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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और० सजरभू (36) यमुना भूजनता हरिः / / ( 1188 ) उदा० मुरारितनुवल्ली कुमारललिता सा / / उदा. वासोवल्ली विद्यन्माला बहश्रेणी शाक्रश्चापः / बजेणनयनानां ततान मुदमुच्चः / / यस्मिन्नास्तां तापोच्छित्य गोमध्यस्थः कृष्णाम्भोदः / (2) मदलेखा (6) समानिका परि० मस्गो स्यान्मदलेखा / परि० ग्लौ रजी समानिका तु। गण. म, स, ग (3. 4) / गण. ग, ल, र, ज (4. 4) उदा० रने बाहुविरुग्णाद् दन्तीन्द्रान्मदलेखा। उदा० यस्य कृष्णपादपद्ममस्ति हृत्-तडागसय / लग्नाभून्मुरशत्रौ कस्तूरीरसचर्चा / धीः समानिका परेण नोचितात्र मत्सरेण // (3) मधुमती परि० ननगि मधुमती। नौ वर्णों के चरण वाले वृत्त गण० न, न, ग (5. 2.) / _ (बृहती) उदा० रविदुहितृतटे नवकुसुमततिः / (1) भुजगशिशुभृता श्यधित मधुमती मघुमथनमुदम् / / परि० भुजगशिशुभृता नौ मः। आठ वर्गों के चरण वाले वृत्त गण० न, न, म (7. 2.) उदा० ह्रदतटनिकटक्षीणी भुजगशिशुभता याऽऽसीत् / (अनुष्टुभ्) ___ मुररिपुदलिते नागे ब्रजजनसुखदा साऽभूत् // (1) अनुष्टुभ् (2) भुजङ्गसङ्गता (इसे 'इलोक' भी कहते हैं) परि० सजरर्भुजङ्गसङ्गता। इस छन्द के अनेक भेद है। परन्तु जिसका सबसे गण० स, ज, र (3.6) अधिक प्रयोग होता है उसके प्रत्येक चरण में आठ उदा० तरला तरङ्गरिङ्गितर्यमुना भुजङ्गसङ्गता। वर्ण होते है, मात्रायें सबकी भिन्न-भिन्न / इस प्रकार कथमेति वत्सचारकश्चपल: सदैव तां हरिः॥ प्रत्येक चरण का पांचवां वर्ण लघु, छठा दीर्घ, तथा (3) मणिमध्य सातवां वर्ण (प्रथम, तृतीय चरण का) दीर्घ, एवं परि० स्यान्मणिमध्यं चेद्भमसाः / (द्वितीय तथा चतुर्थचरण का) ह्रस्व होता है। | गण. भ, म, स (5.4) श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम् / कालियभोगाभोगगतस्तन्मणिमध्यस्फीतरुचा / द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः / / चित्रपदाभो नन्दसुतश्चारु ननर्त स्मेरमुखः // उदा. वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरी रघु० // 1 // दस वर्षों के चरण वाले वृत्त (2) गजगति (पङक्ति) परि० नभलगा गजगतिः / (1) त्वरितगति गण. न, भ, ल, ग (4.4) / परि० त्वरितगतिश्च नजनगः / पवा० रविसुतापरिसरे विहरतो दशि हरेः / गण० न, ज, न, ग (5. 5.) ब्रजवधूगजगतिर्मुदमलं व्यतनुत / उदा० त्वरितगतिव्रजयुवतिस्तरणिसुता विपिनगता। (3) प्रमाणिका मुररिपुणा रतिगुरुणा परिरमिता प्रमदमिता। परि० प्रमाणिका जरी लगी। (2) मत्ता गण. ज, र, ल, ग (4.4) / परि० ज्ञेया मत्ता मभसगसष्टा / उदा० पुनातु भक्तिरच्युता सदा च्युताङ्घ्रिपद्मयोः / गण. म, भ, स, ग (4.6) श्रुतिस्मृतिप्रमाणिका भवाम्बुराशितारिका / / उदा० पीत्वा मत्ता मधु मधुपाली (4) माणवक कालिन्दीये तटवनकुञ्ज / परि० भात्तलगा भाणवकम् / उद्दीव्यन्तीब्रजजनरामाः गण. भ, त, ल, ग, (4. 4) / कामासिक्ता मधुजिति चक्रे / / उपा. चंचलचूई चपलैर्वत्सकुलै : केलिपरम् / (3) रुक्मवती (चम्पकमाला) ध्याय सखे स्मेरमुखं नन्दसुतं माणवकम् / / परि० रुक्मवती सा यत्र भमस्गाः / (5) विद्युन्माला गण० भ, म, स, ग (5. 5) परि० मो मो गो गो विद्युन्माला। उदा० कायमनोवाक्यः परिशुद्धः गण. म, म, ग, ग (4.4) / यस्य सदा कंसद्विषि भक्तिः / नपादयोहक वागर्थप्रतिपत्त 131 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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