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उद्योगः [ उद्+युज+घञ ] 1. प्रयत्न, चेष्टा, काम-धंधा । उगला हुआ,-नम् 1 उगलना, वमन करना,
--तदैवमिति संचिन्त्य त्यजेन्नोद्योगमात्मनः--पंच० 2. अंगीठी, स्टोव । २।१४० 2. कार्य, कर्तव्य, पद--तुल्योद्योगस्तव दिनकृ- उद्वान्त (वि.) [उद्+वम्+क्त ] 1. वमन किया हुआ
तश्चाधिकारो मतो नः---विक्रम० २११, धैर्य, परिश्रम । | 2. मद रहित (हाथी)। उद्योगिन् [ उद्+युज्+घिनुण् ] चुस्त, उद्यमी, उद्योग- उदापः [ उद्+व+घा ] 1. उगलना, बाहर फेंकना शील।
2. हजामत करना 3. (तर्क० में) पूर्व पद के उनः [ उन्द्+रक ] एक प्रकार का जल जन्तु ।
अभाव में पश्चवर्ती उत्तरांग के अस्तित्व का अभाव उनथः [ उद्गतो रथो यस्मात्-ग० स० ] 1. रथ के धुरे की |
(विल्सन)। कील, सकेल 2. मुर्गा।
उदासः [ उद्+वस्+घञ ] 1. निर्वासन 2. तिलांजलि उद्रावः [ उद्+रु+घञ ] शोरगुल, कोलाहल।
देना 3. वध करना। उद्रिस्त (भु० क० कृ०) [ उद्+रिच+क्त ] 1. बढ़ा | उद्वासनम् [उद्+वस्+णिच+ल्यूट ] 1. बाहर निकालना, हुआ अत्यधिक, अतिशय 2. विशद, स्पष्ट ।
निर्वासित कर देना 2. तिलांजलि देना 3. (आग से) उबुज (वि.) [ उद्+रुज+क] नष्ट करने वाला, जड़ निकालकर दूर करना 4. वष करना।
खोदने वाला (तट--आदि) यथा 'कूलमुदुज' में। उद्वाहः [उद्+वह+घञ ] 1. संभालना, सहारा देना उद्रेकः [उद्+रिच+घञ] वृद्धि, आधिक्य, प्राबल्य, प्राचुर्य 2. विवाह, पाणिग्रहण असवर्णास्वयं ज्ञेयो विधि
—ज्ञानोदेकाद्विघटिततमोग्रन्थयः सत्त्वनिष्ठाः—वेणी. रुद्वाहकर्मणि-मनु० ३।४३ (स्मृतियों में आठ प्रकार १।२३, गत्वोद्रेकं जघनपुलिने-शि० ७१७४।
के विवाहों का वर्णन है--ब्राह्मो देवस्तथा चार्षः प्राजाउद्वत्सरः [ उद्+वस्+सरन् ] वर्ष ।
पत्यस्तथासुरः, गांधर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमः उद्वपनम् [उद्+व+ल्युट ] 1. उपहार, दान 2. उडे. स्मतः)। लना, उखाड़ना।
उद्वाहनम् [उद्+वह +णिच-+ल्यट] 1. उठाना 2. विवाह, उद्वमनम्,-उद्वान्तिः (स्त्री०) [ उद्+वम् + ल्युटु, क्तिन् --नी 1. बंधनी, रस्सी 2. कौड़ी, वराटिका । वा वमन करना, उगलना ।
| उद्वाहिक (वि.) [ उद्वाह+ठन् ] विवाह से संबंध रखने उद्वर्तः [उद्+वृत्+घञ] 1. अवशेष, आतिशय्य | वाला, विवाह विषयक (मंत्रादिक) मनु० ९।९५ ।
2. आधिक्य, बाहुल्य 3. (तेल, उबटन आदि) सुगंधित | उद्वाहिन् (वि.) [उद्+-वह +णिनि ] 1. उठाने वाला, पदार्थों की मालिश।
खींचने वाला 2. विवाह करने वाला,-नी उद्वर्तनम् [उद्+वृत् + ल्युट ] 1. ऊपर जाना, उठना
| रस्सी, डोरी। 2. उगना, बाढ़ 3. समृद्धि, उन्नयन 4. करवट बदलना,
उद्विग्न (भू० क. कृ.) [उद्+विज्+क्त ] संतप्त, उछाल लेना-चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि-मेघ० ४०
पीडित, शोकप्रस्त, चितित । 5. पीसना, चूरा करना 6. सुगंधित उबटन आदि
उद्वीक्षणम् | उद्+वि+ईक्ष+ल्यट 11. ऊपर की ओर पदार्थो का शरीर पर लेप करना, या पीडा आदि को
देखना 2. दृष्टि, आँख, देखना, नज़र डालना---सखीदूर करने के लिए सुगंधित लेप ।।
जनोद्वीक्षणकौमुदीमुखम् -- रघु० ३।१।। उद्वर्धनम् [ उद्+वृध--ल्युट् ] 1. वृद्धि, 2. दबाई हुई। उद्वोजनम् [ उद्+वी+ल्युट् ] पंखा मलना। हँसी।
उद्धहणम् [ उद्+वूह + ल्युट् ] वर्धन, वृद्धि। उवह (वि.) [उद+वह +अच] 1. ले जाने वाला, आगे उद्वत्त (भू० क० कृ०) [उद्-वृत्+क्त ] 1. उठाया
बढ़ने वाला 2. जारी रहने वाला, निरन्तर रहने वाला हुआ, ऊँचा किया हुआ 2. उमड़कर बहता हुआ, (वंश आदि), कुल-उत्तर० ४, इसी प्रकार रवह उमड़ा हुआ-----उदवृत्तः क इव सुखावहः परेषाम्-शि० ४।२२, रघु० ९।९, १११५४,-ह: 1. पुत्र 2. वायु ८।१८ (यहाँ 'उद्वत्त' का अर्थ 'विचलित, दुर्वत्त' है)। के सात स्तरों में से चौथास्तर, 3. विवाह, हा उद्वेगः [ उद्+विज्+घा ] 1. कांपना, हिलना, लहराना -पुत्री।
2. क्षोभ, उत्तेजना-भग० १२११५ 3. आतंक, भय उवहनम् [ उद्+वह + ल्युट ] 1. विवाह करना –शान्तोद्वेगस्तिमितनयनं दृष्टभक्तिर्भवाम्या-मेष.
2. सहारा देना, संभाले रखना, उठाये रखना--भुवः ३६, रघु० ८७ 4. चिन्ता, खेद, शोक 5. विस्मय, प्रयुक्तोद्वहन क्रियाया: ---रघु० १३।१, १४१२०, रघु० । आश्चर्य,----गम् सुपारी। २११८, कु० ३१३ 3. ले जाया जाना, सवारी करना उद्वेजनम् [ उद्-विज्+ल्युट् ] 1. क्षोभ, चिन्ता 2. पीडा मनु०८१३७०।
पहुंचाना, कष्ट देना-उद्वेजनकरर्दण्डश्चिह्नयित्वा प्रवासउद्वान (वि० ) [ उद्-+-वन्+घञ ] वमन किया हुआ, येत-मनु० ८।३५२, 3. खेद ।
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