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जहत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ हा+शतृ ] छोड़ने वाला, खबरदार या सावधान रहना (आलं. भी)-सोऽपसर्प
त्यागने वाला । सम-लक्षणा,---स्वार्था लक्षणा का र्जजागार यथाकालं स्वपन्नपि-रघु० १७१५१, गुरी एक प्रकार (इसे 'लक्षणलक्षणा' भी कहते हैं) जिसम षागण्यचिन्तायामार्य चाय च जाग्रति-मद्रा०७।१३, शब्द अपने मुख्यार्थ को छोड़ देता है परन्तु एक ऐसे अर्थ रात को बैट रहना---या निशा सर्वभूतानां तस्यां में प्रयुक्त होता है जो किसी न किसी प्रकार उस जागति संयमी-भग० २६९ 2. निद्रा से जगाया मुख्यार्थ से सम्बद्ध है, उदा० 'गंगायां घोषः' (गंगा में जाना, जागते रहना, आगे का देखना, दूरदर्शी होना। घर) में 'गंगा' शब्द अपने मुख्यार्थ को छोड़ कर | जाघनी [जघन-अण्+ङीप्] 1. पूँछ 2. जंधा। 'गंगातट' को प्रकट करता है.-तु० 'अजहत्स्वार्थी' जाङ्गल (वि०) (स्त्री०-ली) [जङ्गल+अण] 1. देहाती, की भी।
चित्रोपम 2. जङ्गली 3. बर्बर, असभ्य 4. बंजर, असर जहानकः हा+शान+कन्] महाप्रलय ।
-ल: चकोर, तीतर,-लम् 1. मांस 2. हरिण का जहुः [हा+उण, द्वित्वम्] पशु का बच्चा।
मांस। जह्नः [ हा+नु, द्वित्वमाकारलोपश्च ] सुहोत्र का पुत्र, एक | जाङ्गुलम् [जङगुल+अण्] जहर, विष । प्राचीन राजा जिसने गंगा को अपनी पुत्री के रूप में
| जाङ्गुलिः, जाङ्गुलिकः [जङगुल-+इञ , ठक् वा] साँप के गोद लिया था। (जब गंगानदी भगीरथ की तपस्या
काटे का चिकित्सक, विषवंद्य । के द्वारा स्वर्ग से इस धरा पर लाई गई तो मैदान में।
जाडिकः [जडा+ठा] 1. हरकारा, दूत 2. ऊँट । आकर उसने राजा जह्न की यज्ञभूमि को पानी में
जाजिन् (पुं० [जज +णिनि योद्धा, लड़ने वाला--जजौ
जोजाजिजिज्जाजी-शि० १९१३ । डुबो दिया। जह्न ने ऋद्ध हो कर गंगा को पी डाला। देवता, ऋषि और विशेष कर भगीरथ ने उनके क्रोध
जाठर (वि०) (स्त्री०-री) [जठर+अण] पेट से संबंध को शान्त किया। जह्न ने प्रसन्न होकर गंगा को।
रखने वाला या पेट में होने वाला, उदरवर्ती, औदर,
-रः पाचनशक्ति, जाठर रस । अपने कानों के द्वारा बाहर निकालने की स्वीकृति दी।
जाड्यम् [जड --ष्य | 1. ठंडक, शीतलता 2. अनासक्ति, इसलिए गंगा जल की पुत्री समझी गई और उसे
आलस्य, निष्क्रियता 3. बुद्धि की मन्दता, बेवकूफी, जाह्नत्री, जलकन्या, ज हुतनया, जह्ननन्दिनी या जन- जडता-सज्जाडयं वसुधाधिपस्य-भत० २।१५, जाडचं सुता आदि नामों से पुकारा गया-तु० रघु० ६।८५, |
धियो हरति-२२२३, जाड्यं ह्रीमति गण्यते-५४ ८९५)।
4. जिह्वा की नीरसता। जागरः [ जागृ--घन, गुण] जागरण, जागना, जागते ।
जात (भू० क० कु०) [जन + क्त] 1. अस्तित्व में लाया रहना, --रात्रिजागरपरो दिवाशयः-रघु० ९३४
गया, जन्म दिया गया, पैदा किया गया 2. उगा हुआ, 2. जाग्रत अवस्था की मन: सृष्टि 3 कवेच, जिरह
निकला हुआ 3. उद्भूत, उत्पन्न 4. अनुभूत, ग्रस्त बख्तर।
(प्रायः समास में) दे० 'जन्', तः पुत्र, बेटा (नाटकों
में प्रायः 'स्नेह या प्रेम द्योतक' के अर्थ में प्रयुक्त जागरणम् [जागृ+ ल्युट्] 1. जागना, प्रबुद्ध रहना 2. खबरदारी, सतर्कता।
-अयि जात कथयितव्यं कथय-उत्तर० ४, प्यारे जागरा [जागृ-|-अ-टाप्] दे० जागरण ।
बच्चे' 'मेरे लाल, दुलारे'),–तम् 1. जन्तु, जीवधारी,
प्राणी 2. उत्पादन, उद्गम 3. भेद, प्रकार, श्रेणी, जागरित (वि०) [जागृ---क्त] जागा हुआ,-तम् जागना।
जाति 4. श्रेणी बनाने वाली वस्तुओं का समूह-नि:जागरित (वि) (स्त्री०---त्री) जागरूक (वि०) [जाग शेषविधाणितकोशजातम् -- रघु० ५।१, संपत्ति का
तिव, स्त्रियां डीप च, जाग+ऊक] 1. जागरणशील, समूह अर्थात् हर प्रकार की सम्पत्ति, इसी प्रकार जागता हुआ, निद्राशून्य--स्वपतो जागरूकस्य याथार्थ्य कर्मजातम्- (सब कर्मों का समूह)-सुख° वह सब वेद कस्तव-रघु० १०३४ 2. खबरदार, सतर्क कुछ जो सुख में सम्मिलित है 5. बालक, बच्चा । -वर्णाथमाक्षणजागरूक:-रघु०१४।१५, शि०२० सम०-अपत्या माता,-अमर्ष (वि०) नाराज, क्रुद्ध,
-----अश्रु (वि०) आँसू बहाने वाला, इष्टिः (स्त्री०) जागतिः, जागर्या, जानिया [ जाग+क्तिन्, जाग+श-+ जातकर्मसंस्कार,-उक्षः थोड़ी आयु का बैल,-कर्मन्
यक्+टाप, गुण, जाग ।-श्, रिङादेशः ] जागरण, बच्चे के जन्मते ही अनुष्ठेय संस्कार ...रघु० ३।१८ । जागते रहना।
---- कलाप (वि.) (मोर की भाँति) पूंछ वाला, काम जागुडम् [जगुड+अण्] केसर, जाफ़रान ।
(वि.) आसक्त,-- पक्ष (वि.) जिसके डैने या पंख जाग (अदा० पर० जागति, जागरित) जागते रहना, । निकल आये हों, अजातपक्ष, अनुदितपक्ष,-पाश (वि.)
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