________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्यपदे हालिरुदारा तेन सहेह बिति रहः स्त्री रुक्मवती विघ्नः खलु तस्य // सार तरागमनायतमानम् ॥शि० 4/45 / ग्यारह वर्णों के चरण वाले वृत्त (5) भ्रमरविलसितम् परि० म्भौन्लो गःस्याद् भ्रमरविलसितम् / (त्रिष्टुभ्) गण. म, भ, न, ल, ग (4.7) (1) इन्द्रवना उदा. प्रीत्यै यूनां व्यवहिततपनाः परि० स्यादिन्द्रवज्रा यदि तो जगौ गः / प्रौढध्वान्तं दिनमिह जलदाः / गण. त, त, ज, ग, ग (5. 6) दोषामन्यं विदधति सुरतउदा० गोष्ठे गिरि सव्यकरेण धुत्वा क्रीडायासश्रमशमपटवः // शि० 4 / 62 / रुष्टेन्द्रदजातिमुक्तवृष्टौ / (6) रथोद्धता यो गोकुलं गोपकुलं च सुस्थम् परि० रात्परैर्नरलग रथोद्धता / चक्रे स नो रक्षतु चक्रपाणिः / गण० र, न, र, ल, ग (3.8 या 4.7) (2) उपेन्द्रवज्ञा उदा. कौशिकेन स किल क्षितीश्वरो परि० उपेन्द्रवजा प्रथमे लघौ सा / राममध्वरविघातशान्तये। गण० ज, त, ज, ग, ग (5. 6) काकपक्षधरमेत्य याचितउदा० उपेन्द्रवज्रादिमणिच्छटाभि स्तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते / / रघु० 11 / 1 / विभूषणानां छुरितं वपुस्ते / दे० कु०८ भी। स्मरामि गोपीभिरुपास्यमानम् __(7) बातोर्मी सुरद्रुमले मणिमण्डपस्थम् / / परि० वातोर्मीयं गदिता म्भौ तगो गः। (3) उपजाति गण. म, भ, त, ग, ग (4.7) रि० अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजी उदा० ध्याता मूत्तिः क्षणमप्यच्युतस्य पादौ यदीयावुपजातयस्ताः। श्रेणी नाम्नां गदिता हेलयाऽपि / इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु संसारेऽस्मिन दुरितं हन्ति पुंसाम् वदन्ति जातिष्विदमेव नाम / / बातोर्मी पीतमिवाम्भोधिमध्ये // गण. जब इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा को एक ही श्लोक (8) शालिनी में मिला देते हैं तो उसे उपजाति वृत्त कहते हैं। परि० मात्तौ गौ चेच्छालिनी वेदलोकः / इसके चौदह भेद होते हैं। गण. म, त, त, ग, ग, (4. 7.) उदा. अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा उदा० अंहो हन्ति ज्ञानवद्धि विधत्ते हिमालयो नाम नगाधिराजः / धर्म दत्ते काममर्थं च सूते / पूर्वापरी तोयनिधी वगाह्य मुक्ति दत्ते सर्वदोपास्यमाना स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः / / कु. 101 / पुंसां श्रद्धा शालिनी विष्णुभक्तिः / / रघु० 2, 5, 6, 7, 13, 14, 16, 18, कु०३, (9) स्वागता कु०१७ आदि। जब अन्य वृत्त भी एक ही श्लोक परि० स्वागता रनभगर्गुरुणा च / में मिला दिये जाते है तो भी उपजाति ही वृत्त गण० र, न, भ, ग, ग (3. 8) होता है। उदा० माघ कवि के निम्नश्लोक में उदा० यावदागमयतेऽथ नरेन्द्रान् स स्वयंवरमहाय महीग्वः। वंशस्थ और इन्द्रवंशा मिला दिए गए हैं। तावदेव ऋषिरिन्द्रदिक्षुः नारदस्त्रिदशघाम जगाम / / इत्थं रथाश्वेभनिषादिनां प्रगे न०५॥१॥ गणो नृपाणामथ तोरणादहिः / दे० कि०९, शि०१.. प्रस्थानकालक्षमवेषकल्पना बारह वर्णों के चरण वाले बत्त कृतक्षणक्षेपमुदैवताच्युतम् // शि०१२।। (जगती) (4) दोषक (1) इन्द्रवंशा परि० दोधकमिच्छति भत्रितयादगा। परि० तच्चन्द्रवंशा प्रथमाक्षरे गुरौ // गण. भ, भ, भ, ग, ग, (6. 5.) गण. इन्द्रवंशा बिल्कुल वंशस्थविल या वंशस्थ (दे० नी. उवा० या न ययौ प्रियमन्यवधूभ्यः १३वा) के समान है, सिवाय इसके कि इसका सा रतरागमना यतमानम् / प्रथमाक्षर गुरु होता है। त, त, ज, र। For Private and Personal Use Only