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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 913 ) सम्पक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये--रघ० 111 2. वचन, बात, गर्दभो हत:--हि. 3 2. अपशब्द, मानहानि भाषा, वाणी--वाचि पुण्यापुण्यहेतवः--मा० 4, लौकि- 3. व्याकरण की दृष्टि से अशद्ध भाषण,-निबंधन कानां हि साधूनामर्थं वागनुवर्तते, ऋषीणां पुनरा- (वाग्निबंधन) (वि.) वचनों पर आश्रित रहने द्यानां वाचमर्थोऽनुधावति उत्तर० 1110, विनिश्चि- वाला, निश्चयः (वानिश्चयः) मुंह के वचन से तामिति वाचमाददे कि० 1110, 'यह वचन कहे', मंगनी, विवाह-संविदा, निष्ठा (वाइनिष्ठा) (अपने निम्नांकित कहा' 14 // 2, रघु० 259, शि० 2 / 13, वचनों या प्रतिज्ञा) के प्रति भक्ति या श्रद्धा, पटु 23, कु० 2 / 3 3. वाणी, शब्द- अशरीरिणी वागद- (वि.) (वाक्पटु) बोलने में कुशल, वाक्चतुर, चरत्-उत्तर०२, मनुष्यवाचा-रघु० 3153 4. उक्ति, --- पति (वि.) (वाक्पति) वाकचतुर, अलंकारवक्तव्य 5. भरोसा, प्रतिज्ञा 6. पदोच्चय, कहावत, युक्त, (तिः) बृहस्पति का नाम (इस अर्थ में 'वाचसां लोकोक्ति 7. विद्या की देवी सरस्वती। सम० ----अर्थः पति:' का भी प्रयोग होता है), पारष्यम् (वाकपा(वागर्थः) शब्द और उसका अर्थ--रघु० 111, ऊ० रुप्यम्) 1. भाषा की कर्कशता 2. शब्दों द्वारा दे०,--आडम्बरः (वागाडम्बरः) शब्दाडम्बर, वाग्जाल, अपमान, अपशब्दयुक्त भाषा, मानहानि, प्रचोवनम् -आत्मन् (वागात्मन्) (वि०) शब्दों से युक्त (वाकप्रचोदनम) वचनों में अभिव्यक्त किया गया उत्तर० 2, ईशः (वागीशः) 1. सुवक्ता, वाकपटु आदेश,---प्रतोदः (वाकप्रतोदः) वचनों द्वारा उकसाना, 2. देवताओं के गुरु बृहस्पति का विशेषण 3. ब्रह्मा भड़काने वाली या उपालंभयक्त भाषा,--प्रलापः का विशेषण-कू०२।३, (-शा) सरस्वती का नाम, (वाक्प्रलापः) वाग्मिता,-बंधनम् (वाग्बंधनम्) --ईश्वरः (वागीश्वरः) 1. सुवक्ता, वाक्पटु 2. ब्रह्मा भाषण बंद करना, चुप करना अमरु० १३,-मनसे का विशेषण, (-री) वाणी की देवता सरस्वती देवी, (द्वि० व०-वाङमनसी-वैदिक भाषा में) वाणी और --ऋषभः (वागृपभः) बोलने में प्रमुख, वाक्पटु या मन,-मात्रम् (वाङमात्रम्) केवल वचन, मुखम् विद्वान् पुरुप, कलहः (वाक्कलह) झगड़ा, उत्पात, (वाङ्मुखम् ) किसी बक्तृता का आरंभ या प्रस्तावना, --कीरः (वाक्कीरः) पत्नी का भाई,-गुवः आमुख, भूमिका,-पत (वि.) (वाग्यत) जिसने (वाग्गुदः) एक प्रकार का पक्षी,--- गुलिः, -गलिक: अपनी वाणी को नियंत्रित कर लिया है या दमन (वाग्गुलि