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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्यागोऽ स्ति द्विषन्त्याश्च न च दायापवर्तनम् --मनु० | अपवीण (वि०) [ब० स० ] जिसके पास वीणा न हो, या ९१७९ खराब वीणा हो--णा [प्रा० स०] खराब वीणा। अपवादः [ अप-व-घञ ] 1. निन्दा, भर्त्सना, कलंक अपवृक्तिः (स्त्री०) [अप+व+क्तिन् ] पूर्णता, -लोकापवादो बलवान्मतो मे-घु० १४४०, आक्षेप निष्पन्नता, पूर्ति । लोकनिन्दा,-देव्यामपि हि वैदेह्यां सापवादो यतो जनः । अपवतिः (स्त्री०) [अप++क्तिन् ] सूराख, छिद्र, -उत्तर० १२६, 2. सामान्य नियम को बाधित करने रंध्र। वाला विशेष नियम (विप० उत्सर्ग)---अपवादैरिवो- अपवृत्तिः (स्त्री०) [अप-+ वृत्+क्तिन् ] अन्त, समाप्ति । त्सर्गाः कृतव्यावृत्तयः परः--कु० २।२७, रघु०१५७, । अपवेधः [प्रा० स०] गलत जगह या बुरे ढंग से (मोती 3. आदेश, आज्ञा-ततोपवादेन पताकिनीपतेश्चचाल आदि में) छेद करना। निदिवती महाचमू:-कि० १४.२७, 4. निराकरण, | | अपव्ययः [प्रा० स०] अत्यधिक खर्च, अपव्यय । (वेदान्त०) मिथ्यारोपण या मिथ्याविश्वास का निरा- अपशकुनम् [प्रा० स०] असगुन, बुरा सगुन । करण,-रज्जुविवर्तस्य सर्पस्य रज्जुमात्रत्ववत्, वस्तुभूत- | अपशक (वि.) [ब० स०] निर्भय, निश्शंक, कम् ब्रह्मणो विवर्तस्य प्रपञ्चादेः वस्तुभूतरूपतोऽपदेशः (कि० वि०) निडरता के साथ। अपवाद-तारा. 5. भरोसा 6. प्रेम, घनिष्ठता।। अपशदः-तु० अपसद ।। अपवावक) (वि.) [अप+वद्+ण्वुल, णिनि वा] 1. अपशब्दः [प्रा० स०] 1. अशुद्ध शब्द (व्या० की दृष्टि अपवादिन। कलंक लगाने वाला, निन्दक, बदनाम करने से), भ्रष्ट शब्द (रूप और अर्थ की दृष्टि से),त वाला-मगयापवादिना माढव्येन श०२, 2. विरोध एव शक्तिवैकल्यप्रमादालसतादिभिः, अन्यथोच्चारिताः करने वाला, एक ओर रखने वाला, निकाल देने शब्दाः अपशब्दा इतीरिताः । अपशब्दशतं माधेवाला। सुभा० 2. ग्राम्य शब्द 3. व्या० की दृष्टि से अशुद्ध अपवारणम् ] अप+व+णिच् + ल्युट् ] 1. आच्छादन, भाषा 4. झिड़की वाला शब्द, गाली, दुर्वचन, निंदा । छिपाय, 2. ओझल होना। अपशिरस् (वि.) [अपगतं शिरः शीर्ष वा यस्यअपवारित (भू० क० कृ०) [ अप+वृ+णिच्+क्त] | अपशीर्ष-र्थन् ।ब० स०] सिर रहित, बे सिर का। ढका हुआ, छिपा हुआ, –तम्, अपवारितकम् छिपा | अपशुच (वि.) [ब० स०] शोकरहित, (पुं) आत्मा। हुआ या गुप्त ढंग, --तम्, अपवारितकेन,, अपवार्य अपशोक (वि.) [ब० स०] शोकरहित,--क: अशोकवृक्ष । (अव्य०) (नाटकों में बहुधा प्रयुक्त) 'पृथक्' 'एक अपश्चिम (वि.) [न० त०] 1. जिसके पीछे कोई न हो, ओर' अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय (विप० प्रकाशम) अंतिम (अधिकतर 'पश्चिम' शब्द के अर्थ में ही प्रयुक्त यह इस ढंग से बोलने को कहते हैं कि केवल वही होता है---तु० उत्तम और अनुत्तम, उत्तर और अनुसूने जिसे कहा गया है--तद्भवेदपवारितं रहस्यं तु त्तर),-अयमपश्चिमस्ते रामस्य शिरसि पादपङ्कजयदन्यस्य परावृत्य प्रकाश्यते, त्रिपताककरेणान्यमपवार्या स्पर्श:--उत्तर० १. प्रसीदतु महाराजो मयानेनापश्चिन्तरां कथाम्-सा०द०६। मेन प्रणयेन-वेणी० ६, 2. अनन्तिम, प्रथम, सर्वप्रथम अपवाहः-हनम् [अप-वह+णिच-+घञ, ल्युट् वा ] 1. | 3. चरम,-अपश्चिमामिमां कष्टामापदं प्राप्तवत्यहम् दूर ले जाना, हटाना 2. घटाना, एक राशि में से रामा०। दूसरी राशि को निकालना। अपश्रयः [अप+श्रि+अच] गद्दी, तकिया । अपविघ्न (वि०) [ब० स०] निर्बाध, बाधारहित-रघु० | अपश्री (वि०) [ब० स०] सौन्दर्य से वञ्चित-शि० २०३८ १११५४ । अपविद्ध (भू० क. कृ.) [अप+ व्यध्+क्त] 1. दूर | अपश्वासः-दे० अपान ।। फेंका हुआ, त्यक्त, अस्वीकृत, उपेक्षित, दूरीकृत, मुक्त, अपष्ठम् [अप-स्था-- हाथी के अंकूश की नोक । विरहित 2. नीच, कमीना --दः, पुत्रः माता या अपष्टु (वि०) [अप+स्था+कु] 1. विरुद्ध, विपरीत, 2. पिता या दोनों से त्यागा हुआ पुत्र जिमे किसी अपरि- अननुकूल, प्रतिकुल 3. बायाँ,-छु (क्रि० वि०) 1. चित व्यक्ति ने गोद ले लिया हो, हिन्दुओं में १२ विरुद्ध, 2. असत्यतापूर्वक, 3. निर्दोषता के साथ भलीप्रकार के पुत्रों में से एक--मनु० ९।१७१, याज्ञ० भांति, ठीक तरह से। २।१३२। अपष्ठुर-ल (वि.) [ अप+स्था+कुरच्, कुलच् वा ] अपविद्या [प्रा० स०] अज्ञान, आध्यात्मिक अज्ञान, भाया विरुद्ध, विपरीत। या भ्रम (अविद्या), तत्त्वस्य संवित्तिरिवापविद्याम् | अपसदः [अप+स+अच्] 1. जाति से बहिष्कृत, नीच कि० १६०३२। पुरुष, प्रायः समास के अन्त में प्रयुक्त होकर अर्थ होता For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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