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अप्रतिवीर्य (वि०) न० ब०] अतुलशक्तिशाली। अप्रमद (वि.) न० ब०] आमोद-प्रमोद से विरत, उदास, अप्रतिशासन (वि.) [न० ब०] जिसका प्रतिद्वन्द्वी शासक | अप्रसन्न ।
न हो, जहाँ एक ही व्यक्ति का राज्य हो- रघ० अप्रमा [न० त०] भ्रांत ज्ञान (विप० प्रमा)। ८२७ ।
अप्रमाण (वि.) [नव.] 1. असीमित, अपरिमित 2. अप्रतिष्ठ (वि.) [न.ब.] 1. अस्थिर, अदद, अस्थायी अनधिकृत 3. अप्रामाणिक, अविश्वस्त-श० ५।२५ 2. अलाभकर, व्यर्थ 3. बदनाम ।
–णन [न० त०] जो किसी कार्य में प्रमाण रूप से अप्रतिष्ठानम् [न० त०] अस्थिरता, दृढ़ता का अभाव प्रस्तुत न किया जा सके; अर्थात् वह कार्य जो अप
( आलं. भी )-तर्काप्रतिष्ठानादप्यन्यथानुगेयम् रिहार्य न समझा जाय 2. असंवद्धता। -शारी।
अप्रमाद (वि.) [ न० ब० ] खबरदार, जागरूक-दः अप्रतिहत (वि०) [न० त०] 1. निर्बाध, बाधा रहित, | [न० त०] खबरदारी, अवधान, जागरूकता ।
अप्रतिरोध्य-अस्मदगहे गति:-पंच०१; जम्भता- | अप्रमेय (वि.) [न० त०] 1. अपरिमित. असीमित. मप्रतिहतप्रसरमार्यस्य क्रोधज्योति:-वेणी०१ शक्ति
सीमारहित, 2. जिसका भलीभाँति निश्चय न किया बेजोड़ शक्तिसम्पन्न 2. अक्षुण्ण, अक्षत, अप्रभाक्ति;
जा सके, न समझा जा सके; अज्ञेय-अचित्यस्या-सा बुद्धिरप्रतिहता-भर्तृ० २।४० पंच० ४।२६,
प्रमेयस्य कार्यतत्त्वार्थवित्प्रभुः -- मनु० ११३ -यम् इसी प्रकार चिस, मनस् 3. जो निराश न हो । सम०
ब्रह्म। -नेत्र (वि०) स्वस्थ आँखों वाला।
अप्रयाणिः (स्त्री०) [ ना++या+अनि ] न जाना, अप्रतीत (वि.) [न० त०] 1. अप्रसन्न, अप्रहृष्ट 2. (सा० । प्रगति न करना, (केवल कोसने के लिए ही प्रयुक्त
शा० में) जो स्पष्ट रूप से न समझा जा सके, एक होता है)-अप्रयाणिस्ते शठ भूयात-सिद्धा० (भगवान् प्रकार का शब्ददोष (उस शब्द को 'अप्रतीत' कहते हैं करे, तुम प्रगति न कर सको) दे० अजीवनि, जो किसी विशिष्ट स्थान पर ही प्रयुक्त होता हो, अप्रयुक्त (वि०) [न० त०]1. जो इस्तेमाल न किया
सामान्य प्रयोग का शब्द न हो) । दे० काव्य०७ । गया हो, जो काम में न लाया गया हो, अव्यवहुत, अप्रतानि० त०] कुमारी कन्या, जिसका दान न किया 2. गलत तरीके से काम में लाया गया शब्द 3. गया हो।
बिरल, असामान्य (सा० शा० में), (शब्द के रूप में अप्रत्यक्ष (वि.) [न० ब०] 1. अदृश्य, अगोचर 2. अज्ञात | किसी विशेष अर्थ या लिंग में प्रयुक्त चाहे वह कोशअनुपस्थित ।
कारों से सम्मत ही क्यों न हो,-तथा मन्ये दैवतोऽस्य अप्रत्यय (वि० [न० ब०] 1. आत्मविश्वास रहित, अवि- पिशाचो राक्षसोऽथवा काव्य०७, यहाँ 'देवत' शब्द
श्वासी-(अधि के साथ) बलवदपि शिक्षितानामात्म- "अमरकोश" द्वारा सम्मत होने पर भी कवियों के न्यप्रत्ययं चेत:-श० ११२ 2. अनभिज्ञ 3. (व्या० में) द्वारा पुलिंग में प्रयुक्त नहीं किया जाता--अतः प्रत्यय रहित,-यः 1 आशंका, अविश्वास, विश्वास का यह 'अप्रयुक्त है)। अभाव क्षेत्रमप्रत्ययानाम्-पंच० १११९१ 2. समझ
| अप्रवृत्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. कार्य में न लगना, में न आने वाला 3. जो प्रत्यय न हो---अर्थवदधातुर
प्रगति न करना, किसी बात का न होना 2. आलस्य, प्रत्ययः प्रातिपदिकम्-पा० १२२।४५।।
क्रियाशून्यता, उत्तेजन या प्रोत्साहन का अभाव । अप्रदक्षिणम् (अन्य) [न० त०] बाएँ से दाहिनी ओर। | अप्रसंङ्गः [न० त०] 1. आसक्ति का अभाव 2. संबंध का अप्रधान (वि.) [न० त०] अधीन, गौण, घटिया -आवां अभाव 3. अनुपयुक्त समय या अवसर,-अप्रसङ्गा
तावदप्रधानो--हि० २,-नम् (°ता त्वम्) 1, भिधाने च श्रोतुः श्रद्धा न जायते । अधीनता, गौणस्थिति, घटियापन 2. गौण या अमुख्य अप्रसिद्ध (वि०) [न० त०] 1. अज्ञात, तुच्छ,-कु० कार्य ('अप्रधान' शब्द प्रायः नपुं० में प्रयुक्त होता है ३।१९, 2. असाधारण, असामान्य ।
चाहे वह अकेला प्रयुक्त हो या समास में)। अप्रस्ताविक (वि.) [स्त्री०-की० [न० त०] विषय अप्रधुष्य (वि.) [न० त०] जो जीता न जा सके, अजेय से संबंध न रखने वाला, असंगत (अप्रास्ताविक
--पदाश्रीष भीष्ममत्यन्तशूरं हतं पार्थेनाहवेष्वप्रधृष्यम् -महा०, मालवि० ५।१७ ।
अप्रस्तुत (वि.) [न० त०] 1. जो समय या विषय के उपअप्रभु (वि.) [न० त०] 1. शक्तिहीन, अशक्त 2. अस- युक्त न हो, जो प्रसंगानुकूल न हो, असंगत 2. बेहूदा,
मर्थ, अयोग्य, अक्षमः (संब० या अधिक के साथ)। मुर्खतापूर्ण 3. आकस्मिक, असंबद्ध । सम ० ----प्रशंसाअप्रमस (वि.) [न० त०] जो प्रमादी न हो, खबरदार, एक अलंकार जिसमें विषय से भिन्न अर्थात् अप्रस्तुत सावधान, जागरूक।
का वर्णन करने से प्रस्तुत अर्थात् विषय का संकेत हो
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