________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 962 ) 3 / 20, तु० त्रिविष्टप। सम० ----हारिन् (वि०) जो / विष्कारः [वि-+स्फुर+णिच्, उकारस्य आत्वम्] 1. धनुष संसार को प्रसन्न करता है- भर्तृ० 2 / 25 / / की टंकार 2. वरपराहट / विबन्ध (भू.क. कृ०)[वि+स्तंभ+क्त ] 1. पक्का | विष्य (वि.) [विशेण वध्यः-विष+यत] विष देकर जमाया हुआ, भली भांति आश्रित 2. टेक लगा हुआ, | मारे जाने योग्य, जिसको जहर देकर मार सहारा दिया हुआ 3. अवरुद्ध, सबाध 4. लकवा के दिया जाय / रोग से प्रस्त, गतिहीन / विष्यम्बः [वि+स्यन्द्+घश] बहना, टपकना। विभः [वि+स्तंभ+घञ ] 1. पक्की तरह से जमाना | विष्व (वि०) पीडाकर, क्षतिकर, उत्पातकारी। 2. अवरोध, रुकावट, बाघा : मूत्रावरोध, मलावरोध | विष्वच्, विष्वञ्च (वि०) [विषुम् अञ्चति- विपु+अंच् कोष्ठबद्धता 4. लकवा 5. ठहरना, टिकाव / स्किन्] (कर्तृ०, ए. व. पु. विष्वङ, स्त्री विषूची विवरः [वि.+स्तृ+अप्, षत्वम् ] 1. आसन, (स्टूल, नपुं० विष्वक) 1. सर्वत्र जाने वाला, सर्वव्यापक,--- कुर्सी आदि)--रघु० 8 / 18 2. तह, परत, बिस्तरा विष्वङ्मोहः स्थगयति कथं मन्दभाग्यः करोमि (कुश आदि घास का) 3. मुट्ठीभर कुशाघास 4. यज्ञ ... उत्तर०३।३८, मा० 9 / 20 2. भागों में अलग में ब्रह्मा का आसन 5. वृक्ष / सम०-- भाज् (वि०) अलग करने वाला 3. भिन्न, (विश्वक शब्द क्रिया आसन पर बैठा हुआ, आसन पर विराजमान-कु. विशेषण के रूप में प्रयक्त होता है तो इस का अर्थ 772, -श्रवस् (पुं०) विष्णु या कृष्ण का विशेषण है .. 'सर्वत्र' 'सबओर' 'चारों तरफ' कि० 15 / 59, -शि० 14 / 12 / पञ्च० 212, मा० 5 / 4, 9 / 25) / सम० - सेनः विष्टिः (स्त्री० [विष+क्तिन् ] 1. व्याप्ति 2. कर्म, (विष्वक्सेनः, या विष्वक्षेणः) विष्णु का विशेषण व्यवसाय 3. भाड़ा, मजदूरी 4. बेगार 5. प्रेषण --साम्यमाप कमलासखविष्वकसेनसेवितयुगान्त6. बरकवास / पयोधे:--शि० 1055, विष्वक्सेनः स्वतनुमविशत्सर्व विष्ठलम् [विदूरं स्थलम् - प्रा० स०] दूरवर्ती स्थान, लोकप्रतिष्ठाम् .. रघु० 15 / 103, - प्रिया लक्ष्मी फासले पर स्थित / का नाम। विष्ठा [वि+स्था+क+टाप, षत्वम् ] 1. मल, लीद, | विष्वणनम्, विष्वाणः [वि+स्वन् + ल्युट्, घन वा, पालाना, ---मनु० 3 / 180, 1091 2. पेट / | षत्वणत्वे) भोजन करना, खाना। विष्णुः [विष् + नुक् ] देवत्रयी में दूसरा, जिसको संसार | | विष्वय (घ) च् (वि०) (स्त्री० विष्वद्वीची) का पालनपोषण सौंपा गया है, (इस कर्तव्य को भिन्न [विष्व+अञ्च+किन् अद्रि आदेशः] सर्वग, भिन्न अवतार धारण करके संपन्न किया जाता है, सर्वव्यापक, विश्वदीचीविक्षिपन सैन्यवीची:-शि० अवतारों के विवरण के लिए दे० अवतार) इस शब्द 18 / 25, विष्वद्रीच्या भुवनमभितो भासते यस्य की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है - यस्माद्विश्वमिदं भासा भामि० 4 / 18 / सर्व तस्य शक्त्या महात्मनः, तस्मादेवोच्यते विष्ण- | विसi (दिवा० पर० विस्यति) डालना, फेंकना, भेजना। विशधातोः प्रवेशनात् --- 2. अग्नि 3. पुण्यात्मा 4. विष्णु- ii (भ्वा० पर० वेसति) जाना, हिलना-जुलना / स्मति के प्रणेता। सम० कांची एक नगर का | विस दे० 'बिस'। नाम, -कमः विष्णु के पग, गुप्तः चाणक्य का नाम, विसंयुक्त (भू० क. कृ०) [वि+सम्+युज+क्त) -तलम् एक प्रकार औषधियों से बनाया गया तेल, अलग-अलग किया हुआ, पृथक् पृथक् किया हुआ। -देवत्या प्रत्येक पक्ष (चान्द्रमास के) की एकादशी | विसंयोगः [वि+सम्+युज्+घा] अलग-अलग होना, और वादशी,-पदम् 1. आकाश, अन्तरिक्ष 2. क्षीर- बिछोह, वियोग / सागर 3. कमल, ..पवी गंगा का विशेषण,-पुराणम् विसंवादः [वि+सम्+वद्+घश] 1. घोखा, प्रतिज्ञा अठारह पुराणों में से एक पुराण, प्रीतिः (स्त्री०) भंग करना, निराशा 2. असंगति, असंबद्धता, असहविष्णुपूजा को स्थापित रखने के लिये ब्राह्मणो को मति 3. वचनविरोध। अनुदान के रूप में दी गई शुल्क से मुक्त भूमि, | विसंवादिन (वि.) [विसंवाद+इनि] 1. निराश करने --रषः गरुड का विशेषण, रिंगी बटेर, लवा, वाला, धोखा देने वाला 2. असंगत, विरोधात्मक -लोकः विष्णु का संसार,-वल्लभा 1. लक्ष्मी का 3. भिन्न मत रखने वाला, असहमत--रषु० 12067 विशेषण 2. तुलसी का पौधा, -वाहनः, बाह्यः 4. जालसाज, धूर्त, मक्कार / गरह के विशेषण। विसंष्ठल (वि.) [वि+सम्+स्था+उलच्] 1. अस्थिर, विपदः [वि+स्पन्द+ ] घड़कन, स्पन्दन, धक-धक विक्षुब्ध 2. असम / / होना। | विसंकट (वि०) [विशिष्टः संकटो यस्मात्--प्रा०३०] For Private and Personal Use Only