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2. बाधा डालना, रोकना, रुकावट डालना, दृष्टि से ] न खल शोभयति स्म वनस्थली न तिलकस्तिलकः ओझल करना -तिरयति करणानां ग्राहकत्वं प्रमोहः प्रमदामिव --रघु० ९।४१ 2. शरीर पर पड़ी चित्ती --मा० ११४० बारम्बारं तिरयति दशोरुद्गमं बाष्प- या खाल पर हआ कोई नैसगिक चिह्न,--कः,-कम पूरः-३५ 3. जोतना।
1. चन्दन की लकड़ी या उबटन आदि से किया गया तिर्यक (अब्ध०) [ तिरस्+अञ्च+क्विप, तिरस: तिरि चिह्न --मुखे मधुश्रीस्तिलकं प्रकाश्य-कु० ३।३०
आदेशः, अञ्चेनलोप: 1 टेढ़ेपन से, तिरछेपन से, तिरछा कस्तूरिकातिलकमालि विधाय सायं-भामि० २।४, या टेढी दिशा में-विलोकयति तिर्यक-काव्य. १०, १११२१ 2. किसी वस्तु का अलङ्कार ('पूज्य' 'प्रमुख' मेघ० ५१, कु० ५।७४।
'श्रेष्ठ' अर्थ में समास के अन्त में प्रयुक्त),---का एक तिर्यच (वि.) (स्त्री० तिरश्ची, विरलतः-तिर्यची) !
प्रकार का हार,-कम् 1. मूत्राशय 2. फेफड़े 3. एक [तिरस । अञ्च-क्विप्, तिरस: तिरि आदेशः,
प्रकार का नमक । सम० आश्रयः मस्तक । अञ्चेर्नलोपः ] 1. टेढ़ा, आड़ा, अनुप्रस्थ, तिरछा.
तिलन्तुदः [तिल-+तुद+खश्, मुम्] तेली। 2. मुड़ा हुआ, वक्र -- (पुं० नपुं०) जानवर (जो मनुष्य तिलशः (अव्य०) [ तिल-शस् | तिल तिल करके, कण की भाँति सीधा न चल कर, टेढ़ा चलता है) निम्न __ कण करके, अत्यन्त अल्प परिमाण में। जाति का या बुद्धिहीन जानवर -- बन्धाय दिव्ये न तिलित्सः (पुं०) एक बड़ा साँप । तिरश्चि कश्चित् पाशादिरासादितपौरुषः स्यात्-नै० | तिल्वः [तिल+वन् ] लोध का पेड़ । ३।२०, कु० ११४८ । सम० ---अन्तरम् आरपार मापा तिष्ठद्गु (अव्य०) [तिष्ठन्त्यो गावो यस्मिन् काले, तिष्ठत हआ मध्यवर्ती स्थान, चौड़ाई,--अयनम् सूर्य द्वारा +गो नि०] गौओं के दोहने का समय (अर्थात् वार्षिक परिक्रमण,-ईक्ष (वि०) तिरछा देखने वाला, सायंकाल का समय डेढ़ घण्टा बोतने पर)-अतिष्ठद्गु ...जातिः (स्त्री०) पशु-पक्षी की जाति (विप० मनुष्य जपन् सन्ध्याम् भट्टि० ४।१४, (तिष्ठद्गु-रात्रैः जाति), -प्रमाणम् चौड़ाई,-प्रेक्षणम् तिरछी आँख प्रथमनाडिका)। करके देखना,--योनिः (स्त्री०) पश-पक्षो की सृष्टि | तिष्यः [तुष्+क्यप् नि० 1. २७ नक्षत्रों में आठवाँ नक्षत्र, या वंश-तिर्यग्योनौ च जायते-मनु० ४।२००,-स्रोतस् इसे 'पुष्य' भी कहते हैं 2. पौष भास (चान्द्र), -व्यम् (पुं०) जानवरों की दुनियां, पशु सृष्टि ।
