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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रतिवीर्य (वि०) न० ब०] अतुलशक्तिशाली। अप्रमद (वि.) न० ब०] आमोद-प्रमोद से विरत, उदास, अप्रतिशासन (वि.) [न० ब०] जिसका प्रतिद्वन्द्वी शासक | अप्रसन्न । न हो, जहाँ एक ही व्यक्ति का राज्य हो- रघ० अप्रमा [न० त०] भ्रांत ज्ञान (विप० प्रमा)। ८२७ । अप्रमाण (वि.) [नव.] 1. असीमित, अपरिमित 2. अप्रतिष्ठ (वि.) [न.ब.] 1. अस्थिर, अदद, अस्थायी अनधिकृत 3. अप्रामाणिक, अविश्वस्त-श० ५।२५ 2. अलाभकर, व्यर्थ 3. बदनाम । –णन [न० त०] जो किसी कार्य में प्रमाण रूप से अप्रतिष्ठानम् [न० त०] अस्थिरता, दृढ़ता का अभाव प्रस्तुत न किया जा सके; अर्थात् वह कार्य जो अप ( आलं. भी )-तर्काप्रतिष्ठानादप्यन्यथानुगेयम् रिहार्य न समझा जाय 2. असंवद्धता। -शारी। अप्रमाद (वि.) [ न० ब० ] खबरदार, जागरूक-दः अप्रतिहत (वि०) [न० त०] 1. निर्बाध, बाधा रहित, | [न० त०] खबरदारी, अवधान, जागरूकता । अप्रतिरोध्य-अस्मदगहे गति:-पंच०१; जम्भता- | अप्रमेय (वि.) [न० त०] 1. अपरिमित. असीमित. मप्रतिहतप्रसरमार्यस्य क्रोधज्योति:-वेणी०१ शक्ति सीमारहित, 2. जिसका भलीभाँति निश्चय न किया बेजोड़ शक्तिसम्पन्न 2. अक्षुण्ण, अक्षत, अप्रभाक्ति; जा सके, न समझा जा सके; अज्ञेय-अचित्यस्या-सा बुद्धिरप्रतिहता-भर्तृ० २।४० पंच० ४।२६, प्रमेयस्य कार्यतत्त्वार्थवित्प्रभुः -- मनु० ११३ -यम् इसी प्रकार चिस, मनस् 3. जो निराश न हो । सम० ब्रह्म। -नेत्र (वि०) स्वस्थ आँखों वाला। अप्रयाणिः (स्त्री०) [ ना++या+अनि ] न जाना, अप्रतीत (वि.) [न० त०] 1. अप्रसन्न, अप्रहृष्ट 2. (सा० । प्रगति न करना, (केवल कोसने के लिए ही प्रयुक्त शा० में) जो स्पष्ट रूप से न समझा जा सके, एक होता है)-अप्रयाणिस्ते शठ भूयात-सिद्धा० (भगवान् प्रकार का शब्ददोष (उस शब्द को 'अप्रतीत' कहते हैं करे, तुम प्रगति न कर सको) दे० अजीवनि, जो किसी विशिष्ट स्थान पर ही प्रयुक्त होता हो, अप्रयुक्त (वि०) [न० त०]1. जो इस्तेमाल न किया सामान्य प्रयोग का शब्द न हो) । दे० काव्य०७ । गया हो, जो काम में न लाया गया हो, अव्यवहुत, अप्रतानि० त०] कुमारी कन्या, जिसका दान न किया 2. गलत तरीके से काम में लाया गया शब्द 3. गया हो। बिरल, असामान्य (सा० शा० में), (शब्द के रूप में अप्रत्यक्ष (वि.) [न० ब०] 1. अदृश्य, अगोचर 2. अज्ञात | किसी विशेष अर्थ या लिंग में प्रयुक्त चाहे वह कोशअनुपस्थित । कारों से सम्मत ही क्यों न हो,-तथा मन्ये दैवतोऽस्य अप्रत्यय (वि० [न० ब०] 1. आत्मविश्वास रहित, अवि- पिशाचो राक्षसोऽथवा काव्य०७, यहाँ 'देवत' शब्द श्वासी-(अधि के साथ) बलवदपि शिक्षितानामात्म- "अमरकोश" द्वारा सम्मत होने पर भी कवियों के न्यप्रत्ययं चेत:-श० ११२ 2. अनभिज्ञ 3. (व्या० में) द्वारा पुलिंग में प्रयुक्त नहीं किया जाता--अतः प्रत्यय रहित,-यः 1 आशंका, अविश्वास, विश्वास का यह 'अप्रयुक्त है)। अभाव क्षेत्रमप्रत्ययानाम्-पंच० १११९१ 2. समझ | अप्रवृत्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. कार्य में न लगना, में न आने वाला 3. जो प्रत्यय न हो---अर्थवदधातुर प्रगति न करना, किसी बात का न होना 2. आलस्य, प्रत्ययः प्रातिपदिकम्-पा० १२२।४५।। क्रियाशून्यता, उत्तेजन या प्रोत्साहन का अभाव । अप्रदक्षिणम् (अन्य) [न० त०] बाएँ से दाहिनी ओर। | अप्रसंङ्गः [न० त०] 1. आसक्ति का अभाव 2. संबंध का अप्रधान (वि.) [न० त०] अधीन, गौण, घटिया -आवां अभाव 3. अनुपयुक्त समय या अवसर,-अप्रसङ्गा तावदप्रधानो--हि० २,-नम् (°ता त्वम्) 1, भिधाने च श्रोतुः श्रद्धा न जायते । अधीनता, गौणस्थिति, घटियापन 2. गौण या अमुख्य अप्रसिद्ध (वि०) [न० त०] 1. अज्ञात, तुच्छ,-कु० कार्य ('अप्रधान' शब्द प्रायः नपुं० में प्रयुक्त होता है ३।१९, 2. असाधारण, असामान्य । चाहे वह अकेला प्रयुक्त हो या समास में)। अप्रस्ताविक (वि.) [स्त्री०-की० [न० त०] विषय अप्रधुष्य (वि.) [न० त०] जो जीता न जा सके, अजेय से संबंध न रखने वाला, असंगत (अप्रास्ताविक --पदाश्रीष भीष्ममत्यन्तशूरं हतं पार्थेनाहवेष्वप्रधृष्यम् -महा०, मालवि० ५।१७ । अप्रस्तुत (वि.) [न० त०] 1. जो समय या विषय के उपअप्रभु (वि.) [न० त०] 1. शक्तिहीन, अशक्त 2. अस- युक्त न हो, जो प्रसंगानुकूल न हो, असंगत 2. बेहूदा, मर्थ, अयोग्य, अक्षमः (संब० या अधिक के साथ)। मुर्खतापूर्ण 3. आकस्मिक, असंबद्ध । सम ० ----प्रशंसाअप्रमस (वि.) [न० त०] जो प्रमादी न हो, खबरदार, एक अलंकार जिसमें विषय से भिन्न अर्थात् अप्रस्तुत सावधान, जागरूक। का वर्णन करने से प्रस्तुत अर्थात् विषय का संकेत हो fo For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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