________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनन्दित, उल्लसित, आह्लादित, हर्षोन्मत्त 2. पूल- प्रकट करते है-'के कारण' के निमित्त' 'क्योंकि', कित, रोमांचित 3. आश्चर्यान्वित 4. झुका हुआ, विनत | (संबं के साथ या समास में प्रयोग-शास्त्रविज्ञान5. निराश 5. ताजा। हेतुना, अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्---रघु० 2 / 47, हृषीकम हृष- ईकक ] ज्ञानेन्द्रिय / सम०-..ईशः विष्णु विस्मतं कस्य हेतो:--मुद्रा० 111 आदि)। सम० या कृष्ण का विशेषण-भग० 1115 तथा आगे पीछे -अपदेशः हेतु का उल्लेख (पंचांगी अनुमान के (हृषीकाणीन्द्रियाण्याहस्तेषामीशो यतो भवान् / हृषीके- रूप में), आभासः वह हेतु जो किसी कार्य का शस्ततो विष्णो ख्यातो देवेषु केशव-महा०) कारण तो न हो, परन्तु हेतु सा आभासिक हो, कुतर्क, हृष्ट (भू० क० कृ०) [ हृष्+क्त ] प्रसन्न, हर्षयुक्त, (यह पाँच प्रकार का होता है सव्यभिचार या (-हृषित)। सम-चित्त मानस (वि०) मन से अनेकांतिक, विरुद्ध, असिद्ध, सत्प्रतिपक्ष और बाधित), प्रसन्न, हृदय में खुश, आनन्दित, रोमन (वि.) - उपक्षेपः, उपन्यासः कारण देना, तर्क उपस्थित (हर्ष के कारण) रोमांचित, पुलकित, वदन (वि.) करना,-वावः तर्कवितर्क, शास्त्रार्थ,-शास्त्रम् तर्कप्रसन्नमुख,---संकल्प (वि०) संतुष्ट, सुखी,- हृदय शास्त्र, तकंयुक्त रचना, स्मति या श्रति की प्रामाणि(वि.) प्रसन्नमना, प्रफुल्ल, उल्लसित / कता पर प्रश्नोत्तर रूप में कृति -मन० 211, हृष्टिः (स्त्री०) [ हृष् / क्तिन् ] 1. आनन्द, उल्लास, --हेतुमत् (पुं०, द्वि० ब०) कारण और कार्य, भावः हर्ष, खुशी 2. घमंड / कार्य और कारण में विद्यमान संबंध। हे (अव्य) हा+डे ] 1. संबोधनपरक अव्यय (ओ, हेतक (वि.) हेतु। कन्] (समास के अन्त में प्रयुक्त अरे)-हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति-- भग० 11141 --क: 1. कारण, तर्क 2. उपकरण 3. ताकिक / हे राजानस्त्यजत सुकविप्रेमबन्धे विरोधम् -विक्रम० हेतुता,-श्वम् हेितु | तल्टाप्, त्व वा] कारणता, कारण 185107 2. ईर्ष्या, द्वेष, डाह प्रकट करने वाला की विद्यमानता। अव्यय। हेतुमत् (वि०) [हेतु+मतुप्] 1. सकारण 2. कारणयुक्त, हेक्का [ =हिक्का, पृषो०] हिचकी। तर्कयुक्त, पुं० कार्य। हेठः[ हे+धा ] 1. प्रकोपन 2. बाधा, अवरोध, विरोध | हेमम हि+मन सोना, मः 1. काले या भूरे रंग का रुकावट 3. क्षति, चोट / घोड़ा 2. सोने का विशेष तोल 3. बुध ग्रह। हेड i (भ्वा० आ० हेडते) अवज्ञा करना, अपमान करना, हेमन् (नपुं०) [हि-मनिन्] 1. सोना 2. जल 3. बर्फ तिरस्कार करना। 4. धतूरा 5. केसर का फूल / सम० ---अङ्ग (वि.) ii (भ्वा० पर० हेडति) 1. धेरना 2. वस्त्र पहनना। सुनहरी, (गः) 1. गरुड 2. सिंह 3. सुमेरु पर्वत हेडः [ हेड्-घा ] अवज्ञा, तिरस्कार / सम० ---जः 3. ब्रह्मा का नाम 5. विष्णु का नाम 6. चम्पक वृक्ष क्रोध, अप्रसन्नता। ...अङ्गदम् सोने का बाजूबन्द,-अद्रिः सुमेरु पर्वत, हेडाबुक्कः (पुं०) घोड़ों का व्यापारी। ..- अम्भोजम सुनहरी कमल,-हेमाम्भोजप्रसवि सलिलं हेतिः (पुं०, स्त्री०ाहन करणे क्तिन,नि२] 1. शस्त्र, अस्त्र मानसस्याददान:-मेघ० ६२,----अम्भोरुहम् सुनहरी --समर विजयी हेतिदलितः-भत०२।४४, रघु०१०।१२ कमल-कु०२१४४, आह्वः 1. जंगली चम्पक का कि० 3456, 14 / 30 2. आघात, क्षति 3. सूर्य की पोधा 2. धतूरे का पौधा,-कन्दल: प्रवाल, मूंगा,-करः, किरण 4. प्रकाश, आभा 5. ज्वाला। --- कर्त,-कारः कारकः सुनार- मनु० 12 / 61, हेतुः [ हि+तुन् ] 1. निमित्त, कारण, उद्देश्य, प्रयोजन याज्ञ०३।१४७,-किञ्जल्कम् नागकेसर का फूल,-कुम्भः - इति हेतुस्तदुद्भवे -- काव्य० 1, मा० 1123, रघु० सुनहरी घड़ा,-कूटः एक पहाड़ का नाम-श० 7, 1110, मेध० 25, श० 3 / 11 2. स्रोत, मूल-स -केतकी केवड़े का पौधा जिसके पीले फूल आते पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः---रघु० 1114, हों, स्वर्ण-केतकी,--गन्धिनी रेणुका नामक गन्धद्रव्य, अपने प्राणियों को पैदा करने वाले 3. साधन, उपकरण ---गिरिः सुमेरु पर्वत,- गौरः अशोकवृक्ष,—छन्न 4. तर्कयुक्त कारण, अनुमान का कारण, तर्क (पांच (वि.) सोने से मंढा हुआ, (नम्) सौने का ढक्कन, अंगों से युक्त अनुमानप्रक्रिया में द्वितीय अंग) 5. तर्क, ---ज्वाल: अग्नि,तारम् तूतिया,-दुग्धः, -- दुग्धकः तर्कशास्त्र 6. कोई भी तर्कयुक्त प्रमाण, या युक्ति गलर,---पर्वतः सुमेरु पर्वत,-पुष्पः,-पुष्पक: 1. अशोक7. साहित्यिक कारण (कुछ विद्वान् इसी को एक अल- वृक्ष 2. लोध्रवृक्ष 3. चम्पक वृक्ष, (नपुं०) 1. अशोक कार भी मानते हैं)-हेतोहंतमता सार्धमभेदो हेतु- का फूल 2. चीनी गुलाब का फूल,--ब (व) लम्। रुच्यते (हेतुना, हेतोः कभी कभी हेतौ भी क्रिया- ___ मोती, मालिन् (पु.) सूर्य,--यूथिका सोनजुही, विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ | स्वर्णयथिका,--रागिणी (स्त्री) हल्दी, शंखः विष्ण साहित्यिक कारण तोहेतुमता तो भी क्रि For Private and Personal Use Only