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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेणी की है.८८६४ को बात गण गण सना चार चावाले वृत्त ( 1187 ) अनुभाग (क) श्रेणियों में रखते हैं जैसे कि समवृत्तों के प्रत्येक चरण / चार वर्षों के चरण वाले वृत्त में अक्षरों की संख्या एक से लेकर छब्बीस तक पथक (प्रतिष्ठा) पृथक हो सकती है। इनमें से प्रत्येक श्रेणी में लघु कन्या और गुरु की पृथक-पृथक भिन्न-भिन्न स्थिति होने के परि० ग्मो चेत्कन्या। कारण असंख्य वृत्तों की संभावना हो जाती है। गण० ग, म उदाहरणतः छः अक्षरों के प्रत्येक चरण वाली श्रेणी उदा० भास्वत्कन्या सैका धन्या / में, (अक्षर चाहे लघु हों या गुरु) संभावित संख्या यस्याः कूले कृष्णोऽखेलत् / / 2x2x2x2x2x2 या 26=64 होती है, परन्तु प्रयोग में छः वृत्त भी नहीं आते। यही बात पाँच वर्षों के चरण वाले वृत्त छब्बीस अक्षर वालो श्रेणी की है। वहाँ भी वृत्तों की (सुप्रतिष्ठा) संभावित संख्या 226 या 87108864 होती है। पंक्ति परन्तु यदि हम अर्धसमवत्त या विषमवत्तों की बात परि० भूमी गिति पंक्तिः देखें तो वहाँ तो संभावित वृत्तों की विविधता अनन्त है। पिंगल, लीलावती और वृत्तरत्नाकर के अंतिम उदा. कृष्ण सनाथा तर्णकपंक्तिः / अध्याय में संभावित विविधताओं की संख्या, उनका यामुनकच्छे चारु चचार / / स्थान, या उनकी नियमित गणना में किसी एक छंद छः वर्षों के चरण वाले वृत्त विशेष की निश्चित जानकारी प्राप्त करने के लिए गायत्री निर्देश दिये गए हैं। संभावित वृत्तों के इस विशाल (1) तनुमध्यमा समदाय की तुलना में कवियों द्वारा प्रयुक्त किये जाने परि० त्यो चेत्तनुमध्यमा। वाले वृत्तों की विविधता नगण्य है। परन्तु यह | गण. त, य / नगण्य संख्या भी इतनी अधिक है कि इस परिशिष्ट उदा० मूर्तिर्मुरशत्रोरत्यद्भुतरूपा / में नहीं रक्खी जा सकती। अतः हम यहाँ निम्न क्रम आस्तां मम चित्ते नित्यं तनुमध्या // में केवल उन्हीं वृत्तों का वर्णन करेंगे जो बहुत प्रयुक्त (2) विद्युल्लेखा ('वाणी' भी कहते हैं) किये जाते हैं अथवा जिनका उल्लेख करना आव- परि० विद्युल्लेखा मो मः। श्यक है। गण. म, म (3,3) / उदा० श्रीदीप्ती ह्रीकीर्ती धीनीती गी: प्रीती। अनुभाग (क) समवृत्त एधेते द्वे द्वे ते ये नेमे देवेशे // काव्य० 3186 / अनुभाग (ख) अर्धसमवृत्त अनुभाग (ग) विषमवृत्त (3) शशिवदना परि० शशिवदना न्यो। अनुभाग (घ) जाति आदि गण० न, य। नोट-निम्नांकित परिभाषाओं में गणों का प्रतिनिधित्व उदा० शशिवदनानां व्रजतरुणीनाम् / करने वाले भ म स और ल ग आदि वर्गों के स्वर अधरसुधोमि मधुरिपुरच्छत् ] का बहुधा वृत्त की अपेक्षा के कारण लोप कर दिया जाता है-उदा० 'म्रभ्न' प्रकट करता है म र भन (4) सोमराजी परि० दिया सोमराजी। को, इसी प्रकार 'म्तो' दर्शाता है म त को। पहली पंक्ति में हमने वृत्त की परिभाषा दी है, दूसरी पंक्ति गण. य, य (2, 4) / उदा० हरे सोमराजी-समाते यशःश्रीः / में गणक्रम और यति–विराम अर्थात् श्लोक या जगन्मण्डलस्य छिनत्यन्धकारम् // चरण का सस्वर पाठ करने में जहाँ रुकना होता है, और जो कि परिभाषा में करणकारक द्वारा संकेतित सात वर्णों के चरण वाले वृत्त किया गया है-(प्रकोष्ठ में अंग्रेजी अंकों द्वारा) (उणिक) प्रकट की जाती है, फिर तीसरी पंक्ति में उदाहरण (1) कुमारललिता (इनमें से अधिकांश माघ, भारवि, कालिदास और | परि० कुमारललिता जसगाः / दंडी की रचनाओं से लिए गए है)। | गण. ज, स, ग (3. 4) / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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