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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०० ) उद्वेवि (वि.) [ उन्नता वेदिर्यत्र ब० स० ] जहाँ आसन । ऊँचा (आलं. भी)-उन्नम्रताम्रपटमण्डपमण्डितम् ___ या गद्दी ऊँची हो—विमानं नवमुद्वेदि-रघु० १७।९। तत्-शि० ५।३१ । उद्वेपः [ उद्+वेप+अच् ] हिलना, कांपना, अत्यधिक उन्नयः, उन्नायः [उद्+नी+अच, घा वा] 1. उठाना, कंपकंपी। ऊँचा करना 2. ऊँचाई उन्नयन 3. सादृश्य, समता उद्वेल (वि०) [ उत्क्रान्तो वेलाम्-अत्या० स०] 1. अपने 4. अटकल। तट से बाहर उमड़ कर बहने वाला (नदी आदि) | उन्नयनम् [उद्+नी+ल्युट ] 1. उठाना, ऊँचा करना, -रघु० १०॥३४, का० ३३३ 2. उचित सीमा का ऊपर उठाना 2. पानी खींचना 3. पर्यालोचन, विचारउल्लंघन । विमर्श 4. अटकल। उद्वेल्लित (भू० क.कृ.) [ उद्-वेल्ल+क्त ] हिलाया | उन्नस (वि.) [उन्नता नासिका यस्य ब० स०] ऊँची नाक हुआ, उछाला हुआ,-तम हिलाना, झझोड़ना। वाला,-उन्नसं दधती वक्त्रम्--भट्टि० ४११८ ! उद्वेष्टन (वि.) [ग० स०] 1. ढीला किया हुआ-- कया- उन्नादः [ उद्+न+घञ्] चिल्लाहट, दहाड़, गुंजन, चिदुद्वेष्टनवान्तमाल्यः-रघु० ७१६, कु. ७५७, । चहचहाना । 2. बन्धनमुक्त, बन्धनरहित,-नम् 1. घेरा डालना, उन्नाभ (वि.) [ उन्नता नाभिर्यस्य-ब० स०] जिसकी 2. बाड़ा, बाड़ 3. पीठ या कूल्हों में पीड़ा। नाभि उभरी हुई हो, तुंदिल, तोंद वाला। उद्वोद (पु.) [उद्+वह +तृच् ] पति। उन्नाहः [ उद्+नह+घन ] 1. उभार, स्फीति 2. उषस् (नपुं० ) [उन्द्+असुन् ] ऐन, औड़ी दे० बाँधना, बंधनयुक्त करना, हम चावलों के माँड़ से 'ऊधस् । बनी काँजी। उन्द् (रुवा० पर०) (उनत्ति, उत्त- उन्न) आर्द्र करना, | उन्निद्र (वि०) [ उद्गता निद्रा यस्य-ब० स०] 1. निद्रा ___ तर करना, स्नान करना—याः पृथिवीं पयसोन्दन्ति । रहित, जागा हुआ-तामुन्निद्रामवनिशयना सौधवातायउन्दनम् [ उन्द+ल्युट ] तर करना, आर्द्र करना। नस्थः-मेघ०८८ विगमयत्यन्निद्र एव क्षपा:-श० उन्दरः, उन्दुरः, उन्दुरुः, उन्दूरुः [ उन्-+-उर---उरु वा] | ६।४, मद्रा० ४ 2. प्रसृत, पूर्णविकसित मुकुलित मूसा, चहा। (कमल आदि)-उन्निद्रपुष्पाक्षिसहस्रभाजा- शि० ४) उन्नत (भू० क० कृ०) [उद्+नम्+क्त ] 1. उठाया , १६, ८।२८।। हुआ, उन्नत किया हुआ, ऊपर उठाया हआ (आलं० उन्नत [उद्+नी+तच ] उठाने वाला-(पु.) यज्ञ के भी)-भर्तृ ० ३।२४, शि० ९।७९, नतोन्नतभूमिभागे १६ ऋत्विजों में से एक । —श० ४।१४ 2. ऊँचा (आलं. भी) लम्बा, उत्तुंग, | उन्मज्जनम् [ उद्+मस्+ ल्युट् ] बाहर निकलना, पानी बड़ा, प्रमुख-रघु० १३१४, विक्रम० ५।२२, कि० ५। से बाहर निकलना। १५, १४।२३, 3. मांसल, भरा-पूरा (स्त्री का वक्षस्थल उन्मत्त (भू० क० कृ०) [ उद् + मद्+क्त ] 1. मद्यप, आदि),----तः अजगर,--तम 1. उन्नयन 2. उत्थान, नशे में चूर 2. विक्षिप्त, उन्मत्त, पागल-द्वावत्रोन्मत्ती ऊँचाई। सम०-आनत (वि०) उन्नत और दलित, -विक्रम०२, मन० ९।७९, 3. फूला हुआ, उच्छित, विषम-बन्धुरं तूत्रतानतम् -अमर०,-चरण (वि०) वहशी-पंच० १११६१, शि०६।३१ 4. भूत या प्रेत दुर्दान्त,--शिरस् (वि०) अहंमन्य, बड़ा घमंडी।। से आविष्ट याज्ञ०२१३२, मनु० ३।१६१, (वातउन्नतिः (स्त्री०) [उद्+न+क्तिन् ] 1. उन्नयन, ऊँचाई पित्तश्लेष्म संनिपातग्रहसंभवेनोपसष्ट:--मिता०),-त्तः (आलं. भी) नीचे दे० 'उन्नतिमत्' 2. उत्कर्ष, मर्यादा, धतूरा। सम-कीतिः,-वेशः शिवांगम् एक देश का अभ्युदय, समृद्धि-स्तोकेनोन्नतिमायाति स्तोकेनायात्य- | नाम (यहाँ गंगा भीषण कल्लोल करती हुई बहती है) घोगतिम् ---पंच० १११५०, शि० १६।२२, भामि० १॥ -दर्शन,-रूप (वि.) देखने में पागल,-प्रलपित (वि.) ४०-–महाजनस्य संपर्कः कस्य नोन्नतिकारकः --हि. पागल की बहक (-तम) पागल के शब्द । ३ 3. उठाना। सम०-ईशः गरुड़, (उन्नति का | उन्मथनम् [ उद्+मथ + ल्युट ] 1. झाड़ना, फेंक देना 2. स्वामी)। बध करना, अन्योन्यसूतोन्मथनात्-रघु० ७.५२। उन्नतिमत् (वि.)[ उन्नति मतुप ] उन्नत, उभरता हुआ, उन्मद (वि०) [उद्गतो मदो यस्य--ब० स०] 1. नशे फूला हुआ (जैसे कि स्त्री का वक्षस्थल)--सा पीनो- में चूर, शराबी, रघु० २।९, १६१५४ 2. पागल, नतिमत्पयोधरयुगं धत्ते--अमरु ३०, शि० ९७२। क्रोधोद्दीप्त, उड़ाऊ-शि०१०१४, १६६९ 3. नशा उन्नमनम् [उद्+नम् + ल्युट ] 1. ऊपर उठाना, ऊँचा करने वाला, मादक-मधुकराङ्गनया मुहुरुन्मदध्वनिभूता करना 2. ऊँचाई। निभृताक्षरमुज्जगे---शि० ६।२०,-द: 1. विक्षिप्ति उन्नन (वि.) [ उद्+नम्+रन् ] खड़ा, सीधा, उत्तुंग, । 2. नशा। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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