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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1038 ) श्र+क्त] 1. सुना 3. अधि- विकटक वृक्ष। लिए प्रतिज्ञा की जाय-तस्य प्रतिश्रुत्य रघुप्रवीरस्त- / कान का बाहरी भाग, मलम 1. कान की जड़,-लपितुं दीप्सितम् - रघु० 14 / 29, 2056, 3 / 67 15 / 4, किमपि श्रुतिमूले .. गीत०१ 2. वेद का संहितापाठ, वि - सुनना (प्रायः क्तांत रूप प्रयुक्त), सम् --सुनना, -मुलक (वि.) वेद पर आधारित,-विषयः 1. सूनने ध्यान लगा कर सुनना-संशृणोति न योक्तानि का विषय, अर्थात् ध्वनि-श० 111 2. कर्ण परास --भट्टि० 5 / 19, 6 / 5, (परन्तु अकर्मक प्रयोग में .-- एतत्प्रायेण श्रतिविषयमापतितमेव --का0 3. वेद आ०)-हितान्न यः संशृणुते स कि प्रभुः ---कि०११५ / / का विषय 4. धार्मिक अध्यादेश,-वेधः कान बींधना, श्रुनिका (स्त्री०) शोरा, सज्जी, खार। -स्मृति (स्त्री०) (द्वि० व०) वेद और धर्मशास्त्र / श्रुत (भू० क० कृ०) [श्रु+क्त] 1. सुना हुआ, ध्यान लगा श्रुवः[श्रु+क] 1. यज्ञ 2. यज्ञीय नुवा। कर श्रवण किया हुआ 2. वणित, कर्णगोचर 3. अधि- | श्रुवा [श्रुव+टाप् ] 1. यज्ञीय चमष, तु० जुवा / सम० गत, निर्धारित, समझा गया 4. सुज्ञात, प्रसिद्ध, विख्यात, विश्रुत .. रघु० 3.40, 14 / 61 5. नामक, | श्रेढी [श्रेण्य राशीकरणाय ढोकते-श्रेणी+दौक+ह, पुकारा हुआ, तम् 1. सुनने का विषय 2. जो देवी पुषो० ] (गणि० में) भिन्न जातीय द्रव्यों को मिलाने संदेश से सुना गया, अर्थात् वेद, पवित्र अधिगम, के लिए गणनांग भेद / सम०-फल श्रेढ़ी का योग पुनीत ज्ञान-श्रुतप्रकाशम् - रघु० 5 / 2 3. सामान्य जोड़। अधिगम, विद्या, -श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन (विभाति) | श्रेणि (पुं०, स्त्री०) श्रेणी (स्त्री० [श्रि+णि, वा ङीप्] भर्तृ० 2071, रघु० 3 / 21, 5 / 22, पंच० 2 / 147, 1. रेखा, श्रृंखला, पंक्ति, -तरङ्गभ्रूभङ्गा क्षुभितविहग४।६१ / सम० अध्ययनम् वेदों का पढ़ना,-अन्वित श्रेणिल्सना-वेणी०४।२८, न षट्पदश्रेणिभिरेव पङ्कजं (वि.) वेदों का ज्ञाता अर्थः मौखिक रूप से या सर्शवलासङ्गमपि प्रकाशते--कु० 5 / 9, मेघ० 28, 35 जबानी कहा गया तथ्य,-कीति (वि०) प्रसिद्ध, 2. दल, संचय, समह --उत्तर० 4 3. व्यापारियों का विश्रुत, (0) 1. उदार व्यक्ति 2. दिव्य ऋषि संघ, शिल्पियों का संघटन, निगम 4. बोक्का, बालटी। (स्त्री०) शत्रुघ्न की पत्नी,-- देवी सरस्वती,-धर सम० - धर्माः (पुं०, 50 व०) व्यापारिवर्ग या (वि.) सुनी हुई बात को याद रखने वाला, मेघावी। शिल्पकार-संघों के नियम, रीतियाँ आदि / श्रतवत् (वि.) [श्रुत+मतुप्] वेदज्ञाता, वेदवेत्ता, वेदज्ञ, | श्रेणिका [ श्रेणि+कन्-+टाप् ] तम्बू, खेमा। --रघु० 9 / 74 / श्रेयस (वि.) [ अतिशयेन प्रशस्यम-ईयसून, श्रादेशः ] अतिः (स्त्री०) [श्रु-- क्तिन्] 1. सुनना चन्द्रस्य ग्रहण- 1. अपेक्षाकृत अच्छा, वरीयस्, श्रेष्ठतर, वर्धनाद्रक्षणं मिति श्रुतेः-मुद्रा० 17, रघु० 1 / 27 2. कान,-श्रुति- श्रेय:--हि० 3 // 3, भग० 3 / 35, 2 / 5 2. सर्वोत्तम, सुखभ्रमरस्वनगीतयः--रघु० 9 / 35, श० 131, वेणी० श्रेष्ठतम 3. अधिक सुखी या सौभाग्यशाली 4. अधिक 323 3. विवरण, अफ़वाह, समाचार, मौखिक आनन्ददायक, प्रियतर (पुं०) 1. सदगण, पुण्यकर्म, संवाद 4. ध्वनि 5. वेद (दिव्य संदेश होने के कारण- नैतिक गुण, धार्मिक गुण 2. आनन्द, सौभाग्य, मंगल, विष० स्मति–दे० 'वेद' के अन्तर्गत 6. वैदिकपाठ शुभ, कल्याण, आशीर्वाद, शुभ परिणाम--पूर्वावधी. वेदमंत्र, --इतिश्रुतेः या इति श्रुतिः ‘ऐसा वेद कहता है। रितं श्रेयो दुःखं हि परिवर्तते श० 7 / 13, प्रति7. वेदज्ञान, पुनीतजान, पुण्य अधिगम 8. (संगीत में) बध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः---रघु० 179, सप्तक का प्रभाग, स्वर का चतुर्थाश या अन्तराल उत्तर० 5 / 27, 7 / 20, रघु० 5 / 34 3. शुभ अवसर -शि०१।१०, 1111, (दे० तत्स्थानीय मल्लि.) ... श० 7 4. मोक्ष, मुक्ति / सम -अथिन (वि०) 9. श्रवण नक्षत्र / सम०-अनुप्रासः अनुप्रास का एक 1. आनन्द का अन्वेपक, आनन्द का इच्छुक 2. हितैषी, भेद-दे० काव्य० 2, उक्त, उदित (वि०) वेद- -कर 1. आनन्दप्रद, अनुकूल 2. मंगलमय, शुभ, विहित,कट: 1. साँप 2. तपश्चर्या, प्रायश्चित्त साधना, ... परिश्रमः मुक्ति प्राप्त करने की चेष्टा / / -कट (वि०) सुनने में कड़वा (दुः) कर्णकटु, अम- | श्रेष्ठ (वि०) [ अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः ] धुर ध्वनि, (यह रचना का एक दोष माना जाता है), 1. सर्वोत्तम, अत्यन्त श्रेष्ठ, प्रमुखतम (संव० या --चोदनम, ना शास्त्रीय विधि, वेदविधि,-जीविका अधिक के साथ) 2. अत्यन्त प्रसन्न या समृद्ध 3. प्रियधर्मशास्त्र, विधिसंहिता,--वैधम् वेदविधियों का परस्पर तम, अत्यन्त प्रिय 4. सबसे अधिक पुराना, वृद्धतम, विरोध या निष्क्रमता,-धर (वि०) सुनने वाला, -ठ: 1. ब्राह्मण 2. राजा 3. कुबेर का नाम 4. विष्णु . निवर्शनम् वेदों का साक्ष्य,-पथः कर्ण-परास का नाम, ठम् गाय का दूध / सम०---आश्रमः ---मालवि०४।१,--प्रसादन (वि.) कर्णप्रिय,--प्रामा- 1. मनुष्य के धार्मिक जीवन का सर्वोत्तम आश्रम अर्थात् ध्यम वेदों की प्रामाणिकता या स्वीकृति,-- मण्डलम् गृहस्थाश्रम 2. गृहस्थ,-वाच (वि०) वाग्मी / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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