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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होम (दिवा० पर० तीम्यति) गोला हाना र तीर्थों के दर्शनार्थ निकला हा, पानी की ( ४३१ ) तीम् (दिवा० पर० तीम्यति) गोला होना, तर होना। । तीथिकः तीर्थ+-ठन् ] तीर्थ यात्री, वह संन्यासी ब्राह्मण जो तीरम् [ तीर-+-अच् ] 1. तट, किनारा-नदीतोर, सागर- | तीर आदि 2. उपान्त, कगर, कोर या धार, ----र: 1. एक | तीवरः त+वरच्] 1. समुद्र 2. शिकारी 3. राजपुत्री को प्रकार का बाज 2. सीसा 3. टोन। किसो क्षत्रिय (वर्णसंकर) के संयोग से उत्पन्न वर्णतीरित (वि.) तीर-|-वत | सुलझाया हुआ, समंजित, साक्ष्य संकर सन्तान । के अनुसार निर्णीत,-तम किसी बात का सोच विचार । तोत्र (वि०) [ तोब - रक् ] 1. कठोर, गहन, पंना, तेज़, तीर्ण (वि.)[त-क्त ] 1. पार किया हुआ, पार पहुँचा प्रचण्ड, कड़वा, तोखा, उग्र-विलङधिताधोरणतीव्रयत्नाः हुआ 2. फैलाया हुआ, प्रसारित 3. पीछे छोड़ाहुआ, --रघु० ५।४८, घोर या प्रचण्ड प्रयत्न-उत्तर० ३। आगे बढ़ा हुआ। ३५ 2. गरम, उष्ण 3. चमकीला 4. व्यापक 5. अनन्त, असोन 6. भयानक डरावना,--व्रम् 1. गरमी, तीखापन तीर्थम् [त--थक ] 1. मार्ग, सड़क, रास्ता, घाट 2. नदी 2. किनारा 3. लोहा, इस्पात 4. टोन, रांगा,---प्रम् में उतरने का स्थान, घाट (नदी के किनारे बनी हई सीढ़ियाँ) --विषमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसा (अव्य०) प्रचण्ड रूप से, तेजी से, अत्यन्त । सम० मिवाशयः --कि० २।३, (यहाँ तीर्थ' का अर्थ 'उपचार -- आनन्दः शिव का विशेषण,---गति (वि०) शीघ्र गामी, फ़ीला पौरुषम् 1. साहसपूर्ण शौर्य 2. शरया साधन' भी है) .. तीर्थ सर्वविद्यावताराणाम् ---का० वीरता,-संवेग (वि०) 1. दृढ़-आवेगयक्त, दृढनिश्चयी ४४ 3. जलस्थान 4. पवित्रस्थान तीर्थयात्रा का उपयुक्त स्थान, मन्दिर आदि जो किमी पुण्यकार्य के लिए 2. अत्युग्र, अत्यन्त तेज़ ।। अर्पित कर दिया गया हो (विशेष कर वह जो किसी तु (अव्य०) [तुद् --डु] (वाक्य के आरम्भ में नितान्त पावन नदी के किनारे स्थित हो)--शुचि मनो यद्यस्ति प्रयोगाभाव, प्रायः प्रथम शब्द के पश्चात् प्रयोग) तीन किम् -भर्त० २५५ रघु० ११८५ 5. मार्ग, 1. विरोध सुचक अव्यय - अर्थ---'परन्तु' 'इसके विपमाध्यम, साधन - तदनेन तीन घटेत-आदि --मा० रोत' 'दूसरी ओर' तो भी'-स सर्वेषां सुखानामन्तं १ 6. उपचार, तरकीब 7. पुण्यात्मा, योग्यव्यक्ति, ययो, एक तु सुतमुखदर्शनसुखं न लेभे-का० ५९, श्रद्धा का पात्र, उपयुक्त आदाता ---4व पुनस्तादृशस्य विपर्यये तु पितुरस्या: समीपनयनमवस्थितमेव - श० तीर्थस्य साधोः संभवः उत्तर० १, मनु० ३११०३ ५, (इस अर्थ में 'तु' बहुधा 