुलक्षपाछविः- रघु० के दरबार में विद्यमान था (दे० परिशिष्ट 2), 11 // 15, करेण भानोबहुलावसाने संधुक्ष्यमाणेव शशा- उसने कादंबरी, हर्षचरित तथा और कई पुस्तकें छकरेखा -कु० 78,4 / 13 2. अग्नि का विशेषण, लिखीं (आर्या० के 37 वें श्लोक में गोवर्धन ने बाण -ला 1. गाय 2. इलायची 3. नील का पौधा के विषय में निम्नांकित कहा है--जाता शिखण्डिनी 4. (ब० व०) कृत्तिकानक्षत्र, --लम् 1. आकाश प्राग्यथा शिखण्डी तथावगच्छामि, प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं सफेद मिर्च, (बहुलीक) 1. प्रकाशित करना, खोलना, वाणी बाणो बभूवेति / इसी प्रकार-हृदयवसतिः भंडाफोड़ करना 2. सघन या सटाकर बनाना -शि० पञ्चबाणस्र बाणः ---प्रस० 1122) 1. 'पाँच' की 13 / 44 3. बढ़ाना, विस्तार करना, वृद्धि करना संख्या के लिए प्रतीकात्मक उक्ति। सम० - असनम् --भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति-भामि० // धनुष,-आवलिः,----ली (स्त्री०) 1. बाणों की श्रेणी 122 4. फटकना, बहुलीभू 1. फैलाना, विस्तृत 2. एक वाक्य में अन्वित पांच श्लोकों का एक कुलक, करना, गुणा करना-छिद्रेष्वनर्या बहुली भवन्ति -आश्रयः तरकस,--गोचर बाण का परास,--जालम् For Private and Personal Use Only Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 713 ) बाणों का समूह, -जित् (पुं०) विष्णु का विशेषण, शक्येत पौरुषेण प्रवाधितुम्-महा०, सम्-,कष्ट --तूणा,--धिः तरकस,-पन्यः बाण का परास,-पाणि | देना, सताना। (वि.) बाणों से सुसज्जित, पातः 1. तीर की मार बाषः,-धा [बाध्+घा ] 1, पीडा, यातना, कष्ट, (दूरी की माप) 2. तीर की परास, मुक्तिः ,-मोक्षणम् सन्ताप-रजन्या सह जम्भते मदनबाधा-विक्रम० 3 बाण मारना, तीर छोड़ना,-योजनम् तरकस,-वृष्टिः 2. रुकावट, छेड़छाड़, परेशानी-इति भ्रमरबाघां (स्त्री०) तीरों की बौछार,-वारः वक्षस्त्राण, कवच, निरूपयति-श०१ 3. हानि, क्षति, घाटा, चोट उरस्त्राण --तु. वारबाणः,- सुताः बाण की पुत्री —चरणस्य बाधा-मालवि० 4, याज्ञ० 2 / 156 ऊषा का विशेषण, दे० उषा,--हन् (पुं०) विष्णु का 4. भय, खतरा 5. मुकाबला, विरोध 6. आपत्ति विशेषण / 7. प्रत्याख्यान, निराकरण 8. स्थगन, रद्द करना वाणिनी [ बाण+इनि+डीप् ] दे॰ वाणिनी। 9. अनुमान प्रक्रिया में त्रुटि, हेत्वाभास के पांच रूपों बादर (वि.) (स्त्री०-री) [बदर--अण् ] 1. बेर के | में से-दे. नी. 'बाधित' / सम०-अपवादः अपवाद वृक्ष से प्राप्त या संबद्ध 2. रूई का बना हुआ,-रः का खण्डन / रूई का पोषा, बाड़ी,-रम 1. बेर 2. रेशम 3. पानी बाषक (वि.) (स्त्री०-धिका) [ बाध्+ण्वुल ] 1. कष्ट 4. रूई का वस्त्र 5. दक्षिणावर्त शंख,-रा कपास देने वाला, सताने वाला, उत्पीडक 2. छेड़छाड़ करने का पेड़। बाला, परेशान करने वाला 3. उन्मूलन 4. बाधा बादरायणः [बदरी+फक ] वेदान्त दर्शन के शारीरक डालने वाला। सूत्रों का प्रणेता बादरायण (जिसे प्रायः व्यास का | बाधनम् [ बाध् + ल्युट् ] 1. तंग करना, उत्पीडन, परेशान नामान्तर माना जाता है)। सम० -सूत्रम् वेदान्त करना, अशान्ति, पीडा-श०१ 2. मिटाना 3. हटाना, दर्शन के सूत्र, -सम्बन्धः कल्पित या दूर का सम्बन्ध स्थगन 4. निराकरण, प्रत्याख्यान,-ना पीडा, कष्ट, (आधुनिक रूप)। चिन्ता, अशान्ति / बादरायणिः [ बादरायण+इञ ] व्यास का पुत्र बाधित (भ० क० कृ०) [ बाध्+क्त ] 1. तंग किया शुक। हुआ, उत्पीडित, परेशान 2. पीडित, सन्तप्त, कष्टग्रस्त बावरिक (वि०) (स्त्री०-की) [ बदर+ठा ] बेर | 3. विरुद्ध, अवरूद्ध 4. रोका हआ, प्रगृहीत 5. एक एकत्र करने वाला। ओर रक्खा गया, स्थगित 6. निराकृत 7. (तर्क० में) वाध (भ्वा० आ० बाधते, बाधित ] 1. तंग करना, उत्पी- खण्डित, विवादग्रस्त, असंगत (फलतः व्यर्थ)। डित करना, सताना, अत्याचार करना, छेड़ना, कष्ट | बाषियम् / बधिर+ष्या बहरापन / देना, दुःखी करना, परेशान करना, पीड़ा देना -ऊनं बान्धकिनेयः [ बन्धकी+ढक्, इनडादेशः ] दोगला, वर्ण न सत्त्वेष्वधिको बबाघे - रघु० 2 / 14, न तथा बाधते संकर। स्कन्धो यथा बाधति बाघते -सुभा०, मेघ० 53, | बान्धवः [ बन्धु+अण ] 1. रिश्तेदार, संबंधी-यस्यास्तिमनु० 9 / 229, 101122, भट्टि० 14145 2. मुका- स्य बान्धवा:-हि०१, मनु० 5 / 74, 101, 41179 बला करना, विरोध करना, निष्फल करना, रोकना, 2. मातृपरक रिश्तेदार 3. मित्र-धनेभ्यः परो बान्धवो रुकावट डालना, अवरोध करना, हस्तक्षेप करना नास्ति लोके-सुभा० 4. भाई। सम-जनः, रिश्ते-कि० 111, उत्तर० 5 / 12 3. आक्रमण करना, दार, बन्धु-बांधव-दारिद्रयात्पुरुषस्य बान्धवजनो हमला करना, धावा बोलना 4. अनुचित व्यवहार वाक्ये न संतिष्ठते--मृच्छ० 1136, पंच० 4178 / करना, अन्याय करना 5. चोट पहुंचाना, क्षति पहुं- | बान्धव्यम् [ बान्धबष्यन ] सगोत्रता, रिश्तेदारी। चाना 6. हांक कर दूर करना, पीछे ढकेलना, हटाना | बाभ्रवी [ बभ्र+अण+डीपी दुर्गा का विशेषण / 7. स्थगित करना, एक ओर रखना, रद्द करना, | बार्बटीरः [? ] 1. आम का गूदा 2. जस्त 3. नया अंकुर तोडना, मिटाना (नियम आदि) -रघु० 17.57, 4. वेश्या का पुत्र / अभि , 1. चोट पहुँचाना, क्षति पहुंचाना 2. दुःख बार्ह (वि०) (स्त्री०-ही) [ बह+अण् ] मोर की पूंछ देना, तंग करना, सताना, आ, दुःख देना, सताना, के चंदवों से बना हआ। क्षति पहुँचाना, परि ,कष्ट देना, पीडा पहुंचाना | बार्हद्रथ, बार्हद्रथिः / बृहद्रथ+अण, इन वा ] राजा ---श० 7 / 25, प्र.-1. कष्ट देना, सताना, तंग करना, चिढ़ाना, क्षति पहुँचाना - समुच्छितानेव तरून | बार्हस्पत (वि.) (स्त्री०-ती) [ बहस्पति+अण् ] बृहप्रबाधते (प्रभञ्जनः) हि० 1, भट्टि० 12 / 2 2. हांक स्पति से संबद्ध, बृहस्पति की सन्तान या बृहस्पति कर दूर हटाना, मिटाना, पार करना-कथं नु देवं को प्रिय / , इञ् वा ] राजा प्रबाधते (भा क्षति पहुँचाना पना, सताना, तंग / बाहद्रथ, बाहर हर हटाना, मिटाना , भट्टि० 1 . तान् वार्हस्पत का पितृपरक नाम For Private and Personal Use Only Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 714 ) बार्हस्पत्य (वि.) [बृहस्पति+यक ] बहस्पति से संबंध | ६,-चर्यः कार्तिकेय का नाम, (र्या) बच्चे का व्यवहार, रखने वाला,-त्यः 1. बृहस्पति का शिष्य 2. भौतिक- --. ज (वि०) बालों से उत्पन्न,-तमयः खदिर का बाद के उग्ररूप के शिक्षक बहस्पति का अनुयायी, वृक्ष, खैर,-तन्त्रम् धात्रीकर्म,-तृणम् नई दूब, हरी भौतिकवादी,-त्यम् पुण्यनक्षत्र / घास,-दलकः खैर,-धिः बालों वाली पंछ--शि० माहिण (वि.) (स्त्री०-णी) [बहिन्+अण् ] मोर से 12173, कि० १२।४७,---पाश्या 1. बालों की मांग में संबद्ध या उत्पन्न / पहने जाने के योग्य आभूषण 2. बालों की चोटी में बाल (वि.) [बल+ण या बाल+अच् ] 1. बच्चा, शिशु धारण की जाने वाली मोतियों की लड़ियाँ,-पूष्टिका, वत्, अवयस्क, न्याना-- बालेन स्थविरेण वा --- मनु० -पुष्टी एक प्रकार की चमेली, बोधः 1. बच्चों की 870, बालाशोकमपोढरागसुभगं भेदोन्मुखं तिष्ठति शिक्षा 2. अनुभवशून्य नये बालकों की शक्ति के अनु-विक्रम० 217, इसी प्रकार बालमन्दारवृक्षः-- मेघ० सार कोई कार्य,- भद्रकः एक प्रकार का विष,--भारः 75, रघु० 2 / 45, 13124 2. नया उगा हुआ, बाल बालों से भरी हुई लम्बी पूंछ-बाधेतोल्काक्षपितचमरी (रवि या अर्क)-रघु० 121100 3. नूतन, वर्धमान बालभारो दवाग्निः-मेघ०५३,-भावः बचपन, बाल्या(चन्द्रमा)---पुपोष वृद्धि हरिदीधितेरनुप्रवेशादिव वस्था,- भैषज्यम् एक प्रकार का अंजन,--भोज्यः मटर, बालचन्द्रमाः--रघु० 3 / 22, कु० 3 / 29 4. बालिश -मृगः मृग छौना, यज्ञोपवीतकम् वक्षःस्थल के ऊपर 5. अनजान, अबोध, --ल: 1. बालक, शिश-बालादपि से पहने जाने वाला जनेऊ,-राजम वैदूर्यमणि, नीलम, सुभाषितं ग्राह्यम्-मनु० 2 / 239 2. बालक, युवा, --रोगः बच्चों का रोग,-लता नूतन बेल-रधु० तरुण 3. अवयस्क (16 वर्ष से कम आयु का)-बाल २।१०,-लीला बच्चों के खेल, बालकों का मनोविनोद, आषोडशाद्वर्षात्- नारद 4. बछेरा, अश्वक 5. मूर्ख, -वत्सः 1. नन्हा बछड़ा 2. कबूतर,-वायजम् वैदूर्यमणि भोंदू 6. पूंछ 7. बाल 8. पाँच वर्ष का हाथी 9. एक नीलम,-वासस् (नपुं०) ऊनी वस्त्र,-- वाह्यः जंगली प्रकार का गन्धद्रव्य / सम०-अग्रम बाल की नोक, बकरा,-विधवा बाल्यावस्था में ही जिसका पति मर - अध्यापकः बच्चों का शिक्षक,-अभ्यासः बाल्यावस्था गया हो, व्यजनम् चंवर, चौरी (सूरागाय के बालों से बनी चौरी जो एक प्रकार का राजचिह्न है)-रघु० में अध्ययन, (अध्ययन में) शीघ्र लगाना, अरुण 9 / 66, 14 / 11, 16 // 33, 57, कु० 1113, - सखिः (वि०) प्रभातकालीन उषा की भाँति लाल, (णः) बाल्यावस्था से बना मित्र, बचपन का दोस्त,-संध्या प्रभातकालीन उषा,-अर्कः नवोदित सूर्य-रघु० 12 / झुटपुटा,-सुहृद् (पुं०) बचपन का मित्र,-सूर्यः, १००,---अवबोधः बच्चों की शिक्षा,- अवस्थ (वि०) तरुण, नवयुवक --- विक्रम० 5 / 18,--. अवस्था बचपन, -सूर्यकः वैदूर्यमणि, नीलम,--हत्या बच्चे की हत्या, --हस्तः बालों वाली पूँछ। --आतपः प्रातःकालीन धूप,-इन्दुः नया बढ़ता हुआ चन्द्रमा-कु० 3 / 29, इष्टः बेरी, बेर का पेड़, बालक (वि०) (स्त्री०-लिका) [वाल+कन् ] 1. बच्चों -उपचारः (आयु०) बच्चों की चिकित्सा,-उपवीतम् जैसा, नन्हा, अवयस्क 2. अनजान,-क: 1. बच्चा, लंगोटी, रुमाली,-- कदली केले का नया पौधा,- कुन्दः, बाल 2. अवयस्क (विधि में) 3. अंगठी 4. मुर्ख या -वम् एक प्रकार की नई चमेली (- दम्) चमेली बुद्ध 5. कड़ा, कंकण 6. हाथी या घोड़े की पूंछ,--कम की नई खिली हई कली--- अलके बालकुन्दानुविद्धम् अँगूठी। सम-हत्या, बच्चे की हत्या / --मेघ० 65, कृमिः अँ, - कृष्णः बालक के रूप में बाला बाल+टाप] 1. लड़की, कन्या 2. सोलह वर्ष से कृष्ण,--क्रीडनम् बच्चे का खिलौना या खेल,-क्रीडनकम कम आय की युवती 3. तरुणी, यवती,--जाने तपसो बच्चे का खिलौना, (- कः) 1. गेंद 2. शिव का वीर्य सा बाला परवतीति मे विदितम्- श०३।१, विशेषण,--क्रीडा बच्चों का खेल, बालकों या तरुणों इयं बाला मां प्रत्यनवरतमिन्दीवरदलप्रभाचोरं चक्षुः का खेल,---खिल्यः ब्रह्मा के रोम से उत्पन्न, अंगूठे के क्षिपति- भर्त० 3 / 67, मेघ० 83 4. चमेली का एक समान आकारवाली दिव्य मतियां (जो गिनती में भेद 5. नारियल 6. घृतकुमारी का पौधा 7. इलायची साठ हजार समझी जाती हैं) तु० रघु० 15 / 10, 8. हल्दी / सम० -हत्या स्त्रीहत्या / -~-गभिणी पहली बार गाभिन हुई गाय,-गोपालः | बालिः [बल-इन् ] एक प्रसिद्ध बानरराज का नाम-दे० "तरुण ग्वाला' बालगोपाल के रूप में कृष्ण का विशे- 'वालि'। सम०-हन् हन्तु (पुं०) राम का षण,----ग्रहः बालकों को पीडा पहुँचाने वाला पिशाच विशेषण / / (या उपग्रह),-चन्द्रः -चन्द्रमस् (पुं०) दूज का चाँद, | बालिका [बाला-+कन्+टाप, इत्वम्] 1. लड़की 2. कान बढ़ता हुआ चाँद-मा० २११०,-चरितम् 1. तरुणों की बाली को घुडी 3. छोटी इलायची 4. रेत 5. पत्तों के खेल 2. बाललीला, बाल्यजीवन के कारनामें-उत्तर० / की सरसराहट / For Private and Personal Use Only Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 715 ) बालिन् (पुं०) [बाल-इनि] एक बानर का नाम-दे० / बास्त (वि०) (स्त्री०-स्ती) [बस्त+अण्] बकरे से __ 'बालि'। उत्पन्न या प्राप्त-मनु० 2 / 41 / बालिनी (बालिन् +ङीप] अश्विनी नक्षत्र / बाहः [=बाहुः पृषो० वह + णिच् +अच्, बवयोरभेदः] बालिमन् (पुं०) [बाल+इमनिच्] बचपन, बाल्यावस्था, 1. भुजा 2. घोड़ा। लड़कपन / बाहा [दे० बाह] भुजा,-मां प्रत्यालिङ्गेतोगताभिः शाखाबालिश (वि.) [बाडि श्यति, बाडि+शो+ड डलयोरभेदः] / बाहाभिः—श० 3 / सम०–बाहवि (अव्य०) 1. बच्चों जैसा, अबोध, मूर्ख 2. बच्चा 3. मूर्ख, हस्ताहस्ति, भुजा से भुजा-तु० बाह-बाहवि / / अनजान मनु० 3 / 176 4. लापरवाह, --शः 1. मूर्ख, | बाहीकाः (ब०व०) [वह+ईकण् ववयोरभेदः] पंजाब के बुद्ध 2. बच्चा, बालक, - शम् तकिया। अधिवासी,-क: 1. पंजाबी 2. बैल / बालिश्यम् [बालिश+या] 1. लड़कपन, बचपन बाहुः [बाध् +कु, धस्य हः] 1. भुजा-शान्तमिदमाश्रमपदं 2. बचकानापन, मूर्खता, बेवकूफ़ी। स्फुरति च बाहः कुतः फलमिहास्य-श० 1116, इसी बाली बालि-+की एक प्रकार की कान की बाली। प्रकार 'महाबाहुः, आदि 2. कलई 3. पशु का अगला बालोशः (पुं०) मूत्रावरोध / पैर 4. द्वार की चौखट का बाजू 5. (ज्या० में) बालुः, बालुकम् [बल+उण, बालु+कन्] एक प्रकार का समकोण त्रिभुज का आधार,-ह (द्वि०व०) आर्द्रा गंध द्रव्य / नक्षत्र / सम०-उत्क्षेपम् (अव्य०) भुजाओं को ऊपर बालुका दे० 'बालुका'। उठा करबाहूत्क्षेपं क्रन्दितुं च प्रवृत्ता-श० 5 / 30, बालुको, बालुडो, बालुङ्गो बिल+उका+डीप] एक -कुण्ठ कुब्ज (वि०) लुंजा, जिसका हाथ विकृत हो प्रकार की ककड़ी। गया हो,–कुन्थः (पक्षी का) बाजू, डैना,-चापः बालकः (बल+ऊका] एक प्रकार का बिष / पौरुष की माप, अर्थात् दोनों हाथों को फैलाकर मापी बालेय (वि०) (स्त्री०-यी) [बलि--ढ] 1. बलि | हुई दूरी,--जः क्षत्रिय वर्ण का व्यक्ति--तु० बाहू देने के लिए उपयुक्त 2. मद्र, मुलायम 3. बलि की राजन्यः कृतः-ऋग्० 10 / 90 / 12, मनु० 1131, संतान,—यः गधा। 2. तोता,-ज्या (गणि. में) चाप के सिरों को बाल्यम् [बाल+ष्यन]1. लड़कपन, बचपन-बाल्यात्परा- मिलाने वाली सीधी रेखा,---त्रः,---म्-त्राणम् मिव वशां मदनोध्युवास रघु० 5 / 63, कु. 129 भुजाओं की रक्षा करने वाला कवचविशेष, - दण्डः 2. (चन्द्रमा के) बढ़ने की अवधि--कु० 7 / 35 | 1. डंडे की भांति लंबी भुजा 2. भुजा या मुक्के से 3. समझ की अपरिपक्वता, मूर्खता, अबोधता। दण्डित करना,--पाशः 1. मल्लयुद्ध में एक घेरा बाल्हकाः, बाल्हिकाः, बाल्हीकाः (पुं० ब०व०) [बल्हिदेशे बनाना जैसा कि आलिंगन के समय किया जाता है, भवाः - बल्हि+बुञ, बल्हि +ठ, पृषो० पक्षे .....प्रहरणम् घूसों की लड़ाई, मल्लयुद्ध,-बलम् भुजा दीर्घत्वम् बल्हि के अधिवासी,..क: 1. बाल्हीकों का की ताक़त मांसपेशियों की शक्ति,- भूषणम्,-भूषा राजा 2. बलख का घोड़ा,--कम् 1. केसर, जाफरान, भुजा में पहना जाने वाला आभूषण, बाजूबंद, अंगद, 2. हींग। -भैदिन् (पुं०) विष्णु का विशेषण,-मूलम् 1. कांख, बाल्हिः (पुं०) एक देश का नाम / सम-ज (वि.) 2. कंधे और बाहू का जोड़,-युद्धम् हाथापाई, बलख देश में पला, बल्ख देश की नसल / मल्लयुद्ध, धूंसों की लड़ाई,---योधः-योधिन् (पुं०) बाल्पः--ष्पम् बाध्-पृषो० सत्वं पत्वं वा] 1. आँसू, अश्रु- मुष्टि योद्धा, चूंसेबाज,-लता भुजा की भांति बेल, कंठः स्तम्भित बाष्पवृत्तिकलुषः-श० 4 / 5 2. भाप, अन्तरम् स्तन, वक्षःस्थल,-वीर्यम् भुजाओं की शक्ति, प्रवाष्प, कुहरा 3. लोहा / सम-अम्बु (नपुं०) आँसू, - व्यायाम कसरत,-शालिन् (पुं०) 1. शिव का --उद्धवः आंसुओं का आना,-कण्ठ (वि.) जिसका विशेषण 2. भीम का विशेषण, शिखरम् भुजा का गला भर आया हो, गद्गद् कंठ वाला,--दुर्दिनम् ऊपरी भाग, कंधा,-संभवः क्षत्रिय जाति का पुरुष, आँसूओं की बाढ़,-पूरः आँसुओं का फूट पड़ना, सहस्रभूत (पुं०) कार्तवीर्य राजा का विशेषण आँसुओं की बाढ़,-वारंवारं तिरयति दृशोरुद्गमं ('सहस्रार्जुन') भी इसका नामान्तर है। बाष्पपूरः -मा० 1135, -- मोक्षः, ---मोचनम् आँसू बाहुकः [ बाहु+के+क] 1. बन्दर 2. कर्कोटक के द्वारा बहाना,-बिन्दुः (पुं) आँसू की बूंद, संदिग्ध (वि०) | बौना बना दिये जाने पर नल का बदला हुआ नाम / जो आँसुओं के कारण अस्पष्ट हों। बाहुगुण्यम् [ बहुगुण-+-व्यञ ] अनेक सद्गुण और श्रेष्ठबाष्यायते (ना० घा० आ०) आँसू बहाना, रोना-तत्कि- ताओं का स्वामित्व। मिति बाष्पायितं भगवत्या-मा०६, विक्रम० 5 / 9 / / बाहदन्तकम् बहदन्तक+अण] नैतिक कर्तव्यों का स्मृति For Private and Personal Use Only Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के रूप में निरूपण जिसके रचयिता इन्द्र कहे / बिद्, बिद् (भ्वा० पर० बिदति) 1. खण्ड खण्ड करना जाते हैं। 2. बाँटना। वाहुदन्तेयः [ बहुदन्त+6] इन्द्र का विशेषण / बिवलम दे० 'विदल'। बाहुवा [बाहु+दा+क+टाप् ] एक नदी का नाम / बिन्दुः [बिन्द+उ] 1. बंद, बिंदी जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः बाहुभाष्यम् [ बहुभाष+ष्या ] मुखरता, वाचालता, पूर्यते घट: "छोटी-छोटी बूंदे मिल कर एक सरोवर बन बातूनीपन / जाता है", विस्तीर्यते यशो लोके तैलबिन्दुरिवाम्भसि बाहुरूप्यम् [ बहुरूप+व्या 1 बहरूपता, विविधता / मनु०७।३३, अधुना (कुतूहलस्य)बिन्दुरपि नावशेषितः बाहुल: [बहुल+अण् ] 1. अग्नि 2. कार्तिक का महीना, -श०२ 2. बिंदू, बिंदी 3. हाथी के शरीर पर रंगीन -लम् 1. बहुरूपता 2. भुजाओं की रक्षा के लिए बिंदी या चिह्न-कु० 117 4. शून्य, सिफर-न रोमकवच विशेष / सम०--ग्रीवः मोर। कूपौघमिषाज्जगत्कृता कृताश्च किं दूषणशून्यबिन्दवःनै० बाइलकम् [बाइल+कन् ] 1. अनेकरूपता 2. व्याकरण 1 / 21 / सम-चित्रक: चित्तीदार हरिण, जालम् में प्रयक्त विधिविशेष-बाहलकाच्छन्दसि, किसी रूप, -- जालकम् 1. बूंदों का समूह 2. हाथी के सूंड और अर्थ या नियम की विविध या असीम प्रयोजनीयता। शरीर पर बनाये गये चित्रण, चित्तियाँ, तन्त्रः 1. पासा बाहुलेयः [ बहुला+ढक] कातिकेय का विशेषण। 2. शतरंज की बिसात,-देवः शिव का विशेषणः,-पत्रः बाहुल्यम् [ बहुल+ष्यश् ] 1. बहुतायत, प्राचुर्य, यथे- एक प्रकार का भोजपत्र,-फलम मोती,-रेखक: ष्टता 2. बहुरूपता, अनेकता, विविधता 3. बस्तुओं 1. अनुस्वार 2. एक प्रकार का पक्षी,-रेखा विन्दुओं का सामान्य क्रम या प्रचलित व्यवस्था। की पंक्ति, ·-वासरः गर्भाधान का दिन / बाहबाहवि (अव्य०) [बाहुभिर्बाहुभिः प्रहृत्येदं प्रवृत्तं | बिब्बोकः, (बिब्बोक, बिब्बोक:) [?] 1. अभिमान के कारण युद्धम् ] भुजा से भुजा मिला कर, हस्ताहस्ति, धमा- अपने प्रियतम पदार्थ की ओर उदासीनता का प्रदर्शन सान युद्ध / —-मनाक प्रियकथालापे बिब्बोकोऽनादरक्रिया-प्रतापबाह्म (वि.) [ बहिर्भव:—ष्य , टिलोपः ] 1. बाहर का, रुद्र, या, बिब्वोकस्त्वतिगर्वेण वस्तुनीष्टेऽप्यनादर:-सा. बाहर की ओर का, बाहरी, बहिर्देश, बाहर स्थित द० 139 2. घमंड के कारण उदासीनता 3. केलि--विरहः किमिवानुतापयेद् वद बायविषयविपश्चि- परक या प्रीतिविषयक संकेत--संशय्य क्षणमिति तम् -- रघु० 8589, बाह्योद्याने-मेघ०७, कु०६।४६, निश्चिकाय कश्चिद्विब्बोकर्बकसहवासिनां परोक्षः बाह्यनामन 'बाहरी नाम', अर्थात् पत्र की पीठ पर --शि० 89 (विलास:-मल्लि.)। लिखा हुआ पता या शिरोनाम, सरनामा-मुद्रा० 1 | बिभित्सा [भि+सन्-+अ+टाप] भेदने की इच्छा, 2. विदेशी, अपरिचित--पंच०१ 3. बहिष्कृत, कट- बींधने की या छेद करने की इच्छा। घरे से बाहर-जातास्तदूर्वोरुपमानबाह्या:-कु० 136 | बिभित्सु (वि.) [भिद-सन+उ] छेदने या बींधने की 4. समाज से बहिष्कृत, जातिबहिष्कृत, हाः 1. अप- इच्छा / | विभीषणः [भी+सन् +ल्युट] एक राक्षस का नाम, रावण बाहर की ओर, बाहरी ढंग से। का भाई (यद्यपि वह जन्म से राक्षस था परन्तु तोभी वाह वृष्यम् [ बह वृच--ष्यत्र ] ऋग्वेद का परम्परागत सीता के अपहरण के कारण वह बड़ा खिन्न था, अध्यापन / उसने रावण को इस दुष्कृत्य के लिए बहुत बुरा भला विट् (भ्वा० पर०-बेटति) 1. शपथ लेना 2. अभिशाप कहा। सने बार-बार रावण को समझाया कि देना 3. चिल्लाना, जोर से बोलना। यदि जीवित रहना चाहते हो तो सीता को राम के बिटकः, -कम्, बिटका [=पिटक, पृषो० ] फोड़ा, पास वापिस पहुँचा दो। परन्तु उसने विभीषण की फुसी। चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। अंत में जब बिडम् | बिड़+क] एक प्रकार का नमक / उसने देखा कि रावण का विनाश अवश्यंभावी है तो बिडालः [बिड़+कालन] 1. बिस्ला, बिलाब 2. आँख वह राम के पास चला गया और उनका पक्का मित्र का डेला। सन--पदः,-परकम 16 माशे के तोल बन गया। रावण की मृत्य के पश्चात् राम ने विभीका बट्टा। षण को लंका की राजगद्दी पर बिठा दिया। बिभीविडालक: बिडाल+कन् ] 1. बिलाव 2. आँख के बाहरी षण सात चिरंजीवियों में गिना जाता है-दे. भाग पर मल्हम लगाना,--कम् पीली मल्हम / 'चिरंजीविन्')। बिद्योजस (पं० [वेवेष्टि विट व्यापकमोजो यस्य विडोजाः, बिभ्रक्षः, विभ्रज्जिसुः [भ्रस्+सन ---उ, विकल्पेन इट] पृषो० वृद्धिः] इन्द्र का विशेषण, -श० -7 / 34 / / आग। For Private and Personal Use Only Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 717 ) बिम्बः,-बम् [वी+वन् नि. साधुः] सूर्यमण्डल या चन्द्र- बिल्वकीया [ बिल्व+छ, कुक ] वह स्थान जहाँ बल के मंडल-वदनेन निजितं तव नीलीयते चन्द्रबिम्बमम्बुधरे / पौधे लगाये गए हों। : सुभा०, इसी प्रकार सूर्य, रवि आदि 2. कोई बिस् (दिवा० प० बिस्यति) 1. जाना, हिलना-डुलना गोल या मंडलाकार सतह, मंडल या गोला जैसे 2. उकसाना, प्रेरित करना, भड़काना 3. फेंकना, डाल 'नितम्बबिम्ब' गोलाकार कुल्हा, 'श्रोणीबिम्बः' आदि | देना 4. टुकड़े टुकड़े करना। 3. प्रतिमा, छाया, प्रतिबिंब 4. शीशा, दर्पण 5. कलश बिसम् [ बिस्+क] 1. कमल तंतु 2. कमल की तन्तु 6. उपमित पदार्थ (विप० प्रतिबिंब), बम् एक वृक्ष वाली डंडी-पाथेयमुत्सृज बिसं ग्रहणाय भूयः-विक्रम० का फल (यह जब पक जाता है तो लाल रंग का हो / 4 / 15, बिसमलमशनाय स्वादु पानाय तोयम् --भर्तृ० जाता है, तरुण स्त्रियों के होठों की तुलना इसी से 3 / 22, मेघ० 11, कु० 3 / 17, 3 / 29 / सम० की जाती है)-रक्तशोकरचा विशेषितगुणो बिम्बाधरा- ---कण्ठिका, --कण्ठिन् (पं०) छोटा सारस-कुसुमम्, लक्तकः---मालवि० 3 / 5, पक्वबिंबाधरोष्ठी-मेघ० ----पुष्पम्,–प्रसूनम् कमल का फूल,-जक्षुबिसं धृतवि८२, तु० न० 24 / सम०-ओष्ठ (वि०) (बिंबो कासिबिसप्रसूनाः --शि० 5 / 58, खादिका 'कमल (बौ)ष्ठ) बिंब फल के समान लाल-लाल सुंदर होठों तन्तुओं को खाने वाली,-प्रन्थिः कमलडंडी के ऊपर वाला--मालवि० 4 / 14, (-6ठ:) बिंब फल की की गांठ, छेदः कमल की तंतुमय डंडी का टुकड़ा, भांति ओष्ठ-उमामुखे बिम्बफलाधरोष्ठे-कु० 3 / 67 / -जम् कमल, का फूल, कमल - तन्तुः कमल का रेशा, बिम्बकम् (बिम्ब- कन्। 1. सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल --नाभिः (स्त्री०) कमल का पौधा, पद्मिनी, नासिका 2. बिबफल / एक प्रकार का सारस / बिम्बिका [बिम्ब+ कन्, इत्वम्] 1. मूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल | बिसलम् [ बिस ला+क नया अंकूर, अंखवा, कली। 2. बिब का पौधा / / बिसिनी [ बिस--इनि ] 1. कमलिनी, कमल का पौधा बिम्बित (वि०)| बिम्ब-इतच] 1. प्रतिबिंबित, प्रति छाया भर्तृ 0 3136 2. कमल तंतु 3. कमलों का समूह / पड़ी हुई 2. चित्रित / बिसिल (वि.) [बिस इलच बिस से संबद्ध या प्राप्त / बिल् (तु० पर०, चुरा० उभ० बिलति, बेलयति-ते) खंड | बिस्त: [ बिस्+क्त ] (80 रत्तियों के बराबर) सोने खण्ड करना फाड़ना, तोड़ना, बांटना, टुकड़े-टुकड़े का तोल। करना। बिह्मणः (10) विक्रमाकदेवचरित नामक काव्य का बिलम् [बिल्क ] 1. छिद्र, विवर, खूड (हल चलाने से रचयिता। बनी गहरी सीधी रेखा)--खनन्नाखुबिलं सिंहः'' बीजम् [ वि + जन् - ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेद: ] प्राप्नोति नखभंग हि --- पंच० 3 / 17, रघु० 12 / 5, बीज (आलं० से भी) बीज का दाना, अनाज 2. रिक्तस्थान, गत, छिद्र 3. द्वारक, छिद्र, सूराख, –अरण्यबीजांजलिदानलालिता:--कु०५।१५, बीजां4. कंदरा, कोटर--लः इन्द्र के घोड़े 'उच्चैः श्रवा' का जलि: पतति कीटमुखावलीढ:-मच्छ० 119, रघ० नामान्तर / सम०... ओकस (पं०) बिल में रहने 19 / 57, मनु० 9133 2. जीवाणु, तत्त्व 3. मूल, वाला जानवर,—कारिन् (पुं०) चूहा,--योनि (वि०) स्रोत, कारण, बीजप्रकृतिः श० 111, (पाठान्तर) बिलजन्तुओं की नस्ल के जानवर --यत्राश्वा बिल- 4. वीर्य, शुक्र,-कु० 2 / 5, 60 5. किसी नाटक की योनयः-कु० ६।३९,-वासः गंधमार्जार,-वासिन् कथावस्तु का बीज, कहानी आदि,-दे० सा० द० 318. (बिलेवासिन्) (पुं०) साँप / 6. गूदा 7. बीजगणित 8 बीजमंत्र,-जः नींबू का पेड़, बिलंगमः [ बिल-गम् +खच, मम 1 सर्प, साँप / (बीजाक 1. बीज बोना-व्योमनि बीजाकुरुते-भामि० बिलेशयः | बिले शेते-शी+अच, अलक स०] 1. साँप 1298 2. बीज बोने के बाद हल चलाना) / सम० 2. मूसा, चूहा 3. मांद में रहने वाला कोई भी --अक्षरम् मन्त्र का प्रथम अक्षर,-अकूरः बीज का जन्तु। अंकुर- कु० 3.18, न्यायः बीज और अंकुर का बिल्लः | बिल+ला+क नि० अकार लोपः ] 1. गर्त न्याय, दे० 'न्याय' के अन्तर्गत, --- अध्यक्षः शिव का 2. विशेषतः थांवला, आलवाल / सम-सूः दस विशेषण,- अश्वः जननाश्व, सांड घोड़ा,-आढ्यः, बच्चों की माँ। --पूरः,-पूरकः बिजौरा नीबू, चकोतरा, (रम,-रकम्) बिल्वः | बिल् + वन बेल नामक वक्ष-ल्वम् 1. बेल का फल नींबू का फल, उत्कृष्टम् अच्छा बीज,-उवनम् ओला, 2. एक विशेष तोल, पल भर। सम-दंडः शिव का -कर्त (पुं०) शिव का विशेषण,-कोशः,-कोष 1. बीज विशेषण,-पेशिका,-पेशी बेल का छिल्का (जो लकड़ी पात्र 2. कमल का बीजपात्र,-गणितम् बीजगणित के समान कड़ा होता है),-वनम् बेलों का जंगल। / का विज्ञान,-गुप्तिः (स्त्री०) बीजकोश, फली, सेम, For Private and Personal Use Only Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 718 ) छीमी, दर्शकः रंगशाला का व्यवस्थापक,--धान्यम् | बुद (भ्वा० उभ०-बोदति-ते) 1. प्रत्यक्ष करना, देखना, धनिया,-न्यासः नाटक की कथावस्तु के स्रोत को | समझना, पहचानना 2. समझ लेना, जान लेना। बतलाना,-पुरुषः कुल प्रवर्तक,-फलकः बीजपूर का | बुद्ध (भू० क० कृ०) | बुध+क्त ] 1. ज्ञात, समझा हुआ, पेड़,-मन्त्रः रहस्यमय अक्षर जिससे मंत्र आरम्भ प्रत्यक्ष किया हुआ 2. जगाया हुआ, जागरूक 3. देखा होता है,--मातृका कमल का बीजकोष,-रुहः दाना, हुआ 4. प्रकाशमान / अनाज,-वापः 1. बीज बोने वाला 2. बीज का बोना, | बद्धिमान (दे० बध)-T: 1. बद्धिमान या विद्वान पुरुष, -वाहनः शिव का विशेषण,-सूः पृथ्वी,-सेक्तृ ऋषि 2. (बौद्धों के साथ) बुद्धिमान् या ज्ञानज्योति (10) प्रस्रष्टा, प्रजापति / से प्रकाशमान पुरुष जो सत्य के प्रत्यक्ष ज्ञानद्वारा बोजकः [ बीज+कन् ] 1. सामान्य नींबू 2. नींबू या जन्म-मरण से छुटकारा पा चुका है तथा जो स्वयं चकोतरा 3. जन्म के समय बच्चे की भुजाओं की मुक्त होने से पूर्व संसार की मोक्ष या निर्वाण प्राप्त स्थिति,—कम् बीज। करने की रीति बतलाता है 3. शाक्यसिंह का नाम बोजल (वि.)बीज-लच बीजों से युक्त, बीजों वाला। 'बुद्ध' जो बौद्धधर्म का प्रसिद्ध प्रवर्तक था (उसने बीजिक (वि०) [बोज+ठन ] बीजों से भरा हुआ, कपिलवस्तु में जन्म लिया और ईसा से 543 वर्ष जिसमें बहुत बीज हों। पूर्व निर्वाण प्राप्त किया, कई बार उसे विष्णु का बोजिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [ बीज+इनि ] बीजों से नवाँ अवतार माना जाता है, जयदेव कहता है: . युक्त, बीज रखने वाला (पुं०) 1. वास्तविक पिता निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातं सदयहृदय दर्शितयो प्रजनक (बीज का बोने वाला) (विप० क्षेत्रिन् पशुघातं केशव धृतबुद्धशरीर ! जय जगदीश हरे -खेत या स्त्री का पति या स्वामी) दे०--मनु० 91 -गोत. १)सम०—आगमः बौद्धधर्म के सिद्धान्त और 51 तथा आगे 2. पिता 3. सूर्य / मन्तव्य, उपासकः बुद्ध की पूजा करने वाला, --गया बोज्य (वि.) [बीज-यत् ] 1. बीज से उत्पन्न 2. सम्मानित कुल का, सत्कुलोद्भव / और मत, बुद्धवाद / बीभत्स (वि.) [बध+सन्+घञ ] 1. घणोत्पादक, बुद्धिः (स्त्री०) [बुध। क्तिन् ] 1. प्रत्यक्ष ज्ञान, संबोध घिनौना, दुर्गधयुक्त, भीषण, जुगुप्साजनक- हन्त बीभ- 2. मति, समझ, प्रज्ञा, प्रतिभा तीक्ष्णा नारन्तुदा त्समेवाने वर्तते मा० 5, 'अहो ! यह निश्चित रूप बुद्धिः - शि० 2 / 109, शास्त्रेष्वकुण्ठिता बुद्धि:--रघु० से घिनौना दश्य है' 2. ईाल, प्रद्वेषी, विद्वेषपूर्ण 1 / 19 3. ज्ञान-बुद्धिर्यस्य बलं तस्य हि०२।१२२ 3. बर्बर, क्रूर, खूख्वार 4. मन से विरक्त,-त्सः 'ज्ञान ही शक्ति है' 4. विवेक, विवेचन, सूक्ष्म विचा1. जुगुप्सा, घिनौनापन, गर्हणा 2. बीभत्सरस, काव्य रणा 5. मन - मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः--मालवि० के आठ या नौ रसों में से एक जुगुप्सास्थायिभावस्तु श२, इसी प्रकार कृपण' पाप' आदि 6. औसान बीभत्स: कथ्यते रसः–सा० द० 236 (उदा० मा० रहना, प्रत्युत्पन्नमतित्व 7. धारणा, सम्मति, विश्वास, 5 / 16) 3. अर्जुन का नामान्तर / विचार, भावना, भाव दूरातमवलोक्य व्याघ्रबुद्ध्या बीभत्सुः [बधु+सन्+उ] अर्जुन का विशेषण / महा० पलायन्ते-हि० 3, अनया बुद्धया मुद्रा० 1, 'इस इस प्रकार व्याख्या करता है-न कुर्यात्कर्म बीभत्सं विश्वास से'-अनुक्रोशबुद्धया मेघ० 115 8. आशय, युध्यमानः कथंचन, तेन देवमनुष्येषु बीभत्सुरिति प्रयोजन, प्रायोजना (बुद्धचा) 'इरादतन' 'प्रयोजन से' विश्रुतः। 'जानबूझ कर 9. सचेत होना, मूर्छा से जागना -मा० बुक (अव्य०) [बुक्क् + क्विप् पृषो० उपधालोपः ] अनु- 4 10. (सां० द० में) सांख्यशास्त्र में वर्णित पच्चीस करणमूलक शब्द / सम-कारः सिंह की दहाड़। तत्त्वों में से दूसरा। सम० --- अतीत (वि.) बुद्धि की बुक्क (म्वा० पर०, चुरा० उभ० बुक्कति, बुक्कयति-ते) | पहुँच से परे, अवज्ञानम् किसी की समझ का तिर___1. भौंकना-हि० 352 2. बोलना, बात करना। स्कार करना या निकृष्ट मत रखना-अप्राप्तकाल वचनं बुक्कः, कम् [बुवक+अच् ] 1. हृदय 2. दिल, छाती बृहस्ततिरपि ब्रुवन, प्राप्नोति बुद्धयवज्ञानमपमानं च -बुक्काघातर्यवतिनिकटे प्रोढवाक्यंन राधा-उद्भट | पुष्कलम् - पंच० ११६३,-इन्द्रियम् प्रत्यक्षीकरण की 3. रुधिर, क्क: 1. बकरा 2. समय / इन्द्रिय, विपकर्मेन्द्रिय)(यह पांच है-कान, त्वचा, आँख बुक्कन् (पुं०) [बुक्क्-+शत ] हृदय, दिल / जिह्वा और नाक-श्रोत्रं त्वक्चक्षुषी जिह्वा नासिका बुल्कमम् [बुक्क् + ल्युट ] भौंकना, भौं भौं करना / चैव पंचमी, इनमें कभी कभी 'मनस्' जोड़ा जाता है) बुक्कसः [-पुक्कस, पृषो० साधुः] चंडाल / नाम्य-ग्राह्य (वि०) पहुंच के भीतर, उपलब्ध बुक्का,-पकी [बुक्क+टाप, ङीष् वा ] हृदय, दिल। करने योग्य, प्रतिभा, ---जीवन (वि.) 'तर्क' का For Private and Personal Use Only Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 719 ) व्यवहार करने वाला, तर्कयक्त बात करने वाला दिलाना–आर्य सम्यगनुबोधितोऽस्मि-श०१, अव-, -पूर्वम्, पूर्वकम् पुरःसरम् (अव्य०) इरादतन, जानबूझ जानना, ज्ञात करना, समझना-मनु० 8 / 53, भट्टि कर स्वेच्छा से,--भ्रमः मन का उचाट, मन की विपथ- 15 / 101, प्रेर०--1. ज्ञात कराना, सूचित करना, गामिता, .-योगः ब्रह्म से बौद्धिक साय ज्य, -----लक्षणम् परिचय देना -ब्रह्मचोदनानपूरुषमवबोधयत्येव केवलम बुद्धिमत्ता या प्रतिभा का चिह्न-प्रारब्धस्यान्तर्गमनम् - शारी० 2. उठाना, जगाना रघु० 12 / 23, द्वितीयं बुद्धिलक्षणम्,-वैभवम् प्रतिभा की शक्ति, उद्-, 1. जमाना, उठाना 2. फैलाना, खिलाना-प्रेर० .... शस्त्र (वि.) समझ या बुद्धि से युक्त, -शालिन्- जागरूक करना, उत्तेजित करना, प्रबुद्ध करना, जगाना, संपन्न (वि.) बुद्धिमान् समझदार, -सखः, सहायः नि-, 1. जानना, समझना, ज्ञात करना-निबोध साधो परामर्शदाता, -हीन (वि.) प्रतिभाशून्य, मूर्ख, तव चेत्कुतूहलम्-कु० 5 / 52, 3 / 14, मनु० 1168, बेवकूफ। याज्ञ. 122 2. मानना, विचार करना, समझना, प्र-, बुद्धिमत् [ बुद्धि+मतुप] 1. समझ से युक्त, प्रज्ञावान्, जागना, उठना, आंख खोलना--श० 5 / 11, शि० विवेकपूर्ण 2. समझदार, विद्वान् 3. तेज, चतुर, 9 / 30 2. खिलाना, फैलाना, खिलना साभ्रेऽह्रीव तीक्ष्ण। स्थलकमलिनी न प्रबुद्धां न सुप्ताम् मेघ० ९०,-प्रेर० बुबुवः (पुं०) बुलबुला,... सततं जातविनष्टा: पयसामिव 1. सूचित करना, जतलाना-रघु० 3 / 68 2. जगाना, बुबुदाः पयसि-पंच०५१७ / उठाना रघु० 5 / 65 6 / 56 3. फलाना, खिलाना बुद (म्वा० उभ०, दिवा० आ०-बोधति-ते, बुध्यते, बुद्ध) - कु. 1 / 15, प्रति-, जगाना, उठना-ननु० 1174, 1. जानना, समझना, संबोध होना-क्रमादम नारद इत्य याज्ञ० 11330, प्रेर० 1. सूचित करना जतलाना, बोधि सः-शि०११३, 9 / 24, नाबुद्ध कल्पद्रुमतां विहाय परिचित करना, समाचार देना रघु० 1174, शि० जातं तमात्मन्यसिपत्रवृक्षम्-रघु० 14 / 48, यदि 6 / 8, 2. जगाना, उठाना,---वि-,जागना, उठना-कु. बुध्यते हरिशिशुः स्तनन्धयः-भामि० 1153 2. प्रत्यक्ष 5 / 57 / प्रेर० 1. जगाना, उठाना 2. फिर से सचेत करना, देखना, पहचानना, ध्यान से देखना -हिरण्मयं करना--अथ मोहपरायणा सती विवशा कामवर्विहंसमबोधि नैषध:-०१।११७, अपि लङ्घितमध्वानं बोधिता-कु० 4 / 1, सम्,-जानना, समझना, ज्ञात बुबुधे न बुधोपमः-रघु० 1147, 12 / 39 3. सोचना, करना, जानकार होना -भट्टि०१९।३०, प्रेर०... विचार करना, समझना, मानना आदि 4. ध्यान देना, 1. सूचित करना, परिचित कराना, सूचना देना-तवाचित्त लगाना 5. सोचना, विमर्श करना 6. जागना, गतिज्ञं समबोधयन्माम् -रघु० 13 / 25 2. संबोधित सचेत होना, सोकर उठना-दददपि गिरमन्तबुध्यते करना। नो मनुष्य:--शि० 114, ते च प्रापुरुदन्वन्तं बुबुधे बुध (वि०) [ बुध् + क ] बुद्धिमान, चतुर, विद्वान्,-धः चादिपूरुष:-रघु० 1016 7. फिर से सचेत होना, 1. बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष --निपीय यस्य क्षितिहोश में आना--शनैरबोधि सुग्रीवः सोऽलञ्चीत्कर्ण रक्षिणः कथां तथाद्रियन्ते न बुधाः सूधामपि-० नासिकम्-भट्टि० 15 / 57, प्रेर०-बोधयति-ते 1. जत- 1 / 1 2. देव, नै० 111 3. बुध ग्रह रक्षत्यनं तु लाना, ज्ञात करना, सूचित करना, परिचित करना बुधयोगः-मुद्रा० 1 / 6, (यहां 'बुध' का अर्थ 'बुद्धिमान्' 2. अध्यापन करना, समाचार देना, (शिक्षा आदि) रघु० 147, 13176 / सम-जनः प्रदान करना 3. परामर्श देना, चेताना-बोधयन्तं बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष, - तात: चन्द्रमा,-विनम् हिताहितम्, भट्टि९८४८२, भग० 109 4. पुनर्जीवित -- वारः-वासरः बुधबार,-रत्नम् मरकतमणि, पन्ना, करना, फिर जान डालना, होश दिलाना, सचेत करना सुतः पुरूरवा का विशेषण / 5. फिर ध्यान दिलाना, याद दिलाना-श० 4 / 1 बुधानः [ बुध्+आनन्, कित् च] 1. बुद्धिमान् पुरुष, ऋषि 6. जगाना, उठाना, उत्तेजित करना (आलं०)-अकाले | 2. धर्मोपदेष्टा, अध्यात्मपथदर्शक / बोधितो भ्रात्रा--रघु० 12181, 5 / 75 7. (गंध- / बुषित ( वि० ) [ वुध्नत ] जाना हुआ, समझा द्रव्य को) फिर से सुवासित करना 8. फैलाना, हुआ। खिलाना-मधुरया मधुबोधितमाधवी-शि० 6 / 20 | बुधिल (वि.) [बध+किलच् ] विद्वान्, बुद्धिमान् / 9. द्योतित करना, संवहन करना, संकेत करना | | बुध्नः [ बन्ध् + नक, बुधादेशः ] 1. बर्तन की तली 2. पेड़ --- इच्छा० बुबु (बो) घिषति-ते, बुभुत्सते- जानने / की जड़ 3. निम्नतम भाग 4. शिव का विशेषण की इच्छा करना आदि, अनु --, 1. जानना, समझना (अन्तिम अर्थ में 'वुध्न्य' भी)। 2. सीखना, जानकार होना, सचेत होना, प्रेर०- बुन्द, बुन्ध (भ्वा० उभ० वुन्दति-ते, वुन्धति-ते)1. प्रत्यक्ष 1, परामर्श देना, बेताना-रघु० 875 2. ध्यान करना, देखना, भांपना 2. विमर्श करना, समझना / For Private and Personal Use Only Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha का हातपय बाल (व ( 720 ) बुभुक्षा [ भुज+सन्+अ+टाप् ] 1. खाने की इच्छा, / सम०-अङ्ग--काय (वि०) स्थूलकाय, विशालकाय भूख 2. किसी भी पदार्थ के उपभोग की इच्छा। (गः) बड़े डोलडौल का हाथी, आरण्यम्,-आरण्यबुभुक्षित (वि०) [बुभुक्षा+-इतन् ] भूखा, भुखमरा, क्षुधा- कम् एक प्रसिद्ध उपनिषद्, शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम पीडित-बुभुक्षितः किं न करोति पापम्-पंच० 4 / / छ: अध्याय,--एला बड़ी इलायची,--कुक्षि (वि०) 15, या बुभुक्षितः किं द्विकरेण भुङ्क्ते-उद्भट / तुंदिल, बड़े पेट वाला,-केतुः अग्नि का विशेषण, बुभुक्षु (वि.) [ भुज+सन्-+उ ] 1. भूखा, सांसारिक ---ग्रहः एक देश का नाम,--गोलम तरबूज,-चित्तः उपभोगों का इच्छुक (विप० मुमक्ष)। नींबू का पेड़,-जघन (वि०) प्रशस्तकूल्हों वाला, बुभूषा [भू-+सन्+अ+टाप् ] होने की इच्छा। ----जीवन्तिका,-जीवन्ती एक प्रकार का पौधा,-हुक्का बुभूषु (वि.) [भू सन्+उ] बनने की या होने की बड़ा ढोल, - नटः,-नल:-ला, राजा विराट के इच्छा वाला। दरबार में नृत्य और संगीत शिक्षक के रूप में रहते बुल (चुरा० उभ. बोलयति-ते) 1 डूबना, गोता लगाना हुए अर्जुन का नाम,- नेत्र (वि०) दूरदर्शी, मनीषी, -बोलपति प्लवः पयसि 2. डुबोना / -पाटलिः धतूरा,-पाल: बड़ या गूलर का वृक्ष, बुलिः (स्त्री०) [बुल-+-इन्, कित् ] 1. भयः डर / --भट्टारिका दुर्गा का विशेषण,-भानु: अग्नि,-रथः बुस् (दिवा० पर० बुष्यति) छोड़ना, उगलना, उडलना / 1. इन्द्र का विशेषण 2. एक राजा का नाम, जरासंघ बुसं (षम्) [बुस्+क पक्षे पृषो० षत्वम् ] 1. बूर, भूसी का पिता,-राविन् (पुं०) एक प्रकार का छोटा उल्ल, 2. कूड़ा, गंदगी 3. गाय का सूखा गोबर 4. धन, --स्फिच् (वि०) प्रशस्त कूल्हों वाला, बड़े नितंबों दौलत / वाला। बुस्त (चुरा० उभ० बुस्तयति--ते) 1. सम्मान करना, बृहतिका [बृहत्+ङीष् + कन्+-टाप्, ह्रस्वः] उत्तरीय आदर करना 2. अनादर करना, तिरस्कारपूर्वक वस्त्र, दुपट्टा, चोगा, चादर। अर्थात् घणायुक्त व्यवहार करना। बृहस्पतिः बहतः वाचः पतिः-पारस्करादि०] 1. देवों के गरु, बुस्तम् [ बुस्त्+घञ ] भुने हुए मांस का टुकड़ा। (इनकी पत्नी 'तारा' के चन्द्र द्वारा अपहरण के लिए बूक्कम् = बुक्क / दे० तारा या सोम के नीचे) 2. बृहस्पति ग्रह-बृहबंशी, वृषी (सी) [ब्रुवन्तोऽस्या सीदन्ति-ब्रुवत् / सद् स्पतियोगदृश्य:-रघु० 13176 3. एक स्मृतिकार का +ड+ङीष् पृषो० साधुः] किसी संन्यासी या साधु नाम --याज्ञ० 114 / सम०-पुरोहितः इन्द्र का महात्मा की गद्दी। विशेषण,-वारः,-वासरः गुरुवार / बंह (म्वा० तुदा० पर वृहति, बंहित) 1. बढ़ना, उगना | बेडा [वेड+टाप] नाव, किश्ती। -बृंहितमन्युवेग --भट्टि० 3149 2. दहाड़ना। प्रेर०- बेह, (म्बा० आ० बेहते) उद्योग करना, चेष्टा करना, पालन-पोषण करना। प्रयत्न करना। बृंहणम् [ बृंह, + ल्युट ] (हाथी के) चिंघाड़ने का शब्द ! बैजिकः (वि०) (स्त्री०-को) बीज-1-ठक] 1. वीर्यसंबंधी ---शि०१८।३। 2. मौलिक 3. गर्भविषयक 4. मथुनसंबंधी,---कः बृहित (भू० क० कृ०) [बंह.+त ] 1. उगा हआ, बढा अंखुवा, नया अंकुर,---कम् कारण, स्रोत, मूल / हुआ--भामि० 2 / 109 2.चिंघाड़ा हुआ,--तम् हाथी | बंडाल (वि.) (स्त्री०-लो) [बिडाल+अण्] 1. बिलाव की चिंघाड़-शि० 12 / 15, कि० 6 / 39 / से संबंध रखने वाला 2. बिलाव की विशिष्टता को ह, (भ्वा० तुदा० पर० बर्हति, बृहति) 1. उगना, रखने वाला। सम०-व्रतम् 'बिलाव जैसा ब्रत' बढ़ना, फैलना 2. दहाड़ना, उन्-, 1. उठाना, ऊपर अर्थात् बिलाव की भांति अपना द्वेष तथा दुर्भावनाओं को करना --मनु० 1 / 14, भट्टि० 14 / 9, नि-, नष्ट को पवित्रता और सरलता की आड़ में छिपायें रखना। करना, हटाना--शि० श२९।। -वतिः जो स्त्री सहवास न मिलने के कारण ही बृहत् (वि.) (स्त्री०-ती) [बृह+अति ] 1. विस्तृत, साधु जीवन बिताये (इस लिए नहीं कि उसने अपनी विशाल, बड़ा, स्थूल--मा० 9 / 5 2. चौड़ा, प्रशस्त, इन्द्रियों को वश में कर लिया है)-प्रतिक:- तिन् विस्तृत, दूर तक फैला हुआ -दिलीपसूनोः स बृहद्-] (पुं०) धर्म का आडंबर करने वाला, पाखंडी, ढोंगी। भुजान्तरम्-रघु० 3154 3. विस्तृत, यथेष्ट, प्रचुर बंदल [विदल-अण् बवयोरभेदः] दे० 'वैदल'।... 4. मजबूत, गक्तिशाली 5. लम्बा, ऊँचा-देवदारु- बैम्बिकः [बिम्ब+ठज] जो महिलाविषयक कार्यों में मनोबृहद्भुजः कु०६।५१ 6. पूर्णविकसित 7. सटा हुआ योगपूर्वक लगनेवाला हो, प्रेमनिपूण, प्रेमी-दाक्षिण्यं संघन-स्त्री० वाणी-शि० 2168, नपुं० 1. वेद नाम बिम्बोष्ठि बैम्बिकानां कुलव्रतम्-मालवि० 4 / 14 / 2. सामवेद का मंत्र (साम)-भग० 10 // 35 3. ब्रह्म। / बल्ब (वि.) (स्त्री०-स्वी) [बिल्व+अण्], 1 / बेल के वृक्ष For Private and Personal Use Only Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir य: 1. वेदों भिसूचकन वालास) अवगत ( 721 ) या लकड़ी से संबद्ध या निर्मित 2. बेल के पेड़ों से ध्यान दिलाया गया 3. परामर्श दिया गया, शिक्षण ढका हुआ, ल्वम् बेल के पेड़ का फल। प्रदान किया गया। बोधः [बुध---घा] 1. प्रत्यक्ष ज्ञान, जानकारी, समझ, बौद्ध (वि०) (स्त्री०-धी) | बुद्धि-+-अण् ] 1. बुद्धि या आलोचना, विचार-बालानां सूख बोधाय-तर्क० / समझ से संबंध रखने वाला 2. बुद्ध विषयक, 2. विचार, चिन्तन 3. समझ, प्रतिभा, प्रज्ञा, बुद्धिमत्ता बुद्ध द्वारा प्रचारित धर्म का अनुयायी। 4. जागना, जागरूक होना, जागति की स्थिति, चेत- बौधः | बुध+ अण् ] बुध का पुत्र, पुरूरवा का विशेषण / नता 5. खिलना, फूलना, फैलना 6. शिक्षण, परामर्श, ' बौधायनः [बोधस्यापत्यं पुमान्-बोध+फक ] एक चेतावनी 7. जगाना उठाना 8. उपाधि, पद / सम० प्राचीन मुनि का पितपरक नाम जिसने श्रौतादि सूत्रों --अतीत (वि.) अज्ञेय, ज्ञान के परे,-कर (वि.) की रचना की। सिखाने वाला, सूचित करने वाला, (रः) 1. चारण | अध्नः [ बन्ध् +नक, ब्रधादेशः 1 1. सूर्य 2. वृक्ष की जड़ या भाट (जो उपयुक्त भजन गाकर प्रात:काल अपने 3. दिन 4. मदार का पौधा 5. सीसा (पुं० ?) 6. स्वामी को जगाता है) 2. शिक्षक, अध्यापक, पूर्व घोड़ा 7. शिव या ब्रह्मा का विशेषण। वि०) सप्रयोजन, सचेत तू० 'अबोधपूर्व', वासरः ब्रह्मम् [ बृंह - / मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्-ये कार्तिक शुक्ला एकादशी, जब विष्णु भगवान् अपनी ये नान्ताः ते अकारान्ता अपि इत्युक्तेः अकारान्तोऽयं चार मास को निद्रा को त्याग कर जागे हुए समझे शब्द: ] परमात्मा / जाते है-दे० मेघ० 110, और 'प्रबोधिनी' / ब्रह्मण्य (वि.) [ब्रह्मन्+यत् ] 1. ब्रह्म से संबद्ध बोषक (वि०) (स्त्री०--धिका) [बुध+णिच् +ण्णुल 2. ब्रह्मा या प्रजापति से संबद्ध 3. पुनीत ज्ञान के ग्रहण 1. सूचना देने वाला, (स्थिति से) अवगत कराने से संबद्ध, पवित्र, पावन 4. ब्राह्मण के योग्य 5. ब्राह्मण वाला 2. शिक्षण देने वाला, अध्यापन करने वाला के लिए सौहार्दपूर्ण या आतिथ्यकारी,-व्यः 1. वेदों 3. अभिसूचक 4. जगाने वाला, उठाने वाला,-कः में निष्णात व्यक्ति–महावीर० 3 / 26 2. शहतूत भेदिया, जासूस / का वृक्ष 3. ताड़ का पेड़ 4. मूंज नामक घास बोधनः [ बुध+णि+ल्युट ] बुधग्रह,--नम् संसूचन, 5. शनिग्रह 6. विष्णु का विशेषण 7. कार्तिकेय का अध्यापन, शिक्षण, ज्ञान देना - भयरुषोश्च तदिङ्गित- विशेषण,---ण्या दुर्गा का विशेषण / सम० ---देवः विष्णु बोधनम् - रघु० 9 / 49 3. ज्ञापन करना, निर्देश का विशेषण / करना 3. जगाना, उठाना --समयेन तेन चिरसुप्तमनो- ब्रह्माण्वत् (पुं०) [ ब्रह्मन्+मतुप, वत्वम् ] अग्नि का भवबोधनं सममबोघिषत शि० 9 / 24 4. धूप देना, विशेषण। ...नी 1. कार्तिकशुक्ला एकादशी जब भगवान् विष्णु ब्रह्मता,... त्वम् [ ब्रह्मन+तल+टाप, त्व वा ] 1. परअपनी चार मास की नोंद त्याग कर उठते हैं, देव / मात्मा में लीन होना 2. दिव्य प्रकृति / उठनी एकादशी 2. बड़ी पीपल / ब्रह्मन् (नपुं०) [बृंह ---मनिन्, नकारस्याकारे ऋतो बोधानः [बुध् + आनन्] 1. बुद्धिमान् पुरुष 2. बृहस्पति रत्वम् ] 1. परमात्मा जो निराकार और निर्गुण का विशेषण। समझा जाता है (वेदान्तियों के मतानुसार ब्रह्म ही बोधिः बिधु - इन] 1. पूर्ण मति या ज्ञान का प्रकाश इस दृश्यमान संसार का निमित्त और उपादान कारण 2. बुद्ध की ज्ञान से प्रकाशित प्रतिभा 3. पावन वट- है; यही सर्वव्यापक आत्मा और विश्व की जीव वृक्ष 4. मुर्गा 5. बद्ध का विशेषण। सम० तरुः, शक्ति है, यही बह मूलतत्त्व है जिससे संसार की सब -- ब्रुमः वृक्षः पावन वटवृक्ष, वः (जैनियों का) बस्तुएँ पैदा होती हैं तथा जिसमें फिर वह लीन हो अर्हत, * सत्त्वः बौद्ध संन्यासी या महात्मा जो पूर्ण जाती है--अस्ति तावन्नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं सर्वज्ञ ज्ञान की उपलब्धि के मार्ग पर अग्रसर है तथा जिसके सर्बशक्तिसमन्वितं ब्रह्म-शारी०) समीभूता दृष्टिस्त्रि. केवल कुछ ही जन्म अवशिष्ट हैं जिनको पार करके भुवनमपि ब्रह्म मनुते-भर्तृ० 3284, कु० 3 / 15 वह पुर्णबुद्ध की स्थिति को प्राप्त कर लेगा और 2. स्तुतिपरक सूक्त 3. पुनीत पाठ 4. वेद--कु०६।१६, जन्ममरण के दुःख से छुटकारा पा जायगा (यह उत्तर० 1115 5. ईश्वरपरक पावन अक्षर ॐ' स्थिति पावन तथा सत्कृत्यों की दीर्घशृंखला को पार ---एकाक्षरं परं ब्रह्म--- मनु० 2283 6. पुरोहितवर्ग करके प्राप्त की जाती है)---एवंविधरतिविलसितरति- या ब्राह्मण समुदाय-मनु० 9 / 320 7. ब्राह्मण की बोधिसत्त्व:--मा०१०।२१ / शक्ति या ऊर्जा-.-रघु० 8 / 4 8. धार्मिक साधना या बोषित (भू० क० कृ०) [बुध+णिच् + क्त] 1. जताया तपस्या 9. ब्रह्मचर्य, सतीत्व-शाश्वते ब्रह्मणि बर्तते गया, सूचित किया गया, अवगत कराया गया 2. फिर --श० 1 10. मोक्ष या निर्वाण 11. ब्रह्मज्ञान, शनिग्रह ताड़ काडावार For Private and Personal Use Only Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 722 ) अध्यात्मविद्या 12. वेदों का ब्राह्मणभाग 13. धनदौलत, / - अधिगमः,-- अधिगमनम वेदों का अध्ययन, संपत्ति,—(पुं०) परमात्मा, ब्रह्मा, पावन त्रिदेवों --- अभ्यासः वेदों का अध्ययन, अम्भस् (नपुं०)गोमूत्र, (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में प्रथम जिनको संसार की - अयणः,-नः नारायण का विशेषण,- अर्पणम् रचना का कार्य सौंपा गया है (संसार की रचना का 1. ब्रह्मज्ञान का अर्पण 2. परमात्मा में अनुरक्ति वर्णन बहुत सी बातों में भिन्न 2 है, मनुस्मृति के 3. एक प्रकार का जादू या मन्त्र,- अस्त्रम् ब्रह्मा से अनुसार यह विश्व अंधकारावत था, स्वयंभू भगवान् अधिष्ठित एक अस्त्र, आत्मभूः घोड़ा,---आनन्दः ब्रह्म ने अंधकार को हटा कर स्वयं को प्रकट किया / सबसे में लीन होने का आत्यंतिक सुख या आनंद ब्रह्मानन्द पहले उसने जल पैदा किया तथा उसमें बीजवपन साक्षाक्रिया- महावीर० 7.31,- आरम्भः वेदों का किया। यह बीज स्वणिम अंडे के रूप में हो गया, पाठ आरंभ करना-मनु० 2071, आवर्तः (हस्तिनापुर जिससे ब्रह्मा (संसार का स्रष्टा) के रूप में वह स्वयं के पश्चिमोत्तर में) सरस्वती और दषद्वती नदियों के उत्पन्न हुआ। फिर ब्रह्मा ने इस अंडे के दो खण्ड बीच का मार्ग * सरस्वती दृषद्वत्योर्देवनद्योर्यदन्तरं, तं किये-जिससे उसने धुलोक और अंतरिक्ष को जन्म देवनिमितं देशं ब्रह्मावर्त प्रचक्षते मन०२।१७, 19, दिया, उसके पश्चात् उसने दस प्रजापतियों (मानस मेघ ४८,---आसनम् गहन समाधि के लिए विशिष्ट पुत्रों) को जन्म दिया जिन्होंने सष्टि के कार्य को पूरा आसन,-- आहुतिः (स्त्री०) प्रार्थनापरक मंत्रों का पाठ, किया / दूसरे वर्णन (रामायण) के अनुसार आकाश स्वस्तिवाचन, दे० ब्रह्मयज्ञ, उज्झता वेदों को भूल से ब्रह्मा का आगमन हुआ। उससे फिर मरीचि का जाना या उनकी उपेक्षा करना---मनु० 11 / 57, जन्म हुआ, मरीचि से कश्यप और कश्यप से फिर (अधीतवेदस्यानभ्यासेन विस्मरणम्-कुल्लू०),- उद्यम् विवस्वान् ने जन्म लिया। विवस्वान् से मनु की वेद की व्याख्या करना, ब्रह्मज्ञानविषयक समस्याओं उत्पत्ति हुई। इस प्रकार मनु ही मानव संसार का पर विचार विमर्श, - उपदेशः ब्रह्मज्ञान या वेद का रचयिता है। तीसरे वृत्तान्त के अनुसार स्वयंभू ने शिक्षण, 'नेत (पुं०) ढाक का वृक्ष,-ऋषिः (ब्रह्मर्पि सुनहरे अंडे को दो खण्डों (नर और नारी) में या ब्रह्म ऋषि) ब्राह्मण ऋपि,---देशः मंडल, जिला विभक्त किया उनसे विराज और मनु का जन्म (कुरुक्षेत्रं च मत्स्याश्च पंचालाः शूरसेनकाः, एप हुआ-तु० कु० 227, मनु० 1132 तथा आगे / ब्रह्मषिदेशो वै ब्रह्मावर्तादनन्तर:-मनु० 2 / 12) पौराणिक कथा के आधार पर ब्रह्मा का जन्म उस --कन्यका सरस्वती का विशेषण,- करः पुरोहित वर्ग कमल से हुआ जो विष्णु की नाभि में उगा था। स्वयं को दिया जाने वाला शुल्क,-कर्मन् (नपुं०) अपनी पुत्री सरस्वती से उसने अवैध संबंध द्वारा सष्टि 1. ब्राह्मण के धार्मिक कर्तव्य 2. यज्ञ के चार मुख्य रचना की। ब्रह्मा के प्रारम्भ में पांच सिर थे, परन्तु पुरोहितों में ब्राह्मण का पद, - कल्पः ब्रह्मा की आयु, एक सिर शिव ने अपनी अनामिका से काट दिया या -काण्डम् ब्रह्मज्ञान से संबद्ध वेद का भाग, काष्ठः तृतीय नेत्र की आग से भस्म कर दिया। ब्रह्मा की शहतूतं का पेड़,-कूर्चम् एक प्रकार की साधना सवारी हंस है। उसके अनंत विशेषण हैं जिनमें से - अहोरात्रोषितो भूत्वा पौर्णमास्यां विशेषतः, पंचगव्यं अधिकांश उसकी कमल में उत्पत्ति का संकेत करते पिबेत् प्रातर्ब्रह्माकूर्चमिति स्मृतम्,--कृत् (वि०) है) 2. ब्राह्मण –श० 4 / 4 3. भक्त 4. सोमयाग में स्तुति करने वाला (पुं०) विष्णु का विशेषण, * गुप्तः नियुक्त चार ऋत्विजों (पुरोहितों) में से एक एक ज्योतिविद् का नाम जो सन् 598 ई० में उत्पन्न 5. धर्मज्ञान का ज्ञाता 6. सूर्य 7. प्रतिभा 8. सात प्रजा हुआ था,-गोलः विश्व,—गौरवम् ब्रह्मा से अधिष्ठित पतियों (मरीचि, अत्रि, अंगिरस्, पुलस्त्य, पुलह, अस्त्र का सम्मान-भट्टि० 9 / 76, (मा भून्मोघो ऋतू और वसिष्ठ) का विशेषण 9. बृहस्पति का ब्राह्मः पाश इति),--प्रन्थिः शरीर का विशिष्ट जोड़, विशेषण 10. शिव का विशेषण / सम-अक्षरम् ब्रह्मगांठ,- ग्रहः, --पिशाचः-पुरुषः,-- रक्षस (नपुं०), पावन अक्षर 'ॐ',-अङ्गभूः घोड़ा, अञ्जलिः वेद पाठ ---राक्षसः एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस करते समय हाथ जोड़ कर सादर अभिवादन जो जीवन भर घणित वृत्ति में संलग्न रहता है दूसरों 2. आचार्य या गुरु का सम्मान (वेद पाठ के आरम्भ की पत्नियों का तथा ब्राह्मणों की संपत्ति का अपहरण तथा समाप्ति पर),--अण्डम् 'ब्रह्मा' का अंडा', करता है (परस्य योषितं हत्वा ब्रह्मस्वमपहृत्य च, बीजभूत अंडा जिससे यह समस्त संसार अरण्ये निर्जले देशे भवति ब्रह्मराक्षसः -- याज्ञ० 3 / 212, या विश्व का उद्भव हुआ-ब्रह्माण्डच्छत्रदण्ड:-दश० 1, तु० मनु० 12 // 60 भी), -घातकः ब्राह्मण की हत्या -पुराणम् 1. अठारह पुराणों में से एक पुराण, करने वाला,-घातिनो ऋतु के दूसरे दिन की रजस्वला ---अभिजाता गोदावरी नदी का एक विशेषण, स्त्री, घोषः 1. वेद का सस्वर पाठ 2. पावन शब्द, For Private and Personal Use Only Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 723 / वेदत्रयी-उत्तर०६९ (पाठांतर), नः ब्राह्मण की हत्या करने वाला,-चर्यम् 1. धार्मिक शिष्यवृत्ति, वेदाध्ययन के समय ब्राह्मण बालक का ब्रह्मचर्यजीवन, जीवन का प्रथम आश्रम --अविप्लतब्रह्मचर्यों गहस्थाश्रममाचरेत् --- मनु० 3 / 2, 2 / 249, महावीर० 1124 2. धार्मिक अध्ययन, आत्मसंयम 3. कौमार्य, सतीत्व, विरति, इन्द्रियनिग्रह, (यः) वेदाध्ययनशील, -दे० ब्रह्मचारिन् ((h) सतीत्व, कौमार्य, व्रतम्, सतीत्व रक्षण की प्रतिज्ञा स्खलनम् सतीत्व या ब्रह्मचर्य से गिर जाना, इन्द्रियनिग्रह का अभाव -चारिकम वेदों के विद्यार्थी का जीवन, चारिन (पुं०) 1. वेद का विद्यार्थी, जीवन के प्रथम आश्रम में वर्तमान ब्राह्मण जो यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात् दीक्षित होकर गुरुकुल में अपने गुरु के साथ रहता है तथा वेदाध्ययन के समय ब्रह्मचर्याश्रम के नियमों का पालन करता रहता है जब तक कि वह गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट नहीं हो जाता है—मनु० 241, 175, 6 / 87 2. जो आजन्म ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करता है,---चारिणी 1. दुर्गा का विशेषण 2. वह स्त्री जो सतीत्व व्रत का पालन करती है,-'जः कातिकेय का विशेषण, जारः ब्राह्मण की पत्नी का प्रेमी, -जीविन (50) जो ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही अपनी आजीविका कमाता है,- वि०) जो ब्रह्म को जानता है (जः) 1. कातिकेय का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण,-जानम् सत्यज्ञान, दिव्यज्ञान, विश्व की ब्रह्म के साथ एकरूपता का ज्ञान, ज्येष्ठः ब्राह्मण का बड़ा भाई,- ज्योतिस् (नपुं०) ब्रह्म या परमात्मा की ज्ञानज्योतिः,--तत्त्वम् परमात्मा का यथार्थ ज्ञान,-तेजस (नपुं०) 1. ब्रह्मा को कीर्ति 2. ब्रह्म को कान्ति, वह कीर्ति या कान्ति जो ब्राह्मण को चारों ओर से घेरे हुए समझी जाती है,--वः वेदज्ञान के प्रदाता गुरु, दण्डः 1. ब्राह्मण का शाप 2. ब्राह्मण को दिया गया उपहार 3. शिव का विशेषण,-दानम् 1. वेद पढ़ाना 2. वेद का ज्ञान जो उत्तराधिकार में या वंशानुक्रम से प्राप्त होता है, ---दायादः 1. ब्राह्मण, जो वेदों को आनुवंशिक उपहार के रूप में प्राप्त करता है 2. ब्राह्मण का पुत्र, --वादः शहतूत का पेड़,-दिनम् ब्रह्मा का दिन,-दैत्यः वह ब्राह्मण जो राक्षस बन जाय-तु०, ब्रह्मग्रह,-द्विष,द्वेषिन् (वि०) 1. ब्राह्मणों से घृणा करने वाला 2. वेदविहित कृत्यों या भक्ति का विरोधी, अपावन, निरीश्वरवादी,द्वेषः ब्राह्मणों की घणा,-नदी सरस्वती नदी का विशेषण, नाभः विष्णु का विशेषण,-निर्वाणम् परमब्रह्म में लीन होना, -निष्ठ (वि०) परमात्मचिन्तन में लीन, (ष्ठः) शहतूत का पेड़,-पवम् 1. ब्राह्मण का पद या दर्जा 2. परमात्मा का स्थान, | -पवित्रः कुश नामकघास,-परिषद् (स्त्री०) ब्राह्मणों की सभा,-पादपः ढाक का पेड़,-पारायणम् वेदों का पूर्ण अध्ययन, सारे वेद-उत्तर० 4 / 9, महावीर० १२१४,....पाशः ब्रह्मा द्वारा अधिष्ठित अस्त्र विशेष - भट्टि० 9/75, ----पितृ (पुं०) विष्णु का विशेषण, -पुत्रः 1. ब्राह्मण का बेटा 2. हिमालय की पूर्वी सीमा से निकलने वाला तथा गंगा के साथ मिल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाला 'ब्रह्मपुत्र' नाम का दरिया, (त्री) सरस्वती नदी का विशेषण,--पुरम्,-पुरी 1. (स्वर्ग में) ब्रह्मा का नगर 2. वाराणसी,---पुराणम् अठारह पुराणों में से एक का नाम, .. प्रलयः ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर सृष्टि का विनाश जिसमें स्वयं परमात्मा भी विलीन माना जाता है, --प्राप्तिः (स्त्री०) परमात्मा में लीन होना,-बन्धुः ब्राह्मण के लिए तिरस्कार-सूचक शब्द, अयोग्य ब्राह्मण---मा० 4, विक्रम० 2 2. जो केवल जाति से ब्राह्मण हो, नाम मात्र का ब्राह्मण,-बीजम् ईश्वरवाचक अक्षर ॐ, -वाणः जो ब्राह्मण होने का बहाना करता है, भवनम ब्राह्मण का आवास,~-भागः शहतूत का वृक्ष,---भावः परमात्मा में लीन होना, भुवनम् ब्रह्मा की सृष्टि --भग० ८।१६,-भूत (वि.) जो ब्रह्मा के साथ एक रूप हो गया है, परमात्मा में लीन,-भूतिः (स्त्री०) संध्या,- भूयम् 1. ब्रह्म के साथ एकरूपता 2. ब्रह्म में लीनता, मोक्ष, निर्वाण-स ब्रह्मभ्यं गतिमाजगाम- रघु० 1828, ब्रह्मभूयाय कल्पते -भग० 14 / 26, मनु० 1298 2. ब्राह्मत्व, ब्राह्मण का पद या स्थिति, भूयस् (नपुं०) ब्रह्म में लय, ---मंगलदेवता लक्ष्मी का विशेषण--मीमांसा, वेदान्तदर्शन जिसमें ब्रह्म या परमात्माविषयक चर्चा है,-मूर्ति (वि.) ब्रह्म का रूप रखने वाला,- भूधभत् शिव का विशेषण,--मेखलः मुंज घास का पौधा, यतः (गृहस्थ द्वारा अनुष्ठेय) दैनिक पंचयज्ञों में से एक, वेद का अध्यापन तथा सस्वर पाठ---अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः --मनु० 370 (अध्यापनशब्देन अध्ययनमपि गृह्यते-कुल्लू०),-योगः ब्रह्मज्ञान का अनुशीलन या अभिग्रहण, योनि (वि.) ब्रह्म से उत्पन्न,-रत्नम् ब्राह्मण को दिया गया मूल्यवान् उपहार,- रन्ध्रम् मूर्धा में एक प्रकार का विवर जहाँ से जीव इस शरीर को छोड़ कर निकल जाता है, ... राक्षसः दे० ब्रह्मग्रह, -रातः शुकदेव का विशेषण,--राशिः 1. ब्रह्मज्ञान का मंडल यो समस्त राशि, संपूर्ण वेद 2. परशुराम का विशेषण,-रीतिः (स्त्री०) एक प्रकार का पीतल --- रे (ले) खा,-लिखितम,-लेखः विधाता के द्वारा मस्तक पर लिखी गई पंक्तियाँ जिनसे मनुष्य का भाग्य प्रकट होता है, मनुष्य का प्रारब्ध, - लोकः ब्रह्मा For Private and Personal Use Only Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 724 ) का लोक,-क्तु (पुं०) वेदों का व्याख्याता,-वचम् दैनिक पाँच यज्ञों में से एक जिसमें अतिथिसत्कार की ब्रह्म का ज्ञान,-वषः,--वध्या,-हत्या ब्राह्मण की क्रियाएँ सम्मिलित है- मनु० ३।७४,-हृदयः, यम् हत्या,-वर्चस् (नपुं०),--वर्चसम् 1. दिव्य आभा एक नक्षत्र का नाम जिसे अंग्रेजी में कंपेल्ला कहते हैं। या कीर्ति, ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न आत्मशक्ति या ब्रह्ममय (वि.)[ब्रह्मन्+यमट्] 1. वेद से युक्त या व्युत्पन्न, तेज (तस्य हेतुस्त्वद् ब्रह्मवर्चसम्---रघु० 1163, वेद या वेदज्ञान से संबद्ध ज्वलन्निव ब्रह्ममयेन तेजसा मनु० 2 / 37, 4 / 94 2. ब्राह्मण की अन्तहित -कु० 5 / 30 2. ब्राह्मण के योग्य, * यम् ब्रह्मा से पवित्रता या शक्ति, ब्रह्मतेज-श० ६,-वर्चसिन्, ! अधिष्ठित अस्त्र। -वर्चस्विन् (वि.) ब्रह्म तेज से पवित्रीकृत, ! ब्रह्मवत् (वि.) [ ब्रह्म+मतुप ] वेदज्ञान रखने वाला। शुद्धात्मा (पुं०) प्रमुख या श्रद्धेय ब्राह्मण,-वर्तः दे० / ब्रह्मसात् (अव्य०) [ब्रह्मन् + साति] 1, ब्रह्म या परमात्मा ब्रह्मावर्त,-वर्षमम् तांबा,-वादिन् (पुं०) 1. जो की स्थिति 2. ब्राह्मणों की देखरेख में। वेदों का अध्यापन करता है, वेदव्याख्याता-- उत्तर० | ब्रह्माणी [ब्रह्मन+ अण+ङीप्] 1. ब्रह्मा की पत्नी 2. दुर्गा 1, मा०१ 2. वेदान्त दर्शन का अनुयायी,-वासः | का विशेषण 3. एक प्रकार का गन्धद्रव्य (रेणुका) ब्राह्मण का आवासस्थल,-विद्-विद (वि०) परमात्मा 4. एक प्रकार का पीतल / को जानने वाला, ब्रह्मज्ञ (पु.) ऋषि, ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मिन (वि.) [ ब्रह्मन+इनि, टिलोपः ] ब्रह्मा से संबद्ध, वेदान्ती,-विद्या ब्रह्मज्ञान,-वि (बि) दुः वेद का 0) विष्णु का विशेषण। पाठ करते समय मुंह से निकलने वाला थूक का छींटा, अशिष्ठ (वि.) [ ब्रह्मन+- इष्ठन, टिलोपः] वेदों का -विवर्धनः इन्द्र का विशेषण,-वृक्षः 1. ढाक का पूर्ण पंडित, अतिशय विद्वान्, या पुण्यात्मा-ब्रह्मिष्ठपेड़, 2. गूलर का वृक्ष,-वृत्तिः (स्त्री०) ब्राह्मण की माधाय निजेऽधिकारे ब्रह्मिष्ठमेव स्वतनुप्रसूतम्-रघु० आजीविका, वृन्दम् ब्राह्मणों की समूह, वेदः 1. वेदों १८।२८,-ष्ठा दुर्गा का विशेषण / / का ज्ञान 2. ब्रह्म का ज्ञान 3. अथर्ववेद का नाम, बनी [ ब्रह्मन+अण-+ङीप 1 ब्राह्मी बटी का -वेविन् (वि०) वेदवेत्ता, तु० ब्रह्मविद्,–ववर्तम् ब्रह्मेशयः [ ब्रह्मणि तपसि शेते-शी+अच्, पृषो साधुः ] अठारह पुराणों में से एक,-व्रतम् सतीत्व या शुचिता 1. कार्तिकेय का विशेषण 2. विष्णु की उपाधि / की प्रतिज्ञा,-शिरस्-शीर्षन् (नपुं०) एक विशिष्ट ब्राह्म (वि०) (स्त्री०-झी) [ ब्रह्मन्+अण, टिलोपः] अस्त्र का नाम,-संसद् (स्त्री०) ब्राह्मणों की सभा, ब्रह्मा, विधाता या परमात्मा से संबद्ध,-रघु० 13 / 60, --सती सरस्वती नदी का विशेषण,-सत्रम् 1. वेद मनु० 2 / 40, भग० 2 / 72 2. ब्राह्मणों से संबद्ध का पढ़ना-पढ़ाना, ब्रह्मयज्ञ 2. परमात्मा में लय होना, 3. वेदाध्ययन या ब्रह्मज्ञान से संबद्ध 4. वेदविहित, -~-सबस् (नपुं०) ब्रह्मा का निवासस्थान,--सभा वैदिक 5. विशुद्ध, पवित्र, दिव्य 6. ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा का दरबार, ब्रह्मा की सभा या भवन,-संभव अधिष्ठित जैसा कि मुहर्त (दे० ब्राह्ममहर्त), या (वि.) ब्रह्मा से उत्पन्न या प्राप्त, (वः) नारद का अस्त्र,मः हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार आठ प्रकार नामान्तर, सर्पः एक प्रकार का साँप, सायुज्यम् के विवाहों में से एक; जिसमें आभूषणों से अलंकृत परमात्मा के साथ पूर्ण एकरूपता-तु० ब्रह्मभूय, कन्या, वर से बिना कुछ लिये, उसे दान कर दी जाती -साष्टिका ब्रह्म के साथ एक रूपता--मनु० 4 / 232, है (यही आठों भेदों में सर्वश्रेष्ठ प्रकार है)। -सावणिः दसवें मनु का नामान्तर,-सुत: 1. नारद -ब्राह्मो विवाह आय दीयते शक्त्यलकृता-याज्ञ. का नामान्तर, मरीचि आदि 2. एक प्रकार का केतु, 1158, मनु० 3 / 21,27 2. नारद का नामान्तर, -स: 1. अनिरुद का नामान्तर 2. कामदेव का -हम् हथेली का अंगुष्ठमूल के नीचे का भाग नामान्तर,-सूत्रम् 1. जनेऊ या यज्ञोपवीत जिसे 2. वेदाध्ययन / सम.. अहोरात्रः ब्रह्मा का एक ब्राह्मण या द्विजमात्र कंधे के ऊपर से धारणा करते दिन और एक रात,-देया ब्राह्म विवाह की रीति से है 2. बादरायण द्वारा रचित वेदान्तदर्शन के सूत्र, विवाहित की जाने वाली कन्या,-मुहर्तः दिन का -सुनिन् (वि.) जिसका उपनयन संस्कार हो चुका विशिष्ट भाग, दिन का सर्वथा सवेरे का समय हो, यज्ञोपवीतधारी,-सज् (पुं०) शिव का विशेषण, (रात्रश्च पश्चिमे यामे महतों ब्राह्म उच्यते)-ब्राह्म -स्तम्ब संसार, विश्व-महावीर० ३.४८,-स्तेयम् मुहूर्ते किल तस्य देवी कुमारकल्पं सुषुवे कुमारम् अवैध उपायों से उपार्जित वेदज्ञान,-स्वम् ब्राह्मण -रघु० 5 / 36 / की संपत्ति या धनदौलत, याज्ञ० 3 / 212, हारिन् / ब्राह्मण (वि०) (स्त्री०–णी) [ब्रह्म वेदं शद्ध चैतन्य (वि.) ब्राह्मण का धन चुराने वाला, हन् (वि.) वा वेत्त्यधीते वा-अण्] 1. ब्राह्मण का 2. ब्राह्मण बंशहत्यारा, ब्राह्मण की हत्या करने वाला,-हुतम् / के योग्य 3. ब्राह्मण द्वारा दिया गया,—ण: 1. हिंदू For Private and Personal Use Only Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 725 ) समुदाय 11. धर्म के माने हए चार वर्गों में सर्वप्रथम वर्ण का, एक पुरोहित का नामान्तर, ब्रह्मा नामक ऋत्विज़ (पुरुष- ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न- ब्राह्मणोऽस्य का सहायक / / मुखमासीत् - ऋ० 10 // 90 / 12, मालवि० 1131, ब्राह्मणी [ब्राह्मण+ङीष् ] 1. ब्राह्मण जाति की स्त्री 96) ब्राह्मण---जन्मना जायते शूद्रः संस्कारैद्विज 2. ब्राह्मण की पत्नी 3. प्रतिभा (नीलकंठ के मताउच्यते, विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते, नसार 'बद्धि') 4. एक प्रकार की छिपकली 5. एक या-जात्या कुलेन वृत्तेन स्वाध्यायेन तेन च, प्रकार की भिरड़ 6. एक प्रकार का घास / सम. एभिर्य क्तो हि यस्तिष्ठेन्नित्यं स द्विज उच्यते) 2. पूरो- ---गामिन् (पुं०) ब्राह्मण स्त्री का प्रेमी। हित, ब्रह्मज्ञानी या धर्मशास्त्री 3. अग्नि का विशेषण | ब्राह्मण्य (वि०) [ ब्राह्मण+ध्या वा यत् ] ब्राह्मण के 4. वेद का वह भाग जो विविध यज्ञों के विषय में योग्य,—यः शनिग्रह का विशेषण, --ज्यम् 1. ब्राह्मण मन्त्रों के विनियोग तथा विधियों का प्रतिपादन करता की पदवी या दर्जा, पौरोहित्य या याजकीय वृत्ति, है, साथ ही उनके मूल तथा विवरणात्मक व्याख्या -सत्यं शपे ब्राह्मण्येन-मृच्छ० 5, पंच० 1166, मनु० को तत्संबंधी निदर्शनों के साथ जो उपाख्यानों के 3317,7 / 42 2. ब्राह्मणों का समुदाय / रूप में विद्यमान हैं, प्रस्तुत करता है। वेद के मन्त्रभाग ब्राह्मी [ब्राह्म+डीप् ] 1. ब्रह्म की मतिमती शक्ति 2. वाणी से यह बिल्कुल पृथक है 5. वैदिक रचनाओं का समूह की देवी सरस्वती 3. वाणी 4. कहानी, कथा जिसमें ब्राह्मण भाग सम्मिलित है (वेद के मंत्रों की 5. धार्मिक प्रथा या रिवाज 6. रोहिणी नक्षत्र 7. दुर्गा भाँति अपौरुषेय या श्रुति माना जाता है) प्रत्येक वेद का नामान्तर 8. ब्राह्मविवाह की विधि से परिणीता का अपना पृथक्-पृथक ब्राह्मण है, ये हैं - ऋग्वेद के स्त्री 9. ब्राह्मण की पत्नी 10. एक प्रकार की बूटी ऐतरेय या आश्वलायन, और कौशीतकी या सांख्यायन 11. एक प्रकार का पीपल 12. नदी का नामान्तर / ब्राह्मण है, यजुर्वेद का शतपथ, सामवेद का पंचविंश, सम० --- कन्दः वाराही कंद,-पुत्रः ब्राह्मी का पुत्र-दे० षडर्विश तथा छ: और है, अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण ऊ०, मनु० 3 / 27,37 / / है)। सम०--अतिक्रमः ब्राह्मणों के प्रति सदोष या बाहम्य (वि.) (स्त्री०-हम्यी) [ब्रह्मन् व्य] 1. ब्रह्मा तिरस्कार सूचक व्यवहार, ब्राह्मणों का अनादर 'अर्थात् विधाता से संबंध रखने वाला 2. परमात्मा से ----ब्राह्मणातिक्रमत्यागो भवतामेव भूतये महावीर० संबद्ध 3. ब्राह्मणों से संबद्ध,--माघम् आश्चर्य, अचम्भा २।८०,-अपाश्रयः ब्राह्मणों की शरण में जाना, विस्मय / सम० महतं ब्राह्ममुहर्त,-हुतम् अतिथि"-अभ्युपपत्तिः (स्त्री०) ब्राह्मण की रक्षा या पालन- सत्कार दे० 'ब्रह्मयज्ञ'। पोषण, ब्राह्मण के प्रति प्रदर्शित कृपा - मनु० 9 / 87, (वि.) [+क] बनने वाला, बहाना करने वाला, --ध्नः ब्राह्मण की हत्या करने वाला,-जातम्,-जातिः अपने आपको उस नाम से पुकारने वाला जो उसका (स्त्री०) ब्राह्मण की जाति, जीविका ब्राह्मण के लिए वास्तविक नाम न हो, (समास के अन्त में) यथा विहित वृत्ति के साधन,-- द्रव्यम्,--स्वम् ब्राह्मण की ब्राह्मणब्रुव, क्षत्रियब्रुव में। संपत्ति, निन्दकः ब्राह्मणों की निन्दा करने वाला, बू (अदा० उभ० ब्रवीति-ब्रूते या आह) (आर्धधातुक -ब्रुवः जो ब्राह्मण होने का बहाना करता है, नाम लकारों में इस धातु में असाधारण परिवर्तन होता मात्र का ब्राह्मण जो ब्राह्मण जाति के विहित कर्तव्यों है, इसके रूप 'वच्' धातु से बनाये जाते हैं) 1. कहना का पालन नहीं करता है -- बहवो ब्राह्मणब्रुवा निवसन्ति बोलना, बात करना (द्विकर्मक धा०) तांब्या दश०, मनु० 785, 8 / 20,- भूयिष्ठ (वि०) जिसमें एवम् - मेघ० 104, रामं यथास्थितं सर्वं भ्राता ब्रते अधिकतर ब्राह्मण ही रहते हों, वधः ब्राह्मण की स्म विह्वल: .... भट्टि० 618, या माणवकं धर्म ब्रूते - हत्या, ब्रह्महत्या, संतर्पणम् ब्राह्मणों को खिलाना सिद्धा०, किं त्वां प्रतिब्रूमहे-भामि० 1146 2. कहना, या तृप्त करना। बोलना, संकेत करना (किसी व्यक्ति या वस्तु की ब्राह्मणकः [ ब्राह्मण+कन् ] 1. अयोग्य या नीच ब्राह्मण, ओर)-अहं तु शकुन्तलामधिकृत्य ब्रवीमि - श० नाम मात्र का ब्राह्मण 2. एक देश का नाम जहाँ 2, 3. घोषणा करना, प्रकथन करना, प्रकाशित करना, योद्धा ब्राह्मणों का वास हो। सिद्ध करना ... ब्रुवते हि फलेन साधको न तु कण्ठेन ब्राह्मणत्रा (अव्य०) [ब्राह्मण+त्राच् ] 1. ब्राह्मणों में निजोपयोगिताम् नै० 2 / 46, रत्न० 2 / 13 4. नाम 2. ब्राह्मण की पदवी को-जैसा कि 'ब्राह्मणात् भवति लेना, पुकारना, नाम रखना, - छंदसि दक्षा ये कवयधनम्' में। स्तन्मणिमध्यं ते ब्रुवते--श्रुत० 15 5. उत्तर देना ब्राह्मणाच्छंसिन् (पुं०)[ब्राह्मणे विहितानि शास्त्राणि शंसति / -ब्रूहि मे प्रश्नान्, अनु. कहना, बोलना, घोषणा द्वितीयाथे पंचम्युपसंख्यानम्-अलुक् स०, शंस्-+ इनि ] | करना, निस्,-व्याख्या करना, व्युत्पत्ति बतलाना, 2, 3. पोजह तु शकत किसी व्यक्ति For Private and Personal Use Only Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र--,कहना बोलना, बात करना-भट्टि० 8185, -प्रत्यब्रवीच्चनम् --रघु० 2 / 42 वि-, 1. कहना, प्रति--, उत्तर में बोलना, उत्तर या जबाब देना बोलना-2. गलत कहना, मिथ्या बतलाना। | ब्लेकम् (नपुं०) फंदा, जाल, पाश / भः [भा+ड] 1. शुक्र ग्रह का नामान्तर 2. भ्रम, भ्रान्ति, / -पूर्बकम् (अव्य) भक्तिपूर्वक, सम्मानपूर्वक,--भाज आभास, भम् 1. तारा 2. नक्षत्र 3. ग्रह 4. राशि (वि.) 1. धर्मनिष्ठ, श्रद्धालु 2. दृढ़ अनुराग रखने 5. सत्ताइस की संख्या 6. मधुमक्खी। सम-ईनः, वाला, निष्ठावान्, श्रद्धाल,-मार्गः भक्ति की रीति ---ईशः सूर्य,-गणः,-- वर्ग: 1. तारापुंज, नक्षत्रपुंज अर्थात परमात्मा की उपासना (शाश्वत शान्ति और 2. राशिचक्र 3. ग्रहों का राशिचक्र में भ्रमण,-गोल: मोक्ष प्राप्ति की रीति 'भक्ति या उपासना' ही समझी तारामंडल, ---- चक्रम् - मण्डलम् राशिचक्र, - पतिः जाती है),... योगः सानुराग निष्ठा, श्रद्धापूर्वक उपा. चन्द्रमा,--सूचकः ज्योतिषी। सना, वादः अनुराग का विश्वास। भषिकका [?] शौंगुर / | भक्तिमत् (वि.) [ भक्ति+मतुप ] 1. उपासक, श्रद्धालु भक्त (भ० क० कृ०) [भज-+क्त] 1. विभक्त, नियती- 2. निष्ठावान्, स्वामिभक्त, अनुरागी। कृत निदिष्ट 2 विभाजित 3. सेवित, पजित 4. व्यस्त.. भक्तिल (वि.) [भक्ति+ला+क] स्वामिभक्त, दत्तचित्त 5. अनुरक्त, संलग्न, श्रद्धाल, निष्ठावान विश्वासपात्र (जैसे कि घोड़ा)। -भग० 9 / 34 6. प्रसाधित, (भोजन आदि) पक्व, | भक्ष (चुरा० उभ०-भक्षयति-ते, भक्षित) 1. खाना, दे० भज, ----क्तः पूजक, आराधक, उपासक, पुजारी निगलना--यथामिषं जले मत्स्यभक्ष्यते श्वापदैर्भुवि या दास, स्वामिभक्त नोकर-भक्तोऽसि मे सखा चेति --पंच०१ 2. उपयोग में लाना, उपभोग करना ----भग० 4 / 3, 9 / 31, १२३,--क्तम् 1. हिस्सा, 3. बर्बाद करना, नष्ट करना 4. काटना / भाग 2. भोजन-भर्तृ 0 3 / 74 3. उबाला हुआ चावल, भक्षः [ भक्ष +घञ ] 1. खाना 2. भोजन / भात -- उत्तर० 4.1 4. पानी में डाल कर पकाया भक्षक (वि.) (स्त्री-क्षिका) [ भक्ष+ण्वुल ] 1. खाने हआ कोई भी अन्न / सम०-अभिलाषः भोजन की वाला, निर्वाह करने वाला 2. पेट्र, भोजनभट्ट / इच्छा, भूख,- उपसाधकः रसोइया,-कंसः भोजन की | भक्षण (वि.) (स्त्री०-जी) [भक्ष् + ल्युट] खाने वाला, थाली....करः नाना प्रकार के गंध द्रव्यों से तैयार की निगलने वाला,-णम् खाना, खिलाना, जीविका गई घप,--कारः रसोइया,-छन्दम भूख,-वासः भोजन चलाना। मात्र पर दूसरों की सेवा करने वाला नौकर, जिसे भक्ष्य (वि.) [ भक्ष + ण्यत् ] खाने के योग्य, भोजन के सेवा के बदले केवल भोजन ही मिलता है-मन० लायक,-क्ष्यम कोई भी भोज्य पदार्थ, खाद्य पदार्थ, ८१४१५,---द्वेषः भोजन से अरुचि, मंदाग्नि,---मण्डः आहार, (आलं भी)--भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिविपत्ते रेव भात का मांड,-रोचन (वि.) भुख को उत्तेजित कारणम् हि० 1155, मनु० 11113 / सम० -- कारः करने वाला, वत्सल (वि.) अपने पूजक और भक्तों ('भक्ष्यकारः' भी) पाचक, रसोइयाँ। के प्रति कृपाल,-शाला 1. श्रोत-कक्ष (प्रार्थियों की | भगः [ भज+घ] 1. सूर्य के बारह रूपों में एक, सूर्य बात सुनने का कमरा) 2. भोजन-गृह / / 2. चन्द्रमा 3. शिव का रूप 4. अच्छी किस्मत, भाग्य, भक्तिः (स्त्री०) [भज+क्तिन्] 1. वियोजन, पृथक्करण, सुखद नियति, प्रसन्नता आस्ते भग आसीनस्य-ऐ० विभाजन 2. प्रभाग, अंश, हिस्सा 3. उपासना, अनु- ब्रा०, भगमिन्द्रश्च वायश्च भगं सप्तर्षयो ददुः--- याज्ञ० रक्ति, सेवा, स्वामिभक्ति-कु०७।३७, रघु० 2 / 63, श२८२ 5. सम्पन्नता, समद्धि 6. मर्यादा, श्रेष्ठता मुद्रा० 1115 4. सम्मान, सेवा, पूजा, श्रद्धा 5. विन्यास, 7. प्रसिद्धि, कीर्ति 8. लावण्य, सौन्दर्य 9. उत्कर्ष, व्यवस्था-रघु० 5 / 74 6. सजावट, अलंकार, श्रृंगार श्रेष्ठता 10. प्रेम, स्नेह 11. प्रेममय रंगरेलियाँ, केलि, --आबद्धमुक्ताफलभक्तिचित्रे-कु०७।१०,९४, रघु० आमोद 12. स्त्री की योनि-याज्ञ० 3388, मनु० 13259, 75, 15 / 30 7. विशेषण | सम-नम्र 9 / 237 13. सद्गुण, नैतिकता, धर्म की भावना (वि.) विनम्र अभिवादन करने वाला,-पूर्वम्, 14. प्रयत्न, चेष्टा i5. इच्छा का अभाव, सांसारिक For Private and Personal Use Only Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 727 ) विषयों में विरति 16, मोक्ष 17. सामर्थ्य 18. सर्व- / (वि.) जिसने कठिनाइयों और आपत्तियों पर शक्तिमत्ता (नपुं० भी अन्तिम 15 अर्थों में),-गम विजय प्राप्त कर ली है,-आश (वि०) निराश उत्तराफल्गुनी नक्षत्र। सम०-अङ्कुरः (आयु० में) ---भर्तृ० 2184, हताश- भर्तृ० 3152., उत्साह चिंक, योनिद्वार पर की गटिका, -आधानम् दाम्पत्य- (वि.) जिसका उत्साह टूट गया हो, जिसकी शक्ति सख प्रदान करना, . नः शिव का विशेषण,-देवः अवसन्न हो गई हो, जिसका उत्साह, भंग हो गया पूर्ण स्वेच्छाचारी, लम्पट --देवता विवाह की अधि- हो,-उद्यम (वि.) जिसके उद्योग निष्फल कर दिये ष्ठात्री देवता, दैवतम् उत्तराफल्गुनी नक्षत्र, -- नन्दनः गये हों, निराश, जिसका विकास अवरुद्ध हो गया हो, विष्णु का विशेषण,---भक्षकः विट, दलाल, भडआ, ....कम:,-प्रक्रमः अभिव्यक्ति या निर्माण में सममिति -~-वेदनम् वैवाहिक आनन्द की उद्घोषणा। का अतिक्रमण, दे० 'प्रक्रमभंग', चेष्ट (वि०) निराश, भगन्दरः [ भग++णि+खच, मुम् | एक रोग जो हताश,-दर्प (वि०) विनीत, जिसका घमंड ट गया गुदावर्त में प्रण के रूप में होता है। हों,--निद्र (वि.) जिसकी नींद में बाधा डाल दी गई भगवत् (वि.) [ भग+मतुप् ] 1. यशस्वी, प्रसिद्ध हो,-पाव (वि.) जिसके पार्श्व में पीड़ा होती हो, 2. सम्मानित, श्रद्धेय, दिव्य, पवित्र (देव, उपदेव तथा --पृष्ठ (वि.) 1. जिसकी कमर टूट गई हो अन्य प्रतिष्ठित एवं संमाननीय व्यक्तियों का विशेषण) 2. सामने आता हुआ,--प्रतिज्ञ (वि.) जिसने अपनी -अथ भगवान् कुशली काश्यपः - श० 5, भगवन्परवा प्रतिज्ञा तोड़ दी हो,--मनस् (वि.) निरुत्साहित, नयं जनः --- रघु० 8 / 81, इसी प्रकार भगवान् वासुदेवः हतोत्साहित,-वत (वि०) जो अपने व्रतों में निष्ठा.... आदि (पु०) 1. देव, देवता 2. विष्णु का विशे- वान् न हो,-संकल्प (वि०) जिसकी योजनाओं को षण 3. शिव का विशेषण 4. जिन का विशेषण उत्साहहीन कर दिया गया हो। 5. बुद्ध का विशेषण। भग्नी [= भगिनी, पृषो० साधुः ] बहन / भगवदीयः [ भगवत्-+छ ] विष्णु का पूजक / भडा (गा) रो| भमिति शब्दं करोति - भम्+ +अण भगालम् [भज्+कालन, कृत्वम् ] खोपड़ी। +डीप् ] डांस, गोमक्षी। भगालिन् (पुं०) [भगाल+इनि] शिव का विशेषण। भक्तिः (स्त्री०) [भञ्ज+क्तिन्] टूटना, (हड्डी का) भगिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ भग+इनि 11. फलता- टूटना / फूलता, संपन्न, भाग्यशाली 2. वैभवशाली, शानदार / भगः [भ-+घञ] 1. टूटना, टूट जाना, छिन्न-भिन्न भगिनिका [ भगिनी+कन्+टाप, इत्वम् ] बहन / होना, फाड़ डालना, टुकड़े टुकड़े करना, विभक्त भगिनी [ भगिन् +-डी] 1. बहन 2. सौभाग्यवती स्त्री करना-वार्यलाभङ्ग इव प्रवृत्त:--रघु० 5 / 45, 3. स्त्री०। सम०-पतिः, ... भर्तृ (पुं०) बह्न का 2. टूट, हड्डी का टूटना, विच्छेद 3. उखाड़ना, काटना पति, बहनोई। -आम्रकलिका भङ्गः-श०६ 4. पार्थवय, विश्लेभगिनीयः [ भगिनी+छ ] बहन का पुत्र, भानजा। षण 5. अंश, टुकड़ा, खंड, वियुक्त अंश-पुष्पोच्चयः भगीरथः[?] एक प्राचीन सूर्यवंशी राजा का नाम, सगर पल्लवभङ्गभिन्न: - कु० 3 / 61, रघु० 16116 का प्रपौत्र, जो अतिशय घोर साधना करके स्वर्ग से 6. पतन, अध: पतन, ध्वंस, विनाश, बर्बादी जैसा कि दिव्य गंगा को उतार कर इस पृथ्वी पर लाया, तथा राज्य , सत्त्व आदि में 7. अलग अलग करना, तितरराजा सगर के 60 हजार पुत्रों (पूर्वपुरुषों) की भस्म बितर करना- यात्राभङ्गः - मा०१8. हार, पछाड़, को पवित्र करने के लिए इस पृथ्वी से पाताल लोक पराभव, पराजय--पंच० 4 / 41, शि० 1672 को ले गया। सम० पयः,-प्रयत्नः भगीरथ का | 9. असफलता, निराशा, हताश-रघु० 2 / 42, आशाप्रयास जो किसी अतिदुष्कर कार्य या भीम कर्म को भंग आदि 10. अस्वीकृति, इंकारी-कु. 1142, आलंकारिक रूप से प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया 11. छिद्र, दरार 12. विघ्न, बाधा, रुकावट-निद्रा जाता है, - सुता गंगा का विशेषण / गति आदि 13. अननुष्ठान, निलंबन, स्थगन भग्न ( भू० क० कृ०) [भङ्ग् + क्त] 1. टूटा हुआ, हड्डी 14. भगदड़ 15. मोड़, तह, लहर 16. सिकुड़न, झुकाव, टूटी हुई, टूटा फूटा, फटा-पुराना 2. हताश, ध्वस्त, संकोच या सटाना उत्तर० 5 / 33 17. गति, चाल निराश 3. अवरुद्ध, गृहीत, निलंबित 4. बिगाड़ा हुआ, 18. लकवा, फालिज 19. जालसाजी, धोखेवाजी तोड़ा-फोड़ा हुआ 5. पराजित, पूर्ण रूप से परास्त, 20. नहर, जलमार्ग, नाली 21. गोलगोल या घूमधुमाकर छिन्न-भिन्न किया हआ -उत्तर० 5 6. दहाया हुआ, कहने या करने का ढंग-दे० भंगि 22. पटसन / सम० विनष्ट (दे० भ),-नम् पैर की हड्डी का टूटना।। ----नयः बाधाओं को हटाना,-वासा हल्दी,-सार्थ सम०—आत्मन् (पुं०) चन्द्रमा का विशेषण, आपद् / (वि०) बेईमान, जालसाज / For Private and Personal Use Only Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 728 ) भङ्गा [भज+अ+टाप् 1. पटसन 2. पटसन से तैयार / ---श० 5 / 10, भामि० 1983, रघु० 17428, (ख) किया एक मादक पेय / सम०--कटम् पटसन का अभ्यास करना, अनुगमन करना, पालन करना--भेजे पराग। धर्ममनातुरः --- रघु० 121 5. उपभोग करना, भगिः ,गी (स्त्री०) [भज्ज+इन्, कुत्वम् ; भङ्कि+ अधिकृत करना, रखना, भोगना, अनुभव करना, ङीष् ] 1. टूटना, हड्डी का टूटना, विच्छेद, प्रभाग मनोरंजन करना-विधुरपि भजतेतरां कलङ्कम् 2. हिलोर 3. झुकाव, सिकुड़न--दग्भजीभिः प्रथम- -- भामि० 274, न भेजिरे भीमविशेण भीतिम् मथुरासंगमे चुम्बितोऽस्मि-उद्भट, श० 13 4. लहर .-भर्तृ० 2180, व्यक्ति भजन्त्यापगाः-- श० 718, 5. बाढ़, धारा 6. टेढ़ा मार्ग, घुमावदार या चक्करदार अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिष मार्ग 7. गोलमोल या घूमघुमाकर कहने या करने का -रघु०८।४३, मा० 319, उत्तर० 135 6. सेवा ढंग, वाग्जाल- भझ्यन्तरेण कथनात् - काव्य० 10, में प्रस्तुत रहना, सेवा करना--रघु० 2 / 23 पंच० बहुभङ्गिविशारदः-दश० 8. बहाना, छद्मवेष, आभास 14181, मृच्छ० 1232 7. आराधना करना, सत्कार -य: पाञ्चजन्यप्रतिबिम्बभङ्ग्या धाराम्भस: फेनमिव करना (देव मान कर) पूजा करना 8. छाँटना, चुनना, व्यनक्ति-विक्रम० 11 1. दावपेंच, जालसाजी, पसंद करना स्वीकार करना - सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् धोखा 10. व्यंग्योक्ति 11. व्यंग्योत्तर, आशुत्तर भजन्ते-मालवि० 22 9. शारीरिक सुखोपभोग 12. पग-रघु०१३॥६९ 13. अन्तराल 14 ह्री, लल्जा- करना, पंच० 4150 10. अनुरक्त होना, भक्त बनना शीलता। सम-भक्तिः (स्त्री०) तरंगवत् कदमों या 11. अधिकार में करना 12. भाग्य में पड़ना (इस तरंगों की श्रृंखला में विभाजन, लहरियेदार जीना | धातु के अर्थ-संज्ञाओं के साथ जुड़कर विविध रूप ---मेघ०६०। ग्रहण कर लेते है उदा० निद्रां भज सोना, मूछा भज् भगिन् (बि०) [भङ्ग इनि]1. शीघ्र टूटने वाला, भंगुर, / बेहोश होना, भावं भज प्रेम प्रदर्शित करना आदि) अस्थायी-तदपि तत्क्षणभङ्गि करोति चेत्---भर्तृ० 2 / / वि---, 1. विभक्त करना, बाँटना -विभज्य मेरुन 91 2. किसी अभियोग में पछाड़ा हुआ। यदथिसात्कृत:-०१११६, पत्रिणां व्यभजदाश्रमाद्वहिः भन्मित् (वि.)[ भङ्गि+मतुप ] लहरियेदार, करारा / ---रघु०११०२५, 1054, शि० 113 2. अलग 2 भङ्गिमन् (पुं०) [ भङ्ग+इमनिच् ] 1. (हड्डी का) करना, (संपत्ति, पैतृक जायदाद आदि) बांटना टूटना, तोड़ना 2. झिकोर, हिलोर 3. घुघरालापन --विभक्ता भ्रातरः-'बंटे हए भाई 3. भेद करना 4. छद्मवेश, घोखा 5. आशूतर, व्यंग्योक्ति 6. कूटिलता। 4. सम्मान करना, पूजा करना, संवि- , हिस्सा लेना, भङ्गिलम् [भङ्ग+इलच ज्ञानेन्द्रियों में कोई दोष / हिस्से में किसी को प्रविष्ट करना वित्तं यदा यस्य भार (वि.) [भज्+घुरच] 1. टूटने के योग्य, भिदुर, च संविभक्तम् i (चुरा० उभ०-भाजयति--ते कड़कव्वल 2. दुबला-पतला, अस्थिर, अनित्य, नश्वर | --कई विद्वानों के मतानुसार यह 'भज्' के ही प्रेर० --आमरणान्ताः प्रणयाः कोपास्तत्क्षणभङ्गराः - हि० रूप हैं) 1. पकाना 2. देना। 1 / 188, शि० 1672 3. परिवर्तनशील, चर | भजकः [भज् - वुल] 1. बांटने वाला, वितरक 2. पूजक, 4. कुटिल, टेढ़ा 5. वक्र, घुघरदार-शशिमुखि तव भाति / भक्त, उपासक। भङ्गुरभ्रूः--गीत० 10 6. जालसाज, बेईमान, | भजनम् [भज् + ल्युट] 1. हिस्से बनाना, बाँटना 2. स्वत्व चालाक,---रः किसी नदी का मोड़। 3. सेवा, आराधना, पूजा / भजन (भ्वा० उभ०--भजति ते. परन्त व्यवहारतः। भजमान (वि०) [भज+शानच] 1. बांटने वाला 2. उप आ०, भक्त) 1. (क) हिस्से करना, वितरित करना, भोक्ता 3. योग्य, सही, उचित / वॉटना ...भजेरन् पैतृक रिकथम् - मनु० 9 / 104, न भञ्ज / (रुघा०प०--भनक्ति, भग्न इच्छा विभक्षति) तत्पुत्रैर्भजेत्सार्धम्-२०९, 119, (ख) निर्दिष्ट 1. तोड़ना, फाड़ डालना, छिन्नभिन्न करना, चूर चूर करना, नियत करना, अनुभाजन करना-गायत्री- करना, टुकड़े टुकड़े करना, खण्डशः करना भनज्मि मग्नयेऽभजत् .. ऐ० ब्रा० 2. किसी के लिए प्राप्त सर्वमर्यादाः भट्टि० 6 / 38, भवत्वा भुजी-४।३, करना, हिस्सा लेना, भाग लेना- पित्र्यं वा भजते बभजुर्बलयानि च 3 / 22, धनुरभाजि यत्त्वया-रघु० शीलम् - मनु० 10159 3. स्वीकार करना, ग्रहण 1176 2. उजाड़ना, उखाड़ना- भनक्त्युपवनं कपिः करना--मा० 9 / 25 4. (क) आश्रय लेना, (अपने ---भट्टि० 9 / 2 3. (किले में) दरार डालना आप को) समर्पण करना, पहुँच रखना-शिलातलं 4. भग्नाश करना, प्रयत्न व्यर्थ करना, निराश करना, भेजेका० 179, मातर्लक्ष्मि भजस्व कंचिदपरम प्रगति रोकना-पिनाकिना भग्नमनोरथा सती--कु० -भर्त० 3 / 64, न कश्चिद्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि भजते 5 / 1 5. पकड़ना, रोकना, विघ्न डालना, निलंबित For Private and Personal Use Only Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 729 ) करना —जैसा कि 'भग्ननिद्रः' में 6. हराना, परास्त / भट्टार (वि०) [भट्ट स्वामित्वमिच्छति—ऋ-अण् ] करना--क्षत्राणि रामः परिभय रामात् क्षत्राद्यथा 1. श्रद्धास्पद, पूज्य 2. व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के साथ भज्यत स द्विजेन्द्रः-नै० 22 / 133, अव---, तोड़ प्रयुक्त होने वाली सम्मानसूचक उपाधि यथा-भट्टारडालना, ध्वस्त करना-कु० 3174, प्र--, 1. तोड़ हरिश्चन्द्रस्य पद्मवन्धो नुपायते-हर्ष। डालना, ध्वस्त करना, धज्जियाँ उड़ाना 2. रोकना, | | भट्टारक (वि० ) (स्त्री०–रिका) [ भट्टार+कन् ] श्रद्धेय, गिरफ्तार करना, निलंबित करना 3. भग्नाश करना, पूज्य--आदि दे० 0 'भट्टार'। सम-वासरः निराश करना। रविवार, ii (चुरा० उभ० ---भञ्जयति ---ते) उज्ज्वल करना, भट्टिनी [ भट्ट+इनि-+ डीप् ] 1. (अनभिषिक्त) रानी, चमकाना। राजकुमारी, (नाटकों में दासियों द्वारा रानी को भञ्जक (वि.) (स्त्री०-जिका) [भञ्+ण्वुल ] तोड़ने संबोधन करने में बहुधा प्रयुक्त) 2. ऊँचे पद की वाला, बाँटन वाला। महिला 3. ब्राह्मण की पत्नी / भजन (वि.) (स्त्री०-नी) [भञ्+ल्युट् ] 1. तोड़ने | भडः [ भण्ड+अच्, नि० नलोपः] विशेष प्रकार की एक वाला, टुकड़े करने वाला 2. गिरफ्तार करने वाला, मिश्र जाति / रोकने वाला 3. भग्नाश करने वाला 4. प्रबल पीडा | भडिलः[ भण्ड+इलच, नि० नलोपः] 1. नेता, योद्धा पहुंचाने वाला,-नम् 1. तोड़ डालना, ध्वस्त करना, 2. टहलुआ, नोकर / विनष्ट करना 2. हटाना, दूर करना, भगा देना | भण (भ्वा० पू० भणति.) 1. कहना, बोलना-परुषोत्तम -तदुदितभयभञ्जनाय यूनाम्-गीत०१० 3. पराजित इति भणितव्ये-विक्रम० 3, भट्टि० 14 / 16 2. वर्णन करना, हराना 4. भग्नाश करना 5, रोकना, विघ्न करना-काव्यः स काव्येन सभामभाणीत-२० 10159 डालना, बाधा पहुँचाना 6. कष्ट देना, पीडित करना, 3. नाम लेना, पुकारना / —नः दांतों का गिरना। भणनम्, भणितम्, भणितिः (स्त्री०) [भण+ल्युट, क्त, भजनकः [भजन+कन्] मुख का एक रोग जिसमें दाँत क्तिन् ] 1. कहना, बोलना, बातें करना, वचन, गिर जाते हैं, होठ टेढ़े हो जाते है। प्रवचन, वार्तालाप-न येषामानन्दं जनयति जगन्नाथ भञ्जरुः [ भ +अरुच् ] मंदिर के पास उगा हुआ वृक्ष / भणिति:---भामि० 4 / 39, 277, श्रीजयदेव भट्ट (भ्वा० पर० भटति, भटित) 1. पोषण करना, भणितं हरिरमितम-गीत० 7, इह रसभणने-तदेव / पालना पोसना, स्थिर रखना 2. भाड़े पर लेना | भण्डi (भ्वा० आ० भण्डते) 1. भर्त्सना करना, छिड़कना 3. मजदूरी लेना i (चुरा० उभ० भटयति-ते) 2. खिल्ली उड़ाना, व्यंग्य करना 3. बोलना 4. उपबोलना, बातें करना। हास करना, मखौल करना ii (चुरा० उ० भटः [ भट्+अच् ] 1. योद्धा, सैनिक, लड़ने वाला -मण्डयति-ते) 1. सौभाग्यशाली बनाना 2. चकमा --तटचातुरीतुरी---- 0 112, वादित्रसष्टिर्घटते देना (शुद्धपाठ--मंट)। भटस्य २२२२-भट्टि० 141101 2. भृतिभोगी, | भण्डः [भण्ड+अच] 1. भांड, मसखरा, विदूषक-त्रयो वेदस्य भाईत सैनिक, भाड़े का टू 3. जातिबहिष्कृत, कारो भण्डधूर्तपिशाचका:-सर्व० 2. एक मिश्रजाति वर्णसंकर 4. पिशाच / का नाम-तु० 'भड'। सम-तपस्विन् (पुं०) भटित्र (वि.) [भट्+इत्र शलाका पर रखकर पकाया बनावटी सन्यासी, ढोंगी, हासिनी वेश्या, वारांगना / गया मांस / भण्डकः [ भण्ड+कन् ] एक प्रकार का खंजन पक्षी। भट्टः [ भट्+तेन् ] 1. प्रभु, स्वामी (राजाओं को संबोधित भण्डनम् [भण्ड-+-ल्युट ] 1. कवच, बख्तर 2. संग्राम, युद्ध करन के लिए सम्मान सूचक उपाधि) 2. विद्वान् 3. उत्पात, दुष्टता। ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रयक्त होने वाली उपाधि भंण्डि:-डी (स्त्री०) [भण्ड्+इ, भण्डि+ङीष् ] लहर, –भट्टगोपालस्य पौत्र:-मा० 1, इसी प्रकार 'कुमारिल / तरंग। भट्टः आदि 3. कोई भी विद्वान् पुरुष या दार्शनिक भण्डिल (वि.) [भण्ड+इलच ] सुखद. शुभ, सम्पन्न, 4. एक प्रकार की मिश्र जाति जिसका व्यवसाय सौभाग्यशाली,--ल: 1. अच्छी किस्मत, प्रसन्नता, भाट या चारणों का व्यवसाय अर्थात् राजाओं का कल्याण 2. दूत 3. कारीगर, दस्तकार / स्तुति गान है-क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां भट्टो जातोऽनुवाचकः | भदन्तः [भन्द+झच, अन्तादेशः, नलोपश्च] 1. बौद्ध धर्मा5. भाट, बन्दीजन / सम०-आचार्यः प्रसिद्ध अध्यापक नुयायी के लिए प्रयुक्त होने वाला आदर सूचक शब्द या विद्वान पुरुष को दी गई उपाधि 2. विज्ञ,-प्रयागः -भदन्त तिथिरेव न शुध्यति-मुद्रा० 42. बौद्ध भिक्षु / =-प्रयाग, इलाहाबाद / | भदाकः [भन्द्+आक, नलोपः] सम्पन्नता, सौभाग्य। 92 For Private and Personal Use Only Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 730 ) भद्र (वि०) [भन्द+रक, नि० नलोपः] 1. भला, सुखद, / भद्रवत् (वि.)[भद्र-+-मतुप] मंगलमय, - (नपुं०) देवदारु समृद्धिशाली 2. शुभ, भाग्यवान् जैसा कि 'भद्रमुख' का वृक्ष / में 3. प्रमुख, सर्वोत्तम, मुख्य-पप्रच्छ भद्रं विजिता- भद्रा भद्र+टाप्] 1. गाय 2. चान्द्रमास के पक्ष की दोयज, रिभद्रः-- रघु० 14131 4. अनुकूल, मंगलप्रद सप्तमी और द्वादशी 3. स्वर्गगा 4. नाना प्रकार के 5. कृपालु, सदय, श्रेष्ठ, सौहार्दपूर्ण, प्रिय; (संबोधन एक पौधों के नाम। सम-श्रयम् चन्दन की लकड़ी। वचन में प्रयुक्त होकर अर्थ होता है 'पूज्य श्रीमान् भद्रिका [भद्रा+कन्+टाप, इत्वम् ] 1. ताबीज 2. दोयज, 'प्रिय मित्र' 'पूज्य महिले' 'पूज्य श्रीमति' 6. सुहावना, सप्तमी व द्वादशी नाम की तिथियाँ। उपभोज्य, प्रिय, सुन्दर--पंच० 11181 7. स्तुत्य, / भद्रिलम [भद्र+इलच्] 1. समृद्धि, सौभाग्य 2. कंपनशील इलाध्य, प्रशंसनीय 8. प्रियतम, प्यारा 9. चटकदार, या थरथराहट वाली गति / / बाह्यतः रमणीय, पाखण्डी, * द्रम् उल्लास, सौभाग्य, | भम्भः [भम्+भा+क] 1. मक्खी 2. धुआँ। कल्याण, आनन्द, समृद्धि– भद्रं भद्रं वितर भगवन् | भम्भरालिका, भंभराली [भम् इत्यव्यक्तशब्दस्य भरं भूयसे मंगलाय--मा० 123, 67, त्वयि वितरतु भद्रं / बाहुल्यम् आलाति-भम्भर+आ+ला+क+ ङीष भूयसे मंगलाय --उत्तर० 3 / 48, (इस अर्थ में बहधा / == भम्भरालो-कन् टाप, ह्रस्वः] 1. गोमक्षी 2. डाँस / ब. 20 में प्रयोग), सर्वे भद्राणि पश्यतु, भद्रं ते भम्भारवः [भम्भा++अच् गाय का रांभना। 'ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे तुम्हें ऐश्वर्यशाली भयम् [विभेत्यस्मात्-भी-अपादाने अच्] 1. डर, आतंक, बनाए' 2. सोना 3. लोहा, इस्पात,- द्रः 1. बैल 2. एक बिभीषा, आशंका (प्राय: अपा० के साथ) भोगे रोगप्रकार का खंजन पक्षी 3. विशेष प्रकार का हाथो भयं कुले च्युतिभयं वित्ते नपालाद्भयम्-भर्त० 3333 4. छद्मवेषी, पाखंडी-मनु० 9 / 258 5. शिव का यदि स्मरमपास्य नास्ति मृत्योर्भयम्-वेणी० 3 / 4 नामान्तर 6. मेरुपर्वत का विशेषण 7. एक प्रकार का | 2. डर, त्रास जगद्भयम् आदि 3. खतरा, जोखिम, कदम्बवृक्ष (भद्रा कृ हजामत करना, बाल मंडना / संकट --तावद्भयस्य भेतव्यं यावद्भयमनागतम, आगतं भद्राकरणम् मुण्डन)। सम०-अङ्गः बलराम का तु भयं वीक्ष्य नरः कुर्याद्यथोचितम्-हि० ११५७,-यः विशेषण,-आकारः,- आकृति (वि०) शुभ लक्षणों बीमारी, रोग / सम०–अम्वित,--आक्रान्त (वि०) से युक्त,- आत्मजः तलवार,--आसनम् 1. राजासन, ज्वरग्रस्त --आतुर,--आर्त (वि.) डरा हुआ, आतराजगद्दी, सिंहासन 2. समाधि की विशेष अंगस्थिति, ङ्कित, भयभीत,- आवह (वि०) 1. भयोत्पादक योग का आसन,--ईशः शिव का एक विशेषण, - एला 2. जोखिम वाला-स्वधर्मे निधन श्रेयः परधर्मो भयावहः बड़ी इलायची,-कपिल: शिव का एक विशेषण, ---- भग० ३।३५,---उत्तर (वि०) भय से युक्त,-- कर कारक-(वि०) मंगलप्रद,–काली दुर्गा का नामान्तर, ('भयंकर' भी) 1. डराने वाला, भयानक, भयपूर्ण कुम्भ:-किसी तीर्थ के जल से (विशेषकर गंगाजल से) 2. खतरनाक, संकटपूर्ण इसी प्रकार 'भयकारक' भरा हुआ सुनहरी घड़ा,-गणितम् जादू के रेखाचित्रों 'भयकृत , --डिण्डिमः युद्ध में प्रयुक्त किया जाने वाला की बनावट,---घटा,..... घटकः एक घड़ा जिसमें भाग्य ढोल, मारू बाजा, द्रुत (वि०) भय के कारण भागने की पचियाँ डाली जाय,–दारु (पुं० नपुं०) चीड़ का वाला, पराजित, भगाया हुआ, - प्रतीकारः भय को वृक्ष,-नामन् (पुं०) खंजनपक्षी,-पीठम् 1. राजगद्दी, दूर करना, डर हटाना, प्रद (वि०) भयदायक, राज-कुर्सी, सिंहासन - रघु० 17.10 2. एक प्रकार भयपूर्ण, भयानक,- प्रस्तावः भय का अवसर,-बाह्मणः का पंखदार कीड़ा,-बलनः बलराम का विशेषण, डरपोक ब्राह्मण, वह ब्राह्मण जो अपनी जान बचाने --मख (वि०) 'मांगलिक चेहरे वाला', विनम्र सम्बो- के लिए (यह समझ कर कि ब्राह्मण अबध्य है) अपने धन के रूप में प्रयुक्त 'मान्यवर महोदय' 'पूज्य ब्राह्मण होने की दुहाई देता है,--विप्लुत (वि०) श्रीमन्'–श० ७,--मृगः एक विशेष प्रकार के हाथी आतंक-पीडित, -व्यूहः डर की अवस्था होने पर सेना का विशेषण, --रेणुः इन्द्र के हाथी का नाम, * वर्मन् की विशेष क्रम-व्यवस्था / (पुं०) एक प्रकार की नवमल्लिका,-शाखः कार्तिकेय भयानक (वि.) [ बिभेत्यस्मात्-भी+आनक ] भयंकर, का विशेषण,-श्रयम्,-धियम् चन्दन का काष्ठ,-श्रीः भीषण, भयजनक, डरावना---किमतः पर भयानक (स्त्री०) चन्दन का वृक्ष,---सोमा गंगा का विशेषण / स्यात्--उत्तर० 2, शि०१७।२०, भग० 1127, भद्रक (वि०) (स्त्री०–त्रिका) [भद्र+कन्] 1. शुभ, -क: 1. व्याघ्र 2. राहु का नामान्तर 3. भयानक मङ्गलमय 2. मनोहर, सुन्दर,-कः देवदारु का वृक्ष / रस, काव्य के आठ या नौ रसों में एक-दे० 'रस' भवङ्कर (नपुं०) [भद्र++खच्, मुम्] सुख सम्पत्ति का | ___ के अन्तर्गत, .. कम् त्रास, डर।। दाता, समृद्धकारी। भर (वि.) [भू-|-अच् ] धारण करने वाला, देने वाला, For Private and Personal Use Only Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरणपोषण करने वाला आदि,-र: 1. बोझा, भार, / रगमंच पर अभिनय करने वाला पात्र-तत्किमित्यवजन---खरत्रये भरं कृत्वा पंच०१, "अपने तीन दासते भरता:---मा० 15 5. भाड़े का सैनिक, केवल खुरों पर ही अपने आपको सहारा देने वाला", फल- धन के लिए काम करने वाला नौकर 6. जंगली, भरपरिणामश्यामजम्बु-आदि--उत्तर० 2 / 20, भर- पहाड़ी 7. अग्नि का विशेषण / सम-अग्रजः 'भरत व्यथा---मुद्रा० 2 / 18 2. बड़ी संख्या, बड़ा परिमाण, का ज्येष्ठ भ्राता', राम का विशेषण-रघु०१४।७३, संग्रह, समुच्चय----धत्ते भरं कुसुमपत्रफलावलीनाम् -----खण्डम् भारत के एक भाग का नामान्तर,- —भामि० 1394,54, शि० 9 / 47 3. प्रकाय, राशि (वि०) भरतशास्त्र या नाट्यशास्त्र का ज्ञाता, 4. आधिक्य-नियंढसौहृदभरेति गुणोज्ज्वलेति–मा० -पुत्रक: अभिनेता-वर्षः भरत का देश अर्थात भारत, ६।१७,शोभाभरैः संभता:-भामि० 11103, कोपभरेण --वाक्यम् नाटक के अन्त में दिया गया श्लोक, एक —गीत० 3 / 7 तोल की एक विशेष माप / प्रकार की नान्दी (नाट्यशास्त्र के प्रवर्तक भरत मुनि भरटः [ भृ+अटन् ] 1. कुम्हार 2. सेवक / के सम्मानार्थ कहा गया)-तथापीदमस्तु भरतवाक्यम् भरण (वि.) (स्त्री०-णी) [भ-ल्यूट] धारण करने (प्रत्येक नाटक में उपलब्ध)। वाला, निर्वाह करने वाला, सहारा देने वाला, पालन | भरथः [ भू+अथ ] 1. प्रभुसत्ता प्राप्त राजा 2. अग्नि पोषण करने वाला, णम् 1. पालन-पोषण, निर्वाह 3. संसार के किसी एक प्रदेश की अधिष्ठात्री देवी, करना, सहारा देना--रघु० 121, श० 7 / 33 लोकपाल। 2. वहन करने या ढोने की क्रिया 3. लाना, प्राप्त | भरद्वाजः [भ्रियते मरुद्भिः भू+अप =भर, द्वाभ्यां जायते करना 4. पुष्टिकारक भोजन 5. भाड़ा, मजदूरी, .. णः द्वि+जन ड-द्वाज, भरश्चासो द्वाजश्च -- कर्म० भरणी नामक नक्षत्र। स०] 1. सात ऋषियों में से एक का नाम 2. चातक भरणी [भरण- डोष ] तीन तारों का पुंज जो दूसरा पक्षी। नक्षत्र है, सम० -भः राहु का विशेषण / भरित (वि.) [ भर+इतच ] 1. परवरिश किया गया, भरण्डः [भू+कण्डन् ] 1. स्वामी, प्रभु 2. राजा, शासक पाला-पोसा गया 2. भरा हुआ, भरपूर--जगज्जालं 3. बैल, सांड़ 4. कीड़ा। कर्ता कुसुमभरसौरभ्यभरितम्-भामि० 1154, 33 / भरण्यम् [ भरण+ यत् ] 1. लालन-पालन करने वाला, | भरुः [भू+उन् ] 1. पति 2. प्रभु 3. शिव का नामान्तर सहारा देने वाला, पालन-पोषण करने वाला 2. मज- 4. विष्णु का नाम 5. सोना 6. समुद्र / दुरी, भाड़ा 3. भरणी नक्षत्र,-ण्या मजदूरी, भाड़ा। भरुजः-जा, जी ( स्त्री०) [भ इति शब्देन रुजति सम० -भुज (पुं०) भति-सेवक, भाड़े का नौकर। --भ+रुज्--क] गीदड़। भरण्युः [ भरण्य (कंडवा०)+उ] 1. स्वामी 2. प्ररक्षक भरुटकम् [ भृ+उट+कन् ] तला हुआ मांस / 3. मित्र 4. अग्नि 5. चन्द्रमा 6. सूर्य / भर्गः [भृज-+-घन ] 1. शिव का नाम 2. ब्रह्मा का भरतः [भरं तनोति-तन्-ड] 1. शकुन्तला और दुष्यन्त नाम / का पुत्र जो चक्रवर्ती राजा था। इसीके नाम पर इस | भग्यः [ भूज्+ण्यत् ] शिब का विशेषण / देश का नाम भारतवर्ष है। यह कौरव और पांडवों | भर्जन (वि.) [ भज+ ल्युट ] 1. भूनने वाला तलने का दूरवर्ती पूर्वपुरुष था 2. दशरथ की सबसे छोटी वाला, पकाने लाला 2. नष्ट करने वाला,-नम् पत्नी कैकेयी का बेटा, राम का एक भाई, यह बड़ा | 1. भूनने या तलने की क्रिया 2. कड़ाही / धर्मात्मा और पुण्यशील व्यक्ति था, राम के प्रति भर्त (पुं०) [भ-+तृच्] 1. पति-यद्भतुरेव हितमिच्छति इसकी इतनी अगाध भक्ति थो कि जब कैकेयी की तत्कलत्रम्-भर्तृ० 218, स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च गहित मांग के अनुसार राम वन में जाने को तैयार पुंसाम मा० 6 / 18 2. प्रभ, स्वामी, महत्तर--- भर्तुः हुए तो भरत को यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि शापेन- मेघ० 1, गण, भूत आदि 5. नेता, सेनाउसकी अपनी माता ने ही राम को निर्वासित किया पति, मुख्य- रघु० 7 / 41 4. भरणपोषण कर्ता, फलतः उसने अपनी प्रभुसत्ता को अस्वीकार कर भारवहनकर्ता, प्ररक्षक / सम-घ्नी अपने पति का राम के नाम (राम की खड़ाउओं को लाकर उनको वध करने वाली स्त्री,-दारकः युवराज, राजकुमार, राज्यप्रतिनिधि के रूप में सिंहासन पर रखकर) से तब उत्तराधिकारी, कुमार (नाटक में बहुधा प्रयक्त तक राज्य प्रशासन किया जबतक कि चौदहवर्ष का संबोधन),-दारिका युवराज्ञी (नाटकों में प्रयुक्त निर्वासन समाप्त करके राम वापिस अयोध्या नहीं संबोधन शब्द),-प्रतम पातिव्रत, पतिभक्ति (ता) आये 3. एक प्राचीन मनि का नाम जो नाट्यकला साध्वी पतिव्रता पत्नी-तु० पतिव्रता,-शोकः पति तथा संगीतविद्या के प्रवर्तक माने जाते हैं 4. अभिनेता की मृत्यु पर शोक,-हरिः एक प्रसिद्ध राजा जो तीन For Private and Personal Use Only Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 732 ) शतक (शृंगार, नीति, वैराग्य), वाक्यपदीय तथा | हुआ,-वः 1 होना, होने की स्थिति, सत्ता 2. जन्म, भट्टिकाव्य का रचयिता है / उत्पत्ति:-भवो हि लोकाभ्युदयाय तादृशाम्---रघु० भर्तमती [ भर्तृ+मतुप+ङीप् ] विवाहिता स्त्री जिसका 3 / 14, श० 7 / 27 3. स्रोत, मूल 4. सांसारिक पति जीवित हो। अस्तित्व, सांसारिक जीवन, जीवन—जैसा कि भवाभर्तृसात् (अव्य०) [ भत+साति ] पति के अधिकार में, र्णव, भवसागर आदि में-कू० 251 5. संसार कृता विवाहित हुई। 6. कुशल-क्षेम, स्वास्थ्य, समृद्धि 7. श्रेष्ठता, उत्तमता भर्त्स (चुरा० आ०--भर्त्सयते, कभी 2 पर० भी) 8. शिव का नाम-दक्षस्य कन्या भवपूर्वपत्नी-कु० 1, धमकाना, घुड़कना 2. झिड़कना, बुरा भला कहना, 1121 372 9. देव, देवता 10 अभिग्रहण,प्राप्ति / अपशब्द कहना 3. व्यंग्य करना; निस-, 1. झिड़- सम-अतिग (वि०) सांसारिक जीवन पर विजय कना, निन्दा करना, गाली देना 2. आगे बढ़ जाना, पाने वाला, वीतराग,--अन्तकृत् ब्रह्मा का विशेषण ग्रहण लगना, लज्जित करना-कु० 3 / 53, / -अन्तरम् दूसरा जीवन (भूत या भावी) पंच०१॥ भर्त्सकः [ भर्त्स +ण्वुल ] धमकी देने वाला, घुड़कने १२१,-अब्धिः,-अर्णवः, समुद्रः-सागरः,-सिम्युः वाला। सांसारिक जीवन रूपी समुद्र,-अयना,-नी गंगा भर्सनम्, भर्त्सना, भत्सितम [ भर्स+ल्युट, स्त्रियां टाप, नदी,---अरण्यम् 'सांसारिक जीवन रूपी जंगल' 'सन क्त वा] 1. धमकाना, घुड़कना 2. धमकी, झिड़की सान संसार,-आत्मजः गणेश या कार्तिकेय का 3. बुरा भला कहना, गाली देना 4. अभिशाप / विशेषण,- उच्छवः सांसारिक जीवन का विनाश भर्मम् [ भृ+मनिन्, नि० नलोप: ] 1. मजदूरी, भाड़ा -रघु० १४१७४,-क्षितिः (स्त्री०) जन्मस्थान, ___2. सोना 3. नाभि / / --- घस्मरः दावानल, जंगल की आग,-छिद् (वि.) भर्मच्या [भर्मन+यत्-+टाप् ] मजदूरी, भाड़ा। सांसारिक जीवन के बंधनों को काटने वाला, जन्म भर्मन् (नपुं०) [भ-मनिन् ] 1. सहारा, संधारण, पालन- की पुनरावृत्ति को रोकने वाला-भवच्छिदस्यम्बकपोषण 2. मजदूरी, भाड़ा 3. सोना 4. सोने का सिक्का पादपांशवः -का० १,--छेदः पुनर्जन्म का रोकना 5. नाभि / शि० ११३५,-दारु (नपुं०) देवदारु का वृक्ष,-भूतिः भल i (चुरा० आ०-भालयते, भालित) देखना, अवलो- एक प्रसिद्ध कवि का नाम, (दे० परि०२) भवभूते: कन करना,-नि-, (पर० भी) 1. देखना, अवलो संबन्धाद्भूधरभूरेव भारती भाति, एतत्कृतकारुण्ये कन करना, प्रत्यक्ष करना, निगाह डालना-निभाल्य किमन्यथा रोदिति ग्रावा। आर्या सप्त० 36, भयो निजगौरिमाणं मा नाम मानं सहसैव यासी: -हद् (पुं०) अन्त्येष्टि संस्कार के अवसर पर बजने -भामि० 31176, या-यन्मां न भामिनि निभाल- वाला ढोल,-बीतिः (स्त्री०) सांसारिक जीवन से यसि प्रभातनीलारविन्दमदभङ्गिपदैः कटाक्षः-३।४ छुटकारा-कि० 6 / 41 / ii (भ्वा० आ०) दे० 'भल्ल्' भवत् (वि०) (स्त्री०-त्ती) [भू+शतृ ] 1. होने वाला, भल्ल (भ्वा० आ० भल्लते, भल्लित) 1. वर्णन करना, घटित होने वाला, घटने वाला 2. वर्तमान-समतीतं बयान करना, कहना 2. घायल करना, चोट पहुँचाना, च भवं च भावि च-रघु० 8178, (सार्व० वि०) मार डालना 3. देना। (स्त्री०-तो) आदरसूचक, या सम्मानसूचक सर्वनाम भल्ला,-ल्ली-ल्लम् [ भल्ल-1-अच, स्त्रियाँ डीप् ] एक -जिसका अनुवाद है-'आदरणीय श्रीमन्' 'पूज्य प्रकार का अस्त्र या बाण-क्वचिदाकर्णाविकृष्टभल्तवर्षी श्रीमति' (मध्यम पुरुष, पुरुषवाचक सर्वनाम के अर्थ -रघु० 9 / 66, 4 / 63, ७।५८,-ल्ल: 1. रीछ में बहुधा प्रयुक्त, परन्तु क्रिया अन्य पुरुष को)-अथवा 2. शिव का विशेषण 3. भिलावे का पौधा, ('भल्ली' कथं भवान् मन्यते-मालवि. 1, भवन्त एव जानन्ति भी)। रघूणां च कुलस्थितिम्-उत्तर० 5 / 23, रघु० 2 / 40, भल्लकः [ भल्ल+कन् ] रीछ / 3148, 5 / 16, प्रायः इसके साथ 'अत्र' या 'तत्र' भी भल्लातः, भल्लातकः [ भल्ल्+अत्+अच, भल्लात+कन्] जोड़ दिया जाता है (शब्दों को देखो) कभी कभी 'स' भिलावे का पौधा। के साथ लगा दिया जाता है- यन्मां विधेयविष येसभभल्लुकः, भल्लूकः [ भल्ल्+ऊक, पक्षे पृषो० ह्रस्वः ] वानियुक्ते–मा० 1 / 9 / 1. रीछ, भालू-दधति कुहरभाजामत्र भल्लूकयूनाम् भवदीय (वि.) [ भवत्-+ छ ] मान्यवर महोदय का, -~-उत्तर० 2 / 21 2. कुत्ता / / आपका, तुम्हारा। भव (वि.) [ भवत्यस्मात्-भू+अपादाने अप् ] (समास | भवनम् [भू+ल्युट् ] 1. होना, अस्तित्व 2. उत्पत्ति, के अन्त में) उदय होता हुआ या उत्पन्न, जन्म लेता | जन्म 3. आवास, निवास, घर, भवन-अथवा भवन For Private and Personal Use Only Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 733 ) प्रत्ययात् प्रविष्टोऽस्मि-मच्छ० 3, मेघ० 32 , समकालः उत्तर काल,-वक्त,-वादिन् (वि.) 4. स्थान, आवास, आधार जैसा कि 'अविनयभवनम' आगे होने वाली घटनाओं को बताने वाला, भविष्यमें पंच० 11191 5. इमारत 6. प्रकृति / सम० वाणी करने वाला। --उवरम् घर का मध्यवर्ती भाग,--पतिः,-स्वामिन् / भव्य (वि०) [भू-+-यत् ] 1. विद्यमान, होने वाला, (पुं०) घर का स्वामी, कुल का पिता / प्रस्तुत रहने वाला 2. आगे होने वाला, आने वाले भवन्तः,-तिः [ भू०+झच् (झिच्) अन्तादेशः] इस समय, समय में घटित होने वाला 3. होनहार 4. उपयुक्त, वर्तमान काल में। उचित, लायक, योग्य - कि० 11113 5. अच्छा, भवन्ती [ भू+शत + ङीप् ] गुणवती स्त्री। बढ़िया, उत्तम 6. शुभ, भाग्यवान्, आनन्दप्रद-कु० भवानी [भव-+डी, आनुक | शिव की पत्नी या पार्वती श२२, कि० 1112, 1051 7. मनोहर, प्रिय, सुन्दर का नाम-आलम्बतारकरमत्र भवो भवान्या:--कि० 8. सौम्य, शान्त, मृदु 9. सत्य,--व्या पार्वती,-व्यम् 5 / 29, कु० 784, मेघ० 36, 44, / सम० -- गुरुः 1. सत्ता 2. भावी काल 3. परिणाम, फल 4. अच्छा हिमालय पर्वत का विशेषण, - पतिः शिव का विशेषण फल, समृद्धि --रघु०१७।५३ 5. हड्डी। ---अधिवसति सदा यदेनं जनरविदितविभवो भवानी / (भ्वा० पर० भषति) 1. भौंकना, गुर्राना, भूकना पतिः --कि- 5 / 21 / 2. गाली देना, झिड़कना, डाटना-फटकारना, भवादक्ष (वि.) (स्त्री० --क्षी) भवादृश् (वि०) भवादृश धमकाना / (वि.) (शी) (वि.) आपकी भांति, तुम्हारी | भषः, भषकः [ भष्+अच्, क्वन् वा ] कुत्ता / भांति / भषणः [ भष् + ल्युट ] कुत्ता,--णम् कुत्ते का भौंकना, भविक (वि.) (स्त्री०-को) 1. दाता, उपयुक्त, उप- गुर्राना। योगी 2. सुखद, फलता-फूलता हुआ,-कम् संपन्नता, भसद् (पुं०) [भस्+अदि] 1. सूर्य 2. मांस 3. एक कल्याण। प्रकार की बत्तख 4. समय 5. डोंगी 6. पिछला भाग भवितव्य (वि.) [भू+तव्यत ] होने वाला, घटित होने (स्त्री० और नपुं० भी) 7. योनि / वाला, होनहार (बहुधा भाववाच्य में प्रयोग होता है | भसनः [ भस्-+ल्युट ] मधुमक्खी। अर्थात् करणकारक को कर्ता के रूप में तथा क्रिया नपुं०, भसन्तः [भस्+झच्, अन्तादेश: ] काल, समय / ए०व० में रखकर-त्वया मम सहायेन भवितव्यम् भसित (वि०) [भस्+क्त ] जल कर भस्म बना हुआ, --श० 2, गुरुणा कारणेन भवितव्यम्-श० 3), -तम् भस्म... भामि० 1184 / ---व्यम् अवश्यंभावी; भवितव्यं भवत्येव यद्विधर्मनसि भस्त्रका, भस्त्रा, भस्त्रिः (स्त्री०) [भस्+ष्ट्रन्+कन् स्थितम्-सुभा०। +टाप, भस्त्र +टाप् +भस्त्र+इञ ] 1. धौंकनी भवितव्यता [भवितव्य+तल+टाप् ] अनिवार्यता, होनी, 2. जल भरने के लिए चमड़ का पात्र, मशक 3. चमड़े प्रारब्ध, भाग्य-भवितव्यता बलवती-श० 6, सर्वकषा का थैला, झोली। भगवती भवितव्यतैव-मा० 123 / भस्मकम् [ भस्मन+कन् ] 1. सोना या चांदी 2. एक भवितु (वि.) (स्त्री०---त्री) [भू+तृच ] होने वाला, रोग जिस में जो कुछ खाया जाय तुरंत पचा जैसा ___भावी-रघु० 6.52, कुं० 1150 / ज्ञात हो (परन्तु वस्तुतः पचता नहीं) और तीव्र भविनः [भवाय इनः सूर्यः, पृषो० साधुः ] कविः (भवि- भूख लगे रहना 3. आँखों का एक रोग। निन्-पुं० भी इसी अर्थ में)। भस्मन् (नपुं०) [ भस् + मनिन् ] 1. राख --- (कल्पते) भविलः [भू+इलच् ] 1. प्रेमी, उपपति 2. लम्पट, --ध्रुवं चिताभस्मरजो विशुद्धये-कु० 5 / 79 2. विभूति कामी। या पवित्र राख (जो शरीर में मली जाती है), भविष्णु (वि०) [भू+इष्णुच ] =भूष्णु, होने वाला। (भस्मनिह राख में आहुति देना अर्थात् व्यर्थ कार्य भविष्य (वि०) [भू+लट-स्य+शत, पृषो० त् लोपः] करना,-भस्माकृ, भस्मीक, जला कर राख करना, 1. आगे आने वाला 2. भावी, आसन्न, निकटवर्ती, भस्मीभू जल कर राख हो जाना-भस्मीभूतस्य देहस्य -व्यम् भावी काल, उत्तर काल। सम०-काल: पुनरागमनं कुतः .. सर्व०)। सम०- अग्निः भोजन भविष्यत् काल,--शानम् आगे होने वाली बातों की के जल्दी पच जाने से तीव्र भूख का लगे रहना, जानकारी,--पुराणम् अठारह पुराणों में से एक -अवशेष (वि.) जो केवल राख के रूप में रह का नाम / जाय-कु० 372,- आह्वयः कपूर,--उघूलनम् भविष्यत् (वि.) (स्त्री०-ती,-ती) भू+लुट–स्य -गुण्ठनम् शरीर पर राख मलना -भस्मोद्धूलन +शत ] होने वाला, आगामी समय में होने वाला / भद्रमस्तु भवते-काव्य० १०,कारः घोबी, कटः For Private and Personal Use Only Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 734 ) राख का ढेर,न्धाः,-गन्धिका,गन्धिनी एक प्रकार का | भाकर दे० भास्कर 'भास्' के अन्तर्गत / गंधद्रव्य, तुलम, 1. कुहरा, हिम 2. धूल की बौछार भाक्त (वि.) [भक्त-... अण] 1. जो नियमित रूप से 3. गाँवों का समूह,--प्रियः शिव का विशेषण,-रोग दुसरे से भोजन पाता हो, पराश्रित, सेवा के लिए एक प्रकार की बीमारी-तु. भस्माग्नि, -- लेपनम् प्रतिधत अर्थात् अनुजीवी 2. भोजन के योग्य 3. घटिया, शरीर पर राख मलना, विधिः राख से किया जाने गौण (विप० मुख्य) 4. गौण अर्थ में प्रयुक्त / वाला अनुष्ठान,---बेधकः कपुर,... - स्नानम् राख मल भाक्तिकः [भक्त + ठक्] अनुजीवी, पराश्रयी। कर निर्मल करना। | भाक्ष (वि.) (स्त्री०-क्षी)[भक्षा+अण्] पेट, भोजनभट्ट। भस्मता [भस्मन् +तल+टाप्] राख का होना। भागः [भज+घा] 1. खण्ड, अंश, हिस्सा, प्रभाग, भस्मसात् (अव्य.) [भस्मन+साति] राख की स्थिति में, टुकड़ा जैसा कि भागहर, भागश: आदि में 2. नियतन, °कृ जलाकर राख कर देना। वितरण, विभाजन 3. भाग्य, किस्मत - निर्माणभाग: भा (अदा० पर०-भाति, भात, प्रेर० भापयति-ते, इच्छा० परिणतः उत्तर०४4. किसी पूर्ण का एक खण्ड, बिभासति) चमकना, उज्ज्वल होना, चमकदार या भिन्न 5. किसी भिन्न का अंश 6. चौथाई, चतर्थ भाग चमकीला होना---पंईविना सरो भाति सदः खलजन- 7. किसी वृत्त की परिधि का 360 वां घात या अंश विना, कटवणविना काव्यं मानसं विषयविना-भामि० 8. राशिचक्र का तीसवाँ अंश 9. लब्धि 10. कक्ष, 11116, समतीत्य भाति जगती जगती--कि० 5 / 25, अन्तराल, जगह, क्षेत्र, स्थान - रघु० 18147 / रघु० 3118 2. दिखाई देना, प्रतीत होना - बुभुक्षितं सम०. अर्ह (वि०) दाय या पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा न प्रतिभाति किचित्-महाभाष्य 3. होना, विद्यमान पाने का अधिकारी, कल्पना हिस्सों का विभाजन, होना 4. इतराना, अभि-,चमकना-दिवि स्थितिः जातिः (स्त्री०) (गणि. में) भिन्न राशियों सूर्य इवाभिभाति-महा०, आ-,1. चमकना, जगमगाना, के घटा कर हर समान करना,---धेयम् 1. हिस्सा, शानदार प्रतीत होना-नरेन्द्र कन्यास्तमवाप्य सत्पति खण्ड, अंश नीवारभागघेयोचितर्मगैः रघ० 1050 तमोनुदं दक्षसुता इवाबभुः-रघु० 3133 2. दिखाई 2. किस्मत, भाग्य, प्रारब्ध 3. अच्छी किस्मत, सौभाग्य देना, प्रकट होना --- रघु० 5 / 15, 70, 13314, --. तद्भागधेयं परमं पशूनां भर्तृ० 2 / 12 4. सम्पत्ति निस्.-1 चमक उठना, जगमगाना--अक्षबीजवलयेन 5. आनन्द, (यः) 1. कर -श०२ 2. उत्तराधिकारी, निर्बभौ--रघ० 11166 2. प्रगति करना, उन्नति --भाज (वि०) स्वार्थपर, हिस्सेदार, साझीदार,---भज करना, विचारों में आगे बढ़ना-वेदाद्धर्मो हि निर्बभौ (पुं०) राजा, प्रभु,---लक्षणा लक्षणा शब्दशक्ति का .- मनु० 5 / 44, 2010, प्र-, 1. प्रकट होना 2. चम- एक भेद या शब्द का गौण प्रयोग जिससे शब्द अपने कना, प्रकाशित होने लगना, प्रभात काल होना—नन अर्थ को अंशत: रखता है तथा अंशत: खो देता है, प्रभातारजनी श० 4, प्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी 'जहदजहल्लक्षणा' भी इसे ही कहते है-उदा० --- रघु० 2 / 3, प्रति-, 1 चमकना, चमकदार या सोऽयं देवदत्तः, हर: 1. सहउत्तराधिकारी 2. (गणि चमकीला प्रकट होना--प्रतिभान्त्यद्य वनानि केतका- में) भाग या तक सीम, हारः (गणि० में) भाग। नाम् ... घट० 15 2. इतराना, बनना 3. दिखाई देना, भागवत (वि०) (स्त्री०- ती) [भगवतः भगवत्या वा प्रकट होना-स्त्रीरत्नसृष्टिरपरा प्रतिभाति सा मे-श० इदं सोऽस्य देवता वा अण् 1. विष्णु से संबंध रखने 2 / 1, रघु० 2 / 47, कु० 5 / 38, 654 4. सूझना, वाला या विष्णु की पूजा करने वाला 2. देवता संबंधी मन में आना-नोत्तरं प्रतिभाति मे, वि-, 1. चमकना 3. पवित्र, दिव्य, पुण्यशील,--- तः विष्णु या कृष्ण का -भर्त० 2071 2. दिखाई देना, प्रकट होना, व्यति--, ! अनुचर अथवा भवत,-तम् अठारह पुराणों में से (आ.) बहुत चमकना, जगमगाना ... अपि लोकयगं एक / दशावपि श्रुतदष्टा रमणीगुणा अपि, श्रुतिगामितया / भागशस् (अव्य) [भाग-शस्] 1. खण्डों में या अंशो में, दमस्वसुर्व्यतिभाते नितरां घरापते--२० 22, खण्ड खण्ड करके 2. हिस्से के अनुसार / (यहाँ किया इसी प्रकार 'युगम्', 'दशौ' और 'गुणाः' भागिक (वि०) [भाग+ ठन्] 1. खण्ड सम्बन्धी 2. खण्ड के साथ भी बन सकती है.--तु० पा० 113 / 14) / / बनाने वाला 3. भिन्न सम्बन्धी 4. ब्याज वहन करने भा [भा+अ+टाप्] 1. प्रकाश, आभा, कान्ति, सौन्दर्य वाला (भागिकं शतम्) 'सो में से एक भाग अर्थात् -----तावद्भा भारवे ति यावन्माघस्य नोदय:--उद्भट एक प्रतिशत', इस प्रकार भागिक विंशतिः आदि)। 2. छाया, प्रतिबिंब / सम०-कोशः-षः सूर्य, ... गणः भागिन् (वि.) [भज् +धिनुण] 1. हिस्से या भागों से तारापंज, तारकावली,—निकरः प्रकाशज, किरणों / यक्त 2. हिस्सा रखने वाला, हिस्सेदार 3. हिस्सा लेने का समूह, नेमिः सूर्य,-मंडलम् प्रभामंडल तेजोमंडल / / वाला, भाग लेने वाला, साथी यथा दुःख For Private and Personal Use Only Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 735 ) 4. सम्बन्धित, ग्रस्त 5. अधिकृतधारी, स्वामी---मनु० // थाली- पुष्पभाजनम्-श० 4, रघु० 5 / 22 9 / 53 6. हिस्से का अधिकारी --मनु० 9 / 165, 4. (आलं०) आधार, ग्रहण करने वाला, आशय --- स याज्ञ० 2 / 125 7. भाग्ययान्, किस्मत वाला धियो भाजनं नरः पंच० 243,.... कल्याणानां 8. घटिया, गौण / त्वमसि महसां भाजनं विश्वमर्ते . मा० 113, उत्तर० भागिनेयः [भगिनी | ढक] बहन का पुत्र, भानजा,-यो 3 / 15, मालवि०५।८ 5. योग्य या पात्र, योग्य पदार्थ भानजी। या व्यक्ति-भवादशा एव भवन्ति भाजनान्यपदेशानाम् भागीरथी [भगीरथ-+ अण+डीप] 1. गंगा नदी का - का० 1086. प्रतिनिधान 7. 64 पलों की माप / नामान्तर ---भागीरथी निर्झरशीकराणाम् कु०१।१५ | भाजितम् भाज्+क्त हिस्सा, अंश / 2. गंगा को तीन मुख्य शाखाओं में एक। भाजी [भाज्+घ +डीप्] चावल, भात का मांड, भाग्यम् [भज-+ ण्यत्] 1. किस्मत, प्रारब्ध, तकदीर, | दलिया। | भाज्यम् [भाज् + ण्यत्] 1. अंश, हिस्सा, दाय, 3. (अंक में) न जानाति कुतो मनुष्यः - सुभा० (बहुधा ब० व० में) लाभांश। श० 5 / 30 2. अच्छा भाग्य या किस्मत - रघु० | | भाटम्, भाटकम् [ भट्+घञ , "बुल् वा ] मजदूरी, भाड़ा, 3 / 13 3. समद्धि, सम्पन्नता-भाग्येष्वनुत्सेकिनी श० किराया। 4 / 17 4. आनन्द, कल्याण / सम० -आयत्त (वि.) | भाटि: (स्त्री०) [भट-णिच-1-इना ] 1. मजदूरी, भाग्य पर आश्रित-भाग्यायत्तमतः परम् - श० 4 / 16. भाड़ा, 2. वेश्या की कमाई। - उदयः सौभाग्य का प्रभात, भाग्यशाली घटना, भाट्टः [भट्ट-- अण् ] भट्ट का अनुयायी, कुमारिल भट्ट .-.-.-क्रमः भाग्य की चाल, किस्मत का फेर-भाग्य द्वारा स्थापित मीमांसादर्शन के सिद्धांतों का अनुयायी। क्रमेण हि धनानि भवन्ति यान्ति ... मच्छ० 1 / 13, भाण: [ भण् / घा] नाट्यकाव्य का एक भेद; इसमें ---योगः भाग्य की बेला, किस्मत का मेल,--विप्लवः केवल रंगमंच पर एक ही पात्र होता है, जो अन्तबरी किस्मत, दुर्भाग्य-रघु०८।४७,-वशात (अव्य) र्वादियों के स्थान को आकाशभाषित का यथेष्ट प्रयोग विधि की इच्छा से, भाग्य से, किस्मत से, भाग्यवश / करके पूरा कर देता है भाण: स्याद्धर्तचरितो नानाभाग्यवत् (वि०) [भाग्य + मतुप्] 1. भाग्यशाली, वस्थान्तरात्मकः, एकाङ्क एक एवात्र निपूणः पण्डितो सौभाग्यसम्पन्न, आनन्दित 2. समद्धिशाली। बिट: सा० द० 513, आगे के श्लोक भी देखिये, भाङ्ग (वि०) (स्त्री० गो) [भङ्गा-अण] पटसन से उदा. वसंततिलक, मुकुंदानन्द, लीलामधकर आदि / ____ निर्मित, सन का बना हुआ। भाणकः [ भण् --बुल ] उद्घोषक, घोषणा करने वाला। भाङ्गकः [भाग-1-कन् ] फटा पुराना कपड़ा, जीर्ण शीणं, भाण्डम् [ भाण्ड् + अच्, भण+ड स्वार्थे अण वा-तारा०] चिथड़ा। 1. पात्र, बर्तन, बासन (थाली, कटोरी गिलास भारगोनम् [भङ्गाया भवनं क्षेत्रम् खन | सन या पटसन आदि)... नीलभांडम् 'नील रखने का मटका' इसी का खत / प्रकार क्षीरभांडम्' 'दूध की हांडी' सुरा, मद्य भाज् (चुरा० उभ०) बाँटना वितरित करना, दे० 'भज्' आदि, 2. संदूक, ट्रंक, पेटी, संदूकची --क्षुरभांड प्रेर०। -पंच० 1 3. औजार या उपकरण, यंत्र 4. संगीतभाज (वि.) [भाज-क्विप् | (प्रायः समास के अन्त में) उपकरण 5. सामान, बर्तन, माल, पण्यसामग्री, दुकान1. हिस्सेदार, साथी, भागी 2. रखने वाला, उपभोग दार की वाणिज्यवस्तु-...मथुरागामीनि भाण्डानि-पंच० करने वाला, अधिकार करने वाला, प्राप्त करने वाला 1 6. माल की गाँठ 7. (आलं.) कोई भी मूल्यवान् सुख, रिकथ' 3. अधिकारी 4. भावक, अनुभव करने संपत्ति, निधि-शान्तं वा रघुनन्दने तदुभयं तत्पुत्रवाला, सचेतन 5. अनुरक्त 6. रहने वाला, आवासी, भाण्डं हि में उत्तर० 4 / 24 8. नदी का तल 9. घोड़े निवास करने वाला यथा 'कुहरभाज' 7. जाने वाला, की जीन या साज 10. भंडैती, मसखरापन,- भण्डा: सहारा लेने वाला, खोजने वाला 8. पूजा करने वाला (पुं०,ब०व०) बर्तन, पण्यसामग्री। सम० अ (आ) गार, 9. भाग्य में बदा हुआ 10. अवश्यंकरणीय, कर्तव्य -रम् भंडारघर, सामान का कोठा (शा. जहाँ घर --... भट्टि० 3 / 21 / का सामान और बर्तन आदि रक्खे जाते हैं) भांडासाजकः [भाज्व ल] 1. बांटने वाला 2. (गणि० में) गाराण्यकृत विदुषां सा स्वयं भोगभाजि-विक्रमांक० वह अंक जिससे भाग किया जाय / 18145 2. कोष, ज्ञान 3. संग्रह, गोदाम, भंडार, भाजनम् भाज्यतेऽनेन भाज+ल्युट्] 1. हिस्से बनाना, —पतिः सौदागर,-पुटः नाई,-प्रतिभाण्डकम् विनिमय, बांटना 2. (अंक में) भाग 3. पात्र, बर्तन, प्याला, | सामान की अदलाबदली की संगणना,-भरकः बर्तन For Private and Personal Use Only Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 736 ) की अन्तर्वस्तु,---मूल्यम् बर्तनों के रूप में पूँजी, शाला। के कारण ऐसी स्त्री के लिए 'चंडी' शब्द भी प्रयुक्त गोदाम, भण्डार। हुआ है)-उपचीयत एव कापि शोभा परितो भामिनि भाण्डकः,-कम् [भाण्ड+कन् ] छोटा बर्तन, कटोरा,-कम ते मुखस्य नित्यम् --भामि० 2 / 1 / माल, पण्यसामग्री, बर्तन / भारः [भनघन ] 1. बोझ, वजन, तोल (आलं० से भाण्डारम् [भाण्ड-ऋ+अण] गोदाम, भण्डार / भी) कूचभारानमिता न योषितः----भर्त० 3 / 27, इसी भाण्डारिन् (पुं०) [ भाण्डार+इनि ] गोदाम या भंडार | प्रकार-श्रोणीभार--मेघ० 82, भारः कायो जीवितं का रखवाला। वज्रकीलम् --मा० 9 / 37, 2. (आक्रमण आदि का) भाण्डिः (स्त्री०) [भण्ड-1-इन् पृषो० साधुः] उस्तरे का घर, धक्का, (युद्ध आदि का) अत्यन्त घिचपिच भाग पेटी। सम० बाहः नाई,--शाला नाई की दुकान / -- उत्तर० 5 / 5 3. अतिरेक, मार या उड़ान-रघु० भाडिकः,-ल: [ भाण्ड-+ठन्, भांडि+लच् ] नाई / 14 / 68 4. श्रम, मेहनत, आयास 5. राशि, बड़ी मात्रा भाण्डिका [भाण्डि-|-कन्+टाप्] उपकरण, औजार, यन्त्र / —कच', जटा° 6. 2000 पल सोने के तोल के भाण्डिनी | भाण्ड / इनिङीप ] पेटी, टोकरी। बराबर 7. बोझा ढोने के लिए जुआ। सम०-आक्रान्त भाण्डीरः [ भण्ड् +ईरच्, पृषो० साधुः ] बड़ का या गूलर | (वि०) बोझ से अत्यन्त दबा हुआ, अधिक बोझा का वृक्ष। लिए हुए,--उद्वहः कुली, बोझा ढोने वाला, उपजीवभात (भू० क० कृ०) [भा+क्त] चमकता हुआ, जग- नम् बोझा ढोकर जीवन-यापन करना, कुली का मगाता हुआ, चमकीला,--तः उषःकाल, प्रभात, जीवन, यष्टिः बोझ उड़ाने की लकड़ी, वाह (वि.) प्रातःकाल / (स्त्री-भारोही), बोझा ढोने वाला, वाहः बोझा ले भातिः (स्त्री०) [भा-+-क्तिन् ] 1. प्रकाश, चमक, कान्ति, जाने वाला, कुली,-वाहनः बोझा ढोने वाला जानवर आभा 2. प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान या प्रतीति / (नम्) गाड़ी, मालगाड़ी का डिब्बा, वाहिक: कुली, भातुः [ भा+तुन् ] सूर्य / ---सह (वि०) जो अधिक बोझा उठा सके, (अतः) भाद्रः, भाद्रपदः | भाद्रपदी वा पौर्णमासी अस्मिन् मासे बहुत मजबूत, बलवान्, हरः, . हारः बोझा ढोने भाद्री (भाद्रपदी)+अण् ] चांद्रवर्ष के एक मास का वाला, कुली, हारिन् (पुं०) कृष्ण का विशेषण / नाम (अगस्त और सितम्बर के मास में आने वाला), [आर सितम्बर क मास म आने वाला),भारण्डः[?] एक प्रकार का काल्पनिक पक्षी जिसका –दाः (स्त्री०-ब० व०) पच्चीसवाँ और छब्बीसवाँ वर्णन केवल कहानियों में पाया जाता है ('भारुड' नक्षत्र (पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा)। भी ) पंच० 5.102 / भाद्रपदी, भाद्री [भाद्रपद -डीप्, भद्रा+अण् + ङीष् ] | भारत (वि.) (स्त्री०. ती) [भरत-अण् ] भरत से भाद्रपद मास की पूर्णिमा / संबन्ध रखने वाला या भरत की सन्तान,-तः 1. भरत भाद्रमातुरः [ भद्रमातुरपत्यम् ---भद्रमातृ-अण, उकारा की सन्तान 2. भारतवर्ष या हिन्दुस्तान का निवासी देशः ] सती साध्वी माता का पुत्र / 3. अभिनेता, तम् 1. भरत का देश, भारत शि० भानम् [भा भावे ल्युट ] 1. प्रकट होना, दृश्यमान 1415 2. संस्कृत में लिखा हुआ एक अत्यन्त प्रसिद्ध 2. प्रकाश, कान्ति 3. प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान / महाकाव्य जिसमें अनन्त उपाख्यानों के साथ भरतवंशी भानुः [ भा+नु] 1. प्रकाश, कान्ति, चमक 2. प्रकाश- राजाओं का इतिहास पाया जाता है (व्यास या कृष्ण किरण-मण्डिताखिलदिकप्रान्ताश्चण्डांशोः पान्तु भानवः द्वैपायन इसके रचयिता माने जाते हैं परन्तु यह जिस -भामि०१।१२९, शि०२।५३,मनु०८।१३२ 3. सूर्य, विशाल रूप में आज मिलता है निश्चित रूप से अनेक --भानुः सकृद्युक्ततुरंग एव----श० 5 / 4, भीमभानी व्यक्तियों की रचना है)-श्रवणांजलिपुटपेयं विरचितनिदाघे--भामि०१।३० 4. सौन्दर्य 5. दिन 6. राजा, वान् भारताख्यममृतं यः, तमहमरागमकृष्णं कृष्णद्वैपाराजकुमार, प्रभु 7. शिव का विशेषण-स्त्री० सुन्दर यनं बंदे-वेणी० 114, व्यासगिरां निर्यासं सारं स्त्री। सम..-केश (स) र: सूर्य,--जः शनिग्रह विश्वस्य भारतं वन्दे, भूषणतयैव संज्ञां यदडितां -दिनम्, -वारः रविवार, इतवार। भारती वहति आर्या०३१, ती वाणी, वाच्य, वचन, भानुमत् (वि०) [भानु+मतुप्] 1. ज्योतिर्मान्, चमकीला, वाणी-प्रवाह भारतीनिर्घोषः -उत्तर० 3, तमर्थमिव जगमग करता हुआ 2. सुन्दर, मनोहर-पुं० सूर्य कु. भारत्या सुतया योक्तुमर्हसि-कु० 679 नवरसरुचिरां 3165, रघु० 6 / 36 ऋतु० 5 / 2, तो दुर्योधन की निमितिमादधती भारती कवेर्जयति-काव. 1 पत्नी का नाम / 2. वाणी की देवता, सरस्वती 3. विशेष प्रकार की भामिनी [ भाम् +णिनि+डीप् ] 1. सुन्दर तरुणी, शैली--प्रारती संस्कृतप्रायो वाग्व्यापारो नटाश्रयः-- कामिनी----रघु० 8 / 28 2. कामुकी स्त्री (बहुत प्यार | सा० द० 285 4. लवा, बटेर / For Private and Personal Use Only Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 737 ) भारद्वाजः [ भरद्वाजस्यापत्यम् --अण् ] 1. कौरव पांडवों | भावः [भू भावे घन ] 1. होना, सता, अस्तित्व-- नासतो की सैनिक शिक्षा के आचार्य गुरु द्रोण 2. अगस्य विद्यते भावः ...भग० 2 / 16 2. होना, घटित होना, का नामान्तर 3. मङ्गलग्रह 4. चातक पक्षी,- -जम् घटना 3. स्थिति, अवस्था, होने की अवस्था—लताहड्डी / भावेन परिणतमस्या रूपम् -विक्रम० 4, कातरभावः, भारवः [ भारं वाति-वा+क] धनुष की डोरी। विवर्णभावः आदि 4. रीति, ढंग 5. दर्जा, स्थिति, पद, भारविः[?] किरातार्जुनीय नामक संस्कृतकाव्य के हैसियत-देवीभावं गमिता काव्य० 10, इसी प्रकार रचयिता, -तावद्भा भारवर्भाति यावन्माघस्य नोदयः, प्रेष्यभावम्, किंकरभावम 6. (क) यथार्थ दशा या उदिते च पुनर्माघे भारवेर्भा रवेरिव, भारवेरर्थगौरवम् स्थिति, यथार्थता, वास्तविकता भग० 108 (ख) --उद्भट / निष्कपटता, भक्ति-त्वयि मे भावनिबन्धना रतिः भारिः [इभस्य अरि: पृषो० साधुः ] सिंह। -रघु०८१५२, 2026 7. सहज गुण, चित्तवृत्ति, भारिक, भारिन् (वि.) [भार-Fठक, इनि वा ] भारी प्रकृति, स्वभाव --उत्तर० 6 / 14 8. झुकाव या मनो--पुं० बोझा ढोने वाला, कुली। वृत्ति, भावना, विचार, मत, कल्पना-पंच० 3 / 43, भार्गः [ भर्ग+अण् ] भर्ग देश का राजा। मनु० 8 / 25 4165 1. भावना, संवेग, रस या मनोभार्गवः [ भृगोरपत्यम् अण् ] 1. शुक्राचार्य, शुक्रग्रह का भाव एको भावः- पंच० 3166, कु. 6 / 95, शास्ता और असुरों का आचार्य 2. परशराम, दे० (नाट्य विज्ञान या काव्यरचना में भाव बहुधा दो परशुराम 3. शिव का विशेषण 4. धनुर्धर 5. हाथी। प्रकार के होते हैं-प्रधान या स्थायीभाव, तथा गौण सम..-प्रियः हीरा। या व्यभिचारिभाव। स्थायिभाव गिनती में आठ या भार्गवी [ भार्गव-डीप 1 1. दुब 2. लक्ष्मी का विशेषण / नौ है, तदनुसार अपने 2 स्थायिभाव से युक्त रस भी भार्यः [ भृ / ण्यत् ] सेवक, पराश्रयी (भरण-पोषण किये आठ या नौ हैं। व्यभिचारिभाव गिनती में तेंतीस या जाने के योग्य)। चौंतीस है तथा स्थायिभावों का विकास करने एवं भार्या [भर्तुं योग्या+भार्य+टाप्] 1. धर्मपत्नी-सा भार्या संवर्वन करने में सहायक होते हैं, इनके कुछ भेदों की या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रजावती, सा भार्या या परिभाषा तथा गिनती के लिए--रस० का प्रथम पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता हि० 11196 आनन या काव्य० का चौथा समुल्लास देखो) 10. प्रेम, 2. मादा जानवर / सम०-आट (वि०) अपनी पत्नी स्नेह, अनुराग-द्वन्द्वानि भावं क्रियया विवः .... कु. के वेश्यापन से जीवन निर्वाह करने वाला,-ऊढ (वि.) 3 / 35, रघु० 636 11. अभिप्राय, प्रयोजन, सारांश, विवाहित (पुरुष)-भार्योढं तमवज्ञाय-भट्टि० 4 / 15, आशय; इति भावः (प्रायः भाष्यकारों द्वारा प्रयुक्त) -जितः पत्नी से प्रभावित पति, जोरू का गुलाम / 12. अर्थ, आशय, तात्पर्य, व्यंजना मा० 125 भार्याल: [ भार्या+ऋ+उण् ] 1. एक प्रकार का मृग 13. प्रस्ताव, संकल्प 14. हृदय, आत्मा, मन-तयोविवृत 2. उस बालक का पिता जो अन्य पुरुष की पत्नी से भावत्वात्-मा० 1112, भग०१८।१६ 15. विद्यमान उत्पन्न हो। पदार्थ, वस्तु, चीज, तत्त्वार्थ,-जगति जयिनस्ते ते भावा भालम् [भा+लच् ] मस्तक, ललाट-यद्धात्रा निजभाल- नवेन्दुकलादयः—मा० 1417, 36, रघु० 3 / 41, पट्टलिखितं स्तोकं महद्वा धनम-भर्त० 2 / 49, (स्मर. उत्तर० 3 / 32 16. प्राणी, जीवधारी जन्तु 17. भावस्य) वपुः सद्यो भालानलभसितजालास्पदमभूत-भामि० मय मनन, चिन्तन (=भावना) 18. आचरण, गति१२८४ 2. प्रकाश 3. अंधकार / सम० अङ्कः 1. भाग्य- विधि, हावभाव 19. प्रीति द्योतक हावभाव या रस वान् पुरुष जिसके मस्तक पर भाग्य रेखा विराजमान की अभिव्यक्ति, प्रेम संकेत---श० 211 20. जन्म, है 2. शिव का विशेषण 3. आरा 4. कछवा, - चन्द्रः 21. संसार, विश्व 22. गर्भाशय 23. इच्छाशक्ति 1. शिव का विशेषण 2. गणेश का विशेपण,---दर्शनम् 24. अतिमानव शक्ति 25. उपदेश, अनदेश 26. (नाटकों सिंदूर,--दशिन् (वि.) 'मस्तक या ललाट को देखने में) विद्वान् और सम्माननीय व्यक्ति, योग्य पुरुष वाला' अर्थात् वह नौकर जो अपने स्वामी की इच्छाओं (संबोधनशब्द)-भाव अयमस्मि-विक्रम०१, तां खलु के प्रति सावधान रहता है, -- दश (पुं०) - लोचनः भावेन तथैव सर्वे वाः पाटिता:-मा०१ 27. (व्या० शिव का विशेषण,... पट्टः,-दृम मस्तक, ललाट / में) भाववाचक संज्ञा का आशय, भावात्मक विचार भाल: [ भृ-+उण, वृद्धिः, रस्य लः ] सूर्य / --भावे क्तः 28. भाववाच्य 29. (ज्योतिः-- में) भालुक, भालक, भाल्लुक, भाल्लक [ भलते हिनस्ति प्राणिनः जन्मकुंडली के स्थान 30. नक्षत्र / सम०--अनुग (वि०) --भल+उक (ऊक)+अण, भल्ल (ल्ल)+क स्वाभाविक, (गा) छाया,----अन्तरम् भिन्न स्थिति +अण् ] रीछ, भालू / -- अर्थः 1. स्पष्ट अर्थ या ध्वनि (किसी शब्द या 93 For Private and Personal Use Only Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 738 ) पदोच्चय की) 2. विषय-सामग्री, - आकृतम मन के भावना, निष्टा पंच० 5 / 105 5. मनन, अनुध्यान, (गुप्त) विचार अमरु 4, आत्मक (वि०) वास्त- भावात्मक चितन 6. कल्पना, प्राका-कल्पना 7. निरीविक, यथार्थ,--आभासः भावना का अनुकरण, बनावटी क्षण, गवेषणा 8. निश्चयन, निर्धारण-याज्ञ० 2 / 149 या मिथ्या संवेग,- आलीना छाया, एकरस (वि०) 9. याद करना, प्रत्यास्मरण 10. प्रत्यक्ष ज्ञान, संज्ञान केवल (निष्कपट) प्रेम के रस से प्रभावित कु० 11. (तर्क० में) प्रत्यक्ष ज्ञान से उत्पन्न स्मति का ५।८२.--गम्भीरम् (अव्य०) 1. हृदय से, हृदयतल से कारण-दे०, तर्क० में 'भावना' और 'स्मृति' 12. प्रमाण 2. गंभीरता के साथ, संजीदगी से, गम्य (वि.) मन प्रदर्शन, यक्ति 13. सिक्त करना, सराबोर करना, से जाना हुआ-मेघ० 85, ग्राहिन् (वि०) 1. आशय किसी सूखे चूर्ण को रस से भिगोना 14. सुवासित को समझने वाला 2. मनोभाव की कदर करने करना, फलों और सुगंधित द्रव्यों से सजाना / वाला,जः कामदेव,-ज्ञ विद (वि.) हृदय को भावाट: [ भावं भावेन वा अटति ..अट / अण, अच् वा ] जानने वाला,--दशिन् (वि०) दे० 'भालदशिन्', 1. संवेग, आवेश, मनोभाव 2. प्रेम की भावना का बाह्य —बन्धन (वि.) हृदय को मुग्ध करने वाला या बांधने संकेत 3. पुण्यात्मा या पुण्यशील व्यक्ति 4. रसिक वाला, हृदयों की कड़ी को जोड़ने वाला- रघु० व्यक्ति 5. अभिनेता 6. सजावट, वेशभूषा / 3124,- बोधक (वि.) किसी भी भावना को प्रकट भाविक (वि०) (स्त्री० को) 1. प्राकृतिक, वास्तविक, करने वाला, - मिश्रः योग्य व्यक्ति, सज्जन पुरुष अन्तहित, अन्तर्जात 2. भावुकतापूर्ण, भावुकता या (नाटकों में प्रयुक्त), रूप (वि०) वास्तविक, यथार्थ, भावना से व्याप्त 3. भावी समय,-कम 1. उत्कट प्रेम -वचनम् भावात्मक विचार को प्रकट करने वाला, से पूर्ण भाषा 2. (आलं0 में) एक अलंकार का नाम क्रिया की भावाशयता को वहन करने वाला,- वाचकम जिरामें भूत और भविष्यत् का इस विशदता से वर्णन भाववाचक संज्ञा,-शबलत्वम नाना प्रकार के सवेगों किया गया हो कि वस्तुतः वर्तमान प्रतीत हो। मम्मट और भावों का मिश्रण (भावानां बाध्यबाधकभाव- की दी हुई परिभापा--प्रत्यक्षा इव यद्भावाः क्रियन्ते मापन्नानामदासीनानां वा व्यामिश्रणम्-रस० तद्गत भूतभाविनः, तद्भाविकम् -- काव्य० 10 / उदाहरण दे०),--शन्य (वि.) यथार्थ प्रेम से रहित, हित, भावित (भ० क. कृ०) [भू+णिच+वत] 1. पैदा --सन्धिः दो संवेगों का मेल या सह-अस्तित्व----(भाव किया गया, उत्पादित 2. प्रकटीकृत, प्रदर्शित, निदर्शित सन्धिरन्योन्यानभिभूतयोरन्योन्याभिभावनयोग्ययोः / -भावितविषवेगविक्रियः दश. 3. लालन-पालन सामानाधिकरण्यम्-रस० दे० तद्गत उदाहरण), किया गया, पाला पोसा गया 4 संव्यक्त किया गया, --समाहित (वि०) भावमनस्क, भक्त,-सर्गः मानसिक कल्पना किया गया, कल्पित, कल्पना में उपन्यस्त सृष्टि अर्थात् मानव की मनश्शक्तियों की सष्टि और 5. चिन्तित, मनन किया गया 6. बनाया गया, रूपाउनका प्रभाव (विप० भौतिक सर्ग या भौतिक सष्टि), न्तरित किया गया 7. मनन द्वारा पावन किया गया-- -स्थ (वि.) आसक्त, अनुरक्त, कु० ५।५८,-स्थिर दे० भावितात्मन 8. सिद्ध, स्थापित 9. व्याप्त, भरा हुआ, (वि.) मन में दृढ़तापूर्वक जमा हुआ—श० 5 / 2, संतप्त, प्रेरित 10. डबाया गया, सराबोर, मग्न -स्निग्ध (वि.) स्नेहसिक्त, सत्यनिष्ठा पूर्वक 11. सुवासित, सुगंधित 12. मिश्रित,-तम् गुणनप्रक्रिया आसक्त-पंच० 11285 / द्वारा प्राप्त गुणनफल / सम० आत्मन्- बुद्धि भावक (वि०) [भूणिच्+ण्वल ] 1. उत्पादक, प्रका- (दि०) 1. जिसका आत्मा परमात्म-चिन्तन से पवित्र शक 2. कल्याणकारक 3. उत्प्रेक्षक, कल्पना करने हो गया है, जिसने परमात्मा को प्रत्यक्ष कर लिया वाला 4. उदात्त और सुन्दर भावनाओं के प्रति रुचि है 2. विशुद्ध, भक्त, पुण्यशील---पंच० 3166 रखने वाला, काव्यपरकरुचि रखने वाला,-क: 1. भावना 3. चिन्तनशील, मनस्वी. रघु० 1174 4. व्यस्त, मनोभाव 2. मनोभावों (विशेष कर प्रेम के) को व्यापत --शि० 12138 / बाहर प्रकट करना। भावितकम् [भावित+कन्] गुणनप्रक्रिया द्वारा प्राप्त भावन (वि०) (स्त्रो०---नी) [ भू-णिच् + ल्युट] गुणनफल, तथ्यविवरण। उत्पादक–दे. ऊ. भावक,-न: 1. निमित्तकारण भावित्रम् [भू+णि+वन् ] तीन लोक - (स्वर्गलोक, 2. सष्टिकर्ता-मा०९।४ 3. शिव का विशेषण-नम मर्त्यलोक और पाताल लोक)। --ना 1. पैदा करना, प्रकट करना 2. किसी के हितों भाविन (वि.) [भ+ इनि, णिच् ] 1 होनहार, होने को अनुप्राणित करना 3. संप्रत्यय, कल्पना, उत्प्रेक्षा, वाला,--भृत्यभावि-रघु० 11149 2. होने वाला, विचार, धारणा ---मधुरिपुरहमिति भावनशीला-गीत. भविष्य में घटने वाला, आगे आने वाला-- लोकेन 6. या भावनया लयि लीना-४, पंच०३।१६२ 4. भक्ति भावी पितुरेव तुल्यः--रघु० 18138, मेघ० 41 For Private and Personal Use Only Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 739 ) 3. भविष्य --समतीतं च भवच्च भावि च--रघु० / बोलना--स्थितघीः किं प्रभाषत-भग० 2 / 54, 878, प्रत्यक्षा इव यद्भावाः क्रियन्ते भूतभाविनः प्रति -1. बदले में कहना, उत्तर देना-भट्टि -काव्य०१०, 03 / 11 4. होने के योग्य 5. अव- 5 / 39 2. कहना, वर्णन करना 3. एक के बाद बोलना, श्यंभावी, भवितव्य, प्रानियत या पूर्वनिर्दिष्ट-- यद- सुनकर बोलना 4. नाम लेना, पुकारना -- कामिनि भावि न तद्भावि भाविचेन्न तदन्यथा हि० 1 तामपगीति प्रतिभाषन्ते महाकवयः- श्रुत०६, वि---, 6. उत्कृष्ट, सन्दर, भव्य,-नी 1. सन्दर स्त्री 2. उत्तम ऐच्छिक नियम के रूप में निर्धारित करना, सम--, या साध्वी महिला-कु० 5 / 38 3. स्वेच्छाचारिणी मिलकर बोलना, बातचीत करना--मनु० 855 / स्त्री। भाषणम् [ भाष्+ल्युट् ] 1. बोलना, बातें करना, कहना भावुक (वि०) [भू+उका ] 1. होने वाला, घटने | 2. वक्तृता, शब्द, बात 3. कृपापूर्ण शब्द / / वाला 2. होनहार 3. समृद्ध, प्रसन्न 4. शुभ, मंगलमय | भाषा [ भाष् +अड+टाप् ] 1. वक्तृता, बात- यथा 5. काव्य में रुचि रखने वाला, गुणग्राही,-कः बहनोई 'चारुभाषः' में 2. बोली, जबान--मनु० 8 / 164 (बहुधा नाटकों में प्रयुक्त),-कम् 1. प्रसन्नता, 3. सामान्य या देहाती बोली (क) बोली जाने वाली कल्याण, समृद्धि स एतु वो दुश्च्यवनो भावुकानां संस्कृत भाषा (विप० छंदस् वा वेद)-विभाषा भाषापरंपराम्....काव्य० 7 ('अप्रयुक्तत्व' नाम काव्य / याम्-पा० 6 / 1 / 181 (ख) कोई प्राकृत बोली रचना के दोष का उदाहरण 2. प्रेम और प्रणयोन्माद (विप० संस्कृत) मनु० 8 / 332 4. परिभाषा, वर्णन से पूर्ण भाषा। -स्थितप्रज्ञस्य का भाषा-भग० 2 / 54 5. सरस्वती का भाव्य (वि०) [भ+प्यत् ] 1. होने वाला, घटित होने विशेषण, वाणी की देवी 6. (विधि में) अभियोग वाला, प्रायः भवितव्यम्' की भांति भावरूप में प्रयुक्त की चार अवस्थाओं में से पहली, शिकायत, आरोप, ...कि तैर्भाव्यं मम सुदिवसः .. भर्तृ० 3 / 4 2. भविष्य दोषारोपण। सम०-- अन्तरम् 1. अन्य वाणी या बोली 3. अनुष्ठेय या जो पूरा किया जाय 4. सोचे जाने 2. अनुवाद,-पावः आरोप, शिकायत- दे० 'भाषा' या कल्पना किये जाने योग्य 5. सिद्ध या प्रदर्शित 6 ऊपर,...समः एक अलंकार का नाम जिसमें किये जाने योग्य 6. निर्धारण या गवेषणा किये जाने शब्दक्रम का न्यास इस प्रकार किया जाता है कि योग्य,-व्यम् / प्रारब्ध, अवश्यंभावी 2. भवितव्यता। चाहे आप उसे संस्कृत समझें और चाहे प्राकृत (कोई भाष (भ्वा० आ० भाषते, भाषित) 1. कहना, बोलना, न कोई भेद)-उदा०-मजलमणिमञ्जीरे कलगम्भीरे उच्चारण करना---त्वयकमीशं प्रति साधु भाषितम् विहारसरसीतीरे, विरसासि केलिकीरे किमालि धीरे -कु० 5 / 81, बहुधा द्विकर्मक,-भीता प्रियामेत्य च गन्धसारसमीरे -- सा० द० 642, (एष श्लोकः वचो बभाषे-रधु० 766, आखण्डल: काममिदं संस्कृतप्राकृतशौरसेनीप्राच्यावन्तीनागरापभ्रंशेष्वेकविध बभाषे--कु० 3 / 11, भट्टि० 9 / 122 2. बोलना, एव), किं त्वां भणामि विच्छेददारुणायासकारिणि, संबोधित करना--किंचिद्विहस्यार्थपति बभाषे--रघु० कामं कुरु वरारोहे देहि मे परिरंभणम्-मा०६।११, 2146, 3151 3. बोलना, घोषणा करना, प्रकथन (यह संस्कृत या शौरसेनी में है) इसी प्रकार 6 / 10 / करना-क्षितिपालमुच्चैः प्रीत्या तमेवार्थमभाषतेव | भाषिका [भाषा+कन्+टाप, हस्व:, इत्वम्] वक्तृता, -रघु० 2051 4. बोलना, बातें करना 5. नाम लेना, भाषा, बोली। पुकारना 6. वर्णन करना, -अनु 1. बोलना, कहना। भाषित (भू० क० कृ०) [भाष्+क्त] बोला हुआ, कहा 2. समाचार देना, घोषणा करना-मनु० 11228, हुआ, उच्चारण किया हुआ,-तम् भाषण, उच्चाअप---झिड़कना, बुरा भला कहना, बदनाम करना, रण, शब्द, बोली-मनु० 8 / 26 / सम०.--पुंस्क निन्दा करना, बुराई करना-अहमणुमात्रं न किचि- -उक्तपुंस्क। दपभाषे-भामि० 4 / 27, न केवल यो महतोऽपभाषते भाष्यम् [भाष्+ण्यत्] 1. बोलना, बातें करना 2. सामान्य शृणोति तस्मादपि यः स पापभाक्-कु० 5 / 83, या देहाती भाषा की कोई रचना 3. व्याख्या, वृत्ति, अभि--, 1. बोलना, भाषण देना-मनु० 2128 टीका जैसा कि 'वेदभाष्य' में 4. विशेषकर सूत्रों की 2. बोलना, कहना 3. प्रकथन करना, घोषणा करना, वत्ति जिसमें शब्दश: व्याख्या और टिप्पण होते हैं कहना, समाचार देना 4. वर्णन करना, आ-,1. बोलना, (सूत्रार्थों वर्ण्यते यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः, स्वपदानि भाषण देना,...वैशम्पायनश्चन्द्रापीडमाबभाष –का. च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः)-संक्षिप्तस्याप्यतोऽ 117 2. कहना, बोलना,-आभाषि रामेण वचः कनी स्यैव वाक्यस्यार्थगरीयसः, सुविस्तरतरा वाचो भाष्ययान्- भट्टि० 3.51, परि -,परिपाटी स्थापित भूता भवन्तु मे-शि० 2 / 24 5. पाणिनि के सूत्रों पर करना, औपचारिक रूप से बोलना, प्र-,कहना, पतंजलि का महाभाष्य / सम०--करः--कार:-कृत For Private and Personal Use Only Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 740 ) (पुं०) 1. भाष्यकार, टीकाकार 2. पतंजलि। भव्य कि० 5 / 5, रघु० 5 / 30 2. भयानक,-रः भास् (भ्वा० आ० भासते, भासित) 1. चमकना, जग- 1. नायक 2. स्फटिक / मगाना, जगमग करना तावत्कामनृपातपत्रसुषमं | भास्मन (वि०) (स्त्री०-नी) [भस्मन्+अण्, मन्नन्तत्वात् बिम्बं बभासे विधोः-भामि० 2074, 4 / 18, कु० न टिलोप:] राख से बना हुआ, राख वाला--शि० 6 / 11, भट्ट० 10 // 61 2. स्पष्ट होना, विशद होना, 4165 / मन में होना-त्वदङ्गमार्दवे दृष्टे कस्य चित्ते न भासते, | भास्वत् (बि०) [भास् / मतुप्, मस्य वः] चमकीला, मालतीशशभूल्लेखाकदलीनां कठोरता-चन्द्रा० 5 / 42 चमकदार द्युतिमान, देदीप्यमान् - कु० 112, 6 / 60, 3. प्रकट होना-प्रेर० (भासयति-ते) 1. चमकाना, | पुं० 1. सूर्य- भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालिः देदीप्यमान करना, प्रकाशित करना-अधिवसंस्तन- --सुभा०, रघु० 16144 2. प्रकाश, कान्ति, आभा मध्वरदीक्षितामसमभासमभासयदीश्वरः-रघु०९।२१, 3. नायक,-ती सूर्य की नगरी। भग० 15 / 6 2. जाहिर करना, स्पष्ट करना, प्रकट | भास्वर (वि.) [भास्+बरच ] चमकीला, प्रकाशमान, करना-भट्टि० 15142, अव-, 1. चमकना, कि० | चमकदार, उज्ज्व ल--र: 1. सूर्य 2. दिन। 3 / 46, 2. प्रकट होना, प्रकाशित होना, स्पष्ट होना | भिक्ष (म्वा. आ० भिक्षते, भिक्षित) 1. पूछना, प्रार्थना —आहोस्विन्मुखमवभासते युवत्याः-शि० 8 / 29, करना, मांगना (द्विकर्मक)--भिक्षमाणो बनं प्रियां आ-, प्रकट होना," के समान चमकना, की तरह -भट्टि० 69 2. याचना करना (भिक्षा की) -- न दिखलाई देना-स्थानान्तरं स्वर्ग इवाबभासे-कु० यज्ञार्थं शूद्राद्विप्रो भिक्षेत कहिचित् --मनु० 11 / 24, 25 73, रघु० 7 / 43, 14 / 12, उद्-, चमकना, के 3. बिना प्राप्त हुए पूछना 4. क्लांत या दुखी होना / समान दिखाई देना,-निस्----, चमकना-कि० 7.36, भिक्षणम्, [भिक्ष+ल्युट,] मांगना, भिक्षा मांगना, प्रति--, 1. चमकना 2. दिखलाई देना 3. स्पष्ट होना, भिक्षावृत्ति, भिखारीपन / प्रकट होना, वि, चमकना / भिक्षा [भिक्ष +अ+टाप् ] 1. मांगना, याचना करना, भास् (स्त्री०) [भास्+क्विप्] 1. प्रकाश, कान्ति, चमक प्रार्थना करना-मनु० 656 2. दान के रूप में जो -दशा निशेन्दीवरचारुभासा-नै० 22 / 43, रघु० चीज दी जाय, भीख,-भवति भिक्षां देहि 3. मजदूरी, 9 / 21, कु० 7.3 2. प्रकाश की किरण—कि० भाड़ा 4. सेवा। सम... अटनम् भीख मांगते हुए 5 / 38, 46, 9 / 6, रत्न० 1124, 4 / 16 3. प्रतिबिंब, घूमना (नः) भिखापरी, साधु-अन्नम् मांग कर प्राप्त प्रतिमा 4. महिमा, कीर्ति, विभूति 5. लालसा, इच्छा। किया गया अन्न, भीख, -अयनम् (णम्)=भिक्षाटन, सम-करः 1. सूर्य-शि० 1169 रधु० 11 / 7, --- अथिन् (वि०) भीख माँगने वाला (पु०) भिखारी, 12 / 25 कु. 6 / 49 2. नायक 3. अग्नि 4. शिव -अर्ह (वि.) भिक्षा के योग्य, दान के लिए उपयुक्त का विशेषण 5. एक प्रसिद्ध ज्योतिषी जो 11 वीं पदार्थ,-आशिन् (वि०) 1. भिक्षा पर निर्वाह करने शताब्दी में हुए हैं, (रम् ) सोना, प्रियः लाल, °सप्तमी वाला 2. बेईमान,- उप विन् (वि०) भिक्षा पर माघशुक्ला सप्तमी,-करिः शनिग्रह। जीने वाला, भिखारी, करणम् भिक्षा लेना, भीख भासः [भास् भावे घा] 1. चमक, प्रकाश, कान्ति माँगना,-चरणम्,-चर्यम्,-चर्या भीख मांगते हुए घूमना, 2. उत्प्रेक्षा 3. मुर्गा 4. गिद्ध, 5. गोष्ठ, गौशाला .....पात्रम् भिक्षा ग्रहण करने का बर्तन, भीख के लिए 6. एक कवि का नाम-भासो हासः कविकुलगुरुः कटोरा--- इसी प्रकार भिक्षाभाण्डम्, भिक्षाभाजनम्, कालिदासो विलासः-प्रसन्न० 1122, मालवि० 1 / -माणवः भिखारी बच्चा (तिरस्कार-सूचक शब्द), भासक (वि.) (स्त्री०-सिका) [भास--वुल] 1. प्रकाश ---वृत्तिः (स्त्री०) भीख माँग कर जीना, साधु या करने वाला, चमकाने वाला, रोशनी करने वाला भिक्षुक का जीवन / 2. दिखलाने वाला, विशद करने वाला 3. बोधगम्य | | भिक्षाकः (स्त्री०-की) [भिक्षनषाकन् ] भिखारी, साधु, बनाने वाला,-कः एक कवि का नाम / | भिक्षुक / भासनम् [भास् ल्युट्] 1. चमकना, जगमगाना 2. ज्योति- भिक्षित (भू० क० कृ०) [भिक्ष+क्त] याचना की गई, मय, द्युतिमान् / माँगा गया। भासन्त (वि०) (स्त्री०-ती) [भास्+झच्, अन्तादेशः] भिक्षुः[भिक्ष-+उन् ] 1. भिखारी, साध - भिक्षां च 1. चमकदार 2. सुन्दर, मनोहर,-त: 1. सूर्य 2. चन्द्रमा भिक्षवे दद्यात्-मनु० 3 / 94 2. साधु, चौथे आश्रम 3. नक्षत्र, तारा,-ती नक्षत्र / में पहुँचा हुआ ब्राह्मण (जब कि वह कुटुम्ब, घर भासुः [भास्+उन्] सूर्य / द्वार छोड़ कर केवल भिक्षा पर निर्वाह करता है), भासुर (वि०) [भास्+घुरच्] 1. चमकीला, चमकदार / संन्यासी 3. ब्राह्मण का चौथा आश्रम, संन्यास For Private and Personal Use Only Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 741 ) 4. बौद्ध भिक्षक। सम०-चर्या भिक्षा माँगना, खोलना, भण्डाफोड़ करना 14. भटकाना, उचाट करना साधु का जीवन,-सङ्गः बौद्ध भिक्षुओं का समाज / 15. भेद करना, विविक्त करना / कर्मवाच्य–भिद्यते, -सङ्घाती फटे पुराने कपड़े, चीवर / 1. टुकड़े 2 होना, फटना, थरथराना-मुच्छ० 5 / 22 भिक्षुकः [भिक्षु+उक् ] भिखारी, साधु--मनु० 6 / 51 / 2. बांटा जाना, वियुक्त किया जाना 3. फैलाना, भित्तम् [भिद्+क्त ] 1. भाग, अंश 2. खण्ड, टुकड़ा खिलना, खिलाना 4. शिथिल या विश्रांत किये जाना 3. दीवार, विभाजक दीवार / -प्रस्थानभिन्नां न बबन्ध नीवीम् -रघु० 719, 66 भित्तिः [ भिद्+क्तिन् ] 1. तोड़ना, खण्ड-खण्ड करना, 5. .. 'पृथक् होना (अपा० के साथ) रघु० 5 / 37, बाँटना 2. दीवार, विभाजक दीवार, समया सौध उत्तर०४ 6. नष्ट किया जाना 7. भंडाफोड़ किया भित्तिम्-दश०, शि० 4 / 67 3. (अतः) कोई स्थान, जाना, धोखा दिया जाना, दूर चले जाना-षट्कों जगह या भूमि जिस पर कुछ किया जा सके, आधार, भिद्यते मन्त्र:-पंच 199 8. तंग, पीड़ित, या व्यथित आश्रय-चित्र-कर्म रचनाभित्ति विना वर्तते-मुद्रा० किये जाना--प्रेर० भेदयति-ते 1. खण्ड 2 करना, 214 4. खण्ड, लव, टुकड़ा, अंश 5. कोई भी ट्टी फाड़ना, बाँटना फाड़ना आदि 2. नष्ट करना, विघटित हुई दस्तु 6. दरार, तरेड़ 7. चटाई 8. कमी, खोट करना 3. जोड़ खोलना, पृथक् 2 करना 4. भटकना 9. अवसर। सम०-खातनः चहा,-चोरः सेंध 5. सतीत्व या सत्पथ से डिगाना / इच्छा० (बिभित्सति लगा कर घर में घुसने वाला चोर,-पातनः 1. एक -ते) तोड़ने की अभिलाष करना, अनु-, बांटना, प्रकार का चूहा 2. चूहा। तोड़ डालना, उन्-, फूटना, जमना (पौधा) पैदा भित्तिका [भिद्+तिकन्+टाप् ] 1. दीवार, विभाजक होना-कु० १।२४-रघु० 13121, मिस्-, दीवार 2. घर की छोटी छिपकली। 1. फाड़ना, फटकर अलग 2 होना, टूटना--भट्टि. 9167 2. खोलना, धोखा देना-उत्तर 331, प्र.--, भिद i (म्वा० पर०-भिन्दति) बाँटना, टुकड़े 2 करके बाँटने वाला। ii (रुधा० उभ० भिनत्ति, भित्ते, 1. तोड़ना, फाड़ना, फाड़कर पृथक् 2 करना 2. चूना, (हाथी के गण्डस्थल से) कु० 5 / 50, प्रति-, पाड़ भिन्न) तोड़ना, फाड़ना, टुकड़े 2 करना, काटकर लगाना, भेदना, घुसना 2. भेद खोलना, घोखा देना अलग 2 करना, फट जाना, छिद्र करना, बीच में से 3. झिड़कना, गाली देना, निन्दा करना---प्रतिभिद्य तोड़ना-अतिशीतलमप्यम्भः किं भिनत्ति न भभूतः कान्तमपराधकृतम् ---शि० 9 / 58, रघु० 19 / 22 -हि० 3 / 45 तेषां कथं नु हृदयं न भिनत्ति लज्जा--- 4. अस्वीकार करना, मुकरना, 5. छूना, सम्पर्क करना मुद्रा० 3 / 34, शि० 8 / 39, मनु० 3 / 33 रघु०८1५५, --कु० 7.35, वि-, 1. तोड़ना फाड़ना 2. छेद 12177 2. खोदना, उखड़ना, खुदाई करना-उत्तर० करना, घुसना 3. बांटना, अलग 2 करना 4. हस्तक्षेप 1123 3. बीच में से निकल जाना-पंच० 11211, करना 5. बखेरना, तितरबितर करना, सम्--, 212 4. बाँटना, पृथक-पृथक् करना-द्विधा भिन्ना 1. तोड़ना, फाड़ कर टुकड़े 2 करना, टुकड़े 2 होना शिखण्डिभिः ---रघु० 1139, अप्रसन्न करना -- रघु० 2. मिल जाना, संगठित होना, सम्बद्ध होना, मिश्रित 13 / 3 5. उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, तोड़ना, होना, मिलाना, एक जगह रखना--अन्योन्यसंभिन्नदशां भंग करना-समयं लक्ष्मणोऽभिनत्-रघु० 15 / 94, निहतश्च स्थिति भिन्दन् दानवोऽसौ बलद्विषा-भट्टि सखीनाम् -- मा० 1133, भट्टि० 7 / 5 / 7 / 68 6. हटाना, दूर करना ---शि० 15487 | भिवकः [भिद्+क्वुन्] तलवार,---कम 1. हीरा, 2. इन्द्र 7. विघ्न डालना, रुकावट डालना - जैसा कि 1 का वज्र। 'समाधिभेदिन' में 8. बदलना, परिवर्तन करना, (न) भिदा [भिद्-अङ्+टाप्] 1. तोड़ना, फटना, फाड़ना, भिदन्ति मन्दां गतिमश्वमुख्यः–कु० 1111 या | चीरना-शि०६५ 2. वियोग 3. अन्तर 4. प्रकार, विश्वासोपगमादभिन्नगतयः शब्दं सहन्ते मृगाः / जाति, किस्म / -श० 1414 1. खिलाना, फुलाना, फैलाना भिदिः, भिदिरम् भिदुः [भिद्+इ, किरच् कु वा] इन्द्र का -सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम् - कु० 1112, नवोषसा वज्र। भिन्नमिवैकपङ्कजम्–श० 7 / 16, मेघ० 107, भिदुर (वि०) [भिद+कुरच] 1. तोडने वाला, फाडने 10. तितरबितर करना, बखेरना, उड़ा देना-भिन्नसा वाला, टुकड़े टुकड़े करने वाला 2. भरभरा, शीघ्र रङ्गयथः—श० 1133, विक्रम० 1616 11. जोड़ टूटने वाला 3. सम्मिश्रित, चितकबरा, मिला हुआ, खोलना, वियुक्त करना, पृथक् 2 करना मुद्रा० संश्लिष्ट-नीलाश्मद्युतिभिदुराम्भसोऽपरत्र-शि० 4 / 26, 3613 12. ढीला करना, विश्राम करना, घोलना १९।५८,-रः प्लक्ष वृक्ष,-रम् वज्र / ---पर्यङ्कबन्वं निबिडं बिभेद - कु०३१५९ 13. भेद | भिद्यः [भिद्+क्यप] 1. वेग से बहने वाला दरिया 2. एक For Private and Personal Use Only Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष नद का नाम-तोयदागम इवोद्धयभिद्ययो - हुआ, विघटित,-स्वर (वि.) 1. बदली ह ई आवाज भधेयसदृशं विचेष्टितम्-रघु० 1138 (दे० मल्लि.)। वाला, हकलाने वाला 2. बेसुरा,-हृदय (वि०) भिद्रम् [भिद्+रक्] वन्छ। जिसका हृदय बींध दिया गया हो.-रघु० 11 / 19 / भिन्द (वि) पालः [भिन्द्+इन् =भिन्दि पालयति--पाल भिरिटिका (स्त्री) एक प्रकार का पौधा, श्वेतगुजा, सफेद +अण्] 1. हाथ से फेंका जाने वाला छोटा भाला धुंघची। 2. गोफिया, (गोफिया या गुलेल जैसा एक उपकरण भिल्लः [भिल+लक ] एक जंगली जाति / सम... गवी जिसमें रखकर पत्थर फेंके जायें)। नील गाय, तरः लोधवृक्ष, ...-भूषणम् घुघची का भिन्न (भू० क० कृ०) [भिद्+क्त, तस्य नः] 1. टूटा पौधा। हुआ, फटा हुआ, टुकड़े टुकड़े किया हुआ, फाड़ा हुआ भिल्लोटः, - टकः [भिल्लप्रियम् उटं पत्रं यस्य ब० स०, 2. विभक्त, वियुक्त 3. पृथक्कृत, विच्छिन्न, अलगाया भिल्लोट+कन् ] लोध्रवृक्ष / हुआ 4. फैलाया हुआ, फुलाया हुआ, खुला हुआ भिषज (पुं०)[ बिभेत्यस्मात रोग: भीषक, ह्रस्वश्च ] 5. अलग, इतर (अपा० के साथ)-तस्मादयं भिन्नः 1. वैद्य, चिकित्सक -भिषजामसाध्यम् - रघु० 8 / 93 6. नानारूप विविध, 7. ढोला किया हुआ 8. संश्लिष्ट, 2. विष्णु का नाम / सम० --जितम् औषधि या दवा, मिलाया हुआ, मिश्रित 9. विचलित 10. परिवर्तित -पाशः कठवैद्य,---वरः श्रेष्ठ वैद्य / / 11. प्रचण्ड, मदोन्मत्त 12. रहित, हीन, वंचित, | भिष्मा, भिष्मिका, भिस्सटा, भिस्सिटा (स्त्री०) भुना (दे०भिद),-किसी रत्न में दोष या खोट,-नम् हुआ या तला हुआ अनाज / 1. लव, खण्ड, टुकड़ा 2. मंजरी 3. घाव, (छरे आदि भिस्सा (स्त्री०) [ भस् +-स, टाप, इत्वम् ] उबाले हुए भोंकने का) आघात 4.भिन्न राशि / समग-अञ्जनम् / चावल / बहुत सी औषधिषों को पीसकर तैयार किया गया | भी (जहो० पर: बिभेति, भीत) 1. डरना, भय खाना, सूर्मा--प्रयान्ति....."भिन्नाञ्जनवर्णतां घना:----शि० भयभीत होना-मृत्योविभेषि कि बाल, न स भीतं विम्१२॥६८ मेघ० 59, ऋतु० ३१५,-अर्थः स्पष्ट, चति 1. रावणादिभ्यती भृशम्-भट्टि० 870, शि० विशद, सुबोध,-उदरः 'दूसरी माता से उत्पन्न' 3 / 45 2. आतुर या उत्कंठित होना (आ०)-प्रेर० सौतेला भाई, करटः मदोन्मत्त हाथी (जिसके (भाययति) डराना, -कुंचिकयनं भाययति-सिद्धा. मस्तक से मद रिसता है),-कूट (वि०) (भापयते, भीषयते) डराना, त्रास देना, संत्रस्त करना नेतहीन (सेना आदि),-क्रम (वि०) क्रमहीन, -मुंडो भापयते-सिद्धा०, स्तनितेन भीषयित्वा धाराक्रमरहित,—गति (बि०) 1. पग छोड़ कर चलने हस्तः परामृशसि-मृच्छ० 5 / 28 / वाला, 2. तेज चाल चलने वाला,----गर्भ (वि०) भी (स्त्री०) [ भी+क्विप् ] भय, डर, आतंक, संत्रास, (केन्द्र में) टूटा हुआ, अव्यवस्थित,-गुणनम् भिन्न त्रास, अभीः 'निर्भय'-रघु० 15 / 8, वपुष्मान् वीतभीराशियों की गुणा,-घनः भिन्नराशि का विघात, वांग्मी दूतो राज्ञः प्रशस्यते--मनु० 7 / 64 / - वशिन् (वि०) अन्तर देखने वाला, आंशिक, | भीत (भू० क० कृ०) [भी-|-क्त] 1. संवस्त, डराया हुआ, --प्रकार (वि.) अलग प्रकार या किस्म का, आतंकित, अस्त (अपा० के साथ)-न भीतो मरणा- -भाजनम् टुट्टा बर्तन, ठीकरा,---मर्मन (वि०) दस्मि-मृच्छ० 10 / 27 2. खतरे में डाला हुआ, मर्मस्थल में घाव खाया हुआ, प्राणघातक चोट से आपद्ग्रस्त / सम०-भीत (वि०) अत्यन्त डरा आहत, मर्याद (दि०) जिसने उचित सीमाओं का हुआ। उल्लंघन कर दिया है, निरादरयुक्त,-आः, तातापवा- भीतङ्कार (वि.) [ भीतं+कृअण 1 डराने वाला। दभिन्नमर्याद–उत्तर० 5 2. असंयत, अनियंत्रित, भीतङ्कारम् (अव्य०) [भीतं+कृ-|-घा / किसी को ----हचि (वि.) अलग रुचि रखने वाला,-भिन्नरु- कायर के नाम से पुकारना। चिहि लोक......रघु०६।३०,-लिङ्गम्-वचनम् रचना | भीतिः (स्त्री०) [ भी+क्तिन् ] 1. डर, आशंका, भय, में लिंग और वचन की असंगति -दे० काव्य० 10, त्रास 2. कंपकंपी, थरथराहट / सम-नाटितकम् --वर्चस, ---वर्चस्क (वि.) मलोत्सर्ग करने वाला, भयभीत होने का नाट्य करना या हावभाव दिख... वृत्त (वि.) बरा जीवन बिताने वाला, परित्यक्त, लाना। ... बत्ति (वि.) 1. बरा जीवन बिताने वाला, भीम (वि.) [ बिभेत्यस्मात, भी अपादाने मक ] भयाकुमार्ग का अनुसरण करने वाला 2. अलग प्रकार की नक, त्रास देने वाला, भयावह, डरावना, भीषण-न भावनाएँ, रुचि या संवेग रखने वाला 3. नाना प्रकार भेजिरे भीमविषेण भीतिम् --भर्तृ० 2180, रघु० के व्यवसाय करने वाला, संहति (वि.) न जुड़ा / 1616, ३।५४,--मः 1. शिव का विशेषण 2. द्वितीय For Private and Personal Use Only Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 743 ) पाण्डव राजकूमार (यह पवन देव द्वारा कुन्ती से / भीर (ल) क (वि०) [भी+ +कन, बलकन वा] उत्पन्न हुआ था, बचपन से ही यह अपनी असाधारण 1. डरपोक, कायर, बुजदिल, साहसहीन 2. संकोची, शक्ति का प्रदर्शन करने लगा, अतः इसका नाम भीम -क: 1.रीछ 2. उल्ल 3. एक प्रकार का गन्ना,-कम् पड़ा / बहुभोजी होने के कारण इसे वृकोदर 'भेड़िये जंगल, बन / के पेट वाला' भी कहते थे। इसका अचूक शस्त्र | भीरू (ल) (स्त्री०) [ भीरु-+ऊड, पक्षे रलयोरभेदः] इसकी गदा थी। महाभारत के युद्ध में इसने महत्त्व- डरपोक स्त्री,--त्वं रक्षसा भीरु यतोऽपनीता-रघु० पूर्ण कार्य किया और युद्ध के अन्तिम दिन अपनी। 13 / 24 / अमोघ गदा से दुर्योधन की जंघा को चीर दिया। भील (ल) कः [भी+क्लुकन् ] रीछ, भालू / इसके जीवन की कुछ पहली मुख्य घटनाएँ है- हिडिब भीषण (वि.) [ भी+णिच्+ल्युट्, षुकागमः ] त्रासऔर बक राक्षस को पछाड़ना, जरासंघ को परास्त करना, कौरवों के विशेष कर दुःशासन के जनक, विकराल, डरावना, घोर, दारुण - बिभ्युबि डालेक्षणभीषणाभ्यः-शि० 3145,-- णः (साहित्य (जिसने द्रौपदी के प्रति अपमानजनक आचरण किया ) विरुद्ध भीपण प्रतिज्ञा, दुःशा __ में) 1. भयानक रस--दे० भयानक 2. शिव का नाम 3. कबुतर, कपोत,-णम् भय को उत्तेजित करने वाली सन के रक्त को पीकर प्रतिज्ञा की पूर्ति, कोई भी वस्तु। जयद्रथ को पराजित करना, राजा विराट के यहाँ रसोइये के रूप में कीचक के साथ मल्लय द्ध, तथा कुछ भीषा [ भी+-णिच् + अङ्---टाप, पुकागमः ] 1. त्रास देने या डराने की क्रिया, धमकाना 2. डराना, स देना। और कारनामें जिनमें उसने अपनी असाधारण वीरता दिखलाई। इसका नाम अपनी असीम शक्ति व साहस भीषित (वि.) [भी- णिच्+क्त, पुकागमः ] डराया के कारण लोक प्रसिद्ध हो गया)। सम... उदरी हुआ, मंत्रस्त। उमा का विशेषण,---कर्मन (वि०) भयंकर पराक्रम भीष्म (वि.) [ भी+ णिच् +मक षुकागमः ] भयावाला भग० 1115, दर्शन डरावनी शक्ल का, नक, इरावना, भीपण, कराल,-,मः (साहित्य विकराल,- नाद (वि.) डरावना शब्द करने वाला, में) 1. भयानक रस, दे० भयानक 2. राक्षस, (दः) 1. भयानक या ऊँची आवाज शि० 15:10, पिशाच, दानव, भूत-प्रेत 3. शिव का विशेपण 2. सिंह 3. उन सात वादलों में से एक जो सष्टि के 4. शन्तन का गंगा से उत्पन्न पूत्र (शंतन से गंगा प्रलय के समय प्रकट होंगे,.. पराक्रम (वि०) भयानक में आठ पुत्र हुए, आठवाँ पुत्र यही था, पहले सात पराक्रम वाला,-रथी मनुष्य के सतत्तरवें वर्ष में सातवें पुत्रों के मर जाने के कारण यह आठवाँ पुत्र ही अपने पिता की राजगद्दी का उत्तराधिकारी था। एक बार महीने की सातवीं रात (यह अत्यंत संकट का काल कहा जाता है) (सप्तसप्ततिमे वर्षे सप्तमे मासि राजा शंतनु नदी के किनारे घूम रहे थे तो उनकी दृष्टि सत्यवती नामक एक लावण्यमयी तरुणी कन्या सप्तमी, रात्रिर्भीमरथी नाम नराणामतिदुस्तरा।), पर पड़ी, वह एक मछुवे की बेटी थी। यद्यपि राजा -रूप (वि०) भयानक रूप का..--विक्रम (वि.) ढलती उमर का था फिर भी उसके मन में उसके भयानक विक्रमशील,-विक्रान्तः सिंह,... विग्रह (वि०) लिए उत्कट उत्कंठा जागरित हुई, फलतः उसने इस विशालकाय, डरावनी सूरत का,.. शासनः यम का अपने पुत्र को बातचीत करने के लिए भेजा। लड़की विशेषण, सेनः 1. द्वितीय पांडवराजकुमार 2. एक के माता पिता ने कहा कि यदि शन्तनु द्वारा हमारी प्रकार का कपूर। पुत्री के कोई पुत्र हुआ तो, राजगद्दी का उत्तराधिकारी भीमरम् (नपुं०) युद्ध, लड़ाई। शंतनु का पुत्र विद्यमान होने के कारण, उसे राजगद्दी भीमा [ भीम+टाप ] 1. दुर्गा का विशेषण 2. एक प्रकार न मिल सकेगी। परन्तु शंतनु के पुत्र ने अपने पिता __का गंधद्रव्य, रोचना 3. हंटर / को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने भीषण प्रतिज्ञा भोर (वि.) (स्त्री० रु, रू) [ भी+ ] 1. डरपोक, की कि मैं कभी राजगद्दी पर नहीं बैठेगा, और न कायर, भयपुक्त,-क्षांत्या भीरु:--हि० 2 / 26 2. डरा कभी विवाह करूँगा जिससे कि किसी समय भी किसी हआ (वहधा समास में) पाप, अधर्म,° प्रतिज्ञाभंग पुत्र का पिता न बन सकं अतः यदि आपकी पुत्री से आदि,--ह: 1. गीदड़ 2. व्याघ्र, रू (नपुं०) चाँदी, मेरे पिता का कोई पुत्र होगा तो निश्चित रूप से वही स्त्री० 1. डरपोक 12. बकरी 3. छाया 4. कान- राजगद्दी का अधिकारी होगा। यह भीषण प्रतिज्ञा खजूरा / सम० चेतस् (पुं०) हरिण, - रन्ध्रः चूल्हा, शीघ्र ही लोगों में विदित हो गई और तब से लेकर भट्टी,-सत्त्व (वि.) कायर, डरा हुआ,--हृदयः उसका नाम भीष्म पड़ गया। वह आजीवन अविहरिण। बाहित रहा, और अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने For Private and Personal Use Only Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 744 ) सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य को राजगद्दी पर बिठाया भग० 15, 2. उपभोग करना, प्रयोग करना, तथा काशिराज की दो कन्याओं के साथ उसका / (सम्पत्ति, भूमि आदि को अधिकार में करना-विक्रम विवाह कराया, एवं अपने पुत्र तथा पौत्रों (कौरव 331, मनु० 8 / 146, याज्ञ० 2 / 24 3. शारीरिक पांडवों) का अभिभावक बना रहा। महाभारत के उपभोग करना (आ०) सदयं बुभुजे महाभुजः-रघु० युद्ध में वह कौरवों की ओर से लड़ा, परंतु शिखंडी 8 / 7, 4 / 7, 1541, 1814, सुरूपं वा कुरूपं वा पुमानिकी सहायता से अर्जुन ने युद्ध में भीष्म को घायल त्येव भुञ्जते-मन०९।१४, 4. हुकूमत करना, शासन कर दिया, तब उसे 'शरशय्या पर रक्खा गया। करना, प्ररक्षा करना, रखवाली करना (पर०)... राज्य परन्तु अपने पिता से इच्छामृत्यु का वरदान पाने के न्यासमिवाभुनक-रघु०१२।१८, एकः कृत्स्ना(धरित्री) कारण वह तब तक प्रतीक्षा करता रहा जब तक कि नगरपरिघप्रांशुबाहु नक्ति०--श० 2114, 5. भोगना, उत्तरायण में न प्रविष्ट हो, जब सूर्य ने वसन्त विषुव सहन करना, अनुभव करना-वृद्धो नरो दुःखशतानि को पार किया तब कहीं उसने अपने प्राण त्यागे / भुडवते-सिद्धा. 6. बिताना, (समय) यापन करना वह अपने संयम, बुद्धिमत्ता, संकल्प की दृढ़ता तथा --प्रेर० (भोजयति-ते) खिलाना, भोजन कराना, ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति के कारण अत्यंत इच्छा (बुभुक्षति-ते) खाने की इच्छा करना आदि / प्रसिद्ध हो गया)। सम-जननी गंगा का विशेषण, अनु--उपभोग करना, (बरे या भले का) अनुभव -पञ्चकम् कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा करना, (बुरे फल) भुगताना--मेघमुक्तविशदां सतक के पांच दिन (यह पाँच दिन भीष्म के लिए चन्द्रिकाम् (अन्वभुंक्त)-रघु० 19 // 39, कु०७५, पावन माने जाते हैं)। ---सूः (स्त्री०) गंगा नदी उप---, 1. मजा लेना, चखना--तपसामुपभुजाना: का विशेषण। फलानि --कु० 6 / 10, 2. शारीरिक रूप से मजे लेना भीष्मक: [भीष्म+कन्] 1. शन्तनु का गंगा से उत्पन्न (यथा-स्त्रीसंभोग) 3. खाना या पीना-अोपपुत्र 2. विदर्भ के राजा का नाम, जिसकी पुत्री भुक्तेन बिसेन --कु० 3 / 37, पयः पुत्रोपभुंश्व-रघु० रुक्मिणो को कृष्ण उठा लाया था। 2 / 65, 1467, भट्टि० 8 / 40, 4. भोगना, सहन भुक्त (भू. क० कृ०) [भुज्+क्त] 1. खाया हुआ 2. उप- करना, झेलना-मनु० 1218, 5. अधिकार में करना भुक्त, प्रयुक्त 3. भोगा, अनुभव किया 4. अधिकृत रखना, परि---1. खाना 2. उपयोग करना, आनन्द किया, (विधि में) अधिकार में लिया-दे० भुज, लेना-न खल च परिभोक्तुं नैव शक्नोमि हातुम-श० ---क्तम् 1. उपभोग करने या खाने की क्रिया 2. जो 5 / 19 कि० 5 / 5, 8157, सम्-1. खाना 2. उपखाया जाय, आहार 3. वह स्थान जहाँ किसी ने भोग करना 3. शारीरिक रूप से मजे लेना / खाया है। सम०-उच्छिष्टम,---शेषः,- समुज्झितम् भुज् (वि.) [भुज+क्विप्] (समास के अन्त में) खाने किये हए भोजन का अवशिष्ट, जठन, उच्छिष्ट अंश, वाला, मजे लेने वाला, भोगने वाला, राज्य करने --भोग (वि.) 1. जिसने कुछ भोगा है, या आनन्द वाला, शासन करने वाला, स्वधाभुज, हुतभुज, पाप उठाया है, उपभोक्ता 2. जो प्रथक्त किया गया है, क्षिति° मही° आदि, (स्त्री०) 1. उपभोग 2. लाभ, उपभुक्त, नियुक्त,--सुप्त (वि०) भोजन करके | हित। सोया हुआ। भुजः [भुज+क] 1. भुजा-ज्ञास्यसि कियदभजो मे रक्षति भुक्तिः (स्त्री०) [भुज+क्तिन] 1. खाना, उपभोग करना मौर्वीकिणाङ्क इति--श० 1113 रघु० 1134, 2074, 2. (विधि में) अधिकृत सामग्री, सुखोपभोग --पंच० 2 / 5, 2. हाथ 3. हाथी का संड 4. झुकाव, वक्र, 3194, याज्ञ० 2 / 22 3. खाना 4. ग्रह की दैनिक मोड़ 5. गणितविषयक आकृति का एक पाव, यथा गति / सम०-प्रदः एक प्रकार का पौधा, मूंग,-वजित विभुज त्रिकोण' 6. त्रिकोण आधार / सम० (वि०) जिसके उपभोग करने की अनुमति नहीं है। - --अन्तरम्,–अन्तरालम् हृदय, छाती---रघु० 3 / 54 भुग्न (भू० क० कृ०) [भुज+क्त, तस्य नः] 1. झुका 19 / 32, मालवि० ५।१०,--आपोड: भुजपाश में हुआ, विनत, प्रवण-वायुभुग्न, रुजाभुग्न आदि जकड़ना, बाहों में लिपटाना, कोटरः बगल,-ज्या 2. टेढ़ा, वक्र,-भट्टि० 1138, विक्रम० 4132 3. टूटा आधार की लम्बरेखा, दण्डः-बाहुदंड, दलः,-लम् हुआ (भग्न का अर्थ)। हाथ,बन्धनम् लिपटना, आलिंगन करना-घटय भुज् i (तुदा० पर० भुजति, भुग्न) 1. झुकाना 2. मोड़ना, भुजबन्धनम्--गीत०१०, कु० ३।३९,-बलम्-वीर्यम् टेढ़ा करना। ii (रुधा० उभ० भुनक्ति, भुक्ते) भुजा की सामर्थ्य, पुट्ठों की ताकत,-मध्यम् छाती 1. खाना, निगलना, खा पी जाना (आ०)-शयनस्थो -----रघु० 1373, मूलम् कंधा, शिखरम्-शिरस् न भुंजीत-मनु० 4174, 31146, (नपुं०) कंधा,-सूत्रम् आधार लंबरेखा। For Private and Personal Use Only Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुजगः [ भुज् भक्षणे क, भुजः कुटिलीभवन् सन् गच्छति / भुवन्यु [ भू+कन्युच्] 1. स्वामी, प्रभु 2. सूर्य 3. अग्नि गम् +ड साँप, सर्प -- भुजगाश्लेषसंवीतजानो:-मृच्छ० 4. चन्द्रमा। 111, मेघ० 60 / सम.----अन्तकः, अशन:-आयो- भुवर, भुवस् (अव्य०) [ भू०+असुन् ] 1. अन्तरिक्ष, जिन् (पुं०),-दारणः,-भोजिन् 1. गरुड़ आकाश (तीनों लोकों में से दूसरा, भूलोक से ठीक 2. मोर 3. और नेवले का विशेषण,-ईश्वर:---राजः ऊपर) 2. रहस्यमय शब्द, तीन व्याहृतियों में से एक शेष के विशेषण। (भूर्भुवः स्वः)। भुजङगः [भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च] साँप, | भुविस् (पुं०) [ भू-+ इसिन्, कित् ] समुद्र / सर्प---भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारयेत्-भर्तृ० भुशुण्डिः,जी (स्त्री०) एक प्रकार का शस्त्र या अस्त्र / 214 2. उपपति, रसिया या सौन्दर्यप्रेमी-अभूमिरेषा | मां (भ्वा० पर०-(आ० विरल)-भवति, भूत 1. होना, भुजङ्गभनिभाषितानाम् -का० 196 3. पति, प्रभु घटित होना-कथमयं भवेन्नाम, अस्याः किमभवत् 4. लौंडा, इल्लती 5. राजा का लम्पट मित्र --. मा० 9 / 29 'उसके भाग्य का क्या हुआ'- उत्तर० 6. आश्लेषा नक्षत्र 7. आठ की संख्या / सम०-- इन्द्रः 3327, यद्भावि तद्भवतु,- उत्तर० 3, 'होने दो जो नागराज शेषनाग का विशेषण,--शि: 1. वासुकि का कुछ होता है इसी प्रकार दुःखितो भवति, हृष्टो विशेषण 2. शेषनाग का विशेषण 3. पतञ्जलि का भवति आदि 2. उत्पन्न होना-यदपत्यं भवेदस्याम् विशेषण 4. पिंगल मनि का विशेषण-कन्या साँप की --मनु० 9 / 127, भाग्यक्रमेण हि धनानि भवन्ति तरुणी कन्या, भम् अश्लेषा नक्षत्र, भुज् (तुं०) यान्ति मृच्छ० 1113 3. फूटना, निकालना, उदय 1. गरुड का विशेषण 2. मोर, लता पान की बेल, होना - क्रोधाद्भवति संमोहः-भग० 2163, 14 / 17 तांबूली,--हन (पुं०) गरुड का विशेषण दे० भुजगां- 4. घटित होना, होना, उपस्थित होना-नाततायिवधे तक आदि। दोषो हन्तुर्भवति कश्चन- मनु० 8 / 351, यदि संशयो भुजङ्गमः [ भुजं+गम्+खच, मुम् ] 1. साँप 2. राहु का भवेत् --आदि 5. जीवित रहना, विद्यमान रहना विशेषण 3, आठ की संख्या। - अभूदभूतपूर्वः राजा चिंतामणिर्नाम- वास०, अभूभुजा [ भुज-+-टाप् ] 1. बाहु, हाथ- निहितभुजा लतयैक- नृपो विबुधसखः परन्तपः-भट्टि० 1 / 1 6. जीवित योपकण्ठम्-शि० 7171 2. हाथ 3. साँप की कुंडली रहना, जिंदा रहना, साँस लेना- त्वमिदानीं न 4. चक्कर, घेरा / सम-कण्टः अंगुली का नाखन, भविष्यसि-श० 6, आ: चारुदत्तहतक अयं न भवसि -वला हाथ, मध्यः 1. कोहनी 2. छाती,-मलम कन्धा / ---मृच्छ० 4, दुरात्मन् प्रहर नन्वयं न भवसि- मा० भुजिष्यः [ भुज+किष्यन् ] 1. दास, नौकर 2. साथी 5 (तुम मर चुके हो, अब तुम्हें सांस नहीं आवेगा) 3. पोहंची, सूत्र जो कलाई पर पहना जाय 4. रोग, भग० 11132 7. किसी भी दशा या अवस्था में ---ष्या 1. परिचारिका, सेविका, दासी-अथांगदा- रहना, अच्छी या बुरी तरह बीतना- भवान् स्थले श्लिष्टभुजं भुजिष्या--रघु० 6153, मृच्छ० 418, कथं भविष्यति- पंच० 2 8. ठहरना, डटे रहना, याज्ञ० 2 / 90 2. वारांगना, वेश्या / रहना उत्तर० 3237 1. सेवा करना, काम आना भुण्ड (म्वा० आ० भण्डते) 1. सहारा देना, स्थापित -इदं पादोदकं भविष्यति- श०१ 10. संभव होना ___ रखना 2. चुनना, छांटना। (इस अर्थ में प्रायः लट् लकार)-भवति भवान् याजभुर्भुरिका, भुर्भुरी (स्त्री०) एक प्रकार की मिठाई। यिष्यति सिद्धा० 11. नेतृत्व करना, संचालन करना, भुवनम् [ भवत्यत्र, भू-आधारादी-क्युन् ] 1. लोक प्रकाशित करना (संप्र. के साथ)-वाताय कपिला (लोकों के नाम या तो तीन है- त्रिभुवनम् - या विद्युत पीता भवति सस्याय दुर्भिक्षाय सिता भवेत् चौदह--इह हि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुजते --महाभा०, सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव-कु० 123 ----भर्तृ० 3 / 23 दे० 'लोक' भी, भुवनालोकनप्रीतिः संस्मृतिर्भव भवत्यभवाय कि० 18 / 27, न तस्या ---कु० 2145, भवनाविदितम् - मेघ०६ 2. पृथ्वी रुचये बभूव-रघु० 634 12. साथ देना, सहायता 3. स्वर्ग 4. प्राणी, जीवधारी जन्तु 5. मनुष्य, मानव करना, देवा अर्जुनतोऽभवन् 13. संबन्ध रखना, पास 6. पानी 7. चौदह की संख्या। सम... ईशः पृथ्वी रखना-तस्य ह शतं जाया बभूवुः-ऐत० प्रा०, मनु० का स्वामी, राजा, ईश्वरः 1. राजा 2. शिव का 6 / 39 14. व्यस्त होना, व्याप्त होना (अधि० के नाम,-ओकस् (पुं०) देवता, त्रयम् त्रिलोकी साथ)-चरणक्षालने कृष्णो ब्राह्मणानां स्वयं ह्यभूत (भूलोक, अन्तरिक्ष और धुलोक; या स्वर्गलोक भूलोक --- महा0 15. पूर्ववर्ती संज्ञा या विशेषण से आगे और पाताल लोक),- पावनी गंगा का विशेषण, 'भू' धातु का अर्थ है 'वह होना जो पहले नहीं था' - * शासिन् (पुं०) राजा, शासक / या केवल मात्र 'होना'---श्वेतीभू सफेद होना, कृष्णीभ भविष्यातरात्मन् प्रहर नहीं आवेगा। For Private and Personal Use Only Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काला होना, पयोधरीभू स्तन का काम देना, इसी | प्रकार क्षपणीभू साधु होना, प्रणिधी गुप्तचर का काम करना, आोभू पिघलना, भस्मीभू राख बन जाना. विषयीभू बिषय बनाना, इसी प्रकार एक मतीभू, तरुणीभू आदि विशे०, 'भू' धातु का अर्थ संबद्ध क्रिया विशेषण के अनुसार नाना प्रकार से परिवर्तित होता रहता है, उदा० अग्रेभू आगे रहना, नेतृत्व करना अंतर्भु लीन होना, सम्मिलित होना -ओजस्यन्तर्भवन्त्यन्ये--काव्य०८, अन्यथाभू और तरह होना, बदलना --न मे वचनमन्यथाभवितुमर्हति -- श० 4, आविर्भू प्रकट होना, उदय होना, स्पष्ट होना दे० आविस्, तिरोभू ओझल होना, दोषाभू संध्या होना, सायंकाल होना, पुनर्भ फिर विवाह करना, पुरोभू अग्रसर होना, आगे खड़े होना प्रादुर्भु उदय होना, दिखाई देना, प्रकट होना, मिध्याभ झूठ निकलना, वृथाभू व्यर्थ होना आदि) प्रेर० (भावयति-ते) 1. उत्पन्न करना, अस्तित्व में लाना, सत्ता बनाना 2. कारण बनना, पैदा करना, जन्म देना 3. प्रकट करना, प्रदर्शन करना, निदर्शन करना 4. पालना, परवरिश करना,सहारा देना,संधारण करना, जान डालना-पुनः सृजति वर्षाणि भगवान् भावयन् प्रजा:-महा०, देवान् भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः, परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ - भग 3 / 11, भद्दि० 16/27 5. सोचना, विमर्श करना, विचारना, खयाल करना, कल्पना करना 6. देखना समझना, मानना- अर्थमनर्थ भावय नित्यम् --मोह. 27. सिद्ध करना, सावित करना, पर्वका याज्ञ० 2 // 11 8. पवित्र करना 9. हासिल करना, प्राप्त करना 10. मिलाना, मिश्रण, तैयार करना 11. परिवर्तन करना, रूपान्तरित करना 12. डुबोना,-सराबोर करना / इच्छा-बुभूषति, होने की या बनने की इच्छा करना, अति, अतिरिक्त होना आगे बढ़ जाना, अधिक हो जाना, अनु--,1. मजे लेना, अनुभव करना महसूस करना, भोगना (बरा या भला)-असक्तः सुखमन्वभूत-रघु० 221, कु० 2 / 45 रघु० 7 / 28, आत्मकृतानां हि दोषाणां फलमनुभवितव्यमात्मनैव -का० 121, श० 5 / 7 2. प्रत्यक्ष करना, बोध होना, समझना 3. जांच करना, परीक्षण करना,-प्रेर० -- आनन्द मनवाना, अनुभव या महसूस करवाना -आमोदो न हि कस्तूर्याः शपथेनानुभाव्यते--भामि० 11120, अभि-, 1. विजय प्राप्त करना, दमन करना, | परास्त करना, आगे बढ़ जाना, उत्तम होना-भग० 1939, कि० 10 / 23, रघु० 8 / 36 2. आक्रमण करना, हमला करना विपदोऽभिवत्यविक्रमम् -कि० 214 अभ्यभावि भरताग्रजस्तया-रघु० 1116 ] 3. नीचा दिखाना, अपमान करना 4. प्रभुत्व रखना, प्रभाव रखना, व्याप्त होना, उद-उदय होना, उगना .... उद्भूतध्वनिः, प्रेर० पैदा करना, सृजन करना, जन्म देना .. रघु० 2 / 62, परा-", 1. हराना, परास्त करना, जीत लेना 2. चोट पहुंचाना, क्षति पहुँचाना, सताना, परि-, 1. हराना, दमन करना, जीतना, हावी होना (अतः) आगे बढ़ जाना, पछाड़ देना .... लग्नद्विरेफ परिभूय पद्मम् --मुद्रा० 7 / 16, रघु० 10 / 35 2. तुच्छ समझना, उपेक्षा करना, घृणा करना, अनादर करना, अपमान करना, मा मां महात्मन् परिभूः भद्दि० 122, 4 / 37 3. क्षति पहुँचाना, नष्ट करना, बर्बाद करना 4. कष्ट पहँचाना, दुःख देना 5. नीचा दिखाना, लज्जित करना, प्र --, 1. उदय होना, निकलना, फटना, जन्म लेना, उपजना, पैदा होना (अपा०के साथ)-लोभात्क्रोधः प्रभवति ----हि० 1127, स्वायं भवान्मरीचेर्यः प्रवभूव प्रजापतिः --श० 719, पुरुषः प्रवभवाग्नेविस्मयेन सहत्विजाम ----- रघु० 1050, भग०८१८ 2. प्रकट होना, दिखाई देना -हि० 4184 3. गुणा करना, बढ़ाना, दे० प्रभूत 4. मजबूत होना, शक्तिशाली होना, छा जाना, प्रभुत्व होना, बल दिखाना प्रभवति हि महिम्ना स्वेन योगीश्वरीयं-- मा० 9 / 52, प्रभवति भगवान् विधि: --का० 5, 5. योग्य होना, समान होना, शक्ति रखना ('तुमुन्नन्त के साथ)-कुसुमान्यपि गात्रसङ्गमात् प्रभवत्यायुरपोहितुं यदि-रघु०८।४४, श०६।३०, विक्रम० 119, उत्तर० 2 / 4 6. नियंत्रण रखना, प्रभाव रखना, छा जाना, स्वामी होना (बहुधा संबं० के, कभी 2 संप्र० या अधिक के साथ)--यदि प्रभविष्याम्यात्मनः -~-श० 1, उत्तर० 1, प्रभवति निजस्य कन्यकाजनस्य महाराजः-मा० 4, तत्प्रभवति अनुशासने देवी-वेणी० 2 7. जोड़ा का होना--प्रभवति मल्लो मल्लाय --महाभा० 8. पर्याप्त होना, यथेष्ट होना-कु०६३५९ 9. रक्खा जाना (अधि० के साथ)-गुरुः प्रहर्षः प्रबभूव नात्मनि-रघु० 3 / 17 10. उपयोगी होना 11. याचना करना, अनुनय-विनय करना, वि-(प्रेर०) 1. सोचना, विमर्श करना, विचारना 2. जानकार होना, जानना, प्रत्यक्ष करना, देखना-श० 4 3. फसला करना, निश्चय करना, स्पष्ट करना, सम्-, 1. उदय होना, पैदा होना, उपजना, फूटना कथमपि भुवनेऽस्मिातादशाः संभवन्ति-मा० 29, धर्भसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे -- भग० 418, कि० 5 / 22, भट्टि. 6 / 138, मनु० 8 / 155 2. होना, बनना, विद्यमान होना 3. घटित होना, घटना होना 4. संभव होना, 5. यथेष्ट होना, सक्षम होना ('तुमन्नन्त' के साथ) --न यन्नियन्तुं समभावि भानुना-शि० 1127 For Private and Personal Use Only Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 747 ) 6. मिलना, एक होना, सम्मिलित होना--संभयाम्भो- (रः) शिव का विशेषण,--छाया, छायम् 1. भू छाया, धिमभ्येति महानद्या नगापगा-शि०२।१००, संभूयेव (इसे ही ग्रामीण 'राहु' कहते हैं) 2. अंधकार-जन्तुः सुखानि चेतसि - मा० 5 / 9 7. संगत होना 8. पकड़ने 1. एक जमीन का कीड़ा 2. हाथी,-जम्बः,-गेहूँ के योग्य, (प्रेर०) 1. पैदा करना, उत्पन्न करना --तलम् धरातल, पृथ्वीतल,-तृणः (भूस्तृणः) एक 2. कल्पना करना, सोचना, उद्भावन करना, चिन्तन प्रकार का सुगंधयुक्त घास,-बारः सूअर,-देवः, सुरः करना 3. अनुमान लगाना, अटकल लगाना-श०२, ब्राह्मण,- धनः राजा धरः 1. पहाड़ 2. शिव 4. सोचना, खयाल करना 5. सम्मान करना, आदर का विशेषण 3. कृष्ण का विशेषण 4. 'सात' करना, आदर प्रदर्शित करना-- प्राप्तोऽसि संभा- की संख्या °ईश्वरः °राजः हिमालय पहाड़ का वयितुं बनान्माम्-रघु० 5 / 11, 78 6. सम्मान विशेषण °जः वृक्ष,-नागः एक प्रकार का धरती का करना, उपहार देना, बर्ताव करना~-कु० 3 / 37 कीड़ा, केंचुवा,-नेतु (पुं०) प्रभु, शासक, राजा,-पः 7. मढ़ना, थोपना--मृच्छ० 1136 / प्रभु, शासक, राजा,-पतिः 1. राजा, 2. शिव का ii (भ्वा० उभ० भवति - ते) हासिल करना, प्राप्त विशेषण 3. इन्द्र का विशेषण,--पदः वृक्ष,-पदी एक करना। विशिष्ट प्रकार की चमेली,--परिषिः पृथ्वी का घेरा, iii (चुरा० आ० भावयते) प्राप्त करना, उपलब्ध -~-पाल: राजा, प्रभु-पालनम् प्रभुता आधिपत्य करना। -पुत्रः,--सुतः मंगलग्रह,-पुत्री,-सुता 'धरती की iv (चुरा० उभ० -- भावयति-ते) 1. सोचना, बेटी' सीता का विशेषण,-प्रकंपः भूचाल,-प्रदानम् विमर्श करना 2. मिलाना, मिश्रित करना भूदान,-बिम्बः,-बम् भूलोक, भूमंडल,-भर्त (पुं०) 3. पवित्र होना ('भू' के प्रेर० रूप से संबद्ध)। राजा,प्रभु,-भागः क्षेत्र, स्थान, जगह, - भुज् (पुं०) भू (वि०) [भू+क्विप्] (समास के अन्त में) होने राजा,-भृत् (पुं०) पहाड़-दाता मे भूभृतां नाथः वाला, विद्यमान, बनने वाला, फूटने वाला, उगने प्रमाणीक्रियतामिति-कु० 61, रघु० 17178 वाला, उपजने वाला, चित्तभू, आत्मभू, कमलभू, 2. राजा, प्रभु-निष्प्रभश्च रिपुरास भूभृताम् -- रघु० वित्तभू आदि--(पुं०) विष्णु का विशेषण / 1181 3. विष्णु का विशेषण-मण्डलम् पृथ्वी, भूः (स्त्री०) [भू+-क्विप] 1. पृथ्वी (विप० अन्तरिक्ष भूमण्डल, धरती, ... रह (पुं०),- कहः वृक्ष, - लोकः या स्वर्ग-दिवं मरुत्वानिव भोक्ष्यते भवम्-रघु०३।४, (भूर्लोकः) भूमण्डल, - वलयम् भूमण्डल,-- बल्लभः 1814, मेघ० 18, मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः राजा, प्रभु, वृत्तम् भूमध्यरेखा,-शक्रः 'धरती पर 2. विश्व, भूमण्डल 3. भूमि, फर्श-प्रासादोपरिभूमयः इन्द्र, राजा, प्रभु,-शयः विष्णु का विशेषण,-श्रवस् --मुद्रा० 3, मणिमयभुवः (प्रासादाः)-मेघ० 64 (पुं०) बमी, दीमक का मिट्टी का टीला,-सुरः 4. भूमि, भूसंपत्ति 5. जगह, स्थान, क्षेत्र, भूखण्ड ब्राह्मण, --- स्पृश् (पुं०) 1. मनुष्य 2. मानवजाति -काननभुवि, उपवनभुवि आदि 6. सामग्री, विषय 3. वैश्य, स्वर्गः मेरु पहाड़ का विशेषण,-स्वामिन् वस्तु 7. 'एक' की संख्या की प्रतीकारक अभिव्यक्ति (पुं०) भूमिधर, भूमि का स्वामी। 8. ज्यामिति की आकृति की आधाररेखा 9. (धरती भूकः, ---कम् [भू+कक] 1. विवर, रन्ध्र, गर्त 2. झरना का प्रतिनिधान करने वाली) सबसे पहली (तीनों में) 3. काल / व्याहृति या रहस्यमूलक अक्षर 'ॐ' जिसका उच्चारण | भूकलः [भुवि कलयति कल्+अच्] अडियल घोड़ा। प्रतिदिन संध्या के समय मंत्रपाठ करते हए किया | भूत (भू० क० कृ०) [भू+क्त] 1. जो हो चुका हो, होने जाता है। सम०-उत्तमम् सोना, कदम्बः कदम्ब वाला, वर्तमान 2. उत्पन्न, निर्मित 3. वस्तुतः होने वृक्ष का भेद,-कम्पः भूचाल, कर्णः धरती का व्यास, वाला, जो वस्तुतः घट चुका हो, यथार्थ 4. ठीक, -कश्यपः कृष्ण के पिता वासुदेव का विशेषण,-काकः उचित, सही 5. अतीत, गया हुआ 6. उपलब्ध 1. एक प्रकार का बगुला 2. पनमर्गी 3. एक प्रकार 7. मिश्रित या मिलाया हुआ 8. सदश, समान दे० का कबूतर, केशः बट-वृक्ष, केशा राक्षसी, पिशाचिनी, 'भू',—तः 1. पुत्र, बच्चा 2. शिव का विशेषण 5. क्षित् (पुं०) सूअर,-गरम् विशेष प्रकार का जहर, 3. चान्द्रमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दिन,-तम् - गर्भः भवभूति का विशेषण, -गहम्,-गेहम् भूमि 1. प्राणी (मानव, दिव्य, या अचेतन)--कु० 4 / 45, के नीचे का गोदाम, तहखाना, गोल: भूमिगोल, पंच० 2 / 87 2. जीवित प्राणी, जन्तु, जीवधारी भूमंडल-भूगोलमुद्विभ्रते -गीत० 1, विद्या भूगोल, ...---भूतेषु किं च करुणां बहुली करोति ---भामि० घनः काया, शरोर - चक्रम् विखुबद्रेखा, भूमध्यरेखा 11122, उत्तर० 4 / 6 3. प्रेत, भूत, पिशाच, दानव ..चर (वि०) भूमि पर घूमने वाला या रहने वाला 4. तत्त्व (वे पांच है अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, For Private and Personal Use Only Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 748 ) वायु और आकाश)-तं वेधा विदधे नूनं महाभूत-। तुलसी, पूर्णिमा आश्विन मास का पूर्णमासी,-पूर्व सम्माधिना- रघु० 229 5. वास्तविक घटना, तथ्य, (वि०) पहले से विद्यमान, पहला - भूतपूर्वखरालयम् वास्तविकता 6. अतीत, भूतकाल 7. संसार 8. कुशल- -उत्तर० 2 / 17, -पूर्वम् (अव्य०) पहले,-प्रकृतिः क्षेम, कल्याण 9. पाँच की संख्या के लिए प्रतीकात्मक (स्त्री०) सब प्राणियों का मूल,-बलि:=भूतयज्ञ अभिव्यक्ति / सम-- अनुकम्पा सब प्राणियों के लिए दे०,--ब्रह्मन् (पुं०) अधम ब्राह्मण जो अपना निर्वाह करुणा-भूतानुकम्पा तव चेत्-रधु० 2 / 48, - अन्तकः मूर्ति पर चढ़ावे से करता है दे० देवल,-भर्त मृत्य का देवता यम, अर्थः तथ्य, वास्तविक तथ्य, (पुं०) शिव का विशेषण, - भावनः ब्रह्मा का विशेषण यथार्थ स्थिति, सचाई, वास्तविकता–आर्य कथयामि 2. विष्णु का विशेषण,--भाषा -भाषित पिशाचों ते भूतार्थम् श० 1, भूतार्थशोभाह्रियमाणनेत्रा:-कु० की भाषा,--महेश्वरः शिव का विशेषण,-यशः सब 7:13, कः श्रद्धास्थति भूताथं सर्वो मां तुलयिष्यति प्राणियों की बलि या आहुति देना, दैनिक पाँच यज्ञों में --- मृच्छ० 3 / 24, कथनम्, ध्याहृतिः (स्त्री०) से एक बलिवैश्वदेव, -योनिः उत्पन्न प्राणियों का तथ्यवर्णन-भूतार्थव्याहुतिः सा हि न स्तुतिः परमेष्ठिनः मूलस्रोत, राजः शिव का विशेषण,--वर्गः भत-प्रेतों ....रघु० १०१३३,--आत्मक (वि.) तत्त्वों से युक्त / का समुदाय, -- वासः बहेड़े का वृक्ष,-वाहनः शिव या तत्त्वों से बना हुआ,--आत्मन् (पुं०) 1. जीवात्मा का विशेषण,-विक्रिया 1. अपस्मार, मिरगी 2. भूत (विप० परमात्मा), आत्मा 2. ब्रह्मा का विशेषण या पिचाच की सवारी,-विज्ञानम्,-विद्या पिशाच 3. शिव का विशेषण 4. मूलतत्त्व 5. शरीर 6. युद्ध, विज्ञान,-वृक्षः बिभीतक वृक्ष, बहेड़े का पेड़, .. संसारः संघर्ष,-आदिः 1. परमात्मा 2. (सांख्य० में) अहंकार मर्त्यलोक, संचारः भूत पिशाच का आवेश,-संप्लव: का विशेषण,- आर्त (वि०) प्रेताविष्ट,-आवासः विश्व का जलप्रलय, या विनाश,-सर्गः संसार की 1. शरीर 2. शिव का विशेषण 3. विष्णु का विशेषण, सृष्टि, उत्पन्न प्राणियों का समुदाय, सूक्ष्मम् सूक्ष्म-आविष्ट (वि०) भूता प्रेतादि से प्रभावित, तत्त्व,-स्थानम् 1. जीवधारी प्राणियों का आवास --आवेशः भूत या प्रेत का किसी पर सवार होना, 2. पिशाचों का वासस्थान, -- हत्या जीवधारी प्राणियों -इज्यम्, इज्या भूतों को आहुति देना, - इष्टा की हत्या / कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, ईशः 1. ब्रह्म का विशेषण | भूतमय (वि.) [भूत+मयट् ] 1. सब प्राणियों समेत 2. विष्णु का विशेषण 3. शिव का विशेषण -- भतेशस्य / 2. उत्पन्न प्राणियों या मूलतत्त्वों से निर्मित / भुजङ्गवल्लिवलयस्रङ्नद्धजूटाजटाः - मा० 12, भूतिः (स्त्री०) [भू+क्तिन्] 1. होना, अस्तित्व 2. जन्म, --ईश्वरः शिव का विशेषण--रघु० 2 / 46, ...उन्मावः उत्पत्ति 3. कुशल-क्षेय, कल्याण, आनन्द, समृद्धि भत प्रेतादि के चढ़ने से उत्पन्न पागलपन,---उपसृष्ट, -प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् - रघु० --उपहत (वि.)पिशाच से पीडित,- ओवनः चावलों 1 / 18, नरपतिकुलभूत्यै -- 2074, स वोऽस्तु भूत्यै की थाली,--कर्तृ - कृत् (पुं०) ब्रह्म का विशेषण, भगवान मुकुन्दः-विक्रमांक० 22 4. सफलता, --काल: 1. बीता हुआ समय (व्या० में) अतीत या अच्छा भाग्य 5. धन-दौलत, सौभाग्य-विपत्प्रतोकारभूतकाल,--केशी तुलसी,-क्रान्तिः (स्त्री०) भूत-प्रेत परेण मंगलं निषेव्यते भूतिसमुत्सुकेन वा - कु० 576 की सवारी, ---गणः उत्पन्न प्राणियों का समुदाय 6. गौरव, महिमा, विभूति 7. राख ---भूतभूतिरहीन2. भतप्रेत या पिशाचों का समूह - भग० 1814, भोगभाक्-शि० 16 / 71 (यहां 'भूति' शब्द का ..... ग्रस्त (वि.) जिसपर भूतप्रेत सवार हो गया हो, अर्थ धन' भी है), स्फुटोपमं भूतिसितेन शंभुना-१४ -ग्रामः 1. जीवित प्राणियों का समूह, समस्त जीव, 8. रंगीन धारियों से हाथी का शृंगार करना भक्तिसृष्टि---उत्तर०७, भग०८१९ 2. भूतप्रेतों का समूह च्छेदैरिव विरचितां भूतिमले गजस्य -- मेघ० 19 3. शरीर, न1. ऊँट 2. लहसुन, (घ्नी) तुलसी 1. तपस्या या अभिचार के अनुष्ठान से प्राप्य अति--चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी, मानव शक्ति 10. तला हुआ मांस 11. हाथियों का मद, ----चारिन् (पुं०) शिव का विशेषण,---जयः तत्वों के --तिः 1. शिव का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण ऊपर विजय,--दया सब प्राणियों के प्रति करुणा, 3. पितृगण का विशेषण / सम०–कर्मन् (नपुं०) प्राणिमात्र पर दया,-धरा, ---धात्री.--धारिणी पृथ्वी, कोई भी शुभ कृत्य या उत्सव,- काम (वि.) समृद्धि ---नाथ: शिव का विशेषण,-नायिका दुर्गा का। का इच्छुक (मः) 1. राज्यमन्त्री 2. बृहस्पति का विशेषण,-नाशन: 1. भिलावें का पौधा 2. सरसों विशेषण, काल: शुभ या सुखद समय, कोल: 3. कालीमिर्च,-निचयः शरीर,-पतिः 1. शिवका विशे- 1. छिद्र, गर्त 1. खाई 3. भूगर्भगृह, तहखाना,-कृत् षण-कु० 3 / 43, 74 2. अग्नि का विशेषण 3. कालो / (पुं०) शिव का विशेषण,-गर्भः भवभूति का विशे For Private and Personal Use Only Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 749 ) षण,-दः शिव का विशेषण,-निधानम् धनिष्ठा / -शय्या भूमि पर सोना,--संभवः-सुतः 1. मंगलग्रह नक्षत्र,----भूषणः शिव का विशेषण,--वाहनः शिव का | 2. नरकासुर का विशेषण, (-वा-ता) सीता का * विशेषण / विशेषण,-संनिवेश: देश का सामान्य दर्शन,-स्पृश भूतिकम् [ भूति-+ कन् ] 1. कपूर 2. चन्दन की लकड़ी (पुं०) 1. मनुष्य 2. मानवजाति 3. वैश्य 4. चोर / 3. औषधि का पौधा, कायफल / / भूमिका भूमि-1-2+क+टाप] 1. पृथ्वी, जमीन, मिट्टी भूमत् (वि०)| भू+मतुप् [ भूमिधर-पुं० राजा, प्रभु / 2. स्थान, प्रदेश, स्थल (भूका०) 3. कहानी, सभास्थल भूमन् (पुं०) [ बहोर्भावः बहु+इमनिच इलोपे भ्वादेश: 1 4. पग, दर्जा --मधुमतीसंज्ञां भूमिका साक्षात्कुर्वतः 1. भारी परिमाण, प्राचुर्य, यथेष्टता, बड़ी संख्या -योग. या नैयायिकादिभिरात्मा प्रथमभमिकाया--भूम्ना रसानां गहनाः प्रयोगा:- मा० 114, संभूयेव मवतारित:-सांख्यप्र० 5. लिखने के लिए तख्ता सुखानि चेतसि परं भूमानमातन्वते ...4 / 9 2. दौलत --दे० अक्षरभूमिका 6. नाटक में किसी, पात्र का नपुं० 1. पृथ्वी 2. प्रदेश, जिला, भूखण्ड 3. प्राणी, चरित्र या अभिनय---या यस्य युज्यते भूमिका तां जन्तु 4. बहुवचनता (संख्या की) आपः स्त्रीभूम्नि खल तथैव भावेन सर्वे वाः पाठिता:, कामन्दक्या: अमर० तु. भूनन् / / प्रथमा भूमिकां भाव एवाधीते--मा० 1, लक्ष्मीभूमिभमय (वि.) (स्त्री--यी) [भू+मयट् ] मिट्टी का, कायां वर्तमानोर्वशी वारुणोभूमिकायां वर्तमानया मिट्टी का बना या मिट्टी से उत्पन्न / मेनकया पृष्टा—विक्रम० 3, शि० श६९ 7. नाटक भूमिः (स्त्री०) [भवन्त्यस्मिन् भूतानि-भू+मि किच्च वा के पात्र की अभिनय सम्बन्धी पोशाक 8. सजावट डीप] 1. पृथ्वी (विप० स्वर्ग, गगन या पाताल)द्यौर्भूमि 9. किसी पुस्तक की प्रस्तावना या परिचय / रापोहृदयं यमश्च-पंच० 11182, रघु० 2174 2. मिट्टी, भूमी [भूमि+ङीष] पृथ्वी, दे० भूमि। सम-कदम्ब भूमि--उत्खातिनी भूमिः-श० 1, कु० 124 =भूमिकदंबः,-प्रतिः,--भुज् (पुं०) राजा,-- रुह, 3. प्रदेश, जिला, देश, भू-विदर्भभूमिः 4. स्थान, (पुं०) रुहः वृक्ष। जगह, जमीन, भूखण्ड प्रमदवनभूमयः - श० 6, भूयम (नपुं०) होने की स्थिति--जैसा कि 'ब्रह्मभूयम्' में अधित्यकाभूमिः--नै० 22641, रघु० 1152 3 / 61, ---दाशरथिभूयम् - शि० 14181 / कु० 3 / 58 5. स्थल, स्थिति 6. जमीन, भुसंपत्ति भूयशस् (अव्य०) [भूय--शस्] 1. अधिकतर, बहुधा, 7. कहानी, घर का फ़र्श--यथा 'सप्तभूमिकः प्रासादः' सामान्यतः, साधारण नियम के रूप में 2. अत्यधिक, में 8. अभिरुचि, हावभाव 9. (नाटक में) किसी बड़े परिमाण में 3. फिर, और आगे। पात्र का चरित्र या अभिनय-तु० भूमिका 10. विषय, भूयस् (वि०) (स्त्री०-सी)[बह-ईयसून, ईलोपे म्वादेशः] पदार्थ, आधार विश्वासभूमि, स्नेहमि आदि 11. दर्जा, 1. अधिकतर, अपेक्षाकृत संख्या में अधिक या बहुत विस्तार, सीमा --कि० 1058 12. जिह्वा, ज़बान / 2. अधिक बड़ा, अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत-कु० सम० - अन्तरः पड़ोसी राज्य का राजा,--- इन्द्रः, 6 / 13 3 अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण 4. बहुत बड़ा -~-ईश्वरः राजा, प्रभु,-कदंबः कदम्ब का एक भेद, या विस्तृत, अधिकः, बहुत, असंख्य- भवति च पुन---गुहा भूमि में विवर या गुफा,-गृहम् भूगर्भगृह, भूयान्भेदः फलं प्रति तद्यथा-उत्तर० 214, भद्रं भद्रं भौंरा, तहखाना,-चलः - चलनम् भूचाल--जः वितर भगवभूयसे मङ्गलाय ---मा०१॥३, उत्तर० 3 / 4, 1. मंगल ग्रह 2. नरकासुर का विशेषण 3. मनुष्य रघु० 17141, उत्तर० 23 5. सम्पन्न, बहुल-एवं4. भूनिव नाम का पौधा, (जा) सीता का विशेषण, प्रायगुणभूयसी स्वकृति-मां 1, अव्य० 1. अधिक, -जीविन् (पुं०) वैश्य,--तलम् भूतल, पृथ्वी की अत्यधिक, अत्यन्त, अधिकतर, बहत करके 2. और सतह.-दानम् भूदान,-वेवः ब्राह्मण -धरः 1. पहाड़ अधिक, फिर, आगे, और फिर, इसके अतिरिक्त, 2. राजा 3. सात को संख्या, नाथः,--पः, - पतिः, -पाथेयमुत्सृज बिसं ग्रहणाय भूयः-विक्रम० 4116 ---पालः,-भुज् (पुं०) राजा, प्रभु ----रघु० 1147, रघु० 2 / 16. मेघ 111 3. बार बार, मुहुर्मुहुः --पक्षः तेज घोड़ा,-पिशाचम् ताड का वृक्ष (जिससे ---(इस शब्द का रूप भूयसा जब क्रि० वि० के रूप ताडी तैयार की जाती है),-पुत्रः मंगलग्रह,—पुरंदरः में प्रयुक्त होता है तो निम्नांकित अर्थ होते हैं 1. राजा 2. दिलीप का नाम,-भत 1. पहाड़ 2. राजा, 1. अत्यधिक, बहुत अधिक, अत्यन्त, अपरिमित, अधि. -मण्डा एक प्रकार की चमेली,-रक्षकः तेज घोड़ा,-लाभः कांश में-न खरो न च भूयसा मृदुः .. रघु० 8 / 8, मृत्यु (शा' मिट्टी में मिल जाना),-लेपनम् गोबर पश्चार्धन प्रविष्ट: शरपतनभयात् भूयसा पूर्वकायम् ---वर्धनः-नम् मतक शरीर, शव,--शय (वि.) श० 117 2. बहुधा. साधारणतः- भूयसा जीविधर्म भूमि पर सोने वाला (यः) जंगली कबूतर,-शयनम्, एष:-उत्तर० 5) / सम-वर्शनम् 1. बार बार For Private and Personal Use Only Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 750 ) देखना 2. बार बार व्यापक दर्शन पर आधारित। की उसी वर्ण की स्त्री से उत्पन्न सन्तान -ब्रात्या तु अनुमान,-भूयस् (अव्य०) पुनः पुनः, बार बार जायते विप्रात्पापात्मा भूर्जकण्टकः --मनु० 10121, --भयोभूयः सविधनगरीरथ्ययापर्यटन्तम्--मा०१११५. ... पत्रः भोजपत्र का वृक्ष / / --विद्य (वि.) 1. अपेक्षाकृत विद्वान् 2. अत्यन्त | भूणिः (स्त्री०) [ भृ+नि, नि० ऊत्वम् ] पृथ्वी। विद्वान् / भूष (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-भूषति, भूषयति-ते, भूयस्त्वम् [ भूयस्+त्व ] 1. बहुतायत, बहुलता 2. बहु- भूषित) 1. अलंकृत करना, सजाना, शृंगार करना संख्यकता, प्रबलता। -शुचि भूषयति श्रुतं वपुः--भट्टि०२०।१५ 2. अपने भयिष्ठ (वि.) [ अतिशयेन बहु+इष्ठन् भ्वादेशे यक च] आपको सजाना (आ०) भूषयते कन्या स्वयमेव 1. अत्यंत, अत्यंत असंख्यक या प्रचुर 2. अत्यंत महत्त्व 3. फैलाना, बखेरना, बिछाना--रघु० 2031, अभि,पूर्ण, प्रधान, मुख्य 3. बहुत बड़ा या विस्तृत, अत्य अलंकृत करना, भूषित करना, सौन्दर्य देना-शि० धिक, बहुत, बहुत से, असंख्य 4. मुख्य रूप से, अत्यंत 7138, वि--, अलंकृत करना, सजाना-केयरा न स्वस्थचित्त, अत्यंत संचरित या मुक्त, मुख्यतः भरा विभूषयन्ति पुरुषम्-भर्तृ० 2 / 19, शि० 9 / 33, हआ या चरित्र से युक्त (समास के अन्त में)-- अभि- कु० 1128 / रूपभूयिष्ठा परिषद् श० 1, शूल्यमांसभूयिष्ठ आहा- | भूषणम् [भूष-+ ल्युट ] 1. अलंकरण, सजावट 2. अलंरोऽश्यते--श०२, रघु० 4170 5. प्रायः अधिकतर, कार, शृंगार, सजावट का सामान ..क्षीयन्ते खलु लगभग सब (बहुधा' क्तांत' रूप के पश्चात्)--अये भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूपणम-भत० 2 / 19, उदितभूयिष्ठ एष तपनः-मा० 1, निर्वाणभूयिष्ठ- रघु० 3 / 2, 13 / 57 / / मथास्य वीर्यम् -कु० 3152, विक्रम० १२८,--ष्ठम् | भूषा [ भूष+क-+-टाप् ] 1. सजाना, भुषित करना (अव्य०) 1. अधिकांशतः, अत्यंत - श० 131 2. आभूषण, सजावट जैसा कि 'कर्णभपा' 3. रत्न / 2. अत्यधिक, बहुत ज्यादह, अधिक से अधिक | भूषित (भू० क. कृ०) [ भूषवत ] सजाया हुआ, ----भूयिष्ठं भव दक्षिणा परिजने -श० 4 / 17, रघु० सुभूषित,--मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयङ्करः / 614, 13 / 14 / ष्णु (वि.) [भू-+ष्णु ] 1. होने वाला, बनने वाला भूर् (अव्य०) [ भू+रुक् ] तीन व्याहृतियों में से एक / जैसा कि अलंभूष्णु 2. धन या समृद्धि की इच्छा करने भूरि (दि०) [भू क्रिन् ] 1. बहुत, प्रचुर, असंख्य, वाला-मनु० 4 / 135 / यथेष्ट 2. बड़ा, विस्तृत, (पुं०) 1. विष्णु का विशेषण (भ्वा० जुहो० उभ० भरति -ते, बिभर्ति--बिभुते 2. ब्रह्मा का विशेषण 3. शिव का विशेषण 4. इन्द्र भृत, कर्मवा० भ्रियते, इच्छा० बिभरिषति या बुभका विशेषण (नपुं०) सोना, (अव्य०)1. बहुत, अधिक, र्षति)। भरना...जठरं को न बिति केवलम-पंच० अत्यधिक - नवाम्बुभिर्भूरि विलम्बिनो घना:--श० 1 / 22 2. भरना, व्याप्त होना, पूर्ण होना --अभा द् 5 / 12 2. बार बार प्रायः महर्महः। सम-मः ध्वनिना लोकान्... भट्टि० 15 / 24 3. रखना, सहारा गधा, तेजस् (वि०) अतिकान्तियुक्त (पुं०) अग्नि, देना, संभालना, पोषण करना ..धुरं धरित्र्या बिभ -दक्षिण (वि०) 1. मल्यवान् उपहार या पुरस्कारों से राम्बभूव-रघु० 18144 कर्मो बिभर्ति धरणी खल युदत 2. पुरस्कार देने में उदार, दानशील,--दानम् पृष्ठकेन --चौर० 50, भट्टि० 17164. संधारण उदारता,--धन (वि०) दौलतमंद, धनाढय,-धामन् करना, दूध पिलाना, लालन-पालन करना, प्ररक्षण (वि.) अतिकाँति से युक्त,-प्रयोग (वि.) जिसका करना, सँभाल रखना, परवरिश करना दरिद्रान्भर बहुत उपयोग हुआ है, सामान्य व्यवहार में आने वाला कौन्तेय मा प्रयच्छेश्वरे धनम्-हि० 1115 5. धारण (शब्द),-प्रेमन् (पुं०) चकवा,--भागः (वि.) करना, रखना, अधिकार में लेना-सिन्धोर्बभार सलिल धनाढ्य, समृद्धिशाली,-मायः गीदड़ या लोमड़ी,- रसः शयनीयलक्ष्मीम-कि० 7 / 57, पिशुनजनं खल बिभ्रति गन्ना,--लाभः बहुत फायदा,-विक्रम (वि.) बड़ा क्षितीन्द्रा:-भामि० 1174, बलित्रयं चारु बभार बाला बहादुर, बड़ा योद्धा, --वृष्टिः (स्त्री०) बहुत वारिश, ---कु० 1139 इन्दोर्दैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्तेबिति --श्रवस् (पुं०) कौरवों के पक्ष से लड़ने वाले एक --मेघ० 84, श० 2 / 4 6. पहनना-विभ्रज्ज्टा योद्धा का नाम जिसे सात्यकि ने यमपुर भेजा था। मण्डलम् - श० 7 / 11, 65 विवाहकौतूक ललितं भूरिज् (स्त्री.) [भृ+इजि, पृषो० साधुः ] पृथ्वी।। बिभ्रत एव (तस्य)-रघु० 8 / 1, 10 / 10 जटाश्च भूर्जः[भू+ऊर्ज+अच् ] भोजपत्र का पेड़- भूर्जगतो- बिभयान्नित्यम्--मनु० 616 7. महसूस करना, अनु अक्षरविन्यासः वि० 2, कु० 117 / सम० -कण्टकः भव करना, भोगना, सहन करना (हर्ष या दुःख वर्णसंकर जाति का पुरुष, जाति से बहिष्कृत ब्राह्मण | आदि) भावशुद्धिसहितमदं जनो नाटकैरिव बभार भ पण For Private and Personal Use Only Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 751 ) भोजन:-शि० 14150, संत्रासमबिभः शक्रः-भट्टि , जब उसे सोता हआ पाया तो उसने विष्ण की 17 / 108, श०७।२१ 8. समर्पण करना, प्रदान करना, छातीपर ठोकर मारी जिससे उसकी आँख खुल देना, पैदा करना-यौवने सदलंकाराः शोभा बिभ्रति गई। को धदिखाने के बजाय उस समय विष्णु ने सुभ्रवः-..- सुभा० 9. रखना, थामना, धारण करना भृदुता के साथ भृगु से पूछा कि कहीं उनके (स्मृति में) 10. भाड़े पर लेना--मनु० 11162, पैर में चोट तो नहीं लग गई, और यह कहने के याज्ञ० 31235 11. लाना, या ले जाना, उद्-, धारण साथ ही भंग का पैर शनैः२ मलने लगा। तब करना, सहारा देना, संभालना-भगोलमबिभ्रते-गीत० भग ने कहा कि यह विष्ण ही सबसे अधिक बलशाली 1, सम्-, 1. एकत्र करना, जोड़ना, इकट्ठा रखना देवता है क्योंकि इसने अपने सबसे शक्तिशाली शस्त्र ---त्यागाय संभृतार्थानाम्-रघु० 117, 515, 8.3, कृपालता और उदारता से अपना स्थान सबसे प्रमुख भट्टि०६।८० 2. उत्पन्न करना, पैदा करना प्रकाशित बना लिया है, इसलिए विष्ण ही सब की पूजा का करना, सम्पन्न करना-सुरतश्रमसंभृतो मुखे स्वेदलव: सर्वोत्तम अधिकारी समझा गया) 2. जमदग्नि ऋषि ---रघु०८1५१, कि० 9 / 49, मेघ० 115 3. संधारण का नाम 3. शुक्र का विशेषण 4. शुक्र ग्रह 5. उत्प्रकरना, पालन-पोषण करना, दूध पिलाना 4. तैयार पात, ढलवां चट्टान भृगुपतनकारणमपृच्छम् करना, सज्जित करना- विक्रम० 5, रघु० 19154 .... दश 6. समतल भूमि, पहाड़ की समतल चोटी 5. देना, अर्पित करना, प्रस्तुत करना। 7. कृष्ण का नाम / सम० ---उद्वहः परशु राम का भृकुंशः (सः) [भ्रुवा कुंश: (कुंश् (स)+अच) भाव- विशेषण,.. जः, तनयः शुक्र का विशेषण,-नन्दनः प्रकोश इंगितज्ञापनं यस्य, नि० संप्रसारण ] स्त्री का 1. परशुराम का विशेषण वीरो न यस्य भगवान् वेष धारण करने वाला नट / भृगुनन्दनोऽपि---उत्तर० 5 / 34 2. शुक्र,-पतिः भृकुटि, टी [ भ्रवः कुटि: (कुट+इन्) कौटिल्य, नि० परशुराम का विशेषण- भगपतियशोवर्म यत् संप्र०] भौह / दे० भ्र (भ्र) कुटि / क्रौञ्चरन्ध्रम मेघ० 57, इसी प्रकार भृगूणां पतिः, भृग् (अन्य ) अग्नि को चटपट आवाज को अभिव्यक्ति -वंशः परशुराम से प्रवर्तित वंश,- वारः बासरः करने वाला अनुकरणात्मक (शब्द)। शुक्रवार, जुमा,-शार्दूलः,---श्रेष्ठः- सत्तमः पराराम भगः [ भ्रस्ज-- कु, संप्र, कुत्वम् ] एक ऋषि जो भृगुवंश का विशेषण, सुतः,—सूनः 1. परशराम का विशेषण का पूर्वपुरुष माना जाता है, इस वंश का वर्णन मनु | 2. शुक्र का विशेषण।। 1135 में मिलता है; मन से उत्पन्न दश मूलपुरुषों में भृतः [भू+गन् कित्, नुट च] भौंरा भामि० 115, रघु० से एक (एक बार जब ऋषियों का इस बात पर एक 8153 2. एक प्रकार की भिर, ततैया 3. एक प्रकार मत न हो सका कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से का पक्षी, भीम राज 4. लम्पट, कामुक, व्यभिचारी, कौन सा देवता ब्राह्मणों की पूजा का श्रेष्ठ अधिकारी तु० भ्रमर 5. सोने का कलश,--गम अभ्रक,-गी है तो भग को इन तीनों देवों के चरित्र का परीक्षण भौंरो-भंगी पुष्पं पुरुषं स्त्री वांछति नवं नवम् / करने के लिए भेजा गया। वह पहले ब्रह्मा के निवास सम०-अभीष्टः आम का पेड़,--आनन्दा यूथिका बेल, स्थान पर गया और जानबूझ कर प्रणाम नहीं किया . आवली भौरों की पांत, मक्खियों का झुण्ड,--जम् इस बात पर ब्रह्मा ने उसे बहुत फटकारा परन्तु क्षमा 1. अगर 2. अभ्रक (जा) भांग का पौधा,—पणिका मांगने पर वह शांत हो गए। उसके पश्चात् वह छोटी इलायची,--राज (0) 1. एक प्रकार की बड़ी कैलाश पर्वत पर शिव जी के पास गया तथा पहले मक्खी 2. भंगरा नाम का पौधा,-रिटिः,-रीटिः की भाँति प्रणामादि के शिष्टाचार का पालन नहीं शिव का एक गण (जो बहुत कुरूप कहा जाता है), किया। प्रतिहिंसापरायण शिव क्रुद्ध होकर भुग का -- रोलः एक प्रकार की भिर, बल्लभः कदंब वृक्ष उस समय भस्म कर देता यदि मृदु शब्दों से भृगु ने का एक भेद / उन्हें शांत न किया होता। (एक दूसरे वृत्तान्त के | भङ्गारः,-रम् [भङ्ग+ऋ+अण] 1. सोने का कलश या अनुमार भृगु का ब्रह्मा ने आदर सत्कार नहीं किया, घट 2. विशेष आकार का कलश, झारी-शिशिर इसलिए भुग ने शाप दे दिया कि संसार में उसकी सुरभि-सलिल पूर्णोऽयं भङ्गारः - वेणी० 6 3. राज्याआराधना और पूजा नहीं होगी; शिव को भी 'लिंग' भिषेक के अवसर पर प्रयक्त किया जाने वाला घड़ा, बन जाने का अभिशाप दिया क्योंकि जव भुग शिव --गम् 1. स्वर्ण 2. लौंग / के पास गया तो उस समय वह उससे मिल न सका | भृङगारिका, भङ्गारी [भृङ्गार+कन् + टाप, इत्वम् झींगुर। क्योंकि उस समय शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ | भङ्गिन (पु.) भङ्ग इनि] 1. वट वृक्ष 2. शिव के एक विराजमान थे; अन्त में वह विष्णु के पास गया और गण का नाम / For Private and Personal Use Only Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 752 ) भृङ्गिरि (री) टिः [भृङ्ग+र+इन्, पृषो० साधुः] दे० / भूमिः [ भ्रम् + इ, संप्र० ] भंवर, जलावर्त / भङ्गरिटि / भश (दिबा० पर० भृश्यति) नीचे गिरना, दे० भ्रंश् / भृङ्गेरिटि [भृङ्गे+रिट+इ, अलुक् स०] शिव के एक गण | भृश (वि०) [ भृश् / क ] (म० अ० भ्रशीयस्, उ० अ० का नाम। भ्रशिष्ठ) मजबूत, शक्तिशाली, ताकतवर, गहन, भूज् (भ्वा० आ० भर्जते) भूनना, तलना। अत्यधिक, बहुत ज्यादह, शम् (अव्य०) 1. ज्यादह, मँटिका [भिरिण्टिका, पृषो० साधुः] एक प्रकार का बहुत ज्यादह अत्यंत, गहराई के साथ, प्रचण्डता के घुघची का पौधा। साथ, अत्यधिक, बहुत ही अधिक, बहुत करके - तमभूण्डिः (स्त्री०) [?] लहर / वेक्ष्य रुरोद सा भृशम् कु० 4 / 25, रघु शं वक्षसि भृत ((50 के० कृ०) [भू+क्त] 1. धारण किया हुआ तेन ताडितः रघु० 3 / 61, चुकोप तस्मै स भृशम् 2. सहारा दिया हुआ, संधारित, पालन पोषण किया 3 / 56, मनु० 7 / 170, ऋतु०१।११ 2. प्रायः, बारगया, दूध पिला कर पाला गया 3. अधिकृत, सहित, बार 3. अपेक्षाकृत अच्छी रीति से। सम० कोपन सज्जित 4. परिपूर्ण, भरा हुआ 5. भाड़े पर लिया (वि०) अत्यन्त क्रोधी, दुःखित,-पीडित (बि०) गया, वैतनिक,—तः भाड़े का नौकर भाड़े का टट्ट, अत्यन्त कष्टग्रस्त, संहृष्ट (वि०) अत्यन्त प्रसन्न / वेतनभोगी,-उत्तमस्त्वायुधीयो यो मध्यमस्तु कृपीवल:, . ., भृष्ट (भू० क० कृ०) [ भृश् + क्त 1 तला हुआ, भुना अधमो भारवाही स्यादित्यवं त्रिविधो भत:--मिता० / हुआ, सखा हुआ। सम० अन्नम् उबाला हुआ या भृतक (वि.) [भृतं भरणं वेतनमुपजीवति कन्] मजदूरी तला हुआ धान्य, अन्न,-यवाः (व० व०) भुने हुए पर रक्खा हुआ, वैतनिक,-कः भाड़े का नौकर / जौ। सम० -अध्यापकः भाड़े का अध्यापक, - अध्यापित भृष्टिः (स्त्री०) [ भ्रज्+क्तिन् ] 1. तलना, भूनना, (वि०) भाड़े के अध्यापक द्वारा शिक्षित (तः) वह सेंकना 2. उजड़ा हुआ बाग या उपवन / विद्यार्थी जो अपने अध्यापक को फीस देकर पढ़ा है भृ (क्रया० पर० भृणाति) 1. धारण करना, परवरिश (आधुनिक काल का फोस देकर पढने बाला करना, सहारा देना, पालन-पोषण करना 2. तलना विद्याथीं) मनु० 3 / 156 / / 3. कलंकित करना, निन्दा करना। भूतिः (स्त्री०) [भ --क्तिन] 1. धारण करना, संभालना, भेक: भी+कन् ] मेढक,-पङ्के निमग्ने करिणि भेको सहारा देना 2. संपालन, संधारण 3. नेतृत्व करना, भवति मूर्धगः 2. डरपोक आदमी 3. बादल को मार्ग-प्रदर्शन 4. परवरिश, सहायता, संपोषण 1. छोटा मेंढक 2. मेंढकी। सम० - भुज (पु०) 5. आहार 6. मजदूरी, भाड़ा 7. भाड़े के बदले सेवा साँप, - रवः, शब्द: मेंढकों का टर्राना। 8. पूंजी, मूलधन / सम-अध्यापनम् वेतन लेकर | भेड: [ भी+ड] 1. मेंढा, भेड़ 2. बेड़ा, घन्नई। पढ़ाना (विशेषतः 'वेदाध्ययन'),-भुज् (पुं०)। भेडः [=भेड:, पृपो० साधु० / भेंढा / वेतनभोगी नौकर, भाड़े का टटू,-रूपम् किसी भेवः भिद-घा] 1. टूटना, टुकड़े टुकड़े होना, फाड़ना, विशेष काम के लिए पारिश्रमिक के बदले दिया जाने (लक्ष्यपर) आघात करना 2. चीरना, फाड़ना वाला पुरस्कार। 3. विभक्त करना, विमुक्त करना 4.बींधना, छिद्रण भृत्य (वि.) [भू+यप् तक च ] जिसकी परवरिश की 5. भंग, विदारण 6. वाधा, विघ्न 7. विभाजन, वियो जानी चाहिए, पालन-पोषण किये जाने के योग्य, --त्यः जन 8. छिद्र, गर्त, विवर, दरार 9. चोट, क्षति घाव 1. कोई भी सहायता चाहने वाला व्यक्ति 2. नौकर, 10. भिन्नता, अन्तर-तयोरभेदप्रतिपत्तिरस्ति मे-भर्त. आश्रयी, दास 3. राजा का नौकर, राज्य मन्त्री, --त्या 3 / 99, अगौरवभेदेन--कु० 6 / 12, भग० 18119, पालन-पोषण करना, दूध पिलाना, परवरिश करना, 29, रस, काल आदि 11. परिवर्तन, विकार देखभाल करना ---जैसा कि 'कुमारभत्य' में 2. संधा- बुद्धिभेदम् भग० 3 / 26 12. फूट, असहमति रण, संपोषण 3. जीवित रहने का साधन, आहार 13. विवति, भेद खोलना जैसा कि 'रहस्यभेद' में 4. मजदूरी 5. सेवा / सम-जनः 1. सेवक, पराश्रित 14. विश्वासघात, देशद्रोह 15. किस्म, प्रकार--भेदा: 2. सेवकजन, भर्त (पुं०) कूल का स्वामी -वर्ग: पसंखादयो निधेः-अमर शिरीषपुष्पभेद: 16. द्वैतवाद सेवकों का समूह,-वात्सल्यम नौकरों के प्रति कृपा, (राजनय में) शत्रुपक्ष में फूट डालकर उसको जीत ---वृत्तिः (स्त्री०) नौकरों का भरण-पोषण - मनु० कर किसी की ओर करना, शत्रु के विरुद्ध सफलता 1117 / प्राप्त करने के चार उपायों में से एक दे० 'उपाय' भृत्रिम (वि०) [भू-+-त्रिम ] पाला पोसा गया, परव- और 'उपायचतुष्टय' 18. पराजय 19. (आयु० में) रिश किया गया। रेचन विधि, अन्तःकोष्ठ साफ करना / सम०---अभेदो मन का फोसास देकर भूति: For Private and Personal Use Only Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (द्वि०व०) 1. फूट और मेल, असहमति और सह- भक्ष (वि०) (स्त्री-क्षी) [भिक्षव तत्समूहो वा-अण] मति 2. भिन्नता और एकरूपता भेदाभेदज्ञानम् भिक्षा पर जीवन-निर्वाह करने वाला, क्षम् 1. मांगना उन्मुख (वि०) फूटने वाला, खिलने वाला विक्रमः भीख --मनु० 6.55, याज्ञ० 3142 2. जो कुछ २१७,--फर,--कृत् (वि.) फुट के बीज बोने वाला भिक्षा में प्राप्त हो, भीख, दान-भक्षण वर्तयेन्नित्यम् ---दशिन-दृष्टि, बुद्धि, (वि०) विश्व को परमात्मा मनु० 2 / 188, 4 / 5 / सम० --अन्नम् भिक्षा में से भिन्न समझने वाला,-प्रत्ययः द्वैतवाद में विश्वास, प्राप्त आहार, भिक्षा का अन्न,-आशिन् (वि.)भिक्षा में -बादिन् (पुं०) जो द्वैत सिद्धांत को मानता है, सह प्राप्त अन्न को खाने वाला, (पु.) भिखारी, साधु, (वि.) 1. जो विभक्त या वियक्त हो सके 2. कल- ----आहारः भिखारी, काल: भीख मांगने का समय, षित होने योग्य, दूषणीय, प्रलोभन द्वारा जो फंसाया ..चरणम,...चर्यम, --चर्या भीख मांगने के लिए जा सके। इधर उधर फिरना, भीख मांगना, भिक्षा एकत्र करना, भेदक (वि०) (स्त्री० ---दिका) [भिद् / वल1. तोड़ने जीविका, ---वृत्तिः (स्त्री०) भिखारीपन,--भुज (पु०) वाला, खण्ड खण्ड करने वाला, विभक्त करने वाला, भिखारी, भिखमंगा। अलग अलग करने वाला 2. बींधने वाला, छिद्र करने भैक्षवम्, भक्षकम् भिक्षणां समूहः-अण] भिखारियों का वाला 3. नष्ट करने वाला, विनाशक 4. भेद करने समूह / वाला, अन्तर करने वाला 5. परिभाषा देने वाला, भक्ष्यम् [भिक्षा--प्या ] मांग कर प्राप्त किया हुआ अन्न, ... क: विशेषण या विभेदकारी विशेषता। भिक्षा, भीख, दान दे० 'भैक्ष'।। भेवनम् [भिद्+णिच् + ल्युट्] 1. टुकड़े-टुकड़े करना, तोड़ना, 'वि०) (स्त्री०-मी) [भीम--अण] भीमविषयक, फाड़ना 2. बाँटना, अलग-अलग करना 3. भेद करता -मो 1. भीम की पुत्री, नल की पत्नी दमयन्ती का 4. फूट के वीज बोना, मनमुटाव पैदा करना 5. भंग कर, पितपरक नाम 2. माघ शुक्ला एकादशी, या उस शिथिल करना 6. उघाड़ना, खोलना,-न: सूअर / दिन किया जाने वाला उत्सव। भेदिन् (वि०)[भिद्-+-णिनि तोड़ने वाला, विभक्त करने भमसेनिः,-न्यः भीमसेन+इन ,ज्य वा] भीमसेन का पुत्र / वाला, भेद करने वाला आदि। भैरव (वि०) (स्त्री०-वी) [भीरु+अण] 1. भयानक, भेविरम्, भेदुरम् [भिद् + किरच्, कुरच् बा, पृषी० गुणः] | डरावना, भीषण, भयावह 2. भैरवसंबंधी, ... वः शिव वज। का (इसके आठ रूप गिनाये गये हैं) एक रूप / भेद्यम [भिद + ण्यत विशेष्य, संज्ञा / सम-लिंग (वि०) --- वी 1. दुर्गादेवी का एक रूप 2. हिन्दु-संगीत पद्धति लिंग द्वारा जो पहचाना जा सके। में एक विशेष रागिनी का नाम 3. बारह वर्ष की भेरः [विभेत्यस्मात्-भी+रन् | चौसा, ताशा (बड़ा ढोल)। कन्या या किशोरी जो दुर्गा-पूजा के उत्सव पर दुर्गा भेरिः,-री (स्त्री०) [भी +-क्रिन्, बा० गुणः, भेरि+कीप्] / का प्रतिनिधित्व करे, वम् त्रास, भीषणता / सम० ___घौसा, ताशा (बड़ा ढोल) / भग० 1113 / / .....ईशः विष्णु का विशेषण, शिव का विशेषण, तर्जकः, भेरुण्ड (वि०) भयानक, भयपूर्ण, डरावना, भयंकर, डः | –यातना काशी में जाकर शरीर त्यागने वाले पक्षियों का एक भेद,---डम् गर्भाधान, गर्भस्थिति। व्यक्तियों की आत्मा को परमात्मा में लीन होने के भेरुण्डकः [भेरुण्ड-+कन्] गीदड़, शृगाल / योग्य बनाने के लिए भैरव द्वारा उनकी विशुद्धि के भेल (वि.) भी+रन, रस्य ल:] 1. इरपाक, भीरु लिए उनको दी जाने वाली यातना / 2. मूर्ख, अनजान 3. अस्थिर, चंचल 4. लंबा भैषजम् [ भेषज+अण् ] औषधि, दवा,-जः लवा पक्षी, 5. फुर्तीला, चुस्त,-लः नाव, बेड़ा, घिनई। लावक / भेलकः,-कम् [भेल-+-कन् नाव, वेड़ा। भैषज्यम् [ भिपजः कर्म भेपज-+-स्वार्थे वा व्या ] भेष (भ्वा० उभ०-भेपति-ते) डरना, त्रस्त होना, भय- ___ 1. औषधियां देना, चिकित्सा करना 2. दवादारू, भीत होना। / औषधि, दवाई 3. आरोग्यशक्ति, नीरोगकारिता / भेषजम् [भे रोगमयं जयति-जि-:-ड तारा०] औषधि, भैष्मकी भीष्मक+अण् + ङीष् ] विदर्भराज भीष्मक की भैषज्य या दवा . नरानम्ब त्रातुं त्वमिह परमं भेषज- पुत्री, रुक्मिणी का पितपरक नाम / मसि-~गंगा० 15, अतिवीर्यवतीव भेपजे बहुरल्पीयसि / भोक्त (वि.) [ भुज्+तुच | 1. उपभोक्ता 2. कब्जा दृश्यते गुणः-कि० 2 / 4 2. चिकित्सा या इलाज करने वाला 3. उपभोग में लाने वाला, प्रयोक्ता 3. एक प्रकार का सोया। सम-अ (आ) गारः, 4. महसूस करने वाला, अनुभव करने वाला, भोगने ....रम् अत्तार (औषधविक्रेता) की दुकान,---अङ्गम् वाला, (पुं०) 1. काविज, उपभोक्ता, उपयोक्ता 2. कोई चीज जो दवा खाने के वाद ली जाय / पति 3. राजा, शासक 4.प्रेमी। For Private and Personal Use Only Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 754 ) भोगः [ भुज+धा ] 1. खाना, खा पी जाना 2, सुखो- | लिप्त ---पंच० 1165, (यहाँ इसका अर्थ 'फणा मे पयोग, आस्वाद 3. स्वामित्व 4. उपयोगिता, उपादे- यक्त' भी है) 8. धनाढय, सम्पनिमाली, (50) यता 5. हकूमत करना, शासन, सरकार 6. प्रयोग, 1. सॉप गजाजिनालम्बि पिनद्रभागि वा कु० 5 / (घरोहर आदि का) व्यवहार 7. भोगना, झेलना, 78 रघ० 2 / 12, 4 / 48, 1017. 1151. 2. राजा अनुभव करना 8. प्रतीति, प्रत्यक्षज्ञान 9. स्त्रीसंभोग, 3. विषयी 4. नाई 5. गांव का मुखिया 6. आश्लेषा मैथुन, विषयमय 10. उपभोग, उपभोग की वस्तु नक्षत्र, ..नी राजा के अन्त पुर की स्त्री जो रानी के --भोगे रोगभयम् भर्त० 3 / 35, भग० 1 / 32 रूप में अभिषिका न हो, रखैल, उपपत्नी / सम० 11 भोजन, दावत, भोज 12. आहार 13. नैवेद्य ---इन्द्रः, -- ईशः शेष या वामकि-कान्तः वायु, हवा, 14. लाभ, फायदा 15. आय, राजस्व 16. धनसंपत्ति --भुज (पं.) 1. नेवला 2. मोर, वल्लभम् चंदन / 17. वेश्या को दी गई मजदूरी 18. वक्र, घमाव, चक्कर भोग्य (वि.) [ भुज :- प्रयत्, कुत्वम् ] 1. उपभोग के 19. साँप का फैलाया हुआ फण-श्वसदसितभुजङ्ग- योग्य, या काम में लाने योग्य-रघु० 8 / 14, पंच० भोगाङ्गदग्रन्थि आदि-मा० 5 / 23, रघु० 1017, 11117 2. भोगने योग्य या सहन करने लायक 11159 20. साँप / सम० - अहं (वि.) उपभोज्य --मेघ० 1 3. लाभदायक,ग्यम् 1. उपभोग का (हम) संपत्ति, दौलत,---अहम् अनाज, अन्न,-आधिः / कोई पदार्थ 2. दौलत, सम्पत्ति, जायदाद 3. अनाज, बन्धक में रक्खी हुई वस्तु जिसका उपभोग तब तक अन्न, ग्या वेश्या, वारांगना / किया जाय जब तक कि वह छुड़ाई न जाय, आवलो भोजः [भुज-अच ] 1. मालवा (या धारा) का प्रसिद्ध किसी व्यावसायिक प्रशस्तिवाचक द्वारा स्तुतिगान राजा, (ऐसा माना जाता है कि राजा भोज दसवीं ..-नग्नः स्तुतिव्रतस्तस्य ग्रंथो भोगावली भवेत् हेम०, शताब्दी के अन्त में या ग्यारहवीं गताब्दी के आरम्भ --आवासः जनानखाना, अन्तःपुर,—कर (वि.) में हए थे, वे संस्कृत ज्ञान के बड़े अभिभावक थे, 'सरसुखद या उपभोगप्रद,-गुच्छम् वेश्याओं को दी गई स्वतीकंठाभरण' आदि कई ग्रंथों का उन्हें प्रणेता समझा मजदूरी,---गहम् महिलाकक्ष, अन्तःपुर, जनानखाना, जाता है) 2. एक देश का नाम 3. विदर्भ के राजा का -शुष्णा सांसारिक उपभोगों की इच्छा--- तदुपास्थित नाम ---भोजेन दूतो रघवे विसष्ट:-रघु० 5 / 3971 मग्रहीदजः पितुराज्ञेति न भोगतृष्णया- रघु० 8 / 2, -29, 35, जाः (पं० ब०व०) एक जाति का 'स्वार्थपूर्ण उपभोग' मा० २,-देहः 'भोग-शरीर' नाम। सम० ---अधिपः 1. कंस का विशेषण, इन्द्रः सुक्ष्मशरीर या कारणशरीर जिसके द्वारा व्यक्ति भोजों का राजा,-कटम रुक्मी द्वारा स्थापित एक नगर परलोक में अपने पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों का सुखदुःख का नाम, देवः, राजः / राजा भोज दे० (1) ऊपर, भोगता है, .--धरः साँप,-पतिः राज्यपाल या विषया .-.-पतिः 1. राजा भोज, 2. कंस का एक विशेषण / धिपति,-पाल: साईस, - पिशाचिका भूख,---भतक: भोजनम् | भजल्यट] 1. खाना, भोजन करना,--अजीर्णे जो केवल जीविका के लिए नौकरी करता है, वस्तु भोजनं विषम् 2. आहार 3. भोजन (साने के लिए) (नपं०) उपभोग की वस्तु या पदार्थ,--सद्यन् (नपुं०) देना, खिलाना 6 उपयोग करना, उपभोग करना भोगावास, दे० स्थानम् 1. उपभोग का आसन शरीर 5. उपभोग की सामग्री 6. जिसका उपभोग किया 2. अन्तःपुर / जाय 7. संपत्ति, दौलत, जायदाद, नः शिव का विशेभोगवत् (वि०) [ भोग+मतप ] 1. सुखद, प्रसन्नता षण / सम०--अधिकार. चारे का कार्यभार, खाद्य देने वाला, खुशी देने वाला 2. प्रसन्न, समृद्ध 3. वक्र सामग्री का अधीक्षण, कार्याध्यक्ष का पद,-आच्छादनम वाला, मंडलाकार, कुण्डलाकार, (पुं०) 1. साँप खाना-कपड़ा, कालः, वेला, समयः भोजन करने 2. पहाड़ 3. नृत्य, अभिनय, और गायन...- (स्त्री का समय, खाने का समय, त्यागः आहार का त्याग, ती) 1. पाताल गंगा का विशेषण 2. सर्पपिशाचिका उपवास,-भूमिः (स्त्री०) भोजनकक्ष, खाने का कमरा, 3. पाताल लोक में नाग-पिशाचिकाओं का नगर --विशेषः स्वादिष्ट भोजन, विशिष्ट भोजन, वृत्तिः 4. चान्द्रमास की द्वितीया तिथि की रात / (स्त्री०) भोजन, आहार, व्यग्र (वि.) खाने में भोगिकः [ भोग+ठन् ] साईस, घोड़े का रखवाला। व्यस्त,- व्ययः खाने-पीने का खर्च / भोगिन् (वि.) [भोग+इनि ] 1. खाने वाला 2. उप- भोजनीय (वि.) [भुज-अनीयर] भक्षणीय, साने योग्य, भोक्ता 3. भोगने वाला, अनुभव करने वाला, सहन - यम् आहार। करने वाला 4. उपभोक्ता, स्वामी-इन उपयुक्त भोजयित (वि०) | भुज+णिच् +तृच / जो दूसरों को चार अर्थों में (समास के अन्त में प्रयोग) 5. मोड़दार भोजन कराये, खिलाने वाला। 2. फणदार 7. उपभोग में मग्न, विषयवासनाओं में भोज्य (वि०) भज+ण्यत ] 1. जो खाया जा सके For Private and Personal Use Only Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 755 ) 2. उपभोग के योग्य, अधिकार में करने के योग्य / पर रहने वाला या विद्यमान / 3. भोगने के योग्य, अनुभव करने लायक 4. संभोग भौरिकः [भूरि सुवर्णमधिकरोति-- ठक्] राजकीय कोश में सुख के योग्य, -ज्यम् 1. आहार, खाना-त्वं भोक्ता | सुवर्णाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष / अहं च भोज्यभूतः-पंच०२, कु० 2 / 15, मन० 3 / 240 भौवनः दे० भौमन / 2. खाद्य सामग्री का भंडार, खाद्य पदार्थ 3. स्वादिष्ट | भौवादिक (वि.) (स्त्री-की) [भ्वादि-ठक् | भ्वादि भोजन 4. उपभोग। सम० कालः भोजन करने का अर्थात् भू से आरम्भ होने वाली धातुओं से सम्बन्ध समय,- संभवः आमरस, शरीर का प्राथमिक रस / रखने वाला। भोज्या [ भोज्य - टाप् ] भोज की एक रानी--रघु०६।५९ (भ्वा० आ, दिवा० पर० भ्रंशते, भ्रश्यति, भ्रष्टः 72, 13 / (अधिकर० अपा० के साथ) 1. गिरना, टपकना, उलट भोटः एक देश का नाम, (कहते हैं कि 'तिब्बत' का ही यह जाना,-हस्ताभ्रष्टमिदं बिसाभरणम् - श० 3 / 26 __ नाम है) / सम०-अंगः 'भूटान' कहलाने वाला प्रदेश / 2. गिरना, विचलित होना, अलग छूट जाना भोटीय (वि.) [ भोट-+-छ / तिब्बतवासी। -- यूथाभ्रष्ट: --हि०४, रघु० 14 / 16 3. वञ्चित भोमीरा (स्त्री०) मूंगा. विद्रुम / / होना, खो देना-बभ्रंशेऽसौ घृतेस्तत:---भट्रि० भोस् (अन्य०) | भाडोस् ] संबोधन सूचक अव्यय / 14171, पंच 11084137 4. बच निकलना, भाग जिसका अनुवाद होता है 'अरे, ओ, अहो, ओह, आहे' जाना, -संग्रामाद् बभ्रंशुः केचित्-भट्टि० 141105, कः कोऽत्र भोः श०२, (स्वर या सघोष व्यंजन परे 15 / 59 5. क्षीण होना, मझाना, घटना 6. ओझल होने पर पदांत विसर्ग का लोप हो जाता है) अयि, होना, नष्ट होना, अलग होना-मालवि० 118, 12, भो महर्षिपुत्र-श० 7, कभी-कभी इसको दोहराया जाता प्रेर० भ्रंशयति-ते / गिराना, पछाड़ देना 2. वञ्चित है भो भोः शंकरगहाधिवासिनो जानपदाः ..मा० 3, करना, परि - , 1. गिरना, टपकना, उलटना, इसके अतिरिक्त 'भोः' का प्रयोग 'शोक' तथा 'प्रश्न- फिसलना 2. बहकना, भटकना 3. अलग हो जाना, वाचकता' के लिए भी होता है। पथभ्रष्ट होना, विचलित होना 4. खोना, वञ्चित भौजङ्ग (वि०) (स्त्री० गी) [भुजङ्ग- अण्] सर्पिल, होना-मनु०१०।२० प्र-, 1. गिरना, टपकना सांप जैसा गम् 'आश्लेषा' नामक नक्षत्र / फिसलना,-प्रभ्रश्यमानाभरणप्रसूनाम्-रघु० 14154 भौटः | भोट +अण् प्रपो० / तिब्बती, तिब्बतबासी। 2. खोदेना, वञ्चित होना-प्रभ्रश्यते तेजसः - मुच्छ० भौत (वि.) (स्त्री----ती) [ भूतानि प्राणिनोऽधिकृत्य 114, प्रेर०. पछाडना, नीचे डालना, नीचे गिरना प्रवृत्तः, तानि देवता वा अस्य अण] 1. जीवित प्राणियों . रघु० 13 / 36, वि--. 1. गिरना, टपकना से संबन्ध रखने वाला 2. मुलभूत, भौतिक 3. पैशाचिक 2. बर्वाद होना, क्षीण होना 3. गिरना, भटकना, 4. पागल, विक्षिप्त, ---तः भूतप्रेत व पिशाचों की पूजा पथभ्रष्ट होना 4. खो देना। करने वाला, देवल, पुजारी,---तम् भूत-प्रेतों का समह / / भ्रंशः, सः [भ्रंश भावे घा] 1. गिर पडना, टपक भौतिक (वि.) (स्त्री०-की) [भत-+-ठक 1. जीवित पडना, गिरना, फिसलना, नीचे गिरना--सेहेऽस्य न प्राणियों से संबंध रखने वाला मनु० 3174 2. स्थूल भ्रंशमतो न लोभात-रघु० 1674, कनकवलयतत्त्वों से निमित, भौलिक, भौतिक-पिडेष्वनास्था भ्रंशरिवतप्रकोष्ठ:—मेघ०२ 2. क्षीण होना, घटना, खल भौतिकेपु-रघु० 2 / 57 3. भूत-प्रेतों से संबंध ह्रास होना 3. पतन, नाश, वर्वादी, विध्वंस 4. भाग रखने वाला,...क: शिव का नाम, कम् मोती। जाना 5. ओझल हो जाना 6. खो जाना, हानि, सम०--मठः---विहार, विद्या जादूगरी, अभिचार / वञ्चना--स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशः--भग० 263 भौम (वि०) (स्त्री०) [भूमि-- अण् 1. पार्थिव 2. पृथ्वी इसी प्रकार जातिभ्रंश' 'स्वार्थभ्रंश' 7. भटकने वाला, पर होने वाला, मिट्टो का बना हआ, लौकिक सौमो भ्रष्ट हो जाने वाला, विचलित।। मुनेः स्थानपरिग्रहोऽयम् ----रघु० 13136, 15 / 59 भ्रंशयः [भ्रंश अथच] दे० 'प्रभ्रंशथु'।। 3. मिट्टी का, मिट्टी से निर्मित 4. मंगल से संबद्ध, भ्रंश (स) न (कि०) (स्त्री--नी) भ्रिंश-कल्यट] —मः 1. मंगलग्रह 2. नरकासुर का विशेषण 3. जल 1. नीचे फेंक देने वाला,-नम 1. गिर पड़ने की क्रिया 4. प्रकाश / सम० --दिनम्, वारः, वासरः मंगल- 2. गिरना. वञ्चित होना, खो देना। वार, -शि०१५।१७, रत्नम् मंगा। भ्रंशिन् (वि.) श् / णिनि] 1. नीचे गिरने वाला, भौमनः [भमन ---अण | देवों के शिल्पी विश्वकर्मा का नाम / पानशील' 2 जीर्ण होने वाला 3. भटकने वाला, भौमिक (वि.) (स्त्री० ... को) [भूमि--ठक यत् वा 4. यदि होने वाला, नष्ट होने वाला। भौम्य (वि.) पाथित. लौकिक, पत्री - भंस्---दे० 'भ्रंश' / For Private and Personal Use Only Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घबड़ा जा11. घूमन होना, घूम गलत ( 756 ) अjः [भ्रुवा अ॒शो भाषणं यस्य ब० स०, अकारादेशः] | विस्मित होना---भग० 16 / 16, (प्रेर०) घबरा देना, स्त्री की वेशभूषा में नट (नाटक का पात्र) / उद्विग्न करना प्रभामत्तश्चन्द्रो जगदिदमहो विभ्रमभ्रल (भ्वा० उभ० भ्रक्षति-ते) खाना, निगलना। यति-काव्य० 10, सम-, 1. घूमना, टहलना भ्रज्जनम् [भ्रस्+ल्युट तलने की क्रिया, भूनना, सेकना। 2. गलती पर होना, व्याकुल होना, उद्विग्न होना, भ्रण (म्बा० पर० भ्रणति) शब्द करना / अभंगः= दे० भ्रूभंगः / भ्रमः [ भ्रम्+घा ] 1. घूमना, टहलना, चहलकदमी करना 2. चक्कर खाना, आवतित होना, घूम जाना भ्रम (भ्वा०, दिवा० पर० भ्रमति, भ्रम्यति, भ्राम्यति, 3. चक्राकार गति, परिक्रमा 4. भटकना, विचलित भ्रान्त) 1. इधर उधर घूमना, हिलना-जुलना, मारा होना 5. भूल, गलती अशुद्धि, गलतफहमी, भ्रान्ति मारा फिरना, टहलना, (आलं से भी)-भ्रमति भुवने -शुक्तौ रजतमिति ज्ञानं भ्रमः 6. गड़बड़ी, व्याकुकन्दर्पाज्ञा मा० 1114, मनो निष्ठाशून्यं भ्रमति च लता, उलझन 7. भंवर, जलावर्त 8. कुम्हार का चक्र किमप्यालिखति च-३१, (बहुधा स्थान में कर्म) 9. चवकी का पाट 10. खराद 11. पूणि 12. फौवारा, भवं बभ्राम... दश०,-दिङमण्डलं भ्रमसि मानस चाप जल प्रवाह / सम---आकुल (वि.) घबराया हुआ, लेन-भर्तृ० 3177, इसी प्रकार भिक्षा भ्रम् 1. इधर -आसक्त सिकलीगर, शस्त्रमार्जक / / उधर मांगते फिरना 2. मुड़ना, चक्कर काटना, घूमना, भ्रमणम् [ भ्रम् + ल्युट ] 1. इधर-उधर घूमना, टहलना बर्तलाकार गति होना---सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव 2. मुड़ना, क्रान्ति 3. विचलन, पथभ्रंशन : कांपना, गगने-भर्तृ० 2195, भ्रमता भ्रमरेण--गीत०३, डगमगाना, चंचलता, लड़खड़ाना 5. गलती करना 3. भटक जाना, भटकाना, इधर-उधर होना, विच 6. घूर्णन, घुमेरी,-णी 1. एक प्रकार का खेल 2. जोक / लित होना 4. डगमगाना, लड़खड़ाना, डांवाडोल होना, संदेह की अवस्था में होना, झिझकना - मा० | भ्रमत् (वि.) [ भ्रम् + शतृ ] घूमना, टहलना आदि। 5 / 20 5. भूल करना, भूल में ग्रस्त होना, गलती सम०--कुटी एक प्रकार का छाता। पर होना,- आभरणकारस्तु तालव्य इति बभ्राम भ्रमरः [ भ्रम+करन् ] 1. मधुमक्खी, भौंरा-मलिनेऽपि 6. फुरफुराना, फड़फड़ाना, कांपना, चंचल होना-चक्षु रागपूर्णा विकसितबदनामनल्पजल्पेऽपि, त्वयि चपलेऽपि म्यति--पंच. 4178 7. घेरना, प्रेर० (भ्रमयति च सरसा भ्रमर कथं वा सरोजिनीं त्यजसि-भामि० --ते, भ्रामयति--ते) टहलाना, फिराना, घुमाना, 11100 (यहाँ द्वितीय अर्थ भी सुझाया जाता है) चक्कर दिलाना, आवर्तित करना-भ्रमय जलदानं 2. प्रेमी, सीन्दर्यप्रेमी, लम्पट 3. कुम्हार का चाक, -भोगर्भान् - मा० 9 / 41 2. भुलाना, भ्रम में डालना, - रम् घर्णन, घमेरी। सम० -- अतिथिः चम्पा का गुमराह करना, उलझाना, उद्विग्न करना, झंझट में पौधा,-अभिलीन (वि०) मक्खियों से लिपटा हुआ, डालना, चकरा देना, डांवाडोल करना-बिकारश्च रघु० ३४८,--अलक: मस्तक पर की लट, इष्टः तन्यं भ्रमयति च संमीलयति च - उत्तर० 1135 श्योनाक का वृक्ष,--उत्सवा माधवी लता, --- करण्डकः 3. लहराना, (तलवार) घुमाना, दोलायमान करना मक्खियों से भरी हई पेटी (इसे चोर अपने साथ --लीलारविन्दं भ्रमयाञ्चकार-रघु०६।१३. उद्, रखते है और जब चोरी करने जाते है तो इन मक्खियों 1. भ्रमण करना, इधर उधर घूमना, गड़वड़ा जाना को छोड़ देते है जिससे कि यह बत्ती बुझा दें),--कीट: ---धावत्यभ्रमति प्रमीलति पतत्युद्याति मर्छत्यपि भिरों की जाति,-प्रियः कदम्ब वृक्ष का एक भेद, -गीत०४ 2. भूलना, भूल में पड़ना 3. विक्षुब्ध होना, -बाधा भोरे द्वारा सताया जाना-श० १,---मण्डलम् व्याकुल होना - रघु० 12074,- परि 1. टहलना, मक्खियों (भौरों) का झुंड / घूमना, भ्रमण करना, इधर-उधर हिलना-जुलना | भ्रमरक: [ भ्रमर+कन् ] 1. भौंरा 2. जलावर्त, भंवर, --परिभ्रमसि कि वृथा क्वचन चित्त विश्रम्यताम् -कः,-कम् 1. मस्तक पर लटकने वाली बालों की ---- भत० 31137 2. मंडराना, चक्कर लगाना लट 2. खेलने के लिए गेंद 3. लट्ट / / - परिभ्रमन्मूर्धजषट्पदाकुलै:-कि०५।१४ 3. घुमता, भ्रमरिका [ भ्रमरक+टाप् इत्वम् ] सब दिशाओं में घूमने परिक्रमा करना, मुड़ना, 4. घूमना, मारा मारा बाली। फिरना (कर्म० के साथ) 5. मोड़ना, प्रदक्षिणा भ्रमिः (स्त्री०) [ भ्रम् +इ ] 1. आवर्तन, मोड़, चक्राकरना, वि... , 1. घूमना, इधर उधर चक्कर काटना कार गति, इधर-उधर घूमना, क्रान्ति-उत्तर० 3 / 19, 2. मंडराना, आवर्तित होना, चक्कर खाना 3. उड़ा 6 / 3, मा० 5 / 23 2. कुम्हार का चाक 3. खैरादी की देना, तितर वितर करना, इधर उधर बखेरना खराद 6. भंवर 5. बवंडर 6. गोलाकार सैनिक क्रम4. गडबड़ा जाना, अव्यवस्थित होना, व्याकुल होना, / व्यवस्था 7. भूल, गलती। For Private and Personal Use Only Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 757 ) भ्रश दे० भ्रंश् / बहनों को उपहार देते हैं, संभवतः यह दिन इस लिए भ्रशिमन् (पु.) [भृशस्य भावः- इयनिच्, ऋतो र]: मनाया जाता है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई को प्रचंडता, अत्यधिकता, उग्रता, उत्कटता। आमंत्रित किया था-तु० यमद्वितीया),-पुत्रः भ्रष्ट (वि०) [भ्रंश+क्त] 1. पतित, नीचे पड़ा हुआ (भ्रातुष्पुत्रः) भतीजा,-बधुः भाई की पत्नी, श्वसुरः 2. गिरा हुआ 3. भटका हुआ, विचलित 4. बियुक्त, पति का बड़ा भाई, जेठ,-हत्या भाई की हत्या / वञ्चित, निष्काषित, निकाला हुआ- यथा 'भ्रष्टा- | भ्रातक (वि.) [भ्रातृ-कन्] भाई से संबंध रखने वाला। धिकार' में 5. मुझाया हुआ, क्षीण, बर्बाद 6. ओझल, | भ्रातव्यः [भ्रातुः पुत्रः व्यत्] 1. भाई का बेटा, भतीजा खोया हुआ 7. दुश्चरित्र, दूषितचरित्र / सम० 2. शत्रु, विरोधी। --अधिकार (वि०) अपनी शक्ति या पद से वञ्चित, / भ्रातृबल (वि०) [भ्रात+वलच्] जिसके एक या पदच्युत,-क्रिय (वि.) विहित कमों को जिसने अधिक भाई हों। नहीं किया,-गुव (वि.) एक प्रकार के गुदरोग से भ्रात्रीयः, भ्रात्रेयः [भ्रातृ+छ] भाई का पुत्र, भतीजा। ग्रस्त, -योगः जो धर्मच्युत हो गया हो। भ्राच्यम् [भ्रातृ+ष्यम् ] भाईचारा, भ्रातृभाव / भ्रस्न् (तुदा० उभ०--भृज्जति, भृष्ट ---प्रेर० भर्जयति भ्रान्त (वि.) [भ्रम् +n] 1. इधर उधर घूमा फिरा ...ते, भ्रज्जयति--ते, इच्छा० बिभर्भति. विजिषति, हुआ 2. मुड़ा हुआ, चक्कर खाया हुआ, घुमाया हुआ, विभ्रज्जिषति) तलना, भूनना, सेकना कील पर मांस 3. भूला हुआ, कुपथगामी, भटका हुशा 4. घबड़ाया भूनना, (आलं० से भी)-बभ्रज्ज निहते तस्मिन् शोको हुआ, गड़बड़ाया हुआ, इधर उधर घूमने फिरने वाला रावणमग्निवत्-- भद्दि० 14686 / इधर से उधर और उधर से इधर घूमने फिरने वाला, भ्राज (भ्वा० आ० भ्राजते) चमकना, दमकना, चम- चक्कर काटने वाला.--तम् 1. घूमना, इधर उधर चमाना, जगमगाना ---रुरुजभेंजिरे फेण बहघा हरिरा- फिरना,- वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरैः सह-भर्तृ० क्षसाः --- भट्टि० 14 / 78, 15 / 24, वि जगमग 2 / 14 2. गलती, भूल। करना, देदीप्यमान होना-बिभ्राजसे मकरकेतनमर्च भ्रान्तिः (स्त्री०) [भ्रम्+क्तिन्] 1. इधर उधर फिरना, यन्ती रत्न० 1121 / घूमना 2. घूमकर मुड़ना, मटरगस्त करना 3. क्रान्ति, भ्राजः [भ्राज् / क] सात सूर्यों में से एक, -जम् एक प्रकार गोलाकार या चक्राकार घूमना-चक्रभ्रान्तिररान्तका साम / रेषु वितनोत्यन्यामिवारावलीम-विक्रम. 125 भ्राजक (वि.) (स्त्री०-जिका) [भ्राज्+ एवल] चमकाने 4. भूल, गलती, भ्रम, व्यामोह, मिथ्याभाव-श्रितासि वाला, देदीप्यमान, कम पित्त, त्वचा में व्याप्त पित्त / चन्दनभ्रान्त्या दुर्विपाकं विषद्रुमम् --उत्तर० 1 / 46 भ्राजथुः [भ्राज्+अथुच्] आभा, कान्ति, उज्ज्वलता, 5. घबराहट, उद्विग्नता 6. संदेह, अनिश्चय, रोका। सौन्दर्य। सम-कर (वि०) विह्वल करने वाला, भ्रम में भ्राजिन् (वि०) [भ्राज्+णिनि] चमकने वाला, जगमगाने डालने वाला,-नाशनः शिव का विशेषण,हर वाला। (वि.) संदेह या भूल को दूर करने वाला। भ्राजिष्ण (वि०) [भ्राज-!-इष्णुच चमकने वाला, देदीप्य- भ्रान्तिमत (वि.) भ्रान्ति-मतप] 1. घमने वाला, मुड़ने मान, उज्ज्वल, दीप्तिकेन्द्र,-हणुः 1. शिव का विशेषण वाला,-भ्रान्तिमद्वारियन्त्रम्-मालवि० 2 / 13 2. भूल करने वाला, गलती करने वाला, भ्रमयुक्त-पुं० एक भ्रात (पं०) [ भ्राज़-तच पृषो०] 1. भाई, सहोदर अलंकार जिसमें दो वस्तुओं की पारस्परिक समानता 2 घनिष्ठ मित्र या संबंधी 3. निकटवर्ती रिश्तेदार के कारण एक वस्तु को भूल से अन्य वस्तु समझ लिया 6. मित्रवत संबोधन का चिह्न (प्रिय मित्र,) भ्रातः कष्ट- जाता है,-भ्रान्तिमानन्यसंवित्ततुल्यदर्शने - काव्य महो--भर्त० 3 / 37, 2034, तत्त्वं चिन्तय तदिदं भ्रातः 10, उदा.- कपाले मार्जारः पय इति करान् लेढि ---मोह / सम०-गन्धि,-गन्धिक (वि.) जिसका शशिनः, आदि-विक्रम 312, मा० 112, भी। भाई केबल नाम के लिए हो, नाम मात्र का भाई, | भ्रामः [ भ्रम्+अण् ] 1. इधर-उधर घूमना 2. मोह, भूल, --जः भतीजा (जा) भतीजी---जाया (भ्रातुर्जाया गलती। भी) भाई की पत्नी, भाभी, मेघ० १०,-दत्तम् बहन भ्रामक (वि.) (स्त्री०-मिका) [भ्रम्+णिच् +ण्वुल] के विवाह पर भाई द्वारा बहन को दी गई संपत्ति, 1. घुमाने वाला 2. आवर्तित करने वाला 3. उलझाने -द्वितीया कार्तिक शुल्का द्वितीया (इस दिन बहनें बाला, धोखा देने वाला-क: 1. सूरजमुखी फूल अपने भाइयों को अपने घर पर आमंत्रित करती है 2. एक प्रकार का चुंबक पत्थर 3. धोखेबाज, बदमाश, और उनकी खातिर करती है, भाई भी इस दिन / ठग 4. गीदड़। (क) [भ्रान्ति+मतुप] 1. घमने बालाजी गुः 1. शिव का विशेषण 2. विष्ण For Private and Personal Use Only Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 758 ) भ्रामर (वि.) (स्त्री०-री) [ भ्रमरेण सभृतं भ्रमरस्येदं | शाम्-कू० ३।६०,-जाहम् भौंह का मूल,-भङ्गः, वा अण] भ्रमर संबंधी,-रः,-रम् एक प्रकार का __ -भेदः भौंहों की सिकुड़न वा कुटिलता,-त्योरी-तरङ्गचुंबक पत्थर-रम् 1. चक्कर काटना, 2. आघूर्णन भ्रूभङ्गा क्षुभितविहगश्रेणिरशना----विक्रम० 4 / 28, 3. अपस्मार, मिरगी 4. शहद 5. एक प्रकार का रति- सभ्रूभङ्गम खमिव-मेघ० 24, सभ्रभङ्गम् 'त्यौरी-चढ़ा बंध, संभोग का आसन विशेष री 1. दुर्गा का कर',-भदिन् (वि.) त्यौरी चढ़ाये हुए,-मध्यम् विशेषण 2. चारों ओर घूमना, प्रदक्षिण करना-दीयता भौंहों के बीच का स्थान,- लता बेल की भांति भौंह, भ्रामयः-कर्पूर० 4, विद्ध०२। महराबदार या कुटिल भौंह, विकारः, ---विक्रिया, भ्रा (म्ला) श् (भ्वा० दिवा० आ० भ्राशते, भ्राश्यन्ते, ----विक्षेपः भौंहों की सिकुडन,-विचेष्टितम,-विभ्रमः, भलाशते, म्लाश्यते) चमकना, दमकना, जगमगाना। -विलासः भौंहों का मोहक संचालन, भौंहों की काम भ्राष्ट्रः,-ट्रम् [ भ्रस्ज् -ष्ट्रन्, भ्रष्ट्र---अण् वा] कड़ाही, केलि, सभ्रूविलासमथ सोऽयमितीरयित्वा मा० / --- ष्ट्रः 1. प्रकाश 2. अन्तरिक्ष / 24, मेघ०१६। भ्राष्ट्रमिन्ध (वि.) [ भ्राष्ट्र+इन्ध् +अण, मम् ] तलने भ्रूणः [ भ्रूण+घञ ] 1. गर्भ, कलल 2. (गर्भस्थ) वाला या भूनने वाला, भड़भूजा। बच्चा, बालक। सम० ध्न - हन् (वि०) भ्रूण भ्रा (म्ला) स् दे० 'भ्रा (मला) शू'। हत्या करने वाला, --हतिः,-हत्या भ्रूण कागिराना, भ्र (5) कुंशः (सः) [भ्रवा कंशो (सो) भाषणं यस्य गर्भपात कराना-भ्रूणहत्यां वा एते घ्नन्ति----याज्ञ० ब० स० ह्रस्वो वैकल्पिकः ] स्त्री की वेशभूषा में नाटक का पुरुषपात्र / भ्रेज (भ्वा०भा० भेजते) चमकना / भ्रुकुटिः-टो [ भ्रवः कुटिः कौटिल्यम्-५० त०] दे० भ्र (भ्ले) प् (भ्वा० उभ०-भ्रषति ले, श्लेषति ते) 'भृकुटि'। 1. जाना, हिलना-जुलना 2. गिरना लड़खड़ाना, डगभ्रड (तुदा० पर० भ्रडति) 1. संचय करना, एकत्र करना। मगाना, फिसलना 3. डरना 4. क्रोध करना। 2. हकना। भ्रषः [भ्रष+धन ] 1. हिलना-जुलना, गति 2. डगभ्रू (स्त्री०) [ भ्रम् +डू ] भौंह, आँख की भौंह- कान्ति- मगाना, लड़खड़ाना, फिसलना 3. विचलित होना, भ्रुवोरायतलेखयोर्या-कु० 1147 / सम०-कुटिः, भटकना, पथभ्रंश 4. सत्य से विचलन, अतिक्रमण, —टी (स्त्री०) भौहों की सिकुड़न या कुटिलता, पाप 2. हानि, वंचना। त्यौरी चढ़ाना, बंध, रचना भ्रूभंग या भ्रूभंगिमा, भ्रौणहत्यम् [भ्रूणहत्या+अण् ] गर्भस्थ शिशु की हत्या / भ्रष्टं बंध या रच भौहें सिकोड़ना, त्यौरी चढ़ाना म्लक्ष दे० भ्रक्ष / ---क्षेपः भौंहों को सिकोड़ना-भ्रूक्षेपमात्रानुमतप्रवे- लाश दे० भ्राश् / मः [ मा+क] 1. काल 2. विष 3. जादू का गर! एक। सम......अङ्क: 1. कामदेव का विशेषण 2. समद्र 4. चन्द्रमा 5. ब्रह्मा 6. विष्णु 7. शिव 8. यम, -मम् का विशेषण,-- अश्व: बरुण का विशेषण,-आकरः, 1. जल 2. प्रसन्ननता, कल्याण / ----आलयः, -आवासः समुद्र, सागर,- कुण्डलम् मकर मकरः [ मं+वि किरति-क अच्-तारा०] 1. एक की आकृति का कुंडल,--केतनः,-केतुः-- केतुमत् प्रकार का समुद्री-जन्तु, घड़ियाल, मगरमच्छ,-झषाणां (पं) कामदेव के विशेपण,....ध्वजः 1. कामदेव का मकरश्चास्मि-भग० 10 / 31, मफरवक्त्र--- भर्त० 2 / 4 विशेषण---तत्प्रेमवारि मकरध्वजतापहारि- चौर० ('मकर' कामदेव का प्रतीक या कुलचिह्न माना जाता 41 2. सेना की विशेष क्रम-व्यवस्था, -- राशि: है, तु० निम्नांकित समस्त पदों की) 2. मकरराशि (स्त्री०) मकर राशि,-.--संक्रमणम् सूर्य की मकर राशि 3. मकरव्यूह, सेना को मकराकार स्थिति में क्रमबद्ध में गति, -सप्तमी माघशुक्ला सप्तमी। करना 4. मकर के आकार का कुंडल 5. मकर के रूप | मकरन्दः[ मकरमपि यति कामजनकत्वात दो-अवखण्डने में हाथो को बाँधना 6. कुबेर की नौ निधियों में से ! क. पृषो० मुम्-तारा० ] 1. फूलों से प्राप्त शहद, For Private and Personal Use Only Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 759 ) , दम फलों का एक प्रकार का म मकरन्दवत मधु, फूलों का रस - मकरन्दतुन्दिलानामरविन्दानामयं मगधः [ मगध्--अच, मगं दोषं दधाति वा मग घा महामान्यः भामि० 116, 8 2. एक प्रकार की +क ] एक देश का नाम, बिहार का दक्षिणी भाग चमेली कोयल 4. भौंरा . एक प्रकार का सग- ----अस्ति मगधेषु पुष्पपुरी नाम नगरी-दश० 1 न्धित आम्रवृक्ष, --दम फूलों का केसर। अगाधसत्त्वो मगधप्रतिष्ट:--रघु० 6 / 21 2. भाट, मकरन्दवत् (वि.) | मकरन्द-मतुप ] मधु से पूर्ण,---ती बन्दी, चारण,--धाः (ब० व०) 1. मगध देश के पाटल की बेल या पाटल का फूल / अधिवासी, मागध 2. वडी पीपल / सभ० -- उद्भवा मकरिन (प.)। मकर - इनि 1 समद्र का विशेषण। बड़ी पीपल,-पुरी मगध की नगरी,-लिपिः (स्त्री०) मकरी [ मकर- डीप ] मादा घडियाल / सम० ---पत्रम्, मागधी लिपि या लिखावट / / -लेखा लक्ष्मी के मुखपर 'मकरी' का चिह्न,-प्रस्यः / मग्न (भू० क० कृ०) [मरज--क्त] 1. गोता लगा हुआ, एक नगर का नाम / डुबकी लगाई हुई 2. सराबोर, डूबा हुआ 3. लीन, मकुटम् मङ्क ---उट, अननासिकलोपः] ताज-तु० 'मुकुट'।। लिप्त (दे० मस्ज)। मकुतिः [ मङ्क --उति पपो० शद्रशासन, राजा की ओर मघः [म ।-अच, पपो०]1. विश्व के एक द्वीप या प्रभाग से शूद्रों के लिए आदेश। का नाम 2. एक देश का नाम 3. एक प्रकार की मकुरः [ मक उरच, पृपो० 11. शीशा, दर्पण 2. बकूल औषधि 1. मुख 5. मघा नाम का दशवां नक्षत्र, घम् का वृक्ष 3. काली 4. अरब की चमेली 5. कुम्हार एक प्रकार का फूल। के चाक का डंडा। मघव, मघवत् (पु.) [मघवन+तु अन्तादेशः, ऋकारस्य मकुलः [ मङ्क / उलच्, घृषो० ] 1. बकुल का वृक्ष इत्संज्ञा] इन्द्र का नाम / 2.काली। मघवन् (पुं०) [मह पूजायां कनिन, नि० हस्य घः, बुगामकुष्टः, मकुष्टकः | मङ्क-1-उ पपो० नलोपः, भकं भूषां गमश्च (कर्त० ए० ब० मघवा, कर्म० ब० व० स्तकति प्रतिहन्ति-गकुस्तक / अच् ] एक प्रकार ---मघोनः) 1. इन्द्र का नाम-दोहगां स यज्ञाय सस्याय की लोबिया। मघवा दिवम् रघु० 1126, 3 / 46, कि 3152, कु० मकुष्ठः [ मन् / स्था-क ] मोठ, (लोबिये का एक 3 / 1 2. उल्ल, पेचक 3. व्यास का नाम / प्रकार)। मघा [मह, +घ, हस्य घत्वम्, प्] दसवां नक्षत्र, जो मकूलकः [ मङ्क / ऊलक ।-कन् पृषो० नलोपः ] 1. कली पांच तारों का समूह है। सम० त्रयोदशी भाद्रपद ____2. दंती नामक वृक्ष / कृष्णा त्रयोदशी, --भवः, -भूः शुक्रग्रह / मक्क (भ्वा० आo-मक्कने) जाना, हिलना-जुलना। मक (म्वा० आ०-मते) 1. जाना, हिलना-जुलना मक्कुलः [ मक्क + उलक् ] धूप, गुग्गुल, गेरू / 2. सजाना, अलंकृत करना। मक्कोलः [ मक्क--ओलच् | खडिया मिट्टी। मलिः [मङ्क - इलच दावानल, जंगल की आग। मक्ष (भ्वा० पर० मक्षति) 1. इकट्ठा होना, ढेर लगना, | मङ्कुरः [मङ्क+उरच दर्पण, शीशा। सञ्चय करना 2. क्रुद्ध होना। मक्षणम् [मव-+-ल्युट, पृषो० खस्य क्षत्वम् ] टांगों की मक्षः [ मक्ष घिञ 11. क्रोध 2. पाखण्ड 3. समुच्चय, रक्षा के लिए कवच, पिंडलियों की रक्षार्थ कवच / संग्रह। सम० - वीर्यः पियाल वृक्ष / मञ्ज (अव्य०) मल+ उन्, पृषो० खस्य क्षत्वम्] तुरन्त, मक्षि (क्षी) का [ मक्ष ।-एबुल | टाप् इत्व ] मक्खी, जल्दी से, शीघ्र-मर्दपाति परितः पटलरलीनाम् मधुमक्खी --- भो उपस्थितं नयनमघु संनिहिता मक्षिका --शि० 5 / 37 2. अत्यन्त, बहुत अधिक / च मालवि० 2 / सम०--मलम मोम / मङ्खः [मंङ्ग्छ ।-अच्] 1. राजा का चारण 2. एक विशेष मख, मंख (भ्वा० पर० मखति, मखति) माना, चलना, प्रकार की औषधि / सरकना। मङ्ग (वा उभ० मङ्गति-ते) जाना, हिलना-जुलना। मखः [ मम्ब संज्ञायां घ.] यज, याविषयक कृत्य, --अकि- | मन [मङ्ग---अच 1. नाव का अगला भाग 2. नाव का चनत्वं मखज व्यनक्ति 50 5 / 16, मनु० 4 / 24, | एक पार्श्व / रघु० 3 / 39 / सम-अग्निः,---अनलः यज्ञाग्नि, मङ्गल (वि.)[मग+अलच्] 1. शुभ, भाग्यशाली, कल्या-असुहृद् (पुं०) शिव का विशेषण क्रिया यज्ञ णकारी, हितमाम-यथा मङ्गलदिवसः, मङ्गलवृषभः' विषयक कोई कृत्य, भ्रातृ (0) राम का विशेषण, में, 2. समृद्ध, कल्याणप्रद 3. बहादुर, * लम् 1. (क) ---द्विष (पं०) पिशाच, गक्षस रघु० 1127 शुभत्व, कल्याणकारिता जनकानां रघृणां च यत्कृत्स्नं -द्वेषिन (90) शिवका विशेषण, हन् (नपुं०) गोत्रमंगलम् -उत्तर० 6 / 42, रघु० 619, 1067, 1. इन्द्र का विशेषण 2. शिव का विशेषण / (ख) प्रसन्नता, सौभाग्य, अच्छी किस्मत, आनन्द, For Private and Personal Use Only Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 760 ) उल्लास मा० 113, उत्तर० 348, (ग) कुशल, पारः,...वासरः मंगलवार,-विधिः उत्सव या कोई क्षेम, कल्याण, मंगल--सङ्गः सतां किमु न मङ्गलमात- शुभकृत्य,शब्द: अभिनन्दन, आशीर्वादात्मक अभिनोति भामि० 11122 2. शुभ शकुन, कोई भी व्यक्ति,--सूत्रम् दे० 'मंगलप्रतिसर', स्नानम् मंगल शुभ घटना 3. आशीर्वाद, नांदी, शुभकामना 4. शुभ कामना के लिए किसी शुभ अवसर पर किया जाने या मंगलकारी पदार्थ 5. शुभावसर, उत्सव 6.(विवाह वाला स्नान। आदि) शुभ संस्कार 7. कोई पुरानी प्रथा 8. हल्दी, / मङ्गलीय (वि०) [मङ्गल+छ] शुभ, सौभाग्यसूचक / लः मंगलग्रह,-ला पतिव्रता स्त्री। सम०-अक्षताः / मङ्गल्य (वि.) मिल+यत्] 1. शुभ सौभाग्यशाली, (पुं०, ब० व०) आशीर्वाद देते समय ब्राह्मणों के सानंद, किस्मतवाला, समृद्ध-मनु० 2131 2. सुखद, द्वारा लोगों पर फेंके जाने वाले चावल,-अगुव (नपुं०) रुचिकर, सुन्दर 3. पवित्र, विशुद्ध, पावन --उत्तर० चन्दन का एक भेद, अयनम् आनंद या समृद्धि का ४।१०,-त्यः 1. बट-वृक्ष 2. नारियल का पेड़ 3. एक मार्ग,-अलङ्गकृत (वि.) शुभ अलंकारों से अलंकृत प्रकार की दाल, मसूर की दाल,-ल्या 1. सुगन्धित कुं० 6187, -अष्टकम् विवाह के अवसर पर वरवधू चन्दन का भेद 2. दुर्गा का नाम 3. अगर की लकड़ी की मंगलकामना के लिए पढ़े जाने वाले आशीर्वादात्मक 4. एक विशेष सुगंध द्रव्य 5. एक प्रकार का पीला श्लोक, -आचरणम् (सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य रंग, त्यम् (अनेक तीर्थ स्थानों से लाया गया) 1. राजा से) किसी भी ग्रन्थ के आरम्भ में पढ़ी जाने वाली के राज्याभिषेक के लिए शुभ तीर्थजल 2. सोना प्रार्थना के रूप में मंगल-प्रस्तावना,-आचार: 1. शुभ, 3. चन्दन की लकड़ी 4. सिंदूर 5. खट्टा दही।। पवित्र प्रथा 2. आशीर्वादोच्चारण, नांदी,—आतोद्यम् | मङ्गल्यकः [ मंगल्य+कन् ] एक प्रकार की दाल, उत्सव के अवसर पर बजाया जाने वाला ढोल, मसूर / -----आदेशवृत्तिः भाग्य में लिखे को बताने वाला | म / (भ्वा० पर० मङ्कति) अलंकृत करना, सजाना / ज्योतिषी,---आरम्भः गणेश का विशेषण--आलम्भनम् ji (भ्वा० आ० मङ्घते) 1. ठगना, धोखा देना किसी शुभ वस्तु को स्पर्श करना,--आलयः, 2. आरम्भ करना 3. कलंकित करना 4. निन्दा ----आवासः देवालय, मन्दिर,--आह्निकम् मंगल- करना 5. जाना, जल्दी से जाना 6. आरंभ करना कामना के लिए नित्य अनष्ठेय धार्मिक कृत्य,--इच्छु प्रस्थान करना। आनन्द या समृद्धि का इच्छुक,-करणम् किसी मच् (म्वा० आ० मचते) 1. दुष्ट होना 2. ठगना, (वि.) भी कार्य की सफलता के लिए पढ़ी 'धोखा देना 3. शेखी बघारना 4. घमण्डी या अहंकारी जाने वाली प्रार्थना,---कारक, कारिन (वि०) शुभ, होना। मंगलकारी, कार्यम् उत्सव का अवसर, कोई भी मचिका [भशम्भु चर्चति-म-चर्च --प्रवुल-+टाप, इत्वम्] मांगलिक कृत्य-श. 4, क्षौमम उत्सव के अवसर 'श्रेष्ठता या सर्वोत्तमता' को प्रकट करने के लिए पर पहना जाने वाला रेशमी वस्त्र-रघु० 1218, संज्ञा के अन्त में लगाया जाने वाला शब्द यथा -प्रहः शुभग्रह घटः,-पात्रम् उत्सव के अवसर पर पानी गोमचचिका 'एक बढ़िया गाय या बैल, तु० से भरा कलश जो देवोंको अर्पित किया जाय, * छायः प्लक्ष का वृक्ष, पाकड का पेड़, तूर्यम, वाद्यम् एक मच्छः [मद् + क्विप्-शी+ड] (मत्स्य का भ्रष्ट रूप) वाद्य यंत्र विगुल, या ढोल आदि-जो उत्सवादिक के मछली। शुभ अवसरों पर बजाया जाय-रघु० 3 / 20, देवता / मज्जन् (पुं०) [मस्ज्+कनिन्] मांस और हड्डियों में शुभ या रक्षक देवता,—पाठकः भाट, चारण, बन्दीजन रहने वाली मज्जा, पौधे का रस / सम०-कृत -आः दुरात्मन् वृथामंगलपाठक शैलूषापसद ---- (नपुं०) हड्डी, समुद्धयः वीर्य, शुक्र / वेणी०१,-पुष्पम् शुभ फूल,-प्रतिसरः,-सूत्रम् शुभ मज्जनम् मिस्ज भावे ल्यट] 1. डुबकी लगाना, गोता डोरी, शुभ डोरा जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने गले में लगाना, पानी में डुबको, सराबोर होना 2. स्नान तब तक पहनती है जब तक उनका पति जीवित है, करना, नहाना-प्रत्यग्रगज्जनविशेषविविक्तकान्तिः -अन्त्रः कल्पितमङ्गलप्रतिसराः (अङ्गनाः)-मा० 5 / 18 -रत्न० 1121, रघु० 16 / 57 3. डूबना 4. मांस और 2. ताबीज़ को डोरा--प्रव (वि०) शुभ (दा) हल्दी, हड़ियों के बीच की मज्जा। -प्रस्थः एक पहाड़ का नाम, मात्रभूषण वि० शुभ | मज्जा मिस्+अ+टाप्] 1. मांस और हड्डियों के अलंकार अर्थात् जनेऊ या कस्तूरी-तिलक आदि से बीच का रस या वसा 2. पौधों का रस। सम० सुभूषित,-वचस् (पुं०)-वादः मंगलात्मक अभिव्यक्ति -रजस् ( नपुं० ) 1. एक विशेष नरक 2. गुग्गुल आशीर्वचन, मंगलाचरण,-वाद्यम् दे० 'मंगलतूर्यम्', / –रसः वीर्य, शुक्र,-सारः जायफल / For Private and Personal Use Only Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 761 ) मज्जुषा दे० मञ्जूषा। 11, या मुखरमधीरं त्यज मजीरं रिपुमिव केलिषु मञ्च (भ्वा० आ० मञ्चते) 1. थामना 2. ऊँचा या लम्बा लोलम् ...5, मा० १,-रम् वह स्थूणा जिसमें रई की होना 3. जाना, चलना-फिरना 4. चमकना 5. अलंकृत रस्सी लपेटी जाती है। करना। मजीलः (पुं० ) वह गांव जिसमें धोबियों का निवास हो / मञ्चः (मञ्च् + घा] 1. शय्या, चारपाई, पलंग, बिस्तरा मञ्ज (वि.) [मञ्ज + उन्] प्रिय, सुन्दर, मनोहर मधुर, 2. उभरा हुआ आसन, वेदी, सम्मान का आसन, सुखद, रुचिकर, आकर्षक-स्खलदसमञ्जसमञ्जुजल्पितं राज्यासन, सिंहासन-तत्र मञ्चेषु मनोज्ञवेषान् -रघु० ते (स्मरामि),उत्तर० 4 / 4, अयिदलदरविन्द स्यन्दमानं 6 / 1, 3 / 10 3. मकान, टांड (खेत के रखवाले के मरन्दं तव किमपिलिहन्तोम गुञ्जन्तु भङ्गा:-भामि० लिए) 4. व्यासपीठ, ऊँचा आसन / 25, तन्मङ्घमन्दहसितं श्वसितानि तानि-२।५ / सम० मञ्चकम् [मञ्च+-कन] 1. शय्या, बिस्तरा, पलंग 2. उभरा -केशिन् (पुं०) कृष्ण का विशेषण,-गमन (वि०) हुआ आसन या वेदी 3. आँख सुरक्षित रखने का सुन्दर गति वाला, (ना) 1. हंसिनी 2. राजहंस, गतः हारा / सम-आश्रयः खटमल, खाट में रहने वाला नेपाल देश का नाम,-गिर् (वि.) मधुर स्वर कीड़ा। बाला-एते मञ्जुगिरः शुक:-काव्या० २।९,--गुजः मञ्चिका [मञ्चक+टाप, इत्वम्] 1. कुर्सी 2. कठौती, प्यारी गूंज,--घोष (वि.) मधुर स्वर बोलने वाला, थाली, 3. माची (चार पायों से बनाया हुआ स्टैण्ड -नाशी 1. सुन्दर स्त्री 2. दुर्गा का विशेषण 3. इन्द्र जिसपर बुगचों में भरा सामान लदा रहता है)। की पत्नी शी का विशेषण, पाठकः तोता,-प्राणः मञ्जरम् मज् + अर] 1. फूलों का गुच्छा 2. मोती ब्रह्मा का विशेषण,-भाषिन्,-वाच् (वि०) मधुर 3. तिलक नाम का पौधा। बोलने वाला --गिरमनुवदति शुकस्ते मजुवाक मञ्जरिः,-री (स्त्री०)मिज+ऋ+इन् शक० पररूपम्, पञ्जरस्थ:-रघु० 5 / 74, १२।३९-वक्त (वि०) पक्षे डीप्] 1. कोंपल, अंकुर, बौर---निवपे: सहकार सुन्दर मुख वाला, मनोहर, स्वन,-स्वर (वि०) मञ्जरी:-कु० 4 / 38, सदृशकान्ति रलक्ष्यत मञ्जरी मीठे स्वर वाला। - रघु० 9844, 16151, इसी प्रकार-स्फुरतु कुच- मञ्जुल वि०) [म +उ+लच वा]प्रिय, सुन्दर, रुचिकर, कुम्भयोरुपरिमणिमञ्जरी-गीत०१०, मुखं मुक्तारुचो- __ मनोहर, मधुर, सुरीली (आवाज),-संप्रति मजलधत्ते धर्माम्भःकणमञ्जरी-काव्य० 2171, 2. फूलों का वञ्जुल सीमनि केलिशयनमनुयातम् ----गीत० 11, गुच्छा 3. फूल कली 4. फूल का वन्त 5. समानान्तर जितं राजहंसानां वर्धते मदमञ्जुलम् --काव्या. रेखा 6. मोती 7. लता 8. तुलसी 9..तिलक का / 2 / 334, - लम् 1. लतामण्डप, कुंज, लतागृह पौधा / सम०-चामरम् मंजरी की शक्ल का चंवर, / 2. निर्झर, कुआँ,-लः एक प्रकार का जलकुक्कुट / पंखे जैसी मजरी विक्रम 4 / 4, ननः 'वेतस' मञ्जूषा [ म + ऊषन्+टाप्] 1. संदूक, डब्बा, पेटी, का पौधा। आधार ---मदीयपद्यरत्नानां मजरेषा मया कृता मजरित (वि.) [मञ्जर-+-इतच] 1. फूलों या बोरों के -भामि० 4 / 45, 2. बड़ी टोकरी, पिटारा 3. मजीठ गुच्छों से युक्त 2. वृंत पर लगी हुई कली आदि। 4 पत्थर। मजा [म +अच-+-टाप्] 1. बकरी 2. बौरों (फूलों) मटकी, मटती [ मट्+अप्=मट+चि+डि+की, मट् का गुच्छा 3. लता। +शत+डी ] ओला / मञ्जिः , जो मज्+इन्, पक्षे डोष्] 1. फूलों (या | मटस्फटि: [मट+स्फट् +-इ] 'घमंड का आरम्भ', आरब्ध बोरों) का गुच्छा 2. लता। सम० --फला केले का / अभिमान / पौधा। मट्टकम् (नपुं०) छत को मुंडेर / मजिका मज्+ण्वुल टाप+इत्वम् ] वेश्या, वारांगना, मठ (भ्वा० पर० मठति) 1. रसना, बसना 2. जाना, बाजारू स्त्री, रंडी। 3. पीसना। मञ्जिमन् (पुं०) [मजु+इमनिच सौन्दर्य, मनोहरता। मठः,-उम् [ मठत्यत्र मठ घनार्थे क] 1. संन्यासी की मजिष्ठा [अतिशयेन मञ्जिमती इष्ठन् मतपो लोप: -- कोठरी, साधक की कुटिया 2. विहार, शिक्षालय तारामजीठ। सम० प्रमेहः एक प्रकार का मूत्र- 3. विद्यामंदिर, महाविद्यालय, ज्ञानपीठ 4. देवालय, रोग,-राग: 1. मजीठ का रंग 2. मजीठ के रंग जैसा मन्दिर 5. बैलगाड़ी,-ठी 1. कोठरी 2. मढ़ी, विहार / आकर्षक और टिकाऊ अर्थात स्थायी अनुराग। सम०---आयतनम् विद्यामन्दिर, महाविद्यालय / मजोरः-रम् [म +ईरन्] नपुर, पैर का आभूषण मठर (वि.) [मन्+अर, ठ अन्तादेशः ] नशे में चूर, --सिञ्जानमञ्जमजीरं प्रविवेश निकेतनम् -गीत / मद्य पीकर मतवाला। 96 For Private and Personal Use Only Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 762 ) मठिका [ मठ-|-कन्+टाप, इत्वम् ] छोटी कोठरी, कुटी, / मणितम [ मण-+क्त ] एक अस्पष्ट सी सीत्कार जो कुटीर। स्त्री-सम्भोग के समय उच्चरित होती है --शि० मड्डः, मड्डुकः [ भर+डु, मड्डु+कन् ] एक प्रकार | . 10 / 75 / . का ढोल। | मणिमत् (वि०) [ मणि+मतुम् ] रत्नजटित (पुं०) मण् (भ्वा० पर० मणति) बजाना, गुनगुनाना। 1. सूर्य 2. एक पर्वत का नाम 3. एक तीर्थस्थान का मणिः (स्त्री० भी, परन्तु विरल प्रयोग) [ मण+-इन्, वरल प्रयोग न नाम। स्त्रीत्वपक्षे वा डीप | 1. रत्नजडित आभषण, रत्न, मणीचकः [मणी-+च+अच्] रामचिरैया, कम् चन्द्रमुल्यवान जवाहर---अलब्धशाणोत्कषणा नपाणां न कान्तमणि / जात मौली मणयो वसन्ति--भामि०७३. मणी मणीवकम् [ मणीव कायति मणी- कैक] फल, वज्रसमुत्कीर्णे सूत्रप्येवास्ति मे गति:--रघु० 114, पुष्प / 3 / 18 2. आभूषण 3. कोई भी उत्तम वस्तू - तू० मण्ठ (भ्वा० आ० मण्ठते) 1. प्रवल अभिलाष करना रत्न 4. चुम्बक, लोहमणि 5. कलाई 6. जलकलश 2. सखेद स्मरण करना, शोक के साथ चिन्तन करना। 7. चिकू, भगांकूर 8.लिंग का अगला भाग (इन अर्थों मण्ठः [मण्ट अच्] एक प्रकार का पका हुआ मिष्टान्न / में 'मणी' भी लिखा जाता है)। सम-इन्द्रः, मण्ड(भ्वा० पर०, चुरा० उभ० मण्डति, मण्डयति-ते ---राजः हीरा,-कण्ठः नीलकण्ठ पक्षी,-कण्ठकः मण्डित) 1. अलंकृत करना, सजाना-प्रभवति मण्डयितुं मुर्गा,-णिका,----कर्णी वाराणसी में विद्यमान एक वधूनङ्ग:-कि० 10159, भट्टि० 10 / 23 2. हर्ष पवित्र कुण्ड,- काचः बाण का वह भाग जहां पंख मनाना। लगा रहता है,-काननम् ग्रीवा, कारः रत्नाजीव, ii (भ्वा० आ० मण्डते) 1. वस्त्र धारण करना, कपड़े जौहरी, तारकः सारस पक्षी, -- दर्पणः रत्नजटित पहनना 2. घेरना, घेरा डालना 3. विभक्त करना, शीशा, -द्वीप: 1. अनन्त नाग का फण 2. अमृत बाँटना। सागर में विद्यमान एक काल्पनिक टापू,- धनुः, मण्डः,---डम् [मण्ड-+अच, मन्+3 तस्य नेत्वम् वा] ---धनुस् (नपुं०) इन्द्रधनुष,---पाली जौहरिन, रत्न 1. गाढ़ा चिकना पदार्थ जो किसी तरल पदार्थ के ऊपर आभूषणों की देखभाल करने वाली स्त्री,--पुष्पकः जम जाता है 2. उबाले हुए चावलों का मांड़-नीवारीसहदेव के शंख का नाम--भग० १६,-पूरः दनमण्डमुष्णमधुरम् --- उत्तर० 4 / 1 3. (दूध की) 1. नाभि 2. रत्नजटित चोली, (रम) कलिंग देश में मलाई 4. झाग, फेनक, फर्फदन 5. उफान 6. भात का विद्यमान एक नगर,-- बन्धः 1. कलाई---श० 7, मांड 7. रस, सत् 8. सिर, 'ड: 1. आभपण, शृंगार 2. रत्नों का बांधना- रघ० १२११०२.-~-बन्धनम 2. मेंढ़क, 3. एरंड का वृक्ष, --डा 1. खींची हुई शराव, 1. रत्नों का (कलाई में) बांधना, मोतियों की लड़ी 2. आंवले का वृक्ष / सम...-उदकम् 1. खमीर, 2. कंकण या अंगूठी का वह भाग जहाँ उसमें नग जड़े 2. उत्सवादिक के अवसर पर फर्श व दीवारों को जाते हों-श०६ 3. कलाई -श० 3.13,- बीजः, सजाना 3. मानसिक क्षोभ या उत्तेजना, प (वि.) -बीजः अनाज का पेड़,-भित्तिः (स्त्री०) शेषनाग माँड़ पीने वाला, मलाई खाने वाला,-हारकः शराब का महल, --भः (स्त्री०) रत्नजटित फर्श,-भूमिः खींचने वाला। (स्त्री०) 1. रत्नों की खान 2. रत्नजटित फर्श, वह मण्डकः [मण्ड+कन्] 1. कसार, एक प्रकार का पकाया फर्श जिसमें रत्न जड़े हों,-मन्थम सेंधा नमक, माला हुआ मैदा 2. फुलका, पतली रोटी। 1. रत्नों का हार 2. कान्ति, आभा, सौन्दर्य | मण्डनम् [मण्ड् + ल्युट] 1. सजाने या सुभूषित करने की 3. (कामकेलि में) दांत से काटे का गोल निशान क्रिया अलंकृत करना-मामक्षम मण्डनकालहाने: 4. लक्ष्मी 5. एक छन्द का नाम,-यष्टिः (पुं०, स्त्री) --रघु० 13 / 16, मण्डनविधिः-श० 6 / 5 2. आभूरत्नजटित लकड़ी, रत्नों की लड़ी,--रत्नम् आभूषण, षण, शृंगार, सजावट-सा मण्डनान्मण्डनमन्वभुङ्क्त जड़ाऊ गहना, रत्न, जवाहर, - रागः रत्नों का रंग -कु० 75, कि० 8140, रघु०८७१,-नः (मण्डन(गम् ) सिंदूर,- शिला रत्नजटित शिला,-..सरः रत्नों मिश्रः) दर्शन शास्त्र के एक विद्वान पंडित जो शास्त्रार्थ का हार,-सूत्रम् मोतियों की लड़ी,... सोपानम् रत्न- में शङ्कराचार्य से हार गये थे। जटित पौडी. जीना,---स्तम्भः रत्नों से जड़ा हुआ मण्डपः मण्डं भूषां पाति- पाक,मण्ड कपन वा]1. विवाखंभा, - हर्म्यम् रत्नजटित या स्फटिक का महल / / हादि संस्कारों के अवसर पर बनाया गया अस्थायी मणिकः -कम् [ माण+कन् ] जलकलश,-कः रत्न, मण्डप, खला कमरा, विवाह मंडप 2. तंब, मंडवा जवाहर। ---रघु० 573 3. लता कुंज, लतागृह, लतामंडप For Private and Personal Use Only Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मेघ०७८ 4. किसी देवता को अर्पित किया गया | या आठ अष्टकों में विभक्त है) 16. एक प्रकार का भवन। सम-प्रतिष्ठा देवालय की प्रतिष्ठा।। कोढ़ जिसमें गोल चकत्ते पड़ जाते हैं 17. एक प्रकार मण्डयन्तः [मण्ड+णि+झच] 1. आभूषण, शृंगार का गन्धद्रव्य,-ली वृत्त, समूह, संघात (मण्डलीकृ 2. अभिनेता 3. आहार 4. स्त्री सभा,-न्ती स्त्री। कुंडलाकार या वृत्ताकार बनाना, लपेटना, मण्डलीभू मण्डरी [मण्ड ---अरन्-डी] झिल्ली, झींगर विशेष / / वृत्त बनाना ) सम ----अग्रः झुकी हुई या टेढ़ी तलवार, मण्डल (वि.) [मण्ड-कलच्] गोल, वृत्ताकार,-ल: खङ्ग,-अधिपः,--अधीशः,-ईशः----ईश्वरः 1. किसी 1. सैनिकों का गोलाकार क्रमव्यवस्थापन 2. कुत्ता जिले या प्रान्त का राज्यपाल या शासक 2. राजा, 3. एक प्रकार का साँप, --लम 1. गोलाकार पिण्ड, प्रभु,-आवृत्तिः (स्त्री०) गोलाकार गति-उत्तर० गोलक, चक्र, गोलाकार वस्तु, परिधि, कोई भी गोल ३।१९,-कार्मुक (वि०) गोलाकार धनुष को धारण वस्तु-करालफणमण्डलम्-रघु० 12098, आदर्श करने वाला,--नृत्यम् मंडलाकार घूमते हुए नाचना, मण्डलनिभानि समुल्लसन्ति - कि० 5 / 41, स्फुरत्प्र- गोलाकार नाच, न्यासः वृत्त का वर्णन करना,-पुच्छकः भामण्डल, चापमण्डल, मुखमण्डल, स्तनमण्डल आदि एक प्रकार का कीड़ा,----वटः गोलाकार रूप में बड़ 2. (जादूगर द्वारा खींची हुई)गोलाकार रेखा ...- मुद्रा० का वृक्ष,-वर्तिन् (पुं०) एक छोटे प्रान्त का शासक, 2 / 1 3. बिब, विशेषतः चन्द्र या सूर्य का बिंब,-अप- -- वर्षः राजा के समस्त प्रदेश में बारिश का होना, वंणि ग्रहकलुपेन्दुमण्डला (विभावरी)--मालवि० देशव्यापी वर्षा। 4 / 15, दिनमणिमण्डनमण्डपभयखण्डन ए गीत० मण्डलकम् [मण्डल+कन्] 1, वृत्त, 2. बिंब 3. जिला, प्रांत 4. परिवेश, सूर्य-चन्द्र के इर्द गिर्द पड़ने वाला घेरा 4. समूह, संग्रह 5. सैनिकों की चक्राकार-व्यहरचना 5. ग्रहपथ या ग्रहकक्ष 6. समुदाय, समूह, संग्रह, 6. सफेद कोढ़ जिसमें गोल चकत्ते होते हैं 7. दर्पण / संधात,टोली, वन्द-एवं मिलितेन कुमारमण्डलेन-दश०, मण्डलयति (ना० धा० पर०) गोल या वृत्ताकार बनाना। अखिल चारिभण्डलम-रघु०४।४ 7. समाज, सम्मेलन मण्डलायित (वि.) मण्डलवत आचरितम-मण्डल-क्यङ, 8. बड़ा वृत 9. दृश्य क्षितिज 10 जिला या प्रान्त दीर्घः, मण्डलाय+क्त] गोल, वर्तुल,---तम् गेंद, 11 पड़ौस का जिला या प्रदेश 12. (राजनीति में) गोलक / किसी राजा के निकट और दूरवर्ती पड़ौसियों का गढ़ मण्डलित (वि०) [मण्डलं कृतं-मण्डल---क्विप-मण्डल ----उपगतोऽपि मण्डलनाभिताम् -रघु० 915 +क्त गोल बना हुआ, वर्तुल या गोल बनाया हुआ। (मल्लि द्वारा उद्धृत कामन्दक के अनुसार राजा | मण्डलिन् (वि०) [मण्डल-+ इनि] 1. वृत्त बनाने वाला, के निकट और दूरवर्ती पड़ोसियों के गढ़ में बारह कुण्डलाकृत 2. देश का शासन करने वाला, (पुं०) राजा सम्मिलित है। एक तो केन्द्रीय राजा या 1. एक प्रकार का साँप 2. सामान्य सर्प 3. बिलाव विजिगीष, पांच अग्रवर्ती राज्यों के राजा, चार पश्च- 4. ऊदबिलाव 5. कुत्ता 6. सूर्य, 7. बटवृक्ष 8. किसी वर्ती राज्यों के राजा, एक मध्यम या अन्तर्वर्ती राजा | प्रांत का शासक / तथा एक उदासीन अथवा तटस्थ राजा / अग्रवर्ती और मण्डित (वि.) [मण्ड+क्त अलंकृत, भूषित / पश्चवर्ती राजाओं की विशेष संज्ञाएं हैं-दे० तद्गत | मण्डकः मण्डयति वर्षासमयं-मण्ड+ऊकण] मेंढक-निमल्लि० तु. शि. 2 / 81 भी तथा इसके ऊपर पानमिव मण्डूका: सोद्योगं नरमायान्ति विवशाः सर्वमल्लि। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार ऐसे राजाओं संपदः, सुभा०,-कम् स्त्रीसंभोग का एक प्रकार, की संख्या, चार, छ:, आठ, बारह या इससे भी अधिक रतिबन्धविशेष, ---की 1. मेंढकी 2. व्यभिचारिणी स्त्री है-दे० याज्ञ० 12345 पर मिता० और दूसरे 3. कुछ पौधों के नाम / सम०-अनुवत्ति,--प्लुतिः विद्वानों के अनुसार गुट्ट में केवल तीन ही राजा होत (स्त्री०) 'मेंढकों की उछल कूद' बीच बीच में छोड़ है-प्राकृतारि या स्वाभाविक शत्रु (बगलवाले देश देना, बीच में छोड़कर आगे फलांग जाना (व्याकरण का प्रभु), प्राकृत मित्र या स्वाभाविक दोस्त (केन्द्रीय में यह शब्द कुछ सूत्र छोड़ कर उनके पूर्ववर्ती सूत्र राजा से मिले हुए दूसरे अन्य राज्यों के बाद जिसका से आपूर्ति करने के निमित्त प्रयुक्त होता है)-क्रिया राज्य हो) और प्राकृतोदासीन या स्वाभाविक तटस्थ ग्रहणं मण्डूकप्लुत्यानुवर्तते--सिद्धा०-कुलम् मेंढकों का (जिसका राज्य स्वाभाविक मित्रराष्ट्र से भी परे समूह,-योग: भाव-समाधि का एक प्रकार जिसमें हो)। 13. बन्दूक का निशाना लगाते समय विशेष साधक मेंढक की भांति निश्चल होकर समाधिस्थ पैतरा 14. दिव्य विभूतियों का आवाहन करने के होता है,--सरस् (नपुं०) मेंढकों से भरा हुआ सरोवर / लिए एक प्रकार का गुप्त रेखाचित्र या तंत्र, मण्डुरम् [मण्ड+ऊरच लोहे का जंग, लोहे का मैल (यह 15. ऋग्वेद का एक खण्ड (समस्त ऋग्वेद दस मण्डलों पौष्टिक औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है)। For Private and Personal Use Only Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यवेक्ष मिलात, असा मत (भू० क० कृ०) [मन्+क्त] 1. चिंतित, विश्वसित, प्रज्ञावान्, बुद्धिमान्, चतुर,-वैषम् मतभिन्नता, कल्पित 2. सोचा हुआ, माना हुआ, खयाल किया ---निश्चयः निश्चित विश्वास, दृढ़ विश्वास,-पूर्व हुआ, समझा हुआ 3. मूल्यवान् माना हुआ, सम्मानित, (वि०) साभिप्राय, स्वेच्छाचारी, यथेच्छ,–पूर्वम्, प्रतिष्ठित-रघु० 2 / 16, 884. प्रशंसित, मूल्य- -पूर्वकम् (अध्य०) सप्रयोजन, साभिप्राय, स्वेच्छा वान् 5. अटकल लगाया हुआ, अनुमान लगाया हुआ से, खुशी से,-प्रकर्षः बुद्धि की श्रेष्ठता, चतुराई,-भेवः 6. मनन किया हुआ, चिन्तन किया हुआ, प्रत्यक्ष विचारभिन्नता,--भ्रमः,-विपर्यास: 1. व्यामोह, मानकिया गया, पहचाना गया 7. सोचा गया 8. अभिप्रेत सिक भ्रम, मन को भ्रान्ति-श० 6 / 9 2. श्रुटि, उद्दिष्ट 9. अनुमोदित, स्वीकृत (दे० मन्),--तम् गलती, भूल, गलतफहमी,---विभ्रमः,-विभ्रंशः मन चिन्तन, विचार, सम्मति, विश्वास, पर्यवेक्षण-निश्चितं- की अव्यवस्था या दीवानापन, पागलपन, उन्माद, मतमुत्तमम्-भग० 1816, केषांचिन्मतेन-आदि -शालिन् (वि.) बुद्धिमान्, चतुर, होन (वि०) 2. सिद्धांत, उसूल, पन्थ, धर्ममत, विश्वास-ये मे मत- मूर्ख, अज्ञानी, मूढ़। मिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवा:-भग० 3 / 31 3. उप- मत्क (वि.) [अस्मदकन, मदादेशः] मेरा-संशृणव देश, अनुदेश, सलाह 4. उद्देश्य, योजना, अभिप्राय, कपे मकैः संगच्छस्व वनैः शुभैः-भट्टि० 8 / 16, प्रयोजन 5. समनुमोदन, स्वीकृति प्रशंसा। सम० -कः खटमल। -अक्ष (व.) पासे के खेल में प्रवीण,- अन्तरम् मत्कुणः [मद्+क्विप, कुण+क, ततः कर्म० स०] 1. खट1. भिन्न दृष्टि 2. भिन्न पन्थ,-अवलम्बनम् विशेष मल-मत्कुणाविव पुरापरिप्लवी-शि०१४।६८, प्रकार की सम्मति रखना। 2. बिना दाँत का हाथी 3. छोटा हाथी 4.बिना दाढ़ी मतङ्गः [माद्यति अनेन-मद्+अङ्गच दस्य तः ... तारा०] का मनुष्य 5. भैस 6. नारियल का पेड़,-णम् टांगों 1. हाथी 2. बादल 3. एक ऋषि का नाम-रघु० या जंघाओं के लिए कवच / सप०-अरिः पटसन 5 / 33 / का पौधा। मतङ्गाजः [ मतङ्ग+जन्+ड] हाथी-न हि कमलिनी मत्त (भ० क० कृ०) [मद्+क्त] 1. नशे में चूर, मतदृष्ट्वा ग्राहमवेक्षते मतङ्गजः--मालवि० 3, कि० 5 / वाला, मदोन्मत्त (आलं० से भी)-ज्योत्स्नापानमदाल४७, रघु०१२।७३ / / सेन वपुषा मत्ताश्चकोराङ्गना:-विद्ध० 1111, प्रभामतल्लिका [मतं मतिम् अलति भूषयति--मत+अल मत्तश्चन्द्रो जगदिदमहो विभ्रमयति-काव्य० 10, +ण्वुल पृषो० साधुः] सर्वोत्तमा, सर्वश्रेष्ठता प्रकट इसी प्रकार ऐश्वर्य धन बल° आदि 2. पागल, करने के लिए इस शब्द को संज्ञाओं के अन्त में जोड़ विक्षिप्त 3. मदवाला, भीषण (हाथी)-रघु० 12193 दिया जाता है, गोमतल्लिका 'श्रेष्ठ गौ' तु० उद्धः / 4. घमंडी, अहंकारी 5. खुश, अतिहृष्ट, हर्षोद्दीप्त मतल्ली दे० मतल्लिका। 6. प्रीतिविषयक, केलिपरायण, स्वैरी,--तः 1. पियमतिः (स्त्री०) [मन्+क्तिन् ] 1. बुद्धि, समझदारी, क्कड़ 2. पागल मनुष्य 3. मदवाला हाथी 4. कोयल भाव, ज्ञान, संकल्प--मतिरेव बलाद्गरीयसी--हि० | 5. भैसा 6. धतूरे का पौधा / सम०---आलम्बः 2686, अल्पविषया मतिः-रघु०११२ 2. मन, हृदय (किसी धनी पुरुष के) विशाल भवन की बाड़, इम: ---मम तु मतिनं मनागपैतु धर्मात--भामि० 4 / 26, मदवाला हाथी °गमना मस्त हाथी के सदृश चाल इसी प्रकार दुर्मति, सुमति 3. सोचना, विचार, वाली स्त्री अर्थात् अलसगति, काशि (सि) नी एक विश्वास, सम्मति, भाव, कल्पना, संस्कार पर्यवेक्षण सुन्दर लावण्यवती स्त्री,-दन्तिन (0)----नागः, --विधिरहो बलवानिति मे मतिः--भर्त० 291, ----वारणः मदवाला हाथी, (-ण:-णम्) 1. विशालभग. 1878 4. अभिप्राय, योजना, प्रयोजन-दे० भवन के चारों ओर बाड़ 2. किसी विशालभवन के मत्या 5. प्रस्ताव निर्धारण 6. सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर ऊपर बनी अटारी 3. वरांडा, अलिंद 4. भवन का -कि० 109 7. अभिलाष, इच्छा, कामना-प्रायो- सुसज्जित बहिर्भाग,-(णम्) कटी हुई सुपारी। पवेशनमतिर्नपतिर्बभूव-रघु० 894 8. सलाह, | मत्यम् [मत+यत्] 1. हल द्वारा बनाया खूड 2. ज्ञान परामर्श 9. याद, प्रत्यास्मरण (मतिक,-धा,- आधा, प्राप्त करने का साधन 3. ज्ञान का अभ्यास / मन लगाना, निश्चय करना, सोचना, मत्या (क्रि० | मत्सः [ मद्+सन् ] 1. मछली 2. मत्स्य देश का स्वामी। वि.) 1. जानबूझकर, साभिप्राय, स्वेच्छा से ... मत्या मत्सरः [ मद्+सरन् ] 1. ईाल, डाह करने वाला भुक्त्वाचरेत् कृच्छम् --मनु० 4 / 223, 5 / 19 2. इस 2. अतृप्त लालची, लोभी 3. दरिद्र 4. दुष्ट,...रः विचार से कि / व्याघ्रमत्या पलायन्ते)। सम० 1. ईयो, डाह-अदत्तावकाशो मत्सरस्य - का० 45, --धिरः विश्वकर्मा का विशेषण, - गर्भ (वि.) / परवृद्धिषु बद्धमत्सराणां-कि० 1317, शि० 9 / 63, For Private and Personal Use Only Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कु० 5 / 17 2. विरोधिता, शत्रुता---रघु० 3 / 60 / मथ् दे० मन्थ / 3. घमंड -शि० 8 / 71, 4. लोभ, लालच 5. क्रोध, | मथ माथ / कोपावेश 6. डांस या मच्छर / मथन (वि०) (स्त्री० --नी) [ मथ्-+ ल्युट ] 1. बिलोने मत्सरिन् (वि.) [ मत्सर+इनि ] 1. ईर्ष्याल, डाह वाला, मंथन करने वाला 2. चोट पहुंचाने वाला, करने वाला-परवृद्धिमत्सरि मनो हि मानिनाम्-शि० क्षति देने वाला 3. मारने वाला, नष्ट करने वाला, 15 / 1, 21115 दुष्टात्मा परगुणमत्सरी मनुष्यः नाशक-मुग्धे मधुमथनमनुगतमनुसर राधिके --गीत -मृच्छ० 9 / 27, रघु०१८।१९ 2. विरोधी, शत्रुतापूर्ण 2- नः एक वृक्ष का नाम,----नम् 1. मन्थन करना, 3. लालायित, स्वार्थरत (अधि० के साथ) 4. दुष्ट / बिलोना, विक्षुब्ध करना 2. घिसना, रगड़ना 3. क्षति, मत्स्यः [ मद्+स्यन् ] 1. मछली-शले मत्स्यानिवा चोट, नाश / सम०-अचल:- पर्वतः मन्दराचल पक्ष्यन् दुर्बलान्बलवत्तराः - मनु०७।२० 2. मछलियों पहाड जिसको रई का डंडा बनाया गया था। की विशेष जाति 3. मत्स्य देश का राजा, स्यौ मथिः [ मथ+इ] रई का डंडा / / (द्वि० व०) मीन राशि,-स्याः (ब० ब०) एक मथित (भू० क० कृ०) [ मथ्+क्त ] 1. मथा गया, देश तथा उसके अधिवासियों का नाम-मनु० 2019 बिलोया गया, विक्षुब्ध किया गया, खूब हिलाया गया याज्ञ० 1283, / सम-अक्षका,--अक्षी एक विशेष 2. कुचला गया, पीसा गया, चुटकी काटी गई 3. कष्टप्रकार की सोमलता, अद्, अदत:--आव (वि.) ग्रस्त, दुःखी, अत्याचार पीडित 4. वध किया हुआ, मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी,--अवतारः नाश किया हुआ 5. स्थानभ्रष्ट (दे० मन्थ्), तम् विष्णु के दस अवतारों में सबसे पहला अवतार (बिना पानी डाले) मथा हुआ विशुद्ध मट्ठा / (सातवें मनु के शासनकाल में दूषित हुई सारी पृथ्वी | मथिन् (पुं०) [ मथ्+इनि] (कर्तृ० ए० ३०-मथाः कर्म० बाढग्रस्त हो गई और पावन मनु तथा सप्तर्षियों ब० व० मथः) रई का डंडा--मुहुः प्रणुन्नेषु मथां (इनको विष्णु ने मछली बनाकर बचा लिया था) को विवर्तनैर्नदत्सु कुम्भेषु मृदङ्गमन्थरम् कि०४।१६, ने० छोड़कर सब जीवधारी प्राणी कालकवलित हो गये) 22 / 44, 2. वायु 3. उज, 4. पुरुष का लिंग। तु० इस अवतार का जयदेवरचित वर्णन-प्रलयपयो- मयु (थ) रा [ मथ् +उ (ऊ) रच्+टाप् ] यमुना नदी धिजले धृतवानसि वेदं विहितवहिनचरित्रमखेदं के दक्षिणी किनारे पर बसा हुआ एक प्राचीन नगर, केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे-- गीत० 1, कृष्ण की जन्मभूमि तथा उसके कारनामों का स्थल, --अशनः 1. रामचिरैया (एक शिकारी पक्षी) यह भारत की सात पुण्यनगरियों में एक है, (दे० 2. मत्स्यभक्षी, असुरः एक राक्षस का नाम, --आजीवः अवन्ति) और आज भी हजारों की संख्या में भवत मछुया, आधानी-धानी मछलियाँ रखने की टोकरी लोग दर्शनार्थ यहाँ जाते हैं। कहा जाता है कि इस (जिसे मछुवे प्रयुक्त करते है)-उदरिन् (पुं०) नगर को शत्रुघ्न ने बसाया था --निर्ममे निर्ममोऽर्थेषु विराट का विशेषण,उदरी सत्यवती का विशेषण मथुरां मधुराकृति:-रघ० 1518, कलिन्दकन्या मथुरा --उदरोयः व्यास का विशेषण,- उपजीविन् (पुं०) गताऽपि गनोर्मिसंसक्तजलेष भाति-९।४८, / सम० मछवा,-करण्डिका मछलियाँ रखने की टोकरी,.... गन्ध --ईशः,-नाथः कृष्ण का विशेषण। (वि०) मछली की गंध रखने वाला, (धा) सरस्वती | मद् उत्तमपुरुष सर्वनाम के एक वचन का रूप जो प्रायः का नाम-घण्टः एक प्रकार की मछली की चटनी समस्त शब्दों के आरम्भ में प्रयुक्त होता है --यथा ---घातिन्--जीवत्, -जीविन् (पुं०) मछुवा,-जालम् मदर्थे, 'मेरे लिए' 'मेरी खातिर' 'मच्चित्त' 'मेरे विषय मछलियाँ पकड़ने का जाल, देशः मत्स्यवासियों का में सोचकर' मद्वचनम्, मत्सन्देश:, मत्प्रियम् आदि / देश,-नारी सत्यवती का विशेषण,-नाशकः-नाशनः मदi (दिवा० पर० माद्यति, मत्त) 1. मस्त होना, नशे मत्स्यभक्षी उकाव, कुररपक्षी-पुराणम् अठारह में चूर होना-वीक्ष्य मद्यमितरा तु ममाद--शि० पुराणों में से एक,--बन्धः,-बन्धिन् (पुं०) मछुवा 10 / 27. 2. पागल होना 3. आनन्द मनाना, खुशी -बन्धनम् मछली पकड़ने का कांटा, बंसी,---बन्ध मनाना 4. प्रसन्न या हृष्ट होना / प्रेर० (मादयति) (धि) नी मछलियाँ रखने की टोकरी,-रडुः,-रङ्गः, 1. नशे में चूर करना, मदोन्मत्त करना, पागल बना -रखक: रामचिरैया (मछली खाने वाला एक देना 2. (मदयति) उल्लसित करना, प्रसन्न करना, शिकारी पक्षी),---वेधनम्, -वेधनी मछली पकड़ने खुश करना-मा० 1236 3. प्रणयोन्माद को उत्तेजित को बंसी, सधातः मछलियों का झुंड,—मत्स्यतिका, करना-मा० 316, उद्-, 1. मस्त या नशे में चूर मत्स्यण्डी मोटी या बिना साफ की हुई चीनी - ही ही होना (आलं० से भी) 2. पागल होना-मनु०३। इयं सीधुपानोरेजितस्य मत्स्यण्डिकोपनता-मालवि०३।। 161, प्रेर०- नशे में चूर करना, मदोन्मत्त करना For Private and Personal Use Only Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 766 ) - अद्यापि मे हृदयमन्मयन्ति हन्त ---भामि०२५, / -उल्लापिन् (पुं०) कोयल, कर (वि०) मादक, प्र , 1. नशे में चूर होना, मस्त होना 2. उपेक्षक नशे में चूर करने वाला,---कारिन् (पुं०) मदवाला होना, लापरवाह या अवधान रहित होना (अधि० हाथी,-कल (वि०) मदुभाषी, अव्यक्तभाषी, अस्पष्टके साथ) अतोऽर्थान्न प्रमाद्यन्ति प्रमदासु विपश्चितः भाषी ... रघु० 9 / 37, प्रेम की मंदध्वनि उच्चारण मनु० 2 / 213 3. भूलचूक होना, भटक जाना, विच. करने वाला 3. जोश से भरा हुआ- उत्तर० 1131, लित होना यथा स्वाधिकारात्प्रमत्तः- - मेघ०१ में, मा० 9 / 14 4. अस्पष्ट परन्तु मधुर--मदकलं कूजितं 4. गलती करना, भूल करना राह भूल जाना-भट्टि० सारसानाम् ---- मेघ० 31, 5. मदवाला, प्रचण्ड, 5 / 8,17139, 1818, सम्-,1. नशे में चूर चूर होना, मदोन्मत्त विक्रम० 4 / 24, (-ल:) मदवाला हाथी 2. हर्षयुक्त होना, प्रसन्न होना। --कोहलः (स्वेच्छा से भ्रमण करने के लिए) मुक्त ii (चुरा० आ० मादयते) प्रसन्न करना, खुश साँड, खेल (वि०) प्रणयोन्माद के कारण केलिप्रिय करना। -विक्रप० ४।१६,-गन्धा 1. मादकपेय 2. पटसन, मवः [ मद्-+-अच् ] 1. मादकता, मस्ती, मदोन्मत्तता ---गमनः भैसा,-च्युत् (वि.) 1. (हाथी की भांति) -मदेनास्पश्ये-दश०, मदविकाराणां दर्शक:-का० 45, मद चुवाने वाला 2. कामुक, स्वेच्छाचारी, पीकर धुत्त दे. नी. समस्त पद 2. पागलपन, विक्षिप्तता 3. उग्र 3. आनन्ददायक, उल्लासमय (पु०) इन्द्र का विशेषण. प्रणयोन्माद, लालसापूर्ण उत्कण्ठा, गाढाभिलाषा, ..-जालम्,--वारि (नपु०) मदरस, मदवाले हाथी कामुकता, मैथुनेच्छा ---इति मदमदनाभ्यां रागिणः के गण्डस्थल से चूने वाला मद,- ज्वरः पमण्ड या स्पष्टरागान ..शि० 10.91 4. मदमत्त हाथी के जोश का बुखार--- भर्त० ३१२३,-द्विपः उन्मत्त हाथी, मस्तक से चूने वाला मद मदेन भाति कलभः प्रतापेन मदमस्त हाथी,-- प्रयोगः,-प्रसेकः,-प्रस्रवणम्- सावः, महीपतिः चन्द्र० 5 / 45, इसी प्रकार दे० मदकल, --स्रुतिः (स्त्री०) हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना, मदोत्मत्त, मेघ० 20, रघु० 2 / 7, 12 / 102 5. प्रेम, ......मुच (वि.) 'मद टपकाने वाला' मदोन्मत्त, नशे में इच्छा, उत्कंठा 6. घमण्ड, अहंकार, अभिमान पंच० चूर-उत्तर० ३.१५,रक्त (वि०) जोशीला,-रागः 1 / 240 7. उल्लास, आनन्दातिरेक 8. खीची हई 1. कामदेव 2. मुर्गा 3. पीकर धुत,-विक्षिप्त (वि०) शराब 9. मधु, शहद 10. कस्तूरी 11. वीर्य, शुक्र / 1. मदमस्त, मदोन्मत्त 2. कामलालसा से विक्षुब्ध सम० ... अत्ययः,- आतङ्कः सुरापान के परिणामस्वरूप .....विह्वल (वि.) 1. घमण्ड या काम लालसा से होने वाला विकार (सिरदर्द आदि),---अन्ध (वि०) पागल 2. नशे के कारण निश्चेष्ट,- वृन्दः एक हाथी, 1. मद से अन्धा, पीकर बेहोश, ती उत्कण्ठा से पीते ---शौंण्डकम् जायफल,-सारः बाड़ी,-स्थलम,-स्थानम् हुए . अधरमिव मदान्धा पातुमेषा प्रवृत्ता विक्रम मदिरालय, शराबघर, मधुशाला / 4 / 13, 2. अभिमान से अंधा, घमंडी, ....अपनयनम् | मदन (वि.) (स्त्री-नो) माद्यति अनेन . मद करणे नशा दुर करना,-अम्बरः 1. मदवाला हाथी 2. इन्द्र ल्युट] 1. मादक, पागलपन लाने वाला 2. आनन्दका हाथी ऐरावत,-अलस (वि०) नशे या जोश से दायक, उल्लासमय, नः 1. कामदेव .. व्यापाररोधि निढाल, अवस्था 1. पीकर मदहोशी की हालत मदनस्य निषेवितव्यम् / 0127, हतमपि निहन्त्येव 2. स्वेच्छाचारिता, कामासक्ति 3. मद चने की स्थिति मदनः--भर्तृ० 3 / 18 2. प्रेम, प्रणयोन्माद, उत्कण्ठा, --- रघु० 217, --आकुल (वि.) मदोन्मत्त, -आढ्य कामकुता विनयवारितवृत्तिरतस्तया न विवृतो मदनो (वि०) पीकर मस्त, नशे में चूर (ढ्यः) ताड का न च संवृतः-श० 2 / 11, सतन्त्रिगीतं मदनस्य पेड,...आम्नातः हाथी की पीठ पर बजाया जाने दीपकम् ---ऋतु० 1 / 3, रघु० 5 / 63, इसी प्रकार वाला ढोल या नगाडा, .. आलापिन (५०)कोयल, 'मदनातुर' 'मदनपीडित' आदि 3. वसन्त ऋतु —आह.वः कस्तुरी, - उत्कट (लि०) 1. नशे में चूर, 4. मधुमक्खी, भौंरा 5. मोम 6. एक प्रकार का मद्यपान से उत्तेजित 2. तीव्र प्रणयोन्मत्त, कामक आलिंगन 7. धतूरे का पौधा 8. वकुल का वृक्ष, खैर, 3. अभिमानी, घमंडी, दर्पयक्त 4. मदवाला, मदमस्त -ना, नी 1. खींची हुई शराब 2. कस्तूरी 3. अतिमुक्त रघु० 67, (ट:) 1. मदवाला हाथी 2. पेंड की, लता (---नी केवल इन दो अर्थों में), नम 1. मादक (टा) खीची हुई शराब, उग्र, उन्मत्त (वि०) 2. प्रसन्न करने वाला, 3. आनन्ददायक। सभ० 1. पीकर मस्त, नशे में चूर 2. भयंकर, जोश से भरा -अग्रकः एक धान्यविशेष, कोदों,- अकुशः 1. पुरुष हुआ-मदोदग्राः ककूद्मन्तः सरितां कलमद्रजा:-रघ० 4 / का लिंग 2. नाखून या नखक्षत (सम्भोग के समय 22, 3,आभमानी, घमंडी, अहंकारी, उद्धत (वि०)जोश हुआ).-अन्तकः,-अरिः, दमनः, दहनः, नाशनः, से भरा हुआ-कु० 3 / 31 2. घमण्ड से फूला हुआ, / --रिपुः शिव के विशेषण,--अवस्थ (वि०) प्रेमासक्त, For Private and Personal Use Only Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 767 ) सानुराग--आतुर... आर्त, -- क्लिष्ट पीडित (वि.)। 11 / 49 2. एक प्रकार का खंजन पक्षी 3. दुर्गा का कामात, प्रेमविह्वल, कामरोगी - रघु० 12132, नामान्तर / सम०-उत्कट,--उन्मत्त (वि) शराब के श० 3 / 10,... -आयुधम् 1. स्त्री की भग या योनि नशे में चूर, - गृहम्,-शाला मदिरालय, शराबखाना, 2. 'कामदेव का अस्त्र' अर्थात् लावण्यमयी स्त्री, - मधुशाला,-सखः आम का पेड़ / ... आलयः, ----यम् 1. स्त्री की योनि 2. कमल | मदिष्ठा अतिशयेन मदिनी-इष्ठत, इनो लोपः, टाप्] 3. राजा,--इच्छाफलम् आमों का राजा. ... उत्सवः खींची हुई शराब / कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला बसन्त- मदीय (वि.) [अस्मद्+छ, मदादेशः] मेरा, मुझसे संबद्ध, कालीन उत्सव, (वा) अप्सरा, --उत्सुक (वि०) प्रेम -रधु० 2 / 45, 65, 5 / 25 / के कारण उत्कंठित या निढाल,--उद्यानम 'प्रमोद वन' मद्गः [मस्ज+उ न्यङ्क्वा०] 1. एक प्रकार का जलचर एक उद्यान का नाम, ...-कण्टक: 1. प्रेमभावना से जन्तु, जलकाक, पनडुब्बी पक्षी 2 एक प्रकार का साँप उत्पन्न रोमांच 2. वृक्ष का नाम - कलहः प्रेमकलह, 3 एक प्रकार का जंगली जानवर 4 विशाल नौका या मैथुन छेदसुलभाम्, मा० २१२,काकुरवः पेंडुकी यद्धपोत ... कोऽपि मढ़गुरभ्यधावत् –दश० 5 एक पतित या कबुतर, गोपालः कृष्ण का विशेषण,-चतुर्दशी वर्णसंकर जाति, भाट जाति की स्त्री में ब्राह्मण द्वारा चैत्रशुक्ला चतुर्दशी, इसी दिन कामदेव के सम्मानार्थ उत्पन्न सन्तान-दे० मनु० 17148 6. जातिमनाया जाने वाला उत्सव,-त्रयोदशी चैत्रशुक्ला बहिष्कृत / त्रयोदशी या काम के सम्मान में उस दिन मनाया | मद्गुरः मद्-1-गुक+उरच, न्यङ्क्वा०] 1. गोताखोर, जाने वाला उत्सव,-नालिका अतीस, स्त्री,-पक्षिन् मोती निकालने वाला 2. जर्मनमछली 3. एक पतित (पं०) खंजन पक्षी,पाठकः कोयल,-पीड़ा,-बाधा वर्ण संकर जाति--दे० मद्गु (5.) / प्रेमवेदना, प्रेम की टीस, महोत्सवः कामदेव के | मद्य (वि.) [माद्यत्यनेन करणे यत्] 1. मादक 2. आनंदसम्मान में मनाया जाने वाला महोत्सव,-मोहनः दायक, उल्लासमय,---द्यम् खींची हुई शराब, मदिरा, कृष्ण का विशेषण,-ललितम् प्रेमकेलि, रंगरेली, मादकपेय-रणक्षितिः शोणितमद्यकुल्या-रघु० 7 / 49 कामक्रीडा,-लेखः प्रेम-पत्र,-वश (वि०) प्रेममुग्ध, - मनु० 5 / 56, 9 / 84 1089 / सम०-आमोदः मोहित, -- शलाका 1. कोयल (मादा) 2. कामोद्दीपक / मौलसिरी का पेड़,-कोटः एक प्रकार का कीड़ा, द्रुमः मवनक: मिदन -कन् एक पौधे का नाम, दमनक / एक प्रकार का वृक्ष, माडवृक्ष,-पः पियक्कड़, शराबी, मदयन्तिका, मदयन्ती [मदयन्ती+कन्टाप् ह्रस्वः, मद् नशेबाज,–पानम् 1. मादक मदिरा पीना 2. कोई +-णिच् +-झच +ङीष] एक प्रकार की चमेली भी मादक पेय,—पीत (वि.) पीकर नशे में चूर (अरब की)। --पुष्पा धातकी नामक पौधा, धौ,-बी (वी) जम् मदथिन्नु (वि.) [मद्---णिच् ---इत्नुच्] 1. मादक, पागल खमीर उठाने वाली ओषध, खमीर पैदा करने वाली बनाने वाला 2. आनन्द देने वाला, -लुः 1. कामदेव लेई,---भाजनम् शराब का गिलास, इसी प्रकार मद्य2. बादल 3. कलवार 4. पीकर धुत हआ 5. खींची भाण्डम्,--मण्डः शराब का झाग, मद्यफेन,--बासिनी हुई शराब, (इस अर्थ में 'नपु०' भी)। धातकी नामक पौधा,-संधानम् मदिरा खींचना / मदारः | मद्-आरन् / मदवाला हाथी 2-सूअर 3 धतूरा | मद्रः [मद+रक] 1. देश का नाम 2. उस देश का शासक, 4 प्रेमी, कामुक 5 एक प्रकार का सुगंध द्रव्य 6ठग -द्राः (ब. व०) मद्र देश के अधिवासी, द्रम हर्ष या बदमाश / प्रसन्नता (मद्राकृ=भद्राकृ बालकाटना, कैची से कतमदिः (स्वी०) [मद्-+-इन्] पटेला, मैड़ा। रना, मुंडना)। सम-कार (वि०) ('मद्रंकार' मविर (वि०) [माद्यति अनेन मद करणे किरन्] 1. मादक, भी) हर्षोत्पादक / दीवाना करने वाला 2 आनंददायक, आकर्षक, (आंखों / मतका मद्रकन] मद्र देश का शासक या अधिवासी, को) हर्ष कर,-रः (लाल फूलों का) खैर का वृक्ष / -का (ब०व०) दक्षिण देश की एक पतित जाति / सम० अक्षी,-ईक्षण-नयना,-लोचना मनोहर मधव्यः [मधु+यत् वैशाख का महीना। और आकर्षक आँखों दाली स्त्री--मधुकर मदिराक्ष्याः मधु (व०) (स्त्री०-धु या० ध्वी) [मन्यत इति मधु, शंस, तस्था: प्रति -विक्रम०४।२२, रघु० 8 / 86, मन्+उ नस्य धः] मधुर, सुखद, रुचिकर, आनन्द -आयतनयन (वि०) लड़ी और मनोहर आंखों वाला। युक्त नपुं० ( धु) 1. शहद - - एतास्ता मधुनो —श० ३।५,आसवः मादक पेय / धाराश्चोतन्ति सविषास्त्वयि - उत्तर० 3 / 34, मधु मदिरा [मदिर-टाप्] 1. खींची हई शराब --कांक्षत्यन्यो तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदये तु हलाहलम् 2. पुष्परस या वदनमदिरां दोहदच्छनास्या:--मेघ 078, शि० फूलों का रस-कु० 3 / 36 देहि मुखकमलमधुपानं For Private and Personal Use Only Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 768 ) --गीत० 10 3. मीठा मादक, पेय, शराब, खींची। माक्षिक,-धारा शहद की धार,--धूलिः राब, गुड, हई शराब-बिनयन्ते स्म तद्योधा मधभिर्विजयथमम् - नालिकेरकः एक प्रकार का नारियल, नेत (पु०) ----- रघु० 4 / 65, ऋतु० 23 4. पानी 5. शक्कर भौंरा, पः मधुकर, या पियक्कड़-राजप्रिया: कर6. मिठास, ..पुं०(धुः) 1. वसन्त ऋतु-क्वनु हृदय- विण्यो रमन्ते मधुपैः सह भामि० 11126, 1133, ङ्गमः सखा कुसुमायोजित कार्मको मधुः--कु० 4 / 24- (यहां दोनों अर्थ अभिप्रेत है),---पटलम् शहद की 25, 3 / 10, 30, चैत्र का महीना--भास्करस्य मक्खियों का छत्ता,--पतिः कृष्ण का विशेषण,-.--पर्कः मधुमाधवाविव-रघु० 1117, मासे मधौ मधुरको- 'शहद का मिश्रण' एक सम्मानयक्त उपहार जो किसी किलभृङ्गनाद रामा हरन्ति हृदयं प्रसभं नराणाम् अतिथि को या कन्या के पिता के द्वार पर आ जाने ----ऋतु०६।२४ 3. एक राक्षस का नाम जिसे विष्णु पर दुल्हे को अर्पित किया जाता है, इसमें निम्नांकित ने मारा था 4. एक और राक्षस जिसके पिता का पाँच पदार्थ डाले जाते हैं-दधि सपिर्जलं क्षौद्रं सिता नाम लवण था तथा जिसे शत्रुघ्न ने मारा था चतश्च पंचभिः, प्रोच्यते मधुपर्कः, समांसो मधुपर्क: 5. अशोक वृक्ष 6. कार्त वीर्य राजा का नाम / सम० --उत्तर 04, असिस्वदद्यन्मधुपर्कपितं स तद् व्यधा---अष्ठीला शहद का लौंदा, जमा हुआ शहद, त्तक मुददर्शिनाम्, यदैष पास्यन्मधु भीमजाधर--आधारः मोम, आपात (वि०) पहली बार शहद मिषेण पुण्याहविधिं तदा कृतम् -- नै० 16 / 13, मनु० चखने वाला--मनु० 1109, -आम्रः एक प्रकार का 31119 तथा आगे,—पयं (वि०) मधुपर्क का आम का वृक्ष,-आसवः (शहद से) खींची हुई मीठी अधिकारी, पणिका,-पर्णी नील का पौधा,---पाथिन् शराब,-आस्वाद (वि०) शहद का स्वाद चखने वाला, (पुं०) भौंरा,---पुरम्,-री, मथुरा का विशेषण--- - आहुतिः (स्त्री०) यज्ञ में मिष्टान्न की आहुति देना संप्रत्युज्झितवासनं मधुपुरीमध्ये हरिः सेव्यते----भामि० -उच्छिष्टम्,-- उत्थम्,-उत्थितम् मधुमक्खियों का 4 / 44,- पुष्पः 1. अशोक वृक्ष 2. मौलसिरी का वृक्ष मोम,---उत्सवः वसन्तोत्सव,-उदकम् ‘मधुजल', शहद 3. दन्ती वृक्ष 4. सिरस का पेड़, -प्रणयः शराब की मिला हुआ पानी, जलमधु - उद्यानम् वसन्तोद्यान, लत,--.-प्रमेहः मधुमेह, शर्करायुक्त मत्र, -प्राशनम् --उपघ्नम् 'मवु का आवास' मथुरा का नामान्तर शुद्धीकरण के सोलह संस्कारों में से एक जिसमें नव--रघु० १५।१५,-कण्ठः कोयल, --- करः 1. भौंरा जात शिशु को मधु चटाया जाता है,—प्रियः बलराम --- कुटजे खलु तेनेहा तेने हा मधुकरेण कथम् का विशेषण,--फलः एक प्रकार का नारियल, फलिका --भामि० 1110, रघु०९।३०, मेघ० 35 / 47 2. प्रेमी, एक प्रकार का छुहारा,-बहुला माधवी लता,--बी कामक, गणः, श्रेणिः (स्त्री०) मक्खियों का झंड, (वी) जःअनार का वृक्ष,-बी (वी) जपुरः एक प्रकार -कर्कटी 1. मीठा नीब, चकोतरा 2. एक प्रकार | की नींव, चकोतरा, मक्षः,-क्षा,-मक्षिका मधुमक्खी, का छुहारा, काननम्,-वनम् मधुराक्षस का वन, -मज्जनः अखरोट का पेड़,-मदः शराब का नशा -- कारः, कारिन् (पुं० मधुमक्खी- कुक्कुटिका, -मल्लिः, ल्ली (स्त्री०) मालती लता,--माधवी .-कुक्कुटी एक प्रकार का नींब का पेड़,-- कुल्या 1. एक प्रकार का मादक पेय 2. कोई भी वसंत ऋतु मधु की नदी, - कृत् (पुं०) मधुमक्खी, केशटः मधु का फूल,-माध्वीकम् एक प्रकार की मादक मदिरा, मक्खी,-कोशः, षः मधुमक्खियों का छत्ता, - क्रमः -मारकः भौंरा,-मेहः मधुप्रमेह दे०,-यष्टिः (स्त्री) शहद की मक्खियों का छत्ता, (ब० ब०) मदिरा पीने गन्ना, ईख, मुलेठी, - रसः 1. ताड़ का वृक्ष (जिससे की होड़, आपानक,-क्षीरः, - क्षीरकः खजूर का पेड़, ताडी बनती है) 2. गन्ना, ईख 3. गिठास, (सा) --गायनः कोयल,-ग्रहः मधु का तर्पण,-घोषः कोयल, 1. अंगूरों का गुच्छा 2. अंगूरों की बेल,-लग्नः एक -जम् मोम,---जा 1. मिसरी 2. पृथ्वी, जम्बीरः वृक्ष का नाम,--लिह, लेह,-लेहिन् (पुं०), एक प्रकार का नींबू जित, --विष, निषूदन, -लोलुपः भौंरा इसी प्रकार 'मधुनो लेहः', बनम् --निहन्तु (पुं०),--मथः, -- मथनः,-- रिपुः,- शत्रुः, वह जंगल जहाँ मधु नामक राक्षस रहा करता था .-- सूदनः, विष्णु के विशेषण-इति मधुरिपुणा सखी जिसको मारकर शत्रुघ्न ने मथुरा नगरो बसाई थी, नियुक्ता,--- गीत० 5, रघु० 9 / 48, शि० 1511, (नः) कोयल,-वाराः (पुं०, व० व०) वार 2 पीने -तृणः—णम् गना, ईख, त्रयम् तीन मीठे पदार्थ वाले, शराब के जाम पर जाम चढ़ाने वाले, डटकर अर्थात् शक्कर, शहद और घी,-दीपः कामदेव, दूतः शराब पीने वाले जज्ञिरे वहुमता: प्रमदानामोप्ठआम का पेड़, दोहः मधु या मिठास खींचना,द्रः यावकनदो मधुवारा:--कि० 9 / 59, क्षालितं न शमित 1. भौंरा 2. कामुक,-ब्रवः लाल फूलों का एक वृक्ष, नु वधूनां द्रावितं नु हृदयं मधुवारैः - शि० 10.14, -मः आम का पेड़,-धातुः एक प्रकार का पीला (कभी कभी यह शब्द एक वचनांत भी होता है) दे० For Private and Personal Use Only Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि०८।५७, व्रतः भौरा ---मामिकः को मरन्दानाम- | मलिका [ मधूल-कन् ।-टाप् इत्वम् एक प्रकार न्तरेण मधुब्रतम् - भामि० 11117, तस्मिन्नद्य मधुव्रते का वृक्ष / विधिवशान्माध्वीकमाकांक्षति 46, शर्करा शहद से मध्य (वि.) [ मन्+यत्, नस्य धः, तारा०] 1. बीच तैयार की हुई शक्कर,-शाखः एक प्रकार का (महुए का, केन्द्रीय मध्यवर्ती, केन्द्रवर्ती-मेघ० 46, मनु० का) पेड,-शिष्टम्,-शेषम् मोम,-सखः, -सहायः, 2212. अन्तर्वर्ती, मध्यवर्ती 3. बीच के दर्जे का, मध्यक, --सारथिः, -सुहृद् कामदेव,--सिक्यकः एक प्रकार दमियाने कदका, बीच का --प्रारभ्य विघ्नविहता विरका विष,-सूदनः भौंरा,-स्थानम् मधुमक्खियों का यन्ति मध्याः भर्त० 2 / 27 4. तटस्थ, निष्पक्ष छत्ता, * स्वरः कोयल, हन (पुं०) 1. शहद को नष्ट 5. न्याय्य, यथार्थ 6. (ज्यो० में) मध्यभाग,-ध्यः,--ध्यम् करने वाला या एकत्र करने वाला 2. एक प्रकार का 1. मध्य, केन्द्र, मध्य या केन्द्रीय भाग अह्नः मध्यम् शिकारी पक्षी 3. ज्योतिषी, भविष्यक्ता 4. विष्ण दोपहर, दिन का मध्य-सहस्रदीधितिरलङ्करोति का नामान्तर। मध्यमह्नः . मा० 1, 'सूर्य शिरोबिन्दु पर है। अर्थात् मधुकः मधु-कन्, के-+-क वा] 1. एक वृक्ष (==मधूक, 'ठीक सिर के ऊपर' है, व्योममध्ये विक्रम० 2 / 1 महुआ) का नाम 2. अशोक वृक्ष 3. एक प्रकार का 2. शरीर का मध्यभाग, कमर-मध्ये क्षामा--मेघ० पक्षी, कम् 1. जस्ता 2. मुलैठी।। 82, वेदिविलग्नमध्या --कु० 1 / 39 बिशालवक्षास्तमधुर (वि.) [ मधु माधुर्य राति रा+क मधु अस्त्यर्थेर नवृत्तमध्यः ...- रघु० 6 / 32 3. पेट, उदर -मध्यन " वा | 1. मीठा 2. शहदयुक्त, मधुमय 3. सुखद, मनो- बलित्रयं चारु बभार बाला-कु० 1139 4. किसी हर, आकर्षक, रुचिकर---अहो मधुरमासां दर्शनम् वस्तु का भीतरी भाग 5. बीच की स्थिति या दशा .....श० 1, कु० 5 / 9, उत्तर० 120 4. सुरीला 6. घोड़े की कोख 7. संगीत में मध्यवर्ती सप्तक (स्वर),-रः लाल रंग का गन्ना, ईख 2. चावल 8. किसी श्रेणी की मध्यवर्ती राशि, ----ध्या बीच की 3. राब, गुड 4. एक प्रकार का आम, -- रम् 1. माधुर्य अंगली,-ध्यम दस अरब की संख्या ('मध्य' के कर्म०, 2. मघुरपेय, शर्बत 3. विष 4. जस्ता, रम् (अव्य०) करण० अपा० और अधिक के रूप क्रि० वि० की मिठास के साथ सहावने ढंग से, रोचकता के साथ / भांति प्रयुक्त होते है) (क) मध्यम में, के बीच में सम०---अक्षर (वि.) मधुर ध्वनि वाला, मिष्टभाषी, (ख) मध्येन में से, बीच से (ग) मध्यात् में से, के रसीला, आलाप (वि०) मधुर शब्दों का उच्चारण बीच (संब० के साथ) से -तेषां मध्यात् काकः प्रोवाच करने वाला (पः) मधुर या सरीले स्वर - मधुरालाप- —पंच० 1 (घ) मध्ये 1. बीच में, में, मध्य में निसर्ग पण्डितानाम् ---कु०४।१६, (-पा) मैना, मदनसा- रधु०१२।२९ 2. में, के अन्दर, के भीतर, बहुधा रिका, कण्टकः एक प्रकार की मछली,--जम्बीरम नींबू (जब कि अव्ययीभाव समास के आदि पद के रूप में की एक जाति, -त्रयम् -- मधुत्रयम् दे०,-फलः एक प्रयोग हो) उदा० - मध्येगङ्गम गंगा में, 'मध्येजठरम् प्रकार का पेंवदी बेर,---भाषिन्,-वाच् (वि०) 'पेट में भामि० 161, . मध्येनगरम् 'नगर के मधुरभाषी,---सवा एक प्रकार का छुहारे का पेड़, भीतर' मध्येनदि 'नदी के बीच में' मध्येपृष्ठम् 'पीठ पर' स्वर, ---स्वन (वि०) मधुर स्वर से अलापने वाला, मध्येभक्तम, भोजन करने के पश्चात फिर दोबारा मधुरस्वर वाला। भोजन करने से पूर्व बीच में ली जाने वाली औषधि, मधुरता, स्वम् / मधुर-+-तल - टाप, व वा ] माधुर्य, मध्येरणम् 'युद्ध में'- भामि० 1 / 128, मध्येसभ 'सभा सुहावनापन, रोचकता। में या सभा के सामने'---० 6176, मध्येसमुद्रम् मधुरिमन् (पुं०) [ मधुर-इमनिच ] मार्य, रोचकता 'समद्र के बीच में शि०३।३३) / सम-अगुलिः, मधुरिमातिशयेन वचोऽमृतम्-भामि० 1 / 113 / / —ली (स्त्री०) बीच की अंगुली.---अह नः ('अहन्' मधुलिका / मधुल+कन्+टाप, इत्वम् ] काली सरसों, के स्थान में) मध्याह्न, दोपहर, कृत्यम्, क्रिया दोप हर के समय की जाने वाली क्रिया, काल: "वेलाः मधूकः [ मह +ऊक नि० हस्य घः ] 1. भौंरा 2. एक समयः दोपहर का समय, स्नानम दोपहर का नहाना, वृक्ष का नाम महुआ,-कम् मधुक (महुए) बृक्ष / -कर्णः अर्धव्यास, ग (वि.) बीच में जाने वाला का फूल-दुर्वांवता पाण्डुमधूकदाम्ना-कु० 7 / 14, ... गत (वि.) केन्द्रीय, मध्यवर्ती, बीच में होने वाला, स्निग्धोनकच्छविर्गण्ड:--गीत० 10, रघु० गन्धः आम का वृक्ष, ग्रहणम् ग्रहण का मध्य, 6 / 25 / दिनम् ('मध्यंदिनम्' भी) 1. मध्य दिन, दोपहर मधूलः | मधु +-लाति ला+क पृषो०] एक प्रकार का 2. दोपहर का उपहार, दीपकम दीपक अलंकार का वृक्ष, --लो आम का पेड़ / एक भेद, इसमें सामान्य विशेषण जो समस्त चित्रण For Private and Personal Use Only Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (770 ) पर प्रकाश डालता है बीच में स्थापित किया जाता है, शास्त्रों में वर्णित एक नायिका, अपनी जवानी की उदा०-भट्रि० १०॥२४,-देश: 1. मध्यवर्ती स्थान या उम्र के बीच पहुँची हुई स्त्री,तू० सा० द०१००, प्रदेश, किसी चीज का मध्यवर्ती भाग 2. कमर --..मम् कमर / सम-----अङ्गलिः बीच की अंगुली, 3. पेट 4. याम्योत्तर रेखा 5. केन्द्रीय प्रदेश, हिमालय आहरणम् (बीज में) समीकरण म बीच की तथा विध्य पर्वत के बीच का भाग हिमवद्विन्ध्य- राशि का निरसन, -- कक्षा बीच का आंगन, जात योर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि, प्रत्यगेव प्रयागाच्च (वि.) दो के बीच में उत्पन्न, मझला,—पदम् मध्यदेश: स कीर्तितः --मनु० २।२१,—देहः शरीर (समास के) बीच का पद, लोपिन (पू०) तत्पुरुष का प्रमुख भाग, पेट, पदम् मध्यवर्ती पद, लोपिन समास का एक अवांतर भेद जिसमें कि रचना के बीच दे० मध्यमपदलोपिन्,-पातः सहधर्मचारिता, समागम, का शब्द लुप्त कर दिया जाता है, इसका सामान्य --भाग: 1. मध्य भाग 2. कमर,-भावः बीच की उदाहरण 'शाकपार्थिवः' है, इसका विग्रह है - शाकस्थिति, सामान्य स्थिति,---यवः पीली सरसों प्रियः पार्थिवः, यहाँ बीच के शब्द 'प्रिय' का लोप कर के छः दानों के बराबर का एक तोल,- रात्रः, दिया गया, इसी प्रकार छायातरुः व गुडधानाः आदि ---रात्रिः (स्त्री०) आधी रात, रात का बीच,-रेखा शब्द है, पाण्डवः अर्जुन का विशेषण, पुरुषः (व्या० केन्द्रीय या प्रथमयाम्योत्तर रेखा,-लोकः तीनों लोक के में) मध्यमपुरुष-बह पुरुष जिसको सम्बोधित किया बीच का लोक अर्थात मर्त्यलोक या संसार, जाय,- भूतकः किसान, खेतिहर (जो अपने लिए और °ईशः, ईश्वरः राजा,--वयस् अधेड़ उम्र- अपने स्वामी के लिए खेती का काम करता है), वाला, वतिन् (वि.) बीच में स्थित, केन्द्रवर्ती ----रात्रः आधी रात,-लोकः बीच का संसार, भूलोक, (पुं०) विवाचक, मध्यस्थ, -वृत्तम् नाभि,-सूत्रम्- °पालः राजा रघु०२।१६, ....वयस् (नपु०) प्रौढ़ा मध्यरेखा दे०,-स्थ (वि०).1. बीच में स्थित या विद्य- वस्था, बीच की उम्र, वयस्क (वि०) प्रौढ़, बीच की मान, केन्द्रीय 2. मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती 3. बीच का उम्र का, संग्रहः बीच के दर्जे का गुप्तप्रेम, जैसे कि 4. बीच-बचाव करने वाला, दो दलों के बीच मध्यस्थता गहने कपड़े, पुष्प आदि उपहार भेज कर परस्त्री को करने वाला 5. निष्पक्ष, तटस्थ 6. उदासीन, लगाव- फुसलाना, व्यास ने इसकी निम्नांकित परिभाषा की रहित-श० 5, (स्थः) निर्णायक, विवाचक, मध्यस्थ है-प्रेषणं गन्धमाल्यानां धूपभूषणवाससाम्, प्रलोभनं 2. शिव का विशेषण, स्थलम् 1. मध्य या केन्द्र चान्नपानमध्यमः संग्रहः स्मृतः, साहसः तीन प्रकार 2.मध्य स्थान या प्रदेश 3. कमर,-स्थानम् 1. बीच का के दण्डभेदों में द्वितीय प्रकार मनु०८।१३८, (सः पड़ाव 2. बीच का स्थान अर्थात बाय 3. तटस्थ प्रदेश, --सम) मध्यवर्ग के प्रति अपराध या अत्याचार,---स्थ ---स्थित (वि०) केन्द्रीय, अन्तर्वर्ती / (वि०) बीच में होने वाला। मध्यतः (अव्य०)[ मध्य+तसिल ] 1. बीच से, मध्य से, | मध्यमक (वि०) (स्त्री०-मिका) [मध्यम-कन बीच का, में से 2. में। बिलकुल बीचोंबीच का। मध्यम (वि०) [ मध्ये भव:-मध्य-म ] बीच में स्थित मध्यमिका | मध्ममकटाप, इत्वम] वयस्क कन्या, जो या वर्तमान, बीच का, केन्द्रीय पितु: पदं मध्य विवाह योग्य उम्र की हो गई हो। ममत्पतन्ती-विक्रम० 1119, इसी प्रकार 'मध्यमलोक मध्ये दे० 'मध्य' के अन्तर्गत / पाल: मध्यमपदम् मध्यमरेखा 2. मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती मध्वः एक प्रसिद्ध आचार्य तथा शास्त्रप्रणेता, वैष्णव 3. बीच का, बीच की स्थिति या विशेषता का, बीच संप्रदाय के प्रवर्तक तथा वेदान्तसूत्रों के भाष्यकर्ता। के दर्जे का यथा 'उत्तमाधममध्यम' में 4. बीच का, मध्वकः [मधु-- अक्-| अच्] भौंरा।। औसत दर्जे का तेन मध्यमशक्तीनि मित्राणि स्थापि-मध्विजा [मधु ईजते प्राप्नोति-मधु / ईज्/क--टाप, तान्यतः ---रघु० 1758 5. बीच के कद का 6. न पषो० ह्रस्वः] कोई भी मादक पेय, खींची हुई शराब / सबसे छोटा न सबसे बड़ा, (भाई) बीच में उत्पन्न | मन् / (म्वा० पर० मनति) 1. घमण्ड करना 2. पूजा -प्रणमति पितरौ वां मध्यमः पाण्डवोऽयम-वेणी० करना (चुरा० आ० मानयते) घमण्डी होना, 5 / 26 7. निष्पक्ष, तटस्थ,-मः 1. संगीत में पंचम Mi (दिवा० तना० आ० मन्यते, मनुते, मत) स्वर 2. विशेष संगीत पद्धति 3. मध्यवर्ती देश, दे० 1. सोचना, विश्वास करना, कल्पना करना, चिन्तन मध्यदेश 4. (व्या० में) मध्यम पुरुष 5. तटस्थ प्रभु--- करना, उत्प्रेक्षा करना, विचारना-अङ्घ केऽपि शशङ्किरे धर्मोत्तरं मध्यममाश्रयन्ते ----रघु० 1317 6. प्रान्त का जलनिधेः पङ्ख परे मेनिरे-सुभा०, वत्स मन्ये कुमारेराज्यपाल, -मा 1. बीच की अंगली 2. विवाह योग्य णान्येन जम्भकास्त्रमामन्त्रितम् ... उत्तर. 5, कथं कन्या, वयस्क कन्या 3. कमल का बीजकोष 4. काव्य- भवान्मन्यते 'आपकी क्या सम्मति है' 2. खयाल करना, 1758 छोटा For Private and Personal Use Only Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 771 ) आदर करना, मानना, देखना, समझना, मान लेना / अव-, घृणा करना, हेय समझना, अवज्ञा करना, .--समीभूता दृष्टिस्त्रिभवनमपि ब्रह्म मनते-भर्त० नीच समझना, तुच्छ समझना-चतुर्दिगीशानवमत्य 3684, अमस्तचानेन पराय॑जन्मना स्थितेरभेत्ता मानिनी-कु० 5 / 53, मनु० 4 / 135, विक्रम०२।११ स्थितिमन्तमन्वयम्-रघु० 3227, 1132, 6 / 84, भग० प्रति-, सोचना, विचारना-प्रेर० 1. सम्मान करना, 2126, 35, भट्टि० 9 / 117, स्तनविनिहितमपि सम्मानित समझना, आदर करना 2. अनुमोदन करना, हारमदारं सा मनुते कृशतनुरिव भारम् - गीत०४ प्रशंसा करना 3. अनुज्ञा देना, अनुमति देना, वि --, 3. सम्मान करना, आदर करना, मान करना, मूल्यवान् (प्रेर०) अनादर करना, तुच्छ समझना, अवज्ञा करना, समझना, बड़ा मानना, वरेण्य समझना-यस्याङ्गिण नीच समझना---स्त्रीभिर्विमानितानां कापूरुषाणां विवइमे भवनाधिपत्य भोगादयः कृपणलोकमता भवन्ति र्धते मदन:-मच्छ० 8 / 9, सम्-, 1. सहमत होना, - भ० 376 4. जानना, समझना, प्रत्यक्ष करना, एकमत होना, एक मन का होना 2. हामी भरना, पर्यवेक्षण करना, लिहाज करना---मत्वा देवं धनपति स्वीकृति देना, अनुमोदन करना, पसंद करना 3. सोचना, सखं पत्र साक्षाद्वसन्तम् --- मेघ० 73 5. स्वीकृति खयाल करना, मानना 4. स्वीकृति देना, अधिकार देना देना, हामी भरना, अमल करना तन्मन्यस्व 5. मान करना, सम्मान करना, महत्वपूर्ण समझेना, मम वचनम् -मृच्छ०८ 6. सोचना, विचार विमर्श --- कच्चिदग्निमिवानाय्यं काले संमन्यसेऽतिथिम् करना 7. इरादा करना, कामना करना, आशा करना -भट्टि० 6/65, समस्त बन्धून् 112 6. अनुज्ञा 8. मन लगाना, 'मन्' धातु के अर्थ उस शब्द के देना, अनुमति देना (प्रेर०) सम्मान करना, आदर अनुसार जिसके साथ इसका प्रयोग होता है, विविध करना, प्रतिष्ठा करना।। प्रकार से बदलते रहते हैं . उदा० बहु मन् बहुत | मननम् [मन् / ल्युट्] 1. सोचना, विचार विमर्श करना, मानना, बड़ा समझना, बहुत मूल्य आंकना, बरेण्य गहनचिन्तन करना, अवधारणा करना--मननान्मनिसमझना, पूज्य मानना बहु मनुते ननु ते तनुसंगत- रेवासि-हरि० 2. प्रज्ञा, समझ 3. तर्कसंगत अनुमान सवनचलितमपि रेणुम्---गीत०५, 'बहु' के अन्तर्गत 4. अटकल, अंदाजा। भी दे०; लघु मन् तुच्छ समझना, घृणा करना, अपमान | मनस् (नपुं०) [मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन्] 1. मन, करना-श०७।१; अन्यथा मन और तरह सोचना, हृदय, समझ, प्रत्यक्षज्ञान, प्रज्ञा, जैसा कि सुमनस, संदेह करना, साधु मन् भला सोचना, अनुमोदन दुर्मनस् आदि में 2. (दर्शन में) संज्ञान और प्रत्यक्षकरना, संतोषजनक समझना, श० 112, असाधु मन् ज्ञान का आन्तरिक अंग या मन, वह उपकरण जिसके नापसंद करना, तृणाय मन् या तृणवत् मन् तिनके द्वारा ज्ञेय पदार्थ आत्मा को प्रभावित करते हैं, (न्या० जैसा समझना, हलका मूल्य लगाना, तुच्छ समझना द० में मन एक द्रव्य या पदार्थ माना गया है जो आत्मा -हरिमप्यमंसत तृणाय---शि० 15 / 61, न मन् से सर्वथा भिन्न है)-तदेव सुखदुःखाद्युपलब्धिसाधनअवज्ञा करना, अवहेलना करना, प्रेर० (मानयति-ते) / मिन्द्रियं प्रतिजीवं भिन्नमण नित्यं च-त. को० सम्मान करना, श्रद्धा दिखाना, आदर करना, अभि- 3. चेतना, निर्णय या विवेचन की शक्ति 4. सोच, वादन करना, मूल्यवान् समझना --मान्यान्मानय विचार, उत्प्रेक्षा, कल्पना, प्रत्यय, पश्यन्नदूरान्मनसाप्य-भर्तृ० 2177, इच्छा० (मीमांसते) 1. विचार विमर्श धृष्यम्-- कु. 3151, रघु० 2 / 27, कायेन वाचा करना, परीक्षण करना, अन्वेषण करना, पूछताछ मनसाऽपि शश्वत्-५.५ 5. योजना, प्रयोजन, अभिकरना 2. संदेह करना, पूछताछ के लिए बुलाना, प्राय 6. संकल्प, कामना, इच्छा, रुचि; इस अर्थ में (अधि० के साथ), अनु-स्वीकृति देना, हामी 'मनस्' शब्द का प्रयोग बहुधा धातु के तुमुन्नत रूप के भरना, अनुमोदन करना, स्वीकार करना, अनुमति साथ (तुम् के अन्तिम 'म्' का लोप करके) होता है, देना, अनुज्ञा देना, मंजूरी देना-राजन्यान्स्वपुरनि- और विशेषण शब्द बनते हैं-अयं जनः प्रष्ट्रमनावृत्तयेऽनुमेने रघु० 4 / 87, 14 / 20, तत्र नामनु- स्तपोनिधे---कु. 5 / 40, तु. काम 7. विचारविमर्श मन्तुमुत्सहे मोघवृत्ति कलभस्य चेष्टितम्-रघु०११।३९, 8.स्वभाव,प्रकृति,मिजाज 9.तेज,ओज,सत्त्व 10. मानस कु. 1159, 3160, 5168, भर्तृ० 3 / 22, रघु० नामक सरोवर (मनसा गम सोचना, चिन्तन करना, 16385, प्रेर०-छुट्टी मांगना, अनुमति मांगना, स्वीकृति याद करना--कु० 2 / 63, मनः कृ मन को स्थिर मांगना-अनुमान्यतां महाराजः-विक्रम० 2, अभि-, करना, विचारों को निर्दिष्ट करना, (संप्र० या अधिक 1. कामना करना, इच्छा करना, लालायित होना के साथ), मनः बन्ध मन लगाना, स्नेह हो जाना --मनु० 90195 2. अनुमोदन करना, हामी भरना -अभिलाषे मनो बबन्घान्यरसान् विलंध्य सा-रघु० 3. सोचना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना, मानना, 3.4, मनः समाधा अपने आपको स्वस्थ करना, मनसि For Private and Personal Use Only Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 772 ) उदभु मन को पार करना, मनसिक सोचना, ध्यान / -प्रसावः चित्त की स्वस्थता, मानसिक शान्ति, रखना, दृढ़ संकल्प करना, निर्धारण करना, -प्रीतिः (स्त्री०) मानसिक सन्तोप, हर्ष, खुशी, मन में रखना)। सम.--अधिनाथः प्रेमी, पति, -भवः, -भू: 1. कामदेव मनोज---रे रे मनो -अनवस्थानम् अनवधानता,-अनुम् (वि०) मनो मम मनोभवशासनस्य पादाम्बुजद्वयमनारतमानमन्तम् नुकूल, रुचिकर,---उपहारिन् (वि.) हृदयहारी, -भामि० 4 / 33, कु० 3 / 27, रघु० 722 2. प्रेम, --अभिनिवेशः खूब मन लगाना, प्रयोजन की दृढ़ता, प्रणयोन्माद, कामुकता-अत्यारूढो हि नारीणामकालज्ञो ---अभिराम (वि.) मन के लिए सुखद, हृदय को मनोभवः -रघु० १२१३३,----मथनः कामदेव,---मय तृप्त करने वाला--रघु० १।३९,-अभिलाषः मन की (वि) पृथक् देखिये,—यायिन् (वि०) 1 इच्छानुसार लालसा या इच्छा,----आप (वि.) हृदयहारी, आक- गमन करने वाला 2. तेज, फुर्तीला,—योगः दत्त र्षक, सुहावना,-कान्त (वि०) (मनस्कान्त या मनः, चितता, खूब ध्यान देना, योनिः कामदेव,---रंजनम् कान्त) मन का प्रिय, सुहावना. रुचिकर,—कारः पूर्ण 1. मन को प्रसन्न करना 2. सुहावनापन,-रथः 1. मन प्रत्यक्ष ज्ञान (सुख या दुःख का) पूरी चेतना,-क्षेपः की गाड़ी, कामना, चाह अवतरत: सिद्धिपथं शब्दः मन की उचाट, मानसिक अव्यवस्था, गत (वि.) स्वमनोरथस्येव-मालवि० 1122, मनोरथानामगमन में विद्यमान, हृदय में छिपा हुआ, आन्तरिक, तिर्न विद्यते-कु. 5 / 64, रघु० 3 / 72, 12159 अन्दरूनी, गुप्त, नेयं न वक्ष्यति मनोगतमाधिहेतुम् 2. अभीष्ट पदार्थ-~मनोरथाय नार्शसे—श० 7.13 -03 / 12 2. मन पर प्रभाव डालने वाला, वांछित 3. (नाटक में) संकेत, परोक्ष रूप से या गप्त से प्रकट (शम्) 1. कामना, चाह-मनोगतं सा न शशाक की गई कामना, दायक (वि०) किसी एक व्यक्ति शंसितुम--कु० 5 / 51 2. विचार, चिन्तन, भाव, की आशाओं को पूरा करने वाला, (-कः) कल्प तरु सम्मति,-गतिः (स्त्री०) हृदय की इच्छा,-गवी का नाम, सिद्धिः (स्त्री०) कल्पना की सष्टि, हवाई कामना, चाह, ---गुप्ता मैनसिल,--ग्रहणम् मन को किले बनाना, --रम (वि०) आकर्षक, सुखद, रुचिकर, हराना,--ग्राहिन् (वि०) मन को हराने वाला या प्रिय सुन्दर-अरुणनखमनोरमास तस्याः(अङ्गलीषु)-श० आकृष्ट करने वाला,-ज,-जन्मन् (वि०) मनोजात, ६।१०,(-मा) 1. कमनीय स्त्री 2. एक प्रकार का रंग, (पु.) कामदेव,-जव (वि०) विचार की भांति, -~-राज्यम् 'कल्पना का राज्य' हवाई किला--मनोराफुर्तीला, आशुगामी 2. चिन्तन और विचारण में तेज, ज्य विजृम्भणमेतत् 'यह हवाई किले बनाना है',-लयः 3. पैतृक, पितृ तुल्य संबन्ध रखने वाला--जवस् चेतना का नाश,-लौल्यम् मन की चंचलता, मन की (वि.)पिता के समान, पितृतुल्य,—जात (वि०) मन लहर या मौज, -वाञ्छा,-वाञ्छितम् हृदय की अभिमें उत्पन्न, मन में उदित या पैदा हुआ,-जिन (वि०) लाष, इच्छा, -- विकार:,---विकृति (स्त्री०) मन का मन से संघने वाला अर्थात् दूसरों के मन के विचार संवेग,-वृत्तिः (स्त्री०) 1. मन की क्रियाशीलता, भांपने वाला, -- (वि०) सुहावना प्रिय, रुचिकर, इच्छाशक्ति 2. स्वभाव, चित्तवत्ति, वेगः विचारों सुन्दर, लावण्यमय - इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि की तेजी,-यथा मानसिक पीडा या वेदना, -शीलः, तन्वी-श० 1 / 20, रघु० 3 / 7, 67 (ज:) एक -ला मैनसिल - मनः शिलाबिच्छरिता निषेद्:-- कू० गन्धर्व का नाम, (-ज्ञा) 1. मैनशिल 2. मादक पेय 1155, रघु० 12680, शीघ्र (वि०) मन की भांति 3. राजकुमारी, तापः, ---पीड़ा 1. मानसिक पीडा तेज,---संगः मन की (किसी वस्तु में) आसक्ति, या वेदना व्यथा 2. पश्चात्ताप, पछतावा,-तुष्टिः ---सन्तापः मन की व्यथा, स्थ (वि०) हृदय में (स्त्री०) मन का संतोष, तोका दुर्गा का विशेषण, स्थित, मानसिक,---स्थर्यम मन की दृढ़ता,-हत (वि०) --दण्डः मन या विचारों पर पूर्ण नियन्त्रण-मनु० निराश, -हर (वि०) सुखद, लावण्यमय, आकर्षक, 10.10 तु० त्रिदण्डिन्,-वत्त (वि०) दत्तचित्त, कमनीय, प्रिय-अव्याजमनोहरं वपुः---श० 1117, कु० जिसका मन किसी वस्तु में पूरी तरह लग रहा हो, 3 / 39, रघु० 3 / 32 (-रः) एक प्रकार की चमेली, मन से दिया हुआ,--वाहः,--दुखःम् मन का क्लेश, (-रम्) सोना,-हर्तृ--हारिन् (वि०) हृदय को हरण पीडा, मनस्ताप -नाशः बुद्धि का नाश, विक्षिप्तता, करने वाला, मनोहर, रुचिकर, सुखद --हितं मनोहारि पागलपन, नीत (वि०) पसंद किया हुआ, चुना हुआ, च दुर्लभं वच:-कि० ११४,-हारी असती या व्यभि-पतिः विष्णु का विशेषण,-गृत (वि.) 1. मन चारिणी स्त्री,-हादः हृदय का उल्लास,-ह्वा मैनसिला जिसे पवित्र मानता हो, अन्तरात्मा द्वारा अनुमोदित, | मनसा [ मनस-1-अच्+टाप् ] कश्यप की एक पुत्री का -मनःपूतं समाचरेत् -मनु० 6146 2. शुद्धात्मा, नाम, नागराज अनन्त की बहन तथा जरत्कारु मुनि सचेत, प्रणीत (वि.) मन को रुचिकर या सुखद, I की पत्नी, इसी प्रकार 'मनसादेवी'। For Private and Personal Use Only Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 773 ) मनसिजः [मनसि जायते-जन+ड, अलुक स०] 1. काम- | दस प्रजापति या महर्षियों का जन्म हआ। इसी को देव रघु० 18152 2. प्रेम, प्रणयोन्माद मनसिज- मनुस्मृति नामक धर्मसंहिता का प्रणेता माना जाता है रुजं सा वा दिव्या ममालमपोहितुम् - विक्रम सातवा मनु वैवस्वत मनु कहलाता है क्योंकि उसका 3 / 10, श० 3 / 9 / जन्म विवस्वान् (सूर्य) से हुआ। यही जीवधारी मनसिशयः [ मनसि शेते-शी+अच् सप्तम्या अलुक ] प्राणियों की वर्तमान जाति का प्रजापति समझा जाता कामदेव शि० 7 / 2 / है। जल प्रलय के समय मत्स्यावतार के रूप मुनस्तः (अब्य०) [ मनस् / तस् ] मन से, हृदय से में विष्ण ने इसी मन की रक्षा की थी। अयोध्या पर -रघु० 14181 / शासन करने वाले सूर्यवंशी राजा के सूर्यवंश का प्रवमनस्विन् (वि.) [ मनस् +विनि ] 1. बुद्धिमन्, प्रज्ञा- तक भी यही मनु समझा जाता है-दे० उत्तर० 6.18 वान्, चतुर, ऊँचे मन वाला, उच्चात्मा----रघु० 1 // रघु० 1 / 11, चौदह मनुओं के क्रमशः निम्नलिखित 32 पंच० 26120 2. स्थिरमना, दृढ़निश्चय, दृढ़ नाम है--1. स्वायंभुव 2. स्वारोचिष 3. औत्तमि संकल्प वाला - कु० ५।६,-नी 1. उदार मन की या 4. तामस 5. रेवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत 8. सावणि अभिमानिनी स्त्री- मनस्विनीमानविघातदक्षम् --कु० 9. दक्षसावणि 10.ब्रह्मसावणि 11. धर्मसावणि 12. रुद्र३।३२, मालवि० 1119 2. बुद्धिमती या सती स्त्री सावणि 13. रोच्यदवसावणि 14. इन्द्र सावणि / 3. दुर्गा का नाम / 3. चौदह की संख्या के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति, मनाक (अव्य०) [ मन्-|-आक्] 1. जरा, थोड़ा सा, -नुः (स्त्री०) मनु की पत्नी। सम० - अन्तरम् अल्पमात्रा में, न मनाक 'बिल्कुल नहीं 'रे पान्थ एक मनु का काल (मनु० 1179 के अनुसार यह बिह्वलमना न मनागपि स्याः--भामि० 1137, 111 काल मनुष्यों के 4320000 वर्षों का होता है, इसी 2. शनैः शनैः, विलंब से। सम० ---कर (वि०) को ब्रह्मा का 1114 दिन मानते हैं, क्योंकि इस प्रकार थोड़ा करने वाला, (रम) एक प्रकार की गंधयक्त के 14 कालों का योग ब्रह्मा का एक पूरा दिन होता अगर की लकड़ी। है। इन चौदह कालों में से प्रत्येक का अधिष्ठातृमनाका [ मन्+आक--टाप् ] हथिनी / मनु पथक 2 है, इस प्रकार के छ: काल बीत चके है, मनित (वि.) [ मन्+क्त ] ज्ञात, प्रत्यक्षज्ञान, समझा इस समय हम सातवें मन्वन्तर में रह रहे हैं, और हुआ। सात और मन्वंतर अभी आने हैं),जः मानवजाति मनीकम् [ मन्---कीकन ] सुर्मा, अंजन / अधिपः, °अधिपतिः, ईश्वरः, पतिः, राजः राजा, मनीषा | मनसः ईषा प० त०, शक० ] 1. चाह, कामना, प्रभ, लोकः मानवों की सष्टि-अर्थात् भूलोक, -यो दुर्जनं वशयितुं तनुते मनीषां- भामि० 1195 --जातः मनुष्य,--ज्येष्ठः तलवार,-प्रणीत (वि.) 2. प्रज्ञा, समझ 3. सोच, विचार / मनु द्वारा शिक्षित या व्याख्यात,-भूः मनुष्य, मानव, मनीषिका [ मनीषा+कन्-:-टाप, इत्वम् ] समझ, प्रज्ञा / जाति,-राज् (पुं०) कुबेर का विशेषण,-श्रेष्ठः मनीषित (वि०) [मनीषा-इतच् ] 1. अभिलषित, विष्णु का विशेषण,-संहिता धर्मसंहिता जो प्रथम वांछित, पसंद किया गया, प्यारा, प्रिय -मनीषिताः मन द्वारा रचित मानी जाती है, मनु द्वारा प्रणीत सन्ति गृहेषु देवता:-कु० 5 / 4 2. रुचिक,र,-तम् विधिविधान। कामना, इच्छा, अभीष्ट पदार्थ -मनीषितं द्यौरपि मनुष्यः [मनोरपत्यं यक सुक च] 1. आदमी, मानव, मयं येन दुग्धा .. रघु० 5 / 33 / 2. नर / सम० ---इन्द्रः,-ईश्वरः राजा, प्रभु-रघु० मनीषिन् (वि.) [ मनीषा+-इनि ] बुद्धिमान, विद्वान्, / 212, --जातिः मानव जाति, इंसान, देवः 1. राजा प्रज्ञावान्, चतुर, विचारशील, समझदार --रघु० 1 // --रधु० 2 / 52 2. मनुष्यों में देव, ब्राह्मण,---धर्मः 15, (पुं०) बुद्धिमान या विद्वान् पुरुष, मुनि, पंडित 1. मनुष्य का कर्तव्य 2. मानव चरित्र, इंसान की -माननीयो मनीषिणाम् --रघु०१।११, संस्कारवत्येव विशेषता, धर्मन् (पुं०) कुबेर का विशेषण,--मारगिरा मनीषी-कु० 28, 5 / 39, रघु० 3 / 44 / णम् मानवहत्या,-यज्ञः आतिथ्य, अतिथियों का मनुः [मन्+उ] 1. एक प्रसिद्ध व्यक्ति जो मानव का प्रति- सत्कार, गृहस्थ के पाँच दैनिक कृत्यों में एक, निधि और मानवजाति का हित माना जाता है (कभी दे० नयज्ञ,-लोकः मरणशील (मयों) मनष्यों का कभी यह दिव्य व्यक्ति समझे जाते हैं) 2. विशे- संसार, भूलोक, विश, -विशा (स्त्री०), विशम् पत: चौदह क्रमागत प्रजापति या भूलोक प्रभु-मनु० इंशान, मानवजाति,-शोणितम् मानवरक्त-(पपौ) 1 / 63 (सबसे पहले मनु का नाम स्वायंभुव मनु है, कुतूहलेनेव मनुष्यशोणितम्-.-रघु० 3 / 54, सभा जो एक प्रकार से गौण स्रष्टा समझा जाता है, इससे / 1. मनुष्यों की सभा 2. भीड़, जमाव / मानव जाति देव, ब्राह्मणमा की For Private and Personal Use Only Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 774 ) मनोमय (वि.) [मनस्+मयद] मानसिक, आत्मिक / / जीवन्ति जना मनागमन्त्रा:-भामि०१११११, अचिन्त्यो सम० - कोशः, --बः आत्मा को आवृत करने वाले हि मणिमंत्रौषधीनां प्रभावः .. रत्न० 2, रघु० 2 / पांच कोषों में से दूसरा कोष / 32, 5 / 57 4. (प्रार्थना परक) यजुस् जो किसी मन्तुः [मन्+तुन्] 1. दोष, अपराध---मुधैव मन्तुं परि- देवता को उद्दिष्ट करके बोला गया हो -'ओं नमः कल्प्य भामि० 2 / 13 2. मनुष्य, मानवजाति, तुः शिवाय' आदि 5. गुप्तवार्ता, मंत्रणा, परामर्श, उप(स्त्री०) समझ / देश, संकल्प, योजना तस्य संवृतमन्त्रस्य -- रघु० मन्त (पृ.) [मन् +तृच्] ऋषि, मुनि, बुद्धिमान्, 120, 17 / 20, पंच० 20182, मनु० 7.18 मनुष्य, परामर्शदाता, सलाहकार / 6. गुप्त योजना या मंत्रणा, रहस्य / सम-आराधनम् मन्त्र चरा०आ०मंत्रयते, कभी कभी 'मन्त्रयति' भी, मन्त्रित) मोहन परक या आवाहन के मंत्रों से सिद्धि की चेष्टा 1. सलाह लेना, विचार करना, सोच विचार करना, --- मन्त्राराघनतत्परेण मनसा नीता: श्मशाने निशा: मन्त्रणा करना, परामर्श लेना-न हि स्त्रीभिः सह --भर्त० 314, - उदकम्,-जलम, तोयम् - वारि मन्त्रयितुं युज्यते- पंच० 5, मनु० 7 / 146 2. उपदेश (नपुं०) मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित जल, मंत्र पढ़कर देना, सलाह देना, परामर्श देना-- अतीतलाभस्य च पवित्र किया हुआ पानी, उपष्टम्भः परामर्श द्वारा रक्षणार्थं यन्मन्यते ऽसौ परमो हि मन्त्रः-पंच. समर्थन करा,---करणम् 1. वेदपाठ 2. सस्वर वेदपाठ 2 / 182 3. वेदपाठ को अभिमंत्रित करना, जाद से करना,-कारः वैदिक सूक्तों का कर्ता, कालः मंत्रणा मुग्ध करना 4. कहना, बोलना, बातें करना, गन- या परामर्श का समय, कुशल (वि.) परामर्श देने गुनाना-किमपि हृदये कृत्वा मत्रत्येथे---०१, किमे- में चतुर,... कृत् (पुं०) वैदिक सूक्तों का प्रणेता या काकिनी मन्त्रयसि-श०६, हला संगीतशालापरिस- रचयिता --रघु० 5 / 4, 261, 15 / 31 2. वेद पाठी रेऽवलोकिता द्वितीया त्वं किं मन्त्रयन्त्यासी: - मा० 2, 3. सलाहकार, परामर्शदाता 4. राजदूत, गण्डकः अनु-,1. अभिमंत्रित करना, जादू करना --विसृष्टश्च ज्ञान, विशान,-गुप्तिः (स्त्री०) गुप्त सलाह,---गूढ़: वामदेवानुमन्त्रितोऽश्वः-उत्तर० 2 2. आशीर्वाद गुप्तचर, गुप्तदूत या अभिकर्ता,-जिह्वः अग्नि-शि० देकर बिदा करना -रथमारोप्य कृष्णेन यत्र कर्णोऽन- 21107, ...-शः 1. सलाहकार, परामर्शदाता 2. विद्वान् मन्त्रित:-महा०, अभि----,1. वेदमंत्रों द्वारा अभिमंत्रित ब्राह्मण 3. गुप्तचर, दः, - दात (पुं०) आध्याकरना, पशुरसौ योऽभिमन्य ऋतौ हत:--अमर०, त्मिक गुरु या आचार्य, दर्शिन् (पुं०) 1. वैदिक याज्ञ० 2 / 102, 3 / 326 2. मुग्ध करना, मोहना, सूक्तों का द्रष्टा 2. वेदों में निष्णात ब्राह्मण, आ---.1, बिदा करना, विसर्जन करना, --आमन्त्रयस्व -दीधितिः अग्नि,- दश (पुं०) 1. वैदिक सक्तों सहचरम् --- श० 3, कु. 6 / 94 2. बोलना, बुलाना, का द्रष्टा, ऋषि 2. परामर्शदाता, सलाहकार,- देवता कहना, संबोधित करना, वार्तालाप करना तमामन्त्र- मन्त्र द्वारा आहूत देवता,--धरः सलाहकार,-निर्णयः यांबभूव-का० 81, वेणी०१ 3. कहना, बोलना मंत्रणा के पश्चात् अन्तिम निर्णय, ..पूत (वि.) मंत्रों - परिजनोऽप्येवमामन्त्रयते . का. 195, भट्रि० द्वारा पवित्र किया हुआ, -प्रयोग: मंत्रों का प्रयोग, 9 / 98 4. बुलाना, निमंत्रित करना, उप-उपदेश -बी (वी) जम् मंत्र का प्रथमाक्षर,---भेदः गुप्त देना, उकसाना, फुसलाना, नि-न्योता देना, बलाना, परामर्श का प्रकट कर देना, भेद खोल देना, - मूर्तिः बुला भेजना-दिग्भ्योनिमन्त्रिताश्चैनमभिजग्ममहर्षयः शिव का विशेषण, मूलम् जादू,-,यन्त्रम् जादू के ----- रघु० 1559, 11432, याज्ञ० 1225, संकेत से युक्त एक रहस्यमूलक रेखाचित्र, ताबीज़, -,जादु से अभिमंत्रित करना सम् , सलाह करना, ---योगः 1. मंत्रों का प्रयोग 2. जादू,... वर्जम् परामर्श या सलाह लेना,--मम हृदयेन सह संमन्त्रोक्त- (अव्य०) बिना मंत्र बोले,-बिद् दे० ऊ० 'मंत्रज्ञ', वानसि- - मुद्रा० 1 / --विद्या मंत्रविज्ञान, जादू, संस्कारः वेदपाठ से मन्त्रः [ मन्त्र+अच ] 1. (किसी भी देवता को संबोधित) यक्त कोई संस्कार या अनुष्ठान,-संहिता वेद के वैदिक सक्त या प्रार्थनापरक वेद मंव, (वेद का पाठ समस्तसक्तों का संग्रह,-- साधकः जादूगर, बाजीगर, तीन प्रकार का है-यदि छन्दोबद्ध और उच्चस्वर से -साधनम् 1. जादू द्वारा वश में करना, या कार्य बोला जाने वाला है तो ऋक है, यदि गद्यमय और सिद्धि 2. मोहनमंत्र, आवाहनमत्र-साध्य (वि.) मन्दस्वर से बोला जाने वाला है तो यजुस् है, और जादु के मंत्रों से वशीकरण या कार्य सिद्धि के योग्य यदि छन्दोबद्धता के साथ मेयता है तो सामन् है) 2. मंत्रणा द्वारा प्राप्य,--सिद्धिः (स्त्री०) 1. किसी 2. वेद का संहिता पाठ (ब्राह्मण भाग को छोड़कर) मंत्र की क्रियाशीलता, या सम्पन्नता 2. मंत्रज्ञान से 3.मोहन, वशीकरण तथा आवाहन के मंत्र,- न हि / प्राप्त होने वाली शक्ति,--स्पश (वि.) मन्त्रों द्वारा For Private and Personal Use Only Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 775 ) किसी सिद्धि को प्राप्त करने वाला,--हीन (वि०) / गाङ्गमम्भः-उत्तर० 7 / 16, रघु० 10 / 3 2. संहार वेदमंत्रों से रहित अथवा विरुद्ध / करना, नष्ट करना 3. मिश्रित पेय 4. रई का डंडा मन्त्रणम्,--णा [ मन्त्र + ल्युट 1 विचार, परामर्श / ('मंथा' भी) 5. सूर्य 6. सूर्य की किरण 7. आँख मन्त्रवत् (वि०) [ मन्त्र+मतुप् ] मंत्रों से युक्त-रघु० का मैल, ढीढ, मोतियाबिंद 8. घर्षण से अग्नि सुल३।३१। गाने का उपकरण। सम० अचल,-अद्रिः, --गिरिः, मन्त्रिः =मन्त्रिन्, दे०। -पर्वतः, शल: मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के मन्त्रित (भू० क० कृ०) [ मन्त्र+क्त ] 1. जिसका परा- रूप में प्रयुक्त हुआ)---भामि० श५५,-उदकः, मर्श लिया जा चुका है 2. जिस पर सलाह ली गई, -उदधिः क्षीर सागर,----गुणः बिलोने के रस्सी, नेता, परामर्श लिया गया है 3. कहा हुआ, बोला हुआ -जम् मक्खन,-दण्डः, वण्डकः रई का डंडा।। 4. मंत्र पड़ा हुआ, अभिमंत्रित 5. निश्चित, निर्धारित / मन्थनः [मन्थ+ल्यट] रई का डंडा,-नम् बिलोना, क्षुब्ध मन्त्रिन् (पुं०) [ मन्त्र--णिनि ] मन्त्री, सलाहकार, राजा करना, विलोडित करना, इधर उधर हिलाना का मन्त्री रघु० 8117. मनु० 8 / 1 / सम०--धुर 2. घर्षण द्वारा आग सुलगाना,-नी मथनी, बिलौनी। (वि०) मंत्रालय के भार को संभालने में समर्थ,-पतिः, सम०--घटी बिलौनी, मथनी। -----प्रधानः, - प्रमुखः ... मुख्यः, --वरः,-श्रेष्ठः प्रधान | मन्थर (वि०) मन्थ् +अरच्] 1. शिथिल, मन्द, बिलंबमन्त्री, मुख्यमंत्री, प्रकाण्ड श्रेष्ठ या प्रमुख मन्त्री, कारी, सुस्त, अकर्मण्य--गर्भमन्थरा-श०४, प्रत्यभि-श्रोत्रिय: वेदों में निष्णात मन्त्री।। ज्ञानमंथरो भवेत् तदेव, दरमन्थरचरणविहारम्-गीत० मन्थ, मथ (भ्वा० ऋया० पर० मन्थति, मथति, मध्नाति, ११--शि० 6 / 40, 7 / 18, 5 / 62, रघु० 19 / 21 मथित, कर्म वा० मथ्यते) 1. बिलोना, मथना (प्रायः 2. जड़, मूढ़, मूर्ख-मंथरकौलिक: 3. नीच, गहरा, द्विकर्मक)-सुधां सागरं ममन्थः-या देवासुरैरमतमम्बुनि खोखला, मंदस्वर 4. विस्तृत, विशाल, चौड़ा, बड़ा धिर्ममन्थे-कि० 5 / 30 2.क्षुब्ध करना, हिलाना घुमाना, 5. झुका हुआ, टेढ़ा, वक्र,—र: 1. भंडार, कोष 2. सिर ऊपर नीचे करना तस्मात् समुद्रादिव मध्यमानात् के बाल 3. क्रोध, गुस्सा 4. ताजा मक्खन 5. रई का -रघु० 1679 3. पीस डालना, अत्याचार करना, डंडा 6. रुकावट, बांधा 7. गढ़ 8. फल 9. गुप्तचर, सताना, कष्ट देना दुःखी करना-मन्मथो मां मन्थ सूचक 10. वैशाख मास 11. मन्दर पर्वत 12. हरिण, निजनाम सान्वयं करोति-दश०, जातां मन्ये शिशिर बारहसिंघा,—रा कैकेयी की कुब्जादासी जिसने अपनी मथितां पद्मिनीं वान्यरूपाम्—मेघ० 83 4. चोट स्वामिनी को, राम के राज्यभिषेक के अवसर पर, पहुँचाना, क्षति पहुंचाना 5* नष्ट करना, मार डालना, अपने दो पूर्वदत्त वरदान (एक से राम का चौदह संहार करना, कुचल डालना - मथ्नामि कौरवशतं वर्ष के लिए निर्वासन, दूसरे से भरत का राज्यारोहण) समरे न कोपात् वेणी० 1115, अमन्थीच्च परानी राजा से मांगने के लिए उकसाया, रम् कुसुम्भ / कम्-भट्टि० 15 / 46, 14 / 36 6. फाड़ डालना, सम० ---विवेक (वि.) निर्णय करने में मन्द, विवेकविस्थापित करना, उद्-, 1. प्रहार करना, मारना, शक्ति से शून्य---मा० 1118 / नष्ट करना-मीमांसाकृतमुन्ममाथ सहसा हस्ती मन्थरः [मन्थ् / अरु] चंवर डुलाने से उत्पन्न हवा / मुनि जैमिनिम्-पंच० 233, धैर्यमन्मथ्य-मा० मन्थानः मन्थ्+आनच] 1. रई का डंडा, मथानी 2. शिव 1118, 'नष्ट करके या उखाड़ कर' 2. हिलाना, का विशेषण। अशान्त करना 3. फाड़ना, काटना या छीलना-रघ मन्थानकः [मन्थान+कन् | एक प्रकार का घास / 2037, निस्,-1. बिलोना, हिलाना, घुमाना--अमत- मन्थिन् (वि.) [मन्थ्+णिनि] 1. बिलोने वाला, मंथन स्यार्थे निर्मथिष्यामहे जलम् .. महा02. रगड़ से आग करने वाला 2. कष्ट देने वाला, तंग करने वाला पैदा करना 3. खरोंचना, पोटना 4. पूर्णतः नष्ट करना, ---(पुं०) वीर्य, शुक्र,-नी बिलौनी, मथनी। कुचल डालना, प्र-, 1. बिलोना (समुद्रः) प्रमथ्य- | मण्द् (भ्वा० आ० मन्दते-बहधावैदिक प्रयोग) 1. पीकर मानो गिरिमेव भूयः -रघु० 13 // 14 2. तंग करना, वृत्त होना 2. प्रसन्न होना, हर्षयुक्त होना 3. ढीलाअत्यन्त कष्ट देना, दुःखी करना, सताना 3. प्रहार ढाला होना, शिथिल होना 4. चमकना 5. शनैः 2 करना, खरोंचना, आघात करना 4. फाड़ डालना, चलना, टहलना, घूमना / / काट देना 5. उजाड़ देना 6. मार डालना, नष्ट करना / मन्द (वि०) [मन्द+अच] 1. धीमा, विलंबकारी, अक- मा० 4 / 9, 2 / 9 / मण्य, सुस्त, मंद, मटरगश्ती करने वाला---(न०) मन्थः मन्थ करणे घा] 1. बिलोना, इधर उधर हिलाना, भिन्दन्ति मन्द गतिमश्वमुख्यः--कू० 1111, तच्चरितं आलोडित करना, क्षुब्ध करना --मन्थादिव क्षुभ्यति गोविन्दे मनसिजमन्दे सखी प्राह-गीत०६ 2. निरु For Private and Personal Use Only Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 776 ) त्साही, तटस्थ-उदासीन 3. जड, मंदबुद्धि, मढ, अज्ञानी, धुंधला, -वीर्यः दुर्बल,-वृष्टिः (स्त्री०) हल्की निर्बल-मस्तिष्क, मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः बारिश, स्मितः,-हासः, - हास्यम् हल्का हंसी, मंद ..-मालवि० 218, मन्दः कवियशः प्रार्थी गमिष्या- मुस्कान / म्युपहास्थताम्--रघु० // 3, द्विषन्ति मन्दाश्चरितं मन्दटः मन्द + अट् ।-अच् शक० पररूपम्] मूंगे का वृक्ष / महात्मनाम् कु० 5 / 75 4. धीमा, गहरा, खोखला मन्दनम् [मन्द् + ल्युत्] प्रशंसा, स्तुति / (ध्वनि आदि) 5. कोमल, धुंधला, मृदु यथा ‘मंद- | मन्दयन्ती मन्द-णि शितृ+ डीप्] दुर्गा का विशेषण / स्मितम्' में 6- थोड़ा, अल्प, जरा सा, मन्दोदरी, मन्दर (वि.) मन्द+अर] 1. धीमा, विलम्बकारी, सुस्त दे० 'अमन्द' भी 7. दुर्बल, बलहीन, कमजोर यथा 2. मोटा, सघन, दृढ़ 3. विस्तृत, स्थूल,-र: 1.एक पहाड़ 'मंदाग्नि' में 8. दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा 9. मुझाया __ का नाम (इसको समुद्रमंथन के समय देवासुरों ने हुआ 10. दुष्ट, दुश्चरित्र 11. शराब की लत मथानी-रई का डंडा बनाया था, और तब सुधा वाला,-वः 1, शनिग्रह 2. यम का विशेषण 3. सष्टि का मंथन किया था)-पृषतैमन्दरोद्भूतैः क्षीरोर्मय का विघटन 4. एक प्रकार का हाथी-शि० 5 / 49, इवाच्युतम्-रघु० 4 / 27, अभिनवजलधरसुन्दर - दम् (अव्य०) 1. धीमे से, क्रमशः, धीरे-धीरे घृतमन्दर ए—गौत०१ शोभव मन्दरक्षुब्धक्षुभितां-यातं यच्च नितम्बयोर्गरुतया मंदं विलासादिव-श० भोधिवर्णना--शि० 21107, कि० 5 / 80 2. मोतियों 211 2. धीरे 2, हल्के 2, शान्ति से-मन्दं मन्दं नदति (आठ या सोलह लड़ियों का) का हार 3. स्वर्ग पवनश्चानुकुलो यथा त्वाम् --मेघ० 9 3. धीमे-धीमे, 4. दर्पण 5. इन्द्र के नन्दनकानन में स्थित पाँच वृक्षों मंद गति से, मंद स्वर से, हल्केपन से 4. मद्धमस्वर में से एक - मन्दार वक्ष, दे० मंदार / सम०-आवासा, में, गहराई के साथ (मन्दी कृ ढीलढाल करना,-मन्दी- -वासिनी दुर्गा का विशेषण / कृतो वेगः-श०१, मन्दी भू ढीला होना, कम ताकतवर मन्दसानः मन्द-+-सानच] 1. अग्नि 2. जीवन 3. निद्रा होना) / सम०-अक्ष (वि०) कमजोर आँखों वाला ('मन्दसानु' भी लिखा जाता है)। (-क्षम् ) लज्जा का भाव, लज्जाशीलता, शर्मीलापन, मन्दाकः [मन्द-+आक] धारा, नदी। --अग्नि (वि०) दुर्बल पाचन शक्ति वाला, (ग्निः) मन्दाकिनी मन्दमकति-अक+णिनि-+-डी] 1. गंगा अग्निमांद्य, पाचनशक्ति की मंदता,--अनिलः मदु पवन, नदी-मन्दाकिनी भाति नगोपकण्ठे मुक्तावली कण्ठगतेव ---असु (वि०) दुर्वल श्वास वाला,-आकान्ता एक भूमेः-रघु० 13148, कु० 1129 2. स्वगंगा, वियद्गंगा छंद का नाम, दे० परिशिष्ट १,--आत्मन् मन्दबुद्धि (मंदाकिनी वियद्गङ्गा)-मन्दाकिन्याः सलिलशिशिरः वाला, मूर्ख, अज्ञानी--मन्दात्मानजिघक्षया मल्लि०, सेव्यमाना मरुद्धिः -मेघ 67 / / ---आदर (वि०) !. कम आदर प्रदर्शित करने वाला, मन्दायते (ना० धा० आ०) 1. शनैः शनैः चलना, विलंब अवज्ञा करने वाला, लापरवाह 2. असावधान,-उत्साह करके चलना, पिछड़ना, मटरगश्त करना, देर लगाना (वि०) हताश, उत्साहहीन-मन्दोत्साहः कृतोऽस्मि --मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्यपेतार्थकृत्या:-मेघ० 40, मृगयापवादिना माधव्येन-श०२,-उदरी रावण की विक्रम० 3 15 2. दुर्बल होना, कृश होना, धुंधला पत्नी का नाम, पाँच सती स्त्रियों में से एक--४० होना--रघु० 4 / 49 / अहल्या,-उष्ण (वि०) कोष्ण, गुनगुना (–णम्) मन्दारः [मन्द+आरक] 1. मंगे का पेड़, इंद्र के नन्दनकोष्णता, गुनगुनापन,-औत्सुक्य (वि०) धीमी काननस्थित पाँच वृक्षों में से एक--हस्तप्राप्यस्तबकनउत्सुकता वाला, परामुख, रुचिशून्य-मन्दौत्सुक्योड मितो बालमन्दारवक्ष:--मेघ 75, 67, विक्रम 0 4 / 35 स्मि नगरगमन प्रति--श० १,-कर्ण (वि०) कुछ 2. आक का पौधा, मदार वृक्ष 3. धतूरे का पौधा बहरा, सुक्ति----बधिरान्मन्दकर्णः श्रेयान् , 'अभाव की 4. स्वर्ग 5. हाथी,--रम् मूंगे के वृक्ष का फूल-कु. अपेक्षा कुछ होना अच्छा है'-कान्तिः चन्द्रमा, 5 / 80, रघु० 6 / 23 / सम०-माला मंदार के फूलों ---कारिन् (वि०) धीमे 2 काम करने वाला, गः की माला--मंदारमाला हरिणा पिनद्धा--श० 72, शनि,..... गति, -गामिन् (वि.) शनैः 2 चलने वाला, ---षष्ठी माघसुदी छठ। धीमी गति वाला,--चेतस् (वि.) 1. मन्दबुद्धि, मूर्ख, मन्दारकः मन्दारवः, मन्दारुः[मन्दार कन, मन्द | आरू मूढ 2. अन्यमनस्क 3. मोलु, अचेत,---छाय (वि.) +अच्, मन्द | आरू ] मंगे का वृक्ष दे० 'मंदार'। धुंधला, मद्धम, आभाशून्य ---मेघ०८०,--जननी शनि | मन्दिमन (40)मन्द |-इमनिन् / 1. धीमापन, विलंबकी माता,--धी,---प्रज्ञ, मति,- मेधस् मंद बुद्धि, कारितां 2. सुस्ती, जड़ता, मूर्खता। मूर्ख, मूढ़, भागिन्,-भाग्य (वि०) भाग्यहीन, मन्दिरम् [ मन्द्यतेऽत्र मन्द +-किरच् ] 1. रहने का स्थान, दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा, दयनीय, बेचारा,--रश्मि (वि.)। आवारा, महल, भवन-कु० 7155, भट्टि० 8 / 96, For Private and Personal Use Only Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 777 ) रघु० 12183 2. आवास, रहने का घर ...यथा क्षीरा- मय (वि०) (स्त्री०-यी) 'पूर्ण' से यक्त' संरचित' 'से धिमंदिर में 3. नगर 4. शिविर 5. देवालय / सम० बना हुआ' अर्थ को प्रकट करने वाला तद्धित का --पशः बिल्ली मणिः शिव का विशेषण / प्रत्यय, उदा० कनकमय, काष्ठमय, तेजोमय और जलमंदिरा | मंदिर टाप् ] घुड़साल, अस्तबल / मय आदि, यः 1. एक दानव, दानवों का शिल्पी मंदुरा [ मन्द + उरच्+टाप् ] 1. अश्वशाला, घुड़साल (कहते है कि इसने पांडवों के लिए एक भव्य भवन अस्तबल-प्रभ्रष्टोऽयं प्लवंगः प्रविशति नपतेर्मदिरं मंदु- का निर्माण किया था 2. घोड़ा 3. ऊँट 4. खच्चर / रायाः रत्न० 2 / 2, रघु० 16041 2. शय्या, चटाई।। मयटः [ मय+अटन् ] घासफूस की झोपड़ी, पर्णशाला। मन्द्र (दि०) [ मन्+रक] 1. नीचा, गहरा, गंभीर, मय (यु) ष्टकः [ =मयष्टक, पुषो० साधु ] खोखला, चरमराना--पयोदमंद्रध्वनिना धरित्री-कि० | मयुः | मय+कु] 1. किन्नर, स्वर्गीय संगीतज्ञ 2. हरिण, 163, 7 / 22, मेघ० 99, रघु० ६५६,-द्रः बारहसिंगा। सम० . राजः कुबेर का विशेषण / 1. मन्दध्वनि 2. एक प्रकार का ढोल 3. एक प्रकार 1 मयूखः [ मा+ऊख मयादेशः ] 1. प्रकाश की किरण, का हाथी। रश्मि, अंशु, कांति, दीप्ति-विसृजति हिमगर्भरग्निमन्मथः [ मन्+क्विप, मथ+अच, प० त०] 1. काम- मिन्दुर्मयूखैः -- श० 3 / 2, रघु० 2 / 46, शि० 4 / 56, देव, प्रेम का देवता—मन्यथो मां मन्थनिज नाम कि० 5 / 5,8 2. सौन्दर्य 3. ज्वाला 4. धूपधड़ी सान्वयं करोति ---दश० 21, मेघ०७३ 2. प्रेम, प्रण- की कील। योन्माद --प्रबोध्यते सप्त इवाद्य मन्मथ: ऋतु मयूरः [ मी+ऊरन् ] 1. मोर -- स्मरति गिरिमयूर एष 118 इसी प्रकार 'परोक्षमन्मथः जनः'- श० 2018 देव्याः- उत्तर० 3120, फणी मयस्य तले निषींदति 3. कैथ / सम० आनंदः एक प्रकार का आम का -ऋतु० 1113 2. एक प्रकार का फूल 3. ('सूर्य पेड़-आलयः 1. आम का पेड़ 2. स्त्री की भग, शतक' का प्रणेता) एक कवि यस्याश्चोरश्चिकुर-- कर (वि०) प्रेमोत्तेजक,-युद्धम् प्रेमकेलि, संभोग, निकरः कर्णपूरो मयरः प्रसन्न श२२,--री मोरनी मथुन - लेखः प्रेम-पत्र-श० 3 / 26 / / ----सूक्ति बरं तत्कालोपनता तित्तिरीन पूनर्दिवसांमन्मनः (पुं०). गुप्त कानाफूसी (दंपत्योर्जल्पितम् मंदम् ) तरिता मयूरी विद्ध० 1, या- वर मद्य कपोतो न श्वो करोति सहकारस्य कलिकोकलिकोत्तर, मन्मनो मयूरः हाथ में आया एक पक्षी, झाड़ी में बैठे दो मन्मनोऽत्येष मतकोकिलनिस्वनः काव्या० 3 / 11 पक्षियों से अच्छा है' अर्थात् नौ नकद न तेरह उधार / 2. कामदेव। सम०. अरिः छिपकली,-केतुः कार्तिकेय का विशेषण, मन्युः [ मन् ।-युच ] 1. क्रोध, रोष, नाराजगी, कोप, ....ग्रीवकम् तूतिया, चटकः गृह कुक्कट-चूडा मोर गुस्सा -रधु० 2132, 49, 11 / 46 2. व्यथा, शोक, की शिखा, तुत्थम् तूतिया-पत्रिन् (वि०) पंखकष्ट, दुःख उत्तर० 4 / 3, कि० 1135, भट्रि० 3 / 49 यक्त, मोर के पंखों से युक्त (बाण आदि)-रघु० 3. विपद्ग्रस्त या दयनीय स्थिति, कमीनापन 4. यज्ञ | 3 / 56, रथः कार्तिकेय का विशेषण,-व्यंसकः चालाक 5. अग्नि का विशेषण 6. शिव का विशेषण / म- (भ्वा० पर० मभ्रति) जाना, हिलना-जुलना। मयूरकः [मयूर+कन्] मोर, ----कः,--कम् तूतिया, नीलामम [ अस्मद् शब्द-सर्वनाम उत्तमपुरूष-संव० ए० व.] / थोथा। मेरा / सग० कारः,—कृत्यम् मेरापन, ममता, मरकः [मृ+बुन्] महामारी, पशुओं का एक संक्रामक रोग, स्वार्थ / प्लेग प्रसारक रोग, संक्रामक रोग। ममता [ मम---तल-+टाप् ] 1. अपने मन की भावना, | मरकतम् मरकं तरत्यनेन-त+ड] पन्ना- वापी चामिन् स्वार्थ, स्वहित 2. घमंड, अभिमान, आत्मनिर्भरता मरकतशिलाबद्धसोपानमार्गा--मेघ० 76, शि० 3. व्यक्तित्व / 4156, ऋतु० 3 / 21, (कभी-कभी 'मरक्त' भी लिखा ममत्वम् [ मम / त्व ] 1. मेरापन, अपनापन, स्वामित्व की जाता है)। सम०- मणिः (पुं०, स्त्री०) पन्ना, भावना 2. स्नेहयुक्त आदर, अनुराग, मानना-कु० -- शिला पन्ने की सिल्ली। 1 / 12 3. अहंकार, घमंड / मरणम् [मृ+भावे ल्युट्] 1. मरना, मृत्यु-- मरणं प्रकृतिः ममापतालः | मव्य /आल, यलोपः, मकारादेशः, आप शरीरिणाम-रघु० 8 / 87 या-संभावितस्य चाकीतितुडागमः ] ज्ञानेन्द्रिय का विषय / मरणादतिरिच्यते--भग० 2134 2. एक प्रकार का मम्ब (भ्वा० पर०) जाना, हिलना-जुलना / विष / सम० अंत, अंतक (वि०) मत्य के साथ मम्मट: 'काव्यप्रकाश' का प्रणेता। समाप्त होने वाला,-अभिमुख,---उन्मुख (वि०) मय (भ्वा० आ० मयते) जाना, हिलना-जुलना। मृत्यु के निकट, मरणासन्न, म्रियमाण,--धर्मन् 356, रवा मार की शिखा / म ततिया, नीला 98 For Private and Personal Use Only Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 778 ) (वि.) मर्त्य, मरणशील, --निश्चय (वि०) मरने / महकः [मरु-क:] मोर / 10) मम मरणशालय () के लिए दृढ़ निश्चय वाला - पंच०१। ATTA महत् (पुं.) [म+उति] 1. हवा, वायु, पवन-दिशः मरतः [म-अतच् मृत्यु / प्रसेदुमरुतो बवुः सुखाः -- रघु० 3314 2. वायु का मरन्दः, --दकः [मरणं द्यति खण्डयति-मर+दो+क, देवता-कि० 225 3. देवता, देवी-वैमानिकानां पृषो०, मरन्द+कन्] फूलों का रस-भामि० 115, मरुतामपश्यदाकृष्टलीलान्नर लोक पालान् -- रघु 601, 10 / 15, सम०--ओकस् (नपुं०) फूल / 12 / 101 4. एक प्रकार का पौधा, मरुवक (नपुं.) मरारः [मरं मरणमलति निवारयति-मर-अल+अण ग्रंथिपर्ण नाम का पौधा। सम०---आदोल: (हरिण लस्य रत्वम् ] खत्ती, धान्यागार, अनाज का भंडार। या भैंसे की खाल से बना) एक प्रकार का पंखा, मराल (वि.) [म+आलच्] 1. मदु, चिकना, स्निग्ध 2. ... करः एक प्रकार की सेम, लोबिया,-कर्मन् (पुं.) सौम्य कोमल,-लः (स्त्री०-ली) 1. हंस, बलाक, ---क्रिया उदर,-वायु, अफारा,-कोणः पश्चिमोत्तर राजहंस-मरालकुलनायकः कथय रे कथं वर्तताम दिशा, -गणः देवसमूह, तनयः,--पुत्रः---सुतः, -भामि० 113, विधेहि मरालविकारम्-गीत० 11, -सूनुः 1. हनुमान के विशेषण 2. भीम के विशषण, नै० 672 2. एक प्रकार का जलचर पक्षी, कारण्डव - ध्वजम् हवा में लहराने वाला झण्डा (सूत का 3. घोड़ा 4. बादल 5. अंजन 6. अनारों का बाग 7. बना कपड़ा),-पटः बादबान,-पतिः,--पालः इन्द्र का बदमाश, ठग। विशेषण, . पयः आकाश, अन्तरिक्ष,-प्लवः सिंह, मरि (री) चः [म्रियते नश्यति श्लेष्मादिकमनेन-म -~-फलम् ओला,-- बद्धः 1. विष्णु का विशेषण 2. एक +इच, इचवा] काली मिर्च की झाड़ी,-चम् काली प्रकार का यज्ञ-पात्र,--रयः वह गाड़ी जिसमें देव प्रतिमिर्च / माएँ रख कर इधर उधर ले जाई जाती हैं,-लोकः मरीचिः (पं० स्त्री०) [म--इचि] 1. प्रकाश की किरण वह लोक जिसमें 'मरुत' देवता रहते हैं,-वर्मन् -न चन्द्रमरीचयः-विक्रम 3 / 10, सवितुमरीचिभिः (नपुं.) आकाश, अन्तरिक्ष,-वाहः 1. धूआँ 2. अग्नि, -ऋतु०१।१६, रघु० 9 / 13, 1314 2. प्रकाश का -सखः 1. अग्नि का विशेषण 2. इन्द्र का विशेषण / कण 3. मृगतृष्णा,-चिः प्रजापति, प्रथम मनु से उत्पन्न | महतः [म+उत] 1. वायु 2. देवता।। दस मूल पुरुषों में से एक, या--ब्रह्मा के दस मानस मरुत्तः [मरुत+तप्] सूर्यवंश का एक राजा, कहते हैं उसने पुत्रों में एक, यह कश्यप का पिता था 2. एक एक यज्ञ किया जिसमें देवताओं ने प्रतीक्षक सेवक का स्मृतिकार 3. कृष्ण का नामान्तर 4. कंजूस / सम० कार्य किया--तु० तदप्पेष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः -तोयम् मृगतृष्णा, मालिन् किरणों से घिरी हई, परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन गहे, आविक्षितस्य कामउज्ज्वल, चमकदार (पुं०) सूर्य / प्रेविश्वेदेवाः सभासद इति / मरीचिका [मरीचि+कन्+टाप] मृगतृष्णा। मरत्तकः [मरुदिव तकति हसति -मरुत+तक+अच] मरीचिन् (पुं०) [मरीचि / इनि] सूर्य / मरुबक पौधा। मरीचिमत् (पुं०) [मरीचि+मतुप्] सूर्य / मरत्वत् (पु.) [मरुत्+मतुप, मस्य वः] 1. बादल 2. मरीमृज (वि०) [मृज् (यङन्तत्वात् द्वित्वम्)+अच्] इन्द्र का नामान्तर 3. हनुमान का नामान्तर / बार 2 मलने वाला। मरलः [म+उल] एक प्रकार की बत्तख, कारंडव / मरः [म्रियतेऽस्मिन --म+उ] 1. रेगिस्तान, रेतीली भूमि, मरूवः [मरु+वा+क, नि० दीर्घः] 1. एक पौधे का नाम, वीराना, जल से हीन प्रदेश 2. पहाड़ या चट्टान मरुआ 2. राहु का विशेषण / (पुं०) ब० व०), एक देश और उसके अधिवासियों मरूव (ब) कः [मरूव+कन्, दवयोरभेद:] 1. एक प्रकार का नाम / सम०-उद्धवा 1. कपास का पौधा 2. का पौधा, मरूआ 2. चूने का एक भेद 3. व्याघ्र 4. ककड़ी,-कच्छः एक जिले का नाम, जः एक प्रकार राहु 5. सारस / का गन्धद्रव्य, देशः 1. एक जिले का नाम 2. जल- मरूकः [मृ+ऊक] 1. मोर 2. बारहसिंगा हरिण। शून्य प्रदेश, द्विपः,-प्रियः ऊंट,-धन्वः,-धन्वन् मर्कटः मर्क- अटन] 1. लंगर, बन्दर हारं वक्षसि (पुं०) वीराना, उजाड़,--पथः, --पृष्ठम रेतीली मरु- केनापि दत्तमज्ञेन मर्कट:, लेढि जिघ्रति संक्षिप्य करोभूमि वीराना-रघु० 4 / 31, --भूः (ब. व०) त्युन्नतमासनम्--भामि० 299 2. मकड़ी 3. एक मारवाड़ देश,-भूमिः (स्त्री०) मरुस्थल, रेतीला प्रकार का सारस 4. एक प्रकार का रतिबंध, संभोग, मरुप्रदेश,--संभवः एक प्रकार की मूली,--स्थलम्, मैथुन 5. एक प्रकार का विष / सम०.-आस्य ----स्थली वीराना, उजाड़, बंजर-तत्प्राप्नोति मरु- (वि.) बन्दर जैसे मुंह वाला (स्यम्) तांबा, --इन्दुः स्थलेऽपि नितरां मेरौ ततो नाधिकम्-भर्त० 2149 / / आबनूस,-तिदुकः एक प्रकार का आबनूस,- पोतः For Private and Personal Use Only Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 779 ) बन्दर का बच्चा, -वासः मकड़ी का जाला, शीर्षम् | भेद / सम०- अतिग (वि०) मर्मवेधी-शि० 20 // सिंदूर। 70 .... अन्वेषणम् 1. शलाकापरीक्षण करना 2. मर्कटकः [मर्कट+कन्] 1. लंगूर 2. मकड़ी 3. एक दुर्बल और आलोच्य बातों की जांच पड़ताल करना, प्रकार की मछली 4. एक प्रकार का अनाज, धान्य -आवरणम् कवच, जिरहबख्तर,- आविष,-उपविशेष / धातिन् (वि०) (हृदय के) मर्म स्थलों को बेचने मर्करा [म + अर+टाप्] 1 पात्र, बर्तन 2. अन्तःकक्षीय वाला - महावी० ३३१०,कील: पति,—ग (वि.) छिद्र, सुरंग, विवर, खोह, गुफा 3. बांझ स्त्री। मर्मभेदी, तीव्र, घोर,-छन (वि०) मूल पर आघात म (चुरा० उभ०.---मर्चयति--ते) 1. लेना 2. साफ करने वाला, अत्यन्त पीडाकर,-चरम् हृदय,-छिद्, करना 3. शब्द करना। -भिद् (इसी प्रकार छेदिन्, भेदिन्) (वि०) मर्ममर्जुः [मृज् +ऊJ1. धोबी 2. इल्लती, लौंडा, (स्त्री०) साफ स्थानों का भेदने वाला, हृदय पर चोट करने वाला, करना, घोना, पवित्र करना। अत्यन्त कष्टदायक -उत्तर० 3 / 31 2. प्राणघातक मतः मृ+तन्] 1. मनुष्य, मानव, मर्त्य 2. भूलोक, चोट करने वाला, प्राणहर, (वि०),-विद् मर्त्यलोक। (वि.) 1. दूसरे के दोष या दुर्बलताओं को जानने मर्य (वि०) [मर्त +यत्] मरणशील, त्यः 1. मरणधर्मा, वाला 2. किसी विषय की अत्यन्त गढ बातों को मानव, मनुष्य--मनु० 5 / 97 2. मर्त्यलोक, भूलोक समझने वाला 3. किसी विषय गहरी अन्तर्दृष्टि रखने -य॑म् शरीर। सम-धर्मः मरणशीलता, धर्मन् वाला, अत्यन्त निपुण या चतुर, (-) कोई भी (वि.) मरणशील आदमी,--निवासिन् (पु.) मनुष्य, प्रकांड विद्वान्,-त्रम् जिरहबख्तर,-.-पारग (वि०) मानव,-भावः मानव-स्वभाव,-भुवनम् मत्र्यलोक, गहन अन्तर्दृष्टि रखने वाला, पूरा जानकार, दूसरे के भूलोक, सहित, देवता, मुखः किन्नर, इसका मुख रहस्यों को जानने वाला,-भेवः 1. मर्मस्थानों को मनुष्य के मुख जैसा तथा और शेष शरीर जानवर के छेदना 2. दूसरों के रहस्य या दुर्बलताओं को प्रकट शरीर जैसा होता है, यह कुबेर का सेवक समझा करना,-भेदनः,-भेविन् (पुं०) बाण, तीर,-विद् जाता है),--लोकः मनुष्यलोक, भूलोक ---क्षीणे पुण्ये दे० 'मर्मज्ञ',-स्थलम,- स्थानम् 1. भावप्रवण या मर्त्यलोकं विशन्ति-भग० 9 / 21 / सजीव भाग 2. कमजोरियाँ, आलोच्य बातें,- स्पश 1. मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी 2. अतितीब्र, तीक्ष्ण, तेज या मर्द (वि०) [ मद्+धा | कुचलने वाला, चूर चूर कर देने वाला, पीसने वाला, नष्ट करने वाला (समास के कटु (शब्द आदि)। अन्त में प्रयोग), दः 1. पीसना, चरा करना 2. प्रबल ममर (वि०) [ मृ+अरन्, मुटु च ] (पत्तों की) खड़प्रहार। खड़ाहट, (वस्त्रों की) सरसराहट --- तीरेषु तालीवनमर्दन (वि.) (स्त्री०. नी) [ मृद् + ल्युट ] कुचलने | मर्म रेषु-रघु०६।५७, 4 / 73, 1941, मदोद्धताः वालां, पीसने वाला, नष्ट करने वाला, सताने वाला प्रत्यनिलं विचेरुवनस्थलीमर्मरपत्रमोक्षा:--कु० 3 / 31, -नम् 1. कुचलना, पीसना 2. रगड़ना, मालिश - 1. खरखराहट की ध्वनि 2. सरसराहट। करना 3. लेप कस्ता (उबटन आदि से) 4. दबाना, मर्मरी [मर्मर+ङीष् ] 1. देवदारु का एक भेद 2. हल्दी। माडना 5. पीड़ा देना, सताना, कष्ट देना 6. नष्ट मर्मरीकः [मृ+ईकन्, मुट् ] 1. निर्धन पुरुष, गरीब 2. दुष्ट करना, उजाडना। मनुष्य। मर्दलः [ मर्द-+ला--क] एक प्रकार का ढोल -- शि० | मर्या [ मृ+यत्+टाप् ] सीमा, हद / 6 / 31, ऋतु०२।१। मर्यादा [ मर्यायां सीमाया दीयते मर्यादा+अ+टाप्] मर्ब (भ्वा० पर० मर्बति) जाना, हिलना-जुलना। 1. सीमा, हद (आलं से भी) छोर, सीमान्त, सरहद, मर्मन् (नपुं०)[म+मनिन् | शरीर का सजीव प्राण- किनारा-- मर्यादाव्यतिक्रमः- पंच 1 2. अन्त, अब मूलक भाग, जीवाधारक - तथैव तीब्रो हृदि शोक- सान, अन्तिम मंजिल, उद्देश्य 3. तट, किनारा 4. शंकूर्मर्माणि कृन्तन्नपि किं न सोढः---उत्तर० 2 / 35, चिह्न, सीमाचिह्न 5 नीति का बंधन, निश्चित प्रथा याज्ञ० 11153 भट्टि० 16 / 15, स्वहृदयमर्मणि वर्म या व्यवस्थित नियम, नैतिक विधि 6. शिष्टाचार या करोति - गीत० 4 2. कोई भी दुर्बल या आलोच्य औचित्य का नियम, औचित्य की सीमा, सदाचरण का बिन्दु, दोष, त्रुटि 3. अन्तल्तल, सजीव 4. (किसी औचित्य-आस्तातापवादभिन्नमर्याद–उत्तर० 5, भी अंग का) सन्धिस्थान 5. गूढार्थ, (किसी बात पंच० 11142 7. संविदा, अनुबंध, करार। सम० का) तत्त्व-काव्यमर्म प्रकाशिका टीका; नत्वा ---अचलः,-गिरिः,- पर्वतः सरहद पर स्थित पहाड़, गंगाधरं मर्मप्रकाशं तनुते गुरुम-नागेश. 6. रहस्य ---भेदक: सीमाचिह्नों को नष्ट करने वाला। For Private and Personal Use Only Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 780 ) मर्यादिन् (पुं०) [ मर्यादा---इनि ] पड़ोसी, सीमान्त / कृत्य नहीं किया जाता है), वासस् (स्त्री०) रजवासी। स्वला स्त्री, जो स्त्री कपड़ो से हो,-विसर्गः, ---विसमव (भ्वा० पर० मर्वति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. | जनम्, शुद्धिः (स्त्री०) मलत्याग, कोष्ठशुद्धि,-हारक भरना। (वि०) मैल या पाप को दूर करने वाला। नर्शः [ मश+घञ ] 1. विचारणा 2. परामर्श, संमन्त्रणा मलनम् [मल+ ल्युट] कुचलना, पीसना,—नः तंबू / 3. नस्य, छींकलाने वाला। मलयः (मलते धरति चन्दनादिकम् मल-+ कयन् | 1. भारत मर्शनम् [मृश् + ल्युट्] 1. रगड़ना 2. परीक्षण, पूछताछ के दक्षिण में एक पर्वत शृंखला जहाँ चन्दन के वृक्ष 3. विचारणा, संयन्त्रणा 4. उपदेश देना, सलाह देना / बहुतायत से पाये जाते है (कविसमदाय प्रायः मलय5. मिटाना, मल देना। पर्वत से चलने वाली पवन का उल्लेख किया करता मर्षः, मर्षणम् [ मृष्-+घञ, ल्युट वा] सहनशीलता, सहि- हैं, यह पवन चन्दन तथा अन्य सुगंधित पौधों की __ष्णुता, धर्य / सुगंध को इधर उधर फैलाने के साथ-साथ कामात मषित (भूक० कृ०) [मृष्+क्त] 1. सहन किया हआ, व्यक्तियों को विशेष रूप से प्रभावित करती है) सबर के साथ सहा हुआ 2. क्षमा किया गया, माफ ----स्तनाविव दिशस्तस्याः शैली मलयदर्दुरो-रघु० किया गया,-तम् सहनशीलता, धैर्य / / 4151, 9 / 25, 1312 2. मलयशृंखला के पूर्व में मर्षिन (वि.) [मष-णिनि] सहन करने वाला, धैर्यशील / स्थित देश, मलावार 3. उद्यान इन्द्र का नन्दनमल (म्वा० आ०, चुरा० पर० -मलते, मलयति) थामना, कानन / सम०-- अचल:,---अद्रिः,--गिरिः,--पर्वतः अधिकार में रखना। मलय पहाड़,-अनिलः,---वातः, समीरः मलयपहाड़ मला, लम् [मज्यते शोध्यते मज् +कल टिलोप:-तारा०] से चलने वाली पवन, दक्षिणीपवन--- ललितलंवगलता1. मैले, गंदगी, अपवित्रता, धूल, अशुद्ध सामग्री मल परिशीलनकोमलमलयसमीरे गीत० 1, तु० अपगतदायकाः खला:-का० 2, छाया न मूर्छति मलोपहत दाक्षिण्यदक्षिणानिलहतक पूर्णास्ते मनोरथाः कृतं प्रसादे शुद्धे तु दर्पणतले सुलभावकाशा-श० 7 / 32 कर्तव्यं बहेदानीं यथेष्टम्-का०,---उद्भवम् चन्दन 2. तलछट, कूड़ाकरकट, गाद, पुरीष, गोबर 3. की लकड़ी, ---जः चन्दन का वृक्ष -अयि मलयज महि(धातुओं का मैल, जंग, खोट 4. नैतिक दोष या मायं कस्य गिरामस्तु विषयस्ते--भामि० 1111, अपवित्रता, पाप 5. शरीर का कोई भी अपवित्र स्राव (जः--जम्) चन्दन की लकड़ी (-जम्) राहु का (मनु के अनुसार इस प्रकार के बारह स्राव है-- वसा विशेषण, रजस् (नपुं०) चन्दन का चूरा,--द्रुमः शुक्रमसङ मज्जा मूत्रविड् घ्राणकर्णविट, श्लेष्माश्रु चन्दन का पेड़, .वासिनी दुर्गा का विशेषण। दूषिका स्वेदो द्वादशैते नृणां मला: --मनु० 5 / 135) मलाका [मलेन मनोमालिन्येन अकति कुटिलं गच्छति-मल 6. कपूर 7. 'मसीपी' जलचरविशेष का प्रमार्जन +अक्-+अच्+टाप्] 1. शृंगारप्रिय या कामुक स्त्री के काम आने वाला भीतरी कवच 8. कमाया हुआ 2. दूती, अन्तरंग सखी 3. हथिनी। चमड़ा, चमड़े का वस्त्र, - - लम् एक प्रकार की खोटी मलिन (वि.) [मल+इनन्] 1. मैला, गन्दा, घिनौना घातु। सम० अपकर्षणम् 1. मैल दूर करना पवित्र अपवित्र, अशुद्ध, भ्रष्ट, कलंकित, कलुपित (आलं० से करना 2. पाप दूर करना, - अरिः एक प्रकार की भी) धन्यास्तदङ्गरजसा मलिनीभवति श० 757, सज्जी,-~-अवरोधः कोष्ठबद्धता, कब्ज - आकषिन् किमिति मुधा मलिनं यशः कुरुध्वे-..वेणी० 314 (पुं०) झाडू देने वाला, भंगी,-आवह (वि.) 1. मैल 2, काला, अंधकारमय मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्मपैदा करने वाला, मैला करने वाला, मलिन करने लक्ष्मी तनोति श० श२०, अतिमलिने कर्तव्ये भवति वाला 2. दूषित करने वाला, अपवित्र करने वाला, खलानामतीव निपुणा धी: वास०, शि० 9 / 18 .--. आशयः पेट,--उत्सर्गः टट्टी जाना, पेट से मल 3. पापी, दुष्ट, दुश्चरित्र मलिनाचरितं कर्म सूरनिकालना, - घन (वि.) परिमार्जक, शोधक चम भेनन्वसांप्रतम् काव्या० 21178 4. नीच, दुष्ट, पीप, मवाद,दूषित (वि.) मैला, गंदा, मलिन,-द्रवः अधम लघवः प्रकटी भवति मलिनाश्रयत:- शि. रेचन, अतिसार, धात्री दाई जो बच्चे को आवश्य- 9 / 23 3. मेघाच्छन्न, तिरोहित, नम् 1. पाप, दोप, कताओ का ध्यान रखती है, पृष्ठम् किसी पुस्तक अपराध 2. मट्ठा, 3. सोहागा,-ना,--नी रजस्वला का पहला पृष्ठ, आवरणपृष्ठ (बाह्य पृष्ठ),- भुज स्त्री। समo---अंबु (नपुं०) 'काला पानी' मसी, (पु०) कौवा, ....मल्लकः कौपीन, लंगोट,-मास: अंत- स्याही,—आस्य (वि.) 1. काले या मैले मह वाला रीय या लौंद का महीना (मलमास' इसी लिए 2. नीच, गंवार 3. बहशी, क्रूर-प्रभ (वि०) तिरोहित, कहलाता है कि इस अधिक मास में कोई भी धार्मिक दूषित, मेघाच्छन्न,--मुख (वि.)-मलिनास्य, दे० For Private and Personal Use Only Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 781 ) (खः) 1. अग्नि 2. भूत, प्रेत 3. एक प्रकार का बंदर, / संभव', 'मेघदूत' 'किरातार्जुनीय', 'नैषधचरित' और गोलांगूल। शिशपालवध पर टीकाएँ लिखीं), पत्रम् छत्राक, साँप मलिनयति (ना० धा० पर०) 1. मैला करना, मलिन की छतरी। करना, कलकित करना, दुषित करना, धब्बा लगाना, | मल्लिकः [मल्लि+कन] 1. एक प्रकार का हंस जिसकी विगाड़ना-यदा मेधाविनी शिष्योपदेशं मलिनयति टांगें और चोंच भूरे रंग की होती है 2. माघ का तदाचार्यस्य दोषो नन-मालवि० 1, 'बदनामी महीना 3. जुलाहे की ढरकी, फिरकी / सम-अक्षः, कमाता है या कलंकित होता है' 2. भ्रष्ट करना, -----आख्यः एक प्रकार का हंस जिसकी टांगें और चोंच बदचलन करना। भूरे रंग की होती है-एतस्मिन्मदकलमल्लिकाक्षपमलिनिमन् (पुं०) मलिन+इमनिच] 1. मैलापन, गंदगी क्षव्याधुतस्फुरदुरुदंडपुंडरीका: (भुवो विभागाः) अपवित्रता 2. कालिमा, कालापन--मलिनिमालिनि ----उत्तर० 1131, मा० ९।१४,--अर्जुनः श्रीशैल माधवयोषितां-शि० 6 / 4 3. नैतिक अपवित्रता, नामक पर्वत पर विराजमान शिव का एक लिंग, पाप। --आख्या एक प्रकार की चमेली। मलिम्लुचः [मली सन् म्लोचित--मलिन्+-म्लच+क] मल्लिका मल्लिक+टाप्] 1. एक प्रकार की चमेली----वनेष 1. लुटेरा, चोर--शि० 16152 2. राक्षस 3. डांस, सायंतनमल्लिकानां विजृम्भणोद्गन्धिषु कुड्मलेष पिस्सू, खटमल 4. लौंद का महीना 5. वाय, हवा ---रघु०१६।४७ 2. इस चमेली का फूल--विन्यस्त 6. अग्नि 7. वह ब्राह्मण जो दैनिक पंच महायज्ञों को सायंतनमल्लिकेषु (केशेषु)-रघु० 16 / 50 नहीं करता है। --काव्या० 2 / 215 3. दीवट 4. किसी विशेष मलोमस (वि०) मिल- ईमसच्] 1. मैला, गन्दा, अपवित्र, आकृति का मिट्टी का वर्तन / सम०--गंधं एक अस्वच्छ, कलंकित, मलिन-मा ते मलीमसविकारघना प्रकार की अगर / मतिर्भूत--मा० 1132, रघु० 2053 2. कृष्ण, काला, मल्लीकरः [अमल्लमपि आत्मानं मल्लमिव करोति ...मल्ल काले रंग का-पणिता न जनारवरवैदपि कूजन्तमलि +च्चि, ईत्वम्, + अच्] कोर / मलीमसम--नै० 2 / 92, विसारितामजिहत कोकिला- | मल्लुः [मल्ल-उ] रीक्ष, भालू / वलीमलीमसा जलदमदांबराजयः-शि० 17.57, | म (भ्वा० पर० मवति) कसना, बांधना / 1 / 58 3. दुष्ट, पापपूर्ण, सदोष, बेईमान--मलीमसा | मव्य (भ्वा० पर० मव्यति) बांधना। माददते न पद्धतिम् --रघु० ३।४६,--स: 1. लोहा | मश् (भ्वा० पर० मशति) 1. भिनभिनाना, गुंजन करना 2. हा कसीस। ऊं ऊं करना 2. क्रोध करना। मल्ल (भ्वा० आ० मल्लते) थामना, अधिकार में करना / | मशः [मश् --अचु] 1. मच्छर 2. गूंजना, गुनगुनाना मल्ल (वि.) मल्ल+अच] 1. हृष्टपुष्ट, व्यायामशील, 3. क्रोध, सम--हरी मच्छरदानी, मसहरी। बलिष्ठ कि० 1818 2. अच्छा, उत्तम-ल्ल: 1. बलवान् | मशकः [मश+बन] 1. मच्छर, पिस्सू, डांस-सर्वं खलस्य पुरुष 2. कसरती, मुक्केबाज, पहलवान-प्रभुमल्लो चरितं मशक: करोति-हि० 1178, मनु० 1285 मल्लाय--महा० 3. पान पात्र, प्याला 4. हव्यशेष 2. चमड़ी का एक विशेष रोग 3. मशक, चमड़े का 5. गाल, कपोल, गण्डस्थल / सम० -- अरिः 1. कृष्ण बना पानी भरने का थैला। सम..--कुटिः, टी का विशेषण 2. शिव का विशेषण,----क्रीडा मक्केबाजी (स्त्री०),--वरथम् मच्छर उड़ाने का चंवर(-हरी या मल्लयुद्ध,-जम् काली मिर्चे,-तूर्यम् एक प्रकार मसहरी, मच्छरदानी। का ढोल,-भः,-भूमिः (स्त्री०) 1. अखाड़ा, मल्लयुद्ध | मकिन् (पु०) [मशक+इनि] गूलर का पेड़ / का मैदान 2. एक देश का नाम,-युद्धम् कुश्ती करना मशुनः (पु०) कुत्ता। या मक्केबाजी, मुष्टियुद्धीय भिड़न्त या मुठभेड़, विद्या मष (भ्वा० पर० मषति) चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, मल्लयुद्ध की कला,- शाला व्यायायशाला, अखाड़ा। मार डालना, नष्ट करना। मल्लकः [मल्ल-कन्, मल्ल+बुल वा] 1. दीवट 2. दीवा, | मषिः--षी (स्त्री०) मिष+इन्, मषि-डी -मसी तैलपात्र 3. दीपक 4. नारियल का बना हुआ प्याला 5. दाँत 6. एक प्रकार की चमेली। | मस (दिवा० पर० मस्यति) 1. तोलना, मापना, पैमाइश मल्लिः ,--ल्ली (स्त्री०) [मल्ल+ इन्, मल्लि-+ ङीष] एक / करना 2. रूप बदलना / प्रकार की चमेली। सम-गंधि (नपुं०) अगर, | मसः [मस्+अच्] माप, तोल / -नाथः एक प्रसिद्ध भाष्यकार जो चौदहवीं या | मसनम् [मस+ल्युट] 1. मापना, तोलना 2. एक प्रकार पन्द्रहवीं शताब्दी में हुआ (उसने 'रघुवंश' 'कुमार- की बूटी। For Private and Personal Use Only Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 782 ) दा उठना-वन्यः सरित्तो गज उस मस् ! ऋ+अण्, मसारका परिमाणम् ऋच्छति | मसरा [मस्+अरच्+टाप्] एक प्रकार की दाल, मसूर।। होना, उठना-वन्यः सरित्तो गज उन्ममज्ज-रघु० मसारः, मसारकः [मस्+क्विप्, मसं परिमाणम् ऋच्छति 5 / 43, 1679, कि० 9 / 23, शि० 9 / 30, नि डूबना, नीचे बैठना, ढल जाना (आल से भी) मसिः (पुं० स्त्री) [मस्+इन्] 1. स्याही 2. दीवे की यथा प्लवेनौपलेन निमज्जत्युदके तरन्, तथा निमज्ज स्याही, काजल 3. आंखों में लगाने की काली काजल / तोऽधस्तादज्ञो दातृ प्रतीच्छकौ-मनु० 4 / 194, 5 / 73, सम आधारः,--कूपी, --धानम्,---धानी, -मणिः शोके महुश्चाविरतं न्यमांक्षीत्-भट्टि० 3 / 30, 15 / स्याही रखने की बोतल, दवात, -जलम् रोशनाई, 31, शि० 9/74 गीत०१ 2. घुल जाना, डूब जाना. -~-पण्यः लेखक, लिपिकार,--पथः कलम, लेखनी, ओझल होना, नजर से बच निकलना,---एको हि दोषो -..प्रसूः (स्त्री०) 1. लेखनी 2. स्याही की बोतल, गुणसन्निपाते निमज्जतींदोः किरणेष्विवांक:-कु० - वर्धनम् लोबान / मसिकः [मसि+कन् साँग का बिल।। मस्तम् [ मस्+क्त ] सिर माथा। सम०- दारं (नपुं०) मसी [मसि + डीप्] दे० ऊपर 'मसि' / सम-जलम् देवदारु का पेड़,-मूलकम् गर्दन / / स्याही,-धानी दवात,-पटलम् काजल लगाना मस्तकः, कम् [ मस्मति परिमात्यनेन मस करणेत स्वार्थे क -शिरसि मसीपटलम् दधाति दीपः - भामि० तारा०] 1. सिर, माथा, खोपड़ी--अतिलोभा (पाठा० 1174 / तृष्णा) भिभूतस्य चक्र भ्रमति मस्तके-पंच० 5 / 22 मसु (सू) रः [मस् |-उरन्, ऊरन् वा] 1. एक प्रकार की 2. किसी चीज की चोटी या सिर न च पर्वतमस्तके दाल, मसूर 2. तकिया,-रा 1. मसूर की दाल 2. --मनु० 4 / 47, वृक्ष चुल्ली आदि / सम० -आख्यः वेश्या, रंडी। वृक्ष की चोटी, ज्वरः,-- शूलम् तीब्र सिरवर्द, मसूरिका [मसूर+कन्+टाप, इत्वस्] 1. एक प्रकार का —पिंडकः,--कम् मदोन्मत्त हाथी के गंडस्थल पर शीतला रोग, खसरा 2. मसहरी 3. कुट्टिनी, दूती। का गोल उभार, - मूलकम् गर्दन,--स्नेहः मस्तिष्क / मसूरी [मसूर + ङीष् ] छोटी चेचक / मस्तिकम् [= मस्तकम्, पृषो० इत्वम् ] सिर / मसण (वि०) [ऋण (दीप्ति)+क,पृषो० साधुः] 1. | मस्तिष्कम् [ मस्त मस्तकम् इष्यति स्वाधारत्वेन प्राप्नोति स्निग्ध, चिकना--मसणचंदनचितांगी-चौर० 7, मस्त। इष+क, वृषो०] दिमाग / सम० त्वच या, सरस मसृणमपि मलयजपंकम-गीत० 42. | (स्त्री०) मस्तिष्क पर चारों ओर लिपटी हुई मदू, कोमल, सरल-उत्तर० 1138 3. सौम्य, मद, झिल्ली। मधुमसणवाणि -- गीत० 10 4. प्रिय, मनोहर | मस्तु (नपुं०) [ मस्+तुन् ] 1. खट्टी मलाई 2. छाछ / . विनयमसणो वाचि नियमः - उत्तर० 2 / 2, 4 / 21 सम०-लुंगः, -- गम्, - लुंगकः, कम् मस्तिष्क, 5. चमकीला, उज्ज्व ल--मा० 1129, ४।२,--णा दिमाग। अलसी। मह / (भ्वा० पर०, चुरा० उभ०-महति, महयति-ते, मस्क (भ्या० पर० मस्कृति) जाना, हिलना-जलना। महित) सम्मान करना, आदर करना, बड़ा मानना, मस्करः [मस्क+अरच्] 1. बाँस 2. खोखला बाँस 3. गति, पूजा करना, श्रद्धा रखना, महत्त्वपूर्ण समझना-गोप्तार चाल 4. ज्ञान / न निधीनां महयंति महेश्वरम् विबुधाः - सुभा०, जयश्री मस्करिन (पु.) [ मस्कर+इनि ] 1. सन्यासी या साधु, विन्यस्तैर्महित इव मंदारकुसुमैः-गीत० 11, कु० सन्यास आश्रम में वर्तमान ब्राह्मण-धारयन् मस्क 5 / 25, 5 / 12, कि० 5 / 7,24, भट्टि० 102, रघु० रिव्रतम् - भाट्टे० 5 / 63 2. चन्द्रमा।' 11249 / मस्ज् (तुदा० पर० मज्जति, मग्न-प्रेर० मज्जयति-इच्छा० ii (भ्वा० आ० महते) विकसित होना, वढ़ना / भिमक्षति) 1. स्नान करना, डुबकी लगाना, पानी में | महः [ मह, घार्थे क ] 1. उत्सव, त्योहार बंधुताहृदयगोता लगाना - रघु० 15 / 101, भामि० 2 / 95 कौमुदीमहः .. मा० 9 / 21, स खलु दूरगतोप्यतिवर्तते 2. डूबना, ढलना, डूबजाना, नीचे बैठना, गोता लगाना / महमसाविति बंधुतयोदितः / शि०६।१९, मदनमहम्, (अधि० या कर्म० के साथ) सीदवंधे तमसि विधुरो - रत्न०१2. उपहार, यज्ञ 3. भैसा 4. प्रकाश, कांति मज्जतीवान्तरात्मा--उत्तर० 3 / 38, मा० 9 / 30 तु० 'महस' से भी। -सोऽसंवृतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति-मनु० 4181, महकः [ मह+कन् ] 1. प्रमुख पुरुष 2. कछुवा 3. विष्णु रघु० 16152 3. डुवना, पानी में नष्ट होना 4. दुर्भार का नामान्तर। ग्यग्रस्त होना 5. हतोत्साह होना, निराश या उत्साह- महत् (वि.) (म० अ० महीयस्, उ० अ० महिष्ठ, कर्त० हीन होना, उद् - पानी से बाहर आना, दृष्टिगोचर (पुं०) महान् महान्तौ महातः, कर्म० (ब० व०) For Private and Personal Use Only Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 783 ) महतः) [ मह+अति ] 1. बड़ा, वृहद् विस्तृत, / महनीय (वि.) [ मह --अनीयर | सम्मान के योग्य, विशाल, विस्तीर्ण -महान सिंहः व्याघ्रः आदि 2. आदरणीय, प्रतिष्ठित, श्रीमान्, यशस्वी, उदात्त, पुष्कल, यथेष्ट, विपुल, बहुत से,असंख्य-महाजनः, श्रेष्ठ-महनीय शासनः-रघु० 3269, महनीयकोतिः महान्, द्रव्यराशिः 3. लम्बा, विस्तारित, व्यापक, ----2225 / महांती बाहू यस्य स महाबाहुः इसी प्रकार महती महंतः[ मह --झन् ] किसी पद का मुख्याधिष्ठाता। कथा, महानध्वा 4. हृष्टपुष्ट, बलवान्, ताकतवर महद (महस) (अव्य) [ मह --अरु] भूलोक से ऊपर जैसे महान् वीर: 5. प्रचंड, गहन, अत्यधिक महती | के लोकों में से चौथा लोक (स्वर और जनस के शिरोवेदना, महती पिपासा 6. स्थूल, निबिड, सघन | बीच का लोक) (इसी अर्थ में 'महर्लोक' शब्द भी)। - महानंधकारः 7. महत्त्वपूर्ण, गुरुतर, भारी मह- | महल्लः, महल्लिकः [ अरबी भाषा से व्यत्पन्न शब्द महत् कार्यमपस्थितम, महती वार्ता 8. ऊँचा, उन्नत, | +ला+क] राजा के अन्त:पुर में रहने वाला प्रमुख,पूज्य, उदात्त महत्कुलम्, महान् जनः खोजा या हिजड़ा। 9. उत्ताल-महान घोषः, ध्वनिः 10. सबेरे | महल्लकः [ महल्ल+कन् ] निर्बल, कमजोर, पुराना, या देर से महति प्रत्यूषे, 'प्रातःकाल सबेरे' .....क: 1. राजा के अन्तःपुर का खोजा या हिजड़ा महत्यपराले 'दोपहर बाद देर में' 11. ऊँचा-महार्घ | बिशाल भवन, महल / (पुं०) 1. ऊंट 2. शिव का विशेषण 3. (सांख्य में) महस (नपुं०) [ मह +असुन ] 1. उत्सव, त्योहार का महत्तत्त्व, बुद्धि तत्त्व (मन से भिन्न) सांख्य द्वारा अवसर 2. उपहार, आहुति, यज्ञ 3. प्रकाश, आभा माने गये पच्चीस तत्त्वों में से दूसरा मनु० 12 / 14, ---कल्याणानां त्वमसि महसां भाजनं विश्वमत-मा० सां० 3 / 8 / 22 आदि नपुं० 1. बड़प्पन, अनन्तता, 1 / 3, उत्तर० 4.10 4. सात लोकों में से चौथा असंख्यता 2. राज्य, उपनिवेश 3. पवित्रज्ञान (अव्य०) ___-दे० 'महर'। बहुत अधिक, अत्यधिक, बहुत ज्यादा, अत्यन्त (विशे० महस्वत, महस्विन (वि०) [ महस+मतुप, विनि वा ] महत्' शब्द तत्पुरुष समास के प्रथम पद के रूप में भव्य, उज्ज्वल, चमकीला, प्रकाशयुक्त, आभामय / तथा कुछ अन्य स्थानों पर अपरिवर्तित ही रहता है, महा [ मह - घ+टाप् ] गाय / परन्तु कर्मधारय और बहुव्रीहि समासों में बदल कर महा [ कर्म० स० और ब० स० में प्रथम पद के रूप में, 'महा' बन जाना है)। सम०-आवासः विशालभवन, तथा कुछ अन्य अनियमित शब्दों के आरम्भ में . आशा ऊँची आशा,..--आश्चर्य (वि.) अत्यंत प्रयुक्त 'महत' का स्थानापन्न रूप] (विशे० उन आश्चर्यजनक,---आश्रयः बड़ों का सहारा, बड़ों की समस्त शब्दों की संख्या जिनका आदि पद 'महा' है, शरण,-कथ (वि.) बड़ों द्वारा कथित या उल्लिखित, बहत अधिक है; तथा और अनेक शब्द वन सकते बड़े लोगों के मुंह में,-क्षेत्र (वि०) विस्तृत प्रदेश पर हैं, उनमें से अपेक्षाकृत आवश्यक या जो कोई विशिष्ट अधिकार करने वाला, ताच्वम् सांख्यों के पच्चीस अर्थ युक्त हैं, नीचे दिए गए हैं) / सम-अक्षः शिव तत्त्वों में से दूसरा,-बिलम् अन्तरिक्ष, सेवा बड़ों का विशेषण,--अंग (वि.) स्थूल, महाकाय (गः) की सेवा,-स्थानम् ऊँचा स्थान, उन्नत स्थान / 1. ऊँट 2. एक प्रकार का वूहा, चूंस 3. शिव का महती [ महत+ङीष ] 1. एक प्रकार की वीणा 2. नारद नामान्तर,-अंजनः एक पहाड़ का नाम,--अत्ययः को वीणा ...अवेक्षमाण महती मुहुर्मुहुः-शिशु० 1110 संकट का भारी खतरा, * अध्वनिक (वि०) 'दूर तक 3. सफेद बैगन का पौधा 4. बड़प्पन, महत्त्व। गया हुआ' महाप्रयात, मृत, अध्वरः बड़ा यज्ञ, - अनमहत्तर (वि०) [ महत्+तरप् ] अपेक्षाकृत बड़ा, विशाल सम् भारी गाड़ी (--- सः, ---सम्) रसोई, .. अनुभाव ---र: 1. प्रधान, मुख्य या सबसे बड़ा व्यक्ति अर्थात (वि०) महाप्रतापी, ओजस्वी, उदात्त, यशस्वी, सम्माननीय पुरुष-उत्तर० 4 2. कंचुकी या राज महाशय, उदार, श्रीमान्-शि० शि० 1117, श० भवन का महाप्रतिहार 3. दरबारी 4. गाँव का मुखिया 3 2. गुणवान् ईमानदार, धर्मात्मा, (वः) प्रतिष्ठित या सबसे बड़ा आदमी। या आदरणीय व्यक्ति,—अंतक: 1. मत्य 2. शिव का महत्तरकः [ महत्तर-+-कन् ] दरबारी आदमी, किसी राज- विशेषण,-अंधकारः 1. घोर अन्धेरा 2. आध्यात्मिक भवन का महा प्रतिहार / अज्ञान,--अंध्राः (ब० व०) एक देश और उसके महत्त्वम् [ महत्+त्व ] 1. बड़ापन, विशालता, विस्तुति, अधिवासियों का नाम,---अन्वय,- अभिजन (वि०) महाविस्तार 2. शक्तिमत्ता, विभूति, ऐश्वर्य 3. आव- उत्तम कुल में उत्पन्न, सत्कुलोद्भव (यः,- नः) श्यकता 4. उन्नत अवस्था, ऊँचाई, उन्नयन 5. गह- उत्तम जन्म, ऊँचा कुल, अभिषवः सोम का नता, प्रचण्डता, ऊँचा परिमाण / अत्यन्त खींचा हुआ रस,-अमात्यः (राजा का) मुख्य For Private and Personal Use Only Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 784 ) या प्रधानमंत्री, अंबुकः शिव का विशेषण, -अंबुजम् दस खरब, अम्ल (वि.) बहुत खट्टा (--म्लम्) इमली का फल, अरण्यम् सुनसान जंगल, विशाल जंगल, अर्घ (वि.) अतिमल्यवान, ऊँची कीमत वाला (-छः) एक प्रकार की बटेर, --अर्घ्य (वि.) मूल्यवान, कीमती,---अचिस (वि.) ऊँची ज्वालाओं वाला, ... अर्णवः 1. महासागर 2. शिव का नामान्तर, --अर्बुदम् एक अरब - अर्ह (वि.) 1. अतिमूल्यवान्, बहुत क़ीमती -कु० 5 / 12 2. अनमोल, अननुमेय उत्तर० 6 / 11, (-हम्) सफेद चन्दन की लकड़ी,-अवरोहः बटवृक्ष,-अशनिध्वजः वज्र के रूप में एक बड़ा झंडा ----रघु० 3 / 56, -अशन (वि०) पेटू, भोजनभट्ट, -अश्मन् (पुं०) मूल्यवान् पत्थर, लाल, अष्टमी आश्विन शुक्ला अष्टमी, दुर्गाष्टमी, -असिः बड़ी तलवार,... असुरी दुर्गा का नामान्तर, ---अतः दोपहर बाद का समय,--आकार (वि०) विस्तीर्ण, विशाल, बड़ा,--आचार्यः 1. प्रधान अध्यापक शिव का विशेषण,-आढ्य (वि०) धनवान्, अमीर (-दयः) कदम्ब का वृक्ष, -आत्मन् (वि.) 1. महाशय, महामनस्क, उदारचेता, महोदय, अयं दुरात्मा अथवा महात्मा कौटिल्यः-मुद्रा० 7, द्विषंति मन्दाश्चरितं महात्मनां -कु० 5 / 75, उत्तर० 1149 2. श्रीमान्, पूज्य, श्रेष्ठ, प्रमुख (पुं०) परमात्मा - मनु०११५४ (महात्मवत् का भी वही अर्थ है जो 'महात्मन्' शब्द का), ----आनक: एक प्रकार का बड़ा ढोल,---आनंदः, -नन्दः 1. बड़ा हर्ष या उल्लास 2. विशेष कर मोक्ष का आनंद, -आपगा बड़ा दरिया,-आयुधः शिव का विशेषण,-आरम्भ (वि०) बड़े-बड़े कार्यों में हाथ में लेने वाला, सासिक (-भः) कोई बड़ा साहसिक कार्य,-आलयः 1. देवालय 2. पवित्र स्थान, आश्रम 3. बड़ा आवासस्थान 4. तीर्थस्थान 5. ब्रह्मलोक 6. परमात्मा /-या) एक विशेष देवता का नाम, * आशय (वि.) महात्मा, महामनस्क, उदारचेता, उदात्तचरित्र दे० महात्मन् (-यः) 1. उदारमना या उदारचेता व्यक्ति-महाशयचक्रवर्ती-भामि० 1170 2. समुद्र,—आस्पद (वि.) 1. उत्तम पद पर अधिकार करने वाला 2. ताकतवर, बलवान्, -आहवः बड़ा या महासंग्राम,--इच्छ (वि.) 1. उदारचेता, उदारमना महामना, उदात्तचरित्र-रघु० 18133 2. महान् उद्देश्य और आशाएँ रखने वाला, महत्त्वाकांक्षी, * इन्द्रः 1. महेन्द्र अर्थात् महान् इन्द्र कु० 5 / 53, रघु० 13120, मनु० 77 2. मुखिया या नेता 3. एक पर्वत शृंखला, चापः इन्द्रधनुष, नगरी इन्द्र की राजधानी अमरावती, मंत्रिन् (पुं०) बृहस्पति का विशेषण,—इष्वासः बड़ा धनुर्धर, बड़ा भारी योद्धा भग०१४, ईशः,-ईशानः शिव का नाम, .... ईशानी पार्वती का नाम,--ईश्वरः .. महाप्रभु, स्वामी 2. शिव का नामांतर 3. विष्णु का नाम, (-री) दुर्गा का नाम, --उक्षः ('उक्षन्' के स्थान पर) महाकाय बैल, हृष्टपुष्ट बैल -महाक्षतां वत्सतरः स्पृशनिव-- रघु० 3 / 32, 4 / 22, 6 / 72, शि० 5 / 63, ---उत्पलम् एक बड़ा नील कमल,-उत्सवः 1. एक बड़ा पर्व, या हर्ष का अवसर 2. कामदेव,---उत्साह (वि०) ऊर्जस्वी, ओजस्वी, धैर्यशाली (-हः) धैर्य, --उदधिः 1. महासागर रघु० 3 / 17 2. इन्द्र का विशेषण जः शंख, सीपी, उदय (वि०) बड़ा समृद्धिशाली या भाग्यवान्, बड़ा यशस्वी या भव्य, अतिसमृद्ध (-यः) 1. प्रोत्कर्ष, उन्नयन, बड़प्पन, समृद्धि --- रघु०८।१८ 2. मोक्ष 3. प्रभु, स्वामी 4. कान्यकुब्ज या कन्नौज नामक जिला 5. कन्नौक की राजधानी का नाम 6. मधुपर्क,- उदर (वि.) बड़े पेट वाला, मोटा (-रम्) 1. बड़ा पेट 2. जलोदर,-उदार (वि.) अतिदानशील, या उदारचेता, वदान्य, उद्यम (वि.)-महोत्साह दे०,--उद्योग (वि०) अतिपरिश्रमी, मेहनती, परिश्रमशील,-उन्नत (वि०) अत्यंत ऊँचा (-तः) पंखिया खजूर का वृक्ष,---उन्नतिः (स्त्री०) प्रकर्ष, उन्नयन (आलं 0 भी) उत्कृष्ट पद, --उपकारः बड़ा आभार,----उपाध्यायः मुख्य गुरु, विद्वान् अध्यापक,--उरगः बड़ा साँप --रघु० 12 / 98, --उरस्क (वि.) विशाल वक्षस्थल बाला (-स्कः) शिव का विशेषण, उल्का 1. एक बड़ा टूटा तारा 2. बड़ी जलती हई लकड़ी,--ऋद्धिः (स्त्री०) बड़ी समृद्धि या सम्पन्नता, ऋषभः साँड,---ऋषिः 1. बड़ा ऋषि या सन्त (मनु० 1134 में यह शब्द मानवजाति के मूलपुरुष या दस प्रजापतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है, परन्तु यह 'बड़ा ऋषि' के सामान्य अर्थ में भी प्रयुक्त होता है) 2. शिव का नाम, --ओष्ठ (महोष्ठ) (वि.) बड़े होठों वाला (---ष्ठः) शिव का विशेषण, ओजस् बहुत ताकतवर, अतिबलशाली, प्रतापी, यशस्वी, ...-महौजसो मानधना धनाचिता:--कि० 219, (पु.) बड़ा शुरवीर या योद्धा, मल्ल,-ओजसम् विष्णु का चक्र, - ओषधिः (स्त्री०) 1. अमोघ औषधि का पौधा, अचूक दवा 2. दुर्वा घास,--औषधम् सर्वोपरि उपचार, रामबाण, सब रोगों की अचूक दवा 3. अदरक +. लहसुन . एक प्रकार का विष, वत्सनाभ, -- कच्छ: 1. समुद्र 2. वरुण का नाम 3. पहाड़ का नाम, . कंदः लहसुन, -कपर्दः एक प्रकार की सीपी, कौड़ी, कपित्थः 1. बेल का पेड़ 2. लाल लहसुन,-कंबु (वि.) बिल्कुल नंगा (--बुः) शिव का विशेषण,--कर (वि०) 1. लंबे For Private and Personal Use Only Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 785 ) हाथों वाला 2. जिससे बहुत राजस्व मिलता हो–कर्णः -चक्रवतिन् (पुं.) सार्वभौम नरेश,-चमू: (स्त्री०) शिव का विशेषण, --कर्मन् (वि.) बड़े-बड़े काम करने विशाल सेना,--छायः वटवृक्ष,- जटः शिव का विशेवाला (पु.) शिव का विशेषण,-कला शुक्ल पक्ष की षण, * जत्रु (वि०) जिसकी हंसली की हड्डी बहुत द्वितीया की रात, कविः 1. कविशिरोमणि कालिदास बड़ी हो (-4) शिव का विशेषण, -जमः 1. लोगों भवभूति, बाण और भारवि आदि महाकवि का समूह, बहुत से प्राणी, साधारण जनता-महाजनों 2. शुक्राचार्य का विशेषण--कान्तः शिव का विशेषण येन गतः स पन्थाः-- महा. 2. जनसंख्या, भीड़-भाड़ (-ता) पृथ्वी,-काय (वि.) स्थूलकाय, बड़ा महा- -महाजनः स्मेरमुखो भविष्यति - कू० 570 3. काय, अतिकाय (---यः) 1. हाथी 2. शिव का बड़ा आदमी, प्रतिष्ठित पुरुष, प्रमुख व्यक्ति-महाविशेषण 3. विष्णु का विशेषण 4. शिव का एक जनस्य संसर्ग कस्य नोन्नति कारकः, पपपत्रस्थितं अनुचर, नंदी बैल,कार्तिको कार्तिक मास की पूर्णिमा, तोयं धत्ते मुक्ता फलश्रियम् -सुभा० 4. किसी ----काल: प्रलयकर्ता के रूप में शिव का एक रूप 2. व्यवसाय का मुखिया 5. सौदागर, व्यापारी...जातीय एक प्रसिद्ध मन्दिर या शिव (महाकाल) का मन्दिर, (वि०) 1. दान-शील 2. उत्तम जाति का, ('महाकाल' का यह मन्दिर उज्जैन में विद्यमान है, --ज्योतिस् (पु.) शिव का विशेषण, तपस् (पु.) 1. कालिदास ने अपने मेघदूत की रचना द्वारा इसे अमर कठोर तप करने वाला 2. विष्णु का विशेषण, तलम् कर दिया है, वहाँ (महाकाल=शिव) देवता, उसका नीचे के सात लोकों में से एक, दे० पाताल, मन्दिर, पूजा आदि के साथ-साथ नगरी का सचित्र ---तिक्तः 'निबवृक्ष,-तीषण (वि.) अत्यंत तेज वर्णन मिलता है तु० मेघ० 30-38, रघु०६।३४ या तीब्र (णा) भिलावा,---तेजस (वि.) 1. बड़ी भारी 3. विष्णु का विशेषण 4. एक प्रकार की लौकी या कांति या दीप्ति से युक्त 2. तेजस्वी, शक्तिशाली, कद्दू, °पुरम् उज्जयिनी की नगरी, -- काली दुर्गा देवी शोर्य युक्य (पुं०) 1. शूरवीर, योद्धा 2. अग्नि 3. का डरावना रूप,--काव्यम् लौकिक काव्य, महाकाव्य कातिकेय का विशेषण (न०) पारा,-ब -वंत: (इसके विषय में पूरा विवरण जो साहित्य शास्त्रियों 1. बड़े दांतों वाला हाथी 2. शिव का विशेषण ने किया है सा० द. 559 में दे०) (महाकाव्य 1. लंबी भुजा 2. भारी दंड वशा (मनुष्य के भाग्य गिनती में पांच है -रघुवंश, कुमारसंभव, किराता- पर) प्रबल ग्रह का प्रभाव,-वाह (न पुं०) देवदारु र्जुनीय, शिशुपालवध, और नैपधचरित / यदि खंड- वृक्ष,देवः शिव का नामांतर (-बी) पार्वती का काव्य--मेघदूत भी सूचीमें सम्मिलित किया जाय नामांतर, . हुमः पीपल का वृक्ष,--बन (वि.) 1. तो छ: महाकाव्य हो जाते हैं परन्तु यह गणना केवल धनाढय 2. कीमती, मूल्यवान् (--नम्) 1. सोना, परम्परा-प्राप्त, क्योंकि भट्टिकाव्य, विक्रमांकदेवचरित 2. गंध, धूप 3. मूल्यवान् वेशभूषा,-धनुस् (पुं०) और हरविजय आदि का भी महाकाव्य की दृष्टि से शिव का विशेषण,-बातः 1. सोना 2. शिव का विचार किया जाने का समान अधिकार है), विशेषण 3. मेरु का विशेषण,-नटा शिव का विशेषण --कुमारः राजा का सबसे बड़ा पुत्र, युवराज,--कुल -नवः बड़ा दरिया, नदी 1. गंगा, कृष्णा जैसी बड़ी (वि०) सत्कुलोत्पन्न, उच्चकुलोद्भव, ऊँचे कुल में नदी -- संभूयाम्भोधिमभ्येति महानघा नगापगा-शि० उत्पन्न (लम्) उच्चकुल में जन्म, ऊँचा कुल, - कृच्छम् 2 / 1002. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली एक घोर साधना, भारी तपस्या,----कोशः शिव का विशेषण, नदी,-नंदा 1. खींची हुई शराब 2. एक नदी का ----ऋतुः महायज्ञ, उदा० अश्वमेष-रघु० 3146, नाम,-नरकः इक्कीस नरकों में से एक, एक -ऋनः विष्णु का विशेषण, - क्रोधः शिव का विशे प्रकार का नरकुल, नेजा.-नवमीमाश्विन शुक्ला षण,--क्षत्रपः महाराज्यपाल, उपशासक,--क्षीरः गन्ना, नौमी, दुर्गानवमी,-- नाटक 'महानाटक' एक नाटक' ईख,--खर्वः,....बम् (बड़ी संख्या सौ खरब की संख्या) का नाम जिसे 'हनुमन्नाटक' (हनुमान् के नाम से -गजः बड़ा हाथी दे० दिक्करिन, गणपतिः गणेश सर्वप्रिय होन के कारण) भी कहते है, नाम 1. ऊची देवता का एक रूप, . गंधः एक प्रकार की बेत (षम) / आवाज शोर 2. बाहोक 3. मरणने वाला बादल, एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी, * गवः सुरागाय, 4. शंख 5. हाथी 6. सिंह 7. कान &ऊँट 1. शिव - गुण (वि०) अमोघ, अचूक (औषधि आदि), का विशेषण, (बम्) एक वाद्ययंत्र,- मासः शिव का --- गृष्टिः विशाल डील की गाय, प्रहः राहु का विशेषण,-निद्रा 'महानिद्रा', मत्य,-नियमः विष्णु विशेषण, ग्रीवः 1. ऊँट 2. शिव का विशेषण,प्रीविन का विशेषण,-निर्वाणम् (बोड़ों के अनुसार) व्यष्टि(पु.) ऊँट घूर्णा खींची हुई शराब,-घोषम् मंडी, सत्ता का पूर्ण नाश,---निशा 1. साधोरात, रात का मेला (-) ऊँचा शोर, कोलाहल, मुलगपाग, / दूसरा या तीसरा पहर- महानिशा तु विज्ञेया मध्यम ELETEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER For Private and Personal Use Only Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 786 ) प्रहरवयम,-नीचः धोबी,-नील (वि.) गहरा नील। (ल:) एक प्रकार का नीलम या पन्ना-शि० 1116, 4 / 44, रघु० 18142, उपलः नीलम,-नत्यः शिव का विशेषण, नेमिः कौवा,-पक्षः 1. गरुड़ का विशेषण 2. एक प्रकार की बत्तख, (..-क्षी) उल्ल,-पंचमलम पांच पेड़ों की जड़ों का योग---बिल्वोग्निमन्थः / श्योनाकः काश्मरी पाटला तथा, सर्वस्तु मिलित रेत: स्यान्महापंचमूलकम्, -- पंञ्चविषम् पाँच घातक विषों का योग-शृंगी च कालकूटश्च मस्तको वत्सनामकः, शंखकर्णीति योगोऽयं महापंचविषाभिषः, .--.-पथ: 1. मुख्य सड़क, प्रधान वीथी, राजमार्ग ---कू० 7.3 2. परलोक अर्थात् मृत्यु का मार्ग 3. कुछ पर्वत के शिखर जहाँ से भक्त लोग स्वर्गपथ प्राप्त करने के लिए अपने आपको फेंका करते थे 4. शिव का एक विशेषण, पयः एक विशिष्ट बड़ी संख्या, (सौ पद्म की संख्या?) 2. नारद का नामान्तर 3. कुबेर की नौ निधियों में से एक (पम्) 1. श्वेत कमल 2. एक नगर का नाम, पतिः नारद का नामान्तर,-परालः देर में, दोपहर बाद, --पातकम् बहुत बड़ा पाप, जघन्य अपराध -ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गर्वगनागमः, महान्ति पातकान्याहस्तत्संसर्गश्च पंचमम् ---- मनु० 11154 2. कोई बड़ा पाप, या अतिक्रमण, - पात्रः प्रधान मंत्री, -पावः शिव का विशेषण, . पाप्मन् (वि०) अत्यंत पापपूर्ण या दुर्वत्त.पुंसः महान् पुरुष ...पुरुषः 1. बड़ा आदमी, एक प्रमुख या पूज्य व्यकिा -शब्दं महापुरुषसंविहितं निशम्य उत्तर० 67 2. परमात्मा 3. विष्णु का विशेषण,-पुष्पः एक प्रकार का कीड़ा, पूजा बड़ी पूजा, असाधारण अवसरों पर अनुष्ठित गहन पूजा,- पृष्ठः एक ऊँट, - प्रपंचः विश्व का विराटरूप, ...प्रभ (वि०) बड़ी भारी कान्ति वाला ( भः) दीपक का प्रकाश,-प्रभुः 1. परमेश्वर 2. राजा महाप्रभु 3. मुख्य 4. इन्द्र का विशेषण 5. शिव का विशेषण 6. विष्णु का विशेषण,-----प्रलयः 'महाविघटन' ब्रह्मा की जीवन समाप्ति पर विश्व का पूर्ण विनाश जब कि अपने अधिवासियों सहित समस्त लोक, देव, सन्त, ऋषि आदि स्वयं ब्रह्मा समेत सभी विनाश को प्राप्त हो जाते हैं ,-प्रसावः 1. एक बड़ा अनुग्रह 2. (भगवान् की मूर्ति पर लगाया हुआ भोग) एक बड़ा उपहार,-प्रस्थानम् इस जीवन से बिदा लेना, मत्यु ऊँचा श्वास, या. इवासाधिक ध्यानि जो ऊष्म वर्णों के उच्चारण में की जाती है 2. श्वासातिरेक से युक्त वर्ण-अर्थात् ख् घ् छ् झ् ढ् थ् ध् फ् भ् श् ष् स् ह. 3. पहाड़ी कौवा,-प्लवः भारी बाढ़, जलप्लावन,-फल (वि.) बहुत फल देने वाला (ला), 1. कड़वी लौकी 2. एक प्रकार की बी, (लम्) बड़ा / फल या पुरस्कार,--बल बहुत मजबूत (ल:) हवा (लम) सीसा ईश्वरः वर्तमान महाबलेश्बर के निकट स्थापित शिव का लिंग,-बाह (वि.) लंबी भुजाओं वाला, शक्तिशाली (हः) विष्णु का विशेषण,-बि (वि) लम-1. अन्तरिक्ष 2. हृदय 3. जलकलश, घड़ा 4. विवर, गुफा,-बी (बी) जः शिव का विशेषण, --बी (वी) ज्यम् मूलाधार,-बोधिः बौद्धभिक्षु, --ब्रह्मम,--ब्रह्मन् परमात्मा,-ब्राह्मण: 1. एक बड़ा या विद्वान ब्राह्मण 2. एक नीच या तिरस्करणीय ब्राह्मण,-भाग (वि.) 1. अतिभाग्यवान, सौभाग्यशाली, समृद्ध 2. श्रीमान्, पूज्य, यशस्वी-महाभागः कामं नरपतिरभिन्नस्थितिरसौ-श० 5 / 20, मनु० 3 / 192 3. अत्यन्त निर्मल या पवित्र, अत्यंत गुणवान्, -भागिन् (वि०) अतिभाग्यवान् या समृद्ध,-भारतम् प्रसिद्ध महाकाव्य जिसमें धृतराष्ट्र और पांडु के पुत्रों की प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष का वर्णन है (इसमें अठारह पर्व या अध्याय है, कहा जाता है कि इसकी रचना व्यास ने की, तु० 'भारत' शब्द की भी),--भाष्यम 1. एक बड़ी टीका 2. विशेषकर पाणिनि के सूत्रों पर पतंजलि द्वारा लिखा गया महाभाष्य (विस्तृत टीका), ---भीमः राजा शान्तनु का विशेषण, भीरुः एक प्रकार का कीड़ा, गुबरला,-भुज (वि०) लम्बी भुजाओं वाला, शक्तिशाली, -भूतम् मूलतत्त्व - दे० भूत-तं वेधाविदधेनूनं महाभूतसमाधिना ---- रघु० 1126, मनु० 116, (-तः) एक बड़ा जानवर,-- भोगा दुर्गा का विशेषण,--मणिः कीमती या मूल्यवान मणि, आभूषण, जवाहर, - मति (वि०) 1. उच्चमनस्क 2. चतुर (तिः) बृहस्पति का नाम,-मद (वि.) नशे में अत्यन्त चूर (-व:) मतवाला हाथी, --मनस,-मनस्क (वि.) 1. उच्चमना, उदात्तमनस्क, उदाराशय 2. उदार 3. घमण्डी, अभिमानी (0) 'शरभ' नाम का एक कल्पनाप्रसूत जन्तु,-मंत्रिन (पु०) प्रधानमन्त्री, मुख्यमन्त्री,-महोपाध्यायः 1. बहुत बड़ा उपाध्याय, अध्यापक, महापंडित, विद्वान् और प्रसिद्ध पंडितों को दी जाने वाली उपाधि उदा. महामहोपाध्यायमल्लिनाथ सूरि आदि, - मांसम् 'मूल्यवान् मांस' विशेषकर नरमांस-मा० ५।१२,-~-मात्र: 1. राज्य का बड़ा अधिकारी, उच्च राज्याधिकारी, मुख्यमन्त्री --मन्त्र कर्मणि भूषायां विने माने परिच्छदे, मात्रा च महती येषां महामात्रास्तु ते स्मृताः मनु० 9 / 259 2. महावत, हाथियों पर निगरानी रखने वाला पंच० 11131 3. हाथियों का अधीक्षक (श्री) 1. मुख्यमन्त्री की पत्नी 2. आध्यात्मिक गुरु की पत्नी, मायः विष्णु का विशेषण,---माया सांसारिक कारण भता अविद्या जिससे यह समस्त भौतिक जगत वास्तविक प्रतीत For Private and Personal Use Only Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACT ( 787 ) होता है, * मारी हैजा, बवाई रोग, संक्रामक बीमारी, / बड़ा डरावना (-जी) दुर्गा का विशेषण, रोखः -...-माहेश्वरः शिव या महेश्वर का बड़ा भक्त,--मुखः इक्कीस नरकों में से एक-मनु० 4 / 89-90, लक्ष्मी मगरमच्छ, घड़ियाल, - मुनिः बड़ा ऋषि 2. व्यास 1. नारायण की शक्ति या महालक्ष्मी 2. दुर्गापूजा के (नपुं० --नि) आयुर्वेद की जड़ीबूटी, मूर्धन् (पुं०) उत्सव पर दुर्गा बनने वाली कन्या,-लिंगम् बृहल्लिग शिव का विशेषण, मूलम् एक बड़ी मूली (लः) एक (गः) शिव का विशेषण,-लोलः कौवा,-लोहम् प्रकार का प्याज, मल्य (वि०) अत्यन्त कीमती चुम्बक, -बनम् 1. एक बड़ा जंगल 2. विंध्यवन में (ल्यः) लाल, मग: 1. कोई भी बड़ा जानवर एक बड़ा जंगल,--वराहः 'महावराह' विष्णु का विशे2. हाथी, मेदः मुंगे का पेड़,-मोहः मन का भारी षण, तृतीय अवतार 'वराह शकर' के रूप में, वसः आकर्षण (---हा) दुर्गा का विशेषण, यज्ञः ‘महायज्ञ' शिशुमार, सुंस,--वाक्यम् 1. लंबा वाक्य 2. अविगृहस्थ द्वारा अनुष्ठेय दैनिक पांच यज्ञ या और कोई च्छिन्न रचना या कोई साहित्यिक कृति 3. महदर्थ धर्मकृत्य ---अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम्, प्रकाशक वाक्य-जैसे तत्त्वमसि, ब्रह्मवेदं सर्वम् आदि, होमो देवो (देवयज्ञः) बलिभीतो (भूत यज्ञः) नृयज्ञोऽ --वातः आंधी, झंझावात,- वार्तिकम् पाणिनि के तिथिपूजनम् मनु० ३१७०-७२,--यमकम् 'बृहद्यमक' सूत्रों पर कात्यायन द्वारा रचित वार्तिक,-विवेहा अर्थात किसी श्लोक के चारों चरण जहां शब्दशः एक योगदर्शन में प्रदर्शित मन की अवस्थाविशेष या बृत्तिसे हैं, परन्तु अर्थत: भिन्न हैं, उदा० दे० कि० 15152, विशेषः,-विभाषा सविकल्प नियम,-विषुवम् मेघ की यहां विकाशमीयर्जगतीशमार्गणाः' पंक्ति के चार संक्रान्ति संक्रान्ति बसन्तविषव (जब सूर्य मीन राशि भिन्न 2 अर्थ है, तु० भट्टि० 10.19 की भी, यात्रा से मेष राशि पर संक्रमण करता है),-वीरः 1. बड़ा 'बड़ी तीर्थयात्रा' काशी यात्रा, मत्य, याम्यः विष्णु शूरवीर या योद्धा 2. सिंह 3. इन्द्र का वज्र 4. विष्णु का विशेषण, युगम् 'बृहद् युग' मनुष्यों के चार का विशेषण 5. गरूड़ का विशेषण 6. हनुमान् का युगों का समाहार अर्थात् 320000 मानववर्ष, विशेषण 7. कोयल 8. सफेद घोड़ा 9. यज्ञाग्नि योगिन् (0) 1. शिव का विशेषण 2. विष्णु 10. यज्ञपात्र 11. एक प्रकार का बाज पक्षी,-वीर्या का विशेषण 3. मर्गा,-रजतम् 1. सोना 2. धतूरा, सूर्य की पत्नी संज्ञा का विशेषण,-वयः भारी बैल, -~-रजनम् 1. केसर 2. सोना,---रत्नम् बहुमूल्य साँड, ...वेग (वि.) बहुत तेज, प्रवलवेग वाला (गः) रत्न,-रथः 1. बड़ी गाड़ी या रथ 2. बड़ा योद्धा या 1. लंबी चाल, प्रबल वेग 2. लंगूर 3. गरूड पक्षी, नायक-कुतः प्रभावो धनंजयस्य महारथजयद्रथस्य, -वेल (वि.) तरगमय,-व्याधिः (स्त्री०) विपत्तिमुत्पादयितुम् वेणी० 2, रघु० 9 / 1, शि० 1. भारी बीमारी 2. (काला कोढ़) कोढ़ का भयानक 3 / 22 (महारथ की परिभाषा - एका दशसहस्राणि रूप,---व्याहुतिः (स्त्री०) अत्यंत गूढ शब्द अर्थात् योधयेद्यस्तु धन्विनां, शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च विज्ञेयः भूर्, भुवस् और स्वर्,-प्रत (वि.) अत्यंत धर्मस महारथः ),-रस (वि०) अत्यन्त रसीला (सः) निष्ठ, कठोरतापूर्वक ब्रत का पालन करने वाला 1. गन्ना, ईख 2. पारा 3. बहुमूल्य धातु (सम्) (तम्) 1. महाव्रत, बहुत बड़ा कठिन द्रत, महान् धर्मचावलों का जायकेदार मांड,-राजः 1. बड़ा राजा, कृत्य का पालन 2. कोई भी महान् या प्रधान कर्तव्य प्रभु, या सम्राट 2. राजाओं या बड़े 2 व्यक्तियों को --प्राणरपि हितावत्तिरद्रोहो व्याजवर्जनम्, आत्मनीव ससम्मान संबोधित करने की रीति (महाराज, देब, प्रियाधानमेतन्मंत्रीमहाब्रतम्-महावी० 5 / 59, -प्रतिन् प्रभु, महामहिम), चूतः एक प्रकार का आम, (पुं०) 1. भक्त, संन्यासी 2. शिव का विशेषण, - राजिकाः (पुं०, ब० व०) एक देवसमूह का विशे- --शक्तिः 1. शिव का विशेषण 2. कार्तिकेय का षण (गिनती में यह देव 220 या 236 माने जाते विशषण, शंख: 1. बड़ा शंख-भग० 115 हैं),---राज्ञी मुख्य रानी, राजा की प्रधान पत्नी, 2. कनपटी की हड्डी, मस्तक 3. मानव अस्थि -रात्रिः,-त्री (स्त्री०) दे० महाप्रलय,-राष्ट्रः 4. विशिष्ट ऊंची संख्या,-शठः एक प्रकार का धतूरा, 1. 'महाराष्ट्र' भारत के पश्चिम में मराठों का एक ...शब्द (वि.) ऊँची ध्वनि करन बाला, अत्यंत देश 2. महाराष्ट्र देश के अधिवासी, मराठे (ब०व०) कोलाहलपूर्ण, ऊधम मचाने वाला, शल्कः समुद्री (ष्ट्री) मुख्य प्राकृत बोली, महाराष्ट्र के अधिवासियों केकड़ा या झींगा मछली मन० ३१२७२,-शालः की भाषा-तु० दण्डी-महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं बड़ा गृहस्थ,--शिरम् (पुं०) एक प्रकार का सांप, प्राकृतं विदु:-काव्या० ११३४,---रूप (वि०) रूप - शुक्तिः (स्त्री०) मोतियों की सीपी,-शुक्ला में बलवान् (पः) 1. शिव का विशेषण 2. राल, सरस्वती का विशेषण,--शुभ्रम् चाँदी,--शूद्रः (स्त्री० -रेतस् (पुं०) शिव का विशेषण, - रौद्र (वि.)। -नो) 1. उच्चपदस्थ शूद्र 2. ग्वाला, "श्मशानम् For Private and Personal Use Only Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 788 ) वाराणसी का विशेषण, श्रमणः बुद्ध का विशेषण, .... पालक: भैस रखने वाला, --बहनः-वाहनः यम के -वासः एक प्रकार का दमा, - श्वेता 1. सरस्वती का विशेषण-कृतान्त: किं साक्षान्महिषवहनोऽसाविति विशषण 2. दुर्गा का विशेषण 3. सफेद खांड, -संक्रांतिः पुनः --काव्य०१०। (स्त्री०) मकर संक्रान्ति,-सती बड़ी सती साध्वी स्त्री, महिषी [ महिष+ङीष् ] 1. भैंस, मनु० 9 / 55, याज्ञ. - सत्ता असीम अस्तित्व, सत्यः यम का विशेषण, 2 / 159 2. पटरानी, राजमहिषी-महिषीसखः-रघु० -सत्वः कुबेर का विशेषण, संधिविग्रहः शान्ति 1148 2 / 25, 319 3. रानी 4. पक्षी की मादा और युद्ध के मन्त्री का पद,- सन्नः कुबेर का विशेषण, 5. स्त्रीदासी, सेविका, सैरंध्री 6. व्यभिचारिणी स्त्री -सर्जः कटहल,-सांतपन: एक प्रकार की घोर तपस्या 7. अपनी पत्नी की वेश्यावृत्ति से अजित धन-तु० -दे. मनु० १११२१२,-सोधिविग्रहिकः शान्ति और माहिषिक / सम०—पालः भैसों के रखने वाला, युद्ध का (परराष्ट्र) मंत्री,-सारः एक प्रकार का --- स्तम्भः भैंस के सिर से अलंकृत खंबा। खर का वृक्ष, - सारथिः अरुण का बिशेषण,-साहसम् महिष्मत् (वि०) [ महिष+मतुप्, पृषो० टिलोपः ] अतिसाहस, बलात्कार, अत्यधिक दिलेरी,-साहसिक: बहुत सी भैसे रखन वाला, या जहाँ भैसे बहुतायत डाकू, बटमार, साहसीलुटेरा,----सिंहः शरम नाम का | से हों। एक कथा से वर्णित जन्तु,---सिद्धिः (स्त्री०) एक मही [ मह+अच-+-ङीष् ] 1. पृथ्वी-जैसा कि महीपाल प्रकार की जादू की शक्ति,-सुखम् 1. बड़ा आनन्द और महीभृत् आदि में--मही रम्या शय्या-भर्त 2. संभोग, सूक्ष्मा रेत,-सूतः सैनिक ढोल,-सेन: 1. 3179 2. भूमि, मिट्टी 3. भूसम्पत्ति, जमीन-जायदाद कार्तिकेय का एक विशेषण 2. विशाल सेना का सेना 4. देश, राज्य 5. एक नदी का नाम जो खंबात को पति (-ना बड़ी सेना, --स्कंधः ऊंट,-स्थली खाड़ी में गिरती है 6. (ज्या० में) समतल आकृति पृथ्वी, स्थानम् बड़ा पद, स्वनः एक प्रकार का ढोल की आधाररेखा / सम० ----इनः, - ईश्वरः राजा,-न न --हंसः) विष्णु का विशेषण,-हविस् (नपुं०) घी, मही नमहीनपराक्रमम् - रघु० ९।५,-कंपः भूचाल --हिमवत् (पुं०) एक पहाड़ का नाम / क्षित् (पुं०) राजा, प्रभु =रधु० 1111, 85, 19 / महिका [मह, क्युन्+टापू, इत्वम् ] कोहरा, धुंध / 20-- 1. मंगलग्रह 2. वृक्ष (जम्) हरा अदरक, महित (भू.क.१०) [ मह+क्त ] सम्मानित पूजित, -तलम् धरातल,-दुर्गम् मिट्टी का किला, भूदुर्ग महमादित, श्रद्धेय-दे. महम् शिव का त्रिशूल / -घर: 1. 1. पहाड़-रघु० 6 / 52, कु०६।८९ 2. माहिम (पुं० [महत्+इमनिन् विलोप:] 1. बड़प्पन विष्णु का विशेषण,--ध्रः 1. पहाड़ भर्तृ० 2010, शि० बार्क से भी) अयि मलयज महिमायं कस्य गिरामस्तु 15 / 24, रघु० 3160 1317 2. विष्णु का विशेषण, विषक्स्ते--मामि. 1111 2 यश, गौरव, ताकत, -- नापः, ---पः, - पतिः, -- भुज् (पुं०), मघवन् शक्ति कु० // 6, उत्तर० 4 / 21 3. ऊंचा पद, उन्नत (पुं०),- महेन्द्रः राजा - भग० 1120, रघु० 2 / 34, पदवी, या ऊंची प्रतिष्ठा 4. सिद्धियों में से एक-अपना ६।१३,-पुत्रः, सुतः,-सूनुः 1. मंगलग्रह 2. नरकाभरीर फुलाना-दे.सिद्धि। सुर का विशेषण, पुत्री, -सुता सीता का एक विशेबहिरः [ मह,+इलच्, लस्य रत्वम् ] सूर्य / षण, प्रकंपः भूचाल, प्ररोहः, --रह, (पुं०)--- वहः महिला [ मह+इलच्+टाप् ] 1. स्त्री 2. मदमत्त या वृक्ष कि० 5 / 10, शि० २०६४९,-प्राचीरम्,-प्रावरः विलासिनी स्त्री--विरहेण विकलहृदया निर्जलमीना- समुद्र, भर्तृ ( पुं०) राजा, भृत् (पुं०) 1. पहाड़ यते महिला-भामि०।६८ 3. प्रियंगु नाम की लता -कु० 1127, कि० 5 / 1 2. राजा, प्रभु,-लता , 4. एक प्रकार का गंधद्रव्य या सुगंधित पौधा __ केंचुआ, सुरः ब्राह्मण। __--रेणुका / सम-आह वया प्रियंगु लता / महीयस् (वि.) [म० अ०, महत्+ ईयसून] अपेक्षाकृत महिलारोप्यम् दक्षिण भारत में स्थित एक नगर का बड़ा, विशाल, अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाशी भारी नाम। या महत्वपूर्ण अधिक ताक़तवर, मजबूत पुं० महामना, महिषः [ मह.+टिषच ] 1. भैसा (यम का वाहन माना उदारचेता - प्रकृतिः खलु सा महीयसः सहते नान्य जाता है) गाहन्ता महिषा निपानसलिलं,गर्महस्ता- समुन्नति यया-कि० 2 / 21, शि० 2 / 13 / डितम् -श० 216, एक राक्षस का नाम जिसे दुर्गा | महीला, महेला [=महिला, पृषो० साधुः] स्त्री, नारी / ने मार गिराया था। सम० ---अर्दनः कार्तिकेय का | मा (अव्य) [मा---क्विप्] प्रतिषेधबोधक अव्यय, विशेषण,-असुरः महिष नाम का राक्षस °घातिनी, (मकारात्मक विरलतः) प्रायः लोट् लकार की क्रिया मथनी, मर्दनी, सूबनी दुर्गा के विशेषण,-- न्नी के साथ जुड़ा हुआ-यद्वाणि मा कुरु विवादमनादरेण दुर्गा का विशेषण,- ध्वमा यम का विशेषण,—पालः, -भामि० 4 / 41, (क) लुङ् लकार की क्रिया के साथ 1, शेषण, बनी दुर्गा के पास धातिनी / मा (अमला [- For Private and Personal Use Only Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 789 ) जबकि उसके आगम 'अकार' का लोप भी हो जाता। लगाना, अटकल लगाना-अन्वमीयत शुद्धेति शतिन है-पापे रति मा कृथाः -भर्तृ० 2177, मा मूमुहत् वपुषव सा-रघु० 15177, 1711 2. समाधान खलु भवंतमनन्यजन्मा मा ते मलीमसविकारपना करना, पुनर्मिलित करना, उप-, तुलना करना, मतिर्भूत् -मा० 1132 (ख) लड लकार की क्रिया समानता करना-तेनोपमीयेत तमालनीलम् ..शि० के साथ भी (यहाँ भी आगम 'अकार' का लोप हो 38, स्तनी मांसग्रंथी कनककलशावित्युपमिती जाता है) मा चैनमभिभाषथाः राम. (ग) लट -- भर्तृ. 320, निस् .. , बनाना, सृजन करना, लकार या विधि लिऊ की क्रिया के साथ भी, 'ऐसा अस्तित्व में लाना --निर्मातं प्रभवेन्मनोहरमिदं न हो कि' 'ऐसा नहीं कि' अर्थ को प्रकट करने में रूपं पुराणो मुनिः-विक्रम०. 1 / 4, यस्मादेष -लघु एनां परित्रायस्व मा कस्यापि तपस्विनो हस्ते सुरेन्द्राणां मात्राभ्यो निर्मितो नपः-मनु० 75 पतिष्यति-श० 2, मा कश्चिन्ममाप्यनर्थों भवेत् 113 2. (क) बनाना, रूप बनाना, संरचना -पंच०५, मा नाम देव्याः किमप्यनिष्टमुत्पन्नं करना-स्नायुनिर्मिता एते पाशाः-हि०१ (ख) भवेत् - का० 307, (घ) जब अभिशाप अभिप्रेत बसाना, (नगर पुर आदि) नई बस्ती बसाना-निर्ममे हो तो शत्रन्त (वर्तमानकालिक विशेषण) के रूप निर्ममोऽर्थेषु मधुरां मधुराकृतिः-रघु० 15 / 28 में प्रयुक्त-मा जीवन्यः परावज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, शलाकाजननिर्मितेव ---शि० 2 / 45 या (6) संभावनार्थक कर्मवाच्य- -कु०४।४७, निर्मातु मर्म-व्यथाम्-गीत०३ 4..रचना प्रत्ययांत क्रियाओं के साथ-मैवं प्रार्थ्यम,मा कभी कभी करना, लिखना-स्वनिर्मितया टीकया समेतं काव्यम् बिना किसी क्रिया की अपेक्षा किये प्रयुक्त होता है 5, तैयार करना, निर्माण करना, परि-, 1. मापना -~-मा तावत् 'अरे ऐसा मत (कहो) मा मैवम् मा 2. माप कर निशान लगाना, सीमांकन करना, नामरक्षिण:-मच्छ० 3, 'कहीं कोई पुलिस का प्र--, 1. मापना 2. सिद्ध करना, स्थापित करना, आदमी न हो' दे० 'नाम' के अन्तर्गत। कभी कभी प्रदर्शित करना, सम्-, 1. मापना 2. समान बनाना, 'मा' के वाद 'स्म' लगा दिया जाता है, और उस बराबर बराबर करना-कान्तासंमिततयोपदेशयुजे समय क्रिया में लड या लड लकार का प्रयोग होता -काव्य० 1, दे० संमित 3. समानता करना, तुलना है तथा आगम 'अकार' का लोप हो जाता है, विधि करना 4. युक्त या सहित होना- मृणालसूत्रमपि ते न लिड के साथ प्रयोग बिरलतः देखा जाता है - क्लव्यं . समाति स्तनान्तरे-सुभा०। मा स्म गमः पार्थ . भग० 213, मा स्म प्रतीपं गमः | मांस (नपुं०)[?] मांस (इस शब्द के पहले पाँच बचनों .