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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 623 ) किया हुआ 10. प्रत्याशित,-क्रिया 1. आदर प्रदर्शित ! दूत 2. कुलपुरोहित, जो कुल में होने वाले सभी कर्मकरना, सम्मानित बर्ताव, 2. आरम्भिक या दीक्षासंबंधी काण्ड या संस्कारों का संचालन करता है। कृत्य,—ग, गम (पुरोग,- गम) (वि.) 1. मुख्य, पुरस्तात् (अन्य०) [ पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेश: ] 1. अग्रणी, सर्व प्रथम, प्रमुख, प्रायः संज्ञा के बल सहित आगे, सामन (प्रायः संबं० या अपा० के साथ)-रघ० --स किंवदन्ती वदतां पुरोगः रघु०१४।३, 6 / 55, 2144, कु० 7 / 30, मेघ० 15, या स्वतंत्र रूप से कु० 7 / 40 2. समास में प्रयुक्त) अधिष्ठित- इन्द्र- प्रयुक्त अभ्यन्नता पुरस्तात्-श० 38 2. सिर पुरोगमा देवाः 'इन्द्र के नेतत्व में देवता',-गतिः पर, सर्व प्रथम - मालवि० 111 3. पहले स्थान पर, (स्त्री०) 1. पूर्ववर्तिता, (तिः) कुत्ता,---गंत,-गामिन् आरंभ में 4. पहले, पूर्वतः 5. पूर्व की ओर, पूर्व में, (वि०) 1. पहले या आगे जाने वाला 2. मुख्य, नतृत्व या पूर्व की तरफ 6. बाद में, आगे, अन्त में। करने वाला, नेता (पं०) कुत्ता, -- चरणम 1, आरंभिक पुरा (अव्य०) [पुर- का] 1. पूर्व काल में, पहले, या दीक्षा विषयक कृत्य 2. तयारी, दीक्षा 3. किसी प्राचीन काल में- पुरा शक्रमुपस्थाय-- रघु० 175, देवता के नाम का जप तथा हवन में आहति,छदः पूरा सरसि मानसे यस्य यातं बयः--भामि० 113, चूचुक, - जम्नन् (पुरोजन्मन्) (वि०) पहले पैदा मनु० 11119, 5 / 32 2. पहले अव तक, इस समय हुआ,-डाश् (पुं०),—डाशः (पुरोडाश्,-डाशः) तक 3. पहले पहले, सबसे पहले 4. थोड़े समय में, चावलों को पीस कर बनाई गई तथा कपाल में रख शीघ्र, अचिरात् थोड़ी देर में (इस अर्थ में प्राय: कर प्रस्तुत की गई यज्ञ की आहति - मन० 721, वर्तमान काल के साथ, जहाँ कि भविष्यत् काल का --- धस् (पुरोधस्) (पुं०) कुलपुरोहित, विशेषकर अर्थ प्रकट हो) -पुरा सप्तद्वीपां जयति वसुधामप्रतिकिसी राजा का, धानस् (पुरोधानम्) 1. सामने रथः-श० 7 / 33, पुरा दूषयति स्थलीम्--रघु० रखना, पुरोहित द्वारा कराया गया उपचार,—धिका 12 / 30, आलोके ते निपतति पुरा सा बलिव्याकुला (पुरोधिका) (और अब अन्य स्त्रियों की अपेक्षा) वा --- मेघ 85, नै० 1118, शि. 15 / 56, कि० मनचहेती यत्नी, पाक (वि०) पूरा होने के निकट, 1050, 1136 / सम० - उपनीत (वि०) जिस पूरा होने वाला--कु० 6 / 90, -प्रहर्तृ (पुं०) पहली पर पहले अधिकार किया हुआ था, जो पहले आधिपंक्ति में जाकर लड़ने वाला सैनिक ....रघु०१३।७२, पत्य में था,-कथा पुराना उपाख्यान, कल्पः 1. पूर्व - फल (वि.) जिसका फल निकट ही हो, (निकट सृष्टि 2. अतीत की कहानी 3. पहला युग-द्यूतमेतभविष्य में) फल देने वाला -रघु० २।२२,---भाग त्पुराकल्पे दृष्टं वैरकर महत - मनु० 2 / 227,-- कृत (पुरोभाग) (वि०) 1. बलात प्रवेशी, अनधिकार (वि०) पहले किया हुआ,-योनि (वि.) प्राचीन प्रवेशी 2. छिद्रान्वेषण करने वाला 3. स्पृहाशील, मूल (उत्पत्ति),---वसुः भीष्म का विशेषण, -विद् ईर्ष्याल प्राय: समानविद्या परस्परयशः पुरोभागाः (वि०) अतीत से परिचित, पूर्व काल की घटनाओं - मालवि० 1120 (यहाँ 'पुरोभाग' शब्द का अर्थ का ज्ञाता, पहले जमाने या पूर्व घटित बातों का 'ईर्ष्या' भी है) ( गः) 1. आगे का भाग, अगला जानकार वदन्त्यपर्णेति च तां पुराविदः - कु० 5 / 28, भाग, गाड़ी 2. बलात् प्रवेश, अनधिकार प्रवेश 3. डाह, 639, रघु० ११।१०,-वृत्त (वि.) प्राचीन काल में स्पर्धा, भागिन् (वि.) आगे रहने वाला, स्वेच्छा- होने वाला था उससे संवद्ध 2. पुराना, प्राचीन कथा वान्, नटखट-श. 5. बलात प्रवेशी, अनधिकार पुराना उपाख्यान (-तम्) 1. इतिहास 2. पुरानी या प्रवेशी ...विक्रम० 3 / 3, छिद्रान्वेषी,-मारुतः, वातः काल्पनिक घटना-पुरावृत्तोद्भारैरपि च कथिता कार्य (पुरोमारुतः, - वातः) आगे की हवा, सामने चलने पदवी-मा० 2 / 13 / वाली हवा - मालवि० 413, रघ० 1838,-- सर | पूरा [ पुर+टाप] 1. गंगा का विशेषण 2. एक प्रकार (वि०) अग्रेसर, (-रः) आगे चलने वाला, अग्रदूत का गंधद्रव्य 3. पूर्व दिशा 4. किला / श० 4 / 2 2. अनुचर, टहलआ, सेवक-परिमेय पुराण (स्त्री०--णा, णी) [पुरा नवम्--निरु.] 1. पुरःसरौ रघु० 237 3. नेता, जो नेतृत्व करे, पुराना, प्राचीन, पूर्वकाल संबंधी-पुराणमित्येव न साधु सर्वप्रथम, प्रमुख कु०६।४९ 4. (समास के अन्त सर्वन चापि काव्यं नवमित्यवद्यम-मालवि०११२, में) अनुचरों सहित, परिचरों सहित, के साथ--मान- पुराणपत्रापगमादनंतरम्--रघु० 37 2. वयोवृद्ध, पुरःसरम्, प्रमाणपुरःसरम्, वृकपुरःसरा:-आदि पुरातन-अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराण:-भग० -स्थायिन् (वि.) सामने खड़े रहने वाला,-हित 220 3. क्षीण, घिसाघिसाया,--णम् 1. अतीत (वि.) 1. सामने रक्खा हुआ 2. नियुक्त, दूत, घटना, या वृत्तान्त 2. अतीत की कहानी, उपाख्यान, आयुक्त (त:) 1. कार्यभार संभालने वाला, अभिकर्ता, / प्राचीन या पौराणिक इतिहास 3. कुछ विख्यात For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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