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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 836 ) लगाया गया है, यह (वि.) न्यायोचित दंड देने / संख्या के लिए विरलप्रयोग / सम० अन्त: 1. जुए वाला-रघु० 418, .-मनस् (वि०) सावधान,-.रूप का किनारा 2. युग का अन्त, सृष्टि का अन्त या (वि.) योग्य, उचित, लायक, उपयुक्त (संबं० या विनाश युगान्तकालप्रतिसंहृतात्मनो जगन्ति यस्यां अधि० के साथ)-जन्म यस्य पुरोवंशे युक्तरूपमिदं तव सविकासमासत शि० 123, रघु० 1316 -श० 17, अनुकारिणि पूर्वेषां युक्तरूपमिदं त्वयि 3. मध्याह्न, दोपहर, - अवधिः सृष्टि का अन्त या ----2 / 16 / विनाश शि. 17440, कोलकः जुए की कीली मुक्तिः (स्त्री०) [ युज+क्तिनु ] 1. मिलाप, संगम, --... पार्श्वग (वि.) जुए के पास जाने वाला, जुए में सम्मिश्रण 2. प्रयोग, इस्तेमाल, काम में लाना 3. जुए जुतने वाला बैल, बाह (वि.) लम्बी भुजाओं में जोतना 4. व्यवहार, प्रचलन 5. उपाय, तरकीब, वाला-कु० 2 / 18 / / योजना, जुगुत 6. कपटयोजना, कूटयुक्ति, दाव-पेंच युगन्धरः,-रम् [ युग+ +खच्, मम ] गाड़ी की जोड़ी 7. औचित्य, योग्यता, सामंजस्य, संगति, उपयुक्तता जिसके साथ जुआ कस दिया जाता है। 8. कौशल, कला 9. तर्कना, युक्ति, दलील 10. अनु युगपद् (अव्य०) [ युग+पद्+क्विप् ] एक ही समय, मान, निगमन 11. हेतु, कारण 12. क्रमबद्धता, रचना सब एक साथ, सब मिलकर उसी समय कु० 31 ---यत्र खल्वियं वाचोयक्तिः 'मा० 1 13. (विधि में) प्रायः समास में श०४।२ / संभावना, परिस्थिति की गणना या विशेषता (समय, | युगलम् [ युज+कलच्, कुत्वम् | जोड़ा दम्पती- बाह स्थान आदि की दृष्टि से)-युक्तिप्राप्तिक्रियाचिल्लसंबं- हस्त चरण आदि। घाभोगहेतुभिः याज्ञ० 2 / 92, 212 14. (नाटकों | युगलकम् [ युगल+कन् ] 1. जोड़ी, 2. इलोकाधं, जो दो में) घटनाओं की नियमित पंखला, तु० सा०० मिलकर पूरा श्लोक या वाक्य बनाएं, दे० युग्म / 343 15. (अलं० में) किसी के प्रयोजन या अभि- युग्म (वि.) [ युज्+म, कुत्वम् ] सम-युग्मासु कल्प की प्रच्छन्न अथवा प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति पुत्रा जायन्ते स्त्रियोऽयुग्मासु रात्रिषु , तस्माद्युग्मासु 16. कुल राशि, योग 17. धातु में खोट मिलाना / पुत्रार्थी संविशेदातवे स्त्रियम--मनु० 3 / 48, याज्ञ. सम० - कयनम् हेतुओं का वर्णन, -कर (वि.) 1179 1. जोड़ी, दम्पती, दे० अयुग्म 2. संगम, मिलाप 1. उपयुक्त, योग्य 2. सिद्ध, - ज्ञ (वि.) तरकीब 3. (नदियों का) संगम 4. जुड़वां 5. श्लोकार्ष-जिन या उपायों में कुशल, आविष्कार कुशल, युक्त दो से मिलकर पूरा एक वाक्य बने - द्वाभ्यां युग्ममिति (वि०) 1. उपयुक्त, योग्य 2. विशेषज्ञ, कुशल प्रोक्तम् 6. मिथुन राशि। 3. स्थापित, सिद्ध 4. तर्कयुक्त। युग्य (वि.) [यगाय हितः यत् 1 1. जोतने के योग्य युगम् [युज्+घभ कुत्वम्, गुणाभावः ] 1. जुआ (पुं० 2. जुता हुआ, साज सामग्री से संनद्ध 3. खींचा गया भी इस अर्थ में)-युगव्यायत बाहुः रघु० 3 / 34, जैसा कि 'अश्वयुग्यो रथः' में,-ग्यः जुता हुआ या 10 / 67, शि० 3 / 68 2. जोड़ा, दम्पती, युगल खींचने वाला जानवर, विशेषतः रथ का घोड़ा-हरि-कुचयोर्युगेन तरसा कलिता शि० 9 / 72, स्तन- युग्यं रथं तस्मै–प्रजिधाय पुरन्दर:-रघु० 12 / 84 / युग--श०१२१९ 3. श्लोकार्घ जिसमें दो चरण होते युज / (रुघा० उभ० युनक्ति, युङ्क्ते, युक्त) 1. संमिलित हैं, युग्म 4. सृष्टि का युग (युग चार हैं: कृत या होना, मिलना, अनुरक्त होना, संबद्ध होना, जुड़ना सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि--प्रत्येक की अवधि -तमर्थमिव भारत्या सुनया योक्तुमर्हसि-कु०६७९, क्रमशः 1728000, 1296000, 864000 और दे. कर्मवा० नीचे 2. जोतना, जीन कसकर संनद्ध 432000 वर्ष है, चारों को मिलाकर 4320000 करना, लगाना-भानुः सकृद्युक्ततुरङ्ग एव- -. वर्ष का एक महायुग होता है) ऐसा माना जाता है 5 / 4, भग० 1314 3. सुसज्जित करना, से युक्त कि युगों की उत्तरोत्तर घटती हुई अवधि के अनुसार करना जैसा कि गुणयुक्त में 4. प्रयुक्त करना, काम शारीरिक और नैतिक शक्ति भी मनुष्यों में बराबर में लगाना, इस्तेमाल करना-प्रशस्ते कर्मणि तथा गिरती गई है। संभवतः इसीलिए कृतयुग को स्वर्ण- सच्छब्दः पार्थ युज्यते-भग० 1426, मनु०७।२०४ युग और कलियुग को लोहयुग कहते हैं)- धर्मसंस्था- 5. नियुक्त करना, स्थापित करना (अधिक के साथ) पनार्थाय संभवामि युगे युगे- भग० 418, युगशतप- 6. निदेशित करना, (मन बादि का) स्थिर रिवर्तान्-श०७४३४ 5.पीढ़ी, जीवन,-आ सप्तमा- करना, जमाना 7. अपना ध्यान संकेन्द्रित करना बुगातु - मनु० 10164, जात्युत्कर्षों यगे शेयः पञ्चमे --मनः संयम्य मचित्तो युक्त बासीत मत्परः सप्तमेऽपि वा याज्ञ. 196 (युगे-जन्मनि मिता.) -मग. 614, युजन्नेव सदात्मानं-१५ 6. 'चार की संख्या की अभिव्यक्ति, 'बारह की / 8. रखना, स्थिर करना, जमाना (अधिक के साथ) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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