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। ४६२ ) रूप से झगड़ाल और दुष्टस्वभाव वाली स्त्री के लिए। कार्य करने वाला, मन्थर, प्रत्येक कार्य को देर में करने प्रयुक्त होता है),--- तपस् ( वि० ) उज्ज्वल धर्म- बाला, टालने वाला, देर लगाने वाला--दीर्घसूत्री निष्ठा से युक्त, उत्कट भक्ति वाला,-पिङ्गलः सिंह, विनश्यति-पंच० ४।।
–रसः कैचुवा,-लोचन: बिल्ली,-लोहम् पीतल, | दोधिका [दीर्घ+क+टाप, इत्वम्] 1. एक लम्बा सरोकाँसा।
वर, जलाशय-मालवि० २।१३, रघु० १६।१३ 2. कूओं दीप्तिः (स्त्री.) [दीप+क्तिन] 1. उजाला, चमक, प्रभा,
या बावड़ी। आभा 2. सौंदर्य की उज्ज्वलता, अत्यन्त मनोरमता
दीर्ण (वि०) [+क्त] 1. चीरा हुआ, फाड़ा हुआ, टुकड़े (दीप्ति और कान्ति के अन्तर के लिए दे० कान्ति)
.. टुकड़े किया हुआ 2. डरा हुआ, भयभीत । 3. लाख 4. पीतल।
दु (स्वा० पर०-दुनोति, दूत, या दून) 1. जलाना, आग वीप्र (वि.) [ दीप्+र] चमकीला, जगमगाता हुआ में भस्म करना-भट्टि० १४१८५ 2. सताना, कष्ट चमकदार,--प्रः आग।
देना, दुःख देना उद्भासोनि जलेजानि दुन्वन्त्यदयितं दीर्घ (वि.) [+घञ्] (म० अ०-द्राधीयस्, उ० अ०
जनम्-भट्टि० ६७४, ५।९८, १७।९९, (मुखं) तव -द्राधिष्ठ) 1. (समय और स्थान की दृष्टि से)
विश्रान्तकथं दुनोति माम्--रघु० ८1५५ 3. पीड़ा लम्बा, दूर तक पहुँचने वाला,-दीर्घाक्षं शरदिन्दु
देना, शोक पैदा करना-वर्णप्रकर्षे सति कणिकारं कान्तिवदनम् --मालवि० २।३, दीर्धान् कटाक्षान
दुनोति निर्गन्धतया स्म चेतः---कु० ३।२८ 4. (अक०) —मेघ० ३५, दीर्घापांग आदि 2. लम्बी अवधि का कष्टग्रस्त होना, पीड़ित होना--देहि सुन्दरि दर्शनं टिकाऊ, उबा देने वाला...दीर्घयामा त्रियामा-मेघ०
मम मन्मथेन दुनोमि-गीत० ३,---कर्मवा० (या १०८, विक्रम० ३।४, श० ३।१५ 3. (आह की
दिवा० आ०) कष्टग्रस्त होना, पीड़ित होना -नायातः भौति) गहरा-अमरु. ११, दीर्घमुष्णं च निःश्वस्य
सखि निर्दयो यदि शठस्त्वं दूति किं दूयसे-गीत०७, 4. (स्वर की भाँति) लम्बा, जैसा कि 'काम' में 'आ' | कु० ५।१२, ४८, रघु० ११७०, १०।२१ । 