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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है-दुष्ट, पाजी, अभिशप्त,-कापालिक मा० ५, रे रे | अपस्मारिन् (वि.) [अप+स्म +णिनि] मिरगी रोग से क्षत्रियापसदाः-वेणी० ३, 2. छ: प्रकार की अनुलोम | ग्रस्त । सन्तान-अर्थात् पहले तीन वर्षों के मनुष्यों द्वारा अपने अपस्मृति (वि.) [ब० स०] विस्मरणशील । से नीच वर्ण की स्त्री में उत्पन्न सन्तान—विप्रस्य विष | अपह (वि.) [अप-नहा+ड] (समास के अन्त में) दूर वर्णेषु नृपतेर्वर्णयोः वयोः, वैश्यस्य वर्णे चैकस्मिन् हटाना, दूर करना, नष्ट करना,--स्रगियं यदि जीविताषडेतेऽपसदाः स्मृताः । मनु०१०।१०। पहा--रघु० ८।४६ । अपसरः [अप++अच्] 1. प्रस्थान, पलायन 2. उचित | अपहतिः (स्त्री०) [अप+हन् +-क्तिन् ] दूर करना, नष्ट कारण। करना। अपसरणम् [ अप+सृ+ल्युट् ] जाना, वापिस मुड़ना, अपहननम् [अप + हन् + ल्युट्] दूर हटाना, निवारण करना। पलायन । अपहरणम् [अप+ह+ल्युट्] 1. दूर ले जाना, उड़ा ले अपसर्जनम् [ अप+सृज्+ल्युट्] 1 त्याग, उत्सर्ग, 2. उप- जाना, दूर करना 2. चुराना। हार या दान 3. मोक्ष । अपहसितम्-हासः [अप+हस्+क्त, घन वा] अकारण अपसर्पः-पंक: [अप+सप्+ण्वुल, स्वार्थे कन् च] गुप्तचर, | हँसी, मूर्खता पूर्ण हँसी, ऐसी हँसी जिससे आंखों में जासूस, भेदिया,-सोपसर्जजागार यथाकालं स्वपन्नपि | आंसू आ जायें (नीचानामपहसितम्) । रघु० १७.५४; १४॥३१ । अपहस्तित (वि.) [अपहस्त-+इतच्] दूर फेंका हुआ, रद्दी अपसर्पणम् [ अप+सप+ ल्युट 1 पीछे हटना, लौटना, किया हुआ, परित्यक्त। जासूसी करना। अपहानिः (स्त्री०) [अप-महा+क्तिन्] 1. त्याग, छोड़ देना अपसव्य, सव्यक [ब० स०] 1. जो बायां न हो, दायां 2. रुक जाना, ओझल होना 3. अपवाद, निकाल देना। -अपसव्येन हस्तेन,--मनु० ३।२१४, 2. विरुद्ध, विप अपहारः [ अप+ह+घञ ] 1. उड़ा ले जाना, दूर ले रीत,-व्यम् (अव्य०) दाईं ओर, दाहिने कंधे के जाना, चुरा लेना, नष्ट कर देना,-निद्रापहार, विष ऊपर से जनेऊ को शरीर के वाम भाग पर लटकाना 2. छिपाना, मालूम न पड़ने देना, कथमात्मापहार (विप० सव्यम्-जब कि वह बायें कंधे के ऊपर से करोमि-शं०१, अपने आप को, अपने नाम को लटकता है) व्यं कृ दाहिनी ओर रखते हुए किसी की और अपने चरित्र को मैं किस प्रकार छिपाऊँ ? परिक्रमा करना, जनेऊ को दायें कंधे से लटकाना।। अपह्नवः [अप+ नु-अप्] 1, छिपाव, गोहन, अपनी अपसव्यवत् (वि.) [अपसव्य+मतुप] दाहिने कंधे पर से भावना ज्ञान आदि को छिपाना, 2. सचाई से मुकर यज्ञोपवीत पहनने वाला। जाना, दुराव-वे ज्ञः-पा० १३.४४, 3. प्रेम, स्नेह । अपसारः [अप+स+घञ] 1. बाहर जाना, लौटना 2. अपहनुतिः (स्त्री०) [ अप+तु+क्तिन् ] 1. सत्य को निर्गमस्थान निकास। छिपाना, मुकरना 2. एक अलंकार जिसमें प्रस्तुत वस्तु अपसारणम्-णा [अप--स+ ल्युट, स्त्रियां टाप्] हटाकर दूर के वास्तविक चरित्र को छिपा कर कोई और काल्पकरना, हांकना, बाहर निकालना-किमर्थमपसारणा निक या असत्य स्थापना की जाय-नेदं नभोमण्डलमक्रियते-मुद्रा०, स्थान देना। म्बुराशिः, नेताश्च तारा: नवफेनभङगाः । काव्य०, १० अपसिद्धान्तः प्रा० स०] गलत या भ्रमयुक्त निर्णय । व समुल्लास तथा दे० सा० द० ६८३।८४ पृष्ठ । अपमृप्तिः (स्त्री०) [अप+सृप्+क्तिन्] दूर चले जाना। अपह्रासः [अप+ह्रस्+घञ] घटाना, कमी करना। अपस्करः [अप++अप् सुडागमः] 1. पहिये को छोड़कर अपाक् (अव्य०) दे० अपाच ।। गाड़ी का कोई भाग (-रम् भी) 2. विष्ठा, मल 3. अपाकः [न० त०] 1. अपच, अजीर्णता 2. अपरिपक्वता। योनि 4. गुदा। अपाकरणम् [अप+आ+ +ल्युट्] 1. दूर कर देना, अपस्नानम् [अप+स्ना+ल्युट्] 1. किसी संबंधी की मृत्यु हटाना 2. अस्वीकृति, निराकरण 3. अदायगी, कार के उपरांत किया जाने वाला स्नान 2. मृतक स्नान, बार का समेट लेना। स्नान किये हुए पानी में स्नान करना। अपाकर्मन् (न०-म) [ अप+आ+मनिन् ] चुकता अपस्पश (वि.) [ब. स.] जिसके पास भेदिय न हों, कर देना, कारबार उठा देना। -शब्दविद्येव नो भाति राजनीतिरपस्पशा-शि० अपाकृतिः (स्त्री०) [अप+आ++क्तिन्]1. अस्वीकृति, २१११२। दूर करना, 2. क्रोध से उत्पन्न संवेग, भय आदि-वि० अपस्पर्श (वि.) [ब० स०] संज्ञाहीन । १॥२७॥ मपस्मार:-स्मृतिः (स्त्री०) [अपस्म+घञ, क्तिन् वा] | अपाक्ष (वि.) [अपनतः अक्षमिन्द्रियम्] 1. विद्यमान, प्रत्यक्ष 1. स्मरण शक्ति का अभाव 2. मिरगी रोग, मुर्छा रोग। 2. [ब० स०] नेत्रहीन, खराव आंखों वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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