'कि' और 'परं' के साथ 8. धर्मोपदेष्टा, अध्यापक --मया तीर्थादभिनयविद्या जोड़ दिया जाता है और 'किन्तु' तथा 'परन्तु' तु के शिक्षिता--मालवि० १ 9. स्रोत, मूल 10. यज्ञ विपरीत वाक्य के आरम्भ में प्रयक्त होते हैं) 2. और 11. मन्त्री 12. उपदेश, शिक्षा 13. उपयुक्त स्थान या अब, तो, और एकदा तु प्रतिहारी समुपसृत्याब्रवीत् क्षग 14. उपयुक्त या यथापूर्व रोति 15. हाथ के कुछ ----का० ८, राजा तु तामायाँ श्रुत्वाऽब्रवीत् -१२ भाग जो देवताओं और पितरों के लिए पवित्र होते है 3. के सम्बन्ध में, के विषय में, की बाबत -प्रवयंतां 16. दर्शनशास्त्र के विशिष्ट सिद्धान्त वादी 17. स्त्रियो ब्राह्मणानुद्दिश्य पाकः, चन्द्रोपरागं प्रति तु केनापि विप्रचित लज्जा 18. स्त्रोरज 19. ब्राह्मण 20. अग्नि,-र्थः लब्धासि --मुद्रा० १ 4. कभी कभी इससे 'भेद' या सम्मान सूचक प्रत्यय जो सन्तों और संन्यासियों के नामों 'श्रेष्ठ गुण' का पता लगाता है - मष्टं पयो मृष्टतरं तु के साथ जोड़ा जाय-.-उदा० आनन्दतीर्थ आदि । सम० दुग्धम -गण. 5. कभी कभी यह 'बलात्मक' अव्यय के -उदकम पवित्र जल..--तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः रूप में प्रयुक्त होता है-भीमस्तु पाण्डवानां रौद्रः, शुद्धिमहतः - उतर० १११३,-करः 1. जैन अर्हत्, गण. 6. कभी कभी केवल यह पद पूर्ति के लिए ही धर्मशास्त्रोपदेष्टा, जैन सन्त (इस अर्थ में 'तोर्थकर' प्रयुक्त होता है -निरर्थकं तुहीत्यादि पूरणकप्रयोजनम् भी) 2. संन्यासी 3. अभिनव दार्शनिक सिद्धान्त या --चन्द्रा०२।६। । धर्मशास्त्र का प्रवर्तक 4. विष्ण,-काकः,---ध्वांक्ष:, तुक्खारः, तुखारः, तुषारः (पुं०) विन्ध्याचल पर रहने वाली ---वायसः तीर्थ का कौवा अर्यात लोलप तीर्थोपजीवी एक जाति के लोग-तु० विक्रमांक० १८१९३ । ---भूत (वि.) पावन, पवित्र, -- यात्रा किसी पवित्र तुङ्ग (वि.) [ तुफ़-घा, कुत्वम् ] 1. ऊँचा, उन्नत, स्थान के दर्शनार्थ जाना, पावनस्थानों की यात्रा, लम्बा, उत्तुंग, प्रमुख-जलनिधिमिव विधुमण्डलदर्शनतर---राजः प्रयाग, इलाहाबाद,---राजिः ---जी (स्त्री०) लिततुङ्गतरङ्गम् -गीत० ११, तुङ्ग नगोत्संगभिवारुबनारस का विशेषण,-वाकः सिर के बाल,-विधिः रोह ---रघु०६।३ ४१७०, शि० २।४८, मेघ० १२१६४ (क्षौर आदि) संस्कार जो किसी तीर्थ स्थान पर किये 2. दोघं 3. गुम्बजदार 4. मुख्य, प्रधान 5. उग्र, जायँ, --सेविन (वि०) तीर्थ में वास करने वाला जोशीला,----गः 1. ऊँचाई, उन्नतता 2. पहाड़ 3. चोटी, (पुं०) सारस । शिखर 4. बुधग्रह 5. गैडा 6. नारियल का पेड़ । सम० For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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