________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धार्मिक पुस्तकें जो गिनती में 18 हैं तथा व्यास द्वारा अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया। कौरव और प्रणीत मानी जाती है, यह पुस्तकें ही हिन्दु-पुराण पांडवों का पूर्व पुरुष पुरु ही था)। सम० -जित् कथा शास्त्र का भंडार है, पुराणों में पाँच विषयों का (पुं०) 1. विष्णु का विशेषण .. राजा कुन्तीभोज वर्णन है और इसी लिए 'पुराण' को 'पंचलक्षण' भी या उसके भाई का नाम,--दम् सोना, स्वर्ण,-दंशकः कहते है-'सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च, हंस, लंपट (वि०) बहुत विषयी, या कामातुर, ह, वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम / पूराण के अठा हु बहुत, बहुत से,-हत (वि०) बहुतों से आवाहन रह नामों के लिए दे० अष्टादशन के नीचे,—णः 80 किया गया (तः) इन्द्र का विशेषण---रघु० 4 / 3, कौड़ियों के बराबर मूल्य का एक सिक्का। सम० 165, कु० 745, मनु० 11 / 22, "द्विष् (पु०) इन्द्र —अन्तः यम का विशेषण,-उक्त (वि.) पुराणों में जित् का विशेषण। निर्दिष्ट या विहित,—गः 1. ब्राह्मण का विशेषण 2. पुरुषः [पुरि देहे शेते -शी+ड पृषो० तारा०, पुर--- पुराण पाठक, पुराण की कथा करने वाला, पुरुषः कुषन्] 1. नर, मनुष्य, मर्द .... अर्थतः पुरुषो नारी विष्णु का विशेषण। या नारी सार्थतः पुमान्-मच्छ० 3 / 27, मनु० पुरातन (वि०) (स्त्री.-नी) [ पुरा+ट्यु, तुटु ] 1. 1132, 717, 92, रघु० 2141 2. मनुष्य, पुराना, प्राचीन, शि० 1260, भग० 813 2. वयो मनुष्य जाति 3. किसी पीढ़ी का प्रतिनिधि या सदस्य वृद्ध, प्राक्कालीन, -रघु० 11285, कु० 69 3. 4. अधिकारी, कार्यकर्ता, अभिकर्ता, अनु चर, सेवक घिसाघिसाया, क्षीण,--नः विष्णु का विशेषण। 5. मनष्य की ऊँचाई या माप, दोनों हाथ फैला कर पुरिः (स्त्री०) [+इ ] 1. नगर, शहर 2 नदी। लम्बाई की माप) -द्वौ पुरुपौ प्रमाणमस्याः सा द्वि परिशय (वि०) [ पुरि+शी-|-अच् ] शरीर में विश्राम पुरुषा-षी परिखा--सिद्धा० 6. आत्मा-द्वाविमौ करने वाला। पूरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च-भग०१५।१५ आदि० पुरी [ पूरि+डोष ] 1. शहर, नगर-शशासकपूरीमिव- 1. परमात्मा, ईश्वर (विश्व की आत्मा) शि० 1133, रघु० 1130 2. गढ़ 3. शरीर। सम० मोहः धतूरे | रघु० 1316 8. पुरुष (व्या० में) प्रथम पुरुष, मध्यम का पौधा / पुरुष और उत्तम पुरुष (सिद्धा० में यही क्रम है) 9. आँख पुरीतत् (पुं०, नपुं) [ पुरी देहं तनोति–तन +क्विप् ] को पुतलो 10. (सांख्य में), आत्मा (विप० प्रकृति) 1. हृदय के पास की एक विशेष अंतड़ी 2. अंतड़ियाँ सांख्यमतानुसार यह न उत्पन्न होता है, न उत्पादक --- ('पुरितत्' भी, परन्तु यह रूप अशुद्ध प्रतीत है, यह निष्क्रिय है, तथा प्रकृति का दर्शक है-तु० होता है)। कू०२।१३, 'सांख्य' शब्द की भी,-बम मेरु पर्वत का पुरीषम् प+ईषन् , किच्च मल, विष्ठा, गूथ (गोबर), . विशेषण। सम० --अंगम् पुरुष को जननेन्द्रिय, मनु० 31250 5 / 123, 676, 4156 2. कड़ा लिंग, अदः नरभक्षक, मनुष्य का मांस खाने वाला, करकट, गंदगी। सम०-उत्सर्गः मलत्याग, निग्रह- पिशाच, अधमः अत्यंत नीच पुरुष, बहुत ही जघन्य णम् कोष्ठबद्धता। और पणित व्यक्ति, अधिकारः 1. पुरुष का पद या पुरोषणः [पुरी+ इ +त्यु ट्] मल, विष्ठा,—णम् मलोत्सर्ग कर्तव्य ). मनुष्य का मूल्यांकन या प्राक्कलन ...... कि० करना, मलत्याग करना / 3 / 51,... अन्तरम् दूसरा मनुष्य,- अर्थः 1. मानवपुरीषमः [पुरीषं मिमीतें-- पुरीष+मा+क] उड़द, माष / जीवन के चार मुख्य पदार्थों (अर्थात् धर्म, अर्थ, काम पुर (वि०) (स्त्री०-रु,-बी) [प पालनपोषणयोः और मोन) में से एक 2 मानवप्रयत्न या चेष्टा, - कु] अति, प्रचुर, अधिक, बहत से (लौकिकसाहित्य पुरुषकार, हि० प्र० 35, अस्थिमालिन (40) में 'पुरु' शब्द प्रायः व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के आरम्भ गिव का विशेषण, आद्यः विष्णु का विशेषण, में प्रयुक्त होता है),-- रु. 1. 'फूलों का पराग 2. स्वर्ग, ---आयुषम्, आयुस, मानव-जीवन की अवधि देवलोक 3. एक. राजकुमार का नाम, चन्द्रवंशी .....अकृपणमतिः कामं जीव्याज्जनः पुरुषायषम-विक्रम राजाओं में छठा राजा (यह शर्मिष्ठा और ययाति 6 / 44, पुरुषायषाविन्यो निरांतका निरीतयः का सब से छोटा पुत्र था। जब ययाति न अपने पाँचों --रघु० 1963, आशिन् (पुं०) नरभक्षी, राक्षस, पुत्रों से पूछा कि क्या कोई उनमें से ऐसा है जो मेरे | पिशाच, - इन्द्रः राजा, - उत्तमः 1. श्रेष्ठ पुरुप 2. बुढापे और दुर्बलता के बदले मुझे अपना यौवन व / परमात्मा, विष्णु या कृष्ण का विशेषण---यस्मात सौंदर्य दे दें, तो वह केवल पुरु ही था जिसने विनिमय क्षरमतीनोड मागदगि चोत्तमः, अतोऽस्मि लोके वेदे स्वीकार किया, एक हजार वर्ष के पश्चात् ययाति ने च प्रथितः पुरुषोत्तमः--भग० १५:१८,--कार: 1. पुर का यौवन और सौंदर्य उसे लौटा दिया तथा उसे ' मानवप्रयत्न, मनुष्यचेष्टा, मर्दाना काम, मर्दानगी, For Private and Personal Use Only