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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1039 ) श्रेष्ठिन (वि.)[ श्रेष्ठं धनादिकमस्त्यस्य इनि1 किसी व्या- श्रौषट (अब्य०) [श्र+डौषट 1 दिवंगत आत्मा या देवों पारसंघ या शिल्पिसंस्थान का प्रधान या अध्यक्ष-निक्षेपे को उद्देश्य करके यज्ञाग्नि में आहुति देते समय पतिते हर्ये श्रेष्ठी स्तौति स्वदेवताम-पंच० 1114 / उच्चारित होने (बोला जाने) वाला अव्यय, तु० श्र (भ्वा० पर० श्रायति) 1. स्वेद आना, पसीना निक- वषट् या वौषट्) / लना 2. पकाना, उबालना / श्लक्ष्ण (वि.) [श्लिष् + स्न, नि.] 1. कोमल, मृदु, श्रोण (भ्वा० पर० श्रोणति) 1. एकत्र करना, ढेर लगाना सौम्य, स्निग्ध (शध्द आदि) 2. चिकना, चमकदार, 2. एकत्र होना, संचित होना। शि० 3 / 46 3. स्वल्प, सूक्ष्म, पतला, सुकुमार श्रोण (वि.) [ श्रोण+अच् ] विकलांग, लंगड़ा,---णः 4. सुन्दर, लावण्यमय 5. निश्छल, ईमानदार, खरा / एक प्रकार का रोग / श्लक्ष्णकम् [श्लक्ष्ण+कन् ] सुपारी, पूगीफल / श्रोणा [ श्रोण+टाप् ] 1. कांजी 2. श्रवण नक्षत्र / श्लक (भ्वा० आ० श्लङ्कते) जाना, हिलना-जुलना / श्रोणिः,-णी (स्त्री०) [ श्रोण इन् वा डीप ] 1. कल्हा, | श्लङ्ग (भ्वा० आ० श्लङ्गते) जाना, हिलना-जुलना / नितम्ब, चूतड़ श्रोणीभारादलसगमना--मेघ. 82. इलथ (चुरा० उभ० श्लथयति--ते) 1. शिथिल या ढीलाश्रोणीभारस्त्यजति तनुताम् - काव्य० 10 2. सड़क, ढाला होना 2. दुर्बल या बलहीन होना 3. शिथिल मार्ग / सम० ---तटः कूल्हों की ढलान, - - फलकम् होना, ढीला होना, विश्राम करना (आलं. भी) 1. विशाल कूल्हे 2. नितम्ब, बिम्बम् 1. गोल कूल्हे इलथयितुं क्षणमक्षमताङ्गना न सहसा सहसा कृतवेपथु: -विक्रम० 4118 2. कमर-पट्टा, सूत्रम्-1. मेखला | -शि० 6 / 57, परित्राणस्नेहः श्लथयितुमशक्यः खलु 2. कमर से लटकती हुई तलवार का बन्धन / / यथा-गंगा० 37 4. चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना / श्रोतस् (नपुं०) [श्रु+असुन तुट च ] 1. कान 2. हाथी / इलथ (वि०) [ श्लथ+अच] 1. बिना बँधा, बिना की संड 3. ज्ञानेन्द्रिय 4. सरिता, प्रवाह ('स्रोतस्' जकड़ा 2. शिथिल, विश्रांत, खुला हुआ, फिसला हुआ के स्थान पर)। सम० रन्ध्रम संड का विवर, ...--वृन्ताच्छलथं हरति पुष्पमनोकहानाम्-रघु० 5 / नथुना-मेघ०४२, ('स्रोतोरन्ध्र' भी लिखा जाता है)। 37, 19 / 26 3. बिखरे हुए (जैसे बाल)। सम० श्रोतृ (पुं०) [श्रु+तृच् ] 1. सुनने वाला 2. छात्र / -उद्यम (वि.) जिसने अपने प्रयत्न ढीले कर दिये श्रोत्रम् [श्रूयतेऽनेन-श्रु करणे+ष्ट्रन् ] 1. कान-भर्त. हों, लम्बिन (वि०) ढीला-ढाला, नीचे लटकता हुआ, 2271 2. वेदों में प्रवीणता 3. वेद / सम० पेय -कु० 5 / 47 / (वि.) कान से ग्रहण करने के योग्य, ध्यानपूर्वक / श्लाख (भ्वा० पर० श्लाखति) व्याप्त होना, प्रविष्ट सुनने के योग्य -संदेशं मे तदन जलद श्रोष्पसि श्रोत्र- होना। पेयम् मेघ०१३,- मूलम् कान की जड़ / इलाथ् (भ्वा० आ० श्लाघते) प्रशंसा करना, स्तुति करना, श्रोत्रिय (वि.)[छन्दो वेदमधोते वेत्ति वा–छन्दस+घ, सराहना, गुणगान करना शिरसा श्लाघते पूर्व श्रोत्रादेशः ] 1. वेद में प्रवीण या अभिज्ञ 2. शिष्य, (गुणं) परं (दो) कण्ठे नियच्छति-सुभा०, यथैव अनुशासित होने के योग्य,यः विद्वान ब्राग्रण, धर्म श्लाध्यते गङ्गा पादेन परमेष्ठिनः कु०६।७० (कुछ ज्ञान में सुविज्ञ -जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैद्विज लोग यहां श्लाघ्पते' के स्थान पर 'श्लाघते' उच्यते / विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय पाठ समझते हैं, और अगला अर्थ घटाते है) उच्यते--मा० 115, रघु०१६।२५ / सम-स्वम् 2. शेखी बघारना, घड करना, इलाधिष्ये केन को विद्वान् ब्राह्मण की संपत्ति / / बन्धून्नेष्यत्युन्नतिमुन्नतः --- भट्टि० 16 / 4 3. खुशामद श्रौत (वि.) (स्त्री०-ती) श्रुतौ विहितम् अण् ] 1, कान करना, फुसलाकर काम निकालना (संप्र० के साथ) से संबंध रखने वाला 2. वेदसंबंधी, वेद पर आधारित, -गोपी कृष्णाय श्लाघते --सिद्धा०, भट्टि०८७३ / वेदविहित, तम 1. वेदविहित कोई भी कर्म या अनु- श्लाघनम् [श्लाघ्+ ल्युट्] 1. प्रशंसा करना, स्तुति करना ष्ठान 2. वेदप्रतिपादित कर्मकाण्ड 3. यज्ञाग्नि को 2. खुशामद करना। संधारण करना 4. तीनों यज्ञाग्नियों की समष्टि श्लाघा [श्लाघ-+अ+टाप्] 1. प्रशंसा, स्तुति, सराहना, (अर्थात् गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण)। सम० -कर्ण-जयद्रथयो; कात्र श्लाघा -वेणी०२ 2. आत्म-- कर्मन् (नपुं०) वैदिक कृत्य, --सूत्रम् वेद पर प्रशंसा, शेखी बघारना---हते जरति गाङ्गेये पुरस्कृत्य आधारित सूत्र ग्रन्थों का संग्रह (आश्वलायन, सांख्यायन शिखण्डिनम, या श्लाघा पाण्डुपुत्राणां संवास्माकं और कात्यायन आदि के नाम से अभिहित)। भविष्यति-वेणी० 2 / 4 3. खुशामद 4, सेवा श्रोत्रम् [श्रोत्र-+-(स्वार्थे) अण] 1. कान 2. वेदों में 5. कामना, इच्छा। सम-विपर्ययः डींग मारने का प्रवीणता। अभाव, ·-त्यागे श्लाघा विपर्ययः - रघु० 1122 / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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