-श० 4 / 17, मास्म सीमंतिनी काचिज्जनयत्पुत्रमी- | के रूप नहीं होते, और उसके पश्चात् इसके स्थान दृशम् / में विकल्प से 'मास' आदेश हो जाता है।) मा मा+क+टाप] 1. धन की देवी लक्ष्मी-तमाखुपत्र | मांसम [मन--स दीर्घश्च 1. मांस, गोश्त,-समासो मधुपर्कः राजेन्द्र भज मा शानदायकम् सुभा० 2. माता 3. उत्तर. 4 (इस शब्द की व्युत्पत्ति की उद्भावना माप। सम-प-पतिः विष्णु के विशेषण / मनु० 5 / 55 में इस प्रकार की गई है-मां स भक्षमा (अदा० पर०, जुहो०, दिवा० आ०-माति, मिमीते, यिताऽमुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम, एतन्मांसस्य मांसत्वं मीयते, मित) 1. मापना--- न्यधित मिमान इवावनि प्रवदन्ति मनीषिणः ) 2. मछली का मांस 3. फल पदानि शि० 7 / 13 2. नापतोल करना; चिह्न का गूदा,-सः 1. कीड़ा 2. मांस बेचने वाली एक वर्ण लगाना, सीमांकन करना- दे० 'मित' 3. (डील डोल संकर जाति / सम०-अद-अद-आविन् --भक्षक में) तुलना करना, किसी भी मापदण्ड से मापना (वि०) मांस खाने वाला, आमिषभोजी (जैसे कि एक -- कु० 5.15 4. अन्दर होना, अन्दर स्थान ढूंढना, जानवर)-भट्टि. 16 / 28, मनु० 5 / 15-- अर्गल: युक्त या सहित होना-तनौ ममुस्तत्र न कंटभद्विषः -लम् मांस का टुकड़ा जो मुंह से नीचे लटकता है, तपोधनाभ्यागमसंभवा मुदः-शि० 1123, वृद्धि गतेऽ- .-अशनम् मांस खाना,-आहारः पाशव भोजन, प्यात्मनि नैव मांतीः 3173 1050, माति मातुम- -उपजोविन् (पुं०) मांस बेचने वाला,- ओवनः शक्योऽपि यशोराशिर्यदत्र ते काव्य०१०-प्रेर० 1. मछली का भोजन 2. मांस के साथ पकाये हुए (मापयति-ते) मपवाना, नाप करवाना - एतेन माप- चावल,-कारि (नपुं०) रक्त, प्रन्थिः मांस की यति भित्तिष कर्ममार्गम् - मुच्छ० 3 / 16, इच्छा० गिल्टी,- जम्,---तेजस् (नपुं०) चर्बी, वसा,-द्राविन (मित्सति-ते) मापने की कामना करना। अनु - , (पुं०) खटमिट्ठा चोका, खट्टी भाजी,---निर्यासः 1. अनुमान लगाना, घटाना (कुछ कारणों के आधार शरीर के बाल,-पिटकः,--कम् 1: मांस की टोकरी पर) धूमादग्निमनुमाय- तर्क०, कु० 2 / 25, अन्दाज / 2. मांस का बड़ा ढेर,-पित्तम् हड्डी,-पेशी 1. पुद्रा For Private and Personal Use Only Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 790 ) 2. मांस का टुकड़ा 3. आठ से चौदह दिन तक के। जिसने शिशुपालवध या माघकाव्य की रचना की गर्भ का विशेषण,-भेत्त,-भेदिन (वि०) मांस (कवि ने शि० 2080-84 में अपने कूल का वर्णन काटने वाला,--योनिः रक्त-मांस से बना जीव, इस प्रकार किया है-श्रीशब्दरम्यकृतसर्गसमाप्तिलक्ष्म -विक्रयः मांस की बिक्री, - सारः,-स्नेहः चर्बी, लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनचारु माघः तस्यात्मजः सुकविवसा, --हासा खाल, चमड़ा। कीर्तिदुराशयादः काव्यं व्यधत्त शिशुपालवधामिधामांसल (वि.) [मांस-लच्] 1. मांस से भरा हुआ, नम् )-उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्, दण्डिनः 2. पुढेदार, मोटाताजा, बलवान्, हृष्टपुष्ट-उत्तर० 1 पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गणाः उद्भट,-घी माध 3. स्थूलकाय, मजबूत, शक्तिशाली-शाखाः शतं मास की पूर्णिमा। मांसलाः-भामि० 1234 4. (ध्वनि की भांति) [ माघमा (स्त्री०) मादा केकड़ा। गहरा-उत्तर०६।२५ 5. महाकाय, हट्टाकट्टा -मा० | माधवन (वि.) (स्त्री०-नी) [ मघवत् + अण् ] इन्द्र से 9 / 13 / संबन्ध रखने वाला, ती पूर्वदिशा। सम०-चापम् मासिकः [मांसं पण्यमस्य ठक] कसाई, मांस विक्रेता।। इन्द्रधनुष---उत्तर० 5 / 11 / / माकन्दः [मा+किप् माः परिमितः सुघटितः कन्द इव | माधवन (बि०) (स्त्री०-नी) [ मघवन् + अण् ] इन्द्र फलं अस्य] आम का पेड़-भामि० १५२९,,-दी से शासित या संबद्ध ककुभं समस्कुरुत माघवनीम् 1. आँवले का पेड़ 2. पीला चन्दन 3. गंगा के किनारे / --शि० 9 / 25, अवनीतलमेव साधु मन्ये न मनी माघस्थित एक नगर का नाम / वनी विलासहेतुः-- जग०। माकर (वि०) (स्त्री०--री) [मकर+अण्] मगरमच्छ से | माध्यम् [ माघे जातम् --माघ + यत् ] कुन्द लता का संबद्ध, माघ मास से संबद्ध / माकरन्द (वि०)(स्त्री०-द)[मकरन्द+अण्] फूलों के रस माइक्ष (भ्वा० पर० माक्षति) कामना करना, इच्छा करना, से प्राप्त या, पुष्परस से संबद्ध, शहद से भरा हुआ, लालसा करना। मधुमिश्रित--मा० 811, 9 / 12 / माङ्गलिक (वि०) (स्त्री०- की) [ मंगल+ठक] माकलिः (पुं०) 1. इन्द्र का सारथि मातलि 2. चन्द्रमा / 1. शुभ, मंगलसूचक, भाग्यवान् —मुदमस्य मांगलिकमाक्षि (क्षी)क (वि.) (स्त्री०-को) [मक्षिकाभिः संभृत्य तूर्यकृतां ध्वनयः प्रतेनुरनवप्रमपाम कि० 6 / 4, कृतम् --अण् पक्षे नि० दीर्घः] मधुमक्खियों से उत्पन्न महाबी० 4 / 35, भामि० 2057 2. सौभाग्यशाली। या प्राप्त,–कम् 1. मधु--भामि० 4 / 33 2. मधु माङ्गल्य (वि०) [ मङ्गल-व्या ] शुभ, सौभाग्यसूचक की भांति एक खनिज पदार्थ / सम०-आश्रयम्, -श०४।५,-ल्यम् 1. मांगलिकता, समृद्धि, कल्याण, -जम् मोम,-फलः एक प्रकार का नारियल,---शर्करा सौभाग्य 2. आशीर्वाद, शुभकामना 3. पर्व, त्योहार, कंदयुक्त खांड। कोई भी शुभ कृत्य / सम०---मदङ्गः शुभ अवसरों पर मागष (वि.) (स्त्री०-धो) [मगध+अण] मगध देश में बजाया जाने वाला ढोल-उत्तर०६।२५ / रहने वाला, या उससे संबद्ध, या मगध के अधिवासी, माचः[ मा+अच्+क] सड़क, मार्ग। -धः 1. मगध का राजा 2. एक मिश्रजाति (कहा माचलः [माचलअच ] 1. चोर, लुटेरा 2. मगरजाता है कि यह जाति वैश्य पिता और क्षत्रिय माता मच्छ / की संतान, इस जाति का कर्तव्य कर्म व्यावसायिक माचिका [मा+अञ्च-क+कन्+टाप, इत्वम् ] भाटों का कार्य है)-मनु० 10 / 11 / 17, याज्ञ. 1294 मक्खी / 3. चारण या बन्दीजन,-धाः (ब०व०) मगध के | माजिष्ठ (वि.) (स्त्री... ष्ठी) [ मञ्जिष्ठया रक्तम् अधिवासी,-धी 1. मगध देश की राजकुमारी---- रघु० | अण | मजीठ की भांति लाल,- ष्ठम लाल रंग। 1157 2. मागधी भाषा, चार मुख्य प्राकृतों में से माजिष्ठिक (वि०) (स्त्री०-कौ) [ मजिष्ठा -ठक ] एक 3. बड़ी पीपल 4. सफद जीरा 5. परिष्कृत खांड मजीठ के रंग से रंगी हुई—उत्तर० 4120, महाबी० 6. एक प्रकार की चमेली 7. छोटी इलायची। 1 / 18 / मागधा, मागधिका [ मागध+टाप्, मागध-+ठक+टाप् ] | माठरः [ मठ-1-अरन्, ततः अण् ] 1. व्यास का नाम बड़ी पीपल। 2. ब्राह्मण 3. शोडिक, कलवार, शराब खींचने वाला मागधिकः [ मगघ-+ठक ] मगध का राजा। 4. सूर्य का एक सेवक / माघः [ मघानक्षत्रयुक्ता पौर्णमासी माघी साऽत्र मासे अण् ] | माठी (स्त्री०) कवच, जिरहबख्तर। 1. चान्द्रवर्ष के एक महीने का नाम (यह जनवरी- | माडः (पुं०) 1. विशेष जाति का वृक्ष 2. तोल, माप / फरवरी मास में आता है) 2. एक कवि का नाम | मादिः (स्त्री०) [ माह --क्तिन् ] 1. किसलय (जो For Private and Personal Use Only Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभी खुला न हो) 2. सम्मान करना 3. उदासी, / मातिः (स्त्री०) [मा--क्तिन्] 1. माप 2. चिन्तन, विचार, खिन्नता 4. निर्धनता 5. क्रोध, आवेश 6. वस्त्र की प्रत्यय / किनारी या झालर ( घोट) 7. दुहरा दाँत मातुलः [मातुओता मातृ-डुलच] 1. मामा-भग० माणवः [ मनोरपत्यम् अण्, अल्पार्थे णत्वम् ] 1. लड़का, 1 / 26 मनु० 21130, 5 / 81 2. धतूरे का पौधा बालक, छोकरा, बच्चा 2. छोटा मनुष्य, मुण्डा 3. एक प्रकार का सांप / सम० पुत्रक: 1. मामा का (तिरस्कार सूचक) 3. सोलह (बीस) लड़ियों की बेटा 2. धतूरे का फल / मोतियों की माला। मातुलङ्गः दे० मातुलिंगः / माणवकः [माणव-कन् ] 1. लड़का, बालक, बच्चा, मातुला, मातुलानी, मातुली [मातुल+टाप, ङीष्, वा, पक्षे छोकरा (प्राय: तिरस्कारसूचक के रूप में प्रयक्त) आनुक च] 1. मामी, मामा की पत्नी-मनु० 2 / 131, 2. छोटा मनुष्य, बौना, मुंडा-मायामाणवक हरिम् याज्ञ० 21232 2. पटसन / - भाग 3. मूर्ख व्यक्ति 4. छात्र धर्मशास्त्र पढ़ने मातुलिङ्गः, मातुलङ्गः मातुल+गम्+खच, मुम्, पृषो० वाला, विद्यार्थी 5. सोलह (या बीस) लड़ियों की साधुः] एक प्रकार का नींबू का वृक्ष- (भुवो) भागाः मोतियों की माला। प्रेखितमातुलङ्गवृतयः प्रेयो विधास्यन्ति वाम-मा० माणवीन (वि०) [ माणवस्येदं खञ् ] बालकों जैसा, ६।१९,-गम् इस वृक्ष का फल, चकोतरा। बच्चों जैसा। मातुलेयः (स्त्री--पी) [मातुल+छ, मातुली+तुक वा] माणव्यम् [माणवानां समूहः यत्] बच्चों या छोकरों की मामा का पुत्र / टोली। मात (स्त्री०) [मान् पूजायां तच न लोपः] 1. माँ, माता माणिका [मान्+घञ् नि० णत्वम् +कन्+टाप् इत्वम् -मातृवत्परदारेषु यः पश्यति स पश्यति, सहस्रं तु पितृन् एक विशेष बाट (आठ पल वजन के बराबर) या माता गौरवेणातिरिच्यते सुभा० 2. माता (आदर तोल। तथा वात्सल्य सूचक)-मातर्लक्ष्मि भजस्व कंचिदपरम् माणिक्यम् [मणि+कन्-+-व्यञ] लाल / -भर्त० 3164, 87, अयि मातर्देवयजनसंभवे देवि माणिक्या [माणिक्य+टाप] छिपकली। सीते-- उत्तर 4 3. गाय 4. लक्ष्मी का विशेषण माणिबन्धम, माणिमन्थम् [मणिबंध (मन्थ) + अण्]. सेंधा 5. दुर्गा का विशेषण 6. अन्तरिक्ष, आकाश 7. पृथ्वी नमक। 8. देव माता-मातृभ्यो बलिमुपहर -मृच्छ० 1 (ब० माण्डनिक (वि०) (स्त्री० की) [मण्डन+ठक] किसी व०) देव माताओं का विशेषण, जो शिव की परि चारिका कही जाती हैं परन्तु बहुधा स्कन्द की परिचर्या वाला, कः प्रान्त का शासक, राज्यपाल / में लिप्त रहती हैं (ये गिनती में आठ है-ब्राह्मी मातङ्गः [मतङ्गस्य मुनेरयम् अण्] 1. हाथी-शि० 1 / 64 माहेश्वरी चंडी वाराही वैष्णवी तथा, कौमारी चैव 2. नीचतम जाति का पुरुष, चाण्डाल 3. किरात, भील चामुंडा चचिकेत्यष्टमातरः। कुछ के मत में वह केवल पहाड़ी या बर्वर 4. (समास के अन्त में) कोई भी सात है----ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा, सर्वोत्तम वस्तु-उदा० बलाहक मातंगः / सम. माहेन्द्री चैव वाराही चामुंडा सप्त मातरः : कुछ लोग --दिवाकरः एक कवि का नाम,-नकः हाथी जैसा इनकी संख्या 16 तक बतलाते हैं)। सम० केशट: विशाल मगरमच्छ-रघु०१३।११। मामा,-गणः देव माताओं का समह, गम्धिनी विपरीत मातरिपुरुषः [अलुक् समास] 'वह जो घर में अपनी माता स्वभाव वाली माता,-गामिन (पं०) माता के साथ गमन करने वाला,-गोत्रम् मातृकुल,-पातः, कायर, शेखीखोरा, बुजदिल / ---घातकः,---घातिन् (पुं०), नः माता की हत्या मातरिश्वन् (पुं०) [मांतरि अन्तरिक्ष श्वयति वर्धते करने वाला,--घातुकः 1. मातृहन्ता 2. इन्द्र का शिवकनिन् डिच्च, अलक स०] वाय-पुनरुषसि विशेणष,---चक्रम् देवमाताओं का समूह,--देव (वि.) विविक्तः मातरिश्वावर्ण्य ज्वलयति मदनाग्नि जो माता को ही अपना देवता मानता है, माता को देवता मालतीनां रजोभिः शि० 11117, कि० 5 / 36 / / की भांति पूजने वाला,-नन्दनः कार्तिकेय का विशेषण, मातलिः [मतलस्यापत्यं पुमान्---मतल+इन.] इन्द्र के पक्ष-(वि.) मातृकुल से संवद्ध, (-क्षः) मामा, सारथि का नाम / सम० सारथिः इन्द्र का विशेषण / नाना आदि,-पित (द्वि०व०) (मातापितरौ या माता [मान् पूजायां तुच न लोपः] माता, माँ।। मातरपितरौ) माता-पिता,-पुत्रौ (मातापुत्री) मां मातामहः [मातृ +डामह] नाना, ...हो (द्वि० व.) नाना और बेटा,-पूजनम् देवमातृकाओं को पूजा,-बन्धुः, नानी, ही नानी। बान्धवः मातृकुल के संबंधी-रघु० 12 / 12, (ब० For Private and Personal Use Only Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 792 ) व.) मातकुल के रिश्तेदारों का समूह, वे ये हैं-मातुः का अनुवाद 'ज्योंही' 'ही' आदि है, विद्धमात्र:-रघु० पितुः स्वसुः पुत्रा मातुर्मातुः स्वसुः सुता: मातुर्मातुल- 5 / 51, 'ज्योंही वह वेधा गया त्योंही' 'बींधे जाने पुत्राश्च विज्ञेया मातृबांधवाः, * मण्डलम् देवमातृकाओं पर ही', भुक्तमात्रे, 'खाने के बाद ही', प्रविष्टमात्र का समूह, मात (स्त्री०) पार्वती का विशेषण, मुखः एव तत्रभवति -- श० 3 आदि / मुर्ख व्यक्ति, भोंदू,—यशः देवमातृकाओं के निमित्त मात्रा [मात्र+टाप ] 1. माप -देखो 'मात्रम्' ऊपर किया गया यश,-वत्सलः कार्तिकेय का विशेषण,-स्वसू 2. मापदंड, मानक, नियम 3. सही माप 4.'माप को (स्त्री०) (मातृष्वस या मातुःस्वस) माता की बहन, इकाई, एक फुट 5. क्षण 6. कण, अणु 7. भाग, अंश मौसी, स्वसेयः (मातृष्वसेयः) माता की बहन का -सुरेन्द्रमात्राश्रितगर्भगौरवात-रघु० 3 / 11 8. अल्पांश, पुत्र (यो) मौसी की पुत्री, इसी प्रकार मातृष्व. अल्प परिमाण, छोटी माप - दे. मात्र (3) 9. अर्थ, स्त्रीयः-या। महत्त्व-राजेति कियती मात्रा--पंच० 140, 'राजा मातक (वि.) [मातृठम] 1. माता से आया हुमा, किस अर्थ का है, क्या महत्त्व है उसका' अर्थात् मैं या उत्तराधिकार में प्राप्त--मातकं च धनुरूजितं उसे कोई महत्त्व नहीं देता--कायस्थ इति लध्वी मात्रा दषत्-रघु० 11764, 90 2. माता संबंधी,-क: मु०१ 10. धन, संपत्ति 11. (छन्दः शास्त्र में) एक मामा,--का 1. माता 2. दादी 3. धात्री, दाई 4. स्रोत, मात्रा का क्षण, ह्रस्व स्वर को उच्चारण करने में लगने मूल 5. देवमातृका 6. अक्षरों में लिखे हुए कुछ वाला काल 12. तत्त्व 13. भौतिक संसार, भतद्रव्य रेखाचित्र जो जादू की शक्ति रखने वाले कहे जाते 14. नागरी के अक्षरों का ऊपरी (अतिरिक्त) भाग, हैं 7. इस प्रकार प्रयुक्त की गई वर्णमाला (ब० व०)। अर्थात् मात्रा 15. कान की बाली 16. आभूषण, अलंमात्र (वि.) (स्त्री०-त्रा, श्री) [मा+त्रन्] 'इतनी माप कार / सम-छम्बस, आधीमात्रा का अण,-छन्दस, का जितना कि 'इतना ऊँचा लंबा या चौड़ा जितना -वृत्तम्, वह छंद जिसका विनिमय मात्राओं की कि' 'वहाँ तक पहुंचता हुआ जहां तक कि' अर्थों को गिनती के आधार पर होता है-उदा० आर्या,-भस्त्रा प्रकट करने के लिए संज्ञाओं के साथ जोड़ा जाने बटवा,-सङ्गः गार्हस्थ्य सामग्री या संपत्ति में आसक्ति वाला प्रत्यय, जैसा कि ऊरुमात्री भित्तिः (इस अर्थ या अनुराग-मनु०६।५७,-समकः एक प्रकार के छेदों में समास के अन्त में 'मात्रा' शब्द का प्रयोग भी का समूह दे० परिशिष्ट 1,- स्पर्शः भौतिक संपर्क, चिन्तनीय है, दे० नी०),--त्रम् 1. एक माप (चाहे भौतिक तत्त्वों के साथ इन्द्रियों का संयोग, -- भग० वह लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई की हो; चाहे डीलडौल, 2 / 14 / स्थान, दूरी या संख्या की हो, प्रयोग बहुधा समास | मात्रिका [ मात्रा-+टक-+टाप् ] मात्रा, या छन्दः शास्त्र के अन्त में - उदा. अंगुलिमात्रम् अंगुलि के बराबर का ह्रस्वस्वर के उच्चारण में लगने वाला क्षण चौड़ाई; किंचिन्मात्रं गत्वा कुछ दूरी, क्रोशमाने एक (=मात्रां)। कोस की दूरी पर रेखामात्रमपि रेखा तक की चौड़ाई | मात्सर (वि.) (स्त्री० रो), मात्सरिक (वि०) भी, इतनी चौड़ाई जितनी कि एक रेखा की होती | (स्त्री० की) [ मत्सर+अण, ठक् वा ] डाह करने है;--रघु० 217, इसी प्रकार क्षणमात्रम् निमिषमा- वाला, ईर्ष्याल, विद्वेषी, असूयाय क्त। त्रम् एक क्षण का अन्तराल, शतमात्रम् संख्या में सौ, | मात्सर्यम् [ मत्सर + ष्यत्र ] ईर्ष्या, डाह, असूया, विद्वेष गजमात्रम् इतना ऊँचा या बड़ा जितना कि हाथी ___ -- अहो वस्तुनि मात्सर्यम् -- कथा० 21149, कि० तालमात्र, यवमात्रम् आदि 2. किसी चीज का पूरा 3153 / माप, वस्तुओं को पूर्ण समष्टि, राशि-जीवमात्र या मात्स्यिकः [ मत्स्य+ठक ] गछुवा, माहीगीर / प्राणिमात्रम् जीवधारियों प्राणियों का समस्त समदाय, मायः| मथ+धा 11. बिलोना, मंथन, विलोडन करना मनुष्यमात्रो मत्यः, प्रत्येक मनुष्य मरणशील है। 2. हत्या, विनाश 3. मार्ग, सड़क / 3. किसी चीज का सामान्य माप, केवल एक बात का मापुर (वि०) (स्त्री-री) [ मथुरा- अण् ] 1. मथुरा उससे अधिक नहीं, इसका अनुवाद प्रायः 'केवल,' से आया हुआ 2. मथुरा में उत्पन्न 3. मथुरा में रहने 'सिर्फ' या 'भी, ही आदि शब्दों से किया जाता है; वाला। -जातिमात्रेण हि० 1158, केवल जाति से; टिट्टिभ- मावः [मद्+घ ] 1. नशा, मस्ती 2. हर्ष, खुशी मात्रेण समुद्रो व्याकुलीकृत:-२११४९, केवल टिटहरे 3. घमंड, अहंकार / / के द्वारा, वाचामात्रेण जप्यसे--श० 2, केवल वाणी | मादक (वि.) (स्त्री०—विका) [ मद्-+-णिच् ण्वुल ] द्वारा' इसी प्रकार अर्थमात्रम्, संमानमात्रम्-पंच० 1. नशा करने वाला, उन्मत्त बनाने वाला, बेहोश 1583 त्तान्त शब्दों के साथ जुड़ कर 'मात्र' शब्द करने वाला 2. आनन्ददायक,-पः जलकुक्कुट / For Private and Personal Use Only Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 793 ) मावन (वि.) (स्त्री०-नी) [मद्+णि+ल्युट] नशे | जिसके सुगंधि श्वेत फूल आते हैं—पत्राणामिव में चूर करने वाला दे० मादक-न: 1. कामदेव शोषणेन मरुता स्पष्टा लता माधवी-श० 3 / 10 2. धतूरा,--नम् 1. नशा करना 2. आनन्द देना, __ मेघ० 78 4. तुलसी 5. कुट्टिनी, दूती। सम. उल्लास देना 3. लौंग। -लता वासंती लता, - वनम् माधवी लताओं का मावनीयम् [ मद्+णि+अनीयर् ] एक नशीला पेय / उद्यान। मादृक्ष (वि.) (स्त्री०-ली), मावश (वि०) भादश | माधवीय (वि०) [माधव+छ] माधवसंबंधी।। (वि.) (स्त्री० --शो) [अस्मद् + दृश्+क्स माधुकर (वि०) (स्त्री-री) [मधुकर+अण्] भौंरे से (क्विप्, का वा) मदादेशः, आत्वम् ] मेरी भांति, संबद्ध या मिलता-जुलता, जैसा कि 'माधुकरी वृत्तिः' मुझसे मिलता जुलता-प्रवृत्तिसाराः खलु मादशा में,-री 1. घर 2 जाकर भिक्षा मांगना, जिस प्रकार गिरः -कि० 225, उत्तर० 2, उपचारो नैव कल्प्य मधुमक्खी एक फूल से दूसरे फूल पर जाकर मधु इति तु मादृशाः--रस० / एकत्र करती है 2. पांच भिन्न 2 स्थानों से प्राप्त मानक: [ मद्र+वा ] मद्र देश का राजकुमार / भिक्षा। मावती [ मद्र+मतुप, वत्वम् अण् मीप,] पान्ह की | माधुरम् [मधुर+अण्] मल्लिका लता का फूल / द्वितीय पत्नी का नाम / माधुरी [माधुर+हीप्] 1. मिठास, मधुर या मजेदार माडी [ मद्र+अण्+कीत् ] पाण्डू की द्वितीय स्त्री का स्वाद वदने तव यत्र माधुरी सा-भामि० 21161, नाम / सम०-मन्दनः नकुल और सहदेव का विशेषण, J -कामालसस्वर्वामाघरमाधुरीमघरयन वाचां विपाको -पतिः पाण्डु का एक विशेषण / __ मम–४|४२, 37143 2. खींची हुई शराब / / मानेयः [माद्री-ढक ] नकूल और सहदेव का बिशेषण / माषर्यम [मघर+व्या ] 1. मिठास, सहावनापन-माधुर्यमाधव (वि.) (स्त्री०-वी) [ मधु+अण, विष्णुपक्षे मीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम्,--रघु० 18513 2. आकर्षक माया लक्ष्म्याः धव: प० त०] 1. मधु की तरह मीठा सौंदर्य, उत्कृष्ट सौन्दर्य,-रूपं किमप्यनिर्वाच्यं तनोर्मा2. शहद से बना हुआ 3. वासन्ती 4. मधु दैत्य के धुर्यमुच्यते 3. (काव्य० में) मिठास, (मम्मट के वंशजों से संबंध रखने वाला,-: कृष्ण का नाम अनुसार) काव्य रचनाओं में पाये जाने वाले तीन ---राधामाधवयोजयन्ति यमनाकले रहः केलय:-गीत. मुख्य गुणों में से एक-चित्तद्रवीभावमयो लादो 1, माधवे मा कुरु मानिनि मानमये 2. कामदेव का माधुर्यमुच्यते---सा० द. 606, दे० काव्य०८ भी। मित्र वसन्त ऋतु-स्मर पर्युत्सुक एष माधव:-कु० / माध्य (वि.) [मध्य+अण] केन्द्री, मध्यवर्ती। 4 / 28, स माधवेनाभिमतेन सख्या (अनुप्रयातः) 3 // | माध्यन्दिनः [मध्यंदिन+अण्] वाजसनेयिसंहिता की एक 23 3. वैशाख मास --भास्करस्य मधुमाधवाविव शाखा,-नम् शुक्लयजुर्वेद की एक शाखा जिसका -रघु० 1117 4. इन्द्र का नाम 5. परशुराम का अनुसरण माध्यंदिन करते है। नाम 6. यादवों का नाम (ब०व०) -शि०१६२५२ | माध्यम (वि०) (स्त्री०-मी) [मध्यम+अण्] मध्यवर्ती 7. मायण का पुत्र एक प्रसिद्ध ग्रन्थकर्ता, सायण और | अंश से संबद्ध, केन्द्रीय, मध्यवर्ती,बिल्कुल मध्य का। भोगनाथ इसके भाई थे, लोगों की मान्यता है कि | माध्यमक (वि०) (स्त्री०-मिका), माध्यमिक (वि०) माधव पन्द्रहर्वी शताब्दी में हुआ। यह बहुत ही | स्त्री०-की) [मध्यम+वुन, ठकू वा] मध्यवर्ती, प्रसिद्ध विद्वान् था, कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना का केन्द्रीय। श्रेय इसे प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि सायण | माध्यस्थं, माध्यस्थ्यम् [मध्यस्थ+अण, व्यश् वा] और माधव दोनों ने मिल कर संयुक्त रूप से चरों वेदों ___ 1. निष्पक्ष 2. तटस्थता, उदासीनता-अभ्यर्थनाभङ्गपर भाष्य लिखा- श्रुतिस्मृतिसदाचारपालको माधवो भयेन साधर्माध्यस्थ्यमिष्टेऽप्यवलंबतेऽर्थ----कु. 1152, बुधः, स्मात व्याख्याय सर्वार्थ द्विजाथं श्रौत उद्यतः / 3. मध्यस्थीकरण, बीचबचाव करना। जै० न्या० वि० / सम०-वल्ली-माधवी दे०,-श्री माध्याह्निक (वि.) (स्त्री०-की) [मध्याह्न+ठक] वसन्त कालीन सौन्दर्य / ___दोपहर से संबंध रखने वाला। माधवकः [ माधव+वा ] एक प्रकार की नशीली शराब | माध्व (वि.) (स्त्री०-ध्वी) [मधु+अण्] मधुर, मीठा, (मधु से बनाई गई)। -ध्वः [मध्व+अण्] मध्वाचार्य का अनुयायी,-ध्वी माषविका [माधवी+कन्+टाप, ह्रस्व] माधवी लता। एक प्रकार की शराब जो मधु से तैयार की __---माधविका परिमलललिते -गीत०१। जाती है। माधवी [मधु+अण्+कीप्] 1. कन्दयुक्त खांड 2. शहद | माध्वीकम् [मधुना मधूकपुष्पेण निर्वत्तम् --ईकक] एक से बनाया हुआ एक प्रकार का पेय 3. बासंती लता। प्रकार की शराब जो मधूक वृक्ष के फूलों से For Private and Personal Use Only Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 794 ) तैयार की जाती है-चचाम मघ माध्वीकम् --भट्रि० | माननीय (वि.) [मान्+अनीयर] सम्मान के योग्य, 14 / 94 2. अंगूरों से खींची हुई शराब---साध्वी आदरणीय, प्रतिष्ठित होने का अधिकारी (संबं० के माध्वीकचिन्ता न भवति भवतः---गीत० 12 साथ)- मेनां मुनीनामपि माननीयाम्---कु० 1318, (=मधो-टी०) 3. अंगूर / सम०-~फलम् एक रघु० 1 / 11 / / प्रकार का नारियल। मानव (वि.) (स्त्री०-वी) [मनोरपत्यम् अण] मन से मान् / (भ्वा० आ० 'मन्' का इच्छा 0= मीमांसते) संबंध रखने वाला, या मनु के वंश में उत्पन्न --मानii (म्वा० पर०, चुरा० उभ० ='मन्' का प्रेर०) वस्य राजर्षिवंशस्य प्रसवितारं सवितारम्-उत्तर० मानः [मन+घञ्] आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा, सादर 3, मनु० 12 / 107 2. मानवसंबंधी,-वः 1. मनुष्य, विचार-मानद्रविणाल्पता-पंच० 21159, भग०६७, आदमी, इंसान,-मनोर्वशो मानवानां ततोऽयं प्रथितोऽइसी प्रकार 'मानधन' आदि 2. गर्व (अच्छे भाव में) भवत्, ब्रह्मक्षत्रादयस्तस्मान्मनोजांतास्तु मानवा:-महा०, आत्मनिर्भरता, आत्मप्रतिष्ठा-जन्मिनो मानहीनस्य मनु० 2 / 9, 5 / 35 3. मनुष्यजाति (ब०६०),-वम् तृणस्य च समागति: - पंच० 11106, रघु० 16181 एक विशेष प्रकार का दंड / सम०-इन्द्र,--देवः, 3. अहंकार, घमण्ड, अवलेप, आत्मविश्वास 4. सम्मान -पतिः मनुष्यों का स्वामी, राजा, प्रभु०-रघु० की आहत भावना 5. ईायक्त क्रोध, डाह के कारण 14 / 32 ...धर्मशास्त्रम् मनुसंहिता, मनुस्मृति,---राक्षस: उद्दीप्त रोष (विशेषतः स्त्रियों में), क्रोध,-मंच मयि मनुष्य के रूप में राक्षस या पिशाच तेऽमी मानवमानमनिदानम्-गीत० 10, माधवे मा कुरु मानिनि राक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये-भर्तृ० 274 / मानमये-९, शि० 984, भामि० २५६-नम् मानबत् (वि.) [मान+मतुप, बत्वम्] घमंडी, अहंकारी, 1. मापना 2. माप, मापदण्ड 3. आयाम, संगणना अभिमानी, दर्पवान्,-ती घमंडी या दर्पोद्धत स्त्री 4. मापदण्ड, मापने का डंडा, मानदण्ड 5. प्रमाण (ईर्ष्या के कारण क्रुद्ध) / सत्ताधिकार, प्रमाण या प्रदर्शन के साधन,-येऽमी मानव्यम् [मानव+यत् (माणव्यम् भी) लड़कों का समूह / माधुर्योजःप्रसादा रसमात्रधर्मतयोक्तास्तेषां रसधर्मत्वे मानस (वि.) (स्त्री०-सी) [मन एव, मनस इदं वा कि मानम् - रस०, मानाभावात्, (विवादास्पद भाषा अण] 1. मन से संबंध रखने वाला, मानसिक, आत्मिक में बहुधा प्रयुक्त)6. समानता, मिलना-जुलना / सम० (विप० शारीरिक) 2. मन से उत्पन्न, इच्छा से --आसक्त वि०) दर्पवान, अहंकारी, घमंडी,-उन्नतिः उदित-कि मानसी सृष्टि:-श०४, कु. 1218, (स्त्री.) बहुत आदर, भारी सम्मान,- उन्माव: भग० 1016 3. केवल मनसा विचारणीय, कल्पनीय घमंड का नाश,-कलहः,--कलिः ईर्ष्यायुक्त क्रोध से 4. उपलक्षित, ध्वनित 5. 'मानस' सरोवर पर रहने उत्पन्न झगड़ा,-क्षतिः (स्त्री०)-गः-हानिः वाला,—स: विष्णु का एक रूप, सम् 1. मन, हृदय (स्त्री०) सम्मान को क्षति, दीनता, अपमान, अप्र- -सपदि मदनानलो दहति मम मानसम-गीत०१०, तिष्ठा,-प्रन्थिः सम्मान या गर्व की क्षति-द (वि०) अपि च मानसमण्डनविधिः-भामि० 1113, मानस 1. सम्मान करने वाला 2. घमंडो,--दण्डः मापने का ! विषविना (भाति) 116 2. कैलाश पर्वत पर डंडा, गज-स्थितः पृथिव्या इव मानदण्ड:---कु० 111, स्थित एक पुनीत सरोवर-कैलाशशिखरे राम मनसा --धन (वि.) सम्मानरूपी धन से समृद्ध-महौजसो निर्मितं सरः, ब्रह्मणा प्रागिदं यस्मात्तदभून्मानसं सरः / मानधना धनाचिताः - कि० १११९,-धानिका ककड़ी, राम (कहा जाता है कि यह सरोवर ही राजहंसों -परिखण्डनम् मानध्वंस, दीनता,-भङ्ग दे० 'मानक्षति', की जन्मभूमि है, राजहंस प्रतिवर्ष प्रसवकाल के आरंभ -महत् (वि.) गौरव से समुद्ध, अत्यंत दर्वीला होने के अवसर पर या बरसाती हवाओं के आगमन -कि जीणं तृणमत्ति मानमहतामग्रेसरः केसरी-भर्तृ० पर इस सरोवर के तट पर आ विराजते हैं--मेघ२।२९,-योगः माप तोल की ठीक रीति-मन श्यामा दिशो दृष्ट्वा मानसोत्सुकचेतसाम्, कूजितं ९।३३०,-रन्ध्रा एक प्रकार की जलमड़ी, एक छिद्र रांजहंसानां नेदं नपुरशिञ्जितम्-विक्रम०४।१४, 15, युक्त जलकलश जो पानी में रखा हुआ शनैः शनैः यस्यास्तोये कृतवसतयो मानसं संनिकृष्टं नाध्यास्यन्ति भरता रहता है, उसी से समय की माप की जाती व्यपगतमुचस्त्वामपि प्रेक्ष्य हंसा:-मेघ०७६ दे० मेघ. है,--सूत्रम् 1. मापने की डोरी 2. (सोने की) जंजीर 11, घट०९ भी) रघु०६।२६, मेघ० 62, भामि० जो शरीर में पहनी जाय, करधनी। 113 3. एक प्रकार का नमक। सम०-आलयः मान:शिल (वि.) [मनःशिला+अणु] मैनसिल से युक्त / राजहंस, मराल, - उत्क (वि.) मानसरोवर जाने के माननं,-ना [मान् + ल्युट, स्त्रियां टाप् च] 1. सम्मान लिए उत्सुक मेघ० ११,--ओकस्,—चारिन् (पुं०) करना, आदर करना 2. हत्या--शि०१६।२। राजहंस-जन्मन् (पुं०) 1. कामदेव 2. राजहंस / For Private and Personal Use Only Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 795 ) मानसिक (वि०) (स्त्री० की) [मनस- ठन] मन से | हुआ था), ज्योंही वह पेट से बाहर निकला कि उत्पन्न, मन सम्बन्धी, आत्मिक,--कः विष्णु का ऋषियों ने पूछा 'कम् एष घास्यति', इस पर इन्द्र विशेषण / नीचे उतरा और उसने कहा "मां घास्यति", इसीलिए मानिका [मन्+णिच् +ण्वुल+टाप, इत्वम्] 1. एक | वह बालक 'मांधातू' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रकार की खींची हुई शराब 2. एक प्रकार का तोल। मान्मथ (वि.) (स्त्री०-थो) [मन्मथ-+अणु काम से मानित (भू० क० कृ०) [मान+इतच्] सम्मानित, आदर संबंध रखने वाला या काम से उत्पन्न-आचार्यक प्राप्त, प्रतिष्ठित / विजयि मान्मथमावीरासीत्-मा० 1126, 2 / 4 / मानिन् (वि०) [मान-णिनि] 1. मानने वाला, समझने | मान्य (वि०)[मान् अर्चायां कर्मणि ण्यत्] 1. मान करने के वाला, अभिमान करने वाला (समास के अन्त में) योग्य, आदरणीय-~-अहमपि तव मान्या हेतूभिस्तैश्च जैसा कि पंडितमानिन' में 2. सम्मान करने वाला, तैश्च-मा० 6 / 26 2. आदर किये जाने के योग्य, आदर करने वाला (समास के अन्त में) 3. अभिमानी, सम्माननीय, श्रद्धेय---रघु० 2 / 45, याज्ञ० 1111 / घमण्डी. आत्माभिमानी-पराभवोऽप्यत्सव एव | मापनम् मा+णि+ल्युट, पुकागमः] 1. मापना 2. रूप मानिनाम् -कि० 1141, परवृद्धिमत्सरि मनो हि बनाना, बनाना,- नः तराजू / मानिनाम्-शि० 15 / 1 4. आदरणीय, अतिसम्मानित | मापत्यः [मा विद्यते अपत्यं यस्य] कामदेव / -भट्टि० 19624 5. अवज्ञापूर्ण, क्रोधयुक्त, रुष्ट (पुं०) माम (वि०) (स्त्री०-मी) [मम इदम्-अस्मद+अण, सिंह, -नी 1. आत्माभिमानिनी स्त्री, दृढ संकल्प वाली, ममादेशः] 1. मेरा 2. (संबोधन में) चाचा / पक्के निश्चयवाली, गर्वयुक्त (अच्छे अर्थों में)-चतुर्दि- मामक (वि.) (स्त्री०-मिका) अस्मद्+अण, ममकादेशः] गीशानवमत्यमानिनी - कु. 5153, रघु० 13 / 38 मेरा मेरे पक्ष से संबंध रखने वाला,-मामकाः पाण्ड2. कुपित स्त्री, (ईायुक्त गर्व के कारण) अपने वाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय--भग० 111 2. स्वार्थी, पति से रुष्ट.---माधवे मा कूरु मानिनि मानमये-गीत० लालची, लोभी,-क: 1. कंजूस 2. माया। 1, कि० 9 / 36 3. एक प्रकार का सुगन्धयुक्त या मामकीन (वि.) [ अस्मद् +खच्, ममकादेशः ] मेरा महकदार तौधा / -यो मामकीनस्य मनसो द्वितीयम् निबंधनम्-मा०२, मानुष (वि०) (स्त्री०-धी) [मनोरयम् - अण, सुक् च] भामि०२।३२, 3 / 6 / / 1. मनुष्य की, मानवी, इंसानी--मानुषी तनुः, मानुषी | मायः [माया अस्ति अस्य-माया-अच् ] 1. जादूगर, वाक् - रघु० 1160, 16 / 22, भग० 4112, 9 / 11, ____ बाजीगर, ऐन्द्रजालिक 2. राक्षस, भूत प्रेत / मनु० 4 / 124 2. कृपाल, दयाल,-षः 1. मनुष्य, माया [ मीयते अनया-मा+य-+टाप् बा० नेत्वम् / मानव, इंसान 2. मिथुन, कन्या और तुला राशियों का 1 धोखा, जालसाजी, कपट, धूर्तता, दांव, युक्ति, चाल विशेषण,-षो स्त्री,---षम् 1. मनुष्यत्व 2. मानव प्रयत्न -पंच०११३५९ 2. जादूगरी, अभिचार, जादू-टोना, या कर्म। इन्द्रजाल--स्वप्नो नु माया नु मतिभ्रमो नु-श० मानुषक (वि.) (स्त्री-को) [मानुष+कन्] मनुष्य 617 3. अवास्तविक या मायावी बिंब, कल्पनासष्टि, सम्बन्धी, इंसानी,मरणशील, मयं / मनोलीला, अवास्तविक आभास, छाया-मायां मयोमांनुष्यम्, मानुष्यकम् [मनुष्य-अण्, वुन् वा] 1.मानव द्भाव्य परीक्षितोऽसि-रधु० 2 / 62, प्रायः समास के प्रकृति, मनुष्यत्व, इंसानियत 2. मनुष्य जाति, मानव- प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होकर 'मिथ्या 'आभास' ____ संतति 3. मानवसमुदाय / 'छाया' अर्थ को प्रकट करता है-उदा० मायावचनम् मानोज्ञकम् [मनोज्ञ+बुज] सौन्दर्य, प्रियता, मनोहरता। 'मिथ्या शब्द', मायामृग आदि 4. राजनैतिक दांवपेंच, मान्त्रिकः [मन्त्र+ठक्] वह जो मंत्र-तंत्र से सुपरिचित है, चाल, युक्ति, कूटनीति की चाल 5. (वेदान्त में) जादूगर, बाजीगर, ऐन्द्रजालिक / अवास्तविकता, एक प्रकार की भ्रान्ति जिसके कारण मायय॑म् मन्थरष्या ] 1. मन्थरता, मन्दता, अकर्मण्यता | मनुष्य इस अवास्तविक विश्व को वास्तविक तथा 2. दुर्बलता। परमात्मा से भिन्न अस्तित्ववान समझता है मान्दारः, मान्दारवः [मन्दार+अण्] एक प्रकार का वृक्ष / 6.(सांख्य० में) प्रधान या प्रकृति 7. दुष्टता 8. दया, मान्धम् [मन्द-|-ध्या] 1. मन्दता, सुस्ती, मन्थरता करुणा 9. बुद्ध की माता का नाम / सम०-आचार 2. जड़ता 3. दुर्बलता, निर्बल स्थिति, अग्निमांद्य धोखे से काम करने वाला, --- आत्मक (वि.) मिथ्या, 4. विराग, अनासक्ति 5. रोग, बीमारी, अस्वस्थता / भ्रान्तिमान,-- उपजीविन् (बि०) जालसाजी और मान्धात (पुं०)[मां धास्यति--माम् +धे तृच्] युवनाश्व का कपटपूर्ण जीवन बिताने वाला-पंच. 12288, पुत्र एक सूर्यवंशी राजा (जो पिता के पेट से उत्पन्न / ---कारः,-कृत,-जीविन् (पु०) जादूगर, बाजीगर For Private and Personal Use Only Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --वः मगरमच्छ,-देवी बुद्ध की माता का नाम, सुतः। ... प्रेम के संकेत करने वाला माराङ रतिकेलिसंकूलबुद्ध,- घर (वि०) कपटपूर्ण, भ्रमात्मक,-पटु (वि.) रणारम्भे-गीत० १२,--अभिभूभुः ?) बुद्ध का धोखा देने में कुशल, जालसाज, ठग,-प्रयोगः विशेषण,--अरिः--रिपु शिव,-आत्मक (वि०) 1. धोखा, जालसाजी या दांवपेंच का प्रयोग 2. जादू का हत्यारा-कथं मारात्मके त्वयि विश्वासः कर्तव्यः प्रयोग,-मुग (वि०) मिथ्याहरिण, भ्रमात्मक या -हि० १,-जित् (पुं०) 1. शिव का विशषण छाया मृग, - यंत्रम् जादू-टोना,-योग: जादू करना, | 2. धुद्ध का विशेषण / -वचनम् झूठे या कपटपूर्ण शब्द,-बावः भ्रान्ति का | मारकः [म+णिच् +ण्वुल] 1. कोई घातक रोग, महामारी, सिद्धांत इस सिद्धान्त के अनुसार सारी सृष्टि मिथ्या 2. कामदेव 3. हत्या करने वाला, विनाशकर्ता समझी जाती है, बुद्धवाद, -विद् (वि०) कपट जाल 4. बाज। रखने में कुशल, या जादू की कला,- सुतः बुद्ध का मारकत (वि.) (स्त्री०-ती) [मरकत+अण] पन्ने से विशेषण। संबद्ध,-काचः काञ्चनसंसर्गाद्धते मारकतीं द्युतिम् मायावत् (वि०) [ माया+मतुप् ] 1. कपटपूर्ण, जाल- -हि० प्र०४१। साज 2. भ्रान्तियुक्त, अवास्तविक, भ्रभोत्पादक | मारणम् [म+णिच् +ल्युट्] 1. हत्या, वध, कतल, विनाश 3. इन्द्रजाल की कला में कुशल, जादू की शक्ति लगाने -पशुमारणकर्मदारुणः-श० 6.1 2. शत्रु का विनाश वाला--पुं० कंस का विशेषण, ती प्रद्युम्न की पत्नी करने के लिए किया गया जादूटोना 3. फंकना, राख का नाम / कर देना 4. एक प्रकार का विष। मायाविन् (वि.) [ माया अस्त्यर्थे विनि ] 1. धोखेबाजी | मारिः (स्त्री०) [म+णिच् इन्] 1. घातकरोग, महा या चाल से काम लेने वाला, कूटयुक्ति का प्रयोग | मारी 2. हत्या, बर्बादी, विनाश। करने वाला, धोखेबाज, जालसाज-प्रजन्ति ते मढषियः | मारिच (वि.) (स्त्री०-ची) मिरिच+अण] मिर्च का पराभवं भवन्ति मायाविषु ये न मायिन:-कि० 1130 | बना हुआ। 2. जादू के कार्य में कुशल 3. अवास्तविक, भ्रान्ति- मारिषः[मा रिष्यति हिनस्ति-~मा+-रिषु+क] किसी जनक, (पुं०) ऐन्द्रजालिक, जादूगर 2. बिल्ली, नपुं० मुख्य पात्र को सूत्रधार द्वारा नाटक में संबोधित करने माजफल। के लिए सम्मानयुक्त रीति, आदरणीय, श्रद्धेय-दे० मायिक (वि०) [माया+ठन् ] 1. कपटमय, जालसाज उत्तर. 1, मा०१। 2. भ्रान्तिमान्, अवास्तविक,---क: जादूगर,---कम् मारी [मारि+हीष्] 1. प्लेग, घातक रोग, संक्रामक रोग माजूफल। 2. घातक या मारक रोगों की अधिष्ठात्री देवता मायिन् (वि०) [ माया+इनि ] दे० मायाविन्,—पुं० | दुर्गा / 1. बाजीगर 2. धूर्त, ठग 3. ब्रह्मा या काम का मारीचः (पुं०) 1. ताडका और सुन्द राक्षस की सन्तान, नामान्तर। मारीच नाम का राक्षस / यह स्वर्णमृग का रूप मायुः [ मि+उण् ] 1. सूर्य 2. पित्त, पंत्तिक रस (इस | धारण करके राम को सीता से दूर भगा ले गया अर्थ में नपुं० भी)। जिससे कि रावण को सीता का अपहरण करने का मायूर (वि०) (स्त्री०-री) [ मयूर+अण् ] 1. मोर अवसर मिल गया 2. एक विशाल या राजकीय "से संबंध रखने वाला, या मोर से उत्पन्न होने वाला हाथी 3. एकार का पौधा,-चम् मिर्च की झाड़ियों 2. मोर के पंखों से बना हुआ 3. गाड़ी की भांति) का संग्रह। मोर द्वारा खींचा जाने वाला 4. मोर को प्रिय,-- रम् मारण्डः (पुं०) 1. सांप का अण्डा 2. गोबर 3. पथ, मार्ग, मोरों का समूह / सड़क / मायूरकः, मायूरिकः [ मयूर+बुञ , ठक् वा ] मोर पक- | मारुत (वि०) (स्त्री०-ती) [मरुत् + अण] 1. मरुत ड़ने वाला। संबंधी या मरुत् से उत्पन्न होने वाला 2. वाय से मारः। मघा ] 1. हत्या, वध, कतल -अशेषप्राणि- संबंध रखने वाला, वायवी, हवाई,-तः 1. हवा-रघु० नामासीदमारो दश वत्सरान्- राजत० 5 / 64 2112, 34, 4 / 54, मनु० 4 / 122 2. वाय का 2. बाधा, विघ्न, विरोध 3. कामदेव,-श्यामात्मा देवता, पवन की अधिष्ठात्री देवता 3. श्वास लेना कुटिल: करोतु कबरीभारोऽपि मारोद्यमम् - गीत०३ 4. प्राण, शरीर के तीन मूल रसों (वात, पित्त, कफ) (यहाँ 'मार'का मुख्य अर्थ 'हत्या' है)-नाग० 11 में से एक 5. हाथी की सूंड,-तम् स्वाति नाम का 4.प्रेम, प्रणयोन्माद 5. धतूरा 6. अनिष्ट, (बौद्धों के अनु-1 नक्षत्र। सम०--अशनः सांप-आत्मजः---सुतः, सार) विनाशक / सम० -- अङ्ग (वि.) 'प्रेमचिह्नित'। -सूनुः 1. हनुमान् के विशेषण 2. भीम के विशेषण / For Private and Personal Use Only Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 797 ) मारुतिः [मरुतोऽपत्यम्- इज] 1. हनुमान का विशेषण / -0 1146, विक्रम 177, रघु० 9 / 17, 65 -रघु० 12 // 60 2. भीम का विशेषण / 3. 'पांच' की संख्या। मार्कड, मार्कण्डेयः [मकण्डो: अपत्यम्-अण, मकण्डु-+-ढक] मार्गशिरः मार्गशिरस, (पुं०) मार्गशीर्षः [मृगशिरा+अण, एक प्राचीन ऋषि का नाम / सम०-पुराणम् मृगशीर्ष+अण्] (नवंबर और दिसंबर में पड़ने वाला) (इस ऋषि द्वारा प्रणीत) एक पुराण। हिन्दुओं का नवां महीना जिसम कि पूर्णचन्द्रमा मृगमार्ग i (म्वा० पर०, चुरा० उभ० मार्गति, मार्ग- शिरस नक्षत्र में विद्यमान है। यति-ते) 1. खोजना, ढूंढना 2. तलाश करना, पीछे | मार्गशिरी, मार्गशीर्षी [मार्गशिर+डीष, मार्गशीर्ष-डीप पड़ना 3. प्राप्त करने का प्रयत्न करना, कोशिश करते मार्गशीर्ष के महीने में आने वाली पूर्णमासी का दिन / रहना-आत्मोत्कर्ष न मार्गत परेषां परिनिन्दया, स्वगु- मागिकः मगान् हन्ति-मृग+ठक] 1. यात्री 2. शिकारी। नरेव मार्गेत विप्रकर्ष पृथग्जनात- सुभा० 4. निवेदन मागित (भू० क० कृ०) [मार्ग+क्त] 1. खोजा हुआ, करना, प्रार्थना करना, याचना करना-वरं वरेण्यो ढूंढा हुआ, पूछताछ किया हुआ, 2. जिसके पीछे 2 नपतेरमार्गीत् - भट्रि० 112, याज्ञ० 266, फिरा गया हो, अभीष्ट, निवेदित। 5. विवाह के लिए मांगना। मार्ज (चुरा० उभ० मार्जयति-ते) 1. निर्मल करना, ii (चुरा० उभ० मार्गयति-ते) 1. जाना, हिलना- स्वच्छ करना, पोंछना-तु० मृज् 2. ध्वनि करना / जुलना, 2. सजाना, अलंकृत करना। परि-, खोजना, माजः [मज् (मार्ज वा)+घञ्] 1. स्वच्छ करना, निर्मल ढूंढना। करना, घोना 2. धोबी 3. विष्णु का विशेषण / मार्गः | मार्ग+घञ 1 1. रास्ता, सड़क, पथ (आलं. मार्जक (वि.) (स्त्री-जिका) [म+ण्वुल] स्वच्छ भी) .. अग्निशरणमार्गमादेशय-श० 5, इसी प्रकार ___ करने वाला, निर्मल करने वाला, धोंने वाला। -विचारमार्गप्रहितेन चेतसा-कु० 5 / 42, रघु० 2 / 72 | मार्जन (वि.) (स्त्री०--नो! स्वच्छ करने वाला, निर्मल 2. क्रम, रास्ता, भूखंड (जो पार कर लिया गया करने वाला,-नम् 1. स्वच्छ करना, साफ करना, हो)-वायोरिमं परिवहस्य वदन्ति मार्गम-श० निर्मल करना 2. पोंछ देना, रगड़ कर मिटा देना 77 3. पहुँच, परास-कि. 18040 4. किण, 3. साफ कर देना, पोंछ डालना 4. उबटन से मल मल बणचिह्न-रघु० 4 / 48 1414 5. ग्रहपथ 6. खोज, कर शरीर स्वच्छ करना 5. हाथ से या कुशा से शरीर पूछताछ, गवेषणा 7. नहर कुल्या, जलमार्ग 8. साधन, पर जल के छींटे डालना,-नः लोध्रवृक्ष,-ना रीति 9. सही मार्ग, उचित पथ - सुमार्ग, अमार्ग 1. स्वच्छ करना, निर्मल करना, साफ करना 2. ढोल 10. पद्धति, रीति, प्रणाली, क्रम, चलन-शांति -रघ० की आवाज-मायूरी मदयति मार्जना मनांसि-मालवि० 771, इसी प्रकार कुल° शास्त्र धर्म० आदि १।१८,-नी बुहारी, लंबी झाड़ या ब्रुश / 11. शैली, वाक्यविन्यास- इति वैदर्भमार्गस्य प्राणा दश मार्जारः (ल:)--- बिलाव - कपाले मार्जारः पय इति गुणाः स्मृताः--काव्या. 1141, वाचा विचित्रमार्गा करौल्लेढि शशिनः-काव्य० 10 2. गंधमार्जार / णाम्-१२९ 12. गुदा, मलद्वार 13. कस्तूरी 14. 'मग सम-कण्ठः मोर,—करणम् एक प्रकार का मैथुन या शिरस्' नाम का नक्षत्र 15. मार्गशीर्ष का महीना। रतिबन्ध / सम-तोरणम् सड़क पर बनाया गया उत्सवसूचक मार्जारकः 1. बिलाव 2. मोर / महराबदार द्वार-रघु० 115, -- दर्शक: पथप्रदर्शक, मार्जारी 1. बिल्ली 2. मुश्क बिलाव, ओतु 3. कस्तूरी। —धेनुः,-धनुकम् चार कोस की दूरी, बन्धनम् मार्जारीयः 1. बिलाव 2. शूद्र। रोक, आड़,-रक्षकः सड़क का रखवाला, सड़क पर मार्जितम् (भू० क. कृ०) 1. स्वच्छ किया हुआ, मल-मल पहरा देने वाला,-शोषक: दूसरे के लिए मार्ग कर मांजा हुआ, निर्मल किया हुआ 2. बुहारा हुआ, प्रशस्त करने वाला,-स्थ (वि.) यात्रा करने वाला, झाड़. या ब्रुश से साफ किया हुआ 3. अलंकृत किया बटोही,-हर्म्यम् राजपथ पर बना हुआ महल। मार्गकः [मार्ग+कन] मार्गशीर्ष का महीना / मार्जिता दही में चीनी और मसाले डाल कर बनाया गया मार्गणम्,---णा [मार्ग+ल्युट] 1. याचना करना, प्राथना स्वादिष्ट पदार्थ, श्रीखंड / करना, निवेदन करना 2. खोजना, तलाश करना, | मार्तण्डः 1. सूर्य--अयं मार्तण्डः किं स खल तुरगः सप्तभिढूंढना 3. गवेषणा करना, पूछताछ करना, जांचपड़ताल रित:-काव्य. 10, उत्तर० 63 2. मदार का करना,-ण: 1. भिक्षुक, अनुनय विनय करने वाला, पौषा 3. सूअर 4. बारह की संख्या ('मार्तण्ड' भी)। साधु 2. बाण-दुराः स्मरमार्गणाः-काव्य० 10, | मातिक (वि.) (स्त्री०-को) मिट्टी का बना हुआ, अभेदि तत्तादृगनङ्गमार्गणयंदस्य पौष्परपि धर्यकञ्चकम् | मिट्टी का,-क: 1. एक प्रकार का घड़ा 2. घड़े का हुआ। For Private and Personal Use Only Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 798 ) ढक्कन, पाली,कम् मिट्टी का लौंदा -गुरुमध्ये हरि- | मालसी --एक पौधे का नाम। णाक्षी मार्तिकशकलनिहन्तुकामं माम-भामि० माला 1. हार, स्रज, गजरा--अनधिगतपरिमलाऽपि हि 2149 / हरति दृशं मालतीमाला - वास० 2. रेखा, पंक्ति, माय॑म् -मरणशीलता। सिलसिला, श्रेणी या तांता -- गण्डोड्डीनालिमाला मार्दङ्गः-ढोलकिया, मृदंग बजाने वाला,-म नगर, कस्बा / --मा० 111, आबद्धमालाः - मेघ० 9 3. समूह, मार्दनिकः -मृदंग बजाने वाला, ढोलकिया। झुरमुट, समुच्चय 4. लड़ी, कण्ठहार जैसा कि 'रत्नमार्दवम् --मृदुता (शा० और आलं०) लचीलापन, दुर्ब- माला' में 5. जपमाला, जंजीर-जैसा कि 'अक्षमाला' लता -अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरी- में 6. लकीर, लहर, कौंध जैसा कि 'तडिन्माला' और रिषु रघु० 8 / 43, 'मृदु हो जाता है', स्वशरीर- 'विद्युन्माला' में 7. विशेषणों का सिलसिला मार्दवम् कु० 5 / 18 2. नरमी, कृपा, कोमलता, 8. (नाटक में) अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए नाना उदारता भग०१६।२ / वस्तुओं का उपहार / सम० उपमा उपमा का एक माक (वि.) (स्त्री० - को) -अंगूरों से बनाया हुआ, भेद जिसमें एक उपमेय की अनेक उपमानों से तुलना -कम् शराब- शि० 8 / 30 / / की जाती है उदा० अनयेनेव राज्यश्रीन्येनेव मनमार्मिक (वि०)-गहरी अन्तर्दृष्टि रखने वाला, तत्त्व स्विता, मम्लौ साथ विषादेन पद्मिनीव हिमाम्भसा सौन्दर्यादिक से पूर्ण परिचित, (- मर्मज्ञ दे०)-मार्मिकः --काव्य० 10,- करः, कारः 1. हार बनाने वाला, को मरन्दानामन्तरेण मधुव्रतम् ---भामि० 11117, फूल-विक्रेता, माली, कृती मालाकारो बकुलमपि 9 / 8, 4 / 40 / कुत्रापि निदधे --भामि० 1154, पंच० श२२० 2. मार्षः-दे० 'मारिष मालियों की एक जाति,-तृणम् एक प्रकार का सुगंधित माष्टिः (स्त्री०) स्वच्छ करना, मलमलकर मांजना, घास, -दीपकम् दीपक अलंकार का एक भेद, मम्मट निर्मल करना। ने इसकी परिभाषा बताई है मालादीपकमाद्यं चेद्यमालः 1. बंगाल के पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम में एक थोत्तरगुणावहम् --काव्य० 10, उदा० देखें उसी स्थान जिले का नाम 2. एक बर्वर जाति का नाम, पहाडी पर। 3. विष्णु का नाम,-लम् 1. मैदान 2. ऊँची भूमि, मालिक: 1. फूलों का व्यापारी, माली 2. रंगने वाला, उठी हुई या उन्नत की हुई भूमि - (मालमुन्नतभूत- रंगरेज। लम्) क्षेत्रमारुह्य मालम् -मेघ० 16 (शैलप्रायमुन- मालिका 1 माला 2. पंक्ति, रेखा, सिलसिला 3. लड़ी, तस्थलम् -मल्लि.) 3. धोखा, जालसाजी। सम० कण्ठहार 4. चमेली का एक प्रकार 5. अलसी -चक्रकम् कूल्हे का जोड़। 6. बेटी 7. महल 8. एक प्रकार का पक्षी 9. मादक मालक: 1. नीम का पेड़ 2. गाँव के पास का जंगल पेय / 3. नारियल के खोल से बना पात्र,-कम् माला। मालिन् (बि०) 1. माला पहनने वाला 2. (समास के मालतिः, ती (स्त्री०) (सुगंधित श्वेत फूलों से यक्त) अन्त में) मालाओं से सम्मानित, हारों से सुशोभित एक प्रकार की चमेली-तन्मन्ये क्वचिदङ्ग भुगतरुणे गजरों से लपेटा हआ -समुद्रमालिनी पृथ्वी, अंशनास्वादिता मालती-गण, जालकैर्मालतीनाम्-मेघ० मालिन, मरीचिमालिन, अमिमालिन आदि, नपुं० 982. मालती का फूल-शिरसि बकुलमालां माल - फूलमाली, हार बनाने वाला,--नी 1. फलमालिन, तीभिः समेतां-ऋतु० 2 / 24 3. कली, सामान्य फूल हार बनाने वाले की पत्नी 2. चम्पा नगरी का नाम 4. कन्या, तरुणी 5. रात 6. चांदनी। सम-क्षारक: 3. सात वर्ष की कन्या जो दुर्गा पूजा के उत्सव पर दुर्गा सुहागा, -पत्रिका जायफल का छिल्का,-फलम् जाय का प्रतिनिधित्व करे 4. दुर्गा का नाम 5. स्वगंगा फल,-माला मालती या चमेली के फूलों की माला। 6. एक छंद का नाम दे० परिशिष्ट 1 / मालय (वि.) (स्त्री०-यो) मलय पर्वत से आने | मालिन्यम् 1. मैलापन, गंदगी, अपवित्रता 2. मलिनता, वाला,—यः चंदन की लकड़ी। / दूषण 3. पापपूर्णता 4. कालिमा 5. कष्ट, दुःख / मालबः 1. एक देश का नाम, मध्यभारत में वर्तमान | मालुः (स्त्री०) 1. एक प्रकार की लता 2. एक स्त्री। मालवा 2. राग का नाम, या स्वरग्राम की रीति, सम०-धानः एक प्रकार का साँप / -वाः (ब० व०) मालवा प्रदेश के अधिवासी। मालूर: 1. बेल का वृक्ष 2. कैथ का वृक्ष / सम-अधीश:-मन्त्रः,-नपतिः मालवा का राजा। मालेया बड़ी इलायची / / मालवक:-1. मालव वासियों का देश 2. मालवा का माल्य (वि०) हार के उपयुक्त या हार से संबद्ध,-- ल्यम् निवासी। 1. हार, गजरा-माल्येन तां निर्वचनं जघान : कु० For Private and Personal Use Only Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACT ( 799 ) 7 / 19, कि० 21 2. फूल--- भग० 11111, मनु० अमावस्या या प्रतिपदा का चंद्रमा,—प्रवेशः महीने का 4172 3. सुमिरनी या शिरोमाल्य। सम० - आपणः आरम्भ, मानः वर्ष / फूलों की मंडी, - जीवकः फूलमाली, मालाकार, पुष्पः | मासकः महीना। पटसन,-वृत्तिः फूलों का व्यापारी। मासरः उबले हए चावलों की पीच, मांड। माल्यवत् (वि०) माला धारण किए हुए, हारों से सुशो- | मासलः वर्ष / भित (पुं०) 1. एक पर्वत या पर्वत शृंखला का नाम / मासिक (वि.) (स्त्री०.-की) 1. महीने से संबंध रखने -उत्तर० 1133, रघु० 13126 2. सुकेतु का पुत्र एक वाला 2. प्रतिमास होने वाला 3. एक महीने तक राक्षस (माल्यवान् रावण का मामा और मंत्री था, रहने वाला 4. एक महीने मे चुकाया जाने वाला उसकी बहुत सी योजनाओं में वह सहायता देता था, 5. एक महीने के लिए नियुक्त, कम् प्रत्येक मृत्य तिथि अपने पूर्वकाल में घोर तपस्या द्वारा उसने ब्रह्मा को को किया जाने वाला श्राद्ध (मनुष्य के मरने के प्रथम प्रसन्न किया। इसके फलस्वरूप उसके लंकाद्वीप की वर्ष में)-पितृणां मासिकं श्राद्धमन्वाहार्य विव॒धाः / सष्टि की गई। कुछ वर्षों वह अपने भाइयों समेत मासीन (वि.) 1. एक मास की आयु का 2. मासिक / वहाँ रहा, परन्तु बाद में उसने लंका को छोड़ दिया। कुबेर ने फिर लंका पर अपना अधिकार कर लिया। माह (भ्वा० उभ० माहति -- ते) मापना। उसके पश्चात फिर जब रावण ने कुबेर को निर्वासित माहाकुल (वि.) (स्त्री०--ली), माहाकुलीन (वि.) कर दिया तो माल्यवान् फिर अपने बंध-बांधवों समेत (स्त्री-नी) 1. सत्कुलोत्पन्न, उत्तम कुल का, नामी वहाँ आ गया और बरसों रावण के साथ रहा) / घराने या प्रख्यात कुल का। माल्लः एक प्रकार की वर्णसंकर जाति / माहाजनिक (वि० स्त्री०-की), माहाजनीन (वि.) माल्लवी कुश्ती या मुक्केबाजी की प्रतियोगिता / (स्त्री०-नी) 1. सौदागरों के लिए उपयुक्त भाषः 1. उड़द (एक बचन पौधे के अर्थ में तथा ब० व. 2. महाजनोचित, बड़े आदमी के योग्य / फल या बीज के अर्थ में)-तिलेभ्य: प्रतियच्छति | माहात्मिक (वि०) (स्त्री० -को) उन्नत-मना, उदाराशय, माषान सिद्धा. 2. सोने की एक विशेष तौल, माशा उत्तम, महानुभाब, यशस्वी। --माषो विंशतिमो भागः पणस्य परिकीर्तितः-या- | माहात्म्यम् 1. उदाराशयता, महानुभावता 2. ऐश्वर्य, गुञ्जाभिर्दशभिर्माषः 3. मर्स, बद्ध / सम० - अदः, महिमा, उत्कृष्ट पद 3. किसी इष्ट देव या दिव्य - आदः कछुवा-आज्यम् धी के साथ पकाये हुए विभूति के गुण, या एसी कृति जिसमें इस प्रकार के उड़द, आशः घोड़ा, - ऊन (वि०) एक माशा कम, देवी देवताओं के गणों का वर्णन दिया गया हो-जैसा -- वर्धकः सुनार / कि देवीमाहात्म्य, शनिमाहात्म्य आदि / माषिक (बि०) (स्त्री० - को) एक माशे के मूल्य का। माहाराजिक (वि.) (स्त्री०-को) सम्राट के उपयुक्त, माषीणम्, माप्यम् - उड़दों का खेत / साम्राज्यसंबंधी, राजकीय या राजोचित / मास (पं.)-मास दे० (पहले पांच बचनों में इस शब्द माहाराज्यम् प्रभुता / का कोई रूप नहीं होता, द्वि०वि० के द्वि०व० के माहारास्ट्री दे० महाराष्ट्री। पश्चात् विकल्प से 'मास के स्थान में 'मास' आदेश माहिरः इन्द्र का विशेषण / हो जाता है)। माहिष (वि०) (स्त्री-पी) भैंस या भैंसे से उत्पन्न या मासः, सम्-महीना (यह चांद्र, सौर, सावन, नाक्षत्र या प्राप्त, जैसा कि 'माहिषं दधि। बार्हस्पत्य में से कोई भी हो सकता है)-न मासे प्रति- माहिषिक: 1. भैंस रखने वाला, रवाला 2. असती या पत्तासे मां चेन्मासि मैथिलि-भट्रि० 8 / 95, व्यभिचारिणी स्त्री का यार-माहिषीत्युच्यते नारी या 2. 'बारह' की संख्या। सम० अनुमासिक (वि.) च स्याद् व्यभिचारिणी, तां दृष्टां कामयति यः स वै प्रतिमास होने बाला, -- अन्तः अमावस्या का दिन, माहिषिकः स्मृतः–कालिका पुराण 3. जो अपनी पत्नी - आहार (वि.) मास में केवल एक बार खाने वाला, की वेश्यावृत्ति पर निर्वाह करता है -महिषीत्यच्यते --उपवासिनी 1. पूरा महीना भर उपवास रखनेवाली नार्या भोर्गेनोपार्जितं धनम्, उपजीवति यस्तस्याः सवै स्त्री 2. कुट्रिनी, लम्पट या दुश्चरित्र स्त्री (व्यंग्योक्ति- माहिषिकः स्मृतः–वि. पु. पर श्रीधरः। पूर्वक),- कालिक (वि.) मासिक,-जात (वि०) माहिष्मती एक नगर का नाम, हैहय राजाओं की कुलएक मास का, जिसको उत्पन्न हुए एक महीना हो क्रमागत राजधानी--रघु० 6 / 43 / चुका है, -: एक प्रकार का जलकुक्कुट, चेय] माहिल्यः क्षत्रिय पिता और वैश्य माता से उत्पन्न एक मिश्र (जि.) जिसे महीने भर में चुकाना हो, प्रमितः। या वर्णसंकर जाति / For Private and Personal Use Only Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (800 ) माहेन्द्र (वि.) (स्त्री०---द्री) इन्द्र से संबंध रखने वाला। प्रति कृपालु, शिष्टाचारयुक्त,-हत्या मित्र का वध -कु० 7 / 84, रघु० 12186, -त्री 1. पूर्व दिशा करना। 2. गाय 3. इन्द्राणी का नाम / | मित्रयु (वि.) 1. मित्रवत् आचरण करने वाला, हितैषी माहेय (वि.) (स्त्री०-यी) भौतिक,--यः 1. मंगल ग्रह 2. स्नेहशील, मिलनसार / / 2. मूंगा। | मिथ (म्वा० उभ० मेथति-ते) 1. सहकारी बनना, माहेयी गाय। 2. एकत्र मिलाना, मैथुन करना, जोड़ा बनाना 3. चोट माहेश्वरः शिव की पूजा करने वाला। पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, प्रहार करना, वध करना मि (स्वा० उभ० मिनोति, मिनुते -लौकिकसाहित्य में | 4. समझना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करता, जानना विरल प्रयोग) 1. फेंकना, डालना, बखेरना 2. निर्माण 5. झगड़ा। करना (मकान) खड़ा करना 3. मापना 4. स्थापित मिथस (अव्य०) 1. परस्पर, आपस में, एक दूसरे को करना 5. ध्यानपूर्वक देखना, प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना / - -- मनु० 2 / 147, (प्रायः समास में)-मिथः प्रस्थाने मिच्छ (तुदा० पर० मिच्छति) 1. विघ्न डालना, बाधा ----श० 2, मिथः समयात्-. श० 5 2. गुप्त रूप से, डालना 2. तंग करना। व्यक्तिगत रूप से, चुपचाप, निजी रूप से-भर्तुः मित (भू० क० कृ०) 1. मापा हुआ, नपा तुला 2. नाप प्रसादं प्रतिपद्य मूर्ना वक्तुं मिथः प्राक्रमतवमेनम्-कु० कर निशान लगाया हुआ, हदबन्दी की हुई, सीमाबद्ध 32, 6 / 1, रघु० 13 / 1 / / किया हआ 3. सीमित, परिमित, मर्यादित, थोड़ा, | मिथिलः एक राजा का नाम,-लाः (ब०व०) एक राष्ट्र स्वल्प, बचा रखने वाला, संक्षिप्त (शब्द आदि) | का नाम,-ला नगर का नाम, विदेह देश की राजधानी। --पुष्टः सत्यं मितं ब्रूते स भृत्योर्हो महीभुजाम्-पंच० | मिथुनम् 1. जोड़ा, दम्पती-मिथुनं परिकल्पितं त्वया सह११८७, रघु० 9 / 34 4. मापने में, माप का (समास कारः फलिनी च नन्विमौ-रघु० 8 / 61, मेघ० 18, के अन्त में) जैसा कि 'ग्रहवसुकरिचन्द्रमिते वर्षे' अर्थात उत्तर० 2 / 6 2. यमज, 3. समागम, संगम 4. मेथुन, 1889 5. जांच पड़ताल किया हुआ, परीक्षित (दे० संभोग, सहवास 5. मिथुन राशि 6. (व्या० में) उपमा०)। सम-अक्षर (वि०) 1. संक्षिप्त, नपा- सर्ग से युक्त धातु। सम०-भावः 1. जोड़ी बनाना, तुला, थोड़े में, सामासिक-कु० 5 / 63 2. छन्दोबद्ध, जोड़ा बनने की स्थिति 2. संभोग,-तिन (वि०) पद्यात्मक, -- अर्थ (वि.) नपे-तुले अर्थ वाला-आहार सहवास करने वाला। (वि०) थोड़ा खाने वाला, (-र:) परिमित आहार, मिथुनेचरः चक्रवाक, चकवा-तु० 'द्वंद्वचरः / --भाषिन,-वाच कम बोलने वाला, नपेतुले शब्दों मथ्या (अव्य०) 1. झूठमूठ, धोखे से, गलत तरीके से, में अपनी बात कहने वाला ... महीयांसः प्रकृत्या अशुद्धता के साथ बहुधा विशेषण का बल रखते मितभाषिणः -शि० 2 / 13 / हए-मणौ महानील इति प्रभावादल्पप्रमाणेऽपि यथा मितङ्गम (वि०) धीरे-धीरे चलने वाला-मः हाथी। न मिथ्या --रघु० 1842, यवाच न तन्मिथ्या मितम्पच (वि.) 1. नपा-तुला अन्न पकाने वाला, थोड़ा -1742, मिथ्यव व्यसनं वदन्ति मृगयामीदग्विनोदःपकाने वाला 2. मितव्ययी, दरिद्र कंजूस / कुतः--श० 2 / 5 2. विपर्यस्त रूप से, विपरीततया मितिः (स्त्री०) 1. नापना, माप, तोल 2. यथार्थ ज्ञान 3. निष्प्रयोजन, व्यर्थ, निष्फलता के साथ--मिथ्या 3. प्रमाण, साक्ष्य / कारयते चारघोषणां राक्षसाधिप:-भट्रि० 8 / 44, मित्रः 1. सूर्य 2. आदित्य (इसका वर्णन प्रायः वरुण के भग० 18159, मिथ्या बद् (वच्) मिथ्या कहना, साथ मिलता है),...त्रम् 1. दोस्त तन्मित्रमापदि झूठ बोलना, मिथ्या कृ--, मिथ्या सिद्ध करना, मिथ्या सुखे च समक्रियं यत् .. भर्तृ० 2168, मेघ० 17 भू-, झूठ निकलना, झूठ होना, मिथ्या ग्रह, गलत 2. मित्रराष्ट्र, पड़ोसी राजा .तू. 'मण्डल'। सम० समझना, भूल होना या करना समास के आरंभ में -आचारः मित्र के प्रति व्यवहार, उदयः 1. सूरज प्रयुक्त 'मिथ्या' का अनुवाद 'झूठा' असत्य, अवास्तका उगना 2. मित्र का कल्याण या समृद्धि,-कर्मन विक, झूठमूठ, छलयुक्त, जाली आदि शब्दों से किया (नपुं०)-कार्यम्,-कृत्यम् मित्र का कार्य, मित्रता- जा सकता है। सम०–अध्यवसितिः एक अलंकार पूर्ण कार्य या सेवा-रघु० १९।३१,-न (वि०) जिसमें किसी असंभव घटना पर आश्रित होने के विश्वासघाती, द्रुह, -वोहिन् (वि.) मित्र से घृणा कारण किसी वस्तु की असंभावना की अभिव्यक्ति करने वाला, मित्र के साथ विश्वासघात करने वाला, हो-किचिन्मिथ्यात्वसिद्धयर्थ, मिथ्यार्थान्तरकल्पनम्, झुठा या विश्वासघाती मित्र,--भावः मित्रता, दोस्ती, मिथ्याध्यवसितिर्वेश्यां वशयेत् खस्रजं वहनु-कुव०, -भेदः मैत्रीभंग,- वत्सल (वि.) मित्रों के | -अपवावः झूठा आरोप-अभिषानम् झूठी युक्ति, For Private and Personal Use Only Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ---अभियोगः झूठा या निराधार आरोप,-अभिशंसनम् एकत्र हुआ, मुकाबला किया गया, मिश्रित 2. मिला झूठा आक्षेप, मिथ्या दोषारोपण,-अभिशापः 1. झूठी हुआ, मुठभेड़ हुई 3. मिश्रित 4. एक स्थान पर रक्खे भविष्यवाणी 2. झुठा या अन्याय्य दावा, --आचारः हुए, सबको ग्रहण किया हुआ। गलत या अनुचित आचरण, आहारः गलत भोजन, | मिलिन्दः मधुमक्खी, भौरा–परिणतमकरन्दमामिकास्ते ----उत्तरम् झूठा या गोलमोल जवाब,-उपचारः जगति भवन्तु चिरायुषो मिलिन्दाः .. भामि० 118,15 / बनावटी कृपा या सेवा,-कर्मन (नपुं०) झूठा कार्य, मिलिन्दक: एक प्रकार का साँप / --कोपः,-क्रोधः झूठ मूठ का गुस्सा,-प्रायः मिथ्या मिश (भ्वा० पर० मेशति) 1. शोर करना, कोलाहल मूल्य, ग्रहः, ग्रहणम् समझने में भूल होना, गलत करना 2. क्रुद्ध होना। समझना,-चर्या पाखंड,-ज्ञानम् अशुद्धि, त्रुटि, मिथ् (चुरा० उभ० मिश्रयति--ते - 'मिथ' की ना० गलतफहमी,--वर्शनम पाखंडधर्म, नास्तिकता,-दृष्टि: घा०) मिलाना, गड्डमड्ड करना, जोड़ना, घोलना, (स्त्री०) मतविरोध, नास्तिकता के सिद्धान्तों को संयुक्त गरना, बढ़ाना - वाचन मिश्रयति यद्यपि मे मानना, --पुरुषः छाया पुरुष,-प्रतिज्ञ (वि.) झूठी बचोभिः --श० 1131, न मिश्रयति लोचने -- भामि० प्रतिज्ञा करने वाला, दगाबाज,-फलम् काल्पनिक 2 / 140 / लाभ,--मतिः भ्रम, अशुद्धि, श्रुटि,-वचनम्-वाक्यम् / मिश्र (वि०) 1. मिला हवा, घोला हआ, गड्डमड्ड किया मिथ्यात्व, झूठ,--वार्ता झूठा विवरण,-साक्षिन् (पुं०) हआ, मिलाया हुआ गद्यं पद्यं मिथं च तत् विधव झूठा गवाह / व्यवस्थितम्-काव्या० 111, 31, 32, रघु० 16 // मिद / (भ्वा० आ०, दिवा०, चरा०, उभ० मेदते, मेद्यति-ते, 32 2. साथ लगा हुबा, संयुक्त 3. बहुविध, नाना मेहयति ते) 1. चिकना या स्निग्ध होना 2. पिघ- प्रकार का 4. उलझा हुआ, अन्तर्वलित 5. (समास लना 3. मोटा होना 4. प्रेम करना, स्नेह करना / के अन्त में) मिश्रणसमेत, अधिकांशतः युक्त, श्रः ii (भ्वा० उभ मेदति-ते) दे० मिथ् / 1. आदरणीय या योज्य व्यक्ति, यह शब्द प्रायः बड़े बड़े मिवम् 1. तन्द्रा, निठल्लापन, सुस्ती 2. जड़ता, निद्रालुता, पुरुषों और विद्वानों के नार्मा से पूर्व लगाया जाता है मन्दता (उत्साह की भी)।। ... आयमिथाः प्रमाणम् - मालवि० 1, वसिष्ठमिश्रः, मिन्द ( भ्वा० चुरा० पर० मिन्दति, मिन्दयति ) दे. मंडनमिश्रः आदि 2. एक प्रकार का हाथी, श्रम् मिद् . / 1. मिश्रण 2. एक प्रकार की मली, सलजम / सम० मिन्द्र (भ्वा० पर० मिन्वति) 1. छिड़कना, तर करना -जः खच्चर,-वर्ण (वि.) मिश्रित रंग का 2. सम्मान करना, पूजा करना। (---णम्) एक प्रकार की काली अगर की लकड़ी, मिल (तुदा० उभ० मिलति ते, सामान्यत: मिलति, ----शब्दः खच्चर। मिलित) 1. सम्मिलित होना, मिलना, साथ होना मिश्रक (वि.) 1. मिथित, गडुमड किया हुआ 2. फुटकर, -रुमण्वतो मिलितः रत्न०४ 2. आना या परस्पर ---क: संयोजक 3. व्यापारिक वस्तुओं में मिलावट मिलना, सम्मिलित होना, इकट्ठे होना, एकत्र होना करने वाला,--कम खारी मिट्टी से पैदा किया गया / ये चान्ये सुहृदः समृद्धिसमये द्रव्याभिलायाकू-। नमक / लास्ते सर्वत्र मिलन्ति हि० 11210; याता: कि न मिश्रणम मिलाना, घोलना, संयुक्त करना / मिलान्त अमरु 10, मालताशलामुख" गात० मिश्रित (भ० 0 0) 1. मिला हआ. घला हवा, 1, स पात्रे समितोऽन्यत्र भोजनान्मिलितो न यः | संयक्त 2. बढ़ाया हुआ 3. आदरणीय / --..त्रिका. 3. मिश्रित होना, मिलना, संपर्क में आना। पक म आना मिष् (तुदा० पर० मिषति) 1. आंख खोलना, झपकना -मिलति तव तोयम॑गमदः-गंगा० 7. मिलना, 2. देखना, विवशतापूर्वक देखना-जातवेदो मुखामकाबला करना (युद्धादि में) सघन होना, सटना, न्मायी मिषतामाच्छिनत्ति नः---कू० 246 3. प्रति5. घटित होना, होना 6. मिलना, साथ आ पड़ना -- द्वंद्विता करना, होड़ लेना, प्रतिस्पर्धा करना, उद्-, प्रेर० मेलयति-ते, एकत्र लाना, इकट्ठे होना, सम्मेलन 1. आखें खोलना----उन्मिषन्निमिषन्नपि-भग० 5 / 9, बुलाना। 2. (आँखों की तरह) खोलना-कु०४।२ 3. खुलना, मिलनम् 1. सम्मिलित होना, मिलना, एक स्थान पर खिलना, फुल्लित होना 4. उदय होना 5. चमकना, एकत्र होना 2. मुकाबला करना 3. सम्पर्क, मिश्रित जगमगाना, नि---, आंखें मूंदना-भग० 5 / 9 / होना, संपर्क में आना व्यालनिलयमिलनेन गरलमिव ii (भ्वा० पर० मेपति) आर्द्र करना, तर करना, कलयति मलयसमीरम् गीत० 4 / छिड़कना। मिलित (भू० क० कृ०) 1. एक स्थान पर आया हुआ, / मिषः प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वंद्विता,-षम् बहाना छद्मवेष, धोखा, For Private and Personal Use Only Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 802 ) दांवपेंच, जालसाजी, झूठा आभास-बालमेनमेकेन / अनुसंधानकर्ता, परीक्षक 2. मीमांसादर्शनशास्त्र का मिषेणानीय----दश०, (उत्प्रेक्षा प्रकट करने के लिए अनुयायी। बहुधा 'छल' की भांति प्रयुक्त होता है)--स रोम- | मीमांसनम् अनुसंधान, परीक्षण, पूछताछ / कपौषमिषाज्जगत्कृता कृताश्च कि दूषणशून्यबिन्दवः मीमांसा गहन विचार, पूछताछ, परीक्षण, अनुसंधान,... रस-० 21, बदने विनिवेशिता भुजङ्गी पिशुनानां गङ्गाधरनाम्नीं करोति कुतुकेन काव्यमीमांसाम रस०, रसनामिषेण धात्रा--भामि० 11111 / इसी प्रकार दत्तक अलंकार' आदि 2. भारत के छ: मिष्ट (वि.) 1. मधुर 2. स्वादिष्ट, मजेदार–कि मिष्ट मख्य दर्शनशास्त्रों में से एक। (मल रूप से यह दो मन्नं खरसूकराणाम्, तु. व्हाई कास्ट पर्ल्स बिफोर भागों में विभक्त है, जैमिनि द्वारा प्रवर्तित पूर्वPITST(Why cast pearls before the मीमांसा, और बादरायण के नाम से विख्यात उत्तरswine ?) अर्थात् बन्दर क्या जाने अदरक का मीमांसा या ब्रह्ममीमांसा। परन्तु इन दोनों दर्शनों में स्वाद 3. तर किया हुआ, गीला किया हुआ,-ष्टम् समानता की कोई बात नहीं है। पूर्वमीमांसा तो मिष्टान्न, मिठाई। मुख्यतः वेद के कर्मकाण्डपरक मंत्रों की सही व्याख्या मिह (म्वा० पर० मेहति, मीढ) 1. मत्रोत्सर्ग करना तथा वेद के मूलपाठ के संदिग्ध अंशों का निर्णय करता 2. गीला करना, तर करना, छिड़कना 3. वीर्यपात है। उत्तर मीमांसा मख्यतः ब्रह्म अर्थात् परमात्मा करना। की स्थिति के विषय में विचार करता है। अत: मिहिका पाला, हिम। पूर्वमीमांसा को केवल 'मीमांसा' के नाम से तथा मिहिर 1. सूर्य-मयि तावन्मिहिरोऽपि निर्दयोऽभत्-भामि० उत्तरमीमांसा को 'वेदान्त' के नाम से पुकारते हैं। 2234, याते मय्यचिरानिदाघमिहिरज्वालाशतैः शष्क- उत्तरमीमांसा में जैमिनी के दर्शनशास्त्र की उत्तरार्धता ताम्-१४१६, नं० 2 / 36, 13054 2. बादल की कोई बात नहीं है, इसी लिए उसको अब एक 3. चन्द्रमा 4. हवा, वायु 5. बढ़ा आदमी / पृथक् दर्शन माना जाता है), मीमांसाकृतमन्ममाथ मिहिराणः शिव का विशेषण। " सहसा हस्ती मुनि जैमिनिम् -पंच० 2 / 33 / मी। (क्रया उभ० मीनाति मीनीते, श्रेण्य साहित्य में | मीर: 1. समद्र 2. सीमा, हद / विरल प्रयोग) 1. मार डालना, विनाश करना, चोट मील (भ्वा० पर०+मीलति, मीलित) 1. अखेिं मूंदना, पहुंचाना, क्षति पहुंचाना 2. घटना, कम करना पलकों को बन्द करना, आँख झपकाना, झपकी--पत्रे 3. बदलना, परिवर्तित करना 4. अतिक्रमण करना, विभ्यति मीलति क्षणमपि क्षिप्रं तदालोकनात् गीत. उल्लंघन करना ii (म्वा० पर० चुरा० उभ० मयति, 10 2. मूंदना, (आँख या फूलों का) मुदना या बन्द माययति--ते) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. जानना, होना नयनयुगममीलत् --शि० 11 / 2, तस्यां मिमीसमझना (गतिमत्योयः) iii (चुरा० आ० मीयते) लतुर्नेत्रे - भट्टि० 14154 3. मुझॉना, अन्तर्धान होना, मरना, नष्ट होना। नष्ट होना 4. मिलना, एकत्र होना-प्रेर० (मीलयति मीट (भू० क० कृ०) 1. मूत्रोत्सृष्टि, पेशाब किया गया - ते) बन्द करवाना, मुदवाना, (आँख या फूल आदि 2. (मूत्र की भाँति) बहाया गया। का) बन्द करना -शेषान्मासान्गमय चतुरो लोचने मोदष्टमः, मीड्वस् (पुं०) शिव का विशेषण / मीलयित्वा-मेघ० 110, आ-प्रेर०-- बन्द करना, मीन: 1 मछली- सुप्तमीन इव ह्रदः--रघु०१।७३, मीनो नेत्रे चामीलयन-काव्या० 2 / 11, उद्-1. आखें नु हन्त कतमा गतिमभ्युपेतु-भामि० 1317 2. बारहवीं खोलना-उदमीलीच्च लोचने-भट्टि० 15 / 102, अर्थात् मीन राशि 3. विष्णु का पहला अवतार दे० 1682. जगाया जाना, उबुद्ध किया जाना शि० मत्स्यावतार / सम०-अण्डम् मछली का अंडा, मछली 1072 3. फूलाना, फंक मारना कि० 413, मा० के अंडों का समूहः-आघातिन, घातिन् (पुं०) 1138 4. प्रसृत किया जाना, फैलाया जाना, गुच्छे 1. मछुवा 2. सारस, आलयः समुद्र,-केतनः कामदेव, बनना, झुण्ड हो जाना उन्मीलन्मधुगंध'..'गीत. -गन्धा सत्यवती का विशेषण--.,गन्धिका जोहड़, 1, उत्तर० श२० 5. दिखाई देना, अंकुर फूटना पल्वल,-र-रङ्गः रामचिरैया, बहरी (एक शिकारी खं वायुज्वलनो जलं क्षितिरिति त्रैलोक्यमन्मीलति पक्षी)। -प्रबोध० 112, भामि २१७२(प्रेर०) खुलना तदेतमोनरः मगरमच्छ नाम का समद्री-दानव / दुन्मीलय चक्षुरायंत बिक्रम० 115, मु. 123 मीम् (म्वा० पर० मीमति) 1. जाना, हिलना-जुलना / नि , 1. आँखें मूंदना रघु० 12265 मनु० 152 2. बाब्द करना। 2. मृत्य के कारण आँखें मंदना, मरमा निमिमील मीमांसक: 1. जो अनुसंधान करता है, पूछताछ करता है, / नरोतमप्रिया हतचंद्रा तमसेव कौमुदी- रघु११६८ For Private and Personal Use Only Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 803 ) + (आंख या फूल आदि का) मुदना या बन्द होना। मकूलाः कन्दलीश्चानुकच्छम्-मेध० 21, रघु० 9 / 31, निमीलितानमिव पंकजानाम रघु० 7 / 64 5. 15 / 99 2. कली जैसी कोई वस्तु-आलक्ष्यदन्तमुकुओझल होना, नष्ट होना, अस्त होना (आलं.) नरेशे लान् (तनयान्)--श० 7.17 3. शरीर 4. आत्मा, जीवलोकोऽयं निमोलति निमीलति-हि० 3 / 145, जीव (मुकुलीक, कली की भांति मुंदना-कु. द्यौनिमीलितनक्षत्रा हरि० (प्रेर०) बंद करना, मंदना उन्मीलिताऽपि दृष्टिनिमीलितेवांधकारेण मुकुलित (वि.) [मुकुल+ इतच् ] 1. कलियों से युक्त, मच्छ० 1133, न्यमिमीलदब्जनयनं नलिनी--शि० 9 // कलीदार, फूल 2. अधमुंदा, आधाबंद- दरमुकुलित 11, लीलापमं न्यमीलयत्--काव्या० 2261, कु० नयनसरोजम् -गीत०२, कु० 3 / 76 / / 3136 5 / 57, रघु० 19 / 28, सम्---,बंद होना, मुकुष्ठः, मुकुष्ठक: [मुकुस्था +क, मुकुष्ठ-कन् ] एक मंगना (प्रेर०) 1. बन्द करना या मूंदना, उपांत प्रकार का लोबिया, मोठ / सम्मिलितलोचनो नपः- रघु० 3 / 26, 13 / 10 2. ! मक्तः (भ० क.क.) [मच! त] 1. ढी मलिन करा, अंधेरा करना, धुंधला करना विकार हुआ, शिथिलित, मंद या धीमा किया हुआ 2. स्वतंत्र बैतन्यं भ्रमयति च संमीलयति च उत्तर० 1 / 36 / छोड़ा हुआ, आजाद किया हुआ, विश्राम दिया हुआ मलिनम् 1. आंखों का मुदना, झपकना, झपकी लेना 2. 3. परित्यक्त, छोड़ा हुआ त्यागा हुआ, एक ओर फेंका आँखों का मूदना 3. फूल का बन्द होना। हुआ, उतार दिया हुआ 4. फेंका हुआ, डाला हुआ, मीलित (भू० क० कृ०) 1. बन्द, मंदा हुआ 2. झपकी | कार्यमुक्त किया हुआ, ढकेला हुआ 5. गिरा हुआ, हुई 3. अबवला, बिना खिला 4. नष्ट हुआ, ओझल अवपतित 6. म्लान, अवसन्न 7. निकाला हुआ, उत्सृष्ट --तम् (अलं० में) एक अलंकार जिनके बीच का 8. मोक्ष प्राप्त किया हुआ (दे० मच),-क्तः जो अन्तर या भेद उनकी प्राकृतिक या कृत्रिम समानता / सांसारिक जीवन के बन्धनों से मुक्ति पा चुका है, के कारण पूर्णरूप से अस्पष्ट रहता है, मम्मट इसकी जिसने सांसारिक आसक्तियों को त्याग कर पूर्ण मोक्ष परिभाषा करता है....समेन लक्षणा वस्तु वस्तुना यनि- प्राप्त कर लिया है, अपमुक्त संत; -- सुभाषितेन गृह्यते, निजेनागंतुना वापि तन्मीलितमिति स्मृतम् -- गीतेन युवतीनां च लीलया, मनोन भिद्यते यस्य काव्य० 10 / सवै मुक्तो ऽथवा पशुः---सुभा० / सम०-अम्बरः मोव (भ्वा० पर भीवति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. दिगंबर संप्रदाय का जन साधु,-आत्मन् (वि.) मोटा होना। जिसने मोक्ष प्राप्त कर लिया है (पं.) 1. सांसारिक मीवरः सेना का नायक, सेनाध्यक्ष / वासनाओं और पापों से मुक्त आत्मा 2. वह व्यक्ति मोवा [मो+वन्] 1. पट्टकम, अंत्रकीट, केंचुआ 2. वायु / / जिसकी आत्मा अपमुक्त हो गई है,-आसन (वि.) अपने मुः[ मुन्+डु] 1. शिव का विशेषण 2. बन्धन, कैन / आसन से उठा हुआ, कच्छः बौद्ध, कञ्चकः वह 3. मोक्ष 4. चिता। साँप जिसने अपनी केंचुली उतार दी है, ... कण्ठ (वि०) मुकन्दकः प्याज / दुहाई मचाने वाला (अव्य० - ठम्) फूट फूट कर, मुकुः [मुच् +कु, पृषो०] मुक्ति, छुटकारा, विशेषतः मोक्ष। ऊँचे स्वर से, जोर से- रघु०१४।६८,--कर, हस्त मुकुटम् | मंक --उटन्, पुपो०] 1. ताज, किरीट, राज- वि०) उदार, खुले हाथ वाला, दानी,- चक्षुस् (पुं०) मकूट - मकूटरत्नमरीचिभिरस्पृशत् -- रघ० 9/13 सिंह, --वसन दे० मुक्तांबर / 2. शिखा 3. शिखर, नोक या सिरा। मुक्तकम् मुिक्त | कन्] 1. अस्त्र आयधास्त्र 2. सरल गद्य मुकुटी [ मुकुट+डोष ] अंगुलियाँ चटकाना। 3. एक पृथक्कृत श्लोक जिसका अर्थ स्वयं अपने में मुकुन्दः | मुकुम् दाति दा--क पृषो० मुम्० ] 1. विष्णु या | पूर्ण हो दे० काव्या० 1113-- मुक्तकं श्लोक कृष्ण का नाम 2. पारा 3. मूल्यवान् पत्थर या रत्न एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम् / 4. कुबेर को नौ निधियों में से एक :. एक प्रकार | मुक्ता मुक्त+टाप्] 1. मोती-हारोऽयं हरिणाक्षीणां का ढोल / लठति स्तनमण्डले, मुक्तानामप्यवस्थेयं के वयं स्मरमुकुरः [ मक-उरच, उत्वम् ] मह देखने का शीशा-गणि- किङ्कराः अमरु 100 (यहां 'मुक्तानां' का अर्थ नामपि निजरूपप्रतिपत्तिः परत एव संभवति, स्वमहिम- 'दोषमुक्त संत' भी ह) मोती अनेक स्रोतों से उपलब्ध दर्शनमक्षणोर्मकरतले जायते यस्मात-वास०, शि० बतलाये जाते है परन्तु विशेष कर समुद्री सीपी से 9 / 73, न०२२१४३ 2. कली, दे० 'मुकुल' 3. कुम्हार प्राप्त होते हैं;---करीन्द्र जीमूतवराहशंखमत्स्यादि के चाक का डंडा 1. मौलसिरी का पेड़। शुक्त्युद्भववेणुजानि, मुस्ताफलानि प्रथितानि लोके मुकुलः,----लम् [ मुंच + उलक्] 1. कली - आविर्भत प्रथम- तेषां तु शुक्त्युद्भवमेव भूरि--असि.) 2. वेश्या, For Private and Personal Use Only Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 804 ) गणिका / सम०-अगारः, आगारः मोती का घोंघा, / प्रकार 'इन्द्रमुखा देवाः' आदि 15. सतह, ऊपरी पार्श्व - आवलिः,-ली (स्त्री०)-कलापः मोतियों का हार 16. साधन 17. स्रोत, जन्मस्थान, उत्पत्ति 18. उच्चा..... गणः मोतियों का हार, मोतियों की लड़ी मेघ० रण जैसा कि 'मुखसुख' में 19. वेद, श्रुति 46, रघु० 16 / 18, जालम् मोतियों की लड़ी या 20. (काव्य में) नाटक में अभिनयादि कर्म का करधनी,-दामन् (नपुं०) मोतियों की लड़ी, पुष्पः मूलस्रोत, एक संधि / सम० .. अग्निः 1. दावानल एक प्रकार को चमेली, प्रसूः (स्त्री०) मोती की 2. आग के मुख वाला बेताल 3. अभिमन्त्रित या शुक्ति, प्रालम्बः मोतियों की लड़ी, -- फलम् 1. मोती यज्ञीय अग्नि 4. चिता में अग्न्याधान के अवसर पर कु. 116, रघु०६।२८ 16 / 62 2. एक प्रकार शव के मुख पर रक्खी जाने वाली आग, अनिलः, का फूल 3. सीताफल या कुम्हड़ा 4. कपूर, मणिः - उच्छ्वासः सांस, अस्त्रः केकड़ा, आकारः चेहरा, मोती, मात (स्त्री०) मोती का घोंघा, लता, मुखछवि, दर्शन,--आसवःअधरामृत, आस्रावः, सावः -स्रज्. हारः मोतियों की माला, शक्तिः स्फोट: थूक, मुंह की लार, इन्दुः चन्द्रमा जैसा मुंह अर्थात् वह घोंघा या सोपी जिसमें से मोती निकलते हैं। गोल सुन्दर मुख, उल्का दावानल, कमलम् कमल मुक्तिः (स्त्री०) [मुच्+क्तिन्] 1. छुटकारा, निस्तार, जैसा मुख, खुरः दांत,—गंधक: प्याज--चपल (वि०) उन्मोचन 2. स्वातंत्र्य, उद्धार 3. मोक्ष, आवागमन के बातूनी, वाचाल,-चपेटिका मुंह पर लगाई जाने वाली चक्र से आत्मा का मोचन 4. छोड़ना, त्याग, परित्याग, चपत, चीरिः (स्त्री०) जिह्वा,-जः ब्राह्मण, जाहम् टालना-संसर्गमुक्तिः खलेषु -भर्तृ० 2062 5. फेंकना, मुंह की जड़, कण्ठ,--दूषणः प्याज, दूषिका मुहासा, गिरा देना, छोड़ देना, मुक्त करना 6. आजाद करना, निरीक्षकः सुस्त, आलसी, मह की ओर ताकने वाला, खोलना 7. ऋण मुक्त होना, ऋण परिशोध करना / -- निवासिनी सरस्वती का विशेषण,-पटः चूंघट-कुर्वन् सम० क्षेत्रम् वाराणसी का विशेषण, मार्गः मोक्ष काम क्षणमुखपटप्रीतिमैरावतस्य मेघ०६२, --पिण्डः का रास्ता, मुक्तः लोबान / (भोजन का) ग्रास, पूरणम् 1. मुंह को भरना मुक्त्वा (अव्य०) / मुच् + क्त्वा] 1. छोड़कर, परित्याग 2. एक कुल्ला पानी, मुंहभर, प्रसादः प्रसन्नवदन, करके 2. सिवाय, छोड़ कर, विना / मुख की प्रसन्नमुद्रा, प्रियः संतरा, बंधः भूमिका, मुखम् [खन्-+-अच्, डित् घातोः पूर्व मुटु च] 1. मुंह प्रस्तावना, बन्धनम् 1. भूमिका 2. ढक्कन, आवरण, (आलं० से भी) -- ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत् ऋक् "- भूषणम् पान लगाना-दे० तांबुल, भेदः चेहरे का -----10 / 90112 सभ्रूभङ्गं मुखमिव-मेघ० 24, त्वं विकृत हो जाना, मधु (वि) मिष्टभाषी, मधुराधर, मम मुखं भव -विक्रम० 1, 'मेरे मुखपात्र या प्रति- मार्जनम् मुंह धोना, वन्त्रणम् लगाम की मुखरी निधिवक्ता बनिये 2. चेहरा, मुखमण्डल -- परिवृत्ताध- या वल्गा, रागः चेहरे का रंग रघु० 12 / 8, 17 / मुखी मयाद्य दृष्टा-विक्रम० 1117, नियमक्षाममुखी 31, लाङ्गलः सूअर, लेपः 1. (ढोलक के) उपरी तकवेणिः - श० 721, इसी प्रकार चन्द्रमुखी, भाग पर लेप करना 2. कफ प्रकृति वाले पुरुष की मखचन्द्र आदि 3. (किसी जानवर की) यूथन, थूथनी एक दीमारी, वल्लभः अनार का पेड़, वाद्यम् या मोहरी 4. अग्रभाग, हरावल, पुरोभाग 5. किनारा, 1. मुंह से बजाया जाने वाला बाजा, फंक मार कर नोक, (बाण का) फल, प्रमुख पुरारिमप्राप्तमुखः बजाया जाने वाला बाजा 2. मुंह से 'बम् बम्' शब्द शिलीमुखः - कु० 5 / 54, रघु० 3 / 57, 596. (किसी करना, वासः, वासनः श्वास को सुगंधित बनाने उपकरण का) की धार या क्षण नोक 7. च्चक, वाला एक गंधद्रव्य, विलण्ठिका वकरी, ... व्यादानम् स्तनाग्र--कु० 1140; रघु० 3 / 8 8. पक्षी की चोंच मुंह फाड़ना, जंभाई लेना, शफ (वि०) गाली देने 9. दिशा, तरफ जैसा कि 'दिङमुखं, अन्तर्मुख' में वाला, अश्लीलभाषी, बदज़बान, शुद्धिः (स्त्री०) 10. विवर, द्वार, मुंह-नीवाराः शुकगर्भकोटरमुख- मुंह को धोना या निर्मल करना, शेषः राहु का भ्रष्टास्तरूणामधः श० 1214, नदीमुखेनेव समुद्र- विशेषण,-शोधन (वि०) 1. मुंह को स्वच्छ करने वाला माविशत् - रघु० 3 / 28, कु० 118 11. प्रवेश द्वार, 2. तीक्ष्ण, तीखा, (नः) चरपराहट, तीखापन, (नम्) दरवाजा, गमन मार्ग 12. आरंभ, शुरू, सखीजनोद्वीक्षण- मुंह को साफ करना, श्री (स्त्री) 'मुख का सौन्दर्य' कोमुदीमुखम् रघु० 3 / 1, दिनमुखानिरविहिमनिग्रहै- प्रिय मुखमुद्रा, सुखम् उच्चारण की सुविधा, ध्वन्या विमलयन् मलयं नगमत्यजत् -9 / 25, 5/76, घट० त्मक सुख, सुरम् होठों की तरावट / 2 13. प्रस्तावना, 14. मुख्य, प्रधान, प्रमुख (इस अर्थ मुखम्पचः | मुख+पच् / खच्, मुम् | भिखारी, साधु / में प्रयोग समास के अन्त में) बन्धोन्मक्त्यै खल | मखर (वि) [मुख मुखव्यापार कथनं राति--रा मखमखान्कुर्वते कर्मपाशान् भामि० 4 / 21, इसी . +क] / बातूनी, वाचाल, वाक्पटु-मुखरा For Private and Personal Use Only Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 805 ) खल्वेषा गर्भदासी रत्न 2, मुखरतावसरे हि विराजते / (अतः) सुन्दर, प्रिय, मनोहर, कांत-- हरिरिह मुग्ध -कि० 5 / 16 3. कोलाहलमय, लगातार शब्द वधूनिकरे विलासिनि बिलसित केलिपरे गीत०१, करने वाला, टनटन बजने वाला, (पाजेब की भांति) उत्तर० ३१५,-ग्धा कुमारी सुलभ भोलेपन से आकर्षक रुनझुन करने वाला--स्तम्बरमा मुख रशृङ्खलकर्षिणस्तें किशोरी, सुन्दर तरुणी, (काव्यकृतियों में यह एक .... रघु० 5 / 72, अन्तः कूजन्मुखरशकुनो यत्र रम्यो / नायिका का भेद माना जाता है) / सम०...-अक्षी बनान्तः .. उत्तर० 2 / 25, 20, मा० 9 / 5, मुखरमधीरं | सुन्दर आँखों वाली युवती बियोगो मुग्धाक्ष्याः स त्यज मजीरं रिपूमिव केलिए लोलम् .... गीत०५, खल रिपुघातावधिरभूत् उत्तर० 3 / 44, आनना मृच्छ० 1135 3. ध्वननशील, अनुनादी, गूंजने वाला सुन्दर मुख वाली, घी, - बुद्धि, मति (वि.) (प्रायः समास के अन्त में)-स्थान-स्थाने मुखरककुभो मूर्ख, मूढ़, जड़, भोला-भाला, भावः सादगी, झाङकृतनिर्झराणाम् उत्तर० 2 / 14, मण्डली मुखर- भोलापन / शिखरे (लताकुंजे) गीत० 2, रघु० 13:46 मुच्i (भ्वा० आ० मोचते) धोखा देना, ठगना; दे० 4. अभिव्यंजक या सूचक 5. अश्लीलभाषी, गाली देने मुञ्च् / वाला, वदजबान 6. उपहास करने वाला, हँसी दिल्लगी il (तुदा० उभ०--मुञ्चति--ते, मुक्त) शिथिल करना, करने वाला (मुखरीकृ , शब्द करवाना, बुलवाना, मुक्त करना, छोड़ना, जाने देना, ढीला होने देना, प्रतिध्वनित करवाना), - र: 1. कौवा 2. नेता मुख्य स्वतंत्र करना, छुटकारा करना (बन्धन आदि से) या प्रधान पुरुष .. यदि कार्यविपत्तिः स्यान्मुखरस्तत्र ... वनाय ''यशोधनो धेनुमषेममोच--रघु० 2 / 1. हन्यते हि० 1129 3. शंख / 3 / 20, मनु० 8 / 202, मोक्ष्यते सुरबन्दीनां वेणी:र्यमुखरयति (ना० धा० पर०) 1. प्रतिध्वनित या कोला- विभूतिभिः- कु० 2 / 61, रघु०१०१४७, मा भवानहलमय करना, गुंजाना 2. बलवाना या बातें करवाना, ङ्गानि मञ्चतु विक्रम० 2, भगवान् करे आपके अंग अत एव शुश्रूषा मा मुखरयति-मुद्रा० 3 3. अधि- म्लान न हों,--हतोत्साह न होइए' 2. आजाद करना, सूचित करना, घोषणा करना, अभिज्ञापन करना। ढीला छोड़ना (वाणी की भांति) कण्ठं मुञ्चति बहिणः मुखरिका, मुखरो [मुखर+कन् टाप, इत्वम्, मुखर+डोष्] समदनः मच्छ० 5 / 14, 'अपनी वाणी या कंठ को लगाम की वलगा, लगाम का दहाना। ढील देता है अर्थात चीत्कार करता है' 3. छोड़ना, मुखरित (वि०) मिखर इतच] कोलाहलमय या अनु- परित्याग करना, उन्मुक्त करना, छोड़ देना, एक ओर नादित किया हुआ, बजता हुआ, कोलाहलपूर्ण-गण्डो- डाल देना, उत्सर्ग करना रात्रिर्गता मतिमतां वर डडीनालिमाला मुखरितककूभस्ताण्डवे शूलपाणे: मुञ्च शय्याम् - रघु० 5 / 66, मुनिसुता प्रणयस्मृति--मा० 11 1 रोधिना मम च मुक्तमिदं तमसा मनः श०६७, मुख्य (वि०) मुखे आदी भवः --यत्] 1. मुख या चेहरे | मौनं मुञ्चति किं च कैरवकुले भामि० 114, आवि से संबंध रखने वाला 2. बड़ा, प्रधान, प्रमुख, प्रथम, भूते शशिनि तमसा मच्यमानेब रात्रिः --- विक्रम० 118, सर्व प्रधान, उत्तम, द्विजातिमख्यः, वारमुख्याः, मेघ० 96, 41, रघु० 3 / 11 4. अलग रखना, अपयोधमुख्या: आदि, - रख्यः नेता, पथप्रदर्शक ख्यम् हरण करना, अलगाना, दे० मुक्ता 5. डालना, फेंकना, 1. प्रधान यज्ञकृत्य या धार्मिक संस्कार 2. वेदों का उछाल देना, पटक देना, बोझा उतारना मृगषु पठनपाठन / सम० अर्थः शब्द का मुख्य या मूल शरान्मुमुक्षोः रघु० 9158, भट्टि० 15153 7. निका(विप० गौण) आशय, चान्द्रः मुख्य चांद्र मास, नृपः लना, गिराना, उडेलना, टपकाना (आंसू) ढलकाना नपतिः प्रभुसत्ताप्राप्त राजा, सर्वोपरि प्रभु,-मन्त्रिन् -अपसृतपाण्डुपुत्रा मुञ्चन्त्यभ्रूणीब लता:-श० 4 / 11, (पु.) प्रधान मंत्री। चिरविरहज मुंञ्चतो बाष्पमुष्णम् मेघ० 12, भट्टि० मुगहः एक प्रकार का जल कुक्कुट / 7 / 2 8. उच्चारण करना, बोलना मा० 9 / 5, मुग्ध (वि) [ मुह+क्त ] 1. जड़ीकृत, मूछित 2. हत- भट्टि० 7.57 1. प्रदान करना, अनुदान देना, अर्पण बुद्धि, प्रणयोन्मत्त 3. मढ़, अज्ञानी, मुर्ख, जड़-शशाङ्क: करना 10. पहनना (आ०) 11. उत्सर्ग करना केन मधेन राधांशरिति भाषित:----भामि० 2 / 29 (मलमूत्र का)-कर्मवा० (मुच्यते) ढीला किया जाना, 4. सरल, सीधासादा, भोला-भाला -उत्तर० 1146 छुटकारा पाना, स्वतंत्र होना, दोषमुक्त होना;-मुच्यते 3. भूल करने वाला, भल में पड़ा हुआ 6. बालोचित सर्वपापेभ्यः प्रेर० (मोचयति-ते) 1. स्वतंत्र या सरलता से मोहित करने बाला (अभी प्रेमरस से मुक्त कराना 2. गिरवाना 3. ढीला छोड़ना, आजाद अपरिचित), बालसुलभ, --(कः) -- अयमाचरत्यविनयं करना, छुटकारा देना 4. उद्धार करना, सुलझाना मुग्धासु तपस्विकन्यासु श० 1125, रघु० 9 / 34, / 5. जुआ हटाना, (घोड़े आदि पर से) साज उतारना For Private and Personal Use Only Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 806 ) 6. प्रदान करना, अर्पण करना 7. प्रसन्न करना, / मुचिरः [ मुञ्च- किरच ] 1. देवता 2. गुण 3. वायु / आनन्दित करना इच्छा० 1. (मुमुक्षति) मुक्त या | मचिलिन्दः एक प्रकार का फूल, तिलपुष्पी। स्वतंत्र करने की इच्छा करना 2. मुमुक्षते,-मोक्षते) | मुचुटी 1. अंगुलियां चटकाना 2. मुक्का। मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा करना / अव --,उतार | मुज् , मुङ्ग् (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० भोजति, देना, उड़ा देना आ,-- 1. पहनना, धारण करना, भुजति, भोजयति ते, भुजयति ते) 1. स्वच्छ चारों ओर बांधना या कसना आमुञ्चतीवाभरणं करना, निर्मल करना 2. शब्द करना / द्वितीयम् रघु० 13 / 21, 12 / 86, 18174, कि मुजः [मज+अच् ] एक प्रकार का घास (जिरासे कि 11 / 15, आमुञ्चद्धर्म रत्नाढयम् --भट्टि. 17 / 2 ब्राह्मण की तड़ागी तैयार करनी चाहिए)--मनु०२। 2. डालना, फेंकना, दागना आमोक्ष्यन्ते त्वयि कटा- 43 2. धारापति राजा मुंज का नाम (कहते हैं कि क्षान्–मेघ० 35, उद्,-1. खोलना, रघु० 6 / 28 मज राजा भोज का चाचा था)। सम० केशः 2. ढीला करना, मुक्त करना, स्वतंत्र करना 3. उता- 1. शिव का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण, केशिन रना, खींच ले जाना, एक ओर करना, छोड़ना, परि- (पु०) विष्णु का विशेषण, बन्धनम् यज्ञोपवीत पहत्याग करना ---भट्टि०.३।२२ निस्, -1. स्वतंत्र करना, नना अर्थात् तड़ागी धारण करना, अर्थात् उपनयन आजाद करना, मुक्त करना हिमनिर्मक्तयोर्योगे संस्कार, बासस् (पुं०) शिव का विशेषण / चित्रा चन्द्रमसोरिव - रघु० 1246, भग० 7 / 28 | मुजरम् [ मुञ्+अरन् ] कमल की रेशेदार जड़। 2. छोड़ना, खाली कर देना, परित्याग करना, मुट (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० मोटति, मोटयति. ते परि-,1. स्वतंत्र करना, छुटकारा देना, मुक्त करना, 1. कुचलना, तोड़ना, पीसना, चूरा करना 2. कलंकित -मेघोपरोधपरिमुक्तशशाङ्कवक्त्रा ऋतु०३७, चौर० करना, बुरा भला कहना (इस अर्थ में धातु तुदा० की 9 2. छोड़ना, खाली कर देना, परित्याग करना भी है)। प्र , 1. स्वतंत्र करना, मुक्त करना, छुटकारा देना, मुण् (तुदा० पर० मुणति) प्रतिज्ञा करना / 2. फेंकना, डालना, उछालना 3. गिराना, उत्सर्जन | मुण्ट / भ्वा० पर० मुण्टति) कुचलना, पीसना। करना, बीज बिखेरना, प्रति ,1, स्वतन्त्र करना, | मुण्ड् i (भ्वा० पर० मुण्डति) 1. क्षौर कर्म करना, मूंडना मुक्त करना, छुटकारा देना, आजाद करना,-गृहीत- 2. कुचलना, पीसना।। (भ्वा० आ० मुण्डते) डूबना। प्रतिमुक्तस्य रघु० 4 / 33, अमुं तुरङ्गं प्रतिमोक्तुम- | मुण्ड (बि.) [ मुण्ड्+ अच् ] 1. मुंडा हुआ 2. कतरा हसि 3646 2. धारण करना, पहनना 3. खाली कर हुआ, छांटा हुआ 3. कुण्डित 4. अधम, नीच, देना छोड़ना, परित्याग करना, 4. फेंकना, डालना, 1. जिसका सिर मुंडा हुआ हो या गंजा हो 2. मुंडा दागना, वि--, 1. स्वतंत्र करना, मुक्त करना 2. छोड़ हुआ या गंजा सिर 3. मस्तक नाई 5. पेड़ का तना देना, एक ओर डाल देना, परित्याग करना, खाली कर जिसकी ऊँची ऊंची शाखाएँ झांग दी गई हो, डा देना--विमुच्य वासांसि गुरूणि सांप्रतम् ऋतु० // किसी विशेष आश्रम की स्त्रीभिक्षुणी,--- उम् 1. सिर 7 3. जाने देना, ढील देना भट्टि. 750 4. अल- 2. लोहा / सम-अयसम् लोहा, फलः नारियल गाना, अलग रखना; कु० 3131 5. गिराना, का पेड़,-मण्डलो ऐसा जनसमूह जिनके सिर मुंडे हुए (आँसू) ढलकाना चिरमणि विमुच्य राघवः हों,-लोहम् लोहा,-शालि: एक प्रकार का चावल / --- रघु० 825 6. फेंकना, डालना, सम्-गिराना, | मुण्डकः [ मुण्ड-कन् ] 1. नाई 2. पेड़ का तना जिसकी भारमुक्त करना। वड़ी बड़ी शाखाएं झांग दी गई हों, ठूठ,---कम् सिर / मुचक: लाख / सम० ---उपनिषद् (स्त्री०) अथर्ववेद की एक उपमुच (च) कुन्दः 1. एक वृक्ष का नाम 2. मांधाता के पूत्र निषद् का नाम / एक प्राचीन राजा का नाम (देवासुर संग्राम में देव- | मुण्डनम् [ मुण्ड् / ल्युट ] सिर मुंडना, मुंडन। ताओं की सहायता के बदले उसे बिना किसी रोक के | मुण्डित (भू० क० कृ०) [मुण्ड्+क्त | 1. मडा हुआ लम्बी नींद का सुख प्राप्त करने का वरदान मिला 2. कतरा हुआ या छांटा हुआ, झांगा हुआ,-तम् था। देवों का आदेश था कि जो कोई उसकी नींद में लोहा। विघ्न डालेगा भस्म हो जायगा। जब कृष्ण ने बल- | मुण्डिन् (पुं०) [ मुण्ड-+-इनि ] 1. नाई 2. शिव का वान् कालयवन को मारना चाहा तो उसे मुचकुंद की | विशेषण / गफा में धकेल दिया। वहाँ प्रविष्ट होते ही मुचकुंद | मुत्यम् मोती। राजा की नेत्राग्नि से कालयवन भस्म हो गया)। | मुद्। (चुरा० उभ० मोदयति- ते) 1. मिलाना, घोटना सम० प्रसादक: कृष्ण का विशेषण / 2. स्वच्छ करना, निर्मल करना। 1 For Private and Personal Use Only Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 807 ) ji (भ्वा० आ० मोदते, प्रेर० मोदयति ते, इच्छा० करने का उपकरण, विशेषतः मोहर लगाने की अंगठी मुमुदिषते या मुमोदिषते) हर्ष मनाना, प्रसन्न होना, नामांकित अंगूठी-अनया मुद्रया मुद्रयेनम् मुद्रा० 1, हृष्ट या आनन्दित होना यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य नाममुद्राक्षराण्यनुवाच्य परस्परमवलोकयतः श० 1 इत्यज्ञानविमोहिताः भग०१६।१५, मनु० 2 / 232, 2. मोहर, छाप, अंक, चिह्न चतु:समुद्रमुद्रः का० 291, भट्टि० 15496, अनु, - अनुमोदन करना, 191, सिन्दूरमुद्राङ्कितः (बाहुः), गीत०४ 3. प्रवेशमंजूरी देना, अनुमति देना, स्वीकृति देना, रघु० पत्र, षोतपारक (जैसा कि मुद्राङ्कित रूप में दिया 14143, आ, 1. प्रसन्न या हर्षित होना, हर्प मनाना जाता है) अगृहीतमद्रः काटकानिष्कामसि-मद्रा० 5 2. सुगंधित होना, (प्रेर०) सुगंधित करना, सुवासित 4. मोहर लगा सिक्का, रुपया पंसा आदि सिक्के करना, परिमलरामोदयन्ती दिशः भामि० 1156, 5. पदक, तमगा 6. प्रतिभा चिह्न, बिल्ला, प्रतीकात्मक प्र अत्यंत प्रसन्न होना बहुत खुश होना, रघु० 6 / चिह्न 7. बंद करना, मंदना, मोहर लगा देना संवो८६, मा० 5 / 23 / ष्ठमुद्रा स च कर्णपाश:--उत्तर०६।२०, क्षिपन्निद्रामद्रां मुद्, मुदा (स्त्री०) [ मुद्+-(भावे) क्विप्, मुद्+टाप् ] मदनकलहच्छेद सुलभाम् मा० 2115 8. रहस्य हर्प, आनंद, प्रसन्नता, खुशी, संतोष पितुर्मुदं तेन 9. धर्मनिष्ठ भक्ति में अंगलियों की विशिष्ट मद्रा। ततान सोऽर्भक: रघु० 3 / 25, अश्नन् पुरो हरितको सम० अक्षरम् 1. मोहर का अक्षर 2. टाइप (छापने मुदमादधानः शि० 5 / 58, 1123, विषादे कर्तव्ये के अक्षर ---आधुनिक प्रयोग), कारः मोहर बनाने विदधति जडाः प्रत्युत मुदम् भर्तृ० 3 / 25; द्विपरण वाला, मार्गः मस्तक के बीच में होने वाला रंध्र मुदा गीत० 11, कि० 5 / 25, रघु० 7.30 / जिसके द्वारा (योगियों का) प्राणवायु बाहर निकल मुदित (भू० क० कृ०) [ मुद्+क्त ] प्रसन्न, हर्षित, आनं जाता है, ब्रह्मरंध्र। दित, खुश, हर्षयुक्त, तम् 1. प्रसन्नता, आनंद, खुशी मुद्रिका [मुद्रा-|-कन् + टाप, इत्वम् ] मोहर लगाने की हर्ष 2. एक प्रकार का मैथुनालिङ्गन, ता हर्ष, आनंद / अंगठी दे० 'मुद्रा' मुदिरः [ मुद्-+-किरच ] / बादल प्रचुर पुरन्दरधनुरजि- | मुद्रित (वि.) [मुद्रा+इतच ] 1. मोहर लगा हुआ, तमेदुरमुदिर सुवेशम् गीत०२, या, मञ्चसि नाद्यापि चिह्नित, अंकित, मुद्रांकित त्याग: सप्तसमुद्रमुद्रितरुषं भामिनि मदिरालिरुदियाय भामि० 288 मही निर्व्याजदानावधिः-महावी० 2 / 36, काश्मीर2. प्रेमी, कामासक्त 3. मेंढक / मद्रित मुरो मधुसूदनस्य गीत० 1, स्वयं सिन्दूरेण मुदी [ म+कडी ] ज्योत्स्ना, चांदनी।। द्विपरण मदामुद्रित इव ..11 2. बन्द किया हुआ, मुद्गः [ मद्-गक्] 1. एक प्रकार का लोविया, मंग | महर बंद 3. अनखिला। 2. ढकना, आवरण 3. एक प्रकार का समुद्री-पशु। मधा (अव्य०) [ मह.- का, पूषो० हस्य धः ] 1, व्यर्थ, सम० भुज,-भोजिन (पू०) घोड़ा। निष्प्रयोजन, निरर्थकता के कारण, बिना किसी लाभ मुद्गरः [ मुदं गिरति गृ+-अच् ] 1. हथौड़ा, मोंगरी, के--यत्किचिदपि संवीक्ष्य कुरुते हसितं मुधा-सा. जैसा कि 'मोहमदगर' शंकराचार्य कृत एक छोटा / द. 2. गलत रीति से, मिथ्यारूप से-रात्रि: सेब पुन: काव्य) में-रघु० 12 / 73 2. गतका, गदा 3. मिट्टी / स एव दिवसो मत्वा मुधा जन्तवः--भर्तृ० 3178 के ढेले तोड़ने वाली मोगरी 4. डम्पल, लोहे के छोटे (पाठान्तर)। मुगदर 5. कली 6. एक प्रकार की चमेली (इस अर्थ | मुनिः [ मन्- इन्, उच्च मनते जानाति यः ] 1. ऋपि, में यह शब्द नपुं भी होता है)। महात्मा, सन्त, भक्त, संन्यासी-मुनीनामप्यहं व्यासः मुद्गल: [ मुद्ग+लाक] एक प्रकार का घास / भग० 10 / 37, पुण्यः शब्दो मुनिरिति मुहुः केवलं मुग्दष्टः (पु.) एक प्रकार की मूंग।। राजपूर्वः श० 2 / 24, रघु० 118, 3149, भग मुद्रणम् [ मुद्+रा-ल्युट, पृषी]। मोहर लगाना, 2156 2. अगस्त्य मुनि का नाम 3. व्यास का नाम मुद्रांकित करना, छापना, चिह्न लगाना 2. मूंदना, वंद 4. बुद्ध का नाम 5. आम का पेड़ 6. 'सात' की संख्या करना। (व० व०) सप्तर्षि / सम०---अन्नम् (ब० व०)' मुद्रयति (ना० धा० पर०) 1. मोहर लगाना अनया संन्यासियों का भोजन,– इन्द्रः---ईशः,-ईश्वरः एक मुद्र या मुद्रयेनम्-मुद्रा०१ 2. मुद्रांकित करना, चिह्न बड़ा ऋपि, - त्रयम् भनित्रय' अर्थात् पाणिनि, कात्यालगाना, अंकित करना 3. ढकना, मंदना (आलं.) यन और पतंजलि (जो कि अन्तःप्रेरणा प्राप्त मुनि ..--विवराणि मुद्रयन् द्रागर्णायुरिव सज्जनो जयति माने जाते हैं)- मुनित्रयं नमस्कृत्य या, त्रिमुनि व्याक-भामि० 1190 / रणम् सिद्धा०,-पित्तलम् तांबा, पुङ्गवः महान् या मुद्रा [ मदु+र+टाप् ] / मोहर लगाने या मुद्रांकित / प्रमुख ऋषि,-पुत्रक: 1. खंजनपक्षी 2. दमनक वृक्ष For Private and Personal Use Only Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 808 ) --भेषजम 1. आँवला 2. उपवास,-व्रतम् संन्यासी 'मूर्छ' या 'मूर्छ' भी लिखते हैं) 1. ठोस बनाना, की प्रतिज्ञा--कु० 5 / 48 / जमना, गाढ़ा होना 2. मुछित होना, बेहोश होना, धम्म (म्वा० पर० मुंथति) जाना, हिलना-जुलना। मुझा जाना, अचेतन होना, संज्ञारहित होना-पतत्युममक्षा [ मोक्तुमिच्छा - मुच्-+-सन् +अ+टाप, धातोद्वि- द्याति मुर्छत्यपि----गीत. 4 क्रीडानिजितविश्वमछितत्वम् ) छुटकारे या मोक्ष की इच्छा। जनाघातेन कि पौरुषम् -गीत० 3, भट्रि० 1555 मुमुनु (वि०) [ मुन्+सन् +उ ] 1. बरी या स्वतंत्र 3. उगना, बढ़ना, बलवान् या शक्तिशाली होना होने का इच्छुक 2. कार्यभार से मुक्त होने का --ममर्छ सहजं तेजो हविषेव हविर्भुज:---रघु० इच्छुक 3. (बाण आदि) छोड़ने को प्रस्तुत ----रघु० 1079, मुमूर्छ सख्यं रामस्य --12 / 57, मूर्छन्त्यमी 9 / 58 4. सांसारिक जीवन से मुक्त होने का इच्छुक, विकाराः प्रायेणैश्वर्यमत्तेषु-श० 5 / 18 4. बल मोक्ष, प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील,--क्षुः मोक्ष के एकत्र करना, मोटा होना, सघन होना तमसां निशि लिए प्रयत्नशील ऋषि कु० 2 / 51, भग० 4 / 15, मर्छताम्-विक्रम० 317 5. (क) प्रभाव डालना विक्रम श१। -छाया न मूच्र्छति मलोपहतप्रसादे शुद्धे तु दर्पणतले मुमुचानः [ मुच्+आनन्, सन्वद्भावाद्वित्वम् ] बादल / सुलभावकाशा--श० 7 / 32, (ख) छा जाना, प्रभामुमूर्षा [ मृ+सन्+अ+टाप् ] मरने की इच्छा - भट्टि वित करना--न पादपोन्मूलनशक्तिरंहः शिलोच्चये 9 / 57 / मूर्छति मारुतस्य-रघु० // 34 6. भरना, व्याप्त मुमूर्षु (वि०) [म+सन्+उ] मरणासन्न, मृत्यु के निकट / होना, प्रविष्ट होना, फैल जाना ..कु. 6159, रघु० मुर (तुदा० पर० मुरति) घेरना, अन्तर्वृत्त करना, परि 6 / 9 7. जोड़ का होना 8. बार बार होना 9. ऊंचे वृत्त करना, लिपटना। स्वर से शब्द करवाना--प्रेर० (मर्छयति-ते) जडीमुरः [ मुर+क ] एक राक्षस का नाम जिसे कृष्ण ने मार भूत करना, मूछित करना-म्लेच्छोन्मुर्छयते--गीत. गिराया था, रम् परिवृत्त करना, घेरना। सम० 1, वि-, मूछित होना, बेहोश होना, सम्-, 1. मूर्छित -~-अरिः 1. कृष्ण का विशेषण-मुरारिमारादुपदर्शय होना, बेहोश होना 2. ताकतवर या शक्तिशाली होना, यसो गीत० 1 2. 'अनर्घराघव' नाटक का बलवान् होना, प्रबल होना,-- कि० 5 / 41 / प्रणेता,-जित, - -द्विष, - भित्, मर्दनः, -रिपुः,- मुर्मुरः मुर+क पृषो० द्वित्वम्] 1. तुषाग्नि, तुष या भूसी वैरिन्, हन् (पुं०) कृष्ण या विष्णु के विशेषण से तैयार की हुई अग्नि स्मरहुताशनमुमुंख्वूर्णता -प्रकीर्णाग्बिन्दुर्जयति भुजदण्डो मुरजितः--गीत. रघुरिवाम्रवणस्य रजःकणाः-शि०६।६ 2. काम 1, मुरवैरिणो राधिकामधि वचनजातम् 10 / / देव 3. सूर्य का एक घोड़ा। मुरजः [ मुरात् वेष्टनात् जायते -जन्+ड ] 1. एक | मुर्व (भ्वा० पर० मुर्वति) बांधना, कसना। प्रकार का ढोल या मृदंग-सानन्दं नन्दिहस्ताहत | मुशटो [मुष+अटन+डी, पृषो. पस्य श:] एक प्रकार मरजरव....' 'मा० श१, संगीताय प्रहतमुरजाः | का अन्न। -मेघ० 44, 56, मालवि० 122, कु० 641 मुश (स)ली छोटी छिपकली। 2. किसी श्लोक की भाषा को मुरज के रूप में व्यव- 1 i (ऋया पर० मुष्णाति, मुषित, इच्छा० मुमुषिषति) स्थित करना, मुरजबंध भी इसे ही कहते हैं - काव्य० 1. चुराना, उठा लेना, लूटना, डाका डालना, अप९। सम० -फलः कटहल का पेड़।। हरण करना (द्विक० मानी जाती है, देवदत्तं शतं मुरजा [ मुरज+टाप् ] 1. एक बड़ा होल 2. कुबेर की | मुष्णाति परन्तु लौकिकसाहित्य में विरल प्रयोग), पत्नी का नाम / मुषाण रत्नानि --शि० 1151, 3 / 38, क्षत्रस्य मरन्दला एक नदी का नाम (इसे ही बहधा 'नर्मदा' मानते मुष्णन वसु जैत्रमोजः-कि० 3 / 41 2 ग्रहण लगना, ढकना, लपेटना, छिपाना-सैन्यरेणुमुषिताकदीधिति: मुरला [ मुर+ला+क+टापा केरल देश से निकलने -रघु० 11151 3. बन्दी बनाना, मुग्ध करना, वाली एक नदी का नाम (उत्तर० 3 में 'तमसा' के लभाना 4. पीछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना-मुष्णा साथ इसका उल्लेख आता है) मुरलामारुतोद्धृत- श्रियमशोकानां रक्तः परिजनाम्बरः, गीतैर्वराङ्गनानां मगमत् कतकं रजः- रघु० 4155 / च कोकिल भ्रमरध्वनिम्-कथा० 55 / 113, रत्न० मुरली [ मुरम् अङगुलिवेष्टन लाति-मुर+ला+क+ 1224, भट्टि० 9 / 32, मेघ० 47, परि-, हीष ] बांसुरी, वंशी, वेणु / सम०-घरः कृष्ण का लूटना, वंचित करना-परिमुषितरत्नं त्रिभुवनम् विशेषण / -मा० 5 / 30, प्र----, अपहरण करना, निस्तेज मुई (म्वा० पर० मूर्छति, मूछित, या मूतं, इस धातु को। करना भट्टि० 17160 / For Private and Personal Use Only Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 809 ) ii (म्वा० पर० मोषति) चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, 1 मनु० 6 / 56 / सम० - आयुधः बलराम का विशेषण, हत्या कराना। ...-उलूखलम् मूसली और खरल / iii (दिवा० पर० मुष्यति) 1. चुराना 2. तोड़ना, नष्ट मुसलामुसलि (अव्य०) [मुसलैः मुसलैः प्रहृत्य प्रवृत्तं युद्धम्] करना-भट्टि०१५।१६ / मूसल या गदाओं से लड़ना। मुषकः [मु-+ण्वुल] चूहा / मुसलिन् (पुं०) [मुसल---इनि] 1. बलराम का विशेषण मुषल दे० 'मुसल'। 2. शिव का विशेषण / मुषा-षी [मुष्+क-अप, ङीष् वा] कुठाली / मुसल्य (वि०) [मुसल+यत् गदा से चूर-चूर किये जाने मुषित (भू० क० कृ०) मुष+क्त 1 लूटा गया, चोरी अथवा मार दिये जाने योग्य / किया गया, अपहृत 2. अपहरण किया गया, छीन मुस्त (चुरा० उभ० मुस्तयति -ते) ढेर लगाना, इकट्ठा कर ले जाया गया 3. वञ्चित, मुक्त 4. ठगा गया, करना, संग्रह करना, संचय करना / धोखा दिया गया दैवेन मुषितोऽस्मि - का० / मुस्तः,-तम्, ---स्ता मुस्तु-क, स्त्रियां टाप] एक प्रकार मुषितकम् मुषित+कन] चुराई हुई संपत्ति / की घास, मोथा-विस्रब्धं क्रियतां वराहततिभिमस्तामुष्कः मिप -कक] 1. अंडकोष 2. पोता 3. गठीला तथा ___ क्षतिः पल्वले-श० 2 / 6, रघु० 9 / 59, 15 / 19 / हृष्ट-पुट पुरुष 4. राशि, ढेर, परिमाण, समुच्चय सम० अदः आदः सूअर / 5. चोर। सम० --देशः अण्डकोष का स्थान,-शून्यः मुस्रम् [मुस्+रक्] 1. मुसली 2. आंसू / हिजड़ा, बधिया किया हुआ पुरुष, शोफः पोतों की मुह, (दिवा० पर० मुह्यति, मुग्ध या मूढ) मुझाना, मुर्छित सूजन। होना, चेतना नष्ट होना, बेहोश होना इष्टाहं मुष्ट (भू० क० कृ०) [मुष्+क्त] चुराया हुआ--- श० द्रष्टुमाहुं तां स्मरन्नेव मुमोह सः .. भट्टि०६।२१, ५।२०,-टम् चुराई हुँई सम्पत्ति / 120, 15 / 16 2. उद्विग्न होना, विह्वल होना, मुष्टिः (पुं०, स्त्री०) मुष-क्तिच्] 1. भींचा हुआ हाथ, घबराना 3. मूह बनना, जड़ होना, मोहित होना मुट्ठी-कणाण्तमेत्य विभिदे निविडोऽपि मुष्टि:-रघु० 4. गलती करना, भूल होना-प्रेर० (मोहयति ते) 9 / 58, 15 / 21, शि० 10159 2. मुट्ठीभर, जितना 1. जड करना, मोहित करना ---मा मूमुहत्खलु भवन्तएक मुट्ठी में आवे, श्यामाकमष्टिपरिवधितकः श० मनन्यजन्मा - मा० 1 // 32 2. अस्तव्यस्त करना, 4 / 14, रघु० 19 / 57, कु० 7 / 69, मेघ० 68 3. मूंठ, घबराना, उद्विग्न होना ---भग० 32, 4 / 16, दस्ता 4. एक विशेष तोल,( = एक पल के बराबर) परि ..., घबराया जाना, उद्विग्न हो जाना (प्रेर० 5. पुरुष का लिंग। सम० - देशः धनुष का बीच का आ०) फुसलाना, बहकाना, ललचाना-भट्टि० 8 / 63, भाग, वह भाग जो हाथ से पकड़ा जाता है, - द्यूतम् प्र , जडीभूत होना, मुग्ध होना, वि-, अव्यवस्थित एक प्रकार का खेल, जुआ, -- पातः मुक्केबाजी, बंध: होना, घबराना, उद्विग्न होना, विह्वल होना - भग० 1. मुट्ठी बांधना 2. मुट्ठीभर,--- युखम् मुक्केबाजी, 2 / 72, 3 / 6, 27 2. मुग्ध होना या मोहित होना, घुसेवाजी। सम् - 1. व्याकुल होना 2. मुर्ख या अज्ञानी होना मष्टिकः मिष्टिर्मोषणं प्रयोजनमस्य - कन] 1. सुनार (प्रेर०) मोहित करना, जडीभूत करना-अघर2. हाथों की विशिष्ट स्थिति 3. एक राक्षस का नाम, मधुस्यन्देन संमोहिता गीत०१२।। कम् मुक्केबाजी, घुसेबाजी। सम० अन्तकः मुहिर (वि०) [मुह +किरच] मूर्ख, मूढ, जड़, रः वलराम का विशेषण। 1. कामदेव 2. मूर्ख, बुद्ध / मुष्टिका मुष्टिक-टाप] मुट्ठी। महस् (अव्य०) [मुह, +उसिक] बहुधा, लगातार, निरंतर, मुष्टिन्धयः [ मुष्टि ---घे+खेश् मुम् ] बच्चा, बालक, बार बार-ग्रीवाभङ्गाभिरामं मुहुरनुपतति स्यन्दने शिशु। दत्तदृष्टिः श० 117, 216, (इस अर्थ में प्रायः मुष्टीमुष्टि (अव्य०) [मुष्टिभिः मुष्टिभिः प्रहृत्य प्रवृत्तं 'द्वित्व' कर दिया जाता है) महर्महः 1. बार बार, फिर युद्धम् मुक्केबाजी, चूंसेबाजी, हस्ताहस्ति युद्ध / फिर, प्रायः बहुशः -- गुरूणां संनिधानेऽपि कः कूजति मुष्ठकः राई, काली सरसों। मुहुर्मुहः 2. कुछ समय या क्षण के लिए, थोड़ी देर के मुस् (दिवा० पर० मुस्यति) फाड़ना, विभक्त करना, लिए मेघ० 115, उत्तरोत्तर वाक्यखंडों में 'अब, टुकड़े 2 करना। अब' एक बार, दूसरी बार' अर्थ को प्रकट करने मुसलः, लम् | मुस+कलच] 1. गतका, गदा 2. मसल में प्रयुक्त होता है ... महरनपतते बाला मुहुः (चावल कूटने के काम आता है)-मुसलमिदमियं च पतति विह्वला, मुहुरालप्यते भीता मुहुः कोशति पातकाले मुहुरनु याति कलेन हुंकृतेन-मुद्रा० 114, | रोदिती -सुभा०, मुद्रा० 5 / 3 / सम-भाषा, 102 For Private and Personal Use Only Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 810 ) - वचस् (नपुं०) पिष्टपेषण, पुनरुक्ति, -- भज् (पुं०)। होना, -- जठरः, -रम् मूत्र रुक जाने से पेट की सूजन, घोड़ा। -दोषः मूत्रसंबंधी रोग, निरोधः मत्र का रुक जाना, मूहूर्तःतम् [ हुर्छ+क्त धातोः पूर्व मुट् च ] 1. एक क्षण, -पतनः गंधमार्जार,-पथः मत्रनलिका,-परीक्षा मूत्र समय का अल्पांश, निमिष--नवाम्बुदानीकमुहूर्तला- निरीक्षण, मूत्र की परीक्षा करना, -पुटम् पेट का ञ्छने-रघु० 3 / 53, संध्याभ्ररेखेव महतरागाः निचला भाग, मूत्राशय, मार्गः मूत्रनलिका मूत्रद्वार, --पंच० 1 / 194, मेघ० 19, कु. 750 2. काल, ___ वर्धक (वि०) अधिक पेशाब लाने की दवा, मूत्रल, समय (शुभ या अशुभ) 3. अड़तालीस मिनट का -शूलः, - लम् मूत्रसंबंधी पीड़ा,-संग पेशाब आने में काल,-तः ज्योतिषी। रुकावट, पीड़ा के साथ रक्त पेशाब आना। माहर्तक: [मुहर्त+कन् ] 1. निमिष, क्षण 2. अड़तालीस | मूत्रयति (ना० घा० पर०) पेशाब, लघुशंका करना मिनट का काल / ---तिष्ठन्मूत्रयति महा। मू (भ्वा० पर० मवते) बांधना, जकड़ना, कसना / मूत्रल (वि.) [ मूत्र+ला+क ] पेशाब लाने वाली मूक (वि.) [ मू+का ] 1. गूंगा, मौन, चुप्पा, वाक्- | (दवा), मूत्रवर्धक औषधि / शून्य - मूकं करोति वाचाल, मुकाण्डजं (काननम्) | मूत्रित (वि०) [ मूत्र---इतच् ] मूत्र के रूप में निकला -कु० 3 / 40, सखीमियं वीक्ष्य विषादमूकाम् गीत० / हुआ। 7 2. बेचारा, दीन, दुःखी, क: 1. गूंगा- मौनान्मूकः | मर्ख (वि०) [ मह -ख, मर आदेशः ] जड़ मन्दमति, -हि. रा२६ (पाठांतर), मनु० 7 / 149 2. बेचारा, बुद्ध, मूढ़, अनजान- र्खः 1. मन्दमति, बुद्ध न तु दीन 3. मछली। सम--अम्बा दुर्गा का एक रूप, प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्- भर्त० श६, 8, ----भावः चुप्पी, मूकता, वाक्शून्यता / / मुर्खबलादपराधिनं मां प्रतिपादयिष्यसि. विक्रम मूकिमन् (पुं०) [ मूक+इमनिच् ] गूंगापन, मूकता, 2. एक प्रकार का लोबिया / सम० भूयम् मूर्खता, चुप्पी / जड़ता, अज्ञानता। मूड (भू० क० कृ०) [ मुह -+-वत ] 1. जडीभूत, मोहित | मूर्छन (वि०) (स्त्री०-नी). [मुर्छ +णिच् + ल्युट्] 2. उद्विग्न, व्याकुल, विह्वल, सूझबूझ से हीन-कि 1. जडीभूत करने वाला, जडता या बेहोशी पैदा करने कर्तव्यतामूढः 'करणीय कर्तव्य की सूझ से हीन व्यक्ति' वाला, (कामदेव के एक बाण का विशेषण) 2. बढ़ाने इसी प्रकार 'ह्रीमूढ' मेव० 68 3. नासमझ, मूर्ख, वाला, वर्धन करने वाला, बल देने वाला,--नम् मन्दबुद्धि, जड, अज्ञानी अल्पस्य हेतोर्बह हातुमिच्छन् 1. मछित होना, बेहोश होना 2. (संगी० में) स्वराविचारमूढः प्रतिभासि मे त्वम्-रघु० 2 / 47 रोहण, स्वरविन्यास, स्वरों का नियमित आरोहणाव4. भ्रान्त, भ्रमपूर्ण, प्रतारित, विचलित 5. अपक्व- रोहण, सुखद स्वरसंधान करना, लयपरिवर्तन करना, जन्मा 6. संशयोत्पादक, - ढः मूर्ख, बुद्, मन्दमति, स्वरसामंजस्य, स्वरमाधुर्य-स्फटीभवद्ग्रामविशेषअज्ञानी पुरुष-मूढः परप्रत्ययनयबुद्धिः मालवि० मूर्च्छनाम् शि० 1110, भूयोभूयः स्वयमपि कृतां 1 / 2 / सम० -आत्मन् 1. मन से जड़ीभूत 2. निर्बुद्धि, मूर्च्छनां विस्मरन्ति मेघ०८६, वर्णानामपि मर्छनाजड़, मूर्ख,-गर्भः मृत गर्भ,--वादः अशुद्ध भाव, गलत, न्तरगतं तारं विरामे मृदु . मृच्छ० 3.5, सप्त स्वराविचारण, गलत धारणा, चेतन, चेतस् (वि०) स्त्रयो ग्रामा मुर्छनाचकविंशति: .... पंच० 5 / 54 निर्बुद्धि, मूर्ख, अज्ञानी-अवगच्छति मूढचेतनः प्रिय- (सूर्छा या मूर्च्छना की परिभाषा क्रमात्स्वराणां नाशं हृदि शल्यमपितं - रघु० 8188, धी, बुद्धि, सप्तानामारोहश्चावरोहणम् , सा मूच्र्छत्युच्यते - मति (वि.) निर्बुद्धि, जड़, मूर्ख, सीधासादा ग्रामस्था एताः सप्त सप्त च, अधिक विवरण के -कि० 130, सत्त्व (वि०) मोहित, दीवाना / लिए दे०शि० 1 / 10 पर मल्लि०। मत (वि.) [म+क्त ] 1. बांधा हुआ, करता हुआ | मर्छा मिर्छ ---(भावे) अङ+टाप] 1. बेहोशी, संज्ञा 2. बंदी किया हुआ। हीनता--रघु० 7.44 2. आत्म अज्ञान या व्यामोह मूत्रम् [ मूत्र +घञ ] मूत, पेशाब, - नाप्सु मूत्रं समुत्सृ- 3. धातु फूक कर भस्म बनाने की प्रक्रिया, मच्छौं गतो जेत्-मनु० 4156, मूत्रं चकार 'मूता, लघुशंका की' __ मतो वा निदर्शनं पारदोऽत्र रसः-भामि० 1182 / सम० - आघातः मूत्रसंबंधी रोग, आशयः पेट के | मोल (वि.) [मूर्छा-+लच्] वेहोश, अचेत, चेतनानीचे का स्थल जहाँ मूत्र भरा रहता है, उत्सङ्ग दे० / रहित / 'मूत्रसंग', कृच्छम् पीड़ा के साथ मुत्र का आना, | | मच्छित (भू० क० कृ.) [मूर्छा जाता अस्य-इतच, मूच्र्छ मूत्रक्षरण, बूंद 2 पेशाव का पीड़ा देकर आना, +क्त वा] 1. बेहोश, संज्ञाहीन, चेतनारहित कोशः अंडकोश, पोता, क्षयः मूत्र का स्राव कम / 2. मूर्ख, जड, मूढ 3. बढ़ाया हुआ, वर्धित 4. प्रचंड For Private and Personal Use Only Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया हुआ, तीव्र किया हुआ 5. उद्विग्न, व्याकुल | का पेड़,-रसः उबले चावलों का मांड, वेष्टनम, 6. भरा हुआ, 7. फूका हुआ। साफा, मुकुट, शिरोमाल्य। मत (वि०) [मूच्र्छ ---क्त] 1. बेहोश, संज्ञाहीन 2. जड, | मूर्धन्य (वि.) मूनि भवः -- यत्] 1. सिर पर विद्यमान मूढ 3. शरीरधारी, मूर्तिमान मूर्ती विघ्नस्तपस इव | 2. मूर्धन्य अर्थात मर्धा से उच्चरित होने वाले वर्ण नो भिन्नसारङ्गयूथ:---श० 1136, प्रसाद इव मूर्तस्ते | ऋ, ऋ, दण् र् और ष, ऋटुरषाणां मूर्धा स्पर्शः स्नेहार्द्रशीतल:--- उत्तर० 3 / 14, रघु० 2169, 3. मुख्य, प्रमुख, सर्वोत्तम / 770, कु० 7 / 42, पंच० 2 / 99 4. भौतिक, | मूर्ध्वन् दे० 'मूर्धन्'। पार्थिव 5. ठोस, कड़ा। मूर्वा, -वीं, मूर्विका [मुर्व+अच् +टाप, ङीष् वा; मूर्वा मुत्तिः (स्त्री०) [मर्छ-क्तिन] 1. निश्चित आकार और +कन्+टाप् इत्वम्] एक प्रकार की लता जिसके सीमा की कोई वस्तु, भौतिक तत्त्व, द्रव्य, सत्त्व देशों से धनुष की डोरी या क्षत्रियों की (कटिसूत्र) 2.रूप, दृश्यमान आकृति, शरीर, आकृति, मुद्रा०२।२, तड़ागी तैयार की जाती है। रघु० 3127, 14 / 45 3. मूत्तिमत्ता, शरीरधारण, मूल i (म्वा० उभ० मूलति-ते, जड़ जमना, दृढ़ होना, प्रतिबिंब, स्पष्टीकरण करुणस्य मत्ति: उत्तर० स्थिर होना ii (चुरा० उभ० मूलयति-ते मूलित) 364, पंच० 21159 4. प्रतिमा, प्रतिमूर्ति, पुतला, पौधा लगाना, उगाना, पालना, उब---,उखाड़ना, जड़ बत 5. सौन्दर्य 6. ठोसपना, कड़ापन / सम० से काटना, मलोच्छेदन करना--कि० 1141, विनष्ट -धर, संचर (वि०) शरीरधारी, मूर्तिमानः उत्तर० करना, विध्वंस करना, निस्---,जड़ से उखाड़ना, 6, -पः प्रतिमा का पुजारी, जो किसी देव प्रतिमा उन्मूलित करना। के पूजाकृत्य में लगाया गया है। मूलम् [मूल+क] 1. जड़ (आलं० से भी)--तरुमूलानि मतिमत् (वि.) मूत्ति+मतुप] 1. भौतिक, पार्थिव गृहीभवन्ति तेषाम् --श० 7 / 20, या, शाखिनो 2. शरीरधारी, देहवान्, साकार --शकुन्तला मूर्तिमती धौतमूलाः 120, मूलंबन्ध जड़ पकड़ना, जड़ जमना, च सत्क्रिया-श० 5 / 15, तब मूर्तिमानिव महोत्सवः --बद्धमूलस्य मूलं हि महद्वैरतरोः स्त्रियः—शि० करः-उत्तर० 1118, रघु० 12164 3. कड़ा, 2038 2. जड़, किसीवस्तु का सबसे नीचे का ठोस / किनारा या छोर-कस्याश्चिदासीद्रसना तदानीममूर्धन् (पुं०)महत्यस्मिन्नाहते इति मुधो-मह+कनि, गुष्ठमूलार्पित सूत्रशेषा-रघु० 710, इसी प्रकार उपधाया दी| घोऽन्तादेशो रमागमश्च 1. मस्तक, 'प्राचीमूले--मेघ० 91 3. नीचे का भाग या भौं 2. सिर;-नतेन मूर्ना हरिरग्रहीदपः-शि० किनारा, आधार, किसी भी वस्तु का किनारा जिसके 1218, रघु० 1681, कु० 3 / 12 3. उच्चतम या सहारे वह किसी दूसरी वस्तु से जुड़ी हो--बाह्वोर्मूप्रमुख भाग, चोटी, शिखर, श्रृंग, सिर-अतिष्ठन्मन- लम् --शि० 7 / 32, इसी प्रकार पादमूल, कर्णमूलं, जेन्द्राणां मधिन देवपतिर्यथा .-महा० "सब राजाओं के ऊरूमूलम् आदि 4. आरंभ, शुरू - आमूलाच्छोतुशीर्षभाग पर" आदि-भूम्यां पर्वतमूर्धनि-श० 5 / 7, मिच्छामि श०१ 5. आधार, नींव, स्रोत, मूल, मेघ०१७ 4. (अतः) नेता, मुखिया, मुख्य, सर्वोपरि, उत्पत्ति-सर्वेगार्हस्थ्यमूलका:-महा०, रक्षोगृहे स्थितिप्रमुख 5. सामने का, हरावल, अग्रभाग --स किल मूलम् -उत्तर० श६, इति केनाप्युक्तं तत्र मूलं संयुगमूर्ध्नि सहायतां मघवतः प्रतिपद्य महारथ:--रघु० मृग्यम्, 'इसका स्रोत या प्रमाण मालूम किया जाना 9 / 19 / सम०-अन्तः सिर का मुकुट,-अभिषिक्त (वि०) चाहिए' 6. किसी वस्तु का तल या पैर, पवतमलम, अभिमंत्रित, किरीटधारी, यथाविधि पद पर प्रतिष्ठा- गिरिमूलम् आदि 7. पाठ, मूल संदर्भ (भाष्य से पित,-रधु०१६।८१ (क्तः) 1. अभिमंत्रित या अभि- विविक्त) 8. पड़ोस, आस पास, सामीप्य 9. मुलधन, षिक्तराजा 2. क्षत्रिय जाति का पुरुष 3. मंत्री मूलपूजी 10. कुलक्रमागत सेवक 11. वर्गमूल 4.मूर्धाभिसिक्त (1)-अभिषेक: अभिमंत्रण, प्रतिष्ठा- 12. राजा का अपना निजी प्रदेश-स गुप्तमलप्रत्यन्तः पन, अवसिक्तः 1. ब्राह्मण पिता और क्षत्रिय माता से ... रघु० 4 / 26, मनु० 7 / 184 13. विक्रेता जो उत्पन्न एक वर्णसंकर जाति 2. अभिमंत्रित राजा स्वयं विक्रयवस्तु का स्वामी न हो-मनु० 7 / 202, ---कर्णी -कर्परी (स्त्री०) छतरी, ...ज: 1. (सिर (अस्वामिविक्रेता कुल्ल.) 14. ग्यारह तारकाओं का के) बाल-पर्याकुला मुर्धजा:-श० 1130, विललाप पुंज जो सत्ताइस नक्षत्रों में से उन्नीसवां (मलनक्षत्र) विकीर्णमूर्धजा-कु० 4 / 4, शोकातिरेक में उस स्त्री है 15. झाड़ी, झाड़-झखाड़ 16. पीपरा मूल 17. अंगने अपने बाल नोच डाले' 2. अयाल, ---ज्योतिस् लियों की विशेष स्विति / सम०----आषारम् 1. नाभि (नपुं०) दे० ब्रह्मरन्ध्र या मुद्रा-मार्ग-पुष्पः शिरीष 2. जननेन्द्रिय के ऊपर एक रहस्य मय वृत्त,--आभम् For Private and Personal Use Only Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 812 ) मूली,-आयतनम् मूल आवासस्थान-,आशिन् (वि०) / मूषा, मूषिका [मूष+टाप, मूपिक-|-टाप् ] चुहिया जो कन्दमलादि खाकर जीवित रहे,--आह्वम् मूली | कुठाली। ----उच्छेदः पूर्णध्वंस, पूर्णविनाश, पूरी तरह उखाड़ | मूषिकः [ मष--किकन् ] 1. चहा 2. चोर 3. शिरीष का फेंकना,-कर्मन् (नपुं०) जादू,--कारण मूलहेतु, पेड़ 4. एक देश का नाम / सम-अङ्कः, -अञ्चनः आदि कारण, कु० ६।१३,-कारिका भट्टी, चूल्हा -रथः गणेश के विशेषण,---अदः बिलाव,-अरातिः ---कृपछ:-कृच्छम् एक प्रकार की तपस्या, केवल बिलाव,-उत्करः, स्थलम् बांबी। जड़ें खाकर निर्वाह करना,-केशरः नीबू,—गुणः किसी मूषिकारः (पुं०) चूहा। मूल का गुणांक,-ज: जड़ बोने से उत्पन्न होने वाला मूषी, मूषीकः, मूषीका [ मूप +डी, मूष ---ईकन्, स्त्रियां पोधा, (जम्) हरा अदरक,-देवः कंस का विशेषण. टाप् च ] चहा, मूसा, मूसी। -द्रव्यम् - धनम् मूलधन, माल, बाणिज्यवस्तु, पूंजी, म (तुदा० आ०-[ परन्तु लिट्, लुट, लट् और लुक में -धातुः लसीका, --निकृन्तन (वि०) जड़ से काट पर० ] म्रियते, मृत) मरना, नष्ट होना, मृत्यु को डालने वाला,--पुरुष 'पशुपाल' किसी परिबार का प्राप्त होना, जीवन से बिदा लेना-प्रेर० (मारयति वंशप्रवर्तक पुरुष, -प्रकृतिः (स्त्री०) सांख्या का -ते) वध करना, हत्या करना-इच्छा० (ममूर्षति) प्रधान या प्रकृति, फलदः कटहल का पेड़,-भद्रः 1. मरने की इच्छा करना 2. मरने के निकट होना, कंस का विशेषण,-भृत्यः पुराना तथा कुलक्रमागत मरणासन्न अवस्था में होना, अनु ----, बाद में मरना, सेवक,-वचनम् मूलपाठ, वित्तम् पूंजी, वाणिज्य मर कर अनुगमन करना---रघु०८८५ / वस्तु, माल, -विभुजः रथ, शाकटः, -शाकिनम् वह | मृक्ष दे० म्रक्ष् / खेत जिसमें मूली गाजर आदि मल-पौधे बोये जाते वाय जात मग (दिवा० पर०, चुरा० आ० मग्यति, मृगयते, हैं, --स्थानम् 1. आधार, नींव 2. परमात्मा 5. हवा, मृगित) 1. ढूंढना, खोजना, तलाश करना, वायु,-स्रोतस् (नपं०) प्रधान धारा या किसी नदी ---न रत्नमन्विष्यति मग्यते हि तत् -कु० का उद्गम स्थान / 5 / 45, गता दूता दूरं क्वचिदपि परेतान् मृगयितुम् मूलकः, --कम् [ मूल-|-कन् ] 1. मूली 2. भक्ष्य जड़, ---गंगा० 25 2. शिकार करना, पीछा करना, अनु --क: एक प्रकार का विष / सम-पोतिका सरण करना 3. लक्ष्य बांधना, यत्न करना 4. परीमूली। क्षण करना, अनुसंधान करना---अविचलितमनोभिः मूला [ मूल+अच्+टाप् ] 1. एक पौधे का नाम, सता- साधर्मग्यमाणः- मा० 5 / 1, अन्तर्यश्च ममाभिनिवर 2. मूल नक्षत्र / यमितप्राणादिभिर्मग्यते - विक्रम० 111, 'अन्दर से मलिक (वि.) [ मूल+ठन् ] मूलभूत, मौलिक,-कः | खोजा गया, और अनुसंधान किया गया' 5. मांगना, भक्त, संन्यासी। याचना करना-एताबदेव मृगये प्रतिपक्षहेतोः मा० मूलिन् (पुं०) [ मूल+इनि ] वृक्ष / 5 / 20 / मूलिन (वि०) [ मूल-इन ] जड़ बोने से उगने वाला। मगः [ मग--क] 1. चौपाया, जानवर नाभिपेको न मूली [ मूल+ङी एक छोटी छिपकली। संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः, विक्रमाजिनराज्यस्य मूलेरः [ मूल+एरक् ] 1. राजा 2. जटामांसी, बालछड़ / स्वयमेव मृगेन्द्रता। दे० नी० 'मृगाधिप' 2. हरिण, बारहमूल्य (वि०) [ मूल+यत् ] 1. उखाड़ देने योग्य 2. मोल सिंगा ...विश्वासोपगमादभिन्नगतयः शब्द सहन्ते मृगाः लेने के योग्य, -ल्यम् 1. कीमत, मोल, लागत--- -श० 1114, रघु० 1149, 50, आश्रममृगोऽयं न क्रीणन्ति स्म प्राणमूल्ययशांसि-शि० 18 / 15, हन्तव्य:--- श० 113, आखेट 4. चन्द्रमा का लाञ्छन शान्ति० 1112 2. मजदूरी, किराया या भाड़ा, वेतन जो हरिण के रूप में लगा हुआ है 5. कस्तूरी 6. खोज, 3. लाभ 4. पूंजी, मूलधन / तलाश, 7. पीछा करना, अनुसरण, शिकार 8. पूछ मूष् (म्वा० पर० मूषति, मूषित) चुराना, लूटना, अप- ताछ, गवेषणा, 9. प्रार्थना, निवेदन 10. एक प्रकार हरण करना। का हाथी 11. मनुष्यों की एक विशिष्ट श्रेणी—मगे मूषः [ मूष्।क } 1. चूहा, मूसा 2. गोल खिड़की, मोघा तुष्टा च चित्रिणी, वदति मधरवाणीं दीर्घनेत्रोऽतिभीरोशनदान / रुश्चपलमतिसुदेहः शीघ्रवेगो मृगोऽयम् - शब्द० मूषकः [ मूषकन् ] 1. चूहा, मूसा 2. चोर / सम० 12. 'मृगशिरा नक्षत्र 13. 'मार्गशीर्ष' का महीना -अरातिः बिलाव,-वाहनः गणेश / 14. मकर राशि। सम० अक्षी हरिणी जैसी आंखों मूषणम् [ मूष+ल्युट ] चुराना, चुपके से खिसका लेना, वाली स्त्री,-अङ्कः 1. चन्द्रमा 2. कपूर 3. हवा,-अङ्गना उठा लेना। हरिणी, अजिनम् मृगछाला,-अण्डजा कस्तूरी,-अद् For Private and Personal Use Only Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (पुं०), अदनः,-अन्तकः छोटा शेर या चीता, | -शिरा पांचवें नक्षत्र (मृगशिरस्) का नाम जो लकड़बग्घा,-अधिपः, --अधिराजः सिंह, केशरी निष्ठ- तीन तारों का पुंज है,-शीर्षम् मृगशिरा नाम का रक्षिप्तमगयथो मृगाधिपः-शि० 2053, मृगाधिरा- नक्षत्रपुंज,(र्षः) मार्गशीर्ष का महीना, शीर्षन् (पुं०) जस्य वचो निशम्य-रघु० 2 / 41,-- अरातिः 1. सिंह मृगशिरा नाम का नक्षत्र,--श्रेष्ठः शेर, हन् (पुं०) 2. कुत्ता,---अरिः 1. सिंह 2. कुता 3. शेर 4. वृक्ष शिकारी। का नाम,---अशनः सिंह,--आविध (पुं०) शिकारी, | मृगणा [मृग् + युच् / टाप् खोजना, तलाश करना, पूछ- आस्यः मकर राशि, इन्द्रः 1. सिंह ततो मगे- ताछ, अनुसंधान / न्द्रस्य मृगेन्द्रगामी ----रघु० 230 2. शेर 3. सिंह | मगया [ मगं यात्यनया या घार्थे क 1 शिकार, पीछा राशि °आसनम् सिंहासन °आस्यः शिव का विशेषण करना-मिथ्यैव व्यसनं वदन्ति मृगयामीदग्विनोदः कुतः . चटकः वाज पक्षी,—इष्ट: चमेली का एक भेद, श० 215, मृगयापवादिना माढव्येन श०२ ----ईक्षणा हरिणी जैसी आंखों वाली स्त्री,-~-ईश्वरः मृगयावेप, मृगयाविहारिन् आदि / 1. सिंह 2. सिहराशि,-उत्तमम्,-उत्तमाङ्गम् मृग- | मगयः [मग अस्त्यर्थे यच] 1. शिकारी, बहेलिया हन्ति शिरा नक्षत्रपुंज, काननम् उद्यान,-गामिनी एक नोपशयस्थोऽपि शयालर्मगयुर्मगान्-शि० 180 प्रकार का औषधद्रव्य, -जलन मगमरीचिका स्नानम् 2. गीदड़ 3. ब्रह्म का विशेषण। मगमरीचिका के जल में स्नान करना-अर्थात् असं मगव्यम् [ मृग+व्य-1-ड] 1. पीछा करना, शिकार भावना,- - जीवनः शिकारी, बहेलिया,--तृष, - तृषा कि० 1309 2. निशाना, लक्ष्य / ---तृष्णा, तृष्णिका (स्त्री०) मृगमरीचिका-मृग- मगी| मग--ङीष् ] 1. हरिणी, मृगी 2. मिरगी रोग तृष्णाम्भसि स्नातः, दे० 'खपुष्प',--दंशः,-दंशकः 3. स्त्रियों की एक विशिष्ट श्रेणी। सम०- दश कुत्ता, दश हरिणी जैसी आंखों वाली स्त्री-तदीषद्वि (स्त्री०) वह स्त्री जिसकी आँखें हरिणी जैसी होती स्तारि स्तनयुगलमासीन्मगदशः -उत्तर० ६।३५,-धुः है, पतिः कृष्ण का विशेषण। शिकारी,-द्विष (पुं०) सिंह,--धरः चन्द्रमा, धूर्तः | मग्य (वि.) [ मग---ण्यत् ] खोजे जाने या तलाश किये -- धूर्तक: गीदड़, नयना हरिणी जैसी आँखों वाली जाने योग्य, शिकार किये जाने के योग्य---तत्र मुलम स्त्री,-नाभिः 1. कस्तूरी----कु० 1154, ऋतु० 3. मृग्यम् / 6 / 12, चौर०८, रघु०१७।२४ 2. हरिण जिसकी मजi (भ्वा० पर० मार्जति) शब्द करना / नाभि में कस्तूरी होती है-. रघु० 4 / 74, जा ii (अदा० पर०, चुरा० उभ० माष्टि, मार्जयति-ते, कस्तुरी,--पतिः 1. सिंह 2. हरिण 3. शेर,---पालिका इच्छा०मिमक्षति या मिमाजिपति) 1. पोंछना, धो कस्तूरीमृग,---पिप्लुः चन्द्रमा,-प्रभुः सिंह, ब(व) डालना, स्वच्छ करना, साफ करना 2. बुहारी देकर धाजीव: शिकारी,-बन्धिनी हरिणों को पकड़ने का साफ करना (आलं० से भी) स्वेदलवान्भमार्ज-शि० जाल,...मदः कस्तूरी—कुचतटीगतो यावन्मातमिलति 3179 3. चिकना करना, (घोड़े आदि को) खरहरे तव तोयम॑गमदः -- गंगा० 7, मृगमदतिलकं लिखति से रगड़ना 4. सजाना, अलंकृत करना 5. निर्मल सपूलकं मगमिव रजनीकरे गीत० 7, वासा कस्तूरी करना, पानी से धोना, साफ करना-ललः खड्गान्मका थैला-मन्द्रः हाथियों की एक श्रेणी, मातृका मार्जुश्च ममजुश्च परश्वधान् भट्टि० 14 / 92, हरिणी, मुखः मकरराशि, यूथम् हरिणों का झुण्ड, (शुद्धान् चक्रुः यो शोधितवन्तः), अव , 1. मलना, . राज् (पु०) 1. सिंह शि० 9 / 18 2. शेर गुदगुदाना 2. धो डालना, उद्-पोंछ देना, हटाना,-रघु० 3. सिंह राशि, राजः 1, सिंह-रखु. 6 / 3 2. सिंह 15 / 32, निस् - , पोंछना, धो देना, परि --, पोंछ राशि 3. शेर 4. चन्द्रमा धारिन्, 'लक्ष्मन् (पु०) डालना, धो देना, हटाना--(वाच्यं) त्यागेन पत्न्याः चन्द्रमा,-रिपुः सिंह,-रोमन् ऊन, . "जम् ऊनी परिमाष्टुंमच्छत्-रघु० 14 / 34 2. मलना, गुदगुदाना, कपड़ा,-लाञ्छनः चन्द्रमा -अङ्काधिरोपितमृगश्चन्द्रमा प्र ,पोंछ डालना, हटाना, प्रायश्चित करना स्वमृगलाञ्छनः-शि० 2 / 53, जः बुधग्रह,-लेखा भावलोलेत्य यशः प्रमुष्टम् -- रघु०६।३१, प्रणिपातचन्द्रमा में हरिण जैसो बारी-मुगलेखामुषसोव चन्द्रमा: लखनं प्रमाष्टुं कामा--विक्रम० 3, मालदि०४, वि , ---रघु० 8 / 42, लोचनः चन्द्रमा (-ना - नी) 1. पोंछ डालना, पोंछ देना 2. निर्मल करना, स्वच्छ हरिणी जैसी आंखों वालो स्त्री,--वाहनः हवा, -व्याधः करना सम् ---, 1. बुहार कर साफ करना, निर्मल 1. शिकारी 2. तारामंडल या नक्षत्रपुंज 3. शिव का करना 2. पोंछ देना, पोंछ डालना, हटाना 3. मलना, विशेषण, शावः छौना, हरिण का बच्चा-मगशावैः गुदगुदाना 4. निचोड़ना, छानना। सममेधितो जनः-श० २।१८,-शिरः,-शिरस् (नपुं०) मजः[म-+क] 'मुरज' नाम का वाद्यविशेष / For Private and Personal Use Only Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मजा [मृज+अ+टाप् ] 1. स्वच्छ करना, निर्मल ! ऽयहह मृतका मन्दमतयो, न येषामानन्दं जनयति जग करना, धोना, नहाना-धोना 2. स्वच्छता, निर्मलता। नाथभणितिः भामि०४।१९, कम किसी संबंधी की --भदि० 2013, शुद्धि 3. आकार-प्रकार, निर्मल | मृत्यु हो जाने पर उत्पन्न अशौच / सम० अंतक: त्वचा और स्वच्छ मुखमण्डल / गीदड़। मुजित (वि.) [ मृज+क्त ] धो डाला गया, स्वच्छ किया | मृतण्डः (पु०) सूर्य / गया, हटाया गया। मृतालकम् | मृत -अल--णिच्-|-एबुल ] एक प्रकार की मुडः [ मृड्+क] शिव का विशेषण / _ मिट्टी, पिंडोर या चिक्कण मृत्तिका / मुंडा, मडानी, मुडी [ मृड + टाप, मृड + ङीष्, पक्षे मतिः (स्त्री०) [ मृ+क्तिन् ] मृत्यु, मरण / आनक ] पार्वती का विशेषण शङ्क सुन्दरि कालकूट-मत्तिका [मद-तिकन+टाप] 1. पिंडोर, मिट्री मनः मपिबत् मूढो मृडानीपतिः- गीत०१२। 11182 2. ताजी मिट्टी 3. एक प्रकार की गंधयुक्त मुण (तुदा० पर० मृणति) वध करना, हत्या करना, नष्ट मिट्टी। करना। | मृत्युः [मृ+त्युक] 1. मरण- जातस्य हि ध्रुवो मृत्युमृणालः, --लम् [ मण+कालन् ] कमल की तन्तुमय जड़, धुर्व जन्म मृतस्य च--भग० 2 / 27 2. मृत्यु का देवता कमल-तन्तु-भङ्गेऽपि हि मृणालानामनुबध्नन्ति तन्तवः यमराज 3. ब्रह्मा का विशेषण 4. विष्णु का विशेषण ---हि. 1295, सूत्र मृणालादिव राजहंसी विक्रम 5. माया का विशेषण 6. कलि का विशेषण 7. काम१११९, ऋतु०१११९, विक्रम० ३।१३,-लम् सुगंधित देव। सम०-- तूर्यम् एक प्रकार का ढोल जो और्ध्वदेहिक घास की जड़, वरिणमूल। सम---भङ्गः कमलतंतु संस्कार के अवसर पर बजाया जाता है,-नाशक: पारा, का टुकड़ा, * सूत्रम् कमलवृन्त का तन्तु। --.-पाः शिव का विशेषण, पाशः मत्य या यम का फंदा मणालिका, मणाली [ मृणाल+कन्+टाप, इत्वम्, मृणाल -पुष्पः ईख, गन्ना, प्रतिबद्ध (वि.) मरणशील, मर्त्य +डीष कमलवन्त या तन्तु--परिमृदितमृणाली- --फला,--ली केला,-बीजः, बीजः बांस,-राज् म्लानभङ्ग-मा० 1 / 22, या, परिमृदितमृणालीदुर्बला- (प्र०) मौतका देवता, यमराज, लोकः 1. मुर्दो की न्यङ्गकानि-उत्तर० 1 / 24 / / दुनिया, यमलोक 2. भूलोक, मर्त्यलोक-तु० 'मयंलोक मृणालिन् (पुं०) [ मृणाल-+इनि ] कमल / बचनः 1. शिब का विशेषण 2. पहाड़ी कौवा, मणालिनी | मणालिन् +ङीष ] 1. कमल का पौधा .... सूतिः (स्त्री०) केकड़ी। 2. कमलों का समूह 3. जहाँ कमल बहुतायत से मृत्युञ्जयः [मृत्य+जि+खच, मुम्] शिव का विशेषण / मिलते हों। मत्सा, मृत्स्ना [ म+स (स्न)+टाप् ] 1. मिट्टी, पिंडोर मृत (भू० क. कृ०) [मृ+क्त ] 1. मरा हुआ, मृत्यु को अच्छा मिट्टी या पिडोर, चिक्कण मिट्टी 3. एक प्रकार को प्राप्त 2. मृतक जैसा, व्यर्थ, निष्फल मतो दरिद्रः / की गंधयुक्त मिट्टी। पुरुषो मृतं मैथुनमप्रजम, मृतमश्रोत्रियं श्राद्धं मृतो मद (क्रया० पर० मनाति, मदित) 1. निचोड़ना, दबाना यज्ञस्त्वदक्षिणः --पंच०२।९४ 3. भस्म किया हुआ, भीचना मम च मदितं क्षौमं बाल्यत्वदङ्गविवर्तन: फूंका हुआ-मच्छीं गतो मतो वा निदर्शनं पारदोऽत्र - वेणी० 5 / 40 2. कुचलना, रौंदना, टुकड़े-टुकड़े कर रसः - भामि० 1182, तम् 1. मृत्यु 2. भिक्षा में देना, हत्या करना, नष्ट करना, पीस देना, रगड़ देना, प्राप्त अन्न, दान या भिक्षा दे० अमृतम् (8) / चकनाचूर कर देना-तानमर्दीदखादीच्च-- भट्टि० सम० - अङ्गम् शव,-अण्डः सूर्य,-अशौचम किसी 15 / 15, बालान्यमद्नान्नलिनाभवक्त्रः -- रघु० 1815 संबंधी की मृत्यु से उत्पन्न अपवित्रता, अशौच, दे० 3. मसलना, गुदगुदाना, घिसना, स्पर्श करना शि० 'अशौच', -उद्धवः समुद्र, सागर,-कल्प (वि०) 4 / 61 4. जीत लेना, आगे बढ़ जाना 5. पोछ देना, मतप्राय, बेहोश, गहम कबर, - दारः रंडवा, विधुर, रगड़ देना, हटाना, अभि / निचोड़ना, भींचना, -निर्यातकः जो शवों को कब्रिस्तान में ढोकर ले कुचलना, अव- रौंदना, कुचलना, उप-, 1. निचोड़ना जाता है,-मत्तः,--मत्तकः गीदड़,-- संस्कारः अन्त्येष्टि भींचना 2. नष्ट करना, मार डालना, कुचल देना या और्ध्वदेहिक कृत्य, --संजीवन (वि.) मुर्दो को -यामिकाननुपमद्य - ने० 5 / 110, परि--, भींचना जिलाने वाला ( नम्, ..नी मर्दो का पुनर्जीवित निचोड़ना-परिमदितमणाली दुर्बलान्यङ्गकानि-उत्तर० करना, (...नी) मुर्दो को जिलाने का मंत्र, गंडा या 1224 2. मार डालना, नष्ट करना 3. पोछ देना, ताबीज, सूतकम् मरे हुए (मत जात) बच्चे को जन्म रगड़ देना, प्र , कुचलना, चकनाचूर करना, पीस देना, देना,-स्नानम् किसी की मृत्यु होने पर स्नान करना। हत्या कर देना, वि. , 1. भींचना, निचोड़ना 2. चकमृतकः, कम [ मृत+कन् ] मुर्दा शव - ध्रुवं ते जीवन्तो- / नाचूर करना, कुचलना, पीसना--मनु०४७० 3. मार For Private and Personal Use Only Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ वृक्ष / / [मृद्+अर अस्थायी। डालना, नष्ट करना, सम्-, इकट्ठा कर निचोड़ना, | अंगों वाला, (-गम) टीन, जस्त (गी) कोमल अंगों चकनाचूर करना, पीस देना, हत्या करना / वाली स्त्री,- उत्पलम् कोमल अर्थात नीलकमल, मद (स्त्री०) [मृद्+क्विप् ] | पिंडोर, मिट्टी, मिट्टी का ... कायसम् सीसा, कोष्ठ (वि.) नरम कोठे गारा-आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते मृद्गंध न हि- वाला जिसे हलके विरेचेन से दस्त आ जाय,-गमन कुसुमानि धारयन्ति-सुभा०, प्रभवति शचिबिम्बोदग्राहे (वि०) मन्द या अलसपूर्ण चाल वाला, (ना) हंसी, मणिनं मृदां चयः - उत्तर० 2 / 4 2. मिट्टी का ढेला, राजहंसी,-चर्मिन्,-छवः, स्वच्, - त्वचः (पुं०) चिकनी मिट्टी का लौंदा 3. मिट्टी का टीला 4. एक एक प्रकार के भोजपत्र का वृक्ष,-पत्र: सरकंडा या प्रकार की सुगंधित मिट्टी। सम० -कणः मिट्टी नरकुल,-पर्वकः, - पर्वन् (नपुं०) नरकुल, बेंत, की डली या लौंदा,-करः कुम्हार, कांस्यम् मिट्टी का --पुष्पः शिरिष का वृक्ष,--पूर्व (वि.) जो आरंभ वर्तन, --य: एक प्रकार की मछली, चयः (मृच्चयः) में मंद हो, स्निग्ध हो, सौम्य तथा सुहावना हो, मिट्टी का ढेर,-पच: कुम्हार, पात्रम्, --भाण्डम् मिट्टी ...-भाषिन् (वि०) मधुर बोलने वाला,--रोमन् (पुं०) का बर्तन, चिकनी मिट्टी के बने पात्र, पिण्डः मिट्टी का - रोमकः खरगोश,--स्पर्श (वि०) छूने में नरम / लौदा, बुद्धिः 'आलसी बुद्ध,-मया च मत्पिण्डबुद्धिना मृदुन्नकम् [मृद+उद्+नी+ड+कन सोना, स्वर्ण / तथैव गृहीतम् -श० ६,लोष्टः मिट्टी का ढेला, मृदुल (वि०) [मृदु+लच्] 1. स्निग्ध, कोमल, सुकुमार --कटिका (मृच्छकटिका) मिट्टी की छोटी गाड़ी; 2. ऋजु, सरल, साधु,--लम् 1. जल 2. अगर की (शूद्रक द्वारा लिखित इस नाम का एक नाटक)। / लकड़ी का एक भेद / मृदङ्गः मद्+अंगच् किच्च] 1. एक प्रकार का ढोल या मृद्वी, मृद्वीका [मदु+डीए, पक्षे कन+टाप् च] अंगूरों की मुरज, डफली 2. बाँस / सम-फलः कटहल का बेल या गुच्छा-वाचं तदीयां परिपीय मृद्वी मृद्वीकया तुल्यरसा स हंसः-०३६०, भामि० 4 / 13, 37 / मदर (वि.) [मद+अरच्] 1. क्रीडाशील, खिलाड़ी मष (म्वा० उभ मर्वति-ते) गीला होना, या गीला करना। 2. क्षणभङ्गुर, क्षणिक, अस्थायी। मधम् [मृध्+क] संग्राम, युद्ध, लड़ाई-सत्त्वविहितमतुलं मृदा दे० 'मृद' (स्त्री)। भुजयोर्बलमस्य पश्यत मधेऽधिकुप्यतः - कि० 12 // 39, मुदित (भ० क० कृ०) [मृद+क्त] 1. भींचा हुआ, | रघु० 13 / 65, महावी० 5 / 13 / निचोड़ा हुआ -सुरतमूदिता बालवनिता--भत मन्मय (वि.) मद+मयट मिट्टी का बना हुआ, रव० 2144 2. कुचला गया, पीसा गया, पीस डाला गया, 5 / 2 / रौंदा गया, मार डाला गया 3. मसल दिया गया, मश (तुदा० पर० मशति, मृष्ट) 1. स्पर्श करना, हाथ से हटाया गया (दे० मृद्)। पकड़ना 2. मलना, गुदगुदाना 3. सोचना, विमर्श, विनी [मृद्+क+इनि+डीष्] अच्छी, चिकनी मिट्टी / विचार करना, अभि-, स्पर्श करना, हाथ से पकड़ना, मा (वि.) (स्त्री०-दु-द्वी) [मद् ---कु] (म० अ० आ ---, स्पर्श करना, हाथ लगाना, हाथ डालना प्रदीयस्, उ०अ० प्रदिष्ठ) 1. चिकना, कोमल, (आलं. से भी); नवातपामष्टसरोजचारुभि:-कि० पतला, लचीला, सुकुमार-मद् तीक्ष्णतरं यदुच्यते 4 / 14, शरासनज्यां मुहराममर्श - कु० 3 / 64; शि० तदिदं मन्मथ दृश्यते त्वयि—मालवि० 3 / 2, अथवा 9 / 34 2. झपट्टा मारना, खा जाना---रघु० 5 / 9 मदु वस्तु हिंसितुं मृदुनैवारभते प्रजान्तकः -- रघु० 3. आक्रमण करना, हमला करना; आमृष्टं नः पदं 8 / 45, 57 श०१।१०, 4 / 10, 2. कोमल, सुकु- परैः-कु० 2 / 31, परा-, 1. स्पर्श करना, मलना, मार, नम्र-न खरो न च भूयसा मृदु:---रघु० 8 / 9; गुदगुदाना; परामृशत् हर्षजडेन पाणिना तदीयमङ्गं बाणं कृपामदुमनाः प्रतिसंजहार-९।४७ 'दया के कारण कुलिशबणाङ्कितम् - रघु० 3168, शि० 17.11, कोमल मन वाला' 11583, श० 6.1 महर्षि दु- मृच्छ० 5 / 282. किसी पर हाथ डालना, आक्रमण तामगच्छत् -रघु० 5 / 54, 'दयाई' खातमूलमनिलो करना, हमला करना, पकड़ लेना-मृच्छ० 1139, नदीरयः पातयत्यपि मृदुस्तटद्रुमम् -11376, 'मृदु और 3. दूषित करना, भ्रष्ट करना, बलात्कार करना, मन्द पवन भी' 3. दुर्वल, कमज़ोर-सर्वथा मदुरसौ 4. विचार विमर्श करना, चिंतन करना-किं भवितेति राजा-हि० 3, ततस्ते मृदवोऽभूवन् गन्धर्वाः शर--- सशङ्कपङ्कजनयना परामशति-भामि० 2 / 53 5. मन पीडिताः-महा0 4. मध्यम, संयत,-शनिग्रह, से सोचना, प्रशंसा करना --ग्रन्थारम्भे विघ्नविघाताय (अव्य.) कोमलता से, मन्दस्वर में, मधुर ढंग से समुचितेष्टदेवतां ग्रन्थकृत्परामशति-काव्य०१, परि-, -स्वनसि मृदु कर्णान्तिकचरः ---श० 1 / 23, वादयते ___1. स्पर्श करना, जरा छु जाना-शिखरशतैः परिमृदु वेणुम्-गीत० 5 / सम० मा (वि.) कोमल / मृष्टदेवलोकम्-भट्टि. 1045 2. ज्ञात करना, जि-, For Private and Personal Use Only Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 816 ) 1. स्पर्श करना 2. चिन्तन करना, सोचना, विचार | मेकः [ मे इति कायति शब् करोति मे+के+क] करना, मनन करना-दृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धाः | बकरा। स्वमेव संपदः कि० 2 / 30, रामप्रवासे व्यमशन्न | मेकलः ('मेखल:' भी) 1. एक पहाड़ का नाम 2. बकरा। दोषं जनापवादं सनरेन्द्रमत्यम्-भट्रि० 317, 12 / 24, सम० अद्रिजा, कन्यका, कन्या नर्मदा नदी के कु० 687, भग० 18163 3. प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त विशेषण / करना, पर्यवेक्षण करना 4. परीक्षा लेना, परीक्षण | मेखला [ मीयते प्रक्षिप्यते कायमध्यभागे-मी-खल+ करना-तदत्रभवानिमं मां च शास्त्र प्रयोगे च विम् टाप, गणः ] 1. करधनी, तगडी, कमरबन्द, कटिबन्ध श-~मालवि०१। (आलं 0 से भी), कोई वस्तु जो चारों ओर से लपेट मष (भ्वा० पर० मर्षति) छिड़कना ii (भ्वा० उभ० सके--मही सागरमेखला 'सागरावेष्टित भमण्डल' मर्षति-ते) बर्दाश्त करना, सहन करना-आदि (प्रायः --रत्नानविद्धार्णवमेखलाया दिश: सपत्नी भव दक्षिणस्याः दिवा० उभ०) iii (दिवा०, चुरा० उभ०-मष्यति-ते, -रखु० 6 / 63, ऋतु०६।२ ?. विशेष कर स्त्री की मर्षयति-ते, मर्पित) 1. झेलना, भोगना, सहन तगड़ी नितम्ब विम्वः सुदुकल मेखलैः--ऋतु० 14; करना, साथ रहना---तत्किमिदमकार्यमनुष्टितं देवेन, रघु० 8 / 64, मेखलागुणरुत गोत्रस्खलिनेषु बन्धनम् लोको न मष्यतीति-उत्तर० 3 रघु० 9 / 62 2. अनु कु०४१८3. तीन लड़ों वाली मेखला जो पहले तीन मति देना, इजाजत देना 3. क्षमा करना, माफ करना, वर्ण के ब्रह्मचारियों द्वारा पहनी जाती है-तु० मनु० दोषमुक्त करना, क्षमाशील होना-मष्यन्त लवस्य 2042 4. पहाड़ का ढलान,-आमेखलं संचरतां घनाबालिशतां तातपादा:-उत्तर० 6, प्रथममिति प्रेक्ष्य नाम् .. कु. 15, मेघ० 12 5. कल्हा 6. तलवार दुहितुजनस्यकोऽपराधो भगवता मर्षयितव्यः--श०४, की मठ 7. तलवार की मठ में बंधी हई डोरी की आर्य मर्षय मर्षय वेणी० 1, महाब्राह्मण मर्षय गांठ 8. घोड़े की तंग 9. नर्मदा नदी का नाम / सम० -----मृच्छ०१। - पदम् कूल्हा, बन्धः कटिसूत्र धारण करना / मृषा (अव्य०) [मष-+का] मिथ्या, गलती से, असत्यता | मेखलालः / मेखला-- अल | अच ] शिव का विशेषण / के साथ, झुठमठ-यद्वक्त्र महरीक्षसे न धनिनां ब्रूप | मेखलिन (40) मेखला ।-इनि 11.शिव का विशेषण न चाटुं मषाभर्तृ० 3 / 147, मषाभाषासिन्धो-भामि० 2. धर्मशिक्षा ग्रहण करने वाला ब्रह्मचारी।। 2 / 24 2. व्यर्थ, निष्प्रयोजन, निरर्थक / सम० | मेघः [ मेहति वर्पति जलम, मिह / घा, कुत्वम् ] -अध्यायिन् (पुं०) एक प्रकार का सारस,-अर्थक 1. बादल,---, कुर्वन्नञ्जनमेचका इव दिशो मेघः समु(वि.) 1. असत्य 2. बेहूदा (-कम्) असंगति, त्तिष्ठते मच्छ० 5 / 23, 2, 3 आदि. ढेर, समुच्चय असंभावना, उद्यम् मिथ्यात्व, झूठ, झूठी उक्ति 3. सुगन्धित घास घन सेलखड़ी। सम० - अध्वन् -तत्किं मन्यसे राजपुत्रि मषोद्यं तदिति- उत्तर०४, पं०-पथः,-मार्गः 'बादलों का मार्ग' अन्तरिक्ष,-अन्तः -ज्ञानम् अज्ञान, अशुद्धि, भूल,-भाषिन्,–यादिन शरद् ऋतु,--अरिः वाय, अस्थि (नपुं०) ओला (पुं०) झूठा, झूठ बोलने वाला,--- वाच (स्त्री०) --आख्यम् सेलखड़ी,---आगमः बारिश का आना, असत्योक्ति, व्यङ्गयोक्ति, व्यंग्यकाव्य, ताना,--वादः बरसात, आटोपः सघन मोटा बादल, आडम्बरः 1. असत्योक्ति, झूट, मिथ्या 2. कपटपूर्ण उक्ति, चाप मेघों की गर्जन,-आनन्दा एक प्रकार का सारस, लूसी 3. व्यंग्य, व्यंग्योक्ति / आनन्दिन (पं०) मोर,-आलोक: बादलों का मृषालकः मिपा |-अल--के-क] आम का पेड़। दिखाई देना मेवालोके भवति सुखिनोऽप्यन्यथावृत्ति मृष्ट (भू० क० कृ०) [मृज्. मृश् वा+वत] 1. स्वच्छ चेत:--मेघ०३, आस्पदम् आकाश, अन्तरिक्ष,-उदकम् किया हुआ, निर्मल किया हुआ 2. लीपा हुआ वृष्टि,- उदयः बादलों का घिर आना, कफः ओला, 3. प्रसाधित, पकाया हुआ 4. छूआ हुआ 5. सोचा कल: वृष्टि, वर्षा ऋतु,---गर्जनम्, गर्जना हुआ, विचारा हुआ 6. चटपटा मसालेदार, रुचिकर / चितकः चातक पक्षी, जः बड़ा मोती, - जालम् सम० गन्धः चटपटी और रोचक गंध / 1. बादलों के सघन समूह 2. सेलखड़ी,-जीवकः, मष्टि: (स्त्री०) [मज (मा)+क्तिन्] 1. स्वच्छ करना, -जीवनः चातक पक्षी, ज्योतिस् (पुं०, नपुं०) साफ करना, निर्मल करना 2. पकाना, प्रसाधन करना, बिजली, डम्बर बादलों की गरज, --दीपः बिजली, तैयारी करना 3. स्पर्श, संपर्क। द्वारम् आकाश, अन्तरिक्ष,..-नादः 1. वादलों की मे (भ्वा० आ० मयते, मित, इच्छा० मित्सते) विनिमय गरज, गड़गड़ाहट 2. वरुण का विशेपण 3. रावण के करना, अदला बदली करना, नि ,विनि , विनि- पुत्र इन्द्रजित् का विशेषण अनुलासिन्, अनुलासकः मय या अदला बदली करना / मोर, जित् (पुं०) लक्ष्मण का विशेषण,-निर्घोषः For Private and Personal Use Only Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 817 ) बादलों की गरज, पंक्तिः, माला बादलों की श्रेणी, 1 मेदकः मिद + "वल ] अर्क जो शराब खींचने के काम पुष्पम् 1. पानी 2. ओला 3. नदियों का पानी, | आता है। प्रसवः पानी, भूतिः वज्र, मण्डलम् अन्तरिक्ष, | मेदस (नपुं०) | मेदते स्निह्यति मिद् / असुन ] 1. चर्बी आकाश, मालः, मालिन (वि०) बादलों से घिरा वसा (शरीर के सात धातुओं में से एक जिसका पेट हुआ, योनिः बुध, धूआँ,-रवः गरज,-वर्णा नील का में विद्यमान होना माना जाता है) मनु० 3.182, पौधा, वर्त्मन् (नपुं०) अन्तरिक्ष, वह्निः बिजली, याज्ञ. 1144 2. मांसलता, शरीर का मोटापा-मेद वाहन: 1. इन्द्र का विशेषण धयति स्म मेघामिव श्छेद कृशोदरं लघ भवत्युत्थानयोग्यं वपुः- श० 2 / 5 / मेघवाहनः शि० 13 / 18 2. शिव का विशेषण, सम० अर्बुदम् एक मोटी रसीली,-कृत् (पुं०, नपुं०) --विस्फोजतम् 1. गरज, बादलों की गड़गड़ाहट मांस,--ग्रन्थिः मेंद यक्त गांठ या रसौली,- जम्,2. एक छन्द का नाम दे० परि० १,-वेश्मन् (नपुं०) तेजस् (नपु०) हड्डी,-पिण्डः, चर्बी का डला, वृद्धिः अन्तरिक्ष, सारः एक प्रकार का कपूर, सुहृद् (पु.) (स्त्री०) 1. चर्बी की वद्धिः, मोटापा 2. फोतों का बढ़ मोर, स्तनितम् गरज। जाना। मेघङ्कर (वि०) [ मेघं करोतीति कृ+अच् ] बादलों | मेदस्विन (वि०) [ मेदस्-+-विनि ] 1. मोटा, स्थूलकाय को पैदा करने वाला। 2. मजबूत, हृष्टपुष्ट शि० 5 / 64 / मेचक (वि०) [ मच् --वुन्, इत् च ] काला, गहरानीला, मेदिनी [ मेद - इनि+कोष्] / पृथ्वी - न मामवति स काले रंग का कुर्वन्नञ्जनमेचका इव दिशो मेघः सम्- द्वीपा रत्नसूरपि मेदिनी..रघ० श६५, चञ्चलं वसु तिष्ठते मृच्छ० 5 / 23, उत्तर० 6 / 25, मेघ० 59, नितान्तमन्नता मेदिनीमपि हरन्त्यरातयः-कि०१३।५३ कः। कालिमा, गहरा नीला वर्ण 2. मोर की पंछ 2. जमीन, भूमि, मिट्टी 3. स्थान, जगह 4. एक कोश (पंख) की आँख (चंदा) 3. वादल 4. घूआँ 5. चुचुक का नाम / सम० ----ईशः-पतिः राजा, ..द्रवः धूल / 6. एक प्रकार का रत्न,-कम् अंधकार / सम० मेदुर (वि.) [मिद् +धुरच ] 1. मोटा 2. चिकना, स्निग्ध आपगा यमुना का विशेषण / मृदु 3. ठोस, सघन - मा० 8 / 11, फूला हुआ, भरा मेट, मेड (भ्वा० पर मेटति, मेडति) पागल होना / हुआ, ढका हुआ (प्राय करण के साथ या समास के मेटुला आँवले का पेड़। अन्त में)-मधर्मदुरमम्बरम्-गीत० 1, मकरन्दसुन्दरमेठः 1. मेप 2. हाथी का रखवाला, महावत / गलन्मन्दाकिनीमेदुरं (पदारविंदम)-७ / मेठिः, मेथि: 1. खंभा, स्थाणु 2. खलिहान में गड़ा हुआ खंभा मेरित (वि.) [ मेदुर+इतच ] मोटा, फुलाया हुआ, जिससे बैल वांधे जाते हैं 3 गाय भैस आदि बांधने का सपन किया हआ-उत्तर.१। खूटा 4. गाड़ी के बम को सहारने के लिए बल्ली। मेद्य (वि०) [मेद+यत् ] 1. चर्बीयुक्त 2. सघन, मोटा। मेढ़: [ मिह Fष्ट्रन् / मेंढा, मेप, दम् पुरुष की जननेन्द्रिय, | मेध् (भ्वा० उभ० दे० 'मेथ्'। लिंग (यस्य) मेढ़ चोन्मादशुकाभ्यां ही क्लीवः स ] मेधः [मेध्यते हन्यते पशः अत्र--मेध-+घञ] 1. यज्ञ उच्यते। सम० चर्मन (नपुं०) लिंग की सुपाड़ी का जैसा कि 'नरमेध' में 2. यज्ञीय पशु, यज्ञ में बलि दिया चमड़ा,-जः शिव का विशेषण,-रोगः लिंग संबंधी रोग। जाने वाला पश। सम-जः बिष्ण का विशेषण / मेढकः | मेट्ट+कन्] 1. भुजा 2. लिंग, पुरुप की जननेद्रिय। मेधा [मेव+अ +टाप] (ब. स. में सु, दुस, तथा मेष्ठः, मेण्डः हाथी का रखवाला, महावत / नकारात्मक अ पूर्व आने पर मेघा का बदल कर मेंदः, मेढ़कः मेष, मेंढा। 'मेधस्' रूप रह जाता है) 1. धारणात्मक शक्ति, मेंड दे० मेढ़। (स्मरण शक्ति की) धारणाशक्ति.घोरणावती मेय् (भ्वा० उभ० मेथति ते) 1. मिलना 2. एक मेधा अमर० 2. प्रज्ञा. वृद्धि--भग० 10 // 34, गनु० दूसरे से मिलन होना (आ.) 2. बुरा भला कहना 32263, याज्ञ० 31174 3 सरस्वती का एक रूप 4. जानना, समझाना 5. चोट मारना, क्षति पहुँचाना, 4. यज्ञ / सम०–अतिथिः मनुस्मृति का एक विद्वान् जान से मार डालना। भाष्यकार, रुद्रः कालिदास का विशेषण / मेथिका, मेथिनी [ मेथु वल+टाप, इत्वम्, मेथ+णिनि | मेधावत् (वि०) [मेधा+मतुप, वत्वम्] बुद्धिमान्, +डीप ] एक प्रकार का घास, मेथी। समझदार। मेवः [मेदते स्निह्यति--मिद |-अच् ] 1. चर्बी 2. एक मेधाविन (वि.) मेधाविनि] 1. बहुत समझदार, विशेष प्रकार की वर्णसंकर जाति 3. एक नाग राक्षस अच्छी स्मरणशक्ति वाला 2. बुद्धिमान, समझदार, का नाम / सम० जम् एक प्रकार का गूगल,-भिल्लः प्रज्ञावान् --पुं० 1. विद्वान् पुरुष, ऋषि, विद्यासंपन्न एक पतित जाति का नाम / 2. तोता 3. मादक पेय / मान, समझदार, 3. मादक पेयान् पुरुष, 103 For Private and Personal Use Only Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 818 ) मेषि दे० 'मेथि। भेड़ 2. मेष राशि। सम० अण्डः इन्द्र का विशेषण, मेध्य (वि.) (मेधु-- प्रयत् मेधाय हित यत् वा] 1. यज्ञ कम्बलः एक ऊनी कंबल या धुस्सा, पालः,-पालकः के लिए उपयुक्त -याज्ञ० 12194; मनु० 5 / 54 गडरिया, -मांसम् भेड़ या बकरे का मांस, यूथम् 2. यज्ञ संबंधी, यज्ञीय - मेध्येनाश्वेनेजे, रघु०१३।५, भेड़ों का रेवड़। 3. विशद्ध, पूण्यशील, पवित्रात्मा; रघु० 1484, मेषा [मिष्यतेऽसौ मिष+घा+टाप छोटी इलायची। 3131, 14 / 81, - ध्यः 1. बकरा 2. खैर का पेड़ | मेषिका, मेषी | मेष |-कन्+टाप, इत्वम्, मेष+ङीष् ] 3. जौ (मेदिनी के अनुसार), -ध्या कुछ पौधों के | भेड़ (मादा)। नाम / | मेहः [मिह +घञ ] 1. लघुशंका करना, मूत्र करना मेनका [मन्+बुन् अकारस्य एत्वम्] 1. एक अप्सरा 2. मूत्र 3. मूत्र संबंधी रोग 4. मेंढा 5. बकरा / (शकुन्तला की माता) का नाम 2. हिमालय की पत्नी | सम० नी हल्दी। का नाम / सम० ---आत्मजा पार्वती का नाम / मेहनम् [मिह + ल्युट् ] 1. मत्रोत्सर्ग करना 2. मूत्र मेना [मान-।-इनन्, नि० साध] 1. हिमालय की पत्नी का 3. लिंग। नाम---मेना मुनीनामपि माननीयां (उपयमे) कु० | मैत्र (वि.) (स्त्री....त्री) [ मित्र- अण ] 1. मित्रसंबंधी 118, 5 / 5 2. एक नदी का नाम / 2. मित्र द्वारा दिया गया 3. दोस्ताना, कृपापूर्ण, मेनावः [मे इति नादोऽस्य] 1. मोर 2. बिलाव 3. बकरा / सौहार्दपूर्ण, कृपालु मनु० 2 / 87, भग० 12013 मेधिका, मेधी (स्त्री०) एक पौधा जिसे महंदी कहते है 4. मित्र नाम के देवता से संबंध रखने वाला (जसा (इसके पत्तों से लाल सा रंग निकाला जाता है, कि 'महत) कु० 76, त्रः 1. ऊँचा या पूर्ण जिससे कि अंगुलियों के नाखून, पैरों के तले तथा ब्राह्मण 2. एक विशेष वर्णसंकर जाति मनु० 10 // हाथ की हथेलियां रंगी जाती है)। 23 3. गदा, त्री 1. मित्रता, दोस्ती, सद्भाव मेए (म्वा० आ० मेपते) जाना, हिलना-जुलना।। 2. घनिष्ठ संबंध या साहचर्य, मिलाप, संपर्क -- मेय (वि.) मा (मि)+यत्] 1. नापने योग्य, जो प्रत्यपेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः मेघ० 31 नापा जा सके 2. जिसका अनुमान लगाया जा सके 3. अनुराधा नाम का नक्षत्र, त्रम् 1. मित्रता, दोस्ती 3. पहचाने जाने के योग्य, ज्ञेय, जो जाना जा सके। 2. मलोत्सर्ग करना-मनु० 4 / 1523. अनुराधा नाम मेकः [मि-1-1 | उपाख्यानों में वर्णित एक पर्वत का नाम का नक्षत्र, (इसी अर्थ में 'मैत्रभम' शब्द भी)। (ऐसा माना जाता है कि समस्त ग्रह इसके चारों मैत्रकम [ मैत्र--कन् ] मित्रता, दोस्ती। ओर घूमते हैं, यह भी कहते है कि मेरु सोने और मैत्रावरुणः [मित्रश्च वरुणश्च द्व० स०, मित्रस्यानङ; रत्नों से भरा हुआ है) -विभज्य मेरुन यथिसात्कृतः मित्रावरुण+अण] 1. वाल्मीकि का विशेषण --0 1 / 16. स्वात्मन्येव समाप्तहेममहिमा मेरुन / 2. अगस्त्य का विशेषण 3. यज्ञ के प्रतिनिधि ऋत्विजों मे रोचते......भर्तृ 3 / 151 2. रुद्राक्षमाला के बीच का ___में से एक। गरिया 3. हार के बीच की मणि / सम०-धामन् मंत्रावरुणिः [ मित्रावरुण --इन 11. अगस्त्य का विशेषण (पुं०) शिव का विशेषण, -- यन्त्रम् तकुवे के आकार | | 2. वशिष्ठ का विशेषण 3. वाल्मीकि का विशेषण / की बनी एक आकृति। मैत्रेय (वि.) (स्त्री० - यो) [ मैत्रे मित्रतायां साधुः, मेरुकः [मेरु किन धूप, धूनी / मैत्र-दन 1 दोस्त या मित्र से संबंध रखने वाला, मेलः [मिल +घञ्] मिलाप, एकता, संलाप, समवाय, दोस्ताना,-यः एक वर्णसंकर जाति का नाम / सभा ('मेलक' भी)। मैत्रेयकः [मैत्रेय+कन् ] एक वर्णसंकर जाति का नाम मेलनम् [मिल+णिच् + ल्युट] 1. एकता, संयोग ____ मनु० 10 // 33 / 2. समाज 3. मिश्रण / मैत्रेयिका [ मैत्रेयक+टाप, इत्वम् ] मित्रों या मित्रराष्ट्रों मेला [मिल+णिच् +अच् +टाप्] 1. मिलना, समागम में संघर्ष, मित्रयुद्ध / 2. समवाय, सभा, समाज 3. सुर्मा 4. नील का पौधा ! मैत्र्यम् [ मित्र+ष्यत्र 1 मित्रता, दोस्ती, मैत्री। 5. स्याही, मसी 6. संगीत की माप, स्वरग्राम / | मैथिल: [मिथिलायां भव:-अण] मिथिला का राजा सम० ... अन्धुकः,-अम्बुः मन्दः, नन्दा -- मन्दा कलम रघु० 11 // 32, ४८,-ली सीता का नाम-रघु० दान, दवात / 12 / 29 / मेव (म्वा० आ० मेवते) पूजा करना, सेवा करना, टहल मधुन (वि०) (स्त्री०-नी) [ मिथुनेन निवृत्तम्-अण् ] करना। 1. युग्ममय, जुड़ा हुआ 2. विवाहसूत्र में आबद्ध मेषः [ मिषति अन्योऽन्य स्पर्धते –मिष-+-अच् ] 1. मेढ़ा,। 3. संभोग से संबन्ध रखने वाला,-नम् 1. रति क्रीडा, For Private and Personal Use Only Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 819 ) संभोग, - मृतं मैथुनमप्रजम्- पंच० 2094 2. विवाह | मुक्ति, स्वतंत्रता देना 2. उद्धार, छुटकारा 3. ढीला 3. मिलाप, संयोग / सम० --ज्वरः मैथुनोन्माद की करना, खोलना 4. छोड़ना, परित्याग करना, त्याग उत्तेजना,-धर्मिन् (वि०) सहवासी, ... वैराग्यम् स्त्री- देना 5. ढरकारना 6. अपव्यय करना। संभोग से विरक्त / मोघ (वि.) [मुह+घ अच् वा, कुत्वम्] 1. व्यर्थ, अर्थमैयुनिका मैथुन+व+टाप, इत्वम् ] विव हद्वारा हीन, निष्फल, लाभरहित, असफल-याच्या मोघा मिलाप, वैवाहिक गठबंधन / वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा-मेघ०६, मोघवृत्ति मैधावकम् (नपुं०) समझ, बुद्धि / कलभस्य चेष्टितम्-रघु०१११३९, 14165, भग० मैनाकः [ मेनकायां भवः अण् ] हिमालय और मेना के पुत्र 9 / 12 2. निरुद्देश्य, निष्प्रयोजन, अनिश्चित 3. छोड़ा (एक पर्वत) का नाम, यही एक ऐसा पर्वत था गया परित्यक्त 4. आलसी,-घः बाड़, घेरा, झाड़बन्दी, जिसके डने समुद्र से मित्रता होने के कारण अक्षुण्ण -~-घम् (अव्य०) व्यर्थ, बिना किसी प्रयोजन के, रहे जबकि इन्द्र ने और दूसरे पर्वतों के बाजू काट बिना किसी उपयोग के। सम०–कर्मन् (वि०) डाले। तु० कु० 220 / सम स्वस (स्त्री) पार्वती अनुपयुक्त कार्यों में व्यस्त,-पुष्पा बांझ स्त्री। का विशेषण। मोघोलिः झाड़बन्दी, बाड़। मैनालः (पुं०) मछुवा, माहीगीर / मोचः [मच-अच्] 1. केले का पौधा 2. शोभाजन या मन्दः (0) एक राक्षस का नाम जिसे श्रीकृष्ण ने मार / सौहजने का पेड़,-चा 1. केले का वृक्ष 2. कपास गिराया था। सम०. हन् (पुं०) कृष्ण का विशेषण।। का पौधा 3. नील का पौधा,.. चम केले का फल। मैरेयः, यम, मैरेयकः,-कम् [मिरा देशभेदे भव:-ढक | | मोचकः [मुच्- बुल ] 1. भक्त, संन्यासी 2 परममुक्ति, एक प्रकार का मादक पेय ... अधिरजनि वधूभिः पीत- छुटकारा 3. केले का पौधा / मैरेयरिकाम् शि० 11151, गंगा० 34 / मोचन (दि०) (स्त्री०-नी) [मच् + ल्युट] छोड़ने वाला, मैलिन्दः | मिलिंद -अण्] मधुमक्खी, भौंरा। स्वतन्त्र करने वाला,-नम् 1. छोड़ना, मुक्त करना, मोकन् (नपुं०) किसी जानवर की उतरी हुई खाल / / स्वतन्त्र करना, मोक्ष 2. जुआ उतारना 3. निर्वहण मोक्ष (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० मोक्षति, मोक्षयति-ते) / करना, उत्सर्जन करना 4. किसी कर्तव्यभार या ऋण 1. छोड़ना, स्वतंत्र करना, मुक्त करना, मुक्ति देना का परिशोध करना। सम०---पट्टकः छन्ना, (कपड़ा 2. ढीला करना, खोलना, बिगाड़ना 3. बलपूर्वक जिससे दूध जल आदि छाना जाय)। छीनना 4. डालना, फेंकना, उछालना 5. ढलकाना / मोचयित (वि०) [ मुच्+णिच् --तृन् ] छुड़ाने वाला, मोक्षः [मोक्ष | पञ ] 1. मुक्ति, छुटकारा, बचाव, स्वतंत्रता स्वतन्त्र करने वाला। ...--साऽधुना तव बन्धे मोक्षे च प्रभवति - का०; मेघ० मोचाटः [मुच---णिच् + अच्-मोच+अट्| अच्] 1. केले 61, लब्धमोक्षाः शुकादयः रघु० 17 / 20 धुर्याणां का गूदा या फल 2. चन्दन की लकड़ी। च धुरो मोक्षम् -17 / 19, 2. उद्धार, परित्राण, | मोटकः,-कम् मुट्+ण्वुल] बटी, गोली,---कम् कुशा घास मोचन 3. परममुक्ति, आवागमन अर्थात पुनर्जन्म के की दो पत्तियाँ जो श्राद्ध के अवसर पर दी जाती है, चक्कर से आत्मा की मुक्ति, मानवजीवन के चार (भग्नकुशपत्रद्वयम्) / उद्देश्यों में से अन्तिम दे० अर्थ, भग० 5 / 28, | मोदायितम् [मट घश बा० तुक, क्यङ्--(भावे)क्त 18130, रघु० 10184, मनु० 6 / 35 4. मृत्यु, जब कभी बातचीत चलती है या अन्यमनस्का होकर 5. अधःपतन, अवपतन, गिरना ..वनस्थलीमर्मरपत्र- नायिका कान आदि कुरेदती है तो उस समय चुपमोक्षा:-कु० 3 / 31 6. ढीला करना, खोलना, बन्धन- चाप बिना इच्छा के अपने प्रिय के प्रति स्नेह की मुक्त करना - वेणिमोक्षोत्सुकानि - मेघ० 99 अभिव्यक्ति / उज्ज्वल मणि ने इसकी परिभाषा दी 7. ढलकाना, गिराना, बहाना बाष्पमोक्ष, अश्रुमोक्ष है :- कान्तस्मरणवार्तादौ हृदि तद्भावभावितः / 8. निशाना लगाना, फेंकता, दागना बाणमोक्षः प्राकटयमभिलाषस्य मोट्टायितमदीर्यते // दे० सा० - श० 3 / 5 9. बखेरना, छितराना 10. (किसी द०१४१ भी। ऋण आदि का) परिशोध करना 11. (ज्योतिष में) | मोदः [मुद्+घञ्] 1. आनन्द, प्रसन्नता, हर्प, खुशी ग्रहणग्रस्त ग्रह की मुक्ति / सम-उपायः मोक्ष - यत्रानन्दाश्च मोदाश्च- उत्तर० 2 / 12, रघु० प्राप्त करने का साधन,—देवः प्रसिद्ध चीनी यात्री 5 / 15 2. गंधद्रव्य, सुगंधि। सम-आख्यः आम ह्यनत्सांग के साथ व्यवहत होने वाला विशेषण, का पेड। -द्वारम् सूर्य,-पुरी कांची नामक नगरी का विशेषण / | मोदक (वि.) (स्त्री०का,की) [मोदयति-मुद्+णिच् मोक्षणम् [ मोक्ष + ल्युट ] 1. छोड़ना, मुक्त करना, परम +ण्वुल] सुहावना, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक,-क: For Private and Personal Use Only Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 820 ) -कम् मिठाई, लड्डू - याज्ञ. १२२८९,-कः एक / करना, 3. जडता, बेहोशी 4. दीवानापन, व्यामोह, वर्ण संकर जाति (क्षत्रिय पिता और शूद्र माता से | ग़लती 5. फुसलाना, प्रलोभन करने के लिये जादूउत्पन्न)। टोना। सम०---अस्त्रम् एक ऐसा आयध-अस्त्र जो उस मोदनम् [मुद्+ल्युट्] 1. हर्ष, प्रसन्नता 2. प्रसन्न करने व्यक्ति को जिस पर कि चलाया जाय, मुग्ध कर ले। की क्रिया 3. मोम / | मोहनकः [मोहन--के+क] चैत्र का महीना। मोदयन्तिका, न्मोदयन्ती मद-+-णिच् +शत+डीप्=मोद- मोहित (भू० क० कृ०) [मुह --क्त] 1. जडीभूत किया यन्ती+का+टाप, ह्रस्व] एक प्रकार की चमेली।। हुआ 2. घबराया हुआ, विह्वल 3. व्यामुग्ध, आकृष्ट, मोविन् (वि.) [मद+णिनि] 1. प्रसन्न, सुखी, खुश मुग्ध किया हुआ, फुसलाया हुआ। 2. प्रसन्नता-दायक, आनन्दप्रद, - नी 1. नाना प्रकार मोहिनी [मह+णि+णिनी+डीप्] 1. एक अप्सरा (अमोद, मल्लिका, जही) के पौधों के नाम 2. कस्तूरी का नाम 2. मनोहारिणी स्त्री (अमृत बांटते समय 3. मादक या खींची हुई शराब / राक्षसों को ठगने में विष्ण ने यही रूप धारण किया मोरटः मिर+अटन] 1. मीठे रस वाला एक पौधा था) 3. एक प्रकार का चमेली का फूल / 2. ताजी ब्याई गाय का दूध,-टम् गन्ने की जड़। मौक (कु) लिः (पुं०) कौवा-उत्तर० 2 / 29 / मोषः [मुष+घञ] 1. चोर, लुटेरा 2. चोरी, लूट | मौक्तिकम् [मुक्तव स्वार्थे ठक्] मोती-.मौक्तिक न गजे 3. लटखसोट, चोरी, उठा ले जाना, हटाना (आल० गजे--सुभा०। सम---आवली मोतियों की लड़ी से भी)-न पुष्पमोषमहत्युद्यानलता-मच्छ० 1, दृष्टि- ---गुम्फिका मोती की मालाएँ गंथने वाली स्त्री-दामन् मोषे प्रदोषे—गीत० 11 4. चुराई हुई संपत्ति / (नपुं०) मोतियों की लड़ी--प्रसवा मोतियों को सम० --कृत् (पुं०) चोर।। जन्म देने वाली सीपी, शुक्ति (स्त्री०) मोतियों की मोषक: [मुष् +ण्वुल्] लुटेरा, चोर। सीपी,--सरः मोतियों की लड़ी, या हार / मोषणम् मिष ल्युट] 1. लूटना, खसोटना, चोरी करना, | मौक्यम मक---ष्य ] गंगापन, मकता, मौन। ठगना 2. काटना, 3. नष्ट करना / मौखरिः मिख र-+इन / एक कुल का नाम पदे पदे मोषा [मुष+अ-+-टाप्] चोरी, लूट / मौखरिभिः कृतार्चनम्-का० / मोहः [मह+घा] 1. चेतना की हानि, मछित होना. मौखर्यम् मुखरस्य भावः ष्यत्र] 1. बातूनीपना, बह निःसंज्ञा, बेहोशी-मोहेनान्तर्वरतनुरियं लक्ष्यते मच्य- भाषिता 2. गाली, मानहानि, झूठा आरोप। माना-विक्रम० 118, कु० 3173 2. घबराहट, मौख्यम् मुख-|-ध्या] पूर्ववर्तिता, वरिष्ठता। व्यामोह, उद्विग्नता, अव्यवस्था-यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोह- | मोध्यम् |मुग्ध-व्यञ] 1. मुर्खता, मूढता 2. कलाहीनता मेवं यास्यसि पाण्डव-भग० 4 / 35 3. मूर्खता, सरलता, भोलापन 3. लावण्य, सौन्दर्य / अज्ञान, दीवानापन -तितीर्षर्दस्तरं मोहादुडपेनास्मि मौचम् [मोच+अण] केले का फल। सागरम् - रधु० 112, श० 7 / 25 4. श्रुटि, भूल, ! मौज (वि.) (स्त्री० ...जी) मंज--- अण] मुंज की घास अशुद्धि 5. आश्चर्य, अचम्भा 6. कष्ट, पीढ़ा 7. जादू का बना हुआ,---जः मंज की घास का पत्ता / की कला जो शत्रु को परास्त करने में प्रयुक्त की जाय | मौजी मौज-डीप्] मुंज की घास की तीन लड़की 8. (दर्शन में) व्यामोह जो सत्य को पहचानने में बनी, ब्राह्मण की तगड़ी-कु० 5 / 10, मनु० 2 / 42 / अवरोधक है, (इसके अनुसार मनुष्य को सांसारिक सम-निबन्धनम्,-बन्धनम् मूंज की धास का बना पदार्थों की वास्तविकता में विश्वास होता है, और वह कटिसूत्र पहनना, उपनयन संस्कार,-मनु० 2 / 27.169 / विषय सूखों से तप्ति करने का अभ्यस्त हो जाता है)। मौढयम् [ मूढ-या ] 1. अज्ञान, जड़ता, मूर्खता सम.-फलिल मोटा और व्यामोहक जाल, --निद्रा 2.लड़कपन / अन्धविश्वास, --मन्त्रः व्यामोहक जादू,-रात्रिः (स्त्री०) मौत्रम् [मूत्रस्येदम्-अण] मूत्र की मात्रा। प्रलय की रात जब कि समस्त विश्व नष्ट हो जायगा, मौदकिकः मोदक+ठक हलवाई। ----शास्त्रम् मिथ्या सिद्धान्त या गुरु / मौद्गलिः मुद्गल+इञ] कौवा / मोहन (वि.) (स्त्रिी०-नी) [मुह -णिच् + ल्युट] | मौद्गीन (वि०) [मुद्ग-खा] (खेत) जो लोबिया 1. जडोभूत करने वाला 2. व्याकुल करने वाला, उद्विग्न (मूंग) बोने के उपयुक्त हो। करने वाला, विह्वल करने वाला 3. व्यामोहक, मौनम मिनेर्भावः-अण चप्पी, मूकभाव; मौनं सर्वार्थसंभ्रामक 4. आकर्षक, --नः 1. शिव का विशेषण साधनम्, - मौनं त्यज'होठ हिलाओ'...मौनं समाचर 2. काम के पांच वाणों में से एक धतूरा, नम् 'जीभ को ताला लगाओ'। सम.....मुद्रा मौन 1. जड़ीभूत करना 2. सुस्त करना, घबरा देना, विह्वल / धारण की अभिरुचि,-व्रतम् चुप रहने की प्रतिज्ञा। For Private and Personal Use Only Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 821 ) मौनिन् (वि०) (स्त्री०--नी) [मौन+इनि] चुप रहने की | मौहूर्तः, मौहर्तिकः [ मुहूर्त+अण्, ठक् वा ] ज्योतिषी। प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, चुप, मूक, भग० म्ना (भ्वा० पर० मनति, म्नात) 1. (मन में) दोहराना १२।१९--पुं० एक पुण्यशील ऋषि, संन्यासी, साघु / / 2. परिश्रम पूर्वक याद करना 3. स्मरण करना, आ-, मौरजिकः [मरज-ठक] मृदंग बजाने वाला। 1. सोचना, मनन करना-पादाम्बुजद्वयमनारतमामनन्त मौर्व्यम् [मूर्ख+व्या मूर्खता, बुद्धूपन, जड़ता। -भामि०४।०२ 2. परंपरानुसार दे देना, निर्धारित मौर्यः [मुराया अपत्यम् - मुरा+ण्य] चन्द्रगुप्त से आरंभ करना, उल्लेख करना, सोचना, बोलना-वामाम करके राजाओं का एक वंश मौर्य नवे राजनि नन्ति प्रकृति पुरुषार्थप्रवर्तिनीम्- कु० 2 / 13, 5481, ----मद्रा० 4 / 15, मौर्यहिरण्याथिमिरर्चाः प्रकल्पिताः 6 / 31 3. अध्ययन करना, सीखना, याद करना -महा० (इस संदर्भ में 'मौर्य शब्द के अर्थ में - यद्ब्रह्म सम्यगाम्नातम्---कु०६।१६; भट्टि० 17 // विद्वानों में मतविभिन्नता है / 30; समा-, 1. आवृत्ति करना 2. निर्धारित मौवीं मूर्वाया विकार: अण् - ङीप्] 1. धनुष की डोरी करना, निश्चित करना, - तं हि धर्मसूत्रकाराः समाम -मौर्वीकिणाङ्को भुजः-- श० 1313, मौर्वी धनुषि नन्ति--उत्तर०४। चातता - रघु० 1 / 19, 18 / 48, कु. 3155 म्नात (भ० क० कृ०) [ म्ना+क्त ] 1. दोडराया गया 2. मूर्वा घास की बनी तगड़ी (क्षत्रियों के धारण किये 2. याद किया गया, अध्ययन किया गया / जाने योग्य मनु० 2142 / म्रक्षु (म्बा० पर० म्रक्षति) 1. रगड़ना 2. देर लगाना, मौल (वि.) (स्त्री०-ला-ली) मलं वेत्ति मूलादागतो संचय करना, इकट्ठा करना 3. लेप करना, रगड़ना, वा अण्] 1. मूलभूत, मौलिक 2. प्राचीन, पुराना, मलना 4. मिश्रण करना, मिलाना। (प्रथा आदि) बहुत समय से चली आती हई | म्रक्षः [ म्रक्ष+घञ ] पाखंड, कपटाचरण / 3. सत्कूलोद्भव, उच्च कुल में उत्पन्न 4. पीढियों से म्रक्षणम् [म्रक्ष+ल्युट ] 1. शरीर पर उबटन मलना राजा की सेवा में पला हुआ, प्राचीन काल से पदारूढ़, 2. लेप करना, सानना 3. संचय करना, ढेर लगाना आनुवंशिक ---मनु० 7154, रघु० 19157, "लः 4. तेल, मल्हम / / पुराना या बंशक्रमागत मंत्री,-रघु०१२।१२, 14110, | म्रद् (भ्वा० आ०-म्रदते-प्रेर० म्रदयति .ते) पीसना, 18 / 38 / चूरा करना, कुचलना, रौंदना।। मौलि (वि.) [मूलस्यादूरभवः इञ] प्रधान, प्रमुख, प्रविमन् (0) [ मृदोर्भाबः इमनिच् ] 1. कोमलता, सर्वोत्तम-अखिलपरिमलानां मौलिना सौरभेण, भामि० मृदुता, 2. ऋजुता, दुर्बलता, (स्वर्भानुः)- हिमांशुमाणु १११२१,-लि: 1. प्रधान, शिरोमणि-मौली वा ग्रसते तन्म्रदिम्न: स्फुटं फलम्-शि०२१४९। रचयाञ्जलिम् ... वेणी० 3 / 40, रघु०१३३५९, कु० | मृञ्च (म्वा० पर० स्रोचति) जाना, हिलना-जुलना। 5 / 79 2. किसी वस्तु का सिर या चोटी, उच्चतम | ग्रुञ्च (म्पा० पर० ग्रॅचति) जाना, हिलना-जुलना। बिन्दु, उत्तर० 2 / 30 3. अशोकवृक्ष, ..लिः (पुं० या | म्लक्ष चुरा० उभ० म्लक्षयति-ते काटना, विभक्त करना। स्त्री०) 1. ताज, किरीट, मकूट-भामि० 1173 | म्लात (भू० क० कृ०) [ म्ल+क्त] मुर्भाया हुआ, 2. सिर की चोटी के बाल, शिखा -- जटामौलि-कु० कुम्हलाया हुआ। 2016 (जटाजूट - मल्लि.) 3. मींडी, केशविन्यास म्लान (भू० क० कृ०) [म्लै+क्त क्तस्य नः ] 1. मुआया -वेणी०६।३४, लि:-ली (स्त्री०) पृथ्वी। सम० हुआ, कुम्हलाया हुआ 2. क्लांत, थका हुआ, निढाल मणिः,-रत्नम् मुकुट की मणि, मुकुट में लगा रत्न, 3. निर्मलीकृत, क्षीण, दुर्बल, कुश 4. उदास, खिन्न -- मण्डनम् शिरोभूषण,-मुकुटम् ताज, किरीट। अवसन्न 6. गन्दा, मलिन। सम० --- अङ्ग (वि.) मौलिक (वि०) (स्त्री०- की) [मूल+ठा] 1. मूलभूत क्षीणकाय (-गी) रजस्वला स्त्री,-मनस् (वि.) ____ 2. मुख्य, प्रधान 3. घटिया। उदास मन वाला, उत्साहहीन, हताश / मौल्यम् मल्य-+-अण् ] मूल्य, कीमत।। म्लानिः (स्त्री०) [ म्ल+क्तिन् | 1. मुझाना, कुम्हलाना, मौष्टा [ मुष्टि प्रहरणं अस्यां क्रीडायाम् -- मुष्टि---ण ] ! ह्रास 2. क्लान्ति, शैथिल्य, थकान 3. उदासी, __ मुक्के बाजी, चूंसे बाजी, मुष्टामुष्टि मुठभेड़। खिन्नता 4. गंदगी। मौष्टिक: [ मुष्टि+ठक ] बदमाश, ठग, धूर्त / म्लायत्,-म्लायिन् (वि.) [ म्लै+शत, णिनि वा] मौसल (वि.) (स्त्री० - लो) [मुसल+अण् ] कुम्हलाता हुआ, पतला और कृश् होता हुआ। 1. मुद्गर की भांति बना हुआ, मूसल के आकार का | म्लास्नु (वि.) [म्लै+स्तु] 1. मुाया हुआ या कुम्हलाया 2. (यद्ध आदि) जो गदाओं से लड़ा जाय 3. (पर्व | हुआ या होने वाला 2. पतला और कृश होने वाला आदि) जो गदा युद्ध से संबद्ध हो / 3. निढाल और कान्त होने वाला / For Private and Personal Use Only Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 822 ) म्लिष्ट (वि०) [म्लेच्छ+वत नि० साधु:] 1. अस्फुट बोला | (बर्बर) रहते हों, विदेश या असभ्य देश मनु० 2 / 23, हुआ (मानों बर्बर लोगों ने बोला हो) 2. अस्पष्ट | -भाषा विदेशी भाषा,-भोजन: गेहूँ.(--नम्) जौ, असभ्य (बर्बर), असंस्कृत 3. कुम्हलाया हुआ, मुझाया -वाच् (वि०) बर्बर जाति की या विदेशी भाषा हुआ,-ष्टम् अस्फुट या असंस्कृत भाषण / बोलने वाला। म्लच, म्लुञ्च, दे० ग्रुच्, मुञ्च् / म्लेच्छित (भू० क० कृ०) [म्लच्छ+क्त] अस्फुट रूप से म्लेच्छ या म्लेछ (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० म्लेच्छति, | या बर्बरतापूर्वक बोला हआ,-तम विदेशी भाषा म्लेच्छयति, म्लिष्ट, म्लेच्छित) अव्यवस्थित रूप से 2. व्याकरण विरुद्ध शब्द या भाषण। बोलना, अस्फुट स्वर से बोलना, या बर्बरतापूर्वक म्लेट, म्लेड (म्लेट ड - ति) पागल होना / बोलना। म्लेव (भ्वा० आ० म्लेवते) पूजा करना, सेवा करना। म्लेच्छः (म्लेच्छ-घाः] 1. असभ्य, अनार्य (जो संस्कृत | म्ल (भ्वा० पर० म्लायति, म्लान) मुर्माना, कुम्हलाना भाषा न बोलता हो, जो हिन्दू या आर्य पद्धतियों का -म्लायतां भुरुहाणां---भामि० 1136, शि० 5 / 43 पालन न करता हो), विदेशी,-ग्राह्या म्लेच्छप्रसिद्धिस्तु 2. थक जाना, निढाल होना, श्रान्त या क्लांत होना; विरोधादर्शने सति-जै० न्या०, म्लेच्छान मर्छयते पथि..... मम्लतुर्न मणिकुट्टिमोचितौ - रघु० 11 / 9; - या म्लेच्छनिवहनिधन कलयसि करवालम् भट्टि० 1416 3. उदास या खिन्न होना; उत्साहहीन --गीत० 1 2. जाति से बहिष्कृत, नीच मनुष्य, या हतोत्साह होना मम्लौ साथ विषादेन काव्य बौधायन 'म्लेच्छ' शब्द की परिभाषा देता ह 10, म्लायते मे मनो हीदम्-महा० 4. पतला, या -गोमांसखादको यस्तु विरुद्धं बहु भाषते, सर्वाचार- कृशकाय होना 5. ओझल होना, नष्ट होना परि , विहीनश्च म्लेच्छ इत्यभिधीयते 3. पापी, दुष्ट पुरुष, 1. मुझाना, कुम्हलाना, परिम्लान मुखश्रियम्- कु० -च्छम् तांबा। सम० -- आख्यम् तांवा,---आशः गेहूँ 2 / 2 रघु० 14150 2. खिन्न या निरुत्साहित होना, ---आस्यम,--मुखम् तांबा---कन्दः लहसून,-जातिः प्रमुभानमा प्र-, 1. मुनिा , कुम्हलाना 2. उदास या खिन्न होना (स्त्री०) असभ्य, जंगली (बर्बर) जाति, पहाड़ी, 3. निढाल होना 4. मलिन या गन्दा होना, मैला डोनामला बर्बर,--देशः,-मण्डलम् वह देश जहाँ अनार्य लोग | होना। यः[या-|-ड11. जो चलता है या गतिमान है, जाने यक्षों का राजा कुबेर, आवासः जंजीर का वृक्ष, वाला, गन्ता 2. गाड़ी 3. हवा, वायु 4. मिलाप ---- कर्दमः एक प्रकार का लेप जिसमें कपूर, अगर, 5. यश 6. जौ। कस्तूरी और कंकोल समान मात्रा में डाले जाते हैं यकन् (नपुं०) जिगर (पहले पाँच वचनों में इस शब्द का (कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार चन्दन और केसर भी कोई रूप नहीं होता, कर्म०, द्वि०व०, के पश्चात् इसमें सम्मिलित किये जाते हैं (कर्पूरागुरुवस्तूरीक'यकृत्' शब्द का ही यह वैकल्पिक रूप है)। कोलर्यक्षकर्दमः अमर०, कुङ्कुमागुरुकस्तूरी कर्पूर यकृत् (नपुं०) [यं संयमं करोति कृ विवप् तुक् च ] चन्दनं तथा / महासुगन्धमित्युक्तं नामतो यक्ष जिगर, या तद्गत प्रभावशालिता। सम०-आत्मिका कर्दमः // ),- ग्रहः यक्ष या भूत प्रेतादि की बाधा से तैलचोर (भौरे के आकार का एक छोटा सा कीड़ा)। युक्त व्यक्ति, तरुः बटवृक्ष, धूपः गूगल, लोबान, - उदरम् जिगर की वृद्धि,-कोषः जिगर को ढकने --- रसः एक प्रकार का मादक पेय, राज् (पुं०) वाली झिल्ली। -राजः कुबेर का नाम, रात्रिः दीपमाला का उत्सव, यक्षः [ यक्ष्यते-यक्ष+(कर्मणि) घञ / एक देवयोनि .... वित्तः यक्ष जैसा अर्थात जो विपूलधनसंपत्ति का बिशेष जो धनसंपत्ति के देवता कुबेर के सेवक है तथा - स्वामी हो परन्तु व्यय कुछ न करे। उसके कोष और उद्यानों की रक्षा करते हैं - यक्षोत्तमा यक्षिणी [ यक्ष+इनि+डीप] 1. यक्ष जाति की स्त्री यक्षपति धनेश रक्षन्ति वै प्रासगदादिहस्ताः- हरि०, 2. कुबेर की पत्नी का नाम 3. दुर्गा की सेवा में रहने मेघ० 1, 66, भग० 10 / 23, 11122 2. एक प्रकार बाली यक्षस्त्री 4. एक अप्सरा (इसका संबन्ध का भूत-प्रेत 3. इन्द्र का महल 4. कुबेर,-क्षी यक्ष ! मर्त्यलोक वासियों से कहा जाता है)। जाति की स्त्री। सम.-अधिपः,- अधिपतिः, इन्द्रः यक्ष्मः, यक्ष्मन् (पुं०) [यक्ष+मन्, मनिन् वा ] 1. फेफड़ों For Private and Personal Use Only Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन ( 823 ) का रोग, क्षयरोग 2. रोगमार्ग / सम० ग्रह क्षयरोग दो मुख्य शाखाएं हैं-तोत्तरीय या कृष्णयजुर्वेद ; तथा का आक्रमण,—ग्रस्त ( वि०) क्षयरोगी, घ्नी वाजसनेयि या शुक्लयजुर्वेद / अंगूर। यशः [यज्+(भावे) नहु] 1. याग या मख, यज्ञ सम्बन्धी यक्ष्मिन् (वि०) [ यक्ष्म+इनि ] जो क्षयरोग से ग्रस्त कृत्य --यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः, तस्माद्यज्ञात्सर्व हुतः या पीड़ित है मनु० 3 / 154 / ---आदि 2. पूजा का कार्य, कोई भी पवित्र या भक्ति यज (भ्वा० उभ० यजति-ते, इष्ट, कर्मवा० इज्यते, इच्छा० सम्बन्धी क्रिया (प्रत्येक गृहस्थ, विशेषत: ब्राह्मण को यियक्षति-ते) 1. यज्ञ करना, त्याग पूर्वक पूजा करना प्रति पाँच ऐसे भक्तिपरक कृत्य प्रतिदिन करमे पड़ते (प्रायः 'यज्ञार्थक' शब्दों के करण से संबद्ध); है, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, पितृयज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ, -यजेत राजा क्रतुभि:-मनु०७१७९,५१५३, 6.36,11 // यही पाँचों समष्टिरूप से 'पञ्च महा यज्ञ' कहलाते 40, भट्टि० 14 / 90, इसी प्रकार 'अश्वमेधेनेजे, पाकयज्ञे- है, दे० 'महायज' और 'पाँच' शब्द पृथक्-पृथक्) नेजे-आदि 2, आहुति देना (देवतापरक कर्म० तथा 3. अग्नि का नाम 4. विष्ण का नाम। सम० --अंशः यज्ञीय साधन या आहुतिपरक करण० के साथ) यज्ञ का एक भाग, भुज (पु०) देवता देव-कु० -पशुना रुद्र यजते-सिद्धा० यस्तिलैः यजते पितृन् 3 / 14 अ(आ)गारः,-रम् एक यज्ञीय भूमि, अङ्गम ---महा०, मनु० 8 / 105, 11 / 118 3. पूजा करना, 1. यज्ञ का एक भाग 2. कोई भी यज्ञीय आवश्यकता, सुभूषित करना, सम्मान करना, आदर करना प्रेर० यज्ञ का साधन यज्ञाङ्गयोनित्वमवेक्ष्य यस्य-कु. (याजयति-ते) 1. यज्ञ करवाना 2. यज्ञ में सहायता 1117, (-गः) 1. गूलर का पेड़ 2. विष्णु का नाम, देना / अ, परि, प्र यज्ञ करना, आहुति देना, ----अरिः शिव का विशेषण, ----अशनः देव, आत्मन् ... सम् अलंकृत करना, पूजा करना समयष्टास्त्रम- (0), ईश्वरः विष्णु का नाम, उपकरणम् यज्ञपात्र ण्डलम् भट्टि० 15 / 96 / / या यज्ञ का कोई आवश्यक उपकरण,—उपवीतम् द्विजों यजतिः [यज्-तिप्] 1. उन यज्ञीय अनुष्ठानों का द्वारा पहना जाने वाला यज्ञोपवीत (अब आज कल पारिभाषिक नाम जिनके साथ 'यजति' क्रिया का और निम्न जातियाँ भी पहनती हैं) जो बायें कन्धे प्रयोग होता है (आगे के विवरण के लिए 'जहोति' के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे पहना जाता है शब्द देखो)। --दे० मनु० 2063 (मूल रूप से 'यज्ञोपवीत' उपयजत्रः [ यज्-अत्र | 1. वह गहस्थ जो यज्ञीय अग्नि को नयन संस्कार का ही नाम है जिसमें जनेऊ पहना स्थिर रखता है, अग्निहोत्री, त्रम् अभिमन्त्रित जाय),-कर्मन् (वि०) यज्ञकार्य में व्यस्त (नपुं०) अग्नि का स्थापित रखना। यज्ञीय कृत्य,कल्प (वि०) यज्ञ की प्रकृति का, या यजनम् | यज्+ल्युट ] 1. यज्ञ करने की त्रिया 2. यज्ञ, यज्ञ के समान, कोलकः वह खूटा जिसके साथ यज्ञीय -देवयजन संभवे देवि सीते --उत्तर. 4 3. यज्ञ बलि-पशु बाँधा जाता है, कुण्डम् हवनकुण्ड, अग्निकरने का स्थान / कुण्ड, - कृत (वि०) यज्ञानुष्ठान करने वाला, (पुं०) यजमानः [यज+शानच्] 1. वह व्यक्ति जो नियमित रूप 1. विष्णु का नाम 2. यज्ञ कराने वाला पुरोहित,-ऋतुः से यज्ञ करता है और उसका व्ययभार स्वयं वहन 1. यज्ञीय कृत्य 2. पूर्णकृत्य या मुख्य अनुष्ठान करता है 2. वह व्यक्ति जो अपने लिए यज्ञ करवाने 3. विष्णु का विशेषण,---नः वह राक्षस जो यज्ञों में के लिए पुरोहित या पुरोहितों को नियुक्त करता विघ्न डालता है, * दक्षिणा यज्ञीय उपहार, यज्ञानुष्ठान है 3. आतिथेयो, संरक्षक, धनी व्यक्ति 4. कुल का कराने वाले पूरोहित को दी जाने वाली दक्षिणा, प्रधान पुरुष। सम० शिष्यः स्वयं यज्ञ करने वाले .- दीक्षा 1. किसी यज्ञीय कृत्य में प्रवेश या उपक्रम ब्राह्मण का शिष्य-श०४। 2. यज्ञ का अनुष्ठान मनु० ५११६९,-द्रव्यम् यज्ञ के यजिः [यज ---इन्] 1. यज्ञकर्ता 2. यज्ञ करने की क्रिया लिए प्रयुक्त होने वाली कोई वस्तू (उदा० यज्ञ पात्र 3. यज्ञ-दानमध्ययनं यजिः मनु० 1079 / आदि), -पतिः 1. जो किसी यज्ञ की स्थापना या पजुस (नपुं०) [यज्+उसि] 1. यज्ञीय प्रार्थना या मन्त्र, प्रतिष्ठा करता है दे० 'यजमान' 2. विष्णु का नाम, 2. यजुर्वेद का पाठ, यजुर्वेद के गद्यात्मक मन्त्रों का -पशुः 1. यज्ञ के लिए पश, यज्ञीय बलि 2. घोड़ा, संग्रह जो यज्ञ के अवसर पर पढ़े जायं-तु० मन्त्र -पुरुषः, - फलदः विष्णु के विशेषण, भागः 1. यज्ञ 3. यजुर्वेद का नाम / सम० विद् (वि.) यज्ञीय का एक अंश, यज्ञ के उपहारों में हिस्सा 2. देव, देवता, विधि का ज्ञाता, - वेदः तीन (अथर्व वेद को सम्मिलित ---भुज् (पुं०) देव, देवता,.. भूमिः (स्त्री०) यज्ञ के करके) या चार प्रधान वेदों में द्वितीय (यह यज्ञ लिए स्थान, यज्ञीय भूमि,- भत् (पुं०) विष्णु का सम्बन्धी पवित्र पाठ का गद्यात्मक संग्रह है। इसकी / विशेषण,-भोक्त (पुं०) विष्णु या कृष्ण का विशेषण, For Private and Personal Use Only Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 824 ) ----रसः,-रेतस् (नपुं०) सोम, वराहः शूकरावतार (अधि० के साथ)-वयं त्वय्यायतामहे ....महावी० में विष्णु, वल्लिः, ल्ली (स्त्री०) सोम की बेल 1149, निस्-, प्रेर० 1. लोटाना, फेर देना--निर्याया पौधा, वाटः यज्ञ के लिए तैयार की गई या घरी तय हस्तन्यासम्---विक्रम० 5; मनु० 11 / 164 गई भूमि, वाहनः विष्णु का विशेषण,-वृक्षः वट 2. बदला देना, वापिस करना, प्रतिहिंसा करना वृक्ष, वेविः,-दी (स्त्री०) यज्ञ की वेदी, शरणम् -रामलक्ष्मणयोवरं स्वयं निर्यातयामि वै---रामा०, यज्ञकक्ष या अस्थायी छप्पर जिसके नीचे बैठकर यज्ञ प्र---, चेष्टा करना, प्रयत्न करना, प्रयास करना, किया जाय, शाला यज्ञ का कमरा,--शेषः, षम् प्रति ..., चेष्टा करना (प्रेर०) फेर देना, वापिस यज्ञ का अवशिष्ट-यज्ञशेषं तथामृतम् मनु० 3 / 285, करना - दे० निस् पूर्वक यत्, सम् , संघर्ष करना, --- श्रेष्ठा सोम का पौधा,--सदस् (नपुं०) यज्ञ में | तर्क वितर्क करना-देवासुरा वा एषु लोकेषु उपस्थित जनमण्डली, संभारः यज्ञ के लिए आवश्यक संयेतिरे। सामग्री, सारः विष्णु का विशेषण,-सिद्धिः (स्त्री०) यत (भू० क० कृ०) [यम् + क्त] 1. प्रतिबद्ध, दमन यज्ञ की पूर्ति, -सूत्रम् दे० यज्ञोपवीत, सेनः राजा किया हुआ, नियंत्रित, पराभूत 2. सीमित, संयत, द्रुपद का विशेषण, स्थाणुः यज्ञ का खम्भा,-हन् (पुं०) मर्यादित, - तम् महावत द्वारा हाथी को एड लगाना। --हनः शिव का विशेषण / सम० --आत्मन् (वि.) स्वयं अपने को अनुशासित यनिकः [यज्ञ+ठन ढाक का पेड़। करने वाला, स्वसंयत, जितेन्द्रिय, (तस्म) यतात्मने यशिय (वि.) [ यज्ञाय हितः-ध] 1. यज्ञसम्बन्धी, यज्ञो- रोचयितुं यतस्व --कु० 3 / 16, १४५,-आहार पयुक्त, या यज्ञपरक 2. पुनीत, पवित्र, दिव्य 3. अर्च- (वि.) मिताहारी, संयमी, इन्द्रिय (वि.) जितेनीय, पूजनीय 4. भक्त, पुण्यशील, - यः 1. देव, देवता न्द्रिय, पवित्र, धर्मात्मा,- चित्त,-मनस,-मानस 2. तीसरा युग, द्वापर। सम०-देशः यज्ञों का देश (वि०) मन को वश में रखने वाला,-वाच् (वि.) --- कृष्णसारस्तु चरति मृगो यत्र स्वभावतः, स ज्ञेयो मितभाषी, मोनी, मोनावलंबी-दे० 'वाग्यत',---ब्रत यज्ञियो देशो म्लेच्छदेशस्ततः परः - मनु० 9 / 23, (वि.) 1. प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, अपने -----शाला यज्ञमण्डप / ब्रत को पूरा करने वाला, दृढ़ प्रतिज्ञ / यज्ञीय (वि.) [यज्ञ+छ] यज्ञ संबंधी,-य: गूलर का यतनम् [यत् + ल्युट्] चेष्टा, प्रयत्न / पेड़ / सम०---ब्रह्मपादपः विकंकन नामक पेड़। यतम (वि.) (नपुं०- मत्) [यद् / डतमच्] जो या यज्वन (वि.) (स्त्री०-यज्वरी) [यज+क्वनिप] यज्ञ जौन सा (बहुतों में से)। करने वाला, पूजा करने वाला, अर्चना करने वाला यतर (वि.) (नपुं० --रत्) [यद् ।-डतरच्] जो (दो आदि, (पुं०) 1. जो वेदविहितविधि के अनुसार यज्ञानुष्ठान करता है, यज्ञों का अनुष्ठाता-नीपान्वयः यतस् (अव्य०) [यद्+तसिल] * (बहुधा संबंधबोधक पार्थिव एष यज्वा - रघु० 6 / 46, 1144, 3 / 39, सर्वनाम 'यद्' के अपा० के रूप में प्रयुक्त) 1. जहाँ 18 / 11, कु० 2 / 46 2. विष्णु का नाम / से (व्यक्ति या वस्तु का उल्लेख करते हुए) जिस यत् (भ्वा० आ० यतते, यतित) 1. यत्ल करना, कोशिश जगह से, जिस स्थान से या जिस दिशा से --यतस्त्वया करना, प्रयास करना, उद्योग करना (बहुधा संप्र० ज्ञानमशेषमाप्तम् - रघु० 5 / 4 (यतः यस्मात् जिस या तुमुन्नन्त के साथ) सर्वः कल्ये वयसि यतते लब्धु- से) यतश्च भयमाशङ्कत्याची तां कल्पयेद्दिशम् मर्थान् कुटुम्बी-विक्रम० 3.1 2. प्रयास करना, -मनु० 7 / 189 2. जिस कारण, जिस लिए उत्सुक या आतुर होना, उत्कण्ठित होना- या न 3. क्योंकि, चूंकि, के कारण से, इस लिए कि -उवाच ययो प्रियमन्यवधूभ्यः सारतरागमना यतमानम् -शि०। चैन परमार्थतो हरं न वेत्सि नूनं यत एवमात्थ माम् 4 / 45, रघु० 9 / 7 3. हाथ पैर मारना. निरन्तर --कु० 5 / 75, रघु० 876, प्रायः सहवर्ती 'ततः' उद्योग करना, श्रम करना 4. सावधानी बरतना, के साथ; रघु० 16 / 74 4. जिस समय से लेकर, खबरदार रहना-भग० २।६०-प्रेर० (यातयति-ते) .."जब से कि 5. ताकि, जिससे कि (यतस्ततः 1. जिस 1. लौटाना वापिस करना, बदला देना, हरजाना किसी जगह से, किसी भी दिशा से 2. चाहे किसी देना, फेर देना 2. घृणा करना, निन्दा करना 3. प्रोत्साहन व्यक्ति से 3. चाहे जहां, चारों ओर, किसी भी दिशा देना, प्राण फूंकना, सजीव बनाना 4. सताना, में, मनु० 4 / 15, यतो यतः 1. चाहे जिस जगह से दुःखी करना, परेशान करना 5. तैयार करना, 2. चाहे जिस से, किसी भी व्यक्ति से 3. चाहे जहां, विस्तार से कार्य करना, आ-, 1. प्रयास करना चाहे जिस दिशा में--यतोयतः षट्चरणोऽभिवर्तते कोशिश करना 2. भरोसे पर रहना, निर्भर रहना, I -श० 1124, भग०६।२६; यतः प्रभृति जिस समय For Private and Personal Use Only Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 825 ) से लेकर)। सम० भव (वि०) जिससे उत्पन्न, मूल (वि०) जिसमें जन्म लेने वाला, या जिससे ! उदित / यति (सर्ब० वि०) [यद् परिमाणे अति (रूप केवल बहुवचन में, - कर्तृ० और कर्म० यति) जितने, / जितनी बार, जितने कि / यतिः (स्त्री०) [यम्-+क्तिन] 1. प्रतिबंध, रोक, नियंत्रण 2. रोकना, ठहरना, आराम 3. दिग्दर्शन 4. संगीत में विराम 5. (छन्द० में) विश्राम-यतिजिह्वष्टविश्रामस्थानं कविभिरुच्यते सा विच्छेदविरामायः पदाच्या निजेच्छया-छं० 1, म्रम्नानां त्रयेण त्रिमनियतियता स्रग्धरा कीर्तितेयम् 6. विधवा, .--तिः संन्यासी, जिसने संसार को त्याग दिया है और अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया है ...यथा दानं विना हस्ती तथा ज्ञानं विना यतिः ... भामि० 2119 / यतित (वि.) [यत् + क्त चेष्टा की गई, प्रयत्न किया गया, कोशिश की गई, प्रयास किया गया / यतिन् (50) [यत + इनि] संन्यासी। यतिनी [यतिन्-- डीप्] विधवा। यत्नः [यत् (भावे) नङ] 1. प्रयत्न, चेष्टा, प्रयास, कोशिश, उद्योग–यत्ने कृते यदि न सिद्धधति कोऽत्र दोषः -हि० प्र० 31 2. मेहनत, गंभीर मनोयोग, अध्यवसाय 3. देखरेख, उत्साह, सावधानता, जागरूकता-महान्हि यलस्तव देवदारौ -रघु० 2 / 56, प्रतिपात्रमाधीयतां यत्नः-श० 1 4. पीड़ा, कष्ट, श्रम, कठिनाई ...शेषाङ्गनिर्माणविधौ विधातूावण्य उत्पाद्य श्वास यत्नः -कु० 1135, 766, रघु० 7 / 14 / यत्र (अव्य०) [यद्+त्रल] 1. जहाँ, जिस स्थान में, जिधर सैव सा (द्यौः) चलति यत्र हि चित्तम् ने० 5157, कु० 117, 10 2. जब, जैसा कि 'यत्र काले' में 3. चूँकि क्योंकि, जब से, जहाँ (यत्रयत्र जहाँ कहीं --यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्निः -तर्क० यत्र यत्र चाहे जिस स्थान में, सर्वत्र, यत्रकुत्र यत्रक्वचन .....क्वापि 1. जहाँ कहीं, चाहे जिस जगह 2. जब कभी यत्रत्य (वि.) [ यत्र+त्यप् ] जिस स्थान का, जिस स्थान पर रहता हुआ। यथा (अव्य०) यद् प्रकारे थाल] 1. स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने पर इसके निम्नांकित अर्थ है --(क) कथितरीति के अनुसार-यथाज्ञापयति महाराज: -'जैसा कि महाराज आज्ञा करते हैं" (ख) नामतः, जैसा कि आगे आता है--तद्यथानुश्रूयते पं० 1, उत्तर० 2 / 4 (ग) जैसा कि, की भांति (तुलनाद्योतक तथा समानता के चिह्न का सूचक) आसीदियं दशरथस्य गृहे यथा श्री: -उत्तर० 418, कु० 4134, प्रभावप्रभवं कान्तं स्वाधीनपतिका यथा (न मुंचति ).. काव्य० 10 (घ) जैसा कि उदाहरणस्वरूप, दृष्टान्ततः यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्नियथा महानसे तर्क०, पंच० 11288, (ड) प्रत्यक्ष उक्ति को आरंभ करने के समय प्रयुक्त, अन्त में चाहे 'इति' हो या न हो अकथितोऽपि ज्ञायत एव यथायमाभोगस्तपोवनस्येति-श० 1, विदितं खल ते यथा स्मरः क्षणमप्युत्सहते न मां विना.. कु० 4 / 36, (स्त्री०) जिससे कि, इसलिए कि----दर्शय तं चौरसिहं यथा व्यापादयामि . पंच 1 2. तथा के सहवर्तित्व में प्रयुक्न होकर 'यथा' के निम्नलिखित अर्थ है :-(क) जैसा, वैसा (इस अवस्था में तथा के स्थान में "एवं' और 'तद्वत्' भी बहुधा प्रयुक्त होते हैं) यथा वृक्षस्तथा फलम् -या यथाबीज तथाकुरः-भग०११।२९ (इस अवस्था में संबंध की समानता को अधिक आश्चर्यजनक और प्रभावशाली बनाने के लिए 'एवं' शब्द यथा के साथ, अथवा दोनों के साथ जोड़ दिया जाता है)-बघूचतुकेऽपि यर्थव शान्ता प्रिया तनुजास्य तथैव सीता-उत्तर० 4 / 16, न तथा बाधते स्कन्धो (या शीतम्) यथा बापति बाधते, (इतना-जितना, जैसा कि)-कु०६७०, उत्तर० 214, विक्रम० 4 / 33, इस अर्थ में 'तथा' का बहधा लोप कर दिया जाता है, तब उस अवस्था में 'यथा' का अर्थ उपर्युक्त (ग) में दिया हुआ है, (ख) ताकि जिससे कि (यहाँ 'यथा' 'जिससे' और तथा 'कि' को सूचित करता है)-यथा बन्धजनशोच्या न भवति तथा निर्वाह्य -श० 3, तथा प्रयतेथा यथा नोपहस्यते जनैः का०-१०१, तस्मान्मुच्ये यथा तात संविधातुं तथाहसि रघु० 1172, 36, 3166 15168, (ग) क्योंकि -- इसलिए, क्योंकि, अतः यथा इतोमुखागतेरपि कलकलः श्रुतस्तथा तर्कयामि आदि -मा० 8, कभी-कभी तया' को लुप्त कर दिया जाता है-मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकुलो यथा त्वाम् / सेविष्यन्तेनयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः-मेघ०९ (8) यदि--तो, इतने विश्वास से कि, बड़े निश्चय से (उक्ति और अनुरोध का दृढ़ रूप) -वाङ्मनःकर्मभिः पत्यो व्यभिचारो यथा न मे तथा विश्वम्भरे देवि मामन्तर्धातुमर्हसि-रघु० 15681, यथा यथा-सथा तथा-जितना अधिक "उतना ही' 'जितना कम "उतना ही--यथायथा यौवनमतिचक्राम तथा तथावर्धतास्य संतापः-का० 59, मनु० 81286, 12 / 73, यथा-तथा किसी रीति से, किसी भी ढंग से, यथाकथंचित् किसी न किसी प्रकार। (विशे० अव्ययीभाव समास के प्रथम पद के रूप में प्रयक्त होकर 'यथा' का प्रायः अनुवाद किया जाता है : के अनुसार, के अनुरूप, तदनुसार, तदनुरूप, के अनुपात से, अधिक न होकर; दे० समस्त शब्द नीचे,---अंशम,---अंशतः 104 For Private and Personal Use Only Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 826 ) (अव्य०) ठीक-ठीक अनुपातनरूप में, अधिकारम् / के अनुसार, प्रत्येक अपने अपने निवास के अनुसार, (अव्य०) अधिकार या प्रमाण के अनुसार, - अधीत -आशयम् (अव्य०) 1. इच्छा या आशय के अनुसार (वि०) जैसा पढ़ा हुआ या अध्ययन किया हुआ है, 2. करार के अनुसार, आश्रमम् (अव्य०) आश्रम मूलपाठ के समनुरूप,-अनुपूर्वम्-अनुपूर्व्यम्, अनुपूर्ध्या या किसी व्यक्ति के धार्मिक जीवन के विशिष्ट के (अव्य०) नियमित क्रम या परम्परा में, क्रमशः, यथा- अनुसार, इच्छा, इष्ट, ईप्सित (वि०) इच्छा क्रम,-अनुभूतम् (अव्य०) 1. अनुभव के अनुसार या कामना के अनुसार, अपनी रुचि के अनुकूल, 2. पूर्वानुभव के अनुरूप,-अनुरूपम् (अव्य) यथेष्ट, जैसा कि चाहा गया हो या कामना की गई यथार्थ समनुरूपता में, उचित रूप से, अभिप्रेत हो, (अव्य० च्छम्, ,ष्टम्, तम्) 1. इच्छा या ----अभिमत, अभिलषित, अभीष्ट (वि.) जैसा कामना के अनुसार, इच्छा या मन के अनुकूल रघु० कि चाहा था, जैसा कि इरादा था या इच्छा की 4151 2. जितनी आवश्यकता हो, मन भर कर थी, इच्छा के अनुकूल, अर्थ (वि०) 1. सचाई के यथेष्टं भजे मांसम् चौर० 3, ईक्षितम् अनुरूप, सत्य, वास्तविक, सही-सीम्येति चाभाष्य (अव्य.) जैसा कि स्वयं देखा हो, जैसा कि वस्तुतः यथार्थभाषी - रघु० 14144, इसी प्रकार 'यथार्था- प्रत्यक्ष किया हो, उक्त, उदित (वि०) जैसा कि नुभवः' (सही या शुद्ध प्रत्यक्ष ज्ञान) और 'यथार्थ- ऊपर कहा गया है, पूर्वोक्त, उपर्य ल्लिखित यथोक्ताः वक्ता' 2. सत्य अर्थ के समनरूप, अर्थ के अनुसार सही संवृत्ताः पंच०१, यथोक्तव्यापारा श० 1, रघ० ठीक, उपयुक्त, सार्थक - करियन्निव नामास्य (अर्थात् 2170, उचित (वि०) उपयुक्त, उचित, वाजिव, शत्रुध्न) यथार्थमरिनिग्रहात् रघ० 15/6, युधि सद्यः योग्य (अव्य-तम्) ठीक-ठीक, उपयुक्त रूप से, शिशुपाल तां यथार्था शि० 16485, कि० 8139 उचित रूप से,--उत्तरम् (अव्य०) नियमित क्रम या कु. 1116 3. योग्य, उपयुक्त (र्थम् --अर्थतः) परंपरा में, नामशः, संबन्धोऽत्र यथोत्तरम सा० द० सत्यतापूर्वक, सही, उचित प्रकार से, 'अक्षर (वि.) 729, उत्साहम (अव्य.) 1. अपनी शक्ति या सार्थक, अक्षरशः सत्य वि० 111, नामन (वि.) ताकत के अनुसार 2. आती पूरी शक्ति से, उदिष्ट जिसका नाम अर्थ की दृष्टि से सही है या पूर्णतः / (वि.) जैसा कि वर्णन किया गया है या संकेतित सार्थक है (जिसके कार्य नाम के अनुरूप है).... ध्रुव- . है, (-प्टम्) या उद्देशम् (अन्य ) संकेतित रीति सिद्धेरपि यथार्थनाम्नः सिद्धि न मन्यते-मालवि०. से, उपजोषम (अव्य०) मन या इच्छा के अनुसार, 4, परन्तपो नाम यथार्थनामा - रघु० 6 / 21, वर्णः --उपदेशम (अव्य०) जैसा कि परामर्श या अनुदेश गुप्तचर ('यथार्हवर्ण के स्थान पर), अहं (वि.) ' दिया गया है, उपयोगम् (अव्य०) आवश्यकता या 1. गुणों के अनुसार अधिकारी 2. समुचित, उपयुक्त कार्य की दृष्टि से, परिस्थिति के अनुसार, काम न्यायोचित, वर्णः गुप्तचर, दूत. - अहम्, अर्हतः (वि०) इच्छा के अनुरूप (अध्य० मम्) रुचि के (अव्य०) गुण या योग्यता के अनुरूप-रघु० 16 / / अनुकूल, इच्छा के अनुरूप, मन भर कर - यथाकामा४०, अहणम् (अव्य०) 1. औचित्य के अनुरूप चितार्थानाम् - रधु० 116, 4:51, कामिन् 2. गुण या योग्यता के अनुरूप,-अवकाशम् (अव्य०) / (वि०) स्वतंत्र, प्रतिबंधरहित, ...काल: ठीक या 1. केक्ष या स्थान के अनुसार 2. जैसा कि अवसर / सही समय, उचित समय-रघु० 116 (अव्य-लम्) हो, अवसरानुकूल, अवकाशानुकूल, औचित्यानकल ठीक समय पर, समयानुकूल, मौसम के अनुसार, 3. ठीक स्थान पर प्रालम्बमत्कृप्य यथावकाशं निनाय -सोपसर्जजागार यथाकालं स्वपन्नपि--रघु० 17 / 51, --रघु० 6.14, अवस्थम् (अव्य०) दशा या परि ...कृत (वि.) जैसा कि मान लिया गया है, किसी स्थिति के अनकल, आण्यात (वि०) जैसा कि पहले नियम या प्रथा के अनुसार किया गया, प्रधानुकल उल्लेख किया गया है, पूर्वोल्लिखित,-आख्यातम् ..--मनु०८।१८३, --क्रमम्,- फ्रमेण (अव्य०) ठीक (अव्य०) जैसा कि पहले बतलाया गया है, . आगत क्रम या परंपरा से, नियमित रूप से, सही रूप में, (वि०) मूर्ख, जड, (अव्य 0 -तम) जैसा कि कोई उचित रीति से-रधु० 3 / 10, 9 / 26, क्षमम् आया, उसी रीति से जैसे कि कोई आया यथागतं (अव्य०) अपनी शक्ति के अनुसार, जितना संभव मातलिसारथिर्ययौ-रघु० ३।६७-आचारम् अव्य०) हो, जात वि० मर्ख, अज्ञानी जड, ज्ञानम् (अव्य०) प्रथा के अनुसार, जैसा कि प्रचलन है, आम्नातम्, / व्यक्ति की अधिक से अधिक जानकारी या बुद्धि के - आम्नायम् (अव्य०) जैसा कि वेदों में विहित है, अनुसार, ज्येष्ठम् (अव्य०) पद के अनुसार, वरि----आरम्भम् (अव्य०) आरंभ के अनुसार, नियमित | ष्ठता के अनुसार,-तथ (वि०) 1. सत्य, सही क्रम या अनुक्रम में,---आवासम् (अव्य०) अपने रहने / 2. परिशुद्ध, खरा, (-थम्) किसी वस्तु के विवरण या For Private and Personal Use Only Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 827 ) बिशेषताओं का आख्यान, विवरण मलक या सूक्ष्म / प्रीत्या मैथिलेयौ यथाविधि-१५।३१, ३।७०,-विभकथन, (अव्य० - थम्) 1. यथार्थतः, सूक्ष्मतया 2. सही वम् (अव्य०) अपनी आय के अनुपात से, अपने तौर पर, उचित रूप से, जैसा कि वस्तुतः बात हो, सावनों के अनुरूप,-वृत्त (दि०) जैसा कि हो ---विक,-दिशम् (अव्य०) सब दिशाओं में,-निविष्ट चुका है, किया गया है, (-सम) वास्तविक तथ्य, (वि०) जैसा कि पहले उल्लेख हो चुका है, जैसा किसी घटना की परिस्थितियाँ या विवरण,-शक्ति, कि ऊपर विशेषता बता दी गई है-यथानिर्दिष्ट- - शक्त्या (अव्य०) अपनी अधिकतम शक्ति के व्यापारा सखी..आदि,-न्यायम् (अव्य०) न्यायतः, अनुसार, जहाँ तक संभव हो,--शास्त्रम् (अव्य०) सही रूप से, उचित रीति से--मनु० 111, पुरम् धर्मशास्त्रों के अनुसार जैसा कि धर्मशास्त्रों में (अव्य०) जैसा कि पहले था, जैसा कि पूर्व अवसरों विहित है मनु० 6 / 88,-- श्रुतम् ( अव्य० ) पर था,-पूर्व (वि०), पूर्वक (वि.) जैसा कि 1. जैसा कि सुना है, या बताया गया है पहले था, पूर्ववर्ती-रधु० 12348, (-र्वम्)-पूर्वकम् 2. (यथाश्रुति) वैदिक विधि के अनुसार, संख्यम् (अव्य०) 1. जैसा कि पहले था--मनु० 11 / 187 अलंकार शास्त्र में एक अलंकार यथासंख्यं क्रमेणव 2. क्रम या परंपरा में, क्रमश:----एते मान्या यथापूर्वम् ऋमिकाणां समन्वयः----काव्य. 10.... उदा० शत्रु मित्रं - याज्ञ. ११३५,--प्रदेशम् (अव्य०) 1. उचित या विपत्ति च जय रञ्जय भञ्जय चन्द्रा० 5 / 107, उपयुक्त स्थान में यथाप्रदेशं विनिवेशितेन--कु० (-स्यम्), संख्येन (अव्य०) संख्या के अनुसार, 1 / 49, आसञ्जयामास यथाप्रदेशं कंठे गुणम् --रघु० क्रमशः, संख्या के संख्या- याज्ञ० ११२१,-समयम् 6 / 83, 7 / 34 2. विधि या निदेश के अनुसार, (अव्य०) 1. उचित समय पर करार के अनुसार, ....प्रधानम, ... प्रधानतः (अव्य) पद या स्थिति के सर्वसम्मत प्रचलन के अनुसार, संभव (वि०) शक्य, अनुकूल, पूर्ववर्तिता के अनुसार ---आलोकमात्रेण सुरा- जो हो सके, सुखम् (अव्य०) 1. मन या इच्छा के नशेषान् संभावधामास यथाप्रधानम् --कु० 7146, अनुसार 2. आराम से, सुखपूर्वक, इच्छानुकूल, जिससे .-प्राणम् (अव्य०) सामर्थ्य के अनुसार, अपनी पूरी सुख हो, अङ्के निधाय करभोरु यथासुखं ते संवाहयामि शक्ति से,—प्राप्त (पि०) परिस्थितियों के अनुरूप, चरणावुत पद्मताम्रो-श० 322, रघु० 8 / 48, .-प्राथितम् (अव्य०) प्रार्थना के अनकल,--बलम् 4 / 43, स्थानं सही और उचित स्थान, (अव्य. (अव्य०) अपनी अधिकतम शक्ति के साथ, अपनी -नम्) उचित स्थान पर, ठीक-ठीक, - स्थित (वि०) शक्ति से,–भागम्, -भागशः (अव्य०) 1. प्रत्येक 1. वास्तविक तथ्य या परिस्थितियों के अनु कल, जैसी के भाग के अनुसार, ठीक अनपात से 2. प्रत्येक अपने कि स्थिति हो भट्रि० 88 2. सचमच, उचित रूप ऋमिक स्थान पर-यथाभागमवस्थिता: भग० 1111 से,—स्वम् (अव्य०) 1. अपने अपने क्रम से, क्रमशः 3. ठीक स्थान पर - यथाभागमवस्थितेपि - रघु० .... अध्यासते चीरभृतो यथास्वम् .. रघु० 13 / 22, ६।१९,-भूतम् (अध०) जो कुछ हो चुका उसके कि० 14 / 43 2. वैयक्तिक रूप से रघु० 1765, अनुसार, सचाई के अनुसार, सत्यतः, यथार्थतः,-मुखीन 3. ठीक ठीक, यथोचित, सही रूप से। (वि.) ठीक सामने देखने वाला (संब० के साथ) | यथावत् (अव्य.) [यथा-|-वति 1. ठीक ठीक, ज्यों का - (मृगः) यथामुखीनः सीया: पुप्लुवे बहु लोभयन् त्यों, यथोचित, सही रूप से; प्रायः विशेषण के बल भट्टि० ५।४८,--यथम् (अव्य०) 1. यथा योग्य, के साथ अध्यापिपद् गाविसुतो यथावत्-भट्टि० जैसा कि योग्य है. यथोचित कि० 82 2. नियमित 2 / 21, लिपेर्यथावग्रहणेन– रघु० 3 / 28 2. विधि क्रम में, पृथक पृथक् एक एक करके ...बीजबन्तो या नियम के अनुसार, जैसा कि नियमों द्वारा विहित मुखाद्यर्था विप्राणां यथायथम् सा० द. 337 / है,-ततो यथावद् विहिताध्यराय---- रघु० 5 / 19, मनु० युक्तम्, -योगम् (अब०) परिस्थितियों के अनु- 6 / 1, 8 / 214 / कूल, यथायोग्य, उपयुक्त रूप से, योग्य (वि०) यद् (सर्व० वि०) यज्+अदि, डित् ] (कर्त०, ए० व०, उपयुक्त, योग्य, उचित, सही,---रुचम, - रुचि (अन्य) पुं० यः, स्त्री० या, नपुं० यत् - द्) संबंधबोधक अपनी पसन्द या रुचि के अनुकूल, ... रूपम (अव्य०) सर्वनाम जो जौन सा, जो कुछ (क) इसका उपयुक्त 1. रूप या दर्शन के अनुसार 2. ठीक-ठीक, यथोचित, सहसंबंधी 'तद' है,—यस्य बुद्धिर्बलं तस्य, परन्तु कभीयथायोग्य, वस्तु (अव्य०) जैसे कि तथ्य है, कभी 'तद्' के स्थान पर इदम्, अदस् या एतद् को भी यथार्थतः, विशुद्ध रूप से, सचमच, - विधि (अव्य०) प्रयुक्त किया जाता है, कभी कभी 'यद' शब्द अकेला नियम या विधि के अनुसार, ठीक-ठीक, यथोचित ही प्रयुक्त होता है, तथा उसके सहसबंधी सर्वनाम का ----यथाविधिहुताग्नीनाम्- रघु० 116, संचस्कारोभय- / ज्ञान प्रकरण से ही कर लिया जाता है, दोनों संबंध For Private and Personal Use Only Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 828 ) बोधक सर्वनाम बहुधा एकही वाक्य में प्रयक्त किये। सचमुच-अमङ्गलाशंसया वो बचनस्य यत्सत्यम् कंपितजाते है. यदेव रोचते यस्मै भवेत्तत्तस्य सुन्दरम् (ख) / मिव मे हृदयम्-वेणी० 1, मुद्रा० 1, मृच्छ० 4 / जब इस शब्द की आवृत्ति कर दी जाती है तो इसका यदा (अव्य०) [ यद्काले दाच ] 1. जब, उस समय जब अर्थ होता है 'समष्टि' तथा इस शब्द का अनुवाद कि, यदायदा जब कभी, यदैवतदैव उसी समय, ज्योंही, होता है 'जो कोई' 'जो कुछ'; इस अवस्था में सह- | यदाप्रभति...'तदाप्रति जब से लेकर..... 'तब से संबंधी सर्वनाम 'तद्' की भी आवृत्ति की जाती है-यो लेकर 2. यदि.- पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो यः शस्त्रं बिति स्वभुजगुरुबल: पाण्डवीनां चमनाम / | वसन्तस्य किम्-भत० 2 / 93 3. जब कि, चूंकि, यतः / क्रोधान्धस्तस्य तस्य स्वयमिह जगतामन्तकस्यान्तकोऽहम यदि (अव्य०) [ यद्+णिच् ---इन्, णिलोपः ] 1. अगर, -वेणी० 3 / 30 (ग) जब 'यद' को किसी प्रश्न- जो (दशासूचक, और इस अर्थ में प्रायः विधिलिङ वाचक सर्वनाम या उससे व्युत्पन्न किसी और शब्द के के साथ प्रयोग, परन्तु कभी-कभी भविष्यत्काल अथवा साथ जोड़ दिया जाता है, साथ में निपात 'चिद् चन, वर्तमानकाल के साथ भी; प्रायः इसके पश्चात् 'तर्हि' वा या अपि' लगे हों या न लगे हों, तो इसका अर्थ और कभी कभी 'ततः तदा, तत् या अत्र का प्रयोग होता है 'कुछ भी' 'चाहे जो कोई' 'कोई'; येन केन किया जाता है। - प्राणस्तपोभिरथवाभिमतं मदीयः कृत्यं प्रकारेण जिस किसी प्रकार से, किसी न किसी प्रकार घटेत सुहृदो यदि तत्कृतं स्यात्-मा० 29, वदसि से; यत्र कुत्रापि, यो वा को वा, यः कश्चन आदि; यदि किचिदपि दन्तरुचिकौमदी हरति दरतिमिरमतियत्किचिदेतद् 'यह तो केवल तुच्छ बात है। यानि घोरम्-गीत० 10, यत्ले कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र कानि च मित्राणि -आदि, (अव्य०) अव्यय के रूप (---कस्तहि) दोष:--हि० प्र० 35 2. चाहे, अगर में 'यद' नाना प्रकार से प्रयुक्त होता है 1. किसी .. वद प्रदोषे स्फुटचन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय प्रत्यक्ष या आश्रित वाक्य को आरम्भ करने में अन्त कल्पते-कू० 5 / 44 3. बशर्ते कि, जब कि 4. यदि में चाहे 'इति' हो या न हो-सत्योऽयं जनप्रवादो कदाचित्, शायद-यदि तावदेवं त्रियतां 'शायद आप यत्संपत्संपदमनुबध्नातीति- का० ७३,-तस्य कदा- ऐसा कर सकें'- पूर्व स्पष्टं यदि किल भवेदङ्गमेभिस्तचिच्चिन्ता समुत्पन्ना यदर्थोत्पत्त्युपायाश्चिन्तनीयाः वेति --मेघ० 103, याज्ञ० 3 / 104, (यद्यपि) कर्तव्याश्च--पंच०१ 2. क्योंकि, चंकि---प्रियमाचरितं हालांकि, अगञ-शि० 1682, भग० 138, लते त्वया मे ........"यदियं पुनरप्यपाङ्गनेत्रा परि- श० 1131, यदि वा या,-- यद्वा जयेम यदि वा नो वृत्तार्धमुखी मयाद्य दृष्टा--विक्रम० 1117, या-कि जयेयु:-भग० 216, भर्तृ० 2183, या शायद, कदाशेषष्य भरव्यथा न वपुषि क्ष्मां न क्षिपत्येव यत् चित, भले ही, प्रायः, निजवाचक सर्वनाम से भी -मुद्रा० 2118, रघु० 1127, 87, इस अर्थ में आवश्यकतानुसार आशय अभिव्यक्त कर दिया जाता 'यद' के पश्चात् इसका सहसम्बन्धी तद् या ततः है - उत्तर० 1312, 415 / आता है। दे० नै० 22046 / सम०--- अपि / यदुः[ यज+उ पृषो० जस्य द: 1 एक प्राचीन राजा का (अव्य०) यद्यपि, अगञ---वत्रः पन्था यदपि भवतः नाम, ययाति और देवयानी का ज्येष्ठ पुत्र, यादवों --मेघ० २७,---अर्यम्,---अर्थे (अव्य०) 1. जिस का वंश प्रवर्तक / सम०-कुलोद्भवः,-नन्दनः,-श्रेष्ठः लिए, जिस कारण, जिस वास्ते, जिस हेतु, श्रूयतां / कृष्ण का विशेषण / यदर्थमस्सि हरिणा भवत्सकाशं प्रेषित:-श० 6, कु० / यदृच्छा / यद- ऋच्छ+अ+टाप] 1. मनपसन्द 5 / 52 2. चूंकि, क्योंकि-नूनं देवं न शक्यं हि | करना, स्वेच्छा, (कार्य करने की) स्वतंत्रता 2. संयोग, पुरुषेणातिवर्तितुम, यदर्थ यत्नवानेव न लभे विप्रता घटना, इस अर्थ में प्रायः करण एक ब० में प्रयोग विभो –महा०,- कारणम्,--- कारणात् (अन्य ) होता है और 'घटनावश', 'संयोगवश' शब्दों से अनु1. जिस लिए, जिस कारण 2. चूंकि, क्योंकि,-कृते वाद किया जाता है-किनरमिथनं यदच्छयाऽद्रा(अव्य) जिस लिए, जिस वास्ते, जिस पुरुष या क्षीत्-का०, 'देखने का संयोग हुआ', आदि---वसिवस्तु के लिए,-भविष्यः भाग्यवादी (जो कहता है ष्ठधेनुश्च यदृच्छयाऽऽगता श्रुतप्रभावा ददृशेष नन्दिनी -- 'जो होना है वह होगा') - पंच० १।३१८,-वा --रघु० 3142, विक्रम० 1110, कु० // 14 / सम० (अव्य०) अथवा, या,--नैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो -- अभिज्ञः ऐच्छिक अथवा स्वपुरस्कृत साक्षी, यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:- भग०२।६ (भाष्य- --संवादः 1. अकस्मात् वार्तालाप 2. स्वतःस्फूर्त कार बहुधा इस शब्द को विकल्पार्थ बतलाते समय अथवा संयोगवश मिलन, घटनावश मिलाप। प्रयुक्त करते है), वृत्तम् साहसिकता,--- सत्यम् / यदृच्छातस् (अव्य०) [ यदृच्छा-+-तसिल ] अकस्मात्, / अव्य०) निश्चय ही, सचाई तो यह है कि, सत्यत: / घटनावश, संयोग से। For Private and Personal Use Only Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 829 ) यन्त (0) / यम् +तच्] 1. निदेशक, राज्यपाल, शासक ) या वेदना (जो विवशता से उत्पन्न हो)- अलमल 2. चालक (जैसे कि हाथी का, गाड़ी का), कोच- मुपचारयन्त्रणया मालवि० 4 5. अभिरक्षा, वान सारथि-यन्ता गजस्याभ्यपतद्गजस्थं - रघु० 6. पड़ी। 7 / 37, अथ यन्तारमादिश्य धर्यान् विश्रामयेति सः यन्त्रणी, यन्त्रिणी [यन्त्रण-डीप, यन्त्र+णिनि+डीप] 154 3. महावत, हस्ति चालक, हस्त्यारोही। पत्नी की छोटी बहन, छोटी साली। यन्त्र (भ्वा० चुरा० उभ० यन्नति-ते) नियंत्रण में | यन्त्रिन् (वि०) यन्त्र इनि, यन्त्र+णिनि वा 1. (घोड़ा करना, दमन करना, रोकना, वांधना, कसना, बाध्य आदि) जो जीन व साज से सुसज्जित हो 2. पीड़क, करना शापयन्त्रिनपौलस्त्यबलात्कारकचग्रह : रघु० / सताने वाला, 3. जिसने ताबीज बाधा हुआ हो। 10 / 47, नि , 1. दमन करना, नियंत्रण में यम् (भ्वा० पर० यच्छति, यत, इच्छा० यियंसति) 1. करना बेड़ियाँ डालना 2. कसना; बांधना, सम् , रोकना, दमन करना, नियन्त्रण करना, वश में करना, रोकना, नियंत्रण में करना, ठहराना संयन्त्रितो मया दबाना, ठहराना, बन्द करना- यच्छेद्वाङ्मनसी प्रज्ञः रथः श०७। - - कठ०, यतचित्तात्मन्-भग० 4 / 21, दे० यत यन्त्रम् यन्त्र + अच्] 1. जो नियन्त्रण करता है, या कसता 2 प्रदान करना, देना, अर्पण करना-प्रेर० (यमयति-ते) है, थूणी, खंभा, सहारा टेक जैसा कि गृहयंत्र' में नियंत्रण करना, रोकना आदि, आ. , 1. विस्तार (इस शब्द के नीचे उद्धरण देखिये) 2. बेड़ी, पट्टी, करना, लंबा करना, फैलाना,--वस्त्रम पाणिमायच्छते कसना, कंठबंध या ग्रंथि, चमड़े का तस्मा 3. शल्यो- -सिद्धा०, स्वाङ्गमायच्छमानः-श. 4 (पाठान्तर) पयोगी उपकरण विशेष कर ठछा उपकरण (विप० 2. ऊपर खींचना, वापिस खींचना, आयच्छति कपाद्रशस्त्र) 4. कोई भी उपकरण या मशीन, यन्त्र, ज्जम्, सिद्धा०, बाणामुद्यतमायसीत् --भट्टि०६।११९ साधन, सामान्य उपकरण-कृपयन्त्रम्-मच्छ० 10159, 3. नियन्त्रित करना, थामना, दबाना, (श्वास आदि) 'कएँ से पानी निकालने वाली मशीन' इसी प्रकार रोकना--मनु० 33217, 11 / 100, याज्ञ० 1424, 'तैल, जल आदि 5. चटकनी, कुंडी, ताला अंगड़ाई लेना, (आ०) लम्बा बढ़ जाना 5. ग्रहण 6. नियंत्रण, बल 7. ताबीज़, एक रहस्यमय ज्योतिष करना, अधिकार करना, रखना-श्रियमायच्छमानाका रेखाचित्र जो ताबीज की भांति प्रयुक्त किया भिरुत्तमाभिरनुतमाम्-भट्टि० 8 / 46 6. ले आना, जाय / सम० उपलः चक्की, का पाट, -करण्डिका नेतृत्व करना, उद्-, (प्रायः आ०) 1 उठाना, ऊपर एक प्रकार का जादू का पिटारा, कर्मकृत् (पुं०) करना, उन्नत करना-- बाहू उद्यम्य-श०१, परस्य -कलाकार, शिल्पकार, गृहम् 1. तेली का कोल्हू दण्डं नोद्यच्छेत् मनु० 4 / 104, रघु० 11117, 15 // 2. निर्माणशाला, शिल्पगृह,-चेष्टितम् जादू का कर- 23, भट्टि० 4 / 31 2. तैयार होना, प्रस्थान करना, तब, जादू-टोना, दृढ (वि.) (द्वार) कुंडी या चट आरंभ करना, (संप्र० या तुमुन्नत के साथ) उद्यच्छ खनी जिसमें लगी हुई है, नालम् यन्त्रमूलक कोई माना गमनाय भूयः-रघु० 16 / 29, भट्टि० 8 / 47 नली,-पुत्रकः,-पुत्रिका यन्त्रचालित गुड़िया, या 3. प्रयास करना, घोर प्रयत्न करना- उद्यच्छति पुतलो जिसमें डोरी या तार आदि कोई ऐसी कल वेदम्-सिद्धा० 4. शासन करना, प्रबन्ध करना, लगी हो जिससे कि पुतली नाचे, प्रवाहः पानी की हकमत करना, उप (आ०) 1. विवाह करना एक कृत्रिम सरिता ...-रधु०१६।४९,-मार्गः एक नली -~-भवान्मिथः समयादिमामुपायंस्त श० 5, या पतनाला,-शरः कोई तीर या अस्त्र जो किसी (मेना) आत्मानुरूपां विधिनोपयेमे कु० 1118 यंत्र द्वारा छोड़ा जाय। रघु० 14187, शि० 1527 2. पकड़ना, थामना, यन्त्रकः यिन्त्र बुल] 1. जो कल-पूजों से सुपरिचित हो लेना, स्वीकार करना, अधिकार करना -शस्त्राण्य 2. कुशल यान्त्रिक,-कम् 1. पट्टी (आयु० में) पायंसत जित्वराणि-भट्टि० 1116, 15 / 21, 8 / 33 2. खैराद. 3. प्रकट करना, संकेत करना-भट्टि० 7.101, यन्त्रणम्,--णा [यन्त्र-+ल्युट, स्त्रियां टाप च] 1 नियंत्रण, नि-, 1. नियंत्रित करना, दमन करना, रोकना, वश दमन, रोक-थाम करयन्त्रणदन्तुरान्तरे व्यलिखच्चञ्चु- में करना, शासन करना-प्रकृत्या नियताः स्वया पुटेन पक्षति,-नै० 2 / 2 2. नियन्त्रण, प्रतिबंध, रोक -भग० 7120, (सुता) शशाक मेना न नियन्तुम- ह्रीयन्त्रणां तत्क्षणमन्वभूवन्नन्योन्यलोलानि विलोच- द्यमात् कु० 5 / 5, 'उसे हटा नहीं सका' आदि नानि -कु०७।७५, रघु० 723 3. कसना, बांधना, 2. दबाना, निलंबित करना, रोकना, (श्वास आदि) -निबिडपीनकुचद्वययन्त्रणा तमपराधमधात् प्रतिबध्नती ---- मनु० 2 / 192 - न कथंचन दुर्योनिः प्रकृति स्वां ---04 / 10 4. बल, बाध्यता, निग्रह, कष्ट, पीड़ा / नियच्छति - मनु० 1059, 'न दबाता है न छुपाता For Private and Personal Use Only Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 830 ) है' आदि 3. दान करना, देना-कोन: कुले निवपनानि | यम का सेवक या टहलुआ, अन्तक: 1. शिव का नियच्छतीति ---श०६।२४ 3, सजा देना, दण्ड देना विशेषण 2. यम का विशेषण किङ्करः यम का सेवक, नियन्तव्यश्च राजभिः .. मन० 9 / 2 / 13 5. विनिय- मृत्यु का दूत, -- कोल: विष्णु,–ज (वि०) जन्म से मित करना या निदेशित करना 6. प्राप्त करना, जुड़वा, यमल - भ्रातरौ आवां यमजौ उत्तर० 6, अवाप्त करना-तालज्ञश्चाप्रयासेन मोक्षमार्ग निय- दूतः / मृत्य का दूत 2. कौवा, द्वितीया कार्तिक च्छति- याज्ञ० 3 / 115, मन्० 2193 7. धारण शुक्ला दूज जब वर्ने अपने भाइयों का सत्कार करना (प्रेर०) 1. नियंत्रित करना, वश में करना, करती हैं, भाईदूज, तु० भ्रातद्वितीया, धानी यम का विनियमित करना, रोकना, दण्ड दना---नियमयसि निवास स्थान नरः संसारान्ते विशति यमधानीजबविमार्गप्रस्थितानातदण्ड: श० 568 2. बाँधना, निकाम भर्त० 3 / 112, भगिनी यमना नदी, कसना शि० 7 / 50, रघु० 5 / 73 3. मर्यादित यातना मरणोपरांत पापियों को यम के द्वारा दी करना, हलका करना, विश्राम देना कु. 1161, जाने वाली पीड़ा (कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विनि-, दमन करना, नियंत्रण रखना, भग०६।२४, 'भीषण यातनाए' या 'घोर पीड़ा' प्रकट करने के सम् 1. नियंत्रित करना, दमन करना, रोकना, लिए भी किया जाता है), राज (पुं०) यम, मृत्यु नियंत्रण में रखना (आ.)-भग०६।३६, मनु० का देवता, सभा यमराज की न्यायसभा, सूर्यम् एक 211002. बांधना, कैद करना, कसना, बंदी बनाना भवन जिसमें केवल दो कमरे हो, एक का मुंह पश्चिम -वानरं मा न संयसीः - भट्रि० 9 / 50, मालवि० 17, को तथा दूसरे का उत्तर को हो। रघु०३।२०, 42 3. एकत्र करना (आ)-व्रीहीन्स- | यमकः [ यम+स्वार्थ कन् ] 1. प्रतिबंध, रोक 2. यमल यच्छते---सिद्धा० . बन्द करना, भेड़ना भग० या जुड़वाँ 3. एक महान् नैतिक या धार्मिक कर्तव्य 8 / 12 / दे० यम,~कम् 1. दोहरी पट्टी 2. (अलं० में) यमः। यम-घन 11. संयत करना, नियंत्रित करना, एक ही श्लोक में किसी भी स्थान पर शब्दों या अक्षरों दमन करना 2. नियन्त्रण, संयम 3. आत्मनियन्त्रण की पुनरावृत्ति परन्तु अर्थ की भिन्नता के साथ, एक 4. कोई महान् नैतिक कर्तव्य या धर्मसाधना (विप० प्रकार की लय (इसके कई भेदों का वर्णन- काव्या० नियम)-तप्तं यमेन नियमेन तपोऽमनैव-नै० 13 / 16, 3 / 2 / 52 में किया है) आवृत्ति वर्णसंघातगोचरां यमक यम और नियम को निम्न प्रकार से भिन्नता दर्शायी विदुः - काव्या० 1161, 3 / 1, सा० द० 640 / गई है--शरीरसाधनापेक्ष नित्यं यत्कर्म तद्यमः, निय- यमन (वि.) (स्त्री०-नी) [यम् + ल्युट् ] संयमी, मस्तु स यत्कर्म नित्यमागन्तुसाधनम् अमर, दे० दमन करने वाला, शासक आदि,-नम् 1. संयम कि० 1010 पर मल्लि० भी; यमों की संख्या करना, दमन करना, बाँधना 2. ठहरना, थमना बहुधा दस बतलाई जाती है, परन्तु भिन्न भिन्न 3. विराम, विश्राम,---नः मृत्यु का देवता यम / लेखकों ने उनके भिन्न भिन्न नाम दिये है-- उदा० | यमनिका| यमन-कन्-टाप, इत्वम् | परदा, ओट, तु० ब्रह्मचर्य दया क्षान्तिदर्शनं सत्यमकल्कता, अहिंसाऽस्ते- जवनिका / यमाधुय दमश्चात यमाः स्मृताः याज्ञः 313, ममल (वि०) यम-ला+क] जोड़वां, जोड़ी में से एक, या आनुशंस्यं दया सत्यमहिसा क्षान्तिरार्जवम् , -ल: दो की संख्या, लौ (द्वि० व०) जोंडी, लम् प्रोतिः प्रसादो माघुर्य मार्दवं च यमा दश / कभी -ली मिथुन, जोड़ी। कभी यम केवल पांच ही बताये जाते है- अहिंसा / रासस / / यमवत् (वि.) [यम-1 मतप, वत्वम् ] जिसने अपनी सत्यवचनं ब्रह्मचर्यमकल्कता, अस्तेयमिति पंचैव / वासनाओं पर संयम कर लिया है, आत्म नियंत्रित यमाख्यानि ब्रतानि च 5. योग प्राप्ति के आठ -यमवतामवतां च धुरि स्थितः - रघु० 9 / 1 / अंगों या साधनों में पहला साधन / आठ अग यह है ! यमसात (अव्य यम--साति ] यम के हाथों में, यमकी - यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाध-! शक्ति में, यमसात कृ मृत्यु को सौंपना / योऽष्टावंगानि 6. मृत्यु का देवता, मृत्यु का मूर्त | यमुना [ यम्+उनन्+-टाप् ] एक प्रसिद्ध नदी का नाम रूप, यह सूर्य का पुत्र माना जाता है - दत्ताभये त्वयि / (जो यम की बहन मानी जाती है। सम० भ्रात यमादपि दण्डधारे उत्तर० 2 / 11 7. यमल-धर्मा- (पं०) मत्यु का देवता यम / त्मज प्रति यमौ च (अर्थात् नकुलसहदेवी) कथैव ययातिः यस्य वायोरिव यातिः सर्वत्र रथगतिर्यस्य ] एक नास्ति --वेणी० 2 / 25, यमयोश्चैव गर्भेष जन्मतो प्रसिद्ध चन्द्रवंशी राजा का नाम, नहुष का पुत्र, ज्येष्ठता मता- मनु० 9 / 126 8. जोड़े में एक ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह ---मम् जोड़ा, जोड़ी। सम० अनुगः -अनुचरः . किया। दैत्यों के राजा बषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा पर आनृशंस्य यमाः स्मृताःता, अहिंसा For Private and Personal Use Only Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 831 ) दासी के रूप में देवयानी के साथ गई, क्योंकि इसने / यवनः [ यु+युच् ] 1, ग्रीस देश का निवासी, यूनान देश किसी समय देवयानी का अपमान किया था और उस | का वासी 2. विदेशी, जंगली--मनु० 10144 (आजअपमान की क्षति पूर्ति के लिए आज शमिष्ठा को कल इस शब्द का प्रयोग मुसलमान और यूरोपियन देवयानी की सेविका वनना पड़ा (दे० देवयानी)। के लिए भी किया जाता है) 3. गाजर। परन्तु ययाति को इस दासी से प्रेम हो गया, फलतः यवनानी [ यवनानां लिपि: यवन+आनुक, डीप च] उसने गुप्त रूप से उससे विवाह कर लिया। इस | यवनों की लिपि या लिखावट / / बात से खिन्न होकर देवयानी अपने पिता के पास | यवनिका, यवनी [यु-+ ल्यट-डीपयवनी---कन्+ चली गई और उनसे अपने पति के आचरण को टाप, हस्वः / 1. यवनस्त्री, ग्रीस देश की स्त्री या शिकायत की। शुक्राचार्य ने ययाति को प्राक्कालिक मुसलमानी,- यवनी नवनीतकोमलांगी-जग०, यवनीबार्धक्य तथा अशक्तता से ग्रस्त कर दिया। ययाति मुखपद्मानों सेहे मधुमदन सः 10 4161, (नाटकों ने जब बहुत अनुनय-विनय किया तो प्रसन्न होकर से ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व काल में यवन बालाएं शुत्राचार्य ने ययाति को अनुमति दे दी कि यह अपने राजाओं की दामियों के रूप में नियक्त की जाया बुढ़ापे को जिस किसी को दे सकता है यदि वह लेना करती थीं विशेषकर राजाओं के धनुष और तरकस को स्वीकार करे। उसने अपने पांचों पुत्रों से पूछा, संभालने के लिए, 10 एष बाणासहस्ताभियंवनीभिः परन्तु सब से छोटे पुरु को छोड़कर किसी ने भी परिवत इत एवागच्छति प्रियवयस्य:-०२, प्रविश्य बुढ़ापा लेना स्वीकार नहीं किया। फलस्वरूप ययाति शाहस्ता यवनी श०६, प्रविश्य चापहस्ता यवनी ने अपना बुढ़ापा पुरु को देकर उसकी जवानी ले लो। -विक्रम० 5 आदि) 2. परदा / इस प्रकार इस समद्ध यौवन को पाकर ययाति फिर यवसम् [ यु | असच् ] घास, चारा, चरागाहों का पास विषयवासनाओं तथा आमोद प्रमोद में व्यस्त रहने यवसघनम् पंच० 1. याज्ञ० 3130, मनु० 775 / लगा। इस प्रकार का क्रम 1000 वर्ष तक चला यवागू (स्त्री०) यूयते मियते-..यु-+आगू] चावलों परन्तु ययाति की तृप्ति नहीं हई। आखिरकार, का नांड, चावलों के माड़ की कांजी, या जौ आदि बड़े प्रयत्न के साथ ययाति ने इस विलासी जीवन को किसी और अन्न की कांजी यवागूविरलद्रवा-सुथु०, छोड़कर, पुरु की जवानी उसको वापिस कर दी और मुत्राय कल्पते यवाग:-.-महा। उसे राज्य का उत्तराधिकारी बना स्वयं पवित्रजीवन यवानिका, यवानी [ दुप्टो यवो यवानी-यव+डीप, बिताने तथा परमात्मचिन्तन करने के लिए बन को आनुक, पक्षे कन्+टाप, ह्रस्वः | अजवायन / प्रस्थान किया] 5. यविष्ठ (वि०) [युदन-इप्ठन, यबादेश: / कनिष्ठ, ययावर:-:यायावर दे० / सबसे छोटा, प्ठः सबसे छोटा भाई, कनिष्ठ ययिः,- यी (पुं०) या+ई, कित्, धातोद्वित्वम् | भ्राता। 1.अश्वमेध या अन्य किसी यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा-शि० | यवीयस् (वि.) [ युवन् / ईयसुन् यवादेशः ] छोटा, 15 / 69 2. घोड़ा। बच्चा,-पुं० 1. छोटा भाई 2. शूद्र / यहि (अव्य०) यद्+हिल ] 1. जब, जब कि, जब यशस् (नपु०) / अश् स्तुती असुन् घातो: युट् च् ] कभी 2. क्योंकि, यतः, चूंकि, (इसका उपयुक्त सह- प्रसिद्धि, ख्याति, कीति, विश्रुति - विस्तीर्यते यशो संबन्धी 'तहि' या 'एतहि है परन्तु अत्युत्तम साहित्य लोके तेलबिन्दुरिवाम्भसि-मनु० 7 / 34, यशस्तु रक्ष्य में इसका विरल प्रयोग है)। परतो यशोधनः-रघु० 3.48, 2 / 40 / सम० यवः [युअच् ] 1. जो यवा: प्रकीर्णाः न भवन्ति -कर (वि०) (यशस्कर) कीर्ति देने वाला यशस्वी शालयः मच्छ० 4 / 17 2. जौ के दाने या जौ के मन० ८।३८७,-काम (वि०) (यशस्काम) दानों का भार 3. लम्बाई की एक नाप - एक अंगुल 1. प्रसिद्धि प्राप्त करने का इच्छुक 2. उच्चाकांक्षी, का 1/6 या 1/8 4. हाथ की अंगुलियों में बना जौ महत्त्वाकांक्षी,-कायम्, शरीरम् प्रसिद्धि के रूप में के दाने का चिह्न जो धनधान्य, प्रजा, और सौभाग्य शरीर, कीर्तिदेह,-यशः शरीरे भव मे दयालु:-रघु० का सूचक है। सम० -अङ्कुरः, प्ररोहः जौ का 2157, रघु० 1157, भर्तृ० २१३४,-व (वि०) अंखुवा या पत्ती,--आग्रयणम् जो की खेती का पहला (यशोद) कीर्तिकर (व:) पारा (दा) नन्द की पत्नी फल, - क्षारः जवाखार, शोरा, सज्जी, शकः:,-शूकजः और कृष्ण की पालक माता का नाम, -धन (वि०) जो की भूसी को जला कर उसकी राख से तैयार (वि०) कीति ही जिसका धन है, ख्याति में समृद्ध, किया गया क्षारीय नमक, सज्जी,-सुरम् जौ की अत्यंत विश्रुत-अपि स्वदेहात् किमुतेन्द्रियार्थात् यशोशराब, यवमद्य / घनानां हि यशो गरीयः-रघु०१४॥३५, २।१,-पटहः For Private and Personal Use Only Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 832 ) यशरूपी ढोल,-शेष (वि.) जिसकी केवल ख्याति / होना-यातस्तवापि च विवेकः ---भामि० 1168, शेप हो, सिवाय कौति के जिसका और कुछ न बचा भाग्यक्रमेण हि धनानि भवन्ति यान्ति मच्छ० 1113 हो,-अर्थात् मृतव्यक्ति, तु. कीर्तिशेष, (षः) मृत्यु / 6. गुजर जाना, बीतना (समय का)---यौवनमनियशस्य (वि.) [यशसे हितं-यत् ] 1. सम्मान या कीर्ति वति यातं तु काव्य० 10 7. टिकना 8. होना, __ की ओर ले जाने वाला--मनु० 2152 2. विश्रुत, घटित होना 9. जाना, घटना, होना (प्रायः भावप्रसिद्ध, विख्यात / वाचक संज्ञा के कर्म के साथ) 10 उत्तरदायित्व यशस्विन् (वि०) | यशस्+विनि ] प्रसिद्ध, विख्यात, संभालना न त्वस्य सिद्धौ यास्यामि सर्गव्यापारविश्रुत / मात्मना -- कु० 2 / 54 11. मैथुनसबंध स्थापित यष्टिः,-ष्टी (स्त्री०) यज् + क्तिन, नि० न संप्रसारणम्] / करना 12. प्रार्थना करना, याचना करना 13. ढूंढना, 1. लकड़ी, लाठी 2. सोटा, गदका, गदा 3. खंभा, सतून, खोजना ('गम्' की भांति 'या' के अर्थ भी संयक्त स्तम्भ 4. अड्डा-जैसा कि 'वासयष्टि' में 5. वन्त, संज्ञा शब्द के अनुसार नाना प्रकार से बदलते रहते सहारा 6. झंड़े का डंडा जैसा कि ध्वजयष्टि' में है.----उदा० अग्रे या आगे आगे चलना, नेतृत्व करना, 7. डंठल, वन्त 8. शाखा, टहनी 'कदम्बयाष्टिः स्फूट- मार्ग दिखाना, अधो या डबना, अस्तं या छिपना, कोरकेव-उत्तर० 3.41, इसी प्रकार 'चूतयष्टि:-कू० अस्त होना क्षीण होना, उदयं या उदय होना नाशं या 6 / 2, सहकारयष्टि: आदि 9.डोरी, लड़ी, (जैसे मोतियों नष्ट होना, निद्रां या सो जाना पदं या पद प्राप्त को) हार,-विमुच्य सा हारमहायंनिश्चया विलोल- करना, पारं या पार जाना, स्वामी होना, पार कर यष्टिः प्रविलुप्तचन्दनम्- कू० 5 / 8, रघु० 13154 जाना, आगे बढ़ जाना, प्रकृति या फिर स्वाभाविक 10. कोई लता 11. कोई भी पतली या सुकुमार वस्तु अवस्था को प्राप्त करना, लघुता या हलका होना, ('शरीर' अर्थ को प्रकट करने वाले शब्दों के पश्चात् वशं या बस में होना, अधिकार में आना, वाच्यतां समास के अन्त में प्रयोग)-तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसा या कलङ्कित या निन्दित होना, विपर्यासं या परिवर्तित नयष्टि: कु० 5 / 85, पसीने से तर सूकुमार अंगों होना, रूप बदलना, शिरसा महीं या भूमि पर सिर वाली। सन० - ग्रहः गदाधारी, लाठी रखने वाला झकाना आदि), प्रेर० . (यापयति-ते) 1. चलाना, ---निवासः मोर आदि पक्षियों के बैठने का अड्डा आगे बढ़ाना 2. हटाना, दूर हांकना-रघु० 9 / 31 -वृक्षेशया यष्टिनिवासभङ्गात्-रषु० 16 / 14 3. व्यय करना, (समय) बिताना-तावत्कोकिल 2. खड़े हुए डंडों पर स्थिर कबूतरों का घर या छतरी, विरसान्यापय दिवसान- भामि० 117, मेघ० 89 -प्राण (वि०) 1. निर्बल, शक्तिहीन 2. प्राणहीन / 1. सहारा देना, पालनपोपण करना, इच्छा० यष्टिक: [यष्टि-!-कन् टिटिहरी पक्षी / (यियासति) जाने की इच्छा करना, जाने को होना; यष्टिका [ यष्टिक ---टाप् ] 1. लाठी, डंडा, सोटा, गदका अति --, 1. पार जाना, अतिक्रमण करना, उल्लंघन 2. (एक लड़का) मोतियों का हार / करना 2. आगे बढ़ना,- अधि-, चले जाना, आग यष्टी दे० यष्टि। बढ़ना, बच निकलना कुतोऽधियास्यसि कर निहयष्ट्ट (पुं०) [ यज् +तृच ] पूजा करने वाला, यजमान / तस्तेन पत्रिभिः - भट्टि० 890, अनु--, 1. अनुसरण यस् (भ्वा० दिवा० पर० यसति, यस्यति, यस्त) प्रयास करना, पीछे जाना (आलं० से भी) अनुयास्यन्मुनिकरना, कोशिश करना, परिश्रम करना। प्रेर० (यास तनयां--- श० श२९, कु० 4 / 1, भट्टि० 177 यति-ते कष्ट देना, आ-1. प्रयास करना, कोशिश 2. नकल करना, वरावर करना--स किलानुययस्तस्य करना, चेष्टा करना - मुद्रा० 3.14 2. थका देना, राजानो रक्षितुर्यश:-रघु० 27, 9 / 6, शि० थक जाना—नायस्यसि तपस्यन्ती-भट्टि० 6 / 69, 1213 3. साथ चलना, अनुसम्-, क्रमशः चलना, 15 / 54, (प्रेर०) - कष्ट देना, सताना, पीड़ा देना अप-,चले जाना, विदा होना, वापिस होना, प्र--, प्रयास करना, कोशिश करना। अभि , पहुँचना, जाना, नजदीक होना-अभिययौ स या (अदा० पर० याति, यात) 1. जाना, हिलना-जुलना, हिमाचलमुच्छितम्---कि० 5 / 1, रघु० 9 / 27 चलना, आगे बढ़ना, ययौ तदीयामवलम्ब्य चालिम् | 2. प्रयाण करना, आक्रमण करना-रघु० 5 / 30 ---.-रघु० 3 / 25, अन्वग्ययौ मध्यमलोकपाल:-..-.२।१६ 3. संलग्न करना, आ-, 1. आना, पहुँचना, निकट 2. चढ़ाई करना, आक्रमण करना मनु० 7.183 होना 2. पहुँचना, प्राप्त करना, भुगतना, किसी भी 3. जाना, प्रयाण करना, कच करना / कर्म या संप्र० अवस्था में होना, क्षयं, तुलां, नाशम् आदि, उप--, के साथ अथवा 'प्रति' के साथ) 4. गुजर जाना, 1. पहँचना, निकट जाना--कि० 616 2. (किसी वापिस होना, बिदा होना 5. नष्ट होना, ओझल विशेष अवस्था को) प्राप्त होना-मृत्यु, तनुताम्, For Private and Personal Use Only Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 833 ) रुजम् आदि, निस्---, 1. निकलना, बाहर जाना | याजनम् यज+णिच+ल्युट्] यज्ञ का संचालन या अनु--- रघु० 12 / 83 2. गुजरना, (समय) बीतना, ष्ठान कराने की क्रिया- मनु० 3165, 1288 / परि-, चारों ओर घूमना चक्कर काटना, प्रदक्षिणा | याज्ञसेनी | यज्ञसेन- अण+डीप] द्रौपदी का पितृपरक करना, प्र--, 1. चलना, जाना-वस्ताद्भुतं नगरदैवत- | नाम। वत्प्रयासि - मच्छ० 1127 2. प्रयाण करना, कूच याज्ञिक (वि.) (स्त्री०-को)[यज्ञाय हितं, यज्ञः प्रयोजनकरना, प्रति , वापिस जाना, लौटना-रघु० 1175, मस्य वा ठक्] यज्ञसंबंधी, - कः यज्ञ कराने वाला, या 15 / 18, 8 / 90, प्रत्युत्-, (आदर स्वरूप) उठकर यज्ञ करने वाला, या यज्ञ कराने वाला पुरोहित / मिलना, अभिवादन करना, सत्कार करना ताना- याज्य (वि.) [यज्+ण्यत्] 1. त्याग करने के योग्य नय॑मादाय दूरात्प्रत्युद्ययो गिरिः- - कु० 6 / 50, मेघ० 2. यज्ञ संबंधी 3. जिसके लिये यज्ञ किया जाय 22, रघु० 1249, विनिस्-, बाहर जाना, निकल 4. शास्त्र द्वारा जो यज्ञ करने का अधिकारी माना जाना, में से चले जाना-प्राणास्तस्या विनिर्ययुः, है,--ज्यः यज्ञकर्ता, यज्ञसंस्थापक,-ज्यम् उपहार या -सम्, 1. चले जाना, बिदा होना, मार्ग पार कर दक्षिणा जो यज्ञ कराने के उपलक्ष्य में प्राप्त हो। लेना-घग० 15 / 8 2. जाना, प्रविष्ट होना-तथा यात (भू. क० कृ०) या+क्त] 1. गया हुआ, प्रयात, शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही चला हुआ 2. गुजरा हुआ, विजित, दूर गया हुआ -भग० 2 / 22 3. पहुँचना।। (दे० 'या'),-तम् 1. चाल, गति 2. प्रयाण 3. भूतयागः [यज्+घा, कुत्वम्] 1. उपहार, यज्ञ, आहुति काल। सम०-याम्,-यामन् (वि.) 1. बासी, 2. कोई भी अनुष्ठान जिसमें आहुतियाँ दी जायं इस्तेमाल किया हुआ, विकृत, परित्यक्त, जो निरर्थक --रघु० 8 / 30 / हो गया है - अयातयामं वयः दश 2. कच्चा, अघयाच (भ्वा० आ० याचते-विरल प्रयोग-याचति याचित) पका (भोजन आदि)--यातयामं गतरसं प्रति पर्यषितं मांगना, याचना करना, निवेदन करना, प्रार्थना च यत्-भग० 17 / 20 3. जीर्ण, थका हुआ, घिसा करना, अनुरोध करना, अनुनय-विनय करना (द्विकर्म० हुआ। के साथ)-बलिं याचते वसुधाम्-सिद्धा०, पितरं यातनम् [यत्+णिच् + ल्युट्] 1. प्रतिकार, बदला, प्रतिप्रणिपत्य पादयोरपरित्यागमयाचतात्मन:-रधु. शोध, प्रतिहिंसा जैसा कि 'वैरयातनं' में 2. प्रतिहिंसा, 8 / 12, भट्टि० 14 / 105 (उपसर्ग लगने पर इस वैरशोधन, ना 1. प्रतिशोध, क्षतिपूर्ति, बदला धातु के अर्थों में कोई महान् परिवर्तन नहीं होता)। 2. संताप संपीडन, वेदना 3. यम के द्वारा पापियों याचकः (स्त्री०-की) [याच -+ ण्वुल] भिक्षक, भिखारी, आवे- को दी गई यातना, नरक की यन्त्रणा (ब० व०)। दक-तृणादपि लघुस्तूलस्तूलादपि च याचक:-सुभा०। | यातुःया+तुन्] 1 यात्री, बटोही 2. हवा 3. समय, पुं०, याचनम्,-ना [याच्+ल्युट, स्त्रियां टाप् च] 1. मांगना, नपुं० भूतप्रेत, पिशाच, राक्षस / सम...धान भूत याचना करना, निवेदन करना, 2. प्रार्थना, अनुरोध, / प्रेत, पिशाच,---भट्टि० 2 / 21, रघु० 12145 / आवेदन - याचना माननाशाय, बध्यतामभययाचना यात (स्त्री०) [यत्+ऋन्, वृद्धिश्च] जिठानी या जलि:---रघु० 1178 / देवरानी। याचनकः [याचन्+कन्] भिखारी, अभियोक्ता, आवेदक / / यात्रा [या ष्ट्रन्+टाप्] 1. जाना, गति, सफर, महावी. याचिष्णु (वि०) याच् + इष्णुच] भीख मांगने पर उतारू 6 / 1, रघु० 18 / 16 2. सेना का प्रयाण, चढ़ाई, याचनाशील, मांगने के स्वभाव वाला। आक्रमणमार्गशीर्षे शुभे मासि यायाद्यात्रां महीपतिः याचित (भू० क० कृ०) [याच्+क्त] मांगा गया, निवेदन —मनु० 7 / 181, पंच० 3 / 37, रघु० 17156 किया गया, याचना किया गया, अनुरोध किया गया, 3. तीर्थाटन यथा तीर्थयात्रा 4. तीर्थ यात्रियों का प्रार्थना की गई। समूह 5. उत्सव, पर्व, किसी उत्सव या संस्कार का गचितकम् [याचित+कन्] भिक्षा में प्राप्त वस्तु, उधार अवसर-कालप्रियानाथस्य यात्राप्रसङ्गेन--मा० 1, ली हुई कोई वस्तु / उत्तर. 6. जुलूस, उत्सवयात्रा, प्रवृत्ता खल यात्राभियाचना [याच+न+टाप्] 1. मांगना, याचना करना मुखं मालती-मा० 6, 62 7. सड़क 8. जीवन का 2. भिखारीपन 3. प्रार्थना, निवेदन, अनुरोध-याच्या सहारा, जीविका, निर्वाह, यात्रामात्र प्रसिद्धयर्थ--मनु. मोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा-मेघ०६ / 4 // 3, शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मण: याजक: [यज्+णिच्+ण्वुल] 1 यज्ञ कराने वाला, यज्ञ -भग० 3.8 1. (समय का) बीतना 10. संव्यवहार कराने वाला पुरोहित 2. राजकीय हाथी 3. मदो- -यात्रा चैव हि लौकिकी-मनु० 111184, लोकन्मत्त हाथी। यात्रा वेणी० 1, मनु० 9 / 27. 11. रीति, उपाय, 105 For Private and Personal Use Only Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 834 ) तरकीब 12. प्रथा, प्रचलन, दस्तुर, रीति-एषोदिता। 4. विलम्ब, दीर्घसूत्रता 5. सहारा, निर्वाह 6. प्रचलन, लोकयात्रा नित्यं स्त्रीपुंसयोः परा - मनु० 9 / 25, अभ्यास। (लोकचारः-कुल्लू०) 13. वाहन, सवारी। याप्य (वि.) [या--णिच् + ण्यत्, पुकागमः] 1. हटाये यात्रिक (वि.) (स्त्री०-की) [यात्रा+ठक] 1. यात्रा | जाने के योग्य, निकाले जाने के योग्य अथवा करता हुआ 2. किसी यात्रा या आन्दोलन से सम्बद्ध अस्वीकार किय जाने के योग्य 2. नीच, तिरस्करणीय, 3. जीवन-धारण की आवश्यक सामग्री 4. प्रचलित, मामूली, अनावश्यक / सम० --यानम् शिविका या प्रथानुकूल, -कः यात्री, - कम् 1. प्रयाण, अभियान या पालकी, डोली। चढ़ाई 2. खाद्य सामग्री, (यात्रा के लिए) रसद, यामः [यम-घा ] 1. निरोध, धैर्य, नियन्त्रण 2. पहर, सम्भरण / दिन का आठवाँ भाग, तीन घंटे का समय-पश्चियायातथ्यम् [यथातथ+व्या 1. वास्तविकता, सचाई माद्यामिनीयामात्प्रसादमिव चेतना-रघु० 17.1, 2. न्याय्यता, औचित्य / / इसी प्रकार यामवती, त्रियामा आदि / सम०--घोषः याथार्यम् [यथार्थव्यञ] 1. वास्तविक या सही प्रकृति, 1. मुर्गा 2. घण्टा या घड़ियाल जिससे रात के पहरों सचाई, सच्चा चरित्र-न सन्ति याथार्थ्यविदः पिना- | की टनटन होती है-मन्द्रध्वनित्याजितयामतूर्यः-रघु० किन:-कु० 5 / 77, रघु० 10 / 24 2. न्याय्यता, 656, यमः प्रत्येक घण्टे के लिए निर्दिष्ट कार्य, उपयुक्तता 3. उद्देश्य की पूर्ति या निष्पन्नता। -वृत्तिः (स्त्री०) पहरा देना, चौकीदारी करना / यादवः [यदोरपत्यम् - अण् यदु की संतान, यदुवंशी। यामलम [यमल / अण जोडी, मिथन / यावस् (नपुं०) [यान्ति वेगेन--या+असुन्, दुगागमः] | यामवती [याम+मतुप, वत्वम्, डीप] रात-कि० 8 / 56, कोई भी विशालकाय जलजन्तु, समुद्री दानव-यादांसि | यामिः,-मी (स्त्री०) [याति कुलात् कुलान्तरम् -या+मि, जलजन्तवः-अमर०, वरुणो यादसामहम्-भग० डीप् च] 1. बहन (दे० जामि)-शि० 15 / 53 10 / 29, कि० 5 / 29, रघु० 1116 / सम० पतिः, 2. रात / --नायः (यादसां पतिः, यादसां नाथः भी) 1. समुद्र, यामिकः यामे नियक्तः याम+ठक] पहरेदार, रात को 2. वरुण का नाम-रघु०१७।२१ / - पहरे पर नियुक्त, चौकीदार--नै० 5 / 110 / / यावृक्ष (वि.) (स्त्री०-क्षी), यादृश, यादृश (वि०) / यामिका, यामिनी यामिक +टाप, याम+इनि+डीप्] (स्त्री० शी) [यद् + दृश्+क्त, क्विन्, कञ वा, रात-सविता विधवति विधुरपि सवितरति दिनन्ति आत्वम् जिस प्रकार का, जिसके समान, जिस प्रकृति यामिन्यः, यामिनयन्ति दिनानि च सुखदुःखवशीकृते का, जैसा। मनसि-काव्य० 10 / सम० पतिः 1. चन्द्रमा यादृच्छिक (वि.) (स्त्री०–को) [यदृच्छा+ठऋ] 2. कपूर / 1. ऐच्छिक, स्वतः स्फूर्त, स्वतंत्र 2. आकस्मिक, यामुन (वि०) (स्त्री० नी) [यमुना+अण्] यमुना से अप्रत्याशित / संबद्ध, या निकला हुआ, या यमुना से उत्पन्न, नम् यानम् या भावे ल्युट] 1. जाना, हिलना-जुलना, चलना एक प्रकार का अंजन, सुर्मा। टहलना, सवारी करना जैसा कि गजयानम, उप्ट यामुनेष्टकम् [यमुना-+इष्टकम्] सीसा, रांग।। रथ आदि 2. जलयात्रा, यात्रा-समुद्रयानकुशलाः : याम्य (वि.) [यम+प्य] 1. दक्षिणी-द्वारं रंघतुर्या--मनु०८।१५७, याज्ञ० 1114 3. अभियान करना, म्यम्--भट्टि० 14 / 15 2. यम से संबंध रखने वाला आक्रमण करना (राजनीति के छ: गुणों में से एक) या यम से मिलता जुलता / सम०-अयनम् दक्षिणायन, -अहितान् प्रत्यभीतस्य रणे यानम् - अमर०, मनु० मकरसंक्रांति, उत्तर (वि.) दक्षिण से उत्तर को 7 / 160 4. जलूस, परिजन 5. सवारी, वाहन, गाड़ी, जाने वाला। रथयानं सस्मार कौवेरम् --रघु० 15 / 45, 13169, याम्या [याम्य+टाप्] 1. दक्षिणदिशा 2. रात्रि / कु० 6176, मनु० 4 / 120 / सम० पात्रम् जहाज़, यायजूकः [यज्-+-यङ्-+ऊक] बार 2 यज्ञ का अनुष्ठान नोका,-भङ्गः जहाज़ का टूट जाना,--मुखम् गाड़ी का करने वाला, जो लगातार यज्ञ करता रहता है, अगला भाग, गाड़ी का वह भाग जहाँ जूआ बांधा इज्याशील--तं यायजूक: सह भिक्षमख्यः-भट्टि जाता है। 2 / 20 / यापनम्, ना [या+णिच् + ल्युट, पुकागमः, स्त्रियां टाप् यायावर (वि.) [पुनः पुनः याति देशान्तरं गच्छति या च] 1. जाने देना, हांक कर बाहर निकालना, +यङ्- वरच्] परिव्रज्याशील साघ, संत,-यायावराः निष्कासन, हटाना 2. (किसी रोग की) चिकित्सा या पुण्यफलेन चान्ये प्रानचुरा जगदर्चनीयम्-भट्रि० प्रशमन 3. समय बिताना जैसा कि 'कालयापन' में / 2 / 20, महाभागस्तस्मिन्नयमजनि यायावरकुले For Private and Personal Use Only Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 835 ) -21 .-बालरा० 1113 (यहाँ 'यायावर' एक कुल का | उपयोगी हो 2. सभी अर्थों में-वयमपि च गिरामीश्महे नाम है)। यावदर्थम् ---भर्तृ० 3 / 30 (पाठान्तर),-इष्टम्, यावः, यावकः,-कम् य+अच्+अण् =याव-|-कन्]1. जी -- ईप्सितम् (अन्य ) यथेच्छ, इच्छा के अनुकूल, से तैयार किया हआ आहार 2. लाख, लाल रग, - इत्थम् (अव्य०) आवश्यकता के अनुसार, जितना महावर-लभ्यते स्म परिरक्ततयात्मा यावकेन वियतापि आवश्यक हो,-जन्म,-जीवम,-जीवेन (अव्य०) यवत्याः - शि० 10 // 9, 15 / 13, कि० 5 / 40 / जीवन भर, जीवनपर्यंत, आजीवन,--बलम (अव्य०) यावत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ यद्+वतप, आत्वम् ] अपनी शक्ति के अनुसार, जितना अधिक से अधिक (तावत' का सहसंबंधी) 1. जितना, जितने ('जितने' वल हो,--भाषित उक्त (वि०) उतना जितना कहा के लिए यावत तथा 'उतने के लिए तावत् का प्रयोग जा चुका है,...मात्र (वि०) 1. इतना बड़ा, इतना होता है). पुरे तावन्तमेवास्य तनोति रविरातपम् / विस्तृत, जहाँ तक ब्यापक हो–कु० 2033 2. नगण्य, दीपिकाकमलोन्मेपो यावन्मात्रेण साध्यते-कू० 233, तुच्छ, मामूली,-शक्यम्,-शक्ति (अव्य०) जहाँ ते तु यावन्त एवाजी तावांश्च ददशे सते:--रघु०१२। तक संभव हो, अपनी शक्ति के अनुसार- इसी प्रकार 45, 1717 2. जितना बड़ा, जितना विस्तृत, कितना 'यावत्सत्त्वम्'। बड़ा या कितना विस्तृत यावानर्थ उदपाने सर्वतः यावन (वि.) (स्त्री०-नी) [ यवन---अण, यु / णिच संप्लुतोदके, तावान्सर्वेषु वेदेष ब्राह्मणस्य विजानतः +ल्य टु वा ] यवनों से संबंध रखने वाला, न वदे.-भग० 2 / 46, 18:55 3. सब, समस्त (यहाँ दोनों द्यावनी भाषा प्राणः कण्ठगतैरपि---सुभा०,-नः मिल कर समष्टि या साकल्य का अर्थ प्रकट करते हैं) | लोबान / --यावद्दत्तं तावद्भक्तम् .. गण अव्य०, 'यावत्' अकेला | यावसः | यवस+अण ] 1. घास का देर 2. चारा, खाद्यप्रयक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है (क) | सामग्री / जहां तक, तक, पर्यन्त, जब तक कि, (कर्म के | याष्टीक (वि०) (स्त्री--को) [ यष्टि: प्रहरणमस्य माथ)- स्तन्यत्यागं यावत् पुत्रयोरवेक्षस्व ... उत्तर०७, ईका] लाठी या सोटे से सुसज्जित,-क: लाठी कियन्तमवधि यावदस्मच्चरितं चित्रकारेणालिखितम् से सुसज्जित योद्धा / - उत्तर० 1, सर्पकोटरं यावत पंच०१ (ख) तभी, / यास्कः [यस्कस्यापत्यम् यस्क+अण् ] निरुक्तकार का ठीक उसी समय, इसी बीच में (तुरन्त किये जाने नाम / वाले कार्य को दर्शाने वाला).---तद्यावत् गृहिणीमाहूय युi (अदा० पर० यौति, युत; प्रेर० यावयति, इच्छा. संगीतकमनुतिष्ठामि - श० 1, यावदिमां छायामा- यियविषति या यूयषति) 1. सम्मिलित होना, मिलना श्रित्य प्रतिपालयामि ..श० 3 2. यदि यावत और 2. मिलाना, गड्डमड्ड करना / तावत् मिलकर प्रयुक्त हों तो निम्नांकित अर्थ प्रकट ii (जुहो० पर० युयोति) अलग-अलग करना। होता है (क) इतनी देर कि, इतने समय तक कि, iii (क्रया० उ भ० युनाति, युनीते) बाँधना, जकड़ना, -यावद्वित्तोपार्जनशक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्त:-मोह० / सम्मिलित होना, मिलना। 8 (ख) ज्योंही, अभी-अभी, इसी समय-.-एकस्य प्र ..., थामना, अनुष्ठान करना, व्यति.., मिश्रण दुःखस्य न यावदन्नं गच्छामि"'""तावदिवतोयं सम् करना - अन्योन्यं स्म व्यतियुतः शब्दाभ शब्दस्तु पस्थितं मे हि० 11204, मेघ० 105, कु० 3172 भीषणान्-भट्टि० 816 / (ग) जबकि, उसी समय तक - आश्रमवासिनो युक्त (भू० क० कृ०) [युज+क्त ] 1. सम्मिलित, मिला यावदवेक्ष्याहमुपावर्ते तावदाईपृष्ठाः क्रियन्तां वाजिनः हुआ 2. जकड़ा हुआ, जूए में जोता हुआ, साज-सामान --0 1, प्रायः 'न' के साथ भी प्रयोग जब कि से संनद्ध 3. युक्त किया हुआ, सुव्यवस्थित 4. सहित 'यावन' का अर्थ होता है 'इससे पूर्व कि' . यावदेते 5. सुसज्जित, युक्त, भरा हुआ, सहित (समास में या सरसंनोत्पतन्ति तावदेतेभ्यः प्रवत्तिरवगमयितव्या करण के साथ) 6. स्थिर, तुला हुआ, लीन, व्यस्त -विक्रम 4 (घ) जब, जिस समय यावदुत्थाय (अधि० के साथ) 7. कर्मपरायण, परिश्रमी 8. कुशल निरीक्षते तावद् हंसोऽवलोकितः हि०३। सम० अनुभवी, चतुर 9. योग्य, उचित, ठीक, उपयुक्त -- अन्तम् --- अन्ताय (अव्य०) अन्त तक, आखीर (संबं० या अधिक के साथ) 10. आदिकालीन, मौलिक तक,-अर्थ (वि.) आवश्यकता के अनुसार, उतने (शब्द),--क्तः महात्मा जो परब्रह्म परमात्मा से जितने कि अर्थ प्रकट करने के लिए आवश्यक है सायज्य प्राप्त कर चुका है,--क्तम् जोड़ी, जुआ या (शब्द)-पावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः विरराम यग्म / सम०- अर्थ (वि०) समझदार, विवेकी, --शि० 2013, (अव्य. अर्थम्) 1. उतना जितना / सार्थक, -कर्मन् (वि०) जिसे किसी कर्तव्य कर्म पर For Private and Personal Use Only Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 836 ) लगाया गया है, यह (वि.) न्यायोचित दंड देने / संख्या के लिए विरलप्रयोग / सम० अन्त: 1. जुए वाला-रघु० 418, .-मनस् (वि०) सावधान,-.रूप का किनारा 2. युग का अन्त, सृष्टि का अन्त या (वि.) योग्य, उचित, लायक, उपयुक्त (संबं० या विनाश युगान्तकालप्रतिसंहृतात्मनो जगन्ति यस्यां अधि० के साथ)-जन्म यस्य पुरोवंशे युक्तरूपमिदं तव सविकासमासत शि० 123, रघु० 1316 -श० 17, अनुकारिणि पूर्वेषां युक्तरूपमिदं त्वयि 3. मध्याह्न, दोपहर, - अवधिः सृष्टि का अन्त या ----2 / 16 / विनाश शि. 17440, कोलकः जुए की कीली मुक्तिः (स्त्री०) [ युज+क्तिनु ] 1. मिलाप, संगम, --... पार्श्वग (वि.) जुए के पास जाने वाला, जुए में सम्मिश्रण 2. प्रयोग, इस्तेमाल, काम में लाना 3. जुए जुतने वाला बैल, बाह (वि.) लम्बी भुजाओं में जोतना 4. व्यवहार, प्रचलन 5. उपाय, तरकीब, वाला-कु० 2 / 18 / / योजना, जुगुत 6. कपटयोजना, कूटयुक्ति, दाव-पेंच युगन्धरः,-रम् [ युग+ +खच्, मम ] गाड़ी की जोड़ी 7. औचित्य, योग्यता, सामंजस्य, संगति, उपयुक्तता जिसके साथ जुआ कस दिया जाता है। 8. कौशल, कला 9. तर्कना, युक्ति, दलील 10. अनु युगपद् (अव्य०) [ युग+पद्+क्विप् ] एक ही समय, मान, निगमन 11. हेतु, कारण 12. क्रमबद्धता, रचना सब एक साथ, सब मिलकर उसी समय कु० 31 ---यत्र खल्वियं वाचोयक्तिः 'मा० 1 13. (विधि में) प्रायः समास में श०४।२ / संभावना, परिस्थिति की गणना या विशेषता (समय, | युगलम् [ युज+कलच्, कुत्वम् | जोड़ा दम्पती- बाह स्थान आदि की दृष्टि से)-युक्तिप्राप्तिक्रियाचिल्लसंबं- हस्त चरण आदि। घाभोगहेतुभिः याज्ञ० 2 / 92, 212 14. (नाटकों | युगलकम् [ युगल+कन् ] 1. जोड़ी, 2. इलोकाधं, जो दो में) घटनाओं की नियमित पंखला, तु० सा०० मिलकर पूरा श्लोक या वाक्य बनाएं, दे० युग्म / 343 15. (अलं० में) किसी के प्रयोजन या अभि- युग्म (वि.) [ युज्+म, कुत्वम् ] सम-युग्मासु कल्प की प्रच्छन्न अथवा प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति पुत्रा जायन्ते स्त्रियोऽयुग्मासु रात्रिषु , तस्माद्युग्मासु 16. कुल राशि, योग 17. धातु में खोट मिलाना / पुत्रार्थी संविशेदातवे स्त्रियम--मनु० 3 / 48, याज्ञ. सम० - कयनम् हेतुओं का वर्णन, -कर (वि.) 1179 1. जोड़ी, दम्पती, दे० अयुग्म 2. संगम, मिलाप 1. उपयुक्त, योग्य 2. सिद्ध, - ज्ञ (वि.) तरकीब 3. (नदियों का) संगम 4. जुड़वां 5. श्लोकार्ष-जिन या उपायों में कुशल, आविष्कार कुशल, युक्त दो से मिलकर पूरा एक वाक्य बने - द्वाभ्यां युग्ममिति (वि०) 1. उपयुक्त, योग्य 2. विशेषज्ञ, कुशल प्रोक्तम् 6. मिथुन राशि। 3. स्थापित, सिद्ध 4. तर्कयुक्त। युग्य (वि.) [यगाय हितः यत् 1 1. जोतने के योग्य युगम् [युज्+घभ कुत्वम्, गुणाभावः ] 1. जुआ (पुं० 2. जुता हुआ, साज सामग्री से संनद्ध 3. खींचा गया भी इस अर्थ में)-युगव्यायत बाहुः रघु० 3 / 34, जैसा कि 'अश्वयुग्यो रथः' में,-ग्यः जुता हुआ या 10 / 67, शि० 3 / 68 2. जोड़ा, दम्पती, युगल खींचने वाला जानवर, विशेषतः रथ का घोड़ा-हरि-कुचयोर्युगेन तरसा कलिता शि० 9 / 72, स्तन- युग्यं रथं तस्मै–प्रजिधाय पुरन्दर:-रघु० 12 / 84 / युग--श०१२१९ 3. श्लोकार्घ जिसमें दो चरण होते युज / (रुघा० उभ० युनक्ति, युङ्क्ते, युक्त) 1. संमिलित हैं, युग्म 4. सृष्टि का युग (युग चार हैं: कृत या होना, मिलना, अनुरक्त होना, संबद्ध होना, जुड़ना सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि--प्रत्येक की अवधि -तमर्थमिव भारत्या सुनया योक्तुमर्हसि-कु०६७९, क्रमशः 1728000, 1296000, 864000 और दे. कर्मवा० नीचे 2. जोतना, जीन कसकर संनद्ध 432000 वर्ष है, चारों को मिलाकर 4320000 करना, लगाना-भानुः सकृद्युक्ततुरङ्ग एव- -. वर्ष का एक महायुग होता है) ऐसा माना जाता है 5 / 4, भग० 1314 3. सुसज्जित करना, से युक्त कि युगों की उत्तरोत्तर घटती हुई अवधि के अनुसार करना जैसा कि गुणयुक्त में 4. प्रयुक्त करना, काम शारीरिक और नैतिक शक्ति भी मनुष्यों में बराबर में लगाना, इस्तेमाल करना-प्रशस्ते कर्मणि तथा गिरती गई है। संभवतः इसीलिए कृतयुग को स्वर्ण- सच्छब्दः पार्थ युज्यते-भग० 1426, मनु०७।२०४ युग और कलियुग को लोहयुग कहते हैं)- धर्मसंस्था- 5. नियुक्त करना, स्थापित करना (अधिक के साथ) पनार्थाय संभवामि युगे युगे- भग० 418, युगशतप- 6. निदेशित करना, (मन बादि का) स्थिर रिवर्तान्-श०७४३४ 5.पीढ़ी, जीवन,-आ सप्तमा- करना, जमाना 7. अपना ध्यान संकेन्द्रित करना बुगातु - मनु० 10164, जात्युत्कर्षों यगे शेयः पञ्चमे --मनः संयम्य मचित्तो युक्त बासीत मत्परः सप्तमेऽपि वा याज्ञ. 196 (युगे-जन्मनि मिता.) -मग. 614, युजन्नेव सदात्मानं-१५ 6. 'चार की संख्या की अभिव्यक्ति, 'बारह की / 8. रखना, स्थिर करना, जमाना (अधिक के साथ) For Private and Personal Use Only Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 837 ) 9. तैयार करना, सुव्यवस्थित करना, सज्जित करना, 5 / 29 2. सम्मिलित होना, मिलना 3. नियत करना युक्त करना 10. देना, प्रदान करना, सादर समर्पित आदिष्ट करना। (प्रेर०) 1. सम्मिलित करना, मिलाना, करना-आशिषं युयुजे, कर्मवा० (युज्यते) 1. संमि- से युक्त करना, प्रदान करना-कु.४१४२ 2. जोतना, लित होने के योग्य-रविपीतजला तपात्यये पुनरोधेन संनद्ध करता, 3. उकसाना, प्रेरित करना-भग० 301, हि युज्यते नदी-कु० 4 / 44, रघु० 8 / 17 2. प्राप्त प्र-(आ०) 1. इस्तेमाल करना, काम में लाना करना, स्वामी होना-इष्टेन युज्वस्व-श० 5, महावी० -अयमपि च गिरं नस्त्वत्प्रबोधप्रयुक्ताम्-रषु० 5 / 75, 7, रघु० 2065 3. योग्य या सही होना, समुचित होना, सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते--भग०१७।२६ उपयुक्त होना (अधि० या संबंध के साथ) या यस्य 2. नियत करना, काम में लगाना, निदेशित करना, युज्यते भूमिका तां खलु भावेन तथैव सर्वे वाः पाठिता आदेश देना-मा मां प्रयङ्ग्थाः कुलकीर्तिलोपे--भग. मा०१, त्रैलोक्यस्यापि प्रभुत्वं त्वयि युज्यते-हि. 3354, प्रायुक्त राज्ये वत दुष्करे त्वाम्-३१५१,कु. 14. तैयार होना-ततो युद्धाय युज्यस्व ---भग० 785 3. देना, प्रदान करना, अभिदान करना 2 / 38, 50 5. तुल जाना, लीन होना, निदेशित होना | -अशिषं प्रययुजेन वाहिनीम्-रषु०१११६, 2170, -मनु० 3175, 14135, कि० 7.13 / प्रेर० (योज- 5135, 15 / 8 4. हिलना-जुलना, गतिदेना-मरुत्तयति-) 1. सम्मिलित होना, मिलना एकत्र करना युक्ताः (बाललता:)-रघु० 2 / 105. उत्तेजित करना, -रघु० 7 / 14 2. उपहार देना, समर्पण करना, प्रेरित करना, प्रेरणा देना, हांकना-कु० 121, भग. प्रदान, करना-रघु० 1056 3. नियुक्त करना, 3 / 36 6. संपन्न करना, करना-रघु० 786, 17112 काम पर लगाना, इस्तेमाल करना-शभियोजयेच्छ- 7. रंगमंच पर प्रतिनिधित्व करना, अभिनय करना, त्रुम-पंच० 4 / 17 4. मुड़ना, किसी ओर निदेशित नाट्य करना-उत्तरं रामचरितं तत्प्रणीतं प्रयुज्यते करना-पापानिवारयति योजयते हिताय-भर्त० 2172 ...--उत्तर० 112, परिषदि प्रयुञानस्य मम कु. 1. 5. उत्तेजित करना, प्रेरित करना, भड़काना 6. सम्पन्न 8. इस्तेमाल करने के लिए उधार देना, (धन आदि) करना, निष्पन्न करना 7. तैयार करना, सुव्यवस्थित ब्याज पर देना - मनु० 8.146, वि-(आ०) करना, सुसज्जित करना ---इच्छा. (ययक्षति-ते) 1. छोड़ना, परित्याग करना-कि० 2 / 49, रघु०१३॥६३ सम्मिलित होने की इच्छा करना, जोतने की इच्छा 2. अलग-अलग करना---पुरो वियुक्ते मिथुने रुपावती करना, देने की कामना करना, अनु-(आ०) 1. पूछना ... कु० 5 / 26 3. ढीला करना, शिपिल करना, प्रश्न करना--अन्वयुंक्त गुरुमीश्वरः क्षिते: रघु० विनि ..., 1. इस्तेमाल करना, व्यय करना 2. नियुक्त 11162, 5 / 18, शि० 10168 2. परीक्षण करना, करना, काम में लगाना 3. बांटना, अनुभाजन करना, जांच करना मनु० 779, अभि.,(आ.) चेष्टा वितरण करना---प्रत्येक विनियक्तारमा कथं न ज्ञास्यसि करना, काम में पिल जाना 2. आक्रमण करना, धावा प्रभो–कु० 2 / 31 4. वियुक्त करना, अलग करना, करना भवन्तमभियोक्तुमुधुङ्क्ते-दश० 3. दोषारोपण सम्-सम्मिलित होना (कर्मवा० में)-संयोक्ष्यसे स्वेन करना, दोषी ठहराना मनु० 8 / 183 4. अधिकार वपुर्महिम्ना - रघु० 5 / 25, (प्रेर०) मिलाना, सम्मिजताना, मांग प्रस्तुत करना (जैसे कि किसी कानूनी लित करना। अभियोग में)-विभावितैकदेशेन देयं यदभियुज्यते (भ्वा० चरा० पर० योजति, योजयति) जोड़ना, विक्रम०४।१७, याज्ञ० 219 5. कहना, बोलना उद्-, मिलाना, जोतना दे० ऊपर 'युज्'। .. उत्तेजित करना, सक्रियता उद्दीप्त करना 2. कोशिश | iii(दिवा० आ० युज्यते) मन को , संकेन्द्रित करना करना, प्रयास करना --भवन्तमभियोक्तूमद्यते-दश० ('युज' के कर्मवा० रूप के समरूप) / 3. तैयार करना, उप--,(आ.) 1. इस्तेमाल करना, / (वि.) युज+क्विन् (समास के अन्त में) 1. जग काम में लगाना-पाहुण्यमुपयुञ्जीत-शि० 2193, हुआ, मिला हुआ, जुता हुआ, खींचा जाता हआ पणबन्धमुखान्गुणानजः षडुपायुक्त समीक्ष्य तत्फलम् 2. सम, अविषम, पुं० 1. सम्मेलक, जो जोड़ देता है, रघु० 8 / 21, मालवि० 5 / 12 2. चखना, स्वाद लेना मिला देता है 2. ऋषि मनि, जो अपने आपको भावअनुभव करना (आलं० से भी) रघु० 18 / 46, भट्टि. समाधि में संलग्न रखता है 3. जोड़ा, दंपती (इस 8139 4. उपभोग करना, खाना-मनु० 8 / 40, नि अर्थ में नपुं० भी)। (आ०) 1. नियुक्त करना, प्रतिनियुक्त करना, आदेश | पुजानः [युज्+शानच्] 1. हांकने बाला, रघवान् 2. वह देना (अधिक के साथ)- यन्मां विधेयविषये स भवा- ब्राह्मण जो परमात्मा से सायुज्य प्राप्त करने के लिए नियुङ्क्ते-मा० 119, असाधुदर्शी तत्र भवान् काश्यपः | योगाभ्यास में व्यस्त है। य इमामाश्रमधर्मे नियुङ्क्ते . श० 1, कु० 3 / 13, रघु० / युत (भू० क० कृ०) [य+क्त] 1. जुड़ा हुआ, सम्मिलित, For Private and Personal Use Only Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / सम: शिक्षा का गत कारिन ) ( 838 ) मिला हुआ 2. से युक्त या सहित -जैसा कि 'गुणगण- | –यवीयस् या कनीयस्, उ० अ०–यविष्ठ या युतो करः' में। कनिष्ठ) [योतीति युवा, यु-+कनिन्] 1. तरुण, यतकम् [युत कन्] 1. जोड़ी 2. मिलाप, मित्रता. मैत्री जवान, वयस्क, परिपक्वावस्था को प्राप्त 2. हृष्ट-पुष्ट, 3. विवाहोपहार 4. स्त्रियों की एक प्रकार की वेश- स्वस्थ 3. श्रेष्ठ, उत्तम / पुं० (कर्त० युवा, युवानी, भषा 5. स्त्रियों के वस्त्र की किनारी या झालर / / युवानः, कर्म० ब० व० यूनः, करण० ब० द० युवभिः युतिः (स्त्री०) [यु+क्तिन्] 1. मिलाप, संगम 2. सुस- आदि) 1. जवान आदमी, तरुण,-सा यूनित स्मिन्नभि ज्जित होना, 3. स्वामित्व प्राप्त करना 4. जोड़, लाषबन्धं शशाक शालीनतया न वक्तुम् -रघु०६८१ योग 5. (ज्योति० में) संयुक्ति, दो ग्रहों का स्पष्ट 2. छोटी सन्तान (बड़ी सन्तान जीवित रहते हुए) योग / -जीवति तु वंश्य युवा-पा० 4 / 1 / 113 (दे० इस पर युद्धम् [युध+क्त] 1. संग्राम, समर, लड़ाई, भिड़न्त, मुठ- सिद्धा०) / सम०-खलति (वि०) (स्त्री०-तिः, ती) भेड़, संघर्ष, द्वन्द्व वत्स केयं वार्ता युद्ध युद्धमिति जवानी में ही गंजा,- जरत् (स्त्री०-ती) जवानी में -- उत्तर०६ 2. (ज्योति० में) ग्रहों का संघर्ष या ही बूढ़ा दिखाई देन वाला, समय से पूर्व बूढ़ा हो जाने विरोध / सम०-अवसानम् युद्ध की समाप्ति, सुलह, वाला, राज् (पुं०)-राजः प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी, -आचार्यः संन्यशिक्षा का गुरु,- उन्मत्त (वि.) राज्याधिकारी राजकुमार, राजा का उत्तराधिकारी युद्ध के लिए पागल, रणोन्मत्त,--कारिन् (वि०) पुत्र,-(असो) नृपेण चक्रे युवराजशब्दभाक्-रधु० लड़ने वाला, संघर्षशील,-भूः,-भूमिः (स्त्री०) 3235 / रणक्षेत्र, - मार्गः सैनिक कूटचाल या छलबल, युद्धा- युष्मद् [युष+मदिक्] मध्यमपुरुष के पुरुषवाचक भिनय. तिकड़मबाजी,-रङ्गः रणक्षेत्र, लड़ाई का सर्वनाम का प्रातिपदिक रूप (कर्त 0 त्वम्, युवाम्, अखाड़ा, वीर: 1. योद्धा, शरबीर, मल्ल 2. (अलं. यूयम्) तू, तुम (कई समासों के आरंभ में प्रयुक्त)। में) सैन्यविक्रम से उत्पन्न वीरता का मनोभाव, वीर पष्मावश, श (वि०) [युष्मद् + दृश् + क्विन्, आत्वम्] रस दे० सा०८०२३४, 'युद्धवीर' के नीचे -- रस०, तुम्हारी तरह। --सारः घोड़ा। यूकः, -का [यु / कन्, दीर्घः, स्त्रियां टाप् ] जूं, मनु० युष (दिवा० आ० युध्यते, युद्ध) लड़ना, संघर्ष करना, विवाद करना, युद्ध करना-भग० 1123, भट्टि० | यूतिः (स्त्री०) [यु+क्तिन्, ति० दीर्घः] मिश्रण, मिलाप, 5 / 101, प्रेर०--(योधयति-ते) 1. लड़वाना 2. युद्ध संगम, संबंध, करोमि वो बहिर्यतीन् पिधध्वं पाणिभिर्दृशः में सामना करना या विरोध करना-रघु० 12150 -भट्टि० 7 / 69 / / --इच्छा० (युयुत्सते) लड़ने की इच्छा करना, नि-, युथम् [य+थक, पृषो० दीर्घः] रेवड़, लहंडा, भीड़, टोली मल्लयुद्ध करना, विरोध करना, प्रति-, युद्ध में झुण्ड (जैसे वन्य पशुओं का)-स्त्रीरत्नेषु भमोर्वशी सामना करना, विरोध करना। प्रियतमा युथे तवेयं दशा-विक्रम० 4 / 25, 20 युष (स्त्री०) [यध+क्विप्] संग्राम, जंग, लड़ाई, मुठभेड़ 5 / 5 / सम०--नाथः,--पः, पतिः 1. किसी -निघातयिष्यन् युधि यातुधानान्-भट्टि० 221, | टोली या दल का नेता 2. किसी रेवड़ या भीड़ सदसि वाक् पटुता युधि विक्रमः -भर्त० 2 / 63 / / (प्रायः हाथियों की) का मुखिया, विशालकाय हाथी युषानः [युध् + आनन्, स च कित्] योद्धा, क्षत्रिय जाति का -गजबूथप यूथिका शबलकेशी-विक्रम० 4 / 24 / पुरुष / यूथिका, यूथी [यूथं पुष्पवृन्दमस्ति अस्याः---यूथ+ठन् युप् (दिवा० पर० युप्यति) 1. मिटा देना, विलुप्त करना +टाप, यूथ+अच्--ङीष्] एक प्रकार की चमेली, 2. कष्ट देना। जूही, बेला या इसका फल. यथिकाशबलकेशी ययुः [या-- या+डु] घोड़ा। --विक्रम० 4 / 24, मेघ०२६।। युयुत्सा युध् / सन् +अ+टा] लड़ने की इच्छा, विरोधी यूपः [यु+पक, पृषो० दीर्घः] 1. यज्ञ की स्थूणा (यह प्रायः इरादा / बाँस या खदिर वृक्ष की लकड़ी से बनाई जाती है) युयुत्सु (वि.) [युध + सन् +उ] लड़ने की इच्छा वाला | जिसके साथ बलि दिया जाने वाला पश, मेघ के समय युवतिः, -ती (स्त्री०) [युवन्+ति, डीप् वा] तरुणी बाँध दिया जाता है अपेक्ष्यते साधुजनेन वैदिको स्त्री, तरुणी मादा (चाहे मनुष्य की हो या किसी पशु श्मशान-शूलस्य न यूपसत्क्रिया कु० 5 / 73 की हो) / सुरयुवतिसंभवं किल मतेरपत्यम्-श० 2. विजय-स्मारक, विजयोपहार। 28, इसी प्रकार 'इभयुवतिः'। यूषः, --बम, यूषन् (पुं०, नपुं०) [यूष्+क, कनिन् वा] युवन् (वि०) (स्त्री-युवतिः, ती, यूनी-म० अ० : रसा, झोल, शोरबा, मटर का रसा ('यूपन्' शब्द के For Private and Personal Use Only Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहले पाँच वचनों में कोई रूप नहीं होते, कर्म० द्वि० / व० के पश्चात् 'यूष' के स्थान में विकल्प से यूषन् हो जाता है)। येन (अव्य०) ['यद्' शब्द का करण० का एक बचनांत रूप जो क्रियाविशेषण की भांति प्रयुक्त होता है] 1. जिससे, जिसके द्वारा, जिस लिए, जिस कारण से, जिसके साधन से किं तद् येन मनो हर्तमलं स्याता न शृण्वताम् - रघु० 15 / 64, 14174 2. जिससे कि दर्शय तं चौरसिंहं येन व्यापादयामि पंच०४ 3. चूंकि, क्योंकि। योक्त्रम् [युज+ष्ट्रन् ] 1. डोरी, रस्सी, तस्मा, रज्जु 2. हल के जुए की रस्सी 3. वह रस्सी जिसके द्वारा किसी पशु को गाड़ी के जोड़े से बाँव दिया जाता है। योगः [यज भावादी घञ, कूत्वम] 1. जोड़ना, मिलाना 2. मिलाप, संगम, मिश्रण, उपरागान्ते शशिनः समुपगता रोहिणी योगम-श० 7 / 22, गुणमहतां महते गुणाय योगः-कि० 10 / 25, (वां) योगस्तडित्तोयदयोरिवास्तु रघु० 665 3. संपर्क स्पर्श, संबंध -----तमकमारोप्य शरीरयोगजः सूनिषिञ्चन्तमिवा मृतं त्वचि रघु० 3 / 26 4. काम में लगाना, प्रयोग, इस्तेमाल-एतरुपाययोगैस्तु शक्यास्ताः परिरक्षितुम् -मनु० 9 / 10, रघु० 1086 5. पद्धति, रीति, क्रम, साधन-कथायोगेन बध्यते-हि. 1, 'बातचीत के क्रम में, 6. फल, परिणाम (अधिकतर समास के अन्त में या अपा० के साथ) रक्षायोगादयमपि तपः प्रत्यहं संचिनोति--श० 2 / 14, कु० 7 / 55 7. जुआ 8. वाहन, सवारी, गाड़ी 9. जिरहबख्तर, कवच 10. योग्यता, औचित्य, उपयुक्तता 11. व्यवसाय, कार्य, व्यापार 12. दाव-पेंच, जालसाजी, कूट चाल 13. तरकीब, योजना, उपाय 14. कोशिश उत्साह, परिश्रम, अध्यवसाय-मनु० 7 / 44 15. उपचार, चिकित्सा 16. इन्द्रजाल, अभिचार, मंत्रयोग, जादू, जादूटोना 17. लब्धि, अवाप्ति, अभिग्रहण 18. धन दौलत, द्रव्य 19. नियम, विधि 20 पराश्रय, संबंध, नियमित आदेश या संयोग, एक शब्द की दूसरे शब्द पर निर्भरता 21. निर्वचन, या अर्थ की दृष्टि से शब्द व्युत्पत्ति 22. शब्द के निर्वचनमूलक अर्थ (विप० रूढि) 23. गंभीर भावचिन्तन, मन का संकेन्द्रीकरण, परमात्मचिन्तन, जिसे योगदर्शन में 'चित्तवृत्तिनिरोध' कहते हैं, सती सती योगविसृष्टदेहा कु. 1221, योगेनान्ते तनुत्यजाम् - रघु० 128 24. पतंजलि द्वारा स्थापित दर्शन पद्धति जो सांख्य दर्शन का ही दूसरा भाग समझा जाता है, परन्तु व्यवहारतः यह एक पृथक दर्शन है (योगदर्शन का मुख्य सिद्धांत उन उपायों की शिक्षा देना है जिनके / द्वारा मानव आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा में मिल जाय और इस प्रकार मोक्ष की प्राप्ति हो जाय / इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए गंभीर भावचिन्तन ही मुख्य साधन बताया गया है, इस प्रकार के योग या मन के संकेन्द्रीकरण के समुचित अभ्यास के लिए विस्तार के साथ नियमों का प्रतिपादन किया गया है) 25. (अंक में) जोड़, संकलन 26. (ज्योति० में) संयक्ति, दो ग्रहों का योग 27. ताराज 28. विशेष प्रकार का ज्योतिषीय समय-विभाग (इस प्रकार के बहुधा 27 योग गिनाये गये हैं) 29. किसी नक्षत्र पुंज का मुख्य तारा 30 भक्ति, परमात्मा की पवित्र खोज 31. भेदिया, गुप्तचर 32. द्रोही, विश्वासघाती। सम०-- अंगम योग की प्राप्ति के साधन (यह गिनती में आठ है, नामों के लिए दे० यम 5.) -आचारः 1. योग का अभ्यास या पालन 2. बुद्ध के उस संप्रदाय का अनुयायी जो केवल विज्ञान या प्रज्ञा के शाश्वत अस्तित्व को ही मानता है,~-,आचार्यः, 1. जादू का शिक्षक 2. योग दर्शन का अध्यापक, --आषमनम् जालसाजी से भरी बन्धकावस्था--मनु. 81165, आरूढ (वि० (सूक्ष्मभावचिन्तन में निमग्न, -आसनम् सूक्ष्मभावचिन्तन के अनुरूप अंग-स्थिति, - इन्द्रः,-ईशः,--ईश्वरः 1. योग में निष्णात या सिद्धहस्त 2. जिसने अलौकिक शक्ति सम्पादन कर ली है 3. जादूगर 4. देवता 5. शिव का विशेषण 6. याज्ञवल्क्य का विशेषण,-क्षेमः1. सामान की सुरक्षा, संपत्ति की देखभाल 2. दुर्घटनाओं से संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए शुल्क, बीमा 3. कल्याण, कुशलक्षेम, सुरक्षा समृद्धि-तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्-भग० 9 / 22, मुग्धाया मे जनन्या योगक्षेमं वहस्व-मालवि०४ 4. संपत्ति, लाभ, फायदा (पुं०, नपुं० द्वि० व०, --- मौ, मे, नपुं० ए० 20. मम्) (संपत्ति का) भिग्रहण और प्ररक्षण, उपलब्धि और सुरक्षा, पुराने का प्ररक्षण तथा नूतन का अभिग्रहण (जो पहले से अप्राप्त हो) अलभ्यलाभो योगः स्यात् क्षेमो लब्धस्य पालनम् दे० याज्ञ. 1 / 100 और उस पर मिता०, -चूर्णम् जादू का चूर्ण, जादू की शक्ति वाला चूरा,कल्पितमनेन योगचूर्ण मिश्रितमौषधं चन्द्रगुप्ताय-मुद्रा० २,-तारका,--तारा नक्षत्रपुंज का मुख्य तारा,-दानम् 1. योग के सिद्धांतों का संचारण 2. जालसाजी से युक्त उपहार, धारणा सतत भक्ति, अनवरतभजन नाथः शिव का विशेषण,--निद्रा अर्धचिन्तन और अर्धनिद्रित अवस्था, जागरण और निद्रा के मध्य की स्थिति अर्थात् लघुनिद्रा-योगनिद्रां गतस्य मम-पंच० 1, हि० 375, भर्त० 3 / 41 2. युग के अन्त में, For Private and Personal Use Only Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 840 ) विष्णु की निद्रा - रघु० 10114, १३१६,-पट्टम् / योगेष्टम् (नपुं०) सीसा, रांग / / भावसमाधि के अवसर पर संन्यासियों द्वारा पहना योग्य (वि.) [योगमर्हति यत्, युज्+ण्यत् वा] 1. लायक, जाने वाला वस्त्र जो पीठ से लेकर घटनों तक शरीर उचित, उपयुक्त, योग्यता प्राप्त योग्यो ऽयं दृश्यते को ढक लेता है,-पतिः विष्णु का विशेषण,-बलम् नरः 2. योग्य, उपयुक्त, योग्यताप्राप्त, सक्षम, अर्ह 1. भक्ति की शक्ति, भावचिंतन की शक्ति, अलौकिक (अधिक संप्र०, संबं० के साथ तथा समास में प्रयुक्त) शक्ति 2. जादू की शक्ति,-माया 1. योग की जादू 3. उपयोगी, सेवा करने के योग्य 4. योग या भावजैसी शक्ति 2. ईश्वर की सर्जन शक्ति जिससे कि चिन्तन के योग्य,-ग्यः युक्ति या तरकीबों का कलदेवता के रूप में मूर्त घरा की रचना की जाती है यिता,--ग्या 1. अभ्यास, व्यवहार-अपरः प्रणिधान(भगवतः सर्जनार्थी शक्तिः ) 3. दुर्गा का नाम,-रङ्गः योग्यया मरुतः पंचशरीरगोचरान् - रघु० 8 / 19, इसी नारंगी, रुट (वि०) वह शब्द जिसके निर्वचनमूलक प्रकार 'मानयोग्या' काव्या० 2 / 243, धनुर्योग्या अर्थ भी हैं, साथ ही उसका विशेष परंपरागत अर्थ अस्त्रयोग्या आदि 2. सैनिक कवायद, अभ्यास,-यम् है, उदा. 'पंकज' इसका व्यत्पत्तिजन्य अर्थ है 1. सवारी, गाडी, वाहन 2. चन्दन की लकड़ी 3. रोटी 'कीचड़ से उत्पन्न होने वाला कोई भी पदार्थ' परन्तु प्रचलन या परंपरा के प्रयोगानुसार इसका योग्यता योग्य+तल+टाप] 1. सामर्थ्य, सक्षमता. --न अर्थ 'कीचड़ में उत्पन्न किसी वस्तु - अर्थात् कमल' युद्धयोग्यतामस्य पश्यामि सह राक्षस:-रामा० में प्रतिबद्ध हो जाता है, तु० 'आतपत्र' छतरी, 2. अनुरूपता, औचित्य 3. समुपयुक्तता 4. (न्या० में) - रोचना एक प्रकार का जादू का लेप जिसके लगाने ज्ञान की अनुरूपता या संगति, शब्दों द्वारा संकेतित से मनुष्य अदृश्य और अभेद्य हो जाता है --- तेन च वस्तुओं के पारस्परिक संबंध की असंगति का अभाव परितुष्टेन योगरोचना मे दत्ता-मच्छ० ३,-वर्तिका ---उदा० 'अग्निना सिंचति' में योग्यता नहीं है, इसकी जादू का लैम्प या बत्ती,-वाहिन् (पुं०, नपुं०) परिभाषा यह है :--एकपदार्थेपरपदार्थसंसगों योग्यता औषधियों को मिलाने का माध्यम-उदा० शहद -त० को। .... नानाद्रव्यात्मकत्वाच्च योगवाहि परं मधु-सुश्रु०, ! योजनम् युज भावादी ल्युट्] 1. जोड़ना, मिलाना, जोतना ---वाही 1. रेह, सज्जी 2. मधु 3. पारा,-विक्रयः 2. प्रयोग करना, स्थिर करना 3. तैयारी, व्यवस्था घोखे की बिक्री,-विद (वि०) योग का जानकार 4. व्याकरणसम्मत रचना, शब्दान्वय 5. आठ यानी (पुं०) 1. शिव का विशेषण 2. योगाभ्यासी 3. योग- मील अथवा चार कोस की दूरी की माप--न योजनसिद्धांतों का अनुयायी 4. जादूगर 5. दवाइयों के बनाने शतं दूरं बाह्यमानस्य तृष्णया-हि० 1 / 146 वाला, विभागः बहुधा एक स्थान पर जुड़े हुओं को 6. उत्तेजित करना, भड़काना 7. मन का संकेन्द्रीकरण, अलग-अलग करना, विशेषतः सूत्र के शब्दों को अलग भाव (=योग), - ना 1. संगम, मिलाप, संबंध अलग करना, एक ही नियम के दो तीन टुकड़े करना 2. व्याकरणसंमत शब्दान्वय / सम०---गन्धा (महाभाष्य में पतंजलि ने इसका बहुत प्रयोग किया __ 1. कस्तूरी 2. व्यास की माता सत्यवती। है-उदा० अदसो मात् पा० 21 / 12)- शास्त्रम् 12)- शास्त्रमु योत्रम् दे० योक्त्रम / योगदर्शन,--समाधिः आत्मा का गढ़ भावचिन्तन में | योधःयध+अच] 1. योद्धा, सैनिक, लड़ाक, सहास्मदीलीन होना--तमसः परमापदव्ययं पुरुषं योगसमाधिना यैरपि योधमुख्यः - महा० 2. संग्राम, लड़ाई। सम० रघु:-रघु० 8 / 24, योगविधि 8 / 22, सारः सब -अगार:-रम् सैनिकों का निवास, सैन्यावास, रोगों की एक दवा, रामबाण, सर्वव्याधिहर,-सेवा बारक,-धर्मः सैनिकों का कानून, सैन्यविधि या भावचितन का अभ्यास करना। नियम, संरावः लड़ाकू सिपाहियों की पारस्परिक योगिन् (वि.) [युज+धिनुण, योग+इनि वा ] 1. से | ललकार, आह्वान / युक्त, या सहित 2. जादू की शक्ति से युक्त, पुं० योधनम् यध भावे ल्युट] संग्राम, लड़ाई, मुठभेड़। 1. चिन्तनशील महात्मा, भक्त, संन्यासी-सेवाधर्मः | योधिन (0) युध+णिनि योद्धा, सिपाही, लड़ाकू। परमगहनो योगिनामप्यगम्यः --पंच० 12285, बभूव | योनिः (पुं०,स्त्री०) [यु+-नि] 1. गर्भाशय, बच्चेदानी, योगी किल कार्तवीर्य:---रघु० 638 2. जादूगर, भग, स्त्रियों की जननेन्द्रिय 2. जन्मस्थान, मूलस्थान, ओझा, बाजीगर 3. योगदर्शन के सिद्धांतों का अनुयायी, उद्गम, मूल, जननात्मक कारण, निर्झर, फौवारा जो 1. जादूगरनी, अभिचारिका, ओझाइन, मायाविनी सा योनिः सर्ववैराणां सा हि लोकस्य नितिः 2. भक्तिनी 3. शिव या दुर्गा की सेविकाओं की उत्तर० 5 / 30, कु० 2 / 9,4143, उत्पन्न या उदित टोली (यह गिनती में आठ माने जाते है)। के अर्थ में प्रयोग प्राय: समास के अन्त में - भग० न दे० या 1.या . 2. समा योधः या योधमुख्यः मैनिकों For Private and Personal Use Only Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 841 ) 5 / 22 3. खान 4. आवास, स्थान, भाजन या पात्र, 21149-- कम् 1. निजी सम्पत्ति 2. स्त्री का दहेज, आसन, आधार 5. घर, मांद 6. कूल, गोत्र, वंश, स्त्रीधन (विवाह के अवसर पर कन्या को उपहार में जन्म, अस्तित्व का रूप-जैसा कि 'मनुष्ययोनि, पक्षि', दिया गया धन)-मातुस्तु यौतकं यत् स्यात् कुमारी पश आदि 7. जल। सम--गुणः जन्मस्थान या भाग एव सः .. मनु० 9 / 131 / गर्भाशय का गुण,-ज (वि.) गर्भाशय से जन्म लेने यौतवम् [यु---तु=योतु+अण्] एक प्रकार की माप / वाला, जरायुज,-देवता पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, --भ्रंशः यौघ (वि.) (स्त्री०-धी) [योध+अण्] लड़ाकू, लड़नेबच्चेदानी का अपने स्थान से हट जाना, रजनम वाला। रजःस्राव, लिंगम् भगांकुर, चिकू,-संकरः अवैध : यौन (वि०) (स्त्री० --नी) योनितः योनि संबन्धात् वा अन्तर्जातीय विवाहों से उत्पन्न वर्ण संकर जाति / / आगतम् - अण्] 1. सोदर 2. वैवाहिक, विवाह संबंधी योनी दे० योनिः। -मनु० २।१०,--नम् विवाह, वैवाहिक सम्बन्ध योपनम् [यप-+ल्यट] 1. मिटाना, विलप्त करना 2. कोई -मनु० 111180 / वस्तु जिससे मिटाया जाय 3. विकलता, घबराहट यौवतम [यवतीनां सम्हः-अण] तरुणियों या जवान 4. उत्पीडन, अत्याचार, ध्वंस / स्त्रियों का समूह-अवघृत्य दिवोऽपि यौवतर्न सहायोषा, योषित् (स्त्री०), योषिता [यौति मिश्रीभवति-यु घीतवतीमिमामहम्-नैव० 2 / 41 2. तरुणी स्त्री +स+टाप, योषति पुमांसम् --युष - इति, योषित का गुण (सौन्दर्य आदि) तरुणी स्त्री होने की अवस्था +टाप्] स्त्री, लड़की, तरुणी, जवान स्त्री-मच्छन्तीनां - अहो बिबुघयौवतं वहसि तन्वि पृथ्वीगता--गीत. रमणवसति योषितां तत्र नक्तं-मेघ. 37, शि. 10, (सुरसुन्दरी रूपम्)। 4 / 42. 8 / 25 / यौवनम् [यूनो भावः अण्] 1. जवानी (आलं० से भी) यौक्तिक (वि.) (स्त्री०-की) [यक्तित आगतः -ठक] तारुण्य, तरुणाई, वयस्कता-मुग्धत्वस्य च यौवनस्य 1. उपयुक्त, योग्य, उचित 2. तर्क संगत, तर्क या च सखे मध्ये मधुश्रीः स्थिता--विक्रम० 217, हेतु पर आधारित 3. तर्य, अनुमेय 4. प्रचलित, यौवनेऽभ्यस्तविद्यानाम् - रघु० 18, 6 / 50 दिनप्रथानुकूल, -कः राजा का आमोदप्रिय साथी-तु० यौवनोत्थान-१३।२० 2. जवान व्यक्तियों का 'नर्मसचिव'। विशेष कर तरुणियों का समूह / सम०-अन्त (वि.) योगः | योग+अण] योगदर्शन के सिद्धान्तों का अनुयायी। जवानी में समाप्त होने वाला, लंबी जवानी होना योगपद्यम् [युगपद् ष्य] समकालिकता, समसाम- कु०६१४४,-आरम्भः जवानी का उभार, खिलती यिकता। हुई जवानी,-दर्पः 1. जवानी भरा अभिमान 2. जवानी यौगिक (वि.) (स्त्री० की) [योग+ठक्] 1. उपयोगी, में सहजसुलभ अविवेक,-लक्षणम 1. जवानी का चिह्न सेवा के योग्य, उचित 2. प्रचलित 3. व्युत्पन्न, 2. आकर्षण, लावण्य 3. स्त्रियों के कुच / निर्वचनमूलक, शब्दव्युत्पत्ति के अनुरूप (विप० रूतु या परम्परागत) 4. उपचार परक 5. योग संबंधी, यौवनाश्वः यवनाश्व+अण] युवनाश्व का पुत्र मान्धाता। योग से व्युत्पन्न / यौवराज्यम् [युवराज+व्यञ] युवराज का पद या यौतक (वि.) (स्त्री०--को) [यते विवाहकाले अधिगतं | अधिकार, यौवराज्येऽभिषिक्तः, (युवराज पद का वुण] किसी एक व्यक्ति की सम्पत्ति जिस पर उसका मकुट धारण किये हुए)। एकान्ततः अपना ही अविकार हो, ऐसी सम्पत्ति जिस | यौष्माक (वि.) (स्त्री०-की), यौष्माकीण (वि.) पर यथार्थतः उसका ही एकमात्र अधिकार हो [युष्मद्+अण, खन वा, युष्माक आदेशः] तुम्हारा, --'विभागभावना ज्ञेया गहक्षेत्रैश्च यौतकै:'---याज्ञः / आपका। रः [रा+ड] 1. अग्नि 2. गर्मी 3. प्रेम, इच्छा 4. चाल, 14198, प्रेर० -(रहयति--ते-कुछ के अनुसार गति / चुरा० उभ०) 1. जल्दी से चलाना, प्रेरणा देना रंह (भ्वा० पर० रहति) हिलना--जलना, वेग 2. बहाना 3. जाना 4. बोलना। से चलना, जल्दी करना न रहाश्वकुंजरम्-भट्टि ! रंहतिः (स्त्री०) [रह+श्तिप्] चाल, वेग / For Private and Personal Use Only Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंहस् (पुं०) [रह +असुन्, हुक च] 1. चाल, वेग, सारस,--शासनम् सिन्दूर,-शीर्षक: एक प्रकार का रघु० 2 / 34 शि० 1217, कि० 2140 2. आतुरता, सारस,.. सन्ध्यकम् लाल कमल,-सारम् लाल चन्दन / प्रचण्डता, उत्कटता, उग्रता। रक्तक (वि०) [रक्त+कन्] 1. लाल, 2. सानुराग, रक्त (भू० क० कृ.) [स्ञ् करणे क्तः] 1. रंगीन, रंगा | अनुरक्त, स्नेहशील 3. सुहावना, विनोदप्रिय 4. रक्त हुआ, हलके रंग वाला, रंग लिप्त--आभाति बालात- रंजित-क: 1. लाल रंग की वेशभूषा 2. सानुराग परक्तसानु:--रघु०६।६० 2. लाल, गहरा लाल रंग, ___ व्यक्ति, शृङ्गार-प्रिय पुरुष 3. खिलाड़ी। लोहितवर्ण, सांध्यं तेजः प्रतिनवजवापुष्परक्तं दधानः | रक्तिः (स्त्री०) [रञ्ज-क्तिन्] 1. सुहावनापन, प्रियता, मेघ० 36, इसीप्रकार रक्ताशोक, रक्तांशुक आदि / आकर्षण, लावण्य 2. आसक्ति, स्नेह, निष्ठा, भक्ति / 3. मुग्ध, सानुराग, अनुरक्त, प्रेमासक्त-अयमेन्द्री- रक्तिका रक्ति+कन्+टाप] गुंजा का पौधा या इसका मुखं पश्य रक्तश्चुम्बति चन्द्रमा:--चन्द्रा० 5 / 58 बीज जो तोलने (एक रत्ती) के काम आता है। (यहां यह द्वितीयार्थ भी रखता है) 4. प्रिय, वल्लभ रक्तिमन् (पुं०) रक्त-+ इमनिच ] ललाई। 5. सुहावना, आकर्षक, मधुर, सुखद श्रोत्रेषु संमूर्छति रक्ष (भ्वा० पर० रक्षति, रक्षित) 1. रक्षा करना, रक्तमासां गीतानुगं वारिमदङ्गवाद्यम्-रघु० 16164 चौकीदारी करना, देखभाल करना, पहरा देना, 6. खेल का शौकीन, खिलाड़ी, क्रीडाप्रिय,---क्तः 1. (पशु आदि) पालना, राज्य करना, (पृथ्वी पर) लाल रंग 2. कुसुम्भ,-क्ता 1. लाख 2. गुंजा का शासन करना---- भवानिमां प्रतिकृति रक्षतु-श०६, पौधा,क्तम् 1. रुधिर 2. तांबा 3. जाफरान 4. ज्ञास्यसि किय जो मे रक्षति मौर्वीकिणांक इति सिन्दूर / सम०---अक्ष (वि.) 1. लाल आँखों वाला ---श० 1113 2. सुरक्षित रखना, (भेद) न खोलना 2. डरावना (-क्षः) 1. भैंसा 2. कबूतर,-अंकः -~हस्यं रक्षति 3. सन्धारण करना, बचाना, बचा मुंगा,-अंगः 1. खटमल 2. मङ्गलग्रह 3. सूर्यमण्डल कर रखना (बहुधा अपा० के साथ) अलब्धं चैव या चन्द्रमण्डल,-अधिमंथः आंखों की सूजन अंबरम् लिप्सेत लब्धं रक्षेदवक्षयात्--हि. 2 / 8, आपदर्थे लाल वस्त्र (-र:) गेरुआ वस्त्रधारी परिव्राजक, धनं रक्षेत्-- हि० 241, रघु० 2 / 50, 11177 –अर्बुवः रसौली,--अशोक: लाल फूलों वाला अशोक 4. टालमटूल करना- मुद्रा० 22, (अभि, परि, वृक्ष-मालवि० ३१५,-आधारः चमड़ी, खाल, सम् आदि उपसर्ग जोड़ने पर इस धातु के अर्थों में आभ (वि०) लाल दिखाई देने वाला,- आशयः कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता)। एक प्रकार का आशय जिसमें रुधिर रहता है तथा | रक्षक (वि.)स्त्री-क्षिका) [ रक्ष--पवल] चौकसी जिससे निकलता रहता है (हृदय, तिल्ली और जिगर रखने वाला, रक्षा करने वाला-कः रखवाला, अभिआदि),-उत्पलम् लालकमल,--उपलम् गेरु, लाल | भावक, चोकीदार, पहरेदार / मिट्टी, कण्ठ, कण्ठिन् (वि०) मधुरकण्ठवाला | रक्षणम [ रक्ष-+ ल्यट] रक्षा करना, बचाव, संधारण, (0) कोयल कंदः,- कंवल: मुंगा,---कमलम चौकसी, देखभाल आदि ('रक्षणम्' भी) णी रास, लाल कमल चन्दनम् 1. लाल चन्दन, जाफरान, लगाम। केसर,-चूणम् सिन्दूर,-छदिः (स्त्री०) रुधिर की रक्षस् (नपुं०) [ रक्ष्यतेहविरस्मात्, रक्ष+असुन् ] भूत-प्रेत के करना,--जिह्वः सिंह,-तुण्डः तोता,--दृश (पं०) / पिशाच, भूतना, बैताल-चतुर्दश सहस्राणि रक्षसां कबूतर,---धातुः 1. गेरु या हरताल 2. तांबा--पः भीमकर्मणाम्, त्रयश्च दूषणखरत्रिमूर्धानो रणे हताः----- पिशाच, भूत-प्रेत,-पल्लवः अशोकवृक्ष, पा जोंक उत्तर० 2115 / सम० --- ईशः, नाथः रावण का ---पातः नरहत्या,--पाद (वि०) लाल पैरों वाला, विशेषण , जननी रात्रि,-सभम राक्षसों की सभा / (-दः) 1. लालपैरों का पक्षी, तोता 2. युद्धरथ 3. | रक्षा [रक्ष- भावे अ+टाप् ] 1. बचाव, संधारण, चौकसी हाथी,-पायिन् (पुं०) खटमल,---पायिनी जोंक, मयि सष्टिहि लोकानां रक्षा यष्मा स्ववस्थिता---कू० -पिण्डम् 1. लाल रंग की फुन्सी 2. नाक और २२८,शि०१८३१,२०१११४,रघु०२।४, मेघ०४३ मुंह से रक्तस्राव होना,-प्रमेहः मूत्र के साथ रक्त 2. देखभाल, सुरक्षा 3. चौकसी, पहरा 4. ताबीज या का निकलना, - भवम् मांस, -मोक्षः, --मोक्षणम् गण्डा, परिरक्षी, जैसे कि नीचे 'रक्षाकरण्ड में :. अभिरुधिर निकलना, -बटी-वरटी चेचक,-वर्गः 1. भावक देवता 6. भस्म, राख 7. रक्षाबन्धन, पहुंची लाख 2. अनार का पेड़ 3. कुसुम्भ, -- वर्ण (वि०) (विशेषकर श्रावण पूर्णिमा के दिन कलाई में बांधी लाल रंग का (णः) 1. लाल रंग 2. बीरबहुटी जाने वाली रेशम या सूत की डोरी) ताबीज या गण्डे नामक कीड़ा (-र्णम्) सोना, - वसन,- वासस् के रूप में ( इस अर्थ में 'रक्षी' शब्द भी प्रयक्त है)। (वि०) लाल रंग की वश भूषा धारण किये हुए, | सम०-अधिकृतः जिसे प्ररक्षण या अधीक्षण कार्य For Private and Personal Use Only Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपूर्द किया गया है, अधीक्षक या शासक अथवा राज्य- यथा नृत्यात्, पुरुषस्य तथात्मानं प्रकाश्य विनिवर्तते पाल 2. दण्डनायक, मजिस्ट्रेट 3. मुख्य आरक्षाधिकारी प्रकृतिः - शर्व० 5. रणक्षेत्र 6. नाचना, गाना, अपेक्षकः 1. कुली, द्वारपाल 2. अन्तःपुर का पहरेदार अभिनय 7. आमोद, मनोविनोद 8. सुहागा 9. स्वर का 3. गांडू, लौंडा नाटक का पात्र अभिनेता,-करण्डः अनुनासिक उच्चारण-सरंगम् कम्पयेत्कंपम् रथीवेति .....करण्डकम् तबीज़ की डिबिया, गण्ड, जादू की निदर्शनम्-शिक्षा० 30, इसी प्रकार 26, 27,28, डिबिया .. अहो रक्षाकरण्डकमस्य मणिवन्धे न दृश्यते - गः गम् रांग, टिन / सम०--अङ्गणम् अखाड़ा, ----श०७,-गृहम् प्रसूति का गह, ---- रक्षागृहगता दीपाः नाचघर,-अवतरणम् 1. रङ्गमंच पर प्रवेश 2. अभिप्रत्यादिष्टा इवाभवन्--रघु० 1059, पात्रः एक नेता या नाटयपात्र का व्यवसाय,-अवतारक:-अवतारिन् प्रकार का भोजपत्र, पालः, पुरुषः पहरेदार, चौकी- (पुं० अभिनेता, नाटक का पात्र, आजीव: 1. अभिनेता दार, प्रारक्षी,-प्रदीपः वह दीपक जो भूत प्रेत से बचाव 2. चित्रकार, इसी प्रकार,-- उपजोविन् (पं०),कारः के लिए जलता हुआ रखा जाता है,--भूषणम्,-मणि, -- जीवकः चित्रकार, रंगवेपक,--चुरः 1. अभिनेता, -रत्नम् एक प्रकार का आभूषण जो ताबीज की नाटक का पात्र 2. वाग्मी,- जम् सिन्दूर,-वेवता भांति भूत प्रेतादि की बाधा से बचाव के लिए पहना क्रीड़ा तथा सार्वजनिक आमोद-प्रमोद की अधिष्ठात्री जाता है। देवता, द्वारम् 1. रङ्गशाला का द्वार 2. किसी नाटक रक्षित, रक्षिन् (वि०) [ रक्ष+तच, णिनि वा ] बचाने का मंगलाचरण या प्रस्तावना,-भूतिः (स्त्री०) आश्विन वाला, चौकसी करने वाला, राज्य करने वाला--नै० मास की पूर्णिमा की रात,-भूमिः (स्त्री०) 1. रङ्गमंच, 1 / 1 पुं०) 1. रक्षा करने वाला, संरक्षक, बचाने वाला नाट्यशाला 2. अखाड़ा, रणक्षेत्र,- मंडपः रङ्गशाला, 2. चौकीदार, सन्तरी, प्रारक्षी-अये पदशब्द इव मा -मात (स्त्री०) 1. लाख, लालरङ्ग, महावर, इसे नाम रक्षिणः ---मृच्छ० 3 / पैदा करने वाला कीड़ा 2. कुटनी, दूती,-वस्तु (नपुं०) - रघुः [ लंघति ज्ञानसीमानं प्राप्नंति-लंघ+कु, न लोपः, रङ्गलेप, वाट: अखाड़ा, बाड़ा जहाँ नाटक नाच आदि लस्य र:] एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा, दिलीप का पुत्र होते हों,--शाला नाचघर, नाटयगृह, नाटकघर / और अज का पिता (ऐसा प्रतीत होता है कि इसका रन्ध (भ्वा० उभ० रन्धति-ते) 1. जाना 2. शीघ्र जाना, नाम रघु (रघु या रन्ध-जाना ) इस कारण पड़ा हो। जल्दी करना-द्वारम् ररन्धतुर्याम्यम्-भट्टि० 14 / 15 / क्योंकि इसके पिता ने यह पहले ही जान लिया कि यह रच ( चुरा० उभ० रचयति-ते ,रचित ) 1. व्यवस्थित लड़का विद्या के ही पार नहीं जायगा अपि युद्ध में करना, सज्जित करना, तैयार करना, बना लेना, रचना अपने शत्रुओं को भी परास्त कर देगा-तु० रघु०३।२१ करना-पुष्पाणां प्रकरः स्मितेन रचितो नो कुन्दजात्याअपने नाम की सार्थकता के अनुसार उसने दिग्विजय दिभिः-अमरु ४०,रचयति शयनं सचकितनयनम-गीत. आरम्भ किया, समस्त ज्ञात भूमण्डल का चक्कर लगाया 5 2. बनाना, रूप देना, कार्यान्वित करना, रचना करना और कीति तथा विजयोपहार के साथ वापिस आया। पैदा करना-मायाविकल्परचितैः स्यंदन:-रघु०१३।७५, आ कर उसने विश्वजित यज्ञ का आयोजन किया और माधुर्यं मधुबिंदुना रचयितुं क्षारांबुधेरीहते-भर्तृ० दक्षिणा में ब्राह्मणों को सर्वस्व दे डाला, तथा अज को 216, मौलो वा रचयांजलिम्- वेणी० 3 / 40 अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया)। सम० 3. लिखना, रचना करना, (किसी कृति आदि को) नन्दनः, नथ:-पतिः-श्रेष्ठ:-सिंहः राम के विशेषण / एकत्र करना-अश्वधाटी जगन्नाथो विश्वहृद्यामरीरचत्रड (वि.) [रमते तुष्यति --रम् +-क] 1. अधम, दरिद्र अश्व० 26, श० 3.15 4. रखना, स्थिर करना, भंगता, अभागा, दयनीय 2. मन्थर,-कः भिखारी. मन्द- जमाना-रचयति चिकुरे कुरबककुसुमम्-गीत०७, कु० भाग्य. भूखा, क्षुधात, भुखमरा-प्रेतरङ्कः--मा 5 / 16, 4 / 18, 34, श० 6 / 17 5. अलंकृत करना, सजाना बक्षित या 'भुखमरी आत्मा' पञ्च० 0254 / / मेघ०६६ 6. (मन को) लगाना,-आ-,व्यवस्थित रकुः [ रम् + कु] हरिण, कुरङ्ग, कृष्णसार मृग - नै० करना, वि-, 1. व्यवस्थित करना 2. रचना करना 2183 / 3. कार्यान्वित करना, पैदा करना, बनाना- मेघ० 95, रङ्गः। रन्ज् भावे घन ] 1. रङ्ग, वर्ण, रङ्गने का मसाला भामि० 1 / 30 / रङ्गलेप या रोगन 2. रङ्गमंच, नाटयशाला, नाट्यगृह रचनम्-ना [रच्+युच्, स्त्रियां टाप् [ 1. व्यवस्था, अखाड़ा, सार्वजनिक आमोदस्थली-जैसा कि रङ्ग- तैयारी, विन्यास--अभिषेक, सगीत आदि 2. बनाना विघ्नोपशान्तये -सा० द० 281 3. सभा-भवन, सर्जन करना, उत्पन्न करना-अन्यव कापि रचना श्रोतृवर्ग--अहो रागबद्धचित्तवृत्तिरालिखितः इव सर्वतो वचनावलीनां-भामि० 1169, इसी प्रकार-भ्रकुटि रङ्गः-श० 1, रङ्गस्य दर्शयित्वा निवर्तते नर्तकी / रचना-मेघ० 95 3. सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पत्ति, For Private and Personal Use Only Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यान्वयन-कुरु मम वचनं सत्वररचन--गीत / नगण्य है, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है,-वर्श५, रघु० 10 // 77 4. साहित्यिक रचना या सजन, नम् प्रथम बार रजोधर्म का होना, सबसे पहला निर्माण, संरचना-संक्षिप्ता वस्तु रचना-सा० द. रजःस्राव,-बन्धः रजोधर्म का बन्द हो जाना,-रसः 422 5. बाल संवारना 6. सैन्यव्यहन 7. मन की | अन्धेरा,-- शुक्षिः रजोधर्म की विशुद्ध दशा, - हरः सृष्टि, कृत्रिम उद्भावना। 'मल हटाने वाला' घोबी।। रजः दे० रजस् / रजसानुः [ रज्यतेऽस्मिन्-र +असानु ] 1. बादल रजकः [ र + वुल, नलोपः ] धोबी। 2. आत्मा, दिल। रजका,-को [ रजक+टाप्, ङीष् वा ] धोबन / रजस्वल (वि०) [ रजस्+वलच् ] 1. मैला, घूल से भरा रजत (वि.) [ रन्ज्+अतच, नलोपः ] 1. चांदी के रंग हुआ-रघु०११४६०, शि० 17161, (यहां इसका का, चाँदी का बना हुआ 2. उज्ज्वल-तम् 1. चाँदी अर्थ 'रजोधर्म में होने वाली' भी है) 2. आवेश या -शुक्ती रजतमिदमिति ज्ञानं भ्रमः कि० 5/41, संवेग से भरा हुआ-मनु० ६७७,-लः भैंसा,--ला नै०२२२५२ 2. स्वर्ण 3. मोतियों का आभूषण या 1. रजस्वला स्त्री-रजस्वला: परिमलिनांबरश्रियः माला 4. रुधिर 5. हाथी दांत 6. नक्षत्रपुंज, तारा -शि० 1761, याज्ञ० 31229, रघु० 11160 समूह। 2. विवाह के योग्य कन्या। रजनिः, जी (स्त्री०) [ रज्यतेऽत्र, रज+कनि वा ङीप्] रज्जुः (स्त्री०) [ सज्+उ, असुमागमः धातोस्सलोपः, रात-हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरा- आगमसकारस्य जश्त्वं दकारः, तस्यापि चुत्वं जकार:] मम्-गीत० 5 / सम० - करः चन्द्रमा - चरः रात 1. रस्सा, डोरी, सुतली 2. कशेरुका स्तम्भ से निकको घूमने वाला, पिशाच, बेताल,-जलम् ओस, धुन्ध, लने वाली स्नाय 3. स्त्रियों के सिर की चोटी। -पतिः,-रगणः चन्द्रमा,-मुखम् सन्ध्या, सायं- सम० -बालकम एक प्रकार का जंगली मग, इसी काल। प्रकार रज्जुबालः,—पेड़ा सुतली से बनी हुई टोकरी / रजनिमन्य (वि०) (वह दिन) जो रात जैसा बीते या रंज (म्वा० दिवा० उभ०-रजति-ते, रज्यति-ते, रक्त, रात जैसा दिखाई दे --भट्टि०७।१३ / कर्मवा० रज्यते, इच्छा०रिरक्षन्ति) 1. रंगे जाने के रजस (०)रज+असून, नलोप:] 1. घल, रेण, गर्द- योग्य, लाल रंग से रंगना, लाल होना, चमकना,- कोप धन्यास्तदङ्गरजसा मलिनीभवन्ति --श० 7.17, ... रज्यन्मुखश्री:- उत्तर०५।२, नेत्रे स्वयं रज्यतः-५।२६, आत्मोद्धतरपि रजोभिरलंघनीयाः . 128, रघु० / / नै० 33120, 7 / 60, 22152 2. रंगना, हलका रंग देना --42, 6 / 32 2. फूल की रेणु या पराग-भूयात्कृशे- रंगीन बनाना, रंगलेप करना 3. अनुरक्त होना, भक्त शयरजोमदुरेणुरस्याः पिंथाः)-श० 4 / 10, मेघ० बनना (अधि० के साथ) देवानियं निषघराजरुच३३,६५ 3. सूर्य किरणों में फैले हुए कण, कोई भी स्त्यजती रूपादरज्यत नलेन विदर्भसुभ्रः - नै०.१३३८. छोटा सा कण -तु० मनु०८।१३२, याज्ञ. 11362 सा० द० 111 4. मुग्ध होना, प्रेमासक्त होना, 4. जुती हुई भूमि, कृषियोग्य खेत 5. अन्धकार, स्नेह की अनुभूति होना 5. प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना, अन्धेरा 6. मलिनता, आवेश, संवेग, नैतिक या मान- खुश होना-प्रेर० (रंजयति-ते) 1. रंगना, हलका सिक अन्धकार-अपथे पदमर्पयन्ति हि श्रुतवन्तोऽपिर- रंगना, रंगीन बनाना, लाल करना, रंगलेप करना जोनिमीलिताः रघु० 9 / 74 7. सब प्रकार के भौतिक -सा रंजयित्वा चरणी कृताशी:-कु० 7.19, द्रव्यों के घटक गुणों अथवा तीन गुणों में से दूसरा 6 / 81, कि० 1140, 4 / 14 2. प्रसन्न करना, तृप्त -(दूसरे दो गुण हैं सत्त्व और तमस्, जीवजन्तुओं करना, मनाना, सन्तुष्ट करना ज्ञानलवदुर्विदग्धं में बड़ी भारी क्रियाशीलता का कारण 'रजस्' ब्रह्मा नरं न रंजयति-भर्तृ० 2 / 3 (इस अर्थ में रजसमझा जाता है, यह गुण मनुष्यों में बहुतायत से / पति' भी दे० कि०.६।२५) स्फुरतु कुचकुंभयोरुपरि पाया जाता है जैसे कि देवताओं में सत्त्व तथा राक्षसों मणिमंजरी रंजयतु तव हृदयेशम् -गीत० 10 में तमस् पाया जाता है), अन्तर्गतमपास्तं में रजसोऽपि 3. मेल करना, जीत लेना, सन्तुष्ट रहना मनु० परं तमः-कु० 6 / 69, भग० 6 / 27, मा० 1120 7 / 19 4. हरिण का शिकार करना (इस अर्थ में केवल 8. रजःस्राव, ऋतुस्राव - मनु० 4 / 41, 5 / 66 / / 'रंजयति'), अनु-, 1. लाल होना, शि० 967 सम० -गुणः दे० (7) ऊपर, तमस्क (वि.) रज 2. स्नेहशील होना, भक्त होना, अनुरक्त बनना, प्रेम और तम दोनों गुणों से प्रभावित, - तोकः,-कम्, करना, पसन्द करना (अधि० के साथ कर्म० के भी) ---पुत्रः 1. लोलुपता, लालच 2. 'जोश का पुतला' पंच० 11101, मनु० 31173 3. खुश होना-भग० यह प्रकट करने के लिए कि यह व्यक्ति तुच्छ है, 11136 अप-, 1. असन्तुष्ट होना, सन्तोषरहित होना, For Private and Personal Use Only Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (अपा० के साथ, नयहीनादपरज्यते जनः-कि० से भागने वाला, भगोड़ा-स बभार रणापेतां चमं प२०४९ 2. पीला होना, विवर्ण होना--श्वासापरक्ता- _श्चादवस्थिताम्-कि० 15 / 33, आतोद्यम्,-तूर्यम्, घरः - श०६।५, उप-, 1. ग्रहणग्रस्त होना,- उप- -- वृंदुभिः सैनिक ढोल, मारु बाजा,-उत्साहः युद्ध में रज्यते भगवांश्चन्द्र:-मुद्रा० 1 2. हलके रंग का प्रदर्शित विक्रम,--क्षितिः (स्त्री०),-क्षेत्रम्,-भूः होना, रंगीन होना-शि० 2010 3. कष्टग्रस्त या (स्त्री०),-भूमिः (स्त्री०), स्थानम् युद्धक्षेत्र,-धुरा विपद्ग्रस्त होना वि-, 1. रंगरहित होना, मलिन युद्ध में आगे रहना, युद्ध का वार-ताते चापद्वितीये होना, घटिया या भहा होना-केशा अपि विरज्यंते वहति रणधुरा को भयस्यावकाशः-वेणी० 35, नि:स्नेहाः कि न सेवका:-पंच० 282 (यहाँ यह ---प्रिय (वि०) युद्ध का शौकीन, लड़ाकू ,-मत्तः हाथी द्वितीयार्थ भी रखता है) 1. असन्तुष्ट होना, निलिप्त -मुखम्,-मूर्धन् (पुं०),- शिरस् (नपुं०) 1. युद्ध होना, नापसंद करना, घृणा करना---चिरानुरक्तोऽपि का अगला भाग, लड़ाई का मुख्य वार- श०६।३०, विरज्यते जन:-मच्छ० 1153, यां चिन्तयामि सततं 7 / 26 2. सेना का अग्रभाग,-रंक: हाथी के दाँतों के मयि सा विरक्ता-भर्त० 2 / 2, भट्टि० 18 / 22, संसार मध्य का फासला, - रंगः युद्धक्षेत्र,- रणः डांस, मच्छर से विरक्त होना, सांसारिक आसक्तियों का छोड़ देना। (--णम्) 1. प्रबल इच्छा, उत्कण्ठा 2. खोई हुई वस्तु रंजकः [रंजयति-रंज्+णिच्+ण्वुल] 1. चित्रकार, रंग- के लिए खेद,-रणकः,–कम् 1. चिंता, बेचनी, खेद, लेपक, रंगरेज 2. उत्तेजक, उद्दीपक,-कम् 1. लाल (किसी प्रिय वस्तु के लिए) कष्ट या संताप (प्रेम से चन्दन 2. सिन्दूर। उत्पन्न) रणरणकविवृद्धि बिभ्रदावर्तमानम्-मा० 1141, रंजनम् [रज्यतेऽनेन-रञ् करणे ल्युट्] 1. रंग करना, उत्तर०१ 2. प्रेम, इच्छा (.- कः) कामदेव,- वाघम् हलका रंगना, रंगलेप करना 2. वर्ण, रंग 3. प्रसन्न मारू बाजा, सैनिक संगीत बाजा,---शिक्षा सैन्यविज्ञान, करना, खुश करना, सन्तुष्ट रहना, तृप्त होना प्रसन्नता युद्धकला, या युद्ध विज्ञान,- संकुलम् घोर-युद्ध, तुमुलदेना--राजा प्रजारजनलब्धवर्ण:--रघु० 6 / 21, तथैव युद्ध,-सज्जा युद्ध की सामग्री, सैनिक साज-सामान सोऽभूदन्वर्थो राजा प्रकृतिरंजनात्--४।१२ 4. लाल -सहायः मित्र, सहायक,---स्तंभः विजयस्मारक, चन्दन की लकड़ी। विजयचिह्न। रंजनी [रंजन+डीप] नील का पौधा। रणस्कारः [रण + शतृ, ष० त०] 1. खड़खड़ाहट, झनरट् (म्वा० पर० रटति रटित) 1. चिल्लाना, चीत्कार ___झनाहट या छनछन की आवाज 2. (मक्खियों का) करना, चीखना, क्रंदन करना, दहाड़ना, चिंघाड़ना भनभनाना। --घोराश्चाराटिषुः शिवाः-भट्टि० 15 / 27, पपात | | रणितम् [ रण्+क्त ] खड़खड़ाहट, टनटन, झनझनाहट राक्षसो भूमी रराट च भयंकरम् -14181 2. जोर या छनछन की आवाज / से बोलना, उद्घोषणा करना 3. प्रसन्नता से चिल्लाना, | रंड: [ रम्+ड ] 1. वह पुरुष जो पुत्रहीन मरे 2. बंजर प्रशंसा करना आ-, पुकारना, चिल्लाना-प्रियसहचर- वृक्ष,-डा फूहड़स्त्री, पुंश्चली, स्त्रियों को संबोधित मपश्यंत्यातुरा चक्रवाक्यारटति--श०४। करने में निंदापरक शब्द-रंडे पंडितमानिनि-पंच० रटनम् [रट्+ल्युट्] 1. क्रन्दन की क्रिया, चिलाना, जोर 11392, (पाठान्तर) प्रतिकूलामकुलजां पापां पापा से आवाज देना 2. प्रशंसा का चीत्कार, पसंदगी। नवर्तिनीम, केशेष्वाकृष्य तां रंडा पाखण्डेष नियोजय रण (म्वा० पर० रणति, रणित) ध्वनि करना, टनटनाना, प्रबो०२2. विधवा स्त्री-रंडाः पीनपयोधराः झुनझुनाना, झनझनाना (पायजेब आदि का)-रण- कति मया नोद्गाढ़मालिंगिता: --प्रबो० 3 / / द्विराषट्टनया नभस्वतः पृथग्विभिन्नश्रुतिमंडलैः स्वरैः (भू.क. कु०) [रम्+क्त ] 1. प्रसन्न, खुश, तृप्त शि० 1310, चरणरणितमणिनूपुरया परिपूरितसुरत 2. प्रसन्न या खुश, स्नेहशील, मुग्ध, अनुरक्त 3. तुला वितानम्--गीत०२। हुआ, व्यस्त, संलग्न, (30 रम्),-सम् 1. प्रसन्नता रणः, णम् [रण्+अप्] 1. संग्राम, समर, युद्ध, लड़ाई 2. मैथुन, संभोग-रघु० 19 / 23, 25, मेघ०८९ --रणः प्रववृते तत्र भीमः प्लबगरक्षसाम्-रषु० 3. उपस्थ इन्द्रिय / सम०-अयनी वेश्या, रंडी,-अर्थिन 12 / 72, बचोजीवितयोरासीबहिनिःसरणे रणः (वि.) कामुक, कामासक्त,-उद्वहः कोयल,-ऋतिकम् सुभा. 2. युद्धक्षेत्र,—ण: 1. शब्द, शोर 2. सारंगी 1. दिन 2. आनन्द के लिए स्नान,-कील: कुत्ता, बजाने का गज 3. गति, चाल। सम०-अप्रम -कृजितम् कामासक्त व्यक्ति की मैथुन के समय की युद्ध का अगला भाग,-अंगम् यसशस्त्र, शस्त्र तलवार, सीत्कार, ज्वरः कौवा,-तालिन् (पुं०) स्वेच्छाचारी, संयदे शोणितं व्योम रणांगानि प्रजज्वल:-भट्रिक कामासक्त,--ताली कुटनी, दूती,-नारोच: 1. विषयी 1496, अंगणम्,-म् युद्धक्षेत्र, अपेत (वि०) युद्ध | 2. कामदेव, मदन 3. कुत्ता 4. मैथुन के समय की रणमा प्रववृते तयोरासीद्वा For Private and Personal Use Only Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कामात व्यक्ति की सी-सी ध्वनि,--बंधः मंथन, संभोग, का काम, दे० अचिस्तुंगानभिमखमपि प्राप्य रत्न --हिंडकः 1. स्त्रियों को फुसलाकर उनसे बलात्कार | प्रदीपान्-मेघ०६८,-मुख्यम् हीरा,-राज् (पुं०) करने वाला 2. विलासी। लाल, राशिः 1. रत्नों का ढेर 2. समुद्र,—सान: मेरु रतिः (स्त्री०) [ रम्-|-क्तिन् ] 1. आनन्द, खुशी, सन्तोष, पर्वत,-सू (वि.) रत्नों को उत्पन्न करने वाला हर्ष-श० 211 2. स्नेहशीलता, भक्ति, अनुराग, / - रघु० 1165, -सू, सूतिः (स्त्री०) पृथ्वी। आनन्दानुभूति (अधि० के साथ) पापे रति मा कृथाः | रत्निः (पुं०, स्त्री०) [ऋ- कत्निच, यण] 1. कोहनी --भत० 177, स्वयोपिति रतिः---२।६२, रघु० 2. कोहनी से मुट्ठी तक की दूरी, एक हाथ का 1123 कु. 5165 3. प्रेम, स्नेह, सा० द. द्वारा की परिमाण (पुं०) बन्द मुट्ठी (यह शब्द 'अरनि' का गई परिभाषा रतिर्मनोऽनुकूलेऽर्थे मनसः प्रवणायितम् ही भ्रंश प्रतीत होता है)। -207, तु० 206 से भी 4. सम्भोग का आनन्द .... रथः | रम्यतेऽनेन अत्र वा-- रम् / कथन् / गाड़ी, जलूसी दाक्षिण्योदकवाहिनी विगलिता याता स्वदेशं रतिः गाड़ी, यान, वाहन, विशेषकर युद्धरथ 2. नायक ...-.-मृच्छ०८३८, इसी प्रकार 'रतिसर्वस्वम्' दे० नी० (रथिन्) 3. पैर, 4. अवयव, भाग, अंग 5. शरीर, तु० 5. मथुन, संभोग, सहवास 6. रतिदेवी, कामदेव की आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु कठ. पत्नी-साक्षात्कामं नवमिव रतिर्मालती माधवं यत 6. नरकुल / सम०-अक्षः गाड़ी का धुरा-अंगम ....मा० 1116, कु० 2 / 23, 4 / 45, रघु० 62 1. गाड़ी का कोई भाग 2. विशेषकर गाड़ी के पहिये 7. योनि, भग। सम०-अंगम्,- कुहरं योनि, भग, -रथो रथांगध्वनिना विजज्ञे रघ० 7141, श०७।१० -गहम,-भवनम्,--मन्दिरम् 1 क्रीडा गृह 2. चकला, 3. चक्र, विशेषकर विष्ण का,-चक्रधर इंति रथांगमदः रंडीखाना 3. योनि, भग, -तस्करः फुसलाने वाला, सततं बिभषि भुवनेषु रूढये-शि० 15 / 26 4. कुम्हार व्यभिचारी,--दूतिः-ती (स्त्री०) प्रेम का संदेश ले का चाक °आह्वयः, नामकः, नामन् (पं०) चकवा, जाने वाली--कु० ४।१६,-पतिः, ---प्रिय,—रमणः चक्रवाकरथांगनामन् वियतो रथांगश्रोणिबिवया, कामदेव, अपि नाम मनागवतीर्णोऽसि रतिरमणबाण अयं त्वां पृच्छति रथी मनोरथशतैर्वृतः--विक्रम गोचरम् मा० 1, दधति स्फूट रतिपतेरिषवः शिततां 4 / 18, कु० 3 / 37, रघु० 324, (कविसमय के यदुत्पलपलाशदृशः शि० 9 / 66, रसः संभोग का अनुसार चकवा रात होने पर चकबी से वियुक्त हो आनन्द, लंपट (वि०) कामी, कामासक्त, कामुक, जाता है, फिर सूर्योदय होने पर उनका मेल होता है) -सर्वस्वम् रतिक्रीडा का अत्युत्तम रस, अत्यानन्द पाणिः विष्णु का नाम, ईशः रथ पर बैठ कर युद्ध करं व्याधुन्वत्याः पिबसि रतिसर्वस्वमधरम् - श० करने वाला योद्धा, ईषा,-शा गाड़ी का जोड़ा 1 / 24 / (गाड़ी में लगने वाली सबसे लम्बी दो लकड़ियाँ जिन रत्नम् रमतेऽत्र, रम्+न, तान्तादेशः] 1. मणि, आभूषण, पर गाड़ी का सारा ढांचा जमाया जाता है),- उद्वहः, हीरा--कि रत्नमच्छा मतिः . भामि० श८६, न -उपस्थः रथ का वह स्थान जहाँ सारथि बैठता है, रत्नमन्विष्यति मग्यते हि तत्-कु० 5 / 45, (रत्न चालक का आसन,-कटया,-कड्या रथों का समूह, गिनती में पांच, नौ या चौदह बतलाये जाते हैं-दे० --कल्पकः राजा के रथों की व्यवस्था का अधिकारी, शब्द पंचरत्न, नवरत्न, और चतुर्दशरत्न) 2. कोई -कारः गाड़ी बनाने वाला, बढ़ई, पहिये घड़ने वाला भी मूल्यवान् पदार्थ, कीमती खजाना 3. अपने प्रकार रथकारः स्वकां भार्या सजारां शिरसाबहत- पंच० की अत्युत्तम वस्तु (समास के अन्त में) जाती जाती ४।५४,---कुटुंबिकः,---कुटुंबिन् (पुं०) रथवान्, सारथि, यदूत्कृष्ट तद्रनमभिधीयते- मल्लि०, कन्यारत्न- - कूबरः,----रम् गाड़ी की शहतीरी-केतुः रथ का मयोनिजन्म भवतामास्ते वयं चाथिनः महावी० झण्डा,-- क्षोभः रथ का हचकोला--- रघु 1158, 1130, इसी प्रकार पुत्र, स्त्री, अपत्य आदि -- गर्भकः डोली, पालकी,--गुप्तिः (स्त्री०) रथ के 6. चुम्बक / सम०-अनुविद्य (वि.) रत्नों से जड़ा चारों ओर लगा लोहे या लकड़ी का ढांचा जिससे रथ हआ, -- आकार: 1. रनों की खान 2. समुद्र--रत्नेषु की किसी से टकराने पर रक्षा हो सके,- चरणः, लप्तेषु बहुप्वम्त्यरद्यापि रत्नाकर एव सिंधु:-विक्रम ---पावः 1. रथ का पहिया 2. चकवा,--चर्या रथ का 1112, रत्नाकरं वीक्ष्य-रघु० १३३१,--आलोकः इधर उधर घुमना, रथ का उपयोग, रथ पर सवारी मणि की कान्ति,--आवली,--माला रत्नों का हार, करना-अनभ्यस्तरथचर्या:-- उत्तर०५,--धुर (स्त्री०) -कंदल: मंगा, खचित (वि.) रत्न या मणियों से गाड़ी के जोड़े की शहतीरी, नाभिः (स्त्री०) रथ के जड़ा हुआ,-गर्भः समुद्र (-र्भा) पृथ्वी,-दीपः, पहिये की नाह या नाभि, नीड:- रथ के अन्दर का -----प्रदीपः 1. रनों का बना दीपक 2. रत्न जो दीपक भाग या आसन,-बंधः रथ का साज-सामान, रस्सी EEEEEEEEEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 847 ) आदि,---महोत्सवः, --यात्रा रथ में देव प्रतिमा स्थापित ! दिये गये तथा उसकी रसोई में उपयुक्त किये गये कर जलस निकालना (ऐसे रथ को प्रायः मनुष्य स्वयं पशुओं की इतनी बड़ी संख्या थी कि उनकी खालों से खींचते है),--मुखम् गाड़ी का अगला भाग, युद्धम् रुधिर की नदी निकलो मानी जाती है, इसी नदी 'रथों का युद्ध' वह युद्ध जिसमें योद्धा रथों पर बैठ कर का बाद में 'चर्मण्वती' नाम पड़ गया-तु० मेघ० युद्ध करते हैं,-वर्मन् (नपुं०),-वीथिः राजमार्ग, 45, और तदुपरि मल्लि.)। मुख्य सड़क,--वाहः 1. रथ का घोड़ा 2. सारथि, रन्तुः [रम्+तुन्] 1. रास्ता, मार्ग 2. नदी। -शक्तिः (स्त्री०) वह ध्वज जिस पर रथ शुद्ध की धनम्, रन्धिः (स्त्री०) र + ल्युट, इन् वा, नुमागमः] पताका लहराती रहती है,- शाला गाड़ीवर, गाड़ियाँ | 1. क्षति पहुंचाना, सन्ताप देना, नष्ट करना रखने का स्थान, सप्तमी माघशुक्ला सप्तमी का 2. पकाना / दिन। रन्ध्रम् [रध+रक्, नुमागमः] 1. विवर, छेद, गर्त, मुँह रथिक (वि.) (स्त्री०-की) [रथ-ठन्] 1. रथ पर खाई, दरार.... रन्धेष्विवालक्ष्यनमः प्रदेशा--रघु० सवारी करने वाला 2. रथ का स्वामी। 13 / 56, 15 / 2, नासाग्ररन्ध्रम् . मा० 111; क्रौंचरथिन् (वि.) [रथ+इनि] 1. रथ में सवारी करने रन्ध्रम् मेघ० 57 2. (क) बलहीन स्थान, वह वाला, या रथ हांकने वाला 2. रथ को रखने वाला या जगह जहाँ आक्रमण किया जा सके रन्ध्रोपनिपारथ का स्वामो-(पुं०)1. गाड़ी का स्वामी 2. वह तिनोउनाः श० 6, रन्ध्रान्वेषणदक्षाणां द्विषामायोद्धा जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है ----रघु० मिषतां ययौ रघु० 12111, 15 / 17, 17 / 31, 7 / 37 / (ख) त्रुटि, दोष, कमी। सम० अन्वेषिन्, अनुरथिन, रथिर (वि०) [रथ+इन, इरच वा] दे० ऊ० सारिन (वि.) दूसरों के कमजोर स्थलों को ढूंढ़ने 'रथिन्'। वाला - मृच्छ० 8 / 57, बभ्रुः चूहा,...वंशः खोखला रथ्यः [रथं वहति-यत्] 1. रथ का घोड़ा -धावत्यमी या पोला बांस / मृगजवाक्षमयेव रथ्या:---श० 128 2. रथ का एक रभू (भ्वा० आ० रभते, रब्ध, प्रेर० रम्भयति-ते; इच्छा. भाग। रिप्सते) आरंभ करना, आ प्रा--,1. आरंभ करना रथ्या [रथ्य---टाप्] 1. गाड़ियों के आने जाने के लिए शुरू करना, काम में लग जाना, जिम्मेवारी ले लेना सड़क, राजमार्ग, मुख्य सड़क -भूयोभूयः सविघ प्रारभ्यते न खल विघ्नभयेन नीचैः - भर्त० 2 / 27, नगरीरथ्यया पर्यटन्तम् --मा० 1114 2. वह स्थान आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः सुभा०, भट्टि० 5 / 38, रघु० जहाँ कई सड़कें मिलती हों 3. गाड़ियों या रथों का 8 / 45 2. व्यस्त होना, सोत्साह होना --शि० 2191, समूह--शि०१८।३। / परि ,कौलो भरना, आलिङ्गन करना - इत्युक्तवन्तं रद् (भ्वा० पर० रदति) 1. टुकड़े टुकड़े करना, फाड़ना, परिरभ्य दोभ्या-कि० 11180, भामि०१।९५, कु० 2. खुरचना। 5 / 3, शि० 9172, सम्---, 1. क्षुब्ध होना भाव रवः [रद् +अच] 1. टुकड़े टुकड़े करना, खुरचना 2. दांत, विभोर होना, प्रभावित होना 2. कूपित होना, (हाथी का) दांत--पाताश्चेन्न पराञ्चन्ति द्विरदानां उत्तेजित होना, क्रोधोन्मत्त या चिड़चिड़ा होना (प्रायः रदा इव--भामि० 1165 / सम० खण्डनम् दाँत से क्तान्त रूप प्रयुक्त)--रघु० 16 / 16 / काटना, जनय रदखण्डनम् गीत० १०,-छदः, | रभस् (नपुं०) [रम् --असुन् ] 1. प्रचण्डता, उत्साह ओष्ठ। 2. बल, सामर्थ्य / रदनः [रद् + ल्युट् दाँत / सम०.-छदः ओठ। रभस (वि.) [रभ+असच्] 1. प्रचण्ड, उग्र, भीषण, रषु (दिवा० पर० रध्यति, रद्ध, प्रेर० रन्धयति, इच्छा० प्रखर 2. प्रबल, गहन, उत्कट, शक्तिशाली, तीक्ष्ण, रिरधिषति या रिरन्सति) 1. चोट पहुंचाना, क्षति तीब्र (उत्कण्ठा आदि) रभसया न दिगन्तदिदृक्षया पहुँचाना, संताप देना मार डालना, नष्ट करना--अक्षं ---कि० 5 / 1, रघु० 9 / 61, मुद्रा० ५।२४,---सः रधितुमारेभे-भट्टि० 9/29 2. भोजन बनाना 1. प्रचण्डता, भीषणता, उग्रता, शीघ्रता, वेग, आतुरता, (खाना) पकाना या तैयार करना। उत्कटता-आलीषु केलीरभसेन बाला मुहर्ममालापरन्तिदेवः [रम्+तिक रन्तिश्चासी देवश्च-कर्म० स०] मपालपन्ती—भामि० 2 / 12, त्वदभिसरणरभसेन एक चन्द्रवंशी राजा, भरत के बाद छठी पीढ़ी में वलन्ती - गीत० 6, शि० 6 / 13, 11 / 23, कि० (यह अत्यन्त पुण्यात्मा और उदार व्यक्ति था, उसके 9 / 47 2. उतावलापन, साहसिकता, जल्दबाजी पास अपार धनराशि थी जो इसने बड़े 2 यज्ञों के ---अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही अनुष्ठान में व्यय की। उसके राज्य में यज्ञ में बलि शल्यतुल्यो विपाक:-भर्त० 2 / 99 3. क्रोध, आवेश, For Private and Personal Use Only Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 848 ) कोप, भीषणता 4. खेद, शोक 5. हर्ष, आनंद, खुशी--। केलिक्रीडा 3. रति, मैथुन 4. हर्ष, उल्लास 5. कूल्हा, मनसि रभसविभवे हरिरुदयतु सुकृतेन ---गीत०५।। पुट्ठा। रम् (म्वा० आ० रमते, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने रमणा, रमणी [रमण+टाप,ङीप वा] 1. सुन्दर तरुण पर पर०, रत) 1. प्रसन्न होना, खुश होना, हर्ष स्त्री, --लता रम्या सेयं भ्रमरकुलरम्या न रमणी मनाना, तृप्त होना-रहसि रमते-मा० ३।२~-मनु० --भामि० 2 / 90 2. पत्नी, स्वामिनी-भोगः को 2 / 223 2. हर्षित होना,--प्रसन्न होना, आनन्द रमणी बिना-सुभा० / मनाना, स्नेहशील होना (करण और अधि० के रमणीय (वि०) [रम्यतेऽत्र-रम् आधारे अनीयर] सुहावना, साथ) - लोलापार्यदिन रमसे लोचनैर्वञ्चितोऽसि आनन्दप्रद, प्रिय, मनोहर, सुन्दर--स्मितं नैतत्किन्तु -- मेघ० 27, व्यजेष्ट षड्वर्गमरस्त नीतौ - भट्टि० प्रकृतिरमणीयं विकसितम -- भामि० 2 / 9 / / 112 3. खेलना, क्रीडा करना, प्रेमालिङ्गन करना, रमा रमयति -रम् + अच्+टाप्] 1. पत्नी, स्वामिनी जी बहलाना,.-राजप्रियाः करविण्यो रमन्ते मधपैः सह 2. लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी तथा धनदौलत की देवी --भामि० 11126 (यहाँ दूसरा अर्थ भी संकेतित 3. धन / सम०- कान्तः, नाथः, पतिः विष्णु का है) भट्टि० 615, 674. संभोग करना-सा तत्पु- विशेषण,-वेष्टः तारपीन। श्रेण सह रमते -हि० 3 5 रहना, ठहरना, टिकना. रम्भा [रम्भ / अच+टाप] 1. केले का पौधा--विजितप्रेर०--(रमयति--ते) प्रसन्न करना, खुश करना, रम्भमूरुद्वयम्-गीत०१०, पिबोरुरम्भातरुपीवरोरु-- सन्तुष्ट करना-इच्छा० (रिरंसते) क्रीडा करने नै० 22043 2037 2. गौरी का नाम, नलकुबेर की की इच्छा करना -शि० 15 / 88, अभि-हर्ष मनाना, पत्नी जो इन्द्र के स्वर्ग में अत्यंत सुन्दरी मानी जाती है प्रसन्न या आनन्दित होता, अत्यनुरक्त होना--भट्टि० --तरुमूरुयुगेन सुन्दरी किम् रम्भा परिणाहिना परम्, 117, भग० 18 / 45, आ-, (पर०) 1. आनन्द तरुणीमपि जिष्णुरेव तां धनदापत्यतपःफलस्तनीम्-.लेना, खुशी मनाना - भट्टि. 8152, 3 / 38 नं० 2 / 37, सम० ---ऊरू (वि०) (स्त्री०-रु,-रू) 2. ठहरना, थमना, छोड़ देना (बोलना आदि), समाप्त केले के आन्तर भाग के समान जंधाओं वाला या करना-मनु० 2 / 73, उप-, (पर० और आ०), वाली-शि० 8 / 19, रघु० 6135 / 1. रुकना, अन्त करना, समाप्त करना-सङ्गतावुपरराम रम्य (वि.) [रम्यतेऽत्र यत्] 1. सुहावना, सुखद, आनन्दच लज्जा-नि० 9 / 44, 13 // 69 2. रुकना, थमना प्रद, रुचिकर-रम्यास्तपोवनानां क्रियाः समवलोक्य -भयाद्रणादुपरतं मस्यन्ते त्वां महारथाः--भग० .....श० 1113 2. सुन्दर प्रिय, मनोहर-सरसिजमनु२।३५, भट्टि० 8 / 54, 55, कि० 4 / 17 3. चुप विद्धं शैवलेनापि रम्यं-श० 1120, ५२,---म्यः होना, शांत होना, भग० 6 / 20. 4. मरना--दे० चम्पक नाम का वृक्ष,-म्यम् वीर्य / उपरत, परि-, (पर०) प्रसन्न होना, खुश होना | रय् (म्वा० आ-रयते, रयित) जाना, हिलना-जुलना। -भट्टि० 8 / 53, वि-(पर०) 1. अन्त होना, | रयः हरय-+अच्] 1. नदी की धारा, प्रवाह,-जम्बूकुञ्जसमाप्त होना, अवसान होना - अविदितगतयामा प्रतिहतरयं तोयमादाय गच्छे:-मेघ 20 2. बल, रात्रिरेव व्यरंसीत्-उत्तर० 1127 2. रुकना, बन्द चाल, वेग-उत्तर० 3136 3. उत्साह, उत्कण्ठा, होना थमना, छोड़ देना (बोलना आदि)-एतावदुक्त्वा उत्कटता, उग्रता। विरते मृगेन्द्रे-रघु० 2 / 51, शि० 2 / 13, प्रायः अपा० | रल्लकः [रमणं रत् इच्छा तां लाति-ला+क=रल्ल के साथ, हा हन्त किमिति चित्तं विरमति नाद्यापि +कन्] 1. ऊनी वस्त्र, कंबल 2. पलक मारना विषयेभ्यः- भामि० 4 / 25, उत्तर० 1 / 33, सम् .. युवतिरल्लक-भल्लसमाहतो भवति को न यवा गत(आ०) प्रसन्न होना, हर्ष मनाना-भट्टि० 19130 / चेतनः 3. एक प्रकार का हरिण।। रम (वि.)[रम्+अच] सुहावना, आनन्दप्रद, संतोषजयक, रवः [रु+अप] 1. क्रन्दन, चीख, चीत्कार, हह, (जान आदि,-मः 1. हर्ष, खुशी 2. प्रेमी, पति 3. कामदेव. वरों की) चिंघाड़ 2. गाना, (पक्षियों की) कूजनध्वनि रमम् [रमेः अठः हींग / सम० ---ध्वनिःहींग / -रघु० 9 / 29 3. झनझनाहट 4. शब्द, कोलाहल रमण (वि०) (स्त्रीगी-) [रम्यति-रम् +णि+ल्युट् ...--घंटा. भूषण चाप आदि। सुहावना, सन्तोषजनक, आनन्दप्रद, मनोहर-भट्टि रवण (वि.) [+युच्] 1. क्रंदन करने वाला, चिंघाड़ने 6172,-: 1. प्रेमी, पति -पप्रच्छ रामा रमणोऽ वाला, चीखने बाला 2. ध्वन्यात्मक, शब्दायमानभिलाषम्-रघु० 14 / 27, मेघ० 37,87, कु. 4 / 21, -उत्कण्ठाबन्धनैः शुभं रवणरम्बरं ततम् भट्टि. शि० 96. 2. कामदेव 3. गधा 4. अंडकोष 7 / 14 3. तीक्ष्ण, तप्त 4. चंचल, अस्थिर,--ण: 1. ऊँट -पम् 1. कीड़ा करना 2. प्रेमालिंगन, जी बहलाना,। -शि. 1222 2. कोयल,-नम् पीतल, कांसा / For Private and Personal Use Only Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 849 ) रविः [रु-+६] सूर्य-. सहस्रगुणमत्स्रष्टमादत्ते हि रसं रविः / रघु० 1 / 18 / सम-कान्तः सूर्यकान्तमणि,- जः, -तनयः,-पुत्रः, - सूनुः 1. शनिग्रह 2. कर्ण के विशेषण 3. वालि के विशेषण 4. वैवस्वत मन के विशेषण 5. यम के विशेषण 6. सुग्रीव के विशेषण, -विनं,--वारः, ... वासरः,-वासरम् रविवार, आदित्यवार,-संक्रान्तिः (स्त्री०) सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश। रशना, रसना [अश्+युच, रशादेश:] 1. रस्सी, डोरी 2. रास, लगाम 3. कटिबंध, कमरबंद, स्त्रियों की करधनी---रसत रसनापि तव धनजघनमण्डले घोषयतु मन्मथनिदेशम--गीत० 10, रघु० 7.10, 8.57, मेघ० 35 4. जिह्वा--भामि० 11111 / सम० ---उपमा उपमा अलंकार का एक भेद, यह उपमाओं की एक श्रृंखला है जिसमें पूर्व उपमेय, भागे चलकर उपमान बनता जाता है--दे० सा० द० 664 / / रश्मिः [अश्+मि धातारुट रश+मि वा] 1. डोर, डोरी, रस्सी 2. लगाम, रास, मुक्तेषु रश्मिषु निरायतपूर्व कायाः-श० 18, रश्मिसंयमनात् - श० 1 3. सांटा, हंटर 4. किरण, प्रकाश किरण-श० 7 / 6, नं० 2256, इसी प्रकार 'हिमरश्मि' आदि। सम० -कलापः चव्वन लड़ियों की मोतियों की माला / रश्मिमत् (पुं०) [रश्मि+मतुप्] सूर्य / रस् / (म्वा० पर० रसति, रसित) 1. दहाड़ना, हुह करना, चिल्लाना, चीखना --करीव वन्यः परुषं ररास -रघु० 1678, शि० 3148 2. शब्द करना, कोलाहल करना, टनटन करना, झनझन करना ... राजन्योपनिमंत्रणाय रसति स्फीतं यशोदन्दुभिः .... वेणी० 1125, रसतु रसनापि तव घनजघनमण्डले ---गीत०१०3. प्रतिध्वनि करना, गूंजना। ii (चुरा० उभ० रसयति-ते, रसित) चखना, स्वाद लेना -मद्वीका रसिता भामि० 4 / 13, शि०१०।२७। रसः [रस्+अच्] 1. सार, (वृक्षों का) दूध, रस, इक्षुरसः कुसुमरसः आदि 2. तरल, द्रव कु. 17 3. पानी -सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः रघु० 1119 भामि०२११४४ 4. मदिरा, शराब-मनु०२।१७७, 5. चूंट एक मात्रा, खुराक 6. चखना, रस, स्वाद (आलं० से भी) (वैशेषिक दर्शन के 24 गुणों, में से एक; रस छः हैं:-कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त, और कषाय)--परायत्तः प्रीतेः कथमिव रस वेत्तु पुरुषः-मुद्रा० 3 / 4, उत्तर० 2 / 2 7. चटनी, मिर्च मसाला 8. कोई स्वादिष्ट पदार्थ-रघु० 3 / 4 / 9. किसी वस्तु के लिए स्वाद या रुचि, परान्दगी, इच्छा इष्टे तस्तुन्यपचितरसा: प्रेगराशीभवति / - मेघ०११२ 10. प्रेम, स्नेह,- जरसा यस्मिाहार्यो। 107 रस:-उत्तर० 1339, प्रसरति रसो निर्वतिधनः 6111, 'प्रेम की अनुभूति'-कु० 337 11. आनन्द, प्रसन्नता, खुशी-रघु० 3 / 26 12. लावण्य, अभिरुचि, सौन्दर्य. लावण्य 13. करुणरस, भाव-भावना 14. (काव्य रचनाओं में) रस-नवरसरुचिरा निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति - काव्य. 1, (रस प्रायः आठ है:-शृङ्गारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः। बीभत्सा द्भुतसंज्ञो चेत्यष्टो नाटये रसा स्मताः // परन्तु कभी कभी 'शांत' रस को जोड़ कर नौ रस बना दिये जाते हैं,-निवेदस्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः .. काव्य०४; कभी कभी दसवां रस 'वात्सल्य' और मिला दिया जाता है। प्रत्येक काव्यरचना के रस आवश्यक घटक है, परन्तु विश्वनाथ के मतानुसार 'रस' काव्य की आत्मा है - वाक्यं रसात्मकं काव्यम् --सा० द०३) 15. सत्, सार, तत्त्व, सर्वोत्तम भाग 16. शरीर के संघटक द्रव 17. वीर्य 18. पारा 19. विष, जहरीला पेय, जैसा कि 'तीक्ष्णरसदायिनः' में 20. कोई भी खनिज या धातुसंबंधी लवण / सम०-अजनम् रसोत, एक प्रकार का अंजन, -अम्लः अमलबेत,-अयनम् 1. अमृत, कोई भी औषध जो बढ़ापे को रोक कर जीवन को लम्बा करे, निखिलरसायनमहितो गन्धेनोग्रेण लशन इव-रस० 2. (आलं.) अमृत का काम देने वाला अर्थात् जो मन को तृप्त भी करे साथ ही हर्षित भी करे, आनन्दनानि हृदयकरसायनानि --- मा०६८, मनसश्च रसायनानि-उत्तर०११३६, श्रोत्रं कर्ण आदि 3. रससिद्धि, रसायन श्रेष्ठः पारा, ----आत्मक (वि.) 1. रसीला, रसदार 2. तरल, द्रव,---आभासः किसी रस का बाह्यरूप या केवल प्रतीति 2. किसी रस का अनुपयुक्त स्थान पर वर्णन, ----आस्वादः 1. सत् या रस आदि चखना 2. काव्यरस की अनुभूति, काव्य सौन्दर्य का प्रत्यक्षीकरण --जैसा कि 'काव्यामृतरसास्वादः' में,-इन्द्रः 1. पारा 2. पारसमणि, चिन्तामणि (कहते हैं कि इसके स्पर्श ते लोहा, सोना बन जाता है),-उद्भवम्,--उपलम् मोती,—कर्मन् (नपुं०) उन वस्तुओं को तैयार करना जिनमें पारा इस्तेमाल किया जाता है,-केसरम् कपूर, ---गन्धः, - धम् लोबान की तरह का खुशब्दार गोंद, रसगन्ध,-प्रह (वि.) 1. रसों का ज्ञाता 2. आनन्द मनाने वाला, अः राब, शीरा,-पम् रुधिर,(वि.) 1. जो रस की उत्तमता को परखता है, जो स्वाद जानता है, सांसारिकेषु व सुखेषु वयं रसज्ञाः .....-उत्तर० 2 / 27 2. वस्तुओं के सौन्दर्य को पहचानने में सक्षम (-1) 1. स्वाद का जानकार, भावुक, विवेचक, काव्यमर्मज्ञ, कदि 2. रससिद्धि का ज्ञाता 3. पारे For Private and Personal Use Only Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 850 ) के योग से बनने वाली औषधियों के तैयार करने / खुशी मनान वाला, प्रसन्नता अनुभव करने वाला, वाला वैद्य, (-सा) जिह्वा,----भामि० 2 / 59, तेजस् भक्त (प्रायः समास में)-इयं मालती भगवता सदश(नपुं०) रुधिर -----: वैद्य,-धातु (नपुं०) पारा, संयोगरसिकेन वेधसा मन्मथेन मया च तुभ्यं दीयते ---प्रबन्धः कोई भी काव्यरचना, विशेष कर नाटक, -मा०६, इसी प्रकार 'कामरसिक:'-भर्तृ०३।११२, --फल: नारियल का पेड़,- भङ्गः रस का टूट जाना परोपकाररसिकस्य-मच्छ० ६३१९,-क: 1. रसिया, या अवरोध,- भवम् रुधिर, राजः पारा, विक्रयः गुणग्राही, सहृदय पुरुष तु० अरसिक 2. स्वेच्छाचारी मदिरा की बिक्री, शास्त्र रससिद्धि का विज्ञान, 3. हाथी 4. घोड़ा, --का 1. ईख का रस, राब, मींझा -सिब (वि.) 1. काव्य-सम्पन्न, रसवेत्ता-जयन्ति ते 2. जिह्वा 3. स्त्रियों की करधनी-दे० 'रसाला' भी। सुकृतिनः रससिद्धाः कवीश्वराः-भर्त० 2 / 24 2. रस- | रसित (भू० क० कृ०) [ रस्+क्त] 1. चखा हुआ सिद्धि म कुशल,-सिदिः (स्त्री०) रससिद्धि में 2. रस या मनोभाव से युक्त 3. मुलम्मा चढ़ा हुआ, कुशलता। .... तम् 1. शराब या मदिरा 2. अंदन, दहाड़, गरज, रसनम् [ रस्+ल्युटु ] 1. क्रन्दन करना, चिल्लाना, चिंघाड़, कोलाहल, शोर-हेरम्बकण्ठरसितप्रतिमानमेति चिंघाड़ना, शोर मचाना, टनटन करना, कोलाहल ---मा०९।३। करना 2. बादलों की गड़गड़ाहट, बादलों की गरज | रसोनः [रसेनकेन ऊनः] लहसुन .. तु० लशुन / 3. स्वाद, रस 4. स्वाद लेने की इन्द्रिय, जिह्वा रस्य (वि.) [ रस+यत् ] रसवाला, मजेदार, सुस्वादु, -इन्द्रियं रसग्राहक रसनं जिह्वाग्रवर्ति–तर्क०, भग० रुचिकर --रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः 15 / 9 5. प्रत्यक्षीकरण, गुणागुणविवेचन, ज्ञान-सर्वे सात्त्विकप्रियाः - भग० 17 / 8 / ऽपि रसनादसा:—सा० द० 244 / रह (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० रहिति, रयति-ते, रसना दे० रशना। सम--रवः पक्षी,-लिह (पुं०) रहित) छोड़ देना, त्याग देना, परित्याग करना, कुत्ता / तिलांजलि देना, छोड़कर अलग हो जाना.....रहयत्या. रसवत् (वि.) [ रस+मतुप ] 1. रसेदार, रसीला पदुपेतमायतिः-कि० 2 / 14 / 2. स्वादिष्ट, मशालेदार, मजेदार, सुरस - संसारसुख- | रहणम् [ रह+ल्युट्] छोड़ कर भाग जाना, परित्याग वृक्षस्य द्वे एव रसवत्फले, काव्यामृतरसास्वादः सम्पर्कः कर देना, अलग हो जाना--- सहकारवते समये सह सज्जनः सह 3. तर, गीला, पानी से आई 4. मनो- का रणस्य केन सस्मार पदम् - नलो० 2 / 14 / हर, शानदार, प्रांजल, परिष्कृत 5. भावों से भरा | रहस् (नपुं०) [ रह+असुन् ] 1. एकान्तता, एकान्तवास, हुआ, जोशीला 6. स्नेहसिक्त, प्रेमपूरित 7. साहसी, अकेलापन, एकाकीपन, निर्जनता---रघु० 313, 15 // रसिक,-ती रसोई। 92, पंच० 11138 2. उजड़ा हुआ या सुनसान स्थान, रसा [ रस्+अच्टाप् ] 1. निम्नतर नारकीय प्रदेश, छिपने की जगह 3. भेद की बात, रहस्य 4. मैथुन, नरक 2. पृथ्वी, भूमि, मिट्टी-भामि० 1159, स्मरस्य संभोग 5. गुप्त इन्द्रिय--(अव्य०) चुपचाप, आँख युद्धरङ्गतां रसारसारसारसा-नलो० 2010 3. जिह्वा / बचा कर, गुप्त रूप से, एकान्त में, निर्जनस्थान में, सम-तलम् 1. पृथ्वी के नीचे सात पातालों में से अतः परीक्ष्य कर्तव्यं विशेषात्सङ्गतं रहः- श० एक, दे० पाताल 2. नीचे की दुनिया, नरक, राज्यं 5 / 24, प्रायः समास में-वृत्तं रहः प्रणयमप्रतिपद्यमाने यातु रसातलं पुनरिदं न प्राणितुं कामये--- भामि० ---5 / 23 / 2063 जातिर्यातु रसातलम्-भर्तृ० 2 / 39 / रहस्य (वि.) [ रहसि भवः-यत् ] 1. गुप्त, निजी, रसालः [ रसमालाति-आ+ला+क, प० त०] 1. आम प्रच्छन्न 2. भेदभरा, स्यम् 1. भेद (आलं० से भी) का पेड़,-भुङ्गाः रसालकुसुमानि समाश्रयन्ते ---भामि० --स्वयं रहस्यभेद: कृतः-विक्रम०२ 2. रहस्य से 217 2. गन्ना, ईख,-ला 1. जिह्वा 2. वह दही भरा जादू, मंत्र, (अस्त्रसंबंधी) भेद, गुप्त बात-सरहजिसमें शक्कर तथा मसाले मिला दिए गये हों स्यानि जम्भकास्त्राणि----उत्तर० 1 3. आचरण का 3. 'दूर्वा' घास, दूब 4. अंगूरों की बेल या अंगूर, भेद या रहस्य, गुप्त बात- रहस्यं साधूनामनुपधि -~-लम् लोबान / विशुद्धं विजयते---उत्तर० 2 / 2 4. गुह्य या गोपनीय रसिक (वि.) [ रसोऽस्त्यस्य ठन् ] 1. मसालेदार, मजे- शिक्षा, एक रहस्यमय सिद्धान्त-भक्तोऽसि मे सखा दार, स्वादिष्ट 2. शानदार, ललित, सुन्दर 3. जोशीला चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्---भग० 4 / 3, मनु० 2 / 150, 4. उत्तमता या रस को पहचानने वाला, स्वादयुक्त, (अव्य०- स्यम्) चुपचाप, गुप्तरूप से-याज्ञ० 3 // गुणग्राही, विवेचक-तद् वृत्तं प्रवदन्ति काव्यरसिकाः 301 (यहाँ यह विशेषण के रूप में भी समझा जा शार्दूलविक्रीडितम्---श्रुत० 40 5. आनन्द लेने वाला. ! सकता है)। सम-आल्यायिन् (वि०) भेद की बात For Private and Personal Use Only Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 851 ) बताने वाला--रहस्याख्यायीव स्वनसि मृदु कर्णान्तिक- रागश्च रागाः षडिति कीर्तिता:-भरत / दूसरे लेखकों चर:-श० ११२४,---भेदः ---विभेदः किसी भेद या ने भिन्न-भिन्न नाम बतलाये हैं, प्रत्येक राग के अनुरूप गप्त बात का खोलना,--व्रतम् 1. गुप्त प्रतिज्ञा या उनके साथ छ: छः रागिनियाँ होती हैं, इस प्रकार सबको साधना 2. जादू के शस्त्रास्त्रों पर अधिकार प्राप्त मिलाकर संगीत के अनेक राग हो जाते हैं) 10. संगीत करने के लिए एक रहस्यमय विज्ञान / / की संगति, संगीतमाधुर्य-तवास्मि गीतरागेण हारिणा रहित (भू० क० कृ०) [ रह कर्मणि क्त ] 1. छोड़ा गया, प्रसभं हृतः-श० 115, अहो रागपरिवाहिणी गीतिः-श. छोड़ दिया गया, परित्यक्त, सम्परित्यक्त 2. विय क्त, 5 11. खेद, शोक 12. लालच, ईर्ष्या / सम०-- आत्मक मुक्त, बञ्चित, हीन, के बिना (करण के साथ या (वि.) जोशीला,-चूर्णः 1. खैर का वृक्ष 2. सिन्दूर समास के अन्त में-रहिते भिक्षुभिमे - याज्ञ० 3. लाख 4. होली के उत्सव पर एक दूसरे पर फेंका 3159, गुणरहितः, सत्त्वरहितः आदि 3. अकेला, जाने वाला गुलाल या अबीर 5. कामदेव, द्रव्यम् एकाकी.....तम गोपनीयता, परदा या ओट। रंगने वाला पदार्थ, रङ्गलेप, रङ्गा-बन्धः भावना का (अदा० पर० राति, रात) देना, अनुदान देना, समर्पण प्रकटीकरण, (नाना प्रकार संवेगों के) उपयुक्त वर्णन करना-स रातु वो दुश्च्यवनो भावुकानां परम्पराम् से उत्पन्न रुचि-भावो भावं नदति विषयादागबन्ध: -काव्य 0 7 // स एव-मालवि० २१९,-युज पुं०) लाल,-सूत्रम् राका | रा+क+टाप ] 1. पूर्णिमा का दिन, विशेषरूप __1. रङ्गीन धागा 2. रेशमी धागा 3. तराजू की डोरी। से रात्रि, - दारिद्रयं भजते कलानिधिरयं राकाथुना | रागिन् (वि.) [ रग+इनि ] 1. रङ्गीन, रङ्गा हुआ म्लायति - भामि० 2 / 72, 54,94, 150, 165, 2..रङ्ग करने वाला, रङ्गलेप करने वाला 3. लाल 175, 3 / 11 2. पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी 3. वह 4. भावना और आवेश से पूर्ण, जोशीला 5. प्रेमपरित कन्या जिसे अभी रजोधर्म होना आरंभ हआ है 6. सावेश, स्नेहशील, श्रद्धानुरागपूर्ण, अभिलाषी, 4. खुजली, खाज। लालायित (समास के अन्त में), (10) 1. चित्रकार राक्षस (वि.) (स्त्री०-सी) [ रक्षस इदम् अण ] दैत्य 2.प्रेमी 3. स्वेच्छाचारी, कामासक्त,-णी 1. संगीत या राक्षस से सबंध रखने वाला, पैशाची, निशाचर के के स्वरग्राम की विकृतियाँ जिनमें से तीस या छत्तोस स्वभाव वाला-उत्तर० 5 / 30, भग० ९।१२,-सः भेद गिनाये जाते है 2. स्वैरिणी, पुश्चली, कामुकी। 1. पिशाच, भूतप्रेत, बंताल, दानव, शैतान 2. हिन्दु-धर्म- राघवः [रघोगोत्रापत्यम्-अण्] 1. रघुवंशी, रघु की संतान शास्त्रों में प्रतिपादित विवाह के आठ भेदों में से एक विशेषत: राम 2. एक प्रकार का बड़ा मच्छ-भामि० प्रकार जिसमें दुलहिन के सम्बनधियों को युद्ध में परास्त कर कन्या को बलात् उठाकर ले जाया जाता है। राङ्कव (वि.)(स्त्री०-बी) [रकोरयं विकारो वा तल्लो---राक्षसो युद्धहरणात्-याज्ञ० 1161, तु० मनु० 3 / 33 / मजातत्वात् अण्] रङ्कु नाम की हरिण जाति से भी (इसी ढंग से कृष्ण रुक्मिणी को उठा लाया था) / सम्बन्ध रखने वाला, या इसके बालों से बना हआ, 3.ज्योतिषविषयक एक योग 4. नन्द राजा का मन्त्री, ऊनी ..विक्रमांक० १८१३१,-वम् 1. हरिण के बालों जो मुद्राराक्षस नाटक में एक प्रधान पात्र है, - सी से बनाया हुआ ऊनी कपड़ा, ऊनी, वस्त्र 2. कम्बल / पिशाचिनी। राज् (भ्वा० उभ० राजति-ते, राजित) 1. (क) चमकना, राक्षा दे० लाक्षा (कदाचित् अशुद्ध रूप है)। जगमगाना, शानदार या सुन्दर प्रतीत होना, प्रमुख रागः [ रऽ भावे घ, नलोपकुत्वे ] 1. वर्ण, रंग, होना-रेजे ग्रहमयीव सा-भर्तृ० 1117, राजन् राजति रंजक वस्तु 2. लाल रङ्ग, लालिमा, * अधरः किसलय- वीरवैरिवनिता वैधव्यदस्ते भुजः--काव्य०१०, रघु० रागः-श० 1121 3. लाल रङ्ग, लाल रङ्ग की लाख, 3 / 7, कि० 4 / 24, 1116: (ख) प्रतीत होना, झलक महावर,-रागण बालारुणकोमलेन चतप्रवालोष्ठमलकच- दिखाई देना, सोयान्तर्भास्करावलीव रेजे मुनिपरम्पराकार-कु० 3 / 30, 5 / 11 4. प्रेम, प्रणयोन्माद, स्नेह, कु०६।४९ 2. हकूमत करना, शासन करना-प्रेर० (राजप्रीतिविषयक या काम-भावना, - मलिनेऽपिरागपूर्णाम् / यति-ते) चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना / -भामि० 11100 (यहाँ इसका अर्थ 'लाली भी है) निस-प्रेर० चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना, -अथ भवन्तमन्तरेण कीदृशोऽस्या दृष्टिरागः श०२, अलंकृत करना, देदीप्यमान करना-दिव्यास्त्रस्फुरदुग्रदे० 'चक्षुराग' भी 5. भावमा संवेग, सहानुभूति, हित / दीधितिशिखानीराजितज्यं धनु:- उत्तर० 618, 6. हर्ष, आनन्द 7. क्रोध रोष 8. प्रियता. सौन्दर्य नीराजयन्ति भूपालाः पादपीठान्त भूतलम्-प्रबो०२ 9. संगीत के राग या स्वरग्राम मलराग छः है ---भैरवः 2. आरती उतारना, नीराजन करना (पूजा या सम्मान कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्तथा। श्रीरामो मेघ- की दृष्टि के कारण जलते हुए दीपकों के थाल को घुमाना) For Private and Personal Use Only Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 852 ) -नानायोधसमाकीर्णो नीराजितहयद्विपः.... काम०४।६६ / न हो),----गृहम् 1. राजकीय निवास, राजा का महल वि., 1. चमकाना,-भामि० 1688 2. दिखाई देना, 2, मगध के मुख्य नगर या राजधानी का नाम (जो प्रतीत होना- रघु० 2 / 20 / पाटलिपुत्र से लगभग 75 या 80 मील की दूरी पर राज् (पुं०) [राज्+क्विप्] राजा, सरदार, युवराज / / स्थित है)-चिह्नम् राजचिह्न, राजाधिकार राजकः [राजन्+कन्] छोटा राजा, मामूली राणा,—कम् | या राजशक्ति,-तालः, ताली सुपारी का पेड़, दण्डः राजा या राणाओं का समूह, प्रभुसत्ता प्राप्त राजाओं 1. राजा के हाथ का डडा 2. राज शासन या राजाका समुदाय-सहते न जनोऽप्यधःक्रियां किम् लोका- धिकार 3. राजाद्वारा दिया गया दण्ड,-दन्तः धिकघाम राजकम्-कि० 2147, शि० 14143 / (दन्तानां राजा) आगे का दाँत नै० ७.४६,दूतः राजत (वि.) (स्त्री०–ती) [रजत-|-अण] चांदी का, राजदूत, राजा का प्रतिनिधि,-द्रोहः राजा के चांदी का बना हुआ, शि०४।१३, तम् चाँदी। विरुद्ध विश्वासघात, राजसत्ता के विरुद्ध आन्दोलन, राजन् (पुं०)[राज्+कनिन्, रञ्जयति रञ्जकनिन् नि० राजविद्रोह,--द्वार (स्त्री०),---द्वारम् राजा के महल वा] 1. राजा, शासक, युवराज, सरदार या मुखिया का मुख्य द्वार या फाटक,-द्वारिकः राजमहल का (तत्पुरुष समास के अन्त में 'राजन्' का बदल कर ड्योढ़ीवान,-धर्मः 1. राजा का कर्तव्य 2. राजाओं से 'राज' बन जाता है) वंगराजः, महाराजः आदि सम्बन्ध रखने वाला नियम या विधि (प्रायः ब०व० में) -तथैव सोऽभूदन्वर्थो राजा प्रकृतिरञ्जनात्-रघु० –धानम,-धानिका,--धानी राजा का निवास 4 / 12 2. सैनिक जाति का पुरुष, क्षत्रिय शि० स्थान, मुख्य नगर, राजधानी, शासन के कार्यालय का 14 / 14 3. युधिष्ठिर का नाम 4. इन्द्र का नाम स्थान,-रघु०२।२०, धुर् (स्त्री०), धुरा शासन का 5. चन्द्रमा-भामि० 13126 6. यक्ष / सम० उत्तर दायित्व या भार,—नयः,-नीतिः (स्त्री०) -अङ्गनम् राजकीय कचहरी या दरबार, महल का राज्य का प्रशासन, सरकार का प्रशासन, राजनय, आंगन,--अधिकारिन, - अधिकृतः 1. राजकीय अधि- राजनीतिज्ञता, नीलम् पन्ना, मरकत मणि,--पट्टः कारी या अफ़सर 2. न्यायाधीश,-अधिराजः,-इन्द्रः घटिया हीरा,-पथः,-पद्धतिः (स्त्री०)-राज-मार्ग राजाओं का राजा, सर्वोपरि राजा, प्रमुख प्रभु, दे०,... पुत्रः 1. राजकुमार, युवराज 2. क्षत्रिय, सैनिक सम्राट,...--अनक: 1. घटिया राजा, छोटा राणा, जाति का पुरुष 3. बुधग्रह, पुत्री राजकुमारी,-पुरुषः 2. एक प्रकार की उपाधि जो पहले पूजनीय विद्वानों 1. राजा का सेवक 2. मन्त्री, प्रेष्यः राजा का सेवक और कवियों को दी जाती थी,—अपसदः अयोग्य या (-यम) राजा की सेवा (अधिक शुद्ध 'राजप्रेष्य"), पतित राजा,--अभिषेकः राजा का राजतिलक,--अर्हम् - बीजिन्,-वंश्य (वि०) राजा की सन्तान, राजअगर की लकड़ी, एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी, वंशज, -- भतः राजा का सिपाही, भत्यः 1. राजा -अर्हणम् राजकीय सम्मानसूचक उपहार,-आज्ञा का सेवक या मंत्री 2. कोई सरकारी अधिकारी, राजा का अनुशासन, अध्यादेश, अथवा आदेश, ..- भोगः राजा का भोजन, खाना, भौतः राजा का -आभरणम् राजा का आभूषण.- आवलिः,-ली विदूषक या हंसोकड़ा, मात्रधरः, मन्त्रिन् (पुं०) राजकीय वंशावली, राजवंशावली,--उपकरणम् (ब० राजा का सलाहकार,-मार्गः 1. मुख्य मार्ग, मुख्य सड़क, व०) राजकीय साज-सामान, राजचिह्न,--ऋषिः राजकीय या मुख्य पथ, मुख्य रास्ता या प्रधान मार्ग (राज कृषिः या राषिः) राजकीय ऋषि, सन्त- 2. राजाओं की कार्य-विधि प्रणाली, या रीति,- मुद्रा समान राजा, अत्रिय जाति का पुरुष जिसने अपने राजा की मोहर, -- यक्ष्मन् (पुं०) क्षयरोग, फुफ्फुसीय पवित्र जीवन तथा साधनामय भक्ति से ऋषि का पद क्षयरोग, तपेदिक,-राजयक्ष्मपरिहानिराययी कामयानप्राप्त किया हो। जैसे पुरूरवा, जनक और विश्वामित्र, समवस्थया तुलाम् रघु० 19 / 25, राजयक्ष्मेव ---करः राजा को दिया जाने वाला शुल्क-कार्यम् रोगाणां समूहः स महीभृताम्---शि० 2196 (इस राज्य का कार्य,—कुमारः युवराज,-कुल 1. राजकीय शब्द की व्याख्या के लिए दे० मल्लि• इस पर और परिवार, राजा का कुटुम्ब 2. राजा का दरबार शि० 13 / 29 पर),-यानम् राजा की सवारी, 3. न्यायालय (राजकुले कय, या निविद् (प्रेर०) पालकी,- योगः 1. जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों न्यायालय में किसी के विरुद्ध अभियोग चलाना, का ऐसा संरूपण जिससे उस व्यक्ति के राजा होने या नालिश करना) 4. राजा का महल 5. राज, का संकेत मिले 2. धार्मिक चिन्तन का एक सरल महाराज (बोलने की सम्मानसूचक रीति), - गामिन् योग (राजाओं द्वारा अभ्यास करने योग्य) जो हठ (वि०) राज्याधीन या राजाधिकार में होने वाली योग (दे०) जैसे और कठोर योगों से भिन्न है, ---रङ्गम सम्पत्ति आदि (जिस सम्पत्ति का कोई उत्तराधिकारी | चाँदी,-राजः 1. प्रमुख राजा, सर्वोपरि प्रभु, सम्राट For Private and Personal Use Only Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 853 ) 2. कुबेर का नाम --अन्तर्वाष्पश्चिरमनुचरो राज- राजि:-जी (स्त्री०) [राज्+इन् वा ङीप्] धारी, रेखा, राजस्य दध्यौ--मेघ० 3 3. चन्द्रमा, -रोतिः। पंक्ति, कतार—सर्व पण्डितराजराजितिलकेनाकारि (स्त्री०) कांसा, फूल, लक्षणम् 1. मनुष्य के शरीर लोकोत्तरम् --.-भामि० 4 / 44, दानराजिः-रघु. पर कोई ऐसा चिह्न, जो उसकी भावी राजकीयता 217, कि० 4 / 5 / को प्रकट करे 2. राजकीय चिह्न राजचिह्न, राज- राजिका [राजि+कन् + टाप्] 1. रेखा, पंक्ति, कतार शक्ति,--लक्ष्मीः,श्रीः (स्त्री०) राजा का सौभाग्य या 2. खेत 3. काली सरसों 4. सरसों (एक परिमाण, समृद्धि, (देवी का मूर्तरूप) राजा को कीर्ति या तोल)। महिमा-रघु० 2 / 7, वंशः राजाओं का वंश, राजिलः [राज्+इलच्] सांपों की एक सरल जाति जिसमें --वंशावली राजाओं को वंशावली, राजाओं का वंश- विष नहीं होता..कि महोरगविसर्पिविक्रमो राजिलेषु विवरण, विद्या राजकीय नीति' राजा का कौशल, गरुडः प्रवर्तते ... रघु० 11127, तु० 'डुडुभ' / राज्य को नीति, राजनीति (तु० राजनय) इसी प्रकार राजीवः [राजी दलराजी अस्त्यस्य व] 1. एक प्रकार का 'राजशास्त्रम्',--विहारः राजकीय शिक्षालय,-शासनम् हरिण 2, सारस 3. हाथी,-वम् नील कमल, कु० राजा का अनुशासन, शृङ्गम् सुनहरी डंडी का राज- 346 / सम०--अक्ष (वि.) कमल जैसी आंखों कोय छाता,---संसद् (स्त्री०) न्यायालय,--सदनम् वाला। महल, सर्षपः काली सरसों, सायुज्यम् प्रभुसत्ता, राज्ञी [राजन् + डीप, अकारलोपः] रानी, राजा की पत्नी। ---- सारसः मोर, * सूयः, -यम् एक बृहद यज्ञ जिसका राज्यम् [राज्ञो भावः कर्म वा, राजन् / यत्, नलोपः] अनुष्ठान चक्रवर्ती राजा (इसमें सहायक राजा लोग 1. राजकीयता, प्रभुसत्ता, राजकीय अधिकार-राज्येन भी भाग लेते हैं) इसलिए करते है जिससे कि प्रकट कि तद्विपरीतवृत्तेः---रघु० 2 / 53, 4 / 1 2. राजधानी, हो कि उनका राजतिलक बिना किसी विरोध के सर्व राज्य, साम्राज्य रघु० 1158 3. हकूमत, राज्य, सम्मति से हो रहा है---राजा वै राजसूयेनेष्ट्वा शासन, राज्य का प्रशासन / सम० - अगम् राज्य भवति-शत०, तु० 'सम्राट' से भी, स्कन्धः घोड़ा, का संविधायी सदस्य, राजप्रशासन की आवश्यक स्वम 1 राजकीय संपत्ति 2. राजा को दिया सामग्री, यह बहुधा सात बतलाई जाती है--स्वाम्यजाने वाला शुल्क, मालगुजारी, हंसः मराल (श्वेत मात्यसुहृत्कोषराष्ट्रदुर्गबलानि च-अमर०, अधिकारः रंग का हंस जिसकी चोंच और टांगें लाल हों) 1. राज्य पर अधिकार 2. प्रभुसत्ता का अधिकार, - संपत्स्यन्ते नभसि भवतो राजहंसाः सहायाः --मेघ० ---अपहरणम् हड़पना, बलाद् ग्रहण करना, -- अभि११, -हस्तिन् (पु०) राजकीय हाथी अर्थात् शाही षेकः राजा का राजतिलक या सिंहासनारोहण,--करः तथा सुन्दर हाथी। वह शुक्ल जो एक अधीनस्थ राजा द्वारा दिया जाता राजन्य (वि) [राजन् / यत्] शाही, राजकीय,--न्यः है, - च्युत (वि०) गद्दी से उतारा हुआ, सिंहासन-- 1. क्षत्रिय जाति का पुरुष, राजकीय व्यक्ति-राजन्यान च्युत, तन्त्रम् शासनविज्ञान, प्रशासन पद्धति, राज्य स्वपुरनिवृत्तयेऽनुमेने --- रघु० 4 / 87, 3 / 38, मेघ० का शासन या प्रशासन - मुद्रा० 1, धुरा,--भारः 48 2. श्रेष्ठ या पूज्य व्यक्ति / शासन का जुआ, सरकार का उत्तरदायित्व या प्रशाराजन्यकम् [राजन्य कन् क्षत्रियों या योद्धाओं का सन,--भङ्गः प्रभुसत्ता का विनाश, - लोभः उपनिवेश समूह। बनाने की इच्छा, प्रादेशिक वृद्धि की इच्छा,-व्यवराजन्वत् (वि०) [राजन्- मतुप्, वत्वम् ] न्यायपरायण या हारः प्रशासन, सरकारी काम-काज, सुखम् राजकीय उत्तम राजा द्वारा शासित (देश के रूप में, यह शब्द माधुर्य / राजवत--'केवल राजा से युक्त'---शब्द से भिन्न राढा (स्त्री०) 1. आभा 2. बंगाल के एक जिले का नाम, है) सुराशि देशे राजन्वान् स्यात् ततोऽन्यत्र राजवान् / उसकी राजधानी गौडं राष्ट्रमनुत्तमं निरुपमा तत्रापि - अमर०, राजन्वतीमाहुरनेन भूमिम् रघु० 6 / 22, / राढापुरी प्रबो०२ / काव्या० 3 // 6 // रात्रिः,-त्री (स्त्री०) [राति सुखं भयं वा रा+त्रिप् वा राजस ( वि० ) (स्त्री०-सी) [रजसा निर्मितम्-अण्] छीप] रात-रात्रिर्गता मतिमतां वर मुञ्च शय्याम् रजोगुण से प्रभावित या संबद्ध, रजोगुण से युक्त रघु० 5163, दिवा काकरवागीता रात्रौ तरति -ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: नर्मदाम्। सम-अट: 1. बेताल, पिशाच, भूत-प्रेत --- भग० 14 / 18, 7 / 12, 17 / 2 / 2. चोर, --अन्ध (वि०) जिसे रात को दिखाई न राजसात् (अव्य०) [राजन् | सातिराज्य में सम्मिलित दे,करः चन्द्रमा,--चरः ('रात्रिचर' भी) (स्त्री० या राजा के अधिकार में। ....रो) 1. निशाचर, डाकू, चोर 2. पहरेदार, आरक्षी, For Private and Personal Use Only Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात दिन, राधा / समृद्धि, समाबड़ा अनुरा ( 854 ) लौकीदार 3. पिशाच, भूत, प्रेत-(तं) यातं वने रात्रि पूजाहेऽपराद्धा शकुन्तला-श०४, अपराद्धोऽस्मि तत्र चरी डुढौके-भट्टि० 2 / 23, -चर्या 1. रात में इधर भवतः कण्वस्य-श० 7 2. चूक जाना, लक्ष्यवेध न उधर घूमना 2. रात को होने वाला कार्य या संस्कार, कर सकना, शि०२।२७ 3. सताना, चोट पहुँचाना, -जम् तारा, नक्षत्रपुंज,-जलम् ओस,-जागरः क्षतिग्रस्त करना-न तु ग्रीष्मस्य व सुभगमपराद्ध युवतिषु 1. रात को पहरा देना, रात को जागते रहना, --श० 3 / 9, आ-, आराधना करना (प्रेर०) रात में बैठे रहना---रघु० 19:34 2. कुत्ता,-तरा 1. राजी करना, मनाना, प्रसन्न करना परेषां चेतांसि आधी रात, मध्यरात्रि,-पुष्पम् कुमुद (जो रात प्रतिदिवसमाराध्य बहुधा-भर्तृ० 3 / 34, 214, 5 को ही खिलता है),--योगः रात का आ जाना,-- रक्षः, 2. पूजा करना, सेवा करना- मेघ० 45, वि-, चोट --रक्षकः पहरेदार, रखवाला,-रागः अंधकार, पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, रुष्ट करना, ठेस पहुंचाना, घना अंधेरा,-बासस् (नपुं०) 1. रात की वेशभूषा -क्रियासमभिहारेण विराध्यन्तं क्षमेत क:--शि० 2 / 43, 2. अंधकार विगमः रात का अंत, दिन का निकलना, विराद्ध एवं भवता विराद्धा बहुधा च नः---२१४१ / पौ फटना, प्रभात का प्रकाश-वेदः-वेदिन (पं०) राधः[ राधा विशाखा तद्वती पौर्णमासी राधी, सा अस्मिन् मुर्गा / अस्ति-राधी+अण् ] वैशाख का महीना। रात्रिन्विवम्, रात्रिन्दिवा (अव्य०) [द्व० स०] रात दिन, राधा [ राघ्नोति साधयति कार्याणि-राध्-+-अच्+टाप् ] लगातार, अनवरत-रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति 1. समृद्धि, सफलता 2. प्रसिद्ध गोपिका जिस पर -श०५।४। कृष्ण भगवान् का बड़ा अनुराग था (इसकी छनप्रीति रात्रिमन्व (वि०)[रात्रिम+मन+खश् ] रात की भांति को जयदेव ने अपने गीतगोविन्द की रचना द्वारा अमर दिखाई देने वाला (जैसे दुर्दिन या मेघाच्छादित कर दिया है)-तदिमं राधे गहं प्रापय-गीत०१ दिन हो) तु० 'रजनिमन्यः' / 3. अधिरथ की पत्नी तथा कर्ण की पालिका माता राद्ध (भू० क. कृ०) [राध कर्तरि कर्मणि वा क्त] का नाम 4. विशाखा नाम का नक्षत्र 5. बिजली। 1. आराधित, प्रसादित, मनाया गया 2. कार्यान्वित | राधिका दे० 'राधा'। सम्पन्न, निष्पन्न, अनुष्ठित 3. पकाया हुआ, (खाना) | राधेयः [ राधा+ठक् ] कर्ण का विशेषण / राधा हआ 4. तैयार किया हुआ 5. प्राप्त किया हुआ | राम (वि.) [ रम् कर्तरि घञ, ण वा] 1. सुहावना, हासिल किया हुआ 6. सफल, सौभाग्यशाली, प्रसन्न आनंदप्रद, हर्षदायक 2. सुन्दर, प्रिय, मनोहर 7. जादू की शक्ति से पूर्ण, दे० राथ् / सम०--अन्तः 3. मलिन, धूमिल, काला 4. श्वेत,-मः 1. तीन प्रसिद्ध सिद्ध या स्थापित तथ्य, प्रदर्शित उपसंहार या सचाई, व्यक्तियों का नाम-(क) जमदग्नि का पुत्र परशुराम अन्तिम निर्णय, सिद्धांत, मत सर्ववैनाशिकराद्धान्तो (ख) वसुदेव का पुत्र बलराम जो कृष्ण का भाई था नितरामनपेक्षितव्य इतीदानीमुपपादयामः-शारी०, (ग) दशरथ और कौशल्या का पुत्र रामचन्द्र या --अन्तित (वि०) प्रदर्शित, प्रमाणों द्वारा स्थापित, सीताराम, रामायण का नायक / [जब राम बालक तर्कसिद्ध। ही थे तो विश्वामित्र, दशरथ की अनुमति लेकर राध / (स्वा० पर० राघ्नोति, राद्ध; इच्छा० रिरात्सति, लक्ष्मण समेत राम को, राक्षसों से अपने यज्ञों परन्तु 'मारना चाहता है' के लिए रित्सति) 1. राजी की रक्षा करने के लिए अपने आश्रम में ले गये। करना, मनाना, प्रसन्न करना 2. सम्पन्न करना, कार्या- राम ने अनायास ही उन सब राक्षसों को मार न्वित करना, पूरा करना, अनुष्ठान करना, निष्पन्न गिराया और पुरस्कार के रूप में ऋषि से कई करना 3. प्रस्तुत करना, तैयार करना 4. क्षतिग्रस्त चमत्कारयुक्त अस्त्र प्राप्त किये। उसके पश्चात् राम करना, नष्ट करना, मार डालना, उखाड़ना - वानरा विश्वामित्र के साथ जनक की राजधानी मिथिला भवरान् रेधुः--भट्टि० 14 / 19 / नगरी गये, वहाँ शिव के धनुष को झुकाने का आश्चर्यii (दिवा० पर० राध्यति, राद्ध) 1. अनुकूल या दयाई जनक करतब दिखाकर सीता से विवाह किया और होना, 2. सम्पन्न, या पूर्ण होना 3. सफल होना, काम- वापिस अयोध्या आ गये। यह देखकर कि राम ही याब होना, सगद्ध होना 4. तैयार होना 5. मार राज्य का उपयुक्त अधिकारी हो रहा है, दशरथ ने डालना, नष्ट करना, प्रेर० (राधयति-ते) 1. राजी उसे अपना पुर्व राज बनाने का निश्चय किया, परन्तु करना 2. सम्पन्न करना, पूरा करना, अनु ---, आरा- ठोक राज्याभिषेक के दिन दशरथ की प्रिथपत्नी कैकेयी घना करना, पूजा करना, मनाना, अप , 1. रुष्ट ने, अपनी दुष्ट दासी मन्थरा के द्वारा भड़काये जाने करना, ठेस पहुँचाना, पाप करना (संबं० या अधिक पर, दशरथ को अपने दो पूर्व प्रतिज्ञात वरदान पूरा के साथ, अथवा स्वतंत्र रूप से)-..- यस्मिन्कस्मिन्नपि / करने के लिए कहा, एक से उसने रामका चौदह वर्ष For Private and Personal Use Only Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का निर्वासन तथा दूसरे से अपने प्रिय पुत्र भरत का तरुणीस्तन एव मणिहारावलिरामणीयकम्--०२॥ युवराज के रूप में राज्याभिषेक माँगा। राजा को 44, कि० 1233 414 / इस मांग से भयानक धक्का लगा, उसने कैकेयो को | रामा [ रमतेऽनया रम् करणे घा] 1. सुन्दरी स्त्री, उन दुष्ट मांगों से हटाने का भरसक प्रयत्न किया मनोहारिणी तरुणी-अथ रामा विकसन्मुखी बभूव परन्तु अन्त में उसे झुकना पड़ा। तुरन्त ही आज्ञाकारी ---भामि० 2 / 16, 316 2. प्रिया, पली, गृहस्वामिनी पुत्र राम अपनी सुन्दर तरुण पत्नी सीता तथा भक्त ----रघु० 12123 14 / 27 3. स्त्री,-रामा हरन्ति हृदयं भ्राता लक्ष्मण के साथ निर्वासित होने को तैयार हो प्रसभं नराणाम्-ऋतु०६।२५ 4. नीच जाति की स्त्री गये। उसका निर्वासन काल बड़ी-बड़ी घटनाओं से 5. सिंदूर 6. हींग। भरा हुआ है, दोनों भाइयों ने कई शक्तिशाली राक्षसों राम्भः [ रम्भा+अण् ] बांस की लाठी जिसे ब्रह्मचारी या का काम तमाम कर दिया, फलतः रावण की द्वेषाग्नि संन्यासी रखते हैं। भड़क उठी। दुष्ट रावण ने मारीच की सहायता रावः [ रुघा ] 1. ऋन्दन, चीत्कार, चीख, दहाड़, से राम की शक्ति को देखने के लिए उसकी प्रिय किसी जानवर की चिंघाड़ 2. शब्द, ध्वनि---..मुरजपत्नी सीता का बलात् अपहरण किया। सीता का वाद्य राव:-मालवि० 121, मधुरिपुरावम-गीत. पता लगाने के लिए अनेक निष्फल पच्छाओं के पश्चात् 11 / हनमान ने यह निश्चय किया कि सीता लंका में हैं, रावण (वि.) [रावयति भीपयति सर्वान-रु+णिच् + ल्युट्] और फिर उसने राम को प्रेरित किया कि लंका के रावण (वि.) [ रावयति भीषयति सर्वान-रु+णिच ऊपर चढ़ाई की जाय तथा दुष्ट रावण को मौत के + ल्युट ] क्रन्दन करने वाला, चीखने वाला, दहाड़ने घाट उतारा जाय। वानरों ने समुद्र को पार करने वाला, शोक के कारण रोने घोने वाला,--णः एक के लिए एक पुल बनाया जिसके ऊपर से अपनी असंख्य प्रसिद्ध राक्षस, लंका का राजा, राक्षसों का मुखिया सेना के साथ पार होकर राम लंका में प्रविष्ट हए (रावण के पिता का नाम विधवा तथा माता का तथा उसे जीत कर सब राक्षसों समेत रावण का वध केशिनी या कैकशी था, इसी लिए वह कुबेर का किया। उसके पश्चात राम अपनी पत्नी सीता, सौतेला भाई था। पुलस्त्य ऋषि का पौत्र होने के तथा अन्य युद्ध-मित्रों के साथ, विजयपताका फहराते कारण वह पौलस्त्य कहलाता है। मूल रूप से हुए, वापिस अयोध्या आये जहां वशिष्ठ द्वारा उनका लङ्का पर पहले कुबेर का अधिकार था, परन्तु रावण राज्यतिलक किया गया। राम ने बहुत वर्षों तक ने उसे वहाँ से निकाल दिया और लंका को अपनी न्यायपूर्वक राज्य किया उसके पश्चात् कुश युवराज राजधानी बनाया। उसके दस सिर (इसीलिए बनाया गया। राम, विष्णु भगवान् का सातवां अवतार वह दशग्रीव, दशवदन, आदि कहलाता है) और बीस माना जाता है, तु० जयदेव-वितरसि दिक्षु रणे दिकपति- भुजाएँ थीं, कुछ के अनुसार उसकी टांगें भी चार थी कमनीयं दशमुखमौलिवलिं रमणीयं। केशव धृतरघु- (तु. रघु० 12188 और उस पर मल्लि.) ऐसा पतिरूप जय जगदीश हरे-गीत०१। सम०-अनुजः वर्णन मिलता है कि रावण ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने एक प्रसिद्ध सुधारक, वेदान्ती संप्रदाय के प्रवर्तक तथा के लिए दस हजार वर्ष तक कठोर तपश्चर्या की; कई पुस्तकों के प्रणेता, वैष्णव,-अयनम् (णम्) और प्रति हजार वर्ष के पश्चात् अपना सिर ब्रह्मा के 1. राम के साहसिक कार्य 2. वाल्मीकिप्रणीत एक आगे प्रस्तुत किया। इस प्रकार उसने नौ सिर प्रसिद्ध महाकाव्य जिसमें सात काण्ड तथा 24000 प्रस्तुत किये और दसवां सिर प्रस्तुत करने लगा ही श्लोक है। गिरिः एक पहाड़ का नाम,-(चके) था कि ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि उसकी स्निग्घच्छायातरुषु वसति रामगिर्याश्रमेषु-मेघ० 1, मृत्यु न मनुष्य द्वारा होगी और न देवता द्वारा / --चन्द्रः,-भद्रः दशरथ के पुत्र राम का नाम दूतः, इस शक्ति से सम्पन्न होकर वह बड़ा अत्याचार करने हनुमान् का नाम,--नवमी चैत्रशुक्ला नवमी, राम की लगा, उसने लोगों को सब प्रकार से सताना आरम्भ जयंती,--सेतुः 'राम का पुल' भारत और लंका को किया। उसकी शक्ति इतनी अधिक हो गई कि मिलाने वाला रेत का पुल जिसे आजकल 'एडम्स देवता भी उसके घरेलू नौकरों की भांति उसकी सेवा ब्रिज' कहते है। करने लगे। उसने अपने समय के प्रायः सभी रामठः,-ठम् [रम् +अठ, धातोर्वद्धिः / हींग। राजाओं को जीत लिया, परन्त कार्तवीर्य ने उसे रामणीयक (वि.) (स्त्री० की) [ रमणीय+बुश ] कारागार में डाल दिया जब कि रावण ने उसके देश प्रिय, सुन्दर सुखद, कम् प्रियता, सौन्दर्य--सा राम- पर आक्रमण किया। एक बार उसने कैलास पर्वत णीयकनिधेरघिदेवता वा मा० 1121, 9 / 47, उठाने का प्रयल किया, परन्तु शिव ने ऐसा दबाया For Private and Personal Use Only Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 856 ) कि उसकी अंगुलियों कुचल गईं। फलतः उसने शिव का साला (रानी का भाई) श्रुतं राष्ट्रियमुखाद् की एक हजार वर्ष तक इतने ऊँचे स्वर से स्तुति की। यावदगुलीयकदर्शनम् - श०६ / कि उसका नाम रावण पड़ गया, और उसे शिव ने रास् (भ्वा० आ० रासते) क्रंदन करना, चिल्लाना, किलउस पीड़ा से मुक्त कर दिया। परन्तु यद्यपि वह किलाना, शब्द करना, हह करना। इतना बलवान् और अजेय था, तो भी उसका अन्तिम | रासः [रास्+घञ] 1. होहल्ला, कोलाहल, शोरगुल दिन निकट आ गया। राम --जिन्होंने इस राक्षस का 2. शब्द, ध्वनि 3. एक प्रकार का नाच जिसका वध करने के लिए ही विष्णु का अवतार धारण अभ्यास, कृष्ण और गोपिकाएं करती थीं, विशेषतः किया था,- अपना निर्वासित जीवन जंगल में रहकर वृन्दावन की गोपियाँ--उत्सज्य रासे रसं गच्छन्तीम् बिता रहा था। एक दिन रावण ने उसकी पत्नी -वेणी० श२, रासे हरिमिह विहितविलासं स्मरति सीता का अपहरण किया और उससे अपनी पत्नी बन मनो मम कृत परिहासम् गीत० 2, 1 भी। सम. जाने का अनुरोध करने लगा-परन्तु उसने रावण - कोडा, मण्डलम् क्रीडामुलक नाच, कृष्ण और की प्रार्थना को ठुकराया और वह उसके यहाँ रहती वृन्दावन की गोपिकाओं का वर्तलाकार नाच / हुई भी पतिव्रता, सती साध्वी बनी रही। अन्त में ! रासकम् [रास+कन्] एक प्रकार का छोटा नाटक दे० राम ने अपनी वानरसेना की सहायता से लंका पर | सा० द. 548 / चढ़ाई की और रावण तथा उसकी सेना का काम रासभः [रासेः अभाच्] गधा, गर्दभ / तमाम किया। वह राम का उपयुक्त शत्रु था और राहित्यम् [रहित+व्या] बिना किसी वस्तु के रहना, इसीलिए यह कहावत प्रसिद्ध हुई-रामरावणयोर्युद्धम् अभाव, किसी वस्तु का न होना। रामरावणयोरिव)। राहः [रह+उण्] एक राक्षस का नाम, विप्रचित्त और रावणिः [ रावणस्यापत्यम्-इश ] 1. इन्द्रजित् का नाम, सिंहिका का पुत्र, इसीलिए कई बार यह सैहिकेय ---रावणिश्चाव्यथो योद्धमारब्ध च महींगत:-भट्रिक कहलाता है (जब समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप 15 / 78, 89 2. रावण का कोई पुत्र--भट्टि. समुद्र से निकला अमृत देवताओं को परोसा जाने लगा 15479,80 / तो राहु ने वेश बदलकर उनके साथ स्वयं भी अमृत राशिः [ अश्नुते व्याप्नोति-अश+इञ, धातोरुडागमश्च ] पीना चाहा / परन्तु सूर्य और चन्द्रमा को इस षड्यन्त्र 1. ढेर, अंबार, संग्रह, परिमाण, समुदाय धनराशिः , का पता लगा तो उन्होंने विष्णु को इस चालाकी का तोयराशिः, यशोराशि: आदि 2. अंक या संख्याएं जो ज्ञान कराया। फलतः विष्णु ने राहु का सिर काट अंकगणित की किसी विशेष प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त डाला, परन्तु चूंकि थोड़ा सा अमृत वह चख चुका था, की जायें (जसे जोड़ना, गणा करना आदि) 3. ज्योति- तो उसका सिर अमर हो गया। परन्तु कहते हैं कि श्चक्र, बारह राशियाँ / सम०- अधिपः कुण्डली में पूर्णिमा या अमावस्या को वे दोनों चन्द्र औय सूर्य को किसी विशेष घर का स्वामी,-- चक्रम् तारामण्डल, अब भी सताते रहते है-तु० भर्त० 2134 / ज्योतिष बारह राशियाँ, त्रयम् पैराशिक गणित,--भागः में राहु भी केतु की भांति समझा जाता है, यह आठवाँ किसी राशि का भाग या अंश,-भोगः सूर्य, चन्द्रमा ग्रह है, या चन्द्रमा का आरोही शिरोबिन्दु है) 2. ग्रहण, आदि ग्रहों का राशिचक्र में से होकर मार्ग अर्थात् या ग्रस्त होने का क्षण। सम०--प्रसनम,-प्रासः, किसी ग्रह का किसी राशि पर रहने का काल / -वर्शनम्,--संस्पर्शः (चाँद या सूर्य का) ग्रहण, राष्ट्रम् [राज्+ष्ट्रन् ] 1. राज्य, देश, साम्राज्य-राष्ट्र -सूतकम् राहु का जन्म अर्थात् (चाँद या सूर्य का) दुर्गबलानि च--अमर०, मनु० 7.109, 1061 ग्रहण याज्ञ. 12146 तु० मनु० 4 / 110 / / 2. जिला, प्रदेश, देश, मण्डल जैसा कि 'महाराष्ट्र' में रिi ( तुदा० पर० रियति, रीण ) जाना, हिलना--मनु०७।३२ 3. अधिवासी, जनता, प्रजा--मनु० जुलना। ९।२५४,-ष्ट्र:-ष्ट्रम् कोई राष्ट्रीय या सार्वजनिक ii (ऋया० उभ०-दे० 'री')। संकट / रिक्त (भू० क० कृ०) [रिच्+क्त] 1. खाली किया गया, राष्ट्रिकः [राष्ट्र+ठक्] 1. किसी राज्य या देश का वासी साफ किया गया, रिताया गया 2. खाली, शून्य मनु० 10 // 61 2. किसी राज्य का शासक, 3. से रहित, वञ्चित, के बिना 4. खोखला किया गया राज्यपाल / (जैसे हाथ की अंजलि) 5. दरिद्र 6. विभक्त, वियुक्त राष्ट्रिय, राष्ट्रीय (वि.) राष्ट्र भव: घ] राज्य से सम्बन्ध (दे० रिच), -क्तम् 1. खाली स्थान, शून्यक नितिता रखने वाला,-- यः 1. राज्य का शासक, राजा | 2. जंगल, उजाड़, बियाबान / सम०--पाणि, -हस्त --जैसा कि 'राष्ट्रियश्याल: में,---मृच्छ० 9 2. राजा (वि.) खाली हाथ वाला, (फूल आदि के) उपहार For Private and Personal Use Only Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जुलना 2. चोअर० रेपयति / करना, मार ( 857 ) से रहित अहमपि देवी प्रेक्षितमरिक्तपाणिर्भवामि | तेन यायात्सतां मार्गस्तेन गच्छन् न रिष्यते--मनु० . मालवि० 4 / 41178 2. मार डालना, नष्ट करना- भट्टि. रिक्तक (वि.) [रिक्त-कन] दे० 'रिक्त'। 9 / 31 / रिक्ता [रिक्त+टाप्] चान्द्रमास के पक्ष की चतुर्थी, | रिष्ट (भू० क० कृ०) [रिष्+क्त] 1. क्षतिग्रस्त, चोट नवमी या चतुर्दशी का दिन। पहुंचाया हुआ, 2. अभागा,--ष्टम् 1. उत्पात, क्षति, रिक्थम् [रिच+थक] 1. दायभाग, उत्तराधिकार में प्राप्त ठेस 2. बदकिस्मत, दुर्भाग्य 3. विनाश, हानि 4. पाप सम्पत्ति, मरने के पश्चात् विरासत में छोड़ी हुई 5. सौभाग्य, समृद्धि। सम्पति-विभजेरन् सुताः पित्रोरुध्वं रिकथमणं | रिष्टिः (स्त्री० [रिष+क्तिन्] दे० ऊ० 'रिष्टम्,-पुं० समम् - याज्ञ० 2 / 117, मनु० ९।१०४,-नन गर्भः। तलवार। पित्र्यं रिक्थमर्हति----श०६ 2. सम्पत्ति धनदौलत, Ji (दिवा० आ० रीयते) टपकना, बूंद-बूंद गिरना, सामान - मनु० 8 / 27, 3. सोना। सम० --आवः, | रिसना, पसीजना, बहना। --- ग्राहः,-भागिन् (पुं०), हरः, हारिन् (पुं०) ii (क्रया० उभ० रिणाति, रिणीते, रीण-प्रेर० रेपयति-ते) उत्तराधिकारी। 1. जाना, हिलना-जुलना 2. चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त रिल, रिङ्ग (तुदा० पर० रिङ्कुति, रिङ्गति) 1. रेंगना, करना, मार डालना 3 ह हू करना / दबे पाँव चलना 2. मन्दगति से चलना। रीज्या (स्त्री०) 1. निन्दा, झिड़की, कलंक 2. शर्म, हया रिणम्, रिङ्गणम् [रिल+ (ग)+ल्यट] 1. रेंगना, रीक्षकः (पुं०) मेरु दण्ड, रीढ की हड्डी। पेट के बल चलना (गुडलियो चलना) 2. (सदाचार रीढा [रिह+क्त+टाप अनादर, तिरस्कार, अपमान / से) विचलित होना, उन्मार्गगामी होना। रीण (भू० क० कृ०) [री-+क्त] टपका हुआ, बहा हुआ, रिच् (रुघा० उभ० रिणक्ति, रिक्ते, रिक्त) 1. खाली बंद-बंद करके गिरा हुआ। करना, रिताना, साफ करना, निर्मल करना-रिण- | रीतिः (स्त्री) [री+-क्तिन्] 1. हिलना-जुलना, बना च्मि जलधेस्तोयम्-भट्टि०६।३६, आविर्भते शशिनि 2. गति, क्रम 3. घारा, नदी 4. रेखा, सीमा तमसा रिच्यमानेव रात्रिः--विक्रम 118 2. वञ्चित 5. प्रणाली, ढंग, तरीका, मार्ग, शैली, विधा, प्रक्रियाकरना, विरहित करना --(प्रायः भु० क० कृ०) दे० -रीति गिराममुतवृष्टिकरी तदीया--भामि० 3 / 19, रिक्त, अति--, आगे बढ़ना, प्रगति करना, पीछे छोड़ सर्वत्रषा विहिता रीतिः-मोह० 2, उक्तरीत्या, अनदेना (कर्म वा० में और अपा० के साथ)..... गृहं तु यैव रोत्या आदि 6. रिवाज, प्रथा, प्रचलन 7. शैली, गृहिणीहीनं कान्तारादतिरिच्यते-पंच० 4181, हि. वाक्यविन्यास----पदसंघटना रीतिरङ्गसंस्था विशेषवत् / ४११३१,भग० 2136, वाचः कर्मातिरिच्यते ...."उपदेश उपकी रसादीनां सा पुनः स्याच्चतुर्विधा। वैदर्भी से निदर्शन उत्तम है" एग्जांपल इज बैटर दैन प्रिसैप्ट | चाथ गोडी च पाञ्चाली लाटिका तथा-सा०६० __-Example is better than Precep ) 624-5 8. पीतल, कांसा (इस अर्थ में रीती' भी) -उद्, 1. आगे बढ़ना, पीछे छोड़ देना, प्रगति करना 9. लोहे का जंग, मुर्चा 10 धातु के तल पर लगा 2. बढ़ाना, विस्तार करना,-व्यति बढ़ जाना, पीछे __ जारेय / छोड़ना स्तुतिभ्यो व्यतिरिच्यन्ते दूराणि चरितानि ते | ह (अदा० पर० रौति, रवीति, रुत) क्रंदन करना, हूहू -~~-रघु० 10 // 30 // करना, चिल्लाना, चीखना, जोर से बोलना, दहाड़ना ii (म्वा० चुरा० पर० रेचति, रेचयति, रेचित 1. विभक्त (मक्खियों का) भनभनाना, शब्द करना- कर्णे कलं करना, वियुक्त करना, अलग-अलग करना 2. परि किमपि रौति शनैविचित्रम्-हि० 1181, भट्टि० 3 / 17, त्याग करका, छोड़ना 3. सम्मिलित होना, मिलना, 12172, 14 / 21, वि. 1.क्रन्दन करना, विलाप करना आ-, सिकोड़ना, खेल-खेल में चलना-आरेचित शोक में रोना-ननु सहचरी दूरे मत्वा विरौषि सम्भ्रूचतुरैः कटाक्षः--कु० 3 / 5 / त्सुकः - विक्रम० 4 / 20, भट्टि० 5 / 54, ऋतु० 6 / 27, रिटिः [रि+टिन्] 1. एक प्रकार का बाजा 2. शिव के 2. कोलाहल करना, शोर मचाना-न स विरौति न ___ एक सेवक (गण) का नाम-तु० 'भुङ्ग (गे) रिटि:'। चापि स शोभते--पंच० 1175, जीर्णत्वाद् गृहस्य रिपुः [रप्+उन्, पृषो० इत्वम्] शत्रु, दुश्मन, प्रतिपक्षी। विरौति कपाट:-मृच्छ० 3, एते त एव गिरयो रिफ् (तुदा० पर० रिफति, रिफित) 1. कटकटाने का शब्द विरुवन्मयूरा:---उत्तर० 2 / 23 / __ करना 2. बुरा भला कहना, कलङ्क लगाना। / रुक्म (वि०) [रुच्+मन, नि० कुत्वम् ] उज्ज्वल, चमकरिष (भ्वा० पर० रेषति, रिष्ट) 1. क्षति पहुँचाना, चोट दार, क्मः सोने का आभूषण-शि० १५१७८,-कमम् पहुँचाना, ठेस पहुंचाना--तस्येहार्थो न रिष्यते-महा०, / 1. सोना, 2. लोहा / सम० -कारकः सुनार,--पृष्ठक 108 For Private and Personal Use Only Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (वि० [ रु आ, बामदे० रुज) ( 858 ) (वि.) सोने के मुलम्मे से युक्त, सोना चढ़ा हुआ, रुचा दे० 'रुच'। -वाहनः द्रोणाचार्य का नामान्तर / रुचिः (स्त्री०) [रुच्+कि]। प्रकाश, कान्ति, आभा, रक्मिन् (पु) [रुक्म+इनि ] भीष्मक के ज्येष्ठ पुत्र तथा | उज्ज्वलता,-रुचिमिन्दुदले करोत्यजः परिपूर्णेन्दुरुचिर्महीरुक्मिणी के भाई का नाम / पतिः-शि०१६।७१, रघु०५।६७, मेघ०१५ 2. प्रकाश रुक्मिणी [ रुक्मिन् की ] विदर्भ के राजा भीष्मक की किरण-जैसा कि 'रुचिभर्त' में 3. छबि, रङ्ग, सौन्दर्य पुत्री का नाम (रुक्मिणी की सगाई रुक्मिणी के पिता बहुधा समास के अन्त में--पटलं बहिर्बहलपङ्करुचि ने शिशुपाल से कर दी थी, परन्तु रुक्मिणी गुप्त रूप से --शि० 9 / 19 4. स्वाद, मज़ा-जैसा कि 'रुचिकर' में कृष्ण से प्रेम करती थी। उसने कृष्ण को एक पत्र भेज 5. सुस्वाद, भूख, क्षुधा 6. कामना, इच्छा, खुशी,-स्वरच्या कर प्रार्थना की कि उसका अपहरण कर लिया जाय, स्वेच्छा से, खुशी से 7. अभिरुचि, स्वाद-विमार्गगायाश्च बलराम सहित कृष्ण आया और रुक्मिणी के भाई को रुचिः स्वकान्ते-भामि० 1 / 125, 'अभिरुचि या प्रेम' युद्ध में परास्त कर रुक्मिणी को उठा कर ले गया / --न स क्षितीशो रुचये वभूव, भिन्नरुचिहि लोकः- रघु० रुक्मिणी से कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ)। 6 / 30, नाटयं भिन्नरुचेर्जनस्य बहुधाप्यकं समाराधनम् रक्षा (वि.)=रूक्ष, दे। - मालवि० 114; 'संलग्न' 'व्यस्त' या 'अनुरक्त' के रुग्ण (भू० क० कृ०) [रुज्+क्त ] 1, टूटा हुआ, नष्ट अर्थ में प्रयोग बहधा समास के अन्त में हिंसारुचे: भ्रष्ट 2. व्यर्थीकृत 3. झुका हुआ, वक्रीकृत 4. क्षति ---मा० 5 / 29 8. प्रणयोन्माद, किसी की बात में ग्रस्त, चोट पहुँचाया हुआ 5. रोगी, बीमार (दे० रुज)। लवलीनता। सम-कर (वि.) 1. स्वादिष्ट, चटपटा, सम०--रय (वि.) जिसका आक्रमण रोक दिया गया मजेदार 2. इच्छा का उत्तेजक 3. पाचनशक्तिवर्धक, हो, जिसका घावा विफल कर दिया गया हो। पौष्टिक,-भर्त (पुं०) 1. सूर्य-शि० 9 / 17 2. पति। हप (भ्वा० आ० रोचते, रुचित) 1. चमकना, सुन्दर या रुचिर (वि.) रुचि राति ददाति--रु--किरच शानदार दिखलाई देना, जगमगाना- रुरुचिरे रुचिरे- 1. उज्ज्वल, चमकदार, प्रकाशमान, जगमगाता,-हेमक्षणविभ्रमाः-शि० 6 / 46, मनु० 3 / 62 2. पसन्द रुचिराम्बर-चौर० 14, कनकरुचिरम, रत्नरुचिरम् करना, (अन्य व्यक्तियों से ) प्रसन्न होना, (वस्तुओं आदि 2. स्वादिष्ट, मजेदार 3. मधुर, ललित 4. क्षुधासे) प्रसन्न होना, रुचिकर होना; (प्रसन्न व्यक्ति वर्धक, भूख बढ़ाने वाला 5. पुष्टिदायक, बलवर्धक, के लिए संप्र० तथा वस्तु के लिए कर्त)-न स्रजो -रा 1. एक प्रकार का पीला रंग 2. वृत्तविशेष दे० रुरुचिरे रमणीभ्यः-कि० 9 / 35, यदेव रोचते परिशिष्ट १,-रम् 1. केसर 2. लौंग। यस्मै भवेत् तत् तस्य सुन्दरम् -- हि० 2053, कई बार | रुच्य (वि.) [रुच्---क्यप्] उज्ज्वल, प्रिय आदि, दे० व्यक्ति के लिए संबं०,--दारिद्रयान्मरणाद्वा मरणं मम _ 'रुचिर'। रोचते न दारिद्रयम-मच्छ०१११,प्रेर०-(रोचयति-ते) | रुज (तुदा० पर० रुजति, रुग्ण) 1. तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े पसन्द कराना, रुचिकर या सुहावना करना---कु० करना, नष्ट करना--रघु० 9 / 63 / 12 / 73, भट्टि ३३१६,-इच्छा० (रुरु-रोचिषते) पसन्द करने की 4 / 42 2. पीड़ा देना, क्षति पहुँचाना, अस्वस्थ करना, इच्छा करना, अभि --, पसन्द करना, रुचिकर होना / रोगग्रस्त करना - रावणस्येह रोक्ष्यन्ति कपया भीम –यदभिरोचते भवते-विक्रम 2, प्र--, 1. बहुत विक्रमाः - भट्टि० 8 / 120 3. झुकना। चमकना 2. पसन्द किया जाना, वि० चमकना, | रुज, रुजा (स्त्री०) रुज् +-क्विप, रुज्+टाप्] 1. भंग, जगमगाना--रघु० 615, 1714, भट्टि० 8 / 66 / अस्थिभंग 2. पीड़ा, संताप, यातना, वेदना--- अनिशबच, रचा (स्त्री०) रुच-विप, रुच-+टाप] 1. प्रकाश, मपि मकरकेतुर्गनसो रुजमावहन्नभिमतो मे स० 3 / 4, कान्ति, उज्ज्वलता,-क्षणदासु यत्र च रुचकतां गताः क्व रुजा हृदयप्रमाथिनी. - मालवि० 312, चरण -शि० 13 / 53 9 / 23, 25, शिखरमणिरुच:-- कि० रुजापरतिम् -.4 / 3 3, बीमारी, व्याधि, रोग--रघ० 5 / 43, मेघ० 44 2. रङ्ग, छवि (समास के अन्त में) 49 / 52 4. थकावट, श्रम, प्रयत्न, कष्ट / सम० चलयन्मृगरुचस्तालकान् ---रघु० 8153, कु. 365, --प्रतिक्रिया प्रतिकार या रोग की चिकित्सा, इलाज, कि० 5 / 45 3. अभिरुचि, इच्छा। चिकित्सा का व्यवसाय,-भेषजम् औषध, सन् सतक (वि.) [रुच+क्वन् ] 1. रुचिकर, सुखद 2. क्षुधा- (नपुं०) विष्ठा, मल। वर्षक या भूख बढ़ाने वाली (औषधि) 3. तीक्ष्ण, चपरा, रुण्डः,-डम् [रुङ्+ड, रुण्ड्+अच् वा सिर रहित शरीर, -क: 1. नीबू 2. कबूतर, कम 1. दाँत 2. सोने का घड़मात्र, कबन्ध-वेल्लरवरुण्डमण्डनिकरवीरो विधत्ते आभूषण विशेषकर हार 3. पौष्टिक या पाचनशक्ति- भुवम्-उत्तर० 5 / 6, मा० 3 / 17 / वर्धक 4, माला, हार 5. काला नमक / | ततम् [रु+क्त] क्रन्दन, किलकिलाना, दहाड़ना, शब्द For Private and Personal Use Only Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 859 ) करना, कोलाहल, (पक्षियों का) कूजना, (मक्खियों / .... मुद्रा० 4 / 17 अरुणद् यवनः साकेतं-या-माध्यका) भनभनाना, पक्षि', हंस, कोकिल अलि / मिकान्-महा०, भट्टि० 14129 6. छिपाना, ढकना, सम०---ज्ञः भविष्यवक्ता, नजूमी,—व्याज: 1. कूट- ओझल करना, गुप्त करना 7. अत्याचार करना, कंदन 2. स्वांग। सताना, अत्यन्त कष्ट देना; अनु----, (बहुधा प्रयोग रुख (अदा० पर० रोदिति, रुदित,... इच्छा० रुरुदिषति) ऐसा होता है मानो धातु दिवा० की है) 1. अवेक्षण 1. क्रंदन करना, रोना, विलाप करना, शोक मनाना, करना, अभ्यास करना-मनु० 5 / 63 2. प्रेम करना, आँसू बहाना--निराधारो हा रोदिमि कथय केषामिह अनुरक्त होना...स्वधर्ममनुरुन्धते-कि० 11378, पूरः--गंगा०४, अपि ग्रावा रोदिति अपि दलतिवज्रस्य नानुरोत्स्ये जगल्लक्ष्मी:--भट्रि० 16 / 23 3. आशा हृदयम् --- उत्तर० 1 / 28 2. हह करना, दहाड़ना, मानना, अनुसरण करना, अनुरूप होना-नियति चिल्ली मारना, प्र--, फूट फूट कर रोना / लोक इवानुरुध्यते-कि० 2 / 12, अनुरुध्यस्व चन्द्रवदनम्, रुदितम् [रुद्+ल्युट, क्त वा] रोना, क्रन्दन करना, केतोर्वचनं-उत्तर० 5, मदचनमनुरुध्यते वा भवान् विलाप करना, शोक में रोना-धोना अत्यन्तमासी- --कि० 181 4. स्वीकृति देना, सहमत होना, अनुद्रुदितं वनेऽपि-रघु०१४॥६९, 70, मेघ०८४ / मोदन करना 5. प्रेरित करना, दबाव डालना, अव--, सद्ध (भू० क० कृ०) रुध्+क्त] 1. अवरुद्ध, वाधायुक्त, 1. रोकना, अटकाना-श०२।२ 2. बन्दी बनाना, विरोधी 2. घेरा डाला हुआ, घिरा हुआ, घेरा कैद करना, बन्द करना (कभी-कभी दो कर्मों के साथ) हुआ। -शोक चित्तमवारुधत्--भट्टि०६।९ 3. घेरा डालना, पर (वि०) रोदिति-रुद्+रक भयानक, भयंकर, उप-, 1. अवरुद्ध करना, विघ्न डालना--उपरुध्यते डरावना, भीषण,-द्र: 1. देवसमूह विशेष, (गिनती तपोऽनुष्ठानम् ---. श० 4 2. तंग करना, दु:खी करना, में ग्यारह), ऐसा माना जाता है कि शंकर या शिव कप्ट देना- पौरास्तपोवनमुपरुन्धन्ति श०१ 3. पार के ही यह अपकृष्ट रूप है, शिव स्वयं इस समूह के कर लेना, दबा देना -- रघु० 4183 4. कैद करना, मुखिया हैं रुद्राणां शंकरश्चास्मि-भग० 20123, बन्दी बनाना, नियन्त्रण में रखना 5. छिपाना, ढक रुद्राणामपि मर्धानः क्षतहुंकारशंसिनः कु० 26 लेना, नि---,1. अवरुख करना, रोकना, विरोध करना 2. शिव का नाम। सम.. अक्षः एक प्रकार का बन्द करना-न्यरुधश्चास्य पन्थानम्-भट्टि० 17149 वृक्ष, (क्षम्) इसी वृक्ष के फल के बीज, जिनसे 1620, मच्छ० 1122 2. बन्दी बनाना, कैद करना रुद्राक्षमाला बनाई जाती है-भस्मोद्धलन भद्रमस्तु -मनु० 111176, भग०८।१२ 3. ढकना, छिपाना भवते रुद्राक्षमाले शुभम् - काव्य० १०,-आवास: -मनु० 14116, प्रति--,अवरुद्ध करना, बि-,विरोध 1. रुद्र का निवासस्थल, कैलास पर्वत 2. वाराणसी, करना, अवरोध करना 2. विवाद करना, झगड़ना 3. श्मशान-- तु. पितृसद्मगोचरः / 3. भिन्नमत का होना, सम--- 1. अवरुद्ध करना, रुद्राणी रुद्र+डीप, आनुक | रुद्र की पत्नी, पार्वती का अटकाना, रोकना-स चेत्तु पथि संरुद्धः पशुभिर्वा नामान्तर / रथेन वा--मनु० 8 / 295 2. बाधा डालना, रुकावट रुप (रुधा० उभ० रुणद्धि, रुद्धे, रुद्ध,--इच्छा० रुरुत्सति डालना, रोकना-रघु० 2 / 43 3. दृढ़तापूर्वक थामना, -ते) 1. अवरुद्ध करना, ठहराना, गिरफ्तार करना, शृंखलाबद्ध करना-तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नेव तान्संरोकना, विरोध करना, विघ्न डालना, बाधा डालना, रुणद्धि--भर्तृ० 2017 4. अधिकार में करना, बलात् मना करना -- इदं रुणद्धि मां पद्ममन्तःकूजितषट्पदम् अभिग्रहण करना, पकड़ना-मनु० 8 / 235 / / -----विक्रम० 4 / 21, रुद्धालोके नरपतिपथे-मेघ० रुधिरम् [रुघ्न-किरच् ] 1. लहू 2. जाफरान, केसर,....रः 37, 91, प्राणापानगती रुध्वा०-भग० 4 / 29 मंगलग्रह / सम०- अशनः 'खून पीने वाला' राक्षस, 2. थामना, संधारण करना, (गिरने से) बचाना, भूत-प्रेत,-आमयः रक्तश्राव,-पायिन् (पुं०) पिशाच / आशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्यङ्गनानां सद्यःपाति रुकः [ रौति रु+कुन् ] एक प्रकार का हरिण- रघु० प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि, मेघ० 10 3. बन्द 9 / 51, 72 / करना, ताला लगाना, रोकना, भेड़ना, बन्द कर देना श् (तुदा० पर० रुशति ] चोट पहुँचाना, जान से मार ---अधि० के साथ, परन्तु कभी-कभी दोकर्म० के साथ | --भट्टि०६।३५, बजरुणद्धिगाम्--सिद्धा. 4. वांधना, | शत् (वि.) [रुश्+शत ] चोट पहुँचाने वाला, अरुचिसीमित करना---व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्ध कर, (शब्द आदि जो) बुरे लगे। समुज्जम्भते-भर्त० 216 5. घेरा डालना, घेरना, रु / (दिवा० पर० रुष्यति-विरलप्रप्रोग-रुष्यते, रुषित, नाकेबन्दी करना-रुन्धन्तु वारणघटा नगरं मदीया: ! रुष्ट) रूसना, नाराज होना, क्षुब्ध होना-ततोऽरुष्यदन For Private and Personal Use Only Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 860 ) दच्च-भट्टि० 17 / 40, मामुहो मा रुषोऽधुना / 5. क्रूर, निर्दय, कठोर नितान्तरुक्षाभिनिवेशमीशम् -15 / 16, 9 / 20 / / - रघु० 14143, 20 7132, पंच० 4 / 91 ii (भ्वा० पर० रोषति) 1. चोट पहुंचाना, क्षति 6. नीरस, भुना हुआ, सूखा, वीरान स्निग्धश्यामाः पहुँचाना, मार डालना 2. नाराज करना, सताना। क्वचिदपरतों भीषणाभोगरूक्षाः--उत्तर० 2 / 14, एष, षा (स्त्री०) [रुष्+क्विप्, रुष्+टाप्] क्रोध, रोष, (रूक्षीकृ-, ऊबड़-खाबड़ करना, मैला करना, मिट्टी गुस्सा,--निर्बन्धसंजातरुषा रघु० 5 / 21, प्रह्वेष्व- लथेड़ना)। निर्बन्धरुषा हि सन्तः -16380, 19 / 20 / रूक्षणम् [रूक्ष् + ल्युट्] 1. सुखाना, पतला करना बह. (भ्वा० पर० रोहति, रूढ) 1. उगना, फूटना, अंकुरित 2. (आयु० में) (शरीर की) मेद को घटाने की होना, उपजना---रूढरागप्रवाल:-मालवि० 4.1, चिकित्सा। केसरररूरैः-मेघ० 23, छिन्नोऽपि रोहति तरुः | रूढ (भू० क० कृ०) [रुह क्ति] 1. उगा हुआ, अंकुरित, -भर्त० 2087 2. उपजना, विकसित होना, बढ़ना फूटा हुआ, उपजा हुआ 2. जन्मा हुआ, उत्पन्न 3. उठना, ऊपर चढ़ना, उन्नत होना 4. पकना, (व्रण 3. बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, विकसित 4. उठा हुआ, आदि को) स्वस्थ होना-प्रेर० (रोपयति-ते, चढ़ा हुआ 5. विस्तृत बड़ा, स्थलकाय 6. विकीर्ण, रोहयति-ते) 1. उगाना, पौधा लगाना, भूमि में इधर उधर फैला हुआ 7. विदित, ज्ञात, व्यापक (बीज) बखेरना 2. उठाना, उन्नत करना 3. सौंपना, -क्षतात्किल त्रायत इत्युदनः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः सुपूर्द करना, देखरेख में देना,--गुणवत्सुतरोपितश्रियः - - रघु० 2 / 53, (यहाँ क्षत्र का अर्थ योगरूट है) -~~-रघु०८१११ 4. स्थिर करना, निदेशित करना, 8. सर्वजनस्वीकृत, परंपराप्राप्त, प्रचलित, सर्वप्रिय जमाना---रघु० 9 / 22, इच्छा० (रुरुक्षति) उगाने (शब्द या अर्थ, विप० यौगिक या निर्वचनमलक अर्थ) की इच्छा करना, - अधि-, चढ़ना, सवार होना, ---व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढ़ा आखण्डलादयः, नाम सवारी करना --रघु० 7 / 37, कु० 7 / 52 (प्रेर०) रूढमपि च व्युदपादि शि० 10 / 23 9. निश्चित, उन्नत होना, ऊपर उठाना, बिठाना---रघु 19644, निश्चित किया हुआ। अव-, नीचे जाना, उतरना---श० 7 / 8, आ--, रुढिः (स्त्री०) रुह --क्तिन ] 1. उगना, उपजना, चढ़ना, सवार होना, पकड़ लेना, सवारी करना, 2. जन्म, पैदायश 3. वृद्धि, विकास, वर्धन, प्रवृद्धता (मा पूर्वक रुह, धातु के अर्थ प्रयुक्त संज्ञा के अनुसार 4. ऊपर उठना, चढ़ना 5. प्रसिद्धि, ख्याति, बदनामी विभिन्न प्रकार के होते हैं-उदा० प्रतिज्ञाम् आरह. -शि०१५।२६ 6. परम्परा, प्रथा, परंपरागत रिवाज, वचन देना, प्रतिज्ञा करना, तुलाम् आरुह, समानता के -शास्त्राद् रूढिर्बलीयसी, विधि से प्रथा अधिक बलस्तर पर होना, संशयं आरह, जोखिम उठाना, वती है' 7. सामान्य प्रचार, साधारण व्यापकता या सन्दिग्धावस्था में होना आदि), (प्रेर०) 1. उन्नत प्रचलन 8. सर्वमान्य अर्थ, शब्द का प्रचलित अर्थ होना, उठाना 2. रखना, जमाना, निदेशित करना --मुख्यार्थबाघे तद्योगे रूढितोऽथ प्रयोजनात्-काव्य. 3. मढ़ना, थोपना, आरोपित करना 4. (धनुष पर) प्रत्यंचा चढ़ाना 5. नियुक्त करना, कार्य भार सौंपना, रूप (चरा० उभ०-- रूपयति-ते, रूपित) 1. रूप बनाना, प्र-, उगना, अंकुरित होना-न पर्वताने नलिनी गढ़ना 2. रूप धर कर रंगमंच पर आना, अभिनय प्ररोहति-मच्छ० 4 / 17, वि--, उगना, अंकुर करना, हावभाव प्रदर्शित करना--रथवेगं निरूप्य-श० फूटना - रघु० 2 / 26, मृच्छ० 119 (प्रेर०) (व्रण 13. चिह्न लगाना, ध्यान पूर्वक पालन करना, आदि का) स्वस्थ होना, सम् , उगना, रघु० . देखना, नजर डालना 4. मालूम करना, ढूंढना 6.47 / 5. खयाल करना, विचार करना 6. तय करना, निश्चय वह, कह (वि.) (समास के अन्त में) [रुह-+क्विप, क करना 7. परीक्षा करना, अन्वेषण करना 8. नियक्त 'वा उगा हुआ या उत्पन्न, जैसा कि 'महीरुह ' और। करना,---वि-, विरूपित करना, रूप बिगाड़ना। 'पकेरुह,' में। रूपम् [ रूप-1-क, भावे अच् वा ] 1. शक्ल, आकृति, रहा [रुह +टाप्] दूर्वा घास, दूबड़ा / सरत विरूपं रूपवन्तं वा पुमानित्येव भुञ्जते-पंच० रूक्ष (वि.) [रूक्ष-+अच्] 1. खुरदरा, कठोर, (स्पर्श या 14143, इसी प्रकार 'कुरूप' 'सुरूप' 2. रूग या रंग का शब्द आदि) जो मृदु न हो, रूखा--रूक्षस्वरं वाशति प्रकार (वैशेषिकों के चौबीस गुणों में एक)-चक्षुर्मात्र. वायसोऽयम् - मृच्छ 9 / 10, कु० 7 / 17 2. कसला ग्राह्यजातिमान् गुणो रूपम् -- तर्क० (यह छः प्रकार (स्वाद) 3. ऊबड़-खाबड़, असम, कठिन, कर्कश का है:... शुक्ल, कृष्ण, पीत, रक्त, हरित और कपिल, 4. दूषित, मलिन, मैला -- रघु० 770, मुद्रा० 415 / यदि 'चित्र' को जोड़ दिया जाय तो सात हो जाते 2 / For Private and Personal Use Only Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 861 ) है) 3. कोई भी दृश्य पदार्थ या वस्तु 4. मनोहर रूप | रूपणम् [रूप+ल्युट] 1. सारोप वर्णन या आलंकारिक या आकृति, सुन्दर सूरत, सौन्दर्य, लावण्य, लालित्य वर्णन 2. गवेषण, परीक्षा / -मानुषीषु कथं वा स्यादस्य रूपस्य संभवः--श० 1 / रूपवत् (वि०) [रूप+मतुप, वत्वम्] 1. रंगरूप वाला 26, विद्या नाम नरस्य रूपमधिकम्-भर्त० 2020, 2. शारीरिक, दैहिक 3. सशरीर 4. मनोहर, सुन्दर, रूपं जरा हन्ति आदि 5. स्वाभाविक स्थिति या दशा, -ती सुन्दरी स्त्री। प्रकृति, गुण, लक्षण, मूलतत्त्व 6. ढंग, रीति 7. चिह्न | रूपिन् (वि.) [रूप+ इनि] 1. के सदृश दिखाई देने चेहरा-मोहरा 8. प्रकार, भेद, जाति 9. प्रतिबिम्ब, वाला 2. सशरीर, मूर्तिमान् 3. सुन्दर / प्रतिच्छाया 10. सादृश्य, समरूपता, 11. नमूना, रूप्य (वि.) [रूप+यत् सुन्दर ललित,- प्यम् 1. चांदी प्रकार, बनत 12. किसी क्रिया या संज्ञा का व्युत्पन्न 2. चाँदी (या सोने) का सिक्का, मुद्रांकित सिक्का, रूप, विभक्ति या लकार के चिह्न से युक्त रूप, रुपया 3. शुद्ध किया हुआ सोना / 13. 'एक' की संख्या, गणित की एक इकाई 14. पूर्णांक रुष / (भ्वा० पर० रूपति, रूषित) 1. अलंकृत करना, 15. नाटक, खेल, दे० रूपक 16. किसी ग्रंथ को बार सजाना 2. पोतना, चपड़ना, मण्डित करना, लीपना बार पढ़ कढ़ कर या कंठस्थ करके पारंगत होने (मिट्टी आदि से)। की क्रिया 17. मवेशी 18. ध्वनि, शब्द, (रूप का . (चुरा० उभ० रूषयति-ते) 1. कांपना 2. फट प्रयोग बहुधा समास के अन्त में होता है यदि निम्नां- जाना। कित अर्थ हो—बना हुआ' 'से युक्त' 'के रूप में | रूषित (भू० क० कृ०) [रूष्+क्त] 1. अलंकृत 2. पोता 'नामत:' 'सूरत शक्ल में'- तपोरूपं धनं धर्मरूप: हुआ, ढका हुआ, बिछाया हुआ 3. मिट्टी में लथेडा सखा) / सम० अधिबोधः ज्ञानेन्द्रियों द्वारा किसी हुआ 4. खुरदरा, ऊबड़ खाबड़ 5. कूटा हुआ, चूर्ण पदार्थ के रंग रूप का प्रत्यक्ष करना, अभिग्राहित किया हुआ। (वि०) काम करते हुए पकड़ा गया, मौके पर पकड़ा | रे (अव्य०)[रा+के] संबोधनात्मक अव्यय-रे रे शंकरगया,--आजीवा वेश्या, रंडी, गणिका,--आश्रयः अत्यंत गहाधिवासिनो जानपदाः --मा० 3 / सुन्दर व्यक्ति, इन्द्रियम् आँख, रंगरूप को प्रत्यक्ष खालिख+ अच् + टापु, लस्य र] 1. लकीर, घारी, करने वाली इन्द्रिय, उच्चयः ललित रूपों का समूह मदरेखा, दानरेखा, रागरेखा आदि 2. लकीर की श० २।९,-कारः,---कृत् (पुं०) मूर्तिकार, शिल्पी, माप, अल्पांश, लकीर इतना-न रेखामात्रमपि व्यतीयुः --- तत्त्वं अन्तहित गुण, मूलतत्त्व, धर (वि.) - रघु० 1117 3. पंक्ति, परास, लकीर, श्रेणी रूप धरे हए, छद्मवेषी, नाशनः उल्लू,--- लावण्यम् 4. आलेखन, रूपरेखा, चित्रांकन लावण्यं रेखया रूप की उत्कृष्टता, चारुता, विपर्ययः विरूपण, किचिदन्वितं-श०६।१४ 5. भारतीय ज्योतिषियों शारीरिक रूप में विकृत परिवर्तन, - शालिन् (वि०) की प्रथम याम्योत्तर रेखा जो लंका से उज्जैन होते सुन्दर, --- संपद्, संपत्तिः (स्त्री०) रूप की उत्कृष्टता, हए मेरु पर्वत तक खिची हुई है 6. पूर्णता, सन्तोष सौन्दर्य की वृद्धि, सौन्दर्यातिरेक / 7. वोखा, जालसाजी / सम-अंशः रेखांश, द्राधिमांश रूपक: [ रूप-1-ण्वुल, रूप---कन् वा ] विशेष सिक्का, के घात, देशान्तरीय घात,-अन्तरम् प्रथम याम्योत्तर रुपया,-कम् 1. शक्ल, आकृति, सूरत, (समास के रेखा से पूर्व या पश्चिम की दूरी, किसी स्थान का अन्त में) 2. कोई वर्णन या प्रकटीकरण 3. चिह्न, देशान्तर,---आकार (वि०) परम्परा प्राप्त, रेखामय, चेहरा-मोहरा 4. प्रकार, जाति 5, नाटक, खेल नाट्य धारीदार, -गणितम् ज्यामिति / कृति (नाट्य रचनाओं के प्रमुख दो भेदों में से एक, रेच दे० 'रेचक' / दश्य, इसके फिर आगे दस भेद हैं, इसके अतिरिक्त रेचक (वि०) (स्त्री-चिका) [रेचयति रिच---णिच इसके और अवान्तर भेद है जो गिनती में अठारह है +ण्वुल] 1. रिक्त करने वाला, निर्मल करने वाला तथा 'उपरूपक' नाम से विख्यात है)-दृश्यं तत्राभि- 2. दस्तावर, मुलय्यन (मल को ढीला करने वाला) नेयं तद्पारोपात्तु रूपकम् ---सा० द० 272, 273 3. फेफड़ों को खाली करने वाला, श्वास को बाहर 6. (अले. में) अंग्रेजी के मैटाफर (metaphor) के फेंकने वाला,-क: 1. श्वास का बाहर निकालना अनुरूप एक अलंकार जिसमें उपमेय को उपमान के ठीक बहिःश्वसन, निःश्वसन विशेष कर एक नथने से समनुरूप वणित किया जाता है-तपकमभेदो य उपमा (विप० पूरक अर्थात् अन्तः श्वसन, सांस अन्दर ले नोपमेययोः-काव्य०१० (विवरण के लिये देखो यही जाना और कुम्भक, श्वास को जहां का तहाँ रोकना) स्थान) 7. एक प्रकार का तोल / सम-साल: संगीत 2. वस्तियन्त्र या पिचकारी 3. जवाखार, शोरा, में विशेष-समय,-मावः आलंकारिक या रूपकोक्ति / ---- कम दस्तावर, विरेचन / For Private and Personal Use Only Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 862 ) रेचनम्,-ना [रिच+ल्युट्] 1. रिक्त करना 2. घटाना, बढ़ाने वाला, क्षुधोत्तेजक,--कम् 1. भूख 2. मन्दाग्नि कम करना 3. श्वास बाहर निकालना 4. निर्मल को दूर करने वाली कोई पुष्टि कारक औषधि उद्दीकरना 5. मल बाहर निकालना। पक, पौष्टिक 3. काँच की चूड़ियाँ या अन्य बनावटी रेचित (वि.) [रिच+णिच-+-क्त] रिताया गया, साफ आभूषण बनाने वाला। किया गया, तम् घोड़े की दुलकी चाल / रोचन (वि.) (स्त्री०--ना,--नी) [ रुच् + ल्युटु, रोचरेणुः (पुं०, स्त्री०) [रीयतेः णुः नित्] 1. धूल, धूलकण, यति वा) 1. प्रकाश करने वाला, रोशनी करने वाला, रेत जादि-तुरगखुरहतस्तथा हि रेणुः-श० 1131 जगमगा देने वाला 2. उज्ज्वल, शानदार, सुन्दर, प्रिय, 2. पराग, पुष्परज। सुहावना, रुचिकर भट्टि० 6173 3. क्षुधावर्धक, रेणुका [रेणु+के+क+टाप्] जमदग्नि की पत्नी तथा --नः भूख बढ़ाने वाली औषधि,--नम् उज्ज्वल परशुराम की माता-दे० जमदग्नि / आकाश, अन्तरिक्ष। रेतस् (नपुं०) [री--असुन्, तुट् च वीर्य, धातु / रोचना [ रोचन-1-टाप] 1. उज्ज्वल आकाश, अन्तरिक्ष रेप (वि०) / रेप्+घञ ] 1. तिरस्करणीय, नीच, अघम 2. सुन्दरी स्त्री 3. एक प्रकार का पीलारंग-गोरोचना 2. कर, निष्ठुर / रघु०६।६५, 17124, शि० 11151 / रेफ (वि.) [रिफ+अच् ] नीच, कमीना, तिरस्करणीय, रोचमान (वि.) [रुच-+-शानच् ] 1. चमकदार, उज्ज्वल --फः 1. कर्कश ध्वनि, गड़गड़ध्वनि 2. 'र्' वर्ण 2. प्रिय, सुन्दर, मनोहर, -नम् घोड़े की गर्दन के 3. प्रणयोन्माद, अनुराग / बालों का गुच्छा। रेवटः [ रेव+अटच् ] 1. सूअर 2. बाँस की छड़ी ! रोचिष्णु (वि०)[ रुच+ इष्णच ] 1. उज्ज्वल, चमकीला, 3. बवंडर। चमकदार, देदीप्यमान 2. छल-छवीला, भड़कीले रेवतः [ रेव+अतच् ] नींबू का पेड़। __ कपड़ों वाला, प्रफुल्लवदन 3. क्षुधावर्धक / रेवती [ रेवत+ङीष् ] 1. सत्ताइसवां नक्षत्रपुंज जिसमें | रोचिस् (नपुं०) [रुचेः इसिः ] प्रकाश, आभा, उज्ज्वलता, बत्तीस तारे होते हैं2. बलराम की पत्नी का नाम ___ ज्वाला --शि० 115 / / -शि० 2 / 16 / रोदनम् [रुद् + ल्युट् ] 1. रोना, दे० रुदन 2. जांसू / रेवा [ रेव+अच् + टाप् ] नर्मदा नदी का नाम,-रेवा- | रोबस् (नपुं०) (स्त्री० द्वि० व०--रोदसी) [ रुद् रोधसि बेतसीतरुतले चेतः समुत्कण्ठते-काव्य० 1, +असुन ] आकाश और पृथ्वी--रवः श्रवणभैरवः रघु० 6 / 43, मेघ० 19 / स्थगितरोदसीकन्दर:-वेणी०३१२, वेदान्तेषु यमाहुरेक(म्वा० आ० रेषते, रेषित) 1. दहाड़ना, हुहू करना, पुरुषं व्याप्य स्थित रोदसी-विक्रम० 111, शि०८।१५। किलकिलाना 2. हिनहिनाना। रोषः [रुध्+घा ] 1. रोकना, पकड़ना, रुकावट डालना रेषणम्, रेषा [ रेष् + ल्युट, रेष् +अ+टाप् ] दहाड़ना, -शि० 1089 2. अवरोध, ठहराना, बाधा, रोक, हिनहिनाना। प्रतिषेध, दबाना-शापादसि प्रतिहता स्मृतिरोधरूक्षे रै (पुं०) / रातः डैः ] (कर्तृ० राः रायो रायः) दौलत, -श० 7/32, उपलरोध-कि० 5 / 15, याज्ञ. सम्पत्ति, धन / 2 / 220 3. बन्द करना, रोकना, नाकेबंदी करना, रेवतः, रेवतकः [ रेवत्या अदूरो देश:---खेती+अण-रैवत घेरा डालना--प्रीतिरोधमसहिष्ट सा पुरी-रघु० कन् ] द्वारका के निकट विद्यमान पहाड़, (इस 1052 4. बाँध / पहाड़ के विवरण के लिए दे०, शि०४)। रोधनः [रुध् + ल्युट] बुधग्रह, --नम् ठहराना, रोकना, बन्दी रोकमा रु+कन 11. छिद्र 2. नाव, जहाज़ 3. हिलता बनाना, नियंत्रण, रोक थाम / हुआ, लहराता हुआ / रोधस् (नपुं०) [रुध+असुन्] 1. तट, पुश्ता, बाँध-गङ्गा रोगः [रुज्+घञ ] रुजा, बीमारी, व्याधि, मनोव्यथा रोधःपतनकलुषा गृहणतीव प्रसादम् - विक्रम० 118, या आधि, अशक्तता संतापयन्ति कमपथ्यभुजं न रघु० 5 / 42, मेघ०५१ 2. किनारा, ऊंचा तट-रघु० रोगा:-हि० 3.117, भोगे रोगभयम् .... भर्त० 3 / 35, 8 / 33 / सम०-वक्रा, -- बती 1. नदी 2. वेग से सम-आयतनम् शरीर,-आर्त (वि०) रोगग्रस्त, बहने वाली नदी। बीमार, - शान्तिः (स्त्री०) रोग का उपशमन या रोधः [रुध+रन्] एक प्रकार का वृक्ष, लोध्रवृक्ष, - ध्रः, चिकित्सा, -हर (वि.) चिकित्सापरक (-रम्) --ध्रम् पाप,---ध्रम् अपराध, क्षति / औषधि, हारिन् (वि०) चिकित्साविषयक, (-0) रोपः [रुह+णिचु+अच, हस्य पः] 1. उगाना, बोना वैद्य, डाक्टर। 2. पौध लगाना 3. बाण-शि०१९।१२० 4. छिद्र, रोचक (वि.) [रुच्+ण्वुल् ] 1. सुखद, रुचिकर 2. भूख / गह्वर / For Private and Personal Use Only Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir fr रोपणम् [रुह --णिच् + ल्युट हस्य पः] 1. सीधा खड़ा | से रोओं से युक्त, पशमदार या ऊर्णामय,-शः 1 भेड़, करना, जमाना, उठाना 2. पौध लगाना 3. स्वस्थ / मेंढा 2. कुत्ता, सूअर / होना, 4. (व्रण आदि पर) स्वास्थ्यप्रद औषध का | रोरुदा [रुद्+यह+अ+टाप् प्रचंडक्रंदन, अत्यन्त विलाप प्रयोग। - लुठचन् सशोको भुविरो रुदावान् -- भट्रि० 3 / 32 / रोमकः [रोमन् / कन्] 1. रोम नाम का नगर 2. रोम-रोलम्बः [रो लम्ब्+अच्] भौंरा-तस्या रोलम्बावली वासी, रोम नगर का निवासी (ब०व० में)। सम० केशजालं--दश०, भामि० 11118 / / .... पत्तनम् रोम नगर, सिद्धान्तः पाँच मुख्य सिद्धान्तों रोषः [रुष---घा] क्रोध, कोप, गुस्सा-रोषोऽपि निर्मलमें से एक (रोमवासियों से प्राप्त होने के कारण ही धियां रमणीय एव - भामि० 1171, 44 / संभवतः इसका यह नाम पड़ा)। रोषण (वि०) (स्त्री०-णी) [रुष्+युच्] क्रोधी चिड़रोमन् (नपुं०) [रु+मनिन् मनुष्य और अन्य जीव जंतुओं चिड़ा, गुस्सैल, आवेशी,-ण: 1. कसौटी 2. पारा के शरीर पर होने वाले बाल, विशेषतः, छोटे-छोटे 3. बंजर पड़ी हुई रिहाली जमीन / बाल, कड़े बाल-- मनु० 41144, 8 / 116 / सम० रोहः [रुह+अच्] 1. उठान, ऊँचाई, गहराई 2. किसी अङ्कः बाल का चिह्न, - बिभ्रती श्वेतरोमाङ्कम् चीज़ का ऊपर उठाना (जैसे कि एक छोटी संख्या ...- रघ० १२८३,-अञ्चः (हर्षातिरेक, बिभीषिका या ___को बड़ी संख्या बनाना) 3. वृद्धि, विकास (आलं०) आश्चर्य आदि में) पुलक, रोंगटे खड़े होना हर्षाद्भु 4. कली, बौर, अंकुर / तभयादिभ्यो रोमाञ्चो रोमविक्रिया-सा० द० 167, | रोहणः [रुह. + ल्युट्] लंका के एक पहाड़ का नाम,–णम् ..-अञ्चित (वि.) हर्ष के कारण पुलकित, अन्तः सवार होने, सवारी करने, चढ़ने और स्वस्थ होने हथेली की पीठ पर के बाल, .. आली,-आवलिः, की क्रिया। सम०-द्रुमः, चन्दन का पेड़ / -ली (स्त्री०) रोमों की पंक्ति जो पेट पर ठीक | रोहस्तः [रुहेः झन् वृक्ष, ती लता। नाभि के ऊपर को गई हो—शिखा धूमस्येयं परिण- रोहिः रिह +इन 1. एक प्रकार का हरिण 2. धार्मिक मति रोमावलिवपुः-काव्य० 10, दे० 'रोमराजि' भी, पुरुष 3. वृक्ष 4. बीज। -उद्गमः,-उद्भवः (शरीर पर) बालों का खड़ा | | रोहिणी [ रुह +इनन्-+ ङीष् ] 1. लाल रंग की गाय होना, पुलक, रोमांच --कु० 777, .. कूपः, --- पम्, 2. गाय-शि० 1640 3. चौथा नक्षत्रपुंज (जिसमें -गर्तः, चमड़ी के ऊपर के छिद्र जिनमें रोम उगे हों, पाँच तारे हैं) जिसकी आकृति 'गाड़ी की है, दक्ष लोमछिद्र, केशरम्,-केसरम् मुरछल, चंवर,-पुलकः की एक पुत्री जो चन्द्रमा की अत्यन्त प्रिय संगिनी रोंगटे खड़े होना, हर्षातिरेक-चौर० 34, * भूमिः है-उपरागान्ते शशिनः समुपगता रोहिणी योगम 'बालों का स्थान' अर्थात् खाल, चमड़ी,-रन्ध्रम् रोम- -श० 7 / 22 4. वसुदेव की एक पत्नी तथा बलराम कूप, राजिः, --जी, लता (स्त्री०) पेट पर ठीक की माता का नाम 5. तरण कन्या जिसे अभी रजोधर्म नाभि के ऊपर रोमावली -- रराज तन्वी नवरो (लो)- होना आरंभ हुआ है- नववर्षा च रोहिणी 6. बिजली / मराजि:-० 138, शि० ९।२२,-विकारः, सम० पतिः,---प्रियः,-वल्लभ:---रमण: 1. सांड --विक्रिया,-विभेवः पुलक, रोमांच,-कि० 9 / 46, 2. चन्द्रमा, शकटः 'गाड़ी' की आकृति का रोहिणी कु० 5 / 10, -हर्षः बालों या रोंगटों का खड़े होना, नक्षत्रज-रोहिणी शकटमर्कनन्दनश्चोद्भिनत्ति रुधिरोपुलक वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते----भग० ऽथवा शशी-पंच० 1213 (-वराह० 47.14) / 229, - हर्षण (वि०) पुलक या रोमांच करने वाला, रोहित (वि०) (स्त्री० रोहिणी, रोहिता) [रुहेः इतन् रोंगटे खड़े कर देने वाला, विस्मयोत्पादक-एतानि रश्च लो वा] लाल, लालरंग का,-तः 1. लाल रंग खल सर्वभूतरो (लो) महषणान-"उत्तर लो) महर्षणानि -... उत्तर० 2, संवाद 2. लोमड़ी 3. एक प्रकार का हरिण 4. मछली की मिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम-भग०१८।७४ (-णः) एक जाति, तम् 1. रुधिर 2. जाफरान, केसर। सूत का नामान्तर, व्यास का एक शिष्य जिसने सम० - अश्वः अग्नि / शौनकमुनि को कई पुराण सुनाये थे, (-णम्) शरीर रोहिषः [रुह,+इषन्] 1. एक प्रकार की मछली 2. एक पर रोंगटे खड़े होना, पुलक / प्रकार का हरिण / रोमन्थः [रोग मध्नाति-मन्थ्+अण, पृषो० गलोपः] / रोक्ष्यम् [रूक्ष+ष्य] 1. कठोरता, सूखापन, अनुपजा 1. जुगाली करना, खाये हुए घास को चर्वण करना, ऊपन 2. खुरदुरापन, कर्कशता, क्रूरता प्रतिषेधरीछायाबद्धकदम्बकं मुगकुलं रोमन्थमभ्यस्यतू ---श०२।८ क्ष्यम् -रघु० 5 / 58, निदेश° 14158 / 2. (अतः) लगातार पिष्टपेषण। रौद्र (वि.) (स्त्री०-बा, बी) [रुद्र+अण्] 1. "रुद्र जैसा रोमश (वि०) [रोमाणि सन्त्यस्य श] बालों वाला, बहुत प्रचंड, चिड़मिड़ा, गुस्सैल 2. भीषण, बर्बर, भयानक, For Private and Personal Use Only Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 864 ) जंगली,-: 1. रुद्र का उपासक 2, गर्मी, उत्कण्ठा, भयानक 3. जालसाजी से भरा हुआ, बेईमान, --वः सरगर्मी, जोश, मन्यु या भीषणता का मनोभाव ..दे० 1. बर्बर 2. एक नरक का नाम-मनु० 4 / 88 / सा० द० 232 या काव्य० ४,--ब्रम् 1. क्रोध, कोप | रोहिण: रोहिण-+-अण] 1. चन्दन का वृक्ष 2. वटवृक्ष / 2. उग्रता, भीषणता, बर्बरता 3. गर्मी, उष्णता, रौहिणेयः [रोहिणी+ढक्] 1. बछड़ा 2. बलराम का सूर्यताप। नामांतर 3. बुधग्रह,--- यम् पन्ना, मरकतमणि / रौप्य (वि०) रूप्य+अण्] चाँदी का बना हुआ, चाँदी, | रोहिषु (पुं०) एक प्रकार का हरिण / चाँदी जैसा,-प्यम् चाँदी। रौहिषः [रुह +टिषच्, घातोश्च वृद्धिः] दे० 'रोहिष',-षम् रौरव (वि० (स्त्री०-बी) [रुरु-अण] 1. 'रुर' मग की एक प्रकार का घास / खाल का बना हुआ---रधु० 3 / 31 2. डरावना, | लः [ली-|-ड] 1. इन्द्र का विशेषण 2. (छन्द 0 में) लघु, . मत्कुक्षेरद्य भोजनम्--रघु० 15 / 18, उप-, ह्रस्व मात्रा 3. पाणिनि द्वारा प्रयुक्त (दस लकारों के | 1. देखना, अवलोकन करना, निगाह डालना, अंकित लिए) परिभाषिक शब्द, जो दस काल तथा अवस्थाओं करना,सम्यगपलक्षितं भवत्या-श० 3 2. अंकित को प्रकट करते हैं। करना, चिह्न लगाना- याज्ञ० 130, 1151 लक् (चुरा० उभ० लाकयति-ते) 1. स्वाद लेना 2. प्राप्त | 3. प्रकट करना, मनोनीत करना 4. अतिरिक्त उपकरना। लक्षित होना, वस्तुतः अभिव्यक्त की अपेक्षा अधिक लकः (लक- अच्] 1. मस्तक 2. जंगली चावलों की सम्मिलित करना-नक्षत्रशब्देन ज्योतिःशास्त्रमुपबाल। लक्ष्यते -- मन० 3 / 162 पर कुल्लू० 5. मनन करना, लकचः, लकुचः [लक+अचन्, उचन् वा] बडहर का पेड़, विचारकोटि में लाना 6. खयाल करना, मानना, -चम् बडहर का फल / वि.--, 1. अवलोकन करना, ध्यान देना, देखना लकुटः [लक+उटन् ] मद्गर, सोटा। 2. चरित्रचित्रण करना, अन्तर प्रकट करना 3. व्याकुल लक्तकः लक+क्त+कन्, रक्त+के+क, रस्य लत्वं वा] / होना, चकित होना, घबरा जाना---निर्व्यापारविल____ 1. लाख, महावर 2. चिथड़ा, जीर्ण कपड़ा। क्षितानि सान्त्वय बलानि--उत्तर०६, सम्--, 1. अवलक्तिका लक्तक+टाप, इत्वम] छिपकली / लोकन करना, प्रत्यक्ष करना, देखना, ध्यान देना लक्ष i (भ्वा० आ० लक्षते, लक्षित) प्रत्यक्ष करना, --आश्चर्यदर्शन: सलक्ष्यते मनुष्यलोकः, - श० 7, समझना, अवलोकन करना, देखना / संलक्ष्यते न छिदुरोऽपि हारः- रघु०१६।९२, 'ध्यान i (चुरा० उभ० लक्षयति - ते, लक्षित) 1. देखना, नहीं दिया जाता या ज्ञात नहीं होता' 8142 अवलोकन करना, निरखना, ज्ञात करना, प्रत्यक्ष 2. परीक्षण करना, सिद्ध करना, निर्धारित करना करना--आर्यपुत्रः शून्यहृदय इव लक्ष्यते ... बिक्रम -हेम्नः संलक्ष्यते हग्नौ विशुद्धिः श्यामिकाऽपि वा 2, रघु० 9/72, 167 2. चिह्न लगाना, प्रकट ----रघु० 1110 3. सुनना, जानना, समझना करना, चरित्रचित्रण करना, संकेत करना सर्वभूत- 4. चरित्रचित्रण करना, भेद बताना। प्रसूतिहि बोजलक्षणलक्षिता---मन्० 9 / 35 3. परि- लक्षम् [लक्ष्+अच्] 1. सौ हजार (इस अर्थ में पुं० भी), भाषा करना-इदानीं कारणं लक्षयति--आदि -इच्छति शती सहस्रं सहस्री लक्षमीहते-सुभा०, त्रयो 4. गौण रूप से संकेत करना, गौण अर्थ में सार्थक लक्षास्तु विज्ञेया:-याज्ञ. 3 / 102 2. चिह्न, चाँदमारी, करना ....यथा गंगा शब्दः स्रोतसि सवाध इति तटं लक्ष्य, निशाना-प्रत्यक्षवदाकाशे लक्षं बध्वा----मद्रा. 1 लक्षयति तद्वत् यदि तटेऽपि सबाधः स्यात्तत्प्रयोजनं 3* निशान, निशानी, चिह्न 4. दिखावा, बहाना, जाललक्षयेत् काव्य०२, अत्र गोशब्दो शहीकार्थ लक्षयति साजी, छद्मवेश, जैसा कि 'लक्षसुप्तः' में 'झूठमूठ सोया -सा. द०२ 5. लक्ष्य करना 6. खयाल करना, / हुआ। मम०-अधीश: लाखों की सम्पत्ति का स्वामी / आदर करना, सोचना, अभि , अंकित करना, देखना, लक्षक (वि.) [लक्ष वल अप्रत्यक्षरूप से सूचित करने आ-, देखना, प्रत्यक्ष करना, अवलोकन करना-- | वाला, गौण रूप से अभिव्यक्त करने वाला, --कम् आलक्ष्य दन्तमकुलान-श०७।१७, नातिपर्याप्तमालक्ष्य सौ हजार, एक लाख / For Private and Personal Use Only Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लक्षणम | लक्ष्यतेऽनेन-लक्ष करणे त्यट ] 1. चिह्न, निशानी, 1. सारस 2. सुमित्रा नामक पत्नी से उत्पन्न दशरथ निशान, संकेत, विशेषता, भेद बोधक चिह्न, वधुदुकलं का एक पुत्र (बचपन से ही लक्ष्मण राम में इतना कलहंसलक्षणम्---कु० 5 / 07, अनारंभी हि कार्याणां अधिक अनुरक्त था कि वह उसकी वनयात्रा में जाने प्रथमं बुद्धिलक्षणम् - सुभा० अव्याक्षेपो भविष्यन्त्याः को तैयार हो गया। राम के चौदह वर्ष के निर्वासन कार्यसिद्धेहि लक्षणम्-रघु० 10 // 6, 19647, गर्भलक्षण काल में घटित घटनाओं में लक्ष्मण का बड़ा हाथ था। --श० 5, पुरुषलक्षणम्, वीर्यवत्ता का चिह्न या पुंस्त्व- लङ्का के युद्ध में उसने कई बलवान् राक्षसों को, विशेष द्योतक इन्द्रिय 2. (रोग का) लक्षण 3. विशेषण, कर रावण के पुत्रों में अत्यंत शक्तिशाली मेघनाद को खूबी 4. परिभाषा, यथार्थ वर्णन 5. शरीर पर भाग्य- मार डाला। सबसे पहले तो स्वयं लक्ष्मण ही मेघनाद सूचक चिह्न (यह गिनती में 32 हैं)-द्वात्रिशल्लक्षणो- की शक्ति का शिकार हुआ, परन्तु हनुमान द्वारा लाई पेतः 6. (शुभाशुभ भाग्य का सूचक) शरीर पर बना गई संजीवन बूटी के उपयोग से सुषेण वैद्य ने उसे फिर कोई चिह्न - क्व तद्विधस्त्वं क्व च पुण्यलक्षणा -..कु. जीवित कर दिया। एक दिन काल साधु के वेश में 5337, क्लेशावहा भर्तुरलक्षणाहम्--रघु० 1415 राम के पास आया और कहा कि "जो कोई उनको 7. नाम, पद, अभिधान (प्राय: समास के अन्त में) एकान्त में वार्तालाप करते हुए कभी देख ले तो तुरन्त -विदिशालक्षणां राजधानीम-मेघ०२५, नै०२२१४१ उसका परित्याग किया जाना चाहिए" यह बात मान 8. श्रेष्ठता उत्कर्ष, अच्छाई जैसा कि 'आहितलक्षण ली गई। एक बार लक्ष्मण ने राम व सीता की -रघु० 671 में (यहाँ मल्लि० इस शब्द का अनुवाद एकान्तता में भंग डाल दिया, फलतः लक्ष्मण ने अपने करता है 'प्रख्यातगुण' और अमर० का उद्धरण -- गुण: भाई राम के बचन को 'स्वयं सरय में छलांग लगा कर प्रतीते तु कृतलक्षणाहितलक्षणी-देता है) 9. उद्देश्य, सत्य सिद्ध करके दिखा दिया (दे० रघु० 15192-5, क्रियाक्षेत्र या लक्ष्य, ध्येय 10. (कर आदि का) निश्चित उस का विवाह ऊर्मिला से हुआ, तथा अंगद और चन्द्र भाव-मनु० 85405 11. रूप, प्रकार प्रकृति 12. कर्त- केतु नामक दो पुत्र हुए), –णा हंसिनी,-णम् 1. नाम व्यनिर्वाह, कार्यप्रणाली 13. कारण, हेतु 14. सिर, शीर्षक, अभिधान 2. चिह्न, संकेत, निशानी। सम-प्रसूः विषय 15. बहाना, छप्रवेश (--लक्ष) --प्रसुप्तलक्षणः लक्ष्मण की माता सुमित्रा। -मा०७,-णः सारस,-णा 1. उद्देश्य, ध्येय 2. (अलं० लक्ष्मन (पं०) [ लक्ष+मनिन् ] 1. चिह्न, निशान, में) शब्द का परोक्षप्रयोग या गोण सार्थकता, शब्द की निशानी, विशेषता-शि० 1130, कि० 11128, एक शक्ति, इसकी परिभाषा इस प्रकार है :-मुख्यार्थ 14 / 64, रघु० 10130 कु. 7543 2. चित्ती, धब्बा वाधे तद्योगे रूढितोऽथप्रयोजनात, अन्योऽर्थो लक्ष्यते -मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मी तनोति-श० 1120, यत्सा लक्षणारोपितक्रिया: --काव्य० 2, दे० सा० द० मा० 9 / 25 3. परिभाषा -पुं० 1. सारस पक्षी, 13 भी 3. हंस। सम० अन्वित (वि.) शुभलक्षणों 2. लक्ष्मण का नामान्तर / से युक्त,-ज (वि.) (शरीर पर विद्यमान) चिह्नों की व्याख्या करने में सक्षम,-भ्रष्ट (वि.) अभागा, लक्ष्मीः (स्त्री०) [ लक्ष+ई, मुट+च ] 1. सौभाग्य, दुर्भाग्यग्रस्त, लक्षणा-जहल्लक्षणा, दे०,-संनिपातः समृद्धि, धनदौलत --सा लक्ष्मीरुपकुरुते यया परेषाम्दाग लगाना, कलंकित करना / कि० 8118, तृणमिव लघुलक्ष्मी व तान् संरुणद्धि ---- भर्तृ० 2 / 17 2. सौभाग्य, अच्छी किस्मत 3. सफलता, लक्षण्य (वि०) [ लक्षण+-यत् ] 1. चिह्न का काम देने सम्पन्नता–उत्तर० 2 / 18 4. सौन्दर्य, प्रियता, बाला 2. अच्छे लक्षणों से युक्त। अनुग्रह, लावण्य, आभा, कान्ति-मलिनमपि हिमांशोलक्षशस् (अव्य०) [लक्ष-|-शस् ] लाख-लाख करके अर्थात् लक्ष्म लक्ष्मीं तनोति -- श० 1120, मा० 9 / 25, बड़ी संख्या में। 5 / 39, 52, 9 / 2, कु० 3 / 49 5. सौभाग्यदेवी, लक्षित (भू० क० कृ०) [लक्ष-+क्त] 1. दुष्ट, अवलोकित समृद्धि, सौन्दर्य, लक्ष्मी विष्णु की पत्नी मानी जाती चिह्निा, निगाह डाली गई 2. प्रकट किया गया, है (देवासुरों द्वारा अमृत प्राप्ति के लिए समुद्रमंथन सकेतित 3. चरित्रचित्रित, चिह्नित, अन्तर बताया गया किये जाने पर अन्य मूल्यवान् रत्नों के साथ लक्ष्मी 4. परिभापित 5. उद्दिष्ट 6. परोक्ष रूप से अभिव्यक्त भी समुद्र से निकली)-इयं गेहे लक्ष्मी : * उत्तर०११३८, संकेतित, इशारा किया गया 7. पूछताछ की गई, राजकीय या प्रभुशक्ति, उपनिवेश, राज्य (यह बहुधा परीक्षित / रानी की सपत्नी के रूप में मानी जाती है, और लक्ष्मण (वि०) [लक्ष्मन् + अण्, न वृद्धिः ] 1. चिह्नों से राजा की रानी के रूप में इसका मर्तवर्णन किया युक्त 2. शुभलक्षणों से युक्त, सौभाग्यशाली, अच्छी जाता है)-तामेकभार्यां परिवादभीरोः साध्वीमपि किस्मत वाला 3. समृद्धिशाली, फलता-फूलता –णः | त्यक्तवतो नुपस्य, वक्षस्यसंघट्टसुखं वसन्ती रेजे सपत्नी For Private and Personal Use Only Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहितेक लक्ष्मी:--रघु० 14186, 12 / 26 7. नायक ग्या अर्थाः-काव्य०२ 5. बहाना, झूठमठ, छपवेश की पत्नी 8. मोती. हल्दी / सम०-ईशः 1. विष्णु - इदानीं परोक्षे किं लक्ष्य सुप्तमुत परमार्थसुप्तका विशेषण 2. आम-का वृक्ष 3. समृद्ध या भाग्य- मिदं द्वयं - मच्छ० 3, 3318, कन्दर्प प्रवणमनाः शाली पुरुष,-कान्तः 1. विष्णु का विशेषण 2. राजा, सखीसिसिक्षालक्ष्येण प्रतियुवमञ्जलिं चकार-शि० ---गृहम् लाल कमल का फूल, - तालः एक प्रकार का 8 / 35, रघु० 6 / 58 6. लाख, सौ हजार / सम० ताड़ का वृक्ष,-नायः विष्णु का विशेषण,-पतिः -~-क्रम (बि०) ध्वनि आदि अर्थ जिसकी प्रणाली 1. विष्णु का विशेषण, 2. राजा-विहाय लक्ष्मीपति- (गौणरूप से) प्रत्यक्षज्ञेय है,-भेदः, वेषः निशाना लक्ष्म कार्मुकम् --कि० 1144 3. सुपारी का पेड़, लगाना--कि० ३।२७,-सुप्त (वि०) झूठमूठ सोया लॉग का वृक्ष, पुत्रः 1. घोड़ा 2. कामदेव का नामा- हुआ,-हन (वि०) निशाना मारने वाला, (0) तर,--पुष्पः लाल,---पूजनम् लक्ष्मी के पूजा करने का बाण, तीर। कृत्य (दुलहन को विवाह करके घर लाने के पश्चात् लख, लल (भ्वा० पर० लखति, लखति) जाना, हिलना दूल्हे द्वारा दुलहन के साथ मिलकर किया जाने जुलना। वाला अनुष्ठान),-पूजा कार्तिकमास की अमावस्या लग्न (म्वा० पर० लगति, लग्न) 1. लग जाना, दृढ़ के दिन किया जाने वाला लक्ष्मीपूजन (मुख्य रूप से रहना, चिपकना, जुड़ जाना-श्यामाथ हंसस्य करासाहकार और व्यापारियों के द्वारा-जिनका कि नवाप्तेर्मन्दाक्षलक्ष्या लगति स्म पश्चात्-नै० 38, वाणिज्यवर्ष, आज के दिन समाप्त होकर नया वर्ष गमनसमय कण्ठे लग्ना निरुध्य माम-मा० 3 / 2 आरम्भ होता है),-फल: बिल्व वृक्ष, रमणः विष्णु 2. स्पर्श करना, संपर्क में आना-कर्णेलगति चान्यस्य का विशेषण,-वसतिः (स्त्री०) 'लक्ष्मी का निवास' प्राणरन्यो वियुज्यते--पंच० 12305, यथा यथा लाल कमल का फूल,-वारः बृहस्पतिवार, वेष्टः लगति शीतवातः--मृच्छ०, 5 / 11 3. स्पर्श करना, तारपीन,-सखः लक्ष्मी की कृपा का पात्र,-सहजः, प्रभावित करना, लक्ष्य स्थान तक जाना--विदितेङ्गिते -सहोदरः चन्द्रमा के विशेषण / हि पुर एव जने सपदीरिताः खल लगन्ति गिरः लक्मीवत् (वि.) [ लक्ष्मी+मतप, वत्वम् ] 1. सौभाग्य- -शि० 9 / 69 4. मिल जाना, सम्मिलित होना, शाली, किस्मत वाला, अच्छे भाग्य वाला 2. दौलत- (रेखा आदि) काटना 5. ध्यानपूर्वक अनुसरण करना, मंद, धनवान्, समृद्धिशाली 3. मनोहर, प्रिय, अनुघटित होना, बाद में घटित होना,--अनावृष्टिः सुन्दर। संपद्यते लग्ना-पंच०१ 6. नियुक्त करना, अटकाना, लक्ष्य (सं० कृ०) [लक्ष्+ण्यत् 11. देखने के योग्य, (किसी को) धन्धे में लगाना-तत्र दिनानि कतिअवलोकन करने योग्य, दृश्य, अवेक्षणीय, प्रत्यक्ष चिल्लगिष्यन्ति-पंच० 4, 'मुझे कुछ दिन वहाँ लग जानने के योग्य-दुर्लक्ष्यचिह्ना महतां हि वृत्ति:-कि० जायंगे', अव-, जुड़ जाना, चिपक जाना-रघु० 1723 2. संकेतित या अभिज्ञेय (करण के साथ 16668, आ-, जमे रहना,--काव्या० 3150, या समास में)-दूराल्लक्ष्यं सुरपतिधनुश्चारुणा तोर वि-चिपकना, लग जाना, जुड़ जाना। णेन-मेघ०७५, प्रवेपमानाघरलक्ष्यकोपया -कु० 5 / ii (चुरा० उभ०-लागयति-ते) 1. स्वाद लेना 74, रघु० 45, 760 3. ज्ञातव्य या प्राप्य, सुराग 2. प्राप्त करना / लगाने योग्य-कु० 5 / 72, 81 4. चिह्नित या लगड (वि.) लग्+अलच, डलयोः ऐक्यात् ड:] प्रिय, चित्रित किया जाना 5. परिभाषा के योग्य 6. उद्दिष्ट मनोहर, सुन्दर / किये जाने योग्य 7. अभिव्यक्त किया जाना या परोक्ष लगित (भू० क. कृ०) [लग+क्त] 1. जुड़ा हुआ, रूप से प्रकट किया जाना 8. खयाल किये जाने योग्य, चिपका हुआ 2. संबद्ध, अनुसक्त 3. प्राप्त, उपलब्ध। चिन्तनीय,-क्ष्यम् 1. उद्देश्य, निशाना, चिह्न, लगुड़ः, लगुरः, लगुलः [लग+ उलच्, पक्षे लस्य ड:, रः चांदमारी, उर्दिष्ट चिह्न, (आलं० से भी) वा] मुद्गर, छड़ी, लाठी, सोटा। -उत्कर्षः स च धन्विनां यदिषवः सिध्यन्ति लग्न (भू० क० कृ०) [लग्+क्त] 1. जुड़ा हुआ, चिपका लक्ष्ये चले-श० 215, दृष्टि लक्ष्येषु बध्नन् हुआ, सटा हुआ, दृढ़ थामा हुआ-लताविटपे एका-मुद्रा० 12, रघु०११६१, 6 / 11, 9/67, कु० 3147, वली लग्ना-विक्रम० 1 2. स्पर्श करना, संपर्क में 64, 5 / 49 2. निशान, निशानी 3. वस्तु जिसकी आना 3. अनुषक्त, संबद्ध 4. चिपटा हुआ, जुड़ा हुआ, परिभाषा की गई है (विप० लक्षण)-लक्ष्यैकदेशे साथ लगा हुआ 5. काटना, (रेखा आदि का) लक्षणस्यावर्तनमव्याप्तिः-तर्क. 4. परोक्ष या गोण मिलाना 6. ध्यानपूर्वक अनुसरण करना, आसन्न या मर्थ जो लक्षणा शक्ति से प्रतीत हों,-बाच्यलक्ष्यव्यं-] निकटवर्ती 7. व्यस्त, काम में लगा हुआ 8. शुभ HTTER For Private and Personal Use Only Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 867 ) (दे० लग), न: 1. भाट, चारण 2. मदोन्मत्त हाथी, / अधम, निंद्य, तिरस्करणीय - शि० 9 / 26, पंच०१॥ -~-ग्नम् 1. संपर्क बिन्दु, मिथश्छेदन-बिदु, वह बिन्दु 106 6. अशक्त, दुर्बल 7. ओछा, मन्दबुद्धि जहाँ कि क्षितिज और क्रान्ति-वृत्त या ग्रहपथ मिलते ___8. फुर्तीला, चुस्त, चपल, स्फूर्त श० 25 9. - तेज, हैं 2. क्रान्ति वृत्त का बिन्दु जो एक समय क्षितिज द्रुतगामी, त्वरित--किंचित् पश्चात् व्रज लघुगतिः या याम्योतर-रेखा पर होता है 3. वह क्षण जिसमें -- मेघ० 16, रघु० 5 / 45 10. सरल, जो कठिन सूर्य का प्रवेश किसी राशि विशेष में होता है न हो-रघु० 12166 11. सुलभ, सुपाच्य, हलका 4. बारह राशियों की आकृति 5. शुभ या सौभाग्य प्रद (भोजन) 12. ह्रस्व (जैसे कि छन्दः शास्त्र में स्वर) क्षण 6. (अतः) कार्यारंभ का उचित समय / सम० 13. मदु, मन्द, कोमल 14. सुखद, रुचिकर, वांछनीय -अहः, --दिनम्, दिवसः, ---वासरः, शुभदिन ज्योति- - रघु० 11112 80 15. प्रिय, मनोहर, सुन्दर षियों द्वारा (विवाहादि संस्कार के लिए) बताया 16. विशुद्ध, स्वच्छ अव्य० 1. हलकेपन से, क्षुद्रभाव गया शुभ समय, नक्षत्रम् शुभ नक्षत्र,--मण्डलम् से, अनादरपूर्वक 2. शीघ्र, फुर्ती से, लघु लघुत्थिता राशिचक्र,--मासः शुभ महीना,---शुद्धिः (स्त्री.) ----श० 4, सवेरे उठा हुआ', (नपुं०) 1. काला अगर, किसी धर्मकृत्य के अनुष्ठान के लिए बताये गये या विशेष प्रकार का अगर 2. समय की विशेष माप। मुहूर्त की मांगलिकता। सम०----आशिन्,-आहार (वि.) थोड़ा खाने वाला, लग्नकः [ लग्न+कन् ] प्रतिभू, जमानत, वह जो जमानत मितभौजी, मिताहारी,---उक्तिः (स्त्री०) अभिव्यक्ति करे / का संक्षिप्त प्रकार,---उत्थान,- समुत्थान (वि.) लग्निका [लग्न+कन+टाप, इत्वमा निग्निका' का फुर्तीला, द्रुतगति से कार्य करने वाला,काय (वि.) अपभ्रंश रूप, दे० / हलके शरीर वाला, (यः) बकरा,-क्रम (वि०) शीघ्र लघयति (ना० धा० पर०) 1. हलका करना, भार कम पग रखने वाला, जल्दी चलने वाला,-खविका खटोला, करना (शा०)-नितान्तगुर्वी लघयिष्यता धुरम्-रघु० छोटी खाट,---गोधूमः छोटी जाति का गेहूँ,-चित्त, 13135 2. कम करना, घटाना, धीमा करना, न्यून - चेतस्,----मनस्,-हृदय (वि.) 1. हलके मन वाला, करना--विक्रम० 3 / 13, रघु० 11162 3. तुच्छ नीचहृदय, क्षुद्रमन का, कमीने दिल का 2. मन्दबुद्धि समझना, तिरस्कार करना, घृणा करना-कि० 2 / 18, 3. चंचल, अस्थिर,-जङ्गल: लवा पक्षी,- द्राक्षा बिना महत्त्वहीन या नगण्य समझना--कि० 5 / 4, 13138 / बीज का अंगूर, किशमिश, ब्राविन् (वि०) अनायास लधिमन् (पुं०) [लधु+इमनिच् ] 1. हलकापन, भार का पिघल जाने वाला,-पाक (वि०) सुपाच्य,-पुष्पः अभाव 2. लघुता, अल्पता, नगण्यता 3. तुच्छता, एक प्रकार का कदंब का वृक्ष,--प्रयत्न (वि०) 1. (वर्ण ओछापन, नीचता, कमीनापन-मानुषतासुलभो लघिमा आदि) थोड़े से जिह्वाव्यापार से उच्चरित 2. निठल्ला, प्रश्नकर्मणि मां नियोजयति-का० 4. नासमझी, आलसी,-बदरः,-बदरी (स्त्री०) एक प्रकार का छिछोरपन 5. इच्छानुसार अत्यंत लघु हो जाने की बेर,... भवः नीच योनि या क्षेत्र घर में जन्म,-भोजनम् अलौकिक शक्ति, आठ सिद्धियों में से एक / हलका भोजन,-मांसः एक प्रकार का तीतर,-मूलम् लधिष्ठ (वि.) [अयमेषामतिशयेन लघः-इष्ठन् ] हलके समीकरण की राशि का न्यूनतर मूल,--मूलकम् मूली, से हलका, निम्नतम, अत्यंत हलका ('लघु' शब्द की -लयम् एक प्रकार सुगन्धित जड़, खस, वीरणमूल, उ० अ०)। ---- वासस् (वि०) हलके और निर्मल वस्त्र धारण लघीयस् (वि.) [ अयमनयोः अतिशयेन लघुः - ईयसुन् ] करने वाला,--विक्रम (वि०) तेज कदम वाला, शीघ्र अपेक्षाकृत हलका, निम्नतर, बहुत हलका ('लघु' पग उठाने वाला, वृत्ति (वि.) 1. बदचलन, नीच, शब्द की उ० अ०)। दुष्ट 2. क्षुद्र, मंदबुद्धि, कुव्यवस्थित, दुर्वत्त,-वेषिन् लघु (वि०) (स्त्री०-घु,---घ्वी) [लधेः कुः नलोपश्च ] (वि०) बारीक निशाना लगाने वाला, हस्त (वि.) 1. हलका, जो भारी न हो---तणादपि लघुस्तूलस्तू- ----स्तः (वि.) 1. हलके हाथ का, चतुर, दक्ष, विशेलादपि च याचकः-सुभा०, रिक्तः सर्वो भवति हि षज्ञ रघु० 9 / 63 2. सक्रिय, फुर्तीला, (स्तः) लघुः पूर्णता गौरवाय--मेघ० 20 (यहाँ शब्द का विशेषज्ञ या कुशल धनुर्धर / / अर्थ 'तिरस्करणीय' भी है) रघु० 9 / 62 2. तुच्छ, लघुता, त्वम् [लघु+तल+टाप् लघु+त्व वा] अल्प, न्यून--पंच० श२५३, शि० 9 / 38, 78 1. हलकापन, ओछापन 2. छोटापन, थोड़ापन 3. नग3. ह्रस्व, संक्षिप्त, सामासिक - लघुसंदेशपदा सरस्वती प्यता, महत्त्वहीनता, तिरस्कार, मर्यादा का अभाव ----रघु० 877 4. क्षुद्र, तृणप्राय, नगण्य, महत्त्वहीन -~~-इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितंर्गुणः 4. अप--- कायस्थ इति लघ्वी मात्रा-मुद्रा० 1 5. नीच, मान, निरादर-पंच० 1 / 140, 353 5. क्रिया मस एका For Private and Personal Use Only Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 868 ) शीलता, फुर्ती 6. संक्षेप, संक्षिप्तता 7. सुगमता, --- रघु० 3 / 48 1. उपवास करवाना 10. चमकना सुविधा 8. नासमझी, निरर्थकता 1. स्वेच्छाचारिता। 11. बोलना, अभि , 1. परे चले जाना, ऊपर से लघ्वी [लघु+कोष] 1. कोमलांगिनी स्त्री 2. हलकी छलांग लगा देना 2. उल्लंघन करना, अतिक्रमण गाड़ी-शि० 12 // 24 / करना, अवज्ञा करना, उद्----, 1. पार जाना, पार कर लका [लक+अच, मुम् च] 1. रावण का निवास और लेना, परे चले जाना—शि० 774 2. सवारी करना राजधानी, वर्तमान सीलोन टापू या तद्वर्ती राजधानी चढ़ना 3. उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना- मुद्रा० उस समय की लंका है; परन्तु कुछ विद्वानों के मता- 1010, शि० 12157, वि-, 1. पार जाना, उछलकर नुसार वह लंका सीलोन के वर्तमान टापू से कहीं पार करना, यात्रा करना-निवेशयामास विलचिताध्वा अधिक बड़ी थी। मूलरूप से यह माल्यवान् के लिए -रघु० 5 / 42, 16 // 32, शि० 12 / 24 2. उल्लंघन बनाई गई थी 2. व्यभिचारिणी स्त्री, रंडी, वेश्या करना, अतिक्रमण करना, बाहर कदम रखना, अवहेलना 3. शाखा 4. एक प्रकार का अनाज। सम०-अधिपः, करना, उपेक्षा करना-गन्तुं प्रवृते समयं विलध्य कु. -अधिपति,-ईशः,-ईश्वरः,-नाथः, . पति लंका 5 / 25, रघु० 5 / 483. औचित्य की सीमा का उल्लंघन का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण,—अरिः राम करना--रघु० 9 / 74 4. उठाना, चढ़ना, ऊपर जाना का विशेषण,-वाहिन् (पुं०) हनुमान् का विशेषण / —कि०५।१, ने०५२5. छोड़ देना, परित्याग करना लड्खनी [लव+ल्युट+डीप] लगाम की वल्गा (लोहे का एक ओर फेंक देना-मनोबबन्धान्यरसान् विलध्य सा बना वह भाग जो मुंह में रहता है), मुखरी। -रघ० 3 / 4 6. आगे बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना- इति लगः [ला+अच्] 1. लंगड़ापन 2. संघ समाज 3. प्रेमी, कर्णोत्पलं प्रायस्तव दृष्टया विलध्यते---काव्या० जार (उपपति)। 2 / 224 7. उपवास कराना / लगूलम् [लङ्ग +ऊलच् पृषो०] जानवर की पूंछ, तु० | लङ्घनम् लध+ल्युट] 1. छलांग लगाना, कूदना 2. उछल 'लांगूलम्' से। कर चलना, यात्रा करना, पार जाना, चलना, गतिशील लषु (भ्वा० उभ० लचति-ते, लधित, इच्छा० लिल होना .....यूयमेव पथि शीघ्रलधना:-घट० 8 3. सवारी अधिषति-ते) 1. उछलना कूदना, छलांग लगाना करना, चढ़ना, उठना (आलं. से भी) नभोलङ्घन 2. सवारी करना, चढ़ना- अन्ये चालद्धिषुः शलान् -रघु० 16133, जनोऽयमुच्चैः पदलङ्धनोत्सुक:-कु. -भट्रि० 15/32 3. परे चले जाना, अतिक्रमण 5 / 64, उच्चपद प्राप्त करने को इच्छुक 4. धावा करना--लङ्घते स्म मुनिरेष विमानिन्-० 5 / 4 बोलना, एकाएक आक्रमण द्वारा दुर्गादि हथिया लेना, उपवास करना, अनशन करना 5. सूखना, सूख जाना अधिकार में कर लेना-जैसा कि 'दुर्गलधनम् में 5. आगे (पर०) 6. झपट्टा मारना, आक्रमण करना, खा बढ़ना, परे चले जाना, बाहर कदम रखना, उल्लंघन, जाना, क्षति पहुंचाना-पल्लवान् हरिणो लधितुमाग अतिक्रमण 'आज्ञालङ्घन नियमलङ्घनम्' आदि 6. अवच्छति-मालवि०४,प्रेर० या चुरा० उभ० (लघयति हेलना करना, घृणा करना, तिरस्कार पूर्वक व्यवहार -ते) 1. ऊपर से कूद जाना, छलांग लगा देना, परे करना, अपमान करना-प्रणिपातलङ्घनं प्रमाष्टुंकामा जाना-सागरः प्लवगेन्द्रेण क्रमेणकेन लङ्घित:-महा०, ---वि० 3, मालवि० 3 / 22 7. अन्यायाचरण, मानमनु० 4 / 38 2. तय कर लेना, चल कर पार कर हानि, अपमान 8. अनिष्ट, क्षति, जैसा कि आतपललेना (दूरी आदि) रघु० 247 3. सवारी करना, ङ्घनम् में दे० 9. उपवास करना, संयम शि०१२।२५ चढ़ना-रघु० 4 / 52 4. उल्लंघन करना, अतिक्रमण (यहाँ इसका अर्थ छलांग भी होता है) 10. घोड़े का करना, अवज्ञा करना --रघु० 9 / 9 याज्ञ० 2 / 187 एक कदम। 5. रुष्ट करना, अपमान करना, निरादर करना, लधित (भू० क० कृ०) [लङ्घ+पेत ] 1. ऊपर से कूदा उपेक्षा करना-हस्त इव भूतिमलिनो यथा यथा लंघय- हुआ पार गया हुआ 2. यात्रा द्वारा पार किया हआ ति खल: सुजनम्, दर्पणमिव तं कुरुते तथा तथा निर्मल- 3. अतिक्रान्त, उल्लंघन किया हुआ4. अबज्ञात, अपमाच्छायम् --वास. 6. रोकना, विरोध करना, ठहराना, नित, अनादृत (दे० 'लङ्घ') / टालना, हटाना --भाग्यं न लङ्घयति कोऽपि विधि- लछ् (भ्वा० पर० लच्छति) चिह्न लगाना, देखना, तु० प्रणीतम् -सुभा०, मृच्छ०६।२ 7. आक्रमण करना, झपट्टा मारना, क्षतिग्रस्त करना, चोट पहुंचाना-रघु० लज् / (तुदा० आ० लज्जते) लज्जित होना। 11292 8. आगे बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना, अपेक्षा- ii (भ्वा० पर० लजति) कलंकित करना आदि, दे० कृत अधिक चमकना, ग्रहणग्रस्त करना,-(यशः) जग- 'लज' भ्वा०। प्रकाशं तदशेषमिज्यया भवद्गुरुर्लधयितुं ममोद्यतः / iii (चुरा० पर० लजयति) 1. दिखाई देना, प्रतीत For Private and Personal Use Only Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होना, चमकना 2. ढकना, छिपाना (कुछ विद्वानों के | होता है-उदा० किं वा वर्णनया समस्तलटभाल मतानुसार इसी अर्थ में 'लाजयति' रूप भी बनता है)। कारतामेष्यति-८०८६, अनर्घ्यलावण्यनिधानभूमिर्न लज्ज (तुदा० आ० लज्जते लज्जित) लज्जित होना, शर्मिदा कस्य लोभ लटभा तनोति---९।६८ केशबन्धविभवर्लटहोना। भानां पिण्डतामिव जगाम तमिस्रम् 11318 / लज्जका [लज्ज+अच्+कन्+टाप् ] जंगली कपास का | लट्टः (पुं०) दुष्ट, बदमाश, दे० 'लटक'। पौधा। लदवः [लटे: क्वन्] 1. घोड़ा 2. नाचने वाला लड़का लज्जा लिज्ज-अ+टाप्] 1. शर्म-कामातुराणां न भयं 3. एक जाति का नाम,-ट्वा 1. एक प्रकार का पक्षी न लज्जा-सुभा०, विहाय लज्जाम् - रघु० 140, 2. मस्तक पर बालों का घूघर, अलक 3. चिड़िया, कु० 1148 2. शर्मीलापन, विनय --शृङ्गारलज्जां गोरैया 4. एक प्रकार का वाद्ययन्त्र 5. एक खल निरूपयति-श० 1, कु० 3 / 7, रघु० 7 / 25 3. छुईमुई 6. जाफ़रान, केसर 7. व्यभिचारिणी स्त्री। का पौधा / सम०-अन्वित (वि०) विनयशील, लडi (भ्वा० पर० लडति) खेलना, क्रीडा करना, हावशर्मीला,-आवह,--कर (वि०) (स्त्री०--रा,-री) भाव दिखलाना। लज्जाजनक, शर्मनाक, अकीर्तिकर, कलंकी, शील ii (म्वा० पर०, चुरा० पर० लडति, लड़यति) (वि०) शर्मीला शालीन,-रहित-शून्य,-हीन (वि०) 1. फेंकना, उछालना 2. कलंक लगाना 3. जीभ लपनिर्लज्ज, ढीठ, बेहया। लपाना 4. तंग करना, सताना / लज्जालु (वि०) [लज्जा+आलुच् ] विनयशील, शर्मीला iii (चुरा० उभ० लाडयति-ते) 1. लाड प्यार पुं०, स्त्री० छुईमुई का पौधा / / करना, पुचकारना, दुलारना 2. सताना / लज्जित (भू० क० कृ०) [लज्ज+क्त ] 1. विनयशील, लडह (वि०) [प्राकृत शब्द सुन्दर, मनोहर / शर्मीला 2. लजाया हुआ, शर्मिदा। लडु=लटक दे। लi (म्या० पर० लजति) 1. कलंक लगाना, निन्दा | लड्डु, लड्डुकः (पुं०) एक प्रकार की मिठाई, लड्ड, करना, बदनाम करना 2. भूनना, तलना / मोदक (चीनी, आटा, घी आदि पदार्थों को मिलाकर (चुरा० उभ० लञ्जयति-ते) 1. क्षतिग्रस्त करना, बनाये हुए गोल गोल पिंड)।। प्रहार करना, मार डालना 2. देना 3. बोलना | लण्ड (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० लण्डति, लण्डयति-ते) 4. सबल या शक्तिशाली होना 5. निवास करना, 1. ऊपर को उछालना, ऊपर की ओर फेंकना 6. चमकना। 2. बोलना। लञ्जः [ल +अच] 1. पैर 2. घोती की लांग या किनारा | लण्डम् [लण्ड+घा] विष्ठा, मल / जो पीछे कमर में टांग लिया जाता है—तु० कक्षा | लण्डः [संभवतः फ्रेंच भाषा के लौंड्रेज़ ( Lordres) शब्द 3. पंछ / / का आधुनिक रूप] लन्दन / लज्जा लिञ्ज+टाप्] 1. चार 2. व्यभिचारिणी स्त्री | | लता [लत् - अच् +टाप्] 1. बेल, फैलने वाला पौधा 3. लक्ष्मी का नामान्तर निद्रा। . लताभावेन परिणतमस्या रूपम् - विक्रम० 4, लतेव लजिका [ल- बुल+टाप, इत्वम्] रण्डी, वेश्या / संनद्धमनोज्ञपल्लवा रघु० 3 / 7, (विशेष रूप से लट (भ्वा० पर० लटति) 1. बालक बनना 2. बालकों 'भजा' 'भौं बिजली' आदि अर्थों को प्रकट करने की तरह व्यवहार करना 3. बच्चों की भांति तोतली वाले शब्दों के साथ समास के अन्त में, सौन्दर्य, बातें करना, तुतलाना 4. क्रन्दन करना, रोना। कोमलता तथा पतलेपन को प्रकट करने के लिए लटा लट् |-अच्] 1. मूर्ख, बुद्ध 2. त्रुटि, दोष 3. लुटेरा / प्रयोग- भुजलता. बाहुलता, भ्रूलता, विद्युल्लता, इसी लटकः [लट् ---क्वन्] ठग, बदमाश, पाजी, दुष्ट / प्रकार खङ्ग, अलक आदि, तु०, कु० 2064, मेघ. लटभ (वि०) [प्राकृत 'लडह' शब्द से संबद्ध, स्वयं 'लडह' 47, श० 3.15, रघु० 9 / 45) 2. शाखा 3. प्रियंगु शब्द भी इस 'लटभ' से ही बना प्रतीत होता है। लता 4. माधवी लता 5. कस्तूरी लता 6. हंटर या कोड़े लावण्यमय, मनोहर, सुन्दर, आकर्षक, प्रिय,-अति- का सड़ाका 7. मोतियों की लड़ी 8. सुकुमार स्त्री। कान्तः कालो लटभललनाभोगसुलभः-भर्त० 3 / 32, सम०--अन्तम् फूल,-- अम्बुजम् एक प्रकार की ककड़ी, (यहाँ भाष्यकार 'लटभ' का अर्थ 'सलावण्य' करते -----अर्कः हरा प्याज, * अलकः हाथी,- आननः नाचते है), तस्याः पादनखश्रेणिः शोभते लटभभ्रवः समय हाथों की विशेष मुद्रा,-उद्गमः लता का ऊपर -- विक्रमांक० 8 / 6, बिल्हण ने इस शब्द को इसी को चढ़ना,--करः नाचते समय हाथों की विशेष मुद्रा, पुस्तक में और तीन स्थानों पर प्रयुक्त किया है जहाँ - कस्तूरिका, कस्तूरी कस्तूरी की बेल, - गहः, इसका अर्थ 'तरुणी स्त्री' या 'सुन्दरी स्त्री' प्रतीत / -हम् लतागृह, लताकुंज-कु० 4 / 41, -जिहः, For Private and Personal Use Only Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -रसनः साँप,-तरः 1. साल का वृक्ष 2. संतरे का। जिसे (कार्य के लिए) क्षेत्र मिल गया है-लब्धावपेड़, .. पनसः तरबूज,---प्रतानः लतातन्तु- रघु० 218, काशा मे प्रार्थना -- श०१ 3. जिसने फुरसत प्राप्त -भवनम् लतागृह, लताकुंज, - मणिः मूंगा,- मण्डपः करली है, जिसे अवकाश का समय मिल गया है, लताकुंज लतागृह,-मृगः बन्दर,-- यावकम् अंकुर, इसी प्रकार 'लब्धक्षण',-आस्पद (वि०) जिसने कहीं अंखुवा, --वलयः,-यम् लताकुंज, ... वृक्षः नारियल पैर जमा लिया है, या कोई पद प्राप्त कर लिया है का पेड़, - वेष्ट: एक प्रकार का रतिबंध, संभोग का -- मावि० 1117, उदय (वि०) 1. जन्मलिया प्रकार,-वेष्टनम्,-वेष्टितकम् आलिङ्गन का प्रकार। हुआ, उत्पन्न, उदित - लब्धोदया चांद्रमसीव लेखा लतिका [लता+कन्-टाप, इत्वम् ] 1. छोटी लता, बेल - कु० 125 2. समृद्धिशाली, या उन्नत--स त्वत्तो 2. मोतियों की लड़ी। लब्धोदयः 'उसकी उन्नति तुम्हारी बदौलत हुई', लसिका [लत्+तिकन्+टाप] एक प्रकार की छिपकली। -काम (वि०) जिसे अभीष्ट पदार्थ मिल गये है लप (भ्वा० पर० लपति) 1. बोलना, बातें करना 2. चायें कोति (वि.) विश्रुत, प्रसिद्ध विख्यात,-चेतस्,-संज चाय करना, ची ची करना 3. कानाफूसी करना--. (वि.) जिसे होश आ गया है, जिसकी बेहोशी दूर कपोलतले मिलिता लपितुं किमपि श्रुतिमूले ..गीत. हो गई है,- जन्मन् (वि.) उत्पन्न, पैदा,-नामन 1, प्रेर०-(लापयति-ते) बातें करवाना, अनु , ---- शब्द (वि०) विश्रुत, विख्यात, * नाशः प्राप्त की दोहराना, बार बार बातें करना, अप-,मुकरना, हुई वस्तु का नाश - लम्धनाशो यथामृत्युः, -प्रशमनम् स्वीकार नहीं करना, इन्कार कर देना-शतमपलपति 1. प्राप्त की हुई वस्तु को सुरक्षापूर्वक रखना ---सिद्धा. 2. छिपाना, ढकना, आ-, 1. बातें 2. सुपात्र को दान या धनसमर्पण --मनु० 756 पर करना, वार्तालाप करना 2. बातें करना बोलना कुल्लू, लक्ष,-क्ष्य (वि.) 1. जिसने ठीक निशाने 3. चायं चायं करना, ची ची करना, उद्-, पर आघात किया है 2. अस्त्र प्रयोग में कुशल,--वर्ण जोर से पुकारना, प्र.-, 1. बातें करना, बोलना (वि०) विद्वान्, बुद्धिमान - चित्रं त्वदीये विषये -बचो दै देहीति (वैदेहीति) प्रतिपदमुदश्रु समन्तात सर्वेऽपि लोकाः किल लब्धवर्णाः-राजप्र० प्रलपितम् --सा० द० 6 2. यं ही बोलना, असंगत 2. प्रसिद्ध, विश्रुत, विख्यात -मच्छ० 4 / 26, भाज बातें करना, चायं चायं करना, चीं चीं करता, बक (वि.) विद्वानों का आदर करने वाला--कृच्छबक करना, निरर्थक बातें करना, वि-,1. कहना, लब्धमपि लब्धवर्णभाक तं दिदेश मनये सलक्ष्मणम् बोलना 2. विलाप करना, शोक मनाना, क्रन्दन . रघु० १११२,-विद्य (वि०) विद्वान् शिक्षित, करना, रोना - विललाप विकीर्णमुर्धजा कु० 4 / 4, बुद्धिमान्, सिद्धि (वि.) जिसने अभीष्ट पदार्थ विललाप स बाष्पगद्गदं -रघु० 8 / 43, 70, भट्टि० (सफलता) या पूर्णता प्राप्त कर ली है। 6 / 11, तामिह वृथा कि विलपामि गीत०३, विप्र-, लब्धिः (स्त्री०) [लभ+क्तिन् ] 1. अभिग्रहण, प्राप्ति, झगड़ा करना, विरोध करना, वादविवाद करना, अवाप्ति 2. लाभ, फायदा 3. (गणि० मे) भजनफल / तू तू मैं मैं करना, सम् -, 1. बातें करना, वार्तालाप लम्ध्रिम (वि.) [लभ --त्क्रि, मप् ] प्राप्त, अवाप्त, करना संलपतो जनसमाजात्- दश० 2. नाम लना, / उपलब्ध। पुकारना। लभ् (भ्वा० आ० लभते, लब्ध) 1. हासिल करना, प्राप्त लपनम् [लप्+ ल्युट्] 1. बातें करना, बोलना 2. मुख। करना, उपलब्ध करना, अवाप्त करना लभेत सिकलपित (भू० क० कृ०) [लप्-न-क्त] बोला हुआ, कहा तासु तैलमपि यत्नतः पीडयन् - भर्त० 215, चिराय' हुआ, चीं चीं किया हुआ, तम् वाणी, आवाज।। याथार्थ्यमलम्भि दिग्गजैः -शि०११६४, रघु० 9 / 29 लब्ध (भू. क. कृ०) लभ्+क्त] 1. हाशिल किया, 2. रखना, अधिकार में लेना, कब्जे में होना 3. लेना, प्राप्त किया, अवाप्त 2. लिया, प्राप्तकिया 3. प्रत्यक्ष- प्राप्त करना 4. पकड़ना, लेना, दबोचना- रघु० 23 ज्ञान प्राप्त किया, बोध पाया 4. उपलब्ध किया 5. मालूम करना, मुकाबला होना यत्किचिल्लभते (भाग आदि से), दे० लभब्धम् जो प्राप्त कर पथि 6 वसूल करना, उगाहना 7. जानना, सीखना, लिया गया, या सुरक्षित हो गया - लब्धं रक्षेदवक्षयात् प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, समझना - भ्रमणंगमनादेव हि० 218, रघु० 19 / 3 / सम--अन्तर (वि०) लभ्यते - भाषा० 6, सत्यमलभमान-- मनु० 8 / 169 1. जिसने कोई अवसर प्राप्त कर लिया है 2. जिसकी पर कुल्ल0 8. (किसी बात को करने के) योग्य होना कहीं पहंच हो गई है या प्रवेश मिल गया है . रघु० ('तुमुन् के साथ) .. मर्तुमपि न लभ्यते, नाधर्मों 1617, ---अवकाश, * अवसर (वि०) 1. जिसे किसी लभ्यते कर्तुं लोके वैद्याधरे (संज्ञाशब्दों के साथ प्रयुक्त बात का अवसर मिल गया है 2. (कोई भी बात) / होकर 'लभ' के अर्थों में तदनुकूल परिवर्तन हो जाता For Private and Personal Use Only Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (871 ) है, उदा० गर्भलभ् गर्भवती होना, गर्भ धारण करना, / लमकः [रभ् + क्वुन्, रस्य लत्वम्] प्रेमी, जार (उपपति)। पदं लभ, आस्पदं लभ पर जमाना, प्रभाव रखना, | लम्पट (वि.) [रम+अटन, पुक, रस्य ल:] 1. लालची, दे० 'पद' के नीचे, आन्तरं लभ पग रखना, प्रविष्ट लोलप, लालायित 2. विषयी, विलासी, कामुक, होना,—लेभेऽन्तरं चेतसि नोपदेशः --- रघु० 6 / 66, मन व्यसनी, इन्द्रियपरायण, -टः स्वेच्छाचारी दुश्चरित्र, पर प्रभाव नहीं पड़ा, चेतना लभ-.,संज्ञां लभ होश में दुराचारी ('लम्पाक' शब्द भी इसी अर्थ में) / आना, जन्म लभ पैदा होना,-कि० 5 / 43, वर्शन लभ | लम्फः (लम्फ+धन] कूद, उछाल, छलांग / भेंट होना, साक्षात्कार होना, दर्शन करना स्वास्थ्य लम्फनम् [लम्फ+ल्युट्] कूदना, उछलना / लभ स्वस्थ होना, आराम में होना)-प्रेर० (लम्भयति -ते) 1. प्राप्त करवाना, लिवाना कि० 258 लम्बू (म्वा० आ० लम्बते, लंवित) 1. लटकना, टांगना, 2. देना, प्रदान करना, अर्पण करना .-मोदकशरावं दोलायमान होना ऋषयो पत्र लम्बन्ते / महा० माणवकं लम्भय-विक्रम० 3 3. कष्ट उठाना 4. प्राप्त 2. अनषक्त होना, चिपकना, सहारा लेना, आश्रित करना, लेना 5. मालम करना, खोजना- इच्छा० होना-ललम्बिरे सदसि लताः प्रिया इव - शि० 775, (लिप्सते प्राप्त करने की इच्छा करना, प्रबल लालसा प्रस्थानं ते कथमपि सखे लम्बमानस्य भावि-मेष. रखना–अलब्धं चैव लिप्सेत-हि. 268, आ-, 41 (यहां लं. का अर्थ है 'नीचे लटकता हुआ' या 1. स्पर्श करना -- गामालभ्यार्कमीक्ष्य वा--मनु० 5 / 'कूल्हों का सहारा लिये हुए') 3. नीचे जाना, बना, 87, भट्टि० 14191 2. प्राप्त करना, हासिल करना, (सूर्य आदि का) अस्त होना या बना, नीचे गिरना पहुँचना--येन श्यामं वपुरतितरां कान्तिमालप्स्यते - लम्बमाने दिवाकरे-शि० 9130, कि० 9 / 1, स्वदते-मेघ०१५ (पाठान्तर) 3. मार डालना, (यज्ञ घरचुम्बनलम्बितकज्जलमज्ज्वलय प्रियलोचने गीत. में पशु का बलिदान करना-गर्दभं पशुमालभ्य याज्ञ. 12 (=गलित) 4. पीछे गिरना या पड़ना, पिछड़ना 31280, उप--, 1. जानना, समझना, देखना, प्रत्यक्ष 5. विलंब करना, ठहरना 6. ध्वनि करना प्रेर० ज्ञान प्राप्त करना-पंच० 1176 2. निश्चय करना, (लम्बयति-ते), 1. हराना, नीचे लटकाना 2. ऊपर मालूम करना -ब्रूहि यदुपलब्धम् --उत्तर० 1, तत्त्वत लटकाना, स्थगित करना 3. बिछाना, (हाथ आदि) एनामुपलप्स्ये-श० 1 3. हासिल करना, प्राप्त फैलाना - करेण वातायनलम्बितेन- रघु० 13121, करना, अवाप्त करना, उपभोग करना, अनुभव प्राप्त को लम्बयेदाहरणाय हस्तम् ६७५,अव-, लटकना, करना उपलब्धसुखस्तदा स्मरं वपुषा स्वेन नियोज लटकाना, स्थगित होना--कनकशृङ्खलावलम्बिनी यिष्यति--कु० 4142, विक्रम० 2010, रघु० 8182, ... मुद्रा०२ 2. नीचे डूब जाना, उतरना 3. थामना, 1012, 18 / 21, मनु० 11117, उपा' , 1. कलंक जुड़ना, झुकना या सहारा लेना, पालनपोषण करना लगाना, बुरा भला कहना, चुभती बात कहना, -- दण्डकाष्ठमवलम्ब्य स्थित: --श० 2, ययो तदीयाखरी खोटी सुनाना पयोधरविस्तारयितृकमात्मनो मवलम्व्य चाङ्गुलिम-रघु 3 / 25 4. थामना, संभालना, यौवनमुपालभस्व मां किमुपालभसे -- श० 1, कु० 5 / पालनपोषण करना, जीवित रहना (आलं. से भी) 58, रघु० 7144, शि०९।६०, प्रति-, 1. वसूल ले लेना - हस्तेन तस्थावलम्व्य वासः - रघु 719, कु० करना, फिर से उपलब्ध करना 2. हासिल करना, 3155, 668, हृदयं न त्ववलम्बितुं क्षमाः-रघु० प्राप्त करना, विप्र---, 1. ठगना, घोखा देना, आँख में 8160 5. निर्भर रहना, टिकना-व्यवहारोऽयं चारधूल झोंकना 2. वसूल करना, फिर से प्राप्त करना दत्तमवलम्बते मृच्छ० 9, भट्टि 18141 6. सहारा 3. अपमान करना, अनादर करना, सम्- हासिल लेना, आश्रय लेना, भरोसा करना, धर्यमवलम्ब्र्य करना। या साहस से काम लेना,-कि स्वातन्त्र्यमवलम्बसे-श० 5, माध्यस्थ्यमिष्टेऽश्यवलम्बतेऽर्थे-कु. 1152, शि० लभनम् [लभ् + ल्य] 1. हासिल करने की क्रिया, प्राप्त करना 2. प्रत्यय (पहचानने) की क्रिया / 2 / 15, आ-, 1. आराम करना (किसी के सहारे) झकना 2. लटकना, स्थगित होना विक्रम० 5 / 2, लभसःलभ+असच्] 1. दौलत, धन 2. जो निवेदन करता 3. हथियाना, पकड़ना-अथालम्ब्य धनू रामः-भट्टि. है, निवेदक, सम, घोड़े को बांधने की रस्सी (पं० भी)। 635, 14 / 95 4.पालनपोषण करना, थामना, उत्तर लभ्य (वि.) लिभ कर्मणि यत्] 1. प्राप्त होने के योग्य, दायित्व लेना-आधोरणालम्बितं-रघु० 18139 पहुँचने के योग्य अवाप्त होने या प्राप्त करने के योग्य 5. निर्भर होना-तमालम्व्य रसोद्गमान-सा०६०६३ - प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्वाहुरिव वामनः . रघु० 6. सहारा लेना, आसरा लेना, हाथ पकड़ना, धारण 123, 4188 कु. 5 / 18 2. मिलने के योग्य -- कु. करना--अमुमेवार्थमालम्ब्य न जिजीविषाम-मुद्रा. 1140 3. योग्य, उपयुक्त, उचित 4. सुबोध / 2 / 20, कि० 17134, उद्-खड़ा होना, सीधा खड़ा For Private and Personal Use Only Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 872 ) होना,-पादेनकेन गगने द्वितीयेन च भतले, तिष्ठाभ्य- ] लय (भ्वा० आ० लयते) जाना, हिलना-जुलना। ल्लम्बितस्तावद्यावत्तिष्ठति भास्करः -- मृच्छ० 2 / 10 | लयः [ली-अच्] 1. चिपकना, मिलाप, लगाव 2. प्रच्छन्न, वि-, 1. लटकाना, लटकना, स्थगित होना- रघु० छिपा हुआ 3. संगलन, पिघलना, घोल 4. अदर्शन, 10162 2. अस्त होना, क्षीण होना (सूर्यादि का) विघटन, बुझाना, विनाश, लयं या विघटित होना, 3. ठहरना, पिछड़ना, रह जाना- कु. 713, नष्ट होना 5. मन की लीनता, गहन एकाग्रता अनन्य 4. देर करना, मन्दगति होना-विलम्बितफलः कालं भक्ति (किसी भी पदार्थ के प्रति -पश्यन्ती शिवरूपिणं निनाय स मनोरथ:-रघु०१३३, कि विलम्ब्यते त्वरितं लयवशादात्मानमभ्यागता-मा० 5 / 2, 7, ध्यानलयेन तं प्रवेशय--उत्तर०१। ---गीत० 4 6. संगीत की लय (तीन प्रकार की लम्ब (वि०) लिम्बू+अच्] 1. नीचे की ओर लटकता -- द्रुत, मध्य और विलंबित)-किसलयः सलयरिव हुआ, झूलता हुआ, लम्बमान, दोलायमान-पाण्डयो- पाणिभिः--रघु० 9 / 35, पादन्यासो लयमनुगतः ऽयमंसापितलम्बहारः-रघु० 6 // 60, 84, मेघ ---मालवि० 29 7. संगीत में विश्राम 8. आराम 84 2. लटकता हुआ, अनुषक्त 3. बड़ा, विस्तृत 9. विश्राम स्थान, आवास, निवास ---अलया-शि० 4. विस्तीर्ण 5. लंबा, ऊँचा,-बः 1. लम्बमापक 4 / 57, 'कोई स्थिर निवास न रखते हुए, घूमते हुए' 2. सह-अक्ष-रेखा, किसी स्थान के ऊर्ध्वबिन्दु और ध्रुव- 10 मन की शिथिलता, मानसिक अकर्मण्यता बिन्दु का मध्यवर्ती चाप, अक्षरेखा का पूरक / सम० 11. आलिंगन / सम० -आरम्भः, आलम्भः पात्र, --उबर (वि०) बड़े पेट वाला, तोंदवाला, स्थूलकाय अभिनेता, नर्तक, कालः (सृष्टि का) प्रलयकाल,-गत भारीभरकम (र.) 1. गणेश का नामांतर 2. भोजन (वि०) विघटित, पिघला हुआ,-पुत्री नटी, अभिनेत्री, भट्ट,-ओष्ठः (लम्बो-बी-ष्ठः) ऊँट,-कर्णः 1. गधा, नर्तकी। 2. बकरा 3. हाथी 4. बाज, शिकरा 5. पिशाच, लयनम [लो-ल्यट] 1. अनुषक्त होना, जुड़ना, चिपकना राक्षस,-जठर (वि०) मोटे पेट वाला, भारीभरकम, 2. विश्राम, आराम 3. विश्रामस्थल, घर / ---पयोधरा वह स्त्री जिसके स्तन भारी हों और | लब (म्वा० पर० लर्बति) जाना, हिलना-जुलना / नीचे को लटकते हों,---स्फिच (वि.) जिसके नितंबल (स्वा० उभ० ललति-ते) खेलना. भारी और उभरे हुए हों। इठलाना, किलोल करना-पनसफलानीव वानरा लम्बकः लिम्ब-कन] (ज्या० में) 1. लंबरेखा 2. अक्षरेखा ललन्ति-मृच्छ०८1८, गजकलभा इव बन्धुला ललामः का पूरक, (ज्यों में) सह-अक्षरेखा। 4 / 28 / लम्बनः लम्ब्+ल्युट] 1. शिव का विशेषण 2. कफ-प्रधान ii (चरा० उभ० या प्रेर० लालयति--ते, लालित) प्रकृति, -नम् 1. नीचे लटकना, निर्भर रहना, उतरना खेलने की प्रेरणा देना, पुचकारना, लाड-प्यार करना, आदि 2. झालर 3. (चन्द्रमा के) देशान्तर में स्थान- दुलार करना, प्रेमालिंगन करना- लालने बहवो "भ्रंश 4. एक प्रकार का लंबा हार। दोषास्ताडने बहवो गणाः, तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च लम्बा [लम्ब+टाप] 1. दुर्गा का विशेषण 2. लक्ष्मी का ताडयेन्न तु लालयेत्-सुभा०—कु. 5 / 15 2. इच्छा विशेषण। करना। लम्बिका [लम्ब्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्] कोमल तालुका | iii (चुरा० उभ० लालयति-ते) 1. लाडप्यार लटकता हुआ मांसल भाग, उपजिह्वा, कण्ठ के अन्दर करना, मृच्छ० 4 / 28 2. जीभ लपलपाना 3. इच्छा का कौवा। करना। लम्बित (भू० क० कृ०) लिम्ब--क्त) 1. नीचे लटकता लल (वि.) लल+अच] 1. क्रीडासक्त, विनोद प्रिय हुआ, झूलता हुआ 2. स्थगित 3. डूबा हुआ, नीचे गया। 2. लपलपाने वाला 3. अभिलाषी, इच्छुक। सम० हुआ 4. सहारा लिये हुए, अनुषक्त (दे० लम्ब्) / -जिह्व=ललजिह्व, जीभ से लपलप करने वाला। लम्बुषा (स्त्री०) सात लड़ियों का हार। ललत् (वि.) [लल+शतृ] 1. खेलने वाला, विहार करने लम्भः [लभ् +घा नुम्] 1. सिद्धि, अवाप्ति 2. मिलन वाला 2. लपलपाता हुआ। सम-जिह्व (वि.) 3. पुनः प्राप्ति 4. लाभ / (ललज्जिह्व) 1. जीभ से लपलपाने वाला 2. बर्वर, लम्भनम् लभ् + ल्युट, नम्] 1. सिद्धि, अवाप्ति 2. पूनः भीषण (हः) 1. कुत्ता 2. ऊँट / प्राप्ति / ललनम् [लल् + ल्युट] 1. क्रीडा, खेल, आमोद, रंगरेली लम्भित (भू. क. कृ.) [लभ+क्त, नम] 1. उपाजित, 2. जीभ बाहर निकालना। हासिल, णप्त 2. दत्त, 3. सुधारा हुआ 4. नियुक्त, | ललना [लल+णिच् + ल्युट्+टाप्] स्त्री, शठ नाकलोकप्रयुक्त 5. संयोया 6. कहा गया, संबोधित / ललनाभिरविरतरतं रिरंससे--शि० 15488 For Private and Personal Use Only Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. स्वेच्छाचारिणी स्त्री 3. जिह्वा / सम० --प्रियः। चारी, विषयासक्त 3. प्रिय, सुन्दर मनोहर, प्रांजल, कदंब का पेड़। - सलीलाललितललितज्योत्स्नाप्रायरकृत्रिमविभ्रमः ललनिकाललना+कन+टाप इत्वमा छोटी स्त्री, अभागी (अंगकैः) उत्तर० 120, विधाय सृष्टिं ललितां स्त्री-काव्या० 3150 / विधातुः- रघु० 6 / 37, 19439, 811, मा० 1115, ललन्तिका [लल+शतु+की+कन्+टाप्, ह्रस्वः ] कु० 375, 6 / 45, मेघ० 32,64 4. सुहावना, __ 1. लंबी माला 2. छिपकली। लावण्यमय, रुचिकर, बढ़ियां-प्रियशिष्या ललिते ललाकः [लल+आकन्] पुरुष का लिंग, जननेन्द्रिय / कलाविधी-रघु०८।६७, संदर्शितेव ललिताभिनयस्य ललाटम् [लड़+अच् डस्य लः, ललमटति अट्+अण् वा] शिक्षा-मालवि० 4 / 9, विक्रम० 2118 5. अभीष्ट मस्तक -लिखितमपि ललाटे प्रोज्झितुं कः समर्थः 6. मृदु, कोमल -- शि० 7 / 64 7. थरथराता हुआ, -हि० श२१, नं० 115 / सम०--अक्षः शिव का कम्पायमान,–तम् 1. क्रीडा, रंगरेली, खेल 2. श्रृंगार विशेषण,-तटम् मस्तक का मुलान, माथा,-पट्टः, परक विनोद, गतिलावण्य, स्त्रियों में प्रीति विषयक पद्रिका 1. मस्तक का सपाट तल 2. (तेहरा) शिरो- हावभाव-शि० 9/79, कि०१०१५२ 3. सौन्दर्य, वेष्टन, त्रिमुकुट, सिर की चोटी, केशबंध,-लेखा लावण्य, आकर्षण 4. कोई भी प्राकृतिक या स्वाभामस्तक की रेखा। विक क्रिया 5. सरलता, भोलापन / सम-अर्ष ललाटकम् [ललाट+कन्] 1. मस्तक 2. सुन्दर माथा / (वि.) सुन्दर या प्रीतिविषयक अर्थ वाला--विक्रम ललाटन्तप (वि०) [ललाट+तप्+खर, मुम्] 1. (मस्तक) २११४,--पव (वि.) प्रांजलरचनायुक्त--श० 3, को जलाने या तपाने वाला ललाटन्तपस्तपति तपन: -प्रहारः मृदु या कोमल आघात। मा० 1, उत्तर०६, 'सूर्य ऊपर ठीक सिर पर चमक | ललिता [ललित+टाप्] 1. स्त्री 2. स्वेच्छाचारिणी रहा है'-ललाटन्तपसप्तसप्ति:-रघु 13 / 41 2. (अतः) स्त्री 3. कस्तूरी 4. दुर्गा का एक रूप 5. विभिन्न बहुत पीडाकर ...लिपिर्ललाटन्तपनिष्ठ राक्षरा-नै० छन्दों के नाम सम,--पञ्चमी आश्विनशक्ल का पांचा 11138, --पः सूर्य / दिन,-सप्तमी भाद्रपद के शुक्लपक्ष का सातवां दिन / ललाटिका [ललाट+कन्+टाप, इत्वम्] 1. मस्तक पर लवः [ल+अप्] 1. उत्पाटन, उल्लंचन 2. कटाई, पहना जाने वाला आभूषण, टीका 2. मस्तक पर (पके अनाज की) लावनी 3. अनुभाग, टुकड़ा, खण्ड, चन्दन का या अन्य किसी सुगंधित चूर्ण का तिलक कवल या ग्रास 4. कण, बंद, अल्पमात्रा, थोड़ा (इस -कु० 5 / 55 / अर्थ में प्रायः समास के अन्त में-जललवमुचः-मेघ० ललाटूल (वि०) उन्नत और सुन्दर मस्तकवाला / 20,70, आचामति स्वेदलवान् मुखे ते-रघु०१३।२०, ललाम (वि०) (स्त्री०---मी) [लड़+क्विप्, डस्य लत्वम्, 6 / 57, 16166, अश्रु०१५।९७, अमृत०-कि० 5 / 44, तम् अमति--- अम् +अण्] सुन्दर, प्रिय, मनोहर, भ्रूक्षेपलक्ष्मीलवक्रीते दास इव-गीत० 11, इसी -मम् मस्तक का आभूषण, टीका, सामान्य अलंकार प्रकार तृण, अपराध ज्ञान, सूख घन आदि (इस अर्थ में पुं० भी) अहं तु तामाश्रमललामभूतां 5. ऊन, पशम 6. क्रीडा 7. समय का सूक्ष्म विभाग शकुन्तलामधिकृत्य ब्रवीमि-श० 2, शि० 4 / 28 (-एक निमेष का छठा भाग) 8. किसी भिन्न राशि 2. कोई भी श्रेष्ठ वस्तु 3. मस्तक का तिलक 4. चिह्न, अंश 9. (ज्योति० में) घात 10. हानि, विनाश प्रतीक, तिलक 5. झण्डा, पताका 6. पंक्ति, माला, 11. राम का एक पुत्र, यमल (जोड़वा) में से एकरेखा 7. पंछ 8. अयाल, गरदन के बाल 1. प्राधान्य, दूसरे का नाम कुश था, लव का अपने भाई मर्यादा, सौन्दर्य 10. सींग,--मः घोड़ा। कूश के साथ वाल्मीकि मुनि के द्वारा पालनपोषण ललामकम् [ललाम+कन्] फूलों का गजरा जो मस्तक पर हुआ, सभास्थल आदि स्थानों में पाठ करने के लिए धारण किया जाता है। दोनों को महा कवि द्वारा रामायण की शिक्षा दी गई, ललामन् (नपुं०) लल+इमनिन] 1. अलंकार, आभूषण, (इस नाम की व्युत्पत्ति के लिये दे. रघु० 15132), 2. (अतः) कोई भी अपने प्रकार की श्रेष्ठवस्तु --वम् 1. लौंग, 2. जायफल,-वम् (अव्य०) कुछ, -कन्याललाम कमनीयमजस्य लिप्सो:-रघु० 5 / 64 थोड़ा सा-लवमपि लवङ्गेन रमते-सरस्वती०१। 'कन्याओं में श्रेष्ठ या अलंकारभुत' 3. झंडा पताका लवङगः गल+अङ्गच] लौंग का पौधा-द्वीपान्तरानीत4. साम्प्रदायिक चिह्न, तिलक, संकेत, प्रतीक ___ लवङ्गपुष्पैः-रघु० 6 / 57, ललित लवनगलता परि6. पूंछ। शीलन कोमल मलयसमीरे--गीत० १,-गम् लौंग। ललित (वि.) [लल+क्त] 1. क्रीड़ासक्त, खेलने वाला, सम० - कलिका लौंग / / इठलाने वाला 2. शृंगारप्रिय, क्रीडाप्रिय, स्वेच्छा- | लवङ्गकम् [लवङ्ग+कन्] लौंग / लवक्रीते दाम१७, अमृत. , इसी प्रकार पशम 6. क्रीडा,जान, सुख For Private and Personal Use Only Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 874 ) २०१५चनकुण्डलामा , देदीप्यमान लावण्य 2. सामणि च ल्युट् मारने का उपकरण लवण (वि.) [ल+ल्युट, पृषो० णत्वम्] 1. क्षारीय, जगमगाना,---मुक्ताहारेण लसता हसतीव स्तनद्वयम् सलोना, नमकीन 2. प्रिय, मनोहर,–णः 1. खारी -काव्य० 10, करवाणि चरणद्वयं सरसलसदलक्तकरागं स्वाद 2. नमकीन पानी का समुद्र 3. एक राक्षस -गीत० 10, अमरु 16, नै० 22153 2. प्रकट का नाम, मधुका पुत्र, यह शत्रुघ्न के द्वारा मारा होना, उगना, प्रकाश में आना 3. आलिंगन करना गया था--रघु० 15 / 2, 5,16, 26 4. एक 4. खेलना, किलोल करना, उछल-कूद करना, नाचना नरक का नाम,---णम् 1. नमक. 2. समुद्री प्रेर० (लासयति-ते) 1. चमकना, शोभा बढ़ाना, नमक, लूण 3. कृत्रिम नमक / सम०--अन्तकः अलंकृत करना 2. नचाना 3. कला का अभ्यास करना, शत्रुघ्न का विशेषण, अब्धिः खारी समुद्र, जम् उद् -,1. क्रीडा करना, खेलना, लहराना, फड़फड़ाना समुद्रीनमक,-अम्बुराशिः समुद्र,-आमाति वेला लवणा- शि० 5 / 47 2. चमकना, जगमगाना, देदीप्यमान म्बुराशेः-रघु० 13115, विक्रम० १११५,-अम्भस् होना-उल्लसत्काञ्चनकुण्डलायम्-शि० 315, 33, (पुं०) समुद्र--रघु० 12170, 17154, (नपुं०) 5 / 15, 2056 3. उदित होना, उगना शि० 4158, नमकीन पानी,-आकर: 1. नमक की खान 2. नमकीन 6 / 11, मा० 9 / 38 4. फूंक मारना, खुलना, विस्तीर्ण जलाशय अर्थात् समुद्र 3. (आलं०) लावण्य की खान होना, (प्रेर०) रोशनी करना, उज्ज्वल करना, परि-, -आलयः समुद्र, उत्तमम् 1. सेंधा नमक 2. यवक्षार, चमकना, सुन्दर लगना, वि-, 1. चमकना, जगमगाना, --उदः 1. समुद्र 2. नमकीन पानी का समुद्र, उदकः, देदीप्यमान होना,-वियति च विललास तद्वदिन्दुविलसति -उदधिः-जल: समुद्र,-क्षारम् एक प्रकार का चन्द्रमसो न यद्वदन्यः-भट्टि० 10668, मेघ० 47, नमक,-मेहः एक प्रकार का मूत्ररोग, समुद्रः रघु० 13176 2. दिखाई देना, उदय होना, प्रकट नमकीन समुद्र, सागर। होना प्रेम विलसति महत्तदहो--शि०१५।१४, 9 / लवणा | लवण+टाप् ] कान्ति, सौन्दर्य। 87 3. क्रीडा करना, मनोविनोद करना, खेलना, लवणिमन् (पुं०) [लवण+इमनिच ] 1. नमकीनपना किलोल करना,-कापि चपला मधुरिपुणा विलसति लावण्य 2. सौन्दर्य, मनोहरता, चारुता। युवतिरधिकगुणा—गीत०७, हरिरिह मुग्धवधूनिकरे लवनम् [लू भावे कर्मणि च ल्युट् ] 1. लुनाई, लावनी, विलासिनि विलसति केलिपरे-गीत० 1, 4. ध्वनि (पके अनाज की) कटाई 2. काटने का उपकरण, करना, गूंजना, प्रतिध्वनि करना / दरांती, हँसिया। लसा [लसति-लस्+अच्-|-टाप्] 1. जाफरान, केसर लवली [लव+ला+क+डी ] एक प्रकार की लता, 2. हल्दी / -मया लब्धः पाणिर्ललितलवलीकन्दलनिभः -उत्तर० / लसिका [लस्+अच्+क+टाप इत्वम् थूक लार। 3140 / लसित (भू० क० कृ०) लस्+क्त] खेला, कीडा की, लवित्रम् [लूयतेऽनेन+लू+इत्र ] काटने का उपकरण, दिखाई दिया, प्रकट हुआ, इधर उधर उछल कूद दरांती, हँसिया। | करने वाला, दे० 'लस्'। लश् (चुरा० उभ० लशयति--ते) किसी कला का अभ्यास | लसीका [लस+डी+न+टाप्] 1. थूक 2. पीप, करना, तु० 'लस्'। मवाद 3. ईख का रस 4. टीके का रस। लशु (शू) नः, नम्। अशेः उनन्, लशश्च ] लहसुन, लस्ज् (भ्वा० आ० लज्जते, लज्जित) 1. शमिन्दा होना, -निखिलरसायनमहितो गन्धेनोग्रेण लशुन इव-रस० लज्जा अनुभव करना (बहुधा करण० या तुमुन्नत के (भामि०१२८१), यशः सौरभ्यलशुनः ...-भामि० साथ)-स्त्रीजनं प्रहरन्कथं न लज्जसे-रत्न० 2, 1193 / भट्टि 15 // 33 2. शर्माना, लजाना प्रेर० (लज्जयति लष् (म्वा० दिवा० पर० लषति, लष्यति, लर्षित) चाहना, -ते) लज्जित करना--रघु० 19 / 14, वि-शर्मीला, इच्छा करना, लालायित होना, उत्सुक होना (प्रायः या बिनीत होना, संकोच करना--यत्रांशकाक्षेप'अभि' उत्सर्ग के साथ), अभि-, चाहना, इच्छा विलज्जितानां-कु० 1314, रघु०१४।२७ / करना, लालायित होना--मानुषानभिलष्यन्ति भट्टि | लस्त (बि० [लस्+क्त] 1. आलिङ्गित, भुजपाशबद्ध 4 / 22, तेन दत्तमभिलेषुरङ्गनाः-रघु० 19 / 12 / 2. दक्ष, कुशल / लषित (भू० क. कृ०) [लष् + क्त ] चाहा हुआ, लस्तकः [लस्त+कन्] धनुष का मध्यभाग, वह भाग जहाँ वाञ्छित। हाथ से पकड़ा जाता है। लष्वः [लष्-+-वन् ] नाटक का पात्र, अभिनेता, नट, | लस्तकिन् (पुं०) [लस्तक + इनि] धनुष / नर्तक / लहरिः,-रो (स्त्री०) [लेन इन्द्रेण इव ह्रियते ऊर्ध्वलस् (म्वा० पर? लसति, लसित) 1. चमकना, दमकना, गमनाय ल+ह+इन्, पक्षे ङीष्] लहर, तरंग, बड़ी For Private and Personal Use Only Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10. (काग- कलच, ड का वृक्ष डाली, किसान, ( 875 ) लहर, झाल–करेणोत्क्षिप्तास्ते जननि विजयन्तां / भग० 2 / 35 6. फुर्ती. चुस्ती, वेग 7. क्रियाशीलता, लहरयः---गंगा० 40, इमां पीयषलहरी जगन्नाथेन दक्षता, तत्परता-हस्तलाघवम् 8. सर्वतोमुखी प्रतिभा निर्मिताम्-५३, इसी प्रकार आनन्द, तरुणा, सुधा -बुद्धिलाघवम् 9. संक्षेप, (अव्यक्ति की संक्षिप्तता) आदि / 10. (कविता में) मात्रा की कमी। ला (अदा० पर० लाति) लेना, प्राप्त करना, ग्रहण करना लाङ्गलम् [लग-+कलच, पृषो० वृद्धिः] 1. हल 2. हल की संभालना-ललुः खङ्गान्-भट्टि०१४।९२, 15:53 / शकल का शहतीर 3. ताड़ का वृक्ष 4. शिश्न, लिंग, लाकुटिक (वि.) (स्त्री०-को) [लकुटः प्रहरणमस्य ठक्] 5. एक प्रकार का फूल / सम०-ग्रहः हाली, किसान, लाठी या सोटे से सुसज्जित,-कः सन्तरी, पहरेदार -दण्डः हल का लट्ठा, हलस, ध्वजः बलराम का पंच०४। नामान्तर,-पद्धतिः (स्त्री०) खूड, हल से बनी रेखा, लाक्षकी (स्त्री०) सीता का नाम / सीता,-फालः हलकी फाली। लाक्षणिक (वि.) (स्त्री०-की) [लक्षणया बोधयति / लाङ्गलिन् (पुं०) [लागल+इनि] 1. बलराम का नाम ठक] 1. वह जो चिह्न या निशानों से परिचित हो -बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे-मेष. 2. विशिष्ट, संकेतक 3. गौण अर्थ रखने वाला, गौण 49 2. नारियल का पेड़ 3. साँप / अर्थ में प्रयुक्त (शब्द आदि--- लक्षक जो वाच्य और लाङ्गलो [लाङ्गल+अच्+डोष्] नारियल का पेड़ / व्यंजक से भिन्न हो)-स्याद्वाचको लाक्षणिकः शब्दो- लागलीषा [लाङ्गल+ईषा] हलस, हल का लट्ठा / ऽत्र व्यञ्जकस्त्रिधा-काव्य० 2 4. गौण, निकृष्ट लाङ्गुलम् [लङ्ग+उलच्; बा० वृद्धिः] 1. पूंछ 2. शिश्न, 5. पारिभाषिक,-कः पारिभाषिक शब्द / लिंग। लाक्षण्य (वि०) [लक्षणं वेत्ति -त्र्य1. चिह्न संबंधी, | लागूलम् [लङ्ग् +ऊलच् पृषो०] 1. पूंछ --लागूलचाल संकेतद्योतक 2. लक्षणों का ज्ञात, लक्षण या संकेतों नमधश्चरणावपातम् .... "श्वा पिंडदस्य कुरुते-भर्त० की व्याख्या करने के योग्य / 2 / 31, 'कुत्ता पूंछ हिलाता है' 2. शिश्न, लिंग / लाक्षा [लक्ष्यतेऽनया लक्ष+अच्, पृषो० वृद्धिः] एक / | लालिन् (पुं०) [लाङ्ल+इनि] बन्दर, लंगूर / प्रकार का लाल रंग, महावर, लाख (प्राचीनकाल में | लाज, लाञ् (भ्वा० पर० लाजति, लाजति) 1. कलंक यह स्त्रियों की एक प्रसाधन सामग्री थी, वे इससे लगाना, निन्दा करना 2. भूनना, तलना। अपने पैर के तलवे तथा ओष्ठ रंगती थी, तु० 'अल | लाजः [लाज+अच्] गीला धान,-जाः (ब० व०) भुना क्तक'। कहते हैं कि वीरबहटी नामक कीड़े से अथवा हुआ, या तला हुआ घान (स्त्री० भी)-(तं) किसी विशेष वृक्ष की राल से यह रंग तैयार किया अवाकिरन्बाललता: प्रसूनैराचारलाजैरिव पौरकन्याः जाता था)-निष्ठ्यूतश्चरणोपभोगसुलभो लाक्षारस: -रघु०२।१०,४।२७, 7425, कु०७।६९, 80 / केनचित् (तरुणा)-श० 4 / 5, ऋतु० 6 / 13, कि० लाञ्छु (म्वा० पर० लांछति) 1. भेद करना, चिह्नित 5 / 23 2. 'वीरबहटी' जिससे यह रंग बनता है। करना, विशिष्ट बनना 2. सजाना, अलंकृत करना / सम-तरुः --वक्षः एक वृक्ष का नाम, पलास, ढाक लाञ्छनम् [लाञ्छ कर्मणि ल्युट्] 1.चिह्न, निशान, निशानी, ----प्रसादः,-प्रसाधनः लाल लोध्रवृक्ष, -- रक्त (वि०) विशिष्टताद्योतक चिह्न-नवाम्बुदानीकमुहूर्तलाञ्छने लाख से रंगा हुआ। (धनषि)-रघु० 3 / 53, प्रायः समास के अन्त में लाक्षिक (वि०) (स्त्री०-की) [लाक्षा---ठक्] 1 लाख 'चिह्नित' 'विशिष्टीकृत' अर्थ बतलाने के लिए-जातेऽ से संबंध रखने वाला, लाख से बना हुआ या रंगा थ देवस्य तया विवाहमहोत्सवे साहसलाञ्छनस्य हुआ 2. एक लाख (संख्या) से संबद्ध / विक्रमांक. 1012, रघु० 6 / 18, 16 / 84, इसी लाख (भ्वा० पर० लाखति) 1. सूख जाना, नीरस होना प्रकार 'श्रीकण्ठपदलाञ्छनः' मा० 1, श्रीकण्ठ' विशेषण 2. अलंकृत करना 3. पर्याप्त होना, सक्षम होना को धारण करते हुए 2. नाम, अभिधान 3. दाग, 4. प्रदान करना 5. रोकना। धब्बा, अपकीर्ति का चिह्न 4. चन्द्रमा का कलंक लागुडिक (वि.) [लगुड + ठक्] दे० 'लाकुटिक' / (काला धब्बा) कु० 7 / 35 5, सीमान्त / लाथ् (भ्वा० आ० लाघते) बराबर होना, पर्याप्त होना, | लाछित (वि०) [लाञ्छ्+क्त] 1. चिह्नित, अन्तरयुक्त, सक्षम होना। विशिष्ट 2. नामी, नामक 3. विभूषित 4. सुसज्जित / लाघवम् [लघोर्भावः अण्] 1. अल्पता, क्षुद्रता 2. लघुता, | लाट (पुं०, ब० व०) एक देश और उसके अधिवासियों हलकापन 3. अविचार, निष्फलता 4. नगण्यता का नाम-एष च (लाटानुप्रास): प्रायेण लाटजन5. अनादर, घृणा, अपमान, अप्रतिष्ठा--सेवा लाघव- प्रियत्वाल्लाटानुप्रासः-सा० द. १०,-ट: 1. लाट कारिणी कृतधियः स्थाने श्ववृत्ति विदुः-मुद्रा० 3 / 14, | देश का राजा 2. पुराने जीर्णशीर्ण वस्त्र 3. कपडे For Private and Personal Use Only Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4. बच्चों जैसी भाषा। सम०--अनुप्रासः अनुप्रास अत्यधिक लाडप्यार-लालने बहवो दोषास्ताडने बहवो अलंकार के पाँच भेदों में से एक, शब्द या शब्दों की गुणा: दे० लल। पूनरावृत्ति उसी अर्थ में परन्तु भिन्न प्रयोग के साथ, | लालस (वि०) [लस्-+-यङ्, लुक द्वित्वम्, अच् ] मम्मट ने उसका सोदाहरण निरूपण किया है: 1. अत्यंत लालायित, बहुत इच्छुक, आतुर...प्रणाम-शब्दस्तु लाटानुप्रासो भेदे तात्पर्यमात्रतः --उदा० लालसाः - का० 14, ईशानसंदर्शनलालसानां - कु. वदनं वरवणिन्यास्तस्याः, सत्यं सुधाकरः सुधाकरः क्व 7 / 56, शि० 4 / 6 2. आनन्द लेने वाला, भक्त, अनुन पुनः कलकविकलो भवेत-या-यस्य न सविधे. रागी, लीन-बिलासलालसम्—गीत० 1, शोक, दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य, यस्य च सविधे मगया आदि। दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य --काव्य०९।। लालसा [लस् स्पृहायां यङ् लुक् भावे अ] 1. प्रबल इच्छा लाटक (वि.) (स्त्री०—टिका) [लाट+बुन] लाट देश उत्कण्ठा, बड़ी अभिलाषा, उत्सुकता 2. याचना, से संबद्ध। निवेदन, अभ्यर्थना 3. खेद, शोक 4. दोहद, गर्भिणी लाटिका, लाटी [लट्+ण्वुल+टाप, इत्वम्, लाट-+-अच् स्त्री की इच्छा। +ङीष् ] रचना, की एक विशेषशैली-दे० सा० द० | लालसीकम् (नपुं०) चटनी। , 629 2. एक प्राकृतिक बोली का नाम-दे० लाला [लल--णिच्+अच्-+-टाप् ] लार, थूक भर्तृ० काव्या० 1135 / 2 / 9 / सम०-सवः मक्कड़ -स्रायः 1. लार बहाना लाडू (चुरा० उभ० लाडयति ते) 1. लाडप्यार करना, 2. मक्कड़। पुचकारना, दुलारना 2. कलङ्कित करना, निन्दा करना लालाटिक (वि०) (स्त्री०- की) [ललाट प्रभो लं 3. फेंकना, उछालना-तु० 'लड्'। पश्यति ठञ11. मस्तक पर स्थित या मस्तकसंबंधी लाठनी (स्त्री०) कुलटा स्त्री, व्यभिचारिणी। 2. भाग्य से मिलना या भाग्य पर निर्भर रहने वाला लात (भू० क० कृ०) [ला+क्त ] लिया, ग्रहण किया।। ----प्राप्तिस्तु लालाटिकी उद्भट 3. निकम्मा, नीच, लापः [लप्+घञ्] 1. बोलना, बातें करना 2. किल- कमीना, क: 1. सावधान सेवक (शा० जो अपने किलाना, तुतला कर बोलना। स्वामी की मुखमुद्रा से समझ लेता है कि अब क्या लाबः, लाबकः [लू+घञ, पृषो०] एक प्रकार का | क्या करना आवश्यक है) 2. निठल्ला, लापरवाह, लवा पक्षी, बटेर। निरर्थक व्यक्ति 3. एक प्रकार का आलिंगन / लाबः (H) (पुं०) एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी। लालाटी [ ललाट---अण्+डीप्] मस्तक, माथा / लाबुकी (स्त्री०) एक प्रकार की सारंगी। लालिकः [लाला+ठन ] भैसा। लाभः [लभ+घञ ] 1. उपलब्धि, प्राप्ति, अवाप्ति, लालित (भू० क० कृ०) [लल+णिच् + क्त ] 1. दुलार अधिग्रहण-शरीरत्यागमात्रेण शद्धिलाभममन्यत-रघु० किया गया, लाडप्यार किया गया, लालन किया गया, 12 / 10, स्त्रीरत्नलाभम्-७।३४, 11 / 92, क्षणमप्य- अत्यंत स्नेह किया गया 2. सत्यपथ से डिगाया गया वतिष्ठते श्वसन यदि जन्तुर्ननु लाभवानसी-रघु० 3. प्रेम किया गया, अभिलषित,-तम् आनन्द, प्रेम, हर्ष / 8.87 2. नफा, मुनाफा फायदा-सुखदुःखे समे कृत्वा | लालितकः | लालित+कन लाडला, दुलारा, प्रिय, स्नेहलाभालाभौ जयाजयो-भग०२।३८, याज्ञ०२।२५९ भाजन / 3. सुखोपभोग 4. लट का माल, विजित प्रदेश | लालित्यम [ललित+ध्यन] 1. प्रियता, लावण्य, सौन्दर्य, 5. प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी, संबोध / सम० - कर,-कृत् आकर्षण, माधुर्य, - दण्डिनः पदलालित्यम्---उद्भट (वि.) लाभकारी, फायदेमंद,-लिप्सा लाभ की 2. प्रीति विषयक हाव भाव / इच्छा, लोलुपता, लालच।। लालिन् (पुं०) [लल |-णिच् +-णिनि] बहकानेवाला, लाभकः [लाभ+कन् ] फायदा, मुनाफा / फुसलाने वाला। लामज्जकम् [ला+क्विप, ला आदीयमाना मज्जा सारो लालिनी लालिन्+डीप्] स्वेच्छाचारिणी स्त्री। यस्य ब० स०, कप् ] एक सुगंधयुक्त घास विशेष की लालुका (स्त्री०) एक प्रकार की माला, हार। जड़, खस, वीरणमूल / लाव (वि.) (स्त्री०-वी) [ल कर्तरि घन] 1. काटने लाम्पटपम् [लम्पट-ष्य ] लम्पटता, कामुकता, वाला, लुनाई करने वाला, उखाड़नेवाला-कुशसूचिलाभोगासक्ति। वम्-...रघु०१३।४३ 2. उत्पाटन करने वाला, एकत्र लालनम् [लल+ल्युट ] 1. दुलारना, लाड प्यार करना, करने वाला 3. काट कर गिराने वाला, मारने वाला, पुचकारना-सुतलालनम् - आदि 2. तुष्ट करना, नष्ट करने वाला-भट्टि० ६.८७,--व: 1. काटना आवश्यकता से अधिक स्नेह करना, आत्मरंजन, I 2. लवा नामक पक्षी। For Private and Personal Use Only Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 877 ) लावकः [ल+ण्वुल] 1. काटने वाला, खंड-खंड करने . मानी जाती है)-जालान्तरगते भानौ यच्चाणु दृश्यते वाला 2. लावनो करने वाला, एकत्र करने वाला रजः, तैश्चभिर्भवेल्लिक्षा, या, असरेणवोष्टौ विज्ञेया 3. लवा, बटेर। लिक्षका परिमाणतः --मनु० 8 / 133, दे० याज्ञ. लावण (वि.) (स्त्री०-णी) [लवणं संस्कृतम् अण्] 11362 भी। 1. नमकीन 2. लवण से युक्त, लवण द्वारा संस्कृत। लिक्षिका [ लिक्षा+-कन्+टाप, इत्वम् ] ल्हीक। लावणिक (वि.) (स्त्री०-की) [लवणे संस्कृतं ठण् लिख (तूदा० पर० लिखति, लिखित) 1. लिखना, लिख 1. नमकीन, नमक से प्रसाधित 2. नमक का व्यापारी रखना, अंतरंकण करना, रेखांकन करना, उत्कीर्ण 3. प्रिय, सुन्दर, लावण्यमय-शि० 10 // 38, (यहाँ करना,-अरसिकेषु कवित्वनिवेदनं शिरसि मा लिख मा इसका अर्थ 'नमक का व्यापारी' भी है), -कः नमक लिख मा लिख - उद्भट, ताराक्षरर्यामसिते कठिन्या का व्यापारी,-कम् लवण-पात्र, नमक का बर्तन / निशालिखद् व्योम्नि तमः प्रशस्तिम्-० 22154, लावण्यम् [लवण+ष्य] 1. नमकीनपना 2. सौन्दर्य याज्ञ० 2 / 87, श० 75 2. रेखाचित्र बनाना, रेखा सलोनापन मनोहरता -तथापि तस्या लावण्यं रेखया खींचना, आलेखन, चित्रित करना, रङ्ग भरना-मृगकिंचिदन्वितम् ---श० 6 / 13, कु० 7 / 18, शब्द० में मदतिलकं लिखति सपुलकं मगमिव रजनिकरे-गीत० 'लावण्य' की परिभाषा--मवताफलेषु छायायास्तरल- 7, मत्सादृश्यं विरहतनु वा भावगम्यं लिखन्ती-मेघ० त्वमिवान्तरा प्रतिभाति यदङ्गेषु तल्लावण्यमिहो 85, 80, कु०६१४८, स्मित्वा पाणौ खङ्गलेखां लिलेख च्यते। सम० अजितम् विवाहिता स्त्री की निजी ---काव्य० 10 3. खुरचना, रगड़ना, घिसना, फाड़ सम्पति जो विवाह के अवसर पर उसे अपने पिता देना-न किंचिदूचे चरणेन केवलं लिलेख बाष्पाकुलया सास से प्राप्त हुई हो / लोचना भुवम् - कि० 8 / 14, मूर्ना दिवमिवालेखीत् लावण्यमय, लावण्यवत् (वि.) [लावण्य+मयट्, मतुप् --भट्टि०१५।२२ 4. शल्यक्रिया) करना, खाल काटना ___ वा] प्रिय, मनोहर। 5. स्पर्श करना, खरोंच पैदा करना 6. (पक्षी की लावाणकः [लू+आनकः] मगध के निकट एक जिले का भांति) चोंचें मारना 7. चिकना करना 8. स्त्री के नाम / साथ सहवास करना, आ-, 1. लिखना, चित्रित करना, लाविक: [लान+ठक भंसा। रेखाएँ खींचना-मा० 1131 2. रङ्ग भरना, चित्र लाषुक (वि) (स्त्री०-का,-की) [लए / उकञ्] लोलुप, बनाना-आलिखित इव सर्वतो रङ्गः-- श०१, त्वामालोभी लालची। लिख्य प्रणयकुपिताम्--मेघ० 105, रघु० 19 / 19 लासः [लस्+घञ] 1. कूदना, खेलना, उछलना, नाचना 3. खुरचना, छीलना, उद् , 1. खुरचना, छीलना, 2. प्रेमालिंगन, केलि क्रीडा 3. स्त्रियों का नाच, रास- फाड़ना, खोंचा लगाना-शि० 5 / 20, मनु० 1123 लीला 4. रसा, झोल / 2. पीस डालना, रोगन करना-त्वष्टा विवस्वन्तमिवोलासक (वि०) (स्त्री०-सिका) [लस+पवूल] 1. खेलने ल्लिलेख,-कि०१७।४८, रघु०६।३२, श० 616 3. रङ्ग वाला, किलोल करने वाला, विहार करने वाला भरना, लिखना, चित्रित करना-कु० 5 / 584. खोदना, 2. इधर उधर घूमने वाला, -क: 1. नर्तक 2. मोर | काटकर बनाना, प्रति --,उत्तर देना, जवाब देना, बदले 3. आलिंगन 4. शिव का नामान्तर, कम् चौबारा, में लिखना, वि-,लिखना, अन्तरंकण करना 2. रेखांकन 'बुर्ज। करना, रङ्ग भरना, चित्रित करना, चित्र बनाना लासको [लासक+डी] नर्तकी। - लिलिखति रहसि कुरङ्गमदेन भवन्तमसमशरभूतम् लासिका [लस्+ण्वुल+टाप, इत्यम] 1. नर्तकी 2. वेश्या, ---गीत०४ 3. खुरचना, छीलना, फाड़ना-मन्दं शब्दास्वेच्छाचारिणी या व्यभिचारिणी स्त्री। यमानो विलिखति शयनादुत्थितःक्ष्मां खुरेण-काव्य. लास्यम् लस्+ण्यत्] 1. नाचना, नृत्य,-आस्ये धास्यति 10, व्यलिखच्चञ्चपुटेन पक्षती-०२।२, पादेन हैम कस्य लास्यमधुना...वाचां विपाको मम-भामि०४।४२, विलिलेख पीठम्-रघु०६।१५, कु० 2 / 23 4. रोपना, रघु० 16314 2. गाने बजाने के साथ नाच 3. वह जमाना-हि०४।७२ पाठान्तर, सम्-,खुरचना, छीलना। नृत्य जिसमें प्रेम की भावनाएं विभिन्न हाव भाव तथा लिखनम् [लिख्+ ल्युट्] 1. लिखना, अन्तरंकण 2. रेखांकन अंगविन्यासों द्वारा प्रकट की जाती हैं, --- स्यः नट, रङ्ग भरना 3. खुरचना 4. लिखित दस्तावेज़, लेख नर्तक, अभिनेता, -- स्या नर्तकी।। या हस्तलेख। लिकुचः [लक+उच, पृषो० इत्वम् दे० 'लकुच'। लिखित (भू० क० कृ०) [लिख+क्त ] लिखा हुआ, रङ्ग लिक्षा [रिषः स कित्] 1. ल्हीक, जूओं के अंडे 2. अत्यन्त | भरा हुआ, खुरचा हुआ आदि दे० लिख,-तः विधि सूक्ष्म माप (जो चार या आठ त्रसरेणु के बराबर या धर्मशास्त्र के एक प्रणेता का नाम ('शंख के साथ For Private and Personal Use Only Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 878 ) इस नाम का उल्लेख मिलता है),-तम 1. लेख, वाला,--वेदो वह आधार जिस पर शिवलिङ्ग स्थापित दस्तावेज 2. कोई पुस्तक या रचना / किया जाता है। लिगुः [लिग्+कु] 1. हरिण 2. मूर्ख, बुद्ध,- नपुं० हृदय / लिङ्गकः [ लिङ्ग+के+क ] कपित्थ वृक्ष, कैथ का पेड़ / लियः (भ्वा० पर० लिखति) जाना, हिलना-जलना। | लिङ्गनम् [लिङ्ग् + ल्युट् ] आलिङ्गन करना। लिङ्ग / (भ्वा० पर० लिङ्गति, लिङ्गित) जाना, हिलना- लिङ्गिन् (वि.) [लिङ्गमस्त्यस्य इति] 1. चिह्ल या निशान जुलना, आ-आलिङ्गन करना, परिरंभण करना। रखने वाला 2. विशेषतायुक्त 3. बिल्ला या निशान ii (चुरा० उभ० लिङ्गयति-ते) रङ्ग भरना, चित्रित रखने वाला, दिखाई देने वाला, छद्मवेशी, पाखंडी, करना 2. किसी संज्ञाशब्द की उसके लिङ्ग के अनुसार झूठे बिल्ले लगाने वाला (समास के अन्त में)---स रूपरचना करना। वणिलिङ्गी विदितः समाययौ युधिष्ठरं द्वैतवने वनेचरः लिडाम [ लिङग-अच11.निशान, चिह्न, निशानी, प्ररूप, -कि० श१, इसी प्रकार 'लिङ्गिन्' 4. लिङ्ग से युक्त बिल्ला, प्रतीक, विभेदक चिह्न, लक्षण-यतिपार्थिव 5. सूक्ष्म शरीरधारी 1. ---पुं०, ब्रह्मचारी, ब्राह्मण सन्यासी-पंच० 4 / 39 2. शिवलिङ्ग की पूजा करने लिङ्गधारिणी- रघु० 816 मुनिर्दोहदलिङ्गदर्शी वाला 3. पाखण्डी, बना हुआ भक्त, संन्यासी 4. हाथी 14 / 71, मनु० 1130, 825, 252 2. अवास्तविक या मिथ्या चिह्न, वेश, छद्मवेश, धोखे में डालने वाला 5. (तर्क० में) प्रतिज्ञा का विषय / बिल्ला-लिङ्गमदः संवृतवित्रियास्ते- रघु० 7.30, लिपिः,—पी [लिप+इक, डीप वा] 1. लीपना, पोतना क्षपणकलिङ्गधारी मद्रा० 1, न लिङ्ग धर्मकारणम् 2. लिखना, लिखावट 3. लिखित अक्षर, वर्ण, वर्ण-हि०४१८५, दे० नी० लिङ्गिन् 3. लक्षण, रोग के चिह्न माला-यवनाल्लिप्याम्-वा०, लिपेर्यथावद् ग्रहणेन 4. प्रमाण के साधन, प्रमाण, सबूत साक्ष्य 5. (तर्क० वाङ्मयं नदीमुखेनैव समुद्रमाविशत--रघु० 3 / 28, में) किसी प्रतिज्ञा का विधेय 6. लिङ्गचिह्न 7. योनि 46 4. लिखने की कला 5. (अक्षर, दस्तावेज़, या गुणा: पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गम् न च वयः हस्तलेख आदि) लिखना-अयं दरिद्रो भवितेति -----उत्तर० 4 / 11 8. पुरुष की जननेन्द्रिय, शिश्न वैधसी लिपि ललाटेऽथिजनस्य जाग्रतीम-नै० 1615, 9. (व्या० में) स्त्री या पुरुषवाची शब्द पहचानने का 138 6. चित्रकला, रेखांकण / सम०-करः 1. पलस्तर चिह्न, लिङ्ग 10. शिवलिङ्ग 11. देवमूर्ति, प्रतिमा करने वाला, सफ़ेदी करने वाला, राज 2. लेखक, 12. एक प्रकार का संबंध या अभिसूचक (जैसे कि लिपिक 3. उत्किरक (उभरा हुआ लिखने वाला, संयोग, वियोग और साहचर्य आदि) जो किसी शब्द नक्काशी करने वाला) ('लिपिकर भी),-- कारः के किसी विशेष संदर्भ में अर्थ निश्चित करने का काम लेखक, लिपिक,-ज्ञ (वि०) जो लिख सकता है, देता है. उदा० कुपितो मकरध्वजः में कूपित शब्द --क्यासः लिखने या नक़ल करने की कला,-फलकम् मकरध्वज शब्द के अर्थ का 'काम' के अर्थ में बंधेज लिखने का पट्ट या तरुता,--- शाला वह स्कूल जहाँ कर देता है --- काव्य० 2, तथा तत्स्थानीय भाष्य लिखना सिखाया जाय,-सज्जा लिखने का सामान या 13. (वेदांत० में) सूक्ष्म शरीर, दृश्यमान स्थूल शरीर उपकरण। का अविनश्वर मूल शरीर, तु० पंचकोष। सम. लिपिका | लिपि--कन्+टाप दे० 'लिपी'। -अग्रम् लिङ्ग की मणि, सुपारी,-अनुशासनम् व्याकरण लिप्त (भू० क० कृ०) [लिप्--क्त] 1. लीपा हुआ, पोता विषयक लिङ्ग ज्ञान, वे नियम जिनसे शब्द के लिङ्गों हुआ, साना हुआ, ढका हुआ 2. दाग लगा, बिगड़ा का ज्ञान मिलता है, ---अर्चनम् शिव की लिङ्ग के हुआ, दूषित, मलिन 3. विषयुक्त, (बाण आदि) जहर रूप में पूजा,-देहः-शरीरम् सूक्ष्म शरीर-दे० लिङ्ग में बुझाया हुआ 4. खाया हुआ 5. जुड़ा हुआ, मिला (13) ऊपर,-धारिन् (वि०) बिल्लाधारी, -- नाशः हुआ। 1. विशिष्ट चिह्नों का लोप 2. शिश्न का न रहना लिपकः [लिप्त+कन्] जहर में बुझा तीर। 3. दृष्टिशक्ति का अभाव, एक प्रकार का आँखों का लिप्सा [लभ+सन् भावे अ] - 1. प्राप्त करने की इच्छा, रोग, परामर्शः (तर्क० में) विचिह्न को ढंढना या भामि० 11125 2. अभिलाषा / विचारना (उदा० 'अग्नि' का सूचक चिह्न 'धूआँ' है), लिप्सु (वि.) [लभ+सन्+उ] प्राप्त करने का इच्छुक / --पुराणम् अठारह पुराणों में से एक पुराण, - प्रतिष्ठा | लिबिः,--बी (स्त्री०) [लिप्+इन्, बा० पस्य बः] दे० 'लिङ्ग' अर्थात शिवजी की पिण्डी की स्थापना,--वर्धन | लिपि'। (वि.) पुरुष की जननेन्द्रिय में उत्तेजना पैदा करने | लिबिकरः [लिबि करोति कृ+ट, पषो० द्वितीयाया अलुक वाला,-वियर्ययः लिङ्गपरिवर्तन,-वृत्तिः (वि.) पाखंड लिपिक, लेखक, लिपिकार / से भरा हुआ,-वृतिः धर्म के कार्यों में पाखण्ड करने | लिम्प (तुदा० उभ० लिम्पति-ते, लिप्त) 1. लीपना, पोतना For Private and Personal Use Only Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 879 ) सानना-लिम्पतीव तमोऽङ्गानि-मच्छ०१।०४ 2. ढक / iii (दिवा० आ० लीयते, लीन) 1. चिपकना, दृढ़ता देना, विछा देना-शि० 3148 3. दाग लगाना, | पूर्वक जमे रहना, जुड़ जाना - मालवि० 35 दूषित करना, मलिन करना, कलंकित करना, कलुषित 2. भुजपाश में बांधना, आलिंगन करना 3. लेटना, करना-यः करोति स लिप्यते-पंच० 4 / 64, न मां विश्राम करना, टेक लेना, ठहरना, रहना, दुबकना, कर्माणि लिम्पन्ति--भग० 4114, 18 / 17, मनु० छिपना, लुकना - (भृङ्गाङ्गनाः) लीयन्ते मुकुलान्तरेषु 10 / 106 4. प्रज्वलित करना, सुलगाना-तस्यापित शनकैः संजातलज्जा इव-रत्न० 1126, रघु० 3 / 9, शोकाग्निः स्वान्तं काष्ठमिव ज्वलन्-भट्टि०६।२२, श० 6 / 16, कु० 1112, 7:21, भट्टि० 18 / 13, अनु-लीपना, पोतना वपुरन्वलिप्त न बधूः-शि०९।५१ कि० 5 / 26 4. विघटित होना, पिघलना 5. चिप१५ 2. ढक देना, फैलाना, घेर लेना... रघु० 1010, चिपा, लसलसा 6. लीन हो जाना, भक्त श० 77, अव-लीपना, पोतना (कर्मवा०) फूल जाना या अनुरक्त होना, --माधवमनसिजविशिखभयादिव घमंडी बनना, उन्नत होना, आ-, 1. लीपना पोतना भावनया त्वयि लीना - गीत० 4 7. नष्ट --उत्तर० 3 / 39, ऋतु०६।१२ 2. दूषित करना, होना लोप होना,-प्रेर० (लापयति -ते) दाग लगाना, उप-,धब्बा लगाना, मलिन करना, लाययति-ते, लीनयति-ते लालयति-ते) पिघलाना, --भग०१३।३२, वि-लोपना, पोतना, मलना,-कु० विघटित करना, तरल बनाना, गलाना ('लापयते' 5179, भट्टि० 3 / 20, 15 / 6, शि० 16 // 62 / रूप सम्मान या सम्मानित करने के अर्थ में प्रयुक्त लिम्पः [लिप् + श, मुम्] लेप, पोतना, मालिश / होता है-जटाभिापयते-पूजामधिगच्छति - तु० लिम्पट (वि.) [-लम्पट, पृषो०] कामासक्त, विषयी, पा० 13170), अभि-, 1. जुड़ना, चिपकना--रघु० -ट: व्यभिचारी, दुश्चरित्र / 368 2. ढक लेना, ऊपर फैला देना-पश्चादुच्च - लिम्पाकः [लिप्+आकन्, पृषो०] 1. नींबू या चकोतरे का जतरुवनं मण्डलेनाभिलीनः- मेघ० 38, आ 1. बस वृक्ष 2. गधा, - कम् चकोतरा, नींबू / जाना, छिपना, दुबकना, विक्रम० 2 / 23, 2. जुड़ना, लिश् / (तुदा० पर० लिशति) 1. जाना, हिलना-जुलना चिपकना--रघु० 4151, नि-, 1. चिपकना, 2. चोट पहुंचाना - दे० रिश् / / जमे रहना, लेट जाना, आराम करना, बस जाना, ____ii (दिवा० उभ.लिश्यति -ते) छोटा होना, घटना। उतर पड़ना-निलिल्ये मूनि गृध्रोऽस्य --भट्टि० लिष्ट (भू० क० कृ०) [लिश्+क्त] जो छोटा हो गया 14 / 76, 2 / 5 2. दुबकना, छिपना, अपने आपको हो, घट गया हो या न्यून हो गया हो। छिपा लेना .गहास्वन्ये न्यलेषत-भट्टि० 15 / 32 लिष्यः [लिष्व न्अभिनेता, नर्तक / निशि रहसि निलीय-गीत०२3. अपने आपको लिह, (अदा० उभ० लेढि, लोढे, लीढ, इच्छा० लिलिक्षति छिपा लेना (अपा के साथ)-मानिलीयते कृष्णः ---ते) 1. चाटना-कपाले मार्जारः पय इति ---सिद्धा० 4. मरना, नष्ट होना, प्र--, 1. लीन होना, करौल्लेढि शशिन:-काव्य० 19, भामि० 1 / 19, कि० विघटित होना, गल जाना—आत्मना कृतिना च 5 / 38, शि० 1140 2. चाट जाना, चखना, चूंट-घंट त्वमात्मन्येव प्रलीयसे-कु०२।१०, रात्र्यागमे प्रलीयन्ते से पीना, लप-लप करके पीना –नै० 2 / 99, 100, तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके -भग०८।१८, मनु०११५४ 2. नष्ट अब--, 1. चाटना, लपलप करके पीना, थोड़ा थोड़ा होना, लोप होना 3. नाश को प्राप्त होना, नष्ट करके चखना--भवव्यालावलीढात्मनः --गंगा० 50, होना, वि-, 1. जुडना, चिपकना, जमे रहना वेणी० 3 / 5, भामि० 11111 2. चबाना, खाना 2. विश्राम करना, बस जाना, उतर पड़ना-पुरोऽस्य दभैरर्धावलीः --- श० 117, मृच्छ० 119, आ-', यावन्न भुवि व्यलीयत--शि०१।१२ 3. विगलित 1. चाटना, लपलप करके पीना 2. घायल करना, होना, पिघल जाना, लीन होना - महावीर० 6 / 60, आघात पहुँचाना-सेनान्यमालीढमिवासुरास्त्र:-रघु० 7.14 4. लोप होना, ओझल होना 5. नष्ट होना, 237 3. (आँखों से) ग्रहण करना, देखना,-न याम्या- सम्-, 1. चिपकना, जुड़ना 2. लेट जाना, बस मालीढा परमरमणीया तव तनुः --गंगा० 32, उद् -, जाना, उतरना 3. दुबकना, छिपना 4. पिघलना / चमकाना, घर्षण द्वारा चिकना बनाना, रगड़ना-मणिः लोक्का (स्त्री०) लोख, यू कांड, दे० लिक्षा। शाणोल्लीढ:..-भर्त० 2 / 44, परि --, सम्--, चाटना-- लीट (भू० क. कृ.) [लिह.+क्त] चाटा गया, चुसकी भट्टि० 13 / 42 / ली गई, चखा गया, खाया गया आदि०, दे० 'लिह,'। लीi (म्वा० पर० लयति) पिघलना, विघटित होना। लीन (भू. क. क०) [ली+क्त] 1. जुड़ा हुआ, चिपका ii (क्रया० पर० लिनाति) 1. जुड़ जानां 2. पिघलना हुआ, चूसा हुआ 2. दुबकाया हुआ, छिपाया हुआ, -प्रायः 'वि' उपसर्ग के साथ / प्रच्छन्न 3. विश्राम करता हुआ, टेक लगाये हुए For Private and Personal Use Only Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 880 ) 4. पिघला हुआ, विगलित-मा० 5.10 5. पूर्णरूप / लक (अव्य०) पाणिनि द्वारा प्रयक्त पारिभाषिक शब्द से विलीन, या निगलित, गहरा जुड़ा हुआ- नद्यः | जो प्रत्ययों का लोप करने के लिए काम में आता है। .. सागरे लीना भवन्ति 6. भक्त, छोड़ा हुआ 7. ओझल | लुञ्च (म्वा० पर० लुञ्चति, लुञ्चित) 1. तोड़ना, खींचना, लुप्त (दे० ली)। छीलना, काटना 2. फाड़ देना, उखाड़ देना, खींच लीला [ ली-क्विप् लियं लाति ला+क वा ] 1. खेल, डालना। क्रीडा, विनोद, दिलबलावा, आनन्द, मनोरंजन | लुञ्चः,-चनम् [ लुञ्च-+घञ, ल्युट् वा ] छीलना, -- क्लमं ययौ कन्दुकलीलयापि या कु० 5 / 19 / उखाड़ना / / (प्रायः समास के प्रथमखण्ड के रूप में प्रयुक्त) लीला | लुञ्चित (भू० क. कृ.) [लुञ्च+क्त ] 1. छीला हुआ कमलं, लीलाशुकः आदि 2. प्रीतिविषयक मनोविनोद, 2. तोड़ा हुआ, उखाड़ा हुआ, फाड़ा हुआ। स्वेच्छाचारिता, रतिक्रीडा, केलिकीडा-उत्सृष्टलीला- लुट i (भ्वा० आ० लोटते) 1. मुकाबला करना, पीछे गतिः-- रघु० 77, 4 / 22, 5170, क्षुभ्यन्ति प्रसभ- "धकेलना, विरोध करना 2. चमकना 3. कष्ट उठाना, / महो विनाऽपि हेतोर्लीलाभिः किम सति कारणे रमण्यः ii (चुरा० उभ० लोटयति-ते) 1. बोलना 2. चमकना -शि०८।२४, मेघ०३५, (उज्ज्वलनीलमणि ने इस iii (म्वा० दिवा० पर० लोटति, लटपति) 1. लोटना, अर्थ में 'लीला' शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है जमीन पर लुढ़कना तु. लुट 2. संबद्ध होना, -अप्राप्तबल्लभसमागमनायिकायाः सख्याः पुरोऽत्र 3. अपहरण करना, लूटना, खसोटना (सभवतः 'लुण्ठ निजचित्तविनोदबुद्ध्या / आलापवेशगतिहास्य या 'लुण्ट्') / विलोकनाद्यः प्राणेश्वरानुकृतिमाकलयन्ति लीलाम् // ) लठ / (भ्वा० पर० लोठति) प्रहार करना, पछाड़ देना / 3. आसानी से, सुविधा, क्रीडामात्र, बच्चों का खेल ii (म्वा० आ० लोठते) 1. भूमि पर लोटना, इधर ---लीलया जघान 'आसानी से मार डाला' 4. दर्शन, उधर करवटें बदलना, गुड़मुड़ी खाना, लुढ़कना, इधर आभास, हावभाव, छवि--यः संगति प्राप्तपि उधर घूमना-मणिकुंठति पादेषु काचः शिरसि धार्यते नाकिलील:---रघु० 672, 'पिनाकी की भांति .....हि. 2068, लुठति न सा हिमकरकिरणेन----गीत दिखलाई देने वाला' 5. सौन्दर्य, लावण्य, लालित्य 7, हारोऽयं हरिणाक्षीणां लुठति स्तनमण्डले--अमरु -मुहुरवलोकित मण्डनलीला-गीत० 6, रघु०६।१, 100, भट्टि० 14154, भामि० 2 / 176, प्र-, वि-, 16 / 71 6. बहाना, छद्मवेश, ढोंग, बनावट यथा लोटना, लुढ़कना, आदि, भट्टि० 5 / 108 / लीलामनुष्यः, लीलानट: / सम०-अ (आ) गारः, लुठनम् [लुठ+ ल्युट ] लोटना, लुढ़कना, इधर उधर -~-रम्,-गृहम्,--गेहम्,-वेश्मन् (नपुं०) आनन्द घूमना / भवन - रघु० 8 / 95, -अङ्ग (वि०) ललित अंगों लुठित (भ० क. कृ०) लठ-+क्त] लोटा हआ, लोटता वाला,---अब्जम् .. अम्बुजम्,-अरविन्दम्,-कमलम्, हुआ या जमीन पर लुढ़कता हुआ। -तामरसम्,--पद्मम् 'कमल-खिलौना' कमल का लुङ / (भ्वा० पर० लोडति) हरकत देना, क्षुब्ब करना, फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो| बिलोना, आलोडित करना-प्रेर० (लोडयति--ते) - रघु० 6 / 13, मेघ० 75, कु० 684, --- अवतारः हरकत करना, विलोना, विलोडित करना (इसी अर्थ में (विष्णु का) पृथ्वी पर मनोरंजन के लिए उतरना, 'वि' उपसर्ग के साथ प्रयुक्त)-शि० 1118, 19169 / ----उद्यानम् 1. प्रमोदवन 2. देववन, इन्द्र का स्वर्ग, | ii (तुदा० पर० लुडति) 1. जुड़ना, चिपकना 2. ढकना। लहः 'क्रीडामय कलह' तु० प्रणय कलह,-चतुर लण्ट (भ्वा० पर० लूटति) 1. जाना 2. चुराना, लूटना, (वि.) विशुद्ध मनोहर, -मनुष्यः कपटी मनुष्य, छद्म खसोटना 3. लंगड़ा या विकलांग होना 4. आलसी या वेशी,-मात्रम् क्रीडामात्र, केवल खेल, बच्चों का सुस्त होना। खेल, अनायास, - रतिः (स्त्री०) मनोविनोद, क्रीडा, ___ii (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० लुण्टयति-ते) 1. लूटना, -- वापी आनन्दबावडी,--- शुकः आनन्द के लिए पाला खसोटना, चुराना 2. अवज्ञा करना, घृणा करना। हुआ तोता। | लुण्टाक (वि.) (स्त्री०--की) [ लण्ट +षाकन ] चोरी लीलायितम् / लीला+वयच-+-क्त ] खेल, क्रीडा, मनो- करने वाला (आलं० से भी) लुटेरा, डाक-तरुणानां रंजन, आनन्द / हृदयलुण्टाकी परिप्वक्कमाणां निवारयति काव्य. लीलावत् (वि.) [लीला+मतुप, मस्य वः] क्रीडामय, 10, आ: सितशकुनयः केयं लुण्टाकता-बालरा० 5 / खिलाड़ी, ती 1. मनोहर या लायण्यवती स्त्री | लुण्ठ (म्बा० पर० लुण्ठित) 1. जाना 2. हरकत देना, 2. शृंगारप्रिय या स्वेच्छाचारिणी स्त्री 3. दुर्गा का | क्षुब्व करना, गति देना 3. सुस्त होना 4. लँगडा नाम। | होना 5. लूटना, खसोटना 6. मुकाबला करना। For Private and Personal Use Only Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 881 ) लुण्ठकः [ लुण्ठ /- बुल ] लुटेरा, डाकू, चोर / तीन पद लुप्त हो गये हों-दे० काव्य० 10 उपमा के लुण्ठनम् [लुण्ठ / ल्युट् ] खसोटना, लूटना, चुराना,--यदस्य अन्तर्गत, -- पद (वि) न्यून पदों से युक्त, पिंडोदक दैत्या इव लुण्ठनाय काव्यार्थचौरा: प्रगुणीभवन्ति क्रिया (वि०) श्राद्धकर्म से विरहित,-प्रतिज्ञ (वि०) ----विक्रमांक० 111 / जिसने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी है, श्रद्धाहीन, विश्वासलुण्ठा [लुण्ड्+अ+टाप्] 1. लूट, खसोट 2. लुढ़क-पुढ़क / घाती, प्रतिभ (वि०) तर्कनाशक्ति से हीन / / लुण्ठाकः लुण्ठ +पाकन् 1. लुटेरा 2. कौवा / लुब्ध (भू० क० कृ०) [लुभ्+क्त] 1. लालची, लोभी, लुण्ठिः, --ठी (स्त्री) (लुण्ठ | इन्, लुण्ठि + ङीष् ] खसोटना, लोलुप 2. इच्छुक, लालायित, उत्सुक यथा धनलुब्ध, लूटना, डकैती डालना। मांसलुब्ध और गुणलुब्ध आदि में, ब्धः 1. शिकारी लुण्ड् (चुरा० उभ० लुण्डयति-ते) खसोटना, लूटना उकैती 2. स्वेच्छाचारी, लम्पट / डालना। लुब्धकः [लुब्ध+कन्] 1. शिकारी, बहेलिया, मगमीनसलुण्डिका [लण्ड +इन+कन्+टाए] 1. गोल पिंडी, गेंद ज्जनानां तृणजलसंतोषविहितवृत्तीनाम् , लुब्धक धीवर2. उचित चाल चलन / पिशुना निष्कारणवैरिणो जगति - भर्त० 2061 लुण्डी लुण्डि + डी] उचित या शोभन चालचलन / 2. लोभी या लालची पुरुष 3. स्वेच्छाचारी 4. उत्तरी लुन्थ् (भ्वा० पर० लुन्थति) 1. प्रहार करना, चोट गोलार्द्ध का एक तेजस्वी तारा।। पहुंचाना, मार डालना 2. भुगतना, पीड़ित होना, लुभ् (दिवा० पर० लुभ्यति, लुब्ध) 1. लालच करना, कष्ट उठाना / लालायित होना, उत्सुक होना (सम्प्र० या अधि० के लुप्त (दिवा० पर० लप्यति) 1. घबड़ा देना, विस्मित साथ)-- तथापि रामो लुलभे मृगाय 2. रिझाना, फुसकरना 2. विस्मित हो जाना या घबड़ा जाना। लाना 3. घबरा जाना, विस्मित होना, भटकना-प्रेर० i (तुदा० उग० लम्पति-ते, लुप्त 1. तोड़ना, भंग करना, (लोभयति-ते) 1. ललचाना, लालायित करना, काट देना, नष्ट करना, क्षतिग्रस्त करना अनुभव उत्कंठित करना--पुप्लुवे बहु लोभयन् भट्टि० 5 / वचसा सखि लपसि--- 0 4 / 105 2. अपहरण 482. वासना को उत्तेजित करना 3. फुसलाना, करना, बञ्चित करना, ठगना, लूटना 3. छीन लेना, बहकाना, प्रलोभन देना, आकृष्ट करना-लोभ्यमानझपट्टा गार लेगा . लोप करना, दबा देना, ओझल नयनः श्लथांशुमखलागुणपनितम्बिभिः रघु० 19 // करना - कर्मवा० (लुप्यते) 1. भंग होना, टूट जाना 26 . अस्तव्यस्त करना, अव्यवस्थित करना, व्याकुल 2. लुप्त होना, नष्ट होना, ओझल या लोप होना, करना, प्र , ललचना या इच्छुक होना (प्रेर०) (व्या० में) प्रेर० (लोपयति-ते) 1. तोड़ना, भंग रिझाना, आकृष्ट करना, फुसलाना, पि-, अव्यवस्थित करना, उल्लंघन करना, अपकार करना 2. भूल या अस्तव्यस्त होना भट्टि० 9140, (प्रेर०) रिझाना जाना, उपेक्षा करना, क्युिक्त करना. रघु०१२।९, फुसलाना, आकृष्ट करना स्मर यावन्न विलोभ्यसे इच्छा० (ललप्सति, लुलोपिपति)-पाङन्त लोलप्यते दिवि - कु० 4 / 20, अङ्गनास्तमधिकं व्यलोभयन् या लोलोप्ति; अव--प्र-, अपहरण करना, नष्ट (मखः)-रघु० 19 / 10 2. बहलाना, मनोरंजन करना वि.1. तोड़ देना, खींच कर भग्न कर देना, करना, रिझाना---क्व दृष्टि विलोभयामि-श०६ / काट देना 2. छीन लेना, खसोटना, लूट | लुम्ब (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० लुम्वति, लुम्बयति - ते) लेना, उठा कर भाग जाना 3. विगाड़ना नष्ट सताना, तंग करना।। करना, वर्वाद करना, ओझल करना-प्रियमत्यत्तविल | लुम्बिका [ लुम्ब्+ण्वुल+टाप्, इत्वम् ] एक प्रकार का प्तदर्शनम् -कु० 4 / 2, 'सदा के लिए ओझल हो गया' वाद्ययंत्र / उत्तर० 3 / 28 5. पोंछ देना, मिटा देना। लल (भ्वा० पर० लोलति ललित) 1. लोटना, इधर-उधर लुप्त (भू० क० कृ०) [लुप्+क्त] 1. टूटा हुआ, भग्न, लुढ़कना, इधर उधर घूमना, करवटें बदलना-ललि क्षतिग्रस्त, नष्ट 2. खोया हुआ, वञ्चित रघु० तादृष्टि गदादिव वस्खले-कि० 1816, शि० 372, 14156 3. लूटा गया, ठगा गया 4. हटाया गया, 10 / 36 2. हिलाना, हरकत देना, क्षुब्ध करना, कंपालोप किया गया, ओझल या लोप हआ (व्य.. में) यमान करना, अब्यबस्थित करना 3. दबाना, कुचलना 5. भुल से रहा हुआ, उपेक्षित 6. व्यवहारातीत, ---दे० नी० 'ललित, प्रेर० (लोलयति ते) हिलाना, अप्रयुक्त, अप्रचलित उत्तर 3 / 33, दे० लुप् प्तम् चालित करना शि० 9 / 5, आ--, जरा छूना चुराई हुई संपत्ति, लट का माल / सम० उपमा मालवि०२१७, वि-- 1. इधर उधर चक्कर काटना खंडित पा न्यून पद उपमा अर्थात् वह उपमा जिसमें 2. हिला देना, कम्पायमान करना 3. अव्यवस्थित उपमा के आवश्यक चारों अंगों में से एक, दो, अथवा / करना, अस्तव्यस्त करना, (बालों को) छितराना। 111 For Private and Personal Use Only Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 882 ) लुलापः, लुलायः [लुल घार्थे क, तमाप्नोति अण् ] भैंसा, ममेति नोत्तरमिदं मुद्रा मदीया यतः मुद्रा०५।१८, –खुरविधुरधरित्री चित्रकायो लुलायः / / निर्धारितेऽर्थे लेखेन खल क्त्वा खल वाचिकम् .. शि० लुलित (भू० क० कृ०) [लुल्+क्त ] 1. हिलाया हुआ, 2170, अनंगलेख--कु० 27, मन्मथलेख-श० 33 करवट बदला हुआ, इधर उधर लुढ़का हुआ, कम्पाय- 26 2. देव, सुर / सम० अधिकारिन (पुं०) पत्र मान, लहराता हुआ-सुरालयप्राप्तिनिमित्तमम्भस्त्र- लिखने का कार्य भारवाहक, (राजा का) सचिव, स्रोतसं नौलुलितं ववन्दे .. रघु०१६।३४,५९2. अशान्त - अर्हः एक प्रकार का ताड़ का वृक्ष, - ऋषभः इन्द्र किया हुआ, दुःखित-लुलितमकरन्दो मधुकरैः--वेणी. का नामांतर, पत्रम्,- पत्रिका 1. पत्र में लिखी 1 / 1 3. अव्यवस्थित, (बाल) छितराये हुए-ऋतु० ! कविता, पत्र, लेख या लिखावट 2. लेख्य या पट्टा, 4114 4. दबाया हुआ. कुचला हुआ, क्षत्रिग्रस्त -- श० दस्तावेज़ (विधि), - संदेशः लिखा हुआ संदेसा,-हारः 3 / 27 5. दबाने वाला, मर्मस्पर्शी,-...अनतिललितज्या- -हारिन् (पुं०) पत्रवाहक / घातांक (कनकवलयम्)-श० 3.14 6. थका हुआ, लेखकः [लिख + बुल] 1. लिखने वाला, लिपिक, लिपिझुका हुआ-अलसलुलितमुग्धान्यध्वसंजातखेदात् कार 2. चितेरा। सम... दोषः,-प्रमादः, लिपिक (अंगकानि) --उत्तर. 11 24, मा. 1115 3 / 6 की भूल-चूक, लिपिकार की त्रुटि / 7. प्रांजल, सुन्दर वनं लुलितपल्लवम् भट्टि. लेखन (वि०) (स्त्री०-नी) लिख्+ल्युट्] लिखने वाला, 9/56 / चितेरा, खुरचने वाला आदि,-नः एक प्रकार का नरलम् (म्वा० पर० लोषति) दे० 'लू' / कूल जिसके कलम बनते हैं,-नम् 1. लिखना, प्रतिलिपि लषभः [ रुषेः अभच् नित् लुश् च ] मदोन्मत्त हाथी / करना 2. खुरचना, छीलना 3. चराई, स्पर्श करना लुह. (म्वा० पर० लोहति) लालच करना, उत्सुक होना, 4. पतला करना, कृश या दुबला करना 5. ताड़पत्र लालायित होना। तु. 'लुभ्। (लिखने के लिए),-नी 1. कलम, लिखने के लिए लू (क्रपा० उभ० लुनाति लुनीते, लून---प्रेर० लवयति नरकुल, नरकुल का कलम 2. चम्मच / सम० --ते, इच्छा. लुलषति--ते) 1. काटना, कतरना, --साधनम् लिखने की सामग्री या उपकरण / चुटकी से पकड़ना, वियुक्त करना, विभक्त करना, लेखनिकः लेखन+ठन् पत्रवाहक / तोड़ना, लुनाई करना, (फूल) चुनना-शरासनज्या- लेखिनी लेख+ल्युट-डीप्] 1. कलम 2. चम्मच / मलनाद बिडोजस:--- रघु० 3 / 59, 7 / 45, 12 / 43 / लेखा लिख+अ---टाप] 1. रेखा, धारी, लकीर-कान्तिभ्रं-पुरीमवस्कन्द लुनीहि नन्दनम्-शि० 151, क्रीडन्ति वोरायतलेखयोर्या कु० 1147, कु० 7.16, 87, काकरिव लूनपक्षः- पंच० 11187, कु० 3 / 61, कि० 1642, मेघ० 44, विद्युल्लेखा, फेनलेखा, भग० 9 / 80 2. काट देना, पूर्णत: नष्ट कर देना, मदलेखा आदि 2. लकीर, सीता या खड, पंक्ति, विध्वंस करना-लोकानलावीद्विजितांश्च तस्य-भट्टि० चौड़ी धारी 3. लिखावट, रेखांकन, आलेखन, चित्रण 2053, आ. ., आहिस्ता से उखाड़ना-कु० 2141, -पाणिलेखाविधिषु नितरां वर्तते किं करोमि--- मा० वित्र-, काटना, छाँटना, उखाड़ देना-उत्तर० 315 / 4135 4. दूज का चाँद, चाँद को रेख- लब्धोदया लूता [लू+तक+टाप् ] 1. मकड़ी 2. चींटी। सम० चांद्रमसीव लेखा कु० 25, 2 / 34, कि० 5 / 44 ....-तन्तुः मकड़ी का जाल, मर्कटक: 1. लंगूर 2. एक 5. आकृति, समानता, छाप, निशान.. उपसि सयावकप्रकार का चमेली का फूल / सव्यपादलेखा--कि० 5 / 40 6. गोट, किनारी, अंचल, लूतिका [लूता+कन्+टाप, इत्वम् ] मकड़ी। झालर 7. चोटी। लन (भू० क० कृ०) [लू+क्त ] 1. काटा गया, छाँटा | लेख्य (वि.) [लिख्+ण्यत्] अंकित किये जाने के योग्य, गया, वियुक्त किया गया, काट दिया गया 2. तोड़ा लिखे जाने योग्य, रंग भरे जाने योग्य, खरचे जाने गया, (फूल आदि) चुने गये 3. नष्ट किया हुआ योग्य,---ख्यम् 1. लिखने की कला 2. लिखना, प्रति4. कर्तन किया गया, कुतरा गया 5. घायल किया | लिपि करना 3. लेख पत्र, दस्तावेज़, हस्तलेख 4 शिलागया,-नम् पूंछ। लेख 5. चित्रण, रेखांकण 6. चित्रित आकृति / सम० लमम् [ल+मक] पूंछ। सम-विषः 'जहरीली पंछ ---आरूढ,- कृत (वि०) लिख लिया गया, लिख वाला' वह जानवर जो अपनी पूंछ से डंक मारता है। कर रखा गया,-गत (वि.) चित्रित, चित्रचित्रित, लन् (म्वा० पर० लूषति) 1. चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त ..... चूणिका कूची, तूलिका,- पत्रम्,-पत्रकम् 1. लेख, करना 2. लूटना, डकैती डालना, चुराना। पत्र, दस्तावेज़ 2. ताड़ का पत्ता, प्रसङ्गः दस्तावेज, लेखः [लिख+घन] 1. लिखावट, दस्तावेज़, (किसी- ---स्थानम् लिखने का स्थान / प्रकार का) लिखा हुआ दस्तावेज़, पत्र --लेखोऽयं न | लेण्डम् (नपुं०) विष्ठा, मल / For Private and Personal Use Only Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 883 ) लेतः,-तम् (पुं०, नपुं०) आँसू / / दे० तत्स्थानीय (प्रतीत होता है कि मम्मट ने इस लेप् (भ्वा० आ० लेपते) 1. जाना, हिलना-जुलना | अलंकार को 'विशेष' के साथ मिलाया है-दे० काव्य. 2. पूजा करना। 10, 'विशेष' के नीचे तथा भाष्य)। सम०-उक्त (वि.) लेपः [लिप | घा] 1. लीपना, पोतना, मालिश करना. सुझावमात्र, संकेतित, वक्रोक्ति द्वारा सूचित / ----याज्ञ० 11188 2. उबटन, मल्हम, अनुलेप 3. पल- लेश्या (स्त्री०) प्रकाश, रोशनी। स्तर करना (सफ़ेदी करना या चूना पोतना) | लेष्टुः [लिष्+तुन ढेला, मिट्टी का लौंदा। सम०-भेवनः 4. हाथों की पोंछन 3. हाथों में चिपके भोजन का वह उपकरण जिससे ढेले फोड़े जाते हैं। अवशेष) जब कि श्राद्ध में सबसे पहले तीन पुरुषाओं | लेसिकः (पुं०) गजारोही, हाथी पर चढ़ने वाला। पितृ, पितामह और प्रपितामह-को श्राद्ध में लेहः [लिह+-घा] 1. चाटना, आचमन, जैसा कि 'मधुनो आहुतियाँ प्रस्तुत करने के पश्चात्; (प्रपितामह के / वेहः'-भट्टि० 6682 में 2. चखना 3. चाट, चटनी पश्चात्; यह पोंछन तीन पूर्वपूरुषों को प्रस्तुत की 4. भोज्य पदार्थ / जाती है अर्थात् चौथी पांचवीं और छठी पीढ़ी के लेहनम् [लिह+ल्युट चाटना, जिह्वा से आचमन करना। पितृतुल्य पूर्वपुरुषों को)-लेपभाजश्चतुर्थाद्याः पित्राद्याः लेहिनः [लिह+इकन्] सुहागा / पिण्ड भागिनः 5. धब्बा, दाग, दूषण, कालष्य 6. नैतिक लेद्य (वि०) [लिहण्यत् चाटे जाने या चाट कर खाये अपवित्रता, पाप 7. भोजन। सम० करः पलस्तर जाने के योग्य, जीभ से लपलप पीने के योग्य,-ह्यम् करने वाला, सफ़ेदी करने वाला, ईंट की चिनाई 1. कोई भी चाटकर खाई जाने वाली वस्तु (जैसे कि करने वाला,--भागिन, भुज् (पुं०) चौथी, पांचवीं ___ कोई भोज्यपदार्थ), चाट 2. भोजन, और छठी पीढ़ी के पितृसंबंधी पूर्वपुरुष मनु० | लैडम [ लिङ्गस्य इदम्-लिङ्ग-+अण् ] अठारह पुराणों 41216 / में से एक पुराण का नाम / लेपकः [लिप्+पवुल ] पलस्तर करने वाला, राज, सफेदी | लैद्धिक (वि.) (स्त्री० की)[ लिङ्ग-+-ठण् ] 1. किसी करने वाला। "चिह्न या निशान पर निर्भर या तत्संबंधी 2. अनुमित, लेपनः [ लिप् + ल्युट ] धूप, लोवान,-नम् 1. मालिश करना -कः प्रतिमाकार, मूर्तिकार / / पोतना, लीपना ..या० 11188 2. पलस्तर, मल्हम | लोक i (म्वा० आ० लोकते, लोकित) देखना, नज़र डालना, 3. चूना, सफ़ेदी 4. मांस, मोटाई। प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, अब देखना, निगाह डालना लेप्य (वि०) [लिप्+ण्यत् ] लीपे या पोते जाने के योग्य, -नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् ---प्यम् 1. लीपना. पोतना 2. ढालना, मूर्ति बनाना, -भर्तृ० 2 / 93, आ-,देखना, निगाह डालना, प्रत्यक्षज्ञान आदर्श या प्रतिरूपण बनाना। सम०---कृत् (पुं०) प्राप्त करना- भट्टि० 2 / 24 / / 1. प्रतिमाकार 2. ईंट का रहा लगाने वाला, - (स्त्री) ii (चुरा० उभ० या प्रेर० लोकयति-ते, लोकित) वह स्त्री जिसने उबटन का लेप किया तथा तैलादिक 1. देखना, निगाह डालनी, निहारना, प्रत्यक्षज्ञान से शरीर सुवासित किया हुआ है। प्राप्त करना 2. जानना, जानकार होना 3. चमकना लेप्यमयो [लेप्य मयट् +डीप् ] गुड़िया, पुतली। 4. बोलना, अव-, 1. देखना, निहारना, निगाह लेलायमाना [लेला इवाचरति क्यच् +-शानच्+टाप्] डालना --परिक्रम्यावलोक्य (नाटकों में) 2. मालूम ____ अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। करना, जानना, निरीक्षण करना-अवलोकयामि लेलिहः [लिह---यङ, लुक द्वित्वादि, ततः अच्] सर्प, सांप। कियदवशिष्टं रजन्याः-श०४ 3. परखना, मनन लेलिहानः [ लिह / यङ्, लुक, द्वित्वादि, ततः शानच् ] करना, विमर्श करना—कु० 8150, रघु० 8174, ____ 1. सर्प, साँप 2. शिव का विशेषण / आ ---, 1. देखना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, निहारना, लेशः [लिश्न-घश] 1. थोड़ा सा टुकड़ा, अंश, कण, अणु, निगाह डालना 2. खयाल करना, विचार करना, अत्यन्त तुच्छ मात्रा, क्लेश) पाठा० स्वेद)-लेशरभिन्नम् ध्यान देना-तणमिव जगज्जालमालोकयामः... भर्तृ० -श० 2 / 4, श्रमवारिलेशः --कू० 3138, इसी प्रकार 3166 3. जानना, मालम करना 4. अभिवादन करना, भक्ति', गण आदि 2. समय की माप (दो कलाओं बधाई देना, वि-., 1. देखना, निहारना, निगाह के बराबर 3. (अलं० में) एक प्रकार का अलंकार जिस डालना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना विलोक्य वृद्धोक्षमें इष्ट का अनिष्ट के रूप में तथा अनिष्ट का इष्ट के मधिष्ठितं त्वया महाजनः स्मेरमुखो भविष्यति कु० रूप में वर्णन विद्यमान होता है, रस० में इसकी परि- 5 / 70, रघु० 2 / 11, 6 / 59 2. तलाश करना, ढूंढना। भाषा --गुणस्यानिष्टसाधनतया दोषत्वेन दोषस्येष्ट-लोकः [लोक्यतेऽसौ लोक+घन] 1. दुनिया, संसार, साधनतया गुणत्वेन च वर्णनं लेशः; उदाहरणों के लिए। विश्व का एक प्रभाग (स्थूलरूप यदि कहा जाय तो For Private and Personal Use Only Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक तीन है स्वर्गपृथ्वी और पाताल लोक; अधिक विस्तृत वर्गीकरण के अनुसार लोक चौदह है; सात तो पृथ्वी से आरम्भ करके ऊपर क्रमशः एक दूसरे के ऊपर अर्थात् 'भूर्लोक भवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, और सत्य या ब्रह्मलोक, तथा अन्य सात पृथ्वी से नीचे की ओर एक दूसरे के नीचे अर्थात् अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल) 2. भूलोक, पृथ्वी इहलोके 'इस संसार में' (विप० परत्र) 3. मानव जाति, मनुष्य जाति, मनुष्य- लोकातिग, लोकोत्तर इत्यादि 4. प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति (विप० राजा) स्वसुखनिरभिलाषः खिद्यसे लोकहेतोः -- श० 5 / 7, रघु० 418 . समुदाय, समूह, समिति आकृष्टलीलान् नरलोकपालान् रघु०६।१, शशाम तेन क्षितिपाललोकः .-7 / 3 6. क्षेत्र, इलाका, जिला प्रान्त 7. सामान्य जीवन, (संसार का) सामान्य व्यवहार --लोकवत्त लीलाकैवल्यम् .. ब्रह्म० 21133, यथा लोके कस्यचिदाप्तषणस्य राज्ञः शारी० (इसी ग्रन्थ के और अन्य स्थल) 8. सामान्य लोक प्रचलन (विप० वैदिक प्रयोग या वाग्धारा- वेदोक्ता बैदिका: शब्दाः सिद्धा लोकाच्च लौकिकाः प्रियतद्धिता दाक्षिणात्या; यथा लोके वेदे चेति प्रयोक्तव्ये यथा लौकिकवैदिकेष्विति प्रयुञ्जते - महा० (और अन्य अनेक स्थानों पर)-अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः-भग० 15 / 18 1. दृष्टि, दर्शन 10. 'सात' या चौदह की संख्या। सम० - अतिग (वि.) असाधारण, अतिप्राकृतिक, -अतिशय (वि.) संसार के लिए श्रेष्ठ, असाधारण,---अधिक (वि०) असाधारण, असामान्य, सर्व पंडितराजराजितिलकेनाकारि लोकाधिकम् -भामि० 4 / 44, कि० 247,- अधिपः 1. राजा 2. सर, देव,-अधिपतिः संसार का स्वामी.-अनरागः 'मनुष्य जाति से प्रेम विश्वप्रेम, साधारण हितषिता, परोपकार, अन्तरम् 'परलोक' दूसरी दुनिया, भावी जीवन - रघु० 1169, 6 / 45, लोकान्तरं गम,- प्राप मरना, अपवादः सब लोगों में बदनामी, सार्वजनिक "निन्दा लोकापवादो बलवान्मतो मे रघु०१४।४०, –अम्यवयः लोककल्याण,--अयन: नारायण का नामांतर, ---अलोकः एक काल्पनिक पहाड़ जो इस पथ्वी को घेरे हुए है और निर्मल जल के उस समद्र से परे स्थित है जिसने सात महाद्वीपों में से अन्तिम प को घेर रक्खा है, इस लोकालोक से परे धोर अन्धकार है, और इस ओर प्रकाश है इस प्रकार यह पहाड़ इस दृश्ययान संसार को अन्धकार के प्रदेश से विभक्त करता है-प्रकाशश्चाप्रकाशश्च लोकालोक इवाचल:- रघु० 1168, (आगे की / व्याख्या के लिए दे० मा० 1079 पर डा. भाण्डारकर का नोट), ( को)दृश्यमान और अदृष्ट लोक, आचारः सामान्य प्रचलन, सार्वजनिक या साधारण प्रथा, लोकव्यवहार, आत्मन (10) विश्व की आत्मा, .. आदिः 1. संसार का आरंभ 2. संसार का रचयिता,-आयत (वि.) नास्तिकतासंबंधी, अनात्मवाद संबंधी, (--तः) भौतिकवादी, नास्तिक, चार्वाक दर्शन का अनुयायो,( तम) भौतिकवाद नास्तिकता, (इसके बर्णन को सर्वदर्शनसंग्रह के प्रथम अध्याय में देखिये),-आयतिकः नास्तिक, अनात्मवादी,-ईशः 1. राजा (संसार का प्रभु) 2. ब्रह्मा 3. पारा, उक्तिः (स्त्री०) 1. कहावत, लोकोक्ति 2. सामान्य चर्चा, लोकमत, उत्तर (वि०) असाधारण, असामान्य, अप्रचलित लोकोत्तरा च कृति: - भामि० 1169, 70, उत्तर० 27, (. र:) राजा, एषणा स्वर्ग की इच्छा, कण्टकः कष्ट देने वाला या दुष्ट पुरुष, मानवजाति का अभिशाप दे० कण्टक, कथा सर्वप्रिय कहानी, * कर्त, कृत (पं०) संसार का रचयिता, - गाथा परंपरा से लोगों में गाया जाने वाला गान, चक्षुस् (नपुं०) सूर्य, चारित्रम् लोकव्यवहार, जननी लक्ष्मी का विशेषण, जित (पं.) 1. बद्ध का विशेषण 2. संसार का विजेता, ----(वि.) संसार को जानने वाला, ज्येष्ठः बद्ध का विशेषण,-तत्वम् मनुष्यजाति का ज्ञान, तन्त्रम् जनतंत्र, तुषारः कपूर, त्रयम्, त्रयी सामूहिक रूप से तीनों लोक,- उत्खातलोकत्रयक ण्ट कैऽपि ___ रघु० 14 / 73, द्वारम् स्वर्ग का दरवाजा,--धातुः संसार का विशेष प्रकार का विभाजन, धातु (पुं०) शिव का विशेषण, नाथः 1. ब्रह्मा 2. विष्णु 3. शिव 4. राजा, प्रभु 5. बुद्ध, नेत (पुं०) शिव का विशेषण, ---...पः, पाल: दिक्पाल ललिताभिनय तमद्य भर्ता मरुतां द्रष्टुमना: सलोकपालः विक्रम० 2118, रघु० 2275, 289, 17178, (लोक पाल गिनती में आठ हैं-दे० अष्ट दिक्पाल) 2. राजा, प्रभ,-पक्तिः (स्त्री०) मनुष्यजाति का आदर, साधारण आदरणीयता, पतिः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण 3. राजा, प्रभु,-पथः, पद्धतिः (स्त्री०) साधारण व्यवहार, दुनिया का तरीका,—पितामहः ब्रह्मा का विशेषण, प्रकाशनः सूर्य,—प्रवादः किंवदन्ती अफ़वाह, सर्वसाधारण में प्रचलित बात, प्रसिद्ध (वि०) सुज्ञात, विश्वविख्यात,-बन्धुः,--बान्धवः सूर्य,-बाह्य, वाह्य (वि.) 1. समाज से बहिष्कृत, बिरादरी से खारिज 2. दुनिया से भिन्न, सनकी, अकेला (-- ह्यः) जातिच्युत व्यक्ति, मर्यादा मानी हुई या प्रचलित प्रथा,- मात (स्त्री०) लक्ष्मी का For Private and Personal Use Only Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेषण, मार्गः लोकसंमत प्रथा,-यात्रा 1. दुनिया / कान का कुंडल 5. काली या नीली वेशभूषा 6. धनुष के मामले, लौकिक जीवनचर्या, लोकव्यवहार----एवं की डोरी 7. स्त्रियों द्वारा मस्तक पर धारण किया किलयं लोकयात्रा महावी०७, यावदयं संसारस्ताव- जानेवाला आभूषण, टीका 8. मांसपिंड 9. साँप की प्रसिद्धवयं लोकयात्रा- वेणी० 3 2. सांसारिक केंचुली 10. झुरींदार चमड़ी 11. भौं जिसमें मुरियाँ अस्तित्व, जीवनचर्या मा० 4 3. आजीविका, वत्ति, पड़ी है 12. केले का पौधा / -- रक्षः राजा, प्रभु,-- रजनम् जनता को संतुष्ट | लोत्तनम् लोच+ल्युट] 1. देखना, दृष्टि, दर्शन 2. आँख करना, सर्वप्रियता, रवः जनश्रुति, सार्वजनिक चर्चा, | ---शेषान्मासान् गमय चतुरो लोचने मीलयित्वा-मेघ० लोचनम् सूर्य,--वचनम् सार्वजनिक किंवदन्ती, 110 / सम० गोचरः,-पथः, मार्गः दृष्टि परास, अफवाह-वादः किंवदन्ती, सामान्य चर्चा, सार्व- दष्टिक्षेत्र / जनिक अफवाह-मां लोकवादश्रवणादहासी:--रघु० लोद (भ्वा० पर० लोटति) पागल या मूर्ख होना। १४।६१,--वार्ता किवदन्ती, अफवाह, विद्विष्ट लोठः [लह --धा] भूमि पर लोटना, लुढ़कना / (वि०) जिससे सब लोग घृणा करते हों, जिसे लोग लोड (म्वा० पर० लोडति) पागल या मूर्ख होना। पसंद न करते हों, विधिः 1. कार्य विधि का प्रकार, लोडनम् [लोड-ल्युट ] अशान्त करना, उद्विग्न करना, लोक में प्रचलित प्रक्रिया 2. संसार का रचयिता, आलोडित करना / --- विश्रुत (वि०) दूर दूरतक मशहूर, जगद्विख्यात, | लोणारः [ लवण+ऋ---अण, पृषो० ] नमक का एक प्रसिद्ध, यशस्वी,---वृत्तम् 1. लोक व्यवहार, संसार प्रकार / में प्रचलित प्रथा 2. इधर उधर की बातें, गपशप, लोतः|ल-तन] 1. आँसू 2. निशान, चिह्न, निशानी। वत्तान्तः, व्यवहारः 1. लोकाचार, लोकरोति, लोत्रम [ल+प्टन ] चराई हई सम्पत्ति, लूट का माल, साधारण प्रथा-श० 52. घटनाक्रम,-श्रुतिः (स्त्री०), लोत्रेण (लोपत्रण) गहीतस्य कुम्भीलकस्यास्ति वा 1. जनश्रति 2. विश्वविख्यात कीति, संकरः संसार ! प्रतिवचनम-विक्रम०२ / की साधारण अव्यवस्था, -संग्रहः 1. समस्त विश्व, लोधः, लोध्रः / द्धि औष्ण्यम, रुघ-- रन 1 लाल या 2. लोककल्याण 3. लोगों की भलाई चाहना,-साक्षिन सफ़ेद फलों वाला वृक्ष विशप ... लोध्रगुम सानुमतः (पुं०) 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. अग्नि,-सिद्ध (वि०) प्रफुल्लं रघु०२।२९, मुखेन सालक्ष्यत लोध्रपाण्डना 1. लोगों में प्रचलित, रिवाजी, प्रथागत 2. लोक या 312, कु० 79 / समाज द्वारा स्वीकृत,-स्थितिः (स्त्री०) 1. विश्व लोपः [लप भावे घा] 1. हटा लेना, वंचना 2. हानि, का अस्तित्व या संचालन, सांसारिक अस्तित्व विनाश 3. उन्मूलन, अपाकरण, (प्रथाओं का) 2. विश्वनियम,-हास्य (वि.) संसार द्वारा उपहसित, उत्सादन, अन्तर्धान, अप्रचलन 4. उल्लंघन, अतिक्रमण उपहसित, लोकनिंदित, हित (वि०) मनुष्य जाति रघु० 1176 5. अभात्र, असफलता, अनुपस्थिति के लिए कल्याणकारी, ( तम्) जनसाधारण का / रघु० 1268 6. भूल-चूक, छूट-तबद्धर्मस्य लोपे कल्याण / स्यात् काव्य०१०7. अदर्शन, वर्णलोप (व्या० में), लोकनम् [लोक् + ल्युट] देखना, दर्शन करना, निहारना / अदर्शनं लोपः-पा० 111 / 60 / लोकम्पण (वि०) [लोक पण-क, मुमागमः] संसार में लोपनमलप-ल्यट] 1. उल्लंघन, अतिक्रमण 2. भलव्याप्त या संसार को भरनेवाला, लोकम्पणः परिमलैः चूक, छूट / परिपुरितस्य काश्मीरजस्य कटुताऽपि नितान्तरम्या ! लोपा, लोपामद्रा [लप-णिच ---अच्+टाप्, लोपा -भामि० 1170 / - आमुद्रा कर्म० स०] विदर्भराज की एक कन्या, लोच। (भ्वा० आ० लोचते) देखना, निहारना, प्रत्यक्ष / अगस्त्य मुनि की पत्नी (कहा जाता है कि विभिन्न ज्ञान प्राप्त करना, निरीक्षण करना (चुरा० जन्तुओं के अत्यन्त सुन्दर भागों से मुनि ने स्वयं इस उभ० या प्रेर० लोचयतिमे) दिखलाना, आ , कन्या का, निर्माण किया था जिससे कि उसे अपने 1. देखना, प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना 2. विचारना, मनोनुकल पत्नी मिल सके; उसके पश्चात् इसे चपविमर्श करना, चितन करना, सोचना आलोचयन्तो चाप विदर्भराज के महल में पहुँचा दिया गया जहाँ विस्तारमम्भसाक्षिणादधे:--भट्रि० 7 // 40 / / चर० यह राजा को पुत्री के रूप में पलती रही। बाद में उभ० लोचयनि-ते) 1. बोलना 2. चमकना। अगस्त्य मुनि के साथ इसका विवाह हो गया / लोपामुद्रा लोचम् [लोच +-अच् ] आँसू / ने अगस्त्य मुनि से कहा कि मझ से संबंध रखने के लोचकः [लोच / धुल] 1. मूर्य पुरुष 2. आँख की पुतलो लिए विपुल धनराशि प्राप्त करो। तदनुसार मुनि 3. दीपक की कालिख, काजल . एक प्रकार का पहले तो राजा श्रुतवन के पास गया, वहाँ से फिर For Private and Personal Use Only Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 886 ) और राजाओं के पास, इस प्रकार वह अत्यन्त धनाढय ज्जिघत्सन्तमिवान्तवहिम-कि० 3 / 20, लोलांशकस्य राक्षस इल्वल के पास गया, और उसे परास्त कर पवनाकुलितांशुकान्तम्- वेणी० 2122, लोलापाङ्गः उसकी विपुलधनराशि से अपनी पत्नी को सन्तुष्ट / लोचनैः मेघ० 27, रघु० 18543 2. विक्षुब्ध किया)। अशान्त, बेचैन, परेशान 3. चंचल, चपल, परिवर्ती, लोपाकः, लोपापकः[लोपम् आदर्शनमाप्नोति, लोप+आप अस्थिर / येन श्रियः संश्रयदोषरूढं स्वभावलोलेत्य +ण्वुल-] एक प्रकार का गीदड़, शृगाल। यशः प्रमृष्टम् - रघु० 6 / 41, इसी प्रकार कु० 1143 लोपाशः, लोपाशकः [लोपमाकूलीभावं चकितमश्नाति 4. अस्थायी, नश्वर-श० 1 / 10 5. आतुर, उत्सुक, लोप+अश्+अण, लोप---अश्+ण्वुल] गीदड़, उत्कण्ठित (प्रायः समास में)-अग्रे लोल: करिकलभको लोमड़। यः पुरा पोषितोऽभूत--उत्तर० 316, कर्णे लोल: लोपिन् (वि.) [लुप्+णिनि ] 1. क्षतिग्रस्त करने वाला, कथयितुमभुदाननस्पर्शलोभात-मेघ० 103, शि० नुकसान पहुँचाने वाला 2. लुप्त होने वाला। 1261, 18146, 10166, कि० 4 / 20, मेघ० 61, लोत्रम् [लुप्+वन् ] दे० 'लोत्रम्'। रघु०७२३, 9 / 37, 1654, ६१,-ला 1. लक्ष्मी लोभः[लभ घिस ] 1. लोलुपता, लालसा, लालच, का नाम 2. बिजली 3. जिहा। सम- अशि अतितृष्णा-लोभश्चेदगुणेन किम् - भर्तृ० 2055 (नपुं०) चंचल नेत्र, अक्षिका चंचल नेत्रों वाली 2. इच्छा, उत्कण्ठा (संबं० के साथ या समास मे) स्त्री,-जिह्व (वि०) चंचल जिह्वा से युक्त, लालची, -कङ्कणस्य तु लोभेन-हि. 115, आननस्पर्शलोभात --लोल (वि०) अत्यंत थरथराने वाला, सदैव –मेघ० 105 / सम०–अन्वित (वि०) लोलुप, बेचैन। लालची, लोभी,-विरहः लोलुपता का अभाव लोलुप (वि.) [लुभ् +यङ् अच्, पृषो० भस्य पः] बहुत -हि० 1 / उत्सुक, अत्यंत इच्छुक, लालायित, लालची--अभिनवलोभनम् लिभ+ल्युट ] 1. प्रलोभन, ललचाना, बहकाना, मधुलोलुपस्त्वं तथा परिचुंब्य चूतमंजरीम, कमलवसफुसलाना 2. सोना / तिमात्रनिर्वतो मधुकर विस्मतोस्येनां कथम-श. लोभनीय (वि.) [लुभ-अनीयर 1 फसलाने वाला 5 / 1, मिथस्त्वदाभाषणलोलुपं मनः- शि० 240, प्रलोभन देने वाला, आकर्षक, इसी प्रकार 'लोभ्य' / रघु० १९।२४,-पा लालसा, उत्कण्ठा, उत्सुकता।। लोमः (पुं०) पूंछ / लोलुभ (वि०) [लुभ+-यङ-अच्] अत्यन्त लालसायुक्त, लोमकिन (0) [लोमक+इनि] एक पक्षी / लालची--दे० 'लोलुप'। लोमन् (नपुं०) [लू+मनिन् ] मनुष्य और जानवरों | लोष्ट (भ्वा० आ० लोष्टते) ढेर लगाना, अंबार लगाना / के शरीर पर उगने वाले बाल-दे० रोमन् / सम० लोष्टः, ष्टम् [लुष + तन्] ढेला, मिट्टी का लौदाः--पर—अचा='रोमांच' दे०,-आलि:,-ली, आवलिः, द्रव्येषु लोष्टवत् यः पश्यति स पश्यति, समलोष्टकाञ्चनः -ली,-राजिः (स्त्री०) छाती से लेकर नाभि तक -- रघु० ८।२१,-ष्टम् लोहे का मोर्चा, जंग / सम० बालों की पंक्ति-दे० रोमादली आदि, कर्णः खरगोश, -नः,-भेदनः,-नम् ढेलों को फोड़ने का उपकरण, --कीटः, जूं, यूका,-कूपः,-गर्तः,-.-रंध्रम,-विव- पटेला, हेंगा। रम् खाल में छिद्र,-नम् दूषित गंज,--मणिः बालों लोष्टुः [लुष्+तुन्] ढेला, मिट्टी का लौंदा। से बनाया हुआ तावीज,-वाहिन् (वि०) पंखधारी, | लोह (वि०) [लूयतेऽनेन, लू+ह] 1. लाल, लाल रंग का –संहर्षण (वि.) पुलकित करने वाला, रोमांच पैदा 2. तांबे का बना हुआ, ताम्रमय 3. लोहे का बना करने वाला,--सारः पन्ना,-- हर्ष, हर्षण, हर्षिन् हुआ, हः हम् 1, तांबा 2. लोहा 3. इस्पात 4. कोई -दे० रोमहर्ष, हृत् (पुं०) हरताल / धातु 5. सोना 6. रुधिर 7. हथियार- मनु० 9 / 321 लोमश (वि.) [लोमानि सन्ति अस्य लोमन् श] 8. मछली पकड़ने का कांटा,-हः लाल बकरा, हम् 1. बालों वाला, ऊनी, रोएँदार 2. ऊनी 3. बालों अगर की लकड़ी। सम० अजः लाल बकरा,—अभिवाला,-शः भेड़, मेंढा, शा 1. लोमड़ी 2. गीदड़ी सारः, - अभिहारः 'नीराजन' से मिलता जुलता एक 3. लंगूर 4. कासीस / सम० ---मार्जारः गंधबिलाव। सैनिक-संस्कार, उत्तमम् सोना,-कान्तः लोहमणि, लोमाशः | लोमन् +अश्-+-अण ] गीदड़, शृगाल / चुम्बक, - कारः लुहार,-किट्रम लोहे का जंग,-घातकः लोल (वि.) [लोड्+अच, डस्य लः, लुल+घा वा] लुहार,-चूर्णम् रेतने से निकला हुआ लोहे का चूरा, 1. हिलता हुआ, लोटता हुआ, कांपता हुआ, दोलाय- लोहे का जंग, -जम् 1. कांसा 2. लोहे का बुरादा, मान, थरथराता हुआ, बहता हुआ, लहराता हुआ (जैसे - जालम् कवच,--जित् (पुं०) हीरा,-द्राविन् कि बाल, अलकें)-परिस्फुरल्लोल शिखाग्रजिह्व जग- (पुं०) सुहागा,-- नाल: लोहे का बाण,-पृष्ठः एक For Private and Personal Use Only Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 887 ) प्रकार का बगला, कंकपक्षी, - प्रतिमा 1. घन / वा ठण 1. सांसारिक, दुनियावी, भौमिक, पार्थिव 2. लोहमति, बद्ध (वि०) लोहे से युक्त या जिसकी / 2. साधारण, सामान्य, प्रचलित, मामूली, गंवारू नोक पर लोहा जड़ा हो,-मुक्तिका लाल मोती, | - उत्तर० 110 3. दैनिक जीवन संबंधी, सामान्यतः -- रजस् (नपुं०) लोहे का जंग, मोर्चा,----राजकम् / माना हुआ, सर्वप्रिय, प्रथागत-कु० 788 चांदी,-वरम् सोना, -शङ्कुः लोहे की सलाख, 4. सामयिक, धर्मनिरपेक्ष (विप० आर्ष, या शास्त्रीय) -- इलेषणः सुहागा,---संकरम् नीले रंग का इस्पात / मनु० 3 / 282 5. जो वैदिक न हो, सांसारिक (शब्द लोहल (वि.) लिोहमिव लाति-ला+क] लोहे का बना या उसका अर्थ) वाक्यं द्विविधं वैदिकं लौकिकं च हुआ 2. अस्पष्टभाषी, तुतला कर बोलने वाला। --तर्क० (दे० लोक 8 के नीचे उद्धृत महा.) लोहिका [लोह+ठन् -टाप् लोहे का पात्र / 6. संसार से संबंध रखने वाला-जैसा कि ब्रह्मलौकिक' लोहित (वि.) (स्त्री०-लोहिता, लोहिनी) [रुह में,-काः (ब०व०) सामान्य मनुष्य, संसार के लोग, +इतन्, रस्य ल.] 1. लाल, लाल रंग का,-म्रस्तां - कम् कोई साधारण लोकाचार / सम० - (वि.) सावतिमात्रलोहिततली बाह घटोत्क्षेपणात्-श० लोकव्यवहार को जानने वाला, लोक प्रथाओं से 1130, कु० 3 / 29, मुहुश्चलत्पल्लवलोहिनीभिरुच्चः परिचित-वनौकसोऽपि सन्तो लौकिकशा पयम् शिखाभिः शिखिनोवलीढा:--कि० 16153 -श०४। 2. तांबा, तांबे से बना हुआ,--त: 1. लाल रंग, लोक्य (वि०) [लोके भवः -- लोकन-व्य] 1. सांसारिक, 2. मंगल ग्रह 3. सांप 4. एक प्रकार का हरिण | दुनियावी, ऐहिक, मानवी 2. सामान्य, मामूली, 5. एक प्रकार के चावल,-ता आग की सात जिह्वाओं रिवाजी। में से एक, तम् 1. तांबा 2. रुधिर---मनु० 8 / 284, . लौड़ (म्वा० पर० लौडति) पागल या मूर्ख होना। 3. जाफरान, केसर 4. युद्ध 5. लाल चन्दन 6. एक | लौल्यम् [लोलस्य भावः ष्यत्र] 1. चंचलता, अस्थिरता, प्रकार का चन्दन 7. इन्द्र धनुष का अधूरा रूप / सम० चाञ्चल्य 2. उत्सुकता, उत्कण्ठा, लालच, लालसापूर्णता, -अक्षः 1. लाल रंग 2. एक प्रकार का सांप | अत्यन्त प्रणयोन्माद या अभिलाषा, जिह्वालोल्यात् 3. कोयल 4. विष्ण का विशेषण,-~-अङ्गगः मंगलग्रह, ! - - पंच० 1, रघु० 7161, 16176, 18130, कु. -अयस् (नपुं०) तांबा, अशोकः (लाल फूलों का) 6 / 30 / अशोक वृक्ष,-- अश्वः आग,-आननः नेवला,- ईक्षणः | लौह (वि०) (स्त्री०--ही) [लोह+अण्] 1. लोहे का (वि०) लाल आँखों वाला, उद् (वि.) लाल या बना हुआ, लोहा 2. ताम्रमय 3. धातु का बना रुधिर के समान लाल पानी वाला,-कल्माष (वि.) 4. तांबे के रंग का, लाल,-हम् लोहा, भट्टि० लाल धब्बों वाला,....क्षयः रुधिर का नाश, ग्रीवः 15154, हा कड़ाही। सम-आत्मम् (पुं०)-भूः अग्नि का विशेषण, ...चन्दनम् केसर, जाफ़रान,-पुष्पकः (स्त्री०) बायलर, कड़ाही, कड़ाह,-कारः लुहार, अनार का वृक्ष, * मृत्तिका लाल खड़िया, गेरु, | ---जम् लोहे का जंग,--बन्धः- धम् लोहे की बेड़ी, - शतपत्रम् लाल कमल का फूल / / जंजीर,--भाण्डम् लोहे का पात्र,--मलम् लोहे का जंग, लोहितक (वि.) (स्त्री० --तिका) [लोहित+कन्] --शकुः लोहे की सलाख / लाल, क: 1. लालमणि, -शि० 13152 2. मंगल | लोहितः / लोहित+अण्] शिव का त्रिशूल। ग्रह 3. एक प्रकार का चावल, ..कम् कांसा / लौहित्यः [लोहितस्य भावः ष्या स्वार्थे व्या वा] एक लोहितिमन् (पुं० ) [लोहित+इमनिच् ] लालिमा, नदी का नाम, ब्रह्मपुत्र---चकम्पे तीर्णलौहित्ये तस्मिन् लाली। प्राग्ज्योतिषेश्वरः - रघु० 8 / 81, (यहाँ महिल. बिना लोहिनी लोहित+डीष, तकारस्य नकारः] वह स्त्री किसी प्रमाण के कहता है तीर्णा लौहित्या नाम नदी जिसकी चमड़ी लाल रंग की हो। येन),--त्यम् लाली। लोकायतिकः [लोकायतमधीते वेद वा... लोकायत+ठकल्पी , --ल्यी (क्रया० पा० ल्पिनाति, ल्यिनाति) मिलना, चार्वाकमतानुयायी, नास्तिक, अनीश्वरवादी, भौतिक- सम्मिलित होना, मेलजोल करना / बादी। ल्वी (ऋया० पर० ल्विनाति) जाना, हिलना-जुलना, लौकिक (वि०) (स्त्री० -की) [लोके विदितः प्रसिद्धो हितो | पहुँचना / For Private and Personal Use Only Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 888 ) वः [वा-न-ड] 1. वायु, हवा 2. भुजा 3, वरुण 4. सभा / की खंटी,-स्थितिः (स्त्री०) कूल की अविच्छिन्नता धान 5. संबोधित करना 6. मांगलिकता 7. निवास, -रघु० 18 / 31 / आवास 8. समुद्र 9. व्याघ्र 10. कपड़ा 11. राहु, | वंशकः [वंश-+कन्] 1. एक प्रकार का गन्ना 2. बांस का - वम् वरुण (मेदिनी)-अव्य० की भांति, के समान __ जोड़ 3. एक प्रकार को मछली,-कम् अगर की 'जैसा कि' मणी वोष्ट्रस्य लम्बेते प्रियौ वत्सतरी मम- | लकड़ी। -- सिद्धा० (यहाँ शब्द 'व' अथवा 'वा' हो सकता है)। | वंशिका [वंश ठन्+टाप्] 1. एक प्रकार की बांसुरी, वंशः [वमति उगिरति वम् +श तस्य नेत्वम् | अगर की लकड़ी। 1. बाँस-धनवंशविशद्धोऽपि निर्गणः किं करिष्यति-हि वंशी (वंश+अच।डी] 1. बांसुरी, मुरली-न वंशीप्र० 23, वंशभवो गुणवानपि संगविशेषेण पूज्यते मज्ञासीदभुवि करसरोजाद्विगलिताम-हंस० 108, पुरुषः - भाभि० 1180 (यहां 'वंश' का अर्थ 'कूल या कंसरिपोयंपोहत स वोऽधेयांसि वंशीरवः गीत० 9 परिवार' भी है) मेव० 79 2. जाति, परिवार, 2. शिरा या धमनी 3. बंसलोचन 4. एक विशेष कुटुम्ब, परंपरा-स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्न- | तोल / सम० ..घरः,--धारिन् (पु.) 1. कृष्ण का तिम् -हि० 2, क्व सूर्यप्रभवो वंश:-रघु० 12, दे० विशेपण 2. वंशी बजाने वाला, वंशकरम, वंशस्थिति आदि 3. लाठी 4. बांसुरी, | वंश्य ( विवंशे भवः यत् 1. मुख्य शहतीर से संबंध रखने मुरली, अलगोझा या विपंचीनाड --कूजद्भिरापादित- वाला 2. मेरुदण्ड से संबंध रखने वाला 3. परिवरा वंशकृत्यं-रघु० 2 / 12 5. संग्रह, संघात, समुच्चय से संबंध रखने वाला 4. अच्छे कूल में उत्पन्न, उत्तम (प्रायः एक समान वस्तुओं का)-सान्द्रीकृतः स्यन्दन- कुल का 5. बंशवर, वंशप्रवर्तक,-श्य: 1. सन्तान परवंशचक्रः ---रघु० 739 6. आर-पार, शहतीर बर्ती (व० व०) . इतरेऽपि रपोर्वंश्या:---रघु० 15 // 7. (बांस में) जोड़ 8. एक प्रकार का ईख 9. रीढ़ / 35 2. पूर्वज, पूर्वपुरुष --नून मत्तः परं वश्या पिण्डकी हड्डी 10. साल का वृक्ष 11. लम्बाई नापने का विच्छेदशिनः रघु० 1166 3. परिवार का कोई एक विशेष माप (दस हाथ के बराबर)। सम० सदस्य 4. आरपार, शहतीर 5. भुजा या टांग की --- अङ्कम, * अङ्कुरः 1. बांस का किनारा 2. बांस का हड्डी 6. शिष्य / अंखुआ,... अनुकीर्तनम् वंशावली,-अनुक्रमः वंशावली, वंह, दे० वंह / -----अनुचरितम् एक परिवार या कूल का परिचय, ! वक् दे० बक् / -आवली, बंशतालिका, बंशविवरण,-आह्वः बंसलोचन. वकुल दे० बकुल / -कठिनः बांसों का झुरमुट,-कर (वि०) 1. कुल- बक (म्दा आo-पाते) जाना, हिलना-जुलना। प्रवर्तक 2. वंशस्थापक रघु० 18 / 31 (-रः) मूल- वक्तव्य (सं० कृ०) [ वच् +तत् ] 1, कहे जाने या पुरुष, कर्पूररोचना, रोचना, लोचना वंसलोचन, बोले जाने के योग्य, बात किये जाने या प्रकथन के तवाशीर,- कृत् पुं०) कुल संस्थापक, या वंशप्रवर्तक, योग्य - तत्तहि वक्तव्यं न वक्तव्यम् (महा० में अनेक -क्रमः वंशपरंपरा,-क्षीरी बंसलोचन,-चरितम् वार) 2. किसी विषय में कहे जाने के योग्य 3. गहकुलपरिचय,-चिन्तकः वंशावली जानने वाला, * छत्त णोय, दूषणीय, निन्दनीय 4. नोच, दुष्ट, कमीना (वि०) किसी कुल का अंतिम पुरुष,--ज (वि०) 5. स्पष्टव्य, उत्तरदायी 6. आश्रित,--व्यम् 1. बोलना, 1. कुल में उत्पन्न-रघु० 1131 2. सत्कुलोद्भव भाषण 2. विधि, नियम, सिद्धान्त वाक्य 3. कलंक, (-जः) 1. प्रजा, संतान, औलाद 2. बांस का बीज निन्दा, भर्त्सना / (-जम्) बंसलोरन, - नतिन (पुं०) नट, मसखरा, वक्त (वि०, या पुं०) [ बच्-|-तच | 1. बोलने वाला, -नाडि (लो) का बांस की बनाई बांसुरी,-नाथः किसी बातें करने वाला, वक्ता 2. वाकपट, प्रवक्ता--कि वंश का प्रधान पुरुष,--नेत्रम् ईख की जड़,--पत्रम् करिष्यन्ति बक्तारः श्रोता यत्र न विद्यते, दद्रा यत्र बांस का पत्ता (त्रः) नरकूल,..-पत्रकः 1. नरकुल वक्तारस्तत्र मौनं हि शोभनम्---सुभा० 3. अध्यापक, 2. पौंडा, गन्ने का श्वेत प्रकार, (-कम्) हरताल, व्याख्याता 4. विद्वान पुरुष, बुद्धिमान व्यक्ति। -परंपरा बंशानुक्रम, कुलपरंपरा, --पूरकम् गन्ने की | वक्तम् [ वक्ति अनेन वच-करणे ष्ट्रन् ] 1. मुख 2. चेहरा जड़, ---भोज्य (वि०) आनुवंशिक. (-ज्यम् ) आनुवंशिक यद्वक्त्रं मुहरीक्षते न धनिनां पेन चान्मपा भर्तृ० भूसंपत्ति, लक्ष्मीः (स्त्री०) कुल का सौभाग्य, विततिः 3 / 147 3. थूथन, प्रोथ, चोंच 4. आरम्भ 5. (बाण (स्त्री०) 1. परिवार, सन्तान 2. बांसों का झुरमुट, की ) नोक, किसी पात्र की टोंटी 6. एक प्रकार का ----शर्करा बंसलोचन, शलाका वीणा में लगी बाँस वस्त्र 7. अनुष्टुप् से मिलता-जुलता एक छन्द, दे० For Private and Personal Use Only Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 889 ) सा० द० 567, काज्या० 1126 / सम० ...आसवः। बक्रिन् (वि०) [वक्र-इनि ] 1. कुटिल 2. प्रतिगामी लार,-खुरः दांत, .....: वाहाण, तालम् मुंह (पुं०) जैन या बुद्ध / से बजाया जाने वाला वाद्ययन्त्र, --दल ताल, वक्रिमन् (पुं०) [ वक्र- इमनिच् ] 1. कुटिलता, वक्रता, ... पटः परदा, रन्ध्रम् मुखविवर, ---परिस्पन्दः / 2. वाक्छल, टालमटोल, संदिग्धता, चक्कर, घुमाव, भाषण,-भेदिन् (वि० ) चरपरा, तीक्ष्ण,-यासः (वाणी की) परोक्षता,--तद्वत्क्राम्बुजसौरभं स च सन्तरा,-शोधनम् 1. मुंह साफ करना 2. नींबू, सुधास्यन्दी गिरां वक्रिमा गीत०, 3 3. धूर्तता, चकोतरा,शोधिन् (नपुं०) चकोतरा (पुं०) चकोतरे चालाकी, मक्कारी। का वृक्ष। वक्रोष्टिः, वक्रोष्टिका (स्त्री०) [ वक्र: ओष्टो यस्यां वक्र (वि०) [ वक्--रन्, पृषो० नलोपः ] 1. कुटिल ब० स०, कप्-+टाप् इत्वम् ] मृदु सुसकान / (आलं० से भी) झुका हुआ, टेढ़ा, चक्करदार, घमा- वक्ष (भ्वा० पर० वक्षति) 1. वृद्धि को प्राप्त होना, वदार-वक्रः पन्था यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराशाम् बढ़ना 2. शक्तिशाली होना 3. क्रुद्ध होना 4. संचित - मेघ० 27, कु० 3 / 29 2. गोलमोल, परोक्ष, टाल होना। मटल, मण्डलाकार, घुमा फिरा कर बात कहना, | वक्षस् (नपु०) [ वह, असुन्, सुट् च ] छाती, हृदय, द्वयर्थक या सन्दिग्ध (भाषण)-किमेतर्वक्रमणितः सीना कपाटवक्षाः परिणद्धकन्धरः- रघु० 3 / 34 / ---रत्न०२, वक्रवाक्यरचनारमणीयः सुभ्रवां प्रव सम--जः,-ह, रुहः (वक्षोजः, वक्षोव्ह, वते परिहास:---शि० 10 / 12 दे० 'वक्रोक्ति' भी वक्षोरुहः) स्त्री की छाती--भामि० २११७,---स्थलम् 3. छल्लेदार, लहरियेदार, धुंघराले (बाल) 4. प्रति (वक्ष या वक्षः स्थलम्) छाती या हृदय / गामी (गति आदि) 5. बेईमान जालसाज, कुटिल वख्, वंख् (वखति, वंखति) जाना, हिलना-जुलना / स्वभाव का 6. कर, घातक (ग्रह आदि) 7. छन्दः वगाहः [भागुरिमते 'अवगाह' इत्यत्र अकारलोपः ] दे० शास्त्र की दृष्टि से गरु (दीर्घ),---: 1. मंगलग्रह | 'अवगाह। 2. शनिग्रह 3. शिव 4. त्रिपुर राक्षस,---फ्रम् 1. नदी बङ्कः [वक+अच् ] नदी का मोड़। का मोड़ 2. (ग्रह का) प्रतिगमन / सम... अगम् | वङ्का [ वक+टाप् | घोड़े की जीन की अगली मेंडी। टेढ़ा, अवयव (गः) 1. हंस 2. चकवा 3. साँप,-उक्तिः वकिलः [ बक+ इलच् ] कांटा। (स्त्री०) एक अलंकार का नाम जिसमें टालमटोल बद्धि [ वकि-- क्रिन, इदित्वात् धातोर्नुम् ] 1. (किसी करने वाली बात या तो श्लेषपूर्ण ढंग से कही जाती जानवर या भवन की पसली), (कुछ लोग इस शब्द है या स्वर बदल कर। मम्मट इसकी परिभाषा इस को स्त्रीलिंग बताते हैं) 2. छत का शहतीर 3. एक प्रकार देता है:---यदुक्तमन्यथा वाक्यमन्यथान्येन प्रकार का वाद्य यन्त्र (इन दो अर्थों में नपुं० भी)। योज्यते, श्लेपेण काक्वा वा ज्ञेया सा वक्रोक्तिस्तथा / वक्षुः [ वह+कुन्, नुम् ] गंगा नदी की एक शाखा / द्विधा-काव्य० 9, उदाहरण के लिए मुद्रा० का पङ्ग (म्वा० पर० वङ्गति) 1. जाना 2. लंगडाना, लंगड़ा आरम्भिक श्लोक (धन्या केयं स्थिता) देखिए | कर चलना। 2. बाकछल, कटाक्ष, व्यंग्य-सुबन्धुणिभदृश्च कवि- / वडगाः (ब० व०) [वन+अच 1 बंगाल प्रदेश तथा राज इति त्रयः, वक्रोक्तिमार्गनिपूणादचतुथों विद्यते उराके अधिवासियों का नाम ---बङ्गानुत्खाय तरण न वा 3. कटुक्ति, ताना, कष्टः बेर का पेड़, नेता नौसाधनोद्यतान्-रघु० 4 / 36, रत्नाकर समा___ कण्टफः खैर का वृक्ष,-खङ्गः, -खनकः कटार, रभ्य ब्रह्मपुत्रान्तग: प्रिये, वङ्गदेश इति प्रोक्तः,—ग: टेढ़ी तलवार, गति, गामिन् (वि०) 1. टेढ़ी चाल 1. कपास..बैंगन का पौण,-गम 1. सीसा 2. रांगा। वाला, चक्करदार 2. जालसाज, बेईमान,--ग्रीवः ऊँट | सम० अरिः हरताल,-जः 1. पीतल 2. सिंदूर, -चञ्चः तोता, तुण्डः .. गणेश का विशेषग 2. तोता, --जीवनम् चाँदी, शुल्यजम कांसा। ---वंष्ट्रः सूअर,...-दृष्टि (वि.) 1. 'भैगो आँख वाला, ऐंचाताना 2. विद्वषपूर्ण दृष्टि रखने वाला 3. डाह 3. आरम्भ करना, 4. निन्दा करना, दूषित करने वाला, (स्त्री०) तिरछी निगाह, तिर्यगदृष्टि, करना / -नक्रः 1. तोता 2. नीच पुरुष, नासिकः उल्लू, | वच (अदा० पर०) (आर्धधातक लकारों में आ० भी, -पुच्छः, पुच्छिकः कुत्ता, --पुष्णः हाक वृक्ष, कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि सार्वधातुक लकारों में, बालविः, लांगूलः कुत्ता, ---भावः 1. टेटान अन्यपुरुष बहुवचन के रूप सदोष होते हैं, तथा कुछ 2. धोखा, --वकः शूकर / के अनुसार समस्त बहुवचन में वक्ति, उक्तम्) वक्रयः (पुं० ) मूल्य, कीमत ('अवक्रयः' के बदले)। 1. कहना, बोलना-बैराग्यादिव वक्षि-काव्य० 10, 112 For Private and Personal Use Only Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 890 ) (प्रायः दो कर्मों के साथ)-तामचतुस्ते प्रियमप्यमिथ्या / उक्ति, स्थित (वि.) ('वचने स्थितः' भी) आज्ञा -रघु० 14 / 6, कभी कभी 'भाषण' अर्थ को बतलाने कारी, अनुवर्ती। वाले शब्दों के साथ दूसरी विभक्ति में--उवाच | वचनीय (वि.) [ वच् + अनीयर ] 1. कहे जाने, बोले धात्र्या प्रथमोदितं वचः .. रघु० 3150, 2059, क एवं जाने या वर्णन किये जाने के योग्य 2. निन्दनीय, वक्ष्यते वाक्यम् रामा० 2. वर्णन करना, बयान दुषणीय,...-यम् कलंक, निन्दा, निर्भर्त्सना-न कामकरना .. रघृणामन्वयं वक्ष्ये-.---रघु० 119 3. कहना, वृत्तिर्वचनीयमीक्षते - कु० 5 / 82, वचनीयमिदं व्यसमाचार देना, घोषणा करना, प्रकथन करना वस्थितं रमण त्वामनुयामि यद्यपि-४।२१, भवति .-उच्यतां मद्वचनात् सारथिः-श० 2, मेघ० 98 योजयितुर्वचनीयता-पंच० 175, कि० 9 / 39, 65, 4. नाम लेना, पुकारना-तदेकसप्ततिगणं मन्वन्तरमिहोच्यते- मनु० 1179, प्रेर०-(वाचयति ते) वचरः (पुं०) 1. मुर्गा 2. बदमाश, नीच, शठ, दुष्ट / 1. बुलवाना 2. निगाह डालना, पढ़ना, अवलोकन | किन | वचस् (नपुं०) [वच्+असुन् ] 1. भाषण, वचन, वाक्य, करना 3. कहना, बोलना, प्रकथन करना 4. प्रतिज्ञा -उवाच धाच्या प्रथमोदितं वचः-रघु०३१२५, 47, करना, इच्छा० (ववक्षति) बोलने की इच्छा करना, इत्यव्यभिचारि तद्वचः कु० 5 / 36, बचस्तत्र प्रयोक्त(कुछ) कहने का इरादा करना, अनु, बाद में कहना, व्यं यत्रोक्तं लभते फलम् सुभा. 2. हुक्म, आदेश, आवृत्ति करना, पाठ करना, (प्रेर०) ... मन में पढ़ना विधि, निषेधाज्ञा 3. उपदेश, परामर्श 4. (व्या० में) -नाममुद्राक्षराण्यनुवाच्य-श०१, निस् 1. अर्थ करना, वचन / सम० कर (वि.) 1. आज्ञाकारी, अनुवर्ती व्याख्या करना - वेदा निर्वक्तुमक्षमाः 2. वर्णन करना, 2. दूसरों की आज्ञा पालन करने वाला,-क्रमः प्रवचन, बोलना, प्रकथन करना, घोषणा करना 3. नाम लेना, --ग्रहः कान, प्रवृत्तिः (स्त्री०) भाषण करने का पुकारना, प्रति .., उत्तर में बोलना, जबाब देना, प्रयत्ल श० 7 / 17 / प्रतिवाद करना न चेद्रहस्यं प्रतिवक्तुमर्हसि-कु० वचसाम्पतिः [वचसां वाचां पतिः षष्ठया अलुक्] बुहस्पति 5 / 42, रघु० 348, वि-, व्याख्या करना, का विशेषण, गुरु ग्रह। सम्-कहना, बोलना। यज्म (भ्वा० पर० वजति) जाना, हिलना-जुलना, इधरबचः [ व+अच् ] 1. तोता 2. सूर्य, ..चा 1. मैना उधर घूमना। ji (चुरा० उभ० वाजयति-ते) पक्षी 2. एक सुगन्धित जड़, -चम् बोलना, बातें काटछांटकर ठीक करना, तैयार करना 2. बाण की करना। नोक में पर लगाना 3. जाना, हिलना-जुलना।। वचनम् [वच्+ल्युट 1. बोलने, उच्चारण करने या कहने | बज्रः,-ब्रम् [वज्+रन्] 1. वन, बिजली, इन्द्र का शस्त्र, की क्रिया 2. भाषण, उद्गार, उक्ति, वाक्य-ननु (कहते हैं कि इन्द्र का वन दधीचि की हडियों से वक्तृविशेषनिःस्पृहा गुणगृह्या वचने विपश्चितः बना था)-...-आशंसन्ते समितिय सुराः सक्तवरा हि --कु० 2 / 5, प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार दैत्यरस्याधिज्ये धनुषि विजयं पौरुहूते च वजे--श० -- मेघ० 4 3. दोहराना, पाठ करना 4. मूल, 2 / 15 2. इन्द्र के वच्च जैसा कोई भी घातक या वाक्य विन्यास, नियम, विधि, धार्मिक ग्रन्थ का सन्दर्भ विनाशकारी हथियार 3. हीरे की अणि, मणि माणिक्यों --शास्त्रवचनं, श्रुतिवचनं, स्मृतिवचनम् आदि को बींधने का उपकरण-मणौ वचसमुत्कीर्णे सूत्रस्ये5. आदेश, हक्म, निदेश, 'मद्वचनात् मेरे नाम से अर्थात् वास्ति मे गतिः रघु० 24 4. होरा, बज-वजामेरे आदेश से 6. उपदेश, परामर्श, अनुदेश 7. घोषणा, दपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि उत्तर० 217, प्रकथन 8. (व्या० में) (वर्ण का) उच्चारण 9. शब्द रघु० 6.19 . कांजी,- वः 1. एक प्रकार का की यथार्थता-अथ पयोधर शब्दः मेघवचनः 10.(व्या० सैनिकव्यूह 2. एक प्रकार का कुश नामक घास 3. अनेक में) बचन, (एकवचन, द्विवचन और बहुवचन - इस पौधों के नाम, --ज्रम् 1. इस्पात 2. अभ्रक 3. वज प्रकार वचन तीन होते हैं) 11. सूखा अदरक / जैसी या कटोर भाषा 4. बालक, बच्चा 5. आंवला। सम० उपक्रमः प्रस्तावना, आमुख, कर (वि०) सम०-अङ्गः साँप,-अभ्यासः अनुप्रस्थगुणन, अशनिः आज्ञाकारी, आदेश का पालन करने वाला,--कारिन् इन्द्र का वज, आकरः हीरों की खान, रघु० (वि.) आज्ञा पालन करने वाला, आज्ञाकारी, क्रमः १८।२१,---आख्यः एक वहुमूल्य पत्थर, मणि,-आघातः प्रवचन, --प्राहिन (वि०) आज्ञाकारी, अनुवर्ती, 1. बिजली का प्रहार 2. (अतः आलं. से) आकविनीत,—पट (वि०) बोलने में चतुर, --विरोधः स्मिक धक्का या संकट,-आयुधः इन्द्र का हथियार, विधियों की असङ्गति, विरोध, पाठ की अननुरूपता, -कटः हनुमान का विशेषण, कीलः वज, बिजली, -शतम् सौ भाषण, अर्थात् बार बार घोषणा, पुनरुक्त वज्र की कील - जीवितं वज्रकीलम् मा० 9137, For Private and Personal Use Only Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 891 ) तु० उत्तर. 147, --क्षारम् रिहाली मिट्टी,--गोपः, / वञ्चयः [ वञ्च-|-अथः] 1. ठगना, बदमाशी, धोखा, -इन्द्रगोपः वीरवहूटी, - चञ्चुः गिद्ध, * चर्मन् (पुं०)। चालाकी 2. ठग, बदमाश, उचक्का 3. कोयल।। गैडा, -जित् (पुं०) गरुड,-ज्वलनम्, ज्वाला | वञ्चनम्,-ना [वञ्च् + ल्युट्]1. ठगना, 2. दावपेंच, घोखा, बिजली,---तुण्ड: 1. गिद्ध 2. मच्छर, डाँस 3. गरुड जालसाजी, धोखादेही, चालाकी वञ्चना परिहर्तव्या 4. गणेश,--तुल्यः नीलम, --दंष्ट्रः एक प्रकार का बहुदोषा हि शर्वरी-मृच्छ० 1158, स्वर्गाभिसन्धिकीडा, -वन्तः 1. सूअर 2. चूहा,-वशनः एक चूहा, सुकृतं वञ्चनामिव मेनिरे-कु० 5 / 47 3. माया, भ्रम -देह,-देहिन् (वि०) दृढ शरीर वाला, धरः इन्द्र 4. हानि, क्षति, अड़चन-दृष्टिपातवञ्चना-मा० 3, का विशेषण----वज्रधरप्रभाव:-रघु० १८१२१,-नाभः रघु० 11136 / कृष्ण का (सुदर्शन) चक्र, निर्घोषः,-निष्पेषः बिजली वञ्चित (भू० क. क०)[ वञ्च्+क्त ] 1. प्रतारित, ठगा की कड़क, पाणिः इन्द्र का विशेषण-वजं मुमुक्ष- गया 2. विरहित, ता एक प्रकार की पहेली या निव वज्रपाणिः - रघु० 2 / 42, पात: बिजली का बुझौवल / गिरना, बिजली का आघात, पुष्पम् तिल का फूल | वञ्चक (वि.) (स्त्री०-को) [वञ्च-+-उकन् ] धोखे से - भत् (पुं० ) इन्द्र का विशेषण,- मणिः हीरा, पूर्ण, जालसाज, मक्कार, बेईमान,—कः गीदड़ / कड़ा पत्थर भर्तृ० २।६,-मुष्टिः इन्द्र का विशेषण, वजुलः [वञ्च् + उलच्, पृषो० चस्य जः]1. बेंत या नरकुल - रवः सूअर, लेपः एक प्रकार बड़ा कड़ा सीमेंट, -आम वञ्जुललतानि च तान्यमूनि नीरन्ध्रनील वज्रलेपघटितेव-मा० 5 / 10, उत्तर० 4 ( इसके निचुलानि सरित्तटानि-उत्तर० 2 / 23, या, मजलयोग से बनने वाले पदार्थों के लिए दे० बृहत् वज़ुलकुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले-गीत०१ 2. अ० ५७)--लोहकः चुम्बक,-व्यूहः एक प्रकार एक प्रकार का फूल 3. अशोकवृक्ष 4. एक प्रकार का का सैनिक व्यह, - शल्यः साही नामक जानवर, पक्षी। सम०-- द्रुमः अशोकवृक्ष,-प्रियः बेंत। -सार (वि.) पत्थर की भांति कठोर, बिजली बट् / (भ्वा० पर० वटति) घेरना। की शक्तिवाला, अत्यन्त कड़ा-क्व च निशित ___ii (चुरा० उभ० वाटयति-ते) 1. कहना, 2. बाँटना, निपाता वज्रसारा: शरास्ते श. 1110, त्वमपि विभाजन करना 3. घेरना, घेरा डालना। कुसुमबाणान्बज्रसारी करोषि---३१३,-सूचिः,-ची वटः [ वट् +अच् ] 1. बड़ का पेड़-अयं च चित्रकूटयायिनि (स्त्री० ) हीरे की सुई,-हृदयम् पत्थर जैसा वर्त्मनि वट: श्यामो नाम- उत्तर०१, रघु० 13153 कड़ा दिल। 2. छोटी शुक्ति या कौड़ी 3. छोटी गेंद, गोलिका, वचिन (0) वज्र-इनि] 1. इन्द्र--ननु वजिण एव बटिका 4. गोलअंक, शून्य 5. एक प्रकार की रोटी वीर्यमेतद्विजयन्ते द्विषतो यदस्य पक्ष्या:-विक्रम 6. डोरी, रस्सी (इस अर्थ में नपुं० भी) 7. रूप११५, रघु० 9 / 24 2. उल्लू।। सादृश्य / सम-पत्रम् श्वेत तुलसी का एक भेद वञ्च (भ्वा० पर० वञ्चति) 1.जाना, पहुँचना-दवञ्चुश्चा- (त्रा) चमेली,--वासिन् (पुं०) यक्ष / हवक्षितिम्-भट्टि. 14 / 74, 7 / 106 2. घूमना वटकः [ बट+कन्, वट्+क्वन वा ] 1. बाटी, एक प्रकार 3. चुपचाप चले जाना, खिसक जाना-प्रेर० (वंच की रोटी 2. छोटा पिंड, गेंद, गोली, वटिका / यति-ते) 1. टालना, बचना, खिसकना, बिदकना | बटरः [वट्+अरन् ] 1. मुर्गा 2. चटाई 3. पगड़ी 4. चोर, --अहिं वञ्चयति, अवञ्चयत मायाश्च स्वमायाभिर्नर- लुटेरा 5. रई का डंडा 6. सुगंधित धास / द्विषाम्-भट्टि० 8 / 43 2. ठगना, धोखा देना, जाल वटाकरः, बटारकः (पुं०) डोरा, डोरी। साजी करना (आ० मानी जाती है, पर बहुधा पर० वटिकः [वट+इन्+कन् ] शतरंज का मोहरा। भी)-मूर्खास्त्वामववञ्चत-भट्टि० 15 / 15, कथमय वटिका [वट+इन्+कन्+-टाप् ] 1. टिकिया, गोली वञ्चयसे जनमनुगतमसमशरज्वरदूनम् गीत० 8, 2. शतरंज का मोहा। (बन्धनं) वञ्चयन् प्ररवाप सः ---रघु० 19 / 17, कु० | वटिन् (वि०) [वट -+-इन् ] डोरीदार, वर्तुलाकार-पुं० 4 / 10, 5 / 49, रघु० 12 / 53 3. वंचित करना, दरिद्र -वटिक / करना रघु०७।८।। वटी [ वट् / अच-+ ङीष् ] 1. रस्सी या डोरी 2. गोली, वञ्चक (वि.) [वञ्च+णिच् वुल ] 1. जालसाज, | वटिका / घोखेबाज, मक्कार 2. ठगने वाला, धोखा देने वाला, | वटुः [ वटति अल्पवस्त्रम् -- वट+उः] 1. छोकरा, लड़का --क: 1. बदमाश, ठग, उचक्का 2. गीदड़ 3. छछूदर जवान, किशोर (बहुधा अंग्रेजी के 'चैप-chap 4. पालतू नेवला। या फैलो-fellow शब्द के समान प्रयोग) वञ्चतिः (पुं०) अग्नि, आग / चपलोऽयं वटुः -- श० 2, निवार्यतामालि किमप्ययं वटुः For Private and Personal Use Only Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 892 ) पुनर्विवक्षुः स्फुरितोत्तराधरः-कु० 5 / 83, तु० 'बटु' / वण्टनम् [ वण्ट् + ल्युट् ] विभाजन करना, अंश बनाना, से भी 2. ब्रह्मचारी। बाँटना या विभक्त करना। वटुकः [ बटु-+-कन् ] 1. छोकरा, लड़का 2. ब्रह्मचारी वण्टालः, वण्डालः वण्ट+आलच, पक्षे पुषो० टस्य डत्वम्] 3. मूर्ख, बुद्ध। 1. शूरवीरों की प्रतियोगिता 2. कुदाल, खुर्पा 3. नाव। वट (भ्वा० पर वठति) 1. बलवान् या शक्तिशाली होना | वण्ठ (भ्वा० आ० वण्ठते) अकेले जाना, बिना किसी को 2. मोटा होना। साथ लिए चलना / कठर (वठ् + अरन् ] 1. मन्दबुद्धि, जड़ 2. दुष्ट, - RH वण्ठ (वि०) [वण्ठ + अच् ] 1. अविवाहित 2. ठिंगना 1. मूर्ख या बुद्ध 2. बदमाश, या दुष्ट 3. वैद्य या 3. विकलाङ्ग,-8: . अविवाहित पुरुष, कुंआरा डाक्टर 4. जल-पात्र / / 2. सेवक 3. ठिंगना 4. भाला, नेजा। वडभिः ,---भी दे० बलभिः , -- भी। वष्ठरः [ वठ+अरन् ] 1. बांस का आवेष्टन, बाँस का वडवा बलं वाति बल+वा+क+टाप, डलयोरेक्यात् मोटा पत्ता 2. ताड का नया किसलय 3. (बकरे को) लस्य डत्वम्] 1. घोड़ी 2. अश्विनी नाम की अप्सरा बाँधने के लिए रस्सी 4. कुत्ता 5. कुत्ते की पूंछ जिसने घोड़ी के रूप में सूर्य के द्वारा अश्विनीकुमार 6. बादल 7. स्त्री की छाती। नाम के दो पुत्र उत्पन्न करवाये दे० संज्ञा 3. दासी वण्ड / (भ्वा० आ० बण्डते) 1. बाँटना, हिस्से करना, 4. वेश्या रण्डी 5. ब्राह्मण जाति की स्त्री, द्विजयो अंश वनाना 2. घेरना, चारों ओर से आवेष्टित षित् / सम० - अग्निः, अनलः समुद्र के भीतर करना। / (चुरा० उभ० वण्डयति-ते) हिस्से रहने वाली आग, मुखः 1. समुद्र के भीतर रहने करना, बाँटना, अंश बनाना। वाली आम 2. शिव का नाम / वण्ड (वि०) [वण्ड-+-अच् ] 1. अपाङ्ग, अपाहिज, विकवडा [वड़। अच् + टाप] एक प्रकार की रोटी। लाङ्ग 2. अविवाहित 3. नपुंसक बनाया हुआ, . वरिशम् [बलिनो मत्स्यान् श्यति नाशयति शोक, 1. वह आदमी जिसकी खतना हो चुकी है या जिसकी लस्य इत्वम् ] दे० 'बडिश' / जननेन्द्रिय के अग्रभाग को ढकने वाला चमड़ा नहीं वर (वि.) [बड्+रक्] विशाल, बड़ा, महान् / है 2. बिना पंछ का बैल, डा व्यभिचारिणी स्त्री वण् (भ्वा० पर० वणति) शब्द करना, ध्वनि करना। / -तु० 'रण्डा ' / वणिज् (पुं०) [ पणायते व्यवहरति पण+इजि पस्य वण्डरः [वण्ड्+अरन्] 1. कजूस, मक्खीचूस 2. हिजड़ा / वः] 1. सौदागर, व्यापारी-यस्यागमः केवलजीविकाय (वि.) एक प्रत्यय जो 'स्वामित्व' की भावना को तं ज्ञानपण्यं वणिज वदन्ति-मालवि० 1117 2. तुला प्रकट करने के लिए 'संज्ञाशब्दों' के साथ लगाया राशि (स्त्री०) पण्यवस्तु, व्यापार। सम० कर्मन् जाता है.-उदा० धनवत-धनाढय, रूपवत् सुन्दर, (नपुं०),-क्रिया क्रयविक्रय, व्यापार,-जन: 1.(सामूहिक इसी प्रकार भगवत, भास्वत आदि, (इस प्रकार बने रूप से) व्यापारी वर्ग 2. व्यापारी, सौदागर, पथः हुए शब्द विशेषण होते हैं) 2. भ० क. कृ० के 1. व्यापार, क्रयविक्रय 2. सौदागर 3. बनिये की आधार से 'बत्' लगा कर कर्तवा० का रूप बना दुकान, आपणिका 4. तुलाराशि, वृत्तिः (स्त्री) लिया जाता है--इत्युक्तवन्तं जनकात्मजायाम् - रघु० व्यापार, क्रयविक्रय भर्तृ० 3181, सार्थः व्यापारियों 14 / 43 3. अव्य० 'समानता' और 'सादृश्य अर्थ को का दल, टोली। प्रकट करने के लिए संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ वणिजःविणिज अच (स्वार्थ)] 1.सौदागर, व्यापारी वत्' जोड़ दिया जाता है उदा० आत्मवत्सर्वभूतानि 2. तुला राशि। यः पश्यति स पण्डितः / वणिजकः [वणिज+कन] सौदागर, बनिया / वत वन्+क्त] दे० बत / वणिज्य, वणिज्या [वणिज्य त्, स्त्रियां टाप च] व्यापार वतंसः [अवतंस्-अच् वा घा, भागुरिमते 'अव' इत्यस्य ऋयविक्रय / अकारलोपः] दे 'अवतंस'--कपोलविलोलवतंसं वण्ट (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० वण्टति, वण्टयति -गीत०२।। ते ) बांटना, अंश बनाना, विभाजन करना, / बतोका अवगतं तोक यस्या:-अवस्य अकार लोपः] बाँझ हिस्से करना / या निस्सन्तान स्त्री, वह गाय या स्त्री जिसका किसी बण्ट: [ वण्ट+घञ ] 1. भाग या खण्ड, अंश, हिस्सा ! दुर्घटनावश गर्भपात हो गया हो। 2. दरांती का दस्ता 3. अविवाहित पुरुष, कुँआरा। बत्सः वद्+सः] 1. बछड़ा, किसी जानवर का वच्चा, वण्टकः [वण्ट्+घञ्च, स्वार्थे क] 1. बाँटने वाला, वितरण : तेनाद्य वत्समिव लोकम, पुपाण-भत० 2156, करने वाला 2. वितरक 3. भाग, अंश, हिस्सा। यं सर्वशैलाः परिकल्प्य बत्सं-कु० 102 2. लड़का For Private and Personal Use Only Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 893 ) पुत्र, (यह शब्द इस अर्थ में बहुधा संबोधन के रूप / यद् (म्वा० पर० वदति, परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ में प्रयुक्त होता है, वात्सल्य द्योतक शब्द 'मेरे प्रिय' / उपसर्गों के साथ आ०, दे० नी०, उदित, कर्म वा० 'मेरे लाल' आदि शब्दों से व्यवहृत)-अयि वत्स कृतं उद्यते, इच्छा० विवदिषति) 1. कहना, बोलना, कृतमतिविनयेन किमपराद्धं वत्सेन-उत्तर० 6 उच्चारण करना, संबोधित करना, बातें करना-वद3. संतान, बच्चे, जीववत्सा जिसके बच्चे जीवित प्रदोषे स्फटचन्दतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते हों' 4. वर्ष 5. एक देश का नाम (इसकी राजधानी -कु० 5 / 44, वदतां वरः- रघु० 1559, 'वाक्पटुओं कौशांबी थी जहाँ उदयन राज्य करता था) था उसके में प्रमुखतम' 2. घोषणा करना, कहना, समाचार अधिवासी,—त्सा 1. बछिया 2. छोटी लड़की 'वत्से देना, सूचित करना यो गोत्रादि वदति स्वयम् सीते' (बेटी सीता) आदि,-त्सम छाती। सम० अक्षी 3. किसी के विषय में कहना. वर्णन करना, भग० एक प्रकार की ककड़ी,-अदनः भेड़िया, - ईशः. 2 / 29 4. अंकित करना, निर्धारित करना, बयान -राजः वत्स देश का राजा, लोके हारिच वत्सराज- मन० 2 / 9, 4 / 14 5. नाम लेना, पुकारना चरितं नाटये च दक्षा वयम् --नाग० १,-काम ... बदन्ति वावया॑नां धमक्यं दीपक बधा:-चन्द्रा० (वि.) बच्चों को प्यार करने वाला, ( मा) वह 6. संकेत करना, आभास देना कृतज्ञतामस्य बदन्ति गाय जो बछड़े से मिलने की प्रबल लालसा रखती संपदः-कि० श१४ 7. स्वर ऊंचा उठाना, क्रन्दन है,-नाभः 1. एक वृक्ष का नाम 2. एक प्रकार करना, गायन करना कोकिल: पंचमेन वदति, वदन्ति अत्यंत कठोर विष,...पाल: बछड़ों को पालने वाला, मधुरा वाचः-आदि 8. होशियारी या प्रवीणता कृष्ण या बलराम,-शाला गोशाला। दर्शाना, किसी विषय पर अधिकारी होना (आ०) वत्सकः [वत्स+कन्| 1. नन्हा बछड़ा, बछड़ा 2. बच्चा शास्त्र वदते, पाणिनिर्वदते-वोप० 9. चमकना, 3. 'कुटज' नाम का पौधा,-कम् पुष्पकसीस।। उज्ज्वल या देदीप्यमान दिखलाई देना (आ०), वत्सतरः [वत्स+तरप्] वह बछड़ा जिसने अभी हाल में भट्टि० 8 / 27 10. उद्योग करना, चेप्टा करना, दूध चंधना छोड़ा है, जवान बैल जिसके ऊपर अभी परिश्रम करना (आ०) क्षेत्रे वदते सिद्धा०, प्रेर० जुआ नहीं रक्खा गया है-महोक्षतां वत्सतरः स्पृश- (वादयति-ते) 1. कहलवाना 2. शब्द करवाना, बाजा न्निव - रघु० ३।३२,--री बछिया, कलोर श्रोत्रिया- बजना-वीणामिव वादयन्ती-विक्रम० 1110, वादयते याभ्यागताय वत्सतरी वा महोशं वा निर्वपन्ति मृदु वेणुम् ---गीत० 5, अनु-, 1. बोलने में नकल गृहमेधिनः--उत्तर० 4 / करना, दोहराना (गिरं नः) अनुवदति शुकस्ते मजुवत्सरः [वस् सरन्] 1. वर्ष- याज्ञ० 1205 2. विष्णु वापञ्जरस्थ:--रघु० 574 2. प्रतिध्वनि करना, का नाम / सम०-अन्तक: फाल्गुन का महीना, गुंजना (पर० और आ०) अनवदति वीणा 3. अन- ऋणम् वह ऋण जो वर्ष की समाप्ति पर बापिस मोदन करना (उसी गनोभाव की प्रतिध्वनि करके) किया जाय। शि० 2 / 67 नक़ल करना (आ०) भट्टि०८।२९ वत्सल (वि.) वत्सं लाति ला+क] 1. बच्चों को 5. समर्थन के रूप में आवृत्ति करना, अप-, (सदैव प्यार करने वाला, बच्चों के प्रति स्नेह शील जैसा आ०, परन्तु कभी कभी पर० भी) 1. बुरा भला कि वत्सला धेनुः माता 2. स्नेहशील, अतिप्रिय, कहना, गालो देना, निन्दा करना....शि० 17.19, स्नेहानुरागी, दयालु, करुणामयतद्वत्सल: वब स तपस्वि मनु०४।२३६, कभी कभी संत्र के साथ--मट्टि०८।४५, जनस्य हन्ता--मा० 88, 6 / 14, रघु० 2069, 2. न अपनाना, 3. गिनना विरोध करना, अभि-, 8141, इसी प्रकार 'शरणागतवत्सलः, 'दीनवत्सलः !. अभिव्यक्त करना, उच्चारण करना, मूल्य या आदि, -लः घास से प्रज्वलित अग्नि, ला अपने बछड़े वजन रखना -- यद्वाचाऽनभ्युदितं येन वागभ्युद्यते, को प्यार करने वाली गाय,-लम् स्नेह, प्यार / तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते केन०, वत्सलयति (ना० धा० पर०) उत्कण्ठा पैदा करना, उत्सुक 2. नमस्कार करना, अभिवादन करना, (प्रेर०) बनाना, स्नेहयक्त करना-नूनमनपत्या मां वत्सलयति प्रणाम करना-भगवन्नभिवादये,उप-, (आ०) - श०७। 1. लुभाना, चापलसी करना, फसलाना-भट्टि०८।२८, वत्सा, वत्सिका [वत्स+टाप, वत्सा-कन्- टाप् इत्वम् 2. मनाना, अनुकूल करना, परि-, गाली देना, निन्दा बछिया, वहड़ी। करना, बुरा भला कहना, प्र-, 1. बोलना, उच्चारण वत्सिमन् (पुं०) [वत्स+ इमनिच] बचपन, कौमार्य, उभ- करना 2. बातें करना, संबोधित करना-भट्टि० 7 / रती जवानी। 24 3. नाम लेना, पुकारना 4. खयाल करना, वत्सीयः [वत्स+छ] गोप, ग्वाला। सोचना, प्रति-, उत्तर में बोलना, जवाब देना--रघु० For Private and Personal Use Only Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 894 ) 3 / 64 2. बोलना, उच्चारण करना 3. दोहराना अयोग्य तु० अवद्य 2. कृष्णपक्ष (चान्द्रमास का एक जि-, (आ०) 1. झगड़ा करना, विवाद करना-पर- पक्ष वद्यपक्षः-कृष्णपक्षः),-द्यम् भाषण, इधरस्परं विवदमानौ भ्रातरौ 2. भिन्नभत का होना, उधर की वातें करना। प्रतिकल होना, विरोधी होना-परस्पर विवद- | वधू (भ्वा० पर० वधति) मारना, कतल करना (लौकिक मानानां शास्त्राणां-हि० 1 3. (न्यायालय या शास्त्रीय संस्कृत में इसका प्रयोग केवल लुङ व आदि में) दृढ़ता पूर्वक कहना, विप्र-, पर० आ०) आशीलिङ् में 'हन्' धातु के स्थान पर होता है)। बादविवाद करना, कलह करना, झगड़ा करना वधः [हन्-+-अप, वधादेश:] 1. मार डालना, हत्या, भट्टि० 8 / 42, दिसम् , 1. असंगत होना, भिन्न कतल, बिनाश--आत्मनो वधमाहर्ता बवासी विहगतमत का होना 2. असफल होना (प्रेर०) असंगत स्करः-विक्रम० 5.1, मनुष्यवधः मानवहत्या, बनाना सम् , 1. वातें करना, संबोधित करना पशुवध: आदि 2. आघात, प्रहार 3. लकवा, 4. लोप, 2. मिलकर बोलना, वार्तालाप करना, प्रवचन करना अन्तर्धान 5. (गणित में) गुणा, सम० अङ्गकम् विष, 3. समरूप होना, अनुरूप होना, समान होना (करण के / अर्ह (वि०) फांसी के दण्ड का अधिकारी साथ)-अस्य मुखं सीताया मुखचन्द्रेण संवदत्येव-उत्तर० ---उद्यत (वि०) 1. हत्या संबंधी 2. हत्यारा, कातिल 4 4. नाम लेना, पुकारना 5. बोलना, उच्चारण .... उपायः हत्या की तरकीब, कर्माधिकारिन (वि०) करना (प्रेर०) 1. परामर्श करना, सलाह-मशवरा फांसी पर लटकाने वाला, जल्लाद, --जीविन् (पुं०) (करण के साथ) करना 2. शब्द करवाना, वाद्य- 1. शिकारी 2. कसाई, दण्डः 1, शारीरिक दण्ड यंत्र बजाना, संप्र , (आ.) (मनुष्यों की तरह) (हंटर आदि लगाना) 2. फांसी,-भूमिः (स्त्री०) ऊँचे स्वर से या स्पष्ट बोलना संप्रवदन्ते ब्राह्मणाः -स्थली (स्त्री०)--स्थानम् 1. फांसी की जगह -सिद्धा० 2. क्रन्दन करना, क्रन्दन ध्वनि का उच्चारण 2. बूचड़खाना, -- स्तम्भः फांसी मृच्छ० 10 / करना (पर०)-वरतनु संप्रवदन्ति कुक्कुटाः महा० / वधकः हनः क्वन, वध च| 1. जल्लाद, फांसी पर लटकाने वव (वि.) [बद्-|-अच् ] बोलने वाला, बातें करने वाला 2. कातिल, हत्यारा। वाला, अच्छा बोलने वाला। वधत्रम् वध+अत्रन्] घातक हथियार / / वदनम् [ वद्+ ल्युट ] 1. चेहरा आसीद्विवृत्तवदना च | वधित्रम् [बध् +-इत्र] 1. कामदेव 2. कामोन्माद, विमोचयन्ती-श० 2110, इसी प्रकार 'सुवदना' | कामातुरता। कमलवदना आदि 2. मुख ---वदने विनिवेशिता | वधुः, वधुका [=-वधूः, नि० ह्रस्वः] 1. पुत्रवधू, स्नुषा भजङ्गी पिशनानां रसनामिषेण धात्रा-भामि० 11111 2. युक्ती स्त्री। 3. पहल, छवि, दर्शन 4. अगला भाग 5. (किसी बधः (स्त्री०) [उह्यते पितगेहात् पतिगृहं वह +ऊधुक भी माला का) पहला शब्द / सम० आसवः लार / 1. दुलहिन - - वरः स बध्वा सह राजमार्ग प्राप बदन्ती [ वद्+झच् + ङीप् भाषण, प्रवचन / ध्वजच्छायनिवारितोष्णम्-रघु० 714. 19, समानयंबदन्य (वि.) [वद्--अन्य, पुषो० ह्रस्वः| दे० 'वदान्य'। स्तुल्यगुणं वधूवर चिरस्य वाच्यं न गतः प्रजापतिः वदरः [ वद्+अरच् ] दे० 'बदर'। .- श० 5 / 15, कु० 6 / 82 2. पत्नी, भार्या- इयं वदालः [बद्+क, अल-अव्] 1. ववषर, भंवर नमति वः सर्वास्त्रिलोचनवरिति-कु० 6.89, रघु० 2. एक प्रकार की जर्मन मछली। 1190 3. पुत्रवधू एषा च रघुकुलमहत्तराणां वधूः वदावद (वि.) [ अत्यन्तं वदति --वद् / अच, नि० ] ----उत्तर० 4, 4 / 16, तेषां वधस्त्वमसि नन्दिनि ___ 1. बोलने वाला, वाक्पटु 2. वातूनी, वाचाल / पार्थिवानाम् ----1 / 9 6. महिला, तरुणी, स्त्री-हरिरिह वदान्य (वि.) [बद्+आन्य: 1 1. धारा प्रवाह से वोलने मुग्धवनिकरे विलासिनि विलसति केलिपरे---गीत०, वाला, वाकपटु 2. सानुग्रह बोलने वाला 3. उदार, स्वयशांसि विक्रमवतामवतां न वधूष्वधानि विमशान्ति दयालु, दानशील मनु० 4 / 224, न्य: उदार या धियः--कि० 6 / 45,022147, मेघ० 16,47,65, दानशील व्यक्ति, दाता, अत्युदार व्यक्ति-शिरसा 5. अपने से छोटे रिश्तेदार की पत्नी, नाते में छोटी स्त्री वदान्यगरवः सादरमेनं वहन्ति सुरतरवः—भामि० 6. किसी भी पशु की मादा-मृगवधूः (हरिणी) 1119, या---तस्मै वदान्यगुरवे तरवे नमोऽस्तु-११३४ व्यानवधूः, गजवधूः आदि / सम०-गृह प्रवेशः,-प्रवेशः नं० 5 / 11, रघु० 5 / 24 / दुलहिन का अपने पति के घर में सर्व प्रथम प्रवेश वदि (अव्य०) (चान्द्रमास का) कृष्णरक्ष, ज्येष्ठबदि समारंभ, जनः पानी, स्त्री, पक्षः (विवाह के अक्सर (विप० सुदी)। पर) कन्या पक्ष के लोग,--वस्त्रम् दुलहिन की वेशभूषा, वद्य (वि०) [वद्+यत् ] 1. कहने के योग्य, दूषण देने के ] वैवाहिक पोशाक। For Private and Personal Use Only Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 895 ) वधूटी (अल्पवयस्का वधूः--वधु+टि-+डीष] 1. तरुणी, एक प्रकार का लोबिया,---आपगाः जंगली नदी, अर स्त्री, नवयुवती-रथं वधूटीमारोप्य पापः क्वाप्यष ण्यसरिता, - आर्जका जंगली अदरक,~-आश्रमः जंगल गच्छति-महावीर० 5 / 17, गोपवधूटीदुकूलचौराय में आवास, बानप्रस्थ-जीवन का तीसरा आश्रम, (कृष्णाय)- भाषा० 1, पुत्रवधू / - आश्रमिन् (पुं०) वानप्रस्थी, संन्यासी, तपस्वी, वध्य (वि०) [वधमह ति वध+यत्] 1. मारे जाने के आश्रयः / वनवासी 2. एक प्रकार का पहाड़ी योग्य, हत्या किये जाने के योग्य 2. जिसे प्राण दण्ड कौवा,--उत्साहः गैंडा,-उद्भवा जंगली कपास का की आज्ञा मिल चकी है 3. शारीरिक दण्ड दिये जाने पौधा,-उपप्लवः दावानल, ओकस् (पुं०) 1. वनके योग्य, शारीरिक रूप से दण्डय,---ध्यः 1. शिकार, वासी, जंगल में रहने वाला 2. संन्यासी, तपस्वी मृत्यु की तलाश में ---मुद्रा० 119 . शत्रु० / सम० 3. जंगली जानवर, जैसे कि बन्दर, सूअर,-- कणा वन पटहः वह ढोल जो किसी को फांसी पर लटकाते पिप्पली,-कदली जंगली केला, करिन् (पुं०) समय बजाया जाय। -भूः, --भूमिः (स्त्री०): -- कुञ्जरः, ---- गजः जंगली हाथी, कुक्कुटः जंगली स्थलम, स्थानम् फांसी घर, माला फूलों की मुर्ग,-खण्डम् जंगल का एक भाग, -गवः जंगली माला जो फांसी पर लटकाने के लिए तैयार व्यक्ति बेल, गहनम् झुरमुट, जंगल का सधन भाग, गुप्तः को पहनाई जाय। भेदिया, जासूस गुल्मः जंगलो झाड़ी,--गोचर (वि०) वध्या [वध्य -!-टाप् वध, हत्या, कतल / बार-वार जंगल में जाने वाला, (रः) 1. शिकारी वध्रम् विन्ध ।-प्ट्रन्] .. चमड़े का तस्मा-शि० 2050 2. वनवासी (रम्) वन, जंगल,-- चन्दनम् 1. देवदार 2. सीसा,-ध्री चमड़े की पट्टी / का वृक्ष 2. अगर की लकड़ी, चन्द्रिका,--ज्योत्स्ना वध्यः विध्र+यत्] जूता / एक प्रकार की चमेली, - चम्पकः जंगली चम्पा का वन् / (भ्वा० पर० बनति) 1. संमान करना, पूजा करना पौधा,-चर (वि.) वनवासी, वन में विचरने वाला, 2. सहायता करना 3. शब्द करना 4. व्यापत या / वन देवता, (रः) 1. वनवासी, वन में रहने वाला, व्यस्त होना। जंगली आदमी - उपतस्थुरास्थितविषादधियः शतयji (तना० उभ० वनोति, वनुते) 1. याचना करना, ज्वनो वनचरा वसतिम्-कि० 629, मेघ० 12 कहना, प्रार्थना करना (द्विक० पातु मानी जाती है) 2. वन्य पशु 3. आठ पैरों वाला शरभ नाम का एक -तोयदादितरं नैव चातको वनुते जलम् 2. खोज काल्पनिक जन्तु, - चर्या जंगल में घूमना या निवास, करना, प्राप्त करने की चेष्टा करना 3. जीतना, छागः 1. जंगली बकरा 2. सूअर,- ज: 1. हाथी स्वामित्व प्राप्त करना। 2. एक प्रकार का सुगन्धित घास 3. जंगली नीबू का (भ्वा० पर० चुरा० उभ० वनति, वानयति-ते) पेड़ (-जम्) नीलकमल,--जा 1. जंगली अदरक 1. अनुग्रह करना, सहायता करना 2. चोट पहुँचाना, 2. जंगलो कपास का पौधा- जीविन वनवासी, जंगली क्षतिग्रस्त करना 3. ध्वनि करना 4. विश्वास करना / आदमी,-दः बादल,- दाहः दावानल,--देवता बनदेवी, वनम् वन+अन् / अरण्य, जंगल, वृक्षों का झुरमुट जंगल-परी, रघु०२।१२, 952, श० 414, कु०३। -एको वासः पत्तने वा वने वा--भर्त० 3 / 120, बनेऽपि 52, 6 / 39,- ब्रुमः जंगली पेड़, धारा वृक्षावलि, दोषाः प्रभवन्ति रागिणाम् 2. गुल्म, झुण्ड, सपन क्यारी छायादार पार्ग,-धेनुः (स्त्री०) गाव, जंगली बैल में उगे हुए कामल या अन्य पौधों का समुच्चय-चित्र- को मादा, पांसुल: शिकारी, - पार्थम् जंगल के आस द्विपाः पद्मवदावतीर्णाः रधु० 16 / 16, 6186 पास का क्षेत्र, बनप्रदेश, पुष्पम् जंगली फूल,---पूरकः 5. आवासस्थल, निवासस्थान, घर 4. फौवारा (पानी जंगली नीब का पेड़, प्रवेशः तपस्विजीवन का का) झरना 5. पानी-शि० 673 6. लकड़ी, काष्ठ आरम्भः,... प्रल्थः अधित्यका या पठार में स्थित जंगल, (समास) में प्रथमपद के रूप में इसका प्रयोग 'जंगलो' -~~-प्रियः कोयल, (यम्) दारदोनी का पेड़, बहिणः, 'वनला' अर्थों में होता है - उदा० बनबराह, वनक- -वहिणः जंगली मोर,-भः जंगल की भूमि-मक्षिका दली, वनपुष्पम् आदि) / सम० अग्निः दावानल, गोमक्षी, डांस,--मल्ली जंगली चमेली,--. माला --- अजः जंगली बकरा,-- अन्तः 1. किसी जंगल की जंगली फूलों की माला जैसी कि श्रीकृष्ण पहनते सीमा या दामन-- रघु० 2 / 58 2. बन्यप्रदेश, जंगल थे- रघु० 9 / 51, इसका वर्णन है: आजानुलम्बिनी -----उत्तर० / 25,-- अन्तरम ! दूरारा जंगल 2. जंगल माला सर्वत्रे कुसुमोज्ज्वला / मध्य स्थूलकदम्बाढया का भीतरी प्रदेश विनाम० 4 / 26, अरिष्टा जंगली वनमालेति कीर्तिता // धरः श्रीकृष्ण का विशेहल्दी,--अलक्तम् लाल मिट्टी, गेरु या लाल खड़िया, पण, मालिन् (पुं०) कृष्ण का एक विशेषण ----अलिका सूरजमुखी, -- आखः खरगोश,---आखुकः / धीरसमीरे यमनातीरे वसति वने वनमाली-गीत. For Private and Personal Use Only Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 896 ) 5, तव विरहे वनमाली सखि सीदति गीत० 5, / / झुरमुट - अवनीतलमेव साधु मन्ये न वनी माधवनी ---मालिनी द्वारका नगर का नानांतर, प्रच वि०) विलासहेतु:-जग० / जल डालने वाला,--रघु० 9422, (पुं०)-भूतः | चनीयकः, वनीयर पनि याचनामिच्छति-वनि क्यच, बादल,-मुद्गः एक प्रकार की मुंग,--- मोचा जंगली / +ण्वल भिशुक, सावु-वनोयकानां स हि कल्पकेला, - रक्षकः वन का रखवाला,--राजः सिंह, भरुहः नै० 15 / 6 / / ----- रहम् कमल का फूल,- लक्ष्मीः / स्त्री०) 1. जंगल | वनेकिंशुकाः (ब० व०) [वने किंशुक इव, सप्तम्या अलुक्] का आभूषण या सौंदर्य 2. केला–लता जंगली बेल, जंगल में किशक' अनायास ही मिलने वाला पदार्थ / लता दूरीकृताः खलगणरुद्यानलता बनलताभिः-श०चनेचरः वने चरति-चर+ट, सप्तम्या अलक] जंगल में 1 / 17, वह्निः-हुताशनः दावानल, वासः / जंगल रहने वाला, र: 1. वनवासी, जंगल में रहने वाला में रहना, बन में वास ... श० 4 / 10 2. जंगली या आदमी बनेचराणां वनितासखानाम् -- कु० 1 / 10, यायावरीय (धुमक्कड़) जीवन 3. वनवासी, वन में 122 2. संन्यासी, तपस्वी 3. वन्य पशु 4. वनदेवता, रहने वाला,-वासनः गंवबिलाप, वासिन् (पुं०) वनमानुष 5. पिशाच / 1. जंगल में रहने वाला, वनवासी 2. तपस्वी इसी बनेज्यः [वने इज्यः, स० त०] एक प्रकार का आम / प्रकार 'वनस्थायिन्', --ब्रीहिः जंगली चावल, शोभ वंद (भ्वा० आ० बंदते, वंदित) प्रणाम करना, सादर नम् कमल, -श्वन् (पुं०) 1. गीदड़ 2. व्याघ्र नमस्कार करना. श्रद्धांजलि प्रदान करना--जगतः 3. गंधबिलाव,-संकटः एक प्रकार को दाल, मसूर पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ--रध० 111, 13177, --सद्,-संवासिन् (पुं०) वनवासी सरोजिनी (स्त्री०) 14 / 5 2. आराधना करना, पूजा करना 3. प्रशंसा जंगली कपास का पौधा, स्पः 1. हरिण 2. तपस्वी करना, स्तुति करना, अभि , प्रणाम करना, सादर ---स्था बरगद का पेड़, स्थली जंगल, जंगल की नमस्कार करना-रघु० 16 / 81 / भूमि, साज् (स्त्री०) जंगली फूलों की माला। बंदकाः [वन्द - वुल प्रशंसक / वनरः (पुं०) दे० 'वानर'। वंदथः [वन्द - अथः] प्रशंसक, चारण या भाट, स्तुति वनस्पतिः [वनस्य पतिः, नि० सूट] 1. एक बड़ा जंगली गायक / वृक्ष, विशेषकर वह जिसे बिना बीर आये फल लगता वंदनम् [वन्द्-त्युट] 1. नमस्कार, अभिवादन 2. श्रद्धा, है 2. वृक्ष, पेड़,-तमाश विघ्नं तपसस्तपस्वी वनस्पति सत्कार 3. किसी ब्राह्मणादि को (चरणस्पर्श करते वज्र इवावभज्य कु० 3 / 74 / हुए) प्रणाम 4. प्रशंसा, स्तुति-ना 1. पूजा, अर्चना बनायः (वन / इण् --उण, वन् / आयुच् या एक जिले प्रशंसा,...नी 1. पूजा, अर्चना 2. प्रशंसा 3. याचना, का नाम - रघु० 573 / सम० ज (नपुं०) 4. मृतक को पुनर्जीवित करने वालो औषधि / सम० वनायु में उत्पन्न घोड़ा आदि। ___माला, -- मालिका किसी द्वार पर लगाई गई वनिः (स्त्रो०) वन्-इ कामना, इच्छा। फूलमाला। पनिका विनी--का टाप, हस्पः छोटा जंगल, जैसे कि नोट (दि०) वंद-जनीयर अभिवादन के योग्य, 'अशोकवनिका'। सत्कार के योग्य, या हरताल, गोरोचना। वनिता बन्-का-टान स्नो, महिला पनि नि | वंदा बंद+अन् ।-टाप् / शिक्षणी, मोख मांगने वाली वदंत्येतां लोका: गर्वे बदन्तु ते, पना परिणता सेयं तपस्येति मां मम .. भामि० 21117, पथिकवनिता: वंदार (भि०) निन्द्---आरु| .. प्रशंसा करने वाला -मेघ० 8 2. पत्नी, गृहस्वामिनी-बनेचराणां धनिता 2. श्रद्धाल, सम्मानपूर्ण, विनीत, शिष्ट-...परभनुगृहीतो सखानाम् कु. 1 / 10, रघु० 2 / 19 . कोई महामुनिवंदारु. - मुद्रा० 7, नपुं० प्रशंसा।। महासनिवदाह. - मदा० भी प्रेयसी स्त्री ... किसी भी जानवर का मादा! वंदिन (4) वन्ध। इन| 1. स्तुति गायक, चारण, भाट, सम-द्विष (90) स्त्रीद्वेषी, स्त्रियों से घणा, अग्रदूत (भाट या चारण एक विशिष्ट जाति है जो करने वाला, ---विलासः स्त्रियों का इच्छानुकूल क्षत्रिय पिता और शुद्र माता को सन्तान है) 2. मनोरंजन / बंदी, कैदी। बनिन् (पुं०)वन---इनि:, वक्ष 2. सोन लता 3. वान- वंदी (स्त्री०) वन्दि+ डीप] दे॰ बंदी। सम... पालः प्रस्थ, तीसरे आश्रम में रहने वाला। काराध्यक्ष, जेलर / बनिष्णु (व.) वन् / इष्णुच्] मांगने वाला, याचना वंद्य (वि.) [वन्द् --- पत्] , सत्कार के योग्य, श्रद्धेय __करने वाला। 2. सादर नमस्करणीय रघु० 13178, कु० 6.83, वनी [वन+ङीष् जंगल, अरण्य, (वृक्षों का) गुल्म या | मेव० 12 3. स्तुत्य, श्लाघ्य, प्रशंसनीय / | बदथः विन्दा वुल् ! प्रशा० 1681 / For Private and Personal Use Only Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 897 ) वंद्र: [वंद+रक पूजा करने वाला, भक्त, द्रम् समद्धि। / वपिल: [ वप्न- इलच ] प्रजापति, पिता / बंधुर (वि०) दे० 'बंधुर'। वपुनः (पुं०) सुर, देवता।। वंध्य, वंध्या दे० बंध्य, बंध्या / बपुष्मत् (वि.) [ व+उसि+मतुप् ] 1. मूर्त, देहवन्य (वि.) वने भवः यत्] 1. जंगल से संबंध रखने धारी, शरीरधारी-ददृशे जगतीभुजा मुनिः स वपु वाला, जंगल में उगने बाला या उत्पन्न, जंगली | मानिव पुण्यसंचय:--कि० 2056 2. सुन्दर, मनोहर, कल्पविकल्पयामास वन्यामेवास्य संविधाम-रघु० पुं० विश्वेदेवों में से कोई एक / 1194, वन्यानां मार्गशाखिनाम् 45 2. बर्बर, जो वपुस् (नपुं०) [व+उसि ] 1. (क) शरीर, देह पालतू या धरैल न हो रघु० 2 / 8, 37, 5/43, (स्मर) वपुषा स्वेन नियोजयिष्यति-कु० 4 / 42, न्यः जंगली जानवर,-न्यम् जंगली पैदावार (जैसे नवं वयं कातमिदं वपुश्च -- रघु० 2 / 47, शि० 10 // कि फल, मूल क्षादि) रघु० 1220 / सम० 50, (ख) रूपं, आकृति, सूरत या छवि-- लिखित----इतर (वि०) पालतू, घरेल,- गजः,--द्वीपः जंगली वपुषौ शंखपयो च दृष्ट्वा मेघ० 80, परिघः हाथी। क्षतजतुल्यवपुः बृहत्० 30125 2. रस, प्रकृति वन्या [वन्य-+-टाप्] 1. विशाल जंगल, झुरमुटों का समूह | मनु० 596 3. सौन्दर्य, सुन्दर रूप या छवि / 2. जलराशि, वाद, जल-प्रलय / सम० गुणः, प्रकर्षः रूप की श्रेष्ठता, वैयक्तिक व (म्वा० उभ० वपति, वपते, उप्तः, कर्मवा० उप्यते, सौन्दर्य-संधुक्षयंतीव वर्गणेन--कुं० 3152, इच्छा० विवप्सति ते) 1. बोना, (बीज) बिखेरना, वपुः प्रकर्षादजयद् गुरुं रघुः रघु० 3 / 34, कि० पौधा लगाना यथेरिणे बीजप्त्वा न वप्ता लभते 312, पर (वि०) 1. मूर्त 2. सुन्दर * लवः शरीर फलम्-मनु० 3 / 142, न विद्यामिरिणे वपेत्-२१११३, से चने वाला तरल रस / यादशं वपते बीजं तादृशं लभते फलम् - सुभा०, कु. वप्त (पुं०) [वप्+तुच ) 1. (बीज का) बोने वाला, 25, श०६।२३ 2. फेंकना, (पांसा) डालना 3. पौधा लगाने बाला, किसान न शाले: स्तम्बकरिता जन्म देना, पैदा करना 4. बनना 5. मुंडना, बाल वस्तुर्गणमपेक्षते--- मुद्रा० 13, मनु० 33142 2. काटना (प्रायः वैदिक), प्रेर० (वापयति-ते) पिता, प्रजापति 3. कवि, अन्तःस्फूर्त या प्रणोदित बोना, पौधा लगाना, भूमि में डालना, आ. 1. ऋषि / बिखेरना, इधर उधर फेंकना 2. बोना 3. यन्न | वप्रः,-प्रम् [ उप्यते अत्र व+रन् / दुर्गप्राचीर, मिट्टी की आदि में आहति देना उद , उडेलना नि 1. दीवार, गारे की भित्ति-- वेलावप्रवलयां (ऊर्वीम्) (बीज ) इधर-उधर बिखेरना 2. ( आहुति ) रघु० 1030 2. तटबंध या टीला (जिसमें कि सांड देना, विशेषतः पितरों को,- न्यप्य पिण्डांस्ततः / या हाथी टक्कर लगाते हैं) रघु० 13147, दे० नी. ___ मनु० 31216, (स्मरमुद्दिश्य) निवपेः सहकार बप्रक्रीड़ा 3. किसी पहाड़ या चट्टान का ढलान मंजरी:- कु०४।३८ 3. बलि चढ़ाना, यज्ञ के पशु -~-बृहच्छिलावप्रधनेन वक्षसा-कि० 14140 4. का वध करना निस्---, 1. बिखेरना, (बीज चादि) चोटी, शिखर, अधित्यका--तीव्र महाव्रतमिवात्र छितराना 2. प्रस्तुत करना, पेश करना-श्रोत्रियाया- चरन्ति वप्राः शि० 4158, 3137, कि० 5 / 36, 6 // भ्यागताय वत्सतरी वा महोक्षं वा निर्वपंति गहमेधिनः 7 5. नदीतट, पाव, किनारा, वेलातट,- ध्वनयः, उत्तर० 4 3. तर्पण करना, विशेषकर पितरों का प्रतेनरनुवप्रनपाम्--कि० 6 / 4, 711, 17:58 4. अनुष्ठान करना प्रति-, 1. बोना 2. पौधा 6. किसी भवन की नींव 7. शहरपनाह या दुर्गप्राचीर लगाना, जमाना, रोपना-उत्तर०३।४६, मा० 5 / से युक्त नगर का फाटक 8. खाई 1. वृत्त का व्यास 10 3. जमाना, (रत्नादिक) जड़ना, प्र-, फेंकना 10. खेत 11. मिट्टी का टीला (जिसको कि हाथी या डालना, प्रस्तुत करना ----भट्टि० 9/98 / सांड़ टक्कर मारे)-प्र: पिता,-प्रम् सीसा। सम. वपः [वप्-11] 1. बीज बोना 2. जो बीज बोता है, -- अभिघातः (किसी पहाड़ या नदी आदि के) तटबोने वाला 3. मुंडना , बनना। बंध पर टक्कर मारना-कि० 5 / 42, तु० 'तटाघात' वपनम् [ वप् + ल्युट् ] 1. बीज बोना 2. मुंडना, काटना ---क्रिया,-कीड़ा किसी टीले या तटबन्ध पर हाथी मनु० 112151 3. वीर्य, शुक्र, बीज---नी 1. नाई (या सांड़) का टक्कर मार कर विहार करना-वप्रकी दुकान 2. बुनने का उपकरण 3. तन्तु शाला।। क्रियामक्षवतस्तटेषु- रघु० 5 / 44, वप्रक्रीडापरिणत वपा [वप्न-अच-1-टाप्] 1. चर्बी, वसा-याज्ञ० 3 / 94 गजप्रेक्षणीयं ददर्श--मेघ०२। 2. छिद्र, रन्ध्र 3. बमी, दीमकों द्वारा बनाया गया वतिः[वपु+क्रिन ] 1. खेत 2. समुद्र। मिट्टी का टीला / सम० कृत् (पुं०) वसा, मज्जा। | वनी [वधि+की ] मिट्टी का टीला, पहाड़ी। For Private and Personal Use Only Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 898 ) पत्र (भ्वा० पर० वभ्रति) जाना, हिलना-जुलना / आदि) बड़ी आयु का, बूढ़ा, जीर्ण, शक्तिहीन,-अधिक बम् (भ्वा० पर० वमति, वात, प्रेर० वामयति, वमयति, (वि.) (वयोधिक) आयु में अधिक, वयोवृद्ध, परन्तु उपसर्गयुक्त होने पर केवल 'वमयति') 1. वमन वरिष्ठ - अवस्था (वयोऽवस्था) जीवन की एक करना, युक देना, मुंह से बाहर निकालना-रक्तं अवस्था, आय की माप,-मा० ९।२९,-कर (वि.) पावमिषुर्मुखः-भट्टि० 15162, 9 / 10, 14130 स्वास्थ्य देनेवाला, जीवन को पुष्ट करनेवाला, आयु 2. बाहर भेजना, उडेलना, बाहर करना, उदगीरण बढ़ानेवाला- गत (वि.) 1. वयस्क 2. वयोवृद्ध करना, बाहर निकालना, उत्सर्जन करना (आलं° से परिणतिः, परिणामः आय की परिपक्वावस्था, भी) किमाग्नेयमावा विकृत इव तेजांसि वमति वयोवृद्धता-प्रमाणम् 1. जीवन का माप या लम्बाई -उत्तर. 6 / 14, श. 27, रघु० 16166, मेघ० 2. जीवन की अवधि,-वृद्ध (वि.) (वयोवृद्ध) बूढ़ा, 20, अविदितगुणाऽपि सत्कविभणिति: कर्णेष वमति बड़ी आय का,-सन्धिः 1. जीवन के एक काल से मधुषाराम्--वास० 3. बाहर फेंकना, नीचे डाल दूसरे काल में संक्रमण-त्रयो वयः सन्धयः 2. वयस्कता, देना-बान्तमाल्यः-रघु० 716 4. अस्वीकृत करना, परिपक्वावस्था (वयस्क होने का काल),-स्थ (वि०) द-1. थूक देना, उद्वमन करना 2. के करना, भेज (वयःस्थ-या-बयस्थ) 1. जवान 2. वयः प्राप्त, बालिग़ देना, उडेल देना-उवामेन्द्रसिक्ता भूबिलमग्नाविवोरगी 3. बलवान्, शक्तिशाली (-स्था) सखी, सहेली, -रषु० 1215, मुद्रा०६।१३ / -हानिः (वयोहानिः) 1. जवानी का ह्रास 2. यौवन पमः [वम्+अप् ] के करना, वमन करना, बाहर का हास / निकालना। वयस्य (वि०) [ वयसा तुल्यः यत् ] 1. समान आयु का बमः [वम्+अथुच ] 1. के करना, उद्वमन, थूकना 2. समसामयिक,-स्यः मित्र, सखा, साथी (प्रायः 2. हाथी के द्वारा अपनी संड से फेंका गया पानी। समान ही आय का)-स्या सखी, सहेली। बननम् [वम् + ल्युट्] 1. के करना, उलटी 2. बाहर | वयुनम् वय+उनन्] 1. ज्ञान, बुद्धिमत्ता, प्रत्यक्षज्ञान की खींचना, बाहर निकालना, जैसा कि 'स्वर्गाभिष्यन्द- शक्ति 2. मन्दिर (उणादिसूत्रों में इस शब्द को इसी वमनम्' में, रष०१५।२९, कु. 6 / 37 3. उलटी | अर्थ में पुल्लिङ्ग भी बतलाया गया है)। लानेवाली 4. आहुति देना-नः गांजा-नी जोक / | बयोधस् ()[वयो यौवनं दधाति-वयस+धा--असि चमनीया विम+अनीयर+टाप] मक्खी। युवा या प्रौढ़ व्यक्ति / पमिः [वम्+इन्] 1. आग 2. ठग, बदमाश-मिः (स्त्री०) वयोरंगम [ वयसा रंगमिव ] सीसा 1. बीमारी, जी मिचलाना 2. उलटी लाने वाली | वर (चुरा० उभ० वरयति -.ते, व या व का प्रेर० रूप) (औषषि)। मांगना, चुनना, छाँटना, खोच करना,—दे० 'वृ' / चमी विमिनीष] उलटी करना / वर (वि०) [वृ कर्मणि अप्] 1. श्रेष्ठ, उत्तम, सुन्दरतम, बमारपष० त०] पशुओं के राँभने की आवाज / या अत्यंत मूल्यवान्, छांटा हुआ, बढ़िया (संबं० या पत्रः-श्री [वम्+रक, वम्रि+ङीष ] चिऊँटी। सम० अधि० के साथ अथवा समास के अन्त में) वदतां -कूदम् बाँबी। बरः-- रघु० 1159, वेदविदां वरेण--५।२३, 11 // बम् (म्बा० आ०-वयते) जाना, हिलना-जुलना। 54, कु० 6 / 18, नुवरः, तस्वरा:, सरिद्वराः आदि बबनम् [+ल्युट्] बुनना। 2. अपेक्षाकृत अच्छा, दूसरे से अच्छा, ग्रंथिभ्यो धारिणो बयल (नपुं०) [अज् +असुन्, वीभावः] 1. आयु, जीवन वराः मनु० 12 / 103, याज्ञ. 11351, का कोई काल या समय,-गुणाः पूजास्थानं गुणिषु 1. चुनने और छाँटने की क्रिया 2. छांट, चुनाव नच लिङ्ग न च वयः-- उत्तर० 4 / 11, नवं वयः 3. वरदान, आशीर्वाद, अनुग्रह, वरं वया या वर -रषु०२४७, पश्चिमे वयसि-१९४१, न खलु वयस्ते- मांगना, प्रीतास्मि ते पूत्र वरं वृणीष्व-रषु० 2163, जसो हेतु:-भर्तृ० 2 / 38, तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते भवल्लब्धवरोदीर्ण-कु०२१३२, ('वर और 'आशिस्' -रषु० 1111, कु० 5 / 16 2. जवानी, जीवन का का अन्तर जानने के लिए दे० 'आशिस') 4. भेंट, प्रमुख अंश-वयोगते किं वनिताविलासः-सुभा० उपहार, पारितोषिक, पुरस्कार 5. कामना, इच्छा इसी प्रकार 'अतिक्रान्तवया' 3. पक्षी-स्मरणीयाः 6. याचना, अनुरोध 7. दूल्हा, पति-वरं वरयते कन्या, समये वयं वयः-०२१६२, मुगयोगवयोपचितं वनम् दे. वधू (2) के नीचे भी 8. पाणिग्रहणार्थी, विवारघु० 9153, 219, शि० 355, 11 / 47 4. कौवा हार्थी 9. स्त्रीधन, दहेज 10. जामाता 11. कामुक, पंच० 223 (यहाँ इसका अर्थ 'पक्षी' भी हो सकता / कामासक्त 12. चिड़िया,-रम जाफरान, केसर, (वरम्' है)। सम-अतिग-अतीत (वि०) (वयोतिग. को पृथक् देखिये) / सम०-अंग (वि०) उत्तम रूप For Private and Personal Use Only Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला (--गः) हाथी (,—गी) हल्दी, (,--गम्) / वरणम् + ल्युट्] 1. छांटना, चुनना 2. मांगना, याचना 1. सिर 2. उत्तम भाग 3. प्रांजल रूप 4. योनि, करना, प्रार्थना करना 3. घेरना, घेरा डालना 5. हरी दारचीनी,---अंगना कमनीय स्त्री-अर्ह (वि.) 4. ढकना, परदा डालना, प्ररक्षा करना 5. दुलहिन वर पाने के योग्य,-आजीवन (पुं०) ज्योतिषी, का चुनाव,—पः 1. परकोटा, फ़सील 2. पुल -आरोह (वि०) सुन्दर कल्हों वाला (-हः) उत्तम 3. वरुण नामक वृक्ष 4. वृक्ष- इह सिंधवश्च वरणासवार(-हा) सुन्दर स्त्री,-आलि: चाँद, -- आसनम् वरणा: करिणां मुदे सनलदानलदाः---कि० 5 / 25 1. उत्तम चौकी 2. मुख्य आसन, सम्मान की कुर्सी 5. ऊँट। सम०-माला,-स्रज दे० वरन / 3. चीनी गुलाब,-उरः,-रू: (स्त्री०) सुन्दर स्त्री वरणसी (अधिक प्रचलित रूप-वाराणसी)-दे०।। (शा० सुन्दर जंघाओं से युक्त स्त्री), क्रतुः इन्द्र का वरडः [-अंडच्] 1. समुदाय, वर्ग 2. मुंह पर निकली विशेषण,-चन्दनम् 1. एक प्रकार की 'चन्दन की फंसी 3. वरामदा 4. घास का ढेर 5. झोला (यदिलकड़ी 2. देवदारु, चीड़ का पेड़,-तन (वि०) सुन्दर दानीमहं वरण्डलम्बुक इव दूरमुत्क्षिप्य पातितः-मृच्छ० अवयवों वाला (स्त्री० - नुः) सुन्दर स्त्री-वरतनु- में 'वरण्डलंबुक' शब्द का अर्थ सन्दिग्ध है, इसका अर्थ रथवासौ नैव दष्टा त्वया मे--विक्रम० ४।२२,-तंतुः प्रतीत होता है 'ऊपर लटकती हई या उभरी हुई एक प्राचीन मुनि का नाम-रघु० ५५१,-त्वचः नीम दीवार' जो यदि और ऊपर उठाई गई तो उसका का पेड़...व (वि.) 1. वर देने वाला, वरदान प्रदान लुढ़ना जाना निश्चित है; यही बात सूत्रधार के करने वाला 2. मंगलप्रद (---दः) 1. उपकारी विषय में है जिसकी आशाएँ अत्यंत ऊंची उठी परन्तु 2. पितृवर्ग (----दा) 1. नदी का नाम मालवि. केवल निराशा में परिणत होने के लिए)। / 5 / 1 2. कुमारी, कन्या,-दक्षिणा दुलहिन के पिता- वरंउकः वरंड+कन] 1. मिट्टी का टीला 2. हाथी की द्वारा दूल्हे को दिया गया उपहार,-दानम् वर प्रदान / पीठ पर बना हौदा 3. दीवार 4. मुंह पर महासा। करना ब्रुमः अगर का वृक्ष,-निश्चयः दूल्हे का चुनाव, | वरंडा [वरंड+टाप्] 1. बी, छुरी 2. एक पक्षी -पक्षः (विवाह में) दूल्हे के दल के लोग-रघु० -सारिका 3. दीपक की बत्ती। 6 / 86, -प्रस्थानम्,-यात्रा विवाह संस्कार के लिए वरत्रा [वृ+अत्र+टाप्] फीता, (चमड़े का) तस्मा या दूल्हे का जलूस के रूप में दुलहिन के घर की ओर पट्टी, शि०११॥४४ 2. घोड़े या हाथी का तंग। कूच करना,--फलः नारियल का पेड़,बाह्निकम् | वरम् (अव्य) [वृ+अप्] अपेक्षाकृत, श्रेष्ठतर, श्रेयस्कर, जाफरान, केसर,---युवतिः,--ती (स्त्री०) सुन्दर अधिक अच्छा, कभी कभी यह अपा० के साथ प्रयुक्त तरुणी स्त्री,-रुचिः एक कवि और वैयाकरण का नाम होता है-समुन्नयन् भूतिमनार्यसंगमाद्वरं विरोधोऽपि (विक्रमादित्य राजा के दरबार के नवरत्नों में से एक, समं महात्मभिः-कि० 48, परन्तु इस शब्द का दे० नवरत्न; कुछ लोग पाणिनि के सूत्रों पर प्रसिद्ध प्रयोग बहषा बिना किसी शर्त के होता है, 'वरम्' वार्तिककार कात्यायन से इसकी अभिन्नता सिद्ध करते प्रायः उस वाक्य खंड के साथ प्रयुक्त होता है जिसमें हैं),-लब्ध (वि०) जिसने वरदान प्राप्त कर लिया अपेक्षित वस्तु विद्यमान है। तथा 'न च' 'न तु' और है (ब्धः) चम्पक वृक्ष,-वत्सला सास, श्वश्रू,-वर्णम् 'न पुनः' उस वाक्यखंड के साथ जिनमें वह वस्तु सोना,-वणिनी 1. उत्तम और सुन्दर रंगरूप वाली विद्यमान है जिसकी अपेक्षा पूर्ववर्ती को प्रमुखता दी स्त्री 2. स्त्री 3. हल्दी 4. लाख 5. लक्ष्मी का नामांतर गई है। (दोनों कर्तृ० में रक्खे जाते हैं), वरं मौनं 6. दुर्गा का नामांतर 7. सरस्वती का नाम 8. 'प्रियंगु' कार्य न च वचनमुक्तं यदनृतं......वरं भिक्षाशित्वं न नाम की लता,--सज 'दूल्हे की माला' वह माला जो च परधनास्वादनसुखम् -हि०१, वरं प्राणत्यागो न दुलहिन, दूल्हे के गले में डालती है। पुनरघमानामुपगमः-तदेव०, कभी कभी'न' का प्रयोग बरकः [+बुन्] 1. इच्छा, प्रार्थना, वर 2. चोगा 'च, तु, और पुन:' के बिना भी होता है-याना लोबिये की एक प्रकार, --कम 1. नाव को ढकने की मोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा-मेष०६। चादर 2. तौलिया, अंगोछा। वरलः [+अलच्] एक प्रकार की बर्र, भिड़,-का बरटः [+अटन्] 1. हंस 2. एक प्रकार का जनाज 3. एक 1. हंसिनी 2. एक प्रकार की भिड़, बरं / प्रकार को बर्र, भिड़, टा, टी 1. हंसिनी, नवप्रसूति- वरा [व+अच्+टाप्] 1. त्रिफला 2. एक प्रकार का वरटा तपस्विनी-नं. 13135 2. भिड़, बर्र या उसके | सुगंध द्रव्य 3. हल्दी 4. पार्वती का नाम / प्रकार-भो वयस्य एते खल दास्याः पुत्रा अर्थकल्यवती वराक (वि.) (स्त्री०-की) [+षाकन्] बेचारा, दय.वरटा भीता इव गोपालदारका आरण्ये यत्रयत्र न नीय आतं, मन्दभाग्य दुःखी, अभागा (बहुधा दया खाद्यते तत्र-तत्र गच्छंती-मृच्छ०१,-टम् कुंद का फूल।। दिखाने के लिए प्रयुक्त) तन्मया न युक्तं कृतं यत्स (विक्रम कुछ लोग अभिन्नता सिया For Private and Personal Use Only Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 900 ) वराकोऽपमानित:-पंच०१, तत्किमुज्जिहानजीवितां / पक्षा, तीतर 2. संतरे का पेड़,-ष्ठम् 1. तांबा बराकी नानुकंपसे-मा०१०,-क: 1. शिव 2. संग्राम, 2. मिर्च। / वरी [+अच+डीष 1. सूर्य की पत्नी छाया बरादः विरमल्पमटति - अट्+अण्] 1. कौड़ी 2. रस्सी, 2. शतावरी नाम का पौधा / / वरीयस् (वि.) [अयमनयोरतिशयेन वरः उरुर्वा उरु बराबक: [वराट+कन्] 1. कोड़ी-प्राप्तः काणवराटकोऽपि +ईयसुन्, वरादेशः, उरु की म० अ०] 1. अपेक्षाकृत न मया तृष्णेऽधुना मुंच माम-भर्त० 3 / 4 2. कमल अच्छा, अधिक श्रेष्ठ, अधिमान्य 2. अत्युत्तम, बहुत फल का बीजकोष 3. डोरी, रस्सी (इस अर्थ में 'न'०' अच्छा . मा० 1116 3. अपेक्षाकृत बड़ा, चौड़ा या भी)। सम... रजस् (पुं०) नाग केसर नामक वृक्ष / विस्तुत। वराटिका [वराट्+कन्+टाप, इत्वम्] कौड़ी-भामि० बरी (लो) पर्दः [व- क्विा -वर, ई वश्च-ईवरी, तो 2 / 42 / ददाति दा-के-ईवर्दः, बली चासो ईवर्दश्च, कर्म० बराणः [+शान च इन्द्र का विशेषण / त०] बैल साँड। बराणसी दे० वाराणसी। वरीषुः [वरः श्रेष्ठः इषुः यस्य, पृषो०] कामदेव का नाम / वरारकम् [वर+ऋ+ण्वुल हीरा।। वरुटः (पुं०) म्लेच्छ जाति का नाम / बरालः, वरालकः [वृ+आलच् स्वार्थ कन् च] लौंग / / वरुडः (40) एक नीच जाति का नाम / बराशि:-सिः |वरम् आवरणमश्नुते वर+अश्+इन्, वरः वरुणः [व+उनन्] 1. आदित्य का नाम (बहुधा 'मित्र' के श्रेष्ठः अस्यते क्षिप्यते--वर---अस् --इन्] मोटा साथ युक्त होकर) 2. परवर्ती पौराणिकता के कपड़ा। अनुसार) समुद्र की अधिष्ठात्री देवता, पश्चिम दिशा बराहःवराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति का देवता (हाथ में पाश लिए हुए) यासां राजा भूमिन्---आ+हन्+ड] सूअर, बधिया किया गया वरुणो याति मध्ये सत्यानते अव पश्यञ्जनानाम् , सूअर,-विनब्धं क्रियतां वराहततिभिर्भुस्ताक्षतिः पल्वले वरुणो यादसामहम् -भग०१०।२९, प्रतीची वरुणः श० 26 2. मेंढ़ा 3. बैल 4. बादल 5. मगरमच्छ पति-महा० अतिसक्तिमेत्य वरुणस्य दिशा भशमन्व6. शुकराकृति में बना सैनिक व्यूह 7. विष्ण का रज्यदतुषारकरः शि० 917 3. समुद्र 4. अन्तरिक्ष / सीसरा वराह-अवतार-तु० वसति दशनशिखरे सम० - अंगरहः अगस्त्य का विशेषण,-आत्मजा घरणी तव लग्ना शशिनि कलङ्क कलेव निमग्ना / मदिरा (समुद्र से निकलने के कारण इसका यह नाम केशव घृतशूकररूप जय जगदीश हरे-गीत० 1 पड़ा),--आलयः,-आवासः समुद्र,–पाशः घड़ियाल 8. एक विशेष माप 9. वराहमिहिर का नामान्तर --लोक: 1. वरुण का संसार 2. जल। 10. अठारह पुराणों में से एक / सम०--अवतारः विष्णू | वरुणानी [वरुण + ङीष्, आनुक] वरुण की पत्नी। का तीसरा अवतार, वराहावतार,-कंवः वाराहीकंद, | वस्त्रम् [वृ+उत्र] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा / एक खाद्य पदार्थ,-कर्णः एक प्रकार का बाण, वस्थम् वि+ऊथन्] 1. एक प्रकार का लकड़ो का बना, --कणिका एक प्रकार का अस्त्र,—कल्पः वराहावतार आवरण जो रथ की टक्कर हो जाने पर रथ की का समय, वह काल जब विष्णु का वराह का अवतार रक्षा करे (इस अर्थ में पुं० भी) वरूथो रथगुप्तिर्या धारण किया,- -मिहिरः एक विख्यात ज्योतिर्वेत्ता, तिरोधत्ते रथस्थितिम् 2. कवच वख्तर 3. ढाल 4. बहत्संहिता का प्रणेता (राजा विक्रमादित्य की राज वर्ग, समुच्चय, समवाय, ..थ: 1. कोयल 2. काल / सभा के नवरत्नों में से एक),-श्रृंगः शिव का नाम / | वरूथिन (वि) वरूथ+इन 1 कवचधारी, बस्तरयुक्त परिमन् (पुं०) [वर+इमनिच] श्रेष्ठता, सर्वोपरिता, 2. अंगारगुप्ति या वचाऊ जगले से सुसज्जित--अवप्रमुखता। निमेकरथेन वरूथिना जितवतः किल तस्य धनु त: परिवसि (स्यि) त [वरिवस् (स्या)+इतच्] पूजा गया, --- रघु० 9 / 11 3. बचाने वाला, आश्रय देने वाला सम्मानित, अचित, सत्कृत / 4. गाड़ी में बैठा हुआ, ..पु. 1. रथ 2. अभिरक्षक, परिवस्या [वरिवसः पूजायाः करणम्-वरिवस्+क्यच प्रतिरक्षक,---नी सेना स्खलितसलिलामुल्लंघ्यनां +अ+टा] पूजा, सम्मान, अर्चना, भक्ति। जगाम वरूथिनी -शि० 12177, रघु० 12150 / / बरिष्ठ (वि.) [अयमेषामतिशयेन वरः उरुर्वा उरु | वरेण्य (वि०) वृ+एन्य] 1. अभिलषणीय, वांछनीय, +इष्ठन् वरादेशः उरु की उ० अ०] 1. सर्वोत्तम, 1 पात्र वरणीय-अनेन चेदिच्छसि गृह्यमाणं पाणिं अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यन्त पूज्य, प्रमुख 2. अत्यन्त विशाल, वरेण्येन रघु० 624 2. (अतः) सर्वोत्तम, श्रेष्ठउरुतम् 3. अत्यन्त विस्तृत 4. गरुतम,-ष्ठ: 1. तित्तिर / तम, प्रमुख, पूज्यतम, मुख्य-वेधा विधाय पुनरुक्त राण For Private and Personal Use Only Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिवेन्दुबिंब दूरीकरोति न कथं विदुषां वरेण्यः-भामि० वर्चस्कः [ वर्चस्+कन् ] 1. उजाला, कान्ति 2. वीर्य 2 / 158, तत्सवितुर्वरेण्यं भगों देवस्य धीमहि ऋक् ऊ विष्ठा। 3 / 32 / 10, रघु० 6 / 84, मट्टि० 1 // 4, कु० 7 / 90, वर्चस्मिन् (वि.) [ वर्चस्+विनि ] 1. शक्तिशाली, -ज्यम् जाफ़रान, केसर / __ओजस्वी, सक्रिय 2. देदीप्यमान, उज्ज्वल, तेजस्वी। बरोटः |वराणि श्रेष्ठानि उटानि दलानि यस्य ब० स०] वर्जः [ वृज्+घ ] छोड़ देना, परित्याग / मरुवे का पौधा,-टम् मरुए का फूल / वर्जनम् [व+ल्युट् ] 1. छोड़ना, त्याग, तिलांजलि वरोलः [वृ+ओलच्] बर्र, भिड़। 2. वैराग्य 3. अपवाद, बहिष्करण 4. चोट, क्षति, वर्करः [वृक्+अरन्] 1. भेड़ यो बकरी का बच्चा मेमना हत्या। 2. बकरा 3. कोई पालतू जानवर का बच्चा 4. वर्जम् (अव्य०) निकाल कर, बाहर करके, सिवाय आमोद, क्रीडाविहार, मनोरंजन / सभ० कर्करः (समास के अन्त में) गौतमीवर्जमितरा निष्कांताः चमड़े की रस्सी या तस्मा जिससे बकरी या भेड़ श० 4, कु. 7172 / / बांधी जाय / | वजित (भू० क. कृ.) [ वृज+क्त ] 1. छोड़ा हुमा, वर्कराटः [वकर परिहासम् अटति गच्छति - वर्कर+अट् / अलगाया हुआ 2. परियत्यक्त, उत्सष्ट 3. बहिकत +अण] 1. तिरछी नजर, कटाक्ष 2. स्त्री के कुचों। . वंचित, विरहित, हीन जैसा कि 'गुणवजित' में। पर उसके प्रेमी के नखक्षतों के चिह्न। वज्यं (वि.) विज+ण्यत् 1 1. टाले जाने के योग्य, विदवर्कुटः (पु०) कोल, अर्गला, चटखनी / काये जाने के योग्य 2. बहिष्कृत किये जाने के योग्य वर्गः विज्+घञ्] 1. श्रेणी, प्रभाग, समूह, दल, समाज, या छोड़े जाने के योग्य 3. छोड़कर, सिवाय के,। जाति, संग्रह (एक समान वस्तुओं का), न्यषेधि वर्ण (चुरा० उभ० वर्णयति-ते, वर्णित) 1. रंग करना, शेषोऽप्यनुयायिवर्ग:- रघु० 2 / 4, 1117, इसी प्रकार रोगन करना, रंगना -- यथा हि भरता वर्णेर्वर्णयन्त्यापौरवर्गः, नक्षत्रवर्ग: आदि 2. टोली, पक्ष, कु० 7173 त्मनस्तनुम् --सुभा० 2. बयान करना, वर्णन करना, 3. प्रवर्ग 4. एक स्थान पर वर्गीकृत शब्दसमूह यथा व्याख्या करना, लिखना, चित्रित करना, अंकित मनुष्यवर्गः, वनस्पतिवर्गः आदि 5. वर्णमाला में व्यंजनों करना, निरूपण करना-- यणितं जयदेवेन हरेरिवं का समूह 6. अनुभाग, अध्याय, या पुस्तक का परि- प्रणतेन - गीत. 3, कि० 5 / 103. प्रशंसा करना, च्छेद 7. विशेषरूप से ऋग्वेद के अध्यायान्तर्गत अव- स्तुति करना 4. फैलाना, विस्तृत करना 5. रोशनी माग, सुक्त 8. घात-दो समान अंकों का गुणनफल करना, उप-बयान करना, वर्णन करना निस्9. सामर्थ्य / सम०--अन्त्यम, - उत्तमम् पांचों वगों में 1. ध्यान से देखना, सावधानता पूर्वक अंकित करना से प्रत्येक का अन्तिम वर्ण अर्थात् अनुनासिक अक्षर, 2. देखना, निहारना। -घनः वर्ग का धनफल,-पदम्, - मूलम् वर्गमूल, वर्णः [ वर्ण +घञ्] 1. रंग, रोगन-अतः शुबस्त्वमपि वह अंक जिसके घात से को वर्गीक बने,-वर्गः वर्ग | भविता वर्णमात्रेण कृष्णः-मेघ० 49 2. रोगन, रंग, का वर्ग। दे० वर्ण (1), 3. रंग, रूप, सौन्दर्य, वर्गणा (स्त्री०) गुणन, घात / त्वय्यादातुं जलमवनते शाङ्गिणो वर्णचौरे-मेष. 46, वर्गशस (अव्य०) [वर्ग---शस समूहों में श्रेणीवार / रघु० 8 / 42 4. मनुष्य श्रेणी, जनजाति या कबीला, वर्गीय (वि.) [वर्ग+छ] किसो श्रेणी या प्रवर्ग से संबद्ध, / जाति (मुख्य रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शव ___ ---यः सहपाठी। वर्ण के लोग) वर्णानामानुपूर्येण-वाति न कश्चिवर्य (वि.) [वर्गे भवः यत् एक ही श्रेणी का,-ग्यः द्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि मजते--श० 5 / 10, रघु. एक ही श्रेणी या दल से संबद्ध, सहयोगी, सहपाठी, 5 / 19 5. श्रेणी, वंश, जनजाति, प्रकार, जाति जैसा सहाध्यायी (शिक्षा में) या यस्य युज्यते भूमिका तो कि 'सवर्णम् अक्षरम्' में 6. (क) अक्षर, वर्ण, ध्वनि खलु भावेन तथैव सर्वे वर्याः पाठिताः मा०१, शि. में वर्णविचारक्षमादृष्टिः - विक्रम० 5, (ख) शब्द, मात्रा-सा. द. 9 7. ख्याति, कीर्ति, प्रसिद्धि, वर्च (भ्वा० आ० वर्चते) चमकना, उज्ज्वल या आभा- विश्रुति-राजा प्रजारंजनलब्धवर्ण:---रघु० 621 युक्त होना। 8. प्रशंसा 9. वेशभूषा, सजावट 10. बाहरी छवि, वर्चस् (नपुं०) [वर्च+असुन ] 1. वीर्य, बल, शक्ति रूप, आकृति 11. चादर, दुपट्टा 12. ढकने के लिए 2. प्रकाश, कान्ति, उजाला, आभा 3. रूपः, आकृति, ढक्कन, चपनी 13. किसी विषय का क्रमगीत में, शकल 4. विष्ठा, मल / सम-प्रहः कोष्ठ बद्धता, गीतक्रम-उपात्तवर्णे चरिते पिनाकिनेः कु० 5 / 56, कब्ज। - 'गीतिख्यात' अर्थात् गान का विषय बना हुआ For Private and Personal Use Only Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14. हाथी की झूल 15. गुण, धर्म 16. धर्मानुष्ठान / वर्णसिः [वन+असि, नुक] जल / 17. अज्ञात राशि-र्णम् 1. केसर, जाफरान 2. रंग- वर्णाटः [वर्ण+अ+अच्] 1. चित्रकार 2. गायक 3. दार उबटन या सुगन्धद्रव्य / सम० - अंका लेखबी, जो अपनी आजीविका अपनी पत्नी के द्वारा करता है, --अपसवः जातिच्यत-अपेत (वि.) जातिशून्य, स्त्रीकृताजीव / जातिच्यत, पतित-अहः एक प्रकार का लोबिया, वणिका [वर्णा अक्षराणि लेख्यत्वेन सन्त्यस्या: ठन) 1, -आगमः किसी अक्षर का जोड़ना भवेद्वर्णागमाद्धंसः अभिनेता की वेशभूषा या नकाब 2. रंग, रंगलेप --सिद्धा०,-आत्मन् (पुं०) शब्द, उदकम् रंगीन 3. स्याही, मसी 4. लेखनी, पेंसिल / सम-परिपहा पानी-- रघु० १६७०,--कूपिका दवात,-क्रमः स्वांग भरना या नकाब धारण करना- ततः प्रकरण 1. वर्ण व्यवस्था, रंगों का क्रम 2. वर्णमाला-चारकः नायकस्य मालतीवल्लभस्य माधवस्य वर्णिकापरिग्रहः चितेरा, * ज्येष्ठः ब्राह्मण, -लिः, - तूलिका,-सूली कथम्--मा० 1 / (स्त्री०) कूची, चितेरे का ब्रुश,--द (वि०) रंगसाजणित (भू० क० कृ०) वर्ण -+क्त] 1. चित्रित 2. वर्णन (-बम्) दारुहल्दी-दात्री हल्दी-दूतः पत्र,-धर्मः प्रत्येक किया गया, बयान किया गया 3. स्तुति की गई, जाति के विशिष्ट कर्तव्य,-पातः किसी अक्षर का लोप प्रशंसा की गई। हो जाना,-पुष्पम् पारिजात का फल,-पुष्पकः पारिजात, . त का फूल, पुष्पकः पारिजात, बणिन् (वि.) [वर्णोऽस्त्यस्य इनि] (समास के अंत में -प्रकर्षः रंग की श्रेष्ठता, प्रसादनम् अगर की प्रयुक्त) 1. रंग रूप वाला 2. जाति से संबंध रखने लकड़ी,--मात (स्त्री० लेखनी, पेंसिल, कूची,-मातृका वाला-पुं० 1. चित्रकार 2. लिपिकार, लेखक 3. सरस्वती, माला, राशिः (स्त्री०) अक्षरों की ब्रह्मचारी, दे० ब्रह्मचारिन्,-अथाह वर्णी-कु० 5/66, यथाक्रमसूची, वर्णमाला,-वतिः,-वर्तिका (स्त्री०) 52, वर्णाश्रमाणां गुरवे स वर्णी विचक्षणः प्रस्तुत रंग भरने की तूलिका,-विपर्ययः वर्णो का उलट फेर-- माचचक्षे-रघु० 5 / 19 4. इन चार मुख्य वर्गों में (भवेत) सिंहों वर्ण विपर्ययात-सिद्धा०, विलासिनी से किसी एक वर्ण का व्यक्ति / सम० --लिङ्गिन् हल्दी,-विलोडकः 1. सेंध लगाकर घर में घुसने (वि०) ब्रह्मचारी की वेशभूषा धारण किए हुए, या वाला 2. साहित्य चोर (शा० शब्दचोर),-वृत्तम् उसके चिल्लों को धारण करने वाला ..स वणिलिङ्गी वर्णों की गणना के आधार पर विनियमित छन्द या विदितः समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने बनेचरः वृत्त (विप० मात्रावृत्त), - व्यवस्थितिः (स्त्री०) - कि० 21 / वर्णव्यवस्था, वर्णविभाग, -शिक्षा वर्णमाला सिख-णिती डीबी स्त्री र चारों वर्षों में से लाना,-श्रेष्ठः ब्राह्मण,---संयोगः एक ही वर्ण के लोगों किसी एक वर्ण की स्त्री 3. हल्दी। में विवाहसंबंध होना,--संकरः 1. अन्तर्जातीय विवाह वर्णः [+णुः नित्] सूर्य / के कारण वर्णों का सम्मिश्रण 2. रंगों का मिश्रण वर्ण्य (वि.) [वर्ण +ण्यत्] वर्णन करने के योग्य (प्रकृत -चित्रेषु वर्णसंकर:-का० (यहां, दोनों अर्थ अभिप्रेत और प्रस्तुत शब्दों की भांति यह 'वण्य' शब्द भी है) शि०१४।३७,--संघातः, - समाम्नायः वर्णमाला। __ काव्य ग्रन्थों में प्रायः प्रयुक्त होता है),-यम् केसर, वर्गक: [वर्णयति-वर्ण+ण्वल] 1. मुखावरण, नकाब जाफरान / अभिनेता की. वेशभूषा 2. चित्रकारी, चित्रकारी के [वृत्त-घा] (प्रायः समास के अन्त में) जीविका, लिए रंग-शि० 16062 3. रंगलेप या कोई उबटन वृत्ति-जैसा कि 'कल्यवर्तम' में। सम०.- जन्मन् के रूप में प्रयुक्त होने वाली वस्तु---एतैः पिष्टतमाल वर्तक (वि०) [ वृत्+ण्वुल ] जीवित, विद्यमान, वर्तमान वर्णकनिभरालिप्तमम्भोधरः -- मृच्छ० 5 / 46, भट्टि. ___..'क: 1. बटर, लवा 2. घोड़े का सुम,-कम् एक 19411 4. भाट, चारण, स्तुतिगायक 5. चन्वन | प्रकार का पीतल या कासा। (वृक्ष),-का 1. कस्तूरी 2. रंगलेप, चित्रकारी वर्तका,--की। वर्तक+टाप, डीष वा) बटेर, लवा। के लिए रंग 3. उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा, - कम् 1.वर्तन (वि.) [वृत+ल्युट ] 1. टिकाऊ, रहने वाला, रंगलेप, रंग, वर्ण श० 6 / 15 2. चन्दन 3. परिच्छेद, ठहरने वाला, विद्यमान 2. स्थिर,-नः ठिंगना, बौना अध्याय, प्रभाग। -नी 1. मार्ग, सड़क 2. जीना, जीवन 3. पीसना, वर्णनम् -ना वर्ण +ल्यूट] 1. चित्रकारी 2. वर्णन, चूर्ण बनाना 4. तकुआ,--नम् 1. जीना, विद्यमान आलेखन, चित्रण --स्वभावोक्तिस्तु डिभादेः स्वक्रिया- रहना 2. ठहरना, डटे रहना, निवास. करना 3. कर्म, रूपवर्णनम्--काव्य० 10 3. लिखना 4. वक्तव्य, गति, जीने का ढंग या त्रीक़ा,-- स्मरसि च तदुपाउक्ति 5. प्रशंसा, सस्ताव ( ना केवल इसी न्तेष्वावयोर्वर्तनानि--उत्तर० 1126, (यहाँ शब्द का अर्थ में)। अर्थ 'आवास या निवास' भी है) 4. जीवित रहना, For Private and Personal Use Only Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवनयापन करना (समास के अन्त में) 5. आजी- वत्मन् (नपुं०) [वत्+मनिन] 1. रास्ता, सड़क, पप,मार्ग विका, जीवन निर्वाह, वृत्ति 6. जीवन निर्वाह का / पगडंडो-वम भानोस्त्यजाश-मेग० 39, पारसी. साधन, वृत्ति, व्यवसाय 7. चालचलन, व्यवहार, कांस्ततो जेतं प्रतस्थे स्थलवम॑ना, 'स्थलमार्ग से' आचरण 8. मजदूरी, वेतन, भाड़ा 9. व्यापार, लेन- आकाशवमंना 'आकाश के मार्ग से 2. (आलं.) देन 10. तकवा 11. गोलक, गेंद। रीति, मार्ग, सर्वसम्मत तथा निर्धारित प्रचकन, प्रकवर्तनिः [ वर्तन्तेऽस्यां जनाः, वृत्+निः ] 1. भारत का लित रीति या आचरण क्रममम. वर्मानुगच्छति पूर्वी भाग, पूर्ववर्ती प्रदेश 2. सूक्त, प्रशंसा, स्तोत्र, मनुष्याः पार्थ सर्वश. भग. 3123, रेखामात्रमपि =निः (स्त्री०) मार्ग, सड़क / क्षुण्णादामनोर्वत्मनः परम्, न व्यतीयः प्रजास्तस्य बर्तमान (वि.) [वृत्+शानच मुक] 1. मौजूद, विद्य- नियंतुर्नेमिवृत्तयः-रघु० 1117 (यहाँ पर शाब्दिक मान 2. जीता हुआ, जीवित रहने वाला, समसाम- अर्थ भी अभिप्रेत है), अहमेत्य पतंगवरमना पुनरंका यिक ----प्रथितयशसा भासविसोमिल्लकविमिश्रादीनां श्रयिणी भवामि ते कु० 4 / 20, 'परवाने के ढंग से प्रबंधानतिक्रम्य वर्तमानकवेः कालिदासस्य क्रियायां 3. स्थान, कर्म के लिए क्षेत्र न वर्म कस्मैचिदपि कथं परिषदो बहमान:--मालवि. 1 3. मुड़ना, प्रदीयताम् कि० 14 / 14 4. पलक 5. धार, किनारा। चक्कर काटना, घूम जाना-नः (व्या० में) वर्तमान सम० पातः मार्ग से व्यतिक्रम,-बंधः--बंधक: काल-वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा-पा० 313131 / पलकों का एक रोग। वर्तकः [ वर्त+रा+ऊक ] 1. पोखर, जोहड 2. भवर, | वर्त्मनिः, नी (स्त्री०) सड़क, रास्ता। बवंडर, जलावर्त 3. कौवे का घोंसला 4. द्वारपाल (चरा वर्धयति ते वर्धापयति भी 1.काटना 5. नदी का नाम / बांटना, मुंडना 2. पूरा करना। वतिः,–ी (स्त्री०) [वृत्+इन् वा डीप् ] 1. कोई भी | वर्षः [ वर्ष +अच्, घा वा] 1. काटना, बॉटना लिपटी हुई गोल वस्तु, पत्राली, वही 2. उबटन, 2. बढ़ाना, वृद्धिं या समृद्धि करना 3. बुद्धि, बढ़ोतरी, मल्हम, आँखों का लेप, काजल, अंगराग (गोली या / -र्धम् 1. सीसा 2. सिंदूर। टिकिया के रूप में)-सा पुनर्मम प्रथमदर्शनात्प्रभृत्यमृत- वर्धकः, वर्धकः, वर्षकिन (पुं०)) [वृष+णि+बुल, वतिरिव चक्षुषोरानन्दमुत्पादयन्तीमा० 1, इयम- वर्ध+क+डि, वर्ष +अच्+क +इनि] बढ़ाई। मतवतिर्नयनयोः ---उतर० 1138, कपरवतिरिव | वर्धन (वि.) [दध+णिच+ल्युट्] 1. बढ़ने वाला, लोचनतापहंत्री-भामि० 3116, विद्ध० 1 3. दीपक | उगने वाला 2. बढ़ाने वाला, विस्तृत करने वाला की बत्ती - मा० 1064 6. (कपड़े की) झालर, आवर्धन करने वाला, न: 1. समृद्धिदाता 2. वह दांत फलबे, किनारी 5. जादू का लैप 6. बर्तन के चारों। जो दाँत के ऊपर उगता है 3. शिव का नाम-पी ओर का उभार 7. जर्राही उपकरण (रम्भनाल आदि) / 1. बुहारी, झाड़ 2. विशेष आकार का जलपट,-मम् 8. धारी, रेखा। 1. उगना, फलना फलना 2. विकास, वृद्धि, समृद्धि, वतिक: [वृत+तिकन् ] बटेर, लवा। आवर्धन, विस्तार 3. उन्नति 4. उल्लास, सजीवता वतिका [ वृतेः तिकन्+टाप् ] 1. चितेरे की कुंची तदुप- 5. शिक्षा देना, पालन-पोषण करना 6. काटना, नय चित्रफलकं चित्रवर्तिकाश्च मा० 1, अंगुलि- | बाँटना जैसा कि 'नाभिवर्धनम्' में / क्षरणसन्नतिक:---रघु० 19 / 19 2. दीपक की बत्ती वर्धमान (वि.) [वध+शानच 1 विकसित होने वाला, 3. रंग, रंगलेप 4. वटेर, लवा। बढ़ने वाला न: 1. एरंड का पौषा 2. एक प्रकार वतिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [वृत्+णिनि (बहुधा समास के की पहेली 3. विष्णु का नाम 4. एक जिले का नाम अन्त में) 1. डटा रहने वाला, होने वाला, सहारा लेने (इसी को लोग वर्तमान बर्दवान मानते हैं),-1, वाला, टिकने वाला, स्थित 2. जाने वाला, गतिशील, --नम् 1. एक विशेष सूरत की तश्तरी, ढमकन मुड़ने वाला 3. अभिनय करने वाला, व्यवहार कर 2. एक रहस्यमय रेखाचित्र 3. वह भवन जिसका ने वाला 4. अनुष्ठाता, अभ्यास करने वाला। दक्षिण की ओर कोई द्वार न हो,- ना एक जिले का वति (र्ती) [वृत्+इरच, पक्षे पृषो० दीर्घः] वटेर, लवा नाम (वर्तमान बर्दवान)। सम० --पुरम् बर्दवान वतिष्णु (वि) [ वृत्+इष्णुच् ] 1. चक्कर काटने वाला | नामक नगर। 2. वर्तमान, इटा रहने वाला 3. वर्तुलाकार। | वर्षमानक: [ वर्धमान+कन् ] एक प्रकार का पात्र, तश्तरी, वर्तुल (वि.) [वत् +-उलच् ] गोल, कुण्डलाकार, मण्ड | ढक्कन, चपनी। लाकार-ल: 1. एक प्रकार की दाल, मटर 2. गेंद, | वर्षापनम् [वधं छेदं करोति- वृथ्+णिच्+आप ततो -लम् वृत्त। भावे ल्युट् ] 1. काटना, बाँटना 2. नालच्छेदन या For Private and Personal Use Only Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्संबंधी कोई संस्कार 3. जन्मदिन का उत्सव 4. कोई। बौछार सुरभि सुरविमुक्तम् पुष्पवर्ष पपात रघु. सामान्य उत्सव जब समृद्धि की मंगलकामनाएँ तथा 12 / 102, इसी प्रकार शरवर्ष:, शिलावर्षः, तथा बधाइयों की अभिव्यक्ति की जाती है। लाजवर्षः आदि 3. वीर्यपात 4. वर्ष, साल (प्रायः वधित (भू० क० कृ०) [वृध+णिच्+क्त ] 1. विकसित नपुं०) इयन्ति वर्षाणि तया सहोंग्रमभ्यस्यतीव व्रतमा बढ़ा हुआ 2. विस्तृत किया हुआ, विशाल बनायाहुआ। सिथारम्-रघु० 13167, न ववर्ष वर्षाणि द्वादश वषिष्णु (वि.) [वृध+इष्णुच.] विकसित होने वाला, दक्षशताक्षः--दश०, वर्षभोग्येण शापेन-मेघ० 1 बढ़ने वाला, फलने फूलने वाला / 5. सृष्टि का प्रभाग, महाद्वीप (इस प्रकार के प्रायः पध्रम् [वृघ्+रन् ] 1. चमडे का तस्मा या पट्टी 2. चमड़ा नौ महाद्वीप गिनाये गये हैं...1. कुरु 2. हिरण्मय 3. सीसा। 3. रम्यक 4. इलावृत 5. हरि 6. केतुमाला 7. भद्राश्व वधिंका, वनी [वर्ध+छीष्, वधी+कन्+टाप, ह्रस्व ] 8. किन्नर और 9. भारत) एतद्गुढगुरुभारभारतं चमड़े का तस्मा या पट्टी। वर्षमद्य मम वर्तते वशे-शि० 1415 6. भारतवर्ष, वर्मन (नपुं०) [आवृणोति अंगम-+मनिन् ] 1. कवच, हिन्दुस्तान 7. बादल (हेमचन्द्र के अनुसार केवल पुं०) / जिरहक्रूतर-स्वहृदयमर्मणि वर्म करोति सजल- सम-अंशः,-अंशकः,-अंगः महीना, मास,-अंबु नलिनीदलजालम्-गीत०४, रघु० 4 / 56, मुद्रा० (नपुं०) बारिश का पानी,-अयुतम् दस हजार वर्ष 2 / 8 2. छाल, वल्कल, पुं० क्षत्रियों के नामों के साथ --अचिस् (पुं०) मंगलग्रह, अवसानम् शरद् ऋतु, लगने वाला एक प्रत्यय -..-यथा चंडवर्मन्, प्रहारवर्मन् -अघोष: मेंढक,-आमदः मोर,-उपलः ओला, करः तु० दास। सम-हर (वि०) 1. कवचधारी बादल (-री) झींगुर,-कोशः,-पः 1. मास, महीना 2. इतना बड़ा जो कवच धारण कर सके (अर्थात् 2. ज्योतिषी,-गिरिः,-पर्वतः 'वर्ष-पहाड़' अर्थात् युद्ध में भाग लेने के योग्य)-सम्यग्विनीतमथ वर्महरं वह पर्वतश्रृंखला जो सृष्टि के भिन्न भिन्न प्रभागों को कुमारम्-रघु० 8 / 94 / / एक दूसरे से पृथक करती है,- (वि०) ('वर्षेज' वर्मा (पुं०) नारङ्गी का पेड़। भी) बरसात में उत्पन्न,-घर: 1. बादल 2. हिजड़ा पनिः (0) मत्स्य विशेष, वामी मछली। अन्तःपुर का रक्षक, खोजा-मालवि० 4, (इसी अर्थ बर्मित (वि.) [ वर्मन् + इतच ] जिरहबख्तर पहने हुए, | में वर्षधर्ष शब्द भी है),-पूगः वर्षों का समुच्चय, कवच से सुसज्जित / ---प्रतिबन्धः सूखा, अनावृष्टि,--प्रियः चातक पक्षी, बर्य (वि.) [ +यत् ] 1. चने जाने या छांटे जाने के - वरः हिजड़ा, अन्तःपुर का रक्षक, खोजा,-- वृद्धिः योग्य पात्र 2. सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान (स्त्री०) जन्मदिन,-शतम् शताब्दी, सौ वर्ष,-सहस्रम् (बहुधा समास के अन्त में) अन्वीतः स कतिपयः एक हजार वर्ष। किरातवयः-- कि० १२१५४,-यः कामदेवर्या 1. वह / वर्षक (वि.) [वृष ---प्रवुल्] बरसन वाला। कन्या जो स्वयं अपना पति वरण करे 2. कन्या। वर्षणम् [वृष् + ल्युट्] 1. वृष्टि, वर्षा 2. छिड़कना, बौछार, ववंट दे० 'बर्बट'। (आलं० से भी) द्रव्यवर्षणम्, 'धन की बौछार या वर्वणा दे० 'बर्बणा'। धन बखेरना। वर्वरः (वि.) [वृ+अरच्, बुट् च ] 1. हकलाने वाला | वर्षणिः (स्त्री०) [ वृष्+अनिः] 1. वृष्टि 2. यज्ञ, यज्ञ 2. बल खाता हुआ, R 1. बर्बर देश का वासी सम्बन्धी कृत्य 3. क्रिया, कर्म 4. टिकना, रहना, उटे 2. बुद्ध, प्रलापी मूर्ख 3. जातिच्यत 4. धुंघराले बाल रहना, वर्तन। 5. हथियारों की झनकार 6. नृत्य की एक भावमुद्रा वर्षा वृष्+अच+टाप्] (प्रायः स्त्री०, ब० व०) 1. बर----- रा,--री 1. एक प्रकार की मक्खी 2. वनतुलसी सात, वर्षाऋतु, वर्षावायु ग्रीष्मे पंचाग्निमध्यस्थो -रम् 1. पीला चन्दन 2. सिन्दूर 3. लोवान / वर्षासु स्थण्डिलेशयः याज्ञ. 3152, भट्टि० 71 वर्वरकम् [वर्वर-कन] एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी। 2. बारिश, वृष्टि (इस अर्थ में एक वचन)। सम. वर्वरीकः [+ईकन, द्वेरुक अभ्यासस्य] 1. धुंघराले बाल -कालः बरसात, वर्षाऋतु, इसी प्रकार 'वर्षासमयः', 2. एक प्रकार की तुलसी 3. एक झाड़ी विशेष / --कालीन (वि०) वर्षा से उत्पन्न या संबंध रखने व' (ई) रः [ वृ-+-वुरच् पक्षे वुरच ] एक वृक्ष विशेष, वाला—भू (पुं०) 1. मेंढक 2. एक कृषि विशेष, बबूल, कीकर। इन्द्रगोप,-भः, म्बी (स्त्री०) मेंढकी या छाटा वर्षः, पम् [ वृष भावे घन कर्तरि अच् वा ] 1. वर्षा, | मेंढक, रात्रः 1. बरसात की रात 2. बरसात / बारिश, वृष्टि की बौछार विद्युत्स्तनितवर्षेषु मनु० वर्षिक (वि०) [वर्ष+ष्णिक) बरसने वाला, बौछार करने 41103 मेघ० 35 2. छिड़कना, उत्सरण, फेकना, वाला,-कम् अगर की लकड़ी। सम्बन्धी कृत्य 3. किमान 1. वृष्टि 2. यज्ञ घुघराले बाल नकार 6. नत्य मढका For Private and Personal Use Only Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 905 ) वर्षितम् [वष्+क्त वृष्टि, वर्षा | 1. ढलवां छत, लकड़ी का बना छप्पर का ढांचा वषिष्ठ (वि.) [अतिशयेन वृद्धः, वृद्ध+इष्ठन, वर्षादेशः -धूपंजलिविनिः सूतैर्वलभयः संदिग्धपारावता:-विक्रम वृद्ध की उ० अ०] 1. अत्यंत बूढ़ा, बहुत बड़ा 2. 32, मालवि० 2 / 13 2. (घर का) सबसे ऊँचा अत्यंत बलवान् 3. विशालतम, अत्यंत विस्तृत। माग, दृष्ट्वा दृष्ट्वा भवनवलभीतुंगवातायनस्था वर्षीयस् (वि.) स्त्री०-सी) [अममनयोरतिशयेन वृद्धः -मा० 1115, मेघ० 38, शि० 3153 3. सौराष्ट्र वृद्ध+ ईयसुन्, वर्षादेशः, वृद्ध की म० अ०] 1. अपेक्षा- | प्रदेश के अन्तर्गत एक नगर का नाम-अस्ति कृत बड़ा, बहुत बूढ़ा 2. अपेक्षाकृत बलवान् / / सौराष्ट्रेषु वलभी नाम नगरी-दश०, भट्टि० 22 / 35 / वर्षक: (वि.) (स्त्री०-की)[वष+उका ] बरसने वाला, बलंब [अवलंब इत्यत्र भागरिमते अकारलोपः] दे० जलमय, पानी डालने वाला-वधूकस्य किमयः कृतो- | 'अवलंब'। नतेरबुदस्य परिहार्यमूषरम् - शि० 14146, भट्टिबलयः,-विल+अयन] कंकण, बाजुबंद-विहितविशद 2037 / सम० - अम्बः,-अंबुवः बारिश करने वाला बिसकिसलयवलया जीवति परमिह तव रतिकलया बादल / -- गीत० 6, भट्टि 3 / 22, मेघ० 2, 60, रघु० 13 // वर्मम् [वृष्+मन्] शरीर, दे० नी / 21, 43 2. छल्ला, कुंडल श० 1133, 7 / 11 वर्मन् [वृष+मनिन्] 1. शरीर, देह 2. माप, ऊंचाई 3. विवाहित स्त्री की करधनी 4. वृत्त, परिधि (प्रायः -वर्म द्विपानां विरुवंत उच्चकैर्वनेचरेभ्यश्चिरमाच- समास के अन्त में) भ्रांतभ्रवलयः दश० वेलावप्रवचक्षिरे-शि० 12164, रघु० 4 / 76 3. सुन्दर या लयाम् (उर्वीम्)-रघु० 1130, दिग्वलय-शि० मनोहर रूप। 98 4. बाड़ा, निकुंज-यथा 'लतावलयमंडप' में, वह,, वह, वहण, वहिण, दे० बई,, बह, बर्हण, बहिण, -यः 1. बाड़, झाड़बन्दी 2. गलगण्ड रोग (वलयीक वहिन्, वहिस् बहिन्, बहिस् / कंकण बनाना, वलयी भू करधनी या कंकण का काम वल (भ्वा० आ० लते-परन्तु कभी कभी 'वलति' भी, देना)। वलित) 1. जाना, पहुंचना, जल्दी करना, अन्योऽन्यं | वलयित (वि) [वलय-+इतच्] घिरा हुआ, घेरा हुआ, शरवृष्टिरेव बलते महावी० 6 / 41, प्रणयिनं परि- लपेटा हुआ। रब्धुमथांगनां ववलिरे वलिरेचितमध्यमाः --शि० | बलाक दे० 'बलाक'। 6 // 31, 6 / 11, 19 / 42, त्वदभिसरणरभसेन वलंती | वलाकिन् दे० 'बलाकिन्' / पतति पदानि कियंति चलंति-गीत०६ 2. हिलना- बलाहक दे० 'बलाहक'। जुलना, मुड़ना, घूम जाना--बॅलितकंधर -मा० वलिः,-ली (स्त्री०) (बलि:-ली भी लिखा जाता है) 1229 3. मुड़ना आकृष्ट होना, अनुरक्त होना [वल +इन्, पक्षे ङीष] 1. (खाल पर) शिकन या - हृदयमदये तस्मिन्नवं पुनर्बलते बलात् गीत. 7, झुरीं वलिभिर्मुखमाक्रान्तम् 2. पेट के ऊपरी भाग नलो० 3 / 5 4. बढ़ाना वलन्नुपुरनिस्वना-सा.द. मैं चमड़े पर पड़ी शिकन, झरी, सिकुड़न, (विशेष कर 116, अमन्दं कन्दर्पज्वरजनितचिन्ताकुलतया वल- स्त्रियों के .. यह एक सौन्दर्य का चिह्न समझा जाता बाधा राधां सरसमिदमूचे सहचरी-गीत० 15. है) मध्येन सा वेदितिलग्नमध्या वलित्रयं चारु बभार ढकना, घेरना 6. ढका जाना, घेरा जाना या घिर बाला-- कु०११३९ 3. छप्पर की छत की बंडेरी / जाना, वि-, इधर-उधर सरकना, इधर-उधर लुढ- सम० भूत् (वि.) घूघर वाला, धुंघराले बालों वाला कना -स्विद्यति कूणति वेल्लति विवलति निमिषति -कुसुमोत्खचितान् वलीभृतश्चलयन् भृगरुचस्तवालविलोकयति तिर्यक् ---काव्य० 10, सम्,---, 1. कान् रघु० ८५३,-मुखः,-बदनः बंदर, मा० मिलाना, गड़बड़ करना 2. संबद्ध करना, जोड़ना | 131 / (बहुधा क्तान्त रूप-दे० संवलित)। बलिकः, कम् [वलि+कन्] छप्पर की छत का किनारा, बल, दे० बल। ओलती। बलक्ष, दे० बलक्ष / वलित (भू. क. कृ०) [वल+क्त] 1. गतिशील वलग्नः, ---मम् [अवलग्न इत्यत्र भागुरिमते अकारलोपः] 2. हिला-जुला, धूमा हुआ, मुड़ा हुआ 3. घिरा हुआ, कमर / .... लिपटा हुआ 4. झुरौंदार - कि० 104 / वलनम् [वल भाने ल्युट्] 1. सरकना, मुड़ना 2. वर्तुलाकार | वलिन, वलिभ (वि०) [वलि+न (भ) वा झुर्रादार, __ घूमना 3. (ज्यो० में) ग्रह की वक्रमति / सिकुड़नदार, झुर्रियों के रूप में बाकुंचित, जिसमें बलभिः,-भी वल्यते आच्छाद्यते वल+अभि वा डोप झरियाँ पड़ी हुई हों, पिलपिला-शि० 613 / ('क्डभिः, -भी' का प्रयोग भी अनेक वार होता है) I बलिमत (वि) बिल+मतुम्] झुरिदार / 114 For Private and Personal Use Only Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RASHTRA बलिर (वि) [वल् + किरच्] भंगी आँख वाला, ऐंचा- | वल्गु (वि.) [वल संवरणे उ गुक् च] 1. प्रिय, सुन्दर, ताना, कनखी से देखने वाला। मनोहर, आकर्षक - रघु० 5 / 68, शि० 529, कि० पलिशम्,-शी [वलि+शो+क, वलिश+कीष्] मछली 18.11 2. मधुर-भामि० 2 / 136 3. मूल्यवान्, पकड़ने का कांटा। -गुः बकरा / सम०-पत्रः एक प्रकार की जंगली पलीकम् [वल+कीकन्] छप्पर की छत का किनारा, दाल। ओलती--शि० 3153 / क्रगुकवल्गु+कन्] मनोहर, प्रिय, सुन्दर-कम् 1. चन्दन बलूकः [वल्+ऊकः] एक पक्षाविशेष,-कम् कमल की | 2. मूल्य 3. लकड़ी। जड़, बिस / | वल्गुलः [वल्ग्+उल] गीदड़ / वसूल (वि.) [वल+लच्, अङ] बलवान्, हृष्टपुष्ट, बल्गुलिका [वल्गुल+कन्+टाप्, इत्वम्] 1. तैलचोर शक्तिशाली। 2. पेटी, डब्बा। पल्क् (चुरा० उभ० वल्कयति-ते) बोलना। | वल्भ (भ्वा० आ०) खाना, निगलना। बल्का,-कम् विल+क, कस्य नेत्वम्] 1. वृक्ष की बल्मिक,-बल्मिकि (पुं०, नपुं०) दे० 'वल्मीक। छाल--स वल्कवासांसि तवाधुना हरन करोति मन्यं न वल्मी विल+अच, मुम, नि० कीष] चिऊँटी। सम० कयं धनंजयः-कि० 1135, रघु० 8 / 11, भट्टि -कूटम् बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का 101 2. मछली की खाल की परत या पपड़ी टीला। 3. भाग, खण्ड / सम-तरुः वृक्षवीशेष,--लोध्रः | वल्मीकः,-कम विल+ईक, मट च बामी, दीमकों से लोध्र वृक्ष का एक भेद। बनाया गया मिट्टी का टीला,-धर्म शनैः संचिनुयावल्कला, लम् [वल+कलच्, कस्य नेत्वम्] 1. वृक्ष की द्वल्मीकमिव पुत्तिका:--- सुभा०, मेघ० 15, 20 छाल 2. बक्कल से बनाई गई पोशाक, छाल से बने ७११,-क: 1. शरीर के कुछ भागों का सूज जाना, वस्त्र-इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी श० हाथी पाँव 2. वाल्मीकि कवि। समशीर्ष एक 1 / 20, 19, रघु० 1218, कु० 5 / 8, हेमवल्कलाः प्रकार का सुरमा (जो अंजन की भांति प्रयुक्त किया -6 / 6, 'सुनहरी छालवस्त्र धारी' (तु. चीरपरि-1 जाता है)। ग्रहाः - कु० 6 / 92) / सम० --- संवीत (वि०) वल्यु (ल्यू) ल (चुरा० पर० वल्युलयति) 1. काट छालवस्त्रधारी। डालना 2. निर्मल करना। वल्कवन् (वि०) [वल्क+मतुप्] मछली (जिसके शरीर | वल्ल (म्वा० आ० वल्लसे) 1. ढकना 2. ढका जाना पर पपड़ी हो)। 3. जाना, हिलना-जुलना। वल्किलः [बल्क- इलच काँटा / वल्ल: विल्ल+अच: चादर 2. ती गंजाओं के बराबर बल्कुटम् (नपुं०) छाल, बक्कल / भार (वजन) 3. दूसरा बाट जो डेढ़ या दो गुंजा वल्ग् (म्वा० उभ० वल्गति -ते, वल्पित) हिलना-जुलना, के बराबर होता है (आयु० में) 4. प्रतिषेध / जाना, इधर उधर बुनाना, शि० 12 / 20 2. कूदना, वरलकी [वल्ल-4-वन-डीप] वीणा --अजस्रमास्फालिउछलना, चौकड़ी भरना, छलांग मार कर चलना, तवल्लकीगुणक्षतोज्ज्वलांगुष्ठनखांवभिन्नया-शि० 119, सरपट दौड़ना (आलं० से भी)-पंच० 262, 4 // 57, ऋतु० 118, रघु० 8 / 41, 19 / 13 / 3. नाचना--भत० 3 / 125 शि० 18153 4. प्रसन्न वल्लभ (वि.) [वल्ल+अभच्] 1. प्यारा, अभिलषित, होना-भट्टि० 13128 5. खाना, शि० 14129 प्रिय 2. सर्वोपरि-भः 1. प्रेमी, पति-~मा० 318, 6. अकड़ कर चलना, डौंग मारना-भामि० 1172 / / शि० 1133 2. कृपापात्र, - पंच० 1153 3. अधीबल्गनम् [वल्ग् + ल्युट्] उछलना, कूदना, सरपट दौड़ना। क्षक, अध्यवेक्षक 4. मुख्य गोप 5. उत्तम घोड़ा (शुभ रघु० 9851 / लक्षणों से युक्त)। सम०-आचार्यः वैष्णव संप्रदाय वल्मा वल्ग+अ+टाप लगाम, रास—आलाने गृह्यते के प्रसिद्ध प्रवर्तक का नाम, -- पालः साईस / हस्ती वाजी बल्गास गह्यते ....मच्छ० 1250 / बल्लभायितम् [वल्लभ+क्या+क्त सुरतानन्द का बल्गित (भू. क. कृ०) [बला+क्त] 1. कूदा हुआ, आसन विशेष, रतिबंध, तु. 'पुरुषायित'। छलांग लगाई हुई, उछला हुआ 2. गतिशील किया | वल्लरम् [वल्ल--अरन्] 1. अगर की लकड़ी 2. निकज गया, नचाया गया-काव्या० २।७३,--तम् 1.सरपट | झुरमुट। दौड़, घोड़ की एक प्रकार की दौड़ 2. अकड़ कर बल्लरी,-री (स्त्री०) [वल्ल-1 अरि वा डीप] 1.बेल, चलना, शेखी बघारना, डींग मारना- निमित्ताद- लता-अनपायिनि संश्रयद्रुमे गजभग्ने पतनाय वल्लरीपरादेषोर्षानुष्कस्येव वल्गितम्-शि० 2 / 27 / / कु० 4 / 31, तमोवल्लरी---मा० 5 / 6 2. मंजरी। MAHA For Private and Personal Use Only Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 907 ) वल्लवः (स्त्री०-वी) [ वल्ल+बा+क] दे० 'बल्लव:'। इच्छा का वशवर्ती, विनीत, अधीन (पुं०) सेवक, शि० 12 / 39 / --आढयकः संस,-क्रिया जीतना, अधीन करनापल्लिः (स्त्री०) [वल्ल+इन 11. लता, बेल-भूतेशस्य (वि०) अधीन, आज्ञाकारी-भर्तृ०२।९४ (-गा) भुजंगवल्लिवलयनङ्नद्धजूटा जटा: ---मा० 102 आज्ञाकारिणी पत्नी। / 2. पृथ्वी / सम पूर्वा एक प्रकार का घास। वशंवद (वि.) [ वश+व+खच्, मुम् ] आज्ञाकारी, वल्ली (स्त्री०) [ वल्लि+ङीष् ] बेल, घुमावदार पौषा, अनुवर्ती, विनीत, अधीन, प्रभावित (शा. तथा लता। सम-जम् मिर्च,-वृक्षः साल का वृक्ष / आलं.) कोपस्य किं नु करभोरु वशंवदाऽभूः . भामि० वल्लरम् [ बल्ल+उरन् ] 1. निकुन्ज, पर्णशाला 2. वन- 319, 2 / 136, 157, ने० 1133, सा ददर्श गुरुहर्षव स्थली, झुरमुट 3. मंजरी 4. अनजुता खेत 5. रेमि- शंवदवदनमनंगनिवासम् --गीत०११ / स्तान, जंगल, उजाड़ 6. सूखा मांस। क्शका वश+के+क+टाप् ] आज्ञाकारिणी पत्नी। वल्लरम् [ वल्ल् +ऊरन् ] 1. सूखा मांस 2. (जंगली) | वशा [वश्+अ+टाप् ] 1. स्त्री, अबला 2. पत्नी सूअर का मांस,-रम् 1. झुरमुट 2. उजाड़, वीरान __3. पुत्री, ननद 5. गाय 6. बाँझ स्त्री 7. बंध्या 3. अनजुता खेत। .. गाय 3. हक्निी ... स्त्रीरत्नेष ममोर्वशी प्रियतमा यथे बल्ह / (म्वा० आ० वल्हते) 1. प्रमुख होना, सर्वोत्तम ! तवेयं वशा-विक्रम० 4125 / होना 2. ढकना 3. मार डालना, चोट पहुंचाना | वशिः [वश्+इन् ] 1. अधीनता 2. सम्मोहन, मन्त्रमु4. बोलना 5. देना। रघता (नपुं०) वश्यता। ii (चुरा० उभ० वल्हवति-ते) 1. बोलना 2. चम- वशिक (वि०) [वश+ठन् ] शून्य, रहित,-का अदर कना। की लकड़ी। वहिक, वल्हीक दे० बल्हिक, वल्हीक। वशिन् (वि०) (स्त्री-नी) [ वशः अस्त्यस्य इनि ] वश (अदा० पर० वष्टि, उशित) 1. चाहना, इच्छा 1. शक्तिशाली 2. नियन्त्रण में, बशीभूत, अधीन, करना, लालसा करना - निःस्वो वष्टिशतं शती दश- विनीत 3. जिसने अपनी विषयवासनाओं पर विजय शतम् --शान्ति० 216, अमी हि वीर्यप्रभवं भवस्य प्राप्त कर ली है, जितेन्द्रिय (संज्ञा शब्द की भांति जयाय सेनान्यमुशन्ति देवा:-कु. 3 / 15, श० 7 / 20 भी प्रयुक्त)--रघु० 2170, 8/90, 1941, श० 2. अनुग्रह करना 3. चमकना। 5 / 28 / वश (वि.) [वश् कर्तरि अच भावे अप वा ] 1. अधीन, / वशिनी [ वशिन्+डीए] शमीवृक्ष, जैडी का पेड़।। प्रभावित, प्रभावगत, नियन्त्रणगत (प्रायः समास में) | वशिरः [वश्+किरच्] एक प्रकार की मिर्च,-रम् समद्रीशोकवशः, मृत्युवश: आदि 2. आज्ञाकारी, विनीत, नमक। अनुवर्ती 3. विनम्र, वशीकृत 4. मुग्ध, आकृष्ट बशिष्ट दे० 'वसिष्ठ'। 5. जादू द्वारा वश में किया हुआ,--शः,---शम् | वश्य (वि०) [वश्+यत् ] 1. वश में होने के योग्य, 1. अभिलाषा, चाह, इच्छा 2. शक्ति, प्रभाव, निय- नियन्त्रणीय, शासित होने के योग्य-आत्मवश्यविन्त्रण, स्वामित्व, अधिकार, अधीनता, दीनता, स्ववशः धेयात्मा प्रसादमधिगच्छति-भग० 2164 2. वशीभूत, 'अपने अधीन' स्वतन्त्र, परवशः 'दूसरों के प्रभाव में- विजित, सधा हुआ, विनीत-भग० 6 / 36 3. प्रभाव अनयत् प्रभुशक्तिसम्पदा वशमेको नृपतीननंतरान् या नियन्त्रण में, अधीन, आश्रित, आज्ञाकारी-तस्य - रघु०८१९, वशं नी,--आनो अधीन करना, वश पुत्रो भवेद्वश्यः समृद्धो धार्मिकः सुधी:--हि०प्र० 18, में करना. जीत लेना, वशं गम,-ई-या, अधीन होना, (प्रायः समास में) (मनः) हृदि व्यवस्थाप्य समाधिमार्ग से हट जाना, दब जाना, विनीत होना न शुचो वश्यम्- कु० ३।५०,-श्यः सेवक, आश्रित,--श्या वशं वशिनामुत्तम गन्तुमर्हसि-रघु०८।१०, वशे कृ या विनम्रा या आज्ञाकारिणी पत्नी--यं ब्रह्माणमियं देवी वशीक बस में करना, हावी होना, जीत लेना, मुग्ध वाग्वश्येवानुवर्तते उत्तर० 112 (जिसका भाषा पर करना, जादू से बस में करना, घशात् (अपा०) पूरा आधिपत्य है),--श्यम् लौंग। क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर 'शक्ति के वश्यका [वश्य+कन्+टाप्] दे० 'वश्या'। द्वारा' 'प्रभाव के द्वारा' 'के कारण' 'प्रयोजन से' अर्थ | वर्ष (भ्वा० पर० वषति) क्षति पहुँचाना, चोट मारना, प्रकट करता है, दैववशात्, वायुवशात, कार्यवशात् वध करना। आदि 3. पालतू, रहने वाला 4. जन्म,--शः वेश्याओं वषट (अव्य०) वह +डपटि] किसी देवता को आहति का वासस्थान, चकला / सम०-अनुज,-वर्तिन देते समय उच्चारण किया जाने वाला शब्द (देवता (इसी प्रकार 'वशंगत) (वि.) आज्ञाकारी, दूसरे की के लिए संप्र. के साथ) इन्द्राय वषट्, पूष्णे वषट् For Private and Personal Use Only Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 908 ) आदि। सम० -कर्त (पु.) पुरोहित जो 'वषट्' रहना, पास में होना, वि-, परदेश में रहना (प्रेर०) का उच्चारण करके आहुति देता है, --कार: 'वषट् / देश निकाला देना, निर्वासित करना--भट्टि० 4 / 35, शब्द का उच्चारण करना। विप्र-, देशाटन करना, घर से बाहर जाना-रघु० वक (म्बा० आ० वष्कते) जाना, हिलना-जुलना। 12 / 11, सम- 1. रहना, निवास करना 2. साथ वष्कयः विष्क+अयन्] एक वर्ष का बछड़ा। रहना, साहचर्य करना-मनु० 4 / 79, याज्ञ० 3 / 15 / वष्कयणी, वष्कयिणी (स्त्री०) [वष्कय+नी+क्विप् ii (अदा० आ० वस्ते) पहनना, धारण करना-बसने +डीए, णत्वम्, वष्कय+इनि+ङीष, णत्वम्] वह परिधूसरे वसाना-श० 7 / 21, शि० 9 / 75, रघु० गाय जिसके बछड़े बहुत बड़े हो गये है, चिर प्रसूता, 1218, कु. 354, 79, भट्टि० ४।१०,प्रेर० ... बहुत दिनों की ब्यायी हुई। (वासयति-ते) पहनवाना, नि-, सुसज्जित करना वस् / (भ्वा० पर० वसति-कभी कभी-वसते, उषित) | -भट्टि० 157, वि-, धारण करना, पहनना-भट्टि 1. रहना, बसना, निवास करना, ठहरना, डठे रहना, 3 / 20 / वास करना (प्रायः अधि० के साथ, परन्तु कभी कभी ___jii (दिवा० पर० वस्यति) 1. सीधा होना कर्म के साथ) -धीरसमीरे यमनातीरे वसति वने 2. दृढ़ होना 3. स्थिर करना। वनमाली-गीत०५ 2. होना, विद्यमान होना, मौजूद _____iv (चुरा० उभ० वासयति-ते) 1.. काटना, होना,-वसन्ति हि प्रेम्णि गणा न बस्तुनि * कि० बाँटना, काट डालना 2. रहना 3. लेना, स्वीकार 8 / 37, यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति, भूतिः श्रीींर्घतिः करना 4. चोट पहुंचाना, हत्या करना। कीर्तिर्वक्षे वसति नालसे---सुभा. 3. वेग से चलना, __v (चुरा० उभ० वसयति-ते) सुगन्धित करना, (समय) बिताना (कर्म के साथ), प्रेर० बसाना, सुवासित करना। आवास देना, आबाद करना-इच्छा० (विवत्सति) वसतिः, ती (स्त्री०) [ वस्+अति वा डीप् ] 1. रहना, रहने की इच्छा करना; अषि-, (कर्म के साथ) निवास करना, टिके रहना आश्रमेषु वसतिं चक्रे. 1. रहना, बसना, निवास करना, बस जाना यानि -~-मेघ० 1, 'अपना निवास स्थिर किया'-श०५।१ प्रियासहचरश्चिरमध्यवात्सम् उत्तर० 338, बाल्या- 2. घर, आवास, निवास, वासस्थान-हर्षों हर्षो हृदय-. परामिव दशा मदनोऽध्युवास-रधु० 5 / 63, 11661, वसतिः पञ्चबाणस्तु बाण:-प्रसन्न० 1122, श०२।१४ शि० 359, मेघ० 25, भट्टि. 113 2. उतरना, 3. आधार, आशय, पात्र (आलं०) कू०६।३७, इसी या अड्डे पर बैठना अनु-, (कर्म के साथ) निवास प्रकार 'विनयवसति:' 'धर्मकवसतिः' 4. शिविर, पड़ाव करना, मा-(कर्म के साथ) निवास करना, बसना 5. ठहरने और आराम करने का समय–अर्थात् -रविमावसते सतां क्रियाय विक्रम० 3 / 7, मनु० रात्रि, तस्य मार्गवशादेका बभूव वसतिर्यत:-रघु० 7 / 69 2. कार्यवाही प्रारम्भ करना-मनु० 3 / 2 15311, (वसतिः-- रात्रिः, मल्लि.) 'उसने रात को 3. व्यय करना, (समय) बिताना उप-, 1. रहना, विश्राम किया', तिस्रो वसतीरुषित्वा-७।३३, 1133.3 / ठहरना (इस अर्थ में कर्म० के साथ) 2. उपवास | वसनम् विस+ल्युट] 1. रहना, निवास करना, ठहरना रखना, अनशन करना-मनु० 2 / 220, 5420, (आलं. 2. घर, निवास स्थान 3. प्रसाधन करना, वस्त्र धारण से भी) उपोषिताभ्यामिब नेत्राम्यां पिबन्ती-दश०, करना, कपड़े पहनना 4. वस्त्र, कपड़ा, परिधान, नि-, 1. रहना, निवास करना, ठहरना-अहो कपड़े ... बसने परिधूसरे वसाना-श०७।२१, उत्संगे निवत्स्यति समं हरिणाङ्गनाभिः-श०२२७, निव- वा मलिनवसने सौम्य निक्षिप्य बीणाम् मेघ०८६, सिष्यसि मय्येव-भग० 1218 2. मौजूद होना, 41 5. करधनी, तगड़ी। विद्यमान होना,-पंच० 1231 3. अधिकार करना, | बसंतः [वस्+मच्] 1. वसंत ऋतु, बहार का मौसम बसना, अधिकार में लेना, निस्-, रह चुकना, अर्थात् (चैत्र और वैशाख यह दो मास बसंत ऋतु के होते (किसी विशेष काल) की समाप्ति तक जाना, प्रेर०- है) मधुमाधवी क्संतः-सुश्रु०, सर्व प्रिये चारुतरं निर्वासित करना, बाहर निकाल देना, देश निकाला वसन्ते---ऋतु० 6 / 2, विहरति हरिरिह सरसबसते देना,-रघु० 14167, परि- 1. निवास करना, .- गीत०१2. मूर्त या मानवीकृत वसंत जो कामठहरना 2. रात बिताना-दे० पर्यषित, प्र- 1. रहना, देव का साथी माना जाता है-सुहृदः पा वसंत निवास करना 2. विदेश जाना, यात्रा करना, घर से किं स्थितम्--कु० 4 / 27 3. पेचिस 4. चेचक, बाहर जाना, देशाटन करना-विधाय वृत्ति भार्यायाः शीतला / सम०-उत्सवः वसन्तोत्सव, वसन्त ऋतु की प्रवसेत्कार्यवान्नरः-मनु० 9 / 74, रघु०१११४, (प्रेर०)। रंगरेलियां (यह आनंदमंगल पहले चैत्र की पूर्णिमा देशनिकाला देना, निर्वासित करना प्रति-, निकट | को होली-उत्सव के अवसर पर मनाये जाते हैं), धमाल.) हरन और For Private and Personal Use Only Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पानी, प्रभा लाभा में से विशेषण, --कालः बसन्त की लहर, बसन्त ऋतु,-घोषिन् मग्नमापत्ययोधौ--कि० 1146, (दोनों अवस्थाओं में (पुं०) कोयल, जा 1. वासन्ती या माधवी लता 'वसु' शब्द का अर्थ धन दौलत भी है). 12. सूर्य 2. वासन्ती चहल-पहल, दे० वसन्तोत्सव,--तिलकः --स्त्री. प्रकाश, किरण / सम.--.ओ (औ) कसारा ---कम् वसन्त ऋतु का अलंकार-फुल्लं बसन्ततिलक 1. इन्द्र की नगरी अमरावती 2. कुबेर की नगरी तिलक वनाल्याः -छंद० 5, ( कः का, कम्) एक अलका 3. एक नदी का नाम जो अलका या अमराछंद का नाम, दे० परिशिष्ट १,-द्वतः 1. कोयल वती से संबद्ध है,--कीट:- कृमिः भिक्षुक, दा 2. चैत्र का महीना 3. हिंदोल राग 4. आम का पृथ्वी,----देवः कृष्ण के पिता और सूर के पुत्र का नाम वृक्ष,-"दूती शृंगबल्ली का फूल,---द्रुः, नुमः आम का एक वदुवंशी, भूः,- सुतः कृष्ण के विशेषण वृक्ष, - पंचमी माघ शुक्ला पंचमी, बंधुः, सखः देवता,-देव्या धनिष्ठा नाम का नक्षत्र, धमिका कामदेव के विशेषण। स्फटिक,---धा 1. पृथ्वी वसुधेयमवेक्ष्यतां त्वया-रधु० वसा [वस्-+अच्+टाप्] 1.मेद, चरबी, मज्जा , पशुमज्जा , 8 / 83 2. भूमि--कु० 4 / 4, °अधिपः राजा धरः पशुओं के गुर्दे की चर्बी-मुद्रा० 3128, रधु०१५।१५ पहाड़ विक्रम० 117 नगरम् वरुण की राजधानी 2. कोई तेल या चर्बीवाला स्राव 3. मस्तिष्क। सम० --. धारा,-भारा कुबेर की राजधानी,-प्रभा आग -आढघः,---आढचकः सुंस, छटा भेजा-पायिन् की सात जिह्नाओं में से एक,-प्राणः अग्नि का (पुं०) कुत्ता। विशेषण,-रेतस् (पुं०) अग्नि, .. श्रेष्ठम् 1. तपाया वसिः [वस्+इन्] 1. कपड़े 2. निवास, आवास / हुआ सोना 2. चाँदी,बेणः कर्ण का नाम, स्थली बसित (भू० क० कृ०) वस्-णिच-त] 1. पहना कुबेर की नगरी का विशेषण। हुआ, धारण किया हुआ 2. निवास 3. (अनाज | वसु (सू) कः [वसु-कै+क] आक का पौधा,-कम् आदि) संगृहीत / 1. समुद्री नमक 2. शिलीभूत लवण / वशिरम् [वस्+किरच्] समुद्री नमक / वसुन्धरा [वसूनि चारयति-वसु++-णिच्+खच् वसिष्ठः ('वशिष्ठ' भी लिखा जाता है] 1. एक विख्यात +टाप, मुम्] पृथ्वी, नानारत्ना वसुन्धरा -रघु० मुनि का नाम, सूर्यवंशी राजाओं का कुल पुरोहित, | 47 / कई वैदिक सूक्तों के ऋषि, विशेष कर ऋग्वेद के वसुमत् (वि.) [वसु-+-मतप] दौलतमंद, धनवान,-ती सातवें मंडल के; ब्राह्मणोचित प्रतिष्ठा तथा शक्ति पृथ्वी-वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिण:-रघु० 882, के आदर्श प्रतिनिधि, विश्वामित्र ने उनकी समानता श० 1125 / करने का बहुत प्रयत्न किया, और इसी कारण वसुलः [वसु+ला+क] सुर, देवता / तत्संबन्धी अनेक उपाख्यान प्रचलित हो गये---तु. वसूरा वस् / ऊरच्+टाप] वेश्या, रंडी गणिका / विश्वामित्र 2. स्मृति के प्रणेता का नाम (कभी-कभी वस्क (म्वा० आ० वस्फते) जाना, हिलना-जुलना। ऋषि के नाम पर ही इसका नाम 'वसिष्ठ स्मति' वस्कय दे० 'वष्कय। लिया जाता है)। वस्कयणी दे० 'वष्कयणी'। वसु (नपुं०) [वस्+उन्] 1. दौलत, धन स्वयं प्रदुग्धे- वस्कराटिका (स्त्री०) विच्छू / ऽस्य गुणरुपस्नुता वसूपमानस्य वसूनि मेदिनी-कि० वस्तु (चुरा० उभ० वस्तयति-ते) 1. क्षति पहुँचाना, 1218, रधु० 8 / 31, 96 2. मणि, रत्न 3. सोना हत्या करना 2. मांगना, निवेदन करना, याचना +. पानी 5. वस्तु. द्रव्य 6. एक प्रकार का नमक करना 3. जाना, हिलना-जुलना / 7. एक जड़ी-विशेष, वृद्धि (पुं०) 1. एक देव समूह वस्म वस्तु+अच आवासस्थान--स्तः बकरा दे० 'बस्त'। (इस अर्थ में ब०व०) जो गिनेती में आठ हैं-1. | वस्तकम् विस्त-कै+-क] कृत्रिम लवण / आप 2. ध्रुव 3. सोम 4. घर या घव 5. अनिल बस्तिः (0, स्त्री०) वस+ति:] 1. निवास, आवास, 6. अनल7. प्रत्यूष और 8. प्रभास, कभी-कभी 'आप' टिकना 2. उदर, पेट का नाभि से नीचे का भाग के स्थान में 'अहं' को गिनते हैं-धरो ध्रुवश्च सोमश्च 3. पेड़ 4. मूत्राशय 5. पिचकारी, एनीमा। सम० अहश्चवानिलोऽनलः, प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवो- सलन् मूत्र, शिरस् (नपुं०) 1. एनीमा की नली, ऽष्टाविति स्मृताः 2. आठ की संख्या 3. कुबेर -शोधनम् (मूत्राशय साफ करने की) मूत्र बढ़ाने 4. शिव . अग्नि 6. वृक्ष 7. सरोवर, तालाब 8. वाली दवा। रास 1. जुवा बांधने की रस्सी 10 बागडोर 11. ! वस्तु (नपुं०) [वस्+तुन्] 1. वस्तुतः विद्यमान चीज, प्रकाश की किरण---निरकाश यद्रविमपेतवस वियदा- वास्तविक, वास्तविकता-वस्तुन्यवस्त्वारोपोऽज्ञानम् लयादपरदिग्गणिका-शि० 9:10, शिथिलवसुमगाधे 2. चीज, पदार्थ, सामग्री, द्रव्य, मामला-अथवा For Private and Personal Use Only Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृदु वस्तु हिसितुं मृदुनवारभते कृतांतकः-रघु० वस्ननम् [वस्+नन करधनी, पटका या तागड़ी। 8045, कि वस्तु विद्वन् गुरवे प्रदेयम् - 5 / 18, 315, वस्नसा [वस्नं चर्म सीगति-सिब्-ड+टाप् कण्डरा, वस्तुनीष्टेप्यनादरः-सा० द.. धनदौलत, सम्पत्ति, स्नायु। वैभव 4. सत, प्रकृति, नैसर्गिक या प्रधान गुण | वंह (चुरा० उभ० वंहयति-ते) उज्ज्वल करना, चम5 सामान (जिससे कोई वस्तु बन सके), सामग्री, काना, रोशनी करना / मलपदार्थ (आलं० से भी) आकृतिप्रत्ययादेवनामनून (भ्वा० उभ० वहति- ते, ऊद, कर्म० उह्यते) 1. ले वस्तुका संभाक्यामि। -मालवि०१ 6. (नाटक की) जाना, नेतृत्व करना, धारण करना, वहन करना, कथावस्तु, किसी काव्यकृति की विषयवस्तु, कालि परिवहन करना, (प्रायः दो कर्म के साथ)...अजां दासप्रथितवस्तुना नवेनाभिज्ञानशकुंतलास्येन नाटके ग्रामं वहति, वहति विधिहतं या हवि:- श०१११, न नोपस्थातव्यमस्माभिः -- श० 1, अथवा सद्वस्तु पुरुष च हव्यं वहत्यग्निः -मनु० 4 / 240 2. ढोना, आगे बहुमानात् - विक्रम० 112, शीनमस्क्रिया वस्तु चलाना, बहा कर ले जाना, धकेलना--जलानि या निर्देशो वापि तन्मुखम्--सा० द० 6, वेणी० 1 तीरनिखातरूपा वहत्ययोध्यामनु राजधानीम् - रघु० 7. किसी वस्तु का गूदा 6 योजना, रूपरेखा / सम० 13261, निस्रोतसं वहति यो गगनप्रतिष्ठाम्--. श० ---.अभावः 1. वास्तविकता की कमी 2. सम्पत्ति की 77, रघु० 11 / 10 3. जाकर लाना, ले आना हानि, उत्थापनम् ओझाई या झाड़फंक अथवा अभि -वहति जलमियम्- मुद्रा० 114 4. धारण करना, चार के द्वारा (नाटकों में) किसी उपख्यान की रचना सहारा देना, थाम लेना, जीवित रहना-न गर्दभा -सा०द० 420, उपमा, दण्डी के अनुसार उपमा वाजिधुरं वहति मुच्छ० 4 / 17, ताते चापद्वितीये वहति का एक भेद, दण्डी द्वारा निरूपित लक्षण.. राजीवमिव रणधुरां को भयस्यावकाश:वेणी० 35, 'जब मेरे ते वक्त्रं नेत्रे नीलोत्पले इव, इयं प्रतीरमानकधर्मा पिता हरावल का नेतृत्व कर रहे हैं, वहति भुवनवस्तूपमैव सा -- काव्या० 2 / 16, (यह एक ऐसी मेथी शेष: फणाफलकस्थिताम् -- भर्तृ० 2 / 35, श० उपमा की बात है जहाँ साधारण धर्म का लोप हो 7.17, मेघ० 17 5. उठाकर ले जाना, अपहरण गया है),-- उपहित (वि.) उपयुक्त पदार्थ के साथ करना-अद्रेः शृंगं बहति (पाठांतर-'हरति') पवनः व्यवहृत, उपयुक्त सामग्री पर अर्पित-रघु० 3129, कि स्विद्--मेघ० 14 6. विवाह करना- यदूढया - मात्रम् किसी विषय की केवल रूपरेखा या ढांचा वारणराजहार्यया-कुं० 5 / 70, मनु० 3138 7. रखना, (जिसे बाद में विकसित किया जा सके)। अधिकार में करना, भारवहन करना---वहसि हि वस्तृतम् (अव्य०) [वस्तु तस्] 1. दरअसल, वास्तव धनहाय पण्यभूतं शरीरम-मृच्छ० 1131, वहति में, सचमुच, वाकई 2. अनिवार्यतः, यथार्थतः, तत्त्वतः विषधरान् पटौरजन्मा - भामि० 1174 8. धारण 3. इसका स्वाभाविक फल यह है कि सच बात तो करना, प्रदर्शित करना, दिखाना-लक्ष्मीमवाह सकलस्य यह है कि, निस्सन्देह / / शशांकमूर्तेः---कि० 5 / 92, 9 / 2 9. मुंह ताकना, वस्त्यम् वस्तियत् घर, आवासस्थान, निवासस्थान ... सेवा करना, देखभाल करना--मुग्धाया मे जनन्या शि०१३।६३ / योगक्षेमं वहस्व-मालवि० 4, तेषां नित्याभियुक्तानां वस्त्रम विस्+ष्ट्रन्] 1. परिधान, कपड़ा, कपड़े, पहनावा योगक्षेमं वहाम्यहम् --ग. 9 / 22 10. भुगतना, 2. वेशभूषा, पोशाक। सम०.- अगार:-रम्,-गहम्, टटोलना, अनुभव करना, भामि० 1294, इसी प्रकार तम्ब,-अंचल:,-अंतः कपड़े को किनारी या वस्त्र --दुःखं, हर्प, शोकं तोषं आदि 11. (इस अर्थ में तथा की झालर,---कुट्टिमम् . तम्बू 2. छतरी,-पंधिः निम्नांकित अर्थों में अकर्मक) धारण किया जाना, ले धोती या साड़ी की गांठ (जो नाभि के निकट कपड़े जाया जाना, चलते रहना, वहतं बलीवो वहतम् में लगाई जाती ह), तु० नीवि,--निर्णेजकः धोबी, -मृच्छ० 6, उत्थाय पुनरवहत्-का०, पंच० 1143, --परिधानम् कपड़े पहनना, वस्त्रधारण करना, 291 12. (नदी आदि का) बहना-प्रत्यगू हुर्महानद्यः -पुत्रिका गुडिया, पुत्तलिका, * पूत (वि.) कपड़े -----महा०, परोपकाराय वहति नद्यः-सुभा० 13. (हवा में छाना हुआ-वस्त्रपूतं पिबेज्जलम्-मनु० 6 / 46, का) चलना,... मंदं वहति मारुत:--राम०, वहति --भेदकः,-भेदिन् (पुं०) दर्जी,-योनिः कपड़े का मलयसमीरे मदनमुपनिघाय गीत० 5, प्रेर० (वाहयति उपादान (कपास आदि),--रंजनम् कुसुंभ / --ते) 1. धारण कराना, भिजवाना, मंगवाना, ले बस्नम् विस्+न] 1. भाड़ा, मजदूरी (इस अर्थ में पं० जाया जाना 2. हाँकना, ठेलना, निदेश देना 3. आर भी) 2. निवासस्थान, आवासस्थान 3. दौलत, द्रव्य पार जाना, पारगमन करना -- सवाह्यते राजपथः 4. वस्त्र, कपड़े 5. चमड़ा 6. मूस्य 7. मृत्यु / * शिवाभिः- रघु. 16612, भवान् वाहयेदवशेषम् मा For Private and Personal Use Only Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. मेघ० 38 4. उपयोग करना, ले जाना--भट्टि० / वहंतः [वह +झच्] 1. वायु 2. शिशु / 14123, इच्छा० (विवक्षति--ते) ले जाने की इच्छा | वहल (वि.) दे० 'बहल'। करना, अति -, गुजारना, (समय) बिताना, मुख्य वहित्रम्, वहिप्रकम् बहिनी [वह +इत्र, वहिन कन्, रूप से प्रेर०, मा०६।१३, रघु० 9/70, अप-, 1. हाँक वह + इनि-डी डोंगी, बेड़ा, नाव, किश्ती,-प्रत्यकर दूर भगा देना, हटाना, दूर ले जाना रघु० 13 षस्यदृश्यत किमपि वहित्रम्-दश०, प्रलय पयोधिजले 22, 16 / 6 2. छोड़ना, त्यागना, तिलांजलि देना | | धृतवानसि वेदं विहितवहिनचरित्रमखेदम्-गीत०१ / ----- रघु० 11125 3. घटाना, व्यवकलन करना, आ-, [ वहिस दे० 'बहिस्। 1. पूरी तरह समझा देना 2. जन्म देना, पैदा करना | बहिष्क (वि०) वहिस्--कन्] बाहरी, बाह्यपत्रसंबंधी। प्रवत्त होना या झुकना-बीडमावति मे स संप्रति | वहेडकः (पुं०) बहेड़े का पेड़, विभीतक का वृक्ष। रघु० 11173, श० 34 3. वहन करना, कब्जे में | | वह्निः [वह +निः] 1. अग्नि- अतृणे पतितो वह्निः स्वयमेकरना, रखना- चौर० 18 4. बहना 5. प्रयोग वोपशाम्यति सुभा० 2. पाचनशक्ति, आमाशय का करना, उपयोग करना (प्रेर०) (देवता का) आवाहन रस 3. हाजमा, भूख लगना + यान / सम० कर करना, उन् , 1. विवाह करना ...पार्थिवीमुदवह (वि०) 1. अन्तर्दाहक 2. पाचनशक्ति को उद्दीप्त द्रघूद्वहः - रघु० 11154, मनु० 318, भट्टि० 2148 करने वाला, क्षुधावर्धक,-काष्ठम् एक प्रकार की 2. ऊपर उठाना, उन्नत होना 3. संभालना, जीवित अगर को लकड़ी, गंधः धूप, लोबान,-गर्भः 1. बांस रखना, ऊँचे उठाना, सहारा देना-रघु० 16160 2. शमी या जैडी का वृक्ष, तु० अग्निगर्भ',-दीपकाः . भुगतना, अनुभव करना 5. अधिकार में करना, कुसंभ का पेड़, --भोग्यम् घी,--मित्रः हवा, वायु, रखना, पहनना, धारण करना, * कु० 1319, विक्रम ----- रेतस् (पुं०) शिव का विशेषण,-लोहम्,- लोहकम् 4 / 42 7. समाप्त करना, पूरा करना, उप-, तांबा, वर्णम् लाल रंग का कुमदु, रक्तोत्पल, 1. निकट लाना 2. उपक्रम करना, आरम्भ करना, --वल्लभः राल,--बीजम् 1. सोना 2. चूना--शिखम् नि-, संभाले रखना, जीवित रखना, सहारा देना / 1. केसर 2. कुसुंभ, सखः हवा, * संज्ञकः चित्रकवृक्ष / वेदानुद्धरते जगन्निवहते---- गीत०१, निस-, 1. समाप्त होना 2. अवलंबित होना,''की सहायता से निर्वाह वह्यम् [वह+यत्] 1. गाडी 2. यान, सवारी,-ह्या एक करना,(प्रेर०)-समाप्ति तक ले जाना, पूरा करना, मुनि की पत्नी। समाप्त करना, प्रबंध करना-श० 3, परि , छल वल्लिक, बल्लीक दें बलिक, बह्लीक' / वा (अव्य०) वा--विवप्] 1. विकल्प बोधक अव्यय, या, कना, प्र ,वहन करना, ले जाना, खींचते रहना 2. बहा ले जाना, ले जाना, वहन करते जाना-भट्टि० परंतु संस्कृत में इसकी स्थिति भिन्न है, या तो यह 81523. सहारा देना, (भार) वहन करना, प्रत्येक शब्द या उक्ति के साथ प्रयुक्त होता है, अथवा 4. बहना 5. लिलना 6. रखना, अधिकार में करना, अन्तिम के साथ, परन्तु यह वाक्य के आरंभ में कभी स्पर्श करना या महसूस करना, वि---, विवाह करना, प्रयुक्त नहीं होता, तु० 'च' 2. इसके निम्नांकित अर्थ सम्, , 1. ले जाना, धारण किये जाना 2. मसलना, है (क) और, भी,--वायुर्वा दहनो वागण०, अस्ति दबाना, दे०प्रेर. 3. विवाह करना, दिखाना, प्रदर्शित ते माता स्मरसि वा तातन् उत्तर० 4, (ख) के समान, जैसा कि जातां मन्ये हिनमथितां पगिनी करना, प्रस्तुत करना, (प्रेर०) मसलना, या मालिश वान्यरूपाम्-मेघ० 83, मणी वोष्ट्रस्य लंबेते करना श० 3 / 21 / -सिद्धा०, हृष्टो गर्जति चातिर्पितबलो दुर्योधनो वा बहः बिह+कर्तरि अच्] 1. वहन करने वाला, ले जाने शिखी-- मृच्छ० 5 / 6, मालवि० 5 / 12, शि० 3 / 63, वाला, सहारा देने वाला 2. बैल के कये 3. सवारी 4 // 35, 764, कि० 3.13 (ग) विकल्प यान 4. विशेष करके घोड़ा 5. हवा, वायु 6. मार्ग से-(इस अर्थ में बहुधा इसका प्रयोग व्याकरण सड़क 7. नद, नाला 8. चार द्रोण की माप / के नियमों में --जैसा कि पाणिनि के सूत्र होता है) वहतः [बह+अतच्] 1. यात्री 2. बैल / दोषो णौ वा चित्तविरागे -पा० 6 / 4 / 90, 91 बहतिः [वह +अतिः] 1. बैल 2. हवा, वायु 3. मित्र, (घ) संभावना (इस अर्थ में 'वा' बहुधा प्रश्नवाचक परामर्शदाता, सलाहकार / सर्वनाम और उससे व्युत्पन्न 'इव' 'नाम' जैसे शब्दों बहती, बहा [वहति+डोष, वह टाप्] नदी, सरिता। | के साथ जोड़ दिया जाता है तथा 'संभवतः' या बहतुः [वह +अतु] बैल / 'कदाचित' शब्दों से उसे अनुदित किया जाता है पहनम् [वह + ल्युट्] 1. ले जाना, धारण करना, ढोना | --कस्य वान्यस्य वचसि मया स्थातव्यम् का०, 2. सहारा देना 3. बहना 4. गाड़ी, यान 5. नाव, डोंगी।। परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते-पंच. For Private and Personal Use Only Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 912 ) श२७, (ङ) कभी-कभी केवल पादपूर्ति के लिए ही एक भेद-दे० काव्या० २।४३,-आलापः वार्तालाप, प्रयुक्त होता है 3. जब 'वा' की पुनरुक्ति की जाती बातचीत, प्रवचन,---खंडनम किसी उक्ति या तर्क का है तो इसका अर्थ होताई या-या-सा वा शंभोस्त- निराकरण,-पदीयम् भर्तृहरि द्वारा रचित एक पुस्तक दीया वा मूतिर्जलमयी मम-कु० 260, तदत्र का नाम,-पद्धतिः (स्त्री०) वाक्य बनाने की रीति, परिश्रमानुरोधाता उदात्तकथावस्तुगौरवाद्वा नवनाटक- वाक्यविन्यास, लेखनशैली,-प्रबंधः 1. पुस्तक, संबद्ध दर्शनकुतूहलाद्वा भवद्भिरवधानं दीयमानं प्रार्थये- रचना 2. वाक्य प्रवाह, ---प्रयोगः वक्तता को काम में विक्रम०१, (अथवा या, कुछ-कुछ, अन्यथा--दे० लाना, भाषा का उपयोग,--भेदः भिन्न उक्ति, विभिन्न 'अथ' के नीचे, न या नहीं, न तो, न, यदि वा अगर, वक्तव्य मुद्रा० 2, -रचना, विन्यासः वाक्य में अन्यथा, किं वा कि, क्या, आया कि आदि / शब्दों का कम, शब्द योजना, वाक्यरचनाविचार, वा (भ्वा० अदा० पर० बाति, वात या वान) 1. हवा का शेषः 1. किसी बात का अवशिष्ट भाग, पूरा न चलना - वाता वाता दिशि दिशि न वा सप्तधा किया गया या अपूर्ण वाक्य - सदोषावकाश इव ते सप्तभिन्ना--वेणी० 316, दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखाः वाक्य शेषः - विक्रम० 3 2. न्यून पद वाक्य। - रघु० 3 / 14, मेघ० 42, भट्टि० 7.1, 8161 वागरः [वाचा इयति गच्छति, वाच+ऋ---अच] 1. ऋषि, 2. जाना, हिलना-जुलना 3. प्रहार करना, चोट मनि, पुण्यात्मा 2. विद्वान् ब्राह्मण, विद्यार्थी 3. शूर, पहंचाना, क्षतिग्रस्त करना-प्रेर० (वापयति-ते) ! वीर, सूरमा 4. सान, सिल्ली 5. बाधा, रुकावट 1. हवा चलवाना 2. वाजयति -ते-- डुलना, आ-, : 6. निश्चिति 7. बड़वानल 8. भेडिया। हवा का चलना-बद्धां बद्धां भित्तिशंकाममुष्मिन्नावा- बागा (स्त्री०) लगाम / नावान्मातरिश्वा निहन्ति--कि० 5 / 36, भट्टि० वागुरा [वा हिंसने उरच गन् च ] खटकेदार पिंजड़ा, 14 / 97, निस्-, 1. खिलना 2. ठंडा होना, शान्त / जाल, पाश, फन्दा, जालीदार फ़न्दा--को वा दुर्जनहोना, (आलं० से भी) वपूर्जलाषिवन निर्ववो वागुरासु पतितः क्षेमेण यातः पुमान—पंच०१।१४६ / ---शि० 1165, त्वयि दृष्ट एव तस्या निर्वाति मनो सम... वृत्तिः जंगली जानवरों को पकड़ कर प्राप्त मनोभवज्वलिते सुभा० 3. फूक मारला, बझना, तिष्प्रभ होने वाली आजीविका (-त्तिः) बहेलिया, शिकारी। होना-निर्वाणदीपे किम तेल दानम, निर्वाणभूयिष्ठ- वागरिकः / कगरा-ठक ] बहेलिया, शिकारी, हरिण मयास्य वीर्य संधुक्षयंतीय यपूर्गुणेन कु०३१५२, शि० पकड़ने वाला ..रघु० 9 / 53 / 14185, (प्रर०) 1. फूंक मारना, बुझाना 2. शांत वाग्मिन (वि.) वाच अस्त्यर्थे मिनिः चस्यः | करना, गर्मी दूर करना, शीतल करना-रत्न० 3 / 11, 1. वाक्पटु, वाक्चतुर 2 बातूनी 3. शब्दाडम्बरपूर्ण, रघु० 19 / 56 3. रिझाना, सान्त्वना देना, आराम शब्दसंक्रान्त पुं० 1. प्रवक्ता सुवक्ता-अनिर्लोडितपहुँचाना -रघु० 12163, प्र-, वि.., हवा का कार्यस्य वाग्जाल वाग्भिनो वृथा--शि० 2 / 27, 109, चलना-वायुविवाति हुदाति हरबराणाम् --ऋतु ! कि० 1416, पंच० 4 / 86 2 वृहस्पति का नाम / 6 / 23 / वाग्य (वि.) [वाचं यच्छति-यम-1-31 1. कम बोलने वांश (वि.) (स्त्री० शी) वंश-अण्] वांस का बना वाला, मितभाषी 2. सत्य बोलने वाला, ग्यः विनय, हुआ, शी वंसलोचन / नम्रता। वांशिकः [वंश+ठक्] 1. बांस काटने वाला 2. बांसूरी | बांकः (पुं०) समुद्र / बजाने वाला, बाँसुरिया / वाक्ष (भ्वा० पर० वांक्षति) अभिलाषा करना, इच्छा वाकम् [वक+अण्] सारसों का समूह या उड़ान / करना। वाकूल दे० 'बाकुल' / वाङ्मय (वि.) (स्त्री०-यी) [ वाच+-मयट | 1. शब्दों वाक्यम् [वच्+ण्यत्, चस्य कः] 1. वक्तता, वचन, से युक्त रघु० 3 / 282. वाणी या वचनों से संबन्ध वक्तव्य, उक्ति, कथन -शृणु मे वाक्यम् 'मेरे वचन रखने वाला --मनु० 1216, भग० 17115 3. वाणी सुनो', वाक्ये न संतिष्टते 'आज्ञा पालन नहीं करता है। से युक्त 4. वाक्पटु, अलंकारपूर्ण, वाग्विदग्ध,---बम -शि० 2 / 24 2. बात, उपवाक्य (किसी विचार 1. वाणी, भाषा-म्यरस्तजन्भगलतिरेभिर्दशभिरक्षरः का पूर्णोच्चारण)वाक्यं स्याद्योग्यताकांक्षासत्तियक्तः समस्तं वाङ्मयं व्याप्तं त्रैलोक्यमिव विष्णुना-छन्द० पदोच्चयः-सा० द. 6, श्रोत्यार्थी च भवेद्वाक्ये 1, कु० 7190, शि० 272 2. वाग्मिता 3. आलं. समासे तद्धिते तथा-काव्य 10 3. तर्क, अनुमान __ कारिक,- -यी सरस्वती देवी। (तर्क में) 4. विधि, नियम, सूत्र / सम०-अर्थः वाच (स्त्री०) [वच-+क्विप् दीर्घोऽसंप्रसारणं च] वाक्य का अर्थ, उपमा दण्डी के अनुसार उपमा का! 1 वचन, शब्द, पदावली (विप० अर्थ) वागविव For Private and Personal Use Only Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 913 ) सम्पक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये--रघ० 111 2. वचन, बात, गर्दभो हत:--हि. 3 2. अपशब्द, मानहानि भाषा, वाणी--वाचि पुण्यापुण्यहेतवः--मा० 4, लौकि- 3. व्याकरण की दृष्टि से अशद्ध भाषण,-निबंधन कानां हि साधूनामर्थं वागनुवर्तते, ऋषीणां पुनरा- (वाग्निबंधन) (वि.) वचनों पर आश्रित रहने द्यानां वाचमर्थोऽनुधावति उत्तर० 1110, विनिश्चि- वाला, निश्चयः (वानिश्चयः) मुंह के वचन से तामिति वाचमाददे कि० 1110, 'यह वचन कहे', मंगनी, विवाह-संविदा, निष्ठा (वाइनिष्ठा) (अपने निम्नांकित कहा' 14 // 2, रघु० 259, शि० 2 / 13, वचनों या प्रतिज्ञा) के प्रति भक्ति या श्रद्धा, पटु 23, कु० 2 / 3 3. वाणी, शब्द- अशरीरिणी वागद- (वि.) (वाक्पटु) बोलने में कुशल, वाक्चतुर, चरत्-उत्तर०२, मनुष्यवाचा-रघु० 3153 4. उक्ति, --- पति (वि.) (वाक्पति) वाकचतुर, अलंकारवक्तव्य 5. भरोसा, प्रतिज्ञा 6. पदोच्चय, कहावत, युक्त, (तिः) बृहस्पति का नाम (इस अर्थ में 'वाचसां लोकोक्ति 7. विद्या की देवी सरस्वती। सम० ----अर्थः पति:' का भी प्रयोग होता है), पारष्यम् (वाकपा(वागर्थः) शब्द और उसका अर्थ--रघु० 111, ऊ० रुप्यम्) 1. भाषा की कर्कशता 2. शब्दों द्वारा दे०,--आडम्बरः (वागाडम्बरः) शब्दाडम्बर, वाग्जाल, अपमान, अपशब्दयुक्त भाषा, मानहानि, प्रचोवनम् -आत्मन् (वागात्मन्) (वि०) शब्दों से युक्त (वाकप्रचोदनम) वचनों में अभिव्यक्त किया गया उत्तर० 2, ईशः (वागीशः) 1. सुवक्ता, वाकपटु आदेश,---प्रतोदः (वाकप्रतोदः) वचनों द्वारा उकसाना, 2. देवताओं के गुरु बृहस्पति का विशेषण 3. ब्रह्मा भड़काने वाली या उपालंभयक्त भाषा,--प्रलापः का विशेषण-कू०२।३, (-शा) सरस्वती का नाम, (वाक्प्रलापः) वाग्मिता,-बंधनम् (वाग्बंधनम्) --ईश्वरः (वागीश्वरः) 1. सुवक्ता, वाक्पटु 2. ब्रह्मा भाषण बंद करना, चुप करना अमरु० १३,-मनसे का विशेषण, (-री) वाणी की देवता सरस्वती देवी, (द्वि० व०-वाङमनसी-वैदिक भाषा में) वाणी और --ऋषभः (वागृपभः) बोलने में प्रमुख, वाक्पटु या मन,-मात्रम् (वाङमात्रम्) केवल वचन, मुखम् विद्वान् पुरुप, कलहः (वाक्कलह) झगड़ा, उत्पात, (वाङ्मुखम् ) किसी बक्तृता का आरंभ या प्रस्तावना, --कीरः (वाक्कीरः) पत्नी का भाई,-गुवः आमुख, भूमिका,-पत (वि.) (वाग्यत) जिसने (वाग्गुदः) एक प्रकार का पक्षी,--- गुलिः, -गलिक: अपनी वाणी को नियंत्रित कर लिया है या दमन (वाग्गुलि आदि) राजा का पानदान-वाहक-तु० कर लिया है, मौनी, - यमः (वाग्यमः) जिसने अपनी 'तांबूलकरंक वाहिन्',-चपल (वि.) (वाक्चपल) बोली को नियंत्रित कर लिया है, मुनि, ऋपि, यामः बकवात करने वाला, निरर्थक और असंगत बातें करने (वाग्यामः) मूक पुरुष, युद्धम् (वाग्युद्धम्) शन्दों वाला, चापल्यम् (वाक्चापल्यम्) निरर्थक बातें, की लड़ाई, गरमागरम वादविवाद या चर्चा, विवादाबकवास, गपशप,- छलम् (वाक्छलम्) शब्दों के द्वारा | स्पद विषय, वज्रः (वाग्वजः) 1 कठोर (वज बेईमानी, टालमटूल उत्तर, गोलमाल-मुद्रा० १,-जालम् की भांति) शब्द अहह दारुणो वाग्वजः-उत्तर० 1 (वाग्जालम्) शब्दाडंबरपूर्ण असार वातें शि० 2. कठोर भाषा,-विदग्ध (वाग्विदग्ध:) (बि० ) 2 / 27, बरः (वाग्डंबरः) 1. निस्सार उक्ति बोलने में कुशल (ग्धा) मधुरभापिणी और मनोहा2, बड़े बोल, दंडः (वाग्दंड:) 1. भर्त्सनापूर्ण वचन, रिणी, विभवः (वाग्विभव:) शब्दों का भंडार, डांट-फटकार, झिड़की 2. बोलने पर नियन्त्रण, शब्दों वर्णनशक्ति, भापा पर आधिपत्य- मा० 1126, या वचनों पर रोक --तु० विदंडः, दत्त (वाग्दत्त) रघु० ११९,-विलासः (वाग्विलास:) ललित या (वि०) प्रतिज्ञात, संवद्ध, जिसकी सगाई हो चुकी प्रांजल भाषा,-व्यवहारः (वाग्व्यवहारः) मौखिक हो, (ता) संबद्ध या सगाई हुई कन्या,--दरिद्र विचारविमर्श-.-प्रयोगप्रधानं हि नाट्यशास्त्रं किमत्र (वाग्दरिद्र) (वि०) वचनों में दरिद्र अर्थात् कम वाग्व्यवहारेण मालवि० 1, व्ययः (वाग्व्ययः) बोलने वाला, बलम् (वाग्दलम) ओष्ठ-मानम् शब्दों का ह्रास, व्यापारः (वाग्व्यापारः) 1. बोलने (वाग्दानम् ) सगाई, दुष्ट (वाग्दुष्ट) (वि.) 1. गाली की रीति 2. भापणशैली या अभ्यास, संयमः (वाक्देने वाला, बदजबान, अश्लीलभाषी 2. व्याकरण संयमः) भाषण या वोलने पर नियंत्रण। की दृष्टि से अशुद्ध भाषा बोलने वाला, (ष्टः) वाचः [वच्-:-णिच्+अच्] 1. एक प्रकार की मछली 1. निन्दक 2. वह ब्राह्मण जिसका उपनयनसंस्कार | 2. मदन नाम का पौधा / ठीक समय पर न हआ हो,-देवता,-वेवी (वाग्देवता, वाचंयम (वि.) [वाचो वाक्यात यच्छति विरमति---वाच् वाग्देवी) वाणी की देवता सरस्वती देवी वाग्देवता- +यम्-+-खच् नि० अम्] जिह्वा को रोकने वाला, या: सांमुख्यमाचते----सा० द.१,-दोषः (वाग्दोपः) पूर्ण निस्तब्वता रखने वाला, चुप रहने वाला, मौनी, 1. (अरुचिकर) शब्द का उच्चारण ----वाग्दोषाद् स्वल्पभाषी..- उपस्थिता देवी तद्वाचंयमो भव-विक्रम 115 For Private and Personal Use Only Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3, विद्वांसो वसुधातले परवचः श्लाघासू वाचंयमाः / विशेषक 3. अभिव्यक्त (शब्दार्थ आदि) तु० लक्ष्य -भामि०४॥ 42, रघु० १३१४४,-मः मौन रहने / व्यंग 4. दूपणीय, निन्दनीय, डांटने-फटकारने योग्य वाला मुनि। -शि०२०।६४, हि० 3 / 129, --- च्यम् 1. कलंक, वाचक (वि.) [वक्ति अभिधावृत्त्या बोधयति अर्थान् बच् निन्दा, झिड़की-प्रमदामन संस्थितः शचा नपतिः +ण्वुल] 1. बोलने वाला, घोषणा करने वाला, सन्नितिः वाच्यदर्शनात् रघु० 8172, 84, चिरस्य व्याख्यात्मक 2. अभिव्यक्त करने वाला, अर्थ बतलाने वाच्यं न गतः प्रजापतिः-श० 5.15, शि० 3158 वाला, प्रत्यक्ष संकेत करने वाला (शब्द के रूप में, 2. अभिव्यक्त अर्थ जो अभिधा द्वारा ज्ञात हों, तु० 'लाक्षणिक' और 'व्यंजक' से भिन्न) दे० काव्य० 2 लक्ष्य, व्यंग्य; अपि तु वाच्यवैचित्र्यप्रतिभासादेव 3. मौखिक-क: 1. वक्ता 2. पाठक 3 महत्त्वपूर्ण चारुताप्रतीतिः-काव्य०१० 3. विधेय 4. क्रिया की शब्द 4. दूत। वाच्यता (कर्मवाच्य या भाववाच्य)। सम०-अर्थः वाचनम् [बच्+णि+ल्युट] 1. पढ़ना, पाठ करना अभिव्यक्त अर्थ,-चित्रम अधम काव्य के दो 2. घोषणा, प्रकथन, उच्चारण जैसा कि 'स्वस्ति- भेदों में से एक, इसमें काव्य सौन्दर्य वाचन' 'पुण्याहवाचनम्' में। चमत्कार युक्त तथा उद्भावना युक्त विचारों की बाचनकम् [वाचन+कन्] पहेली, बुझौवल / अभिव्यंजना में निहित है (विप० शब्द चित्र), दे० वाचनिक (वि०) (स्त्री०-की) [वचनेन निवृत्तम् --- ठक्] 'चित्र' भी, -- वज्रम् कठोर और कर्कश भाषा / मौखिक, शब्दों में अभिव्यक्त। वाजः [ व+घञ ] 1. बाजु, डैना 2. पंख 3. बाण का वाचस्पतिः [वाचः पतिः षष्ठयलुक] 'वाणी का स्वामी', पंख ... युद्ध, लड़ाई 5. ध्वनि, - जम् 1. घी 2. श्राद्ध देवों के गुरु बृहस्पति का विशेषण / या औलदहिक क्रिया के अवसर पर प्रदान किया वाचस्पत्यम् [वाचस्पति+ष्य वाकपटुतायुक्त भाषण, गया पिण्ड 3. भोज्यसामग्री 4. जल . यज्ञ की पूर्णा वक्तृता, प्रभावशाली भाषण - तदूरीकृत्य कृतिभिर्वा- हुति का मन्त्र / सम० . पैयः, यम् एक विशेष चस्पत्यं प्रतायते - हि० 3 / 96 (-शि० 2 / 30) / यज्ञ का नाम,-सनः 1. विष्णु का नाम 2. शिव का बाचा [वाक् +आप्] 1. भाषण 2. धार्मिक ग्रन्थों का नाम,-सनिः सूर्य / पाठ, सूत्र 3. शपथ / बाचाट (वि०) वाच्+आटन्, चस्य न क:] बातूनी, शुक्ल यजुवंद या वाजसनेयी संहिता के प्रणेता याज्ञ वाचाल, बहुत बातें करने वाला अरेरे वाचाट वल्क्य का नाम / -वेणी० 3, महावीर० 6, भट्टि० 5 / 23 / वाजसनेयिन् (पुं०) [ वाजसनेय+इनि ] 1. शुल्कयजुबाचाल (वि.) [वाच्+आलच्, चस्य न कः] 1. कोला- वेद के प्रवर्तक तथा प्रणेता याज्ञवल्क्य मुनि का नाम हलपूर्ण, शब्दायमान, क्रन्दनशील 2. बातूनी, बकवास 2. शुल्कयजुर्वेद का अनुयायी, वाजसनेयि संप्रदाय से करने वाला, दे० वाचाट, शि० 1140 / सम्बन्ध रखने वाला। वाधिक (वि.) (स्त्री०-का-की) [वाचाकृतं वाच्+ठक, | बाजिन् (पुं०) [ वाज+इनि ] 1. घोड़ा-न गर्दभा वाजि चन कः] 1. शब्दों से युक्त या अभिव्यक्त वाचिकं धुरं वहन्ति-मृच्छ० 4 / 17, रघु० 3143, 4125, पारुष्यम् 2. मौखिक, शाब्दिक. मौखिक रूप से अभि- 67, शि० 18 / 31 2. बाण 3. पक्षी 4. यजुर्वेद की व्यक्त,-कम् 1. संदेश, मौखिख या शाब्दिक समाचार वाजसनेयिशाखा का अनुयायी। सम०--पृष्ठः गोल--वाचिकमप्यार्येण सिद्धार्थकाच्छोतव्यमिति लिखि- सदाबहार,-भक्षः छोटी मटर,-भोजनः एक प्रकार तम्-मुद्रा० 5, निर्धारितेऽर्थे लेखेन खलूक्त्वा खलु का लोबिया,--मेषः अश्वमेघ यज्ञ,-शाला अस्तबल, वाचिकम् --शि० 2 / 70 2. समाचार, वार्ता, घुड़शाला। खबर। वाजीकर (वि.) [वाज+च्चि++अच ] कामकेलि पाचोयुक्ति (वि.) [वाचो युक्तिः यस्य ब० स०, षष्ठया इच्छाओं का उद्दीपक / अलक बोलने में कुशल, वाक्पटु,-क्तिः (स्त्री०) वाजीकरण [वाज+च्चि++ल्युट] कामोद्दीपकों 'शब्दों का क्रम' घोषणा, अभिज्ञापन, भाषण-यत्र द्वारा कामनाओं को उत्तेजित या उद्दीप्त करना। खल्वियं वाचोयुक्तिः-मा०१। वांछ (भ्वा० पर० बांछति, वांछित) अभिलाषा करना, बाज्य (वि) [वच-कर्मणि ण्यत] 1. कहे जाने या बत- चाहना --न संहतास्तस्य न भिन्नवृत्तयः प्रियाणि लाये जाने के योग्य, संबोधित किये जाने योग्य-वाच्य- वांछत्यसुभिः समीहितुम्-कि० 1119, अभि-, स्त्वया मवचनात्स राजा-रघु 14161, 'मेरी ओर सम् , कामना करना, अभिलाषा करना, इच्छा से राजा को कहिए' 2. अभिषानीय, गुणवाचक, | करना, -भट्टि० 17.53 / For Private and Personal Use Only Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांछनम् [ वांछ+ ल्युट् ] कामना, इच्छा करना। वाणी [वण् + इण्+डीप्] 1. भाषण, वचन, भाषा वांछा [ वांछ+अ+टाप् ] कामना, इच्छा, अभिलाषा, .-बाण्येका समलंकरोति पुरुष या संस्कृता धार्यते --वांछा सज्जनसंगमे --- भर्तृ० 2 / 62 / --भर्तृ० 2 / 19 2. बोलने की शक्ति 3. ध्वनि, वांछित (भू० क० कृ०) [वांछ्+क्त ] अभीष्ट, इच्छित, आवाज-केका वाणी मयूरस्य-अमर०, इसी प्रकार -तम अभिलाष, इच्छा। आकाशवाणी 4. साहित्यिक कृति या रचना-मद्वाणि वाछिन् (वि०) [ वांछ--णिनि ] 1. अभिलाषी 2. मा कुरु विषादमनादरेण मात्सर्यमग्नमनसां सहसा विलासी। खलानाम - भामि० 4 / 41, उत्तर० 7 / 21 5, बाटः,----टम् [ वट+घा ] 1. बाड़ा, घिरा हुआ भूभाग, प्रशंसा 6. विद्या की देवी सरस्वती। अहाता-स्ववाटकुक्कुट विजयहृष्ट:-दश०, इसी वात् (चुरा० उभ० वातयति-ते) 1. हवा का चलना 2. प्रकार देश', श्मशान आदि 2. उद्यान, उपवन, पंखा करना, हवादार करना 3. सेवा करना 4. फलोद्यान 3. सड़क 4. तट पर लगाया गया लकड़ी के प्रसन्न करना 5. जाना। तख्तों का बांध 5. अन्न विशेष / सम०--धानः बात (भू० क० कृ०) [वा-+क्त] 1. बही हुई 2. इच्छित ब्राह्मण स्त्री में पतित ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न सन्तान या अभीष्ट, प्रथित,-तः 1. हवा, बाय 2. वायु का -दे० मनु० 1021 / देवता, वायु की अधिष्ठात्री देवता 3. शरीर के तीन वाटिका [ वट् +ण्वुल -+-टाप, इत्वम् ] 1. वह भूखण्ड दोषों में से एक 4. गठिया, सन्धिवात / सम-अट जहाँ पर कोई भवन बनाना हो 2. फलोद्यान, बगीचा 1. बातमृग, बारहसिंगा 2. सूर्य का घोड़ा,-अंड: --अये दक्षिणेन वृक्षवाटिकामालाप इव श्रूयते-श० फोतों का रोग, अंडकोषवृद्धि,- अतिसारः शरीरगत 1, इसी प्रकार पुष्प, अशोक आदि / वाय के विकृत होने से उत्पन्न पेचिश,-अयम् पत्ता, पाटीवाट+डी ] 1. वह भूखण्ड जहाँ पर कोई भवन --- अयन: घोड़ा, (नम्) 1. खिड़की, झरोखा-मा० बनाया है 2. घर, आवास स्थान 3. अहाता, बाड़ा रा११, कु० 759, रघु०६।२४,१३२२१ 2. अलिन्द, 4. उद्यान, उपवन, फलोद्यान -- वाटीभुवि क्षिति- द्वारमण्डप 3. मंडवा मंडप, - अयुः बारहसिंगा,-अरिः भुजाम् -आश्व० 5 5. सड़क 6, पानी रोकने के एरण्ड का वृक्ष, - अश्वः बहुत तेज चलने वाला घोड़ा, लिए लकड़ी के तहतों का बांध 7. एक प्रकार का -आमोवा कस्तूरी,-आलिः (स्त्री०) भंवर,-- आहत अन्न। (वि०) 1. हवा से हिलाया हुआ 2. गठिया रोग से वाट्या, वाट्यालः, वाट्याली [ वाटी+यत्+टाय, वाटी ग्रस्त, आहतिः (स्त्री०) हवा का प्रचंड झोंका, +अल+अण्, वाट्यालय+डीष् ] एक पौधे का -ऋद्धिः (स्त्री०) 1. वाय की अधिकता 2. गदा, नाम, अतिबला। मुद्गर, लोहे की स्याम से जटित लाठी,-कर्मन बाद (भ्वा० आ० वाडते) स्नान करना, गोता लगाना / (नपुं०) पाद मारना,-कुंडलिका मूत्ररोग जिसमें पाडवः [ वडवाया अपत्यं वडवानां समूहो वा अण् ] मूत्र पीडा के साथ बूंद-बूंद उतरता है,-कुंभ: हाथी 1. बडवानल 2. ब्राह्मण,--वम् घोड़ियों का समूह / का गंडस्थल,--केतुः धुल, केलिः 1. प्रेमरसयुक्त सम० -अग्निः, -- अनलः समुद्र के भीतर रहने वाली बातचीत, प्रेमियों की कानाफंसी 2. प्रेमी या प्रेमिका आग। के शरीर पर नख क्षत,--गल्मः 1. आँधी, अंधड़ 2. पाडवेयः [ वडवा+ढक ] 1. साँड़ 2. घोड़ा, यो (पुं०, गठिया, ज्वरः विषाक्त वायु से उत्पन्न बुखार द्वि०व०) दोनों अश्विनी कुमार। ध्वजः बादल,-पुत्रः भीम, हनुमान्, पोथः,-पोथक: बारव्यम् [वाडद+यन् ब्राह्मों का समूह ! पलाश का वृक्ष, ढाक का पेड़,-प्रकोपः वायु की बाढ दे० 'बाढ'। अधिकता,-प्रमी (पुं०, स्त्री०) तेज चलने वाला पण दे० 'बाण'। हरिण,-मंडली भंवर,-मगः वेग से दौड़ने वाला पाणिः (स्त्री०) वण्-+इण्] 1. बुनना 2. जुलाहे की हरिण,-रक्तम्,-शोणितम् तीक्ष्ण गठिया,-रंग: __ खड्डी, करघा / गूलर का वृक्ष,---रूषः 1. तूफान, प्रचंड हवा, आँधी पाणिजः [वणिज्+अण् (स्वार्थ)] व्यापारी, सौदागर / 2. इन्द्रधनुष 3. रिश्वत,---रोगः,-व्याधिः गठिया का बाणिज्यम् वणिज्ष्या ] व्यापार, बनिज, लेन देन / रोग,-वस्तिः (स्त्री०) मूत्ररोकना,-वृद्धिः (स्त्री०) पाणिनी [वण-+-णिनि+डीप्] 1. चतुर और धूर्त स्त्री अंडकोष की सूजन,..- शीर्षम् पेडू, शूलम् उदर पीड़ा 2. नर्तकी, अभिनेत्री 3. मत्त स्त्री (शा. या आलं. के साथ अफारा होना, सारथिः आग / रूप से) शृङ्गारप्रिय स्वेच्छाचारिणी स्त्री-रघु० वातकः [वात +कन्] 1. उपपति, जार 2. एक पौधे का नाम। For Private and Personal Use Only Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पातकिन् (वि.) (स्त्री०-नी) वातोतिशयितोऽस्ति 1. कामसूत्र (रतिशास्त्र पर लिखा गया एक ग्रन्थ) के अस्य बात+इनि, कुक] गठिया रोग से ग्रस्त / प्रणेता 2. न्यायसूत्र पर किये गये भाष्य के प्रणेता। पातगजः [बातमभिमुखीकृत्य अजति गच्छति वात+अज् | वादः [व+घञ ] 1. बातें करना, बोलना 3. भाषण, +खश्, मुम्] तेज दौड़ने वाला हरिण / वचन, बात - सामवादाः सकोपस्य तस्य प्रत्युत दीपका: बातर (वि०) वात+रा+क] 1. तूफानी, झंझामय 2. ----शि० 2 / 55, इसी प्रकार 'कैतववादः' गीत०८, तेज, चुस्त / सम-अयण: 1. वाण 2. बाण की सांख्यवादः आदि 3. वक्तव्य, उक्ति, आरोप-अवाच्यउड़ान, तीर के लक्ष्य तक पहुंचने की दूरी, शरपरास वादांश्च बहन वदिष्यन्ति तवाहिताः-भग० 136 3. चोटी, शिखर 4. आरा 5. पागल या नशे में 4. वर्णन, वृत्त-शाकुंतलादीनितिहासवादान् मा० उन्मत्त पुरुष 6. निठल्ला 7. सरल वृक्ष, चीड़ का 313 5. विचार विमर्श, विवाद, वादविवाद, तर्क वितर्क बादे वादे जायते तत्त्वबोध:--सूभा, सीमा वातल (वि.) (स्त्री०-ली) [वातं रोगभेद लाति ला ..-- मनु० 8 / 265 6. उत्तर 7 बिवति, व्याख्या +क] 1. तूफानी, झंझामय 2. हवा से फूला हुआ 8. प्रदर्शित उपसंहार, सिद्धान्त, तत्त्व-इदानीं पर-ल: 1. वायु 2. चना। गणुकारणवाद निराकरोति-शारी० (नथा पुस्तक बातापिः (0) एक राक्षस का नाम जिसको अगस्त्य ने के अन्य विभिन्न स्थलों पर) 9. ध्वननं, ध्वनि खा कर पचा लिया। सम० --द्विष (पुं०),--सूदनः, 10. विवरण, अफवाह 11. (विधि में) अभियोग, --हन् (पुं०) अगस्त्य के विशेषण / नालिश। सम० - अनुवादौ (पुं० द्वि० व०) वातिः [ वा+क्तिच् ] 1. सूर्य 2. वायु, हवा 3. चन्द्रमा। 1. उक्ति और उत्तर, अभियोग तथा उसका उत्तर, सम--,-गमः बैंगन ('वातिगण' शब्द भी इसी दोषारोपण तथा उसका बचाव 2. वादविवाद, अर्थ में प्रयुक्त होता है)। शास्त्रार्थ,-कर,--कृत् (वि०) विवाद करने वाला, पातिक (वि०) (स्त्री०-की) [वातादागतः+ठका -ग्रस्त (वि.) विवादास्पद, विवादग्रस्त-वाद1. तूफानी, हवाई, झंझामय 2. गठियाग्रस्त, सन्धिवात ग्रस्तोऽयं विषयः, - चंचु (वि०) श्लेषभित उत्तर से पीड़ित 3. पागल, कः वायु की विकृत अवस्था से देने में निपुण, हाजिरजवाब, प्रतिवादः शास्त्रार्थ, उत्पन्न ज्वर / -- युद्धम् विवाद, तर्कवितर्क,-विवादः तर्कवितर्क, पातीय (वि.) [ वात+छ ] हवादार,-यम् भात का विचारविमर्श, वाक्प्रतियोगिता। मांड। वादकः [ वद्+णिच्-।-वुल ] बजाने वाला / बातुल (वि.) [ वात+उलथ् ] 1. वायु रोग से ग्रस्त, वादनम् [ वद् --णिच् --- ल्युट् ] 1. ध्वनि करना 2. बाजा, गठिया पीड़ित 2. पागल, वायुप्रकोप के कारण वाद्ययन्त्र / जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो-हि० २।२६,---लः | वावर (वि.) (स्त्री० री) [ वदरायाः कार्पस्याः विकारः भंवर। वादरा+अण् ] कपास से युक्त या कपास से निर्मित, वातुलिः [ वा+उलि, तुटु ] बड़ा चमगीदड़ / --- रा कपास का पौधा, - रम सूती कपड़ा। बातूल (वि०) [वात+ऊलच् ] दे० 'वातुल' / वादरंगः [ वादर+गम्+खत्र, डित् ] पीपल का पेड़, वात् (पुं०) [वा+तृच् ] हवा, वायु / गूलर का वृक्ष। वात्या [ वातानां समूहः यत् ] तुफान, अन्धड़, भंवर, वावरायण दे० 'बादरायण' / तूफान या झंझामय वायु - वात्याभिः परुषीकृता दश वादाल: वात-+-ला-+-क, पृषो०] जर्मन मछली / दिशश्चण्डातपो दुःसहः - भामि० 1 / 13, रघु० 11 // | वादि (वि०) [वादयति व्यक्तमच्चारयति-पद्+णिच 16, कि० 5 / 39, वेणी० 2 / 21 / __ +इञ] बुद्धिमान्, विद्वान्, कुशल / / वारसकम् [ वत्स+वुज ] बछड़ों का समूह / वास्ति (भू० क० कृ०) {वद् +णिच् +क्त] 1. उच्चरित वात्सल्यम् [ वत्सलस्य भावः प्यम ] 1: (अपने बच्चों कराया गया, बुलवाया गया 2. बजाया गया, ध्वनि के प्रति) स्नेह, वत्सलता सुकुमारता-न पुत्रवात्सल्य- किया गया। मपाकरिष्यति-कु० 5 / 14, पतिवात्सल्यात्-रघु० - बादित्रम् [वद्+णिवन्] 1. बाजा नै० 22 / 22 2. संगीत। 15 / 98, इसी प्रकार भार्या प्रजा शरणागत आदि | वादिन् (वि.) [वद्+णिनि] 1. बोलने वाला, बातें 2. लाडप्यार या पक्षपात / करने वाला, प्रवचन करने वाला 2. दृढ़तापूर्वक कहने वात्सिः,--सी (स्त्री०) शूद्र स्त्री की ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न वाला 3. तर्क-वितर्क करने वाला, विपक्षी . मदा० पुत्री। 5 / 10, रघु० 12192 3. दोषारोपण करने वाला. वात्स्यायनः [वत्सस्य गोत्रापत्यं-वत्स-+या+फक] / अभियोक्ता 4. व्याख्याता, अध्यापक। For Private and Personal Use Only Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वादिशः (पुं०) विद्वान् पुरुष, ऋषि, विद्याव्यसनी। वापनम् [वप्+णिच् + ल्युट्] 1. बुवाना 2. मंडन, क्षौर / वाग्रम् [वद्+णिच् -- यत्] 1. बाजा 2. बाजे की ध्वनि | वापति (भू० क.कृ.) [व+णि क्त] 1. बोया हुआ रघु० 16164, (वाद्यध्वनिः --मल्लि)। सम०-करः 2. मुंडा हुआ। संगीतज्ञ, -भांडम् 1. बाजों का समूह, वाद्य यंत्रों का वापिः,-पी (स्त्री०) [वप्+इ वा जीप ] कुआं, बावड़ी ढेर 2. मृदंग आदि बाजे। पानी का विस्तृत आयताकार जलाशय --बापी वाए , वाध, वाधक, वाधन-ना, वाधा दे० 'बाध्, बाध, चास्मिन्मरकतशिलाबद्धसोपानमार्गा-मेघ० 76 / बाधना-ना, बाधा। सम०-हः चातक पक्षी। वाघु (धू) क्यम् [वधु (धू)+यत्, कुक्] विवाह / वाम (वि.) [वम्ण, अथवा वा+मन् ] बायाँ (विप० वाध्रीणसः [-वार्षीणस, पृषो०] गैंडा / दायाँ) विलोचनं दक्षिणमंजनेन संभाव्य तद्वंचितवामवान (वि.) वन+अण 1. खिला हुआ, 2. (हवा से) नेत्रा-रघु० 718, मेघ० 78, 96 2. बाई ओर स्थित सूखा हुआ, शुष्क 3. जंगली, -नम् 1. सूखा फल या विद्यमान-वामश्चायं नदति मधुरं चातकस्ते सगंधः (पुं० भी) 2. (हवा का) चलना 3. जीना -मेघ०९ (वामेन क्रिया विशेषण के रूप में इसी अर्थ 4. लुढ़कना, हिलना-जुलना 5. गन्ध द्रव्य, खुशबू को प्रकट करता है- उदा० वामेनान वटस्तमध्य6. वृक्षों का समूह या झुरमुट 7. बनना 8. तिनकों से गजनः सर्वात्मना सेवते - काव्य०१०) 3. (क) बनी चटाई 9. घर की दीवार में छिद्र / उलटा, विरुद्ध, विरोधी, विपरीत, प्रतिकूल-तदहो वानप्रस्थावाने वनसम हे प्रतिष्ठते - स्था+क] 1. अपने कामस्य वामा गतिः - गीत० 12. मा०९।८, भट्टि. धार्मिक जीवन के तीसरे आश्रम में प्रविष्ट ब्राह्मण 6 / 17, (ख) विरुद्ध-कार्य करने वाला, विपरीत प्रकृति 2. वैरागी, साघु 3. मधूक वृक्ष 4. पलाश वृक्ष, ढाक / का,- श०४।१८, (ग) कुटिल, वक्रप्रकृति, दुराग्रहीं, वानरः [वानं वनसंबंधि फलादिकं राति गृहति रा+क, हठी,-श०६4. दृष्ट, दुर्वत्त, अधम, नीच, कमीना वा विकल्पेन नरो वा] बन्दर, लंगूर / सम० अक्षः कि० 11024 5. प्रिय, सुन्दर, लावण्यमय - जैसा कि जंगली बकरा,-आवातः लोध्र नामक वृक्ष -इन्द्रः 'वामलोचना', -मः 1. सजीव प्राणी, जन्तु 2. शिव सुग्रीव या हनुमान्, प्रियः खिरनी (क्षीरिन् ) का पेड़ / 3. प्रेम का देवता, कामदेव 4. सांप 5. औड़ी, ऐन, वानलः [वान बनभावं निविडतां लाति ला+क] तुलसी स्त्री की छाती,-मम् धनदौलत, जायदाद / सम० का पौधा (काली तुलसी)। -आचारः,-मार्गः तांत्रिक मत में प्रतिपादित अनवानस्पत्यः [वनस्पति -प्या] वह वृक्ष जिसका फल ष्ठानपद्धति, -- आवर्तः शंख जिसका घुमाव दाई ओर से उसकी मंजरी से उत्पन्न होता है, उदा० आम का पेड़ / बाईं ओर को गया हो,--उद-ऊह (स्त्री०) सुंदर वाना [वान-टाप] बटेर, लवा / जंघाओं वाली स्त्री,--दृश् (स्त्री) (मनीहर आँखों से वानायुः [=वनायुः पृषो०] भारत के उत्तर-पश्चिम में युक्त) स्त्री,--देवः 1. एक मुनि का नाम 2. शिव का स्थित देश / सम-जः वनाय घोड़ा अर्थात् बनायु नाम,---लोचना मनोहर आँखोंवाली स्त्री-विरूपाक्षस्य देश में उत्पन्न घोड़ा। जयिनीस्ताः स्तुवे वामलोचना:-काव्य० 10, रघु० बानीरः [वन्--ईरन +अण्] एक प्रकार का बेंत-स्मरामि 19 / 13,- शील (वि.) कुटिल या वक्र प्रकृति का वानीरगृहेषु सुप्तः ---रघु० 13135, मेघ० 41, मा० (लः) कामदेव का विशेषण। 9 / 15. रघु० 13 / 30, 16 / 21 / वामक (वि.) [वाम+कन् ] 1. बायाँ 2. विपरीत, बानीरकः [वानीर+कन्] मूंज नामक घास, एक प्रकार विरुद्ध - मा०२८ (यहाँ दोनों अर्थ अभिप्रेत हैं)। का नड। वामन (वि.) [वम्-+-णिचु+ल्युट्] 1. (क) कद में बानेयम् [वन+तु] एक सुगंधित घास, मोथा। छोटा, ठिंगना, बोना छलवामनम् -- शि० 13 / 12 बातम (भ० क. कृ.) [वम्+क्त] 1. के को गई, थूका | - (ख) (अतः) स्वल्प, ह्रस्व, थोड़ा, लंबाई में कम गया 2. उगला गया, प्रक्षिप्त, उंडेला हआ। सम० वामनाचिरिव दीपभाजनम् - रघु० 19 / 51, कथ कथं -अदः कुत्ता। तानि (दिनानि) च वामनानि-न० 22157 2. विनत, बांतिः (स्त्री०)वम्+क्तिन्] 1. वमन 2. प्रक्षेप, उगाल। नम्र-शि० 13 / 12 3. दृष्ट, नीच, ओडा,-नः सम० ---कृत, द बमन कराने वाला। 1. बौना, ठिंगना-प्रांशुलभ्ये फले लोभादुबाहुरिव बान्या [वन यत् +टा] उपवनों या जंगलों का समूह / कामनः .. रघु० 113, 10160 2. विष्णु का पांचवां वापः [वप्+घञ्] 1. बीज बोना 2. बुनना 3. क्षौरकर्म अवतार जन उन्होंने बलि राक्षस को विनम्र करने के करना, बाल मुंडना * मनु० 11 / 108 / सम०-दण्डः / लिए बौने के रूप में जन्म लिया, (दे० बलि)-छलयति जुलाहे का करषा। विक्रमणे बलिमदभतवामन पदनखनीरजनितजनपावन क्तिन्] 1. वर असम.कृत For Private and Personal Use Only Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 918 ) केशव धुतवामनरूप जय जगदीश हरे गीत०१।। जिसे अफारा हो गया हो 2. गठिया रोग से प्रस्त, 3. दक्षिण दिशा का दिकपाल हाथी 4. पाणिनि के --जातः, तनयः, ----नन्दनः, पुत्रः--सुतः, अनुः सूत्रों पर काशिकावृत्ति नामक भाष्य के प्रणेता हनुमान् या भीम के विशेषण,-बार बादल,-मिम 5. अंकोट नामक वृक्ष। सम० . आकृति (वि.) (वि.) वात प्रकोप से पीड़ित सनकी, पागल, उन्मत्त, ठिंगना, - पुराणम् अठारह पुराणों में से एक पुराण / -पुराणम् अठारह पुराणों में से एक,-फलम् 1 ओला वामनिका [ वामनी कन्+टाप, ह्रस्वः ] ठिंगनी स्त्री। 2. इन्द्रधनुष,-भक्षः,-भक्षणः,-भुज् (पुं०)1. जो बामनी [वामन+ङीष् ] 1. बौनी स्त्री 2. घोड़ी 3. एक केवल वायु पीकर रहे, सन्यासी 2. साँप-तु. पवनास्त्रीविशेष / शनः,-रोषा रात्रि,--हरण (वि.) वायुप्रकोप के वामलूरः [ वाम+लू+रका बांबी, दीमकों द्वारा बनाया कारण अस्वस्थ-रघु० ९४६३,-वर्मन् (पुं०, नपुं०) गया मिट्टी का ढेर। आकाश, अन्तरिक्ष,-बाहः धूआं,--वाहिनी शिरा, वामा [वामति सौन्दर्यम्-वम+अण+टाप्] 1. स्त्री घमनी, शरीर की नाडी, वेग,--सम (व०) पवन 2. मनोहारिणी स्त्री-भामि० 4 / 39, 423. गौरी की भांति तेज,-सखः, सतिः (पुं०) आग। 4. लक्ष्मी 5. सरस्वती। र् (नपुं०) [+-णिच्+क्विप्] जल--भामि० 1 // 30 // वामिल (वि.) [ वाम+इलच् ] 1. सुन्दर, मनोहर सम-आसनम् जलाशय,-किटिः (वाः किटि:) 2. घमंडी, अहंकारी 3. चालाक, कपटपूर्ण। संस,..चाहं सिनी या हंस-हः बादल,-वरम् 1. जल पामी [ वाम+कीष् ] 1. घोड़ी-अथोष्ट्रवामीशतवाहितार्थ 2. रेशम 3. भाषण 4. आम का बीज 5. घोड़े के रघु० 5 / 32 2. गघी 3. हथिनी 4. गीदड़ी। गरदन की भौंरी 6. शंख,-पिः समुद्र, भवम् एक पायः [वे+घा ] वुनना, सीना / सम०-दंड जुलाहे का प्रकार का नमक,-पुष्पम् (वा: पुष्पम् ) लौंग,-भटः करचा। मगरमच्छ, घड़ियाल,मुच् (पुं०) बादल, राशिः बायकः [वे+ण्वुल्] 1. जुलाहा 2. ढेर, समुच्चय, संग्रह / समुद्र,- बटः किश्ती, नाव, -- सदनम् (वाः सदनम्) बापनम्, वायनकम् [वे+णि+ल्युट, वायन+कन्] जलाशय, टंकी,-स्थ (वि.) (वाः स्थान) जल में नैवेद्य, उत्सव के अवसर पर किसी देवता या ब्राह्मण विद्यमान / को दिया गया मिष्टान्न, उपवास रखना आदि। वारः [वृ+घञ्] 1. आवरण, चादर 2. समुदाय, बड़ी बायब (वि.) ( स्त्री०-वी ) [वायु+अण] वायु से संख्या-जैसा कि 'वारयुवति' में 3. ढेर, परिमाण संबद्ध या प्राप्त 2. हवाई। 4. रेवड़, लहंडा शि० 1856 5. सप्ताह का एक पायवीय, वायव्य (वि.) [वाय+छ, यत् वा] हवा से दिन यथा बुधवार, शनिवार 6. समय, बारी-- शश सम्बन्ध रखने वाला, हवाई। सम०--पुराणम् एक कस्य वारः समायात:-पंच० 1, रघु० 19 / 18, पुराण का नाम / अंग्रेजी के 'टाइम्ज'-Times शब्द की भांति बहुधा वापसः [वयोऽसच् णित्] 1. कौवा-बलिमिव परिभोक्तं ब० व० में प्रयुक्त, बहुवारान बहुत बार, कतिबारान् वायसास्तर्कयन्ति-मृच्छ० 1013 2. सुगन्धित अगर कितनी बार) 7. अवसर, मौका 8. दरवाजा, फाटक की लकड़ी, अगुरुकाष्ठ 3. तारपीन / सम०-अरातिः, 9. नदी का सामने का तट 10. शिव,---रम 1. मदिरा-अरिः उल्लू,-आहा एक प्रकार भक्ष्य शाक,-इभुः पात्र 2. जलौघ, जल का ढेर। सम-अंगमा-नारी, एक प्रकार का लम्बा घास / -युवति (कत्री०), - योषित् (स्त्री.), वनिता, वायुः [वा उण युक च] 1. हवा, पवन-वायुर्विधूनयति -विलासिरी,-सुन्वयी, स्त्री गणिका, बाजार चम्पकपुष्परेणून --- कवि० (इसकी उत्पत्ति के लिए स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी-रल. 126, दे. मनु० ११७६---सात पवनमार्ग हैं---आवहः प्रवह- श्रृगार० १६,-कीरः 1. पत्नी का भाई, साला इचैव संवहश्चोद्वहस्तथा, विवहाख्यः परिवहः परावह (त्रिका के अनुसार) 2. वडवास्नि 3. कंघी 4.जू इति कमात्) 2. वायुदेवता, पवनदेवता. 3. जीवन 5..युद्ध का घोड़ा (यह अर्थ मेदिनीकोश में दिये हए के लिए महत्त्वपूर्ण पांच प्रकार का वायु गिनाया गया है) यु (बू) षा केले का वृक्ष,-मुल्या प्रधान वेश्या है-प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान 4. वात- -वा (बा) णः,- णम् कवच, जिरह बख्तर-रघु. प्रकोप, वातरोग में ग्रस्तता। सम० -आस्पवम् 4 / 84, -वाणि: 1. बांसुरिया, मुरली बजाने वाला आकाश, अन्तरिक्ष,-केतुः धुल,-कोणः पश्चिमोत्तरी 2. वादित्र-कुशल 3. वर्ष 4. न्यायाधीश, (-गिः) कोना,-पाण्डः अफारा (जो अनपच के कारण हुआ वेश्या, -- वाणी वेश्या,-सेवा 1. वेश्यावृत्ति, रंडी का हो),-गुल्मः 1. आंधी, तूफान 2. भंवर,-गोचरः व्यवसाय 2. वेश्याओं का समुदाय। पवन का परास,--अस्त (वि०) 1. वातरोग में प्रस्त, वारक (वि०) [ वृ+णिच्+ण्वुल ] रुकावट डालने For Private and Personal Use Only Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, विरोध करने वाला,-क: 1. एक प्रकार का / 3. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य, होवेर, रिः, -री घोड़ा 2. सामान्य घोड़ा 3. घोड़े का कदम, कम् (स्त्री०) 1. हाथी को बांधने का तस्मा वारी धारैः 1. पीड़ा होने का स्थान 2. एक प्रकार का सुगन्ध सस्मरे वारणानाम् शि० 18156, रघु० 5 / 45 द्रव्य, स्लीवर / 2. हाथो को वांधने का रस्सा 3. हाथियों को पकड़ने वारकिन् (पुं०) [वारक+इनि | 1. विरोधी, शत्र का गड्ढा या पिंजरा 1. बंदी, कैदी 5. जलपात्र 2. समुद्र 3. शुभ लक्षणों से युक्त एक घोड़ा 4. वह 6. सरस्वती का नाम / सम०-ईशः समुद्र, उद्धवम् संन्यासी जो केवल पते खाकर रहता है। कमल, ओक: जोक, कर्परः एक प्रकार की मछली, वारंकः (पुं०) पक्षी। इलीश, कुब्जकः सिंघाड़ा, शृंगाटक का पौधा-क्रिमीः वारंग: [ व अंगच् णित् | किसी चाकू का दस्ता या जाक,.-- चत्वरः जलाशय, --चर (वि०) जलचर (-2) तलवार की मठ। 1. मछली 2. कोई जलजन्तु ज (वि०) जल में वारटम् | वृ+णि+अटच् | 1. खेत 2. खेतों का समूह, उत्पन्न, (जः) 1. कमल - शि०१५।७२ 2. कोई भी ....--टा हंसिनी। द्विकोपीय (जम) 1. कमल--शि० 4 / 66 2. एक वारण (वि.) (स्त्री० ..-णी) [ वृ-णिच् :-ल्युट् ] प्रकार का नमक 3. एक प्रकार का पौधा, गौरसुवर्ण हटाने वाला, मुकाबला करने वाला, विरोध करने 4. लौंग, तस्करः वादल, प्रा छतरी, व बादल वाला, णम हटाना, रोकना, अड़चन डालना ---न --वितर वारिद वारि दवातुरे.-सुभा०, भामि० 1 / 30. भवनि बिस्तारण वारणानाम् भत० 117 (दम्) एक प्रकार का गन्धद्रव्य,-द्रः चातक पक्षी, 2. रुकावट, विघ्न. मकावला, विरोध 4. प्रतिरक्षा, धरः वादल-नववारिधरोदयादहोभिर्भवितव्यं च संरक्षा, प्ररक्षा, ---ण: 1 हाथी--न भवति विसतंतूर्वा- निरातपत्वरम्यः---विक्रम० 4 / 3, धारा बृष्टि की रणं वारणानाम् ---भत० 2 / 17, कु. 5170, रघु० वोछार,-धिः समुद्र-वारिधिसुतामणां दिदक्षुः शतैः 12 / 93, शि० 18156 2. कवच, जिगहबरूतर / सम० -गीत० 12, * नायः 1. समुद्र 2. वरुण का विशेषण .....बुषा,-- सा, वल्लभा केले का वृक्ष,-साह्वयम् 3. बादल,--निधिः समुद्र,--पथः,-यम् 'समुद्र यात्रा' हस्तिनापुर का नाम / जलयात्रा,--प्रवाहः झरना, जलप्रताप, मसिः,-मुच, वारणसी दे० 'वाराणसी। -र: बादल, यंत्रम् जलघटिका, रहट / मालबि. वारणावत (पुं०, नपुं०) एक नगर का नाम / २।१३,-रयः डोंगी, नाव, घड़नई,-राशिः 1. समुद्र वारत्रम् [ वरत्रा+-अण् | चमड़े का तम्मा / सरोवर, - हम कमल,--वासः कलाल, शराब बेचने वारंवारम् (अव्य.) [ वृणमुल, दित्यम् ] प्रायः, बहुधा, वाला,-याहः, वाहनः बादल, * शः विष्णु का नाम, बार बार, फिर फिर वारंवार तिरयति दृशोरुद्गम संभवः 1. लौंग 2. अंजनविशेप 3. खस की सुग न्धित जड़, उशीर। वाप्यपूरः मा०२३५ / वारला [वार---ला+क+टाप् ] 1. बरं, भिड़ 2. हंसिनी, वारित (भू० क० कृ०) [वृ+णिच् -।-क्त] 1. हटाया तु० 'वरदा'। हुआ, मना किया हुआ, रोका हुआ 2. प्रतिरक्षित, वाराणसी | बरणा च असी च तयोः नद्योरदरे भवा इत्यर्थे प्ररक्षित। अण् + डीप, पृषो० साधु: ] वनारस का पावन वारा द० (स्त्रा०-वारि) / नगर। वारीटः [वारी+इट-क हाथी। वारांनिधि: [ वारी जलानां निधिः, षष्ट्यलुक् स०] वादः वारयति रिपून व+णि+उण] विजयकुंजर, जंगी समुद्र। हाथी। वाराह (वि.) (स्त्री० ही) [ वराह+अण् ] शूकर से | वारठः (पु०) अस्थी, (वह टिकटी जिस पर शव रख कर सम्बद्ध, मुद्रा० 8 / 19, याज्ञ. 1 / 259, -ह: 1. श्मशानभूमि में ले जाया जाता है)। शूकर 2. एक प्रकार का वृक्ष / सम० कल्पः वर्त वाइण (वि.) (स्त्री०-पी) वरुणस्येदम्-अण्] 1. वरुणमान कल्प (जिसमें हम रह रहे हैं) का नाम, संबंधी 2. वरुण को सादर समर्पित 3. बरुण को दिया पुराणम् अठारह पुराणों में से एक / हुआ, --णः भारतवर्ष के नी प्रभागों या खण्डों में से वाराही [ वाराह+डीप् 1. शूकरी 2. पृथ्वी 3. 'वराह' एक, ---णम् पानी। के रूप में विष्णु भगवान की शक्ति 4. माप / सम. | वाणिः वरुण+इ] 1. अगस्त्य मुनि 2. भग। कंदः महाकंद, मेंठी। वारणी यारुण+डी | 1. पश्चिम दिशा (वरुण के द्वारा वारि (नपुं०) [वृ+इञ्] 1.जल यथा खनन् खनि- अधिष्ठित दिशा) 2. कोई मदिरा-पयोपि शौडिकीहस्ते त्रेण नरो वार्यधिगच्छति --सुभा० 2. तरल पदार्थ वारुणीत्यभिधीयते-हि० 3 / 11, पंच० 11178, पडनाई। माल, नाम For Private and Personal Use Only Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 920 ) (यहाँ दोनों अर्थ अभिप्रेत हैं) कु० 4 / 12 / वार्धकम् [वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा वुञ ] 3. शतभिषज् नामक नक्षत्र 4. एक प्रकार का घास, 1. बढ़ापा-किमित्यपास्याभरणानि यौवने धतं त्वया दूब / सम्० बल्लभः वरुण का विशेषण / वार्द्धकशोभि वल्कलम-कु० 5 / 44, रघु०, 128 न० वारंडः [व-णिच् + उँड] नाग जाति का प्रधान, डः, 177 2. बुढ़ापे की दुर्बलता 3. बूढ़ों का समुदाय / ...उम् 1. आँख का मैल या ढीड 2. कान का मैल | वार्धक्यम् [वार्द्धक+व्यञ] 1. बुढ़ापा 2. बुढ़ापे की 3 नाव में से पानी उलीच कर बाहर निकालने का दुर्बलता। बर्तन / वाधुषिः, वाधु षिकः, वार्धषिन् [पुं०) [=वा षिक वारेन्द्री बंगाल के एक भाग का नाम, वर्तमान राजशाही। पृषो० कलोपः, वृद्ध्यर्थ द्रव्यं वृद्धिः, तां प्रयच्छति पार्म (वि.) (स्त्री०-क्षी) [वृक्ष-+अण्| वृक्षों से युक्त वृद्धिठक वृषि आदेशः, वार्धष- इनि] सूदखोर, क्षम् जंगल। ब्याज पर रुपया देने वाला। वाणिकः [वर्ण+ठ लिपिकार, लेखक / वार्षुष्यम् [वावुषि+ध्या सूद, अत्यन्त ऊँचा सूद, वार्ताकः, वार्ताकिः (स्त्री०) वार्ताकिन् (पुं०) हद से ज्यादह ब्याज / वार्ताकी (स्त्री०) वार्ताकुः (पुं०, स्त्री०) +काकु वार्धम्, वाध्री [वाधं -|-अण्, डीप वा] चमड़े का तस्मा / अत्वं वृद्धिश्च, वार्ताक-इन इनि वा, वृत्+काकु, | वाोणसः [वाव नासिका अस्य ब० स०, नासिकाया ईत्वं वृद्धिश्च, वृत्-+काकु, वृद्धिः] बैंगन का पौधा / नसा देशः, णत्वम्] गैंडा, दे० 'वाध्रीणस' भी। वातिका (स्त्री०) बटेर, लवा। वार्मणम् [वर्मन्+अण्] कवच से सुसज्जित पुरुषों का वार्त (वि.) [वृत्ति+अण] 1. स्वस्थ, नीरोग, तन्दुरुस्त समूह। 2. हलका, कमजोर, सारहीन 3. व्यवसायी, -तम् वार्यम वियत] आशीर्वाद, वरदान (ब० व०) सम्पत्ति, 1. कल्याण, अच्छा स्वस्थ्य-सर्वत्र नो वार्तमवेहि जायदाद / राजन्--रघु० 5 / 13, 13171, स पुष्टः सर्वतो वार्त- | वार्वणा [वर्वणा+अण+टाप] नीले रंग की मक्खी। माख्यद्राज्ञे न संततिम्--१५।४१, शि० 3 / 68 2. | वार्य (वि.) (स्त्री०ी ) [वर्ष+अण्] 1. वर्षा से कुशलता, दक्षता-अनुयुक्त इव स्ववातमुन्चैः-कि० संबंध रखने वाला 2. वार्षिक / 13 / 34 3. भूसी, बूरा। वार्षिक (वि०) (स्त्री०-की) [वर्ष+ठक] 1. वर्षा वार्सा [वार्त+टाप्] 1. ठहरना, डटे रहना 2. समाचार संबंधी वार्षिक संजहारेन्द्रो धनज॑त्र रघर्दधौ---रघु० खबर, गुप्त बात, सागरिकायाः का वार्ता-रत्न० 4 / 16 2. सालाना, प्रतिवर्ष घटित होने वाला 3. 4 3. आजीविका, वृत्ति 4. खेती, वैश्य का व्यवसाय एक वर्ष तक रहने वाला--मानुषाणां प्रमाणं स्याद्भुरघु० 16 / 2, मनु० 1080, याज्ञ. 11310 5. क्तिर्वै दशवार्षिकी, इसी प्रकार वार्षिकमन्नम्-याज्ञ० बैगन का पौधा / सम०-आरंभः व्यापारिक उपक्रम, १११२४,-कम् जड़ी बूटी। या व्यवसाय--वहः, -हरः 1. दूत 2. अंगराग, मोम वार्षिला [वार्जाता शिला, पृषो० शस्य षः] ओला।। बत्ती आदि पदार्थ बेचने वाला, पत्तिः जो खेती के वाष्र्णेयः [वृष्णि+ढक] 1. वृष्णि की सन्तान 2. विशेष व्यवसाय से निर्वाह करे,--व्यतिकरः सामान्य रूप से कृष्ण 3. नल के सारथि का नाम / विवरण / | वाह, वाहद्रय, वाहतथि, ) दे० बाह, बार्हद्रथ, बार्हद्रथि, वार्तायनः [वार्तानामयनमनेन] समाचारवाहक, दूत, वार्हस्पत, वार्हस्पत्य, बार्हस्पत, बार्हस्पत्य, बाहिण, भेदिया, जासूस। | वाहिण, वाल, वालक बाल, बालक / वात्तिक (वि०) (स्त्री०-की) [वृत्ति-+ठक] 1. समा- | बालखिल्य दे० 'बालखिल्य'। चार संबन्धी 2. समाचार लाने वाला 3. व्याख्यात्मक, वालिः [वाले केशे जाते वाल+इञ] प्रसिद्ध वानरराज कोष सम्बन्धी,--क: 1. दूत, भेदिया 2. किसान बालि जो उसके छोटे भाई सुग्रीव की इच्छानुसार (वैश्यवर्ण का व्यक्ति),-कम् एक व्याख्यापरक राम के द्वारा मारा गया। अतिरिक्त नियम जो उक्त, अनुक्त, या किसी अधूरी (वर्णन ऐसा मिलता है कि वानरराज वा., अत्यन्त बात की व्याख्या करता है अथवा किसी छूटी हुई बलवान् था, कहते हैं कि उनसे रावण को जब वह बात को जोड़ देता है--उक्तानुदुरुक्तार्थव्यक्ति उससे लड़ने गया, पकड़ कर अपनी काख में रख (चिंता) कारि तु वात्तिकम् (यह शब्द पाणिनि के लिया। जब वालि दुंदुभि के भाई को मारने के सूत्रों पर कात्यायन द्वारा निर्मित व्याख्यापरक नियमों लिए किष्किघापुरी से बाहर गया तो उसके भाई के लिए विशेषरूप से प्रयुक्त होता है)। सुग्रीव ने वालि को युद्ध में मरा जान, उसका सिंहाबार्बघ्नः [वृत्रहन्+अण्] अर्जुन का नाम-कु० 15 / 1 / / सन हथिया लिया। जिस समय वालि वापिस आया For Private and Personal Use Only Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो सुग्रीव को भाग कर ऋष्यमूक पर्वत पर शरण / त्याग कर दिया तो इस ऋषि ने सीता को अपने लेनी पड़ी। सुग्रीव की पत्नी तारा को वालि ने आश्रम में शरण दी, उसके दोनों पुत्रों का पालन छीन लिया, परन्तु राम के द्वारा वालि का वध होने पोषण किया, उन्हें शिक्षा दी। बाद में इसने पर वह फिर सुग्रीव को मिल गई। इनको राम के सुपुर्द कर दिया / वालुका [वल +उण्+कन्+टाप्] 1. रेत, बजरी-अकृ- | वाल्लभ्यम् [ वल्लभ+ष्या ] प्रिय होने का भाव, तज्ञस्योपकृतं वालुकास्विव मूत्रितम् 2. चुर्ण 3. कपूर, वल्लभता / -का,-को एक प्रकार की ककड़ी। सम०--आस्मिका | वावदूक (वि.) [पुनः पुनरतिशयेन वा वदति-वद्+य, शर्करा। लुक्, द्वित्वम् =वावद्+ऊक] 1. बातूनी, मुखर वालेय दे० बालेय। 2. वाक्पटु / वाल्क (वि.) (स्त्री०-की) [वल्क+अण्] वृक्षों की | वावयः [वय् + यङ्, लुक्, दित्वम्, अच्] एक प्रकार की छाल से बना हुआ। तुलसी। वाल्कल (वि.) (स्त्री-ली) [वल्कल+अण्] वृक्षों की वावुट: (पुं०) नाव, डोंगी। छाल से बना हुआ,-लम् बक्कल की पोशाक,-ली वावत् (दिवा० आ० वावृत्यते) 1. छांटना, पसन्द करना, मदिरा, शराब / चुनना, प्रेम करना-ततो वावृत्यमानासी रामशालां वाल्मीकः, वाल्मीकिः विल्मीके भवः अण इश वा] एक न्यविक्षत भट्टि० 4 / 28 2. सेवा करना / विख्यात मुनि तथा रामायण के प्रणेता का नाम वावृत्त (वि.) [ वावृत्+क्त ] छांटा गया, चुना गया, (जन्म से यह ब्राह्मण था, परन्तु बचपन में मातापिता पसंद किया गया। द्वारा परित्यक्त होने पर यह कुछ बर्वर पहाड़ियों को | वा i (दिवा० आ० वाश्यते, वाशित) 1. दहाड़ना, मिल गया जिन्होंने इसे चोरी करना सिखलाया। क्रंदन करना, चीत्कार करना, चिल्लाना, ह ह करना, यह शीघ्र ही चौर्य कला में प्रवीण हो गया और कुछ (पक्षियों का) गुनगुनाना, ध्वनि करना-(शिवाः) वर्षों तक बटोहियों को मारने और लूटने का कार्य तां श्रिताः प्रतिभयं ववाशिरे-रषु० 1261, शि० करता रहा। एक दिन उसे एक महामुनि मिला 18175, 76, भट्टि० 14114, 76 2. बुलाना। जिसको इसने मार डालने का भय दिखा कर कहा, वाशक [ वाश्+ण्वुल ] दहाड़ने वाला, मुखर, निनादी। कि जो कुछ पास है सब निकाल कर रख दो। वाशकम् [ वा+ल्युट ] 1. दहाड़ना, चिंघाड़ना, गुर्राना, परन्तु मुनि ने इसे कहा कि पहले घर जाकर अपनी ___ आक्रोश करना 2. पक्षियों का चहचहाना, कूकना, पत्नी और बच्चों को पूछो कि क्या वह लोग तुम्हारे / (मक्खियों का) भिनभिनाना। इस अनन्त अत्याचार व लूटमार के जो तुम अब तक | वाशिः[ वाश+इन ] अग्नि देवता, आग। करते रहे हो. साझीदार है। वह तुरन्त घर गया | वाशितम् [ वाश्+क्त ] पक्षियों का कलरव / परन्तु उनकी अनिच्छा को जानकर बड़ा उद्विग्न | वाशिता वासिता [वाशित+टाप, वस्+णिच+क्त+ हुआ। तब मुनि ने उसे 'मरा' 'मरा' (जो 'राम' टाप्] 1. हथिनी-अभ्यपद्यत स वाशितासखः प्रतीप है) उच्चारण करने के लिए कहा और अन्त पुष्पिताः कमलिनीरिव द्विपः--रघु० 19:11 2. (न हो गया। यह लुटेरा इस शब्द का वर्षों जप स्त्री / करता रहा, यहां तक कि उसका शरीर दीमको द्वारा वाभः [ वाश्+रक् ] दिन-श्रम् 1. आवास स्थान, घर लाई गई मिट्टी से ढक गया। वही मनि फिर आया 2. चौराहा 3. गोबर। और उसने इसे बांबी से निकाला, वल्मीक (बांबी) वाष्पः, - पम् दे० 'बाष्प' / से निकलने के कारण इसका नाम वाल्मीकि पड़ वास् / (चुरा० उभ० वासयति-ते) 1. सुगंधित करना, गया। यही बाद में बड़ा प्रसिद्ध मुनि हुआ। एक सुवासित करना, धूप देना, धूनी देना, खूशबूदार दिन जब कि वह स्नान कर रहा था, उसने क्रौंच करना वासिताननविशेषितगंधा कि० 980, पक्षी के जोड़े में से एक को बहेलिये द्वारा मरते हुए प्रकटित पटवाससियन काननानि-गीत० 1, उत्तर. देख, इस पर इस ऋषि के मुख से उस दुष्ट बहे 3 / 16, रघु० 4174, मेघ. 20 ऋतु० 5 / 5 2. लिये के लिए अनजान में कुछ अभिशाप के शब्द सिक्त करना, भिगोना 3. मसाला डालना, मसालेनिकल गये जिन्होंने अनुष्टुप छन्द में श्लोक का रूप दार बनाना। धारण किया। रचना की यह नई शैली थी। ii (दिवा० आ०) दे० 'वार'। ब्रह्मा के आदेश से इसने 'रामायण' नामक प्रथम बासः [ वास्+घा ] 1. सुगंध 2. निवास, आवासकाव्य की रचना की। जब राम ने सीता का परि- वासो यस्य हरेः करे-भामि० 263, रधु० 19 / 2, For Private and Personal Use Only Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 922 ) भग० 244 3. आवास, रहना, घर 4. जगह, स्थित | कालीन, माधवी, बहार के लायक, बसत में उत्पन्न 5. कपड़े, पोशाक / सम०-- अ(आ) गार:-रम्, 2. जीवन का बसन्त, जवान 3. परिश्रमी, सावधान -गृहम्, वेश्मन् (नपुं०) घर का आन्तरिक कक्ष, (कर्तव्यपालन में),-स: 1. ऊँट 2. जवान हाथी विशेषतः शयनागार -धर्मासनाद्विशति वासगृहं नरेन्द्र: 3. कोई भी जवान जन्तु 4, कोयल 5. दक्षिणी पवन, - उत्तर० 117, विक्रम०१,-कर्णी वह कमरा जहाँ मलय पहाड़ से चलने वाली हवा- तु. मलय समीर सार्वजनिक प्रदर्शन (नाच, कुश्ती, तथा अन्य प्रति- 6. एक प्रकार का लोबिया 7. लंपट, दूराचारी,-ती योगिताएँ) होते है, -तांबूलम् अन्य सुगन्धित 1. एक प्रकार की चमेली (सुगंधित फूलों से लदी मसालों से युक्त पान, - भवनम्,-मन्दिरम्, सदनम् हुई) ... वसन्ते वासन्तीकुसुमसुकुमाररवयवैः-गीत०१ निवासस्थान, घर,--यष्टिः (स्त्री०) पक्षियों के बैठने 2. बड़ी पीपल 3. जूही का फल 4. कामदेव के का डंडा, छतरी, अड्डा, वेणी०२।१, मेघ० 79, सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव-तु. -योगः एक प्रकार का सुगन्धित चूर्ण, - सज्जा वसंतोत्सव / वासक सज्जा दे। वासंतिक (वि.) (स्त्री०- की) [वसन्त+ठक] बसन्त पासक (वि.) (स्त्री०का, --सिका) [ वास्+णि+ ऋतु से संबद्ध,-क: 1. नाटक का विदूषक या ण्वुल] 1. सुगन्धित करने वाला, सुवासित करने | हंसोकड़ा 2. अभिनेता। वाला, पाने वाला, घूप देने वाला 2. बसाने वाला, / वासरः रम् [सुखं वासयति जनान् वास्+अर] (सप्ताह आवाद करने वाला, - कम वस्त्र, कपड़े। सम० का) एक दिन / सम० संगः प्रातः काल / -सज्जा-सज्जिका वह स्त्री जो अपने प्रेमी का वासव (वि०) (स्त्री० वी) [वसुरेव स्वार्थे अण, वसूनि स्वागत, सत्कार करने के लिए अपने आपको वस्त्रा- सन्त्यस्य अण् वा] इन्द्र सम्बन्धी पांडुतां वासवी लंकार से भूषित करती तथा घर को साफ सुथरा दिगयासीत्का०, वासवीनां चमनाम् मेघ० 43, रखती है, विशेषतः उस समय जव कि प्रेमी का मिलन ... यः इन्द्र का नाम - कु० 3 / 2, रघु० 5 / 5 / सम० नियत किया हुआ हो; भावी नायिका, नायिका का ... वत्ता 1. सुबन्धु की एक रचना 2. कई कहानियों भेद साहित्यदर्पणकार परिभाषा देता है: कुरुते मंडनं में बणित नायिका (इस स्त्री) का वर्णन भिन्न-भिन्न यस्याः (या तु) सज्जिते वासवेश्मनि, सा तु बासक- कवि विविध प्रकार से करते हैं। 'कथासरित्सागर' सज्जा स्याद्विदितप्रियसंगमा- 120; भवति विलं- के अनुसार वह उज्जयिनी के महाराजा चण्डमहासेन बिनि विगलितलज्जा विलपति रोदिति वासकसज्जा की पुत्री थी जिसका अपहरण वत्स के राजा उदयन ने -गीत०६। किया था। श्रीहर्प उसे प्रद्योत राजा की पूत्री बतलाते पासतः [ वास्+अतच ] गधा / हैं (दे० रत्न० 1010) और मल्लि० की टीका के वासतेय (वि.) (स्त्री०--यो) [ वसतये हितं साधुवा अनुसार-प्रद्योतस्य प्रियहितरं वत्सराजोऽत्र जह तु ] निवास करने के योग्य,-यी रात। .- वह उज्जयिनी के राजा प्रद्योत की पुत्री थी। वासनन् [ वास्+ल्युट ] 1. सुगन्धित करना, सुवासित भवभूति कहते हैं कि उसके पिता ने उसकी सगाई करना 2. धुपाना 3. निवास करना, टिकना 4. राजा संजय के साथ की थी, परन्तु उसने अपने आवासस्थान, निवासस्थान 5. कोई पात्र, आधार, आपको उदयन की सेवा में अर्पित किया (दे० मा० टोकरी, सन्दूक, बर्तन आदि-याज्ञ० 2 / 65, 2) / परन्तु सुबन्धु की वासवदत्ता की वत्स की (वासनं निक्षेपाधारभूतं संपुटादिकं समुद्रं ग्रंथ्यादि कहानी से कोई समानता नहीं। हाँ, उसका नाम युतम्) 6. ज्ञान 7. वस्त्र, परिधान 8. गिलाफ, अवश्य एक ही था। भवभूति के अनुसार उसके पिता लिफाफा। ने उसकी सगाई पुष्पकेतु के साथ की थी, परन्तु बासना [वास्-णिच+युच+टाप] 1. स्मति में प्राप्त कंदर्पकेतु उसे अपहृत कर ले गया। यह संभव है कि ज्ञान, तु. भावना 2. विशेषतः अपने पहले शुभाशुभ 'वासवदत्ता' नाम की कई नायिकाएँ हों)। कर्मों का अनजाने में मन पर पड़ा हमा संस्कार वासवी [वासव+ङीप] व्यास की माता का नाम / जिससे सुख या दुःख की उत्पत्ति होती है 3. उत्प्रेक्षा, वासस् (नपुं०) [वस् आच्छादने असि णिच्च] वस्त्र, कल्पना, विचार 4. मिथ्या विचार, अज्ञान 5. अभि- परिधान, कपड़े - वासांसि जीर्णानि यथा बिहाय लाषा, इच्छा, रुचि--संसारवासनावद्धशृंखला-गीत. I नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि - भग० 2 / 22, कु० 3 6. आदर, रुचि, सादर मान्यता तेषां (पक्षिणां) 7.9, मेध०५९। मध्ये मम तु महती वासना चातकेषु-भामि० 4 / 17 / | वासिः (पुं०, स्त्री०) [वस्+इञ] बसूला, छोटी कुल्हाड़ी, वासंत (वि०) (स्त्री० -ती) [वसन्त+अण] 1. बसन्त | छेनी,-सिः निवास, आवास / पासतेय निवास कर 1. मुर्गा For Private and Personal Use Only Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 923 ) वासित (भू० क. कृ.) [वास्+क्त] 1. सुवासित, या 1. एक वैदिक देवता (घर की आधारशिला की सुगन्धित 2. भिगोया, तर किया हुआ 3. मसालेदार, अधिष्ठात्री देवता मानी जाती है) 2. इन्द्र का नाम / मसाला डाला गया 4. कपड़े पहने हुए, वस्त्रों से बास्त्र (वि०) | वस्त्र+अण] वस्त्र से निर्मित,-स्त्रः सज्जित 5. जनसंकुल, आबाद 6. विख्यात, प्रसिद्ध, कपड़े से ढकी हुई गाड़ी। -तम् 1. पक्षियों का कलरव या कूजना 2. ज्ञान | वास्प दे० 'बाष्प'। -तु० वासना (2) / वास्पेयः [ वास्पाय हितं वाष्प+ढक् ] 'नागकेशर' नाम वासिता [वास्+क्त+टाप् ] दे० 'वाशिता' / का वृक्ष / वासि (शि) 5 (वि०) (स्त्री०-ठी) [वसि+शिष्ठ वाह. (म्वा० आ० वाहते) प्रयत्न करना, चेष्टा करना, +अण] वशिष्ठ संबंधी, वशिष्ठ द्वारा रचित (बल्कि उद्योग करना। दुष्ट) जैसा कि ऋग्वेद का दसवाँ मण्डल,-ष्ठः वशिष्ठ बाह (वि.) [वह+घा ] धारण करने वाला, ले जाने की सन्तान। वाला (समास के अन्त में) जैसा कि अंबुवाह, और वासुः [ सर्वोऽत्र वसति-वस्+उण् ] 1. आत्मा 2. विश्वा- 'तोयवाह' में,-ह: 1. ले जाना, धारण करना 2. कुली त्मा, परमात्मा 3. विष्णु / 3. खींचने वाला जानवर, वोझा ढोने वाला जानवर वासुकिः, वासुकेयः [वसुक+इ, ढा वा] एक 4. घोड़ा-रघु० 456, 5 / 73 14152 5. सांड विख्यात नाग का नाम, नागराज (कहते हैं कि यह -कु० 7149 6. भैंसा 7. गाड़ी, यान 8. भुजा 9. वायु कश्यप का पुत्र था)-कु० 2 / 38, भग० 10 // 28 // हवा 10. एक मापविशेष जो दस कुंभ या चार भार वासुदेवः [वसुदेवस्यापत्यम् अण] 1. वसुदेव की संतान के तुल्य होती है - वाहो भारचतुष्टयं / सम०---शिवत् 2. विशेष रूप से कृष्ण। (पुं०) भैंसा, श्रेष्ठः घोड़ा। वासुरा [ वस्+उरण-1-टाप् ] 1. पृथ्वी 2. रात 3. स्त्री वाहकः [ वह +ण्वुल् ] 1. कुली 2. गड़वाला, गाड़ीवान् 4. हथिनी। ____ चालक 3. धुड़ सवार / वासः (स्त्री०) [वास्+ऊ] तरुणी कन्या, कुमारी, | वाहनम् [वाहयति-वह +णि+ल्युट् ] 1. प्रारण (मुख्यतः नाटकों में प्रयुक्त)--एषासि वासु शिरसि करना, ले जाना, ढोना 2. (घोड़े आदि को) हॉकना गृहीता ---मच्छ० 1141, वासु प्रसीद--मृच्छ० / 3. गाड़ी, किसी प्रकार की सवारी-मनु० 775, वास्त दे बास्त / नै० 22145 4. खींचने वाला या सवारी का जानवास्तव (वि.) (स्त्री०-वी) [ वस्तु+अण् ] 1. असली, वर, जैसा कि घोड़ा-स दुष्प्रापयशाः प्रापदाश्रम सच्चा, सारयुक्त 2. निर्धारित, निश्चित,-वम् कोई श्रांतवाहनः-रघु० 1148, 9 / 25, 6. 5. हाथी। भी निश्चित या निर्धारित बात / वाहसः [न वहति नगच्छति, वह+असच् ] 1. पतनाला, वास्तवा [वास्तव+टाप् ] प्रभात, उषा। ___ जलमार्ग 2. बड़ा नाग, अजगर / वास्तविक (वि.) (स्त्री०-की) [ वस्तुतो निर्वतं ठक] वाहिकः [ वाह+ठक 1 1. बड़ा ढोल 2. बैलगाड़ी सच्चा, असली, सारगर्भित, यथार्थ विशुद्ध। 3. बोझ ढोने वाला। वास्तिकम् [वस्त+ठक्] बकरो का समूह / | वाहितम् [वह +णिच्+क्त ] भारी बोस। वास्तव्य (वि०) [वस्+तव्यत्, णित् ] 1. निवासी, वाहित्यम् [वाहिन्+स्था+क] हाथी के मस्तक का वासी, रहने वाला-पुरेऽस्य वास्तव्यकुटुंबितां ययुः-- ललाट से नीचे का भाग। शि० श६६ 2. रहने के योग्य, वास करने के योग्य वाहिनी [वाहो अस्त्यस्याः इनि की ] 1. सेना, -व्यः 1. आवासी, रहने वाला, निवासी-नानादि- ---- आशिषं प्रयुयुजे न वाहिनीम्-रघु० 1136, गंतवास्तव्यो महाजनसमाज:-मा०१,-व्यम् 1. रहने 13166 2. अक्षौहिणी सेना जिसमें 81 गजारोही, के योग्य स्थान, घर 2. वसति, निवासस्थान। 81 रथारोही, 243 अश्वारोही तथा 405 पदाति वास्तु (पुं०, नपुं०) [वस्+तुण] 1. घर बनाने की सम्मिलित है 3. नदी। सम-निवेशः सेना का जगह, भवनभूखण्ड, जगह 2. घर, आवास, निवास पड़ाव, शिविर,-पतिः 1. सेनापति, सेनाध्यक्ष भूमि,-रवेरविषये वास्तु किं न दीपः प्रकाशयेत्-सुभा० मनु० 3189 / सम०-यागः घर की आधारशिला | वाहीक दे० 'बाहीक'। रखते समय किया जाने वाला यशानुष्ठान / बाहक दे० 'बाहुक'। वास्तेय (वि.) (स्त्री०-यी) [वस्ति+ढ ] 1. रहने | वाद्य दे० 'बाह्य'। के योग्य, निवास करने के योग्य 2. पेड़ संबंधी। वादिः (40) एक देश का नाम, (आधुनिक बलख)। पास्तोष्पतिः [ वास्तोः पतिः, नि० षष्ठया अलुक्, षत्वम् ] ! समजः बुलख देश का घोड़ा। वाहीक देना का स्वामी) 1. सेनापति, सेना का For Private and Personal Use Only Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साडी (011. एक देश का नाम (आधनिक विकट (वि.) विकटच। 1. विकराल.करूप 2. (क) बलख) 2. बरूख देश का घोड़ा, बलख देश में पला दुर्धर्ष, भयानक, भीषण डरावना--पथललाटतटघटित घोड़ा,-कम 1. जाफरान, केसर 2. हींग। विकट भ्रकुटिनां वेणी०१, विधुमिव विकटविद्युतुदवि (अव्य०) [वा+इण्, स च डित् ] 1. धातु और दंतदलनगलितामृतधारम्-गीत. 4. (ख) दारुण, संज्ञा शब्दों के पूर्व जुड़ कर इसका निम्नांकित अर्थ खूखार, बर्बर 3. वड़ा, विस्तृत, विशाल, प्रशस्त, होता है:--(क) पृथक्करण, वियोजन (एक ओर, व्यापक जृम्भाविडम्विविकटोदरमस्तु चापम्-उत्तर० अलग-अलग, दूर, परे आदि) यथा वियुज, विह, 4 / 29, आवरिष्ट विकटेन विवोदुर्वक्षसैव कुचमण्डलविचल आदि (ख) किसी कर्म का उलट, यथा की मन्या-शि० 10 // 42, 13 / 10, मा० 7 4. घमंडी, खरीदना, विक्री बेचना, स्म याद करना विस्मृ भूल अभिमानी विकट परिकामति उत्तर०६, महावीर० जाना (ग) प्रभाग यथा विभज, विभाग (घ) विशि- 6 / 32 5. सुन्दर मच्छ० 2 6. त्योरी चढ़ाये हुए, ष्टता-यथा विशिष् विशेष; विवि, विवेक 7. गूढ 8. शक्ल बले हुए,---टम् फोड़ा, अर्बुद या (अ) विभेदीकरण-- व्यवच्छेदः (च) क्रम, व्यवस्था रसौली। यथा विधा, विरच (छ) विरोध यथा विरुध्, विरोध; विकथन (वि+कत्थ् ल्युट] 1. शेखी वधारने वाला, अभाव यथा विनी, विनयन (ज) विचार, यथा डींग मारने वाला, आत्मश्लाघा करने वाला, अपनी विचर, विचार (झ) तीब्रता-विध्वंस 2. संज्ञा या प्रशंसा करने वाला विद्वांसोऽप्यविकत्थना भवंति विशेषण शब्दों में (जो कि क्रिया से सटे हुए न हों) मुद्रा० 3, रघु० 14173 2. व्यंग्योक्ति पूर्वक प्रशंसा जड़कर वि निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है करने वाला,-नम् 1. दर्पोक्ति, धौंस जमाना 2. व्याजो(क) निषेध या अभाव (ऐसी अवस्था में इसका क्ति, मिथ्या प्रशंसा। प्रयोग आधकतर उसा प्रकार हाता ह जस कि 'अ विकत्था [वि+कत्थ +अ+टाप| शेखी बघारना, डींग, या 'निर' का, अर्थात् इसके लगने पर बहुव्रीहि समास आत्मश्लाघा, दर्पोक्ति 2. प्रशंसा . मिथ्या प्रशंसा, बनता है-विधवा, व्यसुः आदि (ख) तीब्रता, व्यंग्योक्ति। महत्ता-यथा विकराल (ग) वैविध्य यथा विचित्र | विकम्प (वि.) [विशेषेण कम्पो यस्य-प्रा० ब०] 1. दीर्घ (घ) अन्तर-यथा विलक्षण (क) बहुविधता-यथा निःश्वास लेने वाला 2. अस्थिर, चंचल। विविध (च) वपरीत्य, विरोध-यथा विलोम | विकरः [विकीर्यते हस्तपादादिकमनेन-वि+-+अप] (छ) परिवर्तन-यथा विकार (ज) अनौचित्य बीमारी, रोग। न्यथा विजन्मन् / विकरणः [वि+कृ+ल्यूट] क्रियारूपरचनापरक निविष्ट विः (पुं० स्त्री०) [ वा+इण्, स च डित् ] 1. पक्षी जोड़ (अनुषंगी), क्रिया के रूपों की रचना के समय ____2. घोड़ा। धातु और लकार के प्रत्ययों के बीच में रक्खा जाने विश (वि.) (स्त्री०-शी) [ विंशति+डट्, तेः लोपः ] | वाला गणद्योतक चिह्न। बीसा,-शः बीसवाँ भाग / विकराल (वि०) [विशेषेण कराल: प्रा० स०] अत्यंत विशक (वि.) (स्त्री०-को) [विंशति+ण्वुन्, तिलोपः ] | डरावना या भयानक, भयपूर्ण / बीस। विकर्णः [विशिष्टौ कौँ यस्य प्रा० ब०] एक कुरुवंशी विशतिः (स्त्री०) [ द्वे दश परिमाणमस्य नि० सिद्धिः ] राजकुमार का नाम - भग० 138 / बीस, एक कोड़ी। सम० ईशः, ईशिन् (पुं०) विकर्तनः विशेषण कर्तनं यस्य प्रा० ब०] 1. सूर्य--उत्तर० बीस गांवों का शासक / 5 2. मदार का पौधा 3. वह पुत्र जिसने अपने पिता विकम् [विगतं के जलं सुखं वा यत्र ] ताजी व्यायी का राज्य छीन लिया हो। गाय का दूध। विकर्मन् (वि) [विरुद्धं कर्म यस्य प्रा० ब०] अनुचित विकष्टकः,-तः [वि+कंक+अटन्, अतच् वा ] एक रीति से कार्य करने वाला, नपं अवैध या प्रतिनिषिद्ध वृक्ष विशेष (जिसकी लकड़ी से श्रुवा बनते हैं) कार्य, पापकर्म-भग० 4 / 17, मनु० 9 / 226 / सम० -रघु० 11125 / -फिया अवैध कार्य, अधार्मिक आचरण, स्थ विकच (वि०) [विकक्+अच्] 1. खिला हुआ, फूला (वि.) प्रतिषिद्ध कार्यों को करने वाला, दुर्व्यसनों हुआ, खुला हुआ, (जैसा कि कमल आदि)-विकचकि- में प्रस्त। शुकसंहतिरुच्चकैः-शि 6 / 21, रघु० 9:37 2. फैलाया विकर्षः [वि+कृष+घन] 1. अलग-अलग रेखांकन हुआ, बखेरा हुआ-भामि० 113 3. बालों से शून्य, करना, स्वतंत्र रूप से खींचना 2. तीर, बाण / -च: 1. बौद्धसाधु 2. केतु / विकर्षणः [वि+कृष+ल्युट] कामदेव के पांच बाणों में For Private and Personal Use Only Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HAR ( 925 ) से एक,.....णम् 1. रेखांकन, खींचना, अलग-अलग 2138 4. मन या अभिप्राय का बदलना-मूर्छत्यमी खींचना 2. तिरछा फेंकना। विकाराः प्रायेणैश्वर्यमत्तेषु-श० 5 / 19 5. भावना, विकल (वि.) [विगतः कलो यत्र प्रा० ब०] 1. किसी संवेग-उत्तर० 1 / 35, 3 / 25, 36 6. विक्षोभ, भाग या अंग से वञ्चित, सदोष, अधूरा, अपाहज, उत्तेजना, उद्वेग --कि० 17 / 23 7. विकृत रूप, आविकलांग - कूटकृद्विकलेन्द्रियाः--याज्ञ० 2170, मनु० कुंचन (मुखमुद्रा, हावभाव आदि) प्रमथमुखविकार८१६६, उत्तर० 4 / 24 2. डरा हुआ, त्रस्त 3. शून्य, हसियामास गूढ़म्-कु. 7 / 95 8. (सांख्य० में) जो विरहित --आरामाधिपतिविवेकविकलाः --भामि० 1 // पूर्वस्रोत या प्रकृति से विकसित हो। सम०-हेतुः 31, मृच्छ० 5 / 41 4. विक्षुब्ध, कमजोर, उत्साह प्रलोभन, फुसलाना, उद्वेग का कारण-विकारहेतो शून्य, हतोत्साह, म्लान, अवसन्न, स्फूतिहीन-किमिति सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः---कु. विषीदसि रोदिषि विकला विहसति युवतिसभा तव श५९। सकला-गीत० 9, विरहेण विकलहृदया--भामि० विकारित (वि.) [वि++णिच् + क्त] परिवर्तित, 2171, 164, श्रुतियुगले पिकरुतविकले—गीत. पथभ्रष्ट, भ्रष्टाचारग्रस्त / 12, उत्तर 3131, मा० 7.1, 9 / 12 5. मुझाया | विकारिन् (वि.) [वि+ +णिनि परिवर्तनशील, संवेग हुआ, क्षीण / सम० ... अंग (वि.) अधिक या कम तथा अन्य संस्कारों को ग्रहण करने वाला,--भ्रमति अंगों वाला,- इन्द्रिय (वि.) जिसकी ज्ञानेन्द्रियाँ भवने कंदपज्ञा विकारि च यौवनम्-मा० 1117 / दूषित या विकृत हैं, -पाणिकः लूला-लंगड़ा। विकालः, विकालकः [विरुद्धः काल: प्रा० स०] संध्या, विकला [विगतः कलो यस्या:-प्रा० ब०] कला का साठवाँ सांध्यकालीन झुटपुटा, दिन की समाप्ति / भाग / विकालिका [विज्ञातः कालो यया-प्रा० ब०] पानी में विकल्पः [ वित्कृप्+घा] 1. सन्देह, अनिश्चय, अनि रक्खा हुआ छिद्रयुक्त ताम्रकलश जो क्रमशः पानी र्णय, संकोच-तत् सिषेवे नियोगेन स विकल्पपरा- भरने के द्वारा समय का अंकन करता है-तु० मख:-रघु० 17149 2. शंका, - मुद्रा० 1 3. कट- मानरन्ध्रा। युक्ति, कला ... मायाविकल्परचितैः रघु० 13 / 75 | विकाशः [वि+कर+घञ] 1. प्रकटीकरण, प्रदर्शन, 4. वरणस्वतंत्रता, (व्या० में) वैकल्पिक . प्रकार, दिखलावा 2. खिलना, फूलना (इस अर्थ में प्रायः भेद 6. अशुद्धि, भूल, अज्ञान / सम०-उपहारः विकाश लिखा जाता है)---कु० 3 / 29 3. खुला सीधा वैकल्पिक पुरस्कार, ---जालम् जाल की तरह का अनि- मार्ग-कि० 15152 4. टेढ़ा मार्ग-कि० 15 / 52 र्णय, दुविधा। 5. हर्ष, आनन्द-कि० 15152 6. उत्सुकता, प्रबल विकल्पनम् [वि-+क्लप् + ल्युट्] 1. सन्देह में पड़ना उत्कंठा-शि० 9 / 41, (यहाँ इसका अर्थ खिलना, ___2. इच्छा की छूट 3. अनिर्णय / भी है) 7. एकान्तवास, एकाकीपन, सूनापन।। विकल्मष (वि.) [विगतः कल्मषो यस्य प्रा० ब०] निप्पाप, विकाशक (वि.) (स्त्री-शिका) [वि+का+वल] __कलंकरहित, निर्दोष / 1. प्रदर्शन करने वाला 2. खोलने वाला। विकषा (सा) [वि+कष् (स्)+अच् +टाप्] बगाली | | विकाशनम् [वि+का+ल्युट] 1. प्रकटीकरण, प्रदर्शन, मजीठ। दिखावा 2. खिलना, (फूलों का) फूलना। विकसः [वि--कस्+अच्] चन्द्रमा। विकाशि (सि)न् (वि.) (स्त्री०-नी) [वि+काश विकसित (भू० क० कृ०) [वि+कस्+क्त] खिला हुआ, (स)+णिनि] 1. दिखाई देने वाला, चमकने वाला पूरा खुला हुआ या फूला हुआ --भामि० 1 / 10 / / 2. फूलने वाला, खुलने वाला, खिलने वाला। विकस्व (श्व) र (वि०) विकस्व रच 1. खुला हुआ, | विकासः [वि+कस्+घा ] खिलना, फूलना-देऊ. फूला हुआ-कुशेशयरत्र जलाशयोषिता मुदा रमन्ते / विकाश। कलभा विकस्वरः-शि०४।३३ 2. ऊँचे स्वर वाला, | विकासनम् [वि+कस्+ ल्युट् ] फूलना, खुलना, खिलना। (ध्वनि आदि) जो स्पष्ट सुनाई दे, उदडीयत वैकृता- विकिरः [वि+क+अप्] 1. बिखरा हुआ भाग या गिरा करग्रहजादस्य विकस्वरस्वरः-नै० 2 / 5 / हुआ नन्हा टुकड़ा 2. जो फाड़ता या बखेरता है पक्षी विकारः [वि-+-+घञ] 1. रूप या प्रकृति का परि- कंकोलीफलजग्धिमुग्धविकिरव्याहारिणस्तद्भवो भागाः वर्तन, रूपान्तरण, प्राकृतिक अवस्था से व्यत्यय, तु० --मा० 6 / 19 3. कूओं 4. वृक्ष / / विकृति 2. परिवर्तन, अदल-बदल, सुधार-पंच० | विकिरणम् [वि+ ल्युट्] 1. बखेरना, इधर उधर 1144 3. बीमारी, रोग, व्याधि-विकारं खलु फेंकना छितराना 2. दूर-दूर तक फैलाना 3. फाड़ परमार्थतोऽज्ञात्वाऽनारम्भः प्रतीकारस्य -- श० 4, कु० / डालना 4. हिंसा करना 5. ज्ञान / For Private and Personal Use Only Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकीर्ण (भू.क.०)[वि+क+क्त] 1. बखेरा हुआ शौर्य, नायक की बहादुरी, अनुत्सेक: खल विक्रमा छितराया हआ 2. प्रसूत 3. विख्यात / सम-केश, लंकारः-विक्रम० 1, रघु० 12187, 93 5. उज्ज---मूर्षज (वि.) बालों को नोचने वाला, बालों को यिनी के एक प्रसिद्ध राजा का नाम -- दे० परि० बिखेरन या उलझ-पुलझ करने वाला,-शम् एक प्रकार 2 6. विष्णु का नाम / सम-अर्क:-- आदित्यः की संगन्ध / दे० विक्रम, कर्मन् (नपुं०) शुरवीरता का कार्य, विकुण्ठः [विगता कुंठा यस्य प्रा० ब०] विष्णु का स्वर्ग / पराक्रम के करतब। निर्वाण (वि.) [वि+क+शानच् ] 1. परिवर्तित होने विक्रमणम् [वि+क्रम+ल्युट] (विष्णु का) एक डग -- वाला, या परिवर्तन करने वाला 2. प्रसन्न, खुश, हृष्ट। छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन -गीत०१।। बिकुलः[वि+क+रक्, उत्वम् ] चन्द्रमा / विऋमिन् (बि०) [वि+क्रम् -णिनि ] पराक्रमी, शूरविकूजनम् [वि+कू+ल्युट ] 1. गुटुरगू करना, कलरव वीर-पुं० 1. सिंह 2. नायक 3. विष्णु का विशेषण / करना 2. (अंतडियों या नलों में) गुडगुड़ाहट। | विक्रयः [ वि+की+अच्] बिक्री, बेचना मनु० 3 / 54 / विकूणनम् [वि-कूण+ल्युट् ] तिरछी चितवन, कटाक्ष / सम-अनुशयः बिक्री का खण्डन करना,-पत्रम् विकणिका [वि+कूण्+ण्वुल+टाम्, इत्वम् ] नाक।। बिक्री का पत्र, बैनामा / विकृत (भू० क० कृ० ] 1. परिवर्तित, बदला हुआ, सुधारा | विक्रषिकः, विक्रयिन् (पुं०) [ विक्री-- इकन्, णिनि वा ] हुआ 2. रोगी, बीमार 3. क्षतविक्षत, विरूपित, जिसकी / व्यापारी, विकेता, बेचने वाला। सूरत बिगड़ गई हो 4. अपूर्ण अधूरा 5. आवेशग्रस्त | विक्रस्रः [वि+कम+रक, अत्वं, रेफादेशः ] चांद। 6. पराङ्मुख, ऊबा हुआ 7. बीभत्स 8. अनोखा, विकान्त (भू० के० कृ०) [वि+क्रम्+क्त ] 1. परे तक असाधारण (दे० वि पूर्वक कृ),-सम् 1. परिवर्तन, गया हुआ, डग रक्खे हुए 2. शक्तिशाली, शूरवीर, सुधार 2. और भी बिगड़ जाना, बीमारी 3. अरुचि, बहादुर, पराक्रमी 3. विजयी, (अपने शत्रुओं को) परास्त करने वाला,-त: 1. शूरवीर, योद्धा 2. सिंह, विकृतिः (स्त्री०) [वि++क्तिन् ] (अभिप्राय, मन, - तम् 1. पद, डग 2. घोड़े की सरपट चाल 4. शूर रूप आदि का) बदलना-चित्तविकृतिः, अंगुलीयक वीरता, बहादुरी, पराक्रम। सुवर्णस्य विकृतिः 2. अस्वाभाविक, अचानक घटित | विक्रान्तिः (स्त्री०) [वि+क्रम् +क्तिन् ] 1. कदम होने वाली परिस्थिति, दुर्घटना--मरणं प्रकृतिः रखना, डग भरना 2. घोड़े की सरपट चाल 3. शूरशरीरिणां विकृतिर्जीवितमुच्यते बुधः-रधु० 887 | वीरता बहादुरी, पराक्रम / 3. बीमारी 4. उत्तेजना, उद्वेग, क्रोध, रोष-कि० विकान्त (वि.) [वि+क्रम्+तृच् ] बहादुर, विजयी, 13156, शि. 15 / 11, 40, दे० 'विकार' और पुं० सिंह। 'विक्रिया भी। विक्रिया [वि+++टाप्] 1. परिवर्तन, सुधार, विकृष्ट (भू० क. कृ.) [वि+कृष्+क्त ] 1. अलग- बदलना-श्मश्रुप्रवृद्धिजनिताननविक्रियान्-रघु०१३। अलग घसीटा हुआ, इधर-उधर खींचा हुआ 2. आकृष्ट, 71, 1017 2. विक्षोभ, उत्तेजना, उद्वेग, जोश खींचा हुआ, किसी की ओर आकृष्ट 3. विस्तारित, आना--अथ तेन निगुह्य विक्रियामभिशप्तः फलमेतद फैलाया हुआ 4. शब्दायमान (दे० वि पूर्वक कृष्)। न्वभूत् -कु० 4 / 41, 3 / 34 3. क्रोध, गुस्सा, अप्रसविकेश (वि.) (स्त्री० -शी) [विकीर्णाः केशायस्य लता-साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम --प्रा०व[. बिखरे वालों वाला 2. बिना बालों का -~-सुभा०, लिंगमुदः संवृतविक्रियास्ते-रघु० 7.30 गंजा (सिर),-शो 1. ढोले बालों वाली स्त्री 2. 4. उलट, अनिष्ट-कु० 629 (विक्रियाय--वैकबालों के शुन्य (गंजी) स्त्री 3. मीढी, या बालों की ल्योत्पादनाय 'दोष'- मल्लि) 5. (मोजे इत्यादि) छोटी छोटी लटों को मिला कर बनाई हुई चोटी, बुनना, आकुंचन वा (भौंहों की) सिकुड़न .... भूविक्रि यायां विरतप्रसंगैः कु० 3 / 47 6. आकस्मिक विकोश -ब (वि.) [ विगतः कोशो यस्य--प्रा० ब० ] आन्दोलन जैसा कि 'रोमविक्रिया' में - विक्रम० 1 // 1. बिना भूसी का 2. बिना म्यान का, बिना ढका 12, 'रोमांच होना' 7. अकस्मात रोगग्रस्तता, बीमारी हुआ-कि० 17445, रघु० 7.48 / 8. उल्लंघन, (उचित कर्तव्य का) बिगाड़ देना, रघु० विषक: [ विक्+के+क] तरुण हाधी। 15 / 48 / सम०-उपमा दण्डी द्वारा वर्णित उपमा विक्रमः [ वि+क्रम्+घ, अच् वा ] 1. कदम, डग, का एक भेद - दे. काव्य० 2 / 41 / पग -श० 76, तु० त्रिविक्रम 2. कदम रखना, | विकृष्ट (भू० क० कृ०)[वि+क्रुश्+क्त ] 1. चीत्कार चलना 3. पकड़ लेना, प्रभाव डाल लेना 4. वीरता, किया, चिल्याया 2. कठोर, क्रूर, निर्दय,-ष्टम् वेणी। For Private and Personal Use Only Page #936 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 927 ) 1. सहायता प्राप्त करने के लिए क्रंदन करना, दुहाई। विख, विखु, विल्य, / [विगता नासिका यस्य -व० स० देना 2. गाली। विख, विख, विन नासिकायाः खु, ख्य, ख, ख, ग्र विकेय (वि०) [वि+की+यत] बेचने के योग्य, (कोई | वा आदेशः] नासिका से रहित, बिना नाक / वस्तु) विक्री कर दी जाने के योग्य / विखण्डित (भू० क. कृ.) [वि+खण्ड्+क्त] 1. टूटा विक्रोशनम् [वि-क्रुश्+ल्युट्] 1. चिल्लाना, चीत्कार | हुआ, विभक्त किया हुआ 2. दो खण्डों में किया हुआ। करना 2. गाली देना। | विखानसः (पुं०) एक प्रकार का साधु / बिक्लव (वि.) [वि+क्ल+अच] 1. भयभीत, भड़का विखुरः (पुं०) 1. राक्षस, पिशाच 2. चोर। हुआ, चौंका हुआ, त्रस्त -आचकांक्ष घनशब्दविक्लवा:- विख्यात (भू० क. कृ.) [वि+ख्या+क्त] 1. प्रख्यात, रघु० 19138, कु० 4 / 11 2. डरपोक -शि०७।४३, --... विश्रुत, प्रसिद्ध, मशहूर 2. नामवर, नामधारी 3. मेघ. 37 3. रोगग्रस्त, परास्त -कि० 116 6. ... स्वीकृत, माना हुआ। बिक्षुब्ध, उत्तेजित, घबराया हुआ, विह्वल - श० विल्यातिः (स्त्री०) [वि+ख्या+क्तिन्] प्रसिद्धि, कीर्ति, 3 / 26 5. दु:खी, कष्टग्रस्त, संतप्त--शि० 12 / 63, यश, नाम / कु० 4 / 39 6. ऊबा हुआ, अरुचिवान् -- मृगयाविक्लवं | विगणनम् [वि+गण्+ल्युट्] 1. गिनना, संगणन, हिसाब चेतः --श० 27. हकलानेवाला, लड़खड़ानेवाला -.. लगाना 2. विचारना, विचारविनिमय करना 3. ऋण प्रस्थानविक्लवगतेरवलंबनार्थी श० 5 / 3 / का परिशोध करना। विक्लिन्न (भ० क० कृ०) [वि+क्लिद--क्त 1. अत्यंत | विगत (भु० क० कृ०) [वि-+-गम्+क्त] 1. जिसने प्रयाण गीला, पूरी तरह भीगा हुआ 2. मुझाया हुआ, सूखा कर लिया है, जो चला गया है, लप्त 2. जो अलग किया हुआ 3. पुराना। गया है, वियुक्त 3. मृतक 4. विरहित, शून्य, मुक्त विक्लिष्ट (भू० क० कृ०) [वि+क्लिश्+क्त] 1. अत्यंत (समास में) विगतमदः 5. खोया हुआ 6. धुंधला, कष्टग्रस्त, दुःखी 2. घायल, नष्ट किया हुआ, ---ष्टम् अस्पष्ट / सम-आर्तवा वह स्त्री जिसे बच्चा होना उच्चारण दोष। (या रजोधर्म होना) बन्द हो चुका हो,--कल्मष विक्षत (भू० क. कृ.) [वि+क्षण+क्त] फाड़ कर अलग (वि.) निष्पाप, पवित्र,-भी (वि.) निर्भय, निडर, अलग किया हुआ, घायल, चोट पहुंचाया हुआ, -लक्षण (वि.) भाग्यहीन, अशुभ। आघातग्रस्त / विगन्धकः [विरुद्धः गंधो यस्य ब० स०] इंगुदी नाम का विक्षावः [वि+क्षु+घन] 1. खांसी, छींक आना 2. ध्वनि / पेड़। विक्षिप्त (भू० क. कृ.) [वि+छिप्+क्त] 1. बिखेरा विगमः [वि+गम-+अप] 1. प्रस्थान करना, अन्तर्धान, हुआ, इधर उधर फेंका हुआ, छितराया हुआ, डाला समाप्ति, अन्त -चारुनृत्यविगमे च तन्मुखम् रघु० हुआ 2. अलग करना, पदच्युत करना 3. भेजा गया, 19 / 15, ईतिविगम --मालवि. 5 / 20, ऋतु. 6 / 22 प्रेषित 4. भ्रान्त, व्याकुल, विक्षुब्ध 5. निराकृत (दे० 2. परित्याग--करणविगमात्-मेघ०५५ (देहत्यागात्) वि पूर्वक क्षिप्)। 3. हानि, नाश 4. मृत्यु / / विक्षीणकः (40) 1. शिव के सेवकगण का मखिया / विगरः (पुं०) 1. नग्न रहने वाला सन्यासी 2. पहाड 2. देवसभा। 3. वह पुरुष जिसने भोजन करना त्याग दिया हो। विक्षीरः [विशिष्टं विगतं वा क्षीरं यस्य प्रा० ब०] मदार विगहणम्,-णा [वि+गह +ल्युट, स्त्रियां टाप] निन्दा, का पौधा। कलंक, भत्र्सना, अपशब्द -वेणी० 112 / विक्षेपः [वि+छिप्+घञ्] 1. इधर-उधर फेंकना, बखेरना | विहित (भू० क० कृ०) [वि०+गई.+क्त] 1. निन्दित, 2. डालना, फेंकना 3. कर्तव्य निर्वाह करना (विप० फटकारा हुआ, गाली दिया हुआ 2. तिरस्कृत 3. दोषी संहार) --रघु० 5 / 45 4. भेजना, प्रेषण 5. ध्यान ठहराया गया, बुरा भला कहा गया, प्रतिषिद्ध हटाना, हड़बड़ी, व्याकुलता-मा० 16. खटका, भय 4. नीच, दुष्ट 5. बुरा, बदमाश / 7. तर्क का निराकरण 8. ध्रुवीय अक्षरेखा / विगलित (भू० क० कृ०) [वि+गल्+क्त] 1. बूंद बूंद विक्षेपणम् [वि+क्षिप् + ल्युट] 1, फेंकना, डालना, निकाल | चूआ हुआ, मन्द मन्द निःसृत 2. अन्तहित, गया हुआ बाहर करना 2. प्रेषण, भेजना 3. बखेरना, छितराना 3. अपः पतित 4. पिघला हुआ, घुला हुआ 5. तितर4. हड़बड़ी, व्याकुलता। बितर हुआ 6. ढीला किया हुआ, खोला हुआविक्षोनः [वि+शुभ्+घन] 1. हिलाना, हलचल, विक्रम. 4 / 107. खुला हुआ, बिखरा हुआ, अस्त आन्दोलन, वीचि --रघु. 143 2. मन की हलचल, व्यस्त (बाल आदि) (दे० वि पूर्वक 'गल')। ध्यान हटाना, खलबली 3.इन्द्र, संघर्ष / विगानम् [विक्वं गानं प्रा०स०] 1. निन्दा, भर्त्सना, मान For Private and Personal Use Only Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 928 ) हानि, बदनामी 2. परस्पर विरोधी उक्ति, विरोध, हुआ, ढीला किया हुआ, विवृत किया हुआ 3. रगड़ा असंगति (शांकरभाष्य में पौनःपुन्येन प्रयोग)। हुआ, स्पर्श किया हआ 4. हिलाया हआ, बिलोया विगाहः [वि-गाह.+घञ्] डुबकी लगाना, स्नान, / / हुआ 5. चोट पहुंचाया हुआ, आघात किया हुआ। गोता। विघनः [वि+हन्+अप, घनादेशः] मोगरी, हथौड़ा। विगीत (भू० क. कृ.) [वि+गै+क्त] 1. निन्दित, विघसः [वि+अद+अप् घसादेशः] 1. आधा चर्वण किया बुराभला कहा गया, डांटा फटकारा गया 2. विरोधी, हुआ ग्रास, भोज्य पदार्थ का अवशेष या जूठन-विघसो असंगत। भक्तशेषं तु-मनु० 3 / 285, उत्तर०५।६, मा०५।१४ विगीतिः (स्त्री० [ विगै+क्तिन्] 1. निन्दा, बराभला 2. भोजन, सम् मोम / सम०-आशः, आशिन् कहना, झिड़कना 2. परस्पर विरोधी उक्ति, विरोध / / (60) भुक्तशेष या चढ़ावे के जूठन को खाने वाला। विगुण (वि०) [विगतः विपरीतो वा गुणो यस्य व० स० विघातः [ बिहन+घञ्] 1.विनाश, हटाना, दूर करना1. गुणों से शून्य, निकम्मा, बुरा भग०.३।३५, शि० क्रिया दघानां मघवा विघातम---कि० 3 / 52 2. हत्या, 9 / 12, मुद्रा०६।११ 2. गुणों से हीन 3. बिना रस्सी वध 3. बाधा, रुकावट, विघ्न क्रिया विघाताय कथं का-मुद्रा० 711 / / प्रवर्तसे-रघु० 3 / 44, अध्वरविघातशांतये-११११ विगूठ (भू० क० कृ०) [वि+गृह+क्त] 1. भेद, गुप्त, 4. थप्पड़, प्रहार 5. परित्याग करना, छोड़ना / सम० छिपा हुआ 2. निर्भत्सित, निन्दित / -सिद्धि (स्त्री०) बाधाओं का दूर करना / विगृहीत (भू० क० कृ०) [वि०-+-ग्रह -क्त] 1. विभक्त, ! विणित (भू० क० क) [वि --घूर्ण +क्त] लुढ़काया हुआ, भग्न किया हुआ, विश्लिष्ट किया हुआ, (समास के दोलायित, (आखें आदि) चारो ओर घुमाई हुई। रूप में) विघटित -विग्रह किया हुआ 2. पकड़ा हुआ विघृष्ट (भू० के० कृ०) [वि-+धूप--क्त] 1. अत्यंत 3. मुकाबला किया गया, विरोध किया गया (दे० रगड़ा हुआ, घिसा हुआ 2. पीडित / वि पूर्वक प्रह)। | विघ्नः (विरलतः नपुं०) [वि+हन्+क] 1. वाधा, हस्तविग्रहः [वि०+ग्रह +अप] 1. फैलाव, विस्तार, प्रसार क्षेप, रुकावट, अड़चन–कुतो धर्मक्रियाविघ्नः सतां 2. रूप, आकृति, शक्ल 3. शरीर---त्रयी विग्रहवत्येव रक्षितरि त्वयि -श० 5 / 14, 1133, कु० 3 / 40 सममध्यात्मविद्यया--मालवि० 1314, गूढ विग्रहः -- 2. कठिनाई, कष्ट / सम०---ईशः,--ईसानः,-ईश्वरः रघु० 3 / 39, 9 / 52, कि० 4111, 1243 गणेश का विशेषण, वाहनम् चूहा,-कर,-कर्त, 4. पृथक्करण, विघटन, विश्लेषण, वियोजन (यथा कारिन (वि.) विरोध करने ब.ला, अवरोध करने समास के घटक पदों को पृथक् पृथक् करना) वृत्त्यर्थ वाला-ध्वंसः,-विधातः बाधाओं को दूर करना, समासार्थ) बोधकं वाक्यं विग्रहः 5. कलह, झगडा, .-नायकः,-नाशकः, --नाशनः गणेश के विशेषण, (बहुधा प्रणयकलह) विग्रहाच्च शयने पराङ्मवी- -प्रतिक्रिया वाधाओं को दूर करना--रघु० 15 / 3, र्नानुनेतुमबलाः स तत्वरे-रघु० 9 / 38, 9 / 47, शि. -राजः,--विनायकः,-- हारिन् (पुं०) गणेश के 11 / 35 6. संग्राम, शत्रुता, लड़ाई, युद्ध, (विप० विशेषण,-सिद्धिः (स्त्री०) बाधाओं को दूर करना। संधि) नीति के छ: गुणों में से एक दे० गुण विनित (वि०) विघ्न-- इतच वाघायुक्त, अड़चनों से 7. अननुग्रह 8. भाग, अंश, प्रभाग / भरा हुआ, अवरुद्ध, रुकावसहित / विघटनम् [वि+घट् + ल्युट] अलग-अलग करना, बर्बादी, विखः (पुं०) घोड़े का खुर। विनाश / विच् (जहो० रुवा० उभ० वेवेक्ति, वेविक्ते, विनक्ति, विघटिका विभक्ता घटिका यया-ब० स०] समय की विक्ते, विक्त) 1. वियुक्त करना, विभक्त करना, माप, एक घड़ी का साठवां भाग, पल (या लगभग अलग-अलग करना 2. विवेचन करना, विभेद करना, चौबीस सेकेण्ड के बराबर समय)। अन्तर पहचानना 3. वञ्चित करना, हटाना (करण. विघटित (भू० क० कृ०) [ विघट्+क्त] 1. वियुक्त, के साथ)--भट्टि 141103, वि-, 1. वियुक्त करना, अलग-अलग किया हुआ 2. विभक्त / दूर करना -विविनच्मि दिवः सुरान्--भट्टि 6 / 36 विघटनम्,–ना [वि.घट्ट+ल्युट] 1. प्रहार करना, 2. अन्तर पहचानना, विवेचन करना 3. निर्णय करना, टक्कर मारना 2. घिसना, रगडना 3. वियोजन, विगा- निश्चय कर, निर्धारण करनारे खल तव खलु ड़ना, खोलना 5. ठेस पहुंचाना, चोट पहुँचाना। चरितं विदुपामग्रे विविच्य वक्ष्यामि--भामि० 2108 विघट्टित (भू० क० कृ०) विघट+क्त 1. विभक्त / 4. वर्णन करना, वर्ताव करना 5. फाड़ देना। किया हुआ, वियुक्त किया हुआ, अलग-अलग.किया विचकिलः [विच+क, किल+क, क० स०] एक प्रकार हुआ, तितर-बितर किया हुआ-भर्त० 3 / 54 2. खोला | चमेली, मदन नामक वृक्ष / अलग-अलग करना 3. वञ्चित कलात. वियुक्त का For Private and Personal Use Only Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 929 ) विचक्षण (वि०) वि+चक्षु + ल्युट ] 1. स्पष्टदर्शी, / विचिकित्सा [वि+कित्+सन्+अ+टाप् ] 1. सन्देह, दीर्घदर्शी, सावधान 2. बुद्धिमान, चतुर, विद्वान् रधु० ___ शक 2. भूल, चूक। 5 / 19 3. विशेषज्ञ, कुशल, योग्य-रघु० 13 / 69, | बिचित (भू० क. कृ.) [वि+चि+क्त ] खोजा, ---णः विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान् आदमी---न दत्वा तलाशी ली गई। कस्यचित्कन्यां पुनर्दद्याद्विचक्षणः -मनु० 9 / 71 / / विचितिः (स्त्री०) [वि+चि--क्तिन् ] ढूंढना, खोज, विचक्षुस् (वि.) [विगतं विनष्टं वा चक्षुर्यस्य ] अंधा, | तलाश करना / दृष्टिहीन 2. व्याकुल, उदास / विचित्र (वि०) [विशेषेण चित्रम्, प्रा० स०] 1. रंगविचयः[ वि+चि-अप्] 1. खोज, ढूंढ़, तलाशउत्तर. बिरंगा, चितकबरा, चित्तीदार, धब्वेदार 2. नानाविध, 223 2. छानबीन, तहकीकात / " बहुविध 3. रंगलिप्त 4. सुन्दर, मनोहर---क्वचिद्विचित्रं विचयनम् | वि०+चि+ ल्युट् ] खोजना, छानबीन जलयंत्रमंदिरम् ऋतु० श२ 5. आश्चर्ययुक्त, अचंभे करना। वाला, अजीब-हतविधिलसितानां ही विचित्रो विपाकः विचिका [विशेषेण चयंते पाणिपादस्य त्वक विदार्यते -शि 11164, त्रम्-1. बहुरङ्गी रङ्ग 2. आश्चर्य / सम० नया वि+चर्च - ण्वुल-+-टाप, इत्वम् ] खुजली, -अंग (वि०) जितकबरे शरीर वाला, (-17:) 1. मोर विसर्पिका, खाज। 2. व्याघ्र, ----वेह (वि.) मनोहर शरीर वाला (हा) विचित (वि.) [वि+चर्च+क्त ] लेप किया हुआ, बादल,-रूप (वि०) विविध प्रकार का,--वीर्यः एक मला हुआ, मालिश किया हुआ। चन्द्रवंशी राजा का नाम, (यह सत्यवती नामक पत्नी विचल (वि.) [वि+चल+अच् ] 1, इधर उधर घूमने से उत्पन्न राजा शन्तन का एक पूत्र तथा भीष्म का वाला, हिलने वाला, थरथराने वाला, लड़खड़ाने सौतेला भाई था। जब निस्सन्तानावस्था में इसकी वाला, चंचल 2. अभिमानी, घमंडी। मृत्यु हो गई तो इसकी माता सत्यवती ने अपने पुत्र विचलनम् [वि+चल + ल्युट ] 1. स्पन्दन 2. व्यतिक्रम (विवाह होने से पहले ही उत्पन्न) व्यास को बुलाया 3. अस्थिरता, चंचलता 4. अभिमान / और नियोग की विधि से विचित्रवीर्य के नाम पर विचारः[वि+चर+घञ 11. विमर्श, विनिमय, चितन, सन्तानोत्पादन के लिए प्रार्थना की। व्यास ने माता सोच-विचारमार्गप्रहितेन चेतसा-कु० 5 / 42 की आज्ञा का पालन किया और फलतः अम्बिका 2. परीक्षा, विचारविमर्श, गवेषणा, तत्त्वार्थविचार तथा अम्बालिका (उसके भाई की विधवा पत्नियाँ) 3. (किसी बात की) जांच-पड़ताल -मच्छ० 9 / 43 में क्रमश: धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म हुआ)। 4. निर्णय. विवेचन, विवेक, तर्कना--विचारमूढः / विचित्रकः[विचित्र+कप्] भोजपत्र का पेड़,-कम् आश्चर्य, प्रतिभासि मे त्वम् रघु० 2147 5. निश्चय, निर्धा ताज्जुब, अचम्भा। रण 6. चयन 7. संदेह, संकोच 8. दूरदर्शिता, सतर्कता।। विचिन्वरकः [वि+चि-+शतृ+कन्] 1. खोज 2. गवेसम-ज्ञ (वि.) निश्चय करने के योग्य, निर्णायक, षणा 3. शूरवीर। -भः (स्त्री०) 1. न्यायाधिकरण, न्यायासन 2. विशेष विचीर्ण (वि० [वि+च+क्त] 1. अधिकृत, व्याप्त कर यम की न्यायासन, शील (वि०) विचारपूर्ण, 2. प्रविष्ट / सचेत, दूरदर्शी, --स्थलम् 1. न्यायाधिकरण 2. तर्कसंगत | विचेतन (वि०)[विगता चेतना यस्य -प्रा० ब०11.चेतनाचर्चा / रहित, निर्जीव, अचेतन, मतक 2. प्राणहीन / विचारकः [वि.चर --प्रवुल ] छानबीन या तहक़ीक़ात विचेतस (वि.) [विगतं चेतो यस्य-प्रा० ब.] 1. संज्ञाकरने वाला, न्यायाधीश / हीन, मूढ, अज्ञानी 2. व्याकुल, घबड़ाया हुआ, उदास / विचारणम | वि--चर+णिच् + ल्युट ] 1. चर्चा, चिन्तन, | विचेष्टा विशिष्टा चेष्टा प्रा० स०] प्रयत्न, उद्यम, कोशिश / परीक्षा, पर्यालोचन, अन्वेषण 2. संदेह, संकोच / विचेष्टित (भ० क० कृ०) [वि+चेष्ट+क्त] 1. उद्योग विचारणा। वि+चर् +णिच् -- युच्+टाप् ] 1. परीक्षण, किया गया, कोशिश की गई, संघर्ष किया गया विचारविमर्श, गवेषणा 2. पुनर्विचार, सोच-विचार, 2. परीक्षण किया गया, गवेषणा की गई 3. दुष्कृत, चिन्तन 3. संदेह 4. दर्शनशास्त्र की मीमांसापद्धति / मुर्खतापूर्वक किया गया,---तम् 1. कर्म, कार्य 2. प्रयत्न, विचारित (भू० क० कृ.) / वि-+-चर+णिच्+क्त ] आन्दोलन, उद्योग, साहसिक कार्य 3. भावभंगी 1. सोचा गया, पूछताछ की गई, परीक्षा की गई, 4. कार्यकरण, संवेदना, खेल-विक्रम० 2 / 9 5. कूट विचारविमर्श किया गया 2. निश्चित, निर्धारित। प्रबन्ध, षड्यन्त्र / विचिः (पुं०, स्त्री०) विचीः (स्त्री०) [ विच् + इन् स च विन्छ / (तुदा० पर० विच्छति-विच्छयति-ते भी-) कित्, विचि+-डीष् ] लहर, तरंग / जाना, हिलना-जुलना। 117 For Private and Personal Use Only Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 930 ) ii(चुरा० उभ० विच्छयति-ते) 1. चमकना 2. बोलना।। पृथक होना. वियोग 2. ह्रास, क्षय, पतन 3. विचलन विच्छन्दः, विच्छन्दकः [विशिष्टः छन्दोऽभिप्रायो यस्मिन् 4. गर्भसाव, असफलता जैसा कि 'गभंविच्युति' -ब० स०, पक्षे कन् च महल, विशालभवन जिसमें में। कई खण्ड या मजिल हों। विज i (जहो० उभ० वेवेक्ति, वेविक्ते, विक्त) 1. बिच्छर्दकः [वि-+छद्+ण्वुल] महल, प्रासाद, दे० ऊ० वियक्त करना, विभक्त करना 2. भेद करना, अन्तर विच्छंद'। पहचानना, विवेचन करना (प्रायः वि पूर्वक, तथा विच्छन्नम् [वि+छ+ ल्युट्] के करना, उलटी करना, दिपूर्वक विच के समान)। उगलना। ii (तुदा० आ०, रुधा० पर० विजते, विनक्ति, विच्छदित (भू. क. कृ०) [वि.+छद्+क्त] 1. के विग्न) 1. हिलना, कांपना 2. बिक्षब्ध होना, भय से किया हुआ, उगला हुआ 2. जिसकी अवज्ञा की गई कांपना 3. डरना, भयभीत होना-चक्रंद विग्ना हो, जिसकी उपेक्षा की गई हो 3. टूटा-फूटा, न्यूनीकृत। कुररीव भूयः--रघु० 14 / 68 4. दुखी होना, कष्टग्रस्त विच्छाय (वि.)[विगता छाया यस्य-प्रा० ब०] निष्प्रभ, होना, प्रेर० (वेजयतिते) त्रास देना, डराना, धुन्धला,--रत्न० ११२६,-यः मणि, रत्न / आ-, डरना, उद् , भयभीत होना, डरना (प्रायः विच्छित्तिः (स्त्री०)[वि+छिद्+क्तिन] 1. काट डालना, अपा० के साथ, कभी कभी संबं० के साथ) तीक्ष्णादु फाड़ देना-भर्तृ० 3 / 11 2. बांटना, अलग-अलग द्विजते मद्रा० 315, यस्मान्नोद्विजते लोको लोकाकरना 3. अन्तर्धान, अनुपस्थिति, लोप 4. विराम न्लोद्विजते च यः भग० 1215, भट्रि० 7192 2. 5. शरीर को उबटन या रङ्गलेप से रङ्गना, रङ्ग खिन्न या कष्टग्रस्त होना, दुःखी होना न प्रहृष्यत्प्रियं चित्रण, महावर-श. 75, शि. 1684 6. सीता प्राप्य नोद्विजेत् प्राप्य चाप्रियम् भग०५।२० 3.ऊबना (घर आदि की) हद 7. कविता में विराम, यति (अपा० के साथ) जीविताद्विजमानेन मा० 3, 8. विशेष प्रकार की शृङ्गारप्रिय भावभंगिमा, जिसमें मनो नोद्विजते तस्य दहतोऽर्थमहर्निशम, उद्विनक्ति वेशभूषा के प्रति उपेक्षा भी सम्मिलित हो (अपने तु संसारादसारातत्त्ववेदिनः .- कवि० 4. डराना, व्यक्तिगत सौन्दर्य के अभिमान के कारण)-स्तोकाप्या कष्ट देना, (प्रेर०). 1. कष्ट देना, तंग करना- कु० कल्परचना विच्छित्ति: कांतिपोषकृत् -सा० द० 115, 11 2. डराना। 138 / विजन (वि.) [ विगतो जनो यस्मात् .. ब. स.] विच्छिन्न (भू० क. कृ.)[ वि+छिद्+क्त ] 1. फाड़ा | अकेला, सेवानिवृत्त, एकाकी, नम एकान्त स्थान, हुआ, काटा हुआ 2. तोड़ा हुआ, पृथक् किया हुआ, - सुनसान स्थान (विजने निजी रूप से) / विभक्त, वियुक्त अर्धे विच्छिन्नम् श० श९ 3. | विजननम् [वि+जन्+ल्युट ] जन्म प्रसृष्टि, प्रसव / हस्तक्षेप किया गया, रोका गया 4. अन्त किया गया, विजन्मन् (वि. या पुं०) [विरुद्ध जन्म यस्य - प्रा० बन्द किया गया, समाप्त किया गया 5. चितकबरा व.] हरामी, जो अवैधरूप से उत्पन्न हआ है। 6. गुप्त 7. उबटन आदि रंगलेप से पोता गया (दे० विजपिलम् [विज्+क, पिल+क, कर्म० स ] गारा, वि पूर्वक छिद्)। / कीचड़। विच्छुरित (भू० क० कृ०) [ विच्छुर्+क्त ] 1. ढका | विजयः [वि+जि+घञ्] 1. जीतना, हराना, परास्त करना गया, ऊपर ले फैलाया गया, पोता गया 2. जड़ा गया 2. जीत, फतह, जय यात्रा-कि० 10 // 35, रघु०१२।४४, 3. लीपा गया, पोता गया। कु० 3 / 19, श० 2 / 14 3. देवताओं का रथ, दिव्य विच्छेवः [ विछिद+घञ 11. काट डालना, काटना, रथ 4. अर्जुन का नाम -- महा० नाम की व्याख्या विभक्त करना, वियोग-मा० 6.11 2. तोड़ना-शि० करता है-अभिप्रयामि संग्रामे यदहं युद्धदुर्मदान, नाजित्वा 651 3. रोक, हस्तक्षेप, विराम, बन्द कर देना विनिवामि तेन मां विजयं विदुः 5. यम का -विच्छेदमार भुवि यस्तु कथाप्रवंधः का०, पिड- विशेषण 6. ब्रहस्पति की दशा का प्रथम वर्ष 7. विष्ण विच्छेददर्शिनः ..रघु० 1166 4. हटाना, प्रतिषेध के सेवक का नाम। सम०--अभ्युपायः विजय का 5. फूट अनबन 6. पुस्तक का अनुभाग या परिच्छेद साधन या उपाय,---कुंजरः लड़ाई का हाथी,-छंदः 7. अन्तराल, अवकाश / पाँचसी लड़ी का हार,-डिडिमः सेना का विशाल ढोल, विच्युत (भू. क० कृ०) [वि+च्यु+क्त ] 1. अध: --- नगरम् एक नगर का नाम,-मर्दल: एक विशाल पतित, नीचे गिरा हुआ 2. विस्थापित, पातित 3. सैनिक ढोल,-सिद्धिः (स्त्री०) सफलता, जीत, फतह / व्यतिक्रांत, पथविचलित / विजयंतः (पुं०) इन्द्र का नाम / विच्युतिः (स्त्री०) [वि+च्यु--क्तिन् ] 1. अघः पतन, विजया [ विजय+टाप् ] 1. दुर्गा का नाम 2. उसकी सेवि For Private and Personal Use Only Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 931 ) काओं में से एक -मुद्रा० 11 3. एक विशेष विद्या | विजुलः[ विज-+-उलच ] शाल्मलि या सेमल का पेड / जो विश्वामित्र ने राम को सिखाई थी-भट्टि० 2 / 21 / विजृम्भणम् [ वि+जृम्भ + ल्युट्] 1. मुंह फाड़ना, जम्भाई 1. भांग 5. एक उत्सव का नाम विजयोत्सव, दे० नी० लेना 2. बौर आना, कली आना, खिलना, उन्मुक्त 6. हरीतकी। सम०-उत्सवः दुर्गादेवी के सम्मान होना, बनेष सायंतनमल्लिकानां विज़म्भणोद्गंधिषु में उत्सव जो आश्विन शुक्ला दशमी के दिन मनाया कुड़मलेषु ...रघु० 16 / 47 3. दिखलाना, प्रदर्शन जाता है, -दशमी आश्विनशुक्ला दशमी। करना, खोलना 4. फैलाना 5. मनोरंजन, आमोदविजयिन् (पुं०) [वि+जि- इनि विजेता, जीतने वाला। प्रमोद, रंगरेलियां। विजरम् [ विगता जरा स्मात् -प्रा० ब०] वृक्ष का तना। | विम्भित (भू० क० कृ०) [वि.-जुम्भ+क्त ] विजल्पः [वि.+-जल्प+घा 11. बाल कलरव, ऊटपटांग 1. मुंह फाड़ा, जम्भाई ली-मच्छ० 5 / 51 2. उद्घाटित, या मूर्खतापूर्ण बात 2. सामान्य वार्ता 3. दुर्भावनापूर्ण विकसित, फैलाया हुआ 3. प्रदर्शित, दिखाया गया, या विद्वेषपूर्ण भाषण / / प्रकट किया यया--रघु० 7 / 42 4. दर्शन दिये गये विजल्पित (भू० क० कृ०)] वि+जल्+क्त ] 1. कहा 5. खेला गया,-तम् 1. क्रीड़ा, मनोरंजन 2. अभि गया, जिससे बातें की गई 2. भोली भाली बात, बाल लाषा, इच्छा 3. प्रदर्शन, प्रदर्शनी-अज्ञानविज भितसुलभ तुतलाहट / मेतत् 4. कृत्य, कर्म, आचरण-मा० 10 // 21 / विजात (भू० क० कृ०) [विरुद्धं जातं जन्म यस्य-प्रा० विजनम्, लम् [विध+जन (जड़ - डलयोरभेदः) ब.] 1. नीच कुलोत्पन्न, वर्णसंकर 2. उत्पन्न, जन्मा +अच् ] 1. एक प्रकार की चटनी, दे० 'विजुल' हुआ 3. रूपान्तरित, ता माता, मातृका वह स्त्री 2. तीर, बाण। जिसके अभी सन्तान हुई हो। विज्जलम् (नपं0) दारचीनी / विजातिः (स्त्री० [विभिन्ना जातिः प्रा० स०] 1. भिन्न विज्ञ (वि.)[वि+ज्ञा+क11. जानने वाला, प्रतिभा मूल या जाति 2. भिन्न प्रकार, जाति, या कुटुम्ब / वान्, बुद्धिमान्, विद्वान् 2, चतुर, कुशल, प्रवीण, विजातीय (वि.) [विजाति+छ] 1. भिन्न प्रकार या -शः बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष / जाति का, असमान, विषम 2. भिन्न वर्ण या जाति का विज्ञप्त (भू. क. कृ.) [विज्ञप्+क्त ] सादर 3. मिली जुली जाति का। कहा गया, प्रार्थित / विजिगीषा | बि+जिसन-1-अ+टाप ] 1. जीतने की विज्ञप्तिः[विज्ञप+क्तिन ] 1. सादर उक्ति या समा या विजय प्राप्त करने की इच्छा 2. आगे बढ़ने की | चार, प्रार्थना, अनुरोध 2. घोषणा / इच्छा, प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, महत्त्वाकांक्षा। विज्ञात (भू० क० कृ०) [वि+जा+क्त ] 1. विदित, विजिगीषु (वि०) [वि+जि+सन्+उ] 1. जीत का जाना हुआ, प्रत्यक्ष ज्ञान किया हुआ 2. विख्यात, इच्छुक, विजय करने की इच्छा वाला यशसे विजि- विश्रुत, प्रसिद्ध / गोषणा --रघ०१७ 2. प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षी,-यु: विज्ञानमा विज्ञा--ल्यट] 1. ज्ञान, बद्धिमत्ता, प्रज्ञा, 1. योद्धा, शूरवीर 2. प्रतिद्वन्दी, झगड़ाल, प्रतिपक्षी। समझ,-विज्ञानमयः कोशः, 'प्रज्ञा का म्यान' (आत्मा विजिज्ञासा [ वि+-ज्ञा+सन्+आ ] स्पष्ट जानने की के पांच कोशों में से पहला) 2. विवेचन, अन्तर इच्छा / पहचानना 3. कुशलता, प्रवीणता प्रयोगविज्ञानम् विजित (भू० क० कु०) [वि+जि+क्त ] परास्त किया -श० 122 4. सांसारिक या लौकिक ज्ञान, सांसारिक हुआ, जोता हुआ, जिसके ऊपर विजय प्राप्त की गई अनुभव से प्राप्त ज्ञान (विष० 'ज्ञानम्' ब्रह्म या हो, हराया हुआ। सम० -आत्मन् (वि०) जिसने परमात्मविषयक जानकारी)- भग० 3 / 41, 72, अपनी वासनाओं का दमन कर दिया है, जितेन्द्रिय, (भग० का समस्त सातवां अध्याय ज्ञान और विज्ञान -----इन्द्रिय (वि.) जिसने इन्द्रियों का दमन कर दिया की व्याख्या करता है) 5. व्यवसाय, नियोजन है, या नियन्त्रण कर लिया है। 6. संगीत / सम० - ईश्वरः याज्ञवल्क्य स्मृति की विजितः (स्त्री०) [वि---जि--क्तिन ] जीत, फतह, मिताक्षरा नामक टीका का प्रणेता, पावः व्यास का विजय काव्या० 3 / 85 / नाम, भातकः बुद्ध का विशेषण, वादः ज्ञान का विजिनः---नम् (लः,--लम्) [विज्-+ इनच्, इलच् वा] | सिद्धान्त, बद्ध द्वारा सिखाया गया सिद्धान्त / चटनी (कांजी मिश्रित)। / विज्ञानिक (वि.) [विज्ञान+टन् ] बुद्धिमान, विद्वान विजिह्म (वि.) विशेपेण जिह्म:--प्रा० स०] 1, कुटिल दे० 'विज्ञ'। झुका हुआ, मुड़ा हुआ—कि० 1121, रघु० 19 / 35 विज्ञापकः [ वि+ज्ञा+-णिच् --- वुल, पुकागमः ] 1. सूचना 2.बेईमान / देने वाला 2. अध्यापक, शिक्षक। For Private and Personal Use Only Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 932 ) विज्ञापनम्,-ना [वि+जा+णि+ल्युट्, पुकागमः ] | विटपिन् (पुं०) [विटप +-इनि] 1. वृक्ष परितो दृष्टाश्च 1. शिष्ट उक्ति या संवाद, प्रार्थना, अनुरोघ-काल- विटपिनः सर्वे - भामि० श२१, 29 2. वटवृक्ष, प्रयुक्ता खलु कार्यविद्धिविज्ञापना भर्तृषु सिद्धिमेति ! गूलर | सम-मृगः बन्दर, लंगूर।। -कु. 7.93, रघु० 17 / 40 2. सूचना, वर्णन | विट्ट () लः (पुं०) विष्णु या कृष्ण का रूप (बंबई 3. शिक्षण। प्रान्त में स्थित पंढरपुर में इस रूप की पूजा विज्ञापित (भू. क. कृ०) [वि+ज्ञा+णिच्+क्त, __ होती है)। पुकागमः] 1. शिष्टतापूर्वक कहा हुआ या संवाद दिया विठङ्क (वि.) बुरा, दुष्ट, अधम, नीच / हुआ 2. प्राथित 3. संसूचित 4. शिक्षित / विठरः (पुं०) बृहस्पति का नाम / विज्ञाप्तिः [विज्ञा+णि+क्तिन्, पुकागमः ] दे० विड़ (भ्वा० पर० वेडति) 1. अभिशाप देना, दुर्वचन विज्ञप्ति। कहना, बुरा भला कहना 2. जोर से चिल्लाना। विज्ञाप्यम् [वि+ज्ञा+णिच्+यत्, पुकागमः ] प्रार्थना | विडम् [विड्+क] एक प्रकार का कृत्रिम नमक। -उत्तर० 1 / विडंगः,-गम् [विड्+अंगच] एक प्रकार का शाक, विज्वर (वि.) [ विगतो ज्वरो यस्य-ब० स०] ज्वर से | बायबिडंग (कृमिनाशक, औषधि के रूप में बहुधा मुक्त, चिन्ता या दुःख से मुक्त / प्रयुक्त)। विजामरम् (नपुं०) आँखों की सफेदी, नेत्रों का श्वेत / विडम्बः [विडम्ब+अप्] 1. नकल 2. दुःखी करना, तंग भाग। करना, कष्ट देना। बिजोलि.,-लो (स्त्री०) [विज+उल, पृषो० साधुः] विडम्बनम,-- ना [विडंब+ ल्युट 1. नकल 2. छपवेश, रेखा, पंक्ति। छलमुद्रा 3. धोखेबाजी, जालसाजी 4. क्लेश, संताप बिट (म्वा० पर० वेटति) 1. ध्यान करना 2. अभिशाप 5. पीडित करना, दुःख देना 6. निराश करना 7. देना, दुर्वचन कहना। मजाक, उपहास, परिहासविषय- इयं च तेऽन्या विटः [विट+क] 1. जार, यार, उपपति-मा० 858, | पुरतो विडंबना-कु०५।७०, असति त्वयि बारुणीमदः शि० 4 / 48 2. लंपट, कामुक 3. (नाटकों में) प्रमदानामधुना विडंबना-४११२ / किसी राजा या दुश्चरित्र' युवक का साथी, किसी विडंबित (भू० क० कृ०) विडंब्+क्त] 1. अनुकरण ऐसी वेश्या का साथी, जिसको गायन, संगीत तथा किया गया, नकल किया गया, परिहास किया गया, कविता निर्माण की कला में कुशलता प्राप्त हो, मजाक बनाया गया 3. ठगा गया 4. क्लेश पहुंचाया नायक पर आश्रित परान्नभोजी जो विदूषक का कार्य गया, संतप्त किया गया 5. हताश गिया गया 6. करे-दे० मुच्छ० अंक -1, 5 ब 8) परिभाषा के नीच, कमीना, दीन / लिए दे० सा० द० 78 4. धूर्त, ठग 5. गांडू, इल्लती | विडारकः [विडाल-कन्, लस्य रः] विलाव / 6. चूहा 7. खैर या खदिर का पेड़ 8. नारंगी का | विडालः, विडालकः (पुं०) दे० बिडाल, बिडालक / पेड़ 9. पल्लवयुक्त शाखा / सम० --माक्षिकम् एक | बिडीनम [वि+डी+क्त] पक्षियों की एक उड़ानविशेष / प्रकार का खनिजपदार्थ, सोनामाखी, -- लवणम् रोग- दे० डीन। नाशक नमक। | विलः [विड्+कुलन्] एक प्रकार की बेत / विटाविशेषेण टंक्यते बध्यते इति-वि+टंक+घञ्] विरजम् [विज्र-+जन्+ड] वैदूर्य, नीलम / 1. चिड़िया-धर, कबूतर का दरबा 2. सबसे ऊंचा विडो (डौ) जस् (0) [विट् व्यापकम् ओजो यस्य सिरा, कलश य किंगूरा, ऊंचाई-अयमेव महीधर ___-ब० स०] इन्द्र का नाम, दे० 'बिडोजस'। विटंक:-मा० 10, विक्रम० 5 / 77 / वितंसः [वि+तंस्+घञ्] 1. पक्षियों का पिंजरा विटड्का [विटंक+कन्] दे० विटंक / 2. रस्सी, शृंखला, जाल या जंजीर आदि जिनसे विटान्त (वि.) [वि+टंक+क्त चिहित, मुद्रांकित / | बनैले पशु-पक्षी कैद किये जाय / विटपः [विटं विस्तारं वा पाति पिबति-पा+क] 1. | वितंडः [वि+तंड्+अच्] 1. हाथी 2. एक प्रकार का शाखा, (लता या वृक्ष की) टहनी - कोमलविटपानु- ताला या चटखनी। कारिणी बाहू - श० श२१, 31, यदनेन तरुन पातितः वितंडा [वितंड+टाप] 1. सदोष आक्षेप, निराधार छिद्राक्षपिता तटिपाश्रिता लता-रघु० 847, शि. न्वेषण, ओछा तर्क, निरर्थक तर्कवितर्क --~स (जल्पः) 4 / 48, कु० 6 / 41 2. झाड़ी 3. नया अंकुर या | प्रतिपक्षस्थापनाहीनो वितंडा---गौत० 2. तूतू-मैंमें, किसलय --शि० 7.53 4. गुल्म, झुण्ड, झुरमुट दोषपूर्ण आलोचना 3. चम्मच, युवा 4. गुग्गुल, धूप / 5. विस्तार 6. अंडकोष पटल / / वितत (भू० क० कृ०) [वि+तन्+क्त] 1. फैलाया For Private and Personal Use Only Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हआ, विस्तृत किया हुआ, बिछाया हुआ 2. आयत, 3 / 50 3. गद्दी 4. संग्रह, परिमाण, समवाय--कि० विशाल, विस्तीर्ण 3. सम्पन्न, निष्पन्न, कार्यान्वित 17461, मा० 6 / 5 5. यज्ञ, आहुति—वितानेष्वप्येवं -विततयज्ञः श० 7.34 4. ढका हुआ 5: प्रसृत तव मम च सोमे बिधिरभूत---वेणी०६।३०, 3 / 16, -दे० वि पूर्वक तन्,--तम् कोई भी ऐसा उपकरण शि० 14 / 10 6. यज्ञ की वेदी 7. ऋतु, मौसम, -- नम् जिसमें तार लगे हों वीणा आदि / सम * धन्वन अवकाश, विश्राम। (वि.) जिसने अपने धनुष को पूरी तरह तान वितानकः, -कम् [वितान+कन्] 1. प्रसार 2. ढेर, लिया है। परिणाम, संग्रह राशि शि० 316 3. शामियाना, विततिः (स्त्री०) [वि+तन् -क्तिन्] 1. विस्तार, प्रसार चंदोवा 4. माड नामक वृक्ष / / 2. परिमाण, संग्रह, गुल्म, झुण्ड 3. रेखा, पंक्ति-मा० वितीर्ण (भू० क० कृ०) [वि+त+क्त] 1. पार किया 9 / 47 / हुआ, पास से गुजरा हुआ 2. दिया हुआ, अर्पित, वितथ (वि.) [वि+तन्+क्थन्] 1. झूठ, मिथ्या-आज प्रदत्त - शि० 7 / 67, 1765 3. नीचे गया हुआ, न्मनो न भवता वितथं विलोक्तम् - वेणी 3 / 13, अवतरित रघु० 6177 4. ढोया गया 5. दमन किया 5 / 41, रघु० 98 2. व्यर्थ, निरर्थक-यथा 'वितथ- गया, जीत लिया गया (दे० वि पूर्वक त)। प्रयत्न' में। वितुम्नम् [वि०+तुद्+क्त] 1. 'सुनिषण्णक' नामक शाक, वितश्य (वि.) [वितथ-+ यत् मिथ्या, दे० ऊपर / सुसना 2. शैवाल नाम का पौधा, सेवार / वितः (स्त्री०) [वि+तन्+रु, दुट्] पंजाब की एक | वितनकम [वितन्न+कन। 1. धनिया 2. तृतिया, कः नदी का नाम, वितस्ता या झेलम नदी। तामलको नामक पौधा। वितंतुः (पुं०) अच्छा घोड़ा स्त्री० विधवा / वितुष्ट (भू० क० कृ०) [वि+तुष्+क्त] असन्तुष्ट, वितरणम् [वि+तु-+ल्युट्] 1. पार जाना 2. उपहार, दान अप्रसन्न, सन्तोष से शून्य / ___3. छोड़ देना, त्याग करना, तिलांजलि देना / वितृष्ण (वि.) [विगता तृष्णा यस्य प्रा० ब०] इच्छा से वितर्कः [वि+तर्क / अच्[ 1. युक्ति, दलील, अनुमान मुक्त, सन्तुष्ट / 2. अन्दाज अटकल, कल्पना, विश्वास -- शिरीषपुष्पा- | वित्त / चुरा० उभ० वित्तयति-ते, कुछ के मतानुसार धिकसौकुमायाँ बाह तदीयाविति मे वितर्कः--कु० | वित्तापयति-ते भी) पुरस्कार देना, दान देना। 1141 3. उद्भावन, चिन्तन ---भर्त०३।४५ 4. सन्देह, / | वित्त (भू० क० कृ०) [विद् लाभे+क्त] 1. पाया, खोजा कि० 4.5, 1312 5. विचारविनिमय, विचारविमर्श / 2. लब्ध, अवाप्त 3. परीक्षित, अनुसंहित 4. विख्यात, वितर्कणम् [वि-+-तर्क + ल्युट] 1. तर्क करना 2. अटकल प्रसिद्ध, - त्तम् 1. धन दौलत जायदाद, संपत्ति, द्रव्य करना, अन्दाज लगाना 3. सन्देह 4. तर्क वितर्क। 2. शक्ति। सम०-आगमः,-उपार्जनम् धन का विदिः,---विदिका, (स्त्री० [वि+तर्द +इन्, अधिग्रहण, ईशः कुबेर का विशेषण, भग० 10123, वितदि--डीप, विदि+कन+टाप] 1. आंगन में | मनु ७।४,-दः दानी, दाता, मात्रा संपत्ति / / बना हुआ चौकोर चबूतरा 2. छज्जा, बरामदा। वित्तवत् (वि.) [वित्त+मतुप्] धनवान्, दौलतमंद / विर्ताद्धः,-, विद्धिका (स्त्री०) दे० विदि आदि / विति (स्त्री० [विद-क्तिन] 1. ज्ञान 2. निर्णय, वितलम् [विशेषेण तलम्-प्रा०स०] पृथ्वी के नीचे स्थित विवेचन, चिन्तन 3. लाभ, अधिग्रहण 4. संभावना / सात तलों में से दूसरा--दे० पाताल या लोक / वित्रासः [ वित्रस्+घञ्] भय, खटका, त्रास या डर / वितस्ता (स्त्री०) पंजाब की एक नदी जिसको यनानी वित्सनः [क्दि+क्विय, सन्+अच] बैल, साँड / Hydispes कहते हैं तथा जो आजकल 'झेलम' या विथ (म्वा० आ० वेयते) प्रार्थना करना, निवेदन करना। 'वितस्ता' के नाम से विख्यात है। विथरः [व्यथ--उरच, संप्रसारणं च] 1. राक्षस 2. चोर / वितस्तिः [वि+तस्+ति बारह अंगुल की लम्बाई की। विद (अदा० पर० वेत्ति या वेद, विदित, इच्छा० विवि माप (हाथ को पूरा फैला कर अंगूठे से कन्नो अंगुली दिषति) 1. जानना, समझना, सीखना, मालूम करना, तक की दूरी)। निश्चय करना, खोजना --अवैल्लवणतोयस्य स्थिता वितान (वि.) [वि-तन्---घ] 1 खाली, रीता 2. सार- दक्षिणतः कथम् -भट्टि० 8 / 106, तं मोहांधः कथमय 3. हतोत्साह, उदास-रघु० 4186 4. बुद्ध, जड ममुं वेत्तु देवं पुराणम् -- वेणी० 1123, 3 / 39, श० 5. दुष्ट, परित्यक्त - नः, नम् 1. फैलाना, प्रसार 5 / 27, भग० 435, 18 / 1 2. महसूस करना, करना, विस्तार करना-शि० 11128 2. शामियाना, अनुभव करना - मुद्रा० 3 / 4 3. मुंह ताकना, सम्मान चंदोवा....विद्युल्लेखाकनकरुचिरश्रीवितानं ममाभ्रम - करना, मानना, जाना, समझना विद्धि व्याधिव्याल विक्रम० 4 / 13, रघु० 19 // 39, कि० 3342, शि० / प्रस्तं लोकं शोकहतं च समस्तम्- मोह. 5, भग For Private and Personal Use Only Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करना-किमिति 621, भट्टि° श 2. समझदारी। भोजन जिसके खान 0 176310) जतलाना, 2117, रघु० 3139, मनु० 1133, कु० 6 / 30, प्रेर०। गर्वस्तस्य न विद्यते, वित्ते धर्म सदा सद्धिस्तेष ---(वेदयति-ते) 1. जतलाना, सूचना देना, सूचित पूजां च विदति ) / करना, अवगत कराना, बताना 2. अध्यापन विद् (वि.) [विद्+क्विपू] (समास के अन्त में) जानने करना, व्याख्या करना,-वेदार्थस्वानवेदयत्-सिद्धा० वाला, जानकार, वेदविद् आदि, (पुं०) 1. बुधग्रह 3. महसूस करना, अनुभव करना -मनु० 12113, 2. विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान मनुष्य ... (स्त्री०) 1. ज्ञान आ-, (प्रर०) 1. घोषणा करना, कहना, प्रकथन 2. समझ, बुद्धि। करना-किमिति नावेदयति अथवा किमावेदितेन- | विवः [ विद्+क] 1. विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान मनुष्य, वेणी० 1, रघु० 12155, कु० 6 / 21, भट्टि० 3149 पंडितजन 2. बुधग्रह, दा 1. ज्ञान, अधिगम 2. प्रदर्शन करना, दिखाना इंगित करना-आवेदयंति प्रत्यासनमानंदमग्रजातानि शुभानि निमित्तानि-का० | विदंशः [वि+दंश्+घञ 1 चटपटा भोजन जिसके खाने 3. प्रस्तुत करना, देना, नि-, (प्रेर०) 1. बताना, से प्यास अधिक लगे। समाचार देना, सूचित करना (संप्र. के साथ)-रघु० विदग्ध (भू० क० कृ०) [वि+दह+क] 1. जला 2168 2. अपनी उपस्थिति की घोषणा करना-कथ हुआ, आग से भस्म हुआ 2. पका हुआ 3. पचा हुआ मात्मानं निवेदयामि-श० 1 3. इंगित करना, 4. नष्ट किया हुआ, गला-सड़ा 5. चतुर, कुशाग्रबुद्धि, दिखलाना -- दिगंबरत्वेन निवेदितं वसु-कु० 5 / 72 निपुण, सूक्ष्मदर्शी 6. धूर्त, कलाभिज्ञ, षड्यंत्रकारी 4. प्रस्तुत करना, उपस्थित होना, भेंट चढ़ाना-मनु० 7. अनजला या अनपचा,-धः 1. बुद्धिमान या विद्वान 2151, याज्ञ. 1227 5. देख रेख में सौंपना, दे देना, पुरुष, विद्याव्यसनी 2. स्वेच्छाचारी,-ग्धा चालाक, प्रति-(प्रेर०) समाचार देना सूचित करना, सम्-, चतुर स्त्री, कलाविद् स्त्री। (आ०) जानना, सावधान होना--भट्टि० 5 / 37. विदयः [विद्+कथच् ] 1. विद्वान् पुरुष, विद्याव्यसनी 8 / 17 2. पहचानना, (प्रेर०) जतलाना, प्रत्यक्ष ज्ञान 2. संन्यासी, मुनि।। विवरः [वि++अप् ] तोड़ना, फटना, विदीर्ण होना, ii (दिवा० आ० विद्यते, वित्त) होना, विद्यमान होना -रम् कांटेदारी नाशपाती, ककारी वृक्ष। -अपापानां कुले जाते मयि पापं न विद्यते -मच्छ० विवर्भाः (पु०, ब० व०) [ विगता दर्भाः कुशा यतः ] 9 / 37, नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः 1. एक जिले का नाम, आधुनिक बरार-अस्ति विदर्भो भग०२।१६ (तु० 'अस्')। नाम जनपद:-दश०, अस्ति विदर्भेषु पद्मपुरं नाम iii (तदा० उभ० विदति-ते, वित्त) 1. हासिल करना नगरम् -- मा० 1, रघु० 5 / 40, 60, नै० 1150 प्राप्त करना, अवाप्त करना, उपलब्ध करना---एकम 2. विदर्भ के निवासी,-भः 1. विदर्भ देश का राजा प्यास्थितः सम्यगुभयोविंदते फलम् -भग० 5 / 4, 2. सूखी या मरुभूमि / सम० ---जा,-तनया, याज्ञ० 31192 2. मालम करना, खोजना, पहचानना, -----राजतनया,---सुभ्रः विदर्भ- राज की पुत्री दमयन्ती यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो विदति मातरम्-सुभा०, के विशेषण / कु० श६, मनु०८।१०९3. महसूस करना, अनुभव विवल (वि.) [विघट्टितानि दलानि यस्य वि+दल करना-रघु० 14156, भग० 5 / 21, 1124, 18 +क] 1. टुकड़े टुकड़े हुए, आरपार चीरा हुआ 45 4.विवाह करना-मनु० 9 / 69, अनु-, 1. हासिल 2. खुला हुआ, (फूल आदि) खिला हुआ, ल: 1. करना, प्राप्त करना 2. भुगतना, अनुभव करना, विभक्त करना, अलग अलग करना 2. फाड़ना, टुकड़े महसूस करना-पाय मंदमते कि वा संतापमन विंदसि टुकड़े करना 3. रोटी 4. पहाड़ी आबनूस, - लम् 1. -भामि० 21112, गीत०४। बाँस की खपचियों की बनी टोकरी, या लचीली iv (रुघा० आ० वित्ते, वित्त या विन्न) 1. जानना, डालियों की बनी बस्तुएँ 2. अनार की छाल 3. टहनी समझना 2. मानना, लिहाज करना, समझना-न 4. किसी द्रव्य की फाँक / तणेह्रीति लोकोऽयं वित्त मां निष्पराक्रमम्-भट्रि० विवलनम् [वि+दलल्युट ] खण्ड खण्ड करना, फाड़ 6139 3. मालूम करना, भेंट होना 4. तर्क करना, / कर अलग अलग करना, काटना, विभक्त करन। विमर्श करना 5. परीक्षण करना, पूछताछ करना।। विदारः [वि++घञ ] 1. फाड़ना, चीरना, खण खण्ड v (चरा. आ. वेदयते) 1. कहना, प्रकथन करना, करना 2. संग्राम, युद्ध 3. (किसी नदी याड तालाब घोषणा करना, समाचार देना 2. महसूस करना, अनु- का) ऊपर से बहना, जलप्लावन / भव करना 3. रहना (निम्नांकित श्लोक में धातु के | विदारकः [वि++ण्वुल ] 1. फाड़ने वाला, बाँटने वाला विभिन्न रूपों का उल्लेख है----वेत्ति सर्वाणि शास्त्राणि | 2. नदी की धार के मध्य में स्थित वृक्ष या चटान i (दिवा० For Private and Personal Use Only Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 935 ) (जो नदी के मार्ग को विभक्त कर दे)। बार उन्हें अनेक संकटग्रस्त विपत्तियों से बचाया)। 3. किसी शुष्क नदी के पाट में पानी के लिए बनाया | विदुलः [वि+दुल+क] 1. एक प्रकार का कान्ना, बेंत गया छिद्र / 2. लोबान की तरह का एक सुगंधित गंधरस / विदारणः [वि++णिच् + ल्युट ] 1. नदी के मध्य में विदून (भू. क. कृ०) [वि+दू+क्त कष्टग्रस्त, संतप्त, स्थित चट्टान या वृक्ष (जिससे नाव बाँध दी जाय) दु:खी (दे० वि पूर्वक दु')। 2. संग्राम, युद्ध 3. कर्णिकार या कनियर का वृक्ष, विदूर (वि.) [विशेषण दूर: प्रा० स०] जो बहुत दूर हो, -----णा संग्राम, युद्ध, णम् 1. फाड़ना, खण्ड खण्ड दूरस्थित-सरिद्विदूरांतरभावतन्वी-रघु० 13148, करना, चीरना, छिन्न करना, तोड़ना--श्रुतं सखे -: पहाड़ का नाम जहां से वैदूर्यमणि निकलती हैश्रवणविदारणं वचः--मुद्रा० 5 / 6, युवजनहृदयविदा- विदूरभूमिर्नवमेघशब्दादुद्भिन्नया रत्नशलाकयेव-कु० रणमनसिजनखरुचिकिशुकजाले -गीत०१, कि० 14 / 1124, दे. इस पर तथा शि० 3145 पर मल्लि. 54. (यहाँ 'विदारण' विशेषण का कार्य करता है) विदूरम्, विदूरेण, विदूरतः, विदूरात् शब्द क्रिया 2. कष्ट देना, सन्ताप देना 3. बघ, हत्या / विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर 'दूर से' 'दूरी पर' विवारः [वि+द+णि+3] छिपकली। 'दूर' अर्थ को प्रकट करते हैं। सम० -ग (वि०) विदित (भ० क० कृ०) [ विद+क्त ] 1. ज्ञात, समझा दूर दूर तक फैला हुआ, -जम् वैदूर्य मणि / / हुआ, सीखा हुआ 2. सूचित 3. विश्रुत, विख्यात, | विदूषक (वि०) (स्त्री०-की) [विदूषयति स्वं परं वा-वि प्रसिद्ध भुवनविदिते वंशे-मेघ० 64. प्रतिज्ञात, +दूष+णिच् +ण्वुल] 1. दूषित करने वाला, मलिन इकरार किया हुआ,-तः विद्वान पुरुष, विद्याव्यसनी, करने वाला, छूत फैलाने वाला, भ्रष्ट करने वाला -तम् ज्ञान, सूचना / 2. बदनाम करने वाला, गाली-गलौज बकने वाला विविश (स्त्री०) [ दिग्भ्यो विगता] दो दिशाओं का 3. रसिक, मसखरा, ठिठोलिया,--क: 1. हंसोड़, भांड, मध्यवर्ती बिन्दु / परिहासक 2. विशेषतः नाटक में नायक का दिल्लगीविदिशा (स्त्री०) दशार्ण नामक प्रदेश की राजधानी बाज साथी और अन्तरंग मित्र जो अपनी अनोखी (वर्तमान भेलसा नगर) तेषां - (दशार्णानां) दिक्ष वेशभूषा, बातचीत, हावभाव, मुखमद्रा आदि से तथा प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीम् -मेघ० 24 2. अपने आपको परिहास का पात्र बना कर उल्लास में मालवा प्रदेश की एक नदी का नाम 3. -विदिश वृद्धि कसता है, सा० द० 79 पर दी गई परिभाषा ---..कुसुमवसंताद्यभिधः कर्मवपूर्वेशभाषायैः, हास्यकरः विदीर्ण (भ० क. कृ०) [वि-+-+क्त ] 1. फाड़ा कलहरतिविदूषकः स्यात्स्वकर्मज्ञः 3. स्वेच्छाचारी, हुआ,खण्ड खण्ड किया हुआ, विदारण किया हुआ, लंपट। फाड़ कर खोला हुआ 2. खोला हुआ, फैलाया हुआ | विदूषणम् [वि+दूष्+ ल्युट्] 1. मलिनीकरण, भ्रष्टाचार (दे० विपूर्वक 'दृ')। 2. दुर्वचन, झिड़की, परिवाद / वितुः [ विद्+कु] हाथी के गंडस्थल का मध्य भाग, विवृतिः [वि++क्तिन्] सीवन, सन्धि / हाथी का ललाट, (हस्तिकुंभमध्यभागः)। विदेशः विप्रकृष्टो देशः प्रा० स०] दूसरा देश, परदेश - - विदुर (वि०) [विद्+कुरच ] बुद्धिमान, मनीषी, --रः भजते विदेशमधिकेन जितस्तदनुप्रवेशमथवा कुशल: बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष 2. धूर्त आदमी, षड्यन्त्र- —शि० 9 / 48 / सम० ज (वि०)विदेशी, परदेशी। कारी 3. पाण्डु के छोटे भाई का नाम (जब सत्य- | विदेशीय (वि.) [विदेश+छ] परदेशी, विदेशी। वती को ज्ञात हुआ कि व्यास द्वारा उसकी दोनों विदेहाः (पुं० ब० व.) [विगतो देहो देहसंबंधो यस्य पुत्रवधओं से उत्पन्न दोनों पूत्र शारीरिक रूप -प्रा० ब०] एक देश का नाम, प्राचीन मिथिला से सिंहासन के अयोग्य है क्योंकि घतराष्ट (दे० परि० ३)-रघु० 11136, 1236 2. इस देश अन्धा था तथा पांडु पीला एवं अस्वस्थ था--तो उसने ___ के निवासी,-हः विदेह का जिला, हा विदेह / / उन्हें एक बार फिर व्यास की सहायता मांगने के लिए | विद्यम् (भू० क० कृ०) [व्यध्+क्त] 1. बींधा हुआ, कहा / परन्तु व्यास मुनि की तपोमय उग्र दृष्टि से चुभा हुआ, घायल, छरा भोंका हआ 2. पीटा हुआ, भयभीत होकर बड़ी विधवाने अपनी एक दासी को कशाहत, बेत्राहत 3. फेंका गया, निदेशित, प्रेषित अपने वस्त्र पहना कर उनके पास भेजा और यही 4. विरोध किया गया 5. मिलता जुलता,-बम् घाव / दासी विदुर की माता बनी। वह अपनी बड़ी बुद्धि- सम० --कर्ण (वि०) जिसके कान छिदे हों। मत्ता, सचाई और घोर निष्पक्षता के कारण प्रसिद्ध | विद्या [विद्-क्यप-+-टाप्] 1. ज्ञान, अवगम, शिक्षा, है, वह पांडवों से विशेष स्नेह रखते थे, तथा कई। विज्ञान --( तां ) विद्यामन्यसनेनेव प्रसादयितुमर्हसि For Private and Personal Use Only Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -रघु० 1188, विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्न- विद्वाण (वि.) [वि+द्रा+क्त नींद से जागा हुआ, गुप्तं धनम् -भर्तृ० 120, (कुछ विद्वानों के मता- | उवुद्ध / नुसार विद्या चार हैं-आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता | विद्रावणम् [वि++णि ल्यट] 1. भगाना, खदेड़ना, दंडनीतिश्च शाश्वती-काम०, कि० 26, इन चारों हाँक कर दूर करना, परास्त करना 2. गलाना, में मनु० 7.43 पांचवीं विद्या-आत्मविद्या को पिधालना। और जोड़ देता है। परन्तु विद्या साधारणतः चौदह विद्रुमः [विशिष्टो द्रुमः] 1.मूंगे का वृक्ष (लाल रंग के मूल्यमानी जाती है अर्थात् चार वेद, छः वेदांग, धर्म, वान मूंगों (मणियों) को पैदा करने वाला) 2. मूंगा मीमांसा, तर्क या न्याय, और पुराण-दे० चतुर प्रवाल- तवाधरस्पधिषु विद्रुमेषु -रघु० 13313, के नीचे चतुर्दश विद्या, तथा नै० 114) 2. यथार्थ कु. 1144 3. कोंपल या किसलय। सम०-लता ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान-उत्तर. 6 / 6, तु० अविद्या 1. मुंगे की शाखा 2. एक प्रकार का गंधद्रव्य, लतिका 3. जादू, मन्त्र 4. दुर्गादेवी 5. ऐन्द्रजालिक कुशलता। 'नलिका' नामक एक गंध द्रव्य / सम०-अनुपालिन्-अनुसेविन् (वि.) ज्ञानोपाजन करन विद्वस् (वि०) [विद+क्वसू] (कर्त०, ए० व०,० वाला, आगमः,-अर्जसम्,-अभ्यासः, ज्ञान प्राप्त करना, विद्वान् ; स्त्री० विदुषी, नपुं० विद्वत्) 1. जानने शिक्षा ग्रहण करना, अध्ययन, ----अर्थः ज्ञान की खोज, वाला (कर्म के साथ)-आनन्दं ब्रह्मणों विद्वान् -अथिन् (वि.) छात्र, विद्याव्यसनी, शिष्य, आलयः न बिभेति कदाचन; तव विद्वानपि तापकारणम्-रघु० विद्यालय, महाविद्यालय, विद्यामन्दिर, --- उपार्जनम् 8176, कि० 11130 2. बुद्धिमान्, विद्वान् (पुं०) -विद्यार्जनम,-करः विद्वान् पुरुष,-चण,-चंचु विद्वान् मनुष्य या बुद्धिमान, व्यक्ति, विद्याव्यसनी (वि.) अपने ज्ञान एवं शिक्षा के लिए प्रसिद्ध, -देवी --कि वस्तु विद्वन् गुरवे प्रदेयम्-रघु०५।१८ / सम० सरस्वती देवी,-धनम् विद्यारूपी दौलत,-धरः (स्त्री० ...कल्प,-देशीय,-देश्य (वि.) विद्वत्कल्प, विद्वरी) एक देवयोनि विशेष, अर्घदेवता,-प्राप्तिः द्देशीय, विद्वद्देश्य) थोड़ा पढ़ा लिखा, कम विद्वान्, =विद्यार्जन,--लाभः 1. ज्ञान की प्राप्ति 2. ज्ञान के --जनः (विद्वज्जनः) विद्वान् या बुद्धिमान् पुरुष, द्वारा प्राप्त किया गया धन आदि, विहीन (वि०) मुनि। निरक्षर, अज्ञानी,-वृद्ध (वि०) ज्ञान में बढ़ा हुआ, | विद्विष (40) विद्विषः [वि+द्विष+क्विप. क वा] शत्रु, शिक्षा में प्रगतिशील,-व्यसनम, व्यवसायः ज्ञान दुश्मन-विद्विषोऽप्यनुनय- भर्तृ० 2177, रघु० 3 / 60, की खोज। याज्ञ. 1 / 162 / विद्युत् (स्त्री०) [विशेषेण द्योतते-वि+द्युत+क्विप] | विद्विण्ट (भू० क० कृ०) [वि+द्विष्+क्त घृणित, बिजली -वाताय कपिला विद्युत्-महा०, मेघ० अनीप्सित, कुत्सित। 38, 115 2. वज्र। सम० ---उन्मेषः बिजली की विद्वेषः [वि-द्विष्+घञ्] 1. शत्रुता, घृणा, कुत्सा, कौंध,-जिह्वः एक प्रकार का राक्षस,ज्वाला, द्योतः मनु० 8 / 346 2. तिरस्करणीय घमण्ड, गरे (मानबिजली की कौंध या कांति --दामन् (नपुं०) वक्र हानि)-विद्वेषोऽभिमतप्राप्तावपि गर्वादनादरः-भारत। गति से युक्त बिजली की कौंध या चमक,-पातः विद्वेषणः [वि+विष+ल्युट ] 1. घृणा करने वाला, बिजली का गिरना या प्रहार, -प्रियम् कांसा,-लता, शत्रु,---णी रोषपूर्ण स्वभाव की स्त्री,--णम् घृणा लेखा (विद्युल्लता, विद्युल्लेखा) 1. बिजली की कौंव ___ और शत्रुता पैदा करना 2. शत्रुता, घृणा। या लहर 2. वक्रगतिशील या कुटिल विजली। विद्वेषिन्, विद्वेष्ट (वि.) [ विद्विष् +णिनि, तृच् वा ] विधुत्वत् (वि०) [विद्युत् +मतुप] बिजली से युक्त घृणा करने वाला, शत्रुतापूर्ण (पुं०) घृणक, शत्रु / --मेघ० 64, (पुं०) बादल -- कु. 6 / 27 / विध (तुदा० पर० विधति) 1. चुभोना, काटना विद्योतन (वि.) स्त्री० नी) [ विद्युत्+णिच् + ल्युट्] 2. सम्मान करना, पूजा करना 3. राज्य करना, 1. प्रकाश करने वाला, चमकाने वाला 2. सोदाहरण शासन करना, प्रशासन करना। निरूपण करने वाला, व्याख्या करने वाला। विधः [ विध+क ] 1. प्रकार, किस्म यथा बहुविध, विद्रः [व्य रक्, दान्तादेशः, सम्प्रसारणम्] 1. फाड़ना, नानाविध में 2. ढंग, रीति, रूप 3. तह (समास के खण्ड खण्ड करना, छेद करना 2. दरार, छिद्र, अन्त में, विशेष कर अंकों के पश्चात) त्रिविध, अष्टविध आदि 4. हाथियों का आहार 5. समृद्धि विद्रधिः [विद्रु ध+कि, पृषो०] पीपदार फोड़ा। 6. छेद करना। विद्रवः [वि++अप्] 1. भाग जाना, उड़ान, प्रत्यावर्तन | विधवनम् | वि+धू+ल्युट ] 1. हिलाना, विक्षुब्ध करना 2. आतंक 3. प्रवाह 4. पिघलना, गलना। 2. थरथराहट, कंपकंपी। विवर। For Private and Personal Use Only Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 937 ) विधवा [ विगतो धवो यस्याः सा | रांड, बेवा * सा नारी। ढंग पंच० 11376 3. नियम, समादेश, कोई विधि विधवा जाता गृहे रोदिति तत्पतिः सुभा०। सम०, जो सबसे किसी बात को लागू करती है (यह 'विधि' -आवेदनम् बेवा स्त्री से विवाह करना, गामिन् / शब्द नियम और परिसंख्या से भिन्न है) विधिरत्यंजो विधवा स्त्री से सहवास करता है। तमप्राप्तौ. वेद विधि या नियम, अध्यादेश, निषेध, विधव्यम् [ वि++ ण्यत् ] थरथराहट, विक्षोभ / कानून, वेदाज्ञा, धार्मिक समादेश (विप० 'अर्धवाद' विधस् (पुं०) सर्व सृष्टि का उत्पादक ब्रह्मा। अर्थात् व्याख्यापरक उक्ति जिसमें आख्यान और विधा[वि+घा+विवप ] 1. ढंग, रीति, रूप 2. प्रकार, दृष्टान्तों का चित्रण हो दे० अर्थवाद) - श्रद्धा वित्तं किस्म 3. समृद्धि, सम्पन्नता 4. हाथी घोड़ों का चारा, विधिश्चेति त्रितयं तत्समागतम् श० 7 / 29, रघु० खाद्य पदार्थ 5. छेद करना 6. किराया, मजदूरी। 2 / 16 5. कोई धार्मिक कृत्य या संस्कार, धार्मिक विधातृ (पुं०) [विघा+तृच ] 1. निर्माता, स्रष्टा रस्म, संस्कार–स चेत् स्वयं कर्मसु धर्मचारिणां -कु० 7 / 36 2. स्रष्टा, ब्रह्मा-विधाता भद्रं नो त्वमंतरायो भवसि च्युतो विधि:--रघु० 3 / 45, वितरतु मनोज्ञाय विधये-मा० 617, रघु० 1135, 1234 6. व्यवहार, आचरण 7. दशा विक्रम 4 6 / 11, 7135 3. अनुदाता, दाता, प्रदाता—कु० 8. रचना, बनावट सामग्र्यविौं - कु० 3 / 28, 1157 4. भाग्य, दैव-हि. 1140 5. विश्वकर्मा कल्याणी विधिष विचित्रता विधातुः कि० 77 6. कामदेव 7. मदिरा। सम० आयुस् (पुं०) 9. सुष्टा 19. भाग्य, देव, किस्मत विधी वामारंभे 1. सूर्य की चमक, धूप 2. सूरजमुखी फूल,-भूः मम समुचितैषा परिणतिः मा० 4 / 4 11. हाथियों नारद का विशेषण। का खाद्य पदार्थ 12. काल 13. डाक्टर, वैद्य 14. विधानम् [ वि+धा+ ल्युट् ] 1. क्रम से रखना, व्यवस्था विष्णु / सम० श (वि०) कर्मकाण्ड का ज्ञाता करना 2. अनुष्ठान, निर्माण, करण,-कार्यान्वयननेपथ्य (जः) कर्मकाण्ड में निष्णात ब्राह्मण, कर्मकाण्डी, विधानम् श० 1, आज्ञा यज्ञ आदि 3. सष्टि, - दृष्ट, विहित (वि.) नियत, विहित, वैषम् रचना -रघु०६।११, 7 / 14, कु० 766 4. नियो निययों को विविधता, विधि या समादेश की विभिजन, उपयोग, प्रयोग प्रतिकारविधानम् रघु० न्नता, पूर्वकम् (अव्य०) नियमानुकूल, प्रयोगः 8 / 40 5. नियत करना, विहित करना, आदेश देना नियम का व्यवहार, योगः भाग्य का बल या प्रभाव, 6. नियम, उपदेश, अध्यादेश, धार्मिक नियम या वधुः (स्त्री०) सरस्वती का विशेषण, हीम विधि, निषेध-मनु० 9 / 148, भग० 16124, (वि.) नियम शून्य, अनधिकृत, अनियमित / 17 // 24 7. ढंग, रीति. 8. साधन या तरकीब | विधित्सा [वि+या+सन्+अ+टाप् ] 1. सम्पन्न 9. हाथियों का आहार (जो उन्हें मदोन्मत्त करने के __ करने को इच्छा 2. आयोजन, प्रयोजन, इच्छा। लिए दिया जाता है) विधानसंपादितदानशोभितैः / विधित्सित (वि.) [ वि+घा-सन्-+क्त किये जाने ---का० (यहाँ 'विधान' का अर्थ 'नियम' भी है) | के लिये अभिप्रेत, तम इरादा, अभिप्राय, आयोशि० 5 / 51 10. धन दौलत 11. पीड़ा, वेदना, जन / सन्ताप, दुःख 12. शत्रुता का कार्य / सम० गः, -ज्ञः | विधुः [ व्य+कु] 1. चन्द्रमा, सविता विधवति बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष,-युक्त (वि.) वेदविधि विधुरपि सवितरति दिनंति यामिन्यः काव्य० 10 के अनुरूप, या अनुकूल / 2. कपूर 3 पिशाच, दानव 4. प्रायश्चित्तपरक आहुति विधानकम् [ विधान-कन् ] दुःख, कष्ट, पीड़ा / 5. विष्णु का नाम 6. ब्रह्मा / सम० - क्षयः चन्द्रमा विधायक (वि.) (स्त्री०-यिका) [ विधा+बुल ] की कलाओं का ह्रास, कृष्ण पक्ष का समय, पंजरः 1. क्रमबद्ध करने वाला, व्यवस्थित करने वाला (पिंजरः भी) खङ्ग, कटार, प्रिया रोहिणी 2. बनाने वाला, निर्माण करने वाला, सम्पन्न करने नक्षत्र / वाला, कार्यान्वित करने वाला 3. रचना करने वाला 4. व्यवस्थित करने वाला, विहित करने वाला, | विधुतिः (स्त्री० [वि+धुक्तिन | हिलना, संक्षोभ, निर्धारित करने वाला 5. अर्पण करने वाला, सोंपने | थरथराहट वैनायक्यश्चिरं वो वदनविधुतयः पातु वाला, (किसी की देख रेख में) हवाले करने वाला। चीत्कारवत्यः मा० 111 / विधिः / वि- घा+कि ] 1. करना, अनुष्ठान, अभ्यास विधुननम् / वि+धू+णिच् + ल्यट, नट, पृषो० ह्रस्व: ] कृत्य, कर्म - ब्रह्मध्यानाभ्यसनविधिना योगनिद्रां गतस्य 1. हिलना, झूमना, विक्षुब्ध होना 2. कंपकंपी, थर----भर्तृ० 3 / 41, योगविधि -रघु० 8 / 22, लेखा- थराहट / विधि-मा० 1135 2. प्रणाली, रीति, पद्धति, साधन, ! विधुन्तुवः [ विवू तुदति पीडयति--विधु+-तुद्+खश्, 118 For Private and Personal Use Only Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 938 ) मुम् ] राहु विधुमिव विधुन्तुद दंतदलनगलितामृत- / किया जाना चाहिए, कर्तव्य,-कि० 16.62 2. प्रतिज्ञा धारम् गीत० 4, नै० 471, शि० 2061 / / या प्रस्थापना की उक्ति, - यः सेवक, भत्य / सम० बिपुर (वि०) [विगता धू: कार्यभारो यस्मात् प्रा० -- अविमर्शः रचनासंबंधी दोष जिससे विधेय आश्रित ब.] 1. दुःखी, विपद्ग्रस्त, कष्टग्रस्त, शोकाकुल, स्थिति का हो जाय या उसका अधरा कथन किया दयनीय- मा० 2 / 3, 9/11, उत्तर० 3 / 18, 6 / 41, जाय-अविमष्ट: प्राधान्येनानिदिष्टो विधेयांशो यत्र कि० 11126 2. जिससे प्रेम करने वाला कोई न -काव्य० 7, उदा० उस स्थान पर देखो, - आत्मन रहा हो, शोकग्रस्त, पत्नो या पति की विरहव्यथा से (तुं०) विष्णु, -- ज (वि०) जो अपना कर्तव्य जानता ध्याकूल-मयि च विवरे भाव: कांता प्रवत्तिपराङ- है-पंच० 11337, पदम् 1. सम्पन्न किया जाने मुखः --विक्रम० 4 / 20, विधुरा ज्वलनातिसर्जनान्नन वाला उद्देश्य 2. कर्ता के संबंध में कहीं गई उक्ति मां प्रापय पत्युरन्तिकम् -कु०४।३२, शि०६।२९, 12 / --- विधेय / 8 3. शन्य, वञ्चित, विरहित, मुक्त -सा वै कलंक- विध्वंसः [वि+ध्वंस+घञ 1 1. बरबादी, विनाश विधुरो मधुराननश्रीः-भामि० 25 4. विरोधी, 2. शत्रुता, अरुचि, नापसन्दगी 3. अपमान, अपराध / वैरी, शत्रु पंच० २१८१,-रः रंडुवा,-रम् 1. खटका, | विध्वंसिन (वि.) वि+ध्वंस्-णिनि ] बरबाद होने भय, चिन्ता 2. पति या पत्नी से वियोग, प्रेमी या | वाला, टुकड़े टुकड़े हो जाने वाला। प्रेमिका द्वारा शोकाकुलता / विध्वस्त (भू० क० कृ०) विध्वंस्+क्त] 1. बरबाद विधुरा [ बिधुर+टाप् ] दही जिसमें चीनी व मसाले डाले हुआ, विनष्ट 2. इधर उधर बिखेरा हुआ, छितराया हुआ 3. अस्पस्ट, धुंधला 4. ग्रहणग्रस्त / विषुवनम् / वि+धु+ल्युट, कुटादित्वात् साधुः] हिलना, | विनत (भू० क० कृ०) [वि+नम्+क्त] 1. झुका हुआ, थरथरी, कंपकपी। नंवा हुआ 2. अवनत हुआ, लटकता हुआ, मुड़ा हुआ विधूत (भू. क.कृ.) [वि+धू+क्त ] 1. हिला हुआ, श० 3 / 11 3. डूबा हुआ, अवसन्न 4. झुका हुआ, उथलपुथल हुआ, तरंगित 2. थरथराता हुआ 3. उखड़ा कुटिल, वक्र 5. विनीत, शिष्ट (दे० वि पूर्वक नम्)। हुआ, मिटाया हुआ, हटाया हुआ 4. अस्थिर 5. परि- | विनता विनत+टाप] 1. अरुण और गरुड की माता जो त्यक्त,-तम् विरक्ति, अरुचि।। कश्यप की एक पत्नी थी-दे. गरुड़ 2. एक प्रकार विषतिः (स्त्री०) विषननम् [वि+धू+क्तिन, वि+धु की टोकरी / सम०--नंदनः, सुतः, सूनुः गरुड़ या +णि+ल्युट्, नुक्] हिलना, थरथरी, कंपकपी अरुण के विशेषण। विक्षोभ / बिनतिः (स्त्री०) [वि+नम् +क्तिन् 1. नमना, झुकना, विपत (भू० क० कृ०) [वि++क्त ] 1. पकड़ा हुआ, नीचे को होना 2. विनय, विनम्रता 3. प्रार्थना / थामा हुआ, ग्रहण किया हुआ 2. वियुक्त, अलग-अलग विनवः [वि-नन् / अच्] 1. ध्वनि, कोलाहल 2. एक रक्खा गया 3. धारण किया गया, कब्जे में किया वृक्ष का नाम। गया 4. रोका गया, नियन्त्रित किया गया 5. सहारा विनमनम [वि+नम+ल्यट] झुकना, नमना, सिर और दिया गया, प्ररक्षित, समर्थित (दे० वि पूर्वक ष), तम् कंधे झुका कर चलना / 1. आदेश की अवहेलना 2. असन्तोष। विनम्र (वि.) [वि+नम्+र] 1. झुका हुआ, झुक कर विषेय (सं० कृ०) [वि+धा+यत् ] 1. किये जाने के चलता हुआ कि० 4 / 3 2. अवसन्न, डूबा हुआ योग्य, अनुष्ठेय 2. विहित या नियत किये जाने के 3. विनयशील, विनीत / योग्य 3. (क) आश्रित, निर्भर' अथ विधिविधेयः | विनम्रकम् [विन+कन्] 'तगर' वृक्ष का फूल / / परिचयः-मा० 2013 (ख) अधीन, प्रभावित, निय. विनय (वि०) [वि-+ नी+अक्] 1. डाला हुआ, फेंका न्त्रित, दमन किया गया, परास्त किया गया (प्रायः हुआ 2. गुप्त 3. अशिष्टाचारी, --- यः 1. निर्देश, अनुसमास में) निद्राविधेयं नरदेवसैन्यम्-रघु० 762, शासन, अनुदेश (अपने कर्तव्यक्षेत्र में) नैतिक प्रशिक्षण संभाव्यमानस्नेहरसेनाभिसंधिना विधेयीकृतोऽपि - मा० - रघु० 224, मा० 1015 2. औचित्य, शिष्टाचार, 1, भग० 2064, मुद्रा० 301, शि० 3 / 20, रघु० सुशीलता-श० 1129 3. शिष्ट आचरण, सज्जनो१९।४ 4. आज्ञाकारी, शासनीय, अनुवर्ती, वश्य,-- चित व्यवहार, सच्चरित्र, अच्छा चलन-रघु० 679, अविधेयेंद्रियः पुंसां गौरिवैति विधेयताम—कि० 11 // मा० 1118 4. शालीनता, विनम्रता---सुष्ठ शोभसे 33 5. (व्या०) विधेय-कर्ता के संबंध में कही आर्यपुत्र एतेन विनयमाहात्म्येन-उत्तर०१, विद्या गई बात) होने के योग्य-अत्र मिथ्यामहिमत्वं ददाति विनयम; तथापि नीचविनयाददृश्यत रघु० नानुवाचं अपि तु विधेयम्-काव्य 7, - यम् 1. जो / 3 / 34, 1071, (यहां मल्लि. 'विनय' शब्द का For Private and Personal Use Only Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 'इन्द्रियजय' बतलाता है जो हमारे मतानुसार / विनाहः [वि+नह +घा] कुएं के मुंह का ढकना। अनावश्यक है) 5. श्रद्धा, शिष्टता, सौजन्य 6. सदा- तु० 'वीनाह'। चरण 7. खींच लेना, दूर करना, हटाना -शि० 10 // विनिक्षेपः [वि+नि+क्षिप्+घञ] फेंक देना, भेज देना। 42 8. जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया है विनिग्रहः [वि-नि+ग्रह +अप] 1. नियंत्रण करना, ---जितेन्द्रिय 9. व्यापारी, सौदागर / सम-अवनत दमन करना, वश में करना -- भग० 1317, 17116, (वि.) झुका हुआ, विनम्र, - ग्राहिन् (वि०) शास- मनु० 9 / 263 2. पारस्परिक विरोध या अर्थान्तरनीय, आज्ञाकारी अनुवर्ती,—वाच् (वि.) मृदुभाषी, न्यास / मिलनसार,-स्थ (वि०) विनयशील, शालीन / विनिद्र (वि.) [विगता निद्रा यस्य-प्रा० ब०] 1. निद्राविनयनम् (वि०+नी+ल्यट] 1. हटना, दूर करना-मेघ० रहित, जागा हुआ (आलं० से भी) रघु० 5 / 65 52 2. शिक्षा, शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुशासन / 2. मुकुलित, खुला हुआ, खिला हुआ, फूला हुआ विनशनम् [वि+नश् + ल्युट] नाश, हानि, विनाश, -विनिद्रमंदाररजोरुणांगुली- कु. 5 / 8 / / लोप,-नः उस स्थान का नाम जहाँ सरस्वती नदी विनिपातः | वि+नि+पत-घा] 1. अध: पतन, गिराव रेत में लुप्त हो गई है - तु० मनु० 2021 / 2. भारी अवपात, संकट, बुराई, हानि, बर्बादी, विनाश विनष्ट (भू० क० कृ०) [वि+नश् + क्त 1. ध्वस्त, -विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः--भर्त. उच्छिन्न, बर्बाद 2. ओझल, लुप्त 3. बिगड़ा हुआ, भ्रष्ट / 2010 (यहां यह 'प्रथम अर्थ' भी प्रकट करता विनस (वि.) (स्त्री०-सा,-सी) [विगता नासिका यस्य, है) कि० 2 / 34 3. क्षय, मृत्यु 4. नरक, नारकीय नासिकाशब्दस्य नसादेशः] विना नाक का, नाकरहित यन्त्रणा-श० 5 5. घटना, घटित होना 6. पीड़ा, - भटि० 5 / 8 / दुःख 7. अनादर। विना (अव्य.) [वि-+-ना] बगैर, सिवाय (कर्म०, करण. / विनिमयः [वि+-नि+मी+अप] 1. अदला-बदली, वस्तु या अपा० के साथ) यथा तानं विना रागो यथा मानं के बदले वस्तु का लेन-देन कार्य विनिमयेन-मालवि० विना नृपः, यथा दानं विना हस्ती तथा ज्ञान विना 1, संपद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयम् ---रघु० 1126 यतिः -भामि० 1119, पंकैविना सरो भाति सदः 2. न्यास, धरोहर, अमानत / खलजनैविना, कटुवर्णविना काव्यं मानसं विषय- विनिमेषः [वि-नि+मिष्-धा] ( आंखों का ) विना 11116, विना वाहनहस्तिभ्यः क्रियतां झपकना। सर्वमोक्षः ---मुद्रा०७, शि० 2 / 9, (विना कृ छोड़ना, / विनियत (भू. क. कृ०) [वि+नि+यम्+क्त] नियंपरित्याग करना, विरहित करना, वञ्चित करना-मद- त्रित, रोका गया, प्रतिबद्ध, विनियमित-यथा विनिनेन विनाकृता रतिः कु० 4 / 21, काम से यताहार तथा विनियतवाच आदि म / विरहित')। सम०-उक्तिः (स्त्री०) एक अलंकार विनियमः [वि+नियम+अच] नियन्त्रण, प्रतिबन्ध, जिसमें विना' काव्य की दृष्टि से सुन्दर ढंग से प्रयुक्त रोक। होता है,-विनार्थसम्बन्ध एव विनोक्ति:-रस, विनियक्त (भू० क. कृ०)[वि+नि+युज+क्त] 1. अलग दे०, काव्य०१० भी। किया हुआ, ढीला, विच्छिन्न 2. अनषक्त, नियुक्त विनाडिः, विनाडिका विगता नाडिः नाडिका वा यया] 3. व्यवहृत 4. समादिष्ट, विहित / समय को एक माप जो घड़ी के साठवें भाग के बराबर विनियोगः [वि+नि-यजघा] 1. अलग होना, होती है, एक पल या चौबीस सैकंड / जुदा होना, विच्छिन्न होना 2. छोड़ना, त्यागना, विनायकः [विशिष्टो नायक: प्रा० स०] 1. (बाधाओं के) तिलाजिलि देना 3. काम में लगाना, उपयोग, हटाने वाला 2. गणेश 3. बुद्ध धर्म का देवरूप अध्यापक, प्रयोग, नियंत्रण ---बभूव विनियोगज्ञः साधनीयेषु वस्तुषु 4. गरुड़ 5. रुकावट, अड़चन / -रघु० 17 / 67, प्राणायामे विनियोगः 6. किसी विनाशः [वि+न+घञ] 1. ध्वंस, बांदी, भारी : कर्तव्य पर लगाना, कार्याधिकार, कार्यभार-विनियोग हानि, क्षय 2. हटाना। सम० उन्मुख (वि०) नष्ट . प्रसादा हि किंकराः प्रभविष्णुषु--कु० 6162 5. रुकाहोने वाला, मरने के लिए तैयार, --धर्मन, मिन् वट, अड़चन / (वि.) क्षीण होने वाला, नष्ट होने वाला, क्षणभंगुर विनिर्जयः [वि+निर+जि+अच पूर्ण विजय। विषयेषु विनाशधर्मसु त्रिदिवस्थेष्वपि निःस्पृहोड विनिर्णयः[वि+निर+नी+अच] 1, पूर्ण रूप से निबभवत् ---रघु०८।१०। टारा या निर्णय, पूरा फैसला 2. निश्चय 3. निश्चित विनाशनम् [वि+नश+णिच् + ल्युट] विनाश, बर्बादी, नियम / उन्मूलन,-नः विनाशक, विनाशकर्ता / | विनिबंधः [वि+नि+र+बंधू +धश] आग्रह, दृढ़ता / पा For Private and Personal Use Only Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ----- ( 940 ) विनिर्मित (भू० क० कृ०) [वि+निर्+मा+क्त] | विनोदनम् [बि+नुद्+ल्युट्] 1. हटाना 2. मनोरंजन 1. बनाया हुआ, निर्माण किया हुआ 2. बना हुआ, आदि--दे० 'विनोद'। रचा हुआ। विन्दु (वि.) [विद्+उ, नुमागमः] 1. मनीषी, बुद्धिमान् विनिवृत्त ( भू० क. कृ.) [वि+नि+वृत्+क्त ] 2. उदार,--दु: बूंद, दे० 'विन्दु'। 1. लौटा हुआ, वापिस आया हुआ 2. ठहरा हुआ,विध्यः [विदधाति करोति भयम] एक पर्वत श्रेणी जो थमा हुआ, रुका हुआ 3. (सेवा) मुक्त, फ़ारिग / उत्तर भारत को दक्षिण से पृथक करती है, यह सात विनिवृत्तिः (स्त्रो०)[वि+निवृत्+क्तिने 1. विश्रान्ति, कुल पर्वतों में से एक है, यह मध्यदेश की दक्षिणी रोकना, हटाना --शकाभ्यसूयाविनिवृत्तये-रघु०६७४ सीमा है, दे० मनु० 221, (एक उपाख्यान के 2. अन्त, अवसान, समाप्ति / अनुसार विन्ध्य पर्वत को मेरु पर्वत हिमालय पहाड़) विनिश्चयः [वि. निस- चि---अच 1. स्थिर करना, से ईर्ष्या हुई। अतः उसने सूर्य से मांग की कि जिस तय करना, निश्चय करना 2. फैसला, पक्का निश्चय / प्रकार वह मेरु के चारों ओर घूमता है, उस प्रकार विनिश्वासः [वि.+नि+श्वस् घा] कठिनाई से सांस उसे विन्ध्य के चारों ओर घूमना चाहिए, सूर्य ने लेना, आह भरना, आह / गहरी साँस) / विन्ध्य पर्वत की मांग ठकरा दी। फलत: विन्ध्य विनिष्वेषः / वि +-निस्+पिष् -घा] चूर चूर करना, पर्वत ने ऊपर को उठना आरंभ किया जिससे कि कुचलना, पीस डालना। सूर्य और चन्द्रमा का मार्ग रोका जा सके। देवताओं विनिहत (भू० क० कृ०)वि+नि+हन्+क्त] 1. आहत, में आतंक छा गया, उन्होंने अगस्त्य मुनि से सहायता घायल 2. मार डाला हुआ 3. पूरी तरह परास्त मांगी। अगस्त्य विध्य पर्वत के पास गया और किया हुआ, ...तः 1.कोई बड़ा या अनिवार्य संकट, जैसे उससे निवेदन किया कि जरा नीचे झुक जाओ जिससे कि भाग्य-दोष से या दैवात् आपद्ग्रस्त होना 2. . कि मुझे दक्षिण में जाने का मार्ग मिले, और जब तक अपशकुन, धूमकेतु / मैं वापिस न आऊँ, इसी प्रकार झके रहो। विध्य विनीत (भू० क. कृ.) वि+नी+क्त] 1. दूर ले पर्वत ने इस बात को मान लिया (क्योंकि एक वर्णन जाया गया, हटाया हया 2 सुप्रशिक्षित, अनुशासित के अनुसार अगस्त्य मुनि विध्य पर्वत का गुरु माना 3. संस्कृत, आचरणशील . सूशील, विनम्र, विनीत, जाता है) परन्तु अगस्त्य फिर दक्षिण से वापिस सौम्य 5. शिष्ट, शालोन, सौजन्यपूर्ण 6. प्रेषित, न लौटा, और विध्य को मेरु जैसी उत्तंगता न मिल विसजित 7. पालतू, सघाया गया 8. सीधा, सरल सकी) 2. शिकारी / सम-अटवी, विन्ध्य महावन, (वेशभूषा आदि) 9. आत्म संयमी, जितेन्द्रिय --- कूटः, कूटनम् अगस्त्य ऋषि के विशेषण, 10 सजा प्राप्त, दंडित 11, शासनीय, शासन किये --वासिन पवैयाकरण व्याडि का विशेषण, ( नी जाने के योग्य 12. प्रिय, मनोहर (दे० वि पूर्वक | दुर्गा का विशेषण / नी), तः 1. सधाया हुआ धोड़ा 2. व्यापारी। विन (भ० क० कृ०) [विद्+क्त 1. ज्ञात 2. हासिल, विनीतकम् [विनीत+कन्] 1. गाड़ी, सवारी (डोलो प्राप्त 3. विचार विमर्श किया हुआ, अनुसंहित 4. रक्खा आदि 2. ले जाने वाला, वाहक / __हुआ, स्थिर किया हुआ 5. विवाहित (दे० विद्) / विनेत (पं.) |वि-+नी--तच | 1. नेता, पथ प्रदर्शक / विन्नकः [विनकन्] अगस्त्य का नाम / 2. अध्यापक, शिक्षक रघ०८१९१3. राजा, शासक | विन्यस्त (भ० क. कृ०) वि+नि+असक्त 4. सजा देने वाला, दण्ड देने वाला- अयं विनेता 1. रक्खा हुआ, डाला हुआ 2. जड़ा हुआ, फर्श जमाया दृप्तानाम् -- महावी० 3 / 46, 4 / 1, रघु० 6 / 39, हुआ या खड़जा लगाया हुआ 3. स्थिर 4. क्रमबद्ध 14 / 23 / 5. समर्पित 6. उपस्थित किया गया, प्रस्तुत 7. जमा विनोदः [वि+न+घञ्] 1. हटाना, दूर करना-श्रम किया हुआ, निक्षिप्त / विनोदः 2. मनोरंजन, दिल बहलाब, कोई भी रोचक | विन्यासः वि-- न्यस् / घा] 1. सौंपना, जमा करना या रंजनकारी व्यवसाय प्रायेणते रमणविग्हेष्वंग 2. धरोहर 3. क्रमपूर्वक रखना, समंजन, निपटारा, नानां विनोदा: मेध० 87, श० 25 3. खेल, अक्षरविन्यासः अक्षर उत्कीर्ण करना-प्रत्यक्षरश्लेषमयक्रीडा, आमोद-प्रमोद 4. उत्सुकता, उत्कण्ठा 5. प्रबन्धविन्यासर्वदग्ध्यनिधिः ... वास०, किसी ग्रन्थ की आनन्द, प्रसन्नता, परितप्ति - विलपनविनोदोऽप्य- रचना 4. संग्रह समवाय 6 स्थान, आधार / सुलभः - उत्तर० 3 / 30, जनयतु रसिकजनेषु मनोरम- विपक्तिम (वि०) [वि---पच् --- क्ति- मप्] 1. पूर्ण रूप से रतिरसभावविनोदम --गीत० 12 6. एक प्रकार पका हुआ, परिपक्व 2. विकसित, (पूर्व कृत्यों के का रतिबंध / परिणाम स्वरूप) पूर्णता को प्राप्त / For Private and Personal Use Only Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपक्व (वि+पच्+क्त] 1. पूर्णरूप से पका हुआ, परि। विपरिणमनम्, विपरिणामः [वि+परि+नम् + ल्युट, पक्व 2. विकसित, पूर्ण अवस्था को प्राप्त-कि० घश्वा ] 1. परिवर्तन, बदलना 2. रूपपरिवर्तन, 6 / 16 3. पकाया हुआ। रूपान्तरण / विपक्ष (वि.) [विरुद्धः पक्षो यस्य प्रा० ब०] वैरी, / विपरिवर्तनम् [वि+परि+वृत्+ल्यूट्] इधर उधर मुड़ना, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल, विरुद्ध, क्षः 1. शत्रु, विरोधी, लुढ़कना। प्रतिरोधी-रघु० 17175, शि० 11159 2. वह | विपरीत (वि.) [वि+परि++क्त ] 1. प्रतिवर्तित, पत्नी जिसकी दूसरी के साथ प्रतिद्वन्द्विता चल रही विपर्यस्त 2. प्रतिकूल विरोधी, प्रतिवर्ती, औंधा-रघु० हो- रघु० 10120 3. झगड़ाल कि० 17443 2 / 53 3. अशुद्ध, नियमविरुद्ध 4. मिथ्या, असत्य 4. (तर्क में) नकारात्मक दृष्टान्त, विपक्षियों की ओर --भामि०२।१७७ 6, अननकल, उलटा 6. व्यत्यस्त, से दिया गया दृष्टान्त (अर्थात् वह पक्ष जिसमें साध्य उलटे ढंग से अभिनय करने वाला 7. अरुचिकर, का अभाव हो), निश्चितसाध्याभाववान् विपक्षः अशुभ,-तः एक रतिबंध, ता 1. दुश्चरित्रा, असती -तर्क०, मुद्रा० 5.10 / पत्नो 2. पुंश्चली स्त्री। सम० कर,-कारक-कारिन, विपंचिका, विपंची [विपंची कन् / टाप्] 1. वीणा ---कृत (वि.) कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने 2. खेल, क्रीडा, मनोरंजन | वाला-शि० १४१६६,-चेतस्,-मति (वि०) जिसका विपणः, विपणनम् [वि+पण्+पत्र , ल्युट् वा] 1. विक्री | दिमाग फिर गया हो,--रतम् रतिक्रिया का उलटा मनु० 3 / 152 2, छोटा व्यापार / आसन, तु० 'पुरुषायित'। विपणिः, णी (स्त्री०) [विपण- इन्, विपणि-+डीष] | विपर्णकः [विशिष्टानि पर्णानि यस्य -प्रा० ब०] पलाश 1. बाजार, मण्डी, हाट, हा हा नश्यति मन्मथस्य | का वृक्ष, ढाक का पेड़ / विपणिः सौभाग्यपण्याकरः --मच्छ० 8138, शि० विपर्ययः [वि+परि+इ+अच् ] 1. वैपरीत्य, व्यतिक्रम, 5 / 24, रघु०१६।४१ 2. बिक्री के लिए रक्खा हुआ औंधापन-आहितो जयविपर्ययोऽपि मे इलाध्य एव माल, सामान 3 वाणिज्य, व्यापार-मनु० 10 / 116 / परमेष्ठिना त्वया--रघु० 11386, 8189, नमस: विपणिन् (पुं०) [विपण ---इनि] व्यापारी, सौदागर, स्फुटतारस्य रात्रेरिव विपर्ययः (न भाजनम्) कि. दुकानदार शि० 5 / 24 / 1344, विपर्यये तु--श० 5, 'यदि अन्यथा हुआ' विपत्तिः (स्त्री०) [वि+पद्+क्तिन] 1. संकट, दुर्भाग्य, यदि इसके विपरीत हुआ 2. (अभिप्राय, वेश आदि अनर्थ, अनिष्टपात, आफत संपत्तौ च विपत्तौ च बदलना-कथमेत्य मतिविपर्ययं करिणी पंकमिवावमहतामेकरूपता--सुभा० 2. मृत्य, बिनाश अति सीदति-कि० 216, इसी प्रकार 'वेषविपर्यय:'--पंच. रभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्य- 1 3. अभाव, अनस्तित्व --- समुद्रगारूपविपर्ययेऽपि तुल्यो विपाकः- भर्त० 2 / 99, रघु०१९।५६, वेणी० --कु० 7142, त्यागे श्लाघाविपर्यय:--- रघु० 1122 416, हिमसेकविपतिः नलिनी --रघु० 8 / 45 3. वेदना, 4. लोप, हानि निद्रा संज्ञाविपर्ययः .. कु. 6 / 44, यातना--त्तिः (पुं०) श्रेष्ठ पदाति, पैदल-सिपाही- 'सुधबुध न रहना' 5. पूर्ण विनाश, ध्वंस 6. विनिमय, कि० 15 / 16 / अदल बदल 7. श्रुटि, उल्लंघन, भूल, कुछ का कुछ विपथः [विरुद्धः पन्था--प्रा० स०] बुरी सड़क, कुमार्ग / समझना 8. संकट, दुर्भाग्य, उलटा भाग्य 9. शत्रुता, (शा० तथा आलं०)। दुश्मनी। विपद् (स्त्री०) [वि+पद्+क्विप्] 1. संकट, दुर्भाग्य, | विपर्यस्त (भू० क. कृ०) [ विपरि+अस+क्त ] आपदा, दुःख-तत्त्वनिकषग्रावा तु तेषां (मित्राणां) 1. परिवर्तित, व्युत्क्रान्त, उलटा हुआ--हत विपर्यस्तः विपद् हि० 11210 2. मृत्य सिंहादवापद्विपदं संप्रति जीवलोकः-उत्तर० 1 2. विरोधी, प्रतिकूल नृसिंहः रघु० 18135 / सम०-उद्धरणम्,-उद्धारः, 3. भूल से वास्तविक समझा हुआ। मुसीबत से राहत, विपत्ति से मुक्ति,-काल: आव- | विपर्यायः [वि---परि++घा] 1. उलटापन, वैपरीत्य, श्यकता का समय, संकट-काल, मुसीबत, युक्त दे० 'विपर्यय'। (वि०) अभागा, दुःखी। विपर्यासः [वि। परि+अस्+घञ्] 1. परिवर्तन, वैपविपदा-दे० 'विपद्'। रीत्य, व्यतिक्रम-विपर्यास यातो घनविरलभावः क्षितिविपन्न (भू० क. कृ.) [विपद् +क्त] 1. मरा हुआ रुहाम् .. उत्तर० 127 2. विपरीतता, अननुकूलता 2. लुप्त, नष्ट 3. अभागा, कष्टग्रस्त, दुःखी, मुसीबत- ---- यथा 'देवविपर्यासात्' में 3. अन्त: परिवर्तन, अदलजदा 4. क्षीण 5. अयोग्य, अशक्त (दे० वि पूर्वक बदल-प्रवहण विपर्यासेनागता मृच्छ० 8 4. त्रुटि, - पद्),- न्न: सांप। For Private and Personal Use Only Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपलम् [विभक्तं पलं येन-प्रा० ब०] क्षण, समय का ) --कि० 18 / 14 3. गहरा, अगाध-महावी० 112, अत्यंत छोटा प्रभाग (जो पल का साठवां या छठा रोमाञ्चित, पुलकित शि०१६॥३, (यहाँ 'प्रथम' भाग समझा जाता है)। अर्थ भी घटता है, --ल: 1. मेरु पर्वत 2. हिमालय विपलायनम् विशेषेण पलायनम् -प्रा० स०] दौड जाना, | पर्वत 3. संमाननीय पुरुष / सम-छाय (वि.) विभिन्न दिशाओं को भाग जाना / छायादार, छायामय,---जघना विशाल कूल्हों वाली विपश्चित (वि.) [विप्रकृष्ट चिनोति चेतति चिन्तयति स्त्री,-मति (वि०) मनीषी, प्रज्ञावान,- रसः गन्ना, वा-वि+प्र+चित्+विब, पृपो०] विद्वान्, ईख / बद्धिमान-विपश्चितो विनिन्यरेनं गुरवो गुरुप्रियम् / विपुला [ विपूल-टाप् ] पृथ्वी / रघु० 3 / 29, पुं० - एक विद्वान या बुद्धिमान् | विपूयः [वि+पू+क्यप् ] 'मुंज' नामक घास / पुरुष, मुनि- भवति ते सभ्यतमा विपश्चितां मनोगत विप्रः [ वप् रन पूषो० अत इत्वम् ] 1. ब्राह्मण, उशवाचि निवेशयंति ये--कि० 1414 / रण, दे० 'ब्राह्मण' के अन्तर्गत::. मलि, बुद्धिमान पुरुष विपाकः वि--पच्-घा] 1. खाना पकाना, भोजन 3. पोपल का पेड़ / सम० ऋषिः- ब्रह्मर्षि दे०, बनाना 2. पाचनशक्ति 3 पकना, पक्वता, परिपक्वता, - काष्ठम् रूई का पौधा,- प्रियः पलाश का वृक्ष, विकास (आलं० भी)-अमी पृथस्तंबभूतः पिशङ्गता ढाक,... समागम् ब्राह्मणों का जमाव या धर्मपरिषद, गता विपाकेन फलस्य शालयः-कि० 4 / 26, वाचा -- स्वम् ब्राह्मणों की संपत्ति / बिपाको मम ...-भामि० 4 / 42, 'मेरे परिपक्व, पूर्ण विप्रकर्षः [ वि-प्र-कृष -घा दूरी, फासला। विकसित अथवा गौरवान्वित शब्द' 4. परिणाम, फल, विप्रकारः [वि --प्र+कृ-घा | 1. अपमान, कट व्यवनतीजा, पूर्वजन्म अथवा इस जन्म के कर्मों का फल, ---.. | हार, दुर्वचन, तिरस्कारयुक्त व्यवहार कि० 3 / 55 अहो मे दारुणतरः कर्मणां विपाक: --- का० 354, 2. क्षति, अपराध 3. दुष्टता 4. विरोध, प्रतिक्रिया ममैव जन्मांतरपातकानां विपाकविस्फूर्जथरप्रसह्यः / 5. प्रतिहिंसा। -रधु० 14162, भर्तृ० 199 महावी० 5 / 56, विप्रकीर्ण (वि.) [वि+प्र+--क्त ] 1. इधर उधर 5. (क) अवस्थापरिवर्तन उत्तर० 4 / 6, (ख) फैलाया हुआ, तितर बितर किया हुआ, बिखेरा हुआ असंभावित बात या घटनाव्यतिक्रम, भाग्य का पलटा 2. ढीला, (बाल आदि) बिखरे हुए 3. प्रसारित, खाना दुःख, संकट, उत्तर० 313, 4112 6. कठि- बिछाया हुआ . चौड़ा, विस्तृत / नाई, उलझन 7, रसास्वाद, स्वाद / विप्रकृत (म० क० कृ०) वि-+-प्र+-+क्त] 1. आहत, विपाटनम् [वि---पट् --णिच् + ल्युट ] 1. खण्ड खण्ड / जिसे ठेस पहुंचाई गई है, घायल 2. अपमानित, जिसे करना, फाड़ कर खोलना 2. उखाडना 3. अपहरण। / गाली दो गई है, जिसके साथ कव्यवहार किया गया विपाठः (0) एक प्रकार का लंबा तीर / है 3. जिससे विरोध किया गया है 4. प्रतिहिसित, विपाण्ड, विपाण्डर (वि.)। विशेषेण पाण्डः, पाण्डर: जिससे बदला ले लिया गया है (दे० विप्र पूर्वक कृ)। प्रा० स०] विदर्ण, पीला, कि० 516, शि० 9 / 3, विप्रकृतिः (स्त्री०) 1. क्षति, आघात 2. अपमान, अपशब्द, इसी प्रकार 'विपांडर' - शि० 4 / 5, रत्न० 2 / 4 / कट व्यवहार 3. प्रतिहिंसा, बदला। विपादिका (स्त्री) 1 पैर का एक रोग, बिवाई 2. प्रहे- विप्रकृष्ट (भू० क. कृ.) / वि+प्र-+-कृष्+क्त ] लिका, पहेली। 1. खींच दिया गया, हटाया हुआ 2. फासले पर, विपाश, विपाशा (स्त्री०) [ पाश विमोचयति-विपश् दूर का, दूरवर्ती 3. सुदीर्घ, लम्बा किया गया, णिच् + क्वि, विपश्-+-णिच् + अच् -टाप् / विस्तारित। पंजाब को एक नदी, वर्तमान व्यास नदी। विप्रकृष्टक (वि०) [ विप्रकृष्ट+कन् ] दूरवर्ती, फासले विपिनम् / वेपन्ते जनाः अत्र वे+इनन, ह्रस्व ] जंगल, पर।। वन, व टिका, झुरमुट--वृन्दावन विपिने ललितं वित- विप्रतिकारः [विप्रति+कृ--घा ] 1 प्रतिक्रिया, नोत् शुभानि यशस्थम् गोत. 1, विपिनानि प्रका- विरोध, वचनविरोध 2. प्रतिहिसा। शानि शक्तिमत्वाच्चकार सः --रघु० 4 / 31 / विप्रतिपत्तिः (स्त्री०) वि-प्रति-+पद्-+क्तिन / विपुल (वि.) [विशेपेग पोलति-वि+पूल+क | 1. पारस्परिक असंगति, प्रतियोगिता, संघर्ष, झगड़ा, 1. विशाल, विस्तृत, आयत, विस्तीर्ण, चौड़ा, प्रशस्त विरोध (मतों का या हितों का) :. असहमति, विपुलं नितम्बदेशे ...मालवि० 3 / 7, शिरसि तनु- . आपत्ति 3. हैरानी, घबड़ाहट 4. पारस्परिक सम्बन्ध विपुलश्च मध्यदेशे--मच्छ 0 3122, इसी प्रकार विपु- परिचय, जानपहचान / लम् पृष्ठम्, विपुलः कुक्षि: 2. बहुत, पुकल, पर्याप्त, विप्रतिपन्न (भू. क. कृ०) [ विप्रति+पद्+क्त ] For Private and Personal Use Only Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 943 ) 1. परस्परविरुद्ध, विरोधी, असहमत 2. घबड़ाया 4. अनक्य, पार्थक्य, अलगाव 5. प्रेमियों का बिछोह हुआ, व्याकुल, हरान 3. मुकाबले का, विवादग्रस्त .-- शश्रुवे प्रियजनस्य कातरं विप्रलम्भपरिशंकिनो 4. परस्परसंयुक्त या सम्बद्ध / वचः रघु० 19 / 18, वेणी०२।१२ 6. (अल में) विप्रतिषेधः वि-प्रति--सिध+धन 1 1. नियन्त्रण विप्रलम्भ श्रृंगार (इसमें नायक नायिका के विरह में रखना, वश में रखना 2. समान रूप से महत्त्वपूर्ण जन्य सन्ताप आदि का वर्णन किया जाता है) शृंगार दो बातों का विरोध, दो समान हितों का संघर्ष के दो मुख्य भेदों में से एक, (विपः संभोग) ... अपरः ---हरिविप्रतिषेधं तमाचचक्षे विचक्षणः शि० 2 / 6, (विप्रलम्भः) अभिलाष दिरहेा प्रवास शापहेतुक (तुल्यबलविरोधो विप्रतिषेधः / मल्लि०) 3. (व्या० इति पंचविधः .. काव्य० 4, युनोर युक्तयोर्भावो में) दो नियमों का (जिनसे दो भिन्न नियमों के युक्तयोथवा मिथः / अभीष्टालिङ्गनादीनामनवाप्ती अनुसार व्याकरण की दो भिन्न प्रक्रियाएं सम्भव हो) प्रहृष्यते / विप्रलम्भः स विशेष: .उज्ज्वलनीलमणिः, संघर्ष, समानरूप से महत्त्वपूर्ण दो नियमों की टक्कर तु० सा० द० 212, तथा आगे / .....विप्रतिषेधे परं कार्यम् पा० 11412, इस पर दे० | विप्रलापः वि-प्र--लप -घा : 1. व्यर्थ या निरर्थक काशिका या महाभाष्प) 4. रोक, वर्जन / बात, बकवास, अनाप-शनार, निस्सार 2. पारस्परिक विप्रति (तो) सारः [वि-प्रति+स+घञ , पक्षे दीर्घः] बचनविरोध, विरोधो उक्तियां 3. झगडा, तू-तू मैं-मैं 1. पछतावा, शि० 10120 2. क्रोध, रोष, गुस्सा 4. अपनी प्रतिज्ञा तोड़ना, वचन पूरा न करना। 3. दुष्टता, अनिष्ट / विप्रलयः [विशेषेण प्रलय: प्रा० स० पूर्ण विनाश या विप्रदुष्ट (भू० क. कृ.) [वि+प्र+दुष्+क्त ] विघटन, सर्वनाश, विद्याकल्पेन मरुता मेपानां भूय1. दूपित, विकृत, मलिन 2. भ्रष्ट / सामपि, ब्रह्मणीव विवर्तानां वापि विप्रलयः कृतः विप्रनष्ट (भू० क० कृ०) [वि--प्र+न+क्त ] --उत्तर०६६। ___ 1. खोया हुआ, लुप्त 2. व्यर्थ, निरर्थक / विप्रलुप्त (भू० क. कृ.) [वि+प्र लुप्-त1. अपविप्रमुक्त (भू० क० कृ०) [वि+प्रमुच्+क्त ] हत, छीना हुआ2. बाधायुक्त, हस्तक्षेप किया गया / 1. स्वतन्त्र छोड़ा हुआ, आजाद किया हुआ, खुला विप्र,लोभिन् (पुं० [वि+लुभ् +-णिच् +णिनि] दो वृक्षों छोड़ा हुआ 2. मोली का निशाना बनाया गया, के नाम, अशोक और किकिरात / बन्दूक से दागा गया 3. छुटकारा पाया हुआ। विप्रवासः[वि+प्र-बस-|-घा] परदेश में रहना, विदेश विप्रयुक्त (भू० क० कृ०) [वि-प्र-युज्+क्त ] में निवास करना (अपनी जन्मभूमि से दूर रहना) / :.पृथक किया हुआ, वियक्त, विच्छिन्न 2. अलग | बिप्रश्निका [विशेषेण प्रश्नो यस्याः वि+प्रश्न+कप् हुआ, अनुपस्थित मेघ० 2 3. मुक्त किया हुआ, +टाप, इत्वम् स्त्री ज्योतिषी, जो भाग्य की बातें रिहा किया हुआ वञ्चित, विरहित, बिना (समास में)। विग्रहीण (वि.) [वि-प्र+हा+का वञ्चित, विरहित / विप्रयोगः वि+प्रयज+घा11. अनैक्य पार्थक्य, | विप्रिय (वि.) [वि+प्री-क, इपड़] अरुचिकर, जो वियोग, अलगाव, जैसा कि प्रिय में 2 विशेषकर पसन्द न हो, जो सुखद न हो, जो स्वादिष्ट न हो, प्रेमियों का बिछोह-मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता . यम् अपराध, अनिष्ट, अरुचिकर कार्य मनसापि विप्रयोगः मेघ० 115, 10, रघु०१३।२६, 14166 न विप्रियं मया कृतपूर्व तव किं जहासि माम् - रघु० 3. कलह, असहमति / 8152, कु. 417, कि० 9 / 39, शि० 15 / 11 / / विप्रलब्ध (भू० क. कृ.) [वि -प्र+लभ्+क्त ] | विष (स्त्री) [वि-प्रष--- क्विए] 1. (पानी या किसी 1. धोखा दिया गया, ठगा गया 2. निराश किया अन्य द्रव की) बूंद संतापं नवजलविद्युषो गृहीत्वा गया 3. चोट पहुंचाया गया, क्षतिग्रस्त,-क्या वह -शि० 8 / 40, स्वेदविषः - 2 / 18 2. चिह्न, स्त्री जो अपने प्रियतम को नियत स्थान पर न पाकर बिन्दु, धब्बा। निराश हो गई हो (काव्यग्रन्थों में वणित एक विप्रोषित (भू० क. कृ.) [वि-+-प्र-वस्+क्त] 1. परनायिका)-सा०द० 118 पर दी गई परिभाषा -- देश में रहना, जन्मभूमि से दूर होना, अनुपस्थित प्रियः कृत्वागि संकेतं यस्या नायाति संनिधिम् / 2. निर्वासित, देशनिकालाप्राप्त रघु० 12 / 11 / विप्रलब्धेति सा ज्ञेया नितान्तमवमानिता / / सम० भर्तका वह स्त्री जिसका पति परदेश गया विप्रलम्भः [वि+प्रलम्भ-+घञ ] 1. घोखा, छल, चालाकी-कि० 11127 2. विशेषकर मिथ्या उक्तियों विप्लवः [विप्ल+अप] 1. बहना, इधर-उधर टहलना, या झूठी प्रतिज्ञाओं से छलना 3. कलह, असहमति विभिन्न दिशाओं में बहना 2. विरोध, वैपरीत्य, विप्रयुक्त किया हुआ, वियुक्त, मक्त किया हुआ, लाये। For Private and Personal Use Only Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होकर बलप्तहित,परीत, 3. हैरानी, व्याकुलता 4. हुल्लड़, हंगामा, हल्ला-गुल्ला / विश्वोक दे० 'बिब्बोक' / मालवि० 1 5. निर्जनीकरण, वह संग्राम जिसमें विभक्त (भू० क० कृ०) [वि+भज् + क्त] 1. बांटा हुआ, लूटपाट खूब हो, शत्रु से भय 6. बलात् लूटपाट विभाजित की हुई संपत्ति आदि) 2. बंटा हुआ, स्वार्थ 7. हानि, विनाश----सत्त्वविप्लवात् - रघु० 8 / 41 की दृष्टि से अलग अलग किया हुआ, 'विभक्ता भ्रातरः' 8. आपदा, आपत्काल अथवा मम भाग्यविप्लवात् में 3. जुदा किया हुआ, अलग किया हुआ, भिन्न -- रघु० 8547 9. दर्पण पर जमी हुई धूल या जंग किया हुआ,-शि० 113 4. विभिन्न, विविध 5. सेवा----अपवजितविप्लवे सूची मतिरादर्श इवाभिदृश्यते निवृत्त, एकान्तवासी 6. नियमित, सममित 7. विभ--कि० 2 / 26, (यहाँ 'विप्लव' का 'प्रमाणबाध' षित (दे० वि पूर्वक भज),--क्तः कार्तिकेय / अर्थात् तर्काभाव भी है) 10. अतिक्रगण, उल्लंघन -कि० विभक्तिः (स्त्री०) वि+भज्+क्तिन 1. बांटना, 1113 11. अनिष्ट, संकट 12. पाप दुष्टता, पापमयता। प्रभाग, विभाजन, बंटवारा 2. पार्थक्य, स्वार्थ में अलविप्लावः [वि+प्लु+घञ्] 1. जलप्लावन, बाढ़ 2. उप गाव 3. हिस्सा, दायभाग 4. (व्या० में) संज्ञा शब्दों द्रव 3. घोड़े को सरपट दौड़ / के साथ लगा कारक या कारक चिह्न।। विप्लत (भू० क. कृ.) [वि+प्ल+क्त| 1. जो इधर | विभंगः [वि+भं +घा] 1. टना, अस्थिभंग 2. ठह उधर वह गया हो 2. डुबा हुआ, निमग्न, बाढ़ग्रस्त, राना, अवरोध, पड़ाव भग० 2126 3. झुकना, किनारों से बाहर होकर बहा हुआ 3. हैरान, परेशान (भौंहों आदि का) सिकोड़ना भूविभंगकुटिलं च 4. विध्वस्त, उजाड़ा, हुआ 5. लप्त. ओझल 6. अप- वीक्षित--रघु० 19 / 17 4. शिकन, झुर्सी 5. पग, सीढ़ी मानित, अनादृत 7. बर्वाद 8. तिरोहित, विरूपित -- रघु० 6 / 3 6. फट पड़ना, प्रकटीकरण- विविध9. दुश्चरित्र, लम्पट, दुराचारी, लुच्चा 10. विपरीत, विकार विभंगम् - गीत० 11 / उलटा 11. मिथ्या, झूठा उत्तर० 4 / 18 / विभवः [वि+भू+अच्] 1. दौलत, धन, सम्पत्ति---अतनुष विप्लष दे० 'विप्र'। विभवेषु ज्ञातयः सन्तु नाम श० 5 / 8, रघु० 8 / 69 विफल (वि.) [विगतं फलं यस्य-प्रा० ब०] 1. फल- 2. ताकत, शक्ति, पराक्रम, बड़प्पन एतावान्मम रहित, अनुपयोगी, व्यर्थ, प्रभावशून्य, अलाभकर-मम मतिविभवः-विक्रम०२, बाग्विभवः मा० 120, विफलमेतदनुरूपमपि यौवनं गीत० 7, जगता वा रघु० 29, कि० 5 / 21 3. उन्नत अवस्था, पद, विफलेन कि फलम् रस०, शि० 9 / 6, कु० 7 / 66, प्रतिष्ठा 4. महत्ता 5. मोक्ष, मुवित / मेघ० 68 2. बेकार, निरर्थक।। विभा [वि+भा--क्विप्] 1. प्रकाश, आभा 2. प्रकाश, विबंधः [वि+बन्ध-घा] 1. कोष्ठ बद्धता 2. रुकावट। किरण 3. सौन्दर्य / सम०.-करः सूर्य,-बत बत लसविबाधा विशिष्टा बाधा-प्रा० स०] पीडा, वेदना, संताप, | तेजःपुंजो विभाति कर:-काव्य० 10 2. मदार मानसिक कष्ट / का पौधा 3. चन्द्रमा, वसुः 1. सूर्य 2. अग्नि रचयिविबुद्ध (भू० क० कृ०] [वि+बुध+क्त] 1. उठाया हुआ, यामि तनुं विभावसौं-कु० 4 / 34, रघु० 3 / 37, जगाया हुआ, जागरूक -श० 2 2. फुलाया हुआ, 10.83, भग०७१९ 3. चन्द्रमा 4. एक प्रकार का हार। मंजरीयुक्त, पूरा खिला हुआ 3. चतुर, कुशल / विभागः [वि+भज् / घन | 1. प्रभाग, विभाजन, अंश विबुधः [विशेषेण बुध्यते --बध+क] 1. बुद्धिमान् या (दायभाग आदि का)-समस्तत्र विभागः स्यात् विद्वान् पुरुष, ऋषि, मुनि-सख्यं साप्तपदीनं भो -मनु० 9 / 120, 210, याज्ञ० 2 / 114 2. दायइत्याहुबिबुधा जनाः - पंच० 2143 2. सुर, देवता, भाग 3. भाग या हिस्सा 4. बांटना, अलग-अलग अभून्नपो बिबधसखः परंतपः भट्रि० 111, गोप्तारं करना, पार्थक्य (न्या० में यह एक गुण माना जाता न निधीनां महयन्ति महेश्वर विबुधाः सुभा० है)-कु० 24, भग० 3 / 29 5. अंश 6 अनुभाग / 3. चाँद / सम० --अधिपतिः, इन्द्रः, ईश्वरः इन्द्र सम-कल्पना हिस्सों का नियत करना-याज्ञ० 2 / 149, का विशेषण, ---द्विष, शत्रः राक्षस --बिक्रम 113 / .... धर्मः दायभाग की विधि, बंटवारे का कानन,-पत्रिका विबुधानः [वि+बुध+शानच्] 1. विद्वान् पुरुष विभाजन की दस्तावेज, भाज् (पुं०) पहले से बंटी 2. अध्यापक। हई सम्पत्ति का हिस्सेदार याज्ञ० 11122 / वियोधः [विबुध् + घञ्] 1. जागरण, जागते रहना विभाजनम् [ वि+भज् णिच् + ल्युट ] बंटवारा, वित 2. प्रत्यक्षज्ञान, खोजना 3. इद्धि, प्रतिभा 4. जाग / रण करना। जाना, सचेत होना, अलं० में 33 या 34 व्यभिचारी विभाज्य (वि.) [वि+भज--- ण्यत् ] 1. अंशों में भावों में से एक,---निद्रानाशोत्तरं जायमानो बोधो विभक्त किये जाने के योग्य, बांटे जाने के योग्य विबोधः-रस०। 2. विभाजनीय / MARATHI For Private and Personal Use Only Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व) रत्या सं ति सरल विभातम [ विभा--क्त | प्रभात, पौ फटना। विभीषक (वि.)। विशेषेण भीषयते-वि-भी+णिच विभावः | विभू+घञ | मन या शरीर को किसी +ण्वल एक आगमः ] डरावना, त्रास या भय देने विशेष स्थिति में विकसित करने वाली दशा, रस- वाला। भाव की उदबोधक स्थिति, तीन मुख्य भावों में से एक | विभीषिका [ वि+भी+णिच् + वल+टाप, षुकागमः, (दूसरे दो है-अनुभाव तथा व्यभिचारीभाव) रत्या- इत्वं च] 1. त्रास 2. डराने के साधन, हौवा द्युबोधका लोके विभावाः काव्यनाट्ययो:--सा०६० (चिड़ियों को डराने के लिए फूस का पुतला, जु जू) 61, (इसके मुख्य अवान्तर भेद हे-आलंबन और -यदि ते संति संत्वेव केयमन्या विभीषिका-उत्तर० उद्दीपक-दे० आलंबन) 2. मित्र, परिचित / 4129 / विभावनम्, ना [वि+भू+-णिच् + ल्युट,] 1. स्पष्ट | विभु (बि०) (स्त्री०-भु,-म्बो) [ वि+भू+हु] 1. प्रत्यक्षज्ञान, या निश्चय, विवेक, निर्णय 2. विचार ताकतवर, शक्तिशाली 2. प्रमुख, सर्वोपरि 3. योग्य, विमर्श, गवेषण, परीक्षा 3. प्रत्यय, कल्पना,-ना समर्थ (तुमुन्नत के साथ)--(धनुः) पूरयितुं भवति आलं में) एक अलंकार जिसमें बिना कारण के कार्यों विभवः शिखरमणिरुचः-कि० 5 / 43 4. आत्मसंयमी, का होना वणित होता है—क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि धीर, जितेन्द्रिय-कमपरमवशं न विप्रकुर्य विभफलव्यक्तिविभावना-काव्य० 10 / मपि तं यदमी स्पृशंति भावा:-कु० 6 / 95 5. विभावरी [ विभा -|-वनिप् + डीप्, र आदेशः] 1. रात (न्या० में) नित्य, सर्वव्यापक, सर्वगत,-भुः 1. अपर्वणि ग्रहकलदुमंडला विभावरी कथय कथं भवि- अन्तरिक्ष 2. आकाश 3. काल 4. आत्मा 5.स्वामी, ष्यति--मालवि० 4115, 5 / 7, कु० 5 / 44 2. हल्दी शासक, प्रभ, राजा 6. सर्वोपरि शासक-भग० 3. कुटनी 4. वेश्या 5. वामाचारिणी स्त्री 6. मुखरा 5 / 14, 10 // 12 7. सेवक 8. ब्रह्मा 1. शिव-कु० स्त्री, बातुनी। 7 / 31 10 विष्णु / विभावित (भू० क. कृ०) [ विभूणिच + क्त ]] विभुग्न (वि.) [वि+भुज्+क्त] वक्र, झुका हुआ, टेढ़ा, 1. प्रकटीकृत, स्पष्ट रूप से दर्शनीय किया हुआ 2. कुटिल। ज्ञात, जाना हुआ, निश्चित किया हआ 3. देखा हुआ, | विभूतिः (स्त्री०) [वि+भू+क्तिन्] 1. ताकत, शक्ति, सोचा हुआ 4. निर्णीत, विवेचन किया हुआ 5. अनु- बड़प्पन--शि०१४।५, कु० 2 / 61 2. समृद्धि, कल्याण मित, संकेतित 6. सिद्ध, सर्वसम्मत / सम० --एकदेश 3. प्रतिष्ठा, उच्च पद 4. घन, प्राचर्य, महिमा, (वि०) 'जिसके साथ एक भाग का पता लगाया गया कान्ति अहो राजाधिराजमंत्रिणो विभूतिः- मुद्रा अर्थात् जो (विवादास्पद विषय के) एक भाग के 3, रघु० 8 / 36 5. दौलत, धन--- रघु० 4 / 19, संबंध में अपराधी पाया गया-विभावितैकदेशेन देयं 676, 17 / 43 6. अतिमानव शक्ति (इसमें आठ यदभियज्यते--- विक्रम० 4 / 17 / / शक्तियां सम्मिलित है अणिमन, लघिमन, प्राप्ति, विभाषा [ वि-भाष+अ+टाप | 1. ईप्सित बस्तु, प्राकाम्यम्, महिमन्, ईशिता, वशिता और कामाविकल्प 2. नियम की वैकल्पिकता। वसायिता)-कु०२।११ 7. कंडों की राख / विभासा [वि. भास्+अ+टाप् / प्रकाश, कान्ति, विभूषणम् [वि+भूष--ल्युट्] अलंकार, सजावट,-विशेषतः आभा। सर्वविदा समाजे विभूषणं मोनमपण्डितानाम् -- भर्त० विभिन्न (भू० के० कृ०) [ वि--भिद्+क्त ] 1. तोड़ा 17, रघु० 16180 / हुआ, विभक्त किया हुआ, खण्ड खण्ड किया हुआ | विभूषा विभूष-+अ+टाप अलंकार, सजावट,-संपेदे बींधा हुआ, घायल 3. दूर हटाया हुआ, भगाया हुआ, ! श्रमसलिलोद्गमो विभूषा-कि० 7.5, रघु० 4 / 54 तितर बितर किया हैरान, परेशान, व्याकुल, 2. प्रकाश, कान्ति 3. सौंदर्य, आभा / 5. इधर उधर डोला हुआ 6. निराश किया हुआ | विभूषित (भू० क. कृ.) [वि भूष+णिच्+क्त] 7. विविध, नानाप्रकार के 8. मिश्रित, मिलाया हुआ, | अलंकृत, सुशोभित, सुभूषित। चितकबरा, रंगबिरंगा - विभिन्नवर्णा गरुडाग्रजेन | विभत (भू० क० कृ०) [वि- भक्तसंभाला गया, सूर्यस्य रथ्या: परितः स्फुरत्या-शि० 4114, (दे० सहारा दिया गया, संधारित या संपोषित / वि पूर्वक भिद),-जः शिव का नाम / विभ्रंशः [वि+भ्रश्+घञ] 1. गिरना, टूट पड़ना 2. विभीतः, तम्, विभीतकः, कम,। [विशेषेण भीतः, | ह्रास, क्षय, बर्बादी 3. चट्टान / विभीतको विभीता विभीत-- कन्, विभी- विभ्रंशित (भू० क० कृ०) [वि+ भ्रंश्+क्त] 1. बहकाया तक+डीप, विभीत+टाप् ] एक वृक्ष का नाम, गया, फुसलाया गया 2. वंचित, विरहित / बहेडा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़। / विभ्रमः [ विभ्रम् +घञ्] 1. इधर उधर टहलना, 119 For Private and Personal Use Only Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व+भ्रंश् +त] पतित, का हुआ, अलग घूमना 2. भ्रमण, फेरा, इधर उधर लुढ़कना 3. त्रुटि, / सुरभिर्वकुलावलिका खल्वहम् --मालवि० 3, रघु० भूल, गलती 4. उतावली, अव्यवस्था, हड़बड़ी, गड़बड़ी 5 / 65 3. स्पर्श 4. उबटन आदि शरीर पर मलना विशेषतः प्रेम के कारण उत्पन्न मन की अस्थिरता 5. संग्राम, युद्ध, लड़ाई, भिड़न्त विमर्दक्षमां भूमि--चित्तवृत्त्यनवस्थानं शृङ्गाराद्विभ्रमो भवेत् 5. मवतरावः-उत्तर० 5 6. विनाश, उजाड़,-रघु० (अतः) हड़बढ़ी के कारण अलंकारादिक का उलटा- 6 / 62 7. सूर्य और चन्द्रमा का मेल 8. ग्रहण। सीधा पहनना --विम्रमस्त्वरयाऽकाले भूषास्थान विमर्दक: [वि+मृद्+बुल] 1. पीसने वाला, चुरा करने विपर्ययः, दे०कु०१४ तदुपरि मल्लि. 6. रंगरेलियां, वाला, चकनाचूर करने वाला 2. गन्ध द्रव्यों की कामकेलि, आमोद-प्रमोद - मा० श२६, 9 / 38 7. | पिसाई 3. ग्रहण 4. सूर्य और चन्द्र का मेल / सौन्दर्य, लालित्य, लावण्य-नै० 15 / 25, उत्तर० विमर्वनम्,–ना [वि-+म+ल्युट्] 1. चूरा करना, श२०, 34, 6 / 4, शि० 6 / 46, 7 / 15, 16 / 64 कुचलना, रोंदना 2. आपस में मसलना, रगड़ना 8. सन्देह, आशंका 1. सनक, वहम / 3. विनाश, हत्या 4. गंध द्रव्यों की पिसाई 5. ग्रहण / विनमा [वि+भ्रम्+अच्+टाप्] बुढ़ापा / विमर्शः [वि + मृश्+घञ्] 1. विचार विनिमय, सोच विभ्रष्ट (भू० क० कृ०) [वि+भ्रंश्+क्त] 1. गिरा विचार, परीक्षण, चर्चा 2. तर्कना 3. विपरीत निर्णय हुभा, पड़ा हुआ, अलग किया हुआ 2. क्षीण, लुप्त, 4. संकोच, संदेह 5. पिछले शुभाशुभ कर्मों की मन के पतित, बर्बाद 3. ओझल, अन्तहित / ऊपर बनी छाप, दे० बासना। विभ्राज् (वि.) [वि+भ्राज+क्विप्] चमकीला, दीप्ति- विमर्षः [वि+मृष-+-घा 1. विचार, विचारविनिमय मान्, प्रकाशमान / 2. अधीरता, असहिष्णुता 3. असन्तोष, अप्रसन्नता विभ्रांत (भू० क० कु०) [वि+भ्रम्+क्त] 1. चक्कर 4. (नाटकों में) नाटकीय कथा वस्तु की सफल प्रगति खाया हुआ 2. विक्षुब्ध, व्याकुल, अव्यवस्थित, हड़- में परिवर्तन, किसी प्रेमाख्यान के सफल प्रक्रम में बड़ाया हुआ 3. भ्रम में पड़ा हुआ, भूल करने वाला। किसी अदष्ट दुर्घटना के कारण परिवर्तन, सा० द० सम० -नयन (वि.) विलोलटि , चंचल आंखों 336 पर इसकी परिभाषा यह है-यत्र मख्यफलोपाय वाला,-शील (वि.) 1. जिसका चित्त अव्यवस्थित उद्धिन्नो गर्भतोऽधिकः, शापाद्यः सांतरायश्च स विमर्ष हो 2. नशे में चूर, मतवाला, ....ल: 1. बन्दर 2. सूर्य- इति स्मृतः दे० मुद्रा० 4 / 3, (इन सब अर्थों के मंडल या चन्द्रमंडल / / लिए बहुधा विमर्श' लिखा जाता है)। विभान्तिः (स्त्री० [वि+भ्रम् +क्तिन्] 1. चक्कर, फेरा विमल विगविगतो मलो यस्मात-प्रा० ब०] 1. पवित्र, 2. हड़बड़ी, त्रुटि, गड़बड़ी 3. उतावली, जल्दबाजी।। निर्मल, मलरहित, स्वच्छ (आल० से भी) 2. साफ, विमत (भू० क. कृ०) [वि+मन+क्त] 1. असहमत, शुभ्र, स्फटिक जैसा, पारदर्शी (जैसे जल) विमलं असम्मत, भिन्न मत रखने वाला 2. विषम, असंगत जलम् 3. श्वेत, उज्ज्वल,-लम् 1. चांदी की कलई 3. अनादृत, अपमानित, उपेक्षित, -तः शत्रु। 2. तालक, सेलखड़ी / सम-बानन देवता के लिए विमति (वि.) [विरुद्धा विगता वा मतिर्यस्य ...प्रा० ब०] / चढ़ावा,--मणिः स्फटिक / मूर्ख, प्रज्ञाशून्य, मूढ,-तिः (स्त्री०) 1. असम्मति, विमांसः, -- सम् [विरुद्धं मांसम्-प्रा० स०] अस्वच्छ मांस असहमति, मतविभिन्नता 2. अरुचि 3, जड़ता / (जैसे कुत्तों का)। विमत्सरम् (वि.) [विगतः मत्सरो यस्य-प्रा० ब०] | विमात (स्त्री०) [विरुद्धा माता-प्रा० स०] सौतेली माँ। ईर्ष्या से मुक्त, ईयरहित-भग० 4 / 22 / / सम.---जः सौतेली माँ का बेटा। विमन (वि.) [विगतः मदो यस्य---प्रा० ब०] 1. नशे से विमानः,-नम् [वि+मन+घञ, वि+मा+युल्ट् वा] मुक्त 2. हर्षशून्य, ईर्ष्यालु / 1. अनादर, अपमान 2. माप 3. गुब्बारा, व्योमयान विमनस, विमनस्क (वि.) [विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, (आकाश में घूमने वाला)-पदं विमानेन विगाह प्रा० ब०] 1. उदास, विषण्ण, अवसन्न, खिन्न, मानः -- रघु० 13 // 1, 751, 12 // 104, कु० 2 / 45, म्लान-उत्तर० 107 2. अनमना 3. हैरान, परेशान 7 / 40, विक्रम० 4 / 43, कि० 7.11 4. यान, 4. अप्रसन्न 5. जिसका मन या भावना बदली हुई हो / सवारी... रघु०१६।