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धे (भ्वा० पर० धयति, धीत-प्रेर० धापयति, इच्छा० धित्सति ) 1. चूसना, पीना, घूंट भरना, निगल जाना ( आलं० भी ) अधाद्वसामधासोच्च रुविरं वनवासि - नाम् भट्टि० १५/२९, ६ १८, मनु० ४५९, याज़ ० १।१४० 2. चूमना- धन्यो धयत्याननम् - गीत० १२ 3. चूस लेना, खींच लेना, ले लेना ।
धेनः [धे+नन् ] 1. समुद्र 2. नद, धेनुः (स्त्री० ) [ धयति सुतान् धीयते वत्सेर्वाधे + नु इच्च तारा०] गाय दुधार गाय धेनुं धीराः सूनृतां वाचमाह :- उत्तर० ५।३१ 2. किसी जाति की स्त्री ( इस अर्थ में किसी भी पुरुरवाचक नाम के आगे लग कर उसे स्त्रीवाचक शब्द बना देता है यथा खङ्गधेनुः, asai: आदि 3, पृथ्वी ( कई बार समास के अन्त में लग कर इससे अल्पार्थवाची शब्द बनता है, जैसे असिधेनुः खङ्गधेनुः ) | धेनुक [ धेनु + कन् ] एक राक्षस का नाम जिसको बलराम नेमार गिराया था । सम० - - सूदनः बलराम का विशेषण |
धेनुका [ धेनुक + टाप् ] 1. हथिनी 2. दूध देने वाली गाय । धेनुष्या [ धेनु + यत्, सुक्] वह गाय जिसका दूध बंधक रूप में सुरक्षित हो ।
धेनुकम् [ धेनु + ठक् ] 1. गौओं का समूह 2. रतिबंध । यम् [धीर + ष्यञ् ] दृढ़ता, टिकाऊपन, सामर्थ्य, ठोसपन, स्थिरता, स्थायिता, धीरज, साहस धैर्यमवष्टभ्य -- पंच० १, विपदि धैर्यम् भर्तृ० २२६३, इसी प्रकार 'धैर्यवृत्ति' शि० ९।५९ 2. शान्ति, स्वस्थता 3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सहिष्णुता 4. अनम्यता 5. हिम्मत, दिलेरी मेघ० ४० ।
वतः [धीमत् + अण् पृषो० मस्य वत्वम् ] भारतीय सरगम स्वरग्राम के सात स्वरों में छठा स्वर । धवत्यम् [धीवत् + ष्यञ ] चतुराई । घोड:- डुडुभ ।
घोर ( भ्वा० पर० धोरति ) 1. जल्दी जाना, अच्छे कदम रखना, दौड़ना, दुल्की चलना 2. कुशल होना । धोरणम् [ धोर् + ल्युट् ] । ( घोड़ा, हाथी आदि ) वाहन, सवारी 2. जल्दी जाना 3. घोड़े की दुल्की चाल । घोरणि:, - जी (स्त्री० ) [ धोर् + अनि, घोरणि + ङीप् ]
1, अनवच्छिन्न श्रेणी या नैरन्तर्ययैर्माकन्दवने मनोज्ञपवने सद्यः स्खलन्माधुरीधाराघोरणिधौतधामन धराधीशत्व मालम्ब्यते, तेषां नित्यविनोदिनां सुकृतिनां माध्वीकपानां पुनः कालः किं न करोति केतकि यतस्त्वं चापि केलिस्थलो - उद्भट, परम्परा । धोरितम् [ धोर् + क्त ] 1. क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, प्रहार करना, 2. गमन, गति 3. घोड़े की दुल्की चाल । घौत ( भू० क० कृ० ) [ धाव् + क्त ] 1. घोया हुआ,
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बहाया गया, साफ किया गया, पवित्र किया गया, प्रक्षालन किया गया कुल्याम्भोभिः पवनचपल: शाखिनो धौतमूला:- श० १११५, शिक्षा० ५८, कु० १/६, ६/५७, रघु० १६/४९, १९।१० 2. चमकाया हुआ, उजला किया हुआ 3. उजला, सफ़ेद, चमकदार, चमकीला, चमचमाता हुआ, हरशिरश्चन्द्रिकाधोतर्म्या – मेघ० ७१४४, विकसद्दन्तांशुघौताधरम्गीत० १२, तम् चाँदी, सम० कटः मोटे कपड़े का थैला, कोषजम्, कौषेयम् घुली हुई रेशम, - शिलम् स्फटिक ।
धौमः [ धूम्र + अण् ] 1. भूरापन 2. (विशेष रूप से तैयार किया गया) मकान बनाने के लिए स्थान । धरितकम् [ घोरित + अण् + कन् ] घोड़े की टुल्की चाल । धौरेय (वि०) (स्मी०-यी ) [ धुरं वहति ढक् ] बोझा
ले जाने के योग्य, -य: 1. बोझा ढोने का पशु 2. घोड़ा 1
धौर्तकम्, घौतिकम्, धौर्त्यम् [ घूर्तस्य भावः कर्म वा - घूर्त + वुञ, ठञ ष्यञ वा | जालसाजी, बेईमानी, दमाशी ।
ध्मा (म्वा० पर० धर्मांत, ध्मात, प्रेर० ध्मापयति )
1. फूंक मारना. श्वास बाहर निकालना, निःश्वसन 2. (हवा उपकरण की भांति) धोकना, फूंक मार कर बजाना - शंखं दध्मौ प्रतापवान् भग० १।१२,१८, रघु० ७/६३, भट्टि० ३।३४,१७७ 3. आग को फूंकना, फूंक मारकर आग को उद्दीप्त करना, चिंगारियाँ उठाना को धमेच्छांतं च पावकम् महा० 4. फूंक द्वारा निर्माण करना 5. फेंकना, फॅक से उड़ाना, फेंक देना, आ-, 1. हवा भरना, फुलाना 2. फूंक मारना या हवा से भरना, (शंख आदि को ), उप, फूंक मारकर तेज करना, पंखा करना नाग्नि मुखेनोपधमेत्- मनु० ४।५३ मिस्, फूंक मारकर बाहर निकालना, प्र, (शंख आदि) बजाना - शङ्खी प्रदध्मतुः - भग० १ १४ वि बखेरना तितर वितर करना, नष्ट करना ।
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धमाकारः [ घ्मा+कृ+ अण् ] लुहार, लोहकार । ध्मांक्षः अने० पा० = ध्वांक्षः ।
ध्मात (भू० क० कृ० ) [ ध्मा+क्त] 1. ( वायुवाद्ययंत्र की भांति ) बजाया हुआ, पंखा किया हुआ, भड़काया हुआ 2. हवा भरा हुआ, फूला हुआ, फुलाया हुआ । ध्यात ( वि० ) [ ध्ये+क्त] सोचा हुआ, विचार किया हुआ, दे० 'ध्ये' । ध्यानम् [ ध्यै + ल्युट् ] 1. मनन, विमर्श, विचार, चिन्तन ज्ञानाद् ध्यानं विशिष्यते भग० १२/१२, मनु० १। १२, ६।७२ 2. विशेष रूप से सूक्ष्मचिंतन, धार्मिक मनन- तदैव ध्यानादवगतोऽस्मि - श० ७, रघु० १|
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