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जाता है--अप्रस्तुतप्रशंसा सा या सैव प्रस्तुताश्रया- | अप्रिय (वि.) [न० त०] 1. नापसंद, अनभिमत, अरुचिकाव्य. १०, इसके ५ भेद है:-कार्ये निमित्ते कर,---अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:सामान्ये विशेष प्रस्तुते सति, तदन्यस्य वचस्तुल्ये रामा०, मनु०४।१३८, 2. निष्ठुर, अमित्र,-यः शत्रु, तुल्यस्येति च पंचधा--अर्थात् जबकि प्रस्तुत विषय दुश्मन,---यम् शत्रुतापूर्ण या अनिष्टकर कर्म,-पाणिपर (क) कार्य के रूप में दुष्टिपात किया जाय- ग्राहस्य साध्वी स्त्री नाचरेत्किचिदप्रियम्--मनु०५। जिसकी सूचना कारण वतलाकर दी जाती है, (ख) १५६, । सम०-कर, ---कारिन् -कारक, (वि.) जब कार्य को बतलाकर कारण पर दृष्टिपात किया अनिष्टकर, अरुचिकर -बद (°°), --वादिन जाय । (ग) जब कोई विशेष निदर्शन देकर सामान्य (वि०) निष्ठुर और कठोर शब्द बोलने वाला, बात पर दृष्टि डाली जाय (घ) जब किसी सामान्य -वन्ध्यार्थध्न्यप्रियंवदा-या० ११७३, माता यस्य गृहे बात का कथन करके विशेष निदर्शन पर दृष्टिपात नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी-चाण. ४४। किया जाय, अथवा (ङ)जब कि समान बात का कथन | अमोतिः (स्त्री०) [न० त०] 1. नापसंदगी, अरुचि 2. करके समान बात पर दृष्टिपात किया जाय, उदा० । शत्रुता। के लिए का० १० और सा० द०७०६।
अप्रौढ (वि.)[न० त०11. जो ढीठ न हो 2. भीरु, अप्रहत (वि०) [न० त०] 1. जिसे चोट न लगी हो 2. ! नम्र, असाहसी 3. जो वयस्क न हो, ---डा 1. अवि
परत की भूमि, अनजुती 2. नया या कोरा कपड़ा। वाहित कन्या 2. वह कन्या जिसका विवाह तो हो अप्राकरणिक (वि.) [स्त्री-की] [न० त०] 1. जो गया हो, परन्तु अभी तक वयस्क न हुई हो। प्रकरण से संबंध न रखता हो, अप्राकरणिकस्याभि
अप्लत (वि.)[न० त०] वह स्वर जो आवाज की दृष्टि घानेन प्राकरणिकस्याक्षेपोऽप्रस्तुत प्रशंसा-काव्य०१० से लंबा न किया गया हो। अप्राकृत (वि०) [न० त०] 1. जो गंवारू न हो 2. जो | अप्सरस (स्त्री०) (-राः, रा) [अद्भचः सरन्ति उद्गमौलिक न हो 3. जो साधारण न हो, असाधारण !
च्छन्ति-अप्+सृ+असुन् ] [ तु. रामा० अप्सु 4. विशेष।
निर्मथनादेव रसात्तस्माद्वरस्त्रियः, उत्पेतुर्मनुजश्रष्ठ अप्राग्य (वि०) [न० त०] गौण, अधीन, घटिया ।
तस्मादप्सरसोऽभवन् । आकाश में रहने वाली अप्राप्त (वि.) [न० त०] 1. जो प्राप्त न किया गया देवांगनाएँ जो गन्धर्वो की पत्नियाँ समझी जाती हैं,
हो, -अप्राप्तयोस्तु या राशि: सैव संयोग ईरित:--- उन्हें जलक्रीड़ा बड़ी रुचिकर है, वह अपना रूप बदल भाषा० 2. जो न पहुँचा हो या जो न आया हो, 3. सकती हैं तथा दिव्य प्रभाव से युक्त है, वह प्रायः नियमत: अनधिकृत, अननुगामी 4. न आया हुआ, इन्द्र की.नर्तकियाँ है और 'स्वर्वेश्याः ' कहलाती हैं। न पहुँचा हुआ। सम० ----अवसर, ----काल (वि.) वाण ने इस प्रकार की परियों के १४ कूलों का वर्णन बुरे समय का, असामयिक, जो ऋतु के अनुकूल न , किया है-दे० का० १३६; यह शब्द बहुधा बहुवचन हो,–'कालं वचनं बृहस्पतिरपि ब्रुवन्, लभते बुद्धच- में (स्त्रियां वहष्वपसरसः) प्रयुक्त होता है, परन्तु बज्ञानमपमानं च पुष्कलम् --पंच० २६३, -यौवन एक वचन में प्रयोग तथा 'अप्सरा' रूप कई बार (वि.) अवयस्क, नावालिग, ----व्यवहार, -वयस देखने में आता है—नियमविघ्नकारिणी मेनका नाम (वि०) (विधि में) अल्पवयस्क, सार्वजनिक कार्यों में अप्सराः प्रेपिता--श. १, एकाप्सरः आदि०-रघु. अपने उत्तरदायित्व के भरोसे भाग लेने के लिए जिस ७।५३,। सम० -तीर्थम् अप्सराओं के नहाने के की आयु न हो, अवयस्क (१६ वर्ष से कम आयु का) लिए पवित्र तालाब, यह संभवतः किसी स्थान का --अप्राप्तव्यवहारो ऽसौ यावत् पांडशवापिक:-दक्ष। नाम है-दे० १०६, -पतिः अप्सराओं का स्वामी आलप्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. न मिलना,-तदप्राप्ति
इन्द्र की उपाधि। महादुःखविलीनाशेषपातका काव्य० ४, 2. जो अफल (वि०) [न० ब०11 निष्फल, फलरहित, बंजर किसी नियम से सिद्ध या स्थापित न हुआ हो; (श और आलं.) °ला ओषधयः, °लकार्य आदि -विधिरत्यन्तमप्राप्तौ नियमः पाक्षिके मति-मीमां० 2. अनुरा, निरर्थक, व्यर्थ,-यथा पंढोऽफल: स्त्रीष 3. किसी बात का न होना, किसी घटना का घटित यथा गौर्गवि चाफला, यथा यज्ञेऽफलं दान तथा विप्रो न होना।
ऽनूचोऽफलः । मनु० २।१८। पुरुषत्व से हीन, बधिया अप्रामाणिक (वि.) [स्त्री० की][न० त०] 1. जो किया हुआ,-अफलोज्हं कृतस्तेन क्रोधारसा च मिराकृता
प्रामाणिक न हो, अयुक्तियुक्त,—इदं वचनमप्रामा- --..रामा०। सम--.-आकांक्षिम, -प्रेप्सु (वि०) जो णिकम-2. अविश्वसनीय, जिस पर भरोसा न किया पारिश्रमिक पाने की इच्छा नहीं रखता, स्वार्थरहित, जा सके।
-अफलाकांक्षिभिर्यज्ञः क्रियते ब्रह्मवादिभिः-महा।
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