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-कार: 1. दीनता, अवमानना 2. अनादर, घृणा, अप- | न्यायः [नियन्ति अनेन--नि-+-+घञ्] 1. प्रणाली, मान-न्यक्कारो हृदि वकील इव मे तीब्र परिस्पं- तरीका, रीति, नियम, पद्धति, योजना-अधार्मिक दते-महावी० ५।२२, ३।४०, गंगा० ३२,--भावः विभिार्यनिग्रहीयात् प्रयत्नतः--मनु० ८।३१०. 2. 1. दीनता, अवमानना 2. घटिया करने वाला, मात- उपयुक्तता, औचित्य, सुरीति-कि० ११॥३० 3. हती, अधीनता,--भावित (वि.) 1. दीन, अधः कानून, न्याय या इंसाफ़, नैतिक विशालता, न्याय्यता, "-पतित, अपमानित 2. आगे बढ़ा हुआ, श्रेष्ठता को "सचाई, ईमानदारी-यांति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यंचोऽपि प्राप्त, अप्रधानीकृत- स्यम्भावितवाच्यव्यंग्यव्यंजन सहायताम् –अनर्घ० ११४ 4. कानूनी मुक़दमा, क्षमस्य शब्दार्थयुगलस्य-काव्य०.१।
कानूनी कार्रवाई 5. कानून के अनुसार दण्ड, निर्णय म्यक्ष (वि०) [ नियते निकृते वा अक्षिणी यस्य-ब० स०, ...6. राजनीति, अच्छा शासन 7. समानता, सादृश्य 8.
षच् प्रत्ययः ] नीच, अधम, दुष्ट, कमीना,-क्षः 1, लोकरूढ़ नीतिवाक्य, उपयुक्त दृष्टांत, निदर्शना जैसे
भैस 2. परशुराम का विशेषण,क्षम् सूराख, छिद्र । कि 'दंडापूप न्याय' 'काकतालोय न्याय' 'घृणाक्षर म्यप्रोषः [ न्यक रुणद्धि-न्यक+रुध् + अच् ] 1. बरगद
न्याय' आदि दे० नी० १. वैदिक स्वर-न्याय स्त्रिभिरुका पेड़ 2. पुरस, लंबाई का एक नाप जिसकी लंबाई दीरणम्---कु० २।१२ (मल्लि. 'न्याय' शब्द का उतनी होती है जितनी कि दोनों हाथों को फैलाने से
अर्थ 'स्वर' करते हैं, परन्तु हमारी सम्मति में यहाँ होवे । सम-परिमंडला श्रेष्ठ स्त्री (श्रेष्ठ स्त्री की 'पद्धति' 'रीति' है जो कि तीन 'पद्धतियों 'अर्थात् परिभाषा यह है-स्तनौ सुकठिनौ यस्या नितंबे च
ऋक, यजुस् और सामन् में प्रकट किया गया है) विशालता, मध्ये क्षीणा भवेद्या सा न्यग्रोधपरिमंडला भत० ३।५५ 10. (व्या० में) विश्वव्यापी नियम (शब्द०), दूर्वाकांडमिव श्यामा न्यग्रोधपरिमंडला
11. गौतम ऋषि प्रणीत न्यायशास्त्र 12 तर्क शास्त्र, -भट्टि० ४।१८ ।
न्यायदर्शन 13. अनुमान की पूरी प्रक्रिया (जिसमें म्यंकुः [नि+अञ्च् +डु] एक प्रकार का बारहसिंगा
पाँचों अंग अर्थात प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय
और निगमन सम्यिलित है)। सम-पथः मीमांसा -रघु०.१३।१५। म्य (वि.) (स्त्री०-नीची) [नि अञ्च+ क्विन् । दर्शन,-वतिन् (वि०) आचरणशील, न्यायानुसार
नीचे की ओर मुड़ा या झुका हुआ, या नीचे की ओर आचरण करने वाला, वादिन् (वि.) न्याय्य और जाता हुआ 2. मुंह के बल लेटा हुआ 3. नीच, घृणा धर्मानुमोदित बात कहनेवाला,--- शास्त्रम तर्क विज्ञान, 'के योग्य, अधम, कमीना, दुष्ट--शि० १५।२१, (यहाँ तर्कशास्त्र,--सारिणी उचित तथा उपयुक्त व्यवहार, इसका अर्थ 'निम्न' या नीचे की ओर' भी है) 4. --सूत्रम् गौतम प्रणीत न्यायदर्शन के सूत्र ।.. मन्थर, आलसी 5. पूर्ण, समस्त।
विशे० कुछ सिद्धान्त-वाक्य या लोकरूढ़ नीतिवाक्यों को न्यंचनम् [नि+अञ्च् + ल्युट् ] 1. वक्र 2. छिपने का
पाठकों के उपयोग के लिए संग्रह करके नीचे अकरादि...स्थान 3. कोटर। .
क्रम से रख दिया गया है। न्ययः [नि++अच्] 1. हानि, नाश 2. बरबादी, क्षय ।
| 1. अंधचटकन्यायः [अन्धे के हाथ बटेर लगना] अर्थ में म्पसनम् नि+अस्+ल्युटु] 1. जमा करना, लेटना 2.
_ 'घुणाक्षर न्याय' के समान । सौंपना, छोड़ना। . .
2. अंधपरंपरान्यायः [अंधानुकरण -जब लोग बिना विचारे
.. न्यस्त (भू. क. कृ०) [नि+अस्+क्त] 1. डाला हुआ,
दूसरों का अन्धानुकरण करते है और यह नहीं फेंका हुआ, लिटाया हुआ, जमा किया हुआ 2.
कि इस प्रकार का अनुकरण उन्हें अन्धकार में अन्दर रक्सा हुआ, अन्तहित, प्रयुक्त-न्यस्ताक्षरा:
फंसा देगा। 03णित चित्रित
3. अरुंधती दर्शनन्यायः [अरुन्धती तारादर्शन का सिद्धांत, सुपुर्द किया हुआ, सौंपा हुआ, स्थानान्तरित-विक्रम
ज्ञात से अज्ञात का पता लगाना; शंकराचार्य की ५।१७, रत्न० १११० 5. रहना, टिकना 6. छोड़ा हुआ,
निम्नांकित व्याख्या से इसका प्रयोग स्पष्ट हो जायगा एक ओर डाला हुआ, उत्सृष्ट। सम-दंड (वि०) दंड |
---अरुंधती दिदर्शयिषुस्तत्समीपस्थां स्थूला ताराजोड़ने वाला,-वेह (वि०) मरा हुआ, मृत,-शस्त्र |
ममुख्यां प्रथममरुंधतीति ग्राहयित्वा तां प्रत्याख्याय (वि.) 1. जिसने हथियार डाल दिये हों-आचार्यस्य
पश्चादरुंधतीमेव ग्राहयति । त्रिभुवनगुरोन्यस्तशस्त्रस्य शोकात्-वेणी० ३.१८ 4. अशोकवनिकान्यायः [अशोकवृक्षों के उद्यान का न्याय
2, निरस्त्र, अरक्षित 3. जो हानि कारक न हो। ...रावण ने सीता को अशोकवाटिका में रक्खा था, न्याश्यम् [नि+अ+ ण्यत् तले हुए चावल, मुर्मुरे। परन्तु उसने और स्थानों को छोड़ कर इसी वाटिका न्यायः [नि+अद्+ण] खाना, खिलाना।
में क्यों रक्खा, इसका कोई विशेष कारण नहीं बताया
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