६८5. कमरा, शानदार कमरा या बिमन्यु (वि.) [विगतः मन्यर्यस्य प्रा० ब०] 1. क्रोध से सभाभवन-रघु० 1719 6. (सात मंजिलों का) महल मुक्त 2. शोक से मुक्त। -नेत्रा नीताः सततगतिना यद्विमानानभूमी:- मेघ० विषयः[वि+भी+अच विनिमय, अदला-बदली। 69 7. घोड़ा। सम०-चारिन, यान (वि.) विमर्वः [वि+मृद्+घञ्] 1. पूरा करना, कुचलना, गब्बारे में बैठ कर घूमने वाला,--.राजः 1. श्रेष्ठ चकना चूर करना 2. मसलना, रगड़ना-विमर्द... व्योमयान-उत्तर० 3 2. व्योमयान का संचालक / For Private and Personal Use Only Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 947 ) विमानना विमन-णियच+टाप] अनादर, / विमोक्षणम.-णा विमोक्ष + ल्यट] 1. कटकारा रिसाई निरादर, अपमान, प्रतिष्ठा भंग विमानना सुभ्र कुतः मुक्त करना 2. गोली दागना 3. त्यागना, छोड़ना, पितुर्गहे कु० 5/43, अभवन्नास्य विमानना क्वचित् परित्यक्त करना 4. (अण्डे) देना। -रघु०८८ / विमोचनम् वि+मुच-- ल्युट] 1. खोल देना, जूआ हटा विमानित (भू० क० कृ०) वि / मन् + णिच् + क्त] लेना 2. रिहाई, स्वतन्त्रता 3. छुटकारा, मोक्ष / अनादृत, निरादृत। विमोहन (वि०) (स्त्री० - ना,-नी) [वि+मुह +-णिच विमार्गः [विरुद्धो मार्ग:---प्रा० स०] 1. खराब सड़क / +ल्युट | 1. रिझाना, प्रलोभन देना, आकृष्ट करना, 2. कुपथ, दुराचरण, अनैतिकता 3. झाडू। सम० ___-नः, नम् नरक का एक प्रभाग, “नम् फुसलाना, . - गा असती स्त्री विमार्गगायाश्च रुचिः स्वकांते लुभाना, आकृष्ट करना / —भामि० 1.125, गामिन्, प्रस्थित (वि.) विवः, -- बम् दे० 'बिम्ब' / असदाचारी-श० 5 / 8 / विबकः दे० 'बिम्बक' / विमार्गणम् [वि मार्ग +ल्युट्] ढूंढना, खोजना, तलाश | विबटः [बिंब्+अट् + अच्, शक० पररूपम्] राई का करना। पौधा। विश्रित, विमिश्रित (वि०)[वि+मित्र+अच, क्त वा] मिला। विविका दे० 'बिंबिका' / हआ. सम्पक्त, गड्डमड्ड किया हुआ (करण के साथ बिंबा-बी (स्त्री) [बिंब--अच-टाप, ङीष वा एक बल या समास में)-भिविमिश्रा नार्यश्च-महा०, दंपत्योरिह | का नाम / को न को न तमसि वीडाविमिश्रो रसः गीत० 5 / / विबित दे० 'बिबित'। विमक्त (भ० क. कृ०) [वि+मुच+क्त] 1. आजाद विद्यः (पं.) सुपारी का पेड़ / किया हुआ, रिहा किया हुआ, स्वतन्त्र किया हुआ, वियत् (नपुं०) [वियच्छति न विरमति... वि+यम् 2. परित्यक्त, छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ, पीछे रहा +क्विप्, म लोपः, तुकागमः] आकाश, अन्तरिक्ष, हुआ 3. स्वतंत्र 4. जोर से फेंका गया, (बन्दूक से) निरभ्रव्योम -- पश्योदग्रप्लुतत्वाद्वियति बहुतरं स्तोकदागा गया 5. अभिव्यक्त। सम० कंठ (वि.) / मुल् प्रयाति श० 27, रघु० 13040 / सम. क्रन्दन करने वाला, फूट फूट कर रोने वाला। -गंगा 1. स्वर्गीय गंगा 2. आकाशगंगा,-चारिन विमुक्तिः (स्त्री०) [वि+म+क्तिन्] 1. रिहाई, छुट- (वियच्चारिन्) (पुं०) चील,भूतिः (स्त्री०) कारा 2. वियोग 3. मोक्ष, उद्धार / अंधकार, मणिः (वियन्मणिः) सूर्य। विमुख (वि०) (स्त्री०-खी) [विरुद्धमननुकूलं मुखं यस्य | वियतिः (पुं०) पक्षी। प्रा० ब०] 1. मुंह मोड़े हुए 2. पराङ्मुख, अनिच्छुक, / वियमः [वि+यम+अप] 1. प्रतिबंध, रोक, नियन्त्रण विरुद्ध-न क्षुद्रोऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय, प्राप्ते 2. दुःख, पीड़ा, कष्ट 3. विराम, पड़ाव / मित्रे भवति विमुखः किं पुनर्यस्तथोच्चः मेघ० वियात (वि०) [विरुद्धं निंदां यात:-प्रा० स०] 1. धृष्ट 17,27, (रधूणां) मनः परस्त्रीविमुखप्रवृत्ति रघु० 2. साहसी, निर्लज्ज, ढीठ / 1668, 19:47 3. शत्रु--हि० 11130 4. रहित, वियाम दे० 'वियम'। शून (समास में) करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वियुक्त (भू० क० कृ०) [वि+युज्+क्त] 1. विच्छिन्न, बद किं न मे हुतम् रघु०८।६७ / पृथक्कृत, अलग किया हुआ 2. जुदा किया हुआ, परिविमुग्ध (वि.) [वि-मुह / त] अव्यवस्थित घबराया त्यक्त 3. मुक्त, वंचित (करण के साथ या समास में)। हुआ, व्याकुल / / वियुत (भू० क० कृ०) [वि-+-यु+क्त] वियुक्त, विरहित, विमुद्र (वि.) [बिगता मुद्रा यस्य प्रा० ब.] 1. बिना | वञ्चित --विक्रम० 4 / 18 / / मोहर लगा 2. खुला हुआ, मकुलित, खिला हुआ। वियोगः [वि-|-युज्+घञ] 1. जुदाई, विच्छेद,-अयमेकविमूढ (भू० क० कृ०) [वि+मुह -क्त] 1. घबराया पदे तया वियोगः सहसा चोपनतः सुदुःसहो मे-विक्रमः हुआ, व्याकुल 2. बहकाया हुआ, लुभाया हुआ, फुस 4 // 3, त्वयोपस्थितवियोगस्य तपोवनस्यापि समवस्था लाया हुआ 3. जड़। दृश्यते - श०४, संधत्ते भृशमरति हि सद्वियोगः - कि० विमृष्ट (भू० क० कृ०) [वि+मृज्--क्त 1. मला हुआ, 5 / 41, रघु० 12 / 10, शि० 1263 2. अभाव, पोंछा गया, साफ किया गया 2. सोचा हुआ, विचार हानि 3. व्यवकलन / किया हुआ, चिन्तन किया हुआ। वियोगिन् (वि.) [वियोग+इनि] वियुक्त-(पुं०) चक्रविमोक्षः [वि+मोक्षु / घा] 1. रिहाई, मुक्ति, छुटकारा वाक / 2. मोली दागना, निशाना लगाना 3. मुक्ति / वियोगिनी [वियोगिन् +ङीष] 1. अपने पति या प्रेमी से For Private and Personal Use Only Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 948 ) वियक्त स्त्री, गुरुनिःश्वसितैः कविर्मनीषी निरणषीदथ / विरतिः (स्त्री० [वि.+रम्+क्तिन् ] 1. बन्द करना, तां वियोगिनीति - भामि० 4 / 35 2. एक छन्द या | ठहरना, रोकना 2. विश्राम, अवसान, यति 3. सांसावृत्त का नाम (दे० परि०१)। रिक वासनाओं के प्रति उदासीनता भर्त० 379 / वियोजित (भू० क० कृ०) [वि--युज+णिच्+क्त | विरमः [ बि+रम्+अप्] 1. रोक, थाम 2. सूर्य का 1. अलगाया हुआ 2. जुदा किया हुआ, वञ्चित / | छिपना। वियोनिः,-नी [विविधा विरुद्धा वा योनिः प्रा० स० विरल (वि.) [ वि+रा- कलन् ] 1. छिद्रों से युक्त, 1. नाना जन्म 2. पशुओं का गर्भाशय (मनु० 12177 जिसके बीच में अन्तराल हों, पतला, जो सघन न हो, पर कुल्ल०) 3. हीन या कलंकपूर्ण जन्म / सटा हुआ न हो विपर्यासं यातो घनविरलभावः विरक्त (भू० क० कृ०) [वि+रंज+क्त| 1. बहुत लाल, क्षितिरुहाम्-- उत्तर० 2 / 27, भवति विरलभक्ति लालिमा से युक्त-रघु० 13 / 64 2. बदरंग 3. अनु- म्लान पुष्पोपहारः रघु० 5/74 2. पतला, कोमल रागहीन, स्नेहशून्य, अप्रसन्न-भत० 2 / 2 4. सांसारिक 3. ढीला, विस्तृत 4. निराला, दुर्लभ, अनुठा,-पंच० राग या लालसा से मुक्त, उदासीन 5. आवेश पूर्ण / श२९ 5. कम, थोड़ा (संख्या या परिमाण संबंधी) विरक्तिः (स्त्री० [वि+र+क्तिन] 1. चित्तवृत्ति में -तत्त्वं किमपि काव्यानां जानाति विरलो भुवि-भामि० परिवर्तन, असन्तोष, असंतृप्ति, स्नेहशून्यता 2. अलगाव 11117, विरला तपच्छविः-शि० 9 / 3 6. दूरवर्ती, 3. उदासीनता, इच्छा का अभाव, सांसारिक लालसा दूरस्थ, लम्बा (समय या दूरी आदि),-लम् दही, या आसक्तियों से मुक्त। जमाया हुआ दूध, लम् (अव्य०) कठिनाई से, विरचनम्ना [वि+र+ल्युट्] 1. क्रम व्यवस्थापन कभी कभी, जो बहुतायत से न हो, नहीं के बराबर / ---शि० 5 / 21 2. रचना करना, संरचन 3. निर्माण सम० जानुक (वि०) धनः पदी, जिसके घुटनों करना, सजन करना 4. साहित्य-रचना करना, संकलन में अधिक दूरी हो,-द्रवा, एक प्रकार की लपसी। करना। विरस (वि०) [विगतः रसो यस्य प्रा० ब०] 1. स्वादविरचित (भू० क० कृ०) [वि--रच् +क्त] 1. क्रम से रहित, फीका, नीरस 2. अप्रिय, अरुचिकर, पीडाकर रक्खा गया, बनाया गया, निर्मित, तैयार किया गया तावत्कोकिल विरसान यापय दिवसान बनान्तरे निव2. घटित किया हुआ, संरचना किया हुआ 3. लिखा सन् -भामि०१७ 3. क्रूर, निर्दय,-स: पीडा। हआ, साहित्य-सृजन किया हुआ 4. काट-छांट किया | विरहः [ वि+रह+अच ] 1. बिछोह, वियोग 2. विशेगया, संवारा गया, परिष्कृत किया गया, बनाव-सिंगार षतः प्रेमियों की जुदाई-सा विरहे तव दीना गीत. किया गया 5. धारण किया गया, पहनाया गया 4, क्षणमपि विरहः पुरा न सेहे तदेव, मेघ० 8, 6. जड़ा गया, बैठाया गया। 12, 29, 85, 87 3. अनुपस्थिति 4. अभाव 5. उजविरज (वि.) [विगतं रजो यस्मात्---प्रा० ब० ] ड़ना, परित्याग, छोड़ देना। सम० अनलः वियोजिस पर धूल या गर्द न हो, जिसमें राग न हो,-जः गाग्नि,-अवस्था वियोगदशा, आर्त, उत्कण्ठ, विष्णु का विशेषण। ---उत्सुक (वि०) वियोग का कष्ट भोगने वाला, विरजस्, विरजस्क (वि.) [ विगतं रजः यस्मात् यस्य बिछोह के कारण दुःखी, उत्कण्ठिता वह स्त्री जो वा प्रा० ब०] 1. जिस पर धूल न पड़ी हो, राग अपने पति या प्रेमी के वियोग से दु:खी है, काव्यग्रंथों रहित शि० 2080 2. जिसका रजोधर्म आना बंद में वर्णित एक नायिका दे० सा० द० 121, हो गया हो। ... ज्वरः वियोग की वेदना या ज्वर।। विरजस्का [ विरजस् / कप+टाप] वह स्त्री जिसको विरहिणी | विरहन +डीष ] 1. अपने पति या प्रेमी से रजोधर्म आना बन्द हो गया हो। वियुक्त स्त्री 2. मजदूरी, भाड़ा। विरंचः, चिः [ वि+रच्-+-अच, इन् वा, मुम् ] ब्रह्मा / | विरहित (भू० क० कृ०) [वि+रह+क्त ] 1. छोड़ा विरटः (पुं०) एक प्रकार का काला अगुरु, अगर का हुआ, परित्यक्त, त्यागा हुआ 2. वियुक्त 3. अकेला, वृक्ष / एकाकी 4. हीन, शून्य, मुक्त (बहुधा समास में)। विरणम् [ विशिष्टो रणो मूलं यस्य-प्रा० ब०] एक विरहिन् (वि०) (स्त्री० -विरहिणी) [विरह+इनि ] प्रकार का सुगन्धित घास, तु० वीरण। अनुपस्थित, अपनी प्रेयसी या प्रेमी से वियुक्त होने विरत [वि+रम् + क्त ] 1. बन्द किया हुआ, रुका वाला, नृत्यति युवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य हुआ (अपा० के साथ) 2. विश्रान्त, थका हुआ, दुरन्ते. गीत०१। ठहरा हुआ 3. समाप्त, उपसंहृत, समाप्ति पर विरतं | विरागः [ वि- रज--घञ्] 1 रंग का बदलना गेयमनिरुत्सवः रघु० 8 / 66 / 2. वृत्तिपरिवर्तन, स्नेहाभाव, असन्तृप्ति असन्तोष,---- EHOnline For Private and Personal Use Only Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विरागकारणेषु परिहृतेषु -- मुद्रा० 1 3. अरुचि, / / चिल्लाने वाला, शोर मचाने वाला 2. विलाप करने इच्छा न होना 4. सांसारिक वासनाओं के प्रति वाला,--णी 1. रोने या चिल्लाने वाली 2. झाड़। उदासीनता, राग से मुक्ति / विरिचः, विरिंचनः [वि+रिच् + अच्, ल्युट वा, मुंम् ] विराज् (पुं०) [वि+राज+क्विप ] 1. सौन्दर्य, आभा ब्रह्मा / 2. क्षत्रिय जाति का पुरुष 3. ब्रह्मा की प्रथम सन्तान, | विरिचिः [वि+रिच+इन्, मुम् ] 1. ब्रह्मा-विक्रम तु० मनु० 1132, तस्मात् विराडजायत ऋग् 10 // 146, न० 3 / 44, शि० 9 / 9 2. विष्णु 3. शिव / 905, (यहाँ 'विरांज' को पुरुष से उत्पन्न बतलाया | विरुग्ण (भू० क० कृ०) [वि+रुज्+क्त ] 1. टुकड़े गया है) 4. शरीर, स्त्री० एक वैदिक वृत्त या | टुकड़े हुआ 2. विनष्ट 3. झुका हुआ 4. ठूठा। छन्द का नाम। विरुत (भू० क० कृ०) [ वि+रु+क्त ] 1. चीखा हुआ, विराज दे० 'विराज्'। चिल्लाया हुआ 2. गुंजायमान, चीत्कारपूर्ण, तम् विराजित (भू० क० कृ०) [ वि+राज्+क्त ] 1. देदी- 1. चिल्लाना, चीखना, दहाड़ना आदि 2. चिल्लाहट, प्यमान, प्रकाशित 2. प्रदर्शित, प्रकटीकृत / ध्वनि, शोर, कोलाहल, घोष 3. गाना, भिनभिनाना, विराटः [ विशेषो राटो यत्र ] 1. भारतवर्ष के एक जिले क्जना, गुंजारना—परभृतविरुतं कलं यथा प्रतिवच का नाम 2. मत्स्य देश के एक राजा का नाम नीकृतमेभिरीदृशम् श० 4 / 9 / (पाण्डव लोगों ने एक वर्ष तक इस राजा की सेवा विरुदः,-दम् (पं०, नपुं०) 1. घोषणा करना 2. जोर में छद्मवेश में रहकर अपने अज्ञात वास का समय से चिल्लाना 3. स्तुतिपरक कविता गद्यपद्यमयी बिताया) यह उनके निर्वासन का तेरहवाँ वर्ष था / राजस्तूतिविरुदमच्यते सा० द० 570, नदन्ति विराटराज को कन्या उत्तरा का विवाह अभिमन्यु मददन्तिनः परिलसन्ति वाजिब्रजाः, पठन्ति विरुदासे हुआ। उत्तरा परीक्षित की माता थी। परीक्षित ने वली महिनमन्दिरे वन्दिनः–रस० / हस्तिनापुर में युधिष्ठिर के बाद राज्य की वागडोर विरुदितम् [विरुद+इतच्] जोरजोर से रोना घोना, सम्भाली / सम० जः एक प्रकार का घटिया हीरा, विलाप करना उत्तर० 3 / 30 (पाठान्तर)। ----पर्वन् (नपुं०) महाभारत का चौथा पर्व / विरुद्ध (भ० क. कृ०) [ विरुध्क्त] 1. बाधित, विराटकः[ विराट-कन् ] घटिया प्रकार का हीरा, हीरे रोका गया, विरोध किया गया, रुकावट डाली गई ___ की घटिया प्रकार। 2. घेरा हआ, कैद में बन्द गिया हुआ 3. विपरीत, विराणिन् (पुं०) वि+रण / णिनि ] हाथी। घेरा डाला हुआ, ताकेबन्दी की गई 4, विपरीत, विराद्ध (भू० क० कृ०) [वि+राध्+क्त ] 1. विरुद्ध, असंगत, वेमेल, असम्बद्ध 5. प्रतिकूल, विरोधी, गुणों प्रतिकृत 2. कुपित, क्षतिग्रस्त, घृणापूर्वक व्यवहृत, में विपरीत 6. परस्पर विरोधी, वैपरीत्य को सिद्ध उद्धरण देखिये वि पूर्वक 'राध्' के नीचे / करने वाला (जैसा कि तर्क में हेतू') उदा० शब्दो विराधः [ वि+राध+घञ्च ] 1. विरोध 2. सताना, नित्यः कृतकत्वात् तर्क० 7. विरोधी, उलटा, सन्तप्त करना, छेड़छाड़ 3. राम के द्वारा मारा गया शत्रुतापूर्ण 8. अननुकूल, अनुपयुक्त, 9. प्रतिषिद्ध, एक बलवान् राक्षस / वजित (भोजन आदि) 10. अशुद्ध, अनुचित, बम् विराधनम् [वि+राघ-ल्य ] 1. विरोध करना 1. विरोध, वैपरीत्य, शत्रुता 2. वैमत्य. असह 2. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, प्रकुपित करना मति / 3. पीड़ा, वेदना। विलक्षणम् [वि+रूक्ष + ल्युट्] 1. रूखा करना विरामः [विरम+घञ 1 1. रोकना, बन्द करना 2. रक्तस्राव को रोकने का कार्य करने वाली 2. अन्त, समाप्ति, उपसंहार रजनिरिदानीमियमपि (औषधि) 3. कलंक, निन्दा 4. अभिशाप, कोसना / याति विरामम् गीत० 5, उत्तर० 3 / 16, मा० विरू(भ० क० कृ०) [वि+रूह+क्त] 1. उगाया हुआ, 9 / 34 3. यति, ठहरना 4. आवाज का रुकना या अंकुरित, फूटा हुआ मृच्छ० 119 2. उत्पादित, थमना-मच्छ० 3 / 5 6. एक छोटी तिरछी लकीर उपजाया हुआ, उत्पन्न किया हुआ 3. उगा हुआ, जो व्यंजन के नीचे लगाई जाती है, प्रायः वाक्य के | अभिवधित 4. मुकूलित, खिला हुआ 5. चढ़ा हुआ, अन्त में, हल्चिह्न 6. विष्णु का नाम / सवारों की हुई। विराल दे० विडाल'। विरूप (वि०) स्त्री० पा, पी) [विकृतं रूपं यस्य विरावः [वि++घञ] कोलाहल, शोर, ध्वनि - प्रा० ब०] 1. विरूपित, कुरूप, बदशकल, आलोकशब्दं वयसां विरावैः--रघु० 2 / 9, 16 / 31 / बदसूरत पञ्च० 1143 2. अप्राकृतिक, विकटाविराविन (वि.) [विराव+इनि ] 1. रोने वाला, कार 3. विश्वरूप, विविधरूपों वाला,-...पम् 1. कुत्सित . For Private and Personal Use Only Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 950 ) रूप, कुरूपता 2. रूप, स्वभाव या चरित्र की करना 3. प्रतिरोध करना, मुकाबला करना 4. परविभिन्नता। सम० -अक्ष (वि०) भद्दी आँखों | स्परविरोध, असंगति / वाला- वपुर्विरूपाक्षम् --कु० 5 / 72, (. क्षः) शिव विरोधिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [विरुध+णिनि ] (विषम संख्या की आँखें होने के कारण)-दशा 1. मुकाबला, करने वाला, प्रतिरोध करने वाला, दग्धं मनसिजं जीवयन्ति दृशैव याः, विरूपाक्षस्य अवरोध करने वाला 2. घेरा डालने वाला 3. परस्पर जयिनीस्ताः स्तुवे वामलोचना: ... विद्ध० 12, विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी, असंगत, तपोवन श०१ कु० ६।२१,-करणम् 1. बदसूरत बनाना 2. क्षति 4. विद्वेषी, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल -विरोधिसत्त्वोज्झितपहुँचाना,-चक्षुस् (पुं) शिव का विशेषण, रूप पूर्वमत्सरम् कु. 5 / 17 5. झगड़ालू-पुं० शत्रु (वि०) भद्दा, बेडौल। ----शि० 16 / 64 / विरूपिन् (वि०) (स्त्री० .णी) [विरुद्ध रूपमस्ति | विरोप (ह) णम् [वि+रह+ल्यट ] (घाव आदि का) अस्य-विरूप+इनि] भद्दा, कुरूप, बदसूरत। भरना व्रणविरोपणं तलम् श० 4 / 14 / विरेकः [वि+रिच+बा] 1. मलाशय को रिक्त करना, विलi (तदा० पर० विलति) 1. ढकनाछिपाना साफ करना 2. विरेचक, जुलाब को दवा / 2. तोड़ना, बाँटना ii (चुरा० उभ० वेलयति-ते) विरेचनम् दे० 'विरेक'। फेंकना, धकेलना। विरेचित (वि०) [वि+रिच+णि+क्त पेट साफ विलम् दे० 'बिल'। किया गया, पेट निर्मल और रिक्त किया गया। विलक्ष (वि० [विलक्ष +अच 1 1. जिसके कोई विशेष विरेफः [विशिष्टो रेफो यस्य विरिफ+अच] 1 नदी, लक्षण या चिह्न न हो 2. व्याकुल, विह्वल 3. आश्चसरिता 2. 'र' अक्षर का अभाव। र्यान्वित, अचंभे में पड़ा हुआ +. लज्जित, शमिदा, विरोकः,-कम् [वि+रुच्+घञ , अच् वा] छिद्र, सूराख, अशान्त गोत्रेषु स्खलितस्तदा भवति च वीडाविलक्षदरार, --कः प्रकाश की किरण / श्चिरम् ---श०६।५, अनोखा, अनूठा / विरोचनः [विशेषण रोचते वि.रुच्+ल्यूट] 1. सूर्य | विलक्षण (वि०) [विगतं लक्षणं यस्य-प्रा० ब०] 1. जिसके 2. चन्द्रमा 3. अग्नि 4. प्रह्लाद के पुत्र और बालि के कोई विशेष लक्षण या चिह्न न हों 2. भिन्न, इतर पिता का नाम / सम०-सुतः बालि का विशेषण / / 3. अनोखा, असाधारण, अनूठा 4. अशुभ लक्षणो से विरोषः [वि. ..-रुष-+-घा ] 1. प्रतिरोध, रुकावट, युक्त,—णम् व्यर्थ या निरर्थक स्थिति / विघ्न 2. नाकेबंदी, घेरा, आबरण 3. प्रतिबन्ध, रोक विलक्षित (भू० क० कृ०) [ विलक्ष-+-क्त ] 1. विश्रुत, 4. असंगति, असंबंद्धता, परस्परविरोध 5. अर्थ विरोध प्रत्यक्षीकृत, दृष्ट, आविष्कृत 2. विवेचनीय 3. उद्विग्न, वैषम्य 6. शत्रुता, दुश्मनी-विरोधो विश्रान्त:-उत्तर० घबराया हुआ, विह्वल, व्याकुल . प्रकुपित, नाराज। 6 / 11, पंच० 2332, रघु० 10113 7. कलह, | विलग्न (वि०) [वि+लस्ज्+क्त ] 1. चिपटा हुआ, असहमति 8. संकट, दुर्भाग्य 9. (अलं० में) प्रतीयमान चिपका हुआ, अवलंबित, बंधा हुआ श० 725, असंगति जो केवल शाब्दिक हो, तथा संदर्भ को ठीक शि० 9 / 20 2. ढाला हुआ, स्थिर किया हुआ, निर्दिष्ट से अन्वित करने पर स्पष्ट हो जाय; इसमें परस्पर कु० 7 / 50 3. विगत, बोता हुआ (समय आदि) बिरोधी प्रतीत होने वाले शब्द (जो वस्तुत: वैसे न 4. पतला, छरहरा, सुकुमार मध्येन सा वेदिविलग्नन हों) सम्मिलित रहते है, वस्तुओं का ऐसा वर्णन मध्या कु० 1:39, विक्रम० 4137, ग्नम् कमर करना जो मिली हई प्रतीत हों, परन्तु वस्तुत: हों 2. कुल्हा 3. तारामण्डल का उदित होना। भिन्न भिन्न, (इस अलंकार का बाण और सुबंधु ने | विलंघनम् [वि+लंघ+ल्युट ] 1. अतिक्रमण करना, लांघ बहुत उपयोग किया है -पुष्पवत्यपि पवित्रा, कृष्णोऽ जाना 2. अपराघ, अतिक्रमण, क्षति / प्यसुदर्शनः, भरतोऽपि शत्रुघ्नः .. आदि उदाहरण विलंधित (भू० क० कृ०) [वि+लंघ+क्त | 1. पार प्रसिद्ध हैं) मम्मट ने इसकी परिभाषा दी है:-विरोध: | या परे गया हुआ, दुहराया हआ 2. अतिक्रांत 3. आगे सोऽविरोधेऽपि विरुद्धत्वेन यद्वचः .... काव्य० 10, इस गया हुआ, आगे बढ़ा हुआ 4. परास्त, पराजित / अलंकार का नाम विरोधाभास भी है। सम०-उक्तिः | विलज्ज (वि०) [विगता लज्जा यस्य प्रा० ब०] (स्त्री०), वचनम् परस्परविरोध, विरोध, कारिन् निर्लज्ज, बेशर्म। (वि०) झगड़ा करने वाला, - कृत् (वि०) विरोधी | विलपनम् [ वि-+-लप् + ल्युट] 1. बातें करना 2. निकम्मी (पुं०) शत्रु / बातें करना, चहचहाना, चहकना 3. विलाप करना, विरोधनम् [वि+रुध् + ल्युट ] 1. बाधा डालना, विघ्न | रोना-धोना,-विलपनविनोदोऽप्यसुलभः-उत्तर० 3 / 30 डालना, रुकावट डालना 2. घेरा डालना, नाकेबंदी ) 4. चीकट, तलछट / For Private and Personal Use Only Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयोधरोप 84, 180255 र वाला, मन्द / 951 ) विलपितम् [वि+लप्+क्त] 1. विलाप करना, क्रन्दन / मत्र हिरण्मयीनां भासस्तडिद्विलसितानि विडम्बयन्ति 2. रोदन / . कि० 5 / 46, मेघ० 81, विक्रम० 4 3. दर्शन, विलम्बः [ विलम्ब्+घञ्] 1. लटकना, दोलायमानता प्रकटीकरण ...जैसा कि अज्ञातविलसितम् आदि में 2. धीमापन, देरी, दीर्घसूत्रता। 4. क्रीडा, खेल, रंगरेली, सानुराग हावभाव। विलम्बनम् [ विलम्ब+ल्युट] 1. लटकना, निर्भरता विलापः [वि-+लप्+घञ्] क्रन्दन, शोक करना, रोदन, 2. देरी, टालमटोल न कुरु नितम्बिनि गमनविलम्ब- कराहना-- लंकास्त्रीणां पुनश्चके विलापाचायंक शरैः नम् ---गीत० 5, या तन्मुग्धे विफलं विलम्बनमसौ रघु० 12178 / रम्योऽभिसारक्षणः-तदेव / विलालः [वि+लल+घञ्] 1. बिलाव 2. उपकरण, विलम्बिका [वि+लम्ब् +ण्वुल+-टाप्, इत्वम्] कब्जी, यन्त्र / कोष्ठबद्धता। विलासः [वि-लस्+घञ्] 1. क्रीड़ा, खेल, मनोरंजन विलम्बित (भू० क. कृ०) [वि+लम्ब+क्त] 1. लट- 2. केलिपरक मनोविनोद, दिलबहलावा, प्रसन्नता कना, निर्भरता 2. लम्बमान, लटकाने वाला 3. आश्रित, जैसा कि 'विलासमेखला'- रघु० 8 / 64 में, इसी सुसम्बद्ध . मन्द, दीर्घसूत्री, आलसी 5. मन्थर, धीमा प्रकार विलासकाननम्, विलासन्दिरम आदि 3. ललित (संगीत में काल आदि), दे० वि पूर्वक 'लम्ब',-तन् अभिनय, रंगरेली, अनुराग, कामुकता, सुन्दर चाल, देरी। रतिद्योतक कोई भी स्त्रियोचित हावभाव श० विलम्बिन ( वि० ) ( स्त्री०-नी) [विलम्ब+-णिनि] 2 / 2, कु० 5 / 13, शि० 9 / 26 4. लालित्य 1. नीचे लटकता हुआ, निर्भर, लटकन-नवाम्बुभि- सौन्दर्य, चारुता, लावण्य मा० 16 5. चमक, भूरिविलम्बिनी घना: श० 5 / 12, अलघुविलम्बि- दमक / पयोधरोपरुद्धाः .. शि० 4 / 29, 59, कु. 1114, कि० | | विलासनम् [विलस् +णिच्+ल्युट्] 1. क्रीडा, खेल मनो५।६, रघु० 16 / 84, 18025, मच्छ० 5 / 13 2. देर रंजन 2. कामुकता, रंगरेली। करने वाला, टालमटोल करने वाला, मन्द रहने विलासवती [विलास+मतुप+डीप, मस्य वः] स्वेच्छाबाला, -भबति विलम्बिनि विगलितलज्जा विलपति चारिणी या कामुक स्त्री --रघु० 9 / 48, ऋतु० रोदिति वासकसज्जा गीत०६। 1 / 12 / विलम्भः [वि+लभ् + धन , मुम्] 1. उदारता 2. भेंट, विलासिका [वि+-लस--वल-|-टाप, इत्वम् प्रेमलीला दान / से पूर्ण एकाङ्की नाटक, इसकी परिभाषा सा० द. विलयः [विली+अच 1. विघटन, पिघलना 2. विनाश, 552 पर इस प्रकार दी है शृङ्गारबहुलकांका मृत्यु, अन्त उत्तर० 7 3. संसार का विघटन या दशलास्यांगसंयुता, विदूषकविटाभ्यां च पीठमर्दन विनाश, (विलयं गम् घुल जाना, अन्त हो जाना, भूषिता / हीना गर्भविमर्शाभ्यां संधिभ्यां हीननायका। समाप्त हो जाना दिवसोऽनुमित्रमगलद्विलयम्-शि० स्वल्पवृत्ता सुनेपथ्या विख्याता सा विलासिका। 9 / 17 / विलासिन् (वि.) (स्त्री० नी) विलास ।-इनि] क्रीडा विलयनम् [वि+लो+ ल्युट्] 1. घुल जाना, पिघल जाना, युक्त, लीलापर, रंगरेली में व्यस्त, कामुक, चोचले घोल या विघटन 2. जंग लग जाना, मुर्चा खा जाना करने वाला, रघु० 6.14, 50 1 विषयी, भोगा3. हटाना, दूर करना 4. पतला करना 5. पतला सक्त, रसिकजन, उपमानमभूद्विलासिनां करणं यन्नव करने वाली औषधि। कांतिमत्तया कु० 415 2. अग्नि 3. चन्द्रमा 4. सांप विलसत् (शत्रन्त वि०) (स्त्री०--न्ती) [विलिस्+शत] | 5. कृष्ण या विष्णु का विशेषण 6. शिव का विशेषण 1. चमकने वाला, प्रकाशमान, उज्ज्वल 2. चमचमाने 7. कामदेव का विशेषण / वाला, सहसा कौंधने वाला 3. लहराने वाला 4. क्रीडा- विलासिनी [विलासिन्+ङीप्] 1. रमणी 2. हावभाव प्रिय, विनोदप्रिय। करने वाली स्त्री, हरिरिह मुग्धवधूनिकरे विलाविलसनम् [ विलस्+ल्युट] 1. दमकना, चमचमाना सिनी विलसति केलिपरे गीत० 1, कु० 759, चमकना, जगमगाना 2. क्रीडा करना, इठलाना, शि० 8170, रघु० 6 / 17 3. स्वेच्छाचारिणी, चोचले करना। वेश्या / विलसित (भू० क. कृ.) (वि+लस्+क्त] 1. दमकता | विलिखनम् [वि-लिख्+ल्युट] खुरचना, कुरेदना, हुआ, चमकता हुआ, जगमगाता हुआ 2. प्रकट हुआ, लिखना। प्रकटीकृत 3. क्रीडाप्रिय, स्वेच्छाचारी,-तम् 1. दम- | विलिप्त (भू० क० कृ०) [वि+लिप्-|-क्त] लीपा हुआ, कना, जगमगाना 2. चमक, दमक–रोधोभुवां महर- पोता हुआ, चुपड़ा हुआ For Private and Personal Use Only Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 952 ) खुशामद / विलीन (भ० क. कृ०) [वि+ली+क्त] 1. चिपकने / पिलोपः [वि+लप+घा) 1. ले जाना, अपहरण करना, वाला, चिपटा हुआ, अनुषक्त 2. अड्डे पर बैठा हुआ, पकड़ना, लूटना 2. लोप, हानि, नाश, अदर्शन। बसा हुआ उतरा हुआ 3. संसक्त, संस्पर्शी 4. विलोपनम् (वि+लु+ल्युट्] 1. काट डालना 2. अपहरण पिघला हुआ, घुला हुआ, गलाया हुआ 5. अन्तहित, 3. नष्ट करना, विनाश / ओझल 6. मृत, नष्ट / विलोभः [वि+लभ+घञ] आकर्षण, फुसलाहट, विलुचनम् [वि+लुच् + ल्युट्] फाड़ डालना, छोलना। प्रलोभन / विलुंठनम् [वि+लुठ + ल्युट लूटना, डाका डालना। विलोभनम् [वि+लुभ+णिच+ ल्युट्] 1. मोह लेना, विलुप्त (भू० क० कृ०) [वि+लुप्+क्त 1. तोड़ा हुआ, | ललचाना 2. रिझाना, प्रलोभन, फुसलाना 3. प्रशंसा फाड़ा हुआ-पंच० 2 / 2 2. पकड़ा हुआ, छीना हुआ, अपहरण किया हुआ 3. लूटा हुआ, डाका डाला हुआ | विलोम (वि) (स्त्री०-मी) [विगतं लोम यत्र-प्रा० ब०] 4. विनष्ट, बर्बाद 5. बिगाड़ा हुआ, तोड़ा-फोड़ा हुआ। 1. व्युत्क्रान्त, प्रतिकूल, प्रतिलोम, विपरीत, विरुद्ध विलुपकः [वि.+लुप्+ण्वुल, मुम्] चोर, लुटेरा, अपहर्ता / 2. प्रतिकल क्रम में उत्पन्न 3. पिछड़ा हुआ, - मः विलुलित (भू.क. कृ.) [वि+-लुल+क्त] 1. इधर विपरीत कम, प्रतिलोम 2. कुत्ता 3. साँप 4. वरुण, उधर घूमने वाला, अस्थिर, हिला हुआ, लुढ़का हुआ, मम् रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र / सम० --- थरथराता हुआ 2. क्रमररहित, क्रमशून्य गलित उत्पन्न -ज,-जात, वर्ण (वि०) प्रतिकूल क्रम में कुसुमदलविलुलितकेशा-गीत० 7 / उत्पन्न अर्थात् ऐसी माता से जन्म लेना जो पिता की विलून (भू० क. कृ.) [वि+ल+क्त] कटा हुआ, काट अपेक्षा उच्च वर्ण की हो-तू० प्रतिलोमक भी, डाला हुआ, चीरा हुआ, काट कर टुकड़े टुकड़े किया - क्रिया. --विषिः 1. प्रतिकूल कर्म 2. प्रतिलोम नियम हुआ। (गणि में), जिहः हाथी / विलेखनम् [वि+लिख्+णिच् + ल्युट] 1. खु | विलोकी [विलोम+ङीष आंवला / कुरेदना, गूडना 2. खोदना 3. उखाड़ना। विलोल (वि.) [विशेषेण लोल:-प्रा० स०] 1. दोलायमान, विलेपः [वि+लिप्+घा] 1. उबटन, मल्हम 2. चूना / कांपता हुआ, थरथर करने वाला, अस्थिर, डोलने ___3. लिपाई-पुताई। वाला, चंचल, इधर उधर लढकने वाला पृषतीषु विलेपनम् [वि+लिप् + ल्युट 1 लीपना, पोतना 2. विलोलमीक्षितम् रघु० 8 / 59, शि० 88 15 / 62, मल्हम, उबटन, कोई भी शरीर पर लेप करने के 20142, वेणी० 2 / 28, रघु० 741, 16 / 68 योग्य सुगन्धित पदार्थ (केसर व चन्दन आदि) / 2. ढीला, विपर्यस्त, बिखरे हए (बाल आदि)-- .-यान्यव सुरभिकुसुमधूपविलेपनादीनि का। उत्तर० 3 / 4 / विलेपनी [विलेपन+डीप्] 1. सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित | बिलोहितः [विशेषेण लोहितः प्रा० स०] रुद्र का नाम / स्त्री 2. सुवेशा 3. चावल का मांड। बिल्ल दे० 'बिल्ल'। बिलेपिका, विलेपी, विलेप्यः [विलेपी-कन्+टाप, ह्रस्वः, विल्य दे० 'बिल्व' / विलेप-Fङीष, वि-लिप्र ण्यत् चावल का मांड / विवक्षा विच--सनअ+टाप] 1. बोलने की इच्छा विलोकनम् [वि+लोक् + ल्युट्] 1. देखना, निहारना, 2. अभिलाषा, इच्छा 3. अर्थ, आशय 4, इरादा, दृष्टि डालना कि० 5 / 16 2. दृष्टि, निरीक्षण | टि निरीक्षण प्रयोजन / -शि० श२९। विवक्षित (वि०) [विवक्षा+इतच] 1. कहे जाने या बोले विलोकित (भू० क० कृ०) [वि+लोक+क्त] 1. देखा जाने के लिए अभिप्रेत-विवक्षितं नुक्तमनुतापजन गया, निरीक्षण किया गया, समीक्षित, निहारा गया यति- श० 3 2. अर्थयक्त, अभिप्रेत, उद्दिष्ट 2. परीक्षित, चिन्तन किया गया,-तम् दृष्टि, नजर 3. अभिलषित इच्छित 4. प्रिय, -तम 1. प्रयोजन, -श० 2 / 3 / अभिप्राय 2. आशय, अर्थ। विलोचनम् [वि+-लोच् + ल्युट्] आँख रघु० 718, कु० | विवक्षु (वि.)[वच्+सन+उ] बोलने की इच्छा वाला,-- 411, 367 / सम० अम्बु (नपुं०) आँसू / कु० 5 / 83 / विलोडनम् [वि+लोड् + ल्युट्] विक्षुब्ध होना, दोलायमान विवत्सा [विगतः वत्सो यस्याः प्रा० ब०] बिना बछड़े होना, हिल-जुल, मन्थन करना -शि० 14183 / की गाय। विलोडित (भू० क. कृ०) [वि+लोड़+क्त] डुलाया विवषः [विवधो विगतो वा वधः हननं गतिर्वा यत्र प्रा० हा, बिलोया हुआ, हिलाया हुआ, विक्षुब्ध, -तम् | ब०] 1. बोझा ढोने के लिए जूआ 2. मार्ग, सड़क बिलोया हुआ दूध / 3. बोझा, भार 4. अनाज का संग्रह 5. घड़ा। For Private and Personal Use Only Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवधिकः [विवध+ठन] 1. बोझा ढोने वाला, कुली / भंवर 2. इधर उधर लुढ़कना, करवटें बदलना --श० 2. फेरी वाला, आवाज लगा कर बेचने वाला। 5 / 6 3. पीछे लढकना, लौटना 4. नीचे की लड़कना, विवरम् [वि+वृ+अच्] 1. दरार, छिद्र, रन्ध्र, खोखलापन, उतरना 5. विद्यमान रहना, दृढ़ रहना 6. ससम्मान रिक्तता - यच्चकार विवरं शिलाघने ताडकोरसि स अभिवादन 7. नाना प्रकार की सत्ताओं व स्थितियों में से रामसायक: रघु० 11118, 9 / 61, 1947 गुजरना 8. परिवर्तित दशा-उत्तर०४।१५, मा०४।७। 2. अन्तःस्थान, अन्तराल, बीच की जगह श० 717 | विवर्षनम् [वि-+-वृध् + ल्युट ] , 1. बढ़ना 2. वृद्धि, 3. एकान्त स्थान कि० 12 / 37 4. दोष, त्रुटि, वन, बढ़ती 3. विस्तार, अभ्युदय / ऐब, कमी 5. विच्छेद, घाव 6. 'नौ' की संख्या। विवर्षित (भू० क. कृ०) [वि.+वृष ।-क्त ] 1. बढ़ा सम०-नालिका बंसरी, बंसी, मुरली। हुआ, वृद्धि को प्राप्त 2. प्रगत, प्रोन्नत, आगे बढ़ाया विवरणम् [वि++ल्युट ] 1. प्रदर्शन, अभिव्यंजन, हआ 3. संतप्त, संतुष्ट / उद्घाटन, खोलना 2. अनावृत करना, खुला छोड़ना | विवश (वि.) [वि-+वश+अच ] 1. अनियन्त्रित, जो 3. विवृति, व्याख्या, वृत्ति, टीका, भाष्य / वश में न किया गया हो 2. लाचार, आश्रित, अधीन, विवर्जनम् [वि+व+ ल्युट ] छोड़ना, निकाल देना, दूसरे के नियन्त्रण में, असहाय-परीता रक्षोभिः परित्याग करना याज्ञ० 11181 / श्रयति विवशा कामपि दशाम् -भामि० 1 / 83, मुद्रा० विजित (भू. क० कृ०) [वि+व+क्त ] 1. छोड़ा 6 / 18, शि० 20158, हि० श१७२, महावी० 632, हुआ, परित्यक्त 2. परिहृत 3. वञ्चित, विरहित, के 63 3. बेहोश, जो अपने आपको काबू में न रख सके विना (प्रायः समास में) 4. प्रदत्त, वितरित / - विवशा कामवविबोधिता-१० 41 4. मृत, विवर्ण (वि०) [ विगत: वर्णो यस्य-प्रा. व.] 1. नष्ट–उपलग्यवती दिवश्च्युतं विवशा भापनिवृत्ति बिनारंग का, निष्प्रभ, पाण्ड, फीका-नरेन्द्रमार्गाद्र कारणम् -- रघु० 8182 3. मृत्युकामी, मृत्यु की इथ प्रपेदे विवर्णभावं स स भूमिपाल:-रघु० 6 / 67 आशंका करने वाला। 2. जिस पर कोई रंग न चढ़ा हो, निर्जल, श० 3 / 14, | विवसन (वि.) [ विगतं वसनं यस्य -- प्रा० ब०] नंगा, 3. नीच, दुष्ट 4. अज्ञानी, मूढ, निरक्षर, र्षः जाति- विवस्त्र,-नः जैन साधु / बहिष्कृत, नीच जाति से संबंध रखने वाला। विवस्वत (0) [विशेषेण वस्ते आच्छादयति-वि+वस् विवर्तः [ वि+त+घञ 11. गोल चक्कर खाना, चारों +क्विप्+मतुप्] 1. सूर्य-स्वष्टा विवस्वंतमिवो ओर घूमना, भंवर 2. आगे को लढकना 3. पीछे को ल्लिलेख कि० 17148, 5 / 48, रघु० 10130, 17 // लढकना, लौटना 4. नृत्य 5. बदलना, सुधारना, रूप 48 2. वरुण का नाम 3. वर्तमान मनका नाम 4. देव में परिवर्तन, बदली हुई दशा या अवस्था-शब्दब्रह्म- 5. अर्क का पौधा, मदार। णस्तादृशं विवर्तमितिहासं रामायणं प्रणिनाय उत्तर विवहः वि+वह+अच] आग की सात जिह्वाओं में 2, एको रसः करुण एव निमित्तभेदाद्भिन्नः पृथक से एक। पृथगिवाश्रयते विवर्तान उत्तर० 3147, महावी० | विवाकः [विशिष्टो वाको यस्य-प्रा० ब०] न्यायाधीश, 5 / 57 6. (वेदान्त० में) एक प्रतीयमान भ्रान्तिजनक तु० 'प्राविवाक' / / रूप, अविद्या या मानव की भ्रांति से उत्पन्न मिथ्या | विवादः [वि-वद्+घा] (क) कलह, प्रतियोगिता, रूप, (यह वेदान्तियों का एक प्रिय सिद्धांत है जिनके संघर्ष-विषय, शास्त्रार्थ, विचारविमर्श, वाद-विवाद, अनुसार यह समस्त संसार एक माया है मिथ्या झगड़ा, संघट--अलं विवादेन,-कू० 5 / 83 एतयोविवाद और भ्रान्तिजनक कप जब कि ब्रह्म या परमात्मा एव मे न रोचते-मालवि०१, एकाप्सरः प्राथितही वास्तविक रूप है; जैसे कि सांप, रस्सी का विवर्त योविवादः-रघु० 753 (ख) तर्क, तर्कना, चर्चा है, इसी प्रकार यह संसार उस पर ब्रह्म का विवर्त 2. वचन विरोध एष विवाद एव प्रत्याययति-श० है, यह भ्रान्ति या माया सत्य ज्ञान अथवा विद्या से 7 3. मुकदमेबाजी, कानूनी नालिश, कानूनी संघर्ष, ही दूर होती है, तु० भवभूति- विद्याकल्पेन मरुता सीमाविवादः, विवादपदम आदि, परिभाषा इस मेघानां भूयसामपि, ब्रह्मणीव विवर्तानां क्वापि प्रकार की गई है--ऋणादिदायकलहे द्वयोबहुतरस्य विप्रलयः कृतः----उत्तर०६६ 7. ढेर, समुच्चय, वा विवादो व्यवहारस्य, दे० 'व्यवहार' भी 4. उच्चसंग्रह, समवाय। सम० वावः वेदान्तियों का सिद्धांत कंदन, ध्वनन 5. आदेश, आज्ञा--रघु० 18143 / कि यह दृश्यमान संसार माया है केवल ब्रह्म ही एक सम०-अधिन् (पुं०) 1. मुकदमेबाज 2. वादी, वास्तविकता है। अभियोक्ता, प्राभियोक्ता,-पवम् कलह का शीर्षक, विवर्तनम् [वि+वृत्+ल्युट ] 1. चक्कर खाना, क्रान्ति, / -यस्तु (नपुं०) कलह का विषय, विचारणीय विषय / 120 For Private and Personal Use Only Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 954 ) विवादिन (वि.) [विवाद+इनि] 1. कलह करने वाला, प्रकटीकृत, अभिव्यक्त 2. स्पष्ट, सामने खुला हुआ तर्क वितर्क करने वाला, तर्कप्रिय, कलहशील 3. खुला हुआ, अनावृत, नंगा पड़ा हुआ 4. खोला, 2. (कानूनी पहल पर) विवाद करने वाला-पं० प्रकट किया हुआ, नग्न, उद्घाटित 5. उद्घोषित मुकदमेबाज, कानूनी अभियोग में भाग लेने वाला। 6. भाष्य किया गया, व्याख्या की गई, टीका की विवारः [वि+वृ+घञ्] 1. मुंह, विस्तार 2. अक्षरों गई 7. विस्तारित, फैलाया गया 8. विस्तृत, विशाल, का उच्चारण करते समय कण्ठ का विस्तार (एक प्रशस्त। सम० अक्ष (वि०) बड़ी बड़ी आँखों अभ्यंतर प्रयत्न, विप० संवार, दे० पा० 1319 पर वाला, (क्षः) मुर्गा, द्वार (वि०) खुले दरवाजों सिद्धा०)। वाला - कु०४१३६ / विवासः, विवासनम् [वि+वस्-+-णिच् +घञ्, ल्युट वा] | विवृतिः (स्त्री०) [वि-+व+क्तिन्] 1. प्रदर्शन, प्रकटी देश निर्वासन, देशनिकाला, निष्कासन,... रामस्य गात्र- / करण 2. विस्तार 3. अनावरण, व्यक्तीकरण मसि दुर्वहगर्भखिन्नसीताविवासनपटोः करुणा कुतस्ते 4. भाष्य, टीका, वृत्ति, वाच्यान्तर / -उत्तर० 2 / 10 / विवृत्त (भु० के० कृ०) [वि+वृत्+नत] 1. मुड़ कर विवासित (भू० क० कृ०) [वि+वस+णिच--क्त] देश आया हुआ 2. मुड़ना, चक्कर काटना, लुढ़कना, से निर्वासित किया गया, देश निकाला दिया गया, भवर। निष्कासित। विवृत्तिः (स्त्री०) [वि+वृत् +-क्तिन्] 1. मुड़ना, भंवर, विवाहः [वि--वह घिन | शादी, व्याह (हिन्द्र स्मति- चक्कर 2. (व्या०) उच्चारण भंग / कारों ने आठ प्रकार के विवाह बताये हैं -ब्राह्मो | विवश (भ० क. कृ०) [वि-वध+क्त] 1. विकसित दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः, गांधर्वो राक्षसश्चैव *2. बढ़ा हुआ, आवधित, ऊंचा किया हुआ, बढ़ाया हुआ, पैशाचश्चाष्टमोऽधमः -- मनु० 3121, दे० याज्ञ० / तीब्र (शोक हर्षादिक) 3. विपुल, विशाल, प्रचुर। 58, 61 भी, इन रूपों की व्याख्या के लिए उस शब्द विवृद्धिः (स्त्री०) [वि+वृध+क्तिन] 1. बढ़ना, वर्घन, को देखो / सम० -चतुष्टयम् चार पत्नियों से विवाह बढ़ती, विकास प्रयुः शरीरावयवा विवृद्धिम् .....रघु० करना, ---दीक्षा विवाह संस्कार या कर्म / 17 / 49, विवृद्धिमत्राश्नुवते वसूनि- 114, इसी विवाहित (भू० क. कृ.) [वि+वह +णिच् + क्त प्रकार शोक हर्ष° आदि 2. समृद्धि / ब्याहा हुआ। विवेकः [वि-+-विक+घञ | 1. विवेचन, निर्धारण, विवाह्यः [वि+वह + ण्यत्] 1. जामाता 2. दूल्हा / विचारणा, विज्ञता,-काश्यपि यातस्तवापि च विविक्त (भू० क. कृ०) [वि-|-विच् +-का] 1. वियुक्त, विवेकः भामि० 1168,66, ज्ञातोऽयं जलघर तावको पृथक्कृत, अलगाया हुआ, बेसुध 2. अकेला, एकाकी, विवेकः-९६ 2. विचार, विचारविमर्श, गवेषणानिवृत, विलग्न 3. एकल, एकी 4. प्रभिन्न, विवेचन यच्छंगारविवेकतत्त्वमपि यत्काव्येष लीलायितम् --- किया हुआ 5. विवेकशील 6. पवित्र, निर्दोष रत्न गीत० 12, इसी प्रकार द्वैत धर्म° 3. भेद, अन्तर, १२१,--यतम् 1. एकान्त स्थान, निर्जन स्थान शि० (दो वस्तुओं में) प्रभेद नीरक्षीर विवेके हंसालस्यं 8170 2. अकेलापन, निजता, एकान्तस्थान-क्ता त्वमेव तनुषे चेत् भामि० 1153, भट्टि० 17 / 60 भाग्यहीन या अभागी स्त्री, जो अपने पति को प्यारी 4. (वेदान्त में) दृश्यमान जगत् तथा अदृश्य आत्मा न हो, दुर्भगा। में भेद करने की शक्ति, माया या देवल बाह्य विविग्न (वि०) [विशेषेण विग्नः वि--विज् + क्त] रूप से वास्तविकता को पृथक् करना 5. सत्य ज्ञान अत्यंत क्षुब्ध, या डरा हुआ रघु० 18 / 13 / -6. जलाशय, पात्र, जलाधार। सम०-- (दि०) विविष (वि) [विभिन्ना विधा यस्य-प्रा० ब०] नाना विवेकशील, विवेचक,-ज्ञानम् विवेचन करने की प्रकार का, विभिन्न प्रकार का, बहुरूपी, विश्वरूपी, शक्ति, - दृश्वन् (पुं०) सूक्ष्मदर्शी पुरुष, ... पदवी प्रकीर्ण मनु० 118, 39 / पुनर्विमर्श, विचार, चिन्तन / विवीतः [विशिष्टं वीतं गवादिप्रचारस्थानं यत्र -प्रा० विवेकिन (वि०) [विवेक+इनि] विवेचक, विचारवान्, घिरा हुआ स्थान, बाड़ा, जैसे चरागाह / विवेकशील, पुं० 1. न्यायकर्ता, गणदोषविवेचक विवक्त (भू० क० कृ०) [वि+वृज-|-क्त छोड़ा हुआ, | 2. दार्शनिक। परित्यक्त, संपरित्यक्त। विवेक्त (पुं०) [वि- यिच् + तृच] 1. न्यायकारी विवक्ता [विवृक्त+टाप्] वह स्त्री जिसको उसका पति 2. षि, दार्शनिक / प्यार नहीं करता, तु० 'विविक्ता'। | विवेचनम्,-ना [वि-+-विच्-+ ल्यट] 1. गुणदोषविचारणा विवृत (भू० क. कृ.) [वि-+-+ क्त] 1. प्रदर्शित, / 2. विचारविमर्श, विचार 3. फैसला, निर्णय / For Private and Personal Use Only Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 955 ) विवोढ़ (पुं) [वि +-बह --तच्] दूल्हा, पति। करना—बिक्रम० 2 / 14 8. सुपुर्द करना, सौंपना विवोक दे० बिम्बोक-विव्वोकस्ते मरविजयिनो वर्मपाती रघु० 1964, निस्-', 1. सुखोपभोग करना बभूव ---उ० सं० 43 / -ज्योत्स्नावतो निर्विशति प्रदोषान् - रघु०६।३४, विश (तुदा० पर० विशति, विष्ट) 1. प्रविष्ट होना, निबिष्टविषयस्नेहः स दशांतमुपेयिवान्-- रघु० 12 / 1, जाना, दाखिल होना - विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनम 4/51, 6 / 50, 9135, 13 / 60, 14180, 1813, ---कु० 5 / 30, रघु० 6.10, 12, मेघ० 102, 19147, मेघ० 110 2. अलंकृत करना, आभूषित भग० 11129 2. जाना या पहंचना, अधिकार में आना करना 3. विवाह करना, प्र-, 1. प्रविष्ट होना किसी के हिस्से में पड़ना-उपदा विविशुः शश्वन्नोत्सेकाः 2. आरम्भ करना, शुरु करना, (-प्रेर०) प्रस्तुत कोशलेश्वरम् रघु० 4 / 70 3. बैठ जाना, बस जाना करना, प्रवेष्टा के रूप में आगे आगे चलना, 4. घुस जाना, व्याप्त हो जाना 5. स्वीकार करना, विनि ,रक्खा जाना, बिठाया जाना, (प्रेर०) उत्तरदायित्व लेना, -प्रेर० (वेशयति-ते) धुसाना, 1. स्थिर करना, रखना- कु० 1149, रघु० 6 / 63, प्रविष्ट कराना - इच्छा० (विविक्षति) प्रविष्ट होने मदरसि कुचकलशं विनिवेशय-गीत० 12 2. बसाना, की इच्छा करना, अन --, 1. सम्मिलित होना नई बस्ती बसाना–कु० 6137, सम्-, 1. प्रविष्ट 2. किसी का अमुगमन करना, बाद में प्रविष्ट होना, होना 2. सोना, लेटना, आराम करना-संविष्टः अनुप्र सम्मिलित होना (आलं० से) दूसरे की कुशशयने निशां निनाय -रघु० 1195 मनु० 4 / 55, इच्छानुसार अपने आप को ढालना, यस्य यस्य हि 7 / 225 3. सहवास करना, मैथुन करना- षोडशर्तयो भावस्तस्य तस्य हितं नरः, अनुप्रविश्य मेघावी निशा: स्त्रीणां तस्मिन् युग्मासु संबिशेत् - याज्ञ. क्षिप्रमात्मवशं नयेत—पंच० 1168, अभिनि, 179, मनु० 3 / 48 4. सुखोपभोग करना, समा-, (आ०) 1. सम्मिलित होना, अधिकार करना 1. प्रविष्ट होना, भट्टि० 8 / 27 2. पहुंचना 3. लग 2. सहारा लेना, अधिकार कर लेना --अभिनिविशते जाना, तुल जाना, संनि, (प्रेर०)-1. रखना, घरना सन्मार्गम् - सिद्धा०, भयं तावत्सेव्यादभिनिविशते 2. स्थापित करना, ऊपर धरना-रघु० 12158 / -मुद्रा० 5 / 12, भट्टि० 880, आ- 1. प्रविष्ट होना (पु.) [ विश्--क्विप ] 1. तीसरे वर्ण का मनुष्य, --रघु०२।२६ 2. अधिकार करना, कब्जे में ले लेना, वैश्य 2. मनुष्य 3. राष्ट्र, स्त्री० 1. राष्ट्र, प्रजा काब कर लेना 3. पहँचना 4. किसी विशेष स्थिति 2. पुत्री। सम०---पण्यम् सामान, व्यापारिक माल, पर पहुंचना, उप-,1. बैठ जाना, आसन ग्रहण करना ... पतिः (विशांपतिः' भी) राजा, प्रजा का स्वामी। भग० 1146 2. डेरा डालना 3. स्वीकार करना, विशम् [विश्+क] कमल की गंडी के तन्तु, रेशे-तु० अभ्यास करना-प्रायमुपविशति 4. उपवास करना बिस / सम० -- आकरः एक प्रकार का पौधा, भद्र---भट्टि० 775, नि-, (आ०) 1.बैठ जाना, आसन चुड, कंठा सारस / ग्रहण करना--नवांबुदश्यामवपुर्यविक्षत (आसने) विशङ्कट (वि०) (स्त्री०-टा,-टी) [वि+शंक+अटच] -शि० 1119 2. पड़ाव डालना, डेरा लगाना 1. बड़ा, विशाल, बृहत्-विशङ्कटो वक्षसि बाणपाणिः -रघु०१२।६८ 3. प्रविष्ट होना, रामशाला न्यविक्षत __--- भट्टि० 2150, शि० 13134 2. मजबूत, प्रचंड, -भट्टि० 4 / 28, 6 / 143, 817, रघु० 9 / 82 शक्तिशाली। 4. स्थिर किया जाना, निर्दिष्ट किया जाना--सर्य- विशङ्का [विशिष्टा विगता वा शङ्का - प्रा० स०] डर, निविष्टदृष्टि:---रघु० 14 / 66 5. व्यस्त होना, अनु आशङ्का / षक्त होना, तुल जाना, अभ्यास करना श्रुतिप्रामा- विशद ( वि०) [वि---शद्+अच] 1. स्वच्छ, पवित्र, ण्यतो विद्वान्स्वधर्मे निविशेत वै मनु० 2 / 8 6. विवाह निर्मल, विमल, विशुद्ध-योगनिद्रान्तविशः पावनकरना (निविश' के स्थान पर), (प्रेर०) 1. जमाना, रवलोकन: -- रघु० 10114, 19 // 39, रत्न० 319, निर्दिष्ट करना, (मन, चित्त) लगाना, भग० 1218 कि० 5 / 12 2. सफेद, विशुद्धश्वेत रङ्ग का निर्धी2. स्थित करना, धरना, रखना रघु०६।१६, 4 / 39 तहारगलिकाविशदं हिमांभः - रघु० 5 / 70, कु० 7 / 63 3. बिठाना, स्थापित करना -रघु० 15 / 97 1140,6 / 25, शि० 9 / 26, कि० 4 / 23 3. उज्ज्व ल, 4. जीवन में स्थित कराना, विवाह कराना-श० चमकीला, सुन्दर-कु० 3 / 33, शि० 8 / 70 4. साफ, 4 / 19 5. (सेना आदि का) डेरा डालना रघु० स्पष्ट, प्रकट 5. शान्त, निश्चिन्त आराम सहित-जातो 5 / 42, 16 / 37 6. रेखांकन करना, चित्रित करना, ममायं विशदः प्रकामं (अन्तरात्मा)-श० 4 / 22 / चित्र बनाना ---चित्रे निवेश्य परिकल्पितसत्त्वयोगा विशयः [वि+शो-अच] 1. सन्देह, अनिश्चयता, अधि-श०२।९, मालवि०३।११ 7. लिख लेना, उत्कीर्ण / करण के पांच अंगों में से दूसरा 2. शरण, सहारा / For Private and Personal Use Only Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशरः [वि++अप] 1. टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़। रहित, बिना चोटी का, विना नोक का, -खः 1. दालना 2. बघ, हत्या, विनाश / बाण, -- माधव मनसिजविशिखभयादिव भावनया स्वयि विशल्य (वि०) [विगतं शल्यं यस्मात्-प्रा० ब०] कष्ट | लीना-गीत० 4, रघु० 5 / 50, महावी० 2 / 38 और चिन्ता से मुक्त, सुरक्षित / 2. एक प्रकार का नरकुल 3. एक लोहे का कौवा। विशसनम् [वि+शस्+ल्युट]. 1. वध, हत्या, पशुमेध | विशिखा [विशिख +टाप्] 1. फावड़ा 2. नकुवा 3. सुई -उत्तर० 4 / 5 2. बर्वादी,न: 1. कटार, टेढ़े फल की या पिन 4. बारीक बाण 5. राजमार्ग 6. नाई की तलवार 2. तलवार। पत्नी / विशस्त (भू० क० कृ०) [वि+शंस्+क्त] 1. काटा हुआ, विशित (वि.) [वि+-शो+क्त] तीव्र, तीक्ष्ण / चीरा हुआ 2. उजड, अशिष्ट 3. प्रशस्त, विख्यात / विशिपम् |विशेः कपन[ 1. मन्दिर 2. आवासस्थान, घर / विशस्त (0) [वि+शस्+तच्] 1. हत्या करने वाला | विशिष्ट (भ० क. कृ.) वि- शिप-क्त) 1. विलक्षण, या बलि के लिए वध करने वाला व्यक्ति 2. चाण्डाल। स्वतंत्र 2. विशेष, असामान्य, असाधारण, प्रभेदक विशस्त्र (वि०) [विगतं शस्त्रं यस्य] बिना हथियारों के, 3. विशेषगुणसम्पन्न, लक्षणयक्त, विशेषतायुक्त, शस्त्ररहित, जिसके पास बचाव के लिए कुछ न हो। सविशेष 4. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख, उत्कृष्ट, बढ़िया। विशाखः [विशाखानक्षत्रे भवः-विशाखा-+अण्] 1. काति- सम० अद्वैतवादः रामानुज का एक सिद्धान्त, जिसके केय का नाम - महावी० 2138 2. धनुष से तोर अनुसार ब्रह्म और प्रकृति समरूप तथा वास्तविक छोड़ते समय की स्थिति (इसमें धनुर्धारी एक पग सत्ता मानी जाती है अर्थात् मूलतः दोनों एक ही है, पीके तथा एक जरा आगे करके खड़ा होता है) ----बुद्धिः (स्त्री.) प्रभेदक ज्ञान, प्रभेदीकरण,-वर्ण 3. भिक्षुक, आवेदक 4. तकुवा 5. शिव का नाम / (वि०) प्रमुख या श्रेष्ठ रंग का। सम-बनारंगी का पेड़। | विशीर्ण (भू० क० कृ०) वि+शृवत] 1. छिन्न-भिन्न विशाखल दे० विशाख (2) / किया हुजा, तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया हुआ 2. विशाखा [विशिष्टा शाखा प्रकारो यस्य--प्रा० ब०](प्रायः माया हुआ, कुम्हलाया हुआ 3. गिरा हुआ,-कु० द्विवचनान्त) सोलहवां नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मि- 5 / 28 4. सिकुड़ा हुआ, संकुचित, या झरिया जिसमें मित होते हैं-किमत्र चित्रं यदि विशाखे शशकलेखा- पड़ गई हों। सम० पर्णः नीम का पेड़,--मूर्ति मनुवर्तेते-श० 3 / (वि०) जिसका शरीर नष्ट हो गया हो, अनंग कु. विशायः [वि+शी+घञ] बारी-बारी से सोना, शेष 5 / 54, (तिः) काम देव का विशेषण / पहरेदारों का बारी-बारी से पहरा देना। विशुद्ध (वि.) वि+शुध+क्त] 1. शुद्ध किया हुआ, विशारणम् [वि+शु+णि+ल्यु] 1. टुकड़े-टुकड़े करना, स्वच्छ 2. पवित्र, निर्व्यसन, निष्पाप 3. बेदाग, फाड़ना 2. हत्या, वध / निष्कलंक 4. सही, यथार्थ 5. सदगुणी, पुण्यात्मा, विशारद (वि.) [विशाल+दा+क, लस्य र:] ईमानदार, खरा मा० 7.1 6. विनीत / कुशल, प्रवीण, विज्ञ, जानकार (प्रायः समास में विशतिः (स्त्री० [वि-शव--क्तिन] 1. पवित्रीकरण, -मधुदान विशारदाः-- रघु० 9 / 29 817 शुद्धिकरण तदंगसंसर्गमवाप्य कल्पते ध्रुवं चिताभ2. विद्वान्, बुद्धिमान् 3. मशहूर, प्रसिद्ध 4. साहसी, स्मरजो विशुद्धये कु. 5179, भग• 6 / 12, मनु० भरोसे का,- बकुलवृक्ष, मौलसिरी का पेड़। 6 / 69, 1053 2. पवित्रता, पूर्णपवित्रता,--रष० विशाल (वि.) [वि.+शालच्] 1. विस्तृत, बड़ा, दूर 1110, 12 / 48 3. याथातथ्य, यथार्थता 4. परिष्कार, तक फैला हुआ, प्रशस्त, व्यापक, चौड़ा,-गृहविशा- भूलसुधार 5. समानता, समता। लैरपि भूरिशाल:-ज्ञि० 3 / 50, 11 // 23, रघु० विशल (व.) [विगतं शुलं यस्य - प्रा.ब.बिनाबी, 2 / 21, 6032, भग० 9 / 21 2. समृद्ध, भरपूरा जिसके पास बी न हो- रघु० 15 / 5 / --- श्रीविशालां विशालाम्-मेघ० 30 3. प्रमुख, श्रीमान् विशृंखल (वि.) [विगता शृंखला यस्य--प्रा. ब. महान्, उत्तम, प्रख्यात, ल: 1. एक प्रकार का हरिण 1. जो श्रृंखला में न बंधा हो (शा.) 2. विशृंखलित, 2. एक प्रकार का पक्षी, - ला 1. उज्जयिनी नगर का अनियंत्रित, अप्रतिबद्ध, निरंकुश, बेरोक-शि० १२१७नाम - पूर्वोद्दिष्टामनुसर पुरी श्रीविशालाम- मेघ० भामि० 2 / 177 3. सब प्रकार के नैतिक बंधनों से 30 2. एक नदी का नाम / सम० अक्ष (वि०) मुक्त, लम्पट-- भर्त० 2059 / बड़ी-बड़ी आँखों वाला, (--क्षः) शिव का विशेषण | विशेष (वि.) [विगतः शेषो यस्मात्-प्रा० ब०] ( क्षी) पार्वती का विशेषण / ____1. अजीब 2. पुष्कल, प्रचर--- रघु०२।१४, षः 1. विशिख (वि.) [विगता शिखा यस्य प्रा० ब०] मुकुट | विवेचन, विभेदीकरण 2. प्रभेद, अन्तर निविशेषो For Private and Personal Use Only Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 957 ) विशेषः-भर्त० 3150 3. विशिष्टतायुक्त अन्तर, श्लोकों का समूह जो व्याकरण की दृष्टि से एक ही अनोखा चिल्ल, विशेष गुण, विशे षता, वैशिष्ट्य,प्रायः वाक्य बनता है द्वाम्यां युग्ममिति प्रोक्तं त्रिमिः समास में प्रयुक्त तथा विशिष्ट' और अजीब' शब्दों श्लोकविशेषकम्, कलापकं चतुभिः स्यात्तदूर्ध्व कुलकं से अनूदित - श०६।६ 4. अच्छा मोड़, रोग में मोड़, स्मतम् / अर्थात् अपेक्षाकृत अच्छा परिवर्तन --अस्ति मे विशेषः / विशेषण (वि०) [वि+शिष- ल्युटु ] गुणवाचक, - णम् ----- श० 3, 'अब अपेक्षाकृत अच्छा है' 5. अवयव, 1. विभेदन, विवेचन 1. प्रभेदन, अन्तर 3. वह शब्द अंग पुपोष लावण्यमयान् विशेषान् - कु० 125 जो किसी दूसरे शब्द की विशेषता प्रकट करता है, 6. जाति, प्रकार, प्रभेद, भेद, ढंग (प्रायः समास के अंत गुणवाचक शब्द, गुण, विशेषता, (विप० विशेष्य), में)-भूतविशेषः उत्तर० 4, परिमलविशेषान् पंच० (विशेषण तीन प्रकार का बताया जाता है ---व्यावर्तक, 1, कदलोविशेषाः कु० 1136 7. विविध उद्देश्य, विधेय और हेतुगर्भ) 4. प्रभेदक लक्षण या चिह्न, नाना प्रकार के विवरण (ब०व०) --मेघ० 58, 5. जाति, प्रकार। 64 8. उत्तमता, श्रेष्ठता, भेद, प्रायः समास के | विशेषतस् (अव्य०) [विशेष-तस् ] विशेष रूप से, अन्त में, उत्तम, पूज्य, प्रमुख, उत्कृष्ट . अनुभाव- खास तौर से। विशेषात्तु रधु० 1137, वविशेषेण कु० 531, विशेषित (भू० क० कृ०) [वि+शिष्-+ णिच्+क्त ] रघु० 2 / 7, 6 / 5, कि० 9 / 58, इसी प्रकार आकृति ___ 1. विलक्षण 2. परिभाषित, जिसके विवरण बता दिये विशेषाः 'उत्तम रूप' अतिथिविशेष: 'पूज्य अतिथि' ! गए हों 3. विशेषण के द्वारा जिसकी भिन्नता दर्शा दी आदि 9. अनोखा विशेषण, नौ द्रव्यों में से प्रत्येक की | गई हो 4. श्रेष्ठ, बढ़िया। शाश्वत विभेदक प्रकृति 10. (तकं० में) वैयक्तिकता विशेष्य (वि०) [वि+शिष्+ण्यत् ] 1. विलक्षण होने (विप० सामान्य) अनठापन 11. प्रवर्ग, वर्ग के योग्य 2. मुख्य, बढ़िया, -ध्यम् वह शब्द जिसे 12. मस्तक पर चन्दन या केसर का तिलक 13. वह विशेषण के द्वारा सीमित कर दिया गया हो, वह शब्द जो किसी अन्य शब्द के अर्थ को सीमित कर पदार्थ जो किसी दूसरे शब्द द्वारा परिभाषित, या देता है, दे० विशेषण 14. ब्रह्मांड का नाम 15. (अलं० / विशिष्ट कर दिया गया हो, संज्ञाशब्द,-- विशेष्यं में) एक अलंकार का नाम जिसके तीन भेद बताये नाभिधा गच्छेत्क्षीणशक्तिविशेषणे ---काव्य० 2 / गये हैं, मम्मट ने इसकी परिभाषा यह दी है:-विना विशोक (वि०)[विगतः शोको यस्य प्रा० ब०] शोक प्रसिबमाघारमाधेयस्य व्यवस्थितिः, एकात्मा युगपद से मुक्त, प्रसन्न, -क: अशोक वृक्ष, का शोक से वृत्तिरेकस्यानेकगोचरा। अन्यत्प्रकुर्वतः कार्यमशक्या- छुटकारा। न्यस्य वस्तुनः, तथैव करणं चेति विशेषस्त्रिविधः | विशोधनम् [वि+शुध+ल्युट् ] 1. शुद्ध करना, स्वच्छ स्मृतः काव्य० 10 / सम०--अतिवेशः विशेष करना (आलं० से)-राज्यकंटक विशोधनोद्यतः --- अतिरिक्त नियम, विशेष विस्तारित प्रयोग,---उक्तिः विक्रम० 5.1 2. पवित्रीकरण, निष्पाप या दोषरहित (स्त्री०) एक अलंकार जिसमें कारण के विद्यमान | होना 3. प्रायश्चित्त, परिशोधन / रहते हुए भी कार्य का होना नहीं पाया जाता | विशोध्य (वि.) [ विशघ---ण्यत् ] पवित्र किये जाने ... विशेषोक्तिरखंडेषु कारणेष फलावचः काव्य. / के योग्य, निर्मल या शुद्ध किये जाने के योग्य / 10, उदा० हृदि स्नेहक्षयो नाभूत्स्मरदीपे ज्वलत्यपि, विशोषणम् | वि+शुष्+ल्युट ] सुखाना, शुष्कीकरण / ज्ञ, विद् (वि०) 1. भेदों को जानने वाला, विपणनम्, विश्राणनम् | वि+श्रण + ल्युट्, पक्षे णिच् ] गुणवोपविबेचक, पारखी 2. विद्वान, बुद्धिमान् भर्त० / प्रदान करना, समर्पण करना, अनुदान, उपहार, दान२२३, लक्षणम्,-लिंगम् विशेष या लक्षणदर्शी चिह्न, विश्राणनाच्चान्यपयस्विनीनाम् / रघु० 2 / 54 / -- वचनम् वि पाठ या विधि,-विधिः,-शा स्त्रम् विभब्ध (भ० क.कृ) (विसब्ध भी) [वि+धम्भ+ विशेष नियम। क्त] 1. बन्द किया गया, विश्वास किया गया, सौंपा विशेषक (वि०) [वि-|-शिष+ण्वल ] प्रभेदक, कः, गया 2. विस्वस्त, निडर, भरोसा करने वाला - मुद्रा० .. कम् 1. एक प्रभेदक विशिष्टता या लक्षण विशेषण 3 / 3 3. विश्वसनीय, भरोसे का 4. निश्चल, सौम्य, 2. चन्दन या केसर का माथे पर लगा तिलक शान्त, निश्चिन्त 5. दृढ़, स्थिर 6. नम्र, विनीत 7. ----मालवि० 3.5 3. रंगीन उबटन तथा अन्य सुगंधित अत्यधिक, बहुत ज्यादह,- धम् (अव्य०) विश्वासपदार्थो से मुख या शरीर पर रेखांकन करना-स्वेदोदगमः पूर्वक, निर्भीकता के साथ, बिना डर व संकोच के . . किंपुरुषांगनानां च पदम् पत्रविशेषकेषु-कु० 3 / 33, विश्रब्धं क्रियतां वराहततिभि: मस्ताक्षतिः पल्वले रघु० . 9 / 29, शि० 3163, 10 / 14, कम् सीन | ..-श०१६ / For Private and Personal Use Only Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 958 ) विश्रमः [वि+श्रम्-+अप] 1. आराम, विश्रान्ति 2. विश्व (सा० वि०) [विश्+4] 1. सारे, सारा, समस्त, विराम, विश्राम। ___ सार्वलांकिक 2. प्रत्येक, हरेक, (पू० ब० व०) दस विषम्भः [वि-|-श्रम्भ---घा] 1. विश्वास, भरोसा, देवों का समूह (यह 'विश्वा' के पुत्र समझे जाते हैं, अन्तरंग विश्वास, पूर्ण घनिष्ठता या अन्तरंगता / इनके नाम है वसुः सत्यः ऋतुर्दक्षः काल: कामो धृतिः विश्रम्भादुरसि निपत्य लब्धनिद्रा-उत्तर० 149, मा० कुरुः, पुरूरवा गाद्रवारच विश्वेदेवाः प्रकीर्तिता:३।१ 2. गुप्त बात, रहस्य विभंभेष्वभ्यंतरीकरणीया श्वम् 1. सम्पूर्ण सृष्टि, समस्त संसार इदं विश्वं ----का0 3. आराम, विश्राम 4. स्नेहसिक्त परिपृच्छा पाल्यम्-उत्तर० 3 / 30, विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं 5. प्रेम-कलह,प्रीतिविषयक झगड़ा 6. हत्या / सम०-. पालयिष्यति कः भामि० 1113 2. सूखा अदरक, आलापः,... भाषणम् गुप्त वार्तालाप, वार्तालाप,--- सोंठ। सम० आत्मन (पु) 1. परमात्मा (विश्व पात्रम्,- भूमिः,- स्थानम् विश्वास करने के योग्य की आत्मा) 2. ब्रह्मा का विशेषण 3. शिव का पदार्थ या व्यक्ति, विश्वस्त, विश्वसनीय व्यक्ति / विशेषण-अथ विश्वात्मने गौरी संदिदेश मिथः विश्रयः[ विश्रि+अच् ] शरण, आश्रयस्थल / सखीम् कु० 6.1 4. विष्णु का विशेषण, ईशः, विधवस् (पुं०) पुलस्त्य के एक पुत्र का नाम, जो कैकसी ईश्वरः 1. परमात्मा, विश्व का स्वामी 2. शिव का से उत्पन्न रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा विशेषण, कडु (वि०) दुष्ट, नीच, दुर्वृत्त, (दुः) का पिता था, कुबेर के एक पुत्र का नाम जो उसकी 1. शिकारी कुत्ता, मृगयाकुक्कुर 2. स्वस्थ,- कर्मन् पत्नी इडाविडा से उत्पन्न हुआ था। (पुं०) 1. देवों का शिल्पी, तु० त्वष्ट 2. सूर्य का विधाणित भू० क० कृ०) [वि-+श्रण+णिच् + क्त ] | विशेषण, जा, सुता; सूर्य की पत्नी संज्ञा का प्रदान किया गया, अपित किया गया-निःशेषविश्रा विशेषण, कृत् (पु०) 1. सब प्राणियों का स्रष्टा णितकोशजातम्-- रघु० 5 / 1 / 2. विश्वकर्मा का विशेषण--,केतुः अनिरुद्ध का विधान्त (भु० क० कृ०) [वि+श्रम्-क्ति ] 1. बन्द विशेषण, गंधः प्याज, (-धम्) लोबान, गुग्गुल, किया हुआ, रोका गया 2. आराम किया हुआ, विश्राम गंधा पृथ्वी, जनम् मानवजाति, जनीन,-जन्य किया हुआ 3. सौम्य, शान्त, स्वस्थ / / (वि.) मानवमात्र के लिए हितकर, मनुष्य जाति के विधान्तिः / स्त्री०) [वि+श्रम् +क्तिन् ] 1. आराम, उपयुक्त, सब मनुष्यों के लिए लाभकर-भट्टि० 2 / 48, विश्राम 2. रोक, थाम / 21117,- जित् (पुं०) 1. यज्ञ विशेष का नाम .. विश्रामः [वि+श्रम्+घञ 11. रोक, थाम 2. आराम, रघु० 5 / 1 2. वरुण का पाश, देव विश्व (पु०) के चैन -- विश्रामो हृदयस्य यत्र उत्तर० 1139 3. नीचे दे०, धारिणी पृथ्वी, पारिन् (पुं०) देव शान्ति, सौम्यता, स्वस्थता। ..-- नाथः विश्व का स्वामी, शिव का विशेषण, पा विधावः [वि+श्रु+घा ] 1. चूना, टपकना, बहना (पु०) 1. सब का रक्षक 2. सूर्य 3. चन्द्रमा 4. अग्नि, ('विसाव' के स्थान में) 2. ख्याति, कीर्ति / - पावनी, पूजिता तुलसी का पौधा, सन् (पुं०) विभुत (भू० क० कृ०) [वि+श्रु+क्त ] प्रख्यात, लब्ध 1. देव 2. सूर्य 3. चन्द्रमा 4. अग्नि का विशेषण प्रतिष्ठ, यशस्वी, प्रसिद्ध 2. प्रसन्न, आनन्दित, खुश | --- भुज् (वि० सर्वोपभोक्ता, सब कुछ खाने वाला 3. बहता हुआ। (पुं०) इन्द्र का विशेषण, भेषजम् सूखा अदरक, विश्रुतिः (स्त्री०) [वि+श्रु --क्तिन् ] प्रसिद्धि, ख्याति / सोंठ, मूर्ति (वि०) सब रूपों में विद्यमान, सर्वविश्लथ (वि०) [विशेषण श्लथः - प्रा० स० ) 1. ढीला, व्यापक, विश्वव्यापो,-मा० ११३,--योनिः 1. ब्रह्मा शिथिल, खुला हुआ,-रघु० 6173 2. स्फूतिहीन, का विशेषण 2. विष्ण का विशेषण,- राज, राजः निस्तेज। विश्वप्रभ, - रूप (वि०) सर्व व्यापक, सर्वत्र विद्यमान विश्लिष्ट (भू० क० कृ०) [वि+श्लिष-क्ति वियुक्त, (पः) विष्णु का विशेषण, (पम्) अगर की लकड़ी, -- पृथक्कृत, अलग अलग किया हुआ रघु० 1276 / / ---रेतस् (पुं०) ब्रह्मा का विशेषण, वाह (वि०) विश्लेषः [वि+श्लिष् +घञ 1 अलगाव, वियोजन / (स्त्री० विश्वौही) सब कुछ ढोने वाला, सब का 2. विशेषतः प्रेमियों अथवा पति-पत्नी का बिछोह ! भरण पोषण करने वाला, सहा पृथ्वी, सज् (पुं०) 3. वियोग तनया विश्लेषदुःखैः श० 4/5, चरणा- - ब्रह्मा का विशेषण, स्रष्टा प्रायेण सामग्र्यविधी रविंदविश्लेष-रघु० 13123 4. अभाव, हानि, गुणानां पराङमुखी विश्वसृजः प्रवृत्तिः----कु० 3 / 28, शोकावस्था 5. दरार, छिद्र। 1149 / विश्लेषित (भू० क. कृ०) [वि+श्लिष -णिच-|-क्त]विश्वंकरः [विश्वं सर्व करोति प्रकाशयति-- कृ+ट, अलग किया हुआ, वियुक्त, जुदा किया हुआ / द्वितीयाया अलुक्] आँख, (कुछ के अनुसार-नपुं०)। For Private and Personal Use Only Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवती गन्धर्व का नाम 11 भरोसा, प्रत्यय, निष्ठा, विश्वतस् (अव्य) [विश्व+तसील] सब ओर, सर्वत्र, | अधिक थी, उदाहरणतः उसने त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने, सब जगह भामि० 1130 / सम० मुख (वि.) इन्द्र के हाथ से शुनःशेपको रक्षा करने, तथा ब्रह्मा सब ओर मुख किये हुए--भग० 9 / 15 / की भांति पुनः सृष्टि की रचना करने में अत्यधिक विश्वथा (अव्य) [विश्व---थाल] सर्वत्र, सब जगह / / बल का प्रदर्शन किया। यह बालक राम का साथी विश्वंभर (वि.) [विश्वं बिति विश्व++खच्, और परामर्शदाता था, इसने राम को अनेक आश्चर्य मुम्] सब का भरणपोषण करने वाला, र: 1. सर्व जनक अस्त्र प्रदान किये)। व्यापक प्राणी, परमात्मा 2. विष्णु का विशेषण | विश्वावसुः [विश्व+वसुः, पूर्वपदस्थाकारस्य दीर्घः] एक 3. इन्द्र का विशेषण, - रा पृथ्वी -- विश्वंभरा भगवती भवतीमसूत --उतर० 119, विश्वंभराप्यतिलघुर्नरनाथ विश्वासः [वि+श्वस्+घञ] 1. भरोसा, प्रत्यय, निष्ठा, तवांतिके नियतम् - काव्य 0 10 / / विश्रम्भ,-दुर्जनः प्रियवादीति नैतद्विश्वासकारणम् --- विश्वसनीय (सं० कृ०) [ विश्वस-+-अनीयर] 1. विश्वास श० 1114, रघु० 1151, हि०४।१०३ 2. भेद, रहस्य, किये जाने के योग्य, विश्वासपात्र, जिस पर भरोसा गोपनीय समाचार / सम० घातः, मंगः विश्वास किया जा सके 2. विश्वास उत्पन्न करने के योग्य -- श० को तोड़ देना, धोखा देही, द्रोह, घातिन (50) 2, मालवि० 3 / 2 / धोखा देने वाला मनुष्य, द्रोही,... पात्रम्, - भूमिः, विश्वस्त (भू० क० कृ०) [ विश्वस्+क्त] 1. जिस पर - स्थानम् भरोसे की वस्तु. विश्वसनीय या भरोसे का विश्वास किया गया है, निष्ठ, जिस पर भरोसा किया मनुष्य, विश्वासी पुरुष / गया है 2. विश्वास करने वाला, भरोसा करने वाला विष i (जहो० उभ० वेवेष्टि, वेविष्टे, विष्ट) 1. घेरना 3. निडर, विश्रब्ध 4. विश्वास के योग्य, जिस पर 2. फैलाना, विस्तार करना, व्यापक होना 3. सामने भरोसा किया जा सके। जाना, मुकाबला करना (परिनिष्ठित संस्कृत में इसका विश्वाधायस (पुं०) [विश्वं दधाति पालयति-विश्व+धा प्रयोग बहुधा नहीं होता)। णि+असुन्, पूर्वदीर्घः] देव, सुर / Jii (क्रया पर० विष्णाति) वियुक्त करना, अलगविश्वानरः [विश्व+नरः, पूर्वपददीर्घः सविता का विशेषण।। अलग करना। विश्वामित्रः [विश्व+मित्रः, विश्वमेव मित्रं यस्य ब० स०, iii (म्वा० पर० वेषति) छिड़कना, उडेलना।। पूर्वपदस्याकारस्य दीर्घः] एक विख्यात ऋषि का नाम / ष् (स्त्री०) [विष्-+क्विप्] 1. मल, विष्ठा, लीद यह कान्यकुब्ज का राजा होने के कारण क्षत्रिय था, 2. फैलाना, प्रसारण 3. लड़की जैसा कि 'विट्पति' इसके पिता का नाम गााधि था। एक बार यह मृगया में। सम-कारिका (विट कारिका) एक प्रकार के लिए घूमता-धमता वसिष्ठ ऋषि के आश्रम में का पक्षी, प्रहः (विग्रहः) कोष्ठबद्धता, कब्ज, पहुँचा, वहाँ अनेक गौओं को देख कर उसने अनंत -चरः,-बराहः (विट्चरः, विड्वराहः) पालतू या धन राशि देकर भी उनको लेना चाहा और न मिलने गाँव का सूअर,-लवणम् (विड्लवणम्) एक प्रकार पर बलात् उनको छीनने का प्रयत्न किया / इस बात का औषधियों में प्रयुक्त होने वाला नमक, सङ्गः पर एक महान् संघर्ष हुआ, और राजा विश्वामित्र पूर्ण (बिट्सङ्गः) कोष्ठबद्धता, क़ब्ज,-सारिका (विटरूप से परास्त हो गया। इस पराजय से विश्वामित्र सारिका) एक प्रकार का पक्षी, मैना / अत्यंत क्षुब्ध हुआ और साथ ही वसिष्ठ के ब्राह्मणत्व विषम [विष+क] 1. जहर, हलाहल (इस अर्थ में 'पुं०' की शक्ति से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह भी कहा जाता है)-विषं भवतु मा भूता फटाटोपो ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करता भयङ्कर:-पंच० 1204 2. जल, विषं जलघरैः रहा। यहां तक कि बाद में उसे क्रमशः राजर्षि, पीतं मूछिता: पथिकाङ्गनाः- चन्द्रा० 5482, (यहाँ ऋषि, महर्षि और ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली, परन्तु दोनों अर्थ अभिप्रेत है) 3. कमलडण्डी के तन्तु या उसे सन्तोष न हुआ क्योंकि वसिष्ट ने अपने मुख से रेशे 4. लोबान, एक सुगन्धित द्रव्य का गोंद, रसउसे ब्रह्मर्षि नहीं कहा। विश्वामित्र हजारों वर्ष गन्ध / सम० अक्त,-दिग्ध (वि०) विषैला, जहरीला, तपस्या करता रहा, तब कहीं जाकर वसिष्ठ ने उसे ----- अंकुरः 1. बी 2. विष में वुझा तीर,-अंतक: ब्रह्मर्षि कहा। विश्वामित्र ने कई बार बसिष्ठ को शिव का विशेषण, अपह,-हन वि०) विषनाशक, उत्तेजित करने का प्रयत्न किया, उदाहरणत: वसिष्ठ विषनिवारक औषधि, आननः, --आयुषः, आस्यः, के सौ पुत्रों को विश्वामित्रने मौत के घाट उतार दिया, सांप,- आस्वाद (वि.) जहर चखने वाला, --कुम्भः परन्तु वशिष्ठ तब भी नहीं घबराया। अन्तिमरूप से जहर से भरा हुआ घड़ा, कृमि: जहर में पला हुआ ब्रह्मर्षि बनने से पहले विश्वामित्र की शक्ति बहत कीड़ा,न्याय दे० न्याय के अन्तर्गत, ज्वरः भैंसा, For Private and Personal Use Only Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुआ। --वः बादल (वम्) तूतिया, - वन्तकः साँप,-वर्शन-। विशेषण,--अन्नम् अनोखा या अनियमित आहार मृत्युकः,- मृत्युः एक पक्षी (इसे चकोर कहते हैं), ---- आयुधः,-इषः,-शरः कामदेव के विशेषण, -घरः साँप-भामि० 1174, निलयः निम्नतर - कालः अननुकूल ऋतु, चतुरस्रः, चतुर्भुजः प्रदेश, साँपों का बिल,- पुष्पम् नील कमल,-- प्रयोगः विषभ कोण वाला चतुष्कोण, छवः सप्तपर्ण नाम जहर का इस्तेमाल, जहर देना,-भिषज्,-वैद्यः का पेड़,- ज्वरः कभी कम तथा कभी अधिक होने विषनाशक औषधियों का विक्रेता, साँपों के काटने वाला बुखार, लक्ष्मीः दुर्भाग्य, विभागः सम्पत्ति की चिकित्सा करने वाला-संप्रति विषवद्यानां कर्म- का असमान वितरण,--स्थ (वि०) 1. दुर्गम स्थिति मालवि० ४,--मन्त्रः 1. साँप के काटे का विष में होने वाला 2. कठिनाई में रहने वाला, अभागा। उतारने का मन्त्र 2. सपेरा, बाजीगर,-वक्षः जहरीला विवमित (वि.) [विषम+इतन्] 1. ऊबड़-खाबड़ किया पेड़, -विषवृक्षोऽपि संवयं स्वयं छत्तमसाम्प्रतम् हुमा, असम, कुटिल 2. सिकुड़न वाला, त्योरीदार -कु० 2 / 55, न्याय व्याय के नीचे देखो,-वेगः 3. कठिन या दुर्गम बनाया गया। जहर का संचार या प्रभाव,-शालकः कमल की जड़ | विषयः [विषिण्वन्ति स्वात्मकतया विषयिणं संबध्नन्ति - शूकः,-शृङ्गिन्, सक्कन् (पुं० ) भिड़, बर्र, -वि+सि+अच्, षत्वम्] ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त -हृदय (वि०) विषाक्त दिलवाला अर्थात् दुष्टहृदय, पदार्थ (यह पांचों ज्ञानन्द्रियों के अनुरूप गिनती में मलिनात्मा / पांच हैं- रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द जिनका विषक्त (भू० क. कृ०) [वि+सङ्ग्+क्त] 1. दृढ़ता- संबंध क्रमशः आँख, जिह्वा, नाक, त्वचा और कान पूर्वक जमा हुआ, सटा हुआ 2. चिपटा हुआ, चिपका से है),--श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ----श० 1112. लौकिक पदार्थ, या वस्तु, मामला, विषण्डम् [विशेषेण पंडम् -प्रा० स०] कमलडण्डी के तन्तु लेन-देन 3. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक या रेशे। या मैथुनसंबन्धी उपभोग, वासनात्मक पदार्थ (प्रायः विषण्ण (भू० क० कृ०) [वि+सद्+क्त खित्र, मुंह ब. व. में), यौवने विषयषिणाम् --रधु० 18, लटकाये हुए, उदास, दुःखी, निरुत्साह, हताश / सम. निविष्ट विषयस्नेहः--१२।१, 3170,8 / 10, 19649, --मुख, बबन (वि.) उदास दिखाई देने वाला, विक्रम० 129, भग० 2 / 594. पदार्थ, वस्तु, मामला, -सप (जि०) उदासी की अवस्था में पड़ा हुआ। बात-नार्यों न जग्मुविषयांतराणि-रघु० 7 / 12, विषम (वि०) विगतो विरुद्धो वा समः-प्रा० स०] 1. जो 889 5. उद्दिष्ट पदार्थ या वस्तु, चिह्न, निशान सम या समान न हो, खुरदरा, ऊबड़-खाबड़ -पथिषु ...भूयिष्ठमन्यविपया न तु दृष्टि रस्याः श० 1131, विषमेष्वप्यचलता मुद्रा० 3 / 3, पञ्च० 164, मेष० शि० 9 / 40 6. कार्यक्षेत्र, परास, पहुँच, परिघि 19 2. अनियमित, असमान-मा० 9 / 43 3. उच्चा- -सौमित्ररपि परिणामविषये तत्र प्रिये का भोः वच, असम 4. कठिन, समझने में दुष्कर, आश्चर्य- -उत्तर० 3 / 45, सकलवचनानामविषयः-मा० जनक कि० 23 5. अगम्य, दुर्गम-कि० 2 / 3 1 / 30, 36, उत्तर० 5 / 19, कु० 6 / 17 7. विभाग, 6. मोटा, स्थल 7. तिरछा मा० 4 // 2. पीड़ाकर, क्षेत्र, प्रान्त, भूमि, तत्त्व सर्वत्रौदरिक्तस्याभ्यवहार्यमेव कष्टदायक-भर्तृ० 3 / 105 1. बहुत मजबूत, उत्कट विषयः विक्रम० 3 8. विषयवस्तु, आलोच्य विषय, -मा० 3 / 9 10. खतरनाक, भयानक मुच्छ / प्रसंग,---भामि० 1110, इसी प्रकार 'शृङ्गारविषयको 811, 27 मुद्रा० 118, 2 / 20 11. बुरा, प्रतिकूल, ग्रन्थः' ऐसी पुस्तक जिसमें प्रीतिविषयक बातों का विपरीत--पच०४११६ 12. अजीब, अनोखा, अनु- उल्लेख हो 9. व्याख्येय प्रसंग या विषय, शीर्षक, पम 13. बेईमान, कैलापूर्ण, - मम् 1. असनता अधिकरण के पांचों अंगों में से पहला 10. स्थान, 2. अनोखापन 3. दुर्गम स्थान, चट्टान, गड़ढा आदि जगह-परिसरविषयेष लीढमक्ताः कि० 5 / 35 4. कठिन या खतरनाक स्थिति, कठिनाई, दुर्भाग्य, - 11. देश, राष्ट, राज्य, प्रदेश, मंडल, साम्राज्य 12. सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरा- शरण, आश्रय 13. ग्रामों का समह 14. प्रेमी, पति कृतानि भर्त० 2097, भग० 2 / 2 . एक अलंकार 15. वीर्य, शुक्र 16, धार्मिक अनुष्ठान (विषय की का नाम जिसमें कार्य कारण के बीच में कोई अनोखा बावत, के विषय में, के संबंध में, इस मामले में के या अघटनीय संबंध दर्शाया जाता है -- यह चार | बारे में, बाबत-या तवास्ते यतिविषये सष्टिराप्रकार का माना जाता है--दे० काव्य०, का० 126 द्येव धातुः- मेघ० 82, स्त्रीणां विषये, धनविषये व १२७,-मः विष्णु का नाम / सम० - अक्षः, आदि)। सम० ---अभिरतिः 1. सांसारिक विषय -ईक्षणः,-नयनः,-नेत्रः,-लोचनः शिव के / / वासनाओं में आसक्ति --कि० 6144, इसी प्रकार For Private and Personal Use Only Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिलाष:-कि० 3 / 13, -आत्मक (वि०) सांसा- / विषालु (वि०) [ विष+आलुच ) विषला, जहरीला। रिक पदार्थों से युक्त, आसक्त,- निरत (वि०) | विषु. (अव्य०) [ विष् +कु] 1. दो समान भागों में, विषयवासनाओं में लिप्त, विषयी, विलासी, इन्द्रिया- समान रूप से 2. भिन्नतापूर्वक, विविध प्रकार से सक्त,--आसक्ति उपसेवा, निरतिः (स्त्री०), 3. समान, सदृश / ---प्रसंगः भोगविलास, कामासक्ति, प्रामः उन पदार्थों विष्पम् [विषु+पा+क] दो स्थलबिन्दु जहाँ पर सूर्य का समह जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाने जाते हैं, सुखम् विषुवत् रेखा को पार करता है। इन्द्रियासक्ति, विषयोपभोग / विषुवम् [विषु+वा+क ] मेषराशि या तुलाराशि का विषयायिन् (पं)। विषयान अयते प्राप्नोति--विषय+ प्रथम बिन्दु जिसमें सूर्य शारदीय या वासन्तिक विषुव अय-+णिनि ] 1. इन्द्रियसुखों में लिप्त, भोगविलासी में प्रविष्ट होता है, विषुवीय बिन्दु। सम०-छाया 2. संसार के कार्यों में लिप्त मनष्य 3. कामदेव 4. राजा मध्याह्नकाल में धूपधड़ी के शंकु की छाया,-विनम् 5. ज्ञानेन्द्रिय 6. भौतिकवादी। विषुवीय दिन, रेखा विषुवीय रेखा,-संकान्तिः विषयिन् (वि.) [विषय+इनि] इन्द्रियसुखसंबंधी, (स्त्री०) सूर्य का विषुवीय मार्ग / शारीरिक, पुं० 1. सांसारिक पुरुष, विषयी, दुनिया- विषूचिका [वि+सूच्- वुल+टाप्, षत्वम्, इत्वम् ] दार आदमी 2. राजा 3. कामदेव 4. भोगविलासी, लंपट ...पंच० 13146, श० 5, नपुं० 1. ज्ञानेन्द्रिय | विष्क (चुरा० उभ० विष्कयति / ते) 1. वध करना, चोट 2. ज्ञान / पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना (इस अर्थ में केवल आत्मविषल: (पुं०) जहर, हलाहल। नेपदी) 2. देखना, प्रत्यक्ष करना / विवाह (वि.) वि--सह +यत ] 1. सहन करने के | विष्कन्दः / वि+स्कन्द+अच, षत्वम् ] 1. तितरवितर योग्य, जो बर्दाश्त किया जा सके अविषाव्यसनेन | होना 2. जाना, गमन / धूमिताम् .. कु. 4 / 30, रघु०६।४७ 2. जो बसाया जा | विष्कम्भः [वि+स्कभ् +अच् ] 1. अवरोष, रुकावट, सके जो निर्धारित किया जा सके मनु० 8 / 265, बाधा 2. दरवाजे की सांकल, चटकनी 3. घर में संभष, शक्य / लगा शहतीर 4. धूणी, खंभ 5. वृक्ष 6. (नाटकों में) विषा [ विष् - अच्+टाप् ] 1. विष्ठा, मल 2. प्रतिभा, नाटकों के अंकों के मध्य में मध्यरंग का दृश्य जो दो समझ। मध्यम या निम्नदर्जे के पात्रों द्वारा प्रदर्शित किया विषाणः,--णम्, गो [विष+कानच, स्त्रियां ही ] जाता है, तथा जिसमें श्रोताओं के सामने अंकों के 1. सींग साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुन्छ- अन्तराल में तथा बाद में होने वाली घटनाओं को विषाणहीन:--- भत० 2 / 12, कदाचिदपि पर्यटन संक्षेप में कह कर नाटक की कथावस्तु के बवान्तर शशविषाणमासादयेत् ---215 2. हाथी या सूअर के भागों का नाटक की मख्य कथा से संबन्ध स्थापित दांत-तप्तानासुपदधिरे विषाणभिन्नाः प्रह्लादं सुरक- कर दिया जाता है। साहित्यदर्पण में इसकी निम्नां रिणां धनाःक्षरन्त: / कि० 7 / 13, शि० 160 / कित परिभाषा की गई है वृत्तवतिष्यमाणाना का विषाणिन् (वि.) [ विषाण--इनि ] सींगों वाला या दांतों शाना निदर्शकः / संक्षिप्तार्थस्तु विष्कमः पादाकस्य बाला,--पुं० 1. वह जानवर जिसके सींग हों या दांत दर्शितः। मध्येन मध्यमाभ्यां वा पात्राभ्यां संप्रयोजितः / बाहर निकले हों 2. हाथी शि० 4 / 63, 12177 शुद्धः स्यात् स तु संकीणों नीचमध्यमकल्पितः-३०८ 3. साँड़। 7. वृत्त का ध्यास 8. योगियों की विशेष मद्रा विषादः [ वि+सद-+घश 1 1. खिन्नता, उदासी, 9. विस्तार, लम्बाई। उत्साहहीनता, रंज, शोक मद्वाणि मा कुरु विषादम् विष्कभक दे० विष्कंभ। ... भामि० 4 / 41 विषादे कर्तव्ये विदधति जडाः | विष्कभित (वि०) [विष्कभ+इतन् ] बाधायुक्त, प्रत्युत मुदम् भर्तृ० 3 / 35, रघु० 854 2. निराशा, अवरुद्ध / हताशा, नैराश्य, विषादलप्तप्रतिपत्तिसैन्यम्-रघ. विष्कभिन (50) [विष्कम +इनि] द्वार की अर्गला, 2140 (विषादश्चेतसो भंग उपायाभावनाशयोः) / सांकल या चटखनी / 3. थकान, म्लान अवस्था,- मा० 2 / 5 4. मन्दता, विकिरः [वि++क, सुट, षत्वम् ] 1. इधर उपर जइता, संज्ञाहीनता / बखेरना, फाड़ डालना 2. मुर्गा 3. पक्षी, तीतर की विवादिन् (वि०) [विषाद- इनि ] 1. खिन्न, उद्विग्न जाति का पक्षी-छायापस्किरमाणविष्किरमुखव्याकृष्ट2. उदास, विषण। कीटत्वचः उत्तर० / 9 / विधारः [विष-++अच् ] साँप / विष्टपः, पम् [ विष् +कपन, तु] संसार, भुवन-कुं० 121 For Private and Personal Use Only Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 962 ) 3 / 20, तु० त्रिविष्टप। सम० ----हारिन् (वि०) जो / विष्कारः [वि-+स्फुर+णिच्, उकारस्य आत्वम्] 1. धनुष संसार को प्रसन्न करता है- भर्तृ० 2 / 25 / / की टंकार 2. वरपराहट / विबन्ध (भू.क. कृ०)[वि+स्तंभ+क्त ] 1. पक्का | विष्य (वि.) [विशेण वध्यः-विष+यत] विष देकर जमाया हुआ, भली भांति आश्रित 2. टेक लगा हुआ, | मारे जाने योग्य, जिसको जहर देकर मार सहारा दिया हुआ 3. अवरुद्ध, सबाध 4. लकवा के दिया जाय / रोग से प्रस्त, गतिहीन / विष्यम्बः [वि+स्यन्द्+घश] बहना, टपकना। विभः [वि+स्तंभ+घञ ] 1. पक्की तरह से जमाना | विष्व (वि०) पीडाकर, क्षतिकर, उत्पातकारी। 2. अवरोध, रुकावट, बाघा : मूत्रावरोध, मलावरोध | विष्वच्, विष्वञ्च (वि०) [विषुम् अञ्चति- विपु+अंच् कोष्ठबद्धता 4. लकवा 5. ठहरना, टिकाव / स्किन्] (कर्तृ०, ए. व. पु. विष्वङ, स्त्री विषूची विवरः [वि.+स्तृ+अप्, षत्वम् ] 1. आसन, (स्टूल, नपुं० विष्वक) 1. सर्वत्र जाने वाला, सर्वव्यापक,--- कुर्सी आदि)--रघु० 8 / 18 2. तह, परत, बिस्तरा विष्वङ्मोहः स्थगयति कथं मन्दभाग्यः करोमि (कुश आदि घास का) 3. मुट्ठीभर कुशाघास 4. यज्ञ ... उत्तर०३।३८, मा० 9 / 20 2. भागों में अलग में ब्रह्मा का आसन 5. वृक्ष / सम०-- भाज् (वि०) अलग करने वाला 3. भिन्न, (विश्वक शब्द क्रिया आसन पर बैठा हुआ, आसन पर विराजमान-कु. विशेषण के रूप में प्रयक्त होता है तो इस का अर्थ 772, -श्रवस् (पुं०) विष्णु या कृष्ण का विशेषण है .. 'सर्वत्र' 'सबओर' 'चारों तरफ' कि० 15 / 59, -शि० 14 / 12 / पञ्च० 212, मा० 5 / 4, 9 / 25) / सम० - सेनः विष्टिः (स्त्री० [विष+क्तिन् ] 1. व्याप्ति 2. कर्म, (विष्वक्सेनः, या विष्वक्षेणः) विष्णु का विशेषण व्यवसाय 3. भाड़ा, मजदूरी 4. बेगार 5. प्रेषण --साम्यमाप कमलासखविष्वकसेनसेवितयुगान्त6. बरकवास / पयोधे:--शि० 1055, विष्वक्सेनः स्वतनुमविशत्सर्व विष्ठलम् [विदूरं स्थलम् - प्रा० स०] दूरवर्ती स्थान, लोकप्रतिष्ठाम् .. रघु० 15 / 103, - प्रिया लक्ष्मी फासले पर स्थित / का नाम। विष्ठा [वि+स्था+क+टाप, षत्वम् ] 1. मल, लीद, | विष्वणनम्, विष्वाणः [वि+स्वन् + ल्युट्, घन वा, पालाना, ---मनु० 3 / 180, 1091 2. पेट / | षत्वणत्वे) भोजन करना, खाना। विष्णुः [विष् + नुक् ] देवत्रयी में दूसरा, जिसको संसार | | विष्वय (घ) च् (वि०) (स्त्री० विष्वद्वीची) का पालनपोषण सौंपा गया है, (इस कर्तव्य को भिन्न [विष्व+अञ्च+किन् अद्रि आदेशः] सर्वग, भिन्न अवतार धारण करके संपन्न किया जाता है, सर्वव्यापक, विश्वदीचीविक्षिपन सैन्यवीची:-शि० अवतारों के विवरण के लिए दे० अवतार) इस शब्द 18 / 25, विष्वद्रीच्या भुवनमभितो भासते यस्य की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है - यस्माद्विश्वमिदं भासा भामि० 4 / 18 / सर्व तस्य शक्त्या महात्मनः, तस्मादेवोच्यते विष्ण- | विसi (दिवा० पर० विस्यति) डालना, फेंकना, भेजना। विशधातोः प्रवेशनात् --- 2. अग्नि 3. पुण्यात्मा 4. विष्णु- ii (भ्वा० पर० वेसति) जाना, हिलना-जुलना / स्मति के प्रणेता। सम० कांची एक नगर का | विस दे० 'बिस'। नाम, -कमः विष्णु के पग, गुप्तः चाणक्य का नाम, विसंयुक्त (भू० क. कृ०) [वि+सम्+युज+क्त) -तलम् एक प्रकार औषधियों से बनाया गया तेल, अलग-अलग किया हुआ, पृथक् पृथक् किया हुआ। -देवत्या प्रत्येक पक्ष (चान्द्रमास के) की एकादशी | विसंयोगः [वि+सम्+युज्+घा] अलग-अलग होना, और वादशी,-पदम् 1. आकाश, अन्तरिक्ष 2. क्षीर- बिछोह, वियोग / सागर 3. कमल, ..पवी गंगा का विशेषण,-पुराणम् विसंवादः [वि+सम्+वद्+घश] 1. घोखा, प्रतिज्ञा अठारह पुराणों में से एक पुराण, प्रीतिः (स्त्री०) भंग करना, निराशा 2. असंगति, असंबद्धता, असहविष्णुपूजा को स्थापित रखने के लिये ब्राह्मणो को मति 3. वचनविरोध। अनुदान के रूप में दी गई शुल्क से मुक्त भूमि, | विसंवादिन (वि.) [विसंवाद+इनि] 1. निराश करने --रषः गरुड का विशेषण, रिंगी बटेर, लवा, वाला, धोखा देने वाला 2. असंगत, विरोधात्मक -लोकः विष्णु का संसार,-वल्लभा 1. लक्ष्मी का 3. भिन्न मत रखने वाला, असहमत--रषु० 12067 विशेषण 2. तुलसी का पौधा, -वाहनः, बाह्यः 4. जालसाज, धूर्त, मक्कार / गरह के विशेषण। विसंष्ठल (वि.) [वि+सम्+स्था+उलच्] 1. अस्थिर, विपदः [वि+स्पन्द+ ] घड़कन, स्पन्दन, धक-धक विक्षुब्ध 2. असम / / होना। | विसंकट (वि०) [विशिष्टः संकटो यस्मात्--प्रा०३०] For Private and Personal Use Only Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयानक, डरावना-मा० ५.१३---तु० विशंकट, 2. रेंगना, सरकना 3. मछली,-रम् 1. लकड़ी ---ट: 1. सिंह 2. इंगुदी का वृक्ष / 2. शहतीर / विसंगत (वि०) [वि+सम्+गम्+क्त] अयोग्य, | विसारिन (वि०) (स्त्री०-णी) [वि+स+णिनि] असम्बद्ध, बेमेल / 1. फैलाने वाला, प्रसार करने वाला 2. रेंगने वाला, विसंधिः [विरुद्धः सन्धि,--प्रा० स०] अनभिमत सन्धि | सरकने वाला, पुं० मछली / या सन्धि का अभाव (यह साहित्यरचना में एक विसिनी दे० 'बिसिनी'। दोष माना जाता है) दे० काव्य०७।। विसिल दे० 'बिसिल' / विसरः [वि+सृ---अप] 1. जाना 2. फैलाना, विस्तार | विसूचिका वि+सूच+ण्वल+टाप, इत्वम्] हैजा / करना 3. भीड़, समुच्चय, रेवढ़, लहण्डा 4. बड़ी वितरणम्,-णा [वि-+सूर्+ल्युट्] दुःख, शोक / राशि, ढेर मा० 1137 / विसूरितम् [वि+सूर् + क्त] पश्चात्ताप, दुःख, ता बुखार, विसर्गः [वि+सज+घञ] 1. भेज देना, उदगार ज्वर / 2. गिराना, उडेलना, बूंद-बूंद करके गिराना रघु० | विसत (भू० क. कृ.) [वि+स-+क्त] 1. फैलाया हुआ, 16138 3. डालना, फेंकना 4. प्रदान करना, भेंट, दान विस्तृत किया हुआ, प्रसारित किया हुआ 2. विस्ता-आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमचामिव-रघु०४।८६, रित, ताना हुआ 3. कहा हुआ। (यहां शब्द का अर्थ 'उडेलना' भी है) 5. भेज देना, | विसत्वर (वि.) (स्त्री०-रो) [वि+स-क्वर, तुक] विसर्जन 6. परित्याग, छोड़ देना 7. उत्सर्जन, मलत्याग 1. इधर उधर फैलने वाला, व्याप्त होने वाला विसजैसा कि 'पुरीष विसर्ग' में 8. जदाई, वियोग 9. मोक्ष त्वरैरंबरुहां रजोभि:-शि० 3 / 11 2. रेंगना, सरकना। 10. प्रकाश, ज्योति 11. लिखने में एक प्रतीक, जो / विसमर (वि.) [वि+स+मरच] 1. रेंगने वाला, स्पष्ट रूप से महाप्राण है तथा दो बिन्दु (:) लगा सरकने वाला, शनैः शनैः चलने वाला-विसृमरहेषितकर प्रकट किया जाता है 12. सूर्य का दक्षिणायन यः-वेणी० 4 / 13. लिङ्ग, शिश्न / विसृष्ट (भू० क. कृ०) [वि+स+क्त] 1. उद्गीर्ण, विसर्जनम् [वि+सृज् + ल्युट्] 1. उद्गार, प्रेषण, उडे- उगला हुआ 2. उत्पन्न, निःसत 3. हलकाया हुआ, लना-समतया वसुवृष्टिविसर्जनैः- रघु० 9 / 6 टपकाया हुआ 4. भेजा हुआ, प्रेषित---रघु० 5 / 39 2. प्रदान करना, भेंट, दान-रघु० 9 / 6 3. मलत्याग, 5. बिदा किया गया, जाने दिया गया, कार्यभार से मनु० 4 / 48 4. डाल देना, त्याग देना, परित्याग मुक्त किया गया-रघु० 2 / 9 6. निकाल बाहर करना-रघु० 8125 5. भेज देना, बिदा करना, | किया गया, फेंका गया 7. दिया गया, प्रदत्त, स्वीकृत. 6. (देवता को) बिदा करना (विप० आवाहन) ग्रामेष्वात्मविसष्टेषु रघु० 1144 8. परित्यक्त, 7. किसी विशेष अवसर पर सांड को छोड़ उन्मुक्त, हटाया गया (दे० वि पूर्वक सृज्)। देना। विस्त दे० 'बिस्त। विसर्जनीय (वि०) [वि-सज-- अनीयर] परित्यक्त किये। विस्तरः वि--स्तु-अप] 1. विस्तार, फैलाव 2. सूक्ष्म जाने के योग्य,यः-विसर्ग (6) दे। विवरण, व्योरेवार वर्णन, सूक्ष्म ब्यौरे --- संक्षिविजित (भू. क. कृ०) [वि-+-सज+णिच्+क्त] प्तस्याप्यतोऽस्यैव वाक्यस्यार्थगरीयसः, सुविस्तरतरा 1. उद्गीर्ण, उगला गया 2. प्रदत्त 3. छोड़ा गया, वाचो भाष्यभूता भवंतु मे -शि० 2 / 24 (विस्तरेण त्याग दिया गया, परित्यक्त 4. भेजा गया, प्रेषित विस्तरतः, विस्तरशः ब्यौरेवार, विस्तारपूर्वक, पूरी 5. बिदा किया गया, तितर-बितर किया गया। तरह से, सूक्ष्म विवरण सहित, पूरी विशेषताओं के विसर्पः [वि+सप्+घञ्] 1. रेंगना, सरकना 2. इधर साथ,-अंगुलिमुद्राधिगमं विस्तरेण श्रोतुमिच्छामि-मुद्रा० से उधर आना और जाना 3. फैलाव, संचार-उत्तर० 1, भग० 10 // 18) 3. सुविस्तरना, प्रसार-- अलं 1 / 35 4. किसी कर्म का अप्रत्याशित या अनपेक्षित विस्तरेण 4. बहुतायत, परिमाण, समुच्चय, संख्या फल 5. एक प्रकार का रोग, सूखी खुजली। सम० 5. बिस्तरा, तह, स्तर 6. आसन, तिपाई। --घ्नम् मोम / विस्तारः [वि+स्तु+घा] 1. फलाव, विस्तृति, प्रसारणविसर्पणम् [वि+सुप्+ ल्युट्] 1. रेंगना, सरकना, शनैः प्रांतविस्तारभाजाम्--मा० 1027 2. आयाम, चौड़ाई शनैः चलना 2. प्रसारण, फैलाव, विस्तारण / -विलोकयंत्यो वपुरापुरक्ष्णां प्रकामविस्तारफलं हरिण्यः विपिः, विसपिका दे० उ० विसर्प (5) / रघु० 2 / 11, भग० 131303. फैलाव, विपुलता, विसल दे० 'बिसल'। विशालता--मध्यः श्यामः स्तन इव भवः शेषविस्तारविसारः [वि+स+घ] 1. फैलाना, बिछाना, प्रसारण | पांडु: ---मेघ०१८ 4.विवरण, पूरा ब्यौरा- कण्वोऽपि पर: [वि+तह स्तर 6. आमाण, समुच्चय, अलं For Private and Personal Use Only Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 964 ) तावच्छतविस्तारः क्रियताम्--श०७ 5. वृत्त का / --मनु० 4 / 237 4. अनिश्चय, सन्देह। सम० व्यास 6. झाड़ी 7. नूतन पल्लवों से युक्त पेड़ की -आकुल, -आविष्ट (वि) आश्चर्ययुक्त, अचरज से शाखा। भरा हुआ। विस्तीर्ण (भू० क.कृ.) [वि+स्तु+क्त] 1. बिछाया | विस्मयंगम (वि.)[ विस्मयं गच्छति--विस्मय+गम गया, फलाया गया, विस्तार किया गया 4. चाड़ा, खश, मुम् | अचरज से भरा हुआ, आश्चर्यजनक / विस्तृत 3. विशाल, बड़ा, विस्तारयुक्त / सम० विस्मरणम् [वि+स्म ल्युट् ] भूल जाना, विस्मृति, -पर्णम् एक प्रकार की जड़, मानक / स्मृति का न रहना, बिसर जाना-श०५।२३ / विस्तृत (भू० क० कृ०) [वि+स्तृ+क्त] 1. प्रसारित, | विस्मापन (वि०) (स्त्री० ---नी) [ वि + स्मि+णिच् + फैलाया गया, विस्तारयुक्त 2. चौड़ा, फैला हुआ ल्युट, पुकागमः, आत्वम् आश्चर्यजनक,---न: 1. काम3. विपुल 4. सुविस्तर, लंबा-चौड़ा। देव 2. चाल, धोखा, भ्रम,नम् 1. आश्चर्य पैदा पिस्तुतिः (स्त्री० [वि-स्तु+क्तिन्] 1. विस्तार, फैलाव करना 2. कोई भी आश्चर्यजनक वस्तू 3. गंधवों का 2. चौडाई, फ़ासला, विशालता 3. वृत्त का ब्यास / नगर (पुं० भी कहा जाता है)। विपष्ट (वि.) [विशेषेण स्पष्ट:-प्रा० स०] 1. सीधा, | विस्मित (भू० क० कृ०) [वि+स्मि+क्त ] 1. आश्च साफ़, सुबोध 2. प्रकट, स्फुट, सुव्यक्त, खुला, प्रत्यक्ष / | र्यान्वित, चकित, भौचक्का, हक्काबक्का 2. उलटपुलट पिस्कारः [वि+स्फुर+घा , उकारस्य आकारः] 1. थर- किया गया 3. घमंडी। पराहट, कम्पन, धड़कन 2. धनुष की टंकार / विस्मृत (भू० क. कृ.) [ बि+स्मृ+क्त ] भूला हुआ। चित्कारित (भू० क.कृ.) [विस्फार+इतच्] 1. थरथरी विस्मृतिः (स्त्री०) [वि+स्म+क्तिन् ] भूल जाना, पैदा की गई 2. कम्पमान, थरथराता हुआ 3. टंकार- बिसार देना, अस्मरण / युक्त 4. विस्तृत किया हुआ, फैलाया हुआ 5. प्रकटित. | विस्मेर (वि.) [ वि+स्मि+स् ] भौचक्का, आश्चर्याप्रदर्शित / वित, चकित / विल्कुरितः (भू.क.कृ०) [वि+स्फर--क्त] 1. थर-वित्रमा विस+रक ] कच्चे मांस की गंध के समान गंध। पराने वाला, कांपने वाला 2. सूजा हुआ, सम-धिः हरताल / विस्तारित। विस्रसः,-सा [वि+संस्+घञ्] 1. नीचे गिरना बिस्कुलिंगः [वि+स्फुर+विस्फु तादृशं लिंगम्अस्ति 2. क्षय, शैथिल्य, कमजोरी, निर्बलता।। बस्य] 1. आग की चिनगारी अग्नेज्वलतो विस्फ-सिन (वि.) विस+ल्यट] 1. पतनशील या लिंगा विप्रतिष्ठेरन् -शारी० 2. एक प्रकार का विष / बिन्दुपाती- अन्तर्मोहनमौलिघूर्णनचलन्मन्दारविषेसनः पिलवपुः [वि+स्फूर्ण +अथुच्] 1. दहाड़ना, गर- —गीत० 3 2. खोलने वाला, ढीला करने वाला -- जना, कड़कना 2. बादल की गरज, विजली की कड़क नीवीवितंसन: कर:- काव्य०७. --नम् 1. अधःपतन 3. विजली जसी कड़क, अकस्मात् आभास या आघात- 2. बहना, टपकना 3. खोलना, ढीला करना 4. रेचक, ममैव जन्मांतरपातकानां विपाकविस्फर्जपुरप्रसाः- दस्तावर। र० 14162 4. (लहरों का) आन्दोलित होना, | विस्रग्धविखंभ दे० विश्रब्ध, विश्रम्भ / लहरों का उठना-महोमिविस्फूर्जयुनिर्विशेषाः---रघु० विनसा [ वि+संस्+क+टाप् ] क्षय, निर्बलता, जजे 13 / 12 / विस्यूजितम् [वि+स्फूर्ज +क्त] 1. दहाड़, चीत्कार | वित्रस्त (भू० क० कृ०) [ वि+संस्+क्त] 1. ढीला 2. लुढ़कना 3. फल, परिणाम -भर्तृ० 2 / 125, 3 / किया हुआ 2. दुर्बल, बलहीन / 148 / विनवः, विनावः [वि++अप, घश् वा ] बहना, विस्कोटः,टा [वि+स्फुट +घञ्] 1. फोड़ा, अर्बुद, बूंद बूंद टपकना, चूना, रिसना। रसौली 2. शीतला, चेचक / विस्रावणम् [ वि++णिच् + ल्युट् ] रक्त बहना। विस्मयः [वि+स्मि+अच्] 1. आश्चर्य, ताज्जुब, अचम्भा, | विनुतिः (स्त्री.) [वि++क्तिन् ] बह जाना, चूना, अचरज-पुरुषः प्रबभूवाग्नेविस्मयेन सहत्विजाम-रघ० | रिसना। 1051 2. आश्चर्य या अचम्भे की भावना, जिससे विस्वर (वि०) [ विरुद्धः विगतो वा स्वरो यस्य - प्रा. अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है, सा० द० 207 पर ब.] बेसुरा। इसकी परिभाषा दी गई हैः - विविधेषु पदार्थेषु लोक- विहगः [ विहायसा गच्छति गम्+ड, नि.] 1. पक्षी सीमातिवतिषु, विस्फारश्चेतसो यस्तु स विस्मय उदा- --मेघ० 28, ऋतु०११२३ 2. बादल 3. बाण 4. सूर्य हृतः 3. घमंड, अभिमान,--तपः क्षरति विस्मयात् 5. चाँद 6. नक्षत्र / For Private and Personal Use Only Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहंगः [ विहायसा गच्छति -गम्+खच, मम् ] 1. पक्षी। खेल, मनोबिनोद, मनोरञ्जन, आमोद-प्रमोद, -रघु० 1151, मनु० 9 / 55 2. बादल 3. बाण विलास-विहारशैलानुगतेव नागैः - रघु० 16 / 26, 4. सूर्य 5. चन्द्रमा / सम० - इन्द्रः,-श्विरः,--राजः 76, 5 / 41, 9168, 13 // 38, 19637 4. पग गरुड़ के विशेषण। रखना, कदम बढ़ांना,-दरमन्थरचरणविहारम-गीत. विहंगमः [ विहायसा गच्छति-गम् +खच, मुम, विहा- 11, कि० 4115 5. वाटिका, उद्यान, विशेषतः देशः] पक्षी - (गृह दीपिकाः) मदकलोलकलोलविहं- प्रमोदवन 6. कन्धा 7. जैनमन्दिर या बौडमन्दिर, गमा:--रघु० 9 / 37, मनु० 1939, हि० 1137 / मठ, आश्रम या संघाराम 8. मन्दिर 9. वागिमित्रय विहंगमा, विहंगिका [ विहंगम+टाप, विहंग+ कन्+ का बृहद् विस्तार / सम०--गृहम् प्रमोदभवन, टाप, इत्वम् ] विहंगी, वह बांस जिसके दोनों सिरों -- दासी संन्यासिनी, भिक्षुणी। पर बोझ बांध कर लटका दिया जाता है। विहारिका [ विहार-+- कन्+-टाप, इत्वम् ] बौद्धमठ / विहत (भू० क० कृ०) [वि+हन्+क्त ] 1. पूरी तरह | बिहारिन् (वि०) / विहार+इनि ] मनोविनोदी या आहत, वध किया गया 2. चोट पहुंचाई गई 3. अव- दिलबहलावा करने वाला - मृगयाविहारिण:-०१। रुद्ध, विरोध किया गया, मुकाबला किया गया। विहित (भू० क० कृ०) [वि+या+क्त ] 1. किया विहतिः [वि+हन्+क्तिच् मित्र, साथी, - (स्त्री०) / हुआ, अनुष्ठित, कृत, बनाया हुआ 2. क्रमबद्ध किया 1. हत्या करना, प्रहार करना 2. असफलता 3. परा- हुआ, स्थिर किया हुआ, सुव्यवस्थित, नियोजित, जय, हार / निर्धारित 3. आदिष्ट, विधान किया हुआ, समादिष्ट विहननम् [वि+हन्+ल्युट् ] 1. हत्या करना, प्रहार 4. निर्मित, संरचित 5. रक्खा हुआ, जमा किया हुबा, करना 2. चोट, क्षति 3. अवरोध, रुकावट, अड़चन 6. सुसज्जित, सम्पन्न 7.किये जाने के योग्य 4. रुई धुनने की धुनकी।। 8. वितरित, बांटा गया (दे० वि पूर्वक पा),-सम् विहरः [विह+अप् ] 1. अपहरण करना, हटना आदेश, आज्ञा। 2. वियोग, बिछोह / विहितिः (स्त्री०) [वि+घा+क्तिन् ] 1. अनुष्ठान, विहरणम् [बि+ह+ ल्युट | 1. दूर करना, अपहरण | क्रिया, कर्म 2. व्यवस्था / करना 2. सैर करना, हवाखोरी, इधर उधर टहलना | विहीन (भू० क. कृ.) [वि+हा+क्त] 1. छोड़ा 3.आमोद-प्रमोद, मनोरञ्जन / / गया, परित्यक्त, त्यागा गया 2. शून्य, रहित, वञ्चित विहर्त पुं) [वि+है+तच ] 1. भ्रमणशील 2. लुटेरा। (प्रायः समास में)-विद्याविहीनः पशुः --भत० 220 विहर्षः [विशिष्टो हर्षः - प्रा० स०] बहुत अधिक 3. अधम, नीच, कमीना। सम-जाति -योनि प्रसन्नता, उल्लास / (वि०) नीच घर में उत्पन्न, नीच कुल में पैदा हुआ। विहसनम् विहसितम् विहासः [वि+हस्+ल्युट्, क्त | विहत (भू० क० कृ०) [वि+ह+क्त ] 1. क्रीडा की, घा बा] मन्द हंसी, मुस्कान / 'खेला हुआ 2. फुलाया हुआ, तम् स्त्रियों द्वारा प्रेम विहस्त (वि०) [विगतः हस्तो यस्य - प्रा० ब०] | प्रदर्शित करने की दस रीतियों में से एक ...दे.सा. 1. हस्तरहित 2. घबराया हुआ, व्याकुल, पराभूत, द०१२५, 146, (इस अर्थ में 'विकृत' भी लिखा शक्तिहीन किया हुआ,-मा० 1, रघु० 5 / 59 जाता है)। 3. अशक्त (उपयुक्त कार्य करने के लिए) अक्षम, विहतिः (स्त्री०) [वि+ह+क्तिन् ] 1. हटाना, दर ---- रुजा विहस्तचरणम् मालवि० 4 4. विद्वान, करना 2. क्रीडा, मनो विनोद, विहार 3. प्रसार, बुद्धिमान् / / विहेठकः [वि+हेट +ण्वुल ] क्षति पहुंचाने वाला / बिहा (अव्य०) [ वि+हा+आ, नि०] स्वर्ग, वैकुण्ठ। विहेठनम् [वि+हे+ल्युट ] 1. क्षति पहुँचाना, पायक बिहापित. (भू० क० कृ०) [वि+हा+णिच+क्त, करना 2. मसलना, पीसना 3. कष्ट देना 4. पीग, पुकागमः] 1. परित्यक्त कराया गया 2 तोड़ मरोड़ दुःख, सताना कर निकाला गया, छुड़ाया गया, तम भेंट, दान / | विहल (वि.) [वि+ह वल+अच् ] 1. विक्षुग्ध, विहायस् (पुं० न०) [वि+हय् + असुन्, नि० वृद्धि ], | अशान्त, व्याकुल, घबराया हुआ रषु० 8 / 37 आकाश, अन्तरिक्ष कि० 16143, (पुं) पक्षी | 2. डरा हुआ, संत्रस्त 3. उन्मत्त, आपे से बाहर --- 0 3 / 99 / 4. कष्टग्रस्त, दुःखी-कु. 414 5. विषादपूर्ण 6. गला विहायस दे० 'विहायस्'। हआ, पिघला हुआ। बिहारः[वि.हि +धा ] 1. हटाना, दूर करना 2. सरवी (अदा० पर० देति-शास्त्रीय साहित्य में विरल प्रयोग) सपाटा, हवाखोरी, भ्रमण, सर करना 3. क्रीडा, I 1. जाना, हिलना-जुलना 2. पहुंचना 3. व्याप्त होना For Private and Personal Use Only Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4. लाना, पहुंचाना 5, फेंक देना, डालना 6. खाना, विशेषण,-दण्डः वीणा की गर्दन-भामि० ११८०,-वादः, उपभोग करना 7. प्राप्त करना 8. गर्भधारण करना, | - धावकः वीणा बजाने वाला। उत्पन्न करना 9. पैदा होना, जन्म लेना 10. चमकना, | वीत (भू० क० कृ०) [वि+5+क्त ] 1 गया हुआ, सुन्दर होना। अंतहित 2. जो चला गया, बिदा हो गया 3. जिसको वोकः [अज्+कन्, वी आदेशः ] 1. वायु 2. पक्षी, जाने दिया गया, ढीला, उन्मुक्त 4. अलगाया हुआ, 3. मन / विमुक्त किया हुआ 5. अनुमोदित, पसंद किया गया बोकाश दे 'विकाश'। 6. युद्ध के अयोग्य 7. पालतू, शान्त 8. मुक्त, शून्य पोलम् [वि+ ईक्ष् + अच् ] 1. दृश्य पदार्थ 2. अचम्भा, (बहुधा समास में) वीतचित, वीतस्पह, वीतभी, आश्चर्य,-क्षः,-क्षा, देखना, ताकना। वीतशंक आदि,तः हाथी या घोड़ा जो युद्ध के अयोग्य बीक्षणम्,–णा [वि+ईक्ष् + ल्युट ] देखना, निहारना, हो या सधाया न गया हो, तम् (हाथी को) अंकुश दृष्टि डालना। से गोदना तथा परों से प्रहार करना,---वीतवीतभया बीक्षितम् [वि+ईश्+क्त ] दृष्टि, झलक / नागाः कु०६।३९ (पाठांतर-दे. इस पर मल्लि.) बीक्य (वि.) [वि+ईश्+ण्यत् ] 1. देखे जाने के योग्य शि० 5 / 47 / सम० दम्भ (वि०) विनम्र, विनीत, 2. दृश्य, दृष्टिगोचर,-क्ष्यः 1. नर्तक, नट, अभिनेता, --भय (वि०) निर्भय, निडर (यः) विष्णु का विशेपात्र 2. घोड़ा, -क्यम् 1. देखे जाने के योग्य कोई षण, मल (वि०) पवित्र, निर्मल, -- राग (वि०) भी वस्तु, दृश्यमान पदार्थ 2. आश्चर्य, अचंभा / 1. इच्छारहित कु०६।४३ 2. निरावेश, सौम्य, शान्त बीजा [वि+इल +अ+टाप् ] 1. जाना, हिलना- 3. विवर्ण, बिना रंग का, (गः) एक ऋषि जिसने जुलना, प्रगति 2. घोड़े का कदम 3. नाच 4. संगम, अपने रागों का दमन कर लिया था,-शोक: मिलन / (--अशोकः) बशोक वृक्ष। बीचिः (पु०, स्त्री०) वीची [ वे+इचि, डिच्च, वीचि | वीतंसः [ विशेषेण बहिरेव तस्यते भूष्यते वितंस्+ -की ] 1. लहर-समुद्रवीचीव चलस्वभावा:-पंच० घा , उपसर्गस्य दीर्घः] 1. पींजरा या जाल जिसमें 1 / 194, रव० 6.56, 12 / 100, मेघ० 282. असं- पक्षी या अन्य वन्य पशु फसाये जाते हैं 2. चिड़ियाघर, गति, विचारशून्यता 3. आनन्द, प्रसन्नता 4. विश्राम, शिकार के पशुओं को पालने का स्थान / अवकाश 5. प्रकाश की किरण 6. स्वल्पता। सम० वोतनी (पं०, द्वि०व०) [ विशिष्टं तनोति--वि+तन् -मालिन् (पुं०) समुद्र / +अच, पृषो० दीर्घः ] गले के अगल बगल के बीची दे० 'वीचि। पाव। बोi (म्वा० आ० वीजते) जाना। वीतिः [ वी+क्तिन् ] घोड़ा, तिः (स्त्री०) 1. गति, ___ii (चुरा० उभ० वीजयति ते) पंखा करना, पंखा चाल 2. पैदावार, उपज 3. सुखोपभोग 4. भोजन करके ठंडा करना-खं वीज्यते मणिमयैरिव तालवन्तः / करना 5. प्रकाश, कान्ति / सम०-होत्रः 1. अग्नि -मृच्छ० 5.13, कु० 2 / 42, अभि-, उप-, 2. सूर्य। परि, पंखा करना -- तु० 3 / 4, श० 3 / वीथिः, थो (स्त्री०) [ विथ+इन्, डीप वा, पृषो०] वीज वीजक, वीजल, / दे० बीज, बीजक, बीजल, / 1. सड़क, मार्ग, -कि० 7 / 17 2. पंक्ति, कतार बीजिक वीजिन, बीज्य बीजिक, बीजिन और बीज्य / 3. हाट, आपणिका, मंडी में दुकान --- शि० 9 / 32 वीजनः [ वी+ल्युट J1. चक्रवाक 2. एक प्रकार का 4. नाटक का एक भेद / इसकी परिभाषा सा० द. चकोर,-नम् 1. पंखा करना कु०४।३६ 2. पंखा। निम्नांकित है वीथ्यामेको भवेद ङ्कः कश्चिदेकोऽत्र वोटा [वि+इट्+क+टाप् ] 1. लकड़ी का एक छोटा कल्प्यते, आकाशभाषिते रुक्तैश्चित्रां प्रत्युक्तिमाश्रितः / टुकड़ा, गुल्ली (लगभग एक बालिश्त) जिसको लड़के सूचयेद्भरि शृङ्गारं किञ्चिदन्यान्रसानपि / मुखडंडा मार कर खेलते हैं, गुल्ली डंडा। निर्वहणे सन्धी अर्थप्रकृत योऽखिलाः, 520 / बीटिः, बीटिका, वीटी [वि-इट-+इन, स च कित, वीटि | वीथिका [वीथि--कन+टाप् ] 1. सड़क आदि 2. चित्र +कन्+टा, वीटि+कोष वा ] 1. पान की बेल, शाला, चित्रसारी (जिस पर चित्र चित्रित किये 2. पान लगाना 3. बंधन, गांठ, ग्रंथि (पहने जाने जाते हैं) चित्रागार, चित्रावली-आर्यस्य चरित्रमस्यं बाले वस्त्र की) 4. चोली की तनी - अमरु 23 / / वीथिकायामालिखितम्-उत्तर० 1 / बीणा [ वेति वृद्धिमात्रमपगच्छति-वी+न, नि० णत्वम् ] | बीध्र (वि.) [ विशेषेण इन्धते - वि + इन्ध् + क्रन्, उप 1. सारंगी, बीणा मूकीभूतायां वीणायाम् - का०, सर्गस्य दीर्घः | निर्मल, स्वच्छ,- ध्रम् 1. आकाश मेघ० 86 2. बिजली। सम० आस्यः नारद का | 2. वाय, हवा 3. अग्नि / For Private and Personal Use Only Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 967 ) बीनाहः [ वि+नह +घञ, उपसर्गस्य दीर्घः ] कुएँ का / वोरणी [वीरण-+ङीष्] 1. तिरछी चितवन, कटाक्ष ढक्कन या मणि। 2. गहरा स्थान / वीपा (स्त्री०) विद्युत्, बिजली। | वीरतरः वीर+तरप] 1. महान् वीर 2. बाण,-रम् एक पीप्सा [वि.आप+सन्+अ+टाप, ईत्वम् ] 1. परि- प्रकार का सुगन्धित धास, उशीर। व्याप्ति 2. (नरंतर्य प्रकट करने के लिए) शब्द | वीरन्धरः [वीर++खच्, मम्] 1. मोर 2. वन्य पशुबों द्विरुक्ति-यथा वृक्षं वृक्ष सिंचति इति वीप्सायां के साथ लड़ाई 3. चमड़े को जाकेट। द्विरुक्तिः 3. सामान्य पुनरुक्ति / वीरवत् (वि०) [वीर+मतुप् शूरवीरों से भरा हुआ, पीभ (म्वा० आ० वीभते) शेखी मारना, डींग मारना। __-ती वह स्त्री जिसका पति और पुत्र जीवित हो। वीर (वि) [अजे: रक वीभावश्च] 1. शूर, वीर 2. ताकत- | वीरा [वीर+टाप्] 1. शूरवीर पुरुष की स्त्री 2. पली वर, शक्तिशाली, र: 1. शूरवीर, योद्धा, प्रजेता | 3. माता, गृहिणी 4. मुरा नामक एक गन्याय, --कोऽप्येष संप्रति नवः पुरुषावतारो वीरो न यस्य | 5. शराब 6. अगर की लकड़ी 7. केले का पेड़। भगवान् भगुनन्दनोऽपि उत्तर० 5 / 34 2. (आलं. वीरिणम दे० 'ईरिण'। में) वीरभावना, वीररस, इसके चार भेद (दानवीर, | बीयप,-धा (स्त्री०) [विशेषेण रुणद्धि अन्यान् मान् धर्मवीर, दयावीर और युद्धवोर) किये गये हैं, स्पष्टी- ---वि+रुध+क्विप पक्षे टाप, उपसर्गस्य दोष:] करण के लिए दे० इन शब्दों को 3. अभिनेता 4. आग 1. लहलहाने वाली लता लता प्रतानिनी बीन्द्र 5. यज्ञ की अग्नि 6. पुत्र 7. पति 8. अर्जुन वृक्ष -भट्टि०, आहोस्वित्प्रसवो ममापचरितविष्टभितो 9. विष्णु का नाम, रम् 1. नरकुल 2. मिर्च बीरुधाम् श० 5 / 9, कु. 4134, रघु० 86 3. चावल का माड़ 4. उशीर का जड़, खस / सम० 2. शाखा, अङकुर 3. काटने पर ही बढ़ने वाला --आशंसनम् 1. निगरानी रखना 2. युद्ध में जोखिम पौधा 4. बेल, लता, साड़ी-कि. 4 / 19 / / से भरा पद 3. छोड़ी हुई आशा,--आसनम् 1. योगा- वीर्यम् [वीर+यत्] 1. शूरवीरता, पराक्रम, बहादुरी भ्यास करते समय एक विशेष मद्रा, परिभाषा के लिए -वीर्यावदानेष कृतावमर्ष:-कि० 343, ए. दे० पर्यक (3) 2. एक घुटना मोड़ कर बैठना 214, 3162, 11178, वेणी० 313 2.बल, सामर्दी 4. संतरी की चौकी, शिः, ईश्वरः 1. शिव के विशे- 3. पुंस्त्व 4. ऊर्जा, दृढ़ता, साहस 5. शक्ति, समता षण 2. महान् वीर, उजतः वह ब्राह्मण जो यज्ञाग्नि ! श० 312 6. (औषधियों की) अचुकता, बतिवीर्य में आहुति नहीं डालता, अग्निहोत्र न करने वाला | वतीव भेषजे बहुरल्पीयसि दृश्यते गुण: कि०२।२४, ब्राह्मण, कीट: तुच्छ सैनिक, जयन्तिका 1. रणनृत्य कु० 2 / 48 7. शुक्र, वीर्य --कु० 3 / 15, पं. 450 2. संग्राम, युद्ध, तकः अर्जुनवृक्ष,-घन्वन् (पुं०) 8. आभा, कान्ति 1. गौरव, महिमा। सम० -: कामदेव,-पानम् (णम्) एक उत्तेजक या श्रमापहारक पुत्र,-प्रपातः वीर्य का क्षरण या स्खलन / तेज जो सैनिक लोग यद्ध के आरम्भ या अवसान पर | वीर्यवत् (वि.) [वीर्य+मतुप्] 1. मजबूत, हृष्टपुष्ट, बकपीते हैं,-- भद्र: 1. एक शक्तिशाली शूरवीर जिसे शिव वान् 2. अचूक, अमोघ / ने अपनी जटाओं से निकाला था दे० 'दक्ष' 2. माना | वीवधः [वि+वध+घञ, वडयभावो दीर्घश्च] 1. बोला हुआ योद्धा 3. अश्वमेध यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा | ढोने के लिए जुआ, यहंगी 2. बोझा 3. अनाज का 4. एक प्रकार का सुगन्धित घास,मुद्रिका पैर की भंडार भरना 4. मार्ग, सड़क / मध्यमा अंगुली में पहना जाने वाला छल्ला, रजस् | बोवधिकः | बीवव+ठन बहंगी होने वाला। (नपुं०) सिन्दूर, - रस 1. वीरता का भाव 2. साम- | वौहारः [वि+ह+घ, उपसर्गस्य दी:] 1. जैन बिहार रिक भावना,रेणुः भीमसेन का नाम, विप्लावक: या बौद्धमठ 2. देवालय। शूद्र से धन लेकर हवन करने वाला,-वृक्षः 1. अर्जुन बुङ्ग (म्वा० पर० वुगति) छोड़ना, परित्याग करना। वृक्ष 2. भिलावे का वृक्ष,-सः (स्त्री०) शूरवीर वुण्ट (चुरा० उभ्० वुण्टयति-ते) 1. चोट पहुंचाना पर पुरुष की माता (इसी प्रकार बीरप्रसवा, प्रसूः, करना 2. नष्ट करना / -प्रसविनी), -सैन्यम् लहसुन, स्कन्धः भैसा,-हन् वर्ष (वि.) [वृ+सन्+उ) पसन्द करने का इच्छुक / (पुं०) 1. वह ब्राह्मण जिसने दैनिक अग्निहोत्र करना वस् दे० 'बुस्। छोड़ दिया है 2. विष्णु / पूर्व (वि.) [+क्त छांटा हुआ, चुना हुआ। बीरणम् [वि+ई+ल्युट्] एक सुगन्धित घास, उशीर 4 (म्वा०, स्वा०, ऋया. उभ० वरति-ते, वृणोति-पणते, (जिसकी जड़ें-खस-शीतलता प्रदान करने के लिए वृणाति-वणीते, वृत, कर्मवा०वियते) 1.छांटना, चुनना, प्रयुक्त होती हों)। पसन्द करना-वृतं तेनेदमेव प्राक्-कु० 2056, पवार न्यम् लहमदार पीरप्रसवा, गू (पुं०) 1 For Private and Personal Use Only Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 968 ) रामस्य वनप्रयाणम्-भट्टि० 36 2. अपने लिए चुनना। 3 / 67 2. विवाह के लिए पसंद करना 3. याचन (आ०) वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धाः स्वयमेव / करना, प्रार्थना करना, निवेदन करना। सम्पद:-कि० 2130, रधु० 3 / 6 3. विवाह के लिए | वह वृहित दे० 'बृह' बृहित / / वरण करना, प्रणय-प्रार्थना करना, प्रणययाचना करना | बंक (भ्वा० आ० वकते) पकड़ना, लेना, ग्रहण करना। -महावी० 1228, अनर्घ० 3 / 42 4. प्रार्थना करना, वकः [वृ+का+] 1. भेड़िया 2. लकड़बग्घा 3. गीदड़ निवेदन करना, याचना करना 5. उकना, छिपाना गुप्त 4. कौवा 5. उल्लू 6. लुटेरा 7. क्षत्रिय 8. तारपीन रखना, परदा डालना, लपेटना--मेधैर्वृतश्चन्द्रमाः 9. गन्धद्रव्यों का मिश्रण 10 एक राक्षस का नाम -मच्छ० 5 / 14 6. घेरना, लपेटना भट्टि० 5 / / 11 एक वृक्ष का नाम, बकवृक्ष 12. जठराग्नि / सम. 10, रघु. 12 // 61 7. परे हटना, दूर करना, ----अरातिः, - अरिः कुत्ता, उदरः 1. ब्रह्मा का विशेनियंत्रण करना, रोकना 8. विघ्न डालना, विरोध षण 2. द्वितीय पांडव राजकुमार भीम का विशेषण करना, अड़चन डालना, प्रेर०-(वारयति-ते) 1. ढकना, भग० 1115, कि० २।१,-वंशः कुत्ता, धूपः छिपाना 2. (किसी वस्तु से) आँख फेर लेना (अपा० 1. तारपीन 2. मिश्रगंध,-धर्तः गीदड़। के साथ) 3. रोकना, हटाना, नियंत्रण करना, दबाना, / वृक्कः,-क्का 1. हृदय 2. गुर्दा (इस अर्थ में द्वि०व०)। जांच पड़ताल करना, विघ्न डालना -शक्यो वारयित वृषण (भू० क० कृ०) [वश्च् + क्त] 1. कटा हुआ, बांटा जलेन हुतभुक-भर्तृ० 2111, इच्छा० वर्षति-ते, हुआ 2. फाड़ा हुआ 3. तोड़ा हुआ। विविरिषति-ते, विवरिषति-ते, चुनने की इच्छा वृक्त (भू० के० कृ०) [वज्+क्त स्वच्छ किया गया, करना, अप , खोलना (प्रेर०) ढकना, छिपाना साफ़ किया गया, निर्मल किया गया। अपा-, खोलना मा-, 1. ढकना, छिपाना, गुप्त रखना वृक्ष (ध्वा० आ० वृक्षते) 1. स्वीकार करना, चुनना आवणोदारमनोरन्धं रन्ध्र प्रहरन रिपन - रघु०१७।। 2. ढकना। 61, भट्टि० 924 2. पूरना, व्याप्त होना -भग. वृक्षः विश्च +क्स] 1. पेड़-आत्मापराधवक्षाणां फलान्येता१३।१३, मनु० 21144 3, चुनना, इच्छा करना नि देहिनाम् / सम० - अवन: 1. बढ़ई की चौरसी 4. निवेदन करना, प्रार्थना करना 5. घेरना, नाके बंदी 2. कुल्हाड़ी 3. बड़ का पेड़ 4. पियाल वृक्ष, - अम्लः करना, रोकना -रघु० 7 / 31 6. दूर रखना भट्टि आमड़ा,—आलयः एक पक्षी,-आवासः 1. एक पक्षी 14 / 109, नि-, घेरा डालना, घेरना भट्रि० 14 // 2. संन्यासी, --आधयिन् (पुं०) एक प्रकार का छोटा 19, (प्रेर०)—परे हटना दूर करना, आँखें फेरना उल्लू, कुक्कुटः जंगली मुर्गा, ---खंड निकुंज, वृक्षों का (अपा० के साथ) - पापानिवारयति योजयते हिताय समूह,-बरः बन्दर,-छाया वृक्ष की छाया (पम्) -भर्तृ० 2172, निस् , (बहुधा क्तांत रूप) प्रसन्न सघन छाया, बहुत से वृक्षों की (गाढ़ी) छाया,--धूपः होना, संतुष्ट या संतृप्त होना -निर्ववार मधनींद्रिय- तारपीन, नाषः बड़ का पेड़,-तिर्यासः गोंद, राल, वर्ग:-शि०१०१३, दे० निर्वत, परि-, घेरना, प्र-, ... पाक: बड़ का पेड़,-भिब् (स्त्री०) कुल्हाड़ी, 1. ढाकना, लपेटना - प्रावारिषरिव क्षोणी क्षिप्ता -..मटिका गिलहरी,--बाटिका, --वाटी उद्यान, वृक्षाः समन्ततः भट्टि० 9 / 25 2. पहनना, धारण उपवन, ..शः छिपकली,--शायिका गिलहरी / करना 3. चुनना, छाटना, प्रा--, पहनना, धारण वृक्षकः [वृक्ष+कन्] 1. छोटा पेड़-कु० 5 / 14 2. पेड़। करना, वि-, 1. ढक देना, ठहरना 2. खोलना--कु० बच (रुधा० पर० वृणक्ति) छांटना, चुनना / 4 / 26 3. तह खोलना, भंडाफोड़ करना, भेद बजi (अदा० आ० वृक्ते) टाल जाना, कतराना, परिखोलना, प्रकट करना, प्रदर्शन करना नै० 9 / 1, त्याग करना। कु० 3 / 15, रघु० 6385, भट्रि०७७३ 4. सिखाना, ii (रुधा० पर० वृणक्ति) 1. टाला जाना, कतराना, व्याख्या करना, स्पष्ट करना-महावी० 2 / 43 छोड़ देना, परित्याग करना 2. चुनना-आसामेकतमां 5. फैलाना, भामि० 15 6. चुनना विनि-, (प्रेर०) वंग्धि सवर्णां स्वर्गभूषणाम -भाग. 3. प्रायश्चित रोकना, दूर हटाना, दबाना --विनयं विनिवार्य मा० करना, पोंछ डालना, निर्मल करना तन्मे रेत: पिता 1118 सम्-, 1.छिपाना, ढकना, प्रच्छन्न करना-मुहु- वृक्तामित्यस्यैतन्निदर्शनम् ---मनु० 9 / 20 4. मुड़ना, रगुलिसंवृताधरोष्ठम्-श० 3 / 15, 2010, रघु० // आंख फेरना। 20, 730 2. दबाना, नियंत्रित करना, विरोध iii (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० वर्जति, वर्जयति-ते, करना - भट्टि० 9 / 27 3. बन्द करना। वजित) 1. कतराना, टाल जाना 2. छोड़ना, परित्याग ii(चुरा० उभ० वरयति-ते)1 वरण करना, चुनना। करता 3. निकाल देना, एक ओर रख देना 4. अलग -वरं वरयते कन्या माता-वितम् पिता श्रुतम-पंच. रहना 5. टुकड़े टुकड़े कर देना (कविरहस्य से उद्धृत For Private and Personal Use Only Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निम्नांकित पद्य धातु के विभिन्न रूपों का चित्रण करता है वणक्ति वृजिनः संग वृक्ते च वृषलैः सह, वर्जत्यनार्जवोपेतैः स वर्जयति दुर्जनः, अप... 1. नष्ट करना 2. समाप्त करना 3. छोड़ना, त्याग देना रघु० 17 / 19, कि० 1129 4. उडेलना, फेंकना --- शि०१३।३७ आ -, 1. झुकना, मुड़ना, - आवयं शाखाः सदयं च यासां-रघु० 1619, 13 / 17, आवयं दृष्टी:-- मेघ० 46 2. प्रस्तुत करना, देना रघु० 1162, 67, 8 / 26, कु० 5 / 34 3. परास्त करना, जीतना, परि--, टाल जाना, कतराना, वि --1. कतराना, टाल जाना 2. विरहित करना, वञ्चित करना। वृजनः [वजे: क्य:] 1. बाल 2. धुंधराले बाल,--नम 1. पाप 2. संकट 3. आकाश 4. घेर, बाड़ा, विशेषतः एक गोचरभूमि। वृजिन [वजेः इनज कित् च] 1. कुटिल, झुका हुआ, वक्र 2. दुष्ट, पापी, न: 1. बाल, धुंघराले बाल 2. दुष्ट पुरुष–वणक्ति वजिनः संगम--कवि०,--नम् 1. पाप, सर्व ज्ञानप्लवेनैव वजिनं संतरिष्यसि -भग० 4136, रघु० 14157 2. पीडा, दुःख (इस अर्थ __ में पुं० भी माना जाता है)। वृण् (तना० उभ० वृणोति, वृणुते) खाना, उपभोग करना वृत् / (दिवा० आ० वृत्यते) 1. चुनना, पसंद करना---तु. वावृत 2. वितरण करना, बाँटना। ii (चुरा० उभ० बर्तयति--ते) चमकना। iii (भ्वा० आ० वर्तते, परन्तु लुङ्, लट्, लुट तथा लुङ् लकार में एवं सन्नंत में पर० भी, वृत्त) 1. होना, विद्यमान होना, डटे रहना, मौजूद होना, जीते रहना, टिके रहना इदं में मनसि वर्तते,-श, 1, अत्र विषयेऽस्माकं महत्कृतहलं वर्तते --पंच० 1, मरालकुलनायकः कथय रे कथं वर्तताम---भामि० 13, केवल संयोजक के रूप में बहुधा प्रयुक्त, अतीत्य हरितो हरीश्च वर्तन्ते वाजिनः-श०१ 2. किसी विशेष दशा या परिस्थिति में होना-पश्चिमे वयसि वर्तमानस्य-का०, इसी प्रकार दुःखे, हर्षे, विषादे-वर्तते 3. होना, घटित होना, आ पड़ना, सामने आना-सीता देव्याः किं वृत्तमित्यस्ति काचित्प्रवृत्तिः-उत्तर० 2, सायं संप्रति वर्तते पथिक रे स्थानान्तरं गम्यताम् सुभा०, 'अब सायंकाल हो गया है" ' शृङ्गार०६, भग 5 / 26 4. चलते रहना, प्रगतिशील रहना--सर्वथा वर्तते यज्ञः-मनु० 2 / 15, निर्व्याजमिज्या ववृते-भट्टि. 2137, रघु० 12 / 56 5. संधारित या संपोषित होना, जीवित रहना, जीते रहना (आलं. से भी) --फलमूलवारिभिर्वर्तमाना-का० 172, मनु० 3177 6. मुड़ना, लुढकते रहना, चक्कर खाना-यावदियं / 122 लोकयात्रा वर्तते-वेणी०३ 7. अपने आप को कार्य में लगाना, काम में लगना, आरम्भ करना (अधिक के साथ)-- भगवान् काश्यपः शाश्वते ब्रह्मणि वर्तते -श०१, इतरो दहने स्वकर्मणां बवृते ज्ञानमयेन वह्निना -- रघु० 8 / 20, मनु०८।३४६, भग० 3 / 22: 8. कर्तव्य निभाना, व्यवहार करना, आचरण करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास करना (प्रायः अधि० के साथ या स्वतंत्र रूप से)-- आर्योऽस्मिन् विनयेन वर्तताम् - उत्तर० 6, कविनिसर्गसौहृदेन भरतेषु वर्तमानः -- मा० 1, औदासीन्येन वर्तितुम्-रघु० 10 // 25, मनु० 7 / 104, 8 / 173, 11130 1. कार्य करना, विशेष प्रकार का आचरण करना-साध्वीं वृत्ति वर्तते- 'वह सत्कार्य में प्रवृत्त होता है' 10. अर्थ रखना, अभिप्राय बतलाना, अर्थ में प्रयुक्त होना -पुष्यसमीपस्थे चन्द्रमसि पुष्यशब्दो वर्तते-पा०४। 2 / 3 पर महाभाष्य (प्रायः कोशों में इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है) 11. प्रवृत्त करना, प्रेरित करना ----(संप्र० के साथ)-पूत्रेण किं फलं यो वै पितदुःखाय वर्तते 12. सहारा लेना, आश्रित होना-प्रेर० (वर्तयति--ते 1. प्रवृत्त कराना 2. घुमाना, चक्कर दिलाना श० 7 / 6 3. (अस्त्र-शस्त्र) घुमाना, पैतरे बदलना, घुमा कर फेंकना-भट्टि० 15 / 37 4. कार्य करना, अभ्यास करना, प्रदर्शित करना--मा० 9 / 33 5. संपन्न करना, निबटाना, ध्यान देना, नज़र डालना सोऽधिकारमभिकः कुलोचितं काश्चन स्वयमवर्तयत्समा:--रघु० 19 / 4, महावी० 3123 6. बिताना, (समय आदि) गजारना 7. जीवन निर्वाह करना जीते रहना - कि० 2018, रघु० 12020 8. वर्णन करना, बयान करना-इच्छा. (विवृत्सति, दिवतिषते), अति---, 1. परे जाना, आगे बढ़ जाना, मा० 126 2. आगे निकल जाना, सर्वोत्कृष्ट होना कि० 3 / 40, शि० 14159 3. उल्लंघन करता, बाहर कदम रखना, अतिक्रमण करना-शि०६।१९ 4. उपेक्षा करना, अवहेलना करना--मनु० 5 / 16 5. चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त करना, नाराज करना 6. पराजित करना, वशीभूत करना 7. (समय का) बिताना 8. विलंब करना, देरी करना-मनु० 2 / 38, अनु-, 1. अनुसरण करना, अनुरूप होना, अनुकूल कार्य करना -प्रभुचित्तमेव हि जनोऽनुवर्तते-शि० 15 / 41, मा० 32 2. अनुरंजन करना, दूसरे की इच्छा के अनुसार अपने आपको बनाना, दूसरे के द्वारा पथप्रदर्शन प्राप्त किया जाना 3. आज्ञा मानना + मिलना-जुलना, नकल करना 5. प्रसन्न करना, खुश करना 6. (व्या० में) किसी पूर्ववर्ती सूत्र से आवृत्ति प्राप्त करना (प्रेर०) 1, मुड़ना 2. अनुगमन For Private and Personal Use Only Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 970 ) करना, आज्ञा मानना, अप-, 1. मड़ जाना, पीठ | निकलना 3. होना, घटित होना, आ पड़ना 4. आरंभ मोड़ना --तस्मादपावर्तत दूरकृष्टा नीत्येव लक्ष्मी: करना, शुरू करना, (प्राय: तुमुन्नन्त)-हन्त प्रवृत्तं प्रतिकूलदेवात्-रधु० 6 / 58, 7 / 33 2. व्यत्यस्त या संगीतक-मालवि० 1, कु० 3 / 25 5. प्रयत्न करना, व्युत्क्रान्त होना, उलटा हो जाना-कि० 12 / 49 जोर लगाना--प्रवर्ततां प्रकृतिहिताय पार्थिवः- श० 3. मुंह नीचे कर लेना -- मा० 3 / 17, (प्रेर०) एक 7 / 35 6. अमल करना, अनुसरण करना, पंच. ओर हो जाना, झुकना : मा० 1140, कि० 4 / 15, / 11116, 7. कार्य में लगना, व्यस्त होना,---श०१, अभि---, 1. पहुँचाना, जाना, निकट होना, समीप कु० 5 / 23 8. करना, कार्य में लगना--श० 6, होना, मुड़ना-इत एवाभिवर्तते-श० 1, रघु. 9. व्यवहार करना 10. व्याप्त होना, विद्यमान होना 2 / 10 2. आक्रमण करना, धावा बोलना, टूट पड़ना -- राजन् प्रजासु ते कश्चिदपचार: प्रवर्तते-रघु० -कि० 1313 3. आरम्भ करना, (दिन), निकलना 15 / 47 11. ठीक उतरना 12. बिना रुकावट के 4. सर्वोपरि होना, सबसे ऊपर होना 5. होना, मौजूद प्रगति करना, फलना-फूलना,-भग०१७।२४, मनु० होना, घटित होना, मा-,1. चक्कर खाना 2. वापिस 3 // 61, (प्रेर०) 1. प्रगति करना, जारी रखना आना-रषु० 1689, 2019 3. पास जाना, 4. बेचैन -मुद्रा० 1 2. सूत्रपात करना 3, जारी करना, होना, चक्कर खाना-मा० 1141, उद-1. चढ़ना 2.उदित स्थापित करना, बुनियाद रखना 4. हांकना, प्रेरित होना, बढ़ना 3. घमंडी या अभिमानी होना 4. उमड़ना, करना, उकसाना, उद्दीप्त करना 5. उन्नति करना, बह निकलना-उवृत्तः क इव सुखावहः परेषाम् प्रगति करना, प्रतिनि--, 1. पीठ मोड़ना, लौटना -शि० 8118, मुद्रा० 338, रघु० 7.56, उप--, -गत्वेव पुनः प्रतिनिवृत्तः श० 1229, विक्रम 1 1. पहुंचना 2. लोटना नि.-, 1: वापिस आना, 2. चक्कर काटना, वि, 1. मुड़ना, लुढ़कना, लोटना - न च निम्नादिव सलिलं निवर्तते मे ततो चक्कर काटना, घूमना - मा० 1140 2. एक ओर हृदयम् --श० 331, कु०४।३०, रघु० 2 / 43, भग० हो जाना, झुकना-रघु० 6 / 16, श० 2 / 11 3. होना, 8 / 21, 15 / 4 2. भाग जाना, पलायन करना--भट्टि. घटित होना, विनि--, 1. लौटना 2. रुक जाना, 5 / 102 3. मुड़ जाना, आंखें फेर लेना-रघु० अन्त होना-भ० 2 / 59, मनु० 5 / 7 3. हाथ खींचना, 5 / 23, 7261 4. अलग रहना प्रसमीक्ष्य निवर्तेत मुड़ जाना, अलग रहना--देवनात्, युद्धात् आदि, सर्वमांसस्य भक्षणात् --मनु० / / 49, 1153, भट्टि | विपरि--, चक्कर काटना (आलं. से भी) भग० 1118, निवृत्तमांसस्तु जनकः-उत्तर०४ 5. मुक्त | 9 / 10, व्यप-, 1. लौटना, वापिस मुड़ना-चेतः कथं होना, बच निकलना-भग० 1239 6. बोलना बन्द कथमपि व्यपवर्तते–मा० 118 . हाथ खींचना कर देना, रुक जाना, ठहर जाना 7. हट जाना, अन्त छोड़ देना उत्तर० 5 / 8, ध्या-, 1. वापिस होना, होना, बन्द हो जाना, अन्तर्धान होना- भग० 2 / 59, मुड़ना सहभुवा व्यावर्तमाना ह्रिया-रत्न. 2 14122, मनु० 113185, 186 8. रुकवाना, निक- 2. मुड़ना, हटना, उलट होना-विषयध्यावृत्तकोतूहल: लवाना, (प्रेर०) 1. लौटाना, वापिस भेजना र१० -विक्रम. 119, (प्रेर०) प्रतिबन्ध लगाना, सीमित 2 // 3, 3 / 47, 744 2. वापिस लेना, दूर रहना, करना, निकाल देना, गिरफ्तार करना-तु शब्दः मुड़ जाना, मन फेर लेना - रघु० 2 / 28, कु० 5 / 11, पूर्वपक्षं व्यावर्तयति --शारी०. अपवाद इवोत्सर्ग निस्-, 1. समाप्त होना, अन्त होना, ..भट्टि० व्यावर्तयितुमीश्वरः रघु० 1517, सम्, 1. होना, 8 / 69 2. संपन्न होना-रघु०१७।६८, मनु० 7 / 161, घटित होना-ते यथोक्ताः . संवत्ता:-पंच० 1 3. रुक जाना, न होना,-भट्टि० 16 / 6, (प्रेर०) 2. पैदा होना, उदय होना, फटना, निकलना 3. षटित 1. सम्पन्न करना, निष्पन्न करना, समाप्त करना, पूरा होना, आ पड़ना 4. सम्पन्न होना / करना-रघु० 2 / 45, 3333, 11 // 30, परा- वृत (भू० क० कृ०) [+त] 1. छांटा गया, चुना गया लौटना, वापिस आना, परि-, 1. घूमना, चक्कर 2. ढका गया, पर्दा डाला गया 3. छिपाया गया खाना-कु० 116 2. इधर-उधर भ्रमण करना, 4. घेरा गया, लपेटा गया 5. सहमत या सम्मत इधर-उधर आना जाना 3. बदलना, विनिमय करना, 6. किराये पर लिया गया 7. बिगाड़ा गया, विषाक्त अदला-बदली करना 4. पीठ मोड़ना रघु० 4 / 72, किया गया 8. सेवित, सेवा किया गया / विक्रम० 1117 5. होना, आ पड़ना-मा० ९८/वृतिः (स्त्री०) [+क्तिन्] 1. छांटना, चुनना 2. छिपाना, 6. क्षीण होना, नष्ट होना, लुप्त होना---मा० 10 // 6, ढकना, गुप्त रखना 3. याचना करना, निवेदन करना प्र-, 1. आगे चलना, चलते जाना, प्रगति करना, 4. अनुरोध, प्रार्थना 5. घेरना, लपेटना 6. झाडबंदी, पंच०. 1681 2. उदित होना, उत्पन्न होना, फूट बाड़, बाड़ा-मेष०७८ For Private and Personal Use Only Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 971 ) वृतिकर (वि.) [वृति ++ट, मुम् ] घेरने वाला, / -रघु० 118, श० 5 / 6, पंच० 3 / 125 8. जीविका, लपेटने वाला,--रः विकंकत नाम का पेड़ / संपोषण, जीविका के उपाय (बहुधा समास में)-रषु० वृत्त.(भू० क. कृ०) [बत्+क्त ] 1. जीवित, विद्यमान 2138, श० 7.12, कु. 5 / 28, (जीविका के विभिन्न 2. घटित, संभूत 3. सम्पूरित, समाप्त 4. अनुष्ठित, उपायों के लिए दे० मनु० 4 / 4.6 1. मजदूरी, भाड़ा कृत, किया गया 5. गुजरा हुआ, बीता हुआ 6. गोल, 10. क्रियाशीलता का कारण 11. सम्मानपूर्ण बर्ताव वर्तुलाकार-रघु० 6 / 32 7. मृत, स्वर्गगत 8. दृढ़, 12. भाष्य, टीका, विवृति-सदवृत्तिः सन्निबन्धना स्थिर 9. पठित, अधीत 10. व्युत्पन्न 11. प्रसिद्ध (दे० -शि० 2 / 112, काशिकावृत्तिः आदि 13. चक्कर वृत्),--तः कछुवा,--तम् 1. बात, घटना 2. इति काटना, मुड़ना 14. किसी वृत्त या पहिये की परिधि हास, वर्णन रघु० 15164 3. समाचार, खबर 15. (व्या०) जटिल रचना जिसकी व्याख्या करने 4. प्रवर्तन, पेशा, जीवनवृत्ति, व्यवसाय–सतां की आवश्यकता पड़े 16. शब्द की वह शक्ति जिसके वृत्तमनुष्ठिता:-मनु० 101127, (पाठांतर) 7) द्वारा किसी अर्थ का अभिधान, संकेत अथवा व्यंजना 122, याज्ञ० 3144 5. आचरण, व्यवहार, रीति, की जाय (यह शक्तियों अभिषा, लक्षणा और कर्म, कृत्य, जैसा कि सदवृत्त या दुर्वत्त में 6. साघु या व्यंजना के नाम से विख्यात) 17. रचना की शैली सत्य आचरण ..पंच० 41287. माना हा नियम, (यह चार है-कैशिकी, भारती, सात्वती और प्रचलन या कानून, प्रथा, इस प्रकार के नियम या आरभटी)। सम० अनुप्रासः एक प्रकार का प्रचलन का पालन करना, कर्तव्य, रघ० 5.33 अनुप्रास,-दे० काव्य. 9,- उपायः जीविका का 8. गोल घेरा, वृत्त की परिधि 9. छन्द, विशेषकर उपाय,--कषित (वि.) जीविका के अभाव में अत्यन्त मात्राओं की गणना के आधार पर विनियमित (विप० दुःखी- मनु० 8411, चक्रम् राज चक्र पञ्च० जाति) दे० परि० 1 / सम०-अनुपूर्व (वि.) २८१,-छेवः जीविका के साधनों से वञ्चित,-भगः, गोल शुंडाकार,-कु० ॥३५,-~-अनुसारः 1. विहित -~-वैकल्यम् जीविका का अभाव–पञ्च० 16153, नियमों की अनुरूपता 2, छन्द को अनुरूपता, - अन्तः --स्थ (वि.) 1. किसी भी स्थिति या नियुक्ति में 1. अवसर, घटना, बात---अनेनारण्यकवृत्तान्तेन | रहने वाला 2. सदाचारी, अच्छा बर्ताव करने वाला, पर्याकुलाः स्मः - श० 1, रघु० 3 / 66, उत्तर०२।१७ / (स्थः) छिपकली, गिरगिट / 2. समाचार, खबर, गुप्तवार्ता - को नु खल वृत्तान्तः वृत्रः [वृत्+ रक्] 1. एक राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने —विक्रम० 4, रघु० 14187 3. वर्णन, इतिहास, मार गिराया था (वह अन्धकार का मर्तरूप माना कथा, आख्यान, कहानी 4. बिषय, प्रकरण 1. प्रकार, जाता है), दे० 'इन्द्र' 2. बादल 3. अन्धकार 4. शत्रु किस्म 6. ढंग, रीति 7. अवस्था, दशा 8. कुलयोग, 5. ध्वनि 6. पर्वत / सम-अरि:-द्विषु (पुं०) समष्टि 9. विश्राम, अवकाश 10. गण, प्रकृति, इर्वाहः, - शत्रु:-हन् (पुं०) इन्द्र के विशेपण-क्रुद्धऽपि -~-कर्कटी तरवूज, सरदा,--गन्धि (नपुं०) एक प्रकार पक्षिच्छिदि वृत्रशत्री-कु० 120, वाचा हरि का गद्य जो पढ़ने में पद्य जैसा आनन्द दे, चूड,-चौल त्रहणं स्मितेन-७१४६ / (वि.) मंडित, जिसका मुंडन संस्कार हो चुका हो क्या (अव्य) वि+थाल किच्च] 1. बिना किमी -उत्तर०२,-- पुष्पः 1. बेत, बानीर 2. सिरस का पेड़ अभिप्राय के, व्यर्थ, निरर्थक, बिना किसी लाभ के, 3. कदम्ब का पेड़, -फल: 1. बेर, उन्नाव का पेड़ (बहुधा विशेषण की शक्ति से युक्त)-व्ययं यत्र 2. अनार का पेड़, शस्त्र (वि०) जिसने शस्त्र कपीन्द्रसत्यमपि मे बीर्य हरीणां वृथा---उत्तर० विज्ञान में पांडित्य प्राप्त कर लिया है-भट्टि० 9 / 19 / 3145, दिवं यदि प्रार्थयसे वृथा श्रमः-कु० 5 / 45 वत्तिः [वृत्+क्तिन् ] 1. अस्तित्व, सत्ता 2. टिकना, 2. अनावश्यक रूप से 3. मुर्खता से, आलस्य पूर्वक, रहना, रुख, किसी विशेष स्थिति में होना जैसा कि बेलगाम 4. गलत तरीके से, अनुचित रूप से विरुद्धवृत्ति या विपक्षवृत्ति में 3. अवस्था, दशा (समास के आरम्भ में 'वृथा' शब्द का अनुबाद 'व्यर्थ, 4. कार्य, गति, कृत्य, कार्यवाही--शतस्तमक्षणाम- निरर्थक', अनुचित, मिथ्या या आलसी, किया जा निमेषवृत्तिभिः --रघु० 3 / 43, कु. 3 / 73, श० 4115 सकता है। सम.---अट्या अलसता के साथ टहलना, 5. क्रम, प्रणाली, श० 2 / 11 6, आचरण, व्यवहार, सामोद भ्रमण करना, -- आकार: मिथ्या रूप, खाली चालचलन, कार्यपद्धति-कुरु प्रियसखीवृत्ति सपत्नीजने तमाशा,-कथा बेहूदी बात, -जन्मन् (नपुं०) ---श. 4 / 18, मेघ० 8, बैतसीवृत्ति, वकवृत्ति अलाभकर या व्यर्थ जन्म,-दानम् वह उपहार जो आदि 7. पेशा, व्यवसाय, काम-धंधा, रोजगार, जीवन- / प्रतिज्ञात होने पर भी न दिया गया हो,-मति चर्या (प्रायः ससास के अन्त में)-वार्धके मुनिवृत्तीनाम् / (वि०) दुर्वृद्धि, मूर्ख, .. मांसम् वह मांस जो देवताओं For Private and Personal Use Only Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , विकत नित्यमाणः क्षोणो होना, सम ( 972 ) या पितरों के लिए अभिप्रेत न हो, वादिन (वि०) / विवधिषते) 1. विकसित होना, बढ़ना, विस्तृत होना, मिथ्या भाषी,-श्रमः व्यर्थ चेष्टा या कष्ट उठाना। ! मजबूत या बलवान् होना, फलना, समद्ध होना-अन्योबुद्ध (वि.) [वृध-क्ति] (म० अ० ज्यायस या वर्षी न्यजनसंरम्भो ववधे वादिनोरिव-रघु० 12 / 92, यस, उ० अ० ज्येष्ठ या वषिष्ठ) 1. बढ़ा हुआ, वृद्धि 1078, धनक्षये वर्धति जाठराग्निः ..- सुभा०, भट्टि. को प्राप्त 2. पूर्णविकसित, बड़ी उम्र का 3. बढ़ा, 14 / 13, 19 / 26 2. जारी रखना, टिकाऊ रहना वयोवृद्ध, बहुत वर्षों का वृद्धास्ते न विचारणीय- 3. उठना, चढ़ना 4. बधाई का कारण होना-(प्रायः चरिताः-उत्तर० 5 / 25 4. प्रगत या विकसित 'दिष्ट्या' के साथ) दिष्ट्या धर्मपत्नीसमागमेन पुत्र(समास के अन्त में), तु० वयोवृद्ध, धर्मवृद्ध, ज्ञान- मुखदर्शनेन चायुष्मान् वर्धते- श० 7, “धर्मपत्नी के वृद्ध, आगमवृद्ध बड़ा, विशाल 6. एकत्रित, संचित मिलने के उपलक्ष्य में आपको बधाई हो, प्रेर० (वर्घ7. बुद्धिमान्, विद्वान्, H 1. बूढ़ा व्यक्ति --हैयङ्ग यति-ते, वर्धापयति-ते भी) 1. विकसित कराना, वीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान् - रघु० 1145, बढ़ाना, वृद्धियुक्त करना, ऊंचा उठाना, ऊँचा करना, 918, मेघ० 30 2. योग्य या आदरणीय पुरुष उन्नत करना-वर्धयन्लिव तत्कूटानुधूतैर्धात रेणुभिः 3. मुनि, सन्त 4. वंशज, बम गुग्गुल / सम०-अगुलिः -रघु०४।७१ 2. समृद्ध कराना, यशस्वी बनाना, (स्त्री०) पैर का अंगूठा,--अवस्था बुढ़ापा,--आचारस विस्तीर्ण करना, बड़ाई करना हि० 3 / 3 3. बधाई प्राचीन प्रथा, - उक्षः बूढ़ा बैल,-काकः पहाड़ी कौवा, देना, अभिनन्दन करना (इस अर्थ में वर्धापयति'), -नाभि (वि०) स्थूलकाय, मोटे पेट वाला,-भावः अभि--, विकसित होना बढ़ना --क्षीणः क्षीणोऽपि बुढ़ापा,-मतः प्राचीन ऋषियों का उपदेश, -वाहनः शशी भयो भूयोऽभिवर्धते नित्यम्-काव्य. 10, आम का पेड़, - श्रवस् (पुं०) इन्द्र का विशेषण, संघः परि प्रवि, विकसित होना, बढ़ना, समृद्ध वृद्धजनों की सभा, सूत्रकम् रूई का गल्हा, कपास होना, सम्-, बढ़ना,-रघु० 5 / 6 / का गाला, इन्द्रतूल। il (चुरा० उभ० वर्धयति-ते) 1. बोलना, चमकना / या [वृद्ध+टाप् ] 1. बूढ़ी स्त्री 2. वंशजा (स्त्री)। वृधसानः [वृधेः छन्दसि असानच्, कित्] मनुष्य / वृद्धिः [वृध-+-क्तिन् ] 1. विकास, बढ़ोत्तरी, वर्धन, | वृधसानः [वृध् + असानुच्] 1. मनुष्य 2. पत्ता 3. कर्म, सम्बर्धन पुपोष वृद्धि हरिदश्वदीधितेरनुप्रवेशादिव कार्य / बालचन्द्रमाः - रघु० 3 / 22, तपोवृद्धि, ज्ञानवृद्धि आदि वृन्तम् [वृ+क्त, नि० मुम्] 1. किसी फल या पत्ते का 2. (चन्द्रमा का) वचित होना, चन्द्रमा की कलाओं डंठल, इंडी-वृन्ताच्छलथं हरति पुष्पमनोकहानाम का बढ़ना, - पर्यायपीतस्य सुरेहिमांशोः कलाक्षयः रघु० 5 / 69 2. घडौंची 3. स्तन की बौंडी या श्लाध्यतरो हि वृद्धः -- रघु० 5 / 16, कु० 7.1 3. धन अग्रभाग। की वृद्धि, समृद्धि, धनाढ्यता-पंच०२।११२ | वृन्ताकः, - की [वन्त+अक्+अण्] बैंगन का पौधा / 4. सफलता, बढ़ावत, उन्नति, प्रगति परिवृद्धिम वन्तिका [वन्त-कन्+टाप, इत्वम्] छोटा डंठल / त्सरि मनो हि मानिना-शि. 1541 5. दौलत, | वन्दम् [वृ+ दन्, नुम्, गुणाभावः] 1. समुच्चय, समूह जायदाद 6. ढेर, परिमाण, समुच्चय 7. सूद, बड़ी संख्या, दल- अनुगतमलिवन्दैगंण्डभित्तीविहाय व्याज, सरला वृद्धिः, चक्रवृद्धिः 8. सूदखोरी 9. लाभ -रघु० 12 / 102, मेघ० 99, इसी प्रकार अभ्र' फायदा 10. अंडकोष की वृद्धि 11. शक्ति या राजस्व 2. ढेर, परिमाण / का विस्तार 12. (व्या० में) स्वरों का लंबा करना वृन्दा [वन्द+टाप्] 1. पवित्र तुलसी 2. गोकुल के निकट या वृद्धि, अ, इ, उ, ऋ (चाहें ह्रस्व हों या दीर्घ) एक वन / सम० अरण्यम्, बनम गोकूल के निकट और ल को क्रमशः आ, ऐ, औ, आर और आल में एक जंगल-वृन्दारण्य वसतिरघुना केवलं दुःखहेतुः बदलना 13. परिवार में, (प्रसव के कारण) उत्पन्न -- पदा० 38 / 41, रघु० ६५०,-वनी तुलसी का अशौच, जननाशौच / सम० आजीवः,--आजीविन् पौधा। (पुं०) सूदखोर, साहूकार, व्याज पर रुपया उधार | वृन्दार (वि०) [वृन्द+ +अण्] 1. अधिक, बड़ा, देनेवाला,-जीवनम, जोविका सूदखोरी, साहूकारी, विशाल 2. प्रमुख, उत्तम, श्रेष्ठ 3. सुहावना, आकर्षक, ---- (वि०) समृद्धि को उन्नत करने वाला, पत्रम् सुन्दर / एक प्रकार का उस्तरा, -- श्रासम् पुत्रजन्मादि के उत्सवों / वृन्दारक (वि०) (स्त्री०-का,-रिका) वृन्द+आरकन्, पर पितरों का श्राद्ध, नान्दीमुख श्राद्ध / पक्षे टाप, इत्वम् च] 1. अधिक, बड़ा, बहुत 2. प्रमुख, बम् / (म्बा० आ०-परन्तु लट्, लुट्, लुङ, लुङ् और उत्तम, श्रेष्ठ 3. सुहावना, आकर्षक, सुन्दर, मनोहर सन्नन्त में पर०, वर्धते, वृद्ध, इच्छा० विवृत्सति या / 4. आदरणीय, सम्माननीय,---क: 1. देव, सूर, For Private and Personal Use Only Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बरसना (बहुधा बधन् (पूमी वर्ग का मुि ( 973 ) श्रितो दारण्यं नतनिखिलबंदारकवतः .. भामि० 4 / 5 / -बम् मोर का पंख / सम० अङ्क: शिव का विशे2. किसी भी चीज़ का मुख्य (समास के अन्त में) / षण-रघु० 3 / 23 2. पुण्यात्मा, सद्गुणी 3. भिलावाँ दे० (2) ऊपर / 4. षंढ, जः छोटा ढोल, - अञ्चनः शिव का विशेषण वृन्दिष्ठ (वि) [अयमेषामतिशयेन वृन्दारकः--इष्ठन्, ----अन्तकः विष्णु का विशेषण,--आहारः बिलाव, वृन्दादेशः] 1. अत्यंत बड़ा या विशालतम 2. अत्यंत -उत्सर्गः मृत पुरुष के नाम पर दाग कर साँड़ मनोहर, सुन्दरतम / छोड़ना, दंशः,--दंशक: बिलाव, ध्वजः 1.शिव का वृन्दीयस् (वि०)['वृन्दारक' की म० अ० असमनयोरतिश- विशेषण---रघु० 1144 2. गणेश का विशेषण येन वृन्दारकः+ ईयसुन्, वृन्दादेशः] 1. अपेक्षाकृत बड़ा, 3. सद्गुणी, पुण्यात्मा,-- पतिः शिव का विशेषण, विशालतर 2. अपेक्षाकृत मनोहर, सुन्दरतर / - पर्वन् (पुं०) 1. शिव का विशेषण 2. एक राक्षस वृश् (दिवा० पर० वृश्यति) छाँटना, चुनना। का नाम जिसने असुराचार्य शुक्र की सहायता से बहुत दिनों तक देवताओं से संघर्ष किया, इसकी पुत्री वृशः [वृश् + क] चूहा,-शा एक औषधि, अडूसा,- शम् मिष्ठा का विवाह ययाति के साथ हुआ-दे० अदरक। वृश्चिकः [वश्च ---किकन्] 1. बिच्छु 2. वृश्चिक राशि ययाति और देवयानी 3. वर, भिरड,- भासा इन्द्र और देवताओं का आवास- अर्थात् अमरावती, 3. केंकड़ा 4. कानखजूरा 5. बसूडवा, गोबर का कीड़ा 6. एक रोएंदार कीड़ा। -लोचनः बिलाव,-वाहनः शिव का विशेषण / वृष i (म्वा० पर० वर्षति, वृष्ट) 1. बरसना (बहुधा वृषणः [वृष्+क्यु] अंडकोष, अंड या फोते / 'इन्द्र' 'पर्जन्य' या बादल आदि सार्थक शब्दों के साथ | वृषन् (पुं०) [वृष्कनिन् ] 1. सांड़ 2. वृषराशि कर्ता के रूप में, या कभी-कभी भावात्मक रूप से) / 3. किसी वर्ग का मुखिया-महावी० 1174. बीजाश्व, -द्वादशवर्षाणि न ववर्ष दशशताक्षः- दश०, काले वर्षतु सौड़, घोड़ा 5. पीड़ा, शोक 6. पीड़ा के प्रति असंवेद्यता मेघाः, गर्ज वा वर्ष वा शक--- मृच्छ० 5 / 31, मेघा 7. इन्द्र का नाम-वृषेव सीतां तदवग्रहक्षताम्-कु० वर्षन्तु गर्जन्तु मुञ्चन्त्वशनिमेव वा--५।१६ 2. बारिश 5 / 61, 80, रघु० 10152, 17177 8. कर्ण का करना, उडेलना, बौछार करना-वर्षतीवाञ्जनं नमः नाम 9. अग्नि का नाम / मच्छ० 134 इसी प्रकार-शरवष्टिम समवष्टि | वृषभः [वृष-+अभच किच्च ] 1. सांड 2. कोई भी नर वर्षति आदि 3. बरसाना ढलकाना 4. अनुदान | जानवर 3. अपने वर्ग का मुखिया (समास के अन्त देना, अर्पण करना 5. तर करना 6. पैदा करना, में) द्विजवृषभः-रत्न श५, 4121 4. वृषराशि, उत्पन्न करना 7. सर्वोपरि शक्ति रखना 8. प्रहार 5. एक प्रकार की औषधि--तु. ऋषभ 6. हाथी का करना, चोट मारना, अभि-, 1. बौछार करना, बर- कान 7. कान का विवर। सम०--गतिः,-ध्वजः साना, उडेलना, छिड़कना रघु० 1584, 1048 शिव के विशेषण-रघु० 2036, कुछ 3362 / 2. प्रदान करना, अर्पण करना, प्र-, बरसाना, बौछार | वृषभी (स्त्री०) [ वृषभ+ङीष् ] 1. विधवा 2. कवच / करना--यस्यायमभितः पुष्पः प्रवृष्ट इव केसर:-राम० वृषलः [वृष् = कलच्] 1. शूद्र 2. घोड़ा 3. लहसुन 4. पापी, (:- उत्तर०६३६) / दुष्ट, अधर्मी 5. जाति से बहिष्कृत 6. चन्द्रगुप्त. ii (चरा० आ० वर्षयते) 1. शक्तिशाली या प्रमुख होना, का नाम (विशेषतः चाणक्य द्वारा प्रयुक्त-के. 2. उत्पन्न करने की शक्ति रखना। मुद्रा० अंक 1, 3) / बवः विष--क] 1. सांड -असंपदस्तस्य वषेण गच्छतः | वृषलकः [ वृषल+कन् ] तिरस्करणीय शूद्र / -कु० 5 / 80, मेघ० 52, रघु० 2 / 35, मनु० 9 / 123 वृषली [वृषल+डी ] 1. बारह वर्ष की अविवाहित 2. वृष राशि 3. किसी वर्ग का मुख्य या उत्तम, कन्या, रजस्वला होने पर भी विवाह न होने के अपने दल का सर्वश्रेष्ठ (समास के अन्त में) मुनि- कारण पिता के घर रहने वाली कन्या-पितुर्गेहेन वृषः, कपिवृषः आदि 4. कामदेव 5. मजबूत या या नारी रजः पश्यत्यसंस्कृता, भ्रूणहत्या पितुस्तस्याः व्यायाम शील व्यक्ति 6. कामातुर, रतिग्रंथों में वणित सा कन्या वृषली स्मृता 2. रजस्वला 3. बांस चार प्रकार के पुरुषों में से एक ----दे० रति० 37 स्त्री 4. सद्योजात बच्चे की माता 5. शूद्र की पत्नी 7. शत्र, विपक्षी 8. चहा 9. शिव का नंदी बैल या शूद्रा स्त्री। सम.--पतिः शुद्र स्त्री का पति, 10 नैतिकता, न्याय 11. गुण, सत्कर्म या पुण्यकार्य-न -- सेवनम् शूद्रा स्त्री के साथ संभोग। सद्गतिः स्याद् वृष जतानाम् --कोति० 9 / 62, (यहाँ वृषसूक्की (स्त्री०) बर्र, भिरड़। 'वष' का अर्थ साँड भी है) 12. कर्ण का नामान्तर वृषस्यन्ती [वृष+क्यच, सुक्, शत+हीप, नम ] 1. संभोग 13. विष्णु का नाम 14. एक विशेष औषधि का नाम ! करने की इच्छा वाली स्त्री (पुरुष में कर्म के साथ, For Private and Personal Use Only Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 974 ) पर .-रघुनन्दनं वृषस्यन्ती शूर्पणखा प्राप्ता-महावी० 5, 2. बाल गूंथना, पौधे लगाना 3. सीना 4. बनाना, भट्टि. 4 / 30, रघु० 12 // 34 2. कामासक्ता या रचना, नत्थी करना. प्र-, 1. बुनना 2. बांघना, कामातुरा स्त्री 3. गर्भायी हुई गाय।। कसना 3. जमाना, स्थिर करना 4. परस्पर बुनना, वषाकपायी [ वृषाकपेः पत्नी-वृषाकपि+ ङीष, ऐ। संग्रथित करना, दे० 'प्रोत'। आदेशः ] 1. लक्ष्मी का विशेषण 2. गौरी का विशे- वेकटः (0) 1. हंसोकड़ा 2. जौहरी 3. युवा पुरुष / षण 3. शची का विशेषण 4. अग्नि की पत्नी स्वाहा | वेगः | विज - घा] 1. आवेग, संवेग 2. गति, प्रवेग, का विशेषण 5. सूर्य की पत्नी ऊषा का विशेषण / शीघ्रता 3. विक्षोभ 4. अतिवेगशीलता, प्रचण्डता, वृषाकपिः [वृषः कपिः अस्य--ब० स०, पूर्वपददीर्घः / बल 5. प्रवाह, धारा जैसा कि 'अम्बुवेगः' में 6. तेज, 1. सूर्य का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण 3. शिव क्रियाशीलता, संकल्प 7. शक्ति, सामर्थ्य,-मदनज्वरस्य का विशेषण 4. इन्द्र का विशेषण 5. अग्नि का वेगात् का० 8. संचार, क्रिया, (विष-आदि का) विशेषण / प्रभाव उत्तर० 2 / 26, विक्रम० 5 / 18 1. शीघ्रता, वषायणः (40) 1. शिव का विशेषण 2. गोरैया चिडिया। जल्दबाजी, आकस्मिक आवेग---पंच० 11109 वृषिन् (पुं०) [ वृष-+- इनि ] मोर / 10. बाण की गति-कि० 13 / 24 11. प्रेम, प्रणयोवृषी (स्त्री०) संन्यासी या ब्रह्मचारी का आसन (कुश न्माद 12. आन्तरिक भाव का बाहर प्रकट होना - घास से बना हुआ)। 13. आनन्द, प्रसन्नता 1.. मलत्याग 15. शुक्र, वीर्य / वृष्ट (भू० क० कृ०) [वष्+क्त] 1. बरसा हुआ 2. बरसता सम० अनिल: 1. आंधी का झोंका विक्रम० 114 हुआ 3. बौछार करता हुआ, उडेलता हुआ। 2. प्रचण्ड वायु,-आघातः 1. अकस्मात् वेग का वृष्टिः (स्त्री०) [वृष्+क्तिन् ] 1. बारिश, बारिश की अवरोध, गति को रोकना, 2. मलावरोध, कोष्ठ बौछार -- आदित्याज्जायते वृष्टिव॑ष्टेरन्नं ततः प्रजाः बद्धता,-नाशनः श्लेष्मा, कफ,--वाहिन् (वि.) -मन० 3176 2. (किसी भी वस्तु की) बौछार स्फत, तेज.--विषारणम गति का रोकना. --अस्त्रवृष्टि-रघु० 3 / 58, पुष्पवृष्टि 2160, इसी खच्चर / प्रकार शर° धन उपल° आदि। सम० ---काल: वेगिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [वेग+इनि तेज, चुस्त, बरसात का समय,-जीवन (वि०) बारिश द्वारा | द्रुतगामी, प्रचण्ड, फुर्तीला (पुं०) 1. हरकारा 2. बाज, सिंचित (प्रदेश),तुल देवमातक, - भूः मेंढक / -नी नदी। वृष्टिमत् (वि.) [वृष्टि+मतुप ] बरसने वाला, बर-बेडकटः (पुं०) एक पहाड का नाम, वेंकटाचल / 'साती, (पुं०) बादल। देचा विच+अ+टाप भाड़ा, मजदूरी। वृष्णि (वि०) [वृषे: नि: किच्च] 1, धर्मभ्रष्ट, पाखंडी उम् [विड़+अम्] एक प्रकार का चन्दन / 2. ऋद, कोपाविष्ट, (पुं०) 1. बादल 2. मेंढा | वेडा वड+टाप् किश्ती, नाव / / 3. प्रकाश की किरण . कृष्ण के किसी पूर्वज का नाम | वेण, वेन् (भ्वा० उभ. वेणति-ते, वेनति-ते) 1. जाना, 5. कृष्ण का नाम 6. इन्द्र 7. अग्नि / सम० गर्भः | हिलना-जुलना 2. जानना, पहचानना, प्रत्यक्ष करना कृष्ण का विशेषण / 3. विचारविमर्श करना, सोचना 4. लेना 5. बाजा वृष्य (वि.) [वृष+क्यप् 11.जिसके ऊपर बरस सके, वजाना। बौछार की जा सके 2. कामोद्दीपक, वाजीकर, पुंस्त्व | वेणः [वेण+अच्] 1. गायक जाति का पुरुष--तु० मनु० बढ़ाने वाला,- व्यः माष, उड़द / 10 / 19, वेणानां भांडवादनम्-१०॥४९ 2. एक बह वहत, वहतिका दे० बह., बहत, बहतिका / राजा का नाम, अङ्ग का पुत्र और स्वायंभुव मनु बहती [वह +अति+डी] 1. नारद की बीणा 2. छत्तीस का वंशज (जब वह राजा बना तो उसने सब प्रकार की संख्या 3. दुपट्टा, चोगा, आवरण 4, भाषण की पूजा व यज्ञादि को बन्द करने की घोषणा कर आशय (जैसे जलाशय) दे० 'बृहती' भी। सम० दी। ऋषियों ने इसका बड़ा विरोध किया, परन्तु -पतिः बृहस्पति का विशेषण / जब उसने उनकी एक न सुनी तो उन्होंने अभिमन्त्रित बृहस्पति दे० 'बृहस्पति' / कूशतण की पत्ती से उसकी हत्या कर दी। अब (क्रया० उभं वृणाति, वृणीते, पूर्ण, कर्मवा० पूर्यते, देश में कोई शासक न रहा। अतः उन्होंने उस इच्छा० वुवूषति-ते, विवरिषति-ते) छांटना, चुनना मृतक शरीर की जंघा को मसला, तब उसमें से एक (दे० ''1) / निषाद निकला जो शरीर का गिट्टा तथा चौड़े मुख में (म्वा० उभ० वयति-ते, उत, प्रेर. वाययति-ते) वाला था। उसके पश्चात् उन्होंने उसकी दक्षिण 1. बुनना --सितांशुवर्णगति स्म तद्गुणः-३० 1112 . भुजा को रगड़ा जहाँ से भव्य पृथु (दे० पृथु) का देश में की जंघा का म टा तथा चाड For Private and Personal Use Only Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 975 ) जन्म हुआ। पद्मपुराण के अनुसार वह भली भांति / तस्वत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ वेतस+मतुप, मस्य शासन करने लगा, परन्तु बाद में वह जैन-नास्तिकता वः] जहाँ नरकुल बहुतायत से पाये जायें। में फंस गया। यह भी कहा जाता है कि उसने | वेतालः [अज्+विच, वी आदेश:, तल+घञ कर्म वर्णव्यवस्था में गड़बड़ी फैलाई, तु० मन० 7141, स० 11. एक प्रकार की भूतयोनि, पिशाच, प्रेत, 966-67) / विशेषकर शव पर अधिकार रखने वाला भूत-- मा. वेणा [ वेण+टाप् ] एक नदी का नाम (जो कृष्णा नदी . 5 / 23, शि० 20 / 60 2. द्वारपाल / में जाकर मिलती है)। वेत्तु (पुं०) [विद्+तृच् ] 1. ज्ञाता 2. ऋषि, मुनि बेणिः,-णी (स्त्री०) [ वेण्-+-इन्, डीप् वा ] 1. गुंथे हुए | 3. पति, पाणिग्रहीता। बाल, बालों की मींढी,-तरङ्गिणी वेणिरिवायता भुवः वेत्रः [ अज्+त्रल, वी भावः ] 1. वेत, नरसल 2. लाठी, -शि० 1275, मेघ०१८ 2. बालों की एक छड़ी, विशेष कर द्वारपाल की छड़ी,-वामप्रकोष्ठापितअनलंकृत चोटी जो पीठ पर लटकती रहती है (कहा हेमवेत्र:-कु० 3.41 / सम--आसनम् बेंत की जाता है कि वही स्त्रियां ऐसी चोटी करती हैं जिनके बनी गद्दी,-धरः,-बारक: 1. द्वारपाल 2. आसाघारी, पति घर पर न हों) वनानिवृत्तेन रघूत्तमेन मुक्ता छड़ीबरदार। स्वयं वेणिरिवाबभासे-रघु० 14.12, अबलावेणि वेत्रकीय (वि.) [वेत्र+छ, कुक ] वेत्रबहुल, जहाँ नरकुल मोशोत्सुकानि-मेघ० 99, कु० 2161 3. अनवच्छिन्न बहुत पाये जायें। प्रवाह, धारा, सरिता जलवेणिरम्यां रेवां यदि वेत्रवती [ वेत्र+मतुप+कोष ] 1. स्त्री द्वारपाल 2. एक प्रेक्षितुमस्ति कामः-रघु०६।४३, मेघ० 29, तु० नदी का नाम - मेघ० 24 / त्रिवेणी' शब्द की भी 4. दो या अधिक नदियों का बन् (पुं०) [वेत्र+इनि ] 1. द्वारपाल, दरबान संगम 5. गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम 6. एक 2.चोबदार। नदी का नाम / सम० -पत्यः गुथे हुए बाल, मीढी देय (म्वा आवेयन्ते) प्रार्थना, निवेदन करना, कहना। -रघु० १०॥४७,वेषनी जोक, वेषिनी कंघी, देवः विद+घञ, अच वा ] 1. ज्ञान 2. आध्यात्मिक -संहार: 1. बालों को गंथ कर मीढी बनाना वेणी. या धार्मिक ज्ञान, हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ (मलरूप से 6 2. भट्टनारायणकृत एक नाटक का नाम / केवल तीन वेद थे, ऋग्वेद, यजुर्वेद, और सामवेद जिन्हें पेणुः [वेण +उण् ] 1. बाँस, - मलयेऽपि स्थितो वेणुर्वेणुरेव समष्टिरूप से 'त्रयी' कहते थे, परन्त बाद में 'अथर्ववेद' न चन्दनम् सुभा०, रघु० 12141 2. नरकुल उनके साथ जोड़ दिया गया। प्रत्येक वेद के दो 3. बंसरी, मुरली-नामसमेतं कृतसंकेतं वादयते मद् भाग है-मन्त्र या संहिता पाठ तथा ब्राह्मण भाग / वेणुम् - गीत० 5 / सम० जः बाँस का बीज, हिन्दुओं की निरी धर्मनिष्ठता के अनुसार बेद --ध्मः बांसुरी बजाने वाला, मुरलीवाला, नियुतिः अपौरुषेय (जो पुरुषों द्वारा की गई रचना न हो) ईख,--पष्टिः बाँस की लकड़ी,---वावः, ....वादक: है, क्योंकि वह परमात्मा से प्रकट हुए या सुने गये हैं, मुरली वाला, बांसुरी बजाने वाला, बीजम् बाँस का इसीलिए उन्हें 'श्रुति' कहते हैं, इसके विपरीत 'स्मति' बीज। अर्थात् जो याद रक्खे जायं या जो पुरुषों की कृति हो; बेणुकम् [ वेणु+कन् ] बॉस की मूठ वाला अंकुश। दे० 'धुति' तथा 'स्मृति' भी, इसीलिए बहुत से ऋषि वेणुनम् | वेण+उनन् ] काली मिर्च / / जिनका नाम वेद के सूक्तों से संबद्ध है 'द्रष्टारर देखने ): (पुं०) हाथी भामि० 1162 / वाले कहलाते हैं, उन्हें 'कर्तारः' या 'स्रष्टारः' अर्थात् बेतनम् [अ+तनन् वीभावः] 1. किराया, मजदूरी, रचयिता नहीं कहा जाता) 3. कुशा घास का गुच्छा भृति, तनख्वाह, वृत्ति-रघु. 17/66 2. आजीविका, ----- मनु०४१३६, 4. विष्णु का नाम / सम-अगम् जीवननिर्वाह का साधन / सम-अबानम-अनपाकर्मन् 'वेद का अंग' एक प्रकार के ग्रन्थ जो मंत्रोच्चारण, (नपुं०),-अनपक्रिया 1, पारिश्रमिक या मजदूरी न व्याख्या और संस्कारों में यत्र-तत्र सही विनियोग में देना 2. मजदूरी न मिलने के कारण किया गया सहायता देने के लिए प्रयुक्त होते हैं अत: वेदाध्ययन प्रयत्न, बीविन् (पुं०) वृत्ति पाने वाला, वैतनिक / में सहायक है, (वेदांग गिनती में छः हैं 1. शिक्षा, बेतसः अज्+असुन तुक च, वीभावः] 1. नरसल, नरकुल, अर्थात उच्चारण-विज्ञान 2. छंदस -छन्दः शास्त्र, बेत-अविलम्बितमेषि वेतसस्तरुवन्माधव मा स्म 3. व्याकरण 4. निरुक्त अर्थात् वेद के कठिन शब्दों भग्यथाः-शि०.१६॥५३, रघु० 975 2. नींबू, की निर्वचनपरक व्याख्या 5. ज्योतिष अर्थात नक्षत्रविजीरा। विद्या या गणितज्योतिष और 6. कल्प अर्थात् कर्मबेतली [वतस् + ] नरसल,-चेतसीतल्तले-काव्य. 1 / / काण्ड या अनुष्ठानपति),-मधिगमः, --मभ्ययनम् For Private and Personal Use Only Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुख्य दर्शनों में TM) उपनिषद् 2.6 अन्त' (वेद | ( 976 ) धार्मिक अध्ययन, वेदाध्ययन, अध्यापकः वेद का (कुछ लोग इस शब्द का अर्थ इस स्थान पर 'मोहर पढ़ाने वाला, धर्मगुरु, अन्तः 1. 'वेद का अन्त' (वेद की अंगूठी' समझते हैं 3. किसी मन्दिर या महल का के अन्त में आने वाली) उपनिषद् 2. हिन्दुओं के छ: चौकोर सहन 4. मुद्रा-अंगूठी 5. सरस्वती 6. भूखण्ड, मख्य दर्शनों में अन्तिम दर्शन ('वेदान्त' इसलिए प्रदेश / सम०-जा द्रौपदी का विशेषण, क्योंकि यह कहलाता है कि यह वेद के अन्तिम ध्येय और कार्य- राजा द्रुपद की यज्ञवेदी के मध्य से उत्पन्न हुई थी। क्षेत्र की शिक्षा देता है, या इसलिए कि यह उन उप- वेदिका वेदी-कन-टाप, ह्रस्व] 1. यज्ञभूमि या वेदी निषदों पर आधारित है जो वेद का अन्तिम भाग हैं), 3. चबूतरा, उच्चसमतलभूमि (जो प्रायः धर्मकृत्यों के (दर्शन की इस पद्धति को कभी-कभी 'उत्तरमीमांसा' | लिये ठीक की गई हो-सप्तपर्णवेदिका--- श०१, के नाम से पुकारते हैं, यही जैमिनि की पूर्वमीमांसा | कु० 3 / 44 3. आसन 4. वेदी, ढेप, टीला, मन्दाकिका उत्तरार्ध, या अन्तिम भाग है, परन्तु व्यवहारतः नीसंकतवेदिकाभिः -- कु. 1229, 'वेदी या रेत के यह एक स्वतंत्र शास्त्र है, दे० मीमांसा, यह हिन्दुओं टीले बना कर' 5. आंगन में बीच में बना चौकोर के 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' के सर्वेश्वरवाद का प्रवर्तक है, चबुतरा 6. लतामंडप, निकुंज। इसके अनुसार समस्त विश्व एक ही अनादि शक्ति | वेबिन (वि.) [विद+णिनि] 1. ज्ञाता जैसा कि 'कृतअर्थात् ब्रह्म या परमात्मा का संश्लिष्ट रूप है, दे० ___ वेदिन्' में 2. विवाह करने वाला, (पुं०) 1. जानकार 'ब्रह्मन्' भी) °गः, 'श:, वेदान्त दर्शन का अनुयायी, ___2. अध्यापक 3. विद्वान् पुरुष 4. ब्राह्मण का विशेषण / -अन्तिन् (पुं०) वेदान्त दर्शन का अनुयायी,-अर्थः वेदी दे० 'वेदि (स्त्री०)। वेदों का अर्थ,-अवतारः वेदों का प्रकटीकरण, वेद्य (वि०) [विद्+ण्यत्] 1. ज्ञात होने के योग्य अर्थात् ईश्वरीय संदेश,---आदि (नपुं०),--आदिवर्णः 2. व्याख्येय या शिक्षणीय 3. विवाहित होने के योग्य / -आविबीजम् 'ओम्' की पुनीत ध्वनि, - उक्त वेधः [विष्+धा] 1. छेद करना, बींधना, छिद्र युक्त (वि.) शास्त्रसम्मत, वेदविहित, कौलेयकः शिव करना 2. घायल करना, धाव 3. छिद्र, खुदाई या का विशेषण,--गर्भः 1. ब्रह्म का विशेषण 2. वेदों का गर्त 4. (खुदाई की) गहराई 5. समय की माप ज्ञाता ब्राह्मण, सः वेदों को जानने वाला ब्राह्मण, - त्रयम्,-- त्रयी सामूहिक रूप से तीनों वेद, वेषकः विध+पवुल्] 1. नरक के एक प्रभाग का नाम -निन्दकः नास्तिक, पाखण्डी, श्रद्धाहीन (जो वेद के 2. कपूर, कम् बाल में विद्यमान चावल। स्वरूप तथा उसके अपौरुषेयत्व पर विश्वास नहीं बेधनम [विष+ ल्युट] 1. छेदने या बींधने की क्रिया करता है),-निन्दा अविश्वास, पाखण्ड,-पारगः2. प्रवेशन, छेदन 3. शून्यीकरण, वेघन 4. चुभोना, वेदों में पारंगत ब्राह्मण,--मातु (स्त्री०) वैदिक घायल करना 5. (खदाई की) गहराई। पुनीत मंत्र, गायत्रीमंत्र, वचनम्,-वाक्यम् वेद का वेषनिका [वेधनी+कन्+-टाप, ह्रस्व एक तेज नोक मूलपाठ, वदनम् व्याकरण,-वासः ब्राह्मण,- बाह्य वाला उपकरण जिससे मणि या सीप आदि में छिद्र (वि०) वेद के विरुद्ध, जो वेद में उपलब्ध न हो, किये जाते हैं, बर्मा। -विद (0) वेदविशारद ब्राह्मण,-विहित वेधनी विधन-कीप] 1. हाथी का कान बींधने वाला (वि०) वेदों में जिसका विधान पाया जाय, व्यासः उपकरण 2. एक तेज नोक का सीप व मणि आदि व्यास का विशेषण जिसने वेदों को वर्तमान रूप दिया को बींधने वाला उपकरण, बर्मा / है, दे० व्यास, --संन्यासः वेदों के कर्मकाण्ड का | वेषस् (पुं०) [विधा+असुन, गुणः] 1. स्रष्टा-मा० त्याग। श२१ 2. ब्रह्मा, विधाता तं वेधा विदधे नूनं महाबेवनम्, वेदना [विद्+ल्यूट] 1. ज्ञान, प्रत्यक्षज्ञान भूतसमाधिना रघु० 229, कु० 2 / 16, 5 / 41 2. भावना, संवेदन 3. पीडा, संताप, क्लेश, अधि 3. गौण सष्टिकर्ता (जैसे कि ब्रह्म से उत्पन्न दक्ष .. अवेदनाशं कुलिशक्षतानाम् . . कु० 220, रघु० प्रजापति) कु० 2114 4. शिव इ. विष्णु 6. सूर्य 850 4. अधिग्रहण, दौलत, जायदाद 5. विवाह 7. मदार का पौधा 8. विद्वान् पुरुष / -~-मनु० 3 / 44, 9 / 65, याज्ञ० 1062 / वेषसम् [वेधस+अन्] अंगूठे की जड़ के नीचे का हथेली वेवारः [वेद+ऋ+अण] गिरगिट / का भाग। वेविः [विद्+इन् विद्वान् पुरुष, मषि, पंडित, विः,ची वेधित (भू० क. कृ०) [वेध+इतच्] बींधा हुआ, (स्त्री०) 1. यज्ञकार्य के लिए तैयार की हुई भूमि, छिद्रित / वेदी, 2. वेदी विशेष जिसके मध्यवर्ती किनारे परस्पर वेन (म्वा० उभ० वेनति–ते) दे. वेण् / मिले हुए हों-मध्येन सा वेदिविलग्नमध्या-कु. 1137 / वेला दे० 'वेणा'। विशेष / For Private and Personal Use Only Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 977 ) मोटी जाति का पुरुष, टम् | आवास, भवन, 7 सम०-कर्मन् ( m वेप (भ्वा० आ० वेपते, वेपित) कांपना, हिलना, थर- ) वेशः [विश्+घञ ] 1. प्रवेशद्वार 2. अन्तः प्रवेश, थराना, लरजना--कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी,-भग० पेठना 3. घर, आवासस्थल 4. वेश्याओं का घर, 11 / 35, रघु० 11165, प्र. थरथराना, धड़कना, चकला,-तरुणजनसहायश्चिन्त्यतां वेशवास: -मच्छ. कांपना-कु० 5 / 27,74 / 231 5, पोशाक, वस्त्र, कपड़े (इस अर्थ में 'वेष' वेपथुः [वे+अथच थरथरी, कंपकंपी, (स्तनों का) भी लिखा जाता है)—मगयावेषधारी,-विनीतवेषण हिलना 'अद्यापि स्तनवेपथु जनयति श्वासः प्रमाणा- -श० 1, कृतवेशे केशवे - गीत०११। सम० धिक:---- श० 130, शि० 9 / 22, 73, रघु० 19 // -दानम् सूरजमुखी फूल,--धारिन् (वि.) छद्म२३, कु० 4 / 17, 5385 / / वेशी, कपटरूपधारी,--नारी, वनिता वेश्या-मुद्रा० वेपनम् वेप + ल्युट] थरथरी, कंपकपी। ३११०,--वासः वेश्याओं का घर, चकला / वेमः, वेमन् (पुं०, नपुं०) [वे+मन्, मनिन् वा] करघा, | वेशकः [ वेश+कन् ] घर। खंड्डी--- महासिवेम्नः सहकृत्वरी बहुम्-० श१२, | वेशनम् [विश्+ल्यूट] 1. प्रवेश करना, प्रवेशद्वार तुरीवेमादिकम् -- तर्क। 2. घर 1 बेरः, - रम् [अज्+रन, वीभावः] 1. शरीर 2. केसर. वेशन्तः [विश+झच ] 1. छोटा तालाब, पोखर 2. आग / जाफरान 3. बैंगन / वेशरः [ वेश-+रा+क] खच्चर। बेरटः (0) नीच सुरुष, छोटी जाति का पुरुष, टम् | वेश्मन् (नपुं०) [विश्-+- मनिन् ] घर, निवासस्थान, बेर का फल / आवास, भवन, महल-रधु० 14/15, मेघ० 25, वेल i (म्वा० पर० वेलति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. हिलना, इधर उधर घूमना, कांपना। बनाना, - कलिङ्गः एक प्रकार की चिड़िया,- नकुलः ii (चुरा० उभ० वेलयति-ते) समय की गणना | छछन्दर,-भूः (स्त्री०) वह स्थान जहाँ घर बनाना करना। है, भवननिर्माण के लिए भूखण्ड / वेलम् [वेल+अच] उद्यान, वाटिका / वेश्यम् [विश्+ण्यत्, वेशाय हितं वा यत् ] वेश्याओं वेला वेल+टाप] 1. समय-बेलोपलक्षणार्थमादिष्टोऽस्मि का घर, चकला। --श०४ 2. ऋतु, अवसर 3. विश्राम का अन्तराल, | वेश्या | वेशेन पण्ययोगेन जीवति–वेश् + यत्-+-टाप्] अवकाश 4. लहर, प्रवाह, धारा 5. समुद्र तट, बाजारू स्त्री, रंडी, गणिका, रखैल . मच्छ० 1232, समुद्री किनारा वेलानिलाय प्रसता भुजङ्गाः रघु० | मेघ० 35, याज्ञ० 11141 / सम०-आचार्यः 1. वह 13 / 12,15, 1130, 8180, 17137, शि० 3179, पुरुष जो वेश्याओं का स्वामी हो, उन्हें रखता हो 9 / 38 6. सीमा, हदबन्दी 7. भाषण 8. बीमारी 2. भडवा 3. लौंडा, गाँड़,-आभयः वेश्याओं का 9. सहज मृत्यु 10. मसूड़े / सम० कुलम् ताम्रलिप्त वासस्थल, चकला, - गमनम् व्यभिचार, रंडीबाजी, नामक जिला,--मूलम् समुद्र-तट, --वनम् समुद्री किनारे * गहम् चकला, -जनः रंडी, पण: भोग के लिए का जंगल। रंडी को दी जाने वाली मजदूरी / वेल्ल (भ्वा० पर० वेल्लति) 1. जाना, हिलना-जुलना वेश्वरः (पुं०) खच्चर। 2. हिलाना, कांपना, इधर-उधर फिरना भामि० वेष दे० 'वेश। 1155, शि०७७२। वेषणम | विष+ल्यट 1 अधिकृत वस्तु, स्वामित्व, कब्जा। वेल्लः, वेल्लनम् [ बेल्ल-घा, ल्यूट वा ] 1. हिलना, वेष्ट (म्वा० आ. वेष्टते) 1. घेरना, अहाता बनाना, घेरा गतिशील होना 2. (भूमि पर) लोटना / डालना, लपेटना 2. चाबी देना, मरोड़ना 3. वस्त्र वेल्लहलः [वेल्ल+हवल+अच, पृषो०] लम्पट, पहनना। प्रेर० (वेष्टयति ..ते) 1. घेरना 2. घेरादुराचारी। बन्दी डालना, आ-, तह करना, परि - , सम्प रवेल्लिः (स्त्री०) [वेल्ल ---इन् ] लता, वेल तु०. नल्लि'। स्पर तह करना, लपेटना, मरोड़ना, उमेठना / वेल्लित (भू क० कृ०) [वेल्ल-क्त ] 1. कंपायमान, वेष्टः / वेष्ठ+घञ ] 1. घेरा, घिराव 2. बाड़ा, बाड़ थरथराने वाला, हिलाया हुआ 2. टेढ़ा-मेढ़ा,... तम् 3. पगड़ी 4. गोंद, राल, रस 5. तारपीन / सम० 1. जाना, चलना-फिरना 2. हिलना। -वंशः एक प्रकार का बांस, -- सारः तारपीन / देवी (अदा० आ० वेवीते) 1. जाना 2. प्राप्त करना वेष्टकः | वेष्ट्+ण्वल 1 1. बाड़ा, बाढ़ 2. लौकी,-कम् 3. गर्भधारण करना, गर्भवती होना 4. व्याप्त करना 1. पगड़ी 2. चादर, लबादा 3. गोंद, रस 5. डाल देना, फेंकना 6. खाना 7. कामना करना, 4. तारपीन / चाहना (शास्त्रीय साहित्य में विरल प्रयोग)। वेष्टनम वेष्ट+ल्यूट ] 1. लपेटना, चारों ओर से घेला, 123 For Private and Personal Use Only Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 978 ) घेराबन्दी करना,—अगुलिवेष्टनम्, 1. अंगूठी / वैकल्पम् [विकल्प + अण् ] 1. ऐच्छिकता 2. संशय, 2. कुंडलित होना, गोल मरोड़ी लेना,--रघु० 4 / 38. संदिग्धता 3. अनिश्चय, असमंजस / 3. लिफाफा, लपेटन 4. ओढ़नी, ढकना, संदूक 5. पगड़ी, | वैकल्पिक (वि.) (स्त्री० -की) [विकल्प+ठक ] विमाट-अस्पष्टालकवेष्टनौ --रघु० 1142, शिरसा 1. ऐच्छिक 2. संदिग्ध, ससंशय, अनिश्चित, अनिर्णीत। वेष्टनशोभिना-८1१२ 6. बाड़ा, घेर-क्रीडाशैल: | वैकल्यम् [विकल---ष्या] 1. त्रुटि, कमी, अधूरापन कनककदलीवेष्टनप्रेक्षणीय:-मेघ०७७ 7. तगडी, कमर- 2. अङ्गभङ्ग, विकलाङ्ग या पंग होना 3. अक्षमता बन्द 8. पट्टी 1. बाहरी कान 10. गुग्गुल 11. नृत्य 4. विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्तेजना, 5. अनस्तित्व। की विशेष मुद्रा। वंकारिक (वि०) (स्त्री०-की) [विकार+ठक] 1. विकारबेष्टनक: [ वेष्टन+कन् / संभोग के अवसर की विशेष | विषयक 2. विकारशील 3. विकृत। अंगस्थिति। वैकालः [विकाल+अण] तीसरा पहर, मध्याह्नोत्तर काल, बेष्ठित (भू० क० कृ०) [ वेष्ट्+क्स ] 1. घिरा हुआ, | सायंकाल / घेरा हुआ, चारों ओर से लपेटा हुआ, बन्द किया | वैकालिक ( वि० ) ( स्त्री०-को ) वैकालीन ( वि० ) हुआ 2. लिपटा हुआ, वस्त्रों से सुसज्जित किया हुआ विकाल+ठक, ख वा] सायंकालसम्बन्धी या सायं3. ठहराया हुआ, रोका हुआ, विघ्न डाला हुआ | काल के समय घटित होने वाला। 4. घेराबन्दी किया हुआ। ठः विकूण्ठायां मायायां भव:-- अण] 1. विष्णु का बेल्पः, वेष्यः [ विषेः प: ] जल, पानी। विशेषण 2. इन्द्र का विशेषण 3. तुलसी का पौधा, बेव्याः दे० 'वेश्या'। -ठम् 1. विष्णु का स्वर्ग 2. अभ्रक / सम०-चतुबेसर| वेस+अरन् ] खच्चर-शि० 12 / 19 / वंशी कार्तिकशुक्ला चौदस, लोकः विष्णु की दुनिया / बेस (श) बारः [ वेस्++अण् ] गर्म मसाला, (जीरा, वकृत (वि.) (स्त्री०----ती) [विकृत-अण्] 1. परि राई, मिर्च, अदरक आदि के योग से तैयार किया / वर्तित 2. बदला हुआ,-सम् 1. परिवर्तन, अदल-बदल, गया मसाला)। हेर-फेर 2. अरुचि, जगप्सा, घिनौनापन 3. अवस्था बेह, (म्या० आ. वेहते) दे० 'बेह'। या सूरत शक्ल में परिवर्तन, विरूपता आदि..-नै० बेहत् (स्त्री०) [ विशेषेण हन्ति गर्भम्-वि+हन्+ 4 / 5 4. अपशकुन, कोई भी अनिष्टसूचक घटना अति ] बांझ गौ। ....तत्प्रतीपपवनादि वैकृतं प्रेक्ष्य रघु० 11162 / बेहार-विहारः, पृषो०] एक देश का नाम, बिहार / सम० बिवर्तः दुर्दशा, दयनीय दशा, कष्टग्रस्त-कृतबेझ (भ्वा० पर० वेलते) जाना, हिलना-जुलना। विवर्तदारुणः-मा० 1139 / / (म्बा. पर० वायति) 1. सूखना, शुष्क होना | वैकृतिक (वि.) (स्त्री०-की) विकृति+ठक] 1. परि2. म्लान, निढाल, अवसन्न / . वर्तित, संशोधित 2. विकृति सम्बन्धी (सांख्य में)। (अव्य.) [वा+है ] स्वीकृति या निश्चयवाचक | वकृत्यम् [विकृत+ध्यम ] 1. परिवर्तन, अदल-बदल भव्यय (निःसन्देह, सचमुच, वस्तुतः) परन्तु केवल | 2. दुःखद स्थिति, दयनीय दशा 3. जगप्सा। पूरक के रूप में प्रयुक्त -आपो वै नरसूनवः --मनु० वकान्तम विक्रान्त्या दीव्यति--विक्रान्ति+अण] एक 1 / 10, 2 / 231, 9 / 49, 11177, यह कभी कभी प्रकार का रत्न / सम्बोधन के रूप में भी प्रयुक्त होता है तथा कभी कभी [क्लवं वैक्लव्यम [विक्लव---अण, व्या वा] 1. गड़बड़ी, अनुनय को प्रकट करता है। विक्षोभ, घबराहट 2. हुल्लड़, हलचल 3. कष्ट, दुःख, पातिक (वि.) (स्त्री० -की) [विंशतिक+अण् ] शोक, रंज श० 4 / 6, वेणी० 5, मृच्छ० 3 / बीस मैं मोल लिया हुआ। अंबरी [विशेषेण खं राति-रा+क-अण+कीप्] 1. स्पष्टकक्षम् [विशेषेण कक्षति व्याप्नोति-अण 1 1. एक उच्चारण, ध्वनि-उत्पादन, दे०कु०२।१७ पर मल्लि. माला जो यज्ञोपवीत की भांति एक कंधे के ऊपर से 2. वाशक्ति 3. वाणी, भाषण / तथा दूसरे कंधे के नीचे से धारण की जाती है | वैखानस (वि०) (स्त्री०-सी) [वैखानसस्य इवम्-अण्] 2. उत्तरीय वस्त्र, चोगा, ओढ़नी। किसी वानप्रस्थ, सन्यासी, या भिक्ष आदि से सम्बद्ध, कक्षकम, कक्षिकम [वैकक्ष+कन्, ठन् वा ] यज्ञोपवीत --वैखानसं किमनया वतमाप्रदानाद व्यापाररोधि की भाति बायें कन्धे के ऊपर तथा दायें कन्धे के नीचे मदनस्य निषेवितव्यम् श० श२७, सः वैरागी, से पहनी आने वाली माला। वानप्रस्थ, तीसरे आश्रम में वास करने वाला ब्राह्मण काटिकः (पुं०) जौहरी। -~-रघु० 14128, मट्टि० 3 / 49 / पर्सनः [ विकर्तनस्यापत्यम्-अण् ] कर्ण का नाम / वंगुष्यम् [विगुण+ष्य [ 1. गुण या विशेषण का अभाव For Private and Personal Use Only Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रकपताल का भगर, बाजे ( 979 ) 2. सदगुणों का अभाव, टि, दोष, कमी 3. गुणों की से निर्वाह करने वाला,-क: 1. वेतन लेकर काम भिन्नता, विविधता, विरोधिता 4. घटियापन, तच्छता करने वाला, श्रमिक 2. वेतन भोगी (कर्मचारी)। 5. अकुशलता। वैतरणिः,--णी (स्त्री०) [वितरेणन दानेन लंध्यते पंचक्षण्यम् [ विचक्षण+ष्या ] कौशल, निपुणता, --वितरण+अण्+डीप, पक्षे पुषो० . ह्रस्वः 1 प्रवीणता। 1. नरक की नदी का नाम 2. कलिङ्ग देश की नदी वैचित्यम् [विचित +ष्यञ्] शोक, मानसिक विकलता, | का नाम। अफसोस-मा०३।१। बैतस (वि.) (स्त्री०- सी) [ वेतस+अण् ] 1. बेंत से वैचित्र्यम् [विचित्र+व्यञ] 1. विविधता, विभिन्नता संबन्ध रखने वाला 2. नरकुल जैसा अर्थात् अपने से 2. बहुविधता 3. अचरज 4. विस्मयोत्पादकता जैसा अधिक शक्तिशाली शत्र के सामने घुटने टेक देने वाला कि 'वाच्यवैचित्र्य' में, काव्य० 10 5. आश्चर्य / __-जैसा कि 'वैतसी वृत्तिः रघु० 4135, पंच०३।१९ / वैजननम् [विजनन+अण] गर्भ का अन्तिम मास / | वैतान (वि०) (स्त्री०-नी) [वितान+अण् ] यज्ञीय, वैजयन्तः वैजयन्ती+अण्] 1. इन्द्र का महल 2. इन्द्र का पवित्र, वैतानास्त्वां वह्नयः पावयन्तु-श० 47, झण्डा 3. ध्वज, पताका 4, घर।। -नम् 1. यज्ञीय कृत्य 2. यज्ञीय आहुति / वैजयन्तिकः वैजयन्ती+ठक] अण्डा उठाने वाला। वैतानिक (वि०) (स्त्री०-की) [ वितान+ठक् ] दे० वैजयन्तिका विजयन्ती+कन्+टाप्, ह्रस्व] 1. झण्डा, वितान'। पताका (आलं. से भी) -संचारिणीव देवस्य मकर- वैतालिकः[ विविधस्तालस्तेन व्यवहरति-ठक ] 1. भाट, केतोजगद्विजयवैजयन्तिका काप्यागतवती---मा० 1 चारण 2. जादूगर, बाजीगर, विशेषकर वह जो 2. एक प्रकार की मोतियों की माला। वैजयन्ती [वि+जि+झच् = विजयन्त-+अण्---डीप्] वत्रक (वि०) (स्त्री० को) [ वेत्र+वुन ] बेंत से 1. झंडा, पताका-स्तनपरिणाहविलासर्वजयन्ती-मा० युक्त, नरकुल का। 3 / 15 2. चिह्न 3. माला, हार 4. विष्णु का हार वंवः [ वेद+अण् ] बुद्धिमान् मनुष्य, विद्वान् पुरुष / 5. एक शब्दकोश का नाम / वैवग्धम, वैवग्धी, वैदरच्यम् [विदग्ध+अण=वदग्ध+ वैजात्यम् [विजात+ष्यन 11. जाति या प्रकार की जीप, विदग्ध+व्या ] 1. कौशल, दक्षता, प्रवीणता, भिन्नता 2. जाति या वर्ण की भिन्नता 3. अचरज निपुणता-अहो वैदग्ध्यम्--मा० 1, प्रबन्धविन्यास 4. जातिबहिष्कार 5. बदचलनी. स्वेच्छाचारिता / / वेदाध्यनिधिः--वास०, शि० 4 / 26 2. क्रमस्थापन में पंजिक (वि.) दे० 'बैजिक'।। कौशल, सौन्दर्य --मा० 1137 3. बुद्धिमत्ता, स्फूर्ति, वैज्ञानिक (वि०) (स्त्री० --की) [ विज्ञान-ठक् ] चतुर, चतुराई-रत्न० 2 4. बुद्धि।। कुशल, प्रवीण / वंदर्भः [विदर्भ--अण् ] विदर्भ देश का राजा-भॊ वैडाल दे० 'बैडाल'। 1. दमयन्ती 2. रुक्मिणी 3. रचना की विशेष शैली, वैणः [ वेणु+अण्, उकारस्य लोपः ] बांस का कार्य करने सा. द. में दी गई परिभाषा-माधुर्यव्यजकैवर्णः वाला। रचना ललितात्मिका। अवृत्तिरल्पवृत्तिवां ववी वैणव (वि०) (स्त्री०-वी) [ वेणु+अण् ] 1. बांस से रीतिरिष्यते / / 626, दण्डी ने बड़ी सक्ष्मता पूर्वक उत्पन्न या बांस का बना हुआ,--4: 1. बांस की छड़ी गौड़ी रीति से इसकी विभिन्नता दर्शायी है-दे० 2. बांस का कार्य करने वाला, बंसोड़,-बी बंसलोचन, काव्या० 1241-53 / बम् बांस का फल या बीज / / बंवल (वि०) (स्त्री-ली) [विदलस्य विकारः विवल बणविकः [ वैणव---ठक ] मुरली बजाने वाला, बाँसुरी +अण् ] 1. बेंत या टहनियों से बनाया हुआ,-ल: बजाने वाला। एक प्रकार की रोटी 2. कोई भी दाल का अनाज, वैणविन् (पुं०) [ वैणव+इनि ] शिव की उपाधि / -लम् 1. भिक्षुओं का कमगहरा भिक्षापात्र 2. बांस बैणिक: [ वीणा+ठक् ] वीणा बजाने वाला। या टहनियों की बनी डलिया, या आसन / वैणुकः [ वेणुक +अण् ] मुरली बजाने वाला, बांसुरी | वैदिक (वि.) (स्त्री०-की) [ वेदं वेत्त्यधीते वा ठम बजाने वाला,-कम् अंकुश दे० 'वेणुक' / वेदेषु विहितः वेद+ठक] 1. वेदों से व्युत्पन्न या वेदों बतंसिकः[ वितंस--ठक ] मांस विक्रेता। के समनुरूप, वेदविपयक 2. पवित्र, वेदविहित, धर्मात्मा बैतडिकः वितण्डा+ठक] वितंडावादी, व्यर्थ विवाद करने -कु० 5 / 73, -क: वेदों में निष्णात ब्राह्मण / सम. वाला, छिद्रान्वेषी। पाशः वेद का अल्पज्ञान रखने वाला, कठमानी, वैतनिक (वि०) (स्त्री०-की) [ वेतन-+ठक ] वेतन जिसे वेद का अधूरा ज्ञान हो / ब्दिकोश क माला, हारलासवजयन्ती को For Private and Personal Use Only Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 980 ) बैगुनी (स्त्री०) तुष्यम् [ विस्+अण् +कोप, विद्वस् | बंपुर्यम् [ विधुर+ध्या ] 1. शोकावस्था 2. विक्षोभ व्य] ज्ञान, अधिगम, बुद्धिमत्ता। . थरथरी, सिहरन / बंदर्य (वि.) (स्त्री०-री,-यों) [विदूर+ष्य] विदूर | वषेय (वि.) (स्त्री०-यी) [विधि+ढक्] 1. नियमानुकूल, से उत्पन्न या लाया गया, -र्यम् वैदूर्य मणि, नीलम | विहित 2. मूर्ख, बुद्ध, जड, यः मूढ, जडमति-प्रल-०७।१०, शि० 3145 / पत्येष वैधेयः-श०२, विक्रम०२।। वैदेशिक (वि.) (स्त्री०-की) [विदेश+ठा] दूसरे देश | वैनतेयः [विनता+ढक ] 1. गहड,-वैनतेय इव विनता से संबंध रखने वाला, अन्य देश का, और देशों से नन्दनः-का०, रघु० 11159,1688, भग० 10 // 30 लाया हवा,-कः अन्य देश का व्यक्ति, विदेशी। 2.अरुण / वेश्यम् [विश+व्या] विदेशीपन, विदेशी होना। वैनयिक (वि०) (स्त्री०-को)विनय+ठक] 1. शिष्टता, बेहः [विदेह+अण] 1. विदेह देश का राजा 2. विदेह सौजन्य, सदाचरण या अनुशासनसम्बन्धी 2. शिष्टा का रहने वाला 3. व्यापारी वैश्य 4. ब्राह्मण स्त्री में चार का व्यवहार करने वाला, कः सामरिक रथ / वैश्य पुरुष से उत्पन्न सन्तान -मनु०१०।११, हाः वैनायक (वि.) (स्त्री०-की) [विनायक+अण् ] (पुं०,ब०व०) विदेह देश के राष्ट्रजन, ही सीता गणेशसम्बन्धी-मा० 111 / -वैदेहिबन्धोई दयं विदद्रे-रघु० 14133 (यहाँ बैनायिकः / विनायं खण्डनमधिकृत्य कृतो ग्रन्थः - विनाय 'वैदेही' शब्द का अन्तिम स्वर ह्रस्व कर दिया +ठक्] 1. बौद्ध संप्रदाय के दर्शन-सिद्धान्त 2. उस गया है)। सम्प्रदाय का अनुयायी। बहकः [वैदेह+कन्] 1. व्यापारी 2. = वैदेह (4) / / वनाशिकः [विनाश+ठक 1. दास 2. मकड़ी 3. ज्योतिषी बंदेहिकः [विदेह+ठक] सौदागर। ___4. बौद्धों के सिद्धान्त 5. उन सिद्धान्तों का अनुयायी। पंच (वि.) (स्त्री०-पी) [वेद+यत्] 1. वेद सम्बन्धी, | वैनीतक दे० 'विनीतक'। आध्यात्मिक 2. आयुर्वेद सम्बन्धी, आयुर्वेद विषयक, | वपरीत्यम् [विपरीत-ज्य ] 1. विरोधिता, विरोध -- विद्या अस्ति अस्य -विद्या+अण] 1. विद्वान | 2. असंगति / पुरुष, विद्यावान्, पण्डित 2. आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक वैपुल्यम् [विपुल -व्यञ ] 1. विस्तार, विशालता -वैद्ययनपरिभाविनं गदं न प्रदीप इव वायुमत्यगात् 2. पुष्कलता, बहुतायत / - रघु० 19453, वैद्यानामातुरः श्रेयान् - सुभा० बंफल्यम् [विफल+ व्या निरर्थकता, विफलता। 2. वंद्य जाति का पुरुष, जो वर्णसङ्कर समझा जाता ! वैबोधिकः [विबोध-ठक ] 1. चौकीदार 2. विशेषकर है (वैश्य स्त्री में ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न सन्तान)। वह जो रात में सोने वालों को, पहरा देते समय, सम० -क्रिया वंद्य का व्यवसाय, चिकित्सक के रूप समय की घोषणा करके जगाता रहता है कि० में अभ्यास, - भाष: 1. धन्वन्तरि 2. शिव। 9 / 74 / पंचकः [ वैद्य+कन् ] वैद्य, चिकित्सक,-कम् चिकित्सा- | वैभवम | विभ--अण | 1. बडप्पन, यश, महिमा, चमकविज्ञान / दमक, ठाठ-बाट, दौलत 2. शक्ति, ताकत कि० बैचुत (वि.) (स्त्री०-ती) [विद्युत+अण्] बिजली से | 12 / 3 / / सम्बद्ध या उत्पन्न, बिजली-वृक्षस्य वैद्युत इवाग्नि- | वैभाषिक (वि.) (स्त्री० की) [ विभाषा+ठक ] रुपस्थितोऽयम्-विक्रम० 4 / 16, उत्तर० 5.13 / ऐच्छिक, वैकल्पिक / सम० - अग्निः, - अनलः वह्निः बिजली की आग। वैनम् (नपुं०) विष्णु का वैकुण्ठ। वेष (वि.) (स्त्री०-धी), वैधिक (वि.) (स्त्री०-की) बभ्राजम् [विभ्राज्+अण् ] स्वर्गीय उपवन या उद्यान / [विधि+अण, ठक् वा] 1. नियम के अनुरूप, मत्यम् [ विमत-+-ष्य ] 1. मतभेद, अनबन 2. नापव्यवस्थित, निश्चित, कर्मकाण्डविषयक 2. कानूनी, संदगी, अरुचि। विधि या कानून सम्मत। वैमनस्यम् [विमनस्+ध्या 1 1. मन का उचटना, धर्म्यम् [विधर्म+ध्या 1 1. असमानता, भिन्नता | मानसिक अवसाद, शोक, उदासी--श०६ 2. रोग / 2. लक्षण गुणों का अन्तर 3. कर्तव्य या आभार का | वैमात्रः, वैमात्रेयः [ विमातृ+अण्, ढक् वा ] सौतेली माँ अन्तर 4. वैपरीत्य 5. अवधता, अनौचित्य, अन्याय | का बेटा। 6. पाखण्ड। बमात्रा, बमात्री, मात्रेयी [ वैमात्र+टाप, झोप वा, पंचवेयः [विधवा+दक विधवा का पुत्र / वैमात्रेय+ही] सौतेली मां की बेटी। वैषव्यम् [विषवा+ध्य ] विषवापन, कु. 41, वैमानिक (वि०) (स्त्री० की) [विमान+ठक् ] देवमालवि०५। यान में आसीन,-क: गगनविहारी। For Private and Personal Use Only Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 981 ) वमुल्यम् [ विमुख+ष्या ] 1. मुंह मोड़ना, पलायन, | वरल्पम् [विरल+व्यञ् ] 1. न्यूनता, विरलता 2. ढीलाप्रत्यावर्तन 2. अरुचि, जुगुप्सा। पन 3. मृदुता। बमेयः [विमेय+अण् ] बदला, विनिमय।। वैरागम् दे० 'वराग्यम्। वयनम्, वैययम् [व्यग्र+अण, व्या वा 11. व्यग्रता, वैरागिकः, वैरागिन् (पुं०) [ विराग+ठक, विराग+अण बेचैनी, घबराहट 2. अनन्य भक्ति, तल्लीनता +इनि ] वह संन्यासी जिसने अपनी सब इच्छाओं . महावी० 7 / 38 / और वासनाओं का दमन कर लिया है। वयय॑म् [ व्यर्थ+ष्या | व्यर्थता, अनुत्पादकता। वैराग्यम् [विरागस्य भावः-व्या ] 1. सांसारिक वासवैयषिकरण्यम् [ व्यधिकरण+ष्यत्र / भिन्न स्थानों में | नाओं व इच्छाओं का अभाव, सांसारिक बंधनों से होने का भाव, दे० 'व्यधिकरण। उदासीनता, विरक्ति- भग० 6 / 35, 1368 2. असंबंयाकरण (वि.) (स्त्री०-णी) [ व्याकरणमधीते वेत्ति तृप्ति, अप्रसन्नता, असंतोष-कामं प्रकृतिवैराग्यं सखः वा--अण् ] व्याकरणविषयक, व्याकरणसंबन्धी,-णः शमयितुं क्षमः - रघु०१७।५५ 3. अरुचि, नापसन्दगी व्याकरण जानने वाला वैयाकरणकिरातादपशब्द- 4. रंज, शोक, अफसोस / मृगाः क्व यांतु संत्रस्ता:-सुभा०। सम-पाशः वैराज (वि.) (स्त्री०-जी) [विराज्+अण् ] ब्रह्माजिसे व्याकरण का अच्छा ज्ञान न हो, - भार्यः संबंधी-उत्तर० 2 / / जिसकी पत्नी व्याकरण को जानने वाली हो। | वराट (वि०) (स्त्री० -- टी) [विराट+अण् ] विराट वैयाघ्र (वि.) (स्त्री० . प्री) [व्याघ्र+अ ] | संबंधी,-ट: एक प्रकार का मिट्टी का कीड़ा, इन्द्रगोप / 1. चीते की तरह का 2. चीते की खाल से ढका हुआ | वैरिन् (वि.) [वैर+इनि ] विरोधी, शत्रुतापूर्ण (पुं०) -प्रः चीते की खाल से ढकी हुई गाड़ी। शत्रु,-शौर्य वैरिणि ववमाश निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलम् वयात्यम् | वियात+व्या ] 1. साहस, अविनय, निलं- --भर्तृ० 2 / 39, भग० 3 / 27, रषु० 12 / 104 / ज्जता- अन्यदाभूषणं पुंसां क्षमा लज्जव योषिताम, | बलप्यम् [ विरूप+ष्यश्] 1. विरूपता, कुरूपता ---रषु. पराक्रमः परिभवे वैयात्यं सुरतेष्विव-शि / 12 / 40 रूपों की विभिन्नता या वैविध्य / 2144 2. उजड्डपन, अक्खड़पन / वैरोचनः, वैरोचनिः, वैरोचिः [विरोचनस्यापत्यम् अण्, वैयासिकः [ व्यासस्य अपत्यम, व्यास+इन, अकड इञ वा, विरोच+घञ्] विरोचन के पुत्र बलि आदेशः, यकारात् पूर्व ऐच ] व्यास का पुत्र। राक्षस के विशेषण। वैरम [ वीरस्य भावः-अण् ] 1. विरोध, शत्रुता, दुश्मनी वलक्षण्यम् | विलक्षणस्य भावः-ष्य 11. आश्चर्य वैमनस्य, द्रोह, प्रतिपक्ष, कलह-.-दानेन वैराग्यपि 2. वैपरीत्य, विरोध 3. अन्तर, भेद / यान्ति नाशनम् -- सुभा०, अज्ञातहदयेष्वेवं वैरीभवति लक्ष्यम् [विलक्ष+व्या] 1. उलझन, गड़बड़ी सौहृदम् --श० 523, 'वैरभाव में परिणत हो 2. अस्वाभाविकता, कृत्रिमता - वैलक्ष्यस्मितम् 'कृत्रिम जाता है,' विधाय वरं सामर्षे नरोऽरौ य उदासते, या बलपूर्वक की गई मुस्कान 3. लज्जा 4. वपरीत्य, प्रक्षिप्योदचिषं कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम् शि० 2 / व्युत्क्रम। 42 2. घृणा, प्रतिहिंसा 3. शूरवीरता, पराक्रम / लोम्यम् [ विलोम+व्या ] विरोध, व्युत्क्रम, वैपरीत्य / सम०-अनुबन्धः शत्रुता का आरंभ,-अनुबन्धिन् / वल्व (वि.) दे० 'बैल्व' / (वि०) शत्रता की ओर ले जाने वाला,-आतङ्कः अवधिकः [विवध+ठक] 1. फेरी वाला, आवाज लगा कर अर्जनवृक्ष,--आनण्यम्,---उतारः,-निर्यातनम्,-प्रति- बेचने वाला 2. (बहंगो में रख कर) भार ढोने वाला। क्रिया,-प्रतीकारः-यातना,-शुदिः (स्त्री०), साधनम् | वेवण्यम [ विवर्णस्य भावः--व्या ] 1. रंग या चेहरे की शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा,-करः, आभा का परिवर्तन, फीकापन, निष्प्रभता 2. विभि कारः, - कृत् (पुं०) शत्रु, -भावः शत्रुतापूर्ण नता, विविधता 3, जाति से विचलना / रवैया---रक्षिन् ( वि० ) शत्रुता का निवारण करने वैवस्वतः / विवस्वतोऽपत्यम् अण्-1. सातवां मनु०, जो वाला। वर्तमान युग का अधिष्ठाता है, मन के नीचे दे० वैरक्तम्,-क्त्यम् [विरक्त+अण, प्या वा] 1. सांसा- --- वैवस्वतो मनु म माननीयो मनीषिणाम् - रघु० रिक आसक्तियों के प्रति उदासीनता, इच्छा का / 1 / 11, उत्तर० 6 / 18 2. यम - रघु० 15 / 45 अभाव 2. अप्रसन्नता, नापसन्दगी, अरुचि / 3. शनिग्रह,-तम् विवस्वान् के पुत्र सातवें मनु, द्वारा बरगिकः [ विरग विरागं नित्यमर्हति ठक 1 जिसने / अधिष्ठित वर्तमान युग या मन्वन्तर / अपनी सब इच्छाओं एवं वासनाओं का दमन कर दिया | वैवस्वती [ वैवस्वत+डीप्] 1. दक्षिण दिशा 2. यमुना है, संन्यासी, वैरागी। नदी। प. शत्रुता ले जाने वाला तिनम्, प्रतिवर्ण्यम् परिवर्तन, तसे विचलमातवां मन् For Private and Personal Use Only Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 982 ) बवाहिक (वि.) (स्त्री०- की) [विवाह+ठ | णस्य लक्ष्मीः -- भामि० 2010 2. रावण का नाम / विवाहसंबंधी, विवाहविषयक, विवाह के कारण होने / सम.-..आलयः,- आवास: 1. कुबेर का आवासस्थल वाला-- कु०७।२,--कः,-कम् विवाह, शादी,-कः 2. बड का वृक्ष,-उबयः बड़ का पेड़ / पुत्र वधू का श्वसुर, या दामाद का श्वसुर / वैश्वदेव (वि.) (स्त्री०-वी) [विश्वदेव+अण] विश्वेवंशवम् [विशद+व्य] 1. स्वच्छता, निर्मलता (आलं.)। देवों से सम्बन्ध रखने वाला,-वम् 1. विश्वेदेवों को 2. स्पष्टता 3. सफेदी 4. शान्ति, ( मन की) प्रस्तुत किया गया उपहार 2. सभी देवताओं को भेंट स्वस्थता / ( भोजन करने से पूर्व विश्वदेव यज्ञ में आहुति बैशसम् [विशस+अण्] 1. विनाश, हत्या, वध-कु. देकर ) / 4 / 31, उत्तर. 4 / 24, 6 / 40 2. दुःख, सन्ताप, | वैश्वानरः [विश्वानर+अण्] 1. अग्नि का विशेषण, त्वत्तः पीना, कष्ट, कठिनाई-उपरोधवेशसम्—मुद्रा० 2, खाण्डवरङ्गताण्डवनटो दूरेऽस्तु वैश्वानरः--भामि० मा० 9 / 35 / 1157 2. जठराग्नि,---अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां शस्त्रम् [ विशस्त्र+अण् ] 1, असुरक्षा 2. राजकीय | देहमाश्रितः। प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुशासन / विधम् (वेदान्त०) 3. परमात्मा। शायः [विशाख+अण्] 1. चान्द्रवर्ष का दूसरा महीना | वैश्वासिक (वि.) (स्त्री०-को) [विश्वास+ठक्] विश्व ( अप्रैल-मई ) 2. रई का डण्डा - द्रुततरकरदक्षाः सनीय, गोपनीय। भिप्तवैशाखशले कलशिमुदधिगुर्वी वल्लवा लोडयन्ति | वैषम्यम [विषम-व्यञ] 1. असमता 2. खुरदरापना, -शि० 1138,- सम बाण चलाते समय की एक | कठोरता 3. असमानता 4. अन्याय 5.कठिनाई.विपत्ति. मटा. विशाख'-खी वंशाख मास की पूणिमा / | संकट 6. एकाकीपन / शिक (वि.) [वेशेन जीवति–वेश+ठक्] वेश्याओं वषयिक (वि०) (स्त्री-की) [विषय+ठक] 1. किसी द्वारा अभ्यस्त–वैशिकी कलाम् --मच्छ० 113, पदार्य-सम्बन्धी 2. विषयों से सम्बन्ध रखने वाला, वेश्याओं द्वारा अभ्यस्त कलाएं,-कः जो वेश्यामों वासनात्मक, शारीरिक,-क: कामी, लम्पट / के साहचर्य में रहता है, शृङ्गार-साहित्य में पाया बष्टुसम् [विष्टत्या निर्वत्तम्-विष्टुति+अण] भस्मीकृत जाने वाला एक नायक, -कम् वेश्यावृत्ति, वेश्यामों बाइतियों की राख / की कलाएँ। वेष्ट्रः विश+ष्ट्रन्, वृद्धि] 1. अन्तरिक्ष, आकाश 2. हवा, वैशिष्टपम् / विशिष्ट व्यञ] 1. भेद, अन्तर 2. विशि- वायु 3. लोक, विश्व का एक प्रभाग / ष्टता, विशेषता, अनूठापन-वैशिष्टपादन्यमथं या | वैष्णव (वि.) (स्त्री०-ची) विष्णु+अण] 1. विष्णु बोधयेत्सार्थसम्भवा-सा० द० 27 3. श्रेष्ठता-सा० ___ सम्बन्धी, रघु० 11385 2. विष्णु की पूजा करने द०७८4. विशिष्टलक्षणसम्पन्नता। वाला,--वः तीन महत्त्वपूर्ण आधुनिक हिन्दू-संप्रदायों वैशेषिक (वि.) (स्त्री०-को) [विशेष पदार्थभेदमधि में से एक, दूसरे दो हैं शैव और शाक्त, .. वम् भस्मीकृत्य कृतो ग्रन्थ:-विशेष+ठक] 1. विशेषता युक्त कृत आहुतियों की राख / सम० पुराणम् अठारह 2. वैशेषिक दर्शन के सिद्धान्तों से संबंध रखने वाला, पुराणों में से एक पुराण / -कम् छः हिन्दूदर्शनशास्त्रों में से एक दर्शन जिसके बैसारिणः [विशेषेण सरति विसारी मत्स्यः स एवं-विसा प्रणेता कणाद थे, गौतम के न्यायदर्शन से इसकी | रिन्+अण्] मछली / भिन्नता इस बात में है कि इसमें सोलह के बजाय | वहायस (वि.) (स्त्री०-सी) [विहायस-+-अण] हवा केवल सात तत्वों का विवेचन है तथा 'विशेष' पर | में विटामा / विशेष बल दिया गया है। | बहार्य (वि.) [विशेषेण ह्रियते-वि+ह ण्यत्-+-अण्] वशेष्यम् विशेष+ष्यश] श्रेष्ठता, प्रमुखता, सर्वोत्तमता। जिससे हंसी दिल्लगी की जाय, जिसे उपहास का बंश्यः [विश+प्या] तृतीय वर्ण का पुरुष, इसका व्यव- विषय बनाया जाय (जैसे पत्नी का भाई, या ससुराल साय व्यापार और कृषि है-विशत्याशु पशभ्यश्च ___ का कोई रिस्तेदार)। कृष्यादावरुचिः शुचि, वेदाध्ययनसम्पन्नः स वैश्य | हासिकः [विहासं करोति-विहास+ठक] हंसोकड़ा, इति संशित: पधः। सम... कर्मन् (नपुं०) विदूषक / वृत्तिः (स्त्री०) वैश्य का व्यवसाय या पेशा, वोड: [वा+उड़] 1. एक प्रकार का सांप 2. एक तरह की व्यापार, खेती आदि। | मछली। बंभवणः [विश्रवणस्यापत्यम्--अण] 1. धन का स्वामी | बोडी वोड़+हीष] पण का चौथा भाग। कुबेर,-विभाति यस्यां ललितालकायां मनोहरा वैश्रव- / वोद (पुं०) [वह +तृच्] 1. ढोने वाला, कुली 2. नेता For Private and Personal Use Only Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यंशकः विनासाकतिक शक्त किया जाने ( 983 ) 3. पति 4. साँड़ 5. रथवान् 6. खींचने वाला घोड़ा।। 3. किसी कार्य में साभिप्राय व्यस्त (अधि० या करण. वोटः (पुं०) डंठल, वृन्त / के साथ अथवा समास में)-रषु० 17 / 27, महावी. वोद (वि.) [अवसिक्तमुदकं यत्र-प्रा० ब०, उदकस्य उदा- 213, 4 / 28, कु. 72, उत्तर० 1123, भाषि० देशः, भागुरिमते अकार लोपः-] तर, गीला, आर्द्र / 1 / 123, शि० 2179 / वोदालः [वोदः आर्द्रः सन् अलति -वोद+अल+अच्] व्यङ्ग (वि.) [विगतं वा अङ्गं यस्य -प्रा.व.] 1. बेहजर्मन-मछली। हीन 2. अङ्गहीन, विरूप, विकलाङ्ग, अपाहण, वोर (ल) कः [अवनतं लेखन काले उरो यस्य-प्रा० ब०, लुजा,-ग: 1. लुजा 2. मेंढक 3. गाल पर पड़े कप, अवस्य अकारलोपः, पृषो० सलोपः, पक्षे रलयोर- काले धब्बे / भेदः] लिपिकार, लेखक। व्यगुलम् (नपुं०) लम्बाई का अत्यन्त छोटा माप, अंगुल वोरटः [वो इति रटन्ति भुङ्गा यत्र- वोरट्+क] कुंद का का 60 वां अंश। एक भेद / व्यङ्गय (वि.) [वि+अ +ण्यत्] 1. व्यञ्जना शक्ति द्वारा ध्वनित, परोक्षसङ्केत द्वारा सूचित 2.मानित वोल्लाहः (पुं०) एक प्रकार का घोड़ा। (अर्थ),-यम् उपलक्षित अर्थ, व्यनपोक्ति, परोक्ष वोर (वि०) दे० 'बौद्ध'। सङ्कत (विप० वाच्य 'मुख्यार्थ' और लक्ष्य गौण या वौषट् (अव्य०)[उह्यतेऽनेन हविः -वह +डोषट) पितरों या देवों को आहुति देते समय प्रयक्त किया जाने ध्वनिर्बुधैः कथितः-काव्य० 1 / वाला उद्गार या सांकेतिक शब्द / व्यच् (तुदा० पर० विचति, कर्मवा० वियते) ठगना, व्यशकः [विशिष्टः अंशो यस्य-प्रा० ब०, कप्] पहाड़।। धोखा देना, चाल चलना।। व्यंशुकः (वि०) [विगतम् अंशुकं यस्य-प्रा० ब०] वस्त्र- | व्यजः [वि+अज्+घ ] पंखा / हीन, विवस्त्र, नंगा-कि० 9 / 24 / व्यजनम् [वि+अ+ ल्युट] पंखा,---निवतिव्यजनम-हि. व्यंसकः [वि+अंस्+ण्वुल्] धूर्त, ठग, जैसा कि 'मयूर | 2 / 165, रघु० 8 / 40, 1052 तु. 'बालव्यजन'। व्यंसक' 'बंचन मोर'--. शठमयूर'। व्य ञ्जक (वि.) (स्त्री० - जिका) [वि+अ +बुल्] व्यंसनम् [वि+अंस+ल्यट] ठगना, धोखा देना। 1. स्पष्ट करने वाला, सखेतक, बतलाने वाला, प्रकट व्यक्त (भू० क००)[वि-अज+क्त] 1. प्रकटीकृत, प्रदर्शित 2. विकसित, रचित-कु० 2 / 11 3. स्पष्ट, वाला (शब्द), (विप. वाचक और लाक्षणिक), प्रकट, साफ, सरल, भिन्न, विशद रूप से विद्यमान -क: 1. नाटकीय हावभाव, आन्तरिक भावों को उप4. विशिष्ट, विदित, विख्यात 5. अकेला मनुष्य युक्त हावभाव द्वारा प्रकट करने वाला बाह्य सरूत 6. बुद्धिमान, विद्वान,-क्तम् (अव्य०) स्पष्ट, स्पष्ट 2. सरूत, प्रतीक। रूप से, साफ़तौर पर, निश्चित रूप से। सम० व्यञ्जनम् [वि+अ +ल्यूट] 1. स्पष्ट करना, सचेत -गणितम् अंकगणित, दृष्टार्थः वह साथी जिसने करना, प्रकट करना 2. चिह्न, निशान, समेत घटना अपनी आँखों से देखी है, गवाह,-राशिः ज्ञात 3. स्मारक - मा० 94. छपवेश, परिषान-शि. अंक, रूपः विष्णु का विशेषण,-विक्रम (वि०) शक्ति 2156, तपस्विव्यञ्जनोपेताः - आदि 5. व्यञ्जन प्रदर्शित करने वाला अक्षर 6. लिङ्गद्योतक चिल्ल अर्थात् स्त्री या पुरुष का व्यक्तिः (स्त्री०) [वि+अ +क्तिन] 1. प्रकटीकरण, परिचायक अङ्ग 7. अधिकार-चिह्न, बिल्ला 8. वय दृश्यमानता, विशद प्रत्यक्षज्ञान,- राज्ञः समक्षमेवाघरो- स्कता का चिह्न 9. दाढ़ी 10. अङ्ग, सदस्य 11. मिर्च तरव्यक्तिर्भविष्यति-मालवि. 1. स्नेहव्यक्ति:-मेघ. मसाला, चटनी, सिमाई हुई वस्तु-नै०१६।१०४ 12 2. दृश्यमान सूरत, स्पष्टता, विशदता . श० 78 12. तीनों शब्दशक्तियों में अन्तिम जिससे अर्थ उप3. भेद, विवेचन,-तं सन्तः श्रोतुमर्हन्ति सदसष्यक्ति- लक्षित या ध्वनित होता है, दे० अञ्जन, ना (8) हेतवः-रघु० 1110 4. वास्तविक रूप या प्रकृति, (इस अर्थ में यह व्यञ्जना' भी लिखा जाता है)। सच्चरित्र, न हि ते भगवान् व्यक्ति विदुर्देवा न दानवाः सम० उदय (वि.) वह जिसके पश्चात् व्यञ्जन -भग० 10 // 14 5. वैयक्तिकता (विप० जाति) भग० अक्षर आता हो,-सन्धिः व्यञ्जन वर्णों का संयोग 8118 6. अकेला मनुष्य, पुरुष 7. (व्या० में) लिंग या संश्लेष। 8. विभक्ति में प्रयुक्त प्रत्यय / / व्यञ्जना दे० ऊ. 'व्यञ्जन' (12) / व्यग्र ( बि.) [ विरुद्धम् अगति ...वि+अग्+रक ] व्यजित (भू.क.कृ.) [वि+अ +क्त] 1. साफ 1. व्याकुल, विस्मित, उचाट 2. आतङ्कित, भयभीत | किया गया, प्रकट किया गया, सख्त किया गया For Private and Personal Use Only Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त ( 984 ) 2. चिह्नित, भिन्न, चित्रित 3. सुझाव दिया गया,। 1. आपस में मिला हुआ, पारस्परिक संबंधयुक्त, ध्वनित। शृंखलाबद्ध या एकत्र जुड़ा हुआ 2. अन्तः मिश्रित व्यडम्बकः व्यडम्बनः [डम्ब्+ण्वुल, ल्युट वा, विशेषेण न | 3. अन्तर्जातीय विवाह करने वाला। डम्बक:] अरण्ड का पेड़। | व्यतिषंगः [वि-+-अति+सङ्ग्+घञ] 1. पारस्परिक व्यतिकरः [वि-अति+-+-अप] 1. मिश्रण, अन्तः संबन्ध, अन्योन्यसम्बन्ध 2. अन्त: मिश्रण 3. संयोग, मिश्रण, इकट्ठा मिला देना -तीर्थे तोयव्यतिकरभवे या मिलाप। जह नुकन्यासरय्वोः -रघु० 8.95, व्यतिकर इव व्यति (तो) हारः[वि+अति-ह+घञ, पक्षे उपसर्गस्य भीमस्तामसो वैद्युतश्च-उत्तर० 5 / 12, मा० 9 / 52 / / इकारस्य दीर्घ:] 1. अदल-बदल, विनिमय 2. पारस्प2. सम्पर्क, मिलाप, सम्मिलन - मालवि० 14, शि० रिकता, अन्तः परिवर्तन -- रघु० 12093 / 4153, 7 / 28 3. रगड़ना * कु० 5 / 85 5. घटना, | व्यतीत (भू० क००)[वि+अति++क्त] 1. गुजरा सम्भूति, वृत्तान्त, वस्तु, मामला - एवंविषे व्यतिकरे हुआ, गया हुआ, बीता हुआ, पार किया हुआ-रघु. -'ऐसी बात होने पर' 6. अवसर 7. मुसीबत, 15 / 14 2. मृत 3. छोड़ा हुआ, परित्यक्त, विसजित संकट 8. पारस्परिक सम्बन्ध, पारस्परिकता 9. विनि- 4. अवज्ञात / मय, अदलाबदली। व्यतीपातः [वि+अति-पत्+घा, उपसर्गस्य दीर्घः व्यतिकीर्ण ( भू० क० कृ०) [वि+अति++क्त 1. समूचा प्रयाण, सम्पूर्णविचलन 2. भारी उत्पात, 1. मिला हुआ, मिश्रित 2. संयुक्त / भारी संकट को सूचित करने वाला अपशकन व्यतिक्रमः वि+अतिक्रम-घा] 1. अतिक्रमण, 3. अनादर, तिरस्कार। विचलन, भटकना 2. उल्लंघन, भंग, अननुष्ठान | व्यत्ययः [वि+आत++अच्] 1. पार करना 2. विराघ, --यथा 'संविद् व्यतिक्रम:-रघु० 179 3. अवहेलना, वपरीत्य 3. व्यत्यस्त क्रम, व्युत्क्रान्ति 4. अन्तःपरिउपेक्षा, भूल 4. वपरीत्य, उलट, व्यत्यास 5. पाप, वर्तन, रूपान्तरण 5. अवरोध, अड़चन / दुर्व्यसन, जुर्म 6. आपत्काल, दुर्भाग्य / व्यत्यस्त (भू० क. कृ०) [वि+अति+अस्+क्त] व्यतिक्रान्त (भू० क. कृ०) [वि|-अति- क्रम+क्त] 1. व्युत्क्रांत, विपर्यस्त 2. विपरीत, विरोधी 3. असंगत 1. पार किया गया, अतिक्रमण किया गया, उल्लंघन -. व्यत्यस्तं लपति-भामि० 2684 4. विरेखित, इस किया गया, उपेक्षित 2. औंधा, विपर्यस्त 3. बीता प्रकार रक्खी हुई (दो वस्तुएँ) जिसमें एक दूसरी हुआ, गुजरा हुआ (समय)। को काटती हो-व्यत्यस्त पादः, व्यत्यस्त भुजः व्यतिरिक्त (भू० क० कृ०) वि + अति--रिच्+क्त आदि। 1. वियुक्त, भिन्न अव्यतिरिक्तेयमस्मच्छरीरात व्यत्यासः [वि+अति-अस्+घञ] 1. व्यत्क्रांत स्थिति - का०, कु०१।३१, 5 / 22 2. आगे बढ़ने वाला, या क्रम 2. विरोध, वपरीत्य / सर्वोत्कृष्ट होने वाला, आगे निकल जाने वाला ला, आग निकल जाने वाला | व्यथ (म्वा० आ० व्यथते, व्यथित) 1. शोकान्वित होना, 3. प्रत्याहृत, रोका हुआ 4. अलगाया हुआ। पीडित होना, कष्टग्रस्त होना, विक्षुब्ध या अशांत व्यतिरेकः [वि+अति+रिच-+-घा] 1. भेद, अन्तर होना-विश्वंभराऽपि नाम व्यथते इति जितमपत्य 2. वियोग 3. निष्कासन, अपवर्जन 4. श्रेष्ठता, आगे स्नेहेन-उत्तर० 7, न विव्यये तस्य मनः कि० बढ़ जाना, आगे निकल जाना 5. वैषम्य, असमानता 12, 24 2. आन्दोलित होना, दोलायमान होना-कि० 6. (तर्क० में) अनन्वय (विप० अन्वय) उदा० 'यत्र 5 / 11 3. कांपना 4. भयभीत होना 5. सूखना, शुष्क वह्निर्नास्ति तंत्र धमो नास्ति' यह व्यतिरेक व्याप्ति होना, प्रेर० (व्यथयति-ते) पीडा देना, कष्ट देना, का उदाहरण है 7. (अलं० में) एक अर्थालंकार नाराज करना, दुःखी करना ---उत्तर० 1228, जिसमें किन्हीं विशेष दशाओं में उपमान की अपेक्षा प्र अत्यन्त क्रुद्ध होना - भग० 11 / 20 / / उपमेय को श्रेष्ठतर बताया जाता है-उपमानाद्यद- व्यथक (वि.) (स्त्री० -थिका) [व्यथ+णिच् --वुल न्यस्य व्यतिरेकः स एव सः----काव्य०१०। पीडाजनक, दुःखद, कष्टकर ---कि० 2 / 4 / व्यतिरेफिन् (वि.) [व्यतिरेक + इनि] 1. भिन्न 2. आगे | व्यथनम् [व्यथ् + ल्युट] पीडा देना, सताना। बढ़ जाने वाला, आगे निकल जाने वाला 3. बाहर व्यथा [व्यथ् +अ+टाप्] 1. पीडा, वेदना, आधि-तां च निकालने वाला, अपवर्जन करने वाला 4. अभाव या व्यथा प्रसवकालकृतामवाप्य-उत्तर० 4123, अनस्तित्व दर्शाने वाला जैसा कि 'व्यतिरेकि 1112 2. भय, आतंक, चिन्ता--स्वन्तमित्यलघशत्स लिङ्गम' में। तव्यथाम्-रघु० 1162 3. विक्षोभ, अशान्ति भ्यतिषक्त (भ० क. कृ०) [वि.+अति+श +क्त] 4. रोग। For Private and Personal Use Only Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 985 ) व्यथित (भू.क. कृ०) [व्यथ+क्त] 1. कष्टग्रस्त, / द्योतित 3. बहाने या छल के रूप में प्रतिपादित किया दुःखी, पीडित 2. आतङ्कित 3. विक्षुब्ध, अशान्त, गया। बेचैन / व्यपदेशः [वि+अप-+दिश्+घञ] 1. निरूपण, सन्देश, व्यष (दिवा० पर० विध्यति, विद्ध) 1. बींधना, चोट सूचना 2. नामकरण, नाम रखना 3. नाम, अभिधान, पहुंचाना, प्रहार करना, छुरा भौंकना, मार डालना उपाधि- एवं व्यपदेशभाज:-उत्तर० 64, परिवार, -अक्षितारासु विव्याध द्विषतः स तनुत्रिणः शि. वंश,-अथ कोऽस्य व्यपदेश:- श०७, व्यपदेशमाविल१९।९९, विद्धमात्र:- रघु०५।५१, 9 / 60, 14 / 70, यितुं किमीहसे जनमिमं च पातयितुम् -श० 5 / 20 भट्टि० 5 / 52, 9 / 66, 15i69 2. सूराख करना, 5. कीति, यश, प्रसिद्धि 6. चाल, बहाना, दाँव, उपाय छिद्र करना, आरपार बींधना 3. खोदना, गड्ढा 7. जालसाजी, चालाकी। करना, अनु--, 1. बींधना, चोट पहुँचाना, घायल | व्यपदेष्ट (पुं०) [वि+अप-+दिश+तुच् ] छलिया, करना 2. गूंथना, घेरना 3. जड़नां, जटित करना-दे० घोखेबाज / अनुविद्ध, अप-, 1. फेंकना, डालना, उछालना | व्यपरोपणम् [वि+अप+रह+णि+ ल्युट्, हस्य पः] -महावी०२।२३, रघु०१९।४४ 2.बींधना-- हृदयम- 1. उन्मूलन, उखाड़ना 2. भगाना, हटाना, दूर करना शरणं मे पक्मलाक्ष्याः कटाक्षरपहृतमपविद्धं पीतमुन्मू- 3. काट डालना, फाड़ डालना, तोड़ लेना--कोप लितं च मा० श२८ 3. त्यागना, परित्यक्त करना, तस्मै स भृशं सुरस्त्रियः प्रसह्य केशव्यपरोपणादिव आ-, 1.बींधना 2. फेंकना, डालना, दे० आविद्ध, -रघु० 3 / 56 / परि-, सम्-, बींधना, घायल करना। व्यपाकृतिः (स्त्री०) [ वि+अप+आ++क्तिन् / व्यधः [व्य+अच्] 1. बींधना, टुकड़े टुकड़े करना, प्रहार 1. निष्कासन, दूरीकरण, निकाल देना 2. मुकरना। करना--शि० 724 2. आघात करना, घायल | व्यपायः[वि+अप++घा ] अन्त, लोप, समाप्ति, करना, प्रहार 3. छिद्र करना। -कु० 3 / 33, रघु० 3 / 37 / व्यधिकरणम् [वि+अधि++ल्यूट] भिन्न आधार या व्यपाश्रयः [वि+अप+आ+श्रि+अप् ] 1. उत्तराधि स्तर पर जीवित रहना (जैसा कि 'व्यधिकरण बह- कारिता 2. शरण लेना, सहारा लेना, भरोसा करना व्रीहि' में, अर्थात् वह बहुव्रीहि समास जहाँ पहला भग० 3 / 18 3. निर्भर होना-धों रामव्यपाश्रयः पद दूसरे पद से नितान्त भिन्न कारक का हो, यदि -राम०। उनका विग्रह करके देखा जाय -उदा० चक्रपाणिः | व्यपेक्षा [वि+अप+ ईश् + अङ्कटाप्] 1. प्रत्याशा, आशा चन्द्रमौलि: आदि। 2. लिहाज, विचार - रघु० 8 / 24 3. पारस्परिक व्यध्यः [ व्यध् + ण्यत् ] चाँदभारी के पीछे का टीला, सम्बन्ध, अन्योन्याश्रय 4. पारस्परिक लिहाज निशाना, लक्ष्य / 5. व्यवहार 6. (व्या० में) दो नियमों का पारस्परिक व्यध्वः [विरुद्धः अध्वा ---प्रा० स०] कुमार्ग, बुरी सड़क / प्रयोग। व्यनुनावः [विशिष्टः अनुनादः प्रा० स०] प्रतिध्वनि, ऊँचो | व्यपेत (भू० क० कृ०)[वि+अप+इ--क्त ] 1. वियुक्त अलगाया हुआ 2. गया हुआ, विसर्जित, (प्रायः समास व्यन्तरः [विशिष्ट: अन्तरो यस्य---प्रा० ब०] 1. पिशाच, में व्यपेतकल्मषः, व्यपेतभी, व्यपेतहर्ष आदि)। यक्ष आदि एक प्रकार का अतिप्राकृतिक प्राणी। व्यपोढ (भू० क. कृ०) [वि+अप्+वह +क्त ] ध्यप् (चुरा० उभ० व्यपयति-ते) 1. फेंकना 2. घटाना, 1. निकाला गया, हटाया गया 2. विपरीत, विरोधी बरबाद करना, कम करना / कि० 4 / 12 3. प्रकटीकृत, प्रदर्शित, बतलाया व्यपकृष्ट (भू० क० कृ०) [वि+अ+कृष्+क्त ] एक | गया। ओर खींचा हुआ, दूर किया हुआ, हटाया हुआ। व्यपोहः [वि+अप+ऊह+घञ्] निकालना, दूर ध्यपगत (भु० क० कृ०) वि + अप्+गम्+क्त) 1. गया करना, अलग रखना। हुआ, विजित, अन्तहित---मदो मे व्यपगतः भर्त० / व्यभि (भी) चारः [वि+अभि+चर+घञ ] 1. दूर 2 / 8, मेघ० 76 1. हटाया हुआ 3. गिराया हुआ। चले जाना, विचलन, सन्मार्ग छोड़ देना, कुमार्ग का व्यपगमः [वि-+-अप + गम् + अप] विसर्जन, अन्तर्धान / / अनुसरण करना,-मंत्रज्ञमव्यसनिनं व्यभिचारविवव्यपत्रप (वि०) [ विगता अपनपा यस्य-प्रा० ब०] जितम् - हि० 3 / 16, भग० 14126 2. अतिक्रमण, निर्लज्ज, ढीठ। उल्लंघन मनु० 10124 3. अशुद्धि, जुर्म, पाप व्यपविष्ट (भू० क. कृ.) [वि+अप+दिश्+क्त ] 6. विच्छेद्यता, अलग होने की सामर्थ्य 5. अभक्ति, 1. नामाखित 2. बतलाया गया, प्रस्तुत किया गया, / अनास्था, पति-पत्नी में अविश्वास, पतिव्रत या पली गंज। 124 For Private and Personal Use Only Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रत का अभाव, व्यभिचारात्तु भर्तुः स्त्री लोके प्राप्नोति / गया, खर्च किया गया 2. बर्बाद किया गया, गीताम् —मनु० 5 / 164, वाङ्मनः कर्मभिः पत्यो / क्षयग्रस्त / व्यभिचारो यथा न मे --रघु० 15 / 81, याज्ञ. 1171 व्यर्थ (वि०) [विगतोऽर्थों यस्मात्-प्रा० ब०] 1. अनु6. असंगति, अनियमितता, अपवाद 7. (तर्क० में) पयोगी, निरर्थक, विफल, अलाभकर-व्यर्थं यत्र आभासी हेतु, हेत्वाभास, साध्य के न होने पर भी कपीन्द्रसख्यमपि मे-उत्तर० 3145 2. अर्थहीन, हेतु की विद्यमानता। निरर्थक, बेकारी। व्यभिचारिणी [व्यभिचारिन्+ङीप् ] असती स्त्री, | व्यलोक (वि०) [ विशेषेण अलति---वि+अल+कीकन् ] परपुरुषगामिनी स्त्री। ___ 1. मिथ्या, झूठा 2. कुत्सित, अनभिमत, असुखद 3. जो व्यभिचारिन (वि.) [व्यभिचार+इनि] 1. भटका मिथ्या न हो-शि० ५.१,-क: 1. स्वेच्छाचारी हुआ, भूला हुआ, पथभ्रष्ट, भ्रान्त, नियम भंग करने 2. गांडू, लौण्डा,-कम् कोई भी अप्रिय या असुखद वस्तु, वाला 2. अनियमित, असंगत 3. असत्य, मिथ्या -दे० अप्रियता-इत्थं गिरः प्रियतमा इव सोऽव्यलीकाः शश्राव अव्यभिचारिन् 4. श्रद्धाहीन, जो ब्रह्मचारी न हो, सूततनयस्य तदा व्यलीकाः-शि० 5 / 1 2. बेचैनी का परस्त्रीगामी, (पुं० ----व्यभिचारिभावः संचारिभाव, कारण, पीड़ा, शोक या रंज का कारण-सुतनु हुदसहकारी भाव (विप० स्थायी भाव) यद्यपि स्थायी यात्प्रत्यादेशव्यलोकमपैतु ते--- श० 7 / 24, कि० 31 भावों की भाँति यह सहकारी भाव रस का कोई 19, कु० 3 / 25, रघु० 4 / 87 3. दोष, अपराध, आधारभूत रूप नहीं बनाते, फिर भी यह प्रवहमान अतिक्रमण, अनुचित कार्य, सव्यलीकमवधीरितखिन्न रस के पोषक हैं, अतः प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यह प्रस्थितं सपदि कोपपदेन-कि० 9445, शि०९।८५, रस की पुष्टि करते हैं। इनकी संख्या तेंतीस या रत्न० 315 4. जालसाजी, चाल, धोखा-पंच 11 चौंतीस है, इनकी गणना के लिए दे० काव्य० 4, 120, 242 5. मिथ्यापन 6. व्युत्क्रम, वैपरीत्य। कारिका 31-34, सा० द० 169, या रस० प्रथम व्यवकलनम् [वि+अव+कल-+ ल्युट ] 1. वियोग आनन, तु० विभाव और स्थायिभाव की। 2. (गणि० में) घटाना, एक राशि में से दूसरी राशि व्यय i (चुरा० उभ० व्यययति-ते) 1. जाना, हिलना- कम करना। जुलना 2. व्यय करना, प्रदान करना, अर्पण करना / व्यवक्रोशनम् [वि+अव+क्रुश्+ल्युट ] तू तू मैं मैं, ji (भ्वा० उभ० व्ययति ते) जाना, हिलना-जुलना। आपस में गालीनालौज। (चुरा० उभ० व्याययति-ते, व्यापयति .... ते भी) | व्यवछिन्न (भू० क. कृ०) [वि+अब+-छिद्+क्त ] 1. फेंकना, डालना 2. हाँकना। 1. काट डाला गया, चीरा गया, फाड़ा गया 2. वियुक्त, व्यय (वि.) [वि+5+अच] परिवर्तनीय, परिणाम विभक्त 3. विशिष्ट किया गया, विशिष्ट 4. अंकित, शील, विकारवान्तु० अव्यय, - यः 1. (क) हानि, विलक्षण-शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली लोप, विनाश-आपाद्यते न व्ययमन्तरायः कच्चिन्म --काव्या० 110 5. अवरुद्ध, बाधित / हर्षे स्त्रिविधं तपस्तत्-रघु० 5 / 5, 12 / 33, (ख) व्यवच्छेदः [ वि+अब+छिद्+घञ ] 1. काट डालना, लागत लगाना, त्याग-प्राणव्ययेनापि मया विधेयः फाड़ देना 2. विभाजन, वियोजन 3. चीर-फाड़ करना --मा० 4 / 4, कु० 3 / 23 2. रुकावट, अड़चन-रघु० 4. विशिष्टीकरण 5. विभेदक, विशिष्ट 6. वैषम्य, 15637, 3. क्षय, ह्रास, पराजय, अधःपतन 4. खर्च, वैशिष्ट्य 7. निर्धारण 8. बन्दूक दागना, तीर छोड़ना मूल्य, परिव्यय, विनियोग, प्रयोग, (विप० आय) 9. किसी पुस्तक का अध्याय या अनुभाग। -- आये दुःख व्यये दुःखं घिगर्थाः कष्टसंश्रया:--पंच० व्यवधा [ वि+अवधा +अ+टाप] 1. व्यवधायक श१६३, आयाधिक व्ययं करोति 'अपनी आय से 2. आड़, पर्दा, व्यंशन 3. छिपाव, दुराव / अधिक व्यय करता है'-रघु० 5 / 12, 15 / 3, मनु० व्यवधानम् [वि--अव+-धा+ल्युट ] 1. हस्तक्षेप, 9 / 11 5. अपव्यय, फिजूलखर्ची / सम०-पर अन्तःक्षेप, वियोग 2. अवरोध, दृष्टि से गुप्त रखना (वि.) मुक्तहस्त से खर्च करने वाला,--परामुख -दष्टि विमानव्यवधानमुक्तां पुनः सहस्राचिषि (वि०) कृपण, कंजूस, मक्खीचूस,- शील (वि.) संनिधत्ते रघु० 33144 4. छिपाना, अन्तर्धान अतिव्ययी, फिजूलखर्च,-शुसिः (स्त्री०) हिसाब 5. पर्दा, व्यंशन 6. ढकना, आवरण-कु. 3 / 44, चुकाना। 7. अन्तराल, अवकाश 8. (व्या० में) किसी अक्षर या व्ययनम् [ व्यय+ल्युट् ] 1. खर्च करना 2. बर्बाद करना, मात्रा का बीच में आ पड़ना। विनष्ट करना। व्यवधायक (वि.) (स्त्री०-यिका) [वि+अव+धा व्ययित (भू. क. कृ०) [व्यय+क्तु] 1. व्यय किया | ण्वुल ] 1. बीच में आ पड़ने वाला, आवरण, ढकने For Private and Personal Use Only Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 987 ) वाला 2. अवरोध करन वाला, छिपाने वाला। क्त, पुक्] क्रमबद्ध, निश्चित आदि, वाच्–कु. 3. मध्यवर्ती। 5 / 68 / व्यवधिः [वि+अव+धा+कि ] आवरण, हस्तक्षेप व्यवस्थित (भू०क० कृ०) [वि+अव+स्था+क्त] 1. क्रम आदि, दे० व्यवधान। में रक्खा हुआ, समंजित, क्रमविन्यस्त 2. निश्चित, व्यवसायः [ वि+अव+सो+घा 11. प्रयत्न, चेष्टा, स्थिर-किं व्यवस्थितविषयाः क्षात्रधर्माः-उत्तर०५ ऊर्जा, उद्योग, घेर्य-करोतु नाम नीतिशो व्यवसाय- 3. फैला किया गया, निर्धारित, कानून द्वारा घोषित मितस्ततः हि० 2114 2. संकल्प, प्रस्ताव, निर्धारण 4. एक ओर रक्खा हुआ, वियुक्त 5. निकाला हुआ -मन्दीचकार मरणव्यवसायबुद्धिम् -कु० 4 / 45, (रस आदि) 6. आधारित, अवलम्बित / सम० 'मरने के संकल्प का विचार'.... भग० 2 / 41, 1036 -विभाषा निश्चित इच्छा। 3. कृत्य, कर्म, क्रिया-व्यवसाय: प्रतिपत्तिनिष्ठरः व्यवस्थिति दे० 'व्यवस्थान' / रघु० 8065 4. व्यापार, नौकरी, वाणिज्य 5. आच- व्यवहतं (पुं०) [वि+अव+ह+तुच] 1. किसी व्यवसाय रण, व्यवहार 6. उपाय, कूटयुक्ति, जुगत 7. शेखी का प्रबंधकर्ता 2. नालिश करने वाला, अभियोक्ता, बधारना 8. विष्णु / वादी या मुद्दई 3. न्यायाधीश 4. साथी, संगी। व्यवसायिन् (वि.) [ व्यवसाय-इनि ] 1. ऊर्जस्वी, व्यवहारः [वि+अव+ह+घञ्] 1. आचरण, बर्ताव, उद्योगी, परिश्रमी 2. दृढ़ संकल्पी, धैर्यवान् / कर्म 2. मामला, व्यवसाय, काम 3. पेशा, धंधा व्यवसित (भू० क० क.) [ वि+अव+सो+क्त ] | 4. लेनदेन, काम-काज 5. वाणिज्य, तिजारत, सौदा 1. प्रयास किया गया कोशिश की गई,-श०६९ गरी 6. रुपये पैसे का लेनदेन, सूदखोरी 7. प्रचलन, 2. जिम्मेवारी ली गई, 3. संकल्प किया गया, निर्धारित, प्रथा, दस्तूर, रिवाज 8. संबन्ध, मेलजोल--पंच. निश्चित 4. प्रकल्पित, आयोजित 5. प्रयत्नशील, दृढ़ 1179 1. न्यायालयी या अदालती कार्यविधि, किसी निश्चयी 6. धयवान्, ऊर्जस्वी 7. ठगा गया, छला अभियोग या मामले की छान-बीन, न्याय प्रशासन; गया, –तम् निश्चयन, निर्धारण / -व्यवहारस्तमाह्वयति, अलं लज्जया व्यवहारस्त्वां व्यवस्था [ वि+अव+स्था-+अ+टाप् ] 1. समंजन, पृच्छति-मच्छ०९ 10. कानूनी झगड़ा, अभियोग, क्रमस्थापन, निपटारा-यथा-वर्णाश्रम व्यवस्था नालिश, कानूनी मुकदमा, मुकदमेबाजी,- व्यवहारोऽयं 2. स्थिरता, निश्चितता, --रघु० 7 / 54 3. दृढ़ता, दृढ़ चारुदत्तमवलम्बते, इति लिस्यतां व्यवहारस्य प्रथमः आधार-आजहतुस्तच्चरणी पृथिव्यां स्थलारविंदधि- पादः, केन सह मम व्यवहारः-- मृच्छ० 9, रघु० 17 यमव्यवस्थाम् -कु० 1133 4. संबद्ध स्थिति 39 11. कानूनी कार्यविधि का शीर्षक, मक़दमेबाजी 5. निश्चित नियम, कानून, सविधि आदेश, निर्णय, का अवसर। सम०–अङ्गम् दीवानी और फ़ौजदारी कानूनी सलाह, कानून की लिखित घोषणा (विशेष कानूनों का समूह,– अभिशस्त (वि.) अभियोजित, कर संदिग्ध स्थलों पर या जहाँ विरोधी पाठों का दोषारोपित,-आसनम् न्यायाधिकरण. न्यायासन-रघु० समंजन करना हो 6. सहमति, संविदा 7. अवस्था, 8.18,- ज्ञः 1. जो व्यवसाय को समझता है दशा। 2. वयस्क युवा, बालिग, 3. जो न्यायालयोग कार्यव्यवस्थानम, व्यवस्थितिः (स्त्री० [वि+अवस्था विधि से परिचित हो,-तन्त्रम् आचरणक्रम, मा०४, +ल्युट, क्तिन् वा] 1. क्रमबन्धन, समाधान, निर्धा- --वर्शनम जांच, न्यायिक जांच-पड़ताल,- पवम् रण, फैसला 2. नियम, विधान, निश्चय 3. स्थिरता, व्यवहार विषय,-- पारः 1. क़ानूनी कार्यवाही की चार अचलता 4. दृढ़ता, धैर्य 5. वियोग। अवस्थाओं में से कोई सी एक 2. चौथी अवस्था व्यवस्थापक (वि.) (स्त्री०-पिका) [वि+अव+स्था अर्थात् निर्णयपाद जिसमें व्यवस्था या फैसला बतलाया णिच्+ण्वुल, पुक] 1. क्रमस्थापन करने वाला, उप- गया है, -- मातृका 1. कानूनी प्रक्रिया 2. न्यायप्रशासन यक्त क्रम में रखने वाला, समंजन करने वाला, स्थिर या न्यायालयों के निर्माण से सम्बन्ध रखने वाला कोई करने वाला, व्यवस्था करने वाला, फैसला करने भी कर्म या विषय, (इसके तीस शीर्षक गिनाये गये वाला 2. वह जो कानूनी सलाह देता है 3. प्रबन्धक है),-विधिः कानून का नियम, विधिसंहिता,- विषयः (वर्तमान प्रयोग)। (इसी प्रकार-पदम्-मार्गः, स्थानम्) कानूनी कार्यव्यवस्थापनम् [वि-+अव+स्था+णिच् + ल्युट, पुक] विधि का शीर्षक या विषय, ऐसी बात जिसमें कानुनी 1. क्रमस्थापन, उपयुक्त समंजन 2. स्थिर करना, कार्यवाही करनी चाहिए, वादयोग्य विषय (यह निर्धारण, निश्चय करना, फ़ैसला करना। विषय अठारह है, इनके नामों की जानकारी के लिए व्यवस्थापित (भू० क० कृ०) [वि+अव+स्था+णिच् | दे० मनु० 8 / 4-7) / For Private and Personal Use Only Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 988 ) व्यवहारकः [वि+अव+ह+ण्वुल ] विक्रेता, पापारी, | 'व्यसन' का अर्थ 'पतन' भी है) 7. दुव्र्यसन, बुरी सौदागर। लत, बुरी आदत- मिथ्येव व्यसनं वदति मृगयामीदृग व्यवहारिक (वि.) (स्त्री० का,-की) [व्यवहार+ठन] विनोदः कुतः-- श. 45, रघु० 18 / 14, याज्ञ० 1. व्यवसाय सम्बन्धी 2. व्यवसाय में लगा हुआ, | 11309 (इस प्रकार के दुर्व्यसन दस बताये गये हैं अभ्यासप्राप्त 3. न्यायालयसंबंधी, कानूनी 4. मुकदमे- ---मनु०७।४७-८) समानशीलव्यसनेषु सख्यं--सुभा० बाज़ 5. प्रचलित, रूढ़ या प्रथानुसार। 8. संलग्नता, जुट जाना, परिश्रमपूर्वक आसक्ति -विद्यायां व्यसनं - भर्तृ० 2062-3 9. बहुत ज्यादा 1. रिवाज, प्रथा 2. झाडू 3. इंगुदी का वृक्ष / आदी होना 10. जुर्म, पाप 11. दण्ड 12. अयोग्यता, व्यवहारिन् ( वि० ) [व्यवहार+इनि] 1. व्यवसायी, अक्षमता 13. निष्फल प्रयत्न 14. हवा, वायु / सम० कर्मशील, अभ्यासपरायण 2. अभियोग में व्यस्त, ...- अतिभारः भारी अनर्थ या संकट-रघु० 14 / 68, मुकदमेबाज 3. चिरप्रचलित, प्रथानुसार / --.. अन्वित,-आर्त, ... पीडित (वि०) संकटग्रस्त, दुःख व्यवहित (भू० क० कृ०)[वि+अवघा +क्त] 1. अलग में फंसा हुआ। अलग रक्खा हुआ 2. किसी अन्तःक्षिप्त वस्तु के व्यसनिन् (वि.) [व्यसन+इनि] 1. किसी दुर्व्यसन में कारण वियुक्त किया गया-शि० 2185 3. बाधित, ग्रस्त, दुश्चरित्र 2. अभागा, भाग्यहीन 3. किसी कार्य रोका गया, अवरुद्ध, अड़चन से युक्त 4. दृष्टि से में अत्यन्त संलग्न (प्रायः समास में)। ओझल, छिपाया हुआ, गुप्त 5. जिसका निरन्तर | व्यसु (वि.) [विगताः असवः प्राणाः यस्य---प्रा० ब०] सम्बन्ध न हो 6. किया गया, सम्पन्न 7. भूला हुआ, | निर्जीव, मतक शि० 2013 / छोड़ा हुआ 8. आगे बढ़ा हुआ, आगे निकला हुआ व्यस्त (भू० क० कृ०) [वि+अस्+क्त] 1. डाला हुआ, 9. विपक्षी, विरोधी। फेंका हुआ, उछाला हुआ-मा० 5 / 23 2. तितरव्यवहृतिः (स्त्री०) [वि+अव+ह+क्तिन्] 1. अभ्यास, बितर किया हुआ, बिखेरा हआ- उत्तर० 5 / 14 प्रक्रिया 2. कर्म, सम्पादन / / 3. हटाया हुआ, दूर फेंका हुआ 4. वियुक्त, विभक्त व्यवायः [वि+अव+अय्+अच] 1. वियोजन, विश्लेषण अलगाया हुआ-विक्रम० 5.23 5. पृथक रूप से अवयवों का) पृथक्करण 2. विघटन 3. आवरण, विचारित, एक एक करके ग्रहण-किं पुनर्व्यस्तै:-उत्तर० छिपाव 4. हस्तक्षेप, अन्तराल -- अटकुप्वानुम्व्यवा- 5, तदस्ति किं व्यस्तमपि त्रिलोचने-कु० 5 / 72 येऽपि 5. अड़चन, रुकावट 6. मैथुन, सम्भोग 7. पवित्रता, 6. सरल, समासरहित (शब्द आदि) 7. बहुविध, -यम् दीप्ति, आभा। 8. हटाया गया, निकाला गया 9. विक्षुब्ध, कष्टमय, व्यवायिन् (पुं०) [व्यवाय+इनि] 1. विलासी, स्वेच्छा- अव्यवस्थित 10. क्रमरहित, भग्नक्रम, विशृंखलित चारी 2. कामोद्दीपक, वाजीकरण / 11. उलटाया हुआ, उलट-पुलट किया हुआ 12. विपव्यबेत (भू० क० कृ०) [वि+अव++क्त] 1. वियो- र्यास (अनुपात आदि)। जित, विश्लिष्ट 2. भिन्न / व्यस्तारः (40) हाथी के गंडस्थलों से मद का निकलना / व्यष्टि (स्त्री०) [वि+अश्+क्तिन्] 1. वैयक्तिकता, | व्याकरणम व्यात्रियन्ते व्यत्पाद्यन्ते शब्दाः येन-वि--आ एकाकीपन 2. वितरणशील फैलाव 3. (वेदान्त० में) +कृ+ ल्युट ] 1. विग्रह, विश्लेषण 2. व्याकरण समष्टि को उसके पृथक-पृथक अवयवों के रूप में सम्बन्धी शब्द-पृथक्करण-प्रक्रिया, छः वेदांगों में से देखना, एक अंश (विप० समष्टि) / एक, व्याकरण--सिंहो व्याकरणस्य कर्तरहरत्प्राणान् व्यसनम् [वि-+-अस+ल्युट] 1. फेंक देना, दूर कर देना, प्रियान् पाणिनेः-पंच० 2 / 33 / वियोजन, विभाजन 3. उल्लंघन, व्यतिक्रमण 4. हानि व्याकारः [वि+आ++घञ्] 1. रूपान्तरण, रूपविनाश, पराजय, पतन, दोष, दुर्बलपक्ष अमात्य- परिवर्तन 2. विरूपता। व्यसनम्--पंच० 3, स्वबलव्यसने--कि० 13 // 15 | व्याकीर्ण (भू० क. कृ०) | वि+आ+कृ+क्त ] 5( क ) विपत्ति, दुर्भाग्य, दु:ख, अनिष्ट, संकट, 1. बिखेरा हुआ, इधर उधर फेंका हुआ 2. अस्तव्यस्त अभाग्य-अज्ञातभर्तव्यसना मुहूर्तं कृतोपकारेव रतिर्बभूव / / किया हुआ। --कु० 3 / 73, 4 / 30, रघु० 12157 (ख) आप- | व्याकुल (वि०) [ विशेषेण आकुल:-प्रा० स०] 1. विक्षुब्ध, काल, आवश्यकता-स सुहृद् व्यसने यः स्यात्-पंच० विस्मित, घबराया हुआ, किंकर्तव्य विमूढ़, शोक११३२७ 'आवश्यकता पड़ने पर जो मित्र रहे वही व्याकुल, बाष्प 2. आतंकित, उद्विग्न, भयभीत मित्र' 6. (सूर्य आदि का) अस्त होना.... तेजोद्व- . . बृष्टिव्याकुलगोकुल गीत०४ 3. भरापूरा, घिरा यस्य युगपद् व्यसनोदयाभ्याम् श० 4 / 1, (यहाँ / हआ 4. संलग्न, व्यस्त आलोके ते निपतति पूरा सा For Private and Personal Use Only Page #998 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलिव्याकुला वा --मेघ० 85 5. दमकने वाला, इधर / 1. बाघ का पंजा 2. एक प्रकार का गन्धद्रव्य उधर हिलजुल करने वाला—उत्तर० 3 / 43 / 3. खरौंच, नखक्षत,--नायकः गीदड़। व्याकुलित (वि०) [ वि+आ+कुल+क्त ] विक्षुब्ध, | व्याजः [ व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि हतबुद्धि, घबराया हुआ, उद्विग्न आदि / +अ+घन ] 1. धोखा, चाल, छल, जालसाजी व्याकूतिः (स्त्री०) [ विशिष्टा आकूति:-प्रा० स० ] जाल- 2. कला कौशल - अव्याज मनोहरं वपुः- श० 1118, साजी, छप्रवेश, धोखा / 'स्वाभाविक रूप से प्रिय' 3. बहाना, व्यपदेश, आभास व्याकृत (भू० क. कृ.) [वि+आ+कृक्ति ] - ध्यानव्याजमुपेत्य --नाग० 111, रघु० 4 / 25, 58, 1. विश्लिष्ट, वियुक्त 2. व्याख्यात, स्पष्ट किया गया 10 / 66, 11 / 66 4. युक्ति, चाल, कूटयुक्ति व्या3. विकृत, व्याकृष्ट, बिगाड़ा हुआ, विरूपित / जार्धसन्दर्शितमेखलानि-रघु० 13142 / सम०-उक्तिः व्याकृतिः (स्त्री०) [विआ--कृ+क्तिन् ] 1. विग्रह (स्त्री०) एक अलङ्कार जिसमें किसी कारण के 2. विश्लेषण, व्याख्या 3. रूप परिवर्तन, विकास स्पष्ट फल का जानबूझ कर कोई दूसरा कारण बताया 4. व्याकरण। जाता है, जहाँ वास्तविक भावना को कोई दूसरा व्याक्रोश (ष) (वि०) [वि+आ+श् ()+अच् ] कारण बताकर छिपा लिया जाता है--दे० काव्य० 1. फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, पुष्पित, मुकुलित-व्या- 10 'व्याजोक्ति' के नीचे 2. परोक्ष सङ्केत, व्यंग्योक्ति, कोशकोकनदतां दधते नलिन्यः-शि० 4 / 46 2. विकसित --निन्दा छल या कपट से की गई निन्दा, - सुप्त -भर्तृ० 3 / 17 // (वि०) झूठमूठ सोया हुआ, - स्तुतिः (स्त्री०) अंग्रेजी व्याक्षेपः [वि+आ+क्षिप् ।-घा] 1. इधर उधर के 'आइरनी' (IFULN) से मिलता जुलता एक उछालना 2. अवरोध, रुकावट 3. विलम्ब -अव्या अलङ्कार जिसमें व्यक्त की गई प्रशंसा से निन्दा क्षेपो भविष्यन्त्याः कार्यसिद्धेहि लक्षणम् - रघु० तथा प्रत्यक्ष निन्दा से स्तुति उपलक्षित होती है-व्याज१०१६ 4. उलझन / स्तुतिमखे निन्दा स्तुतिर्वा रूढिरन्यथा--काव्य० 10 / व्याख्या [वि+आ+ख्या+अ+टाप् ] 1. वृत्तान्त, | व्याड: [वि+आ+अड्+अच्] 1. मांस भक्षी जानवर, वर्णन 2. स्पष्टीकरण, विवृति, टीका, भाष्य / जैसे कि चीता, शेर आदि 2. बदमाश, गुण्डा 3. साँप व्याख्यात [वि+आ+ख्या+क्त ] 1. कथित, वर्णित ___4. इन्द्र तु० 'व्याल' / 2. स्पष्टीकृत, विवृत, टीकायुक्त / व्याडिः (पुं०) एक प्रसिद्ध वैयाकरण / व्याख्यात् (पुं०) [वि+आख्या --तच | व्याख्याकार, | व्याप्त (भू० क० कृ०) [वि-+आ+दा+क] विवृत, भाष्यकार / फलाया गया, फुलाया गया। व्याल्यानम् [वि+आ+ख्या+ल्युट् ] 1. संसूचन, वर्णन | व्यात्युक्षी [वि+आ+ अति+-उक्ष् -।-णिच्+अ +ङीष्] 2. भाषण, वक्तृता 3. स्पष्टीकरण, विवृति, अर्थकरण, जलविहार, जलक्रीडा। टीका। | व्यादानम् [वि-आ-दा+ल्यट] खोलना, उद्घाटन / व्याघट्टनम् [ वि+आ+घट+ ल्युट ] 1. बिलोना, मथना | व्यादिशः विशेषेण आदिशति स्वे स्वे कर्मणि नियोजयति 2. रगड़ना, घर्षण / वि--आ+दिशक विष्णु का विशेषण / व्याघातः [वि+आ+हन+क्त ] 1. रगडना 2. थप्पड, | व्याधः [व्यध+ण] 1. शिकारी, बहेलिया (जाति से या प्रहार 3. विध्न, रुकावट 4. वचन विरोध 5. एक पेशे के कारण) 2. दुष्ट मनुष्य, अधम पुरुष / सम० अलंकार जिसमें परस्पर विरोधी फल एक ही कारण -भीतः हरिण / से उत्पन्न दिखाये जाते हैं, मम्मट इसकी परिभाषा | व्याधामः, व्याधावः [ व्याध- अम्-|-णिच् + अच् ] इन्द्र निम्नांकित करता है- तद्यथा साधितं केनाप्यपरेण का वच। तदन्यथा / तथैव यद्विधीयेत स व्याघात इति स्मृतः / / / | व्याधिः [वि+आ+घा+कि] 1. बीमारी, रोग, रुजा, काव्य० 10, उदा० दे० विद्ध० 12, या विरूपाक्ष अस्वस्थता (प्रायः शारीरिक-विप० 'आधि' अर्थात के नीचे दिया गया उद्धरण / मानसिक रोग दुःख, चिन्ता आदि)-रिपुरुन्नतधीरचेतसः व्याघ्रः [ व्याजिघ्रति-वि+आ+घ्रा+क] 1. बाघ, सततव्याधिरनीतिरस्तु ते शि० 1611 (यहाँ चीता 2. (समास के अन्त में) सर्वोत्तम, प्रमुख, मुख्य 'व्याधि' का अर्थ 'आधि से मुक्त' भी है) तु० आधि ---जैसा कि नरव्याघ्र या पुरुषव्याघ्र में 3. लालरंग 2. कोढ़। सम० कर (वि०) अस्वास्थ्यकर-प्रस्त का एरंड का पौधा,--श्री मादा चीता- व्याघीव (वि.) रोगाकान्त, बीमार / तिष्ठति जरा परितर्जयन्ती-भर्त० 33109 / सम० | व्याधित (वि.) [व्याधिः सजातोऽस्य इतन् / रोगा-अटः चातक पक्षी,-आस्यः बिलाव, नमः, सम् क्रान्त, बीमार / For Private and Personal Use Only Page #999 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याधूत (भू० क० कृ०) [वि-|-आ+धू+क्त] झंझोड़ा | -जैसा कि 'अव्यापारेषु व्यापार यो नरः कर्तुमिच्छति हुआ, काँपता हुआ, थरथराता हुआ। पंच० 1021) / व्यानः व्यानिति सर्वशरीरं व्याप्नोति ---वि+आ+अन् | व्यापारित (भू. क. कृ.) [वि+आ++णिच्+क्त] +अच्] शरीरस्थ पाँच प्राणों में से एक जो समस्त 1. काम पर लगाया हुआ, स्थापित, नियोजित, नियुक्त शरीर म व्याप्त है। --रघु० 2 / 38 2. रक्खा हुआ, निश्चित, जमाया व्यानतम् [ वि +आ+नम्+क्त ] मैथुन का एक विशेष हुआ वेणी० 3 / 19 / प्रकार, रतिबन्ध / व्यापारिन् (पुं०) [व्यापार+इनि] 1. विक्रेता, व्यापार व्यापक (वि.) (स्त्री०-पिका) [विशेषेण आप्नोति वि करने वाला 2. व्यवसायी। +आप--वल] 1. फैला हुआ, बहुग्राही, प्रसारी, | व्यापिन (वि.) [ वि+आप+णिनि 1 1 व्याप्त होने विस्तृत रूप से फैलने वाला, सर्वतोमखी-तिर्यगर्ध्व- वाला, अपूर्ण करने वाला, अधिकार करने वाला मधस्ताच्च व्यापको महिमा हरे:-कु. 671 (समास के अन्त में) 2. सर्वव्यापक, सहविस्तृत, 2. नितान्त सहवर्ती,-क: नितान्त सहवर्ती या अन्तहित नितान्त सहवर्ती 3. आवरक (पुं०) विष्णु का विशेषण, कम् नितान्त सहवर्ती या अन्तहित गुण / विशेषण। व्यापत्तिः (स्त्री०) [वि+आ+पद्+क्तिन्] 1. बर्बादी, | व्यापत (भू० क० कृ०) [वि-+आप+क्त] 1. काम में संकट, दुर्भाग्य-मनु० 6 / 20 2. स्थानापन्नता 3. मृत्यु लगा हुआ, व्यस्त, नियोजित (अधि० के साथ) -- रघु० 12 / 56 / 2. स्थापित, स्थिर किया हुआ-(पुं०) कर्मचारी, व्यापद् (स्त्री०) [ वि+आ+पद्+क्विप् ] 1. संङ्कट, मन्त्री / दुर्भाग्य, भत० 33105 2. रोग विशृङ्गलता, | व्यापतिः (स्त्री०) व्याप+क्तिन] 1. काम में लगाना चित्तविक्षेप 4. मृत्यु, निधन / व्यस्त करना, व्यवसाय -स्वस्वव्यापतिमग्नमानसतया व्यापनम् [ वि+आप+ ल्युट् ] फैलना, पैठना, सर्वत्र फैल | - भामि० 1157 2. प्रकार्य, कर्म 3. चेष्टा 4. पेशा, जाना। व्यवसाय दे० 'व्यापार। व्यापन्न (भू० क० कृ०)[वि+आ+पद्+क्त] 1. दुर्भाग्य- | व्याप्त (भू० क. कृ०) [वि+आप+क्त) 1. चारों ओर ग्रस्त, बर्बाद 2. विफल, उलट गया (गर्भस्राव हो फैला हुआ, पंठा हुआ, व्यापक, विस्तार किया हुआ, गया) 3. चोट लगा हुआ, घायल 4. मृत, उपरत, आच्छादित, ढका हुआ 2. व्यापक, सर्वत्र फैला हुआ मरा हुआ जैसा कि 'अव्यापन' में 5. विक्षिप्त, 3. भरा हुआ, पूर्ण 4. चारों ओर से लपेटा हुआ, विकृत 6. स्थानापन्न, परिवर्तित / घिरा हुआ 5. स्थापित, जमाया हुआ 6. प्राप्त किया ध्यापावः, व्यापावनम् [वि+आ+पद+णिच्+घा, हुआ, अधिकृत 7. समझा हुआ, सम्मिलित 8. नितांत ल्युट वा ] 1. हत्या, वध 2. बर्बादी, विनाश 3. दुर्भा- संसक्त (तक में) 9. प्रसिद्ध, विख्यात 10. फुलाया वना, द्वेष / हुआ, बिछाया हुआ। व्यापावित (भू.क. कृ०)[वि+आ--पद्+णिच+क्त व्याप्तिः (स्त्री०) [वि+आप+क्तिन] 1. प्रसार, फैलाव 1. वध किया हुआ, कतल किया हुआ, विनष्ट किया 2. (तर्क० में) विश्वतः फैलाव, नितांत सहवर्तिता, हुआ 2. बर्बाद, घायल, चोटिल / किसी एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का पूर्ण रूप से व्यापार: [वि+आ++घञ्] 1. नियोजन, संलग्नता, मिला होना-पत्र-यत्र धूमस्तत्र तत्राग्निरिति साहचर्य व्यवसाय, धन्धा - ततः प्रविशति यथोक्तव्यापारा नियमो व्याप्तिः-तर्क० 3. सार्वजनिक नियम, शकुन्तला श० 1, कु० 2 / 54 2. प्रयोग, काम विश्वव्यापकता 4. पूर्णता 5. प्राप्ति / सम० ग्रहः मु० 2 / 4 3. पेशा, वाणिज्य, व्यवसाय, कार्य सार्वजनिक सहवतिता का बोध, ज्ञानम् सार्वजनिक ....यथा 'शस्त्रव्यापार में 4. कर्म, क्रिया, निष्पादन सहवर्तिता की जानकारी। E. कार्यपद्धति, प्रक्रिया, कृत्य, प्रभाव-(व्रतं) व्यापार-व्याप्य (वि.) [वि+आप्-- ण्यत्] व्यापकता के योग्य रोधि मदनस्य निषेवितव्यम्-श० 1127, तस्यानुमेने भरे जाने के योग्य, प्यम् (तर्क० में) अनुमान भगवान् विमन्युयापारमात्मन्यपि सायकानाम् कु. प्रक्रिया का चिह्न (=हेतु, साधन)। 7193, विक्रम०३।१७ 6. ऊपर रक्खा जाने वाला, व्याप्यत्वम् [व्याप्य+-त्व] नित्यता। सम० असिद्धिः ... मालवि० 4, 14 7. उद्योग, प्रयत्न-आर्याप्य- (स्त्रो०) अधूरी अटकल, अपूर्ण अनुमान / रुन्धती तत्र व्यापारं कर्तुमर्हति कु. 6 / 32, 'उस व्याभ्युक्षी-व्यात्युक्षी (दे०)। दिशा में कार्य करने के लिए प्रसन्न होंगी' (व्यापार व्यामः-व्यामनम् [वि+आ+अम्+घन, ल्युट वा एक तु 1. भाग लेना 2. प्रभाव डालना 3. हाथ डालना ! माप विशेष, जब दोनों हाथ पूर्ण रूप से दोनों ओर For Private and Personal Use Only Page #1000 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फैलाये हों तो हाथों की अंगुलियों के कोरों के बीच | व्यालोल (वि०) [वि+आ।-लोड्-+ अच्, उस्यल:] की दूरी। 1. कांपने वाला, थरथराने वाला 2. अव्यवस्थित, अस्तव्यामिश्र (वि.) [वि+आ+मित्र+अच्] मिला हुआ व्यस्त व्यालोलः केशपाशः गीत०११ / मिश्रित, गड्ड-मड्ड किया हुआ। व्यावकलनम् [वि+आ+अव+कल+ल्युट] घटाना। व्यामोहः [वि+आ+मह+घा] 1. प्रणयोन्माद व्यावक्रोशी, व्यावभाषी |वि+आ-|-अवश (भाष) 2. व्याकुलता, परेशानी, बेचैनी कंसस्यालमभूज्जितं +णिच+अञ डीप] परस्पर दुर्वचन कहना, जितमिति व्यामोहकोलाहल: गीत० 10, काव्या० आपस की गालीगलौज / 3 / 101 / व्यावर्तः [वि+आ+-वृत्+घञ्] 1. घेरना, लपेटना व्यायत (भू० क० कृ०) [वि+आ+यम्+क्त | 2. क्रान्ति, भ्रमण, चक्कर खाना 3. फटी हुई अर्थात् 1. लम्बा, विस्तृत --युवा युगव्यायतबाहुरंसल:--रघु० आगे को निकली हुई नाभि / 3 / 34 2. फुलाया हुआ, खुला हुआ 3. जिसने व्यायाम व्यावर्तक (वि.) (स्त्री० ---तिका) |वि+आ+वत् किया है, अनुशिष्ट 4. व्यस्त, काम में लगा हुआ, 1-णिच् +खुल] 1. लपेटने वाला, घेरा डालने वाला अधिकृत 5. कठोर, दृढ़ 6. मजबूत, गहन, अत्यधिक | 2. निकालने वाला, अपवर्जन करने वाला, वियुक्त 7. ताकतवर, शक्तिशाली 8. गहरा कु० 5 / 54 / करने वाला 3. मुड़ने वाला 4. मोड़ खाने वाला। व्यायतत्वम् [व्यायत+त्व] पुट्ठों का विकास श० | व्यावर्तनम् [वि-आ वृत् + ल्युट्] 1. घेरना, लपेटना 214 / 2. घूमना, मुड़ना चक्करखाना कि० 5 / 30 व्यायामः [वि+आ-यम्+घण] 1. बिस्तार करना, 3. रस्सी आदि का गोल लपेट, पट्टी। फैलाना 2. कसरत, शारीरिक व्यायाभों का अभ्यास व्यावल्गित (भू० क० कृ०) [वि+आ+वल्ग्+क्त] —शि० 2 / 94 3. थकान, श्रम 4. प्रयत्न, चेष्टा पसीजा हुआ, द्रवित, विक्षुब्ध। 5. वाग्युद्ध, संघर्ष 6. दूरी की माप विशेष (=व्याम व्यावहारिक (वि०) (स्त्री०-की) [व्यवहार+ठक्] 1. व्यवसाय संबंधी, प्रयोगात्मक 2. कानूनी, वंध 3. व्यायामिक (वि.) (स्त्री० की) [व्यायाम+ठक] प्रथागत, प्रचलित 4. भ्रमात्मक-तु० प्रातिभासिक,-कः मल्लविद्या-विषयक, शारीरिक कसरत संबंधी। / परामर्शदाता, मंत्री। व्यायोगः [वि-+-आ--युज+घन] नाट्यसाहित्य में एक | व्यावहारी [वि---आ+अव+ह-:-णिच् + अ +ङीप्] प्रकार का एकांकी नाटक, सा० द०५१४ पर इसकी पारस्परिक बंधन, लेन देन / निम्न परिभाषा दी गई है-ख्यातेतिवृत्तो व्यायोगः | व्यावहासी ।वि+आ+ अव+हस + णिच् +अञ+ स्वल्पस्त्रीजनसंयुतः / हीनो गर्भविमर्षाभ्यां नरबहु- डीप् ] पारस्परिक अवज्ञा, एक दूसरे की हंसी भिराश्रितः / एकांकश्च भवेदस्त्रीनिमित्तसमरोदयः / उड़ाना। कैशिकीवत्तिरहितः प्रख्यातस्तत्र नायकः / राजर्षिरथ | व्यावृत्तिः (स्त्री० [वि+आ+ वृत्+क्तिन्] 1. आवदिव्यो वा भवेद्वीरोद्धतश्च सः / हास्यशृङ्गारशान्तेम्य रण, परदा डालना 2. निकाल देना, निष्कासन / / इतरे ऽत्राङ्गिनो रसाः // व्यावृत्त (भू. क. कृ०) [ वि-1-आ+वृत्+क्त ] व्याल (वि.) [वि-1-आ+अल्--अच्] 1. दुष्ट, दुर्व्यसनी 1. हटाया हुआ, वापिस लिया हुआ--व्यावृत्ता यत्पर -व्यालद्विपा यन्तुभिरुन्मदिष्णव:---शि०१२।२८, यंता स्वेभ्यः श्रुतौ तस्करता स्थिता-- रघु० 121, गज व्यालमिवापराद्धः-- कि० 17125 2. बुरा, विक्रम० 19 2. वियुक्त किया गया, अलग हटाया पापिष्ठ 3. क्रूर, भीषण, बर्बर कि० 1314, लः हुआ 3. निकाला हुआ, एक ओर रक्खा हुआ4. 1. खूनी हाथी व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसी रोदधु चक्कर खाया हुआ, मुड़ा हुआ 5. लपेटा हुआ, घिरा समुज्जम्भते - भर्त० 26 2. शिकार का जानवर हुआ 6. रुका हुआ, उपरत–कु० 2 / 65 7. फाड़कर 3. साँप-हि० 3 / 29 बाधमा० 35 5. चीता टुकड़े टुकड़े किया हुआ। 6. राजा 7. ठग, बदमाश 8. विष्णु / सम० खलः, ध्यासः [ वि+अस्+घंश ] 1. वितरण, विभाजन 2. --मखः एक प्रकार की बूटी, -प्राहा, प्राहिन समास का विग्रह या विश्लेषण 3. अलगाव, पृषक्ता (पुं०) सपेरा,-मुगः 1. जंगली जानवर 2. शिकारी 4. प्रसार, फैलाव 5. अर्ज, चौड़ाई 6. वृत्त का व्यास चीता, रूपः शिव का विशेषण / 7. उच्चारणदोष 8. व्यवस्था, संकलन 9. व्यवस्थापक, व्यालकः [व्याल |-कन् दुष्ट या खुनी हाथी। संकलयिता 10. एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम (यह पराव्यालम्बः [विशेषेण आलम्बते वि+आ+-लम्ब +अच्] शर का पुत्र था, सत्यवती इसकी माता थी) (सत्यएक प्रकार का एरंड का पौधा। वती का शन्तन के साथ विवाह होने से पूर्व इसका For Private and Personal Use Only Page #1001 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 992 ) जन्म हुआ था) और जन्म होते ही यह बन में चला / -रघु० 10133 3. सन्ध्या करते समय प्रतिदिन गया। जहां यह वानप्रस्थ होकर घोर तपस्साधना में प्रत्येक ब्राह्मण द्वारा उच्चारित ईश्वर परक शब्द लीन रहा जब तक कि इसकी माता सत्यवती ने अपने विशेष (यह व्याहृतियाँ तीन है=भूर्, भुवस, तथा पूत्र विचित्रवीर्य की विधवा पत्नियों में सन्तान उत्पन्न स्वर् जिनका 'ओ३म्' के पश्चात् उच्चारण किया करने के लिए इसे नहीं बुलाया। इस प्रकार यह जाता है, कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार व्याहृतियाँ पाण्डु, घृतराष्ट्र और विदुर का पिता था। पहले गिनती में सात है)। पहले यह रंग का काला होने तथा एक द्वीप पर | ब्युच्छित्तिः (स्त्री०), व्युच्छेदः [बि+उत् +छिद्+क्तिन्, सत्यवती से जन्म लेने के कारण 'कृष्णद्वैपायन' कहलाया, घा वा ] काट डालना, उन्मूलन, पूर्ण विनाश / परन्तु बाद में इसका नाम व्यास पड़ा क्यों कि इसने | व्युत्क्रमः [वि+उत्+क्रम ।-घा 1 1. अतिक्रमण, ही वेदों के मन्त्रों को क्रमबद्ध कर वर्तमान रूप दिया। विचलन 2. उलटा क्रम, वैपरीत्य 3. अव्यवस्था, "विव्यास वेदान्यस्मात्स तस्माद्व्यास इतिस्मृतः" / गड़बड़ी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसी ने महाभारत | व्यत्कान्त (भ० क० कृ०) [वि+उत-क्रम + क्त ] की रचना कर उसे गणपति द्वारा लेखबद्ध करवाया। 1. अतिक्रान्त, उल्लंघन किया गया 2. जो बिदा हा अठारह पुराणों तथा ब्रह्मसत्रों का रचयिता भी इसी गया हो, छोड़कर चला गया हो, बीत गया हो। को माना जाता है, यह सात चिरजीवियों में से एक व्यस्थानम व्यथितिः ( स्त्रीवि ++स्था--ल्यट. है तु० 'चिरजीविन्) 11. वह ब्राह्मण जो सार्वजनिक क्तिनबा| 1. महान् क्रियाकलाप 2. किसी के विरुद्ध रूप से पुराणों की कथा करता है। खड़े होना, विरोध, रुकावट 3.स्वतन्त्र कर्म, मनोऽनुव्यासक्त (भ० क. कृ०) [ वि+आ+सञ्+क्त ] कूल कार्य 4. (योग० में) धार्मिक मनोयोग की पूर्ति 1. जो दृढ़ता पूर्वक डटा रहे 2. जुड़ा हुआ, लगा या भावात्मक मनन 5. एक प्रकार का नृत्य 6. (हाथी हुआ, तुला हुआ व्यस्त, (अधि० के साथ) 3. नियुक्त, को) उठाना --शि०१८।२६ पथक किया हुआ, अलग किया हुआ 4. परेशान, व्युत्पत्तिः (स्त्री०) [वि+उत्+पद् + क्तिन् ] 1. मूल, व्याकुल, घबड़ाया हुआ। उत्पत्ति 2. व्युत्पादन, निर्वचन 3. पूरी प्रवीणता, व्यासङ्गः [वि+आ+सञ्-घा ] 1. सटा होना, पूरी जानकारी 4. विद्वत्ता, ज्ञान--व्युत्पत्तिरावजित डटे रहना, तुला रहना 2. एकनिष्ठता, भक्ति-भामि० कोविदापि न रञ्जनाय क्रमते जडानाम् विक्रम 1179 3. सपरिश्रम अध्ययन 4. ध्यान 5. पृथक्ता, 1115, 28 / 108 / संयोग। व्युत्पन्न (भू. क. कृ०) [वि+उत्+पद्+क्त ] व्यासिद्ध (भू० क. कृ०) [ वि+आ+सिध्+क्त ] 1. उत्पादित, पैदा किया गया 2. निर्वचन द्वारा 1. प्रतिषिद्ध, वजित 2. निषिद्धपण्य, चोरी का निर्मित 3. व्याकरण द्वारा निष्पन्न, निरुक्त, (शब्द) माल / जिसके निर्वचन का पता लग गया हो (विप० अव्य व्याहत (भृ० क. कृ०) [वि+आ+हन्+क्त ] 1. त्पन्न या मूल) 4. पूरा किया गया, सम्पन्न किया अवरुद्ध, रोका हुआ 2. हटाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ गया * महावी० 4157 5. पूरी तरह प्रवीण, विद्वान्, 3. विफल किया हुआ, निराश- शि० 3 / 40 4. पण्डित / व्याकुल, घबड़ाया हुआ, आतंकित / सम० अर्थता | | व्युत्त (भू० क० कृ०) [वि+उन्द्+क्त ] क्लिन्न, आर्द्र, रचना का एक दोष --दे० काव्य०७ / भिगोया हुआ। ध्याहरणम् वि+आ+ह+ल्यूट ] 1. बोलना, उच्चा-व्युवस्त (भू० क० कृ०) [वि+उ+अस्+क्त ] एक रण करना 2. भाषण, वर्णन / / ओर फेंका हुआ, अस्वीकृत, दूर किया हुआ। व्याहारः [वि+आ+ह+घञ ] 1. भाषण, बोलना, | व्युदासः [वि+उद् + अस्+घञ्] 1. एक ओर फेंकना, वचन - उत्तर० 4118, 5 / 29 2. आवाज, स्वर, अस्वीकृति 2. (व्या० में) निकाल देना 3. प्रतिषेध ध्वनि -मालवि० 5.1 / 4. उपेक्षा, उदासीनता 5. हत्या, विनाश शि. ध्याहृत (भू. क. कृ०) [वि+आ+ह+क्त ] क 15/37 हुआ, बोला हुआ, उच्चारण किया हुआ। व्युपदेशः [वि-|-उप+दिश+घ 1 व्याज, बहाना / व्याहृतिः (स्त्री० [वि+आ+ह-|-क्तिन् ] 1. उच्चा- व्युपरमः [वि-उप+रम्+अप] बिराम, यति, समाप्ति / रण, भाषण, वचन न हीश्वरव्याहृतयः कदाचित्पु- व्युपशमः [वि+उप+शम्+अच्] 1. विराम का ब्णन्ति लोके विपरीतमर्थम्--कु० 360 2. वक्तव्य, अभाव 2. अशान्ति 3. पूर्ण विराम (यहाँ 'वि' का अभिव्यक्ति-भूतार्थव्याहृतिः सा हिन स्तुति परमेष्ठिनः / अर्थ 'तीव्रता' है। For Private and Personal Use Only Page #1002 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्युष्ट (भ० क. कृ०) / वि। उप+यत ] 1. जलाया / प्रज् (भ्वा० पर० व्रजति) 1. जाना, चलना, प्रगति करना, गया 2. पौफटी, प्रभात . जो उज्ज्वल या स्वच्छ हो ... नाविनीतर्वजद्ध यः मनु० 4 / 67 2. पधारना, 4. बसा हुआ, ष्टम् 1. पौ फटना, प्रभात - "शि० पहुँचना दर्शन करना----मामेक शरणं व्रज-भग० 12 / 4 2. दिन 3. फल। 18166 3. विदा होना, सेवा से निवृत्त होना, पीछे व्युष्टिः (स्त्री०) वि+वस--क्तिन् | 1. प्रभात हटना 4. (समय का) बीतना....इयं व्रजति यामिनी 2. समृद्धि 3. प्रशंसा 4. फल, परिणाम। त्यज नरेन्द्र निद्रारसम-विक्रम० 11074, (यह धातु व्यूढ (भ० क० कृ० ) [ वि / वह + क्त ] 1. फुलाया प्रायः गम् या या धातु की भाँति प्रयुक्त होती है), हुआ, विकसित, विशाल, व्यापक . व्यूढोरस्को वृप- अनु , 1. बाद में जाना, अनुगमन करना--मनु० स्कन्धः -रधु० 1113 2. दृढ़, सटा हुआ 3. क्रमबद्ध, 12111 कु० 7138 2. अभ्यास करना, सम्पन्न व्यवस्थित, सेना आदि) सुविन्यस्त-भग० 13 करना 3. सहारा लेना, आ--, आना, पहुँचना, परि / 4. अव्यवस्थित, कमहीन 5. विवाहित। सम० भिक्ष या साघ के रूप में इधर-उधर घूमना, संन्यासी ___ कडकट (वि०) कवचित, जिरह वख्तर पहने हुए। या परिव्राजक हो जाना, प्र-, 1. निर्वासित होना व्यूत (वि०) [वि+के+क्त ] 1. अन्तर्वलित, सीया | 2. सांसारिक वासनाओं को छोड़ देना, चौथे आश्रम गया, गूथा गया। में प्रविष्ट होना, अर्थात् संन्यासी हो जाना--मनु० व्यतिः [स्त्री०) विवे--विनन् ] 1. बनाई, सिलाई 6 / 38, 8 / 363 / 2. बुनाई की मजदूरी। वजः [वज्+क | 1. समुच्चय, संग्रह, रेवड़, समूह व्यूहः [वि-1-ऊह -घा ] 1. सैनिक विन्यास--मनु० नेत्रव्रजाः पौरजनस्य तस्मिन् विहाय सर्वान्नुपतीन्निपेतुः 7187 2. सेना, दल, टुकड़ी . व्यूहावुभौ तावितरे- ----रघु०६७, 7 / 67, शि०६।६, 14 / 33 2. ग्वालों तरस्मान् भङ्ग जयं चापत्रव्यवस्थम् रघु० 7 / 54 के रहने का स्थान 3. गोप्ठ, गौशाला --शि०२१६४ 3. बड़ी मात्रा, समवाय, समुच्चय, संग्रह 4. भाग, 4. आवास, विश्रामस्थल 5. सड़क, मार्ग 6. बादल अंश, उपशीर्ष 5, शरीर 6. संरचन, निर्माण 7. तर्कना, 7. मथुरा के निकट एक जिला। सम०–अङ्गाना, तर्क। सम पारिणः (स्त्री०) सेना का पिछला यवतिः (स्त्री०) ब्रज में रहने वाली स्त्री, ग्वालन भाग, भाः , भवः मनिक व्यह को तोड़ देना। भामि० 21165, .. अजिरम् गोशाला, किशोरः व्यूहनम् / वि+ऊह ल्यूट | 1. सेना को व्यवस्थित -नायः,-मोहनः,-बरः,-वल्लभः कृष्ण के विशेषण / करना, सेना को क्रमबद्ध करना 2 शरीर के अंगों की प्रजनमजल्यट] 1. घमना, फिरना, यात्रा करना संरचना। 2. निर्वासन, देश निकाला। व्युद्धिः (स्त्री०) [दिगता नद्धिः --प्रा० स० | 1. समृद्धि बज्या ब्रज+क्या-टाप1. साधु या भिक्षु के रूप में का अभाव, बुरी किस्मत, दुर्भाग्य (बिगता ऋद्धि- इधर-उधर घूमना 2. आक्रमण, हमला, प्रस्थान व्युद्धिः) जैसा कि यवनाना न्युद्धिर्दयवनम्--सिद्धाः। 3. खेड़, समुदाय, जनजाति या कबीला, संप्रदाय व्ये (भ्वा० उभ० व्याति ते, ऊन, प्रेरक व्यायति ते, 4. रंगभूमि, नाट्यशाला। इच्छा० विधामति) 1. इकना 2. सोना / | व्रण / (भ्वा० पर०व्रजति) ध्वनि करना। व्योकारः [व्योकृ-|-अग् ] लुहार। / (चुरा० उभ० व्रणयति-ते) चोट पहुँचाना, व्योमन् (नपुं० ) [ व्ये / मनिन्, पृयो०] आकाग, अन्तरिक्ष / घायल करना। -अस्त्वेवं जडवामता तु भवतो यद् व्याम्नि विस्फूर्जमे व्रणः, व्रणम् [वण्-+अच् ] 1. घाव, क्षत, जस्म, चोट -काव्य०१०, मेध०५१, रघु०१२॥६७, नै० 22054 -रघु० 12 / 55 2. फोड़ा, नासुर / सम०-अरिः 2. जल 3. सूर्य का मन्दिर ... अभ्रक / सभ०-उदकम् बोल नामक गंवद्रव्य,---कृत (वि.) घाव करने वाला, बारिश का पानी, ओस,--केशः,-केशिन् (60) (50) भिलावे का पेड़,-विरोपण (वि०) घाव शिव का विशेषण, -गंगा स्वर्गीय गंगा, चारिन् / भरने वाला - श० 4 / 13, -शोधनम् धाव का साफ (पुं०) 1. देव. पक्षी / सन्त, महात्मा 4. ब्राह्मण / करना तथा पट्टी बाँधना, हः एरंड का पौधा / 5. तारा, नक्षत्र, --धमः वादल.--नाशिका एक प्रकार प्रणित (वि०) [वण-इतच ] घायल, जिसके खरोंच की बटेर, लवा,-मंजरम, --मंडलन् झंडा, पनाका, आ गई हो -उत्तर० 4 / 3 / -मुद्गरः हवा का झोंका, -यानम् दिव्यसवारी, व्रतः, वतम प्रज -घ, जस्य तः] 1. भक्ति या साधना का आकाशयान,---शद् (पुं०) 1. देव, मुर 2. गन्धर्व बार्मिक कृत्य, प्रतिज्ञात का पालन, प्रतिज्ञा, पण-अभ्य3. भूत-पंत, -स्थली पृथ्वी,-'पश् (वि.) गगनचुंबी, / म्यतीव व्रतमासिबारम-रष०१३।६७, २१४,२५,(भिन्न अत्यन्त ऊँचा। भित्र-पुराणों में अनेक व्रतों का वर्णन किया गया है, For Private and Personal Use Only Page #1003 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 994 ) परन्तु उनकी संख्या निश्चित नहीं हो सकी क्योंकि 4135, तम् 1. शारीरिक श्रम, मजदूरी 2. दैनिक बराबर नये नये व्रतों की रचना प्रतिदिन होती रहती मजदूरी 3. यदा-कदा कार्य में नियक्ति / है यया सत्यनारायण व्रत 2. संकल्प, प्रतिज्ञा, दृढवातीन (वि०) [वातेन जीवति-बात-ख दैनिक-मजदूरी निश्चय--सोऽभूत् भग्नवतः शत्रूनुत्य प्रतिरोपयन् से जीविका चलाने वाला, किराये का मजदूर, बेलदार, ... रघु० 17142, इसी प्रकार 'सत्यवत, दृढव्रत' झल्ली वाला। कि पतिव्रता (पतिव्रतं यस्याः सा)---यान्ति देवव्रता से किसी एक वर्ण का पुरुष जो मख्य संस्कार या देवान् पितृन् यान्ति पितृव्रता:-भग० 9 / 25 4. संस्कार शोधक कृत्यों का अनुष्ठान न करने के कारण पतित अनुष्ठान, अभ्यास, जैसा कि 'अर्कवत' में 5. जीवन- हो गया है (जिसका उपनयन संस्कार नहीं हुआ); चर्या, आचरण, चालचलन-श० 5 / 26 6. अध्या- जातिबहिष्कृत भवत्या हि व्रात्याघमपतितपाखण्ड वेश, विधि, नियम 7. यज्ञ 8. कर्म, करतब, कार्य / परिषत्परित्राणस्नेहः गंगा० 37 2. नीच पुरुष, सम.--आचरणम् किसी प्रतिज्ञा का पालन करना, अधम पुरुष 3. विशेष नीच जाति (शुद्रपिता और --आवेशः (किसी द्विज के) बालक का यज्ञोपवीत क्षत्रिय माता की सन्तान)का पुरुष / सम०-ब्रुव जो अपने संस्कार,-उपवासः किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के आपको 'ब्रात्य' कहता है,-स्तोमः उपयुक्त संस्कारों का लिए अनशन करना, प्रहणम् किसी धार्मिक अनुष्ठान अनुष्ठान न करने के कारण छीने गये अधिकारों को को पूरा करने के लिए संकल्प लेना,-चर्यः ब्रह्मचारी, फिर से प्राप्त करने के लिए किया गया यज्ञ। वेदविद्यार्थी --दे० ब्रह्मचारिन, चर्या ब्रह्मचर्य का | वीi (क्रया० पर० विणाति-वीणाति) छांटना, चनना, पालन करना,---- पारणम्,- णा उपवास खोलना या तु० 'वृ०। प्रतिज्ञा की सफल समाप्ति,-भङ्गः 1. संकल्प तोड़ना / (दिवा० आ० ब्रीयते, वीण) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. प्रतिज्ञा तोड़ना,-भिक्षा उपनयन संस्कार के 2.चना जाना। . अवसर पर भिक्षा मांगना,-लोपनम् प्रतिज्ञा को बीड (दिवा० पर०वीडयति) 1. लज्जित होना, शमिन्दा तोड़ना,-वैकल्यम् किसी धार्मिक संकल्प का अधूरा रह / होना 2. फेंकना, डालना, भेज देना / जाना,-संग्रहः व्रत को दीक्षा लेना, स्नातकः वह ब्राह्मण ब्रोडः,-डा वीड्+घा+वीड़-+अ+टाप्] 1. लज्जा जिसने ब्रह्मचर्य आश्रम की अवस्था को पूरा कर लिया / बीडादिवाभ्यासगतविलिल्ये शि० 3 / 40, वीडमा है अर्थात् ब्रह्मचर्य नामक प्रथम आश्रम-दे०स्नातक / वहति मे स (शब्दः) संप्रति-रघु० 11173 व्रततिः, सी (स्त्री०) [प्र+तन्+क्ति च, पृषो० पस्य वः 2. विनय, लज्जाशीलता--शि०१०।१८ / व्रतति+डीष 1. बेल, लता -- पादाकृष्टवततिवलया-वीडित (भू० क० कृ०) [बीड्+क्त] लज्जित किया गया, संगसंजातपाशः --श० 1133, रघु० 1411 2. फैलाव, शर्मिन्दा, लज्जाशील। विस्तार। बोस् (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० वीसति, वीसयति-ते) प्रतिन् (वि०)[व्रत+इनि] प्रतिज्ञा पालन करने वाला, भक्त, | क्षति पहुंचाना, हत्या करना / पुण्यात्मा, (पु०) 1. ब्रह्मचारा 2. सन्यासी, भक्त-श० ब्रीहिः वी+हि, किच्च] 1. चावल, जैसा कि 'बहुव्रीहि 5.9 3. जो यज्ञ का उपक्रम करता है-दे० 'यजमान'। में 2. चावल का दाना / सम०-अगारम् धान्यागार, अन दे० 'बध्न'। खत्ती, काञ्चनम् मसूर की दाल,-- राजिकम् चना, बझन् दे० 'ब्रह्मन् / कंग या कांगनी चावल / प्रश्न (तुदा० पर० वृश्चति, वकण, प्रेर० वश्चयति-ते, बुर (तुदा० पर० वुडति) 1. ढकना 2. इकट्ठा होना इच्छा. विवश्चिषति या विवक्षति) 1. काटना, काट 2. एकत्र करना, संचय करना 4. डूबना, नीचे जाना। डालना, फाड़ना, चीरना 2. घायल करना / अस (म्वा०पर०, उभ०) दे० 'वीस्।" प्राचनः [वश्च+ल्युट] 1. छोटी आरी 2. बारीक रेती / हेय (वि.) (स्त्री०-पी) [वीहि+ठक] 1. चावलों के जिसे सुनार काम में लाते हैं, लम् काटना, फाड़ना योग्य 2. चावल के साथ बोया हुआ,-यम् चावल का पायल करना। खेत, वह खेत जिसमें चावल बोये जाने चाहिए। वाणिः (स्त्री०) विज्+इन, हवा का झोंका, तूफानी | ब्ली (क्रया पर० ठिलनाति-लीनाति' विरल प्रयोग-प्रेर० हवा, झंझावात। ठलेपयति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. भरण-पोषण बातः [q+अत, पृषो. साध: समुदाय, रेवड़, समुच्चय | करना, थामे रखना, निर्वाह करना 3. छांटना, चुनना / -वपाकानां प्रातः-गंगा 29, रघु. 1294, शि• लेण (चुरा० उम० श्लेषयति-ते) देखना। For Private and Personal Use Only Page #1004 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शः [शो+ड] 1. काटने वाला, विनाशकर्ता -कि० 15 // की गई हो, स्तुति की गई हो 2. बोला गया, कहा 45 2. शस्त्र 3. शिव,-शम् आनन्द--भर्तृ० 2 / 16 / / गया, उक्त, घोषित 3. अभिलषित, इच्छित 4. निश्चय शंयु (वि.) [शं शुभम् अस्त्यस्य -शम् + युस्] प्रसन्न, | किया गया, स्थापित, निर्धारित 5. जिस पर मिथ्या समृद्ध भट्टि० 4 / 18 / दोषारोपण किया गया हो, कलंकित / शंवः [शम्+व] 1. प्रसन्न, भाग्यशाली-(पुं०) 1. ठीक शंसिन् (वि.) [शंस+इनि] (प्रायः समास के अन्त दिशा में हल चलाना 2. इन्द्र का बज 3. मूसल का में) 1. श्लाघा करने वाला 2. कहने वाला, घोषणा सिर जो लोहे का बना होता है। करने वाला, संसूचित करने वाला,---प्रजावती दोहदशंस (भ्वा० पर० शंसति, शस्त, कर्मवा० शस्यते) शंसिनी ते--रघु० 14145 3. संकेत करने वाला, 1. प्रशंसा करना, स्तुति करना, अनुमोदन करना पहले से कह रखने वाला मानः क्षतहकारशंसिनः -साधु साध्विति भूतानि शशंसुर्मारुतात्मजम्--राम, -कु० 2026, प्रार्थनासिद्धिशंसिनः - रघु० 1142, भग० 5.1 2. कहना, बयान करना, अभिव्यक्त शि० 977 4. शकुन बताने वाला, भविष्य कथन करना, प्रकथन करना, संसूचित करना, घोषणा करने वाला-रघु० 3 / 14, 12 / 90 / करना, विवरण देना (संप्र० या कभी संबं० के साथ शक i (स्वा० पर० शक्नोति, शक्त) 1. योग्य होना, अथवा स्वतंत्र रूप से)-शशंस सीता परिदेवनान्तमनु सक्षम होना, सबल होना, अमल में लाना (प्रायः ष्ठितं शासनमग्रजाय--रघु० 14183, न मे ह्रिया 'तुमन्नन्त' के साथ, प्रयुक्त होकर सकना' अर्थ प्रकट शंसति किचिदीप्सितम् - 3 / 5, 2068, 4172, 9 / 77. करना)-अदर्शयन् वक्तुमशक्नुवत्यः शाखाभिरावर्जित११४८४, कु० 3 / 60, 5 / 51 3. संकेत करना, कह पल्लवाभिः-रघु० 13 / 24, भट्टि० 3 / 6, मेघ०२० रखना, जताना-यः (अशोकः) सावज्ञो माधवश्री- कभी कभी कर्म० या संप्र. के साथ-मनु० 12194 नियोगे पुष्पैः शंसत्यादरं त्वत्प्रयत्ने--मालवि० 5 / 8, 2. सहन करना, बर्दाश्त करना 3. शक्तिशाली होना कि० 5 / 23, कु० 2 / 22 4. आवृत्ति करना, पाठ .. कर्मवा० समर्थ होना, सम्भव होना, व्यवहार के करना 5. चोट मारना, क्षति पहुँचाना 6. बुरा भला योग्य होना (निम्नांकित तुमनंत को कर्मवा. का कहना, बदनाम करना, अभि-, 1. अभिशाप देना अर्थ देना) .... तत्कर्तुं शक्यते 'यह किया जा सकता 2. दोषारोपण करना, निन्दा करना, बदनाम करना है', इच्छा० (शिक्षति) 1. समर्थ होने की इच्छा करना --याज्ञ० 3 / 286 3. प्रशंसा करना, आ-(प्रायः आ) 2. सीखना। 1. आशा करना, प्रत्याशा करना, इच्छा करना, अभि- | ii (दिवा० उभ०-शक्यति-ते, शक्त) 1. समर्थ लाषा करना-स्वकार्यसिद्धि पुनराशशंसे--कु० 3 / होना, अमल में लाने की शक्ति रखना 2. सहन 57, संग्रामं चाशशंसिरे-भट्टि०१४।७०, 90, मनोर करना, बर्दाश्त करना। थाय नाशंसे कि बाहो स्पन्दसे वृथा--श० 7 / 13, शकः [ शक्+अच् ] 1. एक राजा (विशेषतः 'शालि२॥१५ 2. आशीर्वाद देना, सदिच्छा प्रकट करना, वाहन', परन्तु इस शब्द के सही अर्थ तथा क्षेत्र के मंगल कामना करना एवं ते देवा आशंसन्तु-मुच्छ० विषय में अभी तक विद्वानों में मतैक्य नहीं हो सका) 1, राज्ञः शिवं सावरजस्य भूयादित्याशशंसे करण 2. काल, सम्वत् (यह शब्द विशेष रूप से शालिवाहन रबाह्यः --रघु० 14150 3. कहना, वर्णन करना सम्वत् के लिए जो खीस्ताब्द से 78 वर्ष के पश्चात् --आशंसता वाणगति वृषांके कार्य त्वया नः प्रतिपन्न आरम्भ हुआ, प्रयुक्त होता है),-काः (पुं०ब.व.) कल्पम्-कु० 3 / 14 . प्रशंसा करना 5. दोहराना, 1. एक देश का नाम 2. एक विशेष जन-जाति या प्र-, सराहना, स्तुति करना, अनुमोदन करना, गुण राष्ट्र का नाम (मनु० 10 // 44 में 'पौण्डक' के साथ कथन करना, श्लाघा करना-हरिणायुवतिः प्रशशंसे इस शब्द का भी प्रयोग मिलता है) सम.- अन्तकः, --गीत० 1, यच्च वाचा प्रशस्यते-मनु० 5 / 127, -अरिः राजा विक्रमादित्य के विशेषण जिसने शकों प्रांशंसीत्तं निशाचर:-भट्टि० 12 / 65, रघु० 5 / 25, का उन्मूलन किया,-अम्बः शकसंवत् का वर्ष,-कत, 17136 / -कृत् (पुं०) संवत् का प्रवर्तक / शंसनम् [शंस-+ ल्युट ] 1. प्रशंसा करना 2. कहना, वर्णन शकटः, टम् [शक+अटन् ] गाड़ी, छकड़ा, भार ढोने की करना 3. पाठ करना। गाड़ी-रोहिणी शकटम्-पंच० 11213, 211, याह. शंसा [शंस्+अ+टाप् ] 1. श्लाघा 2. अभिलाषा, 3 / 42, --ट: 1. सैनिक व्यूहविशेष-मनु० 7.187 इच्छा, आशा 3. दोहराना, वर्णन करना / 2. एक विशेष प्रकार की तोल जो एक गाड़ी-भर शंसित (भू. क.कृ.) [शंस्+क्त ] 1. जिसकी श्लाघा बोझ या 2000 पल के बराबर है 3. एक राक्षस का For Private and Personal Use Only Page #1005 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम जिसे कृष्ण ने अपने बचपन में ही, मार डाला / ने पांडवों को उखाड़ने के लिए दुर्योधन की अनेक था 4. तिनिश नामक पेड़ / सम०–अरिः,-हन दुरभियोजनाओं में सहायता दी। आजकल इस (10) कृष्ण के विशेषण,--आह्वा रोहिणी नामक नाम का प्रयोग उस दुर्वत्त रिश्तेदार के लिए होता है नक्षत्र (इसका आकार 'शकट' जैसा होता है), जिसका परामर्श बर्बादी का कारण बने। सम० ...-बिलः जलकुक्कुट / ईश्वरः गरुड़, प्रपा पक्षियों को पानी पिलाने की शकटिका [ शकट+की+क+टाप, ह्रस्व:] छोटी | कुंड ---वादः 1. पक्षी की कुजन 2. मुर्गे की बाँग / गाड़ी, खिलोना-गाड़ी जैसा कि 'मृच्छकटिका' में। | शकुनी [शकुन+ङीष् ] 1. चिड़िया, गोरैया 2. एक शकन् (नपुं०) मल, विष्ठा, विशेषकर जानवरों का मल, पक्षिविशेष / लीद गोबर आदि (इस शब्द के पहले पाँच वचनों में शकुन्तः [शक-Fउन्त ] 1. एक पक्षी----अंसव्यापिशकून्तनीकोई रूप नहीं होता, कर्म० द्वि० व० से आगे विकल्प डनिचितं बिभ्रज्जटामण्डलम् / 07 / 11 2. नीलकंठ से 'शकृत्' आदेश हो जाता है)। पक्षी 3. पक्षिविशेष / शकल: [शक-कलक् ] 1. भाग, अंश, हिस्सा, टुकड़ा, शकुन्तकः / शकुन्त-कन् ] पक्षी। खण्ड (इस अर्थ में नपुं० भी)-उपशकलमेतद्भेदकं शकुन्तला [ शकुन्तैः लायते-ला घा) क--टाप् ] विश्वागोमयानां ----मुद्रा० 3 / 15, रधु० 2 / 46, 570 मित्र ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए इन्द्र द्वारा 2. बक्कल, छिलका 3. (मछली की) खाल, परत / भेजी गई मेनका अप्सरा से उत्पन्न विश्वामित्र की शकलित (बि०) [शकल+इतन् ] खण्ड-खण्ड किया। पुत्री (जब मेनका स्वर्ग गई तो वह इस बच्ची को हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ। एकान्त जंगल में छोड़ गई, वहाँ पक्षियों ने इसका शकलिन् (वि०) [ शकल+इनि ] मछली। पालन पोषण किया, इसी लिए इसका नाम शकुन्तला शकारः (0) राजा को रखैल का भाई, राजा की उस पड़ा। बाद में वह महर्षि कण्व को मिली। कष पत्नी का भाई जिससे विधिपूर्वक विवाह न किया ने उसे अपनी पुत्री की भांति पाला। जब आखेट गया हो, अनूढा भ्राता (इसका वर्णन बहुधा मिश्रित करता हुआ दुष्यन्त कण्व ऋषि के आश्रम की ओर मिलता है, नीच कुल में जन्म लेने के कारण मुर्खता, आया तो वह शकुन्तला के लावण्य से आकृष्ट हो घमंड, आदि अवगुणों के विद्यमान रहते हुए भी गया। उसने शकुन्तला को अपनी पत्नी बनाने के राजा का साला होने के कारण इसे उच्चपद मिल लिए उसे राजी कर उससे गांधर्व विवाह कर लिया जाता है, शूद्रकरचित मृच्छकटिक नाटक में यह (दे० दुष्यन्त)। शकुन्तला से एक पुत्र पैदा हुआ, प्रमुख भाग लेता है, मिथ्या यश, हलकापन तथा इसका नाम भरत था, यह चक्रवर्ती राजा बना, इसी ओछापन इसके चरित्र की विशेषता है, बार-बार के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। उसके उच्चसम्बन्ध का उल्लेख, उसकी उपहासास्पद शकुन्तिः [ शक् + उन्ति ] पक्षी कलनविरलं रत्युत्कंठाः मुर्खता, एवं प्रमाद तथा अपनी इच्छा की पूर्ति न ___ क्वणन्तु शकुन्तयः --उत्तर० 3 / 24 / होने पर नायिका का गला घोटने की क्रूरता इसकी शकुन्तिका [ शकुन्ति-/-कन्--टाप् ] 1.गक्षी-उत्तर० 245 योग्यता के परिचायक हैं .सा.द.८१ में इसकी 2. पक्षिविशेष 3. टिड्डी, झींगुर / / परिभाषा दी गई है मदमूर्खताभिमानी दुष्कुलतश्व शकुलः, लो [शक+उलच ] एक प्रकार की मछली / यसंयुक्तः। सोऽयमनुढाभ्राता राज्ञः श्यालः शकार सम०-अवनी एक जड़ीबूटी, कटकी या कुटकी, इत्युक्तः // - अर्भकः एक प्रकार की मछली। शकुनः [शक+उनन् ] 1. पक्षी-शकुनोच्छिष्टम्-याज्ञ० शकृत् (नपुं०) [शक्+तन् मल, विष्ठा, विशेषकर 1 / 168 2. पक्षिविशेष, चील, गिद्ध,नम् 1. सगुन, जानवरों की लोद, गोबर आदि / सम० .. करिः लक्षण, शुभाशुभ बतलाने वाला चिह्न शि० 9/83 (पुं०; स्त्री०)-फरी बछड़ा,--शकृत्करिर्वत्सः-सिद्धा०, 2. शंकासूचक सगुन / सम०- (वि.) सगनों को - द्वारम् गुदा, मलद्वार, पिण्ड:, . पिण्डकः गोबर जानने वाला, ज्ञानम् सगुनों का ज्ञान, भवितव्यता, का गोला शप्पाण्यत्ति प्रकिरति शकृत्पिण्डकानाम्रहोनहार,---शास्त्रम् वह शास्त्र जिसमें सगुनसम्बन्धी मात्रान् उत्तर० 4 / 27 / विचार किये गये है, सगुन शास्त्र / शक्करः, शक्करिः [शक+क्षिप, कृ+अच, कर्म० स०] शाकृतिः [शक+उनि] 1. पक्षी-उत्तर० 2 / 25, मन वैल, साँड़। 12 / 63 2. गिद्ध, चील, वाज 3. मुर्गा 3. गांधारराज शक्करी [ शक्कर-की ] 1. नदी : करधनी, मेखला सुबल का एक पुत्र, धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी का 3. नीच जाति की स्त्री। भाई, इस प्रकार यह दुर्योधन का मामा था। इसी शक्तम. ककृ० शिक| ] 1. योग्य, सक्षम, समय For Private and Personal Use Only Page #1006 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र यथाशक्ति क्षमा | शक्न, बायोग्य, यथाशक्त तसिला (सम्ब०, अधि० या तुमुन्नन्त के साथ)-बहवोऽस्य / 2. कार्तिकेय का विशेषण,-पाणिः, भत् (पुं०) कर्मणः शक्ताः वेणी०३, तस्योपकारे शक्तस्त्वं कि 1.बीधारी 2. कार्तिकेय का विशेषण, पातः शक्ति जीवन् किमुतान्यथा--त. 2. मजबूत, ताकतवर, क्षय, पराजय, --पूजकः शाक्त, --पूजा शक्ति की पूजा, शक्तिशाली 3. धनाढ्य, समृद्धिशाली-मनु० 1129 -वैकल्यम् शक्तिक्षय, दुर्बलता, अक्षमता,-हीन वि०) 4. सार्थक, अभिव्यञ्जक (शब्द) 5. चतुर, प्रज्ञावान् शक्तिहीन, निर्बल, बलरहित; नपुंसक,-हेतिकः भाला 6. प्रियवादी। धारी, बीधारी। शक्तिः (स्त्री०) [शक+क्तिन् ] 1. बल, योग्यता, शक्तितः (अव्य०) शक्ति+तसिल्] शक्ति के अनुसार, घारिता, सामर्थ्य, ऊर्जा, पराक्रम दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या --पंच० 11361, ज्ञाने मौन क्षमा | शक्न, शक्ल (वि.) [ शक् +न, क्ल वा मिष्टभाषी. शक्तौ रचु० 1122, इसी प्रकार यथाशक्ति, स्व प्रियवादा / शक्ति आदि, राज्यशक्ति (इस के तीन तत्त्व है | शक्य (सं० कृ०) [शक-यत्] 1. संभव, क्रियात्मक, 1. प्रभुशक्ति या प्रभावशक्ति 'राजा की अपनी प्रमुख किये जाने के योग्य, (प्रायः तुमुन्नत के साथ) शक्यो पदवी' 2. मन्त्रशक्ति 'सत्परामर्श की शक्ति' तथा बारयितुं जलेन हुतभुक भर्तृ० 2 / 11, रघु० 2149, 3. उत्साह शक्ति 'प्रेरकशक्ति') ... राज्यं नाम शक्ति- 54 2. कार्यान्वयन के योग्य 3. कार्यान्वयन में सरल त्रयायत्तम् दश०, त्रिसाधना शक्तिरिवार्थसञ्चयम् 4. प्रत्यक्ष कहा गया, अभिहित (शब्दार्थ आदि) --रघु० 3 / 13, 6633, 17163, शि० 2 / 26 -शक्योऽर्थोऽभिधया ज्ञेयः सा० द०११ 5. संभाव्य 2. रचनाशक्ति, काव्य शक्ति या प्रतिभा--शक्तिनि- (कभी-कभी शक्यम्' शब्द कर्मवा० में तुमुन्नन्त के साथ पुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात् काव्य० 1, दे० विधेय के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, उस समय तत्स्थानीय व्याख्या 3. देव की सक्रिय शक्ति, यह तमन्नत का वास्तविक अभिप्राय कर्त में होता है शक्ति देवपत्नी मानी जाती है, देवी, दिव्यता (इनकी एवं हि प्रणयवती सा शक्यमुपेक्षितं कुपिता गिनती विविध प्रकार से की जाती हैं कहीं आठ, कहीं .-मालवि० 3 / 22, शक्यं...अविरलमालिङ्गितं पवनः नौ और कहीं पचास तक)–स जयति परिणतः -.श.० 3 / 6, विभूतयः शक्यमवाप्तमूजिताः-सुभा०, शक्तिभिः शक्तिनाथ:-मा० 5 / 1, श० 7 / 35 4. एक भग०१८।११ / सम० अर्थः प्रत्यक्ष अभिहितार्थ / प्रकार का अस्त्र-शाक्तखण्डामाषतन गाण्डाावनाक्तम् शक्रः [शक्+रक्] 1. इन्द्र-एकः कृती शकुन्तेषु योऽन्यं वेणी०३, ततो विभेद पौलस्त्यः शक्त्या वक्षसि लक्ष्मणम् शक्रान्न याचते -- कुवल. 2. अर्जुन का वृक्ष 3. कुटज रघु० 12177 5. बर्डी, नेजा, शूल, भाला का पेड़ 4. उल्लू 5. ज्येष्ठा नक्षत्र 6. चौदह की 6. (न्या० में) किसी पदार्थ का उसके बोधक शब्द संख्या / सम-अशनः कुटज का वृक्ष, आख्यः उल्लू, से सम्बन्ध 7. कारण की अन्तहित शक्ति जिससे कार्य -आत्मजः 1. इन्द्र का पुत्र जयन्त 2. अर्जुन,--उत्थाकी उत्पत्ति होती है 8. (काव्य में) शब्दशक्ति या नम्,--उत्सवः भाद्रपदशक्ला द्वादशी को इन्द्र के शब्द को अर्थशक्ति (यह संख्या में तीन हैं . अभिधा, सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव, पर्व, गोपः लक्षणा, व्यञ्जना) सा० द० 11 9. अभिधाशक्ति, एक प्रकार का लाल कीड़ा, तु० इन्द्रगोप--जः, शब्दसङ्केत (विप० लक्षणा और व्यञ्जना), 10. स्त्री .-जातः कौवा,-जित, --भिद् (पं०) रावण के की जननेन्द्रिय, भग, शाक्तसंप्रदाय के अनुयाइयों द्वारा पुत्र मेघनाद के विशेषण,-- द्रुमः देवदारु का वृक्ष, पूजित शिवलिङ्ग की मूर्ति / सम० अर्धः उद्योग -धनुस्, शरासनम् इन्द्रधनुष, * ध्वजः इन्द्र के तथा श्रम के फलस्वरूप हांपना तथा शरीर का पसीने सम्मान में स्थापित झंडा,--- पर्यायः कुटज का वृक्ष, से तर होना, अपेक्ष, अपेक्षिन् (वि०) सामर्थ्य का ..---पाचपः 1. कुटज का पेड़ 2. देवदारु वृक्ष, प्रस्थ ध्यान रखने वाला,-कुण्ठनम् शक्ति को कुण्ठित करना, इन्द्रप्रस्थ, - भवनम्,-भुवनम्, बासः स्वर्ग, वैकुण्ठ, -ग्रह (वि०) 1. बल या अर्थ को धारण करने वाला .. मूर्धन् (नपुं०) शिरस् (नपुं०) बांबी, वल्मीक, 2. बीधारी, (-हः) बल या अर्थ का वोध अथवा ---लोकः इन्द्र का संसार,-वाहनम् बादल, शाखिन् शब्दशक्ति का ज्ञान 3. बर्डीधारी, भालाधारी 4. शिव (पुं०) कुटज का वृक्ष, - सारथिः इन्द्र का रथवान्, का विशेषण 5. कार्तिकेय का विशेषण,-ग्राहक (वि.) मातलि का विशेषण, सुतः 1. जयंत का विशेषण शब्द के अर्थ की स्थापना या निर्धारण करने वाला, 2. अर्जुन का विशेषण, 3. वालि का विशेषण / (-कः) कातिकेा का विशेषण, त्रयम् राज्यशक्ति शकाणी [शक+की, आनुक] इन्द्र की पत्नी, शची। के संघटक तीन तत्त्व -दे० शक्ति (2) ऊपर,--घर | शकिः [शक्-क्रिन्] 1. बादल 2. इन्द्र का वज्र 3. पहाड़ (वि.) मज़बूत, शक्तिशाली, (-रः) 1. बीधारी ! 4. हाथी / For Private and Personal Use Only Page #1007 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 998 ) NE (म्या होना, संकोच 12 डरना, स्वतः-भट्टि. शश्वरः [शक+वन्, र सांड, बैल, तु० शक्कर। आशंका, त्रास, आतंक-जातशङ्कर्मेनका नामाशह (भ्वा० आ० शङ्कते, शश्रित) 1. संदेह करना, अनि प्सरा: प्रेषिता - श० 1, कैकेयीशंकयेवाह--रघु० श्चित होना, संकोच करना, संदिग्ध होना - शके 1212, 13 / 42, मेघ० 69 5. आशा, प्रत्याशा जीवति वा न वा--राम 2. डरना, भय होना, प्रस्त 6. (भ्रान्त) विश्वास, आशंका, (मिथ्या) धारणाहोना (अपा० के साथ)-नाशङ्किष्ट विवस्वत:-भट्टि० स्रजमपि शिरस्यन्धः क्षिप्तां धुनोत्यहिशङ्कया-श० १५।३९-अशङ्कितेभ्यः शङ्केत शङ्कितेभ्यश्च सर्वतः 7 / 24, कुर्वन् वधूजनमनःसु शशाङ्कशङ्काम्-कि० -सुभा. 3. शंका करना, अविश्वास करना, भरोसा न 542, हरिततृणोद्गमशङ्कया- 5 / 38 / / करना-स्वर्दोषैर्भवति हि शङ्कितो मनुष्यः -- मृच्छ० / शान्ति (भू० क० कृ०)[शक+क्त] 1. सन्दिग्ध, आशंका४।२ 4. सोचना, विश्वास करना, उत्प्रेक्षा करना, युक्त, त्रस्त 2. शंकाल, आशंका करने वाला, अविकल्पना करना, संभव समझना, शंका करना, डरना श्वासपूर्ण 3. अनिश्चित, संदिग्ध 4. भयपूर्ण, सशंक, -- त्वय्यासन्ने नयनमुपरिस्पन्दि शङ्के मृगाक्ष्याः-मेघ० आतंकित (दे० शङ्क)। सम-चित्त,-मनस् (वि.) 95, नाहं पुनस्तथा त्वयि यथा हि मां शङ्कसे भीरु | भीरु, कातरहृदय 2. शंकाकुल, अविश्वासपूर्ण -- विक्रम० 3 / 14, भट्टि० 326, नै० 22 / 42 5. 3. संदिग्ध। आक्षेप करना, अपनी शंका या ऐतराज उठाना शनि (वि.)[शद्वा+इनि ] सन्देह करने वाला, शंका -अत्रेदं शक्यते, (बहुधा विवादास्पद भाषा में प्रयुक्त) करने वाला, डरने वाला, विश्वास करने वाला (समास -न च ब्रह्मणः प्रमाणान्तरगम्यत्वं शङ्कितुं शक्यम् के अंत में)-- त्वदुपावर्तनशङ्कि मे मन:-- रघु०८।५३, ---सर्व०, अभि , 1. शंका करना 2. संदिग्ध या अतिस्नेहः पापशडी श०४। अनिश्चयी होना-मनु० 6166, आ-, शङ्का करना, शकः शिडक--उण] 1.नेजा, बी,नकीली कील, शक्ति, भरोसा न करना, संदेह रखना - भट्टि० 2111 2. कटार, (प्रायः समास के अन्त में)-शोकशकुः 'शोकसन्देह करना, विश्वास करना, सोचना-आयशसे रूपी कटार' अर्थात् तीक्ष्ण एवं हृदयविदारक शोक यदग्नि तदिदं स्पर्शक्षम रलम-श० 1128, शि० 3172 -उत्तर० 3 / 35, रघु० 8 / 93 2. खूटा, खम्बा, भट्टि०६।६ मनु०७११८५ 3. डरना, आशंका करना, स्तम्भ, शूल या नोकदार छड़ 3. कील, मेख, खूटी भरतागमनं पुनः आशक्य-रघु०१२।२४, पंच० 113, - रघु०१२।९५ 4. बाण की तीखी नोक, काँटा या 92 4. आक्षेप करना, संदेह करना अत एव न आँकड़ा 5. (कटे हुए वृक्ष का) तना, पेड़ काट्छ, ब्रह्मशब्दस्य जात्याद्यर्थान्तरमाशङ्कितव्यम् - शारी. मुंडा पेड़ 6. घड़ी की सूई 7. बारह अंगुल की माप (तथा कुछ अन्य स्थानों पर), परि--1. शंका करना, 8. गज, मापने का डंडा 9. (ज्यो० में) लंबरेखा या विश्वास करना, उत्प्रेक्षा करना -- पत्रेऽपि संचारिणि ऊँचाई 10. सौ खरब या एक नील की संख्या प्राप्तं त्वां परिशकते--गीत०६ 2. संदेह करना, 11. पत्तों के रेशे 12. वल्मीक, बमी 13. पुरुष की संदेहशील होना 3. डरना, भयभीत होना, - रघु० जननेन्द्रिय 14. एक प्रकार की मछली, तनुका 8178, वि., 1. शंका करना, डरना, संदेहशील 15. राक्षस 16. विष 17. पाप 18. जलचर, विशेषया शंकालु होना,--विशङ्कसे भीरु यतोऽवधीरणाम कर कलहंस 19. शिव 20. साल का पेड़। सम० -- श० 3314, सतीमपि ज्ञातिकुलकसंश्रयां जनोऽन्यथा - कर्ण (वि०) जिसके कान शंकू के समान लंबे और भर्तृमती विशङ्कते-- 5.17 2. सत्ता का चिन्तन नुकीले हों, (णः) गधा-तरुः वृक्षः साल का पेड़ / करना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना विशकमाना शकुला [शक्+ उलच ] 1. एक प्रकार का चाकू या दो रमितं कयाऽपि जनार्दनं दृष्टवदेतदाह-गीत०७।। धार वाला नश्तर 2. सरौता। सम..-खंडः सरोते शङ्कः [ शङक-+अच् ] कर्षक बैल, (गाड़ी) खींचने से काटा हुआ टुकड़ा। वाला बैल / शब-खम् [शम्+ख ] 1. शंख, घोंघा--न श्वेतभावशङ्कर (वि०) (स्त्री० -- रा,-री) [शं सुखं करोति मुज्झति शङ्कः शिखिभुक्तमुक्तोऽपि., पंच०४।११०, . -कृ+अच् ] आनन्द या समृद्धि देने वाला, शुभ, शङ्खान् दध्मः पृथक पृथक्-भग० 1118 2. मस्तक मङ्गलमय,-र: 1. शिव 2. विख्यात आचार्य और की हड्डी, कु०७३३ 3. कनपटी की हड्डी 4. हाथी ग्रन्थप्रीता शंकराचार्य- दे० परि०२, री 1. शिव के दोनों दांतों के बीच का भाग 5. दस नील की की पत्नी पार्वती 2. मंजिष्ठा, मजीठ 3. शमीवृक्ष / संख्या 6. सैनिक ढोल या मारूबाजा 7. एक प्रकार शाका [शक+अ+टाप् ] 1: संदेह, अनिश्चितता का गन्धद्रव्य, नखी 8. कुबेर की नवनिधियों में 2. संकल्प-विकल्प, दुविधा 3. आशंका, अविश्वास, से एक 9. एक राक्षस जिसको विष्णु ने मार अनिष्टशंका, अपायशंका, अरिष्टशंका आदि 4. हर, / डाला था 10. एक स्मृतिकार (लिखित' के साथ For Private and Personal Use Only Page #1008 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाया। ( 999 ) संयुक्त नाम का उल्लेख)। सम०-- उदकम् शंख के प्रति प्रेम प्रदर्शित करता है परन्तु मन किसी दूसरी में डाला हुआ पानी, कारः, कारकः शंखकार नाम स्त्री में रमाया रहता है)-ध्रुवमस्मि शठः शचिस्मिते की एक वर्णसंकर जाति, ... चरी, चर्ची (मस्तक पर विदितः कैतववत्सलस्तव-रघु० 8 / 49, 19 / 31, लगाया गया) चन्दन का तिलक -चूर्णम् शंख को मालवि० 3 / 19, सा० द० 'शठ' की इस प्रकार परिपीस कर बनाया गया चूरा, बावः, द्रावकः एक भाषा देता है-शठोऽयमेकत्र बद्धभावो यः दर्शितबहिप्रकार का घोल जिसमें शंख भी घुल जाता है, ध्मः रनुरागो विप्रियमन्यत्र गूढमाचरति-७४ 3. मूह, -मा (पु०) शंख बजाने वाला, ध्वनिः शंख की बुद्ध 4. मध्यस्थ, बिवाचक 5. धतूरे का पौवा आवाज (कभी-कभी, परन्तु प्रायः आतंक या निराशा 6. आलसी पुरुष, सुस्त व्यक्ति, -ठम् 1. लोहा की द्योतक ध्वनि), प्रस्थः चन्द्रमा का कलंक,-भूत 2. केसर, जाफरान / (4) विष्णु का विशेषण, मुखः घड़ियाल, मगर, | शणम् | शण् अच् ] सन, पटसन / सम०--सूत्रम् 1. सन स्वनः शंखध्वनि / की बनी डोरी या रस्सी 2. सन का बना जाल शतकः, कम् [शंख-कन् ] 1. शंख 2. कनपटी की हड्डी, | 3. रस्सियाँ, डोरियाँ। कः (शङ्ख का बना) कड़ा-शि० 13141 / शण्डः [ शण्ड ---अच् 1. नपुंसक, हिजड़ा 2. सांड़ 3. छोड़ा शङ्कनकः, (-ख:) एक छोटा शंख या घोंघा। हुआ साँड़,-उम् संग्रह, समुच्चय--तु० षंड या शजिन् (पुं०) [शङ्ख + इनि] 1. समुद्र 2. विष्णु 3. शंख | खण्ड की। बजाने वाला। शण्ठः [शाम्यति ग्राम्यधर्मात-शम् --ढ ] 1. हिजड़ा, शलिनी शनि डीप्] काम शास्त्र के लेखकों के अनु- नपुंसक 2. अन्तःपुर में रहने वाला टहलुआ, पुरुषसेवक सार स्त्रियों के किये गये चार भेदों में से एक, रति- (हिजड़ों या बधिया किये गये पुरुषों में से चुना हुआ) मञ्जरी में लिखा है: दीर्घातिदीर्घनयना वरसुन्दरी 3. सांड़ 4. छोड़ा हुआ साँड़ 5. पागल आदमी। या कामोपभोगरसिका गुणशीलयुक्ता / रेखात्रयेण च शतम दिश दशतः परिमाणमस्य--दशन +त, श आदेश: विभपितकण्ठदेशा संभोगकेलिरसिका किल शङ्गिनीसा नि० साघु:] सौ की संख्या—निःस्वो वष्टि शतं 6, तु० चित्रिणी, हस्तिनी और पद्मिनी भी -शान्ति०२।६, शतमेकोऽपि संधसे प्रकारस्थो धनुर्धरः 2. प्रेतात्मा, अप्सरा, परी। - पंच०११२२९ ('शत' शब्द किसी भी लिंग के बहुशच (भ्वा० आ० शचते) बोलना, कहना, बतलाना। वचनांत संज्ञा शब्दों के साथ एक वचन में ही प्रयुक्त शचिः,-ची (स्त्री०) [शच+इन्, शचि+डी] इन्द्र की होता है-शतं नराः, शतं गावः, या शतं गृहाणि, इस पत्नी ... रघु० 3 / 13, 23 / सम-पतिः,-भर्तृ दशा में यह संख्यावाचक विशेषण माना जाता है, (पुं०) इन्द्र के विशेषण / परन्तु कभी कभी द्विवचन तथा बहुवचन में भी प्रयुक्त शञ्च (म्वा० आ० शञ्चते) जाना, हिलना-जुलना। होता है ... द्वे शते, दश शतानि आदि / संब० के संज्ञाशट् (म्वा० पर० शटति) 1. बीमार होना 2. बांटना, शब्द के साथ भी प्रयुक्त होता है--गवां शतम्, वियुक्त करना। समास के अन्त में यह अपरिवर्तित रूप में रह सकता शट (वि०) [ शट+अच् ] खट्टा, अम्ल, कसैला। है. भव भर्ता शरच्छतम्, या बदल कर 'शती' हो शटा [ शट-+टाप् ] संन्यासी के उलझे बाल-तु० जटा। जाता है यथा गोवर्धनाचार्य की कृति 'आर्यासप्तशती') शटिः (स्त्री०) [शट-इन् ] कचूर का पौधा, आमा 2. कोई भी बड़ी संख्या / सम० अक्षी 1. राषि, हल्दी / 2. दुर्गादेवी, अङ्गः गाड़ी, छकड़ा विशेषतः युवरथ, शठ् / (भ्वा० पर० शठति) 1. धोखा देना, ठगना, जाल- -- मनीकः बूढ़ा आदमी, --अरम्, आरम् इन्द्र का साजी करना 2. चोट मारना, मार डालना 3. कष्ट बच्च, - आनकम् श्मशान, कबरिस्तान, आमन्दः उठाना / 1. ब्रह्मा 2. विष्णु, कृष्ण 3. विष्णु का वाहन / / (चुरा० पर० शाठयति) 1. समाप्त करना 4. गौतम और अहिल्या का पुत्र, जनकराज का कुल2. असमाप्त छोड़ देना 3. जाना, हिलना-जुलना पुरोहित- उत्तर० 1116, आयुस् (वि०) सौ वर्ष 4. आलसी या सूस्त होना 5. धोखा देना, ठंगना तक जीवित रहने वाला या टिकने वाला, आवर्तः, (इस अर्थ में 'गठयति')। --आवतिन् (पुं०) विष्णु, ईशः 1. सौ के ऊपर शठ (वि.) [ग | अन् ] 1. चालाक, घोग्वेबाज, जाल- शासन करने वाला, 2. सौ गाँव का शासक मनु० साज, बेईमान, कपटी 2. दुष्ट, दुर्वत, ठः 1. बद- 7 / 115, -कुम्भः एक पहाड़ का नाम (कहते हैं कि माश, ठग, धूर्त, मक्कार मनु० 4 / 30, भग० यहाँ पर सोना पाया जाता है), ..भम् सोना,-कृत्यः 18 / 28 2. झूठा या धोखेबाज प्रेमी (जो एक स्त्री / (अव्य०) सौ गुणा, -कोटि (वि.) सौ धार वाला, For Private and Personal Use Only Page #1009 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1000 ) (टि:) इन्द्र का वज्र, (स्त्री०) एक अरब या सौ। ह्रदा 1. बिजली, कु०७४३९, मच्छ० 5 / 48 करोड़ की संख्या, ऋतुः इन्द्र का विशेषण --रघु० ! 2. इन्द्र का वज्र / 3 / 38, खण्डम् सोना,-गु (वि०) सौ गायों का शतक (वि०) [शत+कन्] 1. सौ 2. सौ से युक्त, कम् स्वामी, गुण, गुणित (वि०) सौगुणा बढ़ा हुआ 1. शताब्दी 2. सौ दलोकों का संग्रह जैसा कि नीति, -विक्रम० 3 / 22, प्रन्धिः (स्त्री) दूर्वा घास,-- नी वैराग्य और शृङ्गार', अर्थात् नीति आदि विषयक 1. एक प्रकार का शस्त्र जो अस्त्र की भांति प्रयक्त सौ श्लोकों का संग्रह। किया जाय (कुछ विद्वानों के मतानुसार यह एक | शततम (वि.) (स्त्री०-मी) [शत+तमप्] सौवाँ। प्रकार का राकेट है, परन्तु दूसरों के भतानुसार यह | शतधा (अव्य०) |शत-धाच] 1. सौ तरह से 2. सौ एक प्रकार का विशाल पत्थर है जिसमें लोहे की | भागों में या सौ टुकड़ों में 3. सौगना। शलाकाएं जड़ी हुई हैं यह लम्बाई में 'चार ताल' है | शतशस् (अव्य०) [शत+शस्] 1. सौ सौ करके 2. सौ -शतघ्नी च चतुस्ताला लोहकण्टकसंचिता, या, अयः बार -- शतशः शपे-प्रबो० 3, मनु० 12158 सौगुना, कण्टकसंछन्ना शतघ्नी महती शिला) रघु० 12095 3. सौ तरह से, विविध प्रकार से. नाना प्रकार से 2. बिच्छु की मादा 3. गले का एक रोग जिह्नः / -भग० 115 शिव का विशेषण,-तारका,-भिषज्,-भिषा (स्त्री०) | शतिक (वि.) (स्त्री० की), शत्य (वि.) [शत+ठन् सौ तारिकाओं का पुंज शतभिषा नामक नक्षत्र,—दला | यत् वा] 1. सौ से युक्त --याज्ञ० 2 / 208 2. सौ से सफ़ेद गुलाब,-द्रः (स्त्री०) पंजाब की एक नदी सम्बन्ध रखने वाला 3. सौ से प्रभावित 4. सौ में जिसका वर्तमान नाम सतलज है,धामन् (0) मोल लिया हुआ 5. सौ से बदला किया हुआ 6. प्रतिविष्णु का विशेषण, धार (वि.) सौ घारों वाला, शत शुल्क या ब्याज देने वाला 7. सौ का सूचक / (-रम्) इन्द्र का वच,-धृतिः 1. इन्द्र का विशेषण, | शतिन् (वि०) [शत+इनि] 1. सौगुणा 2. असंख्य-पुं० 2. ब्रह्मा का विशेषण 3. स्वर्ग,--पत्र: 1. मोर | सौ का स्वामी निःस्वो वष्टि शतं शती दशशतं 2. सारस 3. खुट-बढ़ई पक्षी, 4. तोता या तोते की शान्ति० 216, पंच० 5 / 82 / जाति, (त्रा) स्त्री (त्रम्) कमल-आवृत्तवृन्तशत- शत्रिः [शद्|-त्रिप्] हाथी। पत्रनिभं (आननम् ) वहन्त्या-मा० 1 / 29, °योनिः / शत्रः | शद्---त्रुन] 1. परास्त करने वाला, विनाशक, ब्रह्मा का विशेषण,--कम्पेन मूर्ध्नः शतपत्रयोनि (संभाव- विजेता 2. दुश्मन, वैरी, प्रतिपक्षी --क्षमा शत्रौ च यामास) कु० ७.३६,-पत्रकः खुटबढ़ई,-पद, पाद् मित्रे च यतीनामेव भूषणम् -सुभा० 3. राजनीतिक (वि०) सौ पैरों वाला, पदी कानखजूरा, -- पद्मम् प्रतिद्वन्द्वी, पड़ौस का प्रतिद्वन्द्वी राजा। सम०, उप1. वह कमल जिसमें सौ पंखड़ियाँ हों 2. श्वेत कमल, जापः दुश्मन की गुपचुप कानाफूसी, शत्रु का विश्वा----पर्वन् (पु.) बांस (स्त्री०) 1. आश्विन मास की सघाती प्रस्ताव, कर्षण, दमन, निबर्हण (वि.) पूर्णिमा 2. दुर्वा घास 3. कटक का पौधा, ईशः शुक्र, शत्रु का दमन करने वाला, शत्रु को जीतने वाला या ग्रह,--भीरः (स्त्री०) अरबदेश की चमेली, मख, शत्रु को नष्ट करने वाला,---घ्नः 'शत्रुओं को नष्ट --मन्युः 1. इन्द्र के दिशेषण, कि० 2 / 23, भट्टि. करने वाला' सुमित्रा का पुत्र होने के कारण लक्ष्मण 115, कु० 2 / 64, रघु० 9 / 13 2. उल्ल, मुख का यमलभ्राता, राम का भाई। इसने 'लवण' (वि०) 1. जिसके सौ रास्ते हों 2. सौ द्वार या मुंह नामक राक्षस का वध किया, मथुरा को बसाया। वाला-विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमख: सुबाहु और बहुश्रुत नाम के इसके दो पुत्र थे दे० --भर्त० 2 / 10, (यहाँ शब्द का (1) अर्थ भी है।। रघु०१५,-पक्षः 1. शत्रु का पक्ष या दल 2. प्रति(-खम्) सौ रास्ते या द्वार, (-खो) बुहारी, झाड़ , / पक्षी, विरोधी, विनाशनः शिव का विशेषण,-हत्या -मूला दूर्वा घास, दूबड़ा, -यज्वन् (पुं०) इन्द्र का शत्रु की हत्या,-हन् (वि०) शत्रु का वध करने वाला। विशेषण, –यष्टिकः सौ लड़ियों का हार, रूपा ब्रह्मा | शत्रुञ्जयः [शत्रु+जि+खच्, मम्] 1. हाथी 2 एक पहाड़ की एक पुत्री (जो ब्रह्मा की पत्नी भी मानी जाती का नाम, गिरनार पर्वत / है, अपने पिता के साथ इस व्यभिचार के परिणाम | शत्रुन्तपः (वि०) [शत्रु / तप्+-खच्, मुम्] अपने शत्रु को स्वरूप उससे स्वायम्भुव मनु का जन्म हुआ), वर्षम् | परास्त करने वाला या नष्ट करने वाला। सौ बरस, शताब्दी, देधिन् (पुं०) एक प्रकार का | शत्वरी (स्त्री०) रात। खटमिठा शाक, चोका,-सहस्रम् 1. सौ हजार 2. कई | शद् i (भ्वा० पर० (परन्तु सार्वधातुक लकारों में आ०) हजार अर्थात् एक बड़ी संख्या,-साहस्र (वि०) 1. सौ ---शीयते. शन्न) 1. पतन होना, नष्ट होना, मुझाना, कुम्हलाना 2. जाना-प्रेर० (शादयति-ते) 1. पहुँचाना, For Private and Personal Use Only Page #1010 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठेलना 2. शातयति-ते (क) गिराना, नीचे फेंक देना, / सीताय स्मरमोहितः - भट्टि० 8174, 33, कभी कभी काट डालना शि० 14180,. 15 / 24 (ख) वध 'शप' का सजातीय कर्म के अनुसार प्रयोग होता करना, नष्ट करना / है -सहस्रशोऽसौ शपथानशप्यत्-भट्टि० 3 / 32 3. ii (भ्वा० पर० शदति) जाना (प्रायः 'आ' पूर्वक) / कलंकित करना, धमकाना, बुरा-भला कहना, गाली शवः [शद् +अच् खाद्य, शाकभाजी (फल मूल आदि)। देना (संप्र० के साथ या स्वतंत्ररूप से)-द्विषम्यश्चाशविः शिद्+क्रिन] 1. हाथी 2. बादल 3. अर्जुन,-विः / शपस्तथा-भटि१७१४, प्रतिवाचमदत्त केशवः (स्त्री०) बिजली। शपमानाय न चेदिभूभुजे - शि० 4 / 25, -प्रेर० शवः ( वि०) [शद्+रु] 1. जाने वाला, गतिशील (शापयति ते) शपथद्वारा बाँध लेना, शपथपूर्वक प्रतिज्ञा 2. पतनशील, नश्वर, क्षय होने वाला। करना-शापितोऽसि गोब्राह्मणकाम्यया - मृच्छ०३, शनकैः (अव्य०) [शनैः + अकच्] शनैः शनैः दे० शनैः।। मा०८। शनिः [शो+अनि किच्च] 1. शनिग्रह (सूर्य का पुत्र, जो शपः [शप्+अच् ] 1. अभिशाप, सरापना, कोसना काले रंग का या काले वस्त्रों से सज्जित बतलाया 2. शपथ, सौगन्ध / गया है) 2. शनिवार 3. शिव / सम-जम् काली शपथः [ शप्+अथन् ] 1. कोसना 2. अभिशाप, आक्रोश, मिर्च,--प्रदोषः शिव की (सांध्यकालीन) पूजा जो फटकारा 3. सौगन्ध, कसम खाना, शपथ लेना या शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को शनिवार आ पड़ने पर दिलवाना, शपथोक्ति-आमोदो न हि कस्तूर्याः की जाती है,--प्रियम् नीलमणि,--वारः,-वासरः शपथेनानभाव्यते-भामि० 1120, मनु० 8 / 109 शनिवार का दिन / 4. शपथपूर्वक अनुरोध, सौगन्ध से बांधना-मा० 312 / शनस् (अव्य०) [ शण+ईस्, पृषो० नुक्] 1. आहिस्ता शपनम् [शप् + ल्युट् ] दे० 'शपथ'। से, धीमे, चुपचाप 2. यथाक्रम क्रमशः, थोड़ा थोड़ा | शप्त (भू० क० कृ०) [शप्+क्त] 1. अभिशप्त 2. करके धर्म-सञ्चिनुयाच्छन:-कु०३।५९, मनु०३।२१७ जिसने सौगन्ध खाली है 3. बुरा भला कहा गया, 3. उत्तरोत्तर, उपयुक्त क्रम में मनु० 1115, | दुर्वचन कहा गया (दे० शा ) / 4. मदुता से, ‘नरमी से 5. सूस्ती के साथ, आलस्य- शफः, -फम् [शप्+अच, पृषो० पस्य फ:] 1. सुम पूर्वक शनैः शनैः आहिस्ता से, आहिस्ता आहिस्ता। 2. वृक्ष की जड़। सम०-चर (वि.) शनैः शनैः घूमने वाला या शफरः (स्त्री० --री) [शफ राति-रा+क] एक चलने वाला--शनैश्चराभ्यां पादाभ्यां रेजे ग्रहमयीव प्रकार की छोटी चमकीली मछली-मोघीकर्त सा-भर्तृ० 1 / 17, (यहाँ इसका अर्थ 'शनि' भी चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि-मेघ० 40, शि० 8 // 24 // है) (----रः) शनिग्रह / / कु० 4 / 39 / सम०-अधिपः 'इलीश' नामक मछली। शन्तनुः [ शं मंगलात्मका तनुर्यस्य-ब० स०] एक शब (व) रः [शव्+अरन् ] 1. पहाड़ी, असभ्य, भील, चन्द्रबंशी राजा जिसने गंगा व सत्यवती से विवाह जंगली---राजन् गुंजाफलानां सज इति शबरा नैव किया। गंगा का पुत्र भीष्म था, तथा सत्यवती हारं हरन्ति -काव्य०१० 2. शिव 3. हाथ 4. जल के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुए। 5. एक शास्त्र विशेष या धार्मिक पुस्तक 6. मीमांसा भीष्म आजन्म ब्रह्मचारी रहा, तथा इसके छोटे भाई के प्रसिद्ध भाष्यकार, -री 1. भीलनी 2. राम की निस्सन्तान स्वर्ग सिधारे, तु० 'भीष्म'।. अनन्य भवत एक भीलनी। सम० आलयःजंगली, शप (भ्वा०, दिवा० उभ० शपति ते, शप्यति ते / पहाड़ियों और भीलों का निवासस्थान,--लोध्र जंगली शप्त) 1. अभिशाप देना, कोसना अशपद्भव लोघ्र का वृक्ष। . मानुषीति ताम्-रघु० 8 / 80, सोऽभूत् परासुरथ शब (व) ल (वि०) [शप+अल, बश्च | 1. धब्वेदार, भूमिपति शशाप (वृद्धः) 9 / 78, 1177 2. शपथ रंग-बिरंगा, चितकबरा-रघु० 5 / 44, 13 / 56, लेना, कसम उठाना, शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करना, सौ- महावीर० 7 / 26 2. नानारूप, अनेक भागों में गंध खाना (प्रायः प्रतिज्ञात मे संप्र० तथा प्रतिज्ञाता विभक्त, -- लः नानाप्रकार का रंग,-ला,-ली के लिए करण० प्रयक्त होता है)-भरतेनात्मना चाहं 1. धब्बेदार या चितकबरी गाय 2. कामधेनु,-लम् शपे ते मनुजाधिप। यथा नान्येन तुष्येयमते राम पानी। विवासनात् राम०, कर्मरहित प्रयोग होने पर | शब्द (चरा० उभ० शब्दयति-ते, शब्दित) 1. ध्वनि करना, शपथवस्तु में करण तथा जिसके द्वारा शपथ की शोर मचाना 2. बोलना, बुलाना, आवाज़ देना जाय उशमें संप्र. प्रयुक्त होता है - सत्यं शपामि ते --विततमदूकरायः शब्दयन्त्या वयोभिः परिपतति पादपकजस्पर्शन-का०, घट० 22, अशप्त निहवानोसो | दिवोऽङ्के हेलया बालसूर्यः-शि०१११४७ 3. नाम For Private and Personal Use Only Page #1011 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेना, पुकारना त एव सागरिकेति शब्द्यते रत्न० / ही अदृश्य निशाना लगाने वाला, शब्दवेधी, निशाना 4, अभि-, नाम रखना,प्र , व्याख्या करना, सम् , लगाने वाला-रधु० 9 / 73, प्रमाणम् शाब्दिक या बुलाना। मौखिक प्रमाण, बोधः मौखिक साक्ष्य से प्राप्त ज्ञान शब्दः [ शब्द घश ] 1. ध्वनि (श्रोत्रेन्द्रिय का विषय, . ब्रह्मन (नपं०) 1. वेद 2. शब्दों में निहित आ आकाशगुण, --- रघु० 13 / 1 2. आवाज, कलरव ध्यात्मिक ज्ञान, आत्मा-या परमात्मसम्बन्धी ज्ञान (पक्षियों का या मनुष्यादिकों का), कोलाहल, --वि- --- उत्तर० 217 20 3. शब्द का गुण, 'स्फोट', श्वासोपगमादभिन्नगतयः शब्दं सहन्ते मगाः श० . भैदिन् (वि०) शब्दवेधी निशान लगाने वाला 1214, भग० 1313, श० 3 / 1, मनु० 4 / 113, कु० (पुं०) 1: अर्जुन का विशेषण 2. गुदा 3. एक प्रकार 1145, 3. बाजे की आवाज़ -बाद्यशब्दः पंच. का बाण, योनिः (स्त्री०) धातु, मूल शब्द,--विद्या, 2 / 24, कु० 1145 4. वचन, ध्वनि, सार्थक ध्वनि, - शासनम्, शास्त्रम् शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण शब्द(परिभाषा के लिए दे० महाभाष्य की प्रस्तावमा) -अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रम्-पंच० 1, शि०२।११२, --- एकः शब्दः सम्यगधीतः सम्यक् प्रयुक्तः स्वर्गे लोके 14 / 24, विरोधः (शास्त्र में) शब्दों का विरोध, कामघग्भवति, इसी प्रकार 'शब्दार्थों' 5. विकारीशब्द, -- विशेषः ध्वनि का एक भेद,-- वत्तिः (स्त्री०) संज्ञा, प्रातिपदिक 6. उपाधि, विशेषण—यस्यार्थयुक्तं साहित्य शास्त्र में शब्द का प्रयोग, वेधिन (वि०) गिरिराजशब्दं कुर्वन्ति बालव्यजनश्चमर्य:-कु० 113, ध्वनि सुनकर ही शब्दवेधी निशाना लगाने वाला श० 2 / 14, नृपेण चक्रे युवराजशब्दभाक् रघु० दे० 'शब्दपातिन्' (पुं०) 1. अर्जुन का विशेषण 3 / 35, 2 / 53, 64, 3 / 49, 5 / 22, 18641, विक्रम 2. एक प्रकार का बाण, -शक्तिः (स्त्री०) शब्द की 11 7. नाम, केवल नाम जैसा कि 'शब्दपति' में अभिव्यञ्जक शक्ति, शब्द की सार्थकता-दे० शक्ति, 8. शाब्दिक प्रामाणिकता (नैयायिकों के द्वारा 'शब्द -- शुद्धिः (स्त्री०) 1. शब्दों की पवित्रता 2. शब्दों प्रमाण' माना जाता है)। सम० अतीत (वि०) का शुद्ध प्रयोग,-श्लेषः शब्दों में अनेकार्थता, द्वयर्थकता शब्दों की शक्ति से परे, अमिर्वचनीय, - अधिष्ठानम (यह अलङ्कार 'अर्थश्लेष' से इसलिए भिन्न है कि कान, .. अध्याहारः (शब्दन्यूनता को पूरा करने के इसके संघटक शब्दों को हटाकर समानार्थक शब्दों लिए) शब्दपूर्ति,-अनुशासनम् शब्दों का शास्त्र अर्थात् को रख देने मात्र से श्लिष्टता नष्ट हो जाती है, व्याकरण, * अर्यः शब्द के अर्थ (था-द्वि०व०) शब्द जबकि 'अर्थश्लेष' अपरिवर्तित ही रहता है - शब्दऔर उसका अर्थ अदोषी शब्दार्थों-काव्य० 1, परिवृत्ति सहत्वमर्थश्लेषः),-संग्रहः शब्दकोश, शब्दावली, —अलङ्कारः वह अलङ्कार जो अपने शब्द सौन्दर्य - सौष्ठवम् शब्दों का लालित्य, ललित और प्राञ्जल पर निर्भर करता है, तथा जब उसी अर्थ को प्रकट शैली सौकर्यम् अभिव्यक्ति की सरलता। करने वाला दूसरा शब्द रख दिया जाता है तो उसका शब्दन (वि०) शब्द+ ल्युट्] 1.शब्द करनेवाला, ध्वननशील सौन्दर्य लुप्त हो जाता है (विप० अर्थालङ्कार) उदा० ... नम् ध्वनन, कोलाहल करना, शब्द करना 2. दे० काव्य० 9, आख्यय (वि०) शब्दों में भेजा आवाज, कोलाहल 3. पुकारना, बुलाना 4. नाम जाने वाला समाचार - मेघ०.१०३ (यम्) मौखिक लेना। या शाब्दिक सन्देश, .. आडम्बरः वाग्जाल, वाक्प्रपंच, | शब्दायते (नामधात् आ०) 1 कोलाहल करना, शोर शब्दाधिक्य, अतिशयोक्तिपूर्ण शब्द, आदि (बि०) करना -- शब्दायन्ते मधुरमनिल: कीचकाः पूर्यमाणाः 'शब्द' से आरम्भ होने वाले (ज्ञान के विषय) - रघ० -- मेघ० 56 2. क्रन्दन करना, दहाड़ना, चिल्लाना, 10125, कोशः अभिधान, शब्दसंग्रह, गत (वि०) ची ची करना भट्टि० 5 / 52, 17 / 91 3. बुलाना, शब्द के अन्दर रहने वाला, प्रहः 1. शब्द पकड़ना पुकारना.. एते हस्तिनापुरगामिन ऋषयः शम्दायन्ते 2. कान, चातुर्यम् शैली की निपुणता, वाकपटुता, ---श० 4, मुद्रा० 1, मच्छ० 1, वेणी० 3 / ...चित्रम् कविता की अन्तिम श्रेणी के दो उपभेदों शब्दित (भू० क० कृ०) [शब्द+क्त] 1. ध्वनित, आवाज में से एक (अवर या अधम) (इस प्रकार के काव्य निकाली गई, (वाद्ययंत्रादिक) बजाया गया 2. कहा में सौन्दर्य उन शब्दों के प्रयोग में है जो कर्णमधर गया, उच्चारण किया गया 3.बुलाया गया, पुकारा होते हैं, 'चित्र' के अन्तर्गत दिया हुवा उदाहरण गया नाम रक्खा गया, अभिहित / देखो), चोरः 'शब्दचोर' साहित्यचोर, तन्मात्रम् | शम् (अन्य०) [शम्+क्विप्] कल्याण, आनन्द. समृद्धि, ध्वनि का सूक्ष्म तत्व, --पतिः नाममात्र स्वामी, नाम स्वास्थ्य को द्योतन करने वाला अव्यय, आशीर्वाद का प्रभु-नन शब्दपतिः क्षितेरहं त्वयि मे भावनिबन्धना या मंगल कामना प्रकट करने के लिए प्रयुक्त (संप्र. रति:-रघु० 8152, पातिन् (वि०) शब्द सुन कर या संबं० के साथ) शं देवदत्ताय देवदत्तस्य वा, For Private and Personal Use Only Page #1012 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1003 ) (आधुनिक पत्रों में शुभ समाप्तिसूचक प्रयोग--इति ] शमः [ शम्+घञ्] 1. मूकता, शान्ति, धैर्य 2. विश्राम, शम्)। सम०-कर दे० धातु के नीचे, ताति ठहराव, आराम, निवृत्ति 3. वासनाओं पर प्रतिबन्ध (वि०) आनन्द प्रदान करने वाला, मंगलमय, शुभ या अभाव, मानसिक शान्ति, विरक्ति-शमरतेऽमर -पाकः 1. लाख, महावर, लाल रंग 2. पकाना, तेजसि पार्थिवे रघु० 9 / 4, कि० 10110, 16148, परिपक्व करना,----भु दे० धातु के नीचे। शि० 2 / 94 श० 2 / 7, भग० 1014 4. निराकरण, शम् / (दिवा० पर० शाम्यन्ति, शान्त) 1. शान्त होना, लघुकरण, उन्नयन, सन्तोषीकरण, (शोक, प्यास, चुप होना, संतुष्ट होना, प्रसन्न होना शाम्यत्प्रत्यप- भूख आदि का) प्रशमन-शममुपयातु ममापि चित्तकारेण नोपकारेण दुर्जनः कु० 2 / 40, रघु० 7 / 3, दाहः - उत्तर० 68, शममेष्यति मम शोकः कथं शान्तो लवः-उत्तर० 67 2.थमना, ठहरना, समाप्त नु वत्से - श० 4 / 20 5. शान्ति, जैसा कि 'शमोपहोना-चिन्ता शशाम सकलाऽपि सरारुहाणाम् न्यास' वेणी०५ 6. (संसार की समस्त भ्रान्तियों व -भामि० 37, न जातु कामः कामानामपभोगेन आसक्तियों से) मोक्ष 7.हाथ / सम० ... अन्तकः शाम्यति - मनु० 2 / 94, 'सन्तुष्ट नहीं होता' 3. कामदेव (मानसिक शान्ति को नष्ट करने वाला), शांत होना, बुझना--शशाम वृष्ट्यापि विना दवाग्निः -पर (वि०) शान्त, मूक, बिषयविरागी। रघु०....२।१४, उत्तर० 5 / 7 4. काम तमाम करना, | शमयः [ शम्+अथच ] 1. शान्ति, स्थिरता, विशेषतः नष्ट करना, मार डालना (इसी अर्थ में ऋया० भी) मानसिक शान्ति, आवेशाभाव 2. परामर्शदाता, -प्रेर० (शमयति-ते, परन्तु देखना अर्थ में 'शामयति मन्त्री / - ते' दे० शम् ) 1. प्रसन्न करना, उपशमन | शमन (वि.) (स्त्री०-नी) [शम्+णिच् + ल्युट् ] करना, शान्त करना, धीरज देना, सांत्वना देना, शमन करने वाला, दमन करने वाला, वशीभूत करने ढाढस बंधाना --क: शीतलैः शमयिता वचनस्तवाधिम वाला आदि,नम् 1. प्रसन्न करना, निराकरण ---भामि० 3 / 1, श० 5 / 7 2. अन्त करना, रोकना करना, ढाढस बंधाना जीतना, उन्नयन करना -कु० 2056 3. हटाना, परे करना-प्रतिकूलं 2. स्थैर्य, शान्ति 3. अन्त, ठहराव, समाप्ति, विनाश देवं शमयितुम् - श०१. दमन करना, पालतू 4. चोट पहुँचाना, घायल करना 5. यज्ञ के लिए पशुवध बनाना, हराना, छीनना, परास्त करना शमयति करना, पशुमेध 6. निगल जाना, चबाना,--न: 1. एक गजानन्यान् गन्धद्विपः कलभोऽपि सन्-विक्रम०५।१८, प्रकार का हरिण, बारहसिंगा 2. मृत्यु का देवता, रघु० 9 / 12, 11159 6. मार डालना, नष्ट करना, यम। सम० - स्वभू (स्त्री०) 'यमस्वसा' यमुना वध करता-वेणी० 5 / 5 6. शान्त करना, बुझाना नदी का विशेषण / मेघ० 53, हि० 1188 7. त्याग देना, रुकना, | शमनी [शमन+डीप् ] रात। सम० --- सबः (षदः) थमना, उप----, 1. शान्त करना-भट्टि० 2015 राक्षस, पिशाच, भूत-प्रेत / 2. 'यमना, ठहरना, बुझना 3. हट जाना, बोलना शमलम् [ शम्+कलच् ] 1. मल, लीद, विष्ठा 2. अपबन्द होना परे रहना, बुझ जाना,--प्रशान्तं पावका- वित्रता, गाद, तलौंछ 3. पाप, नैतिक मलिनता / स्त्रम् उत्तर० 6 5. मुनिा , कुम्हलाना (प्रेर०) | शमित (भू० क००) [शम्+णिच्+क्त ] 1. प्रसन्न 1. सांत्वना देना, प्रसन्न करना, शान्त करना,--मनु० किया गया, निराकृत, ढाढस बंधाया गया, शान्त 8 / 391 2. दूर करना, बुझाना, शीतल करना, दबा 2. धीमा किया गया, चिकित्सा की गई, भारविमक्त देना-त्वामासारप्रशमितजनोपप्लवम् -.. मेघ० 17 किया गया 3. विश्राम दिया गया 4. शान्त, सौम्य 3. हटाना, अन्त करना-तम् अपचार) अन्विष्यं परिगित किया गया, मदु किया गया। प्रशमयेत्---रघु० 15 / 47 6. जीतना, परास्त करना, शमिन् (वि.) [शम+इनि ] 1. सौम्य, शान्त, प्रशान्त वशीभूत करना-मृच्छ० 10160 . प्रतिष्ठित 2. जिसने अपने आवेशों का दमन कर लिया है, होना, समंजन करना, स्वस्थचित्त होना प्रशमयसि आत्मनियंत्रित - भट्टि० 7 / 5 / / विवादं कल्पसे रक्षणाय--श० 5 / 8, सम् -- , 1. शान्त | शमी (शमि) [ शम्+इन्, ङीप् वा ] 1. एक वृक्ष (कहा करना 2. निराकृत होना, बझना, लुप्त होना-सत्त्वं जाता है कि इसमें आग रहती है)- अग्निगर्भा शमीसंशाम्यतीव मे.-भट्रि० 18128 3. हट जाना। मिव श० 4 / 2, मनु० 8 / 247, याज्ञ. 11302, ii (चुरा० उभ० शामयति-ते) 1. देखना, निगाह 2. फली, छीमी, सेम। सम० - गर्भ: 1. अग्नि का डालना, निरीक्षण करना 2. बतलाना, प्रदर्शन करना, विशेषण 2. ब्राह्मण, अग्निहोत्री ब्राह्मण, -धान्यम नि , 1. देखना, अवलोकन करना 2. सुनना, कान फलियों में उत्पन्न या दाल आदि, द्विदलीय अन्न / देना निशामय प्रियसखि–मा०७। शम्पा [शम्+पा+क ] बिजली / For Private and Personal Use Only Page #1013 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णु भगवशी आप हम शासम ( 1004 ) शम् i (भ्वा० पर० शम्बति) जाना, हिलना-जुलना / / शयय (वि.) [सी+अथच् ] निद्राल, सोया हुआ,पः ii (चुरा० पर० शम्बयति) संचय करना, ढेर | 1. मृत्यु 2. एक प्रकार का सांप, अजगर 3. मछली / लगाना। शयनम् [शी+ल्युट् ] 1. सोना, निद्रा, लेटना 2. बिस्तरा, शम्ब (व) [ शम्ब्+अच् ] 1. प्रसन्न, भाग्यशाली शय्या-शयनस्थो न भुजीत . मनु० 4 / 74, रखु. 2.बेचारा, अभागा,-:1. इन्द्र का वध 2. मूसली रघु० 1195 विक्रम० 3 / 10 3. मैथुन, संभोग / सम. का लोहे का बना सिर 3. लोहे की जजीर जो कमर --अ (आ) गार:-रम्,-गहम् शयनकक्ष, सोने के चारों ओर पहनी जाय 4. नियमित रूप से हल का कमरा,-एकादशी आषाढ़ शुक्ला एकादशी (इस चलाना 5. जुते हुए खेत में हल चलाना (शंबाकू दिन विष्णु भगवान् चार मास तक विश्राम के लिए दोबारा हल चलाना)। .. लेट जाते हैं), सखी एक शय्या पर साथ सोने वाली शम्बरः [ शम्ब्+अरच् ] - 1. एक राक्षस का नाम जिसे सहेली- स्थानम् सोने का कमरा, शयनकक्ष। / प्रद्युम्न ने मार गिराया था 2. पहाड़ 3. एक प्रकार | शयनीयम् [शी+अनीयर 1 बिस्तरा, शय्या,-परिशून्यं का हरिण 4. एक प्रकार की मछली 5. युद्ध,--रम् शयनीयमद्य मे-रघु० 8166 कान्तासखस्य शयनीय 1. जल 2. बादल 3. दौलत 4. संस्कार या कोई शिलातलं ते-उत्तर० 3 / 21 (इसी अर्थ में शयनीयधार्मिक अनुष्ठान / सम०-अरिः, सूदनः प्रद्युम्न या कामदेव के विशेषण, * असुरः शंबर नामक राक्षस / शयानकः [शी+शानच्+कन् ] 1. गिरगिट 2. एक शम्बरी [ शम्बर+हीष् ] 1. माया, जादू 2. स्त्री जादू- सांप, अजगर / गरनी। शयाल (वि.) [शी+आलच ] निद्रालु, तन्द्रालु, शम्बलः,-लम् | शम्+कलच ] 1. तट, किनारा आलसी - शि० २८०,-लुः 1. एक प्रकार का 2. पाथेय, मांर्गव्यय, राहखर्च 3. स्पर्धा, ईा। साँप, अजगर 2. कुत्ता 3. गीदड़ / शम्बली [ शम्बल+कीष् ] कुटनी।। | शयित (भू० क० कृ०) [शी कर्तरि क्त ] 1. सोने वाला, शम्बु, शम्बुकः, शम्बुक्क: [शम्+उण, शम्बु+कन् ]] विश्रान्त, सुप्त 2. लेटा हुआ। द्विकोषीय घोंपा। शयः [शी+उ] बड़ा साँप, अजगर / शम्बकः [शम्बू+ऊकः] 1. द्विकोषीय घोंघा 2. शंख | शय्या [शी आधारे क्यप्+टाप् ] 1. बिस्तरा, बिछौना "3. घोंघा 4. हाथी की सुंड की नोक 5. एक शुद्र (इसे ----शय्या भूमितलम-शान्ति० 4 / 9, मही रम्या राम ने उसकी जाति के लिए वर्जित साधना का अभ्यास शम्या ... भर्तृ० 3179, रघु० 5 / 66 2. बाँधना, नत्थी करने के कारण मार डाला था, दे० उत्तर०२, तथा करना। सम० --- अध्यक्षः, पालः राजा के शयनरघु० 15 / कक्ष का अधीक्षक,-उत्सङ्गः पलंग का एक पार्श्व, शम्भः [शम्+भ] 1. प्रसन्न मनुष्य 2. इन्द्र का वज। / -गत (वि.) 1. पलंग पर लेटा हुमा 2. रोगी, शम्भली [शम्भल+ङीष् ] दूती, कुटनी।। -- गृहम् शयन-कक्ष,- रघु०१६।४। / शम्भु (वि.) [शम्+भू+] आनन्द देने वाला, | शरः [श+अच्] 1. बाण, तीर-क्व च निशितनिपाता समृद्धि प्रदान करने वाला-भुः 1. शिव 2. ब्रह्मा वज्रसाराः शरास्ते - श०१।१० 2. एक प्रकार का 3. ऋषि, श्रद्धेय पुरुष 4. एक प्रकार का सिद्ध / सफेद सरकंडा या घास-शरकाण्डपाण्डुगण्डस्थला सम० -तनयः - नन्दनः,--सुतः कार्तिकेय या गणेश --मालवि० 38, मुखेन सीता शरपाण्डरेण - रघु० के विशेषण, - प्रिया 1. दुर्गा 2. आमल की,-वल्लभम् 14126, शि० 1230 3. कुछ जमे हुए दूध की श्वेत कमल। मलाई, मलाई 4. चोट, क्षति, घाव 5. पाँच की शम्या [शम् +यत्+टाप् ] 1. लकड़ी की छड़ी या थणी संख्या,-रम् पानी। सम० - अपचः बढ़िया तीर, 2. डंडा 3. जूए की कील, सिलम 4. एक प्रकार की .-... अभ्यासः तीरंदाजी,---असनम्,--आस्यम् धनुष, झाँझ 5. यज्ञोय पात्र / कमान --रघु० 3.52, कु० 3164, आक्षेपः तीरों शय (वि.) (स्त्री०-या, यी) [शी-+-अच् ] लेटने की वर्षा,-आरोप,- आवापः धनुष,-आश्रयः तरकस, वाला, सोने वाला, (प्रायः समास के अन्त में) --आहत (वि.)जिसके तीर लगा हो,- ईषिका बाण, -रात्रिजागरपरो दिवाशयः-रघु० 19 / 34, इसी प्रकार इष्टः आम का वृक्ष, .. ओघः बाणों का समूह, उत्तानशय, पावशय, वृक्षेशय, विलेशय आदि,-य: बाणवर्षा-काण्डः 1. नरकूल की डंडी 2. बाण की 1. नींद 2. बिस्तरा, शय्या 3. हाथ 4. साँप विशेषतः / लकड़ी, - घात: बाण से लक्ष्यवेध करना, तीरंदाजी, अजगर 5. दुर्वचन, कोसना, अभिशाप / जम् ताजा मक्खन,---जन्मन् (पुं०) कार्तिकेय का. शयण्ड (वि.) [शी+अण्डन् ] निद्रालु, सोने वाला। / विशेषण-रघु० ३१२८,-जालम् बाणों का समूह या ढेर सुतः का वेषण,-प्रिया For Private and Personal Use Only Page #1014 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (. 1005 ) --धिः तरकस, - पातः बाण का.छोड़ना,.... स्थानम् 1 / 15, मालवि० 1115 / सम०--अन्तः शरद् का बाण का निशाना,-पुङ्खः, पुला बाण का पंखदार अन्त, सर्दी का मौसम, अम्बुधरः शरदतु का बादल, किनारा, फलम् बाण का फल--भङ्गः एक मषि ---उवाशयः शरत्कालीन सरोवर,--कामिन् (पुं०) जिसके दर्शन राम ने दण्डकारण्य में किये थे .. रघु० कुत्ता, ...काल: शरत् काल, पतझड़ का मौसम, -घनः, १३।४५,-भः कातिकेय,--मल्लः धनधर, तीरंदाज, ----मेघः शरदतु का बादल,---चन्द्रः ( शरच्चन्द्रः ) -वनम् (वणम्) नरकुलों का झुरमुट -- मेघ० 45, शरत्कालीन चन्द्रमा, त्रियामा शरत्कालीन रात्रि, उद्भवः, भवः कार्तिकेय के विशेषण,--वर्षः बाणों ----पग्रः,--प्रम् श्वेत कमल, -पर्वन् (नपुं०) को, की वर्षा या बौछार, -वाणिः 1. बाण का सिरा जागर नाम का उत्सव, - मुखम् शरदृतु का आरम्भ / 2. धनुर्धर 3. बाणनिर्माता 4. पदाति,-वृष्टिः (स्त्री०) | शरदा [शरद्+टाप्] 1. पतझड़ 2. वर्ष / बाणों की बौछार---प्रातः बाणों का समूह,—संधानम् शरविज (वि.) [शरदि जायते-जन्--ड, सप्तम्या अलुक] बाण का निशाना लगाना-शरसंधानं नाटयति-श०१, पतझड़ या शरदृतु से सम्बन्ध रखने वाला। ..--- संबाध (वि.) बाणों से ढका हुआ, . स्तम्बः शरभः [श-+अभच्] 1. हाथी का बच्चा 2. आख्यायिनरकुलों का गुच्छा। काओं में वर्णित आठ पैर का जन्तु जो सिंह से शरटः [श + अटन्] 1. गिरगिट 2. कुसुम्भ / बलवान् होता है .. शरभकुलमजिह्यं प्रोद्धरत्यम्बुकपात् शरणम् श+ ल्युट्] 1. प्ररक्षा, सहायता, साहाय्य, प्रति ---ऋतु० 1123, अष्टपादः शरभः सिंहघाती महा० रक्षा-रघु०१४।६४, विक्रम०१।३, उतर०४।२३ 3. ऊँट 4. टिड्डा 5. टिडडी।। 2. आसरा आश्रयस्थान-कु० 3 / 8, पंच० 2 / 23 | शरयः (यू.) (स्त्री०) [श+-अयुः, पक्षे ऊ] एक नदी, 3. ओट, सहारा, विश्रामस्थल (व्यक्तियों के लिए सरय, दे० सरयु (यू)। भी प्रयुक्त)-सुरासुरस्य जगतः शरणम्-कि० 18122, शरल (वि.) [शअलच्] दे० 'सरल' / संतप्तानां त्वमसि शरणम् - मेघ० 7, शरणं गम्-ई शरलकम् [शरल+कन्] पानी। -या शरण में जाना, आश्रय लेना, सहारा लेना शरण्यम् शिरवे शरशिक्षार्य हितं--शरु-यत] (तीर मारने __यामि हे कमिह शरणम् --गीत०७ 4. देवालय, का) निशाना, लक्ष्य (आलं० से भी)-तौ शरव्यमकशौचागार, कक्ष-अग्निशरणमार्गमादेशय--श० 5 रोत्स नेतरान् रघु० 11 / 27, कृताः शरव्यं हरिणा 5. आवास, घर, निवासस्थल---मुद्रा० 3 / 15, भट्टि० तवासुराः-श०९।२९, रघु०७।४५, शि० 7 / 24, 619 6. भट, बिल, माँद 7. क्षति, हत्या। सम० व्यसनशतशरव्यतां गताः --का० / --आर्थिन् (वि०) --एषिन् (वि.) शरण या रक्षा | शराटिः, - तिः शर|-अट् (अत्)-|-इन्] एक प्रकार का ढूंढने वाला,-भर्तृ० २१७६,-आगत, --आपन्न (वि०) | पक्षी। प्ररक्षा या शरण में गया हुआ, आश्रय लेने वाला, | शरारु (वि.) [श-+-आरं] अहितकर, अनिष्टकर, क्षतिआश्रयार्थी, उन्मुख (वि.) शरण या प्ररक्षा खोजने कारक / वाला-रघु० 6 / 21 / वारावः,--वम् शरं दध्यादिसारभवति - अव-+अण] शरण्ड: [श-अंडच 1. पक्षी 2. गिरगिट 3. ठग, घर्त 1. कम गहरा बर्तन, थाली, मिट्टी का तौला, कसोरा, 4. लम्पट, स्वेच्छाचारी 5. एक प्रकार का आभूषण / तस्तरी.....मोदकशरावं गृहीत्वा--विक्रम० 3, मन० शरण्य (वि०) शिरणे साधुः यत् .. रक्षा करने के योग्य, 6 / 65 2. ढकना, ढक्कन 3. दो कुडव के बराबर शरण देने वाला, प्ररक्षक, आश्रय ...असौ शरण्यः नाप / शरणोन्मुखानाम् - रघु० 621, शरण्यो लोकानाम् | शरावती | शर-मतुप्- डीप, दीर्घ वकारश्च] वह नगर __ महावी०४।१, रघु० 2 / 30, 14 / 64, 152, कु० जिसका शासक राम ने लव को बनाया था रघु० 5176 2. जिसे रक्षा की आवश्यकता है, दीन, दयनीय, 15 / 97 / . . ण्यः शिव का विशेषण,---ण्यम 1. आश्रयस्थल, शरिमन् (पुं०) [शृणाति यौवनम् शृ---इमन्] पैदा शरणगृह 2. प्ररक्षक, जो शरणागत की रक्षा करता करना, जन्म देना। है 3. प्ररक्षा, प्रतिरक्षा 4. क्षति, चोट / शरीरम् [श+ईरन्] (जड चेतन पदार्थों की) काया, देह, शरपुः [श+अन्य] 1. प्ररक्षक 2. बादल 3. हवा / ---शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् -कु० 5 / 33 2. संघशरद् (स्त्री०) [श+अदि] 1. पतझड़, शरदतु (आश्विन टक तत्त्व-काव्या० 111. 3. दैहिक शक्ति 4. मत तथा कार्तिक मास में होने वाली त),--यात्राय शरीर, शव / सम... अन्तरम् 1. शरीर का आन्तचोदयामास तं शक्तेः प्रथमं शरद् .. रघु० 4 / 24 रिक भाग 2. दूसरा शरीर,-बावरणम् 1 साल, 2. वर्ष,-त्वं जीव शरदः शतम-रघु०१०११, उत्तर चमड़ी,-कर्तृ (पुं०) पिता,-कर्वनम् शरीर की For Private and Personal Use Only Page #1015 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1006 ) कृशता,-जः 1. रोग 2. काम, प्रणयोन्माद 3. काम- | शर्करिक (वि.) (स्त्री०-को) शर्करिल (वि.) [शर्करा देव 4. पुत्र, सन्तान-कि० ४।३१,—तुल्य (वि.) / +ठक, इलच वा] कंकरीला, बजरीदार, किरकिरा / समान अर्थात् उतना प्रिय जितना अपना शरीर, दण्डः शर्करी (स्त्री०) 1. नदी 2. करधनी, मेखला। 1. शारीरिक दंड 2. कार्य-साधना (जैसा की तपस्या शर्धः [ शृथ्+घञ ] 1. अपानवायु का त्याग, अफारा में),-धूक (वि.) शरीरधारी, पतनम्, पातः (इस अर्थ में नपुं० भी होता है) 2. दल, समूह मृत्य, मौत,-पाकः (शरीर की) कृशता,---बद्ध 3. सामर्थ्य, शक्ति। (वि.) शरीर से युक्त, शरीरधारी, शरीरी-कु. शर्वजह (वि०) [ शर्ध+हा खिश्, मुम् ] अफारा उत्पन्न 5 / 30, -बन्धः 1. शारीरिक ढांचा रघु० 16023 | करने वाला,-हः उड़द या माष की दाल / 2. शरीर से युक्त होना अर्थात् शरीरधारी प्राणी का शर्धनम् [ शव-+ ल्युट ] अपानवायु को छोडने की क्रिया / जन्म-रघु०१३।५८,-बन्धकः सशरीर प्रतिभू,-भाज शर्ब (भ्वा० पर० शर्बति) 1. जाना, हिलना-जुलना (वि.) शरीरधारी, शरीरी (पुं०) जन्तु, शरीरधारी 2. क्षतिग्रस्त करना, मार डालना। प्राणी,-भेवः (आत्मा से) शरीर का वियोग, मृत्यु, शर्मन (पं.) श+मनिन / ब्राह्मण के नाम के आगे --.-यष्टिः (स्त्री०) पतला शरीर, सुकूमार, दुबला- जोड़ी जाने वाली उपाधि यथा विष्णुशर्मन, तु० पतला,...-यात्रा आजीविका, ---विमोक्षणम् आत्मा का वर्मन्, दास, गुप्त (नपुं०) 1. प्रसन्नता, आनन्द, खुशी शरीर से छुटकारा, मुक्ति, - वृत्तिः (स्त्री०) शरीर --त्यजन्त्यसुशर्म व मानिनो वरं त्यजन्ति न त्वेकमका पालनपोषण-रघु० २१४५,-वैकल्यम् शारीरिक याचितं ब्रतम्--नै० 1150, रघु० 1169, भर्त० रोग, बीमारी, व्याधि,-शुश्रूषा व्यक्तिगत सेवा, 3 / 97 2. आशीर्वाद 3. घर, आधार (इस अर्थ में --संस्कारः 1. व्यक्ति की सजावट 2. नाना प्रकार बहुधा वैदिक)। सम० द (वि.) आनन्ददायक के शुद्धिसंस्कारों के अनुष्ठान द्वारा शरीर को निर्मल (-वः) विष्णु का विशेषण / करना,-संपत्तिः (स्त्री०) शरीर की समृद्धि, (अच्छा) | शर्मरः [शर्मन्-रा+क] एक प्रकार का परिधान, स्वास्थ्य, पावः शरीर की दुर्बलता, कृशता-रघु० वस्त्र / 3 / 2, -स्थितिः (स्त्री०) 1. शरीर का पालन-पोषण शर्या [ श+यत्+टाप् ] 1. रात्रि 2. अंगली। -रघु० 5 / 9 2. भोजन करना, खाना (का० में बहुधा शर्व (म्वा० पर० शर्वति) 1. जाना 2. चोट पहुँचाना, प्रयुक्त)। ___ क्षति पहुँचाना, मार डालना। शरीरकम् [शरीर+कन्] 1. देह 2. छोटा शरीर,-कः शर्वः [+व] 1. शिव-रधु० 11 / 93, कु. 6 / 14 आत्मा। 2. विष्णु। शरोरिन (वि०) (स्त्री०-णी) [शरीर+इनिशरीर- शर्वरः शि---प्वरच ] कामदेव, रम अन्धकार / धारी, शरीरयुक्त, शरीरी-करुणस्य मूतिरथवा ! -करुणस्य मूतिरथवा शर्वरी [शु+वनिप, डीप, वनोर च] 1. रात शशिनं शरीरिणी विरहन्पयेव वनमेति जानकी --उत्तर० पुनरेति शर्वरी रघु० 8153, 312, 1093, शि. 3 / 4, मालवि० 110 2. जीवित (पुं०) 1. कोई भी 1115 2. हल्दी 3. स्त्री। सम-ईशः चन्द्रमा / शरीरधारी वस्तु (चाहे जड़ हा चाहे चेतन) शरी- शर्वाणी [ शर्व+ङीष, आनुक ] शिव की पत्नी पार्वती। रिणा स्थावरजंगमानां सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव-कु० शर्शरीक (वि०) [+ईकन्, द्वित्वादि ] उपद्रवी, क्रूर, श२३, रघु० 8 / 43 2. सजीव प्राणी 3. मनुष्य __ ----कः धूर्त, पाजी, दुर्जन / आत्मा (शरीर से युक्त)--रघु० 8189, भग० शल (भ्वा० आ० शलते) 1. हिलाना, हरकत देना, 2 / 18 / शर्करजा [शु+करन्+जन् +3+टाप्] कवयुक्त चीनी, ii (म्वा० पर० शलति) 1. जाना 2. तेज़ दौड़ना। मिश्री। ii: (चुरा० आ० शालयते) प्रशंसा करना। शर्करा श+कर+टाप्] 1. कंदयुक्त चीनी 2. कंकड़ी, / शल: [ शल+अच् ] 1. सांग, बी 2. मेख 3. भुंगी नाम रोड़ी, बजरी मच्छ० 5 3. फकरीला रूप 4. बालू का शिव का एक गण 4. ब्रह्मा, लम् साही का कांटा से युक्त भूमि, रेत 5. टुकड़ा, खण्ड 6.ठींकरा, (कुछ के अनुसार पुं० भी)। 7. कोई भी कड़ा कण जसा कि 'जलशर्करा', पानी शलकः[ शल+कन् ] मक्कड़, मकड़ा / का कण अर्थात् ओला 8. पथरी का रोग / सम. शलम: [शल+अङ्गच ] राजा, प्रभु / --उदकम खांडमिश्रित जल, चीनी डाल कर मीठा शलभः[शल+अभच ] 1. टिड्डा, टिही-श० 1232 किया हुवा पानी,-- सप्तमी वैशाख शुक्ला सप्तमी के 2. पतंगा-..कौरव्यवंशदावेऽस्मिन् क एष शलभायते दिन मनाया जाने वाला अनुष्ठान। . -वेणी. 219, शि० 21117, कु. 4 / 40 / मानां सुखाय नाव प्राणी 3. मन शल् (भ्वा० अ. दापना / / जाना 2. तेज दौड़ना For Private and Personal Use Only Page #1016 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1007 ) शललम् / शल+अलच ] साहो का कांटा, ली 1. साही / ओर कर लिया, अन्ततः वह कौरवों की ओर से का काटां 2. छोटी साही। लड़ा। कर्ण के सेनापति बनने पर वह उसका सारथि शलाका [ शल्+आकः, टाप् | 1. छोटी छड़ी, खूटी, बना, और कर्ण की मृत्यु हो जाने पर उसे कौरव डण्डा, कील, टुकड़ा, पतला सीखचा--अयस्कान्तमणि- सेना का सेनापतित्व मिला। एक दिन तक उसने शलाका- मा० 1 2. पेन्सिल (आँख में सुर्मा आंजने सेनापतित्व का भार संभाला, परन्तु दूसरे दिन युधिकी)सलाई-अज्ञानान्धस्य लोकस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। ष्टिर ने उसे मौत के घाट उतार दिया)। सम० चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै पाणिनये नमः / / शिक्षा०५८, -- अरिः युधिष्ठिर का विशेषण, .. आहरणम्, उद्धकु० 1147, रघु० 78 3. बाण.. साँग, नेजा रणम्, उद्धारः, क्रिया,-- शास्त्रम् कांटा या फांस 5. एक नोकदार शल्योपकरण (धाव की गहराई आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर नापने के लिए) 6. छतरी की तीली 7. (हाथ पैर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता की अंगुलियों की जड़ की) हड्डी-याज्ञ० 3385 है,--कण्ठः झाऊ चहा, - लोमन् (नपुं०) साही का 8. अंकुर, फुनगी, कोंपल--कु० 1124 1. रंग भरने कांटा, हर्त (पुं०) निरैया, निराने वाला। की कूत्री 10. दांत साफ करने को कूची, दाँत-कुरेदनी / शल्यकः [ शल्य-कन् ] 1. सांग, नेजा, सलाख 2. खपची, 11. साही 12. हाथी दांत या हड्डी का बना जूआ फांस, कांटा 3. झाऊ चूहा, साही।। खेलने का आयताकार (पासा) टुकड़ा / सम-घूर्तः | शल्ल: [शल्ल | अच् ] मेंढक,-ल्लम् बक्कल, छाल / (शलाकाधूर्तः) उचक्का, ठग, परि (अव्य०) जूए | शल्लकः [ शल्ल+कन् ] बृक्ष, शोण वृक्ष,—कम् बक्कल, में मनहस पासा पड़ना, तु० परि, अक्षपरि / छाल। शलाटु (वि.) [ शल+आटु ] अनपका, टुः कन्द- शल्लकी [ शल्लक+डी ] 1. साही 2. एक वृक्ष विशेष विशेष। जो हाथियों को बहुत प्रिय है तु० उत्तर० 2 / 21, शलाभोलि: (पुं०) ऊँट / 316, मा० 9 / 6, विक्रम० 4 / 23 / सम० -द्रव: शल्कम्, शल्कलम् [शल-कन्, कलच् वा ] 1. मछली धूप, लोबान / का वल्कल या छिलका मनु० 5 / 15, याज्ञ० १।शल्वः / शल् / बन् ] एक देश का नाम, दे० 'शाल्व' / 178 2. वल्कल, छाल (वृक्षों की) 3. भाग, | शव् (म्वा० पर० शवति) 1. जाना, पहुँचना 2. बदलना, अंश, खण्ड। परिवर्तन करना, रूपान्तर करना। शल्कलिन, शल्किन् (पुं०) [शल्कल (शल्क)- इनि] शवः, वम् [शब्+अच् ] लाश, मुर्दा शरीर मनु० मछली। 10 / 55, वम् जल, - आच्छादनम् मृतक शरीर शल्म (भ्वा० आ० शल्भते) प्रशंसा करना / का आवरण, दफन,--आश (वि०) मुर्दा खाकर शल्मलि:, ली (स्त्री०) [शल+मलच् + इन् पक्षे डीप्] :: जीने वाला-भट्टि० 12175, --काम्यः कुत्ता यानम्, रेशमी रूई का वृक्ष, सेमल / ...- रयः मुर्दा ढोने की गाड़ी, अरथी, एक प्रकार की शल्यम् [ शल् +-यत् ] 1. बर्डी, नेजा, सांग 2. बाण, तीर, पालकी जिसमें मृतक शरीर रख कर श्मशान भूमि में शल्यं निखातमुदहारयतामरस्त:--- रघु० 9178, शल्य ले जाते हैं। प्रोतम् --- 9975, श०६।९ 3. काँटा, खपची 4. मेख, शवर, शवल दे० शबर शबल / खूटी, थूणी (उपर्युक्त चारों अर्थों में पु० भी होता | शवसान: [ शव+असानच् ] 1. यात्री 2. मार्ग, सड़क, है) 5. शरीर में घुसा हुआ कोई पीड़ा कारक काँटा ..नम् कवरिस्तान, शवाधिस्थान / आदि - अलातशल्यम्-उत्तर० 3 / 35 6. (अलं०) | शशः [ शश्+अच् ] 1. खरगोश, खरहा-मनु० 3 / 270, हृदयविदारक शोक या किसी तीक्ष्ण पीड़ा का कारण 5 / 18 2. चन्द्रमा का कलंक (जो खरगोश की --उद्धृतविषादशल्यः कथयिष्यामि ---श०७ 7. हड्डी आकृति का समझा जाता है) 3. कामशास्त्र में वर्णित 8. कठिनाई, कष्ट 9. पाप, जुर्म 16. विष, ल्यः चार प्रकार के पुरुषों में से एक भेद / ऐसे मनुष्य के 1. साही, झाऊ चूहा 2. काँटेदार झाड़ी 3. (आय. लक्षण ये हैं मधुवचनसुशील: कोमलांगः सुकेशः, में) शल्यचिकित्सा में खपचियों का उग्वेड़ना 4. बाड़, सकलगुणनिधानं सत्यवादी शशोऽयम्-शब्द०, दे० रति० सीमा 5. एक प्रकार की मछली 6. मद्रदेश का राजा, 35 भी 4. लोध्र वृक्ष 5. बोल नामक खुशबूदार गोंद / पांड की द्वितीय पत्नी माद्री का भाई, नकुल और सम.--अङ्कः 1. चाँद 2. कपूर- अर्घमुख (वि०) सहदेव का मामा (महाभारत के युद्ध में उसने पांडवों अर्धचन्द्राकार सिर वाला (वाण आदि)- मतिः की ओर से लड़ने का विचार किया परन्तु दुर्योधन चन्द्रमा का विशेषण लेखा चाँद की कला, चन्द्रकला, ने चालाकी से उस पर प्रभाव डाल कर उसे अपनी -अदः 1. बाज, श्येन 2. पुरंजय के पिता इक्ष्वाकुका एक For Private and Personal Use Only Page #1017 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1008 ) पुत्र, अवनः बाज, श्येन,--ऊर्णम्,-लोमम् खरगोश / -स्तम् 1. आनन्द, कल्याण 2. श्रेष्ठता, मांगलिकता के बाल, खरहे की त्वचा, ... धरः 1. चन्द्रमा-प्रसरति 3. शरीर 4. अंगुलित्राण (इसी अर्थ में 'शस्तकम्' शशधरबिंबे * गीत० 7 2. कपूर °मौलिः शिव का भी)। विशेषण,- लुप्तकम् नखक्षत, नाखून का घाव,- भूत् शस्तिः (स्त्री०) [शंस्+क्तिन्] प्रशंसा, स्तुति / (0) चाँद °भत् (पुं०) शिव का विशेषण, लक्ष्मणः शस्त्रम् [शस्+ष्ट्रन्] 1. हथियार, आयुध - क्षमाशस्त्रं चाँद का विशेषण,-लाञ्छनः 1. चन्द्रमा-कु०७१६, करे यस्य दुर्जनः किं करिष्यति -सुभा०- रघु० 2. कपुर-बि (वि) : 1. चाँद 2. विष्ण का विशेषण, 2 / 40, 3151, 62, 5 / 28 2. उपकरण, औजार -विषाणम्-श्रृंगम् खरगोस का सींग (असंभव 3. लोहा 4. इस्पात, 5. स्तोत्र / सम०--अभ्यास: बात का संकेत करने के लिए प्रयुक्त, नितान्त (असं- शस्त्रास्त्रों के चलाने का अभ्यास, सैनिक व्यायाम, भावना) कदाचिदपि पर्यटन शशविषाणमासादयेत् -अयसम् 1. इस्पात 2. लोहा,-अस्त्रम् प्रहार करने ' -भर्तु० स५, शशशृङ्गधनुर्धरः-दे० 'खपुष्प', और फेंक कर मारने वाले हथियार, आयुध और -स्थली गंगा यमुना के बीच की भूमि, दोआबा / अस्त्र 3. आयुध या शस्त्र,-आजीवः -- उपजीविन शशकः [शश-+कन्] 1. खरगोश, खरहा 2. शश (3) / (पुं०) पेशेवर सिपाही, उद्यमः (प्रहार करने के शशिन् (पुं०) [शशोऽस्त्यस्य इनि] 1. चाँद शशिनं / लिए) शस्त्र उठाना, - उपकरणम युद्ध के उपकरण पुनरेति शर्वरी-- रघु० 856, 6 / 85, मेघ० 41 या शस्त्रास्त्र, सैनिक सामग्री,-कारः शस्त्रनिर्माता 2. कपूर / सम०-ईशः शिव का विशेषण,-कला --कोषः किसी हथियार का म्यान, आवरण,-प्राहिन चन्द्रमा की एक लेखा---मुद्रा० १११,-कान्तः चन्द्र- (वि०) (युद्ध के लिए) शस्त्रास्त्र धारण करने वाला कांतमणि (-तम्) कमल,-कोटिः चन्द्रशृङ्ग, - ग्रहः उत्तर० ५।३३,-बोविन, वृत्ति (पुं०) शस्त्र प्रयोग चन्द्रमा का ग्रहण,-जः बुध का विशेषण (चन्द्रमा के द्वारा जीवन यापन करने वाला, व्यावसायिक का पुत्र), प्रभ (वि०) चन्द्रमा की कांति वाला, सनिक,----देवता 1. आयुधों की अधिष्ठात्री देवता 2. चाँद जैसा उज्ज्वल और श्वेत---रघु० 3 / 16, / देवरूपकृत हथियार, -घरः - शस्त्रभत,-न्यासः हथि(-भम्) कुमुदिनी,-प्रभा चाँद का प्रकाश,--भूषणः, यार डाल देना, इसी प्रकार शस्त्र (परि) त्यागः, भूत् , (पुं०)..मौलिः, - शेखरः शिव के विशेषण, --पाणि (वि.) शस्त्र धारण करने वाला, शस्त्रों ----लेखा चन्द्रमा की कला। से सुसज्जित (पुं०) सशस्त्र योद्धा, --पूत (वि०) शाश्वत् (अव्य०) [शश् +वत, वा] 1. लगातार, अनादि 'शस्त्रों द्वारा पवित्रीकृत' युद्धक्षेत्र में मारे जाने से काल से, सदा के लिए 2. सतत, बार-बार, सदैव, मुक्त-अशस्त्रपूतं निर्व्याज (महामांसं)-मा० 5 / 13 बहुशः, पुनः पुनः-रघु० 2 / 45,470, मेघ० 55 3. (दे० शब्द की जगद्धरकृत व्याख्या) अहमपि तस्य समास में प्रयुक्त होने पर 'शश्वत्' का अर्थ है मिथ्याप्रतिज्ञावलक्ष्यसंपादितमशस्त्रपूर्त मरणमुपदिशामि 'टिकाऊ, नित्य' यथा शश्वच्छान्ति अर्थात् नित्य वेणी० २,--प्रहारः हथियार से किया गया आघात, शान्ति। -भृत् (पुं०) सैनिक, योद्धा-रघु० २।४०,-माजः शष्कु (स्कु) ली [शष् (स्)+कुलच-+डी] कान का हथियार साफ़ करने वाला, शस्त्रनिर्माता, सिकलीगर, विवर, श्रवण-मार्ग--अवलम्बितकर्णशष्कूलीकलसीकं -विद्या -- शास्त्रम् शस्त्र विज्ञान, संहतिः (स्त्री०) रचयन्नवोचत न० 218, याज्ञ० 3 / 96 2. एक 1. शस्त्रसंग्रह 2. आयुधागार, - संपातः हथियारों का प्रकार की पकी हुई रोटी, याश० 11173 3. चावल अकस्मात् गिरना, -हत (वि.) हथियार से मारा को कांजी 4. कान का एक रोग / गया, हस्त (बि०) शस्त्रधर (स्तः) शस्त्रधारी शष्पः (स्पा) [शष्+पक्] प्रतिभाक्षय, औसान का अभाव, मनुष्य / -~-पम् नया घास - उत्तर० 4 / 27, रघु० 2 / 26 / शस्त्रकम् [ शस्त्र+कन् ] 1. इस्पात 2. लोहा / शस् (भ्वा० पर० शसति) काटना, मारडालना, नष्ट | शस्त्रिका [ शस्त्रक+टाप, इत्वम् ] चाकू।। करना, वि-काट डालना, मार डालना--उत्तर०४।।शस्त्रिन (वि०) [शस्त्र+इनि] शस्त्रधारी, हथियारबंद, ii (अदा० पर० शस्ति) सोना, तु० 'शंस्' से भी। | शस्त्रास्त्र से सुसज्जित / शसनम् [शस्+ ल्युट्] 1. धायल करना, मार डालना 2. शस्त्री [शस्त्र+होष ] चाक-पण्यस्त्रीष विवेककल्पलतिका '' बलि, मेघ, (यज्ञ में पशु का)। शस्त्रीसु रज्येत क:-सुभा०, शि०४।४। शस्त (भू.क. कृ.) [शंस+क्त] 1. प्रशंसा किया गया, अस्थम् [शस्+यतु] 1. अन्न, धान्य-दुदोह गां स स्तुति किया गया 2. शुभ बानन्द प्रद 3. यथार्थ, यज्ञाय शस्याय मघवा दिवम्-रघु श२६ 2. सर्वोत्तम 4. क्षतिग्रस्त, घायल 5. वध किया हुवा, किसी वृक्ष या पौधे का फल या उपज-शस्यं क्षेत्र For Private and Personal Use Only Page #1018 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गतं प्राहः सतुषं धान्यमच्यते-दे० 'तंडुल' भी 3.4 कि इसी ने ऋग्वेद के पद-पाठ को व्यवस्थित किया गुण / सम० क्षेत्रम् अन्न का खेत, भक्षक (वि०) | था)। अन्नहारी, अनाज खाने वाला, मञ्जरी अनाज की | शाकारी (स्त्री०) प्राकृत का एक निम्नतम रूप, शकार बाल,-मालिन (वि०) जिसका खेत हरा भरा खड़ा द्वारा बोली गई बोली जैसा कि मृच्छकटिक में। हो,-शालिन, संपन्न (वि०) अन्न या धान्य से | शाकिनम् [शाक+इनच्] खेत जैसा कि 'शाकशाकिन' में। परिपूर्ण, शुकम् अनाज का सि-,--संपद (स्त्री०) / शाकिनी शाकिन-डीप| 1. साग-भाजी का खेत 2. दुर्गाअनाज की बहुतायत, सम्ब (म्ब) र शाल का वृक्ष, देवी की सेविका (जो एक पिशाचिनी या परी समझी साल का पेड़ / जाती है)। शाकः, -कम् [शक्यते भोक्तुम् --शक+धा ] शाक, शाकुन (वि.) (स्त्री०-नी) शकुन+अण] 1. पक्षियों साग--भाजी, खाद्यपत्ते, फल या कन्द जो शाक से सम्बन्ध रखने वाला—मनु० 3268 2. सगुन की भांति उपयोग में लाये जायं-दिल्लीश्वरो वा सम्बन्धी 3. शकुनसम्बन्धी / जगदीश्वरो वा मनोरथान पुरयितं समर्थः, अन्य- शाकूनिकः [शकुनेन पक्षिवधादिना जीवति ठा] बहेलिया, न पाल: परिदीयमानं शाकाय वा स्याल्लवणाय वा चिड़ीमार-मच्छ० 6, मनु०८।२६०, कम् शकुनों स्यात् जग०,-क: 1. शक्ति, सामर्थ्य. ऊर्जा की व्याख्या। 2. सागोन का वृक्ष 3. शिरीष का वृक्ष 4. एक जाति | शाकुनयः [शकुनि+ढक] छोटा उल्लू / का नाम-दे० शक 5. वर्ष, विशेषतः शालिवाहन शाकुन्तलः [ शकुन्तला+अण् ] भरत का मातृपरक नाम संवत्सर / सम० अङ्गम् मिर्च, ..अम्लम् महादा, (शकुन्तला का पुत्र) लम् कालिदास का अभिज्ञान इमलो, - आल्यः सागौन का वृक्ष, (त्यम्) शाकभाजी, शाकुन्तल नामक नाटक / ---आहारः शाकभाजी खाने वाला (बनस्पति खाकर शाकुलिकः [शकुल-+ठक्] मछुआ, मछली मारने वाला। जीवित रहने वाला),----चुक्रिका इमली,-तरुः शाक्करः [शक्कर+अण्] बैल / सागौन का वृक्ष,-पणः 1. मुट्ठीभर भार के बराबर शक्ति (वि.) (स्त्री०-क्ती) [शक्ति+अण्] 1. शक्तितोल 2. मट्टीभर शाकभाजी, पार्थिवः अपने नाम सम्बन्धी 2. दिव्यशक्ति की स्त्री प्रतिमा से सम्बन्ध से वर्ष चलाने का शौकीन, दे० मध्यमपदलोपिन, रखने वाला, क्तः शक्तिपूजक (शाक्त लोग प्रायः --प्रति (अब्य०) थोड़ी सी वनस्पति,-योग्यः धनिया. दुर्गा के उपासक होते हैं, दुर्गा ही दिव्यशक्ति की -वृक्षः सागौन का पेड़, -- शाकटम्, शाकिनम् साग स्त्रीमति है, अनुष्ठान पद्धति दो प्रकार की है, पवित्र भाजी का खेत, रसोई के योग्य सब्जियों का उद्यान / अर्थात दक्षिणाचार तथा अपवित्र अर्थात् वामाचार)। शाकट (वि.) (स्त्री०--टी) [शकट-अण ] 1. गाड़ी | शाक्तिकः [ शक्ति-+ठक] 1. शक्ति का पूजक 2. बी. सम्बन्धी 2. गाड़ी में बैठकर जाने वाला,--टः धारी, भाला रखने वाला। 1. गाड़ी खींचने वाला बैल 2. श्लेष्मान्तक वृक्ष / शाक्तीकः [शक्ति + ईकक बी रखने वाला, भालाघारी। (नपुं०) खेत .--तु० शाकशाकटम् / शाक्तेयः [शक्ति+ढक] शक्ति का उपासक / शाकटायनः [शकटस्थापत्यम् . शकट ।-फका भापा- शाक्यः [ शक+धा तत्र साधुः यत् ] 1. बुद्ध के कुटुम्ब विज्ञान और व्याकरण का पंडित जिसका पाणिनि का नाम 2. बुद्ध। सम० भिक्षुकः बौद्धभिक्षु, और यास्क ने कई बार उल्लेख किया है तु० मुनिः, - सिंहः बुद्ध के विशेषण / व्याकरणे शकटस्य च तोकम .-निरु० / शाको [शक्र-अण+कीप] 1. इन्द्र की पत्नी शची शाकटिक (वि.) (स्त्री० की) [शकट -ठक ] 2. दुर्गादेवी। 1. गाड़ीसम्बन्धी 2. गाड़ी में बैठकर जाने वाला। शाक्वरः [शक्वर | अण्] बैल, तु० 'शाक्कर'। शाकटीनः [ शकट+खा ] गाड़ी में समाने योग्य बोझ, शाखा [ शाखति गगनं व्याप्नोति-शाख+अ+टाप् ] बीस तुला के समान बोझ की तोल / 1. (वृक्ष आदि की) डाली, शाख-आवयं शाखाः शाकल (वि.) (स्त्री० ली) [शकल+अण ] टुकड़े --- रघ० 16619 2. भुजा 3. दल, अनुभाग, गुट से सम्बन्ध रखने वाला,-ल: ऋग्वेद की एक शाखा, 4. किसी कार्य का भाग या उपभाग 5. सम्प्रदाय, इस शाखा के अनुयायी (व०व०)। सम० प्राति. शाखा, पन्थ 6. परम्परा प्राप्त वेद का पाठ, किसी शाख्यम् ऋग्वेद का प्रातिशाख्य, शाखा नग्वेद का सम्प्रदाय द्वारा मान्यताप्राप्त परम्परागत पाठ यथा परम्परागत पाठ जो शाकल शाखा में प्रचलित है। शाकल शाखा, आश्वलायन शाखा, बाष्कल शाखा शाकल्यः [शकलस्थापत्यम् -यन] एक प्राचीन वैयाकरण आदि। सम० - चन्द्र न्यायः दे० 'न्याय' के अन्तर्गत, जिसका उल्लेख पाणिनि ने किया है (कहा जाता है | ... नगरम्, -पुरम् नगराञ्चल, नगर परिसर,...पित्तः 127 For Private and Personal Use Only Page #1019 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1010 ) शरीर के हाथ, कन्धा आदि छोरों म सूजन,-भत् | शाण्डिल्यः [ शण्डिल+या 11. एक ऋषि जिसने विधि(पुं०) वृक्ष, भेवः (वेद की) शाखाओं का अन्तर, शास्त्र पर प्रन्थ लिखा 2. बिल्ववृक्ष, बेल का पेड़ -मग: 1. बन्दर, लंगूर 2. गिलहरी, रण्डः अपनी / 3. अग्नि का रूप। सम० गोत्रम् शांडिल्य का शाखा के प्रति द्रोह करने वाला, वह ब्राह्मण जिसने परिवार। अपनी वैदिक शाखा को बदल दिया है,- रथ्या गली, | शात (भू० क. कृ०) [शो+क्त ] 1. तीक्ष्ण किया हआ, वीथिका। पनाया हुआ 2. पतला, दुबला 3. दुर्बल, कमजोर शाखालः [शाखा+ला+क] एक प्रकार का बेंत, वानीर / 4. सुन्दर, मनोहर 5. प्रसन्न, फलता-फूलता, तःधतूरे शाखिन् (वि.) [शाखा+इनि] 1. शाखाधारी आलं. से का पौधा,-तम् आनन्द, प्रसन्नता, खुशी मानिनी भी) 2. शाखाओं से युक्त, शाखामय 3. (वेद के) जनजनितशातम्-गीत०१०। सम०-उदरी कृशोदरी, किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्ध रखने वाला-(पं०) पतली कमर वाली स्त्री शि० 5 / 23, रघु० 10 // 1. वृक्ष श० श१५ 2. वेद 3. वेद की किसी भी ६९,--शिख (वि.) तेज़ नोक वाला, तीक्ष्ण नोकदार। शाखा का अनुयायी। शातकुंभम् [शतकुंभे पर्वते भवम् अण् ] 1. सोना,-शि० शाखोटः, शाखोटक: [शाख्+ओटन, शाखोट+कन] एक 9 / 9, नै० 16 / 34 2. धतूरा। वृक्ष, पेड़-कस्त्वं भोः कथयामि दैवहतकं मां विद्धि शातकौम्भम् [ शतकुम्भ+अण् ] सुवर्ण, सोना। शाखोटकम्---काव्य०१०। शातनम् [शो+णिच+त+ल्यट] 1. पैनाना, तेज शाङ्करः [शङ्कर+अण्] बैल / करना 2. काटने वाला, विनाशकर्ता रघु० 3 / 42 शाकुरिः शङ्कर+इञ] 1 कार्तिकेय 2, गणेश 3. अग्नि। 3. गिराना या नष्ट करना 4. कुम्हलाहट पैदा करना शालिकः [शल ठिक] 1. शल्लकार, शक्ल को काट कर 5. पतला या छोटा होना, पतलापन 6. मुर्माना, उसकी चीजें बनाने वाला 2. एक वर्णसङ्कर जाति कुम्हलाना। 3. शङ्ख बजाने वाला-शि० 1572 / शासपत्रकः,-को [शतपत्र- अण्+कन ] चाँद का प्रकाश / शाटः, शाटी [शट्+घा, शाट+ङीष् ] 1. वस्त्र, | शातभीरः [शाताः दुर्बलाः पान्थाः भीरवो यस्या:-ब० स०] कपड़ा 2. अधोवस्त्र, साड़ी। एक प्रकार की मल्लिका। शाटकः, कम [ शाट+कन 11, वस्त्र, कपड़ा, अधोवस्त्र, | शातमान (वि०) (स्त्री० नी) [ शतमानेन क्रीतम साड़ी-पंच० 2144 / अण् ] एक सौ में मोल लिया हुआ। शाठयम् [शठ+या ] बेईमानी, छल, कपट, चालाकी, शात्रव (वि.) (स्त्री०--बी) [ शत्रु+अण् ] 1. शत्रुसंबंधी, जालसाज़ी, दुष्कर्म-आजन्मनः शाव्यमशिक्षितो यः --रघु० 4 / 42 2. विरोधी, शत्रुतापूर्ण, वः दुश्मन --श० 5 / 25, मुद्रा० 1 / 1 / / .....शि० 14 / 44, 18120, वेणी० 5 / 1, भट्टि० 5 / शाण (वि.) (स्त्री०–णी) [शणेन निवृत्तम् -अण् ] 81, कि० 14 / 2, मुद्रा० 215, - वम् 1. शत्रुओं का सन का बना हुआ, पब्सन का बना हुआ,--ण: समूह 2. शत्रुता, दुश्मनी-त्रयीशात्रवशत्रवे----रस० / 1. कसौटी-भामि० 1173, भर्तृ० 2 / 44, 2. सान | शात्रवीय (लि.) [ शत्रु+छ ] 1. शत्रुसंबंधी 2. विरोधी, रखने वाला पत्थर 3. आरा 4. चार माशे की तोल, शत्रुतापूर्ण। -णम् 1. मोटा कपड़ा, बोरे या थैले आदि बनाने शावः [शद्-+घञ ] 1. छोटी घास 2. कीचड़। सम० का कपड़ा 2. सन का बना वस्त्र --मनु० 2 / 41 --हरितः-तम् नये घास के कारण हरियाली भूमि, 1087 / सम०-आजीवः शस्त्रनिर्माता, सिकलीगर / वह भूमि जिस पर हरियाली छा गई है। पाणिः [शण +इण ] एक पौधा जिसके रेशों से वस्त्र शाद्वल (वि.) [शादाः सन्त्यत्र दलच ] 1. तणयक्त बनता है, पटुआ। 2. जहाँ नई घास, या हरी हरी घास उग आई हो शाणित (भू० क. कृ.) [शण्+णिच्+क्त ] सान पर। 3. हरा भरा, सब्ज, हरियाली से युक्त,--लः, -- लम् रक्खा हुआ, पीसा हुआ, (शाण पर * रख कर) घास से युक्त भूमि, हरियाली, चरागाह-शय्या पेनाया हुआ। शाद्वलम् - शान्ति / शाणी [शण+डीप्] 1. कसौटी 2. सान 3. आरा 4. सन शान् (भ्वा० उभ० शीशांसति-ते-निश्चित रूप से 'शान' का बना वस्त्र 5. फटा कपड़ा, चिथड़ा 6. छोटा पर्दा का इच्छा० रूप, मूल अर्थ में प्रयुक्त- तेज करना, या तंब 7. अंगविक्षेप, हाथ या आँख आदि से संकेत पैनाना। करना। शानः [शान्+अच् ] 1. कसौटी 2. सान का पत्थर / शानीरम् [शण+ईरण ] शोण नदी का तट, शोण नदी सम०-वावः 1. चन्दन पीसने का पत्थर 2. पारिका भूभाग। यात्र पर्वत / For Private and Personal Use Only Page #1020 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शान्त (भू० क. कृ०) [शम्+क्त] 1. प्रसन्न किया हुआ, | शान्तिक (वि.) (स्त्री०-को) [शान्ति-कन्] प्रायश्चि दमन किया हुआ, धीरज दिलाया हुआ, सन्तुष्ट किया तात्मक, सान्त्वनाप्रद, तुष्टिकर,-कम् संकट को दूर हुआ, प्रशान्त-रघु० 12 / 20 2. चिकित्सित, सान्त्वना | करने के लिए किया गया अनुष्ठान / दिया हुआ-शान्तरोगः 3. घटाया हुआ, कम किया | शान्त्व दे० 'सान्त्व्।। हुआ, समाप्त किया हुआ, हटाया हुआ, बुझाया हुआ | शापः [शप्+घञ्] 1. अभिशाप, अवक्रोश, फटकार ... शान्तरथक्षोभपरिश्रमम्---रघु० 258, 5 / 47, -शापेनास्तं गर्मितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः----मेघ०१, शाताचिषं दीपमिव प्रकाशः ----कि० 17.16 4. विरत, 92, रघु० 1178, 5 / 56, 59, 11 / 14 2. सौगन्ध, ठहराया हुआ-कु० 3 / 42 5. मत, उपरत 6. शान्त शपथोक्ति 3. दुर्वचन, मिथ्या आरोप / सम-अन्तः किया हुआ, दबाया हुआ 7. सौम्य, चुपचाप, बाधाहीन, .-अवसानम्,-निवृत्तिः (स्त्री० ) अभिशाप की निस्तब्ध, मूक, मौन --शान्तमिदमाश्रमपदम् श० समाप्ति, मेघ० 110, रघु०८1८२,- अस्त्रः 'अभि१२१६, 4 / 19 8. सधाया हुआ, पाला हुआ-रघु० शाप को ही जिसने अपना आयुध बनाया है' ऋषि, 14179 1. आवेशरहित, आराम से, सन्तुष्ट 10. छाया- महात्मा- रघु०१५।३,-उत्सर्गः अभिशाप का उच्चादार 11. पवित्रीकृत 12. शुभ (शकून)--(शान्तं रण,--उद्धारः,–मुक्तिः ,-मोक्षः अभिशाप से छुटपापम् 'अहो ! नहीं, यह कैसे हो सकता है, भगवान् कारा, -ग्रस्त (वि.) अभिशाप से दबकर परिश्रम करे ऐसी अशुभ या दुर्भाग्यपूर्ण घटनान घटे'-. श० करने वाला,-मुक्त (वि.) अभिशाप से जिसने 5, मुद्रा० १),-त: 1. वैरागी, संन्यासी 2. शान्ति, छुटकारा पा लिया है, यन्त्रित ( वि. ) अभिशाप निस्तब्धता, मौनभाव, सांसारिक विषय वासनाओं के के कारण नियन्त्रणपूर्ण / प्रति तटस्थता की प्रभावना, दे० निर्वेद और रस, तम् | शापित (भू० क० कृ०) [शप्+णिच्+क्त] 1. सौगन्ध (अव्य०) बस, और नहीं, ऐसा नहीं, शर्म की बात है, से बंधा हुआ, शपथपूर्वक उक्त 2. गृहीशपथ, जिसने चुप रहो, भगवान् न करे-शान्तं कथं दुर्जना: पौर शपथ ले ली है। जानपदाः -उत्तर० 1, तामेव शान्तमथवा किमिहोत्त शाफरिकः शिफरान् हन्ति-शफर+ठक] मछुआ, मछली रेण–३।२६। सम० आत्मन्,-चेतस् ( वि०) पकड़ने वाला। सौम्य, शान्तमना, धीर, स्वस्थमना,-तोय (वि.) / शाव (ब) र (वि.) (स्त्री०-री) [शब (व) र+अण] जिसका पानी स्थिर हो,-रसः मौनभाव-दे० ऊ० 1. असभ्य, जंगली 2. नीच, कमीना, अधम-रः शान्तम् / 1. अपराध, दोष 2. पाप, दुष्टता 3. लोध्र नामक शान्तनवः [शन्तनु+अण्] शन्तनु का पुत्र भीष्म। वृक्ष-री प्राकृत बोली का एक निम्नरूप (पहाड़ी शान्ता [शान्त+टाप्] दशरथ की पुत्री जिसे लोमपाद लोगों से बोला जाने वाला / सम० ... भेदाख्यम् ऋषि ने गोद ले लिया था तथा जो ऋष्यशृङ्ग को (भेदाक्षम् भी) तांबा।। ब्याही गई थी। दे० उत्तर० 114, 'ऋष्यशृङ्ग' भी। शाब्द (वि०) (स्त्री०-दी)[शब्द+अण] 1. शब्द संबंधी शान्तिः (स्त्री०) [शम् / क्तिन्] 1. प्रशमन, निराकरण, या शब्द से व्युत्पन्न 2. ध्वनि पर निर्भर या ध्वनि सान्त्वना, हटाव-अध्वरविघातशान्तये - रघु०११११, सम्बन्धी (विप० आर्थ)3. शाब्दिक, मौखिक 4.ध्वनन६२ 2. धैर्य, प्रशान्तता, निःशब्दता, अमन-चैन, शील, मुखर,-दः वैयाकरण। सम० --बोधः शब्दों विश्राम-कु० 4 / 17, मात 61 3. वैरनिरोध के अर्थ का अवबोध या प्रत्यक्षीकरण,—व्यंजना शब्दों ... -भामि० 125 4. विराम, निवृत्ति 5. आवेश का पर आधारित व्यंग्योक्ति / अभाव, मौनभाव, सभी सांसारिक भोगों के प्रति पूर्ण शाब्दिक (वि.) (स्त्री-की) शब्द-Fठक ] 1. ज़बानी, उदासीनता-रघु० 771 6. सान्त्वना, ढाढस 7. साम- मौखिक 2. निनादी,--क: वैयाकरण / जस्यविधान, विरोधोपशमन 8. भूख की तृप्ति शामनः [शमन+अण् ] यमनम् 1. हत्या, बध 9. प्रायश्चित्त अनुष्ठान, पाप को दूर करने के लिए 2. शान्ति, अमन-चैन 3. अन्त, - नी दक्षिण दिशा। तुष्टिप्रद अनुष्ठान 10. सौभाग्य, बधाई, आशीर्वाद, शामियम् [शम्+णिच् +इत्रच् ] 1. यज्ञ करना 2. मेघ, माङ्गलिकता 11. दोषमार्जन, कलंक से मुक्ति, / यज्ञ में पशुवध करना 3. यज्ञ के लिए बलिपशु बांधना परिरक्षण। सम०-उदम्,-उदकम्,-जलम् शान्ति- | 4. यज्ञीय पात्र / कर तथा प्रसादपूर्ण जल -श० ३,-कर, -कारिन् शामिलम् [ शमी+लञ् ] भसा, राख / (वि०) सान्त्वक, प्रशामक, - गृहम् विश्रामकक्ष,-होमः | शामिली [ शामिल+ङीष् ] यज्ञीय खुवा, मुच् / पाप का निस्तारण करने के लिए यज्ञ करना-मनु० शाबरी [ शम्बर+अण्+ङीप ] 1. बाजीगरी, जादूगरी 4 / 150 / 2. जादूगरनी। For Private and Personal Use Only Page #1021 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1012 ) शाम्बविकः [ शम्बु+ठक | शंखों का व्यापारी। शारी[ शारि+डीष ] एक पक्षी, मैना। शाम्बु (बू) क, [ शम्बुक-+अण् ] द्विकोषीय घोंघा। शारीर (वि०) (स्त्री०-री) [शरीर+अण्] 1. शरीर शाम्भव (वि०) (स्त्री०-वी) [ शम्भु+अण् ] शिव- से संबद्ध शारीरिक, दैहिक 2. शरीरधारी, मूर्तिमान्, सम्बन्धी - अतुं वाञ्छति शांभवो गणयतेरा क्षुधार्तः ---रः शरीरधारी, जीवात्मा, मानवात्मा, वैयक्तिक फणी- पंच० १११५९,-वः 1. शिवोपासक 2. शिव आत्मा 2. साँड़ 3. एक प्रकार की औषधि / जी का पुत्र 3. कपूर 4. एक प्रकार का विष,—वम् | शारीरक (वि.) (स्त्री० की) [शरीर+कन्+ देवदारु वृक्ष / अण् ] शरीर सम्बन्धी,-कम् 1. मूर्तिमान् जीव, शाम्भवी [शाम्भव+डीप् ] 1. पार्वती 2. एक पौधा, जीव के स्वरूप की पृच्छा (ब्रह्मसूत्रों पर शङ्कराचार्य नीलदूर्बा। द्वारा किया गया भाष्य)। सम०-सूत्रम् वेदान्त शायक: [शो+ण्वुल] 1. बाण 2. तलवार, तु० सायक / दर्शन के सूत्र / शार् (चुरा० उभ० शारयति ते) 1. दुर्बल करना | शारीरिक (वि.) (स्त्री०-की) [शरीर+ठक] दैहिक, 2. कमज़ोर होना। शरीर संबन्धी, भौतिक / शार (वि.) [ शार+अच, श-+घञ वा ] चितकबरा, शाहक (वि.) (स्त्री०-की) [श+उका] अनिष्टकर, धब्बेदार चित्तीदार, शबल, - रः 1. रंगबिरंगा रंग, चोट पहुंचाने वाला, उपद्रवी। 2. हरा रंग 3. हवा, बाय 4. शतरंज का मोहरा, शार्ककः [शर्क-अण--कन] दानेदार चमकीली खांड, गोट - भर्त० 3 / 39 5. क्षति पहुंचाने वाला, आघात | मिसरी। करने वाला। | शार्कर (वि०) (स्त्री०-री) शिर्करा+अण] 1. चीनी शारण: [शारम् अङ्गम् यस्य--ब० स० ] 1. चातक पक्षी का बना हुआ, शर्करामिश्रित 2. पथरीला, कंकरीला, 2. मोर 3. भौंरा 4. हरिण 5. हाथी, तु. सारंग / ___ --र: कंकरीला स्थान 2. दूध का झाग, पपड़ी शारङ्गी [ शारङ्ग+ङीष् ] एक संगीत वाद्य विशेष जो गज 3. मलाई। से बजाया जाता है, तु. सारंगी। शाई (वि.) [शृङ्ग+अण् ] 1. सींग का बना शारद (वि०) [ शरदि भवम् -- अण् ] 1.पतझड़ से संबंध हुआ, सींग वाला 2. धनुर्धारी, धनुष से सुसज्जित रखने वाला, शरत्कालीन (इस अर्थ में स्त्री०-शारदी -भट्टि०८।१२३ - :-हम् 1. धनुष 2. विष्णु का है)--विमलशारदचन्दिरचन्द्रिका--भामि० 11113, धनुष / सम-धन्वन् (पुं०), धरः, पाणिः,-धत् रघु० 109 2. वार्षिक 3. नया, नूतन 4. अनुभव- विष्णु के विशेषण / हीन, नौसिखिया 5. विनीत, शर्मीला, लज्जाल | शाङ्गिन् (पुं०) [शाङ्ग+इनि] 1. तीरंदाज़, धनुर्धारी 5. शंकालु, साहसहीन, -- : 1. वर्ष 2. शरत्कालीन 2. विष्णु का विशेषण-धर्मसंरक्षणार्थव प्रवृत्ति वि बीमारी 3. शरत्कालीन धूप 4. एक प्रकार का शाङ्गिणः-रघु० 15 / 4, 12170, मेघ०४६ / / लोबिया या उड़द 5. बकुल का वृक्ष, मौलसिरी,-दी शार्दूल: [श-+ऊलल दुक च] 1. व्याघ्र 2. चीता 3. राक्षस कार्तिक मास की पूर्णिमा,-दम् 1. अनाज, धान्य 4. एक पक्षी 5. (समास के अन्त में) प्रमुख या पूज्य 2. श्वेत कमल, दा 1. एक प्रकार की वीणा या पुरुष, अग्रणी-जैसा कि 'नरशार्दूल' में, तु० कुंजर। सारंगी 2. दुर्गा 3. सरस्वती।। सम० -चर्मन् (नपुं०) व्याघ्र की खाल,-विक्रीडितम् शारदिकः [ शरद्+ठ ] 1, शरत्कालीन रोग 2. शर- 1. चीते की क्रीड़ा--कन्दर्पोऽपि यमायते विरचयन् त्कालीन धूप या गर्मी, कम शरत्कालीन या वार्षिक शार्दूलविक्रीडितम् --गीत०४ 2. छन्द या वृत्त---दे० श्राद्ध / परि०१। शारदीय (वि.) [ शरद् छ ] शरत्कालीन, पतझड़ | शार्वर (वि०) (स्त्री०-री) [शर्वरी---अण्] 1. रात्रिसंबन्धी। कालीन-कु० 8 / 58 2. उपद्रवी, प्राणहर,---रम् अंधशारिः [श+इ ] 1. शतरंज का मोहरा, गोट 2. छोटी कार, धुप अंधेरा,-रो रात। गोल गेंद 3. एक प्रकार का पासा, रि (स्त्री०) | शाल (भ्वा० आ० शालते) 1. प्रशंसा करना, खुशामद 1. सारिका पक्षी, मैना 2. जालसाजी, चाल 3. हाथी करना 2. चमकना 3. पूरित होना-कि० 5.44 पर की झूल / सम०-पट्टः,-फलम्,-फलकः,-कम् शतरंज मल्लि० 4. कहना। खेलने की बिसात,। शालः [शल+घञ] 1.एक वृक्ष (बड़ा लंबा, और शानदार, शारिका [शारि+कन्+टाप् ] 1. एक पक्षी, मैना -रघु० 1138, शि० 3 / 40 2.वृक्ष, पेड़,-रघु०१।१३, 2. तन्त्रयुक्त वाद्ययन्त्रों को बजाने वाला गज 3. शत- वेणी० 4 / 3 3. बाड़ा, बाड़ 4. एक प्रकार की मछली रंज खेलना 4. शतरंज का मोहरा, गोटी। 5. राजा शालिवाहन / सम० -ग्रामः विष्णु भगवान् For Private and Personal Use Only Page #1022 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की आदर्श प्रस्तरमूर्ति जैसा कि शिवलिंग, गिरि शालुः [ शाल+उण् ] 1. मेंढक 2. एक प्रकार का गन्ध पर्वत का नाम, °शिला शालग्राम पत्थर,-जः,-निर्यासः द्रव्य, लु (नपुं०) कुमुदिनी की जड़। सालवृक्ष का प्रस्राव, राव -रघु० 131, भञ्जिका | शालु (लू) कम् [शल+ऊकण ] 1. कुमुदिनी की जड़ 1. गुड़िया, पुत्तलिका, मूर्ति--विद्ध० 1, न० 2 / 83 | 2. जायफल, का मेंढक / 2. वेश्या, रंडी,-भजी गुड़िया, पुत्तलिका,-वेष्टः साल | शाल (लू) रः [शाल +ऊर] मेंढक / के पेड़ से निकली राल, तु० 'साल', सारः 1. उत्कृष्ट- शालेयम् [शालि+ढक] चावलों का खेत / वृक्ष 2. हींग। शालोत्तरीयः [ शालोत्तरे ग्रामे भव:-छ ] पाणिनि का शालवः [शाल+वल+ह लोध्र वृक्ष।। विशेषण-दे० शालातुरीय। शाला [शाल+-अच् +टाप्] 1. कक्ष, प्रकोष्ठ, बैठक, | शाल्मलः [शाल+मलच्] 1. सेमल का पेड़ 2. भू-मण्डल कमरा-गृहविशालरपि भूरिशाल:-शि० 3.50, इसी | के सात बड़े खण्डों में से एक। प्रकार संगीतशाला, रंगशाला आदि 2. घर, आवास शाल्मलिः [ शाल+मलिच् ] 1. सेमल का पेड़-भामि० -रघु० 16.41 3. वृक्ष की मुख्य शाखा 4. वृक्ष 1 / 115, मनु० 8246 2. भू-मण्डल के सात बड़े का तना / सम०-अजिरः, - रम् मिट्टी का कसोरा, खण्डों में से एक 3. नरक का एक भेद / सम० - स्थः मृगः गीदड़,-वृक: 1. कुत्ता--भामि० 1172 गरुड़ का विशेषण। 2. भेडिया हरिण 4. बिल्ली 5. गीदड़ 6. बन्दर / शाल्मली [शाल्मलिङीष्] 1. सेमल का पेड़ 2. पाताल शालाकः (पुं०) पाणिनि / लोक की एक नदी 3. नरक का एक भेद / सम० शालाकिन् (पुं०) [शालाक-इन्] 1. भाला रखने वाला, ----वेष्टः, वेष्टकः सेमल के पेड़ का गोंद / बर्थीधारी 2. जर्राह 3. नाई। शाल्वः [ शाल+व] 1. एक देश का नाम 2. शाल्व देश शालातुरीयः [शलातुर+छ] पाणिनि का विशेषण (जन्म का राजा। स्थान 'शलातुर' होने के कारण -'शालोत्तरीय' भी | शाव (वि.) (स्त्री०-यो) [ शव+अण् ] शवसम्बन्धी, लिखा जाता है)। (किसी रिस्तेदार की) मृत्यु से उत्पन्न-दशाहं शावशालारम् [शाला+ऋ+अण] 1. जीना, सीढ़ी 2. पिंजरा। माशौचं सपिण्डेषु विधीयते-मनु०५:५९, 61 2. भूरे शालिः [शाल+णिनि] चावल-न शालेः स्तम्बकरिता रङ्ग का, गहरे पीले रङ्ग का, -वः किसी जानवर वस्तुर्गुणमपेक्षते - मुद्रा० 1313, यवाः प्रकीर्णाः न का छोटा बच्चा, कुरङ्गक, मृगछौना, वन्यपशुशाबक भवन्ति शालयः -मृच्छ०४।१६ 2. गंधबिलाव / सम० क्व वयं क्व परोक्षमन्मथो मगशावैः सममेधितो जनः - ओदनः,---नम् भात (उत्कृष्टतर प्रकार का) ---श० 1118, मृगराजशावः . रघु०६।३, 18137 / -गोपी चावल के खेत की रखवाली करने वाली | शावकः [शाव+कन्] किसी भी वन्य पशु का बच्चा / स्त्री,.--रघु० 4 / 20, चूर्णः, -र्णम् चावल का आटा | शावर दे० 'शाबर'। --- पिष्टम् स्फटिक, - भवनम् चावल का खेत,-वाहनः | शाश्वत (वि.) (स्त्री०-ती) [शश्वद् भवः अण] नित्य, भारत का एक विख्यात राजा जिसके नाम से सनातन, चिरस्थायी - शाश्वतीः समाः -रामा० खिस्तान्द 78 में एक संवत्सर आरंभ हुआ,-होत्रः (=उत्तर० 25) 'अविच्छिन्न वर्षों के लिए,' 'सदा 1. पशुचिकित्सा पर ग्रन्थप्रणेता 2. घोड़ा,--होत्रिन् के लिए' 'समस्त आगामी समय के लिए' उत्तर० (पुं०) घोड़ा। 5 / 27, रघु०१४।१४,--तः 1. शिव 2. व्यास 3. सूर्य, शालिकः [ शालि+के+क] 1. जुलाहा 2. मार्गकर, - तम् अव्य०) नित्य, निरन्तर, सदा के लिए। शुल्क / शाश्वतिक (वि०) (स्त्री०-की) शाश्वत + ठक्] नित्य, शालिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ शाला+इनि] (बहुधा स्थायी, सनातन, सतत-शाश्वतिको विरोध: "नैसर्गिक . समास के अन्त में) 1. सहित, युक्त, सम्पन्न, चमकीला, विरोध" / चमकदार-कि० 8 / 17, 55, भट्टि० 42 2. घरेल। शाश्वती [शाश्वत+ङीप पृथ्वी। शालिनी [शालिन्+ङीप्] 1. घर की स्वामिनी, गृहिणी शाकुल (वि.) (स्त्री०-ली) [शष्कुल+अण् ] मांस 2. छन्द का नाम - दे० परि०१। (या मत्स्य। भक्षी। शालीन (वि.) [शाला+खा] 1. विनीत, लज्जाशील, | शाष्कुलिकम् [शष्कुली-1-ठक पूरियों का ढेर / शर्मीला, लज्जाल निसर्गशालीनः स्त्रीजन:-मालवि० शास् (अदा० पर० शास्ति, शिष्ट) 1. अध्यापन करना, 4, रघु० 6 / 81, 18 / 17, शि०१६।८३ 2. सदृश, शिक्षण प्रदान करना, प्रशिक्षित (इस अर्थ में धातु समान, नः गृहस्थ (शालीनी कृ विनयी बनाना, द्विकर्म है) माणवकं धर्म शास्ति--सिद्धा, भट्टि० विनम्र करना)। 6.10, शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्-भग० For Private and Personal Use Only Page #1023 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के साशाशासक शास् / 217 2. राज्य करना, शासन करना,-अनन्यशासना- सम-पत्रम् 1. वह ताम्रपत्र जिस पर भूदान की मुर्वी शशासैकपुरीमिव-रघु० 1130, 10 / 1, 14 / 85, राजाज्ञा खोदी गई हो 2. वह कागज जिस पर कोई 19457, श०१।१४, भट्रि० 3153 3. आज्ञा देना, राजाज्ञा अंकित हो, - हारिन् (पुं०) राजदूत, संदेशसमादिष्ट करना, निदेश देना, हुक्म देना - रघु० वाहक - रघु० 3 / 68 / 12 // 34, कु. 624, भट्टि० 9 / 68 4. कहना, | शासित (भू० क० कृ०) [ शास्+क्त ] 1. राज्य किया सम्वाद देना, सूचित करना, (संप्र० के साथ) गया, शासन किया गया 2. दण्डित।। ---तस्मिन्नायोधनं वृत्तं लक्ष्मणायाशिषन्महत्--भट्टि शासित (पुं०) [ शास्+तृच ] 1. राज्य करने वाला, 6 / 27, मनु० 1982 5. उपदेश देना–स किसखा शासक 2. दण्ड देने वाला--श० श२५ / साधु न शास्ति योऽधिपम् -कि० 115 6. आदेश | शास्तु (पुं०) [ शास्+तृच, इडभावः ] 1. अध्यापक, देना, राजाज्ञा लागू करना 7. दण्ड देना, सज़ा देना, शिक्षक 2. शासक, राजा, प्रभु 3. पिता 4. बुद्ध या निर्दोष बनाना, मनु० 4 / 175, 8129 8. सधाना, जैन धर्म का गुरु, आचार्य / / वशीभूत करना, महावी०६।२०, अनु , 1. (क) शास्त्रम् [ शिष्यतेऽनेन-शास्+ष्ट्रन् ] 1. आज्ञा, समादेश, उपदेश देना, प्रेरित करना-कु० 5 / 5, (ख) अध्यापन नियम, विधि 2. वेदविधि, धर्मशास्त्र की आशा करना, शिक्षण प्रदान करना, आज्ञा देना, आदेश 3. धार्मिक ग्रन्थ, वेद, धर्मशास्त्र, दे० नी. समस्तपद करना-रघु० 6 / 59, 13 / 75, भट्टि० 2017 4. विद्याविभाग, विज्ञान - इति गृह्यतमं शास्त्रम् 2. राज्य करना, शासन करना 3. सजा देना, दण्ड --- भग० 15 / 20, शास्त्रेष्वकुण्ठिता बुद्धि:--रघु० देना-वेणी०२ 4. प्रशंसा करना, स्तुति करना, 1 / 19; प्रायः समास के अन्त में विषयद्योतक शब्द आ-, (बहुधा आ०) 1. आशीर्वाद देना, आशीर्वाद के पश्चात्, या उस विषय पर समष्टि-अध्ययन का उच्चारण करना, –ऋक्छन्दसा आशास्ते--श० 4, संचित भण्डार वेदान्त शास्त्र, न्यायशास्त्र, तर्कशास्त्र, उत्तर०१ 2. आज्ञा देना, आदेश देना, निदेश देना अलंकार शास्त्र आदि 5. पुस्तक, ग्रन्थ -तन्त्रः पंच(इस अर्थ में पर०) भट्रि० 6 / 4 3. इच्छा करना, भिरेतच्चकार सुमनोहरं शास्त्रम्--पंच०१6. सिद्धान्त खोजना, आशा करना, प्रत्याशा करना-सर्वमस्मि- (विप० प्रयोग या अभ्यास)-मालवि०१। सम० न्वयमाशास्महे -- श० 7, आशासतं ततः शान्तिमस्तु- --अतिक्रमः, अननुष्ठानम वैदिक विधियों का रग्नीनहावयत्-भट्टि० 1711, 5 / 16, मनु० 3.80 उल्लंघन, धार्मिक प्रामाणिकता की अवहेलना,-अनु4. प्रशंसा करना, प्र, 1. अध्यापन करना, शिक्षण ष्ठानम् वेदविधि का पालन या तदनुरूपता, - अभिन देना, उपदेश करना,-भट्रि० 19 / 19 2. आदेश (वि०) शास्त्रों में निष्णात, अर्थः 1. वेदविधि का देना, समादिष्ट करना-प्रशाधि यन्मया कार्यम् अर्थ 2. वैदिक विधि या शास्त्रीय वक्तव्य, आचरणम् ----मार्कण्डेय० 3. राज्य करना, शासन करना, प्रभु वेदविधि का पालन,-उक्त (वि०) शास्त्रविधि से बनना-द्यां प्रशाधि गलितावधिकालम.. नै०५।२४, विहित, शास्त्रों की आज्ञा, वैध, कानूनी,-कारः,---कृत् रघु०६७६, 9 / 14. दण्ड देना, सजा देना 5. प्रार्थना (पुं०) 1. किसी धर्मशास्त्र का रचयिता 2. ग्रन्थ करना, याचना करना, तलाश करना, (आ.)-इदं प्रणेता,-कोविद (वि.) शास्त्रों में निष्णात,-गण्डः कविम्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे उत्तर० 111 दिखाऊ पाठक, हलका अध्ययन करने वाला विद्यार्थी, (आपूर्वक शास् के अर्थ में प्रयुक्त) / पल्लवग्राही, चक्षुस् (नपुं०) व्याकरण (शास्त्रों को शासनम् [शास्+ल्यट] 1. शिक्षण, अध्यापन, अनु- समझने के लिए 'आँख'), ज्ञ, -विद् (वि०) शास्त्रों शासन 2. राज्य, प्रभुत्व, सरकार अनन्यशासना- का जानकार, ज्ञानम् धर्मशास्त्र का ज्ञान, वेद की मुर्वीम-रघु० 1130, इसी प्रकार 'अप्रतिशासनम्' जानकारी,-तत्त्वम् शास्त्रों में वर्णित सचाई, वैदिक 3. आज्ञा, आदेश, निदेश-तरुभिरपि देवस्य शासनं तत्त्व, - दशिन् (वि.) धर्मशास्त्रों का ज्ञाता,-दृष्ट प्रमाणीकृतम्-- श०६, रघु० 3 / 69, 14 / 83, 181 (वि.) धर्मशास्त्रों में विहित या उक्त,-दृष्टि: 18. राजविज्ञप्ति, अधिनियम, राजाज्ञा 5. विधि, (स्त्री०) शास्त्रीय दृष्टिकोण, --योनिः शास्त्रों का नियम 6. अग्रहार, राजा द्वारा दान की हुई भूमि, स्रोत या उदगमस्थान,-विधानम्,--विधिः शास्त्रीय अधिकार-पत्र, अहं त्वां शासनशतेन योजयिष्यामि विधि, वेदाज्ञा, --विप्रतिषेधः, --विरोधः 1. शास्त्रीय --पंच०१, याज्ञ० 2 / 240, 29 7. पट्टा, दस्तावेज़, विधियों का पारस्परिक विरोध, विधि-विधान की लिखित समझौता 8. आवेशों का नियन्त्रण (समास के असंगति 2. वेद विधि के विरुद्ध आचरण,- विमुख अन्त में प्रयुक्त 'शासन' का अर्थ है, दण्ड देने वाला, (वि.) अध्ययन से पराङ्मुख ---पंच. 1, विरुद्ध विनाशक, या मारक यथा स्मरशासनः, पाकशासनः)।। (वि०) शास्त्रों के विपरीत, अवैध, गैरकानूनी, For Private and Personal Use Only Page #1024 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1015 ) व्यत्पत्तिः (स्त्री०) धर्मशास्त्रों का , अन्तरंग ज्ञान, / भ्यासः काव्य० 1, अभूच्च नम्रः प्रणिपातशिक्षया शास्त्रों में प्रवीणता, शिल्पिन (पु.) काश्मीरदेश, ---रघु० 3 / 25, मालवि० 4 / 9, रणशिक्षा 'युद्ध---सिस (वि०) धर्मशास्त्रों के प्रमाणानुसार विज्ञान' 4. छ: वेदांगों में से एक जिसके द्वारा शब्दों स्थापित / का सही उच्चारण तथा सन्धि के नियम सिखाये शास्त्रिन् (वि.) (स्त्री०-णी) [ शास्त्र - इनि ] शास्त्रों जाते हैं 5. विनय, विनम्रता / सम० --करः में अभिज्ञ, कुशल (पुं०) शास्त्रों में पारंगत, विद्वान् 1. अध्यापक, शिक्षक 2. व्यास, नरः इन्द्र का विशेपुरुष, महान पंडित। षण, शक्तिः (स्त्री०) कुशलता / शास्त्रीय (वि.) [ शास्त्रेण विहितः छ | 1. वेदविहित, शिक्षित (भू० क० कृ०) [शिक्ष-+क्त, शिक्षा जाताऽस्य शास्त्रानुमोदित 2. वैज्ञानिक / -तार० इतन् ] 1. अधिगत, अधीत 2. अध्यापित, शास्य (वि.) [ शास-+ ण्यत् ] 1. सिखलाये जाने योग्य. सिखाया गया-अशिक्षितपटुत्वम् श० 5 / 21 उपदेश दिये जाने योग्य 2. विनियमित या शासित 3. प्रशिक्षित, अनुशासित 4. सघाया हुआ, विनयकिये जाने के योग्य 3. दण्डनीय, दण्डाह।। शील 5. कुशल, चतुर 6. विनीत, लज्जाशील / शि (स्वा० उभ० शिनोति, शिनुते) 1. तेज़ करना, पैनाना / सम०-- अक्षरः शिष्य, - आयुध (वि०) हथियारों 2. कृश करना, पतला करना 3. उत्तेजित करना के संचालन में अभिज्ञ / 4. सावधान होना 5. तीक्ष्ण होना। शिखण्डः [शिखाममति-अम-|-ड, शक० पररूपम्] 1. शिः [शि-+-क्विप् ] 1. माङ्गलिकता, स्वरसाम्यता | मुंडन - संस्कार के अवसर पर रखी गई शिखा, चोटी, 2. स्वस्थता, सौम्यता, शान्ति, अमन-चैन 3. शिव या दोनों पार्श्व में छोड़े गये बाल, काकपक्ष 2. मोर का विशेषण। की पूछ। शिशपा [ शिवं पाति-शिव+पा+क, पृषो० साधु: ] शिलण्डकः [शिखण्ड इव+-कन्] 1. चूडाकर्म सस्कार के 1. शीशम का पेड़ 2. अशोक वृक्ष / अवसर पर सिर पर रक्खी गई चोटी 2. सिर के शिक्कु (वि.) [ सिच्+कु, पृषो ] सुस्त, आलसी, पार्श्वभागों में छोड़े गये बाल (क्षत्रियों के लिए यह अकर्मण्य / चोटी तीन या पाँच होती हैं) उत्तर० 4 / 19 3. शिक्थम् [ सिन्+थक्, पृषो०] मोम, तु० सिक्थ' / कलंगी, बालों का गुच्छा, चूडा या शेखर 4. मयूर शिक्यम्, शिक्या [ संस्+-यत्, कुगागमः, शि आदेशः पुच्छ। -शिक्य+टाप् ] 1. (रस्सी से बुना हुआ) छींका, | शिखण्डिकः [शिखण्डिन्+के+क:] मुर्गा / झोला 2. बहंगी पर लटका कर ले जाये जाने वाला | शिखण्डिका दे० शिखण्ड (1) / बोझ / शिखण्डिन् (वि.) [शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि] कलगीदार, शिवियत (वि०) [ शिक्य+णिच् + क्त ] छींके में लट शिखाधारी. (पुं०) 1. मोर-नदति स एष वधूसखः काया हुआ। शिखण्डी-उत्तर० 3 / 18, रघु० 1139, कु० 215 शिश् (म्वा० आ० शिक्षते शिक्षित) सीखना, अध्ययन 2. मुर्गा 3. बाण 4. मोर की पूंछ 5. एक प्रकार करना, ज्ञानार्जन करना अशिक्षतानं पितुरेव मन्त्र- की चमेली 6. विष्णु 7. द्रुपद के एक पुत्र का नाम वत्--रघु० 3 / 311 (शिखण्डी मूलरूप से स्त्री था, क्योंकि अंबा ने भीष्म शिक्षकः (स्त्री० शिक्षका, शिक्षिका) [ शिक्ष+णिच से बदला चुकाने के लिए द्रुपद के घर जन्म लिया +ण्वल ] 1. सीखने वाला 2. अध्यापक, सिखाने (दे० अंबा)। परन्तु जन्म से ही उस कन्या की वाला,-यस्योभयं (अर्थात क्रिया और संक्रान्ति) साघु पुत्ररूप में घोषणा की गई और पुत्र की भांति ही स शिक्षकाणां धुरि प्रतिष्ठापयितव्य एव-मालवि. उसकी शिक्षा-दीक्षा हई। समय पाकर उसका 216 / विवाह हिरण्यवर्मा की पुत्री से हुआ, परन्तु जब शिक्षणम् [शिक्ष् + ल्युट ] 1. सीखना, अधिगम, ज्ञानार्जन हिरण्यवर्मा को ज्ञात हुआ कि मेरा जामाता तो 2. अध्यापन, सिखाना। सचमुच स्त्री है तो उसे बड़ा दुःख हुआ, इसलिए शिक्षमाणः [ शिक्ष-+-शानच् ] शिष्य, विद्यार्थी, विद्या- उसने इस धोखा दिये जाने के कारण द्रपद की राजभ्यासी। घानी पर चढ़ाई करने की सोची। परन्तु शिखंडी ने शिक्षा [शिक्षु भाव अ+टाप् ] 1. अधिगम, अध्ययन, एक जंगल में रह कर घोर तपस्या की, और किसी ज्ञानाभिग्रहण-रघु० 2 / 63 2. किसी कार्य को करने उपाय से उसने अपना स्त्रीत्व यक्ष को देकर उसका के योग्य होने की इच्छा, निष्णात होने की इच्छा पुरुषत्व बदले में प्राप्त किया और इस प्रकार दुपद 3. अध्यापन, शिक्षण, प्रशिक्षण-काव्यशशिक्षया- | के ऊपर बाए हुए संकट को टाला। बाद में महा For Private and Personal Use Only Page #1025 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत के युद्ध में भीष्म पितामह को मारने का एक | 2. कलंगीदार, शिखाधारी 3. घमंडी (पुं०) साधन बना। जब अर्जन ने शिखंडी को अपने योद्धा / 1. मोर-पंच० 11159, विक्रम० 2 / 23, शि० 4 / 50 के रूप में आगे कर दिया तो भीष्म पितामह ने 2. अग्नि रिपुरिव सखीसंवासोऽयं शिखीव हिमास्त्री के साथ युद्ध करने से हाथ खींच लिया। बाद निल: गीत० 7, पंच० ४।११०,रघु० 19154, में अश्वत्थामा ने शिखंडी को मार डाला)। शि० 157 3. मुर्गा 4. बाण 5. वृक्ष 6. दीपक शिलण्डिनी [शिखण्डिन+कीप] 1. मोरनी 2. एक प्रकार 7. सांड़ 8. घोड़ा 9. पहाड़ 10. ब्राह्मण 11. साधु की चमेली 2. द्रुपद की पुत्री दे. ऊ. 'शिखंडिन् / 12. केतु 13. तीन की संख्या 14. चित्रक वृक्ष / शिखरः, -रम् [शिखा अस्त्यस्य-अरच आलोपः] 1. चोटी, सम० कण्ठम् --ग्रीवम् तूतिया, नीला थोथा पहाड़ का सिरा या शृंग-जगाम गौरी शिखर शिख- . ध्वजः 2. कार्तिकेय का विशेषण 2. घूओं - पिच्छम् ण्डिमत् कु. 57, 14, मेघ. 18 2.वृक्ष का सिर -पुच्छम् मोर की पूंछ, दुम,-यूपः बारहसिंगा, या चोटी 3. कलगी, चडा 4. तलवार की नोक या -.. वर्षकः गोल लौकी,-वाहनः कार्तिकेय का विशेषण घार 5. चोटी, शृंग, शीर्षबिन्दु 6. कांख, बगल 7. --शिखा 1. ज्वाला 2. मोर की कलंगी। बालों का कड़ा होना 8. अरवी चमेली की कली 9. शिपुः [शि+रुक गुक च] 1. सागभाजी 2. सहिजन एक लाल की भांति मणि। सम०-वासिनी दुर्गा का पेड़। का विशेषण। शिखः (म्वा० पर० शिखति) जाना, हिलना-जुलना / शिखरिणी [शिखरिन्+डीप] 1. नारीरल 2. चीनी | शिख (भ्वा० पर०) सूचना / मिश्रित दही जिसमें मसाले पड़े हों, श्रीखंड 3. | शिक्षाणः [शिद्ध+आणक, पृषो० कलोप:] 1. पपड़ी, रोमावली जो वक्षःस्थल से चलकर नाभि को पार कर | झाग 2. बलगम, कफ,-णम् 1. नाक की मल, सिणक जाती है 4. एक छन्द का नाम --दे० परि०१। 2. लोहे का जंग 3. शीशे का बर्तन / शिखरिन (वि०) (स्त्री०-णी) [शिखरमस्त्यस्य इनि] शिजाणकः, कम् [शिक+अणक] नासिकामल, सिणक, 1. चोटी वाला, शिखाधारी 2. नुकीला, शिखरयुक्त कः कफ, बलैंगम / —शिखरिदशना - मेघ० 82, (पुं०) 1. पहाड़ शिञ्ज (भ्वा० अदा० आ०, चुरा० उभ०-शिजते, शिङ्क्ते, - इतश्च शरणार्थिनां शिखरिणां गणाः शेरते -भर्त. शिजयति ते, शिञ्जित) टनटनाना, झनझनाना, 2176, मघ०१३, रघु० 9 / 12, 22 2. पहाड़ी दुर्ग खड़खड़ाना-शि०१०।६२ / 3. वृक्ष 4. टिटिहरी 5. अपामार्ग का पौधा / शिजः [शि +घञ ] टंकार, झनझनाहट, टनटन या शिक्षा [शि+खक तस्य नेत्वम्, पृषो०] 1. सिर की चोटी झनझन की ध्वनि, विशेषकर झांवर आदि गहनों पर बालों का गुच्छा मुद्रा० 3130, शि. 450, की झंकार। मा० 106 2. चोटी, शिखाग्रन्थि 3. चडा, शिजञ्जिका (स्त्री०) कटिबंध, करधनी / कलगी 4. चोटी, शिखर, शीर्षबिन्दु -कि० शिजा [शिज+अ+टाप | 1. टंकार, झंकार आदि 6 / 17 5. तेज सिरा, धार, नोक या सिरा-श. 2. धनुष की डोरी। 114, भामि० 12 6. वस्त्र का छोर, श० 1 / 14 | शिजित (भू० क० कृ०) शिज+क्त ] टंकृत, संकृत 7. अम्बि ज्वाला प्रभामहत्या शिखयेव दीपः कु. तम् टंकार, (झावर आदि गहनों की) झंकार, 1128, रघु०१७॥३४ 8. प्रकाश की किरण - कु० --कृजितं राजहंसानां नेदं न पुरशिजितम्-विक्रम 2238 1. मोर की कलगी 10 जटायुक्त जड़ 4 / 14 / 11. शाखा (विशेष रूप से जड़ पकड़ती हुई) 12. शिजिनी [शि + णिनि+डीप ] 1. धनुष की डोरी प्रधान या मुखिया 13. कामज्वर। सम० तरः 2. झांवर नूपुर (पैरों में पहना जाने वाला गहना) / दीपाधार, दीवट,-धरः मोर, . °जम् मोर का पंख, | शिट् (भ्वा० पर० शेटति) तुच्छ समझना, घृणा करना, --धारः मोर,-मणिः चूड़ामणि, मूलम् 1. गाजर तिरस्कार करना। 2. मूली,--वरः कटहल का पेड़,-बल (वि.) नुकीला | शित (भू. क. कृ०) [शो+क्त ] 1. तेज किया हुआ, कलगीदार, (-8:) मोर, वृक्षः दीपाचार, दीवट, पैनाया हुआ 2. पतला, कृश 3. छीजा हुआ-श्रीण -बुद्धिः (स्त्री०) प्रतिदिन बढ़ने वाला व्याज। दुर्बल, बलहीन / सम० --अपः काँटा,-धारा (वि.) शिलालः [शिखा+आलुच्] मोर की कलंगी। तेज धार वाला, - शुक: 1. जो 2. गेहूँ। शिक्षावत (वि.) [शिखा+मतुप] 1. कलगीदार | शितः (स्त्री०) सतलज नाम की नदी दे० 'सतद्र'। 2. ज्वालामय, (पुं०) 1. दीपक 2. आग / शिति (वि.)[शि+क्तिच ] 1. श्वेत 2. काला-शि. शिलिन् (वि०) [शिखा अस्त्यस्य इनि] 1. नुकीला / १५॥४८-ति: भूर्जवृक्ष। सम-कण्ठः 1. शिव सकार। For Private and Personal Use Only Page #1026 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का विशेषण-तस्यात्मा शितिकण्ठस्य सैनापत्यमपेत्य / का (स्त्री०) 1. रेशेदार जड़ 2. कमल की जड़ 3. जड़ वः-कु० 2 / 61, 6 / 81 2. मोर-अवनतशितिकण्ठ 4. कोड़े की मार 5. माँ 6. एक नदी। सम... धरः कण्ठलक्ष्मीमिह दधति स्फुरिताणुरेणुजाला:-शि० / शाखा, कहः वटवृक्ष। 4156 3. जलकुक्कुट,--छवः,-पक्षः हंस,-रत्नम् शिफाक: [ शिफा+कन् ] कमल की जड़ / नीलम,-बासस् (पुं०)बलराम का विशेषण---विडम्ब- शिविः (वि) [ शि+वि ] 1. शिकारी जानवर 2. भूर्जयन्तं शितिवासस्तनुम् - शि. 116 / वृक्ष 3. एक देश का नाम (ब० व०) 4. एक राजा का शिथिल (वि.) [श्लथ+किलच, पुषो०] 1. ढीला, धीमा, नाम (कहते हैं कि कबूतरी के रूप में इसने बाज़ सुस्त, विश्रान्त 2. विनबंधा, खुला हुआ श० 216 रूपधारी इन्द्र से अग्नि की रक्षा की थी, और तोल में 3. वियुक्त, डाल से टूटा हुआ-श० 218, 4. निढाल, कबूतर के बराबर अपना मांस इन्द्र के सामने प्रस्तुत निश्शक्त, असमर्थ 5. दुर्बल, कमजोर--अशिथिल- किया था) तु० मुद्रा०६।१७। परिरम्भ -- उत्तर० 1 / 34, 27, गाढ या दृढालिंगन | शिबि (वि) का [ शिवं करोति--शिव-+-णि+दुल] 6. पिलपिला, ढीलाढाला 7. घुला हुआ 8. मुआया 1. पालकी, डोली 2. अरथी। हुआ 9. निष्क्रिय, निरर्थक , व्यर्थ 10. असावधान शिवि (वि) रम [ शेरते राजबलानि अत्र-शी+किरच, 11. ढीलेढाले ढंग से किया हुआ, परी पावन्दी के साथ बुकागमः, ह्रस्व: 11. तंबू-धृष्टद्युम्नः स्वशिबिरमयं जिसको सम्पन्न न किया गया हो 12. फेंका हआ, याति सर्वे सहध्वम्-वेणी० 3 / 18, शि० 5 / 68 परित्यक्त, ...लम् 1. ढीलापन, शिथिलता 2. सुस्ती 2. राजकीय तंबू, या ख मा 3. सेना की रक्षा के लिए (शिथिली कृ 1. ढीला करना, खोलना, खुला छोड़ना, अकाट्य निवेश 4. एक प्रकार का अन्न। 2. छूट देना, ढील डालना 3. दुर्बल करना, निर्बल शिवि (वि) रथः [ शिवेः भूर्जवृक्षस्य ई: शोभा यत्र करना, कमजोर बनाना 4. छोड़ देना, परित्यक्त करना | तादृशो रथः ] पालकी, डोली। . रघु० 2141. शिथिली भू 1. ढीला होना, सुस्त होना शिम्बा | शम्+इम्बच्, पृषो०] फली, छीमी, सेम / 2. गिर पड़ना-मृच्छ० 1113) / शिम्बिका [ शिम्बा+कन्+टाप, इत्वम् ] 1. फली, सेम शिथिलयति (ना० घा० पर०) 1. विश्राम करना, घोमा | 2. एक प्रकार के काले उड़द (कुछ के अनुसार पुं० करना, ढीला करना 2. छोड़ देना, परित्याग करना भी)। ...वेणी० 5 / 6 3. कम करना, शान्त होने देना | शिम्बी (स्त्री०) 1. फली, सेम 2. एक प्रकार का पौधा। ---विक्रम०२। | शिरम् [श+क] 1. सिर 2. पिप्परामल (इन अयों में शिथिलित (वि०) [ शिथिल+इतच ] 1. ढीला किया कुछ के अनुसार पुं० भी),--र: 1. शय्या 2. अज हुआ 2. विधान्त, खोला हुआ 3. घुला हुआ, गर। सम -ज बास। प्रविलीन। शिरस् (नपुं०) [शृ+असुन्, निपातः] 1. सिर - शिरसाशिनिः [ शी+निः ह्रस्वश्च ] यादवों के पक्ष का एक इलाघते पूर्व (गुणं) परं (दोष) कण्ठे नियच्छति योद्धा (शिनेनंप्त (पुं०) सात्यकि)। . -सुभा० 2. खोपड़ी 3. शृङ्ग, चोटी, शिखर (पहाड़ शिपिः [शी+क्विप्, शी+पा+क, पूषो. ह्रस्व: इत्वं आदि का)-हिमगौररचलाधिप: शिरोभिः-कि०५। च] प्रकाश की एक किरण--(स्त्री०) त्वचा, चमड़ा 11, शि. 4154 4, वृक्ष की चोटी 5. किसी चीज़ ..(नपुं०) जल शैत्याच्छयनयोगाच्च शिपिबारि का सिर या शिरोबिन्दु-शिरसि मसीपटलं वषाति प्रचक्षते-व्यास / सम-विष्ट (वि.) (शिपविष्ट, दीपः---भामि० 1174 6. कंगरा, कलश, उच्चतम तथा शिविपिष्ट भी लिखा जाता है) 1. किरणों से बिन्दु 7. अग्रभाग, अगला भाग, सेना का अगला भाग व्याप्त 2. गंजा, गंजेसिर वाला 3. कोढ़ी (ष्टः) -श० 7 / 26, उत्तर० 35 8. मुख्य, प्रधान, 1. विष्णु 2. शिव 3. गंजी खोपड़ी वाला 4. शिश्ना मुखिया (बहुधा समास के अन्त में) (सघोष व्यंजनों प्रच्छदविहीन 5. कोढ़ी। के पूर्व 'शिरस्' बदल कर समास में "शिरों हो जाता शिप्रः [ शिरक, पुक] हिमालय पर्वत पर स्थित एक है)। सम० - अस्थि (शिरोऽस्थि) खोपड़ी, कपालिन् सरोवर। (पुं०) मनुष्य-खोपड़ी रखने वाला संन्यासी, शिप्रा [ शिप्र+टाप् ] शिप्र सरोवर से निकली एक नदी ----गहम् सबसे ऊपर का घर, चन्द्रशाला, अट्टालिका, का नाम जिसके तट पर उज्जयिनी नगर बसा हुआ .-प्रहः सिर पीड़ा, सिर दर्द, - छेदः - छेदनम् है-शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार: (शिरच्छेवः आदि) सिर काट देना, सिर कलम --मेघ० 31 / कर देना,-तापिन् (पुं०) हाथी,--त्रम्, प्राणम् शिफ: वे० 'शिफा'। 1. लोहे को टोप -च्यतः शिरस्त्रश्चषकोत्तरेव 128 For Private and Personal Use Only Page #1027 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1018 ) -रघु० 7449, 66, अपनीतशिरस्त्राणा:-४।६४ 1. पत्थर का आसन, चौकी आदि 2. शैलेय गन्धद्रव्य, 2. सिर की टोपी, पगड़ी,-धरा,-धिः ग्रीवा, गरदन, गुग्गुल,- आह्वम् शिलाजतु,--उच्चयः पहाड़, विशाल शि० 452, ५।६५,-पीड़ा सिर दर्द - फल: नारियल चट्टान-रघु०२।३४,---उत्थम् शैलेयगन्धद्रव्य, गुग्गुल, का पेड़,-भूषणम् सिर पर पहनने का आभूषण ., उब्रुवम् 1. शैलेयगन्धद्रव्य 2. बढ़िया किस्म की –मणि 1. मस्तक पर धारण करने का रत्न 2. चूड़ा- चन्दन की लकड़ी,-ओकस् (पुं०) गरुड़ का विशेपण मगि 3. विद्वान् पुरुषों के लिए सम्मानयोतक उपाधि, -कुट्टकः पत्थर तोड़ने की छेनी, टाँकी,-कुसुमम्, --मर्मन् (पुं०) सूअर,-मालिन् (पुं०) शिव का . पुष्पम्, शैलेय गन्धद्रव्य, -ज (वि०) शिलाजीत, विशषण,-रत्नम् शिरोमणि,-इजा सिरदर्द, - रह. खनिजद्रव्य (-जम्) 1. शिलाजीत 2. शैलेयगन्धद्रव्य (पुं०)- रुहः (शिरसिह -वहः भी) सिर के बाल 3. पेट्रोल 4. लोहा 5. कोई भी शिलीभूत पदार्थ, -ऋतु० 114, कु० 5 / 9, रघु० १५।१६,-वतिन् . जतु (नपुं०) 1. शिलाजीत 2. गेरु, --जित (स्त्री०), (वि.) मुखिया (पुं०) मुख्य, प्रधान के रूप में रहने - दद्रुः शिलाजीत,-धातुः 1. खड़िया मिट्टी 2. गेरु वाला, --- वृत्तम् मिरच,- वेष्टः,-वेष्टनम् सिर पर 3. सफेद शिलोभूत पदार्थ,-पट्टः, पत्थर की शिला पहनने का वस्त्र, पगड़ी, * शूलम् सिरदर्द,-हारिन् जिस पर बैठा जाय, शिलासन,-पुत्रः,-पुत्रकः मशाला (पुं०) शिव का विशेषण / पीसने की छोटी शिला, सिल, प्रतिकृतिः (स्त्री०) शिरसिजः [शिरसि जन्+ड सप्तम्या अलुक] सिर के प्रस्तर मूर्ति, फलकम् पत्थर की सिल, भवम् बाल,--शि० 7162 / शैलेयगन्धद्रव्य,-भेदः संगतराश की छेनी, टांकी,-रस: शिरस्कम् [शिरस्-+कन्] 1. लोहे का टोप 2. पगड़ी, 1. शैलेयगन्धद्रव्य 2. धूप, वल्कलम् एक प्रकार की टोपी। काई जो पत्थर पर जम जाती है, वृष्टिः (स्त्री०) शिरस्का [शिरस्क+टाप] पालकी / 1. पत्थरों की वर्षा 1. ओलों की बारिश,-वेश्मन शिरस्तस् (अव्य०) [शिरस्+तस्] सिर से -कु० 3149, (नपुं०) गुफा, पत्थर की दरार, व्याधिः शिलाजीत / भ०२।१०। शिलिः [शिल+कि] भूर्जवृक्ष - (स्त्री०) चौखट की नीचे शिरस्य (वि.) [शिरसि भवः यत् सिर संबंधी या सिर | की लकड़ी / पर स्थित,-स्यः स्वच्छ केश। शिलिन्दः [शिलि+दा+क, पृषो० मुम्] एक प्रकार की शिरा (श+क+टाप] नलिका के आकार की शरीर की मछली। वाहिका, नाड़ी, खून की नाड़ी, रक्तवाहिनी नाड़ी।। शिली [ शिलि-डीष | 1. दरवाजे की चौखट की नीचे सम-पत्रः कपित्थ, कैथवृक्ष,-वृत्तम् सीसा / की लकड़ी 2. एक प्रकार का भकीट, केंचआ 3. खंभे शिराल (वि.) [शिरा+लच् स्नायवी, शिरायुक्त, शिरा- की चोटी 4. भाला 5. बाण 6. गण्डपद 7. मेंढकी। बहुल। सम० -मुखः भौंरा-मिलितशिलीमखपाटलिपटलकृत शिरिः [श+कि] 1. तलवार 2. वध करने वाला, कतल स्मरतुणविलासे-गीत० 1, रघु० 4 / 57 2. बाण-सा करने वाला 3. बाण 4. टिड्डी। कुसुमघटितशिलीमुखमनोहरान्मदनचापादिव प्रमदशिरीषः[श-+ईषन्, किच्च] सिरस का पेड़,--षम् सिरस वनात् त्रस्यस्ति-का० 225, या, युगपद्विका का फूल (यह सुकुमारता का नमूना समझा जाता है) शमदयाद्गमिते शशिनः शिलीमखगणोऽलभत शि० -शिरीषपुष्पाधिकसौकुमार्यो बाह तदीयाविति मे वितर्कः 9 / 41, (दोनों संदर्भो में शब्द (1.) तथा (2.) अर्थ --कु. 1141, 5 / 4, रघु०१६।४८, मेघ०६५ / में प्रयुक्त हुआ है) 3. मूर्ख / शिल (तुदा० पर० शिलति) शिलोंछन, सिला चुगना, शिलीन्ध्रः शिलीं धरति--+क पृषो० मम ] 1. एक बालें इकट्ठा करना। प्रकार की मछली 2. एक वृक्ष,--ध्रम् 1. कुकुरमुत्ता. शिल:, लम् [शिल् +क] शिलोंछन, बाले चुनना,-दे० मनु० साँप की छतरी, जैसा कि 'उच्छिलीन्ध्र' में 2. केले के 101112 पर कुल्ल / सम०-उञ्छ: 1. शिलावृत्ति वृक्ष का फूल-अधिपुरन्ध्रि शिलीन्ध्रसुगन्धिभि:--शि० 2. अनियमित वृत्ति / / 6.32, या, अलिनारमतालिनी शिलीन्धे-७२ शिला [शिल+टाप] 1. पत्थर चट्टान 2. चक्की 3. चौखट 1. ओला। की नीचे की लकड़ी 4. खंबे की चोटी 5. कंडरा, शिलीन्ध्रकम् [ शिलीन्ध्र-+कन् ] कुकुरमुत्ता, खुंब, साँप रक्तवाहिका 6. मनः शिला, मैनसिल 7. कपूर / / की छतरी। सम०-- अष्टक: 1. छिद्र 2. बाड़, बाड़ा 3. चौबारा, शिलीन्ध्री [ शिलीन्ध्र+ङीप ] 1. मृत्तिका, मिट्टी अटारी,---आत्मजम् लोहा,-आत्मिका कुठाली, धरिया, 2. केंचुआ। -आरम्भा काष्ठकदली, जंगली केला,-आसनम् / शिल्पम् [ शिल+ पक् ] 1. कला, ललितकला, यान्त्रिक For Private and Personal Use Only Page #1028 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (( 1019 ) कला, (इस प्रकार की कलाएँ चौंसठ गिनाई गई हैं) विष्णु का चक्र,- दार (नपुं०) देवदारु का पेड़ 2. (किसी भी कला में) कुशलबा, कारीगरी / -- द्रुमः बल का पेड़,-द्विष्टा केतकी का पेड़,---धातुः --मालवि० 116, मृच्छ० 3.15 3. विदग्धता, पारा,-पुरम्,-पुरी बनारस, वाराणसी,--पुराणम पटुता 4. कार्य, शारीरिक श्रम या कार्य 5. कृत्य, अठारह पुराणों में से एक,--प्रियः 1: स्फटिक 2. बक अनुष्ठान 6. यज्ञीय चमचा, सवा। सम० -- कर्मन नाम का पेड़ 3. धतूरा,- मल्लक: अर्जुनवृक्ष,-राज(नपुं०)-क्रिया कोई भी शारीरिक श्रम, दस्तकारी, धानी वाराणसी,-रात्रिः (स्त्री०) फाल्गुनकृष्ण -कारः,-कारकः,-कारिन् दस्तकार, कारीगर, चतुर्दशी जब शिव के सम्मान में कठोरव्रत का पालन -शालम्,-शाला कारखाना, निर्माणी, शिल्पविद्यालय, किया जाता है,-लिङ्गम् शिव जिसकी पिंडी या लिंग शिल्पगृह, -शास्त्रम् 1. कला विषय पर (चाहे ललित के रूप में पूजा होती है,-लोकः शिव का संसार हो या यान्त्रिक) लिखा गया ग्रंथ 2. शिल्पविज्ञान / -बल्लभः आम का वृक्ष,(-भा) पार्वती,- बाहनः शिल्पिन (वि.)[ शिल्प-+इनि ] 1. ललित या यांत्रिक- सौड़,-वीजम् पारा,-शेखरः 1. चाँद 2. धतूरा, कला संबंधी 2. यांत्रिक, यंत्रवत् (पुं०) 1. दस्तकार, - सुन्दरी दुर्गा का विशेषण / कलाकार, कारीगर 2. जो किसी भी कला में शिवकः [शिव+कन] 1. वह खंटा जिसके साथ प्रायः गौ प्रवीण हो। आदि पशु बाधे जाते हैं 2. वह खंबा जिससे पशु शिव (वि.) [ श्यति पापम्-शो+वन, पृषो०] 1. शुभ, / अपना शरीर रगड़ता है, पशुओं के शरीर को खुज मांगलिक, सौभाग्यशाली-इयं शिवाया नियतेरिवायतिः लाने के लिए खूटा। -कि० 4 / 21, 1138, रघु० -11 / 33 2. स्वस्थ, | शिवा [शिव+टाप्] 1. पार्वती 2. गीदड़ी-जहासि निद्राप्रसन्न, समृद्ध, सौभाग्यशाली शिवानि वस्तीर्थजलानि मशिवः शिवारुतैः-- कि० 138, हरेरद्य द्वारे शिवकच्चित् - रघु० 5 / 8, (=अनुपप्लवानि 'शान्त') शिव शिवानां कलकल:--भामि०२३२, रघु०७१५०, शिवास्ते सन्तु पन्थान: 'भगवान् आपकी यात्रा सफल 161, 12,39 3. मोक्ष 4. शमी (जैडी) का वृक्ष करे',-वः हिन्दुओं के तीन प्रधान देवताओं (त्रिमूर्ति) 5. आंवला 6. दूर्वाघास, दूब 7. पीला रंग 8. हल्दी, में से तीसरा देव जिसका कार्य सृष्टि का संहार करना सम..- अरातिः कुत्ता,-प्रियः बकरा,--फला शमी है, जिस प्रकार ब्रह्मा का कार्य उत्पादन तथा विष्णु का (जैडी) का वृक्ष,-रुतम् गीदड़ का रोना--कि. सृष्टि-पालन है--एको देवः केशवो वा शिवो वा 1138 / -भर्तृ० 2 / 115 2. पुरुष की जननेन्द्रिय, शिश्न , शिवानी [शिव+जीप, आनुक] शिव की पत्नी पार्वती / 3. शुभ ग्रहों का योग 4. वेद 5. मोक्ष 6. पशुओं का शिवालुः [शिव+आलुच्] गीदड़। बाँधने का खूटा 7. सुर, देवता 8. पारा 9. गुग्गुल | शिशिर (वि०) [शश्+किरच्-नि] ठंडा, शीतल, सर्द 10. काला धतूरा, वो (पुं०, द्वि व०) शिव और जमा हुआ---कुरु यदुनन्दनचन्दनशिशिरतरेण करेण पार्वती ---कि० ५।४०,-वम् 1. समृद्धि, कल्याण, पयोधरे—गीत० 12, रघु 9 / 59, 14 // 3, 16:49, मंगल, आनन्द-तव वर्मनि वर्तता शिवम - नै० -रः, रम् 1. ओस, तुषार या पाला-पद्यानां शिशिरा२१६२, रत्न० 1 / 2, रघु० 1160 2. परमानन्द, द्वयम्, जातां मन्ये शिशिरमथितां पपिनी वान्यरूपाम् मांगलिकता 3. मोक्ष 4. जल 5. समुद्री नमक 6. सेंधा ---मेघ 83 2. जाड़े का मौसम, (माघ और फाल्गुन नमक 7. शुद्ध सोहागा। सम०-अक्षम् =रुद्राक्ष, की) सर्दी-कण्ठेषु स्खलितं गतेऽपि शिशिर पुस्कोकिदे०,-आत्मकम् सेंधा नमक,-आदेशक: 1.शुभ समाचार लानां रुतम् -- श०६।३ 3. ठंडक, शीतलता। सम० लाने वाला 2. भविष्यववता, --- आलयः 1. शिव का - अंशुः, करः,--किरणः,-दीधितिः,-रश्मिः चन्द्रमा आवास 2. लाल तुलसी (यम्) 1. शिव मन्दिर -बुध इव शिशिरांशो:-विक्रम० 5 / 21, शिशिकिरण2. श्मशान, इतर (वि.) अशुभ, दुर्भाग्यपूर्ण-शिवेतर- कान्तं वासरान्तेऽभिसार्य-शि०११।२१, शिशिरदीधिक्षतये-काव्य०१, --कर ('शिवकर' भी) (वि.) तिना रजन्यः - ऋतु० 3 / 2, अत्ययः, -- अपगमः, आनन्दप्रदायक, मंगलप्रद,-कीर्तनः भंगी का नाम, जाड़े का अन्त, वसन्त ऋतु - स्वहस्तलूनः शिशिरात्य-.--गति (वि०) समृद्ध, आनन्दित,-धर्मजः मंगलग्रह, यस्य (पुष्पोच्चयः)-कुः 3 / 61, उपहितं शिशिराप---- ताति (वि) जिसका अन्त कल्याणकारी हो, गमश्रिया-रघु० ९।३१,-कालः, -- समयः जाड़े की आनन्ददायक, मंगलप्रद --प्रयत्नः कृत्स्नोऽयं, फलत ऋतु,-घ्नः अग्नि का विशेषण / शिवतातिश्च भवतु मा० 67 2. मदु, जो शिशुः [शो+कु, सन्वद्भावः, द्वित्वम] 1. बालक, बच्चा, राक्षसी न हो--मा पूतनात्वमपगा: शिवतातिरेधि शिशु शिष्या वा-उत्तर० 4 / 11 2. किसी भी ---9 / 49, (तिः) मांगलिकता, . आनन्द, -- दत्तम् / जानवर का बच्चा (बछड़ा, पिल्ला, छोना आदि) For Private and Personal Use Only Page #1029 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. ( 1020 ) श० 1114, 7 / 14,18 3. आठ या सोलह वर्ष से कम / जाना, श्रेष्ठ होना, (अपा० के साथ) अपेक्षाकृत आयु का बालक / सम-कन्दः, क्रन्दनम् बच्चे का बढ़िया और दूसरों से अच्छा होना मनु० 2 / 83, रोना,-- गम्धा एक प्रकार की मल्लिका, पालः दम- 3 / 203, (प्रेर०) आगे बढ़ जाना श्रेष्ठ होना-मृच्छ० घोष का पुत्र तथा चेदि देश का राजा (विष्णुपुराण 4 / 4, मालवि० 3 / 5 / के अनुसार यह राजा पूर्वजन्म में राक्षसों का राजा | शिष्ट (भू० क०कृ०) [शास्+क्त, शिष+ क्त वा] 1. पापी हिरण्यकशिपु था जिसे नरसिंह का रूप धारण कर छोड़ा हुआ, बचा हुआ, अवशिष्ट, बाकी 2. आदिष्ट, विष्णु ने मार गिराया था। उसके पश्चात् इसने दस समादिष्ट 3. प्रशिक्षित, शिक्षित, अशिष्ट 4. सधाया सिर वाले रावण के रूप में जन्म लिया, और राम ने हुआ, पालतू, वश्य 5. बुद्धिमान, विद्वान् --शि० 2010 इसको मार डाला। फिर इसी ने दमघोष के घर 6. सद्गुणसंपन्न, माननीय 7. शिष्ट, नम्र 8. मुख्य, जन्म लिया - और विष्णु के अष्टम अवतार कृष्ण प्रधान, श्रेष्ठ, उत्तम, पूज्य, प्रमुख,--ष्टः प्रमुख या भगवान से और भी अधिक निष्ठरता के साथ पूज्य व्यक्ति 2. बुद्धिमान् पुरुष 3. परामर्शदाता / निरन्तर द्वेष करता रहा (दे०शि०१) जब युधिष्ठिर सम० -- आचारः 1. बुद्धिमान मनुष्यों का आचरण के राजसूय यज्ञ में यह कृष्ण से मिला तो उसे बुरा शिष्टाचरण, सच्चरित्र,-सभा विद्वान् या श्रष्ठ भला कहने लगा, कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से पुरुषों की सभा, राज्यसभा। इसका सिर काट डाला। इसकी मृत्यु ही, माघकवि के शिष्टि (स्त्री शास...क्तिन] 1 राज्य. प्रसिद्धकाव्य का विषय है), "हम, (पु०) कृष्ण का आज्ञा, आदेश 3. सजा, दण्ड / विशेषण,-मारः संस नाम का जलजन्तु,-वाहकः, शिष्यः शिास-क्यप] 1. छात्र, चेला, विद्यार्थी, -बाह्यक: जंगली बकरा। --शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् .. भग० 217 शिशुकः [शिशु+कन्] 1. बालक, बच्चा 2. किसी भी। 2. क्रोध, आवेश। सम० परम्परा चेलों का अनुजानवर का बच्चा 3. वृक्ष 4. संस। क्रम, किसी गरु-संप्रदाय की परंपरित शिष्यमंडली, शिश्नम्, शिस्नम् [शश्+नक इत्वम्] पुरुष की जननेन्द्रिय, --शिष्टिः (स्त्री०) छात्र का शोधन, भत्सना / लिङ्ग-याज्ञ० 1117, मनु० 111104 / शिलः, शिलकः [सिह +लक्, नि० सस्य शः] शैलेय शिक्विवान (वि.) [श्वित्+सन्+आनच्, सनो लुक्, गन्धद्रव्य / द्वित्वम्, रकारस्य दकारः 1. पवित्र आचरण वाला, | शी (अदा० आ० शेते, शयित, कर्मवा० शय्यते, इच्छा० सद्गुणी, पुण्यात्मा 2. दुष्ट, पापी। शिशयिषते) 1. लेटना, लेट जाना, विश्राम करना, शिष् i (भ्वा० पर०, शेषति) चोट पहुंचाना, मार आराम करना, इतश्च शरणार्थिनः शिखरिणां गणाः डालना। शेरते-भर्त० 2176 2. सोना, (आलं० से भी) ii(म्वा पर०, चुरा० उभ० शेषति, शेषयति-ते) -कि निःशङ्के शेषे-शेषे वयसः समागतो मृत्युः / अथवा अबशिष्ट छोड़ देना, बना देना। सुखं शयीथा निकटे जागति जाह्नवी जननी-भामि० iii (रुषा० पर० शिनष्टि, शिष्ट) 1. बाक़ी छोड़ना, 4 / 30, भ० 3179, कु० 5 / 12, प्रेर० (शाययति बचा रखना, अवशिष्ट छोड़ना 2. दूसरों से भिन्नता -ते) सुलाना, लिटाना, अति-, 1. सोने में पहल करना-प्रेर० (शेषयति-ते) छोड़ना, अव-, बाकी करना 2. बाद में सोना- अपेक्षाकृत देर तक सोना छोड़ना, पीछे छोड़ना (प्रायः कर्मवा० में) स्तम्बन ... अहं पतीनातिशये. महा0 3. श्रेष्ठ होना, आगे नीवार इवावशिष्ट:---रघु० 5 / 15, कियदवशिष्टं बढ़ जाना—पूर्वान्महाभाग तयातिशेषे . रघु० 5 / 14, रजन्याः - श० 4, निद्रागमसीम्नः कियदवशिष्टम चरितेन चातिंशयिता मुनयः-कि० 632, भट्रि० - महावी०६, भग० 7 / 2, उद्---, बाक़ी छोड़ना 7.46, (प्रेर०) आगे बढ़ने का कारग बनना-चाम्या--दे० 'उच्छिष्ट', परि-, अवशिष्ट छोड़ना (प्रेर० तिशाययति धाम सहस्रधाम्न:- मुद्रा० 3317, अधि-, भी-भविता करेणुपरिशेषिता मही-भामि० (स्थान में कर्म के साथ) लेटना, सोना, आराम 1153, वि--, 1. विशिष्ट करना, विशेषता देना, करना.... अध्यशयिष्ट गाम्-भट्टि० 15 / 14, अमुं विशेष रूप से कहना, परिभाषा करना 2. भेद करना, युगान्तोचितयोगनिद्रः संहत्य लोकान् पुरुषोऽधिशेते विवेचन करना 3. बढ़ाना, ऊँचा करना, वृद्धि करना, ... रघु० 1316, 16 / 49, 19 / 32, कि० 1138, गहरा करना -पुनरकाण्डविवर्तनदारुणो विधिरहो 2. बसना, रहना,- भट्टि. 10135, उप .., सोना, विशिनष्टि मनोरुजम्-मा० 4 / 4, उत्तर० 4 / 15 / निकट लेटना, सम , संदेह में होना-संशय्य कर्णा(कर्मवा०) 1. भिन्न होना-- रघु० 17462 2. दिषु तिष्ठते यः--कि० 3 / 14,42, भामि० 2 / 115 / अपेक्षाकृत अच्छा या ऊँचे दर्जे का होना, आगे बढ़ | शी [ शी+क्विप्] 1. निद्रा, विश्राम 2. शान्ति / For Private and Personal Use Only Page #1030 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1021 ) शोक i (म्वा० आ० शीकते) 1. तर करना, छिड़कना / गन्धद्रव्य, प्रभः कपूर,--भानुः चाँद,---भीरः एक 2. शनैः शनैः जाना, हिलना-जुलना / प्रकार की मल्लिका, - मयखः, मरीचिः, - रश्मिः ii (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० शीकति, शीकयति-ते) | 1. चाँद 2. कपूर,-रम्यः दीपक, - इच् (पुं०) चाँद, 1. क्रोध करना 2. आर्द्र करना, गीला करना। - वल्क: गूलर का पेड़, -वीर्यकः बड़ का पेड़,-शिवः शीकरः [शीक+अरन्] 1. वायप्रेरित छींटे, सूक्ष्मवृष्टि, शमीवृक्ष, जैडी का पेड़, (बम् ) 1. सेंधानमक बौछार, तुषार-कु०१।१५, 2052, रघु० 5 / 42, 2. सुहागा,-शूकः जी, - स्पर्श (वि०) ठंडक पहुंचाने 9 / 68, कि० 5 / 15 2. जलकण, वृष्टिकण-गतम- वाला। परिघनानां वारिगौदराणां पिशनयति रथस्ते शीकर- शीतक (वि.) शीत+कन्] ठण्डा, दे० 'शीत', क्लिन्ननमिः-शा० 7 / 7, रघु० १७।६२,-रम् 1. सरल- 1. कोई ठण्डी वस्तु 2. जाड़े की ऋतु, सर्दी का मौसम वृक्ष 2. इस वृक्ष की राल / 3. मन्थर, दीर्घसूत्री 4. आनन्दित, निश्चिन्त 5. बिच्छ। शोघ्र ( वि० ) [शिङ्घ,+रक्, नि०] फुर्तीला, त्वरित, शीतल (वि.) [शीतं लाति-ला+क, शीतमस्त्यस्य लच् सत्वर-विबभ्रन्मणि मण्डलचारशीघ्रः विक्रम०५।२, वा] ठण्डा, शीतलगुण युक्त, सर्द, (ठण्ड के कारण) - नः ( ज्योति० में ) ग्रहयोग,-घ्रम् ( अव्य०) जमा हुआ (आलं० से भी)- अतिशीतलमप्यम्भः फुर्ती से, तेजी से, जल्दी से। सम०-उसः (ज्योति कि भिनत्ति न भूभृत:-सुभा०, महदपि परदुःखं शीतलं में) ग्रयोग, कारिन् ( वि० ) फुर्तीला, चुस्त, सम्यगाहु:-विक्रम० 4 / 13, लः 1. चाँद, 2. एक - कोपिन् (वि.) चिड़चिड़ा, क्रोधी, चेतनः कुत्ता, प्रकार का कपूर 3. एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान, -- बुद्धि (वि०) तीक्ष्णबद्धि वाला, तेज़ बुद्धिवाला, -लम् 1. ठण्डक, ठण्डापन 2. जाड़े की ऋतु -----लडन (वि०) तेज जाने वाला, पैर फुर्ती से 3. शैलेयगन्धद्रव्य 4. सफेद चन्दन, या चन्दन 5. मोती रखने वाला-घट०८, वेधिन् (पुं०) तेज़ धनुर्धर / 6. तूतिया 7. कमल 8. वीरण नामक मूल / सम. शोध्रिन् (वि.) [शीन+इनि सत्वर, फुर्तीला। ------छवः चम्पक वृक्ष,-जलम् कमल,-प्रदः-वम् चन्दन, शोध्रिय (वि०) [शीघ्र+घ चुस्त,--यः 1. विष्णु 2. शिव | --षष्ठी माघ शुक्ला छठ। बिल्लियों की लड़ाई। | शीतलकम् [शीतल+कन्] सफेद कमल / घ्रघम् [शीघ्र+यत् चुस्ती, शीघ्रता। शीतला [शीतल+टाप्] 1. चेचक 2. चेचक (शीतला) शीत् (अव्य०) आकस्मिक पीड़ा या आनन्द को अभि- की अधिष्ठात्री देवता। सम० पूजा शीतला देवी व्यक्त करने वाली ध्वनि (विशेषकर आनन्दोद्रेक की की पूजा। वह ध्वनि जो सम्भोग के समय होती है)। सम० - शीतली शीतल+डीष चेचक / -~-कारः,-कृत् (पुं०) उपर्युक्तध्वनि, सिसकारी। शोता दे० 'सीता'। शीत (वि०) [श्य+क्त] 1. ठण्डा, शीतल, जमा हुआ, शीताल (वि.) [शीतं न सहते-- शीत+आलच] सर्दी ...--तब कुसुमशरत्वं शोतरश्मित्वमिन्दोः-श० 3 / 2 / / से ठिठुरता हुआ, जिसे सर्दी लग गई है, जाड़े के 2. मन्द, सुस्त, उदासीन, आलसी 3. अलस, सुस्त, कारण कष्ट पाता हुआ - शि० 8 / 19 / जड़, तः 1. एक प्रकार का नरकुल 2. नील का शोत्य दे० 'सीत्य' / वृक्ष 3. जाड़े की ऋतु, (नपुं० भी) 4. कपूर, तम् शोधु (पुं०, नपुं०) [शी+-धुक ] 1. कोई भी प्रास्त 1. ठण्डक, शीतलता, सर्दी आः शीतं तुहिनाचलस्य मदिरा, अंगूरी शराब 2. शराब। सम०-गन्धः करयो:-काव्य० 10 2. जल 3. दारचीनी। सम० बकुल वृक्ष, मौलसिरी का पेड़, पः शराबी। ---अंशुः 1. चाँद वक्त्रेन्द्रौ तव सत्ययं यदपरः / शीन (वि.) [ श्य+क्त ] 1. जमा हुआ, घनीभूत, नः शीतांशुरुज्जृम्भते - काव्य० 10 2. कपूर, अदः 1. जड़, बुद्ध 2. अजगर।। मसूड़ों के पकजाने या उनमें ब्रण हो जाने का रोग, | शीभू (भ्वा० आ० शीभते) 1. शेखी बघारना 2. बतलाना, पायरिया, अद्रिः हिमालय पहाड़,--अश्मन् (पुं०) कहना, बोलना, (कथने ?) / चन्द्रकान्तमणि,- आर्त (वि०) ठंड से व्याकुल, जाड़े शीम्यः [शीभ+ण्यतु] 1. साँड़ 2. शिव।। से ठिठुरा हुआ, उत्तमम् पानी, काल: जाड़े की शोरः [शीड-+रक] अजगर देसीर' भी। ऋतु, सर्दी का मौसम, कालीन (वि०) जाड़े में | शीर्ण (भू० क. कृ०) [शवत ] 1. कुम्हलाया हुआ, होने वाला, -कृच्छ,- छम् एक प्रकार की धार्मिक | मुझीया हुआ, सड़ा हुआ 2. सूखा, शुष्क 3. टूटा फूटा, साधना,--गन्धम् सफेद चन्दन,-T: 1. चाँद 2. कपूर, चूर चूर हुआ 4. दुबला-पतला, कुश (दे० श),-र्णम् चम्पक: 1. दीपक 2. दर्पण, दीधितिः चाँद,-पुष्पः एक प्रकार का गन्ध द्रव्य / सम० अघ्रिः ,—पादः शिरीष का वृक्ष, शिरस का पेड़, - पुष्पकम् शैलेय ! 1. यम का विशेषण 2. शनिग्रह का विशेषण,-पर्णम For Private and Personal Use Only Page #1031 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीवि टकर, क्षतिक शीर्षादेशः वैद्यः - ( 1022 ) कुम्हलाया हुआ पत्ता (इसी प्रकार 'शीर्णपत्रम् (र्णः) / स्वभाव, अच्छी प्रकृति---शीलं परं भूषणम्--भर्तृ० नीम का पेड़,... वृन्तम् तरबूज / 2 / 82 पंच० 5 / 2 4. सद्गुण, नैतिकता, सदाचरण, शीवि (वि०) [ श+क्विन् ] विनाशकारी, आघातयुक्त, सज्जीवन, शुचिता, ईमानदारी-दौमन्त्र्यानृपतिवि नश्यति....''शीलं खलोपासनात् ---भर्त० 242, 39, शीर्षम् [शिरस पृषो० शीर्षादेशः, शु+क सुक् च वा ] तथा हि ते शीलमदारदर्शने तपस्विनामध्यपदेशतां 1. सिरशीर्षे सो देशान्तरे वैद्यः - कर्पूर०, मुद्रा० गतम्-कु० 5 / 36, कि० 11 / 25, रघु० 1070 श२१ 2. काला अगर। सम० - अवशेषः केवल 5. सौन्दर्य, सुन्दर रूप। सम० खण्डनम् शुविता सिर ही बचा हुआ,-आमयः सिर का कोई भी रोग, या नैतिकता का उल्लंघन-पंच० 1, * धारिन् (पुं०) -छेदः सिर काट डालना, ..-छेद्य (वि.) जिसका शिव का विशेषण,-वंचना शुचिता का उल्लंघन, सिर काट डालना चाहिए, सिर काट कर मारे जाने के प्राप्तेयं शीलवंचना-मृच्छ० 1144 / योग्य-उत्तर० 218, रघु० 15151, रक्षकम् लोहे | शीलनम् [शील+ल्युट ] 1. बार बार अभ्यास, प्रयोग, का टोप / अध्ययन, संवर्धन 2. निरन्तर प्रयोग 3. सम्मान करना, शीर्षक: [ शीर्ष-कन् ] राहु का विशेषण, कम् 1. सिर सेवा करना 4. वस्त्र पहनना। 2. खोपड़ी 3. लोहे का टोप 4. सिर का वस्त्र, (टोपी, | शीलित (भ० क. कृ.) [शील-+क्त ] 1. अभ्यस्त, टोप आदि) 5. व्यवस्था, निर्णय, न्यायालय का प्रयुक्त 2. धारण किया हुआ 3. बार-बार किया निर्णय / हुआ, देखा हुआ 4. कुशल 5. युक्त, सहित, शीर्षण्यः [ शीर्षन+यत् ] साफ़ तथा सुलझे हुए सिर के | सम्पन्न / बाल,--ण्यम् 1. लोहे का टोप 2. टोप, टोपी। शोवन् (पुं०) [शीङ्+क्वनिप् ] अजगर / शीर्षन् (नपुं०) / शिरस् शब्दस्य पृषो० शीर्षन् आदेशः ] शुंशुमारः [ 'शिशुमार' का भ्रष्ट रूप] सूस नामक सिर, (इस शब्द के पहले पाँच वचनों में कोई रूप जल जन्तु / नहीं होते, कर्म० द्वि० व० के पश्चात् 'शिरस्' या | शुरु (भ्वा० पर० शोकति) जाना, हिलना-जुलना / 'शीर्ष' को विकल्प से आदेश हो जाता है)। शुकः [ शुक्--क] 1. तोता-आत्मनो मुखदोषेण बध्यन्ते शील i (भ्वा० पर० शीलति) 1. मध्यस्थता करना, भली शुकसारिका:-सुभा० / तुराताम्रकूटिल: पक्षहरितकोभांति सोचना 2. सेवा करना, सम्मान करना, पूजा मलैः। त्रिवर्णराजिभिः कण्ठरेते मंजूगिरः शुकाः --- करना 3. सम्पन्न करना, अभ्यास करना / काव्या०२।९ 2. सिरस का पेड़ 3. व्यास का एक ii (चुरा० उभ. शीलयति-ते) 1. सम्मान करना, पुत्र (कहा जाता है कि 'शक' व्यास के वीर्य से पूजा करना 2. बार बार अभ्यास करना, प्रयोग उत्पन्न हुआ था, जब घृताची नाम को अप्सरा शकी करना, अध्ययन करना, चिन्तन करना, ध्यान करना के रूप में इस पृथ्वी पर धूम रही थी तो उसको -----श्रुतिशतमपि भूयः शीलितं भारतं वा * भामि० देख कर व्यास का वीर्यपात हो गया था। शुक 2135, शीलयन्ति मुनयः सुशीलताम् -कि० 13 / 43 जन्म से ही दार्शनिक था उसने अपनी नैतिक वाक्3. धारण करना, पहनना-चल सखि कुजं सतिमिर पटुता से स्वर्गीय अप्सरा रम्भा के काम मार्ग पर पुजं शीलय नीलनिचोलम-गीत०५ 4. जाना, दर्शन प्रेरित करने के प्रत्येक प्रयत्न का सफलता पूर्वक करना, बार बार जाना—यदनुगमनाय निशि गहन मुकाबला किया। कहते हैं कि उसी ने राजा मपि शोलितम् -गीत०७, स्मेरानना सपदि शीलय परीक्षित को भागवत पुराण सुनाया। अत्यन्त कठोर सौधमौलिम्-भामि० 214, अनु --, परि , बार साधक के रूप में उसका नाम किंवदन्ती की तरह बार अभ्यास करना, सुधारना, चिन्तन करना-शश्व प्रसिद्ध हो गया,-कम् 1. कपड़ा, वस्त्र 2. लोहे का च्छ तोऽपि मनसा परिशीलितोऽसि---राज० / टोप 3. पगड़ी 4. वस्त्र की किनारी या मगजी / शीलः [ शील+अच् ] अजगर, -- लम् 1. स्वभाव, प्रकृति, सम-अवनः अनार का पेड़,-तरः,-द्रुमः सिरस का चरित्र, प्रवृत्ति, रुचि, आदत, प्रथा - समानशीलव्य- पेड़ - नास (वि.) तोते जैसी नाक वाला,- नासिका सनेषु सख्यम् - सुभा०, 'अनुसक्त' 'दुर्व्यस्त' 'प्रवण' तोते की नाक जैसी नाक,- पुच्छः गन्धक, - पुष्पः, 'लीन' 'अभ्यास' आदि अर्थ प्रकट करने के लिए | -प्रियः सिरस का पेड़,-पुष्पा जामुन का पेड़,-वल्लभः बहधा समास के अन्त में प्रयुक्त, कलहशील 'कलह "अनार का पेड़, --वाहः कामदेव का विशेषण / करने के स्वभाव वाला' 'झगड़ाल' भावनशील चिन्तन- शुक्त (भू० क० कृ०) [शुच+क्त ] 1. उज्ज्वल, विशुद्ध, शील, इसी प्रकार दान , मृगया', दया, पुण्य , स्वच्छ 2. अम्ल, खट्टा 3. कर्कश, खरखरा, कड़ा, आश्वासन आदि 2. आचरण, व्यवहार 3. अच्छा | कठोर 4. संयुक्त, जुड़ा हुआ 5. परित्यक्त, एकाकी, For Private and Personal Use Only Page #1032 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir THA समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलता अनाज की बाल, किंशाए / का पेड़, वटवृक्ष / ( 1023 ) क्तम् 1. मांस 2. कांजी 3. एक प्रकार का खट्टा / शुक्षिः [ शुस् +क्सिः ] 1. वायु, हवा 2. प्रकाश, कान्ति तरल पदार्थ, (सिरका आदि)। 3. अग्नि / शक्तिः (स्त्री०) [शुच् + क्तिन् / 1. सीप का खोल | शङ्गः [शम+ग, नि० साधुः / 1. बड़ का पेड़ 2. वदी -मोती की सीप ... पात्रविशेषन्यस्तं गुणान्तरं ब्रजति / बेर का पेड़ 3. अनाज काटूड, किशारु / शिल्पमाधातुः / जलमिव समुद्रशुक्तो मुक्ताफलतां | शुङ्गा [ शुङ्ग-टाप् ] 1. नूतन कली का कोष 2. जो या पयोदस्य-मालवि०१६, भर्तृ० 2 / 67 रघु०१३।१७ 2. शंख 3. छोटी सीप, पुट्ठा 4. खोपड़ी का एक / शुङ्गिन् (पुं०) [ शुङ्गा+इनि | बड़ का पेड़, वटवृक्ष / भाग 5. घोड़े की छाती या गर्दन पर) पर बालों शच् / (म्वा० पर० शोचति) खिन्न होना, दुःखी होना, का घू घर, शि० 5 / 4, दे० उस पर मल्लि० 6 एक शोक करना, विलाप करना-अरोदीद्रावणोऽशोचीप्रकार का गंधद्रव्य 7. दो कर्ष के समान विशेष न्मोहं चाशिश्रियत्परम्-भट्टि० 1571, 2116, तोल | सम०-उद्भवं जम् मोती, पुटम्,-पेशी भग० 1615 2. खेद प्रकट करना, पछताना, मोती की सीप का खोल,-वधः मोती का सीप, अनु शोक मनाना, विलाप करना, खेद प्रकट करना वीजम् मोती। - नष्टं मृतमतिक्रान्तं नानुशोचन्ति पंडिता:- पंच० शुक्तिका [ शुक्ति+कन् +टाप् ] मोती का सीप, सीपी / 11333 -भग० 2 / 11, वेणो० 5 / 4, उत्तर० 3 / 32, शुक्रः शुच्+रक्, नि० कुत्वम् ] 1. शुक्रग्रह परि--, विलाप करना, शोक मनाना। 2. राक्षसों के गुरु जिसने अपने जादू के मंत्रों से युद्ध ii (दिवा० उभ० शुच्यति-ते) 1. खिन्न होना, में मरे हुए राक्षसों को पुनर्जीवित कर दिया था- दे० दुःखी होना 2. आर्द्र होना 3. चमकना 4. स्वच्छ 'कच' ,देवयानी' और 'ययाति' 3. ज्येष्ठमास 4. अग्नि, या निर्मल होना 5. कुम्हलाना, मुआना। - क्रम् 1. वीर्य ..पुमान् सोऽधिके शुक्रे स्त्री शुच, शुचा (स्त्री०) [ शुच -क्विप्, टाप वा ] रंज, शोक, भवत्यधिके स्त्रियाः . मनु० 3 / 69, 5163 2. किसी कष्ट, दुःख-विकलकरणः पाण्डुच्छायः शुचा परिदुर्बल: भी वस्तु का सत् / सम०---अनः मोर,-कर -उत्तर० 3 / 22, कामं जीवति मे नाथ इति सा विजही (वि०) शुक्र या वीर्य सम्बन्धी, (29) हड्डियों में शुचम्-रघु० 12175, 8 / 72, मेघ०८८, श० 4 / 18 / रहने वाली मज्जा, --बारः, बासरः भृगुवार, जुमा शचि (वि०)[ शुच-कि ] 1. विमल, विशुद्ध, स्वच्छ --शिष्यः राक्षस / --सकलहंसगुणं शुचिमानसं--कि० 5 / 13 2. श्वेत, शुक्रल, शुक्रिय (वि०) [ शुक्र+ला+क, शुत्र+घ ] | कि० 18 / 18 3. उज्ज्वल, चमकदार--प्रभवति शुचि1. वीर्यसम्बन्धी 2. शुक्र या वीर्य को बढ़ाने वाला / बिम्बोद्माहे मणिर्न मदां चयः-उत्तर० 214 शुक्ल (वि.) [शु+लुक, कुत्वम् ] सफेद, विशुद्ध, 4. सद्गुणी, पवित्रात्मा, पुण्यात्मा, निष्पाप, निष्कलंक उज्ज्वल जैसा कि 'शुक्लापाङ्ग' में,--- क्ल: 1. सफेद --- अथ तु वेत्सि शुचिव्रतमात्मनः---श० 5 / 27, पथ: रंग 2. चांद्रमास का उज्ज्वल या सूदी पक्ष 3. शिव, शुचेर्दर्शयितार ईश्वराः-रघु० 3 / 46, कि० 5 / 13 -क्लम् 1. चाँदी 2. आंखों की सफेदी में होने वाला 5. पवित्रीकृत, निर्मल किया हुआ, पुनीत बनाया रोग विशेष 3. ताजा मक्खन 4. (खट्टी) कांजी। हुआ-रघु० 181, मनु० 471 6. ईमानदार, सम०-अङ्ग:--अपाङ्गः मोर (आँखों के श्वेत कोण खरा, निष्ठावान्, सच्चा, निश्छल-पंच० 11200 होने के कारण) शुक्लापांगैः सजलनयनः स्वागतोकृत्य 7. सही यथार्थ,---चिः 1. श्वेत वर्ण 2. पवित्रता, केका: - मेघ० 22-- अम्लम् एक प्रकार का खट्टा पवित्रीकरण 3. भोलापन, सद्गण, भद्रता, खरापन साग, चूक,-उपला रवेदार चीनी,-कण्ठकः एक प्रकार 4. शुद्धता, यथार्थता 5. ब्रह्मचारी की दशा 6. पवि. का जल कुक्कुट,-कर्मन् (वि.) शुद्धाचारी, सद्गुणी, त्रात्मा 7. ब्राह्मण 8. ग्रीष्म ऋतु-उपययो विदधन्न-- कुष्ठम् सफेद कोढ़,--धातुः खड़िया मिट्टी,-पक्षः वमल्लिका: शुचिरसो चिरसौरभसंपदः - शि० 622, मास का सुदी पक्ष, वस्त्र (वि०) श्वेत वस्त्रधारी, श५८, रघु० 3 / 3, कु० 5 / 20 1. ज्येष्ठ और -वायसः सारस आषाढ़ के महीने 10. निष्ठावान् या सच्चा मित्र शुक्लक (वि.) [ शुक्ल किन् ] सफ़ेद,-क: 1. सफेद 11. सूर्य 12. चन्द्रमा 13. अग्नि 14. शृंगार रस रंग, 2. चान्द्र मास का सुदी पक्ष / 14. शुक्रग्रह 16. चित्रक वृक्ष / सम०-ब्रुमः पवित्र वटशुक्लल (वि.) [ शुक्ल+ला+क ] सफेद। वृक्ष, -मणिः स्फटिक, मल्लिका एक प्रकार की शुक्ला[ शुक्ल+टाप् ] 1. सरस्वती 2. रवेदार चीनी चमेली, नवमल्लिका,-रोचिस् (पुं०) चन्द्रमा,-व्रत 3. श्वेतवर्ण वाली स्त्री 4. काकोली नाम का पौधा / (वि.) पुण्यात्मा, सद्गुणी,-स्मित (वि.) मधुर शुक्लिमन् (पुं०) [शुक्ल+इमनिन् ] श्वेतता, सफे दी। मुस्कान वाला-कु० 5 / 20, रघु० 8 / 48 / For Private and Personal Use Only Page #1033 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1024 ) शुचिस् (नपुं०) [ शुच्+इसुन् ] प्रकाश, कान्ति / कंचुकी-उत्तर०१, पालकः, रक्षक अन्तःपुर का शुच्य (भ्वा० पर० शुच्यति) 1. स्नान करना, नहाना- रखवाला, .. आत्मन् (वि०) शुद्धात्मा, ईमानदार धोना 2. निचोड़ना, (रस) निकालना 3. अर्क खींचना –ओवनः (शुद्धोदनः) विख्यात बुद्ध का पिता सुतः 4. बिलोना। बुद्ध चैतन्यम् विशुद्ध, प्रतिभा, प्रज्ञा - जंघः गधा शुटीरः [ = शोटीरः, पृषो० ] वीर, नायक। . -धी,--भाव, - मति (वि०) विशुद्धमना, निर्दोष, शुरु i (भ्वा० पर० शोठति) 1. बाधा डाला जाना, रुका- ईमानदार। "वट डाली जानी 2. लड़खड़ाना, लंगड़ा होना शुद्धिः (स्त्री०) [ शुध् +क्तिन् ] 1. विशुद्धता, स्वच्छता 3. मुकाबला करना। 2. चमक, कान्ति--मुक्तागणशुद्धयोऽपि (चन्द्रपादाः) ii (चुरा० उभ० शोठयति-ते) सुस्त होना, आलसी -रघु० 16 / 18 3. पवित्रता, पुण्यशीलता-तीर्थाहोना, मन्द होना। भिषेकजां शुद्धिमादधानाः महीक्षितः--रघु० 1985 शुष्ठ (भ्वा० पर०, चुत० उभ० शुण्ठति, शुण्ठयति-ते) / 4. पवित्रीकरण, प्रायश्चित्त, परिशोधन, प्रायश्चित्त 1. पवित्र करना 2. सूखना, दे० शुठ (1) भी। परक कृत्य-शरीरत्यागमात्रेण शुद्धिलाभममन्यत शुण्ठिः -ठी (स्त्री०), शुण्ठयम् [शुण्ठ+इन् शुंठि+ङीष, --रघु० 12 / 10 5. पवित्रीकरणमूलक या प्रायश्चित्त शुण्ठ+यत् ] सोंठ, सूखा अदरक / परक संस्कार 6. (ऋण) परिशोध 7. प्रतिहिंसा, शुण्यः [ शुण्ड+अच् ] 1. मदमाते हाथी के गण्डस्थल से प्रतिशोध 8. छुटकारा, (जांच द्वारा सिद्ध) निर्दोषता निकलने वाला रस 2. हाथी की सूंड / 9. सचाई, यथार्थता, याथातथ्यता 10. समाधान, शुण्डकः [शुण्ड+कन् ] 1. शराब खींचने वाला, कलाल संशोधन 11. व्यवकलन 12. दुर्गा। समपत्रम् 2. एक प्रकार का सैनिक संगीत या वाद्ययन्त्र / ऐसी सूची जिसमें अशुद्ध शब्द शुद्ध रूपों सहित लिखे शुण्डा [शुण्ड+टाप्] 1. हाथी की संड 2.खींची हई शराब गये हों 2. प्रायश्चित्त के द्वारा हुई शुद्धि का 3. मद्यपानगृह, मधुशाला 4. कमल डण्डी 5. वेश्या, प्रमाणपत्र। रंडी 6. कुटनी, दूती। सम०-पानम् मदिरालय, | शुध् (दिवा० पर०)-- शुध्यति, शुद्ध०) 1. शुद्ध या पवित्र शराबखाना। होना, (आलं० से भी) मृत्तीयः शुध्यते शोध्यं नदी शुण्डारः [ शुण्ड+ऋ---अण्] 1. शराब खींचने वाला बेगन शुध्यति / अद्भिर्गात्राणि शुध्यति मनः सत्येन 2. हाथी की सुंड या नासावद्धि-महावी० 1153 / शुध्यति —मनु० 5 / 108-9 2. शुभ होना, अनुकूल शुण्डालः [ =शुण्डारः, रलयोरभेदः ] हाथी। होना, पात्र होना -तिथिरेव यावन्न शुध्यति-मुद्रा०५ शुण्डिका [ शुण्डा : कन्+टाप, इत्वम् ] दे० 'शुण्डा' / 3. स्पष्ट किया जाना, संदेह दूर करना--न शुध्यति शुण्डिन् (पुं०) [ शुण्ड+णिनि ] 1. शराब खींचने वाला, मे अन्तरामा-मृच्छ०८ 4. व्यय किया जाना, (खर्च) कलाल 2. हाथी। सम० --भृषिका छंछ्न्दर / चुकाया जाना-व्ययः शुध्यति -पंच० 5, प्रेर०-- शुतुतिः,-gः (स्त्री०) सतलुज नदी-तु० 'शतद्रु' / (शोधयति ---ते) 1. पवित्र करना, निर्मल करना शुद्ध (भू० क० कृ०, [ शुध् +क्त ] 1. विशुद्ध, विमल, घो डालना 2. (ऋण) परिशोध करना, चुकाना, पवित्रीकृत-अन्तः शुद्धस्त्वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः / परि-, वि-, सम्-, पवित्र किया जाना, रघु० ---मेघ० 49 2. पुनीत, अकलुषित, शुचि, निर्दोष 12 / 104, मनु० 5 / 64 / --अन्वमीयत शुद्धेति शान्तेन वपुषव सा--रघु० | शुन् (तुदा० पर० शुनति) जाना, हिलना-जुलना / 15 / 77, 14 / 14 3. श्वेत, उज्ज्व ल 4. निष्कलंक, | शुनः शेपः (फः) [शुन इव शेफः यस्य-अलुक् स०] वेदाग 5. भोला-भाला, सीधा-सादा, निर्दोष 6. ईमा- एक वैदिक ऋषि, अजीगत का पुत्र (ऐतरेय ब्राह्मण नदार, खरा 7. सही, अशुद्धिरहित, यथार्थ 8. ऋण में बताया गया है कि राजा हरिश्चन्द्र ने निस्सन्तान चुकाया गया, कर्ज अदा किया गया 9. केवल, मात्र होने के कारण यह प्रतिज्ञा की कि यदि मुझे पुत्र 10. सरल, विशुद्ध, अनमिश्रित, (विप० मिश्र) लाभ हआ तो मैं वरुण देवता के लिए उसकी बलि 11. अद्वितीय 12. अधिकृत 13. पैनाया हुआ, तेज़ दे दंगा। अन्त में उसके घर पुत्र ने जन्म लिया, किया हुआ 14. अननुनासिक, -TH शिव का विशेषण, उसका नाम रोहित रक्खा गया। राजा अपनी -द्धम् 1. कोई भी विशुद्ध वस्तु 2. विशुद्ध सुरा प्रतिज्ञा को किसी न किसी बहाने टालता 3. सेंधा नमक 4. काली मिर्च / सम० --अन्तः राजा रहा। अन्ततः रोहित ने सौ गौओं के बदले अजीगर्त का अन्तःपुर, रनवास, अन्दर महल-शुद्धान्तदुर्लभ- के मध्यम पुत्र शुनः शेप को अपने स्थान पर बलि मिदं वपुराश्रमवासिनो मिसा -- 1417. दिये जाने के लिए.-खरीद लिया। परन्तु बालक कु० 6 / 52, °चारिन् (पुं०) अन्तःपुर का सेवक, | शुनः शेप ने विष्णु, इन्द्र तथा अन्य देवताओं की स्तुति For Private and Personal Use Only Page #1034 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1025 ) करके अपने आपको मृत्यु से बचा लिया। उसके | सूचक, भाग्यशाली, मंगलान्वित-अधिकं शुशुभे शुभंयुना पश्चात् विश्वामित्र ने उस लड़के को अपने कुल में द्वितयेन द्वयमेव संगतम् - रघु०८।६, भट्टि० 1 / 20 / गोद ले लिया और उसका नाम रक्खा 'देवरात')। शुभकुर (वि.) [शुभ++खच, मुम्] 1. कल्याणकारी शुनकः [ शुन्+क-शुन्+कन् ] 1. भृगुवंश में उत्पन्न | एक ऋषि का नाम 2. कुत्ता।। शुभंभावुक (वि.) [शुभम् +भू+णि+उकञ्] सजाया शुनाशी (सी) : [शुनाशीरी वायुसूर्य अस्य स्तः इति हुआ, सूभूषित, अलंकृत, उज्ज्वल।। __अच् ] 1. इन्द्र का विशेषण 2. उल्ल। शुभा शुभ+टाप] 1. कान्ति, प्रकाश 2. सौन्दर्य 3. इच्छा शुनिः [ शुन्+इन् ] कुत्ता। 4. पीलारंग, गोरोचन 5. शमी वृक्ष 6. देवसभा शुनी (स्त्री०) (श्वन्+ङीष् ] कुतिया, कुक्कुरी। 7. दूब 8. प्रियंगु लता। शुनीरः [शुनी+र] कुतियों का समूह / शुभ्र (वि.) [शभ+रक्] 1. चमकीला, उज्ज्वल, शुन्ध (भ्वा० चुरा० उ... शुन्धति–ते, शुन्धयति-ते) देदीप्यमान 2. श्वेत - पश्यति पित्तोपहतः शशिशुभ्रं 1. पवित्र या विमल होना 2. निर्मल करना, शंखमपि पीतं--काव्य० 10, रघु० 2 / 69, -भ्रः पवित्र करना। 1. श्वेत रंग 2. चन्दन (नपुं०), भ्रम् 1. चाँदी शुन्भ्यः [ शुन्थ्+युः ] हवा, वायु / 2. अभ्रक 3. सेंधा नमक 4. कसीस / सम० अंशुः, शुभ (म्वा० आ० शोभते) 1. चमकना, शानदार होना, कर: 1. चंद्रमा 2. कपूर, - रश्मिः चन्द्रमा / सुन्दर या मनोहर दिखाई देना-सुष्ठ शोभसे एतेन शुभ्रा शुभ्र+टाप्] 1. गंगा 2. स्फटिक 3. वंशलोचन / विनयमाहात्म्येन-उत्तर०१, रघु०८१६ 2. लाभकर : शुभ्रिः [शुभ+क्रिन्] ब्रह्मा का विशेषण / प्रतीत होना सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते-मच्छ० शुम्भ (भ्वा० पर० शुम्भति) 1. चमकना 2. बोलना 11. 3. उपयक्त होना, शोभा देना, योग्य होना 3. आघात पहुँचाना, क्षति पहुंचाना।। (संबं० के साथ)-रामभद्र इत्येवोपचारः शोभते तात | शुम्भः [शुम्भ-+अच एक राक्षस का नाम जिसे दुर्गा ने परिजनस्य-उत्तर० 1, प्रेर० (शोभयति ते) मार डाला था। सम०-घातिनी, -- मदिनी दुर्गा का सजाना, संवारना, अलंकृत करना, परि-, वि--- विशेषण / चमकना, शानदार दिखाई देना। शु (शू) र (दिवा० आ० शूर्यते) 1. चोट पहुँचाना, मार शुभ (वि.) [शुभ-क 1. चमकीला, उज्ज्वल डालना 2. दृढ़ करना, स्थिर करना, ठहराना। 2. सुन्दर, मनोहर-जङ्घ शुभे सष्टवतस्तदीये---कू० | शल्क (चुरा० उभ० शुल्कयति--ते) 1. लाभ उठाना 1135 3. मांगलिक, सौभाग्यशाली, प्रसन्न, समृद्धि 2. अदा करना, देना 3. रचना करना 4. कहना, शाली 4. प्रमुख, भद्र, सद्गुणी ---पंच० १३५८,--भम् वर्णन करना 5. छोड़ना, त्यागना, परित्यक्त करना। मांगलिकता, कल्याण, अच्छा भाग्य, प्रसन्नता, समृद्धि शुल्कः - कम् [शुल्क-+-घश] 1. चुंगी, कर, महसूल, -मा० 1123 2. अलंकार 3. जल 4. एक प्रकार सीमाशुल्क, विशेषतः वह कर जो राज्य द्वारा घाट या की सुगंधित लकड़ी। सम-अक्षः शिव का विशेषण, मार्ग आदि पर लिया जाता है-कः सुधीः संत्यजेद्भाण्डं -अंग (वि०) सुन्दर (गी) 1. सुन्दर स्त्री 2. कामदेव शुल्कस्यवातिसाध्वसात-हि०३।१२५, मनु०८।१५९, की पत्नी रति, अपांगा सुन्दर स्त्री,-अशुभम् सुख याज्ञ० 2147 2. किसी सौदे को पक्का करने के लिये दुःख, भला-बुरा, आचार (वि०) पवित्र आचरण दिया गया अगाऊ धन 3. (कन्या का) विक्रय मूल्य, वाला, सदाचारी,-आनना मनोरम स्त्री,-इतर (वि०) कन्या के पिता को कन्या के बदले दिया गया धन (वि.) 1. बुरा, खराब 2. अशुभं, आमांगलिक, .. पीडितो दुहितशुल्कसंस्थया---रघु० 11147, न -उवर्क (वि.) जिसका अन्त आनन्ददायक हो, कर कन्यायाः पिता विद्वान् गृह्णीयाच्छुल्कमण्वपि मनु० (वि.) कल्याणकर, मंगलप्रद,--कर्मन् (नपुं०) 3151, 8 / 204, 9 / 93, 98 4. विवाहोपहार पुण्यकार्य, * गंधकम् एक गन्धद्रव्य, बोल,-प्रहः अनुकूल 5. विवाह निश्चित करने के लिए दिया गया धन, ग्रह,--ब: बटवृक्ष,---वंती सुन्दर दाँतों वाली, लग्नः, दहेज 6. वर पक्ष की ओर से दुलहिन को दिया गया -ग्नम् शुभ मुहूर्त, मंगल घड़ी,-बार्ता शुभ समाचार, उपहार / सम० ग्राहक,-प्राहिन (वि.) शुल्कसंग्रह-वासनः पुंह को सुभाषित करने वाला गंधद्रव्य, कर्ता,--: 1. विवाहोपहार देने वाला 2. वाग्दत्त -शसिन् (वि०) शुभसूचक, मंगल की सूचना देने विवाहार्थी, शाला,- स्थानम् शुल्क जमा करने की वाला-रघु० 3314, स्पली 1. वह भवन जहाँ जगह, चुंगीधर / यज्ञों का अनुष्ठान होता हो, यज्ञभूमि 2. मंगलमूमि / शुल्लम् [शुल्व+अच, पृषो०] 1. सुतली, रस्सी, डोरी शुभंयु (वि.) [शुभमस्यास्ति-युस] 1. मंगलमय, सौभाग्य-! 2. तांबा / 129 For Private and Personal Use Only Page #1035 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1026 ) शुल्क (ल्यू) (चुरा० उभ० शुल्व-रब-यति, ते) देना, 11135 / सम०-अङ्ग (वि.) कृशकाय, (गी) प्रदान करना 2. भेजना, तितर बितर करना, छिपकली, - अन्नम् वह अनाज जिसमें से भूसा अलग 3. मापना / नहीं किया गया, कलहः 1. व्यर्थ या निराधार शुल्वम् (ल्बम्) [शुल्व+अच] 1. रस्सी, डोरी 2. तांबा झगड़ा 2. बनावटी झगड़ा-मद्रा०३,-वैरम निराधार 3. यज्ञीय कर्म 4. जल का सामीप्य, जल का निकट- वैर,--व्रण वह घाव जो अच्छा हो गया है, घाव का वर्ती स्थान 5. नियम, कानून, विधिसार, ल्वा, चिह्न। -ल्वी दे० ऊपर। शुष्कलः, लम् [शुष्क+ला+क] 1. सूखा मांस 2. मांस / शुधू (स्त्री०) [श्रु+यङ्लुक, द्वित्वादि+क्विप्] माता। शुष्मः [ शुष+मन्, किच्च ] 1. सूर्य 2. आग 3. वायु, शुश्रूषक (वि.) [श्रु+सन्, द्वित्वादि+पवल] सावधान, __हवा 4. पक्षी,-मम् 1. पराक्रम, सामर्थ्य 2. प्रकाश, आज्ञाकारी,-क सेवक, टहलुआ। कान्ति / शभूषणम्, -णा [श्रु+सन्+इत्वादि+ल्युट्] 1. सुनने की | शुष्मन् (पुं०) [शुष्+ङ्, मनिप्] अग्नि-शि० 14 / 22, इच्छा 2. सेवा, टहल 3. आज्ञाकारिता, कर्तव्य- -(नपुं०) 1. सामर्थ्य, पराक्रम 2. प्रकाश, कान्ति / परायणता। शुकः,-कम् [श्वि-+-कक, संप्रसारणम] 1. जो की बाल, शुश्रूषा [श्रु+सन्, द्वित्वादि+अ+टा] 1. सुनने की | दाढ़ी 2. पौधों के कड़े रोएँ, वृतं च खल शकः-भामि० इच्छा--अतएव शुश्रूषा मां मखरयति - मुद्रा०३ 1124 3. नोक, सिरा, तेज किनारा 4. सुकोमलता, 2. सेवा, टहल 3. कर्तव्यपरायणता, आज्ञाकारिता करुणा 5. एक प्रकार का विषैला कीड़ा। सम० 4. सम्मान 5. बोलना, कहना। -कोटः,-कीटकः एक प्रकार का कीड़ा जिसके शरीर शुभषु (वि.) [श्रु+सन्, द्वित्वादि+उ] 1. सुनने का पर रोएँ खड़े हों, धान्यम् कोई भी ऐसा अन्न जो इच्छुक 2. सेवा या टहल करने की इच्छा वाला बालों टूडो में से निकलता है (जौ आदि),-पिण्डिः, 3. आज्ञाकारी, सावधान / ---डी,--शिम्बा,---शिम्बिका,-शिम्बि केवांच, शुष् (दिवा० पर० शुष्यति, शुष्क) 1. सूखना, शुष्क होना, कपिकच्छु। खुश्क होना तृषा शुष्यत्यास्ये पिबति सलिलं स्वादु | शूककः [शूक+-कन्] 1. एकार का अन्न 2. सुकोमलता सुरभि -भर्तृ. 