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हिंसा, उत्पीडन 4.गिरा हआ, नीच कर्म। सम.-- {अपचरितम् [अप-चर-+क्त] दोष, दुष्कृत्य, दुष्कर्म-. अथिन् (वि.) वषी, दुरात्मा,-गिर् (स्त्री०-गीत) आहोस्वित् प्रसवो ममापचरितविष्टभितो बीरुषाम्---शब्दः गालियाँ, भर्त्सना दायक तथा अपमानजनक श० ५।९। शब्द।
अपचारः [अप+च+घञ] 1. प्रस्थान, मृत्यु-सिंहषोअपकारक,-कारिन (वि.) [ अप+कृ-- एल णिनिर्वा ] . षश्च कांतकापचारं निर्भिद्य-दश० ७२, 2. कमी,
क्षति पहुँचाने वाला, अनिष्टकारी, कष्टप्रद, अहितकारी, अभाव 3. दोष, अपराध, दुष्कर्म, दुराचरण, जुर्म
पंच. १२९५, शि० २।३७-कः,-री बरा करनेवाला। -राजन्प्रजासु ते कश्चिदपचारः प्रवर्तते-रषु० १५।४७ अपकृति-तु. अपकार, इसी प्रकार अपक्रिया-आघात, 4. हानिकर या कष्टप्रद आचरण, क्षदि दोष चोट, अनिष्ट, कुकृत्य, ऋणपरिशोध।
या कमी-नापचारमगमन् क्वचित्क्रिया:-शि०१४॥३२, अपकृष्ट (वि.) [अप+कृष्+क्त] 1. खींच कर बाहर 6. अस्वास्थ्यकर या अपथ्य-कृतापचारोऽगि परैरना
किया गया, दूर हटाया गया 2. नीच, कमीना, अधम विष्कृतविक्रियः, असाध्यः कुरुते कोपं प्राप्ते काले गयो (विप० उत्कृष्ट) न कश्चिद्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि यथा। शि० २।८४, (यहाँ अ° भी आषात या क्षति भजते--श० ५।१०,-टः कौवा ।
का अर्थ रखता है)। अपकौशली- समाचार, सूचना
अपचारिन् (वि.) [अप+घर+णिनि] कष्ट पहुंचाने अपक्तिः (स्त्री०) [न+पच्-क्तिन् ] 1. कच्चापन, वाला, दुष्कर्म करने वाला, दुष्ट, बुरा। परिपक्वता का अभाव 2. अपच, अजीर्ण ।
अपचितिः (स्त्री०) [अप+चि+क्तिन् 1. हानि, छीजन, अपकमः[ अप+क्रम्+घ ] 1. दूर चले जाना, पलायन, नाश 2. व्यय 3. प्रायश्चित्त, सम्पूर्ति, पाप का प्राय
पीठ दिखाना, 2. (समय का) बीतना,--(वि०) श्चित्त 4. सम्मानन, पूजन, आदर प्रदर्शन, पूजा-विहि' 1. क्रमरहित 2. अनियमित, गलत क्रम वाला।
तापचितिमहीभूता-शि० १६८९ (इसका अर्थ 'हानि' अपक्रमणम्-कामः [ अप+क्रम् + ल्युट, घा वा] पीछे और 'नाश' भी है)। मुड़ना, हटना, उड़ान, भागना।
अपच्छत्र (वि०) [ब० स०] बिना छाते के, छतरी अपक्रोशः [ अप+क्रुश्+घञ ] गाली, भर्त्सना । ' के बिना। अपक्ष (व.) [न० ब० 1. पखा स या उड़ान का शाक्त । अपसछाय (वि०) [ब० स०] 1. छायाहित 2. चमकसे रहित, 2. किसी पक्ष या दल से संबंध न रखने वाला
रहित, धुंधला ---पः जिसकी छाया न होती हो, 3. जिनके मित्र समर्थक न हों 4. निष्पक्ष, पक्षरहित ।
अर्थात् परमात्मा; तु.न. १४२१, श्रियं भजन्ता सम--पातः निष्पक्षता,-पातिन वि० पक्षपात रहित । कियदस्य देवाश्छाया नलस्यास्ति तथापि नैषाम, अपक्षयः [ अप+क्षि-|-अच ] छोजना, ह्रास, नाश।
इतीरयन्तीव तया निरक्षि सा (छाया) नैषधेन त्रिदमपक्षेपः-क्षेपणम् [ अप+क्षिप्+घञ ल्युट वा ] 1. दूर शेषु तेषु ।
करता या नीचे फेंकना 2. फेंक देना, नीचे रखना, अपच्छेदः–छेवनम् [अप+छिद्+घञ, ल्युट् वा] 1 वैशेषिक दर्शन में निदिष्ट पांच कर्मों में से एक कर्म,
काट कर दूर कर देना, 2. हानि 3. बाधा। दे० कर्मन् ।
| अपजयः [ अप+जि+अच् ] हार, पराजय । अपगंड: [ अपसि (वैध) कर्मणि गंड:त्याज्यः ] जिसने वय- अपजातः । अप+जन + क्त ] कुपुत्र, जो गुणों की दृष्टि स्कता प्राप्त कर ली है, दे० अपोगंड ।
से माता पिता से हीन हो-माततुल्यगुणी जातस्त्वनुअपगमः-मनम् । अप+ गम् + अप्, ल्युट् वा 1. दूर जातः पितुः समः, अतिजातोऽधिकस्तस्मादपजातोड
जाना, हट जाना, वियोग, समागमा: सापगमा:-हि० धमाधमः-सुभा० ४।६५, 2. गिरना, हटना, ओझल होना-पुराणपत्रा- अपज्ञानम् [ अप+जा+ल्युट् ] मुकरना, गुप्त रखना। पगमादन्तर- रघु० ३।७, 3. मृत्यु, मरण ।
अपञ्चीकृतम् [न० त०] जिसका पंचीकरण न हुआ हो, अपगतिः (स्त्री०) [अप+ गम् +-क्तिन् ] दुर्भाग्य ।
पंचमहाभूतों का सूक्ष्म रूप।। सपगरः [ अप-ग---अप] 1. निंदा, भर्त्सना 2. निन्दक, | अपटी [ अल्पः पटः पटी-न० त०] 1. कपड़े का पर्दा भर्त्सक ।
या दीवार विशेष रूप से 'कनात' जो तम्बू को चारों अपगजित (वि.) [ अप गर्ज+क्त ] (बादल की भांति) ओर से घेर लेती है 2. पर्दा। सम० --क्षेपः गर्जनाशून्य।
(अपटक्षेपः) पर्दे के एक ओर गायन, मेषेण (= अपचयः [अप+चि+अच्] 1. न्यूनता, कमी, ह्रास, छोजन, अकस्मात्) जल्दी से पर्दे को एक ओर करके, (यह
गिरावट (आलं. भी)-कफापचयः-दश० १६०, 2. शब्द बहधा रंगमंच के निदेशार्थ प्रयुक्त होता है तथा नाश, असफलता, दोष ।
भय, उतावली या घबराहट के कारण हड़बड़ाहट के
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