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नक्षत्र पुंज (तीन तारों वाला) 3. बिचली अंगुली । 4. छोटी छिपकली 5 गंगा नदी का विशेषण । सम० अंश: 1. सबसे बड़े भाई का भाग 2. सबसे बड़े भाई का पैतृक संपत्ति में वह भाग जो सबसे बड़ा होने के कारण उसे मिले 3. सर्वोत्तमभाग - अम्बु (नपुं०) 1. अनाज का धोवन 2. मांड (चावलों का ), आश्रमः 1. ब्राह्मण अथवा गृहस्थ के धार्मिक जीवन में उच्चतम या सर्वोत्तम आश्रम 2. गृहस्थ, तातः पिता का बड़ा भाई, ताऊ, - वर्ण: सर्वोच्च जाति, ब्राह्मण जाति, - वृत्तिः बड़ों का कर्तव्य - श्वश्रूः (स्त्री०) बड़ी
साली ।
[ ज्येष्ठा+अण्] वह चांद्रमास जिसमें पूर्ण चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्रपुंज में स्थित होता है, जेठ का महीना ( मई-जून), , -ष्ठी 1. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 2. छिपकली |
ज्यो ( वा० आ० -- ज्यवते ) 1. परामर्श देना, नसीहत देना 2. ( व्रत आदि) धार्मिक कर्तव्य का पालन करना । ज्योतिर्मय ( वि० ) ( ज्योतिस् + मयट् ] तारों से युक्त, ज्योति
से भरा हुआ, युतिमय - रघु० १५५९, कु० ६ ३ । ज्योतिष (वि० ) ( स्त्री० षी) (ज्योतिस् + अच्] 1. गणित
या फलित ज्योतिष- षः 1. गणक, दैवज्ञ 2. छः वेदाङ्गों में से एक (गणित ज्योतिष पर एक ग्रन्थ ) | सम० - विद्या गणित अथवा फलित ज्योतिर्विज्ञान । ज्योतिषी, ज्योतिष्कः [ ज्योतिस् + ङीष्, ज्योतिः इव कायति ---कै- + - क] ग्रह, तारा नक्षत्र ।
ज्योतिष्मत् (वि० ) [ ज्योतिस् + मतुप् ] 1. आलोकमय, तेजस्वी देदीप्यमान, ज्योतिर्मय - नक्षत्रता राग्रहसंकुलापि ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रिः - - रघु० ६।२२२ स्वर्गीय -- ( पुं०) सूर्य, ती 1. रात्रि ( तारों से प्रकाशमान ) 2. ( दर्शन० में) मन की सात्त्विक अवस्था अर्थात्
शान्त अवस्था ।
ज्योतिस् ( नपुं० ) [ द्योतते द्युत्यते वा - द्युत् + इसुन् दस्य
जादेश: ] प्रकाश, प्रभा, चमक, दीप्ति- ज्योतिरेक जगाम - श० ५1३०, रघु० २।७५, मेघ० ५ 2. ब्रह्मज्योति, वह ज्योति जो ब्रह्म का रूप है - भग० ५। २४, १३।१७ 3. बिजली 4. स्वर्गीय पिण्ड, ज्योति ( ग्रह, नक्षत्र आदि ) - ज्योतिभिरुद्यद्भिरिव त्रियामा कु० ७२१, भग० १० २१, हि० १।२१ 5. देखने की शक्ति 6. आकाशीय संसार - (पुं० ) 1. सूर्य 2. अग्नि । सम० - इङ्गः, – इङ्गणः जुगनू, कणः अग्नि की चिनगारी, -- गणः समष्टिरूप से खगोलीय पिण्ड, - चक्रम् राशिचक्र, ज्ञः गणक, दैवज्ञ, मण्डलम् तारकीय मण्डल, --- रथः (ज्योतीरथः) ध्रुव तारा, – बिद् (पुं०) गणक या देवज्ञ, विद्या, - शास्त्रम ( ज्योतिश्शास्त्रम् ) गणितज्योतिष या नक्षत्रविद्या, फलितज्योतिष ।
