________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 628 ) पुष्यः पुष-क्यप् ] 1. कलियुग 2. पौष का महीना | पूजित (भू० क. कृ.) [ पुज+क्त | 1. सम्मानित, 3. आठवाँ नक्षत्र (तीन तारों का पंज), इसे 'तिष्य' | आदत 2. आराधित, प्रतिष्टित 3. स्वीकृत 4. संपन्न नाम से भी पुकारा जाता है / सम०-रथः-पुष्य रथ / / 5. अनुशंसित, सिफारिश किया हुआ। पुष्पलकः [ पुष्य+लक+अच् ] दे० 'पुष्पलक'। | पूजिल (वि०) [ पूज+इलच ] श्रद्धेय, आदरणीय,----लः पुस्तम् [ पुस्त+घ ] 1. पलस्तर करना, लेप करना, / देव। रेखाचित्र बनाना 2. मिट्टी का शिल्पकार्य, मिट्टी के पूज्य (वि.) [ पूज-- यच | आदर का अधिकारी, खिलौना बनाना 3. मिट्टी, काष्ठ या किसी धातु की | सम्मान के योग्य, आदरणीय, श्रद्धेय,--ज्यः 1. श्वसुर / बनी कोई वस्तु 4. पुस्तक, हाथ से लिखी पुस्तक / | पूण् ( चुरा० उभ० पूणयति ते) एक जगह ढेर सम-कर्मनु (नपुं०) लीपना-पोतना, चित्रकारी लगाना, रांचय करना, राशि लगाना। करना। पूत् (अव्य०) फूंक मारने की अनुकृति का सूचक शब्द / पुस्तक,-कम्, पुस्ती [ पुस्त+कन्, डीप् वा ] पोथी, हाथ पूत (भ० क० क.) | | क्त] 1. शद्ध किया हआ, की लिखी पुस्तक / छाना हुआ, धोया हुआ (आल० भी) दृष्टिपूतं पू (म्वा० दिवा०,-आ०, क्या० उभ०-पवते, पुनाति, पुनीते न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं विषेत्, सत्यपूतां वदेवाचं मन: पूत, प्रेर०-पावयति-इच्छा० पुपुषति, पिपविषते) पूतं समाचरेत् -- मनु० 6 / 46 2. पिछोडा हआ, 1. पवित्र करना, छानना, शुद्ध करना (शा० और फटका हुआ 3. प्रायश्चित्त किया हुआ 4. योजनाकृत, आल०) अवश्यपाव्यं पवसे. भट्टि० 6 / 64, 3 / 18, आविष्कृत 5. सड़ने वाला, गला-सड़ा, दुर्गवमय, ..पुण्याश्रमदर्शनेन तावदात्मानं पुनीमहे-श० 1, बदबूदार,--तः 1. शंख 2. सफेद कुश घास, तम् मनु० 11105, 2162, याज्ञ० 1158, रघु० 1153 मचाई। सम० आत्मन् (वि०) पवित्र मन वाला भग० 10 // 31 2. निथारना 3. भूसी साफ करना, (पुं०) विष्णु का विशेषण, कतायी इन्द्र की पत्नी फटकना 4. प्रायश्चित्त करना, परिमार्जन करना शची, ऋतुः इन्द्र का विशेषण भट्टि० 8 / 29, 5. पहचानना, विवेक करना 6. सोचना, उपाय ढूंढना, ... तणम् सन्द कुश घास, द्रः पलाश वृक्ष, धान्यम् आविष्कार करना। तिल पाप, पाप्यन् निप्पाप, पाप से रहित,- फल: पूगः [ पू+गन्, कित 11. समच्चय, ढेर, संग्रह, मात्रा कटहल का वृक्ष / -शि० 9 // 64 2. समाज, निगम, संघ–याज्ञ० पूतना [पूणिच्य -टाप | एक राक्षसी जो कृष्ण 2 / 30, मनु० 3 / 151 3. सुपारी, पूगी - रघु० 4 / 44 को जब वह अबोध बालक था, मारने का प्रयत्न करती 6 / 63, 13 / 17 4. प्रकृति, गुण, स्वभाव,-गम् हुई, स्वयं उनके द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुई 2. राक्षसी सुपारी / सम०-पात्रम् 1. थूकने का बर्तन, पीकदान - मा पूतनात्वमुपगाः शिवतातिरेधि मा० 9 / 49 / 2. पान-दान,—पोटम्, पीडम थूकने का बर्तन, सम० अरिः, सूदनः, हन् (पु०) कृष्ण के --फलम् सुपारी, वैरम् अनेक लोगों से शत्रुता। विशेषण / पूज् (चुरा० उभ०-पूजयति-ते, पूजित) 1. आराधना | पूति (वि०) पुय-1-क्तिच् / बदबूदार, सड़ा हुआ, दुर्गध करना, पूजा करना, अर्चना करना, सम्मान करना, युक्त, दुर्गध देनेवाला भग०१७।१०, ति: (स्त्री०) सादर स्वागत करना-यदपूपजस्त्वमिह पार्थ मुरजितभ- 1. पवित्रीकरण 2. दुर्गंध, सड़ांद 3. बदबू ... नपुं० पूजितं सताम् --शि० 15 / 14, मनु०४।३१, भट्टि. 1. गंदा पानी 2. पोप, मवाद / सम० अंड: कस्तुरी 2 / 26, याज्ञ० 2 / 14 2. उपहार देना, भेट चढ़ाना, मृग,.-काष्ठम् देव दारु वृक्ष,--काष्ठकः सरल वृक्ष, -मनु० 7 / 203, सम्-1. पूजना, अर्चना करना, --गंध (वि०) बदबूदार, दुर्गधयुक्त, दुर्गव देने वाला, सम्मान करना 2. उपहार देना, (दक्षिणादि से) सड़ा हुआ (.....धः) 1. सड़ांद, दुर्गध, बदबू 2. गंधक सम्मानित करना। (धम) 1. जस्ता, रांगा 2. गंधक, * गंधि (वि०) पूजक (वि.) (स्त्रो०-जिका) [ पूज्+ण्वुल् ] सम्मान बदबूदार, दुर्गध देनेवाला, नासिक (वि०) दुर्गधमय करने वाला, आराधक, पूजा करने वाला, आदर / नाक वाला,-वक्त (वि०) जिसके मुंह से बदबू आती करने वाला--आदि। हो, वणम् दुषित फोड़ा (जिसमें से पीप निकले) / पूजनम् [ पूज्+ल्युट ] पूजना, सम्मान करना, आराधना | पूकित (वि.) पूति+के+क] सड़ा हुआ, बदबूदार, करना-भग० 1714 / सड़ागला,- कम लोद, मल, विष्ठा / पूजा [पूज्+अ+टाप् ] पूजा, सम्मान, आराधना, | पूतिका [पूतिक+टाप्] एक प्रकार की जड़ी। सम० आदर, श्रद्धांजलि-रघु० 1179 / सम० --अहं (वि०) --मुखःदो कोष वाला शंख / / श्रद्धेय, आदरणीय, पूज्य, श्रद्धास्पद / | पून (वि.) [पू-| क्त तस्य नः] नष्ट किया गया। याज्ञः पूतनापू अबोध बालक बात हुई 2. राक्षर JHARTE For Private and Personal Use Only