________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रफुल्ललोध्रः किया शार से आवाज़ देने या बल परिपक्वशालिः / विलीन ( 1180 ) का नाम,---शृङ्गम् 1. एक सुनहरी सींग 2. सुनहरी / +क्त] हिनहिनाहट, रेंक,---रयाङ्गसंक्रीडितमश्वहेषः चोटी,-सारम् तूतिया,---सूत्रम्,-सूत्रकम् एक प्रकार | - कि० 16 / 8 / / का हार। | हेषिन् (पुं०) [हेष् +णिनि घोड़ा। हेमन्तः, तम् [हि+झ, मुट् आगमः] छः ऋतुओं में से हेहे (अव्य) [हे च हे च - द्व० सं०] संबोधन परक अव्यय एक, जाड़े का मौसम (जो मार्गशीर्ष और पौसमास जिसका उपयोग ज़ोर से आवाज़ देने या बलाने में में आता है) नवप्रवालोद्गमसस्यरम्य: प्रफुल्ललोध्रः किया जाता है। परिपक्वशालि: / विलीनपद्मः प्रपतत्तुषारो हेमन्तकाल: | है (अव्य०) [हा+क] संबोधनात्मक अव्यय / समपागतः प्रिये-ऋतु० 4 / 1 / / हतुक (वि.) (स्त्री० - की) [हेतु। ठण्] 1. कारण हेमल: [हेम+ला+क] 1. सुनार 2. कसोटी 3. गिरगिट / परक, कारण मूलक 2. तर्क संबंधी, विवेक परक,-क: हेय (वि.) [हा---यत्] त्याग करने योग्य / 1. तर्कयुक्त हेतुवादी, तार्किक 2. मीमासक 3. तर्कहेरम् [हि+रन्] 1. एक प्रकार का मुकुट या ताज वादी, अनीश्वरवादी, नास्तिक / 2. हल्दी / हम (वि.) (स्त्री०-मी) [हिम (हेमन)+अण] हेरम्बः [हे शिवे रम्बति रम्ब् +अच, अलुक् स०] 1. गणेश 1. शीतल, जाड़े का, जाड़े में होने वाला, ठंडा 2. हिम 2. भंसा 3. धीरोद्धत नायक / सम०-जननी पार्वती से उत्पन्न–मणालिनी हैममिवोपरागम रघ० 16 // (गणेश की माता जी)। 7 2. सुनहरी, सोने का बना हुआ-पादेन हैम विलिहेरिकः [हि+रक, रुट आगमः] भेदिया, गुप्तचर। लेख पीठम् --- रघु०६।१५, भट्टि० 5489, कु०६।६, हेलनं-ना [हिल+ल्युट] अवज्ञा करना, निरादर करना, --मम् पाला, ओस, मः शिव का विशेषण / सम० तिरस्कार करना, अपमान करना। -- मुद्रा,--मुद्रिका सुनहरी सिक्का / हेला हेड भावे डस्य लः] 1. तिरस्कार, अनादर, अपमान | हमन (वि) (स्त्री०-नी) हेमन्त एव हेमन्ते भवो वा, शि० 11172 2. केलि, क्रीडा, प्रेमालिंगन, दे० सा० प्रण, तलोप:] 1. जाड़े में होने वाला, ठंडा शि० द० 128, दश० 2 / 32 3. सुरत की बलवती 6 / 55, कि० 17.12 2. जाड़े से संबंध रखने वाला इच्छा-प्रौढेच्छयाऽतिरूढानां नारीणां सुरतोत्सवे / अर्थात् लम्बा (जैसे जाड़े की रातें) शि० 677 शृङ्गारशास्त्रतत्त्वज्ञहेंला सा परिकीर्तिता / / 4. आराम, 3. सर्दी में उगने वाला या जाड़े के उपयक्त-हेमनसुविधा-शि० 1134, हेलया आसानी से, बिना किसी निवसनः सुमध्यमाः - रघु० 19 / 41 4. सुनहरी, कष्ट या असुविधा के 5. चंद्रिका / सोने का बना हुआ,-नः / मागशीर्ष का महीना 2. जाड़े हेलावुक्कः (पुं०) घोड़ों का व्यापारी। की ऋतु ( हेमन्त)। हेलिः [हिल+इन्] सूर्य, स्त्री०, केलिक्रीडा, सुरतक्रीडा, | हेमन्तिक (वि०) हेमन्ते काले भवः ठञ् ] 1. जाड़े का, प्रेमालिंगन / ठंडा 2. सर्दी में उत्पन्न होने वाला,---कम एक प्रकार हेवाकः (पं.) [यह शब्द कदाचित फ़ारसी या अरबी से का चावल / लिया गया है, 'लटभ' शब्द की भांति इसका प्रयोग हमल दे० 'हेमन्त। भी कल्हण बिल्हण आदि पश्चवर्ती साहित्यकारों द्वारा हमवत (वि०) (स्त्री०-ती) [हिमवतो अदूरभवो देशः ही हआ है] उत्कट इच्छा, तीव्र स्पहा, उत्कण्ठा तस्येदं वा अण्] 1. बर्फीला 2. हिमालय पर्वत से --अस्मिन्नासीत्तदनु निबिडाश्लेषहेवाकलीलावेल्लद्वाहु निकल कर बहने वाला रघु० 16 / 44 3. हिमालय स्वणितवलया सन्ततं राजलक्ष्मी:-विक्रम० 185101, पर्वत पर उत्पन्न, पला-पोसा, स्थित विद्यमान या संबंध तु० 'हेवाकिन्' / रखने वाला कु० 3 / 23, 2267, -तम् भारतवर्ष, हेवाकस (वि.) [संभवतः इस शब्द का 'हेवाक' से कोई | हिन्दुस्तान / संबंध नहीं] अत्यंत, तीव्र, उत्कट, प्रचंड हेवाकसस्तु | हेमवती [ हमवतडीप् ] 1. पार्वती का नाम 2. गंगा शृङ्गारो हावोक्षिभ्रविकारकृत् --दश० 131 / का नाम 3. एक प्रकार की 'हरड़, हरीतकी 4. एक हेवाकिन् (वि.) हेवाक+इनि] अत्यंत इच्छुक, उत्कंठित प्रकार की औषधि 5. सन का पौधा, अलसी 6. भूरे (समास में प्रयोग)-जायन्ते महतामहो निरुपमप्रस्थान- | रंग की किशमिश। हेवाकिनां निःसामान्यमहत्त्वयोगपिशुना वार्ता विपत्ता-हयङ्गग्वीनम् [शो गोदोहात भवं ह्यसगो+ख, नि.] वपि--कल्हण / 1. पिछले दिन के दूध से बनाया गया घी, ताजा हे (स्वा० आ० हेषते, हेषित) घोड़े के भांति हिनहि- घी-हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान्-रघु० 1 // नाना, रकना, दहाड़ना। 45, भट्टि० 5 / 12 2. पिछले दिन का मक्खन, ताजा हेषः, हेषा, हेषितम् [हे+घन, हे +अ+टाप, हेषु / मक्खन / For Private and Personal Use Only