5. उत्तुंग, ऊँचा, उन्नत,-र्घम् (अव्य०) 1. चिर, | दुःख (वि.) [दुष्टानि खानि यस्मिन, दुष्टं खनति–खन् चिरकाल तक 2. अत्यन्त 3. अधिक,--: 1. ऊँट, +ड, दुःख +अच् वा तारा०] पीड़ाकर, अरुचिकर, 2. दीर्घस्वर । सम-अध्वगः दूत, हरकारा,-अहन् दुःखमय-सिंहानां निनदाः दुःखाः श्रोतुं दुःखमतो वनम् (पुं०) ग्रीष्म,-आकार (वि०) बड़े आकार का, -रामा० 2. कठिन, बेचैन-खम् 1. खेद, रंज, ---आयु-आयुस् (वि.) दीर्घजीवी, लम्बी आय विषाद, दुःख, पीड़ा, वेदना-सुखं हि दुःखान्यनुभूय वाला,—आयुधः 1. भाला 2. कोई लम्बा हथियार शोभते--मृच्छ० ११०-यदेवोपनतं दुःखात्सुखं तद्र3. सूअर,- आस्यः हाथी,- कण्ठः,- कण्ठकः,-कन्धरः सवत्तरम्-विक्रम० ३।२१, इसी प्रकार 'दुःखसुख' सारस,-काय (वि०) (क़द में) लम्बा,-केशः रीछ, 'समदुःखसुख' 2. कष्ट, कठिनाई-शृंगार० १२, ('बड़ी —गतिः,-ग्रीवः, -घाटिकः, सङ्घः, ऊँट,--जिह्वः कठिनाई से' 'मुश्किल से' 'कष्ट से' अर्थ को प्रकट साँप, सर्प,-तपस् (५०) अहल्या के पति गौतम का करने के लिए 'दुःखम्' तथा 'दुःखेन' शब्द क्रिया विशेविशेषण --रघु० १११३४,-तरुः,-दण्डः,-द्रुः ताड़ षण के रूप में प्रयुक्त किये जाते है-श० ७१३, वृक्ष,—तुण्डी छछुन्दर,-दशिन् (वि०) विवेकी, समझ- भग० १२१५, रघु० १९१४९, हि० १११५८) । सम. दार, दूरदर्शी, दूर तक की बात सोचने वाला-पंच० —अतीत (वि०)दुःखों से मुक्त, अन्तः मोक्ष,---कर ३।१६८ 2. मेधावी, बुद्धिमान, (पुं०) 1. रीछ 2. उल्ल, (वि०) पीड़ाकर, कष्टदायक,—ग्रामः 'दुःखों का दृश्य' --.-नाद (वि.) लगातार देर तक शोर मचाने वाला, । सांसारिक अस्तित्व, संसार,-छिन्न (वि०) 1. सख्त, (-दः) 1. कुत्ता 2. मुर्गा 3. शंख,-निद्रा 1. लम्बी कठोर 2. पीड़ित, दुःखी, प्राय, बहुल (वि०) कष्ट नींद 2. चिरशयन, मृत्यु-रघु० १२।११,-पत्रः ताड़ और दुःखों से पूर्ण,-भाज (वि०) दुःखी, अप्रसन्न, का वृक्ष,-पादः बगुला,-पावपः 1. नारियल का पेड़ -लोकः सांसारिक जीवन, सतत यातना का दृश्य, 2. सुपाड़ो का पेड़ 3. ताड़ का वृक्ष,--पष्ठः साँप, संसार,-शील वि०)जो दूसरों को प्रसन्न न कर सके, -बाला एक प्रकार का हरिण, चमरी, (इसकी पूंछ बुरे स्वभाव का, चिड़चिड़ा--रघु० ३।६। से चौरी बनती हैं),-मारुतः हाथी,-रतः कुत्ता,--रदः दुःखित,-दुःखिन् (वि०) (स्त्री०-नी) दुःख +इतच, सूअर,--रसनः साँप,--रोमन् (पुं०) भालू,-वक्त्रः इनि वा] दुःखी, कष्टग्रस्त, पीड़ित 2. बेचारा, विषण्ण, हाथी, सक्थ (वि.) लम्बी जंधाओं वाला,-सत्रम् दयनीय । चिरकाल तक चलने वाला सोमयज्ञ (त्रः) सोमयाजी कलम् [दु+ऊलच्, कुक] बुना हुआ रेशम, रेशमीवस्त्र, -रघु० १८०,---सूत्र,—सूत्रिन् (वि०) शनैः २ |" अत्यन्त महीन वस्त्र-श्यामलमृदुलकलेवरमण्डनमधि
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