392 2. मुझ जाना, प्रेर० (शोष- करुणा। यति-ते) 1. सुखाना, मुझाना, खुश्क होना 2. कृश शकरः शू इत्यव्यक्तं शब्दं करोति- शू++अच्] करना, उद्-, परि--, 1. सुखाया जाना, सुखाना सूअर- गच्छ शूकर भद्रं ते वद सिंहो मया हतः, -भट्टि० 10 // 41, भग० 1129 2. म्लान होना, पण्डिता एवं जानन्ति सिंहशुकरयोर्बलम्---सुभा० / कुम्हलाना, मुर्माना, वि, सम् , सुखाया जाना / सम० इष्ट एक प्रकार का घास, मोथा / शुषः, शुषी [शुष्+क, शुष+डी] 1. सूखना, सुखाना | शूकलः [शूकवत् क्लेशं ददाति-शूक+ला+क] अड़ियल 2. बिल, भूरन्ध्र। घोड़ा। शुषिः [शुष् +कि] 1..सुखाना 2. रन्ध्र, छिद्र 3. साँप के | शूद्रः [शुच्+रक्, पृषो० चस्य दः, दीर्घः] चौथे वर्ण का विषले दांत का पोला भाग। पुरुष, हिन्दुओं के चार मुख्य वर्गों में से अन्तिम वर्ण शुधिर (वि०) [शुष्+किरच्] छिद्रयुक्त, रन्ध्रमय,-रः का पुरुष (कहा जाता है कि वह 'पुरुष या ब्रह्मा' के 1. आग 2. चूहा,--रम् 1. छिद्र 2. अन्तरिक्ष. हवा पैरों से उत्पन्न हुआ-पद्भधां शूद्रो अजायत --- ऋक्० या फंक से बजने वाला बाजा।। 10190 / 12, मनु० 1187, उसका मुख्य कर्तव्य तीनों शुषिरा [शुषिर+टाप्] 1. नदी 2. एक प्रकार का उच्चवर्णों की सेवा करना है-तु० मनु० 1191) / गन्धद्रव्य / सम०-आह्निकम् शूद्र का दैनिक अनुष्ठान,--उबकम् शुषिलः [शुष्+ इलच, स च कित्] हवा, वायु / शुद्र के स्पर्श से दूषित जल,-कृत्यम्,-धर्मः शूद्र का शुष्क (भू० क. कृ०) [शुष्+क्त] 1. सूखा, सुखाया कर्तव्य,-प्रियः प्याज,-प्रेष्यः तीनों उच्चवर्णों में से हुआ -शाखायां शुष्कं करिष्यामि-मृच्छ०८2. भुना किसी एक वर्ण का पुरुष जो शूद्र का सेवक हो हुआ, म्लान 3. झुरौंदार, सिकुड़न वाला, कृश 4. झूठ -भूयिष्ठ (वि.)जहाँ अधिकांश शूद्र रहते हों,-पाजक: मूठ, व्याजमुक्त, नकली कामिनः स्म कुरुते करभो- जो शूद्र के लिए यज्ञ का संचालन करता है,-वर्ग: वारि शुष्करुदितं च सूखेऽपि शि० 10169 शूद्रश्रेणी या सेवकवर्ग,--सेवनम् शूद्र की सेवा करना, 5. रिक्त, व्यर्थ, अनुपयोगी, अनुत्पादक-मालवि०२ शूद्र का सेवक बनना। 6. निराधार, निष्कारण 7. बुरा लगने वाला, कठोर | शूबकः / शूद्र+कन् ] एक राजा, मृच्छकटिक का प्रख्यात --तस्मै नाकुशलं ब्रूयान शुष्कां गिरमीरयेत् -- मनु० / प्रणेता। For Private and Personal Use Only Page #1036 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a ( 1027 ) शूवा [ शूद्र+टाप् ] शूद्र वर्ण की स्त्री। सम.--भार्यः तिरस्करणीय योद्धा, महावीर. ६।३२,-मानम् जिसकी पत्नी शूद्रवर्ण की हो,-बेबनम् शुद्रस्त्री से अभिमान, अहंकार, ..सेन (10 ब० ब०) मथुरा के विवाह करना,-सुतः (किसी भी जाति के पिता द्वारा) | निकट एक देश या उस देश के अधिवासी रघु० शूद्र माता का पुत्र / 6 / 45 / शूद्राणी, शूद्री [शूद्र+डीप पक्षे आनुक ] शूद्र की पत्नी। शूरणः [ शूर्+ल्युट ] सूरन नामक एक खाद्यमूल, कंद / शून (भू० क० कृ०) [श्वि+क्त] 1. सूजा हुआ 2. वर्धित | शूरंमन्य (वि.) [आत्मानं शूरं मन्यते-शुर+मन+खश्, उगा हुआ, समृद्ध / मुम् ] जो व्यक्ति अपने आपको पराक्रमी समझता है / शूना [शिव अधिकरणे क्त, संप्र० दीर्घश्च ] 1. मदु ताल, पम् [श+पः ऊश्च नित् ] छाज,-पः दो द्रोण का घंटी, उपजिह्विका 2. बूचड़खाना 3. कोई भी वस्तु तोल / सम-कर्णः हाथी,-णखा, खो (नखा (जैसे कि घर गृहस्थो का कुछ सामान) जिससे जीव के स्थान पर) जिसके नख छाज जैसे लंबे चौड़े हों, हिंसा होती हो (यह गिनती में पांच हैं-चूल्हा, चक्को रावण की बहन का नाम (वह राम के सौन्दर्य पर बुहारी, ओखली और जलपात्र)-पञ्च शूना गृहस्थस्य मुग्ध होकर उनसे विवाह करने की प्रार्थना करने चुल्लो पेषण्युपस्करः / कण्डणी चोदकुम्भश्च वध्यते लगी। परन्तु राम ने कहा कि मेरे साथ तो मेरी यास्तु वाहयन् -मनु० 3 / 68 / पत्नी है, अच्छा हो कि तुम लक्ष्मण के पास जाओ। शून्य (वि०) [शूनार्य प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् परन्तु जब लक्ष्मण ने भी उसकी प्रार्थना न मानी यत्] 1. रिक्त, खाली 2. सूना (हृदय, तथा चितवन तो वह वापिस राम के पास आई। इस बात पर आदि के लिए भी प्रयुक्त) गमनमलसं शून्या दृष्टि: सीता को हंसी आ गई। फलत: शूर्पणखा ने अपने ...मा० 1217 दे. नी० शुन्यहृदय 3. अविद्यमान आपको अत्यधिक अपमानित समझकर बदला लेने की 4. एकान्त, निर्जन, विविक्त, वीरान-शून्येषु शरा न के इच्छा सेभीषण रूप धारण किया और सीता को खाने काव्य० 7, भट्टि० 69, उत्तर० 3 / 38, मा०, के लिए दौड़ी। परन्तु उसी समय लक्ष्मण ने उसके 9 / 20 5. खिन्न, उदास, उत्साहहीन -शन्या जगाम कान और नाक काटली और उसका रूप विगाड़ दिया भवनाभिमुखी कथंचित् ---कु० 3 / 75, कि० 17139 --रघु०१२।३२ .-४०),---वातः छाज को हिलाने 6. नितान्त रहित, वञ्चित, विहीन, अभावयुक्त | से उत्पन्न हवा ---श्रुतिः, हाथी। (करण के साथ या समास में) -अंगुलीयकशून्या मे | शी [शपं+कीष] 1. छोटा छाज या पहा 2. शूर्पणखा / अंगलि:-श. 5, दया ज्ञान आदि 7. तटस्थ शर्मः, --शूमिः (पुं०, स्त्री०) मिका, शर्मों [ सुष्ठ मिः 8. निदोष 9. अर्थहीन, निरर्थक शि० 11 / 4 अस्ति अस्याः , पक्षे अच्; शूमि+कन्+टाप, शूमि 10. विवस्त्र, नंगा,-पम् 1. निर्वातता, रिक्त, खोख- | ङीष् ] 1. लोहे की बनी प्रतिमा 2. धन, निहाई। लापन 2. आकाश, अन्तरिक्ष 3. सिफर, बिन्दु 4. अस्ति- शूल (म्वा० पर० शूलति) 1. बीमार होना 2. कोलाहल त्वहीनता, (पूर्ण, असीम) अविद्यमानता-दूषण - करना 3. गड़बड़ करना, विगाड़ना / शुन्य बिन्दवः नं० 121 1. सम० मध्यः खोखला शूल:,-लम् [ शूल क] 1. पैना या नोकदार हथियार, नरकुल,-मनस्-मनस्क (वि.) अन्यमनस्क, भग्नचेता नुकीला कांटा, नेजा, बर्ची, भाला 2. शिव का त्रिशूल -मुख, बदन (वि०) हक्का-बक्का, उदास, किंकर्तव्य 3. लोहे की सलाख (जिस पर मांस भूना जाता है) विमढ़, वादः वह दार्शनिक सिद्धांत जो (जीव ईश्वर शूले संस्कृतं शूल्यम्-तु० अयः शूल 4.एक स्थूण जिसके आदि) किसी भी पदार्थ को सत्ता स्वीकार नहीं करता, महारे अपराधियों को सूली दी जाती थी-(बिभ्रत्) वौद्ध दर्शन, वादिन् (पुं०) 1. नास्तिक 2. बौद्ध, स्कन्धेन शूलं हृदयेन शोकम् -मृच्छ० 10 / 21, कु. -हृदय (वि.) 1. अन्यमनस्क विक्रम०२, श०४ 5 / 73 5. तीव्र पीड़ा 6. उदरशूल 7. गठिया, जोड़ों 2. खुले दिल वाला, जो दूसरों पर किसी प्रकार का में दर्द 8. मृत्यु 1. झण्डा, ध्वज (शूलाकृ लोहे की संदेह न करें। सलाख पर रख कर भूनना)। सम० - अपम् सलाख शम्या [शून्य +टाप् ] 1. खोखला नरकुल 2. बांश स्त्री। की नोक, प्रन्थिः (स्त्री०) एक प्रकार का घास, शूर (चुरा० उभ० शूरयति-ते) 1. शौर्य के कार्य करना, / दूब, घातनम् लोहे का बुरादा, लोहे का चूरा जो शक्तिशाली होना 2. प्रबल उद्योग करना। लोहे को रेतने से निकलता है, न (वि०) शामक शूर (वि०) [ शूर अच् ] बहादुर, वीर, पराक्रमी, ताक- औषधि, वेदनाहर, - धन्वन्, -धर, -पारिन्,-धक, तवर-शून्येषु शूरा न के - काव्य०७, रः 1. मूरमा, पाणि, भूत् (पुं०) शिव के विशेषण :-अधिगतयोद्धा, पराक्रमी 2. सिंह 3. सूअर 4. सूर्य 5. साल धवलिम्नः शूलपाणेरभिख्याम्-शि० 4 / 65, रघु० का पेड़ 6. कृष्ण का दादा, एक यादव / सम०-फीटः 2238, शत्रुः एरण्ड का पौधा,--स्थ (वि०) सूली For Private and Personal Use Only Page #1037 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर बढ़ाया गया, हनी एक प्रकार का जी, हस्तः / 52, कि० 15542, रघु० 13126 3. भवन की भालाधारी। चोटी, बर्जी 4. उत्तुंगता, ऊंचाई 5. प्रभुता, स्वामित्व, सूखक: [शूल+कन] अड़ियल घोड़ा। सर्वोपरिता, प्रमुखता शृङ्गस दृप्तविनयाधिकृतः परेभुता [शूल+टाप्] 1. अपराधियों को सूली देने की स्थूणा षामत्यच्छितं न ममषे न तु दीर्घमायः रघु० 9 / 62, 2.बेश्या / (यहाँ शब्द का अर्थ 'सींग' भी है) 6. चद्रचूड़ा, चाँद शलाहतम् (शूल+ ++स) भुना हुमा मांस। की नोक 7. चोटी, नोक, अग्रभाग 8. (भैस आदि लिक (वि.) [शूल+ठन्] 1. शूलधारी 2. सलाख पर का) सींग जो फंक मार कर बजाया जाता है भूना हुआ, क खरगोश, कम् भुना हुआ मांस / 1. पिचकारी वर्णोदकः काञ्चन शृङ्गमुक्तः-रघु० शूलिन् (वि०) [शूलमस्त्यस्य इनि] 1. बर्डीपारी दुर्जनो 1670 10. कामोद्रेक, अभिलाषोदय 11. निशान, लवणः शूली-रषु०१५।५ 2. उदरशूल से पीड़ित चिह्न 12. कमल / सम० अन्तरम् (गौ आदि (पं.) 1. बर्डीपारी 2. खरगोश 3. शिव कुर्वन् पशुओं के सींगों का मध्यवर्ती स्थान, उज्जयः ऊंची सन्ध्याबलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम् --मेष० 36, चोटी, जा बाण (जम्) अगर की लकड़ी,-प्रहारिन् कु. 3157 / (वि०) सींग से मारने वाला, प्रिय: शिव का विशेशूलिनः [शूल+इनन्] बरगद का पेड़। षण, मोहिन् (पुं०) चम्पक वृक्ष,-वेरम् 1.वर्तमान शुल्प (वि.) [ शूल+यत् ] 1. सलाख पर भूना हुआ मिर्जापुर के निकट गंगा के किनारे बसा हुआ एक -~-श.२ 2. सूली पाने के योग्य, स्पम् भुना हुआ | नगर-उत्तर० 121 2. अदरक / मांस। | भरकः,-कम् [शृङ्ग-कन 11. सींग 2. चन्द्रमा की शूप (म्बा० पर० शूषति) 1. पैदा करना, उत्पन्न करना | नोक, चन्द्रचूड़ा 3. कोई भी नोकीली बस्तु 4. पिच2. जन्म देना। कारी रत्न. 1 / भकाल:-शृगाल:] गीदड़-दे० 'शृगाल'। भगवत् (वि.) [ शृङ्ग+मतुप् ] चोटीवाला- (पुं०) भगालः [असूज लाति-ला+क, पूषो०] 1. गीदड़ 2. ठग, पहार। पूर्त, उचक्का 3. भीरु 4. दुष्ट प्रकृति, कदभाषी | भूनाटः, श्रृंगाटकः [शृङ्गं प्रधान्यम् अटति-शृङ्ग+अट कृष्ण / सम...केलि: एक प्रकार का बेर,-जम्युः, +अण् ] 1. एक पहाड़ 2. एक पोषा-कम्,-कम् ---: (स्त्री०) एक प्रकार की ककड़ी, खीरा,-योनिः चौराहा / गीदड़ की योनि में जन्म लेना, -रूपः शिव का महारः [शृङ्ग कामोद्रेकमन्छत्यनेन +अण् प्रणयरस, विशेषण। कामोन्माद, रतिरस (काव्यरचनाओं में वर्णित आठ अगालिका, भूगाली [ शृगाल+कीष, पक्षे कन+टाप या नौ प्रकार के रसों में सबसे पहला रस, यह दो हस्वः] 1. गीदड़ी 2. लोमड़ी 3. पलायन, प्रत्यावर्तन / प्रकार का है-संभोग शृंगार और विप्रलंभ श्रृंगार) माला-ला,-लम् [शृङ्गात् प्राधान्यात् स्वल्पते भनेन, ---शृङ्गारः सखि मतिमानिव मधो मुग्धौ हरिः क्रीडति पृषो.] 1. लोहे को जजीर, बेड़ी 2. जजीर, --गीत०१, (इसकी परिभाषा यह है-पुंसः स्त्रियां हपकड़ी (आलं. भी)-भट्टि० 9 / 90, लीलाकटाक्ष- स्त्रिया: पंसि संभोग प्रति या स्पृहा / स शृङ्गार इति मालामालाभिः--वश०, संसारवासनाबद्ध शृहलाम् ख्यातः क्रीडारत्यादिकारकः / / दे. सा.द० 210 ----गीत०३३. हाथी के पैरों को बांधने की जजीर भी) 2. प्रेम, प्रणयोन्माद संभोगेच्छा विक्रम 119 -स्तम्बरमा मुखरमहलकर्षिणस्ते-रषु० 5 / 72, कि. 3. शृङ्गारिक समालापों के उपयुक्त वेश, ललित 31 4. कमर की पेटी, करधनी 5. नापने की वेशभूषा 4. मैथुन, संभोग 5. हाथी के शरीर पर अम्जोर 6. अजीर, श्रेणी, परम्परा / सम-धमकम् / बनाये गए सिंदूर के निशान 6. चिह्न, रम् 1. लांग यमक अलार का एक भेद - दे०कि. 1542 / 2. सिंदूर 3. अदरक 4. शरीर या वस्त्रों के लिए भालकः [हल+कन्] 1. अजीर 2. ऊंट। सुगन्धित पूर्ण 5. काला अगर / सम-बेष्टा कामाभाकित (वि०) [शृखला+इत] जजीर में जकड़ा / नुरक्ति का संकेत --रघु० 612, --भाषितम् प्रेमाहुआ, बेड़ी पड़ा हुआ, बंधा हुमा। लाप, प्रणयकथा,-भूषणम् सिंदूर,-योनिः कामदेव का श्रजम् [+गनु, पृषो. मुम् ह्रस्वश्च ] 1. सींग-वन्य- विशेषण,-रसः साहित्यशास्त्र में वर्णित श्रृंगाररस, रिवानी महिषस्तवम्भः शृङ्गाहतं क्रोशति दीधिकाणाम् प्रणयरस,-विधिः-शःप्रेमालापों के उपयुक्त वेश-०१६।१३, माहन्तां महिषा निपानसलिलं शृङ्ग- भूषा (जिसे पहन कर प्रेमी अपने प्रिय से मिलता है), मस्तारितम्-० 216 2. पहाड़ की चोटी अद्रेः -सहायः प्रेमव्यापार में सहायक व्यक्ति, नर्म हरति पवनः किं स्विदित्युन्मुखीभिः-मेष. 14, | सचिव / For Private and Personal Use Only Page #1038 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1029 / भतारकः [ शृङ्गार+कन ] प्रेम, कम सिंदर। बिभ्रतीव शि. 11346,3150, मगधदेशशेखरीभूता भङ्गारित (वि.)[ मृङ्गार+इतच् ] 1. प्रेमाविष्ट, प्रण-1 पूष्पपूरी नाम नगरी -वश 2. किरीट, मुकुट, ____ योन्मत्त 2. सिंदूर से लाल 3. अलंकृत, सजा हुआ। 3. चोटी. भंग 4. (समास के अन्त में प्रयुक्त) किसी भृङ्गारिन् (वि.) [भङ्गार+इनि] अनारप्रिय, प्रेमा- भी श्रेणी का सर्वोत्तम या प्रमुखतम 5. गीतका ध्रुव सक्त, प्रणयोन्मस (पुं०) 1. प्रणयोग्मत्त, प्रेमी विशेष, रम् लॉग। 2. लाल 3.हाथी 4. वेशभूषा, सजावट 5. सुपारी | शेपः, शेपस् (नपुं०) शेकः, फा, शेफस् (नपुं०) का पेड़ 6. पान का बीड़ा दे० 'ताम्बूल'। [शी-पन्, शी।-असुन्, पुद, शी+फन्, यी--असुन, भृङ्गिः शृङ्गी, पृषो० ह्रस्व:] आभूषणों के लिए सोना फुक्] 1. लिंग, पुरुषको जननेन्द्रिय 2. अंडकोष (स्त्री०) सिंगी मछली। 3. पूछ। भूङ्गिकम् [शृङ्ग+ठन् ] एक प्रकार का विष, का एक | शेफालि., ली, शेफालिका (स्त्री०) [शेफाः शयन__ प्रकार का भूर्जवृक्ष / शालिनः अलयो यत्र--व० स०, शेफालि+कोष, भूषिणः [ शृङ्ग+इनन् ] भेड़ा, मॅड़ा। कन् + टाप् वा] एक प्रकार का पौधा, निर्गुण्डी, भृङ्गिनी [ शृङ्गिन्+की 1 1. गाय 2. एक प्रकार की | नोलिका, नील सिंधुवार का पौधा / मल्लिका, मोतिया। बोमुवी [शी / क्यि शेः मोहः तं मुष्णाति-+मुषु भूङ्गिन् (वि.) (स्त्री० गो)। शृङ्ग इनि] 1. सींगों | +क+की बुद्धि, समझ / वाला 2. शिखाधारी, चोटी वाला, (पुं०) 1. पहाड़ | शेल (भ्वा० पर० शेलति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. हाथी 3. वृक्ष 4. शिव 5. शिव के एक गण का *2. कांपना। नाम शृङ्गी भृङ्गी रिटीस्तुगडी-अमर० / शेवः [शुक्रपाते सति शेते-शी+वन् ] 1. सांप 2. लिंग शृङ्गो [शृङ्ग+कीप् | 1.आभूपणों के लिए प्रयुक्त किया 3. ऊचाई, उत्तुंगता 4. आनन्द 5. दौलत, खजाना, जाने वाला सोना 2. एक औपधि-मूल, काकड़ासिंगी, --बम् 1. लिंग 2. आनन्द / सम-धिः 1. मूल्यअतीस 3. एक प्रकार का विष 4. सिंगी मछली। वान् कोप विद्या ब्राह्मणमत्याह शेवधिस्तेऽस्मि रक्ष सम-कनकम् गहना बनाने के लिए सोना। माम् मनु० 2 / 114, सर्वे कामाः शेवधिर्जीवित भूणिः (स्त्री०) [+क्तिन्, पृषो० तस्य नः, हुस्वश्च ] | वा स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च पुंसाम्-मा० 618 अंकुश, प्रतोद। 2.कुबेर के नो कोपों में से एक / भूत (भू० क. कु०) [श्र+क्त] 1. पकाया हुआ | बलम् [शी+विच तथा भूतः सन् चलते वल+अप] 2. उवाला हुआ (पानी, दूध आदि)। माथे की भांति हरे रंग का पदार्थ जो पानी के ऊपर भूधां (म्वा. आ०-परन्त लट, लङ और लड़ में उग आता है, काई 2. एक प्रकार का पौषा। पर० भी शर्यते) अपान वाय छोड़ना, पाद मारना। | शंबलिनी [ शेवल+इनि+कीप] नदी। ii (म्वा० उभ० शति-ते) 1. आई करना, | शेवाल: दे० 'शेवल'। गीला करना 2. काट डालना। शेष (वि०) [शिप् +अच् ] वचा हुआ, वाकी, अन्य सब iii (चुरा० उभ. शर्वयति--ते) 1. प्रयत्न करना, -न्यपेधिशेषोप्यनुयायिवर्ग:-रघु०२॥४,४॥६४,१०१३०, 2. लेना, ग्रहण करना 3. अपमान करना (पाद मार मेघ० 3087, मनु० 3.47, कु० 2 / 44; इस अर्थ में कर) नकल करना, मजाक उड़ाना। प्रायः समास के अन्त में-भक्षितशेष, आलेख्यशेष, भृषुः [गृ+कु] 1. बुद्धि 2. गुदा। आदि, वः, -बम् 1. वचा हुआ, वाकी, अवशिष्ट भू (क्रवा० पर० श्रृणाति, शीर्ण) 1. फाड़ डालना, टुकड़े ऋणशेषोऽग्निशेपदच व्याधिशेषस्तथैव च। पुनश्च टुकड़े कर डालना 2. चोट पहुँचाना, क्षति ग्रस्त करना वर्धते यस्मात्तस्मान्छेपं न कारयेत् चाण.४०, अम्ब3. मार डालना, नष्ट करना कि० 14 / 13, शेष -मेघ० 28, विभागशेप कु. 5/57, बाक्यकर्मवा० (शीर्यते) 1. चिथड़े-चिथड़े होना, कुम्हलाना, शेषः --विक्रम०३ 2. छोड़ी हुई कोई बात, या भूली मुरझाना, बर्वाद होना, अब ., जबरन ले भागना हई बात, ('इतिशेषः बहधा भाष्यकारों द्वारा रचना (कर्मवा०) मुर्माना, कुम्हलाना-मूनि वा सर्वलोकस्य को पूरा करने के लिए किसी आवश्यक न्यून पद की विशीर्यत बनेऽयवा--भर्तृ. 21104 / पूर्ति करने के निमित्त प्रयुक्त होता है) 3. बचाव, शेखरः [शिम् +अरन्, पुपो०] 1. चूड़ा, कलगी, फूलों मक्ति, श्रान्ति,-यः 1. परिणाम, प्रभाव 2. अन्त, समा का गजरा, सिर पर लपेटी हुई माला-कपालि या प्ति, उपसंहार 3. मृत्यु, विनाश 4. एक विख्यात स्यादथवेन्दुशेखरम् कु० 5 / 98, 7 / 32, नवकर नाग का नाम, जिसके एक हजार फणों का होना निकरण स्पष्टवन्धकसूनस्तबकरचितमेते शेखरं / कहा जाता है, तथा जिस का वर्णन विष्णु की For Private and Personal Use Only Page #1039 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1030 ) शय्या के रूप में, या समस्त संसार को अपने.] शिव का विशेषण,-धरः कृष्ण का विशेपण,--निर्यासः सिर पर सम्भाले हुए मिलता है-कि शेषस्य शैलेयगन्धद्रव्य, धूप,-पत्रः बेल का पेड़,-भित्तिः भरव्यथा न वपुषि क्षमां न क्षिपत्येष यत्-मुद्रा० (स्त्री०) पत्थर काटने का उपकरण, टांकी, रन्ध्रम् 2 / 18, कु० 3 / 13, 6 / 68, मेघ० 110, रघु० / गुफा, कन्दरा,... शिविरम् समुद्र,-सार (वि०) पत्थर 10 / 13 5. बलराम (जो शेष का अवतार माना की तरह सबल, चट्टान की तरह दृढ़ .... कि०१०।१४। जाता है, षा फूल तथा अन्य चढ़ावा जो मूर्ति के | शलकम् | शैल+कन् ] 1. शैलेयगन्ध द्रव्य, धूप 2. शिलासामने प्रस्तुत किया जाता है) और उसके पुण्य जीत / अवशेष के रूप में पूजा करने वालों में बाँट दिया। शलादिः [शिलादस्यापत्यम्-शिलाद+इन] शिव का जाता है-श० 3, कु. ३।२२,--षम् उच्छिष्ट अन्न, गण, नन्दी। चढ़ावे का अवशेष (शेषे क्रिया विशेषण के रूप में | शैलालिन् (पुं०) [शिलालिना मुनिना प्रोक्तं नटसूत्रमधीयते प्रयक्त होता है, इसका अर्थ है-1. अन्त में, आखिरकार -शिलालि+णिनि ] अभिनेता, नर्तक / 2. अन्य विषयों में) / सम० अन्नम् जूठन,. अवस्था | शैलिक्यः [ गहितं शीलमस्त्यस्य-ठन्, शीलिक+ष्यश् ] बुढ़ापा,-भागः शेष, बाकी,-भोजनम् जूठनखाना, पाखण्डी, दम्भी, ठग। -रात्रिः रात का चौथा पहर,-शयनः,--शापिन् | शैली [शीलमेव स्वार्थे व्या डीपि यलोपः ] 1. व्याकरण (पुं०) विष्णु के विशेषण।। सूत्र की संक्षिप्त वृत्ति 2. अभिक्ति या अर्थकरण शक्षः [शिक्षां वेत्यधीते अण् वा] 1. शिक्षा अर्थात् उच्चारण का एक प्रकार.. प्रायेणाचार्याणामियं शंली यत्स्वाभि शास्त्र को पढ़ने वाला विद्यार्थी, जिसने वेदाध्ययन प्रायमपि परोपदेशमिव वर्णयन्ति-मनु० 24 पर अभी अभी आरम्भ किया है 2. नौसिखिया, नव- कुल्लू. 3. व्यवहार, काम करने का ढंग, आचरण, शिष्य / क्रम / बॉक्षिकः [ शिक्षा+ठक ] शिक्षाशास्त्र में निष्णात / शैलुषः [ शिलषस्यापत्यम्-शिलष+अण् ] 1. अभिनेता, शैक्यम् | शिक्षा+यत् 1 अधिगम, प्रवीणता। नर्तक - आः शलषापसद-वेणी० 1, एते पुरुषाः सर्वशैघ्रपम् [शीघ्र+ष्यम् ] फुर्ती, सत्वरता। मेव शैलषजनं व्याहरन्ति-तदेव, अवाप्य शैलूष त्यम् | शीत+ध्यन ] ठंडक, शीतलता, जमाब-शैत्यं इवष भूमिकाम् शि० 1169 2. वादित्र-कुशल हि यत्सा प्रकृतिलस्य-रघु० 5 / 64, कु० 1134 / -बैण्डबाजे का नायक, संगीत मण्डली का प्रधान शथिल्यम् [शिथिल+व्या ] 1. ढीलापन, नरसी | 3. संगीत सभा में तालधारक 4. धूर्त 5. बेल का पेड़। 2. मन्थरता 3. दीर्घसूत्रता, अनवधानता 4. कमजोरी, शैलूषिकः [ शैलूषं तद्वत्तिम् अन्वेष्टा-ठक ] जो अभिनेता ___भीरता। का व्यवसाय करता हो। शौनेयः [शिनि ढक् ] सात्यकि का नाम / शैलेय (वि.) (स्त्री०-पी) [शिलायां भवः, शिला शैन्याः (पुं०, व०व०) [शिनि+या ] शिनि की | +ढक्] 1. पहाड़ी 2. चट्टानों से उत्पन्न 3. पत्थर / सन्तान, शिनि के वंशज / की तरह कड़ा, पथरीला,-य: 1. सिंह 2. भ्रमर, यम् न्य दे० 'शैव्य'। 1. पर्वत गंधद्रव्य, धूप,---शेलेयगन्धीनि शिलातलानि शैलः [शिला+अण् ] 1. पर्वत, पहाड़- शैले शैले न ---रघु०६।५१, कु. 1155 2. सुगंधित राल 3. सेंघा माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे- चाण० 55, शैली नमक। मलयदद्रौ---रघु० 4 / 51 2. चट्टान, बड़ा भारी शल्य (वि.) (स्त्री०-ल्या) [शिला+ष्या] पथरीला, पत्थर,-लम् 1. सुहागा, धूप, गुग्गुल 2. शिलाजीत -ल्यम् चट्टान जैसी कठोरता, कड़ापन / 3. एक प्रकार का अंजन / सम०-- अंशः एक देश | शैव (वि.) (स्त्री०-वी) [शिवो देवताऽस्य-अण] का नाम,--अग्रम् पहाड़ की चोटी,- अटः 1. पहाड़ी, शिवसंबधी,-व: 1. हिन्दुओं के तीन मुख्य संप्रदायों असभ्य 2. किसी देवमूर्ति का पुजारी 3. सिंह में से एक 2. शैव संप्रदाय का पुरुष,-वम् अठारह 4. स्फटिक,- अधिपः,-अधिराजः, - इन्द्रः,-पतिः, पुराणों में से एक पुराण का नाम / --राजः हिमालय पर्वत के विशेषण, आख्यम् शैलेय- Jशवलः[ शी+वलच ] एक प्रकार का जलीय पौधा, पद्मगन्ध द्रव्य, धूप,----कटकः पहाड़ की ढलान,-गन्धम् काष्ठ, सेवार, काई, मोथा-सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि एक प्रकार का चन्दन, जम् 1. शंलयगन्ध द्रव्य, | रम्यम् - श० ११२०,-लम् एक प्रकार की सुगंधित घूप 2. शिलाजीत,--जा, तनया,-पुत्री,-सुता | लकड़ी। पार्वती के विशेषण-अवाप्तः प्रागल्भ्यं परिणतरुचः शवलिनी शेवल+इनि+डीए नदी / शलतनये-काव्य०१०, कू० ३१६८,-धन्वन् (पुं०) शवाल दे० 'शवल'। For Private and Personal Use Only Page #1040 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1031 ) शेव्यः [ शिवि+ज्य] 1. कृष्ण के चार घोड़ों में से एक वर्ण, लाल रंग 2. आग 3. एक प्रकार का लाल रंग 2. पांडव सेना का एक योद्धा, एक राजा का नाम | का गन्ना, ईख 4. कुम्मत घोड़ा 5. एक दरिया का 3. घोड़ा। नाम जो गोंडवाना से निकलकर पटना के निकट गंगा शैशवम् शिशोर्भावः अण] बचपन, बाल्यावस्था (सोलह में गिरती है-प्रत्यग्रहीत पार्थिववाहिनीं तां भागीरी वर्ष से नीचे का समय)-शैशवात्प्रभृति पोषितां प्रियाम् शोण इवोत्तरङ्गः-रघु० 7.36 6. मंगलग्रह - तु. ___---उत्तर० 1145, शैशवेऽभ्यस्तविद्यानाम्-रघु० 1 / 8 / लोहित, णम् 1. रुधिर 2. सिंदूर। सम-अम्युः शैशिर (वि.) (स्त्री०-रो) [शिशिर+अण् ] जाड़े के एक प्रकार का बादल जो प्रलय के समय उठता है, मौसम से संबन्ध रखने वाला,---रः काले रंग का --अश्मन् (पुं०)-उपल: 1. लाल पत्थर 2. लाल, चातकपक्षी। एक माणिक्य,--पग्रम लाल रंग का कमल,-रत्नम् शष्योपाध्यायिका [ शिष्योपाध्याय --बुञ ] किशोरावस्था / लाल नामक माणिक्य, परागमणि / के छात्रों को पढ़ाना। शोणित (वि.) [शोण+इतब ] 1. लाल, लोहित, रक्त शो (दिवा० पर० श्यति, शात या शित, कर्मवा० शायते वर्ण का,-तम् 1. रुधिर ---उपस्थिता शोणितपारणा -प्रेर० शाययति, इच्छा० शिशासति) 1. पैनाना, मे-रघु० 2 / 39, वेणी० 121, मुद्रा०१८2. केसर, तेज़ करना 2. पतला करना, कृश करना, नि-, जाफरान / सम०-आह्वयम् केसर, जाफरान, उक्षित तेज करना। (वि.) रक्तरंजित, - उपल: पपरागमणि,-चन्दनम् शोकः [ शुच्+घञ ] अफसोस, रंज, दुःख, कष्ट, विलाप लाल चंदन,-५ (वि०) रुधिर पीने वाला,-पुरम् रुदन, वेदना-लोकत्वमापद्यत यस्य शोक:-रघु० बाणासुर का नगर / 14170, भग० 16 / सम० अग्निः , -अनल: | शोणिमन् (पुं०) [शोण+इमनि लालिमा, लाली।। शोक रूपी आग,-अपनोद रंज को दूर करना,-अभि- शोथः [शु+थन] सूजन, स्फीति / सम० - म्न,-जित् भूत,,--आकुल,-आविष्ट, उपहत,-विह्वल (वि०) (वि०) सूजन को दूर करने वाला, सूजन या स्फीति कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त,-चर्चा शोक में लोन, नाशः को हटाने वाली औषधि,-जिह्मः पुनर्नवा,-रोगः अशोकवृक्ष, ...परायण, लासक (वि०) शोक से हाथ पांव आदि में सूजन होने का रोग, जलोदर, प्रस्त, पीडाभिभूत,-विकल (वि.) शोकाकुल, स्थानम् | -हृत् (वि.) सूजन हटाने वाली दवा (पुं०) शोक का कारण। भिलावा। शोचनम् [ शुन्+ ल्युट् ] रंज, अफसोस, विलाप / शोषः [शुध् + घा] 1. शुद्धिसंस्कार 2. संशोधन, समाधान शोचनीय (वि.) [शु+अनीयर् विलाप करने योग्य, 3. ऋणभुगतान, (अण) परिशोध . प्रतिहिंसा, चिन्त्य, शोच्य, दुःखद / प्रतिदान, बदला। शोच्य (वि.)[श+ण्यत ] 1. शोचनीय, विलाप शोधक (वि.) स्त्री०-का, धिका) शिव--णि+वल] करने योग्य, चिन्तनीय, दयनीय श० 3 / 10 1. शुद्ध करने वाला 2. रेचक 3. संशोधन करने वाला 2. कमीना, दुश्चरित्र / शोधन (वि०) (स्त्री-नी) [शुध--णिच् + ल्युट] शुद्ध शोचिस् (नपुं०) [शु+इसि] 1. प्रकाश, क्रान्ति, / करने वाला, स्वच्छ करने वाला,-नम् 1. शुद्ध करना, चमक 2. ज्वाला। सम०-केशः (शोचिष्केशः) स्वच्छ करना 2. संशोधन, (ऋण) परिशोधन करना अग्नि का विशेषण / 3. यथार्थ निर्धारण 4. अदायगी, बेबाकी, ऋण चुकाना शोटीर्यम् [ शुटीर+ष्या, 'शौटीर्यम्' इति साधुः | परा- 5. प्रायश्चित्त, परिशोधन 6. धातुओं को साफ़ करना क्रम, शौर्य, शूरवीरता। 7. प्रतिहिंसा, प्रतिदान, दण्ड 8. (गणि. में) व्यवशोठ (वि.) [ शठ +अच् ] 1. मुर्ख 2. कमीना, अघम कलन 9. तूतिया 10. मल, विष्ठा / ___3. आलसी, सुस्त,-ठ: 1. मूर्ख 2. निकम्मा, आलसी | शोधनकः [शोधन+कन्] दंड-न्यायालय का एक अधिकारी, 3. अधम या कमीना पुरुष 4. धर्त, ठग। मृच्छ० 9, फौजदारी अदालत का अफ़सर / शोण (भ्वा० पर० शोणति) 1. जाना, हिलना-जुलना | शोषनी [शोधन-+-डोष झाड़, बुहारी। 2. लाल होना। शोषित (भू० क० कृ.) {शुव+णिच् +क्त] 1. शुद्ध शोण (वि.) (स्त्री०-णा, णी) [शोण +अच् ] किया हुआ, स्वच्छ किया हआ 2. संस्कृत 3. छाना 1. लाल, गहरा लाल रंग, हल लालका रंग-स्त्या- हुआ 4. संशोधित, समाहित 5. ऋण परिशोध किया नावनद्धघनशोणितशोणपाणिरुतंसयिष्यति कचांस्तव हुआ, चुकाया हुआ 6. बदला लिया हुआ, प्रतिहिंसा देवि भीमः-वेणी. 121, मुद्रा० 118, कु०१७ की हुई।। 2. लाख के रंग का, लालिमायुक्त भूरा,-गः 1. लोहित | शोष्य (वि०) [शुष्+णि+यत्] शुद्ध किये जाने के For Private and Personal Use Only Page #1041 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1032 ) योग्य, संस्कृत किये जाने के योग्य ऋण परिशोध किये। शौक्तिकेयम्, श मशक्तिका-दुक, पितTJ T+क, शुक्ति +टुक्] जाने के योग्य,--ध्यः अभियक्तव्यक्ति, वह पुरुष | मोती। जिसने लगाये हुए आरोप से अपने आप को मुक्त | शौक्तिकेयः [शुक्तिका+तुक्] एक प्रकार का विष / करना है। शोषल्यम् शिक्ल---ष्या] श्वेतता, सफ़ेदी, स्वच्छता / शोफः [शु+फन्] सूजन, अर्बुद, रसौली, शोथ। सम० शौचम् [ शुर्भावः अण् ] 1. पवित्रता, स्वच्छता—पच० -- जित्,-हृत् (पुं०) भिलावे का पौधा। 14147 2. मलत्याग के कारण दूषित व्यक्तित्व का शोभन (वि.) (स्त्री०-नी) [शोभते-शुभ् + ल्युट्] शुद्धीकरण, विशेषतः किसी निकट सम्बन्धी की मृत्य 1. चमकीला, शानदार 2. मनोहर, सुन्दर, लावण्यमय होने पर (लोक-व्यवहार के अनुसार निश्चित समय 3. भद्र, शुभ, सौभाग्य शाली 4. खूब सजाया हुआ पर क्षौरकर्म आदि करा कर) शुद्ध होना 3. स्वच्छ 4. सदाचारी, पुण्यात्मा, न: 1. शिव 2. ग्रह 3. अच्छे होना, निर्मल होना 4. मलत्याग करना 5. खरापन, परिणामों की प्राप्ति के लिए यज्ञाग्नि में दी गई ईमानदारी / सम० . आचारः, कर्मन् (नपुं०) आहुति,-ना 1. हल्दी 2. सुन्दर या सती स्त्री-कु० -कल्पः शुद्धि विषयक संस्कार, रूपः सण्डास, 4 / 44 3. एक प्रकार का पीला रंग, गोरोचना,-नम् | शौचालय। 1. सौन्दर्य, कान्ति, दीप्ति 2. कमल। शौचेयः [शुधि+ठक्] घोबी। शोभा [शुभ् +अ+टाप्] 1. प्रकाश, कान्ति, दीप्ति, चमक | शौट (भ्वा० पर० शोटति) घमण्डी या अहंकारी होना। 2. (क) वैभव, सौन्दर्य, लालित्य, चारुता, लावण्य | शोटीर (वि.) [शोटेः ईरन् ] घमण्डी, अहंकारी, -वपुरभिनवमस्याः पुष्यति स्वां न शोभाम-श०१२१९, 1. शुरवीर, मल्ल, योषा 2. घमण्डी मनुष्य मेघ० 52,59 (ख) नैसर्गिक सौन्दर्य, (पर्वत आदि 3. संन्यासी। की) गरिमा, अदिशोभा रघु० 2 / 27 3. अलंकार, | शोटीयम्, शोण्डीयम् [शोटीर (शौण्डीर)+ष्य घमण्ड, ललित अभिव्यक्ति-शोभव मन्दरब्यक्षुभिताम्भोधि ___ अभिमान, दर्प। वर्णना-शि० 20107 4. हल्दी 5. एक प्रकार का शौउति (म्बा० पर० शोडति) दे० 'चोट' / रंग, गोरोचना / सम०-अञ्जनः एक अत्यंत उपयोगी शौण्ड (वि.) (स्त्री० डी) [ शुण्डायां सुरायामभिरतः वृक्ष, सौहंजना। अण्] 1. शराबी, शराब पीने का शौक़ीन, मद्यप शोभित (भू० क० कृ.) [शुभ+णिच्+क्त] 1. अलंकृत, 2. उत्तेजित, मतवाला, नशे में चर-(आलं.) अ. चारु, सजाया हुआ 2. सुन्दर, प्रिय / निकृतिनिपुणं ते चेष्टितं मानशौण्ड-वेणी० 5 / 21, शोषः [शुप+घञ] 1. सूखना, सूखापन-ह्रदशोषविक्ल- अभिमान में चूर, घमण्डी 3. कुशल, दक्ष (अधि० वाम्--कु० 4 / 39, इसी प्रकार आस्यशोषः, कंठशोषः के साथ या समास में) अक्षशौण्ड, दानशौण्ड आदि / 2, कृशता, कुम्हलान-शरीरशोषः, कुसुमशोष आदि शौण्डिकः, शौण्डिन् (पुं०) [ शुण्डा सुरा पण्यमस्य ठक्, 3. फुप्फुसीय क्षय, या क्षयरोग - संशोषणाद् रसादीनां इनि वा ] शराब खींचने वाला, कलाल, शराब शोष इत्यभिधीयते---सुश्रु० / सम-संभवम् पिप्पला- वित्रता, सूराजीवी, की,-नी कलाली, शराब विक्रेत्री मृल। ... पयोपि शौण्डिकीहस्ते वारुणीत्यभिधीयते हि. शोषण (वि०) (स्त्री०-जी) [शुष् + ल्युट्, स्त्रियां डीप् 3 / 11 / च] 1. सूखना, शुष्क करना 2. सुखाना, कृश करना, | शौण्डिकेयः [शुण्डिका+ढक्] राक्षस / --णः कामदेव का एक वाण,--णम् 1. सूखना, शुष्क | शौण्डी | शुण्डा करिकरः तदाकारः अस्ति अस्याः ---शुण्डा होना 2. चूसना, रसाकर्षण, अवशोषण 3. निः शेषण, +अण्+डीप् ] गजपिप्पली, बड़ी पीपल / क्लांति 4, कृशता, कुम्हलाहट 5. सोंठ। शौण्डीर (वि०) / शुण्डा गर्वोऽस्ति अस्य--शुण्डा+ईरन् शोषित (भू० क० कृ०) [शुष्+गिच्+क्त] 1. सुखाया +अण् ] 1. घमण्डी, अभिमानी 2. उत्तुङ्ग, उन्नत / गया 2. कृश हुआ, कुम्हलाया हुआ 3. परिश्रान्त / / शौखोदनिः [ शुद्धोदन+इस ] बुद्ध का विशेषण, शुद्धोदन शोषिन् (वि.) (स्त्री०-णी) [शुष+णिच्+णिनि]I का पुत्र / सुखाने वाला, कुम्हलाता हुआ, क्षीण होने वाला। शौद्र (वि.) (स्त्री०-दी) [शूद्र+अण् ] शूद्र सम्बन्धी, शोकम् [शुक-अण्] तोतों की लार, तोतों का झण्ड / शंद्रा स्त्री का पुत्र जिसका पिता (तीन वर्णो शौक्त (वि.) (स्त्री० –क्ती) [ शुक्ति -अण् ] अम्ल, __ में से किसी भी वर्ण का हो-दे० मनु० 9 / 160 / सिरके का। शौनम् [शूना + अण् कसाईखाने में रक्खा हुआ मांस / शौक्तिक (दि०) (स्त्री०-को) शुक्ति+ठक] 1. मोती | शौनकः[शनक+अण] एक महर्षि, ऋग्वेद प्रातिशाख्य से सम्बन्ध रखने वाला 2. खट्टा, सिरके का, तेजाबी।। तथा अन्य अनेक वैदिक रचनाओं के प्रणेता / For Private and Personal Use Only Page #1042 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूना। (1033 ) शौनिकः [शूना प्राणिवधस्थान प्रयोजनमस्य ठक्] 1. कसाई, +घा, ल्युट् वा ] रिसमा, बहना, नवित होना, -छपना परिददामि मृत्यवे, शौनिको गहशकुन्तिकामिव-उत्तर० 1145 2. बहेलिया, चिड़ीमार श्मशानम् [श्मानः शया: शेरतेऽत्र-शी+आनच, डिच्च, 3. शिकार, आखेट / अथवा श्मन् शब्देन शवः प्रोक्तः तस्य शानं शयनम् / शौभः [शोभाय हितम् -... शोभा+अण्] 1. देवता, दिव्यता शवस्थान, कब्रिस्तान, शवदाह स्थान, मरषट-राज2. सुपारी का पेड़। द्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धव:-सुभा०। शौभाजनः [शोभाजन+अण ] एक वृक्ष का नाम, दे० सम-अग्निः मरषट की आग,-यालयः कब्रिस्तान, शोभाजन'। --गोचर (वि०) मसान में घूमने वाला-मनु० 10 // शोभिकः [शौभं व्योमपुरं शिल्पमस्य-शौभ+ठक ] 39, -निवासिन्, -वतिन् (पुं०) भूत, -भाग, 1. मदारी, बाजीगर 2. शिकारी, बहेलिया - इति -वासिन् (पुं०) शिव के विशेषण,-बोमन् (पुं०) चिन्तयतो हृदये पिकस्य समधायि शोभिकेन शरः 1. शिव का विशेषण 2. भूत-प्रेत, ----वैराग्यम् ----भामि० 12114 / क्षणिक विरक्ति, श्मशान भूमि के दर्शन से उत्पन्न शौरसेनी [ शूरसेन+अण्+डीप् ] एक प्रकार की प्राकृत अस्थायी संसार त्याग की भावना, -शूल:-कम् बोली का नाम / श्मशान भूमि में स्थित लोहे या लकड़ी की सली शौरिः [ शूर+इञ् ] 1. कृष्ण या विष्णु 2. बलराम कु. 5 / 73, - सापनम् भूत-प्रेतों को वश में करने 3. शनिग्रह। के लिए मशान में तांत्रिक मन्त्रों की साधना शौर्यम् [शूरस्य भावः व्या] 1. पराक्रम, शूरता, वीरता, करना। -शौर्य वैरिणि वजमाशु निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलम् इमधु (नपुं०) [ श्म पुं० मुखं श्रूयते लक्ष्यतेऽनेन-श्रु+ .-भत० 2 / 39, नये च शौर्ये च वसन्ति संपद:-सुभा० दु] दाढ़ी-मूंछ ज्योतिष्कणाहतश्मश्रु कण्ठनालादपा2. सामर्थ्य, शक्ति, ताक़त 3. युद्ध और अतिप्राकृ- तयत् -रघु० 15/52 / सम०-प्रवृद्धिः दाढ़ी का तिक घटनाओं का रंगमंच पर अभिनय करना --तु० बढ़ना, - रघु० 13171, -मुखी दाढ़ीमूंछ वाली 'आरभटी'। स्त्री, वर्षक: नाई। शोल्कः, शौल्किकः [ शुल्के तदादानेऽधिकृतः अण, ठक् वा ] | इमभुल (वि.) [ श्मश्रु+लच् ] दाढ़ी मूंछ वाला, श्मश्रु___चुंगी का अधीक्षक, शुल्काधिकारी। धारी भल्लोपवर्जितस्तेषां शिरोभिः श्मश्रुलमहीं शौल्वि (ल्बि) कः [ शुल्व+ठक 1 तांवें के बर्तन बनाने | (तस्तार) रघु० 4 / 63 / वाला, कसेरा। श्मील (भ्वा० पर० मीलति) आँख झपकना, पलक शौच (वि०) (स्त्री०-वी) [ श्वन-+अण, टिलोप:]| मारना, आँखें मटकाना। कुत्तों से संबन्ध रखने वाला, कुक्कुरसंबंधी, -वम् श्मीलनम् [श्मील् + ल्युट् ] आँख मीचना, पलक झप1. कुत्तों का झुंड 2. कुत्तों का स्वभाव / कना। शीव (वि.) आगामी कल संबन्धी। श्यान (भू० क० कृ०) [श्य+क्त] 1. गया हुआ 2. जमा शौवन (वि.) (स्त्री०-नी) [ श्वन्+अण् 11. कुक्कुर हुआ, पिंडीभूत 3. घनीभूत, चिपकना, सांद्र संबन्धी 2. कुत्ते के गुणों से युक्त,-नम 1. कुत्ते का ____4. सिकुड़ा हुआ, सूखा-भर्तृ० 2 / 44, - मम् स्वभाव 2. कुत्ते की संतति / धूआँ। गौवस्तिक (वि.) (स्त्री० --को) [ श्वस् / ठक, तुट्याम (वि.) श्य+मक] 1. काला. गहरा नीला. काले च] आगामी कल संबन्धी या आगामी कल तक रंग का प्रत्याख्यातविशेषकं कुरबकं श्यामावदाताठहरने वाला, एकदिवसीय, अल्पजीवी।। रुणम्-मालदि. 35, विक्रम 27 कुवलयदलश्याशौष्कल: [शुष्कल--अण्] 1. मांस विक्रेता 2. मांस मस्निग्धः---उत्तर०४१९, मेघ 15, 23 2. भूरा ___ भक्षी, लम् शुष्क मांस का मूल्य / 3.गहरा-हरा,-मः 1.काला रंग 2. बादल 3. कोयल श्चुत् दे० नी० 'इच्युत्। 4. प्रयाग में यमुना के किनारे स्थित बरगद का पेड़ इच्युत (भ्वा० पर० श्च्योतति) 1. टपकना, रिसना, –अयं च कालिन्दीतटे घटः श्यामो नाम-उत्तर० बहना, चूना,-शि० 8 / 63, कि० 5 / 29 2. ढालना, 1, सोऽयं वटः श्याम इति प्रतीत:--रघु० 13153, उडेलना, फैलाना, बखेरना, मि--, बहना, रिसना, -मम् 1. समुद्री नमक 2. काली मिर्च / सम. टपकना निश्च्योतन्ते सुतनु कबरीबिन्दवो यावदेते ---अङ्गः (वि.) काला, (गः) बुध ग्रह,-कन्छः ----मा०८।२। 1. शिव (नीलकंठ) का विशेषण 2. मोर,-कर्षः श्थ्यो (श्चो) तः, च्यो (श्चो) तनम् / ३च्यु (श्च) त् / अश्वमेघ यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा, पत्र: तमाल वृक्ष, For Private and Personal Use Only Page #1043 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1034 ) --भास,—इचि (वि०) चमकीला काला,—सुन्दरः / की भांति झपट कर शीघ्रता से किसी काम में लगना, कृष्ण का विशेषण। चित,--जीविन् (पुं०) बाज को पकड़ कर तथा श्यामल (वि.) [श्याम+लच, ला+क वा] काला, उसे बेच कर जीवन निर्वाह करने वाला / गहरानीला, साँवला, --निशितश्यामलस्निग्धमुखी श्य [भ्वा० आ० श्यायते, श्यान, शीत या शीन) 1. जाना, शक्तिः -वेणी० 4, शि० 18136, उत्तर० 2 / 25, हिलना-जुलना 2. जम जाना 3. सूख जाना, कुम्ह—ल: 1: काला रंग 2. काली मिर्च 3. भौंरा लाना, आ-सूख जाना- रघु० 17 / 37, दे० 4. बटवृक्ष। 'आश्यान' भी। श्यामलिका [श्यामल+कन्+टाप, इत्वम्] नील का श्यनंपाता [श्येनस्य पातोऽत्र अण, मम् च] बाज की भांति पौधा। झपटना, शिकार, आखेट / श्यामलिमन् (पुं०) [श्यामल+इमनि] कालिमा, | श्योणाकः, श्योनाकः [श्य+ओणा (ना) क] एक वृक्ष का कालापन - श्यामां श्यामलिमानमानयत भोः सान्द्रः नाम, सोना पाड़ा। मषीकूर्चकैः-विद्ध० 31 / श्रहक (म्वा० आ० श्रङ्कते) जाना, रेंगना। श्यामा श्याम+टाप] रात, दिशेषतः काली रात, | श्रङ्ग (भ्वा० पर० श्रङ्गति) जाना, हिलना-जलना,रेंगना। -श्यामां श्यामलिमानमानयत भोः सान्द्रमषीकूर्चकैः |श्रण (म्वा० पर० चुरा० उभ० श्रणति, श्राणयति-ते) -विद्ध० 3.1 2. छाँह, छाया 3. काली स्त्री देना, प्रदान करना, अर्पण करना (प्रायः वि पूर्वक) 4. स्त्री विशेष (ने० 318 पर मल्लि. के अनुसार .... रघु० 5 / 1 / 'यौवनमध्यस्था'-शि० 8136, मेघ०८२, या, शीते / श्रत् (अव्य०) [श्री+डति] एक प्रकार का उपसर्ग जो सुखोष्णसर्वांगी ग्रीष्मे या सुखशीतला। तप्तकांचन- 'धा' धातु के पूर्व में लगता है, दे० 'धा' के अन्तर्गत / वर्णाभा सा स्त्री श्यामेति कथ्यते --भट्टि० 5 / 18 श्रय i (भ्वा० पर०, क्या० पर० श्रथति श्रथ्नाति) चोट तथा 81100 पर एक टीकाकार के अनुसार) पहुंचाना क्षति पहुंचाना, मार डालना। 5. निस्सन्तान स्त्री 6. गाय 7. हल्दी 8. मादा कोयल | ii (भ्वा० पर० पर० चुरा० उभ० श्रथति, श्राथयति-ते) 1. प्रियंगुलता-मालवि० 17, मेघ० 104 | 1. चोट पहुँचाना, मार डालना 2. खोलना, ढीला 10. नील का पौधा 12. तुलसी का पौधा 12. कमल 1. करना, स्वतन्त्र करना, मुक्त करना। का बीज 13. यमुना नदी 14. कई पौधों का नाम / iii (चुरा० उभ० श्रथयति-ते) 1. प्रयत्न करना, व्यस्त श्यामाकः श्याम+अ-अण्] एक प्रकार का अन्न, धान्य, रहना 2. निर्बल होना, कमजोर होना 3. प्रसन्न होना। सावां चावल-(न) श्यामाकमुष्टिपरिवधितको जहाति ! श्रथनम् श्रथ् ल्युट्] 1. मारना, विनाश करना 2. खोलना, ----श० 4 / 13, ('श्यामक' भी)। ढीला करना, मुक्त करना 3. प्रयत्न, चेष्टा 4. बांधना, श्यामिका [श्याम-+ ठन् भावे] 1. कालिमा, शामता बन्धन में डालना। —कु० 5 / 21 2. मलिनता, खोटापन (धातु आदिकों श्रद्धा [श्रत+धा-+अ+टाप] 1. आस्था, निष्ठा, का) -हेम्नः संलक्ष्यते हग्नौ विशुद्धिः श्याभिकापि वा विश्वास, भरोसा 2. देवीसन्देशों में विश्वास, धार्मिक --रघु० 1 / 10 / निष्ठा-श्रद्धा वित्तं विधिश्चेति त्रितयं तत्समागतम श्यामित (वि.) [श्याम + इतच्] काला किया हुआ, कृष्ण -श० 7.29, रघु० 2116, भग० 6 / 37, 1713 रंग का किया हुआ. कलटा। 3. शान्ति, मन की स्वस्थता 4. घनिष्ठता, परिचय श्यालः श्य+कालन् पत्नी का भाई, साला। 5. आदर, सम्मान 6. प्रबल या उत्कट इच्छा-तथापि श्यालक: [श्याल+कन्] 1. पत्नी का भाई 2. साला। वैचित्र्यरहस्यलब्धाः श्रद्धां विधास्यन्ति सचेतसोऽत्र श्यालकी, श्यालिका, श्याली [श्यालक+डी+टाप् इत्वं विक्रम० 1113, मालवि०६।१८ 7. दोहद, गर्भवती वा, श्याल+ङीष् पत्नी की बहन, साली।। स्त्री की इच्छा। श्याव (वि०) (स्त्री० वा,-धी) [श्य+वन् कपिश, गहरा | श्रद्धालु (वि.) [श्रद्धा+आलच] 1. विश्वास करने वाला, भूरे रंग का, काला, धूसर, धुमैला 2. लाख के रंग का, निष्ठावान 2. इच्छुक, (किसी वस्तु का) अभिलाषी, भूरा, --वः भूरा रंग / सम०-ल: आम का वृक्ष / -- लु: (स्त्री०) दोहदवती, गर्भवती स्त्री जो किसी श्येत (वि.) (स्त्री०-ता,-ना) [श्य + इतन्] सफेद, वस्तु की कामना करे। –तः श्वेत रंग। धन्य / (भ्वा० आ० श्रन्थते) 1. दुर्बल होना 2. निढाल श्येनः श्यि-इनन] 1. सफेद रंग 2. सफेदी 3. बाज, या विश्रान्त होना 3. ढीला करना, विश्राम करना। शिकरा 4. हिंसा, प्रचण्डता। सम-करणम्, I (क्रया० पर० श्रथ्नाति) 1. ढीला करना, स्वतन्त्र करना -करणिका 1 अलग चिता पर दाह करना 2. बाज / मुक्त करना 2. खूब प्रसन्न होना / For Private and Personal Use Only Page #1044 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1035 ) श्रन्थः [श्रन्थ्+घञ्] 1. ढीला करना, स्वतन्त्र करना। श्रवणः,-णम् [श्रु+ल्युट्] 1. कान-ध्वनति मधुप समूहे 2. ढीलापन, 3. विष्णु / श्रवणमपि दधाति--गीत० 5 2. किसी त्रिकोण का अन्यनम् [श्रथ + ल्युट] 1. ढीला करना, खोलना 2. चोट कर्ण, णः,---णा इस नाम का नक्षत्र (जिसमें तीन तारे पहुँचाना, मार डालना, विनाश करना 3. बाँधना, सम्मिलित ह), णम् 1. सुनने की क्रिया, श्रवणबन्धन में डालना। सुभगम् -- मेघ० 11 2. अध्ययन 3. ख्याति, कीर्ति अपणम्,-णा [श्रा+णिच्+ल्युट] उबलवाना, गरम करना। 4. जो सुना गया या प्रकट हुआ,-वेद, इति श्रवणात् अपित (भू० के० कृ०) [श्रा---णिच्+क्त] गरम किया 'वैदिक पाठ ऐसा होने के कारण' 5. दौलत / सम. गया या उबलाया गया, ता माँड, कांजी। ... इन्द्रियम् श्रोत्रंन्द्रिय, कान,-उदरम् कान का बाह्यश्रम् (दिवा० पर० श्राम्यति, श्रान्त) 1. चेष्टा करना, विवर,-- गोचर (वि०) श्रवणपरास के अन्तर्गत (र.) उद्योग करना, मेहनत करना, परिश्रम करना 2. तप- सुनाई देने की सीमा तक, यथा 'श्रवणगोचरे तिष्ठ, श्चर्या करना, (तपस्या के द्वारा) इन्द्रियदमन करना अर्थात् जहाँ तक सुनाई देता रहो वहीं तक रहो,-पथः, -कियच्चिरं श्राम्यसि गौरि-कु० 5 / 50 3. श्रान्त विषयः कान की पहुँच, श्रवण परास---वृत्तान्तेन होना, थकना, परिश्रान्त होना-रतिश्रान्ता शेते श्रवणविषयप्रापिणा- रघु० १४१८७,--पालि:-ली रजनिरमणी गाढमुरसि-काव्य०१०, शि० 14138, ( स्त्री० ) कान का सिरा,-सुभग (वि.) कर्णभट्टि. 14 / 110 4. कष्टग्रस्त होना, दुःखी होना सुखद। यो वृन्दानि त्वरयति पथि श्राम्यतां प्रोषितानाम् | श्रवस् (नपुं०) [ श्रु+असि ] 1. कान 2. ख्याति कीर्ति, -मेघ० 99, प्रेर० (श्र-श्रा-मयति-ते) थकाना, 3. दौलत. सूक्त / परि-, अत्यन्त थक जाना,-श० 1, वि-, 1. विश्राम श्रवस्यम् [श्रवस्+यत्] ख्याति, कीर्ति, विश्रुति / करना, आराम करना, ठहरना कु० 39 2. थमना, / श्रवाप्यः,-व्यः [श्रु+आय्य ] यज्ञ में बलि दिये जाने के अन्त होना, दे० 'विश्रान्त' भी - रघु० 1154, / योग्य पशु / उतरवाना, बसाना। श्रविष्ठा [श्रवः ख्यातिः अस्ति अस्याः श्रव+मतुप्, इष्ठनि श्रमः [श्रम्+घश, न वृद्धिः] 1. मेहनत, परिश्रम, चेष्टा, मतुबो लुक्] 1. धनिष्ठा नाम का नक्षत्र 2. श्रवणा प्रयत्न .. अलं महीपाल तव श्रमेण-रघु० 2 / 34, ! नाम का नक्षत्र / सम० जः बुधग्रह। जानाति हि पुनः सम्यक् कविरेव कवेः श्रमम्-सुभा० श्रा (अदा० पर० श्राति, धाण या शृत, प्रेर० श्रपयति-ते) -रघु० 1675, मनु०९।२०८ 2. थकावट, थकान, पकाना, उबालना, भोजन बनाना, परिपक्व करना, परिश्रान्ति,-विनयन्ते स्म तद्योधा मधुभिविजयश्रमम् पकना। -रघु० 4 / 35, 67, मेघ० 17152, कि० 5 / 28 श्राण (वि.) [श्रा+क्त] 1. पकाया हुआ, भोजन बनाया 3. कष्ट, दुःख 4. तपस्या, साधना, इन्द्रियदमन,-दिवं हुआ, उबाला हुआ 2. आर्द्र, गीला, तर। यदि प्रार्थयसे वृथा श्रमः- कु० 5 / 45 5. व्यायाम, श्राणा [धाण+टाप् ] कांजी, यवागू। विशेषतः सैनिक व्यायाम, कवायद 6. घोर अध्ययन / श्राद्ध (वि०) [ श्रद्धा हेतुत्वेनास्त्यस्य अण् ] निष्ठावान्, सम०-- अम्बु (नपुं० )-जलम् पसीना,-कर्षित विश्वास करने वाला,-उम् 1. मृतक सम्बन्धियों की (वि०) थका-मांदा,--साध्य (वि.) परिश्रम द्वारा दिवङ्गत आत्माओं के सम्मान में अनुष्ठेय संस्कार, सम्पन्न होने योग्य, कष्टसाध्य / अन्त्येष्टि संस्कार-श्रद्धया दीयते यस्मात्तस्माच्छाद्धं श्रमण (वि.) (स्त्री०-णा,-णी) [श्रम्+युच] 1. परि निगद्यते; यह तीन प्रकार का है--नित्य, नैमित्तिक श्रमी, मेहनती 2. नीच, अधम, कमीना,-णः 1. संन्यासी, और काम्य 2. औलदैहिक आहुति, श्राद्ध के अवसर भक्त, साधु 2. बौद्धभिक्षु, णा, जो 1. भक्तिनी, पर उपहार या भेंट / सम० --कर्मन् (नपुं०)-क्रिया भिक्षणी 2. लावण्यमयी स्त्री 3. नीच जाति की स्त्री अन्त्येष्टि संस्कार, कृत् (पुं०) अन्त्येष्टि संस्कार 4. बंगाली मजीठ 5. जटामांसी, बालछड़। करने वाला, - वः अन्त्येष्टि आहति या श्राद्ध भेंट श्रम्भ (भ्वा० आ० श्रम्भते, श्रब्ध) 1. उपेक्षक होना, ! करने वाला-दिनः,-नम् उस स्वर्गीय सम्बन्धी की असावधान होना, लापरवाह होना 2. गलती करना, ! बरसी जिसके सम्मान में श्राद्ध किया जाय, देवः, वि--, विश्वास करना, भरोसा करना-दे० 'विश्रब्ध'।। -देवता 1. अन्त्येष्टि संस्कार की अधिष्ठात्री देवता श्रयः, श्रयणम् [श्रि+अच्, ल्युट् वा] शरण, पनाह, बचाव, 2. यम का विशेषण 3. विश्वदेव दे० 4. पिता, आश्रय / प्रजनक, भुज,- भोक्तु (पुं०) दिवङ्गत, पूर्व पुरुष / श्रवः [श्रु+अप्] 1. सुनना, जैसा कि 'सुखश्राव' में 2. कान श्राद्धिक (वि.) (स्त्री०-की) [श्राद्धेयं, श्राद्धं तद्रव्यं 3. किसी त्रिकोण का कर्ण। भक्ष्यत्वेनास्त्यस्य वा ठन्] श्राद्ध सम्बन्धी औवं दैहिक पकना। ] कांजी, यवाग। श्राव जलम् पसीना , थका-मांदा For Private and Personal Use Only Page #1045 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1036 ) भेंट को स्वीकार करने वाला,-कम् श्राड के अवसर / बसना 5. सम्मान करना, सेवा करना, पूजा करना पर दिया गया उपहार / 6. सेवन करना काम पर लगाना, 7. संलग्न करना, भासीय (वि.) [श्राद्ध+छ। श्राद्ध सम्बन्धी। अनुषक्त होना / अधि-, 1. निवास करना 2. सवारी धान्त (भू० क० कृ०) [श्रम्+क्त] 1. थका हुआ, थका- करना, चढ़ना, आ---, 1. सहारा लेना, आश्रय लेना, मांदा, क्लान्त, परिश्रांत 2. शान्त, सौम्य,-तः अवलम्ब होना, विक्रम० 5 / 17, भट्टि. 14 // 111 संन्यासी। 2. अनुगमन करना-रघु० 4 / 35 3. शरण लेना, भान्तिः (स्त्री०) [ श्रम् --क्तिन् ] क्लान्ति, परिश्रान्ति, निवास करना, बसना-रघु०१३।७, पंच० 1151 थकावट / 4. आश्रित होना,-मनु० 377 5. पार जाना, भामः [श्राम्+अच् ] 1. मास 2. समय 3. अस्थायी अनुभव प्राप्त करना, भुगतना, धारण करना - एको छाजन / रसः करुण एव निमित्तभेदाद्भिन्नः पृथक् पृथगिवा. भायः [श्रि+घञ्] आश्रय, बचाव, शरण, सहारा। श्रयते विवन्-िउत्तर० 3 / 47 6. जमे रहना, डटे भावः श्रु+घा] सुनना, कान देना। रहना 7. चुनना, छांटना, पसन्द करना 8. सहायता श्रावकः [श्रु+ज्वल] 1. श्रोता 2. छात्र, शिष्य-श्रावकाव- करना, मदद करना, उद्-, ऊपर उठाना, उन्नत स्थायाम् --मा० 10, अर्थात् छात्रावस्था में 3. बौद्ध- करना, ऊंचा करना, उपा-, पढेंच या अवलम्ब भिक्षु, बौद्ध सन्त, महात्मा 4. बौद्ध भक्त 5. पाखण्डी, होना,-भग० 142, उत्तर०११३७, सम्-, 1. पहुंच 6. कौवा। होना, सहारा होना, शरण में जाना, सहायता के धावण (वि.) (स्त्री०-णी) | श्रवण+अण् ] 1. कान लिए पहुंचना 2. अवलम्बित होना, आश्रित होना सम्बन्धी 2. श्रवण नक्षत्र में उत्पन्न,--णः सावन का -उत्तर०६।१२, मा० 124 3. हासिल करना, प्राप्त महीना, (जुलाई-अगस्त में आने वाला) 2. पाखण्डी करना 4. अभिगमन करना, संभोग के लिए पहुंचना 3. छपवेशी 4. एक वैश्य संन्यासी जिसको दशरथ 5. सेवा करना। ने अन जाने मार डाला, बाद में उसके माता-पिता धित (भू० क. कृ०) [श्रि-+क्त] 1. गया हुआ, पहुंचा ने दशरथ को शाप दिया कि वह अपने पुत्रों के हुआ, शरण में पहुंचा हुआ 2. चिपका हुआ, सहारा वियोग से दुःखी हृदय होकर मरेगा। लिया हुआ, बैठा हुआ 3. संयुक्त, सम्मिलित, संबद्ध भावणिक (वि.) [श्रावण+ठक ] श्रावण मास सम्बन्धी, 4. बचाया हुआ 5. सम्मानित, सेवित 6, अनुसेवी, -क: सावन का महीना। सहकारी 7 आच्छादित, बिछाया हुआ 8. युक्त, बावणी [श्रवणेन नक्षत्रेण युक्ता पौर्णमासी पूरित 9. समवेत, एकत्रित 10. सहित, संपन्न / -श्रवण+अण् +डी ] 1. श्रावण मास की पूर्णिमा थितिः (स्त्री०) [श्रि+क्तिन् ] अवलम्ब, सहारा, 2' एक वार्षिक पर्व जिस दिन यज्ञोपवीत वदले पहुँच / जायें, सलोनों, रक्षाबन्धन / श्रियंमन्य (वि०) 1. अपने आप को योग्य मानने वाला भावस्तिः ,--स्ती (स्त्री०) गंगा नदी के उत्तर में राजा 2. घमंडी। थावस्त द्वारा स्थापित एक नगर / भियापतिः (पुं०) शिव का विशेषण / भावित (वि०) [श्रु+णिच्+क्त] कहा हुआ, सुनाया श्रिष् (भ्वा० पर० श्रपति) जलाना / गया, वर्णन किया गया। थी (क्रया० उभ० श्रीणाति, श्रीणीते) पकाना, भोजन भाव्य (वि.) [श्र+णिच+यत] 1. सूने जाने के बनाना, उबालना, तैयार करना। योग्य (विप० दृश्य) 2. जो सुना जा सके, स्पष्ट / श्री (स्त्री०) [धि+फ्विप, नि.] 1. धन, दौलत, भि (भ्वा० उम० श्रयति--ते, श्रितः, प्रेर० श्राययति प्राचुर्य, समृद्धि, पुष्कलता अनिर्वेदः श्रियो मूलम् -ते, इच्छा० शिश्रीपति-ते, शिश्रयिषति-ते) -रामा०, साहसे श्रीः प्रतिवसति-मन्छ० 4, जाना, पहुंचना, सहारा लेना, दौड़ होना, बचाव के 'सौभाग्य वीरों पर अनुग्रह करता है'-मनु० 9 / 300 लिए पहुँच होना,-यं देशं श्रयते तमेव कुरुते बाहुप्रता- | 2. राजसप्ता, ऐश्वर्य, राजकीय धनदौलत-कि० 111 पार्जितम्-हि० 11171, रघु० 370, 1961 3. गौरव महिमा, प्रतिष्ठा--श्रीलक्षण-- कु० 7.46, 2. जाना, पहुँचना, भुगतना, (अवस्था) धारण अर्थात् महिमा या गौरव का चिह्न 4. सौन्दर्य, चारुता, करना-परीता रक्षोभिः श्रयति विवशा कामपि लालित्य, कान्ति - (मखं) कमलधियं दधौ-- कू० दशाम - भामि० 1183, दिपेन्द्रभावं कलभः श्रयन्निव / 5 / 21, 7132, रघु० 38, कि० 175 5. रंग, -रघु० 3132 3. चिपकना, झुकना, आश्रित होना, रूप, कु०१२ 6. विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जो धन निर्भर रहना-उत्तर. 232 4. निवास करना, | की देवी है,-आसीदियं दशरथस्य गहे यथा थी:-उत्तर० For Private and Personal Use Only Page #1046 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम० आहका विशेषण र 1, 416. श० 3314, शि० 111 7. गुण, श्रेष्ठता / अङ्कः धारिन्, भृत्, लक्ष्मन्, लाञ्छन, (पुं०) 8. सजावट 9. बुद्धि, समझ 10. अतिमानव शक्ति विष्णु के विशेषण- कु. 743,- वत्सकिन् (पुं०) 11. मानवजीवन के तीन उद्देश्यों की समष्टि (धर्म, एक घोड़ा जिसकी छाती पर बालों का धूंधर होता अर्थ, और काम) 12. सरल वृक्ष 13. बेल का पेड़ है,- वरः, वल्लभः विष्णु के विशेषण,-बल्लभः 14. हींग 15. कमल ('श्री' शब्द सम्मान सूचक लक्ष्मी का प्रिय, सौभाग्यशाली या सुखी व्यक्ति, पद है जो पूज्य व्यक्तियों तथा देवों के नामों ... बासः 1. विष्णु का विशेषण 2. शिव का विशेषण के पूर्व लगाया जाता है- श्रीकृष्णः श्रीरामः, श्री 3. कमल 4. तारपीन,-वासस् (पुं० ) तारपीन, वाल्मीकिः, श्रीजयदेवः, कुछ प्रसिद्ध ग्रन्थों के पूर्व भी -- . वृक्षः 1. बेल का पेड़ 2. अश्वत्थवृक्ष 3. घोड़े के जिनका विषय धार्मिक है-श्रीभागवत, श्रीरामायण मस्तक और छाती पर बालों का घंधर,-बेष्टः आदि, किसी पाण्डुलिपि या पत्रादिक के आरम्भ में 1. तारपीन 2. राल, संशम् लौंग, सहोदरः चन्द्रमा, भी मंगलाचरण के रूप में प्रयुक्त होता है; माघ ने -सूक्तम् एक वैदिक सूक्त का नाम, - हरिः विष्णु अपने शिशुपालवध' काव्य के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम का विशेषण, हस्तिनी सूर्यमुखी फूल का पौधा / श्लोक में इस शब्द का प्रयोग किया है, जिस प्रकार | श्रीमत (वि.) [श्री+मतुप] 1. दौलतमन्द, धनवान् भारवि ने 'लक्ष्मी' शब्द का प्रयोग किया है)। 2. सुखी, सौभाग्यशाली, समृद्धिशाली, फलता-फूलता सम० आहम् कमल,-ईशः विष्णु का विशेषण 3. सुन्दर, सुहावना, सुखद-कि० 118. विख्यात, -कण्ठः 1. शिव का विशेषण 2. भवभूति कवि का प्रसिद्ध, कीर्तिशाली, प्रतिष्ठित (प्रसिद्ध और सम्माविशेषण-.-श्रीकण्ठपदलाञ्छन:--उत्तर० 1, सखः नित पुरुष या वस्तुओं के नामों के पूर्व आदरसूचक कुबेर का विशेषण,-करः विष्णु का विशेषण (-रम) शब्द (पुं०) विष्णु का विशेषण 2. कुबेर का विशेलाल कमल, करणम् लेखनी,-कान्तः विष्णु का | षण 3. शिव का विशेषण. तिलक वृक्ष 5. अश्वत्थविशेषण,-कारिन (पुं०) एक प्रकार का बारहसिंगा, वृक्ष। - सपा-उम् चन्दन की लकड़ी - श्रीखण्डविलेपनं | श्रील (वि.) [श्रीः अस्ति अस्य लच्] 1. धनवान्, सुखयति-हि. 197, -गवितम् एक प्रकार का दौलतमन्द 2. सौभाग्यशाली, समृद्धिशाली 3. सुन्दर छोटा नाटक, -- गर्भः 1. विष्णु का विशेषण 2. तलवार, 4.विख्यात, प्रसिद्ध। --- प्रहः पक्षियों को पानी पिलाने की कुण्डी, धनम् | शुi (म्वा० पर० श्रवति) जाना, हिलना, जुलना-तु० 'सु'। खट्टी दही, (मः) बौद्ध महात्मा,-चक्रम् 1. भूवत्त, i (स्वा० पर० शृणोति, श्रुत) 1. सुनना, (ध्यानपूर्वक) भूमण्डल 2. इन्द्र के रथ का पहिया, जः काम का श्रवण करना, कान देना-शृण मे सांवशेषं वचः विशेषण,-दः कुबेर का विशेषण, दयितः,-धरः .... विक्रम० 2, रुतानि चाश्रोषत षट्पदानाम्-भट्टि० विष्णु के विशेषण, - नगरम् एक नगर का नाम 2 / 10, संदेशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि, श्रोत्रपेयम्-मेघ. -सम्बनः राम का विशेषण,-निकेतनः,--निवासः 13 2. अधिगम करना, अध्ययन करना-द्वादशवर्षभिविष्णु के विशेषण,-पतिः 1. विष्णु का विशेषण याकरणं श्रयते-पंच० 1 3. सावधान होना, आज्ञाशि० 13369 2. राजा, प्रभु,-पथः मुख्य सड़क, मानना (इतिश्रूयते-(ऐसा सुना जाता है अर्थात् वेदों राजमार्ग, - पर्णम् कमल,---पर्वतः एक पहाड़ का नाम में इसका विधान है, ऐसा धर्मविधि), प्रेर० (श्राव---मा० १,--पिष्टः तारपीन, - पुष्पम् लौंग,... फल: यति-ते) सुनवाना, समाचार देना, कहना बयान करना बेल का पेड़ (लम्) बेल का फल,-फला,-फली -इच्छा० (शुश्रूषते) 1. सुनने की इच्छा करना 1. नील का पौधा 2. आमलकी, आंवला,-भ्रातृ 2. सावधान होना, आज्ञाकारी होना, हुक्म मानना. (पं०) 1. चांद 2. घोड़ा, मस्तकः लहसुन, मुद्रा -पंच. 478 3. सेवा करना, सेवा में उपस्थित वैष्णवों का विशेष तिलक जो मस्तक पर लगाया रहना--शुश्रूषस्व गुरुन्-श० 4 / 17, कु० 1159, जाता है, मुतिः (स्त्री०) 1. विष्णु या लक्ष्मी की मनु० 2144, अनु-, 1. सुनना --मनु० 9 / 100, प्रतिमा 2. कोई भी प्रतिमा, युक्त,यत,-, 1. सौभा- तद्यथानुश्रयते-पंच०१ 2. गुरुपरम्परा से प्राप्त, ग्यशाली, प्रसन्न 2. धनवान, समृद्धिशाली (प्रायः अभि- 1. सुनना 2. ध्यान देकर सुनना, आ-, 1. सुनना पुरुषों के नामों के पूर्व लगाया जाने वाला सम्मान 2. प्रतिज्ञा करना (व्यक्ति में संप्र.)-याज्ञ०२।१९६, सूचक पद,-रग विष्णु का विशेषण,-रस: 1. तार- तु. पा० 124140, उप-, 1. सुनना 2. जाना, पीन 2. राल, वत्सः 1. विष्णु का विशेषण, विष्णु निश्चय करना-केशिना हृतामुवंशी नारदादुपश्रुत्य की छाती पर बालों का धुंधर या चिह्नविशेष-प्रभा- गन्धर्वसेना समादिष्टा विक्रम०१, परि-, सुनना, नुलिप्तश्रीवत्सं लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम् - रघु० 10 / 10, ' प्रति-, प्रतिज्ञा करना (उस व्यक्ति में संप्र. जिसके For Private and Personal Use Only Page #1047 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1038 ) श्र+क्त] 1. सुना 3. अधि- विकटक वृक्ष। लिए प्रतिज्ञा की जाय-तस्य प्रतिश्रुत्य रघुप्रवीरस्त- / कान का बाहरी भाग, मलम 1. कान की जड़,-लपितुं दीप्सितम् - रघु० 14 / 29, 2056, 3 / 67 15 / 4, किमपि श्रुतिमूले .. गीत०१ 2. वेद का संहितापाठ, वि - सुनना (प्रायः क्तांत रूप प्रयुक्त), सम् --सुनना, -मुलक (वि.) वेद पर आधारित,-विषयः 1. सूनने ध्यान लगा कर सुनना-संशृणोति न योक्तानि का विषय, अर्थात् ध्वनि-श० 111 2. कर्ण परास --भट्टि० 5 / 19, 6 / 5, (परन्तु अकर्मक प्रयोग में .-- एतत्प्रायेण श्रतिविषयमापतितमेव --का0 3. वेद आ०)-हितान्न यः संशृणुते स कि प्रभुः ---कि०११५ / / का विषय 4. धार्मिक अध्यादेश,-वेधः कान बींधना, श्रुनिका (स्त्री०) शोरा, सज्जी, खार। -स्मृति (स्त्री०) (द्वि० व०) वेद और धर्मशास्त्र / श्रुत (भू० क० कृ०) [श्रु+क्त] 1. सुना हुआ, ध्यान लगा श्रुवः[श्रु+क] 1. यज्ञ 2. यज्ञीय नुवा। कर श्रवण किया हुआ 2. वणित, कर्णगोचर 3. अधि- | श्रुवा [श्रुव+टाप् ] 1. यज्ञीय चमष, तु० जुवा / सम० गत, निर्धारित, समझा गया 4. सुज्ञात, प्रसिद्ध, विख्यात, विश्रुत .. रघु० 3.40, 14 / 61 5. नामक, | श्रेढी [श्रेण्य राशीकरणाय ढोकते-श्रेणी+दौक+ह, पुकारा हुआ, तम् 1. सुनने का विषय 2. जो देवी पुषो० ] (गणि० में) भिन्न जातीय द्रव्यों को मिलाने संदेश से सुना गया, अर्थात् वेद, पवित्र अधिगम, के लिए गणनांग भेद / सम०-फल श्रेढ़ी का योग पुनीत ज्ञान-श्रुतप्रकाशम् - रघु० 5 / 2 3. सामान्य जोड़। अधिगम, विद्या, -श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन (विभाति) | श्रेणि (पुं०, स्त्री०) श्रेणी (स्त्री० [श्रि+णि, वा ङीप्] भर्तृ० 2071, रघु० 3 / 21, 5 / 22, पंच० 2 / 147, 1. रेखा, श्रृंखला, पंक्ति, -तरङ्गभ्रूभङ्गा क्षुभितविहग४।६१ / सम० अध्ययनम् वेदों का पढ़ना,-अन्वित श्रेणिल्सना-वेणी०४।२८, न षट्पदश्रेणिभिरेव पङ्कजं (वि.) वेदों का ज्ञाता अर्थः मौखिक रूप से या सर्शवलासङ्गमपि प्रकाशते--कु० 5 / 9, मेघ० 28, 35 जबानी कहा गया तथ्य,-कीति (वि०) प्रसिद्ध, 2. दल, संचय, समह --उत्तर० 4 3. व्यापारियों का विश्रुत, (0) 1. उदार व्यक्ति 2. दिव्य ऋषि संघ, शिल्पियों का संघटन, निगम 4. बोक्का, बालटी। (स्त्री०) शत्रुघ्न की पत्नी,-- देवी सरस्वती,-धर सम० - धर्माः (पुं०, 50 व०) व्यापारिवर्ग या (वि.) सुनी हुई बात को याद रखने वाला, मेघावी। शिल्पकार-संघों के नियम, रीतियाँ आदि / श्रतवत् (वि.) [श्रुत+मतुप्] वेदज्ञाता, वेदवेत्ता, वेदज्ञ, | श्रेणिका [ श्रेणि+कन्-+टाप् ] तम्बू, खेमा। --रघु० 9 / 74 / श्रेयस (वि.) [ अतिशयेन प्रशस्यम-ईयसून, श्रादेशः ] अतिः (स्त्री०) [श्रु-- क्तिन्] 1. सुनना चन्द्रस्य ग्रहण- 1. अपेक्षाकृत अच्छा, वरीयस्, श्रेष्ठतर, वर्धनाद्रक्षणं मिति श्रुतेः-मुद्रा० 17, रघु० 1 / 27 2. कान,-श्रुति- श्रेय:--हि० 3 // 3, भग० 3 / 35, 2 / 5 2. सर्वोत्तम, सुखभ्रमरस्वनगीतयः--रघु० 9 / 35, श० 131, वेणी० श्रेष्ठतम 3. अधिक सुखी या सौभाग्यशाली 4. अधिक 323 3. विवरण, अफ़वाह, समाचार, मौखिक आनन्ददायक, प्रियतर (पुं०) 1. सदगण, पुण्यकर्म, संवाद 4. ध्वनि 5. वेद (दिव्य संदेश होने के कारण- नैतिक गुण, धार्मिक गुण 2. आनन्द, सौभाग्य, मंगल, विष० स्मति–दे० 'वेद' के अन्तर्गत 6. वैदिकपाठ शुभ, कल्याण, आशीर्वाद, शुभ परिणाम--पूर्वावधी. वेदमंत्र, --इतिश्रुतेः या इति श्रुतिः ‘ऐसा वेद कहता है। रितं श्रेयो दुःखं हि परिवर्तते श० 7 / 13, प्रति7. वेदज्ञान, पुनीतजान, पुण्य अधिगम 8. (संगीत में) बध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः---रघु० 179, सप्तक का प्रभाग, स्वर का चतुर्थाश या अन्तराल उत्तर० 5 / 27, 7 / 20, रघु० 5 / 34 3. शुभ अवसर -शि०१।१०, 1111, (दे० तत्स्थानीय मल्लि.) ... श० 7 4. मोक्ष, मुक्ति / सम -अथिन (वि०) 9. श्रवण नक्षत्र / सम०-अनुप्रासः अनुप्रास का एक 1. आनन्द का अन्वेपक, आनन्द का इच्छुक 2. हितैषी, भेद-दे० काव्य० 2, उक्त, उदित (वि०) वेद- -कर 1. आनन्दप्रद, अनुकूल 2. मंगलमय, शुभ, विहित,कट: 1. साँप 2. तपश्चर्या, प्रायश्चित्त साधना, ... परिश्रमः मुक्ति प्राप्त करने की चेष्टा / / -कट (वि०) सुनने में कड़वा (दुः) कर्णकटु, अम- | श्रेष्ठ (वि०) [ अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः ] धुर ध्वनि, (यह रचना का एक दोष माना जाता है), 1. सर्वोत्तम, अत्यन्त श्रेष्ठ, प्रमुखतम (संव० या --चोदनम, ना शास्त्रीय विधि, वेदविधि,-जीविका अधिक के साथ) 2. अत्यन्त प्रसन्न या समृद्ध 3. प्रियधर्मशास्त्र, विधिसंहिता,--वैधम् वेदविधियों का परस्पर तम, अत्यन्त प्रिय 4. सबसे अधिक पुराना, वृद्धतम, विरोध या निष्क्रमता,-धर (वि०) सुनने वाला, -ठ: 1. ब्राह्मण 2. राजा 3. कुबेर का नाम 4. विष्णु . निवर्शनम् वेदों का साक्ष्य,-पथः कर्ण-परास का नाम, ठम् गाय का दूध / सम०---आश्रमः ---मालवि०४।१,--प्रसादन (वि.) कर्णप्रिय,--प्रामा- 1. मनुष्य के धार्मिक जीवन का सर्वोत्तम आश्रम अर्थात् ध्यम वेदों की प्रामाणिकता या स्वीकृति,-- मण्डलम् गृहस्थाश्रम 2. गृहस्थ,-वाच (वि०) वाग्मी / For Private and Personal Use Only Page #1048 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1039 ) श्रेष्ठिन (वि.)[ श्रेष्ठं धनादिकमस्त्यस्य इनि1 किसी व्या- श्रौषट (अब्य०) [श्र+डौषट 1 दिवंगत आत्मा या देवों पारसंघ या शिल्पिसंस्थान का प्रधान या अध्यक्ष-निक्षेपे को उद्देश्य करके यज्ञाग्नि में आहुति देते समय पतिते हर्ये श्रेष्ठी स्तौति स्वदेवताम-पंच० 1114 / उच्चारित होने (बोला जाने) वाला अव्यय, तु० श्र (भ्वा० पर० श्रायति) 1. स्वेद आना, पसीना निक- वषट् या वौषट्) / लना 2. पकाना, उबालना / श्लक्ष्ण (वि.) [श्लिष् + स्न, नि.] 1. कोमल, मृदु, श्रोण (भ्वा० पर० श्रोणति) 1. एकत्र करना, ढेर लगाना सौम्य, स्निग्ध (शध्द आदि) 2. चिकना, चमकदार, 2. एकत्र होना, संचित होना। शि० 3 / 46 3. स्वल्प, सूक्ष्म, पतला, सुकुमार श्रोण (वि.) [ श्रोण+अच् ] विकलांग, लंगड़ा,---णः 4. सुन्दर, लावण्यमय 5. निश्छल, ईमानदार, खरा / एक प्रकार का रोग / श्लक्ष्णकम् [श्लक्ष्ण+कन् ] सुपारी, पूगीफल / श्रोणा [ श्रोण+टाप् ] 1. कांजी 2. श्रवण नक्षत्र / श्लक (भ्वा० आ० श्लङ्कते) जाना, हिलना-जुलना / श्रोणिः,-णी (स्त्री०) [ श्रोण इन् वा डीप ] 1. कल्हा, | श्लङ्ग (भ्वा० आ० श्लङ्गते) जाना, हिलना-जुलना / नितम्ब, चूतड़ श्रोणीभारादलसगमना--मेघ. 82. इलथ (चुरा० उभ० श्लथयति--ते) 1. शिथिल या ढीलाश्रोणीभारस्त्यजति तनुताम् - काव्य० 10 2. सड़क, ढाला होना 2. दुर्बल या बलहीन होना 3. शिथिल मार्ग / सम० ---तटः कूल्हों की ढलान, - - फलकम् होना, ढीला होना, विश्राम करना (आलं. भी) 1. विशाल कूल्हे 2. नितम्ब, बिम्बम् 1. गोल कूल्हे इलथयितुं क्षणमक्षमताङ्गना न सहसा सहसा कृतवेपथु: -विक्रम० 4118 2. कमर-पट्टा, सूत्रम्-1. मेखला | -शि० 6 / 57, परित्राणस्नेहः श्लथयितुमशक्यः खलु 2. कमर से लटकती हुई तलवार का बन्धन / / यथा-गंगा० 37 4. चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना / श्रोतस् (नपुं०) [श्रु+असुन तुट च ] 1. कान 2. हाथी / इलथ (वि०) [ श्लथ+अच] 1. बिना बँधा, बिना की संड 3. ज्ञानेन्द्रिय 4. सरिता, प्रवाह ('स्रोतस्' जकड़ा 2. शिथिल, विश्रांत, खुला हुआ, फिसला हुआ के स्थान पर)। सम० रन्ध्रम संड का विवर, ...--वृन्ताच्छलथं हरति पुष्पमनोकहानाम्-रघु० 5 / नथुना-मेघ०४२, ('स्रोतोरन्ध्र' भी लिखा जाता है)। 37, 19 / 26 3. बिखरे हुए (जैसे बाल)। सम० श्रोतृ (पुं०) [श्रु+तृच् ] 1. सुनने वाला 2. छात्र / -उद्यम (वि.) जिसने अपने प्रयत्न ढीले कर दिये श्रोत्रम् [श्रूयतेऽनेन-श्रु करणे+ष्ट्रन् ] 1. कान-भर्त. हों, लम्बिन (वि०) ढीला-ढाला, नीचे लटकता हुआ, 2271 2. वेदों में प्रवीणता 3. वेद / सम० पेय -कु० 5 / 47 / (वि.) कान से ग्रहण करने के योग्य, ध्यानपूर्वक / श्लाख (भ्वा० पर० श्लाखति) व्याप्त होना, प्रविष्ट सुनने के योग्य -संदेशं मे तदन जलद श्रोष्पसि श्रोत्र- होना। पेयम् मेघ०१३,- मूलम् कान की जड़ / इलाथ् (भ्वा० आ० श्लाघते) प्रशंसा करना, स्तुति करना, श्रोत्रिय (वि.)[छन्दो वेदमधोते वेत्ति वा–छन्दस+घ, सराहना, गुणगान करना शिरसा श्लाघते पूर्व श्रोत्रादेशः ] 1. वेद में प्रवीण या अभिज्ञ 2. शिष्य, (गुणं) परं (दो) कण्ठे नियच्छति-सुभा०, यथैव अनुशासित होने के योग्य,यः विद्वान ब्राग्रण, धर्म श्लाध्यते गङ्गा पादेन परमेष्ठिनः कु०६।७० (कुछ ज्ञान में सुविज्ञ -जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैद्विज लोग यहां श्लाघ्पते' के स्थान पर 'श्लाघते' उच्यते / विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय पाठ समझते हैं, और अगला अर्थ घटाते है) उच्यते--मा० 115, रघु०१६।२५ / सम-स्वम् 2. शेखी बघारना, घड करना, इलाधिष्ये केन को विद्वान् ब्राह्मण की संपत्ति / / बन्धून्नेष्यत्युन्नतिमुन्नतः --- भट्टि० 16 / 4 3. खुशामद श्रौत (वि.) (स्त्री०-ती) श्रुतौ विहितम् अण् ] 1, कान करना, फुसलाकर काम निकालना (संप्र० के साथ) से संबंध रखने वाला 2. वेदसंबंधी, वेद पर आधारित, -गोपी कृष्णाय श्लाघते --सिद्धा०, भट्टि०८७३ / वेदविहित, तम 1. वेदविहित कोई भी कर्म या अनु- श्लाघनम् [श्लाघ्+ ल्युट्] 1. प्रशंसा करना, स्तुति करना ष्ठान 2. वेदप्रतिपादित कर्मकाण्ड 3. यज्ञाग्नि को 2. खुशामद करना। संधारण करना 4. तीनों यज्ञाग्नियों की समष्टि श्लाघा [श्लाघ-+अ+टाप्] 1. प्रशंसा, स्तुति, सराहना, (अर्थात् गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण)। सम० -कर्ण-जयद्रथयो; कात्र श्लाघा -वेणी०२ 2. आत्म-- कर्मन् (नपुं०) वैदिक कृत्य, --सूत्रम् वेद पर प्रशंसा, शेखी बघारना---हते जरति गाङ्गेये पुरस्कृत्य आधारित सूत्र ग्रन्थों का संग्रह (आश्वलायन, सांख्यायन शिखण्डिनम, या श्लाघा पाण्डुपुत्राणां संवास्माकं और कात्यायन आदि के नाम से अभिहित)। भविष्यति-वेणी० 2 / 4 3. खुशामद 4, सेवा श्रोत्रम् [श्रोत्र-+-(स्वार्थे) अण] 1. कान 2. वेदों में 5. कामना, इच्छा। सम-विपर्ययः डींग मारने का प्रवीणता। अभाव, ·-त्यागे श्लाघा विपर्ययः - रघु० 1122 / For Private and Personal Use Only Page #1049 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1040 ) इलाधित (भू० क० कृ०) [श्लाघ् +क्त] प्रशंसा किया। व्यर्थक शब्द प्रयोग,--भितिक (वि.) श्लेष पर गया, स्तुति किया गया, सराहा गया। टिका हुआ (शा० -आधारित)। इलाध्य (वि.) [श्लाघ- ण्यत् ] 1. प्रशंसनीय, योग्य | श्लेष्मकः [ष्मन+कन] कफ, बलगम / - उत्तर० 4 / 9, 13 2. आदरणीय, श्रद्धेय / | श्लेष्मज (वि०) [श्लेष्मन् + जन्+3] कफ से उत्पन्न, दिलकुः [श्लिष्-+-कु, पृषो०] 1. कामुक, लंपट 2. दास, कफमूलक / ___आश्रित (नपुं०) नक्षत्र विद्या, फलित ज्योतिष / | श्लेष्मन् (पुं०) [श्लिष् + मनिन्] कफ, बलगम, कफ की शिलक्युः [श्लिष् +क्यु, पृषो०] 1. लंपट 2. सेवक / प्रकृति / सम० असिसारः कफविकार से उत्पन्न श्लिए / (भ्वा० पर० श्लेषति) जलना। पेचिश, मरोड़ --ओजस् (नपुं०) कफ की प्रकृति,-ना ii (दिवा० पर० श्लिष्यति, श्लिष्ट) आलिंगन -इनी 1. मल्लिका, एक प्रकार का मोतिया करना, श्लिष्यति चुम्बति जलधरकल्पं हरिरुपगत 2. केतकी, केकड़ा। इति तिमिरमनल्पम् गीत. 6 2. जमे रहना, श्लेष्मल (वि.) [ श्लेष्मन+लच ] कफ प्रकृति का, चिपके रहना, डटे रहना 3. संयुक्त होना, सम्मिलित बलगमी। होना 4. ग्रहण करना, लेना, समझना -नै० 3 / 69, श्लेष्मातः, श्लेष्मातकः [ श्लेष्मन् +अत्+अच्, पक्षे कन् आ---, उप--, आलिंगन करना, परिरंभण करना, घ] एक वृक्ष विशेष, लिसोड़े का पेड़ / वि-, 1. वियुक्त होना, दूर होना 2. फट जाना, श्लोक (म्वा० आ० श्लोकते) 1. प्रशंसा करना, पद्य रचना फट कर उड़ जाना, - भट्टि० 1467, (प्रेर०) अलग- | करना, छन्दोबद्ध करना 2. अवाप्त करना 3. त्यागना, अलग करना, मेघ० 7, सम् , 1. डटे रहना, चिपके / छोड़ना। रहना 2. सम्मिलित होना, मिलना। श्लोकः [ श्लोक+अच् ] 1. कवितामय प्रशंसन, स्तुतीiii (चुरा० उभ० श्लेषयति-ते) जोड़ना, सम्मिलित | करण 2. स्तोत्र मनु० 7 / 26 3. ख्याति, प्रसिद्धि, करना, मिलाना। विश्रुति, यश, यथा 'पुण्यश्लोक' में 4. प्रशंसा का श्लिषा [श्लिष्+अ+टाप 1. आलिंगन 2. चिपकना, विषय 5. किंवदन्ती, कहावत 6. पद्य, कविता-रघु० जुड़ जाना। 141707. अनुष्टुप् छन्द में कोई पद्य या कविता। श्लिष्ट (भू० क० कृ०) [श्लिष+क्त] 1. आलिंगित श्लोण (म्वा० पर० श्लोणति) एकत्र करना, इकठ्ठा करना, 2. चिपका हुआ, जुड़ा हुआ 3. टिका हुआ, झुका | बीनना तु० श्रोण' / हुआ 4. श्लेष से युक्त, दो अर्थों की संभावना इलोणः [ श्लोण+अच् ] लंगड़ा पुरुष, विकलांग / से युक्त-अत्र विषमादयः शब्दाः श्लिष्टाः-काव्य श्वक (म्वा० आ० श्व कुते) जाना, हिलना-जुलना। श्व, स्वच् (भ्वा० आ० श्वचते, श्वञ्चते) 1. जाना, शिलष्टिः (स्त्री०) [श्लिष्+क्तिन्] 1. आलिंगन 2. परि- हिलना-जुलना 2. खुला होना, मुंह बाना, फटना, रंभण / दरार हो जाना। श्लीपबम् [श्री युक्तं वृत्तियुक्तं पदम् अस्मात्, पृषो०] श्वज (भ्वा० आ० श्वजते) जाना, हिलना-जुलना / सूजी हुई टांग या फूला हुआ पैर, फोलपाँव / सम० बढ़ (चुरा० उभ. श्वठयति ते) 1. निन्दा करना (कुछ -प्रभवः आम का पेड़। के मतानुसार 'श्वठयति') 2. (श्वाठयति-ते) (क) श्लील (वि.) [श्रीः अस्ति अस्य-लच, पृषो०] 1. भाग्य जाना, हिलना-जुलना (ख) अलंकृत करना (ग) शाली, समृद्ध, दे० श्रील, 2. शिष्ट तु. 'अश्लील' / समाप्त करना, सम्पन्न करना (कुछ के मतानुसार इन श्लेषः [श्लिषघा ] 1. आलिंगन 2. चिपकना, जड़ना अर्थों में केवल 'श्वठयति')। 3. मिलाप, संगम, संपर्क-निरन्तरश्लेषधना:-का. श्व (चुरा० उभ० श्वण्ठयति ते) निन्दा करना। (यहाँ इसमें अगला अर्थ भी घटित होता है) श्वन् (पुं०) [श्वि+कनिन्, नि. (कर्त० श्वा, श्वानी, 4. अनेकार्थ शब्द प्रयोग, एक से अधिक अर्थ प्रकट श्वानः कर्म० ब०व० शुनः, स्त्री०. शुनी) कुत्ता करने वाले शब्दों का प्रयोग, वषर्थक, किसी शब्द या ---इवा यदि क्रियते राजा स कि नाश्नात्युपानहम् वाक्य की दो या दो से अधिक अर्थों की संभाव्यता, .... सुभा० भर्तृ० 2 / 31, मनु० 2 / 201 / सम. (यह एक अलंकार समझा जाता है, कवि इसका -- कीछिन् (पुं०) खिलारी कुत्तों को पालने वाला, बहुत प्रयोग करते है, परिभाषा के लिए दे० काव्य -...गणः कुत्तों का मुंड, गणिक: 1. शिकारी, 2. कुत्तों कारिका 84 तथा ९६)-आश्लेषि न श्लेषकवेर्भवत्याः को खिलाने वाला, धृतः गीदड़, नरः कमीना आदमी, श्लोकद्वयार्थः सुधिया मया किम-नै० 3269, दे० नीच व्यक्ति, निशम, निशा वह रात जिसमें कुत्ते 'शब्दश्लेष' भी। सम-अर्चः अनेकार्थ शब्द प्रयोग, भौंकते हों, --पमा -पच: 1. अतिनीच और For Private and Personal Use Only Page #1050 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1041 ) पतित जाति का पुरुष, जातिबहिष्कृत, चांडाल,-भामि० (जैसे कमल का)-शि०१०।५८,११।१५ 4. हांपना, 4 / 23 2. कुत्तों को खिलाने वाला,- पक्षम् कुत्ते का गहरा सांस लेना-भट्टि० 6 / 120, 14155 5. ऊँचा पेर, -- पाक: जाति से बहिष्कृत, चाण्डाल- गंगा० सांस लेना, धड़कना 6. उन्मक्त होना, नि--निस-, 25, ---- फलम् खट्टा नींब या चकोतरा,-फल्कः आह भरना, ऊँचा साँस लेना, चि-, विश्वास अक्रूर के पिता का नाम, --भीरः गीदड़,-युथ्यम् करना, भरोसा करना, विश्वास रखना (प्राय: अधि० कुत्तों का झुंड, -- वृत्तिः (स्त्री०) कुत्ते का जीवन, के साथ)-पुसि विश्वसिति कुत्र कुमारी-० 5 / 110 (बहुधा 'नौकरी' की समता इससे की जाती है)-सेवां --कु० 5 / 15, (कभी कभी संबं के साथ) 2. सुरक्षित लाघवकारिणी कृतधियः स्थाने वत्ति विदुः- मुद्रा रहना, निर्भय या विश्वस्त होना-विशश्वसे पक्षिगण: 3314, मनु० 4 / 6 2. सेवावृत्ति, सेवा- मनु०४१४, समन्तात्-भट्टि० 8 / 105, समा-, साहसी होना, -- व्याघ्रः 1. शिकारी जानवर 2. बाघ 3. चीता, हिम्मत बांधना, ढाढस रखना (प्रेर०) सांत्वना देना, - हन् (पुं०) शिकारी। प्रोत्साहित करना, उत्साह बढ़ाना। श्व (चुरा० उभ० श्वभ्रयति-ते) 1. जाना, हिलना- | श्वस् (अव्य०) [आगामि अहः पृषो०] 1. आने वाला जुलना 2. बींचना, सूराख करना, छिद्र करना 3. दरि- कल, वरमद्य कपोतो न श्वो मयर:-सुभा० 2. भविष्य द्रता में रहना। काल (समास के आरंभ में)। सम-भूत (वि.) श्वभ्रम् [ श्व+अच् ] रन्ध्र, विवर,—विक्रम० 1318, (श्वोभूत) कल होने वाला-वसीय,-वसीयस (श्वोव. कि० 14133 / सीय, श्वोवसीयस्) (वि०) प्रसन्न, शुभ, भाग्यशाली; श्वयः [ शिव+अच् ] सूजन, शोथ, वृद्धि / (नपुं०) प्रसन्नता, सौभाग्य,--श्रेयस् (श्वः श्रेयस) श्वययः [श्वि+अथुच् ] सूजन, शोथ / (वि०) प्रसन्न, समृद्धि, (सम्) 1. प्रसन्नता, समृद्धि श्वयीची [ शिव+ईचि+डीप ] बीमारी, रोग / 2. ब्रह्मा या परमात्मा का विशेषण / श्वल (भ्वा० पर० श्वलति) दौड़ना, फुर्ती से जाना / श्वसनः [श्वसित्यनेन-श्वस्+ल्युट्] 1. हवा, वायु, श्वसनश्वल्क (चुरा० उभ० श्वल्कयति-ते) कहना, वर्णन | सुरभिगन्धिः -शि० 11 / 21 2. एक राक्षस का नाम करना। जिसे इन्द्र ने मार गिराया था-, नम् 1. श्वास, साँस श्वल्ल् (भ्वा० पर० श्वल्लति) दौड़ना - दे० 'श्वल्'। लेना, सांस निकालना-. श्वसनचलितपल्लवाधरोष्ठे श्वशुरः [श आशु अश्नुते आशु+अश्+उरच् पृषो०] --कि० 10 // 34, रत्न० 214, (यहाँ यह प्रथम अर्थ ससुर, पत्नी या पति का पिता--मनु० 3 / 119 / / भी प्रकट करता है) शि० 9 / 52 2. आह भरना श्वशुरकः [ श्वशुर+कन् ] ससुर।। -- कि० 2 / 45 / सम-अशन: साँप,-ईश्वरः श्वशर्यः [ श्वशुरस्यापत्यम् - श्वशुर+यत् ] 1. साला अर्जुन वृक्ष,-उत्सुक: साँप,-मिः (स्त्री०) हवा पत्नी या पति का भाई 2. पति का छोटा भाई, | का झोंका। देवर। श्वसित (भू० क० कृ०) [श्वस्+क्त ] 1. सांस लिया श्वभूः (स्त्री०) [ श्वशुर+ऊड, उकार-अकारलोपः / हुआ, आह भरी हुई 2. सांस लेने वाला,--तम् सास, पत्नी या पति की माँ --रघु० 14113 / 1. सांस लेना, सांस निकालना 2. ऊँचा सांस लेना। सम०-श्वशुर (पुं०) द्वि० व०) सास और ससुर / | श्वस्तन (वि.) (स्त्री०--नी) श्वस्त्य (वि.) [श्वस् श्वस (अदा० पर० श्वसिति, श्वस्त-श्वसित) 1. साँस +-टचुल, तुट श्वस्+त्यप वा] आगामी कल से लेना, सांस निकालना, सांस खींचना स कर्मकारभ- संबंध रखने वाला, भावी, आगे आने वाला।। स्त्रेव श्वसनपि न जीवति - हि० 2 / 11, रघु०८८७ | श्वाकर्णः [शन: कर्णः ष० त०, अन्येषामपीति दीर्घः] कुत्ते 2. आह भरना, हाँपना, ऊँचा साँस लेना,-- श्वसिति का कान। विहगवर्ग: ऋतु० 213 3. फूत्कार करना, खुर्राटे स्वागणिक: [श्वगणेन चरति-श्वगण+ठा 1 कुत्ते भरना, प्रेर०-(श्वासयति-ते) साँस दिलाना, जीवित रखने वाला, कुत्ते पाल कर अपनी जीविका चलाने रखना, आ---, 1. सांस लेना, महावीर० 5 / 51 | वाला। 2. सांस लेने लगना, साहसी बनना, हिम्मत करना / स्वादन्तः [ शुनो दन्तः 10 त०, अन्येषामपीति दीर्घः ] कुत्ते ... मेघ० 8 3. पुनर्जीवित करना - भट्टि० 9 / 56, का दाँत / (प्रेर०) सांत्वना देना आराम देना, प्रसन्न करना | श्वानः [ श्वव+अण् न टिलोपः ] कुत्ता। सम०- निद्रा उद--, 1. सांस देना, जीना वेणी० 5 / 15, मनु० कुत्ते की नींद, बहुत हलकी नींद,-वैखरी क्रुद्ध कुत्ते -3172 2. उत्साह बढाना, जी उठना, हिम्मत बाँधनां का गुर्राना। कि० 318, शि० 1858 3. खुलना, खिलना, ( श्वापद (वि.) (स्त्री०- दी) [शुन इव आपद् अस्मात् For Private and Personal Use Only Page #1051 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1042 ) ब. स, श्वन्+आप+अच, ] वर्बर, हिस्र, -वः १।१४,--त: 1. सफ़ेद रङ्ग 2. शङ्ख 3. कौड़ी 4. रति 1. शिकारी जानवर, जंगली जानवर 2. बाध / कूट पौधा 5. शुक्र ग्रह, शुक्र ग्रह को अधिष्ठात्री देवता श्वापुच्छ: ---च्छम् [शुनः पुच्छम् -10 त०, नि० दीर्घ ] 6. सफ़ेद बादल 7. जीरा 8. पर्वतश्रेणी दे० कुलाचले कुत्ते की पूंछ, दुम। या कुलपर्वत 9. ब्रह्माण्ड का एक प्रभाग, तम् दी। श्वाविष् (पुं०) [शुना आविध्यते-श्वन्+आ+व्यध् सम० - अम्बरः,-वासस् (पुं०) जैन सन्यासियों का +क्विप् ] साही, शल्यक। एक सम्प्रदाय, इक्षुः एक प्रकार का ईख, गन्ना,-उदरः श्वासः [ श्वस्-+घञ ] सांस लेना, साँस, श्वासप्रश्वास कुबेर का विशेषण, --- कमलम्, पम् सफ़ेद कमल क्रिया, ऊँचा साँस - अद्यापि स्तनवेपथु जनयति श्वासः -- कुञ्जरः इन्द्र के हाथी ऐरावत का विशेषण, कुष्ठम् प्रमाणाधिक: -श० 129, कु० 2 / 42 2. आह्, सफ़ेद कोढ़,-केतुः बौद्ध श्रमण या जैनसाधु, - कोल: हाँपना 3. हवा, वायु 4. दमा। सम० - कासः दमा, एक प्रकार की मछली, शफर, गजः द्विपः 1. सफ़ेद -रोधः साँस का रोकना, हिक्का एक प्रकार की हाथी 2. इन्द्र का हाथी, गरुत् (पुं०) गरुतः हंस, हिचकी,--हेतिः (स्त्री०) नींद। ... छवः 1. हंस 2. एक प्रकार की तुलसी, सफ़ेद श्वासिन् (वि.) [श्वास+इनि] साँस लेने वाला-(पुं०) तुलसी, द्वीपः इस महाद्वीप के अठारह लघु प्रभागों 1. हवा, वाय 2. श्वास लेने वाला जानवर, जीवित में से एक,-धातुः 1. सफ़ेद खनिज पदार्थ 2. खड़िया प्राणी 3. जो फुत्कार की ध्वनि के साथ (वर्ण) मिट्टी, 3. दूधिया पत्थर, धामन् (पुं०) 1, चाँद उच्चारण करता है। 2. कपूर 3. समुद्रफेन, --नीलः बादल,-पत्रः हंस, रथः शिव (भ्वा० पर० श्वयति, शून) 1. विकसित होना, ब्रह्मा का विशेषण, पाटला शृङ्गवल्ली का फूल बढ़ना (आलं० से भी) सूजना (जैसे आँख का) -पिङ्गः सिंह,-पिङ्गाल: 1. सिंह 2. शिव का विशेषण, -रुदतोऽशिश्वियच्चक्षुरास्यं हेतोस्तवाश्वयीत् --भट्टि -... मरिचम सफ़ेद मिर्च,—माल: 1. बादल 2. धूआँ, 6 / 19, 31, 14179, 15 / 30 2. फलना-फूलना, - रक्तः गुलाबी रङ्ग, रञ्जनम् सीसा, रथः शुक्रसमृद्ध होना 3. जाना, पहुँचना, अभिमुख चलना, ग्रह, रोचिस् (पुं०) चन्द्रमा,रोहितः गरुड़ का उद्-, सूजना, बढ़ना, विकसित होना..-प्रबलरुदितो विशेषण,--बल्कल: गूलर का पेड़, - वाजिन् (पुं०) च्छननेत्रं (मुखम् )-मेघ० 84 2. घमण्डी होना, 1. चन्द्रमा 2. अर्जुन का विशेषण,--वाह (पुं०) इन्द्र घमण्ड से फूल जाना। का विशेषण, वाहः 1. अर्जुन का विशेषण 2. इन्द्र का शिवत (भ्वा० आ० श्वेतते) श्वेत होना, सफ़ेद होना विशेषण, वाहनः 1. अर्जुन का विशेषण 2. चन्द्रमा -व्यतिकरितदिगन्ताः श्वेतमानैर्यशोभिः- मा० 2 / 9 / / 3. समुद्री दानव, मगरमच्छ, घड़ियाल, वाहिन (0) शिवत (वि.) [श्वित्+क] सफ़ेद। अर्जुन का विशेषण,-शुङ्गः,-शृङ्गः जौ, -हयः 1. इन्द्र शिवतिः (स्त्री०) [श्वित्+इन्] सफ़ेदी। का घोड़ा 2. अर्जुन का विशेषण, हस्तिन् (पुं०) इन्द्र शिवस्य (वि०) श्वित् +यत्] सफेद / का हाथी ऐरावत / वित्रम् [श्वित्+रक्] 1. सफ़ेद कोढ़ 2. फुलबहरी, कोढ, श्वेतकः / श्वेत-+कन्] कौड़ी, कम् चाँदी। का दाग (त्वचा पर)-तदल्पमपि नोपेक्ष्यं काव्ये दुष्टं | श्वेता शिवत+अच+-टाप] 1. कौड़ी 2. पूनर्नवा 3. सफ़ेद कथंचन / स्याद्वपुः सुन्दरमपि श्वित्रेणकेन दुर्भगम् दूब 4. स्फटिक 5. रवेदार चीनी 6. बंसलोचन ..काव्या० 17 / 7. अनेक पौधों के नाम (श्वेत कण्टकारी, श्वेत बृहती शिवत्रिन (वि०) (स्त्री०-णी) [श्वित्र--इनि ] कोढ़ के __ आदि)। रोग से ग्रस्त (पुं०) कोढ़ी।। श्वेतौही (स्त्री०) श्वेतवाह+डोष] इन्द्र की पत्नी, शची। शिवन्द (भ्वा० आश्विन्दते) सफ़ेद होना। श्वेत्रम् (नपुं०) सफ़ेद कोढ़ / श्वेत (वि०) (स्त्री०-ता,-ती) [श्वित्+घञ, अच् वा] श्वत्यम् [श्वेत-व्या] 1. सफ़ेदी 2. सफ़ेद कोढ़। सफ़ेद, ततः श्वेतैर्हयर्यक्ते महति स्यन्दने स्थितौ-भग० | श्वैत्रम, श्वंत्र्यम् श्वित्र+अण, व्या वा] सफ़ेद कोढ़ / वि०-बहुत सी धातुएँ जो स' से आरंभ होती हैं, धातु | कर 'ष' हो जाता है। इस प्रकार की धातुएँ 'स' के पाठ में '' पूर्वक लिखी जाती है जिससे कि यह अन्तर्गत ही अपने उचित स्थान पर मिलेंगी। प्रकट हो सके कि कुछ उपसर्गों के पश्चात् 'स्' बदल | ष (वि.) [सो+क, पृषो० षत्वम् ] सर्वोत्तम, सर्वो For Private and Personal Use Only Page #1052 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1043 ) त्कृष्ट, ..: 1. हानि, विनाश 2. अन्त 3. शेष, अव- / एक प्रकार की वीणा,---कर्मन् (नपुं०) (षट्कर्मन्) शिष्ट 4. मोक्ष। 1. ब्राह्मणों के लिए विहित छ: कर्तव्य--अध्यापनषट्क (वि.) [षड्भिः क्रीतम् --षष् +कन् / छः गुना, मध्ययनं यजनं याजनं तथा। दानं प्रतिग्रहश्चैव .... कम् छ: की समष्टि मासषट्क, उत्तर षट्क षट्कर्माण्यग्रजन्मनः मनु० 10 // 75 2. छः कर्म जो आदि। ब्राह्मण की जीविका के लिए विहित हैं....उञ्छं प्रतिषड्धा दे० षोढा / ग्रहो भिक्षा वाणिज्यं पशुपालनम्। कृषिकर्म तथा बण्डः [ सन्ड, पृषो० षत्वम ] 1. साँड़ 2. नपंसक चेति षट्कर्माण्यग्रजन्मन: 3. जादू के छः करतब (भिन्न-भिन्न लेखकों ने नपुंसकों के 14 से 20 तक शान्ति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेष, उच्चाटन तथा अनेक भेद लिखे हैं) 3. समूह, समुच्चय, संग्रह, ढेर, मारण 4. योगाभ्याससंबंधी छ: क्रियाएँ-धौतिर्वस्ती राशि, (इस अर्थ में नपुं० भी)--कलरवमुपगीते षट्- तथा नेती (नौलिको) बाटकस्तथा। कपालभाती पदोघेन धत्तः कुमुदकमलषण्डे तुल्यरूपामवस्थाम्-शि० चैतानि षटकर्माणि समाचरेत् // (पुं०) ब्राह्मण, 11115, तु० 'खंड' भी। -- कोण (वि.) (षट्कोण) 1. छ: कोणों से युक्त पण्डकः [ षण्ड+कन् ] नपुंसक, हिजड़ा। (णम्) 1. षड्भुज, छः कोनिया 2. इन्द्र का वज्र, पण्डाली [षण्ड+अल+अच्+ङीष् ] 1. तालाब, जोहड़ - गवम् (षड्गवम्) 1. छ: बैलों की जोड़ी 2. वह 2. व्याभचारिणी या असती स्त्री।। जुवा जिसमें छ: बैल जोते जायं (कभी कभी अन्य षष्ठः [ सन् ---ढ, पृषो० षत्वम् ] 1. नपुंसक, हिजड़ा, जानवरों के नाम पर) उदा० हस्ति, अश्व छ: -- याज्ञ० 11215 2. नपुंसकलिंग - - निवेश: शिविरं हाथी छः घोड़े आदि,-गुण (वि०) (षड्गुण) 1. छः षण्डे -अमर० / सम० ... तिलः बंध्य तिल, वह तिल गुना 2. छ: विशेषणों से युक्त (णम) 1. छ: गुणों जो उग न सके। का समुदाय 2. किसी राजा की विदेशनीति में प्रयोषष् (संख्या० वि०) [ सो+क्विप्, पृषो० ] (केबल क्तव्य छ: उपाय दे० 'गुण' के अन्तर्गत (21), ब०व० में प्रयुक्त कर्तृ० षट्, संबं० षण्णाम् ) छ:-मनु० तु० 'षागुण्य' के साथ भी, - ग्रन्थि (वि.) (षड्१।१६, 81403 / सम० अक्षीणः (षडक्षीणः) मछली, ग्रन्थि) पिप्परामूल, प्रन्यिका (षटप्रन्थिका) शटी, -अङ्गम् समष्टि रूप से ग्रहण किये गये शरीर के छ: आमाहल्दी,..चक्रम् (षट्चक्रम् ) शरीर के छः भाग--जंघे बाहू शिरोमध्यं षडङ्गमिदमुच्यते रहस्यमय चक्र (मूलाधार, अधिष्ठान, मणिपूर, अना2. वेद के छः अंग सहायक भाग,-शिक्षा कल्पो हत, विशुद्ध और आज्ञा),-चत्वारिंशत् (षट्चत्वाव्याकरणं निरुक्त छन्दसां चितिः / ज्योतिषामयनं रिंशत्) छयालीस,--चरणः (षट्चरणः) 1. मधुमक्खी चैव षडलो वेद उच्यते, दे० 'वेदांग' भी 3. छ: शुभ 2. टिड्डी 3. जू,--जः (षड्जः) भारतीय स्वरग्रामवस्तुएँ -अर्थात् गोमाता से प्राप्त छ: पदार्थ-गोमूत्र के सात प्राथमिक स्वरों में से चौथा स्वर (कुछ के गोमयं क्षीरं सपिर्दघि च रोचना। षडंगमेतन्मांगल्यं अनुसार पहला) क्योंकि यह स्वर छ: अंगों से व्युत्पन्न पठितं सर्वदा गवाम् - अघ्रिः (षडघ्रिः ) भौंरा, है नासांकठमुरस्तालु जिह्वां दन्तांश्च संस्पृशन / --अधिक (वि.) (षडधिक) वह जिसमें छः अधिक षड्जः संजायते (षड्भ्यः संजायते) यस्मात् तस्मात् हों, .. मा० ५.१,-अभिज्ञः (षडभिज्ञः) देवरूप बौद्ध षड्ज इति स्मृतः, कहते हैं कि मोर के स्वर से यह स्वर महात्मा, अशीत (वि०) (षडशीत) छ्यासीवां, मिलता-जुलता है, --षड्ज रौति मयूरस्तु - नार० --अशीतिः (स्त्री०) (षडशीतिः) छयासी,-अहः षड्जसम्वादिनी: केका: द्विधा भिन्ना: शिखण्डिभिः (षडहः) छ: दिन का समय या अवधि, आननः - रघु० ११३९,-त्रिंशत् (स्त्री०) (षट्त्रिंशत्) -वक्त्रः,-वदनः (षडाननः, षड्वक्त्रः, षड्वदनः) छत्तीस ( षत्रिंश ) ( वि०) छत्तीसवाँ,--दर्शनम् कार्तिकेय के विशेषण -षडाननापीतपयोधरासू नेता (षड्दर्शनम् ) हिन्दू दर्शन के छ: मुख्य शास्त्र चमूनामिव कृत्तिकासु-रघु० 14 / 22, -- आम्नायः -- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और (षडाम्नायः) छ: तन्त्र, ऊषणम् (षषणम् ) समष्टि वेदान्त,-दुर्गम् (षड्दुर्गम) छ: प्रकार के गढ़ों की रूप से ग्रहण किये हुए छ: मसाले-पंचकोलं स मरिचं समष्टि - धन्वदुर्ग महीदुर्ग गिरिदुर्ग तथैव च / षडूषणमुदाहृतम्,.. कर्ण (वि०) (षटकर्ण) छ: कानों मनुष्यदुर्ग मददुर्ग वनदुर्गमितिक्रमात् नवतिः से सुना गया, अर्थात् वक्ता और श्रोता के अतिरिक्त (षष्णवतिः) छयानवे, ... पञ्चाशत् (स्त्री०) (षटकिसी तीसरे व्यक्ति द्वारा भी सुना गया, एक से पञ्चाशत्) छप्पन, पवः (षट्पदः) 1. भौंरा-न पङ्कजं अधिक श्रोताओं को सुनाया गया (परामर्श, भेद तद्यदलीनषट्पदं न षट्पदोऽसौ न जुगञ्ज यः कलम् आदि)-षटको भिद्यते मन्त्रः पंच. 199, (णः) -भट्टि० 2 / 19, कु० 5 / 9, रघु 6169 2. जू For Private and Personal Use Only Page #1053 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1044 ) अतिथि: आम का वृक्ष, आनन्दवर्धनः अशोक या / तवोपभोक्तं षष्ठांशमा इव रक्षितायाः--रघु० 2 / किकिरात वृक्ष, ज्य (वि.) जिस की डोरी भोरों 66, (उपज के भिन्न भिन्न भेद जिनके छठे भाग का से बनी है (जैसे कि कामदेव का धनुष)-प्राय- अधिकारी राजा है-मनु० 7131-2 में बताये गये चापं न वहति भयान्मन्मथः षट्पदज्यम् - मेघ० 73, हैं) वृत्तिः उपज के छठे भाग का अधिकारी राजा, प्रियः नागकेशर नाम का वृक्ष, "पदी (षट्पदी) -षष्ठांशवत्तेरपि धर्म एष:-श० 5 / 4, -- अन्नम् छठा 1. छ: पंक्तियों का श्लोक 2. भ्रमरी 3. जू,--प्रज्ञः भोजन, कालः तीन दिन में केवल एक बार भोजन (पद्मशः) जो छः विषयों से सुपरिचित है अर्थात् करने वाला, जैसा कि प्रायश्चित्तस्वरूप किया चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) या मानव- जाता है। जीवन के उद्देश्य और लोकप्रकृति, ब्रह्मप्रकृति-धर्मार्थ- षष्ठी [ षष्ठ+डीप ] 1. चान्द्रमास के किसी पक्ष की छठ काममोक्षेषु लोकतत्त्वार्थयोरपि। षट्सु प्रज्ञा तु यस्यासौ 2. (व्या० में) छठी विभक्ति या सम्बन्ध कारक षट्प्रज्ञः परिकीर्तितः / / 2. विलासी, कामासक्त पुरुष 3. कात्यायनी के रूप में दुर्गा का विशेषण, जो --बिनुः (षदिनुः) विष्णु का विशेषण, - भागः सोलह दिव्य मातृकाओं में से एक है। समः (पभागः) छठा भाग,भाग-श०२।१३, मनु० -तत्पुरुषः छठी. विभक्ति के लोप वाला तत्पुरुष 7 / 131, 8133, भुज (वि०) (षड्भुज) 1. छ: समास, ऐसे समास में.विग्रह करने पर पहला पद हैं सहायक जिसके, छ: कोनों वाला, (जः) षट्कोण सदैव छठी विभक्ति का होता है, पूजनम्,-पूजा (जा) 1. दुर्गा का विशेषण 2. तरबूज,-मासः बालक उत्पन्न होने के छठे दिन छठी देवी की पूजा (षष्मासः) छ: महीने का समय,-मासिक (वि.) करना। (षाण्मासिक) छमाही, अर्धवार्षिक,- मुखः (षण्मुखः) षहसानुः [सह-+आनु, असुक्, पृषो० षत्वम् ] 1. मोर कार्तिकेय का विशेषण-रघु० 17467, (-खा) तर- 2. यज्ञ। बूज,-रसम्-रसाः (पुं० ब० व०) (षड्सम् आदि) बाट (अव्य०) [ सह +वि, पृषो० षत्वं टत्वम् सम्बोधक छ: रसों की समष्टि - दे० 'रस' के अन्तर्गत,- रात्रम् अव्यय / (पात्रम्) छ: रातों का समय या अवधि,-वर्गः | | षादकौशिक (वि०) (स्त्री०-की) [ षट्कोश+ठक] (षड्वर्गः) 1. छ: वस्तुओं की समष्टि 2. विशेष रूप छः तहों में लिपटा हुआ। से मनुष्य के छः शत्रु, षडिपु' भी कहते हैं)-कामः पारवः [षड्+अ+अच् ततः स्वार्थे अण् ] 1. राग, कोषस्तथा लोभो मदमोही च मत्सरः। कृतारिषड्वर्ग- मनोवेग 2. गाना, संगीत 3. (संगीत में) एक राग जयेन-कि० 1 / 9, व्यजेष्ट षड्वर्गम् - भट्टि० 12, जिस में संगीत के सात स्वरों में से छ: स्वर प्रयुक्त --विशतिः (स्त्री०) (षड्वंशतिः) छब्बीस (षड्- होते है-पंचमः पञ्चभिः प्रोक्तः स्वरैः षड्भिस्तु विश छब्बीसवाँ),--विष (षड्विध) (वि०) छ: षाडवः। प्रकार का, छ: गुना--रघु०४।२६,-षष्टिः (स्त्री०) षागुण्यम् [षड्गुण+ष्यभ.11. छ: गुणों की समष्टि (पपष्टिः) छासठ,-सप्ततिः (षट्-सप्ततिः) 2. राजा के द्वारा प्रयुक्त छ: युक्तियाँ, राजनीति के छिहत्तर / छः उपाय,-शि० 2093, दे० 'गुण' के अन्तर्गत 3. छ: पष्टिः (स्त्री०) [षडगुणिता दशतिः नि०] साठ-मनु० से किसी संख्या का गुणन / सम० - प्रयोगः राजनीति 3177, याज्ञ. 384, °तम साठवाँ। सम०-भागः के छ: उपाय, या छ: युक्तियों का प्रयोग। शिव का विशेषण, मत्तः साठ वर्ष की आयु का हाथी षामातुरः [षण्णां मातृणाम् अपत्यम्, षण्मातृ+अण, जिसके मस्तक से मद चूता है.- योजनी (स्त्री०) उत्व, रपर ] छ: माताओं वाला, कार्तिकेय का साठ योजन का विस्तार या यात्रा,-संवत्सरः साठ विशेषण / वर्ष की अवधि या समय,-हायन: 1. (साठवर्ष की | वामासिक (वि.) (स्त्री०-की) [षण्मास+ठक] आयु का) हाथी 2. एक प्रकार का चावल / / 1. छमाही, अर्धवार्षिक 2. छ: महीने का,-- मौक्तिकापष्ठ (वि.) (स्त्री०-ठी) षण्णां पूरणः - षष् +डट, | नां पाण्मासिकानाम्-विक्ष. 1217 / बुक] छठा, छठा भाग--षष्ठं तु क्षेत्रजस्यांशं प्रदद्या- पाठ (वि.) (स्त्री०-ठी) [षष्ठ-+अण् स्वार्थे ] त्पैतृकाद्धनात् मनु० 9 / 164, 7 / 30, षष्ठे भागे छठा। -विक्रमा० 2 / 1, रघु० 17178 / सम० -- अंशः | विद्गः [ सिट+गन्, पृषो० षत्वम् ] 1. विलासी, ऐयाश, 1. सामान्य छठा भाग--याज्ञ० 3 / 35 2. विशेष कर कामुक, कामासक्त 2. प्रेमनिपुण, असंगत प्रेमी, उपजका छठा भाग जिसको कि राजा अपनी प्रजा से विट--पिगैरगद्यत ससंभ्रममेव काचित--शि० . भूमिकर के रूप में ग्रहण करता है-ऊघस्यमिच्छामि / 5 / 34 / 1 For Private and Personal Use Only Page #1054 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1045 ) पः [सु+डु, पृषो० षत्वम् ] प्रसूति, प्रजनन / पोरशिक (वि.) (स्त्री०-की) [षोडशन्+ठक् ] षोडश (वि०) (स्त्री०-- शो) [षोग्शम् +डट् ] | सोलह भागों से युक्त, सोलह गुना - षोडशिर्को सोलहवाँ मनु० 2165,86 / / देवतोपचारः। षोडशम् (संख्या० वि०) ब० ब०, सोलह / सम.--अंशुः | पोरशिन् (पुं०) [षोडशन्+इनि] अग्निष्टोम यज्ञ शुक्रग्रह,-अङ्ग (वि०) एक प्रकार का गन्धद्रव्य, का रूपान्तर। -- अङ्गलक (वि०) छ: अंगुल की चौड़ाई का, अनिः | वोढा (अव्य०) [षष्+घाच्, षष उत्वम्, धस्य ष्टुत्वम् ) केकड़ा,- अधिस शुक्र ग्रह,-आवर्तः शंख, छ: प्रकार से। सम० - म्यासः मंत्र पढ़ते हुए शरीर -उपचारः (पुं०, ब०व०) किसी देवता को | स्पर्श के छः प्रकार,-मुखः छ: मंह वाला, कार्तिकेय, श्रद्धांजलि अर्पित करने की सोलह रीतियाँ, जिनकी -द्रोढा , जनोर्जनितषोढामुखः समिति बोढा सा गिनती यह है-आसनं स्वागतं पाद्यमय॑माचमनी- हाटकगिरेः---अश्व०७। यकम् / मधुपर्काचमस्नानं वसनाभरणानि च। ष्ठिव (म्वा० दिवा. पर० ष्ठीवति, ष्ठीव्यति, ष्ठपूत) गंधपूष्पे धूपदीपो नैवेद्यं वन्दनं तथा,-कल: चन्द्रमा 1. थूकना, मुंह से खखार निकालना, 2. राल टपकना, की सोलह कलाएं, जिनके नाम यह है- अमता -गट्टि० 1218, नि -, 1. प्रक्षेपण करना, निकालना, मानदा पूषा तुष्टिः पुष्टी रतिधुतिः। शशिनी धकेलना--श० 4 / 4, रघु० 2175. भट्टि. 141100, चन्द्रिका कान्तिज्योत्स्ना श्रीः प्रीतिरेव च / अङ्गदा 17.10, 18 / 14, काव्या० 1195 2. मुंह से बहार च तथा पूर्णामृता षोडश व कला:,- भुजा दुर्गा की निकालना मनु०४।१३२, याज. 31213 / एक मूर्ति, मातृका (स्त्री०) ब०व०, सोलह दिव्य व्ठीवनम्, ष्ठेवनम् [ष्ठी+ल्युट्, 'ष्ठि+ल्युट् ] माताएँ जिनके नाम निम्नांकित हैं- गौरी पना ____ 1. थूकना 2. लार, यूक, खखार। शची मेघा सावित्री विजया जया / देवसेना स्वघा | छपूत (भू० क. कृ.) [ष्ठि+क्त, ऊ ] थूका हुआ, स्वाहा मातरो लोकमातरः। शान्तिः पुष्टिकृति- खखारा हुआ। स्तुष्टिः कुलदेकात्मदेवताः // स्वक, ध्वस्त (भ्वा० आ० ष्वक्कते, वस्कते). जाना, षोडशषा (अव्य०) [ षोडशन्+घाच् ] सोलह प्रकार से / / हिलना-जुलना / स (अव्य०) सह, सम्, तुल्य या सदृश, और एक अथवा हुआ, दबाया हुआ, वश में किया हुआ 2. जकड़ा समान शब्दों के स्थान पर आदेश होने वाला उपसर्ग, हुआ, एक स्थान पर बाँधा हुआ 3.बेड़ियों से जकड़ा। जो विशेषण अथवा क्रियाविशेषण बनाने के लिए हुआ 4. बन्दी, कैदी, कारावासी-रघु० 3 / 20 संज्ञा शब्दों के साथ समास में प्रयक्त होकर निम्नांकित. 5. उद्यत, तैयार 6. व्यवस्थित, दे० सम् पूर्वक 'यम् / अर्थ प्रकट करता है (क) के साथ, मिला कर, के सम०-अञ्जलि (वि.) जिसने विनम्र प्रार्थना के साथ साथ, संयुक्त होकर, युक्त, सहित - सपुत्र, लिए हाथ जोड़े हुए हैं,-आत्मन् (वि०) जिसने मन सभार्य, सतृष्ण, सधन, सरोषम, सकोपम, सहरि आदि को वश में कर लिया है, नियंत्रितमना, आत्मनिग्रही। (ख) समान, सदृश,. सधर्मन् 'समान प्रकृति का', - आहार (वि०) मिताहारी,-उपस्कर (वि.). इसी प्रकार सजाति, सवर्ण (ग) वही, सोदर, सपक्ष, जिसका घर सुव्यवस्थित हो, जिसके घर का सामान सपिंड, सनाभि आदि, (पुं०) 1. साँप 2. वाय, हवा सब क्रमपूर्वक रक्खा हो, चेतस्, - मनस् (वि.) 3. पक्षी 4. 'षड्ज' नामक संगीत स्वर का संक्षिप्त मन को नियन्त्रण में रखने वाला, -प्राण (वि०) 5. शिव का नाम 6. विष्णु का नाम / जिसका श्वास नियंत्रित किया हुआ है, प्राणायाम का संयः[सम्+यम्+ड] कंकाल, पंजर / अभ्यास करने वाला, वाच (वि०) मूक, मौन रहने संयत् (स्त्री०) [ सम्+यम्-+क्विप्] युद्ध, संग्राम, वाला, मितभाषी। लड़ाई यः संयति प्राप्तपिनाकिलील:- रघु० 672, 1 संयत्त (वि.) [सम्+यत्+क्त] 1. सन्नद्ध, तत्पर, 7.39, 18120, कि० 1219, शि० 1615 / सम० तैयार महावीर० 5 / 51 2. सावधान, सतर्क / वरः राजा, राजकुमार। संयमः [सम्+यम्+अप् ] 1. प्रतिबंध, रोकथाम, नियंसंयत (भू० क० कृ०) [ सम् +यम्+क्त ] 1. रोका ! वण-श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति-भग० For Private and Personal Use Only Page #1055 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -1 / चिा ( 1046 ) 4 / 26, 27 2. मन की एकाग्रता, योग की अंतिम दो तारिकाओं का मिलन 8. शिव का विशेषण / तीन अवस्थाओं को प्रकट करने वाला शब्द-धारणा- __ सम०-पृथक्त्वम् अनित्य संबंधों का पार्थक्य,-विरुवम् ध्यानसमाधित्रयमन्तरङ्ग संयमपदवाच्यम् - सर्व०, कु० साथ-साथ मिलाकर खाने से रोग उत्पन्न करने वाला 2159 3. धार्मिक व्रत 4. धार्मिक भक्ति, तपस्साधना, खाद्यपदार्थ। - श० 4 / 19 5. दयाभाव, करुणा की भावना। संयोगिन् (वि.) [संयोग+ इनि] 1. मिलाया हुआ, संयमनम् [सम्+यम् + ल्युट ] 1. प्रतिबन्ध, रोकथाम सम्मिलित 2. मिलने वाला। 2. अंतःकर्षण * श० 1 3. बांधना--उत्तर० 1, | संयोजनम् [सम्--युज् + ल्युट्] 1. मिलाप, एक साथ ... विक्रम० 3 / 6 4. कैद 5. आत्मोत्सर्ग, नियन्त्रण जोड़ना 2. मैथुन, संभोग / 6. धार्मिक व्रत या आभार 7. चार घरों का वर्ग, | संरक्त (भू० क० कृ०) [सम्+र+क्त] 1. रंगीन, -मः नियामक, शासक, नी यम की नगरी का नाम / लाल 2. आवेशपूर्ण, प्रणयाग्नि में दग्ध 3. क्रुद्ध, संयमित (भू० क. कृ.) [संयम+णिच्+क्त ] चिड़चिड़ा, क्रोधाग्नि से जलता हआ 4. मोहित, 1. नियंत्रित 2. बद्ध, बेडी से जकड़ा हआ 3. निरुद्ध, मुग्ध 5. लावण्यमय, सुन्दर / रोका हुआ / संरक्षः[सम् + रक्षघा ] प्ररक्षण, देख-भाल, संधारण / संयमिन् (वि.) [सम् +यम् +णिनि ] दमन करने संरक्षणम् [सम्+र+ल्युट्] 1. प्ररक्षण, संधारण वाला, रोकने वाला, नियंत्रित करने वाला-(पुं०)। 2. उत्तरदायित्व, निगरानी। जिसने अपने आवेगों को रोक लिया या नियंत्रण में संरब्य (भ० क. कृ०) [सम्+रम्भ+क्त] 1. उत्तेजित कर लिया, ऋषि, संन्यासी रघु० 8.11, भग० विक्षुब्ध 2. प्रज्वलित, संक्षुब्ध, क्रुद्ध, भीषण 3. वधित 2069 / 4. सूजा हुआ 5. अभिभूत। संयानः [सम्+या+ल्यूट ] साँचा,--नम् 1. साथ-साथ | संरंभः [सम्+र+घञ, मुम्] 1. आरंभ 2. हुल्लड़, जाना, मिलकर चलना 2. यात्रा करना, प्रगति करना खलबली, उग्रता, प्रचण्डता.. श० 7 3. विक्षोभ, 3. शव को उठा कर ले जाना। उत्तेजना, हड़बड़ी-कु. 348 4. ऊर्जा, उत्साह, संयामः [सम् +-यम्+घा / दे० 'संयम' / उत्कण्ठा-रघु०१२।९६ 5. क्रोध, रोष, कोप-प्रणिसंयावः [सम्--यु- घ ] गेहें के आटे का मिष्टान्न, पातप्रतीकारः संरंभो हि महात्मनाम् - रघु०४।६४, हलवा-मनु० 5/7 / 12 // 36, विक्रम रा२१, 4128 6. घमंड, अहंकार संयुक्त (भू० क० कृ.) [सम् + युज+क्त ] 1. मिला 7. शोथ और जलन (फोड़े फूसी की)। सम०-परुष हुआ, जुड़ा हुआ, सम्मिलित 2. सम्मिश्रित, मिला (वि०) जो गुस्से के कारण कठोर हो गया हो, हुआ, संपृक्त 3. सहित 4. संपन्न, से युक्त 5. अन्वित, --- रस (वि०) अत्यंत क्रुद्ध, वेगः क्रोध की उग्रता। बना हुआ। संरम्भिन (वि०) (स्त्री० ---णो) [संरम्भ+इनि] 1. उत्तेसंयुगः [सम्+युज---क, जस्य गः ] 1. संयोजन, मिलाप, जित, विक्षुब्ध, हड़बड़ी से युक्त शि० 2067 मिश्रण 2. लड़ाई, संग्राम, युद्ध, संघर्ष-संयगे सांय- 2. क्रुद्ध, प्रकुपित, रोषाविष्ट 3. घमंडी, अहंकारी। गीनं तमुद्यतं प्रसहेत कः - कु० 2 / 57, रघु० 9 / 19 / / संरागः [सम्+र +घञ्] 1. रंगत 2. प्रणयोन्माद, सम० गोष्पदम् भिड़न्त, नगण्य या तुच्छ झगड़ा, अनुरक्ति 3. रोष, क्रोध। मामूली बात पर कलह / संराधनम् सिम+राध-+ ल्यट] 1. प्रसन्न करना, मेलसंयुज् (वि०) [सम् +-युज्+ क्विन्] संबद्ध, संबंध रखने करना, पूजा आदि के द्वारा तुष्ट करना 2. सम्पन्न वाला शि०१४।५५ / करना 3. प्रकृष्ट या गहन मनन / संयुत (भू०० कृ०) [सम्+यक्त] 1. मिला हुआ, संरावः [सम्-रु+घञ] 1. गुलगपाड़ा, हल्लागुल्ला, एकत्र जोड़ा हुआ, संबद्ध 2. संपन्न, सहित, दे० सम् | / शोरगुल 2, कोलाहल / / पूर्वक 'यु। संरुग्ण (भू० क. कृ.) [सम्+रुज्+क्त जो टुकड़े संयोगः सम् + युज+घञ] 1. संयोजन, मिलाप, मिश्रण, टुकड़े हो गया हो, चूर-चूर, छिन्नभिन्न / संगम, मिलना-जुलना, घनिष्ठता संयोगो हि वियो- | संरुद्ध (भू० क० कृ०) [सम् +रुध् + क्त) 1. रोका गया, गस्य संसूचयति संभवम् - सुभा० 2. जोड़ना, बाधित, अवरुद्ध 2. रुका हुआ, भरा हुआ 3. घेरा (वैशेषिकों के चौबीस गणों में से एक) 3. जोड़, डाला हुआ, वेष्टित, उपरुद्ध 4. ढका हुआ, छिपाया मिलाना 4. संचय आभरणसंयोगा:--मा० 6 हुआ 5. अस्वीकृत, अटकाया हुआ, दे० सम् पूर्वक 5. दो राजाओं में किसी एक से समान उद्देश्य के लिए | रुध् / मित्रता 6. (व्या० में) संयुक्त व्यंजन 7. (ज्यो० में) | संरूढ (भू० क० कृ०) [सम् ---रुह -+ क्त] 1. साथ-साथ For Private and Personal Use Only Page #1056 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उगा हआ 2. किणान्वित. घाव भरा हुआ. जैसा कि / कर बातें करना.2.समाचार देना 3. परीक्षण, खयाल 'संख्ढवण' में 3. फूटा हुआ, अंकुर निकला हुआ, करना 4. जादू मंत्र के द्वारा वश में करना 5. मन्त्र, मुकुलित, उपजा हुआ- रघु०६/४७ 4. पक्का जमा ताबीज। हुआ, जिसकी जड़ दृढ़ हो गई हो 5. साहसी, |संबरः [ सम्++अप् वा अच् ] 1. ढक्कन 2. समास भरोसे का। 3. संपीडन, संकोचन 4. बांध, सेतू, पुल 5. एक प्रकार संरोषः [सम्+रुध+धा ] 1. पूरी रुकावट या विघ्न, का हरिण 6. एक राक्षस का नाम-- पांबर,-रम अड़चन, रोक, रोक थाम 2. घेराबंदी, घेरना 3. बंधन, 1. छिपाव 2. सहनशीलता, आत्मनियंत्रण 3. जल बेड़ी 4. फेंकना, डालना। 4. बौद्धों का एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान / संरोधनम् [ सम् + + ल्युट् ] रुकावट, ठहराना, | संबरणम् [सम्--+ल्युट् ] 1. आवरण, आच्छादन रोकना / 2. छिपाव, दुराव-मा० 1 3. बहाना, छप्रवेश संलक्षणम् [ सम्+ल+ल्यूट ] निशान लगाना, पहचा- ___-. दे० 'संवर' भी। नना, चित्रण करना / संवर्जनम् [ सम् + ल्युट् ] 1. आत्मसात्करण 2. उपसंलग्न (भू० क. कृ०) [सम्+लग्+क्त ] 1. घनिष्ठ, भोग करना, खा जाना / सटा हुआ, संहत, जुड़ा हुआ 2. गुत्थमगुत्था होना, | संवर्तः [ सम् +वृत्+धम ] 1. मुड़ना 2 धुलना, विनाश भिड़ जाना। 3. संसार का नियतकालिक प्रलय-महावीर० 6 / 26 संलयः [ सम्+ली+अच् ] 1. लेटना, सोना 2. घुल 4. बादल 5. (जल से भरा हुआ) बादल 6. संसार जाना 3. प्रलय / में प्रलय होने पर उठने वाले सात बादलों में से एक संलयनम् [ सम् +ली+ल्युट ] 1. जुड़ जाना, चिपक | 7. वर्ष 8. संग्रह, समुच्चय / जाना 2. घुल जाना। संवर्तकः [ सम् +वृत्+णिच् +ण्वुल ] 1. एक प्रकार का संललित (भू० क० कृ०) [ सम् +लल+क्त ] लाड बादल 2. प्रलयाग्नि, विश्वप्रलय के समय संसार को लगाया हुआ, प्यार किया हुआ। भस्म करने वाली आग-इतोऽपि वडवानलः सह संलापः [सम+लपु+घन। 1. समालाप, बातचीत, समस्तसंवर्तक:-भत० 2176 3. बड़वानल 4. बल प्रवचन 2. गोपनीय या गप्त बातें, अंतरंग वार्तालाप, राम का नाम / ____3. (नाटकों में) एक प्रकार का संवाद, सम्भाषण / संवर्तकिन् (पुं०) [ संवर्तक-+इनि ] बलराम का नाम / संलापकः [संलाप+कन् ] एक प्रकार का उपरूपक, संवा- संतिका [ संवर्तक+टाप, इत्वम् ] 1. कमल का नया दात्मक प्रकार का, -- दे० सा० द० 549 / पत्ता 2. पराग केशर के पास की पंखड़ी 3.दीप संलोढ (भू० क० कृ०) [ सम्+लिह,+ क्त ] चाटा शिखा आदि (दीपादे: शिखा-तारा०)। हुआ, उपभुक्त। संवर्धक (वि.) (स्त्री०-धिका) [सम्+बुध+णिच संलीन (भू० क० कृ.) [सम्+ली+क्त] 1. चिपका +बुल ] 1. पूर्ण विकसित करने वाला, बढ़ाने वाला हुआ, जुड़ा हुआ 2. साथ साथ मिलाया हुआ 2. सत्कार करने वाला, स्वागत करने वाला (अम्या3. छिपाया हुआ, गुप्त रक्खा हुआ 4. दहला हुआ गतों का), आतिथ्यकारी। 5. सिकुड़ा हुआ, शिकन पड़ा हुआ। सम०-कर्ण संबंधित (भू० क. कृ०) [ सम् +वृष+णि+क्त ] (वि०) जिसके कान नीचे लटके हों,-मानस (वि०) 1. पाला-पोसा हुआ, पालन-पोषण किया हुआ खिन्नमना, उदास / संलोडनम् [ सम् + लोड्+ल्युट ] बाधा डालना, गड़बड़ | संवलित (भू० क० कृ.) [ सम्+वल्+क्त ] 1. साय करना। मिला हुआ, मिलाया हुआ, मिश्रित मा० 65 संवत् (अव्य०) [ सम्+वय +क्विप्, यलोपः तुक् च] / 2. तर किया हुआ, मा० 4 / 9 3. संबद्ध, संयुक्त 1. वर्ष 2. विशेष कर विक्रमादित्य वर्ष, (जो खीस्ताब्द] 4. टूटा हुआ उदितोपलस्खलनसंवलिताः (ध्वनयः) से 56 वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ था। -कि०६।४। संवत्सरः [ संवसन्ति ऋतवोऽत्र-संवस्+सरन् ] 1. वर्ष | संबल्गित (वि.) [ सम्+वल्ग्+क्त ] पददलित किया 2. विक्रमादित्यान्द 3. शिव / सम० .. करः शिव का | हुआ, तम् ध्वनि मा० 5 / 19 / विशेषण, भ्रमि (वि.) एक वर्ष में पूरा चक्कर | संवसपः [ सम्+वस्+अथच् ] मिलकर रहने का स्थान, करने वाला (सूर्य),-- रथः एक वर्ष में पूरा होने वाला प्राम, बस्ती। मार्ग / | संवहः [ सम्+वह +अच् ] वायु के सात मागों में से संवदनम् [ सम्+व+ल्युट् ] 1. वार्तालाप करना, मिल! तीसरा मार्ग / +क्त ] हुआ, पालन-पो .2. बढ़ाया For Private and Personal Use Only Page #1057 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1048 ) संवादः[सम्+वद्घ न ] 1. मिलकर बोलना, बात / की ललकार, प्रहरी-संकेत 8. नाम, अभिधान चीत, वार्तालाप, कथोपकथन, -महावीर० 1 / 12 ! 9. चिह्न, संकेत 10. प्रसन्न करना, खुश करना, 2. चर्चा, वादविवाद 3. समाचार देना 4. सूचना, तुष्टीकरण - शि०१६।३७ 11. सहानुभूति, साथ देना समाचार 5. स्वीकृति, सहमति 6:" समनुरूपता, मेल- 12. मनन 13. वार्तालाप, संलाप 14. भाँग / सम. जोल, समानता, सादृश्य-रूपसंवादाच्च संशयादनया -व्यतिक्रमः प्रतिज्ञा भंग करना, संविदा का उल्लंघन / पृष्ट:-दश०, (नादः) चित्ताकर्षी परिचित इव श्रोत्र-| संविदा [ संविद् +टाप् ] करार, प्रतिज्ञा, ठेका। संवादमेति --मा० 5 / 20 / संविदात (वि.) जानने वाला, प्रतिभाशाली 2. सांमनस्य संवादिन् (वि०) [ संवाद-|-इनि ] 1. बोलने वाला, पूर्ण / बातचीत करने वाला 2. सदृश, समान, मिलता- | संविदित (भू० क. कृ.) [सम् +विद्+क्त ] 1. जाना जुलता, अनुरूप षड्जसंवादिनीः केकाः-रघु० 1 // हुआ, समझा हुआ 2..पहचाना हुआ 3. सुविदित, 39, अस्मदनसंवादिन्याकृतिः - उत्तर०६।। विश्रुत 4. खोजा हुआ 5. सम्मत 6. उपदिष्ट, समझाया संवारः [सम्वृ +घन ] 1. आवरण, आच्छादन बुझाया हुआ-दे० सम् पूर्वक विद्,-तम् करार, 2. वर्णोच्चारण के समय कण्ठादिकों का संकोचन, प्रतिज्ञा। मन्द उच्चारण (विप० विवार) 3. न्यूनता 4.प्ररक्षण, | संविषा [सम्+वि+धा+अ+टाप। 1. व्यवस्था, संरक्षण 5. सुव्यवस्थापन / उपक्रमण, आयोजन-रघु०७।१७, 14 / 17. 2. जीवन संवासः [सम्+वस्+घञ ] 1. मिलकर रहना यापन का ढंग, जीवनचर्या के साधन-रघु० 1194 / 2. समाज, मण्डली,-पंच० 11250 3. घरेलू व्यवहार | संविधानम् [ सम्+वि+घा+ल्युट ] 1. व्यवस्था, प्रबन्ध 4. घर, आवास स्थान 5. मनोरंजन के या सभा आदि -मा०६ 2. अनुष्ठान 3. आयोजन, रीति 4. कृत्य के लिए खुला मैदान / ___5. (कथावस्तु में) घटनाओं का क्रममा०६। संवाहः [सम्+वह +घा] 1, ले जाना, ढोना | संविधानकम् [संविधान+कन्] 1. (कथावस्तु में) घटनाओं 2. मिलकर दबाना 3. मालिश करना, मुट्ठी भरना का क्रम, किसी नाटक की कथावस्तु-अहो संविधान4. वह नौकर जो मालिश करने या मट्ठी भरने के कम्-उत्तर०३ 2. अद्भत कर्म, असाधारण घटना। लिए रक्खा गया हो। संविभागः [सम्+वि+भ+घञ्] 1. विभाजन, संवाहकः [ सम् + वह +ण्वुल ] मालिश करने वाला, बांटना 2. भाग, अंश, हिस्सा। दे० ऊपर संवाह (4) / | संविभागिन् (पुं०) सिंविभाग+इनि] सहभागी, हिस्सेदार, संवाहनम्,-ना [ सम्+वह+णिच् + ल्युट् ] 1. बोझा साझीदार। ढोना, उठाकर ले जाना 2. मालिश करना, मुट्ठी / संविष्ट (भू० क० कृ.) [सम् +विश् +क्त ] 1. सोता भरना, उत्तर० 1124, मा० 9 / 25 / हुआ, लेटा हुआ-रघु० 1195 2. साथ-साथ घुसा संविक्तम् [सम्+विज्+क्त ] अलग किया हुआ, हुआ 3. मिलकर बैठा हुआ 4. वस्त्र पहने हुए, कपड़े विशिष्ट / धारण किये हुए। संविग्न [ सम् +विज्+क्त ] 1. विक्षुब्ध, उत्तेजित, | संवीक्षणम् [सम्+वि-+ ईश् + ल्युट ] सब दिशाओं में अशान्त, उद्विग्न, हड़बड़ाया हुआ जैसा कि 'संविग्न- देखना, खोज, खोई हुई वस्तु की तलाश / मानस' में 2. अस्त, भीत। संवीत (भू० क० कृ०) [ सम्+व्ये+क्त ] 1. वस्त्रों से संविज्ञात (भू० क. कृ.) [ सम्+वि+ज्ञा+क्त ] सज्जित, कपड़े पहने हुए 2. ढका हुआ, लिपटा हुआ, विश्वविदित, सबके द्वारा माना हआ, सर्वसम्मत / / अघिच्छादित 3. अलंकृत 4. लपेटा हुआ, घेरा हुआ, संवित्तिः (स्त्री० [सम्+विद्+क्तिन् ] 1. ज्ञान, बन्द किया हुआ, परिवेष्टित 5. अभिभूत / प्रत्यक्षज्ञान चेतना, भावना - श्वस्त्वया सुखसंवित्तिः संवृक्त (भू० क० कृ०) [सम्+व+क्त ] 1. खाया स्मरणीयाऽधुनातनी-कि० 11134, 1932 2. समझ, हुआ, उपभुक्त 2. नष्ट / बुद्धि 3. पहचान, प्रत्यास्मरण 4. (भावना का) | संवृत (भू० क० कृ.) [सम्+व+क्त ] 1. ढका हुआ, सांमनस्य, मानसिक समझौता। . आच्छादित -- मुहुरङ्गुलिसंवताघरोष्ठं (मुखम्)-श० संविद् (स्त्री०) [ सम्+विद्-+क्विप् ] 1. ज्ञान, समझ, 3 / 26 2. प्रच्छन्न, गुप्त - श० 2 / 11 3. रहस्य बुद्धि,-कि० 18142 2. चेतना, प्रत्यक्षज्ञान --मा० 4. समाप्त, बन्द, सुरक्षित 5. अवकाश प्राप्त, एकान्त६।१३ 3. इकरार, वचन, संविदा, अनबन्ध, प्रतिज्ञा सेवी 6. संकुचित, भींचा हुआ 7. बलपूर्वक छीना हुआ, ---रघु० 7 // 31 4. स्वीकृति, सहमति 5. माना हुआ | जब्त किया हुआ 8. भरा हुआ, पूर्ण 9. सहित, दे० प्रचलन, विहित प्रथा 6, संग्राम, युद्ध, लड़ाई 7. युद्ध / सम् पूर्वक वृ, तम् 1. गुप्त स्थान, एकान्त स्थान, For Private and Personal Use Only Page #1058 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1049 ) गोपनीयता 2. उच्चारण का एक प्रकार। सम० / ...-भग०६।३९ 2. शंका, शक 3. संदेह, या अनिर्णय --आकार (वि.) जो अपनी आन्तरिक भावनाओं (न्या० में) न्यायदर्शन में वर्णित सोलह भेदों में से एक को बाहर प्रकट नहीं होने देता है, जो अपने मन के -एक धर्मिकविरुद्धभावाभवप्रकारकं ज्ञानं संशयः 4. डर, विचारों का अता-पता नहीं देता,:-मन्त्र (वि०) जो खतरा, जोखिम-न संशयमनारुह्य नरो. भद्राणि अपनी योजनाओं को गुप्त रखता है-रघु० 1220 / पश्यति-हि. 17, याता पुनः संशयमन्यथैव-मा० संवृतिः (स्त्री.) [सम्+वृ+क्तिन्] 1. आवरण, आच्छा- 10113, कि०. 13316, वेणी० 61 5. संभावना / दन 2. छिपाव, दबाना, गुप्त रखना कि० 10144 सम-आत्मन् (वि०) संदेह करने वाला, शंकाशील, 3. गुप्त प्रयोजन, अभिसंधि / ..... आपन्न,-उपेत,---स्थ (वि०) संदेहपूर्ण, अनिसंवृत्त (भू० क. कृ.) [सम्+वृत्+क्त ] 1. हुआ, घटा, श्चित, अस्थिर,--गत (वि.) खतरे में पड़ा हुआ घटित हुआ 2. भरा गया, सम्पन्न 3. संचितं, एकस्थान -श०६, -छेवः संदेह का निवारण, निर्णय, पर राशीकृत 4. बीता हुआ, गया हुआ 5. ढका हुआ -- छेविन् (वि०) सभी संदेहों को मिटाने वाला, 6. सुसज्जित,-तः वरुण का नाम / निर्णयात्मक-श० 3 / / संवृत्तिः (स्त्री.) [सम्+वृत्+क्तिन् ] 1. होना, घटना संशयान, संशयाल (वि०) [सम् +शी+शानच्, संशय घटित होना 2. निष्पन्नता 3. आवरण / +आलुच् ] सन्देहपूर्ण, अस्थिर, अनिश्चित, संवृद्धि (मू० क० कृ.) [सम् + वृष्+क्त ] 1. पूर्ण चंचल / विकसित, बढ़ा हुमा, पूर्ण वृद्धि को प्राप्त 2. ऊँचा या संशरणम् [ सम् + +ल्युट् ] युद्ध का आरम्भ, आक्रलंबा, बढ़ा हुआ, बड़ा विशाल 3. समृद्धिशाली, खिलता मण, पढ़ाई, पावा। हुआ, फलता फूलता हुआ। संशित (भू० क. कृ.) [ सम् +शो+क्त ] 1. तेज संवेगः [ सम् +-विज्+घ ] 1. विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्ते- किया हुआ, प्रोत्तेजित किया हुआ 2. तेज, तीक्ष्ण जना महावीर० 1239 2. प्रचंड गति, शीघ्रगामिता, 3. सर्वथा पूरा किया हुआ, क्रियान्वित, निष्पन्न प्रचंडता-उत्तर० 2 / 24, मा० 5 / 6 3. जल्दी, 4.निर्णीत, सुनिश्चित, निर्धारित, निश्चित / सम०, चाल 4. तड़पाने वाली पीड़ा, वेदना, तीक्ष्णता / --आत्मन् (वि०) जिसका मन सर्वथा परिपक्व या , संवेषः [सम्+-विद्+घा ] प्रत्यक्षशान, जानकारी, अनुशिष्ट है, -व्रत (वि०) जिसने अपनी प्रतिमा चेतना, भावना। पूरी कर ली है। संवेदनम्, - मा [सम् +विद् + ल्युट् ] 1. प्रत्यक्षज्ञान, | संशुद्ध (भू० क० कृ०) [ सम् +शुष्+क्त ] 1. पूरी जानकारी 2. तीव्र अनुभूति, भावना, अनुभूति, तरह शुद्ध किया हुआ, पवित्र .. पालिश किया हुआ, भोगना ...दुःखसंवेदनायव रामे चैतन्यमर्पितम्-उत्तर० __संस्कृत 3. प्रायश्चित्त के द्वारा विशुद्ध किया हुआ। ' 1147 3. देना, आत्मसमर्पण करना--मुद्रा० संशुद्धिः (स्त्री०) [सम्+शुध+क्तिन् ] 1. नितान्त 1 / 23 / पवित्रीकरण, भग० 15.1 2. स्वच्छ करना, विमल संवेशः [ सम् + विश्+घन ] 1. निद्रा, विश्राम - रघु० करना 3. संशोधन, समाधान, परिशोबन 4. स्वच्छता, 1193 2. स्वप्न 3. आसन (कुर्सी आदि) सफाई 5. (ऋण का) भुगतान / / संभोग या रतिबंध विशेष / / संशोधनम् [ सम्+शुध् + ल्युट् ] पवित्रीकरण, स्वच्छता संवेशनम् [ सम्+विश्ल्यू ट ] मैथुन, संभोग। आदि / संव्यानम् [ सम् +व्ये + ल्युट् ] 1. आवरण, परिवेष्टन संश्चत् (नपुं०) [ सम् + श्चु+इति ] दाव-पेंच, जादू 2. वस्त्र, कपड़ा, परिधान 3. उत्तरीय वस्त्र शि० गरी, इन्द्रजाल, मरीचिका-पुं० जादूगर / / 18 / 69 / / संश्यान (भू.क. कृ०) [ सम्+श्य+क्त ] 1. संकुसंशप्तकः [ सम्यक् सप्तमङ्गीकारो यस्य कप् ] वह योद्धा चित, सिकुड़ा हुआ 2. जमा हुआ, ठिठुरा हुआ जिसने युद्ध से न भागने की शपथ खायी हो और जो 3. लपेटा हआ 4. अवसन्त / दूसरे योद्धाओं को भागने से रोकने के लिए रक्खा | संश्रयः [ सम्+श्रि+अच् ] विश्रामस्थल, आवास स्थान, गया हो 2. छंटा हुआ योद्धा 3. सहयोगी योद्धा 4. वह निवासस्थान, वासस्थान-परस्पर विरोधिन्योरेकसंश्रयषड्यन्त्रकारी जिसने किसी को मार डालने का बीड़ा दुर्लभम् --विक्रम० 5 / 24, रघु० 6 / 41,' इस अर्थ में उठाया हो। प्रायः समास के अन्त में, 'साथ रहने वाला' 'संबद्ध या संशयः [ सम्+शी+अच् ] 1. संदेह, अनिश्चिति, चप- विषयक' 'निर्देशानुसार'-ज्ञातिकुलकसश्रयाम्-२० लता, संकोच, मनस्तु मे संशयमेव गाहते-कु० 5 / / 5 / 17, नौसंश्रयः-- रघु० 16157,, मनोरथोऽस्याः 46, त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न हि उपपद्यते / शशिमौलिसंश्रयः---कु० 5 / 60, द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप 132 For Private and Personal Use Only Page #1059 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 शरण में दिया हुआ, " (भूक ( 1050 ) लक्ष्मीः -1143 एकार्थसश्रयमुभयोः प्रयोगम् / संसरणम् [सम् + ल्युट] 1. जाना, प्रगति करना, -मालवि०१ 2. प्ररक्षण या शरण की खोज, शरण चक्कर काटना 2. संसार, सांसारिक जीवन, लौकिक के लिए दौड़ना, मित्रता करना, पारस्परिक प्ररक्षण सत्ता -ग्रीष्मचण्डकरमण्डलभीष्मज्वालसंसरणतापित - के लिए संघटित होना, राजनीति में वर्णित छ: उपायों मूर्ते:-भामि०४१६ 3. जन्म और पुनर्जन्म 4. सेना में से एक, दे० 'गुण' के अन्तर्गत भी, मनु० 7 / 160 को निर्बाघ कूच 5. युद्ध का आरम्भ 6. राजमार्ग 3. आश्रय, शरण, आश्रम, प्ररक्षण, पनाह-अनपायिनि 7. नगर के दरवाजों के समीप की धर्मशाला। संश्रयद्रुमे गजभग्ने पतनाय वल्लरी-कु० 4131, संसर्गः सम् + सज+घञ] 1. सम्मिश्रण, संगम, मिलाप मेघ०.१७, पंच० 122 / 2. सम्पर्क, संगति, साहचर्य, समाज-संसर्गमुक्तिः संश्रवः [सम् +श्रु+अप] 1. ध्यानपूर्वक सुनना 2. प्रतिज्ञा, खलेषु-भर्त० 2 / 62, श०१३ 3. सामीप्य, संस्पर्श करार, वादा। 4. मेल-जोल, परिचय 5. मैथुन, संभोग -- मनु० संश्रवणम् [सम्+श्रु+ल्युट] 1. सुनना 2. कान। 672 6. सह-अस्तित्व, घनिष्ठ संबंध। सम० - संश्रित (भू० क० कृ०) [सम्+श्रि+क्त] 1. शरण में / -~-अभावः अभाव के दो मुख्य भेदों में से एक, सापेक्ष ___गया हुआ 2. सहारा दिया हुआ, आश्रय दिया हुआ। अभाव जो तीन प्रकार का है (प्रागभाव पूर्ववर्ती संश्रुत (भू.क.कृ.) [सम्+श्रु+क्त] 1. प्रतिज्ञात, अभाव, प्रध्वंसाभाव-आपाती अभाव, और अत्यन्ताकरार किया हुआ 2. भली भांति सुना हुआ। भाव-निरपेक्ष, अनस्तित्व),--दोषः साहचर्य या संश्लिष्ट. (भू० क.कृ.) [सम् +श्लिष्+क्त] 1. बांधा संगति के विशेषकर कुसंगति के फलस्वरूप उत्पन्न होने हवा, साथ साथ मिला हुमा, जुड़ा हुआ, संयुक्त __ वाली बुराई या दोष। 2. आलिंगित 3. संबद्ध, साथ साथ जुड़ा 4. सटा हुआ, | संसगिन् (वि.) [संसर्ग+इनि ] संयुक्त, मिला हुआ, संस्पर्शी, संसक्त 5. सुसज्जित, युक्त, सहित / . (पु.) सड्चर, साथी। संश्लेषः [सम् +दिल+ध] 1. आलिंगन, परिरम्भण संसर्जनम् / सम्+सज्---ल्युटु ] 1. सम्मिश्रण 2. छोड़ना, 2. मिलाप, संबंध, संपर्क / / परित्याग करना 3. खाली करना, शून्य करना। संश्लेषणम्,-णा [सम् +श्लिष् + ल्युट्] 1. मिला कर संसर्पः [सम् + सप्-+ ल्युट् ] 1. सरकना, रेंगना 2. मलभींचना 2. साथ साथ बांधने का साधन / मास, लौंद का महीना जो क्षयमास वाले वर्ष में संसक्त (भ० क० कृ०) सम्+सञ्ज+क्त] 1. साथ होता है। जुड़ा हुआ, चिपका हुआ 2. जमा हुआ, संलग्न, | संसर्पणम् [सम्+सृप+ल्युट ] 1. सरकना 2. अचानक आसक्त, सटा हुआ 3. साथ मिलाया हुआ, शृंखला- आक्रमण, सहसा धावा / बद्ध, पास पास मिला हुआ-रघु० 7 / 24 4. निकट, संसपिन् (वि.) [संपर्प-1-इनि] सरकने वाला, रेंगने आसन्न, सटा हुआ 5. अव्यवस्थित मिला हुआ, वाला, कु०७८१ / मिश्रित, गड्डमड्ड किया हुआ--मदमुखरमयूरी-संसावः सम+सद+घासभा / मक्तसंसक्तकेकः मा० 9 / 5, कलिन्दकन्या मथुरां गता संसारः [ सम्+से+घ ] 1. मार्ग, रास्ता 2. सांसारिक ऽपि गङ्गोमिसंसक्तजलेव भाति-रघु० 6 / 48, मा० जीवनचक्र, धर्मनिरपेक्ष जीवन, लौकिक जिंदगी, 5 / 11 6. डटा हुआ, तुला हुआ 7. संपन्न, सहित दुनिया असार: संसार:- उत्तर० 1, मा० 5 / 30, 8. जकड़ा हुआ, प्रतिबद्ध / सम-मनस् (वि.) संसारधन्वभुवि कि सारमामशसिशंसाधना शुभगते जिसका मन किसी विषय पर जमा हुआ हो, युग -अश्व० 22, या, परिवर्तिनि संसारे मतः को वा न (वि०) जूए में जुता हुआ, जीन कसा हुआ-शि० जायते-पंच०११२७ 3. आवागमन, जन्मान्तर, जन्म३।६३ / परंपरा 4.सांसारिक भ्रम / सम०-गमनम् आवागमन, संसक्तिः सम् +सञ्ज+क्तिन्] 1. सटे रहना, घनिष्ठ -----गुरुः कामदेव का विशेषण, मार्गः 1. लौकिक मिलन या संगम -कि० 7 / 27 2. घनिष्ट संपर्क, बातों का क्रम, सांसारिक जीवन 2. योनिमुख, सामीप्य 3. आपसी मेलजोल, धनिष्ठता, घनिष्ट परि- भगद्वार, मोक्षः,-मोक्षणम् ऐहिक जीवन से मक्ति / चय -शि० 9 / 67 4. बांधना, मिला कर जकड़ना संसारिन् (वि०) (स्त्री०-णी) [ संसार+इनि] लौकिक, 5. भक्ति, (किसी कार्य में) दुर्व्यस्तता / दुनियावी, देहान्तरगामी पुं० 1. सजीव प्राणी, संसद (स्त्री०) [सम्+सद्+क्विप्] 1. सभा, सम्मिलन, जीवजन्तु 2. जीवधारी, जीवात्मा।। मंडल-संसत्सुजाते पुरुषाधिकारे कि० 3 / 51, छात्र- संसिद्ध (भू० क० कृ०) [सम्+सिध्+क्त ] 1. सर्वथा संसदि लब्धकीतिः-पंच०१, रघु०१६।२४ 2. न्याया- निष्पन्न, पूरा किया हुआ 2. जिसे मोक्ष की सिद्धि लय --मनु०८१५२। प्राप्त हो गई है, मुक्त। For Private and Personal Use Only Page #1060 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1051 ) संसिद्धिः (स्त्री०) [सम् + सिक्तिन् ] 1. पूर्णता, 4. तैयार करना, आसज्जा 5. खाना बनाना, भोज्य पूर्ण निष्पन्नता - स्वनुष्ठितस्य धर्मस्य संसिद्धिहरितोष- पदार्थ तैयार करना 6. शृंगार, सजावट, अलंकार णम्-भाग०, कु० 2063 2. कैवल्य, मोक्ष-संसिद्धि --स्वभावसुन्दरं वस्तु न संस्कारमपेक्षते- दृष्टान्त० परमां गताः-भग०८।१५ 320 3. प्रकृति, नैसर्गिक 49, श० 7 / 23, मुद्रा० 2 / 10 7. अभिमन्त्रण, अन्त:वृत्ति, अवस्था या गुण 4. प्रणयोन्मत्त या नशे में शुद्धि, पवित्रीकरण 8. छाप, रूप, सांचा, कार्यवाही, चूर स्त्री। प्रभाव-यन्नवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत् संसूचनम् [ सम् + सू+ल्युट ] 1. प्रकट करना, सिद्ध / -हि०प्र०८, भर्तृ० 3384 9. विचार भाव, प्रत्यय करना 2. सूचित करना, कहना 3. संकेत करना, भेद | 10. मनःशक्ति या धारिता 11. कार्य का प्रभाव, खोलना -अर्थस्य संसूचनम् 4. भर्त्सना, मिड़कना / किसी कर्म का गुण-रघु० 1120 12. अपनी पूर्वसंसृतिः (स्त्री०) [सम् +स+क्तिन् ] 1. मागं, धारा, जन्म की वासनाओं को पुनर्जीवित करने का गुण, प्रवाह 2. लौकिक जीवन, संसारचक्र 3. देहान्तरगमन, छाप डालने की शक्ति, वैशेषिकों द्वारा माने हुए आवागमन-किं मां निपातयसि संसतिगर्तमध्ये-भामि० चौबीस गुणों में से एक (यह गुण तीन प्रकार का 4 / 32, शि०१४।६३, तु० 'संसार। है-भावना, वेग और स्थिति-स्थापकता) 13. प्रत्यामंसृष्ट (भू० क० कृ.) [सम्+सृज्+क्त ] 1. मिश्रित, स्मरणशक्ति, संस्मरण-संस्कारमात्रजन्यं ज्ञानं स्मृतिः मिला हुआ, साथ साथ मिलाया हा, सम्मिलित -त. 14. शुद्धिसंस्कार, पुनीत कृत्य पुण्यसंस्कार किया हआ 2. साझीदारों की भांति साथ साथ संबद्ध --संस्कारार्थ शरीरस्य मनु० 2066, रघु० 1079 3. प्रशांत 4. पुनर्यक्त 5. फंसा हुआ, 6. निर्मित (मनु बारह संस्कारों का उल्लेख करता है-दे. 7 स्वच्छ वस्त्रों से सुसज्जित। मनु० 2 / 27, कुछ लेखक इस संख्या को सोलह तक संसृष्टता-स्वम् [ सम् +स+क्त+ता (त्वम्) 1. समाज, बढ़ाते हैं) 15. बार्मिक कृत्य या अनुष्ठान 16. उप संघ 2. (विधि में) आर्थिक हित की दृष्टि से बंधु नयन संस्कार 17. अन्त्येष्टि संस्कार 18. मांजकर बांधवों का ऐच्छिक पुनर्मिलन (जैसे कि पिता और चमकाने के काम आने वाला पत्थर, झावा-श० पुत्र का अथवा संपत्ति के विभाजन के पश्चात् 6 / 6, (यहाँ 'संस्कार' का अर्थ 'मांजना' भी है)। भाइयों का)। . सम-पूत (वि.) 1. पुण्यकृत्यों द्वारा शुद्ध किया संसृष्टिः (स्त्री०) [सम् + सृज्+क्तिन् ] 1. संबंध, हुआ 2. शिक्षा या अन्य संस्कारों द्वारा पवित्र किया मिलाप 2. साहचर्य, मेल-जोल, सहभागिता, साझीदारी हुआ,--रहित - वजित, हीन (वि.) वह द्विज जो 3. एक ही परिवार में मिलकर रहना-दे० संसृष्टता संस्कार हीन हो, अथवा जिसका उपनयन संस्कार (2) 4. संग्रह 5. संचय करना, जोड़ना 6. (सा० न हुभा हो, और इस लिए जो व्रात्य (पतित, जातिमें) एक ही संदर्भ में दो या दो से अधिक अलंकारों बहिष्कृत) हो गया हो-तु० 'व्रात्य'। का स्वतंत्र रूप से सह-अस्तित्व- मिथोऽनपेक्षयतेषांक (भ. को सिम-क- 11 1. / (शब्दार्थालङ्काराणाम्) स्थितिः संसष्टिरुच्यते-सा० किया गया, परिष्कृत, मांज कर चमकाया हुआ, द० 756 / आवधित-वाण्येका समलंकरोति पुरुष या संस्कृता संसेकः [सम् +सिच्+घञ ] छिड़कना, जल से तर धार्यते---भतुं० 2 / 19 2. कृत्रिम रूप से बनाया गया, करना। सुरचित, सुनिमित, सुसम्पादित 3. तैयार किया गया, संस्कर्तु (पुं०) [ सम् + कृ+तृच् ] 1. जो सुसज्जित करता संवारा गग, सुसज्जित किया गया, पकाया गया है, खाना बनाता है, या किसी प्रकार की तैयारी (भोजन) 4. अभिमन्त्रित, पुनीत किया गया करता है-मनु० 5 / 51 2. जो अभिमंत्रित करता है, 5. सांसारिक जीवन में दीक्षित, विवाहित 6. स्वच्छ पहल करता है--उत्तर० 7 / 13 / किया गया, पवित्र किया गया 7. अलंकृत किया गया, संस्कारः [ सम् ++घञ्] 1. पूर्ण करना, संस्कृत सजाया गया 8. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम,-तः 1. व्याकरण करना, पालिश करना,—(मणिः) प्रयुक्तसंस्कार इवा- के नियमों के अनुसार सिद्ध किया गया शब्द, नियमित धिकं बभौ-रघु० 3.182. संस्क्रिया, पूर्णता, व्या- व्युत्पन्न शब्द 2. द्विजाति का वह व्यक्ति जिसका करण की दृष्टि से (शब्दों की) विशुद्धता-कु० शुद्धिसंस्कार हो चुका हो 3. विद्वान् पुरुष,-तम् 28 (यहाँ मल्लि. 'व्याकरणजन्या शुद्धिः' लिखता 1.परिष्कृत या अत्यन्त परिमार्जित भाषा, संस्कृत भाषा है) रघु०१५/७६ 3. शिक्षा, अनुशीलन (मानसिक) 2. धार्मिक प्रचलन 3. चढ़ावा, आहुति (बहुधा प्रशिक्षण-निसर्गसंस्कारविनीत इत्यसो नपेण चक्रे | वैदिक)। युवराजशब्दभाक्-रघु० 3 / 35, कु. 720 ] संस्क्रिया [ सम्++श, इयङ्, टाप् ] 1. शुद्धिसंस्कार ATRATIO For Private and Personal Use Only Page #1061 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. अभिमन्त्रण 3. और्वदैहिकक्रिया, अन्त्येष्टि 9 / 261 5. संरचना, निर्माण 6. पड़ोस 7. आवास संस्कार / का सामान्य स्थल, सार्वजनिक स्थान 8. स्थिति संस्तम्भः [सम्+स्तम्भ+घञ ] 1. सहारा, टेक 2. दृढ़, अवस्था 9. कोई स्थान या जगह 10. चौराहा करना, सबल बनाना, जमाना 3. विराम, यति 11. निशान, चिह्न, विशेषक चिह्न 13. मृत्यु / 4. जड़ता, लकवा। संस्थापनम् सम्+स्था+णिच+ल्युद] 1. एक स्थान संस्तरः [ सम्+स्तृ+अप् ] 1. शय्या, पलंग, बिस्तर पर रखना, संचय करना 2 जमाना, निर्धारण करना, -~-नवपल्लवसंस्तरेऽपि ते रघु० 8 / 57 नवपल्लवसं- | विनियमित करना कुर्वीत चैषां प्रत्यक्षमर्घसंस्थापन स्तरे यथा रचयिष्यामि तनुं विभावसी-कु० 4 / 34 , नप:-मन०८।४२२ 3. स्थापित करना, पूष्ट करना 2. यज्ञ / 4. नियंत्रित करना, दमन करना, ना 1. नियन्त्रण, संस्तवः [सम्+स्तु+अप ] 1. प्रशंसा, स्तुति 2. जान- दमन 2. शान्त करने के उपाय, --संस्थापना प्रियतरा पहचान, घनिष्ठता, परिचय --- गुणाः प्रियत्वेऽधिकृता / विरहातुराणाम् - मृच्छ० 3 / 3 / न संस्तव:--कि० 4 / 25, नवगुणः सम्प्रति संस्तव- | संस्थित (भू० क. कृ.) [सम् +स्था+क्त] 1. साथ स्थिरं तिरोहितं प्रेम धनागमश्रियः . 4 / 22, शि० साथ खड़ा होने वाला, 2. विद्यमान, ठहरने वाला 7 / 31 / -नियोगसंस्थित-पंच० 1192 3. सटा हुआ, मिला संस्तावः [सम्+स्तु+घा] 1.प्रशंसा, ख्याति 2. सम्मि- हुआ 4. मिलता-जुलता, समान 5. संचित, राशीकृत लित स्तुतिपाठ, 3. यज्ञ में स्तुति पाठक ब्राह्मणों के 6. स्थिर, जमा हुआ, स्थापित 7. अन्दर या ऊपर बैठने का स्थान। रक्खा हुआ, अन्तर्वर्ती 8. अचल 9. रोका हुआ, पूरा संस्तुत (भू. क. कृ.) [सम्+स्तु+क्त] 1. प्रशस्त, किया हुआ, अन्त तक निष्पन्न, समाप्त-श० 3 जिसकी स्तुति की गई हो 2. मिलकर प्रशंसा किया 10. मृत, उपरत -- दे० सम् पूर्वक 'स्था'। गया 3. सम्मत, संवादी 4. धनिष्ठ, परिचित / संस्पितिः (स्त्री.) [सम्+स्था+क्तिन्] 1. साथ-साथ संस्तुतिः (स्त्री.) [सम्+स्तु+क्तिन्] प्रशंसा, स्तुति / होना, मिल कर रहना 2. सटा होना, निकटता, संस्त्यायः [सम्+स्त्ये+घञ] 1. संचय, राशि, संघात | सामीप्य 3. निवासस्थान, आवासस्थल, विश्रामगृह, 2. सामीप्य 3. फैलाव, प्रसार, विस्तार 4. घर, यथा नदीनदाः सर्वे सागरे यान्ति संस्थितिम्-मनु० निवासस्थान, आवास- संस्त्यायमेव गच्छावः - मा० / 6 / 90 4. संचय, ढेर 5. अवधि, कालावधि-हि. 29 5. परिचय, मित्रों या परिचितों की बातचीत / | 1143 6. अवस्थान, स्थिति, जीवन की दशा 7. प्रतिसंस्थ (वि.) [सम् + स्था+क] 1. ठहरने वाला, डटा / बंध 8. मृत्यु रहने वाला, टिकाऊ 2. रहने वाला, विद्यमान, मौजूद, संस्पर्शः [सम्+स्पृश्+घञ्] 1. संपर्क, छूना, सम्मिलन, स्थित (मास के अन्त में)---शिष्टा क्रिया कस्य चिदात्म- मिश्रण 2. छुआ जाना, प्रभावित होना 3. प्रत्यक्षशान, संस्था-~-मालवि० 1056, कु० 6160, मा० 5 / 16 संवेदन। 3. पालतू, घरेलू बनाया हुआ, सघाया हुआ 4. स्थिर, | संस्पर्शी सम्+स्पृश्-- अच्+ङीष्] एक प्रकार का गंधअचल 5. समाप्त, नष्ट, मृत,-स्थः 1. निवासी, युक्त पौधा। वास्तव्य 2. पड़ोसी, स्वदेशवासी, 3. गुप्तचर / संस्फाल: [सम्यक् स्फालः स्फुरणं यस्य प्रा०व०] 1. मेंढा संस्था सिम+स्था+अङ-+टाप] 1. संघात, सभा 2. बादल। 2. स्थिति, प्राणी की अवस्था या दशा 3. रूप, प्रकृति | संस्फेटः, संस्कोटः [सम्=स्फिट् (स्फुट)+घञ] संग्राम, ---रघु०१११३८ 4. धंधा, व्यवसाय, रहन-सहन का युद्ध। बंधा हुआ तरीका पृथक संस्थाश्च निर्ममे-मन० संस्मरणम् |सम+स्म+ल्युट] याद करना, मन में लाना। श२१ 5. शुद्ध और उचित आचरण 6. अन्त, पू | संस्मृतिः (स्त्री) [सम् + स्मृ+क्तिन्] पाद, प्रत्यास्मरण, 7.विराम, यति 8. हानि, विनाश 9. प्रलय 10. अनु- -- संस्मृतिर्भव भवत्यभवाय-कि० 18 / 27 / रूपता 11. राजकीय आज्ञा 12. सोम यज्ञ का एक मंत्रवः, संस्त्रायः [सम्+ +अप, घा वा] 1. बहना, टेपकना, रिसना 2. सरिता 3. तर्पण का अवशिष्टांश संस्थानम् [सम्+स्था+ल्युट] 1. संचय, राशि, मात्रा 4. एक प्रकार का चढ़ावा या तर्पण / 2. प्राथमिक अणुओं की समष्टि 3. संरूपण, विन्यास | संहत (भू० क० कृ०) सम्+हन्-+कत] 1. मिलकर --आकृतिरवयवसंस्थानविशेषः 4. रूप, आकृति, ___ आघात किया हुआ, घायल 2. बन्द, अवरुद्ध, दर्शन, सूरत, शक्ल .. स्त्री संस्थान चाप्सरस्तीर्थमारा- 3. सुग्रथित, दृढ़तापूर्वक जुड़ा हुआ 4. मिलाकर जोड़ा दुत्क्षिप्पनां ज्योतिरेक जगाम-श० 5 / 29, मनु० / हुआ, मित्रता में बंधा हुआ -कि० 1119 5. सम्पृक्त, For Private and Personal Use Only Page #1062 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृढ़, ठोस 6. संबद्ध, युक्त, मिलाकर रक्खा हुआ, 11. नरक का एक प्रभाग। सम०-- भैरवः भैरव का एक शरीर का अंग बना हुआ, सटा हुआ जालमादाय रूप, मुद्रा तन्त्र-पूजा में विशेष प्रकार की मुद्रा, गच्छन्ति संहताः पक्षिणोऽप्यमी. पंच० 2 / 9,5 / 101, इसकी परिभाषा अधोमखे वामहस्ते ऊस्यिं दक्ष हि० 1137 7. एकमत 8. संघात, संचित / सम० हस्तकम् / क्षिप्ताङ्गुलीरग़लीभिः संगृह्य परिवर्तयेत्।। जान (वि.) जिसके धुटने आपस में टकराते हों, | संहित (भू० क० कृ०) [सम्-धा-- वत, हि आदेशः] लग्नजानुक, 5 (वि०) सघन भौंहों से युक्त, 1. साथ-साथ रक्खा हुआ, मिला हुआ, संयुक्त -- स्तनी वह स्त्री जिसके दोनों स्तन सटे हुए हों। 2. सहमत, समनुरूप, अनुकूल 3. सम्बन्धी 4. संचित संहतता, त्वम् [संहत+तल- टाप् (त्व)| 1. घना 5. अन्वित, सुसज्जित, सहित, युक्त 6. उत्पन्न दे० सम् संपर्क, संयोजन 2. सम्पृक्तता 3. सहमति, एकता। पूर्वक धा। 4. सांमनस्य, समेकता। संहिता संहित+टाप्] 1. सम्मिश्रण, संघ, संयोजन संहतिः (स्त्री०) सम्ह न+क्तिन] 1. दृढ़ या घना 2. संचय, संकलन, संग्रह 3. कोई पद्य या गद्यसंग्रह संपर्क, घनिष्ट मेल-कू० 5 / 8 2. मेल, सम्मिलन, जिसका क्रम सुव्यवस्थित हो 4. विधि या कानूनों का ..... संहतिः कार्यसाधिका, संहतिः श्रेयसी पुंसां हि०१, संग्रह या संकलन, (किसी विषय के) नियम, तु० “संघे शक्तिः " 3. संपृक्तता, दढ़ता, ठोसपन नियमावली, सारसंग्रह, मनुसंहिता 5. वेद का क्रमबद्ध 4. पुंज, राशि-गुरुतां नयन्ति हि गुणा न संहतिः मंत्रपाठ, या विभिन्न शाखाओं के अनुसार उच्चारण..--कि० 12 / 10 5. सहमति, सांमनस्य 6. संचय, सम्बन्धी परिवर्तनों से यक्त पदपाठ—पदप्रकृतिः ढेर, संघात, समुच्चय ..वनान्यवाञ्चीव चकार संहतिः संहिता नि० 6. (व्या० में) सन्धि के नियमों के -कि० 14 / 34, 27, 3 / 20, 5 / 4, मुद्रा० 3 / 2 अनुसार वर्णों का मेल पा०१४।१०९, वर्णानामति7. सामर्थ्य 8. पिण्ड, समवाय / शयितः संनिधिः संहितासंज्ञः स्यात् / सिद्धा०, या. संहननम् [सम् + हन् + ल्युट्] 1. सघनता, दृढ़ता 2. देह, वर्णानामेकप्राणयोगः संहिता 7. विश्व को संघटित व्यक्ति-अमृताध्मातजीमूतस्निग्धसंहननस्य ते - उत्तर० रखने वाली शक्ति, परमात्मा / 6 / 21, गहावीर० 2 / 46 3. सामर्थ्य, दे० 'संहतिः' | संहति (स्त्री.) [सम+हे+क्तिन् ] चीखना, चिल्लाना, भी। भारी हंगामा, अत्यन्त शोरगुल / संहरणम् [सम् +ह+ल्युट्] 1. एकत्र करना, साथ-साथ संहृत (भू० क. कृ.) [सम्+ह+क्त ] 1. मिलाकर मिलाना, संचय करना 2. लेना, ग्रहण करना खींचा हुआ 2. सिकोड़ा हुआ, संक्षिप्त किया हुआ 3. सिकोड़ना 4. नियंत्रित करना 5. नष्ट करना, 3. वापिस लिया हुआ, पोछे खींचा हुआ 4. संचित, बर्बाद करना। संगृहीत 5. पकड़ा हुआ, हाथ डाला हुआ 6. दबाया संहर्त (पुं०) [सम्++तृच] विनाशक, नष्ट करने हुआ, नियन्त्रण में रक्खा हुआ 7. नष्ट किया हुआ। वाला। हुतिः (स्त्री०) [सम+ह+क्तिन] 1. सिकुड़न, [सम् + हृष+घा] 1. रोमांच होना, भय या हर्ष भींचना 2. विनाश, हानि 3. लेना, पकड़ना से पुलकित होना 2. आनन्द, हर्ष, खुशी 3. प्रति 4. प्रतिबन्ध, 5. संचय / योगिता, होड़, प्रतिद्वन्द्विता 4. वायु 5. साथ-साथ | संहृष्ट (भ० क० कृ०) [सम-+हृष+क्त ] 1. पुलकित, रगड़ना। या हर्ष से रोमांचित, प्रसन्न 2. जिसके रोंगटे खड़े हैं संहातः[सम्+हन्+घश वा० कुत्वाभावः, संघात का या जो कांप रहा है 3. स्पर्धा के भाव से उद्दीप्त / पाठान्तर] इक्कीस नरकों में से एक मनु० 4189 / / संहावः [सम्+हृद्+घन ] 1. शोरगुल, चीत्कार, संहारः [सम्+ह+घञ] 1. मिलाकर खींचना, या / होहल्ला 2. कोलाहल / साथ-साथ लाना, संचय करना - अनुभवतु वेणीसंहार- | संहीण (वि.) [सम्+ही+क्त] 1. विनयशील, महोत्सवम्-वेणी०६.2. संकोचन, भींचना, संक्षेपण शर्मीला 2. सर्वथा लज्जित / 3. रोकदेना, पीछे खींच लेना, वापिस लेना (विप० सकट (वि.) [ कटेन अशुचिना शवादिना सह वर्तमानः] प्रयोग या विक्षेप)--प्रयोगसंहारविभक्तमन्त्रम्-रघु० बुरा, कुत्सित, दुष्ट / 5 / 57, 45 4, प्रतिबंध लगाना, रोक लेना सकण्टक (वि.) [ कण्टेन सह कप्, ब० स०] 1. कांटेदार 5. विनाश, विशेषकर सुष्टि का, प्रलय, विश्वनाश चुभने वाला 2. कष्टप्रद, भयानक,-क: जलीय पौधा 6. समाप्ति, अन्त, उपसंहार 7. संघात, समूह शैवल दे। 8. उच्चारण दोष 9. जादू के शस्त्रास्त्रों को वापिस | सकम्प, सकम्पन (वि०) [कम्पेन, कम्पनेन सह वा, ब० स० हटाने के लिए मंत्र या जादू 10. व्यवसाय, कुशलता कांपता हुआ, थरथराता हुआ। For Private and Personal Use Only Page #1063 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकरण (वि०) [ करुणया सह ब० स०] कोमल, / प्रदीयते / सकृदाह ददानीति त्रीण्येतानि सतां सकृत् दयाल / ___ मनु० 9 / 47 2. एक समय, एक अवसर पर, पहले, सकर्ण (वि.) (स्त्री० र्णा,-९) कर्णेन श्रवणेन एक दफा--सकृत्कृतप्रणयोऽयं जन:--श० 5 3. तुरन्त सह-ब० स०] 1. कान वाला, जिसके कान हों 4. साथ साथ -पुं०, स्त्री० मल, विष्ठा (प्रायः 2. सुनने बाला, श्रोता। 'शकृत्' लिखा जाता है। सम-गर्भा 1. खच्चर सकर्मक (वि०) [ कर्मणा सह कप् ब० स०] 1. कर्मशील 2. एक ही बार गर्भवती होने वाली स्त्री,-प्रजः या कर्मकर्ता 2. (व्या० में) कर्म रखने वाला, (क्रिया) कौवा,---प्रसूता, प्रसूतिका 1. वह स्त्री जिसके केवल कर्म से युक्त। एक ही सन्तान हुई हो 2. वह गाय जो केवल एक ही सकल (वि०) [ कलया कलेन सह वा-ब० स०] बार ब्याई हो,--फला केले का वृक्ष / / 1. भागों सहित 2. सब, समस्त, पूरा, पूर्ण 3. सब सकतव (वि.) [ कैतवेन सह-ब० स० / घोखा देने अंकों से युक्त, पूरा (जैसे कि चाँद) यथा 'सकलेन्दु- | वाला, जालसाज,-व: ठग, धूर्त। मुखी' में 4. मदु या मन्द स्वर वाला। सम० वर्ण सकोप ( वि०) [ कोपेन सह-ब० स०] क्रुद्ध, कुपित, (वि०) (अर्थात् पद या वाक्य) क और ल वर्गों से पम् ( अन्य ) क्रोधपूर्वक, गुस्से से / यक्त अर्थात् झगड़ालू, (अर्थात् / क+ल+ह) | सक्त (भ० क. कृ.) [ संज्क्त ] 1. चिपका हुआ, -नल० 2 / 14 / लगा हुआ, संपृक्त 2. व्यसनग्रस्त, भक्त, अनुरक्त, सकल्प (वि.) [ कल्पेन सह ब० स०] यज्ञ संबन्धी कृत्यों शौक़ीन सक्तासि कि कथय वैरिणि मौर्यपुत्रे-मुद्रा० से युक्त, वेद के कर्मकाण्ड का अनुष्ठाता,--मनु० 2 / 6 3. जमाया हुआ, जड़ा हुआ--रघु० 2 / 28 २११४०,-ल्पः शिव / 4. सम्बन्ध रखने वाला। सम०--वैर ( वि० ) सकाकोलः [काकोलेन सह-ब० स०] इक्कीस नरकों शत्रुता में प्रवृत्त, लगातार विरोध करने वाला--श० में से एक नरक दे० मनु० 4 / 89 / 2 / 14 / सकाम (वि.) कामेन सह-ब० स०] 1. प्रेमपूरित, सक्तिः (स्त्री० ) [ सङ्ग्+क्तिन् ] 1. संपर्क, स्पर्श प्रणयोन्मत्त, प्रिय 2. कामनायुक्त, कामी 3. लब्धकाम, 2. मेल, सनम, -सक्ति जबादपनयत्यनिलो लतातुष्ट, तृप्त,-काम इदानीं सकामो भवत्-श० 4, | नाम् ---कि० 5 / 46 3. अनुराग, आसक्ति, भक्ति --मम् (अव्य०) 1. प्रसन्नतापूर्वक 2. संतोष के ( किसी वस्तु के प्रति ) / साथ 3. विश्वासपूर्वक, निस्सन्देह / / सक्तु (पुं० ब० व.) [स --तुन-किच्च ] सत्तू, जौ सकाल (वि.) [ कालेन सह, ब० स०] ऋतु के अनुकूल, को भून कर फिर पीस कर बनाया हुआ आटा, जो से समयोचित, लम् (अव्य०) कालानुरूप, समय से तैयार किया गया भोजन भिक्षासक्तुभिरेव संप्रति पूर्व, ठीक समय पर, तड़के / वयं वृत्ति समीहामहे-भर्तृ० 3 / 64 / सकाश (वि०) [काशेन सह-ब० स०] दर्शन देने | सक्थि ( नपुं० ) [ सञ्+क्थिन् ] 1. जंघा ( समास में वाला, दृश्य, प्रस्तुत, निकटवर्ती, शः उपस्थिति, उत्तर, पूर्व तथा मृग शब्द के पश्चात् या जब समास पड़ौस; सामीप्य, (सकाशम्, सकाशात्--क्रि० वि० में तुलना अभिप्रेत हो तो 'सक्थि' को बदल कर की भांति प्रयुक्त, 1. निकट 2. निकट से, पास से) 'सक्थ' हो जाता है, दे० पा० 5 / 4 / 98) 2. हड्डी सकुक्षि (वि.) [सह समानः कुक्षिः यस्य-ब० स०] 3. गाड़ी का लट्ठा / एक ही कोख से उत्पन्न, एक ही माता से जन्म लेने सक्रिय (वि.) [क्रियया सह-ब० स०] फुर्तीला, गतिशील / वाला, सहोदर, (भाई आदि)। सक्षण (बि०) [क्षणेन सह-ब० स० ] जिसके पास सकुल (वि.) [कुलेन सह.ब. स.11. उच्चवंश से अवकाश हो। सम्बन्ध रखने वाला 2. एक ही कुल में उत्पन्न | | सखि (पुं०) [ सह समानं ख्यायते ख्या-डिन् नि०] 3. एक ही परिवार का 4. सपरिबार, ल: 1. रिश्ते- .. (कर्तृ० सखा, सखायो सखायः, कर्म० सखायं, सखायौ, दार 2. एक प्रकार की मछली सकुली। संबं०, ए० व० सख्य : अधि० ए० व० सख्यौ) मित्र, सकुल्यः [ समाने कुले भवः-सकूल+यत् ] 1. एक ही साथी, सहचर, - तस्मात्सखा त्वमसि यन्मम तत्तव परिवार का 2. एक ही गोत्र का परन्तु दूर का -उत्तर० 5 / 10, सखीनिव प्रीतियजोऽनजीविनः रिश्तेदार, जैसे कि चौथी, पांचवीं, छठी या सातवीं, -कि० 110, (समास के अन्त में 'सखि' शब्द आठवीं अथवा नवीं पीढ़ी का 3. दूरवर्ती रिश्तेदार / बदल कर 'सख' हो जाता है वनितासखानाम्-कु० सकृत् ( अव्य०) [ एक--सुच, सकृत् आदेश, सुचो / 1 / 10, सचिवसख:- रघु० 4187, 1148, 12 / 9, लोपः ] 1. एक बार सकृदंशो निपतति सकृत्कन्या भट्टि० 111) / For Private and Personal Use Only Page #1064 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1055 ) सखी [ सखि + ङीष् ] सहेली, सहचरी, नायिका की। 1. संकरा, सिकुड़ा हुआ, भीड़ा, सकीर्ण 2. अभेद्य, सहेली, ... नृत्यति युवति-जनेन समं सखि विरहिजनस्य अगम्य 3. पूर्ण, भरा हुआ, जड़ा हुआ, झालरदार दुरन्ते -गीत०.१ / -----संकटा ह्याहिताग्नीनां प्रत्यवायर्गहस्थता-महावीर० सख्यम् [ सख्युर्भावः यत् ] 1. मित्रता, घनिष्ठता, मैत्री, 4133, उत्तर० 116, टम 1. भीड़ा रास्ता, संकीर्ण -ममूर्छ सख्यं रामस्य समानव्यसने हरौ . रघु०१२। घाटी, तंग दर्रा 2. कठिनाई, दुर्दशा, जोखिम, डर, 57, समानणीलव्यसनेषु सख्यम् ... सुभा० 2. समानता, खतरा संकटेष्वविषण्णधी:-का०, संकटे हि परीक्ष्यन्ते -- ख्यः मित्र। प्राज्ञाः शूराश्च संगरे कथा० 31493 / सगण (वि.) [गणेन सह-ब० स०] दल बल सहित | सङ्कथा [सम्+कथ् +अ+टाप् | समालाप, बातचीत / उपस्थित, -णः शिव का विशेषण। सङ्करः [सम् ++अप] 1. सम्मिश्रण, मिलावट, सगर (वि०) [गरेण सह-ब० स०] विषैला, जहरीला,-र: अन्तमिश्रण श०२ 2. साथ मिलानः, मेल एक सूर्यवंशी राजा / (यह बाहुराजा का पुत्र था, गर 3. (जातियों का) मिश्रण या अव्यवस्था, अन्तर्जातीय सहित पैदा होने के कारण इसका सगर पड़ा क्योंकि अवैध विवाह जिसका परिणाम मिश्रजातियां हैं इसकी माता को इसके पिता को दूसरी पत्नी ने विष चित्रेषु वर्णसंकरः का०, भग, श४२, मनु० दे दिया था। सुमति नाम की इसको पत्नी से इसके 10 // 40 4. (अलं०) दो या दो से अधिक आश्रित साठ हजार पुत्र हुए। इसने 99 यज्ञ सफलता पूर्वक अलंकारों का एक ही सन्दर्भ में मिश्रण (विप० सम्पन्न किये, परन्तु जब सौवा यज्ञ होने लगा तो इन्द्र संसृष्टि जिसमें अलंकार स्वतन्त्र होते हैं अविश्रान्तिने इसका घोड़ा उड़ा लिया और पाताल लोक ले गया! जुषामात्मन्यङ्गाङ्गित्वं तु संकरः-काव्य० 10, या इस बात पर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को -अङ्गाङ्गित्वेऽलङ्कृतीनां तद्वदेकाश्रयस्थितौ / संदिग्धत्वे घोड़ा ढूंढने का आदेश दिया, जब इस पृथ्वी पर घोड़े च भवति संकरस्त्रिविधः पुनः - सा० द० 757 का पता न लगा तो वह पाताल में जाने के लिए इस 5. धूल, बुहारन, कूड़ाकरकट, -री दे० नी. पृथ्वी को खोदने लगे, ऐसा करने पर समद्र की सीमाएँ संकारी। बढ़ गई और इसी लिए वह 'सागर' के नाम से | सङ्कर्षणम् [सम्+कृष् + ल्युट] 1. मिलकर खींचने को विख्यात हुआ-तु० रघु० 13 / 3, जब उन्हें कपिल क्रिया, सिकुड़न 2. आकर्षण 3. हल चलाना, खूड ऋषि के दर्शन हुए तो उन्होंने उस पर घोड़ा चुराने निकालना-णः बलराम का नाम--संकर्षणात्तु गर्भस्य का आरोप लगाकर बुरा भला कहा। ऋषि के शाप स हि संकर्षणो युवा.. हरि०। से वे साठ हजार पुत्र तुरन्त भस्म हो गए। फिर सङ्कलः [सम्+कल् + अच् (भावे)] 1. संग्रह, संचय कई हजार वर्ष के पश्चात् उन्हीं का वंशज भगीरथ गंगा | 2. जोड़। को पाताल लोक ले जाने में सफल हआ, वहां उसने | सङ्कलनम्-ना [सम् +कल+ल्यूट] 1. ढेर लगाने की उनकी भस्म को गंगा जल से सींच कर पवित्र किया | क्रिया, 2. संपर्क, संगम 3. टक्कर 4. मरोड़ना, ऐंठना तथा इस प्रकार उनकी आत्माओं को स्वर्ग में। 5. (गणि. में) योग, जोड़। भिजवाया)। सङ्कलित (भू० क. कृ०) [सम् +कल्+क्त] 1. ढर सगर्भः,-Hः [सह समानो गौं यस्य-ब० स०, समाने गर्भ लगाया गया, चट्टा लगाया गया, संचित किया गया भवः यत् वा] सहोदर भाई-महावीर० 6 / 27 / / 2. साथ-साथ मिलाया गया, अमिश्रित 3. पकड़ा सगुण (वि०) [गुणेन सह-ब० स०] 1. गुणवान् गुणों से गया, हाथ में लिया गया 4: जोड़ा गया / .युक्त 2. अच्छे गुणों से युक्त, सद्गुणी 3. भौतिक | सङ्कल्पः [ सम्+कृप्+घञ , गुणः, रस्य लः ] 1. इच्छा 4. (धनुष की भांति) डोरी से सुसज्जित, ज्यायुक्त शक्ति, कामनाशक्ति, मानसिक दृढ़ता,-क: कामः 5. साहित्यिक गुणों से युक्त / संकल्प:-दश 2. प्रयोजन, उद्देश्य, इरादा, विचार सगोत्र (वि.) [सह समान गोत्रमस्य-ब० स०] एक ही 3. कामना, इच्छा सङ्कल्पमात्रोदितसिद्धयस्ते-रघु० कुल में उत्पन्न, बन्धु, रिश्तेदार, त्रः 1. एक ही पूर्वज 14 / 17 4. चिन्तन, विचार, विमर्श, उत्प्रेक्षा, की सन्तान, श०७ 2. एक हो कुल का, श्राद्ध, पिण्ड, कल्पना तत्संकल्पोपहितजडिमस्तम्भमभ्येति गात्रम् तर्पण साथ करने वाला व्यक्ति 3. दूर का रिश्तेदार -मा० 1135, वृथैव सङ्कल्पशतैरजस्रमनङ्ग नीतोऽसि 4. परिवार, कुल, वंश। मया विवृद्धिम्-श०३१४ 5. मन, हृदय,-मा० सन्धिः (स्त्री०) [अद् +क्तिन् नि० ग्धि, सहस्य सः] साथ- 72 6. कोई धार्मिक कृत्य करने की प्रतिज्ञा खाना, मिलकर भोजन करना। 7. किसी ऐच्छिक पुण्यकार्य से फल की आशा / सम० सट (वि.) [सम्+कटच्, सम् +कट् +अच् वा] / -ज, जन्मन् (पुं०)- योनिः कामदेव के विशेषण For Private and Personal Use Only Page #1065 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -भगवन्सङ्कल्पयोने-मालवि० ---4, कु० ३।२४,-रूप / 2. निशान, अंगचेष्टा, सूझाव-मद्रा०१3. इंगितपरक (वि.) 1. ऐच्छिक 2. इच्छा के अनुरूप / चिह्न, निशानी, प्रतीक 4. सहमति, सम्मिलन सङ्केतो सङ्कसुक (वि०) [सम् + कस+उका ] 1. अस्थिर, | गृह्यते जातौ गुणद्रव्यक्रियासु च -- सा० द० 12 चंचल, परिवर्तनशील, अनियमित 2. अनिश्चित, 5. प्रेमी प्रेमिका का पारस्परिक ठहराव, नियुक्ति, संदिग्ध 3. बरा. दाट 4. निर्बल, बलहीन, कमजोर / (प्रेमी या प्रेमिका के मिलने का) निर्दिष्ट स्थान सङ्कारः [ सम् ++घञ ] 1. धूल, बुहारन, कुडाकरकष्ट नामसमेतं कृतसङ्केतं वादयते मृदु वेणुम् गीत० 5 2. ज्वालाओं के चटखने का शब्द / 6. (प्रेमियों का) मिलन-स्थल, समागम-स्थान सडारी [संकार+ङीष ] वह लड़की जिसका कौमार्य कान्ताथिनी तु या याति संकेतं साभिसारिका अभी अभी भंग हुआ हो, नई दुलहिन / अमर० 7. प्रतिबंध, शर्त 8. (व्या० में) संक्षिप्त सङ्काश (वि०) [ सम् + का+अच् ] 1. सदृश, समान, विवृति, सूत्र / सम० ---गृहम्,--निकेतनम्,-स्था मिलता-जुलता (समास के अन्त में) अग्नि, हिरण्य नम् निर्दिष्ट स्थान, प्रेमी और प्रेमिका का मिलन2. निकट, पास, नज़दीक, शः 1. दर्शन, उपस्थिति स्थान / 2. पड़ोस / सङ्कतकः [सङ्केत | कन्] 1. सहमति, सम्मिलन 2. नियुक्ति, सङ्किलः [ सम्+किल+क] जलती हुई लकड़ी, जलती निर्देशन 3. प्रेमी और प्रेमिका का मिलन-स्थान 4. वह हुई मशाल / प्रेमी या प्रेमिका जो मिलने के लिए समय या स्थान सङ्कीर्ण (भू० क. कृ०) [ सम् ++क्त ] 1. साथ का संकेत करे-सङ्केतके चिरयति प्रवरो विनोदः साथ मिलाया हुआ, अन्तमिश्रित 2. अव्यवस्थित, ---मृच्छ० 3 / 3 / विभिन्न 3. बिखरा हुआ, फैला हुआ, खचाखच भरा सतित (वि.) [सडूत+इतच] 1. ठहराया हुआ, मिलहुआ 4. अस्पष्ट 5. दान बहाता हुआ, नशे में चूर कर नियमानुसार निर्धारित, साक्षात्संकेतितं योऽर्थ---हि० 4 / 17 6. वर्णसंकर जाति का, अपवित्रकुल मभिधत्ते स वाचक:-काव्य० 2. आमन्त्रित, बुलाया या संकरजाति में जन्मा हआ 7. हरामी, दोगला हुआ। 8. तंग, संकुचित, णः 1. संकर जाति का व्यक्ति, सोचः [सम्+कुच - घा] 1. सिकूड़ना, शिकन पड़ना 2. मिश्रस्वर 3. वह हाथी जिसके मस्तक से मद 2. संक्षेपण, न्यूनीकरण, भींचना 3. त्रास, भय 4. बंद बहता हो, मस्तहाथी,-र्णम कठिनाई। सम० जाति, करना, मूंदना 5. बांधना 6. एक प्रकार की मछली, ---योनि (वि०) वर्णसंकर, दोगली नस्ल का, (जैसे --- चम् केसर, जाफरान / कि खच्चर),--युद्धम् अव्यवस्थित लड़ाई, रणसंकूल / सङ्क्रन्दनः [सम्+क्रन्द+ल्युट] श्री कृष्ण का नाम / सङ्कीर्तनम्,-ना [सम् +कृत+णिन् -ल्युट, ईत्वम् ] | सङ्क्रमः [सम् ।-क्रम्+घा] 1. सहमति, संगमन, 1. प्रशंसा करना, सराहना, स्तुति करना 2. (किसी साथ जाना 2. संक्रान्ति, यात्रा, स्थानान्तरण, प्रगति देवता का) यशोगान करना 3. भजन के रूप में 3. किसी ग्रह का एक राशिचक्र से दूसरी राशि में किसी देवता के नाम का जप करना। जाना 4. गमन करना, यात्रा करना,-मः - मम् सङ्कुचित (भू. क. कृ.)[समकूच +क्त | 1. सिकोड़ा 1. कठिन या संकरा मार्ग 2. सेतु, पुल नदीमार्गेषु हुआ, संक्षिप्त किया हुआ - लङ्कापतेः सङ्कुचितं यशो च तथा संक्रमानवसादयेत-महा0 3. किसी लक्ष्य की यत् विक्रमांक० 1027 2. सिकुड़न वाला, झुर्रियाँ प्राप्ति का साधन, तामेव संक्रमीकृत्य दश०, सो पड़ा हुआ 3. ढका हुआ, बंद किया हुआ 4. आवरण। ऽतिथिः स्वर्गसङ्क्रमः-पंच०४।२। सङकुल (वि.) [सम्+कुल +क] 1. अव्यवस्थित | सभामणम [सम्+क्रम् + ल्युट] 1. संगमन, सहमति 2. आकीर्ण, खचाखच भरा हुआ, पूर्ण-नक्षत्रताराग्रह- 2. संक्रान्ति, प्रगति, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु पर सकुलापिज्योतिष्मती चन्द्रमसेव रात्रि:-रघु०६।२२, | जाना 3. सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना मा० 112 3, विकृत 4. असंगत,--लम् 1, भीड़, 4. सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने का दिन 5. मार्ग। जमघट, भीड़भाड़, संग्रह, छत्ता, झुंड, महतः परिषनस्य सक्रान्त (भू० क० कृ०) सिम--क्रम् + क्त] 1.." में से सङकुलेन विघटितायां तस्यामागतोऽस्मि-मा० 1 गया हुआ, प्रविष्ट हुआ 2. स्थानान्तरित, न्यस्त, 2. अव्यवस्थित लड़ाई, रणसंकुल 3. असंगत यां। समर्पित-उत्तर० 1223. पकड़ा, ग्रस्त 4.प्रतिपरस्पर-विरोधी भाषण-उदा०-यावज्जीवमहं मौनी, फलित, प्रतिबिंबित 5. चित्रित / ब्रह्मचारी च मे पिता / माता तु मम वन्ध्यव पुत्रहीनः | सङ्क्रान्तिः (स्त्री.) [सम्+क्रम+क्तिन्] 1. संगमन, मेल पितामहः // 2. एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक का मार्ग, अवस्थांतर सतः [सम् +कित्+घञ] 1. इशारा, इंगित | 3. सूर्य या किसी और ग्रहांग का एक राशि से For Private and Personal Use Only Page #1066 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1057 ) दूसरी राशि में जाने का मार्ग 4. स्थानान्तरण, (किसी। सम्पर्क 4. संगति, साहचर्य, मैत्री, अनुराग-- सतां दूसरे को) सौंपना-संपातिताः पयसो गण्डषसङ्क्रान्तयः | सद्धिः सङ्गः कथमपि हि पुण्येन भवति-उत्तर०२।१, --उत्तर० 3116 5. (अपना ज्ञान दूसरों तक) संगमनुखज़ संगति में रहना, मंडली में रहना,-मुगाः हस्तान्तरित करना, (दूसरों को) विद्यादान की शक्ति मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति - सुभा० 5. अनुरक्ति, प्रीति, विवादे दर्शयिष्यन्तं क्रियासङ्क्रान्तिमात्मनः- अभिलाषा----ध्यायतो विषयान्सः सङ्गस्तेषपजायते मालवि० 118, शिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था ... भग० 2 / 62 6. सांसारिक विषयों में आसक्ति, सङ्क्रान्तिरन्यस्य विशेषयुक्ता---१।१६ 6. प्रतिमा, मनुष्यों के साथ साहचर्य - दौर्मन्यान्नृपतिविनश्यति प्रतिबिंब 7. चित्रण। यतिः सङ्गात् भर्तृ० 2 / 42 7. मुठभेड़, लड़ाई।। सङ्काम --दे० 'संक्रम'। सङ्गणिका [ सम्+गण +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] श्रेष्ठ या सकीडनम् सिम् + क्रीड्+ल्युट्] मिल कर खेलना। अनुपम प्रवचन। सङ्क्ले वः [सम्+क्लिद्+घा] 1. तरी, नमी 2. गर्भा- | सङ्गत (भू० क० कृ०) [ सम्+गम्+क्त ] 1. मिला, घान के पश्चात् प्रथम मास में स्रवित होने वाला रस हुआ, जुड़ा हुआ, साथ साथ आया हुआ, साहचर्य से जिससे भ्रूण के आरंभिक रूप का निर्माण होता है। यक्त 2. एकत्रित, संचित, संयोजित, सम्मिलित सङ्क्षयः [सम् +क्षि+अच्] 1. विनाश 2. पूर्ण विनाश या 3. प्रणयग्रन्थि में आबद्ध, विवाहित 4. मैथुन द्वारा उपभोग 3. हानि, बर्बादी 4. अन्त 5. प्रल्य। मिला हुआ 5. साथ साथ भरा हुआ, समुचित, सक्षिप्तिः (स्त्री०) [सम्+क्षिप+क्तिन्] 1. साथ साथ युक्तियुक्त, संवादी-श० 3 6. से युक्त ( जैसे कि फेंकना 2. भींचना, संक्षेपण 3. फेंकना, भेजना 4. घात ग्रहों से) 7. शिकनवाला सिकुड़ा हुआ, दे० सम् में रहना। पूर्वक 'गम्', तम् 1. मिलाप, सम्मिलन, मैत्री,-विक्रम सङ्क्षपः [सम्+क्षिप्+घञ] 1. साथ साथ फेंकना 5 / 24, श० 5 / 23 2. समाज, मण्डली 3. परिचय, 2. भींचना, छोटा करना 3. लाघव, संहति 4. निचोड़, मित्रता, घनिष्टता-कु० 5 / 39 4. सामंजस्यपूर्ण या सारांश 5. फेंकना, भेजना 6. अपहरण करना 7. किसी सुसंगत वाणी, युक्तियुक्त टिप्पण / अन्य व्यक्ति के कार्य में सहायता देना (संक्षेपेण, | सङ्गतिः (स्त्री०) [ सम्+गम्+क्तिन् ] 1. मेल, मिलना, संक्षेपतः (क्रि० वि०) थोड़े अक्षरों में, संहरण करके, संगम 2. संसर्ग, सहयोगिता, साहचर्य, पारस्परिक संक्षेप में) मेलजोल मनो हि जन्मान्तरसङ्गतिज्ञम् -- रघु० 7.15 सक्षेपणम् [सम्+क्षिप्-+ल्यूट] 1. ढेर लगाना 2. छोटा 3. मैथुन 4. दर्शन करना, बार बार आना-जाना करना, लघुकरण 3. भेजना / 5. योग्यता, उपयुक्तता, प्रयोगात्मकता, संगत, सम्बन्ध सक्षोभः [सम्+क्षुभ्+घा] 1. आन्दोलन, कंपकपी 6. दुर्घटना, देवयोग, आकस्मिक घटना 7. ज्ञान 2. बाधा, हलचल-मृच्छ० 13. उथल पुथल, उलट 8. अधिक जानकारी के लिए पृच्छा। पुलट 4. घमंड, अहंकार / सङ्गमः [ सम् + गम् +अप् ] 1. मिलना, मेल-- विक्रम सङ्ख्यम् [ सम् +ख्या+क] संग्राम, युद्ध, लड़ाई सङ्ख्ये 4 / 37, रघु० 12 / 66, 90 2. साहचर्य, संगति, सह द्विषां वीररसं चकार ..विक्रम० 1167, 70 वेणी० योगिता, पारस्परिक मेलजोल -जैसा कि 'सद्भिःसंगमः' 3125, शि० 18570 / में 3. सम्पर्क, स्पर्श-रघु० 8 / 44 4. मैथुन या रतिसङ्ख्या [ सम्+ख्या + अ +टाप ] 1. गणना, गिनती, क्रिया -अयं स ते तिष्ठति सङ्गमोत्सुकः -श० 314, हिसाब लगाना - सङ्ख्यामिवैषां भ्रमरश्चकार-रधु० रघु० 19 // 33-5. (नदियों का) मिलना; संगम 16 / 47 2. अंक 3. अंकबोधक 4. जोड़ 5. हेतु, समझ, स्थान-- गङ्गायमुनयोः सङ्गमः 6. योग्यता, अनुकूलन प्रज्ञा 6. विचार, विमर्श 7. रीति / सम०-अतिग, 7. मुठभेड़, लड़ाई 8. (ग्रहों का) संयोग। --अतीत (वि०) असंख्य, अनगिनत, गणनातीत, | सङ्गमनम् [सम्+गम् + ल्युट्] मिलना, मेल, दे० 'सङ्गम'। --वाचक (वि०) संख्या बोधक (कः) अंक / सङ्गरः [ सम् +गृ+अप् ] 1. प्रतिज्ञा, करार, -तथेति सब्यात (भू० क० कृ०) [ सम् + ख्या+क्त ] 1. गिना तस्यावितथं प्रतीतः प्रत्यग्रहीत्सङ्गरमग्रजन्मा-रघु० गया 2. हिसाब लगाया गया, गिना हुआ, तम् अंक, 5 / 26, 11140, 13 / 05 2. स्वीकृति, हाथ में लेना -- ता एक प्रकार की पहेली।। 3. सौदा 6. संग्राम, युद्ध, लड़ाई--अतरस्त्वभुजौजसा सङ्ख्यावत् (वि.) [ सङ्ख्या--मतुप् ] 1. संख्या वाला मुहर्महतः सङ्गरसागरानसौ शि० 16 / 67 5. ज्ञान 2. हेतु से युक्त---पुं० विद्वान् पुरुष / 6. निगल जाना 7. दुर्भाग्य, संकट 8. विष / सङ्गः [ सञ्ज भावे धा ] 1. साथ मिलना, सम्मिलन सङ्गवः [ संगता गावो दोहनाय अत्र-नि० प्रातःस्नान के "2. मिलना, मेल, संगम (जैसे नदियों का) 3. स्पर्श, / तीन महर्त बाद का समय जो दिन के पांच भागों में 133 For Private and Personal Use Only Page #1067 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1058 ) से दूसरा है, और जब गायें दूहने के बाद चरने के / 6. मैथुन, स्त्रीसंभोग 7. व्यभिचार .. मनु० 8 / 6, लिए ले जाई जाती हैं। 72, याज्ञ० 2172 8. आशा करना 9. स्वीकार सङ्गावः[सम् +गद्+घञ्] प्रवचन, समालाप, बातचीत। करना, प्राप्त करना,--णी पेचिस / सङ्गिन् (वि.) [सञ्ज+घिनुण] 1. संयुक्त, मिला हुआ | सङ्ग्रहीतु (पुं०) [सं+ ग्रह +तृच्] सारथि / 2. अनुरक्त, भक्त, स्नेहशील-श० 5 / 11, रघु० सङ्ग्रामः [सङ्ग्राम्+अच्] रण, युद्ध, लड़ाई-सामाङ्गण 19 / 16, मालवि० 4 / 2, भग० 3 / 26, 1415 / / मागतेन भवता चापे समारोपिते--काव्य०१०। सम० सङ्गीत (भू० क० कृ०) [सम् +ग-क्ति] मिलकर गाया -जित् (वि.) युद्ध में जीतने वाला,-पटहः युद्ध हुआ, सहगान, सम्मिलित कण्ठों से गाया हुआ,- तन् में बजाया जाने वाला एक बड़ा भारी ढोल / 1. सामहिक गान, बहुत से कण्ठों से मिलकर गाया समाहः [सम्+ग्रह धिज.] 1. हाथ डालना, ले लेना जाने वाला गान,-जगुः सुकण्ठयो गन्धर्व्यः सङ्गीतं सह- 2. बलात् छीन लेना 3. मुट्ठी बाँधना 4. तलवार भर्तका:-भाग० 2. गायन, मधुर गायन, विशेषतः की मुठ। वह गायन जो नृत्य तथा वाद्ययन्त्रों के साथ गाया | सङ्घः [सम्-हिन्+अप, टिलोपः, घत्वम् ] 1. समूह, संग्रह, जाय, त्रिताल युक्त गान - गीतं वाद्यं नर्तनं च त्रयं समुच्चय, झुण्ड जैसा कि महर्पिसङ्घ, मनुष्यसङ्क 2. एक सङ्गीतमुच्यते; किमन्यदस्या: परिषदः श्रुतिप्रसादनत: __साथ रहने वाले लोगों का समूह। सम० चारिन् सङ्गीतात्- श० 1, मृच्छ० 1 3. संगीत गोष्ठी, (पु०) मछली, - जोविन् (पुं०) किराये का मजदूर, सहसंगीत 4. नृत्य वाद्य के साथ गाने की कला-भर्त० कुली, वृत्ति (स्त्री०) संघटनवृत्ति / 2 / 12 / सम–अर्थः 1. संगीत प्रदर्शन का विषय सङ्घटना [ सम् + घत्+णिच् +युच्+टाप् ] साथ साथ 2. संगीतशाला के लिए आवश्यक सामग्री या उपकरण मिलना, मेल, सम्मेल--रत्न० 4 / 20 / / ---मेघ० ५६,--शाला गायनालय,-मा० २,--शास्त्रम् सङ्घट्टः [सम्+घट्ट + अच्] 1. संघर्षण,के एक साथ घिसना, गानविद्या। रगड़ना सरलस्कन्धसङ्घट्टजन्मा (दवाग्निः)-- मेघ० सङ्गीतकम् सङ्गीत+कन्] 1. संगीतगोष्ठी, सुरताल से युक्त 53, मा० 5 / 3 2. टक्कर, खटपट, मुठभेड़---शि० गान 2. सार्वजनिक मनोरंजन जिसमें नाच-गाना हो / 20126 3. भिड़न्त, संघर्ष 4. मिलना, सम्मिलन, सङ्गीर्ण (भू. क. कृ.) [सम्-+-+क्त 1. सम्मत, टक्कर या स्पर्धा (जैसे कि पत्नियों की)-रघु० स्वीकृत 2. प्रतिज्ञात।। 14 / 86 5. आलिंगन-ट्टा एक बड़ी लता, वेल / / सङ्ग्रहः [ सम् + ग्रह, +-अप] 1. पकड़ना, ग्रहण करना सङ्घट्टनम्,-टन। [सम्---घट्ट+ल्युट ] 1. मिला कर 2. मुट्ठी बाँधना, चंगुल, पकड़ 3. स्वागत, प्रवेश -!.संर- रगड़ना, संघर्षण 2. टक्कर, खटपट 3. घनिष्ठ संपर्क, क्षण, प्ररक्षण तथा ग्रामशतानां च कुर्याद्राष्ट्रस्य संग्रहम् लगाव 4. संपर्क, मेल, चिपकाव 5. पहलवानों का मनु०७।११४ 5. अनुग्रहण, प्रसादन, आदर-सत्कार पारस्परिक लिपटना 6. मिलना, मुठभेड़। करना, पालन-पोषण करना मनु० 31138, 8 / 311 | सङ्घशस् (अव्य०) [ संघ-शस् ] झुंडों में, दल बनाकर / 6. भरना, संग्रह करना, एकत्र करना, संचय करना सङ्घर्ष [सम्+-घृष्+घञ ] 1. दो चीजों की रगड़, -----तैः कृतप्रकृतिसङ्ग्रहः रघु० 19155, 17.60 घृष्टि 2. पीस डालना, चरा करना 3. टक्कर, खट 7. शासन करना, प्रतिबंध लगाना, नियन्त्रण करना पट 4. प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिस्पर्धा, श्रेष्ठता के लिए होड़, 8. राशीकरण 9. संयोजन 10. संघद्रीकरण (एक -तस्याश्च मम च कस्मिंश्चित्सङ्घर्षे दश०, नाट्याचाप्रकार का 'संयोग') 11. सम्मेल करना, अवधारणा र्ययोर्महान् ज्ञानसङ्घर्षों जात: मालवि०१ 5. ईर्ष्या, 12. संकलन 13. सारांश, सार, संक्षेपण, सारसंग्रह डाह 6. सरकना, मन्द मन्द बहना / ...-सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्ये भग० 8 / 11, इसी प्रकार तर्क सङ्घाटिका [ सम्+-घट+णिच+पवल+टाप, इत्वम् ] सङ्ग्रह' 14. जोड़, राशि, समष्टि -करणं कर्म कति 1. जोड़ा, दम्पती 2. दूती, कुटनी 3. गंध। त्रिविधः कर्मसङ्ग्रहः- भग० 18 / 18 15. तालिका, सङ्घाणकः,--कम् [शिघाण पृषो०] नाक का मल, सिणक / सूची 16. भंडारगृह 17. प्रयत्न, चेष्टा 18. उल्लेख, सङ्घातः [ सम्+हन्+घञ ] 1. संघ, मिलाप, समाज हवाला 19. बड़प्पन, ऊँचापन 20. वेग 21. शिव 2. समुदाय, समवाय, समुच्चय, उपायसङ्घात इव का नाम / प्रवृद्धः--रघु० 14 / 11, कु० 4 / 6 3. बध, हत्या सङ्ग्रहणम् [सम्+ग्रह +ल्यट] 1. पकड़ना, ले लेना ___4. कफ 5. सम्मिश्रणों का निर्माण 6. नरक के एक 2. सहारा देना, प्रोत्साहित करना 3. संकलन करना, प्रभाग का नाम / संचय करना 4. गड्ड-मड्ड करना 5. मंढना, जड़ना सचकित (वि०) विस्मित, भयभीत, तम् (अव्य०) कांपते -----कनकभूषणसङ्ग्रहणोचितः (मणिः)--पंच० 1175 / हुए, चौंक कर, चौकन्ना होकर, विस्मित होकर / For Private and Personal Use Only Page #1068 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माचिवः [ सचिवान सप्त चाप्टा 87, सञ्चः आने वाले पत्रों का सलग, धूर्त, बाजीगर सचिः सच ---इन 1 1. मित्र 2. मैत्री, घनिष्ठता -..स्त्री० | सज्जित ( वि०) [ सज्जा+इतच ] 1. वस्त्र धारण किये इन्द्र की पत्नी, दे० 'शची'। हुए 2. सजाया हुआ 3. तैयार किया हुआ, साजसचिल्लक (वि.) | सह क्लिन्नेन, सहस्य सः, कप, नि.] सामान से लैस 4. संवारा हुआ, हथियारों से लैस / क्लिन्नाक्ष, चौंघाई आँखों वाला / सज्य (वि.) [सहज्यया ब० स०, सहस्य सः] 1. धनुष सचिवः [ सचिवा -|-क] 1. मित्र, सहचर 2. मन्त्री की डोरी से युक्त 2. डोरी से कसा हुआ (धनुष आदि)। परामर्श दाता-सचिवान् सप्त चाप्टौ वा प्रकुर्वीत सज्योत्स्ना [ सह ज्योत्स्नया ब० स०] चाँदनी रात / परीक्षितान मनु० 7 / 54, रघु० 1 / 34, 4187, सञ्चः [संचीयते अत्र--सम्+चि+ड ] ग्रंथ लेखन के कार्यान्तरसचिव: - मालवि०१। सची दे० 'शची'। सञ्चत् (पुं०) [सम् + चत्+क्विप्] ठग, धूर्त, बाजीगर। सचेतन (वि.) [सह चेतनया व० स०, सहस्य सः | सञ्चयः[सम्-चि+अच् ] 1. ढेर लगाना, एकत्र करना चेतनायक्त, जीवधारी, विवेकपूर्ण / 2. ढेर, राशि, संग्रह, भंडार, वाणिज्यवस्तु कर्तव्यः सचेतस् (वि.) [सह चेतसा व० स०] 1. प्रज्ञावान् सञ्चयो नित्यं कर्तव्यो नातिसञ्चय:-सुभा० 3. भारी 2. भावक 3. एकमत / परिमाण, संग्रह। सचेल (वि.) [सह चेलेन ब० स०] वस्त्रों से | सञ्चयनम् [ सम्+चि+ ल्युट ] 1. एकत्र.करना, संग्रह सुसज्जित / करना 2. फूल चुनना, शव भस्म हो जाने के बाद सचेष्टः [सच् +अच, तथाभूतः सन् इष्ट: ] आम का वृक्ष / | भस्मास्थिचय करना। सजन (वि०) [ सह जनेन व० स०] मनुष्यों या सञ्चरः [ सम् + चर - क ] 1. मार्ग, एक राशि से दूसरी जीवधारी प्राणियों से युक्त, नः एक ही परिवार / राशि पर स्थानान्तरण 2. रास्ता, पथ —यत्रौषधिप्रका व्यक्ति, बंधु, संबन्धी / काशेन नक्तं दशितसंचराः---कु०६।४३, रघु० 16 // सजल (वि०) सह जलेन-व० स०] जलमय, 12 3. भीड़ी सड़क, संकरा मार्ग, संकीर्ण पथ जलयुक्त, आर्द्र, गीला, तर। 4. प्रवेश द्वार 5. शरीर 6. हत्या 7. विकास / सजाति, सजातीय (वि.) [ समान जातिः अस्य, व० स०, सञ्चरणम् [ सम् / चर् + ल्युट् ] जाना, गमन करना, समानस्य सः, समानां जातिमह ति--समान+छ / यात्रा करना / 1. एक ही जाति का, एक ही वर्ग का 2. समान, सञ्चल (वि०) [ सम्+चल् + अच् ] कांपने वाला, ठिठुएक सा--पुं० एक ही जाति के स्त्री और पुरुष से रने वाला। उत्पन्न पुत्र / सञ्चलनम् [ सम्- चल+ ल्युट् ] विक्षोभ, कंपकंपी, सजुष् (स्) (वि०) [ सह जुषते जुप-1-क्विप्, सहस्य हिलना, थरथरी-- अचल सञ्चलनाहरणो रणः---कि० सः ] 1. प्रिय, अनुरक्त 2. साथ लगा हुआ---पुं० 1818 / (कर्त० सजूः, सजुपौ, सजुषः, करण द्वि० सज़ाम) सञ्चाय्यः ] सम् +चि + ण्यत्, नि० ] विशेष प्रकार का मित्र, साथी (अव्य०), सहित, युक्त। एक यज्ञ / सज्ज (वि०) [ सस्ज् + अच् ] 1. तत्पर, तैयार कियाहुआ, सञ्चारः [ सम्+च+घा ] 1. गमन, गति यात्रा, तैयार कराया हआ-सज्जो रथः-उत्तर०१ 2. बस्त्रों पर्यटन-स पुन: पार्थसञ्चारं सञ्चरत्यवनीपति:-काव्य. से सुसज्जित, कपड़े धारण किये हुए 3. संबारा हुआ, 10, रघु० 2 / 15 2. पारण, मार्ग, संक्रम 3. पथ, मजधज या टीपटाप से संचार हुआ. पूर्णतः सुस रास्ता, सड़क, दर्रा 4. कठिन प्रगति या यात्रा ज्जित, शस्त्र धारण किये हए. किलेबन्दी करके 5. कठिनाई, दुःख 6. गतिमान करना 7. भड़काना मुसज्जित / 8.नेतृत्व करना, मार्ग प्रदर्शन करना 9. संक्रामण, सज्जनम् [ सर-णिच् ल्यट ] 1. जकड़ना, बाँधना स्पर्शसंचार 10. सांप की फण में पाई जाने वाली मणि / 2. वेशभूपा धारण करना 3. तैयारी करना, शस्त्रास्त्र सञ्चारक (वि.) [सम् --- चर्+ण्वुल् ] संचार करने धारण करना, सुसज्जित करना 4. चौकीदार, पहरे- वाला, संक्रमण करने वाला, ...क: 1. नेता, पथ प्रददार 5. घाट,-नः भद्र पुरुष, दे० 'सत्' के अन्तर्गत, र्शक 2. उकसाने वाला। ___ ना 1. सजाना, संवारना, सुसज्जित करना | सञ्चारणम् [ सम्+चर्+णिच्---ल्युट् ] गतिशील होना, 2. वस्त्राभूषण धारण करके तैयार होना, सजावट / | प्रणोदित करना, संप्रेषण, नेतृत्व करना आदि / सजा [ सस्ज्|-अ-+टाप् ] 1. वेशभूपा, सजावट | सञ्चारिका [ सम्+चर्+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] 1. दूती, 2. सुसज्जा, परिच्छद 3. सैनिक साज सामान, कवच, (दो प्रेमियों की) परस्पर संदेशवाहिका 2. दूती, जिरहबख्तर। कुटनी 3. जोड़ा, दम्पती 4. गंध, ब / For Private and Personal Use Only Page #1069 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सञ्चारिन (वि०) (स्त्री०-णी) [ सम्+च+णिनि ] | 2. प्रतिबिम्बित होना-कु० 1110, 736 3. संलग्न 1. गतिशील,गमनीय सञ्चारिणी नगर देवतेव-मा०१, होना प्र.-", 1. चिमटना, जुड़ना 2. प्रयुक्त होना, अनुकु. 3154, 6 / 67 2. पर्यटन, भ्रमण 3. परिवर्तन- करण करना, प्रयुक्त किया जाना, सही उतरना, ठीक शील, अस्थिर, चंचल 4. दुर्गम, अगम्य 5. क्षणभं- बैठना- इतरेतराश्रयः प्रसज्येत, वैषम्यनघण्ये नेश्वरस्य गर जैसे कि भाव, दे० नी. 6. प्रभावशाली प्रसज्यते-शारी० 3. संलग्न होना, तस्यामसो प्रास7. आनुवंशिक, वंशपरम्पराप्राप्त ( रोग आदि ) जत्-दश०, व्यति--, मिलाना, साथ-साथ जोड़ना, 8. छत का रोग 9. प्रणोदन, पुं० 1. वाय, हवा व्यतिषजति पदार्थानान्तरः कोऽपि हेतुः--उत्तर० 2. धूप 3. वह क्षणभंगुर भाव जो स्थायी को शक्ति- 6 / 12 / सम्पन्न करता है. दे. व्यभिचारिन् / सञ्जः [सम्+जन्+ड] 1. ब्रह्मा का नाम 2. शिव का सञ्चाली [सम्+चल्+ण+ङीप्] गुंजा की झाड़ी। नाम। सञ्चित (भू० क० कृ०)[सम्+चि+क्त] 1. ढेर लगाया सञ्जयः [सम्+जि+अच्] धृतराष्ट्र के सारथि का नाम, हुआ, संगृहीत, जोड़ा गया, इकट्ठा किया गया (संजय ने कौरवों और पाण्डवों के झगड़े में शान्ति2. रक्खा गया, जमा किया गया 3. गिना गया, पूर्ण समझौता कराने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु गणना की गई 4. भरा हुआ, सुसम्पन्न, युक्त 5. बाधित, निष्फल रहा। इसी ने अंचे राजा धृतराष्ट्र को महाअवरुद्ध 6. सघन, घिनका (जैसे कि जंगल)। भारत के युद्ध का विवरण सुनाया-तु० भग० 111) / सञ्चितिः (स्त्री०)[सम् + चि+क्तिन् संग्रह, सञ्चय / सञ्जल्पः[सम्+जल्प- घा]1. वार्तालाप 2. अव्यवस्थित सञ्चिन्तनम् [सम् +चिन्त+ल्युट] विचार, विमर्श। बातचीत, बकवाद करना, गड़बड़ 3. शोरगुल, हंगामा। सञ्चूर्णम् [सम्+चूर्ण, + ल्युट्] चूर चूर करना। | सञ्जवनम् [सम्+जु+ल्युट्] चतुःशाल, आमने सामने के सञ्छन्न (भू० क. कृ.) [सम् +छद् + क्त] 1. लिपटा चार घरों का समूह जिनके बीच में आंगन बन गया हुआ, ढका हुआ, छिपा हुआ 2. वस्त्र पहने हुए। हो। सञ्छावनम् [सम् +छद्+णिच्+ल्युट्] ढकना, छिपाना / | सजा [सञ्ज+टाप्] बकरी। सञ्ज (भ्वा० पर० सजति, सक्त, इकारान्त या उकारान्त सञ्जीवनम् [सम् +जी+ल्युट] 1. साथ साथ रहना उपसर्ग के लगाने पर धातु का 'स्' बदल कर ष् हो 2. जीवित करना, जीवन देना, पुनर्जीवन, पुनः सजीजाता है) 1. संलग्न होना, जुड़े रहना, चिपके रहना, वता 3. इक्कीस नरकों में से एक नरक, दे० मनु० -तुल्यगन्धिषु मत्तभकटेषु फलरेणवः (ससञ्जः)-रघु० 4 / 89 4. चार घरों का समूह, चतुःशाल,--नी एक 4 / 47 2. जकड़ना कर्मवा० ( सञ्जयते ) संलग्न | प्रकार का अमृत (कहते हैं कि इसके सेवन से मतक होना, चिमटना, जुड़े रहना प्रेर० (सञ्जयति-ते) भी पुनर्जीवित हो जाता है)। -- इच्छा० (सिसंक्षति): अन- 1. चिपकना, चिम- सज्ञ (वि.) [सम् +जा+क] 1. जिसके घटने चलते टना 2. जुड़ना, साथ होना-मृत्युर्जरा च व्याधिश्च समय आपस में टकराते हों 2. होश में आया हुआ दुःखं चानेककारणम्। अनुषक्तं सदा देहे - महा०, 3. नामवाला, नामक-- दे० नी० संज्ञा,---शम् एक उत्तर० 4 / 2, (कर्मवा०) चिमटना, जुड़ जाना (आलं. प्रकार का पीला सुगंधित काष्ठ / से भी)-धर्मपूते च मनसि नभसीव न जातु रजोऽनुष- | सज्ञपनम् [सम् + ज्ञा+णिच् + ल्युट, पुकागमः, ह्रस्वः] ज्यते -दश०, भग० 6 / 4, 18 / 10, अव-, निलम्बित हत्या, वध / करना, संलग्न करना, चिमटना, फेंकना, रखना-शि० सज्ञा [सम्+ज्ञा+अ+टाप] 1. चेतना, होश-समां 5 / 16, 7 / 16, 9 / 7, कु० 7 / 23 2. सौंपना, सुपुर्द लभ, आपद् या प्रतिपद् फिर चैतन्य प्राप्त करना, करना, निर्दिष्ट करना, (कर्मवा०) 1. सम्पर्क में होश में आना 2. जानकारी, समझ 3. बुद्धि, मन होना, मिलते रहना-मच्छ० 1154 2. व्यस्त होना, 4. संकेत, इंगित, निशान, हाव-भाव-मुखापितकातुल जाना, उत्सुक होना, आ-, 1. जकड़ना, जमाना, गुलिसञ्जयव मा चापलायेति गणान् व्यनैषीत्-कु. जोड़ना, मिलाना, रखना-चापमासज्य कण्ठे कु० 341 5. नाम, पद, अभिधान, इस अर्थ में प्रायः 2064, श० 3 / 26 (भुजे) भूयः स भूमेधूरमाससञ्ज समास के अन्त में-द्वन्द्वैविमुक्ताः सुखदुःखसञ्जः --रघु० 2174 2. अभिदान करना, प्रेरित करना | - भग० 15 / 5 6. (व्या० में) 1. विशेष अर्थ रखने कि० 13144 3. सिपुर्द करना, निर्दिष्ट करना वाला नाम या संज्ञा, व्यक्ति वाचक संज्ञा 7. 'प्रत्यय' 4. चिमटना, लगे रहना नि-, 1. जमे रहना, चिमटना, का परिभाषिक नाम 8. गायत्री मन्त्र, दे० गायत्री डाल दिया जाना, रक्खा जाना-कण्ठे स्वयंग्राहनिषक्त- 9. विश्वकर्मा की पुत्री और सूर्य की पत्नी, यम, यमी बाहुं कु० 317, रघु०९।५०, 11170, 19 / 45 और दोनों अश्विनी कुमारों की माता, (इस विषय में For Private and Personal Use Only Page #1070 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक उपाख्यान प्रसिद्ध है, कहते हैं एक बार संज्ञा / मार डालना 2. बलवान् होना 3. देना 4. लेना, अपने पितृगृह जाने की इच्छा करने लगी, उसने अपने | 5. रहना। पति सूर्य से अनुमति मांगी, परन्तु वह न मिल सकी। | सट्टकम् [ सट्ट+ण्वुल] प्राकृत भाषा का एक उपरूपक, संज्ञा ने अपनी इच्छापूर्ति का दृढ़ निश्चय कर लिया, उदा० कर्पूरमंजरी-दे० सा० द०५४२ / अतः अपनी दिव्यशक्ति के द्वारा उसने ठीक अपने सट्वा (स्त्री० [सठ्+व, पृषो०] 1. एक पक्षिविशेष जैसी एक स्त्री का निर्माण किया, जो मानो उसकी 2. एक वाद्ययंत्र / / छाया थी / और इसी लिए उसका नाम छाया पड़ा)। सत् (चुरा० उभ० साठयति-ते) 1. समाप्त करना, पूरा उस निर्मित स्त्री को अपने स्थान पर रख कर वह करना 2. अधूरा छोड़ देना 3. जाना, हिलना-जुलना सूर्य को बिना बताये अपने पितगह चली गई। बाद 4. अलंकृत करना, सजाना। में सूर्य के छाया से तीन बालक उत्पन्न हुए (दे० | सणसूत्रम् [= शणसूत्र, पृषो०] सन की बनी डोरी छाया), छाया सुख पूर्वक सूर्य के साथ रहती जब या रस्सी / संज्ञा वापिस आई तो सूर्य ने उसे घर में नहीं रक्खा। सण्ड दे० षण्ढ' / अपमानित और निराश होकर संज्ञा ने घोड़ी का रूप सण्डिशः [-सन्दश, पृषो०] चिमटा या संडासी। धारण कर लिया और पृथ्वी पर घूमने लगी। समय सण्डीनम् [ सम्+डी+क्त ] पक्षियों की विभिन्न उड़ानों पाकर सूर्य को वस्तुस्थिति का पता लगा, उसने जाना / में से एक; दे० 'डीन' / कि उसकी पत्नी घोड़ी के रूप में धूमती है। फलतः सत् (वि०) (स्त्री०--) [ अतीस्+शत, अकारलोपः] उसने भी घोड़े के रूप धारण कर अपनी पत्नी से 1. वर्तमान, विद्यमान, मौजूद---सन्तः स्वतः प्रकाशन्ते समागम किया। उससे उसके अश्विनी कुमार नामक गुणा न परतो नृणाम् भामि० 1120 श० 7.12 दो पुत्र उत्पन्न हुए) / सम० -- अधिकारः एक प्रधान 2. वास्तविक, असली, सत्य 3. अच्छा, सदगुणसंपन्न, नियम जिसके अनुसार तदन्तर्गत नियमों का विशेष धर्मात्मा या सती-सती योगविसृष्टदेहा... कु० नाम रक्खा जाता है, और वे सब नियम उससे 121, श० 5 / 17 4. कुलीन, योग्य, उच्च, जैसा प्रभावित होते हैं,-विषयः विशेषण,-सुतः शनि का कि 'सत्कुलम्' में 5. ठीक, उचित 6. सर्वोत्तम, श्रेष्ठ विशेषण / 7. सम्माननीय, आदरणीय 8. बुद्धिमान, विद्वान् सज्ञानम् [सम्+ज्ञा+ल्युट] जानकारी, समझ / 9. मनोहर, सुन्दर 10. दृढ़, स्थिर,---(पुं०) भद्रपुरुष, सज्ञापनम् [सम्+ज्ञा+णिच्-+ ल्युट्, पुक्] 1. सूचित सदगणी व्यक्ति, ऋषि-आदानं हि विसर्गाय सतां करना 2. अध्यापन 3. वध, हत्या। वारिमचामिव-रघु० 4 / 86, अविरतं परकार्यकृतां सजावत् (वि०)[सज्ञा-|-मतूप] 1. सचेतन, होश में आया सतां मधुरिमातिशयेन वचोऽमृतम् भामि० 11113, ___ हुआ, पुनर्जीवित 2. नाम वाला। भर्तृ० 2018, रघु०१।१०, (नपुं०) 1. जो वस्तुतः सञ्जित (वि.)[सज्ञा+इतच्] नाम वाला, नामक, नाम विद्यमान हो, सत्ता, अस्तित्व, सर्वनिरपेक्ष सत्ता, धारी। 2. वस्तुतः विद्यमान, सचाई, वास्तविकता 3. भद्र, सजिन् (वि.) [सज्ञा+इनि] 1. नामवाला 2. जिसका जैसा कि 'सदसत्' में 4. ब्रह्म या परमात्मा, (सत्कृ नाम रक्खा जाय। आदर करना, सम्मान करना, सत्कार करना)। सञ्ज (वि० )[संहते जानुनी यस्य-ब० स०, जानुस्थाने जुः] सम० असत् (सवसत्) (वि.) 1. विद्यमान और जिसके घुटने चलते समय टकराते हों। अविद्यमान, मौजूद, जो मौजूद न हो 2. असली और सज्वरः [सम्+ज्वर+अप्] 1. अतिताप, बुखार 2. गर्मी नकली 3. सत्य और मिथ्या 4. भला और बुरा, 3. क्रोध / ठीक और गलत 5. पुण्यात्मा और दुष्ट (नपुं० द्वि० सट् / (भ्वा० पर सटति) बांटना, भाग बनाना। व०) 1. अस्तित्व और अनस्तित्व 2. भलाई और ii (चुरा० उभ० साटयति-ते) प्रकट करना, प्रदर्शन : बुराई, ठीक और गलत, विवेकः भलाई और बराई करना स्पष्ट करना। मैं अथवा सच और झूठ में विवेक, व्यक्तिहेतुः भलाई सटम्, सटा (सट्+अच् +टाप् वा] 1. संन्यासी की। और बुराई में विवेक का कारण --तं सन्तः जटाएँ 2. (सिंह की) अयाल-मद्रा० 76, शि० श्रोतुमर्हन्ति सदसद्व्यक्तिहेतवः - रघु० 110, 1147 3. सूअर के खड़े बाल विद्यन्तमुद्धतसटाः -आचारः (सदाचारः) 1. सद्वयवहार, शिष्ट प्रतिहन्तुमीषुः-रघु० 9 / 60 4. शिखा, चोटी। सम० आचरण 2. मानी हुई रस्म, परंपराप्राप्त पर्व, -अङ्कः सिंह। स्मरणातीत प्रथा मनु० 2118, - आत्मन् (वि.) सट्ट, (चुरा० उभ० सट्टयति ते) 1. क्षति पहुँचाना, गुणी, भद्र,---उत्तरम् उचित या अच्छा जवाब,-कर्मन् For Private and Personal Use Only Page #1071 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1062 ) उत्तम यादव, कृत कार पूर्वक स्व. पूजित, (नपुं०) 1. गुणयुक्त. या पुण्यकार्य 2. सद्गण, मानता, अस्तित्व 2. वस्तुस्थिति, वास्तविकता पावनता 3. आतिथ्य, काण्डः बाज, चील, कारः 3. सवृत्ति, अच्छा स्वभाव, सौजन्य 4. भद्रता, 1. कृपा तथा आतिथ्यपूर्ण व्यवहार, सत्कारयुक्त | साधुता,-मातुरः (सन्मातुरः) धर्मपरायण माता का स्वागत 2. सम्मान, आदर 3. देखभाल, ध्यान पुत्र,--मात्रः (सन्मात्रः: जिसका केवल अस्तित्व माना 4. भोजन 5. पर्व, धार्मिक त्योहार, कुलम् सत्कुल, जाय, जीव, आत्मा, मानः (सन्मानः) भद्रपुरुषों का उत्तम कुल, कुलीन (वि०) उत्तम कूल में उत्पन्न, सम्मान, मित्रम् (सन्मित्रम्) विश्वासपात्र मित्र, उच्चकुलोद्भव, कृत (वि०) 1. भलीभांति या उचित युवतिः (स्त्री०) सती साध्वी स्त्री, वंश (वि.) ढंग से किया गया 2. सत्कार पूर्वक स्वागत किया अच्छे कुल का, कुलीन,-- वचस् (नपुं०) रुचिकर गया 3. पूज्य, प्रतिष्ठित, सम्मानित 4. पूजित, तथा सुखद भाषण,--वस्तु (नपुं०) 1. अच्छी वस्तु अलंकृत 5. स्वागत किया गया, (तः) शिव का 2. अच्छी कथावस्तु-विक्रम. १०२,-विद्य विशेषण, (तम्) 1. आतिथ्य 2, सद्गुण, शुचिता (वि०) सुशिक्षित, बहुश्रुत,-- वृत्त (वि.) 1. अच्छे ---कृति, (स्त्री०) 1. सादर व्यवहार, आतिथ्य, व्यवहार का, सदाचारी, पुण्याचरण करने वाला, आतिथ्यपूर्ण स्वागत 2. सद्गुण, सदाचार,-क्रिया खरा 2. विल्कुल गोल, वर्तुलाकार सद्वत्तः स्तन1. सद्गुण, भलाई शकुन्तला मूर्तिमती च सत्क्रिया- मण्डलस्तव कथं प्राणर्मम क्रीडति-गीत०३, (यहाँ श० 5 / 15 2. धर्मार्थता, सत्कर्म, पुण्यकार्य दोनों अर्थ अभिप्रेत है, (त्तम्) 1. सदाचार, पुण्याचरण 3. आतिथ्य, आतिथ्यपूर्ण स्वागत 4. शिष्टाचार, 2. अच्छा स्वभाव, रोचक प्रकृति,-संसर्गः, सन्निअभिवादन 5. शुद्धिसंस्कार 6. अन्येष्टि संस्कार, धानम्, सङ्गः,-सङ्गतिः, समागमः, भले मनुष्यों औलदहिक क्रिया, .. गतिः (स्त्री०) (सदगतिः) का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों का समाज या उत्तम स्थिति, आनन्द, स्वर्गसुख, गुण (वि०) अच्छे मण्डली, भले मनुष्यों की संगति-तथा सत्संनिधानेन गणों से युक्त, पुण्यात्मा, (णः) पूण्यकार्य, उत्तमता, मों याति प्रवीणताम् हि० 1- संप्रयोगः सही भलाई, नकी-चरित,-चरित्र (वि०) (सच्चरित प्रयोग,-सहाय (वि०) अच्छे मित्र जिसके सहायक -अ) सदाचारी, ईमानदार पुण्यात्मा, धर्मात्मा - सूनुः है, (यः) अच्छा साथी,सार (वि.) अच्छे रस सच्चरित:-भर्तृ० 2 / 25, (नपुं०) 1. सदाचार, वाला (रः) 1. एक प्रकार का वृक्ष 2. कवि पुण्याचरण 2. भद्रपुरुषों का इतिहास-श०१, चारा 3. चित्रकार,--हेतुः (सद्धेतः) निर्दोष अथवा वैध (सच्चारा) हल्दी,--चिद् (नपुं०) (सच्चिद्) पर कारण। मात्मा, अंशः सत् और चित् का भाग, आत्मन् सतत (वि.) [सम्+तन्-:-क्त, समः अन्त्यलोपः] निरंतर (पुं०) सत् और चित् से युक्त आत्मा आनन्दः नित्य, सदा रहने वाला, शाश्वत,-तम् (अव्य०) 'सत् या अस्तित्व, ज्ञान और हर्ष' परमात्मा का लगातार, अविच्छिन्न रूप से, नित्य, सदा, हमेशा विशेषण,---जनः (सज्जनः) भद्र पुरुष, पुण्यात्मा, --- सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः-राम० / -पत्रम् कमल का नया पत्ता, पथः 1. अच्छा मार्ग सम०-गः----गतिः वायु-सलिलतले सततगतीनन्तः 2. कर्तव्य का सन्मार्ग, शुद्धाचरण, पुण्याचरण 3. शास्त्र- संचारिणः संनिगा शय्या कार्या-दश०, सततगास्तविहित सिद्धांत,-परिग्रहः योग्य व्यक्ति से (दान) तगानगिरोऽलिभिः शि०६५, नेत्रा नीताः सतत ग्रहण करना,-पशुः यज्ञ में दी जाने वाली बलि के गतिना यद्विमानाप्रभमीः मेघ०६९, यायिन् लिए उपयुक्त पशु, सुचारु यज्ञीय बलि,---पात्रम् योग्य (वि०) 1. सदैव गतिशील 2. क्षयशील। व्यक्ति, पुण्यात्मा, वर्षः योग्य आदाता के प्रति | सतर्क (वि०) [तर्केण सह- ब० स०] 1. तर्क करने में अनुग्रह की वर्षा, योग्यव्यक्ति के प्रति उदारता का निपूण 2. सचेत, सावधान / बर्ताव, वषिन् (वि०) पात्रता का विचार कर दान सतिः (स्त्री०) सम् + क्तिन मलोपः] 1. उपहार, दान आदि देने वाला,-पुत्रः 1. भला पुत्र, योग्य पुत्र 2. अन्त, विनाश / 2. वह पूत्र जो पितरों के सम्मान में सभी विहित | सती (स्त्री० [सत् + डीप] :. साध्वी स्त्री (या पत्नी) कर्मों का अनुष्ठान करे, प्रतिपक्षः (तर्क० में) कु. 1221 2. संन्यासिनी : दुर्गादेवी- कु० 1121 / पांच प्रकार के हेत्वाभासों में से एक, प्रति संतुलित | सतीत्वम् [ सतीत्व ] सती होने का भाव, सतीपन। हेत, वह हेतु जिसके विपक्ष में अन्य समकक्ष हेतु भी सतीनः [सती+नी+ड ] 1. एक प्रकार की दाल, हो, उदा. 'शब्द नित्य है क्यों कि यह श्रव्य है, | मटर 2. बाँस / शब्द अनित्य है क्योंकि यह उत्पन्न हुआ है',-फलः | सतीर्थः, - सतीर्थ्यः | समानः तीर्थः गुरुर्यस्य-ब० स०, अनार का पेड़, भावः (सद्धावः) 1. सत्ता, विद्य- तीर्थे गुरौ वसति इत्यर्थे यत् प्रत्ययः-समानस्य For Private and Personal Use Only Page #1072 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1063 ) सः] सहाध्यायी, साथ अध्ययन करने वाले। में प्रमुखता, लक्षणम् गर्भ के लक्षण--श० 5, ब्रह्मचारी। --विप्लवः चेतना की हानि, विहित (वि०) सतीलः [सतो--लक्ष् + ड] 1. बाँस 2. हवा, वायु 1. प्राकृतिक 2. सद्गुणी, पुण्यात्मा, खरा, * संशुद्धिः ____3. मटर, दाल (स्त्री० भी)। (स्त्री०) प्रकृति की पवित्रता या खरापन, --संपन्न सतेरः / सन् +एर, तान्तादेशः] भूसी, चोकर / (वि०) सद्गुणों से युक्त, पुण्यात्मा,--संप्लवः सत्ता [ सत् +तल+टाप् | 1. अस्तित्व, विद्यमानता, 1. बल या सामर्थ्य को हानि 2. विश्वविनाश, प्रलय, होने का भाव 2. वस्तुस्थिति, वास्तविकता 3. उच्च- -सारः 1. सामर्थ्य का सार, असाधारण साहस तम जाति या सामान्यता 4. उत्तमता, श्रेष्ठता / 2 अत्यन्त शक्तिशाली पुरुष,-स्थ (वि.) 1. अपनी सत्त्रम् [बहुधा सत्रम् -- लिखा जाता है, सद्+ष्ट्र ] प्रकृति में स्थित 2. पशुओं में अन्तहित 3. सजीव 1. यज्ञीय अवधि जो प्रायः 13 से 100 दिन तक 4. सत्त्वगण विशिष्ट, उत्तम, श्रेष्ठ / होने बाले यज्ञों में पाई जाती है 2. यज्ञमात्र 3. आहुति, | सत्त्वमेजय (वि.) [सत्व+ए+णिच् +खश्, मुम् ] चढ़ावा, उपहार 4. उदारता, वदान्यता 5. सद्गुण | पशुओं या जीवधारी प्राणियों को डराने वाला। 6. घर, निवासस्थान 7. आवरण 8. धनदौलत सत्य (वि.) [सते हितम्-सत् + यत् ] 1. सच्चा, 9. जंगल, बन-कि० 1309 10 तालाब, पोखर वास्तविक, असली, जैसा कि सत्यव्रत, सत्यसन्ध में 11. जालसाजी, ठगना 12. शरणगृह, आश्रम, आश्रय 2. ईमानदार, निष्कपट, सच्चा, निष्ठावान् 3. सद्स्थान। सम०--अयनम् (णम्) यज्ञों का चलने गुणसम्पन्न, खरा, --त्यः ब्रह्मलोक, सत्यलोक, भूमि के वाला दीर्घ कार्यकाल। ऊपर सात लोकों में सबसे ऊपर का लोक-दे. लोक सत्ता (अव्य.) [सद् ।-त्रा ] के साथ, मिल कर, सहित / 2. पीपल का पेड़ 3. राम का नाम 4. विष्णु का नाम ___ सम... हन् (पुं०) इन्द्र का विशेषण / 5. नांदीमुख श्राद्ध को अधिष्ठात्री देवता,-त्यम् सस्त्रिः [ सद् +-त्रि ] 1. बादल 2. हाथी। 1. सचाई-मौनात्सत्यं विशिष्यते--मनु० 2 / 83, सत्यं सत्रिन् (पुं०) [ सत्त्र+इनि ] जो निरन्तर यज्ञानुष्ठान / 1. सच बोलना 2. निष्कपटता 3. भद्रता, सद्गुण, करता रहता है, उदार गृहस्थ -शि० 18132 / शुचिता 4. शपथ, प्रतिज्ञा, गंभीर दृढोक्ति-सत्याद् सत्त्वम् (प्रथम दस अर्थों में पुं० भी होता है) [ सतो गुरुमलोपयन्-रघु० 12 / 9, मनु०८।११३ 5. सचाई, भावः सत्+त्व] 1. होने का भाव, अस्तित्व, प्रदर्शित सत्यता या रूढ़ि 6. चारों युगों में पहला युग, सत्ता 2. प्रकृति, मूलतत्त्व 3. स्वाभाविक चरित्र, राहज स्वर्णयुग, सत्ययुग 7. पानी,-त्यम् (अव्य०) सचस्वभाव जीवन, जीव, प्राण, जीवनी शक्ति, प्राण- मुच, वस्तुतः, निस्संदेह, निश्चय ही, वस्तुतस्तु--सत्यं शक्ति का सिद्धान्त श० 2 / 9 5. चेतना, मन, शपामि ते पादपङ्कजस्पर्शन--का०, कु०६।१९। सम० ज्ञान 6. भ्रूण 7. तत्त्वार्थ, वस्तु, सम्पत्ति 8. मलतरब, -अन्त (वि०) 1. सच और मिथ्या-सत्यानृता च जैसे कि पृथ्वो, वाय, अग्नि आदि 9. प्राणधारी जीव, परुषा-हि० 21183 2. सच प्रतीत होने वाला परन्तु जानदार, जन्तु,-वन्यान् विनेष्यन्निव दुष्टस त्वान्-रघु० मिथ्या (-तम्,-ते) 1. सचाई और झूठ 2. झूठ और 218, 15 / 15, 20217 10. भूत, प्रेत, पिशाच सच का अभ्यास अर्थात् व्यापार, वाणिज्य -मनु० 11, भद्रता, सद्गुण, श्रेष्ठता 12. सचाई, वास्तविकता, 4 / 4, 6, - अभिसन्धि (वि०) अपनी प्रतिज्ञा पूरी निश्चय 13. सामर्थ्य, ऊर्जा, साहस, बल, शक्ति, करने वाला, निष्कपट,-उत्कर्षः 1. सचाई में प्रमुखता अन्तहित शक्ति, वह तत्व जिससे पुरुष बनता है, 3. सच्ची श्रेष्ठता, उद्य (वि.) सत्यभाषी,-उपपुरुषार्थ क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे याचन (वि.) प्रार्थना पूरी करने वाला,---कामः सत्य -सुभा०--रघु० 5 / 31, मुद्रा० 3 / 22 14. बुद्धि का प्रेमी, तपस् एक ऋषि का नाम,-दशिन् (अव्य०) मत्ता, अच्छी समझ 15. भद्रता और शुचिता का सचाई को देखने वाला, सत्यता को भांपने वाला, सर्वोत्तम गुण, सात्त्विक, (देवों तथा स्वर्गीय प्राणियों --धन (वि.) सत्य के गुण से समृद्ध, अत्यंत सच्चा में यह बहुतायत से पाया जाता है) 16. स्वाभाविक .-धुति (वि.) परम सत्यवादी,-पुरम् विष्णुलोक, गुण या लक्षण 17. संज्ञा, नाम। सम० अनुरूप -पूत (वि.) सत्यता से पवित्र किया हुआ (जैसे (वि०) मनुष्य के सहज स्वभाव या अन्तहित चरित्र कि वचन) सत्यपूतां वदेवाणी-मनु०-६।४६,-प्रतिज्ञ के अनुसार-भत० 2130 2. अपने साधन या संपत्ति (वि.) वादे का पक्का, अपने वचन का पालन के अनुसार रघु० 7 / 32. (यहाँ मल्लि० व्याख्या करने वाला, भामा सत्राजित की पुत्री तथा कृष्ण प्रकरणानुकूल उपयुक्त प्रतीत नहीं होती),-उद्रेकः की प्रिय पत्नी का नाम, (इसी सत्यभाभा के लिए 1, भद्रता के गुण का आधिक्य 2. साहस या सामर्थ्य कृष्ण ने इन्द्र से युद्ध किया, तथा नन्दनवन से पारि For Private and Personal Use Only Page #1073 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जात वृक्ष लाकर उसके उद्यान में लगाया), युगम् / मणि के साथ सत्यभामा अपने पिता के घर विद्यमान स्वर्णयुग, दे० ऊ० सत्य (6)-- वचस् (वि.) सत्य- थी तो अक्रूर नामक यादव के भड़काने पर, जो स्वयं वादी, सत्यनिष्ठ, (पुं०) 1. सन्त, ऋषि 2. महात्मा इस मणि को लेना चाहता था, शतधन्वा ने सत्राजित् (नपुं०) सचाई, ईमानदारी, वद्य (वि०) सत्यभाषी को मार डाला और वह मणि लेकर अऋर को दे दी। (थम्) सचाई, ईमानदारी,-वाच (वि) सत्यवादी, उसके बाद कृष्ण ने शतधन्वा को मार डाला। परन्तु सत्यनिष्ठ, खरा (पुं०) 1. सन्त, महात्मा, ऋषि, जब उन्हें पता लगा कि वह मणि तो अक्रर के पास कौवा,---वाक्यम् सत्यभाषण, खरापन,-वाबिन (वि०) है तो उन्होंने कहा कि एक बार वह मणि सब लोगों 1. सत्यभाषी 2. निष्कपट, स्पष्टभाषी, खस,-बता को दिखा दी जाय तथा फिर अक्रूर भले ही उस मणि .....संगर,-संघ (वि०) 1. वादे का पक्का, अपनी को अपने पास रक्खें)। प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, सत्वर (वि.) [सह त्वरया-ब० स०] फुर्तीला, द्रुतनिष्कपट,- श्रावणम् शपथग्रहण, संकाश (वि०) गामी, चुस्त,-रम् (अव्य०) शीघ्र, जल्दी से / प्रशस्त, गुंजाइश वाला, देखने में ठीक जंचता हुआ, सत्कार (वि.) [संह थूत्कारेण ] वह मनुष्य जिसके सत्याभ। मह से बोलते समय थुक निकले. --रः बात के साथ सत्यङ्कारः [सत्य-++घञ, मुम्] सत्य करना, वादा मुंह से थूक निकलना। पूरा करना, सोदे या संविदा की शर्त पूरी करना 2. बयाने की रकम, अगाऊ दिया गया धन, ठेके का (भ्वा० पर०-कुछ के अनुसार तुदा० पर०-सीदति, सन्न, 'प्रति' को छोड़कर अन्य इकारान्त तथा उकाकाम पूरा करने के लिए ज़मानत के रूप में दी गई अग्रिम राशि -कि० 1150 / रान्त उपसर्ग के लगने पर सद् के स् को प हो जाता है) 1. बैठना, बैठ जाना, आराम करना, लेटना, लेट सत्यवत् (वि०) [ सत्य+मतु] सत्यभाषी, सत्यनिष्ठ, जाना, विश्राम करना, बस जाना,—अमदा: सेदुरेकपुं० एक राजा का नाम, सावित्री का पति,ती एक स्मिन् नितम्बे निखिला गिरेः-भट्टि० 9 / 58 2. डबना, मछुए की लड़की जो पराशर मुनि के सहवास से व्यास गोते लगाना----तेन त्वं विदुषां मध्ये पडू गौरिव की माता बनी, सुतः व्यास / सीदसि--हिः प्र. 24 (यहाँ इस शब्द का अर्थ सत्या [सत्यमस्ति अस्याः -सत्य+ अच्+टाप्] 1. सचाई, -४-भी है) 3. जीना, रहना, बसना, वास करना ईमानदारी 2. सीता का नाम 3. द्रौपदी का नाम, 4. खिन्न होना, हतोत्साह होना, निराश होना, हताश ----कि० 11150 4. व्यास की माता सत्यवती का नाम होना, भग्नाशा में डूब जाना - नाथ हरे जय नाथ 5. दुर्गा का नाम 6. कृष्ण की पत्नी सत्यभामा का हरे सीदति राधा वासगृहे - गीत० 6 5. म्लान नाम। होना, नष्ट होना, बर्बाद होना, छीजना, नष्ट होना सत्यापनम् [सत्य+णि+ल्युट, पुकागमः] 1. सत्यभाषण --विपन्नायां नीती सकलमवशं सीदति जगत्-हि. करना, सत्य का पालन करना 2. (किसी संविदा या 2177, रघु० 7 / 64, हि० 2 / 130 6. दुःखी होना, सौदे आदि की) शर्ते पूरी करना / पीडित होना, कष्टग्रस्त होना, असहाय होना-कि० सत्र दे० 'सत्त्र'। 13 // 60, मनु० 821 7. बाधित होना, विघ्न युक्त सत्रप (वि.) [सह त्रपया-ब० स०] लज्जाशील, विनयी। होना,-मनु० 9 / 94 8. म्लान होना, क्लान्त होना, सत्राजित् (पुं०) निघ्न का पुत्र तथा सत्यभामा का पिता थका हुआ होना, निहाल होना, अवसन्न होना (सत्राजित् को सूर्य से स्यमन्तक नाम की मणि प्राप्त -सीदति मे हृदयं का०, सीदन्ति मम गात्राणि हुई थी, और उसने उसको अपने कण्ठ में पहन लिया -भग० श२८ 1. जाना, ....प्रेर० (सादयति था। बाद में सत्राजित् ने इस मणि को अपने भाई –ते) 1. बिठाना, आराम कराना इच्छा० (सिषप्रसेन को दे दिया प्रसेन से यह मणि वानरराज त्सति) बैठने की इच्छा करना, अव-, 1. निढाल जांबवान् के हाथ लगी, जब कि उसने प्रसेन का वध होना, मुछित होना, विफल होना, रास्ते से हट जाना किया। फिर कृष्ण ने जांबवान् से युद्ध किया और "-करिणी पङ्कमिवावसीदति कि० 2 / 6, 4 / 20, उसे परास्त कर दिया। अतः जांबवान् ने अपनी पुत्री भट्टि० 6 / 24 2. भुगतना, उपेक्षित होना 3. हतोके साथ यह मणि कृष्ण को दे दी। दे० जाम्बवत् / त्साह होना, श्रान्त होना 4. नष्ट होना, क्षीण होना, कृष्ण ने इस मणि को इसके मूल अधिकारी सत्राजित् समाप्त होना-नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वायं नावसीको दे दिया। सत्राजित् ने भी कृतज्ञता के कारण यह दति,-(प्रेर०) 1. अवसन्न करना, हतोत्साह करना, मणि, अपनी पुत्री सत्यभामा समेत कृष्ण को ही बर्बाद करना-भग० 65 2. दूर करना, हटाना अर्पित कर दी। उसके पश्चात् एक बार जब इस -औत्सुक्यमात्रमवसादयति प्रतिष्ठा ---श० 5 / 6 3. नष्ट For Private and Personal Use Only Page #1074 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1065 ) करना, मार डालना, आ-, 1. नीचे बैठना, निकट बैठना। 2. घात में रहना 3. पहुँचना, उपगमन करना, पास | 1. निराश करना, हताश करना 2. कष्टग्रस्त करना, जाना-हिमालयस्यालयमाससाद-कु०७।६९,शि० 2 / 2 | पीडित करना। रघु० 614. 4. अकस्मात् मिलना, प्राप्त करना, निर्माण सदः [सद्+अच्] वृक्ष का फल / करना - रघु० 5 / 60, 14 / 25 5. भुग तना-भट्टि० सदंशकः [दंशेन सह कप्, ब० स०] केकड़ा। 3 / 26 6. मुठभेड़ होना, आकमण करना 7. रखना, | सदंशवदनः [सदंशं वदनं यस्य --ब० स०] बगले का एक (प्रेर०) 1. दुर्घटना होना, पाना, हासिल करना, भेद, कंक पक्षी।। प्राप्त करना,--अमरगणनालेख्यमासाद्य-रघु० 895 | सदनम् [सद् + ल्युट] 1. घर, महल, भवन 2. म्लान होना, 2. उपगमन करना, पास जाना, पहुंचना, अधिकार क्षीण होना, नष्ट होना 3. अवसाद, श्रान्ति, क्लान्ति में करना नक्र: स्वस्थानमासाद्य गजेन्द्रमपि कर्षति 4. हानि 5. यज्ञ-भवन 6. यम का आवास स्थान / -पंच० 3146, मेघ० 34, भट्टि० 8 / 37 3. पकड़ सदय (वि.) [सह दयया-ब० स०] कृपालु, सुकुमार, लेना-अनेन रथवेगेन पूर्वप्रस्थितं वैनतेयमप्यासाद- दयापूर्ण, यम् (अव्य०) कृपा करके, दया करके / येयम् विक्रम० 1 4. मुठभेड़ होना, आक्रमण करना सवस् ( नपुं० ) [सीदत्यस्याम्-सद्+असि] 1. आसन, -भट्टि० 6 / 95, उद्-, 1, डूबना (आलं० से भी), आवास, घर, निवासस्थान 2. सभा-पडूविना सरोबर्बाद होना, क्षीण होना-उत्सीदेयुरिमे लोकाः-भग० भाति सदः खलजनैविना-भामि० 11116, भर्तृ० 3 / 24 2. छोड़ देना, त्याग देना 3. विद्रोह के लिए 2 / 63 / सम०-गत (वि०) सभा में बैठा हुआ, उठना; (प्रेर० ) 1. नष्ट करना, उन्मूलन करना -रघु० 366, ---- गृहम् सभा-भवन, परिषत्-कक्षा - उत्साद्यन्ते जातिधर्माः-- भग० 142 - मनु० / - रघु० 3 / 67 / 9 / 267 2. उलटना 3. मलना, मालिश करना, उप-, सदस्यः [सदसि साधु वसति वा यत्] 1. सभा का सभासद् 1. निकट बैठना, पहुँचना, पास जाना उपसेदुर्दश- या सभा में उपस्थित व्यक्ति, सभा का मेम्बर (पंच, ग्रीवम् -भट्टि० 9 / 92, 6 / 135 2. सेवा में प्रस्तुत जूरी का सदस्य) 2. याजक, यज्ञ में ब्रह्मा या सहायक रहना, सेवा करना-आकल्पसाधनस्तैस्तरुपसेदुः __ ऋत्विज् श०३। प्रसाघका:-रघु० 17122, शि० 13134 3. चढ़ाई | सवा (अव्य.) (सर्वस्मिन् काले---सर्व+दा, सादेशः] करना, नि, 1. नीचे बैठ जाना, लेटना, विश्राम हमेशा, सर्वदा, नित्य, सदैव / सम० -.आनन्द (वि.) करना -उष्णाल: शिशिरं निषीदति तरोमलालनाले सदा प्रसन्न रहने वाला, (दः) शिव का विशेषण, शिखी --विक्रम 2 / 23 2. वना, विफल होना, -गतिः 1. वायु 2. सूर्य 3. शाश्वत आनन्द, मोक्ष, निराश होना,प्र., 1. प्रसन्न होना, कृपाल होना, --तोया, नीरा 1. करतोया नदी का नाम 2. वह मंगलप्रद होना-प्रायः तुमुन्नन्त के साथ तमाल- नदी जिसमें सदैव पानी रहता है, बहती हुई नदी, पत्रास्तरणासु रन्तुं प्रसीद शश्वन्मलयस्थलीषु-रघु० -दान (वि०) सदैव उपहार देने वाला, (वह हाथी) 6 / 64 2. आश्वस्त होना, परितुष्ट होना, सन्तुष्ट जिसके सदैव मद बहता हो-पंच० 2179 (-नः) होना-निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति ध्रुवं स तस्या- 1. मद बहाने वाला हाथी 2. गन्धद्विप, 3. इन्द्र के पगमे प्रसीदति -पंच० 11283 3. निर्मल होना, हाथी का नाम 4. गणेश, नर्तः एक पक्षी, खंजन स्वच्छ होना, स्पष्ट होना, चमकना (शा० और आ०) -फल (वि.) हमेशा फलने वाला, (लः) 1. बेल दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखाः ---रघु० 3 / 14, प्रससा- का पेड़ 2. कटहल का पेड़ 3. गूलर का पेड़ दोदयादम्भः कुम्भयोनेमहौजसः ..-4 / 21 4. फल 4. नारियल का पेड़, योगिन् (पुं०) कृष्ण का आना, सफल होना, कामयाब होना-क्रिया हि वस्तू विशेषण, --शिवः शिव का नाम / / पहिता प्रसीदति-रघु० 3 / 29, दे० प्रसन्न, (प्रेर०) सदृक्ष (स्त्री०-क्षी), सदृश, सदश (स्त्री० शी) (वि०) 1. राजी करना, अनुग्रह प्राप्त करना, प्रार्थना करना, | [समानं दर्शनमस्य-दृश्+क्स, क्विन्, का वा, निवेदन करना तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये समानस्य सादेशः] 1. समान, मिलता-जुलता, तुल्य, त्वामहमीशमीडयम्-भग० 11144, रघु० 1188, अनुरूप (संबं० या अधिक के साथ अथवा समास याज्ञ० 3 / 283 2. स्पष्ट करना --चेतः प्रसादयति में प्रयुक्त) 2. योग्य, समुचित, उपयुक्त, समानरूप भर्त० 2 / 23, वि-, डूबना, थक जाना, 2. हताश जैसा कि प्रस्तावसदृर्श वाक्यम्-हि० 2 / 51 होना, निढाल होना, कष्टग्रस्त होना, खिन्न होना, 3. योग्य, ठीक, शोभाप्रद .. श्रुतस्य किं तत्सदृशं निराश होना, नाउम्मीद होना-विलपति हसति | कुलस्य - रघु०१४॥६१, 1 / 15 / / विषीदति रोदिति चञ्चति मञ्चति तापम्--गीत०४, 1 सदेश (वि०) सिह देशेन ब० स०] 1. किसी देश का 134 For Private and Personal Use Only Page #1075 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से सम्मान के साथ प्राप्त करना 5. 3 स्मिन् सद् + मनिन , स्वामी 2. एक ही स्थान से सम्बन्ध रखने वाला करना 4. अनुग्रह के साथ प्राप्त करना 5. उपहारों 3. आसन्नवर्ती, पड़ोसी। से सम्मान करना, देना, प्रदान करना, वितरण सपन् (न०) सीदत्यस्मिन् सद्+मनिन्] 1. घर, करना। मकान, आवासस्थान चकितनतनताङ्गी सब सद्यो सनः [ सन्+अच ] हाथी के कानों की फड़फड़ाहट / विवेश -भामि० 2 / 32 2. स्थान, जगह 3. मन्दिर सनत् (पुं० [सन्+अति ] ब्रह्म का विशेषण-(अव्य०) 4. वेदी 5. जल। सदा, नित्य / सम-कुमारः ब्रह्मा के चार पुत्रों सबस् (अव्य.) [समेऽह्नि नि०] 1. आज, उसी दिन में से एक। -~-गवादीनां पयोऽन्येद्युः सद्यो वा जायते दधि, पापस्य सनसूत्र दे० 'सणसूत्र'। हि फलं सद्यः - सुभा० 2. तुरन्त, तत्काल, फ़ौरन, सना (अव्य०) [-सदा, नि० दस्य नः1 हमेशा, नित्य / अकस्मात् -- चकितनतनताङ्गी सद्म सद्यो विवेश सनात् (अव्य०) [ सना+अत्+क्विप् ] सदा, हमेशा। -भामि० 2 / 32, कु० 3 / 29, मेघ०१६ 3. हाल सनातन (वि.) (स्त्री०-नी) [ सदा+टयुल, तुट, ही में, कुछ ही समय पीछे, जैसा कि सद्यो हुताग्नीन् नि० दस्य नः ] 1. नित्य, निरन्तर, शाश्वत, स्थायी -श. 4 में। समकालः वर्तमान काल, एष धर्मः सनातनः 2. दृढ़, स्थिर, निश्चित ----कालीन (वि.) हाल ही का,-जात (वि०) --उत्तर० 5 / 22 3. पूर्वकालीन, प्राचीन,- नः पुरा(सद्योजात) अभी पैदा हआ, (तः) 1. बछड़ा तन पुरुष, विष्णु -सनातनः पितरमुपागमत् स्वयम् 2. शिव का विशेषण,-पातिन् (वि०) शीघ्र नष्ट | भट्टि० 11 2. शिव का नाम 3. ब्रह्मा का नाम, होने वाला, नश्वर मेघ० 10, शुद्धिः, -शौचम् - नी 1. लक्ष्मी का नाम 2. दुर्गा या पार्वती का तत्काल की हुई शुद्धि / नाम 3. सरस्वती का नाम / सास्क (वि.) [सद्यस+कन 1. नूतन, अभिनव | सनाथ (वि.) [सह नाथेन-ब. स.] 1. स्वामी 2. तात्कालिक। वाला, प्रभु या पति वाला--त्वया नाथेन वैदेही सद् (वि.) [सद् +5] 1. विश्राम करने वाला, ठहरने | सनाथा ह्यद्य वर्तते ... रामा० 2. जिसका कोई अभिवाला 2. जाने वाला। भावक या प्ररक्षक हो-सनाथा इदानीं धर्मचारिणः सम्व (वि०) सह द्वन्द्वेन ब० स० झगड़ाल, कलहप्रिय, -~-श०१ 3. कब्जा किया हुआ, अधिकार किया विवादपूर्ण / हुआ 4. सम्पन्न, सहित, युक्त, समेत, पूर्ण, प्रायः सबसथः सिद्+बस+अथची गाँव। समास में लतासनाथ इव प्रतिभाति श० 1, सधर्मन् (वि०) समानो धर्मोऽस्य सधर्म-|-अनिच, ब० शिलातलसनाथो लतामण्डपः--विक्रम० 9, मेघ० 98, स०] 1. समान गुणों से युक्त 2. एक जैसा कर्तव्यों कु० 794, रघु० 9:42, विक्रम 4110 / वाला 3. उसी जाति या सम्प्रदाय का 4. समान, सनाभि (वि.) [समाना नाभिर्यस्य ब० स०] 1. एक मिलता-जुलता / मम० चारिणी वैध स्त्री, शास्त्रीय ही पेट का, सहोदर 2. रिश्तेदार, बंधु 3. समान, रीति से विवाहसूत्र में बद्ध स्त्री। मिलता-जुलता-गङ्गावर्तसनाभिर्नाभिः-दश. 4. स्नेहसमिणी दे० ऊ० 'सधर्मचारिणी'।। शील,-भिः 1. सगा भाई, नजदीकी रिश्तेदार समिन (वि०) (स्त्री० णी) सहधर्मोऽस्ति अस्य 2. रिश्तेदार, बंधु कि० 13:11 3. रिश्तेदार जो सधर्म + इनि, ब० स० दे० 'सधर्मन'। सात पीढ़ी के अन्तर्गत हो। सषित् (पुं०) [सह+इसिन्, हस्य घः] बैल, मांड। सनाभ्यः [सनाभि + यत् सात पीढियों के भीतर एक ही सध्रीची [सध्यच् + ङीष, अलोपः, दीर्घः] सखी, सहेलो, वंश का रिश्तेदार। अन्तरंग सहेली .. भट्रि० 67 / सनिः [सन् +-इन] 1. पूजा, सेवा 2. उपहार, दान सध्रीचीन (वि.) [सध्यच्+ख, अलोपः, दीर्घः] साथ | 3. अनुरोध, सादर निवेदन (स्त्री०) भी इस अर्थ में)। रहने वाला, सहचर। सनिष्ठीवम, सनिष्ठेवम् सिह निष्ठी (ष्ठे) वेन ब० स०] सध्यञ्च (वि.) (स्त्री. सध्रीची) [सहावति सह वह भाषण जिसमें मुंह से थूक निकले, ऐसी बोली -+अञ्च+विवन, सनि आदेशः साथ चलने वाला, / जिसमें थूक उछले / सहचर, साथी, पुं०-सहचर (पति)---शि० 8 / 44 / सनी [सनि ।-डी] 1. सादर अनुरोध 2. दिशा 3. हाथी सन् (म्बा० पर०, तना० उभ० सनति, सनोति, सनुते, के कानों की फड़फड़ाहट / सात, कर्मवा० सन्यते, सायते, इच्छा० सिसनिषति, सनीड (ल) (बि०) [समानं नीडमस्त्यस्य-ब० स०] सिषासति) 1. प्रेम करना, पसन्द करना 2. पूजा 1. एक ही घोंसले में रहने वाला, साथ-साथ रहने करना, सम्मान करना 3. प्राप्त करना, अधिगत वाला 2. निकटस्थ, समीपवर्ती / For Private and Personal Use Only Page #1076 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1067 ) सन्तः [सन्+त-] दोनों हाथ जुड़े हुए, अंजलि, संहततल।। झाग 2. मलाई 3. मकड़ी का जाला 4. चाकू या सन्तक्षणम् [सम्+तक्ष् + ल्युट्] ताना, व्यंग्य, लगने की। तलवार का फल / बात। सन्तापः [सम्+तप्+घञ्] 1. गर्मी,प्रदाह, जलन-मा० सन्तत (भू० क० कु०)[सम्+तन्+क्त] 1. फैलाया हुआ, 314 2. दुःख, सताना, भुगतना, पीडा, वेदना, व्यथा विस्तारित 2. विनरहित, अनवरत, अनवच्छिन्न, ---सन्तापसन्ततिमहाव्यसनाय तस्यामासक्तमेतदननियमित 3. टिकाऊ, नित्य 4. बहुत, अनेक,-तम् पेक्षित हेतु चेतः- मा० 1123 श० 3 3. आवेश, रोष (अव्य०) सदव, लगातार, नित्य, निरंतर, शाश्वत / 4. पश्चात्ताप, पछतावा- पंच० 1 / 109 5. तपस्या, सन्ततिः (स्त्री०) [सम्+तन्+क्तिन्] 1. बिछाना, तप की थकान, शरीर की साधना-सन्तापे दिशतु फलाना 2. फासला, प्रसार, विस्तार-० 7 / 8 शिवः शिवां प्रसक्तिम् - कि० 5 / 50 / 3. अनवच्छिन्न पंक्ति, अविराम प्रवाह, श्रेणी, परास, | सन्तापनम् (स्त्री... नी) [सम्+त+णिच-+ल्युट, परम्परा, निरन्तरता-चितासन्ततितन्तुजालनिबिड- जलन, दाह, नः कामदेव के पाँच बाणों में से एक, स्यू तेव लग्ना प्रिया--- मा०५।१०, कुसुमसन्ततिसन्तत- -नम् 1. जलाना, झुलसना 2. पीडा देना, कष्ट सङ्गिभि:--शि० 6 / 36 4. नित्यता, अविच्छिन्न देना 3. आवेश उत्तेजित करना, जोश भरना।। निरन्तरता--रघु० 3.1 5. कुल, वंश, परिवार | सन्तापित (भ० क. कृ०) सम-तप-णिच+क्त] 6. सन्तान, प्रजा-सन्ततिः शुद्धवंश्या हि परत्रेह च | गरम किया हुआ, कष्टग्रस्त, पीडित / शर्मणे - रघु० 1 / 69 7. ढेर, राशि (अलम्) सहसा | सन्तिः [सन्+क्तिन्] 1. अन्त, विनाश 2. उपहार-तु० सन्ततिमहसां विहन्तुम् -कि० 5 / 17 / सति। सन्तपनम् [सम्+त+ल्युट्] 1. गरम करना, प्रज्वलित सन्तुष्टिः (स्त्री) [सम्+तुष्+क्तिन् पूर्ण संतोष। करना 2. पीडित करना। सन्तोषः [सम्+तुष्+घञ] 1. शान्ति, परितुष्टि, सबर, सन्तप्त (भू० क० कृ०) [सम्+तप्+क्त] 1. गर्म किया सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम्-सुभा० 2. प्रसन्नता, हुआ, प्रज्वलित, लाल-गरम, चमकता हुआ 2. दुःखी खुशी, हर्ष 3. अंगूठा या तर्जनी अंगुली / कष्टग्रस्त, पीडित मेघ०७ / सम... अयस् (नपुं०) | सन्तोषणम् [सम्+तुष+णिच् + ल्युट] प्रसन्न करना, लाल-गरम लोहा,-बक्षस् (नपुं०) जिसे सांस लेने परितृप्त करना, आराम पहुँचाना। में कठिनाई हो। सन्त्यजनम् [सम् +त्य+ल्यट] छोड़ना, त्याग देना। सन्तमस् (नपुं०) सन्तमसम् [सन्ततं तमर प्रा० स०, पक्षे सन्त्रासः [सम्+त्रस्+घञ] डर, भय, आतंक / अच] सर्वव्यापी या विश्वव्यापी अंधकार, घोर अंध- सन्वंशः सम् +दंश्+अच] 1. चिमटा, सन्डासी 2. स्वरों कार--निमज्जयन्संतमसे पराशयम - 0 9498, शि० (या वर्णों) के उच्चारण में दांतों को भींचना 3. एक 9 / 22, भट्टि० 5 / 2 / नरक का नाम / सन्तर्जनम् [समु+तर्ज + ल्युट्] धमकाना, डांटना- | सन्दर्शकः [संदृश+कन्] चिमटा, सिंडासी। डपटना / सन्दर्भः [सम् + +घञ] 1. मिलाकर नत्थी करना, सन्तर्पणम् [सम् +तृप्+ल्युट] 1. सन्तुष्ट करना, संतृप्त ग्रथन करना, क्रम में रखना 2. संग्रह, मिलाप, मिश्रण करना 2. खुश करना, प्रसन्न करना 3. जो खुशी 3. संगति, निरन्तरता, नियमित संबंध, संलग्नता का देने वाला हो 4. एक प्रकार का मिष्टान्न / .--सन्दर्भशद्धि गिराम्-गीत०१ 4. संरचना 5. निबंध, सन्तानः, नम् [सम्+तनु+घञ] 1. बिछाना, विस्तृत साहित्यिक कृति .. रसगंगाधरनामा संदर्भोऽयं चिरं करना, विस्तार, प्रसार, फैलाव 2. नैरन्तयं, अनव- जयतु -- रस०, उत्तर० 4 / च्छिन्न पंक्ति या प्रवाह, परम्परा, अनवच्छिन्नता सन्दर्शनम् [सम् + दृश् + ल्युट] 1. देखना, अवलोकन, अच्छिन्नामलसन्ताना -कु० 6 / 69, संतानवाहीनि नजर डालना 2. ताकना, टकटकी लगा कर देखना दुःखानि . उत्तर० 418 3. परिवार, बंश 4. प्रजा, 3. मिलना, एक दूसरे को देखना 4. दृष्टि, दर्शन, औलाद, बाल-बच्चा-सन्तानार्थाय विधये रघु. निगाह 5. खयाल, ध्यान / श२४, संतानकामाय राज्ञे--२६५, 1852 5. इन्द्र सन्दानम् [सम्+दो+ल्यूट] 1. रस्सी, डोरी 2. श्रृंखला, के स्वर्गस्थित पाँच वृक्षों में से एक / बेड़ी, नः हाथी का गंडस्थल जहां से मद बहता है। सन्तानकः [सन्तान+कन इन्द्र के स्वर्गीय पाँच वृक्षों में | सन्दानित (वि०) [सन्दान+इतच्] 1. बद्ध, कसा हआ से एक वृक्ष या उसका फूल-कु० 6 / 46, 7 / 3, 1 2. बेड़ी में जकड़ा हुआ, शृंखलित। शि०६।६। सन्दानिनी [सन्दानं बन्धनं गवाम् अत्र-सन्दान+इनि-+-डीप्] सन्तानिका [सम्+तन्+ण्वुल+टाप, इत्वम्] 1. फेन गोष्ठ, गोशाला। *. FREERIEEEEEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #1077 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1068 ) सन्दावः [सम् +दु+घञ] भगदड़, प्रत्यावर्तन। 102, (पाठान्तर), विक्रम 0 3 / 2 / सम० --- दोला सन्दाहः [सम् + दह+घन] जलन, उपभोग / अनिश्चिति का झूला, शंका की स्थिति, दुविधा, सन्दिग्ध (भू० क. कृ.) [सम् +दिह+क्त] 1. सना / असमंजस / हुआ, ढका हुआ 2. भ्रामक, सन्देहात्मक, अनिश्चित / सन्दोहः [सम् +दुह+घञ्] 1. दूध दुहना 2. किसी वस्तु --जैसा कि 'संदिग्ध मति-बुद्धि' में 3. भ्रान्त, की समष्टि, समुच्चय, ढेर, राशि, संघात कुन्दमाविह्वल-मा० 112 4. सशंक, प्रश्नास्पद 5. अव्य- कन्दमधुबिंदु सन्दोहवाहिना मारुतेनोत्ताम्यति मा० 3. भामि० 4 / 9 / जोखिम से भरा हुआ, असुरक्षित 7. विषाक्त / | सन्नावः [सम् + द्रु+घञ्] भगदड़, प्रत्यावर्तन / सन्दिष्ट (भू० क० कृ०)(सम् +दिश+क्त) 1. संकेतित, सन्धा[सम्+धा-अक+टाप] 1. मिलाप, साहचर्य इंगित किया हुआ 2. निर्दिष्ट 3. उक्त, वणित, सूचित 2. घनिष्ठ मेल, प्रगाढ़ संबंध 3. स्थिति, दशा 4. वादा, 4. वादा किया हुआ, प्रतिज्ञात,-ट: जिसे संदेश प्रतिज्ञा अनुबन्ध, सम्बिदा-- ततार सन्धामिव सत्यपहुँचाने का कार्य सौपा गया हो, संदेशवाहक, दूत, सन्धः रघु० 14152, महावीर० 78 5. सीमा, हल्कारा, संदिष्टार्थ, टम् सूचना, समाचार, खबर / हद 6. स्थिरता, स्थर्य 7. संध्या 8. मद्यसंधान / सन्दित (वि.) [सम्+दो+क्त बद्ध, शृंखलित, बेड़ी से सन्धानम [समघाल्यट] 1. मिलाना, जोडना 2. मेल, जकड़ा हुआ। संगम, सम्बन्ध-यदर्धे विच्छिन्नं भवति कृतसन्धानमिव सन्दी [ सम् +दो+ड+ङीष् ] खटोला, छोटी खाट, तत्-श०११९, कु०५।२७, रघु०१२।१०१ 3. मिश्रण, शय्याकुश। (औषधि-आदि का) सम्मिश्रण 4. पूनरुद्धार, जीर्णोद्धार सन्दीपन (वि०)(स्त्री०-नी) [सम्+दीप+णिच् + ल्युट] 5. ठीक बैठाना, जमाना (जैसे कि धनुष की डोरी 1. सुलगाने वाला, प्रज्वलित करने वाला, भड़काने पर बाण का साधना)-तत्साघुकृतसन्धान प्रतिसंहर वाला -उत्तर० 3 2. उद्दीपक उत्तर० ४,नः सायकम् श० 1111, शि० 2018 6. मंत्री, मेल, 1. कामदेव के पांच बाणों में से एक,-मम् 1. सुलगाना, दोस्ती, मेल-मिलाप .. मदघटवत्सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च प्रज्वलित करना 2. भड़काना, उद्दीप्त करना अनंग- दुर्जनो भवति हि०११९२ (यहाँ इसका अर्थ 'मिलाना सन्दीपनमाशु कुर्वते -ऋतु० 1112 / / या जोड़ना भी है) 7. जोड़, प्रन्थि - पादजङ्घयोः सन्दीप्त (भू० क० कृ०) [सम् +दीप+क्त] 1. सुलगाया सन्धाने गल्फः-सुश्रु० 8. अवधान 9. निदेशन 10. संभा हुआ, प्रज्वलित किया हुआ 2. उत्तेजित, उद्दीपित लना 11. (मदिरा का) आसवन 12. मदिरा या 3. भड़काया हुआ, उकसाया हुआ, प्रणोदित / उसका कोई भेद 13. पीने की इच्छा उत्तेजित करने. समुष्ट (भू० क० कृ.) [सम्+दुष+क्त] 1. कलुषित वाली चटपटी चीजें 14. अचार आदि बनाना 15. रक्त किया हुआ, मलिन किया हआ 2. दुष्ट, कमीना / / सावरोधक औषधियों के द्वारा त्वचा की सिकूडन सन्दूषणम् [सम्+दूष+णिच् + ल्युट] मलिन करना, भ्रष्ट 16. कांजी। करना, विषाक्त करना, खराब करना / सन्धानित (वि.) [सन्धान+इतच् ] 1. मिलाया हुआ, सम्वेशः [सम्+दिश्+घञ्] 1. सूचना, समाचार, खबर साथ साथ नत्थी किया हुआ 2. बांधा हुआ, कसा 2. संदेश, संवाद-सन्देशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषि हुआ। तस्य - मेघ० 7, 13, रघु० 12163, कु. 62 सन्धिः [सम्+धा+कि] 1. मेल, संगम, सम्मिश्रण, 3. आज्ञा, आदेश --अनुष्ठितो गुरोः संदेशः - श० 5 / सम्बन्ध-सन्धये सरला सूची वक्रा छेदाय कर्तरी सम० - अर्थः संदेश का विषय,-वाच संदेश,--हर: ----- सुभा०, मेघ० 58 2. संविदा, करार 3. मित्रता, 1. संदेशवाहक, दूत 2. दूत, राजदूत ! संघट्टन, मंत्री, मेल-मिलाप, सन्धिपत्र सुलहनामा सन्वेहः[सम्+दिह.+घञ्] 1. संशय, अनिश्चितता, शंका, (विदेशनीति में प्रयोज्य छ: उपायों में से एक) -अत्र कः सन्देहः 2. जोखिम, खतरा, डर.-जीवित- -- कति प्रकाराः सन्धीनां भवन्ति-हि० (हि. सन्देहदोलामारोपितः--का०, अर्थार्जने प्रवृत्तिः ससन्देहः 4 / 106--125 तक कई प्रकारों का वर्णन किया -हि० 13. (अलं० शा० में) इस नाम का एक है), शत्रूणां न हि संदध्यात्सुश्लिष्टेनापि सन्धिना अलंकार जिसमें दो पदार्थों की घनिष्ठ समानता के हि० 13884. जोड़, (शरीर का) सन्धान--तुरगानुकारण भ्रान्ति से एक वस्तु को अन्य वस्तु समझ लिया घावनकाण्डितसन्धेः-श० 2 5. (वस्त्र की) तह जाय (इस अलंकार को मम्मट तथा अन्य कुछ विद्वान 6. छेद, विवर, दरार 7. विशेषतया सुरंग, या सेंध जो 'ससंदेह' नाम से भी पुकारते हैं) ससन्देहस्तू भेदोक्तो चोर किसी मकान में घुसने के लिए बनाते हैं / तदनुक्तौ च संशय:-काव्य० 10, उदा० दे० मा० -वृक्षवाटिका परिसरे सन्धि कृत्वा प्रविष्टोऽस्मि मध्यम For Private and Personal Use Only Page #1078 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कम्-मृच्छ० 3, मनु० 9 / 276 8. पार्थक्य, प्रभाग | सन्ध्या सिन्धियत् +टाप, सम् +ध्ये+अ+टाप् वा] 9. (व्या० में) संहिता, उच्चारण की सुगमता के 1. मिलाप 2. जोड़, प्रभाग 3. प्रातः याः सायंकाल का लिए ध्वनिपरिवर्तन की प्रवृत्ति, वर्णविकार संधिवेला, झुटपुटा-अनुरागवती सन्ध्या दिवसस्तत्पुर10. अन्तराल, विश्राम 11. संकट काल 12. उपयुक्त स्सरः। अहो देवगतिश्चित्रा तथापि न समागमः अवसर 13. युगांत-काल 14. (ना० से) प्रभाग या --- काव्य०७4. प्रभात काल 5. सायंकाल, सांझ का जोड़ (यह संधियां गिनती में पांच हैं—सा० द. समय 6. युग का पूर्ववर्ती समय, दो यगों का मध्यवर्ती 330-332) कू० 791 15. भग, स्त्री की जन- काल, मनु० 1 / 69 7. प्रातः काल, मध्याह्न काल नेन्द्रिय / सम०- अक्षरम संयक्त स्वर संधिस्वर, तथा सायंकाल की ब्राह्मण द्वारा प्रार्थना--मनु०२।६९, (ए, ऐ, ओ, औ), चोर घर में सेंध लगाने वाला, 4193 8. प्रतिज्ञा, वादा, 9. हद, सीमा 10 चिन्तन, वह चोर जो घर में पाड़ लगाता है,-छेदः (दीवार मनन 11. एक प्रकार का फूल 12. एक नदी का आदि में) छिद्र या सूराख करना,-- जम् मादक मदिरा, नाम 13 ब्रह्मा की पत्नी का नाम / सम... अभ्रम् -जीवकः जो अधर्म की कमाई से जीवन- निर्वाह 1. सायंकालीन बादल (सूर्य की सुनहली आभा से करता है (विशेषतया जैसे कि दलाल) अर्थात् स्त्रियों युक्त)-- सन्ध्याभ्ररेखेव मुहूर्तरागा पंच० 1 / 194 को पुरुषों से मिला कर जीविका अर्जन करने वाला, 2. एक प्रकार की लाल खड़िया, गेरु,-काल: 1. संध्या -दूषणम् संधि या सुलह का भंग कर देना अरिषु का समय 2. सांझ,-नाटिन (पं०) शिव का विशेषण, हि विजयार्थिनः क्षितीशा विदघति सोपधि सन्धि- .-पुष्पी 1. एक प्रकार की चमेली 2. जायफल,-बल: दूषणानि-कि० ११४५,-बन्धः जोड़ों का ऊतक राक्षस,- रागः सिंदूर, रामः (कई विद्वान् यहाँ -श०२,-बन्धनम् स्नाय, कण्डरा, शिरा,--भङ्गः,- 'आराम' शब्द को रखते हैं) ब्रह्मा का विशषण, मुक्तिः (स्त्री०) किसी जोड़ का संबंध टूट जाना, -वन्दनम् प्रातःकाल और संध्या काल की प्रार्थना। --विग्रह (पु०, द्वि० व०) शान्ति और युद्ध अधि सन्न (भू० क० कु.) [सद्+क्त] 1. बैठा हुआ, आसीन, कारः बिदेश विभाग का मन्त्रालय, -विचक्षणः संधि _लेटी हुआ 2. खिन्न, दुःखी, उदास 3. म्लान, विश्रान्त की बातचीच करने में निपुण,-विद (0) संधि की 4. दुर्बल, निश्शक्त, कमजोर 5. क्षीण, छीजा हुआ बातचीत करने वाला, वेला 1. संध्या काल 2. कोई 6. नष्ट, लुप्त 7. स्थिर, गतिहीन 8. सिकुड़ा हुआ भी संधिकाल,-हारक: घर में सेंध लगाने वाला। 9. सटा हुआ, निकटस्थ,-नः पियाल नामक वृक्ष, सन्धिकः [सन्धि+कन एक प्रकार का ज्वर / चिरौंजी का पेड़, म थोड़ा सा, अल्पयात्रा। सन्धिका सन्धिक+टाप्] (मदिरा का) आसवन / सन्नक (वि.) [सन्न+कन नाटा, छोटेक़द का। सम. सन्धित (वि.) [सन्धा- इतच] 1. मिलाया हआ, जोड़ा | -तुः पियालवृक्ष / हुआ 2. बद्ध, कसा हुआ 3. समाहित, पुनर्मिलित, | समत (भू० क० कृ०) [सम्+नम्+क्त] 1. झुका हुआ, मित्रता में आबद्ध 4. स्थिर किया हुआ, ठीक बैठाया नतांग या प्रवण 2. उदास 3. सिकुड़ा हुआ। हुआ 5. आपस में मिलाया हआ 6. अचार डाला | सनतर (वि.) [सन्न+तरप्] अपेक्षाकृत धीमा, विषण्ण हुआ, प्ररक्षित,- तम् 1. अचार 2. मदिरा। (जैसे कि स्वर)। सन्धिनी सिन्धा+इनि+डीप] / गर्माई हई गाय (या तो सन्नतिः (स्त्री०) [सम्+नम् -क्तिन्] 1. अभिवादन, सांड से संयुक्त, या उसके द्वारा गाभिन गाय) सादर प्रणाम, सम्मान 2. विनम्रता 3. एक प्रकार 2. असमय दुही जाने वाली गाय / / का यज्ञ 4. ध्वनि, कोलाहल / सन्धिला सन्धि ला+क+टाप] 1. भीत में किया हुआ | सन्नड (भू० क. कृ.) [सम् + नह+क्त] 1. एक साथ छिद्र, गड्ढा, विवर 2. नदी 3. मदिरा। मिलाकर कटिबद्ध 2. कवचित, सुसज्जित, वख्तरवंद सन्धुक्षणम् सम् +धुश् + ल्युट] 1. सुलगना,प्रज्वलित होना 3. व्यवस्थित, तैयार, युद्धके लिए उद्यत, शस्त्रास्त्र से 2. उत्तेजित करना, उद्दीपन / पूर्णतः सुसज्जित, नवजलघरः सन्नद्धोऽयं न दृप्तनिशासन्धुक्षित (भू.क.कृ.) [सम् Fधुश्+क्त] सुलगा हुआ, चरः .. विक्रम० 411, मेघ० 8 4. तत्पर, उद्यत, प्रज्वलित, भभकाया हुआ। निर्मित, सुव्यवस्थित-कूसममिव लोभनीयं यौवनसन्धेय (वि.) [सम+बा+यत] 1. मिलाये जाने या जोडे मङ्गेषु सन्नद्धम् -श० 1121 6. किसी भी वस्तु से जाने के योग्य 2. पूनर्मिलित होने के योग्य--सुजनस्तु युक्त 7. घातक 8. नितान्त संलग्न, सीमावर्ती, निककनकघटवद् दुर्भेद्यश्चाशुसन्धेय:--हि. 192 टस्थ / सन्नयः[सम्+नी+अच्] 1. संचय, समुच्चय, परिमाण, लगाया जा सके। संख्या 2. पृष्ठभाग, (किसी सेना का) पृष्ठभाग / For Private and Personal Use Only Page #1079 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1070 ) सन्नहनम् [सम् +नह + ल्युट्] 1. तैयार होना, सन्नद्ध | सनियोगः [ सम् +नि+युज्+घञ्] 1. मेल, अनुराग होना, शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होना 2. तैयारी 2. नियुक्ति / / 3. कस कर बांधना 4. उद्योग, प्रयत्न सन्निरोधः[सम्+नि-+रुध+घा ] अड़चन, रुकावट / सन्नाहः सम् +नह+घञ] 1. आपने आपको शस्त्रास्त्र | सन्निवृत्तिः (स्त्री.) [सम् +नि+वृत्+क्तिन् ] 1. वापसी से सुसज्जित करना, युद्ध के लिए तैयार होना, कवच -श०६।१०, रघु० 8 / 49, 10 / 27 2. हटना रुकना पहनना 2. युद्ध जैसी तैयारी, सुसज्जा 3. कवच, 3. निग्रह, सहिष्णुता। बस्तर अस्मिन्कलौ खलोत्सृष्टदुष्टवाग्बाणदारण / सनिवेशः [सम्+नि+विश्+घञ्] 1. गहरी पैठ, कथं जीवेज्जगन्न स्यः सन्नाहा: सज्जना यदि ...कीर्ति० / उत्कट भक्ति या अनुराग, संलग्नता 2. संचय, 1136, कि० 16 / 12 / / समुच्चय, संघात 3. मेल, मिलाप, व्यवस्था - रमणीय सत्राह्यः [सम्+नह +ण्यत् ] युद्ध का हाथी। -एष वः सुमनसां सन्निवेशः मा० 119 4. स्थान, सन्निकर्षः [सम् +नि- कृष् +घञ्] 1. निकट खींचना, जगह, स्थिति, अवस्था--कु०७।२५, रघु० 6 / 19 -समीप लाना, 2. पड़ोस, सामीप्य, उपस्थित-उत्क- 5. पड़ोस, सामोप्य 6. रूप, आकृति--उद्दामशरीर पठते च युष्मत्सन्निकर्षस्य-उत्तर०६, 3 / 74, रघु० सन्निवेशः मा०३, निर्माणसन्निवेश:-का07. झोपड़ी, 78, 6.10 3. संबंध, रिस्तेदारी 4. (न्याय० में) रहने की जगह,--रघु० 14176 8. उपयुक्तस्थानों पर इंद्रिय का विषय से संबंध, (यह छ: प्रकार का है)। आसन देना, बिठाना-क्रियतां समाजसन्निवेश:-उत्तर० सनिकर्षणम् [सम्+नि+कृष् + ल्युट] 1. निकट लाना 71. बीच में रखना 10. नगर के निकट खुला मैदान 2. पहुँचना, समीप जाना 3. सामीप्य, पड़ोस / जहाँ लोग मनोरंजन, व्यायाम आदि के लिए एकत्र सनिकृष्ट (भू० क. कृ.) [सम् +नि+कृष् + क्त] | होते हैं। 1. समीप आया हुआ 2. समीपवर्ती, सटा हुआ, विक- सन्निहित (भू० क. कृ.) [सम्-+-नि-+धा+क्त] टस्थ,--ष्टम् सामीप्य, पड़ोस / 1. निकट रक्खा गया, पास पड़ा हुआ, निकटस्थ, सन्निचयः [सम् --नि-+-चि+अच्] संग्रह, संचय / सटा हुआ, पड़ौस का ---श० 42. निकट, समीप, सन्निधातु (पुं०)[सम् +नि-धा-तच ] 1. निकट लाने नजदीक 3. उपस्थित-अपि सन्निहितोऽत्र कुलपति:-श० वाला 2. जमा करने वाला 3. चोरी का माल लेने 1, हृदयसन्निहिते-श० 3 / 20 4. जमाया हुआ, वाला-- मनु० 9 / 278 4. न्यायालय में लोगों का रक्खा हुआ, जमा किया हुआ 5. उद्यत, तत्पर परिचय कराने वाला अधिकारी। मुद्रा०१6. ठहरा हुआ, अन्तर्वर्ती / सम०-अपाय सनिधानम्, सन्निधिः [सम्+निधा+ल्युट, कि वा ] (वि.) जिसका विनाश निकट ही हो, क्षणभंगर 1. मिलाकर रखना, साथ साथ रखना 2. सामीप्य, नश्वर, अस्थायी कायः सन्निहितापाय:-पंच० पड़ीस, उपस्थिति-नै० 2153 3. दृष्टिगोचरता 2 / 177 / दर्शन 4. आधार 5. ग्रहण करना, कार्य भार लेना, सन्न्यसनम् सम् +नि+अप्+ल्युट] 1. त्याग, (हथियार) 6. सम्मिश्रण, समष्टि / डाल देना 2. पूर्णवैराग्य, विरक्ति न च सन्न्यसनादेव सन्निपातः[सम्---मि-+पत्+घञ ] 1. नीचे गिरना, / सिद्धिं समधिगच्छति .. भग० 3 / 4 3. सौंपना, सुपूर्द उतरना, नीचे आना 2. एक साथ गिरना, मिलना, करना। -कि० 13158 3. टक्कर, संपर्क . मेल, संगम, सन्न्यस्त (भू० क. कृ.) / सम् +-नि+3 सम्मिश्रण, मिथण, विविध संचय धमज्योतिः सलिल 1. डाला हुआ, नीचे रक्खा हुआ 2. जमा किया हआ मरुतां सन्निपातः क्व मेघः-मेघ०५६. संघात, संग्रह, 3. सौंपा हुआ, सुपुर्द किया हुआ 4. एक ओर डाला, समच्चय, संख्या -नानारत्नज्योतिषां सन्निपातः कू० छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ। 13 6. आना, पहुँचना 7. (वात, पित्त कफ) तीनों / सन्यासः [सम्+नि+अस+घञ] 1. छोड़ना, त्याग दोपों का एक साथ बिगड़ना जिससे कि विषम ज्वर करना 2. सांसारिक विषयों तथा अनुरागों से पूर्ण हो जाता है 8. संगीत में एक प्रकार का समय, ताल / वैराग्य, सांसारिक वासनाओं का परित्याग, भग० सम---ज्वरः तीनों दोषों के बिगड़ जाने पर उत्पन्न 612, 1802, मनु० 11114, 5 / 108 3. धरोहर, होने वाला भीषण ज्वर / / निक्षेप 4. खेल में शतं लगाना 5. शरीर त्यागना, सन्निबन्धः [सम्+नि- बन्ध+घञ ] 1. कस कर बांधना मृत्यु 6. जटामांसी, बालछड़। 2. संबंध, आसक्ति 3. प्रभावकारिता / सन्न्यासिन् (पुं०) [सम्+नि अस+णिनि ] 1. जो सन्निभ (वि.) [सम्+नि+भा-क] समान, सदृश, त्याग देता और जमा कर देता है 2. जो संसार और (समास के अन्त में प्रयुक्त) ऋतु० 1111 / इसकी आसक्तियों का पूर्णत: त्याग कर देता है, For Private and Personal Use Only Page #1080 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मी, पक्षपाता, तर्क० सप्तम से। ( 1071 ) वैरागी, चौथे आश्रम में स्थित ब्राह्मण-ज्ञेयः स : बहुधा मृत्यु से बारहवें दिन ही किया जाने लगा नित्यसन्यासी यो न द्वेष्टि न कांक्षति - भग० 5 / 3 / / 3. भोजन का त्याग करने वाला, त्यक्ताहार, सपीतिः (स्त्री०) [ सह एकत्र पीतिः पानम्-पा+क्तिन् ] __~~भट्टि० 776 / साथ साथ पीना, मिलकर पीना, सहपान / सप् (भ्वा० पर० सपति) 1. सम्मान करना, पूजा करना | सप्तक (वि.) (स्त्री-का, की) [ सप्तानां समूहः 2. संबंध जोड़ना। सप्तन-कन् ] 1. जिसमें सात सम्मिलित हों 2. सात सपक्ष (वि.) [सह पक्षेण-व० स०] 1. पंखों वाला, 3. सातवां,--कम् सात वस्तुओं का संग्रह (कविता डैनों वाला 2. पक्षवाला, दलवाला 3. एक ही पक्ष आदि का)। या दल का 4. बन्धु, समान, सदृश--(आलं.) दलद्- सप्तकी ( सप्तभिः स्वरः इव कायति शब्दायते -- सप्तन् द्राक्षानियंद्रसभरसपक्षा भणितयः—भामि० 2 / 77 +के+क+डोष स्त्री की करधनी या तगड़ी। 5. जिसमें अनुमान का पक्ष या साध्य विषय विद्यमान ! सप्ततिः (स्त्री०) [सप्तगणिता दशतिः- नि०] सत्तर, हो, क्षः 1. समर्थक, अनुगामी, पक्षपाती, हिमायती तम् (दि०) सत्तरवाँ / 2. सजातीय, रिश्तेदार-मालवि० 4 3. (तर्क० | सप्तधा (अव्य०) [सप्तन्+घाच् ] सात गुण, सात में) साध्यपक्ष का दृष्टांत, समान उदाहरण-निश्चित- प्रकार से। साध्यवान् सपक्षः / तर्क०।। सप्तन् (सं० वि० [सदैव बहुवचनान्त-कर्त० व कर्म० सप्त सपत्नः [ सह एकार्थे पतति पत्+न, सहस्य सः] श: [सप्+तनिन् सात। सम० अङ्ग (वि.) दे० विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी-रघु० 98 / नी० सप्तप्रकृति, अचिस् (वि.) 1. सात जिह्वा या सपत्नी [ समानः पतिः यस्याः ब० स० डीप, न आदेशः लो वाला 2. बुरी आंख वाला, अशभ दृष्टि वाला, 1. प्रतिद्वन्द्वी या सहपत्नी, प्रतिद्वन्द्वी गृहिणी, सोत (पुं०) 1. अग्नि 2. शनि, अशीतिः (स्त्री० सतासी, (एक ही पति की दूसरी पली)--दिशः सपन्नी भव -अश्रम् सतकोन, अश्वः सूर्य,-.-'वाहनः सूर्य,-अहः दक्षिणस्याः रघु०६।६३, 14186 / मात दिन अर्थात् एक हप्ता, आत्मन् (पुं०) ब्रह्म सपत्नीक (वि.) [ सपत्नी+कप्] पत्नी सहित।। का विशेषण,- ऋषि (सप्तर्षि) (पुं० ब० द.) सपत्राकरणम् [ सह पत्रेण सपत्र+डाच्+कृ---ल्युट ] 1. सात ऋषि, अर्थात् मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, 1. इस प्रकार बाण मारना जिससे कि बाण का पुख- पुलह, ऋतु और वसिष्ठ 2. सप्तर्षि नामक नक्षत्रपुंज दार भाग शरीर में घुस जाय 2. अत्यंत पीडाकारक (सात तारों का समूह जो उपर्युक्त सात ऋषि कहे -तु० निष्पत्राकरण / / जाते है), - चत्वारिंशत् (स्त्री०) सैतालिस,--जिह्वः, सपत्राकृतिः (स्त्री०) [सपत्र+डाच्+-+क्तिन् ] ----ज्यालः आग,---तन्तुः यज्ञ शि० 1416, त्रिशत् वेदना, पीडा, अत्यंत कष्ट या सन्ताप / (स्त्री०) सैंतीस,-वशन वि०) सत्रह,-दीधितिः अग्नि सपदि (अव्य०) [ सह ।-पद्+इन्, सहस्य सः] तुरन्त, * द्वीपा पृथ्वी का विशेषण, धातु (पुं० ब० व०) क्षण भर में, फौरन, तत्काल सपदि मदनानलो शरीर के संघटक सात मूलतत्त्व अर्थात् अन्नरस, दहति मम मानसस् गीत० 10, कु० 3176, 6 / 4 / रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा, वीर्य, नवतिः सपर्या [ सपर+या+अ+टाप्] 1. पूजा, अर्चना, (स्त्री०) सत्तानवे,--नाडीचक्रम् ज्योतिष का एक सम्मान--सोऽहं सपर्याविधिभाजनेन-रषु० 5 / 22, रेखाचित्र जिसके द्वारा वर्षाविषयक भविष्यकथन 2 / 22, 11 // 35, 13146, शि. 1114 2. सेवा, किया जाता है,-पर्णः ( इसी प्रकार सप्तच्छदः, परिचर्या / सप्तपत्रः ) एक वृक्ष का नाम, पदी विवाह में सात सपाव (वि०) [ सहपादेन-ब० स०] 1. परों वाला | पग चलना (दूल्हा और दुलहिन विवाह संस्कार के 2. एक चौथाई बढ़ा हुआ। अवसर पर सात पग मिलकर चलते हैं--इसके बाद सपिण्डः [ समानः पिंडो मूलपुरुषों निवापो वा यस्य --ब० विवाहसम्बन्ध अटूट हो जाता है), प्रकृतिः (स्त्री० स०] समान पितरों को पिंडदान देने वाला, एक ब० व०) राज्य के सात संघटक अंग--स्वाम्यमात्यसमान पितरों को पिण्डदान देने के कारण संबंधी, सुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च अमर०, दे० 'प्रकृति' भी, बन्धु याज्ञ० 1152, मनु०२।२४७, 5159 / ------भवः सिरस का पेड़, भूमिक, भौम (वि०) सपिण्डीकरणम् सपिण्ड -च्चि++ल्युट ] समान पितरों सातमंजिल ऊँचा (जैसे कि महल), रात्रम् सात के सम्मान में किया जाने वाला विशेष श्राद्ध का रात का समय, विंशतिः (स्त्री०) सत्ताइस, विध अनुष्ठान, (यह श्राद्ध किसी बन्धबांधव की मृत्यु के (वि०) सातगुना, सात प्रकार का,-शतम् 1. सात एक वर्ष पश्चात् किया जाता है, परन्तु आजकल | सौ 2. एक सौ सात, (तो) सात सौ श्लोकों का संग्रह, For Private and Personal Use Only Page #1081 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1072 ) सप्तिः सूर्य का विशेषण- सर्वैरुस्रः समग्रेस्त्वमिव / सभाज् (चुरा० उभ० सभाजयति--ते) 1. अभिवादन नपगणर्दीप्यते सप्तसप्ति:-मालवि० 2 / 13 / करना, प्रणाम करना, नमस्कार करना, श्रद्धांजलि सप्तम (वि०) (स्त्री०-मी) [सप्तानां पूरणः .. सप्तन् / अर्पित करना, बधाई देना-- स्नेहात्सभाजयितुमेत्य, +डट, मद] सातवां, मी (स्त्री०) 1. सातवीं --- उत्तर० 17, शि० 13 / 14, श० 5 2. सम्मान विभक्ति (व्या० में) अधिकरण कारक 2. चान्द्रवर्ष करना, पूजा करना, आदर करना 3. प्रसन्न करना, के किसी पक्ष का सातवां दिन / तृप्त करना 4. सुन्दर बनाना, अलंकृत करना, सजाना सप्तला (स्त्री०) एक प्रकार की चमेली। -उत्तर० 4 / 19 5. प्रदर्शन करना। सप्तिः [सप् +-ति] 1. जुआ 2. घोड़ा-जवो हि सप्तः | सभाजनम् [ सभाज्+ल्युट ] 1. (क) प्रणाम करना, परमं विभूषणम् ----सुभा०-दे० 'सप्तसप्ति' भी। अभिवादन करना, सम्मानित करना, पूजा करना सप्रणय (वि०)[सह प्रणयेन ...ब० स०] स्नेही, मित्रतापूर्ण / -शि० 13 / 14 (ख) स्वागत करना, बधाई देना सप्रत्यय (वि०) [प्रत्ययेन सह -ब० स०] 1. विश्वास ----रघु० 13143, 14 / 18 2. शिष्टता, शिष्टाचार, रखने वाला 2. निश्चित, विश्वस्त / विनम्रता 3. सेवा। सफर:-री [सप् +अरन्, पुषो० पस्य फ:] छोटी चमकीली | सभावनः [ सह भावनेन-ब० स० 1 शिव का नाम / मछली - तु० 'शफर'। सभि (भी)क: [[ सभा द्यूतं प्रयोजनमस्य-ईक ] जुए सफल (वि.) [सहफलेन ब० स०] 1. फलों से पूर्ण, का अड्डा चलाने वाला, जुआ खेलाने वाला,---अयम- फल देने वाला, उपजाऊ (आलं० से भी) 2. सम्पन्न, / स्माकं पूर्वसभिको माथुर इत एवागच्छनि-मृच्छ० पूरा किया गया, कामयाब / 3, याज्ञ० 20139 / सबन्धु (वि०) सह बन्धना-ब. स.] 1. जिसके साथ | सभ्य (वि.) [सभायां साधु:-यत् ] 1. सभा से संबंध निकट सम्बन्ध हो 2. मित्रयक्त, मित्रता के सूत्र में रखने वाला 2. समाज के योग्य 3. संस्कृत, परिष्कृत, बंधा हुआ, धुः रिश्तेदार, बन्धु-बांधव / विनीत 4. सुशील, विनम्र, शिष्ट-रघु० 1155, कु० सबलिः [सहबलिना ब. स.] सांध्यकालीन झुटपुटा, 7 / 29 5. विश्वस्त, विश्वसनीय, ईमानदार,-भ्यः गोधूलिवेला। 1. मूल्यनिदर्शक 2. सभासद 3. संमानित कुल में सबाष (वि.) [सह बाधया ब० स०] 1. आघातपूर्ण उत्पन्न 4. जुआ-खाने का संचालक 5. द्यूतगृह के 2. पीडादायक / संचालक का सेवक। सब्रह्मचर्यम् (समानं ब्रह्मचर्यम सहस्य सः] सहपाठिता | सभ्यता त्वम् [ सभ्य+तल+-टाप, त्व वा ] विनम्रता, (एक ही गुरु के शिष्य होने के कारण)। सुशीलता, कुलीनता। सब्रह्मचारिन् (पुं० [समानं ब्रह्म वेदग्रहणकालीनं व्रतं | सम् (भ्वा० पर० समति) 1. विक्षुब्ध या अव्यवस्थित चरति चर+णिनि, समानस्य सः] 1. सहपाठी (समान होना 2. विक्षुब्ध या अव्यवस्थित न होना। अध्ययन या समान साधना करने वाला) 2. सहभोगी, ii (चुरा० उभ० समयति--ते) विक्षुब्ध होना। सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति-दुःखसब्रह्मचारिणी | सम् (अव्य.) [ सो+डम ] धातु या कृदन्त शब्दों से पूर्व तरलिका क्व गता - का०, हे व्यसनसब्रह्मचारिन् उपसर्ग के रूप में लग कर इसका निम्नांकित अर्थ है यदि न गुह्यं ततः श्रोतुमिच्छामि-मुद्रा० 6 / (क) के साथ मिल कर, साथ साथ यथा संगम, सभा [ सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गहे] संभाषण, संघा, संयुज आदि में (ख) कभी कभी यह 1. जलसा, परिषद्, गुप्तसभा-पण्डितसभा कारित- धातु के अर्थ को प्रकट कर देता है, और इसका अर्थ वान् —पंच०१, न सा सभा यत्र न सन्ति बद्धाः होता है 1. बहुत, बिल्कुल, खूब, पूर्णतः, अत्यन्त --हि. 1 2. समिति, समाज, सम्मिलन, बड़ी -यथा संतुष, संतोष, संन्यस, संन्यास, संताप आदि संख्या 3. परिषद्-कक्ष, या सभा भवन 4. न्यायालय 2. समास में संज्ञा शब्दों के पूर्व प्रयुक्त होकर इसका 5. सार्वजनिक जलसा 6. जुआ खाना 7. कोई भी अर्थ है की भाँति, समान, एक जैसा यथा 'समर्थ' में स्थान जहाँ लोग प्रायः आते जाते हों। सम० 3. कभी कभी इसका अर्थ होता है—निकट, पूर्व, जैसा आस्तारः 1 सभा में सहायक 2. सभासद्,--पतिः कि 'समक्ष' में। सभा का अध्यक्ष, सभापति 2. जुए का अड्डा चलाने सम (वि.) [सम् +अच् ] 1. वही, समरूप 2. समान, वाला,-पूजा दर्शकों के प्रति सम्मान प्रदर्शन, सद् जैसा कि 'समलोष्टकांचन:' में रघु० 8121, भग० (पुं०)1.किसी सभा या जलसे में सहायक 2. सभा- 238 3. के समान, वैसा ही, मिलता-जुलता, करण० सद्, मेम्बर, 3. अदालत की पंचायत का सदस्य, जरी या संबंध के साथ अथवा समास में,-गणयक्तो दरिका सदस्य / द्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः-सुभा०-कु० 3 / 13, 23. For Private and Personal Use Only Page #1082 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1073 ) रिणाशन एक समा 31 4. समान, समतल चौरस-समदेशवर्तिनस्ते न दुरा- में) मुख्य खड़ी रेखा,-मय (वि०) एक समान मूल सदो भविष्यति---श०१ 5. समसंख्या, 6. निष्पक्ष, वाले, रंजित (वि०) हलके रंग वाला,-रंभः एक न्याययक्त 7. न्यायोचित, ईमानदार, खरा 8. भला, प्रकार का रतिबंध, रेख (वि.) सीधा, * प्रकृत्या सद्गुण संपन्न 9. सामान्य, मामली 10 मध्यवर्ती, यद्वकं तदपि समरेखं नयनयो:--श० 219, लम्बः बीच का 11.सीधा 12. उपयुक्त सुविधाजनक 13.तटस्थ, -बम् विषम चतुर्भुज, वर्णः एक ही जाति का, अचल, निरावेश 14. सब, प्रत्येक 15. सारा, पूर्ण, ~-वतिन् (वि०) सममनस्क, पक्षपातरहित (पुं०) समस्त, पूरा,-मम् समतल मैदान, चौरस देश कि० मृत्यु का देवता, यमराज, वृत्तम् 1. वह छंद जिसके ९।११,-मम् (अव्य०) 1. से, के साथ, मिलकर, चारों चरण समान हों 2. दे० 'सममंडल',-वृत्ति सहित, (करण के साथ) आहो निवत्स्यति समं (वि०) धीर, गंभीर,-वेधः बीचू के दर्जे की गहराई, हरिणाङ्गनाभिः--श० 1427, रघु० 2 / 25, 8 / 63, ...शोधनम् समीकरण के प्रश्नों में एक सी राशि का 16172 2. एक समान--यथा सर्वाणि भूतानि धरा दोनों ओर घटाना, समव्यवकलन, सन्धिः एक समान धारयते समम् मनु० 9 / 311 3. के समान, इसी शों पर शान्तिस्थापन, सप्तिः (स्त्री०) विश्वनिद्रा प्रकार, इसी रीति से-पंच० 1178 4. पूर्णतः (कल्पान्त के अवसर पर समस्त चराचर चिरनिद्रा 5. यगपत, एकही साथ, सब मिल कर, उसी समय, में विलीन हो जाते हैं),-स्थ (वि०) 1. बराबर, साथ साथ-नवं पयो यत्र घनर्मया च त्वद्विप्रयोगाश्रु सम एक रूप का 2. समतल, हमवार 3. समान,--स्थलम् विसृष्टम्-रघु० 13 / 26, 414, 10 / 60, 14 / 1 / समतल भूमि / सम-अंशः समान भाग, हारिन (पुं०) सहदाय- | समक्ष (वि०) [अक्ष्णोः समीपम् समक्ष-अच ] आँखों भागी, --- अन्तर (वि०) समानान्तर,-आचार 1. समान | के सामने मौजद, दर्शनीय, वर्तमान,-क्षम् (अव्य०) या एक जैसा आचरण 2. उचित व्यवहार, उदकम् की उपस्थिति में, देखते देखते, आँखों के सामने आघा दही और आधा पानी मिलाकर बनाई गई | -कु० 5 / 1 / छाछ, मट्ठा,---उपमा उपमा अलंकार का एक भेद, | समग्र (वि.) [ समं सकलं यथा स्यात्तथागृह्यते--सम् .... कन्या योग्य या उपयुक्त कन्या (विवाह के योग्य), +ग्रह+ड ] सब, पूर्ण, समस्त, पूरा-मालवि० - कर्णः ऐसा चतुष्कोण जिसके कर्ण एक समान हों, 2 / 13 / -~-काल: वही समय या क्षण, लम् (अव्य०) उसी | समा [सम् +अ +घ--टाप] मंजिष्ठा, मजीठ / समय, युगपत, कालीन (वि०) समवयस्क, समसाम- समजः [सम् +अ + अप्] 1. पशुओं का झुण्ड, पक्षियों यिक, कोल: सर्प, साँप, क्षेत्रम् (ज्योतिः० में) का गोल, लहंडा, रेबड़ 2. मुखों की संख्या,.. जम् नक्षत्रों के एक विशेषक्रम का विशेषण, खातः समान जंगल, अरण्य / खदाई, समानान्तर चतुर्भुजों से बनी हुई आकृति, समज्या [सम् / अज्+क्यप्-+टाप्] 1. सम्मिलन, सभा गन्धकः एक जैसे पदार्थों से बना धूप, चतुरन 2. ख्याति, यश, कीर्ति / (वि.) वर्ग, (सम्) समभुज चतुष्कोण,-चतुर्भुजः, समञ्जस (वि.) [सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब० स०] -जम् विषमकोण समचतुर्भुज,--चित्त (वि.) 1. उचित, तर्कसंगत, ठीक, योग्य 2. सही, सच, 1. सममनस्क, एक समान, प्रशान्तचित्त 2. उदासीन, यथार्थ 3. स्पष्ट, बोधगम्य जैसा कि 'असमञ्जस', ----छेद,-छेदन (वि०) वह भिन्न जिनके हर समान सद्गुणसंपन्न, भला, न्यायोचित,-भृशाधिरूवस्य हों, जाति (वि०) समान जाति या वर्ग का,-ज्ञा समजसं जनम् कि० 10 // 12 5. अभ्यस्त, अनुभूत ख्याति,-त्रिभुजः, -,जम् समभुज त्रिकोण, दर्शन 6. स्वस्थ, सम् 1. औचित्य, योग्यता 2. यथार्थता -दशिन (वि०) समान रूप से देखने वाला, निष्पक्ष, 3. सच्ची गवाही। -विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि, शुनि चैव | समता,---स्वम् सिमतल+टाप, त्व वा] 1. एकसापन, श्वपाके च पण्डिताः समशिनः-भग० 5 / 17, दुःख एकरूपता 2. समानता, एक जैसापन 3. बराबरी (वि०) दूसरों के दुःख को अपने जैसा दुःख समझने 2. निष्पक्षता, न्याय्यता, समता नी, समान व्यवहार वाला, (दूसरों से) सहानुभति रखने वाला, दुःख में करना मनु० 94218 5. सन्तुलन 6. पूर्णता साथी, कु. 4 / 4, °सुख (वि०) सुख और दुःख 7. सामान्यता 8. समानता। का साथी -श० 3 / 12, दश -दृष्टि (वि.) | समतिक्रमः सम् +अति+क्रम+घञ] उल्लंघन, भूल / पक्षपातरहित, -बुद्धि (वि.) 1. निष्पक्ष 2. तटस्थ, समतीत (वि.) [सम् -|-अति+इ.+क्त] बीता हुआ, निःसंग, - भाव (वि.) एक-सी प्रकृति या गुण रखने गया हुआ---रघु० 8178 / वाला, (वः) समानता, तुल्यता, -मण्डलम् (ज्यो० / समद (वि.) [सह मदेन--ब० स०] 1. नशे में चूर, ******** For Private and Personal Use Only Page #1083 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1074 ) भीषण 2. मद के कारण मस्त 3. प्रणयोन्मत्त,-उत्तर कु० 3 / 25 4. करार, समझौता, संविदा, पहले से 2 / 20 / ‘किया गया ठहराव मिथः समयात्-श० 5 समषिक (वि.) [सम्यक् अधिक:-प्रा० स०] 1. अतिशय 5. रूढ़ि, प्रथा 6, चालचलन का संस्थापित नियम, 2. अत्यंत अधिक, पुष्कल, बहुत अधिक ---उत्तर० संस्कार, लोकप्रचलन कि० 1128, उत्तर० 1 4, कम् (अव्य०) अत्यंत, अधिकता के साथ / 7. कवियों का अभिसमय (उदा० बादलों के दर्शन समधिगमनम् [सम् + अधि+गम् + ल्युट] आगे बढ़ जाना, से प्रेमी और प्रेमिका का वियोग हो जाता है) पार कर लेना, जीत लेना / 8. नियक्ति, स्थिरीकरण 9. अनबंध, शर्त--विक्रम०५ समध्य (वि.) [समानः अध्वा यस्य-ब० स०] साथ 10. कानून, नियम, विनियम याज्ञ० 3.19 यात्रा करने वाला। 11. निदेश, आदेश, निर्देश, विधि 12. आपत्काल, समनज्ञानम् [सम+अनु+ज्ञा+ल्यट] 1. हामी भरना, संकटकाल 13. शपथ 14. संकेत, इंगित, इशारा स्वीकृति देना 2. पूर्ण अनुमति, पूरी सहमति / 15. सीमा, हद 16. प्रदर्शित उपसंहार, सिद्धांत, समन्त (वि.) (सम्यक अन्तो यत्र ब० स०] 1. हर दिशा मतवाद-बौद्ध, वैशेषिक° 17. अन्त, उपसंहार, में मौजूद, विश्वव्यापी 2. पूर्ण, समस्त, तः सीमा, समाप्ति 18. सफलता, समृद्धि 19. कष्ट का अन्त / हद, मर्यादा (समन्तम्, समन्ततः, समन्तात् क्रिया सम-अध्युषितम् ऐसा समय जब कि न सूर्य दिखाई विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ देता है न तारे अनुवतिन् (वि०) मानी हुई प्रथा प्रकट करते हैं 'सब ओर से' 'चहँओर' 'सब ओर' का पालन करने वाला,--अनुसारेण, उचितम् पूर्णरूप से, 'पूरी तरह से। सम० दुग्धा थूहर, स्नुही, (अव्य०) अवसर के अनकल जैसा मौक़ा हो,-आचारः ---पञ्चकम् कुरुक्षेत्र या उसके निकट का प्रदेश-वेणी० लोकप्रचलित चलन, मानो हुई प्रथा, क्रिया करार 6, भद्रः बुद्ध भगवान्,-- भुज (पुं०) आग / करना,-परिरक्षणम् किसी समझौते का पालन करना, समस्यु (वि.) [सह मन्युना ब० स०] 1. शोकाकुल सन्धि या करार-न समयपरिरक्षणं क्षमते-कि० 2. रोषपूर्ण, रुष्ट / 1145,--- व्यभिचारः प्रतिज्ञा तोड़ना, ठेके का उल्लघंन समन्वयः [सम्+अनु-+इ+अच] 1. नियमित परंपरा या भंग,- व्यभिचारिन् (वि०) प्रतिज्ञा या वचन या क्रम 2. संबद्ध अनुक्रम, पारस्परिक सम्बन्ध, भंग करने वाला। तात्पर्य, तत्तु समन्वयात्- ब्रह्म० 1 / 114, न च समया (अव्य.) [सम् + इ ! आ ] 1. ठीक, ऋतु के तद्गतानां पदानां ब्रह्मस्वरूपविषये निश्चिते समन्वये। अनुकूल, ठीक समय पर 2. निश्चित समय पर 3. बीच ऽर्थान्तरकल्पना युक्ता शारी० 3. संयोग / में, के अन्दर, (दो के) बीच में 4. निकट (कर्म के समन्वित (भू० क. कृ०) [सम्+अभि-प्लु+क्त] साथ) समया सौधभित्तिम्-दश०, शि०६।७३, 1. संबद्ध, प्राकृतिक क्रम में आबद्ध 2. अनुगत 1519, नल० 4 / 8 / 3. सहित, युक्त, भरा हुआ . ग्रस्त / समरः, रम् [ सम् - ऋ+अप् ] संग्राम, युद्ध, लड़ाई, समभिप्लुत (भू० क० कृ०) सिम् + अभि+प्लु+क्त] --कर्णादयोऽपि समरात्पराङमुखीभवन्ति वेणी०३ / 1. बाढ़ग्रस्त 2. ग्रहण ग्रस्त / सम० उद्देशः,-भूमिः रणक्षेत्र, मूर्धन् (पुं०) समभिव्याहारः [सम्+अभि+वि+आ+ह+घा] ---शिरस् (नपुं०) युद्ध का अग्रभाग / 1. मिलाकर उल्लेख करना 2. साहचर्य, साथ 3. शब्द समर्चनम् [ सम् +अर्च+ल्युट ] पूजा, अर्चना, आराधना। का साहचर्य या सामीप्य, जब कि उस (शब्द) का समर्ण (वि.) [सम् + अ +क्त ] 1. कष्टग्रस्त, पीडित, अर्थ स्पष्ट रूप से निश्चित कर लिया गया हो। घायल 2. पृष्ट, निवेदित। समभिसरणम् सिम+अभि+स+ल्युट्] 1. पहुँचना | समर्थ (वि.) [सम् +अर्थ+अच् ] 1. मजबुत, शक्ति2. खोज करना, कामना करना। शाली 2. सक्षम, अभ्यनुज्ञात, पात्र, योग्यताप्राप्त समभिहारः सिम+अभि+ह+घा] 1. साथ-साथ प्रतिग्रहसमर्थोऽपि-मनु० 4 / 186, याज्ञ० 11213 ले जाना 2. आवृत्ति 3. अतिरिक्त, फालतू / 3. योग्य, उपयुक्त, उचित-तद्धनुर्ग्रहणमेव राघवः समभ्यर्चनम् [ सम् +अभि+अर्च,+ल्युट् ] पूजा करना, प्रत्यपद्यत समर्थमुत्तरम् .- रघु० 11179 4. योग्य या अर्चना करना। समुचित बनाया हुआ, तैयार किया हुआ 5. समासमस्याहारः [सम्+अभि+आ ह+धश ] साथ नार्थी 6. सार्थक 7. समचित उद्देश्य या बल रखने रहना, साहचर्य। वाला, अतिबलशाली 8. पास-पास विद्यमान 9. अर्थतः समयः सम्+ +अच् ] 1. काल 2. अवसर, मौका संबद्ध,-र्यः 1, (व्या० में) सार्थक शब्द 2. सार्थक 3. योग्य काल, उपयुक्त काल, या ऋतु, ठीक वक्त वाक्य में मिला कर रक्ख हए शब्दों की संसक्ति / For Private and Personal Use Only Page #1084 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्र आये हुए, मिर प्तिता, अचमानौचित्य ( 1075 ) समर्थकम् | सम् +अर्थ + बुल] अगर की लकड़ी। / समवायिन् (वि०)[समवाय+ इनि] 1. घनिष्ठ रूप से समर्थनम् [सम् !-अर्थ -ल्युट ] 1. संस्थापन, पुष्टि संबद्ध 2. समुच्चयवाचक, बहुसंख्यक / सम० - फरना, ताईद करना 2. रक्षा करना, सहारा देना, कारणम् अभेद कारण, उपादान कारण (वैशेषिक न्यायसंगत सिद्ध करना-स्थितेष्वेतत् समर्थनम्-काव्य 0 दर्शन में बणित तीन कारणों में से एक)। 7 3. वकालत करना, हिमायत करना 4. अनुमान समवेत (भू० क. कृ.) [सम्+अव+इ+क्त] लगाना, विचार करना, चिन्तन करना 5. विचार- 1. एकत्र आये हुए, मिले हुए, जुड़े हुए, सम्मिलित विमर्श, निर्धारण, किसी वस्तु के औचित्यानौचित्य 2. घनिष्ठता के साथ संबद्ध, अन्तर्भूत, अभेद्य रूप से का निर्णय करना 6. पर्याप्तता, अचूकता, बल, संयक्त 3. बड़ी संख्या में समाविष्ट या सम्मिलित / धारिता 7. ऊर्जा, धैर्य 8. भेदभाव दूर कर फिर समष्टिः (स्त्री०) [सम्+-अश्+क्तिन् ] समुच्चयात्मक समझोता करना, कलह दूर करना 9. आक्षेप / व्याप्ति, एक जैसे अंगों का समूह, अवयवी जो समसमर्धक (वि.) [सम्+ऋध्+ण्वुल] 1. वरदाता तत्त्वता से युक्त अवयवों का पुंज है (विप० व्यष्टि) 2. समृद्ध करने वाला। --- समष्टिरीशः सर्वेषां स्वात्मतादात्म्यवेदनात् / तदसमर्पणम् [ सम् + अर्प+ल्युट ] देना, हस्तांतरण करना, भावात्तदन्ये तु ज्ञायते व्यष्टिसंज्ञया / / पंच० / सौंपना, हवाले करना। समसनम् [ सम् +अस्+ल्युट ] 1. एक साथ मिलाना, समर्याद (वि.) [सह सर्यादया - ब. स.] 1. सीमित, सम्मिश्रण 2. संयुक्त करना, समस्त (समास युक्त) बंधा हुआ 2. निकटवर्ती, समीपवर्ती 3. शुद्धाचारी, शब्दों का निर्माण 3. संकुचित करना। औचित्य की सीमा के अन्दर रहने वाला 4. सम्मान- समस्त (50 क. कृ.) / सम्+अस+क्त ] 1. एक पूर्ण, शिष्ट / जगह डाला हुआ, सम्मिश्रित 2. संयुक्त 3. किसी समल (वि.) [मलेन सह --ब. स.] 1. मैला, गन्दा, पदार्थ में पूर्णतः व्याप्त 4. संक्षिप्त, संकुचित, संक्षेपित मलिन, अपवित्र 2. पापपूर्ण, लम् पुरीष, मल, 5. सारा, पूर्ण, पूरा। विष्ठा / समस्या [ सम्+अस्+क्या+टाप् ] 1. पूर्ण करने के समवकारः [ सम्+अव++घ ] नाटक का एक लिए दिया जाने वाला छंद का चरण, कविता का वह भेद (सा० द० 515 में निम्नांकित परिभाषा दी गई भाग जो पूर्ति के लिए प्रस्तुत किया जाय-कः श्रीपतिः है व्रतं समवकारे तु ख्यातं देवासुराश्रयम् / संश्रयो का विषमा समस्या--सुभा०। इस प्रकार 'वागर्थाविव निर्विमस्तुि त्रयोऽङ्काः / ) संपृक्तो' 'शतकोटिप्रविस्तरम' 'तुरासाहं पुरोधाय' समवतारः [सम् +अव+त+घञ्] 1. उतार 2. घाट- पंक्तियाँ 'नेमः सर्वे सुराः शिवो' से पूर्ण हो जाती हैं) जहाँ से किसी नदी या पुण्यस्नानतीर्थ में उतरा जाय 2. (अतः) अधूरे को पूरा करना-गौरीव पत्या सुभगा -~-समवतारसमरसमस्तट:--कि० 5 / 7 / / कदाचित्कीयमप्यर्थतनू समस्याम्-० 782, समवस्था[समा तुल्या अवस्था वा सम+अव+स्था+ (समस्या-संघटनम्)। अङ+टाप् ] 1. निश्चित अवस्था 2. समान दशा या | समा [सम् +अच्+टाप्] (प्रायः ब०व० में प्रयोग, परन्तु स्थिति श०४ 3. अवस्था या दशा -रघु० 19 / 50, पाणिनि द्वारा एक वचन में भी प्रयुक्त-उदा० समां मालवि० 4 / 7 / समाम्-पा० 5 / 2 / 12) वर्ष, तेनाष्टौ परिगमिताः समवस्थित (भू० क. कृ.) (सम्-|-अव-+-स्था+क्त ] समाः कथंचित् रघु० 8 / 92, तयोश्चतुर्दशैकेन राम 1. स्थिर रहता हुआ 2. स्थिर / प्रावाजयत्समा:--१२१६, 19 / 4, महावीर० 4 / 41, समवाप्तिः (स्त्री०) [ सम् +अव+आप+क्तिन् ] प्राप्ति, अव्य०-से, साथ मिला कर। अभिग्रहण। समांसमीना समां समां विजायते प्रसूते-ख प्रत्ययेन नि०1 समवायः [ सम्+अव+11-अच ] 1. सम्मिश्रण, मिलाप, वह गाय जो प्रतिवर्ष व्याती है और बछड़ा देती है। संयोग, समष्टि, संग्रह-सर्वाविनयानामेकैकमप्येषामा- समाकषिन् (वि.) (स्त्री० ---गी) [सम्+आ+कृष+ यतनं किमुत समवायः-का०, बहूनामप्यसाराणां णिनि] 1. आकर्षक 2. दूर तक गंध फैलाने वाला, या समवायो हि दुर्जयः-सुभा० 2. संख्या, समुच्चय, राशि प्रसार करने वाला, पुं० प्रसत गंध, दूर तक फैली गंध / 3. घनिष्ठ संबंध, संसक्ति 4. (वैशे० में) प्रगाढ़ समाकुल (वि.) [सम्यक् आकुल:--प्रा. स.] 1. भरा मिलाप, अविच्छिन्न तथा अविच्छेद्य संयोग, अभेद्य हुआ, आकीर्ण, भीड़-भाड़ से युक्त 2. संक्षुब्ध, घबराया संलग्नता या एक वस्तु का दूसरी में अस्तित्व (जैसे हुआ: उद्विग्न, हड़बड़ाया हुआ। पदार्थ और गुण, अंगी और अंग), वैशेषिकों के सात समाख्या |सम्+आ+ख्या+अ+टाप] 1. यश, कीर्ति, पदार्थों में से एक। ख्याति 2. नाम, अभिधान / For Private and Personal Use Only Page #1085 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1076 ) समास्यात (भू० क. कृ०) सम्+आ+ख्या+क्त] | समाधिः [सम्+आ+धा+कि] 1. संग्रह करना, स्वस्थ 1. हिसाब लगाया हुआ, गिना हुआ, जोड़ा हुआ करना, (मन को) एकाग्र करना 2. भावचिन्तन, 2. पूर्णतः वर्णित, उद्घोषित, प्रकथित 3. विख्याल, किसी एक विषय पर मन को केन्द्रित करना, ब्रह्मप्रसिद्ध / चिन्तन में पूर्णलीनता अर्थात् (योग की आठवीं और समागत (भू० क. कृ.)[सम+आ+गम्+क्त] 1. साथ अन्तिम अवस्था) आत्मेश्वराणां न हि जातु विघ्नाः साथ आया हुआ, मिला 'हुआ, सम्मिलित, संयुक्त समाधिभेदप्रभवो भवन्ति कु० 3 / 40, 50, मृच्छ० 2. पहुंचा हुआ 3. जो संयुक्त अवस्था में हो। 111, भर्तृ० 354, रघु०८।७८, शि० 4 / 55 3. एक समागतिः [सम्+आ+गम् +क्तिन्] 1. साथ साथ आना, निष्ठता, संकेन्द्रण, मनोयोग तस्यां लग्नसमाधि मेल, मिलाप 2. पहुंचना, उपगमन 3. समान दशा या (मानसम्)-गीत० 4. तपस्या, धर्मकृत्य, साधना --- प्रगति / अस्त्येतदन्यसमाधिभीरुत्वं देवानाम्--श० 1, तपः समागमः [सम+आ+गम्+घञ] 1. मेल, मिलन, समाधिः -कु० 3 / 24, 5 / 6, 1259, 5 / 45 5. साथ मुठभेड़, सम्मिश्रण, अहो दैवगतिश्चित्रा तथापि न मिलाना, संकेन्द्रण, सम्मिश्रण, संग्रह तं वेधा विदधे समागमः-काव्य० 7 रघु० 814, 92, 19 / 16 नूनं महाभूत समाधिना-रघु० 1129 6. पुनर्मिलन, 2. सहवास, साहचर्य, संगति - जैसा कि 'सत्समागम' मतभेद दूर करना 7. निस्तब्धता 8. अंगीकार, स्वी में 3. उपगमन, पहुँच 4. (ज्योति० में) संयोग / कृति, प्रतिज्ञा 1. प्रतिदान 10. पूर्ति, सम्पन्नता समाधातः [सम्+आ+हन+घञ] 1. वध, हत्या 11. अत्यन्त कठिनाइयों में धैर्य धारण करना 2. संग्राम, युद्ध / 12. असम्भव बात के लिये प्रयत्न करना 13. (दुर्भिक्ष समाचयनम् [सम्+आ+चि+ल्यूट] सञ्चयन, बीनना। के अवसर पर) अनाज बचा कर रखना, अन्न संचय समाचरणम् [सम् +आ+च+ल्युट] अभ्यास करना, करना 14. मक़बरा, शव प्रकोष्ठ 15 गरदन का पालन करना, व्यवहार करना। जोड़, गरदन की विशेष अवस्था-कि० 16021 समाचार [ सम्+आ+चर्+घञ 1 1. प्रगमन, गति 16. (अले में) एक अलंकार जिसकी मम्मट ने 2. अभ्यास, आचरण, व्यवहार 3. सदाचार या अच्छा निम्नाङ्कित परिभाषा की है--समाधिः सुकरं कार्य चालचलन 4. खबर, सूचना, विवरण, वार्ता। कारणान्तरयोगत काव्य०१०, दे० सा०द०६।१४ समाजः [सम् +अ+घञ्] 1. सभा, मिलन, मजलिस, 17. शैली के दस गुणों में से एक, दे० काव्या० -विशेषतः सर्वविदा समाजे विभषणं मौनमपण्डितानाम 1193 / - भर्तृ० 17 2. मण्डल, गोष्ठी, समिति या परिषद् समाध्मात (भू.क.कृ.) [सम्+आ+मा+क्त] 1. फूंक 3. संख्या, समुच्चय, संग्रह 4. दल, आमोद-प्रमोद मारा हुआ 2. फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, स्फीत, हवा विषयक मिलन 5. हाथी। भरा हुआ। समाजिकः [समाज+ठक्] सभासद्-दे० 'सामाजिक'। समान (वि.) [सम् + अन्+अण्] 1. वही, तुल्य, सदृश, समाशा सम्+आ+ज्ञा+अ+टाप् | यश, कीर्ति / एक जैसा समानशीलव्यसनेषु सख्यम् .. सुभा० समादानम् [सम् +आ+दा+ल्युट्] 1. पूर्णतः लेना 2. उप- 2. एक, एकरूप 3. मला, सद्गुणसम्पन्न, न्याय्य युक्त उपहार लेना 3. जैन सम्प्रदाय का नित्य-कृत्य / 4. सामान्य, साधारण 5. सम्मानित,- न: 1. मित्र, समावेशः [सम्+आ--दिश् +घञ्] आज्ञा, हुक्म, निदेश, तुल्य 2. पाँच प्राणों में से एक (इसका स्थान नाभि निर्देश। का गर्त है, तथा पाचन शक्ति के लिये परमावश्यक समाषा [सम्+आ+घा--अङ्-+टाप्] दे० नी. 'समा- है)-मम् (अव्य०) समान रूप से, सदृश (करण० धान। के साथ) जलधरेण समानममापति:--कि० 1814 / समाधानम् [सम्+आ+धा+ल्युट्] 1. साथ साथ रखना, सम०---अधिकरण (वि०) 1. समान आधार वाला मिलाना 2. ब्रह्म के गुणों का मन से चिन्तन करना, 2. उसी वर्ग या पदार्थ में विद्यमान 3. (व्या० में) 3. भावचिन्तन, गहन मनन 4. एकनिष्ठता 5. स्थैर्य, एक ही कारक की विभक्ति से युक्त होना (णम्) स्वस्थता, (मन की) शान्ति, सन्तोष -चित्तस्य समा- 1. वही स्थान या परिस्थिति 2. कारक में समान धानम्, बुद्धः समाधानम् - गंगा० 18 6. संदेह- होना, कारक सम्बन्ध 3. वर्ग (जिसमें अनेक सम्मिनिवारण करना, पूर्वपक्ष का उत्तर देना, आक्षेप का लित हों), प्रजातीय गुण, अर्थः उसी अर्थ वाला, उत्तर देना 7. सहमत होना, प्रतिज्ञा करना 8. (नाटक पर्यायवाची उवकः ऐसा सम्बन्धी जो समान पितरों में) मख्य घटना जिस पर नाटक की पूर्ण वस्तुकथा को जल तर्पण के कारण संवद्ध है (यह सम्बन्ध सातवीं या अवलंबित है। ग्यारहवीं पीढ़ी से तेरहवीं या कुछ के अनुसार चौदहवीं For Private and Personal Use Only Page #1086 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1077 ) पीढ़ी तक जाता है)-समानोदकभावस्तु निवर्तेता- | समाभाषणम् सम् +आ+भाष्+ल्युट्] समालाप, वार्ताचतुर्दशात् दे० मनु० 5 / 60 भी, --उदयः एक पेट | लाप रघु०६।१६। से उत्पन्न, सहोदर भाई,-उपमा एक प्रकार की समाम्नानम् [सम्+आ+म्ना ल्युट्] 1. आवृत्ति, उल्लेख उपमा दे० काव्या०२।२९, -काल-कालीन(वि.) 2. गणना 3. परम्परा प्राप्त पाठ। एककालिक, समकालीन---गोत्रः =सगोत्र, एक ही | समाम्नायः[सम्+आ+म्ना-+-य] 1. परम्परागत पाठ, गोत्र का, दुःख (वि.) सहानुभूति रखने वाला, ___ अनुश्रुति 2. परम्परागत (शब्द) संग्रह-अश्वइति .-धर्मन् (वि०) एक ही प्रकार के गुणों से युक्त, सहानु- पशुसमाम्नाये पठचते-उत्तर० 4 3. साहित्य परभूतिदर्शक, गुणों को सराहने वाला - मा० 116, म्परा, अनुश्रुतिपाठ, सस्वर पाठ, निर्देशन 5.जोड़, - यमः स्वर का वही उच्चग्राम, रचि (वि०) एक समष्टि, संग्रह अक्षरसमाम्नायम् शिक्षा० 57, सी रुचि वाला। (अर्थात् असे ह तक की वर्णमाला जो शिव की कृपा समानयनम् [सम्--आ-+-नी+ल्युट्साथ लाना, संग्रह से पाणिनि को प्रगट हुई)। करना, संचालन / समायः [सम् +आ+इ+अच्] 1. पहुंचना, आना 2. दर्शन समापः [समा आपो यस्मिन् ब० स०] देवताओं के प्रति करना। यज्ञ करना या आहुति देना। समायत (भू० क. कृ.) [सम्+आ+यम्+क्त] खींचा समापत्तिः (स्त्री०) [सम्+आ+पद+क्तिन्] 1. मिलना, हुआ, बढ़ाया हुआ, लंबा किया हुआ। मुठभेड़ 2. दुर्घटना, आकस्मिक घटना, अकस्मात् | समायुक्त ( भू० क० कृ०) [सम्+आ+युज+क्त] मठभेड़ ... समापत्तिदष्टेन केशिना दानवेन-विक्रम०१, 1. साथ जोड़ा हुआ, संबद्ध, संयुक्त 2. कृतसंकल्प, क्रियासमापत्तिनिवर्तितानि - रधु० 7123, कु० संलग्न 3. तैयार किया गया, उद्यत 4. युक्त, सज्जित, 775 / भरा हआ, सहित, अन्वित 5. जिसको कोई कार्यभार समापक (वि.) (स्त्री०-पिका) [सम्+आप+ण्वुल सौंप दिया गया है, नियुक्त किया हुआ। समाप्त करने वाला, सम्पन्न करने वाला, पूरा करने | समायुत (भू० क० कृ०)[सम्+आयु+क्त] 1. संयुक्त, वाला। सम्बद्ध, साथ मिलाया हुआ 2. संग्रहीत, एकत्र किया समापनम् [सम् +आप+ ल्युट] 1. पूर्ति, उपसंहार, समाप्ति हुआ 3. सहित, युक्त, सज्जित, अन्वित / / करना मनु० 5 / 88 2. अभिग्रहण 3. मार डालना, | समायोगः [सम् +आ+युज्+घञ्] 1. मेल, सम्बन्ध, नष्ट करना 4. अनुभाग, अध्याय 5. गहन मनन / संयोग 2. तयारी 3. धनुष पर (बाण ) साधना समापन्न (भू० क. कृ.)[सम् आ+पद्+क्त] 1. प्राप्त, 4. संग्रह, ढेर, समुच्चय 5. कारण, प्रयोजन, अवाप्त 2. घटित, हुआ 3. आगत, पहुँचा हुआ उद्देश्य / 4. समाप्त, पूर्ण, सम्पन्न 5. प्रवीण 6. सम्पन्न 7. दुःखी, | समारम्भः [सम्+आ+र+घञ, मुम्] 1, आरम्भ, कष्टग्रस्त 8. वध किया हुआ। शुरू 2. साहसिक कार्य, उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य, काम, समापावनम् [ सम्+आ+पद+णिच+ ल्युट ] सम्पन्न कर्म-भव्यमुख्याः समारम्भा ... "तस्य गूढं विपेचिरे करना, मूल रूप देना। -रघु० 17153, भग० 4 / 19 3. अंगराग।। समाप्त (भू० क. कृ.) [सम्+आप+क्त] 1. पूर्ण किया | समाराधनम् [सम्+आ+राघ+ल्यट] 1. सन्तुष्ट करने हुआ, उपसंहृत, पूरा किया हुआ 2. चतुर / का साधन, प्रसन्न करना, खुशी-नाट्यं भिन्नरुचेर्जसमाप्ताल: [समाप्ताय अलति पर्याप्नोति समाप्त+अल् नस्य बहुधाप्यकं समाराधनम्-मालवि० 114 2. सेवा, +अच् प्रभु, पति / टहल,-- रघु० 2 / 5, 18 / 10 / समाप्तिः (स्त्री०) [सम्+आप+क्तिन्] 1. अन्त, उप- समारोपणम् [ सम्+आ+रह+णिच् + ल्युट्, पुक् ] संहार, पूर्ति, समाप्त करना 2. निष्पन्नता, पूरा करना, 1. अवस्थित करना, रखना 2. सौंप देना, हवाले पूर्णता 3. पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना, विवाद को करना। समाप्त करना। समारोपित (भू० क. कृ.) [सम्+आ+रह+णिच समाप्तिक (वि.) [समाप्ति+ठन्] 1. अन्तिम, समापक | क्त, पुक ] 1. चढ़ाया हुआ, सवार किया हुआ 2. समापिका 3. जिसने कोई काम पूरा किया है 2. (धनुष आदि) ताना हुआ-भवता चापे समारो1. समापक 2. जिसने वेदाध्ययन का पूर्ण पाठयक्रम पिते .... काव्य० 10 3. रक्खा गया, पौध लगाई गई, समाप्त कर लिया है। ठहराया गया 4. सौंपा गया, हवाले किया गया। समाप्लुल (भू० क. कृ.) [सम्+आ+प्लु+क्त] | समारोहः [ सम्+आ+रह+घञ ] 1. चढ़ना, ऊपर 1. बाढ़ग्रस्त, बाढ़ में डूबा हुआ 2. भरा हुआ। जाना 2. सवारी करना 3. सहमत होना। For Private and Personal Use Only Page #1087 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1078 ) समालम्बनम् [सम्+आ+लम्ब्+ल्युट ] टेक लगाना, | समासः [ सम् + अस्+घञ ] 1. समष्टि, मिलाप, सहारा लेना, चिपटे रहना। सम्मिश्रण 2. शब्दरचना, समाहार, मिलाना (समास समालम्बिन् (अव्य.) [सम्+आ+लम्ब+णिनि] लटकने के मुख्य चार भेद है द्वन्द्व, तत्पुरुष, बहुव्रीहि और वाला, सहारा लेने वाला,-नी एक प्रकार का घास। अव्ययीभाव) 3. पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना समालम्भः, समालम्भनम् [सम्+आ+लभ+घा, ल्युट् 4. संग्रह, संघात 5. पूर्णता, समष्टि 6. सिकुड़न, वा, मुम्] 1. पकड़ना, छीनना 2. यज्ञ में बलि-पशु संहृति, संक्षिप्तता, (समासेन, समासतः थोड़े में, संक्षेप का अपहरण करना 3. शरीर पर अंगराग व उबटन से, लघुता के साथ--एषा धर्मस्य वो योनिः समासेन आदि का लेप करना-मङ्गलसमालम्भनं विरचयावः प्रकीर्तिता--मनु० 2 / 25, 320, भग० 13 / 18, --श०४। समासत: श्रूयताम्--विक्रम०२)। सम० -उक्तिः समावर्तनम् [ सम्+आ+वृत्+ल्युट ] 1. वापसी (स्त्री०) एक अलंकार जिसको परिभाषा मम्मट ने 2. विशेष कर वेदाध्ययन समाप्त करके ब्रह्मचारी का निम्नांकित दी है-परोक्तिर्भेदकः श्लिष्ट: समासोक्तिः घर वापिस आना। -काव्य०१०। समावायः [ सम् +आ+अब+इ+अच् ] 1. साहचर्य, ! समासक्तिः (स्त्री०), समासङ्गः [सम् +आ+स + संबंध 2. अविच्छेद्य संबंध दे० समवाय 3. समष्टि क्तिन्, घा वा] मिलाप, साथ-साथ रहना, अनुरक्ति, 4. समुच्चय, संख्या, ढेर। आसक्ति / समावासः [ सम्+आ+वस्+घञ्] निवास स्थान, | समासजनम् [सम-+आ+सज+ल्यट] 1. मिलाना, घर रहने का स्थान / संयुक्त करना 2. जमाना, रखना 3. संपर्क, सम्मिश्रण, समाविष्ट (भू० क० कृ०) [ सम्+आ+विश्+क्त ] संबंध। 1. पूर्णतः प्रविष्ट, पूर्णत: अधिकृत, व्याप्त 2. छीना | समासर्जनम् [सम् +आ+स+ल्युट] 1. पूर्णतः त्याग हुआ, पराभूत, एकाधिकृत 3. प्रेताविष्ट 4. सहित देना 2. सुपुर्द करना। 5. निश्चित, स्थिर किया हुआ, बिठाया हुआ | समासादनम् सिम्+आ+सद् +-णिच् + ल्युट्] 1. पहुँचना 6. सुनिर्दिष्ट / 2. प्राप्त करना, मिलना, अवाप्त करना 3. निष्पन्न समावृत (भू. क. कृ.) [सम्+आ+ वृ+क्त ] करना, कार्यान्वित करना। 1. परिबलयित, घेरा डाला हुआ, घिरा हुआ, लपेटा | समाहरणम् सम् +आ+ह+ल्युट्] संयुक्त करना, संग्रह हुआ 2. पर्दा पड़ा हुआ, चूंघट से आच्छादित 3. गुप्त, करना, सम्मिश्रण, संचय करना। छिपाया हुआ 4. प्ररक्षित 5. बंद किया हुआ 6. रोका | | समाहर्तृ (पुं०) [सम् +आ+ह ! तृच्] 1. जो संग्रह हुआ। करने में अभ्यस्त हो 2. (कर आदि का) संग्राहक, समावृत्तः, समावृत्तकः [ सम्+आ+वृत्+क्त, पक्षे कन् जमा करने वाला। च ] वह ब्रह्मचारी जो अपना वेदाध्ययन समाप्त समाहारः[सम्--आह+घञ] 1. संग्रह, समष्टि, संघात करके घर लौट आया है। -मा० 9 2. शब्दरचना 3. शब्दों या वाक्यों का संयोसमावेशः [ सम् +आ+-विश्+घञ ] 1. प्रविष्ट होना, जन 4. द्विगु और द्वन्द्व समास का समष्टि विधायक साथ रहना 2. मिलना, साहचर्य 3. सम्मिलित करना, एक उपभेद 5. संक्षेपण, संकोचन, संहति / / समझ 4. घुसना 5. प्रेतावेश 6. प्रणयोन्माद, भावो समाहित (भू० क० कृ० [सम्- आ+धा+क्त] 1. मिलाया द्रेक / गया, साथ जोड़ा गया 2. समंजित, तय किया गया समाश्रयः [सम्+आ=श्रि+अच् ] 1. प्ररक्षण या 3. इकट्ठा किया गया, संग्रहीत, (मन आदि) प्रशांत पनाह ढंढना 2. शरण, पनाह, प्ररक्षण 3. शरणगृह, 4. एकनिष्ठ, लीन, संकेन्द्रित 5. समाप्त 6. सहमत / आश्रयस्थान, घर 4. आवासस्थान, निबास। समाहृत (भू० क. कृ०) सिम्+आ+ह+क्त] समाश्लेषः [ सम् +आ+श्लिष्+घञ ] प्रगाढ़ आलि- 1. मिलाया गया, संगृहीत, संचित 2. पुष्कल, अत्यधिक, गन / बहुत 3. ग्रहण किया गया, स्वीकृत, लिया गया समाश्वासः [ सम्+आश्वस्+घञ 1 1. जी में जी / संक्षेप किया गया, कम किया गया। आना, आराम की सांस लेना 2. राहत, प्रोत्साहन, | समाहृतिः (स्त्री०) [सम्+आ+ह+क्तिन्] संकलन, तसल्ली 3. आस्था, विश्वास, भरोसा / संक्षेपण / समाश्वासनम् [सम्+आ+श्वस्+णि+ल्युट] 1. पुन- सभाह्वः [सम्+आ+ ह्वे-घ] चुनौती, ललकार / र्जीबिद करना, प्रोत्साहन, आराम देना 2. ढाढस समाह्वयः [सम् + आ+हृ+ अच्] 1. पुकारना, ललकारना बंधाना विक्रम०, 2 / 2. संग्राम, युद्ध 3. मल्लयुद्ध, दो व्यक्तियों में होने For Private and Personal Use Only Page #1088 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1079 ) वाला युद्ध 4. मनोरंजन के लिए जानवरों को लड़ाना, +ख 1. वार्षिक, सालाना 2. एक वर्ष के लिए जानवरों की लड़ाई पर शर्त लगाना-याज्ञ. 21203, भाड़े पर लिया हुआ 3. एक वर्ष का। मनु० 9 / 221 5. नाम, अभिधान। समोनिका सिमां प्राप्य प्रसूते समा+ख-कन्+टाप, समाह्वा [समा आह्वा यस्याः ब० स०] नाम, अभिधान, इत्वम् | प्रतिवर्ष ब्याने वाली गाय / शि० 11126 / समीप (वि.) [संगता आपो यत्र-अ, आत ईत्वम्] समाह्वानम् [सम् +आ+ढे ल्युट्] 1. मिलकर बुलाना, निकट, पास ही, सटा हुआ, नजदीक, पम् सामीप्य, संबोधन 2. ललकार, चुनौती। पड़ोस (समीपम्, समीपतः, समोपे (क्रि.वि.) निकट, समिकम् [ समि ( सम् +5+डि )+कन् ] भाला, सामने, की उपस्थिति में'.....अतः समीपे परिणेतुरिबल्लम। ष्यते श० 5 / 17 / / समित् (स्त्री०) [सम् +5+क्विप्] संग्राम, युद्ध -समिति | समीरः सम् +ईर--अच् !. हवा, वायु घोर-समीरे पतिनिपाताकर्णन , नै० 12 / 75 / यमुनातीरे गीत०५ 2. शमीवृक्ष, जड़ी का पेड़ / समिता सम् -इ+क्त+प] गेहूँ का आटा / समीरणः सम् - ईर् + ल्युट] 1. हवा, वायु-समीरणी समितिः [सम्+इ+क्तिन्] 1. मिलना, मिलाप, साहचर्य | नोदयिता भवेनि व्यादिश्यते केन हताशनस्य- कु० 2. सभा 3. रेवड़, लहंडा-कि० 4 / 32 4. संग्राम, 3 / 21, 28 2. साँस, 3. यात्री 4. एक पौधे का युद्ध-श० 2 / 14, कि० 3.15, शि० 16 / 13 नाम, मरुबक, णम् फेंकना, भेजना / 5. सादृश्य, समता 6. मर्यादन / समीहा [ सम्+ईह +अ+टाप / प्रबल इच्छा, चाह, समितिञ्जय (वि.) [समिति+जि+खच्, मुम्] युद्ध में | प्रबल उद्योग / विजयी। समीहित (भ० क. कृ०) सिम् ।-ईह -क्त] 1. अभिसमियः [सम्++थक] 1. संग्राम, युद्ध 2. आग / लषित, इच्छित, अभीष्ट 2. आरब्ध,--सम् कामना, समिद्ध (भू० क० कृ०) [सम् + इन्ध्+क्त] 1. सुलगाया अभिलाषा, इच्छा। हुआ, जलाया हुआ 2. आग लगाई हुई 3. प्रज्वलित, समुक्षणम् सिम्+उक्ष + ल्युट ढालना, बहाव, प्रसार / उत्तेजित। समुच्चय [ सम्+उत्+चि+ अन् ] 1. संग्रह, संघात, समिछु (स्त्री०) [सम्+इन्ध+क्विप] लकड़ी, इंधन, समष्टि, राशि, पंज 2. शब्दों या वाक्यों का संयोग विशेष कर यज्ञाग्नि के लिए समिधाएँ, -समिदा- दे० 'च' 3. एक अलंकार का नाम काव्य. 10 हरणाय-श०१, कु. 1157, 5333 / (115 से 116 कारिकाएँ तक) / समिधः | सम्+इन्ध+क] आग। समुच्चरः [सम् +उत् +चर+अच] 1. चढ़ना 2. चलना, समिन्धनम् [सम् +-इन्ध् + ल्युट्] 1. आग सुलगाना यात्रा करना। 2. इंधन / समुच्छेवः [सम् उद्+छिद्+घञ्] पूर्ण विनाश, समूलोसमिरः [-समीर, पृषो०] वायु, हवा। न्मूलन, उखाड़ देना। समीकम् [मम्-+-ईकक्] मंग्राम, युद्ध,-शि० 15483 / / समुच्छ्यः [सम् + उद्+श्रि+अच्] 1. उत्तुंगता, ऊंचाई समीकरणम् [असमः समः क्रियतेऽनेन--सम-च्चि-+कृ 2. विरोध, शत्रुता। +ल्युट] 1. पूरी छानबीन 2. दर्शनशास्त्र की सांख्य समुच्छायः [सम् + उद्+श्रि+घञ] उत्तुंगता, ऊंचाई / पद्धति---शि० 2059 / समुच्छ्वासितम्, समुच्छ्वासः [सम्+उ+श्वस्+क्त, समीक्षा [सम्+ईश्+अ+टाप] 1. अनुसंधान, खोज घा वा] गहरी सांस लेना, दीर्घ सांस लेना / 2. विचार 3. भलीभांति निरीक्षण, समालोचना | समुज्झित (वि.) [सम्+उज्+क्त] 1. त्यागा हुआ, 4. समझ, बुद्धि 5. नैसर्गिक सत्य 6. अनिवार्य सिद्धांत छोड़ा हुआ 2. जाने दिया गया 3. मुक्त। 7. दर्शनशास्त्र की मीमांसा पद्धति / / समुत्कर्षः [सम् +उत+कृष घश] 1 उन्नति 2. अपने समीचः[सम्+इ+चट्, कित्, दीर्घः] समुद्र / आपको ऊपर उठाना, अपनी जाति की अपेक्षा समीचक: [समीच+कन रतिक्रिया, मथुन / किसी अन्य ऊंची जाति से सम्बन्ध रखना-मनु० समीची समीच+डीप्] 1. हरिणी 2. प्रशंसा / 1256 / समीचीन [सम्+अञ्च+ क्विन् +ख] 1. ठीक, सही समुत्क्रमः [सम् ।-उत्+क्रम्+घञ्] 1. ऊपर उठना. 2. सत्य, शुद्ध 3. योग्य, समुचित 4. सुसंगत, - नम् चढ़ाई 2. औचित्य की सीमा का उल्लंघन करना। 1. सचाई 2. औचित्य / समुत्क्रोशः [सम् +उद+ऋश घा] 1. जोर से चिल्लाना समीरः (पुं०) गेहूँ का बारीक मैदा / 2. भारी कोलाहल 3. कुररी। समोन (वि.) [समाम् अधीष्टो मृतो भूतो भावी वा-समा / समुत्थ (वि.) [सम्+उद्+स्था+क] 1. उठता हुआ, For Private and Personal Use Only Page #1089 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1080 ) जागता हुआ 2. उगा हुआ, उत्पन्न, जन्मा (समास के ] समुदित (भू० क. कृ.) [सम् +उ+इ+क्त] 1. ऊपर अन्त में)-अथ नयनसमुत्थं ज्योतिरत्रेरिव द्योः रघु० गया हुआ, उठा हुआ, चढ़ा हुआ 2. ऊँचा, उन्नत 2175, भग० 7 / 27 3. घटित होने वाला, उत्पन्न / 3. पैदा किया हुआ, उगा हुआ, उत्पन्न 4. संहत समुत्पानम् [सम् +उ+स्था+ल्युट्] 1. उठना, जागना किया हुआ, संचित, संयक्त मद्भाग्योपचयादयं 2. पुनरुज्जीवन 3. पूरी चिकित्सा, पूरा आराम समुदितः सर्वो गुणानां गण:-- रत्न. 116 5. सहित, 4. (घाव आदि का) भरना, स्वस्थ होना --मनु० सज्जित / 8 / 287, याज्ञ० 2 / 222 5. रोग का चिह्न 6. उद्योग | समुदीरणम् [सम्+उ+ईर+ल्युट्] 1. कह डालना, में लगना, परिश्रमयुक्त धन्धा - जैसा कि 'संभूय बोलना, उच्चारण करना 2. दुहराना / समुत्थानम्', में-मनु० 8 / 4 / / समुद्ग (वि.) [सम् ।-उद्-|-गम् +ड] 1. उगने वाला, समुत्पतनम् सम् +उद्+पत्+ल्यूट] 1. उड़ना, ऊपर चढ़ने वाला 2. पूर्णत: व्यापक 3. आवरण या ढक्कन चढ़ना 2. प्रयत्न, चेष्टा / से युक्त 4. फलियों से युक्त,-द्ग: 1. ढका हुआ समुत्पत्तिः (स्त्री०) [सम्+उद्+पद्+क्तिन्] 1. पैदा- संदूक 2. एक प्रकार का कृत्रिम श्लोक--दे० नीचे वार, जन्म, मूल 2. घटना / 'समुद्गक' / समुत्पिञ्ज, समुरिपजल (वि.) [सम्+उद्+पि + समुद्गक: [समुद्ग+कन्] 1. एक हुका हुआ संदूक या पेटी अच, कलच् वा] अत्यन्त उद्विग्न या घबराया हुआ, ---श०४ 2. एक प्रकार का श्लोक जिसके दो चरणों अव्यवस्थित,-जः,-..ल: 1. अव्यवस्थित सेना 2. भारी की ध्वनि समान हों परन्तु अर्थ पृथक्-पृथक् हों-उदा० अव्यवस्था। कि०१५।१६। समुत्सवः [सम्+उ+सू+अप] महान पर्व / समुद्गमः [ सम्+उ+गम्+घा ] 1. उठान, चढ़ाई समुत्सर्गः सम्+उद्+सज्+घा] 1. परित्याग, छोड़ना | 2. उगना, निकलना 3. जन्म, पैदायश / 2. ढारना, डालना, प्रदान करना 3. मलत्याग करना, | समुगिरणम् [ सम् +उद्+ग+ ल्युट् ] 1. वमन करना, विष्ठा करना-मनु० 4 / 50 / उगलना 2. जो उगल दिया जाय, उल्टी 2. उठाना समुत्सारणम् सम्+उद्+स+णिच् + ल्युट्] 1. हांक ऊपर करना। देना 2. पीछा करना, शिकार करना / समुद्गीतम् [सम्+उद्+-गै+क्त ] ऊँचे स्वर से बोला समुत्सुक (वि.) [सम्यक् उत्सुकः-प्रा० स०] 1. अत्यन्त जाने वाला गीत / बेचन, आतुर, अधोर विरौषि समुत्सुकः-विक्रम | समुद्देशः [सम् +उद्+दिश्+घ ] 1. पूर्णतः निर्देश 4120, रघु० 1133, कु० 576 2. उत्कंठित, करना 2. पूर्णविवरण, विशिष्टीकरण, निर्देश करना। उत्सुक, शौक़ीन 3. शोकपूर्ण, खेदजनक / समुखत (भ० क. कृ.) [सम्+उ+हन्+क्त ] समुत्सेषः [सम्+उद्+सिधु घा] 1. ऊँचाई, उन्नति 1. ऊपर उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ, उन्नीत 2. मोटापन, गाढ़ापन / 2. उत्तेजित, हडबड़ाया हुआ 3. घमंड से फूला तमुवपत (भू०००) सम्-+उद्+अ +क्त] उठाया हुआ, घमंडी, अभिमानी 4. अशिष्ट, असभ्य 5. घृष्ट, हुआ, ऊपर खींचा हुआ (जैसा कुएँ से पानी)। ढीठ / समुनयः [सम् +उद्+1+अच] 1. चढ़ाई, (सूर्य का) समुशरणम् [सम्+उद्+ह+ल्यट 11. ऊपर उठाना, उदय होना 2. उगना 3. संग्रह, समुच्चय, संख्या, ऊँचा करना 2. उठाना 3. बाहर खींच लेना 4. उद्धार, ढेर,-सामर्थ्यानामिव समुदयः संचयो वा गुणानाम् मुक्ति 5. निवारण, समलोच्छेदन 6. (किनारे) से --उत्तर०६९ 4. सम्मिश्रण 5. संपूर्ण 6. राजस्व बाहर निकालना 7. डाला हुआ या उगला हुआ 7. प्रयल, चेष्टा 8. संग्राम यख 9. दिन 10 सेना भोजन / का पिछला भान। समुदत (पुं०) [सम् + उद्+ह+तच् ] मोचक, समुवागमः [सम् +उद्+आ+गम+घा] पूर्ण ज्ञान / मुक्तिदाता। समुदाचारः [सम्+उद्+आ+च+ध] 1. उचित | समुद्भवः[सम्+उ+भू+अप् ) जन्म, उत्पत्ति। व्यवहार या प्रचलन 2. संबोधित करने की उपयुक्त समुखमः [सम्+उ+यम् +घञ्] 1. ऊपर उठाना रीति 3. प्रयोजन, इरादा, रूपरेखा / 2. बड़ा प्रयत्न, चेष्टा कर्मया सह योद्धव्यमस्मिनुणसमुदायः [सम्+उद्+अय+घा] संग्रह, समुच्चय समुधमे-भग० 1122, समद्यमः कार्य: 3. उपक्रम, आदि, दे० 'समुदय'। समारंभ 4. धावा, चढ़ाई। समुपहरणम् [सम् +उद्+आ+हु+ल्युट्] 1. उद्घोष- | समुयोगः [ सम् +उद् + युज्+पज ] सक्रिय चेष्टा, णा, उच्चारण करना 2. निदर्शन। ऊर्जा। For Private and Personal Use Only Page #1090 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1081 ) समुद्रः (वि.) [सह मुद्रया--ब० स०] मुहर बंद, मुहर / समुपजोषम् (अव्य०) [सम् + उप+जुष्+अम् ] लगा हुआ, मुद्रांकित-समुद्रो लेखः, द्रः [सम्+ | 1. बिल्कुल इच्छा के अनुसार 2. प्रसन्नतापूर्वक / उद्+रा+क] 1. सागर, महासागर 2. शिव का | समुपभोगः। सम्+उप+भुज+घञ ] मैथुन, संभोग / विशेषण 3. 'चार' की संख्या। सम०-अन्तम् | समुपवेशनम् [सम् Fउप-विश्+ल्युट ] 1. भवन, 1. समुद्रतट 2. जायफल, अन्ता 1. कपास का पौधा, | आवास, निवास 2. बिठाना। --अम्बरा पृथ्वी,-अरः,-आरु: 1. मगरमच्छ 2. एक समुपस्था, समुपस्थानम् [सम्+उप+स्था-|-अड, ल्युट बड़ी विशाल मछली 3. राम का पुल,-कफा, फेनः वा] 1. पहुँच, समीप जाना 2. सामीप्य, निकटता समुद्रझाग,ग (वि०) समुद्र पर घूमने वाला, (गः) | 3. होना, आ पड़ना, घटना / 1. समुद्री व्यापार करने वाला 2. समुद्री कार्य करने समुपस्थितिः='समुपस्थानम्' दे० / वाला, समुद्र में घूमने वाला - इसी प्रकार 'समुद्र- समुपार्जनम् [ सम् +उप+अर्ज + ल्युट् ] एक साथ प्राप्त गामिन्,-यायिन् आदि, (गा) नदी, - गृहम् गरमी के करना, एक समय में ही अभिग्रहण / दिनों के लिए जल में बना हुआ भवन,-चुलकः | समुपेत (भू० क० कु०) [सम्+उप+इ+क्त ] 1. मिल अगस्त्य मुनि का विशेषण, - नवनीतम् 1. चन्द्रमा / कर आये हुए, एकत्रित, इकट्ठे हुए 2. पहुंचा 2. अमृत, सुधा, -मेखला,-रसना,-वसना पृथ्वी, 3. सज्जित, ''सहित,'''युक्त। --यानम् 1. समुद्री यात्रा 2. पोत, जहाज, किश्ती, समुपोढ (भू० क. कृ.) [सम्+उप+बह+क्त] ---यात्रा समुद्र के रास्ते यात्रा, यायिन् (वि०) दे० 1. ऊपर गया हुआ, उठा हुषा 2. वृद्धि को प्राप्त 'समुद्रग', योषित् (स्त्री०) नदी, - वह्निः वडवानल, 3. निकट लाया गया 4. नियंत्रित। - सुभगा गंगा नदी। समुल्लासः [सम्+उत्+लस्+घञ्] 1. अत्यंत चमक समृहः [ सम् +उद्+वह.+अच् ] 1. ढोना 2. उठाने 2. अति हर्ष, आनन्द / वाला। समूह (भू० 0 0) [ सम्+ऊह (वह)+क्त] समुद्वाहः [सम्+उ+वह +घञ] 1. ढोना 2. विवाह। 1. निकट लाया गया, एकत्रित 2. संचित, संगहीत समुद्वेगः [ सम्+उद्+विज्+घञ ] बड़ा डर, आतंक 3. लपेटा हुआ 4. सहित 5. सद्योजात, जो तुरन्त त्रास / पैदा हुआ हो 6. शांत, बशीकृत, शान्त किया हुआ समुन्दनम् [सम्+उन्द+ल्यूट ] 1. आर्द्रता 2. गीलापन, 7. वक्र, झुका हुआ 8. निर्मल, स्वच्छ 9. साथ ही सील, तरी। वहन किया गया 10. नेतृत्व किया गया, संचालित समुन्न (वि.) [सम् + उन्+क्त ] गीला, आई। किया गया 11. विवाहित / समुन्नत (भू० क. कृ०) [शम् ।उद्+नम्+क्त ] | समूरः, समूहः, समूरकः [संगती ऊरू यस्य-प्रा० ब०] 1. ऊपर उठाया हुआ, ऊंचा किया हुआ 2. ऊँचाई, | एक प्रकार का हरिण / उत्तुंगता, (मानसिक भी) ऊंचा उठना-मनसः समूल (वि.) [सह मलेन-ब० स०] जड़ों समेत जैसा शिखराणां च सदशी ते समुन्नतिः - कू० 651, रघु० ___समूलघातम् -'पूर्णरूप से उखाड़ कर, जड़ समेत 3110 3. प्रमुखता, ऊँचा पद या मर्यादा, उल्लास | शाखाओं को उखाड़ देना। ....उत्तमैः सह सनेन को न याति समुन्नतिम्, स जातो समहः [ सम् + ऊह+घञ्] 1. समुच्चय, संग्रह, संघात, येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् - सुभा० 4. उन्नति, समष्टि, संख्या--जनसमूहः, विघ्नसमूहः, पदसमूहः, समृद्धि, वृद्धि, सफलता -विनिपातोऽपि समः समुन्नतेः | आदि 2. रेवड़, टोली। -कि० 2 / 34, या / प्रकृतिः खल सा महीयसः सहते समूहनम् [ समूह,+ ल्युट् ] 1. साथ मिलाना 2. संग्रह, नान्यसमुन्नति यया-२।२१ 5. घमंड, अभिमान। राशि। समुन्नड (भू. क. कृ.) [सम्+उ+नह+क्त] | समूहनी [ सम्+ऊह, ल्युट्+ही ] बुहारी, माड़। 1. उन्नत, उच्छित 2. सूजा हुआ 3. पूरा 4. घमंडी, समूहाः[सम्+ऊह, +ण्यत् ] एक प्रकार की यज्ञाग्नि / अभिमानी, असहनशील 5. आत्माभिमानी, पण्डितं- समृड (भू० क० कृ०) [ सम्+ऋध्+क्त ] 1. समृद्धिमन्य 6. बंधनमुक्त। शाली, फलता-फूलता हुआ, हरा-भरा 2. प्रसन्न, समुन्नयः [सम्+उद्-नी+अच् ] 1. हासिल करना, भाग्यशाली 3. सम्पन्न, दौलतमंद 4. भरा पूरा, प्राप्त करना 2. घटना, बात / विशेषरूप से युक्त या सम्पन्न, खूब बढ़ा चढ़ा समुन्मूलनम् [सम् +उद्+मूल्+ ल्युट् ] जड़ से उखा- 5. फलवान् / ड़ना, समूलोच्छेदन, पूर्ण विनाश / समृद्धिः (स्त्री०) [सम् +ऋध्+क्तिन् ] 1. भारी समुपगमः [ सम्+उप+गम् +अप् ] पहुँच, संपर्क। वृद्धि, बढ़ती, फलना-फूलना 2. सम्पन्नता, सम्पत्ति, For Private and Personal Use Only Page #1091 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1082 ) ऐश्वर्य 3. धन, दौलत 4. बाहुल्य, पुष्कलता, प्राचुर्य | सम्पा [सम्यक् अतकित पतति-सम् + पत्+ड-|-टाप्] - यथा 'धनधान्यसमृद्धि रस्तु' में 5. शक्ति, बिजली। सर्वोपरिता / सम्पाक (वि.) [सम्यक् पाको यस्य यस्मात् वा--प्रा०ब.] समेत (भू० क० कृ०) [ सम् +आ+इ+क्त ] 1. साथ : 1. सुताकिक, खूब बहस करने वाला 2. चालाक, आया हुआ या मिला हुआ, एकत्रित 2. संयुक्त, चलता पुरजा 3. लम्पट, विलासी 4. थोड़ा, अल्प, सम्मिश्रित 3. निकट आया हआ, पहँचा हआ 4. से -क: 1. परिपक्व होना 2. आरग्वध वक्ष / युक्त 5. सहित, सज्जित, युक्त, के साथ 6. टक्कर सम्पाटः [सम्+पट -- णिच्+घा] 1. त्रिभुज की बढ़ी खाया हुआ, भिड़ा हुआ 7. सहमत / हुई भुजा से किसी रेखा का मिलना 2. तकुआ। सम्पत्तिः (स्त्री० [सम्+पद्-+क्तिन् ] 1. समृद्धि, धन सम्पातः [सम्+पत्+घञ] 1. मिल कर गिरना, सह की बढ़ती, -संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता गमन 2. आपस में मिलना, मुठभेड़ होना 3. टक्कर, -सुभा० 2. सफलता, पूर्ति निष्पन्नता 3. पूर्णता, भिड़न्त 4. अधःपतन, उतरना भग० 220 श्रेष्ठता-जैसा कि 'रूपसम्पत्ति' में 4. प्राचुर्य, पुष्कलता, 5 (पक्षी आदि का) उतरना 6. (तीर की) उड़ान बाहुल्य / 7. जाना, हिलना-जुलना 8. हटाया जाना, हटाना सम्पद् (स्त्री०) [ सम् +पद्+क्विप् ] 1. धन, दौलत मनु० 6.56 9. पक्षियों की उड़ान विशेष तु० -नीता विवोत्साहगुणेन सम्पद-कु० 1122, आपन्नाति डीन 10. (चढ़ावे का) अवशिष्ट अंश, उच्छिष्ट / प्रशमनफलाः सम्पदो ह्युत्तमानाम् - मेघ० 53 | सम्पातिः [सम् + पत् + णिच् + इन्] एक पौराणिक पक्षी, 2. समृद्धि, ऐश्वर्य, फलना-फूलना (विप० विपद् या गरुड़ का पुत्र, जटायु का बड़ा भाई। आपद्)-ते भृत्याः नृपतेः कलत्रमितरे सम्पत्सु चापत्सु | सम्पादः [सम् + पद्+णिच् +घञ] 1. पूर्ति, निष्पन्नता च-मुद्रा० 1615 3. सौभाग्य, आनन्द, किस्मत / 2. अभिग्रहण।। 4. सफलता, पूर्ति, अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति-श० सम्पादनम् सम् +पद्+णि+ल्यूट] 1. निष्पादन, कार्या७.३० 5. पूर्णता, श्रेष्ठता, जैसा कि 'रूपसंसद' में न्वयन, पूरा करना 2. उपार्जन करना, प्राप्त करना, -शि०१३५6. धनाढचता, पुष्कलता, बाहुल्य, प्राचुर्य, अवाप्त करना 3. स्वच्छ करना, साफ करना, (भूमि आधिक्य -- तुषारवृष्टिक्षतपद्मसम्पदाम् ---कु० 5 / 27, आदि) तैयार करना, मनु० 3 / 225 / रघु० 1059 7. कोश 8. लाभ, हित, वरदान | सम्पिण्डित (भू.क.कृ.) [सम् +पिण्ड् + क्त] 1. राशीकृत 1. सद्गुणों की वृद्धि 10. सजावट 11. सही ढंग / 2. सिकुड़ा हुआ। 12. मोतियों का हार / सम०-वर, राजा,-विनि- | सम्पीड: [सम्+पीड्+घञ] 1. निचोड़ना, भींचना मयः हितों.या सेवाओं का आदान-प्रदान-रघु०१।२६। 2. पीडा, यातना 3. विक्षोभ, बाधा 4. भेजना, निदेशन, सम्पन्न (भू०००) [सम् - पद्+क्त] 1. समद्धिशाली, आगे आगे हांकना, प्रणोदन-सम्पीडक्षभितजलेषु फलता-फूलता, धनाढ्य 2. भाग्यशाली, सफल, प्रसन्न तोयदेषु -कि० 7 / 12 / 3. कार्यान्वित, साधित, निष्पन्न 4. पूरा किया गया, सम्पीडनम् [सम्-+-पीड़-+ल्यट] 1. निचोड़ना, मिलाकर पूर्ण कर दिया गया 5. पूर्ण 6. पूर्णविकसित, परिपक्व | दाबना 2. प्रेषण 3. दण्ड, कशाघात 4. झकोलना, 7. प्राप्त किया गया, हासिल किया गया 8. शुद्ध, क्षुब्ध होना। सही 9. सहित, युक्त 10. हुआ हुआ, घटित, नः सम्पोतिः (स्त्री०) [ सम्+पा+क्तिन् ] मिल कर पीना, शिव का विशेषण, त्रम् 1. धन, दौलत 2. स्वादिष्ट सहपान / भोजन, मधुर और मजेदार भोजन / सम्पुटः [सम् +पुट क] 1. गह्वर–स्वात्यां सागरशुक्तिसम्परायः [सम्+परा++अच् ] 1. संघर्ष, मुठभेड़, सम्पुटगतं (पयः) सन्मौक्तिकं जायते भर्त० 2 / 67, संग्राम, युद्ध 2. संकट, दुर्भाग्य 3. भावी स्थिति, (पाठान्तर) काव्या० 2 / 288, ऋतु० 1521 2. रलभविष्य 4. पुत्र / पेटी, डिब्बा 3. कुरवक फूल। सम्पराय (पि) कम् [सम्पराय +कन्, ठन् वा मुठभेड़, | सम्पुटकः, सम्पुटिका [सम्पुट + कन्, सम्पुटक + टाप, इत्वम्] संग्राम, युद्ध / संदूक, रत्नपेटी। सम्पर्कः सम-पच--घा] 1. मिश्रण 2. मिलाप, मेल जोल, स्पर्श - पादेन नापेक्षत सुन्दरीणां सम्पर्कमाशि- | सारा, दे० पूर्ण, णम् अन्तरिक्ष / जितनूपुरेण कु० 3 / 26, मेघ० 25, विक्रम० 1 // | सम्पृक्त (भू० क० कृ.) [सम् + पृच ---क्त] 1. एकीकृत, 13 3. मण्डली, समाज, साथ न मूर्खजनसम्पर्कः / मिश्रित 2. संयुक्त, संबद्ध, धनिष्ठ, संबंध से युक्त सुरेन्द्रभवनेष्वपि-भर्तृ०-२।१४ 4. मथुन, संभोग / / -वागर्थाविव सम्पृक्तौ-रघु० 115 3. स्पर्श करना। For Private and Personal Use Only Page #1092 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1083 ) सम्प्रक्षालनम् [ सम्+प्र+क्षल+णिच-+-ल्युट ] 1. पूर्ण सम्प्रयाणम् [ सम्+प्र+या+ल्युट ] बिदाई। मार्जन 2. स्नान, नहलाई-धुलाई 3. जल-प्रलय। सम्प्रयोगः [ सम्+प्र+युज+घञ. 11. संयोग, मिलाप, सम्प्रणेत् (पुं०) [ सम्--प्र-+-णी+तच ] शासक, न्याया- सम्मिलन, संयोजन, संपर्क-(जलस्य) उष्णत्वमग्न्याधीश। तपसम्प्रयोगात्-रघु० 5 / 54, मालवि०५।३3. संयोसम्प्रति (अव्य०) [ सम्+प्रति-द्व० स० ] अब, हाल जक कड़ी, बंधन या जकड़न एतेन मोचयति भूषणमें, इस समय अयि सम्प्रति देहि दर्शनम् --- कु० सम्प्रयोगात्-- मृच्छ० 3 / 16 3. संबंध, निर्भरता 418 / 4. पारस्परिक संबन्ध या अनुपात 5. संयुक्त श्रेणी या सम्प्रतिपत्तिः (स्त्री०) [ सम्+प्रति+पद्-+ क्तिन् ] क्रम 6. मैथुन, संभोग 7. प्रयोग, 8. जादू / 1. उपगमन, पहुंच 2. उपस्थिति 3. लाभ, प्राप्ति, उप- सम्प्रयोगिन् (वि.) [सम्+प्र+युज+घिनुण ] साथ लब्धि 4. करार 5. मानना, स्वीकार कर लेना __ साथ मिलने वाला, पुं० 1. मेलापक, संयोजक, - मुद्रा० 5 / 18 6. किसी तथ्य को मानना, कानून 2. बाजीगर 3. लम्पट 4. चुल्ली, गांड / / में विशेष प्रकार का उत्तर 7. धावा, आक्रमण सम्प्रवृष्टम् [सम्+प्र+वृष्+क्त] अच्छी वर्षा / 8. घटना 9. सहयोग 10. करना, अनुष्ठान / / संम्प्रश्नः [सम्यक प्रश्नः-प्रा०स०] 1. पूरी या शिष्टतापूर्ण सम्प्रतिरोधकः, कम् [सम्+प्रति+रु+घञ +कन्] पूछ-ताछ 2. पृच्छा, पूछ-ताछ।। 1. पूरा अवरोध 2. कैद, जेल / सम्प्रसादः [सम्+प्र+सद्+घञ.] 1. प्रसादन, तुष्टीसम्प्रतीक्षा [ सम् - प्रति ईक्ष+अङटाप् ] आशा करण 2. अनुग्रह, कृपा 3. शान्ति, सौम्यता 4. विश्वास, लगाना या बांधना। भरोसा 5. आत्मा। सम्प्रतीत (भू० क० कृ०) [सम्प्र ति+इ+क्त] सम्प्रसारणम् [सम्+प्र+स+णिच् + ल्युट्] य, व, र, ल, 1. वापिस आया हुआ 2. पूर्णतः विश्वास दिलाया हुआ के स्थान पर क्रमशः इ, उ, ऋ या ल को रखना 3. प्रमाणित, माना हुआ 4. विश्रुत 5. सम्मान पूर्ण / --- इग्यणः सम्प्रसारणम् -पा० 111 / 45 / सम्प्रतीतिः [ सम्+प्रति+इ+क्तिन् ] 1. पूरा कि सम्प्रहारः [सम् +प्र+ह+घञ] 1. पारस्परिक प्रहार 2. कार्यपालन, प्रसिद्धि, ख्याति, कुख्याति कु० 2. मुठभेड़, संग्राम, युद्ध संघर्ष-उत्तर० 67 / 3 / 43 / सम्प्राप्तिः (स्त्री०) [सम्+प्र+आप+क्तिन्] निष्पत्ति, सम्प्रत्ययः [ सम् + प्रति+इ+अच् ] 1. दृढ़ विश्वास अभिग्रहण। 2. करार। सम्प्रीतिः (स्त्री०) (सम्+प्री+क्तिन्] 1. अनुराग, स्नेह सम्प्रदानम् [ सम्+प्र+दा+ल्यट] 1. पूरी तरह से दे / 2. सद्भावना, मैत्रीपूर्ण स्वीकृति 3. हर्ष, उल्लास / देना, हवाले कर देना 2. उपहार भेंट, दान 3. विवाह सप्रेक्षणम् [सम्+प्र+ईक्ष् + ल्युट] 1. अवेक्षण, अवलोकन कर देना 4. चतुर्थी विभक्ति द्वारा अभि- 2. विचार करना, गवेषणा करना। व्यक्त अर्थ / सम्प्रेषः [सम्+प्र+इष्+घञ.] 1. भेजना, बर्खास्तगी सम्प्रवानीयम् [ सम् + प्रदा -+ अनीयर् ] भेंट, दान / / 2. निदेश, समादेश, आज्ञा / सम्प्रदायः [ सम्+प्रदा +घञ ] 1. परंपरा, परंपरा | सम्प्रोक्षणम् [सम्+प्र-उक्ष ल्युट] मार्जन, जल के छींटे प्राप्त सिद्धान्त या ज्ञान, परम्परा प्राप्त शिक्षा देना, अभिमंत्रित जल छिड़कना। -~-उत्तर० 5 / 15 2. धर्म-शिक्षा की विशेष पद्धति, सम्लवः [सम्+प्लु+अप] 1. प्लावन, जलप्रलय 2. लहर धार्मिक सिद्धान्त जिसके द्वारा किसी देवताविशेष की 3. बाढ़ 4. बर्बाद हो जाना 5. विध्वंस, तहसनहस / पूजा बतलाई जाय 3. प्रचलित प्रथा, प्रचलन / सम्फालः [सम्यक् फालो गमनं यस्य-प्रा०ब०] मेढ़ा, भेड़ / सम्प्रधानम् [ सम-+प्र+धा+ल्यूट ] निश्चय करना। सम्फेटः (10) क्रोधपूर्ण संघर्ष, दो ऋद्ध व्यक्तियों की पारसम्प्रधारणम् –णा [ सम्+प्र+णिच् + ल्युट ] 1. विचार | स्परिक मुठभेड़ को अभिव्यक्त करने वाली घटना-दे. 2. किसी वस्तु का औचित्य या अनौचित्य निर्धारित साद० 379, 420, उदा०-माधव और अघोरघंटके करना। मध्य मुठभेड़-मा० 5 / सम्प्रपदः [ सम् +प्र+पद+क] पर्यटन, भ्रमण / | सम्ब (म्वा० पर० सम्बति) जाना, हिलना-जुलना। सम्प्रभिन्न (भू. क. कृ.) [ सम्+प्र+भिद्+क्त] | ii (चुरा० उभ० सम्बयति-ते) संग्रह करना, संचय 1. फटा हुआ, चिरा हुआ 2. मद में मत्त / करना / सप्रमोदः [सम्+प्र| मुद्+घञ्] हर्षातिरेक, उल्लास / / सम्बम् [सम्ब+ अच्] खेत को दूसरी बार जोतना (सम्बाकृ सम्प्रमोषः [ सम्+प्र+मुष्+घञ ] हानि, विनाश, दो बार हल चलना) दे० 'शम्ब' भी। पृथक्करण, अलगाव / / सम्बद्ध (भू० क० कृ०) [सम्+बंध-+क्त] 1. संग्रथित, मर स1. फटा हुआ, मद- घन] हानिहानि, विनाश, सम्बर (भू० क For Private and Personal Use Only Page #1093 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1084 ) मलाकर बांधा हुआ ला 4. सहित / लाप, साहचर्य सम्भलाभली / मिलाकर बांधा हुआ 2. अनुरक्त 3. संयुक्त, जुड़ा, / सम्भग्नः (भू० क. कृ.) [सम् + भज् + क्त छिन्न-भिन्न, हुआ, संबंध रखने वाला 4. सहित / तितर-बितर, ग्नः शिव का विशेषण / सम्बन्धः[सम+बन्ध+घञ] 1. संयोग मिलाप, साहचर्यं / सम्भली [सम् |-भल+अच्+ ङीष्] दूती, कुटनी दे० 2. रिस्ता, रिश्तेदारी 3. छठी विभक्ति या संबंध कारक के अर्थस्वरूप संबंध 4. वैवाहिक संपर्क-कु० | सम्भवः [सम्+भू-अप] 1. जन्म, उत्पत्ति, फूटना, उगना, 6 / 29, 30 5. मित्रता का संबंध, मंत्री,... सम्बन्धमा-1 अस्तित्व प्रियस्य सुहृदो यत्र मम तत्रैव संभवो भाषणपूर्वमाहुः-- रघु० 2 / 58 6. योग्यता, औचित्य भूयात् मा० 9, मानुषीषु कथं वा स्थादस्य रूपस्य 7. समृद्धि, सफलता। सम्भवः श० श२६, भग० 3314, (इस अर्थ में सम्बन्धक (वि.) [सम्+बन्ध+वल] 1. रिश्ता रखने प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त)-अप्सरःसम्भवैषा वाला, संबंध रखने वाला 2. योग्य, उपयुक्त,-कः ----श०१ 2. उत्पादन, पालन-पोषण-मनु० 2 / 227 1. मित्र, जन्म या विवाह के कारण बना संबंध, (इस पर कुल्ल० की टीका देखो) 3. कारण, मूल, एक प्रकार की शान्ति / / प्रयोजन . मिलाना, मिलाप, सम्मिश्रण 5. संभावना सम्बन्धिन् (वि.) सम्बन्ध+णिनि] 1. संबंध रखने वाला -.-संयोगो हि वियोगस्य संसूचयति सम्भवम् सुभा० 2. संयुक्त, जुड़ा हुआ, अन्तहित 3. अच्छे गणों से 6. समनुकूलता, संगति 7. अनुकूलन, उपयुक्तता युक्त--पुं० 1. विवाह के फल स्वरूप बनी वन्धुता 8. करार, पुष्टि 9. धारिता 10. समानता (एक --उत्तर० 4 / 9 2. रिस्तेदार, बन्धु। प्रमाण) 11. परिचय 12. हानि, विनाश / सम्बरः[सम्ब+अरन् | 1. बाँध, पुल 2. एक हरिण विशेष सम्भारः [सम्-भ+घा] 1. एकत्र मिलाना, संग्रह 3. प्रधुम्न के द्वारा मारा गया राक्षस दे० शम्बर करना 2. तैयारी, सामग्री, आवश्यक वस्तुएँ, अपेक्षित और प्रद्युम्न 4. पहाड़ का नाम,-रम् 1. प्रतिबंध वस्तुएं, उपकरण, किसी कार्य के लिए आवश्यक 2. जल / सम०--अरिः,-रिपुः कामदेव। वस्तुएँ - सविशेषमद्य पूजासम्भारो मया संनिधापनीयः सम्बलः, -कम् सिम्ब+कलच] पाथेय, यात्रा के लिए -मा० 5, रघु० 1214, विक्रम०२ 3. अवयव, सामग्री, मार्गव्यय, --लम् पानी। संघटक, उपादान 4. समुच्चय, ढेर, राशि, संघात, सम्बाष (वि.) [सम्यक बाधा यत्र-प्रा०ब०] संकूल, भीड़ जैसा कि 'शस्त्रास्त्रसम्भार' में 5. पूर्णता 6. दौलत, से युक्त, अवरुद्ध, संकीर्ण-- सम्बाधं बृहदपि तद्बभूव धनाढचता 7. संधारण, पालन-पोषण / वर्म-शि० 82, व्योम्नि संबाधवर्त्मभिः-रघु० सम्भावनम्,-ना [सम्+भू+णिच् + ल्युट] 1. विचारना, 12167, --1. भीड़ का होना 2. दबाव, घिसर, विचारविमर्श करना रघु० 5 / 28 2. उद्भावना, चोट, स्तनसम्बाघमुरो जघान च---कु० 4 / 26 उत्प्रेक्षा-सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत-काव्य० 3. रुकावट, कठिनाई, भय, विघ्न -कि० 3153 10 3. विचार, कल्पना, चिन्तन 4. आदर, सम्मान, 4. नरक का मार्ग 5. हर भय 6. भग, योनि / / मान, प्रतिष्ठा सम्भावनागुणमवेहि तमीश्वराणाम् सम्बाधनम् [सं+बा+ल्यट] 1. रोकना, अवरोध श० 7 / 3 5. शक्यता 6. योग्यता, पर्याप्तता-कि. 2. भींचना 3. शुल्कद्वार, फाटक 4. योनि, भग | 3139 7. सक्षमता, योग्यता 8. संदेह 9. स्नेह, प्रेम 5. सूली, या सूली की नोक 6. द्वारपाल / 10 ख्याति / सम्बधिः (स्त्री० [सम्+बध+क्तिन्] 1. पूर्ण ज्ञान या | सम्भावित | सम्भावित (भ० क. कृ.) [सम्--भूणिच्+क्त] . , प्रत्यक्षज्ञान 2. पूर्ण चेतना 3. पुकारना, बुलाना चिन्तित, कल्पित, विचारित-पित्राहं दोषेष सम्भा4. (ठया० में) संबोधन कारक एङ् ह्रस्वात् संबुद्धेः वितः-का. 2. प्रतिष्ठित, सम्मानित, आदरित -पा०६।११६९। --भर्त० 2 / 34 3. उपयुक्त, योग्य, पर्याप्त, युक्त सम्बोधः [सम्---बुध-+घञ्] 1. व्याख्या करना, निर्देश 4. संभव। देना, सूचित करना 2. पूर्ण या सही प्रत्यक्षज्ञान | सम्भाषः (सम्+भाष+घञ समालाप-मनु० 2 / 195, 3. भेजना, फेंक देना 4. हानि, विनाश / 8 / 364 / सम्बोधनम् [स+बुध+-णि+ल्युट] व्याख्या करना सम्भाषा [संभाष +-टाप्] 1. प्रवचन, समालाप 2. अभिवादन 2. संबोधित करना 3. संबोधन कारक 4. (किसी को 3. आपराधिक संबंध 4. करार, संविदा 5. संकेत-शब्द, बुलाने के लिए प्रयुक्त शब्द) विशेषण भामि० युद्धघोष / 3 / 13 / सम्भूतिः (स्त्री.) [सम्+भू+क्तिन्] 1. जन्म, उद्भव, सम्भक्तिः (स्त्री०) [सम् + भ+क्तिन्] 1. हिस्सा लेना, उत्पत्ति - मनु० 22147 2. सम्मिश्रण, मिलाप अधिकार करना 2. वितरण करना। 3. योग्यता, उपयुक्तता 4. शक्ति / For Private and Personal Use Only Page #1094 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1085 ) सम्भत (भू० क० कृ०) [सम्+म+क्त] 1. एकत्रित, | सम्मर्दः [सम्+मृद्+घञ्] 1. आपस में घिसना, घर्षण संगहीत, संकेन्द्रित 2. उद्यत, तयार, अन्वित, सज्जित 2. जमघट, भीड़, जमाव - यद्गोप्रतरकल्पोऽभूत्सम्म3. सुसज्जित, संपन्न, युक्त, सहित 4. रक्खा हुआ, | र्दस्तत्र मज्जताम्-रघु० 15 / 101, मा० 10 3. कुचजमा किया हुआ 5. पूर्ण, पूरा, समस्त 6. लब्ध, लना, पैरों से रौंदना 4. संग्राम, युद्ध। अवाप्त 7. ले जाया गया, वहन किया गया 8. पोषित / सम्मातुर-संमातुर दे० 'सत्' के अन्तर्गत / 9. उत्पादित, पैदा किया गया। सम्मादः [सम्मद्---घन] मद, नशा, पागलपन / सम्भतिः (स्त्री० [सम् / भ-क्तिन] 1. संग्रह 2. तैयारी, सम्मानः [सम्+मन्+घञ्] आदर, प्रतिष्ठा,-नम् 1. माप साज-सामान, सामग्री 3. पूर्णता 4. सहारा, संधारण, 2. तुलना। पोषण / सम्माजकः [सम् +मृज्+ण्वुल] झाड़ने वाला, बुहारी देने सम्भेदः [सम्+भिद्+घञ्] 1. टटना, टुकड़े-टुकड़े करना वाला, भंगी। 2. मिलाप, मिश्रण, सम्मिश्रण---आलोकतिमिरसम्भे- सम्मार्जनम् [सम्+म+ल्युट्] 1. बुहारना, मांजना दम्-मा० 10111, हर्षोद्वेगसम्भेद उपनत:-मा०८ 2. निर्मल करना, साफ करना, झाड़ना। 3. मिलना (जैसे निगाहों का) 4. संगम, (दो नदियों सम्मानी सम्मार्जन-- डीप झाडू, बुहारी। का ) मिलन .. तदुत्तिष्ठ पारासिन्धुसम्भेदमवगाह्य | सम्मित (भू० क० कृ०) [सम्+मान्-+ क्त] 1. मापा नगरीमेव प्रविशावः, अयमसौ महानद्योः सम्भेद:-मा० हुआ, नापा हुआ 2. समान माप, विस्तार या मूल्य का, 4, मधुमतीसिंधुसम्भेदपावनः - 9 / सम, वैसा ही, बराबर मिलता-जलता कान्तासम्मिसम्भोगः [सम् --भुज-घा | 1. आनन्द लेना, मजे लेना ततयोपदेशयुजे--- का० 1, रघु० 3.16 3. इतना सत्सम्भोगफलाः श्रियः सुभा० 2. कब्जा, उपयोग, बड़ा जितना कि, पहुँचता हुआ 4. समरूप. समनुकुल, अधिकृति ...मन० 8 / 2003. रति रस, मैथुन, सह- समानुपातिक 5. से युक्त, सुसज्जित / वास---सम्भोगान्ते मम समुचितो हस्तसंगहनानाम् सम्मिश्र, सम्मिश्रित (वि.) [सेम्+मिश् +अच्, क्त वा] -मेघ० 95 4. लम्पट, गांडू.. शृंगाररस का एक! 1. परस्पर मिलाया हुआ, अन्तमिश्रित / / उपभेद, दे० 'शृंगार' के अन्तर्गत / सम्मिश्लः [-सम्मिश्र, पृषो० रस्य ल:] इन्द्रका विशेषण / सम्भ्रमः [सम्+भ्रम्+घञ्] 1. मुड़ना, आवर्तन, चक्कर सम्मीलनम् [सम्+मील+ल्युट (फूल आदि का) बन्द काटना 2. जल्दबाजी, उतावली 3. अव्यवस्था, विक्षोभ, होना, ढकना, लपेटना। हड़बड़ी- कु० 3 / 48 4. डर, आतंक, भय,-श०१, सम्मुख (वि.) [स्त्री०-खा, खी) संमुखीन (वि.) [संगतं कि० 15 / 2 5. श्रुटि, भल, अज्ञान 6. उत्साह, क्रिया- मुखं येन-प्रा० ब०, सर्वस्य मुखस्य दर्शन:-सममुख शीलता 7. आदर, श्रद्धा गृहमुपगते सम्भ्रमविधिः +ख, सम सब्दस्य अन्त्यलोपः नि०] 1. सामने का, ...-भर्त० 2 / 63, तव वोयंवतः कश्चिद्यद्यस्ति मयि सम्मुख स्थित, आमने सामने, अभिमुखी, सामना सम्भ्रमः-रामा० / सम० -ज्वलित (वि.) विक्षोभ से करने वाला-कामं न तिष्ठति मदाननसंमखी सा उत्तेजित,-भेत् (वि.) घबड़ाया हुआ, हड़बड़ाया हुआ। श०१०३१, रघु० 15 / 16, शि. 10 / 86 2. मुठभेड़ सम्भ्रान्त (भू० क० कृ०) सम् +भ्रम्+क्त] 1. आवर्तित करने वाला, मुकाबला करने वाला 3. स्वस्थ / 2. हड़बड़ाया हुआ, विक्षुब्ध, विस्मित, व्याकुल / सम्मुखिन् (पु.) [सम्मुखमस्य अस्ति सम्मुख+ इनि] सम्मत (भू० क. कृ.) [सम्+मन्+क्त 1. सहमत, | दर्पण, शीशा, आईना। स्वीकृत, माना हुआ 2. पसन्द किया हुआ, प्रिय, | सम्मर्छनम् [ सम् + मूर्छ =ल्युट ] 1. मूर्छा, बेहोशी प्रियतम 3. समान, मिलता-जुलता 4. खयाल किया 2. जमता, गाढ़ा होना 3. गाढ़ा करना, बढ़ाना गया, सोचा गया, विचारा गया 5. अत्यन्त आदत, 4. ऊँचाई 5. विश्वव्याप्ति, सह-विस्तार, पूर्ण व्याप्ति / सम्मानित, प्रतिष्ठित, सम् सहमति, दे० सम्मति। | सम्मृष्ट (भू० क० कृ०) [सम्+म+क्त] / भली भांति संमतिः (स्त्री०)[सम्+मन+क्तिन्] 1. सहमति 2. सम- बुहारा गया, मांजा-धोया गया 2. छना हुआ, छाना नुकूलता, मान्यता, अनुमोदन, समर्थन 3. अभिलाषा, हुआ। इच्छा 4. आत्मज्ञान, आत्मा की जानकारी, सत्यज्ञान | सम्मेलनम् सिम् +-मिल् + ल्युट्] 1. परस्पर मिलना, मिलाप 5. खयाल, आदर, प्रतिष्ठा-कथमिव तव सम्मतिर्भ- 2. मिश्रण 3. एकत्र करना, संग्रह करना। वित्री सममृतुभिर्मुनिनावधीरितस्य-कि० 10 // 36 सम्मोहः [सम्+मुह+घञ] 1. घबराहट, अव्यवस्था, 6. प्रेम, स्नेह। प्रेमोन्माद 2. मूर्छा, बेहोशी 3. अज्ञान, मूर्खता सम्मदः [सम्+मद् + अप्] अतिहर्ष , खुशी, प्रसन्नता---शि० 4. आकर्षण / 15177 / | सम्मोहनम् [सम्+मुह+णि+ल्युट्] मंत्रमुग्ध करना, सम्मीलनम् बना, लपेटना / मीन (वि.) [संगतं For Private and Personal Use Only Page #1095 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1086 ) वशीकरण, नः कामदेव के पाँच बाणों में से एक / सरट् (पुं०) [स+अटि: ] 1. हवा, वाय 2. बादल कु० 3166 / 3. छिपकली. मधुमक्खी। सम्यच् सम्यञ्च (वि०) (स्त्री०--समीची) [सम् / अञ्च् / सरटः [स+अटच् / 1. वायु 2. छिपकली-- लता हि सर +-क्विन, समि आदेशः पक्षे नलोपः] 1. साथ जाने टानां च तिरश्चां चाम्बुचारिणाम-मन० 12157 / वाला, साथ रहने वाला 2. सही, युक्त, उचित, | सरटिः [स+अटिन् ] 1. वाय 2. बादल। यथोचित 3. शुद्ध, सत्य, यथार्थ 4. सुहावना, रुचिकर सरदुः [सृ-अटु छिपकली, गिरगिट / ......कि च कुलानि कवीनां निसर्ग-सम्यभिच रज्जयतु- सरण (वि.) [सू ल्युट ] 1 जाने वाला, गतिशील रस 5. वही, एकरूप 6. सब, पूर्ण, समस्त-(अव्य० 2. बहने वाला,- णम् 1. प्रगतिशील, जाने वाला, -सम्यक ) 1. के साथ, साध-साथ 2. अच्छा, उचित वहनशील 2. लोहे का जंग, मचर्चा। रूप से, सही ढंग से, शुद्धतापूर्वक, सचमुच सम्य- सरणिः,-णी (स्त्री०) [स-+ नि: 1 पथ, मार्ग, सड़क, गियमाह , श० 1, मनु० 2 / 5, 14 3. यथावत्, रास्ता-आनन्द०१८ 2. क्रम, विधि सीधी अनवरत यथोचित ढंग से, ठीक-ठीक, सचमुच 4. सम्सान पूर्वक पंक्ति 4. कण्ठरोग। 5. पूरी तरह से, पूर्णत: 6. स्पष्ट रूप से / सरण्डः [ सू+अण्डच् ] 1. पक्षी 2. लम्पट, दुश्चरित्र व्यक्ति सम्राज ( पु० ) [ सम्यक् राजते-सम्+राज्+क्विप्] 3. छिपकली 5. धूर्त . एक प्रकार का अलंकार / 1. सर्वोपरि प्रभु, विश्वराट्, विशषतः वह जा अन्य | सरण्यः[स+अन्यच | 1. बाय, हवा 2. बादल 3. जल राजाओं पर शासन करता हो तथा जिसने राजसूय 4. बसंत ऋतु 5. अग्नि 6. यम का नाम / यज्ञ का अनुष्ठान कर लिया है-येनेष्टं राजसूयेन सरनिः (0, स्त्री०) सह रनिना ब० स०] एक मण्डलस्येश्वरश्च यः। शास्ति यश्चाज्ञया राज्ञः स | हाथ का माप, तु० रत्नि या अरनि। सम्राट् .. अमरः, -- रघु० 2 / 5 / सरथ (वि.) [समानो रथो यस्य रथेन सह वा-ब० स०] सय् (भ्वा० आ० सयते) जाना, हिलना-जुलना। एक ही रथ पर सवार,-थः रथ पर सवार योद्धा / सयथ्यः [सयूथ + यत् एक ही वर्ग या जाति का। सरभस (वि.) [सह रभरोन ब० स०] 1. वेगवान्, सयोनि (वि.) समाना योनियंस्य ब० स०, समानस्य फुर्तीला 2. प्रचण्ड, उग्र 3. क्रोधपूर्ण + प्रसन्न,----सम् सादेशः] एक ही कोख का, एक ही गर्भ से उत्पन्न, (अव्य०) अत्यंत वेग से। सहोदर,-नि: 1. सगा या सहोदर भाई 2. सरोता | सरमा [ सृ+अम+टाप् | 1. देवों की कुतिया 2. दक्ष 3. इन्द्र का नाम / की पुत्री का नाम 3. रावण के भाई विभीषण की सर ( वि०) [स+अच् ] 1. जाने वाला, गतिशील | पत्नी का नाम / 2. रेचक, दस्तावर-रः 1. जाना, गति 2. बाण | सरयुः [सृ+अयु ] वायु, हवा, युः,-यः (स्त्री०) एक 3. आतंच, दही का चक्का, मलाई 4. नमक .. लड़ी, नदी का नाम जिसके तट पर अयोध्यानगरी स्थित हार--अयं कण्ठे बाहुः शिशिरमसणो मौक्तिकसरः / है... रघु० 8 / 95, 13 // 61, 63, 14 / 30 / / उत्तर० 1 / 39 29 6. जलप्रपात,--- रम् 1. जल | सरल (वि.) [स-अलच ] 1. सीधा, अंबक 2. ईमानदार, 2. झील, सरोवर। सम० - उत्सवः सारस, जम् खरा, निष्कपट, निश्छल . सीधासादा, भोला भाला, ताजा मक्खन, नवनीत, तु० शरज। स्वाभाविक-- सरले साहसरागं परिहर-मा०६।१०, सरकः, - कम् [ स--वन् ] 1. सड़क राजमार्ग की अयि सरले किमत्र मया भगवत्या शक्यम्-.२,-ल: अनवरत पंक्ति, 2. मदिरा, उग्र सुरा-चक्ररथ सह 1. चीड़ का वृक्ष विघट्टितानां सरलद्रुमाणाम् ... कु. परन्ध्रिजनैरयथार्थसिद्धि सरकं महीभृतः-शि० 15 / 129, मेघ० 53, रघु० 4 / 75 2. आग। सम. 80, 1112 4. पीने का बर्तन, शराब पीने का . अङ्गः सरल वृक्ष का रस, विरोजा, तारपीन, द्रवः प्याला, कटोरा-शि० 10 / 20 5. तेज शराब का सुगंधित विरोजा। वितरण,---कम् 1. जाना, गति 2. तालाब, सरोवर सरव्य दे० शरव्य / 3. स्वर्ग / सरस् (नपुं०) [स+असुन् ] 1. सरोवर, तालाब, पोखर, सरधा [ सरं मधुविशेषं हन्ति-सर+हन्-+-ड नि० ] मधु- पानी का विशाल तख्ता -सरसामस्मि सागर:-भग० मक्खी,तस्तार सरधाव्याप्तः स क्षौद्रपटलैरिव 10 / 01 2. जल / सम० जम्,-जन्मन् (नपुं०) -रघु० 4163, शि० 15 / 23 / -रुहम्, (सरोजम्, सरोजन्मन, सरोरुहम्) सरसिजम्, सरङ्गः[स+अङ्गन् ] 1. चतुष्पाद, चौपाया, 2. पक्षी। सरसिकहम् कमल--सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यम् सरजस्,-सा (स्त्री०), सरजस्का [ सहरजसा-ब० स०, ----श० 1120, सरोरुहद्युतिमुषः पादास्तवासेवितुम् पक्षे कप्+टाप् ] रजस्वला स्त्री। ----- रत्न०१३०,-जिनी,-दहिणी 1. कमल का पौधा जाने वाला, गतिशा सरयुः / स नाम जिसके तह, 63, 1413 For Private and Personal Use Only Page #1096 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1087 ) वैसे ही-रघु० ....भ्रमर कथं वा सरोजिनीं त्यजसि-भामि० 1100 रूप वाला 2. समान, मिलता-जुल 2. कमलों से भरा हुआ सरोवर,- रक्षः (सरोरक्षः) | 659 / तालाब का संरक्षक, रह (सरोरह) (नपुं०) कमल, ! सरूपता,-त्वम् [ सरूप+तल+टाप, त्व वा] 1. समानता वरः (सरोवरः) झील / 2. ब्रह्मरूप हो जाना, मुक्ति के चार प्रकारों में सरस (वि.) [ रसेन सह ब० स०] 1. रसोला, सजल से एक। 2. स्वादु, मधुर 3. आई–शि० 11154 4. पसीने सरोष (वि०) [ सह रोषेण ब० स०] 1. क्रुद्ध, रोषपूर्ण से तर -कु. 5485 5. प्रेमपूर्ण, प्रणयोन्मत्त-भामि० 2. कुपित / 11100 (यहाँ इसका अर्थ 'मवपूर्ण' भी है) 6. लावण्य- सर्कः स+क] 1. वायु, हवा 2. मन / मय, प्रिय, रुचिकर, सुन्दर-सरसवसन्त गीत०१ सर्गः| सज+घञ ] 1. छोड़ना, परित्याग 2. सृष्टि 7. ताजा, नया, सम् 1. झील, तालाब 2. रसायन ..... अस्याः सर्गविघौ प्रजापतिरभूच्चन्द्रो न कान्तिप्रदः विद्या। ..-विक्रम 19 3. सष्टिरचना - कु० 2 / 6, रघु० सरसी [ सरस्+कीष् ] झोल, पोखर, सरोवर-भामि० 3 / 27 4. प्रकृति, विश्व 5. नैसर्गिक गुण, प्रकृति 21144 / सम-रहम् कमल / 6. निर्धारण, संकल्प गहाण शस्त्रं यदि सर्ग एष ते सरस्वत् (वि.) [सरस्+मतुप, ] 1. सजल, जलयुक्त -रघु० 3 / 51, 14 / 42, शि० 19138 7. स्वीकृति, 2. रसीला, मजेदार 3. ललित 4. भावुक, पुं० 1. समुद्र सहमति 8. अनुभाग, अध्याय, (काव्य आदि का) 2. सरोवर 3. नद 4. भैस 5. वायु का नाम / सर्ग, 9. धावा, हमला, (सेना का) प्रगमन 10. मलसरस्वती [ सरस्वत+ङीप | 1 वाणी और ज्ञान की त्याग 11. शिव का नाम / सम० - क्रमः सृष्टि का क्रम, अधिष्ठात्री देवता जिसका वर्णन ब्रह्मा की पत्नी के .... बन्धः महाकाव्य, सर्गबन्धो महाकाव्यम्-सा० द०। रूप में किया गया है 2. बोली, स्वर, वचन --- कु० (भ्वा० पर० सर्जति) 1. अवाप्त करना, उपलब्ध 4 / 39, 43, रघु० 15 / 46 3. एक नदी का नाम करना 2. उपार्जन करना / (जो कि मरुस्थल के रेत में लप्त हो गई है) 4. नदी सर्जः [ सज-+अच् ] 1. साल का पेड़ 2. साल वृक्ष का 5. गाय 6. श्रेष्ठ स्त्री 7. दुर्गा का नाम 8. बौद्धों की चूने वाला रस / सम० निर्यासकः, मणिः,-रसः एक देवी 9. सोमलता 10. ज्योतिष्मती नामक बिरोजा, लाख। पौधा। सर्जकः [ सज्+ण्वुल] साल का वृक्ष / सराग (वि.) [सह रागेण-ब० स० ] 1. रंगीन, हलके | सर्जनम् सज+ल्यट] 1. परित्याग, छोड़ना 2. ढीला रंग वाला, रंगदार-(अकारि) सरागमस्या रसनागुणा- | करना 3. रचना करना 4. मलत्याग 5. सेना का स्पदम्-कु० 5 / 10 2. लाल रंग की लाख से रंगा पिछला भाग। हुना-रघु० 16 / 10 3. प्रणयोन्मत्त, प्रेमाविष्ट, मुग्ध | सजिः, सजिका, स! (स्त्री०) [ सृज् + इन्, सजि+कन् ---मनेरपि मनोऽवश्यं सरागं कुरुतेऽङ्गना-सुभा० / +टाप, जि+ङीष् ] सज्जीखार। सराव (वि.) [सह रावेग-ब० स०] 1. शब्द करने | सर्जः, सर्जुः [सज+ऊः] व्यापारी--स्त्री० 1. बिजली वाला, कोलाहल करने वाला, -व: 1. ढक्कन, आवरण | 2. हार 3. गमन, अनुसरण / 2. कसोरा, चाय की तश्तरी, तु० 'शराव' / सर्पः[सपघा ] 1. सीली गति, घुमावदार चाल, सरिः (स्त्री०) [ स-+इन् ] झरना, फौवारा। खिसकना 2. अनुसरण, गमन 3. नाग, सांप। सम० सरित् (स्त्री० [स+इति ] 1. नदो-- अन्या सरिता , अरातिः, ----अरिः 1. नेवला 2. मोर 3. गरुड का शतानि हि समुद्रगाः प्रापयन्त्यब्धिम् ---मालवि० 5 / 19 विशेषण, अशनः मोर,-- आवासम्-इष्टम् चन्दन 2. धागा, डोरो। सम० - नाथः,-पतिः (सरितांपतिः का वृक्ष,- छत्रम् कुकुरमत्ता, साँप की छतरी, खंब, भी), भर्त (पु०) समुद्र, -- वरा (सरितांवरा) गंगा -तृणः नेवला,--→ष्ट्रः सांप का विषला दाँत,-धारक: का नाम, सुतः भीष्म का विशेषण। सपेरा,-भुज् (पुं०) 1. मोर 2. सारस 3. अजगर, सरि(री) मन् (पुं०) [ सृ+ ईमनिच् ] 1. गति, सरकना –मणिः सोप के फण की मणि,- राजः वासुकि / 2. वायु / सर्पणम् [ सृप्+ ल्युट ] 1. रेंगना, सरकना 2. वक्रगति सरिलम् [स+इलच् ] जल / 3. बाण की भूमि के समानांतर उड़ान / सरीसृपः [ कुटिलं सर्पति--सप+यङ (लुक)+द्वित्वादि | सर्पिणी [ सप्+णिनि+डीप्] 1. साँपनी 2. एक प्रकार +अच् ] साँप / की जड़ी बूटी। सहः [स+उन् ] तलवार की मूठ। सपिन् (वि.) [सृप्+णिनि ] 1. रेंगने वाला, सरकने सहप (वि.) [समान रूपमस्य--ब० स०] 1. समान बाला, घुमावदार, टेढ़ी चाल चलने वाला 2. जाने For Private and Personal Use Only Page #1097 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1088 ) वाला, हिलने-जुलने वाला—यूका मन्दविसर्पिणी / सब ओर से 2. सब ओर, सर्वत्र, चारों ओर 3. पूर्णतः -पंच० 1 / 252 / सर्वथा। सम०-गामिन् (वि०) 1. सर्वत्र पहुँच सर्पिस् (नपुं०) [सृप्+ इसि] पिघलाया हुआ घृत, घी रखने वाला-कु० ३।१२,-भद्रः 1. विष्णु का रथ (घूत और सर्पिस् के अन्तर को जानने के लिए दे० 2. बाँस 3. एक प्रकार का चित्रकाव्य-- उदा० कि० आज्य)। सम-समुद्रः घृतसागर, सात समुद्रों 15/25 4. मन्दिर या महल जिसके चारों ओर द्वार में से एक। हों (इस अर्थ में नपुं० भी) (वा) नर्तकी, नटी सर्पिष्मत् (वि.) [ सर्पिस्+मतुप् | घी (से प्रसाधित) -मुख (वि०) सब प्रकार का, पूर्ण, असीमित---श० युक्त। 5 / 25, (खः) 1. शिव का विशेषण 2. ब्रह्मा का सर्व (भ्वा० पर० सर्बति) जाना, हिलना-जुलना / विशेषण ....कु० 2 / 3, (चारों ओर मुख किये हुए) सर्मः[स+मन् ] 1. चाल, गति 2. आकाश। 3. परमात्मा 4. आत्मा 5. ब्राह्मण. 6. आग सर्व (भ्वा० पर० सर्वति) चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त | 7. स्वर्ग। करना, वध करना। सर्वत्र (अव्य०) [ सर्व+अल ] 1. प्रत्येक स्थान पर, सर्व (नि० वि०) [सृतमनेन विश्वमिति सर्वम् -कर्तृ० ब० सब जगहों पर 2. हर समय / . व० पुं०, सर्वे] 1. सब, प्रत्येक,-उपर्य परिपश्यतः सर्व | सर्वथा (अव्य०) सर्व+थाल ] 1. हर प्रकार से, सब एव दरिद्रति,-हि० 2 / 2, रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः तरह से . उत्तर० 115 1. बिल्कुल, पूर्णतः (प्रायः पूर्णता गौरवाय-मेघ० 20193 2. पूर्ण, समस्त, नकारपरक) 3. पूर्णत:, बिल्कुल, नितान्त 4. सब पूरा,-वं: 1. विष्णु का नाम 2. शिव का नाम / समय / सम०-अङ्गम् समस्त शरीर,-.अशीण (वि०) समस्त | सर्वदा (अव्य०) [ सर्व+दाच ] सब समय, सदैव, शरीर में व्याप्त या रोमांचकारी- सर्वाङ्गीण: स्पर्शः हमेशा। सुतस्य किल-विक्रम० 5 / 11, - अधिकारिन् (पुं०) सर्वरी दे० 'शर्वरी'। अध्यक्षः अधीक्षक,-अनोन सब प्रकार के अन्न | सर्वशः (अव्य०) [ सर्व+-शस् ] 1. पूर्णतः, सर्वथा, पूरी को खाने वाला ... सन्निभोजिन आदि, - आकारम् तरह से 2. सर्वत्र 3. सब ओर / (समास में) सर्वथा, पूर्ण रूप से, पूरी तरह से | सर्वाणी दे० 'शर्वाणी'। ---आत्मन् (पुं०) पूर्ण आत्मा, सर्वात्मना सर्वथा, सर्षपः [ +अप, सुक ] 1. सरसों खल: सर्षपमात्राणि पूरी तरह से, पूर्ण रूप से, ईश्वरः सबका स्वामी परच्छिद्राणि पश्यति, -- सुभा०, मा०-१०१६ -ग, गामिन् (वि०) विश्वव्यापी, सर्वव्यापक, 2. एक छोटा बाट 3. एक प्रकार का विष / --जित (वि.) सर्वजेता, अजेय, ज्ञ-विद (वि०) | सल (म्वा० पर० सलति) जाना, हिलना-जुलना / सब कुछ जानने वाला, सर्वज्ञ (पं.) 1. शिव का सलम् [ सल् +अच् ] जल / / विशेषण 2. बुद्ध का विशेषण, दमन (वि०) सब सलज्ज (वि.) [ लज्जया सह ब० स०] विनीत, का दमन करने वाला, दुनिवार, - नामन् (नपुं०) लज्जाशील / संज्ञा के स्थान में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का समूह, सलिलम [ सलति गच्छति निम्नम् -सल- इलच् ] पानी, -मंगला पार्वती का विशेषण,—रसः लाख, बिरोजा, - सुभगसलिलावगाहा:--श० 113 / सम० . अयिन् ----लिगिन् (पुं०) पाखंडी, छद्मवेशी, ढोंगो,-व्यापिन् (वि०) प्यासा, * आशयः तालाब, ताल, पानी की (वि०) सर्वत्र व्यापक रहने वाला,-वेवस् (पुं०) टंकी,-इन्धनः वड़वानल, उपप्लवः जलप्लावन, प्रलय, सर्वस्व दक्षिणा में देकर यज्ञानष्ठान करने वाला, बाढ़,-क्रिया 1. अन्त्येष्टि संस्कार के अवसर पर -सहा (सर्वसहा भी) पृथ्वी, -स्वम् 1. प्रत्येक शवस्नान 2. जलतर्पण, उदकक्रिया,-अम् कमल,-निधिः वस्तु, 2. किसी व्यक्ति की समस्त संपत्ति, जैसा कि 'सर्वस्वदंड' में, हरणम् 1. सारी संपत्ति का अपहरण सलील (वि.) [ सहलीलया --ब० स०] क्रीडाशील, या जब्ती 2. किसी वस्तु का सर्वांश---दे० श० 1124, स्वेच्छाचारी, शृंगारप्रिय / / 6 / 2, मा० 8 / 6, भामि० 1163 / सलोकता [ समानः लोको यस्य-इति सलोकः तस्य भाव: सर्वषः (वि.) [ सर्व+कष+खच, मुम् / 'सब कुछ __ तल+टाप् ] एक ही लोक में होना, किसी विशेष नष्ट करने वाला', सर्वशक्तिमान--सर्वऋषा भगवती देवता के साथ एक ही स्वर्ग में निवास (मक्ति की भवितव्यतव-मा० 1123, भामि० ४।२,-वः दुष्ट, चार प्रकार की अवस्थाओं में से एक)। बदमाश। | सल्लकी [शल+वुन्, लुक, पृषो० शस्य सः ] एक प्रकार सर्वतः (अव्य०) [ सर्व+तसिल ] 1. प्रत्येक दिशा से, / का पेड़, सलाई का पेड़, दे० 'शल्लकी'। (मुक्ति की न्, लुकी में से एक For Private and Personal Use Only Page #1098 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1089 ) सवः। सु-+अच ] 1. सोमरस का निकालना 2. चढ़ावा, / गणों से युक्त 2. विशेष, असाधारण 3. विशिष्ट, तर्पण 3. यज्ञ 4. सूर्य 5. चांद 6. प्रजा,. वम् 1. पानी खास--उत्तर० 4 4. प्रमुख, श्रेष्ठ, बढ़िया 5. विलक्षण 2. फूलों से लिया गया मधु / (सविशेषम्, सविशेषतः (क्रि० वि०) विशेष कर, सवनम् [ सु (सु)-ल्युट ] 1. सोम रस का निकालना खास तौर से, अत्यंत-~अनेन धर्मः सविशेषमद्य मे या पीना 2. यज्ञ-अथ तं सवनाय दीक्षितः -रघु० त्रिवर्गसारः प्रतिभाति भामिनि--कु० 5 / 38, प्रायः 875, श० 3228 3. स्नान, शुद्धिपरक स्नान / समास में—कु० 27. रघु०१६।५३) / 4. जनन, प्रसव, बच्चे पैदा करना / सविस्तर (वि०) [ सह विस्तरेण-ब० स०] विवरण सवयस् (वि०) [ समानं वयो यस्य --ब० स० ] एक ही सहित, सूक्ष्म, पूर्ण,-- रम् (अव्य०) विवरण के साथ, आयु का पुं० 1. समवयस्क, समसामयिक 2. एक ही। विस्तार पूर्वक। आय के साथी, स्त्री० सखी, सहेली। सविस्मय (वि.) [ सह विस्मयेन--- ब० स० ] आश्चर्यासवरः (पुं०) 1. शिव का नाम 2. जल। वित, अचंभे से युक्त, चकित / सवर्ण (वि.) [समानो वर्णो यस्य .. ब०स०] 1. एक ही सवृद्धिक (वि०) [ सह वृद्धया-ब० स० कप् ] जिसका रंग का 2. एक सी सूरत शक्ल का, समान, मिलता- / ब्याज मिले, ब्याज से युक्त / जुलता दुर्वर्णभित्तिरिह सान्द्रसुधासवर्णा---शि० 4 / सवेश (वि.) [सह वेशेन - ब. स.] 1. सजा हुआ, 28, मेघ० 18, रघु० 9 / 21 3. एक ही जाति का | अलंकृत, वेशभूषा से युक्त 2. निकट, समीपवर्ती / 4. एक ही प्रकार का, एक जैसा 5. एक ही वर्णमाला 5. एक ही वणमाला | सव्य (वि.) [स+य ] 1. बायाँ, बायाँ हाथ 2. दक्षिणी का, एक ही स्थान से (वागिन्द्रियों द्वारा) उच्चारण किये 3. विरोधी, पिछड़ा हुआ, उलटा 4. सही,-व्यम् जाने वाले वर्ण-तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम् पा० 1 / 1 / 9 / (अव्य०) जनेऊ का बायें कंधे पर लटकते रहना सविकल्प, सविकल्पक (वि.) [सह विकल्पेन-ब० स० - तु० अपसव्य / सम० - इतर (वि.) सही, ठीक, पक्षे कप्] 1. ऐच्छिक 2. संदिग्ध 3. कर्ता और कर्म के "--साचिन् (पुं०) अर्जुन का विशेषण-निमित्तमात्र अन्तर को पहचानने वाला, ज्ञाता और ज्ञेय के भेद भव सव्यसाचिन--भग० 11133, (महाभारत में को जानने वाला (विप० निर्विकल्पक)। नाम की व्याख्या निम्नांकित है-- उभी मे दक्षिणी सविग्रह (वि.) (सह विग्रहेण - ब०स०] 1. शरीरधारी, पाणी गांडीवस्य विकर्षण / तेन देवमनुष्येषु सव्य देहधारी 2. सार्थक, अर्थवाला 3. संघर्षरत, झगड़ालू / साचीति मां विदुः // ) / सवितर्क, सविमर्श (वि.) सह वितर्केण विमर्शन वा-ब० | सव्यपेक्ष (वि.) [ व्यपेक्षया सह -ब० स०] संयुक्त, स०] विचारवान्,--कम,-शम् (अन्य) विचार- निर्भर-स्नेहश्च निमित्तसव्यपेक्षश्चेति विप्रतिषिद्धमेतत् पूर्वक। ---मा० 1, उत्तर०६। सवित (वि.) (स्त्री० त्री) [सूतच ] जनक, | सव्यभिचारः [ सह व्यभिचारेण---ब० स०] (तर्क० में) उत्पादक, फल देने वाला-सवित्री कामानां यदि जगति हेत्वाभास के पाँच मुख्य भेदों में से एक, साधारण जागति भवती गंगा०२३, ..पुं० 1. सूर्य उदेति | मध्यपद, व्याख्या के लिए दे० 'अनैकान्तिक' / सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च-काव्य० 7 सव्याज (वि.) [ सह व्याजेन ब. स.] 1. चालबाज 2. शिव 3. इन्द्र 4. मदार का पेड़, अर्क वृक्ष / 2. बगुलाभगत, रंगासियार, चालाक। सवित्री सवित-+ डीप] 1. माता---००११२४ 2. गाय / | सव्यापार (वि०)[व्यापारेण सह ब० स० ] व्यस्त, सविध (वि.) [ सह विधया-ब० स०] 1. एक ही | व्यापृत, कार्य में नियुक्त। प्रकार या ढंग का 2. निकट, सटा हुआ, समोपी सनीड (वि०) [वीडया सह-ब० स०] 1. लज्जाशील - भूयो भूय: सविधनगरीरथ्यया पर्यटन्तम्-मा० शर्मिन्दा। 1 / 15, ----धम् सामीप्य, पड़ोस ~~यस्य न सविघे दयिता सव्येष्ठ (0), सव्येष्ठः सव्ये तिष्ठति-सव्ये+स्था दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य-काव्य० 9, किमासेव्थं +ऋन्, क वा, अलुक स०, षत्वम्] सारथि, रथ पुंसा सविधमनवा धुसरितः--१०, नै० 2 / 47, शि० हाँकने वाला। 14169, भामि० 2 / 182 / सशल्य (वि.) सहशल्येन-ब.स.] 1. कांटेदार 2. बी सविनय (वि.) [ सह विनयेन-ब० स० 1 विनीत, या कांटों से बिंधा हुआ। विनम्र,--यम् (अव्य०) विनयपूर्वक / सशस्य (वि.) [सहशस्येन-ब० स०] सस्य से युक्त, सविभ्रम (वि०) [ सह विभ्रमेण -- ब० स०] क्रीडायुक्त, ___अन्नोत्पादक, स्या सूर्यमुखी फूल का एक भेद / विलासयुक्त / सश्मश्रु (वि.) [सह श्मश्रुणा-ब० स०] दाढ़ी-मूंछ वाला, सविशेष (वि०) [ सह विशेषेण ब० स०] 1. विशिष्ट | स्त्री वह स्त्री जिसके दाढ़ी मूंछ दिखाई दे। For Private and Personal Use Only Page #1099 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1090 ) सनीक (वि.) [श्रिया सह-ब० स०, कप्] 1. समृद्धिशाली, | 6. दबाना, रोकना 7. योग्य होना ('तुम्' के साथ), सौभाग्यशाली 2. प्रिय, सुन्दर / / प्रेर० (साहयति-ते) 1. धारण करवाना, भुगतवाना सस् (अदा० पर० सस्ति) सोना / 2. धारण करने या सहारा देने के योग्य बनना-गुर्वपि ससत्त्व (वि.) [सह सत्त्वेन ब०स०11. जीवन शक्ति से विरहदुःखमाशाबन्धः साहयति श० 4 / 16, इच्छा० युक्त, ऊर्जस्वी, बलवान्, साहसी 2. गर्भवती, स्वा (सिसहिषते) सहन करने की इच्छा करना, उद्-, गर्भवती स्त्री। 1. योग्य होना, शक्ति या ऊर्जा रखना, साहस करना, ससम्बह (वि.) [सह सन्देहेन-ब० स०] संदिग्ध,-हः एक दिलेरी दिखाना--तवानवत्तिं न च कर्तुमुत्सहे-कु० अलंकार का नाम दे० 'सन्देह' / 5 / 65, “मैं पसंद नहीं करता" आदि-भट्टि० 3 / ससनम् [सस्+ल्युट्] पशुमेध, यज्ञीयपशु का वध / 54, 5:54, 14189, शि० 14183 2. (क) प्रयास ससन्च्य (वि.) [सन्ध्यया सह-ब० स०] संध्यासंबंधी, करना, प्रणोदित होना कि० 136 (ख) ढाढस सायंकालीन। बंधाना, विषण्ण न होना, हिम्मत न हारना भद्रि० ससाध्वस (वि.) [सह साध्वसेन-ब० स०] आतंकित, | 19 / 16 3. आराम में होना- कु०४।३६ 4. आगे डरा हुआ, भीरु। बढ़ना प्रयाण करना (इच्छा०) उकसाना, उद्बुद्ध सस्बू दे० सञ्ज। --- भट्टि० 9 / 69, परि- सहन करना भट्टि० 9 / 73 सस्यम् [सस्+यत्] 1. अनाज, अन्न-(एतानि) सस्यैः पूर्णे प्र-, 1. सहन करना, झेलना-न तेजस्तेजस्वी प्रसृतमपजठरपिठरे प्राणिनां संभवन्ति—पंच० 5 / 97 दे० रेषां प्रसहते-उत्तर० 6 / 14 2. सामना करना, 'शस्य' भी 2. किसी भी पौधे का फल 3. शस्त्र मुकाबला करना, पछाड़ना--संयगे सांयगीनं तमद्यतं 4. सदगण, खुबी। सम०-इष्टिः (स्त्री०) फ़सल प्रसहेत क:-कु० 2157 3. चेष्टा करना, प्रयास पक जाने पर नये अन्न से किया जाने वाला यज्ञ,--प्रद करना 4. योग्य होना 5. शक्ति या ऊर्जा रखना-दे० (वि.) उपजाऊ,-मारिन् (वि०) अन्न को नष्ट करने 'प्रसह्य' भी, वि-, 1. सहन करना, झेलना रघु० वाला, (पुं०) एक प्रकार का चूहा, चूंस,-संवरः साल 4 / 63, 8156 2. मुकाबला करना, सामना करना, का पेड़। प्रतिरोध करने के योग्य होना-रघु० 4 / 49 3. योग्य सस्यक (वि.) [सस्य + कन्] अच्छे गुणों से युक्त, गुणा होना 4. अनुमति देना 5. इच्छा करना, पसंद करना। न्वित, श्लाघ्य, प्रशंसनीय, - कः 1. तलवार 2. शस्त्र | सह (वि.) [सहते-सह +अच] 1. सहन करने वाला, 3. एक प्रकार का मूल्यवान् पत्थर / झेलने वाला, भुगतने वाला 2. धीर 3. योग्य---दे० सस्येव (वि.) [सह स्वेदेन--ब० स०] पसीने से तर, 'असह', हः मंगसिर का महीना,-हः, -- हम शक्ति, प्रस्विन्न, वा वह कन्या जिसका हाल में ही कौमार्य- सामर्थ्य / भंग हुआ हो। सह (अव्य०) 1. के साथ, मिलकर, साथ-साथ, सहित, से सह i (दिवा० पर० सह्यति) 1. सन्तुष्ट करना 2. प्रसन्न युक्त (करण)-शशिना सह याति कौमुदी सह मेधेन होना 3. सहन करना, झेलना / तडित्प्रलीयते-कु० 4 / 33 2 साथ मिलकर, एक ii (भ्वा० आ०-सहते, सोढ, नि, परि, वि आदि इका- ही समय, युगपत् अस्तोदयौ सहवासी कुरुते नृपति रान्त उपसर्गों के पश्चात् सह. के स् को मूर्धन्य ष हो द्विषाम् -- सुभा०। सम-अध्यायिन् (पुं०) सहजाता है, यदि सह, केह, को ढ नहीं हुआ) (क) पाठी, अर्थ (वि०) समानार्थक (H) समान या झेलना, सहन करना, भुगतना. गम खाना-खलो- सामान्य उद्देश्य,-उक्तिः (स्त्री०) अलंकारशास्त्र में ल्लापाः सोढाः-भर्तृ०८१६, पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं एक अलंकार का नाम--सा सहोक्तिः सहार्थस्य बलाशिरीषपुष्पं न पुनः पतत्रिणः---कु. 5 / 4, इसी प्रकार देकं द्विवाचकम्-काव्य०१०, उदा०-पपात भूमौ सह दुःखं, क्लेशं आदि-रघु० 12 / 63, 11152, भट्टि सैनिकाश्रुभि:-रघु० ३।६१,-~-उटजः पर्णकुटी,-उदरः 17159 (ख) 1. सहन करना, अनुमति देना, प्रकृतिः एक ही पेट से उत्पन्न, सगा भाई विक्रमांक० 1121, खलु सा महीयसः सहते नान्यसमुन्नतिं यया-कि० 2 / .-उपमा उपमा का एक भेद, ऊठः,-- उढजः विवाह 21, मेष० 105, रघु० 14 / 63 2. क्षमा करना, के समय गर्भवती स्त्री का पुत्र (हिन्दूधर्मशास्त्रों में सहलेना-वारंवारं मयंतस्यापरायः सोढ:-हि. 3, वर्णित बारह प्रकार के पुत्रों में से एक),-कार भग० 11 // 44 3. प्रतीक्षा करना, सबर करना-द्वित्रा- (वि.) 'ह' की ध्वनि से युक्त नल. 2114, (2) ण्यहान्यहंसि सोढुमहंन्-रघु० 5 / 25, 15 / 45 4. वहन 1. सहयोग 2. आम का पेड़ -- क इदानीं सहकारमन्तरेण करना, सहारा देना, ढकेलना-श०३ 5. जीतना, पल्लवितामतिमुक्तलतां सहते-श० ३,-भञ्जिका परास्त करना, विरोध करना, मुकाबला करना / एक प्रकार का खेल,-कारिण,-कृत (वि०) सहयोग For Private and Personal Use Only Page #1100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देने वाला (पुं०) सहप्रशासक, सहकारी, सहकर्मी | सहरूम् (समानं हसति-हस्+र] हजार / सम०-अंश, ----कृत (वि.) सहयोग दिया हुआ, से सहायताप्राप्त, ..अर्चिः, - कर,--किरण,-~-वीधिति,-धामन्,-पाव ---गमनम् 1. साथ जाना 2. किसी स्त्री का अपने मृत --मरीचि,रश्मि (प) सूय-श०७४, रघु० 13144, पति के शरीर के साथ जलना, विधवा का सती होना मुद्रा० ६.१७,----अक्ष (वि.) 1. हजार आँखों वाला -घर (वि०) साथ जाने वाला, साथ रहने वाला 2. जागरूक, सजग (क्षः) 1. इन्द्र का विशेषण उत्तर० 318 (र:) 1. साथी, मित्र, सहभागी 2. पति पुरुष का विशेषण ऋक्० 1090 3. विष्णु का 3. प्रतिभू (स्त्री० री) 1. सहेली 2. पत्नी, सखी, विशेषण,काण्डा सफेद दूब,-कृत्वस् (अव्य०) -चरित (वि.) साथ रहने वाला, सेवा में उपस्थित हजार बार, व (वि०) उदार, धारः विष्णु का रहने वाला, साथ देने वाला, चारः 1. साथ रहना चक्र,-पत्रम् कमल- रघु० ७११,-बाहुः 1. राजा 2. सहमति, सांमनस्य 3. (तर्क० में) हेतु के साथ कार्तवीर्य का विशेषण 2. बाण राक्षस का विशेषण साध्य का अनिवार्यतः साथ रहना-चारिन् दे० 3. शिव का (कुछ के अनुसार विष्णु का) विशेषण, 'सहचर',-ज (वि० ) 1. अन्तर्जन्मा, स्वाभाविक, --भुजः,---मूर्धन्,- मोलि (पुं०) विष्णु का विशेषण अन्तर्जात 2. आनुवंशिक (जः) 1. सगा भाई 2. नेस- -रोमन् (नपुं०) कंबल,-बोया हींग--शिखरः गिक स्थिति या वृत्ति, अरिः नैसर्गिक शत्रु, मित्रम् विन्ध्य पर्वत का विशेषण / नैसर्गिक दोस्त, -जात (वि.) प्राकृतिक--दे० 'सहज', सहस्रषा (अन्य.) [सहस्र+घाच्] हजार भागों में, हजार -वार (वि०) 1. सपत्नीक 2. विवाहित,...देवः प्रकार से-दीर्य किं न सहस्रधाहमथवा रामेण किं पांडवों का कनिष्ठ भ्राता, नकूल का जड़वा भाई जो दुष्करम् ---उत्तर०६।४०। अश्विनीकुमारों की कृपा से माद्री के पेट से उत्पन्न | सहस्रशस् (अव्य.) [सहन+शस] हजार-हजार करके। हुआ, यह मानव-सौन्दर्य का एक आदर्श माना जाता सहस्मिन् (वि) [सहन-इनि] 1. हजार से युक्त, हजारी, है, धर्मः समान कर्तव्य, चारिन (पुं०)पति, चारिणी -- सहस्री लक्षमीहते-पंच० 5 / 82 2. हजारों से युक्त 1. धर्मपत्नी, वैध पत्नी 2, सहकर्मी, पांशुक्रोडिन्, 3. हज़ार तक (जुरमाना आदि)-मनु० 8 / 376, पु. -पांशुकिल (पुं०) सखा, बचपन का मित्र, लंगो 1. हज़ार मनुष्यों की टोली 2. हजार सैनिकों का टिया यार,-भाविन् (पृ०) मित्र, हिमायती, अनुयायी, सेनापति / ---भू (वि.) नैसगिक, सहजात--रत्न० 112, | सहस्वत (वि.) [सहस+मतुप्] समर्थ, शक्तिशाली। --भोजनम् मित्रों के साथ बैठ कर भोजन करना, | सहा सिंह---अच्+टाप] 1. पृथ्वी 2. घीकुवार का पौधा. --मरणम् दे० सहगमन, युध्वन् संगी साथी (युद्ध | | केतकी का फूल। में साथ देने वाला), वसतिः, वासः मिलकर रहना। सहायः [सह एति-सह++अच] 1. मित्र, साथी-सहाय---सहवसतिमुपेत्य यः प्रियायाः कृत इव मुग्धविलो- साध्याः प्रदिशन्ति सिद्धयः-कि० 14144, कु. कितोपदेश:-श० 2 / 3 / 3 / 21 2. अनुयायी, अनुगामी 3. 'संधि' द्वारा बनाया सहता, त्वम् [ सह +तल+टाप्, त्व वा ] मिलाप, गया मित्र 4. सहायक, अभिभावक 5. चक्रवाक साहचर्य। 6. एक प्रकार का गन्धद्रव्य 7. शिव का नाम / सहन (वि.) [सह, ल्युट्] सहन करने वाला, झेलने वाला, | सहायता,-त्वम् [सहाय+तल+टापु, त्व वा] 1. साथियों नम् 1. सहन करना,झेलना 2. सहिष्णुता,सहनशीलता। का समूह 2. साथ, मिलाप, मंत्री 3. सहायता, मदद सहस् (पुं०)[सह -+-असि 1. मंगसिर का महीना - शि० -- कुसुमास्तरणे सहायतां बहुशः सौम्य गतस्त्वमावयोः 6 / 47, 16147 2. जाड़े की ऋतु नपुं० 1. शक्ति, कु० 4 / 25, रघु० 9:19 / ताकत, सामर्थ्य 2. बल, हिंसा 3. विजय, जीत | सहायवत् (वि.) [सहाय+मतुप्] 1. मित्रों से 4. कान्ति, चमक / युक्त 2. मित्रता में आबद्ध, सहायवान्, सहायता सहसा | सह+सो---डा] 1. बलपूर्वक, जबरदस्ती प्राप्त / 2. उतावली के साथ, अंधाधुंध, विना विचारे सहसा | सहारः सिह-ऋ+अच] 1. आम का पेड़ 2. विश्व का विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदा पदम्-कि० | | नाश, प्रलय। 2 / 30 2. अकस्मात्, अचानक मातंग नः सह- | सहित (वि०) [सह +इतच्, सह+क्त, हितेन सह वा सोत्पतद्भिः-रघु० 13 / 11 / स+धा+क्त सहगत या सेवित, साथ-साथ, संयुक्त, सहसानः [सह,+ असानच्] 1. मोर 2. यज्ञ, आहुति। / से युक्त-पवनाग्निसमागमो ह्ययं सहितं ब्रह्म यदसहस्यः [सहसे बलाय हितः - सहस+यत्] पौष मास, स्वतेजसा - रघु० 814, तम् (अव्य०) साथ-साथ, -~सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा-कु० 5 / 26 / के साथ / For Private and Personal Use Only Page #1101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1092 ) सहित (वि०) [सह, +तृच्] सहन करने वाला, सहनशील | साराविणम् [ सम्+5+णिनि-संराविन्+अण् ] ऊँची ___ सहिष्णु। आवाज, भारी कोलाहल-उत्तालाः कटपूतनाप्रभुतयः सहिष्णु (वि.) [सह +इष्णुच] 1. सहन करने के योग्य, सांराविणं कुर्वते-मा० 5 / 11, भट्टि० 7 / 43 / मेलने में समर्थ-रविकिरणसहिष्णःक्लेशलेशरभिन्नम् | सांवत्सर (स्त्री० --री), सांवत्सरिक (स्त्री०-की) -श० 24 2. क्षमाशील, तितिक्ष, सहनशील | (वि.) [संवत्सर-+-अण ठण वा] वार्षिक, सालाना, -सुकरस्तरुवत्सहिष्णुना रिपुरुन्मूलयितुं महानपि -क: ज्योतिषी, देवज्ञ। -कि० 2050 / | सांबाविक (वि.) (स्त्री० की) [संवाद+ठा ] सहिष्णुता,-वम् [सहिष्णु+तल+टाप्, त्व वा] 1. वहन | 1. (बोलचाल में) प्रचलित 2. विवादग्रस्त,-कः करने की शक्ति, सहारा देने की शक्ति 2. क्षमा / / ताकिक, नैयायिक / / शीलता, तितिक्षा। सांवसिक (वि.) (स्त्री०-की) [ संवृत्ति+ठक ] भ्रामक, सहुरिः [सह+उरिन्] सूर्य, स्त्री पृथ्वी।। अलौकिक (घटना या तत्वविषयक)। सहाय (वि.) [सह हृदयेन-ब० स०) 1. अच्छे हृदय | सांशयिक (वि.) (स्त्री० की) सशय+ठक] वाला, कपाल, करुणाशील 2. निष्कपट, -- यः | 1. सन्दिग्ध 2. अनिश्चित, अस्थिरमति / 1. विद्वान् पुरुष 2. (गुणों की) सराहना करने वाला, | सांसारिक (वि.) (स्त्री०-की) [ संसार+ठक ] दुनिरसिक, विवेकशील इत्युपदेशं कवेः सहृदयस्य च यावी, लौकिक-सांसारिकेषु च सुखेषु वयं रसज्ञाः करोति-काम्प० 1, परिष्र्वन्त्यन्ये सहृदयधुरीणाः -उत्तर० 222 / / कतिपये-रस। सांसिक्षिक (वि.) [संसिद्धि+ठ 11. प्राकृतिक, स्वतः सहल्लेख (वि.) [हृदयस्य लेखः कालुष्यकरणम्, सह | विद्यमान, सहज, अन्तहित 2. स्वभावतः प्रवृत्त, स्वतः हल्लेखेन-६० स०] प्रष्टव्य, संदिग्ध, खम् दूषित स्फूर्त 3. स्वयंभूत 4. अतिप्राकृतिक साधनों से प्रभाआहार। वित। सम. द्रवः स्वाभाविक तरलता (विप० महल (वि.) [सह हेलेन-ब० स०] क्रीडाशील, केलि नैमित्तिक -जनित) केवल जलसंबंधी। परक, विनोदप्रिय। सांस्थानिक: [ संस्थान+ठक ] समानदेशीय, एक ही देश सहोद [सह ऊठेन-ब० स०] चुराये गये सामान के साथ / के निवासी। पका गया चोर। सांस्राविणम् [ सम् ++णिनि+अण् ] सामान्य प्रवाह सहोर (वि) [सह +ओर] अच्छा, श्रेष्ठ, सन्त, या सरिता / महात्मा। | साहननिक (वि०) (स्त्री०-को) [ संहनन+ठक् / माघ (वि.) सह+यत्] 1. वहन करने के योग्य, सहारा शारीरिक, कायिक / दिये जाने के योग्य, सहन करने योग्य-अपि सह्या ते साकम् (अव्य०) [सह अकति--अक्+अम, सादेशः] घिरोवेदना-मुद्रा० 5, मालवि० 3 / 4 2. सहन किये ____1. के साथ, साथ मिलकर (करण के साथ)-यान्ती जाने योग्य, झेले जाने योग्य -कथं तूष्णी सह्यो गरुजनैः साकं स्मयमाना नतांबुजा भामि०२।१३२, निरवधिरिदानीं तु बिरहः-उत्तर० 3 / 44 3. सहन 1141 2. उसी समय, युगपत, एक ही समय / करने योग्य 4. सहन करने में समर्थ, सहन करने साकल्यम् [ सकल-व्यञ् ] समष्टि, सम्पूर्णता, किसी के योग्य 5. समर्थ, शक्तिशाली,ह्यः भारत की वस्तु का संपूर्ण या समस्त भाग. यावत्साकल्ये-नल. सात प्रधान पर्वतश्रेणियों में एक, समुद्र से कुछ दूरी 3 / 19, (साकल्येन) पूर्णतः, पूरी तरह से, पूर्ण रूप पर पश्चिमी घाट का कुछ भाग, सह्याद्रिश्रेणी-रामा- से - मनु१ 12 / 25 / स्त्रोत्सारितोऽप्यासीत्सहलग्न इवार्णव:--रघु० 4153, | साकत (वि.) सह आकृतेन ब० स०] 1. साभिप्राय, 52, कि० 1815, -ह्यम् 1. स्वास्थ्य, आरोग्यलाभ सार्थक, अर्थवाला साकृतस्मितम् --गीत०२, साकृतं 2. सहायता 3. युक्तता, पर्याप्ति। वचनम् आदि 2. सप्रयोजन 3. श्रृंगार प्रिय, स्वेच्छा सा[सो+3+टाप् ] 1. लक्ष्मी का नाम 2. पार्वती चारी,--तम् (अव्य.) 1. अर्थतः, सार्थकतापूर्वक का नाम। जैसा कि 'सांकृतं मां निर्वर्ण्य' में 2. सानुराग 3. भावुसांयात्रिकः[संयात्रा+ठ 1 समुद्र-व्यापारी, पोतवणिक, कता के साथ, मार्मिकतापूर्वक। समुद्री व्यापार करने वाला-पंच० 11316 / साकेतम् सिह आकेतेन - --ब० स०] अयोध्या कगरी का सायुगीन (वि.) [संयुगे साधुः --..ख ] युद्धसंबधी, रण-1 नाम-साकेतनार्योऽञ्जलिभिः प्रणेमुः - रघु०१४११३, कुशल -- रघु०११॥३०, विक्रम० 5, - नःभारी योद्धा, 13179, 18035, अरुणयवनः साकेतम्-महा०, युद्धकुशल सनिक-कु० 2 / 57 / --ताः (पुं०, ब०व०) अयोध्या निवासी। For Private and Personal Use Only Page #1102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साकेतकः [साकेत+कन] अयोध्या का निवासी। साडण्यम्,-क्या जनक के भ्राता कुशध्वज की राजधानी साक्तुकम् [सक्तूनां समाहार ... सक्तु+ठन] भुने हुए का नाम / अन्न या सत्तू का ढेर, क: जौ। सारेतिक (वि.) (स्त्री० की) [संकेत+ठक] 1. प्रतीसाक्षात (अव्य०) [सह+अक्ष+आति] 1. के सामने, कात्मक, संकेतपरक 2. व्यवहार-सिद्ध, रीत्यनुसार। आंखों के सामने, दृश्य रूप से, हूबहू, स्पष्ट रूप से साङ्केपिक (वि.) (स्त्री०-को) [संक्षेप+ठक्] संक्षिप्त, 2. व्यक्तिशः, वस्तुतः, मूर्तरूप में साक्षात्प्रियामुप- संकुचित, छोटा किया हुआ / गतामपहाय पूर्वम् श० 6 / 16, 116 3. प्रत्यक्ष, / साम्य (वि०) सिया+अण्] 1. संख्या संबंधी 2. आकलन (समास में प्रायः शरीरी'-साक्षाद्यमः, या खुला,। कर्ता, गणक 3. विवेचक 4. विचारक, तार्किक, तर्क सीधा-तत्साक्षात्प्रतिषेधः कोपाय मा० 1111 कर्ता--त्वं गतिः सर्वसाङ्ख्यानां योगिनां त्वं परायणम् (साक्षात्कृ 'अपनी आंखों से देखना, स्वयं जान लेना)। - महा०,- ख्यः-ख्यम् छ: हिन्दू दर्शनों में से एक सम-करणम् 1. दृष्टिगोचर करना 2. इन्द्रियग्राह ! जिसके प्रणेता कपिल मुनि माने जाते हैं (इस शास्त्र बनाना 3. अन्तर्ज्ञानमूलक प्रत्यक्षज्ञान,-कारः प्रत्यक्ष का नाम 'सांख्य दर्शन' इस लिए पड़ा कि इसमें ज्ञान, समझ, जानकारी। पच्चीस तत्त्व या सत्य सिद्धांतों का वर्णन किया गया साक्षिन (वि.) (स्त्री०-णी) [सह अक्षि अस्य, साक्षाद् है, इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य पच्चीसवें तत्व अर्यात द्रष्टा साक्षी वा सह+अक्ष+इनि] 1. देखने वाला, पुरुष या आत्मा को अन्य चौबीस तत्त्वों के शुद्ध अवलोकन करने वाला, सबूत देने वाला, पुं० गवाह, ज्ञान द्वारा तथा आत्मा की उनसे समुचित भिन्नता अवेक्षक, चश्मदीद गवाह, आंखों देखी बात बताने दर्शाकर, उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कराना है। वाला, फलं तपः साक्षिषु दृष्टमेष्वपि कु० 5 / 60 / सांख्य शास्त्र समस्त विश्व को निर्जीव प्रधान या साक्ष्यम् [साक्षिन व्यञ] 1. गवाही, शहादत -तमेव प्रकृति का विकास मानता है, जब कि पुरुष (आत्मा) चाधाय विवाहसाक्ष्ये रघु० 7 / 20 2. अभिप्रमाण, सर्वथा निलिप्त एक निष्क्रिय दर्शक है / संश्लेषणात्मक सत्यापन / होने के कारण वेदान्त से इसकी समानता, तथा साक्षेप (वि.) [सह आक्षेपेण ब० स०] जिसमें आक्षेप विश्लेपणपरक न्याय और वैशेपिक से भिन्नता कही या व्यंग्य भरा हो, दुर्वचनयुक्त / जाती है। परन्तु वेदान्त से भिन्नताकी सब से बड़ी साखेय (वि.) (स्त्री० यी) [सखि + ढा] 1. मित्र- बात यह है कि सांख्य शास्त्र दो (द्वैत) सिद्धान्तों संबन्धी 2. मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण। का समर्थक है जिनको वेदान्त नहीं मानता। इसके साख्यम् सखि+प्या ] मित्रता, सौहार्द / / अतिरिक्त सांख्यशास्त्र परमात्मा को विश्व के स्रष्टा सागरः [सगरेण निर्वृत्तः--अण् | 1. समुद्र, उदधि 'सागरः / और नियन्त्रक के रूप में नहीं मानता, जिनकी कि सागरोपमः (आलं० से भी) दयासागर, विद्यासागर वेदान्त पुष्टि करता है), ख्यः सांख्य शास्त्र का आदि, तु. सगर 2. चार या सात की संख्या 3. एक अनुयायी भग० 35, 511 / सम० प्रसावा, प्रकार का हरिण। सम० -- अनुकूल (वि०) समुद्र -- मुख्यः शिव के विशेषण / के किनारे स्थित, -- अन्त (वि०) समुद्र की सीमा से साङ्ग (वि०) [सह अङ्ग:--ब० स०] 1. अंगों सहित यक्त, जिसके सब ओर समुद्र छाया है, अम्बरा, 2. प्रत्येक भाग से पूर्ण 3. सहायक अंगों से यक्त। नैमिः मेखला पृथ्वी, आलयः वरुण का नाम, साइतिक (वि.) (स्त्री०-की) [सङ्गति+ठक] समाज -उत्थम् समुद्रीनमक,-गा गंगा,-गामिनी नदी। या संघ से संबंध रखने वाला, साहचर्यशील. .... साग्नि (वि.) [सह अग्निना ब० स०] 1. अग्नि सहित दर्शक, अतिथि, नवागंतुक / 2. यज्ञाग्नि रखने वाला। / साङ्गमः [सङ्गम-+अण्] मिलाप, मिलन तु. संगम् / साग्निक (वि.) [सह अग्निना ब० स० कप्] 1. यज्ञाग्नि सामामिक (वि.) (स्त्री०-की) [संग्राम+ठो यह रखने वाला 2. अग्नि से संबद्ध,-कः यज्ञाग्नि रखने संबंधी, योद्धा, जंगजू, सैनिक, सामरिक-उत्तर० वाला गृहस्थ / ५।१२,-कः सेनाध्यक्ष, सेनापति। * सान (वि.) [सह अग्रेण ---ब० स०] 1. समस्त 2. अति- साचि (अव्य०) [सच् + इण] टेढ़ेपन से, तिरछेपन से, रिक्त समेत, अपेक्षाकृत अधिक रखने वाला। तिर्यक, वक्रगति से, टेढ़े-टेढ़े-साचि लोचनयुगं नमयन्ती साइय॑म् सङ्कर+व्या मिश्रण, सम्मिश्रण, गड्डमड्ड ..- कि० 9 / 44, 1057, (साची मोड़ना, एक ओर किया हुआ या मिलाया हुआ घोल / झकाना, टेढ़ा करना --निनाय साचीकृतचारुवक्त्रः साङ्कल (वि०) (स्त्री० लो) [सङ्कल+ष्य ] जोड यार पु० 6 / 14, कु. 3 8, साचीकरोत्याननम् संकलन से उत्पन्न / - बालवि० 4.14 // For Private and Personal Use Only Page #1103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्था साचिव्यम् [सचिव+व्य] 1. मंत्रालय, मंत्रित्व 2. मंत्रि- / सात्वत् (पुं०) [सातयति सुखयति-सात् +विप्, सात् मंडल, प्रशासन 3. मंत्री। परमेश्वरः, स उपास्यत्वेन अस्ति अस्य-सात्+मतुप, साजास्यम् [सजाति+ध्य] 1. जाति की समानता, वर्ग, | मस्य वः 1 (कृष्ण आदि का) अनुयायी, उपासक / श्रेणी या प्रकार की समानता 2. जाति का समुदाय, सात्वतः (पुं०) 1. विष्णु का नाम 2. बलराम का नाम समजातीयता। 3. जाति से बहिष्कृत वैश्य का पुत्र, ताः (पुं०, ब. साजनः [सह अञ्जनेन ब० स०] छिपकली। व०) एक जाति का नाम--शि०१६।१४।। साद (चुरा० उभ० साटयति-ते] बतलाना, प्रकट करना। सात्वती (स्त्री०) 1. चार प्रकार की नाटयशैलियों में से साटोप (वि.) [सह आटोपेन–२० स०] 1. घमंड एक-दे. सा.द. 416 2. शिशुपाल की माता में भरा या फूला हुआ, अहङ्कारी 2. गौरवशाली, का नाम-शि० 2 / 11 / / शानदार 3. उभरा हुआ, बढ़ा हुआ (जैसे पानी से)। सावः [ सद्+घञ्] 1. बैठना, बसना 2. क्लान्ति, -पंच०१,-पम् घमंड के साथ, हेकड़ी के साथ, थकावट उदितोरुसादमतिवेपथुमत् - शि० 977 अकड़ कर, इठला कर, रौब से। 3. क्षीणता, दुबला-पतलापन, कृशता-शरीरसादा. सात (अव्य.) तद्धित का एक प्रत्यय जो किसी शब्द के दसमग्रभूषणा रघु० 32 4. ध्वंस, क्षय, लोप, साथ इसलिए जोड़ा जाता है कि शब्द से अभिहित विनाश, विश्रांति-गतिविभ्रमसादनीरवा-रघु. वस्तु के साथ किसी वस्तु का पूर्ण परिवर्तन हो जाता 8 / 56, नलोद. 3 / 24 5. पीडा, संताप 6. स्वच्छता, है, या वह वस्तु पूर्ण रूप से तदधीन या उसके नियं पवित्रता। श्रण में हो जाती है,-भस्मसात् भू बिल्कुल राख बन | सावनम् [ सद् --णिच् + ल्युट ] 1. थकाना, क्लान्त करना जाना, अग्निसात् कृत्वा मालवि०५, भस्मसात्कृत- 2. नष्ट करना 3. थकावट, क्लान्ति 4.घर, निवासवतः पितृद्विषः पात्रसाच्च वसुधां ससागराम् - रघु० स्थान / 11386, विभज्य मेरुन यदर्थिसास्कृतः .. ने० 16, | साविः[सद+इण ] 1. सारथि, रथवान 2. योद्धा / इसी प्रकार ब्राह्मणसात्, राजसात् आदि०-शि० सादिन् (वि.) [सद्+णिचु-णिनि ] 1. बैठा हुआ 14136 / 2. थकाने वाला, नष्ट करने वाला,-पुं० 1. घुड़सवार सातत्यम् [संतत+व्या] निरन्तरता, स्थायित्व / 2. हाथी पर सवार या रथ में बैठा हुआ। सातिः (स्त्री०) [सन्+क्तिन्] 1. भेंट, उपहार, दान सादृश्यम् [ सदृश+ध्या ] 1. समानता, मिलता-जुलता 2.प्राप्त करना, हासिल करना 3. सहायता 4. विनाश पन, समरूपता सति पुनर्नामधेयसादृश्यानि - श०.७, 5. अन्त, उपसंहार 6. तेज या तीव्र वेदना / तवाक्षिसादृश्यमिव प्रयुञ्जते--कु. 5 / 35, 7 / 16, सातीनः, सातीनकः [सतीन+अण, सातीन+कन्] मटर। रघु० 1140, 15 / 67 2. प्रतिलिपि, आलोकचित्र, सात्विक (वि.) (स्त्री०-को)[सत्त्व+ठ ] 1. वास्त- प्रतिमा-मत्सादृश्यं विरहतनु वा भावगम्यं लिखन्ती विक, आवश्यक 2. सत्य, असली, प्राकृतिक -- मेघ० 84 / / 3. ईमानदार, निष्कपट, अच्छा 4. सद्गुणी, मिलनसार | साधन्त (वि.) [सह आद्यन्ताम्याम् -ब. स.] पूरा, 5. बलशाली 6. सत्वगुण से युक्त 7. सत्त्वगुण से समस्त। संबद्ध या उत्पन्न-ये च सात्त्विका भावा:-भग०७१०, | सायस्क (वि.) (स्त्री०-स्को) [ सद्यस्क+अण् ] शीघ्र 14 / 16 8. आन्तरिक भावनाओं से उत्पन्न (जैसे होने वाला, जिसमें विलंब न हो। प्रेम आदि से) आन्तरिक - तद्भरिसात्त्विकविकारम- | सा i (स्वा० पर० सानोति) 1. पूरा करना, समाप्त पास्तचर्यमाचार्यकं विजयि मान्मथमाविरासीत् मा० करना, संपन्न करना 2. जीतना। 1126, कः (आन्तरिक) भावनाओं या संवेगों का ii (दिवा० पर० साध्यति) पूरा किया जाना, निष्पन्न बाह्य संकेत, काव्य में भावों का एक प्रकार (भाव किया जाना, प्रेर० 1. निष्पन्न करना, कार्यान्वित आठ हैं: स्तम्भः स्वेदोऽथ रोमाञ्चः स्वरभङ्गोऽथ करना, घटित करना, सम्पन्न करना---अपि साधय वेपथुः / वैवर्ण्यमथुप्रलय इत्यष्टो सात्त्विकाः स्मृताः / / साधयेप्सितं - नै० 2162, कु० 2 / 33, रघु० 5 / 25 -सा०६० 116 2. ब्राह्मण 3. ब्रह्मा। 2. पूरा करना, समाप्त करना, उपसंहार करना सात्यकिः [सत्यक+इ ] यदुवंशी योद्धा जो कृष्ण का 3. उपलब्ध करना, प्राप्त करना, पाना-रघु. सारथि था तथा जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों 17138, मनु० 675 4. साबित करना, सिद्ध करना का पक्ष लिया। 5. दमन करना, पराजित करना, जीतना (शत्रु आदि तात्यवतः, सात्यवतेयः [ सत्यवती+अण्, उक् वा] व्यास का), वश में करना-न हि साम्ना न दानेन न भेदेन मुनि का मातुपरक नाम / च पाण्डवाः, शक्याः साधयितुम् --महा० 6. मार For Private and Personal Use Only Page #1104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डालना, नष्ट करना ... सुग्रीवान्तकमासेदुः साधयिष्याम 22. साधना, तपस्या 23 मोक्ष प्राप्त करना 24. औषधि इत्यरिम्-भट्टि० 7 / 31 7. समझना, जानना निर्माण, भेषज, जड़ी-बूटी 25. (विधि में) ऋण आदि 8. चिकित्सा करना,स्वस्थ करना 9. जाना, अलग होना, की प्राप्ति के लिए आदेश, जर्माना करना 26. शरीर अपने रास्ते लगना, -- साधयाम्यहमविघ्नमस्तु ते-रघु० का कोई अवयव 27 शिश्न, लिंग 28. औड़ी, ऐन 11191, श०१७-प्रायेण ष्यन्तकः साधिर्गमेरर्थे प्रय- 29. दौलत 30 मंत्री 31 लाभ, फ़ायदा 32. शव की ज्यते-सा० द० 3 / 40 10. (ऋण की भांति) उगाहना दाह क्रिया 33. मृतकसंस्कार 34 धातुओं का मारण 11. पूर्ण कर देना, प्र-(प्रेर०) 1. आगे बढ़ना, या जारण। सम-क्रिया समापिका क्रिया,-पत्रम् उन्नति करना 2. निष्पन्न करना, कार्यान्वित करना लिखित प्रमाण / 3. उपलब्ध करना, प्राप्त करना 4. पराभूत करना, | साधनता, स्वम् [साधन+तल+टाप, त्व वा उपायवत्ता, दबाना 5. वस्त्र धारण करना, सजाना, सम् / उद्देश्यपूर्ति का जरिया होना–प्रतिकूलतामुपगते हि 1. सफल होना (आ०) 2. निष्पन्न करना, पूरा करना विधी विफलत्वमेति बहुसाधनता-शि० 9 / 6 / -मनु० 21100 3. सुरक्षित करना, प्राप्त करना साधना [सिध+णि+युच्+टाप, साधादेशः] 1. निष्प 4. बस जाना 5. पुनः प्राप्त करना मनु० 850 नता, पूरा करना, पूर्ति 2. पूजा, अर्चा 3. संराधन, 6. तय किया जाना या चुकता किया जाना-मनु० प्रसादन / 8 / 213 7. नष्ट करना, मार डालना 8. बुझाना। साधन्तः [साध्+झच, अन्तादेशः] भिक्षक, भिखारी। साधक (वि.) (स्त्री०--धका-धिका) [साध+ण्वल, | साधर्म्यम् [सधर्म+ष्य] 1. समानता, कर्तव्य की एकता, सिध+णिच् + ण्वुल साघादेशः वा] 1. संपन्न करने समानधर्मता-पञ्चमं लोकपालानामूचुः साधर्म्ययोगतः वाला, पूरा करने वाला, कार्यान्वित करने वाला, पूर्ण - रघु०१७७८ 2. प्रकृति की समानता, समान करने वाला 2. दक्ष, प्रभावशाली-कु० 3 / 12 चरित्र, समता, गुणों की समानता-साधर्म्यमुपमा भेदे 3. कुशल, निपुण 4. जादू से कार्य में परिणत करने - काव्य० 10, भग० 14 / 2, भाषा० 12 / वाला, ऐन्द्रजालिक 5. सहायक, मददगार। साधारण (वि.) (स्त्री०-णा,-णी) [सह धारणया-ब. साधन (वि.) (स्त्री०-नी) [सिध् + णिच् + ल्युट, साधा स० सधारण+अण्] 1. (दो या दो से अधिक अंकों में) देशः] निष्पन्न करने वाला, कार्यान्वित करने वाला, समान, संयुक्त,---साधारणोऽयं प्रणय:-श०३, साधा-नम् 1. निष्पन्न करना, कार्यान्वित करना, अनुष्ठान रणो भूषणभूष्यभावः-कु० ११४३,रघु० 16.5, विक्रम करना जैसा कि 'स्वार्थसाधनम्' में 2. पूरा करना, 2 / 16 2. मामूली, सामान्य -- साधारणी न खलु बाधा सम्पन्नता किसी पदार्थ की पूर्ण अवाप्ति ..प्रजार्थ- भवस्य-अश्व० 10,3. सार्वजनिक, विश्वव्यापी 4.मिसाधने तो हि पर्यायोद्यतकार्मुको रघु० 4 / 16 श्रित, मिला-जुला समान-उत्कण्ठासाधारणं परितोष3. उपाय, तरकीब, किसी कार्य को सम्पन्न करने की मनुभवामि-श० 4, वीज्यते स हि संसुप्त: श्वाससाषातदबीर-शरीरमाद्यं खल धर्मसाधनम्,-कु० 5 / 33, रणानिल:-कु० 2 / 42 5. तुल्य, सदृश, समान 52, रघु० 119, 3 / 12, 4136, 62 4. उपकरण, 6. (तर्क० में) एक से अधिक निदर्शनों से संबड, अभिकर्ता, कुठारः छिदिक्रियासाधनम् 5. निमित्त हेत्वाभास के तीन प्रभागों में से एक, अनैकान्तिक, कारण, स्रोत, सामान्य हेतु 6. करण कारक 7. उप -णम 1. सामान्य या सार्वजनिक नियम, सार्वजनिक करण, औजार 8. यन्त्र, सामग्री 9. मूल पदार्थ, संघ विधि या नियम 2. जातिगत या निविशेष गण / टक तत्त्व 10 सेना या उसका अंग-मनु० 5 / 10 सम० ...धनम् संयुक्त संपत्ति, स्त्री सामान्य स्त्री, 11. सहायता, मदद, सहारा 12. प्रमाण, सिद्ध करना, वेश्या, रंडी। प्रदर्शन करना 13. अनुमान की प्रकिया में हेतु, कारण, साधारणता, स्वम् [ साधारण तिल+टाप, स्व वा] जो हमें किसी परिणाम पर पहुंचाये--साध्ये निश्चित- 1. सामदायिकता, विश्वव्यापकता 2. संयुक्त हित / मन्वयेन घटितं बिभ्रत् सपक्षे स्थिति, व्यावृत्तं च विपक्षतो साधारण्यम् | साधारण+ष्यञ ] समानता-दे० साषाभवति यत्तत्साधनं सिद्धये - मुद्रा० 5.10 14. दमन रणता। करना, जीत देना 15. जादूमंत्र से वश में करना साधिका [ सिघ+णिच्+ण्वल+टाप, इत्वम्, साधा16. जादू या मंत्र से किसी कार्य को निष्पन्न करना | देश: ] 1. कुशल या निपुण स्त्री 2. गहरी नींद।। 17. स्वस्थ करना, चिकित्सा करना 18. वध करना, साषित (भू. क. कृ.) [साध+क्त ] 1. निष्पन्न, विनाश करना - फलं च तस्य प्रतिसाधनम-कि० 14 // कार्यान्वित, अवाप्त 2. पूरा किया हुआ, समाप्त 17 19. संराधन, प्रसादन, तुष्टीकरण 20, बाहर 3. सिद्ध, प्रदर्शित 4. प्राप्त, उपलब्ध 5. उन्मुक्त जाना, कूच करना, प्रस्थान 21. अनुगमन, पीछे चलना। 6. वश में किया हुआ, दमन किया हुआ 7. पूरा किया For Private and Personal Use Only Page #1105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1096 ) हुआ, पुनः प्राप्त 8. दण्डित 9. दापित 10. (दंड या ) योग्य, पूरा किये जाने योग्य 5. अनुमेय, उपसंहार्य, जुर्माना) दिया हुआ। -अनुमानं तदुक्तं यत्साध्यसाधनयोर्वचः-काव्य० 10, साधिमन् (पुं०) [ साधु-+इमनिच् ] भद्रता, श्रेष्ठता, | जीते जाने के योग्य, वश्य, जेय-कु० 3 / 15 उत्तमता। 7. जिसकी चिकित्सा हो सके 8. वध किये जाने योग्य, साधिष्ठ (वि.) { साधु या बाढ़ की उत्तमावस्था --अति- विनष्ट किये जाने योग्य, ध्यः दिव्य प्राणियों शयेन साघु:-इष्ठन् ] 1. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, उचिततम का एक विशेष वर्ग ---तु० मनु० 1122, 3 // 195 2. अत्यंत मजबूत, कठोर या दृढ़। 2. देवता 3. एक मन्त्र का नाम,---ध्यम् 1. निष्पन्नता, साषीयस् (वि.) [साघु+ईयसुन्, उकारलोपः, साघु या पूर्णता 2. वह बात जो अभी सिद्ध की जाती है, बाढ़ की मध्यमावस्था ] 1. अधिक अच्छा, अधिक श्रेष्ठ प्रमाणित की जाने वाली वस्तु 3. (तर्क० में) प्रस्ताव -~~-भामि० 12882. कठोरतर, अपेक्षाकृत मजबूत। का विधेय, अनुमानप्रक्रिया की बड़ी बात-साध्ये साधु (वि.) (स्त्री०-धु,-ध्वी) [ साध् + उन, मध्य० निश्चितमन्वयेन घटितम् .....', यत्साध्यं स्वयमेव अ० साधीयस, उत० अ० साधिष्ठ ] 1. उत्तम, श्रेष्ठ, तुल्यमभयोः पक्षे विरुद्धं च यत्--मुद्रा० 5 / 10 पूर्ण - यद्यत्साघु न चित्रे स्याक्रियते तत्तदन्यथा - श० -- अभावः मुख्य शर्त या बंधन की कमी,-सिद्धिः 6 / 13, आपरितोषाद्विदुषां न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञा- (स्त्री०) 1. निष्पन्नता 2. उपसंहार / नम् -22 2. योग्य, उचित, सही जैसा कि 'साधु- साध्यता [ साध्य+तल+टाप् ] 1. संभावना, शक्यता बृत्त, साघुसमाचार' में 3. गुणी, पुण्यात्मा, सम्मान- 2. (रोग का) अच्छा किये जाने की स्थिति में होना। नीय, पवित्रात्मा 4. (क) कृपाल, दयाल --रघु० सम-अवच्छेवकम् जिस रूप से किसी के गुणों का 2 / 28, पंच. श२४७ (ख) शिष्टाचारी (अधि० के पता लगे, लक्षण की जानकारी हो, या मुख्य शर्त का साथ) मातरि साधु:-सिद्धा. 5. शुद्ध, पवित्र, गौरव पता चले। यक्त या श्रेण्य (जैसे कि भाषा) 6. सुखकर, रुचिकर, | साम्वसम् [साधु+अस्+अच् ] 1. डर, आतंक, भय, सुहावना-अतोऽर्हसि क्षन्तुमसाधु साधु वा-कि० 114 त्रास, कुसुमस्तेयसाध्वसात्-कु० 2135, 351 7. भद्र, कुलीन, सत्कुलोद्भव,-धुः 1. भद्रपुरुष, 2. जाडय 3. विक्षोभ, अस्तव्यस्तता। पुण्यात्मा-रघु० 13155, 2 / 62, मेघ० 80 | साध्वी [ साधु+जीप्] 1. सती स्त्री 2. पतिव्रता स्त्री 2. ऋषि, मुनि, संत-साघोः प्रकोपितस्यापि मनो 3. एक प्रकार की जड़।। नायाति विक्रियाम ...सुभा03. सौदागर -कि०२। | सानन्द (वि.) [सह आनन्देन .ब० स०] प्रसन्न, खुश। 73 4. जनसाधु 5. सूदखोर, महाजन (अव्य०) सानसिः [सन्+इण, असुक] सोना, सुवर्ण / 1. अच्छा, बहुत अच्छा, शाबास, बढ़िया - साधु | सानिका, सानेयिका, सानेयी [सन्++ण्वुल--टाप, गीतम् --श० 1, साधु रे पिंगलवानर साधु -मालवि० / इत्वम् ; सानेयी+कन्+टाप्, ह्रस्वः; सानेय-डी] 4 2. काफी, बस। सम० -धी (वि.) अच्छे पीपनी, बाँसुरी। स्वभाव का,—वादः 'शाबास' की ध्वनि, 'धन्य' की | सानु (पुं०, नपुं०) [सन्-+-आण् ] 1. चोटी, शिखर, ध्वनि-शि० १८१५५,-वृत्त (वि०) 1. अच्छे शैल-शिला-सानूनि गन्धः सुरभीकरोति-कु० 119, चालचलन का, खरा, सद्गुणी-प्रायेण साधुवृत्तानाम मेघ० 2, कु. 116, कि० 5 / 36 2. पहाड़ की चोटी स्थायिन्यो विपत्तय:-भर्त० 2 / 85, (यहाँ दूसरा पर समतल भूमि, पठार 3. अंखुवा, अंकूर 4. वन, अर्थ भी अभिप्रेत है) 2. खूब गोल-गोल किया हुआ जंगल 5. सड़क 6. सतह, बिन्दु, किनारा 7. चट्टान (त्तः) सद्गुणी (सद्गुणी (तम्) अच्छा आचरण, 8. हवा का झोंका 9. विद्वान् पुरुष 10. सूर्य / सद्गुण, पावनता, सचाई, ईमानदारी, इसी प्रकार सानुमत् (पुं० [सानु+मतुप् ] पहाड़, तो एक अप्सरा 'साधु वृत्ति / का नाम-- श०६ / साधृतम् [ सह आघृतेन ---ब० स० ] 1. हाट, दुकान | सानुक्रोश (वि.) [अनुक्रोशेन सह-ब० स०] दयालु, 2. छतरी 3. मोरों का झुंड / करुणाकर / पाध्य (वि.) [ साध् + णिच् +यत् ] 1. कार्यान्वित | सानुनय (वि.) [ सह अनुनयेन-ब० स०] सभ्य, होने योग्य, निष्पन्न होने योग्य, किया जाने योग्य | शिष्ट / - ---साध्ये सिद्धिविधीयताम् हि०२।१५ 2. जो हो | सानुबन्ध (वि.) [सह अनुबन्धेन-ब० स०] क्रमबद्ध, सके, जो किया जा सके, प्राप्य 3. सिद्ध किये जाने / अविच्छिन्न / योग्य, प्रदर्शनीय -आप्तवागनुमानाभ्यां साध्यं त्वां | सानुराग (वि.) [स नरागेण-ब० स०] आसक्त, प्रति का कथा -रघु. 10 / 28 4. स्थापित करने | अनुरक्त, प्रेम में मुग्ध / For Private and Personal Use Only Page #1106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1097 ) सान्तपनम् [सम्+त+ल्यट-+अण ] एक कठोर व्रत 1. कवचधारी 2. शस्त्र उठाने के लिए कहने वाला, -तु० मनु० 111212 ! युद्ध के लिए तैयार होने को प्रोत्साहन देने वाला सान्तर (वि.) [सह अन्तरेण ब-स.] 1. अंतर या | -शि०१५।७२,-कः कवचधारी। अवकाशयुक्त 2. झोना। सानाय्यः [सम् +नी+ण्यत्, नि०] धीयुक्त कोई पदार्थ सान्तानिक (वि.) (स्त्री०--को) [सन्तान+ठक] जो आहति के रूप में अग्नि में डाला जाय-शि० 1. फैलने वाला, विस्तारय क्त (जैसे कि वृक्ष) 1241 / 2. संतानसंबंधी 3. सन्तान नामक वृक्षसंबंधी,-कः | सान्निध्यम् [सन्निधि+व्यञ्] 1. पड़ोस, सामीप्य- वदनावह ब्राह्मण जो संतान की इच्छा से विवाह करना मलेन्दुसान्निध्यतः मा० 35 2. उपस्थिति, हाजरी चाहता है। - रघु० 4 / 6, 7 / 3, कु० 7 / 33 / सान्त्व (चुरा० उभ० सान्त्वयति ते) शान्त करना, खुश | सान्निपातिक (वि.) (स्त्री०-की) [सन्निपात+ठक] करना, सुलह करना, ढाढ़स बंधाना, आराम पहुँचाना 1. विविध 2. जटिल 3. कफ, पित्त, वायु तीनों ही -भट्टि० 3 / 23 / दोष जिसके विकृत हो गये हों--कु० 248, पंच० सान्त्वः, सांत्वनम्,-ना [सान्त्व् +घञ, ल्युट् वा] 1. खुश 1 / 127 / करना, शान्त करना, ढाढस बंधाना 2. सुलह करना, | सान्यासिक सिंन्यासः प्रयोजनमस्य-ठक] 1. अपने धार्मिक मृदु या हलका उपाय 3. कृपापूर्ण या ढाढस बँधाने जीवन के चौथे आश्रम में विद्यमान ब्राह्मण देखो वाले शब्द 4. मृदुता 5. अभिवादन एवं कुशलक्षेम / / सन्यासिन 2. साधु / सान्दीपनिः [ सन्दीपन-+इ ] एक ऋषि का नाम | सान्वय (वि०) [सह अन्वयेन - ब० स०] आनुवंशिक / (विष्णुपुराण के अनुसार वह कृष्ण और बलराम के सापत्न (वि.) (स्त्री०-त्नी) [सपत्नी+अण] सौतेली आचार्य थे। गुरुदक्षिणा में उन्होंने अपने पुत्र को। पत्नी से उत्पन्न, स्नाः (पुं० ब० व०) एक ही पति जिसे पंचजन नामक राक्षस उठा कर पानी में धस | से भिन्न भिन्न पत्नियों के बच्चे। गया था, वापिस मांगा। श्रीकृष्ण ने पानी में गोता सापत्न्यम् सपत्नी+व्या] 1. सौतेली पत्नी की दशा लगाया। वहाँ उस राक्षस को मार डाला, और 2. प्रतिद्वन्द्विता, महत्त्वाकांक्षा, शत्रुता, न्यः 1. सौतेली गुरु के पुत्र को लाकर उनके सुपुर्द कर दिया)। पत्नी का पुत्र 2. शत्रु / सान्वृष्टिक (वि०) (स्त्री०-..-की) [ सन्दृष्टि +ठक] | सापराध (वि.) [सह अपराधेन-ब० स०] अपराधी, देखते ही देखते होने वाला, तात्कालिक,-कम् तात्का- | जुर्म करने वाला, मुजरिम / लिक परिणाम / सापिण्यम् [सपिण्ड-Fष्या] समान पितरों को पिंडदान सान्त (वि०)[सह अन्द्रेण-ब० स०] 1. पासपास, सटाहुआ, के संबंध, बंधुता, रक्तसम्बन्ध / अनन्तराल 2. मोटा, घन, ठोस, गाढ़ा -दुर्वर्णभि- सापेक्ष (वि.) [सह अपेक्षया-ब० स०] लिहाज करने तिरिह सान्द्र सुवासवर्गा --शि० 4 / 28, 64, 9 / 15, वाला, निर्भर। रघु०७।४१, ऋतु० 1120 3. गुच्छा बना हुआ, | साप्तपद (वि.) (स्त्री०-दी) साप्तपदीन (वि.) [सप्तसंगृहीत. हृष्टपुष्ट, मजबूत, हट्टाकट्टा 5. अत्यधिक, पद-अण खा वा] सात पग साथ-साथ चलने से विपुल, प्रचुर-सान्द्रानन्दक्षुभितहृदयप्रस्रवेणेव सिक्तः बनी हई (मैत्री)-यतः सतां सन्नतगात्रि सङ्गतं मनी___ उत्तर० 6 / 22 6. उग्र, प्रखर, प्रचण्ड-व्याप्तान्तराः षिभिः साप्तपदीनमुच्यते-कु० 5 / 39 यहाँ द्वितीयार्थ, सान्दकुतूहलानाम् - रघु० 7.11, शि० 9 / 37 अधिक अच्छा लगता है, पंच० 2 / 43, 41103, 7. चिकना, तैलाक्त, चिपचिपा 8. स्निग्ध, मद, दम, नम् 1. विवाह के अवसर पर दूल्हा व सौम्य 9. सुखकर, रुचिकर,-वः राशि, ढेर / दुल्हिन द्वारा यज्ञाग्नि की सात प्रदक्षिणाएँ करना सान्धिकः [सन्या सूराच्यावनं शिल्पं वेत्ति-ठक] कलाल, (यह विवाहसम्बन्ध को अटुट बना देती है) 2. मित्रता, शराब खींचने वाला। घनिष्ठता। सान्धिविग्रहिकः सन्धिविग्रह-ठका विदेश मंत्री (राज्य- साप्तपौरुष (वि० (स्त्री०-धी) [सप्तपुरुष+अण] सात सचिव) (जो संधि और विग्रह का निर्णय करे)। पीढ़ियों तक फैला हुआ-मनु० 33146 / / सान्ध्य (वि.) (स्त्री०-ध्यो सन्ध्या+अण सायंकालीन, | साफल्यम् [सफल---ष्य] 1. सफलता, उपयोगिता, साँझ-संबंधी सान्ध्यं तेजः प्रतिनवजवापुष्परक्तं दधानः उपजाऊपन 2. लाभ, फायदा 3. कामयाबी। -----मेघ० 36, कि० 5 / 8, रघु० 11160, शि० | साब्दी (स्त्री०) एक अकार का अंगूर / 9 / 15 / साभ्यसूप (वि.) [सह अभ्यसूयया----ब० स०] डाह करने सानहनिक ( वि० ) ( स्त्री०—की ) [सन्नहन+ठक्] | वाला, ईर्ष्यालु / 138 For Private and Personal Use Only Page #1107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1098 ) साम् (चुरा० उभ० सामयति-ते) खुश करना, ढाढस | सामर्थ्यम् [समर्थ ---व्यञ] 1. शक्ति, बल, धारिता, बंधाना, तसल्ली देना। ताकत 2. उद्देश्य की समानता 3. अर्थ की एकता सामकम् सिमक+अण] मूल ऋण, कः साण, (वह पत्थर 4. पर्याप्ति, योग्यता 6. शब्दार्थ शक्ति, शब्द की जिस पर औजार तेज किये जाते हैं)। अर्थमूलक शक्ति 6. हित, लाभ 7. दौलत / सामग्री समग्रस्य भावः ष्या स्त्रीत्वपक्षे ङीषि यलोप:] सामवायिक (वि.) (स्त्री-की) [समवाय प्रसृतः ठ] 1. सामान का संग्रह, या संघात, उपकरण, घर का | 1. किसी संग्रह या संघात से संबद्ध 2. अटूट सम्बन्ध सामान - भर्तृ० 3 / 155 2. सामान. माल-असबाब / से युक्त, ---कः मंत्री, पार्षद / सामग्र्यम् [समन+ष्य ] 1. समग्रता, पूर्णता, समूचापन, | सामाजिक (वि.) (स्त्री०-की) [समाज:-सभावेशनं प्रयो समष्टि --प्रायेण सामग्र्यविधौ गुणानां पराङ्मुखी जनमस्य ठा] किसी सभा से सम्बद्ध, कः किसी विश्वसजः प्रवृत्तिः--कू० 3 / 28 2. अनुचरवर्ग, नौकर- सभा का सदस्य, सभा में दर्शक तेन हि तत्प्रयोगाचाकर 3. उपकरणों का संग्रह, औजारों का भण्डार देवात्रभवतः सामाजिकानपास्महे मा० 1 / / 4. भण्डार, सामान। सामानाधिकरण्यम् सिमानाधिकरण+ष्य] 1. उसी सामञ्जस्यम् [समञ्जस+ष्य] 1. योग्यता, संगति, दशा या स्थिति में होना 2. सामान्य पद, कार्य या औचित्य, तु० असमञ्जस 2. यथार्थता, शुद्धता। प्रशासन, समान सम्बन्ध (जैसे कि कारक का) 3. एक सामन् (नपुं०) [सो+मनिन्] 1. खुश करना, शान्त ही पदार्थ से संबन्ध होने की स्थिति / करना, आराम पहुँचाना, तसल्ली देना 2. सुलह करना, सामान्य (वि.) [समानस्य भावः ष्यञ] 1. समान, शान्ति के उपाय, समझौता-वार्ता करना (राजा के साधारण-सामान्यमेषां प्रथमावरत्वम् --- कू० 744, द्वारा अपने शत्र के प्रति किये जाने वाले चार साधनों आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् में सबसे पहला)--सामदण्डौ प्रशंसन्ति नित्यं राष्ट्राभि- ---- सुभा०, रघु० 14167, कु० 2 / 26 2. सदृश, तुल्य, वृद्धये--मनु० 7 / 109 3. शान्तिदायक या मदु उपाय, समान 3. मामूली, औसतदर्जे का, बीच का--भर्तृ० शान्त या ढाढस बंधाने वाला आचरण, मदुवचन 2 / 74 4. तुच्छ, नाचीज, नगण्य 5. समस्त, संपूर्ण,-त्यम --पंच०४।२६, 48 4. मदुता, कोमलता 5. छन्दोबद्ध / 1. समुदाय, साधारणता, विश्वव्यापकता 2. सामान्य या सूक्त या प्रशंसात्मक गान सप्तसामोपगीतं स्वाम संघटक गुण, साधारणलक्षण 3. समष्टि, समस्तता -रघु० 10121, भग०.१०।३५ 6. सामवेद का 4. भेद, प्रकार 5. अनुरूपता 6. समानता, समता मंत्र 7. सामवेद (सूर्य से उत्पन्न कहा जाता है-तु० 7. सार्वजनिक कार्य 8. साधारण उक्ति-उक्तिरर्थामनु० 1123) / सम० - उद्भवः हाथी,- उपचारः, न्तरन्यासः स्मात्सामान्य विशेषयोः -- चन्द्रा० 5 / 120 ---उपायः मदु और शान्ति देने वाले उपाय, कोमल 9. (अलं० में) एक अलंकार जिसकी परिभाषा या शान्त युक्तियाँ, --गः सामवेद के मंत्रों का गायन मम्मट ने निम्नांकित लिखी है-प्रस्तुतस्य यदन्येन करने वाला ब्राह्मण, -ज, - जात (वि०) 1. सामवेद गणसाम्यविवक्षया, एकात्म्यं बध्यते योगात्तत्सामान्यसे उत्पन्न 2. शान्ति के उपायों से उद्भूत (-जः,-तः) मिति स्मृतम् काव्य. 10 / सम०. ज्ञानम् हाथी--शि० 12 / 11, 18 / 33, योनि: 1. ब्राह्मण लोकविषयक व्यापक बातों का ज्ञान,-पक्षः मध्यस्थिति, 2. हाथी, वादः कृपावचन, मधुरशब्द,-शि०२।५५, - लक्षणम् व्यापक परिभाषा- इति द्रव्यसामान्य-वेदः चारों में से तीसरा वेद / लक्षणानि-तर्क०, वनिता सामान्य स्त्री, वेश्या, सामन्त (वि.) [समन्त+अण] 1. सीमावर्ती, सरहदी, शास्त्रम् साधारण नियम / पड़ोसी 2. विश्वव्यापक, त: 1. पड़ोसी 2. पड़ोस का | सामासिक (वि.) (स्त्री०-~-की) [समास+ठक ] राजा 3. मांडलिक, कर देने वाला राजा सामन्त- 1. सामूहिक, समस्त को समझने वाला, समुच्चयात्मक मौलिमणिरजितपादपीठम् --विक्रम० 3.19, रघु० 2. संहत, संक्षिप्त 3. समाससंबंधी, कम् सब 5 / 28, 6 / 32 4. नेता, नायक, -- तम् पड़ोस। प्रकार के समासों का वर्ग- द्वन्द्वः सामासिकस्य च सामयिक (वि.) (स्त्री०-की) [समय+ठञ] 1. प्रथा- .. भग० 10133 / नुसारी, परम्परागत 2. सम्मत, प्रतिज्ञात 3. करार के | सामि (अव्य०) [साम्+इन् ] 1. आघा, अर्थात् अपूर्ण अनुरूप, नियत समय का पालन करने वाला,--देवि, -अभिवीक्ष्य सामिकृतमण्डनं यती: कररुद्धनीविगलसामयिका भवामः .-मालवि० 1 4. समय पालक, दंशुकाः स्त्रियः-शि० 13 / 31, रघु० 19 / 16 वक्त का पाबन्द 5. ऋतु के अनुकूल, समय पर होने 2. कलंकनीय, नीच, निंदनीय। वाला -कि० 2010 6. नियत समय पर होने वाला / सामिधेनी [ सम- इन्ध+ल्युट, नि०] 1. एक प्रकार के 7, अस्थायी। सम०-अभाव: अस्थायी अनस्तित्व / / प्रार्थनामंत्र जिनका पाठ यज्ञाग्नि प्रज्वलित करते For Private and Personal Use Only Page #1108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समय या समिधाएँ हवन में डालते समय किया 5. अन्तराभाव, निष्पक्षपातिता, ऐकमत्य-येषां जाता है। साम्ये स्थितम् मनः -- भग० 5 / 19 / / सामीची (स्त्री०) प्रशंसा, स्तुति / साम्राज्यम् [सम्राज+व्यञ्] 1. विश्व प्रभुता, सार्वभौमसामीप्यम् [ समीप +व्यञ् ] पड़ोस, निकटता, आसन्नता, राज्य-साम्राज्यशंसिनो भावाः कुशस्य च लवस्य च प्यः पड़ोसी। -उत्तर० 623, रघु०४।५ 2. पूर्णाधिपत्य, प्रभुत्व / सामुद्र (वि०) (स्त्री०. बी) [ समुद्र+अण् ] समुद्र में ! सायः [सो+घञ] 1. अन्त, समाप्ति, अवसान 2. दिन उत्पन्न, समदसंबंधी जैसा कि 'सामद्रं लवणम्' में, की समाप्ति, संध्या 3. बाण / सम०-अहन् (पुं०) --: नाविक, समुद्रयात्री, ब्रम् 1. समुद्री नमक (सायाह्नः) सांझ, संध्याकाल - भामि०२।१५७। 2. समुद्रझाग 2. शरीर का चिह्न।। सायकः [सो+ली बाण- तत्साधकृतसन्धान प्रतिसंहर सामुद्रकम् [सामुद्र+कन् ] समुद्री नमक / सायकम् श० 1111 2. तलवार / सम०---पुलः सामुद्रिक (वि०) (स्त्री-की) [ समुद्र+ठा ] 1. समुद्र बाण का पंखीला भाग-सक्ताङ्गुलिः सायकपुङ्ख एव से उत्पन्न, समुद्रसंबंधी 2. शरीर के चिह्नों से संबंद्ध | रघु० 2 / 31 / (जो शुभाशुभ फल के सूचक समझे जाते हैं), क: सायनम् [सो ल्युट्] किसी ग्रह की लंबाई (देशान्तर सामुद्रिक विद्या का ज्ञाता, जो शरीर के लक्षणों को। रेखा ) जो बासन्ती-विषवीय बिन्दु से मापी देखकर शुभाशुभ फल का कथन करे,-कम हस्तरेखाओं| जाती है। को देखकर शुभाशुभ फल कहने की विद्या / सायन्तन (वि०) (स्त्री०-नी) [सायम्+टयुल, तुट] साम्पराय (वि.) (स्त्री०--यो) [ सम्पराय+अण्] / संध्या-संबंधी, सायंकाल,-सायन्तने सवनकर्मणि संप्रवृत्ते 1. युद्धसंबंधी, सामरिक 2. परलोक संबंधी, भावी, या -श० 3 / 27 / ---यम 1. संघर्ष, झगड़ा 2. भावीजीवन, भवितव्यता | सायम (अव्य.) सो+अम] सायंकाल के समय,-प्रयता 3. परलोक प्राप्ति के उपाय 4. भावी जीवन संबंधी प्रातरन्वेतु सायं प्रत्युद्बजेदपि-रघु० 1190 / सम० पृच्छा 5. पृच्छा, गवेषणा 6. अनिश्चय / -- कालः संध्या, सांझ," मण्डनम् 1. सूर्य का छिपना साम्परायिक (वि.) (स्त्री०---की) [सम्पराय+ठक] 2. सूर्य,-संध्या 1. सायंकालीन झुटपुटा 2. सायंकालीन 1. सामरिक 2. सैनिक, सामरिक महत्त्व का | प्रार्थना। 3. विपत्तिकारक 4. परलोकसंबंधी, कम् युद्ध, लड़ाई, सायिन् (पुं० [साय+इन्] घुड़सवार / संघर्ष शि० 18.1, का लड़ाई का रथ। सम. सायुज्यम् [सयुज+व्या] 1. घनिष्ठ मेल, समरूपता, ---कल्पः सामरिक महत्व का व्यह। लीनता विशेषतः देवता में (मुक्ति की चार अवसाम्प्रत (वि०) 1. योग्य, उचित, उपयुक्त-वेणी० 3 / 3 स्थाओं में से एक) 2. सादृश्य, समानता। 2. संगत, तम् (अव्य०) 1. अब, इस समय हन्त | सार (वि.)[स+घा, सार+अच् वा] 1. आवश्यक स्थानं क्रोधस्य साम्प्रतं देव्याः वेणी०१ 2. तत्काल 2. सर्वोत्तम, उच्चतम, श्रेष्ठ-मुद्रा० 1213 3. वास्त3. ठीक प्रकार, उचित रीति से, ऋतु के अनुकूल / / विक, सच्चा, असली 4. मजबूत, बलवान् 5. ठोस, साम्प्रतिक (वि०) (स्त्री०-को) [सम्प्रति+ठक ] पूर्णतः सिद्ध,-रः,-रम् (प्रथम चार अर्थों के अतिरिक्त 1. वर्तमान काल संबंधी 2. योग्य, उचित, सही सर्वत्र पुं०) 1. सत्, सत्त्व---स्नेहस्य तत्फलमसी प्रण- - उत्तर० 3 / यस्य सारः -- मा० 119, असारे खल संसारे सारमेतसाम्प्रदायिक (वि०) (स्त्री० की) [ सम्प्रदाय+ठक ] च्चतुष्टयम्, काश्यां वासः सतां सङ्गो गंगांभः शंभसेवपरम्पराप्राप्त सिद्धांत से संबंद्ध, परम्पराप्राप्त, क्रमागत नम-धर्म०१४ 2. निचोड़, रस 3. मज्जा 4. वास्तविक साम्बः [सह अम्बया-ब० स०] शिव का नाम / सचाई, मुख्याबिंदु 5. वृक्षों का रस, गोंद जैसा कि साम्बन्धिक (वि.) (स्त्री० की) [संबन्ध+ठक संबंध खदिरसार या सर्जसार में 6. सारांश, संक्षेप, संक्षिप्त से उत्पन्न, कम संबंध, रिश्तेदारी, मित्रता। संग्रह 7. सामर्थ्य, बल, शक्ति, ऊर्जा-सारं धरित्रीसाम्बरी [सम्बर+अण् + डीप् ] जादूगरनी। धरणक्षमं चः- कु० 1117, रघु० 2074 8. पराक्रम, साम्भवी [सम्भव+अण्+डीप] 1. लाल लोधवृक्ष शौर्य, साहस रघु० 4179 1. दृढ़ता, कठोरता 2. शक्यता, संभावना। 10. धन, दौलत-रघु० 5 / 26 11. अमृत 12. ताजा साम्यम् [ सम+ध्या ] 1. बराबरी, समता, समतलता मक्खन 13. हवा, वायु 14. मलाई, दही की मलाई -कु० 5 / 31 2. समानता, मिलना-जुलना, सादृश्य 15. रोग 16. मवाद, पीप 17. मूल्य, श्रेष्ठता, उच्च---स्पष्टं प्रापत्साम्यमर्वीधरस्य शि० 18 / 38, हि / तम प्रत्यक्षज्ञान 18. शतरंज का मोहरा 19. सोडे का 1145, कि० 1751 3. तुल्यता 4. सामंजस्य, , बिना छना अंगाराम्लयक्त द्रव्य 20. अंग्रेजी के क्लाई For Private and Personal Use Only Page #1109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1100 ) मैक्स (Climax) नाम अलंकार से मिलता जुलता | सारथ्यम् [ सारथि+ष्यञ ] रथवान् का पद, गाड़ीवान् एक अलंकार-उत्तरोत्तरमत्कर्षो भवेत्सारः परावधि | - का पद / --काव्य 10, --- रम् 1. जल 2. योग्यता, औचित्य | सारमेयः सरमा+दक] कुत्ता,-यो [ सारमेय-डी ] 3. जंगल, झाड़-झंखाड 4. इस्पात, लोहा। सम० | कुतिया / -असार (वि.) मूल्यवान् और निर्मूल्य, मज़बूत सारल्यम [ सरल+यज्ञ ] सरलता (आलं. से भी) और दुर्बल, (-रम् )1. मूल्य और निर्मुल्यता 2. मूल- सीघापन, ईमानदारी, खरापन / पदार्थ और रिक्तता 3. सामर्थ्य और कमज़ोर,-गन्धः सारवत् (वि.) [ सार+मतुप ] 1. तत्त्वयुक्त 2. उपचन्दन की लकड़ी,-- ग्रीवः शिव जी का नाम, जम् जाऊ 3. रसीला। ताजा मक्खन,--तरुः केले का पेड़, वा 1. सरस्वती / सारस (वि.) (स्त्री-सी) [ सरस इदम अण 1 सरोवर का नाम 2. दुर्गा का नाम, द्रुमः खैर का पेड़, - भङ्गः संबन्धी, काव्या० 3 / 14, नलोद० २।४०,-सः बल की हानिः---भाण्ड: 1. एक प्राकृतिक बर्तन 1. सारस, (कुछ विद्वानों के अनुसार 'हंस')--विभि2. समान का गट्ठा, पण्यसामग्री 3. उपकरण,--लोहम् / द्यमाना विससार सारसानुदस्य तीरेषु तरङ्गसंहतिः इस्पात / कि०८१३१, शि०६७५, 12 / 44, मेघ० 21, सारधम् [सरघाभिः निर्वृत्तम्-अण्] मधु, शहद / रघु० 141 2. पक्षी 3. चन्द्रमा, सम् 1. कमल सारङ्गग (वि.) (स्त्री०-गी) [स+अङ्गच्+अण्] चित 2. स्त्री की तगड़ी। कबरा, रंगबिरंगा, ग: 1. रंगबिरंगा रंग 2. चित्र- सारस (स) नम् [सार+सन् - अच्] 1. तगड़ी, करधनी मृग, कुरंग-एष राजेव दुष्यन्तः सारङ्गणातिरंहसा-श० __ -सारशनं महानहिः-कि० 18132 2. सैनिक पेटी। 125 3. हरिण -सारङ्गास्ते जललवमचः सूचयिष्यन्ति / | सारस्वत (वि०) (स्त्री० ती) [ सरस्वती देवतास्य, मार्गम् - मेघ० 20 (यहाँ 'हाथी' या 'भ्रमर' के सरस्वत्या इदं वा अण] 1. सरस्वती देवी से संबद्ध बजाय यही अर्थ लेना ठीक है) 4. सिंह 5. हाथी 2. सरस्वती नदी से संबंध रखने वाला- कृत्वा 6. भौंरा 7. कोयल 8. सारस 9. राजहंस 10 मोर तासामभिगममपाम् सौम्य सारस्वतीनाम ---मेघ. 11. छतरी 12. बादल 13. परिघान 11. बाल 49 3. वाकपटु, तः 1. सरस्वती नदी के आस पास 15. शंख 16. शिव का नाम 17 कामदेव 18. कमल, का प्रदेश 2. ब्राह्मण जाति का एक भेद 3. बिल्वदंड, 19. कपूर 20. धनुष 21. चन्दन 22. एक प्रकार का -ताः (पुं० ब० व.) सारस्वत देश के निवासी, वाद्ययंत्र 23. आभूषण 24. सोना 25. पृथ्वी 26. रात –तम् भाषण, वाक्पटुता,-शृङ्गारसारस्वतम् 17. प्रकाश। ---गीत० 12 / सारङ्गिकः [ सारङ्ग हन्ति --ठक् ] बहेलिया, चिड़ीमार / सारालः [ सार+आ--ला+क] तिल का पौधा। सारङ्गी [ सारङ्ग+डीप् ] 1. एक प्रकार का वाद्ययंत्र, सारिः,-री (स्त्री०) [स+ इण्] 1. शतरंज का मोहरा, सितार, वायलिन 2. चित्तीदार हरिण / गोट 2. एक प्रकार का पक्षी / सम-फलकः शतसारण (वि०) (स्त्री० --गो) [स--णिच् + ल्युट् ] रंज खेलने की बिसात / भेजना, बहाना,—ण: 1. पेचिस 2. वदी बेर,-णम् सारिका [ सरति गच्छति--स+पवल+टाप, इत्वम् ] एक प्रकार का गन्धद्रव्य / एक प्रकार का पक्षी, मैना---आत्मनो मखदीपेण सारणा [ स+णि+यु-टाप् ] धातुओं की विशेष / बध्यन्ते शुकसारिका:-सभा०, सारिका पञ्जरस्थाम् कर पारे की एक प्रकार की प्रक्रिया / -मेघ०८५। सारणिः,-णी (स्त्री०) [स+णिच् + अनि-पक्षे सारिन् (वि०) (स्त्री०-णी) [स+णिनि ] 1. जाने डोष ] 1. नहर, नाली, पतनाला, जलमार्ग 2. एक | वाला, सहारा लेने वाला 2. तत्त्वयुक्त, सारवान् / छोटी नदी। सारूप्यम् [ सरूप-+-प्या ] 1. रूप की समता, समासारण्डः [स+णिच---अण्ड ] साँप का अण्डा / नता, सादृश्य, सरूपता, मिलना-जुलना-मा० 5 सारतः (अव्य०) [सार-+तसिल] 1. धन के अनुसार 2. देव में लीनता (मक्ति की चार अवस्थाओं में से 2. बलपूर्वक / एक) 3. (नाटकों में) रूपसादृश्यजन्य भ्रम में किया सारथिः [स+अथिण् सह रथेन सरथः घोटकः तत्र | जाने वाला (क्रोधादि) व्यवहार-. सा. द० 464 नियुक्तः इञ वा ] 1. रथवान् - स शापो न त्वया | 4. किसी पदार्थ को या उससे मिलती जुलती सूरत राजन न च सारथिना श्रुतः--रघु० 178, मातलि- को देख कर आश्चर्य। पर्ययौ 3 / 67 2. साथी, सहायक-- रघ०३ सारोष्टिकः [ सारः श्रेष्ठः उप्टो यत्र सारोप्ट: देशभेद: 37 3. समुद्र। तत्र भव:-साराष्ट्र+ठक] एक प्रकार का विप / For Private and Personal Use Only Page #1110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सार्गल (वि.) [सह अर्गलेन .ब. स.11. रोका हआ, संबंध रखने वाला-जैसा कि 'सार्वत्रिको नियमः, में। अवरुद्ध, अड़चन वाला...रघु० 1179 / सार्वधातुक (वि०) (स्त्री०--की) [सर्वधातु+-ठक ] सार्थ (वि.) [सह अर्थेन-ब० स०] 1. अर्थयुक्त, सार्थक संपूर्ण धातुओं में व्यवहृत होने वाला, गण विकरण 2. सोद्देश्य 3. समानार्थक, समानाशय 2. उपयोगी, लगाने के पश्चात् धातु के समस्त रूप में घटने वाला, कामलायक 5. धनवान्, दौलतमंद, मालदार,-थः अर्थात् चार गण और चार लकारों के साथ प्रयुक्त 1. धन्वान् पुरुष 2. सौदागरों की टोली, व्यापारियों होने वाला, कम् चार लकारों (लट्, लोट्, लङ, का दल सार्थाः स्वरं स्वकीयेषु चेरुवेश्म स्विवाद्रिषु लिङ) के तिडादि प्रत्यय (या लिट् तथा आशीलिङ -~~ रघु० 17 / 64, दे० सार्थवाह 3. दल 4. लहंडा, को छोड़ कर और सभी लकारों के विभक्तिचिह्न रेवड़ (एक ही जाति के जानवरों का)-अथ कदाचित्त- और 'शू' ध्वनि से प्रकट होने वाले विकरण) / रितस्ततो भ्रमद्भिः सार्थाद भ्रष्टः कथनको नामोष्ट्रो सार्वभौतिक (वि.) (स्त्री०-की) [सर्वभूत+ठक ] दृष्ट: पंच०१ 5. संचय, संग्रह–अथिसार्थः-पंञ्च० 1. सभी मूलतत्त्वों या प्राणियों से संबंध रखने वाला 1, त्वया चन्द्रमसा चातिसन्धीयते कामिजनसार्थ:-श०३ 2. सभी जीवधारी जन्तुओं से युक्त / / 6. तीर्थयात्रियों की टोली में से एक / सम०-न | सार्वभौम (वि०) (स्त्री०-भी) [सर्वभूमि-+अण् ] काफले में पला हुआ,-वाहः काफले का नेता, व्यापारी, समस्त घरती से संबद्ध या युक्त, विश्वव्यापी,-मः सौदागर श०६। 1. सम्राट्, चक्रवर्ती राजा-नाज्ञाभंग सहन्ते नवर सार्थक (वि.) [ सह अर्थेन-ब० स० कप्] 1. अर्थयुक्त, नृपतयस्त्वादृशाः सार्वभौमाः मद्रा० 3 / 22 2. कुबेर अर्थपूर्ण 2. उपयोगी, कामचलाऊ, लाभदायक / की दिशा, उत्तर दिशा का दिक्कुञ्जर। सार्थवत् (वि०) [ सार्थ-+-मतुप् ] 1. अर्थयुक्त, अर्थपूर्ण सावलौकिक (वि०) (स्त्री०-को) [सर्वलोक / उन] सब 2. बहुत साथियों से युक्त / / लोकों का ज्ञात, समस्त संसार में व्याप्त, सार्वजनिक, साथिकः [सार्थ + ठक् ] व्यापारी, सौदागर / विश्वव्यापी- अनुरागप्रवादस्तु वत्सयोः सार्वलौकिक: सा (वि.) [सह आर्द्रण-ब० स०] गीला, भीगा, तर, -- मा० 1 / 13 / सोला। सार्ववणिक (वि.) (स्त्री०-को)[सर्ववर्ण+ ठक्] 1. प्रत्येक सार्थ (वि.) [ सह अर्धनब० स०] जिसमें आधा बढ़ा प्रकार का, हर तरह का 2. प्रत्येक जाति या वर्ग हुआ हो, जिसमें आधा जुड़ा हुआ हो, जिसमें आधा से सम्बन्ध रखनेवाला। अधिक हो- 'सार्धशतम्' आदि / सार्वयिभक्तिक (वि०) (स्त्री०-की)सर्व विभक्ति+ठा] सार्धम् (अव्य०) [ सह+ऋध+अमु] साथ-साथ, के किसी शब्द की सभी विभक्तियों में घटने वाला, सभी साथ, के साथ में (करण के साथ)-वनं मया सार्ध- विभक्तियों से संबद्ध। मसि प्रपन्नः-रघु० 14168, मनु० 4 / 43, भट्रि० सार्ववेदसः [सर्ववेदस्+-अण्] जो किसी यज्ञ या अन्य 6 / 26, मेघ० 89 / / पूर्ण कार्य में अपना समस्त धन दे देता है। सार्पः (प्यः) [ सर्पो देवताऽस्य -सर्प+अण्, ष्य वा] सार्वर्वद्यः सर्ववेद+प्य सभी वेदों का ज्ञाता ब्राह्मण / आश्लेषा नाम का नक्षत्रपुंज। सार्षप (वि०) (स्त्री०-पी) [सर्षप+अण्] सरसों का सापिष (वि०) (स्त्री०-षी), सापिष्क (वि०) (स्त्री० बना हुआ, पम् सरसों का तेल / ---को) [ सर्पिस् +अण, ठक् वा ] घी में तला हुआ, साष्टि (वि०) समान स्थान, दशा, या पद से युक्त समान घी मिश्रित / अधिकार रखने वाला।। सार्वकामिक (वि०) (स्त्री०-को) [ सर्वकाम+ठक] साष्टिता [साष्टि+तल+टाप्] 1. पद अधिकार व अव प्रत्येक इच्छा को शान्त करने वाला, समस्त कामनाओं स्थाओं में समानता 2. शक्ति में तथा अन्य विशेपताओं को पूरा करने वाला कि० 18 / 25 / में परमात्मा से समानता, मुक्ति की चार अवस्थाओं सार्वकालिक (वि०) (स्त्री०-की) [ सर्वकाल-ठक] में से अन्तिम अवस्था ब्रह्मदो ब्रह्मसाष्टिता (प्रानित्य, शाश्वत, सदैव रहने वाला / प्नोति)- मनु० 4 / 232 / सार्वजनिक (वि.) (स्त्री०-की) सार्वजनीन (वि.) | साष्टर्यम् [साष्टि+व्या ] चौथे दर्जे की मुक्ति / (स्त्री०-नी) [ सर्वजन-+-ठक्, खम वा] सर्वजन | सालः [सल-घा] 1. एक वृक्ष का नाम, या उसकी व्यापक, विश्वव्यापी, सर्वसाधारण संबंधी। राल 2. वृक्ष-यथा कल्पसाल' 'रसालसाल' में सावंशम् [ सर्वज्ञ---अण् ] सर्वज्ञता, सब कुछ जानना। 3. किसी भवन की चारदिवारी या फसील, परकोटा सार्वत्रिक (वि.) (स्त्री०---की) [ सर्वत्र+ठक् ] प्रत्येक 4. भीत, दीवार 5. एक प्रकार की मछली (समासों स्थान का, सामान्य, सब स्थानों या परिस्थितियों से के लिए देखो 'शाल' के अन्तर्गत)। For Private and Personal Use Only Page #1111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सालनः [सल+णिच् + ल्युट] साल वृक्ष की राल / अंगों से बना हुआ-सावयवत्वे चानित्यप्रसङ्गः न सालः [साल: प्राकारोऽस्ति अस्याः-साल+अच-+टाप्] | विद्याकल्पितेन रूपभेदेन सावयवं वस्तु संपद्यते 1. दीवार, फसील 2. धर, मकान-दे० शाला / __ शारी। सम----करी 1. घर, में कार्य करने वाला 2. बन्दी | सावरः सवरेण निर्वत्तः अण्] 1. दोष, अपराध (विशेष कर वह जो युद्ध में पकड़ लिया गया हो) / 2. पाप, दुष्टता, जुर्म 3. लोध्र वृक्ष / वृकः दे० 'शालावृक'। सावरण (वि.) [सह आवरणेन- ब. स.] 1. गूढ़, सालारम् [साला-+-अण्] दीवार में गड़ी खूटी, गुप्त, रहस्य 2. ढका हुआ, बन्द / 'ब्रकेट'। सावर्ण (वि.) (स्त्री०–ी) [ सवर्ण अण् ] एक ही सालरः [सल+उरच, णित्त्व, वृद्धि] मेंढक, दे० 'शालर'। रंग का, एक ही जाति का, एक ही रंग या जाति से सालेयम् [साला+ढक] सोआ, मेथी दे० 'शालेय' / संबद्ध,--णः आठवें मन का मातपरक नाम, दे० सालोक्यम् [समानो लोकोऽस्य - व. स. सलोक - प्या] साणि / सम० लक्ष्यम् 1. एक ही रंग या जाति का 1. उसो लोक या संसार में दूसरे के साथ रहना 2. उसी चिह्न 2 त्वचा, खाल। स्वर्ग में किसी देवता के साथ रहना। | सावणिः [ सवर्णा | इन ] आठवें मनु का मातृपरक नाम साल्वः [साल्व अण्] 1. एक देश का नाम, उसके निवा- (सूर्य की पत्नी सवर्णा से उत्पन्न)। सिया का नाम (इस अथ म ब०व०) 2. एक राक्षस | सावण्यम [ सवर्ण-ध्या 11. रंग की एकता 2. किसी का नाम जिसको विष्ण ने मार गिराया था। सम० श्रेणी या जाति की एकता 3. आठवें मनु द्वारा अधि- हन् (पुं०) विष्णु का विशेषण / ष्ठित मन्वन्तर। साल्विकः [साल्व | ठक] सारिका नामक पक्षी, मैना। सावलेप (वि.) [सह अवलेपेन ] अभिमानपूर्ण, घमंडी, सावः [सु+घञ] तर्पण / हेकड़वान, पम् ( अन्य 0) घमंड से, हेकड़ी के साथ, सावक (वि.) (स्त्री-विका) [सु+ण्वुल] उत्पादक, अहंकारपूर्वक / जन्म देने वाला, प्रसवसम्बन्धी, कःजानवर का बच्चा सावशेष (वि.) [सह अवशेषेण-ब. स.11 अव(दे० 'शावक')। शिप्ट से युक्त, जिसमें कुछ बाकी बचे 2. अपूर्ण, सावकाश (वि.) [सह ,अवकाशेन ब० स०] जिसको अधूरा, असमाप्त / अवकाश हो, अवकाश वाला, खाली, शम् (अव्य०) सावष्टम्भ (वि.) [सह अवष्टम्भेन-ब. स.] 1. धमंडी, अवकाश पाकर, अपनो सुविधानुकूल / प्रतिष्ठित, उत्कृष्ट, शानदार 2. साहसी, दढ़निश्चयी सावग्रह (वि.) [अवग्रहेण सह-ब० स०] 'अवग्रह' / 3. दृढ़ता से पूर्ण, भम् (अव्य०) दृढनिश्चय के साथ, चिह्न से युक्त / दृढ़तापूर्वक, साहस के साथ / सावज्ञ (वि० [सह अवज्ञया ब० स०] घृणा करने वाला, सावहेल (वि.) { सह अवहेलया ब० स० ] तिरस्कारतिरस्कारपूर्ण, अपमान अनुभव करने वाला / पूर्ण निराकार करने वाला, घृणा करने वाला, लम् सावद्यम् [अवधन सह--ब० स०] संन्यासी के द्वारा प्राप्य / / (अव्य०) निरादर के साथ, घृणापूर्वक / सावधान (वि०) अवधानेन सह ब० स० / 1. ध्यान / साविका (सू- पदल; टाप, इत्वम् ] दाई, प्रसव के समय देने वाला, दत्तचित्त, सचेत, खबरदार 2. चौकस / प्रसूता की देखभाल करने वाली / 3. परिश्रमी, नम् (अव्य०) सावधानता से, ध्यान | सावित्र (वि०) (स्त्री. त्री) [ सवितृ + अण् ] 1. सूर्य पूर्वक, चौकस होकर / संबंधी 2. सूर्य को संतान, सूर्यवंश से संबद्ध, (राजाओं सावधि (वि.) [सह अवधिना ब० स० / सीमायुक्त, के)-यत्सावित्रर्दीपितं भूमिपालै:- उत्तर० 142 सीमित, समापिका, परिभाषित, सीमाबद्ध-- सावधि- 3. गायत्री मंत्र से यक्त, : 1. सूर्य 2. भ्रूण, गर्भ स्तोयराशिस्ते यशोराशेस्तु नावधिः सुभा०। 3. ब्राह्मण 4. शिव का विशेषण 5. कर्ण का विशेषण, सावन (वि.) (स्त्री०-नी) [ सवन+अण् ] तीनों -श्रम यज्ञोपवीत संस्कार (इसका "सावित्रम्" नाम सवनों से युक्त या संबद्ध,--न: 1. यजमान, जो यज्ञ इसी लिए पड़ा कि इस संस्कार में मुख्य रूप से गायत्री में पुरोहितों का वरण करता है 2. यज्ञ का उपसंहार, मंत्र का जाप करना पड़ता है, उसी समय यज्ञोपवीत वह संस्कार जिसके द्वारा यज्ञ को पूर्णाहुति दी जाती धारण किया जाता है। है 3, वरुण का नाम 4. तीस सौरदिवस का मास | सावित्री सावित्र+डीप] 1. प्रकाश की किरण 2. ऋग्वेद 5. सूर्योदय से सूर्यास्त तक का दिन 6. विशेष | का एक प्रसिद्ध मंत्र (इसका नाम 'सावित्र' सूर्य को संबोवर्ष। धित करने के कारण पड़ा) इसे गायत्री भी कहते है। सावयव (वि.) [सह अवयवेन ब० स०] भागों या / अधिक जानकारी के लिए दे० 'गायत्री' 3. यज्ञोपवीत For Private and Personal Use Only Page #1112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार 4. ब्राह्मण की पत्नी 5. पार्वती 6. कश्यप की। __सावित्री ने यमराज से ऐसे करुण स्वर में प्रार्थना की पत्नी 7. शाल्वदेश के राजा सत्यवान् की पत्नी कि यमराज ने उसे सत्यवान के प्राणों को छोड़ कर (सावित्री राजा अश्वपति को एकमात्र सन्तान थी। और कोई वर मांगने के लिए कहा। सावित्री की वह इतनी सुन्दर थी कि वे सब वर जो उसे पाने की अनन्य भक्ति एवं पातिव्रत धर्म पर मुग्ध होकर अन्त इच्छा से वहाँ आय उसकी अभिराम कान्ति से इतने में यमराज ने सत्यवान के प्राण भी लौटा दिये। वह चकित हए कि वापिस ही लौट गये। विवाह योग्य प्रसन्न होकर वापिस आई और देखा कि सत्यवान मानों अवस्था होने पर सावित्री को वर न मिल सका। गहरी निद्रा से जाग गया है। उसने सत्यवान को अन्त में उसके पिता ने उसे कहा कि अब तुम स्वयं सारी घटना बता दी। तथा वे दोनों आश्रम में जाओ और अपनी इच्छा के अनुसार वर ढंढो। सावित्री वापिस आ गये। शीघ्र ही उसके श्वसुर धुमत्सेन ने वैसा ही किया, और वर चुन कर वह पिता के ने यमराज के द्वारा दिये गये वरों का फल पाया। पास वापिस आई और कहने लगी कि मैने शाल्व सावित्री पातिव्रत धर्म का उच्चतम आदर्श मानी देश के राजा धमत्सेन के पुत्र सत्यवान को चुन लिया जाती है। बड़ी बढ़ी स्त्रियां आज भी विवाहित है। राजा धुमत्रोन उन दिनों अपने राज्य से निकाल तरुणी को आशीर्वाद (जन्मसावित्री भव) देती हैं दिये गये थे-वे अपनी सहमिणी समेत अब वानप्रस्थ तथा उसके सामने सावित्री का आदर्श पूरा करने के जीवन बिता रहे थे। नारद मुनि भी घूमते हुए लिए उसका उदाहरण रखती है) / सम० पतित,उस समय आ गये थे, जब उन्होंने सुना तो राजा / परिभ्रष्ट पहले तीनों वर्गों में से किसी एक वर्ण का अश्वपति तथा सावित्री को कहा कि मझे तुम्हारे / पुरुष जिसका समय पर यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ चुनाव पर खेद है, क्योंकि यद्यपि सत्यवान सब प्रकार हो, तु० ब्रात्य व्रतम् ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष के से तुम्हारे योग्य है परन्तु उसकी आय अब केवल एक अन्तिम तीन दिनों का व्रत जिसे आर्य ललनाएँ विशेष वर्ष और बाकी है, अत: उसको चनना जीवन भर रूप से वैधव्य से बचने के लिए रखती हैं। के लिए वैधव्य तथा कष्ट का भार लेता है। उसके साविष्कार (वि०) [सह आविष्कारेण-ब० स०] मातापिता ने उसके मन को बदलने का घोर प्रयत्न | 1. घमंडी, अहंकार 2. प्रकट / किया परन्तु उस उच्चात्मा सावित्री ने कहा कि मेरा | साशंस (वि.) [सह आशंसया ब० स०] कामना और निश्चय अब नहीं बदल सकता। तदनुसार समय उत्कण्ठा से पूर्ण, इच्छुक, आशावान्, प्रत्याशी,-सम् पर उसका विवाह सत्यवान से हो गया। विवाह के (अव्य०) कामना पूर्वक, आशा से। पश्चात् सावित्री ने अपना सब राजसी ठाठबाट, बहु- साशड (वि०) [ सह आशङ्कया. ब० स० ] डर अनुभव मुल्य आभूषण तथा वस्त्रादिक उतार दिये और अपने करने वाला, आशंका करने वाला, डरा हुआ, चकित / बढ़े सास-ससुर की सेवा करने लगी। यद्यपि बाहर | साशयन्दकः (40) एक छोटी छिपकली। से उसकी मुख-मुद्रा से कुछ प्रकट न होता था, वह | साशकः (पं०) गलकंबल, सास्ना। प्रसन्न ही रहती थी। परन्तु वह नारद के वचन | साश्चर्य (वि.) [सह आश्चर्येण ब० स०] 1. आश्चर्य अभी तक नहीं भूलो थी। उसे दिन बीतते देर न जनक, विलक्षण 2. आश्चर्यचकित,-यम् (अव्य०) लगी। और अन्त में वह दुर्भाग्यपूर्ण दिवस जिस आश्चर्य के साथ, अद्भुत प्रकार से / / दिन सत्यवान् का प्राणान्त होना था निकट आ साश्र (स्त्र) (वि.) [सह अश्रेण-] 1. कोन या किनारों से गया। उसने मन में सोचा कि अभी तीन दिन और / युक्त, कोणदार 2. आँसू से भरा हुआ, रोता हुआ। बाकी है, इन तीनों दिन में कठोर व्रत साधन करूंगी। साधुधी [साथ ध्यायति - साश्रु+ध्य-क्विप्, संप्रसारण ] उसने व्रत किया और चौथे दिन जब सत्यवान् यज्ञ सास, पति या पत्नी की माता। को समिधाएँ लेने के लिए जंगल जाने को तैयार हुआ | साष्टाङ्गम् (अव्य०) [सह अष्टाङ्गः ब० स० ] लंबा तो सावित्री भी उसके साथ साथ गई। कुछ समिधाएँ दण्डवत् लेट कर (शरीर के आठ अंगों से पृथ्वी को एकत्र करने के पश्चात् सत्यवान थक कर बैठ गया / छकर दे० 'अष्टन्' के अन्तर्गत 'अष्टांग प्रमाण') और अपना सिर सावित्री की छाती पर रख कर सो सास (वि.) [सह आसेन ] धनुर्धारी-कि० 15 / 5 / गया। उसी समय यमराज आया और सत्यवान् को | सासुसू (वि.) बाण धारण करने वाला-कि० 15 / 5 / आत्मा को लेकर दक्षिण की ओर चल दिया। सासूय (वि.) सह असूयया ] डाह करने वाला, ईर्ष्याल, सावित्री ने यह सब देखा और यमराज का पीछा | तिरस्कारपूर्ण,-यम् (अव्य०) डाह के साथ, रोषपूर्वक किया। यमराज ने सावित्री को बताया कि सत्यवान् / तिरस्कार के साथ-२०२।२। की आयु समाप्त हो चुकी है। परन्तु पतिव्रता / सास्ना [ सस+म, णित् वृद्धि] गाय या बैल का गल दर्भाग्यपूर्ण दिवस जिस विकसिह अश्रेण- आ। For Private and Personal Use Only Page #1113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कम्बल, गोः सास्नादिमत्वं लक्षणम्-तर्क०, रोमन्थ- | साहायकम् [सहाय+चुण्] 1 सहायता, साहाय्य, मदद मन्थरचलद्गुरुसास्नमासांचक्रे तिमीलदलसेक्षणमौक्षण सकुलोचितमिन्द्रस साहायकमपेयिवान् रघु० शि० 5 / 62 / 17 / 5 2. सहचरत्व, मंत्रो, सोहार्द 3. मित्रमंडली साहचर्यम् | सहचर-व्यञ साथ, साथीपना, साथ रहना, | . सहायक सेना / साथ साथ बसना, सहवर्तिता कि न स्मरसि यदेकत्र | साहाय्यम् [सहाय+ष्य 1. सहायता, मदद, सहकार नो विद्यापरिग्रहाय नानादिगन्तवासिनां साहचर्यमासीत् / 2. सौहार्द, मैत्री / -मा०१, कु०३।२१, रघु०१६।८७, वेणी० 120, साहित्यम् सहित+प्पा 1, साहचर्य, भाईचारा, मेलशि०१५।२४ / मिलाप, सहयोगिता 2. साहित्यिक या आलंकारिक साहनम् [सह +णिच् + ल्युट ] सहन करना, भुगतना। रचना-साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छसाहसम् [ सहसा वलेन निवृत्तम् अण् ] 1. प्रचण्डता, बल, विषाणहीनः - भर्त० 3 / 12 3. रीतिशास्त्र, काव्यलूटखसोट -- मनु० 7.48, 816 2. कोई भी घोर कला-विक्रमांक०१।११, साहित्यदर्पण आदि .किसी अपराध (जैसे कि डाका, बलात्कार, लूट-खसोट वस्तू के उत्पादन या सम्पन्नता के लिए सामग्री का आदि महापातक), जघन्य अपराध, अग्रधर्षणपरक संग्रह (संदिग्ध अर्थ)। कार्य 3. करता, अत्याचार शि० 9 / 59 ... हिम्मत, साह्यम् सिह+ज्या] 1. संयोजन, मेल, साहचर्य, सहयोग दिलेरी, उग्र शौर्य-साहसे श्रीः प्रतिवसति-----मच्छ०४ 2. सहायता, मदद / सग० छत् (पुं०) साथी। 5. साहसिकता, उतावलापन, औद्धत्य, अविमृश्य- | साह्वयः [सह आह्वयेन ब० स०] जानवरों की लड़ाई कारिता, साहसिक कार्य --तदपि साहसाभासम् मा० करा कर जुआ खेलना। 2, किमपरमतो नियंढे यरकरार्पणसासम 9 / 10, सि (स्वा० ऋचा. उभ० सिनोति, सिनते; सिनाति, कि० 97442. सज़ा, हा, जमना (इस अर्थ में सिनीते) 1. बांधना, कसना, जकड़ना 2. जाल में पुं० भी), दे० मनु०८।१३८, याज्ञ० 1166, 365 / फंसना। सम०-अजुः1. राजा विक्रमादित्य का विशेषण सिंहः हिंस+अच, पृषो०] 1. शेर (कहा जाता है कि 2. एक कविका पिरोया एक कोशकार का विशे इस शब्द को व्यत्पत्ति 'हिंस' धातु से हई है-तू० पण,– अध्यवसायिन् (वि०) उतावली या जल्दबाजी भवेद्वर्णागमाद्धंसः सिंहो वर्णविपर्ययात् सिद्धा०) करने वाला, ऐकरसिक (वि०) नितान्त प्रचण्डता ----- न हि सुप्तस्य सिंहस्प प्रविशन्ति मुखे मगा:-सुभा० पर तुला हुआ, भीषण, कर, कारिन (वि०) 1. दिलेर, 2. 'सिंह' राशि का चिह्न 3. (समास के अन्त में वेधड़क 2. जल्दबाज़, अविवेकी. लाञ्छन (वि०) प्रयुक्त) सर्वोत्तम, श्रेणी में प्रमुख, उदा० --रघुसिंह, जिसमें साहस परिचायक के रूप हों। पुरुषसिंह / सम० अवलोकनग शेर का पीछे मुड़ साहसिक (वि.) (स्त्री० की) [साहसे प्रसृतः ठक ] कर देखना,--. न्यायः सिंहावलोकन का न्याय, वस्तू 1. बहुत अधिक जोर लगाने वाला, नृशंस, प्रचण्ड, का प्रायः पूर्ववर्ती और पारवर्ती संबंध बतलाने के उत्पीडक, ऋर, लूट-खसोट करने वाला 2. हिम्मती, लिए प्रयुक्त, व्याख्या के लिए 'न्याय' के अन्तर्गत दिलेर, निर्भीक, विचारशून्य, उद्धत -- न सहास्मि देखिए,--आसनम् राजगद्दो, सम्मान का आसन, (नः) साहसमसाहिकी शि० 9:59, केचित्तु साहसिकास्त्रि- एक प्रकार का रतिबंध,--आस्यः हाथों की विशेष लोचनमितिः पेठ: ..कु० 3 / 44 पर मल्लि0 3. दण्ड- स्थिति,-ग: शिव का विशेषण, तलम अंजलि, --तण्डः मूलक, दण्डात्मक,-कः 1. हिम्मतवर, दिलेर, उद्यमी एक प्रकार की मछलो, दंष्ट्रः शिव का विशेषण, ---पंच० 5 / 31 2. आततायी, भयंकर, भीषण या पर्य (जि०) शेर की भांति गर्वीला,---ध्वनिः-नादः किल विविधजीवोपहारप्रियेति साहसिकानां प्रवादः 1. शेर को दहाड़ कु. 1156, मृच्छ० 5 / 29 .....मा० 1, साहसिकः खल्वेषः-६ 3. लुटेरा, लूट- 2. युद्ध-ध्वनि, ललकार, द्वारम् मुख्य दरवाजा,-याना मार करने वाला, डाक / ... रथा पार्वती देवी, लील: एक प्रकार का संभोग, साहसिन् (मि०) साहस+इनि ] 1. प्रचण्ड, उग्र, भीषण, --... वाहनः शिव का विशेषण,-संहनन (वि.) 1. शेर क्रूर 2. हिम्मती, दिलेर, जल्दबाज, आशकर्ता / की भांति मजबूत 2. सुन्दर, ( नम्) शेर का मार साहस्र (वि०) (स्त्री०-स्रो) [ सहस्र+-अण् ] 1. हजार डालना। से संबंध रखने वाला 2. हजार से युक्त 3. एक सिंहलम् [सिंहोऽस्त्यस्य लच] 1. टिन 2. पीतल 3. बल्क, हजार में मोल लिया हुआ 4. प्रति हजार दिया हुआ वृक्ष की छाल लङ्काद्वीप (प्राय-ब०व०)--सिंहलेभ्यः (ब्याज आदि) 5 हजार गुना, सः एक हजार प्रत्यागच्छता सिंहलेश्वरदुहितुः फलकासादनम्-रत्ना०सैनिकों की टुकड़ी,-त्रम् एक हजार का समूह। / १,---लाः (पुं० ब०व०) लंका देशवासी लोग / For Private and Personal Use Only Page #1114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1105 ) सिंहलकम् [सिंहल-कन] लंका का द्वीप: फेंका जाना 2. फूल जाना, उन्नत होना, अहंकार सिंहाणम् (नम्) [शिक+आनच, पूषो०] 1. लोहे का जंग युक्त होना न तस्योत्सिषिचे मनः-रधु० 17:43 2. नाक का मल / 3. बाधित होना--मनु० 872, (प्रेर०) घमंड से सिंहिका [सिंह+कन् +टाप, इत्वम्] राह की माँ / सम० भरना, नि , छिड़कना, उडेलना, ऊपर डाल देना, --तनयः, पुत्रः---सुतः~-सूनः राहु के विशेषण / / अन्दर डालना रघु० 3 / 26, श० 4 / 13, कु०२१५७ सिंही [सिंह नडीष्] 1. शेरनी 2. राहु की माता का नाम।। 2. गर्भयक्त करना निषिञ्चमाधवीमेता लता कौन्दी सिकता [सिक+अत+टाप] 1. रेतीली जमीन 2. रेत / च नर्तयन विक्रम० 2 / 4, (यहां पहला अर्थ भी (प्रायः ब० व० में)-लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः | | अभिप्रेत है), परि-छिड़कना, उडेलना। पीडयन्-भर्तृ० 2 / 5 3. बजरी, पथरी (एक रोग)। सिञ्चयः [सच्+अयच्, कित्] वस्त्र, कपड़ा / सिकतिल (वि.) [सिकता-+इलच्] रेतीला,-भर्तृ० 3 / 38 / / सिञ्चिता [सिच+इतच, पृषो०] पीपलामूल / सिक्त (भू० क० क०) [सिच्+क्त] 1. छिड़का गया, सिञ्जा [=शिजा, पृषो०] धातु के बने आभूषणों की पानी से गीला किया गया 2. तर किया गया, गीला | झनकार / किया गया, भिगोया गया 3. गर्भित, दे० 'सिन्। सिञ्जितम् [= शिञ्जित, पृषो०] झनझनाहट, झनकार सिक्यः [सिच्+थक्] 1. उबले हुए चावल 2. भात का -आदित्सुभिर्नूपुरसिञ्जितानि--कु० 1134, विक्रम पिंडग्रासोद्गलितसिक्थेन का हानिः करिणो भवेत् -सुभा०, क्थम् 1. मधुमक्खियों से बनाया गया | सिट् (म्वा० पर० सेटति) अवज्ञा करना, घृणा करना। मोम 2. नील। | सित (वि.) [सो (सि)+क्त] 1. सफेद 2. बंधा हआ, सिक्यम् दे० शिक्यम्। कसा हुआ, जकड़ा हुआ, बेड़ी पड़ा हुआ 3. घिरा सिक्ष्यः (पुं०) स्फटिक, शीशा / हुआ 4. अवसित, समाप्त, तः 1. सफेद रंग 2. चान्नसिद्ध (घा) णम् [शिव + आनन्, पृषो०] 1. नाक का | मास का शुक्ल पक्ष 3. शुक्रग्रह 4. बाण,-तम् 1. चांदी मल 2. लोहे का जंग / 2. चन्दन 3. मूली। सम० अनः कांटा,-अपाङ्गः सिङ्गिणी [शिङ्क+णिनि+हीष, पूषो०] नाक / मोर,-अभ्रः,-अभ्रम् कपूर,- अम्बरः श्वेतवस्त्रधारी सिच् (तुदा० उभ० सिंचति-ते, सिक्त) (इकारान्त और / संन्यासी, ...अर्जकः सफेद तुलसी, -- अश्वः अर्जुन का उकारान्त उपसों के पश्चात् सिंच के स को प हो विशेषण, असित बलराम का विशेषण, आदि राब, जाता है) 1. छिड़कना, छोटी-छोटी बंदों में बखेरना गुड़, .आलिका कोकला, सितुही, -- इतर (वि०) जो -भट्रि० 19423 2. सींचना, तर करना, भिगोना, श्वेत न हो अर्थात् काला,-उद्भवम् सफेद चन्दन, गीला करना - मेघ० 26, मनु० 9 / 255 3. उडेलना, उपलः स्फटिक, उपला मिस्री, चीनी,-करः उत्सर्जन करना, निकालना, ढालना रघु० 16 / 66 1. चन्द्रमा 2. कपूर, धातुः चाक, खड़िया, रश्मि: 6. भरना, बूंद-बूंद टपकाना, डालना-जाडधं धियो चाँद, वाजिन (0) अर्जुन का नाम, शर्करा चीनी. हरति सिञ्चति वाचि सत्यम् -भर्तृ० 2 / 23 5. उडेल ---शिम्बिकः गेहूँ,--शिवम् सेंधा नमक,- शूकः जी। देना, प्रस्तुत करना अन्यथा तिलोदकं में सिञ्चतम् / सिता सित+टाप] चीनी, शक्कर,-पिसेन दुने रसने ----श० 3, प्रेर० (सेचयति-ते) छिड़कवाना, इच्छा सितापि तिक्तायते हंसकुलावतंस-नै० 3394, भामि० (सिसिक्षति-ते) छिड़कने की इच्छा करना, अभि -, 4 / 13 2. ज्योत्स्ना 3. मनोरमा स्त्री 4. मदिरा 1 छिड़कना, उडेलना, सींचना, गीला करना, 5. सफेद दूब 6. चमेली, बेला। वौछार करना (आलं. से भी)--अथ वपुरभिषेक्तुं सिति (वि.) [सो+क्तिच्] 1. सफेद 2. काला,--तिः तास्तदाम्भोभिरीषः शि० 775, भट्टि० 6 / 21, | सफेद या काला रंग। सम०-कष्ठ,-वासस् दे० 15 / 3 2. लेप करना, संस्कारित करना, नियत करना | शितिकंठ, शितिवासस्। (सिर पर जल के छींटे देकर) मुकुट पहनाना, राज्या- | सिद्ध (भू० क. कृ०) [ सिध+क्त ] 1. सम्पन्न, कार्याभिषेक करना, पदासीन करना-अग्निवर्णमभिषिच्य न्वित, अनुष्ठित, अवाप्त, पूर्ण 2. प्राप्त, उपलब्ध, राघव: स्वे पदे -रघु० 1941, 17 / 13, विक्रम अवाप्त 3. कामयाब, सफल 4. बसा हुआ, स्थापित 5 / 23 (प्रेर०) ताज पहनना, राजगद्दी पर बिठाना, नैसगिकी सुरभिणः कुसुमस्य सिद्धा मनि स्थिति आ---, छिड़कना (प्रेर०) छिड़कवाना, उडलवाना चरणरवताडनानि -- उत्तर० 1 / 14 5. साबित, प्रमा तप्तमासेचयेतैलं वक्त्रे श्रोत्रे च पार्थिवः मन० णित तस्मादिन्द्रियं प्रत्यक्षप्रमाणमिति सिद्धम्-तर्क०, 8 / 272, उद-,छिनकना, उडेलना, फैलाना (कर्मवा) मनु० 81178 6. वैध, न्याय्य (जैसे कि नियम) 1. तेज प्रवाहित होना, झाग उगलना, ऊपर की ओर ! 