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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वम् ] चलनी (नपुं०) | 2. आर्द्र, गीला, तर वरच ] अन्धकारमय, विन्य ( ४२९ ) तिi (भ्वा० आ० (तिज का नितांत-इच्छार्थक) तिति-| सहायता से मारा था (इसी युद्ध में कैकेयी ने मछित क्षते, तितिक्षित) 1. सहन करना, वहन करना, साथ दशरथ के प्राणों को रक्षा की, और उनसे दो वर प्राप्त निर्वाह करना, साहस के साथ भुगतना-तितिक्षमाण- किये ; इन्हीं वरों से कैकेयी ने बाद में राम को १४ स्य परेण निन्दाम्-मालवि० १११७, तांस्तितिक्षस्व वर्ष का वनवास दिलाया। भारत-भग०२।१४, महावी० २।१२, कि० १३१६८, तिमिडिल: [तिमि-गिल+खश, मम् ] एक प्रकार की मनु०६।४७, ii (चुरा० उभ० या प्रेर०-तेजयति मछली जो 'तिमि' मछली को निगल जाती है-भामि० -ते, तेजित) 1. पैना करना, पनाना-कुसुमचापम- ११५५, अशन:, गिल: एक ऐसी बड़ी मछली जो तेजयदंशुभिः रघु० ९।३९ 2. उकसाना, उत्तेजित तिमिङ्गिल कोभी निगल जाती है---तिमिङ्गिलगिलोकरना, भड़काना। ऽप्यस्ति तगिलोऽप्यस्ति राघवः । तितमः [तन् + डउ, द्वित्वम्, इत्वम् ] चलनी (नपुं०) | तिमित (वि०)[ तिम् --क्त ] 1. गतिहीन, स्थित, निश्चल छाता। तितिक्षा [ तिज्+सन्+अ+टाप, द्वित्वम् ] सहनशक्ति, तिमिर (वि०) [तिस+किरच ] अन्धकारमय,–विन्यसहिष्णुता, त्याग, क्षमा। स्यन्तीं दृशौवि तिमिरे पथि-गीत० ५, बभवस्तिमिरा तितिक्षु (वि०) [तिज्न-सन्+उ, द्वित्वम् ] सहिष्णु, दिशः -महा०,-र:---रम् अन्धकार-तन्नशं तिमिरसहन करने वाला, सहनशील। मपाकरोति चन्द्र:-श० ६।१९, कु. ४।११, शि० तितिभः [तितीतिशब्देन भणति तिति+भण+ड] ४५७ 2. अन्धापन 3. जंग, मुर्चा । सम०-अरिः, 1. जुगनू 2. एक प्रकार का कीडा, इन्द्रवधूटी, वीर- -नुद् (पुं०)-रिपुः सूर्य । .बहोटो। | तिरश्ची | तिर्यक् जातिः स्त्रियां ङीष् ] जानवर, पशु या तितिरः, तित्तिरः[ तिति इति शब्दं राति ददाति रा+क पक्षी (स्त्री०)। चकोर, तीतर। | तिरश्चीन (वि.) [तिर्यक+ख ] 1. टेढ़ा, पार्श्वस्थ, तित्तिरिः [ तित्तीति शब्द रौति—रु बा० डि तारा०] तिरछा-गतं तिरश्चीनमनूरुसारथे:--.-शि० ११२, 1. तीतर 2. एक ऋषि जो कृष्णयजुर्वेद का प्रथम -..-यथा तिरश्चीनमलातशल्यम्- उत्तर० ३।३५ अध्यापक था। 2. अनियमित। तिथः [ तिज थक, जलोपः ] 1. अग्नि 2. प्रेम 3. समय | तिरस (अव्य तिरति दष्टिपथं-त+असून ] बांकेपन ___4. वर्षा ऋतु या शरद । से, टेढ़ेपन से, तिरछेपन से;-स तिर्यङ् यस्तिरोंऽचति तिथि: (पुं० या स्त्री०) [अत + इथिन, पृषो० वा डीप ] --अमर० 2. के बिना, के अतिरिक्त 3. चुपचाप, 1. चान्द्र दिवस,--तिथिरेव तावन्न शुध्यति-मुद्रा० ५, प्रच्छन्न रूप से, बिना दिखाई दिये (श्रेण्य साहित्य में कु०६।९३, ७.१ 2.-१५ की संख्या। सम०---क्षयः 'तिरस' शब्द का स्वतन्त्र प्रयोग नहीं मिलता-यह 1. अमावस्या 2. वह तिथि जो आरम्भ होकर सूर्यो- मुख्यतः प्रयुक्त होता है (क) 'कृ' के साथ-ढकना, दय से पूर्व ही या दो सूर्योदयों के बीच में ही समाप्त घृणा करना, आगे बढ़ जाना-(रघु० ३।८,१६।२०, हो जाती है,-पत्री पञ्चाङ्ग,-प्रणीः चाँद,-वृद्धिः मनु० ४।४९, अमरु ८१, भट्टि० ९।६२, हि० ३१८) वह दिन जिसमें तिथि दो सूर्योदयों के अन्दर पूरी (ख) 'धा' के साथ-ढकना, छिपाना, अभिभूत करना, होती है। अन्तर्धान होना (रघु० १०४८, १२९१) और (ग) तिनिशः (0) एक वृक्ष विशेष-दात्य हैस्तिनिशस्य कोटर- 'भू' के साथ अन्तर्धान होना (रघु०१६।२०, भट्टि० वति स्कन्धे निलीय स्थितम्-मा० ९।७। ६७१, १४१४४) । सम०-करिणः-कारिणी 1. परदा, तिन्तिडः,-डी, तिन्तिडिका, तिन्तिडिक: [=तिन्तिडी पुषो०, धूंघट-तिरस्करिण्यो जलदा भवन्ति-कु० १।१४, तिन्तिडी+कन् टाप, ह्रस्वः, तिम्+ईकन् नि.] मालवि० ११ 2. कनात, कपड़े का पर्दा,-कारः इमलो का वृक्ष । -क्रिया 1. छिपाना, अन्तर्धान करना, घृणा,-कृत तिन्दुः, तिन्दुक:-तिन्दुल: [तिम् + कु०नि०, तिन्दु+कन्, पक्षे (वि०) 1. जिसकी अवहेलना की गई हो, अपमानित, कस्य ल: ] तेन्दू का पेड़। निरादृत 2. गहित 3. गुप्त, ढका हुआ,---धानम् तिम् (भ्वा० पर०---तेमति, तिमित) आर्द्र करना, गीला 1. अन्तर्धान होना, दूर हटाना ---अथ खल तिरोधानकरना, तर करना। मधियाम–गङ्गा० १८ 2. आच्छादन, अवगुण्ठन, तिमिः । तिम्+इन् | 1 समुद्र 2. एक बड़ी विशालकाय | म्यान,-भावः ओझल होना,-हित (वि.) 1. ओझल मछलो, ह्वेल मछली-रघु०१३।१०। सम०-कोषः हुआ, अंतहित 2. ढका हुआ, छिपा हुआ, गुप्त । समुद्र,-ध्वजः एक राक्षस जिसे इन्द्र ने दशरथ की । तिरयति (ना० घा० पर०) 1. छिपाना, गुप्त रखना For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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