________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवनयापन करना (समास के अन्त में) 5. आजी- वत्मन् (नपुं०) [वत्+मनिन] 1. रास्ता, सड़क, पप,मार्ग विका, जीवन निर्वाह, वृत्ति 6. जीवन निर्वाह का / पगडंडो-वम भानोस्त्यजाश-मेग० 39, पारसी. साधन, वृत्ति, व्यवसाय 7. चालचलन, व्यवहार, कांस्ततो जेतं प्रतस्थे स्थलवम॑ना, 'स्थलमार्ग से' आचरण 8. मजदूरी, वेतन, भाड़ा 9. व्यापार, लेन- आकाशवमंना 'आकाश के मार्ग से 2. (आलं.) देन 10. तकवा 11. गोलक, गेंद। रीति, मार्ग, सर्वसम्मत तथा निर्धारित प्रचकन, प्रकवर्तनिः [ वर्तन्तेऽस्यां जनाः, वृत्+निः ] 1. भारत का लित रीति या आचरण क्रममम. वर्मानुगच्छति पूर्वी भाग, पूर्ववर्ती प्रदेश 2. सूक्त, प्रशंसा, स्तोत्र, मनुष्याः पार्थ सर्वश. भग. 3123, रेखामात्रमपि =निः (स्त्री०) मार्ग, सड़क / क्षुण्णादामनोर्वत्मनः परम्, न व्यतीयः प्रजास्तस्य बर्तमान (वि.) [वृत्+शानच मुक] 1. मौजूद, विद्य- नियंतुर्नेमिवृत्तयः-रघु० 1117 (यहाँ पर शाब्दिक मान 2. जीता हुआ, जीवित रहने वाला, समसाम- अर्थ भी अभिप्रेत है), अहमेत्य पतंगवरमना पुनरंका यिक ----प्रथितयशसा भासविसोमिल्लकविमिश्रादीनां श्रयिणी भवामि ते कु० 4 / 20, 'परवाने के ढंग से प्रबंधानतिक्रम्य वर्तमानकवेः कालिदासस्य क्रियायां 3. स्थान, कर्म के लिए क्षेत्र न वर्म कस्मैचिदपि कथं परिषदो बहमान:--मालवि. 1 3. मुड़ना, प्रदीयताम् कि० 14 / 14 4. पलक 5. धार, किनारा। चक्कर काटना, घूम जाना-नः (व्या० में) वर्तमान सम० पातः मार्ग से व्यतिक्रम,-बंधः--बंधक: काल-वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा-पा० 313131 / पलकों का एक रोग। वर्तकः [ वर्त+रा+ऊक ] 1. पोखर, जोहड 2. भवर, | वर्त्मनिः, नी (स्त्री०) सड़क, रास्ता। बवंडर, जलावर्त 3. कौवे का घोंसला 4. द्वारपाल (चरा वर्धयति ते वर्धापयति भी 1.काटना 5. नदी का नाम / बांटना, मुंडना 2. पूरा करना। वतिः,–ी (स्त्री०) [वृत्+इन् वा डीप् ] 1. कोई भी | वर्षः [ वर्ष +अच्, घा वा] 1. काटना, बॉटना लिपटी हुई गोल वस्तु, पत्राली, वही 2. उबटन, 2. बढ़ाना, वृद्धिं या समृद्धि करना 3. बुद्धि, बढ़ोतरी, मल्हम, आँखों का लेप, काजल, अंगराग (गोली या / -र्धम् 1. सीसा 2. सिंदूर। टिकिया के रूप में)-सा पुनर्मम प्रथमदर्शनात्प्रभृत्यमृत- वर्धकः, वर्धकः, वर्षकिन (पुं०)) [वृष+णि+बुल, वतिरिव चक्षुषोरानन्दमुत्पादयन्तीमा० 1, इयम- वर्ध+क+डि, वर्ष +अच्+क +इनि] बढ़ाई। मतवतिर्नयनयोः ---उतर० 1138, कपरवतिरिव | वर्धन (वि.) [दध+णिच+ल्युट्] 1. बढ़ने वाला, लोचनतापहंत्री-भामि० 3116, विद्ध० 1 3. दीपक | उगने वाला 2. बढ़ाने वाला, विस्तृत करने वाला की बत्ती - मा० 1064 6. (कपड़े की) झालर, आवर्धन करने वाला, न: 1. समृद्धिदाता 2. वह दांत फलबे, किनारी 5. जादू का लैप 6. बर्तन के चारों। जो दाँत के ऊपर उगता है 3. शिव का नाम-पी ओर का उभार 7. जर्राही उपकरण (रम्भनाल आदि) / 1. बुहारी, झाड़ 2. विशेष आकार का जलपट,-मम् 8. धारी, रेखा। 1. उगना, फलना फलना 2. विकास, वृद्धि, समृद्धि, वतिक: [वृत+तिकन् ] बटेर, लवा। आवर्धन, विस्तार 3. उन्नति 4. उल्लास, सजीवता वतिका [ वृतेः तिकन्+टाप् ] 1. चितेरे की कुंची तदुप- 5. शिक्षा देना, पालन-पोषण करना 6. काटना, नय चित्रफलकं चित्रवर्तिकाश्च मा० 1, अंगुलि- | बाँटना जैसा कि 'नाभिवर्धनम्' में / क्षरणसन्नतिक:---रघु० 19 / 19 2. दीपक की बत्ती वर्धमान (वि.) [वध+शानच 1 विकसित होने वाला, 3. रंग, रंगलेप 4. वटेर, लवा। बढ़ने वाला न: 1. एरंड का पौषा 2. एक प्रकार वतिन् (वि.) (स्त्री०-नी) [वृत्+णिनि (बहुधा समास के की पहेली 3. विष्णु का नाम 4. एक जिले का नाम अन्त में) 1. डटा रहने वाला, होने वाला, सहारा लेने (इसी को लोग वर्तमान बर्दवान मानते हैं),-1, वाला, टिकने वाला, स्थित 2. जाने वाला, गतिशील, --नम् 1. एक विशेष सूरत की तश्तरी, ढमकन मुड़ने वाला 3. अभिनय करने वाला, व्यवहार कर 2. एक रहस्यमय रेखाचित्र 3. वह भवन जिसका ने वाला 4. अनुष्ठाता, अभ्यास करने वाला। दक्षिण की ओर कोई द्वार न हो,- ना एक जिले का वति (र्ती) [वृत्+इरच, पक्षे पृषो० दीर्घः] वटेर, लवा नाम (वर्तमान बर्दवान)। सम० --पुरम् बर्दवान वतिष्णु (वि) [ वृत्+इष्णुच् ] 1. चक्कर काटने वाला | नामक नगर। 2. वर्तमान, इटा रहने वाला 3. वर्तुलाकार। | वर्षमानक: [ वर्धमान+कन् ] एक प्रकार का पात्र, तश्तरी, वर्तुल (वि.) [वत् +-उलच् ] गोल, कुण्डलाकार, मण्ड | ढक्कन, चपनी। लाकार-ल: 1. एक प्रकार की दाल, मटर 2. गेंद, | वर्षापनम् [वधं छेदं करोति- वृथ्+णिच्+आप ततो -लम् वृत्त। भावे ल्युट् ] 1. काटना, बाँटना 2. नालच्छेदन या For Private and Personal Use Only