7. सच माना हुआ 8. फैसला किया हुआ, निर्णीत For Private and Personal Use Only Page #1115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (जैसे कि कोई कानूनी अभियोग) 9. दिया गया, / सिद्धता, त्वम् [ सिद्धि+तल+टाप, त्व वा] सम्पन्नता, भुगताया गया, (ऋणं आदि) चकता किया गया। पूर्णता, पूरा करना। 10. पकाया गया, (भोजन) बनाया गया 11. परि- सिद्धिः (स्त्री०) [ सिध् + क्तिन् ] 1. निष्पन्नता, पूर्णता, पक्व, पका हुआ 12. सर्वथा तैयार किया गया, संपूर्ति, पूरा होना, (किसी पदार्थ की) पूर्ण अवाप्ति मिश्रित, (वनस्पति आदि) एकत्र पकाई गई -क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे --सुभा० 13. (रुपया आदि) तैयार 14. वश में किया गया, 2. सफलता, समृद्धि:, कल्याण, कुशल-क्षेम 3. स्थापना जीता गया, (जादू के द्वारा) अधीन किया गया प्रतिष्ठा 4. प्रमाणन, प्रदर्शन, प्रमाण, निविवाद परि15. वशीभूत किया गया, मंगलप्रद बना हुआ णाम 5. (किसी नियम या विधि की) वैधता 16. पूर्णतः विज्ञ या दक्ष, प्रवीण जैसा कि 'रससिद्धम्' 6. फैसला, निर्णय, व्यवस्था (किसी कानूनी मुकदमे 17. संम्पादित, (साधना आदि के द्वारा) पवित्रीकृत की)7. निश्चिति, सचाई, यथार्थता, शुद्धता 8. अदा18. मुक्त किया हआ 19. अलौकिक शक्ति से यक्त यगी, (ऋण का) परिशोध 9. तैयार करना, (औषधि 20. पावन, पवित्र, पुण्यात्मा 21. दिव्य, अविनश्वर, आदि का) पकाना 10. समस्या का समाधान नित्य 22. विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध 23. उज्ज्वल, शान- 11. तत्परता 12. नितान्त पवित्रता या विशुद्धता दार,-3ः1. अर्धदिव्य प्राणी जो अत्यंत पवित्र और 13. अतिमानव शक्ति-यह गिनती में आठ हैं-अणिमा पुण्यात्मा माना जाता है, विशेष रूप से देवयोनि विशेष लघिमा प्राप्तिःप्राकाम्यं महिमा तथा, ईशित्वं च वशित्वं जिसमें आठ सिद्धियाँ हों-~-उद्वेजिता वृष्टिभिराश्रयन्ते च तथा कामावसायिता 14. जादू के द्वारा अतिमानव शृङ्गाणि यस्यातपवन्ति सिद्धाः-कु. 15 2: अंतर्दृष्टि शक्तियों को प्राप्त करना 15. विलक्षण कुशलता या प्राप्त सन्त ऋषि या महात्मा (जैसे कि व्यास) क्षमता 16. अच्छा प्रभाब या फल 17. मुक्ति, मोक्ष 3. कोई भी संत, ऋषि या महात्मा--सिद्धादेश 18. समझ, बुद्धि 19. छिपाना, अन्तर्धान होना, अपने -रत्ना० 1 4. जादूगर, ऐन्द्रजालिक 5. कानूनी आपको अदृश्य करना 20. जादू की खड़ाऊँ 21. एक मुकदमा, अदालती जांच 6. गुड़,-सम समुद्री नमक। प्रकार का योग 22. दुर्गा का नाम / सम० --द सम० - अन्तः 1. सर्वसम्मत फल 2. किसी तर्क का (वि.) सफलता या सर्वोपरि आनन्दातिरेक देने वाला प्रदर्शित उपसंहार, किसी प्रश्न का सर्वसम्मत रूप, (-दः) शिव का विशेषण, दात्री दुर्गा का विशेषण, सही तथा तर्कसंगत उपसंहार (पूर्वपक्ष के निराकरण योगः ग्रहों का विशेष प्रकार का शुभ संयोग / के पश्चात्) 3. प्रमाणित तथ्य, मानी हई सचाई, सिध (दिवा० पर० सिध्यति, सिद्ध, प्रेर०--साधयति राद्धान्त, मत 4. निर्णायक साक्ष्य के आधार पर या सेधयति--इच्छा० सिषित्सति) 1. सम्पन्न होना, अवलंबित कोई माना हआ मलपाठ का ग्रन्थ, कोटि: पुरा होना यले कृते याद न सिध्यति कोऽत्र दोषः (स्त्री०) यक्तिगत बिन्दु जो तर्कसंगत उपसंहार / हि० प्र० 31, उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न माना जाता है, पक्षः किसी युक्ति का तर्कसंगत मनोरथैः 36 2. कामयाब होना, सफलता प्राप्त पार्श्व, --अन्नम् पकाया हुआ भोजन,--अर्थ (वि०) करना सिध्यन्ति कर्मसु महत्स्वपि यन्नियोज्या:-श० जिसने अपना अभीष्ट सम्पन्न कर लिया है, सफल 714 3. पहुँचना, आघात करना, सहो पड़ना-श० (-र्यः) 1. सफेद सरसों 2. शिव का नाम 3. महात्मा 215. अभीष्ट पदार्थ प्राप्त करना 5. सिद्ध होना, बुद्ध का नाम,---आसनम् धर्मसाधना में विशेष प्रकार प्रमाणित होना, बैध होना यदि वचनमात्रेणवाधिकी बैठने की स्थिति, डा, नदी,-सिन्धुः स्वगंगा, पत्यं सिध्यति हि०३ 6. व्यवस्थित या अभिनिर्णीत आकाशगंगा,-----ग्रहः विशेष प्रकार का पागलपन, होना 7. सर्वथा तैयार किया हुआ या पकाया हुआ मनोविक्षिप्त,--जलम् कांजी, --धातुः पारा,---पक्षः होना 8. विजित या जीता हआ होना-पंच०२३६, किसी प्रतिज्ञा का सर्वसम्मत तथा तर्कसंगत पहल, प्र--, 1. सम्पन्न होना, कार्यान्वित होना, सफल होना -प्रयोजनः सफेद सरसों,-योगिन् (पुं०) शिव का ...-..शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मणः-भग० 38, विशेषण,-रस (वि०) खनिज, धातुमय ( सः) तपसव प्रसिध्यन्ति मनु० 111231 2. उपलब्ध या 1. पारा 2. रसायनज्ञाता - सङ्कल्प (वि.) जिसने अवाप्त होना 3. विख्यात होना, दे० 'प्रसिद्ध', सम्--, अपना अभीष्ट सिद्ध कर लिया है, सेतः कार्तिकेय 1. पूरा किया जाना 2. सर्वथा सम्पन्न या क्रियान्वित का नाम,-.-स्थाली ऋषि की बटलोई या पात्र (ऐसा होना, पूरी तरह अनुष्ठित होना 3. आनन्दातिरेक समझा जाता है कि इस बर्तन से इच्छानुसार भोजन प्राप्त करना, प्रसन्न होना-जप्येनेव तु संसिध्येद् प्राप्त किया जा सकता है और फिर भी यह भोजन | ब्राह्मणो नात्र संशय:--मनु० 2187 / से भरपूर रहता है)। ii (म्वा० पर० सेघति, सिद्ध, इकारान्त उकारान्त For Private and Personal Use Only Page #1116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1107 ) उपसर्गों के पश्चात् 'सिध्' के 'सू' को मर्घन्य '' हो / 2. सिंघनदी के चारों ओर का देश 4. मालवा में जाता है) 1. जाना 2. हटाना, दूर करना 3. नियन्त्रण बहने वाली एक नदी का नाम मेघ०२९ (यहां पर करना, रुकावट डालना. रोकना 4. निषेध करना, मल्लि. का टिप्पण--सिन्धु नाम नदी तु कुत्रापि प्रतिषेव करना . आदेश देना, समादेश देना, निदेश देना नास्ति-निरर्थक है)-मा० 4 / 9. (उस स्थान पर 6. शुभ निकलना, मंगलमय होना, अप-, दूर करना, भांडारकर का नोट देखो) 5. हाथी के संड से निकला हटाना संवत्सरं यवाहारस्तत्पापमपसेधति—मनुं० हुआ पानी 6. हाथी के गण्डस्थलों से बहनें वाला दान 111199, नि-, 1. परे हटाना, रोकना, नियंत्रण या मद 7. हाथी--(पुं०ब०व०) बड़ा दरिया या नदी में रखना, पीछे हटाना-न्यषेधि शेषोऽप्यनुयार्थिवर्ग: -पिबत्यसो पाययते च सिन्ध:-रघु०१३१९, मेघ०४६। - रघु० 2 / 4, 342, 5 / 18 2. विरोध करना, सम० ज (वि०) 1. नदी से उत्पन्न 2. समुद्र से प्रतिवाद करना, आक्षेप करना- रघु० 14143 उत्पन्न 3. सिंघ देश में उत्पन्न, (-जः) चन्द्रमा 3. प्रतिषेध करना, मना करना-निषिद्धो भाषमाणस्तु | (-जम्) सेंधा नमक,-नायः सागर। सुवर्ण दण्डमर्हति-मनु० 8 / 361 4. पराजित करना, | सिन्धुकः, सिन्धुवारः [सिन्धु+क, सिन्दुवारः, दस्य घः] जीतना-रघु० 1811 5. हटाना, दूर करना, निवारण | एक वृक्ष का नाम। करना-त्यषेधत्पावकास्त्रण रामस्तद्राक्षसांस्ततः-भट्टि० | सिन्धुरः [सिन्धु+र] हाथी। 17 / 87, 1115, प्रति , 1. रोकना, दूर रखना, | सिन्छ (भ्वा० पर० सिन्वति) गीला करना, भिगोना / नियंत्रित करना मनु० 2 / 206, रघु० 8 / 23 | सिप्रः [सप्+रक्, पृषो०] 1. पसीना, स्वेद 2. चाँद / 2. मना करना प्रतिषेध करना -- नृपतेः प्रतिषिद्धमेव | सिप्रा सिप्र+टाप] 1. स्त्री की करधनी या तगडी 2. भैस तत्कृतवान् पंक्तिरथो विलम्ब्य यत् - रघु० 9 / 74, | 3. उज्जयिनी के निकट एक नदी का नाम, दे० विप्रति , प्रतिवाद करना, विरोध करना-स्नेहश्च शिप्रा। निमित्तसव्यपेक्षश्चेति विप्रतिषिद्धमेतत् मा० 1 / सिम (वि०) [सि ---मन्] प्रत्येक, सब, संपूर्ण, समस्त / सिध्मम्, सिध्मन् (नपुं०) [सिध+मन, किच्च] | सिम्बा,-बी दे० शिम्बा,-बी। 1. छाला, ददोरा, खुजली 2. कोढ़ 3. कुष्ठ ग्रस्त / सिरः [ सिरक] पीपलामल की जड़ / स्थान / सिरा सिर+टाप] 1. शरीर की नलिकाकार वाहिका सिध्मल [सिध्म+लच] 1. जिसको खुजली हो, कोढ़ (जैसे कि शिरा, धमनी, नाड़ी आदि) 2. डोलची, के चिह्नों से युक्त, कोढ़ी। पानी उलीचने का बर्तन / सिम्मा [ सिध्म + टाप् ] 1. छाला, ददोरा, खुजली, कोढ़ सिव (दिवा० पर० सीव्यति, स्यूत) 1. सीना, रफू करना, युक्त स्थान 2. कोढ़। तुरपना, टांका लगाना,-मनोभव: सीव्यति दुर्यशसिध्यः [ सिध+णि+यत् ] पुष्य नक्षत्र / पटौ-न० 280, मा० 5 / 10 2. मिलाना, एकत्र सिध्रः। सिधु रक] 1. पवित्रात्मा, पुण्यात्मा 2. वृक्ष / करना - स हि स्नेहात्मकस्तन्तुरन्तमर्माणि सीव्यति सिध्रकावणम् [ सिध्रकप्रधानं वनम, णत्वम्, दीर्घश्च ] - उत्तर० 5 / 17, अनु नत्थी करना, मिला कर दिव्य उद्यानों में से एक उद्यान / जोड़ना। सिनः [सि+नक ग्रास, कौर।। सिवरः [सि-+क्वरप्] हाथी। सिनी [सिन+ङीष् ] गौर वर्ण की स्त्री। सिषाधयिषा [साधयितुमिच्छा-साधु-+सन्+अ+टाप, सिपीवाली [ सिनी श्वेता चन्द्रकलां वलति धारयति, सिनी धातोद्वित्वम्] संपन्न करने या क्रियान्वयन की इच्छा वल+अण+ङीप ] चन्द्रदर्शन से पूर्ववर्ती दिन, प्रति- | 2. स्थापित करने की इच्छा, सिद्ध करने की इच्छा, पदा, (जिस दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता है), प्रदर्शित करने की इच्छा। ... या पूर्वामावास्या सा सिनीवाली योत्तरा सा कुहः / | सिसृक्षा [सृज् + सन् +अ+टाप्, घातोद्वित्वम्] रचना ऐ० ब्रा०, या-सा दृष्टेन्दुः सिनीवाली सा नष्टेन्दुकला करने की इच्छा। कुहः-अमर० / सिहुण्डः [सो+कि=सिः छेदः तं हुण्डते--सि+हुण्ड्+अण्] सिन्दुकः, सिन्दुवारः (स्यन्द्। उ, संप्रसारण, सिन्दु+वृ सेहुंड (खेत की बाड़ में लगने वाला कांटेदार दूधिया +अण्] एक वृक्ष का नाम / पौधा। सिन्दूरः [स्यन्द्+उरन् सम्प्रसारणम्] एक प्रकार का वृक्ष, | सिलः, सिलकः [स्निह+लक पृषो०, सिल+कन] . रम् लाल रंग का सुरमा स्वयं सिन्दूरेण द्विपरण- गुग्गुल, गंधद्रव्य / मुदा मुदित इव-गीत० 11, 20 22 / 45 / सिलकी, सिली [सिह्लक (सिल)+डीष्] लोबान का सिन्धुः [स्यन्द+उद् संप्रसारणं दस्य घः] 1. समुद्र, सागर / वृक्ष / / For Private and Personal Use Only Page #1117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1108 ) सीकi (भ्वा० आ० सीकते) 1. छिड़कना, छोटी छोटी। बा साँस ऊपर खींचने का शब्द, सिसकारी, (आह बूंदें करके बखेरना 2. जाना, हिलना-जुलना / भरने या सरदी से ठिठुरने के समय सी-सी करना ii (भ्वा० पर०, चुरा० उभ सीकति, सीकयति-ते) / या मर्मर ध्वनि)-मया दष्टाधरं तस्याः ससीत्कार 1. उतावला होना 2. सहिष्णु होना 3. स्पर्श करना।। मिवाननम् ---विक्रम० 4 / 21 / सीकर सीक्यते सिच्यतेऽनेन+सीक-अरन] 1. फहार सीत्य (वि.) [सीता+यत् जोते गये या हल की फाल वर्षा, जलकण पड़ना, फूही पड़ना 2. छींटे. पानी की से बने खूडों से मापा गया,- त्यम् चावल, धान्य, छोटी छोटी बूंदें, दे० शीकर। ___ अन्न / सीता [सि+त पुषो. दीर्घ:11. हल के चलाने से खेत में | सीधम् (नपुं०) आलस्य, शिथिलता, सुस्ती। बनी हई रेखा, खुड, हल की फाल से खदी हई रेखा | सीधु (पुं०) [सिध् +-उ, पृषो०] राब या गुड़ से बनाई हुई 2. जुती हुई या खूडवाली भूमि, हल से जोतो हुई। शराब, ईख की मदिरा स्फूरदधरसीधवे तब वदनभूमि-वृषेव सीतां तदवग्रहक्षताम् कु० 5 / 61 3. कृषि, चन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरम् - गीत० 10, शि० खेती जैसा कि 'सीताद्रव्य' में 4. मिथिला के राजा 9 / 87, रघु० 1652 / सम०-गन्धः बकुलवृक्ष, जनक की पुत्री का नाम, राम की पत्नी का नाम मौलसिरी का पेड़,- पुष्पः 1. कदम्ब का वृक्ष 2. मौल[इसका यह नाम इसलिए पड़ा कि राजा जनक सीरी का पेड़,-रसः आम का पेड़, -संजः मौलसीरी ने इसे हल की फाल द्वारा बने खुड से प्राप्त किया। का पेड़। बात यह थी कि सन्तान प्राप्ति की इच्छा से राजा | सीध्रम् (नपुं०) गुदा, मलद्वार / ने एक यज्ञ का आरंभ किया था, उसकी तैयारी के | सीपः (पुं०) नाव की शक्ल का यज्ञ-पात्र / समय उसे हल चलाते समय सीता खूड में से मिली / सीमन् (स्त्री०) [सि-+मनिन्, नि० दीर्घ:] 1. सीमा, हद, इसीलिए 'अयोनिजा' या 'घरापुत्री' इसके विशेषण दे० सीमा ..सीमानमत्यायतयोऽत्यजन्तः शि० 3 / 57, हैं। राम के साथ सीता का विवाह हुआ, उनके दे० 'निःसीमन्' भी 2. अण्डकोष सीम्ति पुष्कलको साथ वह वन में गई। जब रावण उसे वन में से हतः - सिद्धा। उठा कर ले गया और उसका सतीत्व भंग करने की सीमन्तः [सीम्नोऽन्तः, शक० पररूपम्] 1. सीमारेखा, बेष्टा करने लगा तो सीता ने उसके इस दुष्ट प्रस्ताव सीमान्त 2. सिर के बालों की विभाजक रेखा, सिर को घणा के साथ ठुकरा दिया। जब राम को इस की मांग जिसके दोनों ओर बाल विभक्त हों-सीमन्ते बात का पता लगा कि सीता लंका में है, तो उसने च त्वदुपगमजं यत्र नीपं वधूनाम् मेघ० 65, शि० लंका पर चढ़ाई की, रावण और उसकी सेना को 8/69, महावीर० 5 / 44 / सम० --उन्नयनम् 'बालों 'मार कर सीता का उद्धार किया। राम के द्वारा का विभाजन' बारह संस्कारों में से एक जिसको पत्नी के रूप में फिर से स्वीकृत किये जाने से पूर्व स्त्रियाँ गर्भाधान के चौथे, छठे या आठवें महीने में सीता को भीषण अग्नि-परीक्षा में से गुजरना पड़ा। मनाती हैं। यद्यपि राम को उसके सतीत्व पर पूरा विश्वास था सीमन्तक: सीमन्त+कन] विशेष प्रकार के नरक का फिर भी लोकापवाद के कारण उन्होंने सीता का अधिवासी,-कम् सिन्दूर / परित्याग कर दिया। सीता इस समय गर्भवती सीमन्तयति (ना० धा०, पर०) 1. बालों को अलग-अलग थी। वाल्मीकि ऋषि के रूप में अपने प्ररक्षक को करना 2. मांग निकालना सेनां सीमन्तयन्नरे:-कीतिक पा सीता उन्हीं के आश्रम में रहने लगी वहीं कुश 5 / 44 / और लव नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया वाल्मीकि सीमन्तित (वि.) [सीमन्त+-णिच् + क्त] 1. (बाल मनि ने. बच्चों का पालन पोषण किया। अन्त में आदि) विभाजित 2. माँग निकाल कर अलग किये वाल्मीकि के द्वारा सीता राम को सौंप दी गई। हुए समीरसीमन्तितकेतकीका: (प्रदेशाः) शि० 5. एक देवी का नाम, इन्द्र की पत्नी 6. उमा का 3680, रथाङ्गसीमन्तितसान्द्रकर्दमान् (पथ:) --कि० माम 7. लक्ष्मी का नाम 8. गंगा की चार धाराओं 4 / 18 / में से एक (पूर्वी धारा) 9. मदिरा। सम०-द्रव्यम् | सीमन्तिनी सीमन्त-+इनि+डीप] स्त्री, महिला मा स्म खेती के उपकरण, कृषि के औज़ार- मनु० 9 / 293, | सीमन्तिनी काचिज्जनयेत्पुत्रमीदशम् - हि०२।७, मेघ० -पतिः रामचन्द्र का नाम,-फलः कुम्हड़े की बेल, / 110, भट्टि० 522 / (-लम्) कुम्हड़ा। सीमा [ सीमन्+डाप्] 1. हद, मर्यादा, किनारा, छोर, सीतामकः (पुं०) मटर / सरहद 2. खेत, गाँव आदि की सीमा पर सीमा सीत्कारः, सोत्कृतिः (स्त्री०) [सीत्+कृ+घञ, क्तिन् / द्योतक टीला या मॅड़ सीमां प्रति समुत्पन्ने विवादे For Private and Personal Use Only Page #1118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --मनु० 8 / 245, याज्ञ० 2 / 152 3. चिह्न, सीमान्त / iii (स्वा० उभ० सुनोति, सुनुते, सुत, इकारान्त या उका4. किनारा, तीर, सभद्रतट 5. क्षितिज 6. सीवनी, रान्त उपसर्गों के पश्चात् धातु के स को मुर्धन्य ष हो मांग (जैसे खोपड़ी की) 7. शिष्टाचार या नीति की जाता है) 1. भींचना, दबा कर रस निकालना सीमा, औचित्य की मर्यादा 8. उच्चतम या अधिकतम 2. अर्क खींचना 3. उडेलना, छिड़कना, तर्पण करना सीमा, उच्चतम बिन्दु, चरमसीमा-सीमेव पनासन 4. यज्ञानुष्ठान करना, सोमयज्ञ करना 5. स्नान कौशलस्य भट्रि० 106 1. खेत 10. ग्रीवा का पृष्ठ करना, इच्छा० (सुषसति-ते) / अभि-, 1. सोमरस भाग 11. अण्डकोष / सम० अधिप: पड़ोसी राजा, निकालना 2. मिलाना, मिश्रण करना, गड्डमड्ड —अन्तः 1. सीमारेखा, छोर, सरहद 2. अधिकतम करना-यानि चवाभिषयन्ते पुष्पमूलफलेः शुभैः-मनु० सीमा, पूजनम् 1. गाँव की सीमा का पूजन 2. बरात 5 / 10 3. छिड़कना--भट्टि० 9 / 90, उद्-उत्तेजित के आने पर गांव की सीमा पर दूल्हे का सत्कार, करना, विक्षुब्ध करना, प्र-, पैदा करना, जन्म देना / --उल्लङ्घनम् अतिक्रमण करना, सीमा पार करना, सु (अव्य.) [सु+] एक निपात जो कर्मधारय और सरहद लांघना, निश्चयः सीमान्त या सीमारेखाओं बहुव्रीहि समास बनाने के लिए संज्ञा शब्दों से पूर्व के विषय में कानूनी निर्णय,-लिङ्गम् सीमा चिह्न, भू जोड़ा जाता है, विशेषण और क्रियाविशेषणों में भी चिह्न,-वादः सीमा संबंधी झगड़ा,-विनिर्णयः सीमा जड़ता है। निम्नांकित इसके अर्थ है- 1. अच्छा, रेखाओं के झगड़ों का फैसला, - विवाद: सीमासंबंधी भला, श्रेष्ठ यथा 'सुगन्धिः ' में 2. सुन्दर, मनोहर-यथा झगड़ा या मुकदमेबाजी, धर्मः सीमाविषयक झगड़ों से 'सुमध्यमा, सुकेशी' आदि में 3. खूब, सर्वथा, पूरी संबंध रखने वाला कानून,...--वृक्षः वह पेड़ जो सीमा तरह, ठीक प्रकार से --सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः रेखा का काम दे रहा है, -सन्धिः दो सीमाओं का सुतः सुशासिता स्त्री नृपतिः सुसेवितः। सुदीर्घकालेमिलन। ऽपि न याति विक्रियाम्-हि० 1 / 22 4. आसानी सीमिकः [ स्यम +किनन्, सम्प्रसारणं, दीर्घश्च ] 1. एंक से, तुरन्त - यथा 'सुकर और सुलभ' में 5, अधिक, वृक्षविशेष 2. बामी 3. चिऊँटी या ऐसा ही छोटा अत्यधिक, बहुत अधिक--यथा 'सुदारुण और कोई जन्तु / सुदीर्घ' आदि / सम० अक्ष (वि.) 1. अच्छी सीरः| सि+रक, पृषो०] 1. हल सद्यः सीरोत्कषण- आँखों वाला 2. उन और तेज अंगों वाला, -अङ्ग सुरभि क्षेत्रमारुह्य मालम् --मेघ० 2. सूर्य 3. आक या (वि.) सुडौल, मनोहर, प्रिय,-अच्छ (वि०) दे. मदार का पौधा। सम० –ध्वजः जनक का विशेषण, शब्द के नीचे,- अन्त (वि०) जिसका अंत भला हो, -पाणिः,-भूत पुं०) बलराम के विशेषण, योग: अच्छी समाप्ति वाला, -- अल्प, अल्पक (वि०) दे० हल में पशु को जोतना, या हल में जुती पशु की शब्द के नीचे,-- अस्ति,-अस्तिक दे० शब्द के नीचे, जोडी। ----आकार,--आकृति (वि०) सुनिर्मित, मनोहर, सीरकः [सीर+कन् दे० 'सीर'। सुन्दर, आगत दे० शब्द के नीचे,-आभास (वि०) सीरिन् (पुं०) [सोर-+-इनि] बलराम का विशेषण शि० बड़ा शानदार व प्रसिद्ध कि० 15 / 22, ष्ट / 2 / (वि.) भली भाँति किया गया यज्ञ, कृत् (पुं०) सीलन्दः घः (पुं०) एक प्रकार की मछली। अग्नि का एक रूप. उक्त (वि०) अच्छा बोला सीवनम् [सिब + ल्युट, नि० दीर्घः] 1. सीना, तुरपना, टांका हुआ, खूब कहा हुआ-अथवा सूक्तं खल केनापि-वेणी० लगाना 2. जोड़, सन्धिरेखा (जैसे खोपड़ी की)। 3, (–क्तम्) अच्छी या समझदारी की उक्ति सीवनी सीवन+ङीष्] 1. सुई 2. लिंगमणि का सन्धि -नेतुं वाञ्छति यः खलान् पथि सतां सूक्तैः सुधास्यशोथ / न्दिभिः ..भर्त० 216, रघु० 15 / 95 2. वैदिक भजन सीसम्, सीसकम्, सीसपत्रकम् [सि+क्विप, पूषो० दीर्घः या सूक्त यथा 'पुरुषसूक्त' आदि, वशिन् (पं.) =सी, सो-क-=स, सी+स कर्म० स०; सीस मंत्रद्रष्टा, वैदिक ऋषि, °पाच् (स्त्री०) 1. भजन +कन, सीस+पत्रक] सीसा, "-मालवि० 5 / 144, 2. स्तुति का शब्द, उक्तिः (स्त्री०) 1. अच्छा या याज्ञ० 11190 / सौहार्दपूर्ण भाषण 2. अच्छा या चातुर्यपूर्ण कथन सीहुण्डः =सिहुण्ड, पृषो० | सेंहुड (बाड़ लगाने का एक | 3. शुद्ध वाक्य, उत्तर (वि.) 1. अतिश्रेष्ठ 2. उत्तर कांटेदार पौधा)। दिशा की ओर, उस्थान (वि०) खूब प्रयत्न करने सु। (भ्वा० उभ० सुवति-ते) जाना, हिलना-जुलना। वाला, बलशाली, फुर्तीला, (-नम्) प्रबल प्रयत्न या ii (म्वा० अदा० पर० सवति, सौति) शक्ति या सर्वो- उद्योग,-उन्मद,-उन्माद (वि.) बिल्कुल पागल, परि सत्ता धारण करना। दीवाना,--उपसदन (वि.) जिसके पास पहुँचना For Private and Personal Use Only Page #1119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1110 ) आसान हो, उपस्कर (वि.) अच्छे उपकरणों से / दुर्ग) (म्) 1. विष्ठा, मल 2. प्रसन्नता,--गत युक्त, .. कपडः खुजली,-कन्दः 1. प्याज 2. आलू, (वि.) 1. भली-भांति किया हुआ 2. भली-भांति कचालू, शकरकंद आदि कंद 3. एक प्रकार का घास, प्रदान किया हुआ, (तः) बुद्ध का विशेषण, * गन्धः -कन्दकः प्याज,-कर (वि०) (स्त्री० रा-री) 1. खुशबू, अच्छी गंध, गन्धद्रव्य 2. गन्ध 3. व्यापारी, 1. जो आसानी से किया जा सके, क्रियात्मक, कार्य, (-धम्) 1. चन्दन 2. जीरा 3. नील कमल 4. एक -वक्तं सुकरं, कर्तुं (अध्यवसितुम्) दुष्करम्-वेणी० प्रकार का सुगन्धित घास (-धा) पवित्र तुलसी, 3, 'करने की अपेक्षा कहना आसान है' 2. जिसका -- गन्धक: 1. गन्धक 2. लाल तुलसी 3. सन्तरा 4. एक प्रबंध आसानी से किया जा सके, (.. रा) सुशील गौ, / प्रकार की लौकी, - गन्धि (वि०) 1. मधुर गन्ध -रम्) दान, परोपकार,-कर्मन् (वि.) 1. जो वाला, खुशबूदार, सुरभित 2. सद्गुणों से युक्त, पविअच्छे कार्य करता है, पुण्यात्मा, भला 2. सक्रिय, त्रात्मा, (-धिः) 1. गंधद्रव्य, सुरभि 2. परमात्मा परिश्रमी, (पुं०) विश्वकर्मा का नाम,-- कल (वि०) 3. एक प्रकार का मधुगन्ध वाला आम (-नपुं०-धि) (वि.) (धन को) उदारता पूर्वक देने तथा सदुपयोग 1. पिप्परामूल 2. एक प्रकार का सुगन्धित घास करने में जिसने कीर्ति अजित कर ली हो, काण्डिन् 3. धनिया, त्रिफला 1. जायफल 2. लोंग,--गन्धिक: (वि.) 1. सुन्दर वृंतों से युक्त 2. सुंदरता के साथ 1. धूप 2. गन्धक 3. एक प्रकार का (बासमती) जुड़ा हुआ, (पुं०) भौंरा, कुन्दकः प्याज,-कुमार चावल, (-कम्) सफेद कमल,-गम (वि०) 1. जहाँ (वि०) 1. मृदु, सुकुमार, कोमल 2. सौंदर्य युक्त आसानी से पहुंचा जाय, सुलभ 2. आसान 3. सरल, तरुण, (--रः) 1. सुन्दर युवक 2. एक प्रकार का बोधगम्य, ... गहना यज्ञस्थान को अस्पश्यादि के संपर्क गन्ना,- कुमारक: 1. सुन्दर तरुण 2. 'शालि' चावल, से बचाने के लिए बनाया गया घेरा, वृत्तिः दे. ( कम्) तमालपत्र,-कृत् (वि.) 1. भला करने ऊपर का शब्द, गृह (वि.) (स्त्री०-ही) सुन्दर वाला, उपकारी 2. पवित्रात्मा, गुणसंपन्न, धर्मात्मा घर वाला, भली भांति रहने वाला-सुगही निर्गही 3. बुद्धिमान, विद्वान् 4. भाग्यशाली, किस्मत वाला कृता पंच० 11390, गृहीत (वि०) 1. भली 5. अच्छे यज्ञ करने वाला, (0) 1. कुशल कर्मकर भांति पकड़ा हुआ, अच्छी तरह समझा हुआ 2. समु2. त्वष्टा का नाम,-कृत (वि.) भली-भांति किया चित रूप से या शुभ रीति से प्रयुक्त, नामन् (वि.) हआ 2. सर्वथा किया हुआ 3. खूब किया हुआ या 1. वह जिसका नाम मांगलिक रूप से लिया जाय, सुरचित 4. जिसके साथ कृपापूर्वक व्यवहार किया या जिसका नाम लेना (बलि, युधिष्ठिर आदि) गया हो, सहायता दिया गया, मित्रता के सूत्र में शुभ समझा जाय, प्रातः स्मरणीय, सम्मानपूर्वक नाम आबद्ध 5. सद्गुणी, धर्मात्मा, पवित्रात्मा 6. भाग्य- लेने की रीति को द्योतन करने वाला शब्द - सुगृहीतशाली, किस्मत वाला, (-तम्) कोई भी भला या नाम्नः भट्टगोपालस्य पौत्रः-मा० १,-प्रासः स्वादिष्ट अच्छा कार्य, कृपा, अनुग्रह, सेवा-नादत्ते कस्यचित्पापं कौर या निवाला-ग्रीव (वि.) अच्छी गर्दन वाला, न चैव सकृतं विभुः - भग० 5 / 15, मेघ० 17 (-वः) 1. नायक 2. हंस 3. एक प्रकार का शस्त्र 2. सद्गुण, नैतिक या धार्मिक गण-स्वर्गाभिसन्धि- 4. सुग्रीव जो वालि का भाई था ( कबन्ध की सकृतं वञ्चनामिव मेनिरे - कु०६।४७, तच्चिन्त्यमानं बात मान कर राम सुग्रीव के पास गये। सुग्रीव सुकृतं तवेति-रघु० 14 / 16 3. सौभाग्य, मांगलिकता ने बतलाया कि किस प्रकार उसके भाई वालि ने 4. प्रतिफल, पुरस्कार,-कृतिः (स्त्री०) 1. कृपा, उसके साथ दुर्व्यवहार किया। साथ ही अपनी पत्नी सद्गुण 2. तपस्या करना,--कृतित् (वि.) 1. भलाई का उद्धार करवाने के लिए राम से सहायता मांगी। करने वाला, कृपापूर्वक व्यवहार करने वाला 2. सद्- स्वयं सुग्रीव ने यह प्रतिज्ञा की कि मैं भी आपकी गुणसम्पन्न, पवित्रात्मा, भला, धर्मात्मा-सन्तः सन्तु पत्नी सीता का उद्धार करवाने में आपकी सहायता निरापदः सकृतिनां कीर्तिश्चिरं वर्धताम् हि०४। करूंगा। फलतः राम ने वालि को मार गिराया, 132, भग०७।१६ 3, बुद्धिमान, विद्वान् 4. परोपकारी सुग्रीव को राजगद्दी पर बिठाया। तब सुग्रीव ने 5. भाग्यशाली, किस्मत वाला,-ऐश (स) H गलगल अपनी वानर सेना साथ लेकर राम का साथ दिया का पेड़, ऋतुः 1. अग्नि का नाम 2. शिव का नाम जिससे कि राम ने रावण को मार कर सीता का 3. इन्द्र का नाम 4. मित्र और वरुण का नाम 5. सूर्य उद्धार किया), °ईशः राम का नाम,-ल (वि.) का नाम,...ग (वि.) 1. सजीली चाल चलने बहुत थका हुआ, धान्त,---चक्षुस् (वि.) अच्छी वाला 2. शोभन, ललित 3. सुगम्य--पंच० 21141 / - आंखों वाला, भली भांति देखने वाला, (पुं०) 1. विवेक4. बोधगम्य, आसानी से समझे जाने योग्य (विप० / शील, या बुद्धिमान् व्यक्ति, विद्वान् पुरुष 2. गूलर For Private and Personal Use Only Page #1120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का पेड़, चरित, चरित्र (वि०) अच्छे आचरण वाला, शिष्टाचारयुक्त (-तम्,--त्रम्) 1. सदाचार, अच्छा चालचलन 2. गुण तव सुचरितमगुलीय नूनं प्रतनु- -श० 6 / 11, (-ता, -त्रा) सदाचारिणी, पतिव्रता, और सती साध्वी स्त्री,-चित्रक: 1. रामचिरैया, एक पक्षी 2. चीतल सांप, चित्रा एक प्रकार की लौकी, चिन्ता गहनचिन्तन, गम्भीर,-चिरस् (अव्य०) दीर्घ काल तक, बहुत देर तक, चिरायुस (पुं०) सुर देवता, जनः 1. भला पुरुष, सद्गुणी, परोपकारी 2. सज्जन,---जनता 1. भलाई, नेकी, परोपकार, सद्गुण-ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता-भर्तृ० 2182 2. भले पुरुषों का समूह, ---जन्मन् (वि०) सत्कुलोत्पन्न, कुलीन,-या कौमदी नयनयोर्भवतः सुजन्मा ----मा० ११३४,...जल्पः अच्छी वाणी,-जात (वि०) 1. उच्चकुलोत्पन्न 2. सुन्दर, प्रिय - मा० 1316, रघु० ३।८,-तनु (वि०) 1, सुन्दर शरीर वाला 2. अत्यन्त सुकुमार, दुबला-पतला 3. कृशकाय, दुर्बलशरीर, (स्त्री० नुः -न:) कोमलाङ्गी, सुन्दरशरीर -एताः सुतनु मुखं ते सख्यः पश्यन्ती हेमकूटगताः / -विक्रम० 1 / 11, -तपस् (वि.) 1. जो घोर तपस्या / करता हो 2. अतिशय तापयक्त (पं.) 1. संन्यासी, भक्त, साधु, वैरागी 2. सूर्य, (नपुं०) कठोर साधना ~तराम् (अव्य०) 1. अपेक्षाकृत अच्छा, अधिक श्रेष्ठ ढंग से 2. अत्यंत, अधिक, अत्यधिक, बहुत ज्यादह-तया दुहित्रा सुतरां सवित्री स्फुरत्प्रभामण्डलया चकाशे कु० 1124, सुतरां दयालु: रघु० 2 / 53, 4 / 9, 18 / 24 3. और अधिक, और भी ज्यादह - मय्यप्यवस्था न ते चेत्त्वयि मम सूतरामेष राजन गतोऽस्मि --भर्त० 3 / 30, तर्दनः कोयल,-तलम् 1. 'अत्यन्त गहराई' भूमि के नीचे सात लोकों में से / एक, दे० 'पाताल' 2. किसी बड़े भवन की बनियाद, ...—तिक्तक: मंगे का पेड़, तीक्ष्ण (वि०) 1. बहुत तेज 2. अत्यंत तीखा 3. बहुत पीडाकारक, (क्ष्णः) 1. सहिजन का पेड़ 2. एक ऋषि का नाम नाम्ना सुतीक्ष्णश्चरितेन दान्तः रघु० 13141, क्शनः शिव का विशेषण,-तीर्यः 1. अच्छा गुरु, 2. शिव का नाम, --तुङ्ग / वि०) बहुत ऊँचा या लंबा, (-गः) नारियल का पेड़, - दक्षिण (वि.) 1. अत्यन्त निष्कपट व खरा 2. बहुत उदार, यज्ञ में खव दक्षिणा देने वाला-पंच० 1 / 30, (-णा) दिलीप राजा की पत्नी का नाम, - तस्य दाक्षिण्यरूठेन नाम्ना मगधवंशजा / पत्नी सुदक्षिणेत्यासीत् रघु० 1131, 3 / 1, दण्डः बेंत, दत (वि०) (स्त्री० ती) अच्छे दांतों वाला, दन्तः 1. अच्छा दांत 2. अभिनेता, नतंक, नट, (ती) पश्चिमोत्तर दिशा की दिक्करिणी, वर्शन (वि०) (स्त्री०-ना,-नी) 1. प्रियदर्शन, सुंदर, मनोहर 2. जो आसानी से दिखाई दे (नः) 1. विष्णु का चक्र, जैसा कि 'कृष्णोप्यसुदर्शन:' का 2. शिव का नाम 3. गिद्ध, (- नम्) जंबू द्वीप का नाम, वर्शना 1. सून्दर स्त्री 2. स्त्री 3. आदेश, आज्ञा 4. एक प्रकार की बुटी, दा (वि०) यथेष्ट, दामन (वि.) जो उदारता पूर्वक देता है (पुं०) 1. बादल 2. पहाड़ 3. समुद्र 4. इन्द्र के हाथी का नाम 5. एक दरिद्र ब्राह्मण का नाम जो अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए. भुने चावलों की भेंट लेकर, द्वारकापुरी गया था तथा जिसे श्रीकृष्ण ने फिर धनधान्य और कीर्ति से सम्पन्न किया,-- दायः 1. मांगलिक उपहार 2. विशिष्ट अवसरों पर दिया जाने वाला विशेष उपहार,--दिनम् 1. आनन्दप्रद शुभ दिवस 2. अच्छा दिन, अच्छा मौसम (विप० दुदिन), इसी प्रकार 'सुदिनाहम' इसी अर्थ में,- दीर्घ (वि.) बहुत लंबा या विस्तृत (...C) एक प्रकार की लकड़ी -दुर्लभ (वि.) अत्यंत दुष्प्राप्य या विरल, दूर (वि.) बहुत दूर स्थित या दूरवर्ती (सुदूरम् 1. बहुत दूर 2. बहुत ऊँचाई तक, अत्यधिक, सुदूरात् दूर से, फासले से),--- वृश (वि.) सुन्दर आँखों वाला, (रत्री०) सुन्दर स्त्री,--धन्वन् (वि०) बढ़िया घनुष को धारण करने वाला, (-50) 1. अच्छा तीरंदाज़ या धनुर्धारी 2. विश्वकर्मा का नाम धर्मन (लि.) कर्तव्यपरायण (स्त्री०) देव परिषद, देवसभा, घर्मा, --धर्मी देवसभा -- ययावदीरितालोकः सुधर्मानवमां सभाम्-रघु० १७१२८,--धी (वि.) अच्छी समझ वाला, बुद्धिमान्, चतुर, प्रतिभाशाली, (-धीः) बुद्धिमान् या प्रतिभाशाली पुरुष, विद्वान् पुरुष या पंडित, (स्त्री०) अच्छी समझ, भला ज्ञान, प्रज्ञा, -~-उपास्यः 1. एक विशेष प्रकार का महल 2. कृष्ण के सेवक का नाम, ( स्यम्) बलराम का मुद्गर, - --उपास्या 1. स्त्री 2. उमा या उसकी कोई सखी 3. एक प्रकार का रंजक, नन्दा स्त्री, नयः 1. अच्छा चालचलन 2. अच्छी नीति, नयन (वि०) सुन्दर आँखों वाला, ( नः) हरिण, (-ना) 1. सुन्दर आखों वाली स्त्री 2. सामान्य स्त्री, नाभ (वि.) सुन्दर नाभि वाला 2. अच्छे नाह या केन्द्र वाला, (-भः) 1. पहाड़ 2. मैनाक पहाड़, निभृत (वि.) बिल्कुल अकेला, निजी, (अव्य० तम्) चुपचाप, छिपे-छिपे, सट कर, निजी रूप से, निश्चलः शिव का विशेषण,---नीत (वि.) अच्छे आचरण वाला, शिष्टाचार युक्त 2. नम्र, विनयी (---तम) 1. अच्छा चालचलन, शिष्ट आचरण 2. अच्छी नीति, दूरदर्शिता -नीतिः (स्त्री०) 1. अच्छा आचरण, शिष्टाचार, For Private and Personal Use Only Page #1121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1112 ) औचित्य 2. अच्छी नीति 3. ध्रुव की माता का नाम, / मय प्रातः काल दिष्ट्या सुप्रभातमद्य यदयं देवो नीय (वि०)अच्छे स्वभावमाला, सदाचारी, धर्मात्मा, दृष्टः ... उत्तर०६ 2. प्रातः कालीन ऊषा, प्रयोगः सद्गुणी, भला,(-थः)1. ब्राह्मण 2. शिशुपाल का नाम, 1. अच्छा प्रबन्ध, भली-भांति काम में लाया जाना --नील (वि.) बिल्कुल काला, या नीला, (-लः) 2. दक्षता,-प्रसाद (वि.) अति करुणामय, कृपाअनार का पेड़, (-ला) सामान्य सन का पौधा, नेत्र निधि, / वः) शिव का नाम, प्रिय (वि०) अत्यंत (वि०) सुन्दर आंखों वाला,-पक्व (वि.) 1. अच्छा प्रिय, रुचिकर, (या) 1. मनोहारिणी स्त्री 2. प्रेयसी, पका हुआ 2. सर्वथा परिपक्व या पका हुआ (-क्व:) फल (वि.) 1. अत्यन्त फल देने वाला, बहुत एक प्रकार का सुगन्धित आम, - पत्नी वह स्त्री उत्पादक 2. बहुत उपजाऊ, (- लः) 1. अनार का जिसका पति भद्रपुरुष हो, * पपः 1. अच्छी सड़क पेड़ 2. बेरी का पेड़ 3. एक प्रकार का लोबिया, 2. सुमार्ग 3. अच्छा चालचलन,---पथिन् (पुं०) (-ला) 1. कद, लौकी 2. केले का पेड़ 3. भूरे (कर्ते. ए. ५०-सुपन्थाः ) अच्छी सड़क, - पर्ण रंग का अंगूर,--बन्धः तिल,-बल (वि.) अत्यन्त (वि.) (स्त्री०-,-नी) 1. अच्छे पंखों वाला शक्तिशाली, (-.) शिव का नाम, बोष (वि०) 2. सुन्दर पत्तों वाला, (-णः) 1. सूर्य की किरण जो आसानी से समझा जाय, (-घः) भला समाचार 2. अर्षदिव्य चरित्र के पक्षियों जैसे प्राणी, देवगन्धर्व या उपदेश,-ब्रह्मण्य: 1. कार्तिकेय का विशेषण 2. यज्ञ 3. अलौकिक पक्षी 4. गरुड का विशेषण 5. मुर्गा, में वरण किये गये सोलह पुरोहितों में एक, भग --पर्णा,-पर्णी (स्त्री०) 1. कमलों का समूह (वि.) 1. अत्यन्त भाग्यवान या समद्धिशाली, प्रसन्न, 2. कमलों से भरा ताल 3. गरुड़ की माता का नाम, सौभाग्यशाली, अत्यन्त अनगहीत 2. प्रिय, मनोहर, -पर्याप्त (वि.) 1. बहुत विस्तार युक्त 2. सुयोग्य सुन्दर, मनोरम - न तु ग्रीष्मस्यवं सुभगमपरावं -पर्यन् (वि०) अच्छे जोड़ों या संधियों वाला, यवतिष-श० 319, कु० 4134, रघ० 11180 मा० 9 जिसमें बहुत से जोड़ या ग्रन्थियां हों, (पु.) 1. बांस 3. सुहावना, कृतार्थ, रुचिकर, मधुर-श्रवणसुभग 2. बाण 3. सुर, देवता 4. विशेष चान्द्र दिवस ----मालवि० 34, श० 13 4. प्रियतम, इष्ट, (प्रत्येक मास की पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और स्नेही, प्रिय-सुमुखि सुभगः पश्यन् स त्वामुपेतु चतुर्दशी) 5. घूआं,-पात्रम् 1. अच्छा या उपयुक्त कृतार्थताम् गीत० 5. श्रीमान्, (-गः) 1. सुहागा बर्तन, योग्य भाजन 2. योग्य या सक्षम व्यक्ति, किसी 2. अशोक वृक्ष 3. चम्पक वृक्ष 4 लाल कटसरैया, पद के समुपयुक्त व्यक्ति, समर्थ व्यक्ति, पाद (स्त्री० सदाबहार, (-गम्) अच्छा भाग्य मानिन, सुभगंमन्य पाद,-पदी) अच्छे या सुन्दर पैरों वाली, पार्वः (वि०) अपने आपको सौभाग्यशाली मानने वाला, पाकड़ का पेड़, प्लक्ष, -पीतम् गाजर, (-तः) पांचवां सुशील हितकर--वाचालं मां न खल सुभगंमन्यभावः महर्त, (-पुंसी) वह स्त्री जिसका पति भला व्यक्ति करोति---मेघ० ९४,-भगा 1. पति की प्रियतमा, हो, पुष्प (वि.) (स्त्री०-व्या, पी) अच्छे प्रेयसी 2. सम्मानित मां 3. वनमल्लिका 4. हल्दी फूल वाला, (... पः) मंगे का पेड़ ( पम्) 5. तुलसी का पौधा, सुतः पतिप्रिया पत्नी का पुत्र 1. लौंग 2. स्त्रीरज, -प्रतकः स्वस्थ विचार, प्रतिभा ...-भङ्गः नारियल का पेड़, -भत्र (वि०) अत्यानन्दित मदिरा, प्रतिष्ठ (वि०) 1. भली-भांति खड़ा हुआ या सौभाग्यशाली, (--द्रः) विष्णु का नाम ( द्रा) 2. बहुत प्रसिद्ध, विश्रुत, कीर्तिशाली, विख्यात, बलराम और कृष्ण की बहन का नाम जिसका विवाह ( ष्ठा) 1. अच्छी स्थिति 2. अच्छा मान, प्रसिद्धि, अर्जुन के साथ हुआ था। उससे अभिमन्यु नाम का ख्याति 3. स्थापना, निर्माण 4. मूर्ति आदि की पुत्र पैदा हुआ,–भाषित (वि.) 1. भली भाँति कहा स्थापना, अभिषेक, -प्रतिष्ठित (वि०) 1. भली-भांति गया, सुन्दर रूप से कहा गया 2. सुन्दर भाषण स्थापित, 2. अभिषिक्त 3. विख्यात, (-तः) गूलर करने वाला, वाग्मी, (-तम्) 1. सुन्दर भाषण, का पेड़, -प्रतिष्णात (वि.) 1. सर्वथा पवित्रीकृत वाग्मिता, अधिगम-जीर्णमले सुभाषितम्-भर्तृ० 32 2. किसी विषय का अच्छा जानकार, प्रतीक (वि.) 2. नीतिवाक्य, सूक्ति, समुपयुक्त कथन सुभाषितेन 1. सुन्दर आकृति वाला, प्रिय, मनोहर 2. सुन्दर गीतेन युवतीनां च लीलया। मनो न भिद्यते यस्य स्कन्ध वाला, (.-क:) 1. कामदेव का विशेषण स वै मुक्तोऽथवा पशुः-सुभा० 3. अच्छी उक्ति 2. शिव का विशेषण 3. पश्चिमोत्तर दिशा का --बालादपि सुभाषितं (ग्राम),-भिक्षम् 1. अच्छी दिग्गज,---प्रपाणम् अच्छा ताल,-प्रभ (वि.) बड़ा भिक्षा, सफल याचना 2. अन्न की बहुतायत, अनाज प्रतिभाशाली, यशस्वी, (---भा) अग्नि की सात घान्यादिक की प्रचुर राशि, अन्नसंभरण,-5 (वि०) जिहाजों में से एक,-प्रभातम् 1. शुभ प्रभात, मंगल- सुन्दर भौंह वाला (स्त्री-भ्रूः) मनोश स्त्री (इस For Private and Personal Use Only Page #1122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1113 ) शब्द का संबोधन-ए० व०--सुभ्रूः बनता है, परन्तु भट्टि, कालिदास और भवभूति जैसे लेखकों ने 'सुभ्र' का प्रयोग किया है - तु० भट्टि० 6 / 11, कु० 5 / 43, मा० 38), - मति (वि.) बहुत बुद्धिमान् (स्त्री० -तिः) 1. अच्छा मन या स्वभाव, कृपा, परोपकार, सौहार्द 2. देवों का अनुग्रह 3. उपहार, आशीर्वाद 4. प्रार्थना, सूक्त 5. कामना, इच्छा 6. सगर की पत्नी का नाम जो साठ हजार पुत्रों की माता थी, —मवनः आम का वृक्ष, मध्य,-मध्यम (वि.) पतली कमर वाला, --मध्या, --मध्यमा मनोरम स्त्री, -मन (वि.) बहुत आकर्षक, प्रिय, सुन्दर (-नः) 1. गेहूँ 2. धतूरा (-ना) फूलों से लदी चमेली, --मनस् (वि.) 1 अच्छे मन वाला, अच्छे स्वभाव का, उदार 2. खूब प्रसन्न, संतुष्ट, (पुं०) 1. देव, देवता 2. विद्वान पुरुष 3. वेद का विद्यार्थी 4. गेंहूँ 5. नीम का वृक्ष (स्त्री०, नपुं०---कुछ विद्वानों के अनुसार केवल ब०व० में प्रयोग) फूल-रमणीय एष वः सुमनसां संनिवेश:-मा० 1, (यहाँ संख्या 1 में दिया गया विशेषणपरक अर्थ भी अभिप्रेत है),-कि सेव्यते सुमनसां मनसापि गन्धः कस्तूरिकाजननशक्तिभृता मगेण-रस०, शि० 166, °फ़ल: कैथ, °फलम् जायफल, -मित्रा दारथ की एक पत्नी और लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न की माता का नाम,-मुख (वि.) (स्त्री० -----खा,-खी) 1. सुन्दर चेहरे वाला, प्रिय 2. सुहावना 3. निर्वतित, आतुर - कि०. 6:42, (---खः) 1. विद्वान पुरुष 2. गरुड का विशेषण 3. गणेश का विशेषण 4. शिव का विशेषण, ( खम्) नाखून की खरोंच ( खा खी) 1. सुन्दर स्त्री 2. दर्पण, ----मूलकम् गाजर,– मेधस् (वि०) अच्छी समझ रखने वाला, बुद्धिमान्, प्रतिभाशाली (पुं०) बुद्धिमान्, पुरुष, -मेरः 1. 'सुमेरु' नाम का पवित्र पर्वत 2. शिव का नाम, यवसम् सुंदर घास, अच्छी चरागाह,--योधनः दुर्योधन का विशेषण, रक्तकः 1. गेरु 2. एक प्रकार का आम का पेड़, -- रङ्ग: 1. अच्छा रंग 2. संतरा धातुः गेरु,-रजनः सुपारी का पेड़, - रत (वि०) 1. अति प्रमोदी 2. क्रीडाशील 3. अत्यधिक अनुरक्त 4. करुणामय, सुकुमार, ( तम्) 1. बड़ी प्रसन्नता, अत्यानन्द 2. संभोग, मैथुन, रतिक्रिया सुरतमृदिता बालवनिता--भर्त० 2144, तालो 1. दूती, कुट्टनी 2. शिरोभूषण, सिर की माला, प्रसंगः कामकेलि में व्यसन - कु० 219, रतिः (स्त्री०) भोगविलास, आनन्द, मजे,-रस (वि.) 1. अच्छे रस वाला, रसीला, मजेदार 2. मधुर 3. ललित (रचना), (---सः, - सा) सिंधुवार पौधा (-- सा) | दुर्गा का नाम, रूप (वि०) 1. अच्छा बना / हुआ, सुंदर, मनोहर-सुरूपा कन्या 2. बुद्धिमान्, विद्वान् (-5:) शिव का विशेषण,-रेभ (वि०) अच्छी आवाज वाला—कि०१५।१६, (—भम) टीन, जस्त,-लक्षण (वि.) 1. शुभ व सुन्दर लक्षणों से युक्त 2. भाग्यशाली, (----णम) 1. निरीक्षण, सुपरीक्षण, निर्धारण, निश्चयन 2. अच्छा या शुभ चिह्न, - लभ (वि.) 1. जो आसानी से मिल सके, सुप्राप्य, प्राप्य, सुकर-न सुलभा सकलेन्द्रमुखी च सा- विक्रम 2 / 9, इदमसुलभवस्तु प्रार्थना दुर्निवारम्-२।६ 2. तत्पर, अनुकूल बना हुआ, योग्य, उपयुक्त-निष्ठयुतश्चरणोपभोगसुलभो लाक्षारस: केनचित्-श० 45 3. स्वाभाविक, समुपयुक्त-मानुषतासुलभो लधिमा-का०, कोप (वि०) जो शीघ्र क्रुद्ध हो जाय, जो आसानी से भड़काया जा सके,-लोचन (वि०) सुन्दर आँखों वाला, (नः) हरिण, (-मा) सुन्दर स्त्री,-लोहकम् पीतल,-लोहित (वि.) गहरा लाल, (-ता) अग्नि की सात जिवाओं में से एक, पत्रम् 1. सुन्दर चेहरा या मुख 2. शुद्ध उच्चारण,--वचनम्, -वधस् (नपुं०) वाग्मिता, -वचिकः,-का सज्जी, क्षार,-वर्ण दे० शब्द के नीचे,- वह (वि.) 1. सहनशील, सहिष्णु 2. धैर्यवान्, झेलने वाला 3. जो आसानी से ले जाया जा सके, --वासिनी 1. विवाहित या एकाकिनी स्त्री जो अपने पिता के घर रहती है 2. विवाहिता स्त्री जिसका पति जीवित है,-विक्रान्त (वि.) बहादुर, साहसी, शूर (--तम्) शौर्य,-विद् (पुं०) विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान् व्यक्ति (स्त्री०) बुद्धिमती या चतुर स्त्री,-विवः अन्तः पुर का सेवक,-विवन् (पुं०) राजा,-विदल्लः अन्तः पुर का सेवक (सौविदल्ल' का अशुद्ध रूप) (-ल्लम्) अन्तः पुर, रनिवास,-विचल्ला विवाहित स्त्री,-विष (वि.) अच्छी प्रकार का,--विधम् (अव्य०) आसानी से,-विनीत (वि०) भली-भाँति प्रशिक्षित, विनयी, ( ता) सुशील गाय,-विहित (वि.) 1. भली भाँति रक्खा हुआ, अच्छी तरह जमा किया हुआ 2. सुव्यवस्थित, सुसंभृत, खाद्यसामग्री से यक्त, भली-भाँति क्रमबद्ध --सुविहितयोगतया आयंस्य न किमपि परिहास्यते-श० 1. कलहंसमकरन्दप्रवेशावसरे तत् सुविहितम् .. मा०१, - वी (बी) ज (वि०) अच्छे बीजों वाला (--जः) 1. शिव का नाम 2. खसखस (-जम) अच्छा बीज,- वीराम्लम् कांजी,-वीर्य (वि.) 1. अति बलशाली 2. शौर्यबल युक्त, शूरवीर, पराक्रमी, ( ..यम) 1. अतिशौर्य 2. शूरवीरों की बहुतायत 3. बेर का फल, (-र्या) जंगली कपास, -वृत्त (वि.) 1. शिष्टाचार युक्त, सद्गुणी, नेक, भला,-मयि तस्य सुवृत्तवर्तते लघु For Private and Personal Use Only Page #1123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1114 ) सन्देशपदा सरस्वती -रघु० 8177 2. अच्छा गोल. हार्दिक, मैत्रीपूर्ण, प्रिय, स्नेही (पुं०) 1. मित्र सुहृदः सुन्दर वर्तुलाकार या गोल-मृदुनाति सुवृत्तेन सुमष्टे- पश्य वसन्त किं स्थितम्-कु० 4 / 27, मन्दायन्ते न नातिहारिणा / मोदकेनापि किं तेन निष्पत्तिर्यस्य खल सहदामभ्युपेतार्थकृत्या: मेघ० 40 2. भित्र, सेवया,-या सुमुखोऽपि सुवृत्तोऽपि सन्मार्गपतितोऽपि च / भेवः मित्रों का वियोग, वाक्यम् सद्भावपूर्ण सम्मति, महतां पादलग्नोऽपि व्यथयत्येव कण्टकः (यहाँ ---हृदः मित्र, हृदय (वि०) 1. सुन्दर हृदय वाला सभी विशेषण दोहरे अर्थों में प्रयुक्त किए गए हैं)। 2. प्रिय, स्नेही, प्रेमी। –वेल (वि.) 1. शान्त, निश्चल 2. विनम्र, निस्तब्ध | सख (वि.) [सुख+अच् ] 1. प्रसन्न, आनन्दित, हर्ष(-लः) त्रिकूट पर्वत का नाम,-व्रत (वि०) धार्मिक पूर्ण, खुश 2. रुचिकर, मधुर, मनोहर, सुहावना वतों के पालन में दृढ़, सर्वथा धार्मिक तथा सद्गुणी, ---दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखा:--रघु० 3.14 इसी (-तः) ब्रह्मचारी (-ता) 1. सुन्दर व्रत वाली साध्वी प्रकार-सुखश्रवा निस्वनाः-३।१९ 3. सद्गुणी, पत्नी 2. सुशील गाय, सीधी गाय जिसका दूध आसानी पुण्यात्मा 4. आनन्द लेने वाला, अनकल श०७।१८ से निकाला जा सके,-शंस (वि०) प्रख्यात, प्रसिद्ध, यशस्वी, 5. आसान, सुकर-कु० 5 / 49 6. योग्य, उपयुक्त, प्रशंसनीय, -शक (वि०) सुसाध्य, आसान, सरल -खम् 1. आनन्द, हर्ष, खुशी, प्रसन्नता, आराम -शल्यः खदिर वृक्ष,-शाकम् अदरक,-शासित (वि.) --यदेवोपनतं दुःखात्सुखं तद्रसवत्तरम् विक्रम भली-भांति नियंत्रण में, सुनियंत्रित,-शिक्षित (वि.) 3 / 21 2. समृद्धि अद्वतं सुखदुःखयोरनुगुणं सर्वास्वसुशिक्षाप्राप्त, प्रशिक्षित, अच्छी तरह सधाया हुआ, वस्थासु यत् - उत्तर० 1139 3. कुशल क्षेम, कल्याण, -शिखः अग्नि (-खा) 1. मोर की शिखा 2. मुर्गे की | स्वास्थ्य-देवीं सुखं प्रष्टुं गता- मालवि० 4 कलगी,-शील (वि.) अच्छे स्वभाव वाला, मिलनसार 4. चन, आराम, (दुःखादिकों का) प्रशमन--- (प्रायः (-ला) 1. यम की पत्नी का नाम 2. कृष्ण की आठ समास में प्रयुक्त-यथा सुखशयन, सुखोपविष्ट प्रेयसियों में से एक, -श्रुत (वि.) 1. अच्छी तरह सुखाश्रय आदि) 5. सुविधा, आसानी, सहूलियत सुना हुआ 2. वेदज्ञ, (-तः) एक आयर्वेद पद्धति का 6. स्वर्ग, वैकुण्ठ 7. जल, -खम् (अव्य०) 1. प्रसप्रणेता, जिसकी कृति, चरक की कृति के साथ-साथ न्नता पूर्वक, हर्ष पूर्वक 2. सकुशल, स्वस्थ-सुख आज भी भारतवर्ष में प्राचीनतम आवर्वेद का प्रामा- मास्तां भवान् (भगवान् आपको स्वस्थ तथा सकुशल णिक ग्रन्थ माना जाता है,-श्लिष्ट (वि०) 1. भली- रक्खे) 3. आसानी से, आराम से - असञ्जातकिणभांति क्रमबद्ध, संयुक्त 2. भली-भांति उपयुक्त-मा० स्कन्धः सुखं स्वपिति गोर्गडि:-काव्य० 10 4, अना१,-श्लेषः आलिंगन या घनिष्ठ मिलाप,-संश यास, आराम -अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते (वि०) देखने में रुचिकर,-संनत (वि०) सुनिदेशित विशेषज्ञः--भर्त० 213 5. वस्तुतः, इच्छा पूर्वक (जैसा कि बाण),-सह (वि०) 1. जो आसानी से 6. चुपचाप, शान्ति पूर्वक / सम-आधारः स्वर्ग, सहन किया जा सके 2. सहनशील, सहिष्ण (-हः) ---- आप्लव (वि.) स्नान के लिए उपयुक्त,- आयतः शिव का विशेषण,-सार (वि.) अच्छे रस वाला, -आयनः खूब सघाया हुआ या सीधा घोड़ा, आरोह रसीला (-र:) 1. अच्छा रंस, सत या अर्क 2. सक्ष (वि०) जिस पर चढ़ना आसान हो,-आलोक (वि०) मता 3. लाल फूल का खदिरवृक्ष, स्थ (वि०) सुदर्शन, प्रिय, मनोहर,-आवह (वि०) आनन्द की 1. समुपयुक्त, अच्छे अर्थ में प्रयुक्त 2. अच्छे स्वास्थ्य ओर ले जाने वाला, सुहावना, सुखकर,---आशः वरुण में, स्वस्थ, सुखी 3. अच्छी या समृद्ध परिस्थितियों में, का नाम,-आशक: ककड़ी,—आस्वाद (वि.) 1. मधुर समद्धिशाली 4. प्रसन्न, भाग्यशाली, (-स्थम्) सुख स्वादयुक्त, मधुर रसयुक्त 2. रुचिकर, आनन्ददायी की स्थिति, कल्याण सुस्थे को वा न पण्डितः-हि० (-दः) 1. सुखकर रस 2. (सुख का) उपभोग,-उत्सवः 3 / 21 (इसी अर्थ में सुस्थित)-स्थिता, स्थितिः 1. आनन्द मनाना, खुशी, उत्सव, आनंदोत्सव 2. पति (स्त्री०) 1. अच्छी दशा, कुशल क्षेम, कल्याण, ---उदकम् गरम पानी उदयः आनन्द की अनुभूति आनन्द 2. स्वास्थ्य, रोगोपशमन, स्मित (वि०) या सुख का उदय, उदर्क (वि०) फल में सुखदायी प्रसन्नता पूर्वक मस्कराने वाला, (-ता) प्रसन्नवदना, -.-उद्य (वि.) जिसका उच्चारण रुचि के साथ या हँसमुख स्त्री,-स्वर (वि.) 1. सुरीला, सुमधुर स्वर सुख से हो सके, - उपविष्ट (वि.) आराम से बैठा वाला 2. उच्च स्वर,--हित (वि.) 1. नितान्त योग्य, हुआ, सुख से बैठा हुआ, एषिन् (वि०) आनन्द या उपयक्त, समुचित 2. हितकर, श्रेयस्कर 3. सौहा- चाहने वाला, सुख की अभिलाषा करने वाला, कर, र्दपूर्ण, स्नेही 4. सन्तुष्ट (-ता) अग्नि को सात -कार,-दायक: (वि०) आनन्द देने वाला, सुखजिह्वाओं में एक, - हृद् (वि.) कृपापूर्ण हृदय वाला, कर, सुहावना,-व (वि०) सुख देने वाला, (-दा) For Private and Personal Use Only Page #1124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1115 ) इन्द्र के स्वर्ग की वारांगना, (वम् ) विष्णु का आसन, / तरलद्रव्य,--धवलित (वि.) पलस्तर किया हुआ, ---...बोधः 1. सुख संवेदना 2. आसानी से प्राप्य ज्ञान, सफ़ेदी किया हुआ, ... निधिः 1. चाँद कपूर, ---- भवनम् ..-भागिन्, - भाज् (वि०) प्रसन्न,--श्रव,श्रुति (वि.) चूने लिपा-पुता मकान, - भित्तिः (स्त्री०) 1. पलस्तर कानों को मीठा, कर्णमधुर,-कि० १४१३,-सङ्गिन् की हुई दीवार 2. ईटों की दीवार 3. पांचवां मुहर्त सुख का साथी, स्पर्श (वि०) छ्ने में सुखकर / या दोपहरबाद,--भुज (पुं०) सुर, देव-भूतिः 1. चाँद सुत (भू० क. कृ.) [सु+क्त] 1. उड़ेला गया 2. निकाला 2. यज्ञ, आहुति-मयम् ईंट या पत्थरों का बना गया, या निचोड़ा गया (जैसे कि सोमरस) 3. जन्म मकान 2. राजकीय महल, वर्षः अमृतवर्षा,-वर्षिन् दिया गया, उत्पादित, पैदा किया गया,-तः 1. पुत्र (पुं०) ब्रह्मा का विशेषण,---वासः 1. चाँद 2. कपूर, 2. राजा। सम०-आत्मजः पोता, (-जा) पोती -वासा एक प्रकार की ककड़ी,-सित (वि.) 1. चूने ---उत्पत्तिः (स्त्री०) पुत्र का जन्म,-निविशेषम् जैसा सफेद 2. अमृत जैसा उज्ज्वल 3. अमृत से भरा (अव्य०) 'जो सीधे पुत्र से प्राप्त न हो' 'पुत्र की हुआ जगतीशरणे युक्तो हरिकान्तः सुधाशितः कि० भांति'-रघु० ५।६-वस्करा सात पुत्रों की माता, 15 / 45, (यहाँ पर इस शब्द का प्रथम और द्वितीय .-स्नेहः पितृप्रेम, वात्सल्य / अर्थ भी घटता है), सूतिः 1. चांद 2. यज्ञ 3. कमल सुतवत् (वि.) [सुत+मतुप्] पुत्रों वाला-पुं० पुत्र का -स्यन्दिन् (वि.) अमृतमय, अमृत बहाने वाला पिता। -भर्तृ० 2 / 6, वा तालुजिह्वा, कोमल तालु का सुता [ सुत+टाप् ] पुत्री,-तमर्थमिव भारत्या सुतया | लटकता हुआ मांसल भाग, - हरः गरुड़ का विशेषण, योक्तुमर्हसि कु०६।७९ / दे.' 'गरुड'। सुतिः [सु+क्तिन्] सोमरस का निकालना / सुधितिः (पुं०, स्त्री०) [सु+घा+क्तिच् कुल्हाड़ा। सुतिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [सुत-+-इनि] बच्चे वाला | सुनारः [सुष्ठु नालमस्य-प्रा० ब०, लस्य रः] 1. कुतिया या बच्चों वाला, (पुं०) पिता / की औड़ी 2. साँप का अण्डा 3. चिड़िया, गोरया / सुतिनी [सुतिन् +डीप्] माता -- तेनाम्बा यदि सुतिनी सुनासो (शी) र सुष्ठी नासी (शी) रम् अग्रसैन्यं यस्य स्यावद वन्ध्या कीदृशी भवति–सुभा० / / --प्रा० ब०] इन्द्र का विशेषण। सुतुस् (वि०) अच्छी आवाज वाला। सुन्दः (पुं०) एक राक्षस, उपसंद का भाई,-यह दोनों सुत्या [सु+क्या+टाप, तुक] 1. सोमरस निकालना, या भाई निकुम्भ राक्षस के पुत्र थे (उन्हें ब्रह्मा से एक तैयार करना 2. यज्ञीय आहुति 3. प्रसव / वर मिला था कि वे जब तक स्वयं अपना वध न सुत्रामन् (पुं०) [सुष्ठु त्रायते -सु++मनिन्, पृषो०] करें, मृत्यु को प्राप्त नहीं होंगे। इस वरदान के इन्द्र का नाम / कारण वे बड़ा अत्याचार करने लगे। अन्त में इन्द्र सुत्वन् (पुं०) [सु+क्वनिप्, तुक्] 1. सोमरस को उपहार को तिलोत्तमा नाम की अप्सरा भेजनी पड़ी-जिसके में देने वाला या पीने वाला 2. वह ब्रह्मचारी जिसने लिए झगड़ा करते हुए दोनों ने एक दूसरे को मार (यज्ञ के आरंभ में या पूर्णाहुति पर) भाचमन और डाला)। मार्जन का अनुष्ठान कर लिया है। सुन्दर (वि०) ( स्त्री०-री) सुन्द+अरः] 1. प्रिय, सुवि (अव्य.) [सुण्ठ दीव्यति सु+दिव+डि] मनोज, मनोहर, आकर्षक 2. यथार्थ, कामदेव मास के शुक्लपक्ष में --तु० 'वदि'। का नाम,-री मनोरम स्त्री, एका भार्या सुन्दरी वा सुधन्वाचार्यः (पुं०) पतितवैश्य का सवर्णा स्त्री में उत्पन्न दरी वा-भर्तृ० 2 / 115, विद्याधरसुन्दरीणाम् ---कु० पुत्र-तु० मनु० 10123 / 17 / सुधा [सुष्ठ धीयते, पीयते घे (धा)+क+टाप्] 1. देवों सुप्त (भू० क० कृ०) स्वप्+क्त] 1. साया हुआ, सोता का पेय, पीयूष, अमृत निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः | हुआ, निद्राग्रस्त-नहि सूप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति कथां तथाद्रियन्ते न बुधाः सुधामपि-० 11 मुखे मृगाः-हि० प्र० 36 2. लकवा मारा हुआ, 2. फूलों का रस या मधु 3. रस 4. जल 5. गंगा का स्तम्भित, सुन्न, बेहोश दे० स्वप्,-प्तम् निद्रा, नाम 6. सफ़ेदी, पलस्तर, चना-कैलासगिरिणेव गहरी निद्रा। सम-जन: 1. सोता हुआ व्यक्ति सुधासितेन प्राकारेण परिगता-का०, रघु० 16.18 2. मध्यरात्रि, ज्ञानम् स्वप्न, - त्वच (वि०) अर्धांग7. ईंट 8. बिजली 9. सेंहड / सम० - -अंशुः 1. चाँद ग्रस्त, लकवा मारा हुआ। 2. कपूर, रत्नम् मोती,-अङ्गः,-आकारः, आधारः सुप्तिः (स्त्री.) [स्वप्-+-क्तिन] 1. निद्रा, सुस्ती, ऊंघ चाँद, -जीविन् (पुं०) पलस्तर करने वाला, ईंट की 2. बेहोशी, लकवा, स्तम्भ, जाडय 3. विश्वास चिनाई करने वाला, राज, -द्रवः अमृत के समान / भरोसा। For Private and Personal Use Only Page #1125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमः [सुष्ठु मीयतेऽदः-सु+मा+क] 1. चाँद 2. कपूर / रुचिकर 3. चमकीला, मनोहर तां सौरभेयीं सुरभि____3. आकाश,-मम् फूल ---भामि० 1584 / यशोभिः 4. प्रियतम, मित्रसदश 5. विख्यात, प्रसिद्ध सुरः [सुष्ठ राति ददात्यभीष्टम्-सु+रा+क] 1. देव, | 6. बुद्धिमान्, विद्वान् 7. नेक, भला, भिः 1. सुगंध, देवता ---सुराप्रतिग्रहाद् देवाः सुरा इत्यभिविश्रुताः खुशबू, सुवास 2. जायफल 3. साल वृक्ष की राल, या ...- राम०, सुधया तर्पयते सुरान् पितॄश्च - विक्रम कोई भी राल 4. चम्पक वृक्ष 5. शमी वृक्ष 6. कदंब 317 रघु० 5 / 16 2. 33 की संख्या 3. सूर्य 4. ऋषि, का पेड़ 7. एक प्रकार की सुगंधित घास 8. वसन्त विद्वान् पुरुष। सम-अङ्गना दिव्यांगना, देवी, ऋतु विक्रम० 2 / 20, (स्त्री०) 1. लोबान का अप्सरा--रघु० ८१७९,--अधिपः इन्द्र का विशेषण वृक्ष 2. तुलसी 3. मोतिया 4. एक प्रकार की सुगंध, .... अरिः 1. देवों का शत्रु, राक्षस 2. झींगुर की यो सुगंधित पौधा 5. मदिरा 6. पृथ्वी 7. गाय चींची, ... अहम् 1 सोनां 2. केसर, जाफरान, आचार्यः 8. समृद्धि देने में प्रसिद्ध गाय- सूतां तदीयां सूरभेः बृहस्पति का विशेषण,-आपगा 'स्वर्गीय नदी' गङ्गा कृत्वा प्रतिनिधिम् रघु० 1181, 75 9. मातृकाओं का विशेषण,--आलयः 1. मेरु पर्वत 2. स्वर्ग, बैकुण्ठ, में से एक, (नपुं०) 1. मधुर गंध, सुवास, खुशबू -इज्यः बृहस्पति का नाम, इज्या पवित्र तुलसी, 2. गंधक 3. सोना / सम० ... घतम् सुगंधित मक्खन, - इन्द्रः,... ईशः,-ईश्वरः इन्द्र का नाम,--उत्तमः / खुशबूबार घी,-त्रिफला 1. जायफल 2. लौंग 3. सुपारी, 1. सूर्य 2. इन्द्र,-उत्तरः चन्दन की लकड़ी,-ऋषिः बाणः कामदेव का, विशेषण, मासः वसंत ऋतु, (सुरषिः) दिव्य ऋषि, देवर्षि, कारः विश्वकर्मा - मुखम् वसंत ऋतु का आरम्भ / का विशेषण, कार्मुकम् इन्द्रधनुष,--गुरुः बृहस्पति का सुरभिका [ सुरभि+कन्+टाप् ] एक प्रकार का केला / विशेषण, ग्रामणी (पुं०) इन्द्र का नाम, ज्येष्ठः सुरभिमत् (पुं०) [ सुरभि+मतुप् ] अग्नि का नाम / ब्रह्मा का विशेषण,--तरुः स्वर्ग का वृक्ष, कल्पवृक्ष, | सुरासु+क्रन्+टाप्] 1. मदिरा, शराब-सुरा दे मलमन्ना--तोषकः कौस्तुभ नाम की मणि,-दार (नपुं०) देव- नाम्-मनु० 11293, गौडी पंष्टी च माध्वी च विज्ञेया दारु वृक्ष,--दीधिका गंगा का विशेषण,-दुन्दुभी पवित्र / त्रिविधा सुरा...९४ 2. जल 3. पान-पात्र 4. साँप / तुलसी, द्विपः 1. देवों का हाथी 2. ऐरावत,--विष सम० - आकारः शराब खींचने की भट्टी, आजीवः, (पुं०) राक्षस-रघु० 10 / 15,- धनुस् (नपुं०) ." आजीविन् (पुं०) कलाल,-आलयः मदिरालय, इन्द्रधनुष,-सुरधनुरिदं दूराकृष्टं न नाम शरासनम् मधुशाला, - उदः शराब का समुद्र, प्रहः मदिरा भर --विक्रम० ४।१,-धूपः तारपीन, राल,- निम्नगा कर रक्खा हुआ बर्तन, ध्वजः शराब की दुकान के गंगा का विशेषण,--पतिः इन्द्र का विशेषण,-पथम् / बाहर टंगा हुआ झंडा, - प (वि०) 1. शराबी, आकाश, स्वर्ग,-पर्वतः मेरु पहाड़,-पादपः स्वर्ग मद्यप 2. सुहावना, रुचिकर 3. बुद्धिमान, ऋषि, का वृक्ष, जैसे कि कल्पतरु,-प्रियः 1. इन्द्र का . पाणम्, पानम् मदिरा या शराब का पीना, नाम 2. बृहस्पति का नाम, -- भूयम् देव के साथ अन- पात्रम्, भाण्डम् शराब का प्याला, या गिलास न्यरूपता, देवत्वग्रहण, देवत्वारोपण, * भरुहः देवदार ---भागः खमीर, फेन. --मण्डः (खमीर पैदा होने के वृक्ष,---युवतिः (स्त्री०) दिव्य तरुणी, अप्सरा,-लासिका समय) मदिरा के ऊपर जमने वाला फेन,-सन्धानम् मरली, बांसुरी, - लोकः स्वर्ग, - वर्त्मन् (नपुं०) / मदिरा खींचना। आकाश, वल्लो पवित्र तुलसी,-विद्विष्,-वैरिन् | सुवर्ण (वि.) [सुष्ठ वर्णोऽस्य-प्रा० ब०11. अच्छे .--शत्रु (पुं०) असुर, दानव, दैत्य, - समन् (नपुं०) रंग का, सुन्दर रंग का, चमकीले रंग का, उज्ज्वल, स्वर्ग, वैकुंठ,-सरित, - सिन्धु (स्त्री०) गंगा-सुर पीला, सुनहरा 2. अच्छी जाति या बिरादरी का सरिदिव तेजो वह्निनिष्ठ्यूतमैशम्---रघु० 275, 3. अच्छी ख्याति का, यशस्वी, विख्यात,-र्ण: 1. अच्छा –सुन्दरी, -- स्त्री दिव्यांगना, अप्सरा---विक्रम रंग 2. अच्छी जाति या बिरादरी 3. एक प्रकार का श३। यज्ञ 4. शिव का विशेषण 5. धतूरा,--र्णम् 1. सोना सुरङ्गः, .. गा[?] 1. सेंध 2. अन्त:कक्ष मार्ग, मकान के 2. सोने का सिक्का (पुं० भी)--नन्वहं दश सुवर्णान् नीचे खोदा हुआ मार्ग--ऐकागारिकेण तावती सुरङ्गां प्रयच्छामि-मृच्छ 0 2 3. सोलह माशे के बराबर कारयित्वा-दश०, सुरङ्गया बहिरपगतेषु युष्मासु सोने का तोल या 175 ग्रेन के लगभग (पं० भी) .-मुद्रा०२, ('सुरुङ्गा' भी लिखा जाता है)। 4. धन, दौलत, ऐश्वर्य 5. एक प्रकार की पीले चन्दन की सुरभि (वि.) [सु+र+इन् ] 1. मधुर गंध युक्त, लकड़ी 6. एक प्रकार का गेरु / सम-अभिषेक: दूल्हा खुशबूदार, सुगंध युक्त -पाटलसंसर्गसुरभिवनवाता: और दुल्हिन पर उस जल के छींटे देने जिसमें सोने - ...श० 113, मेघ० 16, 20, 22 2. सुहावना, / का टुकड़ा डाला हुआ हो,-कवली केले का एक For Private and Personal Use Only Page #1126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1117 ) प्रकार, कर्तृ, -कार, --कृत् (पुं०) सुनार,-गणितम् साथ, सुन्दरता से 2. अत्यंत, बहुत ज्यादह ---सुष्टु गणित में हिसाब लगाने की एक विशेष रीति, शोभसे आर्यपुत्र एतेन विनयमाहात्म्येन ... उत्तर०१ --पुष्पित (वि०) सोने से भरा-पूरा . उदा० सुवर्ण- 3. सचमुच, ठीक,-शब्दः सुष्ठ प्रयक्तः ....सर्व०, पुष्पिता पृथ्वीं विचिन्वन्ति त्रयो जनाः। शूरश्च कृत-1 अथवा सुष्ठु खल्विदमुच्यते। विद्यश्च यश्च जानाति सेवितुम पंच० ११४५,-पृष्ठ | सुध्मम् [सु-+-मक, सुक् ] रस्सी, डोरी, रज्ज। (वि०) सोना चढा हुआ, सोने का मुलम्मा चढ़ा | सुझाः (पुं०, ब० व०) एक राष्ट्र का नाम-- आत्मा हुआ, माक्षिकम खनिज पदार्थ विशेष, सोनामाखी, संरक्षितः सुार्वत्तिमाश्रित्य वैतसीम-रघु० 4135 / -युथी पीली जही,--रूप्यक (वि०) सोने और सूi (अदा० दिवा० आ०-सूते, सूयते, सूत) उत्पन्न करना, चाँदी से भरपूर, - रेतस (पं०) शिव का विशेषण, पैदा करना, जन्म देना (आलं० से भी)--असूत सा --वर्णा हल्दी, - सिद्धः जिसने जादू से सोना प्राप्त नागवधूपभोग्यम् कु० 1120, कीति सूते दुष्कृतं कर लिया है,-स्तेयम् सोने की चोरी (पाँच महापातकों या हिनस्ति ... उत्तर० 5 / 31, प्र, उत्पन्न करना में से एक)। पैदा करना, जन्म देना। सवर्णकम | सवर्ण-+-कन 1 1. पीतल, कांसा 2. सीसा। (तुदा० पर० सूवति) 1. उत्तेजित करना, उकसाना, सुवर्णवत् (वि.) [सुवर्ण+मतुप् ] 1. सुनहरा 2. सुनहरे | प्रेरित करना 2. (ऋण का) परिशोध करना / रंग का, सुन्दर, मनोहर / सू (वि.) [सू-- क्विप् ] (समास के अन्त में प्रयुक्त) सुषम (वि.) [सुष्ठ समं सर्व यस्मात् प्रा० ब०] उत्पन्न करने वाला, पैदा करने वाला, फल देने वाला अत्यंत प्रिय या सुन्दर, बहुत सुखकर,—मा परम -- (स्त्री०) 1. जन्म 2. माता। सौन्दर्य, अत्यधिक आभा या कान्ति-- कुरबककुसुम सूकः [सू-कन् ] 1. बाण 2. हवा, वाय 3. कमल / चपलासुषमं--गीत० 7, सुषमाविषये परीक्षणे निखिलं सूकरः [सू+करन्, कित् ] 1. वराह, सूअर-दे० शुकर पद्ममभाजि तन्मुखात्-नै० 2 / 37, भामि० 11 2. एक प्रकार का हरिण 3. कुम्हार,-री 1. सूअरी 26, 2 / 12 / 2. एक प्रकार की काई, शैवाल / सुषवी [ सु+सु-अच+ङीष 11. एक प्रकार की लौकी सूक्ष्म [ सूक्+मन्, सुक् च नेट् ] 1. बारीक, महीन, 2. काला जीरा 3. जीरा / आणविक-जालांतरस्थसूर्यांशो यत् सूक्ष्म दृश्यते रजः सुषावः (पुं०) शिव का विशेषण / 2. थोड़ा, छीटा-इदमुपहितसूक्ष्मग्रन्थिना स्कन्धदेशे सुषिः (स्त्री०) [शुष् +इन्, पृषो० शस्य सः ] छिद्र, श० 1118, रघु० 18149 3. बारीक, पतला, सूराख, तु० 'शुषिः / / कोमल, बढ़िया 4. उत्तम 5. तेज, तीक्षण, बेधी सुषि (षी) म (वि.) [सुश्य +मक, सम्प्रसारण, 6. कलाभिज्ञ, चालबाज, धूर्त, प्रवीण 7. यथार्थ, यथापुषो०] 1. शीतल, ठंडा 2. सुखकर, रुचिकर, मः तथ्य, बिल्कुल सही, ठीक,-क्ष्मः 1. अण, 2. केतक 1. शीतलता 2. एक प्रकार का साँप 3. चन्द्रकान्त का पौधा 3. शिव का विशेषण,-क्ष्मम 1. सर्वव्यापक मणि। सूक्ष्म तत्त्व, परमात्मा 2. बारीकी 3. संन्यासियों द्वारा सुषिर (वि०) [ शुष --किरच, पृषो० शस्य सः ] 1. छिद्रों प्राप्य तीन प्रकार की शक्तियों में से एक, तु० सावध से पूर्ण, खोखला, सरन्ध्र 2. उच्चारण में मन्द, -रम् 4. कलाभिज्ञता, प्रवीणता 5. जालसाजी, धोखा 1. छिद्र, रन्ध्र, सूराख 2. कोई भी बाजा जो हवा 6. बारीक धागा 7. एक अलंकार का नाम जिसकी से बजे। परिभाषा मम्मट ने इस प्रकार दी है कुतोऽपि सुषुप्तिः (स्त्री०) [सु+स्वप्+क्तिन् ] 1. गहरी या लक्षितः सूक्ष्मोऽप्यर्थोऽन्यस्मै प्रकाश्यते / धर्मेण केनचिप्रगाढ़ निद्रा, प्रगाढ़ विश्राम 2. भारी बेहोशी, आत्मिक द्यत्र तत्सूक्ष्म परिचक्षते // काव्य० 10 / सम० अज्ञान - अविद्यात्मिका हिं बीजशक्तिरव्यक्तशब्द -एला छोटी इलायची, तण्डल: पोस्त, तण्डला निर्देश्या परमेश्वराश्रया मायामयी महासुषुप्तिर्यस्यां 1. पीपल, पीपली 2. एक प्रकार का पास,-दर्शिता स्वरूपप्रतिबोधरहिताः शेरते संसारिणो जीवा:-ब्रह्मसूत्र सूक्ष्मदष्टि होने का भाव, तीक्ष्णता, अग्रदृष्टि, बद्धिपर शारी० भाष्य -114 / 3 / मानी,----शिन्, दृष्टि (वि०) 1. तेज नज़र वाला सुषुम्णः [सुष ।-म्ना+क] सूर्य की प्रधान किरणों में से श्येन जैसी दृष्टि वाला 2. बारीक विवेचनकर्ता एक, म्णा शरीर की एक विशेष नाड़ी जो इडा 3. तीक्ष्ण, तेज मन वाला,--दारु (नपुं०) लकड़ी का तथा पिंगला नाम की वाहिकाओं के मध्य में पतला तख्ता, फलक,-देहः, -शरीरम् लिंग शरीर स्थित है। जो सूक्ष्म पंच महाभूतों से युक्त है,-पत्रः 1. धनिया सुष्ठ (अव्य०) [सु+स्था+कु] 1. अच्छा, उत्तमता के / 2. एक प्रकार का जंगली जीरा 3. एक प्रकार का For Private and Personal Use Only Page #1127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1118 ) लाल गन्ना 4. बबूल का पेड़ 5. एक प्रकार की सरसों, / सूचा [सूक्-+अ-+-टाप्] 1. बींधना 2. हावभाव 3. भेद -पर्णी एक प्रकार की तुलसी,--पिप्पली बनपीपली जानना, देखना, दृष्टि / -बुद्धि (वि०) तेज बुद्धि वाला, प्रखर, बुद्धिमान् | सचिः...ची (स्त्री) सिच+इन् वा डीप] 1. बींधना, छेद प्रतिभाशाली, (स्त्री०-दिः) तेज बुद्धि, सूक्ष्म प्रतिभा, करना 2. सूई 3. तेज नोक, या नुकीली पत्ती (कुशा मानसिक प्रगल्भता,-मक्षिकम,--का मच्छर, डांस, आदि की) अभिनवकुशसूच्या परिक्षतं मे घरणम्-श० -मानम् यथार्थ माप, सही से गणना (विप० स्थूल 1, इसी प्रकार 'मुखे कुशसूचिविद्धे-श. 4114 मान—जिसका अर्थ है-खुली माप, मोटी माप) 4. तेज़ नोक या किसी वस्तु का सिरा-क: कर -शर्करा बारीक बजरी, रेत, बालका,-शालिः एक प्रसारयेत् पन्नगरत्नसूचये--कु० 5 / 43 5. कलिका की प्रकार का बारीक चावल, षट्चरणः एक प्रकार नोक 6. एक प्रकार का सैनिकव्यूह, स्तंभ या पंक्ति की जूं, जमजू / ----दण्डव्यूहेन तन्मार्ग यायात्तु शकटेन वा / वराहमकसूच् (चुरा० उभ० सूचयति-ते, सूचित) 1. बीधना राभ्यां वा सुच्या वा गरुडेन वा मनु० 7 / 187 2. निर्देश करना, इंगित करना, बतलाना, प्रकट 7. समलंबक के पाश्वों से निर्मित त्रिकोण 8. शंकु, करना, साबित करना त्वां सूचयिष्यति तु माल्यसम. स्तूप 9. अंगचेष्टाओं से संकेत करना, संकेतों द्वारा द्भवोऽयं (गन्धः) - मृच्छ० 1135, मेघ० 21, श० बतलाना, हावभाव 10. नृत्यविशेष 11. नाटकीय कर्म 1214 3. भेद खोलना, प्रकट करना, भण्डाफोड़ करना 12. विषयानुक्रमणिका, विषयसूची, 13. फहरिस्त, -~-स जातु सेव्यमानोऽपि गुप्तद्वारो न सूच्यते रघु० विवरणिका 14. (ज्योति० में) ग्रहण की संगणना के 17150 4. हावभाव व्यक्त करना, अभिनय करना, लिए पृथ्वी का गोला। सम० -. अन (वि०) सूई की इशारों से सूचित करना वामाक्षिस्पन्दनं सूचयति, भांति नोक वाला, सूई के समान तेज नोक रखने रथवेगं सूचयति-आदि 5. पता लगाना, गुप्त भेद वाला, पंना किया हुआ, (प्रम) सूई की नोक,--आस्यः जानना, निश्चय करना। अभि - , दिखलाना, संकेत चूहा, कटाहन्यायः दे० 'न्याय' के नीचे, खातः स्तूप करना ... अमन्यत नलं प्राप्त कर्मचेष्टाभिसूचितं-महा०, की खुदाई, शंकु, पत्रकम् अनुक्रमणिका, विषयसूचि प्र,-सम्, संकेत करना, सूचित करना ---संयोगो (-क:) एक प्रकार का शाक, सितावर पुष्पः केतक हि वियोगस्य संसूचयति संभवम् - सुभा० / वृक्ष,-भिन्न (वि.) कली के किनारों का खिलना सूचः [ सूचन-अच् ] कुशा का नुकीला अंकुर या पत्ता / -पाण्डुच्छायोपवनवृतयः केतकः सुचिभिन्नः -- मेघ० सूचक (वि.) (स्त्री-चिका) [ सूच-+-पल ] 1. संकेत 28, भेद्य (वि.) 1. जो सूई के द्वारा बीघा जा सके परक, संकेत करने वाला, सिद्ध करने वाला, दिखलाने 2. मोटा, सघन, घोर, गाढ़ा, बिल्कुल,-रुद्धालोके नरवाला 2. प्रकट करने वाला, सूचित करने वाला,-कः पतिपथे सूचिभेद्यैस्तमोभिः 3. स्पर्शज्ञेय, सहजग्राह्य, 1. वेधक 2. सूई, छिद्र करने या सीने के लिए कोई मुख (वि०) 1. सूई जैसे मुख वाला, नुकीली चोंच उपकरण 3. सूचना देने वाला, कहानी बतलाने वाला, वाला 2. नुकीला, (-खः) 1. पक्षी 2. सफेद कुशा बदनाम करने वाला, भेदिया 4. वर्णन करने वाला, 3. हाथों की विशेष स्थिति (-खम्) हीरा, रोमन् पढ़ाने वाला, सिखाने वाला 5. किसी मण्डली का (पुं०) सूअर,-वदन (वि०) सुई जैसे मुख वाला, प्रबन्धक या प्रधान अभिनेता 6. बुद्ध 7. सिद्ध 8. दुष्ट, नुकीली चोंच वाला, (नः) 1. डांस, मच्छर 2. नेवला, बदमाश 9. राक्षस, पिशाच 10. कुत्ता 11. कौवा --शालिः एक प्रकार का बारीक चावल / 12. बिलाव 13. एक प्रकार का महीन चावल / | सूचिकः [सूचि+ठन् दर्जी। सम० -- वाक्यम् किसी सूचना देने वाले द्वारा दी | सूचिका [सूचिक+टाप्] 1. सूई 2. हाथी की सूंड / गई सूचना। सम०-धरः हाथी,-मुख (वि.) नुकीले मुंह वाला, सूचनम्,-ना [ सूच भावे ल्युट् ] 1. बींधने या छिद्र करने नुकीले सिर वाला, (-खम्) खोल, सीपी, शंख / की क्रिया, सूराख करना, छेदना 2. इशारे से बताना, सूचित (भू० क० कृ०) [सूच्+क्त] 1. बींधा हुआ, सूराख संकेत करना, सूचित करना 3. विरुद्ध सूचित करना, किया हुआ, छिद्रित 2. इशारे से बताया हुआ, दिखाया भेद खोलना, कलंक लगाना, बदनाम करना 4. हाव- हुआ, सूचना दिया हुआ, संकेतित, इंगित किया हुआ भाव प्रकट करना, उचित चेष्टाओं या चिह्नों से संकेत 3. जतलाया गया या हावभावों से संकेतित 4. समाकरना 5. इशारा करना, इंगित 6. सूचना 7. पढ़ाना, चार दिया गया, उक्त, प्रकट किया गया 5. निश्चय दिखाना, वर्णन करना 8. गुप्त भेद जानना, रहस्य किया गया, ज्ञात / का पता लगाना, देखना, निश्चय करना 9. दुष्टता, सचिन (वि.) (स्त्री०-नी) [सूच+णिनि] 1. बेधने बदमाशी। वाला, छिद्र करने वाला 2. इशारा करने वाला, आतपर्थ सचिमार, गाढ़ावारा बीघा For Private and Personal Use Only Page #1128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1119 की पहले तीन सूचना देने वाला, संकेत करने वाला 3. विरुद्ध सुचित / सूत्र (चुरा० उभ० सूत्रयति-ते, सूत्रित) 1. बांधना, कसना करने वाला 4. रहस्य का पता लगाने वाला (पुं०) धागा डालना, नत्थी करना 2. सूत्र के रूप में या भेदिया, सूचना देने वाला। संक्षेप से रचना करना-----तथा च सूश्यते हि भगवता सूचिनी [सूचिन्+ङीप्] 1. सूई 2. रात / पिङ्गलेन, जैमिनिरपि इदमपि धर्मलक्षणमसूत्रयत्, सूची दे० 'सूचि'। आदि 3. योजना बनाना, क्रमबद्ध करना, ठीक पद्धति सूच्य (वि.) [सूच्+ण्यत्] सूचित किये जाने योग्य, में रखना --तन्निपुणं मया निसृष्टार्थदूतीकल्पः सूत्रजताया जाने योग्य / यितव्यः---मा० 1 4. शिथिल करना, ढीला करना / सूत् (अव्य०) अनुकरणात्मक ध्वनि (जैसे खर्राटे का सूत्रम्[सूत्र +अच्] 1. धागा, डोरी, रेखा, रस्सो-पुष्पमाशब्द)। लानुषङ्गेण सूत्रं शिरसि धार्यते-सुभा०, मणी वनसूत (भू० क० कृ०) [सू+क्त] 1. जन्मा हुआ, उत्पन्न, समुत्कीर्ण सूत्रस्येवास्ति मे गति:--रघु, 114 जन्म दिया हुआ, पैदा किया हुआ 2. प्रेरित, उद्गीर्ण, 2. रेशा, तन्तु-सुरांगनां कर्षति खण्डिताग्रात्सूत्र मृणा.- तः रथवान् सारथि ---सूत चोदयाश्वान् पुण्याश्रम लादिव राजहंसी-विक्रम० 1119, कु० 1140, 49 दर्शनेन तावदात्मानं पुनीमहे-श०१ 2. ब्राह्मणवर्ण 3. तार 4. धागों की आटी 5. यज्ञोपवीत, जनेऊ (जो की स्त्री में क्षत्रिय द्वारा उत्पन्न पुत्र (इसका कार्य रथ पहले तीन वर्ण धारण करते हैं)-शिखासूत्रवान् हांकने का होता है)-क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां सूतो भवति ब्राह्मणः तर्क० 6. पुत्तलिका का तार या डोरी जातितः-मनु० 10111, सूतो वा सूतपुत्रो वा यो वा 7. संक्षिप्त विधि, गुर, सूत्र 8. परिभाषा परक संक्षिप्त को वा भवाम्यहम् -वेणी० // 33 3. बंदीजन 4. रथ वाक्य-परिभाषा-स्वल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद्विश्वतो कार 5. सूर्य 6. व्यास के एक शिष्य का नाम तः, मुखम् / अस्तोभमनवा च सूत्र सूत्रविदो विदुः / / .-तम् पारा। सम०-तनयः कर्ण का विशेषण, 9. सूत्रग्रन्थ -उदा० मानवकल्प सूत्र, आपस्तंबसूत्र ---राज् (पुं०) पारा / 10. विधि, धर्म-सूत्र, आज्ञप्ति (विधि में)। सम. सूतकम् [सूत+कन्] 1. जन्म, पैदायश--मनु० 4 / 112 -आत्मन् (वि०) डोरी या धागे के स्वभाव वाला, 2. प्रसव (या गर्भपात) के कारण उत्पन्न अशौच (0) आत्मा,-आली माला, (जो कण्ठ में पहनी (जननाशौच),-कः,-कम् पारा / जाये, हार,—कण्ठ: 1. ब्राह्मण 2. कबूतर, पेंड़की सूतका [सूत+कन्+टाप्] सद्यः प्रसूता, वह स्त्री जिसने 3. खंजन पक्षी,--कर्मन् (नपुं०) बढ़ई का काम हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो, जच्चा,-मनु० -कारः, - कृत् (पुं०) सूत्र रचने वाला, ... कोणः, 5 / 85 / ---कोणकः डमरु, डुगडुगी, -गण्डिका एक प्रकार की सूता [सूत+टाप्] जच्चा स्त्री। यष्टिका जिसका उपयोग जुलाहे धागे लपेटने में करते सूतिः (स्त्री०) [सू+क्तिन] 1. जन्म, पैदायश, प्रसव, है,-चरणम् वैदिक विद्यामन्दिर जिनके द्वारा अनेक जनन, बच्चा पैदा करना 2. सन्तान, प्रजा 3. स्रोत, सूत्रग्रंथों का निर्माण हआ,–दरिद्र (वि.) कम धागों मूलस्रोत, आदिकारण तपसां सूतिरसूतिरापदाम् वाला वह कपड़ा जिसमें थोड़े धागे लगे हों, झीना ---कि० 2256 4. वह स्थान जहाँ सोमरस निकाला -अयं पटः सूत्रदरिद्रतां गतः--मृच्छ० २।९,-धरः, जाता है। सम-अशौचम् परिवार में बच्चे के ---धारः 1. 'डोरी पकड़ने वाला' रंगमच का प्रबंधक, जन्म के कारण अपवित्रता (जो दश दिन तक रहती वह प्रधान नट जो पात्रों को एकत्र कर उन्हें प्रशिक्षित है), -हम् जच्चा घर, प्रसूति-गृह,-मासः (सूती- करता है, तथा जो प्रस्तावना में प्रमुख कार्य करता मासः भी) प्रसव का महीना, गर्भाधान के पश्चात् / है-परिभाषा यह है-नाट्यस्य यदनुष्ठानं दसवाँ महीना। तत्सूत्रं स्यात् सबीजकम् / रङ्गदैवतपूजाकृत् सूत्रधार सूतिका [सूत+क+टाप, इत्वम्] वह स्त्री जिसके हाल इति स्मृतः / / 2. बढ़ई, दस्तकार 3. सूत्रकार 4. इन्द्र ही में बच्चा हुआ हो, जच्चा। सम० ...अगारम्, का विशेषण,-पिटकः बुद्धसंबन्धी त्रिपिटक का प्रथम -गृहम्,-हम-भवनम् जच्चाखाना, सौरी,-रोगः खंड-पुष्पः कपास का पौधा,-भिद् (पुं०) दर्जी प्रसव के पश्चात् होने वाला रोग, प्रसवजन्य रोग, -भूत् (पुं०) सूत्रधार,-यन्त्रम् 1. 'धागा यंत्र' ढरको -षष्ठी प्रसव के पश्चात् छठे दिन पूजी जाने वाली 2. जुलाहे की खड्डी, वीणा एक प्रकार की बांसूरी देवी विशेष का नाम / --वेष्टनम् जुलाहे की ढरकी। सूत्परम् [सु+उ+-+-अप] मदिरा का खींचना या | सूत्रणम् [ सूत्र+ल्युट् ] 1. मिला कर, नत्थी करना, क्रम चुआना। में रखना, क्रम बद्ध करना 2. सूत्रों के अनुसार क्रमसूत्या [सू+क्यप् +टाप, तुक्] दे० 'सुत्या' / पूर्वक रखना। For Private and Personal Use Only Page #1129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TEEEEEEE ( 1120 ) सूत्रला [ सूत्र+ला |-क+टाप् ] तकवा, तकली। / सुनिन् (पुं०) [ सूना+इनि ] 1. कसाई, मांस-विक्रेता सूत्रामन् =सुत्रामन्–दे० 2. शिकारी। सूत्रिका [ सूत्र +ण्वुल+टाप, इत्वम् ] सेंवई, सीमी। सूनुः [ सू+नुक् ] 1. पुत्र-पितुरहमेवैकः सूनुरभवम् सूत्रित (भू० के० कृ०) [ सूत्र+क्त ] 1. नत्थी किया | -का० 2. बाल, बच्चा 3. पोता (दौहित्र) 4. छोटा हुआ, क्रमबद्ध, प्रणालीबद्ध, पद्धतिकृत 2. सूत्रविहित, भाई 5. सूर्य 6. मदार का पौधा / सूत्रों के रूप में अभिहित।। सूनू (स्त्री०) [ सूनु+ऊङ ] पुत्री। सूत्रिन् (वि.) (स्त्री०-- णी) [ सूत्र+इनि ] 1. धागों सुनत (वि.) [सु+नृत्+क- उपसर्गस्य दीर्घः ] 1. सत्य - वाला 2. नियमों वाला,—(पुं०) कौवा। और सुखद, कृपालु और निष्कपट-तत्रसूनृतगिरश्च सूद् (भ्वा० आ० सूदते) 1. प्रहार करना, चोट पहुँचाना, सूरयः पुण्यमुग्यजुषमध्यगीषत शि० 14 / 21, रघु० घायल करना, मार डालना, नष्ट करना 2. ढालना, 1193 2. कृपालु, सुशील, सज्जन, शिष्ट-तां चाप्येतां उंडेलना 3. जमा करना 4. प्रक्षेपण, फेंक देना। मातरं मङ्गलानां धेनुं धीरा: सूनृतां वाचमाहुः-उत्तर० ii (चुरा० उभ० सूदयति+ते) 1. उकसाना, प्रव- 5 / 31, तृणानि भूमिरुदकं वाक् चतुर्थी च सूनृता / तित करना, उत्तेजित करना, उभाड़ना, प्राण फूंकना एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन-मनु० 2. आघात करना, चोट पहुँचाना, मार डालना 3 / 101, रघु० 6 / 29 3. शुभ, सौभाग्यसूचक 3. खाना पकाना, रांधना, सिझाना, तैयार करना 4. प्रियतम, प्यारा,-तम् 1. सत्य तथा रोचक भाषण 4. उडेलना ढालना 5. हामी भरना, सहमत होना, 2. कृपापूर्ण एवं सुखकर प्रवचन, शिष्ट भाषा-- रघु० प्रतिज्ञा करना 6. डालना, फेंकना, नि-, (निष वयति 81923. मांगलिकता। -ते) मारना। सूपः / सुखेन पीयते-सु+पा+घार्थे क, पृषो०] 1. यूष सूदः [ सूद्+घञ् , अच्, वा ] 1. नष्ट करना, विनाश, रसा-न स जानाति शास्त्रार्थ दर्वी सूपरसानिव जनसंहार 2. उडेलना, चुआना 3. कुआं, झरना -सुभा०, मनु० 3 / 226 2. चटनी, मिर्च, मशाला 4. रसोइया, 5. चटनी, रसा, झोल 6. कोई भी वस्तु 3. रसोइया 4. कड़ाही, बर्तन 5. बाण। सम० सिझायी हुई, तैयार खाना 7. दली हुई मटर -कारः रसोइया, धूपनम्,---धूपकम् हींग / 8. कीचड़, दलदल 1. पाप, दोष 10. लोध्र सूमः [सू+मक ] 1. पानी 2. दूध 3. आकाश, गगन / वृक्ष / सम० -कर्मन् रसोइये का काम, -शाला सूर (दिवा० आ० सूर्यते) 1. चोट पहुँचाना, मार डालना रसोई। 2. दृढ़ करना या दृढ़ होना। सूदन (वि.) (स्त्री०-नी) [ सूद् -ल्युट ] 1. नाश सूर्ण (वि०) [ सूर्+क्त, क्तस्य न. ] चोट पहुँचाया हुआ, करने वाला, वध करने वाला, विनाशक-दानवसूदन, " क्षतिग्रस्त / अरिगणसूदन आदि 2. प्यारा, प्रियतम,-नम् 1. नष्ट सूरः [ सुवति प्रेरयति कर्मणि लोकानुदयेन—सू क्रन् ] करना, विनाश, जनसंहार 2. हामी भरना, प्रतिज्ञा 1. सूर्य 2. मदार का पौधा 3. सोम 4. बुद्धिमान् या करना 3. डाल देना, फेंक देना। विद्वान् पुरुष 5. नायक, राजा। सम० --चक्षुस् सून (भू० क० कृ०) [ सू+क्त, क्तस्य न: ] 1. जन्मा। (वि०) सूर्य की भांति चमकीला,---सुतः शनि का हुआ, उत्पन्न 2. फूला हुआ, मुकुलित, खुला हुआ, | विशेषण,-सूतः सूर्य का सारथि, अर्थात् अरुण / कलिकायुक्त 3. रिक्त, खाली (संभवत: इस अर्थ में | सूरणः [सूर+ल्युट ] सूरन, जमीकंद / शून या शून्य समझ कर),-नम् 1. जन्म देना, प्रसव | सूरत (वि.) [सु+रम्+क्त, पृषो० दीर्घः] 1. कृपालु, होना 2. कली, मंजरी 3. फूल / दयालु, कोमल 2. शान्त, धीर।। सूनरी (स्त्री०) सुन्दर स्त्री। सूरिः [ सू+क्रिन् ] 1. सूर्य 2. विद्वान्, या बुद्धिमान् सूना [ सुनः नः दीर्घश्च ] 1. कसाई घर, बुचड़खाना, पुरुष, ऋषि-अथवा कृतवारद्वारे वंशेऽस्मिन्पूर्वसूरिभिः -भवानपि सुना परिचर इव गध्र आमिषलोलपो -रघु० 124, शि०१४।२१ 3. पुरोहित 4. पूजा करने भीरुकश्च-मा०२ 2. मांस की बिक्री 3. चोट पहुंचाना, वाला, जैन मत के आचार्यों को दिया गया सम्मानमार डालना, नष्ट करना 4. मृदुताल, काकल सूचक पद, उदा०-मल्लिनाथसूरि 6. कृष्ण का नाम / 5. करधनी, तगड़ी 6. गलग्रन्थियों को सूजन, हापू | सूरिन् (वि०) (स्त्री० ----णी) [ सूर+णिनि ] बुद्धिमान, 7. प्रकाश की किरण 8, नदी 9. पुत्री,-नाः (स्त्री०, - विद्वान् (पुं०) बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष, पंडित / ब०व०) घर में होने वाली पाँच वस्तुएं जिनसे जीव सूरी [ सूरि+ङीष् ] 1. सूर्य की पत्नी का नाम 2. कुन्ती हिंसा होने की संभावना होती है, दे० 'शूना' या 'पंच- का नाम। शूना' के अन्तर्गत / सर्भ, (म्वा० दिवा० पर० सूक्षति, सूय॑ति) 1. सम्मान For Private and Personal Use Only Page #1130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करना, आदर करना 2. अनादर करना, अपमान / (इसी प्रकार सूर्याचन्द्रमसौ) (पुं०, द्वि० व०) सूर्य करना, तिरस्कार करना। और चाँद,--जः तनयः, पुत्रः 1. सुग्रीव के विशेषण सूर्फ (W) णम् [ सूर्भ, (य)+ल्युट् ] अनादर, 2. कर्ण के विशेषण 3. शनिग्रह के विशेषण 4. यम के अपमान / विशेषण,--जा, तनया यमुना नदी, -तेजस (नपुं०) सूर्यः [ सूक्ष्य -।-घन | माष, उड़द / सूर्य की चमक या गर्मी, नक्षत्रम् वह नक्षत्रपुंज सूर्प दे० शूर्प / जिसमें सूर्य हो,-पर्वन् (नपुं०) (सूर्य के नई राशि सूमिः,-र्मी (स्त्री०) [ = शूमि, पृषो० शस्य सः, पक्षे में प्रवेश या सूर्यग्रहण आदि का) पुण्यकाल, सूर्यपर्व, ङीष् ] 1. लोहे या अन्य किसी धातु की बनी मूर्ति ----प्रभव (वि.) सूर्य से उत्पन्न-रघु० ११२,-फणि--मनु० 1123 2. घर का स्तंभ 3. आभा, क्रान्ति चक्रम् - सूर्यकालानलचक्रम् , दे० ऊ०, भक्त (वि.) 4. ज्वाला। सूर्य का उपासक, (क्तः) वन्धुकवृक्ष या गुलदुपहरिया सूर्यः [ सरति आकाशे सूर्यः, यद्वा सुवति कर्मणि लोकं या इसका फूल,...-मणिः सूर्यकांतमणि, मण्डलम् सूर्य प्रेरयति---सू-+-क्यप्, नि.] 1. सूरज सूर्ये तपत्या का घेरा, परिवेश, यन्त्रम् 1. (सूर्योपासना में व्यवहत) वरणाय दृष्टे: कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्रा- रघु० सूर्य का चित्र या प्रतिमा 2. सूर्य के वैध में काम आने 5 / 13, (पुराणों के अनुसार सूर्य को कश्यप और वाला एक उपकरण,- रश्मिः सूर्य की किरण, सूर्यअदिति का पुत्र माना जाता है.-तु० श०.७; उसका मयख या सविता,-लोकः सूर्य का लोक, - वंशः वर्णन किया जाता है कि वह अपने सात घोड़ों के राजाओं का सूर्यवंश (जो अजोध्या में राज्य करते रथ में बैठ कर घूमता है, अरुण इस रथ का सारथि थे) इक्ष्वाकुवंश,-वर्चस् (बि०) सूर्य के समान तेजोहै। सूर्य भगवान् रथ में बैठा हुआ सब लोकों को, मंडित,-विलोकनम् बच्चे को चार महीने का होने तथा उनके मुभाशुभ कर्मों को देखता है। त्रा पर, बाहर ले जाकर सूर्यदर्शन कराने का संस्कार-तु० (छाया या अश्विनी) उसकी प्रधान पत्नी का नाम उपनिष्क्रमणम्,–सङ्क्रमः, सक्रान्तिः (स्त्री०) सूर्य है, इससे यम और यमुना पैदा हुए दो अश्विनीकुमारों का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश, संज्ञम् केसर, तथा शनि का जन्म भी इसी से हुआ। राजाओं जाफ़रान, सारथिः अषण का विशेषण, स्तुतिः के सूर्यवंश का प्रवर्तक विवस्वान् मन भी सूर्य का ही (स्त्री०)-स्तोत्रम् सूर्य के प्रति की गई स्तुति,-हृवयम् पुत्र था) 2. मदार का पौधा 3, बारह की संख्या सूर्य का एक स्तोत्र / (सर्य के बारह रूपों से व्यत्पन्न)। सम० अपायः | सूर्या सूर्य+टाप्] सूर्य को पत्नी / सूर्य का छिपना मेघ० ८०,---अर्घ्यम सूर्य की सेवा | सूष (भ्वा० पर० सूषति) फल प्रस्तुत करना, उत्पन्न, में उपहार प्रस्तुत करना,-अश्मन (पं०) सूर्यकान्तमणि, | करना, पैदा करना, जन्म देना। अश्वः सूर्य का घोड़ा,-अस्तम् सूर्य का छिपना, | सूषणा [सूष+ युच्+टाप्] माता। ---आतपः सूर्य की गरमी या चमक, धूप,-आलोक: | सूष्यतो (स्त्री०) प्रसवोन्मुखी, आसन्न प्रसवा / धूप, आवर्तः एक प्रकार का सूरजमुखी फूल, हुलहुल, | स (भ्वा० जहो० पर० सरति, सिसति, धावति भी, - आह्व (वि०) सूर्य के नाम पर जिसका नाम है, सूत) 1 जाना हिलना-जुलना, प्रगति करना / मृगाः (ह्वः) मदार का भारी पौधा, आक, (-हम) तांबा, प्रदक्षिणं ससुः--भट्टि० 14 / 14 2. पास जाना, - इन्दुसङ्गमः (सूर्यचन्द्रमा का मिलन) अमावस्या पहुँचना-निष्पाद्य हरयः सेतं प्रतीता: सनरर्णवम -दर्शः सूर्येन्दुसङ्गमः अमर०, उत्थानम्, उदयः -राम० 3. धावा बोलना, चढ़ाई करना / (तं) सूर्य का निकलना, ऊढ: 1. सूर्य, द्वारा लाया गया, ससाराभिमुखः शूरः शार्दूल इव कुञ्जरम् महा० --सायंकाल के समय आने वाला अतिथि-पंच०१, 4. दौड़ना, तेज चलना, खिसक जाना.... सरति सहसा सूर्य छिपने का समय,--कांतः आतशीशीशा, एक बाह्वोर्मध्यं गताप्यबला सती-- मालवि० 4111 स्फटिक मणि-२० 217, क्रान्तिः (स्त्री०) 1. सूर्य 5. (हवा की भांति) तेज़ चलना,-तं चेद्वायौ सरति की दीप्ति 2. एक पुष्प विशेष 3. तिल का फूल, सरलस्कन्धसङ्घट्टजन्मा-मेघ० 53 6. बहना-प्रेर० -- काल: दिन का समय, दिन, अनलचक्रम् ज्योतिष- (सारयति ते) 1. चलना या घूमना 2. विस्तार शास्त्र में शुभाशुभ फल जानने का एक चक्र, ग्रहः करना 3. मलना, (अंगुलियों से) शनैः शनैः छूना 1. सूर्य 2. सूर्यग्रहण 3. राह और केतु का विशेषण --तन्त्रीमार्दा नयनसलिलैः सारयित्वा कथंचित-- मेघ० 4. घड़े का पेंदा, - ग्रहणम सूर्यग्रहण (चन्द्रमा की 86 4. पीछे धकेलना, हटाना सारयन्ती गण्डाभोगा छापा पड़ने से सूर्यबिंब का छिप जाना - पौराणिक कठिनविषमामेकवेणी करेण मेघ० 92, इच्छा० मत से राह या केतु द्वारा सूर्य का ग्रास), चन्द्रौ / (सिसोर्षति) जाने की इच्छा करना, अनु- 1. अनु 141 For Private and Personal Use Only Page #1131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आना, अमत्तमिव देना फैलाना विसरः ( 1122 ) गमन करना (सभी अर्थों में), पीछे जाना, ध्यान देना, / कार्य को करने के लिए) उन्मुख होना, इच्छुक होना, पैरवी करना 2. पहंचना, (अपने को) पहुँचाना-पूर्वो- न मे उचितेषु करणीयेष हस्तपादं प्रसरति-श० 4, द्दिष्टामनुसर पुरीम् -- मेघ० 30, तेनोदीची दिशमनु- प्रसरति मनः कार्यारम्भे 7. छा जाना, आरम्भ करना, सरेः-५७ 3. अनुशीलन करना, पार करना (प्रेर०) उपक्रम करना प्रससार चोत्सव:- कथा० 16185 1. अग्रणी होना - वायुरनुसारयतीव माम् - राम० 8. लम्बा होना, दीर्घ होना विक्रम० 3 / 221. मज2. पीछे चलना, अप.-, 1. अलग होना, बूत होना, प्रबल होना-प्रसततरं सख्यम् - दश०, निवृत्त होना, वापिस लेना - यदपसरति मेषः 10. (समय) बिताना, (प्रेर०) 1. फैलाना, बिछाना कारणं तत्प्रहर्तम-पंच० 3 / 43 2. ओझल होना --- भट्टि० -10144 2. बिछाना, विस्तार करना, अन्तर्धान होना (प्रेर०) भिजबाना, पहुँचाना, हटाना, (हाथ आदि) फैलाना--कालः सर्वजनान् प्रसारितकरो वापिस हटना, दूर हांक देना-अपसारय धनसारं गृह्णाति दूरादपि पंच० 2 / 20 3. फैलाना, बिक्री के -काव्य० 9, मनु० 7.149, अभि-1. जाना, लिए खिलाना-क्रेतारः क्रीणीयुरिति बुद्धधापणे पहुँचना-कि० 8 / 4 2. मिलने के लिए जाना या प्रसारितं ऋय्यम - सिद्धा०, मन० 51129 4. चौड़ा बआगे बढ़ना (किसी नियत स्थान पर), नियत करके करना, (आँखों की पुतली को) फैलाना 5. प्रकाशित मिलना-सुन्दरीरभिससार--का० 58, शि० 6 / 26 करना, ढिंढोरा पीटना, प्रचारित करना, प्रति .. , 3. आक्रमण करना, हमला करना, (प्रेर०) नियत 1. वापिस जाना, लौटना 2. धावा बोलना, चढ़ करके मिलना, मिलने के लिए आगे बढ़ना वल्लभा- आना, आक्रमण करना, हमला करना-दत्यः प्रत्यसरनभिसिसारयिषूणाम्-शि० 1120, कि० 9 / 38, देवं मत्तो मत्तमिव द्विपम् - हरि० (प्रेर०) पीछे की सा० 10 115, उद-(प्रेर०) दूर भगाना, निकाल ओर केलना, बदल देना कनकवलयं त्रस्तं रस्तं देना, उप-, 1. पास जाना, पहुँचना,--रघु० 19 / 16 मया प्रतिसार्यते -- श० 3 / 13, वि फैलाना, विस्तृत 2. सजग रहना, दर्शन देना-कैलासनाथमुपसृत्य निव- होना, प्रसृत होना-चक्रीवदङ्गरुहधूम्ररुचो विसनुः समाना-विक्रम० 13 3. चढ़ाई करना, आक्रमण -शि० 5 / 8, 9 / 19, 37, कि० 1053 (प्रेर०) करना 4. आपसी मेल-जोल करना, निस--, 1. चले 1. फैलना, बिछाना 2. व्याप्त होना, सम्–1. फैलना जाना, बाहर निकलना, खिसक जाना, निकलना 2. हिलना-जुलना 3. मिलकर जाना या उड़ना -बाणः स्वरकार्मुकनिःसृतेः-राम०, इसी प्रकार 4. जाना, पहुँचना-पापान संसत्य संसारान् प्रेष्यतां -वसुधान्तनिःसृतमिवाहिपतेः-शि० 9 / 25 2. बिदा यान्ति शत्रुषु-मनु० 12170, (प्रेर०) 1. ऊपर फैलाना होना, कूच करना-मनु० 6 / 4 3. बहना, पसीजना, 2. घुमाना, चक्कर देना-जन्मवृद्धिक्षयनित्यं संसाररिसना-यो हेमकुम्भस्तननिःसृतानां स्कन्दस्य मातुः यति चक्रवत्--मनु० 12 / 124 / पयसां रसशः-रघु० 2 / 36 (प्रेर०) हांक कर दूर | सकः [ सृ+कक ] 1. हवा, वायु 2. बाण 3. बज्र करना, निष्कासित करना, बाहर निकाल देना, परि-, 4. कमल, कैरव / चारों ओर बहना-वनं सरस्वती परिससार-ऐत०, | सकण्डु (स्त्री०) [ सृ / विवप्, पृषो० तुक न, सृ+ कण्डु परिसरापः-महा० 2. चक्कर काटना, घूमना क० स०] खुजली। प्रदक्षिणं तं परिसत्य-भाग०, (परिपतति- के स्थान | सृकालः [ स+कालन् ] दे० 'शृगाल'। पर परिसरति-पाठान्तर) शिखी भ्रान्तिमद्वारियन्त्रम् -मालवि० 2 / 13, प्र--, 1. बह जाना, झरना, उदय सृक्कम्, सक्कणी, सृक्कन् (नपुं०) सज्+कन्, कनिन्, होना, प्रोद्गत होना-लोहिताद्या महानद्यः प्रसस्रुस्तत्र | सृक्किणी, सृक्किन् (नपुं०), सक्वम्, (क्वनिप् षा] मुंह का जासकत्-महा० 2. आगे जाना, आगे बढ़ना - वेला (किनारा सक्विणी सुक्वणी, सृक्वन् (नपुं०), सृक्विणी,) परिलेलिहन्-पंच० निलाय प्रसता भुजङ्गाः---रघु० 13 / 12, अन्वेषण सृक्विन् (नपुं०) प्रसूते च मित्रगणे-दश 3. फैलना, चारों ओर सृगः [ सृ+गक् ] एक प्रकार का बाण या नेजा, भिदिफलना-कृशानः किं साक्षात्प्रसरति दिशो नैष नियतम पाल। -काव्य. 10, प्रसरति तृणमध्ये लब्धवृद्धिःक्षणेन (दवाग्निः )-ऋतु० 1125 4. फैलना, छा जाना, सृगालः [ सृ+गालन् ] दे० 'शृगाल' / व्याप्त होना-प्रसरति परिमाथी कोऽप्ययं देहदाहः | सृझ्का (स्त्री०) रत्नों या मणियों से बना हार, मणियों की -मा० 1241, भित्वा भित्वा प्रसरति बलात्कोऽपि जगमगाती लड़ी। तोविकार:-उत्तर० 3336 5. बिछाया जाना, विस्तार सृi (तुदा० पर० सृजति, सृष्ट ] 1. रचना करना, करना-न मे हस्तौ प्रसरतः-श. 2 6. (किसी पैदा करना, बनाना, प्रसव करना, जन्म देना-अपन For Private and Personal Use Only Page #1132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारी तस्यां स विराजमसृजत् प्रभुः .. मनु० 1132, / भामि०११७८ 2. जाने देना, ढीला छोड़ना 3. ढालना, 33, 34, 36, तन्तुनाभः स्वत एव तन्तून् सृजति उडेलना-रघु० 13126 4. भेजना, प्रेषित करना -शारी० 2. पहनना, रखना, प्रयोग में लाना भोजेन दूतो रघवे विसृष्ट:-रघु० 5 / 39 5. पदच्युत 3. जाने देना, ढीला छोड़ना, मुक्त करना 4. उत्सर्जन करना, जाने की अनुमति देना, भेजना-रघु०८।९१, करना, छितराना, प्रसृत करना, बिखेरना, डालना 14 / 19 6. देना-रघु० 13 // 67, 187 7. भेज -अस्राक्षुरस्रं करुणं रुवन्तः--भट्रि० 3 / 17, आनन्द- देना, डाल देना, बिसार देना, फेंकना-विसृजति हिमशीतामिव वाष्पवृष्टि हिमस्रति हैमवतीं ससर्ज-रधु० गर्भरग्निमिन्दुर्मयूखैः-श० 312 8. डालना, गिरने 16644, 8135 5. कहला भेजना, उच्चारण करना, देना, प्रहार करना-विसृज शूद्रमुनी कृपाणम्-उत्तर० कु० 2 / 53 7147 6. फेकना, डाल देना 7. छोड़ना, 2 / 101. उच्चारण करना--शि०१५।६२ 10. उतार छोड़ कर चले जाना, त्यागना, हटा देना। फेंकना, संबंध-विच्छेद करना,-सम-, 1. मिलना, ii (दिवा० आ० सृज्यते) ढीला होना, इच्छा० मिश्रण करना, संयुक्त करना, संपृक्त करना–संस(सिसृक्षति) रचना करने की इच्छा करना। अति-, ज्यते सरसिजैररुणांशभिन्नः-रघ० 5 / 69, अस्ना 1. देना, अर्पण करना-विक्रमः 1115, रघु० 11 // रक्षः संसृजटात,-ऐत. 2. मिलना,-सौमित्रिणा तदनु 48 2. त्यागना, पदच्युत करना 3. उगलना संससृजे-रघु० 13 / 73, कु० 774 3. रचना 4. अनुज्ञा देना, अनुमति देना, अभि , देना, प्रदान करना। करना, अव , 1. डालना, फेंकना, बोना (बीज) | सृजिकाक्षारः [ष० त०] सज्जी का खार, शोरा, रेह / बखेरना, अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत् | सजयाः (पं० ब०व०) एक राष्ट्र या जनपद का नाम / --मनु० 118 2. ढालना, बूंद-बूंद टपकाना-उत्तर० सणिः (स्त्री० [स+निक ] अंकुश, हाथी को हांकने का 3123 3. ढीला छोड़ना, उद-, 1. उडेलना, उगलना, आंकड़ा-मदान्धकरिणां दोपशान्त्य सणि:-हि० 2 / निकाल देना,-व्यलोकनिःश्वासमिवोत्ससर्ज कु० 165, शि० 5 / 5, -णिः 1. शत्रु 2. चन्द्रमा। 3 / 25, सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रवि:---रघु० | सृणि (णी) का [ सृणि-|-कन् (ईकन्)+टाप् ] लार, 1218, 'उडेल देना, वापिस देना या लौटाना 2. (क)। थूक / छोड़ कर चले जाना, छोड़ देना, परित्याग करना, | सृतिः (स्त्री०) [सृ+क्तिन्] 1. जाना, सरकना,-मनु० -रघु० 5 / 51, 6 / 46, कु० 2 / 36, (ख) एक ओर 6.63 2. रास्ता, मार्ग, पथ (आलं० से भी-नते फेंकना, स्थगित करना-स चापमुत्सृज्य विवृद्ध- सृति पार्थ जानन् योगी मुह्यति कश्चन-भग० 8 / 27 मन्य:-रघु० 3 / 50, 4154 3. ढीला छोड़ना, 3. चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त करना। स्वच्छन्द घूमने देना तुरङ्गमत्सष्टमनर्गलं पुनः-रघु० | सृत्वर (वि०) (स्त्री०-री) [स+क्वर, तुक] जाने 3 / 39 4. दागना, फेंकना, गोली मारना-भट्टि० ___ वाला, सरणशील,-री 1. नदी, दरिया 2. माता। 14 / 45 5. बोना, (बीज) बखेरना 6. उपहार देना, सुदरः [स-+अरक, दुक] साँप। प्रदान करना 7. बिछाना, बिस्तार करना 8. हटाना | सदाकुः [स+काकु, दुकच] 1. ह्वा, वायु 2. अग्नि 3. हरिण 9. दूर करना 10. मिटाना, प्रतिबंध लगाना, उप - , 4. इन्द्र का वज 5. सूर्यमंडल,-स्त्री० नदी, सरिता / 1. उडेलना, (जल आदि) प्रस्तुत करना 2. जोड़ना, | सप (म्वा० पर० सर्पति, सप्त, इच्छा० सिसृप्सति) मिलाना, संयुक्त करना, संसक्त करना, संबद्ध करना 1. रेंगना, पेट के बल चलना, शनैः शनैः सरकना -सुखं दुःखोपसृष्टम् 3. व्याकुल करना, अत्याचार 2. जाना, हिलना-जुलना, अनु--, 1. पास जाना, करना, सताना-रोगोपसृष्टतनुर्दुर्वसति मुमुक्षु:--रघु० पहुँचना-गिरिमन्वसृपद्रामः--भट्टि० 6 / 27 2. पीछा 8 / 94 4. ग्रहण लगना, ग्रस्त करना,---मनु० 4137 करना--भट्टि० 15 / 59, अप्- , 1. चले जाना, पीछे याज्ञ० 11272 5. पैदा करना, क्रियान्वित करना हट जाना, लोट पड़ना-तत्त्वरितमनेन तरुगहनेनाप6. नष्ट करना, नि-, 1. स्वतन्त्र करना, बरी करना सर्पत-उत्तर०४ 2. सरक जाना, मन्द मन्द चकना - स्वामिना निसृष्टोपि शूद्रो दास्याद्विमुच्यते 3. (भेदिये की भांति) छिप कर देखना--उत्तर०१ -मनु० 81414 2. हवाले करना, सौंपना, सुपुर्द 4. अलग होना, छोड़ना, उद्-, 1. ऊपर को उड़ना करना--तु. निसृष्ट, प्र-, 1. छोड़ना, त्यागना 2. ऊपर जाना, पहुँचना-सरित्प्रवाहस्तटमुत्ससर्प-रघु० 2. ढीला छोड़ना 3. बोना, बखेरना 4. क्षतिग्रस्त 5 / 46, उप-, 1. पहुँचना, निकट जाना-मालवि० करना, चोट पहुंचाना, वि-, 1. त्यागना, छोड़ना, 1112 2. हरकत करना, जाना-पंच० 123 तिलांजलि देना--विसृज सुन्दरि सङ्गमसाध्वसम् | 3. पहुँचना, प्राप्त करना, भुगतना-दुःखम् सुखम्" -मालवि० 4 / 13, पूर्वार्षविसृष्टतल्प: -- रधु० 16 // 6, 4. आरंभ करना- मनु० 10105 5. आक्रमण For Private and Personal Use Only Page #1133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1124 ) करना, परि-, 1. चारों ओर घमना, छा जाना प्रसार 3. वीर्यपात 4. तर्पण, चढ़ावा। सम०-पात्रम् 2. इधर उधर घूमना, प्र-, 1. आगे जाना, बाहर 1. पानी छिड़कने का पात्र, जल-पात्र 2. डोलची, निकलना, आगे आना, प्रगति करना ---भट्टि० 14 / / बोका। 20 2. फैलाना, प्रचारित करना, (आलं० से भी) सेकिमम् [ सेक+डिम ] मली। रुधिरेण प्रसर्पता-महा०, आलर्क विषमिव सर्वतः | सेक्त (वि.) (स्त्री०-पत्र) [ सिच्-+ तृच् ] सींचने वाला प्रसप्तम-उत्तर० 1140, वि-, 1. जाना, प्रयाण (पुं०) 1. छिड़काव करने वाला 2. पति / करना, प्रगति करना-यः सुबाहुरिति राक्षसोऽपरस्तत्र सेक्त्रम् [ सिच-1-ष्ट्रन् ] डोलची, सींचने का पात्र / तत्र विससर्प मायया--- रघु०१२२९, 4152 2. इधर सेचक (वि०) (स्त्री०-चिका) [सिन्+ण्वल ] सींचने उधर उड़ना या घूमना 3. फैलाना मनोरागस्तीव्र | वाला, कः बादल। विषमिव विसर्पत्यविरतम् - मा० 2 / 1 4. साथ साथ | सेचनम् [ सिच् + ल्युट् ] सींचना, (वृक्षों को) पानी देना, बहना, नीचे गिरना--(बाष्पौषः) विसर्पन धाराभिल- __ -वृक्षसेचने द्वे धारयसि मे श० 1 2. स्राव, छिड़काव ठति धरणी जर्जरकणः -- उत्तर० 1126 5. लेकर 3. मन्द-मन्द रिसना, टपकना 4. डोलची। सम. चम्पत होना, बच निकलना 6. छा जाना 7. मड़ना, -घटः सींचने का बर्तन / घुमना 8. भिन्न भिन्न दिशाओं में जाना सम--, सेचनी [ सेचन-+डीप् ] डोलची। 1. हिलना-जुलना,-संसर्पत्या सपदि भवत: स्रोतसि | सेटुः [ सिट+उन् ] 1. तरबूज 2. एक प्रकार की ककड़ी। च्छाययासौ मेघ० 51 2. साथ साथ चलना, बहना | सेतिका (स्त्री०) अयोध्या का नाम / -मेघ० 29 / सेतुः [ सि+तुन् ] 1. मिट्टी का टीला, मेंड, किनारा, सृपाट: [सप्+काटन] एक प्रकार की माप / ऊँचा मार्ग, बांध--नलिनी क्षतसेतुबन्धनो जलसंघात सृपाटिका [सृपाट+की+कन्+टाप, ह्रस्वः] पक्षी की / इवासि विद्रुतः- कु० 4 / 6, रघु० 16 / 2 2. पुल - चोंच। -वैदेहि पश्यामलयाद्विभक्तं मत्सेतुना फेनिलमम्बसपाटी [सपाट+ङीष्] एक प्रकार की माप / राशिम रघु० 13 / 2, सैन्यबद्धद्विरदसेतुभिः--४।३८. सृप्रः [सृप+ऋन्] चन्द्रमा। 12170, कु० 7.53 3. सीमाचिह्न, मेंड-मनु० 8 / संभ, सम्भ (म्वा० पर० सर्भति, सृम्भति) चोट पहुँचाना, 245 4. संकुचित मार्ग, दर्रा, संकीर्ण गिरिपथ 5. हद, क्षतिग्रस्त करना, वध करना। सीमा 6. जंगला, परिसीमा, किसी प्रकार का अवरोध समर (वि०) (स्त्री०री) [स+मरच] गमन करने ---दूष्येः सर्ववर्णाश्च भिद्येरन् सर्वसेतवः ....सुभा० वाला, जाने वाला,-रः एक प्रकार का हरिण। 7. निश्चित नियम या विधि, सर्वसम्मत प्रथा 8. 'ओम' सृष्ट (भू० क० कृ०) [सज+वत] 1. रचित, उत्पादित पुनीत अक्षर--मन्त्राणां प्रणवः सेतूस्तत्सेतुः प्रणव 2. उडेला हुआ, उगला हुआ 3. ढीला छोड़ा हुआ। स्मतः / स्रवत्वनोंकृतं पूर्व परस्ताच्च विदीर्यते / 4. छोड़ा हमा, परित्यक्त 5. हटाया गया, दूर भेजा कालिका० / सम०--बन्धः 1. पुल का निर्माण, गया 6. निश्चय किया गया, निर्धारित 7. संयुक्त, नवारा की रचना वयोगते कि वनिताविलासो जले संबद्ध 8.. अधिक, प्रचुर, असंख्य 9. अलंकृत दे० गते कि खल सेतुबन्धः सुभा०, कु० 416 2. शैल 'सृज्'। शृंखला जो कारोमण्डल समुद्रतट की दक्षिणी सीमा सृष्टिः (स्त्री० [सृज+क्तिन्] 1. रचना, कोई भी रचित से लंका तक फैली हुई है (कहते हैं कि यही वह पुल वस्तु-कि मानसी सृष्टि: - श०४, या सृष्टिः स्रष्टुराधा है जिसे नलनील ने राम के लिए बनाया था) 3. कोई ---श०१११, सृष्टिराद्येव धातुः-मेघ० 82 2. संसार भी पूल या नवारा,- भेदिन (वि.) 1. बन्धनों को की रचना 3. प्रकृति, प्राकृतिक संपत्ति 4. ढीला तोड़ने वाला 2. रुकावटों को हटाने वाला (पुं०) छोड़ना, उद्गार 5. प्रदान करना, भेंट 6. गुणों की एक वृक्ष का नाम, दन्ती। विद्यमानता 7. पदार्थ का अभाव / सम०-गर्त (पुं०) | सेतुकः [ सेतु + क ] 1. समुद्रतट, नवारा, पुल 2. दर्रा / स्रष्टा, रचयिता / सेत्रम् [सिष्ट्रिन् ] बन्धन, हथकड़ी, बेड़ी। सृ (क्रया० पर० सृणाति] चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त | सेदिवस् (वि.) (स्त्री०-सेदुषी) [ सद् --लिट् + क्वसु ] करना, मार डालना। बैठा हुआ। सेक् (भ्वा० आ० सेकते) जाना, हिलना-जुलना। सेन (वि.) [ सह इनेन ब० स०] प्रभु वाला, जिसका सेकः [सिच+घा] छिड़कना, (वक्षों को) पानी देना, कोई स्वामी हो, नेता हो। -सेकः सीकरिणा करेण विहितः कामम्--उत्तर० 3 / 16, सेना [ सि+न+टाप, सह इनेन प्रभुणा वा ] 1. फौज रघु० 1151, 8145, 16 / 30, 17 / 16 2. उद्गार, / -सेनापरिच्छदस्तस्य द्वयमेवार्थसाधनम् ---रघु०१।१९ For Private and Personal Use Only Page #1134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1125 ) 2. संग्राम के देवता कार्तिकेय की मूर्त पत्नी सेना, / कारण्डवः सेवते-विक्रम० 2 / 23, पंच० 29 7. पहरा फौज--तु० देवसेना / सम-अग्नम् सेना का अग्रभाग, देना, रखवाली करना, रक्षा करना, आ-, उपभोग गः सेना का नायक या सेनापति, -अङ्गम् सेना का | करना यदायुरन्विष्टमृगैः किरातरासेव्यते भिन्नसंघटक भाग (यह गिनती में चार है--हस्त्यश्वरथ- शिखण्डिबहः कु० 1215, प्रवातमासेवमानां तिष्ठति पादातं सेनाङ्ग स्याच्चतुष्टयम्),-चरः 1. सैनिक --मालवि० 1 2. अभ्यास करना, अनुष्ठान करना 2. अनुचरवर्ग, निवेशः सेना का शिविर रघु० 5 / 3. सहारा लेना, उप--, 1. सेवा करना, पूजा करना, 49, नी (पं०) 1. सेना का नायक, सेनापति, सेना- सम्मान करना, मनु० 41133 2. अभ्यास करना, ध्यक्ष सेनानीनामहं स्कन्दः भग० 10 / 24, कु० अनुसरण करना, ध्यान देना, पीछा करना 3. * व्यस्त 2 / 51 2. कार्तिकेय का नाम अथैनमनेस्तनया शुशोच होना, उपभोग करना-भग०१५।९ 4. (किसी स्थान सेनान्यमालीढमिवासुरास्त्रः रघु० 2137, पतिः पर) नित्य जाना, बसना 5. मलना, मालिश करना, 1. सेना का नायक 2. कातिकेय का नाम परिच्छद नि--, पीछा करना, अनुसरण करना, संलग्न करना, (बि०) सेना से घिरा हआ (रघु० 1119 में 'सेना- अभ्यास करना---० 1127 2. उपभोग करना परिच्छदः' कभी कभी एक ही शब्द समझा गया और -- निषेवते श्रान्तमना विविक्तम्-श० 5 / 5, कु. 116 तदनुकूल ही अर्थ किया गया, परन्तु इनको अलग- 3. शारीरिक सुखोपभोग करना-यथा यथा नामरसेक्षणा अलग दो शब्द समझना ज्यादह अच्छा है), पृष्ठम् मया पूनः सरागं नितरां निषेविता -- भामि०२।१५५ सेना का पिछला भाग, भङ्गः सेना का भग्न हो जाना, 4. सहारा लेना, बसना, नित्य आना-जाना-कू० 5 / सर्वथा तितर-बितर होना, अव्यवस्थित रूप से इधर 76 5. उपयोग में लाना, काम में लाना--विषतां उधर भागना, मखम् 1. सेना का एक दस्ता या निषेवितमपक्रियया समपति सर्वमिति सत्यमदः-शि० भाग 2. विशेषतः वह दस्ता जिसमें तीन हाथी, तीन 9 / 68 6. सेवा में उपस्थित रहना, हाजरी देना रथ, नौ घोड़े और पन्द्रह पदाति हों 3. नगर फाटक 7. नज़दीक जाना, पहुँचना 8. भुगतना, अनुभव के बाहर बना मिट्टी का टीला, योगः सेना की करना, परि-, 1. सहारा लेना 2. उपभोग सुसज्जा, * रक्षः पहरेदार, सन्तरी / करना, लेना। सेफ: सि-फः ] पुरुष का लिंग तू० 'शेफ' / सेव दे० 'सेवन'। सेमन्ती [ सिम् --झि | कोष् ] सफेद गुलाब, सेवती।। सेवक (वि.) [सेव+ण्वुल ] 1. सेवा करने वाला, पूजा सेरः (पु.) एक विशेष माप, सेर का बट्टा, (लीलावती करने वाला, सम्मान करने वाला 2. व्यवसाय करने इसकी परिभाषा की है पादोनगद्यानकतुल्यटङ्कद्विसप्त वाला, अनुगामी 3. आश्रित, दास,-कः 1. टहलुआ, तुल्यैः कथितोऽत्र सेर:)। -आश्रित सेवया धनमिच्छद्धि : सेवकः पश्य किं कृतम / सेराहः (पुं०) दुग्ध के समान श्वेत रंग का घोड़ा। स्वातंत्र्यं यच्छरीरस्य मृडैस्तदपि हारितम्-हि० सेरु (वि०) / सि+रु ] बांधने वाला, कसने वाला। 2 / 20 2. भक्त, पूजक 3. सीने वाला, दर्जी सेल (भ्वा० पर० सेलति) जाना, हिलना-जुलना। 4. बोरा, थैला। सेव (भ्वा० आ० सेवते, सेवित, प्रेर० सेवयति ते. सेवधि (अव्य०) दे० 'शेव' के अन्तर्गत 'शेवधि' / इच्छा० सिविषते -नि, परि, वि आदि इकारांत / सवनम् / सब+ ल्युट् ] 1. सवा करना, सवा. हाजरा म उपसर्गों के पश्चात् सेव का स बदल कर प्रायः मुर्धन्य खड़े रहना, पूजा करना-पात्रीकृतात्मा गुरुसेवनेन ष हो जाता है) 1. सेवा करना, सेवा में उपस्थित --रघु० 18130 2. अनुगमन करना, अभ्यास करना, रहना, सम्मान करना, पूजा करना, आज्ञा मानना काम में लगाना मनु० 12152 3. उपयोग करना, ---प्रायो भत्यास्त्जन्ति प्रचलितविभवं स्वामिनं सेवमानाः उपभोग करना 4. शारीरिक सुखोपभोग करना मुद्रा०४।२१, या, ऐश्वर्यादनपेतमीश्वरमयं लोकोऽ ----यत्करोत्येकरात्रेण वृषली सेवनाद द्विजः--मनु०११॥ र्थतः सेवते.--११४ 2. अनुगमन करना, पीछा करना, 179 5. सौना, टाँका लगाना 6. बोरा, थेला / अनुसरण करना 3. उपयोग में लाना, उपभोग करना | सेवनी | सेवन+डीप्] 1. सुई 2. सीवन, संधिरेखा .....कि सेव्यते सुमनसां मनसापि गन्धः कस्तूरिकाजनन- 3. संधि या सीवन की भाँति शरीर के अंगों का शक्तिभृता मृगेण ---रस 4. शारीरिक सुखोपभोग संघान / करना-भामि० 11118 5. अनुराग करना, अनुष्ठान | सेवा [ सेव-|-अङ्-+टाप ] 1, परिचर्या, खिदमत, दासता, करना मनु० 2 / 1, कु० 5 / 38, रघु० 17149 टहल... सेवां लाघवकारिणी कृतधियः स्थाने श्ववत्ति 6. सहारा लेना, आश्रित होना, रहना, बार-बार विदु:-मद्रा० 3 / 14, हीनसेवा न कर्तव्या-हि. आना जाना, बसना,-तप्तं वारि विहाय तीरनलिनी 3 / 11 2. पूजा, श्रद्धांजलि, सम्मान 3. संलग्नता, For Private and Personal Use Only Page #1135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्ति, चाव 4. उपयोग, अभ्यास, काम में लगना, कु. 129, श० 6 / 17 2. रेतीले तटों वाला द्वीप प्रयोग 5. बार बार आना-जाना, आश्रय लेना / 3. किनारा या द्वीप / सम० इष्टम् अदरक / / 6. चापलसी, बहकाना, चिकने चुपड़े शब्द - अलं | सैकतिक (वि०) (स्त्री०-की)[संकत+ठन] 1. रेतीले सेवया मध्यस्थतां गृहीत्वा भण-(मालवि०३ / संम० तट से संबन्ध रखने वाला 2. घट-बढ़ होने वाला, -----आकार (वि.) दासता के रूप में--विक्रम तरंगित, सन्देह की अवस्था में रहने वाला, सन्देहजीवी, 311, काकु सेवा में आवाज़ में परिवर्तन (यह -~-क: 1. साधु 2. संन्यासी,-कम मंगलसूत्र जो विक्रमः 31 में 'सेवाकारा' शब्द का रूपान्तर सौभाग्यशाली बनने के लिए कलाई में बांधा जाता है), --धर्म: 1. सेवा करने का कर्तव्य - सेवाधर्मः है या कंठ में पहना जाता है। परमगहनो योगिनामप्यगम्यः--पंच० 11285 सैदान्तिक (वि.) (स्त्री० -- की) [सिद्धान्त+ठक्] 2. सेवा का दायित्व, व्यवहारः सेवा की विधि या किसी राद्धांत या प्रदर्शित सत्य से सम्बन्ध रखने प्रथा। वाला 2. जो वास्तविक सचाई को जानता है। सेवि (नपुं०) [ से+इन् ] 1. बेर 2. सेव। | सैनापत्यम् [ सेनापति+ध्यम ] किसी सेना का सेनासेवित (भ० क० कृ०) [ सेव+क्त ] 1. सेवा किया / पतित्व, सेनाध्यक्षता—कु० 261 / गया, जिसकी टहल की गई है, पूजा किया गया सैनिक (बि०) (स्त्री०-की) [ सेनायां समवति ठक् ] 2. अनुगत, अभ्यस्त, पीछा किया गया 3. जहाँ नित्य- 1. सेनासम्बन्धी 2. फौजी, कः 1. सिपाही--पपात प्रति आया जाय, सहारा लिया गया, जहाँ (लोग) भूमौ सह सैनिकाश्रुभिः --रघु० 3.61 2. पहरेदार, बसे हए हों, जहाँ संगी-साथी हों 4. उपभुक्त, उप- संतरी 3. सामरिक व्यह में व्यवस्थित सैन्यसमूह युक्त,--तम् 1. सेव 2. बेर / --- रघु० 3 / 57 / सेवित (पुं०) [ सेव् +-तृच ] सेवक, दास। . सैन्धव (वि.) (स्त्री०-वी) [सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः [सेव+णिनि ] 1. सेवा करने वाला, अण् ] 1. सिंधु प्रदेश में उत्पन्न या पैदा हुआ पूजा करने वाला 2. अनुगन्ता, अभ्यासी, उपयोक्त. 2. सिंधु नदी संबन्धी 3. नदी में उत्पन्न 4. समुद्र 3. बसने वाला, रहने वाला, - (0) सेवक / संबन्धी, सागर सम्बन्धी, सामद्रिक,--1: 1. घोड़ा, सेव्य (वि.) [ सेव--ण्यत् ] 1. सेवा किए जाने के योग्य, विशेषतः वह जो सिंधु देश में पला हो-नं० 1171 टहल किए जाने के योग्य 2. उपयोग में लाने के योग्य, 2. एक ऋषि का नाम, ..--:,--बम एक प्रकार का काम में लाने के योग्य 3. उपभोग किए जाने के योग्य सेंधा नमक,-वाः (पुं०, ब० व०) सिंधु प्रदेश के 4. देख-भाल किए जाने के योग्य, पहरा दिए जाने के अधिवासी। सम०-धनः नमक का ढेला,-शिला योग्य,--व्यः 1. स्वामी (विप० सेवक), भयं तावत्से- एक प्रकार का पहाड़ से निकलने वाला नमक / ' व्यादभिनिविशते सेवकजनम् --मुद्रा० 5 / 12, पंच० / सैन्धवक (वि.) (स्त्री०--की) [सैंधव+-वुन ] संधव 1148 2. अश्वत्थवृक्ष, व्यम् एक प्रकार की जड़। सम्बन्धी, क. सिंधु देश का कोई आपद्ग्रस्त व्यक्ति सम-सेवको (पुं०, द्वि० व०) स्वामी और नौकर। जिसकी दशा दयनीय हो / से (म्वा० पर०-सायति) बर्बाद होना, क्षीण होना, नष्ट | सैन्धी (स्त्री०) एक प्रकार की मदिरा (सम्भवतः वह जो होना। ताड़ के रस से तैयार की गई हो) ताड़ी। संह (वि.) (स्त्री० --ही) [ सिंह + अण् ] सिंह से , सन्यः [ सेनायां समवैति ञ्य ] 1. सैनिक, सिपाही-शि० संबद्ध, सिंह सम्बन्धी-युर्ति सैहीं कि श्वा घृतकनक- 5 / 28 2. पहरेदार, संतरी, त्यम् सेना, सेना की मालोऽपि लभते . हि० 11175 / टुकड़ी--स प्रतस्थेरिनाशाय हरिसन्यरनुद्रुतः-रघु० संहल (वि.) [ सिंहल+अण् ] लंका सम्बन्धी, लंका में 1 / 67 / उत्पन्न, या लंका में होने वाला। | समन्तिकम् [ सीमन्त+ठक् ] सिंदूर।। संहिकः, सेहिकेयः [सिंहिक-+अण्, सिंहिका+ढक् ] | सैरन्ध्रः, सरिन्ध्रः [ सीरं हलं घरति--सीर++क, मुम् राहु का मातृ परक नाम / -सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र+अण् संकत (वि०) (स्त्री०-- ती) [ सिकताः सन्त्यत्र अण् ] पक्षे इत्वम् ] 1. घरेलू नौकर, किंकर 2. एक मिश्र 1. रेत युक्त या रेत से बना हुआ, रेतीला, कंकरीला | जाति, दस्यु जाति के पुरुष तथा अयोगव जाति की --तोयस्येवाप्रतिहतरय: सकतं सेतुमोघः- उत्तर० स्त्री से उत्पन्न सन्तान-सरिन्ध्र वागरावृत्ति सूते 3136 2. रेतीली भूमि वाला,--तम् रेतीला तट दस्युरयोगवे -मनु० 10 // 32 / ----सुरगज इव गांगं संकतं सुप्रतीकः - रघु० 5175, / सैरन्ध्री, सैरिन्ध्रीरं (रि) ध्र+डीष 11. दासी या 518, 1169, 13117, 62, 13376, 16 / 21, / सेविका जो अन्तःपुर में काम करे (सैरंध्र 2. में For Private and Personal Use Only Page #1136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1127 ) वणित मिश्र जाति की स्त्री) 2. स्वतन्त्र स्त्री जो / 5.18 5. स्वीकार करना, दायित्व लेना कच्चिशिल्पकारिणी के रूप में दूसरे के घर जाकर काम सौम्य व्यवसितमिदं बन्धुकृत्यं त्वया मे मेघ 144 करे 3. द्रौपदी का विशेषण (अज्ञात वास में विराट 6. करना, सम्पन्न करना 7. विश्वास करना, विश्वस्त की पत्नी सुदेष्णा की सेवा करते समय द्रौपदी ने यह होना, प्रतीत होना 8..विचार-विमर्श करना, समय, नाम रख लिया था)। निर्णय करना, आदेश देना -मनु० 7 / 13 / सरिक (वि.) (स्त्री० की) [ सीर-+-ठक ] 1. हल- | सोट (भू० क० कृ०) [ सह+क्त ] सहन किया गया, सम्बन्धी 2. खूडों से युक्त,-क: 1. हल में चलने भुगता गया, बस्ति किया गया, झेला गया-आदि वाला वैल 2. हाली, हलवाहा। सरिभः [ सीरे हले तद्वहन इम इव शूरत्वात, शक० पर०, | सोद (वि०) (स्त्री०-डी) [ सह +तृचु ] 1. सहनषील, सीर+ इ + अण्] 1. भैसा-अवमानित इव कुलीनो बर्दाश्त करने वाला, सहिष्णु 2. शक्तिशाली, समर्ष। दोघं निःश्वसिति सैरिभ:-मृच्छ० 4 2. इन्द्र का 4 2 बन्द का | सोत्क, सोत्कण्ठ (वि.) [सह उत्केन, उत्कण्ठया वा--. स्वग। स०] 1. अत्यन्त उत्सुक, अतीव आतुर, आकुल, यथा सवाल दे० 'शेवाल'। -'सोत्कण्ठमालिंगनम्' 2. खिन्न 3. शोकाकूल, खिद्यमान, संसक (वि०) (स्त्री को) [ सीसक- अण् ] सीसे का -ठम् (अव्य०) 1. अत्यंत उत्सुकता के साथ, बड़ी बना हुआ, सीसा सम्बन्धी / उत्कंठा के साथ, ---प्रोड्डीयेव बलाकया सरमसं सो (दिवा. पर० स्यति, सित, प्रेर० साययति--ते, सोत्कण्ठमालिङ्गितः--मृच्छ० 5 / 23 2. खेदपूर्वक, इच्छा० सिषासति, कर्मवा० सीयते-इकारान्त उका दुःखपूर्वक। रान्त उपसगों के पश्चात् 'सो' के 'स' को मूर्धन्य '' सोत्पास (वि.) [सह उत्प्रासेन-ब०स०] 1, अत्यधिक हो जाता है) 1. वध करना, नष्ट करना 2. समाप्त | 2. अतिशयोक्तिपूर्ण 3. व्यंग्यात्मक, व्यंगपूर्ण,-सः करना, पूरा करना, अन्त तक पहुँचाना, अब-, अद्रहास,-सः,-सम्, व्यंग्यात्मक अतिशयोक्ति, व्यं1. समाप्त करना, पूरा करना---यूपयत्यवसिते क्रिया गोक्ति, व्यंगवाक्य, तु० व्याजस्तुति / विधौ ---रघु० 11137, अवसितमण्डनासि-श० 4 | सोत्सव (वि.) [उत्सवेन सह-ब०स०] उत्सवयुक्त, 2. नष्ट करना 3. जानना, भट्रि० 19029 | उछाहभरा, हर्षपूर्ण / 4. विफल होना, किनारे पर होना (अक०)-शक्ति- | सोत्साह (वि.) [सह उत्साहेन-ब०स०] प्रबल, सक्रिय, मंमावस्यति हीनयुद्धे-कि० 16 / 17, अध्यव, उत्साही, धीर,-हम् (अव्य०) फुर्ती से, उत्साह पूर्वक, 1. संकल्प करना, निर्धारित करना, मन पक्का करना सावधानी से। --कथमिदानी दुर्जनवचनादध्यवसितं देवेन --उत्तर. | सोत्सुक (वि.) 1. खिन्न, झल्लाने वाला, आतुर, शोका१, अभिधातुमध्यवससौ न गिरा--शि० 9 / 76, न्वित 2. उत्कण्ठित, लालायित। 2. प्रयास करना, दायित्व लेना, सम्पन्न करना--मा सोत्सेष (वि.) [सह उत्सेधेन ब०स०] उन्नीत, उन्नत, साहसमध्यवस्यः-दश०, वक्तुं सुकरमध्यवसातुं दुष्क / ऊँचा, उत्तुंग- सोत्सेधः स्कन्धदेश:- मुद्रा० 4 / 7 / रम् वेणी० 3, 'करने की अपेक्षा कहना आसान है' | सोबर (वि०) [समानमुदरं यस्य, समानस्य सः] एकही 3. दबोच लेना 4. सोचना, विचार करना, पर्यव -, पेट से उत्पन्न, सहोदर,... सगा भाई,- रासगी 1. पूरा करना, समाप्त करना 2. निर्धारित करना, बहन / संकल्प करना 3. परिणाम होना, घट जाना, समाप्त | सोवर्यः [सोदर+यत सहोदर भाई, सगा भाई (आलं. से हो जाना-एप एव समुच्चयः सद्योगेऽसद्योगे सदस- भी)-भ्रातुः सोदर्यमात्मानमिन्द्रजिदूधशोभिनः-रषु० द्योगे च पर्यवस्यतीति न पृथक् लक्ष्यते - काव्य०१० 15 / 26, अवज्ञासोदयं दारिद्रपम् - दश। 4. नष्ट होना, खो जाना, क्षीण होना 5. प्रयत्न करना, सोयोग (वि.) [सह उद्योगेन ब०स०] प्रबल उद्योग व्यव-1. ज़ोर लगाना, हाथ-पांव मारना, कोशिश करने वाला, परिश्रमी, सक्रिय, धीर, मेहनती। करना, चेष्टा करना, प्रयत्न करना, आरम्भ करना सोग (वि.) [सह उद्वेगेन-ब०स०] 1. आतुर, आशं--ध्रवं स नीलोत्पलपत्रधारया शमीलतां छत्तमषि- काल 2. शोकान्वित,--गम् (अव्य०) घातुरता के व्यवस्यति-श० 1118 2. चिन्तन करना, कामना साथ, उतावलेपन से, उत्सुकतापूर्वक / करना, चाहना-पातुं न प्रथमं व्यवस्यति जलं युष्मा- सोनहः [सु+विच्+सो, नह+क-नह) लहसुन / स्वपीतेषु या-श० 419 3. लगातार चेष्टा करना, | सोन्माद (वि.) [सह उन्मादेन-ब०स०] पागल, वीवाना, परिश्रमी या उद्योगी होना 4. संकल्प करना, निर्धा- आपे से बाहर, मदविक्षिप्त / रित करना, निश्चित करना, फैसला करना-श० सोपकरण (वि०) [सह उपकरणेन-०स०] सब प्रकार n | A For Private and Personal Use Only Page #1137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1128 ) के आवश्यक सामान या उपकरणों से युक्त, समुचित / रूप से सुसज्जित, इसी प्रकार 'सोपकार'। सोपद्रव (वि.) [सह उपद्रवेण-ब०स०] संकट और उप___ द्रवों से युक्त। सोपष (वि.) [सह उपधया ब०स०] जालसाजी और धोखे से भरा हुआ, कपटपूर्ण / सोपषि (वि.) [सह उपधिना--ब०स०] जालसाज, अव्य० कपट के साथ, जालसाजी करके अरिषु हि विजयार्थिनः क्षितीशा विदधति सोपधि सन्धिदूषणानि क. 1145 पप्लवेन-ब -जैसे कि चन्द्र सोपप्लव (वि.) [सह उपप्लवेन-ब.स.] 1. संकटग्रस्त 2. शत्रुओं द्वारा आक्रान्त 3. ग्रहणग्रस्त (जैसे कि चन्द्र व सूर्य)। सोपरोष (वि.) [सह उपरोधेन-ब०स०] 1. अवरुद्ध, बाधायुक्त 2. अनुगृहीत,--धम् (अव्य०) सानुग्रह, सादर। सोपसर्ग (वि.) [सह उपसर्गेण-ब०स०] 1. संकटग्रस्त, दुर्भाग्यग्रस्त 2. अनिष्टसूचक 3. किसी भूत प्रेत से आविष्ट 4. उपसर्ग से युक्त (व्या० में)। सोपहास (वि.) [सह उपहासेन ब०स०] व्यंगपूर्ण हंसी से युक्त, उपालंभपूर्ण, व्यंग्यमय, सम् (अव्य०) उपालंभपूर्वक, उलाहने के साथ। सोपाक: [=श्वपाकः, पृषो०] पतित जाति का पुरुष, चांडाल, दे० मनु० 10 // 38 / सोपाधि (वि०) सोपाधिक (वि०) (स्त्री०-की) [सह उपाधिना-ब०स०, पक्षे कप] 1. किसी शर्त या सीमा से प्रतिबद्ध, विशिष्ट लक्षणों से युक्त, सीमित, मर्यादित, विशिष्ट (दर्शन में) 2. विशिष्ट विशेषण से युक्त। सोपानम् [उप---अन् ---घा --उपान: उपरिगतिः सह विद्यमानः उपानः येन-ब०स०] पौड़ी, सोढी का डंडा, जीना, सीढ़ी--आरोहणार्थ नवौवनेन कामस्य सोपानमिव प्रयुक्तम् कु० 1139 / सम०-पक्तिः (स्त्री०),-पयः,-पद्धतिः (स्त्री०), परम्परा, मार्गः सीढ़ी, जीना वापी चास्मिन् मरकतशिलाबद्धसोपानमार्गा मेघ० 76, समारुरुक्षुर्दिवमायुषः क्षये ततान सोपानपरम्परामिव-रघु०३।९, 6 / 3, 16.56 / सोमः [ सू+मन् ] 1. एक पौधे का नाम, प्राचीन काल के यज्ञों में आहुति देने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण औषधि 2. 'सोम' नामक पौधे का रस-जैसा कि सोमया तथा सोमपीथिन शब्दों में 3. अमत, देवताओं का पेय पदार्थ 4. चन्द्रमा (पुराणों में चन्द्रमा को अत्रि ऋषि की आँख से उत्पन्न होने वाला वर्णन किया गया है (तु. रघु० 2175), ऐसा भी वर्णन मिलता है कि समुद्रमन्थन के अवसर पर चन्द्रमा भी समुद्र से 1 निकला। पुराणों में वर्णित सत्ताइस नक्षत्र जो दक्ष की कन्याएँ बतलाई गई है, चन्द्रमा की पत्नियाँ कही जाती है। चन्द्रमा को कलाओं के पाक्षिक क्षय की घटना का भी समाधान यह किया गया है कि चन्द्रमा की अमृतमयी कलाओं को विविध देवताओं ने बारी बारी से पी लिया, इसी प्रसंग में एक और कथा का भी आविष्कार किया गया है जिसमें बतलाया गया है कि चन्द्र / रोहिणी (दक्ष की 27 कन्याओं में से एक) पर विशेष रूप से अनुरक्त था, अतः उसके श्वसुर दक्ष ने इसे 'क्षयरोग से ग्रस्त होने का शाप दे दिया, बाद में चन्द्रमा की अन्य पत्नियों के बीच में पड़ने पर यह शाप सीमित कालावधि (पाक्षिक) में बदल दिया गया। यह भी वर्णन मिलता है कि चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया उससे चन्द्रमा का बुध नामक एक पुत्र पैदा हुआ। यही बुध बाद में राजाओं के चन्द्रवंश का प्रवर्तक हुआ, (दे० तारा (ख) भी) 5. प्रकाश की किरण 6. कपूर 7. जल 8. वायु, हवा 9. कुबेर 10. शिव 11. यम 12. (समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त) मुख्य, प्रधान, उत्तम जैसा कि नसोम' में,-मम 1. चावलों की कांजी 2. आकाश, गगन / सम० अभिषवः सोमरस का खींचना,-अहः सोमवार,-आख्यम् लाल कमल,-ईश्वरः शिव की प्रसिद्ध प्रतिमा ‘सोमनाथ', -उद्धवा नर्मदा नदी-- रघु० 5 / 59 (यहाँ मल्लि. ने अमर० का उद्धरण दिया है 'रेवातु नर्मदा सोमोद्भवा'),-कान्तः चन्द्रकान्त: मणि,---क्षयः चन्द्रमा की कलाओं का ह्रास, -- ग्रह सोमरस रखने का पात्र, -ज (वि०) चन्द्रमा से उत्पन्न. (-जः) वुधग्रह का विशेषण, (-जम्) दूध, धारा आकाश, गगन,-नाथः प्रसिद्ध शिव लिंग' या वह स्थान जहाँ यह प्रतिमा स्थापित की गई है (इसी प्रतिमा की अतुल धन राशि व वैभव ने गजनी के मोहम्मद गोरी को आकृष्ट किया, जिसने 1024 ई० में सोमनाथ का मन्दिर तोड़ा और उसके खजाने को उठा कर ले गया)-तेषां मार्गे परिचयवशाजितं गुर्जराणां यः सन्तापं शिथिलमकरोत सोमनाथं विलोक्य / / विक्रमांक. 18587, -प,-पा (पुं०) 1. सोमपायी 2. सोमयाजी 3. पितरों का विशेष समूह,-पतिः इन्द्र का नाम,----पानम् सोमरस का पीना,...-पाथिन्,- पीथिन् (पं०) सोमरस को पीने वाला - तत्र केचित् .... सोमपीथिन उदुम्बरनामानो ब्रह्मवादिनः प्रतिवसन्ति स्म मा० 1, ---पुत्रः,भूः सुतः बुध के विशेषण,---प्रवाकः सोमयज्ञ के पुरोहितों को वरण करने वाला, बन्धुः कुमुद,- यज्ञः, यागः सोमयज्ञ,--योनिः एक प्रकार का पीला और सुगन्धित चन्द्रमा- रोगः, स्त्रियों का For Private and Personal Use Only Page #1138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक विशेष रोग,...--लता-वल्लरी 1. सोम का पौधा / सौख्यम् |सुख+ष्यञ | सुख, प्रसन्नता, सन्तोष, सुविधा, 2. गोदावरी नदी, वंशः बुध द्वारा स्थापित राजाओं | आनन्द / का चन्द्रवंश, ----वारः, वासरः सोमवार, --विक्रयिन् / सौगतः [सुगत+अण्] बौद्ध (बद्ध या सुगत का अनुयायी) (पुं०) सोमरस विक्रेता,--- वृक्षः,--सारः सफेद खैर (बौद्धों के चार बड़े संप्रदाय हैं ---माध्यमिक, सौत्राका वृक्ष,-शकला एक प्रकार की ककड़ी,--संज्ञम् न्तिक, योगाचार और वैभाषिक)-सौगतजरत्परिव्राजकपूर, -सत् (पुं०) पितरों का विशेषवर्ग- मनु० कायास्तु कामन्दक्याः प्रथमां भूमिकां भाव एवाधीते ३।१९५,–सिन्धुः विष्णु का विशेषण, सुत् (पुं०) ---मा०१। सोमरस खींचने वाला,-सुता नर्मदा नदी तु० सोमो- सौगतिकः [सुगत- ठक] 1. बौद्ध 2. बौद्धभिक्षु 3. नास्तिक, द्भव, सूत्रम् शिव लिंग के स्नान का जल निकलने पाखंडी, अविश्वासी, कम् अविश्वास, पाखंडधर्म, की नाली, प्रदक्षिणा शिवलिंग की इस तरह परिक्रमा | नास्तिकता, अनीश्वरवाद / करना कि नाली लांघनी न पड़े। सौगन्ध (वि०) (स्त्री०-धी) [सुगन्ध-+ अण्] मधुरगन्धसोमन् (पु.) [सु-मनिन् | चन्द्रमा / युक्त, सुगन्धित, धम् 1. मधुरगन्धता, सुवास 2. एक सोमिन् (वि.) (स्त्री० -नी) [सोम+इनि] सोमयज्ञ का प्रकार का सुगन्धित तृण, कत्तृण / / _ अनुष्ठान करने वाला,-(पुं०) सोमयज्ञ का अनुष्ठाता। सौगन्धिक (वि.) (स्त्री०-का--की) [सुगन्ध+ठन] सोम्य (वि०) सोम+यत्] 1. सोम के योग्य 2. सोम मधुरगन्ध वाला, सुगन्धित, - कः 1. गन्ध द्रव्यों का की आहुति देने वाला 3. आकृति में सोम से मिलता- विक्रेता, गन्धी 2. गन्धक,-कम् 1. सफेद कुमद जुलता 4. मृदु, सुशील, मिलनसार / 2. नील कमल 3. एक प्रकार का सुगन्धित घास, सोल्लुण्ठः, सोल्लुण्ठनम् [उल्लुण्ठेन उल्लण्ठनेन वा सह-ब० कत्तृण 4. लाल। स०] व्यंग्य, ताना, चुटकी, ठम, नम (अव्य०) सौगन्ध्यम् [सुगन्ध ष्यन] गन्धमाधुर्य, सुगन्ध, सुवास। व्यंग्यपूर्वक, ताने के साथ-उत्तर० 5 / सौचिः, सौचिकः [सूचि+इञ , ठञ् ] दर्जी-- मन 4 / 214 सोष्मन् (वि०) [सह उष्मणा ब० स०] 1. गरम, तप्त | पर कुल्लक / 2. (व्या० में) ऊष्मा युक्त (पुं०) ऊष्मवर्ण / सौजन्यम् सुजन-+प्यञ] 1. नेकी, कृपालुता, भलाई सौकर (वि.) (स्त्री० री) [सकर+अण] सूअरसंबंधी, ! ... उत्तर० 3 / 13, मृच्छ० 8 / 38 2. महिमा, उदारता __ सूअर का कि० 12153 / 3. कृपा, करुणा, अनुकम्पा 4. मित्रता, सौहार्द, प्रेम / सौकर्यम् [सू (सु) कर+ष्य] 1. सूअरपना 2. आसानी, / सौण्डी [शुण्डा तदाकारोऽस्ति अस्याः .. शुण्डा+अण्+ डीप, सुविधा --सौकर्य च कार्यस्यानायासेन सिद्धया सांग- | पृषो०] गजपीपल। सिद्धया च बोध्यम 3. क्रियात्मकता, सुकरता 4. निपु- | सौतिः [सूत इञ ] कर्ण का नामान्तर / णता, कुशलता 5. किसी भोज्यपदार्थ या औषधि की सौत्यम् सूत+ष्यज] सारथि का पद,-नल०४।९। सरल तैयारी। सौत्र (वि.) (स्त्री०-त्री) सूत्र---अण] 1. धागे या सौकुमार्यम् [सुकुमार+ष्या] 1. मृदुता, सुकुमारता, डोरी से संबंध रखने वाला 2. सूत्रसंबंधी, सूत्र में कोमलता--शिरीषपुष्पाधिकसौकुमार्यों बार तदीया वणित, सूत्र में निर्दिष्ट,-त्रः 1. ब्राह्मण 2. कृत्रिम विति मे वितकं: कु. 1141. 2. जवानी। धातु जो केवल सूत्रों में वर्णित है, नियमित धातुओं सौषम्यम् [सूक्ष्म+ष्या] बारी की, महीनपना, सूक्ष्मता। की भांति उसकी रूपरचना नहीं होती, यौगिक शब्दों सौखशायनिकः, सौखशायिकः [सुखशयनं पृच्छति-सुखशय के निर्माण में ही उसका उपयोग होता है। (न)+ठक्] वह पुरुष जो किसी पुरुष से उसके सौत्रान्तिकाः (पं० ब० व०) बौद्धों के चार सम्प्रदायों में सुखसूर्वक सोने की बात पूछे - भग्वादीननगणन्तं से एक, तु० 'सौगत'। सौखशायनिकानुषीन्-रघु० 10 / 14 / / सौत्रामणी (सुत्रामा इन्द्रो देवता अस्याः -सुत्रामन्+अण् सौखसुप्तिकः [सुखसुप्ति सुखेन शयनं पृच्छति-ठञ ] 1. किसी | +की पूर्वदिशा चकोरनयनारुणा भवति दिक अन्य पुरुष से सुखपूर्वक सोने का हाल पूछने वाला | च सौत्रामणी विद्ध०४१। 2. चारण, भाट, बन्दी (इसका कार्य राजा या अत्यंत | सौदर्यम् (नपुं०) [सोदर+ष्य ] भ्रातृत्व, भाईपना / समद्धिशाली व्यक्ति को स्तुतिपाठ द्वारा जगाने का | सौदामनी) [सुदामा पर्बतभेदः तेन एका दिक, सुदामन् होता है)। सौदामिनी +अण्- डीप, पक्षे पृषो० साधुः] बिजली, सौखिक (वि०) (स्त्री० की), सौखीय (वि.) (स्त्री० | सौदाम्नी )-सौदामन्या कनक निकषस्निग्धया दर्शयोर्वीम -यो) [सुख+ठक, छण वा सुखसम्बन्धी, आनन्द- --मेघ० 39, सौदामिनीव जलदोदर संधिलीना दायक, हर्षप्रद / -- मृच्छ० 1135 / 142 For Private and Personal Use Only Page #1139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौदायिक (वि.) (स्त्री०-की। [सुदाय+ठा] स्त्रीधन, | सौभद्रः, सौभद्रेयः [सुभद्रा+अण, ढक वा] सुभद्रा के पुत्र कन्या के विवाह के अवसर पर जो धन उसके माता अभिमन्यु का विशेषण। पिता या संबंधियों द्वारा उसे दिया जाता है, और सौभागिनेयः [सुभगा+ढ़क, इनङ, द्विपदवृद्धि] सबसे प्रिय जो उसकी निजी संपत्ति हो जाता है, कम् दाज | पत्नी का पुत्र / या दहेजसम्बन्धी। सौभाग्यम् [सुभगायाः सुभगस्य वा भावः-व्यय, द्विपदसौष (वि०) (स्त्री०-धी} [सुघया निर्मितं रक्तं वा अण्] वृद्धिः] 1. अच्छा भाग्य, अच्छी किस्मत, सौभाग्य 1. अमृतमय, अमृतसम्बन्धी 2. पलस्तर से युक्त, या शालिता (मुख्यतः इसमें पति-पत्नी का पारस्परिक चूने से पुता हुआ,-धम् 1. वह भवन जिसमें सफ़ेदी अनुग्रह प्राप्त करना, तथा एक दूसरे के प्रति दृढ़ की हुई है, सुधालिप्त, पलस्तरदार 2. विशालभवन, भक्ति का होना पाया जाता है)-प्रियेषु सौभाग्यफला महल, बड़ी हवेली सौधवासमटजेन विस्मत: संचि- हि चारुता - कु. 5 / 1, सौभाग्यं ते सुभग विरहाकाय फलनिःस्पृहस्तपः--रघु० 19 / 2, 7 / 5, 1340 वस्थया व्यञ्जयन्ती-मेष. 29, (दोनों स्थानों में 3. चाँदी 4. दूधिया पत्थर। सम०-कार: 1. पलस्तर ! 'सौभाग्य' शब्द पर मल्लि. के टिप्पण देखें) 2. स्वर्गीय करने वाला 2. मकान बनाने वाला,- वासः महल सुख, माङ्गलिकता 3. सौन्दर्य लावण्य, लालित्य; जैसा भवन / -(यस्य) हिमं न सौभाग्यविलोपि जातम्--कु० 113, सौन (वि०) (स्त्री०-नी) सूिना+अण] कसाईपने या 2 / 53, 5 / 49, रघु० 18 / 19, उत्तर० 627 कसाईखाने से सम्बन्ध रखने वाला,--नम् कसाई के 4. शोभा, उदात्तता 5. अहिवात (विप० वैधव्य) घर का मांस / सम० धर्म्यम् घोर शत्रुता की 6. बधाई, मंगलकामना 7. सिंदूर 8. सुहागा। सम० अवस्था। --चिह्नम् 1. अच्छे भाग्य का चिह्न, अच्छी किस्मत सौनन्दम् [सुनन्द+अण्] बलराम का मूसल। का चिह्न 2. अहिवात का चिह्न (जैसे कि मस्तक सौनन्दिन् (पुं० [सौनन्द+इनि बलराम का विशेषण / पर सिंदूर का तिलक),-सन्तुः (वह सूत्र जो सौनिकः [सूना-ठण्] कसाई, तु० 'शोनिकः / विवाह में वर द्वारा कन्या के गले में बांधा जाता है सौन्दर्यम् [सुन्दर+व्या] सुन्दरता, मनोहरता, लावण्य, / और जिसे स्त्री विधवा होने तक पहनती है) विवाहलालित्य-सौन्दर्यसारसमुदायनिकेतनं वा-मा० 1121, सूत्र, मंगलसूत्र,-तृतीया भाद्रशुक्ल-तृतीया, हरिकु० 1342, 5 / 41 / तालिका, तीज,-देवता शुभदेवता, या अभिभावक सौपर्णम् [सुपर्ण+अण्] 1. सूखा अदरक, सौंठ 2. मरकत / ! देवता,--बायनम् मिष्टान्न का शुभ उपहार या चढ़ावा। सौपर्णेयः [सुपाः विनतायाः अपत्यम् -- सुपर्णी+ढक] सौभाग्यवत् (वि.) [सौभाग्य+मतप] भाग्यशाली, शुभ, गरुड का विशेषण। -ती विवाहित स्त्री जिसका पति जीवित है, विवाहित सौप्तिक (वि.) (स्त्री० की) [सुप्ति+ठक्] 1. निद्रा- सघवा स्त्री। सम्बन्धी 2. निद्राजनक, कम रात का आक्रमण, सोते सौभिकः [सौभं कामचारिपुरं तन्निर्माणं शीलमस्य-शोभ हए पर हमला। सम-पर्वन् (नपुं०) महाभारत +ठक्] जादूगर, ऐन्द्रजालिक / का दसवाँ पर्व जिसमें वर्णन किया गया है कि अश्व- सौभ्रात्रम् [सुभ्रातृ+ अण्] अच्छा भ्रातृभाव, भाईचारा, त्थामा, कृतवर्मा, कृप और कौरवसेना के बचे हुए। बंधुता-सौभ्रात्रमेषां हि कुलानुसारि - धु० 1611, योद्धाओं ने रात को पांडवशिविर पर आक्रमण 1081 / कर हजारों सोते हुए सैनिकों को मौत के घाट उतार सौमनस (वि.) (स्त्री० सा, सी) [सुमनस्+अण] दिया,-वधः (उपर्यक्त) पांडवशिविर के सैनिकों 1. भावनानुकूल, सुखद 2. फूलसंबंधी, पुष्पीय, सम् का रात में संहार मार्गो ह्येष नरेन्द्रसौप्तिकवधे पूर्व ___1. कृपालुता, उदारता, कृपा 2. आनन्द, सन्तोष / कृतो द्रौणिना - मृच्छ० 3 / 11 / सौमनसा [सौमनस+टाप्] जायफल का छिल्का / सौबलः [सुबल+अण] शकुनि का नामान्तर / सौमनस्यम् [सुमनस्-+-व्यञ] 1. मन का संतोष, आनन्द, सौबली, सौबलेयी [सौबल / डीप, सुबला-1-ढक्-+डीप्] ! प्रसन्नता-रघु० 15 / 14, 17140 2. श्राद्ध के अवधृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी। सर पर ब्राह्मण को दिया गया फूलों का उपहार / सौभम् [सुष्ठु सर्वत्र लोके भाति--सु+भा+क+अण्] : सौमनस्यायनी [सौमनस्य+अय+ल्युट्+कीप्] मालती हरिश्चन्द्र का नगर (कहते हैं कि यह नगर अन्तरिक्ष लता की मंजरी। में लटक रहा है)। सोमायनः [सोम+फक्] बुद्ध का पितृपरक नाम / सौभगम् [सुभग+अण् ] 1. अच्छा भाग्य, सौभाग्य सौमिक (वि०) (स्त्री०-को) [सोम+ठक्] 1. सोमरस2. समृद्धि, धन, दौलत / ___ संबंधी, सोमरस से अनुष्ठित यज्ञ 2. चन्द्रमासम्बन्धी / For Private and Personal Use Only Page #1140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौमित्रः, सौमित्रः [सुमित्रा+अण, इन वा] लक्ष्मण का .... भम् 1, सुगन्ध भामि० 1218, 121 2. केसर, विशेषण .... सौमित्ररपि पत्रिणामविषये तत्र प्रिये क्वासि जाफरान / भोः--उत्तर० 3 / 45 / सौरभेय (वि०) (स्त्री०-पी) [ सुरभि ढक् ] सुरभि सौमिल्लः (पुं०) कालिदास का पूर्ववर्ती एक नाटककार | से सम्बद्ध,-यः बल। _ -भासकविसौमिल्लकविमिश्रादीनाम - मालवि०१। | सौरभी, सौरभेयी सौरभ डीप, सौरभेय+कीषा सौमेचकम् (नपुं०) सोना, स्वर्ण / 1. गाय 2. 'सुरभि' नामक गाय की पुत्री-ता सौरसौमेधिकः [सुमेधा-+-ठक्] मुनि, ऋषि, अलौकिक बुद्धि भेयी सुरभिर्यशोभिः-रघु० 2 / 3 / सम्पन्न / सौरभ्यम् [ सुरभि+व्या ] 1. सुगन्ध, खुशबू, मधुरसौमेलक (वि.) (स्त्री०-की) [सुमेरु+कञ्] सुमेरु गन्ध-सौरभ्यं भुवनत्रयेऽपि विदितम् भामि० 1138, संबंधी, सुमेरु से आया हुआ, या प्राप्त,-कम् ---सोना, | पुनाना सौरभ्यः .. गंगा० 43, रघु० 5 / 69 2.रोचस्वर्ण। कता, सौन्दर्य 3. सदाचरण, प्रसिद्धि, कीर्ति, ख्याति / सौम्य (वि.) (स्त्री०-म्या,--म्यो) (सोमो देवतास्य | सौरसेनाः (पुं०, ब०व०) एक प्रदेश और उसके अधि तस्येदं वा अण] 1. चंद्र संबंधी, चन्द्रमा के लिए पावन | वासियों का नाम,--नी दे० शौरसेनी / 2. सोम के गुणों से युक्त 3. सुन्दर, सुखद, रुचिकर ! सौरसेयः [ सुरसा + ढक् ] स्कन्द का विशेषण / 4. प्रिय, मदुल, कोमल, स्निग्ध-संरम्भं मैथिलीहासःक्षण- | सौरसैन्धव (वि०) (स्त्री०-वी) [सुरसिन्धु-+अण ] सौम्यां निनाय ताम्-रघु० 12 // 36, (इसके संबोधन का आकाशगंगा सम्बन्धी शि० 13127, H सूर्य रूप 'सौम्य' शब्द 'श्रीमान जी' 'सम्मान्य' 'भला मानस' | का घोड़ा। अर्थों को प्रकट करता है-प्रीतास्मि ते सौम्य चिराय सौराज्यम् [ सुराज्य+प्य ] अच्छा प्रशासन या राज्य जीव--रघु० 14.59, सौम्येति चाभाष्य यथार्थवादी - एको ययौ चत्ररथप्रदेशान् सौराज्यरम्यानपरो -14144, मेघ० 49, कु० 4135, मा० 9 / 25 5. शुभ विदर्भान्-रघु० 5 / 6 / / -म्यः 1. बुधग्रह 2. ब्राह्मण को सम्बोधित करने का सौराष्ट्र (वि.) (स्त्री०-ष्ट्रा, ष्ट्री) [सुराष्ट्र-+-अण् / समुचित विशेषण--आयुष्मान भव सौम्येति वाच्यो सौराष्ट्र (सूरत) नामक प्रदेश सम्बन्धी या वहाँ विप्रोऽभिवादने - मनु०२२१२५3. ब्राह्मण 4. गुलर से प्राप्त, ष्ट्रः सौराष्ट्र प्रदेश, (पुं० ब०व०) सौराष्ट्र का पेड़ 5. लाल होने से पूर्व की दशा में रुधिर, प्रदेश के अधिवासी,--ष्ट्रम पीतल, कांसा / लसीका, रक्तोदक 6. अन्नरस जो पेट में जाकर जीर्ण | सौराष्ट्रकः [सौराष्ट्र-कन् ] एक प्रकार का कांसा, होकर बनता है 7. पृथ्वी के नौ खण्डों में से एक, फल। ---(पुं० ब० व०) 1. मृगशिरा के पांच नक्षत्रों का | सौराष्ट्रिकम् [ सुराष्ट्र+ठक ] 1. एक प्रकार का जहर / पुंज 2. पितृवर्ग विशेष-मनु० 3 / 199 / सम०-उप- सौरिः [सूरस्यापत्यं पुमान् इञ ] 1. शनिग्रह का नाम चारः शान्त उपाय, मृदु चिकित्सा,-कृच्छः, -छम् 2. असन नामक वृक्ष / सम० रत्नम् एक प्रकार एक प्रकार की धर्म साधना--तु० याज्ञ० 31322, का रत्न, नीलम। ----गन्धी सफेद गुलाब, ग्रहः शान्त और शुभ ग्रह, | सौरिक (वि.) (स्त्री०-की) [सुर (रा) (सुर)+ठक] --धातुः कफ, श्लेष्मा, - नामन् (वि.) जिसका 1. स्वर्गीय, दिव्य 2. मदिरासम्बन्धी, आसवीय नाम श्रुतिमधुर हो, सुखद हो-मनु० 3 / 10, वारः, ---वासरः बुधवार / 2. स्वर्ग, वैकुण्ठ 3. कलाल, मदिरा बेचने वाला। सौर (वि.) (स्त्री०-री) [ सूर+अण ] 1. सूरज सौरी [ सौर+ङीष् ] सूर्य की पली। सम्बन्धी, सौर्य 2. सूर्य को अर्पित या पावन 3.स्व- | सोरोय (वि०) (स्त्री०-यो) [ सूर-छण ] 1. सर्य र्गीय, दिव्य 4. मदिरासम्बन्धी, र: 1. सूर्योपासक सम्बन्धी 2. सूर्य के योग्य, सूर्य के उपयुक्त। 2. शनिग्रह 3. सौर्य मास 4. सौर्य दिन 5. तुम्बुरु | सौर्य (वि०) (स्त्री०-यो) [सूर्य+अण्] सूर्य से सम्बन्ध नाम का पौधा,--रम् (ऋग्वेद से उद्धत) सूर्यसम्बन्धी रखने वाला, सूर्य का। मन्त्रों का समूह / सम० नक्तम् एक विशेष व्रत | सोलभ्यम् [सुलभ -- प्या] 1. प्राप्ति की सुविधा 2. सूकजो रविवार को किया जाय, मासः सौर्य मास रता, सुलभता, सुगमता / (जिसमें तीस बार सूर्य उदय हो और तीस ही बार सौल्विकः [सुल्व+ठक्] ताम्रकार, कसेरा। अस्त हो),-लोकः सूर्य लोक / सौव (वि.) (स्त्री०--थो) स्व (स्वर)+अण,] 1. अपनी, सौरयः [ सुरथ+अण् ] शूरवीर, योद्धा। निजी सम्पत्ति से सम्बन्ध रखने वाला 2. स्वर्गीय या सौरभ (वि०) (स्त्री-भी) [सुरभि+अण् ] सुगन्धित, स्वर्ग सम्बन्धी,-वम् आदेश, राजशासन / आसवीय पर+अण् ] 1. सूरज-सौर स्वर्ग, वैकुण्ठ 3. कला कर, शुल्क, For Private and Personal Use Only Page #1141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (( 1132 ) सौवग्रामिक (वि०) (स्त्री०-की) [स्वग्राम-|-ठक] अपने। -मृच्छ० 1 / 13, सखीजनस्ते किमु रूढसौहृदः निजी गांव से सम्बन्ध रखने वाल।। --विक्रम० 1110, मा० 1 / सौवर (वि०) (स्त्री० री) [स्वर+अण] 1. किसी सौहित्यम् [सुहित-+या। 1. तृप्ति, संतुष्टि--शि० ध्वनि या संगीत के स्वर से संबंध रखने वाला 5 / 62 2, पूर्णता, पूर्ति 3. कृपालुता, सद्भावना। 2. स्वरसम्बन्धी। / स्कन्द (म्वा० आ० स्कन्दते) 1. कूदना 2. उठाना 3. उडेसौवर्चल (वि.) (स्त्री०-ली) [सुवर्चल--अण] सुवर्चल लना, उगलना। नामक देश से प्राप्त,--लम् 1. सोंचर नमक 2. सज्जी / स्कन्द i (भ्वा० पर० स्कन्दति, स्कन्न) 1. उछलना, कुदना का खार, रेह। 2. उठाना, ऊपर की ओर उठना, ऊपर को उछलना सौवर्ण (वि०) (स्त्री० ii) [सुवर्ण-- अण्] 1. सुनहरी 3. गिरना, टपकना भट्रि० 22 / 11 4. फट जाना, 2. तोल में एक स्वर्णमुद्रा के बराबर / छलकना 5. नष्ट होना, समाप्त होना-चस्कन्दे तप सौवस्तिक (वि०) (स्त्री० को) [रवस्ति-+-ठक्] आशी- ऐश्वरम् 6. बिखर जाना, रिसना 7. उगलना, ढालना, दिात्मक, . . कः कुलपुरोहित, या ब्राह्मण / - प्रेर० (स्कन्दयति-ते) 1. उडेलना, फैलाना, ढालना, सौवाध्यायिक (वि.) (स्त्री०-की) [स्वाध्याय--ठक] उगलना (जैसे वीर्यस्खलन)-एकः शयीत सर्वत्र न रेत: स्वाध्यायसम्बन्धी, स्वाध्यायी। स्कन्दयेत् क्वचित्-मनु०२।१८०, 9 / 50 2. छोड़ देना, सौवास्तव (वि०) (स्त्री०-वी) [सुवास्तु |-अण्] अच्छे अवहेलना करना, पास से निकल जाना, अब-,आक्रस्थान पर निर्मित, अच्छी वासभूमि से युक्त / मण करना, धावा बोलना. आंधी की भांति गरजना सौविवः, सौविदल्लः [सु-|-विद्+क-|-अण्. सुष्ठ विदन्नुपः - पुरीमवस्कन्द लनीहि नन्दनम् शि०११५१, आ-, तं लाति-ला+क+-अण्] अन्तःपुर की रखवाली आक्रमण करना, धावा बोलना-आस्कन्दल्लक्ष्मणं पर नियुक्त व्यक्ति--शि० 5117 / बाणैरत्यक्रामच्च तं द्रतम्-भट्टि. 17182, परि , सौवीरम् |सूवीर+अण्] 1. बेर का फल 2. अंजन, सुरमा / इधर उधर उछलना-मेघनादः परिस्कन्दन् परिस्क 3. कांजी,-रः सुवीर देश या वहाँ का अधिवासी / न्दन्तमाश्वरिम् / अबध्नादपरिस्कन्दं ब्रह्मपाशेन विस्फ('अधिवासी' के अर्थ में ब०व०)। सम..-अञ्जनम् / रन् रन् भनिनादपरिस्कन्दं ब्रह्म भट्टि० 9 / 75, प्र-, 1. आगे को उछलना एक प्रकार का अंजन या सुरमा / 2. झपट्टा मारना, आक्रमण करना। सौवीरकः सौवीर+कन 1,बेरी, बेर का पेड़ 2. सूवीर ii (चुरा० उभ० स्कन्दयति-ते) एकत्र करना / देश का अधिवासी 3. जयद्रथ का नाम,---कम् जौ। स्कन्दः [स्कन्द-+अच] 1. उछलना 2. पारा 3. कार्तिकेय की कांजी। का नाम सेनानीनामहं स्कन्दः-- भग०१०।२४, रघु० सौवीर्यम सुवीर--व्या ] बड़ी शरवीरता या विक्रम / 2036, 711, मेघ० 43 4. शिव का नाम 5. शरीर सौशोल्यम् [सुशील-|-व्यञ्] स्वभाव की श्रेष्ठता, अच्छा 6. राजा 7. नदीतट 8. वतुर पुरुष / सम० पुराणम् नैतिक आचरण, सदाचरण / अठारह पुराणों में से एक,-षष्ठी (स्त्री०) चैत्र मास सौश्रवसम् [सुश्रवस+अण्] ख्याति, प्रसिद्धि। के छठे दिन कार्तिकेय के सम्मान में पर्व / सौष्ठवम सूष्ठ-- अण] 1. श्रेष्ठता, भलाई, सौन्दर्य, लालित्य, / स्कन्दकः [स्कन्द्+ण्वुल] 1. उछलने वाला 2. सैनिक / सर्वोपरि सौन्दर्य-सर्वाङ्गसौष्ठवाभिव्यक्तये विरल- स्कन्दनम् स्किंद --ल्युट] 1. क्षरण, बहना 2. रेचन, पेट का नेपथ्ययोः पात्रयोः प्रवेशोऽस्तु मालवि० 1, शरीर- : चलना, (आंतों की या नलों की) शिथिलता 3. जाना, सौष्ठवम् मा० 1117, "जिसके शरीर की काटछांट। हिलना-जुलना 4. सूखना 5. ठंडक पहुँचा कर रक्त या टीपटाप अच्छी न हो" 2. परमकौशल, चातुर्य का जमाना। 3. अधिकता 4. लचक, हल्कापन / / स्कन्ध (चुरा० उभ० स्कन्धयति-ते) एकत्र करना। सौस्नातिकः [सस्नात+ठक] स्नान मंगलकारी होने के , स्कन्धः | स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सूखेन शाखया वा कर्मणि सम्बन्ध में पूछने वाला-सौस्नातिको यस्य भवत्य- , घा , पृषो०] 1. कंधा 2. शरीर 3. वृक्ष का तना गस्त्यः -रघु०६।६१। --तीव्राघातप्रतिहततरुस्कन्धलग्नकदन्तः-श० 1134, सौहार्दः सुहृद् --अण] मित्र का पूत्र, -दम् हृदय की रघु०४१४७, मेघ० 53 4. शाखा या बड़ी डाली सरलता, स्नेह, सद्भाव, मैत्री (वेश्मानि) विश्राण्य 5. मानव-ज्ञान की कोई शाखा या विभाग 6. (किसी सौहार्द निधिः सुहृद्भ्यः ----रघु० 14/15, सौहार्दहृद्यानि पुस्तक. का) परिच्छेद, अध्याय, खण्ड 7. किसी विचेष्टितानि-मा० 114, मेघ० 115 / / सेना की टकड़ी 8. सैनिक समुच्चय, समूह 9. ज्ञानेमोडामसौहाम-धम [सहद-या, अणु वा, यत् वा न्द्रियों के पांच विषय 10. (बौद्ध दर्शन में) जीवन के मित्रता, स्नेह यत्सौहृदादपि जनाः शिथिलीभवन्ति / पाँच तत्त्वरूप-सर्वकार्यशरीरेषु मक्ताङ्गस्कन्धपञ्चकम For Private and Personal Use Only Page #1142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1133 ) शि० श२८ 11. संग्राम, लड़ाई 12. ताजा , स्कोटिका (स्त्री०) पक्षीविशेष / 13. करार 14. मार्ग, रास्ता 15. बुद्धिमान् या विद्वान् | स्खद् / भ्वा० आ० स्वदते) 1. काटना, काट कर टुकड़े पुरुप 16. कंकपक्षो, बगला / सम० आवारः 1. सेना टुकड़े करना 2. नष्ट करना 3. चोट पहुँचाना, या सेना की टुकड़ी 2. राजा का निवास, राजधानी क्षतिग्रस्त करना, मार डालना 4. परास्त करना, 3. शिविर, उपानेय (वि.) जो कंधे पर ढोया जाय, सर्वथा हरा देना 5. थकाना, श्रांत करना कष्ट देना शान्ति बनाये रखने के लिए की जाने वाली संधि 6. दृढ़ करना / जिसमें अधीनता के चिह्न स्वरूप कोई फल या धान्य स्वदनम् स्खिद् + ल्युट] 1. काटना, काटकर टुकड़े-टुकड़े उपहार में दिया जाय, - चापः बहंगी, तू० शिक्य / करना 2. चोट पहुँचाना. क्षतिग्रस्त करना, मार / तरः नारियल का पेड़, -देशः कंध, इदमपहित- डालना 3. कष्ट देना, दुःखी करना / सूक्ष्मग्रन्थिना स्कन्धदेशे-श० 1118, परिनिर्वाणम् स्खल (भ्वा० पर० स्खलति) 1. लड़खड़ाना, औंध मुंह शरीर के स्कंधों (पांचों तत्त्वों) का पूर्ण लोप या गिरना, नीचे गिरना, फिसलना, डगमगाना-स्खलति नाश (बौद्ध०),--फल: 1. नारियल का पेड़ 2. बेल चरणं भूमौ न्यस्तं न चातमा मही-मच्छ० 9 / 13, का वृक्ष 3. गूलर का पेड़, बंधना एक प्रकार का 5 / 24 2. डगमगाना, लहराना, थरथराना, डगमग सोया, मेथी,-मल्लकः कंकपक्षी, बगला,--रुहः वटवृक्ष, होना 3. आज्ञा भंग किया जाना, उल्लंधित होना वाहः,...वाहकः बोझा ढोने के लिए सधाया हुआ (किसी आदेश का)--- मुद्रा० 3 / 25, रघु० 18143 बैल, लद् बैल,--शाखा पेड़ की मुख्य शाखा जो वृक्ष 4. सन्मार्ग से च्युत होना-कि० 9.37 5. ग्रस्त के तने से निकले,-शृङ्गः भैस, स्कन्धः प्रत्येक कंधा। होना, उत्तेजित होना - कि० 3153, 1315 6. त्रुटि स्कन्धस् (नपुं०) [स्कन्ध+असुन्, पृषो०] 1. कंधा 2. वृक्ष करना, बड़ी भूल करना, गलती करना सवलतो का तना। हि करालम्बः सुहृत्सचिवचेष्टितम् हि० 3 / 134, स्कन्धिकः [स्कन्ध ठन्] बोझा ढोने के लिए सधाया हुआ (यहाँ यह 'प्रथम' अर्थ को भी प्रकट करता है) बैल, तु० 'स्कन्धवाह। 7. हकलाना, तुतलाना, रुक-रुक कर बोलना.....बदनस्कन्धिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [स्कन्ध+इनि| 1. कंधों कमलकं शिशोः स्मरामि स्खलदसमञ्जसमजुजल्पितं वाला 2. डालियों वाला, तने वाला, (पु.) वक्ष / ते-उत्तर० 4 / 4, रघु०९/७६, कु० 5 / 56 8. विफल स्कन्न (भू० क० कृ०) [स्कन्द्+क्त] 1. पतित, नीचे गिरा होना, कोई प्रभाव न होना... रघु० 11483 9. बूंद हुआ, उतरा हुआ 2. रिसा हुआ, बूंद बूंद टपका हुआ बंद गिरना, टपकना, चूना 10. जाना, हिलना-जुलना 3. उगला हुआ, फैलाया हुआ, छिड़का हुआ 4. गया 11. ओझल होना 12. एकत्र करना, इकट्ठा करना हुआ 5. सूखा हुआ। -प्रेर० (स्खलयति-ते) 1. लड़खड़ाने का कारण बनना, स्कम्भ (भ्वा० आ०, स्वा० ऋया. स्कम्भते, स्कभ्नोति, 2. त्रुटि या भूल कराना, डगमगाने या दावांडोल स्कभ्नाति) 1. रचना 2. रोकना, रुकावट डालना, होने का कारण बनना-- बचनानि स्खलयन पदे पदे वाधा डालना, अवरोध करना, दवाना, नियन्त्रित -कु०४।१२, स्खलयति वचनं ते संश्रयत्यङ्गमङ्गम्-मा० करना —प्रेर० (स्कम्भयति-ते या स्कभयति-ते, वि,- 328, प्र-, धक्कमधक्का होना-रथा: प्रचस्खलतूबाधा डालना, अवरोध करना / श्चाश्वाः भट्टि० 14 / 98, वि- , गलती करना, स्कम्भः [स्कन्भ+घञ] 1. सहारा, थूणी, टेक 2. आलंब / बड़ी भूल करना रघु० 19 / 24 / / आधार 3. परमेश्वर / स्खलनम् [स्वल् + ल्युट्] 1. लड़खड़ाना, फिसलना, डगस्कम्भनम् स्किम्भ् / ल्युट | सहारा देने की क्रिया, सहारा, मगाना, नीचे गिर पड़ना 2. डगमगाते हुए चलना थूणी, टेक। 3. सन्मार्ग से विचलन 4. भारी भूल, टि, गलती स्कान्द (वि.) (स्त्री० ---दी) स्किन्द+अणु] 1. स्कन्द- 3. विफलता, निराशा, असफलता 6. हकलाना, बोलने सम्बन्धी 2, शिवसम्बन्धी, ..दम स्कन्द पुराण / / में भल या उच्चारण में अशुद्धि, रुक रुक कर बोलना स्कु (स्वा० ऋचा० उभ० स्कुनोति, स्कुनुते, स्कुनाति, | 7. चूना, टपकना 8. टकराना, उलझना-उत्तर० स्कुनीते) 1. कूद कर चलना, उछलना, चौकड़ी भरना / 20, महावीर० 5 / 40 9. आपस में घिसना, 2. उठाना, उद्वहन करना 3. ढकना, ऊपर बिछा देना रगड़ना। - भट्टि० 17 / 32 . पहुँचना, अति , ढांपना | स्खलित (भू० क० कृ०) (स्खल--क्त] 1. लड़खड़ाया, ... भट्टि० 1873 / फिसला, डगमगाया 2. गिरा, पड़ा 3. थरथराने वाला, स्कुन्द (भ्वा० आ० स्कुन्दते) 1. कूदना 2. उद्वहन करना, लहराने वाला, घटबढ़ होने वाला, अस्थिर 4. नशे उठाना। में चूर, पियक्कड़ 5. हकलाने वाला, रुक रुक कर For Private and Personal Use Only Page #1143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1134 ) बोलने वाला 6. विक्षब्ध, बाधित 7. ऋटि करने वाला, तवाशायी परिवृत्तभाग्यया मया न दृष्टस्तनयः स्तनबड़ी भूल करने वाला 8. गिरा हुआ, उदगीर्ण 9. टपकने वयः .. मा० 1016, - यः शिशु, दुधमुंहा बच्चा वाला, चू कर नीचे गिरने वाला 10. हस्तक्षेप किया | --. रघु० 14 / 78, शि० 12140 / गया, रोका हुआ 11. व्याकुल 12. बीता हुआ, तम् स्तनयित्नुः [स्तन्+इत्नु ] 1. गरजना, गड़गड़ाना, बादलों 1. लड़खड़ाना, डगमगाना, गिरना 2. सन्मार्ग से विच- का कड़कड़ाना 2. बादल उत्तर० 37, 5 / 8 लन 3. त्रुटि, भूल, गलती, गोत्रस्खलित - कु० 418 3. बिजली 4. रोग, बीमारी 5. मृत्यु 6. एक प्रकार 4. दोष, पाप, अतिक्रमण 5. धोखा, विश्वासघात का घास / 6. झाँसा, कुटचाल / सम० --सुभगम् ( अव्य० ) | स्तनित (भू० क० कृ०) [ स्तन् कर्तरि क्त ] 1. ध्वनित, आकर्षक रीति से चले चलना-मेघ०२८ / शब्दायमान, कोलाहलमय- मेघ० 28 2. गरजने रखुइ (तुदा० पर० स्खुडति) ढकना। वाला, दहाड़ने वाला, तम् 1. बिजली की कड़कड़ास्तक (भ्वा० पर० स्तकति) 1. मुकाबला करना 2. टक्कर हट, बादलों की गरज तोयोत्सर्गस्तनितमखरो मास्म लेना, प्रतिरोध करना, पीछे ढकेलना। भूविक्लवास्ताः मेघ० 37 2. गरज, शोर 3. ताली स्तन (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० स्तनति, स्तनयति-ते, बजाने की आवाज़। स्तनित) 1. आवाज़ करना, शब्द करना, गुंजना, | स्तन्यम् [ स्तने भवं यत् ] मां का दूध, क्षीर-पिब स्तन्यं प्रतिध्वनि करना 2. कराहना, कठिनाई से सांस लेना, पोत भामि० श६० / सम० त्यागः मां का दूध ऊँचा सांस लेना 3. गरजना, दहाड़ना तस्तनुर्जज्व- छुड़ाना, स्तन्यमोचन स्तन्यत्यागात्प्रभृति सुमुखी लुर्मम्लुर्जलललुठिरे क्षताः भट्टि० 14130, नि, दन्तपाञ्चालिकेव मा० 105, स्तन्यत्यागं यावत्पुत्र1. शब्द करना 2. आह भरना 3. विलाप करना, योरवेक्षस्व * उत्तर० 7 / वि ,दहाड़ना। स्तबकः [स्तु+बुन् या स्था+अवक, पृषो० बवयोरभेदः ] स्तनः [ स्तन् --- अच् ] 1. स्त्री की छाती-स्तनौ मांस- गुच्छा, झुण्ड कुसुमस्तबकस्येव द्वे गती स्तो मनस्वि ग्रन्थी कनककलशावित्युपमितौ-भर्त० 3320, (दरि- नाम्- भर्तृ० 21104, रघु० 13332, मेघ० 75, द्राणां मनोरथाः) हृदयेष्वेव लीयन्ते विधवास्त्रीस्त- | कु० 3139 / नाविव पंच० 2 / 91 2. छाती, किसी भी मादा की | स्तब्ध (भू० क० कृ०) [ स्तम्भ कर्मणि कर्तरि वा क्त ] औड़ी या चुचुक-अर्धपीतस्तनं मातुरामर्द क्लिष्टकेशरम् 1. रोका हुआ, घेराबन्दी किया हुआ, अवरुद्ध 2. लकवे श० 7.14 / सम० अंशकम् स्तन ढकने का कपड़ा, से ग्रस्त, संज्ञाहीन, सुन्न, जड़ीकृत 3. गतिहीन, स्था---अग्रः चूची, --अङ्गरागः स्त्री के स्तनों पर लगाया वर, अचल 4. स्थिर, दृढ़, कड़ा, घोर, कठोर 5. ढीठ, जाने वाला रंग, अन्तरम् 1. हृदय 2. दोनों स्तनों के अडिग, कठोरहदय, निष्ठर 6. उजड़, मोटा। सम. बीच का स्थान--(न) मणाल सूत्रं रचितं स्तनान्तरे कर्ण (वि.) जिसके कान खड़े हों, रोमन् (पुं०) श० 617, रघु० 10 // 62 3. स्तन का एक चिह्न सूअर, वराह,-लोचन (वि.) जिसकी पलकें न (जो भावी वैधव्य का सूचक कहा जाता है),-आभोगः झपकती हों (जैसे देवता)। 1. स्तनों की पूर्णता या फैलाव 2. चुचियों की गोलाई | स्तब्धता,-स्वम् [स्तब्ध+तल+टाप, त्व वा | अनम्यता, 3. वह पुरुष जिसके स्त्रियों जैसे बड़े स्तन हों,-तटः, दृढ़ता, कड़ाई 2. जाड्य, असंवेद्यता। --टम् चूचियों का ढलान, प,-पा, पायक, स्तब्धिः (स्त्री०) [ स्तम्भ+क्तिन् ] 1. स्थिरता, कड़ा--पायिन् स्तन पान करने वाला, दुधमुंहा,--पानम् पन, सख्ती, अनम्यता 2. दृढ़ता, अचलता 3. जाडच, स्तनपान करना, भरः 1. स्तनों की स्थूलता,-पादा- असंवेद्यत, जड़ता 4. धृष्टता / ग्रस्थितया मुहुः स्तनभरेणानीतया नम्रताम् - रत्न स्तभ दे० 'स्तम्भ'। 11 2. स्त्री जैसे स्तनों वाला पुरुष, * भवः एक | स्तभः (पं०) बकरा, मेढा / प्रकार का रतिबन्ध,--मुखम्, - वृतम्,-शिखा चूचुक, | स्तभ (नप) - स्तम्भन / चची। स्तम् (म्वा० पर० स्तमति) घबरा जाना, व्याकुल होना। स्तननम् [ स्तन्+ल्युट ] 1. ध्वनन, आवाज, कोलाहल स्तम्बः [स्था+अम्बच् किच्च, पृषो०] 1. घास का पुंज 2. दहाड़ना, गरजना, (बादलों का) गड़गड़ाना -- रघु०५।१५ 2. अनाज के पौधों की पुली जैसा 3. कराहना 4. कठिनाई से साँस लेना। कि 'स्तम्बकरिता' में 3. झुंड, पुंज, गुच्छा.... उत्तर स्तनन्धय (वि.) [स्तनं घयति-धे+खश्, मुम् च] 2 / 29, रघु० 15319 4. झाड़ी, झुरमुट 5. गुल्म, स्तन्यपान करने वाला -यदि बुध्यते हरिशिशः स्तन- प्रकांड रहित झाड़ी 6. हाथी बांधने का खंटा 7. खंभा न्धयो भविता करेणपरिशेषिता मही भामि० 1153, | 8. जड़ता, असंवेद्यता (इन दो अर्थों में 'स्तम्भ') For Private and Personal Use Only Page #1144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1135 ) 9. पहाड़ / सम०-करि (वि०) पुलियाँ बनाने / नम्----उत्तर० 4 4. दृढ़ या अटल करना, भग० वाला, भरोटा बनाने वाला, (रिः) अनाज, धान्य, 3143, समव , 1. सहारा देना, टेक लगाना .... करिता पूला या मुट्ठा बनना, प्रचुर या पुष्कल 2. सांत्वना देना, प्रोत्साहित करना। मात्रा में विकास--न शाले: स्तम्बकरिता वप्पूर्गणमपे स्तम्भः [स्तम्भ ---अच् ] 1. स्थिरता, कड़ापन, सख्ती, क्षते-मुद्रा० 113, घनः 1. खुर्पा (जिससे घास के अटलता रम्भा स्तम्भं भजति-विक्रम० 18 / 29, गुच्छे निराये जाय) 2. (धान्य काटने के लिए) गात्रस्तम्भः स्तनमकूलयोरुत्प्रबन्धःप्रकम्प:-- मा०२१५, दरांती 3. तिन्नी धान एकत्र करने की टोकरी, - हनः तत्संकल्पोपहितजडिमस्तम्भमभ्येति गात्रम् --1 / 35, दरांती, खुर्पा। 4 / 2 2. असंवेद्यता, जडता, जाड्य, अनम्यता, लकवा स्तम्बेरमः स्तम्बे वृक्षादीनां काण्डे गुल्मे गच्छे वा रमते रम् 3. रोक, अवरोध, रुकावट-सोऽपश्यत्प्रणिधानेन +अच्, अलक स०] हाथी -स्तम्बरमा मुखरशृङ्ख सन्ततेः स्तम्भकारणम्-रघु० 1179, वाकस्तम्भ लकर्षिणस्ते -रघु० 5 / 82, शि० 5 / 34 / नाटयति मा०८ 4. नियंत्रित करना, दमन करना, स्तम्भ (भ्वा० आ०, स्वा० ऋया० पर० स्तम्भते, दबाना---कृतश्चित्तस्तम्भः प्रतिहतधियामजलिरपि स्तम्भोति, स्तम्नाति, स्तम्भित, स्तब्ध; इकारान्त -भतृ० 3 / 6 5. टेक, सहारा, आलंब 6. स्थूण, खंभा, उकारान्त उपसर्गों के पश्चात् तथा अव के पश्चात् पोल 7. प्रकांड, (वृक्ष का) तना 8. मूढ़ता, जड़ता धातु के स् को ष हो जाता है ) 1. रोकना, बाधा 9. भावशून्यता, अनुत्तेजनीयता 10. किसी अलौकिक डालना, पकड़ना, दबाना—कण्ठः स्तम्भितबाष्पवत्ति- शक्ति या जादू से भावना या शक्ति का दमन करना / कलुषः--श० 4 / 5 2. दृढ़ करना, कड़ा करना, सम०--उत्कीर्ण किसी लकड़ी में खोद कर बनाई गई अचल बनाना 3. जड़ बनाना, शक्तिहीन करना, (मूर्ति), गर ( वि० ) 1. गतिहीन करने वाला, अनम्य बनाना . प्राणा दध्वंसिरे गात्रं तस्तम्भे च जड़ता लाने वाला 2. रोकने वाला, (रः) बाड़, हते प्रिये भट्रि० 14155 4.टेक लगाना, सहारा -- कारणम् अवरोध या रुकावट का कारण,--पूजा देना, थामना, संभाले रखना 5. कड़ा होना, सख्त विवाह आदि के अवसर पर बनाए गए अस्थायी मंडपों होना, अटल होना 6. घमंडी होना, उन्नत होना, के स्तम्भों की पूजा। सीधी गर्दन वाला होना, (निम्नांकित श्लोक में स्तम्भकिन् (पुं०) चर्ममंडित एक वाद्ययंत्र / धातु के विभिन्न रूप दर्शाये गए है - स्तम्भते पुरुषः स्तम्भनम् [स्तम्भ+ ल्युट्] 1. रोकना, अवरोध करना, रुकाप्रायो यौवनेन धनेन च / न स्तम्नाति क्षितीशोऽपि न वट डालना, गिरफ्तार करना, दबाना, नियंत्रित स्तम्नोति युवाप्यसौ ॥)-प्रेर० (स्तम्भयति ते) करना ... लोलोल्लोलक्षुभितकरणोज्जम्भणस्तम्भनार्थम् 1. रोकना, पकड़ना 2. दृढ़ या कड़ा करना 3. गति- -उत्तर० 3 / 36 2. गतिहीन होना, अकड़ाहट, जड़ता हीन करना 4.टेक लगाना, सहारा देना। सम० 3. शान्त होना, स्वस्थचित्तता' पंच० 11360 4. दृढ़ अव-, 1. झुकना, निर्भर होना प्रकृति स्वामव- या कड़ा करना, दृढ़ता पूर्वक जमाना 5. टेक देना, ष्टभ्य-भग० 918 2. अवरुद्ध करना 3. सहारा सहारा देना 6. रुधिर प्रवाह को रोकना 7. कोई भी देना, टेक लगाना 4. थामना, कोली भरना, आलिंगन चीज़ जो रक्तस्रावरोधक हो 8. (मंत्रादि के द्वारा) करना 5. लपेटना, लिफ़ाफ़े में रखना 6. बाधा किसी की शक्ति कुंठित करना-दे० स्तंभ (१०),-नः डालना, रोकना, पकड़ना, प्रतिबद्ध करना, उद्-., कामदेव के पाँच बाणों में से एक / 1. रोकना, रुकावट डालना, पकड़ना 2. सहारा देना, स्तर (वि.) [स्तृ (स्त)+घञ] फैलाने वाला, विस्तार टेक लगाना, थामे रखना, उप-, नि--, रोकना __ करने वाला, ढकने वाला, र: 1. कोई भी विछाई गिरफ्तार करना, पर्यव -, घेरना, पर्यबष्टभ्यतामेत- हुई चीज, रहा, तह, परत 2. शय्या, पलंग। करालायतनम् -मा० 5, वि .., 1. रोकना, | स्तरणम स्तुि (स्तु)+ल्यूट] फैलाने की क्रिया, बिखेरना, 2. जमाना, पौधा लगाना, आश्रित होना-अत्यच्छिते छितराना आदि। मन्त्रिणि पार्थिवे च विष्टभ्य पादावुपतिष्ठते श्रीः | स्तरि (री) मन् (0) [तृ+ इ (ई) मनिच्] शय्या, -मुद्रा० 4 / 13, सम् --, (प्रेर० भी) 1. रोकना, पलंग। प्रतिबद्ध करना, नियंत्रण करना-प्रयत्नसंस्तम्भित- | स्तरी [स्त कर्मणि ई] 1. धुआँ, बाष्प 2. बछिया 3. बांझ विक्रियाणां कथंचिदीशा मनसां बभूवुः कु० 3134 | | गाय / 2. गतिहीन करना, अनम्य करना कु० 3173 / स्तवः [स्तु+अप्] 1. प्रशंसा करना, विख्यात करना, स्तुति 3. हिम्मत बाँधना, साहस करना, प्रसन्न होना, करना 2. प्रशंसा, स्तुति, स्तोत्र / स्वस्थचित करना, सचेत होना-देवि संस्तम्भयात्मा- स्तबक (वि०) (स्त्री०--विका) [स्तु+वन्] प्रशंसक, For Private and Personal Use Only Page #1145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तोता,-क: 1. स्तुति कर्ता, प्रशंसा, स्तुति 3. मंजरियों | स्तुकः (0) वालों की चोटी, ग्रंथि या मीढी / का गुच्छा 4. फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, गजरा, कुसुम- | स्तुका | स्तुक --टाप् ] 1. बालों को ग्रंथि या मीढी 2. सांड स्तवक है. किसी पुस्तक का परिच्छेद, या अनुभाग के दोनों सींगो के बीच के धुंघराले बालों का गुच्छा 6. समुच्चय-तु० 'स्तबक' भी। 3. कुल्हा, जंघा। स्तवनम् [स्तु+ल्युट्] 1. प्रशंसा करना, सराहना 2. सूक्त। स्तुच् (भ्वा० आ० स्तोचते) 1. उज्ज्वल होना; चमकना, स्तावः [स्तु-+ण्वुल] प्रशंसा, स्तुति। निर्मल स्वच्छ होना 2. मंगलप्रद या शुभ या सुखद स्तावकः [स्तु+ण्वुल] प्रशंसक, स्तोता, चापलूस / होना। स्तिष (स्वा० आ० स्तिघ्नते) 1. चढना 2. धावा बोलना | स्तुत (भू० क० कृ०) [स्तु + क्त ] 1. प्रशंसा किया 3. रिसना। गया, प्रशस्त, स्तुति किया गया 2. खुशामद स्तिप् (भ्वा० आ० स्तेपते) रिसना, बूंद-बूंद टपकना, किया गया। झरना। स्तुतिः (स्त्री.) [स्तु +-क्तिन् ] 1. प्रशंसा, गुणकीर्तन, स्तिभिः स्तम्भ- इन्, इत्वम्] 1. रुकावट, अवरोध सराहना, इलाघा स्तुतिभ्यो व्यतिरिच्यन्ते दूराणि ___2. समुद्र, 3. गुल्म, गुच्छा, पुंज। चरितानि ते रघु० 10130 2. प्रशंसाकारक सूक्त, स्तिम, स्तीम् (दिवा० पर० स्तिम्यति स्तीम्थति) 1. गीला स्तोत्र . रघु० 416 3. चापलसी, खुशामद, झूठी या तर होना 2. स्थिर या अटल होना, कड़ा होना / प्रशंसा--भूतार्थव्याहृतिः सा हि नः स्तुतिः परमेष्ठिनः स्तिमित (वि.) [स्तिम् कर्तरि क्तः] 1. गीला, तर 2. (क) ----रघु० 10133 4. दुर्गा का नाम / सम०.-गीतम् निश्चल, निश्चेष्ट, शान्त क्षभितमत्कलिकातरलं मनः स्तुतिगान, सूक्त, कीर्तिगान, पदम् प्रशंसा की वस्तु, पय इव स्तिमितस्य महोदधेः-मा० 3 / 10, (ख) --पाठकः कीतिगायक, प्रशस्तिवाचक, भाट, चारण, जमाया हुआ, कठोर, अटल, गतिहीन, स्थिर-वाच- संदेशवाहक, वादः प्रशंसायक्त भाषण, स्तोत्र, व्रतः स्पतिः सन्नपि सोऽष्टमतौं रवाशास्यचिन्तास्तिमितो भाट / बभूव कु० 7/87, 2059, मा० 1127, रघु० / स्तुत्य (वि.) [स्तु-- क्यप् ] इलाध्य, प्रशंसनीय, सरा२२, 3 / 17, 13 / 48, 79, उत्तर० 6 / 25 3. मंदा हनीय रघु० 4 / 6 / हुआ, बंद- रघु० 1173 4. अकड़ा हुआ, लकवाग्रस्त स्तुनकः [ स्तु। नकक् ] बकरा। 5. मृदु, कोमल 6. तृप्त, सन्तुष्ट / सम० –वायुः / स्तुभ् / (भ्वा० पर० स्तोभति) 1. प्रशंसा करना शान्त पवन,- समाधिः स्थिर सचिन्तन / 2. प्रसिद्ध करना, स्तुतिगान करना, पूजा करना। स्तिमितत्वम् [स्तिमित | त्व] स्थिरता, निश्चेप्टता, ! ii (भ्वा० आ० स्तोभते) 1. रोकना, दबाना 2. ठप शान्ति / करना, सुन्न करना, जडीभूत करना / स्तीविः स्त--क्विन] 1. यज्ञ में स्थानापन्न ऋत्विक स्तुभः [ स्तुभ्+क बकरा। 2. घास 3. आकाश, अन्तरिक्ष 4. जल 5. रुधिर स्तुम्भ (स्वा० क्रया० पर० स्तुभ्नोति, स्तुम्नाति) 6. इन्द्र का विशेषण / 1. रोकना 2. सुन्न करना, जड़ीभूत करना 3. निकाल स्तु (अदा० उभ० स्तौति-स्तवति, स्तुते-स्तवीते, स्तुत, ! देना। इच्छा० तुष्ट्रपति-ते,. इकारान्त या उकारान्त उपसर्ग | स्तूप् (दिवा० पर०, चुरा० उभ० स्तूप्यति, स्तूपयति-ते) के पश्चात् स्तु के स् को प् हो जाता है) 1. प्रशंसा 1. ढेर लगाना, सचित करना, चट्टा लगाना, एकत्र करना, सराहना, स्तुति करना, स्तुतिगान करना-, / करना 2. खड़ा करना, उठाना / कीतिगान करना, ख्याति करना-भामि० 241, / स्तूपः / स्तूप+अच ] 1. ढेर, चट्टा, टीला (मिट्टी का) मुद्रा० 3 / 16, भट्टि० 8 / 92, 15 / 60, 2113 2. बौद्ध स्मारकचिह्न, पावन अवशेषों को (जैसे कि 2. प्रशंसागान करना, भजन गाना, स्तोत्रों द्वारा पूजा / बुद्ध के) रखने के लिए एक प्रकार का स्तंभसदृश करना, अभि-, प्रशंसा करना, स्तुति करना, प्र-, / स्मतिचिह्न 3. चिता / 1. प्रशंसा करना 2. - आरंभ करना, उपक्रम करना, | स्तुi (स्वा० उत्तर० स्तृणोति, स्तृणुते, स्तृत, कर्मवा० प्रस्तूयताम विवादवस्तु--मालवि०१ 3. कारण बनना स्तयते) 1. फलाना, छितराना, ढकना, बिछाना पैदा करना मा० 5 / 9 सम्, 1. प्रशंसा करना .. (महीं) तस्तार सरघाव्याप्तेः स क्षौद्रपटलैरिव - रघ० 1316 2. परिचित होना, जानकार या - रघु० 4 / 63, 7 / 58 2. फैलाना, प्रसार करना, घनिष्ठ संबंध वाला होना (इस अर्थ में प्रायः ‘क्तान्त' विकीणे करना 3. वखेग्ना, छितराना 4. कपड़े पहप्रयोग) अनेकशः संस्तुतमप्यनल्पा नवं नवं प्रीतिरहो। नाना, ढांपना, बिछाना, लपेटना 5. मार डालना, करोति- सि० 3131, कि० 3 / 2, दे० 'संस्तुत' भी।। प्रेर० (स्तारयति-ते) बिछाना, ढांपना, छितराना For Private and Personal Use Only Page #1146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1137 ) -रक्तेनाचिक्लिदमि सैन्यैश्चातस्तरद्धतः-भट्रि० / स्तोकं महद्वा धनम-भर्त० 2 / 49 2. छोटा 3. कुछ 15 / 48, इच्छा० (तिस्तीर्षति--ते)। 4. अधम, नीच-क: 1. थोड़ी मात्रा, बूंद 2. चातक ii (स्वा० पर० स्तुणोति) प्रसन्न करना, तृप्त करना / पक्षी,-कम् (अध्य०) जरा सा, अपेक्षाकृत कम स्तु (पुं०) [स्तृ+क्विप् ] तारा। --पश्योदग्रप्लुतत्वाद्वियति बहुतरं स्तोकमा प्रयाति स्तुक्ष (भ्वा० पर० स्तुक्षति) जाना। -श०११७ / सम-काय (वि.) छोटे शरीर वाला, स्तृतिः (स्त्री०) [स्तृ+क्तिन् ] 1. फैलाना, बिछाना, प्रसार करना 2. ढकना, कपड़े पहनाना। थोड़ा सा शिथिल या अवसन्न-श्रोणीभारादलसगस्तृह, स्तुह, (तुदा० पर० स्तृहति, स्तहति) प्रहार मना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां -- मेघ० 82 / __ करना, चोट पहुंचाना, मार डालना। स्तोककः [स्तोकाप जरुबिन्दवे कायति धन्दायते-स्तोक स्स (क्रया० पर० स्तणाति, स्तुणीते, स्तीर्ण, इच्छा +के+क] चातक पक्षी-मनु० 12 // 67 / तिस्तरि (री) पति-ते, तिस्तीर्षते-) ढांपना, | स्तोकशः (अव्य.) [स्तोक+शस्] थोड़ा-थोड़ा करके, बखेरना आदि, दे० 'स्तु'। भव-दांपना, भरना, | कमी के साथ। बिछा देना-प्रकम्पयन् गामवतस्तरे दिश:-कि० 16 / स्तोतव्य (वि.) [स्तु+तव्यत्] प्रशंसनीय, इलाध्य, तारीफ 29, आ–ढकना, आच्छादित करना,-रघु०४।६५, के लायक-स्तोतव्यगुणसंम्पन्न: केषां न स्यात्प्रियो जनः / उप-, 1. वछेरना 2. क्रम से रखना, परि-, स्तोत (पुं०) स्तु+तच प्रशंसक, स्तुतिकर्ता। 1. फैलाना, विकीर्ण करना, प्रसार करना भट्टि० / स्तोत्रम् [स्तु+ष्ट्रन्] 1. प्रशंसा, स्तुति 2. प्रशस्ति, स्तुति१४।११ 2. ढांपना (आलं० से भी) अथ नागयथ- गान / मलिनानि जगत्परितस्तमांसि परितस्तरिरे-शि० 9 / 18 | स्तोत्रियः,-या [स्तोत्र+घ, स्त्रियो टाप् च] एक विशेष अभितस्तं पृथासूनः स्नेहेन परितस्तरे-कि० 1318 प्रकार की ऋचा, स्तोत्र का पद्य / 3. क्रम में रखना, वि--, 1. फैलाना, विकीर्ण | स्तोमः [स्तुम+घा] 1. रोकना, अवरुद्ध करना 2. विराम, करना 2. ढांपना, प्रेर०--फैलवाना, प्रसार करवाना यति 3. निरादर, तिरस्कार 4. सूक्त, प्रशस्ति 5. साम-जैसा कि 'पयोधरविस्तारयितकं यौवनम्' श० 1 / / वेद का एक प्रभाग 6. अन्तर्निविष्ट / 2. बढ़ना-रघु० 7 / 39 3. फलाना, प्रसार करना, | स्तोमः [स्त+मन] 1. प्रशस्ति, स्तुति, सूक्त 2. यज्ञ, सम्--, 1. फैलाना, बखेरना-प्रान्तसंस्तीर्णदर्भा:-श० आहुति –जैसा कि ज्योतिष्टोम या अग्निष्टोम में 417 2. बिछाना। 3. सोम द्वारा तर्पण 4. संग्रह, समुच्चय, संख्या, समूह, स्तेन (चुरा० उभ०---'स्तेन' का नामधातु-स्तेनयति-ते) / संघात–उत्तर० 11505. बड़ी मात्रा, वेर -भस्मचुराना, लूटना,—मनु० 8 / 333 / स्तोमपवित्रलाञ्चनमुरो घत्ते त्वचं रौरवीम् -उत्तर० स्तेनः [स्तेन् कर्तरि अच] चोर, लुटेरा-न तं स्तेना न 4 / 20, महावीर० १११८,--नम् 1. सिर 2. धन, चामित्रा हरन्ति न च नश्यति--मनु० 783, -- नम दौलत 3. बजान, धान्य 4. लोहे की नोक वाली छड़ी। चोरी करना, चुराना। सम-निग्रहः 1. चोरों। स्तोम्य (वि०) स्तिोम+यत इलाध्य, प्रशंसनीय / को दिया जाने वाला दण्ड 2. चोरी को रोकना / स्त्यान (वि.) [स्त्य+क्त और के रूप में संचित-मा० स्तेप i (म्वा० आ० स्तेपते) रिसना / 5 / 11, वेणी० 1121 2. धनीभूत, स्थूल, ठोस ____ii (चुरा० उभ० स्तेपयति-ते) भेजना, फेंकना। 3. मृदु, स्निग्ध, कोमल, चिकना 4. शब्दायमान, स्तेमः [स्तिन्+घञ] नमी, गीलापन / मुखर,--नम् 1. सघनता, ठोसपना, आकार या फैलाव स्तेयम् स्तेिनस्य भावः यत् न लोपः] 1. चोरी, लट-कु० में वृद्धि --दधति कुहरभाजामत्र भल्लूकयूनामनुरसित 135 2. चुराई हुई या चराये जाने के योग्य कोई गुरूणि स्त्यानमम्बकृतानि-मा० 9 / 6, उत्तर० 2 / 21, __वस्तु 3. कोई निजी या गुप्त चीज / महावीर० 5 / 41 2. चिकनाई 3. अमृत 4. ढीलापन, स्तेयिन् (पुं०) [स्तेय +-इनि] 1. चोर, लुटेरा 2. सुनार / / आलस्य 4. प्रतिध्वनि, गंज। स्तै (म्वा० पर० स्तायति) पहनना, अलंकृत करना। स्स्यायनम् स्त्यि+स्यटा ढेर के रूप में संचित करना, भीड़ स्तनम् [स्तेन+अण] चोरी, लूट / लगाना, समष्टि / स्तन्यम् [स्तेनस्य भावः ष्या] चोरी, लूट,-न्यः चोर।। स्त्येनः [स्त्ये+इनच] 1. अमृत 2. चौर। स्तमित्यम् [स्तिमित-+-ष्य] 1. स्थिरता, कठोरता, स्त्य (भ्वा० उभ० स्त्यायति-ते) 1. देर के रूप में एकत्र अटलता 2. जडता, सुन्नपना / / किया जाना, इधर-उधर फैलना, विकीर्ण होना स्तोक (वि.) [स्तुच+घञ] 1. अल्प, थोड़ा-स्तोके- -शिशिरकटुकषायः स्त्यायते सल्लकीनाम्-मा० नोन्नतिमायाति स्तोकेनायात्यधोगतिम्-पंच० 11150, 9 / 6, 2 / 21, महावीर० 5 / 41 3. प्रतिध्वनि, गूंज / 143 For Private and Personal Use Only Page #1147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1138 ) स्त्री [स्त्यायेते शक्रशोणिते यस्याम . स्त्य-1-5प-+डी / स्त्री के रूप में मशीन या यन्त्र--स्त्रीयन्त्र केन लोके 1. नारी, औरत 2. किसी भी जानवर की मादा विषममृतमयं घमनाशाय सृष्टम् - पंच० 1 / 191, ---गज स्त्री, हरिण स्त्री आदि, श० 5 / 22 3. पत्नी -रञ्जनम् पान, ताम्बूल- रत्नम् श्रेष्ठ स्त्री स्त्री -स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च पुंसाम-मा०६।१८, मेघ० रत्नेषु ममोर्वशी प्रियतमा यथे तवेयं दशा--विक्रम 28 4. स्त्रीलिंग, या स्त्रीलिंग का कोई शब्द .. आपः ४।२५,-राज्यम् स्त्रियों द्वारा शासित राज्य या प्रदेश, स्त्रीभूम्नि-अमर०। सम०-अगारः,-रम् अन्तःपुर, जना- . लिगम 1. (व्या० में) स्त्रीवाचकता 2. स्त्रीयोनि, नखाना, -- अध्यक्षः कंचुकी, अभिगमनम् संभोग, -- वशः पत्नी के बस में होना, स्त्री की अधीनता, --आजीवः 1. अपनी स्त्री के सहारे रहने वाला --विधेय (वि.) पत्नी द्वारा शासित, जोरू-भक्त 2. स्त्रियों से वेश्यावृत्ति कराकर जीवनयापन कराने अपनी स्त्री को बेहद चाहने वाला, रघु० 1964, वाला,-कामः 1. स्त्रीसंभोग का इच्छक, स्त्रियों के ----विवाहः स्त्री के साथ विवाह, संसर्गः स्त्रियों का प्रति चाव 2. पत्नी की इच्छा,-कार्यम 1. स्त्रियों का साथ,-संस्थान (वि०) स्त्री की आकृति वाला-श० व्यवसाय 2. स्त्रियों की टहल, अन्तःपुर की सेवा, 5 / 39, संग्रहणम् 1. किसी स्त्री का बलात् आलिंगन -कुमारम् एक स्त्री और बच्चा, कुसुमम् रजःस्राव, 2. व्यभिचार, सतीत्वहरण,..- सभम् स्त्रियों की सभा, स्त्रियों म ऋतु-स्राव, -क्षीरम् माँ का दूध-मनु० 5 / 9, –सम्बन्धः 1. किसी स्त्री के साथ दाम्पत्य सम्बन्ध --- (वि.) स्त्रियों से संभोग करने वाला, गवी 2. वैवाहिक सम्बन्ध 3. स्त्री के साथ सम्बन्ध, दूध देने वाली गाय,-गरः दीक्षा या मन्त्र देने वाली या -स्वभावः 1. स्त्रियों की प्रकृति 2. हीजड़ा,-हत्या पुरोहितानी,-हम स्त्र्यगारम, दे०,--घोषः पौ स्त्री का वव या कतल,-- हरणम् 1. स्त्रियों का बलात् फ़टना, प्रभात, तड़का, -घ्नः स्त्रीघाती,-चरितम्, अपहरण 2. बलात् सम्भोग, जबरजिनाह / -त्रम् स्त्री के कर्म, -चिह्नम् 1. स्त्रीत्व की विशि- स्त्रीतमा, स्त्रीतरा (स्त्री०) कुलीन स्त्री, उत्तम जाति की ष्टता का कोई निशान 2. स्त्रीयोनि, भग,---चौरः सुसंस्कृत स्त्री। स्त्री को फुसलाने वाला, लम्पट, जननी केवल स्त्रीता, स्वम् [ स्त्री+तल+टाप, स्व वा] 1. नारीत्व कन्याओं को जन्म देने वाली स्त्री, जातिः (स्त्री) 2. पत्नीत्व 3. स्त्री होने का भाव, स्त्रैणता / स्त्रीवर्ग, मादा,-जित: स्त्री के वश में रहने वाला, स्त्रण (वि.) (स्त्री०--णी) [ स्त्रिया इदम् न ] जोरू का गुलाम-स्त्रीजितस्पर्शमात्रेण सर्व पूण्यं विन- 1. मादा, स्त्रीवाचक 2. स्त्रियोचित या स्त्री संबन्धी श्यति-शब्द०, मनु० ४।२१७,--धनम् स्त्री की 3. स्त्रियों में विद्यमान,--णिन् 1. स्त्रीत्व, स्त्रियों की निजी सम्पत्ति जिस पर उसका स्वतन्त्र अधिकार हो, प्रकृति, स्त्रीवाचकता-उत्तर० 4.11 2. मादा का -धर्म: 1. स्त्री या पत्नी का कर्तव्य 2. स्त्रीसम्बन्धी चिह्न, स्त्रीपना-तुणे वा स्त्रणे वा मम समदशो नियम 3. रजःस्राव, धर्मिणी रजस्वला स्त्री,---ध्वजः यांतु दिवसा:-भर्तृ० 3 / 113, इदं तत्प्रत्युत्पन्नमति किसी भी जानवर की मादा या स्त्रीलिंग, नाय स्त्रैणमिति यदुच्यते--श० 5, तस्य तणमिव लघवत्ति (वि०) स्त्री जिसकी स्वामिनी हो ,—निबन्धनम् स्त्रणमाकलयत:--का0 3 स्त्रियों का समूह / स्त्री का विशेष कार्य क्षेत्र, गाकर्म, गहिणी का कार्य स्त्रैणता, - त्वम् [ स्त्रैण+तल+टाप, त्व वा] 1. स्त्री -पण्योपजीविन् (पुं०) दे० ऊपर 'स्त्र्याजीव',--परः वाचकता, स्त्रीपना 2. स्त्रियों के प्रति अत्यधिक स्त्रियों से प्रम करने वाला, कामी, लम्पट, पिशाची रुचि। राक्षसी जैसी पत्नी,-पुंसौ (पुं०, द्वि० व०) 1. पति | स्थ (व.)/स्था--क (समास के अन्त में प्रयुक्त) और पत्नी 2. स्त्री और पुरुष-कु० 2 / 7, ..पुंसलक्षणा खड़ा होने वाला, ठहरने वाला, डटा रहने वाला, पुरुष के लक्षणों से युक्त स्त्री, मर्दानी स्त्री, ---प्रत्ययः विद्यमान, मौजूद, वर्तमान आदि- तटस्थ, अंकस्थ, (व्या० में) स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए शब्द के. प्रकृतिस्थ, तटस्थ / अन्त में जुड़ने वाला प्रत्यय, -- प्रसङ्गः (अत्यधिक) स्थकरम् [-स्थगर, पृषो० ] सुपारी। संभोग,--प्रसः (स्त्री०) पुत्रियों को जन्म देने वाली / स्थग (भ्वा० पर० या प्रेर० स्थगति, स्थगयति) स्त्री-याज्ञ० २७३-प्रियः (वि०) जिसको स्त्रियाँ प्यार 1. ढांपना, छिपाना, गप्त रखना, परदा डालना करें (-यः) आम का पेड़,-बाध्यः स्त्री द्वारा परेशान -पराभ्यहस्थानान्यपि तनुतराणि स्थगयति---मा. किया जाने वाला, -बुद्धिः (स्त्री०) 1. स्त्री को समझ 1314 2. ढांपना, व्याप्त होना, भरना रवः श्रवण2. स्त्री का परामर्श, स्त्री द्वारा दिया गया उपदेश, भैरवः स्थगितरोदसीकन्दरः---काव्य०७ / -भोगः संभोग,---मन्त्रः स्त्रीकौशल, स्त्री की सलाह, / स्थग (वि०) [ स्थग-अच् ] 1. जालसाज, बेईमान - मुखपः अशोकवृक्ष,-यन्त्रम् यन्त्र की भाँति स्त्री, 2. परित्यक्त, निर्लज्ज, लापरवाह, गः धूर्त, छली। For Private and Personal Use Only Page #1148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | बहार स्थगनम् | स्थग् + ल्युट ] छिपाना, गुप्त रखना। स्थला [ स्थल-+टाप् ] ऊंची की हई सूखी जमीन जहाँ स्थागरम् [थग् अरन् ] सुपारी। जल के निकास का अच्छा प्रबंध हो (विप० स्थली, स्थगिका [स्थग्+ण्वुल+टाप, इत्वम् 11. वेश्या 2. पान / दे. नी०)। की दुकान 3. एक प्रकार की पट्टी / | स्थली | स्थल+ङीष ] 1. सूखी जमीन, दृढ़ भूमि स्थगित (वि०) [ स्थग्+क्त ] ढका हुआ, छिपा हुआ, 2. भूमि का प्राकृतिक स्थल, भूमि या भूखंड (जैसे गुप्त रक्खा हुआ। कि वनस्थल)-विललाप विकीर्णमूर्धजा समदुःखामिव स्वगी [स्थग्+क-कीप् ] पान की डिबिया। कूर्वती स्थलीम् ---कु०४।४। सम०-देवता पृथ्वी स्थगुः [ स्थग्+उन् ] कूबड़, कुब्ज / की देवी, भूमि की अधिष्ठात्री देवी-मेघ० 106 / स्थण्डिलम् [स्थल+इलच, नक, लस्य ड:] 1. भूखंड स्थलेशय (वि.) [स्थले शेते शी+अच, अलुक स०] (यज्ञ के लिए चौरस व चौकोर किया हआ), वेदी- सुखी जमीन पर सोने वाला,-यः कोई भी जल-स्थलनिषेदुषी स्थंडिल एव केवले-० 5 / 12 2. बंजर चारी जानवर। भूमि 5. ढेलों का ढेर 4. सीमा, हद 5. सीमा चिह्न। | स्थविः [स्था+क्वि] 1. जुलाहा 2. स्वर्ग / सम...शायिन् (पुं०) ('स्थरिलेशय' भी) वह | स्थविर (वि.) [स्थान किरच, स्थवादेशः ] 1. दृढ़, संन्यासी जो बिना बिस्तर के यज्ञभूमि पर सोता है, पक्का, स्थिर 2. बूढ़ा, वृद्ध, पुराना,-1. 1.बूढ़ा पुरुष -सितकम् वेदी। 2. भिक्षुक 3. ब्राह्मण का नाम,~-रा बूढ़ी स्त्री स्थपतिः स्था+क, तस्य पतिः] 1. राजा, प्रभु 2. वास्तु- - स्थविरे का त्वम् अयमकः कस्य नयनानन्दकरः कार 3. रथकार, बढ़ई 4. सारथि 5. बहस्पति के - दश०। प्रति बलि देने वाला, बृहस्पति-यज्ञ करने वाला | स्थविष्ठ (वि.) [ अतिशयन स्थूल: - स्थूल+इष्ठन् 6. अन्त.पुर रक्षक 7. कुबेर / लस्य लोपः] सबसे बड़ा, बहुत हृष्टपुष्ट, सबसे अधिक स्यपुट (वि.) [ तिष्ठति स्था+क, स्थं पुट यत्र] | विस्तृत ('स्थूल' की उत्तमावस्था)। 1. संकटग्रस्त, विपन्न 2. ऊबड़-खाबड़, ऊंचा-नीचा। स्थवीयस् [ स्थूल+ईयसुन्, स्थूलशब्दस्य स्थवादेश] सबसे सम० गत (वि.) विषम स्थानों में रहने वाला, बड़ा, अपेक्षाकृत विस्तृत (स्थूल की मध्यमावस्था) / कठिनाइयों से ग्रस्त अङ्कस्थादस्थिसंस्थं स्थपुटगत-स्था (भ्वा० पर० कुछ अर्थों में आत्मनेपद में भी मपि कव्यमव्यग्रमत्ति मा० 5 / 16 / --तिष्ठति ते, स्थित, कर्मवा० स्थीयते, इस धातु के स्थल (म्वा० पर० स्थलति) दृढ़ता पूर्वक स्थिर रहना, पूर्व इकारान्त उकारान्त उपसर्ग आने पर घातु के अडिग रहना / 'स्' को ष् हो जाता है) 1. खड़ा होना-चलत्येकेन स्थलम् [ स्थल+अच् ] 1. कठोर या शुष्क भूमि, सूखी। पादेन तिष्ठत्येकेन बुद्धिमान् -सुभा० 2: ठहरना, जमीन, दृढ़ भू (विप० जल)-भो दुरात्मन् (समुद्र) डटे रहना, बसना, रहना-ग्रामे गहे वा तिष्ठति दीयतां टिट्रिभाण्डानि नो चेत्स्थलतां त्वां नयामि-पंच० 3. शेष बचना, बाक़ी रह जाना-एको गङ्गदत्तस्तिष्ठति 1, इसी प्रकार स्थलकमलिनी या स्थलवर्मन् 2. सम- --पंच० 4 4. विलम्ब करना, प्रतीक्षा करना-किमिति द्रतट, समुद्रबेला, बाल-तट 3. पृथ्वी, भूमि, जमीन स्थीयते श०२ 5. ठहरना, उपरत होना, रुकना, 4. जगह, स्थान 5. खेत, भूखंड, जिला 6. पड़ाव निश्चेष्ट होना--तिष्ठत्येव क्षणमधिपतियोतिषां 7. उमरा हुआ भूखंड, टीला 8. प्रस्ताव, प्रसंग, व्योममध्ये विक्रम० 211 6. एक ओर रह जाना विषय, विचारणीय बात--विवाद, विचार आदि --तिष्ठतु तावत्पत्रलेखागमनवृत्तान्त:--का० (इस 9. खंड या भाग (जैसे किसी पुस्तक का) 10. तम्बू / / वृत्तान्त का ध्यान न कीजिए) 7. होना, विद्यमान सम०-अन्तरम् कोई दूसरी जगह,-आलू (वि.) होना, किसी भी स्थिति या अवस्था में होना, (प्रायः घरा पर उतरा हुआ, . अरबिन्वम्, कमलम्,-कम- कृदन्त के रूप में प्रयोग)-मेरी स्थिते दोग्धरि दोहदक्षे लिनी पृथ्वी पर उगने वाला कमल --मेघ० 90, कु. -कु० 112, श० 111, विक्रम० 111, कालं नयमाना 1133, चर (वि.) भूचर, (जो जलचर न हो),-व्युत तिष्ठति... पंच० 1, मनु 78 8. डटे रहना, अनुरूप (वि०) स्थान से पतित, अपनी पदवी से हटाया होना, आज्ञा मानना, (अधि० के साथ)-गासने तिष्ठ हआ, देवता स्थानीय या ग्राम्यदेवी,-पधिनी भ- भर्तुः-विक्रम० 5 / 17, रघु०, 1165 . प्रतिबद्ध कमलिनी,-मार्गः,-वर्त्मन् (नपुं०) भूमि पर बनी हुई होना-यदि ते तु न तिष्ठेयुरुपायैः प्रथमस्त्रिभिः-मनु. सड़क-स्थलवर्मना (भूमार्ग से), रघु० ४।६०,-विग्रहः 7 / 108 10. निकट होना-न वितं स्वेषु तिष्ठत्सु चौरस भूमि पर लड़ा जाने वाला युद्ध-शुद्धिः(स्त्री०) मृतं शूद्रेण नाययेत्-मनु० 5104 11. जीवित किसी भी स्थल की शुद्धि भूमि की सफ़ाई। रहना, सांस लेना--आः क एष मयि स्थिते चन्द्रगुप्त For Private and Personal Use Only Page #1149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1140 // मभिभवितुमिच्छति-मुद्रा० 1 12. साथ देना, | सष्टिहि लोकानां रक्षा यष्मास्ववस्थिता-कु० 2 / 28 सहायता करना,-उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे / 7. अलग खड़े होना, अलग रखना 8. निश्चित या राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः-हि. निर्णीत होना (प्रेर०) 10 खड़ा करना, रोकना, 173 13. आश्रित होना, निर्भर होना 14. करना, पड़ाव डालना 2. प्रस्थापित करना, नींव डालना अनुष्ठान करना, अपने बापको पस्त करना | 3. स्वस्थ होना, सचेत होना, आ-, 1. अधिकार 15. (मा०) सहारा लेना, (मध्यस्थ मान कर उसके करना 2. चढ़ना, सवार होना-यथा 'एकस्यन्दनपास) जाना, मार्गदर्शन पाना-संशय्य कर्णादिषु तिष्ठते मास्थितो-रघु० 1136 में 3. उपयोग करना, अबय:-कि० 3313 16. (आ.) (सुरतालिगन के लंब लेना, सहारा लेना, अनुसरण करना, अभ्यास लिए) प्रस्तुत करना, वेश्या के रूप में उपस्थित होना करना, लेना, धारण करना -- यथाहि सद्वत्तमातिष्ठत्य(सम्प्रे के साथ)-गोपी स्मरात् कृष्णाय तिष्ठते नुसूयकः- मनु० 10 // 128, 21133, 10 / 101 (यह -पा० 13134 पर सिद्धा०,-प्रेर० (स्थापयति अर्थ नाना प्रकार से-संज्ञा शब्दों के अनुसार जिनके -ते) 1. खड़ा करना 2. जमाना, जड़ना, स्थापित साथ कि शब्द का प्रयोग होता है, बदलता रहता है करना, रखना, प्रस्थापित करना 4. रोकना 5. पकड़ना ---दे० कु. 5 / 2, 84, मुद्रा० 7 / 19, रघु० 672, रोकना-इच्छा० (तिष्ठासति) खड़े होने की इच्छा 15 / 79, कु. 672, 7 / 29, पंच० 3 / 21 आदि) करना। अति-, अधिक होना, बढ़ जाना—अत्य 4. करना, सम्पादन करना, पालन करना 5. अपनाना' तिष्ठद् दशाङ्गुलम्-अधि-, 1. स्थिर होना, अधिकार 6. लक्ष्य बांधना 7. दायित्व लेना 8. विशिष्ट ढंग से करना (कर्म के साथ)-अर्धासनं गोत्रभिदोऽधितस्थी आचरण करना, व्यवहार करना 9. निकट खड़े होना, --रघु० 673, भट्टि० 15 / 31 2. अभ्यास करना उद्,-- 1. खड़े होना, उठना, उठ कर खड़े होना (साधना का)-कि० 1016 3. अन्दर होना, ---उत्तिष्ठेत् प्रथमं चास्य --- मनु० 2 / 194, वचो रहना, बसना निवास करना,-पातालमधितिष्ठति निशम्योत्थितमुत्थितः सन्– रघु०२।६१ 2. त्याग ---रघु० 180, श्रीजयदेवभणितमधितिष्ठतु कण्ठ- देना, छोड़ना 3. पलट कर आना-रघु० 16183 तटीमविरतम्-गीत० 11 4. अधिकार करना, 4. आगे आना, उदय होना, आगे बढ़ना, फूटना, जीनना, परास्त करना, पछाड़ना-संग्रामे तान- निकलना-यत्तिष्ठति वर्णम्यो नपाणां क्षयि तत्फलम् धिष्ठास्यन्---भट्टि० 972, 16140 5. प्राप्त करना --श० 2 / 13 5. उदय होना, उगना, शक्ति में -कि० 2 / 31 6. नेतृत्व करना, संवहन करना, बढ़ना-शि० श६ 6. सक्रिय होना, उठना, गतिशील शासन करना, निदेश देना, प्रधानता करना दशरथ- होना---क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप-भग. दारानषिष्ठाय .. उत्तर० 4 7. राज्य करना, शासन 213, 37 7. चेष्टा करना, कोशिश करना, (आ.) करना, नियंत्रण करना -भग० 4 / 6 8. उपयोग कि० 11013, शि० 14117 (प्रेर०) 1. उठाना, करना, काम में लगाना 9. चढ़ना, स्थापित होना, उन्नत करना 2. काम करने के लिए उकसाना, उत्तेगद्दी पर बैठना-अचिराधिष्ठितराज्यः शत्रु:-मालवि० जित करना, उप-, 1. निकट खड़े होना, हिस्से में 18, अनु-, 1. करना, संपन्न करना, कार्यान्वित मिलना, नादत्तमपतिष्ठति --पंच० 21123 2. निकट करना, ध्यान देना- अनुतिष्ठस्वात्मनो नियोगम् आना, पहुंचना-कु० 2064, रघु०१५७६ 3. प्रतीक्षा -मालवि०१ 2. पीछा करना, अभ्यास करना, करना, सेवा में उपस्थित रहना, सेवा करना --मनु० पालन करना-भग० 3 / 31 3. देना, अनुदान देना, 2148 4. पूजा करना, प्रार्थना के साथ उपस्थित किसी के लिए कुछ करना-(यस्य) शैलाधिपत्य होना, सेवा करना, प्रणाम करना (आ०)-न त्र्यम्बस्वयमन्वतिष्ठत्--कु०१।१७ 4. निकट खड़े होना, कादन्यमुपस्थितासौ-भट्टि० 113, उदितभूयिष्ठ एष ---मनु० 111112 5. राज्य करना, शासन करना भगवांस्तपनस्तमुपतिष्ठे-मा०१, रघु० 416, 10 // 6. नकल करना 7. अपने आपको प्रस्तुत करना, 63, 17 / 10, 18 / 22 5. निकट खड़े होना 6. मथुन अव-, (प्रायः आ०) 1. रहना, टिकना, डटे रहना के लिए पहुंचना 7. मिलना, संयुक्त होना-गङ्गा --जोषं जोषं जोषमेवावतस्थे-भामि० 2017 यमुनामुपतिष्ठते--सिद्धा० 8. नेतृत्व करना (आ०) अनीत्वा पकृतां धूलिमुदकं नावतिष्ठते-शि० 2 / 34, 9. मित्र बनाना (आ०) 10 पहुँचना, निकट रघु० 2 / 31 2. ठहरना, प्रतीक्षा करना-भट्रि० 8 / 11 खिंचना, आसन्नवर्ती होना 11. द्वेषभावना से पहुँचना 3. डटे रहना, अनुरूप रहना-भट्रि० 3.14 4. जीवित 12. उपस्थित होना (आ.) 13. घटित होना, उत्पन्न हना-रघु०८८७ 5.निश्चेष्ट रहना, रुकना, ठहरना होना, परि-, घेरना, चारों ओर खड़े होना, पर्यव-, --भग०१३..आ पडना, मिलना, निर्भर होना-मयि (प्रेर०) स्वस्थचित होना, सचेत होना-पर्यवस्था For Private and Personal Use Only Page #1150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयात्मानम् - विक्रम०१, प्र--(आ०) 1. कूच करना, / 7144, समुद् , 1. खड़ा होना, उठना 2. मिल कर बिदा होना ---पारसीकांस्ततो जे प्रतस्थे स्थलवमना खड़े होना 3. मृत्यु से उठना, फिर जीवित होना, -रघु०४।६० 2. दृढ़ता पूर्वक खड़े रहना 3. प्रस्थापित होश में आना 4. उदय होना, फूटना, समुप-1. निकट होना 4. पहुँचना, निकट आना (प्रेर०) 1. पीछे हटाना आना, पास जाना, पहुँचना 2. आक्रमण करना 2. भेजना, तितर-बितर करना तो दंपती स्वां प्रति 3. आ पड़ना, घटित होना 4. सट कर खड़े होना, राजधानी प्रस्थापयामास वशी वशिष्ठः-रघु० 2170, संप्र , (आ०) कूच करना, बिदा होना, संप्रति-, प्रति--, 1. दढ़ता पूर्वक खड़े रहना, प्रस्थापित होना 1. लटकना, आश्रित होना, निर्भर होना 2. दढ़ होना, 2. सहायता किया जाना 3. आश्रित या निर्भर रहना स्थिर होना। 4. ठहरना, डटे रहना, स्थित रहना, प्रत्यय---, स्थाणु (वि०) [ स्था-+नु, पृषो० णत्वम् ] 1. दृढ़, (आ.) विरोध करना, शत्रवत् व्यवहार करना, अटल, स्थिर, टिकाऊ, अचल, गतिहीन, गुः 1. शिव आक्षेप करना ( किसी तर्क का) अत्र केचित् प्रत्यव- का विशेषण-- सःस्थाणुः स्थिरभक्तियोगसुलभो निःश्रेतिष्ठन्ते शारी०, भामि० 277, (प्रेर०) अपने यसयास्तु वः विक्रम० 1 / 1 2. टेक, पोल, स्तम्भ आपको सचेत या स्वस्थ करना, वि-, (आ०) कि स्थाणुरयमुत पुरुषः 3. खूटी, कील 4. धूपघड़ी 1. अलग खड़े होना 2. स्थिर रहना, डटे रहना, बस का शंकु 5. बी, नेजा 6. दीमकों का घोंसला, बामी जाना, अचल रहना 3. फलना, विकीर्ण होना, विप्र , 7. औषधि या सुगन्ध द्रव्य, जीवक (0, नपुं०) (आ०) 1. कूच करना 2. फैलना, व्यव, (आ०) शाखा रहित तना, नंगा डंठल, मुंडा पेड़, डूंठ / 1. अलग-अलग रक्खा जाना 2. क्रमबद्ध किया जाना सम० छेदः वह जो वृक्षों के तने काटता है, जो 3. निश्चित होना, स्थिर होना, स्थायी होना - वच तने को छील कर साफ़ करता है-स्थाणुच्छेदस्य नीयमिदं व्यवस्थितम् --कु० 4 / 21 4. आश्रित होना, केदारमाहुः शल्यवतो मगम-मन० ९।४४,-भ्रमः निर्भर होना, (प्रेर०) 1. क्रमबद्ध करना, प्रबंध किसी थूणी या पोल को कुछ और ही समझ लेना / करना, समंजित करना 2. निश्चित करना, स्थापित | स्थाण्डिलः [स्थाण्डिल+अण्] 1. वह संन्यासी जो बिना करना 3. पृथक् करना, अलग-अलग रखना, सम् / विस्तर के भूमि पर या यज्ञीय भूखंड पर सोता है (आ०) 1. बसना, रहना, परस्पर निकटवर्ती होना 2. साघु या धार्मिक भिक्षु / –तीक्ष्णाद्विजते मदो परिभवत्रासाम्न संतिष्ठते स्थानम् [स्था+ल्युट् ] 1. खड़ा होना, रहना, ठहरना, .. - मुद्रा० 35 2. खड़े होना 3. होना, विद्यमान नरन्तर्य, निवास स्थान-उत्तर० 3 / 32 2. स्थिर या होना, जीवित होना 4. उटे रहना, आज्ञा मानना, अटल होना 3. स्थिति, दशा 4. जगह, स्थल, सिद्धान्त का निर्वाह करना-दारिद्रयात्पुरुषस्य बान्धव- (भवन आदि के लिए) भूमि, संस्थिति अक्षमालाजनो वाक्ये न संतिष्ठते मृच्छ० 1136 5. पूरा मदत्वास्मात्स्थानात्पदात्पदमपि न गन्तव्यम्-का० होना सद्यः सतिष्ठते यज्ञस्तथा शौचमिति स्थितिः 5. संस्थान, स्थिति, अवस्था 6. संबन्ध, हैसियत -मनु० 5 / 98 (यज्ञपुण्येन युज्यते-कुल्लू०) 6. समाप्त पितस्थाने' (पिता के स्थान में या पिता की हो जाना, विघ्न पड़ जाना-भट्रि० 811 7. निश्चेष्ट हैसियत से) 7. आवास, घर निवासस्थान स एव खड़े रहना, स्थिर हो जाना ( पर०) क्षणं न (नक्र:) प्रच्युतः स्थानाच्छुनापि परिभूयते--पंच. संतिष्ठति जीवलोकः क्षयोदयाभ्यां परिवर्तमान:-हरि० 3046 8. देश, क्षेत्र, जिला, नगर 9. पद, दर्जा, 8. मरना, नष्ट होना (प्रेर०) 1. स्थापित करना, प्रतिष्ठा-अमात्यस्थाने नियोजित: 10. पदार्थ-गणाः बसाना 2. रखना 3. स्वस्थचित्त होना, सचेत होना पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वय:-उत्तर०४।११ देवि संस्थापयात्मानम् - उत्तर० 4 4. अधीन करना, 11. अवसर, बात, विषय, कारण पराभ्यूहस्थाना. नियंत्रण में रखना-मनु० 9 / 2 5. रोकना, प्रतिबद्ध न्यपि तनुतराणि स्थगयति मा० 1314, स्यानं करना 6. मार डालमा, समधि-, प्रधानता करना, जरापरिभवस्य तदेव पुंसाम-सुभा०,इसी प्रकार कलह, शासन करना, प्रशासन करना, अधीक्षण करना, कोप, विवाद आदि 12. उचित या उपयुक्त जगह समव (आ०) 1. स्थिर रहना, अचल रहना --.स्थानेष्वेव नियोज्यन्ते भृत्याश्चाभरणानि च . पंच० 2. निश्चेष्ट रहना 3. तत्पर रहना (प्रेर०) 1. नींव 1172 13. उचित या योग्य पदार्थ-स्थाने खल डालना 2. रोकना,-समा-- 1. सहना, अभ्यास सज्जति दृष्टिः मालवि० 1, दे० 'स्थाने' भी करना-तपो महत्समास्थाय 2. व्यस्त करना, सम्पा- 14. अक्षर का उच्चारणस्थान (यह आठ है..-अष्टौ दन करना 3. प्रयोग में लाना, काम में लगाना स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा जिह्वामूलं 4. अनुसरण करना, पालन करना मन० 412, / च दन्ताश्च नासिकोष्ठौ च ताल च-शिक्षा०१३ गन्तव्यम् तस्थाने' अवस्था For Private and Personal Use Only Page #1151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1142 ) च्युत बेका किसी पद से बाला, पहरेदार, ध्युत 15. पावन स्थान 16. वेदी 17. नगरस्थ प्रांगण / स्थानीय (वि.) [स्थान+छ11. स्थान विशेष से संबद्ध, 18. मृत्यु के बाद कर्मानुसार प्राप्त होने वाला लोक किसी स्थान का 2. किसी स्थान के लिए उपयुक्त, 19. (नीति या युद्ध आदि में) दृढ़ता, आक्रमण का यम् नगर, शहर। मुकाबला करने के लिए दृढ़ता, मनु० 7 / 190 स्थाने (अव्य०) [ 'स्थान' का अधि० का रूप] 1. ठीक 20. पड़ाव, डेरा 21. निश्चेष्ट दशा, उदासीनता, या उपयुक्त स्थान पर, सही ढंग से, उपयुक्त रूप से, 22. राज्य के मुख्य अंग, किसी राज्य का स्पर्य ठीक. संचमुच, समुचित रीति से स्थाने वता .....अर्थात सेना, कोष, नगर और प्रदेश-मन० 7 / भूपतिभिः परोक्षः-- रघु० 7.13, स्थाने प्राणाः 56 (यहाँ कुल्ल. 'स्थान' का अर्थ करता है "दंड- कामिना दूत्यधीनाः मालवि० 3 / 14, कु. 667, कोषपुरराष्ट्रात्मकं चतुर्विधम्") 23. सादृश्य, समानता 7 / 65 2. के स्थान में, की बजाय, के बदले, स्थाना24. किसी ग्रंथ का भाग या खंड, परिच्छेद या अध्याय पन्न के रूप में-धातोः स्थाने इवादेश सुग्रीवं संन्यवेशयत् आदि 25. अभिनेता का चरित्र 26. अन्तराल, अवसर, ...रघु० 12058 3. के कारण, के लिए 4. इसी अवकाश 27. (संगीत में) गीत, सुर, स्वर के स्पंदन प्रकार, भांति / की मात्रा। सम० अध्यक्षः स्थानीय राज्यपाल, | स्थापक (वि.) [स्थापयति-स्था-णिच् +ण्वुल ] खड़ा स्थान का अधीक्षक, आसन (नपुं०, द्वि० व०) करने वाला, जमाने वाला, नींव डालने वाला, स्थापित बैठा हआ,---आसेधः किसी स्थान पर कैद, कारा, करने वाला, विनियमित करने वाला,---क: 1. मंच बंधन-तु० आसेध,-चिन्तकः सेना के शिविर के लिए के कार्य का निदेशक, रंगमंच-प्रबंधक, सूत्रधार स्थान की व्यवस्था करने वाला अधिकारी,-च्युत 2. किसी देवालय का प्रतिष्ठाता, मति की स्थापना दे० 'स्थानभ्रष्ट',-पालः रखवाला, पहरेदार, आरक्षी, करने वाला। --भ्रष्ट (वि.) किसी पद से हटाया हुआ, विस्थापित, स्थापत्यः [ स्थपति+व्या ] अन्तःपुर का रक्षक, त्यम् पदच्युत बेकार, माहात्म्यम् 1. किसी स्थान का . वास्तु विद्या, भवननिर्माण कला / गौरव या महत्त्व 2. किसी स्थान में मानी जाने वाली स्थापनम् [ स्था+णिच् + ल्युट, पुकागमः ] 1. खड़ा करने असाधारण पवित्रता या दिव्य गुण, -योगः उपयुक्त की क्रिया, जमाना, नींव डालना, निदेश देना, स्थापित स्थान का निदेशन द्रव्याणां स्थानयोगाच्च क्रय करना, संख्या बनाना 2. विचारों को जमाना, मन को विक्रयमेव च-मनु० ९।३३२,-स्य (वि०) एक ही संकेन्द्रित करना, ध्यान, धारणा 3. निवारा, आवास स्थान पर स्थित, अचल / 4. पुंसवन संस्कार (जब गर्भवती स्त्री को गर्भस्थ स्थानकम् [स्थान-स्वार्थे क] 1. अवस्था, स्थिति पिण्ड में जीवसंचार का प्रथम लक्षण ज्ञात हो, उस 2. नाटकीय व्यापार का एक विशेष स्थल उदा० समय यह संस्कार किया जाता है), दे० पुंसवन / पताकास्थानक 3. शहर, नगर 4. आलवाल 5. शराब स्थापना [स्था-णिच् --युच्---टा, पुक] 1. रखना, की सतह पर उठा हुआ फेन 6. सस्वर पाठ की एक जमाना, नींव रखना, स्थापित करना 2. व्यवस्था रीति 7. यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का अनुवाक | करना, विनियमन, (नाटक में) रंगमंच का प्रबन्ध / या प्रभाग। स्थापित (भू० क० कृ.) [ स्था+णिच्+क्त, पुक् ] स्थानतः (अव्य०) [स्थान-+-तसिल 11. अपनी स्थिति 1. रक्खा हुआ, जमाया हुआ, अवस्थित, धरा हुआ या अवस्था के अनुसार 2. अपने उपयुक्त स्थान से 2. नींव डाली हई, निविष्ट 3. जड़ा हुआ, उठाया 3. उच्चारण करने के अंग के अनुरूप / हुआ, खड़ा किया हआं 4. निदेशित. विनियमित, स्थानिक (वि.) (स्त्री०-की) [स्थान-ठक] 1. किसी आदिष्ट, अधिनियम 5. निर्धारित, तय किया हुआ, स्थान विशेष से सबंध रखने वाला, स्थानीय निश्चित किया हुआ 6. नियत, जिसको कोई पद या 2. (व्या० में) जो किसी अन्य वस्तु के बदले प्रयुक्त कर्तव्य सौंपा गया हो 7. विवाहित, जिसका विवाह हो, या उसका स्थानापन्न हो,-क: 1. कोई पदाधिकारी, हो चुका हो-मा० 105 8. दृढ़, स्थिर। स्थानविशेष का रक्षक 2. किसी स्थान का शासक / स्थाप्य (वि.) [स्था+णिच-+-ण्यत्, पुकागमः ] 1. रक्खे स्थानिन (वि.) [स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि ] जाने या जमा किये जाने योग्य 2. नींव डाले जाने 1. स्थानवाला 2. स्थर्यसम्पन्न, स्थायी 3. वह जिसका योग्य, स्थिर या स्थापित किये जाने योग्य,- प्यम कोई स्थानापन्न हो (पुं०) 1. मूलरूप या मौलिक धरोहर, अमानत / सम०-अपहरणम् धरोहर की तत्त्व, जिसके लिए कोई दूसरा स्थानापन्न न हो-स्था- वस्तु हड़प कर जाना, अमानत में खयानत / निवदादेशोऽनल्विधी-पा० 111156 2. जिसका स्थामन् (नपुं०) [स्था+मनिन् ] 1. सामर्थ्य, शक्ति, अपना स्थान हो, अभिहित / स्थैर्य, जैसा कि 'अश्वत्थामन्' में, दे० 'अश्वत्था For Private and Personal Use Only Page #1152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्' के अन्तर्गत महा० का उद्धरण 2. स्थिरता, या जड़ पदार्थ (जैसे कि मिट्टी, पत्थर, वृक्ष आदि स्थायित्व। जो कि ब्रह्मा की सातवीं सष्टि है .. तु० मनु० 41) स्थायिन् (वि०) | स्था+णिनि युक] 1. खड़ा रहने / -मान्यः स मे स्थावरजङ्गमानां सर्गस्थितिप्रत्यवहारहेतु: बाला, टिकने वाला, स्थित रहने वाला (समास के रघु० 2 / 44, कु० 6 / 58 2. धनुष की डोरी अंत में) 2. सहन करने वाला, निरन्तर चलने वाला, 3. अचल संपत्ति, माल असबाब 4. पैतृक या मौटिकाऊ, टिके रहने वाला-शरीरं क्षणविध्वंसि रूसी प्राप्त सम्पत्ति। सम० - अस्थावरम्, - जङ्गमम् कल्पांतस्थायिनो गुणा:-सुभा०, कतिपय दिवसस्थायिनी 1. चल और अचल संपत्ति 2. चेतन और जड़ पदार्थ / यौवनश्रीः भर्तृ० 2 / 82, महावीर 7 / 15 3. जीने स्थाविर (वि.) (स्त्री०-रा,-री)[स्थविर+अण्] मोटा, वाला, निवास करने वाला, रहने वाला मेघ० 23 निवास करन वाला, रहन वाला मघ० 23 / दढ़, - रम् दुढ़ापा। 4. स्थिर, दृढ़, पक्का, अपरिवर्ती, जो न बदले-स्याथी स्थासक: [स्था+स+स्वार्थादौ क] 1. सुवासित करना, भवति (पक्का हो जाता है) (पुं०) 1. नित्य या शरीर पर सुगन्धित लेप करना 2. पानी का बुलबुला शाश्वत भावना, (दे० नी० स्थायिभाव') शि० या कोई तरल पदार्थ-शि० 1815 / 2187, (नपुं०) 1. कोई भी टिकाऊ वस्तु, दृढ़ | स्थासु (नपुं०) [स्था+सु] शारीरिक बल / स्थिति या दशा। सम० भावः मन की स्थिर स्थास्नु ( वि.) [स्था-स्नु ] 1. स्थिर, दृढ़, अचल दशा, टिकाऊ या सदा रहने वाली भावना, (कहते / 2. स्थायी, नित्य टिकाऊ, पायदार-शि० 2 / 93, है इन स्थायिभावों से ही काव्यगत विभिन्न रसों की कि० 2 / 19 / निप्पत्ति होती है, प्रत्येक रस का अपना स्थायिभाव स्थित (भू० क. कृ.) स्था+क्त्त] 1. खड़ाहुआ, रहा अलग है) स्थायिभाव गिनती में आठ या नौ हैं हुआ, ठहरा हुआ 2. खड़ा होने वाला 3. उठकर खड़ा -तिहासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा / जगप्सा होने वाला, उठा हुआ-स्थितः स्थितामुच्चलितः प्रयातां विस्मयरचेत्थमष्टो प्रोक्ताः शमोऽपि च सा० द० ..."छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्-रघु० 216 4. टिकने 206, तु० व्यभिचारिभाव, भाव या विभाव भी। वाला, सहारा लेने वाला, जीवित, विद्यमान, मौजद स्थायक (वि.) (स्त्री--का, की) [ स्था+उकल, स्थितघन्या केयं स्थिता ते शिरसि मुद्रा० 111, यक ] 1. जो ठहरने वाला हो, या जिसमें टहरने की मेघ० 7. (प्रायः क्तान्त के साथ विधेयक के रूप में) प्रवृत्ति हो 2. दृढ़, स्थिर, अचल,-क: गाँव का मुखिया विक्रम० 111, श० 111, कु० 111 5. घटित, हुआ या अधीक्षक। हुआ-कू०४।२७ 6. पड़ाव डाला हुआ, अधिकार किया स्थालम [स्थलति तिष्ठति अन्नाद्यत्र आधारे घन / हुआ, नियुक्त किया हुआ --श० 4 / 18 7. क्रियान्वित 1. थाल, थाली, तस्तरी 2, कोई भोजनपात्र. पाकयोग्य / करने वाला, डटा रहने वाला, समनुरूप रघु० बर्तन / सम० रूपम् पाकपात्र की आकृति / 5 / 33 8. निश्चेष्ट खड़ा हुआ, रुका हुआ, ठहरा स्थाली स्थाल-डी / 1. मिट्टी का घड़ा या हाँड़ी, हुआ 9. जमा हुआ, दृढ़तापूर्वक लगा हुआ कु. रांधने का बर्तन, कड़ाही, बटलोई-नहि भिक्षका: 5 / 82 10. स्थिर, दृढ़ जैसा कि 'स्थितधी' और सन्तीति स्थाल्यो नाधिश्रीयन्ते सर्व०, स्थाल्यां वैडूर्य- 'स्थितप्रज्ञ' में 11. निर्धारित, दृढ़ निश्चय किया हुआ मय्यां पचति तिलखली मिन्धनैश्चन्दनाद्यः भर्त० --2 / -कु० 4 / 39 12. स्थापित, समादिष्ट 13. आचरण 1002. सोम तैयार करने के काम आने वाला में दृढ़, दृढ़मना 14. ईमानदार, धर्मात्मा 15. प्रतिज्ञा विशेष पात्र, पाटलावा, तुरही के सदश फूल / या करार का पक्का 16. सहमत, व्यस्त, संविदाग्रस्त सम० -पाकः एक धार्मिक कृत्य जिसका अनुष्ठान 17. तैयार, निकटस्थ, समीप, तम् स्वयं खड़ा हुआ गृहस्थ करते हैं, पुरीषम् पाक पात्र में जमा हुआ (जैसे कि शब्द) / सम० - उपस्थित (वि०) 'इति' मैल या तरौंछ, पुलाकः पाकपात्र में पकाया हआ शब्द से युक्त या रहित (जैसे कि शब्द), धी(वि०) चावल, न्यायः दे० 'न्याय' के अन्तर्गत, विलम् / दृढमनस्क, स्थिरमना, शान्त,-पाठयम् खड़ी हुई पाकपात्र का भीतरी हिस्सा। स्त्रीपात्र द्वारा प्राकृत में पाठ, प्रज्ञ (वि०) निर्णय स्थावर (वि.) [स्था +-वरच्] 1. एक स्थान पर जमा या समझदारी में दृढ़, सब प्रकार के भ्रमों से मुक्त, हुआ, अचल, अडिग, अचर, जड़ (विप० जंगम) सन्तुष्ट-प्रजहाति यदा कामान्सर्वान् पार्थ मनोगतान् / -शरीराणां स्थावरजङ्गमानां सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव / आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते भग० . कु. 1123, 6 / 67, 73 2. निश्चेष्ट, निष्क्रिय, २१५५,-प्रेमन् (पुं०) पक्का या विश्वासपात्र मित्र / मन्द 3. नियमित, स्थापित, र पहाड़-स्थावराणां स्थितिः (स्त्री०) [स्था+क्तिन] 1. खड़े होना, रहना, हिमालयः... भग० 10 // 25, रम् कोई भी स्थिर टिकना, डटे रहना, जीवित होना, ठहरना, निवास For Private and Personal Use Only Page #1153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1144 ) स्थान-स्थितिं नो रे दध्याः क्षणमपि मदान्धेक्षण / करना 3. प्रसन्न करना, तसल्ली देना, आराम पहुँचाना सखे - भामि० 1152, रक्षोगहे स्थितिमलमग्नि- -श०४, स्थिरीभू- 1. स्थिर या दृढ़ होना 2. शान्त शुद्धौ त्वनिश्चयः----उत्तर० 106 2. रुकना, चुप या धीर होना)। सम० --- अनुराग दृढ़ आसक्ति वाला, होकर खड़े होना, एक ही अवस्था में रहना...--अस्थि- स्नेहसिक्त,----आत्मन्,-चित्त, चेतस् - धी,--बुद्धि, तायां प्रतिष्ठेथाः स्थितायां स्थितिमाचरे:--रघु० --मति (वि०) 1. दृढ़मना, विचार या संकल्प का 1289 3. अडिग रहना, जम जाना, स्थिरता, दृढ़ता, पक्का, दृढ़ संकल्प, रघु० 8 / 22, शान्त, धीर, अक्षुब्ध, लगे रहना, भक्ति --मम भूयात् परमात्मनि स्थिति: --- आयुस, जीषिन् (वि०) दीर्घजीवी, चिरजीवी, भामि० 4 / 23 4. हालत, अवस्था, परिस्थिति, दशा -.-आरम्भ (वि०) दायित्व निर्वाह में दृढ़, धर्यशाली, 5. प्राकृतिक हालत, प्रकृति, स्वभाव -अथवा स्थिति- ----कुट्टक: 1. लगातार पीसने वाला 2. (बीजग में) रिक मन्दमतीनाम् --हि० 4 . 6. स्थिरता, स्थायित्व, समान भाजक, गन्धः चंपक फूल, छदः भोजपत्र का चिरस्थायित्व, निरन्तरता-वंशस्थितेरधिगमान्महति वृक्ष,-छायः 1. यात्रियों को छाया देने वाला 2. वृक्ष, प्रमोदे -विक्रम० 5 / 15, कन्यां कूलस्य स्थितये -जिहः मछली, -- जीविता सेमल (शाल्मली) का स्थितिश:---कु० 1118, रघु० 3 / 27 7. आचरण पेड़,-बंष्ट्रः सांप,--पुष्पः 1, चंपक वृक्ष 2. बकुल वृक्ष, की शुद्धता, कर्तव्यपालन में दृढ़ता, शिष्टता, कर्तव्य, मौलसिरी,-प्रतिज्ञ (वि.) दृढ़प्रतिज्ञ, हठी, आग्रही नैतिक सदाचार, औचित्य - रघु० 3 / 27, 1165, 2. वचन का पालन करने वाला, प्रतिबन्ध (वि.) 12 / 31, कु० 1218 8. अनुशासन का पालन, विरोध करने में दृढ़, हठी --श०२, - फला कुष्मांडी, (किसी राज्य में)सुव्यवस्था की स्थापना-रघु०१।२५, -योनिः बड़ा भारी वृक्ष जो छायां और शरण दे, 9. दर्जा, पद, ऊंचा पद या दर्जा 10. निर्वाह, जीवन --यौवन (वि०) सदा जवान रहने वाला, (--न:) का बने रहना-मा० 9132, रघु० 5 / 9 11, जीवन में 1. विद्याधर, परी 2. चिरस्थायी तारुण्य, --श्री (वि०) नैरन्तयं, रक्षितावस्था (मानव की तीन अवस्थाओं में सदा रहने वाली समृद्धि वाला, संगर (वि.)प्रतिज्ञा से एक)-सर्गस्थितिप्रत्यवहारहेतु:-रघ० 2 / 44, कु० का पालन करने वाला, सच्चा, बात का धनी,---सौहृव श६ 12. यति, विराम, विरति 13. कुशलक्षेम, (वि.) मित्रता में दृढ़,--स्थायिन् (वि.) दृढ़ या कल्याण 14. संगति 15. निश्चित नियम, अध्यादेश, अटल रहने वाला, पूर्णतः शान्त रहने वाला (जैसा कि आशप्ति, सिद्धांतवाक्य, नीतिवाक्य 16. निश्चित समाधि में)। निर्धारण 17. अवधि, सीमा, हद 18. जड़ता, गति- [ स्थिरता, - त्वम् [स्थिर-+-तल+टाप्, त्व वा] 1. दृढ़ता, हीनता 19. ग्रहण की अवधि / सम-स्थापक स्थैर्य, टिकाऊपन 2. दढ़ और बलशाली प्रयत्न, पौरुष (वि०) मूल अवस्था में जमाने वाला, पूर्वावस्था को ..- श० 4 / 14 3. सातत्य, मन की दृढ़ता प्राप्त करने की शक्ति रखने वाला, लचीलेपन को 4. अचलता। धारण करने वाला, -- कः लचीलापन, पूर्वावस्था को | स्थिरा [स्थिर+टाप | पृथ्वी / पुनः प्राप्त करने की सामर्थ्य। स्थुङ (तुदा० पर० स्थुडति) ढकना / स्थिर (वि.) [स्था+किरच, म० अ० स्थेयस्, उ० अ० | स्थुलम् [स्थुड्+अच्, पृषो० डस्य ल:] एक प्रकार का लंबा स्थेष्ठ] 1. दृढ़, स्थिरमति, जमा हुआ-- भावस्थिराणि तंबू। जननान्तरसौहृदानि-श० 5 / 2, स स्थाणुः स्थिरभक्ति- | स्थूणा [स्था+मक, उदन्तादेशः, पृषो०] 1. घर का खंबा योगसूलमो निःश्रेयसायास्तु वः-विक्रम० 111, कु० सतून, स्तंभ 2. पोल या खंबा - स्थूणानिखननन्यायन 1130, रघु० 11319 2. अचल, शान्त, गतिहीन-कु० __ --शारी० 3. लोहमूर्ति या प्रतिमा 4. धन / सम. 2238 3. दृढ़तापूर्वक जमा . उत्तर० 240 -निखननन्याय 'न्याय' के नीचे देखो। 4. स्थायी, नित्य, शाश्वत -- मेघ० 55, मा० 1125, स्थमः (पुं०) 1. प्रकाश 2. चन्द्रमा / 5. शान्त, सचेत, स्वस्थचित्त धीर, गंभीर 6. मौन, स्थूरः [स्था+ऊरन्] 1. साँड 2. मनुष्य / अक्षध 7. आचरण में पक्का, दृढ़ 8. संतत, श्रद्धाल, | स्थूल (वि.) [स्थूल +अच् - म० अ० स्थवीयस, उ० अ० दढ़-संकल्प 9. निश्चित, विश्वास योग्य 10 कठोर, ठोस स्थविष्ठ] 1. विस्तृत, बड़ा, बृहत्, विशाल, महान् 11. मजबूत, अन्तर्दृढ़ 12. कड़ा, निष्करुण, कठोर- ---बहुस्पृशापि स्थूलेन स्थीयते बहिरएमवत् शि० हृदय-कु० ५।४७,-रः देव, सुर 2. वृक्ष, 3. पहाड़ 2178 (यहाँ छठा अर्थ भी घटता है), स्थूलहस्तावले4. सांड 5. शिव का नाम 6. कातिकेय का नाम पान् - मेघ०१४, 106, रघु० 6 / 28 2. मोटा, 7. मोक्ष या निर्वाण 8. शनिग्रह (स्थिरीकृ 1. पुष्ट मांसल, हृष्टपुष्ट 3. मजबूत, शक्तिशाली-स्थल करना, मजबूत करना, समर्थन करना 2. रुकना, दृढ़ / स्थूलं श्वसिति-का० 'कठिनाई से सांस लेता है For Private and Personal Use Only Page #1154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1145 ) 4. बेडौल, भद्दा 5. सम्पूर्ण, साधारण, अनाड़ी। स्थष्ठ (वि०) [ स्थिर+इष्ठन्, स्थादेशः, उ० अ० (आलं० से भी) जैसा कि 'स्थूलमानम्' में 6. मूर्ख, 'स्थिर की' ] अत्यन्त दृढ़, बलबत्तर। मुढ़, बुद्ध, नासमझ 7. आलसी, सुस्त, ठग. | स्थैर्यम् [ स्थिर--ष्या ] 1. दृढ़ता, स्थिरता, अचलता, 8. अयथार्थ, ल: कटहल,-लम् 1. ढेर, राशि 2. तंबू निश्चलता 2. निरन्तरता 3. मन की दृढ़ता, संकल्प, 3. पहाड़ की चोटी। सम०-अन्त्रम् बड़ी आंत जो स्थायित्व - भग० 1317 4. सहनशीलता 5. कड़ागुदा के पास तक जाती है,-आस्यः साँप, - उच्चयः | पन, ठोसपना। 1. पर्वत खंड जो गिर कर ऊबड़-खाबड़ टीले जैसा | स्थौणेयः, स्थौणेयकः [ स्थूणा+ठक, ढकम वा ] एक बन गया हो 2. अपूर्णता, कमी, त्रुटि 3. हाथी की | प्रकार का गंधद्रव्य / मध्यम गति 4. मुंहासा 5. हाथी के दांत का रंध्र, | स्थौरम् [ स्थर-अण ] 1. दढ़ता, सामर्थ्य, शक्ति 2. गधे -काय (वि०) मोटा, मांसल,--क्षेडः, ----श्वेत: बाण, या घोड़े पर लादने का पूरा बोझ। -- चाप: घुनकी,-तालः हिताल,-धी,-मति | स्यौरिन् (नपुं०) [ स्थौर इनि ] 1. पीठ पर बोसा (वि०) मूर्ख, बुद्ध,--नाल लम्बी जाति का सरकंडा | ढोने वाला घोड़ा, लद् घोड़ा 2. मजबूत घोड़ा। -नास,- नासिक (वि०) मोटी नाक वाला, स्थौल्यम् [ स्थूल+ष्यच ] बड़प्पन, बिशालता, हृष्ट(-सः,-क:) सूअर, वराह, - पट:-पटम् मोटा पुष्टता। कपड़ा,--पट्टः कपास, -- पाद (वि०) मोटे पैर र | स्नपनम् [ स्ना+णिच् + ल्युट्, पुक् ] 1. छिड़कना, नहवाला, सूजे पर वाला, (--दः) 1. हाथी 2. श्लीपद लांना 2. स्नान करना, पानी में डुबकी लगाना - रेजे रोग से ग्रस्त व्यक्ति, फलः सेमल (शाल्मली) का जनः स्नपनसांद्रतरार्द्रमूर्ति:--शि० 5 / 57 / वृक्ष, -- मानम् मोटा हिसाब, मोटा अन्दाज, ---लक्ष, स्नवः[स्न+अप] चूना, रिसना, टपकना / -~-क्ष्य (वि.) 1. दानशील, वदान्य, उदार 2. सम स्नस (भ्वा० दिवा० पर० स्नसति स्नस्यति) 1. बसना झदार, विद्वान् 3. लाभ-हानि दोनों का ध्यान रखने 2. उगलना (जैसे मुंह से), परित्याग करना / वाला,... शला बड़ी योनि वाली स्त्री-शरीरम भौतिक स्ना (अदा० पर० स्नाति, स्नात) 1. स्नान करना, और नश्वर शरीर (विप० सूक्ष्म (लिंग) शरीर), नहाना, पानी में डुबकी लगाना -- मृगतृष्णाम्भसि ---शाटक:, शादिः मोटा कपड़ा,--शोषिका क्षुद्र स्नात: 2. गुरुकुल छोड़ते समय स्नान करने के पिपीलिका, छोटी चिऊंटी जिसका सिर, शरीर के अनुपात संस्कार का अनुष्ठान करना, प्रेर० (स्नापयति-ते, से बड़ा हो, षट्पदः 1. भौंरा 2. भिड़,-स्कन्धः लकूच स्नपयति-ते) नहलाना, गीला करना, तर करमा, वृक्ष, बड़हल का पेड़-हस्तम् हाथी की सूई। छिड़कना -(तोयः) सतूर्यमेनां स्नपयांबभूवुः कु० 7 // स्थूलक (वि० ) [ स्थूल-कन् ] विस्तृत, बड़ा, महान्, 10, स्मितस्नपिताधरा--गीत० 12, उत्तर० 3123, विशाल, .क: एक प्रकार की घास या नरकुल कि० 5 / 44, 47, शि० 217, 83, मेघ० 43, इच्छा (सरकंडा)। (सिस्नासति)स्नान करने की इच्छा करना, अप, मृत्यु स्थलता, - त्वम् [स्थूल+तल+टाप, त्व वा] 1. विस्तार, के कारण शोक मनाने के पश्चात स्नान करना,नि,-गहरी विशालता, बड़प्पन 2. सुस्ती, जडता / डुबकी लगाना अर्थात् पारंगत होना, दे० 'निष्णात' / स्थलयति (ना० धा० पर०) बड़ा होना, हृष्ट-पुष्ट है स्नातकः [स्ना+क्त+क] 1. ब्रह्मचर्य आश्रम में अध्ययन ___मोटा होना। समाप्त कर अनुष्ठेय स्नान की विधि पूरा करने वाला स्थूलिन् (पुं०) [ स्थूल+इनि ] ऊँट / ब्राह्मण 2. वह ब्राह्मण जो वेदाध्ययन समाप्त कर स्थैमन् (पु.) [स्था+ इमनिच् ] दृढ़ता, स्थिरता, अभी गुरुकुल से लौटा है और गहस्थ धर्म में दीक्षित अचलता, अडिगपनद्राधीयांसः संहताः स्थेमभाजः हुआ है 3. वह ब्राह्मण जो किसी धार्मिक विधि को --शि० 18133, न यत्र स्थेमानं दधुरतिभयभ्रान्त पूरा करने के लिए भिक्षु बना हो- मनु. 1101 नयना:-भामि // 32 / 4. पहले तीन वर्णों का कोई पुरुष जो गृहस्थधर्म में स्थय (वि.) [ स्था+-यत् ] जमाये जाने योग्य, रक्खे दीक्षित हो चुका है। जाने योग्य, निश्चित या निर्धारित किये जाने योग्य, स्नानम् [स्ना भावे ल्यट] 1. धोना, मार्जन करना, पानी यः (दो दलों के बीच वर्तमान) 1. झगड़े का फैसला में डुबकी लगाना- ततः प्रविशति स्नानोत्तीर्ण: करने के लिए छांटा गया व्यकि विवाचक, पंच, निर्णा- काश्यपः श० 4 2. स्नान द्वारा शुद्धि, कोई धार्मिक यक 2. पुरोहित / या सांस्कारिक मार्जन 3. मूर्ति का स्नान कराना स्थेयस् (वि.) (स्त्री० सी) [स्थिर--- ईयसुन्, स्थादेश: 4. कोई, वस्तु जो स्नान या मार्जन में काम आवे / म० अ० 'स्थिर' की दृढ़तर, अपेक्षाकृत बलवान् / सम० अगारम् स्नानगृह,--द्रोणी स्नान करने की For Private and Personal Use Only Page #1155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नांद,-यात्रा ज्येष्ठपूर्णिमा को मनाया जाने वाला मित्र---स्निग्धजनसंविभक्तं हि दुःख सह्यवेदन भवति पर्व,-वस्त्रम् स्नान का वस्त्र-सकृत कि पीडितं ...श. ३,.तण्डुलः एक प्रकार का चावल जो जल्दी स्नानवस्त्रं मुञ्चेत् द्रुतं पयः-हि. २११०६,-विधिः उगता है,---दृष्टि ( वि० ) टकटकी लगाकर देखने 1. स्नान करने की क्रिया 2. स्नान करने के उचित वाला। नियम या रीति / स्निग्धता,-स्वम् [स्निग्ध+तल्- टप्, त्व वा] 1. चिकनास्मानीय (वि.) [स्नानाय हितं छ] स्नान के लिए योग्य, पन 2. सौम्यता 3. सुकुमारता, स्नेह, प्रेम / मार्जन के लिए उपयुक्त, स्नान के समय पहना स्निग्धा [स्निग्ध+टाप् मज्जा, वसा / / हुआ वस्त्र,-स्नानीयवस्त्रक्रियया पत्रोणं योपयज्यते / स्निह. (दिवा० पर० स्निह्यति, स्निग्ध) 1. स्नेह रखना, -मालवि० 5 / 12, ·-यम् जल या और कोई पदार्थ स्नेहानुभूति होना, प्रेम करना, प्रिय होना (अधि० के (जैसे कि उबटना, या सुवासित चूर्ण आदि) जो। साथ-जिससे प्रेम किया जाय)-किन खल बालेऽरिमस्नान के उपयुक्त हो-रघु०१६।२१। नौरस इव पुत्रे स्निाति मे मनः-श०७, स च स्निह्यस्नापक: [स्ना+णिच्+ण्वुल, पुक्] अपने स्वामी को | त्यावयोः-उत्तर० 6 (यहाँ 'आवयोः 'सम्बन्ध कारक भी स्नान कराने वाला या स्नान के लिए सामग्री लाने हो सकता है) 2. अनायास ही अनरक्त होना 3. किसी वाला नोकर। पर प्रसन्न होना, कृपाल होना 4. चिपचिपा होना, स्नापनम् [स्ना+णिच+ल्युट, पुक] स्नान कराना, या लसलसा या लिबलिबा होना 5. चिकना या सौम्य स्नानकर्ता की टहल करना-मनु० 2 / 209 / होना, प्रेर० (स्नेहयति ते) 1. चिकनी-चुपड़ी बातें स्नायुः [स्नाति शुध्यति दोषोऽनया-स्ना+उण] 1. कंडरा, बनाना, चिकनाना, चिकने पदार्थ से लेप करना, पेशी, नस-स्वरूपं स्नायुवसावशेषमलिनं निर्मासमप्य चिकना करना, तेल लगाना 2. प्रेम कराना 3. विधस्थि गो:--भर्तृ० 2130 2. धनुष की डोरी। सम० टित करना, नष्ट करना, मार डालना / ---अर्मन् आँखों का एक विशेष रोग / स्नु (अदा० पर० स्नौति, स्नुत) 1. टपकना, स्रवण करना, स्नायुकः [स्नायु+कन्] दे० 'स्नायु' / बूंद-बूंद गिरना, सवित होना, पड़ना, रिसना, चूना स्माषः, स्नावन् (पुं०) [स्ना-+ वन्, वनिप् वा] कंडरा, 2. बहना, घार पड़ना, प्र--,बह निकलना, उडेल देना पेशी। -~-प्रस्नुतस्तनी उत्तर० 3 / स्निग्ध (वि.) स्निह+क्त] 1. प्रिय, स्नेही, हितैषी, स्नु (पुं०, नपुं०) [स्ना+कु] 1. पहाड़ का समतल अनुरक्त, प्रेमी --मा० 5 / 20 2. चिकना, तैलाक्त, भूखंड 2. चोटी, सतह (पहले पाँच वचनों में इस मसूण, तेल में भीगा हुआ---उत्पश्यामि त्वयि तटगते शब्द का कोई रूप नहीं होता, कर्म० द्वि०व० के स्निग्धभिन्नाञ्जनाभे-मेघ० 59 स्निग्धवेगीसवर्ण पश्चात् विकल्प से यह सान' शब्द के स्थान में -18, शि० 12663, मा० 1014 3. चिपचिपा, | प्रयुक्त होता है)। लसलसा, लेसदार, लिबलिबा 4. प्रभासित, चमकीला (स्त्री०) [स्नु+क्विप् ] स्नायु, कण्डरा, पेशी / उज्ज्वल, चमकदार---कनकनिकषस्निग्धा विद्यत प्रिया | स्नु (वि.) [स्नु + क्त ] रिसा हुआ. बूंद-बूंद करके न ममोर्वशी-विक्रम० 41, मेघ० 37, उत्तर० गिरा हुआ, बहा हुआ आदि / श३३, 6 / 21 5. चिकना, स्निग्धकारी 6. गीला, स्नुषा [ स्नु सक-- टाप् ] पुत्रवधू समुपास्यत पुत्रभोतर 7. शान्त 8. कृपाल, मद्र, सौम्य, मिलनसार ग्यया स्नुषयेवाविकृतेन्द्रियः श्रिया---रघु० 8 / 14, --प्रीतिस्निग्धर्जनपदवधूलोचनः पीयमानः मेघ० 15 / 72 / 16 9. प्रिय, रुचिकर, मोहक, रघु० 1136, उत्तर० स्नुह, ( दिवा० पर० स्नुह्यति, स्नग्ध या स्नूढ) उलटी 2 / 14, 3122 10. मोटा, सधन, सटा हुआ-स्निग्ध- करना, के करना। च्छायातरुषु वसति रामगिर्याश्रमेष (चक्रे)---मेघ०१ स्नेहः [ स्निह+घञ ] 1. अनुराग, प्रेम, कृपालता, 11. तुला हुआ, जमाया हुआ, (दृष्टि की भांति) सुकुमारता-स्नहदाक्षिण्ययोर्योगात कामीव प्रतिभाति टकटकी लगाये हए,.... उधः 1. मित्र, स्नेही, मित्र- में विक्रम० 2 / 4 (यहाँ इसमें छठा अर्थ भी घटता सदश, हितैषी--विजैः स्निग्धरुपकृतमपि द्वेष्यता है), अस्ति मे सोदरस्नेहोप्येतेषु श०१ 2. तलायाति किंचित् हि० 21160, या, स स्निग्धोऽकुशला- क्तता, मसणता, चिकनापन, चिकनाहट (वैशेषिक के निवारयति यः- सुभा०, पंच० 21166 2. लाल अनसार 24 गणों में से एक) 3. नमी 4. चर्बी, एरण्ड का पौधा 3. एक प्रकार का चीड़ का वृक्ष बसा, कोई भी चिकना पदार्थ 5. तेल निबिष्टविषय-ग्धम् 1. तेल 2. मोम 3. प्रकाश, आभा 4. मोटा- स्नेहः स दशान्तमुपेयिवान रध० 121 पंच० 11 पन, खुरदुरापन। सम-जनः स्नेही व्यक्ति, हितैषी 87, (यहाँ प्रथम अर्थ भी घटता है) रधु० 4 / 75 For Private and Personal Use Only Page #1156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 ( 1947 ) 6. शरीरगत कोई भी तरल पदार्थ जैसे कि वीर्य / | स्पन्दित (भू० क० कृ.) [स्पन्द्+क्त ] 1. थरथरीयुक्त, सम० ----अक्त तेल में भिगोया हुआ, चिकनाया हुआ, ठिठुरा हुआ 2. गया हुआ, तम् नाडी का स्फुरण, चर्बी में लिप्त, - अनुवृत्तिः (स्त्री०) स्निग्ध या मित्रों धड़कन, धकधक / जैसा मेल-जोल,-आशः दीपक, -छेदः, --भङ्गः | स्पर्ष (भ्वा० आ० स्पर्धते) 1. स्पृहा करना, होड़ लगाना, मित्रता का टूट जाना, --पूर्वम् (अव्य०) अनुराग मुकाबला करना, प्रतिद्वन्द्विता करना, प्रतियोगिता पूर्वक,- प्रवृत्तिः (स्त्री०) प्रेम प्रवाह---श०४।१६, करना, -- अस्पर्धिष्ट च रामेण-भट्टि० 15165 -----प्रिय (वि.) जिसे तेल अधिक प्यारा हो, (-यः) कस्तैस्सह स्पर्धते --भर्तृ० 2 / 16 2. ललकारना, दीपक, --- भूः श्लेष्मा, -रङ्गः तिल, ---वस्तिः (स्त्री०) चुनौती देना, उपेक्षा करना, प्रति-, घि--, चुनौती तेल की सुई लगाना, तेल का अनीमा करना, गुदा के देना, ललकारना। मार्ग से पिचकारी द्वारा तेल डालना,-विदित | स्पर्धा [ स्पर्ध +अ+टा] प्रतियोगिता, प्रतिद्वन्द्विता, (वि.) तेल से मालिश किया गया,---व्यक्तिः होड़-आत्मनस्तु बुधैः स्पर्धा शुद्धधीर्बह्वमन्यत 2. ईर्ष्या, (स्त्री०) प्रेम का प्रकटीकरण, मित्रता का प्रदर्शन, डाह 3. चुनौती 4. समानता। .... (भवति) स्नेहव्यक्तिश्चिरविरहजं मुञ्चतो बाष्प-स्पधिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ स्पर्धा+इनि ] 1. प्रतिमुष्णम् .-मेघ० 12 / द्वन्द्विता करने वाला, होड़ करने वाला, प्रतिस्नेहन् (पुं०) [ स्निह+कनिन्, नि०] 1. मित्र योगिता करने वाला, प्रतिस्पर्धाशील-तवाघरस्पर्धिषु 2. चन्द्रमा 3. एक प्रकार का रोग।। विद्रुमेषु-रघु० 13 / 13, 16 / 62 2. प्रतिस्पर्धी, स्नेहन (वि०) [ स्निह --णिच् + ल्युट] 1. मालिश ईल 3. घमंडी,--(पुं० ) प्रतियोगी, समकक्ष करने वाला, चिकनाने वाला 2. नष्ट करने वाला, व्यक्ति / ---नम् 1. तेल मालिश, चिकनाना, तेल या उबटना | स्पर्श ( चुरा० आ० स्पर्शयते) 1. लेना, पकड़ना, छूना मलना 2. चिकनाहट 3. उबटन, स्निग्धकारी। 2. मिलना, संयुक्त होना 3. आलिंगन करना, स्नेहित (भू० क० कृ) [ स्निह --णिच+क्त ] 1. प्रेम- आश्लेषण / पात्र 2. कृपालु, स्नेही 3. लिपा हुआ, चिकनाया हुआ, | स्पर्शः [स्पर्श (स्पृश् वा)+घञ्] 1. छूना, संपर्क --तः मित्र, प्यारा। (सभी अर्थों में तदिदं स्पर्शक्षम रत्नम-श०१।२८, स्नेहिन् (वि.) (स्त्री०--नी) [स्निह+णिनि ] 217 2. संयोग (ज्यो. में) 3, संघर्ष, मुठभेड़ 1. अनुरक्त, स्नेह करने वाला, मित्र सदश 2. तलाक्त, 4. भावना, संवेदना, छूने से होने वाला शान 5. स्वचा चिकना, चर्बी युक्त (0) 1. मित्र 2. मालिश करने का विषय, स्पर्शयोग्यता, स्पर्शगुण - स्पर्शगुणों वायुः वाला, लेप करने वाला 3. चित्रकार / --तर्क. 6. प्रभाव, रोग, बीमारी का दौरा 7. रोग, स्नेहुः [स्निह+उन्] 1. चन्द्रमा 2. एक प्रकार का रोग। व्याधि, विकृति, आदि या मनोव्यथा 8. (फ से म स्न (भ्वा० पर० स्नायति) पट्टी बांधना, लपेटना, सुडौल तक) पांचों वर्गों में कोई सा व्यंजन-कादयो मान्ताः करना, आवृत्त करना, परिवेष्टित करना। स्पर्शाः 1. उपहार, दान, भेंट 10. हवा, वायु स्नग्ध्यम् [ स्निग्ध+व्या ] 1. चिकनाहट, स्निग्धता, 11. आकाश 12, एक रतिबंध,-र्शा कुलटा, पुश्चली। फिसलन, चिक्कणता 2. सुकूमारता, प्रियता 3. चिक सम०-अज्ञ (वि०) स्पर्शज्ञान से रहित, संवेदनशन्य नापन, मृदुता। ---इन्द्रियम् स्पर्श का ज्ञान, या स्पर्शज्ञान प्राप्त करने स्पन्द (भ्वा० आ० स्पन्दते, स्पन्दित) 1. घड़कना, धकधक वाली इन्द्रिय, उदय (वि.) जिसके पीछे व्यंजन करना अस्पन्दिष्टाक्षि वामं च --भट्रि० 15 / 27, वर्ण हो, --उपलः,-मणिः पारस पत्थर-तन्मात्रम् 14183 2. हिलना, कांपना, ठिठरना 3. जाना, गति वह तत्त्व जिसका छने से ज्ञान हो,--लज्जा छुईमुई शील होना, परि-धड़कना, कांपना, वि...', इधर का पौधा -वेध (वि०) स्पर्श के द्वारा जिसका ज्ञान उपर घूमना, संघर्ष करना / हो---संचारिन् (वि०) संक्रामक, छूत का,--स्नानम् स्पन्दः [ स्पन्द-/-घा ] 1. धड़कन, धकधक 2. कंपकंपी, सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण आरम्भ होने पर स्नान, स्पन्दः, थरथराहट, गति–मनो मन्दस्पन्दं बहिर पि चिरस्यापि --स्यन्दः मेंढक / विमृशन्--भर्तृ० 3 / 51 / स्पर्शन (वि०) (स्त्री०-नी) [स्पर्श (स्पृश् वा) स्पग्वनम् [ स्पन्द+ल्युट] 1. धड़कना, नाड़ी का फड़कना, +ल्यूट ] 1. छूने वाला, हाथ लगाने वाला 2. प्रस्त थरथराहट, कंपकंपी-वामाक्षिस्पंदनं सूचयित्वा करने वाला, प्रभाव डालने वाला,-नः हवा, वायु, -मा० 1, इसी प्रकार अघर, बाहु, शरीर आदि -नम 1. छना, स्पर्श, संपर्क 2. संवेदन, भावना 2. थरथरी, घड़कन 3. अर्भक में जीव का स्फूरण / 3. स्पर्शेन्द्रिय या स्पर्शजन्य ज्ञान 4. भेंट, दान / For Private and Personal Use Only Page #1157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1148 ) स्पर्शनकम् [स्पर्शन+कन् ] सांख्यदर्शन में प्रयुक्त 'त्वचा' / (स्पर्शयति-ते) 1. छ्वाना 2. देना, प्रस्तुत करना ___ का पर्यायवाची शब्द / -गाः कोटिशः स्पर्शयता घटोघ्नी:-रघु० 2 / 49, स्पर्शवत (वि.) [स्पर्श+मतप 11. स्पर्श किये जाने अप-उपस्पृश्, अभि-,छूना, उप-,1. छूना 2. शरीर के योग्य 2. मृदु, छुने में रुचिकर या कोमल-कु० पर पानी के छीटे देना या स्नान करना-मनु०४। 1155 / 143 3. आचमन करना, पानी देना, कुल्ला करना स्पर्ष (म्वा० आ० स्पर्षते) गीला या तर होना। --स नद्यवस्कन्दमुपास्पृशच्च-भट्टि० 2 / 11, मनु० स्पई (पु.) [स्पृश्+तृच ] मनोव्यथा, शरीर में | 2053, 5 / 63, अप उपस्पृश्य 4. स्नान करना-रघु० विकार, रोग / 5 / 59, 18131, परि , छूना, सम् -, 1. छूना स्पश(स्वा उभ० स्पशति) 1. अवरुद्ध करना 2. दायित्व 2. पानी से छिड़काव करना- मनु० 2 / 53 3. सम्पर्क प्रहण करना, संपन्न करना 3. नत्थी करना 4. छूना, स्थापित करना। देखना, निहारना, स्पष्ट दृष्टिगोचर होना, जासूसी स्पृश् (वि.) [स्पृश् + क्विप् ] (समास के अन्त में करना, भांपना, भेद पाना। प्रयुक्त) जो छूता है, छूने वाला, ग्रस्त करने वाला, स्पशः स्पश+अच] 1. भेदिया, गप्तचर,-स्पशे शनर्गत- बेधने वाला,- मर्मस्पृश, हृदिस्पृश् आदि / वति तत्र विद्विषाम् शि० 17420, दे० 'आपस्पश' स्पृष्ट (भू० क.कृ.) [स्पृश्+क्त ] 1. छूआ हुआ, भी 2. लड़ाई, संग्राम, युद्ध 3. (पुरस्कार पाने के हाथ लगाया हुआ 2. सम्पर्क में आया हुआ, स्पर्शी लिए) जंगली जानवरों से लड़ने वाला, या ऐसी 3. पहुँचने बाला, उपयोग करने वाला, विस्तार पाने लड़ाई। वाला-अस्पृष्टपुरुषान्तरम् कु० 675 4. ग्रस्त, स्पष्ट (वि०) [ स्पश्+क्त ] जो साफ़ साफ़ देखा जा पकड़ा हुआ --मेघ० 69, अनघस्पृष्टम्-रघु० 10 / 19 सके, व्यक्त, साफ़ दृष्टिगोचर, साफ़, सरल, प्रकट 5. गन्दा, मलिन --मनु० 8 / 205 6. जिह्वा के पूर्ण --स्पष्टे जाते प्रत्यूषे-का० 'जब धूप खिल गई थी' स्पर्श से बना हुआ (पांचों वर्गों में से कोई सा वर्ण) स्पष्टाकृति:-रघु०१८।३०, स्पष्टार्थः-आदि 2. वास्त- अचोऽस्पृष्टा यणस्त्वीषन्नेमस्पृष्टा शलः स्मृताः / शेषाः विक, सच्चा 3. पूरा खिला हुआ, फूला हुआ 4. साफ़ स्पृष्टा हल: प्रोक्ता निबोधानप्रदानतः-शिक्षा० 38 / साफ़ देखने वाला,-ष्टम् (अव्य०) 1. स्पष्ट रूप से, स्पृष्टिः, स्पष्टिका (स्त्री०) [स्पृश्+वितन, स्पृष्टि साफ़ तौर पर, साफ़-साफ़ 2. खुल्लमखुल्ला, साहस +कन्+टाप् ] छना, सम्पर्क तद्वयस्य अस्मच्छरीरपूर्वक (स्पष्टीह साफ़ करना, प्रकट करन्म, व्याख्या स्पृष्टिकया शापितोऽसि-मृच्छ० 3 / खोल कर कहना)। सम० - गर्भा वह स्त्री जिसके स्पृह, (चुरा० उभ० स्पृहयति-ते) कामना करना, लालागर्भ के चिह्न साफ़ देख पड़ें,-प्रतिपत्तिः (स्त्री०) यित होना, इच्छा करना, उत्सुक होना, चाहना (संप्र० स्पष्ट ज्ञान, शुद्ध प्रत्यक्षज्ञान,-भाषिन्,-वक्त (वि.) के साथ) स्पयामि खल दुर्ललितायास्मै श०७, साफ़-साफ़ कहने वाला, मुंहफट, खरा, सरल / तपःक्लेशायापि स्पृहयन्ती का०, न मैथिलेयः स्पृहयांस्म (म्वा० पर० स्पृणोति) 1. मुक्त करना, उद्धार करना | बभूव भर्ने दिवो नाप्यलकेश्वराय रघु० 16142, 2. पुरस्कार देना, अनुदान देना, प्रदान करना 3. रक्षा भर्तृ० 2 / 45 / करना 4. जीवित रहना। स्पृहणम् [ स्पृह, +ल्युट् ] इच्छा या कामना करने की स्पक्का [ स्पृश्+का पृषो० शस्य कः ] एक जंगली | क्रिया, लालायित होना। पोषा। स्पृहणीय (वि.) [स्पृह +अनीयर ] चाहने के योग्य, स्पृश् [ तुदा० पर० स्पृशति. स्पुष्ट ] 1. छूना-स्पृशन्नपि अभिलषणीय, स्पृहा के योग्य, वांछनीय अहो गजो हन्ति - हि. 3 / 14, कर्णे परं स्पृशति हन्ति परं बतासि स्पहणीयवीर्यः-कू० 320, वन्द्या त्वमेव समूलम्--पंच०१४३०४ 2. हाथ रखना, थपथपाना, जगतः स्पृहणीयसिद्धिः मा० 10121, परस्परेण छूना--कु० 322 3. जुड़ जाना, चिपक जाना, स्पृहणीयशोभं न चेदिदं द्वन्द्वमयोजयिष्यत् रघु० संपृक्त होना 4. पानी से धोना या छिड़काब करना 7 / 14, कु. 7 / 60, उत्तर०६।४० / मन० 160 5. जाना, पहुँचना--श० 2 / 14, रघु० / स्पृहयाल (वि.) [स्पह+णिच्+आलच] इच्छा करने 3243 6. प्राप्त करना, हासिल करना, विशेष स्थिति वाला, लालायित, उत्सुक, उत्कण्ठित (संप्र० या पर पहुँचना -महोक्षतां वत्सतरः स्पृशन्निव-रघु० / अधिक के साथ) भोगेभ्यः स्पहयालवो न हि वयम् 3 / 327. कार्य में परिणत करना, प्रभावित करना, —भर्तृ० 364, तपोवनेषु स्पृहयालुरेव-रघु० ग्रस्त करना, पसीजना, द्रवीभूत होना - मुद्रा० 7.16, / 14 / 45 / कु० 6.95 8. संकेत करना, उल्लेख करना-प्रेर० / स्पृहा [ स्पृह +अच्+टाप् ] इच्छा, उत्सुकता, प्रबल For Private and Personal Use Only Page #1158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कामना, लालसा, ईर्ष्या, अभिलाषा-कथमन्ये करि- | स्फार (वि.) [स्फाय---रक्] 1. विस्तृत, बड़ा, बढ़ा हुआ, ष्यन्ति पुत्रेभ्यः पुत्रिणः स्पृहाम्---वेणी० 3 / 29, / फुलाया हुआ ..स्फारफुल्लत्फणापीठनियंत्-आदि-मा० रघु० 8 / 34 / 5 / 23, महावीर० 6 / 32 2. अधिक, पुष्कल . महास्पा (वि.) [स्पृह, +णिच् + यत्। वांछनीय, स्पर्धा के | वीर० 5 / 2, भर्तृ० 3142 3. ऊंचा (स्वर),-र योग्य, ह्यः बिजौरा नीब / 1. सूजन, वृद्धि, विस्तार, विकास 2. (सोने में पड़ी स्पृ (क्रया० पर० स्पृणाति) आघात करना, मार डालना। हुई) फुटकी 3. उभार, गिल्टी 4. धड़कना, थरथरीस्प्रष्ट (पुं०) दे० 'स्पष्टुं'। युक्त स्पन्दन, धकधक 5. टंकार,-रम् प्रचुरता, स्फट (भ्वा० पर० स्फटति) फट पड़ना, फूलना। आधिक्य, पुष्कलता (स्फारीभ सूज जाना, फूलना, स्फटः [स्फट + अच्] साँप का फैलाया हुआ फण तु० | फैलना, बढ़ना, वृद्धि होना -सुस्निग्धा विमुखीभवन्ति फट-टा। सुहृदः स्फारीभवन्त्यापदः मुच्छ० 1136 / स्फटा [स्फट+टाप्] 1. साँप का फैलाया हुआ फण | स्फारण [स्फुर् +-णिच् + ल्युट्, स्फारादेशः] थरथराहट, 2. फिटकिरी। स्फुरण, कंपकंपी। स्फटिकः स्फटि+के+क बिलौर, काचमणि---अपगतमले स्फाल: [स्फाल+घञ्] थरथराहट, धकधक, घड़कन, हि मनसिं स्फटिकमणाविव रजनिकरगभस्तयः सुखं कंपकंपी। प्रविशन्त्युपदेशगणाः-का० / सम०-अचल: मेरु पर्वत, स्फालनम् [स्फाल् + ल्युट्] 1. स्पन्दन, धकधक 2. हिलाना-- अद्रिः कैलास पहाड़, भिद् (पुं०) कपूर अश्मन्, डुलाना 3. रगड़ना, घिसना 4. थपथपाना, सहलाना --आत्मन,-मणि (0) शिला बिल्लौर पत्थर / (घोड़े आदि को), धीरे-धीरे हाथ फेरना। स्फटिकारिः, स्फटिकारिका (स्त्री०) फिटकिरी। | स्फिच् (स्त्री०) [ स्फाय+डिच् ] चूतड़, कूल्हा, अंसस्फटिकी [फटिक+डीप] फिटकिरी। स्फिक्पृष्ठपिण्डाद्यवयवसुलभान्युग्रपूतानि जग्ध्वा-मा० स्पष्ट / ( भ्वा० पर० स्फण्टति ) फूट पड़ना, खिलना, 5 / 16 / स्फिट् (चुरा० उभ० स्फेटयति--ते) 1. चोट पहुँचाना, 1 ( चुरा० उभ० स्फण्टयति-ते) मखौल करना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना 2. घृणा करना 3. प्रेम मजाक करना, हंसी उड़ाना। करना 4. ढकना। स्फर् दे० स्फुर् / | स्फिट्ट (चुरा० उभ• स्फिट्टयति ---ते) चोट पहुंचाना स्फरणम् [स्फर्+ल्युट कांपना, थरथराना, धड़कना / / | आदि, दे० ऊपर 'स्फिट् / स्फल् (भ्वा० पर० स्फलति) कांपना, थरथराना, घड़कना, स्फिर (वि.) [स्फाय+किरच्, म० अ० स्फेयस, उ. लरजना, (चुरा० उभ० या प्रेर० स्फालयति-ते) अ० स्फेष्ठ ] 1 प्रचुर, प्रभूत, बहुत 2. बहुत से, कंपा देना, हिला देना, आ , 1. कंपाना, फड़फड़ाना, असंख्य 3. विस्तृत, आयत / हिलाना, डुलाना 2. आघात करना, प्रपीडित करना, स्फीत (भू० क. कृ.) [स्फाय+क्त, स्फी आदेशः ] छपछप करना आस्फालितं यत्प्रमदाकराप्रैः - रघु० 1. सूजा हुआ, बढ़ा हुआ-वेणी० 5/40 2. मोटा, 16 / 13, उत्तर० 5 / 9 3. आघात करना, अनुचित पीन, बड़ा, विस्तृत, विशाल 3. बहत से, असंख्य, लाभ उठाना-शि० 119 4. (धनुष को) टंकारना / अधिक, पर्याप्त, पुष्कल, प्रचुर 4. पवित्र--भामि० स्फाटिक (वि०) (स्त्री०-की)स्फिटिक+अण] विल्लौर 4 / 13. सफल, समृद्ध, फलता-फूलता 6. पैतृक रोग पत्थर का, कम बिल्लौर पत्थर / से ग्रस्त (स्फीतीकृत बड़ा करना, विस्तृत करना)। स्फाटित (भू० क. कु.) [स्फट्+णिच्+क्त] फाड़ा स्फीतिः [ स्फाय+क्तिन्. स्फी आदेशः ] 1. बृद्धि, बढ़ती, हुआ, फटा हुआ, फूला हुआ, विदीर्ण किया हुआ। विस्तार 2. प्राचुर्य, यथेष्टता, पुष्कलता- धनधान्यस्य स्फातिः (स्त्री०) [स्फाय +क्तिन्, यलोपः) 1. सूजन, च स्फीतिः सदा मे वर्ततां गृहे 3. समृद्धि / शोथ 2. वृद्धि, बढ़ती। स्फुट / (तुदा० पर०, म्वा० उभ० स्फुटति, स्फोटति - ते, स्फाय (म्वा० आ० स्फायते, स्फीत) 1. मोटा होना, स्फुटित) 1. फट जाना, अकस्मात् फूट जाना, टूट बड़ा होना, विस्तारयुक्त होना, विशाल होना 2. सूजना, जाना, अचानक विदीर्ण होना, दरार पड़ना, भंग होना बढ़ना, फूलमा / संघले तयोः कोपः पस्फाये शस्त्र- -~-हा हा ! देवि स्फुटति हृदयं संसते देहबन्ध:-उत्तर० लाघवम् . भट्टि. १४११०९--प्रेर. (स्फावयति-ते) 3138, स्फुटति न सा मनसिजविशिखेन गीत०७, बढ़ाना, विकसित करना, विस्तारयुक्त करना, बड़ा भट्टि० 14156. 1577 2. फूलना, खिलना, फूल करना--तावत्स्फावयता शक्तीर्वाणांश्चाकिरतां मुहुः / देना, कुसुमित होना-स्फुटति कुसुमनिकरे विरहि-भट्टि. 17143, 4 / 33, 12 / 76, 15 / 99 / हृदयदलनाय.... गीत० 5. पंच० 11136. काव्य. For Private and Personal Use Only Page #1159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1150 ) 3 / 167 3. भाग जाना, छलांग लगाना, तितर- / स्फुट, (चुरा० उभ० स्फुट्टयति-ते) तिरस्कार करना, वितर करना,- तुरङ्गः पुस्फुदुर्भीता:- भट्टि० 1416, अपमान करना, निरादर करना। 10184. दृष्टिगोचर होना, निगाह में पड़ना, प्रकट | कर (तुदा० पर० स्फुडति) ढकना / होना, स्पष्ट होना। स्फुष्ट i (भ्वा० पर० स्फुण्टति) खोलना, फुलाना / ii (चुरा० उभ० स्फुटयति-ते) 1. फटना, तरेड़ (चुरा० उभ० स्फुण्टयति-ते) मखौल करना, आना, टूट जाना 2. निगाह में पड़ना,-प्रेर० स्फोट मजाक करना, उपहास करना। यति-ते, 1. फट कर टुकड़े टुकड़े होना, खंडश: स्फुण्ड (भ्वा० आ०, चुरा० उभ० स्फुण्डते, स्फुण्डयति-ते) होना, खोल कर फाड़ना, तरेड़ डालना, बांटना 2. प्रकट करना, बतलाना, स्पष्ट करना 3. खोलना, स्फुत् (अव्य०) एक अनुकरण परक ध्वनि / करः आग, भंडाफोड़ करना 4. चोट पहुंचाना, नष्ट करना, मार -कारः 'स्फुत्' ध्वनि, चटचटाने की आवाज / डालना 5. पछोड़ना। स्फुर् (तुदा० पर० स्फुरति, स्फुरित) 1. (क) थरथराना, स्फुट (वि.) [स्फुट+2 ] 1. फट पड़ा, टूट कर टुकड़े फरकना (जैसे आंख का) शान्तमिदमाश्रमपदं हुआ, टूटा हुआ, खंडित 2. खिला हुआ, फूला हुआ, स्फुरति च वाहुः कुतः फलमिहास्य श० 1115, प्रफुल्लित - स्फुटपरागपरागतपङ्कजम्-शि० 625 स्फुरता वामकेनापि दाक्षिण्यमवलम्ब्यते मा० 118 3. प्रकटीकृत, प्रदर्शित, स्पष्ट किया हुआ (ख) हिलना, कांपना, लरजना, थरथराना स्फूरद4. साफ़, स्पष्ट, साफ दिखाई देने वाला या व्यक्त धरनासापुटतया ---उत्तर० 1129, 6 // 33 2. खसोटना, --अत्र स्फुटो न कश्चिदलङ्कारः-काव्य० 1, कु० संघर्ष करना, विक्षुब्ध होना हतं पृथिव्यां करुणं 5 / 44, मेघ०७०, कि० 11144 5. प्रत्यक्ष-उत्तर० स्फुरन्तम्- राम० 3. कृच करना, फेंकना, आगे उछ३।४२ 6. श्वेत, उज्ज्वल, शुभ्र-मुक्ताफलं वा लना-पुस्फुरुर्वृषभाः परम् ---भट्टि० 1416 4. पीछे की स्फुटविद्रुमस्थम्- कु० 1144 7. सुविदित. प्रसिद्ध, ओर उछलनी, पलट कर आना 5. उछलना, फूट -स्फुटनृत्यलीलमभवत्सुतनो:- शि० 9 / 79 (प्रथित) निकला, उदगत होना, उठना--धर्मतः स्फूरति निर्मल 8. प्रसारित, विकीर्ण 9. उच्च 10. दृश्यमान, सत्य, यशः 6. दष्टिगोचर होने लगना, दिखाई देने लगना, -~-टम् (अध्य०) स्पष्ट रूप से, विशदतया, साफ़ तौर प्रकट होने लगना, स्पष्ट दिखाई देना, प्रदर्शित होना पर, निश्चय ही, प्रकट रूप से / सम० अर्थ (वि०) ___ मुखात्स्फुरन्ती को हर्तुमिच्छति हरेः परिभूयं दंष्ट्राम् 1. बोधगम्य, स्पष्ट 2. सार्थक,-तार (वि.) जिसमें --- मद्रा० 118, रचितरुधिरभूषां दष्टिमीपे प्रदोषे तारे रूपी रत्न जड़े हुए हों, उज्ज्वल,-फलम् (ज्या० स्फुरति निरवसादो कापि राधां जगाम - गीत०११ में) 1. किसी त्रिकोण का यथार्थ क्षेत्रफल 2. किसी 7. दमक उठना, जगमगाना, चिंगारी उठना, चमकना, गणित का मूलफल, सारः किसी ग्रह या तारे का झलकना, टिमटिमाना-स्फुरति कुचकुम्भयोपरि वास्तविक आयाम,-- सूयंगतिः (स्त्री०) सूर्य की दृश्य मणिमञ्जरी रञ्जयतु तव हृदयदेशम् गीत० 10, मान या वास्तविक गति / (तया) स्फुरत्प्रभामण्डलया चकाशे कु० 1 / 24, स्फुटनम् [ स्फूट+ल्य ] 1. तोड़ कर खोलना, फाड़ रघु० 3160, 5 / 51, मेघ०१५।२७ 8. चमकना, देना, फूट जाना, फट कर खुल जाना 2. प्रसार होना, विशिष्टता दिखाना, प्रमुख होना. पंच० 1127 खुलना, प्रफुल्लित होन / 9. अचानक मन में फुरना, अकस्मात् स्मृति में आना स्फुटिः,टी (स्त्री०) [ स्फुट-+-इन्, पक्षे डीष ] पैरों की 10. थरथराते हुए चलना 11. खरोंचना, नष्ट करना खाल का फट जाना, दवाई, परों का दुःखना या | -प्रेर० (स्फारयति-ते, स्फोरयति-ते) 1. थरथराना सूजन / 2. चमकाना, जगमगाना 3. फेंकना, डाल देना, अप--- स्फुटिका [ स्फुटि+कन्+टाप् ] टूटा हुआ छोटा टुकड़ा, चमक उठना, अभि.--.1. फैसला, प्रकीर्ण होना, फूलना खंड, फांक। 2. ज्ञात होना, परि घड़कना, फरकना, धकधक स्फुटित (भू० क० कृ०) [स्फुट+क्त ] 1. फटा हुआ, करना-- तस्याः परिस्फुरितगभरालसायाः - उत्तर टूट कर खुला हुआ, खंड-खंड हुआ, तरेड़ आया हुआ 3128, प्र-, 1. फरकना, कांपना 2. फैलना, प्रसृत 2. मुकूलित, खिला हुआ, प्रफुल्लित (जैसा कि होना--प्रास्फुरन्नयनम् --महा० 3. दूर-दूर तक फूल) 3. स्पष्ट किया गया, प्रकट किया गया, फैलना, विख्यात होना-.--संस्थितस्य गुणोत्कर्षः प्रायः दिखलाया गया 4. फाड़ा हुआ, नष्ट 5. हंसी उड़ाया प्रस्फुरति स्फुटम्-सुभा०, वि-, 1. फरकना, हुआ। सम०-चरण (वि.) जिसके पैर फैले हों, कापना 2. संघर्ष करना 3. चमकना, दमकना बाहर को निकले हुए चौड़े चपटे पर बाला। .. उत्तर० 4 4. (धनुष को) तानना, टंकारना फलपति स्वार्थ करना को) ता For Private and Personal Use Only Page #1160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1151 ) (इसी अर्थ में प्रेर० रूप प्रयुक्त होता है)—एकोऽपि | स्फेयस् (वि०) अतिशयेन स्फिरः, ईयसुन्, स्फादेशः 'स्फिर विस्फुरितमण्डलचापचकं कः सिन्धुराजमभिषणयितुं की म० अ०] प्रचुर तर, अपेक्षाकृत विस्तारयुक्त। समर्थः-वेणी० 2 / 25, कि० 14 / 31 / स्फेष्ठ (वि.) [ स्फिर+इष्ठन्, स्फादेशः, 'स्फिर' की स्फुरः [ स्फुर् भावे घटा ] 1. धड़कना, थरथराना, फर- उ० अ० ] प्रचुरतम, अत्यंत विस्तारयक्त / कना 2. सूजन 3. ढाल / स्फोटः [ स्फुट करणे घा ] 1. फूट निकलना, चटक कर स्फुरणम् [ स्फुर-+ ल्युट ] 1. धड़कना, फरकना, थरथ- खुलना, फट पड़ना 2. भेद खुलना जैसा कि 'नर्मस्फोट राना 2. शरीर के अंगों का (शुभाशुभसूचक) फरकना में 3. सूजन, फोड़ा, रसौली 4. शब्द के सूनने पर मन 3. फट निकलना, उदित होना, दिखाई देने लगना में आने वाला भाव, शब्द सुन कर मन में उत्पन्न होने 4. चमकना, दमकना, जगमगाना, झलकना, टिमटिमाना वाला विचार-बुधर्वैयाकरणः प्रधानभूतस्फोटरूपव्य5. मन में फुरना, अचानक स्मरण हो आना। जकस्य शब्दस्य ध्वनिरिति व्यवहारः कृतः --काव्य स्फुरत् (वि०) [ स्फुर-+-शतृ 1 धड़कने वाला. चमकने 1, सर्व भी दे० (पाणिनीयदर्शन) 5. मीमांसकों वाला। सम० उल्का उल्कापिंड, टूटा तारा। द्वारा माना हआ नित्य शब्द / सम-बीजक: भिलावा / स्फुरित (भू० क० कृ०)। स्फुर+क्त ] 1. कंपायमान, | स्फोटन (वि.) (स्त्री० - नी) स्फुट ल्युट ] फाड़कर धड़कता हुआ 2. हिला-डुला 3. चमकीला, दमकने अलग-अलग करना, प्रकट करना, भेद खोलना, स्पष्ट वाला 4. अस्थिर 5. सूजा हुआ, ...तम् 1. धड़कना, करना,-नः परस्पर मिले हुए व्यंजनों का अलग-अलग फरकना, थरथराहट 2. विक्षोभ या मन का संवेग / उच्चारण,-नम् फाड़ना, अचानक फट पड़ना, टुकड़े स्फुर्छ (म्वा० पर० स्फूर्च्छति) 1. फैलना, विस्तृत होना टुकड़े होना, चटकना 2. अनाज फटकना 3. अंगुलियों 2. भूल जाना। को ग्रन्थियां चटखाना, अंगुलियाँ चटकना 4. दो मिले स्फुर्ज (म्वा० पर० स्फूर्जति) 1. गरजना, गरजनध्वनि, हुए व्यंजनों का अलग करना। धमाधम होना, विस्फोट होना,--मनु० 1153 2. दम- | स्फोटनी [ स्फोटन+ङीप्] सूराख करने का औज़ार, जमीन कना, चमकना 3. फट पड़ना, फूटना, स्फूर्जत्येव स | का बरमा, बरमा / एष सम्प्रति मम न्यक्कारभिन्नस्थितेः --- महावीर० स्फोटा [ स्फोट+टाप् ] साँप का फैलाया हुआ फण / 3140, वि, 1. दहाड़ना, गरजना 2. गंजना | स्फोटिका [स्फुट +ण्वुल+टाप, इत्वम्] एक पक्षीविशेष / 3. बढ़नः .. चमकना, प्रतीत होना-अस्त्येवं जडधा- स्फोरणम् (दे० स्फुरणम्)। मता तु भक्तो रद् व्योम्नि विस्फूर्जसे-काव्य. 10 / / स्पषम् [ स्फाय+यत्, नि० साधुः ] यज्ञों में प्रयुक्त होने स्फुल् (तुदा० पर० स्फुलति) 1. कांपना, धड़कना, धक- __ वाला तलवार के आकार का एक उपकरण-मनु० धक करना 2. लपकना, अचानक आ पड़ना 3. स्वस्थ- 5 / 117, याज्ञ. 184 / सम-वर्तनि: इस उपचित्त होना 4. मार डालना, नष्ट करना / करण द्वारा बनाया गया चिह्न (खूड)। स्फुलम् (स्फुल+क] तंबू, खेमा / दे० स्व। स्फुलनम् [ स्फुल-+ ल्युट् ] कांपना, थरथराना, फरकना। (अव्य) [स्मि+] एक प्रकार का निपात जो स्फुलिङ्गः, -- गम्, स्फुलिङ्गा [स्फुल+इङ्गक ] आग की वर्तमान काल की क्रियाओं के साथ (या वर्तमान चिगारी,- स्फुलिंगावस्थया बहिरेधापेक्ष इव स्थितः कालिक कृदंत शब्दों के साथ) जुडकर भूतकाल का --श० 7.15, वेणी०६।८ / अर्थ देता है . भासुरको नाम सिंहः प्रतिवसति स्म स्फर्जः [ स्फूर्ज+घा ] 1. बादलों की गड़गड़ाहट 2. इन्द्र ---पंच० क्रीणन्ति स्म प्राणमुल्यर्यशांसि-शि० 17.15 का वज़ 3. अकस्मात् फूट निकलना या उदय होना 2. शब्दाधिक्य निपात (बहुधा निषेधात्मक निपात के ..जैसा कि 'नर्मस्फर्ज' में 4. नायक-नायिका का साथ जोड़ा जाता है - भविप्रकृतापि रोषणतया मा प्रथम मिलन जिसके आरंभ में आनन्द और अन्त में स्म प्रतीपं गमः - श० 4117, मा स्म सीमन्तिनी भय की आशंका रहती है।। काचिज्जनयेत्पुत्रमीदृशम् -- हि० 217 / स्फूर्जयः स्फु अथुच ] बिजली की गड़गड़ाहट, गरज। स्मयः [स्मि+अच] 1. आश्चर्य, अचंभा, ताज्जुब 2. अभिस्फूतिः (स्त्री०) [स्फुर (स्फुर्छ)+क्तिन् ] 1. धड़कन, मान, घमंड, हेकड़पना, गर्व तस्मै स्मयावेशविजि स्फूरण, थरथराहट 2. छलांग, चौकड़ी 3. कूसूमित, ताय ----रघु० 5.19, भर्तृ० 3 / 3, 69 / प्रफुल्लित 4. प्रकटीकरण, प्रदर्शन 5. मन में फरना स्मरः [स्म भावे अप] 1. प्रत्यास्मरण, याद 2. प्रेम 6. काव्य की उद्भावना / 3. कामदेव, प्रेम का देवता, स्मरपर्यत्सुक एव माधव: स्फूतिमत् (वि०) [ स्फूर्ति +-मतुप् ] 1. धड़कने बाला, | --कु० 4 / 28,42, 43, सम०-अङ्कुश: 1. अंगुली थरथराने वाला, विक्षुब्ध 2. कोमल हृदय / का नाखून 2. प्रेमी, कामातुर व्यक्ति,-अगारम् For Private and Personal Use Only Page #1161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1152 ) --कूपकः,-- गृहम् मन्दिरम् स्त्री की योनि, भग, ब्राह्मण 2. परंपराप्राप्त धर्म का अनयायी 3. (स्मयों -अन्ध (वि.) कामांध, प्रेममुग्ध,-आतुर -- आर्त के अनुसार चलने वाला एक) संप्रदाय / -उत्सुक (यि०) काम से पीडित, कामतप्त, काम- | स्मि (भ्वा० आ० स्मयते, स्मित) 1. मुस्कराना, हँसना दग्ध,- आसवः लार,-कर्मन् (नपुं०) कोई भी काम- (मंद मंद)... काकुत्स्थ ईषत्स्मयमान आस्त-भट्टि० कतापूर्ण व्यवहार, स्वैरकृत्य,-गुरुः विष्णु का विशेषण 2 / 11, 15 / 8, स्मयमानं वदनाम्बुजं स्मरामि —भामि० - छत्रम् भगशिश्निका, बशा शरीर की कामजन्य 2 / 27 2. खिलना, फूलना पंच० १११३६,-प्रेर० अवस्था (यह दस है), --ध्वजः 1. पुरुषेन्द्रिय 2. पौरा (स्माययति--ते) 1. मुस्कान पैदा करना, मुस्कराहट णिक मछली 3. एक वाद्ययंत्र, (- जम्) भग,(-जा) को जन्म देना 2. हंसना, अपहास करना 3. आश्चचाँदनी रात,-प्रिया रति का विशेषण,-भासित (वि०) र्यान्वित करना (इस अर्थ में-स्मापयते) इच्छा० कामोद्दीप्त,-मोहः कामजन्य संज्ञाहीनता, प्रणयोन्माद, (सिस्मयिषते) 1. मुस्कराने की इच्छा करना / --लेखनी सारिका पक्षी,---बल्लभः 1. बसंत ऋतु का उद्, मुस्कराना, हँसना, वि- 1. आश्चर्य करना, विशेषण 2. अनिरुद्ध का विशेषण,-वीथिका वेश्या, अचंभे में आना-उभयोर्न तथा लोकः प्रावीण्येन रंडी,-शासनः शिव का विशेषण, - सखः चन्द्रमा, विसिष्मिये-रघु० 15/65, भट्टि० 5 / 51 2. सराहना -स्तम्भः शिश्त, पुरुष का लिंग, - स्मर्यः रासभ, गधा 3. घमंडी, अहंमन्य होना-न विस्मयेत तपसा-मनु० -हरः शिव का विशेषण / 4 / 236, (प्रेर०) मुस्कान पैदा करना, आश्चर्यान्वित स्मरणम् [स्मृ+ल्युट्] 1. स्मृति, याद, प्रत्यास्मरण - केवलं कराना, आश्चर्य या अचंभे से भरना- विस्माययन् स्मरणेनैव पुनासि पुरुषं यतः-रघु० 10 // 30 विस्मितमात्मवृत्ती-रघु० 2 / 33, भट्टि० 5 / 58, 2. चिन्तन करना-यदि हरिस्मरणे सरसं मन:-गीत०१ 8 / 42 / 3. स्मृति, स्मरणशक्ति 4. परम्परा, परंपरागत स्मिट (चुरा० उभ० स्मेटयति ते) 1. अपमानित विधि - इति भृगुस्मरणात् (विप० श्रुति) 5. किसी करना, घृणा करना, नफ़रत करना 2. प्रेम करना देवता के नाम का मन में जाप करना 6. खेद से याद 3. जाना। करना, खे दकरना 7. काव्यगत प्रत्यास्मरण जो एक स्मित (भू. क. कृ.) [स्मि+क्त ] 1. मुस्कानयुक्त, अलंकार माना जाता है, इसकी परिभाषा है-यथानुभव- मुसकराता हुआ 2. फुलाया हुआ, खिला हुआ, प्रफमर्थस्य दृष्ट तत्सदृशो स्मृतिः स्मरणम्-काव्य० 10 / ल्लित, - तम् मुस्कान, मंद हंसी, सस्मितम् मुस्कराहट सम०-अनुग्रहः 1. कृपापूर्वक स्मरण करना, 2. स्मरण | के साथ, सविलक्षस्मितम् आदि / सम०-दश (वि०) करने की कृपा--कु. ६।१९,-अपत्यतर्पकः कच्छप, मुस्कानयुक्त दृष्टि रखने वाला (स्त्री०) सुन्दर स्त्री, कछुवा, - अयोगपद्यम् प्रत्यास्मरणों की समसामयिकता - पूर्वम् (अव्य०) मुस्कराहट के साथ, मुस्कान से का अभाव, पदवी मृत्यु / युक्त, सप्तर्षिभिस्तान् स्मितपूर्वमाह - कु० 747 / स्मार (वि.) [स्मर+अण् ] कामदेवसंबंधी - स्मारं | स्मील (म्वा० पर० स्मीलति) झपकना, आँख से संकेत पुष्पमयं चापं बाणाः पुष्पमया अपि / तथाप्यनङ्गस्त्र-| करना। लोक्यं करोति वशमात्मनः -रम् [स्म+घञ्] स्म (स्वा० पर० स्मृणोति) 1. प्रसन्न होना, संतुष्ट प्रत्यास्मरण, स्मरणशक्ति / होना 2. प्ररक्षा करना, प्रतिरक्षा करना 3. जीवित स्मारक (वि०) (स्त्री०-रिका) [स्म+णिच्+ण्वुल, रहना। स्त्रियां टाप इत्वं च ] ध्यान दिलाने वाला, फिर याद ii (भ्वा० पर०–महाकाव्यों में आ० भी-स्मकराने वाला,-कम् किसी की स्मति-रक्षा के अभिप्राय रति, स्मृत कर्मवा० स्मयते) 1. (क) याद करना, से संस्थापित कोई संस्था (आधुनिक प्रयोग)। मन में रखना, प्रत्यास्मरण करना, मन में लाना, स्मारणम् [स्म-+-णिच् + ल्युट ] मनमें लाना, याद विदित होना - स्मरसि सुरसनीरां तत्र गोदावरी दिलाना, स्मरण कराना। वा स्मरसि च तदुपान्तेष्वावयोर्वर्तनानि-उत्तर० स्मार्त (वि.) [स्मतौ विहितः, स्मति वेत्त्यघीते वा अण] 1 / 25, (ख) मन में पुकारना, मन से याद करना, 1. स्मृतिसंबंधी, याद किया हुआ, स्मारक 2. स्मृति सोचना - स्मरात्मनोऽभीष्टदेवताम् ---पंच० 1, रघु० के भीतर 3. स्मृति पर आधारित, या स्मृति में 15 / 45 2. किसी देवता के नाम का मन में ध्यान अभिलिखित, धर्मशास्त्र में विहित-कर्मस्मार्त विवा- करना या मन में जाप करना, - यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं हाग्नौ कुर्वीत प्रत्यहं गृही-याज्ञ. 197, मनु०१॥ स बाधाभ्यन्तरःशुचिः 3. स्मृति में अंकित करना या 108 4.वैध 5. धर्मशास्त्र को मानने वाला 6. गह्म अभिलेख करना -तथा च स्मरन्ति 4. प्रकथन करना, (जैसे कि अग्नि),-तः परंपराप्राप्त धर्म का विशेषज्ञ खयाल करना, सोचना, पंच० 1 / 30 5. खेद के For Private and Personal Use Only Page #1162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साथ याद करना, आतुर होना, उत्कंठित होना, / --शास्त्रम् 1. धर्मशास्त्र, धर्मसंहिता, धर्मसूत्र अभिलाषा करना (बहुधा संबंध के साथ) स्मर्तुं 2. धार्मिक विज्ञान, शेष (वि०) उपरत, मृत (कोई दिशन्ति न दिव: सुरसुन्दरीभ्यः --कि०५।२८, कच्चि- व्यक्ति)- शैथिल्यम् स्मरणशक्ति की दुर्बलता, साध्य द्भर्तुः स्मरसि रसिके त्वं हि तस्य प्रियेति मेघ० (वि०) धर्मशास्त्रसे सिद्ध होने योग्य,-हेतुः प्रत्या८५, मुद्रा० 5 / 14, प्रेर० (स्मारयति-ते, परन्तु अन्तिम स्मरण का कारण मन पर पड़ी हुई छाप, विचारअर्थ को प्रकट करने के लिए स्मरयति-ते) 1. याद साहचर्य। कराना, फिर ध्यान दिलाना, मन में लाना, सोचना | स्मेर (वि.) [स्मि+रन] 1. मुसकराने वाला विलोक्य .-अनेन मत्प्रियाभियोगेन स्मारयसि में पूर्वशिष्यां बृद्धोक्षमधिष्ठितं त्वया महाजनः स्मेरमुखो भविष्यति सौदामिनीम् मा० 1, कभी कभी द्विकर्मक के रूप में - कु० 5170, भामि० 214, 3 / 2, मा० 1016 प्रयुक्त अपि चन्द्रगुप्तदोषा अतिक्रान्तपाथिवगुणान् 2. खिला हुआ, फूला हुआ, फैलाया हुआ, प्रफुल्लित, स्मारयन्ति प्रकृती:-.-मुद्रा० 1, य एव दुःस्मरः काल: अधिकविकसदन्तविस्मयस्मेरतारैः मा० 1128, तमेव स्मारिता वयम् उत्तर० 6 / 34 2. सूचना 3. घमंडी 4. व्यक्त / सम० विष्किरः मोर / देना 3. खेद के साथ स्मरण कराना, लालायित | स्यवः [स्यन्द्+क] चाल, तीव्रगति, तेजी से चलना, वेग। करना, अभिलाष पैदा करना -शि० 6 / 56, श० स्यन्द् (भ्वा० आ० स्यन्दते, स्यन्न, इच्छा०-सिस्यदिषते, 64, इच्छा० ( सुस्मर्षते ) प्रत्यास्मरण करने की सिस्यत्सति-ते, इकारान्त उकारान्त उपसर्गों के पश्चात् इच्छा करना, अनु ,याद करना, प्रत्यास्मरण करना, स्यन्द के स् कोष हो जाता है)1. रिसना, चूना, टपकना, मन में ध्यान करना, अप--, भूल जाना, प्र---, भूल बंद बंद गिरना, सवित होना, अर्क निकालना, बहना जाना, वि, भूल जाना--मधुकर विस्मृतोस्येनां -अयि दलदरविन्द स्यन्दमानं मरन्दं तव किमपि लिहन्तो कथम् श० 5 / 1, (प्रेर०) भुलाना - उत्तर० 1, मञ्जु गुञ्जन्तु भङ्गाः भामि० 115 2. ढालना, सम् , याद करना, चिन्तन करना-भग० 18576, उडेलना 3. भागना, दौड़ना, अनु---,बहना, अभि-, मनु०४।१४९, (प्रेर०) ध्यान दिलाना, मन में रखना, 1. रिसना, बहना 2. बारिश होना, पानी गिरना (पातालं) मामद्य संस्मरयतीव भुजंगलोकः --रत्न० ...-- अभिस्यन्दमानमेघमेरितनीलिमा गिरिः -- उत्तर०२ 1613 / 3. पिघलना-उत्तर०६, नि-,परि ,बह निकलना, स्मृतिः (स्त्री०) [स्म+तिन्] 1. याद, प्रत्यास्मरण, प्र--,बह जाना, वि ,बहना-भट्टि० श७४ / स्मरणशक्ति - अश्वत्थामा करघृतधनः किन यातः स्यन्दः [स्यन्द भावे घा] 1. बहना टपकना 2. तेजी से स्मृति ते -वेणी०३।२१, संस्कारमात्रजन्यं ज्ञानं स्मृतिः जाना, चलना 3. गाड़ी, रथ / ----तर्क०, स्मृत्युपस्थितो इमो द्वौ श्लोको-उत्तर० 6 स्यन्दन (वि.) (स्त्री०-ना, नी) स्यन्द् + ल्युट्] 1. जल्दी 2. चिन्तन करना, मन में ध्यान करना 3. मानव से जाने वाला, द्रुतगामी, बहने वाला 2. चुस्त, धर्मशास्त्र, परम्पराप्राप्त धर्मशास्त्र, स्मतिग्रन्थ (नीति फुर्तीला, शीघ्रगामी-स्यन्दना नो च तुरगाः-कि०१५। और धर्म से संबद्ध) (विप० श्रुति) 4. धर्मसंहिता, १६,-नः युद्ध-रथ, गाड़ी या रथ-धर्मारण्यं प्रविशति स्मृतिग्रन्थ 5. स्मृति का मूलपाठ, धर्मसूत्र, धर्म के गजः स्यन्दनालोकभीत:-श० 1133 2. वायु, हवा नियम-इति स्मृते: 6. इच्छा, कामना 7. समझ / 3. एक प्रकार का वृक्ष, तिनिश, नम् 1. बहना, सम... अन्तरम् दूसरा स्मृतिग्रन्थ,—अपेत (वि०) टपकना, रिसना 2. तेज़ी से जाना, बहना 3. पानी / 1. भूला हुआ 2. शास्त्रविरुद्ध 3. (अतः) अवैव, सम० आरोहः रथ में बैठ कर युद्ध करने वाला। अन्यायपूर्ण, उक्त (वि.) धर्मशास्त्र में विहित, स्यन्दनिका [स्यन्दन की+कन्+टाप, ह्रस्वः] थूक की धर्मसूत्र में प्रतिपादित, पयः,-विषयः स्मरणशक्ति फुटक। . का पदार्थ, स्मृतिपथं,-विषयं गम् मरना,-भर्तृ० 3 / 37, स्यन्दिन (वि.) (स्त्री०-नी) स्थिन्द + णिनि] 1. रिसने 38, प्रत्यवमर्षः स्मति की धारणाशक्ति, प्रत्यास्मरण वाला, बहने वाला, टपकने वाला 2. वेग से जाने की यथार्थता, प्रबन्धः धर्मशास्त्र की कृति,--भ्रंशः वाला 3. गतिशील। स्मृति का नष्ट हो जाना, याद न रहना, रोधः / स्यन्दिनी [स्यन्दिन् +डीप्] 1. लार, थूक 2. वह गाय जो क्षणिक विस्मरण, स्मृति का नाश-श० 7 / 32, दो बच्चों को एक साथ जन्म दे / -विभ्रमः स्मृति की गड़बड़, स्पष्ट याद न रहना | स्यन्न (भू० क० कृ.) [स्यन्द+क्त रिसा हुआ, टपका .-विरुद्ध (वि.) अवैव, विरोधः 1. धर्म का वैप- हुआ, गिरा हुआ। रीत्य, अवैधता 2. दो या दो से अधिक स्मृतियों का | स्यम् (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० स्यमति, स्यमयति-ते) पारस्परिक विरोध-स्मृतिविरोधं परिहरति-शारी०, / 1. शब्द करना, ज़ोर से चिल्लाना, चीखना 2. जाना 145 For Private and Personal Use Only Page #1163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1154 ) 3. विचार करना, विमर्श करना, चितन करना / बाला, मार्ग देने वाला.....बंधे संसिनि चैकहस्तयमिताः (केवल इस अर्थ में आ०)। पर्याकुला मूर्धजा:-श० 1129 2. निर्भर, लबमान, स्यमन्तकः (स्यम् +झच् + कन्] एक मूल्यवान् मणि (कहते / ढीला लटकने वाला। है कि यह मणि प्रतिदिन आठ स्वर्ण भार दिया करती / संह (भ्वा० आ० स्रहते) विश्वास करना, भरोसा थी, तथा सब प्रकार के संकट और अपशकुनों से रक्षा करना। करती थी), अधिक वृत्तांत जानने के लिए दे० 'सत्रा- | स्रग्विन (वि०) (स्त्री० णी) [स्र+विनि, म० अ० जित्। स्रजीयस्, उ० अ० स्रजिष्ठ ] हार या गजरा पहने स्पमि (मी) कः [स्यम्+इकक ईकक] 1. बादल 2. बामी हुए -आमुक्ताभरणः स्रग्वी हंसचिह्नदुकूलवान्- रघु० ___3. एक प्रकार का वृक्ष 4. समय / 17 / 25 / स्यमिका [स्यमिक+टाप्नील / स्रज् (स्त्री०) [ सृज्यते- सृज+क्विन्, नि } गजरा, स्यात् (अव्य०) [अस् धातु का विधिलिङ् में, प्र० पु०, पुष्पमाला (विशेषतः वह जो मस्तक पर धारण की . ए.व.] ऐसा हो सकता है, शायद, कदाचित् / सम० / जाय) -- स्रजमपि शिरस्यन्धःक्षिप्तां धुनोत्यहिशय -वादः संभावना की उक्ति, संशयवाद (दर्शन० में), -श० 7 / 24 2. माला, हार / सम० ---दामन ----वादिन् (पुं०) संशयवादी, स्याद्वाद का अनुयायी। (स्रग्दामन्) (नपुं०) माला की ग्रंथि या गांठ,- धर स्यालः दे० 'श्याल'। (वि.) मालाधारी गीत० 12, (---रा) एक छंद स्यूत (भू० क० कृ) [सिव्+क्त] 1. सुई से सीया हुआ, का नाम / नत्थी किया हुआ, बुना हुआ (आलं० से भी) चिन्ता- स्त्रज्या [ सृज्+-वा, नि० ] रस्सी, डोरी, सूत्र / सन्ततितन्तुजालनिबिडस्यूतये लग्ना प्रिया-मा० | स्त्रद्धू (स्त्री०) अपान वायु। ५।१०2.बींधा हुआ,-तः बोरा / स्त्रम्भ (भ्वा० आ० संभते, स्रब्ध) विश्वास करना, दे० स्थतिः [सिव भावे क्तिन्] 1. सीना, टांका लगाना 2. सूई श्रम', वि ..1. विश्वस्त होना 2. आश्वस्त होना। का काम 3. थैला 4. वंशावली, कुल 5. संतति / स्त्रवः [ +अप् ] 1. चूना, रिसना, बहना 2. बूंद, प्रवाह, स्यूनः [सिव्+नक] 1. प्रकाश की किरण 2. सूर्य 3. थैला, / सरिता - विपूलौ स्नपयन्ती सा स्तनौ नेत्रजलस्रवैः बोरा। -राम० 3. फौवारा, निर्झर।। स्यूमः [सिद+मक] प्रकाश किरण / स्त्रवणम् [+ ल्युट्] 1. बहना, चूना, रिसना 2. पसीना स्योतः [-स्यूत, पृषो०] बोरा, थेला / 2. मूत्र। स्योन (वि.) [स्यून, पृषो०] सुन्दर, सुखद 2. शुभ, लवत् ( वि०) (स्त्री० - सवन्ती ) [ + शतृ ] बहने मंगलप्रद,--न: 1. प्रकाश की किरण 2. सूर्य 3. बोरा, वाला, रिसने वाला, चूने वाला। सम० गर्भा वह -नम् प्रसन्नता, आनन्द / स्त्री जिसका गर्भ गिर गया हो 2. दुर्घटना के कारण वस् (भ्वा० आ० नसते, स्रस्त) 1. गिरना, नीचे गिर / गिरे हुए गर्भ वाली गाय / पड़ना-नानसत् करिणां प्रैव त्रिपदीच्छेदिनामपि-रघ० / नवन्ती [ स्रवत+डीप ] नदी, दरिया-वापीष्विव सव४।४८, गाण्डीवं संसते हस्तात्-भग० 1429, भट्टि न्तीषु - रघु० 17163 / 14172, 15 / 61 2. डबना, घटना, गिर कर टुकड़ें। स्रष्ट्र (पु.) [सज+तृच ] 1. बनाने वाला 2. रचने टुकड़े होना--हाहा देवि स्फुटति हृदयं संसते देहबन्धः वाला 3. सृष्टिरचयिता, ब्रह्मा का विशेषण-या -उत्तर० 3138, मा० 9 / 20 3. नीचे लटकना सृष्टि: स्रष्टुराद्या श० 111, तत्स्रष्टुरेकान्तरम् 4. जाना-प्रेर० (संसयति-ते) 1. गिराना, खिसकना, -7127 4. शिव का नाम / लुढ़काना, बाधा डालना-वातोऽपि नास्रंसयदंशकानि | त्रस्त (भू० क० कृ०) [ संस्+क्त ] 1. गिरा हुआ, -रधु० 675 2. शिथिल करना, ढील देना, वि-, खिसका हुआ, नीचे पड़ा हुआ-सस्तं शरं चापमपि खिसकना, ढीला होना, (प्रेर०) 1. गिरना, गिरने / स्वहस्तात्-कु० 3.51, कनकवलयं सस्तं स्रस्तं मया देना,-विसंसयंती नवकर्णिकारम् कु० 3162 प्रतिसायंते श० 3 / 13, कि० 5 / 33, मेघ० 63 2. ढीला करना, शिथिल करना। 2. लुढ़का हुआ, नीचे लटकता हुआ—विपादनस्तसवंसः [संस्+घा] गिरना, खिसकना / वाङ्गी-मच्छ० 4 / 8, स्रस्तांसावतिमात्रलोहिततली वसनम् [संस्+णिच् ल्युट्] 1. गिरना 2. गिराना, नीचे बाहू घटोत्क्षेपणात श० 1130 3. ढीला किया पटखना। हुआ 4. च्युत, ढीला पड़ा हुआ 5. लंब, नीचे लटकता पसिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ संस्+णिनि ] 1. गिरने / हुआ 6. अलग किया हुआ। सम० अङ्ग (वि०) वाला, खिसकने वाला, लटकने वाला, ढीला होने / ढीले अंगों वाला 2. मूछित, बेहोश / For Private and Personal Use Only Page #1164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1155 ) त्रस्तरः [ संस्+तरच, कित्वानलोप: ] पलंग या सोफ़ा, / खुतिः (स्त्री०) [स+क्तिन् ] 1. बहना, रिसना, अर्क (विश्राम करने के लिए) विछौना शिलातले त्रस्त- निकालना, टपकना, चना----कीटक्षतिगृतिभिरस्रमिरभास्तीयं निषसाद--का०, मनु० 2 / 204 / वोद्वमन्तः -मुद्रा० 6.13, पदं तुषारनुतिधौतरक्तम् साक् (अव्य०) [+डाक्] फुर्ती से, तेजी से। -कु. 15, रघु० 16 / 44, कि० 5 / 44, 16 // 2, सावः सि+घञ ] प्रवाह, बहाव, रिसना, बूंद बूंद | क्षीरस्रुतिसुरभयः (वाताः)-मेघ० 107 'रसप्रवहण टपकना / या स्राव 2. रसस्रवण, राल 3. धारा। स्रावक (वि.) (स्त्री०-विका) [+ण्वुल ] बहाने | नुवः,-वा [+क, स्त्रियां टाप् च ] 1. यज्ञ का चमचा वाला, उडेलने वाला, रिस कर बहने वाला,-कम् | 2. निर्झर, झरना या प्रपातिका / काली मिर्च / लेक (म्वा० आ०) जाना, गतिशील होना। त्रिभ् (भ्वा० पर० स्रेभति) चोट पहुँचाना, मार | स्त्र (भ्वा० पर० स्रायति) 1. उबालना 2. पसीना आना डालना। खिम्भ (म्वा० पर० सिम्भति) चोट पहुँचाना, मार | स्रोतम् [+तन् ] धारा, सरिता। दे० स्रोतस् / डालना। स्रोतस् (नपुं०) [ नु+तसि ] 1. (क) सरिता, धारा स्त्रिव् (दिवा० पर० स्त्रीव्यति, नुत) 1. जाना, 2. सूख प्रवाह, जलप्रवाह-पुरा यत्र स्रोत: पुलिनमधुना तत्र जाना। सरिताम्-उत्तर० 2 / 27, मनु० 3163 (ख) धार, स्नु (भ्वा० पर० स्रवति, सुत) 1. बहना, धारा निकलना, प्रवाहिणी,-नदत्याकाशगङ्गायाः स्रोतस्यद्दामदिग्गजे चना, रिसना, बंद बंद करके गिरना, टपकना न रघु० 1178, स्रोतसेवोह्यमानस्य प्रतीपतरणं हि हि निम्बात्स्रवेत्क्षौद्रम् राम० 2. उडेलना, डालना, तत्-विक्रम 2 / 5 2. सरिता, नदी, स्रोतसामस्मि बहने देना अलोठिष्ट च भूपृष्ठे शोणितं चाप्यसुस्रवत् जाह्नवी-भग० 10 // 31 3. लहर 4. जल 5. शरीरस्थ ---भट्टि० 15176, 17118 3. जाना, हिलना-डुलना पोषण नलिका 6. ज्ञानेन्द्रिय निगृह्य सर्वस्रोतांसि 4. चूना, खिसक जाना, छीजना, नष्ट होना, कुछ ... राम० 7. हाथी की संड। सम०--अम्जनम् फल न निकलना-स्रवतो ब्रह्म तस्यापि भिन्नभाण्डात्पयो (स्रोतोञ्जनम् ) सुरमा,-ईशः सागर,-रन्ध्रम हाथी. यथा भाग०, भट्टि० 6 / 18, मनु० 2074 5. इधर की सुंड का छिद्र, नथुना-स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं उधर फैलाना, सब दिशाओं में पहुँचाना, प्रकट हो दन्तिभिः पीयमानः-मेघ० 42, (दे० इस पर मल्लि.) जाना (भेद आदि)-प्रेर० (स्रावयति-ते) बहाना, ('श्रोतोरन्ध्र' भी पाठांतर), बहा नदी-स्रोतोवहां उडेलना, डालना, बखेरना (रक्त आदि) न गात्रा- पथि निकामजलामतीत्य जातः सखे प्रणयवान् मृगसावयेदमक- मनु० 4 / 169 (उपसर्गों से युक्त तृप्णिकायाम्-श०६।१५, कार्या सैकतलीनहसमिथुना हो जाने पर धातु के लगभग वही अर्थ स्रोतोवहा मालिनी-६।१६, रघु० 652 / रहते है)। स्रोतस्यः [स्रोतस्+यत् ] 1. शिव का नाम 2. चोर / नुघ्नः (प.) एक जनपद या जिले का नाम .. पन्थाः / स्रोतस्वती, स्रोतस्विनी [स्रोतस-+ मतु+(विनि) घुघ्नमुपतिष्ठते--सिद्धा०, (यह स्थान पाटलिपुत्र से +डीए, वत्वम् ] नदी। कुछ दूरी पर कम से कम एक दिन यात्रा पर स्थित | स्व (सार्व. वि.) [स्वन्+ड] 1. अपना, निजी, था) तु० न हि देवदत्तः सुध्ने संनिधीयमानस्तदहरेव (आत्मपरक सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त)-स्वनियोगमपाटलिपुत्रे संनिधीयते युगपदनेकत्र वृत्तावनेकत्वप्रसङ्गात शून्यं कुरु----० 2, प्रजाः प्रजाः स्वा इव तन्त्रयित्वा --शारी०। 5 / 5, (इस अर्थ में प्रायः समास में प्रयुक्त-स्वपुत्र, खुघ्नो [नुघ्न+अ+कीप् ] सज्जी, रेह। स्वकलत्र, स्वद्रव्य) 2. अन्तर्जात, प्राकृतिक, अन्तहित, खुच् (स्त्री०) [+क्विप्, चिट् आगमः ] लकड़ी का | विशेप, अन्तर्जन्मा- सूर्यापाये न खल कमलं पुष्यति बना एक प्रकार का चमचा जिसके द्वारा यज्ञाग्नि में स्वामभिख्याम्-मेघ० 80, श० 1618, स तस्य घी की आहुति दी जाती हैं, सूवा (प्राय: हाक या स्वो भावः प्रकृतिनियतत्वादकृतकः--उत्तर० 6 / 14 खदिर के वृक्षों का बना हुआ)-रघु० 11025, मनु० / 3. अपनी जाति से संबंध रखने वालः, अपनी जाति 5 / 117, याज्ञ. 13183 / सम० . प्रणालिका, का-शूदैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृतेः चमचे की पनाली। -मनु० 3 / 13, ५।१०४,-स्व: 1. रिश्तेदार, बांधव जुत् (वि.) [स्रु+क्विप्, तुक् ] (प्रायः समास के अन्त --पंच० 2 / 96, मनु० 21109 2. आत्मा,-स्वः, में प्रयुक्त) बहने वाला, गिरने वाला, उडलने वाला --स्वम् दौलत, सम्पत्ति-जैसा कि 'निःस्व' में / -स्वरेण तस्याममतनुतेव-कू० 114,5, शि० 9168 / सम०-. अक्षपावः न्यायदर्शन पद्धति का अनुयायी, For Private and Personal Use Only Page #1165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा अधिन ने अक्षरम अपना निजी हस्तलेख, अधिकारः अपना निजी कर्तव्य या राज्य स्वाधिकारात्प्रमत्तः मेघ० 1, स्वाधिकारभूमौ.- श० 7, अधिष्ठानम् हठयोग में माने हए छ चक्रो में से एक, अधीन (वि.) 1. अपने पर आश्रित, आत्मनिर्भर 2. स्वतंत्र 3. अपने वश में 4. अपनी निजी शक्ति में स्वाधीना वचनीय- / तापि हि वरं बद्धो न सेवाञ्जलिः मृच्छ० 3 / 11 कुशल (वि.) अपनी निजी शक्ति के आधार पर समृद्धिशाली स्वाधीनकुशलाः सिसिमन्तः --श. 4, पतिका, भर्तका वह पत्नी जिसका अपने पति पर पूरा नियन्त्रण हो, वह स्त्री: जिसका पति पत्नी के बस में हो-अथ सा निर्गता : बाधा राधा स्वाधीनभर्तका निजगाद रतिक्लान्तं कान्तं मण्डनवाञ्छया-गीत०१२, दे० सा० द०११२, तथा आगे,-अध्यायः 1. मन में पाठ करना, मन मन में इसके जप करना 2. वेदों का पढ़ना, वैदिक पाठ, अनुभूतिः (स्त्री०) आत्म अनुभव 2. आत्मज्ञान स्वानुभूत्येकसाराय नमः शांताय तेजसे-भर्त० 2 / 1, अन्तम् 1. मन,-भामि० 415, महावीर 717 2. कन्दरा, -अर्थः अपना निजी हित, स्वार्थ सर्वः स्वार्थ समीहते -शि० श६५ 2. अपना अर्थ भामि० 1279 (यहाँ दोनों अर्थ--अभिप्रेत हैं) अनुमानम् निजी अटकल, आगमनात्मक तर्क, अनुमानके दो मुख्य भेदों में से एक, (दूसरा है 'परार्थानुमान) पण्डित (वि.) 1. अपने निजी कार्यों में चतुर 2. अपना हितसाधन करने में विशेषज्ञ, पर, परायण (वि०) अपनी स्वार्थ सिद्धि करने पर तुला हुआ, स्वार्थी, विघात: अपने उद्देश्य की भग्नाशा, °सिद्धिः (स्त्री०) अपना निजी लक्ष्य पूरा करना, आयत्त (वि.) अपने अधीन, अपने पर आश्रित भर्तृ० 217 -इच्छा अपनी अभिलाषा, अपनी रुचि, मृत्युः भीष्म का विशेषण,-उदयः, किसी विशेष स्थान पर किसी स्वर्गीय पिड या दिव्य चिह्न का उदय होना, .. उपषिः अचल ग्रह, कम्पनः वापु, ह्वा, --कमिन् (वि.) स्वार्थी, कार्यम् अपना निजी कार्य या स्वार्थ,-गतम् (अव्य०) मन में अपने आपको, एक ओर (नाटयभाषा में), छन्द (वि.) 1. अपनी इच्छा रखने वाला, अनियंत्रित, स्वेच्छाचारी 2. जंगली, (...:) अपनी निजी इच्छा, छांट कल्पना या मर्जी, स्वतंत्रता, ( दम्) (अव्य०)। अपनी इच्छा या मर्जी के अनसार, स्वेच्छाचारिता के / साथ, स्वेच्छा से स्वच्छन्दं दलदरविन्द ते मरन्दं विन्दन्तो विदधतु गुजितं मिलिन्दा:-भामि० 15. ज (वि.) आरमजात, (--जः) 1. पुत्र, बाल 2. स्वेद, पसीना, (-अम्) रुधिर, -जन: 1. बंधु, रिश्तेदार-इतः प्रत्या- / देशात् स्वजनमनगन्तु व्यवसिता ... श० 618, पंच० 115 2. अपने निजी पुरुष, बंधुबांधव, अपनी गृहस्थी, तन्त्र (वि.) आत्माश्रित, अनियंत्रित, आत्मनिर्भर, स्वेच्छायुक्त, (त्रः) अन्धा पुरुष,---देश: अपना देश, जन्मभूमि, जः बन्धु अपने देश का आदमी, धर्मः 1. अपना धर्म 2. अपना निजी कर्तव्य, मन० 1188 -91 3. विशेषता, अपनी निजी संपनि, पक्षः अपना निजी दल, परमण्डलम् अपना और शत्रु का देश, प्रकाश (वि०) 1. स्वतः स्पष्ट 2. स्वतः चमकदार, --प्रयोगात् (अव्य०) अपने प्रयत्नों के द्वारा, ---भट्टः 1. अपना निजी योद्धा 2. शरीर रक्षक, --भावः 1. अपनी स्थिति 2. अन्तहित या मलगण, प्राकृतिक संविधान, अन्तर्जात या विशिष्ट स्वभाव, प्रकृति या स्वाव, जैसा कि 'स्वभावो दुरतिक्रमः' में, इसी प्रकार कुटिल', शुद्ध, मृदु- चपल" कठोर आदि, उक्तिः (स्त्री०) 1. स्वत: स्फूर्त प्रकटन 2. (अलं० में) एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु का यथावत् या बिल्कुल मिलता-जुलता वर्णन होता है स्वभावोक्तिस्तु डिम्भादेः स्वक्रियारूपवर्णनम् ..काव्य० 10, या, नानावस्थ पदार्थानां रूपं साक्षाद्विवण्वती-काव्या० 218 एक सिद्धान्त (यह विश्व, मूलतत्त्वों की अपने अन्तर्जात गणों के अनुसार, प्राकृतिक तथा आवश्यक क्रिया का परिणाम है और उसी के द्वारा इसकी स्थिति है, इसमें परमात्मा की कोई निमित्तकारणता नहीं), सिद्धः (वि.) प्राकृतिक, स्वतःस्फूर्तः अन्तर्जात,-भः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. शिव का विशेषण 3. विष्ण का विशेषण, योनि (वि०) मातृपक्ष का संबंधी (पुं०, स्त्री०) उत्पत्तिस्थान, जो स्वयं अपना उत्पत्तिस्थान हो, (स्त्री०) कोई बहन या निकटसंबंध वाली कोई स्त्री, रस: 1. प्राकृतिक स्वाद 2. किसी का अपना (अमिश्रित) रस या काव्यगत रस, आत्मानंद,--राज (पुं०) परमात्मा, रूप (वि०) 1. समान, समरूप 2. सुन्दर, सुहावना, प्रिय 3. विद्वान, समझदार, (-पम्) 1. अपनी शक्ल या सूरत, प्राकृतिक स्थिति यो दशा 2. स्वाभाविक चरित्र या रूप, यथार्थ विधान 3. प्रकृति 4. विशिष्ट उद्देश्य 5. प्रकार, किस्म, जाति, °असिद्धिः (स्त्री०) तीन प्रकार के हेत्वाभासों में से एक, वश (वि.) 1. स्वनियंत्रित 2. स्वतन्त्र, . वासिनी विवाहित या अविवाहित स्त्री जो वयस्क होने पर भी अपने पिता के घर ही रहती रहे, -वृत्ति (वि.) स्वावलम्बी, अपने प्रयत्नों से ही जीवनयापन करने वाला, - संवत्त आत्मरक्षित, स्वरक्षित, संस्था अपने विचारों पर डटे रहना 2. आत्मस्थिरता 3. आत्मलीनता,-स्य (वि०) 1. अपने पर डटे रहना 2. स्वाश्रित, स्वावलम्बी, विश्वस्त, दृढ़, For Private and Personal Use Only Page #1166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1157 ) 0 स्वदनम् के कृ०) विशेष जो श्राद्ध माता है और पक्का 3. स्वतन्त्र 4. अच्छा करने वाला, स्वस्थ, शुगः-- रघु० 3 / 54 2. उपभोग करना -मेघ० नीरोग, आराम देना, सुखद स्वस्थ एवास्मि-मा० 87 / 4, स्वस्थ को वा न पण्डितः—पंच० 13127, दे० स्वदनम् [ स्वद्+ल्युट ] चखना, खाना / 'अस्वस्थ' भी 5. सन्तुष्ट, प्रसन्न, (-स्थम्) (अव्य०) स्वदित (भू० क० कृ०) [ स्वद्+क्त ] चखा गया, खाया आराम से, सुख पूर्वक, शान्ति से, स्थानम् अपनी गया, तम उदगार विशेष जो श्राद्ध में पितरों को जन्मभूमि, अपना निजी आवास स्थल-नकः स्वस्थान- पिंडदान करने के पश्चात उच्चारित होता है और मासाद्य गजेन्द्रमपि कर्पति ...पंच. 3246, -हस्त जिसका अर्थ है भगवान् करे, यह पदार्थ आपको अच्छा अपना निजी हाथ या लिखाई, आत्मलेग्य, दे० 'हस्त' के लगे, स्वादिष्ट लगे'--मनु०३।२५१, 254 / अन्तर्गत, हस्तिका कुल्हाड़ी,-हित (वि० ) अपने स्वधा [स्व+आ, पृपो० दस्य धः] 1. अपना निजी लिए हितकर, ( -तम् ) अपना निजी लाभ, अपना स्वभाव या निश्चय, स्वतः स्फूर्तता 2. मृत पूर्वपुरुषों कल्याण / -पितरों-को प्रस्तुत की गई हवि की आहुति स्वक (वि) | स्व+अकन् ] अपना निजी, अपना / -स्वधासंग्रहतत्पराः रघु० 266, मनु० 9 / 142, स्वकीय (वि०) / स्वस्य इदम्-स्व-छ, कुक आगमः ] | याज्ञ. 11102 3. मूर्त पितरों को प्रम्सुन किया 1. अपना निजी, अपना 2. अपने परिवार का / भोजन 4. अन्न या आहुति 5. माया या सांसारिक स्वङ्ग (भ्वा० पर० स्वङ्गति) जाना, हिलना-जुलना / भ्रम, अव्य. पितरों के सम्मुख आइति प्रस्तुत करते स्वङ्गः / स्वग् ।-घञ ] आलिंगन / समय उच्चरित उद्गार, (संप्र० के साथ) पितृभ्यः स्वच्छ (वि.) / सुप्छु अच्छ:-पा० स०] 1. अत्यन्त स्वधा सिद्धा। सम० कर (वि.) पितरों के साफ, पारदर्शी, विशुद्ध, उज्ज्वल, अल्पपारभासी निमित्त आहुति देने वाला, कारः 1. स्वधा' नाम स्वच्छस्फटिक, स्वच्छ मुक्ताफलम-आदि 2. सफेद का शब्द-पूतं हि तद्गृहं यत्र स्वधाकारः प्रवर्तते, 3. सुन्दर 4. स्वस्थ, च्छः स्फटिक,-च्छम् मोती। प्रियः अग्नि, आग,-भुज (पुं०) 1. मृत या देवत्व सम० ----पत्रम् तालक, सेलखड़ी,--बालुकम् विशुद्ध ___ को प्राप्त पूर्वपुरुप 2. देवता, देव / खड़िया,---मणिः स्फटिक। स्वधितिः (पुं०, स्त्री०) स्वधितो [स्ववा+क्तिच्, स्त्रियां स्वज (भ्वा० आ० वञ्जते. इकारान्त उकारान्त उपसर्गों ___ ङीष् च] कुल्हाड़ी। के पश्चात् स्वऊ के स् को प् हो जाता है) 1. आलि- स्वन् (म्वा० पर० स्वनति) 1. शब्द करना, कोलाहल गन करना, कौली भरना—कयाचिदाचुम्ब्य चिराय करना,-पूर्णाः पेराश्च सस्वनु:-भट्टि० 1413, वेणवः सस्वजे-भामि० 21178, पर्यश्रस्वजत मुनि चोप- कीचकास्ते स्थर्ये स्वनन्त्यनिलोद्धता:- अमर० 2. गाना, जनी-रघु० 13170 2. घेरना, मरोड़ना, परि-", प्रेर० (स्वनयति-ते) 1. गुजाना 2. शब्द करना आलिंगन करना---वत्से परिष्वजस्व मां सखीजनं च 3. अलंकृत करना (इस अर्थ में 'स्वानयति')। . 04, भामि० 21178 / / स्वनः [स्वन् +अप] शब्द, कोलाहल-शिवाघोरस्वना स्वठ् (चुरा० उभ०. स्व (स्वा) ष्यति-ते) 1. जाना पश्चाद् बुबुधे विकृतेति ताम्-रघु० 12 / 39, शंख2. समाप्त करना। स्वन: आदि। सम० उत्साहः गेंडा। स्वतस् (अव्य०) [ स्व+तसिल ] अपने आप, स्वयम् स्वनिः [स्वन् + इन्] ध्वनि, कोलाहल / , (निजवाचक के अर्थ में प्रयुक्त)। स्वनिक (वि.) स्वन+ठक] ध्वनि करने वाला-जैसा स्वत्वम् | स्व+त्व ] 1. अपनी विद्यमानता 2. स्वामित्व, कि 'पाणिस्वनिकः' (जो अपने हाथों से तालियां स्वामित्व के अधिकार / बजाता है) में। स्वद् i (भ्वा० आ० स्वदते, स्वदित) 1. पसन्द किया | स्वनित (भ० क० कृ०) स्विन्+क्त] ध्वनित, शब्दाय. जाना, मधुर होना, स्वाद में रुचिकर होना (संप्र० | मान, कोलाहल करने वाला, तम् बिजली का शोर, के साथ)-यज्ञदत्ताय स्वदतेऽपूपः-काशिका, अपां हि बिजली की गड़गड़ाहट, तु० 'स्तनित'। तृप्ताय न वारिधारा स्वादुः सुगन्धिः स्वदते तुपारा | स्वप् (अदा० पर० स्वपिति, सुप्त, भाववा० सुप्यते, इच्छा० -नै० 3193, सस्वदे मुखसुरं प्रमदाभ्यः शि० 10 // सुपुप्सति) (कभी-कभी भ्वा० उभ० स्वपति-ते) 23 2. स्वाद लेना, रस लेना, खाना 3. प्रसन्न करना सोना, नींद आ जाना, सोने जाना-असंजातकिण4. मधुर करना। स्कन्धः सुखं स्वपिति गौर्गडि:-काव्य. 10, इतः ii (चुरा० उभ० या प्रेर० स्वादयति-ते) 1. चखाना, स्वपिति केशवः भतं० 2176 2. तकिये का सहारा खाना 2. रस लेना 3. मधुर करना, आ 1. चखना, लेना, विश्राम करना, लेटना, आराम करना 3. तल्लीन 'खाना ( अलं० से भी )--पपावनास्वादितपूर्वमा- होना--भामि० 4.19, प्रेर० (स्वापयति-ते) सुलाना, For Private and Personal Use Only Page #1167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोने के लिए थपथपाना, अव-नि,-प्र, सम् / नाम 2. विष्णु का नाम 3. शिव का नाम 4. मूर्त 'काल' सोना, लेटना-प्रसुप्तलक्षणः मा० 7, कु. 2142, का नाम 5. कामदेव का नाम, वरः अपनी छांट, रघु० 11 // 4 // (दुलहिन द्वारा अपने वर का) अपने आप चुनाव, स्वप्नः [स्वप्+नक्] 1. सोना, नींद अकाले बोधितो इच्छानुरूप विवाह,--वरा वह कन्या जो अपने पति भ्रात्रा प्रियस्वप्नो वृथा भवान्-रघु० 12181, का आप चुनाव करती है। 7161, 1270 2. स्वप्न, रुवाब, सूपना आना | स्वर् (चुरा० उभ० स्वरयति-ते) दोष निकालना, कलंक . -स्वप्नेन्द्रजालसदृशः खलु जीवलोकः-- शान्ति० 2 / 3, | ___ लगाना, बुरा भला कहना, निंदा करना। स्वप्नो नु माया नु मतिभ्रमो नु-श०६।९, रघु०१०।६० स्वर् (अव्य.) [स्व-विच्] 1. स्वर्ग, वैकुण्ठ जैसा कि 3. शिथिलता, आलस्य, तन्द्रा। सम-अवस्था 'स्वर्लोक. स्वर्वेश्या में 2. इन्द्र का स्वर्ग और मृत्यु के सुपने की दशा, -- उपम (वि.) 1. सुपने से मिलता पश्चात् पुण्यात्माओं का अस्थायी आवास 3. आकाश, जुलता 2. अवास्तविक या (भ्रमात्मक स्वप्न की भांति) अन्तरिक्ष4. सूर्य और ध्रुवतारे के बीच का रिक्त --कर,-कृत् (वि.) निद्रा लाने वाला, निद्राजनक, स्थान 5. तीनों व्याहृतियों में तीसरी जिसका उच्चाआस्वापक, गृहम्,-निकेतनम् सोने का कमरा, रण प्रत्येक ब्राह्मण अपनी दैनिक प्रार्थना में करता है, शयनकक्ष,-दोषः स्वप्नावस्था में होने वाला शुक्रपात, दे० 'व्याहृति' / सम० आपगा गंगा 1. गंगा की -धीगम्य (वि०) निद्रा जैसी अवस्था में केवल बुद्धि स्वर्ग में बहने वाली धारा, मंदाकिनी 2. आकाशगंगा, द्वारा अनुभूत होने वाला-मनु० 12 // 122,--- प्रपञ्चः छायापथ, - गतिः (स्त्री०) गमनम् 1. स्वर्ग में निद्रावस्था में भ्रम, स्वप्न में प्रकट होने वाला संसार, जाना, भावी आनंद 2. मृत्यः, तरुः (स्वस्तरुः) स्वर्ग -विचारः स्वप्नों की व्याख्या, शील (वि.) जिसे का एक वृक्ष, वृश् (पुं०) 1. इन्द्र का विशेषण नींद आ रही हो, निद्राल, ऊंघने वाला,-सृष्टिः 2. अग्नि का विशेषण 3. सोम का विशेषण,---नदी (स्त्री०) स्वप्नों की रचना, निद्रावस्था में भ्रम। (स्वर्णदी) आकाशगंगा, मामवः एक प्रकार का स्वप्नज् (वि०) [स्वप्+नजिङ्] निद्रालु, सोने वाला, मूल्यवान् पत्थर,-भानुः राहू का नाम -तुल्येऽपराधे ऊंघने वाला। स्वर्भानुर्भानुमन्तं चिरेण यत्। हिमांशुमाशु असते स्वयम् (अव्य.) [सु+अय्+अम्] 1. आप, अपने आप तन्म्रदिम्नः स्फुट फलम् शि० 2 / 49, सूदनः सूर्य, (निजवाचकता के रूप में प्रयुक्त तथा प्रत्येक पुरुष में -मध्यम आकाश का मध्य बिन्दु, ऊर्ध्वविद्,-लोकः दिव्य व्यवहार्य - यथा मैं स्वयं, हम स्वयं, वह स्वयं-आदि, जगत, स्वर्गलोक, वधूः (स्त्री०) दिव्य कन्या, अप्सरा, कभी कभी बल देने के लिए और सर्वनामों के साथ प्रयुक्त) ... वापी गंगा,-वेश्या स्वर्ग की गणिका, दिव्य परी, विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसांप्रतम्--कु० 2155 अप्सरा, - वैद्य (पुं०, द्वि० व.) दो अश्विनीकुमारों यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम-सुभा०, का विशेषण, षा 1. सोम का विशेषण 2. इन्द्र के रघु० 1117, 2056, मनु० 5 / 39 2. आत्मस्फूर्त वज्र का विशेषण, - सिन्धु-स्वगंगा।। अपने आप, अनायास, बिना किसी कष्ट या चेष्टा के, स्वरः [स्वर+अच्, स्व+अप वा] 1. शब्द, कोलाहल स्वयमेवोत्पद्यन्त एवंविधाः कुलपांशवो निःस्नेहाः पशवः 2. आवाज --स्वरेण तस्थाममृतस्रतेव प्रजल्पितायाम-का० / सम०-अजित (वि.) आत्मार्जित,-उक्तिः भिजातवाचि कु. 1145 3. संगीत के सुर, ध्वनि, (स्त्री०) 1. ऐच्छिक प्रकथन 2. सूचना, अभिसाक्ष्य लय (सुर सात है निषादर्षभगान्धारषड्जमध्यम(विधि में),---ग्रहः बलात् ग्रहण कर लेना, - ग्राह घेवताः / पञ्चमश्चेत्यमी सप्त तन्त्रीकण्ठोत्थिताः स्वराः (वि.) ऐच्छिक, स्वयं चुन लेने वाला, (-हः) स्वयं -अमर०) 4. सात की संख्या 5. स्वर अक्षर चुन लेना, आत्मचुनाव-कु० 217, गा०६।७,--जात 6. स्वराघात (यह गिनती में तीन है उदात्त, अन(वि०) जो आप से आप उत्पन्न हुआ हो,-- दत्त दात्त और स्वरित) 7. श्वासवाय 8. खर्राटे भरना / (वि०) अपने आप दिया हुआ, (-तः) वह लड़का सम० अंशः आधा या चौथाई स्वर (संगीत० में), जिसने अपने आपको दत्तक पुत्र बनने के लिए दत्तक- .- अन्तरम् दो स्वरों के उच्चारण के बीच का अवग्राही माता पिता को दे दिया, हिन्दू धर्म शास्त्र में काश, क्रमभंग,--उदय (वि.) जिसके बाद स्वर हो, वर्णित बारह पुत्रों में से एक,---भुः ब्रह्मा का नाम -~-उपध (वि.) जिसके पूर्व स्वर हो, प्रामः सरगम, -शम्भुस्वयम्भुहरयो हरिणेक्षणानां येनाक्रियन्त सततं स्वरसप्तक, स्वरों का समूह,बद्ध (वि०) ताल गृहकर्मदासाः भर्तृ० १११,--भुवः 1. प्रथम मनु स्वर में बंधा हुआ गाना, भक्तिः (स्त्री०) र और 2. ब्रह्मा का नाम 3. शिव का नाम,--भू (वि.) ल के उच्चारण में अनिविष्ट स्वर की ध्वनि जब आप ही आप उत्पत्र होने वाला, (-भूः) 1. ब्रह्मा का / इन अक्षरों के पश्चात् कोई ऊष्मवर्ण या कोई अकेला For Private and Personal Use Only Page #1168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1159 ) व्यंजन हो (उदा० वर्प का उच्चारण 'वरिष' है),। के दाने, काय (वि०) सुनहरी शरीर वाला, (--यः) .. भडः 1. उच्चारण को अस्पष्टता, टूटा हुआ उच्चा- गरुड़ का नाम, कारः सुनार,--गरिकम् गेरु, लाल रण, आवाज़ का बैठ जाना,---मण्डलिका एक प्रकार की खड़िया, चूड: 1. नीलकंठ 2. मुर्गा,-जम् रांगा, वीणा, लासिका बांसुरी, मुरली,- शून्य (वि.) -दीधितिः अग्नि, पक्षः गरुड़, पाठकः सुहागा, संगीतसुरों से रहित, बेसुरा, संगीत के ताल सुरों से -पुष्पः चम्पक वृक्ष,--- बंधः सोना गिरवी रखना, हीन, संयोगः 1. स्वरों का मिल जाना 2. ध्वनि -भङ्गारः स्वर्णपात्र, माक्षिकम सोनामक्खी नाम का . या स्वरों का मेल ---अर्थात् आवाज़-अन्य एवैष एक खनिज पदार्थ, --रेखा, लेखा सोने की लकीर, स्वरसंयोगः-मच्छ० 113, उत्तर० 3, पण्डित -वणिज् (पुं०) 1. सोने का व्यापारी 2. सर्राफ़, कौशिक्या इव स्वरसंयोगः श्रूयते --- मालबि० 5, -वर्णा हल्दी। सङ्क्रमः 1. सुरों के उतार-चढ़ाव का क्रम - तं तस्य | स्वर्द (भ्वा० आ० स्वर्दते) चखना, स्वाद लेना। स्वरसक्रम मदुगिरः श्लिष्टं च तन्त्रीस्वनम् ---मच्छ० | स्वल (भ्वा० पर० स्वलति) जाना, हिलना-जुलन।। 3 / 5 2. सरगम, सन्धिः स्वरों का मेल,-सामन स्वल्प (वि.) [ सुष्ठु अल्पं -प्रा० स०, म० अ० स्वल्पी(पुं०, ब० ब०) यज्ञीय सत्र में विशेष दिन के यस, तथा उ० अ० स्वल्पिष्ठ [ 1. बहुत छोटा या विशेषण। थोड़ा, सूक्ष्म, निर्थक 2. बहुत कम / सम०-आहारः स्वरवत् (वि.) [ स्वर+मतुप् ] 1. ध्वनियुक्त, निनादी | (वि.) बहुत कम खाने वाला, संयमी, मिताहारी, 2. सुरोला 3. स्वरविषयक . स्वराघात से युक्त, --कडू चील का एक भेद बल (वि०) अत्यंत सस्वर / दुर्बल या कमजोर, विषयः 1. नगण्य बात 2. छोटा स्वरित (वि.) [स्वरो जातोऽस्थ इतच 11. ध्वनियक्त भाग+व्ययः अत्यन्त कम खर्च, दरिद्रता,-योड 2. ध्वनित, स्वर के रूप में बोला गया 3. उच्चरित (वि.) बहुत कम लज्जा वाला, बेशर्म, निर्लज्ज, 4. स्वरित उच्चारणचिह्न से युक्त,-तः उदात्त (ऊंचे) शरीर ( वि०) बहुत छोटे कद का, ठिंगना। और अनुदात्त (नीचे) के बीच का स्वर सभाहार: स्वल्पक ( वि० ) [ स्वल्प+कन् ] बहुत थोड़ा, बहुत स्वरितः --पा० 112 / 31, दे० इस पर सिद्धा० / छोटा, बहुत कम / स्वरुः [स्वृ+उ ] 1. धूप 2. यज्ञीयस्तम्भ का एक | स्वल्पीयस् (वि०) [ स्वल्प+ईयसुन् 'स्वल्प' की म० अंश 3. यज्ञ 4. वन 5. बाण / अ.] बहुत कम, अपेक्षाकृत छोटा, अपेक्षाकृत स्वहस् (पुं०) [ स्व+उस् ] वज्र। स्वर्गः [ स्वरितं गीयते-गै-क, सु+ऋ--घा ] स्वल्पिष्ठ (वि.) [स्वल्प-+-इष्ठन्, 'स्वल्प' की उ० वैकुंठ, इन्द्र का स्वर्ग, बहिश्त --अहो स्वर्गादधिकतरं / अ० ] अत्यन्त कम, सबसे छोटा, अत्यन्त सूक्ष्म / निर्वृतिस्थानम्-श० 7 / सम०-आपगा स्वर्गीय गंगा, | स्वशुरः [=श्वशुरः ] अपने पति या पत्नी का पिता, ---- ओकस् (पुं०) सुर, देव, गिरिः स्वर्गीय पहाड़, | श्वसुर, तु० 'श्वशुर'। सुमेरु, --द, -प्रद (वि०) स्वर्ग में प्रवेश दिलाने स्वसू (स्त्री०) [ सू+अस् --ऋन् ] बहन, भगिनी वाला,-द्वारम् स्वर्ग का दरवाजा, वैकुंठ का -स्वसारमादाय विदर्भनाथ: पुरप्रवेशाभिमुखो बभूव दरवाजा स्वर्ग में प्रवेश स्वर्गद्वारकपाटपाटनपर्ध- ___..- रघु० 7 / 1,20 / मोऽपि नोपार्जितः-भर्तृ० 3 / 10, - पतिः, ---भर्तृ स्वसत् (वि.) [स्व + सु+क्विप् ] अपनी इच्छानुसार (पुं०) इन्द्र,-- लोक: 1. दिव्य प्रवेश 2. वैकुंठ,-वधूः, जाने या चलने-फिरने वाला। .. स्त्री (स्त्री०) दिव्य बाला, स्वर्ग की परी, अप्सरा | स्वस्क (भ्वा० आ० स्वस्कते) दे० 'वक'। णा परिष्वङ्गः कथ मत्यन लभ्यते,-साधनम् स्वस्ति (अव्य.) [सु+अस्+क्ति, वा अस्तीति स्वर्ग प्राप्त करने का उपाय / / विभक्तिरूपकम् अव्ययम्, प्रा० स० ] अध्यय, इसका स्वगिन (पं०) [ स्वगोंऽस्त्यस्य भोग्यत्वेन इनि ] 1. सूर, अर्थ है 'क्षेम, कल्याण हो' आशीर्वाद, जय जयकार, देव, अमर, त्वमपि विततयज्ञः स्वर्गिण: प्रीणयालम् / जाते समय की नमस्ते (संप्र० के साथ) स्वस्ति भवते श०७।३४, मेघ० 30 2. मृतक, मरा हुआ पुरुष। __श०२, स्वस्त्यस्तु ते रघु० 5 / 17 (प्रायः अक्षस्वर्गीय, स्वयं (वि०) [ स्वर्ग+छ, यत् वा ] 1. स्वर्ग रारम्भ में प्रयुक्त)। सम० --- अयनम् 1. समृद्धि के का, दिव्य, देवी 2. स्वर्ग को ले जाने बाला, स्वर्ग में दिलाने वाला उपाय 2. मन्त्र पाठ या प्रायश्चित्त प्रवेश दिलाने वाला मनु० 4.13, 5 / 48 / द्वारा पाप को हटाना 3. दान स्वीकार करने के बाद स्वर्णम् [ सुष्ठ अर्णो वर्णो यस्य ] 1. सोना 2. सोने का ब्राह्मण का धन्यवाद करना -प्रास्थानिक स्वस्त्ययनं सिक्का / सम० अरि: गंधक,-कणः, -कणिका सोने प्रयुज्य-रघु० 2170, :,--भावः शिव का विशे For Private and Personal Use Only Page #1169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1160 ) षण, * मुखः 1. पत्र 2. ब्राह्मण 3. बन्दी, स्तुति पाठक, / स्वादिमन (पुं० [स्वाद+इमनिच् / सुस्वादुता,.माधुर्य / -वाचनम, वाचनकम, वाचनिकम् 1. यज्ञ या कोई | स्वादिष्ठ (वि.) [स्वादु-+-इप्ठन्, 'स्वादु' की उ० अ०] मांगलिक कार्य आरम्भ करते समय किया जाने वाला अत्यन्त मधुर, सबसे मीठा कि स्वादिष्ठं जगत्यस्मिन् एक धार्मिक कृत्य 2. फूलों द्वारा आशीर्वाद या बधाई सदा सद्धिः समागमः। देने का विशेष कर्म, * वाच्यम् बधाई, आशीर्वाद। / स्वादीयस् (वि.) [स्वादु+ईयसुन, 'स्वादु' की म० अ०] स्वस्तिकः [ स्वस्ति शुभाय हितं क ] 1. एक मंगल चिह्न | अपेक्षाकृत अधिक मोठा, बहुत मधुर-काव्यामृतरसा जो किसी शरीर या पदार्थ पर बनाया जाता है स्वादः स्वादीयानमतादपि / (ए) 2. कोई मंगलद्रव्य 3. चार मार्गों का मिलना | स्वादु (वि०) (स्त्री०-दु-द्वी) [स्वद् +उण, म० अ० 4. भजाओं को व्यत्यस्त रूप से छाती पर रखना स्वादीयस, उ० अ० स्वादिष्ठ ] 1. मधुर, सुहावना, जिससे कि एक व्यत्यस्त (x) चिह्न बने ... स्तन- चखने में अच्छा, जायकेदार, मजेदार, रुचिकर, मीठा विनिहितहस्तस्वस्तिकाभिर्वधूभिः - मा० 4 / 10, शि० -तृषा शुष्यत्यास्ये पिबति सलिलं स्वादु सुरभि 10 / 43 5. एक विशेष शक्ल का महल 6. चौराहे से -भर्तृ० 3 / 92, मेघ० 24 2. सुखद, रुचिकर, बना हुआ एक त्रिभुजाकार चिह्न 7. एक तरह का / सुन्दर, प्रिय, मनोहर (पुं०) मधुररस, स्वाद की पिष्टक 8. विषयी, व्यभिचारी 9. लहसुन, - कः, - कम् मिठास, मजा 2. शीरा, राब, (नपुं०) माधुर्य, मजा, 1. एक विशेष रूप का मन्दिर या भवन जिसके सामने रस --कविः करोति काव्यानि स्वादु जानाति पण्डितः चबूतरा बना हो 2. एक योगासन / -"सुभा०,--दृः (स्त्री०) अंगुर। सम०-- अन्नम् स्वतीयः, स्वस्रयः [ स्वस+छ, ढक् वा ] भानजा, बहन | मीठा या चुना हुआ भोजन, स्वादिष्ट खाद्य, पक्वान्न, का पुत्र। ---अम्लः अनार का पेड़,-खण्डः 1. किसी मीठी स्वनीया, स्वस्रयी [स्वस्रीय +टाप्, स्वस्रेय - डीप ] | चीज का टुकड़ा 2. गुड़, राब,---फलम् बेर, बदर, भानजी, बहन की पुत्री। ...मूलम् गाजर, रसा 1. द्राक्षा 2. शतावरी पौधा स्वागतम् [सु+आ+ गम्+क्त ] शुभागमन, सुखद 3. काकोली मूल 4. मदिरा 5. अंगूर, शुद्धम् 1. सेंधा अगवानी (मख्यतः संप्र० में रक्खे हए व्यक्ति को | नमक 2. समुद्री नमक। अभिवादन करने में प्रयुक्त) स्वागतं देव्यं / स्वाद्वी स्वादुडीप द्राक्षा, अंगूर / --मालवि० 1, (तस्मै) प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं | स्वानः स्विन्---घा ध्वनि, कोलाहल / स्वागतं व्याजहार -मेघ०४, स्वागतं स्वानधीकारान स्वापः स्वप्+घा] 1. निद्रा, सोना उत्तर० 1137, प्रभावैरवलम्ब्य वः / युगपद् युगबाहुभ्यः प्राप्तेभ्यः 2. सुपना आना, स्वप्न 3. निद्रालुता, ऊंघना, आलस्य प्राज्यविक्रमाः -कु० 2 / 18 / 4. लकवा, कम्पवायु, सुत्र हो जाना 5. किसी एक स्वाडिकः [ स्वाङ्क+ठक ] ढोल बजाने वाला / नाड़ी पर दवाव से अस्थायी या आंशिक असंवेद्यता, स्वाच्छन्धम् [स्वच्छन्दस्य भावः ष्या ] अपनी इच्छा के जड़ता। अनुसार कार्य करने की शक्ति, स्वच्छंदता, स्वतन्त्रता | स्वापतेयम् स्विपतेरागतं ढा] धन, दौलत, सम्पत्ति-स्वा-कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यादासुरो धर्म उच्यते मनु० पतेयकृते मा. कि कि नाम न कुर्वते पंच०२।१५६, 3 / 31 (स्वाच्छन्द्येन, स्वाच्छन्द्यतः जानबूझ कर, शि० 14 / 9 / स्वेच्छा से)। स्वापदः दे० 'श्वापद'। स्वातन्त्र्यम् [स्वतन्त्र+व्यञ] इच्छाशक्ति की स्वतन्त्रता, | स्वाभाविक (वि.) (स्त्री०-की) [स्वभावादागत:-ठन] स्वाधीनता,--न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति मनु० 9 // 3, न अपनी निजी प्रकृति से संबद्ध, अन्तर्जात, अन्तहित, स्वातन्त्र्यं क्वचित् स्त्रियाः याज्ञ० 1285 / / विशेष, प्राकृतिक --स्वाभाविक विनीतत्वं तेषां विनयस्वातिः, ती (स्त्री०) [ स्व-अत् +इन, पक्षे डी / कर्मणा / मुमूर्च्छ सहजं तेजो हविषेव हविर्भुजाम् 1. सूर्य की एक पत्नी 2. तलवार' 3. शुभ नक्षत्रपुंज रघु० 10179, 5 / 69, कु० 671, काः (पुं०, 4. पन्द्रहवां नक्षत्र जो शुभ माना गया है स्वात्यां व०व०) बौद्धों का एक सम्प्रदाय जो सभी वस्तुओं सागरशुक्तिसम्पुटगतं सन्मौक्तिक जायते-भर्त० 2 / 67 / को प्रकृति के नियमानुसार बनी मानते हैं। सम० योगः स्वाती का (चन्द्रमा के साथ) योग। | स्वामिता,-स्वम् [स्वामि---तल /-टाप, त्व वा मालिकस्वाद दे० 'स्वद्'। पना, प्रभुत्व, मिल्कियत के अधिकार 2. एकायत्तता, स्वादः, स्वावनम् [ स्वद् (स्वाद्)+घन, ल्युट्, वा ] प्रभुता / 1. मज़ा, रस 2. चखना, खाना, पीना 3. पसन्द स्वामिन (वि.) (स्त्री० -नी) [स्व-अस्त्यर्थे-मिनि, दीर्घः] करना, मजे लेना, उपभोग करना 4. मधुर करना / एकायत्त अधिकारों से युक्त - (पुं०) 1. स्वामी, For Private and Personal Use Only Page #1170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1161 ) मालिक, 2. प्रभ, स्वत्वाधिकारी --रधुस्वामिनः सच्च- स्वाहा शब्द का उच्चारण करना--स्वाहास्वधाकाररित्र---विक्रमांक० 18 / 107 3. प्रभु, राजा, नरेश विजितानि श्मशानतुल्यानि गहाणि तानि,...पतिः, 4. पति 5. गुरु 6. विद्वान् ब्राह्मण, अत्यन्त ऊंचे दर्जे -- प्रियः आग,--भुज (पुं०) सुर, देव / का धार्मिक पुरुष या संन्यासी (इस अर्थ में यह शब्द | स्विद् (अव्य०) [ स्विद्+क्विप् ] प्रश्नवाचक या पृच्छाप्राय: नाम के साथ जुड़ता है) 7. कार्तिकेय का परक निपात, प्रायः 'सन्देह' 'आश्चर्य' को प्रकट करता विशेषण 8. विष्ण का विशेषण 9. शिव का विशेषण है, इसका अर्थ है 'क्या' 'हे' 'ए' 'हा, ओ, हो' की 10. वात्स्यायन मनि का विशेषण 11. गरुड़ का ध्वनि 'क्या ऐसा हो सकता है' आदि; इस अर्थ में विशेषण / सम० उपकारक: घोड़ा, कार्यम् किसी तथा अनिश्चयार्थ प्रकट करने के लिए इसे प्रश्नवाचक राजा या प्रभु का कार्य, पाल (पुं०, द्वि० व०) सर्वनाम के साथ जोड़ दिया जाता है कास्विदव(पशुओं का) मालिक और रखवाला-मनु० 85, गण्ठनवती नातिपरिस्फुटशरीरलावण्या श० 5.13, -भावः मालिक या प्रभु की अवस्था, मालिकपना, मेघ० 14, कभी कभी यह पृथक रूप से 'या' और --वात्सल्यम् पति या स्वामी के लिए स्नेह, सद्धाव: 'अथवा' अर्थ को प्रकट करता है। कभी कभी 'न' 'उत' 1. मालिक या प्रभु की सत्ता 2. मालिक या प्रभु और 'वा' के साथ जुड़कर; दे०कि० 835, 12 / की अच्छाई,-सेवा 1. स्वामी या मालिक की सेवा, 15, 1338, 14 / 60, 'आहो' के साथ भी। टहल 2. पति का आदर, सम्मान / स्विद् (दिवा० पर० स्विद्यति, स्विदित या स्विन्न) स्वाम्यम् [स्वामिन् +ष्य.] 1. स्वामित्व, प्रभुता, मालिक- स्वेद आना, पसीना आना-स्विद्यति कणति वेल्लति पना 2. संपत्ति का अधिकार या हक़ 3. राज्य, सर्वो- -काव्य०१०, उत्तर० 3141, कु० 7177, मा० परिता, शासन / 1135, स त्वां पश्यति कंपते पुलकयत्यानन्दति स्विद्यति स्वायंभव (वि०) (स्त्री०-वी) [स्वयंभू+अण] 1. ब्रह्मा - गीत०११।। से सम्बन्ध रखने वाला-- कु० 21 2. ब्रह्मा से in (भ्वा० आ० स्वेदते, स्विन्न या स्वेदित) 1. मालिश उत्पन्न, वः प्रथम मनु का विशेषण (क्योंकि वह किया जाना 2. चिकनाया जाना 3. विक्षुब्ध होना ब्रह्मा का पुत्र था)। --प्रेर० (स्वेदयति-- ते) 1. पसीना लाना 3. गरम स्वारसिक (वि०) (स्त्री०-की) [स्वरस-+-ठक्] अन्तर्वर्ती करना। रस या माधुर्य से ओतप्रोत (काव्यरस)। स्वीकरणम्, स्वीकारः, स्वीकृतिः [स्व+च्चि-+-+ ल्युत् स्वारस्यम् [स्वरस+प्या ] 1. स्वाभाविक रस या श्रेष्ठता (घा , क्तिन् वा) ] 1. लेना, ग्रहण करना 2. हामी का रखने वाला 2. लालित्य, योग्यता / भरना, सहमत होना, प्रतिज्ञा करना, हामी, प्रतिज्ञा स्वाराज् (पुं० [स्व+राज्+क्विप] इन्द्र का विशेषण / 1. वाग्दान, पाणिग्रहण, विवाह / स्वाराज्यम् स्वराज-व्या] 1. स्वर्ग का राज्य, इन्द्र | स्वीय (वि० [स्व+छ] अपना, अपना निजी-लोकालोकका स्वर्ग 2. स्वप्रकाशमान ब्रह्मा से तादात्म्य / / विसारितेन विहितं स्वीयं विशुद्धम् यश:-सा०द० 97 / स्वारोचिषः, स्वारोचिस् (पुं०)[स्वरोचिषः अपत्यम् -अण्] | स्व (भ्वा० पर० स्वरति, इच्छा० सिष्वरति, सुस्वर्षति) द्वितीय मन का नाम-दे० 'मनु' के अन्तर्गत। 1. शब्द करना, सस्वर पाठ करना 2. प्रशंसा करना स्वालक्षण्यम् स्वलक्षण ष्यत्र] विशेष लक्षण, स्वाभा- 3. पीडा देना या पीडित होना 4. जाना, अभि--, विक अवस्था, खासियत, मनु 9 / 19 / प्र-, शब्द करना. सम् , पीड़ा देना (आ०) स्वाल्प (वि०) (स्त्री०-ल्पी) [स्वल्प+अण्] 1. थोड़ा, भट्टि० 9 / 28 / लोटा 2. कुछ, कम, -- ल्पम् 1. थोड़ापन, छुटपन | स्व (क्रया०प० स्वृणाति) चोट पहुँचाना, मार डालना / 2. संख्या का छोटापन / स्वेक् (भ्वा० आ० स्वेकते) जाना। स्वास्थ्यम् स्वस्थ-व्यञ] 1. आत्मनिर्भरता, स्वाश्रयता | स्वेदः [ स्विद् भावे घा / पसीना, पसेउ, श्रमबिंदु 2. साहस, कृतसंकल्पता, दिलेरी, दृढ़ता 3. तन्दुरुस्ती, -अङ्गलिस्वेदेन दृष्येरन्नक्षराणि-विक्रम० 2 / सम० नीरोगता 4. समृद्धि, कुशलक्षेम, सुखचैन 5. आराम, उवम्, उदकम, जलम् पसीना, श्रमकण,-चूषकः संतोष, हिम्मत-लब्धं मया स्वास्थ्यम् श० 4 / / शीतल मंद पवन, ठंडी हवा (पसीना सूखाना),-ज स्वाहा [सु--आ+हे+डा] 1. सभी देवताओं को बिना (वि०) ताप या भाप से उत्पन्न होने वाला, पसीने किसी विचार के दी जाने वाली आहुति 2. अग्नि से उत्पन्न होने वाला (जें, खटमल आदि जीव) / की पत्नी का नाम ( अव्य० ) देवताओं के उद्देश्य | स्वर (वि०) [ स्वस्य ईरम् ईर् | अच् वृद्धिः ] 1. मनमाना से आहुति देते समय उच्चारण किया जाने वाला आचरण करने वाला, स्वच्छंद, स्वेच्छाचारी, अनिशब्द-इन्द्राय स्वाहा अग्नये स्वाहा। सम०-कारः / यंत्रित, निरंकुश-बद्धमिव स्वरगतिर्जनमिह सुखसंगि 146 For Private and Personal Use Only Page #1171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नममि... 205 / 11, अव्याहतैः स्वरगतः स तस्याः | स्वैरता, त्वम् [स्वर- तल-+टाप, त्व वा] स्वेच्छा - रघु० 2 / 5 2. स्वतंत्र, असंकोच, विश्वस्त, जैसा / चारिता, स्वच्छन्दता, स्वतन्त्रता। कि 'स्वरालाप' मुद्रा० 4 / 8 3. मन्थर, मृदु नम्र स्वैरिणी [स्वैरिन् +डीप् ] असती, कुलटा, व्यभिचारिणी - मुद्रा० 112 4. सुस्त, मंद 5. अपनी मर्जी चलाने | याज्ञ० 1167 / / वाला, ऐच्छिक, यथाकाम,--- रम् स्वच्छंदता, स्वेच्छा-स्वरिन् (वि.) [स्वेन ईरितुं शीलमस्य- स्व।-ईर चारिता, ..-रम् (अव्य०) 1. इच्छा के अनुसार, णिनि ] मनमानी करने वाला, स्वेच्छाचारी, मनपसंद, आराम से - सार्थाः स्वरं स्वकीयेषु चेरुवेश्म- अनियंत्रित, निरंकुश / स्विवाद्रिषु-रघु० 17 / 64 2. अपने आप, स्वतः स्वरिन्ध्री दे० 'सैरन्ध्री' / 3. शनैः शनैः, नम्रता पूर्वक, मृदुता के साथ - उत्तर० स्वोरसः (पु०) तैलीय पदार्थ सिल पर पीसने के बाद उस 3 / 2 4. आहिस्ता से, धीमी आवाज़ में, अस्पष्ट में लगा हुआ (उस पदार्थ का) अंश या तलछुट / (विप० स्पष्ट)-पश्चात्स्वैरं गज इति किल व्याहृतं स्वोवशीयम् (नपुं०) आनन्द, समृद्धि (विशेषकर भावी सत्यवाचा-वेणी० 3 / 9 / जीवन के विषय में)। है (अव्य०) [हा+3] बलबोधक निपात जो पूर्ववर्ती 7. विष्णु 8. कामदेव 9. राजा जो महत्त्वाकांक्षी न शब्द पर बल देता है, इसका अर्थ है 'सचमुच' यथार्थ | हो 10 विशेष संप्रदाय का सन्यासी 11. दीक्षागरु में निश्चय ही आदि, परन्तु कभी कभी इसका उपयोग 12. ईर्ष्या, द्वेष से हीन व्यक्ति 13. पर्वत / सम. बिना किसी विशेष अर्थ को प्रकट किये केयल पाद- —अधिः सिंदूर, अधिरूढा सरस्वती का विशेषण, पूर्ति के निमित्त भी किया जाता है, विशेष कर वैदिक --अभिख्यम चांदी, कांता हंसिनी, कोलक; एक साहित्य में---तस्य ह शतं जाया बभूवुः, तस्य ह पर्वत- प्रकार का रतिबंध,-गति (वि०) हंस जैसी चाल नारदौ गृह ऊषतुः आदि-ऐत०, यह कभी कभी संबोधन चलने वाला, राजसी ढंग से इतरा कर चलने वाला के लिए भी प्रयक्त होता है, तिरस्कार या उपहास के ... गद्गवा मयुरभाषिणी स्त्री,-..गामिनी 1. हंस की लिए विरल प्रयोग---(पुं०) 1. शिव का एक रूप सी सुन्दर गति वाली स्त्री मनु० 310 2. ब्रह्माणी 2. जल 3. आकाश 4. रुधिर / -पूलः, लम् हंस के मुलायम पर, वाहनम् अगर हंसः हिस+अच, पुषो० वर्णागमः, भवेद्वर्णागमात् हंसः की लकड़ी,--नादः हंस का कलरव, नादिनी मधुर-सिद्धा०] 1. राजहंत, मराल, मुर्गाबी, कारंडव-हंसाः भाषिणी स्त्रियों का भेद (पतली कमर, बड़े नितंब, संप्रति पाण्डवा इव बनादज्ञातचयर्यां गताः- मच्छ०५:६, गज की चाल और कोयल के स्वर वाली) संदर स्त्री न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा-सुभा०, रघु० गजेन्द्रगमना तन्वी कोकिलालापसंयता, नितंब 3 / 10, 5 / 12, 17425 (इस पक्षी का वर्णन जैसा गविणी या स्यात्सा स्मृता हंसनादिनी,-माला हंसों कि संस्कृत के कवियों ने किया है, अधिकतर काव्या की पंक्ति -कु. 1130, युवन् (पु.) जवान हंस, त्मक है, उसे ब्रह्मा का वाहन बताया जाता है, बर रयः, वाहनः ब्रह्मा के विशेषण,-राजः हंसों का सात के आरंभ में उसे मानसरोवर की ओर उड़ता राजा, बड़ा हंस,- लोमशकम्, कासीस,---लोहकम् हुआ बताया जाता है तु० 'मानस' / एक सामान्य पीतल,---श्रेणो हंसों की पंक्ति / कविसमय के अनुसार हंस को दूध और पानी को | हंसकः [हंस- कन्, हंस+के+क वा] 1. कारंडव, मराल पृथक्-पृथक करने वाला विशेष शक्ति संपन्न पक्षी 2. पैरों का आभूषण, नपूर, पायजेब सरित इव माना जाता है उदा० सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्ग सविभ्रमप्रपातप्रणदितहंसकभषणा विरेज:---शि०७। हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात पंच० १,हंसो हि 23, (यहाँ यह शब्द 'प्रथम अर्थ' में भी प्रयुक्त हुआ क्षीरमादते तन्मिश्रा वर्जयत्यपः श० 6.27, नीर- है, दूसरे अर्थों के लिए देखो ऊ० 'हंस)। क्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनषे चेत। विश्वस्मि- | हंसिका, हंसी [ कन्+टाप, इत्वम्, हंस+डीप् ] नधनान्यः कुलवतं पालयिष्यति कः भामि० 1113, हंसनी, मादा हंस / दे० भर्तृ० 2 / 18 भी 2. परमात्मा, ब्रह्म 3. आत्मा, हहो (अव्य०) [हम् इत्यव्यक्तं जहाति-हम्+हा- डो] जीवात्मा 4. प्राण वायुओं में से एक 5. सूर्य 6. शिव / संबोधनात्मक अव्यय जो आवाज देने में प्रयुक्त होता For Private and Personal Use Only Page #1172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है जैसे अंग्रेजी का 'हल्लो' (Hallo) शब्द : किया गया 2. चोट पहुंचाई गई, प्रहार किया गया, हहो चिन्मयचित्तचन्द्रमणयः संवर्धयध्वं रसान् / क्षतिग्रस्त 3. नष्ट, बरबाद 4. वञ्चित, हीन, रहित -चन्द्रा०२२ 2. तिरस्कार एवं अभिमानसूचक अव्यय 5. निराश भग्नाश 6. गणित-दे० हन, 'निकम्मा' 3. प्रश्न वाचक अव्यय (नाटकों में इस शब्द का 'अभिशप्त' 'दयनीय' 'अधम' अर्थों को प्रकट करने के प्रयोग मध्यम पात्रों द्वारा प्रायः संबोधन के रूप में लिए यह समस्त शब्द के प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त किया जाता है हंहों ब्राह्मण मा कृप्य मुद्रा० 1) / होता है अनुशयदुःखायदं हतहृदयं संप्रति बिबुद्धम् हक्कः [हक इति अव्यक्तं कायति-हक्-+के+क] हाथियों --- श० 6 / 6, कुर्यामुपेक्षा हतजीवितेऽस्मिन्-रघु० को बुलाना। 14 / 65, हतविधिलसिताना ही विचित्रो विपाकः-शि० हंजा हंजे हम इति अव्यक्तं जप्यतेऽत्र हम्+जप्-+ डा 11164 / सम० आश (वि.) 1. आशा से रहित, (डे)] संबोधनात्मक अव्यय जो किसी दासी या नौक- निराश, ध्वस्ताश 2. दुर्बल, अशक्त 3. कर, निर्दय, रानी को बुलाने में प्रयक्त होता है हंजे कंचणमाले 4. बांझ . नीच, दुष्ट, पाजी, अभिशप्त, दुर्वत्त, अहम् ईदिसी कडुभासिणी-रत्न०३ / - कण्टक (वि०) कांटों से मुक्त, शत्रुओं से रहित, हट (भ्वा० पर० हटति, हटित) चबकना, उज्ज्वल होना। -चित्त (वि.) व्याकुल, घबड़ाया हुआ,—त्विष् हट्टः [ हट्ट , टस्य नेत्वम् बाजार, हाट, मेला / सम० (वि०) धुंधला --रघु० 3 / 15, वैव (वि०) हत..-चौरकः वह चोर जो बाजार से चीजे चुराये भाग्य, भाग्यहीन, दुर्भाग्यग्रस्त,-प्रभाव (वि.) - गंठकठा, विलासिनी 1. वारांगना, वेश्या, रंडी (वि०)शक्तिहीन, निर्वीर्य, बलहीन,-बुद्धि 2. एक प्रकार का गंधद्रव्य / ज्ञान से वञ्चित, बेहोश, भाग,- भाग्य (वि.) हठः हिटअच 1. प्रचण्डता, बल 2. अत्याचार, लट भाग्यहीन, बदकिस्मत,--मूर्खः बड़ा मुर्ख, बुद्ध,- लक्षण खसोट, (हठेन, हठात् - (क्रिया विशेषण के रूप में (वि०) शुभलक्षणों से विरहित, अभागा, शेष प्रयुक्त) बलपूर्वक, प्रचंडता से, अचानक, दुराग्रहपूर्वक (वि०) जीवित बचा हुआ,-श्री,- संपद् (वि०) अम्बालिका च चण्ड वर्मणा हठात् परिणेतुमात्मभव जिसका वैभव नष्ट हो गया हो, धन के न रहने पर नमनीयत दश०, वानरान वारयामास हठेन मधुरेण जो दरिद्र हो गया हो, साध्वस (वि.) जिसका भय च राम। सम०---योगः योग की एक विशेष नष्ट हो गया हो, भयमुक्त, निर्भय / / रीति या भावचिन्तन व मनन का अभ्यास ('राजयोग' हतक (वि०) [हत + कन्] दुःखी, दुःशील, दुर्वृत्त नीच, से भिन्नता दिखाने के लिए इसका नाम 'हठयोग' दुष्ट (प्राय, समास के अन्त में प्रयुक्त)--न खल पड़ा; इसका अभ्यास भी कुछ कठिन है, इसके अन् / विदितास्ते तत्र निवसन्तश्चाणक्यहतकेन मुद्रा० 2, पालन की अनेक रीतियाँ है, उदा० एक पैर के बल दूषिताःस्थ परिभूताःस्थ रामहतकेन - उत्तर०१,---कः खड़ा होना, हाथों का ऊपर किये रहना, सिर ऊपर नीच पुरुष, कायर। करके धूम्रपान करना आदि),-विद्या बलपूर्वक मनन ! हतिः (स्त्री०) हिन्--क्तिन्] 1. हत्या, विनाश 2. प्रहार करने का विज्ञान / करना, घायल करना 3. आघात, प्रहार 4. नाश, हडिः हल्+इन्, पृषो०] काठ की बेडी। असफलता 5. त्रुटि, दोष 6. गुणा / हरि (ड्डि) कः, हड्डिः [हट् +इकक्, पृषो०, हठ + इन्, | हत्नुः [हन् + क्त्नुः] 1. शस्त्र 2. रोग या बीमारी / पृषो०, कन् वापि] अत्यंत नीच जाति का पुरुष, भंगी | हत्या [हन भावे क्यप् वध करना, मार डालना, संहार, ___ आदि / कतल, जघन्य वध जैसे भ्रूणहत्या, गोहत्या, आदि। हड्डम् हिडि पृषो०] हड्डी। सम० जम् मज्जा। हद् (भ्वा० आ० हदते, हन्न) पुरीषोत्सर्जन, मलत्याग हण्डा (अव्य०)हान् +डा संबोधनात्मक अव्य० जो निम्न करना, इच्छा० (जिहत्सते) / श्रेणी की स्त्रियों को बुलाने में, या निम्नतम जाति | हदनम् [हद् --ल्युट पुरीषोत्सर्ग, मलत्याग।। (भंगी आदि) के व्यक्तियों द्वारा आपस में एक दूसरे हन (अदा०पर हन्ति, हत, कर्मवा० हन्यते, प्रेर० घातको संबोधित करने में प्रयुक्त होता है - हंडे हंजे यति--ते, इच्छा० जिघांसति) 1. मार डालना, वध हलाहाने नीचां चेटी सखी प्रति अमर०, स्त्री० एक करना, नाश करना, प्रहार कर देना अयश्च दूषणबड़ा मिट्टी का बसन / खरत्रिमूर्धानो रणे हताः - उत्तर० 2 / 15, हतमपि च हण्डिका, हण्डी [हण्डा+कन्-+टाप, इत्वम्, हण्ड + ङीष्] हन्त्येव मदन:-भर्तृ० 3 / 18 2. आघात करना, हांडी, मिट्टी का एक वर्तन / पीटना-चण्डी चण्डं हन्तुमभ्युद्यता मां विद्युददाम्ना हंडे (अव्य०) हिन्+रे] दे० 'हंडा (अव्य०)। मेघराजीव विध्यम् ----मालवि० 320, शि० 756 हत (भ० क० कृ०) [हन्+क्त] 1. मारा गया, वध | 3. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, कष्ट देना, संताप For Private and Personal Use Only Page #1173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1164 ) देना जैसा कि 'कामहत' में 4. डाल देना, छोड़ देना, / याज्ञ० 3 / 262 2. प्रहार करना, आघात करना, -भर्त० 2177 5. हटाना, दूर करना, नष्ट करना, --तानेव सामर्षतया निजघ्नुः रघु० 7.44, मेघ० -अम्भोजिनीवननिवासविलासमेव हंसस्य हन्ति नितरां 7 / 27 3. जीतना, हराना-देवं निहत्य कुरु पौरुषमाकुपितो विधाता--भर्त० 2 / 48 6. जीतना, पछाड़ त्मशक्त्या -पंच० 113611. पीटना, (ढोल आदि) देना, पराजित करना, परास्त करना--विनैः सहस्र- बजाना, भट्टि०१४।२ 5. प्रतीकार करना, निष्फल गणितैरपि हन्यमानाः प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति करना, भग्नाश करना रघु० 12 / 92 6. (रोग -- सुभा० 7. विघ्न डालना, बाधा डालना 8. नष्ट आदि की) चिकित्सा करना 7. अवहेलना करना, करना, बिगाड़ना-कि० 2 / 37 1. उठाना- तुरग- 8. हटाना, दूर करना, कि० 5 / 36, परा--, खुरहतस्तथा हि रेणुः-- श० 1132 10. गुणा करना 1. जवाबी वार करना, प्रत्याघात करना, पछाड़ देना, (गणित में) 11. जाना (काव्य में इसका इस अर्थ पीछे धकेलना, निवारण करना, परास्त कर देना, में प्रयोग विरल है, और जब कभी प्रयुक्त होता है खदेड़ देना-देवं यत्पीरुपपराहतं --राम. 2. आक्रतो वह काव्य का एक दोष माना जाता है) उदा० मण करना, धावा बोलना कटाक्षपराहतं वदनपङ्क-- कुज हन्ति कृशोदरी-सा० द.७, या, तीर्थान्तरेषु जम् मा० 7 3. टक्कर मारना, प्रहार करना, स्नानेन समुपाजितसत्कृतिः। सुरस्रोतस्विनीमेष हन्ति प्र.. 1. वध करना, कतल करना, प्राघानिषत संप्रति सादरम्-काव्य० 7, (असमर्थत्व' दोप का रक्षांसि येनाप्तानि वने मम / न प्रहामः कथं पापं वद उदाहरण), अति---,अत्यन्त क्षतिग्रस्त करना, अन्तर पूर्वापकारिणम्-भट्टि० 9 / 102 2. प्रहार करना, बीच में प्रहार करना, अप , 1. हटाना, पीछे धके- पीटना, आधात करना - गदाप्रहततनुः 3. प्रहार लना, नष्ट करना, वध करना 2. दूर करना, हटाना करना, पीटना, (ढोल आदि) रघ० 19 / 15, मेघ० -न तु खलु तयोर्ज्ञाने शक्ति करोत्यपहन्ति वा 64, प्रणि-वध करना - भट्टि० 2 / 35, प्रति-, --उत्तर० 2 / 4, श० 47 3. आक्रमण करना, जबाबी वार करना, बदले में प्रहार करना (तं) बलात् ग्रहण करना, अभि--,1. प्रहार करना, आघात विध्यन्तमुद्धतस टा: प्रतिहन्तुमीपुः----रघु० 9 / 60, करना (आलं० से भी). पीटना---मा० 139, 2. हटाना, परे करना, रोकना, बिराध करना, मुक़ामालवि० 5 / 3 2. चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, वला करना--तोयस्येवाप्रतिहतरयः सैकत सेतुमोघः हत्या करना, नष्ट करना 3. प्रहार करना, पीटना -- उत्तर० 3 / 36, प्रतिहतविघ्ना: त्रियाः समवलोक्य (ढोल आदि) भग०-१११३ 4. आक्रान्त करना, ग्रस्त - श० 1113, मेघ० 20. कु० 2 / 48, विक्रम० 2 // कर लेना, परास्त करना, अब-, 1. प्रहार करना, 1 3. हटाना, खदेड़ना, ढकेलना 4. दूर करना, नष्ट मारना, वध करना 2. नष्ट करना, हटाना करना यद्यत् पापं प्रतिजहि जगन्नाथ नम्रस्य तन्मे 3. (अनाज की भांति) कुटना, आ--, 1. आघात -- मा० 123 5. प्रतीकार करना, उपचार करना, पहँचाना, प्रहार, करना, पीटना--कुट्टिममाजधान वि.---, 1. वध करना. क़तल करना, नष्ट करना, का०, कि० 7117 (आ० माना जाता है जब पीटा विध्वस्त करना, संहार करना (अलं) सहसा संहतिजाने वाला अपना ही कोई अंग हो-आहते शिरः मंहसां विहन्तुम्-- कि० 5 / 17. 2. प्रहार करना, जोर -सिद्धा०, परन्तु भारवि कहता है 'आजघ्ने विषम- से आघात करना 3. अवरोध करना, रुकावट डालना. विलोचनस्य वक्ष:--कि० 17463, भट्टि० 8 / 15, विरोध करना, मुकाबला करना---विघ्नन्ति रक्षांसि 5 / 102) रबु० 4123, 12177, कु० 4 / 25, 30, वने ऋतूश्च / भट्टि० 1119, रघु० 5 / 27 4. अस्वी2. प्रहार करना, (घंटी आदि) बजाना, (ढोल आदि) कार करना. इंकार करना. क्षय होना रघु० 2 / 58, पीटना,--भट्टि० 127. 1717, मेघ० 66, रघु० 1102 3. निराशा करना, हताश करना, सम्-, 17 / 11, उद् , 1. उठाना, उन्नत करना, ऊँचा 1. सटा कर मिलाना. आपस में जोड़ना हस्तौ संहत्य करना 2. फूलना, घमंडी होना, दे० उद्धत, उप , ----मनु० 2 / 71 दूत एव हि संधते भिनत्त्येव च 1. प्रहार करना, आघात करना 2. बरबाद करना संहतान .....7 / 66 दे० संहत' 2. ढेर लगाना. संग्रह क्षतिग्रस्त करना, नष्ट करना, वध करना- लङ्का चोप करना, संचय करना 3. संचित करना, सिकोड़ना हनिष्यते--भट्टि० 16 / 12, 5.12, भग० 3 / 24 | 4. संघर्ष होना 5. प्रहार करना. मार डालना, नष्ट 3. पीड़ित करना, ग्रस्त करना, परास्त करना, टप- करना, समा ,प्रहार करना आघात करना, क्षतिकना दारिद्रयोपहत, मलोपहत, कामोपहत आदि ग्रस्त करना। कु० 5176, भर्तृ० 2 / 26, नि , मार डालना, नष्ट हन् (दि.) [हन्-:-क्विप्] वध करने वाला, हत्या करने करना भट्टि० 2134, 6 / 10, रघु० 11171, / वाला, नष्ट करने वाला (ममाम के अन्त में प्रयुक्त) For Private and Personal Use Only Page #1174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1165 ) जैसा कि वृत्रहन्, पितहुन्, मातृहन्, ब्रह्महन् आदि। / हयः हिय् (हि)+अच्] 1. घोड़ा, भग०१।१४, मनु० हनः [हन् + अच् वध, हत्या / 81226 रघु० 9.10 2. एक विशेष श्रेणी का मनुष्य हननम् हन् + ल्युट्] 1. वध करना, हत्या करना, आघात -दे० 'अश्व' के अन्तर्गत 3. 'सात' की संख्या 4. इन्द्र करना 2. चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना 3. गुणा / का नाम / सम०---अध्यक्षः घोड़ों का अधीक्षक हनुः-नू (पु०, स्त्री०) [हन्-+-उन्, स्त्रीत्वे वा ऊन .......आयुर्वेदः अश्वचिकित्साविज्ञान, शालिहोत्रविद्या, ठोडी, नु (स्त्री०) 1. जीवन पर आघात करने ___ आरूढः अश्वारोही, घुड़सवार,-आरोह 1. घुड़वाली चीज 2. शस्त्र 3. रोग, बीमारी 4. मृत्यु सवार 2. धुड़सवारी, इष्ट: जौ,-उत्तमः बढ़िया 5. एक प्रकार को औषधि 6. स्वेच्छाचारिणी स्त्री, घोड़ा, कोविदः घोड़ों के प्रबन्ध, प्रशिक्षण तथा वेश्या / सम० प्रहः बन्द जबड़ा, मूलम् मबड़े चिकित्साविज्ञान से परिचित, ज्ञः घोड़ों का व्यापारी, की जड़ / साइस, पेशेवर घड़सवार,---द्विषत् (पुं० ) भैसा हनु (नू) मत् (पु०) [हनु (नू)+मतु] एक अत्यंत प्रियः जौ,---प्रिया खजूर का वृक्ष,-- मारः,-मारकः शक्तिशाली वानर का नाम (यह अंजना का पुत्र था, गंधयुक्त करवीर, कनेर,--मारणः पावन कनेर,-मेधः इसके पिता पवन या मरुत् थे, इसी कारण इसे अश्वमेध यज्ञ-याज्ञ० १।१८१,-वाहनः कुबेर का मारुति कहते है। ऐसा वर्णन मिलता है कि उसमें विशेषण,- शाला अस्तबल,-शास्त्रम घोड़ों को असाधारण शक्ति और पराक्रम था जो उसने अपने सधान या उनका प्रबन्ध करने की कला, संग्रहणम हृदयाराध्य राम की ओर से कई अवसरों पर प्रकट घोड़ों का लगाम खींच कर रोकना। किया। जब रावण सीता को अपहरण करके लंका हयषः [ हय ---कष् +खच्+मुम् ] चालक, रथवान् / में ले गया तो हनमान ने समद्र पार करके उसका | योदय। डीपी घोडी। पता लगाया तथा अपने स्वामी राम को सूचित किया। हर (वि.) (स्त्री० रा,--री) [ह-|-अच् ] 1. ले जाने लंका के महायुद्ध में उसने महत्त्वपूर्ण कार्य किया)। वाला, हटाने वाला, वञ्चित करने वाला खेदहर, हन्त (अव्य०) [हन् -त] प्रसन्नता, हर्ष, और आकस्मिक शोकहर 2. लाने वाला, ले जाने वाला, ग्रहण करने हलचल को प्रकट करने वाला अव्यय, हन्त भो लब्धं वाला अपथहरा:-कि० 5 / 50, रघु०. 12151 मया स्वास्थ्यम् श० 4, हन्त प्रवृत्तं संगीतकम् 3. पकड़ने वाला, ग्रहण करने वाला 4. आकर्षक, -मालवि० 1, 2. करुणा, दया--पुत्रक हन्त ते मनोहर 5. अध्यर्थी, दावेदार, अधिकारी---मु० धानाकाः --गण. 3. शोक, अफसोस हन्त घि 2019 6. अधिकार करने वाला,--कु० 1150, मामधन्यम् - उत्तर० 1143, स्मरामि हन्त स्मरामि 7. बाँटने वाला,र: 1. शिव, कु० 1150, 3 / 40, --उत्तर० 1, काचमूल्येन विक्रीतो हन्त चिन्तामणि- 67, मेघ० 7 2. अग्नि 3. गधा भाजक 5. भिन्न र्मया-शा० 1112, मेघ० 104 4. सौभाग्य, आशी- की नीचे की संख्या / सम० गौरी शिव और दि 5. यह बहुधा आरम्भसूचक अव्यय के रूप में पार्वती का एक संयुक्त रूप (अर्धनारीनटेश्वर), भी प्रयुक्त है-हन्त ते कथयिष्यामि-राम / सम० चडामणिः शिव की शिखामणि, चन्द्रमा, तेजस __ उक्तिः (स्त्री०, करुणा, मृदुता आदि द्योतक (नपुं०) पारा, नेत्रम् 1. शिव की आँख 2. तीन की शोक, खेद आदि शब्दों का कथन,---कार: 1. 'हन्त' संख्या, बीजम् शिव का बीज, पारा, -शेखरा शिव विस्मयादिबोधक अव्य० 2. किसी अतिथि को दी | की शिखा, गंगा, सूनुः स्कन्द रघु० 11283 / जाने वाली भेंट-निवीती हन्तकारेण मनुष्यांस्तर्पयेदथ / हरकः [ हर-कन् ] 1 चोरी करने वाला, चोर 2. दुष्ट, हन्त (वि.) (स्त्री० त्री) [हत् -तच। 1. प्रहारकर्ता, 3. भाजक / वधकर्ता, मनु० 5 / 34, कु० 2 / 20 2. जो हटाता हरणम् [ह+ ल्युट ] 1. पकड़ना, ग्रहण करना 2. ले है, नष्ट करता है, प्रतीकार करता है,-पुं० 1. हत्यारा जाना, दूर करना, हटाना, चुराना कन्याहरणम् क़ातिल 2. चोर, लुटेरा।। -मनु० 3 / 33, रघ० 11174 3. वञ्चित करना, हम (अव्य०) हा+डम] 1. क्रोध तथा 2. शिष्टाचार नष्ट करना, जैसा कि 'प्राणहरणम' में 4. भाग देना या आदर को प्रकट करने वाला उद्गार / 5. विद्यार्थी को उपहार 6. भुजा 7. वीर्य, शुक्र हम्बा (भा) [हम् +भा-अङ्कटाप, पक्षे पृषो०] गाय, 8. सोना / बैल आदि पशुओं के बोलने का शब्द, रांभना। सम० हरि (वि.) [ह+इन् ] 1. हरा, हरा-पीला 2. खाकी, --रवः रांभना। लाख के रंग का, लालीयुक्त भूरा, कपिल हरियग्यं हर (म्वा० पर० यति, हयित) 1. जाना 2. पूजा करना रथं तस्मै प्राजिघाय पुरन्दरः रघु० 12114, 343 3. शब्द करना 4. थक जाना / 3. पीला,-रि: 1. विष्णु का नाम-हरियथैक: पुरु For Private and Personal Use Only Page #1175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोत्तमः स्मृतः- रघु० 3 / 49 2. इन्द्र का नाम | हरिण (वि.) (स्त्री०-- गो) [ह + इनन् ] 1. फीका, -रघु० 3 / 55, 68, 879 3. शिव का नाम पीला सा 2. लाल या पीला सफेद,-: i. मृग, बारह4. ब्रह्मा का नाम 3. यम का नाम 6. सूर्य 7. चन्द्रमा सिंगा (यह पांच प्रकार का बताया गया है-हरिण8. मनष्य 9. प्रकाश की किरण 10, अग्नि 11. पवन इचापि विज्ञेयः पंचभेदोऽत्र भैरव। ऋ ष्यः खङ्गो 12. सिंह-भामि० 1150, 51 13. घोड़ा 14. इन्द्र रुरुश्चैव पृषतश्च मगस्तथा कालिका०)-अपि प्रसन्नं का घोड़ा सत्यमतीत्य हरितो हरीश्च वर्तन्ते वाजिनः हरिणेषु ते मन:---कु० 5 / 35 2. सफेद रंग 3. हंस -~-श० 1, 77 15. लंगूर, बन्दर -- उत्तर० 348, 4. सूर्य 5. विष्णु 6. शिव। मम०-- अक्ष (वि०) रघु० 12 / 57 16. कोयल 17. मेंढक 18. तोता मगनयन, हरिण जैसी आंखों वाला,(-क्षी) मगनयनी 19. साँप 20. खाकी या पीला रंग 21. मोर 22. भर्त- सुन्दर आंखो वाली स्त्री,- अङक: 1. चन्द्रमा 2. कपूर, हरि कवि का नाम / सम० -- अक्षः .. सिंह कलडकः,-धामन् (पुं०) चन्द्रमा,... नयन, नेत्र 2. कुबेर का नाम 3. शिव का नाम, अश्व: 1. इन्द्र लोचन (वि.) हरिणाक्ष, मग मी आंखों वाला, 2. शिव, कान्त (वि.) 1. इन्द्र को प्रिय 2. सिंह के ..... हृदय (वि.) हरिण जैसे दिल वाला, भीरु / समान सुन्दर, केलीयः बंग देश, गन्धः एक प्रकार | हरिणकः हरिण-कन्] छोटा हरिण-क्व वत हरिणकानां का चन्दन,--चन्दनः नम् 1. एक प्रकार का पीला जीवितं चातिलोलम श० 1110 / चन्दन (लकड़ी या वृक्ष) रघु० 3159, 660, श० / हरिणी[हरिण- ही ] 1. मगी, मादा हरिण,-चकित७।२, कु० 5 / 69 2. स्वर्ग के पाँच वृक्षों में से एक / हरिणीप्रेक्षणा मेघ० 82, रघु० 2055, 1416 वक्ष पञ्चते देवतरवो मन्दारः पारिजातकः / सन्तानः 2. स्त्रियों के चार भेदों में से एक ('चित्रिणी' भी कल्पवृक्षश्च पुंसि वा हरिचन्दनम्-अमर०, (-नम्) कहते हैं) 3. पीले फूल की चमेली. मुन्दर स्वर्णमनि 1. ज्योत्स्ना 2. केसर, जाफ़रान 3. कमल का पराग, 5. एक छन्द का नाम / सम० दश (वि०) हरिण ... तालः (कुछ विद्वान् इसे 'हरित' से व्युत्पन्न मानते जैसी आँखों वाला- (स्त्री०), मृगनयनी-किमभवद्विहैं) पीले रंग का कबूतर, (- लम्) हरताल हंस० पिने हरिणीदश:- उत्तर० 3 / 27 / 1, शि० 4 / 21, कु. 7 / 23, 33, (- ली) दूर्वा | हरित् (वि०) [ह+इति ] 1. हग, हरियाला 2. पीला, घास, दुभ, तालिका भाद्रशुक्ला चतुर्थी 2. दूर्वा घास, पीला सा 3. हरियाली लिये पीला,-(१०)1. हरा या --तुरङ्गमः इन्द्र का नाम,--वासः विष्णु का उपासक, पीलारंग 2. सूर्य का घोड़ा, लाख के रंग का घोड़ा-मत्य---दिनम् विष्णु पूजा का विशेष दिन,--देवः श्रवण मतीत्य हरितो हरीश्च वर्तन्ते वाजिनः - श० 1, दिशा नक्षत्र,-द्रवः हरा रस,-द्वारम् एक पुण्यतीर्थस्थान,-नेत्रम् हरिद्धिहरितामिवेश्वर:-रधु० 3130, कु० 2043 1. विष्णु की आँख 2. सफ़ेद कमल, ( त्र) उल्ल, 3. तेज घोड़ा 4. बिह 5. मूर्य 6. विष्ण (पु०, नपुं०) -- पदम् वसन्त विषव, प्रियः 1. कदंब का वृक्ष 1. घास 2. दिशा-रघ०६।३० / सम-अन्तः दिशाओं 2. शंख 3. मूर्ख 4. पागल मनुष्य 5. शिव, ( --यम) का अन्त, दिगन्त,-भामि० 160, अन्तरम भिन्न एक प्रकार का चंदन, -- प्रिया 1. लक्ष्मी 2. तुलसी प्रदेश, विविध दिशाएँ भामि० 115, . अश्वः का पौधा 3. पृथ्वी 4. द्वादशी,-भुज् (पुं०) सांप, 1. सूर्य, कि० 2 / 46, रघु 0 3 / 22, 18 / 23. दि. -मन्थः, मन्थकः मटर, चना,-लोचन: 1. केकड़ा 11 / 56 2. मदार का पौधा, अकं, गर्भः चौड़े पत्तों 2. उल्ल,-वल्लभा 1. लक्ष्मी 2. तुलसी,-वासरः विष्ण- की हरी हरी कुशा, मणिः (हरिमणि:) मरकन दिवस, एकादशी, वाहनः 1. गरुड 2. इन्द्र, विश् मणि, पन्ना गि० 3149, वर्ण (वि.) हरियाली, (स्त्री०) पूर्वदिशा,-शरः शिव का विशेषण (त्रिपुर राक्षस हरे रंग का। के तीनों नगरों को भस्म करने के लिए शिव ने विष्ण को हरित (वि.) (स्त्री०-ता, हरिणी)[ ह। इतच ] हरा, हरे जलते सरकंडे की भांति प्रयुक्त किया),-सखः एक रंग का, हरा-भरा-रम्यान्तरः कमलिनीहरितः सरोभिः गंधर्व,--संकीर्तनम् विष्णु के माम का कीर्तन करना, -- श०४।१०, कु. 4 / 14, मेघ० 21, कि० 5 / 38 --सुतः --सूनुः अर्जुन का नाम,-हयः 1. इन्द्र रघु० 2. खाकी, तः 1. हरा रंग 2. सिंह 3. एक प्रकार का 9 / 18, 2. सूर्य, हरः विष्णु और शिव की एक संयुक्त घास / सम० अश्वन (0) 1. मरकत मणि, पन्ना देवमति, हेतिः (स्त्री०) 1. इन्द्रधनुष ... कथमवलोक- 2 तूतिया, नीला थोथा,-छद (वि.)हरे हरे पत्तों का। येयमधुना हरिहेतिमती: (ककुभः)--मा० 9 / 18 हरितकम् [हरित+के+क] 1. साग-भाजी 2. हरा धास 2. विष्णु का चक्र, हतिः चक्रवाक शि० 9 / 15 / | शि० 5 / 58 / हरिकः [हरि संज्ञायां कन्] 1. खाकी या भूरे रंग का घोड़ा | हरिता [ हरित+टाप् ] 1. दूर्वा घास 2. हरिद्रा 3. भूरे 2.चोर 3. जुभारी। रंग का अंगूर / For Private and Personal Use Only Page #1176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1167 ) हरिताल दे० हरि के नीचे। / हर्ष हिष्+घञ] 1. आनन्द, खुशी, प्रसन्नता, संतोष, एक हरिद्रा हिरि-दु+ड+टाप् | 1. हल्दी 2. पिसी हुई सुखात्मक भाव, आनन्दातिरेक, उल्लास, आल्हाद, हल्दी दे० न० 22149 पर मल्लि०। सम०-आभ प्रमोद हर्षों हर्षो हृदयवसतिः पञ्चवाणस्तु बाणः (वि०) पीले रंग का, गणपतिः गणेशः गणेश देव -प्रसन्न० 1122, सहोत्थितः सैनिकहर्षनिःस्वनः--रघु० का विशेष रूप, राग, रागक (वि.) 1. हल्दी के 3.61 2. पुलक, रोमांच, रोंगटे खड़े होना-जैसा कि रंग का 2. अनुराग में अस्थिर, (प्रेम में) चंचलमना 'रोमहर्ष' में 3. हर्ष', 33 या 34 संचारिभावों में से हलायुध में इसकी परिभाषा क्षणमात्रानुरागश्च एक हर्षस्त्विष्टावाप्तेर्मनः प्रसादोऽश्रुगद्गदादिकरः हरिद्राराग उच्यते)। . --सा० द० 195, या, इष्टप्राप्त्यादिजन्मा सुखविशेषो हरियः [हरि-या+क पीले रंग का घोड़ा। हर्षः .. रस० / सम० -अन्वित (वि०) आनन्दयुक्त, हरिश्चन्द्रः [हरिः चन्द्र इव, सुडागमः ऋषायेव] सूर्यवंश प्रसन्न, इसी प्रकार 'हर्षाविष्ट', उत्कर्षः प्रसन्नता का का एक राजा (यह त्रिशंकु का पूत्र था, अपनी दान- आधिक्य, आनंदातिरेक, - उदयः आनन्द का होना, शीलता, धमिष्ठता तथा सचाई के लिए अत्यंत प्रसिद्ध --कर (वि०) तृप्त करने वाला, प्रसन्न करने वाला, था। एक बार इसके कुल-पुरोहित वशिष्ठ ने इसकी -जड (वि०) मन्द, मारे खुशी के जडवत् हो जाने प्रशंसा विश्वामित्र की उपस्थिति में की, विश्वामित्र वाला-रघु० ३।६८,--विवर्धन (वि०) आनंद को ने विश्वास नहीं किया। इस पर विवाद खड़ा हो बढ़ाने वाला, स्वनः आनंद की ध्दनि / गा, अंत में यह निर्णय किया गया कि विश्वामित्र / हर्षक (वि०) (स्त्री०-र्षका, षिका) [हृष् + णिच् ---ण्वुल्] स्वयं इसके सत्य की परीक्षा लें। तदनसार विश्वा खुश करने वाला, प्रसन्न करने वाला, आनंदयुक्त, मित्र ने इसे अत्यंत कठिन परीक्षण में डाला जिससे सुखकर। कि यह पता लग सके कि क्या अब भी यह अपने हर्षण (वि.) (स्त्री०-णा,-णी) [हृष -+णिच् + ल्युट] वचनों पर दृढ़ रहता है। इतना होने पर भी राजा खुशी पैदा करने वाला, प्रसन्न करने वाला, आनंद से ने उस परीक्षण में उदाहरणीय साहस का परिचय भरा हुआ, सुखद, - णः 1. कामदेव के पाँच बाणों में दिया / यद्यपि इसे इस परीक्षा में अपने राज्य से हाथ से एक 2. आंख का एक रोग 3. श्राद्ध की एक धोना पड़ा, अपने पत्नी और पुत्र को बेचना पड़ा, यहाँ अधिष्ठात्री देवता,-णम् प्रहर्ष, खुशी, प्रसन्नता, आनन्द, तक कि अन्त में अपने आपको भी एक चांडाल के घर उल्लास - दुहुंदामप्रहर्षाय सुहृदां हर्षणाय च-महा। बेचना पड़ा। अपने अदम्य साहस और सचाई के हर्षयित्नु (वि.) हृष्+णिच् + इत्तु] आनन्ददायक, सुखलिए हरिश्चन्द्र को अपनी पत्नी को मायाविनी मान / कर, खुश करने वाला, प्रसन्नता देने वाला। कर मारने के लिए भी तैयार होना पड़ा, तब कहीं हर्षलः हृष् +उलच] 1. हरिण 2. प्रेमी। विश्वामित्र ने अपनी हार मानी और योग्य राजा को हल (भ्वा० पर० हलति हलित) हल चलाना / प्रजा समेत स्वर्ग में ऊंचा आसन दिया गया)। हलम् [हल घार्थे करणे क लांगल, खेत जोतने का एक हरीतकी [हरि पीतवर्ण फलाद्वारा इता प्राप्ता-हरि+इ प्रधान उपकरण- वहसि वषि विशदे वसनं जलक्त+कन+ ङीष हर्र का पेड़। दाभम् / हलह तिभीतिमिलितयमुनाभम् --या-हलं हर्त (वि०) (स्त्री० ii) [ह+तच] उठा कर ले जाने कलयते-गीत०१। सम० आयुधः बलराम का वाला, छीनने वाला, लूटने वाला, ग्रहण करने वाला विशेषण, धर,-भूत् (पं.) 1. हाली, हलचलाने _ आदि, (पुं०) चोर, लुटेरा--भर्तृ० 2 / 16 2. सूर्य / / वाला 2. बलराम का नाम केशवधृतहलधररूप हमन् (नपुं०) [ह+मनिन् मह फाड़ना, जंभाई लेना। जय जगदीश हरे-गीत०, अंसन्यस्ते सति हलभूतो हमित (भू० क० कृ०) हिर्मन --इतच] 1. जिसने मुंह मेचके वाससीव मेघ० ५९,-भूतिः, भूतिः हल फाड़ा है, जिसने जम्हाई ली है 2. डाल दिया गया, चलाना, कृषिकर्म, किसानी, हतिः (स्त्री०) 1. हल फेंका गया 3. जलाया गया / के द्वारा प्रहार करना या खूड निकालना 2. जुताई हर्म्यम् [ह-।-यत्, मुटु च] 1. प्रासाद, महल, कोई भी विशाल या हल चलाना। भवन या बड़ी इमारत हयंपृष्ठं समारूढः काकोऽपि हलहला अहो, वाह रे आदि आश्चर्यसूचक अव्यय / गरुडायते-सुभा०, बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिका- हला हि इति लीयते ह-ला+क+टाप] 1. सखी, सहेली धौतहा -मेघ०७, ऋतु० 1128, भट्टि०८।३६, रघु० 2. पृथ्वी 3. जल 4. मदिरा (अव्य०) नाटकोय 6147, कु०६।४२२. तंदूर, अंगीठी, चूल्हा 3. आग भाषा में) किसी सखी या सहेलो को संबोधित करना का कुंड, यंत्रणा-स्थान, नरक। सम० अङ्गानम्,-णम् ----हला शकुन्तले अव तावन्महतं तिष्ठ-श०१, महल का अगिन,-स्थलम् महल का कमरा। तु० 'हंडा' भी। +इल आ कहीं न कर, खुश करने वा For Private and Personal Use Only Page #1177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1968 ) हलाहलः,-लम् देखो 'हाल (ला) हल' / घी या हवनीय द्रव्यों का खाया जाना, (नः) अग्नि, हलिः [हल+इन्] 1. बड़ा हल 2. खूड 3. कृषि / -गन्धा (हविर्गन्धा) शमीबुक्ष, जैड का पेड़,-गेहम् हलिन् (पुं०) [हल+इनि] 1. हाली, हलवाहा, किसान / (हविर्गहम) यज्ञगह जहाँ अग्नि में आहुति दी जाय, 2. बलराम। सम० प्रियः कदंब का वृक्ष (-या) भुज (हविर्भुज) अग्नि अन्वासितमरुन्धत्या मदिरा। स्वाहयेव हविर्भुजम्- रघु० 1156. 1080, 13 / हलिनी हिलिन् + ङीष् हलों का समूह / 41, कु० 5 / 20, शि० 112, काव्य० 2 / 168, हलीनः [हलाय हितः हल-+ख सागौन का पेड़। ..... यशः (हविर्यज्ञ:) एक प्रकार का यज्ञ, याजिन् हलीषा [हलस्य ईषा-ब० त०, शक० पररूपम्] हल का (हविर्याजिन्)-- (पुं०) पुरोहित। दण्ड, हलस। हव्य (वि.) [ हु कर्मणि+यत् ] आहुति के रूप में दिया हल्य (वि.) हल+यत्] 1. जोतने योग्य, हल चलाये जाने वाला पदार्थ,-व्यम् 1. घी 2. देवों को दी जाने योग्य 2. कुरूप, विकृताकृति / जाने वाली आहुति (विप० कव्य) 3. आहुति / सम० हल्या [हल्य-+टाप् हलों का समूह / -~-आशः अग्नि, कव्यम् देवों तथा पितरों को आहुहल्लकम् [हल्ल्+ण्वल लाल कमल / तियाँ-मनु० 194, 3 / 97. 128, आगे पीछे,-वाह, हल्लनम् [हल्लन-ल्युट्] लोटना, इधर-उधर करवट बदलना -- वाह वाहन (पुं०) आहुतियों को ले जाने वाला, (सोते समय) / अग्नि / हल्लीशम् (षम् ) [हल -+क्विप् लष् (स)+अच्, पृषो० (भ्वा० पर० हसति, हसित) 1. मुसकराना, मन्द ईत्वम्, कर्म० स०] 1. अठारह उपरूपकों में से एक हंसी हंसना,-हससि यदि किचिदपि दन्तरुचिकौमदी (एक प्रकार का एकांकी नाटक जिसमें प्रधानतः हरति दरतिमिरमतिघोरम-गीत० 10, भट्टि० 7 / 63, गायन और नृत्य होता है, तथा इसमें एक पुरुष और 14 / 93 2. हंसी उड़ाना, मखौल करना, उपहास सात या आठ नतंकियाँ भाग लेती है---सा० द० करना (कर्म० के साथ)--यमवाप्य विदर्भभः प्रभ 555 2. एक प्रकार का वर्तुंलाकार नृत्य / हसति द्यामपि शकभर्तकाम् नै० 2 / 16 3. (अतः) हल्लोशकः [हल्लीश+कन्] घेरा बनाकर नाचना / आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना, दूसरे को पीछे छोड़ हवः हु-1-अ, ढे+अप, संप्र०, पृषो० वा] 1. आहुति, देना-यो जहासेव वासुदेवम् -- का०, शि० 1171 यज्ञ 2. आवाहन, प्रार्थना 3. आह्वान, आमन्त्रण 4. मिलना-जुलना.....श्रिया हसद्धिः कपलानि सस्मितः 4. आदेश, समादेश 5. बुलावा, बुला भेजना 6. चुनौती, -कि० 8 / 44 5, मखौल उड़ाना, दिल्लगी करना ललकार। 6. खुलना, खिलना, फूलना - हसबन्धुजीवप्रसूनैः हवनम् [हु। भावे ल्युट्] 1. अग्नि में सामग्री की आहति 7. चमकाना, मांजकर साफ़ करना-भास्वानुदेष्यति देना 2. यज्ञ, आहुति 3. आवाहन 4. बुलावा, आम- हसिष्यति पङ्कजाली सुभा०, प्रेर० (हासयति-ते) न्त्रण 6. युद्ध के लिए ललकार। सम० आयुस् मंद हंसी हंसना - कु. 7 / 95, अप-, हंसी उड़ना, (पुं०) अग्नि। तिरस्कार करना, उपहास करना, अव-, 1. तिरस्कार हवनीयम् हिन अनीयर] 1. कोई भी वस्तु जो आहुति करना, बेइज्जती करना 2. आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ देने के योग्य हो 2. गरम किया हुआ मक्खन या धी। होना-स्थितावहस्येव पुरं मघोन: --- भट्टि० 26, हवित्री ह+इन् + ङीप्] हवनकुण्ड जो भूमि में खोद उप---,उपहास करना, तिरस्कार करना, बुरा भला - कर बनाया गया हो, (इसमें आहुतियां दी जाती है)। कहना-, तथा प्रयतेथा यथा नोपहस्यसे जन..... का०, हविष्मत् (वि.) [हविस्+मतुप्] आहुतिवाला। घट० 17, परि--, 1. मखौल करना, हंसी उड़ाना हविष्यम् हविषे हितम् कर्मणि यत्] 1. कोई वस्तु जो 2. उपहास करना, बुरा-भला कहना, (अतः) आगे आहुति के लिए उपयुक्त हो --मनु० 31256,11177, बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना , जनानामानन्दः परिहसति 106, याज्ञ० 2 / 239 2. गर्म किया हुआ मक्खन / निर्वाणपदवीम् गंगा०५, प्र , 1. उपहास करना, सन०-- अन्नम् व्रत के तथा अन्य पर्वो के अवसर पर मुस्कराना.--- ततः प्रहस्यापभयः पुरन्दरम् रघु० 3 / खाने योग्य भोज्य पदार्थ, आशिन,-भुज् (पुं०) 51 3. तिरस्कार करना, बुरा-भला कहना, मखौल उड़ाना-हसन्तं प्रहसन्त्येता रुदन्तं प्ररुदन्ति च-सुभा० हविस् (नपुं०) हियते हु कर्मणि असुन] 1. आहुति या 4. चमकाना, शानदार दिखाई देना, वि--, 1. मुस्क हवनीय द्रव्य -बहति विधिहुतं या हविः--श० 111, राना, मन्द मन्द हंसना किंचिद्विहस्यार्थपति बभाषे मनु० 3187, 132, 5 / 7, 6 / 12 2. गर्म किया हुआ - रघु० 2 / 46 2. उपहास करना, बुराभला कहना, मक्खन 3. जल। सम० - अशनम् (हविरशनम्) / अपमान करना-किमिति विषीदसि रोदिषि विकला अग्नि / For Private and Personal Use Only Page #1178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहसति युवतिसभा तव विकला-गीत० 9, गौरी होती है जब कभी ऐसी बात का निर्देश करना हो तो वक्तभ्रफुटिरचना या विहस्येव फेनै:--मेघ० 50 / बिल्कुल स्पष्ट और अनायास ही वोधगम्य हो;-आवापः हस [ हस् / अप् ] 1. हंसी, ठहाका 2. उपहास 3. आमोद, | दस्ताना, हस्तत्राण, (ज्याघातवारण)--विक्र० 5, श०६ प्रमोद, खुशी, प्रसन्नता / - कमलम् 1. हाथ में लिया हुआ कमल 2. कमल हसनम् [ हम नल्य ट् हंसना, ठहाका, अट्टहास / जैसा हाथ, कौशलम् हाय की दक्षता,---क्रिया हाथ हसनी [ हसन +डीप् ] उठाऊ चूल्हा, कांगड़ी / का काम, दस्तकारी, गत गामिन् / वि०) हाथ में हसन्ती हस शत--डीप] 1. उठाऊ अंगीठी 2. एक प्रकार आया हआ. अधिकार में आया हआ, प्राप्त, गृहीत की मल्लिका। त्वं प्रायसे हस्तगता ममभि: रघु० 767, हसिका [ हम्+ण्वुल+टाप, इत्वम् ] अट्टहास, उपहास / 8 / 1, ग्राहः हाथ से पकड़ना, चापल्यम हस्तकौशल, हसित (भू० क. कृ.) [ हस्+क्त ] 1. जिसकी हंसी की ---तलम 1. हाथ को होलो 2. हाथी के मंड की नोक, गई हो, हंसना 2. विकसित, फूला हुआ, तम् 1. अट्ट- -ताल: होली बजाना, तालियां बजाना, दोषः हास 2. मखौल, मज़ाक 3. कामदेव का धनुष / हाथ से होने वाली टि, भूल, धारणम्-वारणम् हस्तः [ हस्- तन्, न इट् ] हाथ; हस्तं गतः हाथ में (हाथ से) आघात का निवारण करना, पादम् हाथ पड़ा हुआ या अधिकार में आया हुआ,—गौतमीहस्ते और पर, न मे हस्तपादं प्रसरति श०४, पुच्छम् विसर्जयिष्यामि- श०३, (मैं गौतमी के हाथ कलाई से नीचे का भाग, --पृष्ठम् हथेली का पृष्ठभाग, (द्वारा) इसे भेज दंगा) इसी प्रकार 'हस्ते पतिता', . प्राप्त (वि०) 1. हस्तगत 2. उपलब्ध, सुरक्षित, 'हस्ते संनिहितां कुरु' आदि, शंभुना दत्तहस्ता - मेघ० --.. प्राप्य (वि.) जहाँ आसानी से हाथ पहुंच सके, 60 (शंभु का सहारा लिए हुए), हस्ते कृ (हस्तेकृत्य, जो हाथ की पहुँच में हो---हस्तप्राप्यस्तवकनमितो कृत्वा) हाथ से पकड़ना, ले लेना, हाथ से ले लेना, वालमन्दारवक्षः-मेघ०७५, - बिम्बम् शरीर में उबटन हाथ में पकड़ लेना, अधिकार कर लेना, लोकोक्ति- आदि गंध द्रव्यों का लेप, मणिः कलाई पर पहना हस्तकडाकणं कि दर्पणे प्रेक्ष्यते (हाथ कंगण को आरसी जाने वाला रत्नाभूषण,-लाघवम् 1. हाथ की तत्परता क्या) अर्थात् हाथ पर रक्खी वस्तु को देखने के लिए या कुशलता 2. हाथ की सफाई, वाजीगरी,-संवाहनम् शीशे की आवश्यकता नहीं होती 2. हाथी की संड-कू० हाथ से मलना या मालिश करना-मेघ० ९६,-सिद्धिः 1136 3. तेरहवां नक्षत्र जिसमें पाँच तारे सम्मिलित हैं (स्त्री०) 1. हाथ का श्रम, हाथ से किया जाने वाला हाथभर, एक हस्तपरिमाण, (24 अंगल या लगभग काम 2. भाडा, पारिथमिक, मजदूरी, सूत्रम् कलाई 18 इंच की लंबाई, जो कोहनी से मध्य अंगली की में धारण किया हुआ मंगलसूत्र या वलय, कड़ा नोक तक होती है) 5. हाथ की लिखाई, हस्ताक्षर -- कु०७।२५। —घनीवोपगतं दद्यात् स्वहस्तपरिचिह्नितम्-याज्ञ० | हस्तकः हस्तवत् [हस्त--कन् ] 1. हाथ की अवस्थिति / 3 / 93, स्वहस्तकालसंपन्नं शासनम्-११३२० (तारीख हस्ताहस्ति (वि०) [हस्त+मतुप् ] दक्ष, कुशल, 'चतुर / और हस्ताक्षर सहित), धार्यतामयं प्रियायाः स्वहस्तः हस्तिकम् (अव्य०) [ हस्तैश्च हस्तैश्च प्रहृत्य इदं युद्धं ---विक्रम० 2, (मेरी प्रिया का आत्मलेख), 2 / 20 प्रवृत्तम् व० स०, दीर्घ; इत्वम्, अव्ययत्वं च ] हाथा (अतः आलं० से) प्रमाण, संकेत - मुद्रा० 3 7. सहा- पाई, हस्ताहस्ति जन्यमजनि दश। यता, मदद, सहारा,-वात्याखेदं कृशाङ्गया: सुचिरमव- हस्तिकम् हस्तिनां समूहः ---कन् ] हाथियों का समूह / यवर्दत्तहस्ता करोति-वेणी० 2 / 21 8. राशि, परि- हस्तिन् (वि.) (स्त्री०-नी) हस्त: शंडादण्डोऽस्त्यस्य इनि| माण, (बालों का) गुच्छा, रचना में 'केश' 'कच' के साथ 1. करयुक्त 2. संडवाला, - (पुं०) हाथी मनु० -पाश: पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः कचात्परे अमर०, 7196, 12 / 43, (हाथी चार प्रकार के बताये जाते सति विगलितबन्धे केशहस्ते सुकेश्याः सति कुसुमसनाथे है - भद्र, मंद्र, मृग और मिश्र) 1. सम० अध्यक्षः किं करोत्येष बी, विक्रम०४।१०,-स्तम् धौंकनी / हाथियों का अधीक्षक, आयुर्वेदः हाथियों के रोगों की सम० -अक्षरम् अपने निजी अक्षर, दस्तखत,—अग्रम् चिकित्सा से संबद्ध कृति, रचना, आरोहः महावत, या अंगुली (क्योंकि हाथ का सिरा यही होती है) हाथी की सवारी करने वाला, कक्ष्यः 1. सिंह 2. बाघ -अंगुलिः हाथ को कोई सी अंगुलि, अभ्यस्तः हाथ से -कर्णः एरंड का पौधा,-नः 1. हाथी को मारने वाला, काम करने का अभ्यास, -अवलम्बः ---आलम्बनम् हाथ -चारिन् (40) पीलवान,-दन्तः 1. हाथी का दांत का सहारा -दत्तहस्तावलम्बे प्रारम्भे-रत्न (सहारा 2. दीवार में गड़ी हुई खूटी (--तम्) 1. हाथीदांत दिये जाने पर),-आमलकम् 'हाथ में रक्खा आंवले 2. मूली,--दन्तकम् मूली, ---- नखम् पुरद्वार पर बना का फल' यह एक वाग्धारा है, और उस समय प्रयुक्त / हुआ मिट्टी का ढहा,- प: पकः पीलवान, हाथी की 147 For Private and Personal Use Only Page #1179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACT ( 1170 ) सवारी करने वाला-इति बोधयतीव डिडिमः करिणो 13 / 64, आविर्भूतानुरागाः क्षणमुदयगिरेरुज्जिहानस्य हस्तिपकाहतःक्वणन्-हि० 2 / 86,- मवः मस्त हाथी भानोः मुद्रा० 4 / 21, नै०२२।४५, 55, उज्जिहीषे के मस्तक से चूने वाला मदरसः,-मल्ल: 1. ऐरावत महाराज त्वं प्रशान्तो न किं पुनः भट्टि० 18 / 27, 2, गणेश 3. राख का ढेर 4. धूल की बौछार 'तुम क्यों नहीं उठते हो अर्थात् जीवित होते हो' 5.कुहरा,-पृथ-थम् हाथियों का समूह,-वर्चसम् कोलाहलो लोकस्योदजिहीत- दश० 'लोगों से एक हाथी की शान, कान्ति:,- वाह: 1. पीलवान 2. हाथियों शोर उठा' 2. जुदा होना, चले जाना-उज्जिहानको हकिने का अंकुश,-बड्गवम् छः हाथियों का समूह, जीवितां वराकी नानुकम्पसे--मा० 10 3. उठाना स्मानम् गजस्नान, हाथी का स्नान अवशेन्द्रिय- -शिरसा यूपमुज्जिहीते-कात्या० 4. चढ़ाना, (भौहें) पितानां हस्तिस्नानमिव क्रिया हि० १६१८--हस्तः उठाना, सिकोड़ना-भट्टि० 3 / 47, उप-, नीचे आना, हाथी की सूड। उतरना-निजीजसोज्जासयितुं जगद्व्हामुपाजिहीथा न हस्तिन (ना) पुरम् [ अलुक् समास हस्तिना तदाख्यनृपेण महीतलं यदि - शि० 1121, सभ्-, जाना, पहुँचना, चिह्नितं तत्कृतत्वात् ] राजा हस्तिन् द्वारा बसाया | उपभोग करना-जनता...'' समहास्त मुदम् -नलो० गया नगर, (वर्तमान दिल्ली से लगभग 50 मील 1154 / उत्तरपूर्व दिशा में, यही वह नगर है जहाँ महाभारत ii (अदा० पर० जहाति, हीन) 1. छोड़ना, त्यागना, के कृत्य का केन्द्रीय दृश्य था, इसके अन्य नाम यह परिहार करना,-छोड़ देना, तजना, तिलांजलि देना, है-गजाह्वय, नागसाह्वय, नागाह्व और हास्तिन)। पदत्याग करना मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु तनुबुद्धे हस्तिनी [हस्तिन्+डीप्] 1. हथिनी 2. एक प्रकार की मनसि वितृष्णाम्--मोह० 1, सा स्त्रीस्वभावादसहा औषध और गन्धद्रव्य 3. कामशास्त्र में वर्णित चार भरस्य तयोर्द्वयोरेकतरं जहाति- मुद्रा० 4 / 13, रघ० प्रकार की स्त्रियों में से एक (इस स्त्री के होठ, 5 / 72, 8152, 12 / 24, 14 / 61, 87, 15 / 59, अंगुलियां और कुल्हे मोटे, तथा स्तन भारी होते हैं, श० 4113, भग० 2 / 50, भट्टि० 3 / 53, 5 / 91, इसका रंग काला और कामलिप्सा अधिक होती है, 1071, 20110, मेघ० 49, 60, भामि० 2 / 129, रतिमंजरी में इसका वर्णन इस प्रकार है-स्थूलाघरा ऋतु० 1138 2. पदत्याग करना, जाने देना 3. गिरने स्थलनितम्बविम्बा स्थलागुलि: स्थूलकुचा सुशीला / देना 4. भूल जाना, उपेक्षा करना, अवहेलना करना कामोत्सुका गाढरतिप्रिया च नितान्तभोक्त्री-नितंबखर्वा 5. बचना, बिदकना-कर्म० (हीयते) 1. छोड़ दिया -सलु हस्तिनी स्यात्-(करिणी मता सा)। जाना, कि० 12 / 12 2. निकाल दिया जाना, हस्स्य (पि.) [हस्त+यत् ] 1. हाथ से संबंध रखने वञ्चित किया जाना, लप्त होना (करण. या अपा० वाला 2. हाथ से किया गया 3. हाथ से दिया हुआ। के साथ)---विरूपाक्षो जहे प्राणः --भट्रि० 14135, हालम् [ह+हल+अन् ] एक प्रकार का घातक विष / जनयित्वा सुतं तस्यां ब्राह्मण्यादेव हीयते-मनु०३।१७, सस (पुं०) [ह+हा+क्विप् ] एक गन्धर्वविशेष---तु० 5 / 161, 9 / 211 3. कम होना, थोड़ा हो जाना, हाहा। प्राय: 'परि' के साथ 4. घटना, कम होना, मुर्माना, हा (मध्य.) [हा+का] 1. शोक, उदासी, खिन्नता को क्षीण होना, आलं० से भी) क्षय को प्राप्त होना प्रकट करने वाला अव्यय, आह, हाय, अरे-हा प्रिये --प्रवृद्धो हीयते चन्द्रः समुद्रोऽपि तथाविध:--रघु० जामकि-उत्तर. 3, हा हा देवि स्फुटति हृदयं-उत्तर. 17 / 71, हि०प्र० 42 5. (जैसे मुकदमे में) हार 3138, हा पितः क्वासि, हे सुभु-भट्टि०६।११, हा जाना-भूपमप्युपन्यस्तं हीयते व्यवहारतः-याज्ञ. बत्से मारुति क्वासि-मा० 10 आदि (इस अर्थ में 2 / 19 6. छूट जाना, भूल जाना 7. कमजोर होना 'हा' प्रायः कर्म के साथ प्रयुक्त होता है-हा -प्रेर० (हापयति-ते) 1. छुड़वाना, परित्यक्त कृष्णाभक्तम्-सिद्धा०)2. आश्चर्य-हा कचं महाराज- कराना 2. अवहेलना करना, भूलना, अनुष्ठान में देर बशरवस्य धर्मवाराः प्रियसखी मे कौसल्या उत्तर०४ करना-शि० 16133, मनु० 3 / 71, 421, याज्ञ. 3.कोष या सिड़की। 1 / 121, इच्छा० (जिहासति) छोड़ने की इच्छा हात (हो. मा० जिहीते, हान, कर्मवा. हायते, इच्छा० / करना, अप,--छोड़ना, त्यागना, तज देना-विललाप बिहासते). 1. जाना, हिलना-जुलना-जिहीथा स बाष्पगद्गदं सहजामप्यपहाय धीरताम-रघु० 8 / 43 विस्माता स्फुटमिह भवद्वान्धवरयम्-हंस० 28, अपा-, छोड़ना, त्यागना, अव--, छोड़ना, वञ्चित कि. 13323, नलो० 1138 2. प्राप्त करना, हासिल होना, परि-, 1. छोड़ना, त्यागना, छोड़ कर चल करना, -, 1. ऊपर की ओर जाना, (सभी अर्यों देना 2. भूल जाना, अवहेलना करना-यथोक्तान्यपि में) उठना-यवो रजः पार्थिवमज्जिहीते-रघु० कर्माणि परिहाय-मनु० 12 / 92, (कर्मवा०) 1. अल्प For Private and Personal Use Only Page #1180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होना, कम होना आर्यस्य सुविहितप्रयोगतया न / पृथुकुचारुन्त्रताग्पष्टिम् ---ऋतु० 225, 18, किमपि परिहास्यते--ग.१2. घटिया होना...ओज- ---हारा एक प्रकार का लालभूरे रंग का अंगूर। स्वितया न परिहीयते शच्या: विक्रम०३, मालबिहारकः [ह+ वुल] 1. चोर, लुटेरा .... याज्ञ० 31215 2, प्र- 1. छोड़ना, त्यागना, परित्यक्त करना, तिला- 2. ठग, धूर्त 3. मोतियों की लड़ी 4. (गणि. में) जलि देना प्रजहाति यदा कामान्-भग० 255 भाजक 5. एक प्रकार की गद्य रचना। 39, मोहमेतौ प्रहास्यते--राम० 2. जाने देना, फेंकना, | हारि (वि०) [ह+णिच् --- इन्] आकर्षक, मोहक, सुखडाल देना-प्रजहः शूलपट्टिशान्-भट्टि० 14 / 23, वि-, कर, मनोहर, रिः (स्त्री०) 1. पराजय 2. खेल छोड़ना, परित्यक्त करना, तजना, छोड़ देना - विहाय में हार 3. यात्रियों का समूह, सार्थवाह / सम-कण्ठः लक्ष्मीपतिलक्ष्म कार्मक जटाधरः सन् जहधीह पावकम् कोयल। ---कि० 1144, मेघ० 41, रघु० 240, 5.67,73, हारिणिकः [हरिण-+टक ] हरिणों को पकड़ने वाला, 617, 12 / 102, 14 / 48, 69, कु० 21, (प्रेर०) शिकारी। पुरस्कार देना। हारित (भू० क० कृ.) --णिच-+क्त] 1. हरण कराया हाङ्गर [ हा विपादाय पीड़ायै वा अंगं राति हा+अङ्ग हुआ, पकड़ाया हुआ 2. उपहार स्वरूप दिया गया, राक एक बड़ी मछली। प्रस्तुत किया गया 3. आकृष्ट,..त: 1. हरा रंग हाटक (वि०) (स्त्री० ---को) [हाटक+अण्] सुनहरी, | 2. एक प्रकार का कबूतर। ...कम मोना / मम० गिरिः सुमेरु पर्वत / हारिन् (वि०) (स्त्री० णी) हिारो अस्त्यस्य इनि, हात्रम् [हा करणे प्रल] पारिश्रमिक, मजदूरी, भाड़ा। है+णिनि वा] 1. ले जाने वाला, पहुंचाने वाला, हानम् हा- क्त 1. छोड़ना, त्यागना, हानि, असफलता। ढोने वाला 2. लटने वाला, हरण करने वाला वाजि2. बच निकलना 3. पराक्रम, बल / कुंजराणां च हारिणः-- याज्ञ० 21273, 3208 हानिः (स्त्री०) हा--क्तिन्, तस्य निः] 1. परित्याग, 3. पकड़ लेने वाला, बाधा पहुँचाने वाला, मनु० तिलांजलि 2. हानि, असफलता, अनुपस्थिति, अनस्तित्व 12 / 28 4. प्राप्त करने वाला, उपलब्ध करने वाला . क्वचित् स्फुटालङकारविरहेऽपि न काव्यत्वहानिः 5. आकर्षक, मोहक, सुखकर, आलादकर, आनन्दप्रद -काव्य०१, 'इसमें काव्य को हानि नहीं' 3. हानि, -तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं हतः-१० 115, नुकसान, क्षति- ग्रामोद्गलितसिक्थेन का हानिः शि० 10.11. 66. विष्टपहारिणि हरी.. भन० करिणो भवेत् . सुभा०, का नो हानि:- सर्व 2 / 25 6. आगे बढ़ने वाला, अप्रगणय होने वाला 4. न्यनता, कमी-यथा हानिः क्रमप्राप्ता तथा 7. हार धारण करने वाला। वृद्धिः क्रमागता हरि०, याज्ञ० 2 / 207, 244 | हारिद्रः [हरिद्रा- अण] 1. पीला रंग काय का ! 5. अवहेलना, भूलना, भंग-प्रतिज्ञा, कार्य हारीतः ह.-णि+ इतन् / 1. एक प्रकार का कबूतर 6. नष्ट होना, बर्बाद होना, हानि - कालहानिः --रघु० --रघु० 4 / 46 2. पूर्त, ठग 3. एक स्मृतिकार का 13 / 16 / नाम---याज्ञ. 1 / 4 / हाफिका (स्त्री०) जमुहाई, जूभा। हार्वम् [हृदयस्य कर्म युबा० अण् हमादेशः] 1, स्नेह, प्रेम हायनः,-नम् [हा+ल्य वर्ष,-न: 1. एक प्रकार का अमर्षशून्येन जनस्य जन्तुना न जातहार्दन न विद्विषाचावल 2. शिखा, ज्वाला। दरः--कि० 133, शि० 9169, विक्रम० 5.10 हारः ह.-घा] 1. ले जाना, हटाना, पकड़ना 2. पहुँ- 2. कृपा, सुकुमारता 3. इच्छाशक्ति 4. अभिप्राय, चाना 3. अपकर्षण, अलगाव 4. वाहक, हरकारा अर्थ / 5. मोतियों की माला, हार-हारोऽयं हरिणाक्षीणां | हार्य (वि.)[+ ण्यत्] 1. घरण किये जाने - योग्य, ढोये लठति स्तनमण्डले - अमरु० 100, पाण्डयोऽयमंसार्पि- जाने योग्य 2. सहन किये जाने योग्य, ले जाये जाने तलम्बहार:-रघु०६१६०,५१५२, 6 / 16, मेघ०६७, योग्य-यदूढया वारणराजहार्यया-कु० 5 / 70 3. अपऋतु० 114, 2018 6. संग्राम, युद्ध 7. (गणि० में) हरण किये जाने योग्य, छीने जाने योग्य --- रघ० किसी भिन्न का नीचे का अंश 8. भाजक / सम. 7 / 67 4. विस्थापित होने योग्य, (हवा आदि के --.. आवलिः-ली (स्त्री०) मोतियों को लड़ी-तरुणी- द्वारा) ले जाये जाने योग्य - रघु० 16143 5. (अपने स्तन एव शोभते मणिहारावलिरामणीयकम् -- 0 संकल्प से) चलायमान होने योग्य -- कु० 586. उप 2144, हारावलीतरलकाञ्चितकाञ्चिदाम-गीत०११, लब्ध किये जाने योग्य, जीते जाने योग्य, आकार ..गटि (लि) कामाला ना दाना या नरका माली किरो ... . . रघु० 5170, -यष्टिः हार, मोतियों की लड़ी- दति- For Private and Personal Use Only Page #1181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 / 31, कु. 5 / 53, मनु० 7 / 217 7. पकड़े जाने / हासिका [हस्+ण्वुल+टाप, इत्वम्] 1. अट्टहास 2. खुशी, योग्य, लटे जाने योग्य - मनु० ८१४१७,-~र्यः 1. साँप | आमोद / 2. बिभीतक या बहेड़े का वृक्ष 3. ( गणि० में) हास्य (वि.) [ हस्+ण्यत् ] हंसने के योग्य, हास्यास्पद, भाज्य / रघु० २।४३,-स्यम् 1. हंसी याज्ञ. 1984 2. खुशी, हाल:हिलो अस्त्यस्य अण, हल एव वा अण्] 1. हल __ मनोरंजन, कीड़ा मनु० 9 / 227 3. मजाक, मखोल 2. बलराम का नाम 3. शालिवाहन का नाम / सम० 4. व्यंग्य, दिल्लगी, ठट्ठा, ---स्थः काव्य में वर्णित -भृत् (पुं०) बलराम का विशेषण / हास्यरस, परिभाषा-विकृताकारवाम्वेषचेप्टादेः कुहकाहालकः [हाल+कन् पीले भरे रंग का घोड़ा। द्भवेत् / हास्यो हासस्थायिभावः (हासो हास्यस्थाहाल (ला) हलम् [ हलाहल, पृषो०] एक प्रकार का | यिभावः' के स्थान पर) श्वेतः प्रथमदेवतः सा० द. घातक विष जो समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप मिला | 228 / सम... आस्पदम् हंसी की चीज़, हंसी उड़ाने था। (अत्यन्त विषाक्त होने के कारण यह प्रत्येक की वस्तु, - पददी,- मार्गः खिल्ली, दिल्लगी--क्रुद्धवस्तु को भस्म करने लगा, इसलिए इसे शिव जी ने ीतस्त्रिभुवनजयी हास्यमार्ग दशास्यः विक्रम० 18) पी लिया) - अहमेव गुरुः सुदारुणानामिति हालाहल 107, रसः हंसी या आमोदात्मक रस-दे० ऊपर मास्म तात दृप्यः / ननु सन्ति भवादृशानि भूयो 'हास्य'। भुवनेऽस्मिन् वचनानि दुर्जनानाम्--सुभा० 2. (अतः) | हास्तिकः [ हस्तिन् +ठक ] महावत, या गजारोही,-कम् धातक विष, या जहर, दे० भामि० 1195, 2 / 73, हाथियों का समूह- शि० 5 / 30 / पंच० 11183, ('हलाल' और 'हालहाल' भी लिखा | हास्तिनम् [हस्तिना नृपेण निवृत्तम् नगरम्-हस्तिन्+अण्] जाता है)। हस्तिनापुर नगर का नाम / हालहली, हाला [हालाहल-डीप, हल+घा +टाप] | हाहा (पुं०) [ हा इति शब्दं जहाति-हा+हा+क्विप 1 शराब,-मदिरा-हित्वा हालामभिमतरसां रेवतीलोचना- एक गन्धर्व का नाम- (अव्य०) पीड़ा, शोक या ड्राम् --मेघ० 49, पंच० 1158, शि० 10 // 21 // आश्चर्य का प्रकट करने वाला उद्गार (यह केवल हालिकः [हलेन खनति हल: प्रहरणमस्य तस्येदं वा ठक् 'हा' शब्द है, केवल बल देने के लिए इसको 'द्वित्व' ठश वा ] 1. हलवाला, किसान 2. जो हल चलाये कर दिया गया है)। सम०-कारः 1. शोक, बिलाप, (जैसे कि हल में जुता बैल) 3. जो हल के द्वारा रोना-धोना 2. युद्ध का शोर, - रवः 'हा हा' की ध्वनि / युद्ध करता है। हि (अध्य०) (इसका प्रयोग वाक्य के आरम्भ में कभी हालिनी [ हल+णिनि+डीप ] एक प्रकार की बड़ी नहीं होता) इसके अर्थ निम्नांकित है:-1. इसलिए छिपकली। कि, क्योंकि (तर्कसंगत युक्ति का निर्देश करना) हाली [ हल +इण् +ङीष् ] छोटी साली। -अग्निरिहास्ति धूमो हि दृश्यते-गण, रघु० 5 / 10 हाल: [ हल-+उण् ] दाँत / 2. निस्सन्देह, निश्चय ही-देवप्रयोगप्रधानं हि हावः [ हे भावे घन नि० संप्र०, हुकरणे घा वा ] नाटयशास्त्रम्-मालवि० 1, न हि कमलिनी दृष्टवा 1. बुलावा, आमन्त्रण 2. स्त्रियों की नखरेबाजी जो ग्राहमवेक्षते मतङ्गजः --मालवि०३ 3. उदाहरणस्वपुरुषों की रत्यात्मक भावनाओं को उत्तेजित करती रूप, जैसा कि सुविदित है, प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो है, (प्रेम की) रंगरेली, मधुरभाषण -हावहारि हसितं बलिमग्रहीत्। सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः वचनानां कौशलं दृशि विकारविशेषाः--शि० 10.13, --- रघु० 1218 4. केवल, अकेला (किसी विचार पर जगुः सरागं ननुतुः सहावम् भट्टि० 3143, (उज्ज्व- बल देने के लिए) मुढो हि मदनेनायास्यते--का. लमणि ने हाव की परिभाषा निम्नांकित की है 155 5. कभी कभी यह केवल पूरक की भांति ही ---ग्रीवारेचकसंयुक्तो भ्रनेत्रादिविकासकृत् / भावा- प्रयुक्त होता है। दीषत् प्रकाशो यः स हाव इति कथ्यते / / दे० सा० हि (स्वा० पर० हिनोति, हित-प्रेर० हाययति, इच्छा. द० 127 भी। जिघीषति) 1. भेजना, उकसाना 2. डाल देना, हासः [ हस्--घा ] 1. ठहाका, हंसी, मुस्कराहट --भासो फेंकना, (तीर) चलाना, (बन्दूक) दागना --- गदा हास:-प्रसन्न० 222 2. हर्ष, खुशी, आमोद 3. हास्य- शक्रजिता जिध्ये -भट्टि० 14136 3. उत्तेजित करना, ध्वनि, हास्यरस,- दे० सा० द० 207 4. व्यंग्यपूर्ण भड़काना, उकसाना, 4. उन्नत करना, आगे बढ़ाना हंसी -रघु० 12 / 36 5. खुलना, विकसित होना, 5. तुप्त करना, प्रसन्न करना, उल्लसित करना फूलना (कमल आदि का)-कूलानि सामर्षतयेव तेनुः 6. जाना, प्रगति करना, प्र-, 1. भेज देना, ढकेलना सरोजलक्ष्मी स्थलपग्रहासः-भट्टि० 2 / 3 / 2. फेंकना, (तीर) चलाना, (बन्दूक) दाग देना For Private and Personal Use Only Page #1182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईगर, सिंदूर। / 1173 ) ---विनाशात्तस्य वृक्षस्य रक्षस्तस्मै महोपलं / प्रजिघाय | जन्तु, शिकारी जानवर,-रघु० 2 / 27 2. विनाशक --रघु० 15 / 21, भट्टि० 15 / 121 3. भेजना, प्रेषित ____ 3. शिव 4. भीम / सम०-पशुः शिकारी जानवर, करना, मा० 1, रघु० 879, 11 // 49, 12 / 86, -यन्त्रम् 1. पिंजरा 2. दुर्भावनापूर्ण अभिप्रायों के भट्टि०१५।१०४।। लिए प्रयुक्त होने वाला अभिचारमंत्र।। हिंस् (भ्वा० रुधा० पर०, चुरा० उभ० हिंसति, हिनस्ति, | हिक्क i (भ्वा० उभ० हिक्कति--- ते, हिक्कित) 1. अस्पष्ट हिसयति ते, हिसित) 1 प्रहार करना, आघात उच्चारण करना 2. हिचकी लेना। करना 2. चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, नुकसान _ii (चुरा० आ० हिल्लयते) चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त पहुँचाना 3. कष्ट देना, संताप देना--मा० 21 करना, वध करना। 4. मार डालना, हत्या करना, बिल्कुल नष्ट कर देना हिक्का [ हिक्क-+अ+टाप् ] 1. अस्पष्ट ध्वनि ----कीति सूते दुष्कृतं या हिनस्ति उत्तर० 5 / 31, 2. हिचकी। रघु० 8 / 45, भग० 13 / 28, भट्टि० 6 / 38, 14157, | हिङ्कारः [ 'हिम्' इत्यस्य कारः ] 1. 'हिम्' की मन्द ध्वनि 1578 / करना, हुंकार भरना 2. बाष / हिंसक (वि.) [हिस्+ण्वल ] हानिकर, अनिष्टकर, हुगु (पुं०, नपुं०) [ हिमं गच्छति---गम्+ड, नि०] क्षतिकर--क: 1. खंखार जानवर, शिकारी जानवर 1. हींग का पौधा 2. इस पौधे से तैयार किया गया 2. शत्र 3. अथर्ववेद में निपुण ब्राह्मण। पदार्थ जो घर में खाद्यपदार्थों में छौंक के लिए हिंसनम्,–ना [ हिंस्+ ल्युट् ] प्रहार करना, चोट मारना, प्रयुक्त होता है। सम-निर्यास: 1. हींग के वृक्ष का वध करना-मनु० 2 / 177, 10148, याज्ञ० गोंद के रूप में रस 2. नीम का पेड़, पत्रः इंगुदी का वृक्ष। हिंसा [ हिंस+अ+ टाप् ] 1. क्षति, उत्पात, बुराई, नुक- हिङगुलः [हिङगु-+-ला+क (कि, डु वा)] सान, चोट, (यह तीन प्रकार की मानी जाती है | हिडागुलि: -कायिक, वाचिक और मानसिक)-- अहिंसा | हिङगुलु (पुं० नपुं०) परमो धर्मः 2. बध करना, हत्या करना, विध्वंस | हिजोरः (पुं०) हाथी के पैरों को बाँधने की बेड़ी या -रघु० 5 / 57, याज्ञ० 3.113, मनु० 10 // 63 / रस्सी / 3. लुटना, डाका डालना। सम-आत्मक (वि.) हिडिम्बः (पं0) वह राक्षस जिसे भीम ने मारा था,-बा हानिकर, बिनाशकारी,--कर्मन् (नपुं०) 1. कोई भी हिडिंब की बहन जिसने भीम से विवाह कर लिया हानिकर या क्षति पहुँचाने वाला कृत्य 2. शत्रु का __ था। सम०-जित्,-निषूदन, भिद्,-रिपु (पुं०) नाश करने में प्रयुक्त जादू, अभिचार--प्राणिन् भीम के विशेषण। अनिष्टकर जंतु,-रत (वि०) उत्पात में संलग्न, | हिण्ड (भ्वा० आ० हिण्डते, हिण्डित) जाना, घमना, इधर --- रुचि उत्पात करने पर तुला हुआ, -- समुद्भव उधर फिरना, आ---, घूमना, या इधर-उघर फिरना (वि०) क्षति से उत्पन्न / -श०२। हिसार: [ हिंसा+आरु ] 1. बाघ, चीता 2. कोई भी | हिण्डनम् [ हिण्ड्+ल्युट ] 1. घूमना, इधर-उधर फिरना अनिष्टकर जन्तु / 2. संभोग 3. लेखन। हिसालु (वि.) [ हिसा+आलुच ] 1. हानिकर, उत्पाती, हिण्डिकः [ हिण्ड---इन-हिण्डि+कन् ] ज्योतिषी। चोट पहुंचाने वाला 2. धातक - (पुं०) उत्पाती या| हिण्डि (डी) रः [हिण्ड+ईरन् (इरन्) ] 1. समुद्रझाग - जंगली कुत्ता। 2. पुरुष, मर्द 3. बैंगन / हिंसालुक (वि०) [ हिंसालु+कन् ] उपद्रवी या जंगली | हिण्डो [ हिड्+इन्-डीप् ] दुर्गा / कुत्ता। हित (वि.) [घा (हि)+क्त ] 1. रखा हुआ, डाला हिंसीरः [ हिस् + ईरन् ] 1. वाघ 2. पक्षी 3. उपद्रवी हुआ, पड़ा हुआ 2. थामा हुआ, लिया हुआ 3. उपव्यक्ति / युक्त, योग्य, समुचित, अच्छा (संप्र० के साथ)-गोभ्यो हिस्प (वि.) [ हिस् + ण्यत् ] जो क्षतिग्रस्त किया जा हितं गोहितम् 4. उपयोगी, लाभदायक 5. हितकारी, सके या मारा जा सके-रधु० 2157, मनु० लाभप्रद, संपूर्ण, स्वास्थ्यवर्धक (शब्द या भोजन 5 / 41 / आदि)-हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः-कि. 114, हिंस्त्र (वि.) [ हिंस-+-२] 1. हानिकर, अनिष्टकर, 14 / 63 6. मित्रवत्, कृपालु, स्नेही, सद्वत्त (प्रायः उपद्रवी, पीड़ाकर, घातक मनु० 9 / 80, 12 / 56 अधिक के साथ)-तः मित्र, परोपकारी, मित्र जैसा 2. भयंकर 3. क्रुर, भीषण, बर्बर--स्त्रः 1. भीषण परामर्शदाता-हितान्न यः संशृणुते स किंप्रभुः For Private and Personal Use Only Page #1183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1174 ) ......कि० 15. हि० ११३०,---तम 1. उपकार, लाभ, ! -ज: मैनाक पर्वत,-जा 1. खिरनी का पेड़ 2. पार्वती, फायदा 2. कोई भी उपयुक्त या समचित बात - तैलम् एक प्रकार की कपूर की मल्हम, दीधिति: 3. कल्याण, कुशल, क्षेम / सम--अनुबन्धिन (वि०) चन्द्रमा-शि० ९।२९-दुर्दिनम् अति ठंड से कष्टकल्याणपक्ष, अन्वेषिन, --- अथिन् कुशलाभिलाषी, दायक दिन, ठंड और बुरा मौसम, ध्रुतिः चन्द्रमा, ---इच्छा सदिच्छा, मंगलकामना,---उक्तिः आरोग्य- -द्रुह (पुं०) सूर्य,-ध्वस्त (वि०) पाले स मारा हुआ, वर्धक निदेन, सत्परामर्श, नेक सलाह,--उपदेशः कुतरा हुआ या नष्ट हुआ... प्रस्थ: हिमालय पहाड़, हितकर उपदेश, सत्परामर्ग, नेक सलाह,-एषिन हितेच्छु, -----रश्मि (पुं०) चाँद,-बालुका कपूयर,-शीतल (वि०) भला कहने वाला, परोपकारी, - कर (वि०) सेवा बर्फ की भांति ठंडा, --शैल; हिमालय पहाड़,--संहतिः या कृपापूर्ण कार्य करने वाला, मित्र-सा व्यवहार करने (स्त्री०) बर्फ़ का ढेर, सरस् 'बर्फ की झील, ठंडा वाला, अनुकूल, - काम (वि०) हितेच्छु, मंगलाकाटी, पानी-मा० 131, -हासकः दलदल में होने वाला ...काम्या दूसरे की मंगलकामना, सदिच्छा, - कारिन् खजूर का पेड़। कृत (पु.) परोपकारी,-प्रणी (पुं०) गुप्तचर हिमवत् (वि.) [ हिम-मतुप् ] हिममय, वीला, कुहर। यदि (वि०) मित्र-से मन वाला, सद्भावनापूर्ण, से युक्त,--(पुं०) हिमालय पहाड़-घु० 4 / 79. -वाक्यम् मैत्रीपूर्ण परामर्श,-वादिन् (पुं०) सत्परामर्श विक्रम०५।२२। सम० कुक्षिः हिमालय पर्वत की देने वाला। घाटी,-पुरम् हिमालय की राजधानी औषधिप्रस्थ का हितकः / हितक] 1. बच्चा 2. किमी पशु का शावक। नाम, -- कु० ६।३३,-सुतः मैनाक पर्वत,-सुता हिन्ताल. / हामस्तालो यस्मात् --- पृषो०] एक प्रकार का / 1. पार्वती 2. गंगा। खजर। हिमानी ! महद् हिमम्, हिम / डीए आनुक | बफ़ का ढेर हिन्दोलः ! हिल्लालघञ पूषो०] 1. हिंडोल, झला हिम का समूह, हिमसंहति नगमपरि हिमानीगौरमा 2. श्रावण के शुक्ल पक्ष में दोलोत्सव के अवसर पर साद्य जिष्णः - कि० 4.38, भामि० 125 / कृष्ण भगवान् की मूर्तियों को ले जाने वाला हिंडोल, हिरणम् हि ल्युट, नि०] 1. सोना 2. बीर्य 3. कौड़ी। या दोलोत्सव / हिरण्मय (वि.) (स्त्री० यी) [ हिरण ! मयट नि०] हिन्दोलकः, हिन्दोला [ हिन्दोल+कन्, टाप् वा ] झूला, सोने का बना हुआ, सुनहरी-हिरण्मयी सीतायाः हिंडोला। प्रतिकृतिः-उत्तर०२, रघु०१५।६१,-यः ब्रह्मा देवता। हिम (वि०) [हिमा | ठंडा, शीतल, सर्द, तुषारयक्त, हिरण्यम् [हिरणमेव स्वार्थे यत् ] 1. सोना,-मनु० 2 / 246, ओसीला,म: 1. जाड़े की मौसम, सर्द ऋतु 2. चंद्रमा 8 / 182 2. सोने का पात्र मनु० 229 3. चाँदी 3 हिमालय पर्वत 4. चन्दन का पेड़ 5. कपूर,-मम् 4. कोई भी मूल्यवान धातु 5. दौलत, संपत्ति 6. वीर्य, कुदरा, पाला -- रघु० 146, 9 / 25, कु० 2 / 19 शुक्र 7. कौड़ी 8. एक विशेष माप 9. सारांश 1. सर्फ, पाला-कु० 113, 11, रघु० 9 / 28, 15 / 10. धतुरा 1. सम-कक्ष (वि०) सुनहरी करधनी 66, 16.44, कि० 5.12 3. सर्दी, ठंडक 4. कमल पहनने वाला, --कशिपुः राक्षसों के एक प्रसिद्ध राजा 5. ताजा मक्खन, 6. मोती 7. रात 8. चन्दन की का नाम (यह कश्यप और दिति का पुत्र था। यह कड़ा। सम० अंशुः 1. चन्द्रमा,---मेघ० 89, इतना शक्ति शाली हो गया था कि इसने इन्द्र का घुल 5 / 16, 6 / 47, 14180, शि० 249 2. कपूर राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को पीडित करने नियम चांदी, अचल:-अद्रिः हिमालय पहाड़ लगा। इसने बड़े-बड़े देवताओं की निन्दा की, और -- 154. रघु० 4179, 14.13, जा, अपने पुत्र प्रह्लाद को, विष्णु को ही परमात्मा मानने माय: 1. पार्वती 2. गंगा, ... अम्बु,-अम्भस् (नपुं०) के कारण नाना प्रकार के कष्ट दिये, परन्तु बाद में 1. भीतल जल 2. ओस - रघ. 570, ---अनिल: उसे विष्णु ने नरसिंह का अवतार धारण कर यमपुर नोतल वाय, अब्जम् कमल,-अरातिः 1. आग भेज दिया---दे० प्रह्लाद), कोशः सोना और चांदी ... सूर्य,-आगमः जाड़े का मौसम या सर्द तु (चाहे आभूषण बने हों या बिना गढ़ा सीना चौदी) ....आर्तः (वि०) पाले से ठिठुरा हआ, ठंड से जमा -गर्भः 1. ब्रह्मा (क्योंकि वह सोने के अंडे से पैदा हुआ,...-आलयः हिमालय पहाड़---कु० 111, सुता हुआ) 2. विष्णु का नाम 3. सूक्ष्मशरीर धारण करने पार्वती का विशेषण. -- आह्वः-आह्वयः कपूर, उस्रः वाली आत्मा, द (वि०) सुवर्ण देने वाला--मनु० सन्मा , कर: 1. चाँद-लुठति न सा हिमकरकिरणेन 4 / 230, (दः) समुद्र, (दा) पृथ्वी, --- नाभः मैनाक __ गीत० 7 2. कपूर, कूट: 1. जाड़े की ऋतु | पहाड़,-बाहुः 1. शिव का विशेषण 2. सोन नदी, 2. हिमालय पहाड़,-गिरिः हिमालय पहाड़,-गः चाँद, -रेतस् 1. आग-रघु० 18125 2. सूर्य 3. शिव For Private and Personal Use Only Page #1184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1175 ) 4. चित्रक या मदार का पौधा,—वर्गा नदी,-वाहः / चरित' काव्य के रचयिता श्री हर्ष के पिता का नाम, सोन दरिया / -रः,-रम् 1. इन्द्र का बज 2. हीरा, (नैषषषरित हरिण्यय (वि.) (स्त्री०-यो) [ हिरण्य+मयट, नि० के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में आने वाला)। सम. मलोप: ] सुनहरी।। --अङ्गः इन्द्र का वज। हिरक (अव्य) हि०+उकिक, रुट 11 के बिना, के हीरकः हीर+कना हीरा। सिवाय 2. में, बीच में 3. निकट 4. नीचे। हीरा हीर+टाप] 1. लक्ष्मी का विशेषण 2. चिऊंटी। हिल (तुदा० पर० हिलति) केलि क्रीड़ा करना, स्वेच्छा से होलम् [ही विस्मयं लाति ला+क] पौरुषेय वीर्य / रमण करना, प्रमालिगन करना, कामेच्छा प्रकट | हीही (अव्य.) [ही+ही] आश्चर्य और प्रमोद को प्रकट करना। करने वाला अव्यय / हिल्ल: [हिल-लक] एक प्रकार का पक्षी। ह (जुहो० पर० जुहोति, हुत-कर्मवा० हूयते, प्रेर० हावहिल्लोलः [हिल्लोल+अच्] 1. लहर, झाल 2. हिंडोल ! यति-ते, इच्छा० जूहूषति) 1. (हवनकुंड में आहुति राग 3. धुन, सनक 4. एक रतिबंध / के रूप में) प्रस्तुत करना, किसी देवता के सम्मान में हिल्वलाः (स्त्री०, ब० व०) [-इल्वला, पृषो०] मृगशिरो। भेंट देना (कर्म के साथ), यश करना- यो मन्त्रपूर्ता नक्षत्र के शिर के पास के पांच छोटे तारे। तनुमप्यहौषीत् --रघु० 13,45, जटाधरः सन् जुहुधीह ही (अव्य.) [हि+डी] 1. आश्चर्य प्रकट करने वाला पावकम् -कि० 1 / 44 हविर्नुहुधि पावके-भट्रिक अव्यय हतविधिलसितानां ही विचित्रो विपाक:-शि० 20111, मनु० 387, याज्ञ. 1199 2. यश का 11164, या--ही चित्रं लक्ष्मणेनोचे-भट्रि० 14 अनुष्ठान करना 3. खाना / 39 (इस अर्थ में प्रायः नाटकीय भाषा में इसकी | हडi (भ्वा० पर० होडति) जाना। आवृत्ति होती है) 2. थकावट, उदासी, खिन्नता | ii (तुदा० पर० हुडति) संचय करना / तर्क / हडः हड़+क] 1. मेढ़ा 2. चोरों को दूर रखने के लिए हीन (भू० क० कृ०) [हा-+ क्त, तस्य नः ईत्वम्] 1. छोड़ा ___ लोहे का कांटा 3. एक प्रकार की बाड़ 4. लोहे का हुआ, परित्यक्त, त्यागा हुआ 2. रहित, वञ्चित, मुद्गर / वियुक्त, के विना (करण० या समास में)-गुणींना न | हुड़ः [हुड्+कु०] मेंढा-जम्बुको हुडुयुशन-- पंच० 1 / 162 / शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः-सुभा०, इसी प्रकार हडक्कः हिड+उवक] बाल की घड़ी के आकार का बना द्रव्य, मति° और उत्साह आदि 3. माया हुआ, एक छोटा ढोल, नै०१५।१७ 2. एक प्रकार का बर्बाद 4. त्रुटिपूर्ण, सदोष, हीनातिरिक्तगात्रो वा | पक्षी, दात्यूह 3. दरवाजे की कुंडी 4. नशे में चूर तमप्यपनयेत्ततः- मनु० 3 / 242 5. घटाया हुआ पुरुष / 6. कम, निम्नतर . मन० 21194 7. नीच, अधम, | | हुडुत् (नपुं०) [हुड्-+-उति] 1. सांड का भिना 2. धमकी कमीना, दुष्ट, न: 1. सदोप गवाह 2. अपराधी का शब्द / प्रतिवादी (नारद पाँच प्रकार के बताता है - अन्य- हुण्ड: [हुण्ड्+क] 1. व्याघ्र 2. मेढ़ा 3. बुलू 4. ग्रामसूकर वादी क्रियाद्वेषी नोपस्थायी निरुत्तरः / आइतप्रपलायो / 5. राक्षस। च हीनः पंचविधः स्मृतः।।)। सम० अङ्ग (वि०) हत (भू० क. कृ०) [ह+पत] 1. आहुति के रूप में अंगहीन, विकलांग, अपाहज, सदोष मन्०४।१४१, आग में डाला हुआ, यज्ञीय भेंट के रूप में होम किया याज्ञ० 2222, - कुल, ज (वि०) ओछे कुल में हुआ 2. जिसे आहुति दी जाय-श०४, रघु० 2071, उत्पन्न, नीच परिवार का,-ऋतु (वि०) जो अपने ९।३३,-तः शिव का नाम,--तम् आहुति, बढ़ावा। यज्ञानुष्ठान में अवहेलना करता है,-जाति (वि०) सम-अग्नि (वि.) जिसने अग्नि में आहुतिहाली 1. नीच जाति का 2. जाति से बहिष्कृत, बिरादरी है-रघु० 116, - अशन: 1. अग्नि-समीरणो नोदयिता से खारिज, पतित,-योनिः (स्त्री०) नीची कोटि का भवेति व्यादिश्यते केन हताशनस्य-कु० श२१, जन्मस्थान,- वर्ण (वि.) 1. नीच जाति का 2. घटिया रघु० 4.1 2. शिव का नाम सहायः शिव का दर्जे का, ... बाविन (वि.) 1. सदोष बयान देने वाला विशेषण,– अशनी फाल्गुन मास की पूर्णिमा, होलिका, 2. अपलापी 3. गूंगा, मक,---सख्यम् नीच व्यक्तियों से -आशः आग-प्रदक्षिणीकृत्य हुतं हताशम्स मेलजोल, सेवा नीच व्यक्तियों की टहल करना। २१७१,--जातवेवस् (वि०) जिसने अग्नि में आहुति हीन्तालः [हीनस्तालो यस्मात्-पपो०] दलदल में होने वाला दी है,-भुज (पुं०) आग-नैशस्याचिलुतभुज इव खजूर का वृक्ष। च्छिन्नभूयिष्ठधूमा--विक्रम 1 / 9, उत्तर० 5 / 9, हीरः [ह+क, नि०] 1. साँप 2. हार 3. सिंह 4. 'नैषध- / प्रिया अग्नि की पत्नी स्वाहा,-बहः आग-जनाकीर्ण For Private and Personal Use Only Page #1185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1176 ) मन्ये हुतवहपरीतं गृहमिव -श० 5 / 10, शीतांशुस्त-। 4 / 74 2. उठाकर ले जाना, अपहरण करना, दूरी पनो हिम हुतवहः .. गीत० 9, मेघ० 43, ऋतु / पर ले जाना, भट्रि० 5 / 47 3. अपहृत करना, लटना, २२७,-होमः वह ब्राह्मण जिसने आग में आहुति डाका डालना, चुराना-दुर्वता जारजन्मानो हरिष्यदी है, ( मम्) जला हुआ शाकल्य। न्तीति शड्या - भामि० 4 / 45, रघ० 3139, कु. हुम् (अव्य०) हु+डुमि (मूल रूप से एक अनुकरणा- 147, भट्टि० 2139, मनु० 7 / 43 4. विवस्त्र करना, त्मक ध्वनि) निम्नांकित अर्थों को अभिव्यवत करने वञ्चित करना, छोन लेना, अपहरण करना-वृन्तातश्लथं वाला अव्यय ---1. याद, प्रत्यास्मरण हूँ ज्ञातम्, हरति पुष्पमनोकहानाम् रघु० 5 / 69, 354, ...या-रामो नाम बभूव हं तदबला सीतेति हम भट्टि० 15 / 116, मनु० 8 / 334 5. ले जाना, प्रती2. सन्देह-चैत्रो हुँ मैत्रो हुम् 3. स्वीकृति-उत्तर० कार करना, नष्ट करना तथापि हरते तापं लोका५।३५ 4. रोष 5. अरुचि 6. भर्त्सना 7. प्रश्नवाचकता नामुन्नतो घनः भामि० 1149, रघु० 15 / 24, मेघ० (जादू व मंत्रों में 'हम्' का संप्र० के साथ प्रयोग 31 6. आकृष्ट करना, मुग्ध करना, जीत लेना, प्रभाव ---उदा० ओं कवचाय हम) (हंकृ 'हुम्' की ध्वनि डालना, अधीन करना, वशीभूत करना-चेतो न कस्य करना, दहाड़ना, चिघाड़ना, रांभना यथा अनुहंक हरते गतिरङ्गनाया:- भामि०२।१५७, ये भावा हृदयं 'बदले में 'हम' की ध्वनि करना अनहंकुरुते घन- हरन्ति ...1 / 103, तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं ध्वनि न हि गोमायरुतानि केसरी-शि०१६।२५), हृतः श० 115, मृगया जहार चतुरेव कामिनी सम० --कार:-कृतिः (स्त्री०) 1. 'हुम्' की ध्वनि -- रघु० 9 / 69, 10683, विक्रम० 4 / 10, ऋतु. करना-पृष्टा पुनः पुनः कान्ता हुंकारैरेव भाषते 6 / 20, भग० 6144, 2160 मनु० 6159 7. उपलब्ध 2. गर्जना, ललकार ...क्षतहुंकारशंसिनः--कु० 26, करना, ग्रहण करना, लेना, प्राप्त करना -ततो विशं हुंकारेणेव धनुषः स हि विघ्नानपोहति - श० 311, नृपो हरेत् मनु० 8 / 391, 153, स हरतु सुभगपरघु० 7 / 58, कु० 5 / 54 3. दहाड़ना, रांभना 4. सूअर ताकाम्-दश० 8. रखना, अधिकार में करना का घुर्घराना 5. धनुष की टंकार / --भामि० 2 / 163 1. पराभूत करना, ग्रस्त करना हुर्छ (भ्वा० पर० हुईति) टेढ़ा होना / --भट्टि० 5 / 71, शि० 9 / 63 10. विवाह करना हुल (भ्वा० पर० होलसि) 1. जाना 2. ढांपना, छिपाना। -मनु० 9 / 93 11. बांटना-प्रेर० (हारयति-ते) हलहली | हल+क, द्वित्वम, डीष च हर्ष के अवसरों पर 1. उड़वा देना, ढुवाना, पहुँचाना, (कोई चीज) किसी महिलाओं द्वारा उच्चारण की जाने वाली एक अस्पष्ट के हाथ भिजवाना (करण के कर्म के साथ)--भूत्यं हर्षध्वनि। भृत्येन वा भारं हारयति-सिद्धा०, जीमतेन स्वकुशहुहु (ह) (पुं०) [ह्वे+डु, नि०] एक गन्धर्व विशेष / लमयीं हारयिष्यन् प्रवृत्तिम्--मेघ०४, मनु० 8 / 114 हुडू (भ्वा० आ० हूडते) जाना। कु० 2 / 39 2. अपहृत करवाना, नष्ट करवाना, हूणः (न:) [ढे+नक्, सम्प्र०, पक्षे पृषो० णत्वम् वञ्चित होना 3. पुरस्कार देना, इच्छा० (जिहीर्षति 1. असभ्य, जंगली, विदेशी–सद्योमण्डितमत्तहण- -ते) लेने की इच्छा करना। अध्या-न्यनपद की चिबुकप्रस्पधि नारंगकम् 2. एक सोने का सिक्का, पूर्ति करना, अनु , 1. नकल करना, मिलना-जुलना (संभवतः यह हणों के देश में प्रचलित था),-णाः ----देहबन्धेन स्वरेण च रामभद्रमनुहरति-- उत्तर०४, (पुं०, ब० व०) एक देश या उसके अधिवासियों इसी प्रकार कि० 9 / 67 2. (अपने माता पिता से) का नाम -हूणावरोधानां--रघु० 4168 / मिलना-जुलना (इस अर्थ में आ०) दे० पा० 123 / हत (भू० क० कृ०) [ह्व+क्त संप्रसारणम्] आमन्त्रित, 21 वार्तिक, अप-, 1. छीन लेना, उड़ा लेना--पश्चा- बुलाया गया, निमन्त्रित -दे० 'हे'। त्पुत्ररपहृतभरः कल्पते विश्रमाय -- विक्रम० 3.1 हूति: (स्त्री०) [ह्वे+क्तिन्, संप्र०] 1. बुलावा, निमंत्रण 2. पराङमुख होना, मुड़ना- वदनमपहरन्तीं (गौरीम) 2. चुनौती 3. नाम-जैसा कि 'हरिहेतुहूतिः' में। कु० 7495 3. लूटना, डाका डालना, चुराना हम् दे० हुम् / 4. (किसी को) वञ्चित करना, दूर करना, नष्ट हरवः [ह इति रवो यस्य -ब० स०] गीदड़ / करना -- त्वं च कोतिमपहर्तुमुद्यत:-रघु० 11174 हूहू (पुं०) [-हुहू पृषो०] गन्धर्व विशेष / 5. आकृष्ट करना, प्रभावित करना, जोर डालना, ह (म्वा० उभ० हरति-ते, हृत, कर्मवा० ह्रियते) लेना, जीत लेना, वशीभूत करना (न) प्रियतमा यतमान ढोना, पहुँचाना, आगे आगे चलना (इस अर्थ में बहधा मपाहरत् ..-रघु० 97, इसी प्रकार 'अपहिये खल द्विकर्मक प्रयोग)-अजां ग्रामं हरति - सिद्धा०, संदेश परिश्रमजनितया निद्रया उत्तर० 1, (प्रेर०) मे हर धनप्रतिक्रोधविश्लेषितस्य - मेघ० 7, मनु० / / (दूसरों से) अपहरण करवाना –कि० 1131, अभि For Private and Personal Use Only Page #1186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1177 ) उठाकर ले जाना, हटाना, अम्यव-,खाना (प्रेर०) / दूर रहना- स्त्रीसंनिकर्ष परिहर्तुमिच्छन्नन्तर्दधे खिलाना, भोजन कराना, आ-,1. (क) लाना, ले भूतपतिः स भूत: - कु० 3 / 74, मनु० 81400, कु० आना यदेव वने तदपश्यदाहृतम् .. रघु० 319, 14 // 3143 2. त्यागना, परित्यक्त करना, छोड़ना, तिलां७७ (ख) ढोना, पहुँचाना --मन० 954 2. निकट जलि देना--कति न कथितमिदमनपदमचिरं मा परिलाना, देना---अयाचिताहृतम्-याज्ञ० 13125 हर हरिमतिशयरुचिरम--गीत० 9 3. हटाना, नष्ट 3. प्राप्त करना, लेना, हासिल करना---मनु० 2 / करना, उत्तर देना, प्रत्याख्यान करना (आक्षेप व 183, 780, 81151 4. रखना, धारण करना आरोप आदि का) ब्रह्मास्य जगतो निमित्तं कारण -आजह्रतुस्तच्चरणी पृथिव्यां स्थलारविन्दश्रियम- प्रकृतिश्चेत्यस्य पक्षस्याक्षेप: स्मतिनिमित्तः परिहृतः / व्यवस्थाम् कु० 233 6. (यज्ञ का) अनुष्ठान तर्कनिमित्त इदानीमाक्षेपः परिहियते---शा० भा०, करना स विश्वजितमाजहें यज्ञं सर्वस्वदक्षिणम् मेघ 14, प्र-, 1. प्रहार करना, आघात करना, - रघु० 4186, 14 / 37 7. वसूल करना, वापिस पीटना - लत्तया प्रहरति 'लात मारता है' रघु० 5 / लेना 8. कारण बनना, पैदा करना, जन्म देना 68, कु० 3170, भट्टि० 97 2. चोट पहुंचाना, 9. पहनना, धारण करना 10. आकृष्ट करना क्षतिग्रस्त करना, घायल करना (अधि० के साथ) 11. हटाना, दूर करना-प्रेर०) 1. मंगवाना 2. दिल- -आर्तत्राणाय वः शस्त्रं न प्रहर्तुमनागसि ---श० 1 / वाना 3. एकत्र करना, परस्पर मिलाना, उद् 11, रघु० 2062, 7159, 11484, 1513 3. आक्र1. बचाना, मुक्त करना, उद्धार करना, छुड़ाना-मां मण करना, हमला करना 4. फेंकना, डालना, प्रक्षेप तावदुद्धर शुचो दयिताप्रवृत्त्या-विक्रम० 4 / 15 करना (अधि० या संप्र० के साथ) 5. छापा मारना, 2. खींचना, बाहर निकालना -(शरम्) उद्धर्तुमच्छ- वि-, 1. ले जाना, पकड़ कर दूर करना, 2. हटाना, त्प्रसभोद्धतारिः रघु० 2130, 3064 3. उन्मूलन नष्ट करना, 3. गिरने देना, (आँसू आदि) ढालना करना, जेड़ से उखाड़ना, उद्धार करना - नमयामास 4. (समय) बिताना 5. मनोरंजन करना, आमोदनृपाननुद्धरन् - रघु० 8 / 9, 4 / 66, त्रिदिवमुद्धतदानव- प्रमोद में व्यस्त होना, खेलना विहरति हरिरिह कण्टकम्-श०७।३ 4. उठाना, ऊपर को करना, उन्नत सरसवसन्ते गीत० 1, व्यव-, 1. व्यवहार करना, करना, (हाथ आदि) फैलाना - मनु० 4 / 62, पंच. व्यवसाय करना 2. करना, आचरण करना, व्यापार 11363 5. (फूल आदि) तोड़ना 6. अवशोषण करना करना 3. कानून की शरण जाना, कचहरी में नालिश -शि० 375 7. घटाना, व्यवकलन करना 8. छांटना, करना .. अर्थपतिर्व्यवहर्तुमर्थगौरवादभियोक्ष्यते--दश०, चुनना, उद्धृत करना-इदं पद्यं रामायणादुद्धृतम् व्या -, बोलना, कहना, बतलाना, वर्णन करना, –(प्रेर०) बाहर निकलवाना रघु० 9 / 74, प्रकथन करना - कु० 2 / 62, 6 / 2, रघु० 11383, उदा.,1. वर्णन करना, वयान करना, प्रकथन करना सम् , 1. लाना, मिला कर खींचना 2. (क) कहना. बोलना, उच्चारण करना-उदाजहार द्रुपदा सिकोड़ना, संक्षिप्त करना, भींचना रघु० 10 // 32, त्मजा गिर:-कि० 1427, मच्छ० 9 / 4, चिकित्सका (ख) गिरा देना संह्रियतामियम-का. 3. सार दोषमुदाहरन्ति--मालवि० 2, मा० 1 2. पुकारना, साथ लाना, एकत्र करना, संचय करना 4. नष्ट नाम लेना--त्वां कामिनो मदनतिकामुदाहरन्ति करना, संहार करना (विप० 'सज्') अमु युगान्तो-विक्रम० 4 / 11, श्रुतान्वितो दशरथ इत्युदाहृतः चितकालनिद्रः संहृत्य लोकान् पुरुषोऽधिशेते रघु० ---भट्टि० 111 3. सचित्र बनाना, सोदाहरण निरू- 13 / 6 5. वापिस लेना, रोकना, पीछे खींचना पण करना, उदाहरण या चित्र उद्धृत करना, त्वम्- -अभिमुखे मयि संहृतमीक्षितम् ... श. 2111, दाहियस्व कथमन्यथा जनः शि० 15 / 29, उप -, 6 / 4, न हि संहरते ज्योत्स्ना चन्द्रश्चाण्डालवेश्मनः 1. ले आना, निकट लाना श०१2. प्रस्तुत करना, -हि० 1161, रघु० 4 / 16, 12 / 103, भग० 2 / प्रदान करना, उपहार देना-नीवारभागधेयमस्माक- 28 6. दमन करना, नियन्त्रण करना, दबाना क्रोधं मुपहरन्तु-श०२, मातृभ्यो बलिमपहर-मच्छ० 1, प्रभो संहर संहरेति यावदगिरःखे मरुतां चरन्ति ... कु० महावीर० 6 / 22, रघु० 14119. 16680, 19 / 12, 3172 7. बन्द करना, समाप्त करना-समा-, श० 3 3. (बलि के रूप में) प्रस्तुत करना, उपा- 1. लाना, पहुँचाना, ढोना....सर्व एव समाहारि तदा लाना, ले आना, निस्-, 1. बाहर निकालना, शल: सहौषधिः-भट्टि० 15:107 2. संग्रह करना, खींचना, उद्धृत करना--रघु० 14 / 42 2. शव को साथ मिलाना, जोड़ना तत्र स्वयंबर समाहृतराजलोबाहर निकालना - मनु० 5.91, याज्ञ० 3 / 15 | कम्-रघु० 5 / 62, भट्टि० 8 / 63 3. खींचना, आकृष्ट 3. (दोष की भांति) दूर करना, परि-, 1. बचना, / करना 4. मष्ट करना, संहार करना-भग० 11 // 148 For Private and Personal Use Only Page #1187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1178 ) 32 5. पूरा करना (यज्ञ आदि) 6. वापिस आना, या आन्तरिक भाग 5. रहस्य विज्ञान, अश्व, अक्ष। अपने उचित स्थान को फिर से प्राप्त करना --मन सम--आत्मन् (पुं०) सारस,~-आविषु (वि०) 81319 7. दमन करना, नियन्त्रित करना। हृदयविदारक, दिल को बींधने वाला . भट्रि० 673, हृ (हि) णीयते (ना० धा० आ०) 1. क्रुद्ध होना, -ईशः ईश्वरः पति, ( शा,-री) 1. पत्नी 2. लज्जित होना (करण० या संबं० के साथ) 2. गृहिणी, कम्पः दिल का कांपना, धड़कन, ग्राहिन् -त्वयाद्य तस्मिन्नपि दण्डधारिणा कथं न पत्या धरणी (वि.) मनमोहक, चौरः जो दिल को या प्रेम को हणीयते नै० 14133, दिवोऽपि वज्रायधभूषणा या चुराता है-छिद् (वि०) हृदय-विदारक, हृदय को, हृणीयते वीरवती न भूमिः भट्टि० 2 / 38 / बींधने वाला,--विध, वेधिन् (वि०) हृदय को हणी (णि) या [हणी+यक+अ+टाप्] 1. निन्दा, बींधने वाला,-वृत्तिः (स्त्री०) मन का स्वभाव,-स्थ भत्संना 2. लज्जा 3. करुणा।। (वि०) हृदय स्थित, मन में विराजमान,-- स्थानम् हृत् (वि०) [ह+क्विप्, तुक् ] (केवल समास के अन्त | छाती, वक्षःस्थल / में) ले जाने वाला, अपहरण करने वाला, हटाने हृदयङगम (वि.) [हृदय+गम् +खच्, मुम्] 1. हृदय वाला, उठाकर ले जाने वाला, आकर्षक / को दहलाने वाला, मर्मस्पर्शी, रोमांचकारी 2. प्रिय, हृत (भू० क. कृ०) हि-क्त] 1. ले जाया गया सुन्दर,-- मा० 1 3. मधुर, आकर्षक, सुखद, 2. अपहरण किया गया 3. मुग्ध किया गया 4. स्वी- रुचिकर --अहो हृदयङगमः परिहासः-मा० 3, वल्लकी कृत 5. विभक्त, दे० 'ह'। सम०---अधिकार (वि.) च हृदयङगमस्वना रघु० 19 / 13, कु० 2016 1. जिसका अधिकार छीन लिया गया है, बाहर 4. योग्य, समुचित 5. प्यारा, वल्लभ, आंख का तारा निकाला हआ 2. अपने उचित अधिकारों से वंचित माना हुआ क्व नु ते हृदयङगमः सखा कु० 4 / 24 / किया गया,-उत्तरीय (वि०) जिसका उत्तरीय बस्त्र हृदयालु, हृदयिक, हृदयिन् (वि०) [ हृदय / आलुच, (चादर डपट्टा आदि) छीन लिया गया हो द्रव्य, ठन, इनि वा ] कोमलहृदय वाला, अच्छे दिल वाला, -धन (वि.) धन दौलत से वंचित, सर्वस्व (वि.) स्नेही। जिसका सब कुछ छीन लिया गया हो, बिल्कुल बर्वाद / हृदि (दो) कः (पुं०) एक यादव राजकुमार / हो गया हो। हृदिस्पृश् (वि०) [ हृदि+स्पृश् + क्विन्, अलुक् स०] हृतिः (स्त्री०) [ह+क्तिन् ] 1. छीन लेना 2. लूटना, 1. हृदय को छूने वाला 2. प्रिय, प्यारा 3. रुचिकर, खसोटना 3. विनाश / मनोहर, सुन्दर / हृद् (नपुं०) [-हृत, पृषो० तस्य दः, हृदयस्य हृदादेशो हृद्य (वि.) [हृदि स्पृश्यते मनोज्ञत्वात् हृद् +यत् ] वा) (इस शब्द के सर्वनामस्थान के कोई रूप नहीं, 1. हार्दिक, दिली, भीतरी 2. जो हृदय को प्रिय लगे, होते, कर्म० द्वि० व० के पश्चात् 'हृदय के स्थान में स्निग्ध, प्रिय, अभीष्ट, वल्लभ भामि० 1169 यह रूप आदेश हो जाता है) 1. मन, दिल 2. छाती, 3. रुचिकर, सुखकर, मनोहर मा० 4, रघु० 11 // दिल, सीना-इमां हृदि व्यायतपातमक्षिणोत कू० 68 / सम०-गन्धः बेल का पेड़,-गन्धा फूलों से 5 / 54 / सम० आवर्तः घोड़े की छाती के बाल, खूब लदा हुआ मोतिया। --कम्पः दिल की कंपन, धड़कन,-पत (वि.) 1. मन हृष (भ्वा० दिवा० पर० हर्षति, हृष्यति, हृष्ट या हृषित) में आसीन, सोचा हुआ, अभिकल्पित 2. पाला-पोसा 1. खुश होना, आनन्दित होना, प्रसन्न होना, हर्षित गया,-(तम्) अभिकल्पना, अर्थ, आशय,--देशः होना, बाग बाग होना, हर्षोन्मत्त होना-अद्वितीयं रुचाहृदयतल पिडः, -डम् , दिल, रोगः 1. दिल का स्मानं मत्वा किं चन्द्र हृष्यसि-भामि० 21105, भट्टि. रोग, दिल की जलन 2. शोक, गम, वेदना 3. प्रेम 15/104, मनु० 2 / 54 2. रोमांचित होना, रोंगटे 4. कुंभराशि, - लासः (हृल्लासः) 1. हिचकी खड़े होना-हृपितास्तनूरुहा:-दश०, हृष्यन्ति रोमकूपानि 2. अशान्ति, शोक,--लेखः (हल्लेखः) 1. ज्ञान, तर्कना / - महा0 3. खड़ा होना (कोई अन्य वस्तु-उदा० 2. दिल की पीडा,-लेखा (हल्लेखा) शोक, चिन्ता, लिङ्ग का) प्रेर० (हर्षयति-ते) प्रसन्न करना, खुश -वंटकः पेट, -शोकः हृदय की जलन, वेदना। करना, प्रसन्नता से भर जाना, प्र--, 1. प्रसन्न होना, हवयम् [ह+कयन्, दुक आगमः ] 1. दिल, आत्मा, मन हर्षोन्मत्त होना--न प्रहृष्येत् प्रियं प्राप्य-भग० 5 / - हृदये दिग्धशरैरिवाहतः--कु० 4 / 25, इसी प्रकार 20, 11 // 36 2. रोंगटे खड़े होना, (शरीर के बाल) 'अयोहृदय:--रघु० 9 / 9, पाषाणहृदय आदि 2. यक्ष: खड़े होना, वि, हर्षोन्मत्त करना, प्रसन्न होना, खुश स्थल, सीना, छाती -बाणभिन्नहृदया निपेतूषी--रघ० होना। 1119 3. प्रेम, अनुराग 4. किसी चीज़ का रस / हुषित (भू० क० कृ०) [ हृष्+क्त ] 1. प्रसन्न, खुश, For Private and Personal Use Only Page #1188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनन्दित, उल्लसित, आह्लादित, हर्षोन्मत्त 2. पूल- प्रकट करते है-'के कारण' के निमित्त' 'क्योंकि', कित, रोमांचित 3. आश्चर्यान्वित 4. झुका हुआ, विनत | (संबं के साथ या समास में प्रयोग-शास्त्रविज्ञान5. निराश 5. ताजा। हेतुना, अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्---रघु० 2 / 47, हृषीकम हृष- ईकक ] ज्ञानेन्द्रिय / सम०-..ईशः विष्णु विस्मतं कस्य हेतो:--मुद्रा० 111 आदि)। सम० या कृष्ण का विशेषण-भग० 1115 तथा आगे पीछे -अपदेशः हेतु का उल्लेख (पंचांगी अनुमान के (हृषीकाणीन्द्रियाण्याहस्तेषामीशो यतो भवान् / हृषीके- रूप में), आभासः वह हेतु जो किसी कार्य का शस्ततो विष्णो ख्यातो देवेषु केशव-महा०) कारण तो न हो, परन्तु हेतु सा आभासिक हो, कुतर्क, हृष्ट (भू० क० कृ०) [ हृष्+क्त ] प्रसन्न, हर्षयुक्त, (यह पाँच प्रकार का होता है सव्यभिचार या (-हृषित)। सम-चित्त मानस (वि०) मन से अनेकांतिक, विरुद्ध, असिद्ध, सत्प्रतिपक्ष और बाधित), प्रसन्न, हृदय में खुश, आनन्दित, रोमन (वि.) - उपक्षेपः, उपन्यासः कारण देना, तर्क उपस्थित (हर्ष के कारण) रोमांचित, पुलकित, वदन (वि.) करना,-वावः तर्कवितर्क, शास्त्रार्थ,-शास्त्रम् तर्कप्रसन्नमुख,---संकल्प (वि०) संतुष्ट, सुखी,- हृदय शास्त्र, तकंयुक्त रचना, स्मति या श्रति की प्रामाणि(वि.) प्रसन्नमना, प्रफुल्ल, उल्लसित / कता पर प्रश्नोत्तर रूप में कृति -मन० 211, हृष्टिः (स्त्री०) [ हृष् / क्तिन् ] 1. आनन्द, उल्लास, --हेतुमत् (पुं०, द्वि० ब०) कारण और कार्य, भावः हर्ष, खुशी 2. घमंड / कार्य और कारण में विद्यमान संबंध। हे (अव्य) हा+डे ] 1. संबोधनपरक अव्यय (ओ, हेतक (वि.) हेतु। कन्] (समास के अन्त में प्रयुक्त अरे)-हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति-- भग० 11141 --क: 1. कारण, तर्क 2. उपकरण 3. ताकिक / हे राजानस्त्यजत सुकविप्रेमबन्धे विरोधम् -विक्रम० हेतुता,-श्वम् हेितु | तल्टाप्, त्व वा] कारणता, कारण 185107 2. ईर्ष्या, द्वेष, डाह प्रकट करने वाला की विद्यमानता। अव्यय। हेतुमत् (वि०) [हेतु+मतुप्] 1. सकारण 2. कारणयुक्त, हेक्का [ =हिक्का, पृषो०] हिचकी। तर्कयुक्त, पुं० कार्य। हेठः[ हे+धा ] 1. प्रकोपन 2. बाधा, अवरोध, विरोध | हेमम हि+मन सोना, मः 1. काले या भूरे रंग का रुकावट 3. क्षति, चोट / घोड़ा 2. सोने का विशेष तोल 3. बुध ग्रह। हेड i (भ्वा० आ० हेडते) अवज्ञा करना, अपमान करना, हेमन् (नपुं०) [हि-मनिन्] 1. सोना 2. जल 3. बर्फ तिरस्कार करना। 4. धतूरा 5. केसर का फूल / सम० ---अङ्ग (वि.) ii (भ्वा० पर० हेडति) 1. धेरना 2. वस्त्र पहनना। सुनहरी, (गः) 1. गरुड 2. सिंह 3. सुमेरु पर्वत हेडः [ हेड्-घा ] अवज्ञा, तिरस्कार / सम० ---जः 3. ब्रह्मा का नाम 5. विष्णु का नाम 6. चम्पक वृक्ष क्रोध, अप्रसन्नता। ...अङ्गदम् सोने का बाजूबन्द,-अद्रिः सुमेरु पर्वत, हेडाबुक्कः (पुं०) घोड़ों का व्यापारी। ..- अम्भोजम सुनहरी कमल,-हेमाम्भोजप्रसवि सलिलं हेतिः (पुं०, स्त्री०ाहन करणे क्तिन,नि२] 1. शस्त्र, अस्त्र मानसस्याददान:-मेघ० ६२,----अम्भोरुहम् सुनहरी --समर विजयी हेतिदलितः-भत०२।४४, रघु०१०।१२ कमल-कु०२१४४, आह्वः 1. जंगली चम्पक का कि० 3456, 14 / 30 2. आघात, क्षति 3. सूर्य की पोधा 2. धतूरे का पौधा,-कन्दल: प्रवाल, मूंगा,-करः, किरण 4. प्रकाश, आभा 5. ज्वाला। --- कर्त,-कारः कारकः सुनार- मनु० 12 / 61, हेतुः [ हि+तुन् ] 1. निमित्त, कारण, उद्देश्य, प्रयोजन याज्ञ०३।१४७,-किञ्जल्कम् नागकेसर का फूल,-कुम्भः - इति हेतुस्तदुद्भवे -- काव्य० 1, मा० 1123, रघु० सुनहरी घड़ा,-कूटः एक पहाड़ का नाम-श० 7, 1110, मेध० 25, श० 3 / 11 2. स्रोत, मूल-स -केतकी केवड़े का पौधा जिसके पीले फूल आते पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः---रघु० 1114, हों, स्वर्ण-केतकी,--गन्धिनी रेणुका नामक गन्धद्रव्य, अपने प्राणियों को पैदा करने वाले 3. साधन, उपकरण ---गिरिः सुमेरु पर्वत,- गौरः अशोकवृक्ष,—छन्न 4. तर्कयुक्त कारण, अनुमान का कारण, तर्क (पांच (वि.) सोने से मंढा हुआ, (नम्) सौने का ढक्कन, अंगों से युक्त अनुमानप्रक्रिया में द्वितीय अंग) 5. तर्क, ---ज्वाल: अग्नि,तारम् तूतिया,-दुग्धः, -- दुग्धकः तर्कशास्त्र 6. कोई भी तर्कयुक्त प्रमाण, या युक्ति गलर,---पर्वतः सुमेरु पर्वत,-पुष्पः,-पुष्पक: 1. अशोक7. साहित्यिक कारण (कुछ विद्वान् इसी को एक अल- वृक्ष 2. लोध्रवृक्ष 3. चम्पक वृक्ष, (नपुं०) 1. अशोक कार भी मानते हैं)-हेतोहंतमता सार्धमभेदो हेतु- का फूल 2. चीनी गुलाब का फूल,--ब (व) लम्। रुच्यते (हेतुना, हेतोः कभी कभी हेतौ भी क्रिया- ___ मोती, मालिन् (पु.) सूर्य,--यूथिका सोनजुही, विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ | स्वर्णयथिका,--रागिणी (स्त्री) हल्दी, शंखः विष्ण साहित्यिक कारण तोहेतुमता तो भी क्रि For Private and Personal Use Only Page #1189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रफुल्ललोध्रः किया शार से आवाज़ देने या बल परिपक्वशालिः / विलीन ( 1180 ) का नाम,---शृङ्गम् 1. एक सुनहरी सींग 2. सुनहरी / +क्त] हिनहिनाहट, रेंक,---रयाङ्गसंक्रीडितमश्वहेषः चोटी,-सारम् तूतिया,---सूत्रम्,-सूत्रकम् एक प्रकार | - कि० 16 / 8 / / का हार। | हेषिन् (पुं०) [हेष् +णिनि घोड़ा। हेमन्तः, तम् [हि+झ, मुट् आगमः] छः ऋतुओं में से हेहे (अव्य) [हे च हे च - द्व० सं०] संबोधन परक अव्यय एक, जाड़े का मौसम (जो मार्गशीर्ष और पौसमास जिसका उपयोग ज़ोर से आवाज़ देने या बलाने में में आता है) नवप्रवालोद्गमसस्यरम्य: प्रफुल्ललोध्रः किया जाता है। परिपक्वशालि: / विलीनपद्मः प्रपतत्तुषारो हेमन्तकाल: | है (अव्य०) [हा+क] संबोधनात्मक अव्यय / समपागतः प्रिये-ऋतु० 4 / 1 / / हतुक (वि.) (स्त्री० - की) [हेतु। ठण्] 1. कारण हेमल: [हेम+ला+क] 1. सुनार 2. कसोटी 3. गिरगिट / परक, कारण मूलक 2. तर्क संबंधी, विवेक परक,-क: हेय (वि.) [हा---यत्] त्याग करने योग्य / 1. तर्कयुक्त हेतुवादी, तार्किक 2. मीमासक 3. तर्कहेरम् [हि+रन्] 1. एक प्रकार का मुकुट या ताज वादी, अनीश्वरवादी, नास्तिक / 2. हल्दी / हम (वि.) (स्त्री०-मी) [हिम (हेमन)+अण] हेरम्बः [हे शिवे रम्बति रम्ब् +अच, अलुक् स०] 1. गणेश 1. शीतल, जाड़े का, जाड़े में होने वाला, ठंडा 2. हिम 2. भंसा 3. धीरोद्धत नायक / सम०-जननी पार्वती से उत्पन्न–मणालिनी हैममिवोपरागम रघ० 16 // (गणेश की माता जी)। 7 2. सुनहरी, सोने का बना हुआ-पादेन हैम विलिहेरिकः [हि+रक, रुट आगमः] भेदिया, गुप्तचर। लेख पीठम् --- रघु०६।१५, भट्टि० 5489, कु०६।६, हेलनं-ना [हिल+ल्युट] अवज्ञा करना, निरादर करना, --मम् पाला, ओस, मः शिव का विशेषण / सम० तिरस्कार करना, अपमान करना। -- मुद्रा,--मुद्रिका सुनहरी सिक्का / हेला हेड भावे डस्य लः] 1. तिरस्कार, अनादर, अपमान | हमन (वि) (स्त्री०-नी) हेमन्त एव हेमन्ते भवो वा, शि० 11172 2. केलि, क्रीडा, प्रेमालिंगन, दे० सा० प्रण, तलोप:] 1. जाड़े में होने वाला, ठंडा शि० द० 128, दश० 2 / 32 3. सुरत की बलवती 6 / 55, कि० 17.12 2. जाड़े से संबंध रखने वाला इच्छा-प्रौढेच्छयाऽतिरूढानां नारीणां सुरतोत्सवे / अर्थात् लम्बा (जैसे जाड़े की रातें) शि० 677 शृङ्गारशास्त्रतत्त्वज्ञहेंला सा परिकीर्तिता / / 4. आराम, 3. सर्दी में उगने वाला या जाड़े के उपयक्त-हेमनसुविधा-शि० 1134, हेलया आसानी से, बिना किसी निवसनः सुमध्यमाः - रघु० 19 / 41 4. सुनहरी, कष्ट या असुविधा के 5. चंद्रिका / सोने का बना हुआ,-नः / मागशीर्ष का महीना 2. जाड़े हेलावुक्कः (पुं०) घोड़ों का व्यापारी। की ऋतु ( हेमन्त)। हेलिः [हिल+इन्] सूर्य, स्त्री०, केलिक्रीडा, सुरतक्रीडा, | हेमन्तिक (वि०) हेमन्ते काले भवः ठञ् ] 1. जाड़े का, प्रेमालिंगन / ठंडा 2. सर्दी में उत्पन्न होने वाला,---कम एक प्रकार हेवाकः (पं.) [यह शब्द कदाचित फ़ारसी या अरबी से का चावल / लिया गया है, 'लटभ' शब्द की भांति इसका प्रयोग हमल दे० 'हेमन्त। भी कल्हण बिल्हण आदि पश्चवर्ती साहित्यकारों द्वारा हमवत (वि०) (स्त्री०-ती) [हिमवतो अदूरभवो देशः ही हआ है] उत्कट इच्छा, तीव्र स्पहा, उत्कण्ठा तस्येदं वा अण्] 1. बर्फीला 2. हिमालय पर्वत से --अस्मिन्नासीत्तदनु निबिडाश्लेषहेवाकलीलावेल्लद्वाहु निकल कर बहने वाला रघु० 16 / 44 3. हिमालय स्वणितवलया सन्ततं राजलक्ष्मी:-विक्रम० 185101, पर्वत पर उत्पन्न, पला-पोसा, स्थित विद्यमान या संबंध तु० 'हेवाकिन्' / रखने वाला कु० 3 / 23, 2267, -तम् भारतवर्ष, हेवाकस (वि.) [संभवतः इस शब्द का 'हेवाक' से कोई | हिन्दुस्तान / संबंध नहीं] अत्यंत, तीव्र, उत्कट, प्रचंड हेवाकसस्तु | हेमवती [ हमवतडीप् ] 1. पार्वती का नाम 2. गंगा शृङ्गारो हावोक्षिभ्रविकारकृत् --दश० 131 / का नाम 3. एक प्रकार की 'हरड़, हरीतकी 4. एक हेवाकिन् (वि.) हेवाक+इनि] अत्यंत इच्छुक, उत्कंठित प्रकार की औषधि 5. सन का पौधा, अलसी 6. भूरे (समास में प्रयोग)-जायन्ते महतामहो निरुपमप्रस्थान- | रंग की किशमिश। हेवाकिनां निःसामान्यमहत्त्वयोगपिशुना वार्ता विपत्ता-हयङ्गग्वीनम् [शो गोदोहात भवं ह्यसगो+ख, नि.] वपि--कल्हण / 1. पिछले दिन के दूध से बनाया गया घी, ताजा हे (स्वा० आ० हेषते, हेषित) घोड़े के भांति हिनहि- घी-हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान्-रघु० 1 // नाना, रकना, दहाड़ना। 45, भट्टि० 5 / 12 2. पिछले दिन का मक्खन, ताजा हेषः, हेषा, हेषितम् [हे+घन, हे +अ+टाप, हेषु / मक्खन / For Private and Personal Use Only Page #1190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1181 ) हरिकः [ हिर+ठक ] चोर / षत: तीन या चार दिन (इसी पर्व को हम 'होली' हैहय (पुं० ब० व.) एक देश और उसके अधिवासियों कहते हैं) 2. फाल्गुन मास की पूर्णिमा / का नाम, यः 1. यदु के प्रपौत्र का नाम 2. अर्जन होलिका, होली (स्त्री०) होली का त्योहार, दे० कार्तवीर्य (जिसके एक हजार भुजाएँ थी, और जिसे / 'होलाका' / परशुराम ने मार गिराया था)-धेनुवत्सहरणाच्च हेह- हो, होहो (अव्य०) [ह वेडो , नि०] संबोधनात्मक यस्त्वं च कीर्तिमपहर्तमद्यतः--रघु० 11174 / अव्यय, हो, अरे, भो। हो (अव्य०) [ हवे+डो, नि ] किसी व्यक्ति को बुलाने | हौत्रम् [होतुरिदम्, अण्] होता नामक ऋत्विक् का पद / के लिए प्रयुक्त होने वाला संबोधनात्मक अव्यय, | होम्यम् [ होम- व्यञ ] ताया हुआ मक्खन, घी। (हे, अरे)। हनु (अदा० आ० हु नुते, ह नुत) 1. ले जाना, लूटना, होड़i (भ्वा० आ० होडते) उपेक्षा करना, अनादर | छिपा देना, वञ्चित करना - अध्यगीष्टार्थ शास्त्राणि करना। यमस्याह्नोष्ट विक्रमम् ---भट्टि० 15 / 88 2. छिपाना, ii (भ्वा० पर० होडति) जाना। ढकना, रोकना,-मा० 1 3. किसी से छिपाव करना होङः [ होड्+अच ] बेड़ा, नाव / (सम्प्र०के साथ)-गोपी कृष्णाय नुते-सिद्धा० / अपहोत (वि.) (स्त्री० -त्री) [ह+तृच ] यजमान, 1. छिपाना, दुराना मनु० 853, रत्न० 2 हवन करने वाला,--वहति विधिहुतं या हविर्या च 2. मुकरना, स्वामित्व को इंकार करना, किसी से होत्री --श० 111, -(पु.) 1. ऋत्विज, विशेषकर कोई चीज़ छिपाना --गुणांश्चापनुषेऽस्माकम् वह जो यज्ञ में ऋग्वेद के मन्त्रों का पाठ करता है .. भट्टि० 5 / 44, अपनबानस्य जनाय यन्निजाम् 2. यज्ञकर्ता--रघु० 1162, 82, मनु० 11 / 36 / / (अधीरताम् ) नै० 1149, नि-, 1. छिपाना, गुप्त होत्रम् [हु+ष्ट्रन् ] 1. (घी आदि) कोई भी वस्तु / कर देना-भट्टि०१०।३६ 2. किसी से छिपाना, जिसको हवन में आहुति दी जावे 2. हवन में जली किसी के सामने मुकर जाना (संप्र० के साथ) हुई सामग्री 3. यज्ञ। भट्टि० 8174 / होत्रा [ होत्र+टाप् ] 1. यज्ञ 2. स्तुति / ह्यस् (अव्य०) [गते अहनि नि०] बीता हुआ कल / होत्रीयः [होत्राय हितं होतुरिदं वा छ) देवों को उद्देश्य सम-भव (वि.) जो कल हुआ था। __ करके आहुति देने वाला ऋत्विक,-यम् यज्ञमंडप / यस्तन (वि०) (स्त्री० ---नी) [ह्यस्+ट्युल, तुट् ] होमः [हु+मन् ] यज्ञाग्नि में घी की आहुति देना, बीते कल से संबंध रखने वाला-यथा ह्यस्तनी (ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले दैनिक पंच यज्ञों में वृत्तिः / सम-दिनम् बीता कल, पिछला दिन / से एक जिसे देवयज्ञ कहते हैं) 2. हवन, यज्ञ / ह्यस्त्य (वि०) [ ह्यस् + त्यप् ] कल से संबद्ध, (बीते सम०--अग्निः होम की आग,-कुण्डम् हवनकुंड, हुए) कल का। ---तुरङ्गः यज्ञ का घोड़ा-रघु० ३।३८,-धान्यम् हवः [हाद् +अच्, नि.] 1. गहरा सरोवर, जल का तिल, धूमः होम की अग्नि का धुआँ,-भस्मन् विस्तृत और गहरा तालाब-नै० 3153 2. गहरा (नपुं०) हवन की राख,-वेला हवन करने का समय छिद्र या विवर-शि०५।२९ 3. प्रकाश की किरण / श०४,-शाला यज्ञशाला, यज्ञगृह / सम-ग्रहः मगरमच्छ / होमकः दे० 'होत'। हदिनी [ हृद- इनि+ङीप ] 1. नदी 2. बिजली। होमिः [ हु+इन्, मुटु च ] 1. ताया हुआ मक्खन, घी | हृद्रोगः [ग्रीकशब्द से व्युत्पन्न ] कुम्भ राशि / 2. जल 3. अग्नि / ह्नस् (भ्वा० पर० ह्रसति, ह्रसित) 1. शब्द करना होमिन् (पुं०) [ होमोऽस्त्यस्य इनि ] होम करने वाला, 2. छोटा होना। यजमान, यज्ञकर्ता। हसिमन् (पृ.) [ ह्रस्व+इमनिच्, ह्रसादेशः ] हलकापन, होमीय, होम्य (वि०) [होम+छ, यत् वा ] होम से / छोटापन, लघुता। संबद्ध, आहुति दिए जाने के योग्य, हवन संबन्धी, ह्रस्व (वि०) [ ह्रस-+ वन्, म० अ० ह्रसीयस, उ० अ० -म्यम् घी। हसिष्ठ ] 1. लघु, अल्प, थोड़ा 2. ठिंगना, क़द में होरा [ हु+र+टाप् ] 1. राशि का उदय 2. राशि की छोटा 3. लघु (विप० दीर्घ-छन्दःशास्त्र में), स्वः अवधि का अंश 3. एक घंटा 4. चिह्न, रेखा / बौना। सम० --अङ्ग (वि०) ठिंगना, गिट्टा, (गः) होलाका [ह+विच्, तं लाति-ला+क-कन्+टाप् ] बौना,-गर्भः कुश नामक घास, वर्भः छोटा या श्वेत वसन्त ऋतु के आने पर मनाया गया वसन्तोत्सव, | कुशनामक घास,-बाहक (वि.) छोटी भजाओं वाला. फाल्गुन मास की पूर्णिमा से पूर्व के दस दिन, विशे- -मूर्ति (वि.) कद में छोटा, ठिंगना, बौना। For Private and Personal Use Only Page #1191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1182 ) ह्राद् (भ्वा० आ० हादते) 1. शब्द करना 2. दहाड़ना। | होवेरम्,-लम् [हिये लज्जाये वेरम् अङ्गम् अस्य क्षुद्रत्वात्, हादः | ह्राद्+घा ] शोर, आवाज---दुन्दुभीनां ह्रादः पूषो० वा रस्य ल:] एक प्रकार का गन्ध द्रव्य / —कि० 16 / 8, इसी प्रकार 'धनुदिः ' आदि। हष (भ्वा० आ० हेषते) 1. घोड़े की भाति) हिनहिनाना, हादिन् (वि०) [हाद्+णिनि ] शब्दायमान, दहाड़ने रेंकना 2. जाना, सरकना। वाला। हषा ह्रष्-अ-+-टाप् हिनहिनाहट / हादिनी हादिन+ङीप् ] 1. इन्द्र का वज्र 2. बिजली ह्लग (भ्वा० पर० ह्रगति) ढांपना। ___3. नदी 4. शल्लकी नामक वृक्ष / हत्तिः ( स्त्री० ) [ लाद्+क्तिन्, ह्रस्वता / हर्ष, ह्रासः [ ह्रस्+घा ] 1. शब्द, कोलाहल 2. घटी, कमी, प्रसन्नता। क्षय, अवनति, पतन मनु०१२८५, याज्ञ० 2 / 249 लस् (भ्वा० पर० लसति) शब्द करना / 3. छोटी संख्या। ह्लाद् (भ्वा० आ० लादते, हन्न, हादित) 1. प्रसन्न हिणीयते दे० 'हणीयते' -- महावीर० 1151 / होना, खुश होना, हर्षित होना 2. शब्द करना, आ / हिणीया [हिणी+यक् +अ-टाप् ] 1. भर्त्सना, निन्दा प्र, हर्षित होना, प्रसन्न होना, खुश होना। 2. शर्म, लज्जा 3. दया -तु. हृणीया।। ह्लादः, ह्लादकः [लाद्+घञ्, ण्वुल वा] प्रसन्नता, हर्ष, ह्री (जुहो० पर० जिह्वेति, ह्रीण, ह्रीत) 1. शर्माना, उल्लास / विनीत होना 2. लज्जित होना (स्वतंत्र प्रयोग अथवा ह्लादनम् [ह्राद् + ल्युट्] हर्षित होने की क्रिया, हर्ष, खुशी, अपादान सं० के साथ)-जिहेम्यार्यपुत्रेण सह गुरुसमीप प्रसन्नता। गन्तुम् श० 7, अन्योऽन्यस्यापि जिह्रीमः किं पुनः ह्लादिन (वि०) [ह्लाद +-णिनि] प्रसन्न होने वाला, खुश सहवासिनाम्-कि० 11158, रघु० 1544, 17/73, | होने वाला। भट्टि० 3153, 5 / 102, ६।१३२-प्रेर० (हृपयति | ह्लादिनी दे० 'हादिनी / ते) शर्मिदा करना, (आलं० से भी) सकौस्तुभं ह्वल (भ्वा० पर० ह्वलति) 1. जाना, हिलना-जुलना हेपयतीव कृष्णम् - रघु० 6 / 49, हेपिता हि बहवो 2. थरथराना, कांपना-प्रेर० (ह्वलयति-ते, ह्वालयति नरेश्वरा.....११३४०, कि वा जात्या स्वामिनो हपयति -ते, परन्तु पहला रूप उपसर्ग युक्त) हिलाना, कंपकंपी -शि० 18 / 23. कि० 11164, 13 / 41, वेणी० पैदा करना (विशेषत: 'वि' पूर्वक)। 117 / ह्वानम् [ढे ल्युट्] 1. आमन्त्रण 2. ऋन्दन, शब्द करना। ही (स्त्री०)[ह्रो+क्विप् ] 1. लज्जा-रतेरपि ह्रीपद ह व (भ्वा० पर० बरति) 1. कुटिल होना 2. आचरण मादधाना-कु० 3157, दारिद्रयाध्रियमेति ह्रीपरि में टेढ़ा होना, ठगना, धोखा खाना 3. कष्टग्रस्त, गतः प्रभ्रश्यते तेजसः - मृच्छ० 1114, रघु० 4 / 80 क्षतिग्रस्त / 2. शर्मीलापन, विनय- ह्रीसन्नकण्ठी कथमप्युवाच | (भ्वा० उभ० ह्वयति-ते, हूतः, कर्मवा० हूयते, प्रेरक -- कु. 7 / 85 / सम-जित,-मुढ (वि०) लज्जा ह्वापयति-ते; इच्छा जुहषति-ते) 1. बुलाना -तां से अभिभूत या व्याकुल होमढानां भवति विफल- पार्वतीत्याभिजनेन नाम्ना बन्धुप्रियां बन्धजनो जहाव प्रेरणा चूणमुष्टि:--मेघ० 68, - यन्त्रणा लज्जा का -कु० 1 / 26 2. नाम लेकर पुकारना, आवाहन करना, बंधन---रघु० 7 / 63 / / आवाज देना 3. नाम लेना, बुलाना 4. ललकारना हीका [ ह्री+का+टाप ] 1. शर्मीलापन, लज्जाशीलता, 5. प्रतिस्पर्धा करना, होड़ाहोड़ी करना 6. प्रार्थना ___ संकोच 2. भीरुता, डर / / करना, याचना करना, आ-, 1.बुलाना, निमंत्रित ह्रीकु (वि०) [ह्रो+उन्, कुक च] 1. शर्मीला, विनीत, करना-वत्स! इत एवाह्वयनम-उत्तर०६ 2. ललसंकोचशील 2. भीरु, कुः 1. रांगा 2. लाख / कारना (आ.)-तभीराबत चेदिराण्मुरारिम् ..-शि० ह्रीण, ह्रीत (भू० क० कृ०) [ह्री-+क्त, पक्षे तस्य नः] . 