________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भत् १६० बलाबलम् भा. अनियन्त्रित बाधाहीनता |
'
अफेन (वि०) [न० ब०] बिना झाग का, झाग रहित । -पोनिः ब्रह्मा के विशेषण,-बांधव कमलों का मित्र -नम् अफ़ीम ।
सूर्य,--वाहमः शिव की उपाधि । अबब-बक (वि.) [न० त०] 1. स्वच्छन्द, न बंधा , अन्जा | स्त्रियां टापू] सीपी।
हुआ, बेरोक 2. अर्थहीन, बेमतलब, बेहूदा, विरोधी- अब्जिनी [अब्ज+इनि, स्त्रियां डीप] 1. कमलों का उदा. यावज्जीवमहं मौनी ब्रह्मचारी च मे पिता, समूह 2. कमलों से पूर्ण स्थान 3. कमल का पौधा । माता तु मम बंध्यासीदपुत्रश्च पितामहः । (विरोधी)- सम.--पतिः सूर्य । जरद्गवः कंबलपादुकाभ्यां द्वारि स्थितो गायति मङ्ग- | अम्बः [ अपो ददाति-दा-+क] 1. बादल 2. वर्ष (इस लानि-अमर० रायमुकुट । सम०-मुख (वि.) अर्थ में नपं० भी) 3. एक पर्वत का नाम। सम. दुर्मख, गाली से युक्त, बदजबान।
- अर्धम् आधा वर्ष, वाहनः शिव,-शतम् शताब्दी, अबन्धु-बान्धव (वि.) [न० ब०] मित्रहीन, एकाकी। -सारः एक प्रकार का कपूर । अबल (वि.) [न० ब] 1. दुर्बल, बलहीन, 2. अर- | अब्धिः [ आपः धीयन्ते अत्र-अप-धा+कि] 1. समुद्र,
क्षित, ला स्त्री (अपेक्षाकृत बलहीन होने के जलाशय, (आलं. भी) दुःख, कार्य, ज्ञान आदि कारण);-ननं हि ते कविवरा विपरीतबोधा ये नित्य- किसी चीज का भंडार या संग्रह 2. ताल, झील, 3. माहरबला इति कामिनीनाम, याभिविलोलतरतारक- (गण० में) सात की संख्या, कई बार चार की दृष्टिपातः शक्रादयोऽपि विजितास्त्वबलाः कथं ताः - संख्या। सम-अग्निः वाडवाग्नि,-कफः,-फेनः भेत ११११, जनः स्त्री, बलम् निर्बलता, बल की। समुद्रझाग,--ज: 1. चन्द्रमा, 2. शंख, (-जा)
1. वारुणी (समुद्र से उत्पन्न), 2. लक्ष्मीदेवी,-द्वीपा अबाध (वि.) [न० ब०] 1. अनियन्त्रित, बाधारहित, पृथ्वी,--नगरी कृष्ण की राजधानी द्वारका, नव2. पीड़ा से मुक्त, घः [न० त०] 1. बाघाहीनता
नीतक: चन्द्रमा,--मंडूको मोती की सीप,-शयनः 2. निराकरण का अभाव।
विष्णु,-सारः रत्न । अवाल (वि.) न० त०] 1. जो बालक न हो, जवान, | अब्रह्मचर्य (वि०) [न० ब०] जो ब्रह्मचारी न हो, यम, 2. छोटा नहीं, पूर्ण (जैसा कि चन्द्रमा)।
र्यकम् [न० त०] लम्पटता, कामुकता, 2. मैथुन । अबाह्य (वि०) [न० त०] 1. जो बाहरी न हो, भीतरी | अब्रह्मण्य (वि.) [न० त०-नन+ब्रह्मन् यत् ] 1. 2. (आलं०) परिचित, जानकार।
जो ब्राह्मण के लिए उपयुक्त न हो,--अब्राह्मण्यमअबिम्धनः [ आपः इन्धनं यस्य-ब० स०] वडवाग्नि, वर्ण स्यात् ब्रह्मण्यं ब्रह्मणो हितम्-हला. 2.
(जो समुद्री पानी पर पलती है)-अबिन्धनं वह्निमसौ ब्राह्मणों के लिए शत्रवत्,--ण्यम अब्राह्मणोचित कार्य, बित्ति रघु० १३।४।
या जो ब्राह्मण के लिये योग्य न हो। नाटकों में अबुद्ध (वि०) [न० त०] मूर्ख, नासमझ---अपवादमात्रम- प्रायः यह शब्द 'दुहाई देने के अर्थ में प्रयक्त होता हैबुद्धानाम् सां० सू०।
अर्थात् 'रक्षाकरो' 'सहायता करो' 'एक अत्यन्त भीषण अवधि: (स्त्री०) [न० त०] 1. समझ की कमी, 2. और जघन्य कर्म हो गया है' --अर्थत्य योगनन्दस्य
अज्ञान, मूर्खता । सम० --पूर्व, -पूर्वक (वि०) | व्याडिनाक्रन्दितं पुरा, अब्रह्मण्यमनुत्क्रान्तजीवो योगअनभिप्रेत ( -वं,कम् ) ( क्रि० वि० ) अनजान- स्थितो द्विजः-बृह० क०। पने में, अज्ञात रूप से।
| अब्रह्मन् (वि.) [न० ब०] ब्राह्मणों से वियक्त या अवष-गध (वि.) [न० त०] मूर्ख, मूढ, (पुं०) जड़, विरहित-नाब्रह्मक्षत्रमध्नोति-मनु० ९।३२२ । (स्त्री०-अभुत्) अज्ञान, बुद्धि का अभाव । अभक्तिः स्त्री
अभक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. भक्ति या आसक्ति का अबोध (वि.) [न० ब० ] अनजान, मूर्ख, मूढ, ---- धः । अभाव 2. अविश्वास, सन्दिग्धता। [न० त०] 1. अज्ञान, जडता, समझ का अभाव-- अभक्ष्य (वि०) [न० त०] 1. जो खाने योग्य न हो।
घोपहताश्चान्ये-भर्तृ ० ३१२, निसर्गदुर्बोधमबोध- 2. खाने के लिये निषिद्ध,-क्यम् खाने का निषिद्ध विक्लवा: क्व भूपतीनां चरितं क्व जन्तवः-कि०१६, पदार्थ। 2. न जानना, जानकारी न होना। सम० - गम्य अभग (वि.) [न० ब०] अभागा, बदकिस्मत ।
(वि.) जो समझ में न आ सके, अकल्पनीय। अभद्र (वि.) [न० त०] अंशुभ, कुत्सित, दुष्ट,-द्रम् 1. अब्ज (वि.) [अप्सु जायते-अप+जन्+ड] जल में दुष्कर्म, पाप, दुष्टता 2. शोक ।
पैदा हआ या जल से उत्पन्न,---जम् 1. कमल २. | अभय (वि०) [न० ब०] निर्भय, सुरक्षित, भयमुक्त, एक अरब की संख्या (१०००००००००)। सम० --वैराग्यमेवाभयम्--भर्तृ० ३।३५,--यम् 1. भय का -कणिका कमल का छत्ता,-जः,-भवः,-भः, अभाव, भय से दूर रहना, 2 सुरक्षा, बचाव, भय या
बाह्मण्य (
विके लिए उपभाणो हितम् चित कार्य,
For Private and Personal Use Only