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ज्योत्स्ना [ ज्योतिरस्ति अस्याम् - ज्योतिस् + न, उपधालोपः ] 1. चन्द्रमा का प्रकाश – स्फुरत्स्फारज्योत्स्नाघवलिततले क्वापि पुलिने - भर्तृ० ३।४२, ज्योत्स्नावतो निर्विशति प्रदोषान् - रघु० ६।३४ 2. प्रकाश । सम० -- ईश: चाँद, -- प्रियः चकोर पक्षी, वृक्षः दीवट दीपाधार ।
ज्योत्स्नी [ ज्योत्स्ना अस्ति अस्य --- ज्योत्स्ना + अण् + ङीप् ] चाँदनी रात ।
ज्यौः [ ग्रीक शब्द ] बृहस्पति नक्षत्र । ज्योतिषिकः [ ज्योतिष + ठक् ] खगोलवेत्ता, गणक, दैवश या ज्योतिषी ।
ज्योत्स्नः [ ज्योत्स्ना + अण् ] शुक्ल पक्ष ।
ज्वर ( भ्वा० प० ज्वरति, जूर्ण ) बुखार या आवेश से गर्म,
होना, ज्वरग्रस्त होना 2. रुग्ण होना ।
ज्वरः [ज्वर्+घञ्ञ ] 1. बुखार, ताप, (आयु० में) बुखार की गर्मी – स्वेद्यमानज्वरं प्राज्ञः कोऽम्भसा परिषिञ्चति -- शि० २।५४ ( आलं० भी ) दर्पज्वरः, मदनज्वरः, मदज्वरः आदि 2. आत्मा का बुखार, मानसिक पीड़ा, कष्ट, दुःख, रंज, शोक-व्येतु ते मनसो ज्वरः रामा०, मनसस्तदुपस्थिते ज्वरे- रघु० ८१८४, भग० ३।३० । सम० – अग्निः बुखार का वेग या तेजी, अङ्कुशः ज्वरप्रशामक, बुखार कम करने वाला, प्रतीकारः, बुखार का इलाज, ज्वर प्रशामक औषधि । ज्वरित, ज्वरिन् (वि० ) ( स्त्री० -णी ) [ ज्वर + इतच् इनिवा] ज्वराक्रान्त, ज्वरग्रस्त ।
ज्वल ( स्वा० पर० – ज्वलति, ज्वलित) 1. तेजी से जलना,
दहकना, दीप्त होना, चमकना, – ज्वलति चलितेंन्धनोऽग्निः -- श० ६/३० कु० ५।३० 2. जल जाना, जल कर भस्म हो जाना, ( आग से ) कष्टग्रस्त होना -- अमृतमधुरमृदुतरवचनेन ज्वलति न सा मलयजपवनेन गीत० ७ 3. उत्सुक होना, - जज्वाल लोकस्थितये स राजा - भर्तृ० ११४, प्रेर० ज्वलयति - ते, ज्वालयति - ते 1. आग लगाना, आग जलाना 2. देदीप्य मान करना, रोशनी करना, प्रकाश करना — ककुभां मुखानि सहसोज्ज्वलयन्- शि० ९१४२, त्वदधरचुम्बनलम्बितकज्जलमुज्ज्वलय प्रियलोचने- गोत० १२, प्र―, तेजी से जलना, जाज्वल्यमान होना -- रणाङ्गानि प्रजज्वलुः - भट्टि० १४/९८, ( प्रेर० ) -- 1. जलाना, आग सुलगाना 2. चमकाना, रोशनी करना । ज्वलन (वि० ) [ज्वल् + ल्युट् ] 1. दहकता हुआ, चमकता
हुआ 2. ज्वलना, दहनशील, नः 1. आग तदनु ज्वलनं मदर्पितं त्वरयेदक्षिणवातवीजनैः -- कु० ४।३६, ३२, भग० ११।२९ 2. तीन की संख्या, नम जलना, दहकना, चमकना । सम० अश्मन् (पुं०) सूर्यकान्त मणि ।
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