कलियुग। तिलः [तिल+क] 1. तिल का पौधा-नासाभ्येति तिल- तीक (भ्वा० आ०-- तीकते) जाना, हिलना-जुलना, तु०
प्रसूनपदवीम् - गीत० १० 2. तिल के पौधे का बीज 'टीक'। -नाकस्माच्छाण्डिलोमाता विक्रोणाति तिलस्तिलान्, तीक्ष्ण (वि.) [ति+स्न, दोघः। 1. पैना (सभी अर्थों लुचितानितरर्येन कार्यमत्र भविष्यति । पञ्च० २।५५ में), तीखा, शि० २।१०९ 2. गरम, उष्ण (किरणों 3. मस्सा, धब्बा 4. छोटा कण, इतना बड़ा जितना की भांति) ऋतु० १११८ 3. उत्तेजक, जोशीला कि तिल-। सम.--अम्बु, उदकम् तिल और जल 4. कठोर, प्रबल, मजबत (उपाय आदि), 5. रूखा, (दोनों को मिला कर मृतकों का तर्पण किया जाता चिड़चिड़ा 6. कठोर, कटु, कड़ा, सख्त,- मनु० ७११४० है) श० ३, मनु० ३।२२३,-उत्तमा एक अप्सरा 7. अनिष्टकर, अहितकर, अशुभ 8. उत्सुक 9. बुद्धिका नाम, ओदनः,-नम् तिल और दूध मिश्रित भात, मान, चतुर 10. उत्साही, उत्कट, ऊर्जस्वी 11. भक्त, --कल्क: तिल को पीस कर बनाई गई पीठी, °जः आत्मत्याग करने वाला,-क्ष्णः 1. जवाखार 2. लम्बी तिलों को खली,-कालकः मस्सा, तिल के बराबर मिर्च 3. काली मिर्च 4. काली सरसों या राई,-क्ष्णम् शरीर पर होने वाला काला दारा-किट्रम, -खलि: 1. लोहा 2. इस्पात 3. गर्मी, तीखापन 4. यद्ध, लड़ाई (स्त्रो०)-खली,-चूर्णम् तेल के निकालने के पश्चात् 5. विष 6. मृत्यु 7. शस्त्र 8. समद्री नमक 9. क्षिप्रता। बची हुई तिलों को खल-तण्डुलकम् आलिङ्गन (जिस सम०---अंशुः 1. सूर्य 2. आग, आयसम् इस्पात, प्रकार तिल चावल मिलते हैं, इसी प्रकार आलिङ्गन - उपायः प्रवल साधन, मजबूत तरकीब,-कन्दः प्याज, में दो शरोर मिलते हैं),-तैलम तिलों का तेल,---पर्णः - कर्मन् (वि०) उद्यमी, उत्साही ऊर्जस्वी, दंष्ट्र: तारपीन, (-र्णम्) चन्दन की लकड़ी, --पर्णी 1. चन्दन व्याघ्र,-धारः तलवार,--पुष्पम् लौंग,-पुष्पा 1. लौंग का पेड़ 2. धूप देना 3. तारपीन,--रस: तिलों का का पौधा 2. केवड़े का पौधा,-बुद्धि (वि०) तीव्रतेल,-स्नेहः तिलों का तेल,-होमः वह होम जिसमें बुद्धि, तेज, चतुर, घाघ, कुशाग्रबुद्धि, - रश्मिः सूर्य, तिलों को आहुति दी जाय ।
-रसः 1. जवाखार 2. जहर का पानी, जहर - शत्रुतिलक तिल-कन् 1. सुन्दर फूलों का एक वृक्ष;-आक्रान्ता प्रयुक्तानां तीक्ष्णरसदायिनाम् --- मुद्रा० ११२, लौहम्
तिलकक्रियापि तिलकर्लीनद्विरेफाञ्जन:-मालवि० ३।५।। इस्पात,---शूकः जो।
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