2011, कृष्णश्चाणूरमाह्वयते-सिद्धा०, भट्टि० 8118, 1. लज्जित- वेणी० 2011 2. शर्मीला, विनीत-नै० 15.89, उप--, उपा -, बुलाना, भट्टि० 8517, 3153 / सम् - समा--, मिलकर बुलाना। For Private and Personal Use Only Page #1192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1983 ) सम्पूरक अक्रूरः [न क्रूरः-न० त०] एक यादव का नाम जो कृष्ण अपने वनवास के समय घूमते हुए भगवान् राम, सीता का मित्र और चाचा था। (यही वह यादव था और लक्ष्मण सहित उसके आश्रम में गये। वहाँ जिसने बलराम और कृष्ण को मथुरा में जाकर कंस अगस्त्य ने इनका बहुत आदर-सत्कार किया और को मारने की प्रेरणा दी थी। उसने इन दोनों को राम का मित्र, सलाहकार और अभिरक्षक बन गया। अपने आने का आशय बतलाया और कहा कि किस उसने राम को विष्ण का धनुष तथा कुछ और वस्तुएँ प्रकार अधर्मी कंस ने इनके पिता आनकदंद्रभि, राज- दी (दे० रघु० 15155) ज्योतिष में इसे तारा भी कुमारी देवकी तथा स्वयं अपने पिता उग्रसेन को माना जाता है- तु० रघु० 4 / 21 भी। अपमानित किया। कृष्ण ने अपने जाने की स्वीकृति / अग्निः [ अङ्गति ऊवं गच्छति अङ्ग, नि, न लोपश्च ] दे दी और प्रतिज्ञा की कि मैं उस राक्षस को तीन अग्नि का देवता / ब्रह्मा का ज्येष्ठ पुत्र / इसकी पत्नी रात के अन्दर मार डालगा। कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा का नाम स्वाहा है। उससे इसके तीन सन्तान हुई की पूर्ति में सफल हुआ) दे० 'सत्राजित्' भी। - पावक, पवमान और शचि / हरिबंश में इसका वर्णन मिलता है कि इसके वस्त्र काले हैं, धओं ही अगस्तिः, अगस्त्यः [ विन्ध्याख्यम् अगम् अस्यति, अस् इसकी टोपी है, तथा शिखाएँ इसका भाला है। +क्तिच शक०, या अगं विन्ध्याचलं स्त्यायति स्त इसके रथ में लाल घोड़े जते हैं। यह मेंढे के साथ नाति, स्त्य+क, या अगः कुम्भः तत्र स्त्यानः संहतः या कभी मेंडे पर सवारी करता हुआ वर्णन किया इत्यगस्त्यः ] एक प्रसिद्ध ऋषि या मनि का नाम / गया है। महाभारत में वर्णन मिलता है कि अग्नि ऋग्वेद में अगस्त्य और वशिष्ठ मुनि मित्र और वरुण का शौर्य और विक्रम समाप्त हो गया और वह मन्द की सन्तान माने जाते हैं। कहते हैं कि लावण्यमयी हो गया, क्योंकि उसने राजा श्वेतकी द्वारा यज्ञों में अप्सरा उर्वशी को देखकर इनका वीर्य स्खलित हो दी गई आहुतियाँ खा लीं। परन्तु उसने अर्जुन की गया। उसका कुछ भाग एक घड़े में गिर गया तथा सहायता से खांडबवन को निगलकर अपनी शक्ति कुछ भाग जल में। घड़े से अगस्त्य का जन्म हुआ फिर प्राप्त कर ली। इस सेवा के उपलक्ष्य में ही इसीलिए इसे कुम्भयोनि, कुम्भजन्मा, घटोद्भव, कलशयोनि आदि भी कहते हैं। दर्णन मिलता है कि अर्जुन को गाण्डीव धनुष दिया गया। इसने विन्ध्याचल पर्वत को जो बराबर उठता जा रहा अघः [ अध् कर्तरि अच् ] एक राक्षस का नाम / यह बक था तथा सूर्यमण्डल पर अधिकार करने ही वाला था, और पूतना का भाई था तथा कस का सेनापति / और जिसने इसके रास्ते को रोक दिया था, नीचे हो एक बार कंस ने इसे कृष्ण और बलराम को मारने जाने के लिए कहा। दे० विन्ध्य० (यह आख्यायिका के लिए गोकुल भेजा। उसने वहाँ एक विशालकाय कई विद्वानों के मतानुसार आर्य जाति की दक्षिण देश अजगर का रूप धारण कर लिया जो चार योजन लंबा में विजय और भारत की सभ्यता के प्रति प्रगति का था। इस रूप में वह ग्वालों के मार्ग में लेट गया पूर्वाभास देती है) इसके नाम एक अन्य आख्यायिका तथा अपना मंह पूरा खोल लिया। ग्वालों ने इसे के अनुसार समुद्र को पी जाने के कारण पीताब्धि एक पहाड़ी गफा समझा, वे इसमें घुस गये, सब गौएँ और समुद्र चुलक आदि भी थे, क्योंकि समुद्र ने अगस्त्य भी इसी में चली गई। परन्तु कृष्ण ने इसे समझ को रुष्ट कर दिया था, और क्योंकि अगस्त्य युद्ध लिया। फलतः उसने अन्दर घुसकर अपना शरीर में इन्द्र और देवों की सहायता करना चाहता था इतना फुलाया कि वह अजगररूपी राक्षस टुकड़े-टुकड़े जब कि देवों का युद्ध कालेय नामक राक्षसवर्ग से हो गया तब कहीं इस प्रकार कृष्ण ने अपने साथियों होने लगा था और राक्षस समद्र में जाकर छिप गये की रक्षा की। थे और तीनों लोकों को कष्ट देते थे। उसकी पत्नी | अंगद [अङ्गं दायति शोधयति भूषयति, अङ्गं द्यति वा, है का नाम लोपामुद्रा था। वह विध्य के दक्षिण में या दो+क] तारा नाम की पत्नी से उत्पन्न वालि कुंजर पर्वत पर एक तपोवन में रहता था। उसने का एक पुत्र / जब राम ने समस्त सेना के साथ दक्षिण में रहने वाले सभी राक्षसों को नियन्त्रण में लंका को कुच किया तो अंगद को रावण के पास रक्खा। एक उपाख्यान में वर्णन मिलता है कि किस शान्ति के दूत के रूप में भेजा गया जिससे कि समय प्रकार इसने वातापि नामक राक्षस को खा लिया रहते रावण अपनी जान बचा सके। परन्तु रावण जिसने मेंढे का रूप धारण कर लिया था, और किस ने घृणापूर्वक उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, फलतः प्रकार उसके भाई को जो अपने भाई का बदला लेने काल का ग्रास बना। सुग्रीव के पश्चात् किष्किन्धा आया था, अपनी एक दृष्टि से भस्म कर दिया। का राज्य अंगद को मिला। सामान्य बोलचाल में For Private and Personal Use Only Page #1193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1984 ) वह व्यक्ति जो दो पक्षों के बीच असफल मध्यस्थता से उसके प्राण वच गये। अनिरुद्ध को उसकी पत्नी करता है, अंगद नाम से पुकारा जाता है। उषा सहित द्वारका में अपने घर लाया गया। अंजना (स्त्री०) मारुति या हनुमान की माता का नाम / | अंधकः [अन्ध+कन एक राक्षस का नाम जो कश्यप और वह कुंजर नामक बानर की कन्या तथा केसरी की दिति का पुत्र था। इसकी शिव ने हत्या कर दी थी। पत्नी थी, एक दिन वह एक पहाड़ की चोटी पर | इसके वर्णन मिलता है कि एक हजार भुजाएं और बैठी थी, कि उसका वस्त्र जरा शरीर से हट गया। सिर थे, 2000 आँखें और पैर थे। वह अंधों की वायु देवता उसके सौन्दर्य पर मग्ध हो गया, उसने दृश्य भाँति चलता था इस लिए लोग उसे अंधक कहते थे, शरीर धारण कर अंजना से अपनी इच्छापूर्ति की। चाहे वह पूर्णतः ठीक ठीक देख सकता था। जब याचना की। अंजना ने उससे प्रार्थना की कि आप उसने स्वर्ग से पारिजात वृक्ष उठा कर ले जाने का मेरा सतीत्व नष्ट न करें। वाय ने इस बात को प्रयत्न किया तो शिव ने उसकी हत्या कर दी। स्वीकार कर लिया, परन्तु कहा कि तुम्हारे शक्ति अभिमन्युः (0) अर्जन के एक पुत्र का नाम / इसकी और कान्ति में मेरे जैसा पुत्र उत्पन्न होगा क्योंकि माता सुभद्रा थी जो श्रीकृष्ण तथा बलराम की बहन मैने तुम्हारी ओर कामवासना की दृष्टि से देखा है। थी। जब द्रोण की सलाह के अनसार कौरवों ने यह कहकर वायु अन्तर्धान हो गया। यह पुत्र ही / 'चक्रव्यूह' नाम की विशिष्ट सन्यस्थिति बनाई, और मारुति या हनुमान् था। वह भी इस आशा से कि आज अर्जुन दूर है, अत्रिः [अद्विन = अत्रि] एक महर्षि का नाम / यह उसके अतिरिक्त और कोई पांडव इस व्यह को तोड़ ब्रह्मा की आँख से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा के नहीं सकेगा, तो अभिमन्य अपने चाचा ताउओं को दस मानस पुत्रों या प्रजापतियों में से एक है। इसकी विश्वास दिलाया कि यदि आप लोग मेरी सहायता पत्नी का नाम अनसूया था। उससे तीन पुत्र हुए करें तो मैं अवश्य ही इस व्यूह को तोड़ डालंगा। दत्त, दुर्वासा और सोम। रामायण में वर्णन मिलता तदनुसार वह व्यह में प्रविष्ट हुआ, कौरवपक्ष के है कि राम और सीता, अत्रि तथा अनसूया के आश्रम अनेक योद्धाओं को उसने मौत के घाट उतारा। एक में गये। वहां उन्होंने उनका खूब आदर सत्कार बार तो उसने ऐसा घोर पराक्रम दिखाया कि द्रोण, किया (दे० अनसूया)। ऋषि के रूप में वह सप्त- कर्ण दुर्योधन आदि बड़े बड़े महारथी भी उसका मुकाऋर्षियों में से एक है, ज्योतिष की दृष्टि से वह सप्त- बला न कर सके। परन्तु वह बहुत देर तक इस षियों में एक तारा है। कहते है कि चन्द्रमा इस की भीषण युद्ध का सामना न कर सका, अन्त में परास्त आँख से पैदा हुआ--तु० रघु० 275 / हुआ और मारा गया। वह बहुत सुन्दर था / उसकी अदितिः [न दीयते खण्डयते बध्यते बहत्त्वात-दो+क्तिच] दो पत्नियां थी . बलराम की पुत्री वत्सला, तथा दक्ष की एक कन्या का नाम जो कश्यप को ब्याही राजा विराट की पुत्री उत्तरा। जिस समय वह मारा गई: जिस समय विष्ण ने वामनावतार ग्रहण किया गया उस समय उत्तरा गर्भवती थी। उससे परीक्षित तो उस समय वह विष्णु की माता थी। वह इन्द्र को का जन्म हुआ। परीक्षित ही बाद में हस्तिनापुर की भी माता थी। इसके कारण वह उन अन्य देवताओं राजगद्दी पर बैठा। की भी माता कहलाती है जो अदितिनदन कहलाते हैं। अरुणः [ऋ+उनन] विनता में कश्यप से उत्पन्न एक पुत्र अनिरुद्धान निरुद्ध इति ब० स०] प्रद्युम्न के एक पुत्र गरुड था। गरुड का ज्येष्ठ भ्राता ही अरुण बतलाया का नाम / अनिरुद्ध काम का पूत्र और कृष्ण का पोता जाता है। विनता ने समय से पूर्व ही अंडे से बच्चा था। बाणासुर की पुत्री उषा उससे प्रेम करने लगी थी। निकाला, उसकी अभी जंघाएँ नहीं बनी थी, इस लिए उसने जादु की शक्ति से अनिरुद्ध को अपने पिता की उसका नाम 'अनूर' (ऊरुरहित) या 'विपाद' (पैरों नगरी शोणितपुर के अपने भवन में मंगवा लिया। से हीन) पड़ गया। अब अरुण सूर्य का सारथि है। (दे० उषा या चित्रलेखा)। बाण ने कुछ रक्षक उसे उसकी पन्नो श्येनी थी जिससे 'संपाति' और 'जटाय' पकड़ने के लिए भेजे परन्तु पराक्रमी अनिरुद्ध ने उन्हें नामक दो पुत्र पैदा हुए। लोहे की गदा से मौत के घाट उतार दिया। अंतत: | अश्वत्थामन दे० 'द्रोण' भी। वह जादू की शक्ति के द्वारा पकड़ लिया गया। जब अश्विनीकुमार दे० 'संज्ञा कृष्ण, बलराम और काम को उसका पता लगा तो वे अष्टावक्र: [अष्टकृत्वः अष्टस् भागेष वा वक्र: कहोड के एक उसे लेने गये। वहाँ भारी युद्ध हुआ। बाण की पुत्र का नाम / कहोड ऋपि इतने अधिक अध्ययन यद्यपि शिव और स्कन्द सहायता करते थे, तो भी शील थे कि उन्होंने अपनी पत्नी की उपेक्षा की। इस वह पराजित हो गया, परन्तु शिव के बीच में पड़ने अवहेलना से क्षुब्ध होकर उसके अजात पुत्र ने जो For Private and Personal Use Only Page #1194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1185 ) अभी गर्भ में ही था, अपने पिता की भर्त्सना की। पण्डावत् (वि.) [पण्डा+मतुप् ] बुद्धिमान्-अश्व०६। इस बात से क्रुद्ध होकर पिता ने शाप दिया कि तुम | प्रकोपः [प्रा० स०] क्रोध, उत्तेजना, आवेश / आठ अंगों से टेढ़े-मेढे पैदा होगे। एक बार कहोड | प्राकारः (40) 1. चहारदीवारी, बाड़ा, बाड़ 2. चारों ने एक बौद्ध से शर्त लगाई और फिर उसमें हार जाने ओर घेरा डालने वाली दीवार, फ़सील-शतमेकोऽपि पर कहोंड को नदी में डुबा दिया गया / युवा अष्टावक्र संधत्ते प्राकारस्थो धनुर्धर:--पंच० 1229 / ने उस बौद्ध को परास्त किया और अपने पिता को बाली (स्त्री०) एक प्रकार का कान का आभूषण-अश्व० मुक्त कराया। इस बात से प्रसन्न होकर पिता ने 24 / समंगा नदी में स्नान करने के लिए कहा। ऐसा कर युधिष्ठिरः [ युधि स्थिरः-अलुक् स०, षत्वम् ] 'युद्ध में वह बिल्कुल सरल अंगों वाला हो गया। अडिग' पांडवों में ज्येष्ठ राजकुमार। इसे 'धर्म' न्याय 'धर्मराज' और 'अजातशत्रु' आदि भी कहते हैं। यह 1. विषकृमिन्याय --विष में पले कीड़ों का नीतिवाक्य / धर्म द्वारा कुन्ती से उत्पन्न हआ था। सैन्यचातूरी की यह उस स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया अपेक्षा यह अपनी सचाई और ईमानदारी के लिा जाता है जो दूसरों के लिए घातक होते हुए भी उनके अत्यन्त प्रसिद्ध था। अठारह दिन के महाभारत के लिए ऐसी नहीं होती जो इसमें जन्मे और पले हैं; पश्चात् इसे हस्तिनापुर की राजगद्दी पर सम्राट के क्योंकि वह स्थिति तो उनका स्वभाव बन गया है रूप में अभिषिक्त किया गया था। उसके पश्चात जैसे कि विषकृमि जो विष से ही जन्मा है। विष इसने बहुत दिनों तक धर्मपूर्वक राज्य किया। इसका चाहे दूसरों के लिए घातक हो परन्तु उनके लिए अधिक विवरण जानने के लिए दे० 'दुर्योधन') / घातक नहीं होता जो उसी विषली स्थिति में पले हैं।। वंशम्पायनः (0) व्यास के एक प्रसिद्ध शिष्य का नाम / विषवक्षन्याय -विषवृक्ष का नीतिवाक्य। यह उस इसने अपने शिष्य याज्ञवल्क्य को कहा कि वह समस्त स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता यजुर्वेद जो तुमने मुझसे पढ़ा है उगल दो। तदजो यद्यपि उत्पातमय या आघातपूर्ण है तो भी उस नुसार उगल देने पर वशम्यायन के अन्य शिष्यों ने व्यक्ति के द्वारा जिसने उसे बनाया है, नष्ट किये जाने तीतर बन कर वह समस्त यजुर्वेद चाट लिया। इसी के योग्य नहीं। जैसे कि एक वृक्ष चाहे वह विष का लिए यजुर्वेद की उस शाखा का नाम 'तैत्तिरीय' पड़ ही क्यों न हो वह भी लगाने वाले के द्वारा काटा गया / पुराणों का पाठ करने में बैशंपायन अत्यन्त नहीं जाता। दक्ष और प्रसिद्ध था। कहते हैं कि उसने समस्त महा3. स्थालीपुलाकन्याय--पकते हुए बर्तन में से एक चावल भारत का पाठ जनमेजय राजा को सुनाया। देखने का नीतिवाक्य / देगची में पड़े हुए सभी चावलों | हिरण्याक्षः (पुं०) एक प्रसिद्ध राक्षस का नाम / हिरण्यपर गर्म पानी का समान प्रभाव पड़ता है। जब एक कशिपु का जुड़वाँ भाई। ब्रह्मा से वरदान पाकर बह चावल पका हुआ होता है तो यह अनुमान लगा ढीठ और अत्याचारी हो गया, उसने पृथ्वी को समेट लिया जाता है कि अन्य सब चावल भी पक गए हैं। लिया और उसे लेकर समुद्र की गहराई में चला अत: यह नीतिवाक्य उस दशा में प्रयुक्त होता है जब गया। अत एव विष्णु ने वराह का अवतार धारण समस्त श्रेणी का अनुमान उसके एक भाग को देख ! किया, राक्षस को यमलोक पहुँचाया और पृथ्वी का कर लगाया जाय। मराठी में इसे ही कहते है उद्धार किया। "शितावरून भाताची परीक्षा"। 149 For Private and Personal Use Only Page #1195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट 1 संस्कृत छन्दःशास्त्र परिचय --- संस्कृत छन्दःशास्त्र का सबसे पहला और अत्यन्त काव्यात्मक छूट के कारण ह्रस्व रह सकता है, उदा० महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पिंगल ऋषिप्रणीत छन्दःशास्त्र है। कु० 7.11, या शि० 10 // 60; तथापि यहाँ पर यह आठ अध्यायों का एक सूत्रग्रंथ है। अग्निपुराण समालोचकों ने छन्द को छन्दःशास्त्र के सामान्य में भी पिंगलपद्धति पर आधारित छन्दःशास्त्र का नियमों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधन भी प्रस्तुत पूर्ण विवरण है। और अनेक ग्रन्थ इसी विषय पर किये है)। इसी प्रकार पाद का अन्तिम अक्षर भी भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा रचे गये हैं-उदा० श्रुतबोध, छन्द की अपेक्षा के अनुरूप लघु या गुरु माना जा वाणीभूषण, बृत्तदर्पण, वृत्तरत्नाकर, वृत्तकौमुदी और सकता है, वह स्वयं चाहे कुछ ही हो। छन्दोमंजरी आदि। आगे के पृष्ठों में मुख्यतः छन्दो- सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् / मंजरी और वृत्तरत्नाकर के आधार पर ही कुछ लिखा वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा / / गया है। इस परिशिष्ट में वैदिक तथा प्राकृत छन्दों मात्राओं की संख्या से निर्धारित होने वाले को नहीं रक्खा गया है। वत्तों में ह्रस्व स्वर की एक मात्रा होती है, और संस्कृत की रचना या तो गद्य में होती है या दीर्घस्वर की दो मात्राएं। पद्य में। काव्यरचना प्रायः इलोकों में होती है। अक्षरों की संख्या से विनियमित वृत्तों की मापश्लोक या पद्य में चार चरण होते हैं जिन्हें या तो तोल के लिए, छन्दःशास्त्र के लेखकों ने आठ 'गणों' अक्षरों की संख्या से विनियमित किया जाता है अथवा (अक्षरपाद) की एक युक्ति निकाली है। प्रत्येक मात्राओं की गिनती से। गण में तीन अक्षर होते हैं, वे तीनों लघु या गुरु पद्य या तो वृत्त होता है अथवा जाति। वृत्त होने के कारण एक दूसरे से भिन्न होते हैं। वे गण एक ऐसा श्लोक होता है जिसका छन्द प्रत्येक चरण नीचे लिखे श्लोक में बतलाये गये है। में अक्षरों की गिनती और स्थिति के अनुसार निर्धा- मस्त्रिगुरुस्त्रिलघुश्च नकारो, रित किया जाता है। जाति एक ऐसा श्लोक होता है भादिगुरुक पुनरादिलघुर्यः / जिसका छन्द प्रत्येक चरण में मात्राओं की गिनती के जो गुरुमध्यगतो रलमध्यः, अनुसार निश्चित किया जाता है। सोऽन्तगुरुः कथितोऽन्तलघुस्तः / / दत्त तीन प्रकारके होते हैं--(१) समवृत्त आदिमध्यावसानेष यरता यान्ति लाघवम् / —जिसमें श्लोक के चारों चरण समान हों। (2) ! भजसा गौरवं यान्ति मनौ तु गुरुलाघवम् // अर्षसमवृत्त-जिसमें प्रथम तृतीय और द्वितीय तथा प्रतीकाक्षरों में अभिव्यक्त (गुरु, लघु।) भिन्नचतुर्थ चरण समान हों। (3) और विषमवृत्त भिन्न गण निम्न प्रकार से दर्शाये जा सकते है :जिसके चारों चरण असमान हों। 555मगण _ अक्षर (वर्ण) एक ऐसा शब्द है जो एक सांस 155 यगण में बोला जाय, अर्थात् एक स्वर, इसके साथ चाहे 5 / रगण एक व्यंजन हो, चाहे एक से अधिक और चाहे केवल ।।5सगण स्वर ही हो। SSतगण अक्षर (वर्ण) लघु भी होता है, गुरु भी जैसा 15 जगण कि उसका स्वर हो ह्रस्व या दीर्घ / अ इ उ ऋ 5 / भगण और ल ह्रस्व हैं, आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ और औ / / / नगण दीर्घ हैं। परन्तु छन्दःशास्त्र में हस्व स्वर दीर्घ इसी प्रकार 'ल' लघु तथा 'ग' गुरु को प्रकट माना जाता है जबकि उसके आगे अनुस्वार या विसर्ग करता है। हो, अथवा कोई संयुक्त व्यंजन हो, जैसे कि 'गन्ध' विशेष ..प्रत्येक चरण के अक्षरों (वर्णों) की गिनती के का 'अ' या 'गः'। (प्र, ह और बक्र इसके अपवाद अनुसार संस्कृत के छन्दः शास्त्रियों ने बत्तों का वर्गीहै। इनके पूर्व का स्वर यद्यपि एक प्रकार की करण किया है। इस प्रकार वे 'समवृत्तों को छब्बीस For Private and Personal Use Only Page #1196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेणी की है.८८६४ को बात गण गण सना चार चावाले वृत्त ( 1187 ) अनुभाग (क) श्रेणियों में रखते हैं जैसे कि समवृत्तों के प्रत्येक चरण / चार वर्षों के चरण वाले वृत्त में अक्षरों की संख्या एक से लेकर छब्बीस तक पथक (प्रतिष्ठा) पृथक हो सकती है। इनमें से प्रत्येक श्रेणी में लघु कन्या और गुरु की पृथक-पृथक भिन्न-भिन्न स्थिति होने के परि० ग्मो चेत्कन्या। कारण असंख्य वृत्तों की संभावना हो जाती है। गण० ग, म उदाहरणतः छः अक्षरों के प्रत्येक चरण वाली श्रेणी उदा० भास्वत्कन्या सैका धन्या / में, (अक्षर चाहे लघु हों या गुरु) संभावित संख्या यस्याः कूले कृष्णोऽखेलत् / / 2x2x2x2x2x2 या 26=64 होती है, परन्तु प्रयोग में छः वृत्त भी नहीं आते। यही बात पाँच वर्षों के चरण वाले वृत्त छब्बीस अक्षर वालो श्रेणी की है। वहाँ भी वृत्तों की (सुप्रतिष्ठा) संभावित संख्या 226 या 87108864 होती है। पंक्ति परन्तु यदि हम अर्धसमवत्त या विषमवत्तों की बात परि० भूमी गिति पंक्तिः देखें तो वहाँ तो संभावित वृत्तों की विविधता अनन्त है। पिंगल, लीलावती और वृत्तरत्नाकर के अंतिम उदा. कृष्ण सनाथा तर्णकपंक्तिः / अध्याय में संभावित विविधताओं की संख्या, उनका यामुनकच्छे चारु चचार / / स्थान, या उनकी नियमित गणना में किसी एक छंद छः वर्षों के चरण वाले वृत्त विशेष की निश्चित जानकारी प्राप्त करने के लिए गायत्री निर्देश दिये गए हैं। संभावित वृत्तों के इस विशाल (1) तनुमध्यमा समदाय की तुलना में कवियों द्वारा प्रयुक्त किये जाने परि० त्यो चेत्तनुमध्यमा। वाले वृत्तों की विविधता नगण्य है। परन्तु यह | गण. त, य / नगण्य संख्या भी इतनी अधिक है कि इस परिशिष्ट उदा० मूर्तिर्मुरशत्रोरत्यद्भुतरूपा / में नहीं रक्खी जा सकती। अतः हम यहाँ निम्न क्रम आस्तां मम चित्ते नित्यं तनुमध्या // में केवल उन्हीं वृत्तों का वर्णन करेंगे जो बहुत प्रयुक्त (2) विद्युल्लेखा ('वाणी' भी कहते हैं) किये जाते हैं अथवा जिनका उल्लेख करना आव- परि० विद्युल्लेखा मो मः। श्यक है। गण. म, म (3,3) / उदा० श्रीदीप्ती ह्रीकीर्ती धीनीती गी: प्रीती। अनुभाग (क) समवृत्त एधेते द्वे द्वे ते ये नेमे देवेशे // काव्य० 3186 / अनुभाग (ख) अर्धसमवृत्त अनुभाग (ग) विषमवृत्त (3) शशिवदना परि० शशिवदना न्यो। अनुभाग (घ) जाति आदि गण० न, य। नोट-निम्नांकित परिभाषाओं में गणों का प्रतिनिधित्व उदा० शशिवदनानां व्रजतरुणीनाम् / करने वाले भ म स और ल ग आदि वर्गों के स्वर अधरसुधोमि मधुरिपुरच्छत् ] का बहुधा वृत्त की अपेक्षा के कारण लोप कर दिया जाता है-उदा० 'म्रभ्न' प्रकट करता है म र भन (4) सोमराजी परि० दिया सोमराजी। को, इसी प्रकार 'म्तो' दर्शाता है म त को। पहली पंक्ति में हमने वृत्त की परिभाषा दी है, दूसरी पंक्ति गण. य, य (2, 4) / उदा० हरे सोमराजी-समाते यशःश्रीः / में गणक्रम और यति–विराम अर्थात् श्लोक या जगन्मण्डलस्य छिनत्यन्धकारम् // चरण का सस्वर पाठ करने में जहाँ रुकना होता है, और जो कि परिभाषा में करणकारक द्वारा संकेतित सात वर्णों के चरण वाले वृत्त किया गया है-(प्रकोष्ठ में अंग्रेजी अंकों द्वारा) (उणिक) प्रकट की जाती है, फिर तीसरी पंक्ति में उदाहरण (1) कुमारललिता (इनमें से अधिकांश माघ, भारवि, कालिदास और | परि० कुमारललिता जसगाः / दंडी की रचनाओं से लिए गए है)। | गण. ज, स, ग (3. 4) / For Private and Personal Use Only Page #1197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और० सजरभू (36) यमुना भूजनता हरिः / / ( 1188 ) उदा० मुरारितनुवल्ली कुमारललिता सा / / उदा. वासोवल्ली विद्यन्माला बहश्रेणी शाक्रश्चापः / बजेणनयनानां ततान मुदमुच्चः / / यस्मिन्नास्तां तापोच्छित्य गोमध्यस्थः कृष्णाम्भोदः / (2) मदलेखा (6) समानिका परि० मस्गो स्यान्मदलेखा / परि० ग्लौ रजी समानिका तु। गण. म, स, ग (3. 4) / गण. ग, ल, र, ज (4. 4) उदा० रने बाहुविरुग्णाद् दन्तीन्द्रान्मदलेखा। उदा० यस्य कृष्णपादपद्ममस्ति हृत्-तडागसय / लग्नाभून्मुरशत्रौ कस्तूरीरसचर्चा / धीः समानिका परेण नोचितात्र मत्सरेण // (3) मधुमती परि० ननगि मधुमती। नौ वर्णों के चरण वाले वृत्त गण० न, न, ग (5. 2.) / _ (बृहती) उदा० रविदुहितृतटे नवकुसुमततिः / (1) भुजगशिशुभृता श्यधित मधुमती मघुमथनमुदम् / / परि० भुजगशिशुभृता नौ मः। आठ वर्गों के चरण वाले वृत्त गण० न, न, म (7. 2.) उदा० ह्रदतटनिकटक्षीणी भुजगशिशुभता याऽऽसीत् / (अनुष्टुभ्) ___ मुररिपुदलिते नागे ब्रजजनसुखदा साऽभूत् // (1) अनुष्टुभ् (2) भुजङ्गसङ्गता (इसे 'इलोक' भी कहते हैं) परि० सजरर्भुजङ्गसङ्गता। इस छन्द के अनेक भेद है। परन्तु जिसका सबसे गण० स, ज, र (3.6) अधिक प्रयोग होता है उसके प्रत्येक चरण में आठ उदा० तरला तरङ्गरिङ्गितर्यमुना भुजङ्गसङ्गता। वर्ण होते है, मात्रायें सबकी भिन्न-भिन्न / इस प्रकार कथमेति वत्सचारकश्चपल: सदैव तां हरिः॥ प्रत्येक चरण का पांचवां वर्ण लघु, छठा दीर्घ, तथा (3) मणिमध्य सातवां वर्ण (प्रथम, तृतीय चरण का) दीर्घ, एवं परि० स्यान्मणिमध्यं चेद्भमसाः / (द्वितीय तथा चतुर्थचरण का) ह्रस्व होता है। | गण. भ, म, स (5.4) श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम् / कालियभोगाभोगगतस्तन्मणिमध्यस्फीतरुचा / द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः / / चित्रपदाभो नन्दसुतश्चारु ननर्त स्मेरमुखः // उदा. वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरी रघु० // 1 // दस वर्षों के चरण वाले वृत्त (2) गजगति (पङक्ति) परि० नभलगा गजगतिः / (1) त्वरितगति गण. न, भ, ल, ग (4.4) / परि० त्वरितगतिश्च नजनगः / पवा० रविसुतापरिसरे विहरतो दशि हरेः / गण० न, ज, न, ग (5. 5.) ब्रजवधूगजगतिर्मुदमलं व्यतनुत / उदा० त्वरितगतिव्रजयुवतिस्तरणिसुता विपिनगता। (3) प्रमाणिका मुररिपुणा रतिगुरुणा परिरमिता प्रमदमिता। परि० प्रमाणिका जरी लगी। (2) मत्ता गण. ज, र, ल, ग (4.4) / परि० ज्ञेया मत्ता मभसगसष्टा / उदा० पुनातु भक्तिरच्युता सदा च्युताङ्घ्रिपद्मयोः / गण. म, भ, स, ग (4.6) श्रुतिस्मृतिप्रमाणिका भवाम्बुराशितारिका / / उदा० पीत्वा मत्ता मधु मधुपाली (4) माणवक कालिन्दीये तटवनकुञ्ज / परि० भात्तलगा भाणवकम् / उद्दीव्यन्तीब्रजजनरामाः गण. भ, त, ल, ग, (4. 4) / कामासिक्ता मधुजिति चक्रे / / उपा. चंचलचूई चपलैर्वत्सकुलै : केलिपरम् / (3) रुक्मवती (चम्पकमाला) ध्याय सखे स्मेरमुखं नन्दसुतं माणवकम् / / परि० रुक्मवती सा यत्र भमस्गाः / (5) विद्युन्माला गण० भ, म, स, ग (5. 5) परि० मो मो गो गो विद्युन्माला। उदा० कायमनोवाक्यः परिशुद्धः गण. म, म, ग, ग (4.4) / यस्य सदा कंसद्विषि भक्तिः / नपादयोहक वागर्थप्रतिपत्त 131 For Private and Personal Use Only Page #1198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्यपदे हालिरुदारा तेन सहेह बिति रहः स्त्री रुक्मवती विघ्नः खलु तस्य // सार तरागमनायतमानम् ॥शि० 4/45 / ग्यारह वर्णों के चरण वाले वृत्त (5) भ्रमरविलसितम् परि० म्भौन्लो गःस्याद् भ्रमरविलसितम् / (त्रिष्टुभ्) गण. म, भ, न, ल, ग (4.7) (1) इन्द्रवना उदा. प्रीत्यै यूनां व्यवहिततपनाः परि० स्यादिन्द्रवज्रा यदि तो जगौ गः / प्रौढध्वान्तं दिनमिह जलदाः / गण. त, त, ज, ग, ग (5. 6) दोषामन्यं विदधति सुरतउदा० गोष्ठे गिरि सव्यकरेण धुत्वा क्रीडायासश्रमशमपटवः // शि० 4 / 62 / रुष्टेन्द्रदजातिमुक्तवृष्टौ / (6) रथोद्धता यो गोकुलं गोपकुलं च सुस्थम् परि० रात्परैर्नरलग रथोद्धता / चक्रे स नो रक्षतु चक्रपाणिः / गण० र, न, र, ल, ग (3.8 या 4.7) (2) उपेन्द्रवज्ञा उदा. कौशिकेन स किल क्षितीश्वरो परि० उपेन्द्रवजा प्रथमे लघौ सा / राममध्वरविघातशान्तये। गण० ज, त, ज, ग, ग (5. 6) काकपक्षधरमेत्य याचितउदा० उपेन्द्रवज्रादिमणिच्छटाभि स्तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते / / रघु० 11 / 1 / विभूषणानां छुरितं वपुस्ते / दे० कु०८ भी। स्मरामि गोपीभिरुपास्यमानम् __(7) बातोर्मी सुरद्रुमले मणिमण्डपस्थम् / / परि० वातोर्मीयं गदिता म्भौ तगो गः। (3) उपजाति गण. म, भ, त, ग, ग (4.7) रि० अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजी उदा० ध्याता मूत्तिः क्षणमप्यच्युतस्य पादौ यदीयावुपजातयस्ताः। श्रेणी नाम्नां गदिता हेलयाऽपि / इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु संसारेऽस्मिन दुरितं हन्ति पुंसाम् वदन्ति जातिष्विदमेव नाम / / बातोर्मी पीतमिवाम्भोधिमध्ये // गण. जब इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा को एक ही श्लोक (8) शालिनी में मिला देते हैं तो उसे उपजाति वृत्त कहते हैं। परि० मात्तौ गौ चेच्छालिनी वेदलोकः / इसके चौदह भेद होते हैं। गण. म, त, त, ग, ग, (4. 7.) उदा. अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा उदा० अंहो हन्ति ज्ञानवद्धि विधत्ते हिमालयो नाम नगाधिराजः / धर्म दत्ते काममर्थं च सूते / पूर्वापरी तोयनिधी वगाह्य मुक्ति दत्ते सर्वदोपास्यमाना स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः / / कु. 101 / पुंसां श्रद्धा शालिनी विष्णुभक्तिः / / रघु० 2, 5, 6, 7, 13, 14, 16, 18, कु०३, (9) स्वागता कु०१७ आदि। जब अन्य वृत्त भी एक ही श्लोक परि० स्वागता रनभगर्गुरुणा च / में मिला दिये जाते है तो भी उपजाति ही वृत्त गण० र, न, भ, ग, ग (3. 8) होता है। उदा० माघ कवि के निम्नश्लोक में उदा० यावदागमयतेऽथ नरेन्द्रान् स स्वयंवरमहाय महीग्वः। वंशस्थ और इन्द्रवंशा मिला दिए गए हैं। तावदेव ऋषिरिन्द्रदिक्षुः नारदस्त्रिदशघाम जगाम / / इत्थं रथाश्वेभनिषादिनां प्रगे न०५॥१॥ गणो नृपाणामथ तोरणादहिः / दे० कि०९, शि०१.. प्रस्थानकालक्षमवेषकल्पना बारह वर्णों के चरण वाले बत्त कृतक्षणक्षेपमुदैवताच्युतम् // शि०१२।। (जगती) (4) दोषक (1) इन्द्रवंशा परि० दोधकमिच्छति भत्रितयादगा। परि० तच्चन्द्रवंशा प्रथमाक्षरे गुरौ // गण. भ, भ, भ, ग, ग, (6. 5.) गण. इन्द्रवंशा बिल्कुल वंशस्थविल या वंशस्थ (दे० नी. उवा० या न ययौ प्रियमन्यवधूभ्यः १३वा) के समान है, सिवाय इसके कि इसका सा रतरागमना यतमानम् / प्रथमाक्षर गुरु होता है। त, त, ज, र। For Private and Personal Use Only Page #1199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदा० दैत्येन्द्रवंशाग्निरुदीर्णदीधितिः पीताम्बरोऽसौ जगतां तमोपहः / यस्मिन् ममज्जुः शलभा इव स्वयम् ते कंसचाणूरमुखा मखद्विषः // (2) चन्द्रवर्ती परि० चन्द्रवर्म निगदन्ति रनभसः / गण. र, न, भ, स (4,8) उदा० चन्द्रवर्त्म पिहितं घनतिमिर राजवर्त्म रहितं जनगमनः / इष्टवर्त्म तदलंकुरु सरसे कुञ्जवमनि हरिस्तव कुतुकी / / (3) जलधरमाला परि० अब्ध्यंगः स्याज्जलघरमालाम्भौ स्मो। गण. म, भ, स, म (4.8) उदा० या भक्तानां कलिदुरितोत्तप्तानां तापच्छेदे जलघरमाला नव्या। भव्याकारा दिनकरपुत्रीकले केलीलोला हरितनुरव्यात् सा वः / / दे० कि० 5 / 23 // (4) जलोदतगति परि० रजसजसा जलोद्धतगतिः। गण० ज, स, ज, स (6.6) उदा० समीरशिशिरः शिरस्सु वसताम् सतां जवनिका निकामसुखिनाम् / बिभर्ति जनयनयं मुदमपामपायधवला बलाहकततीः / / शि० 4 / 54 // (5) तामरस परि० इह वद तामरसं नजजा यः / गण० न, ज, ज, य (5.7) उदा० स्फुटसुषमामकरन्दमनोज्ञम् बजललनानयनालिनिपीतम् / तव मुखतामरसं मुरशत्रो हृदयतडाग विकाशि ममास्तु / (6) तोटक परि० वद तोटकमब्धिसकारयुतम् / गण. स, स, स, स (4.4.4) उदा० स तति विनेतुरुदारमतेः प्रतिगृह्य वचो विससर्ज मुनिम् / तदलब्धपदं हृदि शोकधने प्रतियातमिवान्तिकमस्य गुरोः // रघु० 8191 / / दे०शि० 671 // (7) ब्रुतविलम्बित परि० द्रुतविलम्बितमाह नभो भरौ। गण. न, भ, भ, र (4.8 या 4.4.4) उदा० मुनिसुताप्रणयस्मृतिरोधिना मम च मुक्तमिदं तमसा मनः / मनसिजेन सखे प्रहरिष्यता घनुषि चूतशरश्च निवेशितः // श०६। दे० रघु० 9, शि० 6 भी। (8) प्रभा परि० स्वरशरविरतिर्ननो रो प्रभा। गण. न, न, र, र (7.5) उवा० अतिसुरभिरभाजि पुष्पश्रिया मतनुतरतयेव संतानकः / तरुणपरभृतः स्वनं रागिणामतनुतरतये वसन्तानकः / शि०६६७ // कि० 5 / 21 भी। (9) प्रमिताक्षरा परि० प्रमिताक्षरा सजससः कथिता / गण. स, ज, स, स (5.7) उदा० विहगाः कदम्बसुरभाविह गाः कलयन्त्यनुक्षणमनेकलयम् / भ्रमयन्नुपति मुहुरभ्रमयम्, पवनश्च घूतनवनीपवनः / / शि०४।३६ // कि० 9, शि०९। (10) भुजंगप्रयात परि० भुजंगप्रयातं चतुभिर्यकारः / गण० य, य, य, य (6. 6) उदा० घननिष्कुलीनाः कुलीना भवन्ति घनरापदं मानवा निस्तरन्ति / धनेभ्य: परो बान्धबो नास्ति लोके घनान्यर्जयध्वं धनान्यर्जयध्वम् / / (11) मणिमाला परि० त्यो त्यो मणिमाला छिन्ना गुहवक्त:। गण० त, य, त, य 16. 6) उदा० प्रह वामरमौलौ रत्नोपलक्लप्ते जातप्रतिबिम्बा शोणा मणिमाला / गोविन्दपदाब्जे राजी नखराणामास्तां मम चित्ते ध्वान्तं शमयन्ती / / (12) मालती ('यमुना' भी कहते हैं) परि० भवति नजावथ मालती जरौ। गण० न, ज, ज,र (5.7) उदा० इह कलयाच्युत केलिकानने मधुरससौरभसारलोलुपः / कुसुमकृतस्मितचारु विभ्रमामलिरपि चुम्बति मालती मुहः // (13) वंशस्थविल (वंशस्थ या वंशस्तनित) परि० वदन्ति वंशस्थविलं जतो जरो। | गण० ज, त, ज, र (5.7) For Private and Personal Use Only Page #1200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदा० तथा समक्षं दहता मनोभवम् | गण. स, ज, स, ज, ग (6.7) पिनाकिना भग्नमनोरथा सती / | उदा० यमुनामतीतमथ शुश्रुवानमुम् निनिन्द रूपं हृदयेन पार्वती तपसस्तनूज इति नाधुनोच्यते / प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता / / कु० 5 / 1 / स यदाऽचलन्निजपुरादहनिशम् दे० रघु० 3 भी। नपतेस्तदादि समचारि वार्तया ॥शि०१३।१। (14) वैश्वदेवी (5) मसमयूरी परि० बाणाश्वैश्छिन्ना वैश्वदेवी ममौ यौ। परि० वेवैरन्ध्रम्तों यसगा मत्तमयूरम् / गण. म, म, य, य ( 5.7) दण. म, त, य, स, ग (4.9) उदा० अर्चामन्येषां त्वं विहायामराणा उदा० दृष्ट्वा दृश्यान्याचरणीयानि विधाय मद्वैतेनैक विष्णुमभ्यर्च्य भक्त्या। प्रेक्षाकारी याति पदं मुक्तमपायः / तत्राशेषात्मन्यचिते भाविनी ते सम्यग्दृष्टिस्तस्य परं पश्यति यस्त्वाम भ्रात: संपन्नाराधना वैश्वदेवी॥ यश्चोपास्ते साधु विधेयं स विधत्ते / कि. 18 (15) स्रग्विणी 28, शि०४१४४, 676, रघु० 9/75 / परि० कीर्तितषा चतुरेफिका स्रग्विणी / (6) चिरा (प्रभावती) गण० र, र, र, र (6. 6) परि० जभी सजी गिति रुचिरा चतुर्ग्रहः / उदा. इन्द्रनीलोपलेनेव या निर्मिता गण. ज, भ, स, ज, ग (4.9) शातकुम्भद्रवालङ्कृता शोभते। उदा. कदा मुखं वरतनु कारणादृते नव्यमेघच्छवि: पीतवासा हरे तवागतं क्षणमपि कोपपात्रताम् / मतिरास्तां जयायोरसि स्रग्विणी / / अपर्वणि ग्रहकलुषेन्दुमण्डला तेरह वर्णो के चरण वाले वृत्त विभावरी कथय कथं भविष्यति / / मालवि० 4 / 13 / दे० भट्टि० 111, शि० 17 / (अतिजगती) (1) कलहंस (सिंहनाद या कुटजा) चौदह वर्णों के चरण वाले वृत्त परि० सजसाः सगौ च कथितः कलहंसः / (शक्वरी) गण. स, ज, स, स, ग (7.6) (1) अपराजिता उदा० यमुना विहारकुतुके कलहंसो परि० ननरसलघुगैः स्वरैरपराजिता। व्रजकामिनीकमलिनीकृतकेलि / गण० न, न, र, स, ल, ग (7. 7.) जनचित्तहारिकलकण्ठनिनादः / उदा० यदनवधि भुजप्रतापकृतास्पदा प्रमदं तनोतु तव नन्दतनूजः // दे०शि० 6173 / यदुनिचयचमः पररपराजिता / (2) क्षमा (चन्द्रिका और उत्पलिनी) व्यजयत समरेसमस्तरिपुव्रजम् परि० तुरगरसयतिनौं ततो गः क्षमा / स जयति जगतां गतिर्गरुडध्वजः // गण. न, न, त, त, ग (7.6) (2) असंबाधा उदा० इह दुरधिगमः किचिदेवागमः परि० म्तो सौ गावक्षग्रहविरतिरसंबाधा। सततमसुतरं वर्णयन्त्यन्तरम। गण. म, त, न, स, ग, ग (5.9) अममतिविपिनं वेद दिग्व्यापिनम् उदा. वीर्याग्नौ येन ज्वलति रणवशात् क्षिप्रे पुरुषमिव परं पपयोनिः परम् ॥कि०५।१८। दैत्येन्द्र जाता घरणिरियमसंबाधा। (3) प्रहषिणी धर्मस्थित्यर्थं प्रकटिततनुसम्बन्धः परि० श्याशाभिर्मनजरगाः प्रहर्षिणीयम् / साधूनां बाधां प्रशमयतु स कंसारिः / / गण. म, न, ज, र, ग (3. 10) (3) पथ्या (मंजरी) उदा० ते रेखाध्वजकुलिशातपत्रचिह्न परि० सजसा यलो च सह गेन पथ्या मता। सम्राजश्चरणयुगं प्रसादलभ्यम् / गण. स, ज, स, य, ल, ग (5.9) प्रस्थानप्रणतिभिरङ्गुलीषु चक्र उदा० स्थगयन्त्यम्: शमितचातकार्तस्वरा मॉलिस्रक्च्युतमकरन्दरेणुगौरम् // जलदास्तडित्तुलितकान्तकार्तस्वराः / रघु० 4188, दे० कि०७, शि०८। जगतीरिह स्फुरितचारु चामीकराः (4) मंजुभाषिणी (सुनन्दिनी, और प्रबोधिता) सवितुः क्वचित् कपिशयन्ति चामीकराः / / परि० सजसा जगौ च यदि मंजुभाषिणी / शि०४।२४ 0 त्र्याशामिर, ग (3. चिह्न For Private and Personal Use Only Page #1201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1192 ) (4) प्रमवा (कुररीरुता) राधिका वितयं माधवाद्य मासि माषवे परि० नजभजला गुरुश्च भवति प्रमदा। मोहमेति निर्भरं त्वया विना कलानिधे / / गण. न, ज, भ, ज, ल, ग (6.8) (2) मालिनी उदा० अनतिचिरोज्मितस्य जलदेन चिर परि० ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकः / स्थितबहुबुवुदस्य पयसोऽनुकृतिम् / गण. न, न, म, य, य (8.7) बिरलविकीर्णवजशकला सकला. उदा० शशिनमुपगतेयं कौमुदी मेघमुक्तम् मिह विदधाति धौतकलधौतमही। शि० 4 / 41 / जलनिधिमनरूपं जहनकन्यावतीर्णा / (5) प्रहरणकलिका इति समगुणयोगप्रीतयस्तत्र पौराः परि० सनभनलगिति प्रहरणकलिका। श्रवणकटु नृपाणामेकवाक्यं विवछः / / रघु० 6 / 85 / गण. न, न, भ, न, ल, ग (7.7) (3) लोलाखेल उदा. व्यथयति कुसुमप्रहरणकलिका परि० एकन्यूनौ विद्युन्मालापादो चेल्लीलाखेलः / प्रमदवनभवा तव धनुषि तता। गण. म, म, म, म, म विरहविपदि मे शरणमिह ततो उदा० मा कान्ते पक्षस्यान्ते पर्याकाशे देशे स्वाप्सी: मधुमथनगुणस्मरणमविरतम् / / कान्तं वक्त्रं वृत्तं पूर्ण चन्द्रं मत्वा रात्री चेत् / (6) मध्यक्षामा (हंसश्यनी या कुटिल) क्षुत्क्षामः प्राटश्चेतश्चेतो राहुः क्रूरः प्राद्यात् परि० मध्यक्षामायुगदशविरमा म्भौ न्यो गौ। तस्माद्ध्वान्ते हर्म्यस्यान्ते शय्यकांते कर्तव्या / / गण. म, भ, न, य, ग, ग (4.10) सरस्वती वा० नीतोच्छायं महरशिशिररश्मेरुन (4) शशिकला रानीलाभैविरचितपरभागा रत्नैः / परि० गुरुनिघनमनलघुरिह शशिकला। ज्योत्स्नाशङ्कामिह वितरति हंसश्येनी गण० न, न, न, न, स (अन्तिम को छोड़ कर सब लघु) मध्येऽप्यतः स्फटिकरजतभित्तिच्छाया / / उवा० मलयजतिलकसमदितशशिकला कि० 5 / 31 / वजय वतिलसदलिक गगनगता / (7) वसन्ततिलका सरसिजनयनहृदयसलिलनिधि (वसन्ततिलक, उद्धर्षिणी या सिंहोनता) व्यतनुत विततरभसपरितरलम् / / परि० उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगी गः / सोलह वर्णों के चरण वाले वृत्त गण. त, भ, ज, ज, ग, ग (8.6) उदा० यात्येकतोऽस्तशिखरं पतिरोषधीना (अष्टि) माविष्कृतारुणपुरःसर एकतोऽर्कः / (1) चित्र तेजोद्वयस्य युगपद व्यसनोदयाभ्यां परि० चित्रसंज्ञमीरितं रजौ रजो रगौ च वृत्तम् / लोको नियम्यत इवात्मदशान्तरेषु // श० 411 / गण० र, ज, र, ज, र, ग (8.8 या 4.4.4.4) (8) वासन्ती उदा० विद्रुमारुणाघरोष्ठशोभिवेणुवाद्यहृष्टपरि० मात्तो नो मो गौ यदि गदिता वासन्तीयम् / वल्लबीजनाङ्गसंगजातमुग्धकण्टकाङ्ग। गण. म, त, न, म, ग, ग (4.6.4) त्वां सदैव वासुदेव पुण्यलभ्यपाद देव उदा. भ्राम्यद्भुङ्गी निर्भरमघुरालापोद्गीतैः वन्यपुष्पचित्रकेश संस्मरामि गोपवेश / / श्रीखण्डारद्भुतपवनैर्मन्दान्दोला / 2) पञ्चचामर लीलालोला पल्लवविलसद्धस्तोल्लासः परि० प्रमाणिका पदद्वयं वदन्ति पंचचामरम् / कंसाराती नृत्यति सदृशी वासन्तीयम् // (जरी जरी ततो जगौ च पंचचामरं वदेत्' पन्द्रह वर्णों के चरण वाले वृत्त गण० ज, र, ज, र, ज, ग (8.8 या 4.4.4.4) उवा० सुरद्रुमलमण्डपे विचित्ररत्ननिर्मिते (अतिशयरी) लसद्वितानभूषिते सलीलविभ्रमालसम् / (1) तूणक सुरांगनाभवल्लबीकरप्रपंचचामरपरि तूणकं समानिका पदद्वयं विनान्तिमम् / स्फुरत्समीरवीजितं सदाच्य तं भजामि तम् // गण. र, ज, र, ज, र (4.4.4.3 या 7.8) (3) वाणिनी मा० सा सुवर्णकेतकं विकाशि भृङ्गपूरितम् परि० नजभजरयंदा भवति वाणिनी गयुक्तः / पञ्चवाणवाणजालपूर्णहेतितूणकम् / गण. न, ज, भ,,,म। For Private and Personal Use Only Page #1202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1193 ) उदा. स्फुरतु ममाननेऽध ननु वाणि नीतिरम्यम् बीडमसंमुखोऽपि रमणैरपहृतवसनाः तव चरणप्रसादपरिपाकतः कवित्वम् / काञ्चनकन्दरासु तरुणोरिह नयति रविः / / भवजलराशिपारकरणक्षम मुकुन्दम् शि०४१६७। सततमहं स्तवैः स्वरचितः स्तवानि नित्यम् / / (6) शिखरिणी सत्रह वर्षों के चरण वाले वृत्त परि० रस रुद्रश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी। (अत्यष्टि) गण. य, म, न, स, भ, ल, ग (6. 11) उदा० दिगन्ते श्रूयन्ते मदमलिनगण्डाः करटिनः (1) चित्रलेखा (अतिशायिनी) करिण्यः कारुण्यास्पदमसमशीलाः खलु मृगाः / परि० ससजा भजगा गु दिकस्वरर्भवति चित्रलेखा। इदानीं लोकेऽस्मिन्ननुपमशिखानां पुनरयम् गण० स, स, ज, भ, ज, ग, ग (10. 7) नखानां पाण्डित्यं प्रकटयत् कस्मिन् मगपतिः / / उदा० इति धौतपुरंधिमत्सरान सरसि मज्जनेन भामि० 12 / श्रियमाप्तवतोऽतिशायिनीमपमलांगभासः / (7) हरिणी अवलोक्य तदेव यादवानपरवारिराशेः शिशिरेतररोचिषाप्यपां ततिषु मक्तुमीषे // परि० नसमरसलागः षड़वेबहयहरिणी मता। गण० न, स, म, र, स, ल, ग (6. 4.7) शि० 8171 / / उदा० सुतनु हृदयात्प्रत्यादेशव्यलीकमपंतु ते (2) मर्दटक (कोकिलक) किमपि मनसः संमोहो मे तदा बलवानभूत् / परि० यदि भवतो नजी भजजला गुरु नर्दटकम् / प्रबलतमसामेवंप्रायाः शुभेष हि वृत्तयः गण० न, ज, भ, ज, ज, ल, ग (8.9) सजमपि शिरस्यन्धः क्षिप्ता धुनोत्यहिशङ्कया // उदा० तरुणतमालनीलबहुलोरमदम्बुषराः / 7 / 24 // शिशिरसमीरणावधूतनतनवारिकणाः / अठारह वर्णो के चरण वाले वृत्त कथमवलोकयेयमघुना हरिहेतिमतीमंदकलनीलकंठकलहमुखराः ककुभः / / (ति) मा० 9 / 18; दे०५।३१।। (1) कुसुमितलताबेल्लिता परि० स्वाद्भूतत्वंश्वः कुसुमितलतावेल्लिता म्तो नयौ यौ। (3) पृथ्वी गण. म, त, न, य, य, य (5.6.7.) परि० जसी जसयका वसुप्रयतिश्च पृथ्वी गुरुः / उदा० क्रीडत्कालिन्दीललितलहरीवारिभिर्दाक्षिणात्यः गण० ज, स, ज, स, य, ल, ग (8. 9.) वातः खेलद्रिः कुसुमितलतावेल्लिता मन्दमन्दम् / उबातः स्वपिति केशवः कुलमितस्तवीयविषा भङ्गालीगीत: किसलयकरोल्लासितास्यलक्ष्मीम मितश्च परणार्थिनः शिखरिणां गणाः शेरते / तन्वाना चेतो रभसतरलं चक्रपाणेश्चकार / / इतोऽपि वडवानलः सह समस्तसंवर्तक (2) चित्रलेखा रहो विततमूजितं भरसहं च सिन्धोर्वपुः / / | परि० मन्दाक्रान्ता नपरलघुयता कीर्तिता चित्रलेखा। भर्तृ० 2176 / गण. म, भ, न, य, य, य(4. 7. 7.) (4) मन्दाक्रान्ता उदा० शऽमुष्मिन जगति मुगदशां साररूपं यदासीपरि० मन्दाक्रान्साम्बुधिरसनगर्मो भनौ तो गयुग्मम् / दाकृष्येदं ब्रजयुवति सभा बेघसा सा व्यधायि / गण. म, भ, न, त, त, ग, ग (4. 6.7) नेतादचेत् कथमुदघिसुतामन्तरेणाच्युतस्य उपा० गोपी भर्तुविरहविधरा काचिदिन्दीवराक्षी प्रीतं तस्या नयनयुगमभूचित्रलेखाद्भुतायाम् / उन्मत्तेव स्खलितकबरी निःश्वसन्ती विशाळम / (3) नन्दन अत्रैवास्ते मुररिपुरिति भ्रान्तिदूतीसहाया | परि० मजभजरैस्तु रेफसहितः शिवहयनन्दनम् / त्यक्त्वा गेहं सटिति यमुनामञ्जुकुज जगाम / / गण० न, ज, भ, ज, र, र (11.7.) पदांक०१॥ उदा० तरणिसुतातरङ्गपवनैः सलीलमान्दोलितम [समस्त मेघदूत इसी वृत्त में लिखा गया है ] मधुरिपुपादपंकजरजः सुपूतपृथ्वीतलम् / (5) वंशपत्रपतित मुरहरचित्रचेष्टितकलाकलापसंस्मारकम्, परि० दिमनिवंशपत्रपतितं भरनभनलगः / क्षितितलनन्दनं ब्रज सखे सुखाय दम्दावनम् / / गण. भ, र, न, भ, न, ल, ग (10. 7) (4) माराम / उदा. दर्पणनिर्मलासु पतिते घनतिमिरमषि परि० इह मनरचतुष्कसष्टं तु नाराघमाचक्षते / ज्योतिषि रोप्यमित्तिषु पुरः प्रतिफलति मुहुः। 'गण. न, न, र र, र, र, (8. 5. 5,) 150 For Private and Personal Use Only Page #1203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1994 ) उदा. रघुपतिरपि जातवेदो विशुद्धां प्रगृह्य प्रियाम् गोविन्दो बल्लवीनामघररससुधां प्राप्य सुरसाम् प्रियसुहृदि बिभीषणे संगमय्य श्रियं वैरिणः / शङ्के पीयूषपानः प्रचुरकृतसुखं व्यस्मरबसी / / रविसुतसहितेन तेनानुयातः ससौमित्रिणा बीस वर्णों के चरण वाले वृत्त भजविजितविमानरत्नाधिरूढः प्रतस्थे पुरीम् // (कृति) रघु० 12 / 104 / (1) गीतिका (5) शार्दूलललित परि० सजजा भरी सलगा यदा कथिता तदा खल गीतिका। परि० मः सो जः सतसा दिनेश ऋतुभिः शार्दूलललितम्। | गण० स, ज, ज, भ, र, स, ल, ग (5.7.8) गण. म, स, ज, स, त, स, (12. 6.) उदा० करतालचञ्चलकणस्वनमिश्रणेन मनोरमा ग्वा० कृत्वाकसमगे पराक्रमविधि शार्दूलललितम् रमणीयवेणुनिनादरङ्गिमसंगमेन सुखावहा / यश्चक्रे क्षितिभारकारिषु दरं चैद्यप्रभृतिषु / बहलानुरागनिवासराससमुद्भवा भवरागिणम् संतोष परमं तु देवनिवहे त्रैलोक्यशरणम्, विदधौ हरि खलु वल्लवीजनचार चामरगीतिका / / श्रेयो नः स तनोत्वपारमहिमा लक्ष्मीप्रियतमः / / (2) सुवदना उनीस वर्णो के चरण वाले वृत्त परि० शेया सप्ताश्वषभिमरभनययुता म्लो गः सुवदना। गण. म, र, भ, न, य, भ, ल, ग (7.7.6) (अतिति) उदा० उत्तुङ्गास्तुङ्गकलं तमदसलिलाः प्रस्यन्दिसलिलम (1) मेघविस्फूजिता श्यामा श्यामोपकण्ठद्रुममतिमुखरा: कल्लोलमुखरम् / परि० रसत्वश्वयं मोन्सो ररगुरुयुतौ मेषविस्फजिता स्यात् / स्रोतः खातावसीदत्तटमुरुदशनैरुत्सादिततटा: गण. य, म, न, स, र, र, ग (6. 6.7.) शोणं सिन्दूरशोणा मम गजपतय: पास्यन्ति शतशः / / रा. कदम्बामोदाढपा विपिनपवनः केकिनः कान्तकेका मुद्रा०४॥१६॥ विनिद्राः कन्दल्यो दिशि दिशि मुदा दर्दुरा दृप्तनादाः / इक्कीस वर्णों के चरण वाले वृत्त / निशा नृत्यद्विद्युद्विलसितलसम्मेघविस्फूजिता चेत् (प्रकृति) प्रियः स्वाधीनोऽसौ दनुजदलनो (1) पञ्चकावली (सरसी, धृतश्री) राज्यमस्मात् किमन्यत् // | परि० नजभनंजा जरी नरपते कथिता भूवि पञ्चकावली। (2) शार्दूल विक्रोधित गण. न, ज, भ, ज, ज, ज, र (7.7.7) परि० सूर्याश्वर्यदि मः सजो सततगा: शार्दूलविक्रीडितम् / उदा. तुरगशताकुलस्य परितः परमेकतुरङ्गजन्मनः गण. म, स, ज, स, त, त, ग (12.7.) प्रमथितभूभतः प्रतिपथं मथितस्य भशं महीभृता / उरा. वेदान्तेषु यमाहरेकपुरुषं व्याप्य स्थितं रोदसी परिचलतो बलानुजबलस्य पुरः सततं घृतश्रिययस्मिनीश्वर इत्यनन्यविषयः शब्दो यथार्थाक्षरः / श्चिरगलितश्रियो जलनिघेश्च तदाऽभवदन्तरं महत् / / अन्तर्यश्च ममुक्षुभिनियमितप्राणादिभिर्मग्यते शि० 3182 // स स्थाणुः स्थिरभक्तियोगसुलभो निःश्रेयसायास्तु वः / / (2) स्रग्धरा - वि० 11 // | परि० अम्नर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा (3) सुमधुरा ___कीर्तितेयम् / परि० सौम्भौ मो नो गुरुश्चेद् हय ऋतुरसैरुक्ता सुमधुरा॥ | गण. म, र, भ, न, य, य, य (7.7.7) गण. म, र, भ, न, म, न, ग (7. 6. 6.) उदा. या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं उदा. वेदार्थान प्राकृतस्त्वं वदसि न च ते जिह्वा निपतिता या हविर्या च हलो मध्याह्न वीक्षसेऽर्क न तव सहसा दृष्टिविचलिता। ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा दीप्ताग्नी पाणिमन्तः क्षिपसि स च ते या स्थिता व्याप्य विश्वम् / दग्धो भवति नो यामाहः सर्वभूतप्रकृतिरिति यया प्राणिन: प्राणवन्तः चारित्र्याच्चारुदतं चलयसि न ते देहं हरति भः॥ प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः // मच्छ० 9 / 21 / श०१।१। (4) सुरसा बाईस वर्णों के चरण वाले वृत्त परि० नो नो यो नो गुरुश्चेत् स्वरमुनिकरणराह सुरसाम्। (आकृति) गण. म, र, भ, न, य, न, ग (7. 7. 5.) उपा० कामकीडासतुष्णो मघुसमयसमारम्भरमसात् परि० मौ गौ नाश्चत्वारो गो गो कालिन्दीकूलकुंजे विहरणकुतुकाकुष्टहृदयः / वसुभुवनयतिरिति भवति हंसी। हंसी For Private and Personal Use Only Page #1204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , भुजंगावात मान्यमहिमा / परि० वस्वी / 1195 ) गण. म,म, त,न, न, न, त,ग उदा. क्रौञ्चपदालीचित्रिततीरा या (म, म, त, न, न, न, स, ग) (8.14) मदकलखगकुलकलकल रुचिरा उदा० साधं कान्तेनैकान्तेऽसौ विकचकमलमधु सुरभि पिबन्ती फुल्लसरोजश्रेणिविलासा कामक्रीडाकृतस्फीतप्रमदसरसतरमलघु रसन्ती।। _ मधुमुदितमधुपरदरभसकरी। कालिन्दीये पधारण्ये पवनपतनपरितरलपरागे / फेनविलासप्रोज्ज्वलहासा कंसाराते पश्य स्वेच्छं सरभसगतिरिह विलसति हंसी॥ ललितलहरिभरपुलकितसुतनुः तेइस वर्णों के चरण वाले वृत्त पश्य हरेऽसौ कस्य न चेतो हरति तरलगतिरहिमकिरणजा / / (विकृति) अद्वितनया छब्बीस वर्गों के चरण वाले वृत्त परि० नजभजभाजभौ लघुगरू बधस्तू गदितेयमद्रितनया। (उत्कृति) गण. न, ज, भ, ज, भ, ज, भ, ल, ग (11.12) उदा० खातरशौर्यपावकशिखापतङ्गनिभमग्नदृप्तदनुजो परि० वस्वीशाश्वश्छेदोपेतं ममतननयुगरसलगर्भुजङ्ग जलधिसुताविलासवसतिः सतां गतिरशेषमान्यमहिमा। विजृम्भितम् / भुवनहितावतारचतुरश्चराचरधरोऽवतीर्ण इह हि गण० म, म, त, न, न, न, र, स, ल, ग (8, 11.7) क्षितिवलयेऽस्ति कंसशमनस्तवेति तमवोचदद्रितनया / / उदा० हेलोदञ्चन्यञ्चत्पादप्रकटविकटचौबीस वर्गों के चरण वाले वृत्त नटनभरो रणकरतालक(संकृति) श्चारुप्रेन्चूडाबर्हः श्रुतितरलनव किसलयस्तरङ्गितहारधृक् / परि० भूतमुनीनर्यतिरिह भतनाः त्रस्यन्नागस्त्रीभिर्भक्त्या मुकुस्भो भनयाश्च यदि भवति तन्वी। लितकरकमलयुगं कृतस्तुतिरच्युतः गण. म, त, न, स, भ, भ, न, य (5.7.12) पायाद्वश्छिन्दन् कालिन्दीलदकृतउदा. माधव मुग्धर्मधुकरविरुतः निजवसतिबृहद्भुजङ्गविजृम्भितम् // कोकिलकूजितमलयसमीरः कम्पमुपेता मलयजसलिल: जिन वृत्तों के प्रत्येक चरण में सताईस या प्लावनतोऽप्यविगततनुदाहा। इससे अधिक वर्ण होते हैं उनका एक सामान्य नाम पापलाशविरचितशयना दंडक है। इस वृत्त की जाति के चरण में वर्णों देहजसंज्वरभरपरिदून की संख्या अधिक से अधिक 999 बताई जाती निश्वसती सा मुहुरतिपरुष है। प्रत्येक चरण में सबसे पहले दो नगण या "ध्यानलये तव निवसति तन्वी॥ छः लघु अक्षर होते हैं, शेष या तो रगण होते पच्चीस वर्षों के चरण वाले वृत्त है या यगण या सभी चरण सगण होते हैं। दणक (अतिकृति) की जिन श्रेणियों का बहुधा उल्लेख मिलता है क्रौञ्चपदा वे हैं---चण्डवृष्टिप्रयात, प्रचितक, मत्तमातंगपरि० कौञ्चपदा म्मो स्भो ननना लीलाकर, सिंहविक्रान्त, कुसुमस्तवक, अनङ्गशेखर, गाविषुशरवसुभुनिविरतिरिह भवेत् / / और संग्राम आदि / अन्तिम प्रकार के दण्डक का गण. भ, म, स, भ, न, न, न, न, ग (5.5.8.7) उदाहरण मा० 5 / 23 है। तन्वी भनुभाग (6) अर्घसमवृत्त गण. न, न, र, ल, ग (विषम चरण) (1) अपरवक्त्र ('वैतालीय' भी कभी कभी) न, ज, ज, र, (सम चरण) परि० अयुजि ननरला गुरुः समे उदा० स्फुटसुमधुरवेणुगीतिभितबपरवात्रमिदं मजो जरो। स्तमपरवक्त्रमवेत्य माधवम् / For Private and Personal Use Only Page #1205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1196 ) मृगयुवतिगणः समं स्थिता वृणते हि विमृश्यकारिणम् ब्रजवनिता धृतचित्तविभ्रमाः॥ गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः / कि० 2 / 30 / (2) उपचित्र परि० विषमे यदि सोसलगा दले (5) वेगवती भी युजिभाद् गुरुकावुपचित्रम् / परि० सयुगात सगुरू विषमे चेद गण. स, स, स, ल, ग (विषम चरण) माविह वेगवती युजि भाद्गौ। भ, भ, भ, ग, ग (सम चरण) गण. स, स, स, ग (विषम चरण) उवा० मुरवरिवपुस्तनुतां मुई भ, भ, भ, ग, ग (सम चरण) हेमनिभांशुकचन्दनलिप्तम् / उदा० स्मरवेगवती ब्रजरामा गगनं चपलामिलितं यथा केशववंशरवैरतिमुग्धा। शारदनीरघरैरुपचित्रम् // रभसान्न गुरून गणयन्ती (3) पुष्पिताग्रा (औपच्छन्दसिक) केलिनिकुञ्जगृहाय जगाम / / परि० अयुजि नगरेफतो यकारो (6) हरिणप्लुता युजितु नजो जरगाश्च पुष्पित्तापा। परि० सयुगात्सलघू विषमे गुरुगण. न, न, र, य (विषम चरण) युजि नभी भरको हरिणप्लुता / न, ज, ज, र, ग (सम चरण) गण. स, स, स, ल, ग (विषम चरण) उदा० अथ मदनवधूरुपप्लवान्तं न, भ, भ, र (सम चरण) व्यसनकृशा परिपालयांबभूव / शशिन इव दिवातनस्य लेखा उदा० स्फुटफेनचया हरिणप्लुता किरणपरिक्षयधुसरा प्रदोषम् // कु० 4 / 46 / बलिमनोज्ञतटा तरणेः सुता। (4) वियोगिनी (वंतालीय या सुन्दरी) सकलहंसकूलारव शालिनी परि० विषमे ससजा गुरुः समे विहरतो हरति स्म हरेमनः // सभरा लोऽथ गुरु वियोगिनी / विशे० अपरवक्त्र या औपच्छन्दसिक और वैतालीय या गण. स, स, ज, ग (विषम चरण) वियोगिनी प्रायः जाति समझे जाते हैं (दे० अनुस, भ, र, ल, ग (सम चरण) भाग घ)। परन्तु कभी कभी गणयोजना में उनकी उदा. सहसा विदधीत न क्रिया परिभाषा दी जाती है, इसी लिए वे यहां कुत्तों के मविवेकः परमापदां पदम् / अन्तर्गत दे दिये गये हैं। अनुभाग (ग) विषमवृत्त (असमवृत्त) क्लान्तिरहितमभिराधयितुम इस श्रेणी के अन्तर्गत उद्गता अत्यंत विधिवत्तपांसि विदधे धनंजयः / / कि० 12 / 1 / सामान्य वृत्त कहलाता है। दे०शि० 15 भी। परि० प्रथमे सजी यदि सलोन उगता का एक और भेद बताया जाता नसजगुरुकाण्यनन्तरम् / है जिसके तृतीय चरण में भ, न, ज, ल, ग के यद्यथ भनजलगाः स्युरयो स्थान में भ, न, भ, ग होते हैं। वृत्तों के सजसा जगी च भवतीयमुद्गता // अन्य भेद जिनमें प्रत्येक चरणों के वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है, 'गाथा' के सामान्यशीर्षक के गण. स, ज, स, ल (प्रथम चरण) अन्तर्गत बतलाये है। चार से भिन्न चरणों की न, स, ज, ग (द्वितीय चरण) संख्या वाले वृत्तों के लिए भी यही नाम म्यवात भ, न, ज, ल, ग (तृतीय चरण) होता है। जहाँ तक "उपजाति' का संबंध है ये स, ज, स, ज, ग (चतुर्थ परण) किसी भी नियमित वृत्त के दो या दो से अधिक उपा० अथ वासवस्य वचनेन चरणों को मिला कर अर्धसमवृत्त या विषमवृत्त रुचिरवदनस्त्रिलोचनम् / बना लिए जाते है। - - For Private and Personal Use Only Page #1206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1197 ) अनुभाग (घ) जाति इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में बारह (यह छन्द मात्राओं की संख्या से विनियमित मात्राएँ होती हैं, द्वितीय चरण में पन्द्रह तथा चतुर्थ किये जाते है)। चरण में अठारह मात्राएँ होती है। (अ) इस प्रकार के वृत्तों की अत्यन्त सामान्य प्रकार उदा. नारायणस्य सन्ततमृद्गीतिः संस्मृतिर्भक्त्या / 'आर्या' है। इसके नौ अवान्तर भेद बताये अर्चायामासक्तिर्दुस्तरसंसारसागरे तरणिः / / जाते हैं: -- (5) आर्यागीति पथ्या विपुला चपला मुखचपला जघनचपला च / / परि० आय प्राग्दलमन्तेऽधिकगरु तादक परार्धमार्यागीतिः। गीत्युपगीत्युद्गीतय आर्यागीतिर्नवैव वार्यायाः / / इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में बारह इन नो भेदों में से अन्तिम चार प्रकार ही मात्राएँ और द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में बीस प्रायः प्रयुक्त होते हैं, इसीलिए इनका उल्लेख मात्राएं होती है। किया जाता है। उदा० सवधूकाः सुखिनोऽस्मिन्नवरतममन्दरागतामरसदृशः। (1) आर्या नासेवन्ते रसवन्नवरतममन्दरागतामरसदृशः / / परि० यस्याः पादे प्रथम द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि।। शि० 4151 / अष्टादश द्वितीये चतुर्थ के पञ्चदश सार्या / / 04 / नोट-यह पांचों भेद कभी कभी गणयोजना में भी परि इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में बारह भाषित किये जाते हैं। मात्रायें होती हैं (ह्रस्व स्वर की एक मात्रा तथा (आ) वैतालीय दीर्घ की दो मात्रायें गिनी जाती है। दूसरे परि० षड़विषमेऽष्टौ समे कलास्ताश्च समे स्युनों चरण में अठारह तथा चौथे चरण में पन्द्रह मात्राएँ निरन्तराः / होती है। न समाऽत्र पराश्रिता कला वैतालीयेऽन्ते / उदा० प्रतिपक्षेणापि पति सेवन्ते भर्तृवत्सला: साध्व्यः / रलो गुरुः / / अन्यसरितां शतानि दि समद्रगाः प्रापयन्त्यग्धिम् / / यह चार चरण का श्लोक है। इसके प्रथम मालवि० 5 / 19 / तथा तृतीय चरण में चौदह लघु मात्राओं का गोवर्धन की समस्त 'आर्यासप्तशती इसी समय लगता है, और द्वितीय तथा तृतीय छन्द में लिखी गई है। चरण में सोलह मात्राओं का। पुनः प्रथम तथा (2) गीति तृतीय चरण में छः मात्राएँ होनी चाहिए। द्वितीय परि० आर्यापूर्वाधसमं द्वितीयमपि भवति यत्र हंसगते / तथा चतुर्थ चरण में आठ मात्राएँ और उसके छन्दोविदस्तदानीं गीति ताममृतवाणि भाषन्ते / / पश्चात् रगण (55) तथा लघु गुरु (15) होने इसके प्रथम तथा तृतीय चरण में बारह चाहिए। आगे नियम इस बात की अपेक्षा करते मात्रायें, और दूसरे तथा चौथे चरण में अठारह है कि सम चरणों में सभी मात्राएँ ह्रस्व या दीर्घ मात्राएँ होती है। नहीं होनी चाहिएँ, इसके अतिरिक्त प्रत्येक सम उदा. पाटीर तव पटीयान् कः परिपाटीमिमामुरीकर्तुम् / चरण की (अर्थात् द्वितीय, चतुर्थ तथा छठा चरण) यत्पिषतामपि नृणां पिष्टोऽपि तनोषि परिमल: मात्राएँ अगले चरणों (अर्थात् तृतीय, पंचम और पुष्टिम् // भामि० // 12 // सप्तम) से संयुक्त नहीं होनी चाहिए। उदा० कुशलं खलु तुभ्यमेव तद् परि० आर्योत्तरार्घतल्यं प्रथमार्षमपि प्रयक्तं चेत् / __ वचनं कृष्ण यदभ्यषामहम् / कामिनि तामुपगीति प्रतिभाषन्ते महाकवयः // उपदेशपराः परेष्वपि स्वविनाशाभिमुखेषु साधवः॥ शि०१६॥४१॥ इस छन्द के प्रथम तथा तृतीय चरण में (1) औपच्छन्दसिक बारह मात्राएँ, और द्वितीय तथा चतुर्ष चरण में परि० पर्यन्ते यो तथैव शेषमोपच्छन्दतिकं सुधीभिरुक्तम् / पन्द्रह मात्राएँ होती हैं। यह वैतालीय के समान ही है। इसमें प्रत्येक उदा० नवगोपसुन्दरीणां रासोल्लासे मुरारातिम् / परण के अन्त में रगण और ल, ग के स्थान में अस्मारयनुपगीतिः स्वर्गकुरङ्गीदृशां गीतेः / / रगण और यगण होने चाहिएँ। दूसरे शब्दों में (4) उगीति यह वैतालीय ही है, इसमें केवल प्रत्येक चरण के परि० आयसिकलखितये विपरीसे पुनरिहोद्गीतिः। मन्त में गुरु जोड़ा हुभा है। (3) उपगीत प्रयुक्तं चेत् कवयः // . For Private and Personal Use Only Page #1207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1198 ) उदा. वपुषा परमेण भूधराणामथ संभाव्यपराक्रम विभेदे।। हरण के रूप में, यदि नवा तथा बारहवा वर्ण लघु मृगमाशु विलोकयांचकार स्थिरदंष्ट्रोग्रमुखं है, और पन्द्रहवां तथा सोलहवां दीर्घ है, शेष वर्ण महेन्द्रसूनुः / / ऐच्छिक है, तो वह वृत्त वानवासिका कहलाता कि० 13 / 1 / है। यदि पाँचवाँ, आठवाँ तथा नवा ह्रस्व हैं, इसी प्रकार इसी सर्ग के अगले बावन श्लोकों और पन्द्रहवां तथा सोलहवाँ दीर्घ हैं तो वह वृत्त में। दे०शि० 20 भी। चित्रा कहलाता है। यदि पाँचवाँ और आठवाँ यह बात ध्यान में रखने की है कि वियोगिनी वर्ण ह्रस्व है, नवां, दसवाँ, पन्द्रहवाँ और सोलहवाँ या सुंदरी तथा अपरववत्र, वैतालीय की ही विशेष- दीर्घ है तो वह उपचित्रा कहलाता है। यदि ताएँ है, और पुष्पिताया तथा मालभारिणी, औप- पांचवां, आठवां और बारहवाँ ह्रस्व है, पन्द्रहवा च्छन्दसिक की। छन्दःशास्त्री वृत्तों की इन दोनों तथा सोलहवाँ दीर्घ है, तथा शष अनिश्चित है, तो श्रेणियों का प्रतिपादन गणयोजना तथा मात्रा वह विश्लोक कहलाता है। कभी कभी एक ही योजना दोनों स्थानों पर करते हैं। इसीलिए यह श्लोक में इन वृत्तों के दो या दो से अधिक भेद यहाँ भी दर्शाये गये हैं और अनुभाग (ग) में भी / मिला दिये जाते हैं, उस अवस्था में हम उसे पावा(ई) मात्रासमक कुलक वृत्त कहते हैं, उसमें कोई विशेष प्रतिबंध मात्रासमक वृत्त में चार चरण होते हैं, और भी नहीं रहता है, केवल प्रत्येक चरण में सोलह प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ। इसके अत्यन्त मात्राओं का होना आवश्यक है। सामान्य प्रकार में नवां वर्ण लघु और अन्तिम वर्ण | उदा० मूढ जहीहि धनागमतृष्णां दीर्घ होता है। इसकी परिभाषा की है:--मात्रा कुरु तनुबुद्धे मनसि वितृष्णाम् / / समकं नवमोल्गान्त्यः / यल्लभसे निजकर्मोपात्तं परन्तु मात्राओं के ह्रस्व या दीर्घ होने के वित्तं तेन विनोदय चित्तम् // कारण इस वृत्त के अनेक भेद हो जाते हैं। उदा- | मोह०१ For Private and Personal Use Only Page #1208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट 2 संस्कृत के प्रसिद्ध लेखकों का काल आदि आर्यभद्र--एक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद, जन्मकाल 476 ई०। बात का अभी पूरी तरह निर्णय नहीं हो पाया है। उजुट-अलंकारशास्त्र का एक प्राचीन लेखक। यह प्रचलित परंपरा के अनुसार वह विक्रम संवत् का जो काश्मीर के राजा जयापीड की राज्यसभा का मुख्य ईसा से 56 वर्ष पूर्व आरम्भ हआ, प्रवर्तक था। पंडित था। इसका काल 771 से 813 ई. तक है। यदि इस विचार को सही समझा जाय तो कालिदास करयट-पतंजलिकृत महाभाष्य पर भाष्यप्रदीप नामक निश्चय ही ईसा से पूर्व पहली शताब्दी में हुआ होगा। टीका का रचयिता। डाक्टर बुलर के मतानुसार परन्तु कुछ विद्वान् अभी इस परिणाम पर पहुंचे हे यह तेरहवीं शताब्दी से पूर्व नहीं हुआ था। कि जिसे हम विक्रम संवत् (ईसा से 56 वर्ष पूर्व) कल्हण -राजतरंगिणी नामक राजाओं के इतिहास की कहते हैं वह कोरूर के महायुद्ध के काल के आधार प्रसिद्ध पुस्तक का रचयिता। यह काश्मीर के राजा पर बना है। इस युद्ध में विक्रम ने 544 ई० में जयसिंह का, जिसने 1129 से 1150 ई० तक राज्य म्लेच्छों को पराजित किया था। और उस समय कियां, समकालीन था। 600 वर्ष पीछे ले जाकर (अर्थात् ईसा से 56 वर्ष पूर्व) इसका नामकरण किया। यदि यह मत यथार्थ कालिदास-अभिज्ञान शाकुन्तल, विक्रमोवंशीय, मालवि मान लिया जाय–विद्वान लोग अभी इस बात पर काग्निमित्र, रघुवंश, कुमारसंभव, मेघदूत और ऋतु एकमत दिखाई नहीं देते-तो कालिदास छठी संहार का रचयिता। इसके अतिरिक्त 'नलोदय' तथा अन्य कई छोटे-छोटे काव्यों के रचयिता। शताब्दी में हुए हैं। अभी इस प्रश्न का पूरा समाकालिदास का सबसे पहला अधिकृत उल्लेख हमें धान नहीं हो सका है। 634 ई० (तदनुसार 556 शाके) के शिलालेख में क्षेमेन-काश्मीर का एक प्रसिद्ध कवि, समयमातका मिलता है / इसमें कालिदास और भारवि दोनों तथा कई अन्य पुस्तकों का रचयिता। यह ग्यारहवीं को प्रसिद्ध कवि बतलाया गया है। श्लोक यह है : शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ। येनायोजि न वेश्म, जगार -एक प्रसिद्ध टीकाकार। इसने मालतीमाधव स्थिरमर्थविधौ विवेकना जिनवेश्म / और वेणीसंहार पर टीकाएँ लिखीं। यह चौदहवीं स विजयतां रविकोति: शताब्दी के बाद हुआ। कविताश्रितकालिदासभारविकीतिः / / | जगन्नाथ पंडित -एक प्रसिद्ध आधुनिक लेखक / उसका हर्षचरित के आरंभ में बाण ने कालिदास का प्रसिद्ध ग्रन्थ रसगंगाधर है जिसमें 'काव्य' विषय का उल्लेख किया है। इससे प्रतीत होता है कि कालि- विवेचन है। उसकी अन्य कृतियाँ हैं-भामिनीदास बाण से पहले अर्थात सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ष विलास, पांच लहरियाँ (गंगा, पीयूष, सुधा, अमृत,-- से पहले हुआ था। परन्तु सातवीं शताब्दी से कितना और करुणा) तथा कुछ अन्य छोटी रचनाएँ। ऐसा पूर्व -इस बात का अभी तक पता नहीं लग सका। माना जाता है कि यह दिल्ली के सम्राट शाहजहाँ के मेघदूत के चौदहवें श्लोक की व्याख्या करते हुए काल में हुआ। इसने जहांगीर के राज्य के अन्तिम मल्लिनाथ ने निचुल और दिङनाग को कालिदास दिन तथा 1658 ई० में दारा का अस्थायी राज्यका समकालीन बताया है। यदि मल्लिनाथ के इस सिंहासनारोहण देखा होगा। अतः इसका जन्म-और सुझाव को जिसकी सत्यता में पूरा-पूरा सन्देह है, कुछ नहीं तो कार्य काल तो अवश्य-१६२० तथा सही मान लिया जाय तो हमारा कवि कालिदास १६६०ई० के बीच में रहा होगा। भवश्य ही छठी शताब्दी के मध्य में रहा होगा। जयदेव-गीतगोविन्द नामक ललित गीतिकाव्य का प्रणेता। यही काल दिङ्नाग का माना जाता है। यह बंगाल के वीरभूमि जिले के किंदविल्व नामक एक बात और है, यदि इसका ठीक निर्णय हो गांव का निवासी था। कहा जाता है कि यह राजा जाय तो कवि के जन्मकाल का सही ज्ञान हो जाय / लक्ष्मणसेन के काल में हुआ जिसकी एकात्मता यह बात है कालिदास द्वारा अपने अभिभावक के रूप डाक्टर बहर ने बंगाल के वैद्य राजा से की है। इसका में विक्रम का उल्लेख। यह कौन सा विक्रम है, इस शिलालेख विक्रम संवत् 1173 अर्थात् 1116 ई० For Private and Personal Use Only Page #1209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1200 ) का मिलता है। अतः यह कवि बारहवीं शताब्दी में अतः भवभूति सातवीं शताब्दी के अन्त में हुआ। हुआ होगा। बाण ने इसके नाम का उल्लेख नहीं किया, अतः यह रिन् --यह दशकुमारचरित और काव्यादर्श का रचयिता काल सुसंगत है। कालिदास और भवभूति की है छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। माघवाचार्य समकालीनता के उपाख्यान निरे उपाख्यान होने के के मतानुसार यह बाण का समकालीन था। कारण स्वीकार्य नहीं है। पतंजलि-महाभाष्य का प्रसिद्ध लेखक। कहते हैं कि यह भारवि-किरातार्जुनीय काव्य का रचयिता। 634 ई. ईसा से लगभग 150 वर्ष पूर्व हुआ। के एक शिलालेख में इसका उल्लेख कालिदास के नारायण - (भट्टनारायण) -वेणीसंहार का रचयिता / यह साथ किया गया है। देखो कालिदास / नवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ होगा, क्योंकि इसकी भास-बाण और कालिदास ने इसे अपना पूर्ववर्ती बताया रचना का उल्लेख आनन्दवर्धन ने अपने ध्वन्यालोक है अतः यह सातवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ। में बहुत बार किया है। यह कवि अवन्तिवर्मा के | मम्मट-काव्य प्रकाश का रचयिता। यह 1294 ई० राज्यकाल 855-884 ई० (राजतरंगिणी 5 / 34) से पूर्व ही हुआ है क्योंकि 1294 ई० में तो जयन्त में हुभा। ने काव्यप्रकाश पर 'जयन्तीनामक टीका लिखी है। बाण-हर्षचरित, कादंबरी और चंडिकाशतक का विख्यात | मयूर-यह बाण का श्वसुर था। इसने अपने कुष्ठ से प्रणेता। पार्वतीपरिणय और रत्नावली भी इसी की " मुक्ति पाने के लिए सूर्यशतक को रचना की। यह रचना मानी जाती हैं। इसका काल निर्विवाद रूप बाण का समकालीन था। से इसके अभिभावक कान्यकुब्ज के राजा श्री हर्षवर्धन मरारि - अनर्घराघव नाटक का रचयिता। रत्नाकर द्वारा निश्चित किया गया है। जिस समय यन कवि ने (जो नवीं शताब्दी में हुआ) अपने हरविजय त्सांग ने समस्त भारत में भ्रमण किया उस समय 38 / 67 में इसका उल्लेख किया है। अतः इसे नवौं हर्षवर्धन ने 629 से 645 ई० तक राज्य किया। शताब्दी से पूर्व का ही समझना चाहिए। इसलिए बाण या तो छठी शताब्दी के उत्तरार्ष में | रत्नाकर--हरविजय नामक महाकाव्य का रचयिता / हुआ या सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में। बाण का अवन्तिवर्मा (855-884 ई० तक) इस कवि के काल कई और लेखकों के काल का -न्यूनातिन्यून आश्रयदाता थे। उनका जिनका कि बाण ने हर्षचरित की प्रस्तावना | राजशेखर-बालरामायण, बालभारत और विशालमें उल्लेख किया है - परिचायक है। भंजिका का रचयिता। यह भवभूति के पश्चात् दसवीं बिल्हण महाकाव्य विक्रमांकदेवचरित तथा चोरपंचाशिका शताब्दी के अन्त से पूर्व हआ, अर्थात् यह सातवीं का रचयिता। यह ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध शताब्दी के अन्त और दसवीं शताब्दी के मध्य में में हुआ। भट्रि -यह श्रीस्वामी का पुत्र था। राजा श्रोधरसेन या| वराहमिहिर-एक प्रसिद्ध ज्योतिविद, बृहत्संहितानामक उसके पुत्र नरेन्द्र के राज्यकाल में श्रीस्वामी वल्लभी पुस्तक का रचयिता। में रहा। लैसन के मतानुसार श्रीधर का राज्यकाल | विक्रम-देखो कालिदास / 530 से 545 ई० तक था।। विशाखदत्त मुद्राराक्षस का रचयिता। इस नाटक की भर्तहरि--शतकत्रय और वाक्यपदीय का रचयिता / तेलंग रचना का काल तेलंग महाशय के अनुसार सातवीं या महाशय के मतानुसार यह ईस्वी सन की प्रथम आठवीं शताब्दी माना जाता है। शताब्दी के अन्तिम काल में अथवा दूसरी शताब्दी के | शंकर-वेदान्त दर्शन का प्रसिद्ध आवार्य, तथा शारीरक आरम्भ में हुआ। परंपरा के अनुसार भर्तृहरि, भाष्य का प्रणेता। इसके अतिरिक्त वेदान्त विषय विक्रमराजा का भाई था। और यदि हम इस विक्रम पर इसको अनेक रचनाएँ है। कहते है कि यह को वही मानें जिसने 544 ई० में म्लेच्छों को पराजित 788 ई० में उत्पन्न हुआ और 32 वर्ष की थोड़ी किया था, तो हमें समझ लेना चाहिए कि भर्तृहरि आयु में ही 820 ई० में परलोकवासी हुआ। परन्तु छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। कुछ विद्वान् लोगों (तैलंग महाशय तथा डाक्टर भवभूति---महावीरचरित, मालतीमाधव और उत्तरराम- भंडारकर आदि) ने यह दर्शाने का प्रयत्न किया है परित का रचयिता। यह विदर्भ का मल निवासी कि यह छठी या सातवीं शताब्दी में हुआ होगा। था, और कान्यकुब्ज के राजा यशोवर्मा के दरबार मुद्राराक्षस की प्रस्तावना देखिये। में रहता था। काश्मीर के राजा ललितादित्य | श्रीहर्ष--यह नैषधचरित का प्रसिद्ध रचयिता है। इसके (693 से 729 ई.) ने इसे परास्त किया था। अतिरिक्त इसकी अन्य आठ दस रचनाएँ भी मिलती हुआ। तलग For Private and Personal Use Only Page #1210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1201 ) है। इसे प्राय: वारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ सुबन्धु वासवदत्ता का रचयिता। इसका उल्लेख बाण मानते हैं। विल्सन कहता है कि 1213 ई० में अपने ने किया है। अत: यह सातवीं शताब्दी के बाद का पिता कलश के पश्चात् श्रीहर्ष राजगद्दी पर बैठा। नहीं। इसने धर्मकीर्ति द्वारा लिखित बौद्धसंगति अत: रत्नावली नाटिका जो इस राजा द्वारा लिखित नामक एक रचना का उल्लेख किया है। यह पुस्तक मानी जाती है अवश्य अपने राज्य काल के अन्त में छठी शताब्दी में लिखी गई थी। 1113 से 1125 के मध्य लिखी गई होगी। परन्तु हर्ष बाण का अभिभावक / ऐसा समझा जाता है कि 'रत्नावली' को इसके पूर्व का ही मानना पड़ेगा क्योंकि रत्नावली नाटक बाण ने लिखा और अपने अभिदशरूपमें इसके अनेक उद्धरण उपलब्ध हैं। और भावक के नाम से प्रकाशित कराया। दशरूप दशवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में रचा गया। 151 For Private and Personal Use Only Page #1211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन भारतवर्ष त्वपूर्ण भौगोलिक नाम अंग-गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण | कलिंग--एक देश का नाम जो उड़ीसा के दक्षिण में स्थित राज्य। इसकी राजधानी चंपा थी, जो अंगपूरी भी है और गोदावरी के मुहाने तक फैला हुआ है। ब्रिटिकहलाता था। यह नगर शिलाद्वीप के पश्चिम में शकाल की उत्तरी सरकार से इसकी एकरूपता लगभग 24 मील की दूरी पर विद्यमान था। इसी स्थापित की जाती है। इसकी राजधानी कलिंग लिए यह या तो वर्तमान भागलपुर था, अथवा उसके नगर प्राचीन काल में समद्रतट से (तू० दश०७वां कहीं अत्यंत निकट स्थित था। उल्लास) कुछ दूरी पर संभवतः राजमहेन्द्री में थी। अंध्र-एक देश और उसके अधिवासियों का नाम। यह दे० 'अंध्र' भी। वर्तमान तेलंगण ही माना जाता है। गोदावरी का कांची-दे० 'द्रविड' के अन्तर्गत / / मुहाना अंध्रों के अधिकार में था। परन्तु इसकी | कामरूप-एक महत्त्वपूर्ण राज्य जी करतोया या सदानीरा सीमाएँ संभवतः पश्चिम में घाट, उत्तर में गोदावरी, के तट से लेकर आसाम की सीमा तक फैला हआ है। तथा दक्षिण में कृष्णा नदी थी। कलिंग देश इसकी यह उत्तर में हिमालय पर्वत तक तथा पूर्व में चीन एक सीमा था (देखो दश०७ वाँ उल्लास)। इसकी की सीमा तक फैला हुआ होगा, क्योंकि यहाँ के राजा राजधानी अंध्रनगर संभवतः प्राचीन वेंगी या ने किरात और चीन की सेना के साथ दुर्योधन की वेगी थी। सहायता की थी। इस राज्य की प्राचीन राजधानी अवंति-नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित एक देश। इसकी लौहित्य या ब्रह्मपुत्र नदी के दूसरी ओर प्राग्ज्योतिष राजधानी उज्जयिनी थी जिसे अवंतिपुरी या अवंति थी। तु० रघु० 4181 / / और विशाला (मेघ. 30) भी कहते थे। यह शिप्रा कांबोज - एक देश और उसके अधिवासियों का नाम / नदी के तट पर स्थित थी। मालवा देश का पश्चिमी यह हिन्दुकुश पहाड़ के उस प्रदेश पर रहते होंगे जहाँ भाग है / महाभारत काल में यह देश दक्षिण में यह बलख से गिलगित को पृथक करता है, तथा नर्मदातट तक तथा पश्चिम में मही के तटों तक तिब्बत और लद्दाख तक फैला हआ है। यह प्रदेश फैला हुआ था। अवंति के उत्तर में एक दूसरा राज्य घोड़ों के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ पर बकरी आदि था जिसकी राजधानी चर्मण्बती नदी के तट पर जानवरों की ऊन से शाल भी बनाये जाते थे। इसके स्थित दसपुर थी, यह ही वर्तमान धौलपूर प्रतीत होता अतिरिक्त यहाँ अखरोट के वृक्ष बहुत पाये जाते हैं। है। यह रन्तिदेव की राजधानी थी। तु० रघु० 4169 / अम्मक-त्रावणकोर का पुराना नाम। कुंतल-चोल देश के उत्तर में स्थित एक देश। ऐसा आनर्त-देखो सौराष्ट्र। प्रतीत होता है कि कुरुगदे के दक्षिण में कल्याण या इन्द्रप्रस्थ--(हरिप्रस्थ या शक्रप्रस्थ भी कहलाता है। इसी कोलियन दुर्ग इस प्रदेश की राजधानी थी। यह देश नगर की वर्तमान दिल्ली से एकरूपता मानी जाती हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिमी भाग का प्रतिनिधित्व है। यह नगर यमुना के बाई ओर बसा हआ था, करता है। जब कि बर्तमान दिल्ली दाईं ओर स्थित है। कुरक्षेत्र-दिल्ली के निकट एक विस्तृत प्रदेश। यहीं उत्कल या ओड-एक देश का नाम / वर्तमान उड़ीसा जो कौरव और पांडवों के मध्य महासंग्राम हुआ था। ताम्रलिप्त के दक्षिण में स्थित है और कपिशा नदी यह थानेश्वर के दक्षिण में इसी नाम के पवित्र सरोवर तक फैला हुआ है-तु० रघु 4138 / इस प्रांत के के निकट एक प्रदेश है जो सरस्वती के दक्षिण से लेकर मुख्य नगर कटक और पुरी हैं जहां कि जगन्नाथ का | दृषद्वती के उत्तर तक फैला हुआ है। कभी कभी इस प्रसिद्ध मन्दिर है। स्थान को 'समंतपंचक' नाम से पुकारते हैं जिसका कमलल-हरद्वार के निकट एक ग्राम का नाम है। यह अर्थ है परशुराम द्वारा वध किये गए क्षत्रियों के रक्त वालिक पड़ाड़ी के दक्षिणी भाग पर गंगा के किनारे के पाँच पोखर'। बसा हुआ है। वहाँ के आसपास का पहाड़ भी कन-कुलत-एक देश का नाम-वर्तमान कुल्ल प्रदेश। यह खल कहलाता है। "प्रदेश जलंधर दोआब से उत्तरपूर्व की ओर शतद्र कपिला दे० 'सुझ' के अन्तर्गत / (सतलुज) नदी के दाईं ओर स्थित है। राजधानबालपुर प्रादपर For Private and Personal Use Only Page #1212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1203 ) कुशावंती या कुशस्थली -यह दक्षिणकोशल प्रदेश की राज-1 के आसपास बिध्य और रिक्ष पर्वतों के मध्य में धानी है और बिध्यपर्वत की संकीर्ण घाटी में स्थित ) नर्मदा के किनारे पर स्थित माहिष्मती नगरी में है। यह नर्मदा के उत्तर में परन्तु बिध्यपर्वत के हैहय या कलचुरी लोग राज्य करते थे। दक्षिण में होगा। संभवतः यह वही स्थान है जिसे | चोल एक देश का नाम जो कावेरी के तट पर बसा बंदेलखंड में हम रामनगर कहते हैं। राजशेखर इस हआ है यह मैसूर प्रदेश का दक्षिणी भाग है। यह कुशस्थली के स्वामी को मध्यदेशनरेन्द्र अर्थात् मध्यभूमि प्रदेश कावेरी के परे है। पुलकेशिन् द्वितीय ने इस या बुंदेलखंड का राजा कहते हैं। नदी को पार करके इस देश पर आक्रमण किया था। केकय -.सिंधुदेश की सीमा बनाने वाला केकय एक देश यही देश बाद में कर्णाटक कहलाने लगा। का नाम है। जनस्थान-(मानव वसति) यह दण्डक के महावन का केरल-कावेरी के उत्तरी समुद्र तथा पश्चिमी घाट की एक भाग है। और प्रस्रवण नामक पर्वत के निकट मध्यवर्ती भूमि की लंबी पट्टी। इस प्रदेश की मुख्य स्थित है। प्रसिद्ध पंचवटी (स्थानीय परम्परा नदियाँ है नेत्रवती, सरावती तथा कालीनदी। यह काली अनुसार इसी नाम का एक स्थान जो वर्तमान नासिक नदी ही मुरला नदी समझी जाती है। इसका उल्लेख से लगभग दो मील दूर है) का स्थान इसी प्रदेश में रघु० 4155 तथा उत्तर० 3 में किया गया है, यही विद्यमान है। केरलप्रदेश की मख्य नदी है। केरल प्रदेश वर्तमान जालन्धर--वर्तमान जलन्धर दोआब / शतद्र और विपाशा कानड़ा प्रदेश है जिसके साथ संभवतः मलाबार भी (सतलज और व्यास) से सिंचित प्रदेश / जुड़ा हुआ है और कावेरी से परे तक फैला हुआ है। ताम्रपर्णी- मलय पर्वत से निकलने वाली एक नदी का कोशल - एक प्रदेश का नाम जो रामायण के अनुसार नाम। यह वही नदी प्रतीत होती है जिसे आजकल सरयू नदी के तटों के साथ साथ बसा हुआ है। इसके तांब्रवारी कहते हैं, जो पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलान दो भाग हैं-उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल / से निकलकर तिन्नेवली जिले में से होती हुई मनार उत्तर कोशल का नाम 'गन्द' है और यह अयोध्या के की खाड़ी में गिर जाती है, तु० रघु० 4 / 49-50, उत्तरी प्रदेश को प्रकट करता है जिसमें गन्द तथा और बा० रा०१०५६ / / बहरायच सम्मिलित है। अज, तथा दशरथ आदि ताम्रलिप्त-दे० 'सुह्म' के अन्तर्गत / राजाओं ने इसी प्रान्त पर राज्य किया। राम की त्रिगत ...प्राचीन काल का एक अत्यन्त जलहीन मरु प्रदेश / मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र कुश ने तो बिध्यपर्वत की यह सतलुज का पूर्ववर्ती मरुस्थल था। सरस्वती संकीर्ण घाटी में स्थित दक्षिणी कोशल की कुशावती और सतलज का मध्यवर्ती भाग भी इसमें सम्मिलित राजधानी में राज्य किया, और लव ने उत्तरी कोशल था। उत्तर में लुध्याना और पटियाला है तथा मरुमें स्थित श्रावस्ती में रहकर राज्य किया / स्थल का कुछ भाग दक्षिण में है। कौशांबी . वत्स देश की राजधानी का नाम है। य | त्रिपुर-री-चेदि देश की राजधानी 'चन्द्र दुहिता अर्थात् नगर इलाहाबाद से लगभग तीस मील की दूरी पर | नर्मदा की तरंगों से शब्दायमान' अतएव इस नदी के वर्तमान कोसम के निकट स्थित था। किनारे स्थित / जबलपुर से 6 मील की दूरी पर कौशिकी-एक नदी (कुसी) का नाम जो उत्तरी भागल स्थित वर्तमान तिवर को ही त्रिपुर माना जाता है। पुर तथा पश्चिमी पूर्णिया से होती हुई दरभंगा के | दशपुर-दे० 'अवन्ति' के अन्तर्गत / पूर्व में बहती है। इस नदी के तटों के निकट | दशार्ण-एक देश का नाम जिसमें से दशाणं (दसन) ऋष्यशृंग ऋषि का आश्रम था। नाम की नदी बहती है। यह मालवा का पूर्वी भाग गौड या पुंड-उत्तरी बंगाल। (पंड मलरूप से 'पुरी' के था। इसकी राजधानी विदिशा नगरी थी जिसे वेतस प्रदेश को कहते हैं)। वर्तमान भिलसा माना जाता है। यह वेत्रवती या चेवि - एक देश और उसके अधिवासियों का नाम / बेतवा नदी के तट पर स्थित है, तु० मेघ. 24/25, चेदियों को दाहल और त्रैपुर भी कहते हैं। यह और कादंबरी। कालिदास ने भी विदिशा नाम की लोग नर्मदा के उत्तरी तट पर बसे हुए थे, यह वही एक नदी का उल्लेख किया है जो संभवत: वही है लोग थे जिन्हें हम दशार्ण कहते हैं। एक समय जिसे हम आजकल ब्यास कहते हैं तथा जो बेतवा में इनकी राजधानी त्रिपुरी थी। कुछ लोग ऐसा मानते मिल जाती है। हैं कि यह लोग मध्यभारत के वर्तमान बन्देल खण्ड | द्रविड- कृष्णा और पोलर नदियों के मध्यवर्ती जंगली में रहते थे, कुछ लोग यह समझते हैं कि इनका देश | भाग के दक्षिण में स्थित कोरोमंडल का समस्त वर्तमान चन्द सिल था। जबलपुर से नीचे भेरा घर समुद्रीतट इसमें सम्मिलित है। परन्तु यदि सीमित For Private and Personal Use Only Page #1213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1204 ) रूप से देखें तो यह प्रदेश कावेरी से परे नहीं फैला / पांडच --भारत के बिल्कूल दक्षिण में स्थित एक देश जो है। इसकी राजधानी कांची थी जिसे आजकल चोलदेश के दक्षिणपश्चिम में विद्यमान है। मलयपर्वत कांजीवरम कहते हैं और जो मद्रास के 42 मील और ताम्रपर्णी नदी का स्थान निर्विवाद रूप से दक्षिण-पश्चिम में वेगवती नदी के किनारे स्थित है। निश्चत हो चुका है, तु० बा० रा० 2 / 31 / इस द्वारका-दे० 'सौराष्ट्र' के अन्तर्गत / प्रदेश की वर्तमान तिन्नेवली से एकरूपता स्थापित की निषध - एक देश का नाम जहाँ नल का राज्य था। इस जा सकती है। रामेश्वर का पावनद्वीप इसी राज्य की राजधानी अलका थी जो अलकनन्दा नदी के के अन्तर्गत है। कालिदास ने पांडयदेश की राजधानी तट पर स्थित है। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी का नाम 'नाग-नगर' बताया है जो संभवतः मदास से भारत का वर्तमान कुमायू प्रदेश इसका एक भाग 160 मील दक्षिण में वर्तमान 'नागपत्तन' ही है, तु. था। यह एक वर्षपर्वत का नाम भी है। रघु० 6159-64 पंचवटी-दे० 'जनस्थान' के अन्तर्गत। पारसीक-- पशिया देश के रहने वाले लोग। संभवतः यह पंचाल एक प्रसिद्ध प्रदेश का नाम। राजशेखर के शब्द उन जातियों के लिए भी व्यवहार में आता था अनुसार (बा० रा० 10186) यह प्रदेश गंगा यमुना जो भारत की उत्तरपश्चिमी सीमा में सोमावर्ती का मध्यवर्ती भाग था, इसलिए यह गंगा दोआब जिलों में रहते है। इनके देश से 'वनायदेश्य' नाम कहलाता था। द्रुपद के काल में यह प्रदेश चर्मण्वती से घोड़ों के आने का उल्लेख मिलता है। (चंबल) के तट से लेकर उत्तर में गंगाद्वार तक पारियात्र-भारत को एक मख्य पर्वत शृंखला। संभवत: फैला हुआ था। भागीरथी का उत्तरीभाग उत्तर यह वही है जिसे हम शिवालिक पहाड़ कहते हैं और पंचाल कहलाता था / और इसकी राजधानी अहि जो हिमालय के समानान्तर उत्तर पूर्व में गंगा के च्छत्र थी। इस प्रदेश का दक्षिणीभाग 'दक्षिणपंचाल' दोआब की रक्षा करता है। कहलाता था जो द्रुपद की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर प्रतिष्ठान पुरूरवस की राजधानी। पुरूरवा एक प्राचीन की राजधानी में विलीन हो गया। काल का चन्द्रवंशी राजा था। यह स्थान प्रयाग या पापूर-भवभूति कवि की जन्मभमि / यह नगर नागपूर इलाहाबाद के समने स्थित था। हरिवंश पुराण में जिले में चन्द्रपुर (वर्तमान चाँदा) के निकट कहीं पर बताया गया है कि यह स्थान प्रयाग के जिले में गंगा बसा हुआ था। नदी के उत्तरी तट पर बसा हआ था। कालिदास पप्रावती : मालवाप्रदेश में सिन्धु नदी के तट पर स्थित ने इसे गंगा यमुना के संगम पर स्थित बतलाया वर्तमान नरवाड़ से इसकी एकरूपता मानी जाती है। तु० विक्रम०२।। है। इसके आस-पास और दूसरी नदियाँ पारा या मगध दक्षिणी विहार या मगध का देश / इसकी पुरानी पार्वती, लण, और मधुवर हैं जिनका भवभूति ने पारा राजधानी गिरिव्रज (या राजगृह) थी। इसमें पाँच लावणी और मधुमती के नाम से उल्लेख किया है यह पर्वत-विपुलगिरि, रत्नगिरि, उदयगिरि, शोगिरि नगर के आसपास बहने वाली नदियाँ हैं। भवभूति और वैभार (व्याहार) गिरि सम्मिलित थे। इसकी के मालतीमाधव का वर्णित दृश्य यह नगर है। दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र थी। परवर्ती साहित्य पंपा - एक प्रसिद्ध सरोबर का नाम जो आजकल पेनसिर में मगध का नाम कीकट भी आया है। कहलाता है। इसके निकट ही ऋष्यमूक पर्वत मत्स्य या विराट-धीलपुर के पश्चिम में स्थित देश / कहा विद्यमान है। इस नाम की नदी सरोवर से निकली जाता है कि पांडव लोग दशार्ण के उत्तर में शौरसेन है; विशेषकर इसका उत्तरीभाग चन्द्रदुर्ग के मध्यवर्ती तथा रोहितक के भूभाग से होते हुए यमना के तट शिलासरोवर से निकला है। यही संभवतः मूल पंपा इस प्रदेश में आये थे। विराट देश की राजधानी था, और चन्द्रदुर्ग ही ऋष्यमूक पर्वत / बाद में यह संभवतः वैराट ही थी जो आजकल जयपुर से 40 नाम इस सरोवर से नदी में परिवर्तित हो गया जो। मील उत्तर में वैरात के नाम से विख्यात है। इससे निकली। मलय भारत की सात मुख्य पर्वत श्रृंखलाओं में से एक / पाटलिपुत्र गंगा और शोण नदी के संगम पर स्थित इसको एकरूपता संभवतः मैसूर के दक्षिण में फैले उत्तरी बिहार या मगध में एक महत्त्वपूर्ण नगर / यह हुए घाट के दक्षिणी भाग से की जाती है जो ट्रावन'कुसुमपुर' या 'पुष्पपुर' भी कहलाता था। संस्कृत के कोर की पूर्वी सीमा बनाता है। भवभूति के लौकिक साहित्य में इस नाम का उल्लेख मिलता है। कहते कथनानुसार यह प्रदेश कावेरी से घिरा हुआ है हैं कि लगभग अठारहवीं शताब्दी के मध्य में यह नगर (महावीर० 513 तथा रघु० 4 / 46) / कहते है कि एक नदी की बाढ़ की चपेट में आकर नष्ट हो गया। यहाँ इलायची, काली मिर्च, चंदन और सुपारी के गध का नाम पाटलिपुत्र थी, मालत थे। For Private and Personal Use Only Page #1214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1205 ) वृक्ष बहुत पाये जाते हैं। रघ० 4/51 में कालिदास / तट से लेकर लगभग नर्मदा के तट तक फैला हआ ने बतलाया है कि मलय और दर्दुर यह दो पर्वत था। विशालकाय होने के कारण इसका नाम महादक्षिणी प्रदेश के दो वक्षःस्थल है। अतः दर्दुर घाट राष्ट्र भी था, तु० बा० रा० 1074 / कुण्डिनपुर का वह भाग है जो मैसूर की दक्षिणपूर्वी सीमा जिसे विदर्भ भी कहते हैं इस देश की प्राचीन राजधानी बनाता है। थी। इसीको संभवतः आजकल बीदर कहते हैं। महेन्द्र ---.भारत की सात मख्य पर्वत शृंखलाओं में से एक। विदर्भ देश को वरदा नदी ने दो भागों में विभक्त वर्तमान महेन्द्रमाले से इसकी एकरूपता स्थापित की कर दिया है, उत्तरी भाग को राजधानी अमरावती जाती है जो कि महानदी की घाटी से गंजम को है, तथा दक्षिणी भाग की प्रतिष्ठान / विभक्त करता है। संभवतः इसमें महानदी और | विदिशा-दे० 'दशार्ण' के अन्तर्गत / गोदावरी का मध्यवर्ती समस्त पूर्वी घाट सम्मि- विदेह - मगध के पूर्वोत्तर में विद्यमान एक. देश। इसकी लित था। राजधानी मिथिला थी जो अब मधुवनी के उत्तर में महोदय . (कान्यकुब्ज या गाधिनगर) यह वही प्रदेश है नेपाल में जनकपुर नाम से विख्यात है। प्राचीनकाल जो गंगा के किनारे वर्तमान कन्नौज नाम से विख्यात में विदेह के अन्तर्गत, नेपाल के एक भाग के अतिरिक्त है। सातवीं शताब्दी में यह नगर भारत का अत्यंत वह सब स्थान जो अब सीतामढ़ी सीताकुंड अथवा प्रसिद्ध स्थान था। तु० बा० रा० 10688-89 / तिरहुत के पुराने जिले का उत्तरी भाग और चम्पारन मानस-----एक सरोवर का नाम है जो हाटक में स्थित था, का उत्तर पश्चिमी भाग कहलाता है, इसमें जिसे आज कल लद्दाख कहते हैं। हाटक के उत्तर सम्मिलित थे। में उत्तरी कुरुओं का देश है जिसका नाम हरिवर्ष है। विराट-दे० 'मत्स्य। पूर्वकाल में यह सरोवर किन्नरों के आवास के रूप वन्दावन—'राधा का वन' आज कल मथुरा से कुछ भील में विख्यात था। कवियों की उक्ति के अनुसार उत्तर में एक नगर के रूप में बसा हुआ स्थान / वर्षा ऋतु के आरम्भ में हंस प्रतिवर्ष यहीं आकर यह यमुना के बाये किनारे स्थित है। शरण लेते थे। शक-एक जनजाति का नाम जो भारत के उत्तर-पश्चिमी माहिष्मती....दे० 'चेदि' के अन्तर्गत / सीमांत पर बसी हुई थी। संस्कृत के श्रेण्य साहित्य में मिथिला-दे० 'विदेह' के अन्तर्गत / इसका उल्लेख मिलता है। सिधियंस से इसकी एकमुरल-दे० 'केरल' के अन्तर्गत / रूपता मानी जाती है। मकल - अमरकण्टक नाम का पर्वत जहाँ से नर्मदा नदी | शुक्तिमत् भारत की सात प्रमुख पर्वतशृंखलाओं में से निकलती है। एक। इसकी सही-स्थिति का अभी कुछ निर्णय नहीं लाट-एक देश का नाम जो नर्मदा के पश्चिम में फैला हो पाया है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि नेपाल के हुआ था। इसमें सभवतः ब्रोच, बड़ौदा और दक्षिण में यह हिमालय पर्वत की एक शाखा है। अहमदाबाद सम्मिलित थे। कुछ के मतानुसार खैर श्रावस्ती-उत्तरी कोशल में स्थित एक नगर का नाम भी इसी में सम्मिलित था। जहाँ, कहते हैं कि लव राज्य किया करता था (रघु० वंग... (समतट) पूर्वी बंगाल का एक नाम (उत्तरी बंगाल 15 / 97 में इसीको 'शरावती' का नाम दिया है)। या गौड देश से विल्कुल भिन्न है) इसमें बंगाल का अयोध्या के उत्तर में वर्तमान साहेत माहेत से इसकी समुद्रतट भी सम्मिलित है। ऐसा प्रतीत होता है कि एकरूपता मानी जाती है। यह नगर धर्मपत्तन या किसी समय तिप्पड़ा और गैरो पहाड़ भी इसमें धर्मपुरी भी कहलाता था। सम्मिलित थे। सह्य-भारत की सात प्रमुख पर्वत शृंखलाओं में से एक / बलभी--दे० 'सौराष्ट्र' के अन्तर्गत / आज कल इसी का नाम सह्याद्रि है। पश्चिमी घाट वाहीक, वाहीक पंजाब में रहने वाली जातियों का जो मलय के उत्तर में नीलगिरि के संगम तक फैला सामान्य नाम। इनका देश बर्तमान बलख है। है, ही सह्याद्रि है। कहते हैं कि वे पंजाब के उस भाग में रहते थे जिसे सिंधु--दे० 'पद्मावती' के अन्तर्गत / / सिन्धु नदी तथा पंजाब की अन्य पांच नदियाँ सींचती सिंधुदेशः वर्तमान सिंध प्रदेश जो सिंधु नदी का ऊपरी है, परन्तु भारत की पुण्य भूमि से यह बाहर था। यह भाग है। देश घोड़ों और हींग के कारण प्रसिद्ध है। सुह्म-एक देश का नाम जो वंग के पश्चिम में स्थित है। विदर्भ वर्तमान वरार देश। प्राचीन काल में कुंतल के इसकी राजधानी ताम्रलिप्त (जिसे तामलिप्त, दाम उत्तर में स्थित यह एक बड़ा राज्य था जो कृष्णा के / लिप्त, ताम्रलिप्ति तथा तमालिनी भी कहते हैं) की For Private and Personal Use Only Page #1215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1206 ) एकरूपता वर्तमान तमलक से की जाती है। तमलुक बन्नपाटलिपुत्र से थोड़ी दूरी पर यह एक नगर कोसी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। इस तथा जिला था। यमुना के पुराने तल के तट पर कोसी का नाम ही कालिदास ने 'कपिशा' लिखा है। स्थित वर्तमान 'सुग' से इसकी एकरूपता मानी प्राचीन काल में यह नगर समुद्र के अधिक निकट जाती है। बसा हुआ था। यहां पर ही अधिकांश समुद्री | हस्तिनापुर-'हस्तिन्' नाम का भरतवंश में एक प्रतापी व्यापार किया जाता था। सुह्य लोगों को ही कभी राजा था। उसने ही इस प्रसिद्ध नगर को बसाया कभी राढ़ के नाम से पुकारते थे, (अर्थात् पश्चिमी था। वर्तमान दिल्ली के उत्तरपूर्व में 56 मील की बंगाल के लोग)। दूरी पर यह नगर गंगा की एक पुरानी नहर के सौराष्ट्र--(आनर्त) काठियावाड़ का वर्तमान प्रायद्वीप। किनारे बसा हुआ है। हारका आनर्तनगरी या अधिनगरी कहलाती थी। हेमकूट- 'स्वर्णशिखर' पर्वत / यह पर्वत उस पर्वत श्रृंखला पूरानी द्वारका वर्तमान द्वारका से दक्षिण पूर्व में 95 में से एक है जो इस महाद्वीप को सात वर्षों (वर्ष मील स्थित मघपुर नामक नगर के निकट बसी हुई पर्वत) में बांटती है। बहुधा ऐसा माना जाता है कि थी। यह स्थान रैवतक पर्वत के निकट था। ऐसा यह पर्वत हिमालय के उनर में-या हिमालय और ज्ञात होता है कि यही वह स्थान है जिसे जुनागढ़ का मेरु के बीच में स्थित है तथा किन्नरों के प्रदेश निकटवर्ती गिरिनार पर्वत कहते हैं। इस देश की / (किंपुरुषवर्ष) की सीमा बनाता है / तु. का. 136 / दूसरी राजधानी वलभी प्रतीत होती है। इस नगर के कालिदास इसके विषय में कहता है---"यह पूर्वी और खंडर भावनगर से उत्तर पश्चिम में 10 मील की दूरी पश्चिमी समुद्रों में डबा हुआ है और सुनहरी पानी पर बिल्बी नामक स्थान पर पाये गये हैं। प्रभास नामक का स्रोत है" दे० श०७ / प्रसिद्ध सरोवर इसी देश में समुद्रतट पर स्थित था। For Private and Personal Use Only Page #1216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट अंश---अच विशिष्ट संगीत-ध्वनि। / अक्षयनीवी (स्त्री०) स्थायी धर्मार्थ दान-निधि (ब)। अंशकम् [ अंश+पवल ] सूर्य की दृष्टि से ग्रहों की स्थिति, | अक्षय्यभुज् (पुं०) [क्षि+यत्, न० त०, भुज+क्विप्] विवाह का उपयुक्त लग्न-अंशकं वैवाहिक लग्नं अग्नि---प्रदहेच्च हि तं राजन् कक्षमक्षय्यभुग्यथा-महा० -'नं०' 158 पर नारायण / 13 / 9 / 21 / अंशुकम् [ अंशु---कन् स्वार्थे ] नेता, दूब बिलोने की क्रिया अक्षि (नपुं०) [ अश्+क्सि ] आँख / सम० -- आमय: में प्रयुक्त रस्सी। आँख का रोग, आँख दुःखना, श्रवस (नपुं०) साँप, अंशूदकम् (नपुं०) ओस का पानी / तु० नयनश्रवस्, संवित् चाक्षुष संज्ञान, प्रत्यक्ष अकर्मन् [न० त०] 1. कार्य का अभाव, अकरण प्रति- ज्ञान, ---सूत्रम् आँख का रेखाज्ञानस्तर (प्रतिमाविद्या षेधादकर्म -- मी० सू० 108 / 10 2. वह कार्य जो विषयक), - स्पन्दनम् आँख का फरकना / विधि से स्वीकृत न हो-अकर्म च दारक्रिया या अक्षौरिमम [न० त०] वह दिन या नक्षत्र जिसे चुडाकर्म आधानोतरकाले-मै० सं०६।८।१४ पर शा० भा० संस्कार या मुंडन के लिए अशुभ माना गया है। 3. कार्य करने की उपेक्षा करना---मै०सं०६।३३ पर | अक्ष्णया (वेद० अ०) टेढ़े-मेढ़े ढंग से। सम० - रज्जः शा० भा०। (स्त्री०) कर्ण रेखा, शु०,-स्तोमीया इष्टका नामक अकलङ्क (वि०) कलंकरहित, निष्कलंक / यज्ञ, तै० सं०, श०।। अकल्पनम् न० त०] अनारोपण / अखल: [न० त०] उत्तम वैध, निद्य / अकल्माष: चौथे मन के पुत्र का नाम / अखिलिका (वन०) कारली नामक वनस्पति / अकाण्डताण्डवम अवांछित हल्लागल्ला (पांडित्य के निरर्थक | अगजा [ न गच्छति इति अगः, तस्मात् जायते-अग+जन् प्रदर्शन के विषय में व्यंग्योक्ति)। +ड] पर्वत की पुत्री, पार्वती- अगजाननपद्याक अकालज्ञ ( वि० ) अनयक्त समय पर करने वाला गजाननमहनिशं, अनेकदं तं भक्तानामेकदन्तमपास्महे / -अत्यारूढो हि नारीणामकालज्ञो मनोभवः रघु० सम० ... जानिः शिव। 12 / 33 / अगण्डः [न.ब.] कबन्ध जिसमें हाथ पैर न हों अगण्डअकालिकम् (अ०) अचानक - अकालिकं कुरवो नाभविष्यन् भूतो विद्तो दाबदग्ध इव द्रुमः .. रा०६।६८।५। --महा० 5 / 32 / 30 / अगतिः [ न० त०] बुरा मार्ग, तु० अपथः / - अकिल्विष (वि०) [न० व.] निष्पाप, तु० अकृतकिल्विष अगदः | न० त० गदाभावः ] औषधि। सम...... राजः जिसने कोई पाप नहीं किया है।। उत्तम औषधि। अकृतक (वि.) [+क्त, न० त०, स्वार्थ कन् ] जो अगर्दभः [न० त०] खच्चर / बनाया हुआ न हो, स्वाभाविक-न तस्य स्वो भावः | अगाधसत्त्व (वि.) [न० ब०] प्रबल आत्मशक्ति रखने प्रकृतिनियतत्वादकृतकः ---उत्तर० / वाला- अगाधसत्त्वो मगधप्रतिष्ठः-रघु०६।२१ / अकृत्रिम (वि.) [न० त०] प्राकृतिक, जो मनुष्यकृत | अगुल्मकम् [ अगुल्मीभूतं-न० त०] अस्तव्यस्त, विश्रृंखलित न हो। (सेना) - गुल्मीभूतमगुल्मकम् ---शुक्र० 41870 / अक्क: [ अक् + कन् ] भंडारगृह - अक्के चेन्मधु विन्देत | अगोत्र (वि०) जिसका कोई स्रोत या उद्गम स्थान न किमर्थं पर्वतं व्रजेत् / हो यत्तदद्रेश्यमग्राह्यमगोत्रम्- मुंड० 1 / 1 / 6 / / अक्ता (स्त्री०) [अञ्-क्त ] (वेद०) रात। अग्निः [अङ्गति कध्वं गच्छति - अङ्ग.+नि, लोपश्च ] अक्लान्त (वि०) [न० त०] जो धका न हो। 1. आग 2. पिंगला नाडी-यत्र सोमः सहाग्निना अक्लीबम् (अ०) पूर्णतः, सचाई के साथ / महा० 14 / 20 / 10 3. आकाश-अग्निर्धा-मुंड. अक्ष: [अश् + सः ] 1. हिंडोले या पालकी की खिड़की 23114 / सम० कृतः काजू,-चूड: लाल शिखा 2. जूआ खेलना / सम...-दण्ड: वह लकड़ी जिसमें वाला एक जंगली पक्षी, - चूर्णम् बारूद,-द्वारम् घुरी लगी रहती है,-दृश्कर्मन् अक्षांश ज्ञान करने घर का दरवाजा जो आग्नेय दिशा की ओर है,-यानम् के लिए गणित की प्रक्रिया,-विद् जूआ खेलने में हवाई जहाज़ -- व्योमयानं विमानं स्यादग्नियानं तदेव निपुण,-शलाका पाँसा,-शालिन, शालिक जूआ- हि ----अ० सं०, ..वेश्यः 1. एक अध्यापक - महा० घर का अधीक्षक / 2. बाइसवां महत,-सावणिः एक मनु का नाम, 152 For Private and Personal Use Only Page #1217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1208 ) -सूनुः स्कन्द, तु० अग्निभू सेनानीरग्निभर्गहः हटाने वाला बेलचा,---कर्करि (री) जलते हुए कोयलों ---अम०,-होत्री (स्त्री०) अग्निहोत्र के लिए उप- पर पकी मोटी रोटी, वाटी, धारिका अंगीठी, युक्त गाय-तामग्निहोत्रीमृषयो जगृहुर्ब्रह्मवादिनः -वृक्षः रक्तकरंजवृक्ष, करौंदा। -भाग०८1८।२। अङ्गिकरणिकः [ष० त० संभवतः अभिलेखाधिकारी, अग्न्या तित्तिर नाम का पक्षी। (आजकल के Oath Commissioner) जैसा पद) अग्रः [अङग्+रक, लोपः ] पहाड़ की नोक या अगला पञ्जीकार। भाग - अग्रसानुषु नितान्तपिशङ्गः - कि० 9 / 7, अग्रम् / अङ्गिका [अङ्ग+इनि+क+टा] चोली, अंगिया / समय का पूर्ववर्ती भाग नवेह किंचनाग्र आसीत् / अङगलीवेष्टः अङ्गुलि / वेष्ट्-/- घज्ञ | अंगठी / - बृ० 1 / 2 / 1 / सम० - आसनम् सम्मान का प्रथम | अघो (अ.) क्रोध या शोकद्योतक अव्यग। पद,-उत्सर्गः वस्तु का पहला अंश छोड़ कर उसे अङ्करि (नपुं०) [अडच / किन] 1. पैर 2. किसी भी वस्तु ग्रहण करना,--देवो पटरानी, अग्रमहिषी,-धान्यम् का चतुर्थांश / सम० कवचः जता,-जः शद,-पान अनाज, गल्ला,--निरूपणम्, भविष्य कथन, भविष्य (वि०) पर का अंगूठा चूसने वाला बच्चा, सन्धिः वाणी करना, पूर्ण निर्णय,-प्रदायिन् जो सबसे पहले | टखना, गिट्टे की हड्डी / देता है-तेषामग्रप्रदायी स्याः कल्पोत्थायी प्रियंवदः / अघ्रिकवारि(नपं०) दीपक के मध्य का उभरा हुआ भाग, - महा० ५।१३५।३५,-भावः पूर्ववर्तिता, -- वक्त्रम् ! दीप दण्ड / शल्योपयोगी उपकरण,--हारः ब्राह्मणों की बस्ती अचिन्त्यः [न० त० चिन्त+यच] पारा, पारद / जिसके एक ओर शिव का तथा दूसरी ओर विष्ण का अचोदनम नि० त० चद-+-णिच यच] अध्यादेश, निदेशामन्दिर हो, हरेः अयं हारः, हरस्यायं हारः, हारश्च / भाव-देशकालानामचोदनं प्रयोगे नित्यसमवायात्-मी. हारश्च हारो-यस्य सः। सू० 42 / 23 / अग्र्या [ अग्रे जातः, अग्र+यत्-+ टाप् ] आँवले का वृक्ष। | अच्छ (अ०) प्राप्ति के भाव को द्योतन करने वाला अव्यय, अघन (वि.) [न० त०] जो घना या ठोस न हो। अच्छशब्दो हि आप्तमित्यर्थे वर्तते मै० सं० 10 / 119 अडू+अङ्कम् (अङ्काङ्कम्) [ अक कर्तरि करणे वा पर शा. भाः। अच, अङ्के मध्ये अङ्काः शतपत्रादि चिह्नानि यस्य / अच्युतजल्लकिन् (पुं०) अमरकोश के एक टीकाकार का -ता०] पानी, जल। नाम। अङ्ककारः [ अङ्क+कारः ] सर्वोत्तम योद्धा, त्वत्का कार- अजमीढः [अजो मीढो गजे सिक्तो यत्र, ब०] सुहोत्र के एक विजये तव राम लङ्का'' 'बा० रा० आठवाँ अंक, पुत्र का नाम, यह ऋ० 4 / 43 सूक्त कापि हुआ है। गौरगुणरहंकृतिभृतां जैत्राङ्ककारे-नै० 12164 / अपनयोनिजः दक्ष प्रजापति-भाग० 4 / 30 / 48 / / अजित (वि.) [अङक---क्त ] चिह्नित, छाप लगा हुआ, | अजनाभः भारतवर्ष का प्राचीन नाम भाग०११।२।२४ / गणना किया हुआ, क्रमांकित रावणशराङ्कितकेतु- | अजरकः-कम् [न० ब०] अजीर्ण, अपच / यष्टि रघु० 12 / अजहत्स्वार्थवत्तिः [न जहत्स्वार्थो यत्र, हा+शत, न० ब० अङ्गम् [अम्+गन् ] जैन धर्मावलंबियों का प्रधान धामिक वह शब्द जो अपने भाव को सुरक्षित रखता हुआ ग्रन्थ / सम०-- क्रमः वह क्रम या नियमित व्यवस्था ___ समस्त पद के अर्थ में कुछ वृद्धि करता है। जिसके अनुसार कर्मकाण्ड की नाना प्रकार की अजादिः पाणिनि का एक गण। प्रक्रियायें अपने-अपने महत्त्व के अनुसार सम्पन्न की | अजितकेशकम्बल: पाखण्डी या विधर्मी अध्यापक जिसका जाती हैं,-मै० सं० 5 / 1 / 14, जम् रुधिर,-भङ्गः बौद्धग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। शरीर का वह भाग जो गुदा और अंडकोषों का अज्ञातमस्तुशास्त्रम् पाखण्ड प्रतिपादक शास्त्र / मध्यवर्ती है,--भूमिः चाकू या तलवार का फलका अञ्जकः विप्रचित्ति के पुत्र का नाम-वि०प० / यदङ्गभूमी बभतुः--नै० 16 / 22, -वस्त्रोत्था अञ्जलिका [अञ्जलिरिव कायते के+क, टांप] मकड़ी युका, जू,-- संहिता शब्द के अन्तर्गत स्वर और। से मिलता-जुलता एक कीड़ा। सम० वेधः एक प्रकार व्यंजनों का उच्चारणविषयक सम्बन्ध,-तै० प्रा०, का युद्धकौशल-जानन्नञ्जलिकावेधं नापाकामत पाण्डवः -सुप्तिः शरीर के अङ्गों का सो जाना। -महा० 7 / 26 / 23 / / अङ्गना [अङ्ग+न+टाप] प्रियंग नामक पौधा जिससे | अजिकः यदु के एक पुत्र का नाम / सुगंधित द्रव्य या अभ्यंजन तैयार किए जाते हैं। अञ्जिहिषा [अंह का सन्नन्त रूप अंह - सन्+टाप्] अङ्गार:-रम् [अङ्ग+आरन जलता हुआ कोयला / सम० | जाने की इच्छा भट्रि।। -अवक्षेपणम् कोयलों को बुझाने या इधर से उधर | अट्टाल (वि०) [अट्ट-+-अल+अच्] ऊँचा, उत्तुंग / For Private and Personal Use Only Page #1218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अट्टालः उत्सेध, बुर्ज,-- विष्कम्भचतुरश्रमट्टालकम् ---को० / अतिपरिचयः [प्रा० स०] अत्यधिक घनिष्ठता-लो. अ० 1 / 3 / अतिपरिचयादवज्ञा / अडागमः (अ+आगमः भूतकाल द्योतन करने के लिए अतिबादः [प्रा० स०11. असाधारण रूप से बड़ी भुजाओं धातु के पूर्व लगाये जाने वाला 'अ'---वार्तिक 1 वाला 2. चौदहवें मन्वन्तर के एक ऋषि का नाम 30604 / 3. एक गन्धर्व का नाम / अडकः हरिण निध० / अतिभङ्गम् [प्रा० स०] प्रतिमा विद्या की दृष्टि से मति अणवतानि जैनधर्मानुयायी लोगों के लिए बारह सामान्य / में दो तीन वक्रिमा या मोड़-- मानव० 67495-6 / प्रतिज्ञाएँ। अण्वम् वेद० सोमरस को छानने की छलनी का छिद्र / --महा० 32201 / 9 / अण्डकः सम् 3, स्वार्थे कन् गोलाकार छत या गुम्बज- अतिरागः [अत्या० स०] अत्यधिक उत्साह / शोभन: पत्रवल्लोभिरण्डकैश्च विभूषितः--म० पु. अतिरेकः [ अत्या० स०] 1. प्राचुर्य 2. बाहुल्य 3. अन्तर 269 / 20 / -महा० 3152 / 3 / अतन्त्रत्वम् न०५०] बाहल्य, अतिरिक्त मात्रा ऐन्द्रशब्द- असिरेचक: एक पौधा जिसका सेवन बहुत दस्तावर होता है। स्यातन्त्रत्वात्-मो० सू० पर शा० भा० 6 / 4 / 20 / / अतिरोगः क्षय रोग, तपैदिक / अतनु (वि.) न० त०] जो छोटा न हो, बहुत, प्रचुर अतिवर्तनम [ अत्या० स०] क्षम्य अपराध दशातिवर्तना वीतप्रभावतनरप्यतनुप्रभावः कि० 16 / 64 / / न्याहुः मनु० 8 / 290 अतसिः (वेद०) [अत्- आमि फेरी देने वाला साधु, | अतिविष्ठित (वि०) [अत्या० स०] 1. बहादुर योद्धा निक्षक-कन्नव्यो अतसीनां तुरो गणीत मर्त्यः-ऋ० ... विनव्यानतिविष्ठितान् रा० 4118 / 38 2. सीमा 813 / 13 / का उल्लंघन करने वाला महा० 31215 / 16 / अतसिका [ अत् + असन् ---की-वन्-1-टाप पटसन / अतिशत (वि०) [ अत्या० स०] चुभने वाले, दारुण, अतिकल्यम (अ०) प्रभातकाल, बहत सवेरे नातिकल्यं कठोर- आततायिभिरुत्सृष्टा हिस्रा बाचोऽतिबंशसाः नातिमार्य नातिमध्यन्दिने स्थिते / गच्छेत् मनु० भाग० 3 / 19 / 21 // 4 / 140 / अतिसष्टिः [अति+सज-+क्तिन् ] उत्कृष्ट रचना। अतिकश (वि.) [अतिक्रान्तः कशाम् - अत्या० स०] कोड़े अतलः [ न० त०] खाँसी-निघ० / की मार को भी न मानने वाला, उच्छृखल। अत्कः [अत्-कन् ] घर का एक कोना, दे० अक्क / अतिकामकः [प्रा० स०] कुत्ता। अत्यन्त+ अपहवः [अत्यन्त+अप्+न+ ] बिल्कुल अतिक्रान्ता अति : कम्त --टाप] हाथी के कामोन्माद मुकर जाना, पूर्ण विरोध या निराकरण / की छठी अवस्था अनिकान्तावस्थो गजपतिरिदं / अत्यन्त - सहचरित (वि०) निश्चित रूप से साथ जाने स्थावरचरं जगत्सवं हन्तुं समभिलपति क्रोधकलुपः / वाला-पा० 8 / 1115 वार्तिक / -~-मा० ली० 9 / 17 / / अत्यन्तीन (वि०) [ अत्यन्त+खा ] 1. अत्यन्त गमनअतिक्रान्तिः (अति-+-क्रम+क्तिन् ] सीमा के बाहर निकल शील 2. टिकाऊपन / जाना, उल्लंघन / | अत्यय-वेदनः [ अतिक्रान्त: अर्थम् -विद्+णिचनल्यूट] अतिगृहकम् [प्रा० स०] चौवारा, मियानी, ---भूमीगृहांश्चत्य हाथियों का एक भेद जो बहुत ही संवेदनशील होता गृहान् गृहातिगृहकानपि-- रा. 5112:15 / है जरा से दण्ड को भी नहीं भूलता,-प्राजनाजकुअतिजित (वि.) [प्रा० स०] पूर्णतया पराजित लोकं / शदण्डेभ्यो दूरादुद्विजते हि यः, स्पृष्टो वा व्यथतेऽत्यर्थं स ह्यतिजितं कृत्वा-रा० 3170 / 5 / गजोऽत्यर्थवेदन:-मातङ्ग०८।१९।। अतिधेन (वि.)| अतिरिक्ता धेनवो यस्य -ब० स०] जो / अत्यस्त (वि.) [अति+अस्+क्त ] फेंका हुआ, लटकाया बदिया से बढ़िया गौओं का स्वामी है। हुआ, दूर परे उछाला हुआ-पा० 201124..- तरङ्गाअतिनामन् (पुं०--मा) छठे मन्वन्तर के सप्तर्षि समुदाय त्यस्तः काशिका / के एक ऋषि का नाम / अत्याश्रमः अति--आ+श्रम्+घञ 1 संन्यास, वैराग्य / अतिपातः [अति + पत्-घा ] ध्वंस, विनाश / अत्याहारयमाण (वि०) [अति+आ+-ह-णि-+शानच] अतिपातित [ अति पत्+-णिच् / क्त ] 1. स्थगित, विलं- बलपूर्वक ग्रहण करने वाला लोभादलश्चातुर्वर्ण्यमत्याबित 2. पूर्णत: टुटा हुआ। हारयमाणः की० अ०१। अतिपातक (वि०) अतिक्रमणकारी, बढ़कर रवेलक्षिालक्ष्मी अत्र (वि.) [ न० ब.] टीन का बना हुआ, कररतिपातुकः-न० 19 // 5 // कलईदार। For Private and Personal Use Only Page #1219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रायः रचनाओं के अथानन्त- अधिमुक्तक मोती रहता है / ( 1210 ) अत्रिजात (वि.) [अद+त्रिन-जन+क्त ] तीन वर्णों। लेखाधिकारी जो क्रयपत्र तथा अन्य दस्तावेज अपनी में से किसी एक वर्ण का मनुष्य, द्विज / देखरेख में तैयार कराता है, नाज़िर / अत्री अत्रि की पत्नी। सम०-चतुरहः एक यज्ञ का नाम / अधिगमः [ अधि+गम्+घञ ] जानकारी का समाचार -जातः 1. चन्द्रमा 2. दत्तात्रेय 3. दुर्वासा, भारद्वा- - अपनेष्यामि सन्तापं तवाधिगमशंसनात्-राम० जिका अत्रि वंशियों का भारद्वाजवंशियों के साथ 5 / 35177 / वैवाहिक सम्बन्ध / | अधिपुष्पलिका खदिर का वृक्ष, खैर / अस्वक्क (वि.) [न० ब०] त्वचारहित, जिस पर खाल ! अधिमखः [ अधि ---मख्--घा ] यज्ञ की अधिशासी न हो। देवता। अथ (अ०) [अर्थ +ड, पृषो० रलोप: ] मङ्गल सूचक अधिमुक्तकः [ अधि+मुच्+क्त ] मालती का एक प्रकार, अव्यय जो प्रायः रचनाओं के आरम्भ में प्रयुक्त होता / चमेली। है / मम० ... अतः (अथातः), - अनन्तरम् (अथानन्त- अधिमुक्तिका [ अधि+मुच्-1-क्तिन, स्वार्थे कन् ] वह रम्) इसलिए, अब, इसके पश्नात -- अथातो धर्मजिज्ञासा मन० 211, किम और कितना, और / अधिरोपः [ अधि+रुप+घञ ] दोषारोपण करना। इतना,--तु परन्तु, इसके विरीत / / अधिरूषित (वि०) [अघि-रूष+क्त ] श्रृंगारवर्धक अदर्शनम | दृश--ल्युट, न० त०] भ्रम, माया, अदृश्यता ___ लेप से अभ्यक्त मुखमधिरूषितपाण्डुगण्डलेखम्-कि० ....अदर्शनादापतिताः पुनश्चादर्शनं गताः - महा० 11 // 10 // 46 / 2 // 13 // अधिवासः [ अधिन-वस्+घञ्] जन्मभूमि, जन्मस्थान अवसीय (वि०) [ अदस्+ छ ] इससे या उससे सम्बन्ध ... महा०१२।३६।१९।। रखने वाला। अधिष्ठानम् [अधि- स्था+ ल्युट ] 1. अवस्था, आधार अदुपध (वि.) [ अत्+उपध न० ब० ] वह शब्द जिसकी 2. नाम अमित्राणामधिष्ठानाद्वधाद् दुर्योधनस्य च उपधा (अन्तिम से पूर्ववर्ती) में 'अ' हो / - महा० 9 / 61 / 14 / सम० अधिकरणम् नगरअदष्टकल्पना किसी अज्ञात पदार्थ या विचार की कल्पना निगम, नगरपालिका का कार्यालय। करना। अधोनिबन्धः हाथी के कामोन्माद की ऋतु में तीसरी अद्भुत (वि.) ] अद्+भू+डुतच्] 1. आश्चर्य युक्त अवस्था - मात० 149 / 14 / / 2. ऊँचाई की माप के पाँच अंशों में से एक जहाँ कि अध्ययनम् [ अधि+इ-1-ल्यट] शिक्षा देना, अध्यापन ऊँचाई, चौड़ाई से दुगुनी हो - हीनं तु द्वयं तद् द्विगुणं करना कृत्दा चाध्ययनं तेषां शिष्याणां शतमुत्तमम् चाद्भुतं कथितम्--मान० 11120 / 23 / सम०- रामा- ...- महा० 121318117 / यणम् वाल्मीकि द्वारा रचित एक ग्रन्थ,... शान्तिः | अध्यवसिन् (वि०) [अध्यव--सो-अच्, ततः इनि ] (स्त्री०) 1. अथर्ववेद का 67 वाँ परिशिष्ट 2. पुराणों किसी व्रत के पालनहेतु किसी एक ही स्थान पर अवमें वर्णित एक व्रत का नाम / रुद्ध हो जाने वाला महा० 1216416 / अद्रिकटकन [ अद्+किन+कट+वुन् ] पर्वतथणी। अध्यासित (वि.) [अधि+आस--णिच--क्त ] बैठा अद्रेश्य (वि०) जो दिखाई न दे, अदृश्य / हुआ, बसा हुआ। अद्वारासङ्गःनि० त०] दरवाजे पर अन्दर जाने वालों को अध्युषित (वि.) [ अधि+वस ---क्त ] ठहरा हुआ, रहा पंक्ति का न होना--कार्याथिनामद्वारासहं कारयेत् / हुआ, अविकार किया हुआ। -को० अ० 119 / 26 / | अध्यूढः [ अधि+वह+क्त ] विवाह से पूर्व गर्भिणी स्त्री अवैध (वि.) [न० ब०] अविभक्त, असद्भावनारहित। का पुत्र अध्यश्च तथापरः- महा० 13149 / 4 / अधम (वि.) [ अब अम; अवतेः अमः, वस्य पक्षे धः] अध्वर्युकाण्डम् अध्वर्य नामक ऋत्विजों के लिए अभिप्रेत जो फंक नहीं मारता, शेखी नहीं बघारता अधमः मंत्रों का संग्रह। कुत्सिते न्यने अधःस्थाध्भानयोरपि नाना। अनक् (वि.) (वेद०) अन्या / अधरकण्टक: एक कांटेदार पौधा, धमासा / अनघ (वि.) न० ब०] अनथक, बिना थका हुआ-भाग० अधःवेदः (अधोवेदः) एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह 2 / 7 / 32 / सम० अष्टमी एक व्रत का नाम ..भ. करना। पु०५५। अधिकरणम् [ अधि-++ ल्युट् ] 1. यह स्थान जहाँ बहुत | अनङ्गः [न० ब० ] 1. वाय 2. भूत, पिशाच 3. परछाई, लोग एकत्र हों, * महा० 12 / 59, 68 2. विभाग तु० अनङ्गे मन्मथे वायो पिशाचच्छाययोरपि / महा० 12169:54 / सम०-लेखक (वि०) अभि- अनन्तर (वि.) [नास्ति अन्तरं व्यवधानं, मध्यः, अवकाशः For Private and Personal Use Only Page #1220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1211 ) यस्य ] सीधा, साक्षात् - अथवा अनन्तरकृतं किञ्चिदेव / अनावर (वि.) [न.ब.] नंगे सिर वाला, जिसके सिर निदर्शनम् --महा० 12 / 305 / 9 / पर पगड़ी या टोपी कुछ भी न हो। अनन्य (वि.) [नास्ति अन्यः विषयो यस्य ] जो किसी | अनारम्भः [न० त०] शुरू न करना, आरम्भ न होना। और के साथ भाग न ले रहा हो, निविरोध - अनन्यां | अमायंता न० त०] अनुपयुक्तता, अयोग्यता। पृथिवी भुक्ते सर्वभूतहिते रतः--कौ० अ०। अनावाप (वि.) जो किसी नई वस्तु का अधिग्रहण नहीं अनपग (वि.) [न० ब०] स्थिर, दढ़ / करता है। अनपवृक्त (वि०) जो त्यागा हुआ न ही, अत्यक्त---न अनाश्वास (वि०) [न० ब०] जिस पर निर्भर न किया पेतमनपवृक्तं सच्छक्यमुपेतुम-मै० सं० 12 / 1 / 12 जा सके कर्मण्यस्मिन्ननाश्वासे धूमधूम्रात्मनां भवान् पर शा० भा०। - भाग० 1118 / 12 / अनपार्थ (वि०) [न० ब०] यथार्थ कारण से युक्त, | अनाश्वासम् (अ०) बिना सांस लिए, बिना आराम किये। न्याय्य, उचित / अनास्था स्त्री०) अन् ।-आस्था -+कटाप] 1. असअनभिधानम् [न० त०] 1. अभीप्सित अर्थ का अप्रकाशन हिष्णता 2. भरोसे का न होना, धैर्य का अभाव - नै. 2. व्याकरणसम्मत शब्द जो प्रयोग में न आता हो। श८८ पर ना० भा०। अनभिवावकः [ न० त०] विरोध करने वाला, प्रतिवादी | अनिद (वि०) जो देखा या समझा न जा सके---इत्यभि --न खल भवानस्मत्संकल्पानभिवादकः . अवि०१। ष्ट्रय पुरुषं यद्पमनिदं यथा -भाग०१०।२।४२ / अनभ्यन्तर (वि.) [न० ब०] अपरिचित, अनजान, अनिमित्तम् (क्रि० वि०) जो ज्ञान का वैध साधन न हो, अनभ्यस्त-अनभ्यन्तरे खल्बावा मदनगतस्य वृत्तान्तस्य ... अनिमित्तं विद्यमानोपलम्भनात्-मै० सं०१।१।४। अनिमेषः [अ-+- निमिष+घञा रति क्रिया का विशिष्ट अनराल (वि०) [ ना०व०] सीधा, अवक्र - यत्स्नेहादन प्रकार, मैथुन का विशिष्ट आसन। रालनालनलिनीपत्रातपत्रं धृतम् उत्त० 3316 / अनिरिण (वि.) [अन् + ईर् +इनन्, ह्रस्व जहाँ किसी अनलः [ नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य, अनान प्राणान लाति प्रकार की उथल-पुथल या ऊँच-नीच न हो-तस्मिन आत्मत्वेन वा ] क्रोध, करिणां मुदे सनलदानलदाः देशे त्वनिरिणे ते तु युद्धमरोचयन् महा०९।५५।१८। -- कि० 5 / 25 / सम०-आत्मजः स्कन्द / अनिर्वचनम् (न० त०] चुप रहना, ज़ोर से न बोलना अनवकाशिक: न० ब०] एक पैर से खड़ा होकर कठोर ___ मी० सू० 108 / 52 पर शा० भा० / तपस्या करने वाला - गात्रशय्या अशय्याश्च तथैवान- अनिलभद्रका एक प्रकार का रथ (आकार की दृष्टि से रथ यकाशिका:-रा० 3 / 6 / 3 / सात प्रकार-नभस्वत्, प्रभजन, निवात, पवन, परिअनवक्लप्तिः (स्त्री०) [अनव-क्लप-क्तिन ] असं- षद, इन्द्रक और अनिल-- के गिनाये गये हैं. मान० भावना, अविश्वसनीयता। 43 / 112-5 / अनवगीत (वि.)[न. ब01 निरपराध, निर्दोष-प्रकृत्या अनिलम्भसमाविः ध्यान का एक विशेष प्रकार--७०। कल्याणी मतिरनवगीतः परिचय: उत्तर०१२। अनिविष्ट (वि०) [अ--नि+विश्-क्ति] अविवाहित, अनवद्याङ्गी (स्त्री०)न ब.] वह स्त्री जिसके शरीर --कल स्वयमनिविष्ट:--- अवि०१। के अङ्गों में कोई दोष या त्रुटि न हो, अतः देवी का अनिष्ठर (वि०) जो कठोर न हो, या कर न हो। विशेषण। अनिष्ण (वि.) जो निपुण न हो, कुशल न हो / अनवद्यरागः [न० त०] एक प्रकार का रन कौ० अ० अनिसर्ग (वि०) अप्राकृतिक / 2 / 11 / अनीकस्थानम् प० त०] सैनिक चौकी- कौ० अ०१।१६। अनवर (वि०) [न० ब०] जो अघम न हो, जो घटिया अनीप्सित (वि.) [अन्+आप+ सन्+क्त] अवांछित, न हो। अनचाहा। अनहंवादिन् (वि०) [अन / अहंवाद-- इनि | अनभि- अनीर्षु (वि.) [अन्+ईl + उण, यलोपः] जो ईर्ष्याल मानी, जो गर्व न करता हो। न हो, जो डाह न करे-भृतपुत्रा भृतामात्या भृतदाअनाक्रन्द (वि.) पीड़ा से पागल या अत्यन्त व्याकूल राह्यनीर्षवः महा० 12 / 221 / - इति लोकमनाक्रन्दं मोहशाकरिलतम - महा० | अनीह (वि.) [अन्+ईह+अच] जो प्रयत्नशील न हो, 12 // 33135 / आलसी। अनाघ्रात (वि.) [अन्+आ+घ्रा- क्त ] न संघा | अनुकच्छम् प्रा० स०] कच्छ या दलदली भूमि के साथ हुआ, जो हाथ से न छुआ गया हो--अनाघ्रातं पुष्पं साथ- आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश्चानुकच्छम् किसलयमलनं कररु है: श०१ / मेघ००२१ / For Private and Personal Use Only Page #1221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकल्पम् [अनुक्लप ---अच्] 1. घटिया स्थानापत्ति, : अनुप्रभवः [अनुप्र+भू+अप] जन्म-मरण का चक्र / -ध्वनिभिर्वणरनुकल्पयनोदयत्-न० 17 / 12 2.समान, / अनुप्रवण (वि०) अनु -पु. ल्युट्] रुचिकर, सुहावना एक जैसा - ग्रसितं क्षमभम्वृधीन् क्षणादनुकल्पावित- / -कौतुहलानुप्रवणा हर्प जनयतीव मे-महा०१२।३७।३। चण्डपयावकम् याद०। अनुप्रहित (वि.) | अन-प्र-+-धा- क्त निश्चित, अनकलित (वि.) [अनुकूल इतच जिराका स्वागत नियत प्रियपिंणानुप्रहिताः शिवेन-कि० 17 // 33 // सत्कार होता है, सम्मानित-मन्त्रिणो नेगमाश्चैव यथा-: अनुभाजित (वि०) अनु+भज णिच-: क्त पूजा किया हमनु कलिता:-रा० 774 / 6 / गया। अनुक्रमः अनु - कम्- घा] दैनिक व्यायाम अश्वान अनुभू (भ्वा०) (वेद०) बनकल आचरण करना। रक्षत्यनुभमः महा० 111 / 263 / अनुभावित (वि०) अनुभूणिच् ।बत अनुभवशील, अनुक्षयम् (अ०) हर रात, प्रतिरात्रि। प्ररक्षित। अनुगीता (स्त्री०) महाभारत के चौदहवें पर्व का एक अनुभषे (0) अनुभू+ तृच्] भरण पोपण करने अंश। वाला, पालन पोषण करने वाला। अनुघट्ट (भ्वा०) लम्बाई की ओर से सहलाना, रगड़ना। अनुमन्त्रित (वि०) [अनु / भन्म् / क्त] संस्कार किया गया, अनुजनः [अनु ! जन्-1-अ] सेवक, अनचर। विनियुक्त / अननात (वि.) [अनु+ज्ञा - वत] शिक्षित, शिक्षाप्राप्त / अनुमात्रा (स्त्री०) प्रस्ताव, संकल्प। --शिष्याणामखिलं कृत्स्नमनुजातं ससंग्रहम् महा० : अनुपज (रुध०) प्रार्थना करना, याचना करना-धार्तराष्ट्र 12 / 318124 / महामात्यं स्वयं समनुयुरुक्ष्महे महा० 5 / 72 / 3 / अनुत्कट (वि०) [अन् - उद् - कट च्] छाटा, थोड़ा। ! अनयुञ्जक (वि.) अनुयज्+ण्वुल ईर्ष्याल, डाह करने अनुतालः [अन् उद् + तल घन] मधुर स्वर, रसीला वाल।। गान। | अनुराद्ध (वि.) [अनुराध---यत सम्पन्न, अवाप्त / अनुदिशम् (अ.) [प्रा० स०] प्रत्येक दिशा में। अनुरुद्ध (वि.) [अनुरुध्+क्त) 1. रंका हुआ। अनुबष्ट (वि०) [अनु- दृश् / तृच्] हितैषी अनुसूयुरनु- 2. विरुद्ध 3. शान्त किया हुआ, सान्त्वना दिया हुआ। द्रष्टा सत्कृतस्ते पुरोहितः रा०२।१००।११।। | अनुलोमग (वि०) [अनुगत: लोम, गम् : ड] सीधा जाने अनुद्य (वि०) [अन् ब+ ण्यत् ] अनुच्चारणीय - वाला, सीधा चलने वाला। पा० 3 / 13101 सि०। अनुवाकः [अनुच्यते इति, वन्। घा, कुत्दम्] ब्राह्मणअमुधूपित (वि०) (वेद०, खुशामद से फूला हुआ, ग्रन्थों का एक अध्याय, या प्रभाग। उद्धत / अनुविषयः [अनु---वि+सि- अच्, पत्वम् रुवि, स्वाद / अनुनाथनम् [अनु+नाथ् / स्युट] प्रार्थना, याचना, अनु- अनवत् (सकर्मक क्रिया के रूप में प्रयक्त) सेवा कारना, नय युवाभ्यामनुनाथने मिय:-०१६।६४ / पूजा करना सूर्य चैवान्ववतंत-रा० 7 / 10 / 8 / अनुनिशीथम् (अ०) आधी रात के समय / अनुशाला (स्त्री०) उपकक्ष, छोटा कमरा / अनुनेय (वि.) [अनु -- नो- यत् अनुसरणीय, अनुशील- अनुशिष्ट (वि०) अनु शास्-- क्त | 1. सुप्रशिक्षित, नीय / .. तस्मात् पुत्रमनमिष्टं लोक्यमाहुः वृ० 115:17 अनपस्कृत (वि०) [अन्+उप-+-+-क्त. सुडागमः] 2. पूछा गया इति नानुशिष्टस्नु वाचं मन्दमुदीरयन् जिसकी बुद्धिमत्ता में कोई सन्देह न किया जा सके। -रा०६।३०१४ 3 आरिप्ट, निर्दिष्ट अनुशिष्टो... तस्मात्स्वधर्म मास्थाय सुव्रताः सत्यवादिनः / ऽस्म्ययोध्यायां गुरुमध्ये महात्मना-रा० श२६३ / लोकस्य गुरवो मृत्वा ते भवन्त्यनुपस्कृता:-महा० / अनुशायिन् (वि०) [अनु - शो 'णिच् / इनि] साथ-साथ 12 / 11 / 25 2. स्वार्थ को दूर रखने वाला देह- फैला हुआ। स्थागोऽनुपरकृतः मनु० 10 // 62 / / / अनुश्रविक (वि.) [अनु (थु / अप्) श्रय--ठन् ] शास्त्रों अनुपा [अन-!- उप--इ-अच] किसी व्यवस्था का से संग्रह किया हुआ. पायो 18 / अनुपालन करना, अपनी बारी से अपना कार्य करना। अनुषत्य (वि.) [प्रा० स०] (वेद०) जो सत्य के अनुरूप अनुपाल: [अनु+पाल अच् (घांडे आदि पशुओं का) हो सके। रक्षक, पालक / अनुसमयः [अनु ।-राम इ-अन] भिन्न-भिन्न व्यक्ति या अनुप्रकीर्ण (वि.) जनप। कृ ! का] पूर्णत: व्यस्त, प्रसङ्ग के अनुसार भिन्न-भिन्न व्यवहार करना / इसके आच्छादित नोकरमरगणैरनुप्रकाणान कि० 7 तीन प्रकार है - पदार्थानममय, काण्डानुसमय और समुदायानुसमय / 2. For Private and Personal Use Only Page #1222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला। मन ( 1213 ) अनुसंधानम् अनु+सम् + धा+ ल्युट्] गवेषणा, खोज। / धुंधला नि मासान्ध इवादर्शश्चन्द्रमा न प्रकाशते अनुसंधिः अनु : सम् + धा+कि पूछ ताछ-२० 21129 / / रा० 3 / 16 / 13 / अनुसंसृतिः [अनु +-सम् +स-क्तिन्] जन्म मरण की | अनंभट्टः तर्कसंग्रह, नामक पुस्तक के रचयिता का नाम / आवत्ति। अन्नाद (वि०) अन्नमतीति - अद ---अचान वे खाने अनुसंस्था (भ्वा०) अनुगमन करना, अनुसरण करना। वाला .... अहमन्नादः तै००७।। अनुसंस्था (स्त्री०) सती प्रथा / अन्य (वि.) अन् अध्यादि य दूसग, और, भिन्न / अनुसृत (वि०) [अनु+सृ---क्त] 1. जुगत 2. चूने वाला, सम०-~अन्य (वि.) आपसी, पारस्पग्लि, दे० टाटप,गिरने वाला-- उष्णा सानुसतासकण्ठीम् अन्योन्य, अपदेशः किसी सी के बहाने अप्रत्यक्ष रा० 5 / 5 / 25 / उक्ति / अनुक्यम् (वेद०) [अन---उच समवायेक निपात: कुत्दमा अन्वन्तः |अन- अन्तः पय्या, सोफ़ा, मंच, ऊँचा आसन .. यत् रीढ़ की हड्डी, कशेरुकीय, मेरुदण्ड / मान० 16143 / अनूपय् (भ्वा०) बाढ़ ला देना, भर दना -अनगयामास अन्वर्थनामन अन- अर्थ+नामन जिसका नाम उसके विदर्भजाश्रुती नै० 12 / 69 / अपने चरित्र के अनुसार यथार्थ है, पथ: नाम तथा गुण अनेकपद (वि.) नि.ब] ओक संख्याओं से युक्त, बहुत से अवयवों से बना हुआ। अन्वारभ् (अनु --आ+रभ्) (मा. आ.) (वेद०) अन्तः [अम्+तन] अन्तिम अंश, अवशिष्ट अंश तेऽनया अनुरंजन करना, अनुकूल करना, प्रसन्न करना--अग्नि कात्यायन्याऽन्तं करवाणीति...ब. 2141 / राम. मन्वारभामहे। -~ओष्ठः अधरोष्ठ, निचल! होठ, चक्रम् शकुन, | अन्याहार्य (वि.) [अन --आ++णिन्य जो तथा भविष्यसुचक भाव का जानना कौ० अ०, क्रिया बाद में की जाय / -~-परिच्छदः बर्तन के ऊपर कलई आदि की परत | अन्वयजितः [प० त० नीच कुल में उत्पन्न व्यक्ति, अपम, आछा - लक्ष्मी प्राप्येवान्वयजितः रा०। अन्तवान् (पुं०) [अन्त - मनुर, भस्य यत्वम्] दिशाओं का | अन्वयाधिन् (वि.) अपत्य बंशज, सन्तान / स्वामी (दिगन्तानामीश्वरः)- महा० 3 / 1975 / अन्वित (वि०) [अन : ३.क्त युक्त, योग्य ... तपसा अन्तर् (अ०) [अम् ।-अरन्, तुडागमश्च] (इसका प्रयोग / चान्वितो वेष: रा० 5 / 3 / 13 / धाओं के साथ उपसर्ग की भांति होता है, और इसे / अन्वीक्षिक (वि० [अ० / ईक्षा-ठा हितपी, बरा गति माना जाता है) अन्दर, में, भीतर / सम. भला देखने वाला ---प्रजातीक्षिकया बुद्धया श्रेयो -- अङ्गम (अन्तरङ्गम) जो अत्यन्त घनिष्ठ सम्बंध हचस्य विचिन्तयन --- रा० 7 / 3 / 4 / / रखता है था जिससे ऊपरी संबंध न होकर धनिष्ठ | अप्पितम् (अपांपितम) अग्नि, आग ! संबध रहता है अन्तरङ्गबहिरङ्गयोरन्तरङ्ग बलीयः | अप (उप०) न पाति रक्षति पतनात पाड] धातुओं से -~-मै० सं०१२।।२९ पर शा०भा०-गर्मिणीग्याय: पूर्व उपसर्ग के रूप में प्रयक्त होता है... अर्थ होता है, इस न्याय के अनुसार जब एक बात के भीतर दूसरी ह्रास, कमी विकृति, निरोध, अभाव आदि / सम० बात छिपी रहती है जैसे गर्भाशय में गर्भ, तब इसका - अङ्गः अन्त, समाप्ति, अस्त (पि०) परित्यक्त, प्रयोग होता है-मी० सू० 10 // 3 // 62 पर शा० भा०, दूर फेंका हुआ,- आकीर्ण (वि०) दूर फेंका हुआ, आनुशयः जो अपने हाथों को घटनों के बीच में रख अस्वीकृत,-कोतिः बदनामी, कलंक, कोष (वि.) कर सोता है -- अन्तर्जानुशयो यस्तु भुञ्जते सक्तभाजनः आच्छादन रहित, म्यान से पृथक को हुई कोई वस्तु, -~~-महा० 3 / 50075, ---मुख (वि०) जिसको -~-टीक (वि०) 1. जिसे किसी भाप्य या टीका की दृष्टि अन्दर की ओर होती है-अन्तर्मखा: सततमा- सहायता प्राप्त न हो 2. (अ---एटीक) जिस पर स्मविदो महान्त:--विश्व० 139, - वैशिक: अन्तः कोई ढकना या पदार्थ न हो, दा (वि०) झालर पुर का अधिकारी-समुद्रमपकरणमन्तर्वशिक हस्ता- या भगजी न लगा हुआ (बस्त्र) तथा न्यायधतं धार्य दादाय परिचरेपः को० अ० 1121 / न चापदशमेव च महा० 13 / 104186, -- दानम् अन्तरम् [अन्तं राति ददाति - रा-क] स्तम्भतल का [अप+दल्यूट] वह आख्यायिका जिसमें भूत और अङ्गमल (आधार) से सन्धान करना / भावी जन्मों का वर्णन हो, वेशः भय, खतरा अन्तारः अन्त-ऋ---अण | गडरिया, गोपाल - श० चि०। -- अपदेशः पदे लक्ष्ये स्यात्प्रसिद्धनिमित्तयोः। औदार्य अन्धः [अन्ध-+-अच] 1. जिसे आँखों से दिखाई न दे, अंधा शौर्यधर्यष नि:सीमव्यपदेशयोः-नाना०,-तम् झुक ---अन्धः क्षुषान्धोप्यसौ--- विश्व 101 2. अस्पष्ट, / कर भागना, दौड़ना---रा० 640 / 25, नयः अनै For Private and Personal Use Only Page #1223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1214 ) तिकता, दुष्टाचरण,-नयनः अन्याय, अनुचित व्यवहार-1 अप्रकट (वि०) [न० ब०] जो प्रकट या व्यक्त न हो, शृणु राजन् स्थिरो भूत्वा तवापनयनो महान-महा० / जो स्पष्ट या प्रदर्शित न हो। ६४४९।२२,-नी (भ्वा०) दुर्व्यवहार करना-शत्रौ | अप्रत्यता [न० त०] वदनामी, अपकीर्ति-महा० 12 // हि साहसं यत्तत्किमिवानापनीयते रा० 6164 / 10, / 158 / 5 / --लीन (वि०) गुप्त, छिपा हुआ---औषसातमभयाद- अप्रचोदित (वि०) [अ+प्र+चद्+णिच+क्त ] जिसे पलीनम् -कि० ९।११,-वत्स (वि०) विना वछड़े | अभिप्रेरणा या प्रोत्साहन न मिला हो, अनादिष्ट / का,- वत्सय (ना० धा) ऐसा व्यवहार करना जैसा अप्रज्ञात (वि.) [अ+प्र-+-ज्ञा|क्त ] अज्ञात, जो समझ कि बिना बछड़े वाले के साथ किया जाता है, (न में न आया हो आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् बहुत प्यार, न निर्दयता),-वरः अन्दर का कमरा, | -मन०१५।। सुरक्षित कक्ष - नै० 18118, महा० 121139-40, अप्रतिम (वि०) [न० ब०] अनुपयुक्त, तस्मास्वया --वर्गः अवसान, अन्त, वल्गित (वि०) निलम्बित, समारब्धं कम ह्यप्रतिम परैः- रा०६।१२।३५ / लटकाया हुआ, शद्रः जो शूद्र न हो, द्विज,--छु अप्रतिषेधः [ न० त०] वह आक्षेप जो विश्वासोत्पादक न (वि०) [अप-+स्था---कु] गलत, त्रुटिपूर्ण... अपष्ठु हो, अवैध निराकरण / पठत: पाठयमधिगोष्ठि शठस्य ते नै० 17496, अप्रतिहतः देवताओं का एक प्रकार अपराजित-अप्रतिहत-सज् (तुदा०) छोड़ना, त्यागना,- स्वानः झंझावात, जयन्त-वैजयन्त कोष्ठकान्"पुरमध्ये कारयेत् ...-कौ० आंधी, हारः संग्रह, अवाप्ति / अ० 2 / 4 / अपरक (अ०) 1. के सामने 2. पश्चिम की ओर। अप्रवृत्त (वि०) [अ-1-प्र--वृत् + क्त ] 1. जो किसी कार्य अपरान्तः [न० व.] द्वीप वासी। में व्यस्त न हो 2. जो संस्थित या प्रतिष्ठापित न हो अपरापरम (अ.) [अपर--अपर) आगे और आगे, फिर / 3. अनुपयुक्त / अपाठ्य (वि.) निव०] जो पढ़ा न जा सके। | अप्रसहिष्णु (वि.) [ अप्र+सह, +-इष्णुच ] जो सहन न अपाणिग्रहणम् [न० त०] ब्रह्मचर्य / किया जा सके, जिसका मकाबलान किया जा सके अपादानम् [अप --आनंदा+ल्युट्] स्रोत, कारण नै० | .... जगत्प्रभोरप्रसहिष्णु वैष्णवम् (चक्रम्) --कु० 221141 1154 / अपारवार (वि०) [न० ब०] असीम, अपारवारमक्षोभ्यं | अप्राज्ञ (वि०) [न० व.] जो जानकार न हो अज्ञानी / __ गाम्भीर्यात्सागरोपमम् - रा० 5 / 38540 / अप्रादेशिक (वि०)[न० ब.] 1. जो कोई सुझाव न दे अपिन (वि.) [अपि नह+क्त] बन्द, ढका हुआ, गुप्त / सके 2. किसी प्रदेश विशेष से सम्बन्ध न रखता हो / अपिपरिक्लिष्ट (वि.) अपि परि+क्लिश-:-छत अत्यन्त | अप्राधान्य (वि.) [न० ब.] जिसका कोई महत्त्व न उत्पीडित, तंग किया हुआ। हो, गौण / अपिस्वित् (अ०) प्रश्नसूचक अव्यय / अप्रोक्षित (वि.) [ न.ब.] जहाँ छिड़का न हुआ हो, अपीत (वि.) [अपि-+इ+क्त 1. विलीन, अन्तर्गत जो पवित्र न किया गया हो। -लोकानपीतान्द दृशे स्वदेहे-भाग० 6 / 8 / 12 2. मृत। | अप्रोटः एक पक्षिविशेष, कुकुडकुंभा। अपूतिः (स्त्री०) [अ-- पृ+क्तिन्] कार्य का पूरा न | अप्सुयोनिः [ अलुक् समास ] जो जल में पैदा हुआ हो, करना। घोड़ा। अपूर्विन् (वि.) (पुंर्वी) जिसने विवाहित जीवन का अबधवत् (वि०) [अ-बन्ध-|-वतवतु] अर्थहीन, जो अपनी पत्नी के साथ इससे पहले उपभोग न किया हो। व्याकरणसम्मत न हो-यस्मिन्प्रतिश्लोकमबद्धवत्यपि ---अपूर्वी भार्यया चार्थी वरुण:---रा० 3 / 18 / 4 / भाग०१।५।११। अपृयक्त्विन (वि०) जो पुरुष और प्रकृति के भेद को नहीं अवधा (स्त्री०) किसी त्रिकोण की आधार रेखा का छिन्न समझता-. "पृथकत्वं प्रकृश्योविवेकः, तदस्यास्तीति अंश या खण्ड। पृथकत्वी, तदन्यस्य" नील०; वर्णाश्रमपृथकत्वे च अबाधित (वि०) [न० ब०] बाधारहित, निर्बाध, अनि दष्टार्थस्यापथकत्विनः- -महा० 12 / 308 / 177 / यन्त्रित, अनिर कृत / अपेहि (अप-+एहि इ लोट, म० ए०) दूर हो, जाओ | अबीज (वि.) [न० ब०] 1. नपुंसक, निर्वीर्य 2. अका-~-अम्बष्ठापेहि मार्गात् - नारा। रण,--जः (न० त०) मन पर नियन्त्रण, -जा एक अपोहित (वि.) [ अप-+उह+-णिच् + क्त] 1. हटा प्रकार के अंगूर,--जम् अनुत्पादक बीज / हुआ, दूर किया हुआ न च सामर्थ्यमपोहितं क्वचित् / अभय (वि०) [न० ब०] प्रतिमा के हाथ की मुद्रा जो ---कि० 2 / 27 2. वादविवाद में निराकृत। भक्त की रक्षा सूचित करती है। सम०-वरवः For Private and Personal Use Only Page #1224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1215 ) रक्षण और वर के देने वाला-त्वदन्यः पाणिमभयवरदो | अभिप्लुत (वि०) [अभि+प्लु+क्त ] 1. (भावनाधिक्य देवतगणः-सौ०। से) अभिभूत, व्याकुल 2. स्वीकृत। अभवत् (वि.) [अ-+भूशित ] अविद्यमान / सम० अभिमन्यमान (वि०) [अभिमन्-+-शानच् ] किसी वस्तु -मतयोगः-संयोगः, (काव्य) रचना का दोष पर अवैध अधिकार का इच्छुक-ब्राह्मणकन्यामभिम--इसके अनुसार शब्द और अर्थ का अभिप्रेत संबंध / न्यमानः-कौ० अ० 16 / अपेक्षित रहता है जैसे .. ईक्षसे यत्कटाक्षेण तदा धन्वी | अभिमन्युः (पुं०) चाक्षुष मनु के एक पुत्र का नाम / मनोभव:--में 'यत' और 'तदा' का संबन्ध / अन्य | अभिरम्भित (वि.) [ अभिरभ-+क्त ] पकड़ा हुआ, जकड़ा उदाहरणों के लिए दे० सा० द०५७५ पृष्ठ / हुआ-कश्मलं महदभिरम्भितः - भाग० 5 / 8 / 15 / अभवनिः जन्म का न होना-हरि०७। अभिराधनम् [ अभिरा+ल्युट् ] प्रसन्न करना, अनुकूल अभागिन् (वि.) [न० ब०] 1. अनभ्यस्त-सहते यातना- करना--महा० 3 / 303 / 14 / / मेतामनर्थानामभागिनी -रा० 5 / 16 / 21 2. जिसका अभिलम्भनम् [ अभिलम्भ+ल्युट् ] अधिग्रहण करना कोई भाग न हो। -~-शशंस पित्रे तत्सर्व वयोरूपाभिलम्भनम्-भाग० अभिकर्षणम् [ अभि + कृष् + ल्युट् ] कृषि का एक 9 / 3 / 23 / उपकरण। अभिवक्त (वि०) [ अभिवच्+तच ] जो अभिमानपूर्वक अभिगृघ्न (वि०) प्रबल लालसा से युक्त, इच्छुक / या हेकड़ी के साथ बोलता है-महा० 12118048 / अभिजित् (पु०) [ अभि+जि---विप् ] पुनर्वसु का पुत्र अभिशीत (-श्यात) (वि.) [ अभि-श्य+क्त-पा० -हरि०, पुनर्वसु के पिता का नाम वि० पु०। 6 / 1 / 26] शीतल, ठण्डा। अभिज्ञात (वि.) [ अभि-+-ज्ञा+क्त ] जानकार, ज्ञाता, | अभिश्रुत (वि.) [अभिश्रु+क्त ] प्रख्यात, प्रसिद्ध / जानने वाला। अभिश्वत्य (वि०) [ अभितः श्वत्यं शुद्धचारित्र्यादिर्यस्य अभित्वरमाणकः [ अभि+ त्वर+शानच्, कन् ] दूत, -न० ब०] विशुद्ध चरित्र वाला, सदाचारी। संदेशहर। अभिषक्त (वि०) [अभि+सञ्+क्त ] 1. भूत प्रेतादि अभिदेवनम् [अभि+दिव् + ल्युट ] पासे से खेलने की से आविष्ट 2. अपमानित, पराभूत 3. तिरस्कृत, बिसात-महा० / / अभिशप्त / अभिग्ध (वि.) [अभिद्रह +क्त ] आहत, सताया हआ। | अभिषङ्गः [ अभिसञ्ज+घा ] मानसिक क्षोभ की स्थिति अभिमानम् [ अभि+धा+ल्यूट ] गीत, गायन-षट्पाद- -उच्चारितं मे मनसोऽभिषङ्गात्- महा० 5 / 30 / 1 / तन्त्रीमघुराभिधानम् - रा० 4 / 28 / 36 / सम० | अभिषिक्त (वि.) [ अभिषिच्+क्त] राजसिंहासन पर -विप्रतिपत्तिः शब्द और अर्थ का बेतुकापन, असंगति बिठाया हुआ, अभिमन्त्रित जलों से स्नान, राजगद्दी -मी० सू० 9 / 3 / 13 पर शा० भा० / पर आसीन कराया गया। अभिनन्दः (पुं०) 1. अमरकोश के एक टीकाकार का नाम | अभिषेचनम् [ अभिषिच् -- ल्युट् ] राजतिलक करने की 2. योगवासिष्ठसार के रचयिता का नाम / तैयारी-रा०२।१८।३६) अभिनवकालिदासः आधुनिक कालिदास, यह पद किसी अभिष्टवः [ अभि+स्तु+अच् ] स्तुति-रामाभिष्टव उत्तम कवि को दिया जाता है; माधवीय शंकर ___संयुक्ताः -रा० 2 / 6 / 16 / / विजय का नाम। अभिष्टुत (वि.) [अभि+स्तु+क्त ] 1. जिसकी स्तुति अभिनवगुप्तः नाट्यशास्त्र और ध्वन्यालोक का प्रसिद्ध की गई हो, जिसका कीर्तिगान किया गया हो 2. जिसका भाष्यकार / राज्याभिषेक कर दिया गया हो-ओङ्काराभिष्टुतं अभिनिष्यन्वः-[अभि नि+स्यन्द्+घा] टपकना, चूना। सोमसलिलं पावनं पिबेत्-याज्ञ० 31306 / / अभिनुन्न (वि०) [ अभि+द+क्त ] आहत, क्षुब्ध। | अभिसहरणम् [ आभ+सम् + ल्युट्क्षातपूात -खिन्नदण्डकाष्ठाभिनुन्नाङ्गी-महा० 14158 / 29 / अ० 5 / अभिपन्न (वि.) [अभि+पद+क्त ] 1. स्वीकृत, अभिसंहित (वि.) [ अभि+सम् +धा-क्त ] सम्मिलित, स्वीकार किया हुआ (अथवा उपपन्न) 2. प्ररक्षित सम्बद्ध रा० 7/80 / 11 / -- महा० 1150 / 20 / अभिसमापन्न (वि.) अभिसम+आ+पद+क्त] आमने अभिपातः [ अभिपत+णिच+पश11. उन्नत होना, सामने होने वाला, सामने होकर मुकाबला करने उछलना वियदभिपातलाघवेन 2. पतन, विनाश / वाला-तुदत्यभिसमापन्नमडगुल्यग्रेण लीलया--रा. अभिपूर्तम् [ अभि+१+क्त ] जो पूर्णतः सम्पन्न हो चुका 3 / 19 / 3 / है-अथ० 9 / 5 / 13 / अभिसरी (रिः) (स्त्री०) 1. पीछा करना-असुरपुरवधे For Private and Personal Use Only Page #1225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1216 ) गच्छन्त्यभिसरीम् - प्रति० 317 2. सहायता के लिए / अदित (वि०) [ मृद्-1क्त, न० त०] जो मसला न जाना। गया हो, जो दवाया न गया हो। अभिहारः [अभि-ह-+घञ 1 निकट लाना - अभिहारोऽ- | अमर्मवेधिता (स्त्री०) मर्मस्थानों पर न आघात करने का भियोगे च...... ___गण, दूसरों की भावनाओं को अपने वाग्वाणों से अभयः संनिवतिः (स्त्री०) फिर वापिस न आना, जन्म- छेदना (तीर्थंकर के 35 वाग्गुणों में से एक) / मरण के चक्र से हटकमा--गतिस्त्वं वीतरागाजाममयः | अमा [न- मा+क] अमावस्था। सम...बसुः पुरुरवा संनिवृत्तये--रघु० 10.27 / के वंश का एक राजा,-सोमवारः वह सोमवार जिस अभ्यषपद् (दिवा आ०) रक्षा करता . ततस्नामभ्यवरातु- दिन अमावस्या हो,--ब्रतम् अमायरया वाले मोमवार कामो यौगन्धरायणः---स्वप्नः / को रक्खा जाने वाला व्रत,---हउः एक सर्पराक्षस अभ्यवमन् (दिवा० आ०) निगदर करना, तिरस्कार का नाम -- महा। करना। अमित्रकम् [ न० त०] 1. शत्रुतापूर्ण कार्य,-- राजानमिमअभ्यदमस्ता अभ्यव+मन-पायमान करने वाला मामाझ मुहृच्चिद्वमित्रकम रा०६१६५७ / अभ्यवहारः [ अभाव+ + एम् ] पाने के योग्य, खाद्य अमद्र (वि.) [म.व.] सीमारहित, अमदारिद्रयशुचोन्यभ्यवहाराणि मुलानि च फलानि रा० समदभगा-०६।६५१७। 4150 / 35 / | अमूर्तरजा (पृ०) गुम का एक पुत्र। इसकी माता का अभ्यसनीप] (वि.) [अभ्यस+अनीद, मत् ना! नाम वैदर्भी था। अभ्यस्य आवृत्ति करने के योग्य, अन्यास करने के अमज (दि०) [न० ब० जिसने स्नान नहीं किया है ___ लायक, अभ्यास किये जाने के लिये। ....परिक्लिप्टकवसनामगजां राधवनियाम रा०६। अभ्याकाशम् (वि.) [प्रा० स०] आकान के नीचे बिना 81:10 / किसी आवण के...-अहःसु सततं तिष्ठेदभ्याकाशं | | अमृत (वि०) न - म त 1. जो मरा हुआ नहीं निशां स्वान् गहा० 1135 / 38 / 2. जो अमर है। म० अंशषः: एक प्रकार का अभ्याचा (म्बा० 50) 1. व्यान देना 2. बोरना। रत्न.. की अ० 2 / 11, अग्रभः इन्द्र का घोड़ा, अभ्युपपत्र (वि.) [ अभि-उप-पद्... वत | 1. पहुँचा उन्ः श्रया, अमृतागभुवः पुरेत पुन्छ। शि० 20 // हुआ, पास गया हुआ 2. भय से आधा के हेतु निकट 43, ... ईशः (अमतेगः) भिर काम-- उपस्तरणम् गया हुआ -अभ्युपगन्नाट: खल तत्र भवानाचाम- अमत समान भोजन करने से पूर्व आचमन करने का दत्त इति अयते...-म० 7 / पानी, करः, किरणः अमन की फिरणों वाला, अभ्रमः (स्त्री०) ऐरावत हानी की प्रिपा हथिनी प्रेमा- चन्द्रमा, नन्दनः मण्डप जिसमें 58 स्तम्भ लगे हों स्पदाभ्रमः हर० 2629, अभ्रमुवल्लभः नै० म. पु० 27018, नादोपनिषद एक छोटी 1 / 108 / उपनिषद् का नाम, - बिन्दुपनियर अथर्व वेद की एक अभ्रयन्ती (स्त्री०)। अत्र शत डीप्] 1. बालों से छोटी उगनिषद्, - मतिः चन्द्रमा- आप्याययत्यसो युक्त दर्या तु को लाने वाले 2. कृतिका नक्षज / लाव बदनामतभूतिना भाग० 4 / 16 / 2 / अम् (बेन०) (भ्वा० पर०) भयङ्कर होना, भय युका अमवोद्यम् [ मपा। वद्+ण्यत] सत्य उदित भट्टि होना - वराहमिन्द एभषम ऋ० 8173 / 10 / अमण्डित (वि०) [ न० ब०] अनलंकृत, न राजा हुआ! अबोध (वि०) न० त०] 1. अचूक ... अन्यथं / सम० अमत्सर (वि०) [न० ब०] जो ईर्ष्या न करे, जो घृणा -- अक्षी (स्त्र:०) (अमोधासी) दाक्षायणी का नाम, न करे, जो निरीह रहे - यद्यद्रोचते विप्रेभ्यस्तत्तदृद्या- -~~-वान्दिनी शिक्षा की एक पुस्तक का मलपाठ, दमत्सरः---मनु० 3 / 231, भक्तंकवत्सलसमत्सरहृत्स ----वर्ष चालकावंशी एक राजा का नाम / / भान्तम्-नारा०२११५ / अन्वराधिकारिन [अम्बराधिकार-णिनि राजदरवार का अमर (वि.) [म..-पचाद्यच न० त०] जो मृत्य को एक वस्त्राधिकारी। प्राप्त न हो, अनश्वर,-रः (0) देव, सुर। सम० अम्बरीषक: अम्ब---अग्पिक नि० दीर्घः) अन्तनिहित ----गुरुः बृहस्पति, बृहस्पति नामक ग्रह. ... चन्द्रः या गुप्त आग उदयानाः कुर श्रेष्ठ नथवाम्बरीपका: 'बालभारत' का रचथिता, --राजः इन्द्र, देवों का -महा० 1 / 15 / 16 / स्वामी। अम्बु (नपुं०) [अम्ब+उण् जल, पानी। सम० . कन्दः अमरी (स्त्री०) स्वर्गीय स्त्री, देवी -अमरीकवरीभार- | एक जलीय पौधा, सिंघाड़ा, कुक्कुटी जलीय मुर्गी, भ्रमरीमुखरीकृतम्---कुव०१। / -देवम्,-देवतम् पूर्वापाढ नक्षत्र, नाथः समुद्र, For Private and Personal Use Only Page #1226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भग० 11 / 28 / कमल की अरामक ऋ+इन् ( 1217 ) -पतिः वरुण, धेगः पानीका बहाव, बाढ़ - यथा / अरात् (अ.) तुरन्त, तत्काल-वर्तन्ति यदनीत्या ते तेन नदीनां बहवोऽम्बुवेगा-भग० 11 / 28 / " सार्क पतन्त्यरात्-- शुक्र० 4 / 12 / 66 / अम्बुजिनी (स्त्री०) अम्बुज+णिनि+डीप] कमल की अराम (वि०) [न० ब०] अरुचिकर, दुःखद / बेल / सम० कुटुम्बिन् (पुं०) सूर्य / अरिकेलिः [ऋ+इन्+केल+इन] शत्रुलीला, स्त्रीरमण अम्मय ( अप् / मय ) ( दि०) जलयुक्त, जलमय -अरिकेलि: शत्रुलीला स्त्रीरत्योश्चापि कीर्तितः --न ह्यम्मयानि तीर्थानि न देवा मच्छिलामयाः -नाना०। --भाग। अरित्रम् [ऋ+-इत्र+अरि+त्र, वा] कवच, जो शत्रुओं से अयन (वि.) अय् / ल्युट] जाने वाला, (प्रयोग प्रायः रक्षा करे (अरिभ्यः त्रायते) नै० 12171 / समस्त पदों में)। सम०-- कलाः ग्रहणविषयक अरीण (वि०) पूर्ण, भरा हुआ-स्वरमध्वरीणतत्कण्ठः विचलन के लिए (भिनटों में) शोधन-सू०सि०, --नै० 665 / . ग्रहः किसी ग्रह की देशान्तररेखा जब कि वह | अरुज (वि.) [म० ब०] 1. जो रोग को नष्ट करे, रोग ग्रहण विषयक विचलन के लिए संयुक्त की गई हो, नाशक विषेभ्यः खलु सर्वेभ्यः कर्णिकामरुजां स्थिराम् ---सू० सि०,-परिवृत्तिः अयन का बदलना- अयन- -सु० 2. नीरोग, पीडारहित / / परिवृत्तिय॑स्तशब्देनोच्यते--मी० सू० 6 / 5 / 37 पर | अरुणकेतुबाह्मणम् (नपुं०) अरुण और केतुओं के ब्राह्मण शा० भा०। का नाम / अयत्नसाध्य (वि०) जो बिना किसी कठिनाई के सम्पन्न अरुणपराशराः (पुं०) एक वैदिक शाखा के अनुयायी हो जाय / -अरुणपराशरा नाम शाखिनः-मै० सं०७।११८ अयत्नोपात (वि०) [अयत्न+उपात्त जो बिना यत्न के | पर शा० भा०। प्राप्त हो जाय / अरुख (वि.) [न+रुध+क्त] निधि, जिसे रोका न अयथाभिप्रेताख्यानम् (नपुं०) बुरे समाचार का ऊँचे स्वर गया हो, निर्विघ्न / से उच्चारण करना या अच्छे समाचार का मन्दस्वर अरुन्धतीदर्शनम (नपुं०) विवाह संस्कार के अवसर पर में कहना अयथाभिप्रेताख्यानं नामाप्रियस्योच्चैः, की जाने वाली एक प्रक्रिया जिसके अनुसार दुलहन प्रियस्य च नीचः कथनम् ---सि० / को अरुन्धती तारा दिखलाया जाता है। अयस् (वि.) [इ-असुन्] जाने वाला, स्पन्दनशील / / अरुन्धतीवर्शनन्यायः यह एक न्याय है, इसके अनुसार 'ज्ञात सम० कणपम् एक प्रकार का अस्त्र जो लोहे की से अज्ञात की भांति ऋमिक शिक्षा ग्रहण की ओर संकेत बनी गोलियों की बौछार करता है अयःकणपच- किया गया है जैसे अरुन्धती को दिखलाने के लिए पहले काश्च भुशुण्डयुद्यतबाह्वः-महा० 11227 / 25 / , किसी और ज्ञात तारे की ओर संकेत किया जाय / ---पिण्डः तोप का गोला।। अरूप (वि०) (न० ब०) वह यज्ञ जिसमें रूप (द्रन्य और अयोगः न+यज-घञ] योगाभ्यास से विचलन, | देवता) का अभाव हो / देवता) का अ ...- दत्तस्त्वयोगादय योगनाथः भाग० 6 / 8 / 16 / / गि० 6 / 8 / 16 / | अरूपिन् (वि.) [न-+रूप णिनि] आकाररहित, बिना अयोनि (वि.) न०व०] अज्ञात माता-पिता की सन्तान किसी रूप का-बाधायासुसैन्यानामप्रमेयानरूपिणः - अयोनि व वियोनि च न गच्छेत विचक्षणः --महा० रा० श२१११६ / / 13 / 103133 / अरोगत्वम् [न० त०] रोग से मुक्त होने की स्थिति / अरकः (इयति गच्छत्यनेन + अच्- स्वार्थ कन्] अर्कः [अर्च+धज., कुत्वम्] 1. सूर्य 2. सूर्यकान्त मणि पहिए का अरा। --अर्कोऽर्कपणे स्फटिके-नै०। सम--ग्रहः सूर्यअरडा (स्त्री०) एक देवी का नाम गो। ग्रहण,-ग्रीवः इस नाम का एक 'साम'-पुष्पोत्तरम् अरण्यपर्वन् (नपुं०) महाभारत के एक अध्याय का नाम / __ इस नाम का एक 'साम',-रेतोजः सूर्य का पुत्र रेवत, अरन्ध्र (वि.) न० ब० जिसमें छिद्र न हों-सघन पयो- -लवणम् यवक्षार / / मुच इवारन्ध्राः -कि० 15140 / अर्घः अघ-+धा] मूल्य, कीमत / सम०---अपचयः अरव (वि०) [न० ब०] शब्दहीन, जिसमें से कोई | मूल्य कम हो जाना, कीमत गिर जाना,-ईश्वरः शिव, आवाज न निकले। --निर्णयः मूल्य निर्धारण / अरस (वि०) न० ब०] 1. अरसिक, जो ललित कला | अर्चनानः (पुं०) अत्रिकुल से संबंध रखने वाला एक ऋषि / को न सराह सके-किमस्या नाम स्यादरसपुरुषाना- अजित (वि.) [अर्जु+क्त अवाप्त, उपाजित-न मे पित्रादरशतैः न० 2. जिसमें कोई सत्त्व न हो, तेज न हो जितं किञ्चिन्न मया किञ्चिजितम्। अस्ति मे ---- अरसो व्याविजराविनाशधर्मा --बु० च० 5 / 12 / / हस्तिशैलाग्रे वस्तु पैतामहं धनम्-वे० दे० / For Private and Personal Use Only Page #1227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि ( 1218 ) अर्जुनबदरः अर्जुन नामक पौधे का रेशा, तन्तु। निर्धारित हो (विप० शब्दलक्षण), विद्या सांसारिक अर्जुनसखिः [ब० स०] कृष्ण। पदार्थों का ज्ञान,---विपत्तिः उद्देश्य की विफलता अर्णम् (नपुं०) [ऋ+असुन्, नुट] 1. पानी, जल 2. रंग ...- समीक्ष्यतामर्थविपत्तिमार्गताम- रा० 2 / 19 / 40, -श्रीलीविभूत्यात्मवदद्भुतार्णस्-भाग० 2 / 6 / 44 / --विप्रकर्षः अभिप्रेत अर्थ को समझने में कठिनाई, समजः (अर्णोजः) कमल-न्यर्णोदोजनाभः, -विभावक (बि०) धन का देने वाला--विप्रेभ्योऽर्थ-हम् कमल, पावरगिरमुपकायमोरहाक्षी विभावक:-महा० ३१३३१८४,-शालिन् (वि.) -उत्त० 7 / 92 / धनी पुरुष, धनवान्,- संग्रहः लौगाक्षिभास्कर कृत अर्थः [ऋ+थन] विषय, पदार्थ, उद्देश्य, इच्छा, अभिप्राय / मीमांसा के एक प्रकरण का नाम,-सतत्त्वम् सचाई, सम-अतिदेशः (शब्दों के मुकाबले में) पदार्थों के ---कि पुनरत्रार्थसतत्त्वम्-पा० 7 / 3 / 72 पर म० भा०, विषय में लिङ्ग, वचन आदि का विस्तार अर्थात् एक धन का उपार्जन करना 2. उद्देश्य में सफलता, हानि: विषय को ऐसा समझना मानों वे संख्या में बहत हों, (स्त्री०) धन का नाश,- हारिन् (वि०) धन के स्त्री को ऐसा समझना मानों वह पुरुष हो-त० वा०, चुराने वाला, जो धन चुराता है। ---अनुपपत्तिः (स्त्री०) किसी विशेष अर्थ को निका- अर्थात् (अ०) [अर्थ का अपादान में ए० व० सच तो यह लने यो समझाने में कठिनाई,-अनुबन्धि भौतिक है कि, तथ्यतः / सम-अधिगतम् (अर्थादधिगतम्) कुशलक्षेम से युक्त --तत्रिकालहितवाक्यं धर्म्यमर्था- संकेत द्वारा समझा हुआ,- कृतम् सचमुच किया हुआ नुबन्धि च-रा० ५।५११२१,-अभिधानम् अभीष्ट -न चार्थात्कृतं चोदकः प्रापयति मी० सू० 5 / 2 / 8 अर्थ का प्रकट करना -- त० वा० ३।१२।५,-अभि पर शा० भा०। धानम् (वि०) जिसका नाम प्रयुक्त अर्थ से संबद्ध हो अर्थ्य (वि.) [अर्थ+ण्यत्] 1. सच्चा, वास्तविक- अर्थ्य -अर्थाभिधानं प्रयोजनसम्बद्धमभिधानं यस्य, यथा / विज्ञापयत्नेव रा० 6 / 127 / 25 2. धन प्राप्त करने पुरोडाशकपालमिति-मै० सं० 4 / 1 / 26 पर शा० में चतुर-तमर्थमर्थशास्त्रज्ञाः प्राहुराः सुलक्ष्मण भा०,---आतुरः जो लोभी होने के कारण सदैव -रा०३।४३३३३ / धन एकत्र करने के लिए दुःखी रहता हो—अर्थातु- | अर्ध (वि०) [ऋध् +णि+अच् आधा / राणां न गुरुर्न बन्धुः, काशिन् (वि.) जो उपादेय | अर्धः [ऋध्+घञ] 1. वृद्धि 2. भाग, अंश, पक्ष / सम. दिखाई दे (परन्तु वस्तुतः वैसा न हो),-काश्यम् --असिः एक धार की तलवार, छोटी तलवार धनसंबंधी कठिनाई -- निर्बन्धसंजातरुषार्थकार्यमचिन्त- - अर्घासिभिस्तथा खङ्गः-महा०७।१३७।१५, - कर्णः यित्वा-रघु० ५।२१,-किल्बिषिन् (वि.) रुपये अर्धव्यास, आधी चौड़ाई, चित्र (वि०) अर्धपारदर्शी, पैसे के विषय में बेईमान व्यक्ति,-कोविद (वि०) एक प्रकार का अंशतः पारदर्शी पत्थर, जीविका, जो राजनीति के विषय में विशेषज्ञ हो, अनुभवी ---ज्या, चाप को एक सिरे से दूसरे सिरे तक मिलाने -उवाच रामो धर्मात्मा पुनरप्यर्थकोविदः-रा०६:४१८, वाली लम्बरेखा,-पञ्चा (वि०) साढ़े चार, -क्रिया 1. सार्थक कार्य, अर्थात् जो कार्य सचमुच -प्राणम् दो भागों का ऐसा संधान करना जैसा कि हृदय किया ही जाना है (विप० शब्दोक्त क्रिया)- असति के दो टुकड़ों का-मूलाग्रे कीलकं यक्तगर्धप्राणमिति शब्दोक्ते अर्थक्रिया भवति-मै० सं० 1112 पर स्मतम् ----मान०१७।९९, मागधी प्राचीन जैन ग्रन्थों शा० भा० 2. साभिप्राय क्रिया अर्थात् मुख्य कार्य, में प्रयुक्त प्राकृत बोली,---बायुः आंशिक पक्षाघात, --गतिः अर्थ या प्रयोजन को समझ लेना, अर्थावगम, एकांगी लकवा,-वृद्धिः किसी राशि पर देय ब्याज -गुणाः किसी उक्ति के अभिप्राय की खुदियाँ, का आधा भाग, शतम् 1. पचास 2. डेढ़ सौ मै० --गहम् कोश, खजाना-हरि०, चित्रम अर्थों पर सं० 8 / 267, समस्या इलोक जिसका पूर्वार्ध एक आधारित एक अर्थालंकार,-दर्शकः अधिनिर्णायक, व्यक्ति बोले, तथा उत्तरार्थ दूसरे व्यक्ति द्वारा पूरा --- दश (स्त्री०) सत्यता तथा तथ्यों का ध्यान रखना किया जाय-- नै०४।१०१, सहः उल्ल / --क्षेमं त्रिलोकगरुरर्थदशं च यच्छन् --भाग० 10 // 86 // अर्घ (वि०) [अर्ध-य] अबुरा, जो अभी पूरा किया २१,-द्वयविधानम, ऐसी विधि जिसके दो अर्थ निक- जाना है-अधा ते विष्णो विदुपा चिदऱ्या:--ऋ० लते हों ...विधाने चार्थद्वय विधानं दोषः–मै० सं० 2156 / 1 / 10870 पर शा० भा०,--पदम् पाणिनि पर एक अपित (वि.) [E+णिच् | क्त] 1. लगाया गया, जड़ा वार्तिक ससूत्रवृत्यर्थपदं महार्थम-रा० 7 / 36 / 45, गया -द्रमाणां विविधः पुष्पैः परिस्तोममिवार्पितम -भावनम् किसी विषय पर विचारविमर्श, - लक्षण -रा०४।२८, रघु० 8188 2. उंडेली गई हस्ता(वि.) जैसा कि आवश्यकता या प्रयोजन के अनुसार / पितैनवनवारिभिरेव (शशाप)-रघु० 9 / 78 3. परि नएकत्र कलबन्धु, कालिसा न हो) मचिन्त For Private and Personal Use Only Page #1228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1219 ) अहं पणम् भागपुरुषयोक्ति वर्तित, सौंपा गया-चित्रापितारम्भ इवावतस्थे-कु० / अलोमक, अलोमिक (वि.)/न. ब01 जिसके बाल न 3 / 42 4. प्रति पूर्वक वापिस सौंपा गया प्रत्यर्पित- | | उगते हों, बिना बालों का। त्यास इव ..श०। अलोलः (पु) चौदह मात्राओं का एक छन्द / / अर्भः,-ममक+मन]1. आँख का एक रोग 2. क़ब्रिस्तान / अल्प (वि.) [अल-4] थोड़ा, मामूली, नगण्य (विप० अर्भाः (व० व०) खंडहर, कड़ाकर्कट / महत्, गुरु)। सम०-अचतरम् वह शब्द जिसमें अर्ववाहः (पु.) [ऋ+वनिप् --अर्वन् / वह+घा, अपेक्षाकृत दूसरे शब्द से कम वर्ण या मात्राएँ हों.-.पा. न० ब०] घुड़सवार आगच्छन् गुरुतरगर्वमर्ववाह २।।३४,---गोधूमः एक प्रकार का गेहूँ जो जरा --शिव० 24164 / छोटा होता है,-नासिक: एक छोटी दहलीज़ या अक्तिन (वि.) (अर्वाच्+तन) न पहुंचने वाला, पश्च- दालान, मान० 34 / 106,- पुण्य (वि.) जिसमें वर्ती, प्रकृतिपुरुपयोरक्तिनाभिर्नामरूपाभी रूप -- धार्मिक मल्य नगण्य हो,-सत्त्व ( वि०) दुर्बल, निरूपणम्-भाग० 5 / 3 / 4 / बलहीन, सार ( वि० ) जिसका फल नहीं के अहं (वि.) [अहं +अच्] योग्य समर्थ न खां कुर्मि बरावर हो। दशग्रीव भस्म भस्माईतेजसा-रा० 5 / 22 / 20 / / अल्लकम् (नपुं०) धनिये का बीज / अर्हा [अर्ह,+घञ --टाप्] सोना निधः / अल्लका (स्त्री०) धनिये का पौधा / अलक्तकाङ्क (वि.) [अलक्त+अङ्क] अलक्ता से चिह्नित / अवतरम् (अ.) और आगे, आगे दूर -- ऋ० 1112916 / है अङ्ग जिसके-- अलक्तकाद्वानि पदानि पादयोः / अवकोलकः [अव+कील-कन्] अच्चर, खूटी जो अन्दर ----कु०५। ठोकी गई है-क्षुत्पिपासावकीलकम्-महा० 14045 / 3 / अलक्षण (वि०) न० व.] जो समझ में न आवे---सेयं अवकृत (वि.) [अब+-+क्त नीचे की ओर बढ़ा हुआ, विष्णोर्महामायाऽवाधयाऽलक्षणा यया भाग० 12 // 6 // नीचे की ओर झुका हुआ। अवकीर्ण (वि०) [अवकृत] अव्यवस्थित, व्यवस्थासापेक्ष अलक्ष्मन् (वि.) अशुभ लक्षणों से युक्त-अपसव्यं ग्रहाश्च- -दृष्ट्वा तथावकीणं तु राष्ट्रम् महा० 9 / 41 / 16 / कुरलक्ष्माणं दिवाकरम्---महा०६।१०२२१। अवगल (भ्वा० पर०) नीचे गिर जाना, फिसल जाना अलङ्कारमण्डपः [त० स०] शृंगार कक्ष, वह स्थान जहाँ सौवर्णवलयमवागलत्करामात् -शि० 8 / 34 / / मन्दिर की मूर्तियों का शृंगार किया जाता है। अवप्रहधी (पुं०) [न० ब०] दुराग्रही, हठी---कर्मण्यवाधियो अलमकः (पुं०) मेंढक, दे० 'अनिमक'। भगवन्विदामः----भाग० 4 / 7 / 27 / अलवण (वि०) [न० ब०] लवणरहित, बिना नमक की- | अवघाटकम् (नपुं०) एक प्रकार की माला जो आकार में महा० 13 / 114 / 14 / छोटी होती चली जाय-कौ०, अ० 2 / 11 / अलसगामिनी (स्त्री०) मनोज्ञ गति से चलने वाली अवघात (वि.) दे० 'अवहन' के नीचे। महिला। अवघुष्ट (वि.) [अत्र+घुप्+क्त] घोपणा किया गया, अलसिका (स्त्री०) अधिक बार मल त्यागने के कारण अवमानना पूर्वक मुनादी की गई। उत्पन्न आलस्य या थकान / अवघ्रात (वि.) [अवघ्राक्तसंघा हुआ, चूमा गया अलाञ्छन (a) [न० व०] निष्कलंक / -अवघातश्च मूर्धनि-- रा० 2 / 20 / 1 / अलातशान्तिः (स्त्री०) माण्डूक्योपरि पद पर गौडपाद की | अवघ्रापणम् [अव+ना+णि+ ल्युट ] मुंघवाना / टीका का चतुर्थ पाद / अवचरः [अव+चर+अच्] साईश--तुरगावचरं स बोधअलाबुवीणा (स्त्री०) तुम्बी के आकार की बनी वीणा। यित्वा--बु० च० 5 / 68 / / अलीकम् [अल + बीकन्] चिन्ता, शोक-~-अलीक मानसं अवचि (स्वा० पर०) परम्बना, चुनना, छाँटना / त्वेक रा०२।१९।६।। अवचिचीषा [अब-चि+सन्-+टाप्] संग्रह करने की अलुप्तमहिमन् (वि०) [न० ब०] जिसकी अक्षुण्ण कीर्ति इच्छा प्रमदया कुगमावचिचीपया- शि० 610 / बनी हुई है। अवचरिः, अवचूरिका वृत्ति, टीका, भाप्य, टिप्पणी। अलुप्तयशस् (वि०) [न० ब०] जिसकी ख्याति लुप्त नहीं अवच्छटा विनोदपरक चाल, लीलायुक्त गति-अवच्छटा हुई है, यशस्वी। कापि कटाक्षस्य नै० 16164 / अलोकवतम् न० त०] आध्यात्मिक मुक्ति के लिए अभि- अवच्छेद्य (वि.) [अव+छिद्-+-णिन् / ण्यत्] अलग प्रेत व्रत जैसे ब्रह्मचर्य पालन, (इस बात की भावना | किये जाने के योग्य, पृथक किये जाने के लायक / भौतिक सुखों के विरुद्ध है) चरन्त्यलोकवतमवणं वने | अवतानः [अव / तनु+घञ ] तन्तु, मूत-लतावतानतः भाग०८।३।७। महा० 2 / 24 / 26 / For Private and Personal Use Only Page #1229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1220 ) अवत (म्वा० पर०) पार करना-त्वयाऽवतीर्णोऽर्ण उता- / अवपोषिका (स्त्री०) (पत्थर आदि कोई) वस्तु जो नगर प्तकामः-भाग० 3 / 24134 / की दीवार से नगर पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं अवतरणमङ्गलम (नपुं०) हार्दिक स्वागत / पर फेंकी जाय महा० / अवतरणिका (स्त्री०) संक्षिप्त विवरण / अवाल (भ्वा० आ०) नीचे छलांग लगानी-स्वनिगममपअवताररहस्यम् (नपुं०) अवतार लेने का भेद / हाय मत्प्रतिज्ञां ऋतमधिकर्तुमवप्लुतो रथस्थः भाग० अवतारोहेशः (अवतार+उद्देशः) अवतार लेने का प्रयोजन। 1 / 9 / 37 / भवतारणम् [अव+त+णिच् + ल्युट्] उतार, अवतार | अवबोधित (वि.) [अवबुध+णिच+क्त जगाया हुआ ....पौष्यं पौलोममास्तीकमादिरंशावतारणम्-महा० -रामो रामावबोधितः -- रघु० 12 / 23 / शरा४२ / अवभङ्गः (वि.) [अवभञ्ज--घञ्] टूटा हुआ, अवयत् (वि.) [अवदो+शत] तोड़ने वाला, शतशो विशि- जिसकी हड्डी टूट गयी हो,--ङ्गः 1. तोड़ देना खानवद्यते--कि० 15 / 48 / 2. (नाक या कान का) बींधना। अवधिः [अव+धा--कि] शासनादेश, अधिदेश, ---वयं त / अवमर्दः [अव+मृद्घा ] 1. संघर्ष, हलचल-न त्वां भरतदेशाऽवधि कृत्वा हरीश्वर--रा० 4 / 8 / 25 / सम० समासाध्य रणावमदं-रा० 5 / 48 / 6 2. एक प्रकार -ज्ञानम् जैन शब्दावली में ज्ञान की तीसरी अवस्था का ग्रहण / जिसमें इन्द्रियातीत विषयों का ज्ञान भी मनष्य को हो / अवमदिन् (वि.) [ अवमर्द+णिनि ] हत्यारा,-महात्मजाता है। नस्तस्य रणावमदिनः ---रा० 5 / 37565 / भवहित (वि०) (वेद) (अवधा +क्त] मग्न, पतित, | अवशित (वि.) [अवमश+णिच् + क्त | 1. बिगड़ा -त्रित: कूपेऽवहितो देवान् हवत-ऋ० 11105 / 17 / हुआ, नष्ट किया हुआ-इति दक्षः कविर्य भद्ररुद्रावअवधारणम् [अब++णिच् + ल्युट] (नाम का) उच्चा- मर्शितम् --भाग० 4 / 7 / 48 / रण करना-न त्वां देवीमहं मन्ये राज्ञः संज्ञावधारणात् / अवमूत्रयत् (वि.) [ अवमूत्र+शतृ ] मूत्र करके भूमि रा० 5 / 33 / 10 / को गन्दा करने वाला - अवमूत्रयतो मेढ़म् ... मनु० अवधूत (वि.) [अव++क्त] 1. समझा हुआ, जाना / 8282 / हुआ 2. (ब०२०) इन्द्रियाँ (सांख्य० में)। अवमेहः [अवमिह+घञ ] विष्ठा, मल - कामं प्रयाहि अवध्यै (भ्वा० पर०) तिरस्कार करना-सोऽवध्यातः जहि विश्रवसोऽवमेहम् - भाग० 9 / 10 / 15 / सुररेवम् --भाग० 3 / 12 / 6 / / अवयवप्रसिदिः (स्त्री०) (शब्द के) खण्डों का निर्देशन, अवध्यानम् अव+ध्ये+ल्युट] तिरस्कार-यथा तरेसद- व्यत्पत्तिपरक सार्थकता - न चावयवप्रसिद्धया समवध्याममहः--भाग० 5 / 10 / 24 / दायप्रसिद्धिर्बाध्यते-मी०सू०६।८।४१ पर शा०भा०। अवमिः (स्त्री०) [अव--अनि] 1. भमि, पथ्वी 2. नदी। | अवयुत्यनुवादः (पुं०) किसी वस्तु का अंशों में उल्लेख सम० जः मंगल ग्रह,-जा सीता,-भूत् राजा, करना-- एक वृणीत इत्यवयुत्यनुवादोऽयं त्रयाणामेव पहाड़,-सारा केले का पौधा / .... मै० सं०६।११४३ पर शा० भा०। अवनिष्ठी (दिवा० पर०) किसी पर थकना-. अवनिष्ठी- | अवरक्षणी [ अवरक्ष् + ल्युट्+ठी ] घोड़े को बांधने की वतो दाद द्वावोष्ठी छेदयेन्नृपः –मनु० 8 / 282 / / रस्सी-हरि० / अवनय (वि.) [अव+नी- प्यतु] अनुसरण कराये जाने | अवरीक (अवर+च्चि--कृ--तना० उ०) निकट लाना योग्य - अरण्येमुनिभिजुष्टे अवनेया भविष्यसि --रा. / जवादवरीकृतदूरदृकपथः --- 0 16026 / 7 / 46 / 9 / अववित (वि०) / अवरुद्+क्त ] जो आँसुओं के गिरने अवन्तिसुन्दरीकथा (स्त्री०) एक रचना जो दण्डी कवि की से अपवित्र हो गया हो अवक्षतावरुदितं तथा श्रादे कृति बताई जाती है। च वर्जयेत्... महा० 13 / 91141 / अवन्तिका (स्त्री०) 1. वर्तमान उज्जैन नगर 2. उज्जैन | अवरुद्ध (वि.) [अवरुध-+ क्त ] अत्यन्त व्याकुल-प्रहर्षेवासियों की बोली। __णावरुद्धा सा रा०६।११३।१४ / अबध्यकोप (वि.) [न० ब०] जिसका क्रोध प्रभाव रखने | अवरोधः [अवरुध्+घञ ] बाध्य करने वाली शक्ति वाला है- अवन्ध्यकोपस्य विहन्तुरापदाम् कि० 1 / -प्रजानन्दावरोधेन गृहेषु लोक नियमयत् -भाग० अवपतित (वि०) [अवपत्+क्त] नीचे गिरा हुआ-फल- 5 / 4 / 14 / सम०-गृहः अन्तःपुर,-जनः अन्तःपुर वृक्षावपतित: / रा० 2 / 28 / 12 / की महिलाएँ। अवपानम् (वेद०) [अवपा-+ल्य पीना मापस्थानं महि- | अवरोपितः [ अवरूप+णिच्+क्त] 1. सिंहासन से षेवावपानात्--ऋ० 10 // 106 / 2 / | उतारा हुआ, निष्कासित-पुराहं वादिना राम का। For Private and Personal Use Only Page #1230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1221 ) राज्यात्स्वादवरोपितः-रा० 4 / 8 / 32 2. घटाया हुआ, / अवस्फूर्ज, (म्वा० पर०) खुर्राटें भरना, 'घुर्राटा' करना ऊनीकृत इतरेष्वागमाद्धर्मः पादशस्त्ववरोपित:-मनु० -महा०६७। श८२ / अवहारः [अव+ +घञ] जो उड़ा कर ले जाता है न अवर्णसंयोगः [ त० स०] 1. दो भिन्न ध्वनियों का मेल | जीवस्यावहारो मां करोति सुखिनं यमः -- भट्टि 2. किसी भी वर्ण से संबंध का अभाव / 6.81 / अवर्तमान (वि.) [न० ब०] जो चाल समय से कोई | अवह्वे (म्वा० पर०) (वेद०) पुकारना, बुलाना विशो सम्बन्ध न रक्खे / अद्य मरुतामवह्वये ऋ० 5 / 56 / 1 / अवलम्बित (वि०) | अवलम्ब-क्त] चिपका हुआ, अवाछिद (रुधा० पर०) फाड़ देना, छिन्न-भिन्न कर देना। पकड़ा हुआ, आश्रित-समभिमृत्य रसादवलम्बितः अवाञ्चित (वि०) [ अवाञ्च+क्त ] नीचे की ओर -शि० 6.10 / झुका हुआ। अवलेह्य (वि०) [ अवलिह + ण्यत् ] चाटने के योग्य / | अवाचीन (वि०) [अवाच्---ख] 1. जो नीची निगाह से अवलेखा [ अबलिख-+-अ, स्त्रियां टाप् ] रेखा खींचना, देखता है दुर्योधनमवाचीनं राज्यकामुकमातुरम् रेखाचित्र बनाना, रेखाकृति / महा० 818117 2. नीच, पापी-बुद्धि तस्यापकअवलोकलवः [ न० स०] दृष्टि, कटाक्ष / पन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति महा० 5 / 34 / 81 / अवशप्त (वि.) [ अवशप ।-क्त ] अभियान-महा० 13 / / अवातल (वि०) जो वातग्रस्त न हो -सु०।। अवश (क्रया० पर०) 1टूटना 2. चारों ओर बिखर बिखर | अवान्तरवावयम् (नपुं०) मल कथन के कुछ अंशों को जाना-स तस्या महिमां दृष्ट्वा समन्तादवशीर्यत - त्याग कर, चयन की हुई उक्ति न च महावाक्ये रा० 1137 / 13 / अवान्तरवाक्यं प्रमाणं भवति मै० सं० 6 / 4 / 25 पर अवशीर्ण (वि.) [अब+ क्त ] टूटा हुआ, चूर-चूर | शा० भा०। किया हुआ। अवारित (वि०) [अ-----णिच+क्त] जिसे रोका न अवषट्कार (वि०) चिसमें 'वपद' शब्द का उच्चारण न गया हो,-तम् (अ०) बिना किसी रुकावट के। हो, जिसमें वेद के सांस्कारिक मन्त्रों के उच्चारण को ___ सम०-कवाटद्वार (वि०) नहीं रोका हुआ अर्थात् प्रक्रिया न हो। खुला हुआ है द्वार जिसके लिए। अवसन्न (वि.) [अवमदत] बुझा हुआ, उपरत, | अवाह्य (वि.) न! वह ! णिच+ण्यत] जो ले जाये मृत-ततस्तेप्ववसनेषु सेनापतिघु पञ्चसु रा० जाने के योग्य न हो। 5 / 46 / 38 / अविकच (दि०) [न. व.] जो खिला न हो, अर्थात वन्द अवसरप्रतीक्षिन् (वि०) [त० स०] जो किसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हो। अविकारिन (वि०) [न--विकार / णिनि] 1. जिसमें कोई अवसरान्वेषिन (वि.)।त० स०] जो किसी अवसर की परिवर्तन न हो 2. म्वामिभक्त -स्थाने युद्धे च कुशला__ ताक में हो। नभीरूनविकारिणः मनु० 7 / 190 / अवसाय / अब सानपभजा समाप्त करता ह अव- अविकार्य (वि.) [न० त०] अपरिवत्ये अविकार्योऽयम साया भविष्यामि दुरवस्यास्य कदा न्वहम-भट्टि०६८१। च्यते भग०२५। अवसायक (वि.) अव+सो-प्रवल ] विनाशात्मक -अव- | अविक्रियात्मक (वि.) न० ब०] जिसका स्वभाव अपरि द्यन्नत्रिणः शम्भोः मायकैरवसाय:-कैकि० 15 / 36 / वर्त्य हो, जिसकी प्रकृति न बदले। अवस्कन्दः [अव+स्कन्द +घञ ] (विधि में) दोपारोपण, | अविक्षोभ्य (वि.) [न० त०] 1. जिसमें कोई हलचल न इलज़ाम / हो 2 जो जीते न जा सके अविक्षोम्याणि रक्षांसि अवस्कन्न (वि.) [अव+स्क्रन्द-1-क्त] 1. बिखरा हुआ, --रा०६५।१७। फैला हुआ 2. आक्रान्त / अविखण्डित (वि०) [न० त०] अविभक्त, अविचल / अवस्कारः [अव+स्क - घन ] हाथी के बेहरे का आगे अविगान (वि.) [न० व०] अपस्वर रहित (गायन) / की और उभरा हुआ भाग मातं० 5 / 8 / 12 / | अविगीत (वि.) [न० त०] विकल करने वाले स्वर जिस अवस्थानम् | अव+स्था + ल्युट ] 1. सहारा -योऽवस्था- | में न हों। नमनुग्रहः भाग० 3127116 2. स्थैर्य, स्थिरता - | अविचक्षण (वि.) [न० त०] 1. अकुशल, जो चतुर न अलब्वावस्थानः परिकामति --भाग० 5 / 26 / 17 / / / हो, . 2. अनजान, अज्ञानी / अवस्नात (बि०) [अव+स्ना+क्त ] जिसमें किसी ने | अविचिन्त्य (वि.) [न+वि+चिन्त-+ण्यत्] जो समझा स्नानकर लिया है, (जल)। न जा सके, जो समझ से बाहर हो। For Private and Personal Use Only Page #1231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1222 ) अविच्छिन्न (व०) नि० त० साधारण, सामान्य नविशे-। अविरहित (वि.) [न० त०] अवियुक्त, जो कभी पृथक न __षेन गन्तव्यमविच्छिन्नेन वा पुन:--महा० 12 / 152 / 22 / / किया गया हो--अविरहितमनेकेनाङ्गभाजा फलेन अवितकित (वि.) न० त०] अप्रत्याशित, जिसके लिए .---कि० 5 / 52 / पहले कभी तर्कना न की हो। अविलक्य (वि.) [न० त०] गुप्त, जिसका मुकाबला न अवितळ (वि०) [न० त०] जिसका अनुमान न लगाया | किया जा सके, जिसको रोका न जा सके- अविलक्ष्यजा सके। मस्त्रमपरम् - कि० 640 / अवित (वि.) [अव+-णि-तच प्ररक्षक,-त्रातारमि- अविवक्षितवचनता (स्त्री०) उन मन्त्रों की स्थिति जो न्द्रमवितारमिन्द्रम् - म० ना० 2013 / ___ अपना शाब्दिक अर्थ प्रकट करने के लिए अभिप्रेत अविद (अ०) विस्मयादिद्योतक अव्यय-अर्थ है हन्त, ओह नहीं होते। --मच्छ०१। अविवक्षितवाच्य (वि.) [न० ब०] ध्वनि काव्य का एक अविद् (वि०) [न+विद् -1-क्विप] अनजान, अज्ञानी | भेद जिसमें शाब्दिक अर्थ अभिप्रेत नहीं है। ___-अविदो भूरितमसो - भाग० 3 / 10 / 20 / अविवेचक (वि.) [न० त०] जो किसी वस्तु के विवेचन अविदूषक (वि.) [न० त०] निरीह, भोलाभाला-अहितं __ की बुद्धि नहीं रखता। ___ चापि पुरुषं न हिंस्युरविदूषकम् -रा० 117 / 11 / / अविवेचना [नवि+विच्+युच्+-टाप्] विवेक बुद्धि का अविदूसम् (नपुं०) [अवि। दूस पा० 3 / 2636 वा०] भेड़ | ___ अभाव। का दूध। अविशयः [अव+शी-+-अप] संदेह का अभाव ... यदि बा अविखनस्,--नास् (वि०) [न० ब०] (वह बैल) जिसके | अविशये नियमः-- मी० सू०८१३।३१।। नाक में नकेल न डाली गई हो। अविशेषवचन (वि०) वह कथन जिसमें कोई विशेष विवअविधायक (वि.) [न-विधा+ण्वल] जिसमें विधि या रण न दिया गया हो- अविशेषितवचन: शब्दो न आदेश की शक्ति न हो-नहि विधायकाविधायकयो- विशेषेव्यवस्थापितो भविष्यति-मी० सू० 4 / 3 / 15 / रेकवाक्यत्वं भवति --मी० सू० 10820 पर | अविश्रम्भः [न० त०] विश्वास का अभाव, अविश्वास, शा० भा०। अप्रत्यय / अविनेय (वि.) [न० त०] 1. जो नियंत्रण में न आ सके | अविषक्त (वि.) [न० ब०] निरवबाध, अनियन्त्रित, जिस 2. जो शिष्य न बन सके / पर कोई प्रतिबन्ध न हो तुभ्यं नमस्तेस्त्वविषक्तदअविनाशिन् (वि०) [न० त०] जिसका कभी नाश न हो, ष्टये - भाग० 10 // 40 // 12, अविषक्तवेग:-कि. आत्मा / 13 / 24 / अविनिर्णयः [न+विनिर्+नी+अच्] अनिर्णय, निर्णय का अविषध (वि०) [न० ब०] 1. जिसका निर्णय करना अभाव / कठिन हो-सीमायामविषह्यायाम-मनु० 8 / 265 अविनीय (वि०) निष्कपट, निर्दोष / 2. जो सहा न जा सके - अविष व्यसनेन घुमिताम् अविपर्ययः [न० त०] विरोध का अभाव, संशय का अभाव, -कि० 4130 3. जहाँ पर पहुंचना कठिन हो असन्दिग्ध स्थिति -अविपर्ययाद्विशुद्धम्-सां० का० -चक्षुषामविषह्यम् - महा० 1412013 / 64 / अविसंवादः [न० त०] विरोष न प्रकट करना, अपनी अविप्रतिपत्तिः (स्त्री) [नत०] मतभिन्नता का अभाव प्रतिज्ञा का उल्लंघन करना। ---शब्दस्पर्शरूपरसगन्धेष्वविप्रपत्तिः इन्द्रियजयः-कौ० अविहस्त (वि.) [न० ब०] अनुद्विग्न, साहसी --अथ भूशअ०१।६। मविहस्तस्तत्र कान्तारगर्भ-शिव० 36 / अविप्रवासः [न० त०] एकत्र रहना, घनिष्ठ मिलन। अविहा (अ.) हन्त ! अहो ! / अविप्रहत (वि.) [न० त०] (वह जंगल या मार्ग) जह | अविहित (वि.)[न+विधा +क्त जो नियत न किया ___ किसी के पैर न पड़े हों। / गया हो, जिसका विधान न किया गया हो। अविप्लुत (वि.) [न० त०] अन्यनीकृत, अविकृत / अवी (स्त्री०) [अवत्यात्मानं लज्जया अ+ई ] रजस्वला अविभासित (वि.) न० त०] जो हिसाब किताब में न स्त्री-उणादि. 3158 / लिया गया हो। अवीचिसंशोषणः [अवीचि+सम्+शुष्+णिच् + ल्युट्] अविरल (वि०) [न० त०] विशाल, स्थूलकाय–अविरल- समाधि का विशेष प्रकार। _ वपुषः सुरेन्द्रगोपः ---कि० 1127 / अवृष्टिसंरम्भ (वि.) [न० ब०] बारिश के तैयारी किये अविरविकन्यायः (पुं०) व्याकरण का एक न्याय जिसके | बिना आरम्भ करने वाला-अवृष्टिसंरम्भमिवाम्बुवाआधार पर 'अवि' को 'अविक हो जाता है। हम् -कु०॥ - For Private and Personal Use Only Page #1232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रखना ! ( 1223 ) अवेक्षमाग (वि०) [अव+ई-शान] सध्यान देखने / 9 / 4 / 40 2. वह स्थान जहाँ पर कोई खाया जाता वाला - अवेक्षमाणश्च महीं सर्वांतामन्दवेक्षत-रा०५ / है-अधिकरणवाचिनश्च - पा०२।३।६८ / अवेदविद् (नि.) [अवेद---विद्+विवप वेदों को न अशकुनः,-नम् [न० त०] अशुभ शकुन, बुरा शकुन कलजानने वाला। यन्नपि सव्यथोऽवतस्थेऽशकूनेन स्खलितः किलेतरोऽपि अवेदविहित (वि.) [अवेद- विधा -क्त] जिसका वेद --शि०९।८३ / ____ में विधान न हो। अशठ (वि०) [न-शठ + अच] जो ढीठ न हो, आज्ञाअवेदना [न-विद्+युच] पीड़ा का अभाव / कारी-अजिह्मस्याशठस्य च दासवर्गस्य भागधेयम् अवयात्यम (नपुं०) लजाना, लज्जा का भावना रखना। --मनु० 31246, इदं ते नातपस्काय नाशठाय अवैशेषिक (वि.) [न+विशेष +ठक] जो किसी विशेष भग०। परिणाम को दर्शाने वाला न हो, जिसका कोई फल न अशब्दार्थः (अशब्द+अर्थः) 1. शब्द द्वारा अनभिप्रेत अर्थ निकले---अवैशेपिकोऽयं हेतु:--मी० सू० 111111 पर 2. वह अर्थ जो प्रत्यक्ष रूप से वाक्य से प्रतीत (अभिशा० भा० / हित) न होता, हो. अशब्दार्थोऽपि हि प्रतीयते -- म० अव्यङ्गन्ध / वि०) नि० ब०] 1. निरपराध 2. जिसमें सं० 4 / 1 / 14 पर शा० भा० / ध्वनि या व्यन्जना का अभाव हो (काव्य में)। अशाब्द (वि.) [न+शब्द+अण] जो शब्दों से प्रतीत न अव्यतिरेकः न० त०] अपार्थक्य, निरपवाद, (वि.) होता हो-मै० सं० 5 / 1 / 5 / न० ब०] जो भलने वाला न हो, जो कोई त्रुटि न अशिथिल (वि.) [न० ब०] 1. जो ढीला न हो, कसा करे। हुआ 2. प्रभावशाली। अव्यपदेश्य (वि.) [अव्यपदिश् + ण्यत्] जिसकी परिभाषा अशिशिर (वि.) [न० ब०] गर्म / सम० --करः, न की जा सके। ___-किरणः, - रश्मिः सूर्य- नीतोछायं मुहुरशिशिररअव्यपोह्य (वि०) अन्यप] + बह---ण्यतजिसको | इमेरुस्र:..-कि० 5 / 31 / झुठलाया न जा सके, जिससे इंकार न किया जा | अशीतल (वि.) [न० ब०] गर्म-दधत्युरोजद्वयमुर्वशीतसके। लम्-शि० 9 / 86 / अवायम् नि० त०] कुशलक्षेम, हित, कल्याण-युधिष्ठिर-। अशीतिद्वयम् (नपुं०) बयासी प्रश्न जो कृष्णयजुर्वेद के सात मथापच्छत्सर्वांश्च सुहृदोऽव्ययम् --भाग० 1083 / 1 / / काण्डों में विभक्त है। अव्यवच्छिन्न (वि०) अव छिद्---क्त] नट्टा हुआ, अशभशंसनम् [अशुभ+शंस+ल्युट बुरा समाचार देना। जिस में कोई विघ्न न पड़ा हो, निर्वाध / अशुभोदयः (अशुभ+ उदयः) [अशुभ+-उद्+इ+अच्] अव्यवसायः [अव्यव-सोधा ] निर्णायक शक्ति या | अशभ सूचक शकुन / संकला का अभाव। अशकजा (स्त्री०) एक प्रकार का चावल / अव्यवसायिन् (वि०) [अन्यबसाः --णिनि] आलसी, जो अशोकज (वि०) जो दुःख या शोक से पैदा न हुआ हो, निर्णायक बुद्धि से रहित है बहुशाखा ह्यनन्ताश्च हर्ष या खशी से उत्पन्न - अशोकजः अश्रुबिन्दुभिः बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् -- भग०२१४१ / -रा० 6.125 / 42 / अव्यविकन्यायः (पुं०) तु. 'अविरविकन्यायः', यद्यपि अशोभनम् [न---शुभ-ल्युट] अपराध, त्रुटि, दोष-रामेण 'अबि' का ही 'अविक' बनता है, परन्तु 'अविक' से यदि ते पापे किञ्चित्कृतमशोभनम् --रा०२१३८७ / 'अविक' (बकरी का मांस) जैसा कोई दूसरा शब्द अमवर्षः [प० त०] 1. ओले पड़ना 2. (शत्रु पर) पत्थर 'अवि' से नहीं बनता। फेंकना। अन्याक्षेपः नि:दि आक्षिप् / घा] अनियमितता | अश्यानम् न---श्य-क्त] अगुरु का एक प्रकार जो जमा या आरम्भिक कठिनाई का अभाव -अब्पाक्षेपी भवि- हुआ न हो-कौ० अ०२।११। ष्यन्त्याः कार्यसिद्धेहि लक्षणम् -- रघु० 1016 / | अश्री [न० त०] दुर्भाग्य, बुरी क़िस्मत / अव्याजकरुणा (स्त्री०) निष्कपट दया, स्वाभाविक सहान- अधीकरम् (नपुं०) [अश्री+कृ+अच] अशुभ / भूति अव्याजकरुणामतिः ललि। अश्वः [अश्नुते अध्वानं व्याप्नोति - महाशनो वा भवति अव्याहृतम् (नपुं.) [अव्या हुक्त चुप रहना, न - अश्+क्वन् ] घोड़ा / सम०-घासकायस्थ. बोलना--अव्याहृतं व्याहृताञ्छेय आहुः - महा० (पुं० ) घोड़ों के लिए घास का संभरण करने 5 / 36 / 12 / वाला संविदाकार, - चर्या घोड़े की देख-रेख अशितम् (नपुं०) [अश् / क्त] 1. जो खाया जाय, खाद्य करने वाला तस्याश्वचर्यां काकुत्स्थ दृढधन्वा महा .. प्राहुरब्भक्षणं विप्रायशितं नाशितं च तत्-भाग० / रथः (अंशुमानकरोत्)--रा० ११३९१६७,-जीवनः For Private and Personal Use Only Page #1233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1224 ) चना,-मन्तुरा अस्तबल, -- रिपुः भैसा--भा० प्र०, / प्रस्तर मूर्ति की स्थापना के लिए लेई या गारा बनाने -~-सधर्मन् घोड़ों की भांति आचरण करने वाला- में प्रयुक्त आठ सुगन्धित द्रव्य-चन्दन, अगर, देवदार, अश्वसघर्माणो हि मनुष्याः -कौ० अ० 219, सूत्रम् कोलिंजन, कुसुम, शैलज, जटामांसी और गोरोचन, 'घोड़ों को पालने' के विषय पर एक पुस्तक / तालम् मूर्तिकला में प्रयुक्त होने वाला गज जिसकी अश्वतरीरथः [रम्यतेऽनेन- रम+कथन] खच्चरी द्वारा लम्वाई उस मूर्ति के समान होती है जो अपने मुख से खींचा जाने वाला रथ / / आठ गुणा होती है,-देहाः स्थूल और सूक्ष्म शरीर अश्वत्यः [न श्वः तिष्ठति इति अश्व स्था+क]पीपल का | जो गिनती में आठ होते है... स्थूल, सूक्ष्म, कारण, पेड़ / सम०-नारायणः भगवान विष्णु जिनकी पीपल महाकारण, विराट्, हिरण्य, अव्याकृत और मूलप्रकृति, के वृक्ष के रूप में पूजा की जाती है,-पूजा सभी --नागाः 1. आठ साँप-अनन्त, वासुकि, तक्षक, देवता पीपल में रहते हैं' ऐसा समझ उसकी पूजा कर्कोटक, शंख, कुलिक, पम और महापद्म 2. आठ करना-मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णरूपिणे, अग्रतः दिग्गज-ऐरावत, पुंडरीक, वामन, कुमुद, अंजन, शिवरूपाय वृक्षराजाय ते नमः, -- प्रदक्षिणम् धार्मिक पुष्पदंत, सार्वभौम और सुप्रतीक, ' पक्ष (वि.) संस्क्रिया के रूप में पीपल की परिक्रमा करना। (ऐसा कमरा या घर जिसमें) एक ही ओर आठ अषडक्ष (वि.) [न+षट्+अक्षि] दे० 'अषडक्षीण'। स्तम्भ लगे हुए हों, प्रकृतयः पांच महाभूत (अग्नि, 'ईन' प्रत्यय स्वार्थ को ही प्रकट करता है। अतः जल, पृथ्वी, आकाश, वायु), मन, बुद्धि और अहंकार, 'अषडक्ष' और 'अषडक्षीण' दोनों शब्दों का एक ही -प्रधानाः राज्य के आठ प्रधान अधिकारी-वैद्य, अर्थ है। उपाध्याय, सचिव, मन्त्री, प्रतिनिधि, राजाध्यक्ष, अपडक्षीण (वि.) [न+षट्+अक्षि+ईन] जो छः आँखों प्रधान और अमात्य,--भैरवाः शिव के आठ गण से न देखा गया, अर्थात् केवल दो ही व्यक्तियों के -असिताङ्ग, संहार, रुरु, काल, क्रोध, ताम्रचूड, द्वारा निर्धारित तथा उन दो कोही ज्ञात (जिसमें चन्द्रचूड, और महाभैरव, भोगाः सुखमय जीवन के तीसरा व्यक्ति सम्मिलित न हो), आठ तत्त्व,--अन्न, उदक, ताम्बूल, पुष्प, चन्दन, वसन, रहस्य, गुप्त बात। शय्या और अलंकार, मङ्गलघृतम् आयुर्वेद की अष्टन् (वि.) [ अर व्याप्ती कनिन् तुट् च] आठ, आठ औषधियाँ मिला कर तैयार हुआ घी --प्रश्न: (समस्त शब्दों में 'अष्टन्' के न का लोप हो जाता ज्योतिष में प्रश्न विचार प्रणाली के लिए अपनाया है। सम० अङ्गम् (अष्टांग) 1. आयुर्वेद पद्धति गया एक ढंग,--मधु आठ प्रकार का शहद-माक्षिक, जिसमें निम्नांकित आठ अंग होते हैं - द्रध्याभिधान, भ्रामर, क्षौद्र, पोतिका, छात्रक, अर्ध्य, औदाल और गदनिश्चय, कायसौख्य, शल्यकर्म, भूतनिग्रह, विष दाल, महारसाः आयुर्वेद पद्धति के आठ रस निग्रह, बालवैद्य और रसायन 2. बुद्धि की आठ ---वैकान्तमणि, हिंगूल, पारा, हलाहल, कान्तलोह, क्रियायें-- शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारणा, चिन्तन, अभ्रक, स्वर्णमाक्षी और रौप्यमाक्षी, रोगाः आयुर्वेद ऊहापोह, अर्थविज्ञान और तत्त्वज्ञान 3. योगाभ्यास में वर्णित आठ प्रधान रोग-वातव्याधि, अश्मरी, के आठ अंग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, कुष्ठ, मेह, उदक, भगन्दर, अर्श और संग्रहणी, धारणा, ध्यान और समाधि,-अधिकाराः सामाजिक -मातृकाः पराशक्ति के आठ अवतार- ब्राह्मी, व्यवस्था में शक्ति की आठ स्थितियाँ-जल, स्थल, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, ग्राम, कुल, लेखन, ब्रह्मासन, दण्डविनियोग और कोनेरी और चामुण्डा, मर्तयः आठ प्रकार की पौरोहित्य, -- अध्यायी (अष्टाध्यायी) 1. पाणिनि मूर्तियाँ-शैली, दारुमयी, लोही, लेप्या, लेख्या, सैकती, का व्याकरण 2. शतपथ ब्राह्मण, अन्नानि भोजन के मनोमयी और मणिमयी,--- योगिन्यः आठ योगिनियाँ आठ प्रकार- भोज्य, पेय, चोष्य, लेह्य, खाद्य, चळ, जो पार्वती की सहेलियाँ थीं-मङ्गला, पिङ्गला, धन्या, निपेय, और भक्ष्य,-आपाद्य (वि.) आठगुणा भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा और सङ्कटा, - धर्गः अष्टापायं तु शुद्रस्य स्तेये भवति किल्विषम् ... मनु० एक प्रकार का रेखाचित्र जो किसी विशेष समय पर ८।३३७,-उपद्वीपानि छोटे-छोटे आठ द्वीप--स्वर्ण ग्रहों की यथार्थ स्थिति दर्शाता है,--सिद्धयः दे० प्रस्थ, चन्द्राशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मन्दरहरिण, अप्टमहासिद्धयः--अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, पाञ्चजन्य, सिंहल और लड्रा- कुलाचलाः आठ प्राकाम्य, ईशिता, वशिता और प्राकाम्य / मुख्य पर्वत-नील, निषध, माल्यवत, मलय, विन्ध्य, अष्टमराशिः[ष० त०] किसी व्यक्ति के नक्षत्र की राशि. गन्धमादन, हेमकूट और हिमालय, -- मर्यादागिरयः ! से आठवीं राशि जो प्रायः अशुभ मानी जाती है। आठ मुख्य पहाड़, दे० ऊपर,-गन्धा; मन्दिरों मे अष्टागव (वि०) [ब० स०] (गाड़ी) जिसमें आठ बैल For Private and Personal Use Only Page #1234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1225 ) जुते हों, ... अष्टतः कपाले हविषि, गवि च युक्ते-पा० / असको (असौ) [अदस्+सु, पा० 5 / 371, कादेशः] 6 / 3 / 46 वा०। 1. यह या वह 2. यह दुष्ट--भार्योढं तमवज्ञाय तस्थै अष्टागवम् [अष्टानां गवां समाहार:] आठ गौवों का सौमित्रयेऽसको-भट्टि० 4 / 15 / / समूह / असक्तिः (स्त्री०) [न+सज+क्तिन] सामान्य सांसारिक अष्टावश (वि०) [ अष्ट च दश च ] अठारह / सम० बातों की ओर मन का लगाव न होना-- असक्तिरन -तस्वानि अठारह प्रधान तत्त्व जिनमें महत, अहङ्कार, भिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु - भग० 13 / 9 / मन, पञ्च तन्मात्रा, पञ्च कर्मेन्द्रियाँ तथा पञ्च ] असमकरः [न+सम्+-+अप्] मिलावट (विशेषकर ज्ञानेन्द्रियाँ गिनी जाती हैं, धान्यम् अठारह प्रकार जातियों में) का अनुभव। का अन्न है-यवगोधूमधान्यानि तिलाः कङगुकुलत्यकाः, ! असकल्पित (वि.) [न+सम् +कल्प-+क्त जो कभी माषा मुद्गा मसूराश्च निष्पावाः श्यामसर्षपाः। कल्पना ने किया हो असङकल्पितमेवेह यदकस्मात् गवेधुकाशनीवारा ओढक्योऽथ सतीनकाः, चणकाश्चीन- प्रवर्तते - रा० 2 / 22 / 24 / / काश्चव धान्यान्यष्टादर्शव तु, पर्वाणि महाभारत असागत (वि०)[न+सम्+गम्+क्त] निर्बाध, अनवरुद्ध के अठारह खण्ड आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, -शक्तिं क्षिप्तामसङगताम्-रा० 670 / 134 / भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, | असदाश्रयः [असत्+आ+श्रि+अच्] अयोग्य व्यक्ति से अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासि, मौसल, महा- सम्मिलन / प्रस्थानक और स्वर्गारोहण / असतस्तु (नपुं०) [क० स०] अविद्यमान चीज़ / अस् (दिवा० पर०) युद्ध करना युयोध बलिरिन्द्रेण | असतादिन् (वि.) [असत्+वाद+णिनि] जो व्यक्ति तारकेण गुहोस्यत-भाग० 8 / 10 / 28 / किसी वस्तु या बात की असत्ता को स्थापित करना अस्तः [ अस्...आधारे क्त, अस्यन्ते सूर्य किरणा यत्र] चाहता है। 1. छिपना, पश्चिमाद्रि 2. सूर्य का छिपना। सम० | असन्तुष्ट (वि.) [न+सम्+तुष्+क्त] अतृप्त, अप्रसन्न -निमग्न (वि.) अस्ताचल के पीछे छिपा हुआ --असन्तुष्टो द्विजो नष्ट:-नीति० / -विडम्बयत्यस्तनिमग्नसूर्यम-रघु० १६११,----मस्तक: | असन्तोषः [न+सम्+तुष्+घन] अतृप्ति, अप्रसन्नता / ---शिखरः, अस्ताचल की चोटी, समयः सूर्य छिपने असम्धानम् [न+सम्+घा+ल्युट्]1. निरुद्देश्यता 2. विलका समय, मृत्यु का समय-करजालमस्तसमयेऽपि गता, पार्थक्य / सताम्-शि० 9 / 5 / असमभागः [क० स०] जो समान रूप से नहीं बांटा अस्तिक्षीर (वि.) (अस्ति क्षीरं यस्य-पा०२।२।२४ वा०] हुआ है। जिसके पास दूध हो, दूध रखने वाला। असमायुक्त (वि०) [ना+सम्+आ+युज्+क्त] जो असक्रान्तः [नसम्+क्रम्+क्त] अधिमास, मलमास, भलीभांति प्रशिक्षित न किया गया हो। लौंद का महीना। असमिध्य (अ०) न+सम्+इ+ ल्यप] न जला कर / असंयाज्य (वि.) [न+सं+यज्+ण्यत् ] जिसके साथ | असमीचीन (वि.) [न+सम् +अ +क्विन्+ख] जो मिलकर किसी को यज्ञ करने की अनुमति न हो / सही न हो, त्रुटिपूर्ण। -मन०। असमृद्धिः (स्त्री०) [न+सम् +ऋष+क्ति सफलता का असंयोगः (न-सम्+युज+ध ] 1. संबंध का अभाव __ अभाव, किसी भी वस्तु की कमी होना-नात्मानम2. जो संयुक्त व्यञ्जन न हो पा० शरा५ / वमन्येत पूर्वाभिरसमृद्धिभिः-- मनु० 4 / 137 / असंरम्भः [न+सम्+रम्भ+घन] निर्भयता, निडरता असमेत (वि०) न+सम्+आ+३+क्त] जो अभी -महा० 14 // 38 / 2 / __ पहुँचा न हो, अनागत, अनुपस्थित-क्वचिदसमेतअसंरोधः [न+सम्+रुध+घा] अनाघात। परिच्छद:-मनु० --- 970 / / असंवर (वि.) [न० ब०] जो रोका न जा सके, दुनिवार असम्पात (वि०) [न० ब०]अनुपस्थित, जो निकट न हो। --असंवरे शंबरवैरिविक्रमे -नै० 1153 / | असम्पातः[न+सम्+पत्+घश ]निष्क्रियता, निठल्लापन, असंहार्य (वि.) [न+सम्+हण्यत] 1. अजेय, जिसका कार्य का रुक जाना ... असम्पातं करिष्यामि ह्यद्य मुकाबला न किया जा सके विधिनमसंहार्यः प्राणिनां त्रैलोक्यचारिणाम्--रा० 3164159 / प्लवगोत्तम रा० 5 / 3714 2. जिसे मार्गभ्रष्ट न असम्बद्यार्थव्यवधान (वि.) जिसने असंगत बात को बीच किया जा सके। में आकर रोक दिया है- तस्मानासम्बद्धार्थव्यवधानकअसकृत्कथनम् [असकृत् + कथ् + ल्युट्] आवृत्ति, दोहराना / वाक्यता---मी० सू० 3 / 121 पर शा० भा०। असकृद्धवः [असकृत्---भू+अप] दांत बृ० सं० / | असम्बोधः [न+सम्+बुध+घञ] समझ का अभाव / For Private and Personal Use Only Page #1235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1226 ) प्रसम्भवत् (वि.)[न+सम्+भू+शत] असंभाव्य, अघट- / / भोग में मस्त हो, सांसारिक विषय वासनाओं में मग्न नीय। -घ्नन्ति ह्यसुतपो लुब्धाः भाग० 101 / 67 / असम्भावना [न+सम् + भू-+णिच् + युच्-+टाप्] सम्मान | असुगन्ध (वि.) [न० ब०] जिसमें खुशबू न आती हो। का अभाव। असुतर (वि०) [न० त०] जो आसानी से पार न किया असम्भावित ( वि० ) [ न+सम् + भू+णिच् + क्त ] | जाय, जिसमें अनायास साफल्य प्राप्त न हो। अयोग्य / सम०-उपमा ऐसी समानता बतलाना जो | असुन्दर (वि.) [न० त०] जो खूबसूरत न हो। असंभव हो। असुरः [असु+र, असुरताः स्थानेषु न सुष्ठुरताः, चपला असम्भाष्य (वि०) [न+सम् + भाष् + ण्यत्] जिससे बात | | इत्यर्थ:] राक्षस / सम-असूफ राक्षसों का रुधिर करना उचित न हो। ~ असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते-दे० मा० 11,- गुरुः असम्भोज्य (वि.) [न+सम्+भुज+णिच+-ग्यत्] जो 1. शुक्राचार्य 2. शुक्र नाम का ग्रह,---दूह, राक्षसों का सहभोज में सम्मिलित होने के योग्य न हो-मनु० शत्रु अर्थात् देव पुरः क्लिश्नाति सोमं हि सैहिकेयो९।२३८ / ऽसुरद्रुहाम्---शि० 2 / 35 / असम्मोहः [न+सम् +मुह.+घञ्] 1. माया या भ्रम से असुषिर (वि०) [न-शुष+किरच, शस्य सः] जिसमें मुक्ति 2. आत्मसंवरण 3. सत्य ज्ञान / कोई छिद्र न हो, जो दोषी या कपटी न हो। असम्या प्रयोगः [असम्यञ्च+प्र+युज्+घञ्] अशुद्ध | असूतजरती [असूत+जरती पा० 6 / 2 / 42] वह स्त्री जो व्यवहार, गलत परिपाटी। बिना किसी बच्चे को जन्म दिये ही बूढी हो गई है। असव्य (वि.) [न० त०] दक्षिण पार्व। असूर्त (वि.) [न० ब०] 1. अन्धकारयुक्त 2. अज्ञात, दूरअसानिध्यम [न+सन्निधि-+ष्या] असामीप्य, अनु- वर्ती। सम०---रजसः वे लोग जो सर्वथा अलग-अलग पस्थिति-असान्निध्यं कथं कृष्ण तवासीढष्णिनन्दन रहते हैं . असूर्तरजसो नाम धर्मारण्यं महामतिः ... रा० - महा० 3 / 14 / 1 / 113217 / असामञ्जस्यम् [न+समञ्जस+व्यञ] 1. अशुद्धि असूज् (नपुं०) [न+सृज् -- क्विन्] 1. रुधिर 2. मंगलग्रह 2. अनौचित्य / 3. जाफरान / सम... ग्रहः मंगलग्रह,-दिग्ध (वि०) साम्प्रतिकता (स्त्री०)[न+संप्रति+ठक+ता] अनुचित खून से लथपथ / व्यवहार करने की अवस्था / असेवा [न० त०] अभ्यास का अभाव - न तथतानि शक्यन्ते असाम्प्रदायिक (वि.) [न+सम्प्रदाय+ठक्] जो लोक- सन्नियन्तुमसेवया-मनु० 2 / 96 / सम्मत न हो, जो परम्परा के विरुद्ध हो / अस्तब्ध (वि.) [न० त०] 1. चुस्त 2. जो घमंडी न हो, असावधान (वि.) [न+सह.+अव+धा+ ल्युट्] उपेक्षा / हठी न हो-महा० 5 / 12 / करने वाला, प्रमादी, लापरवाह / अस्तोक (वि.) [न० त०] जो थोड़ा न हो, बहुत अधिक / असाहसिक (वि.) [न+साहस+ठक] जो साहस के साथ | अस्तोभ (वि.) [न-स्तुभ+घा] बिना किसी अवां काम न कर सके या जो बिना विचार न करेन छित शब्द के अस्तोभमनवा च सूत्र सूत्रविदो विदुः, सहास्मि साहसमसाहसिकी-शि० 9/59 / बिना किसी रोक टोक के। असिचर्या [असि-+च+टाप्] शस्त्रास्त्र चलाने का | अस्त्रम [अस्यते क्षिप्यते-अस+ष्टन। 1. फेंक कर मार अभ्यास / करने वाला हथियार 2. तीर, तलवार 3. धनुष / असिलता (स्त्री०) तलवार का फल ददृशुरुल्लसिता सम०-पातिन् (वि.) गोली मारने वाला-अस्त्र सिलतासिता:-शि० 6 / 51 / / / पातिभिरावृतम्-शुक्र० ४।१०३७,-भृत् जो तीर असिहस्तः [न० ब०] जो दाहिने हाथ के तलवार से वार ले जाता है, तीर धारण करने बाला, * यन्त्रम् धनुष, करता हो - महा०६।९०१४ पर नील०। / एक प्रकार का संयन्त्र जिसके द्वारा वीरों की मार की असिताञ्जनी (स्त्री०) काली कपास का पौधा / जाय--महा० 9 / 57 / 18 / असिड (वि.) [न+सिध्+क्त] (व्या० में) अक्रियात्मक | अस्थानम् [न+त०] असाधारण स्थान या प्रदेश अस्थान प्रतिरक्षा अर्थात् रद्द, प्रभावशून्य - पूर्वत्रासिद्धम् -पा० ___ वोपगतयमुनासङ्गमेवाभिरामा--मेघ० / 8 / 2 / 1 / अस्थास्नु (वि.) [न+स्था+स्नु] चंचल, अधीर / असिवान्तः [न० त०] गलत नियम, त्रुटिपूर्ण राधान्त। स्+कथिन्] 1 हड्डी 2. गुठली, या असिद्धार्थ (बि.) [न० ब०] जिसने अपने उद्देश्य में सफ- किसी फल की गिरी। सम० कुण्डम् एक नरक ___ लता न पाई हो। का नाम,-बन्धनम् स्नाय, कंडरा,-भेदिन (वि.) असुतप (वि.) [असु+तृप्-+क्विप्] जो अपने ही सुखोप- | जो हड्डी को बींध दे, अत्यन्त कठोर वाचस्तीक्ष्णाति For Private and Personal Use Only Page #1236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1227 ) भदिनः-महा० ३१३१२॥३,-यज्ञः और्ध्वदैहिक क्रिया / धीनं नराधिपं वर्जयन्ति नरा दूरात-रा०३।३३।५। का एक भाग,-विलयः किसी पवित्र नदी में किसी अस्विन्न (वि०) [न० त०] जिसे भली भांति उवाला न मृतक की अस्थियों को प्रवाहित करना,-सारः, स्नेहः गया हो। वसा, मज्जा। अस्वेद्य (वि.) न+स्विद् ---ण्यत] जिसे पसीना लाने के अस्नात (वि.) [न० त०] जिसने स्नान न किया हो। उपयुका न समझा जाय। अस्पृष्ट (वि.) [न--स्पृश्--क्त] जो (किसी कथन सें) आत (वि.हिन्+क्त जो बजाया न गया हो-अह आबूत न हो, (उसके) अंतर्गत न हो --अस्पष्टपुरुषा- तायां प्रयाणभेर्याम---का। न्तरं (शब्दम्)--कु. 675 / / | अहम् ( सर्व०) [अस्मद् का कर्तृकारक एक वचन] मैं / अस्पृष्टमैथुना (वि.) [न ब] कुमारी, अक्षतयोनि / ___सम० जुस् (पुं०) अहंकारी, जो केवल, अपना ही अस्पृह (वि.) [न० ब०] निरीह, निरिच्छ, जिसे इच्छा चिन्तन करें,-स्तम्भः अहङ्कार, घमंड / न हो। अहिचक्रम् [प० त०] तान्त्रिकों का एक आरेख। अस्फुट (वि.) न० त०] जो पूर्ण विकसित न हो--अस्फु- अहिबियापहा (स्त्री०) [अहिविप-+-अप+हा-+अङ टावयवभेदसुन्दरम्---नारा० / +टाप्] एक पौधे का नाम जिसके सेवन से विष दूर अस्मिमानः [त० स०] स्वाभिमान, अहंकार / हो जाता है। अस्मत (वि.न. त०] 1. याद न किया हुआ 2. जिसका | अहोलाभकर (वि०) [अल्पेऽपि, अहोलाभो जात इति प्रामाणिक ग्रन्थों में उल्लेख न हो। विस्मयं कुर्वाण: थोड़े लाभ से ही संतुष्ट होने वाला अस्वाधीन (वि.) [न० त०] जो स्वतन्त्र न हो अस्वा / व्यक्ति / आ आंहस्पत्य ( वि० ) [ अंहस्पति+यज ] मलमास | आकूतिः (स्त्री०) [आ++क्तिन् ] शतरूपा और मन संबंधी। __ की एक कन्या का नाम / आकण्ठम् (अव्य०) गले तक। सम-- तृप्त (वि.) आक्पारम् (नपुं०) कुछ साम-मन्त्रों के नाम / , स्वादिष्ट भोजनों से गले तक छिका हुआ। आकरकर्म (नपुं०) [ष० त०] खनिकार्य-को० अ० 2 / आकलना [आ+कल+युच् / टाप् ] गिनना, समझ, आकरग्रन्थः [प० त०] मूलग्रन्थ, आदिग्रन्थ / अनुमान, मूल्य आँकना। आकरजम् [50 त०] रत्न, जड़ाऊ गहना। भाकल्पम् / (अ.) चार युगों के चक्र की अवधि तक, आकारवर्ण (वि.) [न० ब०] रंग और आकार कमनीय। आकल्पान्तम् जब तक संसार है तब तक / आकृत (वि.) [आ+ +क्त ] निमित, बना हुआ आकाक्षा [ आ+काश् +अच् + टाप् ] अपेक्षा, आशा ___..- यद्वा समुद्रे अध्याकृते गृहे --ऋ० 81111 / -असत्यामाकाक्षायां सन्निधानमकारणम् -मै० सं० आकृतिः (स्त्री०) [आ-+क+क्तिन्] 1. छन्द 2. (गणित) 6 / 4 / 23 पर शा० भा० / बाईस की संख्या। आकाशः,-शम् [आकाशन्ते सूर्यादयोऽत्र-आकाश+घञ] आकृतियोगः [ष० त०] नक्षत्रपुंज / 1. आस्मान 2. अन्तरिक्ष 3. मुक्त स्थान / सम० | आकर्षः [आ+ कृष्-घा ] 1. धनुष भाकर्षः शारि -पथिकः सूर्य, बदष्टिः ,-बद्धलक्ष, जो बिना / फलके बूतेऽक्षे काम केऽपि च-हेम 2 विषाक्त पौधा उद्देश्य से इधर-उधर देखता है, - मुखिनः (व० व०)। -~~-महा० 5 / 40 / 9 / शव सम्प्रदाय के लोग, जो अपना मुंह आकाश की : आकृष्ट (पि०)[आ- कृष्+क्त ] खींच हुआ, आकर्षित ओर रखते हैं,-मुष्टिहननम् मूर्खता का कार्य जैसे किया हुआ, ऐंचा हुआ। आकाश की ओर घुसा उठाना, व्यर्थ कार्य,--शयनम् आकोपः [आ+कुप्+घञ ] चिड़चिलपन, मृदुक्रोध / / खुली हवा में सोना। आकौशलम् (नपुं०) [आ-+-कुशल+अण् ] विशेषता का आकुञ्चनम् [ आ+कुञ्च् + ल्युट् ] एक प्रकार का युद्ध- ____ अभाव, नैपुण्य की कमी विवर्षतुमथात्मनो गुणान् कौशल-शुक्र० 4 / 1100 / भृशमाकौशलमार्यचेतसाम्-शि०१६।३० / आकृतम् [आ+कू+क्त ] (प्रायः समास के अन्त में | आक्रमः [आ-+क्रम् -+घञ पौड़ी, रोढ़ी का डंडा -केनाप्रयुक्त) प्रस्तुतीकरण--तु० धर्माकूतम् / क्रमेण यजमानः स्वर्ग लोकमा काते-बु० 3 / 116 / For Private and Personal Use Only Page #1237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1228 ) आक्रान्त (वि.) [आ+ऋम्+क्त] 1. अलंकृत, सजा मास्ते शिवास्सन्तु . रा०२।२५।२१ / सम०-अपायिन हुआ, न खलु नरके हाराकान्तं घनस्तनमण्डलम् (वि०) जिसका स्वभाव उत्पन्न होने और फिर नाश -- भर्तृ० 1167 2. आरूढ, चढ़ा हुआ-निर्ययुस्तु- हो जाने का हो, जिसका जन्ममरण होता है-आगरमाकान्ता रा०६।१२७।१३। सम०-मति (वि.) मापायिनोऽनित्याः भग० / 24, -शास्त्रम् मन से पराजित, अत्यन्त प्रभावित / (नपुं०) 1. 'आगम' से संबंध रखने वाला शास्त्र आक्रान्तिः (स्त्री०) [आ+कम+क्तिन् ] आक्रमण, 2. माण्डूक्य का परिशिष्ट, श्रुतिः ( स्त्री० ) लूटखसोट यो भूतानि धनाक्रान्त्या बधात्क्लेशाच्च परम्परा। रक्षति-महा० 12 / 9718 / आगमित (वि०) [आगम् +णिच्+क्त] 1. सीखा हुआ, आक्रोरगिरिः, पर्वतः) [त० स०] आमोद गिरि, आमोद (किसी से) शिक्षा प्राप्त प्रकृतिस्थमेव निपुणाप्रमोद के लिए पहाड़--आक्रीडपर्वतास्तेन कल्पिताः गमितम् शि० 979 2. पठित, जिसने पढ़ लिया स्वेषु वेश्मसु-कु० 2 / 43 / है 3. निश्चय किया हुआ। आक्लिन (वि.) [आ+क्लिद+क्त ] 1. स्विन्न 2. दया | आगुल्फम् (नपुं०) जूता-हर्ष / से पसीजा हुआ। अग्निहोत्रिक [अग्निहोत्र-+-ठक] अग्निहोत्र से सम्बन्ध रखने आक्षपटलिकः [त० स०] 1. पुरातत्त्व और अभिलेखाधि वाला। कारी 2. लेखाधिकारी कौ० अ०२। आग्रयणेष्टिः (स्त्री०) [ष० त०] ऋतु के प्रथम फल की आक्षरः [ अक्षर-+अण्] वर्णमाला संबंधी। आहुति / आक्षिप्त [ आ+क्षिप्+क्त प्रक्षिप्त, लूंसा हुआ। आङ्गिकः [अङ्ग+ठक्] घुटनों से नीचे तक पहुँचने वाला आक्षेपः [आ+क्षिप्+घञ्] परास, (तीर की) पहुँच | कोट / -सोऽयं प्राप्तस्तवाक्षेपम्-महा०७।१०।६ / सम० आङ्गारिकः [अङ्गार---ठक] कोयले को जलाने वाला --रूपकम् उपमा अलंकार का वह रूप जिसमें केवल - महा० 12171120 / उपमान ही संकेतित हो। आङ्गिरस (वि.) [अङ्गिरस+अण] विशिष्टता से युक्त मावलः [ आखण्डयति भेदयति पर्वतान्-खण्ड+डलच् ] | वर्ष का नाम - आङ्गिरस्त्वब्दभेदे मुनिभेदे तदीरितम् इन्द्र / सम०-चापः,-धनुः इन्द्रधनुष, सूनुः इन्द्र - नाना। का पुत्र अर्थात् अर्जुन-अनुस्मृताखण्डलसूनुविक्रमः आचन्द्रतारकम् (अ.) जब तक संसार में चांद और तारे -कि० 024 / हैं, अर्थात् सदा के लिए। आक्षणिशाला [ष० त०] दस्तकार या शिल्पी का / आचपराच (वि.) [आ+अञ्च् + क्विन्+ परापूर्वक कारखाना। +अण्] इधर उधर घूमने वाला / आखुवाहनः [प० त०] गणेश का नाम / आखेटोपवनम् [त. स.] शिकार या मगया के लिए | आचमनवाहिन् (पु०) [आचमन+बाह+णिनि] पानी राजकीय जंगल। निकालने वाला, पानी खींच कर निकालने वाला, पनिआल्या (स्त्री) [आख्यायतेऽनया, आ+ख्या+अ+टाप] हारा। 1. सूरत, शक्ल-न हि तस्य विकल्पाख्या या च मद्वी- आचान्तिः (स्त्री०) [आ+चम् +क्तिन्] मुखशुद्धि के क्षया हता--भाग०११।१८।३७ 2. सौन्दर्य, मनोज्ञता लिए आचमन करना। वसीषु रुचि राख्यासु-रा० 7460112 / आचरित (वि.) [आचर+क्त] बसाया हुआ, बसा हुआ आल्यात (वि.) [आ+ख्या+क्त ] पुकारा गया,-सेवा -. देशमुत्सादयत्यनमगस्त्याचरितं शुभम् - रा० 1125 / श्ववृत्तिराख्याता- मनु० 4 / 6 / आल्यातम् [आ-ख्या+क्त ] आरम्भ करने का शुभ | आचारचक्रिणः [आचार : चक्र+इनि] वैष्णव संप्रदाय के शकुन / सदस्य। आगतत्वम् (नपुं०) [आगत +त्व ] उद्गम, मूल, आचारपुष्पाञ्जलिः (स्त्री०) (प्रवेश करते समय घर के जन्मस्थान। द्वार पर ही) धार्मिक प्रथा के रूप में पुष्पों का उपहार आगतसाध्वस (वि.) [न० ब०] डरा हुआ, भीत / भेंट करना। आगमः [आ०+गम-घन ] 1. जो वाद में आने वाला | आचार्यदेशीय (वि.) [आचार्यदेश---छ] आचार्य से कुछ है-- आगमवन्त्यलोप: स्यात्-मी० सू० 105 / 1 निम्न पद का (भाप्यकर्ताओं ने इस उपाधि को उन 2. पूजा की एक रीति-लब्धानुग्रह आचार्यात्तेन विद्वानों के नामों के साथ जोड़ा है जिनकी उक्ति सन्दर्शितागमः-भाग 1143 / 48 3. यात्रा-आग- 'सत्य' के एक अंग को ही प्रकट करती है)। For Private and Personal Use Only Page #1238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1229 ) आचार्यसवः [आचार्य+म+अच] एकाह--अर्थात् एक परम सुख, परमानन्द,--औपम्पम् स्वसादृश्य, अपनी दिन तक रहने वाला यज्ञ का नाम / समानता-आत्मौपम्यन सर्वत्र भग०६।३२,-कर्मन् आचार्यकम् | आचार्य+क] 1. आचार्य का पद--ताण्डवा- (नपुं०) अपना कर्तव्य, ज्योतिः (नपुं०) आत्मा चार्यकं कुर्वन्निव क्रीडाशिखण्डिनाम--भा० 111106 की प्रभा, तेज तुप्त (वि०) अपने में संतुष्ट-आत्म2. आचार्य का सम्मान करना चकाराचार्यकं तत्र तृप्तश्च मानवः-भग० 3.17, प्रत्ययिक (वि.) कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः महा० 7.14716 3. भाष्य- अपने अनुभव से जानकारी प्राप्त करने वाला--आत्मकर्ता या व्याख्याकार का कर्तव्य - श्रुत्यञ्चलाचार्यकम् प्रत्ययिक शास्त्रम् - महा० 12 / 246 / 13, - भूः ---विश्व० 289 / कामदेव,--वर्य (वि०) अपने दल या समुदाय से आचेष्टित (वि.) [आ+चेष्ट-क्ति] उपक्रान्त, वचन संबंध रखने वाला, उद्वाहुना जहविरे महरात्मवर्याः दिया हुआ, - तम् कार्य, कृत्य, कार्यकलाप / --शि० 5 / 15, - संस्थ (वि.) अपने पर ही दृष्टि आच्छन्न (वि.) [आ+छद्+क्त] आवृत, ढका हुआ। जमाये हुए-आत्मसंस्थं मनः कृत्वा -भग०६।२५, आच्छावनम् [आ+छ+णिच+ल्यट] बिस्तरे की चादर। ... सतत्त्वम् दे० आत्मतत्त्वम्,-स्य (वि०) जो अपने आजात (वि.) [आ+जन्+क्त] उच्च कुल में उत्पन्न, / अधिकार में हो-आत्मस्थं कुरु शासनम्-रा०२।२१।८। यो वं कश्चिदिहाजातः क्षत्रियः क्षत्रकर्मवित्-- | आत्ययिक (वि.) [अत्यय+ठक] विलम्बित, जिसमें महा०५।१३४१३८ / पहले ही देर हो गई हो-कृत्यमात्ययिक स्मरन्-रा० आजानिक (वि.) [आ+जाया (जानि) स्वार्थे कन] 5 / 58/46 / अन्तर्जात, नैसर्गिक आजानिकरागभूमिता-10 आत्ययिका [अत्यय+ठक] 1. कठिनाई. संकट 2. अनिवार्य 15 / 54, अ० श० 5 / कर्तव्य / आजपादम् (नपुं०) पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र / आत्रेयी [अरपत्यं ढक, स्त्रियां ङोप] गभिणी स्त्री महा० आजिमुखम् [ष० त०] युद्ध का अग्रभाग। 12 / 165 / 54, आत्रेयीमापन्नगर्भामाह:--मी० सू०६। आजीवितान्तम् (अ०) मरने तक, मृत्युपर्यत / 117 पर शा० भा० / आज्यग्रहः [ष० त०] धी का कटोरा / आथर्वणम् [अथर्वन्-+अण्] जारण मारण टोना, जादू / आज्यभागः [ष० त०] घी की आहुति का हिस्सा / आदष्ट (वि.) [आ-+दश्+क्त] कुतरा हुआ, चोंच मारा आजनाम्यञ्जने (नपुं० कर्तृ० द्वि० ब०) आँखों का अंजन हुआ, लूंगा हुआ। __और पैरों का उबटन / आदानम् [आ+दा+ल्युट्] पराभूत करना, पराजित करना आजलिकः [अञ्जलि+ठक्] अर्धचन्द्र के आकार का एक -अथवा मन्त्रवद् ब्युरात्मादानाय दुष्कृतम् --महा० तीर। 12 / 212 / माटविकः [अटव्यां चरति भवो वा ठक्] जंगली जनजाति आदानसमितिः (स्त्री०) जैनियों के पांच सिद्वान्तों में से का चौधरी--कौ० अ० 110 / एक जिसमें वस्तु को इस प्रकार ग्रहण किया जाता आदयरोगः [आ+ध्ये क पृषो+रुज्+घञ्] गठिया, है जिससे कि कोई जीवहत्या न हो। सन्धिवात / आदाल्भ्यम् निर्भयता- महा० 12 / 1205 / आण्डकोशः [अण्ड+अण्+कोशः] अंडे का खोल। आदिः [आ+दा+कि] 1. प्रथम, प्रारम्भिक 2. साम के आतङ्कम् (आ+तञ्च+घञ, कुत्वम्] भरणी नक्षत्र / सात भेदों में से एक-अथ सप्तविघस्य वाचि सप्तविधं आतप्त (वि०) [आ+तप्+क्त] गर्म किया हुआ, आग सामोपासीत...."यदेति स आदिः - छा० 2 / 8 / 1 / में तपाया हुआ। सम-दीपकम् दीपकालंकार का एक भेद (जहाँ आतिशायिक (वि०) [अतिशय+ठक्] अतिप्रचुर, बहुत | क्रिया वाक्य के आरम्भ में हो),-विपुला आर्या अधिक। ___ छन्द का एक भेद, वृक्षः एक प्रकार का पौधा / आतिष्ठद्गु (अ०) [तिष्ठन्ति गावः यस्मिन्काले दोहाय | आदित्यवर्शनम् [ष० त०] एक संस्कार जिसमें चार मास के उस समय तक जब तक कि गौएँ दुहे जाने के लिए बच्चे को सूर्य दर्शन कराया जाता है। ठहरती है (सायंकाल के बाद एक डेढ़ घंटा तक) आविस्यपुराणम् एक उपपुराण का नाम / -आतिष्ठद्गु जपन् सन्ध्याम् - भट्टि० 4 / 14 / / आदीनवदर्श (वि.) [आ+दी+क्त+वा+क, दृश्+ मात्मन् (पुं०) [अत्+मनिण्] मानसिक गुण-भावद्धि- घा] पासे के खेल में अपने साथी खिलाड़ी के प्रति या सत्यं संयमश्चात्मसंभवः-महा० 121167 / 5 / दुर्भावना रखने वाला। (समस्त शब्दों में आत्मन् के 'म्' का लोप हो जाता | आदेशः [आ+दिश्+घञ] किसी कार्य को करने का है)। सम-मानग्यः आत्मा को प्राप्त होने वाला | संकल्प, व्रत-उद्धृत में स्वयं तोयं व्रतादेशं करिष्यति For Private and Personal Use Only Page #1239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (. 1230 ) -रा० / 22 / 28 / सम०-कृत् जो आज्ञा का पालन / आनुत् (दिवा० पर०) नाचना, उछालना-आनृत्यतः करता है - तवादेशकृतोऽभियान्तु-- रा० 5 / 52 / शिखण्डिनो-अथ० 4 / 377 / / आदेशिकः [आदेश+ठक्] 'भविष्यवक्ता, ज्योतिषी-पुष्प आनुशंस्यम् [अनृशंस+व्या प्ररक्षक की आतुरता-स्त्री भद्रादिकरादेशिकरादिष्टा स्वप्न०१" | प्रपाष्टेति कारुण्यादाश्रितेत्यानृशंस्यतः-रा० 5.15 / 50 / आद्यकालिक ( वि०) [आदी भवः यत् -- काल+ठक] | आन्तःपुरिक (वि०) [ अन्तःपुर ठक् ] अन्तःपुर से संबंध केवल वर्तमान को देखने वाला-आद्यकालिकया रखने वाला। बुद्ध्या दूरे श्व इति निर्भयाः-महा० 12 // 321 / 14 / / आन्तःपुरी [ अन्तःपुरे भवः अण्, स्त्रियां ङीप् ] अन्तःपुर आषणिकः [अधम+ऋणिकः] कर्जदार, -- मूलात्तु द्विगुणा की सेविका, नौकरानी-नै० 19 / 65 पर नारायण / वृद्धि र्गहीता चाधर्णिकात् .. शुक्र० 41880 / आन्तरागारिकः [अन्तरागार+ठक ] कञ्चुकी / आधानम् [आ+धा+ल्युट्] मैथुन–तवापि मृत्युराधा- | आन्तविक (वि.) [अन्तर्वेद+भ ] यज्ञवेदी के अन्दर . नादकृतप्रज्ञ दर्शितः -- भाग० 9 / 936 / वर्तमान / आधिः [आ-धा+कि] दण्ड,- एनमाधि दापयिष्येद्यस्मा- आन्यतरेय (वि०) अन्यतरा+दुक] किसी अन्य विचारतेन भयं क्वचित्-शुक्र. 41641 / घारा या संप्रदाय से संबंध रखने वाला। आधिमासिक (वि.)[अविमास+ठक अधिमास या मल- | आपच्चिक (वि.) कठिनाइयों को पार करने वाला। मास से संबंध रखने वाला-करणाधिष्ठितमाधिमासि- आपणः[आपण +घा ] व्यापारिक क्रियाकलाप, वाणिज्य कम्-कौ० अ० 27 / -~-पिहितापणोदया-रा० 2 / 48137 / सम-चोषिका आपिरपिः [अधिरथ+इन] अधिरथ का पूत्र, कर्ण-हतं बाजार, -वेविका विक्रयफलक / भीष्भमाधिरथिविदित्वा-महा० 7 / 2 / 1 / | आपदेवः वरुण का नाम, एक मीमांसक का नाम / भाभूत (वि.) [आ+धू+क्त] हिलाया हुआ, क्षुब्ध आपरपक्षीय (वि.) [अपरपक्ष+छ] कृष्णपक्ष से -पवनाघूतलतासु विभ्रमः----रघु०६। संबन्ध रखने वाला। आधारः [आ++घञ] किरण,-आधार आलवाले- आपातमात्र (वि०) क्षणस्थायी, क्षणमात्र रहने वाला। ऽम्बुबन्धे च किरणेऽपि च-नाना। सम-चक्रम | आपात्य (वि०) आक्रमण की इच्छा से आगे बढ़ता हुआ, रहस्यमय या अलौकिक चक्र.जो शरीर के पश्चवर्ती (किसी शत्र पर) टूट पड़ने वाला - आपात्यसैनिकभाग पर स्थित है-सम्यगाधारचक्रे तरुणमरुणगात्रं निराकरणाकुलेन-शि. 5 / 15 / / वारणास्यं त्रिनेत्रम् - गणेश०। आपृष्ट (वि.) [आ पुच्छ+क्त ] 1. सत्कृत 2. पूछ। आनतिकरः [आ+नम् +क्त++अच्] उपहार, पारि- गया - नापृष्टः कस्यचिद्भूयात् / तोषिक / आपोशानः [ष० त०] एक प्रकार के प्रार्थना मंत्र जो मानः आ+नह+क्त ढोल या थपकी-अमानमानद्ध- भोजन से पूर्व और भोजन के पश्चात् आचमन करते मियत्तयाध्वनीत् --नै० 15/16 / समय बोले जाते हैं नै० 19 / 28 / आनन्दकरः [आनन्द++अच्] चन्द्रमा,-काष्ठा यथा- | आप्त (वि.) [ आप्+क्त ] लाभप्रद, उपयोगी-अधिनन्दकरं मनस्त: भाग० 1012 / 18 / ष्ठितं हयज्ञेन सूतेनाप्तोपदेशिना–रा०६९०११० / आनन्दतीर्थः द्वैतसंप्रदाय का संस्थापक श्री माधवाचार्य। सम० अधीन (आप्ताधीन) (वि०) विश्वसनीय आनन्दभैरवी संगीत का एक भेद / व्यक्ति पर निर्भर रहने वाला,-आगमः (आप्तागमः) आनतः,-तम् [आ+नृत्+घा] नाच / विश्वसनीय बैदिक साक्ष्य परोक्षमाप्तागमात् सिद्धम् आनुजीव्यम् [अनुजीवि-+-ष्य] सेवक के प्रति नम्रता का सां. का. ६,-उक्तिः (स्त्री०) (आप्तोक्तिः ). व्यवहार-- पशुपकुलनिवासादानुजीव्यानभिज्ञः-दूत. 1. आगम 2. अनुषंगी 3. सामान्य कथन जो प्रयोगतः 1939 / मान लिया गया हो, उपवेशः (आप्तोपदेशः) किसी आनुपथ्य (वि.) [अनुपथ+व्या] सड़क के साथ-साथ विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा दी गई नसीहत,--आप्तोर्यामः चलने वाला। एक प्रकार का यज्ञ / आनुपूर्व्यवत् (वि०) [अनुपूर्व+ष्यन,+मतुप्] निश्चित, | आप्य (वि०)[ आपां इदं अण्, स्वार्थे ष्या .] पनघोड़ा, नियत क्रम को रखने वाला। एक प्रकार का घोड़ा जो पानी में ही उत्पन्न होता है। अनुयात्रम् [अनुयात्रा+अण्] दे० अनुयात्रिक / आप्यम् (नपुं०) (वेद०) जल, पानी-पृथिव्याप्यतेजोअनुयात्रिकः [अनुयात्रा+ठक] अनुचर, सेवक / निलखानि - श्वेत०२।१२। आनुषङ्गिक (वि.) [अनुषङ्ग +ठक्] 1. गौण कार्य आप्यायः [ आप्य + घन ] पूरा होना, फूलना, मोटा 2. टिकाऊ। होना। For Private and Personal Use Only Page #1240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप्याय्य (वि.) [आप्य+- ण्यत् | सन्तुष्ट होने के योग्य, / 3 / 20126 / सम० - वचनम् संबोधन अर्थ में प्रयक्त प्रसन्न होने के योग्य / शब्द, - विभक्तिः संबोधन अर्थ को प्रकट करने आप्रवण (वि०) [ आ++ल्युट ] ईषत्प्रवण, कुछ। वाली विभक्ति। शालीन, थोड़ा शिष्ट / | आमन्त्रितम् (नपुं०) [आमन्त्र + क्त ] 1. सम्बोधित आप्लुत (वि०) [ आप्लु+क्त ] ग्रहणग्रस्त-अदाङमुखमथो | करना 2. संलाप 3. संबोधन की विभक्ति / / दीनं दृष्ट्वा सोममिवाप्लुतम् - रा० 7.106 / 1 / आमालकः (पुं०) पहाड़ी स्थान / आप्लष्ट (वि०) [ आप्लुप् + क्त ] ईषदग्ध, झुलसा हुआ| आमिषार्थी (वि.) [अम् टिषच दीघंश्च तमयति इनि] -दिवाकराप्लुष्टविभूषणास्पदाम् -कु० 5 / 48 / मांस चाहनेवा ला, मांस के लिए निवेदन करने आफलकः [ आ+फल+कन् ] घेरा, बाड़ा वार्याफलक- वाला। पर्यन्तां पिबन्निक्षमती नदीम् - रा० 1170 / 3 / आमुकुलित (वि.) [आमुकुल+इतन्] थोड़ा सा खुला आफोनम् (नपं०) अफीम। हुआ। आबद्धमण्डल / (वि०) [न० व.] गोलाकार चक्र बनाने | आमुक्तम् [आमुच् + क्त] कवच / आबद्धवलय वाला। आमुपः (पुं०) कांटेदार बांस / आबन्धुर (वि०) [ आबन्ध + उरच ] थोड़ा गहरा। आमोगः (पु०) कवि की रचना की अंतिम पंक्ति जिसमें आबालम् (अ०) बच्चे तक, बच्चे से लेकर। सम० ___ कवि का नाम बताया गया हो यत्रव कविनामस्यात्स गोपालम (अ०) बच्चों और ग्वालों समेत, आमोग इतीरितः-संगीत दामोदर / -वृद्धम् (अ०) बच्चों से लेकर बढों तक / आम्रः [अमगत्यादिषु नदीर्घश्च] आम का वृक्ष / सम. आब्रह्म (अ०) ब्रह्म तक / --अस्थि आम की गुठली, आम का बीज,---पञ्चमः आभडम (नपुं०) किसी मति की झकी हई मद्रा। संगीत का एक विशेष राग, - फलप्रयाणकम आमों के आभात (वि.) [आभा-- क्त ] 1. चमकीला, देदीप्यमान रस से तैयार किया हुआ एक शीतल पेय / 2. प्रतीयमान / आम्लपञ्चकम् [आम्लपञ्च+कन्] इमली आदि पांच आभासः | आभास्+घञ ] 1. मूर्ति डालने के नौ पदार्थों | | (बेर, अनार, करौंदा, इमली और कमरक) फलों के में से एक 2. एक प्रकार का भवन 3. पूजा की एक रस से तैयार किया गया एक आयुर्वेदिक पदार्थ / अप्रामाणिक रीति विधर्मः परधर्मश्च आभास उपमा | आयः [आ++अच, अय घड वा] आमदनी का स्रोत छल:, अधर्मशाखाः पञ्चेमा धर्मज्ञोऽधर्मवत्त्यजेत् ---मार्गत्यायशतैरान-महा० 13116315 / सम० - भाग० 7 / 15 / 12 / दशिन् (वि.) राजस्व-समाहर्ता,-मुखम् राजस्व आभास्वरः (पुं०) निम्नांकित बारह विषषों का एक संग्रह के रूप कौ० अ०२।६, शरीरम् आय का शरीर तु०-आत्मा ज्ञाता दमो दान्तः शान्तिर्ज्ञानं शमस्तपः, -- को० अ०२।६। कामः क्रोधो मदो मोहो द्वादशा भास्वरा इमे-तारा० | आययापुर्यम्,-पूर्व्यम् (नपुं०) ऐसी स्थिति या अवस्था आभिप्रायिक (वि.) [अभिप्राय |-ठक् ] ऐच्छिक, का होना जैसी पहले नहीं थी। इच्छानुगामी। आयत (वि०) [आयम्+क्त] सुप्त, सोया हुआ,-तं आभिमन्यवः [ अभिमन्यु : अण् ] अभिमन्यु का पुत्र, नायतं बोधयदित्याहुः - 60 4 / 3 / 16 / परीक्षित। आयतिः (स्त्री०) [आ+या+उति] वंश परंपरा, वंशआभियोगिक (वि.) [ अभियोग+ठक् ] दक्षता से किया विवरण पीढ़ी-द्रक्ष्यन्ति समरे योधा शलभानामिवायती: गया, चतुराई से युक्त। - महा० 7 / 159 / 71 / आभूत (वि.) [आ-+9+क्त ] 1. उपजाया हुआ, पैदा | आयस्तम् [जा+यस्+क्त] महान् प्रयत्न, शक्ति का किया हुआ - भाग० 3 / 26 / 6 2. भरा पूरा, स्थिर विस्तार न मे गर्वितमायस्तं सहिष्यति दुरात्मवान् ----आभूतात्मा मुनिः-भाग० 4 / 8 / 56 / ---- रा० 4 / 16 / 9 / आभ्यागारिक (वि.) [ अभ्यागार+ठक् ] घर में रखने आयानम् [आ+या+ल्युट घोड़े का आभूषण / के योग्य / आयुष्यमन्त्रः (पुं०) ऋग्वेद का मन्त्र जो "यो ब्रह्माब्रह्मण आH (वि.) [ अभ+ अण् ] अभरक से निर्मित चन्द्रा- उज्जहार.." से आरंभ होता है। भमानं तिलक दधाना---०६।६२ / आयुष्यहोमः [आयुः प्रयोजनमस्य यत्, ह+मन] यज्ञ विशेष आमपेशाः [ रा त कसची अवस्था में पीमा गया अन / जिसके अनुष्ठान से मनुष्य दीर्घजीवी हो सकता है। आमन्त्रित (वि.) [आ+गन्+क्त ] मन्त्र बोल कर ! आयोजमम् (अ०) एक योजन की दूरी तक। पवित्र किया गया - शराणामामन्त्रितानाम् - महा० / आयोषः (पुं०) अयोद का पुत्र मुनि धौम्य / For Private and Personal Use Only Page #1241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1232 ) मारङ्गरः (पुं०) मधुमक्खी (वेद०)-आरङ्गगरेव मध्वेर- मद से गीला हो जाता है,-पत्रकः बाँस,--भावः येथे ...--ऋ० 101106 / 10 / 1. गीलापन 2. कृपा, मृदुता -- धनु तोऽप्यस्य दयाआरण्यकसामन् (नपुं०) सामदेव का एक सूक्त / भावम्-रघु० 2 / 11 / आरम्भः [आ+र+घञ, मुम्] 1. शुरू 2. पहला अङ्क। आर्विका (स्त्री०) हरा या गीला अदरक / सम-भाव्यत्वम् क्रियाशीलता के द्वारा ही उत्पादन | आर्यम् [ऋध+अण्] प्रचुरता, बाहुल्य / की स्थिति-मी० सू० १११११२०,-रचिः किसी आर्धनारीश्वरम् [अर्धनारीश्वर+अण् ] भगवान् शिव के उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य को शुरू करने में रुचि,--शूरः अर्धनारीश्वर रूप से सम्बद्ध / जो व्यक्ति शुरू शुरू में बहुत अधिक उत्साह |मार्य (वि०) [ऋ+ ण्यत् ] 1. आर्यावर्त का निवासी दिखलाता है। 2. योग्य, आदरणीय, सम्मानयोग्य / सम-आआरवडिण्डिमः [ष० त०] एक प्रकार का ढील-चण्डि- गमः (आर्या+आगमः) आर्य जाति की महिला के रसितरशनारडिडिममभिसर सरसमलज्जम् ---गीत. पास संभोग की इच्छा से पहुँचना- अन्त्यस्यार्यागमे वधः- याज्ञ० 2 / 294, -- जुष्ट (वि०) आयंजनों के आरासः [आ+-रास्+घञ्] घोर शब्द / द्वारा अनुमोदित तथा अनुगत,--मतिः जिसकी बुद्धि आरीण (वि०) [आ+री+क्त] बिल्कुल सूखा हुआ बहुत अच्छी है,-पाक (वि०) आर्य जाति की -~-आरीणं लवणजलं- भट्टि० 1314 / भाषा बोलन वाला,-शील: उत्तम चरित्र से युक्त, आरतम् [आह+क्त] क्रन्दन, विलाप, रोना-धोना अच्छे शील वाला,-सिद्धान्तः आर्यभटकृत ग्रन्थ, -निषेदुः शतशस्तत्र दारुणा दारुणारुताः-- रा०६।। ... स्त्री आर्यमहिला। 106 / 31 / आधिक्यम् | पेरिद ...अण, आ-+-ठक, ततः प्पा आवणेयः [आरुणि+ठक्] आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु / आर्यधर्म, वह धर्म जिसकी ऋषियों ने स्थापना की आरोग्यम् अरोगस्य भावः-ष्यत्र] रोग से मुक्ति, अच्छा स्वास्थ्य / सम०--अम्बु (नपुं०) स्वास्थ्यप्रद जल, | आलकन्दकम् (नपुं०) एक प्रकार का मुंगा, प्रवाल-कौ० -चिन्तामणिः आयुर्वेद के एक प्रन्थ का नाम अ० 2 / 11 / --.प्रतिपदव्रतम् स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए एक व्रत / आलग्न (वि.) आलग्+क्त ] पालन करता हुआ, आरोपयित (वि०) [आ+रूप+णि+तृच्] धारण चिपका हुआ, अनुपक्त। करने वाला। आलम्बनम आलम्ब+ल्यूट ] मन के अनुरूप धर्म / आर्कम् (अ०) [आ+अर्कम्] सूर्य तक आकल्पमार्कमहन | आलानम् [आलीयतेऽत्र आली+ल्युट लगाव या भगवन्नमस्ते--भाग०१०।१४।४० / स्थिरता का बिन्दु, (पोल, खूटा या रस्सी आदि) आर्चायण (वि.) न० ब०] ऋचाओं में विद्यमान / ---उलूखलं वा यमिनां मनो वा गोपाङ्गनानां कुचआर्चीकम् [अर्चा अस्त्यस्य अण्, स्वार्थे कन्] ऋग्वेद के मंत्रों कूडमलं वा मुरारिनाम्नः कलभस्य नूनमालानमासीत् से युक्त, सामवेद / त्रयमेव भूमौ-कृष्ण / आर्जवम् [ऋजोर्भावः अण्] सम्मुख भाग, (अधि० आजवे आलापा [ आलप् + घ, टाप् ] संगीत की एक मधुर =सम्मुख भाग में सीधा)- देवदतस्यार्जवे---मै० सं० / 1 / 1 / 15 पर शा० भा०।। आलापनम् [आ+लप्+-णि+ल्युट] संगीत शास्त्र आर्त (वि.) [आ+ऋ+क्त] असुविधाजनक-आर्ता के किसी एक राग की विशेषताओं का वर्णन / यस्मिन् काले भवन्ति स आतः काल:- मै सं०६५। आलिक्रमः [आ-+-अल+इन-ऋम्+घञ ] एक प्रकार 37 पर शा० भा० / सम०---त्राणम् जो कठिनाइयों की संगीतरचना, संगीतनिबन्ध / में ग्रस्त है उनको बचाना। आलिजनः| आलि जन: 1 सहेलियाँ। आर्तवम् ऋतुरस्य प्राप्त इति अण्] मासिक ऋतुस्राव, आलेख्यगत (समपित) (वि.) [आलेख्ये गत:-स० त०] -----गिरिकायाः प्रयच्छाशु ह्यस्या आर्तवमद्य वै-महा० चित्र में लिखित, चित्रित --निशीथदीपाः सहसा 1163155 / हतत्विषो बभुवरालेख्यसमर्पिता इव-रघु० 3.15 // आलं (वि.) [आ-+अर्द रिक, दीर्घश्च] गीला, तर। आलिङ्गध (वि०) [ आलिङग्+ण्यत् ] आलिङ्गन करने सम० -एधाग्निः आग जो गीली लकड़ियों द्वारा के योग्य ..0 7.66 / सुरक्षित रखी जाती है -यथैवार्दैधाग्नेः पृथग्धूमा | आलयः [आलीयतेऽस्मिन् -आली+अच् ] ग्राम, आवास, निस्सरन्ति शत०,- कपोलितः उन्माद काल की -मन्दरस्य च ये कोटि संश्रिता केचिदालयाः-रा० दूसरी अवस्था में हाथी जब कि उसका गंडस्थल अपने 4140 / 25 / For Private and Personal Use Only Page #1242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1233 ) आलोन (वि.) [ आली+क्त ] बन्द, सुप्त-भ्रमराली- | आविर्मण्डल (वि.) [ न० ब०] जो वृत्त के रूप में नपङ्कजम् / दिखाई दे--विधुवति धनुराविमण्डलं पाण्डसूनौ-कि० आलीढा [आ+लिह+क्त--टाप् ] ऋतूमती स्त्री-नाली- 14165 / या परिहतं भक्षयोत कदाचन - महा० 181104 / 9 / / आविहित (वि.) [आविस्-+धा+क्त ] जो दृश्य बना आललित (वि.) [आलल+क्त ] क्षुब्ध, ईषदुद्विग्न, दिया गया हो। जरा सा घबराया हुआ। आवृत्तम् [ आवृत् / क्त ] बार-बार प्रार्थना या गीत से आलेपनम् [आलिम्प+णिच् + ल्यट] 1. पानी मिला | देवा को सम्बोधित करना / हुआ आटा जिससे घर का द्वार सजाया जाता है, आवृद्धतबालकम् (अ०) बूढ़ों से लेकर बच्चों तक। विशेषतः दक्षिण भारत में-विधुमालेपनपाण्डुरम् आव्यक्त (वि०) [ आवि |-अञ्च् + क्त ] स्पष्ट, सुबोध, -नं० 2 / 26 2. रंगना या सफेदी लीपना आलेप- तद्वाक्यमाव्यक्तपदं निशम्य-रा० 7588000 / नदानपण्डिता-०१५।१२ / आशास् (वेंद०) (अदा० आ०) दमन करना-ऋ० आलोक: [ आलोक / धज 11 केवल दर्शन आलोकमपि 2 / 28 / 9 / रामस्य न पश्यन्ति स्म दुःखिता:---रा० 2 / 47 / 2 / / आशावासस् (वि.) [न० ब०] नंगा, नग्न / आलोककः [ आलोक् -।-बुल ] दर्शक, देखन वाला। आशिक्षा [आशिक्ष / अङ | टाप् ] सीखने की इच्छा, आवपनम् [आवप् + ल्युट ] 1. उद्गमस्थान-यस्य छन्दो- वाज० 30110 / मयं ब्रह्म देह आवपनं विभोः भागः 1080 // 45 | आशुकविः [क० स०] जो तुरन्त ही (बिना पहले से 2. पटसन से निर्मित कपड़ा। सोचे) काव्य रचना कर सके / आवापः [आवप्+घञ् ] तान्त्रिकों के मतानुसार मन्त्र | आश्रमपरिग्रहः [प० त०] संन्यास (नीथा आश्रम) की वार-बार आवृत्ति जिससे अनेक कार्यों में सिद्धि ग्रहण करना। प्राप्त होती ह– यस्तु आवृत्या उपकरोति स आवापः | आश्रमवासिपर्बन [प० त०] महाभारत के पन्द्रहवें पर्व मै० सं० 111 पर शा० भा० / का प्रथम अनुभाग। आवरणम् [आवृ+ल्पट] 1. कवच कि० 17159 / आश्रवः [आश्रु+अच ] सांसारिक कप्ट,-सवितर्क2. भ्रम, भ्रान्ति / विचारमवाप शान्तं प्रथमं ध्यानमनाथुवप्रकारम् 00 आवरीवस् (वि.) [आवृ--या वस् ] छादन, चादर, च०५।१०। ढकना-शतला० 23 / आश्लेषणम् [ आश्लिष्-+ ल्युट ] आसक्ति, अनुरक्ति / आवर्जक (वि.) [आवृज्+ण्वुल ] आकर्षक / आश्वासिक (वि.) [आश्वास+ठक ] विश्वसनीय, आवर्तनम् [आवृत् + ल्यट] वर्ष, आवर्तनानि चत्वारि | विश्वासपात्र। - महा० 13310765 / आश्विनचिह्नितम् (नपुं०) शारदीय विपुत्र / आवास्य (वि.) [आवस् | णिच् / ण्यत् ] बसा हुआ, | आस, (आः) (अ.) उदासीनता द्योतक अव्यय ननु व्याप्त, पूर्ण, भरा हुआ ईशावास्य मिदं—ईश० 1 / आस्ते इत्य पवेशने भवनि। नावश्यमपवेगने एव, आवास (चुरा० पर०) (आ पूर्वक वास्) सम्पन्न करना, औदामीन्यपि दश्यते। मी० म० 3 / 6 / 24 पर वास युक्त करना--आवासयन्ता गन्धन--रा० शा० भा०। 21103 / 41 / आसक्त (वि.) [आसञ्ज /क्त| अवरुद्ध, बन्द-कार्तआविः (स्त्री.) [अवीरेव स्वार्थे अण् / पीडा, कष्ट, वीर्यभुजासक्तं तज्जलं प्राप्य निर्मलम्-रा० 32 / 5 / प्रसववेदना। आसंशित (वि.) [आसंज्ञा+इतन् ] जिसके साथ कोई आवितन (तना० आ०) व्याप्त होना,---त्रील्लोकानावि- समझौता हो गया है, सम्मिलित। तन्वाना: भाग० 3 / 20137 / आसद् (प्रेर०) धारणा करना, पहनना- - आसाद्य कवचं आवित्त (वि.) [आविद |क्त विद्यमान / दिव्यं र०७।६।६४ / / आविद्ध (वि) [आ--व्यध-क्ति] पास-पास रक्खा | आसत्तिः (स्त्री०) [आसद्+क्तिन ] उलझन, घबराहट हुआ, छिनराया हुआ स पाण्डुराविद्धविमानमालिनीम् -न च ते क्वचिदासत्तिर्बुद्धेः प्रादुर्भविष्यति-महा. रा० 5 / 053 / 12152 / 17 / आविल (वि०) आविलति दृष्टिं स्तृणाति विल स्तृतीक | आसनम् [आस् + ल्युट् ] 1. हौदा, हाथी की ग्रीवा और चंबला, अस्पप्ट, जो देख न सके। पीठ का मध्यवर्ती भाग जहाँ हस्त्यारोही बैठता है आविर्भूत (वि०) | आविस्+भू+क्त ] प्रकट हुआ हुआ, 2. तटस्थता-कौ० अ० 7.1 3. पासे के खल में आविर्भूतप्रथममुकुला: कन्दलीश्चानुकच्छम्-मेघ.।।, प्रयुक्त मोहरा। सम० - मधुडकम् वीर्य / For Private and Personal Use Only Page #1243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1234 ) भासन (वि.) [सद्+त] अवाप्स, प्राप्त-बाह्रो- मास्फोटितम् [आस्फुट्+क्त ] तालियां बजाना, शस्त्रास्त्र रासन्ना सोतिमात्र ननन्द-रा० 5 / 63 / 33 / सम. से प्रहार करना आस्फोटितनिनादांश्च --रा० 5 / -र (वि.) आसपास ही घूमने वाला। 43 / 12, तस्यास्फोटित शब्देन -रा० 5 / 4 / 7 / मासमूहान्तम् (अ.) समुद्र के किनारे तक। आस्यत् (वि०) [आ+सिन्+क्त ] मिला कर सीया भासुरायणः [आसुरि+फक्] 1. आसुरि की सन्तान | हुआ। 2. एकदिक संप्रदाय / माल (वि.) [ आश्रु+क्विप्] खूब बहने वाला, धारा मासेचनक (वि.) [आसिच+ल्यूट+कन् ] अत्यंत प्रवाह से रिसने वाला। मनोहर जो असीम संतोष के देने वाला हो (उदाहर- आनुपयस् (वि.) [न.ब.] खूब दूध देने वाली गाय णतः नेवासेचनकम्) दे० नैषध० (हिन्दी का -अगाबुकृतै राखुपया जवेन-भाग० 10 // 13 // 30 // संस्करण) पृष्ठ 559 / आस्वावित (यि०) [आ+स्व+णिच+क्त] जिसने मास्तरकः [आ+स्तु+ण्वुल ] बिस्तर बिछाने वाला ___ स्वाद ले लिया हो, अनुभवी-मधु नवमनास्वादित-कौ० अ० 212 / रसम् / / मास्तारकः [ आस्तु+षा, स्वार्थे कन् ] अंगीठी में लगने | आहत्य (अ.) [ आहन्-+ ल्यप् ] प्रहार करके, मार कर, वाली जाली, जंगला। पीट कर। सम०-बचनम् ललकारने वाला वक्तव्य / मास्तीर्ण (वि०) [ आस्त+क्त ] 1. बिखरा हुआ, फैला | आहारतेजस् (नपुं०) पारा, पारद / हुआ 2. ढका हुआ। आहार्पशोभा (स्त्री०) बनाया हुआ सौन्दयं (विप० नेसमास्यामपट्टः-पट्टम् [ आस्थान+पट् + क्त ] सिंहासन, राज- गिक शोभा)। गही-2०१०५७ / | आहितकः [आ+पा+क्त, स्वार्थे कन् ] भाड़े का-को० मास्येय (वि.) [आस्था+ण्यत् ] 1. श्रदेय, जिसके / अ०२।१। पास पहुँच की जाय, जिससे प्रार्थना की जाय | माहत (वि.) [आ+ह+क्त] कृत्रिम, बनावटी 2. आदरणीय / -अहता हि विषयकतानता शानघौतमनसं न लिम्पति भास्फुट (म्या० पर०) आन्दोलन करना, हिलाना। -018 / 2 / इल [ +सु] एक प्रकार का बांस-मौक्तिकरिक्षकु- इसम्बरम् (नपु०) नीलकमल -निषः / क्षिः -२०२०।२१(नारा० भाष्य० इक्षवंशविशेष:)। दवा (अ.) विशद, प्रकट, स्पष्ट / इसमतो (स्त्री०) [इम+मतुप् +कोप] कुरुक्षेत्र प्रदेश इन्दका [ इद्+ण्वुल+टाप् ] मृगशीर्ष नक्षत्र पुंज में ऊपर में बहने वाली एक नदी। रहने वाला तारा। इत्यारि(लि)क: [इक्षु+अल +ण्वुल ] नरकुल, सरकंडा। | इन्दिरारमणः [इन्द्+किर+टाप्+रम्+ल्युट् ] विष्णु जाल [इन+लन् ] कोयला-वितेनुरिङ्गालमिवायशः ___ --अन्तरा सकलसुन्दरीयुगलमिन्दिरारमणसंचरन् परे-सि० सं०, इङ्गाल: कारिकाग्निविट् - वैज। इम [इल + अच्, लस्य उत्वं वा ] सामगान में प्रयुक्त | इन्दुः [उन्+उ, ओदेरिच्च] 1. चन्द्रमा 2. अनुस्वार इलास्तोभ नामक संगीत। की परिभाषा। सम०-मुली कमल बेल,-वल्ली इगजातः [पं० त०] गुग्गुल / सोम का पौधा,-शफरिन् एक पौषे का नाम,-सुतः, इन्डीकः (पुं०) कलम घड़ने वाला चाकू। --सूनुः बुधनामक ग्रह। इतिः (स्त्री०) [+क्तिन् ] 1. शान 2. चाल, गति | इनुकः [इन्दु+कन् ] दे० 'इन्दुपफरिन्। -श.चि.। इनः इन्दतीति इन्द+रन्] 1. देवों का स्वामी 2.शानेइतिक (वि०) [इति+कन् ] गतियुक्त, चाल रखने द्रियों के पांच विषय / सम-आयुधम् 1. इन्द्रधनुष बाला। 2. हीरा, --कान्तः चारमंजिले भवन का एक प्रकार इतिहासकबीभूतम् [त. स.] किसी पौराणिक आख्यान -मान०-२१०६०।६८, (इन्द्रच्छदः) मोतियों या महाकाव्य से ली गई कथावस्तु-इतिहासकयो- की माला,--ः बालि, कर्ण,-जतन) शिलाभूतमितरता सदाय, काव्यं कल्पान्तरस्थायि जीत, -पति बन्दन,-प्रमतिः वैदिक ऋषि, पल -काव्या.। भाचार्य का विष्य,-मपिनी पार्वती,- लको इत्कः (.) एक प्रकार का भात / प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला मा-श्यो For Private and Personal Use Only Page #1244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1235 ) स्माकं भोषस्योचित इन्द्रयज्ञो नामोरवः भविष्यतिमीका हाथी की आँख की एक पुतली / -बाल.१,-बानकम हीरे का एक प्रकार, कौ० अ० (तुदा० पर०) किसी काम को बहषा करते रहना, 2 / 11,-- सापणिः चौदहवां मनु०।। बार-बार सम्पन्न करना / इनियः [इन्द्र+घ-इय] 1. शक्ति 2. ज्ञानेन्द्रिय / सम० | इच्छामात्रम् (अ.) केवल इच्छा द्वारा रचित -- इच्छामानं -धारणा ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण, --प्रसङ्गःविषया- प्रभोः सष्टिः / / सक्ति,- संप्रयोगः विषयों से संबद्ध ज्ञानेन्द्रियों की | इच्छारूपम् (नपं०) 1. मानवीकृत इच्छा 2. इच्छानुरूप क्रिया। माना हुआ शरीर 3. दिव्य शक्ति की प्रथम अभिधनम् [इन्ध् + णिच् + ल्युट्] इच्छावशेष, वासना-ये तु व्यक्ति / दग्धेन्धना लोके पुण्यपाविवर्जिताः-महा० 12 // इष्टभागिन् (वि.) [इष्ट+भाग+णिनि] जिसकी महत्वा. 348 / 2 / कांक्षा पूरी हो गई है-अपूजयराघवमिष्टभागिनम् इभकर्णकः (पुं०) 1. एक पौरा, तांबड़ा एरंड 2. गणेश / / --रा०६।६७।१७५। हरिणम् (वेद०) [ऋ+इनन्, किदिच्च] चौसर खेलने की इष्टिः (स्त्री०) [इष्+क्तिन्] कविता के रूप में एक बिसात-प्रवातेजा इरिणे वर्वताना-ऋ० 10 // 34 // 1 // परिसंवाद, संग्रहश्लोक ---ऋ० 1166 / 14 पर हरिम्बिठिः (पुं०) कण्वकुल के एक ऋषि का नाम जो भाष्य / सम०-भारम् एक विशेष औज़दैहिक क्रिया। ऋग्वेद के कई सूक्तों का द्रष्टा है। इविका, इबीका [इष गत्यादी क्बुन्, अत इत्वम्] एक लिनी (स्त्री०) मेधातिथि की पुत्री। कांटेदार पौधा--संनिकविषीकाभिर्मोचिता परमार इल्पः (पु.) परलोक में होने वाला एक काल्पनिक वृक्ष यात्- रा०२।८।३० / __-स आगम्छतील्यं वृक्षम् - कोषी० 115 / विपुम्सा नील का पौधा / इवोपमा उपमा अलंकार जहाँ रचना में 'इव' शब्द का पति (वेद०) प्रयत्न करना / प्रयोग हुआ हो। इष्टकामात्रा ईटों का आकार प्रकार / ईक्षणभवस् (पु०) [ब० स०] सांप-- एषा नो नैष्ठिकी / ईश्वरकान्तम् (नपुं०) एक भूखण्ड जिसका समस्त क्षेत्रफल बुद्धिः सर्वेषामीक्षणश्रवः-महा० 1137 / 29 961 वर्ग में विभक्त हो जाता है---मान०७।४६।४८। ईरः [ई+अच्] वायु, हवा। सम०--जा-पुत्रः हनुमान् / विरकृष्णः (पुं०) सांख्यकारिका का कर्ता। लिनः (पुं०) तंसु के पुत्र और दुष्यन्त के पिता का नाम चित्कार्य (वि.) ईषत-+-+ज्यत्] जो थोड़े से प्रयत्न ईशः [ईश्+क] परमेश्वर, परमात्मा / सम--वास्यम् से सम्पन्न हो सके ईषत्कार्यों वधस्तस्य-महा. (ईशावास्यम्) ईशोपनिशद् (अपने प्रथमाक्षर के 574126 / आधार पर)-गोता (स्त्री०) कर्मपुराण का एक पल्ला (वि.)[ईषत्+लभ+ अच्] आसानी से उपलब्ध अनुभाग, --बडः रथ के धुरे की लकड़ी। होने वाला---० 12 / 93 / शिानकल्पः चार युगों का एक चक्र / विवीर्यः [न. ब.] बदाम का वृक्ष / ईशितव्य (वि.) [ईश्+तव्य] शासन किये जाने के योग्य, ईसराफः (पुं०) फलितज्योतिष में चौथा योग / नियन्त्रण में रखने के योग्य-ईशितन्यः किमस्माभिः | हः (वेद) [ईह,+अच्] स्तुति / -भाग० 10 // 23 // 45 // उ उका (स्त्री०) अवशेष, बचाखुचा / | उपक (0) [+] अग्नि-उत्थो नाम महाभाग उत्थम् (नपुं०) [वच्+थ] 1. जीवन, प्राण-उपपेन विभिनरभिष्टुतः-- महा० 3 / 219 / 25 / / रहितो शेष मृतक: प्रोच्यते यषा-भाग. 1156 | उसासंभरणम् (न) शतपयवाह्मण का छठा अध्याया 2. उपादान कारण-एतदेशामत्वमयो हि पाणि सत्यः (पु.) [उलायां संस्कृतः ] एक गंयाकरण का नामान्युत्तिष्ठन्ति-. / नाम। For Private and Personal Use Only Page #1245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1236 ) उसरम् (नपुं०) खारी झोल से निकला हुआ नमक, | उज्जूटित (वि०) [उद्+जूट्+क्त ] जिसने अपने सिर सांभर नमक। | के बाल जटा के रूप में शिखा बाँधकर रक्खे हुए हैं। उन (वि.) [उच्+रन्, गश्चान्तादेश।] 1. भीषण, क्रूर, उज्मटा (स्त्री०) एक प्रकार की झाड़ी। दारुण, घोर, प्रचण्ड / सम०-काली दुर्गा का एक | उज्मित (वि.) [उज्झ्+क्त ] 1. परित्यक्त-चिरोरूप,-नसिंहः नृसिंह का एक रूप,-पीठम् एक ज्झितालक्तकपाटलेन ते-कू० 5 2. निष्कासित, भूपरिकल्पना जिसमें क्षेत्रफल 36 सम भागों में उंडेला हआ–अविरतोज्झितवारि-कि० 5 / 6 / विभक्त होता है—मान० ७७,---वीर्यःहींग,-श्रवस् | उट्टनम् [उत्+टङ्क ल्युट ] 1. छाप लगाना, या रोमहर्षण के पुत्र का नाम। अक्षर खोदना 2. आधुनिक टाइप करने की क्रिया / उचित (वि.) [उच+क्त ] अन्तर्जात, नैसर्गिक -..उचितं उडुगणाधिपः[त० स०] चन्द्रमा / च महाबाहुः न जही हर्षमात्मवान-(उचितं स्वभाव- उडुगणाधिन (नपुं०) मगशीर्ष नक्षत्रपुंज / सिद्धम्)-रा०२।१९।३७ / सम-ज्ञ (वि०) जो उड्डामरिन् (वि.) [ उद्+डामर --णिनि ] जो असाऔचित्य को समझता है। धारण रूप से बहुत कोलाहल करता है। उच्च+अवच (उच्चावच) (वि.) [ उत्कृष्टं च अपकृष्टं उड्डियानम् (नपुं०) अंगलियों की विशिष्टमद्रा। च] ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा। उदम् (नपुं०) 1. जपा, गुडहल 2. पानी। उच्चध्वजः शाक्यमुनि का नाम / उत (वि.) [वे+क्त ] बुना हुआ, सोया हुआ। उच्चटम् (नपुं०) टीन, रांगा, कलई / उत्कयति (ना० धा० पर०) बेचैन या आतूर बना देता उच्चक (भ्वा० पर०) टकटकी लगाकर देखना, निडर / है.--मनस्विनीरुत्कयितुं पटीयसा-शि० 1159 / होकर देखना-भाग०६।१६।४८ / उत्कच (वि.) [ उत्+कच] जिसके बाल सीधे ऊपर उच्चयापचयौ [ उच्चयः अपचयश्च, द्व० स०] समृद्धि और | को खड़े हों। क्षय, उत्थान और पतन / . उत्कूर्चक (वि.) [प्रा० स०] जो कुंची अपने हाथ में उच्चाटित (वि.) [ उद्+चट् +-णिच् / क्त ] उखाड़ा लेकर ऊपर को उठाये हुए है। गया, दूर फेंक दिया गया दशकन्धरो"उच्चादितः / उत्कूलनिफूल (वि.) [ उत्क्रान्तः निर्गतश्च कलात् ] - भाग० 5 / 24 / 27 / "किनारे से कभी नीचे कभी ऊपर होकर बहने वाला / उच्चारप्रस्त्रायस्थानम् (नपुं०) गीचालय, सण्डास / उत्कर्षणम् [ उद्+कृष+ल्युट | 1. ऊपर को खींचना उच्चार्यमाण (वि.) [उद्+चर् --णिन्, कर्मणि शानच् ] 2. छोल देना, उखाड़ देना। जो बोला जा रहा है। उत्कर्षणी [ उत्कर्षण+डीप् ] एक 'शक्ति' का नाम / उच्चुम्ब ( भ्वा० पर०) मुख ऊपर उठाकर चुम्बन / उत्कृष्ट (वि.) [उद-कृष+क्त] 1. खुर्चा हुआ-ऐराकरना। वतविषाणारुत्कृष्टकिणवक्षसम् -रा०६।४०१५ उच्छिखण्ड (वि.) | ब० स०] (मोर की भाँति) अपने 2. तोड़ा हुआ - उत्कृष्टपर्णकमला-रा० 5 / 19 / 15 परों को ऊँचा किये हए। (उत्कृष्टानि = त्रुटितानि) 3. खींचा हुआ-महा० उच्छिष्ट (वि.) [ उत्---शिष+क्त ] जूठा, अपवित्र, 14 / 59 / 10 / अशुद्ध --- उच्छिष्टमपि चामेध्यम् आहारं तामसप्रियम् | उत्कोचः [उद्+कुच+अञ् ] 1. रिश्वत, घूस-उत्कोच-भाग। र्वञ्चनाभिश्च कार्याण्यनुविहन्ति च --- महा० 12 // 56 // उच्छिष्टमोदनम् (नपुं०) मोम / 51 2. दण्ड। उङ्गित (वि.) [उद्+शृङ्ग+इतन् ] जिसने अपने उत्कोचिन (वि०) [ उत्कोच+णिनि ] जिसे रिश्वत दी सींग ऊपर को सीधे खड़े किए हुए हैं। जा सके, भ्रष्टाचार में ग्रस्त ---उत्कोचिनां मूषोक्तीनां उच्छ्यः [उद्+श्रि+अच ] एक प्रकार का कलात्मक वञ्चकानां च या गतिः--महा० 773 / 32 / स्तम्भ (रुद्रदामन का जूनागढस्थित शिलालेख -एप० उत्कोठः (पुं०) [उत्कुट+घञ्] कोढ़, कुष्ठ का एक प्रकार। इंडि० तृतीय० भाग)। उत्क्वथ् (म्वा० पर०) उबाल कर सत्त्व निकालना, कर्म० उच्छवासः [ उद+श्वस-घा ] 1. झाग (जैसे कि उबाला जाना, (प्रेम से) उपभुक्त किया जाना। समुद्र में)-सिन्धोरुच्छ्वासे पतयन्तमुक्षणम् ऋ० 9 उत्तान (वि.) [ उत्+तनु +-घा ] विस्तारयुक्त, फैला 86 / 43 2. बढ़ना, उभार होना / हुआ। सम-अर्थ (वि०) ऊपरो, निस्सार, उथला, उच्छ्वासिन् (वि०) [ उद् + श्वास +णिनि ] वियुक्त, पट्टम् फर्श व्यूढं चोतानपटें-(आबू शिलालेख विभक्त / -इंडि० एंटी० भाग 9), हृदय (वि.) उत्तम उजागरः [ उद्+जाग+घञ्] उत्तेजना, उलटफेर। हृदय वाला। For Private and Personal Use Only Page #1246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACT ( 1237 ) उत्तपनः [ उत्+तप्+ल्युट ] देदीप्यमान आग। उत्पारिका [ उद्+पद्+णिच्+ण्वुल ] एक जड़ी बूटी उत्तम (वि.) [उद्+तमा ] बढ़िया, श्रेष्ठ,-मः ( का नाम। ध्रुव का सौतेला भाई। सम०-वशतालम् मूर्तिकला उत्पादित (वि.) उद्+पद+णि+क्त पैदा किया गया। का शब्द जो मूर्ति की पूर्ण ऊँचाई के 120 सम | उत्पाद (वि.) [उद्+पद+णिच्+ण्यत् ] जो अभी प्रभागों को इंगित करने के लिए प्रयुक्त होता है पैदा किया जाना है-लावण्य उत्पाद्य इवास यत्नः ----वयसम् जीवन की अन्तिम अवस्था--- शत० 12 // 9 / 148, व्रता पतिव्रता स्त्री -- हृदयस्येव शोकाग्नि-उत्पलिनी [ उत्पल+णिनि, स्त्रियां ङीष् ] एक शब्दकोश संतप्तस्योत्तमवताम्-भट्टि० ९१८७,--श्रुतः उच्चतम का नाम। शिक्षा प्राप्त। उत्प्रेक्षावयवः[प० त०] एक प्रकार की उपमा / उत्समर (वि) श्रष्ठ। उत्प्रेक्षावल्लभः एक कवि का नाम / उत्सम्भः [ उद्+स्तम्भ +घञ्] आयताकार संरचना उत्प्रेक्षित (वि.) तुलना की गई (जैसा कि उपमा में -गरुड 47 / 21 / | की जाती है)। उत्तर (वि.) [उद्+तरप्] 1. उत्तर दिशा 2. ऊपर | उत्प्रेक्षितोपमा उपमा अलकार का एक भेद / का, अपेक्षाकृत ऊँचा 3. बाद का 4. आयताकर सांचा उत्प्लुत (वि.) [ उद्+प्लु+क्त ] कूदा हुआ, ऊपर को - मान०१३।६७ 5. आगे की कार्यवाही, अगली | | उछला हुआ। प्रक्रिया .. उत्तरं कर्म यत्कायं-रा० 5 / 3 6. आच्छा- उत्फुल्ल (वि.) [उद्+फुल+क्त] उद्धत ढीठ, गुस्ताख / दन, आवरण-महा०६।६०।९। सम०-अगारम् / उत्फुल्लिङ्ग (वि०) [ उद्+ स्फुल्लिङ्ग+इङ्गच् ] जिसमें (उत्तरागारम्) ऊपर का कमरा, -अभिमुख (वि०) | स्फुलिङ्ग निकले, चिंगारियाँ उगलने वाला। उत्तर दिशा की ओर मुड़ा है मुंह जिसका, -ताप- | उत्सङ्गकः [उद्+सङ्ग्+घञ्, स्वार्थे कन् ] हाथ की नीयम् नृसिंहतापनीय उपनिषद् का उत्तर भाग, विशेष मुद्रा। ---नारायणः पुरुषसूक्त का उत्तर खण्ड,+-वीथिः उत्सक्त (वि.) [ उद्+सञ्+क्त ] संवर्धमान-उत्सक्ता (स्त्री०) उत्तरीय मंडल / पाण्डवा नित्यम् --- महा० 11140 / 3 / उत्तावल (वि०) उतावला, आतुर / उत्सत्तिः (स्त्री०) [उद्-+-सा +क्तिन् ] नाश, उत्त्रस्त (वि.) [उद्+त्रस्+क्त ] डरा हुआ, भय- विनाश, क्षय / भीत / उत्सन्नकुलधर्मन् (वि.) [ब० स०] जिसकी कुल परम्पउस्थानम् [उद्-+-स्था-ल्यट] 1. मठ, विहार 2. युद्ध राएँ छिन्न-भिन्न हो गई हों--उत्सन्नकूलधर्माणां करने के लिए तैयार सेना की स्थिति - युद्धानुकूल- | मनुष्याणां जनार्दन, नरके नियतं वासः-भग० 1146 / व्यापार उत्थानमिति कीर्तितम् - (शुक्र० 11325 / / उत्सवोदयम् (नपुं०) मूर्तिकला का शब्द जो मूर्ति की सम०-वीरः कर्मशील व्यक्ति, शोलिन (वि०) | ऊँचाई के अनुसार उसके यान को इङ्गित करेसक्रिय, परिश्रमी। मान० 64 / 91-93 / / उत्पचनिपचा (स्त्री०) कोई भी कार्य जिसमें 'उत्पच+नि- उत्सवविप्रहात. स.] जलस के रूप में निकाली जाने पच' (अर्थात् पूरी तरह से और भलीभॉति पकाओ) वाली प्रतिमा, मूर्ति (विप० मूलविग्रह)। कहा जाय। उत्साहः [उद्+सह +घा ] अशिष्टता, उजड्डुपन / उत्पाटयोगः [त० स०] फलित ज्योतिष का एक योग / / उत्साहयोगः [त. स.] अपनी सामर्थ्य या शक्ति का उत्पतनिपता (स्त्री०) कोई भी कार्य जिसमें 'उत्पत (ऊपर | उपयोग करना-चारेणोत्साहयोगेन- मनु००२९८ / को उढ़ो)+निपत (नीचे उगो)' शल्दों को बार-बार | उत्सेकः [ उद्+सिच्+घश ] उत्साह,-मामकस्यास्य कहा जाय। सैन्यस्य हुतोत्सेकस्य सञ्जय-महा०८७१। उत्पातप्रतीकारः (शान्तिः) [ष० त०] अशुभ शकुनों से | उत्सूर्यशायिन् (वि०) [ उद्+सूर्यशी+णिच् + इनि ] जो बचने के लिए शान्ति के उपायों का अवलम्बन, सूर्य निकल जाने पर भी सोता रहता है,-महा० -को० अ० 217 // 12 / 228164 / उत्पत्तिः (स्त्री०) (वेद०) [उद्+पद्+क्तिन् ] 1. यज्ञ उत्सतिः (उच्छतिः) (स्त्री०) [उद्+स (श्रृ)+क्तिन् ] -उत्पत्तिरिति यजि ब्रूमः मी०स०७१॥३-७ पर उच्चतर जाति-मनु० 5 / 40 / शा० भा० 2. मूल विधि, वेद में आधारभूत अध्या- उत्सज (तुदा० पर०) व्यवस्थित करना, जमाना, निश्चित देश, इसे उत्पत्तिश्रुति और उत्पत्तिविधि भी कहते करना--आत्मानं यूपमुत्सृज्य स यज्ञो ऽनन्तदक्षिणःहैं -मनु० 4 / 3 / __ महा० 12 / 97410 / For Private and Personal Use Only Page #1247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1238 ) उत्तर्गः [उद्+सज+प ] 1. राशि, हेर-अमस्य। -को जलपान, जल कलश, जम् कमल-शर्वा सुवान् राजन् उत्सर्गान् पर्वतोपमान - महा० 14185 दयोऽयुवजमध्वमतासवं ते-भाग० 1014 // 13, . 382. (पुरोहितों की) सेवाएं उपलम्प करमा -पार पानी की बाढ़।। उत्सर्ग तु प्रधानत्वात् --मी० सू० 3719 (उत्सर्ग: पास (उए+अ+बस-दिवा० पर०) फेंक देना. परिक्रयः-सा भा०)। परित्याग कर देना-जाने प्रयासमुदपास्य नमन्त एव उत्सर्गसमितिः (स्त्री) जैनमत का एक सिद्धान्त जिसके -भाग० 10 // 14 // 3 / अनुसार मलमूमोत्सर्ग करते समय ऐसी सावधानी | राग्निः [.त०] जठराग्नि, पाचक अग्नि / बरतना, जिससे कि किसी जीव जन्तु की हत्या महो। सरायः[उदर+बद+ --ब० स०] एक प्रकार का उसादामः, (--मनाः) (वि.) [उत्स+तुमुन् कीड़ा जो पेट के बल रेंगता है। +काम, मनो वा ] उत्सर्ग करने की (जाने भी दो, सः [उद्+ +धन] वृद्धि-सर्ववऍपचयोवर्कम् रहने भी दो) इन्डा वाला। -भाग० श२०१३।। उत्सपिन् (वि.) उत्+सर्प+णिनि] 1. किनारों के वस्य (वि.) [उद्+अब+सो+मर] अन्तिम, बाहर होकर बहने वाला:- उत्सर्पिणी न किम तस्य / माविरी-भाग. 41756 / तरङ्गिणी या-० 1177 2. बढ़ाने वाला, उठाने रमयजन उद्+मन+क्य+ल्युट] रुकामा / वाला। वस्त (वि०) [उद+अस्+क्त] बाहर निकला हुआ उत्तनात (वि.) [उद्+ना+त] जो स्नान करके बाहर -परिभ्रमद्गात्र उदस्तलोचनः-माग०३।१९।२६ / निकल बाया है। सत्तात् (म०) [उद्+मस्ताति] ऊपर-विधूतवल्कोऽय उल्नेहनम् [उद्+स्निह +णिच् + ल्युट्] पिसरना, हरेरुदस्तात्प्रयाति पनप शैशुभारम्-भाग० 2 / 2 / फिसलना, विचलित होना / 24 // उस्मितम् [उद्+स्मि+क्त] मुस्कराहट / सातमापक (पुं०) महाकाव्य के उपयुक्त नायक का एक उत्सोतस (वि०) [उद्++तसि] (जीवन में) ऊपर भेर-चतुर्वर्गफलोपेतं चतुरोदात्तनायकम्-काव्य० 1 / की ओर रुझान रखने वाला। रातरायः एक नाटक का नाम / उत्स्यापगिरः (2050) नींद में बोले गये शब्द-० उदास्यूहः (पु.) एक प्रकार का जल काक / 12 / 25 / जवानी (भ्वा० आ.) उठाना, उन्नत करना। उवम् [उन्+अच, नलोपः पानी, जल। उपारदीये (वि०) विपुलशक्तिसम्पन्न, महाबलशाली / कम् उन्द+दुल, नलोपः] पानी, जल। समः | ग्वारपताप (वि.) [ब० स०] जिस (रचना) में शब्द, बम्जलि: 1.चल्लभर पानी 2. सर्पण करने के। अर्थ और छन्द सभी उत्तम हो। निमित्त जल,-वेरिका जलक्रीडा जिसमें परस्पर एक | उदारसस्वामिजन (वि.) [ब० स०] जिसका उत्तम कुल दूसरे पर जल छिड़का जाता है,-प्रवेधाः जलसमाधि, में जन्म हो तपा जिसका चरित्र भी अत्युत्तम हो जलप्रवाह,-भूमः जलयुक्त या गीली भूमि, ... मम्मरी -उदारसस्वाभिजनों हनुमान-रा० 4 / 47:14 // (स्त्री०) आयुर्वेद का एक अन्य, - बाचम् जलतरंग राचसुः जनक का एक पुत्र / नामक एक वाद्ययंत्र जिसमें जल से भरे हुए प्याले / स्वयः [उद्+r+अच्] 1. उठना, उगना, ऊपर जाना छड़ी से छुए जाते हैं। 2. आरम्भ-अभिगम्योदयं तस्य कार्यस्य प्रत्यवेदयत् उत्पप्लुतत्वम् [उद्गतमप्रं यस्य+ल+क्त, तस्य भावः] --महा० 32822 3. अचूकपना, अमोषता तेज गति के कारण छलांगें लगाना-पक्ष्योदप्रप्लुतत्वात् ..-पर्याप्तः परवीरनयशस्यस्ते बलोदयः रा० 5 / वियति बहुतरं स्तोकमुक्या प्रयाति-श०१७ / 56 / 11 4. आयुष्यक में, दीर्घजीवी होने का यश उनका (वि.) [न.ब०] हस्ताञ्जलि बाँधे हए - कायेन / -हस्ते गृहीत्वा संह राममयुतं नीत्वा स्ववारं कृतविनयोपेता मौदग्रनखेन च-महा. 7.54 / 6 / यत्ययोदयम् ... भाग० 101 / 20 5. पूर्वी ज्या, सबम्बित (वि.) [उद्+अञ्च+णिच्+क्त] उठाया प्रथम चान्द्रभवन,-इनुः इन्द्रप्रस्थ नगर पुरे कुरूणाहुआ,-- सदञ्चितमुदवितनिकुञ्चितपदम्-पं० स० मुदयन्दुनाम्नि-महा. ७२३२२९,-उन्मुख (वि०) स्तु०१॥ उन्नति के द्वार पर, समृद्धि की देहली पर, भास्करः उगम (वि०) [उद्+अण्ड-+-अच्] बहुत से अंडे देने वाला। एक प्रकार का कपूर-नं० १८१०३,-राशि: नक्षत्रउखन् (नपुं०) [उन्+कनिन्] पानी, जल / सम. पुंज जिसमें कि एक ग्रह क्षितिज में उगता है। -माशमः झील, सरोवर-शरदुदाशये साधुजात-रित (वि.) [उद्++क्त] 1. विश्रुत, विख्यात सत्सरसिजोदरचीमुवा वृशा-भाग. 1013142, / __-पत्रयोषी समास्यातो बभूवातिरथोदितः --महा० अभी उत्तम जिसका अत्युत्तम ह For Private and Personal Use Only Page #1248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 / 139 / 19 2. आरम्प, शुरू किया गया---प्रभु-। उहालकायनः [उद्दालक+फा ] उद्दालक की सन्तान / भिरुपित क्षत्य-विश्व० 26 3. उधुर, जागा हुआ दीर्ण (वि.) [ उद्+द+पत ] फटाहा / ---- तां रात्रिमुषितं रामं सुखोरितमरिन्दमम्-रा०६॥ गीपकः [ उद्+दी+बुल ] पक्षिमिशेष / 12111 / गीपका [ उद्+दीप्+ण्वुल+टा ] एक प्रकार की उदित्वर (वि०) 1. ऊपर जाने वाला, ऊपर उठने वाला | चिऊँटी। अविदितगतिवोद्रेकादित्वरविक्रमः-शिव० 141 | उद्देष्य (अ.) [ उद् + दूष् +क्त्वा (ल्यप्) ] सार्वजनिक 106 2. आगे बढ़ने वाला-- गोप्तुं शौरिरुदित्वरत्वर रूप से बदनाम करके या दोषारोपण करके - शि. उदैद् ग्राहग्रहातं गजम्-विश्व० 18 / 2 / 113 / उदे (उद्+आ+इ-अदा० पर०) ऊपर जाना, उठना, उद्देशतः (अ.) [ उद्देश+तसिल ] संकेत करके, विशेषरूप उन्नत होना। से, मुख्य रूप से, स्पष्टरूप से-एष व्रदेशतः प्रोक्तः उदेयिवस् (वि.) [उद्+आ+5 (ईयिवस्) ] उगा - ~भग 10140 / हुआ, उद्भूत, जात-सख उदेयिवान सात्वतां कले | महेशपदम् [त० स०] वह शब्द जो कर्तृकारक के रूप में --भाग० 1031 // 4 / ' प्रयुक्त है - ये यजमाना इत्युदेशर्पदम् -मी० पू० उद्गगरिका (स्त्री०) सुबकियां लेना-का। 6 / 6 / 20 पर शा० मा०। उद्गल (वि.) [न० ब०] गर्दन ऊपर उठाये हुए। | उद्देश्यक (वि०) [उद्+दिश+णिच्+ण्यत् ] सदेत उद्गारकमणिः [ उद्+ग+ण्वुल+मण्+इन् ] प्रवाल, करता हुमा, इंगित से दर्शाता हुआ। मूंगा। त. (वि.) [ उद्+हन्+क्त ] 1. भरपूर, भरा हुआ, उद्गारः [ उद्ग+पश ] (समुद्री) झाग / --पश्चिमेन समुख- ततस्तु धारोक्तमेषकल्पं-रा०६।६७।१४२ तु तं दृष्ट्वा सागरोद्गारसनिभम्-रा० 7.32 / 9 / 2. चमकीला, जगमग होता हुआ,--अन्योन्यं रजसा उद्गारचूर: (पुं०) एक प्रकार का पक्षी। तेन कोशेयोद्धतपाण्डुना-रा०६५५।१९। / उदगीर्ण (वि.) [ उद्+ग+त ] 1. वान्त, वमन किया उखर्व (वि०) [20 स०] अधिकता, प्राचुर्य-आपूर्यत हुआ,-निष्ठ्यूतोद्गीणेवान्तादि गौणवृत्तिव्यपाश्रयम् / ___ बलोवर्वायुवेगरिवार्णवः-रा० 6/74 / 35 / / फाव्या. 2. बाहर निकाला हुआ, निष्कासित 3. प्रेरित, उखत (वि.) [उद्+धून +क्त ] 1. फेंका हुआ, कराया हुआ-काकलीकलकले रुदगीर्णकर्णज्वरा:-गीत. उछाला हुआ,-उतमिव सागरम्-महा० 5 / 19 / 4 1136 4. उठता हुआ, किनारे से बहता हुआ 2. अव्यवस्थित, बिखरा हुआ-आसीद्वनमिवोडतं -उद्गीर्ण हवाणोंषी-२० 1736 / स्त्रीवनं रावणस्य तत्-रा० 5 / 9 / 663. ऊँचा, उगानम् [ उद्++ ल्युट ] साममन्त्रों के उच्चारण में उन्नत - देवदारुभिरुन्तैरूवबाहुमिव स्थितम्-त. एक विशेष अवस्था / 5 / 56 / 29 / उद्गीतक (वि०) [ उद्++त+कन् ] जो ऊँचे स्वर उर ( =उद्+ह) विकृत करना, नष्ट करमासे गायन करता है। .. एष वा सजनामात्यमुखरामि स्थिरो भव-महा० उतपनम् [ उद्+अर्थ+ ल्युट् ] बालों को संयुक्त करने 5.189 / 23 / के लिए पिन ---साभिवीक्ष्य दिशः सर्वा वेण्युग्रथन- | उषित (वि.) [उद्+हष् +क्त] हर्ष के कारण मुत्तमम् - रा० 5/67 / 30 / जिसके रोंगटे खड़े हो गये हों। उपोविका / उद् + ग्रीवा+इनि+कन्+टाप् ] पंजों पर उतरणम् [ उद्+ह+ल्युट् ] प्रतीक्षा करना, आशा करना खड़े होना -उग्रीविकादानमिवान्वभूवन (रोमाणि) / --अपि ते ब्राह्मणा भुक्त्वा गताः सोबरणान् गहान् --201453, कामिमिथुननिधुवनलीला दर्शनार्थ- -महा० 13160 / 14 / मिवोद्ग्रीविकाशतदानखिनेषु प्रदीपेषु-वास। उमारकविधिः (पुं०) [उद्+ह+णिच्+ण्वुल+वि उघट्टनम् [उद्+घट्ट+ल्युट] (अत्याचार का आरंभ। +घा+कि] देने की या भुगतान करने की रीति उद्घोण (वि.) [ब.स.] सूअर की भांति जिसके नथुने / -तत्कथय कथमस्योद्धारकविधिर्भविष्यति-पंच०२। ऊपर को हों-स्फुरदुरोणवदन:-शिव- 2013 / / उदारः [उद्+ह+घञ ] 1. संकलन 2. (खाने के उद्दण्डित (वि.) [ उद् - दण्ड्+क्त ] उठाया हुआ, पश्चात्) जो थालियों में बच जाय, उच्छिष्ट / सम० भक्त -कथा०। -कोशः एक ग्रन्थ का नाम,-विभागः अंशों के उद्दपशास्त्रिन् पन्द्रहवीं शताब्दी का तमिलदेशवासी एक प्रभाग, विभाजन / महान् विद्वान् / | उतारित (वि.) [ उद्+ह+णिच्+क्त ] निष्कासित उहलम (वि.) [उत् + दल + ल्युट ] फाड़ देने वाला।। मुक्त, छुड़ाया हुआ। 156 For Private and Personal Use Only Page #1249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1240 ) उद्वद्ध (वि) [ उद् / वन्ध् |क्त ] 1. बाँधा हुआ | उद्वेगकर (वि०) [ उद्वग+कृ+ अच्, ण्वुल, गिनि 2. बाधित 3. दृढ़, संहत, कसा हुआ। | उद्वेगकारक वा ] चिन्ताजनक, क्षोभ करने वाला, कष्ट उद्ब्रहण (वि.) [ उद् + बृह, + ल्युट् ] बढ़ाने वाला, | उद्वेगकारिन् J कर या दुःखदायी। सशक्त करने वाला, सामर्थ्य देने वाला। उद्विबर्हगम् [ उद्---विबृह.+ल्युट ] बचाना, निकाउद्भङ्गः[ उद् -भज्+घञ ] तोड़ कर पृथक् कर देना, ! लना, उठाना रसां गताया भुव उद्विबहणम् ---भाग० विय क्त कर देना। 3 / 13 / 43 / उद्भ (भ्वा० पर०, प्रेर०) विचार करना, सोचना | उवर्तः [ उद् --- वृत्+घञ ] प्रलयकाल-रा० 6 / 44 / 18 / विक्रम. 9 / 19 / उद्वत्त (वि०) [ उद्+वृत्+क्त ] उलटा हुआ, उद्घाउद्यतायुध (शस्त्र) (वि.) [ब० स०] जिसने शस्त्र हाथ टित, प्रसारित / में ले लिया है। उद्वातः (पुं०) नाचते समय हाथों की मुद्रा। उधन्धा (स्त्री०) जंगल में या सूखी लकड़ी में रहने वाली उद्वेष्टनीय (वि.) [ उद्+ वेष्ट् +अनीय ] खोलने के एक काली चिऊँटी, दखौड़ी।। योग्य, बन्धनमुक्त करने के लायक-आद्ये बद्धा विरह उद्यामित (वि०) [ उद्+यम् + णिच् | क्त ] काम करने दिवसे या शिखादाम हित्वा, शापस्यान्ते विगलितशुचा __ के लिए जिसे प्रेरित किया गया है आत्मनो मधु- तां मयोद्वेष्टनीयम् मेघ० 93 / मदोद्यमितानाम्-कि० 1666 / उद्युदस (उद्+वि+उद्+अस् .. म्वा० पर०) पूर्णतः उद्यापनिका [उद् ।-या |-णिच् ।-पुक+ल्युट-+कन् / ' छोड़ देना, त्याग देना। +टाप् ] यात्रा से वापिस घर आना। उन्नादः [ उद्+नद्-घा 1 कृष्ण के एक पुत्र का नाम / उयोजित (वि)[उद्य ज-+-णिच् - क्त उठाया हुआ,एक ! उन्नत (वि.) [ उद्+नम्+क्त ] ओजस्वी, उल्लासपूर्ण, चित्र (जैसे कि बादल)। समाधाय समद्धार्थाः कर्मसिद्धिभिरुन्नता:-रा० 5 / उद्योतः (पुं०) [ उत्+द्युत्+घा 11. चमक, उद्दीप्ति, 615 / सम० काल: छाया को माप कर समय उज्ज्वलता, 2. इस नाम का भाष्य जो रत्नावली, निर्धारित करने की प्रणाली,-कोकिला एक प्रकार काव्यप्रकाश और महाभाष्यप्रदीप पर उपलब्ध है। का वाद्ययंत्र। उद्योतकरः ( पुं०) महाभाष्यप्रदीप के भाष्यकार का | उन्नतिः [ उद्+नम् + क्तिन् ] दक्ष की पुत्री जिसका नाम / विवाह धर्म के साथ किया गया था। उद्योतनम् [ उद्+द्युत् +-णिच् + ल्युट ] चमकने या प्रका- | उन्नहन (वि०) [ उत्+नह +ल्युट् ] अशृंखल, खुला, शित होने की क्रिया। मुक्त, बन्धन रहित-मत्संश्रयस्य विभवोन्नहनस्य उद्रिक्तिः [ उद्+रिच् + क्तिन् ] आधिक्य-शिवमहिम्न नित्यम् ---भाग० 1111 / 4 / स्तोत्र-३०। उन्नाहः [ उद्-+ नह+घञ्] धृष्टता, हेकड़ी, औद्धत्य, उद्रेचक (वि.) [ उद्+रिच्+ण्वुल ] बढ़ाने वाला, ___अहंकार / वृद्धि करने वाला। उग्निद्र (वि०) [ उद्गता निद्रा यस्मात् ब० स०] उद्वामिन् (वि.) [ उद्+वम् + णिनि ] उलटी करने 1. तेजस्वी, देदीप्यमान (जैसे कि चन्द्रमा)---नीत्वा वाला। निर्भरमन्मथोत्सवररुन्निद्रचन्द्रा क्षपा:-कलि. उद्वहः [ उद्-+-बह+अन् ] कुल या वंश में प्रधान व्यक्ति, 2. (बालों की भांति) सीधा खड़ा होने वाला, फैला पुत्र (जैसा कि 'रघूद्वह' में)। हुआ। उदाहक्षम (उद्वाह+ऋक्षम्) [त० स०] विवाह के लिए उनिद्रकम् / उद्-+-निद्रा-कन, ता वा ] जागरूकता, शुभ नक्षत्र / उद्वाहक्षं च विज्ञाय रुक्मिण्या मधु- उन्निद्रता / जागते रहना। सूदनः---भाग० 10153 / उन्नेय (वि.) [ उद्+नी+ण्यत् 1 सादृश्य के आधार उद्वह्नि (वि.) [ब० स०] चिनगारियां या अग्निकण बर- पर जो अनुमान करने या निर्णय करने के योग्य हो, साने वाला (जैसे कि आँख)-उद्वह्निलोचनम् शि० -शि० भ०१७ 4 // 28 // उम्मणिः (पुं०)[ उत्क्रान्तो मणिम-अत्या० स०] सतह उद्वाश विलाप करते हुए नाम लेना, शोकाधिक्य के कारण पर पड़ा हुआ रत्न--गिरयो बिभ्रदुन्मणीन्--- भाग० रोने में नाम ले लेकर क्रन्दन करना.. उद्वाश्यमानः 1012726 / पितरं सरामम्-भट्टि० 3 / 32 / / उन्मयनम् [ उद्+मथ् + ल्युट् ] बिलो देना,- कूर्मे धृतोउद्विज् (पानी छिड़क कर) मनुष्य को होश में लाना / दिरमतोन्मथने स्वपृष्ठे---भाग० 114:18 / उद्वंगः [ उद्+विज्+घञ ] सुपारी-०७।४६ / / उन्मत्त (वि०) [ उद्+मद्+क्त ] 1. बहुत बड़ा, असा For Private and Personal Use Only Page #1250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1241 ) मान्य-उन्मत्तधेगा: प्लवंगा:----रा० 5 / 62 / 12, / / सौजन्य / सम० च्छलम् आलंकारिक रूप से प्रयुक्त ----त्तम् (नपुं०) धतूरे का फूल ... उन्मत्तमासाद्य हरः | किसी उक्ति के शब्दार्थ का उल्लेख करके एक प्रकार स्मरश्च नै० 3 / 98 (भा०)। का निराकरणीय आभासी अनुमान, पदम् शिष्टता उन्मनीभू (म्वा० पर०) उत्तेजित होना, क्षुब्ध होना। / का शब्द, औपचारिक उच्चारण / उन्मुखता [ उन्मुख+ता ] आशंसा या प्रत्याशा की | उपच्छन्न (वि.) [उप+छ+क्त] गुप्त, छिपा हुआ। स्थिति / उपच्छल (पर०) क्षीण होना, पकड़ लेना। उन्मुग्ध (वि.) [ उद् + मुह,+क्त ] 1. उद्विग्न, संभ्रान्त | उपजानु ( वि० ) [ उप-जन् / अण् ] घुटने के 2. मूर्ख, मूढ़। निकट। उन्मद् (क्रया पर०) मसलना, मालिश करना। उपतल्पः [उप+तल+प] 1. ऊपर की मंजिल का कमरा उपकर्मन् (नपुं०) उपनयन संस्कार को एक प्रक्रिया। 2. एक प्रकार की लकड़ी की चौकी या स्टूल / जिसमें बालक का सिर संघा जाता है। उपतीर्थम् [उप+तन-थक] 1. सरोवर या नदी का तट उपकल्पः / उप-कृप / अच्, घञ् वा ] आभपण---तप- | 2. निकटवर्ती प्रदेश--महा० 5 / 1527 / नीयोपकल्पम्-भाग० 3.18 / 9 / उपत्यका [उप+त्यकन्+-टाप्] पर्वत की तलहटी का उपकीचकः [ उप-की---वन आद्यन्तविपर्यय ] बांस निम्नदेश गिरेरुपत्यकारण्यवासिनं संप्राप्ता 205 / के वृक्षों को उपशाखा-विराटनगरे राजन् कीचका- | उपदंशनम् उप+दंश + ल्यद] प्रकरण, प्रसंग-मी० सू० दुपकीचकम् - (यहां 'विराट' में 'विः-+राट' श्लेष | 6 / 8 / 35 पर शा० भा०। भी हो सकता है)। उपदंशितम् [उपदंश्+क्त] प्रकरण बताते हुए उल्लेख उपक्रमः [ उप+कम+घञ ] 1. शीर्य 2. उड़ान 3. व्यव- करना। हार प्रतिक्रिया। उपदात (वि०) [उप+दा+तुच] देने वाला। उपक्रान्त (वि.) [उप+ क्रम् +त] 1 रब्ध 2. अधि- | उपवेहः [उप+दिह घा] लपेटना, लेप करना, चित्रित गत 3. व्यवहृत। करना-देहोपदेहात्किरणर्मणीनाम् .. नं० 10197 // उपक्षेपक (वि०) उप-क्षिप--प्रवल | संकेत देने वाला, उपवेहिका [उपदेह+का+टाप] दीमक / सुझाव देने वाला। उपद्रवः [उपद्रु+घा] 1. सप्तांशक साम का छठा भाग / उपखिलम् (नपुं०) परिशिष्ट का भी परिशिष्ट / छा० 2 / 8 / 2 2. हानि, छीजन - अन्नस्योपद्रवं पश्य उपगम् (भ्वा० पर०) पूजा करना-सह पत्न्या विशालाक्ष्या ___मृतो हि किमशिष्यति रा० 2 / 108 / 14 / नारायणमुपागमत् -रा० 26 / 1 / उपद्वारम् [अन्य 0 स०] पार्श्वद्वार। उपगमनम् [ उपगम्+ल्युट / धारणा, स्वीकृति--अप्रा- उपधा (जुहो० उभ०) धोखा देना। प्तस्य हि प्रापणमुपगमनम् -- मी० मू० 1211121 पर | उपधालोपः [ष० त०] अन्तिम से पूर्व का लोप / / शा० भा० उपधान (वि०) [उपधा+ल्यूट] तनाव बढ़ाने के लिए उपजिगमिषु (वि.) [उप-गम-+सन् उ] पास जाने वाद्ययंत्र में के तारों के अंदर रक्खे हुए लकड़ी के का इच्छुक,--नीचैवस्थित्युपजिगमिपोः-- मेघ० 44 / टुकड़े-पाशीपधानां ज्यातन्त्रीम्-.-महा० 4 / 35 / 16 / / [उप+गुह --क्त 1. ग्रस्त, उत्पीडित | उपधानीयम् [उप+धा-अनीयर 1. तकिया, गद्देदार -----कन्योपगूढो नष्टथीः कृपणो विषयात्मक:-~भाग० बिछावन 2. पायदान / 4 / 28 / 6 2. आच्छादित, इका हुआ लताभिः उपधाव (न्वा० उभ०) पूजा करना। पुष्पिताग्राभिरुपगूढानि सर्वत: ....-रा० 419 / उपनतिः [उप+नम् +क्तिन्] 1. झुकाव 2. देय / उपगानम् उपगैल्युट] सहगामी संगीत / उपनम्र (वि०) [उप-नम्+र] आनेवाला, उपस्थित उपमेयम् [उपगैयत गायन, गीत / होने वाला। उपग्रस् (भ्वा० पर०) निगलना, हड़प करना, ग्रहणग्रस्त उपनिबस (वि०) [उप-+नि+बन्ध+क्त] 1. रचित होना। 2. विमष्ट किंचिदुपनिबद्ध उत्तर० 7 / उपघ्रा (भ्वा० पर०) सूचना पर्यश्रुरस्वजत मूर्धनि चोप- | | उपनिर्देड (भ्वा० पर० आ०) प्रसन्न करना। जघ्रौ रघु० 13170 / उपनिर्गमः [उप+निर्---गम् +खच्] मुख्य सड़क, प्रधान उपचतुर (वि.) लगभग चार, चार के आसपास / / मार्ग। उपचरणम् [उप--चर + ल्युट] निकट जाना, पहुँचना। उपनिर्गमनम् [उप-+निर्+गम्+ल्यट] द्वार, दरवाजा। उपचरितम् (नपुं०) सन्धि का विशेष नियम / उपनिरिः [उप+निर्-+ह+घा] आक्रमण, हमला उपचारः [उप-चर्घ ञ्] 1. सेवा, पूजा 2. शिष्टता, -नेदानीमुपनिरिं रावणो दातुमर्हति-- रा० 6 / 75 / 2 / For Private and Personal Use Only Page #1251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1242 ) उपनिविष्ट (वि.) [उप+नि+विश्+क्त] 1. घेरा , उपमम्मिन् (पुं०) [ उपमन्त्र+इनि ] 1. अवरपरामर्श डालने वाला रखने वाला, अधिकार करने वाला। दाता, या मन्त्री 2. संदेशवाहक- स्मरण उपमउपनिवेशः [उप+नि+विश+प] 1. देहात, उपनगर निन् भव्यतामन्यवार्ता - भाग० 107129 / 2. स्थापना। उपमा [उप+मा+बम+टा] धर्मविर सिद्धान्तउपनिषद [उपनि+ष+विवा] संकेन्द्रण---यदेव विद्यया -विधर्मः परधर्मश्च आभास उपमा छल:--भाग० करोति श्रद्धयोपनिषदा-छा० 111 / 10 / 15 / 12 / उपनिषेद (भ्वा० आ०) अपने आपको संलग्न करना। उपमाव्यतिरेकः (पुं०) तुलना और वषम्य का संयोग / उपनयः [उप+नी+अच्] (किसी भी शास्त्र में) दीक्षा।। उपनयनम् [ उप+म+ ल्युट् ] निग्रह, निरोध / उपनयनम् [उप+नी+ल्युट्] नियोजन, नियुक्ति, अनु उपमेखलम् (अ.) [प्रा० स०] (पर्वत के) ढलान पर / प्रयोग। उपयापनम् [ उप+या णि+ल्युट ] 1 निकट पहुँचाना उपनीत (वि.) [उप+नी+क्त] 1. विवाहित 2. ब्रह्मचर्य 2. विवाह आश्रम में दीक्षित। उपयुक्तः[प्रा०स०] अधीनस्थ अधिकारी-को० अ०२।५। उपनुन्न (वि.) [उप+नु+क्त] उड़ा हुना, लहरों में उपयोगवत् [उपयोग+मतुप, मस्य वस्वम् ] उपयोगी, बहा हुआ--द्रुतमरुषुपनुन्नः-शि०४१६८। काम का। उपनेत्रम् [उप+नी+ष्ट्रन] ऐनक, पश्मा। उपयोगशून्य (वि.) [त. स.] व्यर्थ, निरर्थक / उपन्यस्तम् [उप+नि+अस्+क्त] मल्लयुद्ध के समय | उपयोण्य (वि.) [उप-+युज्+ण्यत् ] कार्य में साने हाथों की विशिष्ट मुद्रा--रा०६१४०।२६। के योग्य / उपपतित (वि०) [उप+पत्+क्त] उपपातक या किसी उपरण्य (अ.) [उप+र +क्त (ल्यप्) ] काला सामान्य पाप का अपराधी, नगण्य पाप का दोषी। कर के, मिटा कर / उपपत्तिः [उप+पद्+क्तिन्] 1. दुर्घटना, संपात-उप- उपरजक (वि०) [उप+र +ण्वल ] 1. रंगने पत्त्योपलब्धेषु लोकेषु च समो भव ... महा० 12 / 288 वाला 2. प्रभावशाली। 11 2. उपयुक्त, तर्कसंगत-उपपत्तिमदूजिताश्रयं नृप- उपरतशोणिता (वि.) [ब० स०] वह स्त्री जिसका मूचे वचनं वृकोदरः-कि०२।१ / ___ मासिक धर्म बन्द हो चुका है। उपपत्तिपरित्यक्त (वि.) [त० स०] अनिर्वाह्य, | उपरम्भ (न्वा० पर०) प्रतिध्वनि कराना, गुंजाना / अप्रमाणित / उपरि (अ०) [ऊवं+रिल्, उप आदेशः ] ऊपर, उपरांत. उपपत्तिसमः[त० स०] न्यायशास्त्र में वर्णित विरोध जहाँ। बाद। सम-काणम् मैत्रायणी संहिता का तीसरा दोनों विरुद्ध उक्तियाँ सिद्ध की जा सकती हैं। खण्ड, तलम् सतह,-बहती बहती छंद का एक उपपत्र (वि.) [उप+पद्+क्त] इच्छानुकूल, रुचिकर भेद,--(स्थ) ऊपर रक्खा हुआ। -उपपन्नेषु दारेषु पुत्रेषु च विधीयते--रा०२११०१।१८। उपसः उप+रुध् + क्त ] कैदी, रोका हुआ। उपपाद्य (वि.)[उप+पदण्यत्] 1. अनुपाल्य 2. प्रमाण उपरोषः [उप-+ +घन 1 उच्छेद, लोप, मिकालदेना सापेक्ष 3. सत्ता में आने वाला। ___ आनर्थक्यादि प्राकृतस्योपरोषः स्यात्-मी० सू० उपपर्वन् (नपुं०) [प्रा० स०] चन्द्रमा के परिवर्तन से पूर्व | 8415 / सम० - कारिन् (वि०) विघ्नकारी, का दिन। रुकावट डालने वाला। उपपावः [उप+पद्+णि+पा] अतिरिक्त, स्तम्भ / उपलः [उप+ला+क] नकली बन्दूक द्वारा फेंकी गई उपप्लबः उप-प्ल+अप्] हानि, विफलता-मायया विभ्रम- गोली। सम-अक्षिन् (वि०) चक्की पर अनाज च्चितो न वेद स्मृत्युपप्लवात्-भाग० 1018425 / पीसने वाला,-वृष्टिः ओलों की वर्षा / उपप्लाव्यम् (नपुं०) मत्स्यदेश की राजधानी का नाम / उपलब्धिसम [ उपलभ् +क्तिन+सम्+अच् ] न्याय उपप्लुत (वि.) [उप---प्लु+क्त] दबाया हुआ, भींचा शास्त्र का शब्द जो किसी तर्क का कुतर्क पूर्ण निराहुआ~-कि० 8 / 39 / करण दर्शाता है-न्या० द०। उपभ (जुहो० उभ०) धारण करना, वहन करना। | उपलम्भः [ उप+लभ् +घा, मुम् च ] देखना, दर्शन उपभूत (वि.) [ उप+भू+क्त ] संग्रहीत, निकट लाया करना। गया-शिष्यायोपभूतं तेजो-भाग०८।१५।२९ / उपलेपः [उप+लिए+घञ ] मन्दता, कुन्दता / उपभेदः [उप+भि+पा ] उप प्रभाग। उपलेखः [उप+लिख+पा 1 प्रतिशाख्यों से संबद्ध उपमश्रवस् (वि०) (वेद.) [20 स०] प्रशस्त-- पशः / व्याकरण की एक रचना। ख्यापितकवि कवीनामुपश्रवस्तमम्- ऋ० 2 / 23 / 1 / / उपलोहम् (नपुं०) [प्रा. स.] गौण पातु, खोटी धातु / For Private and Personal Use Only Page #1252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1243 ) उपवञ्चनम् [ उप+बञ्च+ल्मुट् ] दुवकना, नीचे झुक | उपसंवज् (म्वा० पर०) अन्दर कदम रखना। घुसना, कर चलना, लेटकर घिसरना। प्रविष्ट होना। उपपञ्चित (वि.) [उप+व +त] घोखा दिया | उपसंसृष्ट (वि.) [ उप+सम् +सुज+क्त ] 1. संयुक्त गया, ठगा गया, निराश सम्मिलित 2. कष्टग्रस्त, अभिशप्त, निन्दित-ब्रह्मउपवर्तनम् [उप-+ वृत् + ल्युट् ] देश-- स्वभौममेतदुपव- | शापोपसंसृष्टे स्वकुले-भाग० 11 / 30 / 2 / / र्तनमात्मनैव नै०११०२८ / उपसंस्कृत (वि०) [उप + सम् + कृ+क्त ] 1. निष्पन्न, उपवसनम् [उप+वस् + ल्युट ] उपवास करना / पक्व, तैयार किया हुआ 2. अलंकृत, भरा हुआ-अउपोषित (वि.) [उप+वस्+क्त ] जिसने उपवास रख | मृतोपमतोयाभिः शिवाभिरुपसंस्कृता:-रा०५।१४।२५। लिया है। उपसंहतिः [ उप+सम् +ह+क्ति ] 1. उपसंहार, अन्त उपोषितम् (नपुं०) [उप+वस्+क्त] उपवास रखना / 2. विपत्ति। उपोडा [ उप+वह+क्त+टाप्] छोटी पत्नी जो पति | | उपसंक्लप्त (वि०) [ उप+सम + क्लपु+क्त ] ऊपर __ को अधिक प्रिय हो। _ जमाया हुआ-भाग० 41955 / उपविद् (वि.) [उप+विद्+क्विप् ] 1. लाभ उठाने | उपसंग्रहः [ उप+सम् + ग्रह-+अचु ] तकिया। वाला, प्राप्त करने वाला 2. जानने वाला,--(स्त्री०) उपस (तुदा० आ०) संलग्न होना-अथापि नोपसम्जेत 1. अधिग्रहण 2. पृच्छा। __स्त्रीषु स्त्रंणेषु चार्थवित्--भाग० 11 / 26 / 22 / उपविष्ट (वि.) [उप+विश् + क्त]। आसीन, | उपसबनम् [ उपस+ल्युट ] आवास, स्थान (जैसा कि अधिकृत। ___'यशोपसदन' में)। उपविष्टक (वि.) [उप+विश्+क्त+कन् ] जो उपसादनम् [ उपसद् + णिच् + ल्युट् ] नम्रता पूर्वक किसी अवधि पूर्ण होने पर भी अपने स्थान पर दृढ़ता से के निकट जाना। जमा हुआ है (जैसे कि गर्भाशय में भ्रूण)। उपसन्ध्यम् (अ.) [प्रा० स०] संध्या के निकट-उपउपवीश् (उप+वि+ ईक्ष्) (आ०) 1. देखना 2. उचित सन्ध्यमास्त तनु सानुमतः-शि० 9 / 5 / / या उपयुक्त समझना।। उपसा (प्रेर० पर०) 1. दमन करना 2. संवारना, उपव्रजम् (अ०) [प्रा० स०] ग्वालों की बस्ती के पास / व्यवस्थित करना। उपशक (दिवा० उभ०) 1. यत्न करना, सहायता करना उपसर्गः [उप-सज्+घञ बाधा ते समाधावपसर्गा 2. जानना, पूछताछ करना 3. (स्वा० पर०) समर्थ | व्युत्थाने सिद्धयः-- योग० 3 / 39 / / या योग्य होना। उपसर्जनीकृत (वि.) [ उपसर्जन-+च्चि+कृ- क्त ] दमन उपशमः [ उप-1-शम् --] ज्योतिष में बीसा महर्त / किया हुआ, दबाया हुआ, गौण बनाया हुआ-- यथार्थः सम०-क्षयः (जैन०) मूक रहकर कर्म नाश, कर्म शब्दो वातमर्थमुपसर्जनीकृतस्वार्थो व्यक्तः.... ध्वन्या। न करना। उपजित (वि.) [उप-+सुज-+-क्त] व्यस्त, लीन, उपशयस्थ (वि०)[उपशय+स्था+क] पात में लगा हुआ। बिदा किया हुआ-तक्षकादात्मनो मृत्यु द्विजपूत्रोउपशीर्षकम् [उपशीर्ष---कन्] 1. प्रमस्तिक रोग पसजितात् - भाग० 111 / 27 / 2. मोतियों का हार। उपसृष्ट (वि.) [ उप+सृज्+क्त ] 1. छोड़ा हुआ उपशूरम् (अ०) [प्रा० स०] शौर्य की कमी से। -अश्वत्थाम्नोपसृष्टेन ब्रह्मशीष्णोरुतेजसा--भाग० / उपशर (वि०) [प्रा० स०] जिसमें शौर्य की कमी हो। 12 / 1 2. बरबाद, ध्वस्त-कालोपसृष्टनिगमावन उपश्रुतिः [ उप+श्रु+क्तिन् ] 1. जनश्रुति, अफवाह ... भाग 10183 / 4 / -नोपश्रुति कटकान - महा० 5 / 30 / 5 2. अन्तनि- उपसर्पः[ उपसप+घञ 1 तीन वर्ष का हाथी। विष्ट, समावेशन-यथा त्रयाणां वर्णानां संख्यातोप- उपस्कन्न (वि०) [ उप+स्कन्द+क्त ] सगतिक, कष्टश्रुतिः पुरा-- महा० 12164 / 6 3. एक देवी का ग्रस्त, पसीजा हुआ--स्नेहोपस्कन्नहृदया-रा०६। नाम-महा० 12 // 34248 / 111387 / उपश्लोकः [ उप+ श्लोक-+अच् ] दसवें मनु के पिता | उपस्कारः [ उप++घञ्] अचार, चटनी, मिर्चका नाम / मसाला। उपष्टम्भक (वि.) [ उप + स्तम्भ् अच् ---कन् ] सामर्थ्य उपस्तीर्ण [ उप+स्तृ+ क्त ] 1. फैलाया हुआ, बिखेरा देने वाला, पुनर्बलन देने वाला। हुआ, छितराया हुआ 2. वस्त्रावेष्टित, आच्छादित, उपसंयत (वि.) [ उप +-सम् +यम् + क्त ] संयुक्त, | उका हुमा 3. उंडेला हुआ। पक्का जुड़ा हुआ। | उपस्म (वि०) [उप+स्था+क] 1. निकटवर्ती, स्वः For Private and Personal Use Only Page #1253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1244 ) (पुं०) आसन -- एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपा-। प्रतिपत्र --उपाधिन मया कार्यों बनवासे जुगुप्सितः विशत्-भग० 1247 2. सतह-तं शयानं धरोपस्थे - रा०२।११।२९।। --- भाग० 7 / 13 / 12 / उपाध्वर्यः [प्रा० स०] अध्वर्य का सहायक / उपस्थानम् [ उप+स्था+ल्युट् ] न्यायालय का कक्ष उपारमः[ उप-+आ+रम्+अच ] समाप्ति, अन्त / --उपस्थानगतः कार्यार्थिनामद्वारासङ्गं कारयेत्-को० उपारद् (उदा० पर०) किसी बात के लिए रोना / अ० 1114 / उपार्जित (वि.) [ उप+अर्ज + क्त ] 1. उपलब्ध किया उपस्थापना [ उप+स्था+णिच् --युच्-+ टाप् ] जनसाधु हुआ अवाप्त। __ की दीक्षा से संबद्ध संस्कार। उपालभ् (भ्वा० आ०) (बलि पशु के रूप में) मारने के उपस्थितवक्त (पं)उपस्थित-वच+तच आशवक्ता लिए पकड़ना। उपस्नुत (वि.) [ उप+स्नु+क्त ] बहती हुई, प्रवण- / उपावृत (वि.) [उप+आ+ +क्त] ढका हुआ, गुप्त / शोल–स्वयं प्रदुग्धेऽस्य गुणरुपस्नुता कि० 1318 / : उपाश्लिष्ट (वि०) [ उप+आ+श्लिष्+क्त ] जिसके उपस्पर्शनम् [ उप+स्पृश् + ल्युट ] उपहार। / आलिङ्गन किया है, या जिसने पकड़ लिया है। उपहासकम् [उपहस्+घञ +कन् ] दिल्लगी, हास्यपूर्ण उपासीन (वि.) [उप+आस-+शानच, ईत्व ] 1. निकटउक्ति / स्थ, आसपास विद्यमान, उपासना करने वाला। उपहर्त (वि०) [ उप+ह+ तृच् ] उपहार प्रदान करने उपस्थित (वि०) [ उप+स्था+क्त ] 1. सवार, खड़ा वाला, आतिधेयी। हुआ, 2. घटित, प्रस्तुत, आटपका जैसे कि 'व्यसनं उपहा (जहो० आ०) उतरना, नीचे आना--- उपाजिहीथा समुपस्थितं' में। न महीतलं यदि---शि० 1137 / उपायः [ उप+अय्+घञ ] दीक्षा, यज्ञोपवीत संस्कार उपहार्यम् ) [ उप+ह-+ ण्यत्, ण्वुल, स्त्रियां टाप् च ] -उपायेन प्रवतरन् --- उपनयनेन सह प्रवतरन्-० उपहारकः उपहार, भेंट। सं० पर शा० भा०। सम-विकल्पः वैकल्पिक उपहारिका) तरकीब। उपहितिः (स्त्री०) [ उपधा -+-क्तिन् ] निष्ठा, भक्ति / उपेयिवस् (वि.) [उप-इण्+क्वसु-पा० 3 / 2 / 109] उपहत (वि.) [उप+हे+क्त ] आमन्त्रित, बलाया। निकट जाने वाला शि०२।११४ / "गया, आवाहन किया गया। उपेक्षणीय (वि.) [उप+ ईक्ष+-अनीयर] उपेक्षा करने उपांशु (अ०) [ उपगता अंशवो यक-ब०म०] 1. मन्द के योग्य, नजर अन्दाज़ करने के लायक, परवाह न आवाज में, कान में कहना। सम० जपः मन ही करने योग्य / मन में मन्त्रों का जप करना, ग्रहः यज्ञ में निचोड़। उपड़कीय [ना० धा० पर०-उप+एडक+क्यच-] कर निकाले हए सोमरस का परेपण, इण्ड: निजी ऐसा व्यवहार करना जैसा कि भेड के साथ किया रूप से दिया गया दण्ड,-वधः गप्त हत्या। : जाता है-पा० 6.1294 पर काशिका / उपाकृत (वि०) [उप+आ+ +क्त ] 1. अभिमन्त्रित : उपेन्द्र---अपत्यम् [प० त०] कामदेव / 2. उपयोग में लाया गया- यज्ञेप्रपाकृतं वित्त महा० उपास (वि.) उप-+आ+दा+क्त ] अवाप्त, अजित 12 / 268 / 22 / 2 --उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी-रघु० 5 / 1 / उपाक्रम् (म्वा० पर०) टूट पड़ना, हमला बोलना। उभय (वि.) [उभ+अयट ] दोनों। सम० -अन्वयिन् उपाघ्रा (म्वा० पर०) 1. संघना 2. चूमना (जैसा कि / (वि.) जो दोनों अवस्थाओं में लागू हो सके, 'मून्युपाघ्राय में)। -अलङ्कारः एक अलंकार जिसमें अर्थ और ध्वनि उपाङ्गः [प्रा० स०] जैमियों के धार्मिक ग्रंथों का समूह / / दोनों घट सके, .... च्छन्ना दोनों प्रकार की प्रहेलिकाओं उपात्तविद्यः [ब० स०] जिसने अपनी शिक्षा समाप्त / को दर्शाने वाला अलंकार,-पदिन (वि०) जिसमें कर ली है-उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी रघु० 5 / 1 / / परस्म-आत्मने दोनों पद विद्यमान हों, विपुला एक उपादानम् [ उप-+आ+दा+ल्यट] सांख्य शास्त्र में छन्द का नाम,--विभ्रष्ट (वि०) जो न यहाँ का वर्णित चार अन्तर्वस्तुओं में से एक - प्रकृत्युपादान- रहे न वहाँ का, दोनों जगह से असफल,---कच्चिनोकालभागाख्याः-सा का० 50 / भयविभ्रष्टश्च्छिन्नाभ्रमिव नश्यति-भग० 6 / 38, उपाधा (ज हो० उभ०) (किसी स्त्री को सतीत्वसमर्पण ----स्नातक (वि.) जिसने अपना अध्ययन और के लिए) फुसलाना, चरित्रभ्रष्ट करना। ब्रह्मचर्यव्रत दोनों ही समाप्त कर लिये हैं.....मनु० उपाधिः [उप+आ+धा+कि] 1. किसी क्रिया का 4131 पर कुल्लूक। गौण उत्पादन, आनुषंगिक प्रयोजन 2. स्थानापत्ति, / उभयतः (अ) [ उभय+तसिल ] दोनों ओर से / सम० For Private and Personal Use Only Page #1254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1245 ) ----- पाश (वि.) जिसके दोनों ओर जाल बिछा हो, | उल्वण (वि०) [ उन्--ब (व) ण् --अच, पृषो० साधुः] ----पुच्छ ( वि.) जिसके दोनों ओर पूंछ हो प्रज्ञ 1. भयानक 2. पापमय / सम० --रसः शौर्य / (वि०) जो बाहर और भीतर दोनों ओर देख सके। उल्लकः [ उद्ल क+अच् ] एक प्रकार की शराब। उमामहेश्वरव्रतम् (नपुं०) शिव को प्रसन्न करने के लिए उल्लस् (भ्वा० पर० प्रेर०) हिलाना, लहराना-जिह्वाविशेष प्रकार का एक धार्मिक ब्रत / शतान्युल्लासन्त्यजस्रम् -कि० 16 / 37 / उरगशयनः [ब० स० ] शेषनाग पर सोने वाला विष्णु। उल्लसत् (वि.) [ उद्+लस्+शतृ ] चमकता हुआ। उरस् (नपुं०) [ ऋ+असुन, उत्वं रपरश्च ] छाती।। उल्लाघ (वि०) [ उद्+ला+हन्-नक ] चतुर, प्रसन्न, सम० -कपाट: चौड़ी सबल छाती, --क्षयः तपैदिक, --. घः (पुं०) काली मिर्च / छाती का रोग, -स्तम्भः दमा। उवटः (पुं०) ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा यजुर्वेद का भाष्यकर्ता / उरुपराक्रम (वि.) [ब० स० बड़ा शक्तिशाली। उशत (नि.) [ वश्+शत ] 1. सुन्दर 2. प्रिय, प्यारा उरुषा (अ०) [ उरु+धा ] नाना प्रकार से--- पश्यतं 3. पवित्र, निष्पाप 4. अश्लील - वर्जयेदुशतीं वाचम् माययोरुघा - भाग०१११३१४७ / . महा० 12 / 235 / 10 / उर्वशीशापः [ष० त०] उर्वशी का अर्जुन को शाप, उशिजः (पुं०) कक्षीवान के पिता का नाम / जिसके फल-स्वरूप वह हिजड़ा बन गया और यह | उष्णगः [ब० स० ] सूर्य / / स्थिति अज्ञातवास में बहुत उपयुक्त रही। (यह उष्णोष्ण (वि०) [ उष्ण + उष्ण ] अत्यन्त गर्म-उणोष्ण उक्ति उस अवस्था में प्रयक्त होती है जब प्रतीयमान शीकरसृजः-शि० 5 / 45 / हानिकर घटना लाभदायक सिद्ध हो जाती है)। उषस् (स्त्री०) [ उष् +असि ] प्रभात, भोर / सम० उलड् (चुरा० पर० --- उलण्डयति) बाहर फेंक देना, करः चाँद, —कलः मुर्गा,--- पतिः अनिरुद्ध, ___ प्रक्षेपण (धातुपाठ)। ..-- पूषा पौषमास में प्रातः काल की जाने वाली उषा उलिः, उल्ली (स्त्री०) सफ़ेद प्याज़ / की विशेष पूजा। उलूकः [ वल+ऊ, संप्रसारण ] एक ऋषि जिसे वैशेषिक | उष्ट्रनिषदनन् (नपुं०) योग का एक आसन / का कर्ता कणाद समझा जाता है। उष्ट्रप्रमाणः (पुं०) आठ पैर का 'शलभ' नामक एक जन्तु / उलूकजित् (पुं०) कौवा। उष्ट्राक्षः [व० स० ] ऊंट जैसी आँखों वाला (घोड़ा), उलूलि। (वि०) 1. ज़ोर से क्रन्दन करने वाला, कोला- -- शालि०। उलल / हलमय विवाहादि शुभ अवसरों पर मधुर सम- उष्णीषः [ उष्णमीषते हिनस्ति ईष्+क] 1. पगड़ी "वेत गान, विशेषतः स्त्रियों का,-०१४।५१, अनर्घ० / 2. किसी भवन की चोटी। 3155 / | उहारः (पुं०) कछुवा। ऊखराः (ब० व०) शैव सम्प्रदाय / ऊर्जमेघ (वि० ) [ व० स० ] असाधारण बुद्धि से युक्त / ऊखरजम् (नपुं०) 1. लवणयुक्त भूमि से तैयार किया गया ऊर्ध्व (वि.) [ उद्+हा+ड, पृषो० र् आदेश:] ___ नमक 2. यवक्षार, कलमीशोरा। सीधा, उन्नत, उच्च, --ध्वम् (नपुं०) ऊँचाई, ऊतिः ( स्त्री०) [अव्+क्तिन् ] ऊतक, ताँत / ऊपर। सम० -गमः (पुं०) अग्नि; -तिलक: ऊन् (चुरा० पर०) घटना, घटाना। मस्तक पर जातिसूचक खड़ा तिलक-सूर्यस्पधिकिरीअनातिरिक्त (वि.) अत्यधिक या अतिन्यून / टमवंतिलकप्रोद्भासि फालान्तरम्-नाराय० 21 / ऊनाम्बिकम् (नपुं०) [ ऊनाब्द+ठक ] वर्ष से पूर्व ही -दृश (पुं०) कर्कट, केकड़ा, --प्रमाणम् शीर्षलम्ब, मनाया जाने वाला श्राद्ध। उन्नतांश, वालम् चमरी हरिण की पंछ,-शोधनः ऊनमासिक (वि.) [ ऊनमास-+ठक ] नियमित मासिक रीठे का वृक्ष / संक्रियाओं के अतिरिक्त जो प्रतिमास श्राद्ध किये जाँय | ऊर्मिका [ ऋमि अर्तेरुच्च, स्वार्थे कन् टाप् च ] चिन्ता। तथा जो दिनों की संख्या गिनकर एक वर्ष के भीतर ऊवध्यम् (नपुं०) अधपचा भोजन / ही भीतर मनाये जाय। ऊष्मायणम् ब० स०] ग्रीष्म ऋतु। ' ऊर+अङ्गम् (ऊर्वङ्गम् ) (नपुं०) खुम्भ, खुदरौ, छत्रक।.. अहगानम् (नपुं०) सामवेद के तीन प्रभागों में से एक / ऊर्जमासः (पुं०) कार्तिक महीना। ऊहच्छला (स्त्री०) सागवेदच्छला का तीसरा अध्याय / For Private and Personal Use Only Page #1255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1246 ) ऋक्ष (स्वा० पर०) जान से मार देना। ऋतुः [ऋ+तु किच्च] मौसम / सम० चर्या (जीवऋक्षः[ऋष+स किच्च एक प्रकार का हरिण --रोहिद्भतां धारियों का) ऋतु के अनुकूल व्यवहार,—जुष सोऽन्वधावदृक्षरूपी हतत्रयः-भाग० 3 / 31 / 36 / (स्त्री०) प्रजनन के उपयुक्त समय पर मैथन में रत सम --- इष्टिः (ऋक्षेष्टि) ग्रहमख, तारों के निमित्त महिला,- पशुः ऋतु के अनुकूल यज्ञ में बलि दिये यज्ञ, -जिहम एक प्रकार का कोढ़,-नायकः एक जाने वाला पशु / प्रकार की गोलाकार संरचना या निर्माण .. अ० तु०ऋतम् [ऋ+क्त] गाहने के पश्चात् अनाज का संग्रह १०४,-प्रियः बैल,-विम्बिन् (पु०) धोखा देने करना। वाला ज्योतिषी। ऋद्धित (वि.) [ऋद्ध+इतच्] समृद्ध बनाया गया-राजऋग्वाह्मणम् (ऋच+ब्राह्मणम्) ऐतरेय ब्राह्मण / सूयजिताल्लोकान् स्वयमेवासि ऋद्धितान्-महा० 18 / ऋजुकार्यः कश्यप मुनि। 3 / 25 / ऋजुलेखा सरलरेखा, सीधी लाइन। ऋश्यमूकः एक पर्वत का नाम / ऋण (तना० पर०) जाना। ऋषभाचलः (पुं०) शंकराचार्य के जीवन से संबद्ध केरल में ऋणच्छेदः [ऋण+छिद्-|-घा] ऋण का परिशोध। / एक पर्वत पर स्थित मन्दिर / ऋणनिर्णयपत्रम् (ऋणपत्रम्) (नपुं०) ऋण का स्वीकृति ऋषित्रणम् (नपुं०) ऋषियों के प्रति जनसाधारण का सूचक पत्र, रुक्का / / कर्तव्य, जन समाज पर ऋषियों का ऋण / ऋणप्रदात [ऋण+प्र+दा+तु] साहकार, रुपया उधार | ऋषिका (स्त्री०) ऋग्मन्त्रों की द्रष्ट्री एक स्त्री। देने वाला। ऋष्टिः ( स्त्री०) [ ऋष्+क्तिन् ] एक प्रकार का ऋतसामन् (नपुं०) एक साम का नाम वाद्ययंत्र -सतालवीणाम रष्टिवेणुभिः--भाग० 3 / ऋतम्भरा [ऋ+क्त-+-भृ+अच्, मुमागमः] बुद्धि, प्रज्ञा 15/21 / योग० 1147 // एकः [इ.+कन] प्रजापति एक इति च प्रजापतेरभिधान- | ---(कहते हैं कि वामन ने इनकी एक आँख में तिनका मिति --मैं० सं० 10 // 313 पर शा० भा०,-कम् चुभो दिया था), निपातः एक अव्यय जो अकेला 1. मन---एक विनिन्ये स जुगोप सप्त --बु० च० 2 / ही एक शब्द है, पादिका एक ही पैर का सहारा 41 2. एकता / सम० अक्षरम् (एकाक्षरम्) लेकर खड़े होना-अथावलम्ब्य क्षणमेकपादिकाम पुनीत प्रणव, 'ओम्',-- अग्नि (वि.) जो केवल एक नै० १११२१,-पार्थिवः एकमात्र शासक, सम्रात् ही अग्नि को रखता है, - अङ्गम् वह नाटक जिसमें -न केवलं तद् गुरुरेकपार्थिवः - रघु० ३।३१,-वाक्यम् एक ही अङ्क हो,--अङ्गी अपूर्ण, अधूरा,-रूपक वाक्यरचना की दृष्टि से युक्तिसंगत वाक्य, वाचक (अधूरा रूपक या उपमा), अपञ्चयः... अपायः (वि.) पर्यायवाची,-वासस् (वि०) एक ही वस्त्र जिसमें एक अवयव कम हो,- आहार्य (वि०) एक से आच्छादित,---विशक (वि०) इकीसवाँ, विजयः सा भोजन करने वाला, जो प्रतिषिद्ध और अनुमत पूरी जीत को० अ० 12, ..वीरः 1. प्रमुख योद्धा भोजन में विवेक न करे,-एकश्यम् अलग-अलग एक 2. स्कन्द के नौ सहायकों में से एक, व्यावहारिकाः एक करके,-प्रामीण (वि.) एक ही गांव का रहने बौद्धों की एक शाखा,-शेपः एक ही जड़ का वृक्ष / वाला,-घर: तपस्वी, संन्यासी-नाराज के जनपदे एकशतम् (नपुं०) एक प्रतिशत / चरत्येकचरो वशी-रा० २०६७।२३,-छत्र | एकलव्यः (पुं०) द्रोणाचार्य के एक शिष्य का नाम जिसने (वि.) जो केवल एक ही छत्र से शामित हो, जहाँ अपनी गरुभक्ति के कारण धन विद्या में प्रवीणता एक ही राजा का राज्य हो,--जीववादः (दर्शन० में) प्राप्त की। केवल जीवात्मा का सिद्धान्त,-दग्मिन् (पुं०) एकाष्टका (स्त्री०) माघ मास का आठवां दिन / संन्यासियों की एक श्रेणी, धुरीण (वि.) एक ही एकाष्ठी (स्त्री०) कपास का बीज, बिनौला। मार को उठाने वाला-तत्कण्ठनालकधुरीणवीण-नै एजत् (वि०) [एज+शत ] कांपता हुआ, हिलता ६।६५,-नयनः शुक्रग्रह, असुरों का गुरु शुक्राचार्य हुआ। For Private and Personal Use Only Page #1256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1247 ) एगशिशुः (-शावकः) [ष० त०]हरिण का बच्चा, छोना / | एलासुगन्धि (वि.) इलायची की सुगन्ध से युक्त / एगा: [ब० स०] चन्द्रमा। एव (अ.) [इ+वन्] पुन:, फिर-एवशब्दश्च पुनरित्यर्थे एगाचूर [ब० स०] शिव जी। भविष्यति मी० सू० 10-8-36 पर शा० भा० / एतत्पर (वि.) इस पर तुला हुआ, इसमें लीन / एष (म्वा० उभ०)जानना,-एषितुं प्रेषितो यातो--भट्टि. एतनः [आ++तन] 1. निःश्वास, सांस 2. एक प्रकार 5.82 / की मछली। एषिका [एष्+ण्वुल+टाप्] लोहे का शहतीर जिसमें कोई .एताबमात्र (वि.) [एतद्+वतुप+मात्रच्] इस स्थान छल्ला या टोपी न हो। तक, इस माप का, इस अंश तक, ऐसा। एष्टव्य (वि.) [एष+तव्य] जिनके लिए प्रयत्न किया एलादि (वि.)[1० स०] कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का जाय, जिनकी लालसा हो, जिनके लिए लालायित हुआ पुञ्ज-जो इलायची से आरम्भ होती हैं। जाय। ऐककर्म्यम् [एककर्म+ध्य] 1. कार्य की एकता 2. एक | ऐन (वि०) [इनः सूर्यः, तस्य, इदम् ---अण्] सूर्य संबंधी ही फल में अंशभागी होने की स्थिति मी० सू० 111 - निर्वर्ण्य वर्णेन समानमैनं--- रा० च० 6 / 25 / 11 पर शा० भा०। ऐन्दव (वि०) [इन्दु+अण्] चाँद का उपासक नैं. ऐकगुण्यम् [एकगुण+व्या] एक इकाई का मुल्य / | 1176 / सम-किशोरः दूज का चाँद-ऐन्दव. ऐकमुल्यम् [एकमुख+ष्या] 1. पूरा अधिकार 2. अधी- | किशोर शेखर ऐबम्पर्य चकास्ति निगमानाम् - मुख०। नता। | ऐरम् [इरा+अण्] राशि, ढेर। ऐकान्यम् [एकान्त+व्य] 1. एकान्तता, निरपेक्षता, | ऐश्यम् [ईश्+व्या ] सर्वोपरिता, सर्वोच्चता। एकान्तवास 2. मित्रता। ऐश्य (वि.) [ईश्+ण्यत्] ईश संबंधी। ऐक्यारोपः [ष० त०] समीकरण / ऐश्वरकारणिकः [ईश्वर+अण् + करण+ठक्] एक नयाऐतशप्रलापः [ष० त०] अथर्ववेद का एक अनुभाग जिसका यिक का नाम। द्रष्टा ऐतश ऋषि था (यह भाग कुन्ताप सूक्तों के | ऐश्वर्यम् [ईश्वर+ष्य] सर्वशक्तिमत्ता, तथा सर्वपश्चात् आता है। व्यापकता की शक्ति -- महा० 12 / 184 / 40 / मोकज (वि०) [उच+क, नि० चस्य कः, तस्मिन् जायते / ओपशः (वेद०) तकिया, सहारा, अवलम्बन / -जन-+3] घर में उत्पन्न या पले (गी आदि पश)। ओलज (म्वा० पर०) फेंक देना, उछाल देना / मोकणी [ओ+कण+अ+डीप्] सीमावर्ती जंगल। ओषधिः ओष+था+कि 1. सोम का पौधा 2. कपूर / मोघः [उच+पा, पुषो०प०] तीन वाद्य विधियों में से | बोष्ठः [उष्+थन् होठ / सम०--अवलोप्य (वि.) जो एक-नागा० 10 // 14 / होठों से खाया जा सके,-पाकः सरदी के कारण होठों मोजस् [उज्+असुन, बलोपः, गुण] वेग, गति-एष का फटना। प्रतिबलः सन्ये रथेन पवनौजसा-रा. 7 / 29 / 12 / | ओष्ठप (वि.) [ओष्ठ+यत्] ओष्ठ संबंधी, जो होठों मोजापितम् [ना० प्रा० ओज+यक्ति ] साहसपूर्ण पग, | पर रहे। सम-योनि (वि.) जो ओष्ठध्वनि से हिम्मत से युक्त व्यवहार / उत्पन्न हो, स्थान (वि.)जो होठों से उच्चरित हों। 7: - - - 157 For Private and Personal Use Only Page #1257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1248 ) औ औग्रसेनः [उग्रसेन--अण] उग्रसेन का पुत्र कंस। औपच्यम् [उच्च-या] देशान्तर, (ग्रह की) दूरी।। औतथ्य (वि०) [उतथ्य+अण्] उतथ्य कुल से संबद्ध, ! उतथ्य कुल में उत्पन्न / औत्तर्माणकम् [उत्तमर्ण+ठक्] कर्ज, ऋण / औत्यितासनिकः [उत्थितासन+ठक बैठने के लिए आसनों का प्रबंध करने वाला अधिकारी-वंशि० 149 / औत्पत्तिकम् [उत्पत्ति+ठक] लक्षण, स्वभाव-औत्पत्तिके- नैव संहननबलोत्पेताः–भाग० 5 / 2 / 21 / औदीच्य (वि०) [उदीची+यत्] उत्तरी देश से संबंध रखने वाला। औदुम्बरायणः [उदुम्बर+फक] एक वैयाकरण का नाम / औद्रडिकः [उद्रङ्ग+ ] 'उद्रंग' अर्थात् कर का संग्राहक -घोषाल० 210 / / औपकुर्वाणक (वि०) [उपकुर्वाण-+कक्] किसी नियत ____ अवधि के ब्रह्मचारी 'उपकुर्वाण' से संबद्ध / औपगविः (पुं०) उद्धव-भाग० 3 / 4 / 27 / औपपत्यम् [उपपति-ध्या ] उपपति या जार से प्राप्त होने वाला हर्ष। औपसन्ध्य (वि.) [उपसन्ध्या-|-अण संध्या आरंभ होने से जरा पूर्ववर्ती समय से संबद्ध रश्मिभिरौपसन्ध्यः -0 22156 / औपस्थितिकः [उपस्थिति / ठक् | सेवक ---एप भर्तृपादमूला दौपस्थितिको हंसः --प्रतिज्ञा० 1 / औम (वि.) [उमा-|-अण] उमा संबंधी। औरस (वि.) [उरसा निर्मितः अण] 1. शारीरिक...न ह्यस्त्यस्यौरसं बलम् महा० 3.11 // 31 2. नैसर्गिक -शिक्षौरसकृतं बलम्-महा० 737/20 / और्णस्थानिकः ऊर्णस्थान | ठक] ऊन विभाग का अधि कारी। औषधम् [औषधि अण] रोकथाम, मुकाबला, अनिकुवं निषधमनीषधं जनः शि०१७।। औषधिप्रतिनिधिः (0) किसी औषधि के स्थान में प्रयुक्त होने वाली जड़ी-बूटी। औष्टिक (वि.) [उष्ट्र ; ठक] ऊंट संबंधी। औष्ट्रिकः [उष्ट्र ठिक्] 1. ऊंट से प्राप्त (दुग्धादिक) 2. तेली--महा०८1८५१२५ / कम +ड] 1. बाल, केश 2. महिला का कृत्य | कडूसिका (स्त्री०) केवल सिर भिगोना, सिर का स्नान। '3. बालों का गुच्छा 4. दूध 5. विपत्ति 6. जहर | कच्छः [क-छो+क ] घनी बसी हुई बस्ती। 7. भय / कज्जलिका (स्त्री०) पारे का बना चूर्ण / कंशः [कं जलं शेते अत्र ] जलपात्र / कञ्चुकीयः [ कञ्चुक+ छ ] कञ्चकी, अन्तःपुराध्यक्ष / कंसकृषः [ कंस+कृष+अच् ] श्रीकृष्ण का विशेषण कजिनी [ कञ्ज-+इनि+कोप / वेश्या / -निषदिवान् कंसकृषः स विष्टरे---शि० 1116 / कटः [ कट् +अच् ] 1. चटाई 2. कूल्हा 3. वाण 4. लकड़ी ककुदिन् (वि.) [ ककुद् + इनि ] नेता, स्वामी-आस्यं का तख्ता 5. हायी की कनपटी। सम० कुटि: विवृत्य ककुदी-महा० 12 / 289 / 19 / (पुं०) [ब० स० ] फूस की छत वाली झोपड़ी, कक्ष्यम् [ कक्ष+यत् ] सूखे घास की चरागाह-प्रवक्ष्यति -कृत् (पुं०) तिनकों की चटाई बुनने वाला,---पूर्णः यथा कक्ष्यं चित्रभानुर्हिमात्यये-रा० 2 / 24 / 8 / हाथी जो अपनी मस्ती या कामोन्माद की पहली कक्ष्या [ कक्ष+यत्+टाप्] 1. सेना का घेरा 2. प्रति- अवस्था में हो, ---भः हाथी की कनपटी का प्रदेश, द्वंद्विता 3. प्रतिज्ञा 4. शेष, अवशिष्ट / --स्थालम् शव, लाश, .... जकः (पुं०) जनसमुदायकावासस् (पुं०) [ब० स०] बाण-असंपातं करिष्यन्ति विशेष-लोके गोपालकमानय कटजकमानयेति यस्यैपा चरन्तः कङ्कवाससः -रा० 5 / 21126 / संज्ञा भवति स आनीयते ... महा० 21113, फल: कङ्कटेरी ( स्त्री) हरिद्रा, हल्दी। घूस, रिश्वत-उत्कोचेऽस्त्री कटफल:---- नाना० / करणषारणम् [ष० त०] किसी बड़े यज्ञ का उपक्रम | कटारिका (स्त्री०) एक छोटी कटार. वर्टी। सूचक मुख्य पुरोहित या यजमान की कलाई में सूत्र | कटिनी (पुं०) हस्तिनी। बन्धन या कड़ा पहनाना / कटुभङ्गः सूखा अदरक, सोंठ / कडोलिः (पुं०) वृक्षविशेष जिसमें शरदृतु में फूल आते हैं | कटुभवः / '--पशूनामीशानः प्रमदवनकलितरवे -सो०। कट्ट (चुरा० पर०) एकत्र करना, मिट्टी से ढकना। For Private and Personal Use Only Page #1258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1249 ) कटटारिका (स्त्री०) कसाई की छरी।। प्रकार की ककड़ी 2. एक सुन्दर महिला, -- गर्भः कठः [ कठ+अच् ] एक ऋषि का नाम जो वैशम्पायन केले का गूदा। के शिष्य थे। सम० -उपनिषद् एक उपनिषद् का कनकम् [ कन+वुन् ] सोना, -कः (पं० ) 1. पलाश नाम, ----कालापाः कठ और कालाप की शाखाएँ वृक्ष 2. धतूरे का पौधा / सम० .- कदली एक प्रकार -~-पा० 2 / 4 / 3 पर महाभाष्य-ये च मे कठकालापा का केला जिस के पत्ते भरे होते हैं -क्रीडाशैल: कनक--रा० 2 / 32 / 18, -धूर्तः यजुर्वेद की कठ शाखा कदलीवेष्टनप्रेक्षणीयः - मेघ० ७९,-कारः सुनार, में प्रवीण ब्राह्मण / -पट्टम् कपड़ा जिस पर सोने या जरी का काम हुआ कठिनम् [ कठ इनन् ] 1. कुदाल-प्लवे कठिनकाजं च हो-पीतं कनकपट्टाभं स्रस्तं तद्वसनं शुभम् - रा० -रा० 2 / 55 / 17 2. मिट्टी का बर्तन --महा० 5 / 15 / 45, -पर्वतः मेरु पहाड़ / 3 / 29741, 3. कंधे पर जमाया हुआ फीता या बाँस कनपः [ कनो दीप्तिर्गतिः शोभा वा पाति सः ] एक प्रकार जिससे बोझा ढोया जाय-पा० 4 / 4 / 72 / __का अस्त्र .. महा० 3 / 20134 / कठिकल्लः (पुं०) एक प्रकार का सेव / कनिष्कः एक राजा जो पहली शताब्दी में हुआ। कठुर (वि.) [ कठ-उरच ] कठोर, क्रूर / कनिष्ठा [ अतिशयेन युवा–युवन्+इष्ठन् कनादेशः ] कठोरित (वि०) [ कठोर+इतच् ] कड़ा किया गया, / छोटी पत्नी। सवल बनाया गया। कनीनिकम् [ कनीन+कन्, इत्वम् ] कुछ साममन्त्रों का कडुली (स्त्री०) एक प्रकार का ढोल / समूह। कडेरः एक देश का नाम / कनीयस् (पुं०) [ युवन् + ईयसुन्, कनादेश: ] छोटा भाई कणः [ कण +अच् ] मगरमच्छ / -कलत्रवानहं बाले कनीयांसं भजस्व में रघु० 12 कणवीरकः (पुं०) एक प्रकार का संखिया / 2. कामोन्मत्त, प्रेमी। कण्टकः [ कण्ट् + वुल ] मन दुखाने वाला भाषण / कन्तुः [कम्+तु] प्रेमी। कण्टकिलः [ कण्टक + इलच् ] बाँस / कन्दरालः [ कन्दर+आलच ] अखरोट का वृक्ष / कष्टाफलः [ कण्टा-फल्+अच् ] सेमल का फल, सेमल कन्दर्पः [ के कुत्सितो दो यस्मात् -ब० स०] काम देव। का पेड़। सम०-वर्पः कामदेव की शक्ति,-वह्निः कामातुरता कण्ठः [ कण्ठ-+-अच् ] गला, कण्ठ। सम० --त्रः हार, के कारण होने वाली गर्मी। शुल्ककेयूरकण्ठत्रा: महा०५।१४३।३९,-नालम्क न्वाश:/ब० स०] जो कन्द अर्थात् जड़ें खाकर जीवित कण्ठ की नाली, ग्रीवाप्रदेश, ---माला, एक रोग का रहता है। नाम जो प्रायः गले में होता है, ----रोधम् आवाज़ कन्दुकधातः[ष० त०] गेंद को उछालना-आरामसीमनि को कम करना। __ च कन्दुकघातलीलालीलायमाननयनाम्-नारा० / कण्ठला (स्त्री०) बेत से निर्मित एक टोकरी। |कन्यका [ कन्या+कन्, ह्रस्वता] दुर्गा। कण्डिल (वि.) [ कण्ड+इलच ] 1. पीए हए, शराबी, कन्यका परमेश्वरी कन्या कुमारी की अधिष्ठात्री देवता / 2. चंचल, उच्छजल कण्डिललड्डका मे प्रतिष्ठाः कन्यस (वि.) 1. छोटा 2. निम्नतर, नीचे का। . प्रतिज्ञा० 3 / कन्यसः (पुं०) सबसे छोटा भाई, सा (स्त्री०) सबसे कण्वोपनिषद् (स्त्री०) एक उपनिषद् का नाम / छोटी अँगुली,-सी सबसे छोटी बहन / कत्ताशब्दः (40) पासे फेंकने का शब्द - अरे कत्ताशब्दो कन्या [ कन्+या+टाप् ] 1. अविवाहित लड़की या निर्माणकस्य हरति हृदयं - मच्छ० 2 / 5 / पुत्री 2. कुमारी 3. दुर्गा / सम०-दूषकः जो कुमारी कथ (चुरा० उभ.) स्तुतिगान करना। कन्या से हठसंभोग या जबरजिनाह करता है, कयकटीका (स्त्री०) रामायण पर टीका। -भैश्यम् लड़की को उपहार के रूप में मांगना, कयन्ता [ कथम् +तल ] अवर्णनीय बेचैनी / -प्रतस्था मासिकधर्म वाली स्त्री-मयि कन्याव्रतस्थायां कयामात्र (वि.) जो केवल कथा में ही रह गया हो, -कथा। मृत। कपाटबन्धनम् [10 त०] दरवाजा बन्द करना / कवम्बः [ कद्+अम्बच् ] 1. चूल 2. सुगन्धि-कदम्ब: कपाटिका (स्त्री०) दरवाजा। - पुंसि वीपे स्यात्तिनिशे वरुणद्रुमे / धूल्यां समूहे गन्धे कपालमोक्षः [ष० त०] निर्वाण होने पर संन्यासी की च -- नाना० / सम० -युटम् एक प्रकार शृंगाररस कपालक्रिया जो उसके उन्नत जीवन का सूचक है। का नाटक-वात्स्या। कपिमुष्टि: (सी०) बन्दर की बंधी मुट्ठी, या तना हुआ कबली [कदल+होष ] केला / सम० ---मता 1. एका धूसा, (मालं.) दृढ रुख / For Private and Personal Use Only Page #1259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1250 ) कपित्वम् (नपुं०) बन्दर की विशेषता-कपित्वमनवस्थि- हआ---कामाधियस्त्वयि रचिता न परमारोहन्ति यथा तम्---रा० 5 / करम्भबीजानि– भाग०६१६३९ / कपिलवस्तु उस नगर का नाम जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। कराल (वि०) [कर+आ+ला+क] जिसके दाँत कपिला (स्त्री०) एक नदी का नाम जो कावेरी में बाहर को निकले हुए हों। ___ मिलती है। करालित (वि.) [कराल+इतच् ] 1. सताया हुआ कपोतवृत्तिः (स्त्री०) [ब० स०] अपव्ययी स्वभाव होना, 2. आवधित, प्रखर किया हुआ। अपने भोजन का कुछ भी प्रबन्ध न करना -- महा० ] करिन (प.) [ कर+इनि ] 1. हाथी 2. 'आठ' की 3 / 26015 / संख्या। सम०-मुक्ता मोती,--रतम् संभोग के कपोलतानम् (नपुं०) अपनी त्रुटि को स्वीकार करने के समय का विशेष आसन, रतिबन्ध-कि० 5 / 23 पर चिह्न-स्वरूप अपने गालों को थपथपाना / टीका,-सुन्दरिका पनसाल, पानी का चिह्न। कपोलपत्रम् (नपुं०) पत्ते से मिलता-जुलता एक चिह्न करीरु(-रू) (स्त्री०) 1. झींगर 2. हाथी के दाँत गालों पर अङ्कित करना। की जड़। कपोलपालिः (---ली) (स्त्री०) गाल का एक पाव / करुणाकरः [ करुणा-कृ+अच् ] दयालु, करुणा करने कबलः [क+वल (बल)+ अच् ] दे० 'कवलः' / वाला। कवलम् (नपुं०) हाथियों का एक प्रकार का प्राकृ करूषः (पं०) गर्दा, गंदगी, मैल, पाप-निर्मलो निष्करूषतिक चारा। __ श्च शुद्ध इन्द्रो यथाभवत् -- रा० 1 / 24121 / कमन (वि०) [कम् + ल्युट्] प्रेमी, पति-उदयाचलशृङ्ग | करूषाः (ब०व०) एक देश का नाम --रा० 124 / / सङ्गतं कमलिन्याः कमनं व्यभावयत् .... साहेन्द्र 2 / 101 / / | कर्क (वि०) [कृ+क] 1. रत्न, मणि 2. नारियल के कमला [ कमल+अ+टाप् ] नारंगी, संतरा / खोल से बनाया गया पात्र 3. कंजस / कमलाक्षः/ब. स.] 1. कमल का बीज 2. कमल जैसी | कर्का (स्त्री०) सफ़ेद घोड़ी। आँखों वाला 3. विष्णु / | कर्कन्धुः ( धूः) (स्त्री०) [ कर्क कण्टकं दधाति-धा कमलीका (स्त्री०) छोटा कमल / +-कू] दस दिन का भ्रूण-दशाहेन तु कर्कन्धः कम्बल: [कम्ब+कलच् ] हाथी की झूल, गजप्रावरणे -भाग० 3 / 3 / 2 / / चव"नाना। कर्कन्धुः (पुं०) बिना पानी का कुआँ -- 'उणादि० 1128 कम्भ (वि.) 1. जलयुक्त 2. प्रसन्न / पर भाष्य / करः [कृ+अप, अच् वा ] 1. हाथ 2. टैक्स, शुल्क / सम० | कर्करेटम् (नपुं०) गर्दन से पकड़ना / -कच्छपिका (स्त्री०) योग की एक मद्रा जिसमें कर्कश (वि.) [कर्क+श] 1. रूखा, निष्ठुर 2. दुर्यहाथ कछुए से मिलते-जुलते हो जाते है- कृतात्मन् सनी,-शः (पुं०) काले रंग का गन्ना / (वि.) दरिद्र, जिसका कठिनाई से निर्वाह हो कर्ण: [कर्ण +अप्] 1. वृत्त की व्यास 2. अन्तर्वर्ती प्रदेश, -तलीकू हथेली में रखना, बुल्लू की भाँति अञ्जलि उपदिशा। सम---अञ्जल: (--लम्) कर्णपालि, में रखना -- ततः करतलीकृत्य व्यापि हालाहलं विषम् --कटु (वि०), कठोर (वि०), सुनने में कष्टप्रद, ---भाग० 87 / 43, -पात्री 1. चमड़े का बना हुआ ... कषायः कान की मवाद--आपीयतां कर्णकषायप्याला 2. जो भिक्षा अपने हाथ में ग्रहण करता है। शेषान् -भाग०।६।४६, चुलिका कानों की बाली, -~-मर्दः,--मर्दी,--मर्दकः एक पौधे का नाम / -पुटम् कान का विवर,- मलम् कान की मैल, करकवारि [ष० त०] ओलों का पानी-कौ० अ०१।२०।। घूध,-विष्णुकर्णमलोद्भूती-दे० म०, मुकुरः कर्णाकरटामुखम् (नपुं०) हाथी की कनपटी पर एक छिद्र भूषण, स्रोतस् (नपुं०) कान बहने पर कान से जिसमें से हाथी की मदोन्मत्तता के समय तरल पदार्थ निकलने वाला मल,-हर्म्यम् पार्श्वस्थ बुर्जी / बहता है। कर्णेचुरचुरा (स्त्री०) कानाफूसी, कान में कोई रहस्य की करणम् (नपुं०) [ + ल्युट् ] ग्रहों की गति के विषय में बात कहना। वराहमिहिर की एक कृति / सम०-व्यहम् ज्योतिष-कर्णेजयः [कर्णे+जा+अच् अलुक्समास] 1. कानाफूसी शास्त्र का एक ग्रन्थ,-विभक्तिः तृतीया विभक्तिः- करना 2. संवाददाता संसूचक - तवापणे कर्ण जंपनयन सूक्तवाकानेव करणविभक्तिसंयोगात. मी० स० / पशुन्यचकिता:- सो 2112 पर शा. भा०। कतंरी (स्त्री.) नृत्य का एक भेद / करभः [क+अमच् ] श्रोणि, कल्हा / कर्तृपदम् (नपुं०) 'कर्ता' को दर्शाने वाला शन्द / करम्भ (वि.) [क+रम्भ +घञ ] भुना हुआ, तला कर्तुनिष्ठ (वि.) 'कर्ता' अर्थात् कार्य करने वाले से संबद। परशमा प्रोणि कहा। भुना हुआया For Private and Personal Use Only Page #1260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1251 ) कपंरी कपरिका [कृप् +अरन् की, स्त्रियां कन् +टाप्, / कलिका [कलि+कन्+टाप्] सर्वोत्तम कवि के लिए ह्रस्वश्च] एक प्रकार का अंजन, सुरमा / सम्मानसूचक उपाधि। कर्पूरमञ्जरी (स्त्री०) राजशेखरकृत एक नाटक / | कलिल (वि.)[कल +इलच्] 1. विकृत, संदूषित 2. सन्दिकर्पूरस्तवः [कर्पूर+स्तु+अप] तन्त्रशास्त्र में वर्णित स्तुति- ग्ध, अनिश्चित- एतस्मात्कारणाच्छेयः कलिल प्रतिगान। भाति मे-महा० 12 / 287 / 11 / कर्मन् (नपुं०) (कृ+मनिन्] 1. कार्य करने की इन्द्रिय | कलुष (वि०) [कल् / उषच्] 1. गंदा, मैला। सम० -कर्माणि कर्मभिः कुर्वन्-भाग०११।३।६ 2. प्रशिक्षण, मानस (वि०) जहरीला, दृष्टि (वि.) बुरी अभ्यास कौ० अ०२।२। सम०-अन्त: (कर्मान्तः) दृष्टि से देखने वाला। कार्यकत्ती कच्चिन्न सर्वे कर्मान्ताः रा०२।१००। कल्किपुराणम् (नपुं०) एक पुराण का नाम। 52, -- अन्तरम् (कर्मान्तरम्) दूसरा कार्य-अपनुत्तिः कल्पः [क्लप्+घा आस्था, विश्वास-लौकिके समयाचारे कर्मापनुत्तिः). (स्त्री) कर्म का नाश,--आल्या कृतकल्पो विशारदः .. रा०२।१२२२ / सम० - वृक्षा, (कर्माल्या) कर्म के आधार पर नामकरण, * आशयः ---तरुः कोई व्यक्ति या पदार्थ जो प्रचुर मात्रा में (कर्माशयः) अच्छे बुरे कर्मों के फलों का संचयस्थान, भलाई करे-निगमकल्पतरोगलितं फल-भाग० 1 // - गतिः पूर्वकृत कर्मों की दशा--सुखासुखो कर्मगति- ११३,-स्थानम् 1. औषधियों के निर्माण की कला प्रवृत्ती--सुभाष०, च्छेदः कर्तव्यकर्म पर उपस्थित 2. विषविज्ञान, अगदविज्ञान--सुश्रुत / न रहने के फलस्वरूप हानि-कौ० अ० 27, देवः कल्पकः [क्लप्+ण्वुल] 1. वृक्षविशेप, कचोरा 2. (वि.) जिसने अपने धर्मपूर्ण कृत्यों के द्वारा देवत्व प्राप्त कर मानकस्वरूप, निश्चित नियमानुकूल-याजयित्वाश्वमेलिया है, नामधेयम् कुछ कारणों के आधार पर नाम घेस्तं विभिरुतमकल्पक: भाग० 1816 / रखना यही अपनी इच्छा से नहीं,-निश्चयः किसी कल्पनाशक्तिः (स्त्री०) [ष० त०] विचार बनाने की कार्य का निर्णय,-श्रुतिः कार्य का आख्यान करने सामर्थ्य, विचारों की मौलिकता, भावनाशक्ति। वाली बैदिक उक्ति कर्मश्रुतेः परार्थत्वात्--मै० सं० कल्य (वि.) कला+यत्] ललित कलाओं में दक्ष / 11 / 2 / 6 / कल्याण (वि.) [कल्य+अण पा] यथार्थ, प्रमाणित, करकः (पुं०) अदरक जैसा एक सुगन्धित पदार्थ जो युक्तियुक्त-कल्याणी बत गाथेय लौकिकी प्रतिभाति औषधियों तथा सुगन्ध द्रव्यों के निर्माण में प्रयुक्त मे - रा० 5 / 34 / 6 / सम०-पञ्चकः वह बोड़ा जिसका होता है, कचोरा। मुख और पैर सफेद हो। कल (वि.) [कल+घञ] 1. प्रबल 2. (समासान्त में | कल्हणः (पुं०) राजतरंगिणी का रचयिता। प्रयुक्त) पूर्ण, भरा हुआ-दीनस्य ताम्राकलस्य | कवि (वि.) [+5] 1. सर्वज्ञ 2. बुद्धिमान्-विः (पु.) राज्ञ:--रा० 2 / 13 / 24 / सम०-व्याघ्रः तेंदुआ और 1. विचारक, कविता करने वाला 2. वाल्मीकि 3. ब्रह्मा मादा चीता से उत्पन्न संकर नस्ल का जानवर, बाध। / सम-कल्पितम् कवि की कल्पना,-परंपरा कलङ्कः (पुं०) [कल्+क्विप्, कल चासो अङ्कश्च कर्म० कवियों का अनुक्रम अतिविचित्रकधिपरम्परावाहिनि स०] सम्प्रदायद्योतक मस्तक पर तिलक-कलङ्क" ! संसारे - ध्वन्या० 1, हृदयम् कवि का वास्तविक तिलकेऽपि च नाना। आशय / कलजन्यायः (पुं०) न्याय जिसके अनुसार किसी से संबद्ध | कवित्वम् [कवि+त्व] 1. (वेद) बुद्धिमत्ता 2. कवि कौशल। निषेध उस कार्य को करने का प्रतिषेध करता है। / +अच्] चर्बी-कशशब्दो मेदसि प्रसिद्धः- म० कलमगोपवधू / (स्त्री०) चावलों के खेत खत सं० 9 / 4 / 22 पर शा० भा०। (--गोपी), (- (गोपालिका) की रखबाली के लिए लिए | कषाणः [क+ल्युट पृषो० आत्वम्] मसलना, रगड़ पैदा नियुक्त स्त्री,-शि० 6 / 49, जानकी० 11 / करने वाला- निद्राक्षणोऽद्रिपरिवर्तकषाणकण्डू:-भाग. कलहनाशनः एक पौधा, करज / 2 / 7 / 13 / कला [कल-कच-+टाप] 1. हाथी की पूंछ के पास मांसल | 'टा] 1. हाथा का पूछ के पास मांसल | कवायवसनम् [ष० त०] संन्यासियों की पीले से खाकी रंग गही 2.स्वरूप --लीलया दघतः कला:-भाग०१११११७ / / की वेशभूषा। 3. नाशकारी शक्ति .. संहृत्य कालकलया-भाग० 110 कष्टमावलः (पु०) सौतेली मां से उत्पन्न भाई। 9 / 16 / सम-कारः ललितकलाविद्, कलाविज्ञ / म.-कारः लालतकलाविद्, कलाविज्ञ। कसनः किस+ल्यट] खांसी। सम० उत्पाटनः (पं.) कलावती (स्त्री०) [कला+मत+कीप] एक प्रकार की एक पौधा जिसके रस के सेवन से खाँसी दूर हो वीणा। / जाती है। कतिकारकः (0) 1. कर वृक्ष 2. पक्षिविशेष / का (स्त्री.) 1. पृथ्वी, धरती 2. दुर्गा देवी / For Private and Personal Use Only Page #1261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1252 ) कास्यम् [कंस+छ (ईय)+या छलोपः] कांसी का बना / लेकर क्ष् की समाप्ति तक जो अक्षर आयं) कादि हुआ, पीतल का बना जल पीने का जलपात्र, गिलास / क्षान्तसमस्तवर्णजननी अन्न। सम-उपदोह (वि.) बर्तन भर कर दूध देने वाला | कानिष्ठपम [ कनिष्ठ+व्या ] सबसे छोटा होने की -दोह (वि०),-दोहन (वि.) दे० 'कांस्योपदोह' | स्थिति। --नीलम,-नीली तुत्यांजन, कासीस / / कान्तनावकम् (नपुं०) चमड़े का एक भेद को० अ० काक: [के+कन्] 1. कौवा 2. पानी में केवल सिर डुबोकर 2 / 11 / नहाना / सम० .. अवनी गुजा का पौधा, - उडम्बरः | कान्तिः [कम् +क्तिन् ] लक्ष्मी-ददौ कान्तिः शुभां उदुम्बरिका अंजीर का पेड़, गुलर, ... जम्युः गुलाब- स्रजम्-भाग०१०।६५।२९। जामुन का पेड़,--तुण्डम् विशेष रूप से बनाई हुई बाण | कान्दिश् (वि.) [ काम दिशम् 1 भगाया गया, (युद्धाकी नोक,-तिक्ता, तुशिका,--नासा,-नासिका दिमें डर कर) भागने वाला, दौड़ने वाला। वृक्षों के विभिन्न प्रकार,---चर्या (स्त्री०) जो कुछ कापुरुषः [कुत्सितः पुरुषः कोः कदादेशः ] नीच व्यक्ति, उपलब्ध हो उसी को पीकर रहने को कौवे की आदत कायर, ओछा आदमी। का अनुसरण करना और केवल निरी आवश्यकता | कापेयम् [कपेर्भावः कर्म वा-- कपि+हक ] बन्दर का पूरी करना एवं गोमृगकाकचर्यया वजन्-भाग. व्यवहार या आदत / 5 / 5 / 34, - मैथुनम् कौओं की रति क्रिया जिसको काबन्ध्यम [ कबन्ध+व्या ] बिना सिर के धड़ का देखने पर प्रायश्चित्त करना पड़ता है,-स्नानम कौवे _होना। की भांति स्नान करना, - स्पर्शः 1. कौवे को छूना कामः [ कम्+घञ ] 1. इच्छा, चाह 2. स्नेह, प्रेम जिससे कि फिर स्नान करना पड़ता है 2. मृत्यु के 3. जीवन का एक उद्देश्य (पुरुषार्थ)। सम० पश्चात् दसवाँ दिन जब चावल का पिण्ड कौवों को -आश्रमः वह आश्रम जहाँ कामदेव ने तपस्या की दिया जाता है। थी,-ईश्वरी कामाक्षी जिसने शिव में कामोत्तेजना काकिणिक (वि.) [काकिणी+ठक] कौड़ी के मूल्य का जगाने के लिए कामदेव का रूप धारण किया, निकम्मा, अनुपयोगी। कारः कार्य करने की स्वतंत्रता, अपनी इच्छा के काक्षीयः (पुं०) एक वृक्ष का नाम, शोभाजन, सौहंजणा। अनुसार काम करना-नात्मनः कामकारो ऽस्ति काचः [कच्+घन कुत्वाभावः] वह मकान जिसमें दक्षिण पुरुषोऽयमनीश्वर:-रा०२।१०१।१८,-कोटिः (स्त्री०) और उत्तर की ओर कमरे बने हों --ब० सं०५३।४०। 1. इच्छाओं की चरम सीमा 2. अभिलाषाओं की सम-कामलम् आँख का एक रोग, काच बिन्दू। पराकाष्ठा 3. दक्षिण में काञ्चीपुरी में शङ्कराकाधिमा (पु.) एक पवित्र वृक्ष (जो मन्दिर के पास चार्य द्वारा स्थापित आध्यात्मिक संस्था,-तन्त्रम् उगा हो)। एक रचना, कृति, दहनम् फाल्गुन मास में मनाया काल्पः [कच्छप+अण कछवे से सम्बन्ध रखने वाला / जाने वाला एक पर्व जिसमें शिव के द्वारा काम को काण्टिक (वि०) सुगंधपूर्ण द्रव्यों का निर्माता। फुसला कर भस्म कर दिया जाता है,---वानम काजम् (नपुं०) लकड़ी की मोगरी। 1. इच्छित पदार्थ का उपहार 2. वेश्याओं द्वारा काञ्चीगुणः [ष० त०] 1, तगड़ी की डोर 2. काञ्ची मनाया जाने वाला एक पर्व,-धर्मः श्रु गारसिक्त चेष्टा नामक नगरी की समृद्धि-काञ्चीगुणाकर्षितसार्थलोका या व्यवहार,-भाक विषय भोगों में भाग लेने वाला दिग्दक्षिणा कर्कशयलभोग्या-जानकी० 1116 / -कामानां त्वा कामभाजं करोमि कठः 1-24 / काठक (वि.) [कठ+ वुश्] कृष्ण यजुर्वेद की कठ संहिता कामठकः [ कमठ+अण्, स्वार्थेकन् ] 1. धृतराष्ट्र का से संबंध रखने वाला। नाम 2. एक सांप का नाम जो 'सर्पसत्र' में भस्म हो कामपुष्पम् (नपुं०) 'कुन्द' फूल / गया था। कायमायनः (पुं०) एक वैयाकरण का नाम / कामन्दकिः (पुं०) कामन्दकीय नीति का प्रणेता / कामानुसमयः (पुं०) पहले एक वस्तु, व्यक्ति या देवता | कामला [ कम्+णिड+कलच्+टाप् ] केले का पौधा। से सम्बद्ध समस्त प्रक्रिया पूरा करना, फिर दूसरे से | कामिकागमः (पुं०) आगम शास्त्र का एक अन्य। संबद्ध, फिर तीसरे से, इसी प्रकार चलते रहना। कामिनी (स्त्री०) [काम+इनि+की ] मादक शराब। . पान्डेरी (स्त्री०) हल्दी का पौधा, मजिष्ठा का पौधा। |कामील: (पुं०) एक प्रकार का सुपारी का वृक्ष / बाबायनसूत्रम् (नपुं०) कात्यायन का श्रौतसूत्र / काम्बलिकः [कम्बल+ठक] दलिया, जों की लपसी। कादम्बरी बाण प्रणीत एक मब काव्य (उपन्यास)। काम्बोजा [कम्बोज+अण्] 1. शंख 2. पुन्नाग नामक कारिताला [क आदि -अन्त ] व्यन्जन (क से .J For Private and Personal Use Only Page #1262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1253 ) काम्यकः (पुं०) महाभारत में वर्णित एक जंगल का नाम / / -आनः 1. आम का एक भेद, 2. एक टापू का कायिन् (वि.) [ काय+इनि ] बड़े आकार प्रकार का, | नाम,-कञ्जम् नील कमल,--कण्ठी कालकण्ठ की -समूलशाखान् पश्यामि निहतान् कायिनो द्रुमान् - पत्नी, पार्वती, कल्लक: पनियाला सांप, .. जोषक: महा० 121113 / 4 / / जो समय पर मिले पतले भोजन से ही संतुष्ट है,-पष्टः कायाधवः [ कयाधु+अण् ] कयाधु का पुत्र, प्रह्लाद / जिसे मौत ने इस लिया है,-धौतम् (कलधौतम्) कारकम् [कृ+ ल] 1. इन्द्रिय, अंग 2. (व्या० में) चाँदी या सोना,-पर्ययः देरी, विलम्ब, वक्तुमर्हसि वाक्य में संज्ञा और समापिका क्रिया का मध्यवर्ती सुग्रीवं व्यतीतं कालपर्यये, पुरुषः यमराज का सेवक, संबंध। सम.. विभक्तिः संज्ञा और क्रिया के -रुद्रः संसार को नष्ट करने के अपने भयंकर रूप में मध्य संबंध स्थापित करने वाली प्रक्रिया। विद्यमान रुद्र, वृतः कुलत्थ, एक प्रकार की दाल, कारणम् [कृ-णिच्+ल्युट ] हेतु, निमित्त पूर्व जन्म से -संकषिणी मंत्रविद्या जिससे समय की अवधि कम की आई हुई वृत्ति, पूर्ववासना महा० 12 / 211 / 6 / जा सके, सङ्गः देरी, विलम्ब,-कार्यस्य च कालसङ्गः, सम० कारितम् (अ०) फलस्वरूप-यदि प्रवाजितो -रा०४।३३१५३,-समम्बित, (-समायुक्त), मृत रामो लोभकारणकारितम् रा० 2058 / 28 --अन्त- मरा हुआ। रम् (कारणान्तरम्) 1. भिन्न प्रसंग, परिवर्तन शील कालतः (कासमदः), खांसी को भगाने वाली औषष। हेतु 2. कारण परक हेतु / कालन ( वि० ) [ कल् + णिच् + ल्युट् ] नाश करने कारणता [कारण+तल+टाप् ] कारणपना, हेतुत्व वाला। -प्रलयस्थितिसर्गाणामेकः कारणतां गतः --कु० 2 / 6 / कालिका (स्त्री०) [ काल+ठन् ] 1. एक प्रकार की शाक कारापकः [ कार+आपकः, त० स०] भवन के निर्माण ____भाजी 2. तेलन, तेली की स्त्री 3. कुहरा धुंध / ' कार्य का अधीक्षक, काम की देखभाल करने वाला। कालित (वि.) [काल+इतच् ] मत, मरा हुआ --नाधुना कारूषाः (व०व०) 1. एक देश का नाम 2. अन्तर्वर्ती | सन्ति कालिताः---भाग० 1051418 / जाति का (पिता व्रात्यवैश्य तथा माता वैश्य) पुरुष / कालिदासः (पुं०) 1. एक यशस्वी कवि और नाटककार कारूषम् (नपुं०) मल या पाप ... रा० 1 / 24 / 20 / / ___ का नाम 2 नलोदय और श्रुतबोध के प्रणेताओं की कार्कलास्यम् [कृकलास+व्या ] छिपकली की स्थिति। भांति अन्य कवि। कार्णाट भाषा (स्त्री०) कन्नड़ भाषा / कालिय (वि.) [ काल+घ] 1. समय से संबद्ध 2. एक कार्तिकः[ कृतिका+अण | स्कन्द का विशेषण / साँप का नाम जिसका कृष्ण ने दमन किया था। कार्पटिक: [ कर्पट+ठक 1 कपटी, धोखेबाज, ठग। कालोन (वि.) [ काल+ख] किसी विशेष कालभाग से कासितन्तुः (सूत्रम्) [कसी+अण =कार्पासस्तस्य संबद्ध। तन्तुःष० त०] कपड़े का धागा। कालेयाः (पुं०, ब० व०) [ काली+ठक् ] कृष्णयजुर्वेद कार्मणत्वम् [ कर्मन्+अण, तस्य भावः त्वम् ] जादू, टोना की शाखा या संप्रदाय / कार्मणत्वमगमन् रमणेषु-शि० 10 // 37 / कालोलः (पुं०) कौवा। कार्मान्तिकः (0) उद्योग धन्ध और निर्माणकार्यों का काशिक (वि.)[ काशी+ठक] काशी में बना हुआ, ___ अधीक्षक-कौ० अ० 1112 / / __ रेशमी वस्त्र, बनारसी कपड़ा। कार्मारिकः [ कार्मार+ ठक् ] बर्थी - को० अ० 2 / 3 / / काशिकाप्रियः (पुं०) धन्वन्तरि / कार्यम् [+ ण्यत् ] शरीर-कार्याश्रयिणश्च कललाद्याः | काय (वि.) [ काशी--ढक् ] काशी का, काशी से (कार्यशरीर)-सां० का० 43 / सम.--अपेक्षिन् संबंध रखने वाला। (वि०) किसी विशेष कार्य को करने वाला, | काश्मकराष्ट्रक (वि०) हीरों का एक भेद-की०म० ...-आधयिन् (वि०) शरीर का सहारा लेने वाला 2 / 11 / का० ४३,-व्यसनम् कार्य में विफलता,-वशात काश्यपेय (वि०) [ कश्यपा ( अदिति )+ठक् ] सूर्य, (अ०) किसी प्रयोजन से, किसी काम से। गरुड़ और बारह आदित्यों का विशेषण, -यः (10) कालः [कलयति आयु: कल+णिच् +अच्] 1. सांख्य दारुक, कृष्ण का सारथि / कारिका में बताये चार पदार्थों में से एक ---प्रकृत्यु- काषण (वि.) कच्चा, जो पका न हो। पादानकालभागाख्याः - सां० का० 50 2. समय काषायबसना [ब० स०] विधवा / का कोई भाग। सम०-अष्टकम् 1. आषाढ़ मास काष्ठम् [ काश् +क्थन् ] लकड़ी। सम० -अषिरोहणम कृष्णपक्ष के पहले आठदिन 2. काल भैरव का स्तोत्र चिता में बैठना, ... पुलका लकड़ियों का गठ्ठा,---भार जिससे शंकर की स्तुति की गई है, बाविकः चैत्रमास | लकड़ियों का बोझ / For Private and Personal Use Only Page #1263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1254 ) काष्ठा (स्त्री० ) 1. पीला रंग 2. शारीरिक रूप या मुद्रा | किशोरः [किम् ++ओरन्, किमोन्त्यलोपः, धातोष्टि -काष्ठां भगवतो ध्यायेत् ~भाग० 3 / 28 / 12 / | लोपः ] किसी जानवर का बच्चा, शिश, शावक / कासनाशिनी [50 त०] खांसी या दमे का नाश करने | कोकट (वि.) [ की+कट + अच् ] 1. निर्धन, बेचारा वाली औषधि का पौधा। ___ कंजूस, लालची। काइन् ( नपुं० ) [ क+अहन् ] ब्रह्मा का एक दिन कोकसास्थि (नपुं०) [ की+कस् + अच्-५० त०] कशे( 1000 युग)। रुका, मेरुदण्ड, रीढ़ की हड्डी। काहारकः (पुं०) एक जाति का नाम जिसके लोग पाल-कीचक: [चीक-+-वन, आद्यन्तविपर्ययश्च ] बांस जो हवा कियों में सवारियों को ढोते हैं। भर जाने पर शब्द करता है-कीचका वेणबस्ते स्यः कि (जुहो० पर०) चिकेति, जानना। ये स्वनन्त्यनिलोद्धताः - केवल 'बांस' के अर्थ में बहषा किकिरिः (स्त्री०) [ किं किरतीति-कृ+क, स्त्रियां-इ] / प्रयक्त-स कीचकैस्तिपूर्णरन्ध्रः कु० 118, रघु० कोयल। 2 / 12 / किञ्चन्यम् [किञ्चन-+-ष्य ] संपत्ति-किञ्चन्ये कीचकवधः [प० त० कीचक+हन-+अप, वधादेश: 1 नास्ति बन्धनम् महा० 12 / 32050 / 1. भीम के द्वारा कीचक की हत्या 2. एक नाटक का किट्टिनम् (नपुं० ) मैला पानी। नाम / किम् [ कु+ डिमु बा० ] समासान्त शब्दों में प्रायः 'कु' | कीट: [ कीट-+-अच् ] 1. कीड़ा / सम० ----अवपन्न (वि०) के स्थान में प्रयुक्त होता है, और 'तुच्छता', 'घटिया- | कोई वस्तु जिसमें कीड़ा लग गया हो, कीड़े से खाई पन' दोष या ह्रास का अर्थ प्रकट करता है / सम० | हई,-उत्करः बमी, ---तत्र कीटोत्कराकीणे - कथा. --कथिका (स्त्री०) संदेह, संकोच, -- कृते (अ.) 101 / 290 / 11, .--नामा, पावका,-पादी,-माता किसलिए, --ज (वि.) जो कहीं उत्पन्न हुआ हो, (स्त्री०) एक पौधे का नाम / जिसका नीचकुल में जन्म हुआ हो, -- तुघ्नः 'करण' | कोनाश (वि.) [क्लिश्-कन्, ईत्वं, लस्य लोपो नामानामक काल के ग्यारह भागों में से एक, ..नु (अ०) | गमश्च] 1. धरती जोतने वाला 2. निर्धन, दरिद्र परन्तु फिर भी, तो भी-किन्नु चितं मनुष्याणामनि- ____3. गुप्त हत्या-उपांशुघातिनि-नाना० 4. क्रूर। त्यमिति मे मतम् ... रा० 2 / 4 / 27, -पाक (वि.) कोरिभारा (स्त्री०) जें। अपरिपक्व, अज्ञानी,-पाक: आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित कीर्तनीय, कीर्तन्य (वि.) [कृत-+अनीय, ण्यत् वा] स्तुति एक जड़ी बूटी, -पुरुषः 1. अर्धदेव 2. घटिया मनुष्य, किये जाने के योग्य, जिसके यश या कीति का गान -राजन् बुरा राजा, विवक्षा निन्दा, बुराई। किया जाय किंवरः (पुं०) मगरमच्छ, घड़ियाल / कोतिः (स्त्री०) [कृत्+क्तिन] 1. यश, ख्याति 2. कृपा, किमीय (वि०) [किम्+छ ] किसका, किससे संबंध रखने प्रसाद / सम-मात्रशेषः जो केवल ख्याति या यश वाला। के संसार में ही जीवित है, मृत,--स्तम्भः यश या कियत (वि.) [किमिदंभ्यां बोषः] (पुं० --कियान, ख्याति के कृत्य का खम्बा। स्त्री० - कियती, नपुं० - कियत्) 1. कितना अधिक, कोर्तितव्य (वि०) [कृत्+तव्य] जिसकी स्तुति की कितना बड़ा, कितना 2. कुछ, थोड़ा सा। सम० / जाती है। एतद् किस महत्त्व का, अर्थात् तुच्छ, अतिसामान्य, | कीलः [कील+घञ्] 1. जुआरी 2. मूठ, दस्ता / -मात्रः नगण्य, तुच्छ बात। कोलप्रतिकोलन्यायः (पु.) एक न्याय जिसके अनुसार किराटः (0) बेईमान सौदागर, निर्लज्ज व्यापारी-भाग० क्रिया एक में रहती है तो प्रतिक्रिया दूसरों में रहती 12 / 335 / है-पा० 2 / 2 / 6 पर म० भा०। किरातकः किरं पर्यन्तभूमि अतति गच्छतीति,स्वार्थे कन] कोलालिन कीलाल+-इनि] छिपकिली, गिरगिट / किरात जाति का मनुष्य / कोशपर्णः, (-- पणिन्) [ब० स०] अपामार्ग नाम का किरीरत्वच [ब० स० ] सन्तरे का पेड़। पौधा। किलफिलितम् (नपुं०) हर्षसूचक ध्वनियाँ / कु (अ०) [कु+डु] बुराई, ह्रास, अवमूल्य, पाप, ओछापन किलाटः (पुं०) जमा हुआ दूध / और कमी को प्रकट करने वाला अव्यय / सम०-चर: किलातः (पु.) बौना, कद में छोटा / घूमने वाला,-मः,-पुत्रः मंगल, बलयम् मण्डल,-बाच् किल्विषम् [किल्+टिषच्, वृक् ] 1. संकट, पाप - पितेव | (पुं०) गीदड़,-बोधम् शरारत से भरा प्रश्न, तपः पुत्र धर्माद्धि त्रातुमर्हसि किल्विषात् -- रा० 116217 | 1. एक प्रकार का कम्बल जो पहाड़ी बकरियों के 2. धोखा, जालसाजी। बालों से बनता है 2. दिन का आठवाँ मुहूर्त 3. दोहता For Private and Personal Use Only Page #1264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1255 ) या भानजा 4. सूर्य, - द्वारम् पिछला दरवाजा, मखम् / कुण्डः | कुण+3] पानी का बर्तन, पानी का करवा / बुरा नाखन, भोंड़े या मैले नाखून,-- नीतः गलत राय सम-पाय्यः [कुण्डेन पीयते अत्र ऋतौ] एक यज्ञ -पटः, पटम् चीवर, चिथड़ा,-पात्रम् अयोग्य का नाम, भेदिन (वि०) अनाड़ी, भद्दा, फूहरू। व्यक्ति,-मेहः दक्षिणी ध्रवविन्दु,-- लक्षण (वि०) कुण्डकः [ कुण्ड+कन् ] बर्तन--कथा० 4 / 47 / खोटे चिह्नों से युक्त, विक्रमः अस्थानप्रयुक्त शूर- कुण्डलिका (स्त्री०) कुण्डली, वृत्त / वीरता, वेधस् (पुं०) बुरी आदत / कुण्डलिन् (वि०) [कुण्डल+इनि] गोलाकार,--लो (पुं०) कुकूलाग्निः (पुं०) भूसी या बुरादे से निर्मित आग, - कथा० सुनहरा पहाड़। 117 / 92 / कुण्डलिनी (स्त्री०) [ कुण्डलिन् +की ] योग शास्त्र में कुक्कुटः [ कुक् +क्विप्, केन कुटति -- कुट् + क ] 1. मुर्गा, एक नाड़ी का नाम / आग की चिंगारी। सम०--अण्डम् मुगी का कुण्डिका (स्त्री०) [कुण्ड+कन्+टाप् ] एक छोटा अण्डा,---आभः,-अहिः एक प्रकार का साँप,- आस- जोहड़, पोखर---नवा कण्डिका ---पा० 111 / 4 पर नम् योग का एक आसन / म. भा०। कुक्षिगत (वि०) [ कुक्ष्यां गत इति त० स०] गर्भस्थ, कुतपसप्तकम् [ष० त०] सात वस्तुएँ जो श्राद्ध के अवसर -दिष्टयाम्ब से कुक्षिगतः पुमान्-भाग०१०।। पर मृतक के सम्मानार्थ दान की जाये- यथा शृङ्गकुचः [कुच्+क] स्तन, उरोज, चूची। सम० --कुम्भः पात्र, ऊर्णावस्त्र, रौप्यधातु, कुशतण, सवत्सा घेत, तरुण युवती के स्तन,-कुडमलम् कली के आकार अपराहुकाल, और कृष्णतिल। का स्तन- गोपाङ्गनानां कुचकूडमलं वा---कृष्ण, ! 1 वा-- कृष्ण., कुतपाष्टकम् [ष० त०] आठ वस्तुएँ जो श्राद्ध के लिए - कुडकुमम् स्तन पर रोली या केसर का लेप। __शुभ मानी जाती है -- यथा मध्याह्न, शृङ्गपात्र, कुजाष्टमः [ब० स०] ग्रहों की विशेष स्थिति जब कि ऊर्णावस्त्र, रौप्य, दर्भ, सवत्सा धेनु, तिल और मंगल लग्न से साठवें घर में हो। दौहित्र। कुञ्जरः [ कुज+र] 1. हाथी 2. सिर 3. आभषण | कुतुकित, (-किन्) (वि०) [ कुतुक+इतच्, इनि वा] 4. आठ की संख्या। सम०-अरिः सिंह, आरोहः उत्सुक, जिज्ञासु। महावत,-च्छायः (गजच्छायः) ज्योतिष का एक | कुतणम् (नपुं०) पनीला पौधा। योग जिसमें चन्द्रमा मघा नक्षत्र में और सूर्य हस्त ! कुतोनिमित्त (वि.) किस कारण या हेतु को लिये हुए नक्षत्र में विराजमान होता है। -कुतोनिमित्तः शोकस्ते-रा० 2 / 74 / 20 / कुटिल (वि.) [कुट+इलच ] कपटी, वक्र, टेढ़ा, कुत्सला (स्त्री०) नील का पौधा / बेईमान / सम०---अलकम्, कुन्तलम् टेढ़ी अलकें, | कुथकः [ कुथ् + अच्, स्वार्थे कन् ] रंग-बिरंगा कपड़ा। टेढ़ी जुल्फें कुटिलकुन्तलं श्रीमखं च ते जड उदीक्षतां | कुधिः (पुं०) उल्लू। -भाग० 10 // 35, -चित्तम् कपटपूर्णमन, टेढा मन | कुन्त्र (चुरा० पर०) झूठ बोलना / -कुशेशयनिवेशिनी कुटिलचित्तविद्वेषिणीम्-नव रत्न। कुन्दवन्त (वि.) [ब० स०] जिसके दांत कुन्द फूल की कुटी (स्त्री०) [कुटि+डोष ] झोपड़ी। भांति श्वेत तथा चमकीले हों। कुटुम्बिनी [ कुटुम्ब + इन् + ङीष् ] 1. गृहिणी 2. घर | कुपित (वि०) [ कुप् + क्त ] क्रोध दिलाया हुआ, कुछ, की सेविका या नौकरानी। नाराज, क्रोधी। कुटुम्बिता, -- स्वम् [ कुटुम्बिन्+ता, त्व ] 1. गृहस्थ होने | कुप्यधौतम [ गुप् + क्यप्, कुत्वं ] चाँदी / की स्थिति 2. पारिवारिक एकता या सम्बन्ध 3. एक कुबेर (वि०) [ कुत्सितं बेरं शरीरं यस्य, ब० स०] परिवार की भाँति रहना। 1. भद्दा, भद्दे अङ्गों वाला। कुट्टनम् [कुद्र + ल्युट] 1. काटना 2. पीसना 3. मुक्का | कुभ्रामि (वि०) प्रकाशपरावर्ती कौ० अ० 2 / 11 / बंद करके मस्तक के दोनों ओर थपथपाना, यह गणेश | कुमार् (चुरा० पर०) आग से खेलना। को प्रसन्न करने का चिह्न है। कुमारः [कम् +आरम्, उत उपधायाः ] एक धर्मशास्त्र कुड्डालः कुदाल, मिट्टी खोदने की काली। का प्रणेता, रम् (नपुं०) विशुद्ध सोना। सम. कुणपाशन (वि.) [कुणप + अश्+ल्युट ] मुदो को | -.-वासः, 'जानकीहरण' का प्रणेता, एक कवि का खाने वाला। माम, ललिता (स्त्री०) 1. रंगरेली, मदु कामक्रीग कुणपी [कुण्+कपन्जी ] एक छोटा पक्षी। 2. एक छन्द का नाम जिसके एक चरण में सात कुणालः (पुं०) एक देश का नाम,-अयं कुणालो बहुसागर मात्राएँ होती हैं,-संभवम् कालिदासकृत एक काव्य प्रिये विराजते नकविजातिमण्डन:-जानकी०२०। का नाम / 158 For Private and Personal Use Only Page #1265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1256 ) कुमारिकापुरम् (नपुं०) कन्याओं की व्यायामशाला | कुलाटः (पु.) एक प्रकार की मछली। - महा० 4 / 11 / 12, दश०२। कुलालचक्रम् [10 त०] कुम्हार का चाक / कुमालकः (पुं०) मालवदेश के एक प्रदेश का नाम / कुलिङ्गः [कु+लिङ्ग-+अच् ] 1. साँप-महा० 12 / कुमुवः,-दम् [ को मोदते इति कुमदम् ] 1. सफेद कमल 101172. हाथी-कुलिङ्गो भूमिकूष्माण्डे मतङ्गज जो चन्द्रोदय होने पर खिलता कहा जाता है 2. लाल भुजङ्गयो:-मेदिनी। कमल 3. विष्णु का विशेषण 4. कपूर। सम० कुल्फः (वेद०) टखना,-ऋ० 150 / 2 / सम.-दन -~-आनन्द (वि०) चन्द्रमा,- गन्ध्या कमल की सुगन्ध (वि०) टखने तक गहरा-शत० 12 / से युक्त महिला। | कुल्माषः [ कुल+क्विप्, कुल माषोऽस्मिन् ब० स०] कुम्पः (पु०) लूजा, जिसके हाथ विकृत हों। 1. खिचड़ी जिसमें आधे उबले चावल और दाल हो कुम्बकुरोरः (0) स्त्रियों के लिए सिर पर पहनने का 2. एक प्रकार का रोग। वस्त्र। कुल्लकः (पुं०) मनुस्मृति का एक टीकाकार। कुम्भः [कु+उम्भ+अच् ] घड़ा, जलपात्र / सम-उबरः कुशी [ कुश+डी ] गूलर की लकड़ी का टुकड़ा जो शिव का एक भूतगण, सेवक-रघु० 2 / 35 / - स्तोत्र के अन्तर्गत साम मंत्रों की संख्या गिनने के काम -उलकः उल्ल का एक भेद,-महा० 13 / 111 // आता है... छन्दोगस्तोत्रगणनाशङ्कासु-नाना। 101, पञ्जरः आला, ताक / कुशमुष्टिः [ष० त०] मुट्ठी भर 'कुश' घास / कुम्भिन् (वि०) [ कुम्भ+इनि ] आठ की संख्या। कुशिकाः (ब० ब०) कुशिक मुनि की सन्तान / कुम्भिनी (स्त्री०) [ कुम्भिन्-डीप्] 1. पृथ्वी 2. जमाल कुशेशयनिवेशिनी (स्त्री०) लक्ष्मी देवी। गोटे का पौधा / कुष्ठः [कुछ+कथन ] कुल्हे में पड़ा गडढ़ा। कुम्भीनसी (स्त्री०) लवणासुर की माता, रावण की बहन / कूष्माण्डहोमः (पुं) किसी भी बड़े धार्मिक आयोजन से कुम्भीमुखम् (नपुं०) एक प्रकार का घाव, व्रण / पूर्व किया जाने वाला हवन / कुरङ्गलाञ्छनः [ब० स०] चन्द्रमा / कुसुमम् [कुस्+उम ] 1. फूल 2. फल। सम०-अञ्जलिः कुष्पाञ्चालाः (ब० व.) एक देश का नाम / उदयनाचार्य की एक रचना,-द्रुमः फूलों से भरपूर कुहबिल्वः (पुं०) लालमणि, पद्मरागमणि / वृक्ष,-घयः (कुसुमन्धयः) मधुमक्खी--उदलसद्दलसत्कुकुलम् [कुल+क] 1. वंश, परिवार 2. समूह 3. रेवड़।। सुमन्धयः-- रा० च० / सम० अन्तस्था देवी का विशेषण,-आख्या, पारि-कुसुमयति (कुसुम-ना० धा०, लट्) फूल उत्पन्न करता वारिक नाम, वंशद्योतक नाम,-आपीड:-शेखरः है, या फूलों से सजाता है। परिवार की कीति या यश,--करणिः आनवंशिक कुस्तुम्बरी (स्त्री०) एक पधि का नाम / लेखपाल या अधिकारी,---कल परिवार के लिए | कुहकवृत्तिः (स्त्री०) धूर्तता, चालाकी। अपयश,-कुण्डालया कौल वृत्त में स्थित, देवी का | कुहरः [कुहरा+क ] भीतरी खिड़की। एक नाम, गरिमा (पुं०) कुल का गौरव या मर्यादा, | कुहकालः [10 त०] चान्द्रमास का अन्तिम दिन जबकि - जाया उच्चकुल में उत्पन्न महिला, द्रषण (वि.)। चन्द्रमा अदृश्य होता है। अपने परिवार को बदनाम करने वाला, नाशन | कुहमुखः [ब० स०] 1. भारतीय कोयल 2. संकट / (वि०) परिवार को नष्ट करने वाला, पांसनः जो | कुहमुखम् [ष० त०] नया चाँद / / अपने कुल को कलङ्कित करता है,--पालकम सन्तरा, कुह्वानम् [ कु+है+ल्युट ] अमंगल ध्वनि / / नारङ्गी, भरः (कुलम्भरः) परिवार का पालनपोषण कटम् [ कूट। अच् ] खोटा सिक्का-कटं हि निषादानाकरने वाला,--बीजः शिल्पी संघ का मुखिया,--मार्गः मेव उपकारक नार्याणाम मी० सू० 6 / 1152 पर कौलों का सिद्धान्त, सन्निधिः (पुं०) आदरणीय शा० भा०। सम० -- रचना चाल, दाव पेंच, लेख: साक्षी की उपस्थिति-मी० सू०८।१९४।२०१।। बनावटी या जाली दस्तावेज, --सङक्रान्तिः आधीरात कुलमितिका (स्त्री०) एक प्रकार की दरियां-कौ० बीतने पर जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि पर अ०२।११। संक्रमण करता है, . हेमन् खोटा सोना / कुलिकः (पुं०) [ कुल+ठन् ] 1. एक कोटेदार पौधा | कूपः [ कु+पक, दीर्घश्च } 1. कुआँ 2. छिद्र यथा रोम 'मान्दि' 2. शिकारी-कुलिकरुतमिवाज्ञा कृष्णवध्वो कूप, 3. जड़ / सम० - कारः, - खनकः कुआँ खोदने हरिण्यः भाग० 10 // 47 / 19 / वाला, ...चक्रम पानी का चक्र या पहिया,--- वण्ड: कुलो (स्त्री०) परिवारों का समूह / मस्तुल-क्षोणीनौकपदण्डः दश० 11 स्थानम कुला (स्त्री०) लाल रंग का संखिया, मनसिल / कुएं का स्थान / For Private and Personal Use Only Page #1266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1257 ) कूवरस्थानम् [त सं०] गाड़ी में बैठने का स्थान। / कृत्यम् [ कृन्त्+यत् ] वास्तुकार का एक उपकरण-महा० कर्मः [ को जले अमिवेगोऽस्य-पृषो०] कछुवा / सम० 1194 / 6 / --- आसनम् योग की एक विशेष मद्रा,-द्वादशी कृत्यवत् (वि.) [कृत्य+मतुप] 1. जिसके पास करने पौषमास के शुक्लपक्ष का ग्यारहवाँ दिन, पुराणम् के लिए कार्य है 2. जिससे कोई प्रार्थना की गई है एक पुराण का नाम। 3. चाहने वाला, प्रबल इच्छुक रा० 7 / 92 / 15 / कर्मक (वि.) कछुवे जैसा बना हुआ। कृन्तनिका [ कृन्त+ल्युट-कृन्तनं, स्वार्थ कन, इत्वम् ] कूमिका | कूर्म+कन स्त्रियां टाप, उपधाया इत्वम्, ] एक एक | एक छोटा चाकू। वाद्ययन्त्र / कृत्वा-चिन्ता (लोकोक्ति:) प्राक्कल्पनापरक बात पर कूलिका / कूल+कन्+टाप, इत्वम् ] वीणा का निचला विचारविमर्श करना-मै० सं० 1012 / 49 और भाग। 6 / 8 / 42 पर शा० भा०। कृ (तना० उभ०) एकत्र करना, लेना-आदाने करोति | कृपा+आकरः, सागरः,-सिन्धः (पुं०) अत्यन्त कृपालु / शब्द:- मी० सू० 4 / 2 / 6 / कृश (वि.) [कृश्+क्त, नि.] 1. दुर्बल, बलहीन कृकरच्छट: [ ब० स०] आरा। 2. नगण्य 3. निर्धन 4. तुच्छ / सम० अतिथि कृकलः (0) 1. एक प्रकार का तीतर 2. पाँच प्राणों में (वि०) जो अपने अतिथियों को भूखा रखता है से एक / . महा० १२।८।२४,-गवः जिसकी गौवें भूखी रहती कृच्छ (वि.) कृती---+रक ] 1. कष्टप्रद, दु:ख- है,-भृत्यः जिसके नौकर भूखे रहते हैं। दायी / सम० -- अर्घः केवल छः दिन तक रहने वाली कृशानुयन्त्रम् (नपुं०) तोप / तपश्चर्या,-कृत् (वि०) तपस्वी,-सन्तपनम् एक कृष् (तुदा० पर०) खुरचना, विरेखण करना / प्रकार का प्रायश्चित्तपरक ब्रत / कृषिद्विष्ट: एक प्रकार का चिड़ा। कृतम् [कुवत ] जादू, टोना / सम० --...अर्थ (वि०) | | कृषिपाराशरः,-संग्रहः (पुं०) कृषि शास्त्र पर एक संग्रह ग्रंथ / कृतार्थ [व० स०] जिसने अपना प्रयोजन सिद्ध कर | कृष्ण (वि.) [ कृष् / नक्] 1. काला 2. दुप्ट 3. शूद्र लिया है, अत: अब और कुछ करने में असमर्थ है 4. भलावां (रीठा) जिससे धोबी कपड़ों पर चिह्न -सकृत्कृत्वा कृतार्थः शब्द:--मी० सू०६।२७ पर लगाता है - महा० 12 / 291 / 10 / सम०-कञ्चकः शा० भा०, -कर (वि०),-कारिन् (वि०) किए काले चने,-च्छविः (स्त्री) 1. बारहसिंगा की खाल हए कार्य को करने वाला, निरर्थक -- कृतकरो हि 2. काला बादल-- कृष्णच्छविसमा कृष्णा महा० विधिरनर्थकः स्यात-- मी० म० 105 / 58 पर शा० 4 / 6 / 9,- तालु: एक प्रकार का घोड़ा जिसका तालु भा०,-तीर्थ (वि.) जिसने सुगम या आसान बना काला होता है, द्वादशी आषाढ़ के कृष्णपक्ष में दिया, -दार (वि०) रिवाहित.-दूषणम् किये हुए। बारहवाँ दिन, बीजम् तरबूज, भस्मन् पारद को खराब करना,-मन्यु (वि०) क्रुद्ध, नाराज, | शुल्बीय,-मृत्तिका 1. काली मिट्टी 2. बारूद। - मालः चितकबरा, बारहसिंगा, कृष्णहरिपा,-विद् | कृष्णा (स्त्री०) यमुना नदी।। (वि.) कृतज्ञ,--तस्यापवय॑शरणं तब पादमूलं विस्म क्लप (प्रेर०) ग्रहण करना, स्वीकार करना-नातो र्यते कृतविदा...-भाग० 4 / 9 / 8,-- श्मथः जिसने मछे ह्यन्यमकल्पयन्-रा० 2191165 / भी साफ़ करा ली है,-संस्कारः 1. जिसने शोधना केतुमालः,-लम् जम्बू द्वीप का पश्चिमी भाग / त्मक सब प्रक्रियाएं पूरी कर ली हैं 2. सज्जित, केदारः [ केन जलेन दारोऽस्य ब० स०] संगीत शास्त्र में तैयार। एक राग का नाम / कृतवत् (वि०)| कृत+मतुप् ] जिसने कार्य करा लिया | केदारकः [ केदार-+स्वार्थे कन चावलों का खेत / है---कृतवानसि विप्रियं न मे - कु० 4 / 7 / / केन्द्रम् (नपुं०) जन्म कुण्डली में पहला, चौथा, सातवां कृतिः (स्त्री०) [कृ+क्तिन ] 1. वर्गद्योतक संख्या, एवं दसवाँ स्थान / 2. क्रिया 3. चाक, 4. जादूगरनी। सम० - साध्यत्वम् केरलजातकम्, ) ग्रन्थों के नाम / प्रयत्न करके संपन्न होने की स्थिति / | केरलतन्त्रम् कृत्यम् [ कृ+क्यप्] 1. जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य केरल माहात्म्यम् / 2. कार्य 3. प्रयोजन / सम. -अकृत्यम् कर्तव्य अक- केरलसिद्धान्तः / र्तव्य में (विवेक करना),--विधिः (पुं०) नियम, | केलिः (पुं० स्त्री०) [केल +इन् ] हँसीमजाक, दिल्लगी, उपदेश,-शेष (वि०) जिसने अपना कार्य पूरा नहीं रंगरेली। सम० कलहः हंसी मजाक में मगड़ा, किया है। -पल्बलम् आमोद सरोवर,-बनम् प्रमोदवन / For Private and Personal Use Only Page #1267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1258 ) केवलव्यतिरेकिन् (पुं०) न्याय सिद्धान्त के अनुसार | कोपारुण (वि०) [ब० स०] क्रोव के कारण लाल अनुमान के केवल एक प्रकार से संबन्ध रखने कापारुणं मुनिरधारयदक्षिकोणम् - भील। वाला। कोमल (वि.) [ कु०+कलच्, मुटु, नि० गुणः ] मृदु, केवलाद्वैतम् (नपुं०) दर्शन शास्त्र की एक शाखा। मुलायम नरम, - लम् (नपुं०) रेशम / केवलिन् (वि०) [ केवल+इनि] (जैन०) जिसने / कोमला (स्त्री०) एक प्रकार का छुआरा / उच्चतम ज्ञान प्राप्त कर लिया है। कोरकित (वि०) [कोरक+इतच् ] कलियों से आच्छाकेशः[क्लिश+अन लो लोपश्च ] 1. बालक 2. सिर के दित नं० 31121 / / बाल / सम०-आकर्षणम् चुटिया पकड़ कर किसी | कोलकम् [कुलअच, स्वार्थ कन्] 1. एक प्रकार का महिला को खीचना एवं उसका अपमान करना, गाँव मान०९।४८६ 2. एक प्रकार का गढ़ मान० -कारम् एक प्रकार का गन्ना, कारिन् (वि०) 1041 3. वे फलादिक जो नींव के गर्त में प्रयुक्त जो बालों को संवारता है, प्रन्धिः चुटिया वेणी, होते हैं। --धारणम् बाल रखना.-लञ्चकः एक जैन साधु कोशः [कुश-घा , अच् वा] 1. कमल का परिच्छद का नाम,- वपनम् बाल कटवाना, मुण्डन कराना 2. मांस का टुकड़ा 3. वह प्याला जिसमें युद्धविराम -व्यरोपणम् अपमान के चिह्नस्वरूप किसी दूसरे के सन्धिपत्र को सत्यांकित करने के चिह्न स्वरूप की चुटिया पकड़ना-रघु० 3.56 / पेय पदार्थ उडेला जाता है--देवी कोशमपाययत्-राज. केशवस्वामिन् (पुं०) एक वैयाकरण का नाम / 78 / सम०-- वेश्मन कोशागार--भाण्डं च स्थापकेश्य (वि०) [ केश+य ] 1. बालों की वृद्धि के अनुकूल | यामास तदोये कोशवेश्मनि कथा० 24 / 133 / 2. बालों में लगाया हुआ, -- श्यम् (नपुं०) कोशातकः [ कोश / अत् / यवुन् ] बाल / सार्वजनिक निन्दा, बदनामी, लोकापवाद / कोष्ठीकृ (तना० उभ०) धेरना, घेरा डालना---कोष्ठीकेसराल (वि.) [ केसर-+आलच् ] अयाल से समृद्ध, कृत्य च तं वोरम महा०६।१०११३२। तन्तुबाहुल्य से युक्त / कोहल (दि०) को हलति पर्वते अन् पपो०] अस्पष्ट केसरिणी [ केसर--- इनि, स्त्रियां डीप् ] सिहिनी, शेरनी / बोलनेवाला,--- लः (पुं०) एक प्राकृत भाषा के वैयाकमर्थक्यम् (नपुं०) [ किमर्थक + ष्या ] प्रयोजन का करण का नाम / अभाव-कैमर्थक्यानियमो भवति-पा० // 43 पर | कौचपक (वि.) एक प्रकार की दरी-को० अ० 211 म. भा०। | कोज (वि.) [ कुज-+-ठक्] कुज अर्थात् मंगल से संबंध कमर्थ्यम् [ किमर्थ-व्या ] कारण, प्रयोजन / रखने वाला। कयटः (पुं०) पतंजलिकृत महाभाष्य के टीकाकार वैयाकरण | कोट्टन्यम् [ कुट्टनी-व्यञ् ] कुट्टनी के द्वारा युवतियों का नाम। को दुराचरण में प्रवृत्त करामा। कलातकम् (नपु०) एक प्रकार का, शहद, शराब। कौण्डिन्यः [कुण्डिन+व्यञ् ] एक ऋषि का नाम / कशोरवयस् (वि.) [ब० स०] कुमार, किशोरावस्था कौतुकवत् (अ०) [ कुतुक-|-अण, मनुप् ] जिज्ञासा के का बालक। रूप में। कोकडः (पुं०) भारतीय लोमड़। कौयुमः 1. सामवेद की एक शाखा का नाम 2. इस शाखा कोकथुः (पुं०) वनकपोत, जंगली कबूतर / का अनुयायी ब्राह्मण / कोकनदिनी कोकनद+ इनि+ डीप लाल कमल-न भेकः | कौमार (वि.) [कुमार+अण् ] 1. मुख्य सृष्टि, मुख्य कोकमदिनीकिजल्कास्वादकोविदः----कथा० 3078 / / अवतार- स एव प्रथमं देवः कौमारं सर्गमास्थितः कोकिलकः (0) एक छन्द का नाम। -- भाग० 113 / 6 / सम०-तन्त्रम आयुर्वेद शास्त्र कोटपः, -पालः (0) किले का संरक्षक, गढ़नायक / का एक अनुभाग जिसमें बच्चों के पालनपोषण का कोटिः (स्त्री०) [ कुट- इ ] असंख्य, अगणित, --कोट्य- | वर्णन है,-व्रतम् ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना / ग्रतस्ते सुभृताश्च योधा:---रा० 5/51 / सम०- कीर्णेयः (पं.) 1. राक्षस 2. वायु 3. शिव 4. अग्नि -होमः एक प्रकार का यज्ञीय अनुष्ठान / 5. तपस्या में संलग्न / कोणवत्तम् (नपुं०) उत्तरपूर्व से लेकर दक्षिण पश्चिम | कौलमार्गः [कुल+अण-+-मग-+घन, ष० त०] कोलों ___ तक फैला हुआ शीर्षवृत्त या इसके विपरीत / का सिद्धान्त। कोन्यशिरः (पुं०) वह क्षत्रिय जिसको ब्राह्मण ने शूद्र हो | कौलाल: [कुलाल+अण् स्वार्थे ] कुम्हार / जाने का शाप दे दिया है। कौविन्दी [ कुविन्द+अण, स्त्रियां डीप् ] जुलाहे की स्त्री। कोपजन्मन् (वि.) [ब० स०] क्रोध से उत्पन्न / | कौशिकः [ कुश+ठञ् ] गोंद गुग्गुल, बरोजा। For Private and Personal Use Only Page #1268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1259 ) कौशीतकी (स्त्री०) अगस्त्य मुनि की पत्नी ! क्लान्तमनम् (वि.) [ब० स०] निदाल, स्फूर्तिहीन / कौषीतकम् / (नपु०) एक ब्राह्मणग्रन्थ का नाम / | क्लेषित (वि०) [ क्लिद्+णिच् + क्त ] मलिम, दूषित / कौषीतकि | क्लिश्नस् (वि.) [ क्लिश्+ना+शतृ ] हटाता हुआ, कौस्तुभः [ कुस्तुभ+अण् ] घोड़े की गर्दन पर बालों का | दूर करता हुआ-मुद्रा० 3 / 20 / गुच्छा, अयाल। क्लिष्ट (वि०)[ क्लिश+क्त ] दुःखदायी, कष्टकर। ककरटः (पूं०) लवा, चंडूल (पक्षी)। क्लिष्टा (स्त्री०) पातञ्जल योगशास्त्र में बताई हुई चित्तकत्वर्थः [त० स०] यज्ञ के प्रयोजन को पूरा करने के लिए वृति का एक भेद / / साधनभूत सामग्री-मै० सं० 4 / 112 पर शा० भा०। | वाणः [ क्वण्-घिञ ] ध्वनि, स्वन / ऋतु फलम् [50 त०] यज्ञ का फल ! क्वथित (वि.) [ क्वथ् +क्त ] 1 उबाला हुआ 2. गर्म, कद् (म्वा० आ०) 1. घबरा जाना 2. दुःखी होना। ___ - तम् (नपुं०) मादक शराब / क्रप् (चुरा० पर०- क्रापयति) स्पष्ट रूप से बोलना। क्षणः, णम् [क्षण+अच् ] निर्णय, सङ्कल्प- गन्तुं भूमि क्रमः [ क्रम्+घञ्] 1. पग, कदम 2. पैर 3. गति, कृतक्षणाः-महा० 1164 / 51 / सम०-अर्धम् आधा चाल / सम० -भाविन् (वि०) उत्तरोत्तर, कमिक, मिनट,-भवादः बौद्धों का एक सिद्धान्त जिसके ---माला,-रेखा,--शिखा वेद पाठ करने की नाना अनुसार प्रत्येक वस्तु लगातार क्षीण होती रहती है, प्रणालियाँ,-- योगेन (अ.) नियमित ढंग से। .... वीर्यम् शुभ समय / क्रियमाणकम् [क+कर्मणि यक्+शानच्, स्वार्थे कन् ] | क्षणेपाकः | अलक समास ] एक मिनट में पकी हुई वस्तु / साहित्यिक निबन्ध- बृ० सं० 115 / क्षतास्रवम् [ 10 त० ] रुधिर, शोणित / क्रिया [ कृ+श, रिङ आदेशः, इयड ] संरचना, कर्म। क्षतिः (स्त्री) [ क्षग्+क्तिन् ] मृत्यु, निधन / सम..- अर्थ (वि.) 1. दैदिक निषेध जिसके द्वारा क्षत (पुं०) [क्षद्+तृच ] रक्षक। किसी कर्तव्य में लगने का निर्देश किया जाता है | क्षत्रविद्या, (-वेदः) युद्धकला, युद्धशास्त्र / 2. किसी कार्य के लिए उपयोगी--अपि क्रियार्थ | क्षमापनम [क्षमा-ना० धा०, णिच् + ल्युट ] क्षमा मुलभं समित्कुशम् - कु०५।३३, -श्रारम्भः पकाना. मांगना / मम-स्तोत्रम् क्षमा मांगते समय स्तुति--तन्त्रम् चार तन्त्रों में से एक / गान। क्रयावक्रीयन् (वि०) [क्रयविक्रय+इनि ] जो कम मूल्य | क्षम्य (वि.) [क्षमा+य] पृथ्वी में होने वाला, भीमिक, पर वस्तु खरीद कर अधिक मूल्य पर बेच देता है, पार्थिव (वेद०)। सौदा करने वाला। क्षारक्षत (वि०) [ त० स० ] यवक्षार से दुष्प्रभावित / क्रीडनकतया (अ.) [क्री+ल्युट, स्वार्थ कन्, तस्य भावः, क्षाराष्टकम् (नपु०) आयुर्वेदिक आठ द्रव्यों का संग्रह / तल ] किसी बात को खेल की वस्तु की भांति ग्रहण इसी प्रकार (क्षारषट्क, तथा क्षारपञ्चक) / करना - भाग० 5 / 26 / 32 / / क्षा (स्त्री०) 1. पृथ्वी, धरती 2. निद्रा, नींद / कोडा [क्रीड्+अ+टाप् ] 1. सगीत में एक प्रकार की क्षाणम् (नपुं०) जलना. जला हुआ स्थान / माप 2. खेल का मैदान / सम-परिच्छदः | मामेष्टिन्यायः (40) मीमांसा का एक नियम जिसके खिलौना। अनुसार निमित्त को दर्शाने वाले हेतुमत्कारण की रचना कीडितम् [ क्रीड्+क्त ] खेल / इस प्रकार की जाय जिससे कि इसमें नित्य या अनिकोषः [ऋष+घ ] 1. रहस्यपूर्ण अक्षर 'हुम्' : वायं परिस्थिति को दूर रक्खा जा सके--मी० सू० 'हम' 2. संवत्सरचक्र में 59 वा वर्ष ('क्रोधन' भी)। 6 / 4 / 17-21 पर बा० भा०। कोशः [क्रु+थ ] 48 मिनट का समय / क्षयतिथिः, (-अहः) सूर्योदय से न आरम्भ होने वाला कर (वि०) [कृत+रक, धातोः क्रू:] 1. कठोर, कड़ा | चान्द्र दिवस / 2. निर्दय 3. कर्कशध्वनि-ऋरक्वणकऋणानि-म०वी० | क्षयमासः [ष० त०] ('मलमास: भी) वह मास जिसमें 1 // 35 - रम् (नपुं०) उग्रता के साथ / सम० | दो संक्रान्तियां आ पड़ें, और जो किसी मंगल या -चरित (वि.) दारुण, भयानक / धार्मिक काल के लिए शुभ न माना जाता हो। कोरकान्ता (स्त्री०) पृथ्वी, धरती। क्षयोपशमः (पुं०) [ त० स० ] सक्रिय रहने या होने की कोडीक [ कोड+वि+कृ . तना० उभ० ] गले लगाना, इच्छा को सर्वथा नष्ट करने की जैनियों की संकल्पना / आलिङ्गन करना। | क्षितिः [क्षि+क्तिन् ] समृद्धि-क्षिते रोहः प्रवहः शश्वकौर (वि०) [क्रोड+अण] 1. सूबर से संबंध रखने देव-महा० 13176 / 10 / सम-समा परती की बाका 2. बराह अवतार से सम्बन्ध रखने वाला। भांति सहमशील-क्षितिक्षमा पूष्करसन्निभाक्षी-रा. For Private and Personal Use Only Page #1269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "उत्तरम् करका बाण ५,-स्पर्शः धरती छना (जैसे कि सद्यःप्रसूत / क्षीरस्थति (ना० धा. पर०) दूध की इच्छा करना बच्चे ने जन्म लेकर धरती छई),-स्पश पृथ्वी या --क्षीरस्यति माणवकः .. पा० 7151 पर म०भा०। धरती का वासी, भूमि पर रहने वाला। क्षु (क्रघा उभ.) कूदना, उछलना (स्वा० पर० भी) क्षीणता [क्षि+क्त+ तल स्त्रियां टाप् ] क्षय, कृशता तथा / -क्षणाति च क्षणीते च क्षणोत्याप्लवनेऽपि च / छन्दते बलहीनता की दशा। क्षुन्दते चापि षडाप्लवनवाचिनः इति भट्टमल्लः / क्षिप् (तु० उभ०) 1. शीघ्रता से चलना 2. मर जाना | क्षुद्र (वि.) [क्षुद्+रक्] 1. छोटा 2. सामान्य 3. तुच्छ ___3. (गणित) जोड़ना। 4. क्रूर 5. गरीब। सम० तातः पिता का भ्राता, क्षिप्त (वि.) [ क्षिप+ क्त ] 1. फेंका गया, बखेरा गया चाचा,- पदम् लम्बाई नापने का एक गज, - शार्दूल: 2. परित्यक्त 3. उपेक्षित / सम०-उत्तरम् ऐसा चौता। भाषण जो उत्तर के योग्य न हो, योनिः नीच जाति | क्षुद्रकः [ क्षुद्र-+-कन् ] 1. जो तिरस्कार करता है 2. एक में उत्पन्न / प्रकार का बाण / क्षिप्तिः | क्षिप्- क्तिन् ] रहस्य का भंडाफोड़ (नाटक में)। क्षोदः क्षुिद +घा ] 1. वृंद 2. लौंदा, टुकड़ा 3. गौणा। क्षिप्रनिश्चय (वि.) [ब० स०] जो शीघ्र ही निश्चय क्षुधाशान्तिः / भूख शान्त करना। कर लेता है -- आयत्यां गुणदोषज्ञस्तदात्त्वे क्षिप्रनिश्चयः | क्षुदशान्तिः / ---मनु० 7.179 / | चन्द (म्वा० आ०) कुदना (दे० 'क्षु' भी)। क्षिप्रसन्धिः (पु०) एक प्रकार की संधि जो दो सहवर्ती क्षुरनक्षत्रम् (नपुं०) जो क्षौरकर्म, या हजामत बनवाने के स्वरों में से पहले को अर्धस्वर में बदल कर हो| लिए शुभनक्षत्र हो। सकती है। क्षेत्रलिप्ता (स्त्री०)[ष० त०] क्रान्तिवत्त की कला। क्षेपणिकः क्षेपण --ठा ] मल्लाह, नाविक / क्षेत्रांशः [प० त०] कान्तिवृत्त का अंश या घात / क्षीरः,(-रम) [ घस्+ईग्न, उपधालोपः घस्य ककारः | | क्षेमेन्द्रः (पुं०.) बृहत्कथामंजरी का प्रणेता एक कश्मीरी पत्वं च] 1. दूध 2. रस 3. पानी। सम०-- उत्तरा ___ कवि। जमाया हुआ दूध,-- थम् ताजा मक्खन,-कुण्डलम् | क्षौद्रक्यम् [क्षुद्रक+ध्या ] सूक्ष्मता / दुग्धपात्र---कथा० ६३।१८८,-प्रतम् प्रतिज्ञा के फल- | क्षौरपव्यम् (नपुं०) मजबूती से बनाया गया भवन / स्वरूप केवल दूध पीकर निर्वाह करना। / क्षमावलयः [ष० त०] क्षितिज / खसूचिः (पु०, स्त्री०) 1. तिरस्कारसूचक अभिख्या | खण्डितनत (वि०) [ब० स०] जिसने अपनी प्रतिज्ञा "(समासान्त में) जैसा कि 'वैयाकरणखसूचिः' (बुरा तोड़ दी है। वैयाकरण--जो अपने ज्ञान को भूल गया)। खण्डिन् (वि.) [खण्ड+इनि ] एक प्रकार की दाल, खजिका (स्त्री०) भूख लगाने वाली औषधि / पीले मुंग। खट्टकः (पु.) [खट्ट+अच्, स्वार्थे कन् ] खाट, आसन। खमीरः (पु०) दे० खण्डिन्' / / खड्गः [खड्-गन् ] तलवार / सम-धारा तलवार खतमालः (पु०) 1. धूआं 2. बादल / का फला,---धारावतम् अत्यन्त कठिन कार्य,-विद्या खनिका [खन्+इन्, स्वार्थे कन्, स्त्रियां टाप] पोखर, ताल / तलवार चलाने की कला। खरः [ख+रा+क] 1. गधा, खच्चर 2. उदग्र, कठोर खण्ड (वि.) [खण्ड+घा ] 1. टूटा हुआ, फटा हुआ 3. तीक्ष्ण, तेज़ 4. सघन 5. क्रूर 6. 60 वर्ष के चक्र 2. दूषित - गडः,--ण्डम् महाद्वीप, महादेश। सम० में पच्चीसवां वर्ष। सम-कण्डयनम, बुराई को ---इन्दुः दूज का चाँद-खण्डेन्दुकृतशेखरम् (शिवम्) और अधिक करना,-गेहम् तम्ब,-वर्मा (वि.) -- वेदपा०,-तालः संगीत शास्त्र में माप / मगरमच्छ,.. वृषभ (वि.) गधा, जडबुद्धि,-सारम् खण्डनखण्डखाद्यम् (नपुं०) हर्षकृत एक वेदान्त शास्त्र लोहा,-स्पर्श (वि०) गर्म, प्रचण्ड (आँधी, मक्कड़) का ग्रन्थ / -वाय तिखरस्पर्शः - भाग० 214116 / लपिकोपाध्यायः (पुं०) क्षुब्ध अध्यापक, उत्तेजित अध्यापक | खरक (वि०) जिसकी सतह खुरदरी हो ऐसा (मोती) ---खण्डिकोपाध्यायः शिष्याय चपेटिकां ददाति --पा० -को० अ० 2011 / / 1111 पर म० भा०। खरोष्ठी (स्त्री.) एक प्रकार की वर्णमाला। For Private and Personal Use Only Page #1270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यक्त होती है। भीमसेन प्रमथितानाभ 1. ( 1261 ) खजूरिका (स्त्री०) एक प्रकार की मिठाई। खल्वः (पुं०) फली, बाल / खडूरम् (नपु०) नारियल की गिरी, गोला, खोपा। खा [खर्व +ड-टाप् ] 1. पार्वती 2. धरती 3. लक्ष्मी खमम् (नपुं०) 1. रेशम 2. शौर्य 3. कठोरता / 4. वक्तृता-खोमा क्षमा कमला च गी:- एकार्थः / खवंटः [खर्व-+-अटन् ] एक इस प्रकार की बस्ती जो पर्वत | खानपानम् (नपुं०) खाना पीना। की तलहटी या नदी के किनारे बसी हो और जिसके खानोदकः (पु०) नारियल का पेड़। निवासियों का व्यवसाय प्रायः वणिजव्यापार हो। खुरशाल: (पुं०) खुरशाल देश में उत्पन्न एक उत्तम नस्ल यह गाँव और नगर के बीच की बस्ती के लक्षणों से का घोड़ा--गालि० 107 / खेखोरकः (पुं०) खोखला बाँस / खर्वाट दे० 'खल्वाट' भीमसेन प्रमथितार्योधनवरूथिनी, खेचरी (स्त्री०) एक प्रकार की योगसिद्धि जिसके द्वारा शिखा खर्वाटकस्येव कर्णमूलमुपागता नाभ। योगी आकाश में उड़ सके--एवं सखीभिरुक्ताहं खेचखवित (वि.) [खर्व+इतच ] जो बौना बन गया हो। रीसिद्धिलोलपा कथा०२०११०५ / खर्वेतर (वि.) [त० स०] जो नगण्य न हो, जो छोटा | खेटः | खिट् +अच, खे अटति -- अट्+अच् ] प्राम, न हो। गाँव। खलिन् (वि.) [खल-+इनि] खल से युक्त, तलछट | खोरकः (पुं०) किसी जानवर के खुर में होने वाला वाला, लो (पुं०) शिव / विशेष रोग। सलीकृत (वि.) [खल+च्चि++क्त ] अपमानित | स्यातिः (स्त्री०) [ख्या+क्तिन् ] दर्शनशास्त्र का एक -ब्राह्मणस्त्वया खलीकृत:---नाग०३। सिद्धान्त-विकल्प: ख्यातिवादिनाम ---भाग० 1 // ललिशः एक प्रकार की मछली। 16 / 24 / खल्लिशः गः [ग+क] 1. शिव 2. विष्णु -गः प्रीताभवः श्रीपति- | गजिन् (वि०) [गज+इनि ] गजारोही, हाथी की सवारी रुत्तम:-एकार्थ करने वाला। गगनम् [ गच्छत्यस्मिन् गम् + ल्युट, ग आदेशः ] 1. आकाश, गड्डुकः [= गडुक, पृषो०] 1. तकिया 2. एक प्रकार का अन्तरिक्ष 2. शुन्य 3. स्वर्ग / सम० रोमन्थः असङ्गति, जलपात्र / व्यर्थ पदार्थ, लिह. (वि०) आकाश तक पहुंचने वाला | गणः [गण+अच् ] 1. समूह, संग्रह, समुदाय, रेवड़, लहंडा - दे० अभंलिह। 2. श्रेणी 3. शिव के अनुचर, जिनका अधीक्षक गणेश गङ्गासप्तमी (स्त्री०) वैशाख मास के शुक्ल पक्ष का सातवाँ है, उपदेव 4. समाज 5. मण्डल 6, जाति / सम० --रत्नमहोदधिः व्याकरणगत गणों पर वर्धमान कृत गजः [गज+अच ] 1. हाथी 2. आठ की सख्या 3. लम्बाई एक ग्रन्थ,--वल्लभः सेनापति-रा०२।८।१२। नापने का गज 4. एक राक्षस जिसे शिव जी ने मार | गणनपत्रिका संगणक, जिसमें विशेष प्रकार के शोधित अङ्गों दिया था। सम० गणिका हथिनी जिसका प्रयोग ___ की सारणी दी हुई होती है-राज० 6 // 36 // जंगली हाथी को पकड़ने के लिए किया जाता है स्व- गणितम् [गण्+क्त ] व्यवहार- वेत्तुमर्हति राजेन्द्र स्वातनुवितरणेन तं प्रलोम्य द्विपमिव वन्यमिहोपनेतुकामा ध्यायगणितं महत् महा० 12162 / 9 / सखि गजगणिकेव चेष्टितासि-जानकी० 1652, गण्यमानम् [गण्+यक+शानच् ] किसी रचना या निर्माण .- गौरीव्रतम् भाद्रपद मास में स्त्रियों द्वारा मनाया की सापेक्ष ऊँचाई। जाने वाला व्रत, निमोलिका किसी वस्तु की ओर | गण्डः [गण्ड+अच् ] 1. गाल 2. हाथी की कनपटी 3. बुलझूठ-मूठ देखना, जानबूझ कर न देखना,-पुष्पी एक बुला 4. फोड़ा, रसौली 5. जोड़, गांठ / सम-कृपः लता का नाम- गजपुष्पीमिमां फुल्लामुत्पाटप शुभ- पहाड़ की सतह, अधित्यका,-भेवः चोर--गण्डभेदलक्षणाम् ... रा० 4 / 12 / 39, --- बन्धः 1. थूड़ी जिससे दास्याः शीलं जानन्नपि अवि०२। हाथी बांधा जाता है 3. एक प्रकार की संभोग मुद्रा | गण्डकः[गण्ड+ऊषन् ] एक प्रकार की शराव / 3. जंमली हाथी को पकड़ने की प्रकिया- नाना.। / गत (वि.) [गम् + क्त] 1. गया हुआ, वीता हुआ 2. मत, For Private and Personal Use Only Page #1271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1262 ) 3. ज्ञात / सम०..आगतम् (गतागतम्) [द० स०] दूध आदि,-व्यम् (नपु०) गवामयनम् नाम का एक भूत और भविष्यत् (का वर्णन)-वंशस्यास्य गता- श्रौत यज्ञ---'गवामयनं ब्रूमः -मै० सं० 8 / 1 / 18 पर शा० भा०। - श्रमः (वि.) जो अपनी थकावट का ध्यान नहीं गहन (वि.) [गह, ल्युट्] 1. गहरा, सघन, घिनका करता है। 2. समझने में कठिन 3. ऐसा स्थान जो पार न किया गतिमत् (वि.) [गति- मत्प] उपायज्ञ, तरकीब या जा सके। रीति का जानकार -- महा० 1212867 / | गहरो [गह्वर + ङीष् ] पृथ्वी। गत्वर (वि.) [गम् + क्वरम्, अनुनासिकलोपः, तुक् च ] | गहरित (वि.) [गह्वर+इतच् ] लीन, मग्न-याज तेज चलने वाला, - त्वरः (0) एक प्रकार का घोड़ा। सेन्या वचः श्रुत्वा कृष्णो गह्वरितोऽभवत्-महा० / गदः [ गद्+अच् ] 1. कृष्ण के भाई का नाम 2. कुबेर, 68 / 45 / 3. शस्त्रास्त्र, हथियार--आयुधे धनदे रोगे पुंसि कृष्णा | गाय (वि.) [गङ्गा ढक] गङ्गा में, गङ्गा पर, या नजेऽपि च नाना० / / गङ्गा से उत्पन्न होने वाला,--यः भीष्म,--यम् गविः (स्त्री०.) [ गद् +5] व्याख्यान, वक्तृता -एवं गदिः 1. सोना 2. मोथा घास / कर्मगतिविसर्गः भाग० 11112 // 19 // गन्धः [ गन्ध +अच् ] 1. गुणों में समानता, सम्बन्ध, बन्धुता कृत अधिक गहनता से / 2. गन्धक 3. चन्दन चूरा 4. पड़ोसी / सम० हस्तिन् | गाढवचस् (पुं०) [ब० स०] मेंढक / हाथी जिसकी मधुर गन्ध इधर-उधर फैलती है, वह गाढावटी (स्त्री०) एक प्रकार की भारतीय शतरंज। गणों में उत्तम हाथी माना जाता है। गाणनिक्यम् [ गणनिक+ध्या 1 लेखाकार का कार्य गन्धकपेषिका (वि०) [10 त०] सेविका जो गन्ध द्रव्य / --अक्षपटले गाणनिक्याधिकार:-को० अ० 27 / और चन्दन पीस कर तैयार करती है। गाण्डी (स्त्री०) गंडा। गन्धि (वि.) [गन्ध-15] केवल नामधारी, बहाना करने गावचेष्टनम् (नपुं०) आकर्षी संवेदन / वाला गाऽपि त्वया हतस्तात रिपुणा भ्रातगन्धिना | गात्रिका (स्त्री०) चोली। -रा० 7 // 24 // 29 // गान्धर्वकला, विद्या, संगीत की ललित कला, संगीत का गन्धर्वतलम् (नपुं०) [ति० स०] एरण्ड का तेल / --वेदः,--शास्त्रम सिद्धान्त, संगीतविज्ञान / ग (गा) धारः (0) 1. संगीत में तीसरा स्वर, एक गान्धारी [ गान्धारस्यापत्यं इन ] 1. एक प्रकार का विशेष प्रकार का राग / मादक द्रव्य 2. बाई आँख की शिरा / गमनम् [ गम् + ल्युट ] जानना, समझना नाजः स्वरूप- गान्धारीग्रामः (पु०) एक प्रकार का संगीतमान / गमने प्रभवन्ति भूम्नः--भाग०८1७१३४। गाम्भीर्यम् [गम्भीर+व्या ] 1. मर्यादा 2. उदारता गर्गसंहिता (स्त्री०) गर्ग द्वारा प्रणीत एक ज्योतिष का 3. संतुलन / ग्रन्थ / गार्जरः (प.) गाजर / गर्जरम् (नपुं०) एक प्रकार का घास / गाह कमेधिकाः [गृहकमेधिन्+ठक] गृहस्थ के धर्म, गर्भः [गृ+भन् ] 1. गर्भाशय, पेट 2. भ्रूण, कलल 3. अग्नि गृहस्थ के कर्तव्य / 4. आहार। सम० -ग्राहिका (स्त्री०) धात्री, दाई। (गिरा) (स्त्री०) [ग-+क्विप टाप वा] 1. बुद्धि कथा० 34, -- म्यासः आधार रखना, नींव डालना -दे० गिर्धी:---- एकार्थ० 2. सुना हुआ ज्ञान गिरा .....भाजनम् नींव का गड्ढा,--संभवः गर्भाशय से जन्म वाऽशंसामि तपसा ह्यनन्ती-महा० 11357 (टीका)। होना। गिरा [ग+क्विप् टाप वा ] स्तुति (धेद०)। गभिका ( स्त्री० ) किसी प्रकार के मल या संदूषण गिरित्रः [ गिरि+त्रल ] शिव--भाग० 86 / 15 / अन्तःप्रवेश। गिरिधातुः (पुं०) गेरू। गर्भदृप्तः / (वि०) [ सप्तमी अलुक् समास ] कायर, मन्द- गिलत् (वि.) [ गिल+शतृ ] निगलने वाला--गिलन्त्य गर्भशूर बुद्धि, जड / व चाङ्गानि- भाग०१०११३१३१ / गलः [गल+अच्] 1. एक प्रकार की मछली 2. एक गीतगोविन्दम् (नपुं०) जयदेव निर्मित एक गीतिकाव्य / प्रकार की घास। गीतबन्धनम् (नपुं०) संगीत के सस्वर पाठ के उपयुक्त गलः (0) [गल+उण ] एक प्रकार का रन / एक महाकाव्य / गवामपः (पु.) एक वर्ष तक रहने वाला सत्रयाग। गीतमोदिन (पु.) किन्नर / गव्य (वि.) [गो+यत् ] गाय से मिलने वाला पदार्थ, घी, गोतिः [गै+क्तिन् ] एक गेय साम / For Private and Personal Use Only Page #1272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1263 ) गुटिकास्त्रम् (नपुं०) 'Y' के आकार की एक यष्टिका | गलिकः (पुं०) 1. एक उपग्रह (शनि का पुत्र) जो केरल जिसके साथ एक डोरी बंधी होती है, इससे पक्षियों ] देश में माना जाता है 2. विष से बुझा तीर 3. दिग्गज पर पत्थर के टकड़े फेंके जाते हैं इसका नाम है --गुलिको मन्दतनये रसबद्धास्त्रदेशयोः, दिडनागे "गोफिया"। -- नाना० / सम०-काल: प्रतिदिन का वह समय जो गुटिकायन्त्रम् (नपुं०) बन्दूक, नलिका। अशुभ माना जाता है। गुगः [गुड्+अच् ] गोली, बटिका-शाङ्ग० 13 / 1 / पुलिका (स्त्री०) गोली-एकाऽपि गुलिका तत्र नलिका गुणः [गुण+अच् ] 1. किसी वस्तु की विशेषता चाहे | यन्त्रनिर्गता--शिव०।। अच्छी हो या बुरी 2. धागा, डोरी 3. शरीर के गुल्म: [ गुड़+मक, डस्य लः ] 1. युद्धशिविर 2. सैनिक(सत्त्व, रज तथा तम) धर्म। सम० कल्पना किसी तंबू / सम०-कुष्ठम् एक प्रकार का कोढ़। बाक्य का अर्थ करते समय आलङ्कारिक भावना को | गहा (वि.) [ गुह+यत् ] 1. छिपाने के योग्य 2. रहस्य, सङ्केत करना, कारः (गणित) गुणक, गुणा करने -ह्यम् (नपुं०) गुप्त स्थान---मैथुनं सततं घऱ्या वाला,--गौरी अपने उत्तम गणों से देदीप्यमान ___ गुह्ये चैव समाचरेत्-महा० 12 // 193 / 17 / सम० महिला.....अनृतगिरं गुणगौरि मा कृथा माम्--शि०, -विद्या गुप्त रूप से ... और लोगों से गुप्त रख कर ---भावः किसी अन्य बस्तु की तुलना में गौण पद --गुरुमंत्र की दीक्षा देना. अथवा अभ्यास कराना / ----परार्थता हि गणभाव:--मे० सं० 4 / 3 / 1 पर शा० गूढ (वि.) [गुह+क्त] 1. गुप्त, छिपा हुआ 2. आच्छाभा०,-बावः 1. गौण अर्थ को सूचित करने वाली दित 3. अदृश्य 4. रहस्य, - हुम् (नपुं०) एक शब्दाउक्ति 2. अन्य तर्कों का विरोध करने वाली उक्ति, लंकार / सम० अर्य (वि०) आन्तर अर्थ रखने -~-विभाग (वि.) [ब० स०] पदार्थ के अन्य पह वाला, आलेख्यम् कूटलेख,-को० अ० 1112 / लुओं में से किसी विशेषता को पृथक् करके दर्शाने गृत्समदः (0) एक वैदिक ऋषि का नाम (इसका वाला, विशेष: विशेष लक्षण, भिन्न प्रकार की पुराणों में भी उल्लेख है)। विशेषता, विशेषाः बाहरी ज्ञानेन्द्रियाँ, मन और | गृद्ध (वि.) [ ग+क्त ] इच्छुक, लालायित, उत्सुक, अहंकार गुणविशेषाः बालेन्द्रियमनोऽहङ्काराश्च - किसी वस्तु को अत्यन्त चाहने वाला-- गृद्धां वाससि -सां० का० 36, संग्रहः अच्छे गुणों का एक संभ्रान्तां महा० 1172 / 6 / त्रीकरण। गुद्धिन् (वि०) [गृद्ध - इन् ] दे० 'गृद्ध'। गुदनिर्गमः [ 10 त० ] अर्शादि रोग के कारण काँच बाहर गृद्धच (वि०) [ गृथ्-यत् ] जिसे उत्सुकता पूर्वक बहुत निकल आना। चाहा जाय, जिसके लिए प्रबल लालसा की जाय / गुप्तगृहम् (नपुं) शयनकक्ष, शयनागार / गृह, (चुरा० आ०) स्वीकार करना, प्राप्त करना, ग्रहण गुप्तधनम् (नपुं०) [ कर्म० स०] छिपा हुआ धन / करना, लेना, मिलाना, लीन करना। गुमटी (स्त्री०) अवगुण्ठनवती महिला, बुर्के वाली स्त्री।। गहम् [ग्रह+क] 1. घर, आवास, भवन 2. पत्नी गुरु (वि.) [ गृ+कु, उत्वम् ] 1. भारी (विप. लघु) 3. गृहस्थ जीवन 4. जन्मकुंडली का घर 5. (शतरंज 2. बड़ा 3. लम्बा 4. कठिन 5. आदरणीय 6. शक्ति- आदि खेल का) घर। सम० आरम्भः घर का शाली,-ह: (पुं०) 1. पिता, प्रपिता, पितामह, पूर्वज निर्माण,-ईश्वरी घर की स्वामिनी, गृहिणी,-चेतस्, 2. सम्माननीय महापुरुष 3. शिक्षक, अध्यापक -सक्त (वि.) अपने घर की याद करने वाला, 4. स्वामी 5. बृहस्पति / सम--उपदेशः 1. अध्यापक जिसका मन अपने घर की ओर ही लगा हो,-दारुः द्वारा दीक्षा 2. शिक्षकों या बड़ों द्वारा दी गई नसीहत, (नपुं०) घर में लगा खम्बा, स्तम्भ-- नरपतिबले .--कण्ठः मोर, - कुलम् 1. गुरु का वासस्थान पाश्र्वायाते स्थितं गृहदारुवत् --महा० 413, --पतिः सावास विद्यापीठ जहाँ अध्यापक और छात्र मिल कर 1. घर का स्वामी 2. गृहस्थ 3. गाँव का मुखिया रहें,-कुलवास: गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना, -~-मृच्छ० २,---पिण्डी भौंरा, भूगर्भ,-पोतक: भवन -गहम् 1. शिक्षक का घर 2. बृहस्पति का घर (जन्म- बनाने के लिए संकेतित स्थान,-पोषणम् गृहस्थ का पत्रिका में),---भावः महत्त्व, गुरुत्व, -ब!घ्नः नींब, निर्वाह,-मार्जनी 1. घर को झाड़ से साफ़ करने गलगल,--वर्तिता बड़ों के प्रति सम्मान भाव प्रदर्शित | बाली 2. बुहारी की मूठ,-शायिन् (पुं०) कबूतर / करना निवेद्य गुरवे राज्यं भजिष्ये गुरुवतितां-रा० ग्रहकम् [ गृह+कन् ] घर का बगीचा, बाटिका / .20115 / 19, ... श्रुतिः गायत्रीमंत्र-जपमानो गुरु- गद्य (वि०) [गृह+क्यप् ] 1. घरेलू 2. पालतू 3. प्रसं श्रुतिम् .. महा० १३१३६६,-स्वम् शिक्षक का धन, लक्ष्य, प्रत्यक्षशेय-श्वेता० 1111, गद्यम् (नपुं०) संपत्ति। घरेल काम, गृहस्थ का यज्ञीय अनुष्ठान / सम. 159 - For Private and Personal Use Only Page #1273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1264 ) -सत्रम् सूत्रों का संकलन जिसमें गृह्य यज्ञों के ] गौरी गौर+की 11. एक नागकन्या 2. एक नदी का विधान का वर्णन है जैसे कि आपस्तम्बगृह्यसूत्र या| नाम 3. रात 4. पार्वती। सम०-- पूजा माघ मास बोधायन गृह्यसूत्र / के शुक्लपक्ष के चौथे दिन मनाया जाने वाला पर्व। गातुः [गै+तुन् ] 1. गीत 2. गायक 3. मधुमक्खी / गौाक (वि.) [गुह्मक+अण् ] गाकों से संबंध रखने गायः (बेद०) गीत (समास में प्रयुक्त होने पर इसका वाला। अर्थ है 'स्तुति के योग्य' 'स्तुत्य' जैसा कि 'उक- प्रन्थिः [ग्रन्थ्+-इन् ] 1. पुस्तक का कठिन स्थल-ग्रन्थगाय' में)। ग्रन्थिं तदा चक्रे मुनिर्गुढं कुतूहलात्-महा० 111380 गो (पुं०, स्त्री०) [गम्+डो] 1. पशु 2. गौ 3. कोई 2. घण्टी, जंग-कथा०६५।१३५ / सम० -वनकः भी पदार्थ जो गो से प्राप्त हो 4. आकाश 5. इन्द्र का एक प्रकार का फौलाद, इस्पात / वज्र 6. प्रकाश, किरण 7. हीरा 8. स्वर्ग 9. बाण / ग्रन्थिकः [ अन्थि+के+क] बांस का अंकुर / सम० --ग्रहणम् गौएँ पकड़ना, गौएँ चुराना,-चर्या ग्रन्थिकम् (नपुं०) 1. पीपलामूल 2. गुग्गुल / पशु की भांति केवल अपना भौतिक सुख खोजना पासप्रमाणम् [अस्+घञ -ग्रासस्य प्रमाणम् --10 -जिलिका काकलक, काग,-जीव (वि.) गोदुग्ध त०] एक ग्रास का माप / का व्यवसाय करने वाला, घोसी,-पथः अथर्ववेद का प्रहः / ग्रह, +अच् ] 1. युद्ध की तैयारी 2. अतिथि-यथा एक ब्राह्मण, --पर्वतम् उस पहाड़ का नाम जहाँ सिद्धस्य चान्नस्य ग्रहायानं प्रदीयते--महा 13 / 100 / पाणिनि ने तपस्या की थी - अरुणा०, उत्त०२।६८, 6 / सम०.-अप्रेसरः चन्द्रमा,-कुण्डलिका,-बक्रम, -----मण्डीरः एक जल पक्षी,-मध्यमध्य (वि.) छर .- स्थितिः जन्मकुण्डली, किसी भी समय ग्रहों की हरा, पतली कमर वाला,-मत्रक: वैदूर्य नामक मणि, बताई हुई दशा,-गणितम् फलित ज्योतिष का गणित - मूत्रकम् गदायुद्ध में पैतराबदल चाल-महा० भाग,-ग्रामणी सूर्य,-चारनिबन्धः ज्योतिष के एक ९।५८।२३,-लोभिका सफ़ेद दूब,-बरम् गाय के ग्रन्थ का नाम,--- लाधवम् ज्योतिष के एक ग्रन्थ का गोबर का चूरा,-विषाणिक: गाय के सींग से निर्मित नाम,-स्वरः संगीत गान का पहला स्वर / एक संगीत उपकरण (इसे 'शृंग' भी कहते हैं) ग्रहणीकपाटः [प० त०] अतिसार की औषधि / -महा० 6 / 44 / 4, सावित्री गायत्रीमंत्र,-हरणम् प्राहः [ग्रह +घञ ] 1. मठ 2. लकवा / दे० 'गोग्रहणम्'। प्राह्यम् [ग्रह+ण्यत् ज्ञानेन्द्रियों द्वारा संकल्पना का विषय / गोम् (चुरा० पर०) गोबर से लीपना, गोबरी फेरना। / ग्राह्यः [ग्रह+ण्यत् ] एक ग्रस्त ग्रह / गोमत (वेद०) गो+मतुप् ] गौओं से समृद्ध स्थान। प्रामः [ग्रस्+मन, आदन्तादेशः] 1. गाँव, पल्ली 2. वंश, गोमयंपायसीयन्यायः (पुं०) एक ही स्रोत से उत्पन्न दो समुदाय 1. समुच्चय, संग्रह। सम-कायस्थः वस्तुओं के गुणों की भिन्नता-जैसे, दूध और गोबर। ग्रामीण लिपिक, -गाक: गांव का बढ़ई,-णीः (पुं०) गोमिन [गोम् +णिनि] वैश्य-गोमिनः कारयेत्करम सूर्य के अनुचरों का नेता, उपदेवता,-धर्मः गाँव की -महा० 1218735 / प्रथा,रीतिरिवाज,-धान्यम् / गाँव में उत्पन्न अन्न, गोजिकाणः (0) एक प्रकार का घोड़ा ('गोजिकण' पुरुषः गांव का मुखिया, -- विशेषः संगीत का नामक स्थान में पैदा होने के कारण यह नाम पड़ा)। विशिष्ट स्वर--स्फुटीभवग्रामविशेषमर्छना-शि०, गोजी (स्त्री०) नासापट, नासिका के बीच का पर्दा / - वृद्धः गांव का बड़ा बूढ़ा- प्राप्यावन्तीनुदयनकथागोणः[गुण+घा बैल / कोविदग्रामवृद्धान - मेघ०३०। गोणी गोण + डीप गाय / ग्राम्यवादिन (प.) गांव का आसेधक, गांव की ओर से गोलकीग (स्त्री०) गेंद से खेलना, गेंद का खेल। बोलने वाला ते सं० 2 / 3 / 10 / गोलबीपिका ज्योतिष के एक ग्रन्थ का नाम / ग्रामेकम् (नपुं०) चन्दन का एक भेद / गोलशास्त्रम् (नपुं०) 1. भूगोल 2. गणित ज्योतिष / पीष्म (वि०) [प्रस+मनिन् ] गर्म, उष्ण। ग्रीष्मः गोच्यः मैनाक पर्वत / (पुं०) ग्रीष्म ऋतु। सम०---बनम् उपत्रन या गौरपाकः 'अद्वैतवाद' पर लिखने वाला प्रसिद्ध लेखक / वाटिका जो ग्रीष्म ऋतु का विश्राम स्थल हो-कथा. गौरमालवः (पुं०) संगीतशास्त्र के एक राग का नाम / १२२२६५,-हासम् गुम्फमय बीज जो ग्रीष्मतुं में हवा गौधारः,-धेयः,-धेरः (पुं०) गोह (जो प्रायः वृक्षों की में इधर उधर उड़ते हैं। दरारों में पाई जाती है। ग्लपनम् [ग्ल-णि+ल्युट,पुक ह्रस्वश्च ] 1. मुर्माना गौराक: बि.स.11 शिव 2. श्री चैतन्य देव, सन्त कुम्हलाना 2. विश्राम करना-सान्द्रोद्यानदुमाग्रग्लपनऔर गायक। पिशुनितात्यन्ततीवाभिताप:--रत्ना० 4 / 14 / For Private and Personal Use Only Page #1274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1265 ) ग्लपित (वि.) [ ग्लै+णिच्+क्त, पुष, ह्रस्वरच ] 64, रघु० 16 // 38 2. टुकड़े टुकड़े किया हुआ 1. क्लान्त, हलसा हुआ, छितराया हुआ-कि.१४ / -लाङ्गलग्लपितग्रीवाः-रा०७७/४७। . घटः [ घट - अच् ] 1. सिर-समाधिभेदे ना शिरः कूट- | धनता, घन+तल+त्व ] 1. सघनता, सटा होना कटेषु च-मेदिनी०, महा० 16155138 2. मिट्टी | घनत्वम् 2. दृढ़ता, सपना / का जलपात्र. 3. कुम्भ राशि। सम० उबरः गणेश | घर्धरः (पु.) [+यक-लुक+अच् ] मन्दिर का एक का नाम, कम्युकि (नपुं०) तान्त्रिक और शाक्तों। विशेष प्रकार का निर्माण की एक रस्म (इसमें विभिन्न महिलाओं की चोलियां धर्म (वि.)[+मक, नि. गणः गर्म,-मः (40) एक घड़े में डाल दी जाती हैं और फिर उपस्थित 1. गर्मी 2, ग्रीष्म ऋतु 3. पसीना 4. प्रवग्यं संस्कार महानुभावों में से प्रत्येक एक एक चौली निकालता है, 5. एक देवता का नाम-धर्मः स्यादातपे ग्रीष्मे तथा जिस महिला की वह बोली होती है, उसके साथ। प्रवर्य देवतान्तरे। सम.-आतिः पसीने से उत्पन्न उस पुरुष को संभोग करने की अनुमति है)-योनिः, जीव, दे० 'स्वेदज'। ---भवः, जम्मा अगस्त्य मुनि / घर्षणालः [घर्षण+आलच् ] पीसने वाला, बट्टा, लोढी / घटा [घट् भावे अड, स्त्रियां टाप ] लोहे की प्लेट जिस | | पाटणम् [ षट्+णिच् + ल्युट ] घटखनी, कुडा। पर आघात करके समय की सूचना दी जाती है। / | पातः[हन्+णि+पज ] हण्टर लगाना कोशाधिष्ठिबटिकामपलम् (नपुं०) विषुवत्त / तस्य कोशावच्छेदे घात:-की० अ० 2 / 5 / सम० घटिकायन्त्रम् (नपुं०) घंटा। -च्छिम् (नपुं०) एक प्रकार का मुत्ररोग, दिवसः घटीयन्त्रम् (नपुं०) 1. रहट, पानी निकालने का यन्त्र अशुभ दिन, जन्मनक्षत्र से सातवा नक्षत्र / 2. अनिमार-..भाव० 7.16 / 24 / | घुणक्षत, [घुण+क=धुण+क्षण (अद्) (भुज) + क्त] पढित (वि.) [घट्ट+क्त] 1. मण्डयुक्त, कलफदार घुणजम्प, कीड़े से खाया हुआ, घुण लगा हुआ-श्रीनिर्मित - पञ्च० 63 2. दबाया हुआ, भाचा हुआ, बुणभुक्ताप्राप्तषणक्षतेकवर्णोपमावाच्यमलं ममार्ज-शि० पीसा हुआ। 358 / घण्टाकर्णः (पुं०) 1. गिव का एक गण 2. एक राक्षस | धुमधुमित (वि.) [घुमघुम+इतच् ] सुगन्धित, सुरभित, का नाम। | खुशबूदार। अष्टारकः (पुं०) {प० त०] 1. घण्टे की आवाज - को दिढोरा पीट कर सबको अन्नदान दण्डघण्टारवः-हनु. 2. मण की एक जाति -घण्टा- - करना मनु० 4 / 209 / * रवः गणसुमे घण्टानादे....'नाना। घृत (वि.) [घ+क्त] 1. छिड़का हुआ 2. चमकीला, पष्टिका (स्त्री०) [घण्ट+बुल, इत्वम् / काग, काकल, सम् (नपुं०) 1. धी 2. मक्खन 3. शराब मधुउपजिह्वा। च्यतो घृतपक्ता महा० 292 / 15 / सम० -- मक्त घण्टासः [घण्ट्+बालच ] हाथी मूक्ति० 5 / 6 / (वि.) घी से चुपड़ा हमा, घी से युक्त,-गन्धः पष्टिक: [घण्ट+ठ घड़ियाल, मगरमच्छ / घोगों का एक भेद जिसमें घी की सुगन्ध आती है, धन (वि.) [हन् मूता अप, धनादेशश्च] 1. सपन, प्राशनम् पी पीना - प्लुत (वि.) पी से दर, ठोस 2. मोटा, मटा हुआ 3. पूर्ण विकसित | चुपड़ा हुआ,-हेतुः मक्खन / 4. गहरा 5. निर्वाध 6. स्थायी 7. पूर्ण+धमः (पुं०) धूणा [+नक्] शर्म की भावना। 1. बादल 2. लोहे की गदा 3. शरीर 4. समुच्चय | घृणिन् [षण+इनि] लज्जाल, शर्मीला। 5. वेद का सम्वर पाठविशेष, धनम् (नपुं०) 1. घंटा, घोणा [घण+अ+टाप्] 1. (उल्लकी) चोंच 2. (रय जंग 2. लोहा 3. खाल, वल्कल। सम-रू में) पहिये की नाभि / मोटी जंघाओं से युक्त महिला --फर धनार पदानि | घोषः। षषष ] सस्वर पाठ, मन्त्रोचा ण-शुश्राव शनैः शनैः-देणी. १२०,-साम (वि.) हयोड़े ब्रह्मपोषांश्च विरात्रे ब्रह्मरक्षसाम् रा० 5 / सम. के आषात के उपयुक्त-भाव. हार।५३,---मानम् -यात्रा सामूहिक रूप से गोपालों के स्थान पर किसी रचना या निर्माणका बाहरी माप,-संपत्तिः . जाना, सामूहिक तीर्थ यात्रा, बर्ष घोष प्रयत्न वाला कड़ी गोपनीयता। अक्षर, स्वर्ण युक्त या निनादी मकरः, परः प्रामीण For Private and Personal Use Only Page #1275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1266 ) पाले-हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान्-रघु. / प्राण (वि०) [प्रा+क्त ] सूधा हुआ, --:-गम् 1. गन्ध 2. गन्ध आना 3: नाक। स०-पुट: नथुना, प्रस्, प्रेसः (वेद०) [ घंस्+विप्, अच् वा] सूर्य की | -कन्यः नाक बजाना, सिनकना / गर्मी, चिलचिलाती धूप / चकोरा-मन (वि.) [20 स०] चकोर जैसी आँखों | 2. कपूर 3. मोर की पूंछ का चन्दा 4. पानी। सम० बाला, सुन्दर आँखों वाला-अनुचकार चकोरदृशा ---कला एक प्रकार का ढोल,-पुल्या एक नदी का यतः-शि०६४८ नाम,-प्रशक्तिः (स्त्री०) जैनियों का छठा उपाङ्ग, पक्रम [क्रियते अनेन, कृपाक, निदित्वम 11. गाडी -- प्रासावः चबूतरा, खुली छत। का पहिया 2. कुम्हार का चाक 3. गोल तीक्ष्ण अस्त्रचनटः (पुं०) आयुर्वेद विषय पर प्राचीन ग्रन्यकर्ता-सुश्रुत 4. तेल का कोल्हू 5. वृत्त। सम०-अर,--अरम् भूमिका। पहिये का अरा,-अश्मन एक प्रकार का पत्थर फेंकने | धन्ना ( स्त्री० ) गाय मी० सू० 10 // 3 // 49 पर शा० का यंत्र,-वरी नियों की विद्या देवी, सरस्वती, भा / -नः गरजता हआ बादल,-बर्मन कश्मीर के एक | चपेटी (स्त्री०) भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष का छठा दिन / राजा का नाम - राज० 5287 / / चमकसूक्तम् (नपुं०) वेद का एक सूक्त जिसके प्रत्येक अनुष्यम् [चक्षुष + यत् / आँखों के लिए मल्हम / | मन्त्र में 'च में' की आवृत्ति की जाती है। चम्पूर्यमाण (वि.) अशिष्टता पूर्वक अंगविक्षेप करने वाला, | घमसोद्भवः (पुं०) एक तीर्थस्थान जहाँ से सरस्वती नदी अपलील इंगित करने वाला-भट्टि० 4 // 19 // निकलती है। चटकामुसः[ब० स०] एक विशेष प्रकार का बाण। | चम्पा (स्त्री०) अङ्गदेश की राजधानी (वर्तमान बलय् (ना. पा. पर०) इधर-उधर घूमना-चञ्चूपुटं | भागलपुर)। घट्लयन्ति चिरं पकोराः-भामि०,८९।९९। चयाट्टः (पुं०) वप्र, बुर्ज-चयाट्टमस्तकन्यस्तनालायन्त्रसुचतुर, (सं० वि०) [पत्+उल् ] (रचना में 'चतुर्' का दुर्गमे-शिव० 951 / / रबदल कर विसर्ग, श, ष, या स हो जाता है) रः [च+अच् ] वाय, हवा-क्वाहं तमोमहवहंसचार। सम० -अनिकः (चतुरनिक:) एक घोड़ा पराग्निवा संवेष्टिताण्डषटसप्तविरस्तिकायः-भाग. जिसके मस्तक पर मालों के चार घंधर लहराते हों, 1014 / 11 / सम०-गृहम् मेष, कर्क, सुला और --काष्ठम् (चतुष्काष्ठम्) (अ०) चारों दिशाओं में, मकर के पर। -चित्यः (चतुश्चित्यः) उभरी हई वर्गाकार बनी चरकः (पुं०) भारतीय आयुर्वेद का एक प्रवर्तक तथा बाँतरी-महा० १४१८४१३२,-पावम् (चतुष्पादम्) | चरकसंहिता का लेखक / मनुर्विज्ञान जिसमें चार (ग्रहण, धारण, प्रयोग और घरणम् [घर+ल्युट् ] 1. ब्रह्मवयं के कड़े नियमों की प्रतिकार) भाग होते हैं, मेषः (चतुर्मेधः) जिसने पालन करने वाला अध्येता-महा० 5 / 30 / 7 2. पर। पार बड़े यहों - अश्वमेध, पुरुषमेष, पितुमेध और सम-उपवानम् पायदान,-प्यूहः एक ग्रन्थ जिसमें सर्वमेध का अनुष्ठान सम्पन्न कर लिया है,-सनः | वेद की शालाओं का वर्णन है। (चतुस्सनः) सनक, समन्दन, सनातन और सनत्कुमार पप्रम् (नपुं०) दांतों के कटकटाने का वाद-मिश्र माम के चारों रुप धारण करने वाला विष्णु। ___षद्दशनचर्बुरशब्दमश्वः-शि० 5 / 58 / / पतुक (वि०) [चतुरवयवं चत्वारोऽवयवा यस्य वा कन् ] / पंटः [प+अटन् ] चीवर, चिपड़ा। *1. बार की संख्या से युक्त, -कम् पार पार्यों वाला चम्मः (0) (वेद०) चमड़े का कवच धारण करनवाला स्टूल, पोकी। योसा बर्मम्णा अभितो जनाः-ऋक्०८1५।३८ / भार[५० त०] चन्दन का रूप-ताशनश्चन्दन | धर्मरङ्गः (पु.३०व०) मध्य भारत की एक पाति परशीतल:-भोज। -०सं०१४। पल (वि.)[चन्द्र+णि रक्] 1. चमकीला, उज्ज्वल, पाचकत्+अङ्ग] एक प्रकार की माली / मैदीप्यमान 2. सुन्दर-(i) 1. पाना, चांदपीक (0) कोकिला, भारतीय कोषका For Private and Personal Use Only Page #1276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1267 ) चाक्षुष्यम् | चाक्षुष्+यत् ] एक प्रकार का आँखों का | 3 / 263 / 10 2. ज्ञानेन्द्रिय यं चेकितानमचिसय अंजन। उन्चकन्ति-भाग० 61648. 3. संध्यान, मनन चातुरः [ चतुर् एव, स्वार्थे अण् ] एक छोटा गावदुम | .. . चित्तिः स्त्रक चित्तमाज्यम-त. आ० 3 / 1 / तकिया। चित्य (वि.) [ चिता+यत] चिता से संबंध रखने चातुरन्त (वि०) [चतुरन्त+अण् ] चारों समुद्रों / वाला-चित्तमाल्याङ्गरागश्च आयसाभरणोऽभवत्समस्त पृथ्वी को अधिकार में करने वाला। रा०६५८।११। चातुरीक: [चातुरी+कप्] 1. हंस 2. एक प्रकार की बत्तख चित्रम् [ चित्र +अच, चि+ष्ट्रन् वा ] कमल का फूल -कलहंसे च कारण्डे चातुरीकः पुमानयम्--नाना। --मङ्गले तिलके हेम्नि पये नपुंसकम् -- नाना० / / चारः [चर एव, अण् ] 1. गति, चाल, भ्रमण 2. पैदल चिन्तामणिः (पु.) एक प्रकार का घोड़ा जिसकी गर्दन पर सैर करना 3. कारागार 4. हथकड़ी बेड़ी 5. पीपली बालों का बड़ा धूंधर हो। का वृक्ष, प्रियाल का पेड़।। चीचीकूची (स्त्री०) अनुकरणमूलक शम्न जो पक्षियों के चार्या (स्त्री०) 1. पथ, मार्ग, आठ हाथ चौड़ी सड़क कलरव को प्रकट करता है। --को० अ० 113 / चीनदारः (0) दारचीनी। चार्वाक: [ चारः लोकसंमतं वाकोवाक्यं यस्य --पृषो.] | चीरल्लि: (पु.) एक प्रकार की बड़ी मछली। दर्शनशास्त्र की चार्वाक शाखा का अनुयायी। चीरी (स्त्री) [चीरि+डीष / झींगुर, ('चीरीवाक: चिकित्सा [ कित्+ सन् + अ, स्त्रियां टाप् ] दण्ड-प्रम- भी) इसी अर्थ में रयुक्त होता है। त्तस्य ते करोमि चिकित्सा दण्डपाणिरिव जनतायाः चोदना [चद-यच-टाप / (पूर्वमीमांसा में) 'अपूर्व -भाग०५।१७। नामक श्रेणी-चोदनेत्यपूर्व ब्रूमः मी० मू० 7.17 चिकित्सु (वि.) [ कित्+सन् +उ ] बुद्धिमान् चालाक पर शा० भा०। ---अथ० 10 / 11 / चुमचुमायनम् (नपुं०) किसी घाव में खुजलाहट होना चिञ्चामलम् [10 त०] इमलो से तैयार किया गया जूष सुश्रुत० 1142111 / या झोल। चुमरिः (पुं०) एक राक्षस का नाम / चित्तम् [ चित्+क्त ] 1. हृदय, मन 2. ज्ञान-चित्तं चेरिका जुलाहों की एक उपनगरी-तदेव चेरिका प्रोक्ता चित्तादुपागम्य मुनिरासीत संयतः / यच्चित्तं तन्मयो / - नागरी तन्तुवायभूः--कामिकागम 2011566, मान० वश्यं गुह्यमेतत्सनातनम्- महा० 14151127 1 सम० / 1085-881 - अर्पित (वि०) दिल में प्ररक्षित चित्तापितनैषधे- | स्याग्निः [ष० त०] पुनात अग्नि, यज्ञीय अग्नि-पञ्च: श्वरा-नैषध० 9 / 31,-- नापः हृदय का स्वामी | -चित्तनाथमभिशकितवत्या --शि. 10128 / चौर्णय (वि.) [चूर्णा+ढक केरल प्रदेश के पास चित्तिः (स्त्री.) [ चित्+क्तिन् ] 1. मानसिक अवस्था 'चूर्णा' नामक नदी से प्राप्त मोती - को० अ० 2 / 11 / --आकृतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नतास्मि ते–महा. व्यवनः (पं.)च्य+णि ल्युट एक ऋषि का नाम / छत्रीक (छत्र+चि+तना० उभ०) छत्री की भांति / छाया [छो+य+टाप् ] प्राकृत मूल पाठ का. संस्कृत प्रयुक्त करना। भाषान्तर। सन्मस् (नपुं०) [छन्दयति-छन्द्+असुन्] एक पर्व, त्योहार | शिम् [छिद्+रक्] 1. प्रभाग --भूमिछिद्रविधानम् --वेदे वाक्ये वृत्तभेदे उत्सवेऽपि नपुंसकम् -नाना। --को० अ० 2 / 2 2. स्थान-भाग० 612634 छम्बरम (40) विकल कराने के लिए, जिससे कि 3. आकाश, अन्तरिक्ष-भाग० 1214130 / सफलता न मिले-कया. 1 / 4 / छेदनम् [छिद्+ल्पट् ] आयुर्वेद में एक प्रकार की शल्यइम्बदकर (वि.) [सम्बट्+1+अच] नष्ट भ्रष्ट करन प्रक्रिया। बाला,-करी (स्त्री०)-एषा धोरतमा सन्च्या कोक-इन्ह(९०) एक प्रकार का जन्तु-१० म०८६३३७ / छम्ब (म्फ) गरी प्रभो-भाग 3 / 18 / 26 / रितम् [छर+क्त] काट, खरोंच / बदकार[छम्बट्+1+पम् ] नाश, ध्वंस, बिनाया। एरिका (स्त्री०) बांश गाय / [ + ] एक प्रकार का झगड़ा जिसमें असं- का (का) भवन के आधारगर्त में बना बजकोष्ठ मततकाका प्रयोग किया जाय। तहखाना-कामिकामम० 3174 / For Private and Personal Use Only Page #1277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1268 ) जगद्गुरुः [ 10 त०] श्री शंकराचार्य का नाम / जातिवः स्त्री०) [जाति---ग--क्तिन् ] जन्म लेना जगच्चरिखका (स्त्री०) ब्रह्मसंहिता पर भट्टोत्पलकृत एक --जातिगृद्धधाभिपन्नाः - महा० 5 / 60 / 9 / टोका। जातुभमन् (वेद०) (वि०) सदेव पोषण करने वाला-स जगचित्रम् (नपुं०) विश्व का एक आश्चर्य पश्येदानीं जातूभर्मा श्रद्दधान ओजः --- ऋक्० 11103 / 3 / जगच्चित्रम-रा० 7134 / 9 / जानराज्यम् [जनराज+ष्य ] प्रभुसत्ता-बाज०९।४०। जगतीपतिः [प.त. शासक, राजा त्रिमप्तकृत्वो | जानतः (पुं०) छान्दोग्य उपनिषद् में वणित एक राजा जगतीपतीनाम् कि० 618 का नाम। जमघापयः (पुं०) पगडण्डी।। जामदग्न्यः [जमदग्नि-|-अण | परशुराम / जबघाबलम् [10 त०] दुम दबा कर भागना / जामातबन्धकम् (नपुं०) स्त्रीधन, दहेज / जटापाठः (पु०) वेद मन्त्रों के मूलपाट को सस्वर पढ़ने | जारणम् [ज-णिन्- युट् ] 1. क्षीण करना 2. धातुओं की एक रीनि। पर जारेय की पतं चढ़ाना / जटावल्लभः (10) 'जटापार' की प्रणाली गे वेदपाट करने | जाहय (वि०) 1. स्तुति के योग्य निरर्गलान् सजाहमें प्रवीण विद्वान् पुरुष।। ध्यान् महा 9 / 49 / 3 2. जिसमें तीन बार दक्षिणा जनः / जन+अच] 1. प्राणधारी, जीव 2. मनप्य दी जाय जास्थ्यान त्रिगुणक्षिणानित्यर्जुनमिधः 3. एक व्यक्ति 4. राष्ट्र, जाति / सम..-आश्रयः - महा० 291170 पर टीका 3. आमिपोपहार विष्णकण्डी वंश के राजा की उपाधि, जिसे ज्ञानाश्रयी में समृद्ध। छन्दोविचिति का प्रणेता समझा जाता है, ---जल्पः जालकम् (नपुं०) एक प्रकार का वृक्ष .. भाग०,८०२।१९ / लोकोक्ति, कहावत, किवदन्ती. मारः महामारी। जालोरः (40) कठमीर में एक अग्रहार-विहारमग्रहार जनंसह (वि.) लोगों का दमन करने वाला ---मत्रासाहो व जालोराख्य च निर्म में राज० 1198 / जनभक्षो जनंसह-क०२१२७३। जयः | जि- अच् ] 1. महाभारत का एक विशेषण-देवी जपत (वि०) [जाशता सन्यासी (साधारणतः 'जपतां सरस्वनी व्यासं ततो जयमदीरयेत- महा० 1221 वरः' प्रयोग प्रचलित)। 2. जयजयकारों से पूर्ण विजय जयेन वर्धयित्वा च जम्बमालिन (40) रायण की सेना के एक गक्षम का ग० 723 / मम० --(अजय)-अयाजयो नाम। (... अपजयौ) जीत तथा हार, गत (वि०) जीतने जम्भसाधक (वि०) आयुर्वेद का ज्ञान रखने वाला--इति / वाला, विजयी उक्तविपरीनलक्षणसंपनी जयगतो से कथयन्ति म्म ब्राह्मणा जन्ममाधका: ...मETO विनिर्दिष्टः ब० नं०१७।१०। 6820 / जितहस्त (वि.) [ब० स० जिमने अपने हाथ को जम्भकः [जभ् +ण्वुल, नुम् ] 1. द्रोही. विश्वामघाती अभ्यस्त कर लिया है। माधु भो जम्भक साध- दूत. 2. औषधोपचार जित्यः [जि-क्यपएक उपकरण जिमके दाग जुते हुए 5164 / 16 / खेत को समस्नर किया जाता है। जपन्तिः (म्बी०) तगज़ की इण्डो। जिल्लिकाः (ब० ब०) एक राष्ट्र का नाम - महा० 6 // नभरि (वि.) (वेद०) सहारा देने वाला मण्येव जरी | तुर्फरी तु ऋक्०१०१०६६ / जिहीतर (वि.) [त० स०] जो आलसी न हो - जिीजलन [जल+अच् ] 1. पानी 2. सुगंधयुक्त औषध का तरब्रह्म तदन्यवाप्यम् न०६३ / पौधा 3. गाय का भ्रूण / सम-आगमः वर्षा ऋतु, जिहित (वि.) [जिह्म-इतच 1 1. व्याकुल - परिश्रम -- प्रपातः झरना, शर्करा ओला, करका,-नावः / जिझितेक्षणम् ... कि० 10.10 2. टेढ़ा बनाया हुआ, आंख का एक रोग। सका हआ (जैसा कि 'जिह्मगति' में)। जलावभेषज (वि०) [ब० स०] उपचारक औषधियाँ जीमतप्रभः [ब० स०] एक प्रकार का रत्न--को. रखने वाला-रुद्रं जलाषभेषजम् ...ऋक. 143 / 4 / / अ०२।११।। अबस् (नपुं०) [ ज+असुन् ] (वेद०) गति, धाल, जीवकोशः (पुं०) सुक्ष्म गरीर, लिङ्गशरीर भाग. शीघ्रता, पयोभिर्जन्ये अपां जवांसि-ऋक्० 4 / 218 / / 10182 / 48 / बासकपकम् (नपुं०) जन्मकुंडली, जम्मपत्रिका। बीवन्तिका (स्त्री) [जीव+त+कीप, कन, इस्ता] जातिक्षयः [प०१०] जन्म का अन्त, जन्म से मुक्ति 1, सद्योजात शिशों की देखभाल करने वाली देवी -पु. च० 174 / 2. एक पौर्य का नाम / For Private and Personal Use Only Page #1278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोविका (स्त्री०) [ जीव+अकन्, अत इत्वम् ] जिन्दगी | ८३।१२,-पूर्व (वि०) खूब सोचा हुआ, पहले से .. कृपणा वर्तयिष्यामि कथं कृपणजीविका - रा०२।। पूरी जानकारी प्राप्त किए हुए, पूर (वि.) ज्ञान 2047 / या जानकारी में बड़ा-बूढ़ा। अकुटम् (नपुं०) सफ़ेद बैगन का पौधा। जानिन (वि.) [शान+इनि ] बुद्धिमान्, समझदार, जुगप्सितम् [गप+सन्+क्त ] घणित कार्य, अरुचिकर / ---(पुं०) बुध ग्रह- ज्ञानी सर्वज्ञसौम्ययो:-- नाना। कृत्य-कर्मजुगुप्सितेन ... भाग 11742 / ज्मन् (20) पृथ्वी पर, धरती पर (केवल अधि० में अर्य (वेद०) (वि०) [ +य]पुरामा --ऋक 6 / 17 / प्रयोग) - अभिऋत्वेन्द्र भूरधज्मन्-ऋक्० 72116 / जोषवाकः (0) निरर्थक बात करना-जोषवाकं बदत: ज्या ज्या+अ+टापु ] 1. एक प्रकार की लकड़ी की ~ऋक्० 659 / 4 / सोटी 2. सेना का पृष्ठभाग-ज्या भूमिमौयों: अतिः (स्त्री०)[जु+क्तिन् ] मन का संकेन्द्रीकरण-ऐत. शम्यायां वाहिन्याः पृष्ठभागके नाना। उ० 5 / 2 / ज्येष्ठः [वृद्ध (प्रशस्य)-इष्ठन, ज्यादेश: 1 1. सबसे जैमिनिः (0) एक प्रसिद्ध मुनि जो दर्शन शास्त्र की बड़ा 2. सर्वोत्तम 3. उच्चतम,--(पुं०) एक चांद्र पूर्वमीमांसा के प्रवर्तक थे। सम०-भागवतम् भाग- मास का नाम / सम.--- राज् (पुं०) प्रभुसत्ता बत का आधुनिक संस्करण, -भारतम् महाभारत , संपन्न राजा-ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पति--ऋक. का आधुनिक संस्करण,-शाला मामवेद की एक श२३॥१, सामन् एक विशेष साम / शाखा,-सूत्रम् एक ग्रन्थ का नाम / ज्येष्ठा (स्त्री०) 1. लक्ष्मी देवी की बड़ी बहन वारुणी जैमिनीय (वि.) जैमिनि+छ] जैमिनी द्वारा रमित, 2. एक देवी का नाम / या उनसे संबद्ध। ज्योक (अ.) (वेद०) चिरकाल तक, दीर्घ समय तक यटः (पुं०) कयट के पिता का नाम / -ज्योक् च सूर्य दृशे - ऋक्० 1123321 / जोमसला (स्त्री०) जी। | ज्योग्जीवनम् (नपुं०) दीर्घकाल तक जीना, लम्बी आयु बोषम् (अ०) [जुष्+घन ] चुपचाप, जैसा कि ('जोप- होना। मास्व'-चुप रहो) में / / ज्योतिस् (नपुं०) [बुत् इसुन, आदेर्दस्य ज: ] 1. प्रकाश, जोष्य (वि) [जुष्+ण्यत् ] प्रिय, स्नेहाहं / .. कान्ति, आभा, चमक 2. बिजली 3. गाय --मी० सू० अंमन्य (वि०) अपने आप को बद्धिमान् समझने वाला।। 103 / 41 पर शा. भा०।। माताम्बयः (0) प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न होने वाला पुत्र। ज्वरः [ ज्वर-+2 ] 1. ताप, बुखार 2. मानसिक ताप / जातिलम् (नपुं०) नीच कुल में उत्पन्न व्यक्ति ..विभिन्न- सम०-- अन्तकः शिव का विशेष रूप,-अरिः ज्वर कर्माशयवाक् कुले नो मा शातिचेलं भुवि कस्यचित् / / नाशक औषधि, ·हर (वि.) ज्वरप्रशामक, ज्वर भूत-भट्टि. 12178 / / नाशक मातिप्रायः (पुं०) संबन्धियों के लिए आहार, जातिभोजन | ज्वलनाश्मन् (पुं०) मूर्यकान्त मणि / --प्रक्षाल्य हस्तावाचम्य ज्ञातिप्राय प्रकल्पयेत् -- मनु० ज्वाला [ज्वल++टाप] 1. आग की लपट, अग्नि३।२६४ / गिखा 2. दग्धान्न। सम०--मालिन् (पुं०) शिव नामम् [ज्ञाल्यट] जानकारी का साधन-मै० सं० / देवता, मालिनी (स्त्री०) दुर्गा का एक रूप 1115 2. सम्मति.... वलदेवस्थ वाक्यं तु मम ज्ञानेन -ज्वालामालिनिकाक्षिप्तवत्रिपाकारमध्यगा-ललिता, युज्यते-महा० 5.13 / मग. अग्निः ज्ञान की - मुखी (स्त्री०) दुर्गा का एक विशेष रूप-- आग मानाग्निः गर्वकर्माणि भामसात्कृरतेऽर्जन ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या मवंसन्धिपु--- -भग० 4 / 37.-- घनः (पुं०) शुद्ध ज्ञान, केवलज्ञान वाराह पुराण में देवोकवच, रासभकामयः . निविशेषाय साम्याय नमा जानधनाय न भाग० मम्मानित: (पु.) ओलों की बौछार, आँधी के साथ / खाने वाला,-साल: एक प्रकार की संगीत की ताल, ओलों का पड़ना। गायन की माप, अत्यम् एक प्रकार का नाच। सम्पः, अम्पा [प्रम् +4. स्त्रियां टाप] 1. उछल-कदमलमल: (मलमल:) (पं.) (लाभूषणों की ) चौंधि 2. मारपी। . अशिन (10) मस्याउ, मछली याने वाली चमक / For Private and Personal Use Only Page #1279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1270 ) मषराजः [10 त०] मगरमच्छ / सुः1. ध्रुव तारा 2. समूह 3. अरुण देव / झापरिन् (वि.) [ झाङ्कार+इनि ] 'महार ध्वनि.को मोः कर्ण का नाम / करने वाला। सोः स्वर्ग। शि: 1. चन्द्रमा की कला 2. बन्दर / सौलिकम् (नपुं०) 1. पान आदि रखने का बक्स, पानवान सिल्लिन (पं.) एक वष्णि का नाम / 2.मोला, पैला। मोः (पं) हाथी। गः (पु.) 1. गायक 2. 'गरगर' का धन्द 3. सांड़ 4. शुक्र 5. पांच की संख्या। टका हक् +या, वा ] 1. टखना--टकोऽस्त्री टणे | दक्ति (वि०) [ टक्क++क्त ] बांधा हुआ--नाकृष्ट गुल्फे * नाना 2. (संगीत में) एक प्रकार का माप, न च स्तिं -हनु० / 3. टकसाल / सम-मतिः टकसालाध्यक्ष,-शाला कृतम् [टक+त] टखार, टनटन। टकसाल। | टोपरः (पु.) छोटा थेला / ठपकः (पु०) सौदागर, व्यापारी। | ठिठा (स्त्री०) जूआषर-कुवः स सम्पष्ठिण्ठायां कित। वान् स्वानभाषत-कथा० 92 / 121 / ग्मरिन् (पुं०) [डमर+इनि ] एक प्रकार का ढोल / मय चोटी-० 2253 2. शरीर-क्रोष्टा डिम्ब उम्बरः [डम्ब्-अरन् ] उच्चस्वर का घोष / व्यष्वणद्-शि० 1877 3. बुधू, जड़-राज. जिका (स्त्री०) एक बहुत छोटा पंखदार कीड़ा (जैसे कि 71072 / पिस्सू)। | सिम्मा [डिम्भ+अच्] पौधे का अंकुर, अंखुधा-२० 8 / 2 / जिम्बः [ डिम्ब+घञ्] 1. गुंजायमान शिखर, कोलाहल- | रेरिका (स्त्री०) छडूंदर। पकनम् [ढक्या ल्युट द्वार.बन्द करना / ढक्कारी (स्त्री०) दुर्गा की मूर्ति की तांत्रिक पूजा। डोकित (वि.) [ढोक -+पत ] निकट लाया हुआ / / For Private and Personal Use Only Page #1280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1271 ) पात: किसी एक 1. 64, दशिन विसषि का आयोजन तकम् [ तक्+रक ] छाछ, मठ्ठा। सम-पूर्षिका, 3. त्वचा, खाल। सम० - उडूब पंख,-करणम् राबड़ी, उबाली हुई छाछ,. -पिण्डः छाछ (को कपड़े (तनूकरणम्) पतला करना,-पी ओछे मन वाला। में से छानने के पश्चात् रहा अवशेष), पपड़ी। तन्तुकरणम् (नपुं०) कातना, तार निकालना। तटः [तट्+अच्] 1. ढलान, कगार, किनारा 2. क्षितिज / तन्तुकार्यम् (नपुं०) जाला। सम-मः नदी किनारे का वृक्ष, पातः किनारे तन्त्रम् [ तन्त्र+अच् ] 1. खड्डी 2. धागा 3. सतत श्रेणी का तोड़ कर गिराना, भः किनारे की धरती। 4. रस्म, व्यवस्था, संस्कार आदि धार्मिक कार्यों का तटिनीपतिः [10 त०] नदियों का स्वामी, समुद्र / नियमित आदेश 5. मुख्य बात 6. प्रधान सिद्धान्त, तपरीणः [ तण्डुर+ख ] कीड़ा, कृमि, कीट। नियत 7. ऐसे कृत्यों का समूह जो अनेक प्रधान कार्यों तत्त्रस्यन्यायः (पुं०) मीमांसा शास्त्र का एक नियम में समान हो-यत्सकृत्कृतं बहनामुपकरोति तत्तन्त्र जिसके अनुसार किसी यज्ञ का नाम उसकी अभिव्यक्ति मित्युच्यते-मै० सं० 11 // 21 पर शा. भा० के अनुकूल रक्खा जाता है। 2. विश्व की व्यवस्था यतः प्रवर्तते तन्त्रम् - महा० वत्तम् (नपुं०) शरीर महा० 121267 / 9 / सम० १४.२.११४,-नः विशेषज्ञ, युक्तिः किसी एक -अम्यासः वास्तविकता का बार बार अध्ययन एवं तस्वाभ्यासात्-सां. का. 64, वशिन् (वि.) तत्रिभाण्डम् (नपुं०) . तभारतीय वीणा। असलियत को जानने वाला, भावः प्रकृति, वास्त- तन्त्रिल (वि.) [तन्त्र+इलच् ] प्रशासनकार्य में कुशल विक सत्ता,--संख्यानम् सांख्य सिद्धान्त का विशेषण त्वं तन्त्रिल: सेनापती राज्ञः प्रत्ययितः- मच्छ -भाग० 3 / 24 / 10 / 6 / 16 / 17 / तभावादिन् (वि.) [तया+वाद+इनि] वैसा होने का | तपः (तप+ऋतु:) ग्रीष्म ऋतु-तपर्तुमूर्तावपि मेदसां दावा करने वाला भरा--नै० 1141 / तद (सर्व० वि०) 1. किसी अनुपस्थित वस्तु या व्यक्ति | तपस् (नपुं०) [ तत्+असुन् ] 1. गर्मी, अ, प्रकाश का उल्लेख करने वाला सर्वनाम। सम० अन्य 2. पीडा, कष्ट 3. तपस्या 4 दण्ड / सम..-मर्षीय (वि०) उसको छोड़ कर कोई दूसरा, अपेक्ष (वि०) (वि.) तपश्चरण के लिए अभिप्रेत--सपोऽर्थी उसका खयाल करने वाला,-कालीन (वि.) उसी ब्राह्मणी धत्त गर्भम्-महा०११।२६।५,--कुश (वि.) काल से सम्बन्ध रखने वाला,-बेश्य (वि.) उसी तपश्चरण के कारण दुर्बल,-मुल. (वि.) तपस्या देश से सम्बन्ध रखने वाला,-धम्यं (वि०) उमी। से उत्पन्न,-वृद्ध (वि०) कठोर तपस्या के फलस्वरूण गुण में भाग लेने वाला,-..भव (वि.) उसी संस्कृत बूढ़ा। से जन्म लेने वाला, प्राकृत का एक भेद-तदभवस्त-| सप्त (वि०) [ तप्--क्त] 1. गर्म किया हुआ, जला समो देशोत्यनेकः प्राकृतक्रमः-काव्या० १,-रूपः हुआ 2. पिघला हुआ 3. पीडित, कष्टप्रस्त 4. अभ्य(वि०) उसी प्रकार के रूप वाला,-सदियः उसका स्त / सम-कुम्भः, कृपः एक नरक का नाम, माता, किसी विशेष क्षेत्र में प्रामाणिकता रखने वाला, ---तप्त (वि.) बार बार उबाला मा, बार बार --संख्याक (वि.) उस अंक के समान / गरम किया हुआ,-मुना किसी गर्म पातु की छाप तबाधितषम्तन्यायः (पुं०) मीमांसा का एक नियम | से शरीर पर किसी दिव्य शस्त्र के रूप में अधिकार जिसके अनुसार उत्कर्ष की उक्ति में मारम्भ से चिह्न अंकित करना,--रूपम्,-: रूपकम् शुख की लेकर वह सब विवरण सम्मिलित होता है जिसके | हुई चांदी, बालकाः वाल के गर्म कण / लिए वह दिया जाता है और साथ ही अपकर्ष की | तापिन् (वि.) [ ताप+इनि] पीडा पहुंचाने वाला उक्ति अन्त तक उस सभी विवरण पर लागू है -कि० 042 / / तरङ्गमालिन् (पुं०) समुद्र / तवपपवेशम्यायः (पुं०) ऊपर बताये गये 'तत्प्रख्यन्याय' | तरङ्गवती नदी, दरिया। के समान / सरलकरण (वि०) [ब० स०) चञ्चल तथा पुर्वल ततत्वम् (नपुं०) सङ्गीत में आवाज को लम्बा करना, ज्ञानेन्द्रियों वाला। - सङ्गीत की गति धीमी करना। | तरुकोटरम् (नपुं०) [ 10 त०] वृक्ष की कोटर सनु (वि.) [तन्-+-उन्] 1. पतला, दुबला, कृश | या खोखर। 2. सुकुमार 3. बढ़िया, नाजुक 4. थोड़ा, छोटा, तस्तूलिका | चमगीदा। स्वल्प,-(स्त्री०) 1. शरीर, व्यक्ति 2. प्रकृति | तरुधूलिका) उक्ति अन्त त दिया जाता है। ये तत्प्रख्यन्याय For Private and Personal Use Only Page #1281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1272 ) तक्ता (स्त्री०) ताजगी, ताजापन / संगीत में गान को ताल व लय के मान को सुरक्षित ताटः (पुं०) भिखारी, मांगने वाला। रखने में त्रुटि, ताल का टूट जाना। तर्कमुद्रा (स्त्री०) हाथ को विशेष स्थिति। तावत्कल (वि.) [ब० स०] उतना सा ही फल भोगने तलोदरी (स्त्री०) गृहिणी, पली। वाला। तलवः ) अपनी हथेली से वाद्ययन्त्र को बजाने वाला | तिग्माचि [ब० स० सूर्य ___ संगीतकार / सम० -काराः सामवेद की एक शाखा। तिसिलम् (नपुं.) 1. ज्योतिषशास्त्र में एक करण 2. तिलों तलित (वि.) [तल+क्त ] 1. तला हुआ 2. तली- का चिउड़ा, चौले। - दार। तिथिः | अत+इथिन्, पृषो०] 1. चान्द्रदिवस 2. पन्द्रह सलिन (वि.) [ तल-इनन् ] ढका हुआ-- विक्रमांक की संख्या / सम०-अर्षः (तिय्यर्षः) एक करण 14 // 61 / सम० -उबरी पतली कमर वाली (आधी तिथि), प्रलयाः (ब०व०) किसी भी महिला। निर्दिष्ट अवधि में सौर और चान्द्र दिवसों का तबकः (0) धोखा, जालसाजी तवक: कपटेऽपि च. | अन्तर। --नाना। तिमिः [ तिम् ---इन् ] 1. समुद्र 2. मीन राशि / सम. तसरिका (स्त्री०) बुनना, बनावट / ..घातिन (वि.) मछियारा, मछलियां पकड़ने बाला, तस्थी (स्त्री०) (ज्योतिष शास्त्र का शब्द) पट् कोण। मालिन् समुद्र / ताजिकः (पुं०) 1. मध्यवर्ती एशिया में रहने वाली एक तिमिला (स्त्री) संगीत का एक उपकरण, तबला / जाति 2. एक उत्तम प्रकार के घोड़े की नस्ल / तिरस्कारिन् (वि०) / तिरस्कार--इनि ] ज्ञात करने तापपनाह्मणम् (नपुं०) सामवेद के एक ब्राह्मणग्रन्थ का | वाला, आगे बढ़ जाने वाला,-देवि त्वन्मुखपनाम / जेन शशिन: शोभातिरस्कारिणा रत्न० 1124 / तात्कय॑म् (नपुं०) [ तत्कर्म+व्यञ् ] व्यवसाय की | तिर्यच, तिर्यञ्च (थि०) 1. टेढ़ा, तिरछा, वक्र 2. घुमावसमानता। दार 3. अन्तर्वर्ती,--(पुं०),-(नपुं०) 1. जानवर, तात्पर्यापः (पुं०) किसी उक्ति का सही अर्थ / जन्तु (टेढ़ा-मेढ़ा. चलने वाला, लेट कर चलने वाला तावात्विकः (0). अपव्ययी, यो यद् यद् उत्पद्यते तत्तद् ..सोधे खड़े होकर चलने वाले मनुष्य से भिन्न) __भक्षयति स तादात्विक: कौ० अ० 29 / 2. पक्षी 3. पौधे / सम- वि०) किसी जानसाडघम् (नपुं०) [तद्धर्म+ष्य ] गुणों में समानता। वर से उत्पन्न, ज्या टेढ़ी ज्या। ताप्यम् (नपुं०) [तद्प-व्या रूप की समानता। [सिलः| तिल |-क | तिल का पीधा / सम-कठः तिलतापसकः [तापस+क] (=कुतापस.) आचारभ्रष्ट कुट,-मयूरः मोर की एक जाति / संन्यासी। | तिहन् (पुं०) 1. रोग 2. चावल, वान्य 3. धनुष तामसः (0) चौथे मनु का नाम। , 4. भलाई। तार (वि.) [ त+णिच्+-अच् ] 1. ऊँचा 2. प्रबल | तीक्ष्णकष्टकः [50 स० J तेज कांटेदार पौषा / 3. चमकीला 4. उत्तम,-र: (पुं०) धागा, तार। तीक्ष्णमार्गः [ब० स०] तलवार-सासृनाजिस्तीक्ष्णतारणेयः [ तारणा+ढक् ] कन्या से उत्पन्न, कानीन, / मार्गस्थ मार्ग:-शि० 18120 / कर्ण 2. सूर्य का भक्त / तीर्घचर्या ( स्त्री०) [ष० त०] तीर्थ यात्रा। तारा [तार+टाप्] 1. आठ प्रकार की सिद्धियों में से तीवद्युतिः [ब० स०] सूर्य, सूरज / एक2. संगीत के एक राग का नाम / तीवा (स्त्री०) 1. काली सरसों 2. संगीत का एक स्वर / तारिका (स्त्री०) [त+-णिच्+ण्वुल ] एक प्रकार की | तु (अ०) निस्सन्देह-तु शब्द: संशयव्यावृत्यर्थः-मै० सं० शराब। 103 / 74 पर शा० भा०। तासम् (नपू0) एक प्रकार का चन्दन जिसका रंग तोते 20) 1. ऊँचा 2. लम्बा 3. मुख्य 4. प्रबल,के पंखो जैसा होता है-कौ० अ० 211 / (पुं०) पुन्नाग वृक्ष - नाना / ताल: [तल एव अण्] 1. ताड़ का वृक्ष 2. तालियां तुमिन् (पु.) [ तुङ्ग इमनिच ] ऊँचाई-कृतनिश्व बजामा 3. फट-फट करना 4. हाथ की हथेली 5. तल- यिनो वन्यास्तुशिमा नोपभुज्यते-पंच० 21146 / बार की मूठ 6. ताला, लटखनी। सम०- जो | तुच्छवय (वि.) [ब. स. ] दयारहित, निर्दय / संगीतशास्त्र की ताल को जानता है, पारक: नर्तक, तुच्छपाय (वि.) [ब० स०] नगण्य / नाचने बाला,-मबमी भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष का 1 तुञ्ज (भ्वा० पर०) निकालना, भींचकर निकालना, रस नवा दिन,-फलम तार के वृक्ष का फल,-भङ्गः। निकालना। For Private and Personal Use Only Page #1282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1273 ) पुनः [ तुझ्+अच् ] दवाव / / तृष्ण (वि.) (वेद०) [ नृद्+क्त ] कटा हुआ, फाग़ तोरः [तुद्+घ ] दबाव-मात० 1131 / हुआ। तुम्विलित (वि०) [ तुन्दिल--नच ! जिसकी तोंद फल | तप्सता [ तृप्त--तल ] सन्तोप, तृप्ति / " गई है, मोटे पेट वाला। सरपतिः[०त. तरणी या नावों का अधीक्षक। तुम्बारम् (नपुं०) तुम्बा। तरणितनया [50 त०] यमुना नदी। तुर्पयन्त्रम् (नपुं०) (कोणनापने का) पादयन्त्र / तारकम् [त। णिच् +ण्वुल ] तारा----शान्तर्भग्रहतारकम् तुला [ तुल-+अङ ] 1. घर की छत के नीचे की ओर ...-भाग० 13 / 3 / / ढलवां लगा हुआ शहतीर 2. तराजू की इंडो। सम० | तेजस् (नपुं०) [तिज्+-असुन् ] 1. क्रोव 2. सूर्य / सम० - - अधिरोहणम् मिलता-जुलता, अनुमानम् सादृश्य, पुञ्जः प्रभापुरुज, कान्ति का संग्रह। सादृश्य पर आधारित अनुमान,-.-धारणम् नगलू पर तंजस (वि०) [ तेजस्+अण् | राजस गुणों से युक्त, रखना अर्थात् तोलना। -वकारिकरजसश्च तामसश्चेत्यहं त्रिधा भाग० तुल्य (वि०) [ तुलया संमितं यत् ] 1. उसी प्रकार का, 35 / 30 / वैसा ही, मिलता-जुलता 2. उपयुक्त 3. अभिन्न, वही तंजसम् (नपुं०) 1. ज्ञानेन्द्रियों का समूह 2. चेतन सृष्टि / -ल्यम् (अ.) 1. एक साथ 2. समान रूप से। तमित्यम् (ना.) मन्दता, जाइय, जड़ता। समकक्ष (वि.) समान, वरावर,--नवतविन | योन विकास जीव जन्नओं की सष्टि से (वि.) 1. जय रात और दिन दोनों समान हो सम्बन्ध रखने वाला। 2. रात और दिन में कोई भेद न करने वाला, तलम [ तिलस्य तत्मदशस्य वा विकारः अण्] 1. तेल -निन्दास्तुति (वि०) अपनी प्रशंसा या अपयश 2. लोबान / सम-अम्बका तेलचट्टा नामक कीड़ा, ... दोनों की ओर से उदासीन, मूल्य (वि.) समान ---किट्टम् वली, पकः, पायिकः तेल पीने वाला मूल्य का, एक सी कीमत का,---योनिः उसी बंश का, कीड़ा. तेलचट्टा,-i-पूर (वि०) जो तेल से भरा हआ उसी कुल में उत्पन्न,---वयस् (वि.) समान आयु हो अतैलपूरा: सुरतप्रदीपा:--कु० 1110 / का, बराबर की उम्र का, संख्य (वि०) समान सोटक (वि०) [तोट-नान् ] झगड़ाल,--कः (पुं०) संख्या का। शंकर का शिष्य, --कम् (प्रोटकम्) एकः छन्द का वल्यशः (अ0) समान भागों में, बराबर बराबर / नाम। तुलसि दे० तुलसी, (कविता में 'तुलसी' को 'गुलमि' भी | तोयम् / लु- गत नि० ] 1. पानी 2. पूर्वापाढा नक्षत्रपुंज। लिख देते हैं)। सम अभिः जलवी आग, बाडवानल,-अम्जलिः सद (तदा०पर०) चोट पहुंचाना, तंग करना, नाट वा. दवों और पितरों को गंतप्त करने के निमित्त अजलि पीड़ित करना। भर जल मे तर्पण करना / तषी (स्त्री०) नील का पौवा / | तोरणम् [ तुर+युत्, आधारे ल्युट् ] 1. डाटदार हार सूतकम् (नपुं०) नीला थोथा। 2. बाहरी दरवाजा 3. अस्थायी अलडकृत द्वार तूसपीठो,-लासिका (स्त्री०) तकुवा, कातते समय जिस पर 4. तराजू को लटकाने के लिए एक त्रिकोणीय ढांचा। लपेटा जाता है। | सौन्छ्यम् [ तुच्छ+ध्या ] तुच्छता, नगण्यता। तृष्णींवयः (पं०) गप्त रूप से दिया गया दण्ट-कौर तौरङ्गिक (वि०) [ तुर+ठक ] घुड़सवार। अ० 1111 / तौकिक (वि) तुमष्क-ठक ) तुर्की जाति से तुषः तचम् | त्रि---ऋस् ] ऋग्वेद के तीन मम्मों का / सम्बद्ध। समूह / त्यवतविधि (नि.) / ब० गलियों का उल्लङ्गन तणम | तह + वन, हलापश्च / 1. घाग 2. तिनका करने वाला। 3. तिनकों की बनी (चटाई आदि) कोई वस्तु / स्पद ( स० वि०) (की० ए० ब० स्यः (0) सम... गणना तिनके की भांति तुच्छ समझना--- तण (ट) जप सशकारचाभवत्-ते. उ०। गणना गुणरागिणां घनेषु-विक्रमांक० 52, त्याजित (वि.) [त्यज्+णिन्+क्त ] 1. वञ्चित -पूलिक: मानवी गर्भस्राय चरक०४।४।१,-भूग - पोष्मणा त्याजिनमाद्रभावम्- कु. 14 (वि.) बास खाने वाला, तृण भक्षी, शालः सुपारी 2. निष्कासित। का पेड़, षट्पदः एक प्रकार की भिर्र। त्रयी (स्त्री०) [ प्रय+की ] 1. वेदत्रयी (ऋग्यजुःसाम) तुणता [तण+तल] 1. तिनके का गण, निकम्मापन 2. तिगुना 3. विवाहित स्त्री (माता) जिसका पति 2. धनुष-शि० 19161 / और बच्चे जीवित है। गग० -- मय (वि०) जो For Private and Personal Use Only Page #1283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1274 ) तोनों (वेदों) से युक्त एकक है, विद्य (वि०) जो -लोहकम् सोना, चांदी और तांबा तीन पातुएँ, नों वेदों में निष्णात है,--वेध (वि.) जो तीनों -वली (स्त्री०) (किसी महिला) के पेट की तीन वेदों के द्वारा जाना जा सकता है-त्रयीवेद्यं हृचं वलियां,-बली गदा, - इत्तिः यज्ञ, भैश्य और त्रिपुरहरमाद्यं त्रिनयनम् --आनन्द० २,--संवरणम् अध्ययन के द्वारा जीविका,-शर्करा तीन प्रकार छिपाने या गुप्त रखने की तीन बातें (स्वरन्ध्रगोपन, की शक्कर,-सवनम् (सवणम) कालिक या, पररन्ध्रान्वेषणगोपन और मन्त्रगोपन) अर्थात अपनी . सरः मिला कर उबाले हुए, दूष, तिल और चावल दुर्बलता, शत्रु को दुर्बलता और अपनी नीति। ---साधन (वि.) तीन प्रकार के साधन जिसे प्राप्त त्रि (सं० वि०) [तु-+-ड्रि ] तीन / सम-अब गुलम् / हैं, सामन् (वि०) अह, रहस्य और प्रकृति नाम तीन अंगुल चौड़ाई की माप,--आर्षेयाः (१०व०) के तीनों सामों को गाने वाला,-सुपर्णः,-सुपर्णम 1. तीन पुरुष बहरा, गूंगा और अंधा 2. तीन तीन ऋचाएं-ऋ० 101114 // 3-5 / ऋषियों से युक्त प्रवर,-कटु / - कटकम्) सोंठ त्रिकत्रयम् (नपुं०) त्रिफला, त्रिकटु और त्रिमद का पीपर और मिर्च का समाहार,-करणम् मन, बचन / समिश्रण। और कर्म से युक्त कार्यकलाप,-करणी और से राशिक (वि०) [विराशि--ठक ] तीन राशियों से विगुना लंबा किसी वर्ग का पार्श्व,--कामम् अमर सम्बन्ध रखने वाला। कोश नामक ग्रन्थ, गुणाकृतम् तीन बार हल से | त्रैवेदिक (वि.) [त्रिवेद+ठक तीनों वेदों से सम्बन्ध कृष्ट, जिसमें तीन बार हल चल चुका है, जातम् | * रखने वाला। तीन मसालों (जायफल, इलायची, दारचीनी) का | स्वञ्च (म्वा० पर०) 1. जाना 2. सिकुरना। मिश्रण,---णेमि (वि०) जिसमें तीन पुठ्ठियाँ लगी / स्वरतात्विर+तला शीघ्रता। हों - भाग० ३१८५२०,-नेत्रफलः नारियल,-पिटकम् त्वरम् (अ.) [ त्वर+अच् ] जल्दी से, शीघ्रतापूर्वक / बोडों के तीन धार्मिक पुस्तकों के संग्रह,-भङ्गम् स्वष्टि: [त्वक्ष-क्तिन् ] बसाईगिरी। शरीर की ऐसी मुद्रा जिममें तीन झुकाव हो,- मवः | स्वाष्ट्र (वि.) [त्वष्ट्र+अण् ] त्वष्टा से संबंध रखने तिगुना अहंकार, मलम, मल मत्र और कफ तीनों वाला। मल.-पव (वि.) तोल में तीन जौ के बराबर, / स्वाष्ट्री[त्वष्ट्र+डीप 'चित्रा नक्षत्र पंज। पुर (तुदा० पर०) 1. ढकना. पर्दा डालना 2. छिपाना, | थोउनम् [ थड+ल्युट ] 1. दकना 2. लपेटना। गुप्त रखना। बंधित (वि.) [दंश्+क्त ] किसी विषय में प्रस्त। दाई ओर 2. दक्षिणदेश से,- गा (स्त्री.) (यज्ञादि -दंशितो भव कर्मणि ----महा० 1212219 / धार्मिक कृत्यों की समाप्ति पर) ब्राह्मणवर्ग को दी बस (चुरा० आ०) 1. डंक मारना 2. देखना / जाने वाली भेंट। सम० : पथिक वि०) दक्षिणाबन (भ्वा० प्रेर०) 1. प्रसन्न करना 2. सशक्त बनाना | वर्त मे सम्बन्ध रखने वाला,-प्रतीची दक्षिण-दक्षयन्द्रिजगणानपूयत-शि०१४।३५ / पश्चिम, - प्रत्य (वि.) दक्षिण-पश्चिमी,---मृतिः बसता [द+अच्, भावे तल ] कुशलता, नैपुण्य / (पुं०) शिव का एक रूप। रक्षिण (वि०). [दक्ष +इनन् ] अनुकुल / पण [दण्ड+अच् ] 1. डंडा, लाठी, मुद्गर, गदा 2. हाथी दक्षिणाम्नायः (पुं०) रक्षणावर्त से सम्बन्ध रखने वाली की सू. 3. छतरी की मूठ 4. जुरमाना 5. हलस तांत्रिक संप्रदायक, पुनीत पीठ। 6. राज्यतंत्र-कौ० अ० 125 7. भाषात. पोट पक्षिणा (अ.) [दक्षिण+टाप् ] 1. दक्षिण की ओर, / -न्यासो दण्डस्य भूतेष-भाग० 7 / 15 / 8 / समः For Private and Personal Use Only Page #1284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1275 ) -आघातः डंडे की चोट, असनम् एक प्रकार का / दत्त (वि.) [ दा+क्त ] दिया हुआ। सम--क्षण आसन, भूमि पर लम्बा लेट जाना, उद्यमः दण्डित (वि.) जिसे कोई अवसर दिया गया है,-दृष्टि करने की धमकी देना,-कलितम् मापने के गज की (वि.) जिसने ध्यान लगाया हुआ है, जो देख भांति बार-बार आवृत्ति करना - मी० सू० 105 / / रहा है। 83 पर शा० भा०,-कल्पः दण्डग्रस्त करना, | दत्तकचन्द्रिका (स्त्री०) धर्मशास्त्र का एक ग्रन्थ / दण्ड देना को० अ० ४-निधानम् क्षमा करना, / वदातिः (0) स्वामित्व का परिवर्तन-अथ ददातिः -लेशम् थोड़ा सा. दण्ड मनु० 8151, वाचिक किलक्षणक: इति--मी० सू० 4 / / 28 पर शा० भा०। (वि.) वास्तविक या शाब्दिक (प्रहार), बारित वहनक्षम् (दहन-+ऋक्षम्) (नपुं०) कृत्तिका नक्षत्रपुंज। (वि.) दण्डित होने के डर से कोई काम न करने वानम् [दा+ल्युट्] 1. देना 2. सौंपना 3. उपहार वाला, दण्ड के डर से रुका हुआ / 4. दान 5. हाथी के गंडस्थल से बहने वाला रस / बष् (वि.) कीठ, साहसी, गुस्ताख सुग्रीवो निनदन् सम- परिमिता उदारता, दानशीलता की सीमा, दवक----भाष्टि०६।