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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 837 ) 9. तैयार करना, सुव्यवस्थित करना, सज्जित करना, 5 / 29 2. सम्मिलित होना, मिलना 3. नियत करना युक्त करना 10. देना, प्रदान करना, सादर समर्पित आदिष्ट करना। (प्रेर०) 1. सम्मिलित करना, मिलाना, करना-आशिषं युयुजे, कर्मवा० (युज्यते) 1. संमि- से युक्त करना, प्रदान करना-कु.४१४२ 2. जोतना, लित होने के योग्य-रविपीतजला तपात्यये पुनरोधेन संनद्ध करता, 3. उकसाना, प्रेरित करना-भग० 301, हि युज्यते नदी-कु० 4 / 44, रघु० 8 / 17 2. प्राप्त प्र-(आ०) 1. इस्तेमाल करना, काम में लाना करना, स्वामी होना-इष्टेन युज्वस्व-श० 5, महावी० -अयमपि च गिरं नस्त्वत्प्रबोधप्रयुक्ताम्-रषु० 5 / 75, 7, रघु० 2065 3. योग्य या सही होना, समुचित होना, सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते--भग०१७।२६ उपयुक्त होना (अधि० या संबंध के साथ) या यस्य 2. नियत करना, काम में लगाना, निदेशित करना, युज्यते भूमिका तां खलु भावेन तथैव सर्वे वाः पाठिता आदेश देना-मा मां प्रयङ्ग्थाः कुलकीर्तिलोपे--भग. मा०१, त्रैलोक्यस्यापि प्रभुत्वं त्वयि युज्यते-हि. 3354, प्रायुक्त राज्ये वत दुष्करे त्वाम्-३१५१,कु. 14. तैयार होना-ततो युद्धाय युज्यस्व ---भग० 785 3. देना, प्रदान करना, अभिदान करना 2 / 38, 50 5. तुल जाना, लीन होना, निदेशित होना | -अशिषं प्रययुजेन वाहिनीम्-रषु०१११६, 2170, -मनु० 3175, 14135, कि० 7.13 / प्रेर० (योज- 5135, 15 / 8 4. हिलना-जुलना, गतिदेना-मरुत्तयति-) 1. सम्मिलित होना, मिलना एकत्र करना युक्ताः (बाललता:)-रघु० 2 / 105. उत्तेजित करना, -रघु० 7 / 14 2. उपहार देना, समर्पण करना, प्रेरित करना, प्रेरणा देना, हांकना-कु० 121, भग. प्रदान, करना-रघु० 1056 3. नियुक्त करना, 3 / 36 6. संपन्न करना, करना-रघु० 786, 17112 काम पर लगाना, इस्तेमाल करना-शभियोजयेच्छ- 7. रंगमंच पर प्रतिनिधित्व करना, अभिनय करना, त्रुम-पंच० 4 / 17 4. मुड़ना, किसी ओर निदेशित नाट्य करना-उत्तरं रामचरितं तत्प्रणीतं प्रयुज्यते करना-पापानिवारयति योजयते हिताय-भर्त० 2172 ...--उत्तर० 112, परिषदि प्रयुञानस्य मम कु. 1. 5. उत्तेजित करना, प्रेरित करना, भड़काना 6. सम्पन्न 8. इस्तेमाल करने के लिए उधार देना, (धन आदि) करना, निष्पन्न करना 7. तैयार करना, सुव्यवस्थित ब्याज पर देना - मनु० 8.146, वि-(आ०) करना, सुसज्जित करना ---इच्छा. (ययक्षति-ते) 1. छोड़ना, परित्याग करना-कि० 2 / 49, रघु०१३॥६३ सम्मिलित होने की इच्छा करना, जोतने की इच्छा 2. अलग-अलग करना---पुरो वियुक्ते मिथुने रुपावती करना, देने की कामना करना, अनु-(आ०) 1. पूछना ... कु० 5 / 26 3. ढीला करना, शिपिल करना, प्रश्न करना--अन्वयुंक्त गुरुमीश्वरः क्षिते: रघु० विनि ..., 1. इस्तेमाल करना, व्यय करना 2. नियुक्त 11162, 5 / 18, शि० 10168 2. परीक्षण करना, करना, काम में लगाना 3. बांटना, अनुभाजन करना, जांच करना मनु० 779, अभि.,(आ.) चेष्टा वितरण करना---प्रत्येक विनियक्तारमा कथं न ज्ञास्यसि करना, काम में पिल जाना 2. आक्रमण करना, धावा प्रभो–कु० 2 / 31 4. वियुक्त करना, अलग करना, करना भवन्तमभियोक्तुमुधुङ्क्ते-दश० 3. दोषारोपण सम्-सम्मिलित होना (कर्मवा० में)-संयोक्ष्यसे स्वेन करना, दोषी ठहराना मनु० 8 / 183 4. अधिकार वपुर्महिम्ना - रघु० 5 / 25, (प्रेर०) मिलाना, सम्मिजताना, मांग प्रस्तुत करना (जैसे कि किसी कानूनी लित करना। अभियोग में)-विभावितैकदेशेन देयं यदभियुज्यते (भ्वा० चरा० पर० योजति, योजयति) जोड़ना, विक्रम०४।१७, याज्ञ० 219 5. कहना, बोलना उद्-, मिलाना, जोतना दे० ऊपर 'युज्'। .. उत्तेजित करना, सक्रियता उद्दीप्त करना 2. कोशिश | iii(दिवा० आ० युज्यते) मन को , संकेन्द्रित करना करना, प्रयास करना --भवन्तमभियोक्तूमद्यते-दश० ('युज' के कर्मवा० रूप के समरूप) / 3. तैयार करना, उप--,(आ.) 1. इस्तेमाल करना, / (वि.) युज+क्विन् (समास के अन्त में) 1. जग काम में लगाना-पाहुण्यमुपयुञ्जीत-शि० 2193, हुआ, मिला हुआ, जुता हुआ, खींचा जाता हआ पणबन्धमुखान्गुणानजः षडुपायुक्त समीक्ष्य तत्फलम् 2. सम, अविषम, पुं० 1. सम्मेलक, जो जोड़ देता है, रघु० 8 / 21, मालवि० 5 / 12 2. चखना, स्वाद लेना मिला देता है 2. ऋषि मनि, जो अपने आपको भावअनुभव करना (आलं० से भी) रघु० 18 / 46, भट्टि. समाधि में संलग्न रखता है 3. जोड़ा, दंपती (इस 8139 4. उपभोग करना, खाना-मनु० 8 / 40, नि अर्थ में नपुं० भी)। (आ०) 1. नियुक्त करना, प्रतिनियुक्त करना, आदेश | पुजानः [युज्+शानच्] 1. हांकने बाला, रघवान् 2. वह देना (अधिक के साथ)- यन्मां विधेयविषये स भवा- ब्राह्मण जो परमात्मा से सायुज्य प्राप्त करने के लिए नियुङ्क्ते-मा० 119, असाधुदर्शी तत्र भवान् काश्यपः | योगाभ्यास में व्यस्त है। य इमामाश्रमधर्मे नियुङ्क्ते . श० 1, कु० 3 / 13, रघु० / युत (भू० क० कृ०) [य+क्त] 1. जुड़ा हुआ, सम्मिलित, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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