________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की आदर्श प्रस्तरमूर्ति जैसा कि शिवलिंग, गिरि शालुः [ शाल+उण् ] 1. मेंढक 2. एक प्रकार का गन्ध पर्वत का नाम, °शिला शालग्राम पत्थर,-जः,-निर्यासः द्रव्य, लु (नपुं०) कुमुदिनी की जड़। सालवृक्ष का प्रस्राव, राव -रघु० 131, भञ्जिका | शालु (लू) कम् [शल+ऊकण ] 1. कुमुदिनी की जड़ 1. गुड़िया, पुत्तलिका, मूर्ति--विद्ध० 1, न० 2 / 83 | 2. जायफल, का मेंढक / 2. वेश्या, रंडी,-भजी गुड़िया, पुत्तलिका,-वेष्टः साल | शाल (लू) रः [शाल +ऊर] मेंढक / के पेड़ से निकली राल, तु० 'साल', सारः 1. उत्कृष्ट- शालेयम् [शालि+ढक] चावलों का खेत / वृक्ष 2. हींग। शालोत्तरीयः [ शालोत्तरे ग्रामे भव:-छ ] पाणिनि का शालवः [शाल+वल+ह लोध्र वृक्ष।। विशेषण-दे० शालातुरीय। शाला [शाल+-अच् +टाप्] 1. कक्ष, प्रकोष्ठ, बैठक, | शाल्मलः [शाल+मलच्] 1. सेमल का पेड़ 2. भू-मण्डल कमरा-गृहविशालरपि भूरिशाल:-शि० 3.50, इसी | के सात बड़े खण्डों में से एक। प्रकार संगीतशाला, रंगशाला आदि 2. घर, आवास शाल्मलिः [ शाल+मलिच् ] 1. सेमल का पेड़-भामि० -रघु० 16.41 3. वृक्ष की मुख्य शाखा 4. वृक्ष 1 / 115, मनु० 8246 2. भू-मण्डल के सात बड़े का तना / सम०-अजिरः, - रम् मिट्टी का कसोरा, खण्डों में से एक 3. नरक का एक भेद / सम० - स्थः मृगः गीदड़,-वृक: 1. कुत्ता--भामि० 1172 गरुड़ का विशेषण। 2. भेडिया हरिण 4. बिल्ली 5. गीदड़ 6. बन्दर / शाल्मली [शाल्मलिङीष्] 1. सेमल का पेड़ 2. पाताल शालाकः (पुं०) पाणिनि / लोक की एक नदी 3. नरक का एक भेद / सम० शालाकिन् (पुं०) [शालाक-इन्] 1. भाला रखने वाला, ----वेष्टः, वेष्टकः सेमल के पेड़ का गोंद / बर्थीधारी 2. जर्राह 3. नाई। शाल्वः [ शाल+व] 1. एक देश का नाम 2. शाल्व देश शालातुरीयः [शलातुर+छ] पाणिनि का विशेषण (जन्म का राजा। स्थान 'शलातुर' होने के कारण -'शालोत्तरीय' भी | शाव (वि.) (स्त्री०-यो) [ शव+अण् ] शवसम्बन्धी, लिखा जाता है)। (किसी रिस्तेदार की) मृत्यु से उत्पन्न-दशाहं शावशालारम् [शाला+ऋ+अण] 1. जीना, सीढ़ी 2. पिंजरा। माशौचं सपिण्डेषु विधीयते-मनु०५:५९, 61 2. भूरे शालिः [शाल+णिनि] चावल-न शालेः स्तम्बकरिता रङ्ग का, गहरे पीले रङ्ग का, -वः किसी जानवर वस्तुर्गुणमपेक्षते - मुद्रा० 1313, यवाः प्रकीर्णाः न का छोटा बच्चा, कुरङ्गक, मृगछौना, वन्यपशुशाबक भवन्ति शालयः -मृच्छ०४।१६ 2. गंधबिलाव / सम० क्व वयं क्व परोक्षमन्मथो मगशावैः सममेधितो जनः - ओदनः,---नम् भात (उत्कृष्टतर प्रकार का) ---श० 1118, मृगराजशावः . रघु०६।३, 18137 / -गोपी चावल के खेत की रखवाली करने वाली | शावकः [शाव+कन्] किसी भी वन्य पशु का बच्चा / स्त्री,.--रघु० 4 / 20, चूर्णः, -र्णम् चावल का आटा | शावर दे० 'शाबर'। --- पिष्टम् स्फटिक, - भवनम् चावल का खेत,-वाहनः | शाश्वत (वि.) (स्त्री०-ती) [शश्वद् भवः अण] नित्य, भारत का एक विख्यात राजा जिसके नाम से सनातन, चिरस्थायी - शाश्वतीः समाः -रामा० खिस्तान्द 78 में एक संवत्सर आरंभ हुआ,-होत्रः (=उत्तर० 25) 'अविच्छिन्न वर्षों के लिए,' 'सदा 1. पशुचिकित्सा पर ग्रन्थप्रणेता 2. घोड़ा,--होत्रिन् के लिए' 'समस्त आगामी समय के लिए' उत्तर० (पुं०) घोड़ा। 5 / 27, रघु०१४।१४,--तः 1. शिव 2. व्यास 3. सूर्य, शालिकः [ शालि+के+क] 1. जुलाहा 2. मार्गकर, - तम् अव्य०) नित्य, निरन्तर, सदा के लिए। शुल्क / शाश्वतिक (वि०) (स्त्री०-की) शाश्वत + ठक्] नित्य, शालिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ शाला+इनि] (बहुधा स्थायी, सनातन, सतत-शाश्वतिको विरोध: "नैसर्गिक . समास के अन्त में) 1. सहित, युक्त, सम्पन्न, चमकीला, विरोध" / चमकदार-कि० 8 / 17, 55, भट्टि० 42 2. घरेल। शाश्वती [शाश्वत+ङीप पृथ्वी। शालिनी [शालिन्+ङीप्] 1. घर की स्वामिनी, गृहिणी शाकुल (वि.) (स्त्री०-ली) [शष्कुल+अण् ] मांस 2. छन्द का नाम - दे० परि०१। (या मत्स्य। भक्षी। शालीन (वि.) [शाला+खा] 1. विनीत, लज्जाशील, | शाष्कुलिकम् [शष्कुली-1-ठक पूरियों का ढेर / शर्मीला, लज्जाल निसर्गशालीनः स्त्रीजन:-मालवि० शास् (अदा० पर० शास्ति, शिष्ट) 1. अध्यापन करना, 4, रघु० 6 / 81, 18 / 17, शि०१६।८३ 2. सदृश, शिक्षण प्रदान करना, प्रशिक्षित (इस अर्थ में धातु समान, नः गृहस्थ (शालीनी कृ विनयी बनाना, द्विकर्म है) माणवकं धर्म शास्ति--सिद्धा, भट्टि० विनम्र करना)। 6.10, शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्-भग० For Private and Personal Use Only