११७ / ___ --वर्षिन् (वि०) मदोन्मत्त हाथी। दध्मः (पुं०) यम का विशेषण / देय (वि.) [ दा-यत् ] समर्पण करने योग्य (मार्ग) बन्सः [दम्+तन् ] 1. दांत 2. हाथी का दांत 3. बाण पन्था देयो वरस्य : मन० 21138 / की नोक 4. पहाड़ की चोटी 5. बत्तीस की संख्या / / बालिकमा (स्त्री०) बासीक देश में स्थित एक स्थान का सम-उच्छिष्टम् दाँतों में लगा हुआ भोजन का नाम / अंश, - पत्रिका कंघी,--योजः अनार, (दन्तबीजः भी) राडिमबीजः (0)[0 त०] अनार का बीज / व्यापारः हाथी के दांत का कार्य। बाम्नी (स्त्री०) माला / बन्द्रम्यमाण (वि.) [द्रम् +यह+-शानच ] भिन्न-भिन्न | वायः [दा+घ ] 1. उपहार 2. वैवाहिक उपहार 'दिशाओं में चक्कर काटता हुआ-कठ० 112 / 5 / / 3: भाग 4. बपौती, वरासत 5. सम्बन्धी, रिश्तेदार / बमघोषः (पुं०) एक राजा का नाम, शिशुपाल का सम विभागः संपत्ति का बटवारा / पिता। चाराधिगमनम [ 100 विवाह / वमनकः (पं०) पञ्चतन्त्र की कहानिगों में एक गीदड़ दालमत्स्याह्वयः (पुं०) गोह / का नाम / दावहारः (0) लकड़हागा वम्भचर्या (स्त्री०) [10 ] धोखा, छल, कपट का दारणम् | णिच् + उनन् ] 1. क्रुरता, भीषणता आधरण। 2. कठोर, प्रतिकूल नक्षत्र मृग, पृष्य, ज्येष्ठा और वरम् [द+अप्] 1. विवर, कन्दरा 2. शंख, (श.) मूल। जरा सा कुछ। सम०--दलित (वि.) जरा सा | दारोदर (वि०) जूए से संबद्ध, जआ विषयक / खुला हुआ, - दृशा प्राधीयस्या दरदलितनीलोत्पलरुपा दाविका (स्त्री०) एक प्रका" का आँसों का अंजन / --सौन्दर्य,-मन्थर (वि.) ईषन्मन्द, जग धीमा। वाबों (स्त्री०) [टार-अण्+डीप्] 1. दारुहल्दी वर्भलवणम् [10 त०) घास काटने का यंत्र / 2. हल्दी का पौधा / दविका (स्त्री०) आंखों का अंजन / वार्षद (वि.) ( दी स्त्री०) [दषद+अण] 1. पथबशन् [सं० वि.) दस / सम०-क्षीर (वि.) जिसमें रीला 2. जो पत्थर पर पीसा जाय / दस भाग दूष हो,-धर्मः कष्ट, विपत्ति, योजना दान्ति (वि.) [ दृष्टान्त-+-अण् ] सादृश्य की सहायता दस योजन की दूरी। से व्याल्या किया गया, उदाहरण देकर समझाया बशा (स्त्री०) [ दश+अज, नि० टाप् ] 1. किसी कपड़े गया। की किनारी, गोट, मगजी 2. लैम्प की बत्ती वान्तिक (वि.) [ दृष्टान्त+ठक ] जो उपमा देकर 3. आयु 4. अवस्था 5. हालत 6. ग्रहों की स्थिति / किसी बात को समझाता है। सम० अंशः,-भागः बुरा समय-रा० 317218, बालवः (पुं०) एक प्रकार का विष / - फलम् जन्म पत्री में निर्देशित किसी विशेष समय | दाल्भ्यः (पुं०) एक वैयाकरण का नाम / का फल / दाशरथ (वि.) [ दशरथ+अण्] 1. यज्ञ से सम्बन्ध दाय (वि.)[दह+क्त ] 1. जला हुआ 2. शोकग्रस्त, . रखने वाला-महा० 12 / 8 / 37 पर टीका। दुःखी 3. अमंगल 4. सूखा। सम-जठरम जला वाशराश (वि.) [दशगजन अण् / दस राजाओं से पेट, भूखा पेट, गरीबी से मारा हुआ, वणजल जाने सम्बन्ध रखने वाला। से होने वाला पांव। | दासमीयः (0) [ दासं गृहणूद्रं मिमते मानयन्ति मैथुना For Private and Personal Use Only Page #1285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1276 ) विन्यस्ताः दासम्मः तन्ज. उभ्य वर्ण की स्त्री में शूद्र / 2. 'दीपफ' नाम का एक अलंकार, जसी का दूसरा पिता के द्वारा उत्पादित पर। नाम / दिनकृतम् (नपुं०) [HOTO नि का कार्यक्रम / दीर्थ (वि० [.-घा बा०] 1. लम्बा, दूरगामी विनस्पश् (नपुं०) [ दिनस्पश् - वि०५ / चान्द्रदिवस जी / 2. देर तक रहने वाला. टिकाऊ 3. गहरा 4. ऊंचा। सप्ताह के तीन दिनों के माथ मेल नाता है। सग अपाल (वि.) बड़े कटाक्षों से यक्त (भग) विवसावसानम् (नपुं०) संध्याकाल।। .... अपेक्षिन् (वि०) लिमाज करने वाला, सचेत, सावदिवसीक (तना० भ०) रात को दिन में परिणत करना धान,-चतुरस्रः दीवित.- समस् (पुं०) एक ऋषि .... निशा दिवसोकृता मच्छ० 413 / का नाम, टेषिन् (वि० ) जो देर तक वर-विरोष विवानक्तम् (अ) [10 स० ] दिन रात / बता , पत्रक: 1. गन्ना 2. एक प्रकार का दिव्यावदानम (नपं०) बौद्धधर्म का एक ग्रन्थ / लहसुन, ---पुच्छः सांप, बाह (वि०) लम्बी भजाओं दिव्यधुनी (स्त्री०) गंगा नदी। वाला, वच्छिका, घड़ियाल, मगरमच्छ / दिगवस्थानम् | दिक+अवस्थानम ] अन्तरिक्ष / दुःखम् [ दुःख्+अच् ] 1. अप्रसन्नता, कष्ट, पीडा 2. कठिदिग्भ्रमः [ दिश+भ्रमः ] दिशा की भ्रान्ति होना। नाई, असुविधा। मम० गतम् विपत्ति, संकट, हिकशूलम् [ दिश+-शूलम् ] दिशाशूल, यात्रियों को किन्हीं ... जोविन् (वि.) काट में जीवन व्यतीत करने बिशिष्ट दिनों में विशेष दिशाओं में जाने का प्रति वागा,-अयम् तीन प्रकार का दुःख आधिभौतिक, पेधक योग। आधिदैविक, और आध्यात्मिक, दुःखम् (अ०) दिष्ट ( विदिश+क्त ] 1. संकेतित. दर्शाया हआ | बड़ी कठिनाई के साथ,---पुखिन् (वि.) 1. जिसे 2. वणित, उल्लिखित 3. निश्चित, नियत,--ट: दुःख पर दुःख उठाने पड़े 2. जो दूसरों के दुःख (40) समय, एटम (नपुं०) 1. नियतन 2. भाग्य / से दुःखी हो,- लक्ष्य (वि.) जो कठिनाई मे काटा सम० गतिः मृत्यु, दृश् न्यायकारी परमात्मा | जा सके। यस्य तुष्यति दिष्टदक - भाग० 4 / 2 / 23, | दुःखाकृत (वि.) [ दुःख+आ+--क्त ] भाहत, दलित, -भाज् (पुं०) परमात्मा,---भुक (वि०) जो अपने परेशान नै०२२।१३८ / कर्मों का फल भोगता है।। / दुकूलपट्टः (0) रेशमी पट्टा या सिर की पट्टी। विष्टिद्धिः (स्त्री) [50 त०] बधाई, अभिनन्दन, दुन्दुभिः (पुं० स्त्री) [ दुन्दु+भण++इ) 1. एक साधवाद। प्रकार का बड़ा होल 2. विष्णु 3. कृष्ण 4. एक वेशना (स्त्री०) [ दिम् ---प: टाप ] निदेश, अध्यादेश प्रकार TT विष क. गंवसर चक्र में 56 वा वर्ष।। ....कमीप देगनास प्राकन धर्म हातमपेक्ष्यने-मी. मु. यन-मा० मुल दूर (10) 'दम का पर्याय नापी उपसर्ग-टू-रुक] 10111 पर गाभा / यह उपसर्ग वा कठोर' या कठिन के अर्थ को दीनता (स्त्री०) दीन-तला दुर्बलता, बलहीनता। . प्रकट करने के लिए नाम पद तथा क्रिया पदों के पूर्व दीक्ष (त्राल. प्रेर० आ०) प्रेरित करना, प्रोत्साहित जोड़ा जाता है। राम० अक्षरम् अमंगल सूचक करना--तस्वलमस्तमदिदीक्षतक्षणं नं० 18.100 / / शब्द,---अपवादः पिशुनदास्य, लोकापवाद, अपच्छर दीक्षणीयष्टिः उपमधन संस्कार से पूर्व अनष्ठेय गन / (वि०) जिसका गुप्त रसना कठिन है,-- अबसित दीक्षाश्रमः (0) वानप्रस्थाश्रम / (वि०) सीमारहित, अगाध, जो माग न जा सके, बोक्षायूपः (पु.) | न० म० ! राज़ की स्थूणा / -- आउघ (वि०) निर्धन, धनहीन,- आधिः (पं०) दीपः [दी - णिचु - अन् / लम्प, दीपक। राम / / 1. कष्ट, मानसिक चिन्ता 2. क्रोध, आपूर (वि०) अकुरः सैम की लौ, दीये की लौ, उच्छिष्टम् / जिसका भरना पटिन हो, जिसको मन्तुष्टन किया दीवे की माही. दहः दीवट, दीपन रखने की। जा सके,- आमोद: दुर्गन्ध, सड़ांद,--आवर्त (वि.) यष्टि / जिसे विश्वास न दिलाया जा गके, जो किसी प्रकार दीप्त (वि.)[दीप्त ] 1. जला हुआ, प्रकाशित, सुल- अपने मतानुकुलन बिगामा सके,- आसव (वि.) गाया हुभा 2. उसेजित, प्रदीप्त 3. उज्ज्वल,--प्स: 1. जिसे प्राप्त करना कठिन हो 2. अजेय, जिसपर (पुं०) 1. सिंह 2. नींबू का पेड़,-प्तम् (नपुं०) सोगा। आक्रमण न किया जा सके 3. जिसका सहन करना सम० आस्यः साँप, मिर्णयः निश्चित एवं वास्तविक / कठिन हो,--उदय (वि०) जो आसानी से प्रकट परिणाम, --निर्णय (वि०) जिसने अपना पका। ग हो सके, उयर्फ (वि०) जिसका बुरा परिणाम निर्णय कर लिया है। हो, जिसकागोई फल न निकले, उपसपिन् (वि.) वीप्यम दीप+यत+कन ] 1. मोर की शिखा जो अमावधानता पर्वक पहुंच रहा है, जो मावधानी दोनताटापा, For Private and Personal Use Only Page #1286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1277 ) से पास नहीं जाता है,-गुणितम् (नपुं०) i लितिका ( स्त्री० ) षक प्रकार की जानवरों की भलीप्रकार अध्ययन नहीं किया गया-शास्त्रं दुर खाल जिस पर बाल बहुत लगे होते हैं---कौ० अ० णितं यथा-अवि०२१४, -गोष्ठी कुसंगति, षडयंत्र, 2111 / --मयः 1. बुरी रणनीति 2. अनैतिकता 3. धृष्ठता वृतः[दु+क्त, दीर्घ: ] 1. हरकारा 2. एलवी, राजदूत / -नुपः बरा राजा,-व्यस्त (वि०) दुर्यवस्थित, सम० काम्या 'दूरासम्प्रेषण' ने विषग का काव्य, बाप (वि०) प्रतिबंधरहित, बुव (वि०) दुर्मना, जो मेघदूत वधः (47) दूत की हत्या करना दुष्ट मन बाला, भिषण्यम् (नपुं०) अविकित्स्यता, ..दूतवध्यां विगर्हता-रा०६५३,-संपातः,-संप्रेषणम् असाध्यता-बु० उ०१४. मकु (वि०) दूत भेजना। ढीठ, आशा न मानने वाला, मरम् (न०) कठिन इत्यम् [ दुत---यत् दृत का कार। मृत्यु, अप्राकृतिक मरण,-मषित (वि.) उकसाया दूर (वि०)। दुर्इ ण् - रक्, धातालापः | 1. फासल हुआ, भड़काया हुआ..---मैत्र शत्रु, वरी, ग्रामः पर, दूरी पर, दूर 2. अत्यन्त, बहत अधिक / सम० ब्राह्मणों (अग्रहारोपजीवी) की बस्ती के पास बसा ..... अपेत (वि०) प्रकरण से बाहर, अप्रासंगिक, असंहुआ गाँव, --विद्ध (वि०) जिसमें छिद्र ठीक प्रकार गत, आगत (वि०) दूरी से आये हुए, उत्सारित न हुआ हो (मोती), विमर्श (वि.) जिसकी परीक्षा / (वि०) दूर भगाया हुआ, - गामिन् (पु.) बाण, करना कठिन हो,- विवाहः अनियमित विवाह, 'पात, पातिन् (वि०) जो दूर से निशाना लगा व्यबहतिः (स्त्री०) मिथ्या अभियोग, झूठा ! नकता है---शास्त्रविद्भिरनाधृष्यो दूरपाती दृढ़व्रतः आरोप / ___महा० 5.165 / 25, पातनम् दूर तक निशाना दुरोणम् (वेद०) आवास, अतिथिदु राणसद् . ऋक् लगाना, श्रवणम्-श्रुतिःदुर से सुनना (एक 'सिद्धि 414015 / का भेद), -श्रवस् (वि.) दूर-दूर तक विख्यात / दूषक (वि०) [ दुप्-|-णिच् -बुल ] अधार्मिक, धर्महीन / दूरता, त्वम् [ दूर-+तल, त्व दुरी, फासला। दोषः / दुष्+घा ] 1. अपराध, द्रा, निन्दा, अटि दृडकः (पु.) वरती में खोद कर बनाया हुआ चूल्हा / 2. पाप, जुर्म 3. अवगुण, दुःस्वभाव 4. वात पित्त दृढ (वि.) [ दह, नक्त, नि० नलापः / 1. स्थिर, मजकफ का विकार। सग. अक्षरम दोषारोपण, बूत, अटल, अडिग, अथक 2. ठोस 3. पुष्टीकृत दोषारोप का शब्द आविष्कारणम दोपों को प्रकट 4. धैर्यवान् 5. सटा हुआ। सम०. पृति (बि.) करना,--निरूपणम् घटियों का संचल कन्ना। . दृढ़ निश्चय, साहसी, नाभः अस्त्र का प्रभाव रोकने दुस [ दु+सुक ] संज्ञा पदों के साथ, कम कभी क्रियापदों वाला मंत्र 0 11.05. पृष्ठक: कछुवा,-भूमिः के साथ भी, लगने वाला उपसर्ग, इसका अर्थ यौगिक अध्ययन में जिसने मन को केन्द्रित कर लिया है 'धुरा' 'दुष्ट' घटिया' 'कठिन' आदि ('दुस् का! है,-भदिन, वेधिन (पु.) अच्छा तीरन्दाज, 'स्' स्वरो तथा हर वर्गा से पूर्व 'र' में; छ से पूर्व ! --मन्यु (वि०) प्रचण्ड क्रोधी-भार्गवाय दृढ़मन्यवे 'श' में तथा कप से पूर्व 'ए' में बदल जाता है)। पुनः रष० 11164 -- वृक्षः नारियल का पेड़। सम-उपस्थान (वि.) अंगम्य, पहुँच के बाहर, दृतिः (पु०, स्त्री०) [+क्लिन् ह्रस्वः, 1 पिचकारी या -कुलम् अधम कुल ...स्त्रीरत्नं दुष्कुलादगि गनु० : नल . ता देवरानुत मन्त्रीन्सिणिचुतीभिः-भाग० २।२३८,-कुह (वि.)पाखण्डी, दम्भी० वृद्ध 118, 1075 / 17 / -कीत (वि०) जो उचित रूप सेन खरीदा गया दोपशान्तिः (स्त्री) घमंड यूर-चूर करना। हो,---चिक्यम ज्योतिष शास्त्र में लग्न से तीसरी दर्शवम् (अ०) हर दृष्टि में, प्रत्येक दृष्टि म / राशि,-प्रक्रिया नगण्य अधिकार-राज. 84, दर्शपूर्णमासन्यायः (पुं० ) ऐसा नियम जिसके आधार पर प्रतीक (वि.) पहचानने में कठिन-प्रद (वि.) बह कार्य जो अनेक फलों का उत्पादक है, एक समय दुःखदायी, पीडाकर--अब भीताः पलायन्तु दुष्प्रदास्ते में केवल एक ही फल उत्पन्न कर सकता है, अनेक दिशो दश-रा० २।१०६।२९,--मरम् असामयिक | नहीं--मी०सू०४।३।२५-२८ / और दुःखद मृत्यु, सधः 1, कुत्ता 2. मुर्गा,-संस्थित | दर्शनम् [ दश+ल्य] 1. देखना 2. प्रकट करना (वि०) देखने में कुरूप, निन्द्य, कलङ्कयुक्त,-स्थम् 3. जानना 4. दुष्टि 5. निश्चयात्मक कथन, उक्ति (अ)बरा, अस्वस्थ--दुःस्थं तिष्ठसि यच्च पथ्यमधुना --दर्शनादर्शनयोश्च दर्शनं प्रमाणम् मै० सं० 107 / कर्तास्मि तच्छोष्यसि--अमरु / 36 पर शा० भा०। दुम्बकूपिका (स्त्री०) एक प्रकार की रोटी। दर्शनीयतम (वि.) [ दुश् / अनीयर् - मप् ] जो देखने बुबाला (पुं०) एक प्रकार की मूल्यवान् मणि / में अत्यन्त सुन्दर है-दर्शनीयतम शान्तम भाग। For Private and Personal Use Only Page #1287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1278 ) दर्शनीयमानिन् (वि.) [ दर्शनीयमान+इनि ] जो अपने / का रथ, विमान,---नक्षत्रम् दक्षिणी दिशा में पहले ___ सौन्दर्य का अभिमान करता है, घमंडी। चौदह नक्षत्रों का नाम,--निन्दा नास्तिकता,-निर्माविवृक्षा (स्त्री०) [ दृश्+सन्-+-अ+टाप् ] देखने की ल्यम् देवताओं को उपहार देने में प्रयुक्त (फूल, माला इच्छा / आदि),-पुरोहितः 1. देवों का अपमा पुरोहित विक्षु (वि०) [दृश् +सन्+उ ] जो देखने का 2. बहस्पति ग्रह,--प्रसूतः (वि०) प्रकृति से उत्पन्न ___ इच्छुक है। (जल आदि), भोगः स्वर्गीय भोग, स्वर्गीय हर्ष, पश् (स्त्री०) [ दृश् / विवप् ] 1. दृष्टि 2. आंख / सम० ......माया दिव्य ध्रम -- तां देवमायामिव वीरमोहिनीम --अञ्चल: (दगञ्चल:) कटाक्ष, कनखी,-छत्रम् भाग० 10, मार्गः 1. बायु, अन्तरिक्ष 2. गुदा (दुकछत्रम्) पलक,—निमीलनम् (रहनिमीलनम) देवमार्ग च दर्शितम् रा० 5/62, रातः परीआँख मिचौनी, बच्चों का एक खेल,-प्रसाबा (दृक्- क्षित् का विशेषण, लक्ष्मम् ब्राह्मणत्व का चिह्न, यज्ञो. प्रसादा) एक नीला पत्थर जो अंजन की भांति प्रयक्त पवीत, सत्यम् दिव्य सचाई,-ह: बायाँ कान-भाग० किया जाता है, संगमः दृष्टिमिलन, नजर मिलना। 4 / 25 / 51 / दृशालुः (पुं०) [ दृश्+आलुच् ] सूर्य / देवितव्य (वि.) [दिन् | तव्यत् ] जए में दाँव पर दृश्यम् [ दृश् + क्यप् ] 1. देखे जाने योग्य 2. सुन्दर ... लगाने योग्य / 3. काव्य का एक भेद जो देखने के उपयुक्त है (विप० / देवीपुराणम् (नपुं०) एक उपपुराण का नाम / श्रव्य) / सम-इतर (बि०) जो दिखाई न दे, देवीभागवतम् (नपुं०) एक महापुराण का नाम / -स्थापित (वि.) आकर्षक रीति से रक्खा हुआ देवीमाहात्म्यम् (नपुं०) मार्कण्डेय पुराण का एक भाग , जिससे सभी उसको देख सकें दृश्यस्थापितमुद्दर्भ- जिसे सप्तशती कहते है। भिक्षाभाण्डमगाजिनाम्-कथा०२४।९२ देशः [ दिश--अच् ] 1. स्थान 2. प्रदेश 3. क्षेत्र 4. प्रान्त दृष्टसार (वि.) [ष० त०] जिसका बल या सामर्थ्य 5. विभाग 6. संस्थान 7. अध्यादेश / सम... अटनम् प्रमाणित हो चुका है- दृष्टसारमथ रुद्रकार्मुके रघु० / किसी, देश में भ्रमण करना,--कण्टकः सामाजिक बराई, देश की प्रगति में बाधक, काला (वि.) दृष्टिः (स्त्री०) [दृश्+क्तिन् 11. नजर, देखना 2. मान- जो व्यक्ति कार्य करने के सही स्थान और समय को सिक रूप से देखना 3. जानना 4. आँख 5. सिद्धान्त जानता है, विट (वि.) ठीक तरह से बिंधा हुआ (दे० दर्शन)। सम-प्रसादः दृष्टि की कृपा, दर्शन (मोती) दर्शक की सापेक्ष स्थिति के आधार पर का अनुग्रह,-मण्डलम् 1. आँख की पुतली 2. दुष्टि- बना गोल घेरा। क्षेत्र,-रागः आंख द्वारा प्रेमाभिव्यक्ति,--भवन्तमन्त-देशकः [दिश्+बुल | संकेतक, ज्ञापक, अनुबोधक / रेण कीदशोऽस्याः दृष्टिरागः श० 2011-12, सम० पटुम् (नपुं०) छत्रक, खुम्भी / -संभेवः पारस्परिक अवलोकन-रवयापि न निरूपिता | देशिकरूपिणी (स्त्री०) अध्यापिका के रूप में देवी, ललिता अनयोईष्टिसंभेद:---महा०७। का विशेषण। सुपरस्मन् (पुं०) चक्की का ऊपर का पाट। देष्टव्य (वि.) [दिश्+तव्यत् / इंगित या संकर्तित किये बुक्सारम् [ष० त०] लोहा - दृषत्सारस्तत्त्वामृतमपि न जाने के योग्य / -म० वी० 6.52 / / वेहः,-हम् [दिह+घञ्] 1. काया, शरीर 2. व्यक्ति देव (वि०) [दिव्+अच् ] 1. दिव्य, स्वर्गीय 2. उज्ज्वल 3. रूप / सम० . आसवः मूत्र,-कृत् 1. पाँच तत्व 3. पूजनीय, माननीय, ...1: (0) 1. देवता 2. वर्षा 2. पिता - अनरण्यस्य देहकृत् - भाग० 9714, का देवता 3. दिव्य मनुष्य, ब्राह्मण-दे० भूदेव -तन्त्र (वि.) शरीर धारी, मूर्तरूप धारण करने 4. देवर, पति का भाई, बम् (नपुं.) ज्ञानेन्द्रिय / वाला, पातः मत्यु,-भेदः मृत्यु,-यापनम् शरीर सम -अर्पणम् 1. देवों के प्रति उपहार 2. वेद-महा० का पालन पोषण करना,-विसर्जनम् मृत्यु,-वृन्तम् 13 / 86 / 17 पर टीका, कुसुमम् इलायची,-सातम्, नाभि,-सारः मज्जा। जातकम् 1. पहार की कन्दरा 2. सरोवर 3. मन्दिर देहिका (स्त्री०) एक प्रकार का कीड़ा। का निकटवर्ती तालाब,-गान्धारी संगीतशास्त्र में एक वक्ष (वि.) [दीक्षा+अण] 'अग्नीषोम' यज्ञ की दीक्षा राग का नाम, पहः भूत-प्रेतों की श्रेणी जो उन्माद लेने वाला। पैदा करती है, -तर्पणम् जल के उपहार से देयों को [वैप (वि.) [दीप-+अण] दीपक से सम्बन्ध रखने तप्त करना,-वत्य (वि.) जो देवताओं का भवि- याला / तव्य हो, उनके भाग्य से लिखा हो,-मिन्यम् देवों। देव (वि.) [देव---अण् ] 1. देवताबों से सम्बन्ध रखने For Private and Personal Use Only Page #1288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1279 ) वाला 2. दिव्य, स्वर्गीय 3. भाग्य पर निर्भर / सम० / -मण्डलम् जूआघर,--लेखक: जो जुए के खेल के -ज्य (वि.) बृहस्पति के लिए पुनीत, ऊठा ] प्राप्तांक लिखता है। 'देव' विवाह की रीति के अनुसार विवाहित स्त्री, | धोकारः (पुं०) स्थपति, वास्तुकार, सौषशिल्पी / -- चिन्ता भाग्यवाद,-रक्षित (वि०) अन्तर्जात, | ब्रङ्ग-जा नगर, पुरी-राज। नैसर्गिक,-रक्षित (वि०) देवों से जिसकी रक्षा को | ब्रवत् (वि.) [द्रु+शतृ ] 1. दौड़ता हुआ, बहता हुआ गई है-अरक्षितं तिष्ठति देवरक्षितं-सुभाष०, ... विद् 2. चूता हुआ, टपकता हुआ, बूंद बूंद गिरता हुआ। (पुं०) ज्योतिषी, -हत (वि.) जिससे देव धृणा प्रविः (0) (वेद०) धातुओं को गलाने वाला। करते हों, भाग्य का मारा। द्रविडशिशुः (पुं०) द्रविड देश का पुत्र, शैवसंप्रदाय का देवतसरित् (स्त्री०) गंगा नदी। एक सन्त-दयावत्या दत्तं द्रविडशिशुरास्वाद्य तव बसिक (वि०)[ दिवस+ठक] एक दिन में जो यत-सौन्दर्य। घटित हो। द्रविणोदः (पुं०) अग्नि, आग। वाकरिः (पुं०) 1. शनि ग्रह 2. यम 3. यमुना नदी। द्रविणोदयः [ष० त०] धन की प्राप्ति / शिक (वि.) [ देश+ठ ] गुरु के द्वारा शिक्षा द्रव्यम् [यत ऋग्वेद का मन्त्र जो साम के रूप में प्राप्त / प्रयुक्त किया जाता है-द्रव्यशब्दस्तु छन्दोगः ऋक्षु दोषकम् (नपुं०) एक छन्द का नाम जिसके प्रत्येक चरण आचरितः-मै सारा१४ पर शा० भा०। सम० में तीन भगण और एक गुरु को मिला कर दस - शतिः धर्म कार्य के लिए प्रयक्त पदार्थ की वर्ण हों। पवित्रता। बोलाचलचित्तवत्ति (वि.) जिसका मन हिंडोले की प्रष्टकाम (वि.) दर्श-भिलाषी, देखने का इच्छुक ___भांति इधर उधर सूल रहा है। "(पाणिनि के अनुसार काम और मनस्' के पूर्व 'तुम्' बोलाचलयन्त्रम् (नपुं०) एक प्रकार का यन्त्र जिसके द्वारा के 'म' का लोप हो जाता है)। कुछ औषधियां तैयार की जाती हैं। द्रष्टुमनस् (वि०) दे० 'द्रष्टुकाम' / पोलालोल (वि.) अनिश्चित / द्राक्केन्द्रम् (नपुं०) अपने अधिकतम वेग के बिन्दु से ग्रह बोस् (पु०, नपुं०) [ दम्यतेऽनेन दम् दोऽसि अर्धर्चा० ] की दूरी। ('दोषन्' शब्द को विकल्प से द्वितीया विभक्ति के | द्राक्षापाकः (0) काव्यशैली का एक प्रकार जिसमें रचना द्विवचन के पश्चात् 'दोस्' आदेश हो जाता है) ____सरल और मधुर हो (विप० नारिकेलपाकः) / 1. भुजा 2. किसी वर्ग या त्रिकोण की भुजा 3. अठारह द्राक्षासवः अंगूरों की शराब जो पुष्टिवर्धक के रूप में प्रयुक्त इंच की माप -मात० 1014 होती हैं। बोहरलाशीलता (स्त्री०) गर्भावस्था का बोला-उपेत्य | द्वाधिष्ठ (वि.) दीर्घ-+-इष्ठन] सबसे लम्बा, अत्यन्त सा दोहददुःखशीलताम्-रघु० 3 / 6 / / लम्बा,-ठः (पुं०) रीछ / दौरधरी (स्त्री०) बृहस्पति और शुक्र ग्रह का चन्द्रमा के | ब्राह्मायणः सामवेदियों के सम्प्रदाय के लिए लिखित साथ संयोग-जातकों के लिए अत्यन्त मङ्गलमय श्रौतसूत्र के कर्ता का नाम / समझा जाता है। पाद (वि.) लम्बे पैर वाला। सौर्षन (वि०) [ दुर्जन+अण् ] दुष्ट पुरुष से सम्बन्ध / / सगति (वि.) [ब० स०] द्रुत गति से जाने वाला। बौमितम् (नपुं०) [वभिक्ष+अण] अकाल पड़ना, | तमस्या दे० द्रुतविलम्बित।। पुभिक्ष होना। मः [दुः शाखास्त्यस्य, म.] 1. वृक्ष 2. कल्पवृक्ष 3. कुबेर गोवत्यम् (नपुं०) [ दुत्त+ध्यम ] आज्ञा न मानना / का विशेषण / सम०-अन्जम् कर्णिकार वृक्ष, कनियर दोस्थ्यम् (नपुं०) [दुस्थ+ध्यम ] दुःखद स्थिति / का पौधा,-स -बम: वृक्षों की वाटिका, कुंज, बोहारिकः [ दोहव+8 ] प्राकृतिक दृश्यों का माली -निर्यासः वृक्ष का रस, लोबान,-वासिन् (पु०) नै०६६१। चुपयः [प० त०] हवाई मार्ग / इक्काणः (4) राशि की अवधि का तीसरा भाग। चुरलम् (नपुं०) सूर्य। युसन्धवः (0) इन्द्र का घोड़ा, उम्पैःश्रवा / प्रोणकम् (नपुं०) [दुण्+अच्, कन्] समुद्र के किनारे का चूतः सम् [दिव+क्त, अर्घर्चा०] 1. जूमा खेलना, नगर जिसमें किलावन्दी की गई हो। पासों से खेलना 2. युद्ध, संग्राम 3. जीता हुआ द्रोणम्पच (वि.) आतिथ्य सरकार करने में उदार। पारितोषिक / सम-धर्मः जूबा खेलने के नियम, डौनेयम् (नपुं०) एक प्रकार का नमक / For Private and Personal Use Only Page #1289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1280 ) प्रौहिक (वि.) द्रोह+ठक सदैव धूणा का पात्र की भ्रान्ति,-जः ब्रह्मचारी, जातिः जिसके दो द्वनम् द्विौ दो सहाभिव्यक्ती-द्विशब्दस्य द्वित्वं पूर्वपदस्य पत्नियाँ है, फालबद्धः 1. दो ओर बंटे बाल अम्भावः, उत्तरपदस्य नपुंसकत्व-नि०] एक ओर, 2. जिसने अपने बालों को कंघी करके दो भागों में एकान्त स्थान, द्वन्द्वे ह्येतत् वक्तव्यम् रा. 7 / / बाँट दिया है, बाहुः मनुष्य कथा० 53 / 94, १०३।१३,-आलापः दो व्यक्तियों के मध्य वार्तालाप, -भातम् संध्या समय,- मुनि (अ०) दो मुनि --गर्भ (वि.) बहुव्रीहि समास जिसके मध्य द्वन्द्व ---पाणिनि और कात्यायन, वक्त्रः दो मुंह वाला निहित हो,--दुःखम् हर्ष और शोक आदि की परस्पर सांप,.. वर्गः प्रकृति और पुरुष का जोड़ा, व्याम विरोधी भावनाओं से उत्पन्न दुःख / (वि०) बारह फुट लम्बा (व्याम- 6 फुट),--स्थ, द्वार्ग (वि.) [द्वार+ग] दरवाजे पर खड़ा हुआ। (-2) (वि०) दो अर्थ प्रकट करने वाला-भवन्ति च द्वारम् [+णिच् + अच्] 1. दरवाजा 2. प्रवेश द्वार | द्विष्ठानि वाक्यानि मी०सू०४।३।४ पर शा० भा०। 3. शरीर के नौ द्वार। सम-बाहः (पुं०) चौखट, | द्विक (वि.) [द्वि+क] 1. दोहरा, दो तह का 2. दूसरा -अररिः किवाड़ का पट या पल्ला, वंशः सरदल / 3. दूसरी बार घटित होने वाला,-क: 1. कौवा हि (सं वि०) +डि] दो। सम० अन्तर (वि०) दो 2. चक्रवाक पक्षी / सम---पष्ठः दो कूब वाला ऊँट / घटकों द्वारा अन्तरित, अवर (वि.) न्यूनातिन्यून | द्वितीयगामिन् (वि.) जो दूसरे पदार्थ पर घटता हो दो,-आम्नात (वि०) दो बार वणित,- आहिक द्वितीयगामी न हि शब्द एष नः रघु० 3.49 / (वि०) हर तीसरे दिन होने वाला (बुखार) द्वेषस्थ (वि०) घृणा करने वाला। -एकान्तरम् एक अंश या दो अंश से वियुक्त द्वय-द्वीपवासिन् (वि०) टापू पर रहने वाला,-.सी (पु.) कान्तरासु जातानां धयं विद्यादिमं विधिम-मनु० खजरीट पक्षी। १०७,-कर (वि०) दो प्रयोजन पूरा करने वाला, वेषीकरणम् (नपुं०) दो भाग करना / -कार्षापणिक (वि०) दो कार्षापण के मूल्य का, हकाल्यम् (वि० सद्यस्कालता, ऐककाल्य) दो दिन तक - चन्द्रधाः आख म खराबी के कारण दा चन्द्रदर्शन / अनुष्ठान चलते रहने की विशेषता। पगिति (अ.) एक क्षण में, अकस्मात् / भरणीतलम् [10 त०] धरती की सतह / भनम् [धन्+अच् ] 1. सम्पत्ति, दौलत, कोष, रुपया पैसा धरणीविडोजः (पुं०) [ष० त०] राजा। 2. कोई भी मूल्यवान् सामान, प्रियतम कोष 3. लूट-: परा[ध-अच्+-टाप् ] पृथ्वी, धरती। सम०-उपस्थः मार का धन 4. पारितोषिक 5. धनिष्ठा नक्षत्र i (पु.) पृथ्वीतल, धरती की सतह / 6. जमा का चिह्न (विप० ऋण)। सम-आदानम धरित्रीमत् (पुं०) [ धरित्री+भ--क्विप] राजा / धन ग्रहण करना,---आशा (स्त्री०) घन की इच्छा / धर्मः [+मन् ] 1. किसी जाति के परम्परागत अनुष्ठान, --चाम्यम् रुपया पैसा तथा अनाज,-सूः (पुं०) 2. विधि, व्यवहार, प्रथा 3. नैतिक गुण 4. गण, सचाई द्विशाखी पूंछ वाला किरोला नामक पक्षी, मूः : 5. चार पुरुषार्थों में से एक 6. कर्तव्य 7. न्याय / (स्त्री०) वह माता जिसके कन्याएँ ही हों। सम०-- अक्षरम पवित्र मंत्र, आस्था का नियम, धनिन् (वि.) [धन+इनि] वैश्य जाति-- ऊरुजा / अपवेशः धर्मानुष्ठान का बहाना धर्मापदेशात् - बनिनो राजन-महा० 12 / 2966 / त्यजतश्च राज्यमरा० 5138, शयनम् विधि का धनुरासनम् (नपुं०) योगशास्त्र में वर्णित एक कायिक क्रम, अहन् (नपुं०) कल जो बीत चुका, आकमुद्रा। तम् रामायण की एक टीका का नाम,-ईप्सु (वि०) धनुर्पहम् (नपुं०) एक माप, 27 अंगुल को माप, एक धर्मलाभ प्राप्त करने का इच्छुक,- उपचायिन् (वि०) हस्तपरिमाण की माप / धर्मवृद्ध, घामिक,-छल: धर्म का कपटपूर्ण उल्लधन्वनम् [ धन्व् + ल्युट् ] 1. धनष 2. इन्द्रधनुष 3. धनु ! अघन, दक्षिणा धर्मशिक्षा का शुल्क, परिणाम: राशि। हृदय में सदाचरण का उद्बोधन, --प्रतिरूपक: कपटधमधमाय (ना.धा.) जगमगाना, निगल जाना। धर्म, छम धर्म,-प्रधान (वि.) पवित्राचरण में परः [1+अच् ] तलवार / सम.एम् (नपुं०) विष, मुख्य, प्रेक्य (वि.) धार्मिक, गुणी, बाह (वि.) जहर। धर्म से पराङ्मुख, धर्म विरोधी,-शुद्धिः आचरण की For Private and Personal Use Only Page #1290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1281 ) पवित्रता,-समयः वैध दायित्व, सूत्रम् जैमिनिकृत | पिष्ठित (वि.) [अधि+स्था+क्त, दे० पिधानं ] पूर्वमीमांसा पर लिखा गया ग्रन्थ / 1. सुस्थापित 2. खाई में सुरक्षित - शाल्वो वहायसं घर्षणम् [घष् + ल्युट] 1. साहस, धृष्टता 2. हराना, परा- चापि तत्पुरं व्यूह्यधिष्ठित:--महा० 3 / 15 / 3 3. ठहरा जय-घर्षण यत्र न प्राप्तो रावणो राक्षसेश्वर:-रा० हुआ, निश्चित / 7 / 313 / धीः [ध्ये भावे क्विप् संप्रसारणं च] 1. बुद्धि 2. मन, धातुः[पा+तुन् ] 1. घटक, अवयव 2. तत्व, प्राथमिक 3. विचार 4. कल्पना 5. प्रार्थना 6. यज्ञ 7. (जन्म द्रव्य 3. रस, अर्क / सम - गर्भः, स्तूपः भस्म रखने कुंडली में) लग्न से पांचवाँ घर / सम-विभ्रमः का पात्र,-चूर्णम् पिसा हुआ खनिज पदार्थ,--प्रसक्त दृष्टिभ्रम / (वि०) रसायन कार्य में व्यस्त / धुन्धकम् (नपुं० ) 1. लकड़ी में विशेष प्रकार का धातुकः,-कम् शिलाजीत / दोष 2. वृक्ष के तने में छिद्र जो उसके क्षय का धातु (पुं०) [घा+तच ] भाग्य, किस्मत / पात्रीपुठिपका (स्त्री०) एक वृक्ष का नाम / पन्धरिः,-री (स्त्री०) एक प्रकार का वाद्ययंत्र, संगीतधाम्यम् [धान+यत् ] अनाज, अन्न / सम० - खलः खलि- उपकरण। हान,---चोरः अन्न चुराने वाला, -- मुष्टिः मुट्ठी भर | धुर्यवाहः (0) बोझा ढोने वाला जानवर / अनाज। धुर्यता [धुरं वहति यत्, तस्य भावः, तल्] नेतृत्व / धाममानिन् (वि०) [षामन्+मान+इनि, नलोप: ] धूणकः (पुं०) लोबान / भौतिक सत्ता में विश्वास रखने वाला-नवेशितुं प्रभु-घतगणः जिसने तीनो गुणों को पार कर लिया है, जो अब भूम्न ईश्वरो धाममानिनां भाग० 3 / 11138 / भौतिक सुखों से परे पहुंच गया है, संन्यासी। घामवत् (वि.) [धाम+ मतुप् ] शक्तिशाली, मज़बूत | धूपः [धूप+अच्] 1. सुगन्ध 2. सुगन्धयुक्त वाष्प या घूआँ / पुरस्सरा धामवतां यशोधनाः कि० 1243 / " सम-मत्रम् धूमनलिका, हुक्के की नली,- बत्तिः पाग्या (स्त्री०) [सामिनी ऋग् या समिदाधाने पठ्यते ] एक प्रकार की सिगरेट / / 1. यज्ञाग्नि को सुलगाते समय गाया जाने वाला | धूमः [धू+मक] 1. धुआं 2. वाष्प 3. कुहरा, धुंध / सम० प्रार्थना मंत्र 2. इन्धन - कोषाग्नो निजतातनिग्रहकथा- उपहत (वि.) धुएं के कारण अंधा हुआ, धाय्यासमद्दीपिते-राम० 2 / 6, नै० 1156 / -निर्गमनम् चिमनी जिसमें से धुआं निकलता है, धारणम् [-णिच+ल्यूट ] पीड़ा को शान्त करने के .. - महिषी धुंध, कुहरा,-योनिः बादल / लिए मन्त्र / सम० - मन्त्रम् एक प्रकार का ताबीज़। | घूमरी (स्त्री०) धुंध, कुहरा। पारणा [+णि+युच-+टाप् ] योग का एक अङ्ग। धूम्र [धूमं तद्वर्ण राति रा+क] 1. धुएँ के रंग का 2. भूरा सम० -आत्मक (वि.) जो अपने आपको आसानी -श्रः ऊँट / से स्वस्थचित्त या प्रशान्त कर लेता है। धूलिधूसरित (वि०) मिट्टी में लोटने से भूरा हुआ-गोधूलि. धारयिष्णुता [घ+णिच् +इष्णुच+तल] सहनशक्ति, धूसरितकोमलकुन्तलाग्रम् - कृष्ण। सहिष्णुता। 5 (भ्वा०; तुदा० मा०) इरादा करना, मन करना / धारा (स्त्री०) मालवा देश की एक नगरी। घृत [+क्त] संकल्प किया हुआ, दृढ़,-रिपुनिग्रहे घृतः पारा [+णिच् +अ+टाप्] 1. पानी की धार, -रा० 4 / 27 / 47 / सम-उत्सेक (वि०) घमण्डी, गिरते हुए किसी तरल पदार्थ की पंक्ति 2. बौछार --एकवेणि (वि.) एक चोटी धारी--शि०७।२१, 3. लगातार पंक्ति 4. घड़े में छिद्र 5. किसी वस्तु का -गर्भ (वि.) गर्भिणी,-मानस पक्के इरादे वाला, किनारा। सम-आवत: भंवर, फिरकी,--ईश्वरः दृढ़मना। राजा भोज, संपातः लगातार बौछार,-शीत (वि०) पतिः [+क्तिन्] 1. एक छन्द का नाम 2. अठारह की धारोष्ण दूध ठंडा किया हुआ। संख्या। पार्मिकः [धर्म+ठक] 1. न्यायकर्ता 2. धर्मान्ध, कट्टर- धृष्टकेतुः (पुं०) धृष्टद्युम्न के पुत्र का नाम / पन्थी 3. बाजीगर। धृष्टवादिन (वि०) निर्भीक होकर बोलने वाला। धावित (पुं०) [षा+तृच ] दौड़ने वाला गौर्वोढारं घेनः [धयति सुतान्-धे+न, इच्च] 1. गाय 2. दूध देने पावितारं तुरङ्गी-महा० 11 / 26 / 5 / वाली गी 3. पृथ्वी 4. घोड़ी मी० सू०७४।७ पर धित (वि.) [धा+क्त ] 1. रक्खा गया, अर्पण किया शा० भा०। गया 2. संतुष्ट, प्रसन्न।। धेनुका (स्त्री०) 1. हथिनी 2. दुधारू गाय 3. उपहार विवादः [धिक +व+घञ्] भत्र्सनापूर्ण उक्ति, निन्दा। 4. खड्ग 5. पार्वती। को शान्त करने के मरी (स्त्री०) धुध, कुह 1. धुएं के रंग का For Private and Personal Use Only Page #1291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Y ( 1282 ) पेय (वि०) [घे+ण्यत्] कार्य में परिणेय, प्रयोज्य, सम-केतुः एक प्रकार की उल्का, टूटा हुआ तारा, -~-अव्याकुलं प्रकृतमुत्तरघेय कर्म-शि० 5 / 60 / -गतिः निश्चित मार्ग,-मण्डलम् ध्रुवीय क्षेत्र,-यष्टिः पर्यम् धीरस्य भावः-व्यञ] 1. दृढ़ता, सामर्थ्य, टिकाऊ- ध्रुवों की धारा, शील (वि.) जिसका आवास पन 2. स्वस्थचित्तता, प्रशान्ति 3. साहस / सम० | निश्चित है। --कलित (वि०) धीर, अक्षुब्ध,--वृत्तिः धीरज से ) ध्वंसः [ध्वंस्-+-घा] 1. अधःपतन, डूबना 2. लुप्त होना, पूर्ण आचरण ओझल होना 3. नाश, विनाश, खंडहर। सम० चौत (वि.) [घाव+क्त] 1. धोया हुआ, प्रक्षालित, ---अभावः पदार्थ के विनाश से उत्पन्न अभाव या स्वच्छ किया हुआ 2. उज्वल किया हुआ, चमकाया सत्ताहीनता,-कारिन् (वि.) 1. नाश करने वाला हुआ 3. उज्वल, चमकीला / सम०-अपाङ्ग (वि.) 2. उल्लंघन करने वाला। जिसकी कनखियाँ चमकीली हों, आस्मन् (वि०) ध्वस्ताक्ष (वि.) [ब० स०] जिसकी आँखें डब गई हों पवित्र हृदय वाला। (जैसी कि मृत्यु के समय) प्रकीर्णकेशं ध्वस्ताक्षम् चौतेयम् [घौति+ठक्] सैन्धव, पहाड़ी नमक, लाहौरी | ---- भाग० 7 / 30 / नमक। ध्वजः [ध्वज्+अच्] 1. खड्ग का एक भाग 2. झंडा, भौम्यः (पुं०) एक ऋषि का नाम / 3. पूज्य व्यक्ति 4. ध्वजा की यष्टि 5. चिह्न, प्रतीक / ध्यानधिष्ण्य (वि.) ध्यान का अभ्यास करने के योग्य / सम० -- आरोहणम् झंडा फहराना, * आरोहः झंडे पर ध्यानमुद्रा 0 त०] ध्यान या चिन्तन करने की विशेष एक प्रकार की सजावट, - उच्छयः धूर्तता, पाखंड। स्थिति या मुद्रा। ध्वजिन् (वि.) [ध्वज+इनि] धूर्त, पाखंडी--माल. ध्रुव (वि.) [ध्रु+क] स्थिर, अचल, स्थायी, अनिवार्य, 121158 / 18 / -- (0) 1. खूटी-नाना० 2. ज्योतिष का एक | ध्वनिनाला (स्त्री०) 1. वीणा 2. एक प्रकार का लम्बोतरा योग 3. मूलविन्दु 4. ध्रुव तारा,--वम् (नपुं०) ढोल, तासा। निश्चित किया बिन्दु, - वा (स्त्री०) धनुष की डोरी। | ध्वान्तजालम् रात्रि का आवरण, अंधकार का समूह / नष्ट (वि.)[नंश+तच ] हानिकारक, विनाशक / नगापगा। (स्त्री०) पहाड़ी नदी / नहंसः [ हसन्ति विकसन्ति ते हंसा:-नमन्तो हंसा येषां ते | नगनदी / नहसा: ] अपने भक्तों पर कृपा करने वाला . महा० नगरमण्डना (स्त्री०) वेश्या / 11170 / 15 पर टीका। | नगरिन् (पुं०) [नगर+इनि नगरपाल / नकल/नास्ति कूलं यस्य, समासे नगो नलोपः प्रकृति- नग्नह (नपुं०) आसव तैयार करने के लिए उठाया गया भावात् ] नीच कुल में उत्पन्न-नकुलः पाण्डुतनये खमीर, किण्वन / सर्पभुककुलहीनयोः -नाना। सम-ईशः तान्त्रिक नग्नचर्या (स्त्री०) नग्न रहने की प्रतिज्ञा / पूजा की एक रीति,-द्वषी सांप-- नकुलद्वेषी तथा / नग्नाचार्यः (पुं०) चारण, भाट, स्तुति पाठक / पिशुनः - वास। नटनारायणः (पुं०) संगीत शास्त्र में वर्णित एक राग। नक्तन्तन (वि.) [ नक्तं+तन ] रात्रि से संबंध रखने नटवत् (वि.) [नट+मतुप | नाटक के पात्र की भांति वाला रात का। व्यवहार करने वाला। नक्रकेतनः[ब.स.1 कामदेव / / नडमीनः (40) एक प्रकार की मछली। नक्रमक्षिका (स्त्री०) [ष० त०] जल की मक्खी। नतनाभि (वि.) [ब. स.1 सुकुमार, तन्त्री .--तस्याः नक्षत्रम् [ नक्षरति नक्ष अनन् ] 1. तारा 2. तारापुंज, प्रविष्टा नतनाभिरन्धं रराज तन्वी नवलोमराजिः 3. मोती 4. सत्ताइस मोतियों की माला। सम. - कु. 1138 / -इष्टिः एक यज्ञ का नाम,-उपजीविन् (पुं०) | नत्यूहः (पुं०) एक प्रकार का पक्षी-रा० 2 / 56 / 9 / ज्योतिषी,--भोगः नक्षत्र की कालावधि,-लोकः तारों नत्रम् (नपुं०) एक प्रकार का नाच / का प्रदेश। नदीकलम् [ष० त०] नदी का किनारा, नदी तट। मसान्यासः [ष० त०] नाखून अन्तविष्ट करना, पंजा नवीतर (वि.) [नदी तरतीति-तु+अच ] नदी को धुसेड़ देना। / पार करने वाला। For Private and Personal Use Only Page #1292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1283 ) नदीमार्गः [ष० त०] नदी का जलमार्ग / / नर्मय (ना० धा०) रिझाना, दिल बहलाना / नदीमुखम् [ष० त०] नदी का महाना, जहाँ से नदी | नौयितम् [ नर्मय+क्त ] खेल, क्रीडा। निकलती है, नदी का उद्गम-स्थान / नल: (पुं०) [नल-अच् ] 1. संवत्सर 2. लम्बाई की ननान्दृपतिः [ष० त०] ननदोई, पति की बहन का पति। माप जो चार हाथ के बराबर होती है। सम०-सूला नन्दकः [नन्द +पवुल] एक रत्न का नाम कौ० एक प्रकार का जलीय जन्त, पाकः राजा नल द्वारा अ० 2 / 11 / तैयार किया गया स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ / नन्दन (वि.) [नन्द् + ल्युट ] आनन्द देने वाला, प्रसन्न नलिका (स्त्री०) नली। करने वाला, ... नः (पु.) 1. पुत्र 2. मेंढक,---ना नलिनी (स्त्री०) [नल-णिनि-डीप] 1. कमल का पौधा (स्त्री) पुत्री, -नम् इन्द्र का नन्दन बन / सम० 2. कमलों से सुवासित सरोवर 3. धुंध 4. नथना 5. इन्द्र जम् पीली चन्दन की लकड़ी,-द्रुमः नन्दन वन का पुरी,(शक्रपुरी)। सम०-वलम्,-पत्रम् कमल का पत्ता / पृक्ष, पारिजातवृक्ष, कल्पवृक्ष, वनम् दिव्य वाटिका, | नवद्वीपः (पुं०) एक टापू का नाम / यह गङ्गा और इन्द्र का उपवन / जलङ्गी के संगम पर बंगाल में एक स्थान है जिसे नन्दिः (पुं०, स्त्री०) [नन्द-|-इन् ] हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आजकल 'नदिया' कहते हैं।। --दिः (पु.) 1. विष्णु 2. शिव 3. शिव का गण | नवश्राद्धम (नपुं०) मत्य के पश्चात विषम दिनों में अन4. (नाटक में) नान्दी का पाठ करने वाला। सम० ष्ठित श्राद्ध / -- देवी हिमालय की एक चोटी,-नागरी एक लिपि नवीभावः [ नव+च्चि-+-भू+घञ ] नया होना। (लिखावट) का नाम,- पुराणम् एक उपपुराण, | नवन् (सं० वि०) [नु+कनिन्, बा० गुणः] (ब० व०) -वर्धनः मित्र / नौ, नौ की संख्या / सम-कपालः नौ कपाल जैसे नन्विसुतः [ नन्दिन+सतः, नलीपः ] व्याडि मुनि / ठीकरों में पकाए हुए पिण्ड का उपहार, - ग्व (वि०) नन्दी (स्त्री०) [ नन्दि +डीप ] दुर्गा देवी। नौगुणा, नौ तह का,-चण्डिका (स्त्री०) दुर्गादेवी के नभिः [नभ् +इन् ] पहिया। नौ रूप (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्मांडा, नमोरूप (वि०) [नह ---असून भश्चान्तादेश:-ब० स०] स्कन्दमाता, कात्यायनी, महागौरी, कालरात्रि और अन्धकारयुक्त, काला। सिद्धिदा),--धातुः (पुं०) नौ धातु (हेमतारारनानभोवीथी [ नभस्+वीथी] सूर्य का मार्ग, हवाई मार्ग। गाश्च ताम्ररङ्गे च तीक्ष्णकम् / कांस्यकं कान्तलोहं च नमश्चमसः (पुं०) [ नमस्+चमसः ] 1. एक प्रकार का धातवो नव कीर्तिताः), --पञ्चमम विवाह के विषय यज्ञपाक 2. चन्द्रमा / में जन्मकुण्डली में एक अमंगल योग जब कि दुल्हन नम्रनासिक (वि.) [ब० स०] चपटी और मोटी नाक की जन्मराशि दूल्हे की जन्मराशि से पांचवें या वाला। नवें हों। नयनम् [नी+ ल्युट् ] 1. नेतृत्व करना 2. निकट ले नष्ट (वि०) [नश्+क्त ] 1. खोया हुआ, अन्तहित, जाना 3. आँख / सम० - अञ्चल: 1. आँख का कोना ओझल 2. मृत, ध्वस्त 3. विकृत, बिगड़ा हुआ 2. कटाक्ष, कनखी, -चरितम् 1. कटाक्ष, कनखी 4. वञ्चित 5. भ्रष्ट,-ष्टम् (नपुं०) 1. नाश 2. अन्त2. दृकपात, दृष्टिपात, - जम् आँसू, बुबुदम् आँख र्धान / सम० ...चन्द्रः भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि का गोलक। जब कि चन्द्रमा का देखना निषिद्ध है, - दृष्टि (वि.) नरः [ न+अच ] 1. मनुष्य 2. व्यक्ति / सम-चिह्नम् अन्धा,-.धी (वि.) भूल जाने वाला, ध्यान न देने मूंछ,- देवः राजा। वाला, बीज (वि.) नपुंसक, पुंस्त्वहीन, - रूप नरकचतुर्दशी दीपावली का दिन / (वि.) अदृश्य / नरकवासः (पुं०) नरक में रहना / नशाक; (पुं०) एक प्रकार का कौवा। नराचः (पुं०) एक छन्द का नाम / नाकः [न कम् अकं दुःखम, तन्नास्ति यत्र 1 1. स्वर्ग नर्दटकः (0) एक छन्द का नाम / 2. अन्तरिक्ष 3. सूर्य। सम... नदी स्वर्गीय नदी, नर्मस्फोट: [ नर्मन+-स्फोट:, नलोपः ] 1. प्रेम के आदि- स्वगंगा, नारी, अप्सरा,---लोकः स्वर्गलोक, दिव्यचिह्न 2. मुहासा। लोक / नर्मालापः [ नर्मन+आलापः, नलोपः] प्रेम वार्ता, आमोद-नाकुः (0) वाल्मीकि म नि / / प्रमोद की बातचीत / | नागः [न गच्छति इति अगः, न अग इति नागः 11. सांप मोक्तिः (स्त्री०) [नर्मन्+उक्तिः, नलोपः] हास्यपरक 2. हाथी 3. बादल 4. बिगुल,म् 1. टीन 2. जस्ता अभिव्यक्ति। 3. रांगा 4. एक प्रकार का रतिवन्ध / सम -आस्ट For Private and Personal Use Only Page #1293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1284 ) (वि.) हाथी पर सवार, केतुः कर्ण का विशेषण, / नाभस्वत (वि.) [ नभस्वत्+अण् ] वायु से संबन्ध -द्वीपम् भारत वर्ष का एक टापू, नासोर (स्त्री०) रखने वाला। वह स्त्री जिसकी सुन्दर जंधाएँ आकार प्रकार में हाथी | नाभागः (पुं०) एक राजा का नाम, वैवस्वत मनु का की संड से मिलती जुलती हैं, पर्णी पान का पौधा, पुत्र, अम्बरीष का पिता। ---बन्धः एक प्रकार का नाम,--रिपुः गरुड़ / नाभिः,-भी (पुं० स्त्री०) [नह.+इञ, भश्चान्तादेशः ] मागरक: [ नगर+अण, स्वार्थ कन् / नगर पिता / 1. सुंडी 2. सुडी के समान कोई भी गहराई-पुं० नागरकाः परस्पर विरोधी ग्रह / 1. पहिए की नाह 2. केन्द्र, मुख्य बिन्दु 3. खेत / नागरवृत्तिः / ष० त० ] नागरिकों की शिष्टता, शिष्टा- सम...... गन्धः कस्तूरी की बू या गन्ध,-वर्षम् जम्बू चार, शालीनता। द्वीप के नौ वर्षों में से एक। नागार्जुमः (पुं०) एक बौद्ध शिक्षक का नाम / / नाभोगः [न+आभोग:] 1. देवता 2. साँप-नाभोगभोज्यो मागोजीभट्टः (पुं०) एक प्रसिद्ध वैयाकरण का नाम / हरिणाधिरूढः सोऽयं गरुत्मानिव राजतीन्द्र:-..रा० नाटकम् [ नट+वल ] 1. दृश्य काव्य 2. नाट्यरचना के च०६।८४ / मुख्य दस भेदों में प्रथम भेद / सम० - प्रपञ्चः नाटक नामावशेष (वि०) [ब० स०] जिसका केवल नाम ही रह करने की व्यवस्था, प्रयोगः नाटक का अभिनय गया है, मृतक / करना,-रङ्ग नाटक का रङ्गमञ्च, लक्षणम्, नाट्य- | नायकायते (ना० धा० आ०) 1. नायक का अभिनय रचना विषयक विविध नियम / करना 2. मोतियों के हार में केन्द्रीय रत्न या मणि का नाट्यम् [ नट+ष्या ] 1: नाच 2. नाटक प्रस्तुत करना, काम देना। अभिनय करना 3. नृत्यकला 4. नाटक के पात्र की नाराचः नरान् आचायति-आ+चम+ड, स्वार्थे अण, वेशभूषा। सम० --- अङ्गानि नृत्य के दस भाग, नारम् आचामति वा] 1. पूर्व दिशा को जाने वाली --आगारम् नृत्यकक्ष, नाचघर,--रासकम् एक प्रकार सड़क 2. मूर्ति को उसके स्थान पर जमाने के लिए का एकाडकी नाटक,-वेदः नाट्यशास्त्र या नाट्य- धातु की बनी चटखनी या कील / कला का विज्ञान / नारायणास्त्रम् (नपुं०) एक अस्त्र का नाम / नाडी [ नड्+णिच+इन् - नाडि+ङीष् ] 1. पौधे का | नारायणसूक्तम् (नपुं०) ऋग्वेद का पुरुष सूक्त / नलिकामय डण्ठल 2. कमल का खोखला काण्ड | नारीनाथ (वि.) [ब० स०] जिसके स्वामित्व अधिकार 3. शरीर का नलिकायुक्त अंग (जैसे कि शिरा या किसी स्त्री के पास है। घमनी)। सम० - चक्रम् मूलाधार आदि शरीर के | नारोमणिः (स्त्री० [स० त०] स्त्रीरत्न / स्नायुओं के तन्त्री केन्द्रों का समूह, पात्रम् जलघड़ी, | नालायन्त्रम् 1. तोप 2. निगल, नाली। -ग्रन्थः ज्योतिष की नाडी शाखा पर एक पुस्तक / | नासत्यौ (पुं०, द्वि० व०) [नास्ति असत्यं यस्य, न० ब०, नाणकम् (नपुं०) सिक्का, मुद्राङ्कित कोई वस्तु / सम० | | नशः प्रकृतिवद्भावः] दोनों अश्विनीकुमार। -परीक्षा सिक्के को परखना, परीक्षिन् (वि०) | नासान्तिक (वि.) [नासा -अन्तिक] नाक तक पहुंचने सिक्कों का पारखी, परीक्षक / वाला (लकड़ी आदि)। मापितम् | नाथ्+क्त ] मांग, प्रार्थना। | नासावेषः (पुं०) [ष० त०] नाक का वींधना, नासिकानामर्दमान (वि०) [ नई + यङ+शानच् ] उच्च स्वर से वेध संस्कार। शब्द करने वाला। नासिकः (पुं०) महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित एक पुण्यस्थान / नाना (अ०) [न+नाज ] 1. भिन्न-भिन्न स्थानों पर, | | नाहल: (पुं०) जातिच्युत समुदाय का व्यक्ति, जाति भिन्न-भिन्न रीति से, विविध प्रकार से 2. स्पष्ट रूप | बहिष्कृत। से, पृथक रूप से 3. विना 4.(समस्त विशेषणों में | निःक्षत्र (वि०) [ब० स० क्षत्रिय रहित / प्रयुक्त ) बहुत से / सम~-आश्रय (वि०) जिसके | निःश (वि०) [ब० स०] निडर, निर्भय, संकोचहीन / बहुत से आवास या घर है,-गोत्र (वि.) विविध | निःशब्द (वि.) [ब० स०] शब्द रहित, जहाँ कोलाहल गोत्रों से सम्बन्व रखने बाला,-धर्मन (वि.) भिन्न | न हो। रीति-रिवाजों वाला.-भाव (वि.) भिन्न प्रकृति | निःशस्त्र (वि.) बि० स०] शस्त्रहीन, जिसके पास कोई वाला। | हथियार नहीं। नानात्वम् (नपुं०) विविधता की स्थिति / निःश्रेयसम् (नपुं० [निश्चितं श्रेयः नि.] 1. मुक्ति, मोक्ष मान्दन (वि.) / नन्दन+अण् ] सुखद, हर्षप्रद - सैषा | . 2. आनन्द 3. आस्था, विश्वास / विदृति म वास्तदेतन्नान्दनम् --ऐत. उप० 3 / 12 / / निःसंशय (वि.) [ब० स०निःसन्दिग्ध, निश्चित / For Private and Personal Use Only Page #1294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1285 ) निःसंग (वि.) [ब० स०] 1. अनासक्त 2. मुक्त 3. स्वा- | निचुलय् (चुरा० उभ०) बक्स में बन्द करना, ढकना र्थरहित। "..-निजां वीणां वाणी निचुलयति चोलेन निभृताम् निःसत्त्व (वि.) [ब० स०] 1. असार 2. बलहीन 3. नगण्य / / -सौन्दर्य / निःसीमन् (वि.) [ब० स०] सीमा रहित / नितम्बः [निभतं तम्यते कामकः--नि+तम्ब+अच्] निःस्नेह (वि.) [ब० स०] 1. रूखा 2. भावशून्य / 1. कल्हा 2. वीणा का स्वनशील फलक 3. ढलान निःस्पन्द (वि.) [ब० स०] निश्चल, गतिहीन / 4. चट्टान। निःस्पृह (वि०) [ब० स०] 1. इच्छारहित 2. सन्तुष्ट / नितान्तकठिन (वि.) बहत कठोर, अत्यन्त कड़ा। निःस्व (वि.) [ब० स०] अर्थहीन, निर्धन / नित्य (वि.) [नियमेन भवं-नि+त्यप] 1. अनवरत, निःस्वन (वि.) [ब० स०] निश्शब्द, शब्द रहित / लगातार, शाश्वत 2. अनश्वर 3. नियमित, स्थिर निःस्वनः (पुं० [निः+स्वन्+अच शब्द, ध्वनि / 4. आवश्यक 5. सामान्य (विप० नैमित्तिक)। निकटवतिन् (वि.) [निकट+वृत्---णिनि] निकटस्थ, सम० ---अनुबन (वि.) सदेव संबद्ध,-अनुवादः जो पास ही विद्यमान हो। तथ्य की नग्नोक्ति-मै० सं० 4 / 1 / 45, अभियुक्त निकषणः [नि+कष् + ल्युट] दे० 'निकषः' कसौटी।। (वि.) लगातार किसों न किसी कार्य में लीन, निकषायित (वि.) [ निकष+क्यङणिच्+क्त] जो कालम् (अ०) सदेव, हर समय,-जात (वि०) किसी बात के लिए प्रमाण या कसौटी मान लिया लगातार उत्पन्न अथ चैनं नित्यजातं - भग० 2 / 26, गया हो (उदा०-वैदूष्यनिकषायितेयं सभा)। - बुद्धि (वि.) सभी बातों को सतत या निरन्तर निकाशः [नि+का+घञ] 1. प्रकाश 2. रहस्य-निका मानने वाला, भावः शाश्वतता, नरन्तर्य, समः __शस्तु प्रकाशे स्यात्सदृशे रहसि स्मृतः - नाना। एक विचार कि सभी वस्तुएँ सदैव एक समान निकृष्टकर्मन् (वि.) [ब० स०] जो निन्द्य कार्यों के करने रहती है। में व्यस्त है। निदाघः [नि+दह+घञ् कुत्वम्] आन्तरिक गर्मी। निक्रन्वित (वि.) [नि+क्रन्दं+ क्त] जिसने खूब क्रन्दन सम० धामन् (पुं०) सूर्य निदाघधामानमिवाषिदी किया हो, शोर मचाया हो (दूषित स्वर से पाठ | धितम शि० 1124 / किया हो)। निदर्शित (वि०) [नि+दृश+णिच्+क्त] प्रदर्शित, निक्षिप्त (वि०) [नि+क्षिप्+क्त] नियुक्त / चित्रित, प्रमाणित / निखिलेन (अ०) पूर्णतः, सब मिलाकर / निशिन् (वि.) [नि+दृश्+णिच+णिनि] पथप्रदर्शक, निगावः [नि+गद्+घा] सस्वर पाठ। उदाहरण प्रस्तुत करने वाला सतां बुद्धि पुरस्कृत्य निगमः [नि-+गम् +अच्] 1. प्रतिज्ञा स्वनिगममपहाय / सर्वलोकनिशिनीम् .. रा० 2 / 108 / 18 / मत्प्रतिज्ञा ऋतमधिकर्तुमवप्लतो.-भाग० 1 / 9 / 37 निद्रादरिद्र (वि.) [व० स०] 'अनिद्रा रोग से ग्रस्त / 2. प्राप्ति-पन्था मनिगमः स्मृतः -भाग० 11 // निधनम् (नपुं०) [निवृत्तं धनं यस्मात्--डुधाञ्+क्यु] 19 / 42 / जन्मकुंडली में लग्न से छठी राशि / निगमनसूत्रम् (नपुं०) वह सूत्र जो किसी अनुमान वाक्य ! निधानम् [नि+धा+ ल्युट] धरोहर / का उपसंहार करता है। निन्दनोपमा (स्त्री०) निन्दोपलक्षित उपमा, ऐसी तुलना निगमात् (अ०) सारांशतः, संक्षेप से-भाग०१०।१३।३९ / जिसमें निन्दा प्रकट हो। निगुप (म्वा० पर०) छिपाना, गुप्त रखना। निपत् (भ्वा० पर०) विफल होना, अपरिपक्व अवस्था म निगीणचारिन् (वि०) [क० स०] अज्ञात होकर घूमने ही नष्ट हो जाना (जैसे गर्भपात)। वाला। निपाकः [नि+पच्+घञ्] 1. पसीना 2. (कच्चे फल निगोजाहकः (पुं०) बिच्छू / को) पकाना। निग्रहः [नि ग्रह.+अच अतिक्रमण---निग्रहाद्धर्मशास्त्राणां निपातः [नि+पत्+घा] मिलकर आना, समागम ... महा०१२।२४।१३ / ___-यासामेव निपातेन कललं नाम जायते -महा० निग्रहणम् [नि+ग्रह ल्युट ] युद्ध, लड़ाई। 12 / 320 / 115 / निघ्नान (वि०) [नि+हन+शानच] नाशकर्ता, जो नष्ट | निफेनम् (नपुं०) अफ़ीम / करता है। निहित ( विनि +बह + क्त नष्ट किया गया, दूर निचित नि--चि-क्त बद्धकोष्ठ, मलावरुद्ध। किया गया कृतः कृतार्थोऽस्मि निहितांहसा--शि० निचुलः [नि+चुल+क] 1. कमल 2. नारियल का पेड़ | 1229 / -नाना। | निविस्ति (वि० [नि+वि (बि) ड्+क्त] 1. गुरुकृत, - - For Private and Personal Use Only Page #1295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir c ( 1286 ) भारी बनाया हुआ, भीड़ से युक्त, मोटा, 2. दाबकर / निरधिष्ठान (वि०) [ब० स०] 1. असहाय 2. स्वतंत्र सटाया हुआ, भींचा हुआ - लङ्काभर्तुनिविडित---बा० | निरनुग्रह (वि०) [ब० स०] निर्दय, कृपाशून्य, रा०५।१९। __ अकृपालु। निभूत (वि.) [नि+-+क्त] 1. भरा हुआ 2. गुप्त | निरनुनासिक (वि०) जो वर्ण नाक से निरपेक्ष हो, जिसमें 3. मूक 4. विनीत 5. दृढ़ 6. एकाकी 7. निष्क्रिय, नाक की सहायता की आवश्यकता न हो। / आलसी। सम-आचार (वि०) दृढ़ आचरण का | निरनुनासिकम् (नर्प०) नारायण भट्ट की एक रचना व्यक्ति,-स्थित (वि०) गुप्तरूप से विद्यमान / जिसमें कोई अननासिक वर्ण प्रयक्त नहीं हुआ। निमः (पुं०) लकड़ी की खूटी, मेख।। निरन्धस् (वि.) [ब० स०] भूखा, निराहार / निमित (वि.)[नि+मा+क्त] 1. दे० 'निमित': उत्पा- | निरपवाद (वि.)[ब० स०): कलकरहित 2. जिसमें दित 2. मापा गया। | कोई अपवाद न हो। निमित्तम् [नि+मिद+क्त] 1. ज्ञान का साधन--तस्य निरलंकृतिः (स्त्री०) (काव्य में) अलंकार का अभाव, निमित्तपरीष्ट:---मी० स० 123 2. कार्य, उत्सव / सरलता। -~-एतान्येव निमित्तानि मनीनामर्ध्वरेतसाम्-महा० निरवसाद (वि.) [ब० स०] प्रसन्न, खुश / / 12 / 61 / 6 / सम० -- ज्ञः (पुं०) शकुन के आधार निरायति (वि.)[ब. स.] जिसका अन्त दूर नहीं है पर भविष्यवाणी करने वाला ज्योतिषी,-नैमित्तिकम् / --नियता लघता निरायते:--कि० 2114 / कार्य और कारण, मात्रम् केवल उपकरण स्वरूप निरारम्भ (वि.) [ब० स०] सब प्रकार का कार्य कारण--भाग० 11 / 33 / करने से मुक्त (अच्छी भावना से), निष्क्रिय / निमेषान्तरम् [ष० त०] एक क्षण का अन्तराल। निरावर्ण (वि.) [ब० स०] स्फुट, स्पष्ट, प्रकट / निम्न (वि.) [नि+म्ना+क] 1. गहरा, नीचा निरुपभोग (वि.) [ब० स० ] उपभोग शून्य / कार्य-निम्नेष्वीहां करिष्यन्ति - महा० निरुपाधिक (वि.) [ब.स.] जिसमें कोई शर्त न हो, 31926 / सम० --अभिमुख (वि.) निम्नतर निरपेक्ष / स्तर की ओर बहने वाला - कु० 5 / 5 / / निर्दाक्षिण्य (वि.) [ब० स०] जिसमें शिष्टता या निम्नित (वि.) [ निम्न+इतच | गहरा, डूबा हुआ। / शालीनता न हो, अभद्र / निम्बपञ्चकम् (नपुं०) नीम वृक्ष से उत्पन्न पाँच पदार्थ निधात (वि.) [ निर+घाव+क्त ] धुला हुआ, स्वच्छ --पत्त, फल, त्वचा, फल और जड। किया हुआ-नि|तदानामलगण्डभित्तिः- रघु०२१४३। निम्बूकपञ्चकम् (नपुं०) नींबू के पाँच भेद (सन्तरा, निर्नायक (वि.) [व० स०] जिसका कोई नेता मुसम्बी, नारंगी, खट्टा या गलगल, कागजी नींब)। न हो। नियत (वि०) [ नि-+-यम् + क्त ] 1. रोका हुआ, बांधा | निर्बीज (वि.) [ब० स० | नपुंसक, नामर्द, निश्शक्त / हुआ 2. आश्रित 3. (व्या० में) अनुदान सहित निमन्तु (वि.) [ब० स०] निष्कलंक, निरीह, / उच्चरित। निर्मान (वि.) [ब० स०] 1. आत्मविश्वास से हीन नियमः [नि+यम् +अप्] 1 गुप्त रखना-मन्त्रस्य 2. जिसमें स्वाभिमान न हो। नियम कुर्यात् - महा० 5 / 141320 2. प्रयत्न -महा० निर्लक्ष्य (वि०) [ब० स०] अदृश्य, जो दिखाई न दे / 2146 / 20 / सम०- हेतुः विनियमन का कारण, निलून (वि.) [ब० स०] पूरी तरह कटा हुआ / नियमित रखने का कारण / निर्वत्सल (वि.) [व० स०] स्नेहहीन, जिसमें नियुक्त (वि.) [ नि+यज-+क्त ] उपयोग में लाया वात्सल्य का अभाव हो। गया, काम पर लगाया गया। निविषङग (वि०) [ब० स०] अनासक्त, उदासीन / नियोक्तव्य (वि०) [नि--युज+तव्यत् ] 1. जिसको निर्वत्तिः (स्त्री०) निष्पन्नता, निष्पत्ति / कोई कार्य सौंपा जाय 2. नियुक्त किये जाने योग्य निर्वलक्ष्य (वि०)[ब० स०] निर्लज्ज, बेशर्म / 3. जिस पर अभियोग चलाया जाय--मनु०८।१८१ / निर्व्यवधान (वि.) [ब. स.1 व्यवधानरहित, मुक्त, नियोगः [नि+यज+घञ ] 1. अपरिवर्त्य नियम-न / अनाच्छादित, खुला (स्थान)। चैष नियोगो वृत्तिपक्षे नित्यः समास इति--मी० सू० निर्व्यवस्थ (वि.) ब० स०] जिसमें कोई व्यवस्था 1016 / 5 पर शा० भा० 2, सही, यथार्थ-कि० | न रहे, इधर उधर भटकने वाला, असंगत गतियुक्त / 10 / 16 / | निर्व्यावत्ति (वि.) [ब० स०] जिससे कुछ प्राप्ति निरम (क) (वि.) [निर्+अग्र (क) ] जो राशि बिना कुछ शेष रहे, पूरी पूरी बंट सके। नि ) ब० स०] निर्लज्ज, बेशर्म / For Private and Personal Use Only Page #1296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1287 ) एक। हुआ। निरयः [निर्+5+अच् ] दे० 'निलयः'--आवासनिरया- [ निर्माणम् [ निर् +मा+ल्युट ] बनना, जन्म होना--पूर्वद्वीरो निरयादिव सानुजः-रा० 50 2 / सम० निर्माणबद्धा हि कालस्य गतिरीदृशी-ख. 7 -वर्मन् (नपुं०) भौतिक अस्तित्व-यासां गहे | 160 / 2 / निरयवर्त्मनि वर्ततां व:-भाग० 10182 / 31 / / निर्यत् (वि०) [ निर+या+शत् ] बाहर जाता हुआ, निरस्तसंख्य (वि.) [ब० स०] अनन्त, असंख्य, अन- ___ निकलता हुआ। गिनत। निर्याणम् [निर् +या+ ल्युट् ] नगर से बाहर जाने निराकृत (वि.) [ब० स०] 1. निराकरण किया गया का मार्ग / 2. तिरस्कृत। निर्याणिक (वि.) [ निर्याण+ठक् ] मोक्ष की ओर से निय (वि.) [नि+रुध् +क्त ] 1. अवरुद्ध 2. भरा जाने वाला। पूरा, पूर्ण। सम० ---वृत्ति (वि.) कार्य करने में निर्यामकः [ निर+या+णिच+ण्वल ] सहायक। . जिसकी गति अवरुद्ध हो गई है.-वाप्पनिरुद्धवत्ति-निर्योगः [निर+युज+घा ] 1. पूरा करना, सम्पन्न कण्ठम् / करना, बनाव श्रृंगार करना-निर्योगात् भूषणान्माल्यात् निरोधः [नि-रुध+घञ्] लय, बुझ जाना। सर्वेभ्योऽधं प्रदाय मे-प्रति० 1026 2. गाय को निरूपक (वि.) [नि+रूप+वल ] 1. निरूपण करने खंटे से बांधने का रस्सा-भाग० 10121619 / वाला, पर्यवेक्षक 2. निश्चय करने वाला, घटक / निर्लोच्य ( अ०) [ निर +लुच् + ल्यप् ] सोचविचार निरूपित (वि.) | नि+रूप-+क्त] 1. चिह्नित, अंकित / कर। 2. नियक्त 3. निशाना बनाया गया, इंगित / निर्वचनम् [निर्+व+ल्युट् ] स्तुति-महा० 1 // मितिः (स्त्री०) [ निर्+ऋ+वितन् ] 1. मूल नक्षत्र 109/23 / 2. आठ वसुओं में से एक 3. ग्यारह रुद्रों में से | निर्वापः [ निर्+वप्+घञ्] प्रदान करना, अर्पण करना। निर्गलित (वि.) [निर्+गल्+क्त ] 1. बहा हुआ निर्वापित (वि०) [ निर्+वप्+णिच् +क्त ] बुझाया 2. घुला हुआ, पिघला हुआ। निर्णयोपमा (स्त्री०) अनुमान पर आधित उपमा—काव्या० निर्वासित (वि०) [निर+वस्+णिच् ++त ] बहिष्कत, 2 / 27 / निष्कासित / निणिक्त (वि.) [ निणिज्+क्त ] 1. घुला हुआ, स्वच्छ निर्वास्य (वि.) [निर् +बस+णिच् +यत् ] बहिष्कार्य, किया हुआ 2. प्रायश्चित्त किया हुआ। सम० देश से निकालने के योग्य / -बाहुवलय (वि.) जिसके कड़े या चूड़ियाँ स्वच्छ निविश् (तुदा० पर०) 1. घर में बस जाना 2. प्रविष्ट करके चमका दी गई हों,-ममस् (वि०) स्वच्छहृदय, होना 3. आगे जाना 4. ऋण परिशोध करना-निर्वनिर्मल मन वाला। प्टव्यं मया तत्र महा० 5 / 146 / 15 5. किसी के निर्देशः [निर्+दिश्+घ ] करार, प्रतिज्ञा-महा. साथ रहना---- शुश्रूषणे प्रावृषि निर्विवक्षताम्-भाग० 13 / 23 / 70 / 125 / 23 / निर्देश्य (वि०) [निर्+दिश् +यत् ] 1. संकेत किये जाने | निविष्ट (वि०) [निर् +विश्+क्त ] 1. घुसा हुआ, के योग्य 2. निश्चित किये जाने योग्य 3. उद्धोष्य चिपका रहा, जड़ा रहा 2. शिविर में वर्तमान, डेरा 4. जिसमें पवित्रता होनी चाहिए सुरापानं ब्रह्महत्या / डाले हए / ....."अनिर्देश्यानि मन्यन्ते - महा० 12 / 165 / 34 / / निवेश: निर+विश+घा 11. प्रविष्ट होना-आत्मनिर्धननम् [ निर्+घून+ल्युट ] दीर्घ निःश्वास, लहरों निवेशमात्रेण तिर्यग्गतमुलूखलम् -- भाग० 10 / 10 / 26 की भाँति उठना गिरना। 2. बदला लेना-भाग०१०॥४४॥३९ / निर्बन्धपृष्ट (वि.) [त० स०] जिससे आग्रह पूर्वक कोई निर्वारित (वि.) [ निर्++णिच् + क्त ] हटाया बात पूछी गई है। हुआ, रोका हुआ / निर्बन्धिन् (वि०) [निर्बन्ध+इनि ] आग्रह करने वाला। | निवृत्तमात्र (वि०) जो अभी-अभी समाप्त किया हो। निर्भसनम् [निर+भर्स + ल्युट् ] धमकी देना, अप-नियंजक (वि.) [निर +व्यङ्ग्+ण्वुल] संकेत शब्द कहना, झिड़की देना / करता हुआ, दिग्दर्शन करता हुआ-स्नेहस्य निर्व्यञ्जक: निर्माथिन् (वि०) [निर्माथ+इनि ] कुचलने वाला, .-महावी० 5 / 62 / बिलोने वाला, पीस डालने वाला। निर्षिध (वि.) [ निर् +व्यध्+क्त] 1. घायल निर्मा [ निर् +मा+अक् ] मूल्य, माप, सम / / 162 / 2. वियुक्त / For Private and Personal Use Only Page #1297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1988 ) निषेधः [निर + व्यष्+घञ ] 1. अन्दर घुस जाना | निभाणः [मिश्रि+शानच् ] सान, सिल्ली, शाण2. अन्तर्दष्टि। प्रस्तर। मिर्युषित (वि०) [निर् +वि+वस्+क्त ] व्यय किया निवावस्थपतिन्यायः (पु.) एक नियम जिसके आधार गया, बीत गया, अतीत / पर कर्मधारय और तत्पुरुष दोनों समासों की प्राप्ति मिर्च्ड (वि.) [निर्वि+ऊह+क्त ] 1. समरव्यूह में होने पर, पूर्ववर्ती अर्थात् कर्मधारय ही बलीयान् व्यवस्थित 2. सफ़ल 3. बाहर धकेला गया। होता है। नियुंकि निर्वि+ऊह+क्तिन्] उच्चतम बिन्दु या अंश। निवेकः [नि+षि+पा] आसुत, लव, अर्क / नियंहः (निर्वि+ऊह, +अच्] खूटी-महा० 3160 / 39 / निक्तु (पुं०) [नि+षिच्+तुच् ] पिता, जनक / निहरणम् [निर् +ह+ल्युट् ] विषहर, विषनाशक / निवेषिन् (वि०) [ निषेध+इनि ] 1. प्रत्याख्यान करने निहरिः[निर++घञ्] घटाना। | वाला, वर्जन करने वाला 2. आगे बढ़ने वाला। निहारिन (वि.) [निर्हार+इनि] 1. फैलाने वाला | निष्कम् निष्क+अच् ] विदाई, प्रस्थान, खानगी। 2. एक प्रकार की सुगन्ध जो और सब सुगन्धों से निकल (वि.) [ निष्कल् +अच् ] (संगीत० में) अनुबढ़िया हो। | बरित या अव्यक्त (वाणी)। निहांसः [ निर+हस्+घञ्] छोटा करना, संकुचित निकालनम् [निष्कल् +णि+ल्युट ] दूर भगाना, करना। हटाना। निलयनम् [नि+ली+ल्युट् ] घर, आवास, निवास / निष्कतिः [ निः++क्तिन् ] भर्त्सना, शिड़की -स्त्रियानिलायनम् [नि+ली+णि+ल्युटु ] आंखमिचौनी का स्तथापचारिण्या निष्कृतिः स्याददूषिका-महा० 12 // खेल खेलना-भाग० 1011159 / 34 // 30 // निवहः [नि+वह+अच् ] हत्या, वध / निष्कर्षम् [ निः+कृष्-अच् ] टैक्स लेने के लिए प्रजा निवातकवचाः (पु.) (ब० 30) एक जनजाति का नाम। का उत्पीडन / निवापः [नि+व+घञ्] 1. बीज, अन्न के दाने निकान्त (वि.) [ नि:+कम+क्त ] 1. बाहर निकला 2. श्राब के अवसर पर पितृतर्पण 3. उपहार / सम० हुआ 2. आगे आया हुआ-अर्षनिष्क्रान्त एवासो-दु. -अञ्जलिः तर्पण के लिए दोनों हाथों की अञ्जलि स०३१३४। में लिया हुआ पानी,-अन्नम् यज्ञीय आहार। निष्टनः [नि: तनु+अच् ] कराहना, आह भरना--रा० निवारकः [नि++णिच्+ण्वुल] प्रतिरक्षक। 2012 / निवासः [नि+वस्+घा ] 1. घर, मकान, आवास। निष्ठापित (वि.) [नि:+स्था--णिच्+क्त ] सम्पन्न, सम-भूमिः रहने का स्थान,---रचना भवन, मन्दिर, पूरा किया गया-माल.६। -स्थानम् रहने की जगह / निष्ठानित (वि.) [ निष्ठान+इतच् ] मिर्च मसाले के निविश (तुदा० आ०) 1. फेंकना, बन्दूक का निशाना छौंक से युक्त, अचार चटनी आदि सहित / बनाना 2. (मन को) प्रभावित करना / निष्ठित (वि.) [नि+ष्ठि+क्त] जिसके ऊपर थूका निविष्ट (वि.) [नि+विश्+क्त] कृष्ट, आवधित (देश)। गया हो- भाग० 1022159 / निवृत (भ्वा० आ०) 1. वापिस आना 2. भाग जाना | निष्पातः [निः+ पत्+घ ] धड़कन, कम्पन / 3. बच निकलना 4. समाप्त होना 5. सम्पन्न होना, | | निष्पन्द (वि.) [नि+स्पन्द+अच् ] गतिहीन, अचल, प्रेर० बाल छोटे कराना। स्थिर,...(पुं०) मित्रता का बन्धन-आर्षोऽयं निवत्त (वि.) [नि+वृत्+क्त ] जमा हुआ, व्यवस्थित, देवि निष्पन्द:--रा० 3155 / 35 / 'विनियमित (जैसे कि सूर्य) / सम०-योवन (वि.) निष्पूर्तम् [निः+-+क्त ] धर्मशाला, धर्मार्थ बना जिसे फिर जवानी दी गई हो, जिसकी जवानी लौट | विश्रामभवन / - आई हो। मिकोश (वि.) [ब० स०] बिना म्यान का। निशारत्नम् [ष० त०] 1. चन्द्रमा 2. कपूर / निश्चकित (वि.) [ब० स०] बिना किसी चालाकी के, निशिचार[सप्तम्यलुक् समास] निशाचर, राक्षस, पिशाच / ईमानदार, सच्चा। निचायः [ निः+चि+घञ्] समाज, सत्संग। निष्पाल (वि.) [निस्+पर+क्त ] भली-भांति पकाया मिाचारकम् [नि:+च+वल ] 1. पुरीषोत्सर्जन हुआ। 2. वायु, हवा 3. धृष्टता, दुराग्रह, हठ। | मिष्परामर्श (वि.) [ब० स०] जिसे कोई उपदेश न निश्चिता (वि.) [ब० स०] 1. जिसने अपना मन मिला हो, असहाय / पक्का कर लिया है 2. यथार्थ न्याय करने वाला। निष्णुराण (वि.) [ब० स०] अभुतपूर्व, मया, नूतन / For Private and Personal Use Only Page #1298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .( 1289 ) निष्प्रतिग्रह (वि.) [ब० स०] जो दान ग्रहण नहीं करता! --पाय्यम् बड़ा भवन, बड़ा कमरा,---बाह्यम् है, उपहार नहीं लेता है। पालकी। निष्प्रत्याश (वि.) [ब० स०] निराश, हताश / नृत्तम् / (नपुं०) [नृत् + क्त, क्यप् वा ] नाच, अभिनय / निष्प्रवणि (वि०) [ब० स०] जो खड्डी से अभी आया नत्यम् / सम०-हस्तः नाचते समय हाथों की स्थिति। है,नया (कपड़ा)। नेती (स्त्री०) योग की एक क्रिया-नाक में डोरी डाल निःशर्कर (वि.) [ब० स० ] जिसमें कंकड़ न हों, रोड़े। कर मुंह में से निकालना। आदियों से मुक्त। नेत्रम् [नी+ष्ट्रन्] 1. खटमल-नाना० 2. बक्कल, निःसह (वि.) [ब. स.] 1. क्लान्त 2. असहिष्णु। वृक्ष की छाल--नाना० 3. आँख। सम०. कार्मणम नि:सूत्र (वि.) बि. स.] असहाय, साहाय्यहीन / आँखों के लिए एक जादू, चपल (वि०) जिसकी निःस्वन (वि.) [20 स०] शब्दहीन, जिसमें से कोई आँखें अधिक झपकती हों, आँखें झपकाने वाला,-पाकः आवाज न निकले। आँखों की सूजन,-पन्धः 1. आँख मिचौनी खेलना नि:स्पर्श (वि.) [ब० स०] कठोर, कड़ा, रूखा। 2. आँखों में धूल झोंकना, - श्रवस साँप / निसर्गमिपुण (वि०) [पं० त०] स्वभावतः चतुर / | नेत्र्यम् (नपुं०) आँखों के लिए उपयुक्त / निसृष्ट (वि०) [नि+सृज्+क्त ] सुलगाया हुआ मदीयोमरण (वि.) [ब० स० ] जिसकी मृत्यु निकट ही (जसे आग.)। है, मरणासन्न–राज.४।३१। मिस्तुषत्वम् [ब० स० ] तुषों का न होना, दोषराहित्य, नेदिवस् (वि०) शब्दायमान, कोलाहल करने वाला / दोषों का अभाव। नेपथ्यगृहम् (नपुं०) शृंगार भवन, प्रसाधनकक्ष / निस्तोवः [ निः+तुद्+पन ] गुभ जाना, चुभ जाना, पिण। गुम जाना, चुभ जाना, नेमितुम्बारम् (नपुं०) पहिए का घेरा और नाभि / डंक मारना। मेय (वि.) [नी-ण्यत् ] 1. ले जाये जाने के योग्य निहित (वि.) [नि+था+क्त ] (सेना की भाँति) 2. शिक्षा दिये जाने के योग्य-अनेय: शिक्षयितुम कैम्प लगाए हुए, शिविरस्थ / सम-रड (वि.) योग्य:-महा० 5 / 74 / 4 पर टीका। कोमल हृदय, कृपाल। नककोटिसारः (0) करोड़पति, कोट्यधीश। निहकः [ नि+न+अप् ] 1. मुकर जाना 2. धचन- नंगमः [ निगम+अण् ] यास्ककृत निरक्त का एक काण्ड / विरोध, विरोधोक्ति / सम०-.-काय: दे० 'नेगम'। मीचगामिन (वि.) अधम मार्ग का अनसरण करने वाला। मंड(वि.) [ निद्रा+अण् 11. शयाल, निद्राल 2. बन्द नीतिशतकम् (नपुं०) भर्तृहरिकृत नीतिविषयक सौ श्लोकों | (फूल जिसकी पंखड़ी अभी बन्द हो)। का संग्रह। नैमित्तिक (वि.)[ निमित्त+ठक ] 1. किसी कारण से नीरवर (वि०) [त० स०] जल में रहने वाला, जल में संबद्ध 2. असाधारण / सम-कर्मन् (नपुं०) किसी घूमने वाला। विशेष कारण से होने वाला संस्कार (विप० नित्यनोरङ्गी (स्त्री०) हल्दी। कर्म ),--लयः ब्रह्म में लीन हो जाना, ब्राहालय (यह नीराजित (वि.) [निर+राज्+क्त ] देवतार्चन के लय चार हजार वर्ष के उपरान्त होता है। दीप तथा ज्योति से सुसज्जित, प्रभासित / | नैऋत्य (वि०) [निति+अण् ] दक्षिण-पश्चिम नीलपिटः (पुं०) राजकीय प्रशस्तियों तथा समाचारों का दिशाओं से संबंध रखने वाला। संग्रह / नश्चिन्त्यम् [ निश्चिन्त+ध्या ] चिन्ता से मुक्त होना / नोलस्नेहः (पुं०) अतिशय प्रेम। नष्कर्तृक (वि०) [ निष्कर्त +8 ] लकड़ी काटने नोचिः,बी (स्त्री० [नि+ये+इन, य लोप. पूर्वस्य _ वाला। दीर्घः ] कारागार--नीवी स्याबन्धनागारे घने स्त्री- | नष्क्रम्यम् [निष्क्रम+व्या ] भौतिक सुखों के प्रति वस्त्रबन्धने नाना। ___ उदासीनता ( बुद्ध०)। नुतिः [नु+क्तिन् ] हटाना, दूर करना / मैष्ठिक (वि.)[निष्ठा+ठक 11. अन्तिम, उपसंहार नूनंभावः (पुं०) सम्भाव्यता, प्रायिकता / परक 2. निश्चित 3. उच्चतम, पूर्ण 4. आभार्य, अनिनूनंभावात् (अ.) कदाचित्, सम्भवतः / वार्य-~-महा० 12163 / 23 / सम... ब्रह्मचारिन [नीन् हिच्च] (पुं० कर्तृ० ए० ब० ना) (वि.) जीवनपर्यन्त ब्रह्मचर्य पालन करने वाला। 1. मनुष्य, व्यक्ति (चाहे पुरुष हो या स्त्री) 2. मनुष्य | महारः [ नीहार+ अण् ] कुहरा या धुंध से संबन्ध रखने जाति 3. पुंल्लिग शब्द 4. मेता। सम-कार: वाला। मनुष्योचित कार्य, शौर्य,-गन्ध (वि०) मनुष्यभक्षी मोगल [50 10 ] किश्तियों से बनाया गया पुल। . For Private and Personal Use Only Page #1299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1290 ) न्यन्तः नि+अन्त ] 1. सामीप्य, सन्निकटता 2. पश्चिमी / व्यवस्था 2. औचित्य 3. विधि 4. धर्म 5. न्यायालय पार्श्व-रा० 2168 / 12 / द्वारा उद्घोषित निर्णय 6. नीति 7. अच्छा प्रशासन न्यबहः [नि+अव+मह.+अच् ] समस्त शब्द के 8. सादृश्य 9. विश्वव्यापी नियय / सम०-आगत प्रथम खण्ड का अन्तिम स्वर जिस पर स्वराङ्कन नहीं (वि.) ईमानदारी से प्राप्त,--- आभासः मिथ्यातर्क किया गया है। जिसमें सत्य की झलक आती हो, एक रूपता का न्यस्त (वि.) [नि+अस्+क्त] 1. धारण किया आभास, .- उपेत (वि०) न्यायानुमत, न्याय्य, अनुहुआ, वस्त्र पहने हुए 2. ( स्वर की भांति ) मन्दस्वर मति-प्राप्त, सही ढंग से माना हुआ,-निर्वपण (वि.) से युक्त / सम० -- अस्तव्य (वि.) रख दिए जाने / यथार्थ न्याय करने वाला,-विद्या,-शास्त्रम् तर्कविद्या, के योग्य, स्थिर किये जाने योग्य,--चिह्न (वि.) तर्कशास्त्र,-संबद्ध ( वि०) युक्तियुक्त, तर्कसंगत। बाह्य चिह्न से मुक्त। | न्यनपञ्चाशद्धाकः ( पं०) ऐसा मुर्ख व्यक्ति जिसमें मानन्यासः [नि+अस्+घञ ] लिखित पाठ्य या साहि- | वता के गुण पचास प्रतिशत से भी कम हों। त्यिक मूल पाठ। न्यूमता ( स्त्री०) 1. कमी, हीनता 2. घटियापन, अधूराम्यायः [नि+इ+घा ] 1. प्रणाली, रीति, नियम, / पन। नका वि० सदेव अन्तिम 'न का लोप सिंह पंश-स् (म्वा० चुरा० पर०) नष्ट करना / पचमानक (वि.) [ पच्+शानच्, स्वार्थे कन् ] अपना पक्तिः [पच्+क्तिन् ] पवित्रीकरण,-शरीरपक्ति: भोजन स्वयं पकाने वाला। कर्माणि-महा० 12 / 270 / 38 / पच्चनिका (स्त्री०) हल का एक भाग / / पक्व (वि.) [ पच्+क्त, तस्य व: ] 1. पका हुआ, भुना पञ्चन (सं० वि०-सदव ब०व०) [पञ्च+कनिन् ] हुआ, उबाला हुआ 2. पूर्णविकसित। सम-कषाय (समास में 'पञ्चन' के अन्तिम 'न का लोप हो जाता (वि.) जिसके मनोवेग और विषय वासनाएँ शान्त है) पाँच / सम० - आननः,-आस्यः 1. सिंह हो गई है,- गात्र (वि.) पके गात घाला, दुर्बल 2. किसी भी एक विषय में अन्यतम जैसे कि 'वैद्य शरीर, क्षीणकाय। पञ्चानन',... आयतनम,- आयतनी पञ्च देवताओं पडक्ति [पञ्च+क्तिन् ] 1. एक छन्द का नाम 2. लाइन, (सूर्य, अम्बिका, विष्णु, गणपति और शङ्कर) का श्रेणी। सम-क्रमः आनुपूर्व्य, परम्परा, ऋमिक समूह जो दैनिक पूजा में सम्मिलित हैं,-उपचारः अनुगमन / पूजा के पाँच पदार्थ (गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और पक्तिशः (20) पंक्तिवार, लाइनों में। नैवेद्य),--कृत्यम दिव्य शक्तियों के पांच कार्य-सुष्टि, पडगुवासरः (पुं०) शनिवार / स्थिति, संहार, तिरोधान और अनुग्रह,-चामरम् पक्षः [ पक्ष्+अच् ] (वेद०) सूर्य, दे० 3153116 पर एक छन्द का नाम,-धारणक पांचों तत्त्वों की सहायता सायण। सम-अध्यायः तर्कशास्त्र,-निक्षेपः एक से स्थिर या जीवित,-- पादिका शंकर के ब्रह्म सूत्रभाष्य पक्ष का ही विचार करना, किसी का पक्षपात करना, पर पद्मपादाचार्य रचित टीका,-रात्रम् (नपुं०) --भेवः किसी तर्क के दोनों पहलओं में विवेक करना, 1. भासकृत एक नाटक का नाम, दर्शन शास्त्र पर --बषः पक्षाघात, शरीर के एक पक्ष में लकवा, नारद द्वारा रचित एक ग्रंथ, शीलम सामाजिक -बायः,-वातः पक्षाघात, अर्धाग में फालिज, आचरण के पांच नियम जिन का प्रचार बुद्ध ने किया - पक्षकः पंखा। था,-शुक्लम् उत्तरायण, शुक्लपक्ष, दिन, हरिवासर पक्षितीर्थम् (नपुं०) दक्षिण भारत में एक पुण्य तीर्थ / और सिद्ध क्षेत्र का संयोग,-सिद्धान्ती (स्त्री०) पक्ष्मन् [ पक्ष् + मनिन् ] 1. गलमुच्छ --- सिंहस्य पक्ष्माणि | ज्योतिष के पांच सिद्धान्त / मुखाल्लुनासि-महा० 3 / 26816 2. (हरिण के) पञ्चम (वि.) [पञ्चन्+डट् +मट ] पांचवां / सम. बाल -निसर्गचित्रोज्ज्वलसूक्ष्मपक्ष्मणा-शि० 18 / / -आस्यः कोयल,---स्वरम् संगीत के स्वर का पक्मलश् (स्त्री०) [पक्ष्मल+दश+थिप जिस नाम / स्वी की पलकें लम्बी हों। पञ्चिका (स्त्री०) रजिस्टर या अभिलेख पुस्तिका / For Private and Personal Use Only Page #1300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रल (वि.)। पट्टकिल: पटना या मुकुट बाँधना, बन्धनम् सिरप पञ्चीकरणम् [पञ्च+च्चि++ल्यूट] पाँचों तत्त्वों , पताका [ पत्+आक+टाप् ] प्रचार, प्रसार-रम्या का मेल जिससे फिर नाना प्रकार के पदार्थों का इति प्राप्तवती: पताकाः--शि० 3153 / सम० निर्माण होता है। --दण्डः ध्वजयष्टिका, झंडे का डंडा। पट:-दम् [पट्+क] कपड़ा, वस्त्र / सम०-- अञ्चलः | पताकिन् (वि०) पिताक+इनि ] झंडाघारी, पुं० रथ / वस्त्र की गोट, झालर,-उसरीयम् चुनी, चादर, पतितगर्भा (स्त्री०) [ब० स०] वह स्त्री जिसका गर्भओढ़ने का वस्त्र,-वाद्यम् भजीरा, करताल, झांझ, पात हो गया हो। -वासकः सुगन्धित चूर्ण। पतितक्त (वि.) [ब० स०] लम्पटता का जीवन पटलकः,कम् [ पट+कलच्, स्वार्थे कन् च] 1. पर्दा, बिताने वाला, अय्याश। ___ चूंघट 2. पैकट। पत्काषिन् (0) पदाति, पैदल सिपाही। पटलिका (स्त्री०) राशि, समुच्चय जैसा कि 'धूलिपट- पत्त्यध्यक्षः [पत्ति+अध्यक्ष ] पैदल सेना का दलनायक, लिका' में / ब्रिगेडियर, उपचमपति / पटहवेला [ष० त०] वह समय जब कि ढोल बजाया | पत्रम् [ पत्+ष्ट्रन्] 1. पत्ता (वृक्ष का) 2. (फूल की) जाता है। पत्ती 3. पत्र, चिट्ठी 4. पक्षी का बाजू 5. तलवार या पटुकरण (वि०) [ब० स०] जिसके अंग स्वस्थ है चाकू का फल। सम-तण्डुला स्त्री, महिला, -सन्देशार्थाः क्व पटुकरणः प्राणिभिः प्रापणीया : -दारकः आरा, लकड़ी आदि चीरने का यन्त्र, --मेघ०५। -न्यासः बाण में तीर लगाना,-पिशाचिका पत्तों पट्टः,--दृम् [पट्+क्त, इडभावः] 1. (लिखने के लिए) की बनी टोपी। तरुती 2. राजकीय प्रशस्ति 3. रेशम / सम पत्रल (वि.) [ पत्र+लच ] पत्तों से समृद्ध / ---- अंशुक: रेशमी वस्त्र, बन्धः, -- बन्धनम् सिर पर | पथिकः [पथिन--कन् ] मार्ग चलने वाला, यात्री। सम०--जनः एक यात्री, या यात्रियों का समूह / पट्टकिल: [ पट्ट+कन्+इलच ] एक भुखण्ड को किराये | पथिन् (पुं०) [पथ्+इनि] 1. मार्ग 2. यात्रा 3. परास पर जोतने वाला, पट्टेदार / सम० अज्ञानम् मार्ग में खाने के लिए भोज्य पणः [पण+अप्] 1. पासे से खेलना, दांव लगाकर पदार्थ। खेलना 2. दांव लगा कर, या होड़ बद कर खेलना ! पदम [ पद्-+-अच् ] 1. पैर 2. पग 3. पदचिह्न 4. सिक्का 3. दांव पर लगाई हुई वस्तु 4. शर्त 5. पैसा। - अष्टापद पदस्थाने दक्षमदेव लक्ष्यते महा० 12 // सम० ... अयः लाभ ग्रहण करना,-क्रिया 1. दांव 298 / 40 / सम-कमलम् चरण कमल, पैर रूपी पर रखना 2. संघर्ष करना, मुकाबला करना। कमल, जातम् शब्द समूह,... रचना 1. साहित्यिक पण्य (वि.) [पण-+ यत् ] 1. बेचने के योग्य, विक्रयार्थ कृति 2. शब्द विन्यास,--सन्धिः शब्दों का श्रुति पदार्थ 2. व्यापार, वाणिज्य 3. मल्य। सम० मधुर मेल / --जनः व्यापारी,-वासी भाड़े की सेविका, पदातिलव (वि०) अतिनन, अत्यन्त विनीत / ---परिणीता रखैल स्त्री,-- संस्था बर्तनों की पदीकृ (तना० उभ०) वर्गमूल निकालना / दुकान। पनम् [पद्+मन् ] 1. कमल 2. शरीर की विशेषस्थिति, पणफरम् (नपुं०) जन्मकुंडली में लग्न से दूसरा, आठवां, पद्मासन लगा कर बैठना 3. इन्द्रजाल से संबद्ध आठ पांचवां और ग्यारहवां स्थान / प्रकार के कोषों में से 'पधिनी' नामक कोष। सम. पण्डिती (स्त्री) विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता। ...प्रिया 1. लक्ष्मी का विशेषण 2. जरत्कार की पण्डः,--क: (पुं०) हीजड़ा, क्लीव / पत्नी मनसा देवी,-मुद्रा तन्यशास्त्र का प्रतीक / पतङ्गः [पतन गच्छतीति गम+ड नि.] 1. घोड़ा पद्मशः (अ.) [पन+शस ] अरबों की संख्या में। 2. सूर्य 3. गेंद 4. पारा 5. टिड्डा। सम० शाषः | पद्मिनीकण्टकः (पुं०) एक प्रकार का कोढ़। पक्षी का वच्चा। पद्रः (पुं०) [पद्+रक ] ग्राम मार्ग / पतगिका [पतङ्ग+कन्+टाप्, इत्वम् ] (स्त्री०) पनस्यु (वि०) प्रशंसा के योग्य बात प्रकट करने वाला, ___1. धनुष की डोरी 2. छोटा पक्षी 3. मधुमक्षिका। यशस्वी। पतत्प्रकर्ष (वि.) 1. जो तर्कसंगत न हो 2. काव्य | पपी (पुं०) [पा+ई, द्वित्वं किच्च ] 1. सूर्य 2. चन्द्रमा। सौन्दर्य से रहित / पयोरयः [ष० त०] नदी की धारा। पताकः [ पत्+आक] बाण का निशान लगाते समय पर (वि.) [+अप्, अच् वा] 1. दूसरा 2. दूर का अंगुलियों की विशेष मुद्रा। 3. इसके बाद का 4. उच्चतर श्रेष्ठ 5. उन्धतम, For Private and Personal Use Only Page #1301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपसर्पणमसे ( विखारी, भिक्षक पराभवः पुचालीसवाँ वर्ष पराजीनम् पराडीनम् 160 वर्ष में ( 1292 ) प्रमुख 6. विदेशी 7. प्रतिकुल 8. अन्तिम,.--: पराक दे० 'पराजु'। (पुं०) 1. दूसरा 2. शत्रु 3. सर्वशक्तिमान्,--रम् | पराकष्ट (वि.) [परा+कृष्+क्त ] तिरस्कृत, (नपं०) 1. उच्चतम बिन्दु 2. परमात्मा 3. मोक्ष अप्रतिष्ठित, निरादत / 4. दाब्द का गौण अर्थ 5. भावी लोक, इससे परे / पराक्षिप्त (वि.) [परा+क्षिप्+रत] उथलपुथल, की दुनिया। सम०-अयनम (परायणम्) बलात् दूर किया गया। 1. उच्चतम पदार्थ 2. सारांश 3. दृढ़ भक्ति, परागः [परा + गम् +3] सुगन्धित चूर्ण, पुष्परज / 4. धार्मिक आश्रम,-अर्षः 1. मुक्ति-महा०१२।२८८ पराच् (वि.) [परा+अञ्च+ क्विन् ] अनावृत्त, जो 19 2. दूसरों के लिए उपयोगी पदार्थ-संघात- दोहराया न गया हो----अनम्यासे पराक शम्दस्य परार्थत्वात् --सा का० १७,-अध्यं (वि०) तादात् / मै० सं० 105 / 45 पर शा० भा० / दिव्य-- असावाटीत् संख्ये परायंवत्-भट्टि सम०-दृश् (वि.) बहिर्मखी, जिसने अपनी आंख ९।६४,-अवसपशायिन् (वि०) दूसरे के घर सोने बाहरी संसार की ओर लगाई हुई है। वाला, आचित (वि.) दूसरों के द्वारा पालित पराचीन (वि०) [पराच +ख] 1. अनुपयुक्त पोषित, दास,---उदहः कोयल,-उपसर्पणम् दूसरों 2. बाहरी। के निकट जाना,काल (दि०) भावी समय से | पराजीनम [ परा+डी+स्यट1 पीछे की ओर उड़ना संबंध रखने वाला,--तर्कक: भिखारी, भिक्षुक, ___....पश्चाद्गतिः पराडीनम् -महा० 8 / 4 / 27 / . तल्पगामिन् (वि.) दूसरे की पत्नी के साथ सोने / पराभवः (पुं०) [परा+भू+अप् ] 60 वर्ष के संवत्सर वाला,-परिग्रहः दूसरों की संपत्ति (जैसे कि 'पत्नी') चक्र में चालीसवाँ वर्ष / श०५, ... परिभवः दसरों से अपमान या तिरस्कार | मिfas | परासिक्त (वि०) / परा+सि-+क्त ] फेंका हुआ, दूर प्राप्त करना, पाकनिवृत्त (वि०) जो दूसरों के डाला हुआ। यहाँ भोजन नहीं करता,-पाकरत (वि०) जो परासेषः (पुं०) बन्दी बनाना, कारागार में डालना। अपने पालन पोषण के लिए दूसरों पर निर्भर करता परिकल्पित (वि०) [परि+मलप्+ज्युट] विभक्त, है,-पाकरचिः दूसरों के घर पके भोजन की चाह / बंटा हुआ। करना। परिकमः [ परि+क्रम् - घन ] नदी के प्रवाह का अनुपरवा (अ.) [पर+थाल] अन्यथा, वरना चोल० 5 / 5 / / सरण करना। सम०-सहा बकरी। परम (बि०) [ परं परत्वं माति-क] 1. अत्यन्त दूर का, परिक्रिया (स्त्री०) [प्रा० स०] व्यायाम करना। अन्तिम 2. उच्चतम, श्रेष्ठतम, महत्तम 3. मुख्य, परिक्षत (वि.) [परि+क्षण+क्त ] घायल, आहत / प्रमुख, प्रधान,-मम् (10) 1. अच्छा, बहुत अच्छा, परिक्षिप् (सुदा. पर०) बुरा भला कहना --प्रणयाज्याभिहां 2. अत्यन्त / सम० --अक्षरम् पुनीत अक्षर मानाच्च परिचिक्षेप राघवम्--रा० 213012 / 'ॐ',-आयुधम् चक्र नामक शस्त्र--रा० 6 / 58 / 12, | परिगाह (वि.) [परि+गाह+क्त] बहुत अधिक, -कारः मङगलमय क्षण,-गहन (वि०) अत्यन्त अत्यन्त / रहस्ययुक्त,--पुंस परमात्मा, परमपुरुष,-परम(वि.) परिगणित (वि.) [परि+गुण+क्त ] 1. जोड़ कर अत्यन्त श्रेष्ठ, --राजः सर्वोपरि राजा,---समुदय या गणा करके परिवर्षित 2. पुनरुक्त, पुनरावृत्त। (वि.) अत्यन्त सफल,---सम्मत (वि.) परमादर-परिग्रहः परिग्रह+अच] 1. शरीर 2. प्रशासन / गीय, अत्यन्त माननीय। सम-पत्नियों की बड़ी संख्या--परिग्रहबहुत्वेपि परम्परयात (वि.) [त० स०] परम्परा प्राप्त, क्रमानु। द्वे प्रतिष्ठे--२०३। सार प्राप्त। परिणाद्य (वि.) [परि+ग्रह+णि+ ण्यत् ] नम्रता परम्परसम्बन्धः (पुं०) अप्रत्यक्ष सम्बन्ध / तथा शिष्टता पूर्वक सम्बोषित किये जाने के परम्परित (वि०) [परम्परा इतच ] श्रृंखला के रूप योग्य / में, श्रेणीबद्ध / परिधगुरु (वि.)[क. स.] लोहे की भौति भारी। परशुमुद्रा (स्त्री०) [त० स०] तंत्रशास्त्र में वर्णित परिधस्तम्भः (0) चौखट, दरवाजे की बाजू / अंगस्थिति। परिघ्रा (जुहो० पर०) सर्वत्र चुम्बन करना। परस्परविलक्षण (वि०) आपस में एक दूसरे का विरोध | परिचरणतन्त्रम् (नपुं०) श्राद्ध के अनुष्ठान की विशेष करने वाला। रीति / परस्परण्यावृत्तिः (स्त्री०) आपसी निराकरण, पारस्परिक परिचारिका [परि+च+णि+ण्वुल+टाप् ] सेविका बहिष्करण। वासी, सेवा करने वाली नौकराना। For Private and Personal Use Only Page #1302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1293 ) परिचारितम् [परि+पर+णिच् + क्त] आमोद, / परिभाषाम् [ परिभण् +:+मण ] गृहस्थ की आवश्यप्रमोद। कताएँ। परिच्यवनम् [परिनियु-+ ल्युट्] 1. पतित होना, गिर | परिभ (म्ना० पर०) 1. आगे बढ़ जाना 2. सुखा देना, जाना 2. विचलित होना, भटकना / संतृप्त करना-एबमेवेन्द्रियग्रामं शनै: संपरिभावयेत् परिजीणं (वि.) [परि+ज-+क्त ] 1. घिसा हुआ, -महा० 12 // 195 / 19 / मुरझाया हुआ 2. पचाया हुआ। परिभवनिधानम् [ष० त०] घृणा का पदार्थ, घृणा का परिणामः [परि+नम्+घ ] 1. परिवर्तन, रूपान्तरण पात्र। 2. पचाना 3. फल 4. पकना, पूर्णतः विकसित होना परिभावना [परि भू+णि+युच] 1. घृणा 2. (नाटक) 5. अन्त, समाप्ति 6. बुढ़ापा / सम...जम् अपच के | जिज्ञासा को जगाने वाले शब्द / कारण उत्पन्न उदर पीडा,-मुख (वि.)लगभग समाप्त | परिभूत (वि.) [ परि भू+क्त ] 1. पराजित, हराया होने को,-बाद: विकासवाद का सांख्य सिद्धान्त / हुआ 2. अपमानित / परिणीतिः (स्त्री.) [परि+नी+क्तिन् ] विवाह / परिभृष्ट (वि०) [परि+भ्रस्+क्त | तला हुआ, भुना परिणेतव्य (वि०) [परि+नी+तव्यत् ] 1. जिसका हुआ। अभी विवाह होना है 2. जिसका विनिमय होना है। परिमण्डित (वि.) / परि+मण्ड+क्त ] अलंकृत, परितापिन् (वि.) [परिताप+णिनि ] तङ्ग करने वाला, सुभूषित, सजाया हुआ। उत्पीडक, कष्ट देने वाला। परिमितवयस् (वि०) [ब० स०] बाल्य अवस्था का, परितप्तिः [परि-+सप+क्तिन 1 पूर्ण सन्तोष / बच्चा, थोड़ी उम्र का। परितषित (वि.) [परि+तुष+क्त] लालायित, परिमोटनम् [परिमुट-+ल्य] चटकाना, फोड़ना, तोड़ना। उत्सुक, आतुरतापूर्वक प्रबल इच्छा रखने वाला। परियन्त्रणा [परि-यन्त्र+युच+टाप्] प्रतिबन्ध, रोक / परित्या (म्वा० पर०) किश्ती से उतरना। | परिरब्ध (वि.) [परि---रम् + क्त | आलिङ्गित / परित्याज्य (वि.) [परित्यज्+णिच् + यत् ] भुलाये | परिलधनम् (नपुं०) [परि+लड+ ल्युट ] 1. ऊपर जाने योग्य, स्याग दिए जाने के योग्य / से फांदना 2.. अतिक्रमण करना। परिविष्ट (वि.) [ परि+दिश+क्त ] जतलाया गया, | परिलीट (वि.) [ परि+लिह+क्त ] चारों ओर से ध्यान दिलाया गया। | चाटा हुआ। परिधिः [ परि-घा+कि ] 1. दीवार बाड़ 2. चन्द्र या परिलोलित (वि.) [ परिलुल+णिच्+क्त ] उछाला सूर्य के चारों ओर धुन्धला आभास 3. क्षितिज, I हुआ। दिशा / सम०-उपान्त (वि०) समुद्र ही जिसकी | परिवत्सः (पुं०) बछड़ा, गाय का बच्चा। सीमा है। परि (री) वावकथा | प० त०] निन्दनीय बात चीत. परिधारणा (स्त्री) संतोष, धर्य। बदनामी की बातें।। परिधीर (वि.)प्रा० स०] बहत गहरा (जैसे स्वर या| परि (री) वावकरः (पु.) | अपवाद, मिथ्यानिन्दा, शब्द)। | कलंक। परिध्वंसः [परि-+-ध्वंस+घा.] 1. वर्ण संकरता | परिवजित (वि.) [ परि+बज+णिच--क्त 1 लपेटा 2. ग्रहण। हुआ, कुण्डलित किया हुआ, लच्छा बनाया हुआ। परिनिष्ठित (वि.)[परि+नि+स्था+क्त ] 1. नितान्त सम० ---संख्य (वि.) असंख्य, अनगिनत / पूर्ण 2. सम्पन्न परिनिष्ठितकार्यो हि---महा० 1 // परिविंशत् (वि.) पूरे बीस कम से कम बीस / 238 / 13 / / परिविष्ट (वि.) [ परि+विश्+क्त ] 1. घेरा हुआ परिपिच्छम् (नपुं०) मोर का पंख, चन्दा; चन्दे को सजा- 2. वस्त्राच्छादित, वस्त्र पहने हुए 3. उपहृत (जैसे वट की दृष्टि से लगाना-गुजावतंसपरिपिछछल- कि भोजन)। सन्मखाय- भाग० 10 / 14 / 1 / परि (री) वर्तः [परिवत् +घा] अव्यवस्था, व्यतिक्रम। परिपूच्छिक (वि.) [परिपृच्छा+ठक ] जिसे कोई वस्तु | परिवर्तित (वि.) [परिवृत्+क्त ] 1. एक ओर किया मांगने पर ही मिलती है। हुआ, हटाया हुआ 2. पूरी तरह खोज किया गया। परिप्लोषः[परिप्लष+पा आन्तरिक गर्मी। परिवण (वि.) [ परिश्च-+क्त ] विकृति, कटापरिबर्हः [ परिव (व) ई+घञ ] सजावट का सामान, छंटा, खण्डित / __चंवर आदि राजचिल-भाग० 4 / 3 / 9 / / परिवे (स्वा० उभ०) 1. अन्तषित करना, जोड़ना परियोषः [ परिवा+पण कर्क, युक्ति, कारण। 2. बांधना / ' For Private and Personal Use Only Page #1303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ( 1294 ) परिवेल्लित (वि० ) [ परिवेल्ल्+क्त ] घिरा हुआ / पर्यवस्थित (वि.) [परि+अव+स्था+क्त ] 1. पड़ाव --भामि० 2 // 18 // डाला हुआ 2. अधिकृत 3. स्वस्थ, शान्त / परिशङ्का [परिशङ्क+अ+टाप्] 1. संशय, आशंका पर्यादानम् [परि+आ---दा+ल्युट ] अन्त, समाप्ति / 2. आशा, प्रत्याशा / पर्याप्तकाम (वि.) [ब. स.] जिसकी इच्छाएं पूर्ण परिशब्दित (वि.) [ परिशब्द् + क्त] सम्प्रेषित, वणित / हो गई हों। परिशुश्रूषा [ परिश्रू- सन् +टाप, द्वित्वम् ] बिना विचार पर्यापतत (वि०) [परि+आ+पत्+शत ] शीघ्रता आज्ञापालन / ___ करता हुआ, तेजी के साथ दौड़ता हुआ। परिष्प (स्प) न्दः [ परिस्पन्द्+घञ्] शौर्य, पराक्रम। पर्याम्नात (वि.) [परि+आ+ना+क्त ] विख्यात, परिसंचक्ष (अदा० आ०) 1. पृथक करना, निकाल देता प्रसिद्ध। मै० सं० शश६१ पर शा. भा० 2. गिनना / पर्यायः [ परि++घञ्] 1. अन्त-पर्यायकाले धर्मस्य परिसामन् (नपुं०) सामसूक्त जिसकी विरल आवृत्ति / प्राप्ते कलिरजायत - महा० 5 / 74 / 12 2. एक अलंहोती है। कार का नाम --काव्य० 10, चन्द्रा० 5 / 108, सा० परिसरः [ परि-+स-1 ] शिरा, धमनी, वाहिनी / द०७३३ / सम० ...क्रमः परम्परा का सिलसिला। परिस्कन्धः [परि+स्कन्ध +घञ ] संग्रह, समुच्चय। / पर्यायत (वि.) [परि+आ+यम्+क्त] अत्यन्त लम्बा / परिस्तोमः [परि+स्तोम् +अच् ] 1. रंगीन कपड़ा जो | पर्यासित (वि०) [ परि+अस्+णि+क्त ] रही किया हाथी पर डाला जाता है 2. यज्ञपात्र / गया, नष्ट किया गया-परैरपर्यासितवीर्यसंपदाम परिनुत (वि०) [परि++क्त ] बहा हुआ, बूंद-बूंद | | कि० 1141 / करके टपका हुआ। दासः [परि + उद्-+-अस्+घञ ] 'ना' के प्रयोग परिहूत (वि०) [परि + ह्वे -क्त ] आमंत्रित, बुलाया / द्वारा निषेधार्थककृति-(अग्राह्मणम् आनय)-दे० हुआ। मै० सं० 108 / 1-4 पर शा० भा०। परिह (भ्वा० पर०) 1. निराकरण करना 2. आवृत्ति / पर्युपासीन (वि.) [परि+उप+आस-+-शानच, ईत्वम् / करना 3. पोषण करना। ___ 1. बैठा हुआ 2. घिरा हुआ। परिहारः [परि+ह+घन ] 1. त्यागना, छोड़ना पर्युषित (वि०) [परि+वस्+णिच्-+-त] जिसके 2. हटाना, दूर करना 3. निराकरण करना 4. टालना / ऊपर से रात बीत गई हो, बासी, जो ताजा न हो 5. शुल्क से मुक्ति। सम०--विशुद्धिः (स्त्री०) (जैसे रात का रक्खा भोजन)। सम० --वाक्यम् तपश्चरण द्वारा पवित्रीकरण (जैन),-सू वह गाय वह वचन जिसका पालन न किया गया हो, ट्टी जो बहुत अधिक दिनों के पश्चात् बछड़ा सूती है। हुई प्रतिज्ञा। परीष्ट (वि०) [परि+इष+क्त ] वाञ्छनीय, उत्तम, ष्टि (वि.) [परि+वस्+क्त ] बासी। बढ़िया-अन्ते परीष्टगतये हरये नमस्ते - भाग० पर्वतः [ पर्व+अतच् ] 1. पहाड़ 2. एक ऋषि का नाम / 6 / 9 / 45 / सम- उपत्यका पहाड़ की तलहटी में स्थित समतल परषाक्षेपः [क० स०] कठोर शब्दों में व्यक्त किया गया | भूमि,-रोधस् (नपुं०) पहाड़ी ढलान / आक्षेप, ऐतराज / पर्वन् (नपुं०)[ +वनिप्] 1. गाँठ, जोड़ 2. पोरी, परेतकल्पः (पुं०) मतप्राय, मरे हुए के समान / अंश 3. अंग 4. अनुभाग। सम-आस्फोट: परेतकालः (पु.) मृत्यु का समय / अंगुलियां चटखाना (अभिशाप का चिह्न समझा जाता परोशजित (वि.) [परोक्ष+जि+क्विप् ] जो विजय है),---विपद् चन्द्रमा। प्राप्त करता हुआ किसी से देखा नहीं जाता है, अदृष्ट-पलः [पल+अच् ] भूसी, छिल्का,- लम् 1. मांस 2. 4 विजयी। __कर्ष का बट्टा 3. समय की माप 4. एक छीटी तोल / परोक्षबुद्धि (वि.) [ब. स.] तटस्थ, उदासीन / सम०-अन्नम् मांस से मिले चावल। पणनाल: (0) पत्ते के रूप में डंठल / पलाल: [पल्+आलच ] भूसी, तुष, तिनके। सम० पर्णालः [पर्ण-आलच् ] 1. किश्ती 2. एकाकी संघर्ष / --भारकः तिनकों का बोझ, भूसी का भार / पर्पटौदनः [द्व० स०] पर्पटमिश्रित चावल / पलिः (स्त्री०) [पल् + इ ] हाथी के मस्तक से ठीक पर्यम्बद्ध (वि.) [त० स०] दीरासन पर विराजमान / / ऊपर का भाग। पर्यन्तस्थित (वि.) [त० स०] सीमा पर विद्यमान / पलित (वि.) [पल+क्त बढ़ा, जिसके बाल पक गये पपर्यः [परि++मच्] हानि, माश-स्कन्धपर्ययः -महा. हो, जिसके सिर के बाल सफ़ेद हो गये हों,-तम् 1 / 15 / 26 / | 1. सोच बाल 2. पण पाश। सम.-छान् सफ़ेद For Private and Personal Use Only Page #1304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालों के बहाने - कैकेयी शङ्कयवाह पलितछद्मना / पाञ्चरात्रम् (नपुं०) 1. एक वैष्णव सम्प्रदाय तथा उसके जरा-रघु० १२।२,--दर्शनम् सफ़ेद बालों का सिद्धान्त, भक्तिमार्ग 2. पाञ्चरात्र सम्प्रदाय के दिखाई देना। शास्त्र, आगम / पल्यशनः (पुं०) बिच्छ / पाञ्चालेयः [पाञ्चाली+ढक] पाञ्चाली का पुत्र / पल्लवः [पल --क्विप, लू-+ अप, पल चासौ लवश्च, | पाटलकीटः (पुं०) एक प्रकार का कीड़ा। क० स०] 1. अङ्कुर, 2. कली 3. विस्तार 4. शक्ति पाट्यपकरः [पाटी+उपकरः] मुख्य लेखाधिकारी। 5. घास की पत्ती 6. कण 7. वस्त्र का किनारा | पाठक्रमः (पं०) [प० त०] मूलपाठ के अनुक्रम के 8. प्रेम 9. कामकेलि 10. कहानी, कथा। ___ अनुसार निर्धारित पाठ। पल्लवनम् [ पल+क्विप, ल + ल्युट, पल चासौ लवनश्च, / | पाठभेदः [ स० त०] मूलपाठ के रूपान्तर, अवान्तर क० स०] निरर्थक वक्तृता / पाठ। पवनम् [पू+ल्यट] 1. पवित्र करना 2. पिछोड़ना | पाठ्यपुस्तकम् (नपुं०) किसी श्रेणी के लिए निर्धारित 3. छलनी 4. पानी 5. कुम्हार का आवा। सम० पुस्तक / ---चक्रम् बवंडर, भभूला,-पदवी आकाश का प्रदेश। पाणिः [ पण इण, आयाभावः ] हाथ / सम० ---कच्छ पवमानसखः [ब० स०] अग्नि / पिका (स्त्री०) एक प्रकार की मुद्रा, -- गत (वि०) पवित्र (वि०) [पू--इत्र ] 1. पावन, निष्पाप 2. मन को निकट ही, दाक्ष्यम् हाथ की सफ़ाई,-वादः शुद्ध करने का साधन 3. सोमरस को छानने का वस्त्र, 1. तालियाँ बजाना 2. ढोल बजाना 3. केरल प्रदेश छलना या पोना। के ढोलकियों का समुदाय / / पवित्रीकरणम् [ पवित्र--च्चि+कृ+ल्युट ] 1, पवित्र पाण्डवप्रियः [ब० स०] कृष्ण का विशेषण / करना 2. पवित्र करने का साधन / पाण्डिमन् (पुं०) [पाण्डु+इमनिच ] सफ़ेदी / पशु (अ०) [ दृश्+कु, पशादेशः ] देखो! कितना | पाण्डलोहम (नपं०) चाँदी। अच्छा !,-शुः (पुं०) पालतू जानवर, मवेशी / सम० पातः / पत्+घन ] (मल्हम, चाकू आदि का) प्रयोग। --एकत्वन्यायः मीमांसा का नियम जिसके आधार पातालमूलम् (नपुं०) पाताल लोक की निम्न सतह / पर बाक्य का मुख्यार्थ क्रिया के द्वारा संयुक्त होकर | पात्र (वि.) [ पातात् त्रायते इति | पापों से छुटकारा अभिप्रेत वचन को अभिव्यक्त करता है, मै० सं० | दिलाने वाला ..सर्वेषामेव पात्त्राणां परपात्त्रं 4 / 1 / 1 / 16 पर शा० भा०, मतम मिथ्या सिद्धांत, / महेश्वरः-ना० पा० / -----समाम्नायः प्राणिजात के नामों का संग्रह / पात्रम् [पा+ष्ट्रन् ] 1. प्याला, कटोरा 2. बर्तन पश्चादहः (अ०)[पश्चात्+अहः ] तीसरा पहर। 3. आशय 4. योग्य व्यक्ति 5. नाटक में अभिनेता पश्चादुक्तिः (स्त्री०) पश्चात् +उक्तिः] आवृत्ति, 6. राजा का मंत्री 7. दरिया का पाट 8. योग्यता दोहराना। औचित्य / सम० उपकरणम् अलङ्करण के पश्चिमोत्तर (वि०) [ब० स०] उत्तरपश्चिमी / बर्तन, सजावट के पात्र जैसे चौरी आदि,---प्रवेशः पश्चिमसन्ध्या (स्त्री०) सायंकालीन झुटपुटा / (नाट० में) रङ्गमंच पर अभिनेता का आगमन, पश्य (वि०) [दृश्+अच् पश्यादेशः ] जो केवल देखता | ---मेलनम् भिन्न-भिन्न प्रकार का अभिनय कराने रहता है-ददर्श पश्यामिव' 'पुरम् -नै० 16 / 122 / के लिए अभिनेताओं का एकत्रीकरण,-शोधनम पष्ठीही (स्त्री०) बछिया-महा० 13 / 93 / 32 / किसी उपहार को ग्रहण करने के योग्य व्यक्ति पातव्य (वि.) [पा+तव्यत 1 1. पीने के योग्य, पेय की योग्यता की परीक्षा करना, संस्कारः किसी 2. रक्षा किये जाने के योग्य / पात्र या बर्तन को पवित्र करना। पांसुः [पंस्+कु, दीर्घः ] चूर्ण, धूल। सम-क्रीडनम् पात्रकरणम् (नपुं०) विवाह-ममैव पात्रोकरणेऽग्नि धूल में खेलना, गुण्ठित (वि०) धूल से भरा साक्षिक-नै० 668 / हुआ, लवणम् एक प्रकार का नमक / पादः [ पद्+घञ ] मशक की तली में छिद्र-तेनास्य पांसक (वि.) [पंस +णिच-+-बुल ] भ्रष्ट करने क्षरति प्रज्ञा दृतेः पादादिवोदकम्-मनु० 2 / 99 / वाला, बिगाड़ने वाला। सम० कृच्छम् एक प्रकार का व्रत जिसमें हर पांसवः (पुं०) विकलांग / तीसरे दिन उपवास रखना पड़ता है,-निकेतः पाकः [पच्+घा ] शोथ, सूजन / सम-क्रिया पादपीठ, मूंढा, स्टूल,—पद्धतिः (स्त्री०) पदचिह्न, पकाने की क्रिया। --परिचारकः चरण सेवक, विनीत सेवक,-भटः पाजस्यम् (नपुं०) 1. जानवर का पेट 2. पार्श्व भाग। / पदाति, पैदल सिपाही,-लग्नः पैर में चिपका हुआ, For Private and Personal Use Only Page #1305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1296 ) संहिता कविता के चरणों का जोड़, हीनजलम पाणिविग्रहः [ष० ह.] सेना के पिछली ओर आक्रमण वह पानी जिसका कुछ अंश उबाला हुआ हो। करना। पादाकुलकम् (नपुं०) एक छन्द का नाम / पालनम् [ पाल+ल्युट् ] (शस्त्रों को शाण पर रख कर) पानीयपृष्ठजा (स्त्री०) मोथा नाम का घास जो पानी तीक्ष्ण-तेज करना। के किनारे उगता है। पालाशविधिः [पलाश+अण् तस्य विधिः ] ढाक की पान्थदुर्गा ( स्त्री० ) [ष० त०] मार्गव्यापिनी देवी लकड़ियों से मृतक का दाह संस्कार करना / आलिङ्गय नीत्वाकृत पान्य दुर्गाम् नै०२४।३७ / / पालिज्वरः (पुं०) एक प्रकार का बुखार / पाप (वि.) [पा+] 1. बुरा, दुष्ट 2. अभिशप्त, | पाल्लविक (वि०) [पल्लव+ठक विसारी, विसरण विनाशकारी, शरारत से भरा हुआ 3. नीच, शील, विच्यत / / अधम। सम वंश (वि०) नीच कुल में उत्पन्न, पायकमणिः (०)[ष० त०] सूर्यकान्त मणि / विनिग्रहः दुष्टता को रोकना,- शमन (वि०) पाप | पावकशिखः [ब० स०] जाफरान, अग्निशिख, केसर / कर्म को रोकने वाला। पावकाचिः (स्त्री०) 0 त०] अग्नि की ज्वाला। पायसपिण्डारकः (पुं०) खीर खाने वाला / पावित (वि.) [पू+णिच् + क्त ] पवित्र किया हुआ, पायितम् (नपुं०) उदकदान, उपहार में दिया गया जल। / स्वच्छ किया हुआ। पारः [पृ+घञ ] 1. नदी का दूसरा किनारा 2. पार पाय्य (वि.) [पू+णिच् ---ण्यत् ] पवित्र किये जाने कर लेना 3. सम्पन्न करना 4. पारा 5. अन्त, किनारा योग्य / 6. संरक्षक तस्माद् भयाद येन स नोऽस्तु पार: | पाशिन् (पुं०) [पाश---इनि ] रस्सी, बेड़ी पाशीकल्प--भाग० 69 -24 2. अन्त - महिम्नः पारं ते मायतामाचकर्ष शि० 18.57 / -म० स्त०। सम०-नेत (वि०) जो किसी पाशुपतव्रतम् (नपु०) पाशपत सिद्धान्तों के लिए किया व्यकि को किसी कार्य में दक्ष बना देता है। ___गया उपवास, व्रत / पारतल्पिफम् [परतल्प+ठक् ] व्यभिचार / पिककूजनम् (ष० त०) कोयल की कूक / पारमार्थिकसत्ता (स्त्री०) परम सत्य का अस्तित्व / पिङ्गमूलः ब० स०गाजर / पारमिता [पारम् इतः प्राप्तः-पारमित- अलुक स पिङ्गालम् (नपुं०) गाजर / --स्त्रियां टाप् ] संपूर्ण निष्पत्ति, पूर्णता। पिच्छात्रावः (0) चिपचिपा थक / पारमेश्वर (वि.) [परमेश्वर+अण्] परमेश्वर से संबद्ध।। पिञ्जरिकम् (नपुं०) एक प्रकार का संगीत-उपकरण / पारम्पर्यक्रमः [परम्परा--ष्य ] परम्परा प्राप्त अनुक्रम। पिटङ्काशः (पुं०) एक प्रकार की छोटी मछली / पारषदम् (नपुं०) सदस्यता, किसी सभा का सदस्य पिठरपाकः (पु०) कार्यकारण का मेल / बनना। भाग०१।१६।१७।। पिठरी (स्त्री०) कड़ाही, जिसमें कुछ उबाला जाय / पारावतघ्नी (स्त्री०) सरस्वती नदी। पिण्ड (वि०) [ पिण्ड+अच्] 1. ठोस 2. सटा हुआ, पारिणामिक (वि.) [परिणाम+ठक ] 1. पचने के सघन / सम० अक्षर (वि.) संयुक्त व्यञ्जनों से योग्य, जो हजम हो सके 2. जिसमें विकार हो सके, युक्त शब्द, निवृत्ति सपिण्ड बन्धता की समाप्ति, परिवर्त्य / पितृयज्ञः अमावस्या को संध्यासमय पितरों के प्रति पारिपन्थिकः [परिपन्था+ठक ] चलती सड़के पर लूटने आहुति देना, विषमः (0) अपहरण की रीति, बाला, डाकू / गबन का तरीका-को० अ० 2 / 8 / 26 / / पारिप्लवदृष्टि (वि०) [ब० स०] चंचल आँखों वाला। पितुषणिः (पुं०) भोजन-प्रदाता (मोम का विशेषण)। पारिप्लवमति (वि.)बि. स. चंचल मन वाला। पितत्रयम् [ष० त०] पिता, पितामह तथा प्रपितामह / पारुषिक (वि.) [परष-+ठक ] कठोर, दारुण पितृवासरपर्वन् (नपुं०) पितरों की पूजा का शुभ समय / पार्यवसानिक (वि.) [पर्यवसान+8 ] समाप्ति के | पित्तम् [ अपि+दो+क्त, अपे: अकारलोपः ] एक तरल निकट आने वाला। पदार्थ जो शरीर के भीतर यकृत में बनता है / पावः (पुं०) [पर्श + अण ] 1. एक ऋषि, जैभियों के सम०-धर (वि०) पित्त प्रकृति का ब्यक्ति, -धरा 23 वें तीर्थंकर का विशेषण 2. पार्श्वभाग। सम. (स्त्री०) शरीर में पिनाशय / -अपवत्त (वि०) एक ओर को झुका हुआ (हीरे गिधातव्य (वि०) [ अपि+धा+तव्यत, अपेः अलोपः] का एक दोष), आतिः शरीर के पाश्र्वभाग में बन्द किए जाने के योग्य / पीडा, उपपीडम (अ०) (इतना हंसना कि जिससे), पिन्य (अ०) पहन कर / पार्श्वभाग दुखने लगे,-चकत्रः शिव का एक विशेषण / / पिन्यासः (पुं०) हींग / For Private and Personal Use Only Page #1306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1297 ) पिप्पलः (पृ.) 1. पिप्पल नाम का वृक्ष 2. कर्मजन्य फल, ! पुण्य (वि.) [पू+यत् णुगागमः, ह्रस्वः ] 1. पवित्र, कर्म का फल--मण्ड० 3 / 111 / सम०: अदः पुनीत 2. अच्छा गुणयुक्त 3. मंगलमय, शुभ 4. सुन्दर, 1. एक मुनि का नाम 'पिप्पलाद' 2. पिप्पल के बरबंटे मनोज्ञ, रोचक 5. मधुर- ण्यम (नपं०) 1. जन्मलग्म खाने वाला 3. विषयवासना में लिप्त / से सातवाँ घर 2. मेष, कर्क, तुला और मकर का पिब (वि.) [पा-+ अच, पिबादेशः ] पीने वाला नल- संयोग। सम-निवह (वि०) गुणयुक्त, गुणी, च्छायपिबापि दष्टि:-०६।३४ / __शाला धर्मार्थ भवन, दान-धर, संचयः धार्मिक पिशितम् [पिश्-क्त ] 1. मांस 2. अल्पांश। सम० गुणों का संग्रह। - - पिण्ड: 1. मांस का टुकड़ा 2. तिरस्कारसूचक शब्द | पुत्रप्रवरः [ स० त०] ज्येष्ठ पुत्र / जो शरीर को इंगित करे; “प्ररोहः मांस का उभार, | पुत्रसूः (स्त्री०) [10 त०] पुत्र की माँ। रसौली। पोथित (वि.) [पुथ+ णिच- क्त ] आघात पहुँचाया पिशुनित (वि.) [ पिशुन+इतच् ] प्रकट किया गया, हुआ, मारा हुआ, नष्ट किया हुआ / प्रदर्शित। पुनर (अ०) [पन् / अर, उत्वम् ] फिर, दोबारा, नये पिष्ट (वि०) [विष्-क्त ] 1. पीसा हुआ 2. गूदा हुआ। सिरे से। सम० - अन्वयः वापसी, लौटना कि सम० - अद (वि०) आटा खाने वाला,-पाकः वा गतोऽस्य पुनरन्वयमन्यलोकम-भाग० 6 / 14 / 57 पकाया हुआ आटा (रारी, पूरी आदि) / -- अपगमः दोबारा चले जाना,-- उत्पादनम् फिर पिष्टातः [ पिष्ट-अत् / अण ] सुगन्धित चूर्ण, अबीर जो | उपजाना, पैदा करना,--- क्रिया आवृत्ति करना, दोह होली के अवसर पर एक दूसरे पर छिड़क दिया राना,-नवा एक प्रकार का शाक जिसकी पत्तियाँ जाता है। गोल लाल रंग की होती हैं ।-स्नानम् दोबारा पिस्पृक्षु (वि.) [स्पृश् + सन् + उ] 1. छूने की इच्छा नहाना। वाला 2. आचमन करने का इच्छुक / पुपूषापू+स्+अ, धातोद्वित्वम् पवित्र करने की इच्छा। पीठाधिकारः (0) [प० त०] किसी पद पर नियुक्ति।। पुरनारी (स्त्री०) [ष० त०] नगरवेश्या / पीड् (चुरा० उभ०) शब्द करना-श्रुतिसमधिकमुच्चः पुरधिका (स्त्री०) {पुर---+खच्, स्वार्थे कन्] पत्नी। पञ्चमं पीडयन्तः --शि०११११ पुरस्कारः [पुरस्+-+घञ्] 1. प्रस्तुत करना, परिचय पीडास्थानम् [10 त०] (फ० ज्यो० में) ग्रह की देना 2. अपने आपको प्रकट करना - कर्महेतुपुरस्कार किसी अशुभ स्थान पर स्थिति / भूतेषु परिवर्तते - महा० 12 / 19 / 19 / / पीत (वि०) [पा+क्त ] 1. पीया हुआ 2. भिगोया पुरस्कृत्य (अ.) [पुरस्+ + ल्यप्] कृते, के विषय में हुआ 3. बाष्पीकृत 4. छिड़का हुआ। सम० उल्लेख करके, के कारण / -उदका वह गाय जो पानी पी चुकी है पीतोदका | पुरोभक्तका (स्त्री०) प्रातराश, नाश्ता / जग्धतणा कठ०,-निद्र (वि.) नींद में डूबा हुआ, | पुराण (वि.) [पुरा नवम्-नि०] 1. पुराना 2. बूढ़ा मारुतः एक प्रकार का साँप,--स्फोट: खुजली। 3. घिसा पिटा,--णम् 1. बीती हुई घटना 2. विख्यात पीयूषभानुः, -- (धामन) (पुं०) [ब० स०] चन्द्रमा। धार्मिक पुस्तकें जो गिनती में 18 हैं, तथा व्यास पंस (पुं०) |पा-डमसुन] 1. जीवित प्राणी 2. एक द्वारा रचित माने जाते हैं। सम०-अन्तरम् दूसरा प्रकार का नरक-अपत्यमस्मि ते पुंसस्त्राणात् महा० पूराण। प्रोक्त (वि०) 1. पुराणों में कहा हुआ 14190163 / सम....-लक्षणम् मानवीरूप, मानवी 2. प्राचीनों द्वारा बतलाया हुआ,--विद्या, वेदः पुराणों का ज्ञान, पुराणों में वर्णित पाण्डित्य। पुच्चकः (50) द्वितीय वर्ष में चल रहा हाथी.....मात० पुरापाट् (वेद०) अनकों का विजेता, बहुतों को हरानेवाला / पुरीषभेदः [+ ईषन् किच्च,+भि+धा ] अतिसार, पुजिक (का) स्तमा (स्त्री०) एक स्वर्गीय अप्सरा दस्त लगना, संग्रहणी।। का नास। पुट:,-टम् [पुट+क] 1. तह 2. अंजलि 3. दोना / पुरुकृत्वन (वि०) अचूक, प्रभावशाली / सम-अञ्जलिः दोनों हथेलियों को मिला कर | पुरुषः पुरि देहे शेते शी+ड पृषो०] 1. नर, मनुष्य प्याले की भाँति बना लेना,-धेनुः बछड़े वाली गौ (विप० स्त्री) 2. आत्मा। सम० मानिन् (वि.) जिसका अभी पूर्ण विकास नहीं हुआ है। अपने आपको साहसी प्रकट करने वाला,-शीर्षक: पुटनम् [पुट+ल्युट ] आच्छादित करना, ढकना। एक प्रकार का शस्त्र जिसका प्रयोग चोर सेंध लगाने पुपरीकम् [पुण्ड + ईकन, रक् नि०] एक यज्ञ का नाम। / में करते हैं, सारः श्रेष्टतम नर / For Private and Personal Use Only Page #1307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / ( 1298 ) पुलकः [पुल्+ण्वुल्] गुच्छा, झुंड / / पूर्ण (वि.) [पुर्+क्त ] सर्वव्यापक, सर्वत्र उपस्थित / पुलिंदः (पुं०) शिकारी, (ब० व०) एक जंगली जाति। / सम० अभिषेक: एक प्रकार का धार्मिक स्नान पुल्कसः (0) एक मिश्रित जाति का नाम भाग० जिसका कौलतंत्र में विधान निहित है। उत्सङ्गा 9 / 21 / 10 / (वि.) ऐसी गर्भवती जिसके थोड़े ही दिनों में बच्चा पुष्ट (वि.) [पुष-क्त] 1. पाला पोसा 2. फलता होने वाला है, आसन्न प्रसवा,-प्रज्ञः (10) 1. जिसका फूलता 3. समद्ध 4. पूर्ण। सम० -- अङ्ग (वि.) ज्ञान पूर्णत: विकसित हो चुका हो 2. द्वैत संप्रदाय मोटे अंगों वाला, जिसे अच्छे पदार्थ भोजन में मिलते के प्रवर्तक माधव का विशेषण / रहे हैं अर्थ (वि०) जो अर्थ की दृष्टि से पूर्णत: | पूर्व (वि.) [पूर्व-+अच् ] 1. पहला, प्रथम 2. पूर्वी, स्पष्ट हो। पूर्वदेश 3. प्राचीन, पहला। सम...-अवसायिन पुष्टिः पुष+क्तिन्] बहुत से अनुष्ठानों के नाम जो (वि.) जो बात पहले घटती है-पूर्वावसायिन्यश्च कल्याण की दृष्टि से किये जाते है, पुष्टिकर्म / बलीयांसो जघन्यावसायिभ्यः-मै० सं० 12 / 2 / 34 सम० मार्गः बल्लभाचार्य द्वारा माने गये सिद्धान्तों पर शा० भा०। -निमित्तम् शकुन, - निविष्ट का समुच्चय / (वि.) जो पहले ही रचा हुआ है---मनु० 9 / 281, पुष्करम् / पुष्क पुष्टि राति-रा+क] 1. नीला कमल -पश्चात, पश्चिम (अ०) पूर्व से लेकर पश्चिम 2. हाथी के सूंड का किनारा-मात०।२। सम० तक, मारिन् (वि०) पति (या पत्नी) से पहले -विष्टर: ब्रह्मा, परमेश्वर, विष्टरा लक्ष्मी देवी मरने वाला, विद् (वि०) जो भूतकाल की बात -पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ... कनक० / / जानता है, विप्रतिषेधः पहली उक्ति का विरोध पुष्पम् [पुष्प-+ अच्] 1. फूल 2. पुष्परागमणि 3. कुबेर करने वाला कथन,--विहित (वि.) जो पहले ही का रथ / सम० अम्बु फूलों का शहद, -- आस्तरकः, निर्णीत हो चुका हो। -आस्तरणम् फूलों से सजावट करने की कला, पूषानुजः [पूषन्--अनुजः ] वृष्टि का देवता-- प्रास्यद् --पदवी कपाटिका, - यमकम अनप्रास अलंकार का द्रोणसुतो बाणान् वृष्टि पूषानुजो यथा महा०८1 एक भेद। 20 / 29 / पुष्पधः (0) जाति से बहिष्कृत महिला में ब्राह्मण द्वारा | पूणाका (स्त्री०) किसी जानवर का मादा-बच्चा / उत्पादित संतान / पृतनापतिः (प.) [50 त०] सेनापति / पुष्परागः [प० त०] एक प्रकार की मणि-कौ० अ० पृथक (अ०) [प्रथ् + अज, कित्, संप्रसारणम् ] 1. अलग 2 / 11 / 29 / 2. अलग-अलग 3. के बिना, के सिवाय। सम० पुस्तम् [ पुस्त+अन् ] 1. कोई वस्तु जो मिट्टी, लकड़ी / -कार्यम् अलग काम, धमिन (वि०) जो द्वैत या धातु की बनी हो 2. पुस्तक, हस्तलिखित, पांडु- सिद्धान्त को मानने वाला है, बीजः भिलावा, ... योगलिपि / सम-पालः भू-अभिलेखों को सुरक्षा पूर्वक / करणम् एक व्याकरणनियम का दो भागों में जुदा रखने वाला। जुदा करना। पुस्तफः,-कम् [पुस्त+कन् ] 1. पाण्डुलिपि 2. एक उभरा पृथक्त्वनिवेशः (पु०) जुदाई पर डटे रहना संख्यायाश्च हुआ आभूषण / सम०- आगारम् पुस्तकालय, पृथक्त्वनिवेशात् - मो० सु० 10 / 5 / 17 / -आस्तरणम् बस्ता, वह कपड़ा जिसमें पुस्तकें वाँधी | पृथिवीभृत् (पुं०) [पृथिवीं बिभर्तीति - -क्विप् ] जाती है,-- मुद्रा एक प्रकार की तांत्रिक मुद्रा / पर्वत, पहाड़। पूतक्रतुः [ब० स०] इन्द्र का विशेषण / पृथु (वि०) [प्रथ्--कु, संप्रसारणम् ] 1. विशाल, विस्तृत पूगी (स्त्री०) सुपारी का पेड़ / 2. प्रचुर पुष्कल 3. बड़ा, 4. असंख्य / सम०-कोति पूजा [पूज्अ] आदर, सम्मान, पूजा। सम० उप- (वि.) दूर-दूर तक विख्यात,---वशिन् (वि.) दूर करणम् पूजा करने का सामान,-गृहम् गाह्यं पूजा दर्शी, दीर्घदृष्टि / का स्थान / / पृश्नि (वि.) [स्पृश् नि० किच्च पृषो० सलोपः] पूयः [ पूय--अच ] मवाद, किसी फोड़े या फुसी से निक- 1. ठिगना 2. सुकुमार 3. चितकबरा,-शिनः (स्त्री०) लने वाला, पीप। सम०--उवः, -वहः, एक प्रकार 1. चितकबरी गाय 2. पृथ्वी।। का नरक। पृषत्कः [पृष्+अति =पृषत्+कन् ] 1. गोल धब्बा पूरक (वि.) [पूर +ण्वुल] 1. भरने वाला, पूरा 2. चाप की शरज्या / / करने वाला,--क: (पुं०) बाढ़, जलप्लावन-सिञ्चाङ्ग पृष्ठम् | पृष्-(स्पश)+थक नि०11. पीठ 2. पुस्तक के नस्त्वदधरामृतपूरकेण---भाग० 10 // 29 // 35 / पत्र का एक पार्श्व 3. शेष / सम० . आक्षेपः पीठ में For Private and Personal Use Only Page #1308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1299 ) बड़ी तीव्र पीड़ा,-गामिन् (वि०) स्वामिभक्त, अनुचर, प्रकरणम् [प्र--कृ+ ल्युट] प्रसंग। सम०---समः समान -तापः मध्याह्न, दोपहर, -भङ्गः युद्ध में लड़ने की| औचित्य और समान बल के दो तर्क। एक रीति / प्रकर्म (नपुं०) मैथुन, संभोग (जैसा कि कौ० अ० में पृष्ठयम् [ पृष्ठ+ यत् ] 1. मेरुदण्ड 2. सामसंग्रह। कन्याप्रकर्म)। पेचकः [प+बुन्, इत्वम् ] मार्ग में बना यात्रियों के लिए प्रकृतिः [प्र-++क्तिन्] परम पुरुष परमात्मा के आठ शरणगृह मान० / रूप-भग० 7 / 4 / सम-अमित्रः सामान्य शत्रु, पेट्टालः, लम् / टोकरी, पेटी। --कल्याण (वि०) नैसगिक सौन्दर्य से युक्त, पेट्टालकः,-कम् / स्वाभाविक सुन्दर,-भोजनम् यथाराति आहार, पेण्डः (पुं०) मार्ग, रास्ता / यथावत् भोजन / पेलिनी [पेल-इनि, स्त्रियां ङीप् ] गांठगोभी, पातगोभी। प्रकृतिमत् (वि०) [प्रकृति-- मतुप्] 1. नैसगिक, सामान्य पेशस् (नपुं०) [पेश-असिच्] 1. रूप 2. सोना 3. आभा 2. सात्त्विक वृत्ति का महानुभाव 02 / 121 / 4. सजावट। सम० कारिन् 1. भिरं 2. सुनार, प्रक्रिया [प्र+कृ-श] (आयु० में) योग, नुस्खा / --कृत् (पुं०) 1. हाथ 2. भिरै भाग० 7 / 1 / 28 / प्रकृष् (तुदा० पर०) वेग से खींचना / / पेशिः (स्त्री०) [ पिश् / इन् ] छाछ, तक। प्रकर्षः [प्र+कृष्+घञ] विश्वजनीन / पेषीकृ (तना० उभ०) कुचलना, पीस देना / प्रकर्षित (वि.) [प्र-+-कृष णिचक्त] फैलाया हुआ, पङ्गलः [पिङ्गल+अण् ] पिंगल का पुत्र या शिष्य। __ बाहर निकाला हुआ। पंङ्गलम् [ पिङ्गल+ अण् ] पिङ्गल मुनि कृत पुस्तिका। प्रक्रमः [प्र+क्रम् +घञ] चर्चा के बिन्दु पर पहुँचना / पैतापुत्रीय (वि.) [ पितापुत्र+छ ] पिता और पुत्र से सम०-निरुद्ध (वि०) आरंभ में ही रुका हुआ / संबंध रखने वाला। प्रक्षपणम् [+क्षि-+-णिच्-+ ल्युट, प्रगागमः] विनाश, पैप्पलादः [ पिप्पलाद---अण् ] अथर्ववेद की एक शाखा / -.-राज० / पैशुनिक (वि०) [पिशुन+-ठक्] मिथ्यानिन्दात्मक, अपवाद | प्रख्या [प्रन ख्या-+अ+टाप] उज्वलता, आभा, कान्ति / परक। प्रगुणीभू (प्रगुण+च्चि-भू भ्वा० पर०) अपने आपको पोतायितम् (नपुं०) [पू- तन् --पोत / क्यच-|-क्त योग्य बनाना, पात्रता प्राप्त करना। 1. शिशु की भाँति आचरण करना 2. होठ और ताल | प्रग्रहः प्रि-ग्रह-अप] 1. राजसभासदों को उपहार की सहायता से उच्चरित हाथी की चिंघाड़। / -कौ० अ०२।७।२५ 2. जोड़ के रखना 3. धृष्टता। पोत्रिप्रवरः [पू-त्र--पोत्र---इनि--पोत्रिन्, तेषु प्रवरः] प्रचकित (वि.) [प्र+चक - क्त भय के कारण थर-थर विष्णु भगवान् वाराहावतार हिरण्याक्षे पात्रिप्रवर- __ काँपता हुआ। वपुषा देव भवता- नारायणीय० / | प्रचण्ड (वि०) प्रा० स०] प्रखर, अत्यन्त तीन / सम० पोप्लूयमान (वि०) [प्लू | यङ् + शानच्, द्वित्वम्] बार -- प्रतापः शक्तिशाली तेज, भैरवः एक नाटक का बार तैरता हुआ लगातार तैरने वाला या बहने वाला। नाम / पौण्ड्रवर्धनः (पुं०) बिहार प्रदेश का नाम / प्रचर्या [प्र--चर्+यत्+टाप्] प्रक्रिया / पौत्रजोविकम् (नपुं०) पुत्रं जीव पौधे के बीजों से बना प्रचारः [प्र+चर+घा] सरकारी घोषणा, सार्वजनिक ताबीज़। / उद्घोष / पौरन्ध्र (वि०) पुरन्ध्र+अण् स्त्रीवाची, नारीजातीय। प्रचलित (वि.) [प्र-|-चल + क्त घबराया हुआ। तम् पौषधः (40) उपवास का दिन / (नपुं०) बिदाई, विसर्जन / प्रउगम् (नपुं०) त्रिकोण / प्रचला (स्त्री०) [प्र---चल-अच-टाप] गिरगिट। प्रकच (वि०) [ब० स०] जिसके बाल सीधे खड़े हों। प्रचुरपरिभवः [क० स०] भारी अपमान, बड़ा तिरस्कार / प्रकाङ्क्षा [प्र-काङ्क्ष + अ] भूख, बुभुक्षा। प्रच्छन्नबौद्धः (पु० ) वेदान्ती के वेश में छिपा हुआ प्रकाशः [प्र+का+घञ] ज्ञान / सम० करः प्रकट | बौद्ध / करने वाला, व्यक्त करने वाला। प्रच्यावुक (वि०) [प्र---च्यु-+-उका ] क्षणभंगुर, सहज में प्रकृ (तना०भ०) विवेक करना, भेद करना---मोहात टूट जाने वाला, भिदुर / प्रकुरुते भवान् -- महा० 5 / 168 / 18 / प्रजननकुशल (वि.) प्रसूति कार्य में दक्ष / प्रकरः [प्र. कृ+अच्] धोना, मांजना, साफ़ करना प्रजा [प्र-जन्+3+टाप्] संवत्सर बुद्ध० / अत्रामत्रप्रकरकरणे वर्ततेऽसो नियक्तिः- विश्व० प्रजागरणम् [प्रजाग+ ल्युट जागते रहना। 154 / / प्रजम्भ (भ्वा० आ०) जम्हाई लेना। For Private and Personal Use Only Page #1309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रणयनम् पित करना / कोक्त या हुआ 4... ( 1300 ) प्राप्त (वि.) [प्रज्ञा --णिच् + क्त] 1. आदिष्ट, आज्ञा / / चक्रम् शत्रु की सेना,-दूतः बदले में भेजा गया दूत दिया हुआ 2. व्यवस्थित-बुद्ध। या संदेशवाहक, विषम विषहर, विष को दूर करने प्रज्ञा प्र+ज्ञा-+अ+टा] प्रकृष्ट बुद्धि, बुद्ध०। सम० वाली औषध,-वृषः विरोधी सांड। अस्त्रम् 1. एक अस्त्र का नाम 2. बुद्धि रूपी शस्त्र, प्रतिगद् (भ्वा० पर०) उत्तर देना। --चनः केवल बुद्धि (जैसे चिद्धन), पारमिता प्रतिगरः [प्रतिग+ अच् ] ललकार का उत्तर देना पारदर्शी गुण बुद्ध० -मात्रा ज्ञानेन्द्रिय / / -ओमित्यध्वर्युः प्रतिगरं प्रतिगृह्णाति--तै० उ० प्रणमित (वि.) [+ नम्+णिच्+क्त] झुकाया हुआ, 1681 / नमस्कार करने के लिए जिसका सिर झुकाया गया है। प्रतिघातः [प्रतिहन+णिच-1 अप्] 1. गबन कौ० अ० प्रणाय्य (वि.) [प्र+नी+ ण्यत् ] योग्य, उपयुक्त (वेद०)। 2 / 8 / 26 2. नाश, अवमान-भाग० 5 / 9 / 3 / / प्रणिधिः [प्र+निघा+कि हाथी को हाँकने की रीति प्रतिधारः [प्रतिचर +घञ ] व्यक्तिगत बनाव शृंगार। - मात० 12 / 6 / 8 / प्रतिज्ञा (प्रति+ज्ञा+अङ-+टाप् ] निश्चित समझना, प्रणिधेयम् [प्र+नि+घा+यत् ] 1. गुप्तचर भेजना - कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति भग 2. काम पर लगाना, उपयोग में लाना। 9 / 31 / सम० परिपालनम्,-पालनम् अपनी प्रतिज्ञा प्रणयः [प्र+नी+अच्] 1. विवाह 2. मैत्री 3. अनग्रह को पूरा करना,-पारणम् अपनी प्रतिज्ञा को पूरा 4. विनय / सम० मानः प्रेम के कारण ईर्ष्या, करना। ... विमुख (वि०) 1. प्रेम के विपरीत 2. मैत्री करने प्रतिदुह (नपुं०) ताजा दूध / में अनुत्सुक / प्रतिदूषित (वि०) [प्रतिदुष्-+-णिच्+क्त ] कलुषित, प्रणयनम् [प्र+नी+ल्युट्] 1. (दण्ड) देना 2. (संप्रदाय) भ्रष्ट, मिलावटी। प्रतिनियमः [प्रतिनि+यम् +अच् ] पृथक् नियतीकरण प्रणीत (वि.) [प्र+नी+क्त ] 1. प्रस्तुत किया हुआ / --सां० का० 18 / 2. कार्यान्वित किया हुआ 3. सिखलाया हुआ 4. लिखा प्रतिनिष्क्रयः [प्रतिनिस्+की+अच् ] प्रतिहिंसा, बदला हुआ, रचा हुआ। सम० अग्निः यज्ञ के निमित्त | लेना। अभिमंत्रित की गई आग, आपः (ब०व०) पवित्र प्रतिनिष्पूत (वि०) [ प्रतिनिस् + पू+क्त ] साफ़ किया हुआ, पछोड़ा हुआ। प्रतन (वि०) [प्र+टथु, तुट् ] पुराना, प्राचीन / सम० प्रतिपत्तिः (स्त्री०) [प्रतिपद् + क्तिन्] 1. प्राप्ति, अवाप्ति -- हविस् (नपुं०) आहुति देने के लिए अभिप्रेत 2. प्रत्यक्षीकरण, अवेक्षण 3. यथार्थ ज्ञान 4. स्वीकृति पुराना घी। 5. आरम्भ 6. सङ्कल्प 7. समाचार 8. उपाय 9. बुद्धि प्रतानः [प्र-तनु+घश.] प्रसार, विस्तार, फैलाव / 10. उन्नति 11. प्रयोग 12. प्रसिद्धि 13. विश्वासी प्रतपः [प्र---तप्+अच् ] सूर्य की गर्मी, धूप।। सम. पराकमुख (वि.) ढीठ, न दबने वाला, प्रतापः [प्र+त+घा [ अन्तिम चेतावनी देना कौ० -प्रदानम् उन्नत पद अर्पण करना। अ०१।१६ / प्रतिपत्पाठः (पु०) प्रतिपदा वाले अनध्याय दिन के पढ़ना प्रतमाम् (अ०) विशेष रूप से, खास तौर से। --प्रतिपत्पाठशीलस्य विद्येव तनुतां गता-रा० प्रति (अ.) [प्रथ्+डति ] 1. धातु के उपसृष्ट होकर | इसका अर्थ है (क) की ओर, की दिशा में (ख) | प्रतिपादित (वि.) [प्रति / पद्+-णिच् + क्त ] प्रकट वापिस, बदले में, फिर (ग) के विरुद्ध, के प्रतिकूल | किया गया / (घ) ऊपर 2. शब्दों के पूर्व लग कर इसका अर्थ | प्रतिपाद्य (वि.) [प्रतिपद+णिच + ण्यत् ] चर्चा करने होता है (क) समानता, (ख) विरुद्ध, विरोध में तथा। के योग्य, व्यवहार में लाने के योग्य / (ग) प्रतिद्वन्द्वित।। सम० अनुप्रासः अनुप्रास का प्रतिपाद्यमान (वि.) [प्रतिपद् +-णिच्+य+शानच् ] एक भेद,-अरिः मुकाबले का प्रतिपक्षी,--अर्कः झठ. 1. दिया जाता हुआ, उपहृत किया जाता हुआ मठ का सूर्य, बनावटी सूर्य,- आई (वि.) बिल्कूल 2. व्यवहृत किया जाता हआ 3. चर्चा के अन्तर्गत / ताजा, आसङ्गः संयोग, संबंध, आह्वयः गंज, प्रतिपानम् [प्रतिपा+ल्य ट] पीने का पानी। प्रतिध्वनि, कर्मन् (नपुं०) व्रत और उपवास, कारः | प्रतिपूर्ण (वि.) [प्रति प+क्त ] प्रसारित, फैलाया हुआ, नकल करना-रा० 2237137 पर टीका कलिक प्रशस्त। (वि०) विरोधी,-क्रिया व्यवहार, आचरण न हि / प्रतिब(ब)न्दी (स्त्री०) प्रत्यारोप, प्रत्युत्तर हृदाभिनन्द्य युक्ता तवंतस्य रूपस्यवं प्रतिक्रिया-रा० 7.1714 / प्रतिवन्धनुत्तरः नै० 9 / 17 / For Private and Personal Use Only Page #1310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाहिए। प्रतिबू (अदा० पर०) 1. उत्तर देना, 2. (आ०) मुकर / प्रतिसरबन्धः [50 त०] किसी भी मंगलमय कार्य के आरंभ जाना। 1 के अवसर पर हाथ की कलाई में राखी या पहुँची प्रतिभा [प्रति-भा+क+टाप ] उचाटपना, ध्याना- (पुनीत कलावा) बाँधना। पकर्षण निद्रां च प्रतिभा चव ज्ञानाभ्यासेन तत्त्ववित प्रतिस्वम् (अ०) एक-एक करके, एकैकगः / --महा० 12 / 274 / 7 / प्रतिहत (वि.) [प्रति+हन / क्त] 1. चौधियायी हुई प्रतिभोजनम् [ प्रतिभूज-ल्यट] विहित पथ्य, नियत (आँखें) 2. कुण्ठित, ठूठा / किया हुआ आहार। प्रतिहारः [ प्रति--- ह ।-धज ] आगमन की सूचना देना प्रतिमागहम [ष० त०] मतियों का घर / __ -रा० 7 / 17 / / प्रतियातनिद्र [ (वि०) ब० स०] जागा हुआ, जागरूक। प्रती (प्रति+इ-अदा पर०) (शत्रु का) मुकाबला प्रतियातबुद्धि (वि०) [ब० स०] जिसे (पिछली भूली / करना,--ससैन्यानहं तांश्च प्रतीयां रणमूर्धनि महा० - बाते) याद आ गई हों। 5 / 172 / 13 / प्रतियोगः [ प्रति यज्--घा ] प्रत्युनर, प्रत्युक्तिवचन प्रतीतात्मन् [प्रति+ इत--आत्मन्] विश्वस्त, दृढ़ / -बु०च०४।४१। | प्रतीकम् [प्रति - कन्- नि० दीर्घः 1. चिह्न 2. प्रतिलिपि / प्रतियोस [प्रति+-युध -- तच ] युद्ध में प्रतिपक्षी। सम० दर्शनम् चिह्नपरक संकल्पना / प्रतिरूद्ध (वि०)[प्रति-रुह + क्त ] 1: प्रविष्ट, अधि प्रतीचीन (वि०) [प्रत्यञ्च+ख, अलोपः, नलोपः, दीर्घश्च] कृत 2. स्थापित-भाग० 1013013 / अन्तर्मुखी, अन्दर की ओर मुड़ा हुआ। प्रतिवक्तव्य (वि.) [प्रति-वच ---तव्यत् ] 1. उत्तर प्रतीपदीपकम् (नपुं०) दीपक अलेकार का एक भेद / दिये जाने के योग्य 2. वादविवाद किये जाने के योग्य / प्रतूलिका (स्त्री०) एक प्रकार की शय्या। प्रतिविधातव्यम् (भाव० क्रि०) ध्यान (सावधानी) रखना प्रत्यक्ष (वि.) [अक्ष्णः प्रति] 1. आँखों को जो दिखाई दे, दर्शनीय 2. नयनगोचर, 3. स्पष्ट, साफ् / सम०--पर प्रतिविशेषः [प्रा० स०] विशेषता, विलक्षणता ! (वि०) प्रत्यक्ष को ही उच्चतम प्रमाण मानने वाला, प्रतिण्याहारः [प्रति वि+आ+ह+घञ] उत्तर, जवाब / / -विधानम् स्पष्ट विधि, स्पष्ट आदेश, विषयीभू प्रतिशीर्षकम् [प्रा० स०] निष्कृतिधन, बन्दी मोचन धन / दृष्टिपरास के अन्तर्गत आना / रा०२१५५ पर मल्लि० / प्रत्यक्षरम् (अ०) प्रत्येक अक्षर पर-- प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रतिश्रयः [प्रति+थि अच] आश्रम, मठ (जहां सदाव्रत प्रपञ्च वासव० / लगा रहता है)। प्रत्यक्प्रवण (प्रत्यञ्च+प्रवण) (वि०) आत्मोन्मुख, एक प्रतिषेधः[प्रति+सिध+घा] 1. निषेधात्मकता का ध्यान वात्मा का भक्त / दिलाना 2. बाधा। प्रत्यभिज्ञादर्शनम् (नपुं०) शैवदर्शन पर लिखा गया एक प्रतिष्ठा प्रतिस्था +अ+टाप] व्रत की पूर्ति / / ग्रन्थ / प्रतिष्ठापनम् प्रति---स्था-णिचल्यूट] समर्थन / प्रत्यभिनन्द (भ्वा० चुरा० पर०) 1. बदले में नमस्कार प्रतिष्ठासु (वि.) [प्रति--स्था+सन्+उ] कहीं पर बस करना 2. स्वागत करना / जाने का इच्छुक / प्रतिष्ठित (वि०) [प्रति+स्था-+ णिच् + क्त] पूरा किया प्रत्यभ्युत्थानम् (नपुं०) [प्रति+अभि उद्- स्था+ल्यट] __अतिथि का स्वागत करने के लिए अपने आसन से हुआ महा० 3385 / 114 / उठना / प्रतिसयात (वि०) [प्रतिसम् +या - क्त] आक्रमणकारी, प्रत्ययः [प्रति ---इ+अच्] इन्द्रियों का कार्य-सर्वेन्द्रियहमला करने वाला। गुणद्रष्ट्र सर्वप्रत्ययहेतवे भाग०८।३।१४ / प्रतिसंरुख (वि०) [प्रतिसम् +- रुध+क्त] संकुचित किया प्रत्यर्चनम् [प्रति ।-अर्च+ल्युट] बदले में नमस्कार करना / हुआ। प्रत्यवकर्शन (वि.) [प्रति+अव + कृश्+स्युट्] विफलप्रतिसक्रमः [प्रतिसम् / क्रम् --अच्] [विच्छेद विघटन / / कर, संहारकारी। प्रतिसङ्ख्यानम् [प्रतिसम्+ख्या--ल्यट] 1. किसी बात का | प्रत्यवस्थापनम् प्रति+अव--स्था+णि+ल्युट्] सुखद, शान्तिपूर्वक विचार करना 2. सांख्य दर्शन / विश्रान्तिदायक, स्फूर्तिजनक / प्रतिसंधानम् [ प्रतिसम+धा+ल्यट] 1. स्मति, याद | प्रत्यवेक्षणा (स्त्री०) [प्रति+अव+ईक्ष् +युच--टाप] 2. उपचार, चिकित्सा। पाँच प्रकार के ज्ञानों में से एक (बुद्ध० में)। प्रतिसन्मासित (वि.)[प्रतिसमास+ इतच] समीकृत, बरा- | प्रत्यस्त (वि०) [प्रति+अस-1-क्त] फेंका हुआ, छोड़ा बर किया हुआ। हुआ-प्रत्यस्तव्यसने माल० 10123 / For Private and Personal Use Only Page #1311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (वि०) उज्ज्वल कि " काण वाला। प्रभात प्रत्याशि२९१।८। ( 1302 ) प्रत्याचक्षाणक (वि.) {प्रति+आ+चक्ष --शानच्, स्वार्थे / प्रभद्रक (वि०) अत्यन्त सुन्दर। कन् निराकरण करने की इच्छा वाला, आक्षेप करने | प्रभवः [प्र+भू--अप् ] समृद्धि,---प्रभावार्थाय भूतानां का इच्छुक / / धर्मप्रवचनं कृतम्-महा० 12 / 109 / 10 / प्रत्यापन्न (वि.) [प्रति+आ+ पद्+क्त] 1. वापिस / प्रभा [प्र+मा+अङ्+टाप् ] पद्मरागमणि। सम० आया हुआ, फिर से एकत्र किया हुआ 2. वहकाया -~-भिद् (वि.) उज्ज्वल - कि० 16 / 58 / हुआ, बदले हुए मन वाला, विपरीत दृष्टिकोण वाला।। प्रभातकरणीयम् [ स० त०] प्रातः काल अनुष्ठेय / भावन (वि.) [प्र-भूणिच् + ल्युट् ] 1. प्रमुख, प्रत्यासत्तिः (स्त्री० [प्रति+आ+सद+क्तिन] प्रसन्नता प्रभावशाली 2. सृजनात्मक शक्ति, 3. मूल 4. खोलने हर्षोत्फुल्लता। वाला - तदस्त्रं तस्य वीरस्य स्वर्गमार्गप्रभावनम् - रा० प्रत्याहारः [प्रति+आ+ह+धा] प्रस्तावना या आमुख, 41178 / ___ का विशेष भाग (नाट्य०)। प्रभाषित (वि.) [प्र+भाष्+क्त ] कथित, उद्घोषित। प्रत्युत्पन्नजातिः (स्त्री०) गुणासहित समीकरण। प्रभुसम्मित (वि.) स्वामी के समान -- यवदात्प्रभुसम्मितात् प्रत्युपस्थित (वि०)[प्रति+उप+स्था+क्त] 1. समूहगत --साद०। 2. एकत्र होना, दबाव होना (जैसे मूत्रोत्सर्ग का) प्रभुत्वाक्षेपः (पु.) [ष० त०] आदेश के वचन द्वारा 3. विमुख, विपरीत हुआ--श्रेयसि प्रत्युपस्थिते / ____ उठाया गया आक्षेप -का० 21138 / महा० 12128, 757 / प्रभेवः [प्र+भिद्+घनं ] उद्गम स्थान (जैसे प्रत्यूट (वि०) [प्रति+वह+क्त] 1. प्रत्याख्यात, अस्वी- नदी का)। कृत 2. उपेक्षित 3. मात दिया हुआ। प्रमाथिन् (वि.) [प्र+मथु+इनि] नाड़ियों में से रसों प्रथमकविः (पुं०) वाल्मीकि का विशेषण / का उत्पादक। प्रदक्षिण (वि.) [प्रा० स०] चतुर, दक्ष, निपुण-तानुवाच प्रमद्वरा (स्त्री०) रुरु नामक मुनि की पत्नी। विनीतात्मा सूतपुत्रः प्रदक्षिणः -रा० 2 / 16 / 5 / / प्रमहस् (वि.) [ब० स०] बड़ा शक्तिशाली, प्रतापी, प्रदा (जुहो० उभ०) ऋण परिशोध करना। तेजस्वी। प्रदानम् [प्र--दो ल्युट् ] खण्डन करना, निराकरण | प्रमाणम् [प्र.1-मा+ ल्युट्] एक प्रकार की माप करना असदेव हि धर्मस्य प्रदानं धर्म आसुर:--महा० (संगीत०)। जैसे द्रुतप्रमाण / 13 / 45 / 8 / प्रमाणानुरूप (वि०) किसी व्यक्ति की शारीरिक शक्ति प्रदानकृपण (वि०) [प्र+दा+ल्यट, प्रदाने कृपणः तः / और डीलडौल के अनुरूप / स०] दरिद्र, उपहारादि समय पर न देने वाला। प्रमाणतः (अ०) [प्रमाण+तसिल ] माप या तोल के प्रवेशः (पुं०) [प्र+दिश् घा ] स्वातंत्र्य के क्षेत्र में अनुसार। एक बाधा (जैन)। प्रमात्वम् (नपुं०) निर्विकल्प प्रत्यक्ष ज्ञान की यथार्थसा। प्रदेहनम् [प्र---दिह ल्यट ] लीपना, पोतना। प्रमितिः[प्र+मा+क्तिन् ] प्रकटीकरण, अभिव्यक्ति / प्रधनाङ्गणम् [50 त०] युद्ध का अग्रभाग। प्रमोदः [प्र.+मुंद+घञ्] 1. गुणी पुरुष का हर्ष, प्रधानकारणवादः (पुं०) सांख्य का सिद्धान्त कि प्रधान ही उल्लास (जैन) 2. एक वर्ष का नाम / मूल कारण है। प्रयत्नगौरवम् [ष० त०] यत्नों की गहनता, परिश्रम की प्रधानवादिन (वि.) जो व्यक्ति सांख्य के प्रधानकारण को गहराई। __ मानने वाला है। प्रयतात्मन, / (वि.) पुनीत मन वाला, जिसने अपने मन प्रधावितिका (स्त्री०) बच कर निकल भागने का मार्ग। / प्रयतमानस को संयत कर लिया है। भग० 9 / 26 / प्रपञ्चः [प्र--पञ्च् + धा ] हास्यास्पद वार्तालाप प्रयतपाणि (वि०) [ब० स०] सम्मान में हाथ जोड़े हुए। (नाटय०)। प्रयन्तु (पुं०) चालक, उकसाने वाला, भड़काने वाला प्रेरक / प्रपतनम् [प्रपत् / ल्युट ] आक्रमण, धावा / प्रया (अदा० पर०) ग्रस्त होना, अपने ऊपर लेना, प्रपुराण (वि.) [प्रा० स०] अत्यन्त पुराना / उठाना। प्रपूरणम् [प्र++ल्युट ] धनुष की डोरी को झुकाना, प्रयुक्त (वि०) [ प्रयुज्+क्त ] 1. प्रकल्पित, उपाय द्वारा और बाँध देना। काम चलाया हुआ 2. खींची हुई (जेसे तलवार)। प्रबुद्धता [प्र.+बुध - क्त-- ता] प्रज्ञा, बुद्धि / प्रयुक्तसत्कार (वि.) [ब० स०] जिसका स्वागत सत्कार प्रभग्न (वि.) [प्र भज् / क्त ] टूट कर किया गया है प्रयक्तसत्कारविशेषमात्मना न मां परं हुआ, कुचला हुआ, हराया हुआ। संप्रतिपत्तुमर्हसि-कु० 5 / For Private and Personal Use Only Page #1312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1303 ) प्रयोक्त (पुं०) [प्र-+-युज् +-तृच ] प्रापक, समाहर्ता / / प्रवेशः [प्र-+-विश्-4-घञ] 1. रीति, विन्यास 2. रोजगार प्रयोगः [प्र+युज---धा] 1. उपयोग में लाना, इस्ते- जैसा कि (मुसलप्रवेशः) में। माल करना, काम 2. यथावत् रूप, सामान्य उपयोग प्रविषयः (पुं०) क्षेत्र, परास, पहुँच / 3. फेंकना, फेंक कर मार करना, (विप० संहार) प्रवृत्त (वि.) [प्र.+व+क्त] 1. बहने वाला-प्रवृत्तमुदकं 4. प्रदर्शन, अनुष्ठान 5. अभ्यास, परीक्षणात्मक उप- वायु - महा० 14 / 46 / 12 2. आघात करने वाला, योग 6. प्रक्रिया क्रम 7. कार्य 8. सस्वर पाठ 9. आरम्भ चोट पहुँचाने वाला 3. परिचारित, घुमाया हुआ। 10. योजना, तरकीब 11. साधन, उपाय। सम० सम०-चक्रता (स्त्री०) प्रभुसत्ता-याज्ञ० 11266 / --ग्रहणम् व्यावहारिक शिक्षण प्राप्त करना, चतुर | प्रवृत्तिः प्र+वृत्+क्तिन्] 1. गुणक (गणित०) 2. उदय, (वि.), निपुण (वि.) व्यवहार में प्रयुक्त करने उद्गम 3. प्रकट होना 4. आरम्भ 5. आचरण में दक्ष, स्वयं अभ्यास करने में होशियार,---शास्त्रम् 6. काम, रोजगार 7. प्रयोग 8. सार्थकता, अर्थ कल्पसूत्र, विद् (वि०) जो किसी वस्तु के व्यवहार 9. समाचार 10. भाग्य, किस्मत 11. प्रत्यक्ष ज्ञान / को जानता है। सम०-पुरुषः समाचारों का अभिकर्ता.. लेख: प्रलम्बबाहु / (वि.) [ब० स०] जिसकी भुजाएँ / अध्यादेश, विज्ञानम् बाहरी संसार का ज्ञान / प्रलम्बभुज / लम्बी है। प्रव्याहरणम् [प्र+वि+आ+ह-+ ल्युट] वाकशक्ति / प्रलयः[प्र+ली+अच ] 1. आध्यात्मिक लय 2. मूर्छा, प्रवज्यायोगः [ष० त०] ज्योतिष का एक योग जो संन्यास बेहोशी। लेने का निर्देश करता है। प्रलापिता [प्रलाप -- इनि +-तल्+टाप् ] प्रेम संबंधी प्रशंस् (भ्वा० आ०) भविष्यवाणी करना। बातचीत / प्रशंसालापः [ष० त०] अभिनन्दन, जयघोष / प्रलुप्त (वि.) [प्र+लुप्+क्त ] लूटा हुआ / प्रशस्तिः [प्रशंस+क्तिन] प्रचार, विज्ञापन / प्रलुब्ध (वि.) [प्र+लुभ् +क्त ] 1. ठग, वञ्चक प्रशमनम् [प्र.+शम् + ल्युट्] शान्ति की स्थापना (किसी 2. लोभ में फंसाया हुआ। राजनीतिक संकट के पश्चात्)। प्रलोपः [प्र+लप्+घा] नाश, संहार / प्रशन (वि.) [प्र+शू+क्त, तस्य नत्वम्] सूजा हुआ। प्रवणम् [घु-+ल्युट] पहुँच, पैठ / प्रश्नः [प्रच्छ+नङ्] 1. सवाल, पृच्छा, पूछताछ 2. न्यायिक प्रवणायितम् [प्रवण+क्यच्+वत] इच्छा, झुकाव / पूछताछ 3. विवादास्पद बिन्दु 4. समस्या 5. किसी प्रवावः [ प्र-विद्+घा ] झूठा आरोप शिश पुस्तक का छोटा अध्याय। सम०--कथा पूछताछ पर समाप्त होने वाली कहानी,-वाविन ज्योतिषी, प्रवर (वि.) [प्र+व+ अप्] 1. मुख्य, प्रधान, श्रेष्ठ, आगे होने वाली बात बताने वाला, --- विचारः उत्तम 2. सबसे बड़ा, ... रः(०) 1. बुलावा 2. अग्नि- भविष्यकथन विषयक ज्योतिष की एक शाखा। होत्र के अवसर पर ब्राह्मण द्वारा अग्नि का विशेष प्रसक्त (वि००) [प्र+सञ्ज+यत] अत्यन्त आसक्त, किसी आवाहन 3. पूर्वज 4. कुल, बंश 5. गोत्र प्रवर्तक बात से चिपका हुआ। ऋषि 6. सन्तति 7. चादर,--रा (स्त्री०) गोदावरी प्रसङ्गः [प्र+सङ्ग्+घ ] 1. बढ़ाया हुआ प्रयोग में गिरने वाली एक नदी,-रम् (नपुं०) अगर की -- अन्यत्र कृतस्यान्यत्रासक्ति: प्रसङ्गः मी० सू० लकड़ी, चंदन / सम०-धातुः मूल्यवान् घातु, 12 / 111 पर शा० भा० 2. गौण घटना या कथा- ललितम् एक छन्द का नाम / वस्तु। सम०-समः तर्कसंगत हेत्वाभास जहाँ स्वयं प्रवासपर (वि०) परदेश में रहने का व्यसनी। 'प्रमाण' भी सिद्ध किया जाता है। प्रवास्य (वि.) [प्र+वस---णिच+ ण्यत ] निर्वासित | प्रसञ्जित (वि.)[प्र+सञ्ज-+ णिच्+क्त] सत्ताप्राप्त, किये जाने के योग्य / ___ अस्तित्व में आया हुआ-प्रसह्य वर्षासु ऋतौ प्रसप्रवातशयनम (न) ऐसे स्थान पर सोना जहाँ खिडकी | जिते-ने० 9496 / / ___या वातायनों के द्वारा हवा खूब आती जाती हो। प्रसादः [प्र--सद्+घञ] भोजन पचने के पश्चात् उसका प्रविचारः [प्र+वि+च+घा] विवेक, प्रभाग, जाति, / पोषक रस / प्रकार। प्रसेदिवस् (वि.)[प्र+सद्+वस्] जो प्रसन्न हो चुका है। प्रविचारित (वि.) [प्रविचार-+-इतच्| परीक्षित, साव- प्रसन्दानम् [प्र+सम् +दो+ल्युट] रज्ज, रस्सी, बेड़ी। धानतापूर्वक विचार किया गया। प्रसह्य (अ०) [प्र-+-सह.+ल्यप] 1. जीत कर 2. अवश्य प्रविरत (वि०) [प्र---वि-रम्+क्त] जो किसी बात ही, निश्चित रूप से। सम० - कारिन् (वि.) से पराङ्मुख हो गया हो, दूर रहने वाला। भीषण कार्य करने वाला प्रबल वेग से क्रियाशील / 164 For Private and Personal Use Only Page #1313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1304 ) प्रसवकाल: [प० त०] प्रसूतिकाल, बच्चा जनने का समय। लभ्ये - रघु० 112 / सम० - प्राकार (वि.) जिसकी प्रसूतिः [प्र-+-+क्तिन्) उद्भव, उत्पत्ति, कारण-कि० / ऊँची दीवारे हों।। 4 / 32 / प्राकारधरणी सि० त०] दीवार के ऊपर बना चबूतरा। प्रस (भ्वा० पर०) 1. विषण्ण होना (जैसा कि शरीर के प्राकारस्थ (वि.) [स० त०] जो फ़सील पर खड़ा हो। तीनों दोषों का) 2. अनुसरण करना 3. संप्रसारण प्राकृतमानुषः [क० स०] साधारण मनुष्य / अर्थात् अर्धस्वरों को उसके संवादी स्वर में बदलना। प्राक्तन (वि०) [प्राक + तन] 1. पुराना, पिछला, भत प्रसरः [प्र--स-+ अप] परास (जैसा कि 'दृष्टिप्रसर' में)। काल का 2. अतीत समय का, पहला, पहले जन्म का, प्रसारः[ प्रस-+-घा] 1. व्यापारी की दुकान 2.(धूल) नम् भाग्य / सग० कर्मन् (नपुं०) पूर्वजन्म में उड़ाना 3. फैलाव। किया गया कार्य, भाग्य,-जन्मन् (नपुं०) पूर्व जन्म / प्रसारितमात्र (वि.) [ब० स०] जिसके अंग बहुत फैले / प्रागल्भी प्रगल्भ++अण-डीप्] 1. साहस 2. दृढ़ता। हुए हों। प्रागल्भ्यम् (नपुं०) [प्रगल्भ--व्यञ] प्रगल्भता, वीरता प्रसृप (भ्वा० पर०) छा जाना, फैल जाना (जैसे कि चतुरता। सम० बुद्धिः (स्त्री०) निर्णय करने का अन्धकार)। साहस, न्याय-साहस / प्रस्कन्न (वि०) [प्र--स्कन्द / क्त ) आक्रान्त, जिसके प्रागुष्यम् [प्रगुण-|-व्या ] सही स्थिति, यथार्थ दशा, दिशा, ऊपर धावा बोला गया हो। अनुदेश। प्रस्तरप्रहरणन्यायः [प० त०] मीमांसा का व्याख्याविषयक | प्राणिका (स्त्रो०) अतिथि सत्कार, पाहनों का स्वागत। एक सिद्धान्त जिसके अनुसार करण द्वारा प्रतिपादित | प्राच् (वि.) [प्र--अञ्च् + क्विन्] 1. सामने का, आगे विषयवस्तु की अपेक्षा कर्म द्वारा विहित वर्णन अधिक __ का 2. पूर्वी 3. पहला / सम० उत्पत्तिः (किसी रोग प्रबल होता है। का) पहला दर्शन, वचनम् प्राचीन उक्ति, पहले का प्रस्तावः [प्र- स्तु-+घञ] 1. व्याख्यान का विषय, शीर्षक कथन / 2. नाटक की प्रस्तावना 3. साम के परिचायक शब्द / प्राचार (वि०) सामान्य प्रथाओं के विरुद्ध, साधारण प्रस्तोतु (पुं०) [प्रस्तु+तृच्] उद्गाता की सहायता अनष्ठान और संस्थानों के विपरीत / करने वाला यज्ञीय पुरोहित, ऋत्विज / / प्राचार्यः (50) [प्रकृष्ट आचार्य:11. अध्यापक का अध्याप्रस्तोभः [प्र--स्तुभ् / धा] संदर्भ, उल्लेख-भाग पक 2. सेवानिवृत्त अध्यापक / 9 / 19 / 26 / | प्राचीनमल (वि.) वि० स० जिसकी जड़ें पूर्व दिशा की प्रस्थानम् [प्रस्थान ल्युट] 1. दर्शनशास्त्र की एक शाखा ओर मड़ी हुई हों। 2. धामिक भिक्षावृत्ति, प्रवज्या--सप्रस्थानाः क्षात्रधर्माः प्राच्यपदवत्तिः (स्त्री०) एक नियम जिसके अनुसार 'अ' विशिष्टाः महा० 12164122 / सम० मङ्गलम से पूर्व किन्हीं विशेष अवस्थाओं में 'ए' अपरिवर्तित यात्रा आरंभ करते समय माङ्गलिक प्रक्रियाएं। __ अवस्था में रहता है। प्रस्तवः [प्र+स्तु---अप] 1. धारा (जैसे कि दूध की) प्राच्यवृत्तिः (स्त्री०) एक प्रकार का छन्द / 2. [ब० व०] आँसू 3. मूत्र / प्राजापत्यम् [ प्रजापति+वा ] 1. प्रजननात्मक शक्ति प्रस्पधिन (वि.) [प्र+स्पर्धा - इनि] होड़ करने वाला, 2. एक यज्ञ का नाम / बराबरी करने वाला। प्राज्ञ (वि०) [प्रज एव-स्वार्थे अण्] 1. बुद्धिमान् 2. समझप्रस्फार (वि०) [++ स्फर्+घञ] सूजा हुआ, फूला दार, विद्वान्, जः (0) 1. बुद्धिमान् या विद्वान् 2. एक प्रकार का तोता 3. व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता प्रहतमरज (वि.) [व० स०] जहाँ पर ढोल बजते हों। 4. परमेश्वर। ....संगीताय प्रहतमु रजा: मेघ / प्रहतिः [प्र+हन्न-क्तिन् आघात, चोप, थप्पड़ / प्राज्ञत्वम प्रा+तल, त्व, वा] बुद्धिमत्ता। प्रहा (जुहो० पर०) छोड़ देना, हार जाना / प्राणः --अन् घा] 1. जीवन, जान 2. आहार, प्रहि (स्वा० 120) मुड़ना, उन्मुख होना / अन्न / सम० कर्मन (नपं०) जीवन कार्य, परिक्षीण प्रहितगम (वि०) संदेश लेकर जाने वाला। (वि०) जिसके जीवन का अन्त निकट है, परित्राणम प्रहरणकलिका (स्त्री०) एक छन्द का नाम / किसी के जीवन की रक्षा करना, बचाना, वल्लभा प्रहारः [++घञ] 1. युद्ध 2. हार (गले में पहनने | प्राणप्रिया,- विद्या प्राणायाम को विद्या। का)। | प्रातः (अ०) [प्र.+ अ +अग्न] 1. पौ फटने पर, प्रभात प्रांशुः [ब० स०] लम्बे क़द का व्यक्ति, कद्दावर - प्रांशु- वेला में, तड़के, सवेरे 2. कल सवेरे / सम० अनुवाकः For Private and Personal Use Only Page #1314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1305 ) वह सूक्त जिससे प्रातः बन का उपक्रम होता है, प्रालेयम् [प्रलय+अण्] प्रलय से सम्बन्ध रखने वाला। - चन्द्रः प्रभातकाल का चन्द्रमा। प्रावर्तिक (वि०) [प्रवृत+ठक] वह क्रम जो किसी कार्य प्रातिकामिन (40) सेवक या दूत / पद्धति में सर्व प्रथम अपनाया जाकर बाद में पश्चवर्ती प्रातिनिधिकः [प्रतिनिधि+ठक्] 1. स्थानापन्न 2. प्रतिता- सभी कार्यों में अपनाया जाय, जिससे.कि कार्य में धिकार, प्रतिनिधित्व / / पद्धति की एकता बनी रहे। प्रातीप्यम प्रतीप - प्यत्र] शत्रता, विरोध / प्रावादुकः [प्र+व+उकज वाद-विवाद में प्रति पक्षी / प्रात्यक्षिक (वि.) [प्रत्यक्ष / ठक] आँखों को दिखाई देने ! प्रासादः [प्र+सद्+घा] 1. महल, भवन 2. राज भवन वाला। 3. मन्दिर 4. चबूतरा 5. वेदिका / सम-गर्भः प्रादेशमात्र (वि.) [प्रदेशमात्र+-अण] जरा सा, विचार महल का आन्तरिक कमरा,--शिखरः महल की मात्र देने के लिए, म(नपुं०) एक बालिस्त की माप, चोटी। पूरी अंगुलियों को फैलाकर अंगूठे के किनारे से तर्जनी प्राहवनीय (वि०) [प्र+आहे+अनीय अतिथि की अंगुली के किनारे तक की माप.-उपविश्य दर्भाग्रे भाँति स्वागत किये जाने के योग्य / प्रादेशमा प्रच्छिनत्ति न नखेन खादिरगृह्यसू० 2 / / प्राहुणः [प्र+आ+पूर्ण क] अतिथि, पाहना। प्राध्य (वि०) [प्रकृष्टोऽध्व अच् समासः] 1. यात्रा पर गया। प्रिय (वि.) प्री+क) 1. प्यारा, अनकल 2. सुखद, हुआ 2. पूर्वोदाहरण, निर्दशन 3. बन्धन / 3. अभिलषित 4. भक्त, अनूरक्त,—यः (पू०) प्रान्तः [प्रकृष्टोऽन्तः] 1. किनारा, गोट 2. कोण / आँख 1. प्रेमी, पति 2. हरिण 3. जामाता,-- या (स्त्री) ओष्ठ आदि का) 3. सीमा 4. अन्तिम किनारा / . 1. पत्नी 2. महिला 3. छोटी इलायची,--यम सम० निवासिन् सीमान्त प्रदेश का रहने वाला (नपुं०) 1. प्रेम 2. कृपा, प्रसाद 3. सुखद समाचार / -भूमौ (अ०) अन्त में, आखिर कार। सम... आलापिन (वि०) मिष्टभाषी, मीठा बोलने प्रापणम [---आपल्यट] व्याख्या, विवरण, चित्रण / / वाला, आसु (वि०) जिसे अपनी जान बहुत प्यारी प्रापिपयिषु (वि.) [प्र+आ +णि +सन्+उ] | हो, जीवन को चाहने वाला, कलह (वि.) झग डाल,-जीविता प्राणों का प्रेम,-संप्रहार (वि०) प्राप्त (वि०) प्र आप+क्त] किसी पूर्वोदाहरण के अनुसार या पूर्वतर्क का अनुगामी / सम... क्रम प्रियंवद (वि०) [प्रियं ददाति .... दा+श] अभीष्ट और (वि०) योग्य, उपयक्त,---भाव (वि.) 1. सुखद वस्तु का दाता। मान 2. सुन्दर / प्रीतिः [प्री+क्तिच्] 1. प्रबल इच्छा 2. संगीत की श्रति / प्राप्तिः (स्त्री०) [+आप्न-क्तिन्] 1. किसी वस्तु का सम० संयोग: मैत्री संबन्ध, संगतिः मित्रों का निरीक्षण करने पर लगाया गया अन्मान 2. (ज्योति० / सम्मिलन / में) ग्यारहवाँ चान्द्रघर / प्रेतः[प्र--इ-+क्त] 1. नरक में रहने वाला 2. इस संसार प्राप्य (अ०) [प्र+आप् -+-ल्पप] प्राप्त करके, उपलब्ध से गया हुआ, मृत 3. पितर / सम० ---अयनः एक करके। सम० कारिन् (वि.) कार्य में नियुक्त विशेष नरक,... पात्रम् और्वदेहिक क्रिया के अवसर होकर ही प्रभावशाली, रूप (वि०) अनायास हो / पर प्रयुक्त किया जाने गाला बर्तन / प्राप्त होने वाला। - प्रेक्षणालम्भम् (नपुं०) (स्त्रियों की ओर) देखना या प्रायणम् (प्र+अय् + ल्युट्] दूध में तैयार किया हुआ भोजन।। (उन्हें) स्पर्श करना। प्रायत्यम् [प्रयत+प्या पवित्रता, स्वच्छता / प्रेक्षा [प्र+इछ्+अ+टाप्] कान्ति, आभा प्रेक्षा क्षिपन्तं प्रायुस (नपुं०) बढ़ी हुई जीवन शक्ति, दोघंतर जीवन / हरितोपलाद्रेः भाग० 3 / 8 / 24 / सम० * पूर्वम् प्रारब्ध (वि०) प्र.+आ+र+क्त] आरंभ किया (अ) देखभाल कर, जान बूझ कर, प्रपञ्चः रंग हुआ, शुरू किया हुआ। सम-कर्मन, कार्य मञ्च पर खेला जाने वाला नाटक / / (वि०) जिसने अपना कार्य आरंभ कर दिया है, प्रेमाई (वि०) [त० त० स०] प्रेम से पसीजा हजा। कर्मन् (नपुं०) यह कार्य जो फल देने लगा है। प्रेयकम् (नपुं) एक प्रकार का चमड़ा कौ० अ० प्रार्जयित (वि०) [ / अर्ज +णिच् - तृच] जो अनुदान 2011 / 29 / देता है। प्रेयरूपकम् (नपुं०) सौन्दर्य, लावण्य नै०५४६६ / प्रार्थ (चरा० आ०) आश्रय लेना, महारा लेना। प्रोच्चल (भ्वा० पर०) यात्रा पर प्रस्थान करने वाला। प्राय (वि०) [प्र-अर्थ /- प्रयत्] 1. चाहने योग्य प्रोच्चाटना [प्र- उत+चटणिच-यच--टाप / 2. वाञ्छनीय। 1. (भूतप्रेतादि को) भगाना 2. विनाश / दम वाजो को पसंद करने वाहार (वि०) तक का अनुगामी। सम... For Private and Personal Use Only Page #1315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1306 ) प्रोतधन (वि.) [ब० स०] बादलों में डूबा हुआ। / विश्वास पात्र स्त्री, पनोरमा सिद्धान्त कौमुदी पर प्रोतशूल (वि.) [ब० स०] शलाका पर रक्खा हुआ। एक टीका। प्रोत्तान (वि.) [प्र+उत्+घञ ] फैलाया हुआ। प्रौडिः [प्र+वह +क्तिन् ] औत्सुक्य, उत्कटता, (चरित्र प्रोत्ताल (वि.) [प्रकर्षणोत्ताल:--प्रा० स०] ऊँचे स्वर | की) गहराई। से बोलने वाला। प्रोक्त (वि०) अर्थ सम्पन्न, अर्थ युक्त / प्रोवर (वि०) [ब० स० ] बड़े पेट वाला। प्लक्ष द्वारम् (नपुं०) पाश्वद्वार, भवन के पक्ष का द्वार / प्रोद्वीचि (वि.) [प्रा० स०] लहराता हुआ, घटबढ़ -म०.पु० 264 / 15 / होता हुआ। | प्लवः [प्ल+अच ] 1. एक जलचर 2. एक संवत्सर का प्रोन्नमित (वि.) [प्र+ उत्+नम्-+णिच्+क्त] उठाया नाम / सम-कुम्भः तैराक की सहायता के लिए हुआ, उभारा हुआ। घड़े जैसा बर्तन। प्रोर्ण (अदा० उभ०) अच्छी तरह ढक लेना, चादर लपेट | प्लायित (वि०) [प्लु+णिच् +तृच् ] मल्लाह, लेना। प्रौढ (वि.) [प्र-+-ऊळ - वह +क्त ] 1. विशाल, बड़ा प्लुतमेक (पुं०) एक प्रकार का संगीत माप / 2. व्यस्त, घिरा हुआ। सम०--प्रियः साहसी और / नाविक। फणभरः [फणं बिभर्तीति-भ+अच] साँप / / फलि: (पुं०) [फल+5] एक प्रकार की मछली। फणितल्पगः (पुं०) विष्णु का विशेषण / | फल्गुवाक मिथ्यापन, झूठपना / फणिर्जकः (पुं०) तुलसी का एक भेद, सफेद मरवा / फालिका (स्त्री०) ग्रास, टुकड़ा--मृदुव्यंजनमांसफालिकाम् फवण्डः (पुं०) हरी प्याज। ___- नै०१६।८२। फलम् [फल+अच्] 1. क्षतिपूर्ति, प्रतिपूर्ति 2. स्कन्धास्थि, फाल्गुनेयः [फल्गुनी+ठक्] अर्जुन का पुत्र, अभिमन्यु / अंसफलक 3. उपज 4. फल 5. परिणाम 6. कृत्य फिटसूत्रम् व्याकरण का एक ग्रन्थ जिसके रचयिता शान्त7. उद्देश्य, प्रयोजन 8. उपयोग, लाभ 9. सन्तान, | नवाचार्य थे। 10 (तलवार का) फलक 11. तीर की नोक / सम० ट्रिका (स्त्री०) एक प्रकार का बुना हुआ कपड़ा। -अधिकारः परिश्रम का दावा,---अपूर्वम् यज्ञ का फुत्कृतिः (स्त्री०) [फुत्कृ + क्तिन्] फूंक मारना, 'सीसी' अदष्ट परिणाम,--उपयोगः फल का आनन्द लेना, शब्द करना। -~ग्रन्थः 'ग्रहों का मानवकुल पर प्रभाव' विषयक फुलिङ्गः (पुं०) [आं० फिरङ्ग] उपदंश, गर्मी का रोग। ज्योतिष का एक ग्रन्थ,-भावना परिणाम का अधि- | फुल्लवदन (वि.) [ब० स०] प्रसन्नमुख, खुश दिखाई ग्रहण,-भुज् (पुं०) बन्दर, * मुलम् (नपुं०) फल देने वाला। और जड़ें,-वतिः (स्त्री०) कपड़े की बनी बत्ती फेजकः (पुं०) एक प्रकार का पक्षी। जिसे चिकना करके अनीमा के लिए गुदा में रक्खा / फेनधर्मन (वि०) क्षणभंगुर, क्षणस्थायी, बुलबुले की भांति जाता है.-स्थापनम 'सीमन्तोन्नयन' नामक सस्कार / / अस्थिर...महा० 33512 / फलकम् [फल-कन्] 1. तख्ता, फट्टा 2. टिकिया 3. कुल्हा | फेनायितम् [ना० धा... फेन+क्यच्- क्त ] मुख के 4. हाथ की हथेली 5. लाभ 6. बाण का मुंह 7. आर्तव, पार्ववर्ती भाग से की गई हाथी की कड़कयुक्त गर्जन, ऋतुस्राव 8. लकड़ी का पटड़ा 9. (कपड़ा बुनने के चिघाड़ मात० 2113 / लिए) वृक्ष की छाल सन आदि / सम-परि- फेलकः अंडकोप, फोता, मुष्क / धानम् वस्त्रों के रूप में वक्षछाल धारण करना / For Private and Personal Use Only Page #1316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1307 ) बकः [वङ्क अच्, पृषो०] खान से धातुओं तथा अन्य / बहः, हम् [बह +अच्] 1. मोर का चंदा 2. पक्षी की पुंछ खनिज पदार्थों को निकालने का एक उपकरण / 3. मोर की पूंछ 4. पत्ता 5. वृन्द / सम०–अवतंस सम-विञ्चका,-चिञ्ची एक प्रकार की मछली।। (वि०) जिसने सिर को पंख लगाकर अलंकृत किया हुआ बकाची (स्त्री०) एक प्रकार की मछली। है,-नेत्रम् मोर की पूंछ पर बना आँख जैसा चिह्न / बटुकः [बटु-+कन्] 1. लड़का, बच्चा 2. मन्दबुद्धि बालक / बहिन्यायः (पुं०) मीमांसा का व्याख्याविषयक एक नियम सम-भैरवः भैरव का एक रूप / जिसके आधार पर गौण अर्थ की अपेक्षा प्राथमिक बरिशम् (नपुं०) शल्योपयोगी उपकरण / अर्थ को प्रधानता दी जाती है-मी० सू० 3 / 2 / 1-2 / बत (अ०) यथार्थतः उक्त, ठीक कहा हुआ कल्याणी बहिणवासस् (नपुं०) पंखों से बना बाण, वह तीर जिसमें बत गाथेयम् - रा० 5 / 34 / 6 / / पर लगा है। बम् बड़ी संख्या (सायण के मत से सौ करोड़ की संख्या, | बलम् [बल+अच] 1. शक्ति, सामर्थ्य 2. सेना 3. मोटापा औरों के मत से एक हजार करोड़)। 4. शरीर, आकृति 5. वीर्य 6. रुधिर 7. अकुर बन्दिः [बन्दु+इ] 1. बन्धन, कैद 2. बन्दी, कैदी। सम० 8. शक्ति का देवता 9. हाथ, कान्ते विष्णुबले शक्रः —प्रहः बन्दो बनाना, ग्राहः सेंध लगाने वाला, -महा० 12 / 2398 10. प्रयत्न। सम०-अपिन -प्राहम् (अ.) बन्दी के रूप में ग्रहण करना, (वि०) शक्ति या सामर्थ्य का इच्छुक,-उपादानम् --पालः काराध्यक्ष, -शूला वारांगना, वेश्या / सेना में भर्ती होना-कौ० अ०,--तापनः इन्द्र का बद्ध (वि.) [बन्ध+क्त] 1. परिरक्षित 2. बन्धा हुआ, विशेषण,--पुच्छकः कौवा, ...पृष्ठकः हरिण विशेष, 3. श्रृंखलित 4. प्रतिबद्ध 5. संहित 6. दृढ़ 7. जड़ा ... मुख्यः सेनापति,-वजित (वि.) बलहीन, दुर्बल, हुआ 8. रचित 9. संकुचित। सम-अवस्थिति --समुत्थानम् सशक्त सेना की भर्ती करना। (वि०) सतत, अनवरत, आदर (वि०) व्यसन- | (पुं०) स्वप्न / ग्रस्त--बद्धादरोऽपि परदारपरिग्रहे त्वम् -- रा० च०५, बलवत् (वि.) [ बल+मतुप् ] 1. बलवान्, शक्ति संपन्न, ----मण्डल (वि०) वर्तुलाकार, मंडली में अवस्थित, प्रबल 2. सघन, मोटा 3. अधिक महत्त्वपूर्ण 4. ससैन्य --भूत्र (वि०) जिसने मूत्र रोक लिया है। (10) 1. आठवाँ मुहर्त 2. श्लेष्मा, कफ, बलगम बन्धः बन्ध् / घा] 1. वन्धन 2. केशबन्ध, चोटिला ---ती (स्त्री०) छोटी इलायची। 3. शृंखला, बेड़ी। सम०.- कर्त (पुं०) बांधने | बलासः (पुं०) 1. एक प्रकार का रोग 2. क्षय, तपेदिक / वाला,--मुद्रा बेड़ी की छाप / बलाहकः [बल---आ+हा--क्वन ] 1. बादल 2. एक बन्धनम् [बन्ध + ल्युट] सांसारिकबन्धन (विप० मोक्ष)। / पर्वत 3. विष्णु का एक घोड़ा 4: सांप की एक प्रकार / सम०, रक्षिन् (वि०) काराध्यक्षा। बलि: [ बल +इन् ] 1. यज्ञ में आहुति, उपहार 2. भूत बन्धनिकः [ बन्धन+ठन ] काराध्यक्ष / यज्ञ 3. पूजा, अर्चना 4. उच्छिष्ट भोजन 5. देवता बन्धुः [बन्ध-+-उ] 1. रिस्तेदार, सम्बन्धी 2. एक दूसरे से पर चढ़ाया गया उपहार 6. शुल्क, कर 7. चंवर का सम्बद्ध, भाई 3. मित्र +. नियंत्रक, शासक 5. ज्योतिष दस्ता 8. एक प्रसिद्ध राक्षस का नाम / सम०-क्रिया की दृष्टि से तीसरा घर। समा--दायादः रिश्तेदार, मस्तक पर एक रेखा,-बन्धनम एक नाटक का नाम उत्तराधिकारी,-प्रिय (वि०) सम्बन्धियों का प्यारा जो पाणिनि द्वारा रचित समझा जाता है,--बन्धनः बन्धुरित (वि०) [बन्धुर+इतच् ] प्रवृत्त, मुड़ा हुआ। (10) विष्णु का विशेषण, विधानम् उपहार रूप बन्धक (तना० उभ०) मित्र बनाना। में बलि देना,-षड्भागः आय का छठा भाग जो राजा बन्धर (वि.) [बन्ध-+ऊरच ] 1. तरंगित, लहरियादार को कर के रूप में दिया जाता है.--- अरक्षितारं राजानं 2. सुखद, प्रसन्नता देने वाला। बलिषड्भागहारिणम् मनु०८१३०८,-होमः अग्नि बभ्रुकः [ भृ-+कु, द्वित्वं; बभ्रू+उ वा, स्वार्थे कन् च ] | में आहुति देना। बलीशः (पुं०) 1. कौवा 2. चालाक, धूर्त, मक्कार। बर्बरः (पुं०) 1. वह हाथी जिसने चौथे वर्ष में पदार्पण | बस्तमारम (अ.) बकरे की हत्या के ढंग पर / कर लिया है . मात० 5 / 5 2. घुघराला। सम० | बस्तिः [वस्तु-+-इ, वबयोरभेद ] 1. मूत्राशय 2. सांभर -- अलका (स्त्री) वह स्त्री जिसके मस्तक के चूंघ- झील से उत्पन्न नमक / राले बाल हैं। बस्तिकः (पुं०) एक प्रकार का बाण जिसकी नोक शरीर बर्बरीकम् (नपुं०) 1. धुंघराले बाल 2. सफ़ेद चन्दन से खींचते समय उसी में रह जाती है.-महा०७। की लकड़ी। 189 / 11 पर भाष्य / बभ्रकः / नक्षत्रपुंज / बाथी जिसने For Private and Personal Use Only Page #1317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1308 ) बहिस् (अ.) [वह +इसुन् ] 1. के बाहर, बाहर 2. घर / बादरिः (पुं०) एक दार्शनिक का नाम / के बाहर 3. बाह्यरूप से 4. पृथक् रूप से 5. सिवाय। | बाधानिवृत्तिः (स्त्री०) [पं० त०] भूत प्रेत की पीडा से सम० - अङ्ग (वि०) बाहरी, दूर से संबन्ध रखने | मुक्ति / वाला~-अन्तरङ्गबहिरङ्गयोरन्तरङ्ग बलीयः मै० बाधक ( वि० ) [बाध् + वुल्] पीडादायक, छेड़छाड़ सं० 12 / 2 / 29 पर शा० भा०, -दश (बहि- करने वाला। दृश) (अ०) अतिरिक्त या फ़ालतू दिखाई देने वाला, / बायित (पुं०)[बाध् + णिच् ---तृच्] बाधा पहुंचाने वाला, पवमानम् सोमयाग में प्रयुक्त सामतंत्र, प्रज्ञ हानि पहुंचाने वाला। (वि.) जिसकी योग्यता बाह्य पदार्थों की हो, मनस् / बाध्यबाधकता (स्त्री०) अत्याचारग्रस्त और अत्याचारी (वि.) जो मन से बाहर हो,-मनस्क (वि.) जो की अन्योन्यक्रिया, पीडित और पीडक का पारस्परिक मानस क्षेत्र की बात न हो, यति (वि०) जो बाहर प्रभाय / बँधा हुआ या रक्खा हुआ हो..तिन् (वि.) बाहर | बान्धवः [बन्धु-|-अण] हितैषी-पतष्वस्रयप्रीत्यर्थ तदगोत्ररहने वाला,--व्यसनिन् (वि०) लंपट, कामुक, __ स्यात्तबान्धवः भाग० 1 / 19 / 35 / इन्द्रियपरायण,--स्थ,-स्थित (वि.) बाहरा, बाहर बाईस्पत्याः बहस्पति-यका राजनीति पर लिखने वालों का,- कार्य (वि०) निकाल बाहर फेंकने के योग्य / की शाखा जिसका उल्लेख कौटिल्य ने किया है-को० बह (वि० ) [बह + कु, नलोपः] ( हु, ह्वी, भूयस्, / प्र० 1.15 / भूयिष्ठ) 1. बहुत, पुष्कल, प्रचुर 2. बहुत से, असंख्य बाल (वि.) [बल् + ण, बाल+श्च] 1. बालक, बच्चा 3. बड़ा, विशाल। सम-उपयुक्त (वि.। जो 2. अविकसित (पूरुष या वस्तु) 3. नवोदित (जैसा कई प्रकार से काम का हो,-क्षारम् साबुन,-क्षीरा कि सूर्य या उसकी किरणें) 4. अंजान, लः (पु०) अधिक दूध देने वाली गाय, गुरुः जिसने अध्ययन 1. बच्चा 2. अवयस्क 3. मुर्ख 4. भोलाभाला बहुत कुछ किया है परन्तु भलो प्रकार नहीं, दोहना 5. पाँच वर्ष का हाथी 6. नारियल। सम०-अरिष्टः दे. बहुक्षीरा, बहुत दूध देने वाली गाय, नाडिकः बच्चों को दाँत निकलने का कष्ट, ---आमयः बच्चों शरीर, काया,--प्रकृति (वि०) जिसमें क्रियापरक की बीमारी, बालरोग, चिकित्सा बच्चों के रोगों तत्व बहुत हों (जैसे समस्त शब्द), -प्रज्ञ (वि.) का इलाज, चुम्बाल: मछली, - चूतः आम का पौधा, बहुत बुद्धिमान्, बड़ा समझदार, प्रत्याथिक (वि.) ---मनोरमा सिद्धान्तकौमुदी पर लिखी गई टीका जिसके प्रतिपक्षो और प्रतिद्वन्द्वी अनेक हों, प्रत्य- ---मरणम् मूर्ख की मृत्यु,-यतिः बालसंन्यासी,-प्रतः वाय (वि.) जिसके मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ हों, मजुधोष (बौद्धश्रमण) का विशेषण / - रजस् (वि.) बहुत धूल से भरा हुआ,-बादिन बालकः [बाल+कन] 1. बालक, बच्चा 2. आवश्यक (वि.) बहुत बोलने वाला, शस्त (वि.) बहत ___3. बुद्ध 4. कड़ा 5. हाथी या घोड़े की पूंछ 6. बाल उत्तम, संख्यकः (वि.) अनगिनत, सत्त्व (वि०) 7. पाँच वर्ष का हाथी-शि० 5 / 47 / जिसके पास बहुत से पशु हो, साहस्त्र (वि.) वाला | बाल--टाप] दुर्गा का विशिष्ट रूप। सम०-मन्त्रः हजारों की संख्या में। बालादेवी का पुनीत मंत्र। बहुल (वि०) [बह, +कुलच्, नलोपः] (म०-बहायस्, / बालिशमति ( वि० ) बच्चों जैसी छोटी बुद्धि वाला, उ० --बंहिष्ठ) 1. मोटा, सधन, सटा हुआ 2. चौडा, / बालबुद्धि। पुष्कल 3. प्रचुर, यथेष्ट 4. असंख्य, अनगिनत बालेयशाकः एक प्रकार का शाक / 5. समृद्ध 6. काला, कृष्ण। सम---अश्वः एक बाष्कल: एक अध्यापक, पैल अषि का शिष्य, ऋग्वेदशाखा राजा का नाम,-पक्षशितिमन् कृष्णपक्ष का अंधकार का संस्थापक / -कूजायुजा बहुलपक्षशितिम्नि सीम्ना-नै० 21 / 124 / / बाष्पविक्लव (वि०) औसुओं से अभिभूत / बाणः [बण्+घञ] 1. तीर 2. निशाना 3. बाण की बास्तिकम् बास्त+ठक बकरियों का झंड-रा० 21772 / नोक 4. ऐन, औडो (गाय की) 5. शरीर 6. एक बाहिरिकः विदेशी, दूसरे देश का न च बाहिरिकान राक्षस, बलि का पुत्र 7. एक कवि का नाम जिसने कुर्यात् पुरराष्ट्रोपचातकान - कौ० अ०९।४।२२ / कादम्बरी और हर्षचरित लिखे हैं 8. अग्नि 9. पाँच | बाहुः [बाध्- कु, हकारादेशः] 1. भुजा 2. चौखट का की संख्या का प्रतीक 10. चाप को शरज्या। सम० बाजू 3. पशु का अगला पाँव 4. (ज्या० में) समकोण -निकृत (वि.) बाण से बिंधा हुआ,- पत्रः (पुं०) त्रिकोण को आधार रेखा 5. रथ का पोल 6. सूर्य एक पक्षी,--लिङ्गम् नर्मदा नदी पर उपलब्ध एक घड़ी पर शकु की छाया 7. बारह अंगुल की नाप, श्वेत पत्थर जिसे शिवलिङ्ग के रूप में पूजा जाता है। एक हाथ की नाप 8. धनुष का अवयव / सम० For Private and Personal Use Only Page #1318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अन्तरम् छाती--- बाह्वन्तरे मजितः श्रितकौस्तुभे, बिसिनीपत्रम् कमल का पत्ता। या--- कनक०, तरणम् भुजाओं से तैर कर नदी | बीजम् | वि+जन -1-3, उपसर्गस्य दीर्घः] 1. बीज, बीज पार करना,-निःसृतम् युद्ध की एक विधा जिसके | का दाना 2. बीजाण, तत्त्व 3. मल, सोत 4. बीर्य अनुसार शत्र के हाथ की तलवार नीचे गिरवा दी 5. कथावस्तु का बीज 6. बीजगणित 7. सचाई जाती है, प्रचालकम् ( अ०) भुजाएँ हिलाना, / 8. आशय 9. प्राथमिक जननाणु का संकलक . लोहम् घण्टी बनाने के काम आने वाला धातु, 10. विश्लेषण 11. जन्म के समय शिशु के हाथों की ---विघट्टनम्, विघट्टितम् मल्लयुद्ध की एक विशेष मद्रा। सम० अंघ्रिक: ऊँट,-अर्थ (वि०) प्रजननार्थी, मुद्रा / निर्वापणम् बीज बोना, प्ररोहिन (वि.) बीज से बाह्य (वि.) [बहिर्भवः-प्या] 1. बाहर का, बाहरी उगने वाला.-बापः बीज बोना, स्नेहः ढाक का 2. जाति बहिष्कृत 3. सार्वजनिक, ह्यः (पं०) वृक्ष / 1. विदेशी 2. बिरादरी से निष्कासित 3. प्रतिलोम | बीजाकृत (वि.) (खेत) जिसमें बोने के पश्चात् हल संबंध से उत्पन्न सन्तान / सम० अर्थः शब्द का चला दिया जाय। अतिरिक्त, फाल्तू अर्थ. -- कक्षः बाहर की ओर काबद्ध (वि.) वध वा] 1. ज्ञात 2. जागरित 3. प्रकाशित कमरा,--करणम् बाहरी ज्ञानेन्द्रिय,—प्रयत्नः ध्वनियों 4. बिक्रमित,-द्धः (0) 1. विद्वान पुरुष 2. (बद्ध के उच्चारण के समय बाह्य प्रयत्न / मतानुसार) वह व्यक्ति जिसने 'सत्य ज्ञान' जान लिया बिठकम् (नपुं०) आकाश निरु०६।३० / है तथा जो स्वयं निर्वाण प्राप्त करने से पूर्व संसार को विडालवतिक (वि.) [ब० स०] पाखण्डी, कपटी, धूर्त / / मोक्ष का मार्ग बतलाता है 3. परमात्मा / / बिन्दुः [बिन्द-+उ] 1. बंद, कण 2. गोल चिह्न 3. हाथी | बद्धिः (स्त्री०) बिध-क्तिन] 1. प्रत्यक्षीकरण, समझ के शरीर पर रंगीन निशान 4. शन्य, सिफ़र 2. प्रज्ञा, मति. मेधा 3. सूचना, जानकारी 4. विवेक 5. (ज्या० में) ऐसा चिह्न जिसकी लम्बाई, चौड़ाई 5. मन 6. मति, विश्वास, विचार 7. इरादा, प्रयोजन, कुछ भी न हो 6. पानी की एक बूंद 7. अक्षर के अभिकल्प 8. होश में आना, सुधबुध प्राप्त करना ऊपर लगा बिन्दु जो अनुस्वार का कार्य करता है 9. सांख्य के 25 पदार्थों में दूसरा 10. प्रकृति 8. पांडुलिपियों में मिटाये गये शब्द के ऊपर शून्य 11. उपाय 12. ज्योतिष की दष्टि से पाँचवाँ घर / चिह्न (जो प्रकट करता है कि यह शब्द मिटाया नहीं सभ०--अधिक (वि.) श्रेष्ठ बुद्धि से युक्त, ... च्छाया जाना चाहिए था) 9. (नाट्य० में) विशिष्ट चिह्न बद्धि की आत्मा पर प्रतिवर्त क्रिमा,-प्रागल्भी समझ जो किसी गौण घटना का आकस्मिक विकास प्रकट की स्वस्थता,-मोहः विचार महता, .. लाघवम करता है 10. (दर्शन में ) चिच्छक्ति की विशिष्ट निर्णयविषयक हलकापन, न्यायलघिमा, नासमझी, अवस्था / सम० च्यतक: एक प्रकार की शब्दक्रीडा / -वजित (वि०) निर्बुद्धि, बुद्धिहीन, वैभवम् वुद्धि -0 ९।१०४,-प्रतिष्ठामय (वि.) अनुस्वार पर की शक्ति, बुद्धि का ऐश्वर्य / आधारित,-माधवः विष्णु का रूप / बुभूषु (वि.) [भू+सन्-+ उ, धातोद्वित्वम्] 1. समृद्ध होने मिम्बः [वी-वन, नि०] 1. सूर्य या चन्द्र का मंडल का इच्छुक 2. कल्याण चाहने वाला। 2. कोई भी थाली की भाँति गोल तलीय वस्तू बुरुडः (पुं०) टोकरी बनाने वाला / 3. प्रतिमा, छाया, अक्स 4. दर्पण 5. मर्तबान 6. तुलित बुसा (स्त्री०) [बुस् + अच् +टाप्] (नाटय० में) छोटी पदार्थ (विप० प्रतिबिम्ब) 7. मूर्ति, आकृति 8. साँचा, बहन ! उभरा हुआ चित्र / बसय (वि.) (वेद०) प्रबल, बलशाली, बड़ा-बसयशब्दो विम्बिनी [बिम्ब +इन् + छोप्] आँख की पुतली। बृहच्छब्दार्थ गमयति मी० सू०१०।१।३२ पर शा० बिम्बिसार: मगध के एक राजा का नाम जो गौतमबुद्ध का भा० / समसामयिक था। बृहत् (वि.) [बह+अति] 1. बड़ा, विशाल 2 चौड़ा, बिरुदः 1. एक पदक या उपाधि जी श्रेष्ठता का द्योतक है प्रशस्त विस्तृत 3. पुष्कल 4. प्रबल, शक्तिशाली 2. स्तुतिपाद, प्रशस्ति / 5. लंबा, ऊँचा 6. पूर्ण विकसित 7. संपृक्त, सटा हुआ बिलायनम् [ष० त०] अन्तर्भामिक गुफा / 8. प्राचीनतम, सबसे पुराना 9. उज्ज्वल 10. स्पष्ट; बिसम् [बिस+क] 1. कमलतन्तु 2. कमल का तन्तुमय (पुं०) विष्ण; --ती (स्त्री०) 1. बड़ी वीणा 2. नारद काण्ड 3. कमल का पौधा। सम.---ऊर्णा कमलतन्तु की वीणा 3. छत्तीस की संख्या का प्रतीक 4. पीठ और की ऊन, गुणः कमलतन्तुओं से बनी रस्सी, प्रसूनम् | छाती के बीच का भाग 5. आशय 6. वाणी 7. सफ़ेद कमल फल, - वत्तिः कमलतन्तु से बनी बत्ती। अंडाकार बैंगन (नपुं०) 1. वेद 2. ब्रह्मा 3. नैष्ठिक For Private and Personal Use Only Page #1319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1310 ) : (बुध + 3. पुनीत बटवा पूर्ण ज्ञान ब्रह्मचर्य सावित्रं प्राजापत्यं च ब्राह्यं चाथ बहत्तथा अपराव,-कटः बड़ा विद्वान,-गीता (स्त्री०) ब्रह्मा -भाग० 3 / 12 / 42 / सम० - उत्तरतापिनी एक उप- का उपदेश जैसा कि महा० के अनुशासनपर्व में दिया निषद् का नाम,---तेजस् (पुं०)बहस्पति ग्रह,--देवता गया है, जिज्ञासा परमात्मा को जानने की इच्छा, वैदिक देवता विषयक एक ग्रंथ,-नारदीयम् एक उप- तन्त्रम् वेद की शिक्षा,---दूषक (वि.) बेद के निषद् का नाम,---संहिता वराहमिहिर रचित ज्योतिष मूलपाठ को दूषित करने वाला, पारः सब प्रकार का एक ग्रंथ,-सामन् सामदेव का एक मंत्र-भग० के पुनीत ज्ञान का अन्तिम उद्देश्य,--बलम् ब्रह्म१०॥३५ विषयक शक्ति,-बिन्दुः वेदपाठ करते समय मुख से बृहस्पतिचक्रम् (नपुं०) साठ वर्षों (संवत्सरों) का काल / निकली थूक की बूंद,भूमिजा एक प्रकार की बैल (वि.) [बिल-अण] बिलों में रहने वाला। मिर्च, ---मूहर्तः दिन का आरंभिक भाग, ब्राह्मवेला, बोक्काणः (पु०) घोड़े की नाक पर लटकता हुआ थैला ----रात्रः उषःकाल, - वादः परमात्मा से संबंध रखने जिसमें उसका खाद्य पदार्थ रक्खा रहता है। वाला व्याख्यान, - श्री एक साममंत्र का नाम / बोषायनः (पुं०) एक सूत्रकार का नाम / ब्रह्मण्यत् (पुं०) [ब्रह्मन् / मतुप्] अग्नि का विशेषण / बोषिः (बुध + इन्] 1. पूर्ण ज्ञान या प्रकाश 2. बौद्ध श्रमण ब्रह्मीभूतः (पुं० ) 1. जिसने ब्रह्मा के साथ सायुज्य प्राप्त की उज्ज्वल बुद्धि 3. पुनीत बटवृक्ष 4. मुर्गा 5. बुद्ध कर लिया है (यह संन्यासियों के विषय में कहा गया का विशेषण / सम०-अङ्गम पूर्ण ज्ञान प्राप्त है जो इस शरीर को त्याग देते हैं) 2. शङ्कराचार्य / करने के लिए अपेक्षित वस्तु। ब्राह्मनिधिः (पुं०) ब्राह्मणों, पुरोहितों तथा याजकों के बौखावतारः (पुं०) बुद्ध के रूप में भगवान का अवतार / लिए बनाई गई निधि। अनः (पुं०) 1. सूर्य 2. वृक्षमूल 3. दिन 4. आक या ब्राह्मण (वि.) [ब्रह्म वेत्त्यधीते वा ब्रह्म+अण्] 1. ब्राह्मण मदार का पौधा 5. सीसा 6. घोड़ा 7. शिव या विषयक 2. ब्राह्मण के योग्य 3. ब्राह्मण द्वारा दिया ब्रह्मा का विशेषण 8. तीर की नोक 9. एक रोग गया, 4. धर्म पूजा विषयक 5. ब्रह्म को जानने वाला का नाम / सम० --बिम्बन्,-मण्डलम्, सूर्यमण्डल। ----ण: 1. चारों वर्गों में से पहले वर्षों से संबद्ध ब्रह्मन् (नपुं०) [बंह+-मनिन, नकारस्याकारे ऋतोरत्वम] 2. (पुरुष के मुख से उत्पन्न) ब्राह्मण 3. पुरोहित 1. परमपुरुष, परमात्मा 2. अर्थवादपरक सूक्त 4. अग्नि का विशेषण 5. अट्ठाइसवाँ नक्षत्र,....णम् 3. पुनीत पाठ 4. वेद 5. पुनीत अक्षर ॐ-एकाक्षरं 1. ब्राह्मणसमाज 2. वेद का वह भाग जिसमें विभिन्न परं ब्रह्म मनु० 2 / 83 6. ब्राह्मणजाति 7. ब्राह्मण यज्ञों के अवसर पर सूक्तों के प्रयोग का विधान की शक्ति 8. धार्मिक तपश्चरण 9. ब्रह्मचर्य, सतीत्व विहित है, यह मन्त्रभाग से बिल्कुल पृथक् है। सम० 10. मोक्ष 11. वेद का ब्राह्मणभाग 12. चन 13. आहार -- अदर्शनम् ब्राह्मण भाग में विहित निर्देश का अभाव 14. सचाई 15. ब्राह्मण 16. ब्राह्मणत्व 17. आत्मा / ---मनु० १०॥४३,--प्रसङ्गः 'ब्राह्मण' नाम,--प्रातिसम-किल्विषम् ब्राह्मणों के प्रति किया गया / वेश्यः पडौसी ब्राह्मण,-भावः ब्राह्मण होने की स्थिति। भक्तम् [भए चावल 4. अनाज पारिश्रमिक 8. एक में किया जा सके / बाने के योग्य, भोजन भवतम् [भज+क्त] 1. भाग, अंश 2. आहार 3. भात, भक्ति से पहँचा जाय,-- गन्धि (वि.) जिसमें भक्ति की गन्धमात्र हो अर्थात् थोड़ी भक्ति वाला हआ अन्न 6. पूजा, अर्चा 1. वेतन, पारिश्रमिक 8. एक व्यक्ति,- वश्य (वि.) जो भक्ति के द्वारा दिन का भोजन-यस्य वार्षिक भक्तं पर्याप्तं भृत्यवृत्तये -मनु० 117 / सम०--अग्रः, अग्रम् उपा-: भक्ष्य (वि.) [भक्ष+ण्यत्] खाने के योग्य, भोजन के हारशाला, जलपानगृह, कृत्यम् भोजन की तैयारी लिए उपयुक्त,-क्ष्यम् (नपुं०) 1. खाने का पदार्थ, -साधनम् दाल की तश्तरी, सिक्यम् भात का आहार,---भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिविपत्तेरेव कारणम्-हि० मांड। 1155 2. जल / सम०-अभक्ष्यम् अनुमत और भक्तिः (स्त्री०) [भ+क्तिन] 1. विभाजन 2. गौण निषिद्ध भोजन,-भोज्यम् सब प्रकार के भोजन अर्थ, आलंकारिक अर्थ 3. (किसी रोग के प्रति) / से युक्त। शरीर की उन्मुखता। सम-गम्य (वि.) जो भगः,गम् [भज्+घ] 1. सूर्य 2. चाँद 3. शिव का रूप भक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सके, जहाँ श्रद्धा और 4. सौभाग्य, प्रसन्नता 5. समृद्धि 6. यश, कीर्ति For Private and Personal Use Only Page #1320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7. सौन्दर्य 8. श्रेष्ठता 9. प्रेम, प्यार 10. कामकेलि, / भर्तव्य (वि०) [भू+तब्य ] 1. सहन करने या ढोने योग्य 11. योनि 12. गुण, धर्म 13. प्रयत्न 14. अरुचि, 2. भाड़े के योग्य, पालन पोषण किये जाने के विराग 15. मोक्ष 16. सामर्थ्य 17. सर्वशक्तिमत्ता योग्य / 18. प्रेम और विवाह की अधिष्ठात्री देवता आदित्य | भर्त (पुं०) [भू-+-तच ] 1. पति, 2. स्वामी 3. नेता, 19. ज्ञान 20. इच्छा 21. अणिमा। सम० ईशः सेनापति 4. पालक पोषक, रक्षक 5. सष्टिकर्ता भाग्य का देवता, काम (वि०) संभोग के आनंद का 6. विष्णु / सम० -चित्त (वि०) पति के विषय में इच्छुक, --वृत्तिः (स्त्री०) वेश्यावृति, वृत्ति (वि०) | सोचनेवाला, देवता पति को देवता मानना, वेश्यावृत्ति से निर्वाह करने वाला। लोकः पति का संसार, हार्यधन (वि.) जिसकी भगवत्पादाः आदि शंकराचार्य की सम्मान सूचक उपाधि / संपत्ति उसके स्वामी द्वारा जब्त की जा सके, . हीना भग्न (वि.) [भज+क्त ] 1. टूटा हुआ 2. हताश, पति द्वारा परित्यक्ता। विफल 3. अवरुद्ध, स्थगित 4. नष्ट 5. ध्वस्त भवः [भू-अप] 1. सत्ता, अस्तित्व 2. जन्म, उपज 6. ढाया हुआ। सम० अस्थि (वि०) जिसकी 3. स्रोत, उद्गम 4. सांसारिक सत्ता, सांसारिक जीवन हड्डियाँ टूड गई है,-कूबर (वि०) जिसका ऊपर 5. स्वास्थ्य, समृद्धि 6, देवता 7. शिव 8. अधिग्रहण, का ढाँचा टूट गया है (जसे रथ),-तालः (संगीत) प्राप्ति 9. श्रेष्ठता / सम० -- अप्रम् संसार का सबसे एक प्रकार की माप,-परिणाम (वि०) पूरा करने अधिक दुरवर्ती किनारा, -- भङ्गः जन्म मरण से मुक्ति, से रोकने वाला। -भावन (वि०) कल्याणकारी, भीर (वि०) भङ्गः [भज+घञ्] 1. (बुद्ध०) विश्व में निरन्तर संसार के अस्तित्व से डरने वाला,-भोगः सांसारिक होने वाला क्षय 2. (जैन) 'स्यात्' से आरम्भ होने सुखों का आनन्द लेना, - शेखरः चन्द्रमा,-संगिन् वाला तार्किक सूत्र / (वि०) भौतिक संसार में अनुरक्त,-संततिः (स्त्री०) भङ्गिः [भज+इन्, कुत्वम् ; स्त्रियां ङीष ] 1. टूटना जन्म मरण का तांता। 2. हिलना 3. झुकना 4. तरंग 5. बाढ़ 6. विशिष्ट | भवसु (वि०) [ब० स०] धनवान्, दौलतमंद / प्रथा, ढंग नानाश्रमलतापुष्पभङ्गीरचितकुन्तलाम् भवनम् [भ - ल्युट् ] जन्माङ्ग, जन्मकुंडली, जन्म-नक्षत्र / - भारत। सम० -- भाषणम् कूटनीति से युक्त भव्यमनस् (वि.) अच्छे सङ्कल्पों वाला। भाषण, विकारः अपनी मुखमुद्रा को विकृत करना / भावत्क (वि.) [भवत् +का ] आप से संबंध रखने भङ्गिनी [भङ्गिन+ङीप ] नदी, दरिया-आत्ममौलि- वाला भावकैरिव धवलैर्यशःप्रवा है:-रा० च. मणिकान्तिङ्गिनीम् न० 18 / 137 / 7 / 2 / भञ्जना [भजन-युच्+टाप् ] व्याख्या। भषी (स्त्री०) कुतिया, भौंकने वाली। भट्टनारायणः 'वेणीसंहार' नाटक का प्रणेता / भस्मन् (नपुं०) [ भस्+मनिन् ] 1. राख 2. शरीर पर भट्टिः 'भट्रि काव्य' का रचयिता / लगाई जाने वाली भभूत, राख / सम०-अङ्गः एक भट्टोजिः एक वैयाकरण का नाम / प्रकार का कबूतर,- अङ्गरागः शरीर पर भस्म भण्डुकः एक प्रकार की मछली। रमाना,--अवलेपः शरीर पर भस्म लीपना-अवशेष भद्र (वि.) [भन्द+रक, नलोप: ] 1. अच्छा, प्रसन्न, (वि०) जो केवल राख के रूप में बच गया है, समृद्ध 2. शुभ, मांगलिक 3. श्रेष्ठ, प्रमुख 4. कृपाल -गुण्डनम् शरीर पर भस्म पोतना,-गात्रः कामदेव, 5. सुखद 6. सुन्दर 7. वाञ्छनीय 8. प्रिय 9. दक्ष / __-चयः राख का ढेर।। सम०-कल्पः बौद्धों के अनुसार वर्तमान यग,—निधिः | भा (अदा० पर०) 1. चमकना 2. फूंक मारना। उपहार के लिए बने पात्र, बाच् (स्त्री०) शुभ | बभौ (भा धातु, लिट् लकार, प्र. पु०, ए० व०) वक्तृता, विराज एक छन्द का नाम / 1. चमका 2. प्रसन्न हुआ 3. हआ 4. हवा चली भद्रक [ भद्र+कन् ] 1. सुन्दर 2. शुभ 3. सज्जन-कम् | ___.--बभौ मरुत्वान् विकृतः स-मुद्रो, बभौ मरुत्वान् (नपं०) 1. बैठने का विशिष्ट आसन 2. अन्तःपुर। | विकृत समुद्रः, बभौ मरुत्वान विकृतः समुद्रो, बभौ भद्राकरणम् मुण्डन, समस्त सिर मुंडवाना / मरुत्वान् विकृतः समुद्रः / (सभी अर्थों में प्रयुक्त) भयालु वि०) [भय+आलुच ] भीरु कायर। --भटि० 10 / 19 / भरः [भू+अप् ] पराक्रम, श्रेष्ठता, प्रमुखता न खलु भागः [भज्-+-घञ्] 1. शुल्क---को० अ० 2 / 6 / 64 वयसा जात्यवायं स्वकार्यसहो भरः-वि० 5 / 18 / / 2. चार आध्यात्मिकों में से एक (सांख्य०) सां० भरतशास्त्रम नाटयकला / का० 50 3. ग्यारह की संख्या 4. भाग, अंश भर्गस (नपुं०) [ भुज+असुन ] आभा, कान्ति, चमक / / 5. भाग्य, किस्मत 6. चौथाई भाग / सम०-अप For Private and Personal Use Only Page #1321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1312 ) हारिन् जो अपना भाग ले लेता है,-धनम कोष, / भार्गवः | भृगु+अण्] ज्योतिषी, भविष्यवक्ता-भार्गदौ ----पत्रम्-लेख्यम विभाजन का दस्तावेज़ / शकदेवज्ञो वज०। भागिन् (वि.) [भाग+ इनि ] अत्यन्त उपयोगी। भार्यापतित्वम् दाम्पत्य संबन्ध / भागरिः एक विख्यात वैयाकरण और स्मतिकार का नाम। भाल्लविः सामवेद की एक शाखा / भाग्य (वि.) [ भज+प्रयत्, कुत्वम ] 1. बांटे जाने के | भावः / भ-घा ] 1. सत्ता, अस्तित्व 2. कल्याण-भाव योग्य 2. हिस्से का अधिकारी 3. भाग्यशाली, किस्मत- मिच्छति सर्वस्य-महा० 5 / 36 / 16 3. प्ररक्षणवाला,-ग्यम् (नपुं०) 1. भाग्य, किस्मत 2. अच्छी द्रोणस्याभाभावे तु--महा० 725 / 64 4. भाग्य किस्मत, सौभाग्य 3. समद्धि 4. कल्याण, सुख / 5. बासना, अतीत संकल्पनाओं की सुध 6. छः अवस्था सम-संक्षयः बुरी किस्मत, उन्नतिः भाग्य का अस्ति, वर्धते, विपरिणमति आदि / सम० कर्तक: उदय होगा, --ऋक्षम् पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र। भाववाचक क्रिया, गतिः (स्त्री) मानवी भावनाओं भाङ्गक: चीथड़ा। को प्रकट करने की शक्ति-भावगतिराकृतीनाम् भाजक (अ०) जल्दी से, तेजी से। प्रतिमा० ३,-चेष्टितम् प्रेमद्योतक संकेत या भाजनविषमः गलत उपायों के द्वारा गबन करना-- कौ० चेष्टाएँ, निर्वत्तिः भौतिक सष्टि सां का० 52, अ० 2 / 8 / 21 / -नेरिः एक प्रकार का नाच, शबलत्वम् नाना भाण्डम् [ भाण्ड + अच्] 1. सामान 2. पूंजी, मूलधन प्रकार की भावनाओं का मिश्रण / 3. बर्तन / सम० गोपकः बर्तन रखने वाला। भावंगम् (बि०) मनोहर, सुहावना / भानतः (अ०) प्रतीति के परिणामस्वरूप / भावयित (वि.) [भू-णिच +तच ] प्ररक्षक, प्रोन्नायक भानव (वि०) [भानु+अण्] सूर्यसंबंधी। क्रोधो भावयिता पुनः-महा० 3 / 29 / 1 / भानुभूः यमुना नदी का विशेषण / | भावित (वि०) [भूणिच् + क्त ] 1. अभिनिर्दिष्ट, भामहः अलंकारशास्त्र का एक विख्यात लेखक / स्थिर किया हुआ, गड़ाया हुआ 2. अधिकार में किया भारः [भ+घञ्] 1. बोझा 2. आधिक्य 3. परिश्रम हुआ, गृही, पकड़ा हुआ-दुदुहुः पृथुभावितम् 4. बड़ी राशि 5. किसी पर डाला गया कार्यभार / -भाग० 4 / 18 / 13 3. निमग्न, लीन, पूर्ण- रथाङ्गसम-अवतरणम् बोझा कम करना, आक्रान्ता पाणेरनुभावभावितम् -भाग० 12 // 10 // 42 4. प्रसन्न, एक छन्द का नाम,--- उद्धरणम बोझा उठाना, ऊढिः हृष्ट / सम० भावन् (वि०) स्वयं को आगे बढ़ाने (स्त्री०) भारवहन करना, बोझ उठाना,-गः खच्चर। बाला, तथा औरों की सहायता करने वाला। भारिका राशि, ढेर। भाव्य (वि०) [भ---ण्यत् ] 1. भावी 2. जो सम्पन्न हो भारती 1. वक्तृता, शब्द, वाक्पटुता 2. वाणी की देवता सके 3. सिख दोष होना श्यवर. साक्षिभिर्भाव्यो 3. नाट्यकला 4. किसी पात्र की संस्कृत बक्तता नृपब्राह्मणसन्निधो मनु० 8 / 60 / 5. सन्यासियों के दस भेदों में एक-गोस्वामिन् / भाषापत्रम् आवेदन पत्र ----शुक्र० 21309 / भारत (वि.) [भरतस्ये दम् - अण्] भरतवंशी,-तः भाषासमिति: बाणी का नियन्त्रण (जैन)। 1. भरतकुल में उत्पन्न (जैसे विदुर, धृतराष्ट्र, अर्जुन) भाषित (वि०) [भाष् - तृच् ] वोलने वाला, बातें करने 2. भारतवर्ष का निवासी 3. अग्नि,-तम् (नपुं०) वाला। 1. भारतवर्ष देश 2. संस्कृत का एक महान काव्य भाष्यभल (वि.) टीका या भाष्य का काम देने वाला (इसके लेखक व्यास या कृष्णद्वैपायन माने जाते हैं) --भाष्यभूता भवन्तु मे ---शि० 2124 / 3. संगीतशास्त्र तथा नाटयकला / सम०-आख्यानम, | भासः एक प्रसिद्ध नाटककार, स्वप्नवासवदतम् आदि इतिहासः, कथा भरतकुल के राजाओं की कहानी, | नाटकों का प्रणेता। महाभारत काव्य,- सावित्री एक स्तोत्र का नाम भिक्षा [भिक्ष+अ] 1. जीवन निर्वाह का एक साधन -इमा भारतसावित्रीं प्रातरुत्थाय यः पठेत् -- महा० 2. मांगना / सम.-- भुज् (वि.) भिक्षावृत्ति से 18 / 5 / 64 / निर्वाह करने वाला। भारद्वाजः [भरद्वाज+अण्] 1. भरद्वाज गोत्र से संबंध / भिक्षः भिक्ष + उन्] 1. भिखारी 2. साधु 3. संन्यासी रखने वाला 2. राजनीति का एक लेखक जिसका। 4. श्रमण / सम०-भादः श्रमणता, साधुता / कौटिल्य ने उल्लेख किया है। भिडिसी कम्बल का एक भेद-कौ० अ० 2 / 11 / 29 / भारविः किरातार्जुनीय काव्य का रचयिता। | भिद् (रुधा० पर०) 1 टुकड़े कड़े करना, काटना भारष: 1. अविवाहित वश्य कन्या में वैश्यवात्य के द्वारा 2. व्याख्या करना--वचांसि योगग्रथितानि साधो उत्पादित पुत्र 2. शक्ति की पूजा करने वाला। न नः क्षमन्ते मनसापि भेत्तम-भाग० 5 / 10 / 8 / For Private and Personal Use Only Page #1322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिवापनम् तुड़वाना, कुचलवाना। कलाई में गोलाकार लिपटा हुआ सांप,-शायिन भिन (वि.) [भिद्+क्त ] 1. टूटा हुआ, फाड़ा हुआ, विष्णु का विशेषण। चीरा हुआ 2. पृथक किया हुआ, बांटा हुआ | भुजंगः [ भुज+ गम् +खच्, मुम् ] 1. साँप 2. जार, प्रेमी 3. विषाक्त--भिन्नवृत्तिता- मनु० 12 // 33 4. रोमा- 3. पति, स्वामी 4. आश्लेषा नक्षत्र 5. इल्लती 6. राजा ञ्चित (जैसे रोंगटे खड़े हए)-रा० 6 / 10 / 18 का बदचलन मित्र। सम०--प्रयातम् एक छन्द का 5. जिसे घूस दी गई है। सम-कर्ण (वि.) नाम, संगता एक छन्द का नाम, शिशु एक छन्द 1.जिसने कानों को बांट दिया है 2. जिसके कान का नाम / बींध दिये गये है, कुम्भः जिसने अपने अनिवार्य | भुजा [ भज+टापु] ज्यामिति की आकृति का पार्श्व / कर्तव्य ( पितरण आदि ) सम्पन्न कर लिए हैं, भुजाभुजि (अ०) हाथापाई, हाथों की (लड़ाई)। -हृतिः (स्त्री०) भिन्न राशियों का भाग। भुवनन् [भू+क्युन् ] 1. संसार, (संसार की संख्या तीन भीत (वि.) [भी+ क्त ] 1. डरा हुआ, आतङ्कित है या चौदह) त्रिभुवन, चतुर्दशभुवनानि 2. धरती 2. डरपोक, कायर 3. भयग्रस्त / सम०----गायनः / 3. स्वर्ग 4. जन्तु, प्राणी 5. मानव। सम-ईश्वरी लज्जाशील गायक, शर्मीला गाने वाला,--चारिन् पार्वती का रू,प,-तलम् धरती की सतह,-भावनः (वि.) कातरभाव से व्यवहार करने वाला,-- चित्त -सष्टि का कर्ता। (वि.) मन में डरने वाला। भूः (स्त्री०) [भू-क्विप् ] 1. पृथ्वी 2. विश्व 3. घरती। भीतिः[ भी+क्तिन् ] 1. डर, आशङ्का, त्रास 2. खतरा सम० छाया, छायम् धरली की छाया,-तुम्बी जोखिम 3. कंगकंपी। सम० कृत् (वि०) डर एक प्रकार की ककड़ी, - पल: एक प्रकार का चहा, पैदा करने वाला, छिद् (वि०) डर दूर करने ---भा पृथ्वी की छाया, ग्रहण,-लिङ्गाशकुनः पक्षियों वाला। की एक जाति-महा० १२।१६९।१०,-शय्या भूमि भीम (वि०) [भी+मक ] भयानक, डरावना, भयपूर्ण, पर सोना,-स्फोट: कुकुरमुत्ता, सांप की छतरी / -~-मः (पुं०) 1. शिव का विशेषण 2. परमपुरुष भूत | भू+क्त ] 1. होने वाला, वर्तमान 2. उत्पादित, 3. भयानक रस 4. दूसरा पांडव, मम् (नपु०) निर्मित 3. वस्तुतः होने वाला, सत्य 4. सही, उचित, भय, त्रास। सम-अञ्जस् (वि०) भीषण शक्ति उपयुक्त 5. अतीत, बीता हुआ 6. प्राप्त 7. मिश्रित बाला, पाक: पूरी तरह पका हुआ भोजन, रथः 9. समान / सम० अनुवादः बीती हुई बात, या 1. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम 2. श्रीकृष्ण कां निष्ठित तथ्य का उल्लेख करना,-अभिषड-आवेशः एक पुत्र / भूतप्रेत का किसी पर चढ़ना,-मानिन् (पुं०) जो भीष्म (वि.) [भी-+-णिक+सुक+-मक] डरावना, सबकी अवमानना करता है, सबसे घृणा करने वाला, भयानक, भयपूर्ण,---मः 1. भयानक रस 2. राक्षस, -कोटिः निरपेक्ष शुन्यता, -गत्या सचाई के साथ, पिशाच, भूतप्रेत 3. शिव का विशेषण 4. शन्तनु गणः तत्त्वों का गण,--- जननी सब प्राणियों की के द्वारा गंगा में उत्पादित पुत्र / सम० .. पर्वन माता, तन्मात्रम् सूक्ष्मतत्त्व,-पाल: जीवित प्राणमहाभारत का छठा पर्व (अध्याय),--स्तवराजः धारियों का संरक्षक,-भव (वि०) सभी प्राणियों महाभारत में शान्तिपर्व के ४७वें अध्याय में निहित में रहने वाला, भृत् (वि.) जन्तुओं या तत्त्वों का भीष्म की प्रार्थना / पालनपोषण करने वाला, मातृका पृथ्वी,-सज् भुक्तमात्रे (अ०) खाने के तुरन्त पश्चात् / (पुं०) ब्रह्मा का विशेषण / भग्न (वि.) [ भुज+क्त ] 1. विनीत, नत 2. वक्रीकृत, भूतिः (स्त्री०) [ भू+क्तिन् ] 1. सत्ता, अस्तित्व 2. जन्म, मुड़ा हुआ 3. टूटा हुआ 4. हताश, विनम्रीकृत। उपज 3. कल्याण, कुशलमंगल, समृद्धि 4. सफलता भुजः [ भुज+क] 1. बाहु, भुजा 2. हाथ 3. हाथो को 5. धन, दौलत 6. शान, आभा, कान्ति 7. राख / सं4. गणित में आकृति का एक पार्श्व जैसे त्रिभुज सम० अर्थम् (अ०) समृद्धि के लिए, - सज् (वि०) मैं 5. त्रिकोण का आधार 6. वृक्ष की शाखा / सम० कल्याणोत्पादक। --अतः आलिङ्गन,--अर्पणम् निर्वाह के अनुदान, | भूमिः (स्त्री०) [भू+मि ] 1. ज्यामिति की आकृतियों -आकः शंख, छाया किसी की भुजाओं द्वारा की आधाररेखा 2. किसी चित्र का रेखाचित्र दिया गया प्ररक्षण, वीर्य (वि०) प्रवल भुजाओं 3. धरती, पृथ्वी। सम०-अनतम् भूमि के विषय वाला। में झूठी गवाही,-खजुरिका खजर वृक्ष का एक भुजगः [ भुज+क=भुज+गम् +2] साँप, सर्प, गी प्रकार, -छत्रम् कुकुरमुत्ता, सांप की छतरी, तनयः आश्लेषा नक्षत्र। सम. वलयः कड़े की भांति / मंगलग्रह,-परिमाणम् वर्गमाप, रथिक: भूमि पर For Private and Personal Use Only Page #1323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1314 ) रथ हाँकने वाला,-समीकृत (वि०) भूमि जैसा 1. औषधि 2. उपचार 3. रोगनाशक मंत्र। सम० बराबर किया हुआ, फर्श के साथ मिलाया हुआ, / --करणम् औषधियों का तैयार करना, कृत (वि०) -संभवः, ... सुतः 1. मंगलग्रह 2. नरकासुर / स्वस्थ किया हुआ, वीर्यम् औषधियों की स्वास्थ्यकर भूयस् (वि.) [बहु+ ईयसुन्] 1. अपेक्षाकृत अधिक शक्ति / 2. अधिक बड़ा 3. अधिक आवश्यक / सम-काम | भोगः [भज+घञ] 1. खाना, खा लेना 2. सुखोपभोग (वि.) बहुत अधिक इच्छुक,-भावः बुद्धि, विकास, 3. वस्तु 4. उपयोगिता, उपयोग 5. शासन करना --मात्रम् अधिकतर अधिकांश / 6. उपयोग, प्रयोग 7. सहन करना 8. अनुभव करना, भूरि (वि.) [भू+क्रिन्] बहुत, पुष्कल, असंख्य, पुष्कल। | संकल्पना 9. स्त्रीसंभोग 10 आनन्द लेना 11 आहार सम०-कालम् (अ०) बहुत समय तक,-कृत्वम् 12. लाभ 13. आय 14. धन / सम०--नाथः पोषक, (अ०) बहुत बार, बार-बार, गण (वि.) 1. बहुत भरणपोषण करने वाला,-पत्रम किराये का दस्ताअधिक बढ़ता हुआ 2. भांति-भांति के फल देने वाला, वेज़,-भुज (वि.) सुखोपभोग करनेवाला / --फेना पौधों की एक जाति, -भोज (वि.) भोगिराजः [ष० त०] शेषनाग / नानाप्रकार से सुखोपभोग करने वाला। भोग्यवस्तु विलास की सामग्री। भूरिशः (अ०) [भूरि-+शस्] विविध प्रकार से, नाना | भोज (वि.) [भुज+अच] 1. सुखोपभोग देने वाला प्रकार से। . 2. उदार, दानशील,-जः (पु.) 1. एक प्रसिद्ध भूषणवासांसि (नपुं० ब०व०) वस्त्र और आभूषण / राजा का नाम 2. विदर्भदेश का राजा। सम० भू (जुहो० पर०) संतुलित रखना, समसंतुलन करना। --- चम्पू भोज द्वारा रचित रामायण चम्पू,- प्रबन्धः भूतक (वि.) [भृत+कन्] 1. पालन पोषण किया हुआ | बल्लाल की भोजविषयक कृति / 2. किराये का, कः (पुं०) भाड़े का सेवक / सम० भोल: वैश्य द्वारा नटी में उत्पादित पुत्र / --अध्यापनम् वैतनिक अध्यापक द्वारा दिया गया भौजिष्यम् (नपु०) दासता, सेवकत्व / शिक्षण --भूतिः मजदूरी, पारिश्रमिक, किराया। भौत (वि.) [भू-+-अण् ] 1. प्राणिसंबन्धी 2. भौतिक भूतिः [भ+क्तिन्] 1. सहन करना, सहारना, सहारा 3. पागल, तः 1. भूत पिशाचों की पूजा करने देना 2. भरणपोषण 3. आहार 4. ले जाना, नेतृत्व | वाला 2. भूतयज्ञ। सम० प्रिय (वि० ) मूढ, करना 5. मुलधन 6. पारिश्रमिक। सम० अर्थम दुर्बुद्धि। निर्वाह के निमित्त, जीविका के लिए। भौमम् भूमि+अण्] 1. तत्त्वविषयक वस्तु 2. फर्श भगः (पुं०) 1. एक मुनि का नाम 2. जमदग्नि का नाम 3. भवन की ऊपर की मंजिलें- सप्तभौमाष्टभौमश्च 3. शुक्र का विशेषण 4. शुक्र नामक ग्रह 5. चट्टान / - रा० 5 / 2 / 50 / 6. पठार 7. शिव का विशेषण 8. शुक्रवार / सम० भौमी [भौम + डीप्] सीता का विशेषण / ----कच्छ:---कच्छम् नर्मदा नदी पर एक तीर्थस्थान, भ्रंशः [भ्रंश---घा] 1. गिरना, फिसल जाना, अधः-पतनम् चट्टान से गिरना,-पातः चट्टान मे कूदना, पतन 2. ह्रास, मुझना 3. नाश, ध्वंस 4. दूर भाग छलांग लगाना, - भृङ्गः एक प्रकार का संगीत का | जाना 5. ओझल होना 6. (नाटय० में) उत्तेजना के माप,--अभीष्टः आम का वृक्ष / कारण वाक्स्खलन / भूशवण (वि.) कठोर दण्ड देने वाला। भ्रष्ट (वि.)[भ्रंश+क्त] 1. गिरा हुआ, पतित 2. माया भेवः [भिद्+घञ] 1. दारुण पीड़ा 2. ग्रहों का योग हुआ 3. भागकर जो बच गया। सम-अधिकार 3. पक्षाघात 4. सिकुड़ना 5. समभुज त्रिकोण की (वि.) जिससे अधिकार छीन लिये गये हों, पदच्यत, कर्ण रेखा / - क्रिय (वि.) जो विहित कर्म करने में असफल भेवक (वि.)[भि+बुल] 1. वियोजक, विभाजक, तोड़ने रहा,-योग (वि०) जो भक्ति से पतित हो गया हो। वाला 2. नाशक 3. विवेचक 4. रेचक 5. (स्रोतों | भ्रम् (भ्वा०, दिवा० पर०) लड़खड़ाना, घबड़ाना। को) मोड़ने वाला 6. पथभ्रष्ट करने वाला। | भ्रम् (प्रेर०) 1 ढिंढोरा पीटना 2. अव्यवस्थित करना। भेवन (वि०) [भिद+णिच् + ल्युद] 1. तोड़ने वाला, भ्रमः [भ्रम्+घञ] 1. छाता, छतरी 2. वृत्त / - विभाजक 2. रेचक,-नम् (किसी पशु का) नासा- | भ्रमरः [भ्रम् +करन्] 1. मधुमक्खी 2. प्रेमी 3. कुम्हार छेदन करना। का चाक 4. जवान 5. लटू। सम-निकरः मधुमेलनम् (ना.) तैरना। मक्खियों का छत्ता,-पदम् एक छन्द / भेवन (वि.) मेष रोगमयं जयति-जि+3] स्वस्थ करने | भ्रमरित् (वि.) भ्रिमर+इतच जो नीला हो गया है वाला, चिकित्सा किये जाने योग्य, ..जम् (नपुं०) -यदतिविमलनीलवेश्मरश्मिभ्रमरितभा:-+०२।१०३। For Private and Personal Use Only Page #1324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्रमिः (स्त्री०) [भ्रम+ह मूर्छा, बेहोशी। | भू (स्त्री०) [ भ्रम् +5 ] भौं, आंख की भौं। सम. भ्रान्त (वि.) [भ्रम्+क्त] 1. इधर-उधर घूमा हुआ --वञ्चितम् चुपके-चुपके झांकना, छिपकर देखना, 2. चक्कर खाया हुआ 3. भला भटका 4. घबड़ाया विज़म्भः भौंहों को मोड़ना, भौंहे चढ़ाना / हुआ। सम-चिन्त (वि०) मन में घबराया हुआ।। ------ मकर: [मं विषं किरति-क+अच्] 1. मगरमच्छ 2. मकर- | मण्डजातम् (नपुं०) जमा हुआ दूध, दही। राशि 3. मकर की आकृति का कुण्डल। सम० | मण्डपीठिका परकार के दो चतुर्थांश। आसनम् एक प्रकार का योग का आसन,-वाहनः / मण्डनकालः शृंगार (प्रसाधन) समय-मामक्षम मण्डनवरुण / कालहानेः - रघु०१३ / मकरन्दः [मकर+दो+क, मुमादेशः] 1. पुष्परस, मधु | मण्डनप्रियः (वि०) अलंकारप्रिय, आभूषणों का शौकीन / 2. चमेली का फूल 3. कोयल 4. सुगन्धयुक्त आम का मण्डलम मण्ड+कलच] 1. गोलाकार वस्तु, पहिया, वृक्ष 5. (संगीत० में) एक प्रकार का माप / अंगठी, परिधि 2. सूर्य परिवेश, चन्द्र परिवेश 3. समुमकरन्दिका एक छन्द का नाम / दाय, संग्रह, सेना 4. समाज 5. बर्तुलाकार गति मकलकः (पुं०) 1. कली 2. दन्ती नाम का वृक्ष / 6. द्यूत पट्ट। सम०--आसन (वि०) वृत्त में बैठा मखमृगव्याषः (पुं०) शिव का विशेषण / हुआ.--कविः कठ कवि, तुक्कड़ कवि,-नाभिः वृत्त मगम्बः (पुं०) कुसीदक, सूदखोर। का केन्द्र, माड: मंडवा, प्रशाला,-वाटः उद्यान / मगधवेशः (पुं०) मगध नाम का देश / मण्डलकम् [मण्डल-कन] 1. बाण विद्या में वणित एक माकुकः (पुं०) एक प्रकार का वाद्ययन्त्र / विशेष मुद्रा 2. जादू की शक्तियों से युक्त एक वृत्त / मङ्गल (वि.) [म + अलच] 1. शुभ, सौभाग्यशाली | मण्डकम् ढाल की मूठ। 2. समृद्ध 3. बीर,- लम् (नपुं०) 1. माङ्गलिकता, मण्डकपर्णा ब्राह्मी की जाति का एक पौधा / प्रसन्नता, कल्याण 2. शुभ शकुन 3. आशीर्वाद | मण्डकपणिका दे० 'मण्डूकपर्णा' / 4. माङ्गलिक संस्कार (जैसे कि विवाह) 5. हल्दी, मण्डकपर्णो दे० 'मण्डूकपर्णा' / -ल: (पुं०) 1. मङ्गलग्रह 2. अग्नि / सम० मतभेदः [स० त०] मतों में अन्तर, सम्मतियों की भिन्नता / -आवह (वि.) शुभ,-ध्वनिः माङ्गलिक स्वर, मतिः [मन्+क्तिन्] 1. बुद्धि, समझ, ज्ञान, निर्णयशक्ति -- भेरी माङ्गलिक अवसरों पर बजाया जाने वाला 2. मन, हृदय 3. विचार, विश्वास, सम्मति, दृष्टिकोण ढोल। 4. इरादा, प्रयोजन 5. प्रस्ताव, संकल्प 6. आदर, मज्जनः [मस्+ ल्युट आठ वर्ष का हाथी-मात० 5 / 9 / सम्मान 7. इच्छा 8. उपदेश 9. स्मृति 10. भक्ति, मञ्चनृत्यम् एक प्रकार का नाच / प्रार्थना। सम० कर्मन बौद्धिक कार्य, गतिः मञ्जनावः मधुर ध्वनि मजीरं मञ्जुनादैरिव पदभजनं (स्त्री०) चिन्तन क्रम, - दर्शनम् विचारों का अध्ययन / श्रेय इत्यालपन्तम्-नारा० 100 / 9 / मत्ताकोडा एक छन्द का नाम / मञ्जभद्रः एक जिन का नाम / / मत्तवारणः,--णम् 1. किसी भवन की नहारदिवारी मजुश्रीः एक बोधिसत्त्व का नाम / 2. खूटी या ब्रेकेट 3. चारपाई, पलंग।। मठाधिपतिः [ष० त०] 1. किसी धर्मसंघ का प्रधान 2. मठ मत्स्यः [मद+स्यन] 1. मछली 2. मत्स्य देश का राजा / .का अधीक्षक / सम--उद्वर्तनम् एक प्रकार का नाच,-आजोवः मठाम्नायः [ष० त०] विविध आध्यात्मिक श्रेणियों से मछियारा, मछली का व्यापार करने वाला, सन्तासंबद्ध कोई रचना। निकः पकी हुई मछली चटनी के साथ / मणिः [मण+इन] 1. रत्न, जवाहर 2. आभूषण 3. सर्वो- | मथ्य (वि.) [मथ+प्रयत] मन्थन क्रिया के द्वारा प्राप्य, तम पदार्थ 4. चुम्बक 5. कलाई 6. अयस्कान्त मणि मथकर निकाला जाने वाला। 7. स्फटिक / सम०--काञ्चनयोगः उपयुक्त वस्तुओं | मदः [मद् +अच] 1. सौन्दर्य 2. जन्मकुंडली में सातवाँ घर का विरल मेल,-तुलाकोटिः जड़ाऊ पायजेब, प्रभा 3. अभिमान 4. पागलपन 5. अत्यन्त आवेश 6. हाथी एक छन्द का नाम,-विग्रह (वि.) रत्नजटित / के मस्तक से चने वाला रस 7. प्रेम, मस्ती 8. सुरा, For Private and Personal Use Only Page #1325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शराब, 9. मधु 10. वीर्य 11. सोम 12. नद / सम० स्थिति (जैन),-रागः हृदयानुराग, प्रेम,-समृद्धिः --भङ्गः घमंड का टूट जाना,-मत्ता एक छन्द का | मन का सन्तोष,----संवरः मन का दमन / दाम। | मनुः [मन् +3] मानसिक शक्तियाँ देहोऽसवोऽक्षा मनवो मदमम् [ मद् + ल्युट्] 1. नशा करना 2. उल्लास, हर्षा- भूतमात्रा-भाग० 6 / 4 / 25 / तिरेक, न: 1. जन्मकुंडली में सातवाँ घर 2. एक | मनुस्मृति मनुसंहिता, मनु द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र / प्रकार को संगीतमाप / सम०-अत्ययः नशे का मनुष्ययानम् [ष० त०] पालकी, शिविका / आधिक्य, मदातिरेक / / मनुष्यसंकल्पः मानव की इच्छा / मधिरामदान्ध (वि.) शराब पीकर धुत, अत्यंत नशे में / मनोन्मनी दुर्गा का एक रूप / मद्यकुम्भः शराब की सुराही, सुरा पात्र / मन्त्रः [ मन्त्र-+अच् ] 1. विष्ण का नाम, शिव का नाम मद्यबीजम् खमीर उठाने के लिए औषधि / 2. जन्मकुंडली में पांचवाँ घर 3. वैदिक सूक्त 4. वेद मद्रदेशः मद्रों का देश। का वह अंश जिसमें संहिता सम्मिलित है 5. प्रार्थना मनाभः एक संकर जाति / 6. गुप्त योजना 7. नय, नीति। सम० कर्कश मधु (नपुं०) [ मन्--उ, नस्य धः] 1. शहद 2. फूलों का (वि०) दृढ़नीति का समर्थक, जागरः रात के रस 3. मधुमक्खियों का छत्ता 2. मोम। सम०-पाका जागरण के अवसर पर मन्त्रों का सस्वर पाठ,---रक्षा तरबूज,-पात्रम् सुरापात्र, मांसम् शराब और मांस, किसी नीति. विचार या रहस्य को गुप्त रखना, -बल्ली 1. एक प्रकार का अंगर 2. मीठा नींबू / -संवरणम् किसी रहस्य, मन्त्रणा या नीति को गुप्त मधुकाश्रयम् मोम। रखना,--स्नानम् स्नान करने के स्थान पर 'अघमर्षण' मधुमती [मधु+मतुप + डीप्] 1. एक नदी का नाम 2. एक मन्त्रों का सस्वर पाठ करना। बेल का नाम 3. 'मधु वाता ऋतायते' से आरंभ होने मन्थ् (भ्वा० ऋया० पर०) मिश्रित करना, मिला देना / वाली तीन ऋचाएँ। मन्थः [ मन्थ + घा] 1. मथना, बिलोना, हिलाना मधुरस्वनः [ ब० स० ] शंख / 2. मार डालना, नाश करना 3. मिश्रित पेय 4. रई, मधुराङ्गकः कषाय स्वाद, तोखा स्वाद / बिलोने का उपकरण, मन्थनदण्ड 5. सूर्य 6. आँखों मध्यमणिन्यायः एक नियम जिसके आधार पर मुख्य वस्तु के रोहे 7. पेय तैयार करने के लिए आयुर्वेद का एक दोनों पाश्वों के बीच में रहे जैसे कि हार में मणि / योग। सम० विष्कम्भः मन्थनदण्ड / मध्यकम् सामान्य संपत्ति / मन्द (वि.) [ मन्द् + अच् ] 1. ढीला, शिथिल, निष्क्रिमध्यम (वि.) [मध्ये भवः म 11. बीच का, केन्द्रीय यात्मक, अलस 2. शीतल, उदासीन 3. मूढ, दुबैद्धि, 2. अन्तर्वर्ती 3. मध्यवर्ती,---मः 1. नितान्त बीच का मर्ख 4. नीचा, गहरा, खोखला 5. मृदु, सुकुमार पुत्र 2. राज्यपाल 3. भीम का विशेषण (मध्यमव्या- 6. छोटा 7. दुर्बल, न्दः (पुं०) 1. शनिग्रह 2. यम योग), - मम् (नपुं०) 1. जो अतिप्रशंसनीय न हो का विशेषण। सम-आस्यम् संकोच, झिझक, 2. ग्रहण का मध्यवर्ती बिन्दु। सम गतिः किसी कर्मन् (वि०) कार्य करने में शिथिल,-जरस् (वि.) ग्रह की औसत चाल, ग्रामः (संगीत० में) मध्यवर्ती शनैः शनैः बढ़ा होने वाला, पुण्य (वि०) दुर्भाग्यलय, व्यायोगः भासकृत एक नाटक / ग्रस्त, बदकिस्मत / मध्यमीय (वि.) [ मध्यम+छ ] बीच का, केन्द्रीय / / मन्दामणिः पानी भरने का बड़ा घड़ा। मध्योहात (वि०) ऐसा शब्द जिसके मध्यवर्ती अक्षर पर | मन्दिरम् [ मन्द --किरच ] 1. भवन 2. आवास 3. नगर उदात्त स्वर हो। __ 4. शिविर 5. देवालय 6. काया, शरीर / मन् ( दिवा० तना० आ० ) स्वीकार करना, सहमत | मन्दुरा [ मन्द्+उरच् ] 1. अश्वशाला, अस्तबल, तबेला होना। 2. शय्या, चटाई। सम० पतिः,-पालः अश्वशाला मनस् (नपुं०) [मन्---असुन् ] 1. मन, हृदय, समझ, का प्रबन्धकर्ता, भूषणम् बन्दरों की एक जाति / बुद्धि 2. (दर्शन० में) संज्ञान व प्रज्ञान का एक अन्त- मन्यसूक्तम् (नपुं०) मन्यु नामक सूक्त जो ऋग्वेद के दसवें वर्ती अंग, वह उपकरण जिसके द्वारा ज्ञानेन्द्रियों के मण्डल के 83 व ८४वें सूक्त हैं। विषय आत्मा को प्रभावित करते हैं 3. अन्तःकरण | ममतायुक्त (वि.) 1. अहंमन्य 2. कंजूस / 4. अभिकल्प 5. संकल्प / सम-ग्राह्य (वि०) | ममताशुन्य (वि.) 1. अहंशन्य 2. अनासक्त / मन से ग्रहण किये जाने के योग्य,-लानिः मन का | मयिवसू (वि०) मेरे प्रति शुभ / अवसाद,-धारणम् अनुग्रह की संराधना करना | मयूखमालिन् (पुं०) सूर्य, सूरज / -पर्यायः सत्य के प्रत्यक्षीकरण में अन्तिम के पूर्व की 'मयूरः [मी ऊरन्] 1. मोर 2. एक प्रकार का फल 3. एक For Private and Personal Use Only Page #1326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1317 ) कवि का नाम (सूर्यशतक का प्रणेता) 1. सम० / / विस्तृत 4. प्रबल, बलशाली 5. महत्त्वपूर्ण, आवश्यक ..... नरयम् मोर का नाच, पिच्छम मोर का चंदा।। 6. ऊँचा, प्रमुख, पूज्य / सम-आयुधम् महान् दास्त्र, मयूरिका (स्त्री०) 1. नथ, नाक का छल्ला 2 एक जह- बड़ा भारी हथियार, औषधिः (स्त्री०) एक आश्चर्य रीला जंतु / जनक बूटी, कुलम् उत्तम घराना, तम्बः सैनिक, मरकतश्याम (वि.) पन्ने जैसा काला, ऐसा काला जैसा कि ' जत्था,-फल: बेल का वृक्ष,-व्यतिक्रमः 1 भारी मरकतमणि - माता मरकतश्यामा मातङ्गी मदशालिनी / अतिक्रमण 2. महान् पुरुष का अनादर। ---श्याम / महा (कर्मधारय और बहव्रीहि समास के आरंभ में 'महत' मरणम् [म+ल्युट्] 1. मरना मत्यु 2. एक प्रकार का शब्द का स्थानापन्न-इसके कुछ उदाहरण निम्नांकित विष 3. अवसान 4. जन्मकुंडली में आठवाँ घर हैं)। सम. - अनिल: बवंडर महानिलेने 5. शरण, शरणालय / सम०-दशा मृत्य का समय, निदाघजं रजः -कि० 14 / 59, आरम्भः महान् -शील (वि०) मर्त्य, मरणधर्मा। कार्य, विशाल पैमाने पर कार्य का आरंभ करना, मरीचिः[म+ईचि] 1. प्रकाश की किरण 2 प्रकाशकण / आलयः देवालय, मन्दिर, तीर्थ स्थान आलया 3. प्रकाश 4. मगतृष्णा 5. आग की चिंगारी। सम.. मावस्या वह अमावस्या जिससे महालयपक्षः आरंभ —पाः (मरीचिपाः) ऋषिवर्ग जो सूर्य की किरणें : होता है,-आलयपक्षः माघ और पौष मास का पुनीत पीकर जीवित रहते हैं-रा० 3.62 / पितुपक्ष, आलयश्रासः महालय पक्ष में श्राद्ध करना, महः [म+उ] 1. रेगिस्तान, निर्जल प्रदेश 2. पहाड़, चट्टान ऊमिन् (पुं०) समुद्र,-ओघ (वि.) प्रबल धाराओं 3. कुरबक नाम का पौधा 4. मद्यपान का त्याग / से युक्त,-कल्पः ब्रह्मा के सौ वर्ष,-बक्रम शक्ति की सम-प्रपतनम् पहाड से छलांग लगाना। पूजा में रहस्यमय चक्र, जयः ऊँट,-जयः बारहमक्त् (पुं०) म+उति 1. वायु, हवा, समीर 2. प्राण सिंगा हरिण,-दंष्ट्रः बड़े व्याघ्र की एक जाति,-दुर्गम् वायु 3. वायु का देवता 4. देवता 5. मरुबक नाम का महान् संकट, - पराक: एक प्रकार की तपस्या, पौधा 6. सोना 7. सौन्दर्य / सम० बृद्धा, वृषा -पुराणम् अठारह पुराणों में एक पुराण, प्रश्नः एक कावेरी नदी। जटिल सवाल, बिसी एक प्रकार का चमड़ा,-भाग्डम् मधु (पुं०) [मृ+3] 1. धोबी 2. पीठमर्द, (स्त्री०) मुख्य कोष, मृत्युंजयः 1. मत्य के विजेता शिव को सफाई, पवित्रता। प्रसन्न करने का मन्त्र 2. एक औषधि का नाम,-यानम् मर्मन् (नपुं०) [मृ + मनिन्] 1. शरीर का महत्त्वपूर्ण : एक बड़ी सवारी (पश्चवर्ती बौद्ध शिक्षण), रवः भाग (शरीर का दुर्बल या सुकुमार अंग) 2. त्रुटि, मेंढक, रजः (वि०) अत्यन्त पीड़ाकर,..-लयः विफलता 3. हृदय 4. गुप्त अर्थ 5. रहस्य 6. सत्यता / 1. महा प्रलय 2. परमपुरुष जिसमें सब महाभूत लीन सम०-घात: मर्मस्थान पर आघात करना, - जम हो जाते हैं,-विपुला एक प्रकार का छन्द,-शिवरात्रि: रुधिर। फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष का चौदहवां दिन, शिवपूजा मर्यादा [मर्या (सीमा)+दा+क] 1. सीमा 2. अन्त का माङ्गलिक दिवस, लक्षणा रेत, बालू,-सन्नि: 3. किनारा, तट 4. चिह्न 5. नैतिकता की सीमा (पुं०) एक प्रकार का संगीत माप,-सुधा चाँदी / प्रचलित नियम, प्रचलन 6. औचित्य का सिद्धान्त | महिनम् (नपुं०) प्रभुसत्ता, उपनिवेश / 7. करार। सम० . बन्धः सीमा के अन्दर रहना, महिमन् (पुं०) [महत् + इमनिच्] आठ सिद्धियों में से एक / -----वचनम् सीमाविषयक वक्तव्य,-व्यतिक्रमः सीमा महिषमदिनी दुर्गादेवी। का उल्लंघन / मही [मह +अच्+डोष] 1. पृथ्वी,घरती,भूमि 2. भूसंपत्ति, मल (वि.) [मज-कल, टिलोप:] 1. मैला, गन्दा जायदाद 3. देश, राजधानी 4. खम्बात की खाड़ी 2. लालची 3. दुष्ट, - लः लम् 1. मल, गन्दगी, में गिरने वाली एक नदी 5. (ज्या० में) किसी आकृति धूल अपवित्रता 2. विष्ठा, बीट 3. धातुओं का मोर्चा की आधाररेखा 6. विशाल सेना 7. गाय / सम० 4. शरीर के मल 5. कपूर 6. कमाया हुआ चमड़ा .. जीवा क्षितिज, . पृष्ठम्, धरतीतल, भूमि की सतह, 7. वात, पित्त तथा कफ नामक दोष / सम-अपहा -करोति बड़ा बनाता है, प्रोन्नत करता है। एक नदी का नाम,- पङ्किन (वि०) धूल या गन्दगी मांसम् [ मन्-+स, दीर्घश्च ] 1. गोश्त, 2. मछली का से भरा हुआ। मांस 3. फल का मांसल भाग,-स: 1. कीड़ा 2. संकर मल्लनालः (संगीत) एक प्रकार की माप / जाति, जो मांस बेचती है। सम.---कामः मांस का महत् (वि०) (म० महीयस, उ० महिष्ठ) [मह +अति] शौकीन, ...कीलः रसौली, चक्षुः नंगी आँख,--परि 1 बड़ा, विशाल, विस्तृत 2. पुष्कल, असंख्य 3. दीर्घ, I वर्जनम् मांस-भक्षण का त्याग / For Private and Personal Use Only Page #1327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1318 ) मांसीयते (ना० घा० पर०) मांस के लिए लालायित रहना।। मात्स्यन्यायः एक सिद्धान्त जिसमें बड़ा छोटे को दबाता है, माक्षिकधातुः एक प्रकार का खनिज धातु / हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। मागधः [ मगध अण् ] 1. मगध देश का राजा 2. साहित्य माधवनिदानम् आयुर्वेद की एक कृति / क्षेत्र में काव्यशैली का एक प्रकार / माधवी पशुओं की बहुतायत। मातङ्गलीला हस्तिविज्ञान पर एक कृति / मानः [मन +घञ 11. आदर, सम्मान 2. घमंड. अभिमातुलाहिः एक प्रकार का साँप। मान, अहंकार 3. आत्माभिमान, आत्मगौरव,-सम मातृ (स्त्री०) [मान्+तृच, नलोपः] 1. माता, जननी 1. माप 2. निष्ठित मापदण्ड 3. आयाम / सम. 2. स्त्रियों के प्रति आदर या सम्मान सूचक संबोधन --अन्य (वि.) घमंड के कारण अंधा,-अह (वि०) 3. गाय 4. लक्ष्मी या दुर्गा का विशेषण 5. धरती सम्मान के योग्य, आदर का अधिकारी,--अवमनः माता। सम०-दोषः माता का दोष, भक्तिः माता प्रतिष्ठा भङ्ग होना, क्रोध का नाश,-विषमः खोटे के प्रति आदर सम्मान, -शासितः मूर्खव्यक्ति, सीधा बाँटों से तोलकर या मिथ्या मापकर गबन करना, सादा, भोंदू। ठगना--को० अ० 22826, सारः अभिमान की मातका ग्रीवा की 8 नाड़ियाँ, शिराएँ। बड़ी मात्रा। मातृतः (अ०) मातृपरक पक्ष की ओर / मानसपूजा मानसिक पूजा / मात्र (वि०) [मा+न् ] आरम्भिक विषय / मानुषम् [मनोरयम्-अण् सुक् च] 1. मानवता, मनुष्यत्व मात्रा [ मात्र+टाप् ] 1. परिमाण 2. क्षण 3. अणु 4. अंश। 2. मनुष्य की परिपक्वावस्था, पूर्ण पुरुषत्व। सम. 5. वृत्त, विचार 6. धन 7. तत्त्व 8. भौतिक संसार -अधमः नीच पुरुष, ओछा मनुष्य / 9. नागरी अक्षरों में स्वरों का चिह्न 10. कान की | मन्धव्याजः [10 त०] रोग का बहाना / बाली 11. आभूषण 12. इन्द्रियों का कार्य 13. विकार। माया 1. दुर्गा का नाम 2. दक्षता, कला। सम० - अङगलम् लगभग एक इंच की माप / य यकृत [यं संयमं करोति कृ+क्विप तुक च] जिगर / / यत्रकामावसायः योग की एक शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य सम०-वैरिन् (पुं०) औषध का एक पौधा, रक्त- अपने आपको जहाँ चाहे ले जा सकता है।। रोहड़ा। | यत्रसायंगृह (वि०) जहाँ सन्ध्या हो जाय या सूर्यास्त हो यक्षः | यक्ष+घञ ] 1. देवयोनि विशेष, जो 'कुबेर के जाय वहीं ठहर जाने वाला व्यक्ति / सेवक है 2. भूतप्रेत 3. इन्द्र का महल 4. कुबेर यथा (अ.) [यद प्रकारे थाल] जिस ढंग, जिस रीति से, 5. पूजा 6. कुत्ता। सम०-धूपः गूगल, लोबान / जैसे, जिस प्रकार / सम०-अनूक्तम् (अ.) जैसा यज्ञः [यज्+न] 1. यज्ञ, यज्ञीय संस्कार 2. पूजा की कि बतलाया गया है, या निर्देश किया गया है-मया प्रक्रिया 3. अग्नि 4. विष्णु / सप०-आयुधम् यज्ञ यथानक्तमवादि ते हरेः 'चेष्टितम् - भाग० 3 // 19 // में प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण, --गुह्यः कृष्ण, 32, आश्रयम् ( अ०) आधार के अनुसार-~-पत्नी यजमान की पत्नी,-शिष्टम् यज्ञ का अव- सां० का० 41, उद्गत (वि.) ज्ञानशून्य, मूर्ख, शिष्ट अंश-यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मच्यन्ते सर्वकिल्विषः -उद्गमनम् (अ०) आरोह अनुपात के अनुसार, ----भग० 3 / 13, -- संस्तरः यज्ञ की वेदी की स्थापना --उपचारम् (अ०) औचित्य के अनुरूप, शिष्टाचारतथा इष्टकाचयन / सापेक्ष, - उपविष्ट (वि.) जसा निर्देश दिया गया यज्ञायज्ञीयम् 1. सामसूक्त 2. गरुड के दोनों पंखों का हो, या जैसा परामर्श दिया गया हो,-कारम् (अ०) प्रतीकात्मक नाम / जिस किसी रीति से,-पा० 3 / 4 / 28,-- बलप्ति यत्नवत् (वि.) क्रियाशील, परिश्रमी, प्रयत्न करने वाला। (अ०) समुचित रीति से, क्षिप्रम् (अ०) जितनी यतगिर (वि०) [ब० स०] चुप रहने वाला, जिसने जल्दी हो सके,---चित्तम् (अ०) अपनी इच्छा के अपनी वाणी को नियन्त्रित रक्खा है। अनुसार, तथ्यम् (अ०) सचमुच, वास्तव में, यतमैथुन (वि०) [ब० स०] जिसने मैथुन त्याग दिया है। ..-न्यासम् (अ०) जैसा कि विधान है, जैसा कि मूल यतिचान्द्रायणम् विशेष प्रकार का तपश्चरण / पाठ में है,-न्युप्त (वि०) जैसा कि धरती में डाला यत्रकामम् (अ०) जहाँ किसी का मन चाहे, इच्छानुसार।। गया है,पण्यम् (अ०) विक्रेय वस्तु के मूल्य के For Private and Personal Use Only Page #1328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1319 ) अनुसार, प्रत्यहम् (अ०) योग्यता के अनुसार। 7. कौवा 8. 'दो' की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति - प्रविष्टम् (अ०) जैसा अनुकूल हो, जैसा कि 9. लगाम 10 चालक, रथवान,-मम् 1. जोड़ा उपयुक्त हो, ...-प्रस्तावम् (अ०) सबसे पहले उपयुक्त 2. संयुक्त व्यंजन,-मी यमुना नदी,-- मौ (०अवसर पर, प्रस्तुतम् (अ.) 1. अन्त में 2. प्रस्तुत द्वि० व.) 1. युगल, जोडुआ---धूति संयमौ यमौ विषय के अनुरूप,--भूयस् (अ०) वरीयता के -~-कि० 236 2. अश्विनीकुमार। सम० अनुजा अनुकूल,-मूल्यम् (अ.) मूल्य के अनुसार,---रसम् यमुना नदी, घण्ट: ज्योतिष का एक अशुभ योग, (अ०) रस या स्वाद के अनुकूल, लब्ध (वि०) -- द्रुमः सप्तपर्ण वृक्ष, पटः, पट्टिका कपड़े की जैसा कि वस्तुतः प्राप्त हो चुका है, विनियोगम एक पट्टी जिस पर यम, यम के अनुचर तथा नार(अ.) निर्दिष्ट प्राथमिकता के अनुसार,-... व्युत्पत्ति कीय यातनाओं का चित्रण अङ्कित रहता है . याव(अ०) ज्ञान की गहराई के अनुकूल,-शब्दार्यम् देतद् गृहं प्रविश्य यमपटं दर्शयन् गीतानि गायामि शब्द के अर्थों के अनुसार-- यथाशब्दार्थ प्रवृत्तिः, मै० -- मुद्रा० ॥१८,-बतम् 1. यम को प्रसन्न करने के सं० 1111 / 26 पर भाष्य,----संस्थम् (अ०) परि- लिए व्रत रखना 2. निष्पक्ष दण्ड विधान-मनु. स्थिति के अनुकूल,- सवनम् ऋतु के अनुकूल, ९।३०७,--शासनः शिव, यमशासनालयक्षमापरस्पर्ष सारम् गुण के अनुसार, स्थूलम् (अ०) जैसा नमाचचार स:--रा० च०२।१२,-श्रायम् यम का कि अतिरिक्त रीति से कहा गया है, स्व (वि०) वासस्थान / अपने अपने आवास या स्थान के अनुसार / यमककाव्यम् यमक-प्रधान कविता, वह काव्य जिसमें यदवधि (अ०) जिस समय से। यमक अलंकार की बहुतायत हो। यदात्मक (दि०) जिस सत्ता परक / पमलार्जुनौ दो अर्जुन के वृक्ष (जिनको कृष्ण ने बचपन में यद्वद (वि०) इच्छानुसार बोलने वाला। उखाड़ दिया था)। यदीय (वि.) [यद् +-छ] जिसका, जिससे संबद्ध / यमिका एक प्रकार की सूखी खाँसी। यन्त्रम् [यन्त्र +अच्] 1 जो रोकता, 'या बांधता है | यमेतका एक प्रकार का घण्टा जिस पर आघात करके 2. सहारा, थूनी 3. बेड़ी, हथकड़ी 4. शल्य क्रिया का | समय की सूचना दी जाती है। उपकरण (शस्त्र) 5. मशीन, संयत्र 6. कुंडी, ताला, | यवः [ य+अच] 1. जो 2. महीने का पहला पक्ष 3. गति, चाबी 7. प्रतिबन्ध, शक्ति 8. ताबीज़ 9. छिद्र करने चाल 4. ज्योतिष का एक योग 5. जव, वेग 6. दुगना की मशीन / सम०- आरुतु (वि.) घूमने वाली उन्नतोदर शीशा 7. एक टापू का नाम / सम०-दीप: मशीन पर चढ़ा हुआ, भ्रामयन सर्वभूतानि यन्त्रा. वर्तमान जावा टापू,-नालः एक प्रकार का साथ रूढानि मायया-भग०,-कोविदः यन्त्रकार, मशीन पौधा। पर कार्य करने वाला-रा० २१८०२,-गहम् | यवनाचार्यः ज्योतिष के ताजिक' नाम की कृति का यन्त्रागार, जहाँ किसी को यन्त्रणा दी जाती है,। विख्यात प्रणेता।। ---धारागृहम् वह स्थान जहाँ फौवारा लगा हआ हो, ! यवनिका--यवनी पर्दा। -सूत्रम् गुड़िया या पुत्तलिका को रंगमंच पर हिलाने यशस (नपुं०) [अश् स्तुती असुन धातोः स्युट च] वाली डोरी। 1. कीति ख्याति, प्रसिद्ध 2. पूज्य व्यक्ति 3. प्रसाद यन्त्रकम् [ यन्त्र+कन् ] 1. हाथ से चलायी जाने वाली 4. धन 5. आहार 6. जल 7. विरल गुणों का एकत्र मशीन, खैराद 2. सामान का बंडल निधीयमाने | संग्रह 8. परोक्ष कीर्ति-छा० उ० 3 / 18 / 3 / सम० भरभाजि यन्त्रके-कि० 12 / 9 / धा कीर्ति प्रदान करने वाला। पन्त्रिका [ यन्त्र + ण्वुल ] छोटो साली, पत्नी की छोटी | यष्टि: (स्त्री०) [यज्+क्तिन् नि० न संप्रसारणम् ] बहन। 1. लकडी 2. गदा 3. स्तम्भ 4. सहारा, टेक 5. ध्वजयन्त्रित (वि.) [ बन्त्र+क्त ] 1. भड़काया हआ 2. नियमों / दंड 6. डोरी, धागा 7. हार, लड़ी / सम-आषातः से नियन्त्रित या प्रतिबद्ध 3, तनाव को बढ़ाने के डंडे की मार,-- उत्थानम् लकड़ी की सहायता से लिये निकाला हुआ 4. आकृष्ट अथवा मदभिस्नेहा- | उठना,-यन्त्रम् समय को मापने के लिए ज्योतिष द्भवत्यो यन्त्रिताशया भाग० 10 / 29 / 23 / का एक साधन / यम (वि०)| यम+धन 11. यमल, जोड आ 2. दोहरा, यस्मात (अ०) 1. जिससे, जब से, जिस बात से 2. ताकि, ---मः 1. प्रतिबन्ध, नियन्त्रण, दमन 2. आत्मसंयम 3. कोई नैतिक कर्तव्य (विप० नियम) 4. योग के | या (अदा० पर०) विदा करना। आठ अङ्गों में से एक 5. मृत्यु का देवता 6, शनि | यागः [ यज्+घश, कुत्वम् ] 1. यज्ञ, णाहुति 2. उपस्थान For Private and Personal Use Only Page #1329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1320 ) उपहार, प्रदान / सम०- कण्टक 1. बुरा यजमान / जमाया हुआ 7. संबद्ध 8. सिद्ध, अनुमित 9. सक्रिय, 2. जो यज्ञ को बिगाड़ता है,--संप्रदानम् यज्ञीय परिश्रमी 10. (ज्यो०) संयुक्त, मिला हुआ। सम० पदार्थ को लेने वाला-पा० 4 / 2 / 24 पर काशिका, --चेष्ट (वि.) उचित कार्य में संलग्न,-वादिन् ---सूत्रम यज्ञीय यज्ञोपवीत, जनेऊ।। (वि.) उपयुक्त बात कहने वाला। याच्या चाच+ना ] 1. मांगना। 2. साधता 2. प्रार्थना युक्तकम् [ युक्त+कन् ] जोड़ा। सम-जीविका,-जीवनम भिक्षावत्ति पर जीने | युगम् [ युज्+घञ , कुत्वं, न गुणः ] 1. जूआ 2. जोड़ा वाला,- भङ्गः प्रार्थना को ठकरा देना। 3. चन्द्रमा की सापेक्ष स्थिति / सम० धुर् (स्त्री०) याजुक: यजमान, यज्ञ करने वाला / जूए की कील, मात्रम् जुए की लंबाई के बराबर वाझसेनः / शिखण्डी का पैतृक नाम / माप अर्थात् चार हाथ की लम्बाई,-परत्रम् जूए का माशसेनिः महा० 7 / 14 / 44 फीता या तस्मा। याज्या [यज्+णिच् +यत्+टाप् ] आहुति देते समय युगन्धरः, रम् गाड़ी की वह लकड़ी जिसमें जूआ लगा प्रयुक्त किया जाने वाला यज्ञीय नियम / रहता है। यातिक: [ यात+ठक् ] यात्री। यगन्धरा एक देवी योगिनी योगदा योग्या योगानन्दा यातुनारी राक्षसी, पिशाचिनी - वभ्राम त्रिजगती या तु युगन्धरा-ललिता० / यातुनारी-रा० च० 7 / 10 / युगी (स्त्री०) बहुतायत योषयुग्या शूरसमृद्ध्या युजे बात्य: नरक में रहने वाला। - रोणादिक: कि:- कुत्वमार्षम्-महाभाष्य 5 / 63 / 3 यात्राकर (वि.) जीवन का सहारा देने वाला (साधन) पर टीका। यात्रादान यात्रा पर जाते समय दिया गया उपहार। युग्म (वि.) [ युज-मक्] सम, दो से भाग होने वाली याथात्म्यम् [ यथात्मा+ष्य ] वास्तविक स्वभाव या संख्या, मम् 1. जोड़ा 2. संघ, जंकशन 3. संगम प्रयोजन। 4. युगल 5. मिथुन राशि / सम०-चारिन् (वि.) यानम् [ या+ल्युट् ] 1. जलयान, पोत 2. जन्म-मरण के जोड़े के रूप में घूमने वाला -विपुला एक छंद का चक्र से मुक्ति का उपाय -- तु० महायान, हीनयान नाम,- शुक्तम् आँखों में दो सफेदी के बिन्दु / 3. वायवी रथ, हवाई गाड़ी। सम०-- आस्तरणम् | युग (म्वा० पर०) छोड़ देना, त्याग देना / गाडी की गही, बैठने का आसन-मृच्छ०, --स्वामिन युञ्ज गाड़ी का मालिक। युङ्गिन ( पुं०) [ युङग् + इनि ] एक संकर जाति / याम (वि.) (स्त्री०-मी) [ यम+अण् ] यम से | युछ, युञ्छ (म्वा० पर०) 1. भूल करना, भटक जाना संबन्ध रखने वाला—याभिश्चिरं यातना:--मकुन्द० 2. बिदा होना, चले जाना। 10, - मः (पुं०) देवों का समुदाय-यामैः परिवृतो | युद्धम् [ युध् + क्त ] 1. लड़ाई, संग्राम. झड़प, संघर्ष, समर देवैः–भाग०८।१।१८ / सम० नादिन मर्गा,-पाल: 2. ग्रहों का विरोध या संघर्ष / सम० अबहारिकम् समय पालक, * भद्रः मंच / युद्ध में जीतने पर प्राप्त सामग्री, संपत्ति, - गान्ध-म् यामिकाचर] रणभेरी, युद्ध का गीत, तन्त्रम् युद्ध विज्ञान, सैनिक यामिनीचरः शिक्षा, ध्यान: युद्ध का आनन्द, योजक (वि.) यामलम् तन्त्रग्रन्थ / युद्ध भड़काने वाला, व्यतिक्रमः यद्ध कला के नियमों यामिः,-मो, [या+मि, डीप् वा ] 1. दक्षिणी दिशा का उल्लंघन / 2. भरणी नामक नक्षत्र / युद्धकम् | युद्ध+कन् ] संग्राम, रण, समर, लड़ाई। यावकः--कम् | यव+अण, स्वार्थे कन् ] एक ब्रत जिस में | युधिक (वि.) [युध् +ठन् ] लड़ाकू, योद्धा, लड़ने वाला। जो खाकर रहना पड़ता है। योद्धु (पुं०) [ युध् +तच ] योद्धा, सिपाही। यावदध्ययनम् (अ) पढ़ने के समय, विद्यार्थी अवस्था में। युयुक्खुरः चीता या भेड़िये की जाति का जन्तु, क्षुद्र व्याघ्र, पावत्संपातम् (अ0) जहाँ तक संभव हो। पावतिय (वि०) जहाँ तक, जिस बिन्दु तक, जिस अंश तक। युवन् (वि०) [ यु+कनिन् ] 1. जवान 2. हृष्ट-पुष्ट यावनीप्रिया पान की बेल। 10 युवा)4. साठ वर्ष का हाथी 5.एक यावसिक: [यवस+ठक ] घसियारा, घास काटने वाला। संवत्सर। सम० जानिः वह पुरुष जिसकी पत्नी युक्त (वि०) [युज्+क्त ] 1. जुड़ा हुआ, मिला हुआ। जवान है, युवजानिधनुष्पाणिः - भटि० 5 / 13, बाँधा हुआ 2. जुए में जोड़ा हुआ 3. व्यवस्थित 4. सम-1 --पलित (वि) समय से पूर्व जिसके बाल पक गये बेत 5. संपन्न, भरा हुआ 6. स्थिर किया हुआ, / है,-पा० 2 / 1 / 67 पर भाष्य, हन् शिशु हत्या। For Private and Personal Use Only Page #1330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1321 ) युवकः [ युवन् + कन्, नलोप: ] जवान,तरुण / का अभ्यास करते समय बैठने की विशेष मुद्रा, युवानक (वि.) [ युवन्+आनक न लोपः तरुण, -पुरुषः गुप्तचर,-यथा योगपुरुषरन्यान् राजाधिजवान। तिष्ठति-कौ० अ० 1121, - भ्रष्ट (वि.) जो युवति: [ युवन+ति ] जवान स्त्री, तरुणी। सम.....इष्टा योग के मार्ग से पतित हो गया है-शचीनां श्रीमतां पीले रंग की चमेली,--जनः तरुणी स्त्रियाँ / गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते--भग०,-यात्रा परमेश्वर युष्मवर्थम् (अ.) आपके लिए, आपकी खातिर / से सायुज्य प्राप्त करने का मार्ग,-युक्त (वि०) युष्मवायस (वि.) जो कुछ आपके अधीन है, आपके योगमार्ग में संलग्न-योगयुक्तो भवार्जुन-भग० नियन्त्रण में है। ८।२७,-वामनम् गुप्त उपाय,कूटयुक्ति, कपटयोजना, युज्मद्वाच्यम् (व्या०) मध्यम पुरुष / कौ० अ०,-वाहक ( वि० ) विघटनकारी (रसायुष्मद्विध (वि.) आप जैसा, आपकी तरह का। यन०), विद्या योगशास्त्र,--संसिद्धिः योगाभ्यास युष्मत्क (वि०) आपका, आपसे संबंध रखने वाला। में पूर्णसाफल्य प्राप्त करना,-सिद्धिन्यायः एक न्याय यूकालिक्षम् 1. जू और उसका अंडा (ल्हीक) 2. ल्हीक / जिसके अनुसार नाना प्रकार के फलों को देने वाली यूथम् [यु+थक्, पृषो० दीर्घः] रेवड़, लहंडा, समूह, एक विशिष्ट प्रक्रिया एक समय में केवल एक ही समुदाय / सम०-चारिन् (वि.) जो सामूहिक रूप फल दे सकती है. दूसरा फल प्राप्त करने के लिए से (हाथियों की भांति) घमता है, किसी रेवड़ में या उस प्रक्रिया का पृथक् रूप से दूसरा प्रयोग करना लहंडे में,-परिभ्रष्ट (वि.) अपने समूह से भटका पड़ेगा मी० सू० 4 / 3 / 27-28 पर शा० भा०। हुआ, बन्धः रेवड़, लहंडा / यौगिक (वि.) [योग+ठक ] अभ्यास के लिए अयुक्त यूयशः (अ०) [यथ +शस्] रेवड़ में, लहंडे में, पंक्ति में / (जैसा कि 'यौगिकं चापं तीरन्दाजी अभ्यास प्राप्त यूपः [यु+पक, पृषो० दीर्घः] 1. यज्ञीय स्थणा (जो प्रायः करने के लिए धनुष)। बाँस या खैर की लकड़ी की होती है। जिससे यज्ञीय | योग्य (वि०) [युज् ण्यत्, योग+यत् वा] 1. उपयुक्त, पशु बाँध दिया जाता है 2. विजयस्तम्भ / सम० समुचित 2. पात्र 3. उपयोगी, कामचलाऊ-ग्यः कर्मन्यायः वह नियम जिसके अनुसार विकृति से (0) 1. पुष्प नक्षत्र 2. भारवाही पशु,---ग्यम् संबद्ध किसी विवरण का उत्कर्ष या अपकर्ष केवल 1. सवारी, गाड़ी 2. चन्दन 3 रोटी 4. दूध। उसी विवरण तक लागू रहेगा जिससे कि तदादि योग्या [ योग्य+टाप] 1. एक देवी का नाम ---योगिनी तदन्त न्याय का उपयोग न हो सके-म० सं० 5 / 1 / योगदा योग्या ललिता० 2. पृथ्वी 3. सूर्य की 27 पर शा० भा०। पत्नी का नाम / योगः [ युज+घञ कुत्वम् ] 1. आक्रमण ---योगमाज्ञा-योजनम् [ युज् + ल्युट ] 1. जोड़ना, मिलाना 2. तत्परता पयामास शिवस्य विषयं प्रति--शिव० 1317, व्यवस्था 3. परमात्मा 4. अंगुली 5. चार कोस की 2. सतत संसक्ति, लगातार मिलाना--मयि चानन्य- दूरी। योगेन भक्तिरव्यभिचारिणी-भग. 1310 योजित (वि.) [युज+णिच्+क्त] 1. जूए में जोता हुआ 3. समता, साम्य--समत्वं योग उच्यते-भग० 2 / 40 2. प्रयुक्त, काम में लिया गया 3. मिला, संयुक्त 4. दुःख के' 'जों से छुटकारा-दूःखसंयोगवियोगं 4. सम्पन्न / योगजितग भग 5. मिलाना, जोडना 6. संपर्क योधेयः [योघा-ढक्] 1. योद्धा, एक वंश का नाम / 7. उपयोग 8. परिणाम 9. जुआ। सम-अभ्या- योन (वि.) [योनि+अण् ] वंश या कुल से संबन्ध सिन् (वि.) जो योग का अभ्यास करता है, रखने वाला। --आख्या केवल आकस्मिक संपर्क के कारण व्यत्पन्न | योनिः [यु+नि] 1. ऋग्वेद की वह आधारभूत ऋचा नाम-एषा योगाख्या योगमात्रापेक्षा न भूतवर्तमान- जिस पर 'साम' का निर्माण हुआ 2. तांबा 3.मल भविष्यत्संबन्धापेक्षा मी० सू० 121 पर कारण 4. समझ का स्रोत-योनिर्जप्तिकारणं 'वेदोशा. भा०-आपत्तिः प्रचलन में परिवर्तन,-क्षेमः ऽखिलो धर्ममूल'मित्यादिनोक्तमित्यर्थः-मी० सू० 1. समृद्धि, सुरक्षा 2. कल्याण, भलाई 3. धार्मिक 2 / 25 पर शा० भा० 5. इच्छा -योनिपातालकार्यों के निमित्त कल्पित संपत्ति-मनु० 9 / 219, दुस्तराम्-महा० 12 / 250 / 15 / सम-गुणः -दण्डः योग की शक्ति से युक्त छड़ी जादू की गर्भाशय या मूलस्थान से व्युत्पन्न गुण,-दोषः छड़ी,--नाविकः,--नाविक, एक प्रकार की मछली, 1. योनिसंबन्धी विकार 2. स्त्री की जननेन्द्रिय में -पबम् स्वसंकेन्द्रण की स्थिति,-पानम मर्जी लाने कोई दोष,-मुक्त (वि.) जन्म मरण के चक्र से वाले पदार्थों से युक्तशराब, पीनक,-पीठम योग | छुटकारा पाये हुए,- मुद्रा अंगुलियों द्वारा ऐसी For Private and Personal Use Only Page #1331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1322 ) विशिष्ट आकृति बनाना जो स्त्री की योनि से मिलती . रक्तसम्बन्ध,--यौनानुबन्धं च समीक्ष्य कार्य-कौ० जुलती हो,-संवरणम्,-संवृत्तिः योनि या भग को अ० २।१०,-सम्बन्धः दे० यौनानुबन्ध / सिकोड़ना,--संकटम् पुनर्जन्म / / यौनिकः [ योनि+ठक मध्यम वायु, सुहावनी हवा / योवाग्राहः / विधवा स्त्री से विवाह करने वाला, मृतक पौवनम् युवन+अण्] जवानी, वयस्कता। सम०-आरड योषिग्राहः / व्यक्ति की पत्नी को ग्रहण करने वाला। (वि.) किशोर, वयस्क,-उद्धवः 1. जवानी के आवेश योगपवम् दे० योगपद्यम् / का मादक उत्साह 2. यौन प्रेम, काम वासना 3. जवानी योगपद्यम् [युगपद्+य] भिन्न भिन्न स्थानों से एक ही की कली का खिलना 4. वयस्कता प्राप्त करना- कण्टकः, साथ एक वस्तु को देखना-आदित्यवद्योगपद्यम् / ---कण्टकम्,-पिडिका यौवनारम्भ का संकेत करने मी० सू० 111 / 5 / / वाली चेहरे पर छोटी-छोटी फिसियाँ, प्रान्तः जवानी यौन (वि.) योनि+अण् ] (समास में) 1. मूल स्थान, के किनारे पर,-श्रीः जवानी का सौन्दर्य / उद्गमस्थान---यत्राग्नियौनाश्च वसन्ति लोका:--महा० | यौवनीय (वि०) युवक, तरुण / 13 / 102 / 25 2. गर्भाधानसंस्कार / सम०-अनुबन्धः ! बागुली चावलों का मांड, यवागू / एफसा (स्त्री०) कोढ़ का एक भेद / / 5. नाचना, गाना, अभिनय करना। सम०-क्षार: रक्त (वि.) [रञ्+क्त] 1. रङ्गा हुआ, रंगीन 2. लाल सुहागा,-तालः एक प्रकार का सङ्गीत का माप,-वः 3. प्रियं, प्यारा 4. सुन्दर, सुहावना 5. अनुस्वार युक्त सुहागा,-नाथः, राजः, धामन्,-शायिन् विष्णु के (स्वर),—क्तः (पुं०) 1. लाल रंग 2. मंगल ग्रह विशेषण (मद्रास राज्य के श्रीरङ्गम् स्थान पर स्थित 3. शिव,-क्तम् (नपुं०) 1. रुधिर, खून 2. तांबा मन्दिर), प्रवेशः रङ्गमञ्च पर पधारना, वेदी पर 3. जाफ़रान 4.सिन्दूर 5. आँखों का एक रोग 6. लाल उपस्थित होना, मङ्गलम् वेदी पर 'आवाहन' उत्सव चन्दन,-क्ता (स्त्री) 1 लाख 2. गुजा 3. आग मनाना। की सात लपटों में से एक। सम०-कुमुवम् लाल | रचनम् [र+ल्युट ] 1. योजना, उपाय 2. बाण में पंख कमलिनी,-च्छद (वि०) लाल पत्तों वाला,-पग्रम जमाना। लाल कमल,-बोज: 1. एक राक्षस जिसको दुर्गा देवी | रचित (वि.) [ रच्+क्त आविष्कृत, निर्मित / सम० ने मारा था 2. अनार का वृक्ष,-विकारः रुधिर का --पूर्व (वि.) जो पहले ही बन चुका है। ह्रास,-ठीवी रुधिर थूकने वाला,-खाबः शरीर के रजयित्री रज-तृ--ङोप् ] स्त्री चित्रकार। अन्दर नस फट जाने से रक्त बहना।। रजस् (नपुं०) [र +असुन, नलोप:] 1. धूल, गर्दा रक्ष (म्वा० पर०) सावधान होना, जागरूक होना। 2. पुष्प की धूल, पराग 3. अन्धेरा 4. आवेश, नैतिक रक्षा [ रक्ष+अ+टाप् ] 1. बचाना, रखना 2. सावधानी, अन्धकार 5. तीनों गुणों में दूसरा 6. भाप 7. बादल सुरक्षा 3. चौकीदारी 4. रक्षा ताबीज 5. भस्म या वर्षा का पानी 8. पाप-प्रायश्चित्तं च कुर्वन्ति 6, रक्षाबन्धन, पहुँची 7. लाख / सम०--प्रतिसरः तेन तच्छाम्यते रजः-- रा०४।८।३४ / सम० ---जुष कलाई पर ताबीज की भाँति बाँधी जाने वाली पहुँची, (वि०) रजोगुण से युक्त, मेयः धूल का बादल, रक्षाबन्धन,--महौषधिः रक्षा करने की श्रेष्ठतम --विधून (वि०) धूल से भूरे रङ्ग का हुआ -युधि औषधि / तुरगरजो विधूम्रविण्वक...' भाग०१।९।३४।। रक्षितकम् [ रक्ष-+क्त, स्वार्थे कन् / सुरक्षा / रणः, णम् [रण + अप्] 1. युद्ध, लड़ाई 2. युद्धक्षेत्र / रघुः सूर्यवंश का एक प्रतापी राजा, दिलीप का पुत्र और सम-अतिथिः युद्ध चाहने वाला अतिथि-इलाध्यः अज का पिता / सम०--उद्वहः रघुवंश में सर्वोत्तम, प्राप्तो रणातिथिः पञ्च० २६१३,-मार्गः युद्धक्षेत्र राम,-कारः 'रघुवंश' नामक काव्य का प्रणेता / में लड़ने की रीति,-पूणायित (वि.) 'रण-रण' शब्द कालिदास। करता हुआ, -रसिक (वि०) लड़ाई का इच्छुक, रहब (म्वा० पर०) जाना / -शूरः, शौण्डः युद्ध कला में प्रवीण / रङ्गः र +घञ्] 1. रंग, वर्ण 2. मंच, क्रीडागार, रण्डाधमिन् (वि०) जो पैंतालीस वर्ष की आयु के पश्चात आमोद का सार्वजनिक स्थान 3. श्रोतृवर्ग 4. रणक्षेत्र | विधुर हो जाता है। For Private and Personal Use Only Page #1332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1323 ) रतोत्सवः कामकेलि श्रृंगार परक क्रीडा। रमणकः [रम्--ल्युट, कन्] एक द्वीप का नाम / रतवपरीत्यम् सम्भोग या मैथुन की प्रक्रिया जिसमें स्त्री | रम्या [रम् + यत्-टाप्] (संगीत०) श्रुति का एक भेद / पुरुष की भाँति आचरण करती है। रवणः [रु+ युच्] 1. ऊँट 2. कोयल 3. मधुमक्खी 4. ध्वनि रतिः [रम्+क्तिन्] 1. हर्ष, आह्लाद 2. आसक्ति, अनु- 1 5. एक बड़ा खीरा। राग 3. यौनसुख 4. संभोग, मैथुन 5. कामदेव को | रवि कामदव का रविः [रु+अच ()] 1. सूर्य 2. पर्वत 3. मदार का पौधा अ न पत्नी 6. चन्द्रमा की छठी कला। सम० खेदः 4. बारह की संख्या। सम० इष्टः नारंगी, संतरा, मैथुन करने से उत्पन्न थकावट, पाशः,-बन्धः मैथुन -ध्वजः दिन,-बिम्ब: सूर्यमंडल,-सारथिः 1. अरुण करने की विशिष्ट रीति,-रहस्यम् कोक्कोक पंडित 2. उषःकाल / द्वारा प्रणीत 'कामशास्त्र',-सुन्दरः एक प्रकार का रशना [ अशक्यच, रशादेशः ] 1. रस्सी 2. लगाम रतिबंध। 3. तगड़ी। सम-पदम् कूल्हा,- पाहः रथवान, रतः (स्त्री) 1. दिव्यनदी, स्वगंगा 2. सत्य से यक्त - मालिन् सूर्य / शब्द या भाषण रतूस्यात् सत्यभाषक: कोश० / रसः [रस्+अच्] 1. (वृक्षों का) रस 2. तरल पदार्थ रत्नम् [रम्+न, तान्तादेशः] 1. रत्न, जवाहर, मूल्यवान् 3. सुरा, पेय 4. चूंट, (दवा की) मात्रा 5. स्वाद, पत्थर 2. कोई भी अमूल्य पदार्थ 3. कोई भी उत्तम रस 6. प्रेम 7. प्रेम, अनुराग 8. हर्ष, आमोद 9.(साहिया श्रेष्ठ वस्तु 4. जल 5 चुम्बक। सम.--अङ्गः त्यिक) रस 10. सत, अर्क 11. वीर्य 12. पारा मूंगा,-अचल: आख्यानों में वर्णित लंका में स्थित 13. विष 14. गन्ने का रस 15. पिघला हुआ मक्खन एक पहाड़,-कुम्भः रत्नों से भरा हुआ घड़ा, कूटः 16. अमृत 17. रसा (शाक भाजी का) 18. हरा एक पहाड़ का नाम, .. गर्भः 1. कुबेर 2. समुद्र, प्याज 19. सोना 20. छ: की संख्या का प्रतीक -गर्भगणपतिः गणपति की एक विशेष मति,-च्छाया 21 रसग्रहण करने का अंग जिह्वा -- भाग०८।२०१२७ रत्नों की कान्ति रत्नच्छायाव्यतिकरमिव प्रेक्ष्यमेतत् 22. पिघली हुई धातु। सम-बः गन्ना,-उत्पत्तिः पुरस्तात् -- मेघ०,-धेनुः रत्नों के ढेर में (दान के (अलं०) 1. रस की निष्पत्ति 2. संजीवन रस की लिए) दी जाने वाली प्रतीकात्मक गाय, पञ्चकम उपज,--धन (वि०) रस से भरा हुआ,-जानम् पाँच रत्न-सोना, चाँदी, मोती, हीरा, और मुंगा, भैषज्यविज्ञान,- तन्मात्रम् रस या स्वाद का सूक्ष्म -- वरम् सोना। तत्त्व,-निवृत्तिः स्वाद का न होना, रसहीनता, रथः [रम्+कथन] 1. गाड़ी, बहली 2. पैर 3. अंग, -भेदः पारे का निर्माण / भाग, 4. शरीर 5. हर्ष, आह्लाद। सम० आरोहः रसना [रस् + युच्] जिह्वा / सम० अग्रम् जिह्वा का जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है, उडुपः,-उडुपम् अग्रभाग,—मूलम् जिह्वा की जड़ / रथ का ढांचा,--घोषः रथ के चलने का घरघर | रसवत्ता रिस--मतप+तल+टाप] कला की परख-सा शब्द,-चारकः शूद्र द्वारा सैरन्ध्री में उत्पन्न पुत्र, रसवता विहता-वासवः / -विज्ञानम्,--विद्या रथ हाँकने की कला। रसातलम् [ष० त०] 1. सात लोकों में से एक, पृथ्वी के रयन्तरम् एक साम का नाम / नीचे का लोक, पाताल 2. लग्न से (जन्मकुंडली में) रथिन् (वि.) [रथ--इनि] 1. रथ में सवार 2. रथ / चौथा घर / का स्वामी,--(पुं० ) 1. क्षत्रिय जाति का पुरुष | रस्या [रस-+यत्+टाप्] एक देवी का नाम / 2. रथ पर बैठ कर युद्ध करने वाला योद्धा। रहस्यत्रयम् विशिष्ट द्वेत शाखा के तीन मुख्य सिद्धान्त रच्या रथ-यत्+टाप] 1 सड़क 2. सड़कों का संगम (ईश्वर, चित् और अचित्) / स्थान 3. बहुत से रथ या गाड़ियाँ। सम०-मुखम रहितात्मन् [ब० स०] जिसके आत्मा न हो (अर्थात् जो किसी सड़क पर प्रविष्ट होने का द्वार,-मुगः गली अपने आत्मा की बात का आदर न करता हो)। का कुत्ता। राक्षसः [रक्षस्+अण] 1. भूत प्रेत, पिशाच 2. हिन्दुओं रचनः [रद्+ ल्युट्] दाँत / में आठ प्रकार के विवाहों में से एक 3. एक संवत्सर रवनम् [रद् + ल्युट्] फाड़ना, कुतरना, खुरचना / का नाम / रन्ता (स्त्री०) गाय / रागः [रज+घञ] 1. प्रज्वलन 2. मिर्चमसाला 3. प्रेम, रन्ध्रम् [रध् + रक्, नुमागमः] 1. छिद्र 2. जन्मकुंडली आवेश, यौनभावना 4. लालिमा / सम०-वर्धमः में लग्न से आठवाँ घर। सम०-गुप्तिः दोषों या एक प्रकार का (संगीत का) माप / अटियों का छिपाना। राघवायणम् रामायण / रभसः [रभ् +असच्] विष, जहर / राघवीयम् राधव की एक रचना, कृति / For Private and Personal Use Only Page #1333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1324 ) राजन् [राज्+कनिन्] सोम का पौधा-ऐन्द्रश्च विधिव- रमणीयता [रम् +अनीय+तल्] सौन्दर्य, चारुता / इत्तो राजा चाभिषुतोऽनघ: ... रा० 1114 / 6 / सम रामण्यकम् सौन्दर्य, मनोज्ञता। - उपसेवा, राजा की सेवा करना,--गुह्यम् ऊँचे / रामा (स्त्री०) एक छन्द का नाम / / जे का रहस्य,-देयम (भागम) राजकीय दावा, राषितम रूणिच+क्ता ध्वनि, स्वन-स्यन्दनेभ्यश्च्यता --पट्टिका (स्त्री०) चातकपक्षी,-पिण्डः राजा से वीरा शहरावितदुर्बलाः .. रा. 7 / 7 / 12 / आजीविका,-प्रसादः राजा का अनुग्रह, महिषी राशिः [अश्- इन धातोरुडागमश्च] 1. ढेर, संग्रह, समुपटरानी, --मार्तण्डः 1. (संगीत०) एक प्रकार को चय 2. संख्या (गणित में) 3. ज्योतिष का घर माप 2. इस नाम का एक ग्रन्थ,--राज्यम कुबेर का जिसमें 21 नक्षत्र समिमलित होते हैं। सम-गत राज्य,--लिङ्गम् एक राजचिह्न, वर्चस् शाही मर्यादा, (वि.) बीजगणित विषयक, --पः ज्योतिष के एक --वल्लभः राजा का प्रिय व्यक्ति, पत्तम राजा का घर का स्वामी, दे० राश्यधिप। आचरण,- स्थानीयः राजा का प्रतिनिधि, वाइसराय।। राष्ट्रकः [राष्ट्र+कनदे० राष्ट्रिक। राजन्य (वि.) [राजन-+यत, राजकीय, शाही, न्यः ! राष्ट्रिक: राष्ट्र+ठक 1. किसी देश का निवासी 2. राज्य क्षत्रिय जाति का पुरुष। सम० बन्धुः क्षत्रिय का शासक 3. राज्यपाल / राज्यम् [राजन् +यत्, नलोप:] 1. राजकीय अधिकार, रासः रास्+घञ] 1. कोलाहल 2. शोर 3. वक्ता 4. एक प्रभसत्ता 2. राजधानी, देश, साम्राज्य 3. प्रशासन | प्रकार का नृत्य 5, शृंखला 6. खेल, नाटक। सम० 4. सरकार। सम.---अधिवेवता राज्य की प्रधानता -केलिः वर्तलाकार नाच जिसमें कृष्ण और गोपिकाएँ करने वाली देवता, अभिभावकदेव, परिक्रिया सम्मिलित होती हैं। प्रशासन, लक्ष्मी:-श्रीः, प्रभुसत्ता की कीर्ति, रासायन (वि.) [रसायन+अण] रसायनसंबंधी / .- स्थितिः सरकार / रासायनिक (वि० [रसायन+ठक] रसायन संबंधी / राजिः -- 1 (स्त्री०) [ राज्-+-इन्, डीप् वा ] 1. पंक्ति रिक्तीक (तना० पर०) 1. रिक्त करना, खाली करना जी52. काली सरसों 3. धारीदार साँप 4. खेत | 2. ले जाना, चुरा लेना 2. चले जाना। 5. ताल जिह्वा, काकल। सम० फला एक प्रकार | रिक्थजातम् (नपुं०) (किसी मृतक व्यक्ति की) समस्त की ककड़ी। ___संपत्ति संपूर्ण आस्ति / राणायनीयः 1. एक आचार्य का नाम 2. वैदिक शाखा का रिष्ट: [रिष्+क्त] तलवार, कृपाण / प्रवर्तक / रीतिः री+क्तिन] नैसगिक संपत्ति, स्वाभाविक गण / रात (वि०) प्रदत्त, अनुदत्त / रुक्म (वि.) [रुच्+मन्, नि० कुत्वम्] 1. उज्ज्वल, रात्रिः,-त्री रा+त्रिप, डीप वा] 1. रात 2. रात का अंघ ___ चमकदार 2. सुनहरी,-मः। स्वर्णाभूषण 2. धतूरा। कार 3. हल्दी 4. ब्रह्मा के चार रूपों में से एक 5. दिन सम-आभ (वि.) सोने की भाँति चमकीला-पात्री रात-मै० स० 851116 पर शा० भा०। सम० सुनहरी तश्तरी, पुल (वि.) 1. स्वर्णशर से युक्त --आगमः रात का आना, . द्विषः सूर्य,-नाथः चन्द्रमा सुनहरी बाण वाला 2. सुनहरी मूठ वाला। -भुजङ्गः--मणिः चन्द्रमा,-सत्रन्यायः मीमांसा का रुचिप्रद (वि.) स्वादिष्ट, भूख लगाने वाला। एक सिद्धान्त जिसके अनुसार अर्थवाद में वर्णित फल , रुचिर (वि०) [रुच्+किरच्] सुहावना, सुखद अथ वासही ग्रहण किया जाता है जब कि विधि में कर्मफल वस्य वचनेन रुचिरवदनस्त्रिलोचनम् .. कि० 12 / 1 / का वर्णन न किया गया हो। सम-अङ्गदः विष्णु का नाम / राषा [राध +अच्+टाप् | 1. वैशाख महीने की पूणिमा रुचिष्य (वि.) [रुच् + किष्यन्] भूखवर्धक, भूख लगाने 2. भक्तिमत्ता। वाला। राम (वि.) [रम् +-घा ण वा] 1. आह्लादमय, सुखद, ! हण्डः [रुण्ड+अच घोड़ी और खच्चर के मेल से उत्पन्न / सुहावना 2. सुन्दर, लावण्यमय 3. श्वेत, मः तीन रुद्र (वि०) [रुद् + रक] 1. भयानक, भयंकर 2. विशाल ख्याति प्राप्त व्यक्ति (क) जमदग्नि का पुत्र परशुराम / -: 1. ग्यारह देवगण, जो शिब का ही अपकृष्ट (ख) वसुदेव का पुत्र बलराम जिसका भाई कृष्ण था रूप है, शिव उनमें मुख्य है 2. अग्नि 3. ग्यारह की (ग) दशरथ और कौशल्या का पुत्र रामचन्द्र, सीता- संख्या 4. यजुर्वेद का सूक्त जिसमें रुद्र को संबोधित राम। सम० काण्डः गन्ने का एक भेद, तापन, किया गया है। सम० प्रयागः एक तीर्थकेन्द्र का .--तापनी, तापनीय उपनिषद् एक उपनिषद् का नाम,-यामलम् एक तन्त्र ग्रन्थ का नाम,--वीणा एक नाम, --लीला उत्तरभारत में नवरात्र के दिनों में / प्रकार की वीणा। 'रामायण' का नाटक के रूप में प्रस्तुतीकरण / रुद्रटः अलंकार शास्त्र के एक लेखक का नाम / For Private and Personal Use Only Page #1334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1325 ) रुवा [रुध+क्त+टाप् ] घेरा डालना। | रेणुकातनयः / [50 त०] परशुराम का विशेषण / खमूत्र (वि०) [ब० स०] मत्रावरोध से रुग्ण व्यक्ति / / रेणुकासुतः / रुधिरः,--रम् [रुप-1-किरच ] 1. लाल रंग 2. मंगल ग्रह | | रेतस् (नपुं०) [री+असुन, तुट् च ] 1. वीर्य, बीज 3. खून, रक्त 4. जाफ़रान / सम० प्लावित (वि.) 2. धारा, प्रवाह 3. प्रजा, सन्तान 4. पारा 5. पाप / खून में भीगा हुआ। सम० सेक: मथुन, सभोग,---स्खलनम, वीर्य का गिर रुरुत्सा [रुध+सन्+टाप, धातोद्वित्वम् ] अवरोव करने जाना। को इच्छा। रेफः 1: 'बरर' शब्द 2. 'र' अक्षर 3. शब्द कण्ठे च रुवयः [ रु+अथः, कित् ] कुत्ता। सामानि समस्तरेफान् --भाग० 8 / 20125 / सम० रूढ (वि.) [ रह+क्त ] 1. चढ़ा हुआ, सवार, लदा | -विपुला एक छन्द का नाम, संधि: 'र' का श्रुति हुआ 2. दूर-दूर तक विख्यात-आसक्ता धूरियं रूढा- मधुर मेल। --कि० 11177 / सम० वंश (वि०) उच्च कूल ! रेवत: [ रेवती+अण् ] 1. बादल 2. पाँचवें मनु का नाम / का,-प्रण (वि०) जिसके घाव भर गये हों। रोक्यम् [ रोक+-यत् रुधिर, खून / रूढि: [ रुह +क्तिन् ] 1 वृद्धि, विकास 2. जन्म 3. निर्णय रोगः [रुज्+घञ | 1. बीमारी, कष्ट 2. रुग्ण स्थान / 4. प्रथा, रिवाज 5. प्रचलित अर्थ / सम० उल्बणता रोगों का फूटना, ज्ञः डाक्टर, रूक्ष (वि०) [रूक्ष+अच् ] 1. कठोर, रूखा 2. तीखा, रोगियों का चिकित्सक,--ज्ञानम् रोग का निदान, चटपटा 3. चिकनाई से रहित (जैसे भोजन)-क्षः -प्रेष्ठ: बुखार,-शमः रोग का दूर हो जाना। 1. वृक्ष 2. कठोरता, रूखापन,-क्षम् 1. दही की | रोचकः [ रुच+ण्वल ] शीशे का काम करने वाला या मोटो तह 2. काली मिर्च / सम० भावः रूखा भाव, कृत्रिम आभूषणों का निर्माता,-रा० 2683 / 13 / अमित्रत्व का रुझान, चालुकम् मघु मक्खियों से | रोषस् (नपुं०) [ रु+असुन् ] 1. तट, किनारा 2. पहाड़ प्राप्त शहद / का ढलान (जैसा कि 'पर्वतरोधस्' में)। रुक्षित (वि०) [ रूक्ष+क्त ] कोपाविष्ट, ऋद्ध। रोपः [ रुह +णिच, हस्य प:, कर्मणि अच् ] 1. रोपण रूप ( चुरा० उभ०) वर्णन करना ... सविस्मयं रूपयतो करना, पौध लगाना 2. स्थापित करना 3. बाण, तीर / नभश्चरान्-~-कि० 8 / 26 / सम० - शिखी बाणों से उत्पन्न अग्नि-० 4187 / रूपम् [ रूप-क, अच् वा ] 1. सूरत, आकृति 2. रंग का | रोपित (वि.) [रुह+णि +क्त ] 1. पौध लगाई हुई भेद (काला, पीला आदि) 3. कोई भी दृश्य पदार्थ 2. जड़ा हुआ रत्न 3. निशाना बांधा हुआ (बाण)। 4. नैसर्गिक स्थिति, प्राकृतिक दशा 5. सिक्का (जैसे रोमन (नपुं०)[रु-+मनिन] 1. शरीर के बाल 2. पक्षियों कि रुपया)। सम० --- उपजीवनम् सुन्दर या मोहक के पंख 3. मछलियों की त्वचा। सम०-सूची बालों रूप के द्वारा जीविका लाभ करना महा० 12 / में लगाने की सूई। २९४१५,-ध्येयम् सौन्दर्य, खूब सूरती--परिकल्पना रोमश (वि.) [ रोमश ] 1. बालों वाला, ऊनी रूप मरना, रूप धारण करना,-भागापवादः किसी | 2. स्वरों के अशुद्ध उच्चारण से युक्त / इकाई को भिन्नों में परिवर्तित करना, विभागः | रोमशी[ रोमश+डीप् ] गिलहरी / किसी पूर्णांक को भिन्न राशियों में विभक्त करना | रोषणता [ रोषण+तल ] क्रोध, गुस्सा / -नृत्यम् एक प्रकार का नाच / / रोहः [ रह+अच् ] 1. ऊँचाई 2. वृद्धि, विकास रूप्यम् [ रूप+यत् ] 1. चाँदी 2. मुद्राङ्कित सिक्का | 3. कली, अंकुर 4. जननात्मक कारण / 3. नेत्रांजन / सम० - धौतम् चाँदी। रोहिणी [ रोह-इनि+डीप ] 1. लाल रंग की गाय रूष (वि.) [रूप+अच ] कड़वा / 2: पांच तारों का पंज-रोहिणी नक्षत्र 3. वसुदेव की रेखामात्रम् (अ०) पंक्ति से भी, रेखा द्वारा भी। पत्नी और बलराम की माँ 4. बिजली 5. एक प्रकार रेणुः (पुं०, स्त्री०) [रीयते णः ] 1. धूल, धूल कण, रेत का इस्पात। सम-तनयः बलराम, योग: रोहिणी 2. फूलों की रज 3. एक विशेष माप-तोल / सम० का चन्द्रमा के साथ संयोग। --उत्पातः घल का उठना,-गर्भ: एक घंटे तक चलने रौद्र (वि०) [ रुद्र+अण् ] 1. रुद्र की भाँति प्रचण्ड वाली बाल की घड़ी। 2. भीषण भयंकर 3. रुद्र विषयक, रुद्र संबंधी। ह र 4. जननात्मक 1. लाल रंग | रोहिणी [ राहारों का पुंज- बिजली देव की रोहिणी For Private and Personal Use Only Page #1335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1326 ) " में से एक / लक्षम् लक्ष+अच] 1. एक लाख 2. चिह्न, निशान | योग-वासिष्ठ का सारसंग्रह, शेखर संगीत की 3. दिखावा, बहाना, धोखा। सम०--अर्चनम् एक एक माप / लाख फूलों के उपहार से पूजा करना,--दीपः मन्दिर लघुक (तना० उभ०) 1. हल्का करना, वोझ घटाना में एक लाख दीपक एक साथ जलाना / "2. छोटा करना, घटाना। लक्षणम् [लक्ष् + ल्युट्] 1. चिह्न, संकेतक, टोकन 2. परि- लम्बी (स्त्री०) [लघु + डोप] छोटी, थोड़ी, कम लध्वी भाषा 3. शरीर पर सौभाग्यशाली चिह्न 4. नाम पुरा वृद्धिमती च पश्चात् / 5. उद्देश्य 6. मैथुनेन्द्रिय। सम०-कर्मन् (नपुं०) लडनी [लङ्गन+की लकड़ी या रस्सी जिस पर कपड़े परिभाषा / सुखाने के लिए लटका दिये जाय / लक्षणा 1. दुर्योधन की पुत्री का नाम 2. तीन शब्दशक्तियों लङ्गिमन् लिङ्ग + इमनिच] 1. सौन्दर्य 2. संघ, एकता। लङ्घनम् [लघु+ ल्युट्] 1. अतिक्रमण 2. उपवास करना लक्षितलक्षणा संकेत द्योतक इंगित, गौण संकेत, एक ऐसा 3. मैथुन, गर्भाधान / संकेत जिससे कोई अन्य संकेत मिले मे० स० 10 // लज्जाकृतिः (स्त्री०) लज्जा का झूठ-मूठ प्रदर्शन / 5 / 58 पर शा० भा०। लतारदः (पुं०) हाथी। लक्ष्मन् (नपुं०) [लक्ष-+-मनिन्] 1. चिह्न 2. धब्बा लब्ध (वि.) [लभ+क्त] 1. प्राप्त, अवाप्त 2. गृहीत 3. परिभाषा 4. मुख्य, प्रधान 5. मोती। 3. प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त, समझा गया 4. (भाग करने लक्ष्मी [लक्ष+ई, मुटु च] 1. दौलत, समृद्धि, धन के फलस्वरूप) प्राप्त, उपलब्ध / सम-- अनुज्ञ 2. सौभाग्य, खुशकिस्मती 3. सौन्दर्य, आभा, कान्ति (वि.) जिसने अनुमति प्राप्त कर ली है, -- तीर्थ 4. धन की देवता। सम-कटाक्षः धन की देवता (वि.) जिसने अवसर से लाभ उठा लिया है, का आशीर्वाद, अनुग्रह, - नारायणः विष्णु का विशेषण, -प्रतिष्ठ (वि०) जिसने कीर्ति प्राप्त कर ली है, - . विवर्तः भाग्य का फेर, * सनाथ (वि०) सौन्दर्य से जिसने अपनी साख जमा ली है, सम्मानित, --प्रसर युक्त, सौभाग्यशाली। (वि.) स्वतंत्रतापूर्वक इधर-उधर घूमने वाला, लक्यम् [लक्ष्+यत्] 1. ध्येय, उद्देश्य 2. चिह्न, टोकन प्रसाद (वि०) अनुग्रह-प्राप्त, प्रिय,-श्रुत (वि.) 3. वह वस्तु जिसकी परिभाषा की गई है 4. गौण विद्वान, संश (वि.) जिसने सुधबुध प्राप्त कर ली अर्थ, अप्रत्यक्ष अर्थ / सम० अभिहरणम् पारितोषिक, है, जो होश में आ गया है। ले उड़ना, ग्रहः निशाना बाँधना,---सिदिः, अपने लम्बदन्ता एक प्रकार की मिर्च। डद्देश्य में सफलता। लम्बरा कम्बल का एक भेद / लग्न (वि.) [लग्+क्तशुभ, मांगलिक,-नम् 1. वह | लम्भा एक प्रकार का बाड़ा, घेर / बिन्दु जहाँ ग्रहपथ मिलते हैं 2. कान्तिवत्त का बिन्द्र लयशुद्ध (वि.) (संगीत०) वह गाना जिसकी लय और जो किसी दत्त काल में क्षितिज या याम्योत्तर रेखा ताल सही हो, जिसमें सामंजस्य हो / पर होता है। सम०-पत्रिका जन्म समय या विवाह ललन्तिका मस्तक के ऊपर पहना जाने वाला एक आभू संस्कार के मुहर्तादिक विवरण से युक्त एक मांगलिक षण झूमर, शृंगारपट्टी-ललन्तिकालसत्फाला-(ललिता - पत्रिका, जन्मपत्रिका, या विवाह पत्रिका। त्रिशती स्तोत्र)। लगणः पलकों का एक विशेष रोग। ललामन् [लल् + इमनिच] 1. आभूषण, अलंकार 2. एक लगुग्हस्तः [ब० स०] दण्डधारी। छन्द का नाम / लघु (वि.) [ल +कु, नलोपः] 1. हल्का 2. छोटा | ललित (वि.) [लल-+-क्त] 1. मनोरम, सुन्दर 2. सुखद' 3. थोड़ा, संक्षिप्त 4. मामूली 5. ओछा, अधम, सुहावना। सम० -प्रियः (संगीत०) एक गान की 6. दुर्बल 7. चुस्त, फुर्तीला 8. दूत 9. आसान 10. मृदु लय या माप,-वनिता सुन्दर स्त्री, विस्तरः बुद्ध 11. सुखद 12. प्रिय, सुन्दर 13. सब प्रकार के भारों के जीवन पर लिखा गया एक ग्रन्थ, -विस्तारः एक से मुक्त -अनोकशायी लघुरल्पप्रचारः-महा० 1 // छन्द का नाम / 915 / सम० --कोष्ठ (वि.) हल्के पेट वाला | ललिता संगीत की एक लय / -कौमुदी व्याकरण की एक पुस्तक,-ताल: संगीत | ललिताम्बिका 1. की माप का एक भेद,-नालिका छोटी नली, | ललितादेवी / -पाक (वि०) आसानी से पचन योग्य,-प्रमाण | ललितासहस्रनामन् ललिता के हजार नाम / (वि.) भाकार प्रकार में छोटा सा * योगवासिष्ठम् | लक ल+अप्] 1. तोड़ना, काटना 2. खेती काटना, For Private and Personal Use Only Page #1336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1327 ) लावनी करना। सम०-इप्सु (वि०) खेती काटने | लिङ्गालिका चुहिया, छोटी मूसी। का इच्छुक / लिपिः [ लिप् + इक ] 1. लेप 2. लेख 3. अक्षर, वर्णमाल। लवङ्गः [लू+अङ्गच्] लौंग का पौधा,-नम् लौंग / 4. बाहरी सूरत / सम० --कर्मन् (नपुं०) आलेख, सम-कालिका लौंग। चित्रण,-संनाहः कलाई पर पहनी जाने वाली पहुंची, लवणः [लू+ल्युट्, पृषो० णत्वम् ] 1. नमकीन स्वाद रक्षाबन्धन / 2. एक राक्षस का नाम 3. एक नरक का नाम, | लिप्तम् [ लिप्+क्त ] 1. लिपा हुआ, सना हुआ, 2. खाया ---णम् 1. नमक 2. कृत्रिम नमक / सम०-पाटलिका | हुआ, 3. बलगम, कफ। सम०-वासित लिपी हुई नमक की थैली,-शाकम नमकीन सब्जी। सुगन्ध से सुगन्धित,--हस्त (वि.) सने हुए हाथों लवणित (वि०) [लवण+इतच ] नमकीन, लवणयुक्त / वाला। लसवंश (वि.) [ब० स०] जिसकी किरणें चमकती है।। लञ्चिलकेश: जिसने अपने बाल छंटवा कर छोटे करा लाक्षारसः महावर या अलक्त का रस-लाक्षारससवर्णाभा- लिए हैं। ललिता त्रिशती स्तोत्र। लुञ्ज (चुरा० उभ०) बोलना, चमकना। लाङ्गलम् [ ल +कलच् पृषो० वृद्धिः ] 1. हल 2. हलकी लुण्ठनम् [ लुण्ठ् + ल्युट्] 1. लूटना 2. विरोध करना, शक्ल का शहतीर 3. ताड़ का वृक्ष 4. वृक्ष से फल बाधा डालना। एकत्र करने का बाँस 5. एक फूल का नाम / लुप् (ब्या० में) लुप्त होना, मिटना, भूलचूक होना। लागला नारियल का पेड़। लुम्बिनी बुद्ध का जन्मस्थान / लाडली केवांच का वृक्ष, गजपीपल-निवृत्तगहसङ्गतिध- लुस्तम् धनुष का किनारा / मत एव तन्व्यास्तवस्तनद्वयमियद्वपुः पथिक जातमुद्यौ- लतातः चींटा, मकौड़ा। वन इतीव वदति स्फुट कुसमहस्तमुद्यम्य सा भ्रमद्- लन (वि०) [लू+क्त ] 1. कटा हुआ 2. तोड़ा हुआ भ्रमरमण्डलक्वणितपेशला लागाली--जानकी० 11 // 3. (फूल आदि) एकत्र किये हुए। सम०-पापः, 95 / ---दुष्कृतः जिसका पापों से छुटकारा हो चुका है, -विष (वि०) जिसकी पंछ में विष लगा हो। लागलविक्षेयः पूछ हिलाना। लेखः [ लिख+घा 11. लेख, लिखित दस्तावेज़ 2. परलाजपेयाः चावल का मांड / मात्मा, देवता 3. खरोंच / सम०-अनुजीविन् लाभः [ लभ+घञ ] 1. गड़ा हुआ धन-मनु० 10 // भगवान् का सेवक, प्रभुः इन्द्र-लब्धं न लेखप्रभु 115 2. फायदा, आय / सम-विद् (वि०) जो / णापि पातुं नै० 221118,- स्खलितम् लिपिकार यह समझता है कि लाभ क्या चीज़ है-लेभे लाभ से की गई अशुद्धि / विदां वरः-रा० च। लेखिका थोड़ा आघात, सहलाना / लालाषः अपस्मार, मिर्गी / लेखित (वि.) [ लिख +णिच्+क्त ] लिखाया गया। लावः लवा नामक पक्षी, बटेर / लेला (केवल करण कारक-लेलया के रूप में प्रयुक्त) लावाणक: एक द्वीप का नाम / कांपना, हिलना। लासनम् पकड़ना, ग्रहण करना-तोमराशलासनैः लेलितकः गंधक। –महा० 7 / 142 / 45 / लग (वि.) [लिङ्ग+ अण् ] शब्द के लिङ्ग से संबंध लासिक (वि०) [लस+ठक् ] नाचने वाला-शि० रखने वाला,--ङ्गम अठारह पुराणों में से एक पुराण 13166 / का नाम / सम०-धूमः अज्ञानी पुरोहित / लिखित (पुं० [लिख+तुच ] चित्रकार / लोक: [ लोक+घा ] 1. संसार, विश्व का एक भाग लिगः / लिग+कुः] 1. हरिण 2. मूर्ख, बुद्धू 3. ऋषि, 2. पृथ्वी, भूलोक 3. मनुष्य जाति 4. प्रजा 5. समूह मुनि। 6. क्षेत्र 7. दृष्टि 8. वास्तविक स्थिति, प्रकाश लिङ्गम् [लिका+अच् ] 1. चिल निशान 2. प्रतीक, -इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकाव विशिष्टता 2. रोग का लक्षण 4. शारीरिक सत्ता रणस्य मोक्षम्--भाग०८।३।२५ 1. विषय, भोग्य -योगेन धृत्युद्यमसत्त्वयुक्तो लिङ्ग व्यपोहेत् कुशलो- वस्तु-उपपत्त्योपलब्धषु लोकेषु च समो भव-महा० ऽहमाख्यम्-भाग० 5 / 5 / 13 / सम० आयताः बीर 12 / 288 / 11 / सम०-अनुग्रहः मनुष्य जाति की शवों का संप्रदाय,--पीठम् "शिवलिङ्ग' मूर्ति जिस पर समृद्धि,-अनुवृत्तम् लोकमत के अनुसार, जनसाधारण विराजमान है वह चौकी,-शास्त्रम् लिङ्ग ज्ञान पर की आज्ञाकारिता,-अभिलक्षित (वि.) जिसे जनता ध्याकरण का एक अन्य। चाहे, जनप्रिय, उपकोशमम् लोगों में दुरी अफ़ लागलचालनम् पंछ हिलाना। For Private and Personal Use Only Page #1337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1328 ) फैलाना- दश० 2 / 2, दम्भक (वि०) समाज ! लोमटकः लोमड़।। को धोखा देने वाला, सामाजिक ठग, धर्मः सांसारिक लोमविष (वि.) [ब. स.] जिसके बालों में जहर भराहो। कर्तव्य, नाथः सूर्य,--परोक्ष (वि.) संसार से लोमशकर्णः बिल में रहने वाले जन्तुओं की एक जाति / छिपा हुआ, - प्रत्ययः सबका विश्वास, विश्व का | लोलकर्ण (वि०) प्रत्येक की सुनने वाला। प्राबल्य,-- भर्तु (वि.) जनसाधारण का पालक पोषक, | लोलम्बः भौंरा, भ्रमर / - यज्ञः संसार के प्रति भला रहने की इच्छा लोकै- | लोष्टगुटिका मिट्टी की गोलो। षणा-महा० 10 / 18 / 5 पर शा० भा०,-रावण लोष्टायते (ना०० धा० आ०) ढेले के समान समझना। (वि०) संसार को कष्ट देने वाला-रा० 3 / 33 / 1, / लोहः [लूयतेऽनेन-ल+ह ] 1. लोहा 2. इस्पात 3. तांबा ----वर्तनम् लोकव्यवहार जिससे संसार की स्थिति 4. सोना 5. अगर की लकड़ी। सम--अग्रम् लोहे बनी रहे,-विरुद्ध (वि.) लोकमत के विपरीत, की नोक, उच्छिष्टम् -उत्थम् - किट्टम् --मलम् लोहे --विसर्गः 1. संसार का अन्त 2. गौण सृष्टि, का जंग, - कुम्भी लोहे की घड़िया,-चर्मवत् धातु की -संबाषः जनसमुदाय,-सुन्दर (वि०) जिर तश्तरी से ढका हुआ मात्रः बर्थी। सौन्दर्य की सब लोग प्रशंसा करें। | लोहित (वि०) [रुह+इतन्, रस्य ल:] 1. आँख की लोकसात् (अ०) लोगों की भलाई के लिए। पलकों का एक रोग 2. एक प्रकार का मूल्यवान् लोचनम् [लोच+ल्युट ] 1. दर्शन, दष्टि, ईक्षण 2. आँख। | पत्थर, रत्न। सम०-अञ्चल: आंख की कोर,- आपातः झांकी, | लोह्यम् पीतल / / -आवरणम पलक,-परुष (वि०) देखने में विकराल। लौकिक (वि.) [लोक+ठक 11. सांसारिक 2. सामान्य लोभः [ लुभ+घा] 1. लालच, लालसा 2. इच्छा, 3. दैनिक जीवन संबंधी। सम०--अग्निः सामान्य प्रबल चाह 3. विस्मय, घबराहट, उलझन / सम. आग जो यज्ञ कार्यों में प्रयुक्त न होती हो,--न्यायः -अभिपातिन् (वि.) जो लालसा के कारण भागता सामान्यतः माना हुआ न्याय / है,-मोहित (वि.) लालच से अन्धा / / लोहशास्त्रम् धातुविज्ञान, धातुशोधन विद्या / बंशः[वम् +21. संगीत का एक विशेष स्वर 2. बाँस ... आख्यम् टीन, जस्त,-इतर (वि०) सीधा, 3. अहंकार, अभिमान 4. कुल। सम०--कर्मन् बाँस कोल: अङकुश,-गुल्फः ऊँट,-तालम् एक विशेष की दस्तकारी,--- कृत्यम् बंसरी बजाना, घरः वातोपकरण, रेखा टेढ़ी लाइन / किसी कुल में उत्पन्न,-पत्रपतितम् सत्रह मात्राओं बङ्गेरिका, चंगेरी, बाँस आदि की बनी टोकरी। का एक छन्द,-पात्रम् बांस की बनी टोकरी, --बाह्यः कुल से निष्कासित,-ब्राह्मणम् सामवेद वचनम् [वच् + ल्युट ] 1. बोलने की क्रिया 2. वक्तता ब्राह्मण का मूल पाठ, लून (वि.) संसार में अकेला 3. पाठ करना 4. उपदेश, धार्मिक पुस्तक का अंश - वनम् बाँसों का जंगल, वर्षनः पुत्र,-विस्तरः 5. आज्ञा, आदेश 6. परामरी, अनुदेश। सम. वंशावलो-स्थविलम् एक छन्द का नाम / अवक्षेपः अपशब्दों से युक्त बात, उपन्यास: सुझाबंश्यः बन्धुः, संबंधी, अपने कुल का। वात्मक वक्तृता, क्रिया आज्ञाकारिता, गोचर वक्तुकाम (वि.) बोलने की इच्छा वाला, (वि०) बात चीत का विषय बनाने वाला, गौरवम् वक्तुमनस् (वि.) बोलने का इच्छुक / शब्दों का आदर करना-पितुर्वचनगौरवात्-रा. वस्तुप्रयोक्त (वि.) सिद्धान्तिक और प्रायोगिक (राज- १,-व्यक्तिः किसी उक्ति की यथार्थ सार्थकता / नीतिश)। / बचोहरः दूत, रालची। वक (वि.) [वक+रन् पृषो० नलोपः] 1. टेढा, मुड़ा ववस्विन् (वि०) वाक्पटु, बोलने में चतुर-इतीरिते हुमा 2. गोलमोल, अप्रत्यक्ष 3. धुंधराले 4. बेईमान, वचसि वचस्विनामुना-शि० 171 / / कपटी, जालसाज,*:-1. मंगलग्रह 2. शनिग्रह, जम् उक्तवर्बम् (10) सिवाय उसके जो कह दिया है। 1. (ग्रह की) टेढ़ी बाल 2. नदी का मोड़। सम० ' उक्तिः [वच्+क्तिन् ] 1. न्याय, कहावत 2. वाक्य For Private and Personal Use Only Page #1338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1329 ) 3. वक्तृता, वक्तव्य, अभिव्यक्ति 3. शब्द की वाक्य / वनम् [वन्+अच्] 1. जंगल 2. वृक्षों का झुंड 3. पर शक्ति / 4. फव्वारा 5. जल 6. लकड़ी का पात्र 7. प्रकाश मनः [ वज्+रन् ] 1. बिजली, इन्द्र का शस्त्र 2. रत्न की किरण 8. पर्वत / सम-आश (वि.) केवल की सूई 3. रत्न, जवाहर 4. एक प्रकार का कुश जल पीकर जीने वाला, उपल: गोवर के उपल, पास 5. एक प्रकार का सैन्य व्यह। सम० अंशुकम् गोहे, ओषधिः जंगली जड़ी बूटी,-भषणी कोयल, घारी दार कपड़ा,- अङ्कित (वि.) 'वज्रायुध के .- हासः काश नाम का घास / चिह्न से मुद्रित,-आकार (वि०), आकृति (वि.) वन्दनकम् सम्मानपूर्ण अभिवादन / वज की शक्ल वाला-कोट: एक प्रकार का कीड़ा, | वन्य (वि.) [वन+यत् ] 1. जंगली 2. लकड़ी का --पञ्जरः सुरक्षित आश्रयगृह,--मुखः 1. एक प्रकार बना हुआ, - न्यः (पुं०) बन्दर-जघ्नुर्वन्याश्च का कीड़ा 2. एक प्रकार की समाधि / नेताः -रा० 31287 / 29 / सम०-वृत्ति (वि.) वनकम् [वज+कन् ] हीरा, जवाहर / जंगली उपज पर ही रहने वाला। बटः [वट् + अच्] 1. बड़ का पेड़ 2. गंधक 3. शतरंज | वपनम् [वप् + ल्युट ] 1. बीज बोना 2. हजामत करना की गोट / सम० बलः,-पत्रम्,-पुटम् बड़ का 3. वीर्य 4. क्षुर, उस्तरा 5. करीने से रखना, व्यवस्थित पता। करना। वडवा [बल+वा+क+टाप] 1. घोड़ी 2. एक नक्षत्र- बपा [वप्+अच्+टाप्] 1. चर्बी 2. बिल, विवर पंज जिसे 'घोड़ी के सिर' के प्रतीक से व्यक्त किया 3. दीमकों द्वारा बनी नमी 4. उभरी हुई मांसल जाता है। नाभि। बणिज् (पुं०) [ पण् + इजि, पस्य वः] 1. व्यापारी, वपुष्मत् (वि.) [वपुस्+मत् ] 1. शरीर धारी 2.हृष्ट सौदागर 2. तुला राशि / सम० कटकः काफला, पुष्ट 3. क्षतविक्षत, खण्डित / -वहः ऊंट, वीथी बाजार। वप्रः-प्रम् [वप्नरन् ] 1. फसील, परिवार, परकोटा बत [ 'मतप'] अधिकरण अर्थ में तथा 'योग्य' अर्थ में 2. ढलान 3. समुच्चय 4. भवन की नींव / वप्रा वाटिका की क्यारी। पर शा० भा०। वमथुः [बम् + अथच् ] खांसी। वतु (अ०) विस्मयादि द्योतक अव्यय / 'सुनो' 'बस' वमनः [वम् + ल्युट् ] 1. रूई का छीजन 2. सन, सूतली, 'चुप' अर्थ को प्रकट करता है। पटआ। वत्सः [ वद्+सः] 1. बछड़ा 2. लड़का, पुत्र 3. सन्तान, / वयोबाल (वि०) अवयस्क वालक, थोड़ी आयु का बच्चा 4. वर्ष, 5. एक देश का नाम / सम०-अनु बालक / सारिणी लघु और दीर्घ मात्रा का मध्यवर्ती क्रम भंग | वयनम् [ वय+वनन् ] (वेद०) कर्म, कार्य-विश्वानि देव या अन्तर, पदम् तीर्थ, घाट, उतार। वयुनानि विद्वान्—ईश० 18 / / वत्सायितः [वत्स+क्यच+णिच+क्त ] बछड़े के रूप वर (वि.) [+अप] उत्तम, श्रेष्ठ, बडिया, अनमोल, में संवर्तित - वत्सायितस्त्वमथ गोपमणायितस्त्वम् --र: 1. वरदान 2. उपहार, पारितोषिक 3. इच्छा -नारा। 4. प्रार्थना 5. दान 6. दूल्हा 7. जामाता। सम० यवनम् [वद्+ल्यूट ] 1. चेहरा 2. मुख 3. सूरत अरणिः माता-रा० 7 / 23 / 22, -आवहः बैल, 4. सामने का पक्ष 5. पहेली राशि 6 त्रिकोण का -इन्द्री पुराना गौड देश,-प्रेषणम् विवाह संस्कार शिखर / सम० आमोदमविरा मुख में मधुरगंध से का एक भाग जिसके अनुसार दुल्हे के मित्र किसी युक्त सुरा,---उदरम् जवड़ा, -- पङ्कजम् मुखारविन्द, विशेष परिवार में दुलहन की खोज के लिए जाते हैं कमल जैसा मुख,-पवनः श्वास, सांस / --पुरुषाः श्रेष्ठजन, लक्षणम् विवाह में संस्कार बधः [हन्-+अप, वधादेशः ] 1. भग्नाशा 2. (बीज० में) को बातें। गुणनफल 3. हत्या, कतल / सम० राशिः जन्माङ्ग वरासिः [ब० स० ] खड्गधारी, तलवार रखने वाला। में छठा घर / वराहपुराणम् अठारह पुराणों में से एक / वधिकः, कम् कस्तूरी, मुश्क / वरिवसित (वि.) [वृ+असुन्व रिवस्+तृच ] पूजा वधुकाल: वह समय जब कि कन्या दुलहिन बनती है। करने वाला-न तच्चित्र तस्मिन् वरिवसितरि वधूवरम् नवविवाहित दम्पति / -शिव० वध्यवासस् [प० त०] लालरंग के वस्त्र जो प्राणदण्ड | वरिवस्यति (ना० धा० पर०) अनुग्रह करना, कृपा प्राप्त पुरुष को फांसी देने के समय पहिनाये जाते हैं। / करना / For Private and Personal Use Only Page #1339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1330 ) पदणात्मजः [ष० त०] जमदग्नि ऋषि का नाम / वर्धमानः [वध+शानच] 1. जैनियों का 24 वा तीर्थंकर बरेण्यः गणेशमाहात्म्य में वर्णित एक राजा का नाम / / 2. पूर्व दिशा का दिकपाल हाधी। सम० - गृहम् बर्गाष्टकम् [ष० त०] व्यंजनों के आठ समूह / आमोद घर रा०२।१७।१८ / बगोत्तमम् 1. अनुनासिक वर्ण 2. ज्योतिष में किसी ग्रह | वर्धमानकः [वर्धमान-कन हाथों में दीपक लेकर नाचने विशेष की उच्चता को प्रकट करने वाला शब्द / वालों की मण्डली। वर्गीकृत (वि०) | वर्ग+च्चि++क्त श्रेणियों में वर्धापनिकम् 1. बधाई 2. बधाई के चिह्नस्वरूप उपहार / विभक्त जिसके समुदाय बने हुए हों। वर्धापिका परिचारिका, नर्स / वर्णः[वर्ण+अच् ] 1. रंग 2. सूरत, शक्ल 3. मनुष्यों वर्मः हर्णिया रोग / की जाति 4. अक्षर, ध्वनि 5. शब्द, मात्रा 6. यश | वर्षः विष्+घञ] 1. वर्षा होना 2. छिड़काव 3. वर्ष 7. प्रशंसा 8. चोंगा 9. गीतक्रम। सम० - अनुप्रासः (केवल नपुं० में) 4. महाद्वीप 5. बादल 6. दिन अक्षरों का अनुप्रास अलंकार,-अन्तरम् 1. भिन्न जाति -रा० 717315 पर टीका 7. वासस्थान / सम० 2. स्थानापन्न अक्षर,-अवकृष्टः शूद्र---अवर ----- काल: बरसात की ऋतु, गणः वर्षों की लम्बी (वि.) जाति की दृष्टि से अधम. ओछा,-तर्णकम् शृंखला,--पदम् पत्रा, कलेण्डर, रात्र: बरसा का ऊनी कालीन,--परिचयः संगीत में दक्षता, भेदिनी मौसम। मोटा अनाज, (बाजरा, कोदों), विक्रिया 1. अक्षरों वर्षा [ वर्ष +अ+टाप् ] (स्त्रीलिंग ब० व० प्रयुक्त) में परिवर्तन 2. जाति में परिवर्तन / बरसात, वर्षा ऋतु / सम० -अघोषः बड़ा मेंढक, वर्णकः [वर्ण+पवुल ] 1. वक्ता, वर्णन करने वाला ---भू (पुं०) 1. मेंढक 2. इन्द्रवधू नामक कीड़ा 2. आदर्श, नमूना। वीरबहूटी, मदः मोर। वणिः [वर्ण+इन् ] 1. सोना 2. सुगन्ध / वर्षीयस (वि०) [ वृद्ध+ ईयसुन्, वर्षादेशः ] बहुत बूढ़ा वर्तनम् [वृत्+ल्युट् ] 1. होना, रहना 2. ठहरना, बसना ___ या पुराना। 3. कर्म, गति 4. जीविका 5. जीवित रहने का साधन | वर्षीयस् (वि.) [ वृष- ईयसुन् ] बौछार करने वाला, 6. आचरण, व्यवहार 7. मजदूरी, वेतन 8. तकवा ----तपः कृशा देवमीढा आसीद्वर्षीयसी मही- भाग० 9. जिससे रंगा जाय - निहितमलक्तवर्तनाभिताम्रम् 1012017 / --कि० 10142 10. बार बार दोहराया गया। वर्मवीर्यम् [10 त०] शरीर का बल / शब्द 11. काढ़ा बनाना। सम-विनियोगः मजदूरी | वलना [वल + युच् ] घुमाव, फिराव / बांटना। वलितम् [ वल् + क्त ] काली मिर्च। वर्तमानम् [वृत्+शानच् ] विद्यमान काल, मौजूदा समय / वलजः अन्न का संग्रह- कर्षकेण वलजान् पुपूषता --शि० सम-आक्षेपः वर्तमान का विरोध,-कालः मौजूदा 147 / समय। बलम्बः [ अव+लम्ब्+अच्, भागुरिमते अकारलोपः ] वतिः [ वृत्+इन् ] अस्थिभङ्ग के कारक सूजन / लम्ब रेखा। बतिका [वृत्+तिकन् ] यष्टिका, लाठी---पलाशवर्तिकामे- | वलभिनिवेशः [ स० त० ] ऊपर का कमरा। का वहतः संहतान् पथि . महा० 11338 / वलयम् [वल+अयन् ] समुदाय।। बर्तित [वत्+क्त ] 1. मुड़ा हुआ, लुढ़का हुआ 2. उत्पादित | बलि: [वल-+इन् ] 1. तह, झुरी (खाल पर) 2. पेट के निष्पन्न 4. खर्च किया हुआ, बीता हुआ। ऊपर के भाग में तह 3. चौरी की मुठ - रत्नच्छायापतिन् (वि.) [वृत्+णिनि ] आज्ञा मानने वाला। खचितवलिभिश्चामरैः क्लान्तहस्ता मेघ० 37 / वर्मन् (नपुं०) [वृत्+मनिन् ] 1. पथ, मार्ग, रास्ता सम-पलितम् झुर्रियाँ और सफ़ेद बाल (जो बुढ़ापे 2. कमरा,कक्ष 3. पलक 4. किनारा। सम० का चिह्न है), -शान: बादल--नेष. 1 / 10 / -मायासः यात्रा के परिणामस्वरूप थकान / Jबल्कः [ वल+क] 1. वृक्ष की छाल, वक्कल. 2. मछली -पातनम् ताक में रहना, ताड़ में रखना। की खाल 3. वस्त्र / सम० - फलः अनार का पेड़, बस्य॑त् (वि.) [वृत+स्य+शतृ ] होने वाला, प्रगति / वासस् (नपुं०) बक्कल की बनी हुई पोशाक / करने के लिए तत्पर / | बल्कलिन् (वि.) [ वल्कल+णिनि ] 1. वल्कल देने , वर्षम[वर्ष +अच] चमडे का तस्मा या फीता। वाला (वृक्ष) 2. वल्कल से आच्छादित / वर्षको वेश्या, व्यभिचारिणी स्त्री। वल्गकः [ वल्ग+अच्, स्वार्थे कन् ] कूदने वाला, नाचने वर्षनक (वि०) [वृष् +णिच्+ल्युट्, स्वार्थे कन्] आह्लाद- वाला / कर, हर्षप्रद, आनन्ददायक / | वल्मीकः [ वल् +ईक, मुटु च ] 1. बमी, दीमकों से For Private and Personal Use Only Page #1340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1331 ) बनाया गया मिट्टी का ढेर 2. शरीर के कुछ भागों में | वस्यस् (वि०) 1. अत्युत्तम 2. अपेक्षाकृत धनवान्, सूजन 3. वाल्मीकि महाकवि / सम०-जः,-जन्मा | 3.श्रे यान्, अधिक समृद्ध(वेद०) -- श्रेयान् वस्यसोऽसानि ऋषि वाल्मीकि का विशेषण,-भौमम -राशिः बमी। / स्वाहा - ते० उ० / वल्लभगणिः कोशकार। वहा [ वह +अच् +टाप् ] नदी, दरिया। बल्लभजन: स्वामिनी, प्रिया। वहनभङ्गः [ष० त०] जहाज़ का टूट जाना। बायशः शाखा, टहनी --अब्यक्तमूलं भुवनाङ्ग्रिपेन्द्रमहीन्द्र- वहित्रम् [ वह + इत्र ] 1. किश्ती, पोत 2. चौकोर रथ, भोगैरविवीतवत्शम्---भाग० 38 / 29 / वर्गाकार या चतुष्कोण रथ / वशालोभः पालतु हथिनी को उपयोग में लाकर जंगली ह्रः [ बह+नि ] 1. अग्नि 2. जठराग्नि 3. पाचक हाथी को पकड़ने की रीति मात० 1017 / अग्नि 4. सवारी 5. यजमान 6. भारवाही जन्तु 7. तीन वशीकृत (वि०.) [बरा-च्चि+-+ क्त ] 1. अभिभूत की संख्या। सम०-- उत्पातः अग्निमय उल्का,-कोणः 2. वश में किया हुआ। दक्षिणपूर्वी दिशा-कोपः, दावाग्नि, पतनम स्वयं वशीभूत (वि०) [ वश+च्चि-+-भू-क्त ] आज्ञाकारी, अग्नि की चिता में बैठ कर आत्माहति करना-धीजम वश में हुआ। सोना,-मारकम् पानी, जल, शेखरम केसर, कुंकुम, वश्यम् [वश+ यत् ] 1. जो वश में किया जा सके जाफरान, संस्कारः दाहसंस्कार, अन्त्येष्टि क्रिया, 2. लौंग। ----साक्षिकम् अग्नि का साक्षी करके / वशना [ वश् +-युच्---टाप् ] एक प्रकार का कंठाभूषण, वह्निसात्कृ आग लगा देना, अग्नि में जला देना। हार। वा (म्वा० अदा० पर०) सूंघना / वषट्कृत (वि०) अग्नि में उपहृत-प्राज्यमाज्यमसकृद्वष-वाकोपवाकम् दो व्यक्तियों की बातचीत, वक्तृता और टुकृतम् शि० 14 / 25 / उत्तर / वसनम् [ वस्--ल्य] 1. घेरा 2. दालचीनी के वक्ष का वाकोवाक्यम् तर्क शास्त्र, न्यायशास्त्र / पत्ता 3. तगड़ी (स्त्रियों का एक आभूषण) 4. रहना, वाक्यम् [वच्+ण्यत्, चस्य कः ] 1. बक्तव्य 2. उक्ति निवास करना / सम०--सद्मन् तम्बू, टैंट / 3. आदेश 4. सगाई। सम०-आडम्बरः बड़े-बड़े वसन्तदूती कोयल। शब्दों से युक्त भाषा,-ग्रहः जिह्वा में लकवे का होना, वसामेहः [ष० त०] एक प्रकार का मधुमेह / -परिसमाप्तिः (स्त्री०) वक्तव्य की संपूर्ति,-विलेखः वसुः [ वस्+उन् ] 1. घी, घृत (जैसा कि 'वसोर्धारा' लेखाधिकारी, हिसाब-किताब रखने वाला अधिकारी, में), 2. धन, दौलत, रत्न, जवाहर 3. सोना 4. जल। .... सारथिः अधिवक्ता, किसी की ओर से बोलने सम० उत्तमः भीष्म,----धारिणी घरा, पृथ्वी, पालः ! वाला। राजा, भम् धनिष्ठा नक्षत्र, - रोचिस् अग्नि / वाग्मिन (वि.) [वाच+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः] बसोर्धारा रुद्र के निमित्त किए जाने वाले यज्ञ के अन्त में 1 वाकपट 2. शब्दों से पूर्ण (पुं०) 1. वक्ता, बोलने उपहृत हदि की अनवरत धारा।। वाला 2. बृहस्पति 3. विष्णु 4. तोता।। वस्तिः (पुं०, स्त्री०) [वस्-+ति: ] 1. बसना, रहना | वाच (स्त्री०) [वच+क्विप, दीर्घः ] 1. वाणी की देवता 2. मूत्राशय 3. श्रोणि, पेडू / सम०-- कर्मन् (नपुं०) सरस्वती। सम०-- अपेत (वि.) गंगा,-आम्भ्रणी अनीमा करना, कोशः मूत्राशय,-बिलम् मूत्राशय 1. सरस्वती के प्रसाद को प्राप्त कराने वाले ऋग का विवर, छिद्र, रन्ध्र। मन्त्रों का समूह 2. एक वैदिक ऋषि का नाम, वस्तु (नपुं०) [ वस् + तुन् ] 1. वास्तविकता 2. चीज -- उत्तरम् वक्तव्य की समाप्ति या उपसंहार,--केलि, 3. धन-धान्य 4. सामग्री (जिससे कोई वस्तु बनाई –केली बुद्धि की चतुराई के युक्त वार्तालाप,-गुम्फः जाय 5. अभिकल्पना, योजना। सम० ...क्षणात् कोरी बातचीत,-जीवनः विदूषक, ठिठोलिया,-निमि(अ०) ठीक समय पर, तन्त्र (वि०) वस्तुनिष्ठ, तम किसी उक्ति से प्रबोधन या चेतावनी-तच्चाकर्ण्य विषयपरक, निर्देशः 1. विषय सूची 2. एक प्रकार वाङनिमित्तज्ञः पितरि सुतरां जीविताशां शिथिलीचकार की नान्दी,-पुरुषः नायक---अथवा सद्वस्तु पुरुष बहु- ---हर्ष० ५,-पयः वाणी का परास,-पाटवम् वाणी मानात् - विक्रम० ११२,--भावः वास्तविकता,- भूत की चतुराई, पारोणः अभिव्यक्ति के परास को पार (वि०) सारयुक्त, तथ्यपूर्ण, यथार्थ,-विनिमयः कर जाने वाला व्यक्ति, वाणी में पारङ्गत, --भटः अदल-बदल का व्यापार, ·-शक्तिस् (अ०) परि- (वाग्भटः) 1. आयुर्वेद विषय का प्रसिद्ध लेखक स्थितियों के कारण,--- शन्य (वि.) अवास्तविक, 2. अलंकार शास्त्र का एक प्रणेता, विद् (वि.) -स्थिति वास्तविकता / तर्क और युक्तियाँ देने में प्रवीण,-विनिःसत उक्तियों For Private and Personal Use Only Page #1341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1332 ) के द्वारा प्रस्तुत,–विस्तरः वाग्विस्तार, वाक्प्रपंच, वादनक्षत्रमाला मीमांसकों के आक्रमण का उत्तर देने बहभाषिता, सन्तक्षणम् सोपालंभ उक्ति, व्यंग्यवाक्य, वाला वेदान्त का ग्रन्थ / -साः शतरंजी वक्तृता, बहुविध भाषण, स्तब्ध / वावित्रम् [वद्+णित्रन बाद्ययन्त्र, संगीत का उपकरण / (वि) जिसकी बाणी रुक गई है, जो बोल नहीं सकता। सम.. लगडः ढोलक बजाने की लकड़ी। वाचयित (वि.) [वच्+णिच्+तृच ] जो सस्वर पाठ वायकम् [वाद्य-कन् संगीत का उपकरण / की व्यवस्था करता है। वाद्गलम् होठ। पाचस्पतिः [षष्ठी अलुक समास ] 1. वाणी का स्वामी वाधलम तैत्तिरीय शाखा का श्रौतसूत्र / 2. वेद-महा० 14 / 21 / 9 3. एक कोशकार वानचित्रम् विविध रंग का कम्बल। का नाम / वानदण्ड: जुलाहे को खड्डी। बाचस्पतिमिश्रः तन्त्रवार्तिक के प्रणेता का नाम / वान्त (वि.) [वम् + क्त] 1. उगला हुआ, थूका हुआ बाच्य (वि.) [वच्+ण्यत्] 1. कहे जाने योग्य 2. अभिवा / 2. उदमन किया हुआ 3. गिराया हुआ। सम० द्वारा प्रकट अर्थ 3. निन्दनीय / सम० लिङ्ग * प्रदः कुत्ता,--आशिन् (पुं०) 1. राक्षस जो विष्ठा (वि.) विशेषणपरक,-- वजितम् कूटोक्ति, अभिघा पर निर्वाह करता है 2. वह व्यक्ति जो भोजन के शक्ति के द्वारा दुर्बोध उक्ति, -वाचकभावः शब्द और लिए अपना गोत्र या वंशावली का उद्धरण देता है, अर्थ की स्थिति। -- वृष्टि (वि०) वह बादल जो पानी बरसा चुका बाजित (वि०) [ वाज+इतच् ] पंखयुक्त (जैसे कि है मेघ० / बाण)। वापी विप्न-इन , ङीप्] बावड़ी, बड़ा कुआँ। सम० बाजिन् (वि०) [वाज+इनि] 1. पक्षी प्राणिवाजिनिषे- -- जलम् सरोवर का पानी। विताम-महा० 7 / 14 / 16 2. सात की संख्या। वाम (वि.) [ वम्+ण अथवा वा+मन् ] 1. बांवा सम-गन्धः एक वृक्ष का नाम,-विष्ठा बड़ का 2. उल्टा, विपरीत, विरोधी 3. क्रूर, कठोर 4. दुष्ट वृक्ष, गूलर। 5. मनोरम,-मः 1. कामदेव 2. सांप 3. छाती, ऐन, बाट (वि०) [वट+अण् ] बड़ का वृक्ष / -- टः (पुं०) औड़ी 4. निषिद्ध कार्य ( जैसे सुरापान ), मम् जिला। सम०. शृङ्खला बाड़। 1. संपत्ति, दौलत 2. दुर्भाग्य, विपत्ति 3. कमनीय बारबहरणम् सांड़ घोड़े को दिया जाने वाला चारा। वस्तु। सम० अङ्गी (स्त्री०) सुन्दर स्त्री, कामिनी, बाग्वहारकः समुद्री दानव / -इतर (वि०) दायां,--कुक्षिः बाई कोख,-नयना बाणः [वण्+घञ ] ध्वनन-वाणणिः समासक्तम् (स्त्री०) मनोहर आँखों वाली स्त्री, स्वभाव (वि०) -कि० 15 / 10 / सम०-शब्दः बंसरी की आवाज / उत्तम चरित्रयुक्त व्यक्ति-निरीक्ष्य कृष्णापकृतं वात (वि.) [वा+क्त] 1. हवा से उड़ाया हुआ गुरोस्सुतं वामस्वभावा कृपया ननाम च.-भाग० 2. इच्छित, अभिलषित,-तः 1. वायु 2. वायु की १७।४२,-हस्तः बकरी के गले का निरर्थक स्तन / अधिष्ठात्री देवता 3. शरीर के तीन दोषों में से एक वामदेव्यम् साममंत्र समह जिसका नाम उसके प्रवर्तक 4. गठिया 5. जोड़ों की सूजन 6. वायु सरना, शरीर / ऋषि वामदेव के नाम पर पड़ गया। से वायु का निकलना। सम०- अदः बदाम का पेड़, वामनीकृत (वि.) [वामन+च्चि++क्त] बौना बना - अशनः साँप-वाताशनोहमिति किं विनतासुतस्य हुआ, कद में छोटा बनाया हुआ। श्वासानिलाय भुजगः स्पृहयालुतालु:--रा० च० 5, वायसविद्या शकुन की विद्या जो कौवों के निरीक्षण से -आख्यम् ऐसा भवन जिसमें दो कमरे हों एक का | जानी जाती है। मुंह दक्षिण की ओर दूसरे का पूर्व की ओर,-आहार | वायुकुम्भः हाथी के चेहरे का एक भाग-मात० 101 / (वि.) जो वाय के ही पहारे जीवित रहता है, शोभः | वायुभक्षः 1. जो वाय खाकर जीवित रहता है 2. सांप / शरीर में वायप्रकोप के कारण हुआ रोग चकम् | वायुस्कन्धः वायुप्रदेश / परकार से गोलाकार चिह्न लगाना पट: जहाज का | वार्घटीयन्त्रम् रहट, पानी निकालने का यन्त्र / पाल, पुरोशः केरल में गुरुवयूर नामक स्थान पर | वार्धनी पानी की सुराही। देवता, रथः बादल, सञ्चारः सूखी खांसी। वारण (वि.) [व+णिच् + ल्युट] हटाने वाली,-णम् बातन्पम (वि.) [द्वितीया अलुक] फूंक मारने वाला। 1. हटाना, रोकना 2. विघ्न, बाधा 3. दरवाजा, बातासह (वि.) गठिया रोग से ग्रस्त / किवाड़,--णः 1. हाथी 2. कवच 3. हाथी की संड पातिक (वि०) [वात+ठक] 1. मोटापा या बादी से 4. अंकुश। सम० - कृच्छः एक व्रत का नाम, अस्त 2. खुशामदी 3. बाजीगर 4. चातक पक्षी। / -पुष्पः पौधे की एक जाति / For Private and Personal Use Only Page #1342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दल। ( 1333 ) बाराशिः [वार+राशि:] समुद्र। निमित्त नियत भूमिखण्ड 2. आवास 3. सभाभवन वारि (नपुं०)[व+इश] 1. पानी 2. तरल या पिघला सम-कर्मन् (नपुं०) 1. भवन निर्माण करना, हुआ या बहने वाला पदार्थ / सम-कटः गांव के भवन निर्माण का प्रारूप, ज्ञानम वास्तु कला, भवन चारों ओर की खाई, परिखा, पिण्डः चट्टान का निर्माण का प्रारूप या अभिकल्प, देवता भवन की मेंढक,-भवः शंख, साम्यम् दूध / अधिष्ठात्री देवता,- विद्या स्थापत्य कला, भवन. वारणी [वरुण-+ अण] शराब का विशेष प्रकार, वारुणीं निर्माण विज्ञान,-निधानम, भवन संरचना,। मदिरां पीत्वा--भाग० 1 / 15 / 23 / | वास्तुक (वि.) यज्ञ भूमि पर अवशिष्ट रही सामग्री वास्त: 1. समुद्रतट, समुद्रवेला 2. अग्नि 3. किवाड़ का - उवाचोत्तरतोऽभ्येत्य ममेदं वास्तुकं वसु-भाग० 9 / 4 / 6 / वार्तानुकर्षकः / वात्रः दिवस, दिन। वार्तायनः / 81. चर 2. दूत 3. वृत्तवाहक / वाहः [वह घश ] 1. ले जाने वाला 2..कूली 3. भारवार्ताकर्मन् (नपुं०) खेती और मुर्गी पालन का व्यवसाय / वाहक 4. घोड़ा 5. बैल 6. मैसा 7. सवारी / सम. वार्तापतिः नियोजक, काम देने वाला, स्वामी। . वारः घुड़सवार, रिपुः भैसा, वाहः रपवान, वानीन्यायः मीमांसा का एक नियम जिसके अनुसार रथ को होकने वाला-स्ववाहवाहोचितवेषपेशल: विवरण यदि मुख्य सामग्री के साथ उपयुक्त न लगे -0 1166, वाहनम् चप्पू - रा० 2052 / 6, तो उसे सहायक सामग्री के साथ जोड़ दिया जाय- वाहम् (पुं०) अग्नि / मी० सू० 3 / 1 / 23 पर शा० भा०। विराज् पक्षियों का राजा, बाज पक्षी। वादरम् 1. रेशम 2. जल 3. दक्षिणावर्त शंख / विक (वि०) [व० स०] 1. जलहीन 2. अप्रसन्न / वाईलम बरसात का दिन / विकच (वि०) [विकच् +अच् ] 1. खिला हुआ, खुला वायम् एक प्रकार का नमक / / हुआ 2. फैला हुआ, बखेरा हुआ 3. केशशून्य, वाणिस् 1. एक पक्षी 2. बूढ़ी बकरी। 4. चमकीला, देदीप्यमान-चन्द्रांशुविकचप्रख्यम् -रा० वालुकायन्त्रम रेत से स्नान करना, शरीर पर रेत मलना / 2115 / 9 / सम-श्री (वि.) उज्ज्वल सौ से युक्त, वावात (वि.) प्रिय, प्रीतिभाजन, स्नेहभाजन / अनिन्द्य लावण्य से सम्पन्न / वासः बस+घा ] 1. सुगन्ध 2. रहना 3. आवास विकचित (विभाविकच+इतच ] खुला हुआ, खि 4. एक दिन की यात्रा 5. वासमा 6. स्वरूप, आकृति। हुआ। सम-पर्ययः आवासस्थान का परिवर्तन, प्रासादः | विकटः गणेश,-टम् 1. रसौली 2. चन्दन, 3. सफेद महल / | संखिया। बासना [वास्+यच+टाप्] (गणित) प्रमाण, प्रदर्शन / बिकया असंगत बातें। वासनामय (वि०) भाव तथा भावनाओं से युक्त / विकर्तृ (वि०) [वि+कृ+तृच् ] बाधा डालने वाला वासित (वि.) [वास्+क्त पवित्रीकृत, शिक्षित, उन्नोत, -राक्षसा ये विकार:-रा० श१०१०।। ___ सुधारा गया - नै० 21 / 119 / विकवच (वि.) [ब० स०] कबचहीन, जिसके पास वासरः,-रम् [वास्+अर] दिन, - र: 1. समय, बारी जिरह बख्तर न हो। 2. एक नाग का नाम। सम०-कन्यका रात, विकाक्षा [वि+काङक्ष+अड+टाप्] 1. मिथ्या .....कृत, - मणिः सूर्य। उक्ति 2. इच्छा न होना 3. संकोच / वासवि: 1. इन्द्र का पुत्र जयन्त 2. अर्जन 3. वालि। विकार्यः [ वि-++ण्यत् ] अहं, अहंकार, अभिमान / वासवेयः [वासवी+ढक] व्यास का नाम-महा० 121159 / / विकाशः [वि+का+अच् ] उज्ज्वलता। वासस् [वस्+णिच् +अस्] 1. वस्त्र 2. कफन 3. पर्दा। विकुक्षि (वि.) बड़े पेट वाला, उभरी हुई तोंद वाला। सम-उदकम वस्त्र को निचोड़ने पर उससे | विकबर (वि.) जिसमें कोई लम्बी लकड़ी न लगी हो। निकला हुआ पानी जो प्रेतात्माओं को उपहृत किया | विक (तना० उभ०) बदनाम करना, कलङ्क लगाना अनार्य जाता है-वृक्षः आश्रयपादप, शरण प्रदान करने वाला इति मामार्याः....."विकरिष्यन्ति-रा० 2 / 12 / 78 / पेड़। विकृत (वि.) [वि+ +क्त ] 1. परिवर्तित, बदला वासिष्ठम् रक्त, रुधिर, खून / हुआ 2. अपूर्ण, अधूरा 3. अप्राकृतिक 4. आश्चर्यबासिष्ठरामायणम् एक ग्रन्थ का नाम (यह ज्ञानवासिष्ठ | जनक 5. विरक्त, - तम् (नपुं०) 1. परिवर्तन के नाम से भी प्रसिद्ध है)। 2. रोग 3. अरुचि 4. गर्भस्राव-मनु० 11247 वास्तु (पुं०, नपुं०) [वस्+तुण् ] 1. भवन बनाने के। 5. दुष्कृत्य-रा०-७६५।३४ / For Private and Personal Use Only Page #1343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणन ( 1334 ) चिकटनितम्बा 1. एक कवयित्री का नाम 2. डा० राघवन / विगद (वि०) [ब० स०] रोग से मुक्त / रचित 'एकांकी'। विहिताचार (वि०) [ ब० स० ] जिसका आचरण निंद्य विहतिः [वि+के+क्तिन् ] 1. शश्रुता 2. आभास / हैं, घृणित आचरण से युक्त / / 3. गर्भस्राव 4. व्युत्पन्न (व्या० में)। विग्रहग्रहणम् [ 10 त०] रूप धारण करना, शरीर या विकर्षणम् [ वि+कष् + ल्युट्] 1. भोजन से विरक्ति मूर्ति धारण करना। 2. अन्वेषण। विग्रहेच्छु: [10 त०] लड़ाई का इच्छुक / विकृष्टसीमान्त (वि.) जिसकी सीमाएं वधित की | विग्रहिन् (पुं०) [विग्रह+इनि ] युद्ध मंत्री / गई हैं। विघसम् [वि.+अद्+अप, घसादेशः] 1. मोम 2. अघचबा विकृ (तुदा० पर०) 1. उडेलना 2. (ठंडी साँस) आह न कोर / सम-आश: (पुं०) जो खाने से बचे हुए भरता। उच्छिष्ट भोजन को करता है, कौवा। विकिरः [वि++अच् ] कुछ गौण पितरों को प्रसन्न | विघ्नोपशान्तिः बाधाओं को हटाना। करने के लिए बखेरा गया चावल / विचक्ष (अदा० आ०) 1. कहना, घोषणा करना 2. प्रकट विकिरानम् दे० 'विकिरः। करना 3. सोचना, अटकल लगाना। विक्लप (भ्वा० आ०) 1. दुविधा का वर्णन करना विचटनम् [ विचट+ल्युट ] तोड़ना। 2. विचार करना। विचन्द्र (वि.) [ब० स०] चन्द्रहीन, चन्द्रमा से रहित / विकल्पः [विक्लप+घन 11. उत्पत्ति-भा० 11125 / / मा० 11125 | विचर (भ्वा० पर०) 1. चरना, घास खाना 2. भूल हो 27 2. मान लेना, उक्ति 3. उत्प्रेक्षा, कल्पका। जाना, गलती करना-हविषि व्यचरत्तेन वषट्कारं विकल्पित (वि०) [ विवलप्+क्त ] 1. तत्पर, व्यवस्थित गणन् द्विजः-भाग० 9 / 1 / 15 / / 2. संदिग्ध, कल्पित 3. विभक्त / विचर (बि०) [ विचर्+अच ] भ्रान्त, विचलित-न विकेशतारका धूमकेतु, पुच्छलतारा / त्वं धर्म विचरं सञ्जयेह-महा० 5 / 29 / 4 / विक्रम् (म्वा० आ०) पराक्रम दिखाना / विचारमत (वि.) 1. मूर्ख, 2. निर्णय करने में अज्ञानी। विक्रमः [ विक्रम्+घञ ] 1. गरु स्वर, उदात्त स्वराघात | विचर्मन् (बि०) कवचहीन, जिसके पास जिरह बख्तर 2. जन्म कुण्डली में लग्न से तीसरा घर / न हो। विक्रमितम् | विक्रम+णि+क्त ] पराक्रम, शौयं / विचलित (वि.)[ विचल+क्त ] 1. पथभ्रष्ट, सहीमार्ग विक्रिया [विकृ+श+टाप] 1. चोट, आघात, हानि ! से भटका हुआ 2. अवलप्त, अन्धा किआ हुआ। 2. लोप। | विचालिन् (वि.) [ विचाल +इनि ] अस्थिर, परिवर्त्य, विक्रयः [वि+की+अच ] 1. बिक्री 2. विक्रयमल्य अस्फुट,- विचाली हि संवत्सरशब्दः-मी० सू०६॥ 3. मण्डी / सम० पत्रम् बिक्री की दस्तावेज - वीथिः 7 / 38 पर शा० भा० / वाजार। विचिकित्सित (वि०) संदिग्ध, संदेह पूर्ण / विक्रीडः [वि+की+अच् ] 1. खेल का मैदान विचित्रित (वि०) [विचित्र+इतच् ] रंगा हुआ, सजाया 2. खिलौना। हुआ, रंगबिरंगा। विक्रोष्टट् (पुं०) [विक्रुश् +तृच [ जो सहायता की विचिन्तनम् [ विचिन्त् + ल्युट् ] 1. विचार, चिन्तनम् पुकार करता है। 2. देख-भाल, चिन्ता, फ़िकर। विक्लवम् [वि+क्ल+अच ] क्षोभ---रा० 2144 / 25 / विचिन्ता विचिन्त+अच--टाप् ] दे० 'विचिन्तनम्। विक्लवता [ विक्लव+तल+टाप् ] भीरुता, कायरता विचेयम विचि / ण्यत / गवेपणीय। भवति हि विक्लवता गुणोऽङ्गनानाम् - शि० 7 / 43 / विचेष्टनम् [ विचेष्ट / स्युट ] हाथ पर हिलाना, प्रयास विक्षिप् (तुदा० पर०) 1. दबाना 2. उछालना 3. (धनुष) करना। झुकाना। विचेष्टा [विचेस्ट-+अङ+टाप् ] 1. प्रयत्न 2. गति विक्षिप्त (वि.) [ विक्षिप् + क्त ] विस्तारित, प्रसारित 3. संचरण / फैलाया गया। विच्छिन्न (वि.) [विच्छिद् |क्त ] 1. चीरा हुआ, फाड़ा विक्षेपः [ विक्षिप्+घा ] 1. अवहेलना (जैसा कि हुआ 2. तोड़ा हुआ, बांटा हुआ 3. चितकबरा ___ 'समय विक्षेप में 2. विस्तार / 4. समाप्त किया हुआ 5. गुप्त 6. उबटन आदि लेप विगतक्लम (वि०) [ ब० स०] जिसकी थकान दूर हो / किया हुआ। सम० -- आहुतिः आहुति देना-भङ्ग करके, औपासनम नित्य सन्ध्योपासना करना विनतासु (वि०) [ब० स० ] निष्प्राण, मृतक / जिसका नैरन्तर्य भङ्ग हो गया हो-अर्थात् कभी करना - शि० 7 // 43 // विचेयम् [ विचि ण्यताटापू] दे० 'विचिन्तनम्' / वाला (तुदा० पर०) 1. For Private and Personal Use Only Page #1344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1335 ) कभी न करना, --प्रसर (वि.) जिसकी प्रगति में / विडम्ब्यम् [ विडम्ब्+यत् ] दिल्लगी की चीज़, उपहास बाधा पड़ गई है, मद्य (वि०) जिसने सुरापान छोड़ | की वस्तु / / दिया है। वितर्कः [ वितर्क+अच् ] 1. मिथ्या अनुमान 2. इरादा / विच्छेदः [ विच्छिद् +धा ] भेद, प्रकार / सम० --पदवी अनुमान के क्षेत्र के अन्तर्गत / विच्छुरणम् [ विच्छुर् + ल्युट् ] बिखेरना, छिटकाना, बुर- वितानः, नम् [वितन+घन ] 1. शामियाना, चंदोआ कना। 2. राशि, ढेर 3. बहुतायत 4. अनुष्ठान 5. निष्पत्ति। विजाघ (नि.) [व० स० ] जिसके पहिये न हों, चक्र- वितानक: [वितान-+-कन् ] राशि, ढेर। हीन (रथ)। वितार (वि.) [प्रा० ब०] 1. जिसमें तारे न हों विजन्या (वि.) गभिणी।। (आकाश) 2. धूमकेतु के शीर्षभाग से रहित / विजल (वि.) [ब० स० ] जलहीन, जहाँ पानी न हो। वितृप्त (वि०) [वितृप्+क्त ] संतुष्ट, संतृप्त / विजर्जर (वि.) 1. जीर्णशीर्ण, टूटा-फूटा 2. विध्वस्त, वित्तविश्राणनम् मूल्यवान उपहारों का वितरण / उच्छिन्न / विदत् (वि०) विद्-+-शत] 1. जानने वाला 2. समझदार। विजयः [ विजि+अच् ] 1. जीत, फ़तह 2. एक विशिष्ट | विदितात्मन् (वि०) [व०स०] 1. जो अपने भापको मुहुर्त 3. तीसरा महीना 4. एक प्रकार का सैन्यज्यूह / जानता है 2. प्रसिद्ध / सम-जित (वि०) जीत (फ़तह) से प्रोत्साहित, विदुरः [विद्+करच ] वेत्ता, ज्ञाता। -दण्ड: सेना की एक विशेष टुकड़ी। विदुषः दे० 'विदुर / विजिघित्स (वि.) [ब० स०] जिसकी भूख नष्ट हो | विदुषी जानने वाली, समझदार स्त्री। गई हो। विदग्ध (वि.) [विदह,+क्त ] 1. परिपक्व 2. वक्ष विजिहीर्षा [वि --हृ + सन् --अ+टाप् ] इधर-उधर 3. भूरा, ईपद्रक्त, कुछ-कुछ लाल 4. जला हुआ, घुमने या खेलने की इच्छा। भस्मीभूत 5. पचा हुआ। सम०.-परिषद् (स्त्री०) विज़म्भिका 1. सांस लेने के लिए मुंह खोलना 2. जम्हाई ___ चतुर पुरुषों का समाज, -- मुखमण्डनम् एक ग्रन्थ का लेना। नाम, वचन (वि०) वाग्मी, वाक्पटु / विजृम्भित [ बिजृम्भ् + क्त ] 1. जो जम्हाई ले चुका है | विदण्डः दरवाजे की कुंजी।। 2. जम्हाई लेने वाला। विवश (वि.) [ब० स०] जिसके मगजी या मालर विज्जिका एक कवयित्री का नाम नीलोत्पलदलश्यामां अथवा किनारी न लगी हो, (वस्त्र) / विज्जिका मामजानता। वथैव दण्डिना प्रोक्ता सर्व- विदायः / फारसी का शब्द ] 1. बिदा करना 2. प्रभाग / शुक्ला सरस्वती // (उस कवयित्री का अब तक यही | विदुरनीतिः महाभारत के पांचवें पर्व में 33 से 40 एक श्लोक उपलब्ध हुआ है)। विदुरप्रजागरः तक अध्याय। यहाँ धृतराष्ट्र ने नीति विज्ञानम् [विज्ञा+ ल्युट] 1. ज्ञान का अंग या बुद्धि | पर व्याख्यान दिया है। 2. इन्द्रियातीत ज्ञान / विदूर संश्रव (वि०) जो दूर से सुनाई दे। विज्ञानभिक्षुः एक वौद्ध लेखक का नाम / विदतिः (स्त्री०) खोपड़ी की सन्धि या सीवन / विज्ञानस्कन्धः बौद्ध दर्शन के पांच स्कन्धों में से एक। विदेशज (वि०) विदेश में उत्पन्न / विशेष (वि.) [विज्ञा--- ण्यत् ] 1. जानने के योग्य संज्ञेय विदेहमुक्तिः (स्त्री०) मोक्ष के कारण जन्म मरण से 2. जिसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए 3. जिसका अर्थात शरीर से छुटकारा / ध्यान रखा जाय। विदोहः [ विदुह +घा ] अतिरिक्त लाभ / बिज्य (वि.) [व० स०] जिसमें डोरी या ज्या न हो | विद्धसालभजिका हर्षदेवकृत एक नाटक / (धनुष)। विद्या विद्+क्यप्+टाप्] 1. दुर्गा देवी 2. सरस्वती विटकान्ता 1. हल्दी, हरिद्रा 2. हल्दी का पौधा / देवी 3 ज्ञान, शिक्षा / सम०-आतुर (वि०) जो विटङ्कः (वि.) उत्तम, सुन्दर, मनोरम -केय रकुण्डल- ज्ञान प्राप्त करने के लिए उतावला हो-विद्यातुराणां किरीटविटङ्कवेपी भाग० 3 / 15 / 27 / न सुखं न निद्रा-नीति० --ईशः शिव का नाम, विटपः [विट:-पा+क] लता, बेल (जैसा कि 'भ्रू- --कोशगृहम-कोशसंग्रह,-कोशसमाश्रयः, पुस्तकालय, विटप' में)। -बलम् जादू की शक्ति,---भाज् (वि०) शिक्षित, विडम्बक (वि०) [वि --डम्व् + बुल् ] नक़ल करने पढ़ालिखा, -- वंशः अध्ययन की किसी विशिष्टशाखा वाला --परममम्बुदकदम्बकविडम्बकरालम् --पतंजलि के अध्यापकों की कालक्रमानुसार सूची। का तांडवस्तोत्र / / विद्युत्सम्पातम् (अ०)एक क्षण में. बिजली जैसी तेजी से। For Private and Personal Use Only Page #1345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1336 ) विद्योत (वि०) [विद्युत+पा ] चकाचौंध करने वाला, | विनग्न (वि.) [वि+न+क्त] बिल्कुल नंगा, विवस्त्र / चमचमाने वाला। विदिन (वि.) [विनर्द -णिनि] गरजने वाला (साम विद्युतिः [वि+द्रु+क्तिन् ] दौड़ जाना, भाग जाना। विद्राण (वि० ) [वि+द्रा+क्त, नस्य णत्वम् ]] विनयः [वि-+-नी+अप] 1. दण्ड - शीलवृत्तमविज्ञाय 1. जागरूक, निद्रारहित 2. निराश, उदास-द्रविण- धास्यामि विनयं परम् महा० 3 / 306 / 19 2. कार्याविद्राणवणिजि-हर्ष०७। लय। विवरगोष्ठी) विद्वान् पुरुषों की सभा विद्वन्मण्डली। विनयकर्मन् (नपुं०० त०] निर्देश, शिक्षण / विकृत्सवस् / विनाशकाल: [ष० त०] विपत्ति का समय / विद्वत्समा ) विनाशहेतु (वि०) [ब० स०] जो नाश का कारण हो / विषन (वि० [प्रा.ब.1 निधन, धनहीन / पिनाकृत (वि.) [विना++क्त] 1. वञ्चित, रहित, विधर्म (वि.) 1. अधर्मी, अन्यायी 2. अधर्मकार्य जो मुक्त 2. वियुक्त, एकाकी। ___ अच्छे आशय से किया गया हो। विनामाकः वियोग-व्यक्तं देवादहं मन्ये राघवस्य विनाविमिन् (वि.) [ विधर्म+इनि ] 1. भिन्न बर्ग से संबंध / भवम् रा. 75014 / रखने वाला (विप० समिन) 2. अधर्मी। विनायक: [वि+नी+ण्वुल] नेता, अग्रणी। विषा (जुहो० उभ०) लीन करना, उपभोग करना। विनिकृत (वि.) [वि+नि++क्त] दुर्व्यवहारग्रस्त, विषा [विधा+क्विप् ] उच्चारण / आहत, विकलीकृत / विधात (पुं०) [वि+घा+तृच ] माया, भ्रान्ति / विनिगमना[वि+नि+गम्+युच+टाप] संकल्प, निश्चित विधानम् [विधा+ल्युट्] 1. प्रयत्न, प्रयास 2. उपचार उपसंहार, कुछ स्वीकार करके शेष को निकाल देना 3. भाग्य, नियति 4. विधि 5. (नाटक) विभिन्न -मै० सं० 1015 / 59 पर शा० भा० / रसों का संघर्ष। विनिबर्हण (वि.) [नि+नि+बह + ल्यट] परास्त करने विषिः [वि+धा+कि] 1. उपयोग, प्रयोग 2. अनुष्ठान, वाला, हराने वाला। अभ्यास 3. प्रणाली, रीति, ढंग 4. नियम 5. कानून | विनियुज (रुधा० उभ०) (बाण) छोड़ना, (बाण) मारना / | विनियोक्त (वि०) [वि+नि+युज+तुच काम देने रण 1. सृष्टि 10. निर्माण 11, भाग्य 12. हाथी का / बाला, स्वामी। आहार 13. वैद्य 14. उपाय, तरकीब। सम० अन्तः | विनियोग: [वि--नि युज+घञ] 1. प्रयोग, उपयोग विधिपरक मूल पाठ का उपसंहारात्मक भाग,--- अर्थ: 2. सहसम्बन्ध। विधि का आशय, कर (वि०) विधान को कार्य में विनिर्वत्त (वि.) [वि नि:+वृत्+क्त] 1. पैदा हुआ, ____ निकल आया 2. संपूर्ण हुआ, पूरा हुआ। अनुष्ठित यज्ञ. - लक्षणम विधि का स्वरूप, लोपः | विनिवेशनम् [विनि+विश् +-णिच् + ल्युट्] उठान, निर्माण / विधान का अतिक्रमण,-विपर्ययः,---विपर्यासः दुर्भाग्य, | विनिहित (वि.) [विनि+ धात] 1. रक्खा हुआ, -विभक्तिः / स्त्री० ) विधिलिड के प्रत्यय पड़ा हुआ 2. नियुक्त 3. जड़ा हुआ। --बशात (अ०) भाग्य से,---विधिवशाद्दूरबन्धुगंतोहम् | विनिहनत (वि.) विनि+न+वत] 1. मुकरा हुआ, मेघ०६। न अपनाया हुआ 2. छिपा हुआ, छिपाया हुआ / विषुः [व्य-1-कु] 1. चन्द्रमा 2. कपूर 3. राक्षस 4. प्राय-विनी (भ्वा० पर०) दूर रहना, दूर करना--विनीय भय श्चित्ताहुति / सम० परिध्वंसः चन्द्रग्रहण, मण्डलम् मात्मनः-- महा० 9 / 31129 / चन्द्रमा का परिवेश,-मासः चान्द्र महीना। विनीत (वि.) [विनी+क्त] फैलाया हुआ / पुर (वि.) [विगता धूर्यस्य अच समा०] 1. विवश, विनीतवेष: सामान्य वेषभूषा। असहाय-प्रतिक्रियायै विधुरः-कि० 17141 2. अशक्त, | विनेयः [वि+नी+ण्यत्] शिष्य, छात्र विनीतविनेय अवसन्न-हयश्च विधुरग्रीवः--महा० 7.146 / 25 / भङ्गाः। विपरित (वि.) विघर+इतच] विवर्ण, कान्तिहीन / विनोदपर: / क्रीडाशील, मनोरंजन में व्यस्त, आमोदविषम (वि.) [प्रा० ब०] धुएँ से रहित / विनोदरसिक: / प्रिय / विधारणम् [वि+णिच् + ल्युट्] गिरफ्तार करना, विनोदस्थानम् मनोरंजन का स्थान, वन विहार। विन्यसनम् [विनि-|-अस् + ल्युट] रखना, घरना / विप्र (वि०) [विखि+क्रन्, नलोपश्च] निष्कलंक, कलंक-विन्यास: [विनि+अस्+घा] 1. (शस्त्र) धारण करना रहित / 2. बीच में घुसेड़ना 3. गति, (अंगों की) स्थिति / For Private and Personal Use Only Page #1346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1337 ) विपक्षः [प्रा० ब०] 1. निष्पक्षता, तटस्थता 2. वह दिन / विप्रतिपन्न (वि.) [विप्रति+पद+क्त] परस्पर संयुक्त, जब कि चन्द्रमा एक पक्ष से दूसरे पक्ष में संक्रमण आपस में मिले हुए। सम० -- बुद्धि (वि.) मिथ्या करता है। | विचार या धारणा रखने वाला। विपाट:[विपट+घञ एक प्रकार का बाण, तीर- विपाट- विप्रत्ययः [वि-+प्रति+5+अच] अविश्वास,---यदि पञ्जरेण-शि० 2017 / विप्रत्ययो ह्येष--महा० 121111155 / विपाटित (वि०) [विपट् +णिच् क्त] फाड़ा हुआ, टुकड़े विप्रथित (वि.) [वि-प्रथ्+क्त प्रसिद्ध, यशस्वी। टुकड़े किया हुआ। विप्रधर्षः [विप्र+धूष-+घन] तंग करना, सताना / विपणः [वि+पण+अच्] कार्यभार ग्रहण, व्यापार, व्यव-विप्रलम्भित (वि.) [विप्र+लम्भु+क्त] 1. अपमानित सायन तत्र विपणः कार्यः खरकण्डयनं हि तत् / 2. अतिक्रान्त / / -महा० 3133166 / | विप्रलीन (वि.) [विप्र+ली+क्त] तितर-बितर किया विपणिजीविका [ष० त०] क्रयविक्रय या व्यापार के द्वारा हुआ, छिन्न-भिन्न किया हुआ। जीवननिर्वाह करना। विप्रलम्पक (वि.) [विप्र+लप्+ण्वुल, मुमागमः] लुटेरा, विपणिवीथी षि० त०] मण्डी, बाजार / डाकू। विपण्य (वि.) 1. जिसने - व्यवसाय छोड़ दिया है। विप्रलोकः [विप्र+लोक-घा] बहेलिया, चिड़ीमार / 2. तटस्थ, उदासीन / विप्रवाबः [विप्र-+व+घञ्] असहमति, मतिभिन्नता। विपत्तिः [विपद्+क्तिन्] अवसान, समाप्ति / विप्रवसित (वि.) [वि+वस+णिच-+क्त] प्रवास के विपत्तिकालः [ष० त०] विपत्ति का समय / लिए गया हुआ, जो परदेश में चला गया है। विपनदीधिति (वि.) [ब० स० कान्तिहीन, निष्प्रभ / विप्रहत (वि.) विप्र+हुन+क्त] 1. पटक दिया हआ. विपरिक्रान्त (वि.) साहसी, बलशाली। गिराया हुआ 2. कुचला हुआ, रौंदा हुआ। विपर्ययः [वि०+परि---इ-+अच] मिथ्याबोध, गलतफ़हमी | विहीण (वि.) [विप्र-+हि+क्त] वञ्चित, विरहित / -ईशादपेतस्य विपर्ययोऽस्मृति:--भाग०११।२।३७ / विष् (स्त्री०) बोलते समय मुंह से निकले थूक के कण / विपर्यासः [विपरि+अस्--घञ्] 1. ह्रास 2. मृत्यु / विप्लवः [वि+प्लु-अप] पोतभंग, जहाज का विनाश / सम० -- उपमा, उल्टी उपमा / विप्लुतभाषिन् (वि.) असंगत बोलने वाला, हकलाने विपाकः [वि०+पच्+घञ] कुम्हलाना, मुरझाना / सम० वाला। ... वारण (वि.) परिणाम में भयंकर,--दोषः अग्नि- विप्लुतिः [वि+प्लु+क्तिन्] विनाश, ध्वंस / मांद्य, अजीर्ण। | विबन्धु (वि.) [ब० स०] बन्धहीन, जिसका कोई सगाविपिनोकस् (पुं०) [ब० स०] 1. लंगूर 2. जंगली जन्तु / सम्बन्धी न हो-भ्रातुर्यविष्ठस्य सुतान् विबन्धून् विपंसक (वि० प्रा० ब०] पुंस्त्वहीन, जिसमें पौरुष न हो। -भाग० 3 / 116 / / विपुलग्रीव (वि०) [ब० स०] लम्बी गर्दन वाला। विबुधः [वि+बुध+क] 1. बुद्धिमान, विद्वान् पुरुष विष्ट (वि.) [वि+पुष+क्त] जिसे पूरा आहार न 2. देवता 3. चन्द्रमा। सम-अनुचरः दिव्य सेवक, मिला हो, जिसे पूरा पोषण न मिला हो। -आवासः देवमन्दिर,-इतरः राक्षस / विपूयकम् [वि+पू+क्यप्, स्वार्थे कन् च] सड़ांध, दुर्गध / विबुभूषा [वि+भू+सन्+अ+टाप्] अपने आप को विप्रः [वप्+रन्, अत इत्वम्] भाद्रपद का महीना / सम. प्रकट करने की इच्छा / -ब्राह्मण माता पिता की जारज सन्तान / विभज (भ्वा० उभ०) 1. अलग कर देना, दूर भगा देना विप्रकृ (तना० उभ०) नियत करना, (साक्षी के रूप में) -विभक्त रक्षः संबाधम्रा० 5 / 53 / 73 2. खोलना स्वीकार करना। 3. बांटना। विप्रकार: [विप्र++घा] 1. विविधरीति 2. दुष्कृत्य, विभङ्गः [वि+भ +घञ्] लहर। गलत तरीका। विभगुर (वि.) [वि+भ +उरच अस्थिर, चंचल / विप्रकृतिः [वि+प्र++क्तिन्] परिवर्तन। विभवः [वि+भू+अच्] प्ररक्षा, बचाव-नियन्ता जन्तूनां विप्रकर्षः विप्र-कृष+घञ] 1. खींचकर दूर करना निखिलजगदुत्पादविभवप्रतिक्षेप-विश्व० / 2. (व्या० में) से व्यंजनों के बीच में कोई स्वर जो विभानुगा [विभा+ अनुगा] छाया। उन दोनों की भिन्नता दर्शावे / विभागरेखा [ष० त०] विभाजन रेखा।। विप्रतिपद (दिवा० आ०) मिथ्या उत्तर देना। विभावर ( वि० ) [ विभा+वनिप, र आदेश: 1 उज्वल विप्रतिपतिः [वि+प्रति+पद+क्तिन्] 1. विरोधी भावना चमकदार, चमकीला--विभावरी सर्वभूतप्रतिष्ठां गंडां 2. गलती, त्रुटि / गता-महा० 13 / 26 / 86 / For Private and Personal Use Only Page #1347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1338 ) विभिद् ( रुघा० उभ० ) अतिक्रमण करना, उल्लङ्घन | विमुज्य [ वियुज् + ल्यप् | वियुक्त होकर, पृथक् एक एक करना। करके व्यक्तिशः। विभेद: [विभिन्+घा] सिकुड़न, (भौंहे) सिकोड़ना। वियोजनम् [वियुज्+ल्युट् ] 1. वियोग 2. घटाना। विभी (वि.) निर्भय, निडर / वियोनिः भिन्न जाति की स्त्री-महा० 13 / 145 / 52 / विभीषणः एक राक्षस का नाम, रावण का भाई / वियोनि (वि.) [प्रा० ब०] 1 नीच कुल में उत्पन्न विभुता सर्वोपरि सत्ता, यश, कीर्ति / 2. भगरहित / विभुग्न (वि.) [वि+भुज+क्त] मुड़ा हुआ, झुका हुआ, | वियोनिजः पक्षी, परिंदा / दमन किया हुआ। विरजा एक नदी का नाम / विभावनम् [वि+भू+णि+ल्युट्] 1. विकास 2. प्ररक्षा | विरक्तप्रकृति (वि.) [ब० स०] जिसकी प्रजा उदासीन 3. दृष्टि, दर्शन / हो, निलिप्त हो। विभाव्य [विभू+णिच् + ण्यत्] चिन्तनीय, विचारणीय / | विरण्य (वि०) विस्तृत, विस्तारयुक्त, दूरतक फैला विभतिः[वि+भू+क्तिन्] 1. लक्ष्मी 2. योग्यताएं-क्षेत्रज्ञ | हुआ। "एता मनसो विभूती:- भाग० 511 / 12 / | विरथ्या 1. बुरा मार्ग 2. उपमार्ग, छोटी गलो / विभ्रंशः [वि+भ्रंश-धा] 1. अतिसार, बार-बार दस्त विरतप्रसंग: वह बात या विषय जिसकी चर्चा बन्द हो आना 2. उलटफेर, अस्तव्यस्तता। गई हो विमद्य (वि.) [प्रा० ब०] मद्यपान से मुक्त / विरलभक्ति (वि.) नीरस, उकता देने वाला। विमर्दनम् [वि+मृद्+ल्युट] 1. सुगन्ध, खुशबू 2. परि- | बिराज् [विराज्+क्विप्] ब्रह्माण्ड, विश्व। सम० घर्षण, चबाना, पीसना 3. संघर्ष। --सुतः (विराट्सुतः) स्वर्गीय पितरों की एक श्रेणी। विमषिन् (वि०) [विमृष् +णिनि] असहिष्णु, अनिच्छुक, | विरात्रः, त्रम् [प्रा० व०] रात का तीसरा पहरविमनस्क। शुश्राव ब्रह्मघोपांश्च विराय ब्रह्मरक्षसाम्-रा०५।२६ / विमात्रा (वि० मापतोल में बराबर। विरावण (वि०) [वि०+रु+णिच् + ल्युट] शोर. विमानः [वि+मा+ल्युट] 1. खुली पालकी 2. जहाज __गुल कराने वाला, हल्लागुल्ला मचवाने वाला। में रहने वाली किश्ती। सम० वाहः पालकी उठाने | विरिक्त (वि.) [वि+रिच्+क्त ] जिसे दस्त करा वाला। दिये गये हों, खाली कराया हुआ। विमार्गदृष्टि (वि०) बुरी राह पर आँख रखने वाला, विरिक्तिः [ विरिच+क्तिन् ] विरेचन, दस्त करवाना। __ बुरे रास्ते को देखने वाला। विरुज (स्त्री०)[वि+रु-विप ] दारुण पीडा। विमुक्ति (वि.) [वि+मुच् + क्त] आवेगरहित, शान्त- विरुज् (वि०) नोरोग, स्वस्थ / चित्त, निरपेक्ष / विरुद्धरूपकम एक अलङ्कार जहाँ उपमेय बिल्कूल समान विमुक्तमौनम् (अ०) मौनभंग करके। न हो। विमुक्तशाप (वि०) [प्रा० ब०] शाप के प्रभाव से | विरोधः [वि--रुध्-घा ] 1. वैपरीत्य, वाधा, विघ्न . मुक्त / 2. प्रतिवन्ध 3. शत्रुता 4. कलह 5. असहमति विमूढसंश (वि०) [ब० स०] घबराया हुआ, बेहोश। | 6. संकट। सम० आभासः वह अलंकार जहाँ विमुदात्मन् (वि०) [ब० स०] घबराया हुआ, बेहोश। विरोध प्रतीत होता हो. परन्तु वस्तुतः कोई विरोध विछित (वि०)[वि-+मर्छ--क्त ] 1. पूर्ण, सब मिला न हो,-उपमा वैपरीत्य पर आधारित उपमा, हुआ 2. जमा हुआ, मूर्छा में प्रस्त। --परिहारः 1. विरोध का दूर होना. सामंजस्य विमृशः [वि+मश्+अच् ] अनुचिन्तन, सोचविचार, स्थापित होना 2. प्रतीयमान विरोध की व्याख्या / -भाग० 4 / 22 / 21 / / दिरुलः एक प्रकार का साँप / विमोघ (वि.) विल्कुल फल रहित, निष्फल। विरूद्ध (वि०) [वि+रह+क्त ] (घाव) भरा हुआ, वियत्पताका [ष० त०] विजली। स्वस्थ 2. अंकुरित 3. चढ़ा हुआ। सम० बोध वियत्पयः [प० त०] अन्तरिक्ष / (वि०) जिसकी बुद्धि परिपक्व हो गई हो। वियतम् (अ०) अन्तराल पर अवकाश देकर / विरोचनम [वि+रुच् + युच् ] प्रकाश, चमक, दीप्ति / वियन्त (वि.) [वि-यम् + तृच ] चालकरहिन, जिसमें विरोचिष्णु (वि+रुच्-इष्णुच ] चमकीला. उज्ज्वल / चालक न हो। विलक्ष (वि.) [प्रा०व०]. जिसका कोई विशेष चिह्न वियुज् (रुधा. आ.) 1. (प्रतिज्ञा) भंग करना 2. लटना या लक्ष्य न हो 2. (पीर) जिसका निशाना चूक 3. घटाना। गया हो। For Private and Personal Use Only Page #1348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1339 ) विलग्न (वि०) [विलग् + क्त ] 1. लटकता हुआ / विवृत् (म्वा० आ०) रूपान्तर करना - उभे सह विवर्तेत 2. पिंजरबद्ध (पक्षी)। -महा० 121174 / 22 / विलापनम् [वि+लप्+णिच् + ल्युट् ] रुलाने वाला, विवर्तनम् [ विवृत्+ ल्युट ] रूपान्तरण / विलाप का कारण / विवृत्ताक्षः [व० स०] मुर्गा / विलम्ब (म्वा० आ०) सहारा लेना, निर्भर करना। विवेकमन्थरता निर्णय करने में अशक्तता। विलासः [विलस् +घा 1. सजीवता, हावभाव 2. कामु- विवेकविरह, अज्ञान, ज्ञान का अभाव / कता, लंपटता। विश (तुदा० पर०) 1. रंगमंच पर प्रकट होना 2. संयुक्त विलायः वि--ली+णिच् ।घाल्युट् वा] होना 3. आ पड़ना 4. (किसी कार्य में) व्यस्त हो विलायनम घोल देना, मिलादेना, (चीनी की भाँति) जाना। मिला, देना। विश् (पुं०) [विश+क्विप् ] 1. बस्ती 2. संपत्ति, विलिङ्ग (वि.) [प्रा० ब०] भिन्न लिङग का / दौलत / विलिम्पित (वि.) विलिम्प --क्त ] सना हुआ, लिपा विशङ्कनीय (वि.) [वि+शङ्क+अनीय ] प्रष्टव्य, हुआ, लेपा हुआ। पूछने के योग्य, शङ्का किये जाने के योग्य, जिस पर विलेपिन् (वि.) लसदार, चिपका हुआ। शङ्का की जा सके। विलीन (वि०) [ विली+क्त ] मन में बैठाया हुआ। विशद (वि०) [वि+शद्+अच् ] 1. सुकुमार, मृदु विलोप्त (पुं० [विलप-णिच्+तच ] डाकू, लुटेरा।। 2. दक्ष / विलोभनीय (वि०) [वि.+लभ-अनीय ] ललचाने / विशल्यकरणी शस्त्रों के लगाने से उत्पन्न घावों को स्वस्थ वाला, मुग्ध करने वाला। करने की विशेष जड़ी-बटी। विलोचनपथः दष्टि क्षेत्र, दृष्टि का परास / विशसनम् [ विशस्+ल्युट् ] 1. युद्ध 2. काटना 3. बध विलोमपाठः विपरीत क्रम से सस्वर पाठ। करना, हत्या करना। विलोमविधिः किसी कार्य के विपरीत अनुष्ठान का विधान | विशारद (वि.)[विशाल+दा+क] 1. प्रवीण 2. बुद्धिकरने वाला नियम। मान्, 3. प्रसिद्ध 4. साहसी 5. सौन्दर्योपपन्न शरद् विवक्षितान्यतरवाच्यम एक प्रकार का व्यङग्यार्थ। ऋतु सम्बन्धी 6. वक्तृत्व शक्ति से रहित / विवदनम् [वि-+-वद् + ल्युट् ] कलह झगड़ा, मुकदमे ! विशालकुलन् उत्तम परिवार, प्रसिद्ध वंश / बाजी। विशिखा [ विशिख+टाप ] रुग्णालय / विवधा [प्रा० स०] 1. जूआ 2. हथकड़ी, बेड़ी। विशेषकरणम् उन्नति, सुधार / विवरम् [वि-वृ+अच् ] पाताल लोक / विशेषधर्मः विशेष कर्तव्य, विशिष्ट धर्मकृत्य या यज्ञ-अनचिणित (वि०) [विवर्ण -- इतच् ] अननुमोदित, ष्ठान / __ अस्वीकृत। विशेषणासिद्धः एक प्रकार का हेत्वाभास / विवलग (भ्वा० पर०) कूदना, उछलना, फांदना। विशेषणपवम् 1. विशेषता द्योतक शब्द 2. सम्मान सूचक विवस्वती (स्त्री०) [ विवस्वत्+ङोप् ] सूर्य देव की उपाधि / नगरी। विशेषतः (अ०) अनुपात की दष्टि से निःस्वेभ्यो देयविवाहनेपथ्यम् दुलहिन की वेशभूषा / मेतेभ्यो दानं विद्या विशेषत:--मनु० 1112 / विविक्त (वि.) [ विविच्+क्त ] जिसने समझ लिया, | विशद्धधी निर्मल मन या उज्ज्वल बुद्धि वाला। या सही अनुमान लगा लिया विविक्त परव्यथो विशवसत्त्व (नि.) सच्चरित्र, सदाचारी। ---- भाग० 5 / 26 / 17 / विशुद्धिः [ विशुध् + क्तिन् ] 1. ऋण परिशोध करना विवित्सा [विद्- सन् + अङ+टाप् ] जानने की इच्छा। 2. प्रायश्चित्त। विवीताध्यक्षः चरभूमि का अधीक्षक / विशृंखला 'देवी' का विशेषण / / विवृ (स्वा० ऋया० उभ०) 1. म्यान से तलवार निकालना विशीर्ण (वि०) [ विश+क्त ] 1. रगड़ा हुआ 2. विफली2. कंधे से (बालो को) माँग फाड़ना। भूत 3. गिरा हुआ (गर्भ आदि)। विवृतम् [ विवृ + क्त ] अनाहत, जिसके धाव नहीं हुआ। विश्रान्तकय (वि०) [ ब० स० ] 1. वक्तृत्व शक्तिहीन, विवृतपौरुष (वि०) अपने पराक्रम का प्रदर्शन करने मूक 2. मृत। वाला। विश्रामः[वि+श्रम-घज 1 आराम करने का स्थान / विजित (वि०)[ विवज+क्त वह जिससे कोई वस्तू विश्रब्धालापिन (वि०) विश्वस्त या गुप्त बातें करने ले ली जाय, वञ्चित, विरहित / ! विश्रब्धालापिन वाला / For Private and Personal Use Only Page #1349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1340 ) विश्रब्धसुप्त (वि.) शान्ति पूर्वक सोने वाला। --कान्ता विभिन्न पौधों के नाम,-बत्तः परीक्षित विधिः [ विश् + क्रिन् ] मृत्य / राजा का नाम,-धर्मोत्तरपुराणम् एक उपपुराण का विश्वगोचर (वि.) सबके लिए सुगम, जहाँ सबकी नाम, .. प्रिया 1. तुलसी का पौधा 2. लक्ष्मी का नाम पहंच हो। -लिङ्गी बटेर। विश्वजीवः विश्वात्मा, ईश्वर। विष्वग्गति (वि.) [विष्वच-+गति ] सर्वत्र जाने वाला विश्वाधारः विश्व का सहारा, ईश्वर। प्रत्येक विषय में प्रविष्ट होने वाला। विश्वेदेवाः पितरों की एक श्रेणी, देववर्ग / विष्वग्लोपः [विष्वच्+लोपः ] घबराहट, बाधा, विघ्न / विकृमि: अंतड़ियों में पड़ने वाला कीड़ा। विसदृश (बि०) असमान, असमरूप / विधात: मूत्रकृच्छ्रता, मूत्रावरोध / विसंम्मूक (वि०) नितांत घबराया हुआ। विभङ्गः अतीसार, दस्तों का लगना / विसा कमल नाल (=बिसा) विभुज (वि०) मल खाकर रहने वाला, गुबरैला / विसन् (तुदा० पर०) (आ० भी) (प्रेर०) प्रकट करना, विषज्वरः मैसा। भेद खोलना, (समाचार) प्रकाशित करना। विषतन्त्रम् विषविज्ञान, (सर्पादि विषले जन्तुओं का विष | विसृज्यम् [ विसृज् + यत् ] जो मुक्त किये जाने के योग्य दूर करने की प्रक्रिया। है, सृष्टि, संसार का रचना-कालो वशीकृत-विसज्य विषक्त (वि.) [वि+ष +क्त ] 1. व्यस्त, चिपका विसर्गशक्तिः भाग०७।९।२२ / हुआ 2. अतिविस्तारित / विसर्ग: [विसृज्+घञ्] विनाश, सृष्टि का लोप / विषावनम् [वि+ष+णिच +ल्यट] कष्ट , विसप (भ्वा० पर०) फैलाना. प्रसारित करना। सताना। विसपिन् [ विसप्+णिनि ] 1. रेंगने वाला 2. फूट कर विषम (वि०) [प्रा० ब०] 1. जो पूरा न बँट सके 2. अनु- निकलने वाला 3. सरकने वाला 4. फैलने वाला पयुक्त / सम०-बाणः कामदेव,-नेत्रम् शिव की / (वेल की भाँति)। तीसरी आँख,-नेत्र: शिव का एक विशेषण,-वृत्तम् | विस्पन्दः [विस्पन्द् / घा) बूंद, कण / छंद जिसके चरण सम न हों। विस्फूर्जः [ बिस्फूर्ज +घा ] दहाड़ना चिंघाड़ना, गरविषय: [ वि+सि+अच, षत्वम् ] 1. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जना। गृहीत होने वाला पदार्थ 2. भौतिक पदार्थ 3. इन्द्रिय- विस्फोटकः [ विस्फुट +ण्वुल ] 1. फोड़ा, फँसी 2. एक जन्य आनन्द / सम-निति: किसी बात को प्रकार का कोढ़। मुकर जाना,-पराकमुखः भौतिक विषय सुखों से | विस्मयपदम् आश्चर्य का विषय / विमख। वित्रगन्धः कच्चे मांस की गन्ध / विषयीकरणम् [विषय-+च्चि-++ल्युट्] किसी वस्तु को विहृति (स्त्री०) [वि+हन्+क्तिन् / प्रतिघात, अपचिन्तन का विषय बनाना / सारण, विफलता, भग्नाशा, ... मनोभिः सोद्वेगैः प्रणयविषय (वि०) [वि-+ सह+यत् ] जीतने के योग्य / / --विहतिध्वस्तरुचयः कि० 1063 / / विषाणः [ विष्+कानच् ] 1. चोटी 2. चूची 3. अपनी विहाय (अ०) [वि+हा+ल्यप् ] 1..."से अधिक, के प्रकार का उत्तमोत्तम / i अतिरिक्त 2. होते हुए भी 3. सिवाय, छोड़ कर / विषुवसमयः वह समय जब दिन रात का मान बराबर विहित प्रतिषद्ध (वि.) जिसका विधान और निषेध दोनों होता है। किये गये हों। विष्टम्भ (स्वा० ऋचा. पर०) 1. समर्थन करना, प्रबल | विहरणम् [वि+ह-ल्युट ] खोलना, फैलाना। बनाना 2. व्याप्त होना, छा जाना / विहारः [वि++घञ ] (मीमांसा) अग्नित्रय, विष्टिकरः दासों का स्वामी, बेगार में पकड़े मजदूरों का (गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण)। स्वामी। विहारभूमिः गोचरभूमि, चरागाह / विष्टिकारिन बेगार में पकड़ा गया मजदूर जिसे कोई विह्वलचेतस् (वि.) [ब० स०] उदास, खिन्नमना जिसका पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है। / मन बहुत व्याकुल हो / विष्ठाशिन [ विष्ठा+आशिन् ] सूअर, जो मल खाता है। वीचिक्षोभ लहरों का उठना, तरंगों से उत्पन्न हलचल / विष्णुः [विष् +नुक ] 1. त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और वीणापाणिः नारदमुनि। महेश) में दूसरा 2. अग्नि 3. पावन पुरुष 4. स्मृति- वोतमत्सर (वि०) ईर्ष्या द्वेषादि से मुक्त / कार 5. एक वसु 6. श्रवण नक्षत्रपुंज (इसका अधि-वीरकाम (वि०) पुर्वषी, पुत्र का इच्छुक / ष्ठात्री देवता विष्णु है) 7. चैत्र का महीना। सम० / वीरपत्नी [ष० त०] शूरवीर की पत्नी, नायिका। For Private and Personal Use Only Page #1350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनन वेदिम श्रुतिः ईश्वरीय सम०-आधा ( 1341 ) वीरवादः [ष० त०] शक्ति का दावा, वीरता जन्य , --अनध्ययनम् वह अवकाश का दिन जिस दिन वेद कीर्ति। का पढ़ना निषिद्ध हो, ... बाह्य (वि.) 1. वेद के वीरवत (वि०) अपनी प्रतिज्ञा पर अटल, दृढ़ संकल्प | विपरीत 2. वेदाध्ययन के क्षेत्र से बाहर,--वादः वेदों वाला। के विषय में होने वाली धर्मान्ध व्यक्तियों की बहस वीरकः [वीर+कन ] 1. 'करवीर' नाम का पौधा - वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः--भग०, ___2. नायक 3. एक शिवगण का नाम / ध्रुतिः ईश्वरीय ज्ञान का देवी संदेश / वीर्यम् [वो+यत् ] 1. विष 2. सोका 3. पुंस्त्व, जनन | वेदिमेखला वेदी के चारों ओर को सीमा को बाँधने वाली -शक्ति 4. वीज, धातु / सम०-आधानम् गर्भा रस्सी / धान,-शुल्क (वि.) चुनौती देकर युद्ध, शक्ति के | वेधः (पुं०) [विधा+असुन्, गुणः ] ज्योतिष का पारिबल पर कोत। भाषिक शब्द जिसका अर्थ है ग्रहों की स्थिति का वृतिद्रुमः [ष० त०] सीमावर्ती वृक्ष / निर्धारण। वृतिमार्गः [ष० त०] ऐसी सड़क जिसके दोनों ओर बाड़ वेलातिक्रमः [ष० त०] सीमा का उल्लंघन / लगी हो। वेलातिग (वि.) किनारे से बाहर रहने वाला / वृकः [वृ+कक् ] 1. भेड़िया 2. सूर्य / वेश्यापतिः [प० त०] जार, वेश्या का पति / वृकधूर्तक: 1. रीछ 2. गीदड़ / वेश्यापुत्रः [10 त०] वेश्या का पुत्र, अवैध पुत्र, हरामी / वृक्षामयः [ष० त०] लाख, रेजन (वेरजा) / वेष्टनम् [ वेष्ट् + ल्युट ] दियाम, एक सिरे से दूसरे सिरे वृत्तम [वृत्+क्त ] 1. रूपान्तरण 2. अधिचक्र / तक का सारा फैलाव / वृत्तवन्धः छन्दोबद्ध रचना / वैकारिक (वि०) [विकार-+-ठक ] 1. परिवर्तनीय वृत्तयुक्त (वि०) गुणों से सम्पन्न / 2. सत्त्व से संबद्ध-वैकारिकस्तजसश्च तामसश्चेत्यह वृत्त्यर्थम् (अ०) जीविका के लिए। त्रिधा-भाग० 3 / 5 / 30 / वसिमलम जीविका की व्यवस्था, जीविका का आधार। वैकार्यम विकार, परिवर्तन। वृथान्नम् [वृथा+अन्नम् ] केवल एक व्यक्ति के अपने वैकृतम् [ विकृत+अण् ] कपट, धोखा / उपभोग के लिए आहार। बैजन्यम् [विजन-यन ] निर्जनता, एकान्त / वथार्तवा [वृथा--आर्तवा ] बांझ स्त्री। वैडूर्यम् एक प्रकार का रत्न / वृद्धयुवतिः (स्त्री०) 1. कुट्टिनी 2. दाई, धात्री। दैतानसूत्रम् यज्ञविषयक कुछ सूत्र / वृद्धिः (स्त्री०) [वध-+ क्तिन् ] 1. आपात, चोट (वृद्ध दुरिकम् | विदुर+ठक | विदुर का सिद्धांत / हिसायाम्) 2. भूमि का ऊँचा करना 3. लम्बा वैद्यविद्या [ष० त०] आयुर्वेद शास्त्र / करना। वैधय॑समः असमानता के कोणों पर आधारित तर्कसंगत वृन्दम् [बृ+दन्, नुम् ] गुच्छा, झुंड / म्रान्ति, हेत्वाभास / वृषः [वष्+क] 1. जल 2. भवन निर्माण के लिए भखंड वभावर (वि.) [ विभावर-- अण् ] रात परक / __3. नरजन्तु 4. साँड / सम० - लक्षणा मरदानी स्त्री, | बयवहारिक (वि.) [व्यवहार-1-ठक] व्यवहारसिद्ध, -- सक्विन् (पुं०) भिड़ / रूढ़, प्रचलित। वृषभयानम बैल गाड़ी। वैयाकरणखसूचिः केवल वैयाकरण का विडम्बनाद्योतक वृषल: [ वृष्-कलच ] 1. नाचने वाला 2. बैल / शब्द / वषलीफेनः [ष० त०] ओष्ठ की आर्द्रता / वैरायितम् [ वैर+क्यच् +क्त ] शत्रता, द्वेष, विरोध / वृष्णिपाल: ग्वाला, गडरिया। वैराग्यम् [विराग+ध्या ] वर्ण या रंग का लोप / बेडघरः सौन्दर्य का अभिमान / वैराग्यशतकम् भर्तहरिकृत एक काव्यरचना / वेणिः [ वेण+इन् ] 1. फिर संयुक्त की गई संपत्ति जो | वैवस्वतमन्वन्तरम् सातवाँ मन्वन्तर, वर्तमान समय / पहले से बंटी हुई थी 2. जल प्रवाह, झरना। बैशसम् [विशस+अण् ] हिंसा भाग० 5 / 9 / 15 / वेणुदलम् बाँस का फट्टा / / वैश्वस्त्यम् [ विश्वस्त+ध्या 1 विधवापन / वेण्यवः बाँस का चावल, बांसबीज। वैष्टिक: बेगार करने वाला, जिसे कार्य करने के लिए वेतालपञ्चविंशतिः पच्चीस कहानियों की एक कृति। बाध्य होना पड़े। बेवः [ विद्+अच्, घन वा ] 1. ज्ञान 2. हिन्दुओं की | वैष्णवस्थानकम् (नाटक०) रंगमंचपर लम्बे-लम्बे डग भर पुनीत धर्म पुस्तक -ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा कर इधर-उधर टहलना / अधर्ववेद 3. 'कुश' का गुच्छा 4. विष्णु। समबोलकः आवर्त, भंवर, बवंडर / For Private and Personal Use Only Page #1351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1342 ) व्यक्षः विषवद् रेखा, भूमध्यरेखा / व्यवायः [ वि+अव+अयघञ्] 1. दूरी, पार्थक्य व्य अकुश (वि०) अनियंत्रित, निरंकुश / 2. प्रवेश, घुसाना / व्यङ्गः [प्रा० ब० ] इस्पात / व्यसनब्रह्मचारिन् (वि०) साथ-साथ दुःख भोगने वाला। व्यजनक्रिया पंखा झलना। व्यसनावापः विपत्ति का घर / व्यञ्जना शुद्ध उच्चारण, स्पष्ट उच्चारण-हीनव्यंजनया व्यस्तपुच्छ (वि०) फैलाई हुई पूंछ वाला। प्रेक्ष्य--रा०।६४११ / व्यस्तिका (अ०) बाहों को फैलाकर तथा पैरों को चौडा व्यक्तिकरः 1. उत्तेजना, उकसाहट -भाग० 2 / 5 / 22 करके (खड़ा होना)। 2. विनाश-भाग० 117 / 32 / व्याकृ (तना० उभ०) भविष्यवाणी करना (बुद्ध)। व्यतिक्रमः [वि+अति +-क्रम् +घञ / उल्लंघन, अति- व्याकरणम् [ वि+आ-----ल्युट् ] 1. भेद, अन्तर क्रमण -तयोव्यंतिक्रमं दृष्ट्वा -महा० 3 / 12 / 39 / / 2. भविष्यवाणी / व्यतिषङ्गः [वि + अति + सज-घा ] 1. प्रतियुद्ध, | व्याकोच (वि०) (फूल की भांति) खिला हुआ, पूर्ण शत्रु से भिड़त 2. विनिमय / विकसित। व्यथित (वि०) [व्यथ-+क्त] 1. कण्टग्रस्त, पीडित | व्याकोपः [वि+आ-+-कुप-1-घा] विरोध, खंडन / 2. क्षुब्ध, डरा हुआ। व्याक्रोशः [वि |-आ। कुश+घञ] चिल्ला-चिल्ला कर व्यपायनम् [वि+अप+आ+इ--ल्युट ] अपगमन, पला- गालियाँ देना, भन्संना करना। यन, पीछे हटना। व्याधारित (वि.) जिस पर धी (या तेल) का छींटा व्यपवर्गः [वि--अप+व+घञ] 1. प्रभाग 2. समाप्ति / दिया गया हो (इसी अर्थ में अभिधारित भी)। व्यपाश्रयः [वि+ अप+आ-+-शि-+अच् ] आश्रयस्थान, वाणित (वि.) [वि+आ+पूर्ण +क्त] लुढका हुआ, सहारा। चक्कर खाया हुआ व्याघुर्णजगदण्डकुण्डकुहरो खः व्यपोह (भ्वा० पर०) 1. प्रायश्चित्त करना 2. स्वस्थ -नारा०। होना 3. दूर भगाना / व्यापूर्णत (वि.)[वि+आ+घूर्ण+शत] लुढ़कता हुआ, व्यभिचारकृत (वि०) अनुचित यौन संबंध करने वाला। चक्कर खाता हुआ। व्यभिचारिन (वि०) [वि+अभि-चर+णिच्+णिनि | व्याजनिद्रा झूठमठ की नींद, दड़ मार कर सोना / __ 1. कुमार्गगामी, दुश्चरित्र 2. अस्थायी। व्याजव्यवहारः कौशलपूर्ण व्यवहार / व्ययः [वि++अच् ] (व्या० में) रूपान्तर, शब्द या | व्याजिह्म (वि.) [वि+हा+मन्, द्वित्वादि नि०] कुटिल, धातु का विभक्ति में प्रत्यय लगा कर रूप बनाना। तोड़ा-मरोड़ा हआ, झका हआ धमपटलव्याजिह्मव्ययशेषः खर्च काट कर बची हुई राशि, निवलशेष / रत्नत्विष:-नाग०५।१७ / व्यवच्छेदः [ वि+अब+छिद्+घा ] विनाश / व्याधिनिग्रहः रोग को नियंत्रित करना। व्यवधानम् [ वि+अब+धा-ल्युट् ] (मीमांसा) दुरूह | व्याधिस्थानम शरीर / रचना, क्लिष्ट रचना / व्याप्तिबादः विश्वव्यापकता का सिद्धान्त / व्यवहित (वि०) [वि+अव+धा+क्त ] दूर पार का, | व्यापारक (वि०) [वि+आ+---णिच् / वुल] व्यापा दूरवर्ती। सम० कल्पना शब्दों की एक रचना रग्रस्त व्यवसाय में लगा हुआ / प्रणाली जिसमें एक दूसरे से वियक्त शब्दों को मिला। व्यामिश्र (वि.) [वि+आ+मिश्र-- अच] 1. असंगत कर एक वाक्य बनाया जाय।। 2. मिला-जुला 3. संदिग्ध, भ्रामक-व्यामिश्रेणेव व्यवसर्गः [वि+अव+सज+घा परित्याग / वाक्येन बुद्धि मोहयसीव गे ---भग० 3 / 2 / व्यवसायात्मक (वि.) उत्साह से पूर्ण / व्यामिश्रकम वि-!-आ-+-मिश्र --- वल] नाटकीय समालाप व्यवसायात्मिका (स्त्री०) दृढ़संकल्प से युक्त / जिसमें विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग हुआ हो व्यवस्थानम [वि+अब+स्था-+-ल्युट] निश्चित सीमा / ---रा०२।११२७ पर टोका। व्यवस्थितविकल्यः निश्चित विकल्प। व्यायामः [वि+आ+यम+धज] सैनिक अभ्यास, फौज व्यवहारः [वि+अब++धा] 1. संविदा 2. गणित की कवायद। के घात या बल 3. व्यापार 4. मुकदमा 5. प्रथा, व्यावजित (वि.) [वि+आ- वज--क्त झुका हुआ। रीतिरिवाज। सम० --अथिन् (वि०) वादी, मुद्दई, व्यावहारिकसत्ता भौतिक अस्तित्व / --वादिन् (वि.) जो प्रचलन के आधार पर तर्क | व्यावृत्त (वि.)[वि+आ+ वृत्- क्त] परिवर्तित-महा० करता है। 12 / 141 / 15 / व्यवहृतम् [वि+अव+ह-+क्त] व्यापारिक लेन-देन। व्यासपीठम पुराणों के व्याख्याता का पद या गद्दी / For Private and Personal Use Only Page #1352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1343 ) व्यासपूजा गुरु और व्यास की पूजा जो आषाढ़ी पूर्णिमा व्रजभाषा मथुरा के आस-पास बोली जाने वाली भाषा / को होती है। व्रतः,-तम [वज्+घ, जस्य तः मानसिक क्रिया कलाप व्याससमासौ (द्वि०व०) वैयक्तिक तथा सामहिक रूप से।। व्रतमिति च मानसं कम उच्यते--मी० सू० 6 / 220 व्युत्क्रान्तजीवित (वि०) मत, निर्जीव / पर शा० भा०। सम०-धारणम एक धार्मिक व्युत्था (भ्वा० आ०) 1. जीत लेना 2. दूर करना। व्रत का धारण करता। व्युपरत (वि.) [वि + उप-रम् + क्त] विश्रान्त, समाप्त, व्रात्यकाण्डः अथर्ववेद का एक काण्ड / मत / प्रात्यचर्या आहिण्डक या अवधूत का जीवन / व्यूहविभागः सेना को भिन्न-भिन्न व्यहों में बाँटना। वीडादानम संकोच एवं नम्रतापूर्वक दिया गया उपहार / व्येक (वि०) जिसमें एक कम हो / वीहिवापम चावल की पौधा लगाना / व्योमरत्नम् सूर्य। बलेटकः पाश, जाल। व्योमसंभवा चितकबरी माय / शंस (म्वा० पर०) उन ऋग्मन्त्रों में स्तुति गान करना जो। --कुलम् रिपु का घर,-लाव (वि.) शत्रुओं को गायन के लिए निर्धारित नहीं किये गये--अप्रगीतेष मारने वाला। शंसति-मै० सं०७।२।१७ पर शा० भा०। | शनिचक्रम् ‘शनि की स्थिति से' शुभाशुभ जानने का एक शंसित (वि.) [शंस्+क्त] ध्यान दिया गया या मान आलेख, चित्र। लिया गया -जैसा कि “शंसितव्रतः" में। शपित (वि०) [शप्+क्त शाप दिया हुआ। शंस्य (वि.) [शंस्+ण्यत्] 1 प्रशंसा के योग्य 2. ऊंचे शपथकरणम् शपथ उठाना। स्वर से पठित / शपथपूर्वकम् (अ.) शपथ उठाकर (कहना या करना)। शकटव्यूहः एक विशेष प्रकार का सैनिक व्यूह / शफरकः पेटी, बर्तन-हर्ष० 4 / / शकुलादनी 1. भूकीट, केंचुआ 2. एक जड़ीबूटी (कटकी)। शब्दः शब्द-घा] 1. आवाज़ (श्रुति विषय और आकाश शक्तिध्वजः कार्तिकेय / का गुण) 2. ध्वनि, रव (पक्षियों या विभिन्न प्राणियों शक्य (वि०) [शक् + ण्यत्] श्रुतिमधुर-शक्यः प्रियंवदः / का) 3. पद, सार्थक शब्द 4. व्याकरण 5. ख्याति प्रोक्तः-इति हलायुधः-दश० 2 / 5 / लब्धशब्देन कौसल्ये-रा० 2 / 63 / 11 6. पुनीत प्रणव शक्रकाष्ठा पूर्व दिशा। (ओम्) / सम०~अक्षरम् पुनीत प्रणव, इन्द्रियम् शडाभियोगः दोषारोपण करना या संदेह करना / कान, - गोचरः 1. वाणी का विषय 2. श्रव्य, बैलशङ्कराचार्य: वेदान्तदर्शन का महत्तम आचार्य, अद्वैतवाद | क्षण्यम शाब्दिक भिन्नता,-संज्ञा व्याकरण का एक का प्रवर्तक जिसने ब्राह्मण्य धर्म को पुनर्जीवित करने पारिभाषिक शब्द,-पा० १११६८,-स्मृतिः (स्त्री०) के लिए षण्मत को स्थापना की। भाषा विज्ञान। शकुपुच्छम् (मधुमक्खी या भीड़ आदि) कोड़ों का डंक / शमात्मक (वि०) शान्त, स्वभाव से शान्तिप्रिय / शकुफला शमी वृक्ष, जैडी का वृक्ष। शमोपन्यासः शान्ति के लिए बोलने वाला, शान्ति की शङ्करः शम्-ख] शंख का बना कंकण / सम.--आवर्त: बकालत करने वाला। शंख का झुकाव या गोलाई का मोड, शंबुकावर्त, शमनीय (वि०) [शम्+अनीय] शान्ति देने योग्य, मन को ---बलयः शंख से निर्मित कडा, वेला शंखध्वनि के | शान्ति प्रदान करने योग्य / द्वारा संकेतित समय। शमीकुणः वह समय जब कि शमी वृक्ष के फल आता है। शतम् (नपुं०) 1. सौ 2. कोई बड़ी संख्या / सम० ---'वन्द्रः शम्भुतेजस् 1. शिव की आभा 2. स्कन्द का विशेषण / तलवार या ढाल जो सौ चन्द्राङ्कनों से सुसज्जित हो, शम्या शिम्-+-यत्-+टाप्] 1. लकड़ी या चौखट 2. जूए' --चरणा शतपदी, कनखजरा,--पोन: चलनी, की कील 3. एक प्रकार की वीणा 4. यज्ञपात्र 5. एक ---- मयूख: चन्द्रमा,-लोचनः इन्द्र का विशेषण / प्रकार का शल्यचिकित्सापरक उपकरण / सम० शत्रुः [शद्+त्रुन्] 1. दुश्मन, रिपु 2. विजेता, हराने वाला। --क्षेपः,---पातः दूरी जहाँ तक कोई लकड़ी फेंकी जा सम-निवहंण (वि०) शत्रुओं का नाश करने वाला, / सके। For Private and Personal Use Only Page #1353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1344 } शयनम् [शी+ल्युट्] 1. सोना, लेटना 2. बिस्तरा, खाट। किसी विशेष शाखा के पाठ का पढ़ने वाला विद्यार्थी, 3. सहवास, यौनसंबंध / सम...पालिका सेविका जो। -वातः वायु के कारण अंगों में पीड़ा। राजा की शय्या बिछाती है,-भूमिः शयन कक्ष, सोने | शाङ्करपीठः शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित पाँच आध्यात्मिक का कमरा। केन्द्रों में से कोई सा एक। शरक्षेपः बाण फेंकने की दूरी का परास / शाडखायनः वेद का एक अध्यापक / शरणम् [श-ल्युट्] 1. प्ररक्षण, सहायता 2. शरणागार, | शाण्डिल्यस्मति: शाण्डिल्य द्वारा प्रणीत एक धर्मग्रन्थ या शरणाश्रम 3. आवास, घर 4. विश्रामस्थल 5. आहत | विधि की पुस्तक / करना, हत्या करना। सम०--आगतिः प्ररक्षणार्थ | | शाततव (वि०) [ शतक्रतु+अण् ] इन्द्र संबन्धी / पहुंचना,- आलयः शरणगृह,-द (वि.),-प्रद शातनम् [ शो-+-णिच, तक+ल्युट ] पैनाना, तेज़ करना, (वि०) शरण देने वाला। चमकाना। शरज्ज्योत्स्ना [शरद्+ज्योत्सना] शरदृतु की चाँदनी, शान्त (वि.) [ शम्+क्त ] प्रभावहीन किया हुआ, ठूठा --शरज्ज्योत्स्नाशुद्धां शशियुतजटाजूटमकुटाम्-सौन्दर्य किया हुआ। सम०-गुण (वि०) उपरत, मृत लहरी। ... नृपे शान्तगुणे जाते--रा० 2065 / 24,- रजस् शरीरचिन्ता शरीर की देखभाल। (वि.) 1. घूल रहित 2. निरावेश। शरीरधातुः बुद्ध के शरीर की अवशिष्ट भस्म / शान्तिः (स्त्री० [शम्+क्तिन 1 विनाश, अन्त / सम० शरीराकारः, / शारीरिक दर्शन, देह का आकार-प्रकार, -कमन् पाप को दूर करने का कोई धार्मिक अनुष्ठान, शरीराकृतिः (सूरत, शक्ल, शरीर का डीलडौल / -वाचनम् ऐसे वेद मंत्रों का सस्वर पाठ जो पाप को शर्करा [श+करन, कस्य नेत्वम] 1. गन्ने से निर्मित शक्कर दूर करने वाले समझे जाते है। 2. कङ्कड़ 3. पत्थरों के कड़ों से बहुल भूमि 4. रेत | शापग्रस्त (वि०) शाप के दुष्प्रभाव से जकड़ा हुआ। 5. ठीकरा 6. सुनहरी भूमि---स्तिमितजलो मणि- शापाम्बु ) शाप का उच्चारण करते समय दिये जाने शङ्खशर्कर: - रा० 2 / 8 / 16 / शापोदकम् / वाले पानी के छींटे। शर्कराल (वि.) [शर्करा-+-अलच्] कडाड़ के कणों से | शाबरभाष्यम् मीमांसा सूत्रों पर किया गया भाष्य / युक्त (जैसे कि रेतीले तट की हवा)। शामित्रम् [शम्+णिच--इत्रच ] पशु बलि देने का शर्मण्य (वि०) [शर्मन+य शरण देने वाला, प्ररक्षण देने | स्थान। वाला। शाम्बरिक: [ शम्बर+ठक ] बाजीगर / शलाका [शल+आकः] 1. खटी, कील 2. अंगुली-शला- शारद (वि.) [शरद्+अण् ] चतुर, निपुण / कानखपातैश्च-महा०४।१३।२९ / सम० --परीक्षा शारद्वतः 'कृप' का नाम / विद्यार्थी की परीक्षा लेने की रीति जिसके अनुसार / शारिशृङखला एक प्रकार का पासा, शतरंज खेलने की गोट / पुस्तक में कहीं भी शलाका से संकेत किया जा सकता | शार्व (वि.) [शर्व+ अण् ] शिव से सम्बन्ध रखने है,-पुरुषाः 63 दिव्य जैन, ---यन्त्रम् शल्य चिकित्सा वाला। से संबद्ध एक उपकरण,-कर्तृ (पुं०) जर्राह, शल्य- शालायनः एक ऋपि का नाम / चिकित्सक,-क्रिया शरीर में घुसे हुए कांटे आदि शालङ्किः पाणिनि का नाम / किसी पदार्थ को बाहर निकालना, पर्वन् महाभारत | शाश (वि०) [शश+अण] खरगोश से प्राप्त, खरगोश का नवाँ खण्ड (पर्व)। सम्बन्धी। शवशयनम् कबरिस्तान। शासनम् [शास्+ल्युट ] 1. धार्मिक सिद्धान्त 2. संदेश / शवशिविका अर्थी, शव को ले जाने वाली पालकी / सम० ---दूषक (वि.) आदेश का पालन न करने शवशकुली एक प्रकार की मछली। वाला,-लाधनम् आज्ञा का उल्लंघन करना / शस्त्रम् [शस्+य्द्रन् ] 1. हथियार 2. लोहा 3. इस्पात शास्त्रम् [शास्+ष्ट्रन् ] 1. आदेश, आज्ञा 2. पावन, 4. स्तोत्र / सम०--कर्मन शल्यक्रिया,---निपातनम् शिक्षण, वेद का आदेश 3. ज्ञान का कोई विभाग शल्यक्रिया,-व्यवहारः हथियार चलाने का अभ्यास / 4. किसी विषय का सैद्धान्तिक पहल-इमं मां च शाककलम्बक: लशुन, प्याज जैसी एक गांठदार कन्द / शास्त्रे च विमशतु--याल. 1 / सम०-अन्दित शाकपात्रम् सब्जी की तश्तरी। (वि०) शास्त्रीय नियमों के अनुकूल,-- वक्त (पुं०) शाखा परम्परा प्राप्त वेद का पाठ, किसी विशेष शाखा शास्त्रीय पुस्तकों का व्याख्याता,-बजित (वि०) द्वारा अनुसत वेद पाठ जैसे शाकल शाखा, आश्वलायन सब प्रकार के नियम या विधि से मुक्त,-बाद: शास्त्र शाखा, बाष्कल शाखा आदि / सम-अध्येत वेद की) के आधार पर दिया गया तर्क / For Private and Personal Use Only Page #1354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिक्यपाशः छींका लटकाने के लिए रस्सी। शीर्षछेदिक 1 (वि०) फांसी पर चढ़ाये जाने के योग्य, शिक्षा [ शिक्ष-+अ+टाप ] 1. दण्ड 2. गुरु के निकट शीर्षछेद्य ---शीर्षच्छेद्यः स ते राम तं हत्वा जीवय विद्याभ्यास 3. उपदेश 4. सलाह / सम०-आचार द्विजम्- उत्तर० // 28 // (वि०) (गुरु के) उपदेशों के अनुसार आचरण करने ! शीर्षत्राणम् शिरस्त्राण, टोप / वाला। शीर्षपट्टकः दुपट्टा, साफा, पगड़ी। शिखण्डकः [ शिखण्ड-कन् ] 1. कुल्हे के नीचे शरीर का | | शुकसप्ततिः एक तोते के द्वारा अपनी स्वामिनी को सुनाई मांसल भाग 2. शैववाद में मुक्ति की एक विशेष गई सत्तर कहानियों का संग्रह / अवस्था। शुक्रम् [शुच्+रक्, नि० कुत्वम् ] 1. उज्ज्वलता 2. सोना शिखाबन्ध सिर के बालों का गुच्छा, चोटी बांधना। दौलत 3. वीर्य 4. किसी चीज का सत् 5. पुंस्त्वशिखिन (वि०) [शिवा / इनि ] 1. नोकदार 2. चोटी- शक्ति, स्त्रीत्वशक्ति। सम-कृच्छम् मूत्रकृच्छ धारी 3. ज्ञान की चोटी पर पहुँचा हुआ 4. अभिमानी रोग,--दोषः बीर्य का दोष / (पु०) 1. मोर 2. अग्नि / सम० कण: आग की शुक्लम [शुच्+लुक्, कुत्वम्] 1. उज्ज्वलता 2. श्वेत धब्बा चिनगारी,-भूः स्कन्द का नाम, मृत्युः कामदेव / / | 3. चाँदी 4. आँख की सफेदी का रोग / सम-जीव: शिलाक्षरम् 1. प्रस्तरमुद्रण, पत्थर के द्वारा छापने की प्रक्रिया | एक प्रकार का पौवा,--देह(वि.)पवित्र शरीर वाला। 2. शिलालेख, पत्थर पर खुदवाया हुआ अनुशासन / शचियन्त्रम् एक मशीन जिसके द्वारा आतिशबाजी का शिलानिर्यासः शिलाजतु, शीलाजीत / प्रदर्शन किया जाता है। शिलाशित (वि०) पत्थर पर बनाया हुआ। शुचिश्रवस् (पुं०) विष्णु का नाम / शिलीपदः पादस्फीति, फील पाँव रोग। शुचिषद् (वि.) सन्मार्ग पर चलने वाला। शिल्पाहम शिल्पकार का कारखाना, कारोगर के काम शुण्डमूषिका छछुन्दर / / करने का स्थान। शुण्डादण्डः हाथी का सूड / शिल्पजीविन (वि०) कारीगरी का काम करके जीविको- | शुद्ध (वि०) [शुध+क्त] 1. जांचा हुआ, आजमाया पार्जन करने वाला व्यक्ति, शिल्पी। हुआ, परीक्षित 2. पवित्र, निष्कलंक 3. ईमानदार, शिव (वि०) [ शो-वन् पृषो०] 1. शुभ, मंगलमय, धर्मात्मा 4. विशुद्ध, खलिस जिसमें कुछ मिलावट सौभाग्यसूचक 2. स्वस्थ, प्रसन्न, भाग्यशाली, (पुं०) न हो (विप० मिथ)। सम० -- अद्वतम् अद्वैत की 1. हिन्दुओं के त्रिदेव में से तीसरा 2. पारा 3. सुरा, वह स्थिति जहाँ कि जीव और ईश्वर का सायज्य स्पिरिट 4. समय 5. तक्र, छाछ / सम० अद्वतः मायारहित माना जाता है-बोध (बि०) (वेदान्त०) विवाद का दर्शनशास्त्र, अकमणिदीपिका अप्पय- विशुद्ध ज्ञान से युक्त, भाव (वि०) पवित्र मन दीक्षित द्वारा रचित शैववाद पर एक ग्रन्थ,-काम- वाला, विष्कम्भकः नाटक का वह भाग जहाँ केवल सुन्दरी पार्वती का विशेषण, पदम मोक्ष, मुक्ति, संस्कृत बोलने वाले पात्र ही दिखाई दें। बीजम पारा। शुद्धिः [ शुच्-|-क्तिन् ] (गणित० में) शेष न छोड़ना / शियिषा [ शी+सन् / अङ-टाप् धातोद्वित्वम् ] सोने | शुभमङ्गलम् सौभाग्य, कल्याण, अभ्युदय / की इच्छा। शुल्काध्यक्षः चुंगी का अध्यक्ष / शिशिरमथित (वि०) सर्दी से ठिठुरा हुआ। शुल्बसूत्रम सूत्रग्रन्थ जिसमें श्रोत यज्ञकृत्यों की विविध शिशः [ शो+कु, सन्वद्भाव:, द्वित्वम् ] 1. वचा, बाल गणनप्रक्रिया समाविष्ट है। 2. किस, भी जन्तु का बच्चा (बछड़ा, पिल्ला, | शुष्ककासः सूखी खाँसी। बिलौटना आदि) 3. छठे वर्ष में हाथी। सम शुष्करुदितम् ऐसा रोना अिसमें आँसू न आयें। -नामन् (पुं०) ऊँट / शूकः [ शिव+कक्, संप्रसारणम् ] 1. प्रकिण्व, सुरामण्ड शिश्नम्भर (वि.) विषयी, कामलोलुप / 2. खमीर। शिष्टविगर्हणम बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली | शूद्रः [शुच+रक, पृषो० चस्य दः दीर्घश्च ] हिन्दु समाज निन्दा। में चौथे वर्ण का पुरुष (कहा जाता है कि वह पुरुष शिष्टसम्मत (वि.) विद्वान् पुरुषों द्वारा माना हुआ। के पैरों से उत्पन्न हुआ --पद्भ्यां शूद्रोऽजायत-ऋ० शीघ्रकेन्द्रम ग्रहसंयोग से दूरी, फासला / 10 / 10 / 12 / ) / सम०-अन्नम् शूद्र द्वारा दिया शीघ्रपरिधिः (पुं०) ग्रहसंयोग का अधिक। गया या परोसा गया भोजन,-धन (वि.) शूद्र शीफर (वि.) 1. मनोरम, रमणीय 2. आनन्दप्रद, की हत्या करने वाला,-वृत्तिः शूद्र का व्यवसाय, सुखमय। __ संस्पर्शः शूद्र से छू जाना। For Private and Personal Use Only Page #1355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1346 ) पूरः [शूर+अम्] 1. नायक, योद्धा 2. शेर 3. रीछ | शौण्डीर्यम् [ शौण्डीर+व्या ] 1. प्रवीरता, पराक्रम 4. सूर्य 5. साल का वृक्ष 6. मदार का पौधा | 2. अभिमान, धमंड। 7. चित्रक वृक्ष 8. कुत्ता 1. मुर्गा / सम०-वावः | शौर्यकम् (नपुं०) शूरवीरता का कार्य / बौदों का अनस्तित्व सिद्धांत / | शोव (वि०) [श्वन्+अण, टिलोपः] आगामी कल से शूल: [शूल +क] 1. विक्रय 2. बेचने योग्य पदार्थ संबंध रखने वाला। 3. नोकदार हथियार 4. लोहे की सलाख (जिस पर | श्मश्रकरः नाई, हजामत बनाने वाला। रख कर मांस भूना जाता है) 5. किसी भी प्रकार श्मश्रुशेखरः नारियल का पेड़। का दर्द 6. मृत्यु / सम०-अङ्कः शिव का विशेषण श्यामः [श्य+मक ] तमाल का पेड़। ---ये समाराध्य शूलाडू-महा० 107 / 47,-- अवतं श्यामवल्ली काली मिर्च / / सित (वि०) सलाख पर लटकाया हुआ, सूली पर | श्यामा दुर्गादेवी का तान्त्रिक रूप / चढ़ाया हुआ,-आरोपः सूली पर चढ़ाना। श्येनकपोतोय (वि.) आकस्मिक संकट / शूल्यमांसम् भुना हुआ मांस / श्येनपातः बाज़ का झपट्टा / शूव (वि.) [ शूष्+अच् ] 1. गुंजायमान 2. साहसी। श्रद्धाजाडयम् अंध विश्वास / भृङ्गम् [श+गन् मुम् ह्र स्वश्च ] 1. सींग 2. पर्वत की श्रद्धेय (वि०) [श्रत् + धा+ण्यत् ] विश्वासपात्र,-श्रद्धेयाः "चोटी 3. ऊंचाई 4. स्त्री का स्तन 5. एक विशेष | विप्रलब्धारः-कि० 11 // 35 / प्रकार का सैनिक व्यूह। सम-प्राहिका 1. प्रत्यक्ष | श्रम (प्रेर०--श्र-श्रामयति) 1. थकाना 2. जीतना, हराना। रीति 2. (तक० में) एक पक्ष लेना। श्रमविनोदः क्लांति दूर करना, विश्राम करना। श्रुङ्गिन् (वि.) [शृङ्ग+इनि ] सींगों वाला जानवर | श्रमात (वि.) थक कर चूर-चूर, थकान से पीड़ित / (J0) बैल। श्रवपत्रम् कान की बाली। भूतपाक (वि.) पूर्णत: पका हुआ। श्रवणम्,-णः [श्रु+ ल्युट् ] 1. कान 2. त्रिकोण की एक भूतशीत (वि.) उबाल कर ठंडा किया हुआ। रेखा 3. सुनने की क्रिया। सम-पुटकः कर्णविवर, शेषः [शिष्+अच् ] 1. अङ्गभूत वस्तु 2. प्रसाद, पूरकः कान की बाली, कर्णफूल,-प्राणिकः श्रवण कृपा। गोचर वस्तु, कानों में आना, भूत (वि० ) कहा शेषाचल: / तिरुपति की पहाड़ियाँ। गया। शेषाद्रिः / श्रावमित्रः श्राद्ध के द्वारा बनाया गया मित्र / शक्यः [शिक्य+अण ] 1. एक प्रकार का गोफिया 2. लट- | धाशाह (वि०) श्राद्ध के लिए उपयुक्त / काया हुआ बर्तन / श्राद्धय / शौषिल्यम शिथिल+व्यञ] 1. अस्थिरता 2. शिथिलता, श्रावकः [श्रु+ण्वुल ] वह ध्वनि जो दूर से सुनी जाय। ___ सुस्ती 3. (दृष्टि की) शून्यता 4. अवहेलना / श्रितक्षम (वि०) स्वस्थ, शान्त / शेलगुरु (वि०) पहाड़ जैसा भारी। श्रितसत्त्व (वि.) जिसने साहस का आश्रय लिया है, शैलबीजम् भिलावा। साहसी, दिलेर। शैलूषी [ शिलुष+अण्-डीप ] नटी, नर्तकी। श्री [श्रि+क्विप, नि० दीर्घः ] वेदत्रयी, तीनों वेद / शोकनिहत / (वि.) शोकपीड़ित, गम का मारा। श्रीमुकुटम् सोना, स्वर्ण। शोकहत श्रीमत् (पुं०) 1. तोता 2. साँड / शोणः [ शोण+अच् ] लाल / अतिः[श्रु+क्तिन् ] 1. वाणी 2. कीर्ति 3. उपयोग, लाभ शोणितप (वि.) [शोणित+पा+क] रुधिर पीने वाला। 4. विद्वत्ता, पांडित्य / ममः अर्थः वैदिक अर्थसचन, शोणितपित्तम् रुधिरस्राव / -जातिः नाना प्रकार के दिकस्वर, दूषक (वि.) शोषः [ शुध+धा ] शुद्धि, सफ़ाई, विरेचन / कानों को कष्ट देने वाला,-वेषः कान बींधना-शिरस शोषनम् [शुध-णिच् + ल्युट ] 1. मार्जन, परिष्करण उपनिषदें - श्रुतिशिरस्सीमन्तमुक्तामणिम् -- प्रताप० 2. पाप अपराषादि से शुद्धि / शोभनाचरितम् सुन्दर आचरण, सदाचरण / श्रेयोभिकाशिन् (वि.) कल्याण चाहने वाला। शोली वनहरिद्रा, पीली हल्दी। श्रेष्ठवेषिका कस्तूरी। शोषयित्नुः [ शुष+इत्नुच् ] सूर्य / श्रेष्ठान्वयः (वि.) उत्तम कुल में उत्पन्न / शोळ्यः 1. गरुड़ 2. बाज, श्येन / श्रोणिबिम्बम गोल नितम्ब--श्रोणिबिंबचलदम्बरं भजत शौचम् [शुचि+अण 1(तर्पण के लिए) जल। रासकेलिरसडम्बरम्-नारा० / For Private and Personal Use Only Page #1356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1347 ) श्रौतस्मात (द्वि०व०) वेद और स्मति से संबंध रखने / श्वयोचिः [ श्वयतेः चित् ] चन्द्रमा / वाला। श्वसुरगृहम् श्वसुरालय। श्लथवन्धनम 1. पुठों का विश्राम देना 2. ढीली गांठ।। श्वसनमनोग (वि०) वाय और मन की भांति चंचल / श्लाघाविपर्ययः शेखी बघारने का अभाव, प्रशंसा या चाप- श्वसनरन्ध्रम् (नाक का) नथना / लूसी का न होना। श्वसनसमीरणम् श्वास, साँस / शिलष्टरूपकम् श्लेषयुक्त रूपक अलंकार, जिस रूपक के श्वास: [श्वस्---घा व्यञ्जनों के उच्चारण में महाएक से अधिक अर्थ होते हों। प्राणता। श्लेषः [श्लिष्+घञ ] 1. आलिंगन, मैथुन 2, व्याकरण श्वसप्रभृति (अ०) आगामी कल से लेकर / विषयक आगम संयोग 3. एक शब्दालंकार जहाँ एक श्वोवसीयस् (वि०) प्रसन्न, शुभ, मङ्गलमय / शब्द के कई अर्थों द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न श्वेत: [श्वित्-+अच, घा वा] 1. सफेद बकरी 2. धूमकेतु, होता है। पुच्छलतारा 3. चाँदी का सिक्का 4. जीरे का बीज श्लेषोपमा उपमा अलंकार जिसके दो अर्थ होते हों।। 5. शंख 6. सफेद रंग 7. शक तारा। सम० . अंशः श्लेष्मकटाहः थूकदान। चन्द्रमा,---अश्व: अर्जुन, - कपोतः 1. एक प्रकार का श्लोक्य (वि.) [ श्लोक + ण्यत् ] प्रशंसनीय / चूहा 2. एक प्रकार का साँप, क्षारः यवक्षार, शोरा, श्वजीविका कुत्ते का जीवन, दासता। --रसः छाछ और पानी बराबर-बराबर मिले हुए श्वदंष्ट्रा 1. कुत्ते की दाढ़ 2. गोखरू का पौधा / --वाराहः कल्प का नाम जो आजकल बीत रहा है। - - षडंशः छठा भाग। षडण्टकम फलित ज्योतिष का एक योग / षडमिः अस्तित्व की छ: लहरें। षट्पदः 1. मधुमक्खी, भौंरा 2. गीति छन्द / षड्ऋतुः (पुं०, ब० व०) छः ऋतुएँ। षड्भाववादः 'द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय' इन छः द्रव्यों की स्वीकृति पर आधारित सिद्धान्त / षाडव: 1. रसराग की एक जाति जिसमें केवल छ: स्वर जाते हैं 2. मिठाई, हलवाई का कार्य / षोडशाहः शाक्तशाखा का एक चक्र / संयत् (स्त्री०) [सम्+यत्-- किम्] युद्ध, लड़ाई, संग्राम।। संयुतिः[सम-य--क्तिन] (गणित) दो या दो से अधिक सम०-वाम (वि०) उस सबको एकत्र करने वाला संख्याओं का योगफल / जो सुखद है। संरभ (भ्वा० आ०) डरना---प्रवत्तं रज इत्येव तन्न संरम्य संयन्त्रित (वि.) [संयन्त्र+इतन्] रोका हुआ, बन्द किया चिन्तयेत्-- महा० 121194132 / / हुआ। संरब्धनेत्र (वि.) जिसकी आँखें सूज गई हों। सयम (म्वा० पर०) 1. रोकना, दमन करना, दबाना संरब्धमान ( वि० ) जिसके अभिमान को आघात लग 2. सटाना, भींचना। चुका है। संयतमथुन (वि०) जिसने मैथुन करना त्याग दिया है। संरम्भः [सम् +र+घञ् , मुम्] 1. घृणा, द्वेष-संरम्भसंयतिः [सम्-+यम-+-क्तिन तपश्चर्या, निरोध, संयमन। योगेन विन्दते तत्स्वरूपताम् / भाग०७।१।२८2. (युद्ध संयमः [सम् -- यम्+अप प्रयत्न, उद्योग / का) वेग, आक्रमण की प्रचण्डता / संयोगः [सम् +युज / घा] 1. (दर्शन) भौतिक संपर्क संराद्धिः सिम्+राध+क्तिन] निष्पत्ति, सफलता। 2. शारीरिक संपर्क 3. योगफल / सम-विधिः / संरुद्ध (वि.) [सम् + रुघ+क्त] 1. बाधायुक्त (गति) 1. सम्मिश्रण की प्रणाली 2. जीव और ईश्वर के ...-फाल्गुनो गात्रसंरुद्धो देवदेवेन भारत-महा० 3 // सायुज्य को दर्शानेवालो वेदान्त की उक्ति / 39 / 62 2. कारावरुद्ध / For Private and Personal Use Only Page #1357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1348 ) संरोषः [सम् + रुध् +धन] बंधन, कैद। (आक्रमण से)-संशोध्य विविध मार्ग--मनु० संख्द (वि.) [सम्+रह+क्त] जो गहराई तक घुसा 7/185 / हुआ हो-ततो मामतिविश्वस्तं संरूढशरविक्षतम संधि (भ्वा० उभ०) संभोगसुख के लिए पहुँचना / -महा० 3 / 17411 / / संश्रयः[सम्+श्रि+अच ] 1. आसक्ति 2. किसी पदार्थ संवत्सरनिरोधः एक वर्ष की कैद। का कोई अंश। संवद (भ्वा० पर०) परस्पर मिलाना। संश्रवस् (नपुं० [सम् --श्रु+ असुन ] पूरी कीर्ति या संबवनम् [संवद्-+ ल्युट्] संदेश / ख्याति / संवादः [सम्+वद्+घञ्] अभियोग, मुकदमा / संश्लिष्ट (वि०) [ सम् +-श्लिष्क्त ] मिश्रित, अव्यवसंवर्गविद्या (दर्शन०) अवशोषण या विश्लेपण का शास्त्र। स्थित,-ष्टम् (नपुं०) राशि, ढेर / संवासः [सम् +वस्+घञ] सहवास / संसक्त (वि.) [सम् सञ्। त] 1. विषयासक्त संवहनम् [सम्+वह+ ल्युट्] 1. मार्गदर्शन करना, नेतत्व 2. अनुरक्त / ... करना 2. प्रदर्शन करना, दिखलाना / संसज्जमान (वि.) [सम्+सज+शानच् ] 1. साथ संविग्न (वि.) [सम् +विज+क्त] 1. क्षुब्ध, उत्तेजित / लगने वाला 2. संकोच करने वाला, झिझकने वाला, 2. भयभीत, डरा हुआ 3. इधर-उधर चक्कर लगाता ...वाइमात्रेण न भावेन वाचा संसज्जमानया-रा० हुआ। 2 / 25 / 39 / संविज्ञानम् [सम् + वि+ज्ञा+ल्युट्] 1. सहमति, अनुमोदन | संसवनम् [ सम् +-सद्+ल्युट् ] खिन्नता, अवसाद / 3. सम्यक ज्ञान 4. प्रत्यक्ष ज्ञान / / संसिद्धिः [सम्+सिध+-क्तिन् ] 1. अन्तिम परिणाम संविद सम्+विद्+क्विप] 1. मतैक्य-स्तुतीरलभमा- 2. अन्तिम शब्द / नानां संविदं वेद निश्चितान् महा० 12115116 | संसृ (भ्वा० पर०) 1. स्थगित करना, उठा रखना 2. काम 2. मित्रता-संविदा देयम् --तै० उ० 1111113 / / में लगाना। संविषु (स्त्री०)[सम्+-वि+धा+क्विप्] व्यवस्था रावणः संसारसागरः ) जन्म मरण का समुद्र / संविधं चक्रे महा० 3 / 284 / 2 / संसाराधिः संविभक्त (वि.) [सम्-वि+भज्+क्त] बांटा हुआ, संसारार्णवः विभाजित, पृथक किया हुआ। संसारपङ्कः संसार रूपी कीचड़ / संवेशः [सम्+विश्+घा] कुर्सी। संसारवृक्षः सांसारिक जीवन रूपी वृक्ष / संवेशनम सिम-विश+ल्यूट] सोना, नींद लेना संवेशनो- | संसेव (म्वा० आ०) 1. सम्मिलन करना 2. सेवा करना, स्थापनयोः–प्रतिमा। सेवा में प्रस्तुत रहना 3. व्यसनी होना / संवारः सम् ++घा] बाधा, विघ्न / संसेवा [ सम्+सेव + अङ+टाप् ] 1. (किसी सभा, समाज संवृतसंवार्य (वि.) जो गोपनीय बातों को गुप्त रखता है। में) नित्यप्रति जाता 2. उपयोग, काम में लगाना संवर्तः [सम्+वृत्+घञ ] सिकोड़ना, सिकुड़न,-पर्या- 3. आदर सत्कार, पूजा अर्चना।। यात् क्षणदृष्टनष्टककुभः संवर्तविस्तारयोः --म० वी० / संस्कृ (तना० उभ०) 1. सचय करना--ये पक्षापरपक्षदोष __ सहिताः पापानि संस्कुर्वते-मच्छ० 9 / 4 2. यथासंवर्तित (वि.) [सम् + वृत्+क्त ] 1. लिपटा हुआ, | थता पर पहुँचना (गणित)। लपेटा हआ 2. बराबर आया हुआ। संस्कारवती (स्त्री) जिसे चमका कर उज्ज्वल कर दिया संधिः [सम+वृथ्+क्तिन् ] पूर्णवृद्धि, अम्युदय, शक्ति।। गया है-संस्कारवत्येव गिरा मनीपी-कु० 1128 संव्यस् (दिवा० पर०) व्यवस्थित करना, एकत्र करना। संस्कारवस्वम् प्रमार्जन, परिष्कार-कि० 17 / 6 / संम्यूहः [सस्+वि+ऊह+घञ ] व्यवस्था, क्रम-संस्कृतात्मन् (वि०) आध्यात्मिक अनुशासन, या धर्मस्थापन / कृत्यों के द्वारा जिसने अपने आपको पवित्र कर संशित (वि.) [सम+शो+क्त अपने संकल्प को लिया है। दृढ़ता पूर्वक निभाने वाला (जैसा कि 'संशितव्रत' | संस्कृतिः | सम्++क्तिन्] 1. परिष्कार 2. तैयारी कड़ाई के साथ अपना व्रत पूरा करने वाला)। 3. पूर्णता 4. मनोविकास / संशयाक्षेपः एक अलंकार जिसमें संदेह का निवारण समा-संस्तम्भनम् [सम्+स्तम्भ+ल्यूट] रोकना, बंधन में विष्ट होता है। डालना, पकड़लेना। संशयोपमा संदेह के रूप में न्यस्त तुलना / संस्तीर्ण (वि.) [सम्+स्तु+क्त ] छितराया हुआ, संशष (दिवा. पर०) शुद्ध करना, सुरक्षित रखना बखेरा ह-समिद्वन्तःप्रान्त संस्तीर्णदर्भाः-श०४।८। For Private and Personal Use Only Page #1358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1349 ) संस्था (भ्वा० आ०-प्रेर०) 1. (नगर) निर्माण करना / सक्लप (भ्वा० आ०) और्ध्वदेहिक कृत्य करना / अन्त्येष्टि 2. पुनः स्थापित करना 3 दाह संस्कार करना, | करना। (जैसे अस्थिस्थापनम् ) अस्थि प्रवाहित करना, या | सङ्कल्पप्रभव (वि०) इच्छा से ही उत्पन्न, मानस-संकल्प. जल समाधि देना। प्रभवान् कामान् भग० / संस्था [सम्+स्था--अङ+टाप् ] 1. सहमति कृता | सङ्कल्पमूल (वि.) किसी इच्छा पर आधारित / संस्थामतिक्रान्ता:---रा० 4 / 57 / 18 2. दाह संस्कार | | सङक्रन्धः[सम्+क्रन्द +घञ] 1. युद्ध, लड़ाई 2. विलाप / 3. सिपाही, गुप्तचर। | सङ्क्रमणम् (सम् + क्रम् + ल्युट] मृत्यु-रा० 2 / 13 / 12 / संस्थावृक्षः गमले में लगा पौधा को० अ० 120 / / सङक्रोशः[सम-ऋश+घा ] ऊँचे स्वर से विलाप संस्थानम् [ सम् + स्था+ल्युट ] 1. सरकार को संस्थित करना। रखने का कार्य-कौ० अ० 27 2. भाग, प्रभाग, | सक्लिष्ट ( वि. ) [ सम्+क्लिश्+क्त 11. जिस पर खंड 3. सौन्दर्य, कीर्ति / खरोंच आ गई हो 2. जिस पर धब्बा आदि पड़ गया संस्थित (वि.) [सम्+स्था+क्त] सुव्यवस्थित संस्थि- हो, धूमिल, मलिन। तदोविषाणः-रा० 3 / 31 / 46 / सञ्जयः [सम् +क्षि+अच्] 1. शरणागार, घर 2. मृत्यु / संस्थितिः (स्त्री०) [ सम्+स्था-क्तिन् ] 1. एक ही | सङ्क्षपः [सम् -क्षिप्+घञ्] विनाश / अवस्था में पंक्ति बद्ध रहना 2. महत्त्व देना 3. रूप, सक्षोभणम् सिन्+क्षभ+ल्यूट] शोक का प्रबल आघात, शक्ल 4. सातत्य, नैरन्तर्य / धक्का / संहत (वि०) [ सम् + हन्-।-क्त ] 1. सुदृढ़ अंगों वाला सङ्ख्या [सम् +ख्या +-अङ+टाप्] 1. युद्ध, लड़ाई 2. नाम 2. मारा गया। 3. ज्यामितिपरक शंकु / संहतहस्त (वि.) एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए। सङ्ख्यापदम् अंक। संहतिः [सम्-हिन् + क्तिन् ] 1. संधि, (क सङ्गम् (भ्वा० आ० प्रेर०) 1. दे देना, सौंप देना 2. हत्या सीयन 2. मोटा होना, सूजन / करना। संह (म्वा० पर०) विपथगामी करना, भटकाना, भ्रष्ट | सङ्गतगात्र (वि०) जिसके शरीर में झुर्रियां पड़ गई हैं, या करना-शूरान् भक्तानसंहार्यान्–महा० 12157 / सिकुड़ गया है। 23 पर भाष्य। सङ्गतिः [सम् + गम् +क्तिन्] (मोमांसा०) अधिकरण के संहाररुद्रः संहार करने वाला रुद्र देवता / / पाँच अंगों में से एक। सकर (दि०) 1. कर युक्त, हाथों वाला 2. कर लगाने सङ्गप्तिः सम् +गुप्+क्तिन्] 1. प्ररक्षण 2. गोपन, गुप्त योग्य 3. किरणों से युक्त / रखना। सकीलः वह पुरुष जो इतना पुंस्त्वहीन है कि स्वयं संभोग सङ्गोपनम् [सम् +गुप् + ल्युट्] सर्वथा गुप्त रखना। पूर्व अपना स्त्रा को परपुरुष के पास | सङ्ग्रहः [सम् + ग्रह +अप्] छोड़े हुए शस्त्रास्त्रों को वापिस भेजता है। ग्रहण करना। सकृत्स्नायिन् (वि.) केवल एक बार स्नान करने वाला सङ्ग्रामकर्मन् (नपुं०) युद्ध करना, लड़ाई लड़ना। -- मनु० 11 / 214 / समाममूर्धन् (पुं०) युद्ध का अग्रिम क्षेत्र / सकृदाहृत (वि.) जो राशि एक किश्तों में न चुकाकर सङ्घवृत्तम् निगम आदि संकायों का मिलकर कार्य करने का एकमुश्त चुकाई गई हो / ढंग (आचरण) कौ० अ० 11 / / सकृदयतिः संभावनामात्र, केवल एक ही विकल्प / सञ्जातः सम्+हन्-घा] 1. बहाव- यस्य शोणितसकृतिभात (वि.) जो तुरन्त प्रकट हो गया है। संङ्घाता-महा० 12 / 98 / 31 2. कठोर भाग 3. युद्ध सगतिक (वि.) संबंधबोधक अव्यय से जुड़ा हुआ। 4.हड्डी . गहनता . समूह / सङ्कटहरचतुर्थी गणेश की पूजा करने का शुभ दिन माष | सङ्घातचारिन् (वि.) समूह में मिलकर चलने वाला। कृष्ण या भाद्रकृष्ण चतुर्थी। सञ्जातमृत्युः सबकी एकदम मृत्यु / सङ्कालनम् [सम-कल-1-णिच --ल्यट] दाहसंस्कार। सङ्घातशिला कड़ा पत्थर जिसपर (नारियल जैसी) वस्तुएँ सङ्कर्षणः [सम् + कृष् + ल्युट्] अहंकार / तोड़ी जाती हैं, पत्थर जैसा कठिन पदार्थ / सङ्करः [सम् + अच गोबर / सङ्घर्षः [सम्+ष+घञ्] 1. शत्रुता 2. कामोत्तेजना। सरज ) (वि.) जिसके मातापिता भिन्न-भिन्न जाति | सङ्घर्षा तरल लाख। सङ्करजात (के हों, मिश्र मातापिता की सन्तान / सचराचर (वि.) चल तथा अचल वस्तुओं समेत / सडूरीकरणम् जातियों का मिश्रण / सजागर (वि०) जागरूक, सावधान, सतर्क / For Private and Personal Use Only Page #1359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1350 ) सज (वि.) [सज्ज अच्] 1. सूत में पिरोया हुआ ---संश्रयः सच्ची प्रतिज्ञा,-सङ्कल्प (वि.) जिसका प्रयोजन या धारणा सत्य है। सञ्चक: [ सम+चि+ड, स्वार्थकन ] साँचा (जैसा कि | सत्रन्यायः मीमांसा का एक नियम जिसके आधार पर एक इंट पाथने वाले प्रयुक्त करते हैं)। से अधिक स्वामियों द्वारा अनुष्ठान होने पर यज्ञ में सञ्चारः [सम्+च+णिच्+घञ ] 1. मुग्ध करना एक ही स्वामी को प्रतिनिधित्व दिया जाता है-मी० -संचारः श्रवणदर्शनाम्यां परमोहनम्-महा० सू०६।३।२२ पर शा० भा० / 12 / 59 / 48 पर भाष्य 2. (जंगली जानवरों के) सत्रिन (पुं०) [ सत्र+इनि ] सहयोगी, सहपाठी। पदचिह्न / सदर्थः मुख्य विषय या प्रकरण / सञ्चष्कारयिषु (वि.) शौचसंबंधी धर्मकृत्यों का अनुष्ठान | सद् [ सद्+क्विप् ] सभा--भाग० 7.1021 / कराने का इच्छुक / सदोजिरम् [ सदस्+अजिरम् ] दालान, दहलीज / सजनन (वि.) [सम्+जन् + ल्युट्] पैदा करने वाला, | सबसस्पतिः [ अलुक् समास ] सभापति / उत्पादक / सदोत्यायिन् (वि०) सदैव सक्रिय / सजातनिर्वेद (वि.) खिन्न, अवसन्न, उदास / सदाभव (वि.) सदा रहने वाला, शाश्वत / सजातविधम्म (वि. विश्वस्त, भरोसे वाला। सदृक्षविनिमय (वि०) समान विषयों में भूल करने वाला। सञ्जए (म्वा० पर०) प्रतिवेदन देना, वक्तव्य देना। सद्धर्मः वास्तविक कर्तव्य। संजिहान ( वि० ) [सम्+हा+शानच् बातोद्वित्वम्] | समस्कार (वि०) तुरन्त ही अनुष्ठित होने वाला। त्यागने वाला, छोड़ने वाला। सद्यस्प्रक्षालक (वि०) जिसके पास केवल एक ही दिन की संशक (वि.) [संज्ञ+कन् ] नाश करने वाला—कदा भोजन सामग्री विद्यमान है—सद्य: प्रक्षालको वा वयं करिष्यामः संन्यासं दुःखसंजकम् --महा. स्यान्माससंचयिकोपि वा-मनु०६।१८ / 12 / 279 / 3 / सनत्सुजातः ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक / संज्ञपित (वि.) [सम्+ज्ञान-णिच्+क्त, पुकागमः] बलि | सनत्सुजीयम् महाभारत का एक अध्याय जिसमें सनत्सुजात दिया गया, नष्ट किया गया--भाग०४।२८।२६।। का दार्शनिक व्याख्यान निहित है। संज्ञा सम्+ज्ञा+क] 1. पगडंडी, पदचिह्न 2. दिशा | सनातनधर्मः वेदों में प्रतिपादित अत्यन्त प्राचीन धर्म / 3. पारिभाषिक शब्द। सनिकारः (वि०) अपमानजनक / संहासूत्रम् वह सूत्र जिसके आधार पर किसी पारिभाषिक | सन्तानक: [ सम+तन+घा+कन 1 1. स्वर्ग के पाँच शब्द का निर्माण होता है। वृक्षों में से एक, कल्पतरु या उसका फूल 2. लोकसटाक्षेपः अयाल (केसर) का लहराना-सटाक्षेपक्षिप्त- | विशेष। नक्षत्रसंहतिः-दुर्गा० 7 // | सन्तोषणम् [सम्+तुष् +णिच् + ल्युट ] सुख देना, सतोद (वि०) पीडित, चुभन जैसी पीडा से ग्रस्त / प्रसन्नता देना, संतुष्ट करना / सरिक्रया समारोह, अनुष्ठान / सन्तण्ण (वि०) [ सम् +-तृद्+क्त ] संयुक्त, मिलाकर सत्तम (वि०) उत्तम, श्रेष्ठ (समस्त शब्दों के अन्त में | बांधा हुआ। प्रयुक्त जैसे - आचार्यसत्तमः) / सन्तारः [ सम् +त+घञ 1 1. पार करना 2. तीर्थ, सत्त्रम् [ सद्-प्ट्रन् ] बनावटी रूप, छद्मवेष / घाट। सत्तिन् (पुं०) [ सत्त्र-+ इनि ] 1. सहपाठी कौ० अ० | सन्दंशः / सम्+दंश् +अच ] 1. पुस्तक का एक अनुभाग 1111 2. विदेशस्थ राजदूत। 2. गाँव का एक किनारा। सत्त्वम् [ सत्+त्व ] 1. बुद्धि 2. सूक्ष्म शरीर / सन्दानम् [सम्+दो+ल्युट ] हाथी के गण्डस्थल का वह सत्त्वतनः विष्णु का विशेषण / भाग जहाँ से दान झरता है। सत्त्वयोगः 1. मर्यादा 2. जीवन-प्रकाशन, प्राण प्रदान | सन्देशपदानि संदेश के शब्द / -चित्रे निवेश्य परिकल्पितसत्त्वयोगा --श० 2010 / / सन्दिग्धपुनरुक्तत्वम (अलं०) अनिश्चयता के कारण दोबारा सत्यम [ सत+यत ] 1. मोक्ष 2. सचाई 3. निष्कपटता कहना। 4. पवित्रता 5. प्रतिज्ञा 6. जल 7. ईश्वर। सम० | सन्देहालङ्कारः अलंकार विशेष जिसमें संदेह बना रहता है। -आश्रमः संन्यास,—किया, शपथ ग्रहण करना, सन्देह्य (वि०) [ सम् +दिह.+ण्यत् ] संदिग्ध, संदेह से -- भैदिन (वि.) प्रतिज्ञा भंग करने वाला,---मानम पूर्ण। बास्तविक माप,-लौकिकम आध्यात्मिक और भौतिक सन्दुब्ध (वि.) [सम्+द+क्त ] मिलाकर धागे में विषय, वादिन् (वि.) सच बोलने वाला, पिरोया हुआ। For Private and Personal Use Only Page #1360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तमन्त्रः / अग्नि, आग / ( 1351 ) सन्दशः [ सम् +दृश्न-धा ] प्रतीति, दृष्टि / सपरिच्छन् (वि०) आवश्यक वस्तुओं से सुसज्जित, दलबल सन्दर्शनम् [ सम्+द+ल्यट ] काम, उपयोग / के साथ। सन्धिः [ सम् +धा+कि ] भूखंड जो मन्दिर के लिए | सपरिहारम् (अ.) आरक्षण सहित / धर्मार्थ दिया गया हो चोल०१ में डा० राघवन की सपर्यापर्याय: पूजाकृत्यों की माला-सकलमिदमात्मार्पणदशा टिप्पणी वृत्तिसन्धिप्रतिपादकः / सपर्यापर्यायस्तव जननि यते विलसितम्... सौन्दर्य / सन्धिन् (पुं०) / सम् / घा+इनि ] संधि इत्यादि का काम | सप्तकोण (वि.) सात कोनों वाला। करने वाला मन्त्री। सप्तपातालम् सात पातालों का समूह / सन्ध्यापयोवः संध्याकालीन बादल / सन्नजित (वि.) जिसकी जिह्वा बंधी हुई है, जो सप्तचिः / अग्नि, आग / चुप है। सप्तस्वरः संगीत के सात स्वर (अर्थात-सा, रि, ग, म, प, सनषी (वि.) हतोत्साह, उत्साहहीन / घ, नी)। सनभाव (वि.) निराश। सप्ताल (वि.) सात कोनों वाला। सन्नवाच् (वि०) मन्द स्वर से बोलने वाला। सप्रज्जातम दे० 'सम्प्रज्जातम् / सन्नावः [ सम्+न+-घा ] शोरगुल, हुल्लड़ / सप्रतीक्षम् (10) बहुत प्रतीक्षा के पश्चात् / सन्नत (वि.) [सम् + नम्+क्त ] पूर्ण, भरा हुआ सप्रमाण (वि.) 1. साधिकारिक 2. समान आकार-प्रकार --परमानन्दसन्नतो मन्त्री दश०१३ / सन्नतगात्री झुके हुए शरीर वाली महिला / सप्रेष्य (वि०) अनुचरों द्वारा सेवित / सन्नतभू (वि.) भृकुटिविलासयुक्त, त्यौरी चढ़ाए हए। सभक्ष: एक ही भोजनशाला में भोजन करने वाला, सहसन्नद्धयोध (वि.) जिसकी सेना लड़ने के लिए पूरी तरह भोजी। तैयार है। सभा [सह-भा+क+टाप, सहस्य सः] 1. यात्रियों के सनिकर्षः [ सम् ---नि-+कृष्+घ ] 1. आधुनिक विषय | लिए अतिथिशाला 2. भोजनशाला। या विचार वेदश्चिके सत्रिकर्ष पुरुषाख्या-मी० सू० सभागृहम् / 1 / 1 / 27 / / सभामण्डपः / सनिपत्य (अ०)[सम्+नि+पत्+य (क्त्वा)], तुरन्त, / सभामध्ये (अ०) सभा में। प्रत्यक्ष, सीधे। | सभायोग्य (वि.) सभा के लिए उपयुक्त। सग्निपत्योपकारिन (वि.) भाग या अङ्गजो सीधा प्रधान | सभाजित (वि.) [सभाज+क्त] सम्मानित / ___ का काम दे~मी० सू० 12 / 1 / 19 पर शा० भा० / सभोद्देशः (सभा+उद्देशः) सभाभवन के आसपास का सन्निपातः [ सम्+नि-पत्+घ ] 1. मैथुन 2. युद्ध स्थान / 3. ग्रहों का विशेष संयोग। सम (वि०) [सम् +अच्] 1. नियमित, सामान्य 2. सरल, सनिपातिन् (वि०) [सन्निपात+इनि] ऐसा अंग जो प्रधान सुविधाजनक 3. बराबर, वैसा ही। सम०-अधिक का कार्य करे---मन्त्राच्च सन्निपातित्वात्-मी० सू० (वि.) समान रूप से पैरों पर खड़ा हुआ,-अधिन् 12 / 1 / 19 / (वि.) समानता चाहने वाला,--आत्मक (वि०) सभिभूत (वि०) [सम् +नि+भृ+क्त] 1. गुप्त 2. चतुर, समान से युक्त,-कक्ष (वि.) समान भार वाला, शिष्ट / जिनके उत्तरदायित्व एक से हों,-गतिः वाय, सर्वत्र सनिरुद्ध (वि.) [सम्+नि+रुष्+क्त] 1. नियन्त्रित, समान रूप से गति करने वाला-मृत्युश्चापरिहाररोका हुआ 2. पूर्ण, भरा हुआ। वान समगतिः कालेन-महा० १२२९८११५,-धर्म सन्निरोधः सम् +नि-रुघा ] 1. कैद 2. संकीर्णता। (वि०) एक से स्वभाव वाला,-मात्र (वि.) एक सनिवाय: सिम + नि++घञ सम्मिश्रण, समुच्चय / से डीलडौल का, एक सी मापतोल का,-वतिन् सनिवेश: [सम्+नि+विश्+घा] डेरा डालना, शिविर (वि०) 1. निष्पक्ष 2. समान दूरी पर होने वाला, ___ स्थापित करना (जैसा कि "सेनासनिवेशः")। -विभक्त (वि०) समान रूप से बँटा हुआ, सनिसर्गः [सम्+नि-सज्+घन अच्छा स्वभाव, भल- -विषमम ऊबड़खाबड़, कहीं से नीचा तो कहीं से मनसाहत, उदाराशयता। ऊँचा, श्रुति (वि.) समान अन्तराल से युक्त सन्नी (म्वा० पर०) भरना, पूर्ण करना। (संगीत०),-श्रेणिः सीधी पंक्ति, - अपणी सब से सन्यासः [सम्+नि+अस्+घञ] ठहराव, करार / आगे रहने वाला, - अतिक्रान्त (वि.) 1. संपूर्ण सपत्राकृत (वि.) अत्यन्त घायल। में से धूमा हुआ 2. जो व्यतीत हो गया, गुजरा हुआ For Private and Personal Use Only Page #1361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1352 ) 3. उल्लंघन किया हुआ,-अधिगमः पूरी समझ, , समान (वि.) [सम+अन्+ अण] 1. साधारण -~-अनुवतिन् (वि०) आज्ञाकारी,-अभिवत (वि०)। 2. समस्त (संख्या०) 3. बराबर का, बैसा ही / सम० पिल पड़ने वाला,-अभ्याशः निकटता, उपस्थिति। / -करण (वि०) उच्चारण को समान इन्द्रिय वाला, समयच्युतिः ठीक समय का चूकना / एक ही उच्चारण स्थान वाला (स्वर)। समयशः 1. उपयुक्त समय का ज्ञाता 2. जो अपने मूल समानप्रतिपत्ति (वि०) 1. समान अनुराग वाला 2. व्यववचनों को याद रखता है। हार कुशल, बुद्धिमान् / समयविद्या ज्योतिष, भविष्यज्ञान / समानमान (वि०) समान रूप से सम्मानित / समरागमः लड़ाई का फूट पड़ना / समानरुचि (वि.) एक सी रुचि वाला। समर्थक (वि.) [समर्थ +ण्वुल] 1. समर्थन करने वाला, समापिका शब्द खण्ड का बह भाग जो वाक्य की पूर्ति प्रमाणित करने वाला 2. सक्षम, योग्य,-कम् (नपुं०) __करता है। अगर काष्ठ, चन्दन की लकड़ी। समाप्तिः [ सम् +आप+क्तिन् ] (शरीर का) विघटन, समर्थनम् [समर्थ+ल्युट] किसी हानि या अपराध की क्षति मृत्यु मनु० 2 / 244 / पूर्ति करना। समापत्तिः [सम्+आ+पद्+क्तिन् ] 1. मूल रूप को समविम् (अ०) निश्चय से, यथार्थ रूप से / धारण करना 2. संपूर्ति / समवस्कन्दः [सम् +अव+स्कन्द्+घञ्] दुर्गप्राचीर, पर- | समाम्नात (वि.) [सम्+आ+ना+क्त ] 1. दोहराया कोटा। गया, साथ ही वर्णन किया गया 2. परम्परा से समवहारः[सम्+अव+है+घा] मिश्रण, संग्रह / प्राप्त / समवेक्षणम् सिम्+अव-ईक्ष+ल्यद] निरीक्षण, मुआ- समाम्नायः[सम्+आ+म्ना+य] 1. सामान्यतः वेदपाठ यना। 2. परंपरा से प्राप्त शास्त्रीय वचनों का संग्रह। समवेतार्थ (वि.) सार्थक, शिक्षाप्रद, बोधगम्य / समारम्भः [सम्+आ+र+घञ, मम] साहसिक समस्यापूरणम् / किसी ऐसे श्लोक की पूर्ति करना जिसका कार्य की भावना, साहसपूर्ण कार्य। समस्यापूर्तिः पहला चरण दिया गया हो।। समाराधनम् [सम्+आ+राध ल्यट] प्रसन्न करना, समातीत (वि.) एक वर्ष से अधिक आयु का, जो एक वर्ष आराधना। पूरा कर चुका है। समारूढ (वि०) [ सम् +-+-रुह, +क्त ] सवार, चढ़ा समाकान्त (वि०) सम्+आ+कम+क्त] 1. रौंदा हुआ, / हुआ। ___ कुचला हुआ 2. जिस पर आक्रमण कर दिया गया है। समारोपितफार्मुक (वि०) जिसने धनुष तान लिया है। समाक्षिक (वि०) शहद मिला हुआ पदार्थ / समार्ष (वि०) एक ही प्रवर से संबद्ध, समान प्रवर समाख्या [ सम्+आ+ख्या+अडा+टाप् ] व्याख्या / बाला। समाचेष्टितम् [सम्+आ+चेष्ट्। क्त] 1. व्यवहार समालोकनम् [सम्--आ+लोक+ल्युट] 1. निरीक्षण 2. प्रक्रिया। 2. सविचार, मनन। समाजः [ सम्+आ+अज्+घञ ] समागम, समुदाय, समाविद्ध (वि.) [सम्+आ+व्य+क्त, संप्रसारणम् - भाग० 10 // 6038 / 1. कम्पित, क्षुब्ध 2. प्रहृत, आघात प्राप्त / समातत (वि.) [सम्+आ+-तनु + क्त ] 1. विस्तारित समाविष्ट (दि०) [सम् +आ+-विश्+क्त ] भरा हुआ, फैलाया हुआ 2. लगातार। युक्त (जैसाकि 'कौतूहलसमाविष्ट') / समदिष्ट [सम+दिश-+क्त निर्धारित, आदिष्ट। समाश्वस्त (वि.) [सम्+आ+श्वस्+क्त ] 1. ढाढस समाधा (जुहो० पर०) 1 (वस्त्र) पहनना 2. रूप भरना बंधाया हुआ, सांत्वना दी हुई 2. विश्वास करने 3. प्रदर्शित करना 4. स्वीकार करना। वाला। समाधानम् [ समा+धा ल्युट ] 1. (किसी उक्ति का) समाहृत (वि.) [सम्+जा+ह+क्त ] खींचा हुआ प्रमाण 2. समझौता कर लेना, समस्या का हल कर (जैसे धनुष की डोरी')। लेना। समाहृत्य (अ०.) [सम्+आ++य (क्त्वा)] सब समाधानरूपकम रूपक अलंकार का एक भेद जिसमें किसी। एक दम मिल कर। उक्ति का औचित्य सम्मिलित होता है। समाहित (वि० [सम् +आ--घा+क्त ] 1. समान, समाधिभत् (पुं०) घ्यान में लीन, समाधि में स्थित / साधारण 2. मिलता जुलता 3. प्रेषित / / समाधियोगः ध्यान-मन का अभ्यास / समितिः [ सम्+इ+क्तिन् ] सदाचरण का नियम समाधूत (वि.) [ समा+धू+क्त ] बखेरा हुआ। (जैन०) / For Private and Personal Use Only Page #1362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1353 ) समिधाधानम् 1. यज्ञाग्नि पर समिधाएं रखना 2. ब्रह्म- सम्प्रयुक्त (वि.) [ सम्+प्र+युज्+क्त ] प्रेरित, चारी के लिए विहित दैनिक अग्निहोत्र / | प्रोत्साहित / समीक्षा [सम् + ईक्ष् +अङ-टाप् ] 1. देखने की इच्छा, [ सम्प्रयोगः (वि०) [ सम् +-+-युज्+घञ्] (ज्योति०) दिदक्षा 2. आध्यात्मिक ज्ञान। चन्द्रमा और नक्षत्रों का संयोग। समीरणः [सम् + ई-णिच+ल्यूट पांच की संख्या / | सम्प्रसादः [सम्+प्र+सद्+घञ मानसिक शान्ति / समुच्चयालङ्कारः एक अलंकार का नाम / सम्प्राप्त (वि.) [सम्+प्र+आप+क्त] पहुँचा हुआ, समुच्चयोपमा समुच्चयालंकार से बनी उपमा / प्रकट हुआ, अधिगत / समुच्छ्यः [सम् + उत्+श्रि+अच] 1. संचय 2. युद्ध, | सम्प्लवः [सम्+प्लु+ अप्] 1. अव्यवस्था 2. अवनति __लड़ाई 3. वृद्धि विकास / ____3 तुमुल 4. अन्त, समाप्ति / समुच्छित (वि०) [सम् + उत् + थि+क्त ] 1. खूब | सम्भिन्न (वि.) [सम्+भिद्+क्त ] 1. ठोस, भरा हुआ उठाया हुआ 2. हिलोरें लेता हुआ। ___2. द्रोही, देशद्रोही। समुत्कट (वि०) ऊँचा, समुन्नत / सम्भवः [सम्+भिद्+घा] 1. मुट्ठी भींचना, घुसा समुत्थानम् |सम+उत+स्था+ल्यट] 1. उद्योग | तानना 2. विद्रोह 3. बगावत, देशद्रोह। ----महा० 12 / 23 / 10 2. (मंडा) लहराना 3. (पेट | सम्भोगवेश्मन् रखैल का घर। की) सूजन। सम्भवः [ सम्+भू+अप्] 1. शक्य बात 2. संपति, धन समुदायवाचक (वि०) वस्तुओं के संग्रह को प्रकट करने .. महा० 13164 / 113. ज्ञान ईशोप० 13 / वाला (शब्द)। सम्भविष्णु (वि०)[सम् +भू+इष्णुच] उत्पादक रचयिता। समुदायशब्दः 'संग्रह' की अभिव्यक्ति करने वाला शब्द। सम्भावित (वि०) [ सम्-भू---णिच्+क्त] जिसके समुखत (वि.) [सन् + उत्-हिन्+क्त ] गहन, प्रचण्ड, J घटने की आशा हो-त्वयि सम्भावितवत्ति पौरुषम समुद्यत (वि.) [सम्+उत्। यम+क्त ] 1. उठाया | कि० 27 / हुआ, समुन्नत 2. तैयार, तत्पर 3. निष्पन्न / संभावितम् अनुमान / समुद्रः अत्यन्त ऊंची संख्या / सम्भ (जुहो० उभ०) उठाना-दक्षिणं दक्षिणः काले सम्भत्य समुद्रदयिता नदी, दरिया। स्वभुजं तदा--महा० 697682 / समुद्र पत्नी सम्भृत (वि.) [सम्-+-भृ+क्त ] 1. सम्मानित 2. ऊंची समुद्र योषित) (ध्वनि)। समुपष्टम्भः [सम्+उप+स्तंम् + धन ] सहारा, 423 सम्भृतश्रुत (वि.) ज्ञान से युक्त / टेक। सम्भतसंभार (वि०) सर्वथा उद्यत, पूरी तरह तैयार। सम्पातः [ सम् +पत्+घा ] संप्रेषण (जैसा कि 'दूत- सम्भूतस्नेह (वि.) अनुराग से युक्त, अनुरक्त / संपात' में)। सम्भ्रान्तमनस् (दि०) घबराये हुए मन वाला। सम्पद् (स्त्री०) [सम् +पद्+क्विप् ] अधिग्रहण / सम्मतिः [ सम् + मन्+क्तिन् ] सम्मान देना / सम्पन्नम् [सम्+पद्+क्त] पर्याप्त (श्राद्ध के पश्चात् | सम्मतिपत्रकम् न्यायाधिकरण का निर्णय-शुक्र०२।३०४ / संतोष का चिह्न)। सम्मित (वि.) [सम्+मा-|-क्त ] 1. समान महत्त्व का सम्परेत (वि.) [सम् +पर+इ+क्त ] मृत / -----पुराणं ब्रह्मसम्मितम्-भाग० 1 / 3 / 40 2. भाग्यलेख सम्पुट, [सम् +पुद+क] गोलार्द्ध / -महा० 5 / 68 / 1 / / सम्पूर्णकाम (वि०) जिसकी कामना पूरी हो गई हो। सम्मुखीन (वि.) [सम्मुख+खञ् ] योग्य, उपयुक्त / सम्पूर्णफलभाज् (वि.) पूरा फल पाने वाला। सम्मछनम् [ सम्-मुर्छ+ल्युट् ] मिश्रण / सम्पर्क: [ सम् +पृच्+घञ्] योगफल / सम्मदः [ संमृद्+घञ्] (लहरों को) टक्कर / सम्पृक्त (वि.) [सम् +पच्+क्त ] मित्र बना हुआ। सम्यग्ज्ञानम् सही ज्ञान, सच्ची जानकारी। सम्प्रज्ञात: [सम्+प्र+जा+क्त ] योग की एक समाधि | सम्यग्दृष्टिः अन्तर्दृष्टि, अन्तरवलोकन / जिसमें मनन का विषय स्पष्ट रहता है (विप०) | सरः [स-+-अच् ] (काव्य०) ह्रस्व स्वर / असंप्रज्ञात)। सरस (वि०) काव्यरस से परिपूर्ण कल्याणिनी सरससम्प्रतिपत्तिः [सम् ++पद्+क्तिन् ] प्रत्युत्पन्नमतित्व / / चित्रपदा गुणाढ्याम् --शिवानन्द० 100 / सम्प्रदायप्रद्योतकः वैदिक परम्परा को दर्शाने वाला---सम्प्र- | सर्गः [ सज+घन 11. शस्त्रास्त्रों का उत्पादन,-सर्गाणां दायप्रद्योतको अनुग्राहकश्चेति पातञ्जलाः / चान्ववेक्षणम् महा० 12159 / 44 2. शब्द के अन्त सम्प्रदायविगमः परम्परा का लोप / में महाप्राणता (विसर्ग भी)। For Private and Personal Use Only Page #1363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1354 ) सर्पगतिः [ष० त०] साँप की चाल, (कुश्ती या मल्लयुद्ध प्रकार का नमक (अ.) के साथ, सहित / सम० में गति)। -अपवाद (वि०) असहमत होने वाला, आलाप: सर्पबन्धः कौशल, विधि, सूक्ष्मयुक्ति / समालाप, मिल कर बातचीत करना,---उत्थायिन् सर्व (सर्व०वि०)[ सतमनेन विश्वम्---स+व] 1. सब, (वि०) विद्रोही, षड्यन्त्रकारी, कतं (पुं०) सहकारी प्रत्येक 2. समस्त, सब मिल कर। सम०-अभावः -खट्वासनम् एक ही खाट पर मिलकर बैठना,--भावः सब का अनस्तित्व, सब की विफलता, अर्थचिन्तक: 1. साहचर्य 2. सहानुवर्तिता, संसर्गः शारीरिक महाप्रशासक,-अशिन् (वि०) सब कुछ खा जाने संपर्क। वाला,-अस्तिवादः एक सिद्धान्त जिसके आधार पर सहसादृष्ट: गोद लिया हुआ पुत्र / सभी वस्तुएँ वास्तविक मानी जाती है, काम्यः जिससे सहस्रम् [समानं हसति-हस्+र] 1. हजार 2. बड़ी सब प्रेम करें, वृश् (वि.) सब कुछ देखने वाला, संख्या। सम० -- अरः, 'अरम्, सिर की चोटी में --प्रथमम् (अ०) सबसे पहले,-वेशिन् (पुं०) नट, उलटे कमल के समान गत जो आत्मा का आसन नाटक का पात्र,-संस्थ (वि.) सर्वव्यापक.-सखः माना जाता है, गुः इन्द्र का विशेषण, सूर्य का पृषि-शान्तो यर्थक उत सर्वसखैश्चरामि--भाग० 10 // विशेषण,-दलम् कमल का फूल,-भोजनम् विष्णु 85 / 45, सम्पातः वह सब जो अवशिष्ट बचा है, के हजार नामों के पाठ करने के समान एक हजार ...- स्वारः एक वैदिक याग जिसमें असाध्य रोग से ब्राह्मणों को भोजन कराना (प्रायश्चित्त कर्म)। पीड़ित व्यक्ति के लिए आत्मवलिदान का निधान है। -भिद् (पुं०) कस्तूरी,-वेधिन् (पुं०) कस्तूरी सर्वत्रगत (वि.) सर्वव्यापक, विश्वव्यापी। सहायार्थम् (अ०) साथ के लिए, सहायता के लिए। सर्वथा (अ.) [सर्व + थाल् ] सब प्रकार से। सांवर्तक (वि०) प्रलय काल से संबंध रखने वाला। सलिलकर्मन् (नपुं०) जल से तर्पण। लांसगिक (वि.) [संसर्ग---ठच ] संसर्ग से उत्पन्न सलिलप्रियः सूअर / . छूत के (रोग)। सलिलरयः [ 10 त०] जल के प्रबाह की शक्ति / सांस्कारिक (वि०) [ संस्कार-1 ठन] 1. संस्कारों सवम् [सू-सु-1-अंच ] (वेद०) आदेश, आज्ञा / से संबन्ध रखने वाला 2. (आधुनिक बोल चाल सवनकर्मन् (नपुं०) नित्य होने वाला पुनीत वैदिक में) साँस्कृतिक। धर्मकृत्य-अग्निहोत्रादिक। साकमेधीयन्यायः मीमांसा का एक नियम जब कि विकृति सवर्ण (बि०),समान 'हर' वाली भिन्नराशि। में उसकी अपनी प्रकृति के गुण या धर्म नहीं पाये सविकार (वि.) 1. अपनी अन्य उपज सभेत 2. सड़ने ___ जाते . मी० सू० 5 / 1119-22 पर शा० भा०। वाला, जो सड़ गल रहा हो / साकृतस्मितम् सार्थक मुस्कराहट / सविततनयः [ष० त०] शनि ग्रह / साक्षादिक्रया अन्तर्ज्ञान परक प्रत्यक्षज्ञान / सवितृदेवतम् हस्त नक्षत्र / साक्षिपरीक्षा साक्षी का परीक्षण / सवितलक्षणम् (अ०) लज्जा के साथ, घबराहट या उलझन | साक्षिवादः साक्षिसिद्धान्त / के साथ। सागरमेखला पृथ्वी, धरती। सव्य (वि.) [सु-यत् ] अनभिघृत, जिस पर घी न / न सागरसुता लक्ष्मी।। छिड़का गया हो, शुष्क - मी० सू० 4 / 1 / 36 पर | सागरावर्तः समुद्र की खाड़ी। शा० भा०। साडूत्यम् [संकेत-व्यञ ] 1. सहमति 2. दतकार्य सव्यापसव्य (वि.) 1. वायाँ और दायां 2. तान्त्रिक 3. चिह्न, या उपनाम-साक्रेत्यं परिहास्यं बा..." पूजा की स्मार्त तथा कोल रीतियाँ--सव्यापसव्य- वैकण्ठनामग्रहणम भाग०६। मार्गस्था--- ललित०। साइन्स्यकारिका सांख्यदर्शन पर ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित सशकः ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वाला। एक ग्रन्थ / सस्यपाल: खेत का रखवाला / सालोपाङ्ग (वि० ) अपने मुख्यं तथा सहायक अंगों सहित सस्यमञ्जरी अनाज की बाल। (वेद०]। सस्यवेदः कृषिविज्ञान / साचिध्याक्षेपः (अलं०) स्वीकृति के बहाने एक आक्षेपी। सस्यशकम् अनाज (गहूँ जौ आदि) का टूंड, अनाज की सातिशय (6i) अत्यधिक, श्रेष्ठतम / बाल। सात्म्य (वि०) स्वास्थ्यकर, प्रकृति के अनकल / सह (वि.) [सह --- अन् ] 2. धीर 2. सशक्त, हः | सात्म्य: 1. आदत, स्वभाव 2. प्रकृति के अनुकूल होने (पु.) मार्गशीर्ष का महीना, हम (नपुं०) एक का भाव / For Private and Personal Use Only Page #1364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1355 ) सात्म्यम् समता, बराबरी। 5. पहचान / सम० . धर्म: (अलं०) (उपमान और सात्त्विकः [ सत्व+ठन ] शरद् शृतु को रात्रि / उपमेय) का समान गुण,-बाचिन् (वि०) समानता सात्वतः 1. भक्त 2. पांचरात्र शाखा से संबंध रखने वाला, को कहने बाला,-शासनम् वह आज्ञा जो सब पर सात्वतर्षभः कृष्ण का विशेषण / लागू हो। साधक (वि०) [ सा+वल ] उपसंहारात्मक, उप- | सामिष (वि०) मांसयुक्त / संहार परक / सामुदायिक (वि.) [समुदाय +ठन्] समूह से संबंध रखने साधनम् [सा+ल्युट ] 1. उपकरण, अभिकरण | वाला, सामूहिक / / 2. तैयारी 3. संगणना। साम्परायः 1. सहायक 2. आवश्यकता, 3. संकट / साधनीभ (भ्वा० पर०) साधन होना, उपाय होता। साम्पराधिक (वि.) [संपराय+ठक] 1. पारलौकिक, साघनीय (वि.) [साधु+अनीय) 1. सिद्ध करने योग्य, 2. दाहकर्म संबंधी- रा०४।३।४०। . कार्य को संपन्न करने के लिए उपयोगी 2. प्राप्त करने | साम्यम् सिम - व्या] 1. माप 2. समय / योग्य / सायः [सो+धा] 1. समाप्ति, अन्त 2. सध्या 3. बाण / साधितव्यापक (वि०) सिद्ध करने योग्य वस्तु में अन्तहित / सम०-अशनम् सायंकाल का भोजन, धर्तः 1. शठ तत्त्व के लिए तर्कशास्त्र का पारिभाषिक शब्द / 2. चन्द्रमा, मण्डनम् सूर्यास्त / साधर्म्यसमः झूठमूठ का आक्षेप (तर्क०)। सायम्प्रातः (30) सवेरे शाम / साधारणः न्याय में एक नियम जो मध्यवर्ती हो और सर्वत्र सायंसवनम् सायंकालीन धर्मानुष्ठान / समान रूप से लागू हो। सायुध (वि०) सशस्त्र / साधारणपक्षः समान घटक, मध्यवर्ती तथ्य / सारः . रम सिघन अच् वा] 1. क्रम, गति 2. मख्यअंश साधारणीभू (भ्वा० पर०) समान होना।। 3. गोबर 4. मवाद, पस। सम०--गात्र (वि.) साधु (वि०) [साध् + उन्] 1. अच्छा, उत्तम 2. योग्य, सबल अंगों वाला,-गुणः प्रधानगुण या धर्म गुर उचित 3. भला, गुणी 4. सही 5. सुखद। सम० (वि.) बोझल, बोझ के कारण भारी,--फल्ग --कृत (वि.) उचित रूप में किया हुआ,-देवी सास, (वि.) बढ़िया और घटिया, उपयोगी और व्यर्थ, —मत (वि.) सुविचारित, शील (वि०) धर्मात्मा, -मार्गणम् गूदे या वसा का ढूंढना। -----संमत (वि.) भले व्यक्तियों को मान्य / सारनी संगीत का एक विशेष राग। सान्तराल (वि.) [ब० स०] अन्तराल या अवकाश सहित।। सारणिकानः लुटेरा, डाकू। सान्तानिकः [सन्तान+ठा ] सन्तान का इच्छुक-नाहं त्वां सारथिः इस+अथिण, सह रथेन सरथः (घोटकः तत्र भस्मसात् कुर्या स्त्रियं सान्तानिकः सति भाग० नियक्तः) इन वा 1. रथवान् 2. पथप्रदर्शक / 9 / 14 / 9 / सारसाक्षम् एक प्रकार का लाल / सान्द्रस्पर्श (वि०) जो छूने में मृदु हो, चिपचिपा हो। सारसाक्षी कमल जैसी सुन्दर आँखों वाली महिला, पद्मसान्द्रानन्द: आध्यात्मिक सुख-सान्द्रानन्दावबोधात्मकमन- लोचना। पमितम् - नारा० 111 / सारसनम् वक्षस्त्राण, कवच / सामग्यम् [समग्र-प्या कल्याण, कुशलक्षेभ-अयि लक्ष्मण | सार्थहीन (वि.) समूह से छुटा हुआ, यूथ भ्रष्ट / सीतायाः सामग्र्यं प्राप्नयााहे.--रा० 3157120 / सार्धधाषिक (वि.) डेढ़ वर्ष तक रहने वाला / सामन् (नपुं०) [सो---मनिन] आवाज, शब्द, ध्वनि स्वर: | सार्धवत्सरम् डेढ़ वर्ष / सामशब्देन लोके अभिधीयते-मो० सू० 71217 पर| सालङ्कार (वि.) सुभूषित, अलंकारों से युक्त / शा० भा० / सम० कलम मित्र के स्वर में, | सावधारण (वि०) सीमित, नियन्त्रित / -प्रधान (वि०) पूर्णतः कृपाल या मित्रसदश, सावशेषजीवित (वि०) जिसका जीवन अभी शेष है, जिसने -विधानम् 1. एका व्राह्मण का मूल पाठ 2. साम का ___अभी, और जीना है। प्रयोग। साक्षष्टम्भवास्तु वह भवन, जिसके दोनों ओर दो खली सामन्तचक्रम् अधीनस्थ राजाओं का भण्डल / पाचवीथियां (खुले दालान) हों। सामन्तवासिन् (वि०) पड़ोसी। सावित्रीसूत्रम् यज्ञोपवीत / सामयिकम समय-ठन] 1. समानता 2. संपत्ति विषयक | साश्चर्यचर्य (वि०) आश्चर्ययुक्त आचरण वाला / सासहि (वि.) (सह+यड़। 1. सहनशील 2. जो प्रतिपक्षी सामान्यम् [समान-व्य] 1. सामान्य बक्ष 2. एक का मुकाबला कर सके 3. जीतने वाला। अर्थालंकार 3. सार्वजनिक कार्य 4. साधारण लक्षण | सास्थि (वि०) हड्डियों से युक्त / लेखपत्र / For Private and Personal Use Only Page #1365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1356 ) सास्थिस्वानम् (अ०) हड्डियों की चटखने की ध्वनि | सोमाज्ञानम् [सीमा + अज्ञानम्] सीमा की जानकारी न के साथ। होना। साहसकरणम् प्रचण्ड कार्य, अंधाधुंध काम करना। सीमाकृषाण (वि०) सीमाचिह्न के किनारे हल चलाने साहसिक्यम् उतावलापन / वाला। साहस्र (वि.)सहस्र+अण्] हज़ारों, असंख्य, अनगिनत।सीमासेतुः पर्वतशृंखला या बाँय आदि जो सीमा का साहाय्यकर (वि०) सहायता करने वाला। काम दे। साहाय्यदानम् सहायता देना। सीरवाहकः हलवाहा, कृषक, खेतिहर / सिंहः [हिंस+अच्, पृषो०] एक प्रकार की संगीत ध्वनि / | सुकण्डु खुजली। सिंहमलम् एक प्रकार का पीतल / सुकल्प (वि.) दक्ष, सुयोग्य। सिच् (तुदा० उभ०) भिगोना, डुबकी लेना। सुकल्पित (वि०) सुसज्जित, हथियारों से लैस / सिञ्जिनी [शिजा+इनि, पृषो०] धनुष की ज्या या सुऋयः अच्छा सौदा / डोरी। सुक्षेत्र (वि०) अच्छी कोख से उत्पन्न / सिता सो+क्त, स्त्रियां टाप्] 1. चीनी, खाँड 2. गंगा। सुघोष (वि०) मधरध्वनि से युक्त, मीठी आवाज वाला। सितासित (वि०) श्वेत और काला मिला हुआ। . सुचर्मन् भूर्ज वृक्ष, भोजपत्र / सितकण्ठः सफेद गरदन वाला, चातक पक्षी, जलकुक्कुट / | सुतप्त (वि०) 1. अत्यन्त पीडित 2. कष्टग्रस्त 3. अत्यन्त सितछदः राजहंस, मराल, हंसनी। कठोर (तपश्चरण)। सितपक्षः हंस, मराल, हंसनी। सुतान (वि०) सुरीला, मधुरस्वर से युक्त / / सितवारण: सफेदहाथी, सितकुञ्जर / सुतार (वि०) 1. अत्यंत उज्ज्वल 2. बहुत ऊँचे स्वर सिताखण्डः एक प्रकार की खांड, मिस्त्री का डला। वाला 3. जिसकी आँखों की पुतलियाँ अत्यंत सुन्दर है। सिद्ध (वि.) [सिघ / क्त] 1. निश्वित, अपरिवर्तनीय | सुतारा मौनस्वीकृति के नी भेदों में से एक (सांख्य०) / 2. विशिष्ट, पक्का 3. सफल, ~बः (पुं०) जिसे इसी / सुदक्षिण (वि.) 1. अत्यंत कुशल 2. अतिविनम्र / जीवन में सिद्धि प्राप्त हो गई है। सम०-अजनम् / सुदुश्चर (वि०) सुदूर्गम, जो बड़ी कठिनाई से किया जा एक प्रकार का अंजन (कहते हैं, इसके प्रयोग से सके। भूगर्भ की वस्तुएँ दिखाई देने लगती है),--अर्थकः | सुश्विकित्स (वि०) असाध्य रोग से ग्रस्त, जिसके रोग सफ़ेद सरसों, आदेश: 1. ऋषि की भविष्य वाणी की प्रायः चिकित्सा न हो सके। 2. भविष्य वक्ता, ज्योतिषी,--औषधम् विशिष्ट / सुदेशिक: अच्छा पथप्रदर्शक या अध्यापक / औषधोपचार, -- काम (वि.) जिसकी इच्छाएँ पूरी ! सुनन्दम बलराम की गदा / हो गई है,--पथः आकाश-सिद्ध पूर्णत: अचूक, | शुनिणिवत (वि०) भली प्रकार चभकाया हुआ। -हेमन् शुद्ध स्वर्ण खरा सोना / सुपाठ (वि०) सुवाच्य, जो पढ़ा जा सके / सिद्धिः (स्त्री० [सिध+क्तिन अचुकाना, पर्याप्ति। सुपर्ण. पक्षी, परिंदा / सिद्धिविनायकः गणेश का एक रूप / सुपेशस् (वि०) सुन्दर, सुकुमार। सिन्दूरगणपतिः गणेश की मूर्ति / सुप्रमाण (वि.) बहुत बड़े आकार का। सिन्धमन्यजम् सेंधा नमक / सुबभ्रु (वि०) गहरा भूरा, धूसर / सिन्धसौवीराः सिन्धु नदी के आसपास के प्रदेश में रहने सुभगा 1. सुहागिन 2. कस्तुरी। वाले। सुभोरुकम चाँदी। सिरापत्रः पीपल का वृक्ष / सुभूतिः [सु+भू+क्तिन्] 1. मंगल समृद्धि 2. तीतर सिरामलम नानि / पक्षी। सिराल (वि.) [सिर ।-आलच्] अनन्त नसों वाला, नस- | सुमन्दभाउ (वि०) अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण / नाड़ियों के जाल से युक्त / सुमर्षण (वि.) [सु+म+ल्यद] सहनशील / सिष्णासु (वि.) [स्ना -सन् / उ, धातोद्वित्वम्] स्नान | सुन्त (वि.) बिल्कुल ठण्डा, विल्कुल मुर्दा / करने की इच्छा वाला। सुलग्नः शुभ मुहूर्त / सिसिक्षा [सिच् + सन् +-आ, धातोद्वित्वम्] छिड़कने की सुवर्तुलः तरबूज / इच्छा / सुविचक्षण (वि०) अत्यन्त चतुर / सीताध्यक्षः कृषिका अवीक्षक / सुविरुद्ध (पि०) पूर्ण विकसित / सीधुपानम मद्यपान, शराब पीना। सुविविक्त (वि०) 1. अकेला 2. निर्णीत / For Private and Personal Use Only Page #1366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1357 ) सुसंवृतिः (स्त्री०) [ सुन-सम्----क्तिन् ] भली प्रकार सुषः (स्त्री०) निद्र, सुराख ('सुषिर' का वैदिक रूप) छिपाना। सुशुप्सा [ स्वप् -- सन् | अ+टा धातोद्वित्वम् ] सोने सुसङ्घ (वि०) अपने वचन का पालन करने वाला। को इच्छा / सुसनत (वि.) ठीक निशाने पर लगा (तीर आदि)। सूक्ष्मम् [ सू+मन् सुन्ः च नेट ] 1. दांत का खोखलापन सुसेव्य (वि०) सेवा किए जाने योग्य, जिसका आसानो से 2. वसा, चर्बी 3. कण / सम० -- दल: सरसों,-भूतम् अनुसरण किया जा सके। सूक्ष्म तस्त्र, मति (वि.) तीक्ष्णबुद्धिवाला, सुखाधिष्ठानम् आनन्द का स्थान / -शरीरम् सूक्ष्म शरीर (विप० स्थूल शरीर), सुखाभियोज्य (वि.) जिस पर आसानी से चढ़ाई की। - स्फोटः एक प्रकार का कोड़। जा सके। सूचनी विषयों की तालिका या सूचि। सुखाराध्य (वि०) जिसको सेवा आसानी से की जा सके, सूची [ मूच --- कोप् ] (दरवाजे की) चटखनी / जो आसानी से प्रसन्न किया जा सके। सूचीकर्मन् (नपुं०) सिलाई का कार्य / सुखप्रश्नः कुशलक्षेम पूछना। सुचीरदन: नेवला। सुखबद्ध (वि०) मनोरम, प्रिय, पारा / सूचौशिक्षा सुई की नोक / सुखवेदनम् आनन्द की अनुभूति / सूचीकर्णः सूई का छिद्र। सुखसेव्य (वि०) दे० 'सुसेव्य' सुलभ' / सूचीसुत्रम सीने के लिए धागा / सुधाकण्ठः कोयल। सूतः सच। सुधाकारः सफ़ेदी (चूना) करने वाला। सतपौराणिकः पुराणों में वणित चारण (कहते है कि उसने सुधाक्षालित (वि.) सफ़ेदो किया हुआ। ही समस्त महाभारत और पुराण सुनाए थे)। सुधायोनिः चन्द्रमा। सूतिमारुतः प्रसव वेदना / सुधाशकरः चूने का पत्थर / सूत्रम् [ सूत्र-+अच् ] 1. मेखला 2. रेखाचित्र, आरेख सुनफा ज्योतिषशास्त्र का एक योग / 3. सकेत आमुख 4. धागा, डोरा 5. रेशा। सम० सुनीथ (वि.) [ सु+की+कथन् | विवेकपूर्ण बाबहार ----अध्यक्षः वयनाध्यक्ष, बुनाई का अधीक्षक, -क्रीडा से युक्त, दूरदर्शी, मनीषी। रस्सियों का खेल, (64 कलाओं में मे एक)। सुन्दरकाण्डम् रामायण का पाँचवाँ फाण्ड / ... ग्रन्थः सूत्रों की पुस्तक, धक (0) 1. सूत्रधार सुप्तन्नः,-घातकः सोते हुए को मारने वाला, धोखेबाज, शिल्पी 2. रंगमंच का प्रबंधक, पातः 1. माप वाले हत्यारा / सूत्र से मापने का कार्य करना 2. कार्य का आरंभ, सुराविः / मेरु पर्वत, सुमेरु पहाड़। -स्थानम् आयुर्वेद के एक ग्रंथ का प्रथम खण्ड / सुरपर्वतः } सूदाध्यक्षः प्रधान रसोइया / सुरेभः (सुर+ इथ) ऐरावत हाथी / सूदशास्त्रम् पाक विज्ञान / सुरेष्टः (सु+ इष्ट) साल का वृक्ष / सूनसायक:-शूरः कामदेव-सुननायक निदेशविभ्रमरप्रतीतसुरोपम (वि०) (सुर+उपम) देवसमान / चरबेदनोदयम् नै० 181125 ('सूननायक' पाठ भी सुरगण्ड: एक प्रकार का फोड़ा, छिद्राबुद, जहरवाद / मिलता है)। सुरतटिनी.-तरङ्गिणी,-धुनी,नदी,-सरित,-आपगा (स्त्री०) सूनाध्यक्षः (सूना-|-अध्यक्ष) बुबड़ खाने का अधीक्षक / गंगानदी। सूपयेष्ठ: मूंग, मूंग की फलो। सुरपादपः कल्पवृक्ष / सूपायः (सु+उपाय:) अच्छा साधन, तरकीब / सुरविलासिनी अप्सरा। सूरिः [सू +क्रिन् ] बृहस्पति / सुरश्वेता छिपकली। सूर्यद्वारम् उत्तरायण मार्ग / सुरभिगोत्रम् पशु, गोएँ, बैल / सूर्यवारः रविवार, आदित्यवार / सुराजीविन् (वि०) शराब बेचने वाला, कलाल / सूर्याणी सूर्य की पत्नी। सुराभागः खमीर / स (म्बा, ज्यो० पर०) पार करना, आर-पार जाना, सुवर्णचोरिका सोने की चोरी। प्रेर० प्रकट करना, व्यक्त करना / सुवर्णधेनुः स्वर्ण निर्मित गाय जो उपहार में दी जाय / सका [ स+का+टाप्] 1. गीदड़ 2. सारस / सुवर्णभाण्डम् रत्नमंजुषा / संथा (स्त्री०) 1. झन-झन करती हुई रत्नों की लड़ी सुवर्णरोमन् (पुं०) सुनहरी रोमों वाला मेष / 2. मार्ग, पथ। सुवर्णसान: मेरु पर्वत / सुतिः [स+क्तिन् ] 1. जन्म-मरण का चक्र—स्यान्मे For Private and Personal Use Only Page #1367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1358 ) तवानिशरणं सृतिभिभ्रंमन्त्या---भाग० 1060 / / 3. विनीत छात्र 4. बायाँ हाथ 5. मार्गशीर्ष का 43 2. सृष्टि। महीना। सेक: सिच---घन नहाने के लिए फ़ोबारा / सौरमानम् [50 त०] सूर्य की गति पर आधारित ज्योसेचनम् [सिच् + ल्युट्] 1, निर्गमन, उद्गार 2. अभिषेक।। , तिष की संगणना। सेतुः [ सि+तुन् ] 1. जलाशय, सरोवर 2. व्याख्या-1 सौरत (वि.) [सुरत+अण | संभोग संबंधी।। परक भाष्य। सौस्वर्यम् [सुस्वर+व्या ] सुस्वरता, स्वरमाधुर्य, स्वरसेतुसामन सामविशेष / योजना। सेनापत्यम सेना पति का पद / स्कन्दः [ स्कन्द् + अच् ] 1. क्षरण 2. ध्वंस / सेनावाहः सेनाधीश, सेनाध्यक्ष / स्कन्दजननी पार्वती। सेनास्थ: सैनिक, सिपाही। स्कन्दपुत्रः स्कन्द का बेटा (चोर के लिए प्रयक्त शिष्ट सेवती 1. सूई 2. सीवन, टांका 3. सिर की दो हड्डियों नाम)। __ का जोड़। स्कन्धः [स्कन्ध-+घञ्] 1. कंधा 2. खंड, अंश, भाग सेविन (वि०) [सेव+-णिनि] व्यसनी, उपासक, आराधक / 3. पेड़ का तना 4. ग्रन्थ का अध्याय 5. सेना का कोई सेश्वर (वि.) ईश्वर की सत्ता मानने वाला। भाग 6. पांचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय / सेश्वरवादः ईश्वर की सत्ता के समर्थन में तर्क / स्कन्धघनः संज्ञान मी० सू० 2115 पर शा० भा० / सेश्वरसायम् सांख्य को एक शाखा जो ईश्वर की सत्ता स्खलनम् [ स्खल ल्युट ] वीर्यपात / को मानती है। स्खलित (वि.) [ स्खल+क्त] 1. घायल 2. अपूर्ण सैकतिनी [सिकता- इन्+जीप् ] रेत से भरी हुई। अधूरा। सैन्यम् [ सेना+ज्य ] शिविर / स्खलितम् (नपुं०) हानि, विनाश / / सन्यक्षोभः सेना का विद्रोह / स्तत्क- बूंद, कण, तैलस्य घृतस्य वा स्तत्का:-मी० सू० सोत्प्रेक्षम् (अ०) असावधानी से, उदासीनता के साथ। 94227 पर शा० भा०। सोत्सेक (वि.) अभिमानी, घमंडी। स्तनकुड़मलम् स्त्री के उठते हए स्तन / सोवय (वि.) 1. उदय से संबंध रखने वाला 2. सूद स्तनचूचुकम् चूची, ढेपनी। सहित, ब्याज के साथ। स्तनमध्यः चूची, देपनी / सोपग्रहम् (अ०) मैत्रीदुर्ण ढंग से / / स्तनमध्यम दोनों स्तनों के बीच का अन्तराल / सोपस्कर (वि०) सहायक वस्तुओं से युक्त / स्तनाभुज (वि०) अपने स्तनों से दूध पिलाने वाला सोपादान (वि०) सामग्री से युक्त। पशु (गाय)। सोमः [सू-मन्] 1. लंगर 2. एक पितर 3. सोमबार। स्तनितकुमाराः (जैन०) देवताओं की एक श्रेणी। सोमप्रवाकः सोमयाग के लिए पुरोहितों को नियत करने रतनितसुभगम् (अ०) सुखद गर्जनध्वनि के साथ / के अधिकारों से सम्पन्न व्यक्ति / स्तन्यप (दिः) स्तन पान करने वाला, दुधमुंहा बच्चा। सोमसद (पुं०) पितरों की एक विशेष शाखा / स्तब्धपाद (नि०) जिसके पैर गतिहीन हो गये हों, अकड़ सोर्णभू (वि०) जिसको दोनों भौहों के बीच में बालों का / गये हों। एक वृत्त है। स्तब्धकर,-बाह (वि०) जिसके हाथ निश्चेष्ट हो गये हों। सौखरात्रिक (वि.) [सुखरात्रि+ठक ] जो दूसरे व्यक्ति | स्तब्धमति (वि०) जिसनी बुद्धि कुंठित हो गई हो, को पूछता है कि तुम रात को तो सुख से सोये हो। मंदबुद्धि। सौत्रिकः [ सूत्र+ठन् ] 1. जुलाहा 2. बुना हुआ कपड़ा। / स्तम्भ (म्वा० आ०) अधिकार करना, फैलाना, प्रेर० सौधोत्सङ्गः[ब० त०] महल की उभरी हई खुली छत। दबाना, रोकना। सौभपतिः शाल्वों का राजा। स्तम्भः [स्तम्भ+घा ] 1. अकड़ाहट, निश्चेष्टता सोमनाल्यम् [सुमङ्गल ---ध्या ] सौभाग्य की मंगलमय: 2. भराव, भरती। स्थिति, कल्याण, समृद्धि / स्तम्भितवाष्पवृति (वि०) जिसने अश्रुपात रोक लिया, सौम्य (वि.) [सोम-अण् ] उत्तर दिशा से संबंध रखने ! आँसू रोकने वाला। वाला। स्तम्भितान्तर्जलौघः बादल जिसने समस्त पानी को अपने सौम्यः [सोम - अण् ] 1. ब्राह्मण को संबोधित करने का अन्दर रोक लिया है-मेव। उपयुक्त विशेषण-आयुष्मन् भव सौम्येति वाच्यो स्ताम्बेरमः [स्तम्बरम- अण] हाथी से संबंध रखने वाला। विप्रोऽभिवादने-मनु० 2 / 125 2. शुभ ग्रह स्तिमितनयन (वि.) टकटकी लगा कर दृष्टि जमाये हुए। For Private and Personal Use Only Page #1368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1356 ) स्तिमितप्रवाह (वि.) बहुत धीमी गति से बहने वाला।। स्थितिज (वि.) नैतिकता की सीमा को जानने वाला। . स्तीविः [स्तृ+क्विन् ] भय, डर / स्थितिभिद् (वि०) सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने स्तेन (चुरा० उभ०) असत्य भाषण से वाणी को अपवित्र वाला। करना---तां तु यः स्तेनयेद्वाचम् मनु० 4 / 256 / / स्थिर (वि.) [स्था-+किरच ] 1. दृढ़, जमा हुआ स्तोकतमस् (वि०) कुछ काला, जिसमें थोड़ा अंधेरा हो / 2. अचल, निश्चेष्ट 3. स्थायी 4. निरावेश 5. कठोर स्तोकायुस् (वि.) थोड़ी आयु वाला।। सख्त 6. ठोस 7. मजबूत / सम० -- अपाय (वि०) स्तोभः 'साम' के रूप में गाये जाने वाले ऋग मन्त्रों की क्षपशील, जिसका निरंतर ह्रास हो रहा है, -आयति साम की अपेक्षा विविक्तध्वनि-य ऋगक्षरेभ्योऽधिको (वि०)टिकाऊ, देर तक चलने वाला,-वाच (वि०) न च तैः सवर्णः स स्तोभो नाम - मी० सू० 9 / 2 / 39 / जिसकी बात का विश्वास किया जाय, विक्रम पर शा० भा०। (वि०) दृढ़ता पूर्वक कदम बढ़ाने वाला। स्तोमक्षार साबुन / स्थूणाकर्ण: 1. एक प्रकार का सैन्यव्यह 2. रुद्र का एक स्त्री [स्त्य+इट+डीप] दीमक, सफेद चींटी। रूप 3. शिव का एक अनुचर / स्त्रीकितवः स्त्रियों को फुसला कर छलने वाला। स्थरीपृष्ठः वह घोड़ा जो अभी सवारी करने के काम न स्त्रीविषयः मैथुन / _ आया हो--शि० 18 / 22 / स्थपत्यः कञ्चुकी –स्थपत्यशुद्धान्त जनः परीता-जानकी० | स्थूल (वि.) [स्थूल-+अच् ] जो बारीकी या ब्यौरे 7 // 1 // (व्याख्या या विवरण) के साथ न देकर मोटे तौर स्थलकमलः (पुं०) स्थलपद्म, (लाङ्गली) भूकमल, स्थल पर दिया गया हो, भौतिक / सम०-- इच्छ (वि.) पर उगने वाला कमल पुष्प / जिसकी इच्छाएँ बहुत बढ़ी हुई हों,-काष्ठाग्निः स्थलोशायिन् (वि.) बिना कुछ बिछाये (खोरड़े) भूमि स्कंधाग्नि, पेड़ के जलते हुए तने की आग,-प्रपञ्चः पर सोने वाला। भौतिक संसार। स्थविराति (वि.) बूढ़ों की मर्यादा रखने वाला। स्थर्यम [ स्थिर-व्यञ ] इन्द्रियों का दमन या नियन्त्रण / स्थाणुः [स्था+न, पृषो० णत्वम्] 1. तना, पेड़ का ठूठ | स्नानकलशः, कुम्भः नहाने के लिये जल का घड़ा। 2. बैठने की एक विशेष मुद्रा।। स्नानतीर्थम् नहाने के लिए पुण्यस्थान, घाट / स्थाणुभूत (वि०) जो पेड़ के ठूठ की तरह गति हीन हो | स्नानशारी नहाने का जांघिया, अधोवस्त्र / गया हो। स्नायुबन्धः धनुष की डोरी, ज्या। स्थानम् [स्था+ल्युट] 1. जीवन क्रम 2. जीवित रहना | स्नायुस्पन्दः नाड़ी। 3. युद्ध में आक्रमण की एक रीति 4. ज्ञानेन्द्रिय / स्नेहकुम्भः तेल रखने का वर्तन / स्थानकुटिकासनम् घर छोड़कर झोंपड़ी में रहना ---शिरसो | स्नेहकेसरिन (पुं०) एरंड / मुण्डनाद्वापि न स्थानकुटिकासनात्-महा० 31200 स्नेहविदित (वि.) जिसके शरीर में तेल मला गया हो। 104 / स्पन्द (भ्वा० आ०) अकस्मात् फिर जान आ जाना, स्थानपतित (वि.) [ अलुक्समास ] दूसरे के स्थान पर / नाड़ी चलने लगना। अधिकार करने वाला। स्पर्शानुकूल (वि०) छूने पर अच्छा लगने वाला। स्थापनम् [स्था+णिच् + ल्युट, पुकागमः] 1. बाँधना स्पर्शक्लिष्ट,-खर (वि.) छूने में रूखा या पीडा 2. दीर्घायु होना 3. भाण्डार / कर। स्थापना [स्थापन+टाप्] 1. नाटक की प्रस्तावना या स्पर्शगुणः [ष० त०] छूने का गुण (जैसे कि वायु का। आमुख 2. भण्डार भरना। स्पष्टाक्षर (वि.) स्पष्ट रूप से बोला गया। स्थाप्य (वि.) [स्था+णिच+ण्यत् ] 1, बंद किये जाने स्पृष्टपूर्व (वि०) जिसे पहले छू चुके हैं। ___ या कैद किये जाने योग्य 2. (शोक में) डूब जाने स्पष्टमात्र (वि.) जिसे केवल छुआ ही गया है। योग्य / स्फीत (वि.) [स्फाय+क्त, स्फीभावः ] बढ़ा हुआ, स्थायिता 1. नरन्तयं 2. टिकाऊपन / फूला हुआ। स्थालीपुरीषम पाकपात्र की तली में जमी त छ या मल। स्फीतानन्द (वि०) अत्यन्त प्रसन्न, परम आनन्दित / स्थितलिङ्ग (वि.) वह पुरुष जिसका लिङ्ग उत्तेजना- स्फुट (म्ब० तुदा० पर०) 1. फूट पड़ना, फटना, टूटना वस्था में है। 2. खिलना, फूलना 3. (रोग) शान्त होना। स्थितसत, संविद (वि०) प्रतिज्ञा का पालन करने | स्फुट (वि.) [स्फुट+क] अद्भुत असाधारण / वाला। / स्फुरणम् [स्फुर् + ल्युट फूलना, बढ़ना, विस्तृत होना / For Private and Personal Use Only Page #1369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1360 ) स्फुतिः (स्त्री०) [स्फुर+क्तिन् आत्मश्लाघा करना, डींग | स्वर्मणिः सूर्य। मारना, शेखी बघारना। स्वर्यानम् मृत्यु / स्मरोद्दीपन (वि.) कामोद्दीपक, प्रेम का जमाने वाला। स्वोषित अप्सरा / स्मरकथा प्रणयालाप, प्रेमालाप / स्वरा एक प्रकार की संगीत रचना / स्मरशास्त्रम् कामशास्त्र / स्वरोपधातः स्वरभंग। स्मार्तविधिः, -प्रयोगः स्मृतियों में विहित प्रक्रिया। स्वरकम्पः स्वर का हिलना / स्मयदानम् दिखावटी दान / स्वरच्छिद्रम् बांसुरी का स्वरवाला छेद / स्मयनुत्तिः गवं चूर करना / स्वरब्रह्मन् नादब्रह्म, स्मरमान (वि०) जो आश्चर्य करता है। स्वरविभक्तिः स्वरों का पृथक्करण / स्म (भ्वा० पर०) शिक्षा देना। स्वरशास्त्रम् ध्वनिविज्ञान, स्वरविज्ञान / स्मृतम् [स्मृ+क्त स्मरण, याद / स्वरित (वि०) [स्वर+इतन्] 1. यक्त, मिश्रित स्मतमात्र (वि०) जिसको केवल स्मरण ही किया हो, / 2. उच्चरित, ध्वनित 3. उदात्त अनुदात्त के बीच का ज्योंही सोचा त्योही। स्वर, मध्यमस्वर। स्मतितन्त्रम् विधिग्रन्थ / स्वर्गगतिः-गमनम मृत्य, स्वर्ग चले जाना। स्मृतिविनयः अपने कर्तव्य का ध्यान दिलाने के लिए अभि- स्वर्गमार्गः 1. स्वर्ग जाने का मार्ग 2. स्वर्गगा। प्रेत डांट फटकार। स्वर्णरेतस् (पुं०) सूर्य / / स्यन्दः [स्यन्द्+घञ] 1. बूंद-बूंद टपकना, पसीना 2. आँख स्वल्पाइगलि: कनिष्ठिका, कन्नो अंगुलि / का रोग विशेष 3. चन्द्रमा / स्वल्पदृश (वि.) अदूरदर्शी संस् (भ्वा० आ०) नष्ट होना ठहरना। स्वल्पस्मति (वि.) जिसे बहुत कम याद रहे। स्वस्तहस्त (वि०) जिसने पकड ढीली कर दी हो। . स्वस्तिकर्मन (नपुं०) कल्याण करना / नवन्मध्यः मत्यवान रत्न जिसके बीच से पानी झरता स्वस्तिकारः स्वस्ति का उच्चारण करने वाला बंदी, दिखाई देता है। चारण। बुग्जिहः अग्नि, आग। स्वस्तिकः स्वस्तिपाठ करने वाला, चारण। स्रोतस (नपुं०) 1. शरीर के रंध्र (जो पुरुषों में 9 तथा स्वागतप्रश्न: मिलने पर स्वास्थ्यादि के संबंध में पूछना, स्त्रियों में 11 होते हैं) 2. वंश परम्परा। कुशल क्षेम की पृच्छा। स्वाजित (वि०) अपना कमाया हुआ। स्वावः (काव्य के श्रवण या पठन से) रसानुभव / स्वानन्दः अपमे, आप में आनन्द / स्वादुपिण्डा पिंडखजूर। स्वकर्मस्थ (वि.) अपने कर्म में लीन, अपने काम में व्यस्त। स्वादुललो मीठा नीबू / स्वकृतम् अपना किया हुआ कार्य। स्वापव्यसनम् निद्रालता। स्वगोचर (वि०) अपने कार्य तक ही सीमित / स्वामिन् (पुं०) 1. यज्ञ का यजमान 2. मन्दिर में स्थापित स्वबीजः आत्मा। देवमूति। स्वमनीषा अपना मत या विचार / स्वाम्यम् (शरीर और आत्मा की) स्वस्थ स्थिति। स्वयुतिः आधाररेखा जो कर्ण तथा लम्ब रेखा के सिरों को स्वायस (वि.) जो अपने ही अधिन हो, अपने ही मिलाती है। ___ अधिकार में हो। स्वतन्त्रता 1. स्वातन्त्रय, स्वाधीनता 2. मौलिकता। | स्विक्ति (वि.) 1. जिसे पसीना निकल आया हो, पसीने स्वप्नान्तिकम् स्वप्नकालिक चेतना / से तर 2. पिघला हुला पसीजा हुआ। स्वप्नज (वि.) नीद में उत्पन्न / स्विष्ट (वि०) वांछित, प्रिय, सुपूजित / स्वयमधिगत (वि.) 1. खुद प्राप्त किया हुआ 2. स्वयं स्वेदनयन्त्रम् जिससे बफारा दिया जाय, पसीना लाने वाला पढ़ा हुआ। __ यंत्र। स्वयमीश्वरः वह जो अपना पूर्ण प्रभु हो, परमेश्वर / स्वरकथा अबाधित वार्तालाप / स्वयमद्धत (वि.) स्वेच्छा से तैयार / स्वरविहारिन् इच्छानुसार भ्रमण करने वाला। स्वरतिक्रमः स्वर्ग को लांधकर वैकुण्ठ पहुँचना / स्वरिणी चमगादड़। For Private and Personal Use Only Page #1370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1361 ) हंसः [ हस्+अच्, पृषो० वर्णागमः ] 1. घोड़ा 2. उत्तम, | हरिनाङ्गः हरिताल पक्षी, एक प्रकार का कबूतर / श्रेष्ठ (जब समासान्त में प्रयुक्त हो] 3. चांदी हर्मुट: 1. सूर्य 2. कछुबा।। 4. बड़ी बड़ी झीलों में रहने वाला एक जलपक्षी हयंतलम्,- पृष्ठम्,-बलभी चौबारा, मकान की ऊपर 5. आत्मा, जीवात्मा। सम०-उबकम् एक प्रकार की मंजिल। की पुष्टिदायक मदिरा, --छत्रम् सोंठ,-बारम् हर्षः [ हृष+घञ ] 1. जननेन्दिय की उत्तेजना 2. प्रबल मानस झील के पास की एक घाटी-हंसद्वारं इच्छा 3. प्रसन्नता। सम० -- जम् वीर्य,-संपुटः भृगुपतियशोवर्म यत्क्रौञ्चरन्घ्रम्-मेघ०,-संदेशः एक प्रकार का रतिबंध,-स्वनः मानन्द ध्वनि / वेदान्तदेशिक द्वारा रचित एक गीतिकाव्य / हलम् [ हल+क] 1. हल 2. कुरूपता 3. बाधा 4. कलह हमकाहस्कः चुनौती, ललकार। सम-ककुद् (स्त्री०) हल का वह भाग जिस हदः [हट+, टस्य नेत्वम् ] मंडी, बाजार, मेला। निचले भाग में फाली लगी होती है,-बम: हलस, सम० अध्यक्षः मंडी का अधीक्षक,--वाहिनी हल की लम्बी लकड़ी जिसमें जूना लगाते हैं,-मार्गः बाजार में बनी हुई पानी निकलने की नाली, वेश्माली जताई से बनी लकीर, खड, मुखम् फाल। बाजार की गली। हविष्मती कामधेन का विशेषण। हम्पनों 1. मोथा 2. शैवाल / | हसन्ती 1. दीवट 2. एक प्रकार की परी। हठवादिन् (पुं०) जो हिंसा का प्रचार करता है। हस्तः [हस+तन् ] 1. हाथ 2. हाथी का सूट 3. हस्त हन् (अदा० पर०) दूर करना, नष्ट करना। नक्षत्र 4. भुजा। सम-भ्रष्टः (वि०) जो बच हत (वि.) [हन+क्त ] 1. पीडित, घायल 2. बला- निकला हो,-रोधम् (अ.) हाथों में,-वाम त्कार किया हुआ, भ्रष्ट किया हुआ 3. सदोष (बि०) बाईं ओर स्थित, विन्यासः हाथों की स्थिति 4. शापग्रस्त, विपद्ग्रस्त / सम-उत्तर (वि.) --स्वस्तिकः हाथों को स्वस्तिक की शक्ल में निरुत्तर, जो कुछ जवाब न दे सके,-किल्विष रखना। (वि.) जिसके पाप नष्ट हो गये हों. - त्रप (वि.) हस्त्याजीव पीलवान, हस्तिव्यवसायी। निर्लज्ज, बेशर्म, विनय (वि०) जिसमें शिष्टता | हस्तिनासा हाथों की सूड / न हो, बेश्या। हस्तिमुखः-वक्त्रः, - वदनः गणेश। हनुभवः 1. जबड़े का खुलना 2. एक प्रकार का ग्रहण | हाकारः विस्मयादिद्योतक 'हा' ध्वनि / हुनस्वनः जबड़े से निकलनेवाला स्वर / हात (वि.) [हा+क्त ] परित्यक्त, छोड़ा हुआ। हनुमज्जयन्ती चैत्रशुक्ला पूर्णा जो हनुमान जी का मांग-हानम् [हा+ल्युट] 1. छोड़ना, त्यागना 2. हानि, लिक दिवस है। विफलता 3. अभाव, कमी 4. पराक्रमल, बल हयः [हय+अच्] 1. धनुराशि 2. घोड़ा। सम० 5. विश्रान्ति, विराम, अवसान / ---अङ्गः घनुराशि,---आलयः,--शाला घुड़साल, / हाटकहाडिका मिट्टी का बर्तन / अस्तबल अश्वशाला,-च्छा अश्वदल, ग्रीवः---मुखः हारित (वि.) [ह+णिच्+क्त ] 1. खोया गया, * बदनः 1. विष्णु का एक रूप 2. एक राक्षस का चुराया हुआ 2. मात दिया हुआ, आगे बढ़ा हुआ। काम। हारिद्रः एक वानस्पतिक विष / हयिः (पु.) [ हय+इन् ] कामना, इच्छा, अभिलाषा। हार्य (वि.) [ह-+ ण्यत् ] 1. हटाये जाने योग्य हरः [ह+अच्] 1. शिव 2. अग्नि 3. गघा 4. भाजक 2. मनोहर, आकर्षक / 5. पकड़ना, लेना। सम०--अद्विः कैलाश पर्वत, हासनिकः खेल का साथी, सह क्रीडक। -बल्लभः धतूरे का फल,-सख. कुबेर / हिंसनीय (वि.) [हिस् + अनीय] मार डाले जाने योग्य, हरिः [ह+ इन् ] 1. विष्णु 2. इन्द्र 3. सूर्य 4. अग्नि हिंसा से पीडित किये जाने योग्य / 4. वायु 6.सिंह 7. घोड़ा 8. बन्दर 9. कोयल हिसास्पदम् प्रहार्य, आक्रमणीय / 10. साँप 11. मोर 12. सिंह राशि। सम०-चापः हिंसाप्राय (वि.) बहुधा हानिकारक / ___इन्द्रधनुष,- बीजम् हरताल, मेघः (पुं०) विष्णु। हिंस्रः [हिंस+र] दूसरों के उत्पीडन में आनन्द मानने हरिणलाञ्छनः चन्द्रमा। वाला व्यक्ति। हरित्पतिः दिशा का स्वामी। हिक्किका, हिक्कतम् पहिचकी का रोग। हरितकपिश (वि.) पीलापन लिये हुए भूरा। हिक्का हिपका का राग। हरितोपल: मरकतमणि। हिसाशंसा 1. भला चाहना 2. अभिनन्दन, बधाई। For Private and Personal Use Only Page #1371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हितप्रवृत्त (वि०) भलाई में लगा हुआ। 1 / 4 / 55 2. प्राथमिक कारण (बुद्ध०) 3. बाह्य हितवादः मैत्रीपूर्ण परामर्श, सत्परामर्श, भलाई की बात / संसार और उसके विषय (पाशुपत०) 4. मूल्य, कीमत हिन्दुधर्म: हिन्द (भारत) देश में रहने वालों का धर्म / .-धान्यखारीऋये हेतु:-राज. 571. कारण / हिमम् [हि--मक] 1. पाला, कुहरा 2. ठर 3 कमल सम० अवधारणम् तर्क करना (नाटक), उपमा 4. ताजा मक्खन 5. मोती 6. रात 7. चंदन / सम० तर्क यक्त उपमा अलंकार, तर्क संगत तुलना, --दृष्टि: -अभ्रः कपूर, ऋतुः जाड़े का मौसम, खण्डम कारण की परीक्षा, रूपकम् एक प्रकार का ओला, ज्योतिस् चन्द्रमा,-झटि: धुंध, कोहरा, रूपकालंकार,-विशेषोक्ति: एक अलंकार जिसमें -शर्करा एक प्रकार की खाँड / दो पदार्थों का अंतर तर्क देकर बतलाया जाता है हिरण्यकर्तृ,-कारः स्वर्णकार, सुनार / काव्य०२३२८-९। हिरण्यवर्चस् (वि०) गुनहरी आभा से युक्त / हेतुवनिगदः वेद के मूल पाठ का लेखांश जिसके साथ हीन (वि.) [हा+त, तस्य नः, ईत्व च] 1. जो मुकदमा प्रयोजन भी दिया गया हो मी० 0 24. पर हार गया है 2. यूथभ्रष्ट 3. परित्यक्त, मुझायो हुआ ! शा० भा० / 4. क्षीण। सम० पक्ष (वि.) अरक्षित पुं० दलील हेमन (नपुं०) हि ! मनिन्] 1. स्वर्ण, सोना 2. जल की दृष्टि से कमजोर पक्ष,-सामन्तः गद्दी से उतारा 3. बर्फ 4. धतूरा 5. केसर का फूल 6. बुधग्रह 7. जाड़े हुआ अधीनस्थ राजा, सन्धिः अधम राजा के साथ की ऋतु / सम० ---कलश: सोने की कलसी, स्वर्ण की गई सन्धि / निमित श्रृंगकलश,-- गर्भ (वि.) जिसके अंदर सोना हुतशेषम् यज्ञशेष, हवन का बचा हुआ अग। हो,-----नम् सीसा,-नी हल्दी. माक्षिकम सोनाहुण्डः (पुं०) (स्त्रो०) [हुण्ड्+इन्] पिडित ओदन / माखी (एक उपधातु),-व्याकरणम् हेमचन्द्र प्रणीत हृद् (नपुं०) [हत्, पृषो० तस्य दः] (इस शब्द के पहले व्याकरण का एक ग्रन्थ / पांच रूप नहीं होते, शेष वचनों में यह विकल्प से हंडिम्बः / [हिडिम्बा-+-अण, इन वा] हिडिंबा का पुत्र, 'हदय' के स्थान में आदेश होता है) 1. मन, दिल डिम्बिः / घटोत्कच / 2. आत्मा 3. किसी भी वस्तु का सत् 4. छाती। होतकर्मन् यज्ञ में होता का कार्य / सम०–आमयः हृदय का रोग,-...योतन (वि.) दिल होतप्रवरः होता का वरण करना / को तोड़ने वाला,-सारः साहस, हिम्मत; स्तम्भः होतस(ष)दनम् होता का आसन / हृदय को लकवा मार जाना, स्फोटः हृदय का होलाकाधिकरणन्यायः मीमांसा का एक नियम / इसके विदीर्ण होना। अनुसार यदि स्मृति या कल्पसूत्र की कोई उक्ति थति हवयम् ह+कयन, दुकागमः] 1. मन, दिल, आत्मा द्वारा समर्थन नहीं प्राप्त कर सकी, तो उसके समर्थन में 2. छाती 3. प्रेम, अनुराग 3. दिव्य ज्ञान 4. वस्तु का वेद का कोई अन्य सामान्य मंत्र, अनुमान के आधार सत 5. इच्छा, प्रयोजन। सम. उदङ्ककः आह भरना, पर ढूंढना चाहिए -मी० सू० 213325 28 / -उद्वेष्टनम दिल का सिकुडना, क्षोभः दिल की ह्रस्व (वि) [हम-बन्] जो महत्त्वपूर्ण न हो, अनाधड़कन, जः पुत्र, ज्ञः जो दिल की बात जानता है, वश्यक, नगण्य / दौर्बल्यम दिल की कमजोरी, शैथिल्यम् विपष्णता, हासः हस+घञ 1. ध्वनि, आवाज 2. क्षय, क्षीणता, अवसाद / अभाव, कमी 3. छोटी संख्या। हृद्य (वि०) हृदयत् स्वादिष्ट, रुचिकर / ह्रीका ही+कक] 1. लज्जा 2. भय,-क: (पुं०) हुषित (वि०) हिष्-+-क्त, बा० इट् कुंठित, ठुठा। 1. पिता 2- नेवला / हेतिः (0) (स्त्री०) हिन्-+ क्तिन्, नि० नया अंकुर। ह्रीपवम् लज्जा का कारण / हेतुः [हि-तुन] 1. प्रेरणार्थक क्रिया का अभिकर्ता-पा० For Private and Personal Use Only Page #1372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only