आदि) राजा का पानदान-वाहक-तु० कर लिया है, मौनी, - यमः (वाग्यमः) जिसने अपनी 'तांबूलकरंक वाहिन्',-चपल (वि.) (वाक्चपल) बोली को नियंत्रित कर लिया है, मुनि, ऋपि, यामः बकवात करने वाला, निरर्थक और असंगत बातें करने (वाग्यामः) मूक पुरुष, युद्धम् (वाग्युद्धम्) शन्दों वाला, चापल्यम् (वाक्चापल्यम्) निरर्थक बातें, की लड़ाई, गरमागरम वादविवाद या चर्चा, विवादाबकवास, गपशप,- छलम् (वाक्छलम्) शब्दों के द्वारा | स्पद विषय, वज्रः (वाग्वजः) 1 कठोर (वज बेईमानी, टालमटूल उत्तर, गोलमाल-मुद्रा० १,-जालम् की भांति) शब्द अहह दारुणो वाग्वजः-उत्तर० 1 (वाग्जालम्) शब्दाडंबरपूर्ण असार वातें शि० 2. कठोर भाषा,-विदग्ध (वाग्विदग्ध:) (बि० ) 2 / 27, बरः (वाग्डंबरः) 1. निस्सार उक्ति बोलने में कुशल (ग्धा) मधुरभापिणी और मनोहा2, बड़े बोल, दंडः (वाग्दंड:) 1. भर्त्सनापूर्ण वचन, रिणी, विभवः (वाग्विभव:) शब्दों का भंडार, डांट-फटकार, झिड़की 2. बोलने पर नियन्त्रण, शब्दों वर्णनशक्ति, भापा पर आधिपत्य- मा० 1126, या वचनों पर रोक --तु० विदंडः, दत्त (वाग्दत्त) रघु० ११९,-विलासः (वाग्विलास:) ललित या (वि०) प्रतिज्ञात, संवद्ध, जिसकी सगाई हो चुकी प्रांजल भाषा,-व्यवहारः (वाग्व्यवहारः) मौखिक हो, (ता) संबद्ध या सगाई हुई कन्या,--दरिद्र विचारविमर्श-.-प्रयोगप्रधानं हि नाट्यशास्त्रं किमत्र (वाग्दरिद्र) (वि०) वचनों में दरिद्र अर्थात् कम वाग्व्यवहारेण मालवि० 1, व्ययः (वाग्व्ययः) बोलने वाला, बलम् (वाग्दलम) ओष्ठ-मानम् शब्दों का ह्रास, व्यापारः (वाग्व्यापारः) 1. बोलने (वाग्दानम् ) सगाई, दुष्ट (वाग्दुष्ट) (वि.) 1. गाली की रीति 2. भापणशैली या अभ्यास, संयमः (वाक्देने वाला, बदजबान, अश्लीलभाषी 2. व्याकरण संयमः) भाषण या वोलने पर नियंत्रण। की दृष्टि से अशुद्ध भाषा बोलने वाला, (ष्टः) वाचः [वच्-:-णिच्+अच्] 1. एक प्रकार की मछली 1. निन्दक 2. वह ब्राह्मण जिसका उपनयनसंस्कार | 2. मदन नाम का पौधा / ठीक समय पर न हआ हो,-देवता,-वेवी (वाग्देवता, वाचंयम (वि.) [वाचो वाक्यात यच्छति विरमति---वाच् वाग्देवी) वाणी की देवता सरस्वती देवी वाग्देवता- +यम्-+-खच् नि० अम्] जिह्वा को रोकने वाला, या: सांमुख्यमाचते----सा० द.१,-दोषः (वाग्दोपः) पूर्ण निस्तब्वता रखने वाला, चुप रहने वाला, मौनी, 1. (अरुचिकर) शब्द का उच्चारण ----वाग्दोषाद् स्वल्पभाषी..- उपस्थिता देवी तद्वाचंयमो भव-विक्रम 115 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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