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१०।३८, मालवि० ३।५ 4 प्राप्त किया हुआ, अधिकार में किया हुआ ।
आक्रान्तिः (स्त्री० ) [ आ + क्रम् + क्तिन्] 1 ऊपर रखना अधिकार में करना, पददलित करना - आक्रान्तिसंभावित पादपीठम् - कु० २।११ 2. पराभूत करना, दबाना, लादना 3. आरोहण, आगे बढ़ जाना 4. शक्ति, शौर्य, बल ।
१३८ )
आक्षिप्तिका [ आ + क्षिप् + क्त + टाप्, क, इत्वम्] रंगमंच पर आते हुए किसी पात्र के द्वारा गान विशेषविक्रम० ४ ।
आक्रामक: [अ + म् + ण्वुल् ] आक्रमणकर्ता, हमलावर । क्रीड:-डम् [ आ + क्रीड् + घञ] 1. खेल, क्रीडा, आमोद 2. प्रमदवन, क्रीडोद्यान- आक्रीडपर्वतास्तेन कल्पिताः स्वेषु वेश्मसु कु० २१४३, कमप्याक्रीडमासाद्य तत्र विशिश्रमिषुः - दश० १२ ।
आक्रुष्ट (भू० क० कृ० ) [ आ + कुश् + क्त ] 1. डांट-डपट किया हुआ, निन्दित, तिरस्कृत, कलंकित शि० १२ । २७, 2. ध्वनित, चीत्कारपूर्ण 3. अभिशप्त, ष्टम् 1. जोर की पुकार 2. घोर शब्द या रुदन, गालीगलौजयुक्त भाषण - मार्जारमूषिकास्पर्श आकुष्टे क्रोधसं
भव काव्या० ।
आक्रोशः - शनम् [आ + क्रुश् + घञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. पुका रना या जोर से चिल्लाना, उच्चस्वर से रोना या शब्द 2. निन्दा, कलंक, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना - याज्ञ० २।३०२३. अभिशाप, कोसना 4. शपथ लेना । आक्लेदः [ आ + क्लिद् + वञ ] आर्द्रता, गीलापन,
छिड़काव । आक्षद्यूतिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अक्षद्यूतेन निर्वृत्तम् इति - ठक्] जूए से प्रभावित या समाप्त किया हुआ । आक्षपणम् [आ+क्षप् + ल्युट् ] 1. उपवास रखना, उपवास द्वारा आत्मशुद्धि, संयम ।
आक्षपाटिक: [अक्षपट + ठक् ] 1. द्यूतक्रीडा का निर्णायक, द्यूतगृह का अधीक्षक 2. न्यायाधीश । आक्षपाद ( वि० ) ( स्त्री० - दी ) [ अक्षपाद + अण् ] अक्षपाद या गौतम का शिष्य – दः न्यायशास्त्र का अनुयायी, नैयायिक, तार्किक ।
आक्षारः [ आ + र् + णिच्+घञ] कलंक लगाना, ( व्यभिचारादिकका) दोषारोपण करना । आक्षारणम् णा [ आ + र् + णिच् + ल्युट् ] कलंक, दोषारोपण (विशेषतः व्यभिचार का ) ।
आक्षारित (भू० क० कृ० ) [ आ + र् + णिच् + क्त ] 1. कलंकित 2. दोषी, अपराधी ।
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आक्षिक (वि० ) ( स्त्री० की ) [ अक्षेण दीव्यति जयति जितं वा अक्ष + ठक् ] 1. पासों से जुआ खेलने वाला, 2. जए से जीता हुआ 3. जूए से संबंध रखने वाला - आक्षिक ऋणम् - मनु० ८ । १५९, जुए में किया हुआ कर्जा --- कम् 1. जूए में जीता हुआ धन 2. जूए का ऋण ।
आक्षी
(वि० ) [ आ + क्षी - क्त नि०] 1. जिसने कुछ मद्यपान किया हुआ हो 2. मस्त, नशे में चूर । आक्षेपः [ आ + - क्षिप् + ञ्ञ 1. दूर फेंकना, उछालना, खींचकर दूर करना, छीन लेना- अंशुकाक्षेपविलज्जितानाम् – कु० १।१४, पीछे हटना 2. भर्त्सना, झिड़कना, कलंक लगाना, अपशब्द कहना, अवज्ञापूर्ण निन्दा - ' प्रचंडतया --- उत्तर० ५।२९, विरुद्धमाक्षेपवचस्तितिक्षितम् कि० १४।२५ 3. मन की उचाट, मन का खिंचाव - विषयाक्षेपपर्यस्तबुद्धेः - भर्तृ० ३।४७, २३. 4. प्रयुक्त करना, लगाना, भरना (जैसे कि रंग ) – गोरोचनाक्षेपनितान्तगौरैः कु० ७ १७, 5. संकेत करना, ( किसी दूसरे शब्दार्थ को ) मान लेना, समझ लेना – स्वसिद्धये पराक्षेपः - काव्य ०२, 6. अनुमान 7. धरोहर 8 आपत्ति या संदेह 9. (सा० शा० में) एक अलंकार जिसमें विवक्षित वस्तु को एक विशेष अर्थ जतलाने के लिए प्रकटतः दबा दिया जाय या निषिद्ध कर दिया जाय- काव्य० १०, सा० द० ७१४, और रसगंगाधर का आक्षेपप्रकरण |
आक्षेपकः [आ + क्षिप् + ण्वुल् ] 1. फेंकनेवाला, 2 उचाट करने वाला, कलंक लगाने वाला, दोषारोपण करने वाला 3. शिकारी ।
आक्षेपणम् [आ+क्षिप् + ल्युट्] फेंकना, उछालना । आक्षोट:- ड: [ आ + अक्ष् + ओटू (ड्) + अण् ] अखरोट की लकड़ी । दे० 'अक्षोट' ।
आक्षोदनम् [आच्छोदनम् ] आखेट, शिकार । आखः, आखनः [ आ + खन्ड, घ वा ] फावड़ा,
खुर्पा |
आखण्डल: [ आखण्डयति भेदयति पर्वतान् - आ + - खण्ड् +
डलच्, डस्य त्वम्---तारा०] इन्द्र - आखण्डल: काममिदं बभाषे कु० ३ | ११, तमीशः कामरूपाणामत्याखण्डलविक्रमम् - रघु० ४।८३, मेघ० १५ । आखनिकः [ आ + न् + इकन् ] 1. खोदने वाला, खनिक 2. चूहा या मूसा 3. सूअर 4. चोर 5. कुदाल | आखरः [ आखन् + डर ] 1. फावड़ा 2. खोदने वाला,
खनिक |
आखातः तम् [ आ + खन् + क्त ] प्राकृतिक तालाब, या जलाशय, खाड़ी ।
आखानः [ आ + न् + घञ् ]1. चारों ओर से खोदना
2. फावड़ा 3. कुदाल, बेलदार ।
आखु: [ आ + न् + कु डिच्च ] 1. मूषिक, चूहा, छछूंदर, - अत्तुं वांछति शांभवो गणपतेराखुं क्षुधार्तः फणी पंच० १।१५९, 2. चोर : 3. सूअर 4. फावड़ा
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