________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(
२०१ )
उन्मदन (वि० ) [ उद्भूतो मदनोऽस्य ब० स०] प्रेम पीडित, प्रेमोद्दीप्त तदाप्रभृत्युन्मदना पितुर्गृहे - कु०
|
उन्मितिः [ उद् + मा + क्तिन् ] नाप, तोल, मूल्य । उन्मिश्र ( वि० ) [ प्रा० स० ] मिला-जुला, चित्रविचित्र ।
५१५५।
उन्मदिष्णु ( वि० ) [ उद् + मद् + इष्णुच् ] 1. पागल 2. नशे में चूर, जिसने मदिरा पी हुई हो 3. जिसे मद चूता हो (हाथी) ।
उन्मनस-नस्क ( वि० ) [ उद्भ्रान्तं मनो यस्य ब० स०, कप च ] 1. उत्तेजित, विक्षुब्ध, संक्षुब्ध, बेचैन रघु० ११।२२, कि० १४।४५ 2. खेद प्रकट करना, किसी मित्र के बिछोह से उदास 3. आतुर, उत्सुक,
उतावला |
उन्मनायते ( ना० धा० आ० उन्मनीभू) बेचैन होना, मन में क्षुब्ध होना ।
उन्मन्यः [ उद् + मन्थ्+घञ ] 1. क्षोभ 2 वध करना, हत्या करना ।
उन्मन्थनम् [ उद् + मन्य् + ल्युट् ] 1. हिलाना, क्षुब्ध करना 2. वध करना, हत्या करना, मारना 3. ( लकड़ी आदि से) पीटना ।
उन्मयूख (वि० ) [ ० स०] प्रकाशमान, चमकीला - रघु०
१६।६९ ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मलना
उन्मर्दनम् [ उद् + मुद् + ल्युट् ] 1. रगड़ना, 2. मालिश करने के लिए सुगंधित (तैलादिक) । उन्माय: [ उद् + मथ् + धन् ] 1. यातना, अतिपीडा 2. हिला देना, क्षुब्ध करना 3. दघ करना, हत्या करना 4. जाल, पाश ।
उन्माद (वि० ) [ उद् + मद्+घञ्ञ, ]1. पागल, विक्षिप्त 2. असंतुलित, दः 1. पागलपन, विक्षिप्ति- अहो उन्मादः - उत्तर० ३ 2. तीव्र संक्षोभ 3. विक्षिप्तता, सनक ( मानसिक विकार) 4. (अलं० शा० में) ३३ संचारिभावों में से एक चित्तसंमोह उन्मादः कामशोकभयादिभिः सा० ६० ३ या विप्रलम्भमहापत्तिपरमानन्दादिजन्माउयस्मिन्नन्यावभास उन्मादः रस० 5. खिलना - उन्मादं वीक्ष्य पद्मनाम् सा० द०२ । उन्मादन ( वि० ) [ उद् + मद्+मित्र+ ल्युट् ] पागल बना देने वाला, मादक, नः कामदेव के पाँच वाणों में से एक । उन्मानम् [ उद् + मा -- ल्युट् ] 1. तोलना, मापना 2. माप, तोल 3. मूल्य । उन्मार्ग (वि० ) [ उत्क्रान्तः मार्गात् अत्या० स०] कुमार्गगामी, गं: 1. कुमार्ग, शुमार्ग से विचलन (आलं० भी ) 2. अनुचित आचरण बुरो चाल उन्मार्गप्रस्थितानि इंन्द्रियाणि का० १६५, प्रवर्तकः १०३ - गंम् ( अव्य०) मुळा-भटका पंच० १०१६१ । उन्मार्जनम् [ उद् + मृज् + णिच् + ल्युट् | रगड़ना, पोंछना, मिटाना ।
२६
उन्मिषित (भू० क० कृ० ) [ उद् + मिष् + क्त ] खुला हुआ (आँख आदि), खिला हुआ, फुलाया हुआ, -तम् दृष्टि, झलक - कु० ५।२५ ।
उन्मील: --- लनम् [ उद् + मील् + घञ ल्युट् वा ] 1. (आखों का) खोलना, जागति 2. प्रकाशित करना, खोलना - उत्तर० ६।३५ 3. फुलाना, फूंक मारना । उन्मुख (वि० ) ( स्त्री० खी) [ उद् - ऊर्ध्वं मुखं यस्य
- ब० स०] 1. मुंह ऊपर की ओर उठाये हुए, ऊपर देखते हुए - अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किंस्विदित्युन्मुखीभिः - मेघ० १४,१००, रघु० १३९, ११।२६, आश्रम १५३ 2. तैयार, तुला हुआ, निकटस्थ, उद्यत -- तमरण्यसमाश्रयोन्मुखम् - रघु० ८1१२, बन में चले जाने के लिए तत्पर - १६/९, 3. उत्सुक, प्रतीक्षक, उत्कंठित - तस्मिन् संयमिनामाद्ये जाते परिणयोन्मुखे कु० ६।३४, रघु० १२/२६, ६।२१, ११।२३ 4. शब्दायमान शब्द करता हुआ -कु० ६।२।
३।१२
उन्मुखर ( वि० ) [ प्रा० स० ] ऊँचा शब्द करने वाला, कोलाहलमय ।
उन्मुद्र (वि० ) [ उद्गता मुद्रा यस्मात् - ब० स०] 1. बिना मुहर का 2. खुला हुआ, खिला हुआ, ( फूल की भाँति ) फूला हुआ ।
उन्मूलनम् [ उद् + मूल् + ल्युट् ] जड़ से फाड़ लेना, "उखाड़ना, मूलोच्छेदन करना - न पादपोन्मूलनशक्ति रहः – रघु० २।३४ । उन्मेदा [ प्रा० रा० ] स्थूलता, मोटापा । उन्मेष: – षणम् [ उद् + मिष् + घञ, ल्युट् वा ] 1. ( आखों का) खोलना, पलक मारना - मुद्रा० ३।२१, 2. खिलना, खुलना, फूलना - उन्मेषं यो मम न सहते जाति-वैरी निशायाम् - काव्य ० १०. दीर्घिका कमलोन्मेषः कु० २।३३ 3. प्रकाश, कौंध, दीप्ति सतां प्रज्ञोन्मेष:भर्तृ० २।११४ विद्युदुन्मेषदृष्टिम् - मेघ० ८१4. जाग जाना, उठना, दिखलाई देना, प्रकट होना, ज्ञानं - शा० ३।१३ ।
उन्मोचनम् [ उद् +-मुव् + ल्युट् ] खोलना, ढीला करना । उप ( उप० ) 1. यह उपसर्ग क्रिया या संज्ञाओं से पूर्व लग
कर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है - ( क ) निकटता, संसक्ति उपविशति, उपगच्छति (ख) शक्ति, योग्यता - उपकरोति (ग) व्याप्ति-उपकीर्ण (घ ) परामर्श, शिक्षण (जो अध्यापक द्वारा प्राप्त हो) उपस्थिति, उपदेश (ङ) मृत्यु, उपरति-उपरत (च) दोष, अपराध - उपघात (छ) देना उपनयति, उपहरति
For Private and Personal Use Only