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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्' के अन्तर्गत महा० का उद्धरण 2. स्थिरता, या जड़ पदार्थ (जैसे कि मिट्टी, पत्थर, वृक्ष आदि स्थायित्व। जो कि ब्रह्मा की सातवीं सष्टि है .. तु० मनु० 41) स्थायिन् (वि०) | स्था+णिनि युक] 1. खड़ा रहने / -मान्यः स मे स्थावरजङ्गमानां सर्गस्थितिप्रत्यवहारहेतु: बाला, टिकने वाला, स्थित रहने वाला (समास के रघु० 2 / 44, कु० 6 / 58 2. धनुष की डोरी अंत में) 2. सहन करने वाला, निरन्तर चलने वाला, 3. अचल संपत्ति, माल असबाब 4. पैतृक या मौटिकाऊ, टिके रहने वाला-शरीरं क्षणविध्वंसि रूसी प्राप्त सम्पत्ति। सम० - अस्थावरम्, - जङ्गमम् कल्पांतस्थायिनो गुणा:-सुभा०, कतिपय दिवसस्थायिनी 1. चल और अचल संपत्ति 2. चेतन और जड़ पदार्थ / यौवनश्रीः भर्तृ० 2 / 82, महावीर 7 / 15 3. जीने स्थाविर (वि.) (स्त्री०-रा,-री)[स्थविर+अण्] मोटा, वाला, निवास करने वाला, रहने वाला मेघ० 23 निवास करन वाला, रहन वाला मघ० 23 / दढ़, - रम् दुढ़ापा। 4. स्थिर, दृढ़, पक्का, अपरिवर्ती, जो न बदले-स्याथी स्थासक: [स्था+स+स्वार्थादौ क] 1. सुवासित करना, भवति (पक्का हो जाता है) (पुं०) 1. नित्य या शरीर पर सुगन्धित लेप करना 2. पानी का बुलबुला शाश्वत भावना, (दे० नी० स्थायिभाव') शि० या कोई तरल पदार्थ-शि० 1815 / 2187, (नपुं०) 1. कोई भी टिकाऊ वस्तु, दृढ़ | स्थासु (नपुं०) [स्था+सु] शारीरिक बल / स्थिति या दशा। सम० भावः मन की स्थिर स्थास्नु ( वि.) [स्था-स्नु ] 1. स्थिर, दृढ़, अचल दशा, टिकाऊ या सदा रहने वाली भावना, (कहते / 2. स्थायी, नित्य टिकाऊ, पायदार-शि० 2 / 93, है इन स्थायिभावों से ही काव्यगत विभिन्न रसों की कि० 2 / 19 / निप्पत्ति होती है, प्रत्येक रस का अपना स्थायिभाव स्थित (भू० क. कृ.) स्था+क्त्त] 1. खड़ाहुआ, रहा अलग है) स्थायिभाव गिनती में आठ या नौ हैं हुआ, ठहरा हुआ 2. खड़ा होने वाला 3. उठकर खड़ा -तिहासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा / जगप्सा होने वाला, उठा हुआ-स्थितः स्थितामुच्चलितः प्रयातां विस्मयरचेत्थमष्टो प्रोक्ताः शमोऽपि च सा० द० ..."छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्-रघु० 216 4. टिकने 206, तु० व्यभिचारिभाव, भाव या विभाव भी। वाला, सहारा लेने वाला, जीवित, विद्यमान, मौजद स्थायक (वि.) (स्त्री--का, की) [ स्था+उकल, स्थितघन्या केयं स्थिता ते शिरसि मुद्रा० 111, यक ] 1. जो ठहरने वाला हो, या जिसमें टहरने की मेघ० 7. (प्रायः क्तान्त के साथ विधेयक के रूप में) प्रवृत्ति हो 2. दृढ़, स्थिर, अचल,-क: गाँव का मुखिया विक्रम० 111, श० 111, कु० 111 5. घटित, हुआ या अधीक्षक। हुआ-कू०४।२७ 6. पड़ाव डाला हुआ, अधिकार किया स्थालम [स्थलति तिष्ठति अन्नाद्यत्र आधारे घन / हुआ, नियुक्त किया हुआ --श० 4 / 18 7. क्रियान्वित 1. थाल, थाली, तस्तरी 2, कोई भोजनपात्र. पाकयोग्य / करने वाला, डटा रहने वाला, समनुरूप रघु० बर्तन / सम० रूपम् पाकपात्र की आकृति / 5 / 33 8. निश्चेष्ट खड़ा हुआ, रुका हुआ, ठहरा स्थाली स्थाल-डी / 1. मिट्टी का घड़ा या हाँड़ी, हुआ 9. जमा हुआ, दृढ़तापूर्वक लगा हुआ कु. रांधने का बर्तन, कड़ाही, बटलोई-नहि भिक्षका: 5 / 82 10. स्थिर, दृढ़ जैसा कि 'स्थितधी' और सन्तीति स्थाल्यो नाधिश्रीयन्ते सर्व०, स्थाल्यां वैडूर्य- 'स्थितप्रज्ञ' में 11. निर्धारित, दृढ़ निश्चय किया हुआ मय्यां पचति तिलखली मिन्धनैश्चन्दनाद्यः भर्त० --2 / -कु० 4 / 39 12. स्थापित, समादिष्ट 13. आचरण 1002. सोम तैयार करने के काम आने वाला में दृढ़, दृढ़मना 14. ईमानदार, धर्मात्मा 15. प्रतिज्ञा विशेष पात्र, पाटलावा, तुरही के सदश फूल / या करार का पक्का 16. सहमत, व्यस्त, संविदाग्रस्त सम० -पाकः एक धार्मिक कृत्य जिसका अनुष्ठान 17. तैयार, निकटस्थ, समीप, तम् स्वयं खड़ा हुआ गृहस्थ करते हैं, पुरीषम् पाक पात्र में जमा हुआ (जैसे कि शब्द) / सम० - उपस्थित (वि०) 'इति' मैल या तरौंछ, पुलाकः पाकपात्र में पकाया हआ शब्द से युक्त या रहित (जैसे कि शब्द), धी(वि०) चावल, न्यायः दे० 'न्याय' के अन्तर्गत, विलम् / दृढमनस्क, स्थिरमना, शान्त,-पाठयम् खड़ी हुई पाकपात्र का भीतरी हिस्सा। स्त्रीपात्र द्वारा प्राकृत में पाठ, प्रज्ञ (वि०) निर्णय स्थावर (वि.) [स्था +-वरच्] 1. एक स्थान पर जमा या समझदारी में दृढ़, सब प्रकार के भ्रमों से मुक्त, हुआ, अचल, अडिग, अचर, जड़ (विप० जंगम) सन्तुष्ट-प्रजहाति यदा कामान्सर्वान् पार्थ मनोगतान् / -शरीराणां स्थावरजङ्गमानां सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव / आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते भग० . कु. 1123, 6 / 67, 73 2. निश्चेष्ट, निष्क्रिय, २१५५,-प्रेमन् (पुं०) पक्का या विश्वासपात्र मित्र / मन्द 3. नियमित, स्थापित, र पहाड़-स्थावराणां स्थितिः (स्त्री०) [स्था+क्तिन] 1. खड़े होना, रहना, हिमालयः... भग० 10 // 25, रम् कोई भी स्थिर टिकना, डटे रहना, जीवित होना, ठहरना, निवास For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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